HBSE 9th Class Social Science Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

Haryana State Board HBSE 9th Class Social Science Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Social Science Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

HBSE 9th Class History पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Questions and Answers

पहनावे का सामाजिक इतिहास HBSE 9th Class प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पोशाकों और सामग्री में आए बदलावों के मुख्य कारण निम्नलिखित बताए जा सकते हैं।

1. फ्रांसीसी क्रांति ने समाज के सभी वर्गों में समानता की दृष्टि से भिन्न-भिन्न पोशाक शैलियों के अंतर को समाप्त कर दिया।
2. राजनीतिक प्रकार के चिहों का प्रभाव पोशाक पर भी पड़ने लगा। लाल टोपी स्वतंत्रता का प्रतीक बन गयी। लम्बे-लम्बे पायजामों का रिवाज चल पड़ा।
3. पोशाक शैलियों व खानपान सामग्री में सादगी का अनुसरण किया जाने लगा।

Class 9 History Chapter 8 HBSE प्रश्न 2.
फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस में सम्प्युचरी कानूनों का सम्बन्ध पोशाक व खाने-पीने की सामग्री के प्रयोग से जुड़ा था। समाज के निम्न वर्गों को विशेष शैली की पोशाक पहननी पड़ती थी। यह निम्न वर्ग के लिए विशेष रूप से लागू की जानी होती थी। अमीर व शाही लोगों के लिए ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं थे।

प्रश्न 3.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दा फर्क बताइए।
उत्तर-
1. यूरोपीय पोशाक संहिता में टोपी के पहनावे को महत्व दिया जाता था जबकि भारतीय पोशाक संहिता में पगड़ी को।
2. यूरोपीय पुरुष पतलून व कमीज का तथा स्त्रियाँ फ्रॉक आदि को पहनते हैं जबकि भारत मे पुरुष धोती-कुर्ता तथा स्त्रियाँ साड़ी-ब्लाउज़ पहनती हैं।

प्रश्न 4.
1850 में अंग्रेी अफसर बेंजमिन हाईन ने बंगलोर में बनने वाली चीजों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे
अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े।
मोटी छींट
मखमल
रेशमी कपड़े
बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के पकड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे, और क्यों?
उत्तर-
मखमल कपड़ा प्रयोग में बाहर चला गया। इसे शरीर पर पहनने से आराम का अहसास नहीं होता था।

प्रश्न 5.
उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता हैं?
उत्तर-
19वीं शताब्दी में भारत में औरतें पारंपरिक कपड़े पहनती थीं क्योंकि उनका अधिकतर काम घर की चार दीवारी तक ही सीमित रहता था। दूसरी ओर पुरुष पश्चिमी शैली के कपड़े पहनने लगे थे क्योंकि वह अंग्रेजों के साथ संपर्क में भी आ गए थे तथा उनके कार्यालयों में नौकरी भी करने लगे थे।
स्त्रियों को अपनी पारंपरिक पोशाक बनाए रखने के जरूरत इस कारण थी कि भारत में प्रचलित रीति-रिवाज़ स्त्रियों से जुड़ी पोशाक आदि में बदलाव का विरोध करते थे अतः स्त्रियों की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा कमतर रही थी।

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प्रश्न 6.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गाँधी ‘राजद्रोही मिडिल वकील’ से ज्यादा कुछ नहीं हैं, और ‘अधनंगे फकीर का दिखावा’ कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गाँगधी की पोशाक की अतीकत्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर-
चर्चिल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड का प्रधानमंत्री थे। वह अपने स्वरूप में एक साम्राज्यवादी प्रकार का व्यक्ति था। दूसरी ओर महात्मा गाँधी एक सीधा-सादा करोड़ों भारतीयों का एक लोकप्रिय नेता था वह भारत जैसे गरीब देश के लोगों की भांति कम से कम कपड़ों को पहनता था जो अतिआवश्यक होते थे। चर्चिल गाँधी जी की लोकप्रियता से काफी दुःखी था।

प्रश्न 7.
पूरे राष्ट्र को खादी पहनाने का गाँधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर-
महात्मा गांधी (1869-1948) स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति कहलाए जाते है। उनकी जन-अपील थी। वह करोड़ों भारतीयों के लिए एक पथ-प्रदर्शक थें वह एक साधारण व सरल भारतीय थे तथा अन्य गरीब भारतीयों की भाँति सादगी का जीवन व्यतीत करते थे। राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान उन्होंने खादी के प्रयोग पर जोर दिया था। उनके भारतीयों ने उनका अनुसरण करते हुए खादी के कपड़े पहनने आरंभ कर दिये। पुरुषों व स्त्रियों ने खादी का प्रयो शुरु कर दिया। परंतु कुछेक नेता खादी का प्रयो गनहीं करते थे। डॉ. अम्बेडकर पश्चिमी शैली के ही कपड़े पहनते थे मोतीलाल नेहरु ने धोती कुर्ता पहनना शुरु कर दिया था। कुछेक महिला-नेताओं जैसे सरोजिनी नायडू, कमला नेहरु आदि ने छपी खादी साड़ियाँ पहननी आरंभ कर दी थीं।

HBSE 9th Class History पहनावे का सामाजिक इतिहास Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
जनवादी क्रांतियों से पूर्व यूरोप के लोग कौन-सी वेशभूषा धारण करते थे?
उत्तर-
क्षेत्रीय वेशभूषा।

प्रश्न 2.
जैकाबियन क्लब के सदस्य खुद को क्या कहा करते थे?
उत्तर-
सौ-कुलौत्स।

प्रश्न 3.
सौ-कुलौत्स का क्या अर्थ होता है?
उत्तर-
बिना घुटने वाले।

प्रश्न 4.
फ्रांसीसी तिरंगे के कौन-कौन से रंग है?
उत्तर-
नीला, सफेद व लाल।

प्रश्न 5.
फ्रांस में स्वतंत्रता की निशानी को कैसे व्यक्त किया जात था?
उत्तर-
लाल टोपी।

प्रश्न 6.
फ्रांस में पहनावे की सादगी किसका भाव व्यक्त करती थी?
उत्तर-
समानता का।

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प्रश्न 7.
कार्बेट का अर्थ बताइए।
उत्तर-
कचुस्त भीतरी कुर्ती को कार्बेट कहा जाता है।

प्रश्न 8.
‘स्टेज’ क्या होते हैं? ।
उत्तर-
महिलाओं के पोशाक के एक भाग के रूप में स्टेज उनके शरीर को कसकर बाँध रखते हैं। .

प्रश्न 9.
रैशनल ड्रेस सोसाइटी ने कब काम करना आरंभ किया था?
उत्तर-
इंग्लैंड में, 1881 में।

प्रश्न 10.
अमेरिकन महिला मताधिकार एसोसिएशन का नेतृत्व किसने किया था?
उत्तर-
श्रीमती स्टेनटन।

प्रश्न 11.
एक ऐसोसिएशन की किसी अन्य महिला के नाम बताइए।
उत्तर-
लुसी स्टोन।

प्रश्न 12.
ट्रावकोर देशी रियासत में उच्च जाति के नयरण ने किन पर आक्रमण किया था?
उत्तर-
शानार जाति (जिन्हें नादार भी कहा जाता था) की महिलाओं पर।

प्रश्न 13.
भारतीय नागरिक सेवा का पहला भारतीय कौन था?
उत्तर-
स्तेन्दरनाथ टैगोर।

प्रश्न 14.
‘ब्राहमिक साड़ी’ कौन पहना करते थे?
उत्तर-
ब्रह्मो समाज की महिलाएँ सदस्य ब्रोझो साड़ी को पहना करती थीं।

प्रश्न 15.
20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में उच्चतर जाति की महिलाओं में किस प्रकार की वेशभूषा प्रचलित थी?
उत्तर-
पश्चिमी जूते तथा लम्बे ब्लाउज।

प्रश्न 16.
20वीं शताब्दी के बारंभ में भारत के प्रसिद्ध सूती केंद्र कहाँ स्थित थे?
उत्तर-
सूरत, मछलीपूरम, मुर्शिदाबाद।

प्रश्न 17.
सम्चुअरी कानूनों का क्या मक्सद था?
उत्तर-
फ्रांस में 1294 से 1789 तक सम्चुअरी कानून लागू थे। इन कानूनों का मकसद था समाज के निचले तबकों के व्यवहार का नियंत्रण : उन्हें खास-खास कपड़े पहनने, खास व्यजन खाने और खास तरह के पेय (मुख्यतः शराब) पीने और खास इलाकों में शिकार खेलने की मनाही थी। इस तरह मध्यकालीन फ्रांस में साल में कोई कितने कपड़े खरीद सकता हैं, यह सिर्फ उसकी आमदनी पर निर्भर नहीं था बल्कि उसके सामाजिक ओहदे से भी तय होता था। परिधान सामग्री भी कानून-सम्मत होती थी।

प्रश्न 18.
फ्रांसीसी कांति के बाद लोगों के पहनावे में क्या परिवर्तन आए?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति के बाद पहनावे को लेकर पहले जो समाज के वर्गों में भेद था, वह क्रांति के बाद समाप्त हो गया। मर्द-औरतें दोनों ढीले-ढाले आरामदेह कपड़े पहनने लगे। फ्रांसीसी तिरंगे के तीन रंग-नीला सफेद और लाल-लोकप्रिय हो गए और इन्हें पहनना देशभक्त नागरिक की निशानी बन गया। पोशाके के रूप में दूसरे राजनीतिक प्रतीक भी पहने जाने गले। स्वतंत्रता की निशानी लाल टोपी, लंबी-पतलून और तिरछी टोपियाँ जिन्हें कॉकेड कहा जाता था। पहनावे की सादगी से समानता का भाव प्रकट होता था।

प्रश्न 19.
1830 के दशक में महिलाओं की पोशाक को लेकर जो आंदोलन चले, उनका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
इंग्लैंड में 1830 के दशक तक महिलाओं ने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ना शुरु कर दिया। बोल्ड बांदोलन के जोर पकड़ने पर पोशाक-सुधार की मुहिम भी चल पड़ी। महिला पत्रिकाओं ने बताना शुरु कर दिया कि तंग लिबास व कॉर्सेट पहनने से युवतियों में कैसी-कैसी बीमारियां और विरूपताएं आ जाती हैं। ऐसे पहनावे जिस्मानी विकास में बाधा पहुंचाते हैं, इनसे रक्त-प्रवाह भी अवरुद्ध होता है। मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ भी झुक जाती है। डॉक्टरों ने बताया कि महिलाएँ आम तौर पर कमोरी की शिकायत लेकर आती है, बताती हैं कि शरीर निढाल रहता है, जब-तब बेहोश हो जाया करती हैं।

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प्रश्न 20.
उदाहरण देकर बताओं कि भारत में सम्प्चुअरी कानूनों के न होने के बावजूद पहनावे, रहन-सहन आदि की रुकावटें क्यों थीं?
उत्तर-
भारत में यूरोपीय किस्म के सम्प्चुअरी कानून नहीं थे, लेकिन यहां खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन की अपनी सख्त सामाजिक संहिताएँ थी। उच्च जाति व निम्न जाति के लोग क्या पहनेंगे क्या खाएँगे, यह जाति प्रथा द्वारा तय था। और इन आचार-संहिताओं के पीछे कानून की ताकत थी। इसलिए जब भी पहनावे में बदलाव से इन आचारों का उल्लंघन हुआ, हिंसक सामाजिक प्रतिक्रियाएँ हुई। मई 1822 में दक्षिण भारत की त्रावणकोर रियासत में उच्च जाति के नायरों ने शानर जाति की महिलाओं पर हमला किया, क्योंकि उन्होंने अपने शरीर के ऊपरी अंश पर कपड़े डालने की हिम्मत की थी।

प्रश्न 21.
‘पगड़ी’ व ‘टोपी’ बहस क्या थी? समझाइए।
उत्तर-
अंग्रेज टोपी (हैंट) का प्रयोग करते थे तथा भारतीय पगड़ी का। सिर पर धारण की जाने वाले ये दोनों ‘अपने मायने में भिन्न-भिन्न थे। भारत मे पगड़ी, धूप व गर्मी से तो बचाव करती ही थी, सम्मान का प्रतीक भी थी जिसे जब चाहे उतारा नहीं जा सकता था। पश्चिमी रिवाज तो यह था कि जिन्हें आदर देना हो, सिर्फ उनके सामने हैट उतारा जाए। इस सांस्कृतिक भिन्नता से गलतफहमी पैदा हुई। ब्रिटिश अफसर जब हिंदुस्तानियों से मिलते और उन्हें पगड़ी उतारते न पाते अपमानित महसूस करते। दूसरे तरफ बहुतेरे हिंदुस्तानी अपनी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अस्मिता को जताने के लिए जान-बूझकर पगड़ी पहनते।

प्रश्न 22.
गाँधी टोपी पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के आते-आते गाँधी टोपी राष्ट्रीय वर्दी का एक भाग बन चुकी थी अंग्रेजों के विरुद्ध अवज्ञा का प्रतीक। उदाहरणतयः ग्वालियर रियासत ने असहयोग आंदोलन के दौरान 1921 में इसे पहनने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की। खिलाफत आंदोलन के दौरान बड़ी तादार में हिंदू और मुसलमान इस टोपी में देखे गए। संथालो की एक टोपी ने 1922 में बंगाल पुलिस पर हल्ला बोल दिया। उनकी माँग थी कि संथाल कैदियों को रिहा किया जाए और उन्हें भरोसा था कि गांधी टोपी के चलते गोलियों से उनका बाल बाँका न होगा टोली के तीन सदस्य खेत रहे। :
कई सारे राष्ट्रभक्त गाँधी टोपी पहनकर चलना अपनी शान मानते थे और कई लोगों को तो इस कारण लठियाँ पड़ी या जेल पड़ा।.

प्रश्न 23.
विक्टोरियाई इंग्लैंड में महिलाओं की वेशभूषा में किस तथ्य पर बल दिया जाता था?
उत्तर-
विक्टोरियाई इंग्लैंड में महिलाओं को बचपन से ही आज्ञाकारी, खिदमती, सुशील व दब्बू होने की शिक्षा दी जाती थी। आदर्श नारी वही थी जो दुख-दर्द संह सके। जहाँ मर्दो से गंभीर, बलवान, आजाद और आक्रामक होने की उम्मीद की जाती थी वहीं औरतों को क्षुद्र, छुई-मुई, निष्क्रिय व दब्बू माना जात था। पहनावे के रस्मो-रिवाज में भी यह अंतर झलकता था। छुटपन से ही लड़कियों को ‘सख्त फीतों से बंधे कपड़ों स्टेज-में कसकर बाँधा जाता था। मकसद यह था कि उनके जिस्म का फैलाव न हो, उनका बदन इकहरा रहे। थोड़ी बड़ी होने पर लड़कियों को बदन से चिपके कॉर्सेट (चुस्त भीतरी कुर्ती) पहनने होते थे। टाइट फीतों से कसी पतली कमर वाली महिलाओं को आकर्षक शालीन व सौम्य समझा जाता था। इस तरह विक्टोरियाई महिलाओं की अबला-दब्बू छवि बनाने में पोशाक ने अहम भूमिका निभाई।

बचपन से ही उन्हें घुट्टी पिला दी जाती थी कि पतली कमर रखना उनका नारी-सुलभ कर्तव्य है। सहनशीलना स्त्रीत्व का जरूरी गुण है। आकर्षक व स्त्रियोचित दिखने के लिए उनका कॉर्सेट पहनना आवश्यक था। इसके लिए शारीरिक कष्ट या यातना भोगना मामूली बात मानी जाती थी।

प्रश्न 24.
स्त्री वेशभूषा के संदर्भ में अमेरिका में क्या-क्या आन्दोलन चले थे?
उत्तर-
अमेरिका में भी पूर्वी तट के गोरे प्रवासी बाशिंदों के बीच स्त्री वेशभूषा के आंदोलन चले। पारंपरिक जनाना लिबास को कई कारणों से बुरा बताया गया। कहा गया कि लंबे स्कर्ट (घाघरा, लहँगा) फर्श बुहारते चलते हैं, अपने साथ-साथ कूड़ा बटोरते हुए चलते हैं जो बीमारी का कारण हैं फिर स्कर्ट इतने विशाल होते थे संभलते ही नहीं थे। चलने में परेशानी होने के चलते औरतों का काम करके जीविका कमाना मुहाल था। वस्त्र सुधार से महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा, ऐसा कहा गया। कपड़े अगर आरामदेह हों तो औरतें कमाई कर सकती हैं, स्वतंत्र भी हो सकती हैं राष्ट्रीय महिला मताधिकार सभा ने श्रीमती सैंटन के नेतृत्व में और लूसी स्टोन वाली महिला मताधिकार सभा ने 1870 के दशक में पोशाक-सुधार के लिए मुहित चलाई। उनका कहना था कपड़ों को सरल बनाओं, स्कर्ट छोटी करो और कॉर्सेट का त्याग करो। इस तरह अटलांटिक के दोनों तरफ आसानी से पहले जाने वाले कपड़ों की मुहिम चल पड़ी।

प्रश्न 25. महिला परिधान में हुए बदलावों में विश्व युद्धों की भी भूमिका रही है। तर्क सहित उत्तर-दीजिए। .
उत्तर-
महिला परिधान में कई बदलाव तो विश्वयुद्धों के कारण हुए। यूरोप में ढेर सारी औरतों ने जेवर और बेशकीमती कपड़े पहनने छोड़ दिए। उच्च वर्ग महिलाएँ अन्य तबकों की नारियों से घुलने-लिमने लगीं। जिससे सामाजिक सीमाएँ भी टूटीं और महिलाएं एक-सी दिखने लगीं। पहले विश्वयुद्ध (1914-1918) के दौरान कपड़ों के छोआ होने के निहायता व्यावहारिक कारण थे। ब्रिटेन में 1917 तक आते-आते 70,000 औरतें हथियार की फैक्ट्रियों में काम कर रही थीं। वे ब्लाउज व पैंट की कामकाजी वर्दी पर ऊपर से स्कार्फ डाल लेती थीं बाद में इस वर्दी ने ओवरऑल के साथ टोपी का रूप ले लिया। जंग के लंबा खिंचने के साथ-साथ चटख रंग गायब होने लगे, हल्के रंग पहने जाने लगे यानी कपड़े सादे और सरल हो गए। स्कर्ट तो छोटे हुए ही; ट्राउजर भी जल्द ही पाश्चात्य महिला की पोशाक का अहम हिस्सा बन गया। इससे उन्हें चलने-फिरने की बेहतर बाजादी हासिल हुई और सबसे जरूरी बात, सहूलियत की खातिर औरतों ने बाल भी छोटे रखने शुरू कर दिए।

बीसवीं सदी आते-आते कठोर और सादगी-भरी जीवन-शैली गंभीरता और पेशेवराना अंदाज का पर्याय हो गई। बच्चों के नए विद्यालयों में सादी पोशाक पर जोर दिया गया और तड़क-भड़क को हतोत्साहित किया गया। लड़कियों के पाठ्यक्रम में भी जिम्नास्टिक व खेलों का प्रवेश हुआ। खेलने-कूदने में उन्हें ऐसे कपड़ों की दरकार थी जिससे उनकी गति मे बाधा न पड़े। उसी तरह काम के लिए बाहर जाने के लिए उन्हें आरमदेह और सुविधाजनक कपड़ों की जरूरत थी।

प्रश्न 26.
19वीं शताब्दी में पश्चिमी वशभूषा के संदभ्र में भारतीयों की प्रतिक्रियाएं बताइए।
उत्तर-
उन्नीसवीं सदी में पश्चिमी वेशभूषा आई तो हिन्दुस्तानियों की प्रतिक्रिया तीन तरह की थी।
एक-बहुत से लोग, खासकर मर्द, पाश्चात्य पहनावे की कुछ चुनिंदा चीजों को अपनाने लगे। पश्चिमी फैशन के कपड़े अपनाने वालों में पहला नंबर पश्चिमी भारत के अमीर पारसियों का था। बैंगी ट्राउजर और फेंटा (या हैट) के साथ कॉलरवाले कोट और बूट पहने जाते थे। और जेंटलमैन दिखने में कोई कसर न रह जाए, इसलिए हाथ में एक घड़ी भी लटका ली जाती थी। इस समूह के लोगों के लिए पश्चिमी परिधान आधुनिकता और प्रगति का प्रतीक था। पश्चिमी ड्रेस का आकर्षण निम्न जाति के उन तबकों में भी था जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था। उनके लिए यह मुक्ति का प्रतीक था यहाँ भी औरतों से ज्यादा मर्दो ने यह चलन अपनाया।
दो-कुछ लोगों को निचिश्त मत था कि पश्चिमी संस्कृति से पारंपरिक सांस्कृतिक अस्मिता का नाश हो जाएगा। उनके लिए पश्चिमी पोशाक पहनना कलयुग के आने जैसा था। यहां छपे कार्टून में धोती के साथ बंगाली बाबू द्वारा फिरंगी बूट और हैट पहनने के लिए उसका मखौल उड़ाया गया है।
तीन-कुछ पुरुषों ने इस दुविधा का हल ऐसे ढूंढा कि बगैर अपनी भारतीय पोशाक छोड़े पश्चिमी कपड़े पहनने शुरू कर दिए। उन्नीसवीं सदी के आखिरी हिस्से में कई बंगाली अफसरों ने घर के बाहर काम के लिए पश्चिमी शैली के वस्त्र रखने शुरू किए और घर आते ही वे आरामदेह हिंदुस्तानी कपड़ों में समा जाते थे।

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प्रश्न 27.
खादी पहनने से जुड़ी प्रतिक्रियाओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
गाँधीजी का सपना था कि पूरा राष्ट्रवादी का प्रयोग करें उनके आह्वान पर हुई प्रतिक्रियाओं को निम्नलिखित बताया जा सकता है।

(1) इलाहाबाद के सफल वकील और राष्ट्रवादी मोतीकाल नेहरू ने अपना बेशकीमती पश्चिमी सूट त्याग दिया और हिंदुस्तानी धोती-कुर्ता अपना लिया। लेकिन उनकी पोशाक मोटे-खुरदरे पकड़े की न होकर बारीक कपड़े से बनी होती थी।
(2) जाति-प्रथा के चलते सदियों से वंचित तबकों का पश्चिमी शैली के कपड़ों के प्रति सहज आकर्षण था। इसलिए बाबा साहब अंबेडकर जैसे राष्ट्रभक्तो न पाश्चात्य शैली का सूट कभी नहीं छोड़ा। कई सारे दलित 1910 के दशक में सार्वजनिक मौंकों पर जूते-मोजे और थ्री। पीस सूट पहनने लगे, जो कि उनकी तरफ से आत्मसम्मान का राजनीतिक वक्तव्य था।
(3) एक महिला ने 1928 में महात्मा गांधी को महाराष्ट्र से लिखा, ‘एक साल पहले मैंने आपकों हर किसी के खादी पहनने की गंभीर जरूरत पर बोलते सुना और हमने खादी अपनाने की ठानी। लेकिन हम गरीब गुरबा हैं, हमारे पति कहते हैं कि खादी महँगी है। मैं मराठी होने के नाते 9 गज की साड़ी पहनती हूँ… (और) बड़े-बुजुर्ग उसे घटाकर 6 गज करने की बात पर राजी नहीं होंगे।’
(4) सरोजिनी नायडू और कमला नेहरू जैसी महिलाएं भी सफेद, हाथ में बुने मोटे कपड़ों की जगह रंगीन व डिजाइनदार साड़ियाँ पहनती थीं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों को उपयुक्त शब्दों से भरें –
(i) काकेड एक टोपी है जिसे….ओर से पहना जाता है। (एक, दोनों)
(ii) मताधिकार का सम्बन्ध ……है। (मतों से, वेशभूषा से)
(iii) स्टैनन ने महिला परिधान के लिए……….में अभियान चलाया था। (इंग्लैंड, अमेरिका)
(iv) चिजी ………….कपड़ा होता है जिस पर डिजाइन किया जाता है। (सूती, रेशमी)
उत्तर-
(i) एक,
(ii) मतों से,
(iii) अमेरिका,
(iv) सूती।

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों मे से सही (√) व गलत x का चयन करें।

(i) विक्टोरियाई महिलाएं ढीले-ढीले कपड़े पहनती थीं।
(ii) अमेरिका में 19वीं शताब्दी में टाइट कपड़े पहने जाते थे।
(iii) गाँधी जी सादे कपड़े पहनते थे, उतने जितने जरूरी हों।
(iv) गाँधी जी की खादी डॉ. अम्बडेकर को काफी पसंद थी।
उत्तर-
(i) x,
(ii) x,
(iii) √,
(iv) x,

प्रश्न 3. निम्नलिखित विकल्पों में सही विकल्प का चयन कीजिए।

(i) निम्नलिखित के साथ खादी लोकप्रिय थी
(a) गाँधी जी
(b) चर्चिल
(c) अम्बडकर
(d) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(a) गाँधी जी

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(ii) बंग विभाजन के साथ स्वदेशी आन्दोलन निम्न वर्ष चला
(a) 1905
(b) 1910
(c) 1915
(d) 1920
उत्तर-
(a) 1905

(iii) टैगोर ने निम्नलिखित लिखी थी
(a) रिपब्लिक
(b) दास कैपिटल
(c) गीताजंलि
(d) अन लिबर्टी
उत्तर-
(c) गीताजंलि

(iv) विक्टोरियाई महिलाएं निम्न प्रकार के कपड़े पहनती थीं
(a) ढीले-ढीले,
(b) टाइट
(c) न ढीले न टाइट
(d) ढीले व टाइट दोनों
उत्तर-
(b) टाइट

पहनावे का सामाजिक इतिहास Class 9 HBSE Notes in Hindi

अध्याय का सार

मध्यकालीन युग में समाज के विभिन्न वर्गों के लिए पहनावे से जुड़े अलग-अलग नियम होते थे। सब लोगों को एक जैसे कपड़े पहनने की अनुमति नहीं होती थी। 1294 से फ़्रांसीसी क्रांति तक सम्प्चुअरी कानूनों का फ्रांस में अनुसरण होता था। जिसके द्वारा पोशाक तथा खानपान से जुड़े नियम समाज के निम्न वर्गो पर लागू किए जाते थे। अमीरों व शाही वंश के लोगो पर इस संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होता था। फ्रांसीसी लोगों पर इस संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होता था फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात हुए सभी भेद समाप्त कर दिए गए थे। इसके बावजूद समाज के विभिन्न वर्गों में परस्पर भेदभाव बना रहता था।

पोशाक के रूप से जुड़े नियम व उपनियत स्त्रियों व पुरुषों को वैसा बनाते थे जैसा कि वह थे। विक्टोरिया काल में इंग्लैंड की स्त्रियों को बड़े तंग प्रकार के कपड़े पहनाए जाते थे। महिलाओं द्वारा मताधिकार के साथ-साथ पोशाक से जुड़े नियमों में भी बदवाल आने लगा। संयुक्त राज्य अमेरिका में ऐसे अनेक आंदोलन चलाए गए जिनमें आरामदायक कपड़े पहनने पर जोर दिया जाता था। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों तक कपड़ों से जुड़े अनेकों मूल्यों में परिवर्तन आने लगा। कपड़ों की सादगी पर जोर दिया जाने लगा।

भारत में स्त्रियों व पुरुषों की पोशाक में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आने लग गए। अंग्रेजी काल में अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों ने अंग्रेजों की पोशक का अनुसरण करना शुरु कर दिया, यद्यपि वह अपने घरों में भारतीय प्रकार का पहनावा पहनते थे। राष्ट्रीय आंदोलन के दिनों भी पोशाक आदि पर जोर दिए जाने के उदाहरण मिलते हैं। महात्मा गांधी न खादी के प्रयोग पर जोर दिया। उनका अनुसरण करते हुए अनेक कांग्रेस जन खादी व गाँधी टोपी पहनने लगे। अंग्रेजीकाल के दौरान प्रायः स्त्रियां साड़ी व स्थानीय पोशाक का प्रयोग करती थी। ब्रह्मों लोगों में ब्रह्मों प्रकार की साड़ी का खासा रिवाज़ होता था।

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