HBSE 9th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

Haryana Board 9th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

HBSE 9th Class Economics निर्धनता : एक चुनौती Textbook Questions and Answers

पाठ्य पुस्तक प्रश्न-32

(i) विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर-
निर्धनता का अर्थ ऐसी स्थिति से लिया जाता है जहाँ व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। एक व्यक्ति तब निर्धन कहलाता है जब वह अपनी मूल ज़रूरतें को पूरा नहीं कर पाता।
तालिका 3.1 : भरत में निर्धनता के अनुमान

क्योंकि अलग-अलग देशों में मूल आवश्यकताओं की व्याख्या अलग-अलग होती है, इसलिए भिन्न-भिन्न देशों में निध ‘नता रेखाएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं।
(it) आपके अनुसार आपके क्षेत्र में ‘न्यूनतम . आवश्यक स्तर’ तथा होगा?
उत्तर-हमारे अनुसार ‘न्यूनतम आवश्यक स्तर’ यह होगा कि एक व्यक्ति को कम से कम मूल आवश्यकताओं की पूर्ति हो तो; उसे रोज़ खाना तो मिले, पहनने को कपड़ा तो मिले और सोने के लिए रात को छत तो प्राप्त हो।

तालिका 3.1 : भरत में निर्धनता के अनुमान
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HBSE 9th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

उपर्युक्त तालिका का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(i) 1973-74 और 1993-94 के मध्य निर्धनता अनुपात में गिरावट आने के बावजूद निर्धनों की संख्या 32 करोड़ के लगभग क्यों बनी रहीं?
(ii) क्या भारत में निर्धनता में कमी की गति कि ग्रामीण और शहरी भारत में समान है?
उत्तर-
निर्धनता अनुपान 1993-94 में 1973-74 की अपेक्षा भले गिरा हो, परंतु निर्धन लोगों की संख्या में कमी __नहीं हुई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित बताए जा सकते हैं
(क) जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होती रही है;
(ख) ग्रामों से शहरों की ओर लोगों का आना जारी रहा है।
(i) निर्धनता में कमी के गतिकि ग्रामों व शहरें में नहीं रहे हैं। शहरों की अपेक्षा ग्रामों में निर्धनता सदैव अधिक _ रही है। 1973-74 में 56.4% 1993-94 में 37.3%, तथा 1999-2000 में 27.1% ग्रामों में निर्धनता का प्रतिशत था जबकि शहरों में यह प्रतिशत क्रमशः 49.0%, 32.4% तथा 23.6% था।

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निर्धनता एक चुनौती प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class

पाठ्य पुस्तक प्रश्न-पृष्ठ 35

अपने आस-पास के कुछ निर्धन परिवारों का अवलोकन करें और यह पता लगाने का प्रयास करें कि
(i) वे किस सामाजिक और आर्थिक समूह से संबंद्ध हैं?
(ii) परिवार में कमाने वाले सदस्य कौन हैं?
(iii) परिवार में वृद्धों की स्थिति क्या है?
(iv) क्या सभी बच्चे (लड़के और लड़कियाँ) विद्यालय जाते हैं?
उत्तर-
(i) वे प्रायः समाज के कमज़ारे वर्गों-दलित-से संबंधित हैं।
(ii) पुरुष व स्त्रियों दोनों ही काम करते हैं; कहीं-कहीं तो परिवार के बच्चे भी काम करते हैं।
(iii) भले वृद्ध काम करने के योग्य इतने नहीं होते जितने युवक होते हैं, फिर भी वह छोटा-मोटा काम करते रहते हैं।
(iv) बहुत कम बच्चे विद्यालय जाते हैं।

उपर्युक्त आरेख का अध्ययन कर निम्नलिखित कार्य करें-
कृप्या आरेख अगले पृष्ठ पर देखें।
(i) तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सर्वाधिक है।
(ii) तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
उत्तर-
(i) उड़ीसा, बिहार तथा मध्यप्रदेश में निर्धनता अनुपात सर्वाधिक है। .
(ii) जम्मू-कश्मीर, पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
निर्धनता-कुछ चुनिंदा देशों के बीच तुलना
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देश — 1. डॉलर प्रतिदिन से कम पाने वाले लोगों की संख्या का प्रतिशत

1. नाइजीरिया — 70.8
2. बांग्लादेश — 36.0
3. भारत — 35.3
4. पाकिस्तान — 17.0
5. चीन — 16.6
6. ब्राजील — 8.2
7. इंडोनेशिया — 7.5
8. श्रीलंका — 7.6

निर्धनता एक चुनौती HBSE 9th Class

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चित्र आरेख का अध्ययन कर निम्नलिखित कार्य करें-
(i) विश्व के उन क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात में गिरावट आई है।
(ii) विश्व के उस क्षेत्र की पहचान करें जहाँ निर्धनों की संख्या सर्वाधिक है।
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उत्तर-
(i) चीन व दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में निर्धनता में गिरावट आई है।
(ii) सब-सहारा क्षेत्र में निर्धनों की संख्या बढ़ी है।

निर्धनता : एक चुनौती Class 9 HBSE

पाठ्य पुस्तक प्रश्न-पृष्ठ 40

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर-
भारत में निर्धनता का आकलन दो तरीकों से किया जाता है। पहला, किसी परिवार द्वारा विभिन्न वस्तुओं पर किए गए व्यय को मालूम करके; दूसरा, परिवार द्वारा अर्जित आय का पता लगा करके। 1999-2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा के नीचे उन लोगों को मान लिया गया था जिनकी मासिक आय 328 रुपये प्रति व्यक्ति थी या उससे कम। शहरी क्षेत्रों में उन्हें गरीबी के नीचे जिनकी आय प्रति व्यक्ति मासिक आय 454 रुपये थी अथवा उससे कम।

प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर-
प्रायः निर्धनता आकलन के दोनों तरीके सहीं हैं। फिर भी, निर्धनता का आकार बढ़ाया जाना चाहिए। इसमें मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
भारत में 1973 में निर्धनता की प्रवृतियों की चर्चा करें।
उत्तर-
भारत में 1973 में लगभग 32.1 करोड़ निर्धन थे जिनमें ग्रामीण निर्धनों की संख्या 26.1 करोड़ थी तथा शहरी निर्धन 6.0 करोड़ थे। इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण निर्धन पूरी जनसंख्या का 56.4 प्रतिशत गरीब थे तथा शहरी प्रतिशत 49.0 प्रतिशत। अतः स्पष्ट है कि ग्रामीण जनसंख्या शहीर जनसंख्या से अधिक गरीब थी।

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता में अंतर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
भारत में निर्धनता से जुड़े 1999-2000 के आँकड़े जो विभिन्न राज्यों की स्थिति प्रस्तुत करते हैं, उनका विवरण निम्न तालिका द्वारा किया जा सकता है-

im

(1) प्रस्तुत कुछेक राज्यों में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक निर्धन व्यक्तियों की संख्या लगभग 5.30 करोड़ (31.15 प्रतिशत)थे जबकि बिहार, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या लगभग 4.26 तथा 2.99 करोड़ थी (42.60%, 37.43%)। -कम गरीबी रेखा के नीचे वाले. जम्मू-कश्मीर (3.46 लाख), हिमाचल प्रदेश (5.12 लाख), गोवा (0.07 लाख) थे।

प्रश्न 5.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय
उत्तर-
सामाजिक और आर्थिक समूहों में जो निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं, उनमें निम्नलिखित को विशेष रूप से बताया जा सकता है-
(1) अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के समूह;
(2) ग्रामीण खेतिहर मज़दूर;
(3) घरों में काम करने वाले नौकर आदि;
(4) होटलों में तथ मकान आदि बनाने वाले मजदूर एवं रिक्शा चलाने वाले आदि।

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प्रश्न 6.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय निर्धन में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर-
(1) भारत में कुछ राज्य अन्य राज्यों की अपेक्षा औद्योगिक रूप से कम विकसित हैं; बिहार, मध्य प्रदेश।
(2) भारत में कुछ राज्य अन्य राज्यों की अपेक्षा कृषि कार्यों में अधिक विकसित जैसे-पंजाब, हरियाणा आदि।
(3) भारत में कुछ राज्य प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से कम संसाधनों के स्वामी जैसे राजस्थान आदि।

प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर-
विकसित देशों के मुकाबले में विकासशील देश गरीब हैं। यह और बात कि इन देशों में निर्धनता अनुपात 28 प्रतिशत (1991) से 21 प्रतिशत (2001) कम हुआ है। यह भी देखने को मिला है कि दक्षिणी गोलार्द्ध में निर्धनता का अनुपात अधिक है। एशियायी देशों में गरीबी के कम होने की संभावनाएँ अधिक रहीं हैं। चीन एक ऐसा उदाहरण है जहाँ निर्धनता में खासी गिरावट आयी है। इस देश में 1981 में गरीबी की संख्या 60.6 करोड़ थी जो 2001 ‘ में घर का 21.2 करोड़ रह गयी। एशिया के अन्य देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बंग्लादेश, भूटान आदि में निर्धनता स्तर में इतनी कमी नहीं आयी है जबकि सिंगापुर जैसे देशों में निर्धनता अच्छी मात्रा में कम हुई है। भारत में निर्धनों संख्या में थोड़ी ही कमी हुई है। 1981 में भारत में गरीबी में कोई बड़ी कमी नहीं आयी है। – अफ्रीकी देशों में गरीबी स्तर बढ़ा है। 1981 में इस क्षेत्र 41% गरीबी थी; 2001 में यह प्रतिशत बढ़कर 46% हो गया। दक्षिणी अमरीकी देशों में यद्यपि निर्धनता कम नहीं हुई है, तो वहाँ यह बढ़ी भी नहीं हैं। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः व्याप्त गई है जहाँ पहले अधिकारक से कोई निर्धनता नहीं थी।
संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों ने 1 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या को वर्ष 2015 तक वर्ष 1990 के स्तर के आधे पर ले जाने की घोषणा है।

प्रश्न 8.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी राजनीति की चर्चा करें।
उत्तर-
निर्धनता उन्मूलन भारत की विकास रणनीति की एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। सरकार की वर्तमान निर्धनता निरोधी रणनीति मोटे तोर पर दो कारकों (1) आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन और (2) लक्षित निर्धनता-निरोधी कार्यक्रमों पर निर्भर है।
1980 के दशक के आरंभ तक समाप्त हुए 30 वर्ष की अवधि के दौराने प्रतिव्यक्ति आय में केई वृद्धि नहीं हुई और निर्धनता में भी अधिक कमी नहीं आई। 1950 के दशक के आरंभ में आधिकारिक निर्धनता अनुमन 45 प्रतिशत का था और 1980 के दशक के आरंभ में भी वही बना रहा। 1980 के दशक से भारत की आर्थिक संवृद्धि-दर विश्व में सबसे अधिक रही। संवृद्धि-दर 1970 के दशक के करीब 3.5 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 1980 और 1990 के दशक में 6 प्रतिशत के करीब पहुँचे गई। विकास की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ संबंध है। आर्थिक संवृद्धि अवसरों को व्यापक बना देती है और मानव विकास में निवेश के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती है। यह शिक्षा में निवेश से अधि क आर्थिक प्रतिफल पाने की आशा में लागों को अपने बच्चों को लडकियों सहित स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करतीहै, तथापि, यह संभव है कि आर्थिक विकास से सृजित अवसरों से निर्धन लोग प्रत्यक्ष लाभ नहीं उठा सके। इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्रक में संवृद्धि अपेक्षा से बहुत कम रही। निर्धनता पर इसक प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा क्योंकि निर्धन लागों का एक बड़ा भाग गाँव में रहता है और कृषि पर आश्रित है।

सरकार द्वारा अनुक निर्धनता-विरोधी कार्यक्रम चलए गए हैं। इनमें कुछेक वर्णन निम्नलिखित किए जा रहे हैं
(i) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (एन. आर. ई. जी. ए.) को सितंबर 2005 में पारित किया गय। यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोज़गार का प्रावधान करता है। बाद में इस योजना का विस्तार 600 जिले में किया जाएगा। प्रस्ताव रोज़गरों का एक तिहाई रोज़गार महिलाओं के लिए आरक्षित है।

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(ii) केंद्र सरकार राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी। इसी तरह राज्य सरकार भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य रोज़गार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी। कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक रोज़गर भत्ते का हकदर होगा।

(iii) एक और महत्त्वपूर्ण योजना राष्ट्रीय काम के बदले अनज कार्यक्रम है जिसे 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन – सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए है, जिन्हें मज़दूरी पर रोज़गार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं। इसका कार्यान्वयन शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के रूप में किया गया है और राज्यों को खाद्यन्न निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एक बार एन. आर. ई. जी. ए. लागू हो जाए तो कम के बदले अनाज (एन. एफ. डब्ल्यू. पी.) का राष्ट्रीय कार्यक्रम भी इस
कार्यक्रम के अंतर्गत आ जाएगा।

(iv) प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक अन्य योजना है, जिसे 1993 में आरंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं के लिए स्वरोज़गर के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में उनकी सहायता दी जाती है। ग्रामीण रोज़गर सृजन कार्यक्रम का आरंभ 1995 में किया गया। इस उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करन है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 25 लाख नए रोज़गार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है।

(v) स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना का आरंभ 199 में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायत प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वसहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेख से ऊपर लान है। प्रधनमंत्री ग्रामोदय योजना (2000 में आरंभ) के अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदन की जाती है। एक और महत्त्वपूर्ण योजना अंत्योदय अन्न योजना है, जिसके बारे में आप अगले अध्याय में विस्तार से पढ़ेंगे।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-
(क) मानव निर्धनता का अर्थ यह नहीं है कि निर्धन की पहचान इस तथ्य से बनायी जाए कि वह किस सीमा तक अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है। इसका अर्थ इस तथ्य से किय जाए कि एक व्यक्ति किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। मनुष्य होने के नाते उसकी समस्याएँ किस प्रकार हल की जा सकें।
(ख) निर्धनों में सबसे अधिक निर्धन वह हैं जो उपाश्रित होते हैं। इनका स्तर निर्धन के स्तर से भी निर्धन होता है।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण, रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) 200 जिलों में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रतिवर्ष कम से कम एक सौ दिन रोज़गर उपलब्ध कराना;
(2) इन सुझाक्ति नौकरियों में एक-तिहाई नौकरियों में एक-तिहाई नौकरियाँ महिलाओं के लिए आरक्षित रखी जाएँ:
(3) यदि 15 दिनों तक ऐसे किसी व्यक्ति को काम नहीं दिया जाता तो ऐसा व्यक्ति बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त करने का हकदार होगा।

निर्धनता : एक चुनौती Class 9 HBSE Notes in Hindi

अध्याय का सार

स्वतंत्र भारत के लिए निर्धनता एक बहुत बड़ी चुनौती है। भारत में प्रत्येक चौथा व्यक्ति गरीब है। इस का अर्थ . यह है कि यदि भारत की कुल जनसंख्या 104 करोड़ मान ली जाए तथा 26 करोड़ व्यक्ति गरीब है। निर्धनता उस स्थिति का नाम है जिसमें लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। ऐसे लोगों गरीबी रेखा से नीचे के लोग कहा जाता है। जहाँ जनसंख्या का एक बड़ा भाग निर्धन हो उसे समाज में जन-निर्धनता विद्यमान कही जा सकती है।

सरकार व्यय एवं आय की दृष्टि से निर्धनता का मापन करती है। एक स्तर पर खर्च न करने वाले लोगों की गरीब कहा जाता है। इसी प्रकार एक विशेष प्रकार का आय प्राप्त करने के स्तर के नीचे के लोगों को भी गरीब कहा जाता है।

गरीबी शहरी रूप की भी होती है तथा ग्रामीण रूप की/ग्रामीण निर्धनों में उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है जिनके पास भूमि नहीं होती, जो खेतों पर मेहनत-मज़दूरी करते हैं। इन्हें खेतीहर मजदूर कहा जाता है। जब खेतों में काम होता है, जुताई, बुआई व कटाई होती है तो ऐसे खेतीहर श्रमिकों को काम मिलता है। अन्यथा यह न्यूनतम मज़दूरी से भी शहरी निर्धनों में मजदूरी, रिक्शा चलाने वाले, होटलों में काम वेतन मिलता है। घर में नियुक्त नौकर, दुकानों पर काम करने वाले नौकर, दफ्तरों के चपरासी आदि भी शहरी निर्धनों में गिने जाते हैं।

सरकार ने ग्रामीण व शहरी निर्धनता के उन्मोलन हेतु अनेक परियोजनाएँ बनायी हुई है। इनमें ग्राम स्वरोजगार, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार सुरक्षा कानून आदि आदि का उल्लेख किया जा सकता है। निर्धनता के आभास में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।

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जानने योग्य तथ्य

1. निर्धनता : एक ऐसी दशा जिसमें किसी व्यक्ति को अपने जीवनयापन के लिए भोजन, वस्त्र और मकान जैसी न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी करने में कठिनाई होती है।
2. गरीबी रेखा : जिन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, पहनने के लिए कपड़े नहीं मिलते, रहने के लिए सिर पर छत नहीं होती, उन्हें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग कहा जाता है।
3. शहरी निर्धनता : शहरों में विद्यमान गरीबी।
4. ग्रामीण निर्धनता : ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान निर्धनता।
5. भूमिहीनता : एक ऐसी स्थिति जिसमें किसी किसान के पास खेती के लिए भूमि नहीं होती; भूमि का न होना।
6. निरक्षरता : शिक्षण का न होना; निरक्षर व्यक्ति वह होता है जो शिक्षित नहीं होता।
7. बाल-श्रम : कम आयु के बच्चों से मेहनत-मजदूरी कराना।
8. बेरोज़गारी : रोज़गार का न होना।
9. सामाजिक अपवर्जन : निर्धनों को निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना।
10. असुरक्षित समूह : अनुसूचित जाति व जनजाति; निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित लोग।

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