HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

HBSE 12th Class English Lost Spring Textbook Questions and Answers

Question 1.
What could be some of the reasons for the migration of people from villages to cities? (गाँव से शहर की तरफ लोगों के आने के क्या कारण हो सकते हैं ?) [H.B.S.E. March, 2019 (Set-B)]
Answer:
More and more villagers keep migrating to cities. There are many reasons for the migration of people from villages to cities. They come to cities looking for work. With the increase in population, pressure on land is also increasing. The land for agriculture is limited. It cannot accommodate the growing families. So they come to cities for their livelihood. Sometimes, natural calamities also force people to leave villages and come to cities. Another reason is the mechanisation of farming.

Because of use of machines on the farms, less labour is required. So the surplus labour comes to cities in search of employment. Another reason is that due to modernisation, the social set up of the villages has been disturbed. The rural crafts are disappearing. The villages are no long self-sufficient. Lastly, cities have better facilities like good markets, hospitals, schools and colleges. That is why people form the villages are migrating to cities.

(अधिक-से-अधिक ग्रामीण शहरों की ओर विस्थापन करते आ रहे हैं। गाँवों से शहरों की ओर लोगों के विस्थापन करने के पीछे बहुत-से कारण हैं। वे शहरों में काम की तलाश में आते हैं। जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण, भूमि पर दबाव बढ़ता जा रहा है। कृषि के लिए भूमि सीमित है। वह बढ़ते हुए परिवारों को समायोजित नहीं कर सकती है। इसलिए लोग रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में आते हैं। कई बार, प्राकृतिक आपदाएँ भी लोगों को गाँव छोड़कर शहर आने के लिए मजबूर कर देती हैं। दूसरा कारण है कृषि का मशीनीकरण हो जाना।

क्योंकि खेतों में मशीनों के प्रयोग के कारण, मजदूरों की कम जरूरत पड़ती है। इसलिए फालतू श्रमिक रोजगार की तलाश में शहरों में आ जाते हैं। एक और कारण है, आधुनिकीकरण के कारण, गाँवों का सामाजिक ढाँचा बिगड़ गया है। ग्रामीण हस्त-शिल्प लुप्त होती जा रही हैं। अब गाँव स्वयं में स्वावलम्बी नहीं रहे हैं। अंतिम बात यह है कि शहरों में अच्छी सुविधाएँ उपलब्ध हैं जैसे कि अच्छे बाज़ार, अस्पताल, स्कूल और कॉलेज। यही कारण है कि लोग गाँवों से शहरों की ओर विस्थापन कर रहे हैं।)

Question 2.
Would you agree that promises made to poor children are rarely kept? Why do you think this happens in the incidents narrated in the text? [H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)] (क्या आप इस बात से सहमत हैं कि गरीब बच्चों से किए गए वायदे कभी पूरे नहीं किए जाते? आपके विचार में पाठ में वर्णित घटनाओं में ऐसा क्यों होता है ?)
Answer:
Yes, the promises made to the poor children are rarely kept. When we see a poor child, we are filled with pity and want to help him. We may give him a little help at that moment. But we often make promises to them our temporary sense of pity at their plight. However, most of these promises are impracticable. In this lesson, Saheb is a poor ragpicker. The author feels pity for him. She asks him to join a school. Saheb replies that there is no school in the neighbourhood.

The author tells him half jokingly that she would start a school and would give him admission in it. This is not the real or serious promise. However, like other poor children, Saheb takes this promise seriously. After a few days, he asks the author whether her school is ready. The author herself knows that such promises cannot be fulfilled. She says, “But promises like mine abound in every corner of this bleak world.” In this way, promises made to poor children for their welfare are generally not serious promises. These promises are not meant to be fulfilled.

(हाँ, गरीब बच्चों के साथ किए गए वायदों को कभी-कभार ही पूरा किया जाता है। जब हम किसी गरीब बच्चे को देखते हैं तो दया से भर जाते हैं और हम उसकी मदद करना चाहते हैं। उसी क्षण हम उसकी कुछ मदद कर सकते हैं। लेकिन उनकी दुर्दशा को देखकर जो अस्थायी दया हमारे मन में आती है उसकी वजह से उनके साथ हम कुछ वायदे कर देते हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर वायदे व्यावहारिक नहीं होते। इस अध्याय में, साहेब एक गरीब कबाड़ बीनने वाला है। लेखिका को उस पर दया आती है। वह उसको स्कूल में दाखिला लेने के लिए कहती है।

साहेब कहता है कि पड़ोस में कोई स्कूल नहीं है। लेखिका उसके साथ मज़ाक करती हुई कहती है कि वह उसके लिए स्कूल खोलेगी और उसको स्कूल में दाखिला देगी। यह कोई सच्चा और गम्भीर वायदा नहीं है। लेकिन अन्य गरीब बच्चों की तरह, साहेब इस वायदे को गम्भीरता से लेता है। कुछ दिनों के बाद, वह लेखिका से पूछता है कि क्या उसका स्कूल तैयार हो गया है। लेखिका स्वयं भी जानती है कि ऐसे वायदों को पूरा नहीं किया जा सकता है। वह कहती है, “लेकिन मेरे जैसे वायदे तो उसकी अंधेरी दुनिया में बहुत पड़े हैं। इस तरह से, गरीब बच्चों से उनके कल्याण के लिए किए गए वायदे प्रायः गंभीर वायदे नहीं होते। ये वायदे पूरे करने के लिए नहीं होते।”)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

Question 3.
What forces conspire to keep the workers in the bangle industry of Firozabad in poverty? (कौन-सी शक्तियाँ षड्यन्त्र करके फिरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योग के मजदूरों को गरीब रखती हैं ?) Or [2020 (Set-C)]
The bangle makers of Firozabad make beautiful bangles and make everyone happy but they live and die in squalor. Elaborate. [H.B.S.E. March, 2019 (Set-B)] (फिरोज़ाबाद के चूड़ी बनाने वाले लोग खूबसूरत चूड़ियाँ बनाते हैं और प्रत्येक को खुश रखते हैं परन्तु वे गन्दगी में ही जीते और मरते हैं। विस्तार से बताओ।) Or Write a brief note about the town of firozabad. [H.B.S.E. March, 2020 (Set-B)] (फिरोज़ाबाद नगर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।)
Answer:
Firozabad is a famous city of Uttar Pradesh. It is famous for its bangles and bangle industry. Many families in Firozabad have spent generations working around furnaces, grinding glass, welding it and making bangles. Apart from the elders, there are about 20,000 children working in these factories. They work in miserable conditions. The author feels pity for these workers. She comes across a child named Mukesh. She visits his house and finds that they live in great poverty and misery.

They work in very dim lights. Many of them lose their eyesight before they become adults. Mukesh’s grandfather had become blind with the dust from polishing the glass of bangles. They have fallen into the trap of middleman who exploit them. The author asks a group of young men why they don’t organize themselves into cooperative. When they try to get organized, they are hauled up by the police, beaten and dragged to jail. Thus, the middleman and police conspire to keep the workers of Firozabad in poverty.

(फिरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर है। यह अपनी चूड़ियों और चूड़ी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। फिरोज़ाबाद के बहुत-से परिवारों ने अपनी कई पीढ़ियाँ काँच गलाने की भट्टियों, काँच को घिसाने, उसे जोड़ने और उससे चूड़ियाँ बनाने के काम में गुजार दी हैं। बड़ों के साथ-साथ लगभग 20,000 बच्चे भी इन उद्योगों में काम कर रहे हैं। वे दयनीय हालातों में काम कर रहे हैं। लेखिका को इन कामगारों पर दया आती है। उसे मुकेश नाम का एक बच्चा मिलता है। वह उसके घर जाती है और देखती है कि वे अत्यधिक गरीबी और दयनीय स्थिति में रहते हैं। वे अति मद्धम प्रकाश में काम करते हैं।

उनमें से बहुत-से तो वयस्क होने से पहले ही अपनी आँखों की रोशनी खो देते हैं। मुकेश का दादा भी चूड़ियों को पॉलिश करने से उठी धूल की वजह से अंधा हो गया था। वे उस बिचौलिए के चंगुल में फँस गए हैं जो कि उनका शोषण कर रहा है। लेखिका नवयुवकों के एक समूह से पूछती है कि वे अपने आप को एक सहकारी समिति के रूप में संगठित क्यों नहीं करते हैं। जब वे संगठित होने का प्रयास करते हैं तो उनको पुलिस के द्वारा धमकाया जाता है, पीटा जाता है और जेल में घसीटा जाता है। इस तरह से, बिचौलिया और पुलिस फिरोजाबाद के कामगारों को गरीबी की स्थिति में बने रहने को मजबूर करते हैं।)
Think As You Read

Question 1.
What is Saheb looking for in the garbage dumps? Where is he and where has he come from? (कूड़े के ढेर में साहेब क्या ढूँढ रहा है ? वह कहाँ है और कहाँ से आया है ?)[H.B.S.E. 2017 (Set-D), 2018 (Set-B)]
Answer:
Saheb is a ragpicker. He scrounges the garbage dumps for bits of paper, rags, plastic items, etc. He makes a living by selling these things. He tells the author that sometimes he finds a rupee, even a ten-rupee note in the garbage. He is living in Seemapuri, which is at the outskirts of Delhi. He has come from Dhaka, in Bangladesh.

(साहेब एक कबाड़ बीनने वाला है। वह कागज़ के टुकड़ों, फटे-पुराने कपड़ों, प्लास्टिक की चीजों इत्यादि को कूड़े के ढेरों में खोज रहा है। वह इन चीजों को बेचकर आजीविका कमाता है। वह लेखिका को बताता है कि कई बार तो उसे कूड़े के ढेर से एक रुपया मिल जाता है और कभी-कभी तो दस रुपए का नोट भी मिल जाता है। वह सीमापुरी में रह रहा है, जो कि दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित है। वह बांग्लादेश, ढाका से आया है।)

Question 2.
What explanations does the author offer for the children not wearing footwear? (बच्चों के जूते न पहनने का लेखिका क्या कारण बताती है ?)
Answer:
The author sees Saheb and other poor children without footwear. One explanation is that it has become a tradition for them to remain barefoot. But the author feels that it is only an excuse to explain away a continuous state of poverty. Because of their poverty, they cannot afford to buy shoes.

(लेखिका साहेब और अन्य गरीब बच्चों को बिना जूतों के देखती है। इस बात की एक व्याख्या तो यह है कि उन्हें नंगे पाँव रहने की आदत पड़ गई है। लेकिन लेखिका महसूस करती है कि गरीबी की निरन्तर बनी रहने वाली दशा में यह तो केवल एक बहाना है। अपनी गरीबी की वजह से, वे जूते नहीं खरीद सकते हैं।)

Question 3.
Is Saheb happy working at the tea-stall? Explain. (क्या चाय की दुकान में काम करके साहेब खुश है? व्याख्या करो।)
Answer:
One day the author finds that Saheb has left rag-picking and is now working at a tea-stall. He gets Rs 800 per month with meals. But his face doesn’t show the carefree look. He doesn’t seem to be happy working at the tea stall. He is no longer his own master.

(एक दिन लेखिका देखती है कि साहेब ने कूड़ा बीनने का काम छोड़ दिया है और वह चाय की एक दुकान पर काम कर रहा है। उसे भोजन के साथ 800 रुपए मासिक मिलते हैं। लेकिन उसके चेहरे पर पुराने दिनों की तरह बेफिक्री के संकेत नहीं थे। ऐसा लगता था कि वह चाय की दुकान पर काम करके खुश नहीं था। अब वह अपनी मर्जी का मालिक नहीं रहा था।)

Question 4.
What makes the city of Firozabad famous? [H.B.S.E. March, 2017, 2018 (Set-A)] (फिरोजाबाद शहर क्यों प्रसिद्ध है ?)
Answer:
The city of Firozabad is famous for its bangles. Many families in this town are engaged in this business. (फ़िरोज़ाबाद शहर अपनी चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। इस शहर में बहुत-से परिवार इस व्यवसाय में लगे हुए हैं।)

Question 5.
Mention the hazards of working in the glass bangles industry. [H.B.S.E. 2017 (Set-C)] (काँच की चूड़ियों के उद्योग में काम करने के खतरे बताइए।)
Answer:
The workers in the glass bangle industry work in dark cells without air and light. They cannot bear the daylight. They go blind before they are old. The dust from polishing the glass bangles makes the bangle makers blind. Thus working in the glass bangles industry is hazardous and unhealthy.

(काँच की चूड़ियाँ बनाने के कारखानों में काम करने वाले कारीगर बिना हवा और प्रकाश वाली अंधेरी कोठरियों में काम करते हैं। वे सूर्य के प्रकाश को सहन नहीं कर सकते। बुढ़ापा आने से पहले ही वे अंधे हो जाते हैं। काँच की चूड़ियों पर की जाने वाली पॉलिश की धूल इन चूड़ियाँ बनाने वालों को अंधा कर देती है। अतः काँच की चूड़ियाँ बनाने वाले कारखानों में काम करना खतरनाक और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।)

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Question 6.
How is Mukesh’s attitude to his situation different from that of his family? (अपनी हालत के प्रति मुकेश का दृष्टिकोण अपने परिवार से भिन्न क्यों है ?) [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A)]
Answer:
Mukesh belongs to a family of bangle makers. Their work is hazardous and their life is poor and miserable. But they have accepted their destiny. However, Mukesh’s attitude is different. He does not want to follow the occupation of his family. He wants to become a motor mechanic.
(मुकेश चूड़ियाँ बनाने वाले एक परिवार से सम्बन्ध रखता है। उनका काम खतरनाक है और उनका जीवन गरीबी वाला और कष्टकारक है। लेकिन उन्होंने अपनी किस्मत के साथ समझौता कर लिया है। लेकिन, मुकेश का दृष्टिकोण भिन्न है। वह अपने परिवार के व्यवसाय को नहीं अपनाना चाहता। वह एक मोटर मैकेनिक बनना चाहता है।)

Talking About The Text

Question 1.
How, in your opinion, can Mukesh realise his dream? (आपके विचार में मुकेश अपना सपना कैसे पूरा कर सकता है ?)
Answer:
Mukesh is a poor boy. He belongs to a family of bangle makers. Like other bangle makers of Firozabad, Mukesh’s family also leads a life of utter poverty and misery. Mukesh also works in a bangle factory. But he has his own dream. He does not want to spend all his life in bangle-making. He wants to become a motor mechanic. He dreams of driving a car one day.

Mukesh seems to be determined. He can realise his dream by his willpower and determination. He has to take courage and leave the work of bangle-making. He should contact a garage owner and convince him to take him as an apprentice. With his determination, he can prove his worth and win the confidence of the owner. Thus he can become a good mechanic. If he wants to be a taxi driver, he has to learn to drive. After clearing the driving test, he can have a driving license. In this way, Mukesh can realise his dreams.

(मुकेश एक गरीब लड़का है। वे चूड़ी बनाने वाले एक परिवार से सम्बन्ध रखता है। फ़िरोज़ाबाद के अन्य चूड़ी बनाने वालों की भांति, मुकेश का परिवार भी गम्भीर गरीबी और कष्टों से भरा जीवन व्यतीत कर रहा है। मुकेश भी एक चूड़ी उद्योग में काम करता है। लेकिन उसका अपना एक सपना है। वह अपना सारा जीवन चूड़ी बनाने में नहीं गुजारना चाहता। वह एक मोटर मैकेनिक बनना चाहता है। वह एक दिन कार चलाने का सपना देखता है। मुकेश दृढ़-निश्चय वाला दिखाई पड़ता है। वह अपनी इच्छा शक्ति और दृढ़ निश्चय के सहारे अपने सपने को पूरा कर सकता है।

उसे हिम्मत करनी है और चूड़ी बनाने के काम को छोड़ना है। उसे किसी गैराज के मालिक से सम्पर्क करना चाहिए और उसे उसको एक प्रशिक्षु के रूप में रखने के लिए मनाना चाहिए। अपने दृढ़-निश्चय के साथ, वह अपनी योग्यता का प्रदर्शन कर सकता है और मालिक का विश्वास जीत सकता है। इस तरह से वह एक अच्छा मैकेनिक बन सकता है। यदि वह एक टैक्सी चालक बनना चाहता है तो उसे वाहन चलाना सीखना होगा। चालक परीक्षा पास करने के उपरांत, वह चालक लाइसेंस हासिल कर सकता है। इस तरह से, मुकेश अपने सपने को पूरा कर सकता है।)

Question 2.
Mention the hazards of working in the glass bangles industry. (काँच की चूड़ियों के उद्योग में काम करने के खतरे बताओ।)
Answer:
Working in the glass bangles industry is hazardous to health. Adults, as well as children, work in the unhealthy conditions. They work in very dim light. As a result they lose their eyesight by the time they become adults. They have to work on the furnaces with high temperature, in dark cells without enough air and light. They have to grind glass and have to inhale the fine glass particles. The author comes across a child named Mukesh who works in a glass bangle industry. His grandfather became blind with the dust from polishing glass.

(काँच की चूड़ियों के कारखाने में काम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बड़े और बच्चे सभी अस्वस्थ स्थितियों में काम करते हैं। वे अति मद्धम प्रकाश में काम करते हैं। जब तक वे बड़े होते हैं तो वे अपनी आँखों की रोशनी खो देते हैं। उन्हें ऊँचे तापमान वाली भट्टियों पर (अंधेरे वाले कमरों में जहाँ पर्याप्त हवा और प्रकाश नहीं होता) काम करना पड़ता है। उन्हें काँच को घिसाना पड़ता है और काँच के महीन कण उनके शरीर के अन्दर चले जाते हैं। लेखिका एक बच्चे से मिलती है जिसका नाम मुकेश है जो काँच की चूड़ियाँ बनाने वाले एक कारखाने में काम करता है। उसका दादा काँच को पॉलिश करने से उठी धूल की वजह से अंधा हो गया था।)

Question 3.
Why should child labour be eliminated and how? (बाल श्रम को क्यों और कैसे समाप्त करना चाहिए ?)
Answer:
Child labour is one of the great evils of India. Millions of children are engaged in labour at an age at which they should be in schools.

The twin factors responsible for child labour are:

  • poverty and
  • the lack of a social security network.

Poverty has an obvious relationship with child labour. Poor families need money to survive, and children are a source of additional income. The problem of illiteracy is also one of the reasons of the problem of child labour. It has been observed that the overall condition of the education system can be a powerful influence on the supply of child labour.

The concept of compulsory education, where all school-aged children are required to attend school, combats the force of poverty that pulls children out of school. The law relating to compulsory education will not only force children to attend school but also contribute more funds to the primary education system, instead of higher education.

The problem of child labour has social, economical, and political aspects. It cannot be eliminated by focusing on one aspect only, for example only by compulsory education, or by blind enforcement of child labour laws. The government must ensure that the needs of the poor are fulfilled before eliminating child labour. If poverty is eradicated, the need for child labour will automatically diminish. No matter how hard the government tries, child labour always will exist unless we all work honestly in this direction.

(बाल श्रम भारत की बड़ी बुराइयों में से एक है। लाखों बच्चे उस उम्र में श्रम पर लगे होते हैं जिस उम्र में उन्हें स्कूल में होना चाहिए था। बाल श्रम के दो कारण हैं-(1) गरीबी और (2) सामाजिक सुरक्षा के ढाँचे की कमी। गरीबी का तो बाल श्रम से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। गरीब परिवारों को अपना गुजारा करने के लिए धन की जरूरत होती है और बच्चे अतिरिक्त आय का एक स्रोत हैं। अनपढ़ता की समस्या भी बाल श्रम की समस्या का एक बड़ा कारण है। ऐसा देखा गया है कि शिक्षा व्यवस्था की संपूर्ण स्थिति बालश्रम की पूर्ति पर एक बहुत बड़ा प्रभाव डालती है।

अनिवार्य शिक्षा का विचार, जहाँ पर स्कूल जाने की आयु के सभी बच्चे स्कूलों में होने चाहिए, गरीबी की स्थिति जो बच्चों को स्कूलों से बाहर रहने के लिए बाध्य करती है, से लड़ता है। अनिवार्य शिक्षा से सम्बन्धित कानून न केवल बच्चों को स्कूल में उपस्थित रहने के लिए बाध्य करेगा, बल्कि (उच्च शिक्षा की अपेक्षा) प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था के लिए अधिक धन की व्यवस्था में योगदान करेगा। बाल श्रम की समस्या के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलू हैं। केवल किसी एक पहलू पर ध्यान केंद्रित करके इस समस्या को दूर नहीं किया जा सकता, उदाहरण के लिए केवल अनिवार्य शिक्षा के द्वारा या फिर बाल श्रम के कानूनों का कठोरता से पालन करके। सरकार को यह बात सुनिश्चित करनी चाहिए कि बाल श्रम को समाप्त करने से पहले गरीबों की सभी जरूरतों को पूरा किया जा सके। यदि गरीबी को दूर कर दिया जाता है, तो बाल श्रम की जरूरत अपने आप ही समाप्त हो जाएगी। चाहे सरकार कितनी अधिक कोशिश क्यों न कर ले, बाल श्रम की समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक कि इसके लिए हम सभी ईमानदारी से प्रयास नहीं करेंगे।)

Thinking About Language

Although this text speaks of factual events and situations of misery it transforms these situations with an almost poetical prose into a literary experience. How does it do so? Here are some. literary devices:
Hyperbole is a way of speaking or writing that makes something sound better or more exciting than
it really is. For example: Garbage to them is gold. A Metaphor as you may know, compares two things or ideas that are not very similar.

A metaphor describes a thing in terms of a single quality or feature of some other thing, we can say that a metaphor “transfers” a quality of one thing to another. For example: The road was a ribbon of light. Contrast refers to a difference between people and things that can be seen clearly when they are compared or put close together.

For example: His dream looms like a mirage amidst the dust of streets that fill his town, Firozabad, famous for its bangles. Simile is a word or phrase that compares one thing with another using the words “like” or “as”. For example: As white as snow. Carefully read the following phrases and sentences taken from the text. Can you identify the literary device in each example?
1. Saheb-e-Alam which means the lord of the universe is directly in contrast to what Saheb is in reality.
2. Drowned in an air of desolation.
3. Seemapuri, a place on the periphery of Delhi yet miles away from it, metaphorically.
4. For the children it is wrapped in wonder; for the elders it is a means of survival.
5. As her hands move mechanically like the tongs of a machine, I wonder if she knows the sanctity of the bangles she helps make.
6. She still has bangles on her wrist, but not light in her eyes.
7. Few airplanes fly over Firozabad.
8. Web of poverty.
9. Scrounging for gold.
10. And survival in Seemapuri means rag-picking. Through the years, it has acquired the proportions of
a fine art.
11. The steel canister seems heavier than the plastic bag he would carry so lightly over his shoulders.
Answer:
1. contrast
2. metaphor
3. contrast
4. contrast
5. simile
6. contrast
7. metaphor
8. metaphor
9. hyperbole
10. simile
11. contrast

Things To Do

The beauty of the glass bangles of Firozabad contrasts with the misery of people who produce them. This paradox is also found in some other situations, for example, those who work in gold and diamond mines or carpet weaving factories and the products of their labour, the lives of construction workers and the buildings they build.

Look around and find examples of such paradoxes.
Write a paragraph of about 200 to 250 words on any one of them. You can start by making notes. Here is an example of how one such paragraph may begin :
You never see the poor in this town. By day they toil, working cranes and earthmovers, squirreling deep into the hot sand to lay the foundations of chrome. By night they are banished to bleak labour camps at the outskirts of the city.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

They Make Houses For Others

A house is one of the basic needs of man. We build houses for our comfort. Our house gives us protection from the scorching heat or the cold winter. It also provides safety to our possessions. The rich people make good and luxury houses. The masons and labourers who make these houses do not live in luxury. We often see the labourers carrying bricks on their heads in the intense heat of June or in the chilling cold of December. Often they do not have proper clothes to protect them from the weather.

They do not have any holiday to enjoy. They work for all the seven days of the week from morning till evening. Their clothes are torn. They have no security of job. They do not know whether they will get work the next day or not. Their job depends on the pleasure of the owner or the availability of work. They help in making fabulous and comfortable houses. But they themselves live in huts where there is no light, water and sanitation. This is a paradox that they enable us to enjoy the luxuries of a big house.

But often they do not have even a small room for them to live in. Because of their poverty, they cannot send their children to school. So, often their children have also to work in order to earn some extra money. The same is the case of workers who make bricks at the brick kilns. They also lead very miserable and poor lives. They too don’t have any security of jobs. Our government should come forward and do something for the welfare of such workers.

HBSE 12th Class English The Lost Spring Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 
Question 1.
Where has Saheb come from? [H.B.S.E. 2017 (Set-B)] (साहेब कहाँ से आया है ?) or Does Saheb remember his native?
[H.B.S.E. 2018 (Set-D)] (क्या साहेब अपने जन्म स्थान को याद करता है?)
Answer:
No, Saheb has no memory of his native land. Saheb’s family belonged to Dhaka, in Bangladesh. He, along with his family, left his home long ago. His house in Dhaka was set amidst the green fields. But there were many storms that swept away their homes and fields. That is why they had to leave. His family came to Seemapuri where Saheb started working as a ragpicker.

(नहीं, साहेब को अपने जन्म स्थान की याद नहीं आती। साहेब का परिवार बांग्लादेश में, ढाका से सम्बन्ध रखता था। उसने अपने परिवार के साथ बहुत पहले अपने घर को छोड़ दिया था। ढाका में उसका घर हरे खेतों के बीच में स्थित था। लेकिन वहाँ कई बार तूफान आते थे जो उनके घरों और खेतों को तहस-नहस कर देते थे। इसी वजह से उन्हें वहाँ से जाना पड़ा। उसका परिवार सीमापुरी में आ गया जहाँ साहेब ने एक कबाड़ बीनने वाले के रूप में काम करना शुरू कर दिया।)

Question 2.
Where does the author encounter Saheb every morning? (लेखिका साहेब को हर प्रातः कहाँ देखती है ?)
Answer:
Saheb is a ragpicker. The author encounters him every morning searching the garbage dumps for bits of papers and rags. He is one of the army of ragpickers who can be seen scrounging the garbage. Most of these boys are migrants from Bangladesh and have settled in Seemapuri in Delhi.

(साहेब एक कबाड़ बीनने वाला है। लेखिका का हर रोज उससे सामना होता है जब वह कागज के टुकड़ों या चीथड़ों के लिए कूड़े के ढेरों को कुरेदता रहता था। वह कबाड़ बीनने वालों के बड़े समूह का एक सदस्य था जो कूड़े को कुरेदते रहते थे। इनमें से अधिकतर लोग बांग्लादेश के विस्थापित हैं और वे दिल्ली की सीमापुरी में आकर बस गए हैं।)

Question 3.
Give an account of the background of Saheb and his fellow ragpickers. (साहेब एवं उसके साथी कूड़ा बीनने वालों की दशा का वर्णन करो।)
Answer:
Saheb belongs to a community of ragpickers who scrounge the dumps of garbage for paper and rags. He is one of more than 10,000 persons who are engaged in this profession. Most of them migrated to India from Bangladesh in 1971. They were compelled to leave their homes because of many storms which destroyed their homes and lands. They are living in Seemapuri on the outskirts of Delhi.

(साहेब कबाड़ बीनने वाले समुदाय से सम्बन्ध रखता है जो कि कागज के टुकड़ों और चीथड़ों के लिए कूड़े के ढेरों को कुरेदते रहते हैं। वह उन दस हजार से भी अधिक लोगों में से एक है जो इस व्यवसाय में लगे हुए हैं। उनमें से अधिकतर लोग 1971 में बांग्लादेश से विस्थापित होकर भारत आए थे। वे अपने घरों को छोड़ने के लिए बाध्य हो गए थे क्योंकि बहुत से तूफानों ने उनके घरों और खेतों को तबाह कर दिया था। वे दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित सीमापुरी में रह रहे हैं।)

Question 4.
What happens when the author asks Saheb to go to school? (जब लेखिका साहेब से स्कूल जाने को कहती है तो क्या होता है ?)
Answer:
Saheb spends his time scrounging the garbage dumps for bits of paper and rags. He tells the author that he has nothing else to do. She tells him to go to school. Saheb replies that there is no school in his neighbourhood. At this the author asks him he would come if she started a school. Saheb says that he would be glad to come.

(साहेब कागज के टुकड़ों और फटे-पुराने कपड़ों की तलाश में कूड़े के ढेरों को कुरेदता रहता है। वह लेखिका को बताता है कि उनके पास करने के लिए इसके अलावा और कोई अन्य काम नहीं है। वह उसे स्कूल जाने के लिए कहती है। साहेब उत्तर देता है कि उसके पड़ोस में कोई स्कूल ही नहीं है। इस पर लेखिका उसे कहती है कि यदि उसने स्कूल खोल दिया तो क्या वह आएगा। साहेब कहता है कि वह स्कूल में आकर अति प्रसन्न होगा।)

Question 5.
What hollow promise does the author make to Saheb? (लेखिका साहेब से क्या खोखला वायदा करती है ?)
Answer:
Saheb tells the author that he cannot join a school as there is no school in his neighbourhood. At this the author asks him whether he would come if she started a school. Saheb becomes happy. A few days later, he asks her if she has started a school. Now the author feels embarrassed at having made a hollow promise to a poor boy.

(साहेब लेखिका को बताता है कि वह स्कूल में दाखिला नहीं ले सकता है क्योंकि उसके पड़ोस में कोई स्कूल नहीं है। इस पर लेखिका उससे पूछती है कि यदि वह स्कूल खोल देती है तो क्या वह उस स्कूल में दाखिला लेगा। साहेब प्रसन्न हो जाता है। कुछ दिनों के बाद, वह उससे पूछता है कि क्या उसने स्कूल शुरू कर दिया है। अब लेखिका को उस बच्चे के साथ खोखला वायदा करने की वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

Question 6.
What is ironical about Saheb’s full name? (साहेब के पूरे नाम के बारे में विडम्बनात्मक क्या है ?)
Answer:
The author often comes across a poor ragpicker named Saheb. His full name is ‘Saheb-e-Alam’, which means “Lord of the Universe.’ This name is quite ironical. He is a poor boy who earns his living by scrounging the dumps of garbage for bits of paper and rags. His life is full of poverty and misery.

(लेखिका की मुलाकात प्रायः साहेब नाम के एक गरीब कूड़ा बीनने वाले बच्चे के साथ हो जाती थी। उसका पूरा नाम है ‘साहेब-ए-आलम’ जिसका अर्थ है-‘ब्रह्मांड का मालिक’ । यह नाम पूरी तरह से व्यंग्यात्मक है। वह एक गरीब बालक है जिसको कूड़े के ढेरों में कागज के टुकड़ों और फटे-पुराने कपड़ों को तलाश कर अपनी रोजी-रोटी कमानी पड़ती है। उसका जीवन गरीबी और कष्टों से भरा हुआ था।)

Question 7.
What story did a man from Udipi once tell the author? (उडिपी के व्यक्ति ने लेखिका को एक बार क्या कहानी सुनाई ?)
Answer:
Once a man from Udipi told the author that as a young boy he would go to school past a temple. His father was a priest at that temple. He would stop briefly at the temple and prayed to the goddess for a pair of shoes. Finally the goddess granted his prayer and he got a pair of shoes.

(एक बार उडिपी के एक व्यक्ति ने लेखिका को बताया कि जब वह एक लड़का था तो वह मंदिर के पास से गुजरकर स्कूल जाया करता था। उसके पिता जी उस मंदिर में पुजारी थे। वह थोड़ी देर के लिए मंदिर में रुक जाया करता था और देवी से जूतों की जोड़ी के लिए प्रार्थना करता था। अंततः देवी ने उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उसे एक जोड़ी जूते मिल गए।)

Question 8.
What did the author observe when she went to Udipi thirty years later? (जब लेखिका तीस साल बाद उडिपी गई तो उसने क्या देखा ?)
Answer:
The author again visited Udipi thirty years later. She went to the temple. She saw that there was a new priest in that temple. She saw a young boy. He was dressed in a grey uniform and was wearing socks and shoes. Now young boys like the priest’s son wore shoes.

(लेखिका तीस साल बाद फिर से उडिपी जाती है। वह मंदिर में जाती है। उसने देखा कि मंदिर में नया पुजारी आ गया था। उसने एक युवा लड़के को देखा। उसने स्लेटी रंग की एक कमीज पहनी हुई थी और उसने जुराबें और जूते पहने हुए थे। अब जवान लड़के पुजारी के लड़के की तरह जूते पहनते थे।)

Question 9.
The author says, “Seemapuri is on the periphery of Delhi, yet miles away from it, metaphorically.” What does she mean to say? (लेखिका कहती है, “सीमापुरी दिल्ली की सीमा पर है, मगर रूपक के तौर पर इससे मीलों दूर है।” वह ऐसा क्यों कहती है?)
Answer:
Seemapuri is a settlement of thousands of ragpickers. It is on the periphery of Delhi. It is a dirty colony, where people live in poverty and misery. The houses are made of mud, tins and tarpaulin. The streets are full of dirt and sewerage. There is a complete contrast between the modern Delhi and Seemapuri. That is why, metaphorically, it is far away from Delhi.

(सीमापुरी हजारों कबाड़ियों की एक बस्ती है। यह दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित है। यह एक मंदी बस्ती है, जिसमें लोग गरीबी और कष्टों भरा जीवन जीते हैं। मकान मिट्टी, टिन और तिरपाल से बने हुए हैं। गलियाँ, गंदगी और गंदे पानी से भरी हुई हैं। आधुनिक दिल्ली और सीमापुरी की स्थितियों में पूरा विरोधाभास है। अतः रूपक दृष्टि से, सीमापुरी अभी दिल्ली से बहुत दूर है।)

Question 10.
Describe the miserable condition of the ragpickers of Seemapuri. (सीमापुरी के कूड़ा बीनने वालों की दुःखद अवस्था का वर्णन करो।)
Answer:
The ragpickers of Seemapuri lead a life of misery and poverty. They live in dirty conditions. Their houses are made of mud with roofs of tin and tarpaulin. There is no sewerage system, or draining. They don’t have running water. Children are without shoes and are dressed in tattered clothes. Survival in Seemapuri means ragpicking.

(सीमापुरी के कबाड़ बीनने वाले एक कष्टों भरा और गरीबी वाला जीवन व्यतीत करते हैं। वे गंदी स्थितियों में रहते हैं। उनके घर मिट्टी से बने होते हैं और उनकी छतें टिन और तिरपाल की होती हैं। यहाँ पर मल-निकासी और पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। उनके पास जल का कोई स्रोत नहीं है। बच्चों के पास जूते नहीं हैं और वे फटे-पुराने कपड़े पहनते हैं। सीमापुरी में रहने का अर्थ है कबाड़ी के रूप में काम करना।)

Question 11.
Why does the author say that survival in Seemapuri means ragpicking? (लेखिका ऐसा क्यों कहती है कि सीमापुरी में जीवित रहने का अभिप्राय है, कूड़ा बीनना?)
Answer:
Seemapuri is a dirty colony on the outskirts of Delhi. It is a colony of ragpickers. More than ten thousand people are engaged in this job. Most of them have migrated from Bangladesh. They lead miserable and poor lives. They have no other means of earning their livelihood. So they have to scrounge the garbage dumps for bits of paper and rags. That is why the author says that survival in Seemapuri means ragpicking.

(सीमापुरी दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित एक गंदी बस्ती है। यह एक कबाड़ बीनने वालों की बस्ती है। यहाँ के दस हजार से ज्यादा लोग इस काम में लगे हुए हैं। उनमें से अधिकतर बांग्लादेश से आए हैं। वे बहुत ही दयनीय और गरीबी भरा जीवन जीते हैं। उनके पास अपनी आजीविका कमाने का और कोई साधन नहीं है। इसलिए वे कागज़ के टुकड़ों और चीथड़ों के लिए कूड़े के ढेरों को कुरेदते रहते हैं। यही वजह है कि लेखिका कहती है-सीमापुरी में जिंदा रहने का अर्थ है कबाड़ी के रूप में काम करना।)

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Question 12.
How did Saheb get a pair of shoes? (साहेब को एक जोड़ी जूते कैसे मिले ?)
Answer:
One morning the author saw that Saheb was standing by the fenced gate of the tennis club. Two young men were playing tennis. Saheb was also wearing tennis shoes. These were the discarded shoes of a rich boy. Perhaps he had discarded them as there was a hole in one of them. In this way, Saheb got a pair of shoes.

(एक दिन लेखिका ने देखा कि साहेब टेनिस क्लब के जंगले वाले गेट के पास खड़ा था। दो नौजवान टेनिस खेल रहे थे। साहेब ने भी टेनिस वाले जूते पहने हुए थे। ये एक अमीर लड़के द्वारा पहनकर त्यागे हुए जूते थे। शायद उसने उन जूतों को इस वजह से त्याग दिया था क्योंकि उनमें से एक जूते के तलवे में छिद्र हो गया था। इस तरह से साहेब को वे जूते मिले।)

Question 13.
“Saheb is no longer his own master.” Why does the author feel so? (“साहेब अपना मालिक आप नहीं रहा।” लेखिका को ऐसा महसूस क्यों हुआ ?)
Ans. Saheb gets a job in a tea stall. The author sees him on his way to the milk booth. He is carrying a steel canister on his head. Now he gets Rs 800 per month and all his meals. But he has lost his carefree look. The bag in which he picks the rags was his. But the canister belongs to the tea shop owner. So, the author feels that Saheb is no longer his own master.

(साहेब को एक चाय की दुकान में नौकरी मिल जाती है। लेखिका उसे दूध की दुकान की ओर जाते हुए देखती है। उसने अपने सिर पर स्टील का डिब्बा उठा रखा है। अब उसको 800 रुपए महीना वेतन और भोजन मिलता है। लेकिन अब उसने अपनी बेपरवाह जिंदगी को खो दिया है। जिस बोरी में वह कबाड़ इकट्ठा किया करता था वह बोरी उसकी अपनी थी। लेकिन वह कनस्तर चाय की दुकान के मालिक का था। इसलिए लेखिका को लगता है कि साहेब अपनी मर्जी का मालिक नहीं रहा था।)

Question 14.
Who is Mukesh? Describe his background. (मुकेश कौन है ? उसकी पृष्ठभूमि का वर्णन करो।)
Answer:
Mukesh is a poor boy of Firozabad. He belongs to a family of bangle makers. He is one of the 20,000 young people engaged in bangle-making. He and his family lead a poor and miserable life. They work by glass furnaces with high temperature. His family lives in half-built hut. The street is.choked with garbage.
(मुकेश फिरोज़ाबाद का एक गरीब लड़का है। वह चूड़ी बनाने वालों के एक परिवार से सम्बन्ध रखता है। वह उन बीस हजार लोगों में से एक है जो चूड़ी बनाने के काम में लगे हुए हैं। वह और उसका परिवार एक गरीबीपूर्ण और कष्टों भरा जीवन जी रहे हैं। वे उच्च तापमान वाली काँच की भट्टियों के पास काम करते हैं। उसका परिवार एक अधूरी बनी झोंपड़ी में रहता है। उनकी गली कूड़े से भरी पड़ी है।)

Question 15.
Describe the conditions in which the bangle makers of Firozabad work. (उन परिस्थितियों का वर्णन करो जिनमें फिरोजाबाद के चूड़ी बनाने वाले काम करते हैं।)
Answer:
More than 20,000 persons are engaged in bangle making work in Firozabad. They work in miserable conditions. They work near glass furnaces with high temperature. They make bangles in small rooms without proper light or air. Because of dim light and because of the dust rising from polishing the glass, most of the children lose their eyesight before they become adults.
(फिरोजाबाद में बीस हजार से अधिक लोग चूड़ी बनाने के काम में लगे हुए हैं। वे कष्टकारी स्थितियों में काम करते हैं। वे उच्च तापमान वाली शीशे की भट्टियों के पास काम करते हैं। वे छोटे-छोटे कमरों में जहाँ उचित हवा और प्रकाश की कमी होती है वहाँ चूड़ियाँ बनाते हैं। मद्धम प्रकाश और काँच पर की जाने वाली पॉलिश की धूल की वजह से, अधिकतर बच्चे वयस्क (बड़े) होने से पहले ही अपनी आँखों की रोशनी खो देते हैं

Question 16.
What for is Firozabad known? (फिरोजाबाद किस लिए प्रसिद्ध है ?)
Answer:
Firozabad is known for its bangles industry. The glass-blowing industry of Firozabad employs more than twenty thousand workers, most of whom are children. In Firozabad, families have spent generations working around furnaces, welding glass, making bangles for women.
(फिरोज़ाबाद अपने चूड़ी उद्योग की वजह से प्रसिद्ध है। फिरोज़ाबाद के काँच पिघलाने वाले उद्योगों में बीस हजार से भी अधिक श्रमिक काम करते हैं, जिनमें से अधिकतर बच्चे हैं। फिरोजाबाद में परिवारों ने भट्टियों के पास काम करते हुए, काँच को जोड़ने में, महिलाओं के लिए काँच की चूड़ियाँ बनाने में कई पीढ़ियाँ गुज़ार दी हैं।)

Question 17.
What has Mukesh’s father achieved after years of hard labour? (कई सालों के कठिन परिश्रम के बाद मुकेश के पिता ने क्या पाया है ?) Or Why is Mukesh’s Father a failed man?[H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)] (मुकेश के पिता एक असफल व्यक्ति क्यों हैं?)
Answer:
Mukesh’s family is engaged in bangle-making. His father started his career as a tailor. But soon he became a bangle maker. But even many years of hard labour as a bangle maker, his life is still poor and miserable. He has failed to renovate his house. Nor has he been able to send his two sons to school. He has only been able to teach them the art of bangle-making.
(मुकेश का परिवार चूड़ी बनाने के काम में लगा हुआ है। उसके पिता ने एक दर्जी के रूप में अपना व्यवसाय शुरू किया था। लेकिन शीघ्र ही वह चूड़ी बनाने के काम में लग गया। लेकिन चूड़ी बनाने वाले के रूप में काम करते हुए सालों की कठोर मेहनत के बावजूद भी, उसका जीवन अभी भी गरीबी और कष्टों से भरा हुआ है। वह अपने घर की मुरम्मत भी नहीं कर सका है। वह अपने दो बेटों को स्कूल भी नहीं भेज सका है। वह तो उनको केवल चूड़ी बनाने की कला का ही ज्ञान दे सका है।)

Question 18.
Describe the kind of bangles made in Firozabad. (फिरोजाबाद में बनाई गई चूड़ियों का वर्णन करो।)।
Answer:
Firozabad is known for its bangles industry. The town produces all kinds of bangles for Indian women. In the factories of Firozabad, bangles of all sizes and colours are made. These bangles can be sunny gold and paddy green. One may have royal blue, pink or purple bangles.
(फिरोज़ाबाद अपने चूड़ी उद्योग की वजह से जाना जाता है। इस शहर में भारतीय महिलाओं के लिए सभी तरह की चूड़ियों का निर्माण किया जाता है। फिरोज़ाबाद के कारखानों में सभी आकारों और रंगों की चूड़ियों का निर्माण किया जाता है। ये चूड़ियाँ चमकीले सुनहरी रंग की और गहरे हरे रंग की होती थीं। कोई रॉयल ब्लू, गुलाबी या बैंगनी रंग की चूड़ियाँ ले सकता है।)

Question 19.
What does the author think when she sees Savita helping to make bangles? (जब लेखिका सविता को चूड़ियाँ बनाने में सहायता करती देखती है तो क्या सोचती है ?)
Answer:
The author sees Savita is sitting alongside an elderly woman. She is joining with solder pieces of glass and thus helping to make bangles. The author wonders whether Savita knows the sanctity of bangles she helps make. She finds that Savita does not know that bangles symbolize an Indian woman’s ‘suhaag’.
(लेखिका देखती है कि सविता एक वृद्ध महिला के पास बैठी है। वह काँच जोड़ने की मशीन के साथ काँच के टुकड़ों को जोड़ रही है और इस तरह से चूड़ियाँ बनाने में मदद कर रही है। लेखिका हैरान होती है कि क्या वह उन चूड़ियों की पवित्रता को जानती है जिनको बचाने में वह सहायता कर रही है। उसे पता लगता है कि सविता इस बात को नहीं जानती है कि चूड़ियाँ एक भारतीय महिला के सुहाग की निशानी होती हैं।)

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Question 20.
Why don’t the bangle makers of Firozabad organise themselves into a cooperative? (फिरोज़ाबाद के चूड़ी निर्माता स्वयं को सहकारी संस्था में संगठित क्यों नहीं करते ?)
Answer:
The author asks some bangle makers as to why they don’t organize themselves into a cooperative. They reply that they are caught in a vicious circle. The sahukars, the middlemen and the police all conspire to keep them poor. If they try to make a cooperate, the police hauls them up and beats them on false charges. These forces will never let them organise into a cooperative.

(लेखिका कुछ चूड़ी बनाने वालों से पूछती है कि वे स्वयं को एक सहकारी संस्था के अन्तर्गत संगठित क्यों नहीं कर लेते हैं। वे उत्तर देते हैं कि वे तो एक जाल में फंस चुके हैं। साहूकार, बिचौलिए और पुलिस सभी मिलकर उन्हें गरीब बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं। यदि वे एक सहकारी संस्था बनाने का प्रयास करते हैं, तो पुलिस उनको धमकाती है और झूठे आरोप लगाकर उन्हें पीटती है। ये ताकतें कभी-भी उन्हें एक सहकारी संस्था के अन्तर्गत संगठित नहीं होने देती हैं।)

Question 21.
What is the ambition of Mukesh? (मुकेश की महत्त्वाकांक्षा क्या है ?) Or How can Mukesh realise his dreams? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)] (मुकेश को अपने सपनों का एहसास कैसे होता है?)
Answer:
Mukesh is a bangle maker of Firozabad. But he is different from others. He does not want to make bangles all his life. His ambition is to become a motor mechanic. He dreams of driving a car one day. He is determined and hopeful. The author feels that one day he will be able to realise his dream.

(मुकेश फिरोज़ाबाद का एक चूड़ी निर्माता है। लेकिन वह अन्य चूड़ी निर्माताओं से अलग है। वह अपना सारा जीवन चूड़ी बनाने में ही नहीं बिताना चाहता। उसका सपना एक मोटर मैकेनिक बनना है। वह एक दिन कार चलाने का सपना देखता है। वह दृढ़ निश्चय वाला और आशावान है। लेखिका को भी लगता है कि एक दिन वह अपने सपने को पूरा करने में सफल रहेगा।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
What does the writer want Saheb to do? Why has she to feel embrassed about it later ? (लेखिका साहेब से क्या करने को कहती है ? बाद में उसे इसके बारे में क्यों शर्मिंदा होना पड़ा ?)
Answer:
Saheb is a ragpicker. The author encounters him every morning searching the garbage dumps for bits of papers and rags. He is one of the army of ragpickers who can be seen scrounging the garbage. Most of these boys are migrants from Bangladesh and have settled in Seemapuri in Delhi. Saheb spends his time scrounging the garbage dumps for bits of paper and rags. He tells the author that he has nothing else to do. She tells him to go to school. Saheb replies that there is no school in his neighbourhood. At this the author asks him if he would come if she started a school. Saheb says that he would be glad to come. A few days later, Saheb sees the writer. He comes running to her and asks her if she has started a school. Now the author feels embarrased at having made a hollow promise to a poor boy.

(साहेब एक कबाड़ बीनने वाला लड़का है। लेखिका की उससे प्रतिदिन मुलाकात होती थी जब वह कूड़े के ढेरों में कागज के टुकड़ों और चीथड़ों की तलाश कर रहा होता था। वह कबाड़ बीनने वालों के समूह में से मात्र एक था जो कूड़े के ढेरों को कुरेदते रहते थे। इनमें से अधिकतर लड़के बांग्लादेश से आए शरणार्थी थे और वे दिल्ली के सीमापुरी में आकर बस गए थे। साहेब कागज के टुकड़ों और फटे पुराने कपड़ों की तलाश में कूड़े के ढेरों को कुरेदते रहने में अपना समय बिताता है। वह लेखिका को बताता है कि उसके पास इसके अतिरिक्त करने के लिए कोई और काम नहीं है। वह उससे स्कूल जाने के लिए कहती है। साहेब उत्तर देता है कि उसके पड़ोस में कोई स्कूल नहीं है। इस पर लेखिका उससे पूछती है कि यदि उसने स्कूल खोल दिया तो क्या वह आएगा। साहेब कहता है कि वह स्कूल में आकर अति प्रसन्नता महसूस करेगा। कुछ दिनों के पश्चात्, साहेब लेखिका को देखता है। वह दौड़कर उसके पास आता है और पूछता है कि क्या उसने स्कूल शुरू कर दिया है। अब लेखिका को एक गरीब बच्चे के साथ झूठा वायदा करने पर शर्म आती है।)

Question 2.
Reproduce briefly the story related to the man from Udipi ? (उडिपी से आए हुए आदमी से संबंधित कहानी का संक्षेप में वर्णन करो।)
or
“It is his Karam, his destiny that made Mukesh’s grandfather go blind.” How did Mukesh disprove this belief by choosing a new vocation and making his own destiny? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] (यह उसका कर्म, उसका भाग्य है जिसने मुकेश के दादा को अंधा बनाया?)
Answer:
The writer once goes on a visit to Udipi. There she met a man from Udipi. The man told the author that as a young boy he would go to school past a temple. His father was a priest at that temple. He would stop briefly at the temple and prayed to the goddess for a pair of shoes. Finally the goddess granted his prayer and he got a pair of shoes. The author again visited Udipi thirty years later. She went to the temple. She saw that there was a new priest in that temple. She saw a young boy. He was dressed in a grey uniform and was wearing socks and shoes. Now young boys like the priest’s son wore shoes. But many others like the ragpickers in her neighbourhood were still without shoes.

(एक बार लेखिका उडिपी की यात्रा पर जाती है। वहाँ उसकी मुलाकात उडिपी के एक आदमी से होती है। उस आदमी ने लेखिका को बताया कि जब वह लड़का था तो वह एक मंदिर के पास से गुजर कर स्कूल जाता था। उसके पिताजी उस मंदिर के पुजारी थे। वह थोड़ी देर के लिए उस मंदिर में रुक कर देवी माँ से एक जोड़ी जूतों के लिए प्रार्थना करता था। अंततः देवी माँ ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसे एक जोड़ी जूते मिल गए। लेखिका तीस साल बाद फिर से उडिपी गई। वह मंदिर में गई। उसने देखा कि उस मंदिर में अब एक नया पुजारी था। उसने एक युवा लड़के को देखा। उसने स्लेटी रंग की वर्दी पहन रखी थी और जूते तथा जुराबें पहन रखे थे। अब युवा लड़के भी पुजारी के बेटे जैसे जूते पहनने लगे थे। लेकिन उसके पड़ोस में रहने वाले बहुत-से कबाड़ बीनने वाले अभी भी बिना जूतों के हैं।)

Question 3.
What is ironical about Saheb’s name? Describe the life of Saheb and the life of the other ragpickers of Seemapuri.
(साहेब के नाम के बारे में विडम्बनात्मक क्या है ? साहेब एवं सीमापुरी के अन्य कूड़ा बीनने वालों के जीवन का वर्णन करो।)
Answer:
Sahebis a poor ragpicker. He is one of the numerous ragpickers of Seemapuri which is on the periphery of Delhi. Saheb’s full name is ‘Saheb-e-Alam’ which means ‘Lord of the Universe. This is highly ironical. He leads a very poor and miserable life. He moves barefoot as he has no money to buy shoes. He earns his living by scrounging garbage dumps for pits of paper and rags. He does not know what his name means.

Saheb and the other ragpickers of Seemapuri lead a miserable and poor life. They live in dingy huts made of mud with roofs of tin and tarpaulin. They live amidst dirty and unhygienic surroundings. There is no sewerage, no drainage and no running water in their colony. They move around without shoes in the scorching heat. There is no development and no progress. For these poor people survival means rag-picking. For these poor children, garbage is wrapped in wonder. It is their source of livelihood.

(साहेब एक गरीब कबाड़ बीनने वाला है। वह दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित सीमापुरी में रहने वाले असंख्य कबाड़ियों में से एक है। साहेब का पूरा नाम ‘साहेब-ए-आलम’ है जिसका अर्थ होता है इस ‘सृष्टि का मालिक’ । यह बात अत्यंत व्यंगात्मक है। वह एक अति गरीबी भरा और कष्टों वाला जीवन व्यतीत कर रहा है। वह नंगे पाँव घूमता है क्योंकि उसके पास जूते खरीदने के लिए धन नहीं है। वह कूड़े के ढेरों में कागज के टुकड़ों और चीथड़ों को ढूँढकर अपनी आजीविका कमाता है। वह नहीं जानता है कि उसके नाम का क्या अर्थ है।

साहेब और सीमापुरी के अन्य कबाड़ बीनने वाले सभी गरीबी और कष्टों भरा जीवन व्यतीत करते हैं। वे मिट्टी की बदबूदार झोंपड़ियों जिनकी छतें टिन और तिरपाल से बनी हुई थीं, में रहते हैं। वे गंदे और अस्वास्थ्यकर माहौल में रहते हैं। उनके यहाँ मल-निकासी और जल-निकासी का कोई साधन नहीं है और उनके यहाँ ताजा पानी भी नहीं आता है। वे झुलसाने वाली तपत में भी बिना जूतों के घूमते हैं। उनके क्षेत्र में कोई विकास और प्रगति नहीं है। इन गरीब लोगों के लिए जिंदा रहने का अर्थ है कबाड़ बीनना। इन गरीब बच्चों के लिए कूड़ा अजूबे में लिपटी हुई चीज है। यह उनकी आजीविका का एक साधन है।)

Question 4.
Describe the life of the ragpickers of Seemapuri. Why does the author say that Seemapuri is on the periphery of Delhi, yet miles away from it, metaphorically? (सीमापुरी के कूड़ा बीनने वालों के जीवन का वर्णन करो। लेखिका ऐसा क्यों कहती है कि सीमापुरी दिल्ली की सीमा पर है, फिर भी रूपक के तौर पर दिल्ली से मीलों दूर है?)
Or
How does the writer describe seemapuri, a place on the periphery of Delhi? (H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (लेखक सीमापुरी, जो दिल्ली की सीमा पर स्थित है, का वर्णन कैसे करता है?)
Answer:
The ragpickers of Seemapuri lead a life of poverty and misery. There are more than ten thousand ragpickers in Seemapuri. Most of them came here from Bangladesh in 1971. They have been living here for more than thirty years. They don’t have identity and permits. But they do have ration cards which enable them to buy grain and cast their votes at the time of elections. For them food is more important than identity. As children grow up in Seemapuri, they become a part of the barefoot army of ragpickers.

Here survival means rag-picking. These young ragpickers appear in the morning with their bags on their shoulders. They scrounge the garbage dumps for bits of paper, rags, plastic items or other things which they can sell to the Kabariwallah. A garbage dump for them is wrapped in wonder. Sometimes, a ragpicker may find a rupee, a ten rupee note or even a silver coin.

Seemapuri is on the periphery of Delhi. Yet the author says that it is metaphorically miles away from Delhi. She means to say that the glitter and development of Delhi has not touched Seemapuri. The poor ragpickers live in huts made of mud, with roofs of tin and tarpaulin. There is no disposal system for sewage, no draining and no running water. It is unimaginable that Seemapuri is part of Delhi, the capital of India. Here we find no signs of development, only squalor and poverty.

(सीमापुरी के कबाड़ बीनने वाले एक गरीबी और कष्टों भरा जीवन व्यतीत करते हैं। सीमापुरी में कबाड़ बीनने वाले लोगों की संख्या दस हजार से भी अधिक है। इनमें से अधिकतर यहाँ पर बांग्लादेश से 1971 में आए थे। वे यहाँ पर तीस वर्षों से भी अधिक लंबे समय से रह रहे हैं। उनके पास कोई परिचय पत्र या अनुमति पत्र नहीं है। लेकिन उनके पास राशन कार्ड है जिसकी मदद से वे अनाज खरीद सकते हैं और चुनाव के समय अपना वोट डाल सकते हैं।

उनके लिए पहचान से अधिक महत्वपूर्ण भोजन है। जैसे ही सीमापुरी के बच्चे बड़े होते हैं, वे नंगे पाँव वाले कबाड़ियों के दल का हिस्सा बन जाते हैं। यहाँ पर जिंदा रहने का अर्थ कबाड़ बीनना। ये कबाड़ बीनने वाले अपने कंधों पर थैले लादकर सुबह-सुबह बाहर निकल पड़ते हैं। वे कागज के टुकड़ों, फटे-पुराने कपड़ों, प्लास्टिक की चीजों या अन्य चीजों के लिए कूड़े के ढेरों को कुरेदते रहते हैं जिनको वे कबाड़ीवाले को बेच देते हैं। उनके लिए कूड़े का ढेर अजूबे में लिपटी चीज है। कई बार तो किसी कबाड़ बीनने वाले को वहाँ से एक रुपए का सिक्का, दस रुपए का नोट यहाँ तक कि चाँदी का सिक्का भी मिल जाता है।

सीमापुरी दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित है। लेकिन फिर भी लेखिका कहती है कि यह लाक्षणिक रूप में दिल्ली से मीलों दूर है। उसका यह कहने का अर्थ है कि यह दिल्ली की चमक-दमक और विकास से अछूता है। गरीब कबाड़ बीनने वाले मिट्टी की बनी झोंपड़ियों में रहते हैं, जिनक छतें टिन और तरपाल से बनी होती हैं। उनके यहाँ मल निकासी और गंदे जल की निकासी की या ताजे पानी के आने की कोई व्यवस्था नहीं है। यह बात अकल्पनीय है कि सीमापुरी भारत की राजधानी दिल्ली का एक हिस्सा है। यहाँ पर हमें विकास का कोई चिह्न नज़र नहीं आता, सिवाय गंदगी और गरीबी के।)

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Question 5.
Do you think the poor ragpickers remain barefoot because of tradition or lack of money? (क्या आप सोचते हैं गरीब कूड़ा बीनने वाले परम्परा के कारण नंगे पाँव रहते हैं, या पैसे की कमी के कारण ?)
Answer:
The author comes across Saheb, a ragpicker of Seemapuri. He is part of many ragpickers settled in Seemapuri. They live in poor and dirty conditions. Saheb and other ragpickers are barefoot. The author calls them an “army of barefoot boys.” She asks one of them why he is not wearing shoes. He replies that his mother did not bring the shoes down from the shelf. Some boys tell them that it is a tradition with them to remain barefoot. But the author thinks that this is only an excuse to explain away the perpetual poverty which compels them to remain barefoot. She remembers a story, which a man from Udipi told her.

As a young boy he would go to school past a temple. His father was a priest in that temple. He was poor and could not afford shoes. He would stop briefly in the temple and pray for shoes. Thirty years later, the author visited the same temple. She saw a young boy dressed in gray uniform, wearing socks and shoes. But the boys of Seemapuri are too poor to afford shoes. Some days later, she finds Saheb wearing discarded tennis shoes. This shows that the ragpickers are barefoot not because of any tradition but because of their poverty.

(लेखिका की मुलाकात सीमापुरी के एक कबाड़ बीनने वाले साहेब से होती है। वह सीमापुरी में रहने वाले कबाड़ बीनने वालों में से एक हैं। वे गरीबी वाली और गंदी स्थितियों में रहते हैं। साहेब और अन्य कबाड़ बीनने वाले नंगे पाँव रहते हैं। लेखिका उनको “नंगे पाँव लड़कों की सेना” कहकर सम्बोधित करती है। वह उनमें से एक से पूछती है कि उसने जूते क्यों नहीं पहन रखे हैं। वह उनमें से एक से पूछती है कि उसने जूते क्यों नहीं पहन रखे हैं। वह उत्तर देता है कि उसकी माँ ने शेल्फ़ से जूते नीचे नहीं उतारे हैं। कुछ लड़के उसको बताते हैं कि उनके यहाँ तो बिना जूतों के ही रहना एक परंपरा सी बन गई है। परन्तु लेखिका सोचती है कि यह उनका अपनी चिरस्थायी गरीबी को समझाने का एक बहाना है, जो उन्हें नंगे पाँव रहने पर मजबूर करती है।

उसे एक कहानी याद आती है जो उडिपी के एक आदमी ने उसे सुनाई थी। जब वह छोटा था तो वह एक मंदिर के पास से गुजर कर स्कूल जाता था। उसके पिता जी उस मंदिर में पुजारी थे। वे गरीब थे और उसे जूते नहीं दिला सकते थे। वह थोड़ी देर मंदिर में रुक जाया करता था और जूतों के लिए प्रार्थना करता था। तीस साल के बाद, लेखिका फिर से उस मंदिर में गई। उसने एक युवा लड़के को देखा जिसने स्लेटी रंग की वर्दी पहन रखी थी और जूते तथा जुराबें पहन रखे थे। लेकिन सीमापुरी के बालक तो इतने गरीब हैं कि वे जूते नहीं खरीद सकते हैं। कुछ दिनों के बाद, वह साहेब को टेनिस खेलने के पुराने जूते पहने हुए देखती है। इस बात से पता चलता है कि कूड़ा बीनने वाले अपनी गरीबी की वजह से नंगे पाँव रहते हैं, न कि किसी परंपरा की वजह से।)

Question 6.
Who is Mukesh? What is his ambition? Describe the author’s visit to the house of Mukesh? (मुकेश कौन है ? उसकी महत्त्वाकांक्षा क्या है ? लेखिका के मुकेश के घर आगमन का वर्णन करो।)
Or
“It is his Karam, his destiny that made Mukesh’s grandfather go blind.” How did Mukesh disprove this belief by choosing a new vocation and making his own destiny. [H.B.S.E. March 2018 (Set-A)] (यह उसका कर्म, उसका भाग्य है, जिसने मुकेश के दादा को अंधा बनाया। मुकेश ने एक नए पेशे को अपनाकर तथा अपना स्वयं का भाग्य बनाकर इस धारणा को कैसे गलत साबित किया?)
Or
What did the writer see when Mukesh took her to his home ?[H.B.S.E. March, 2019, 2020 (Set-D)] (जब मुकेश लेखक को अपने घर ले गया तो लेखक ने क्या देखा?)
Answer:
Mukesh is a young bangle maker of Firozabad. His family has been doing this job for generations. Like the other families of bangle makers, Mukesh’s family is also very poor. They think that their destiny is fixed and they will spend their lives making bangles only. But Mukesh seems to be different. He is determined that one day he will leave this job. He wants to become a motor mechanic. He dreams of driving a car one day. The author thinks that Mukesh can achieve his aim as he seems determined.

The author visits Mukesh’s home. He lives in a stinking lane, choked with garbage. The houses in the streets are just hoveled with crumbling walls and no windows. They are crowded with families of humans and animals. Then they enter Mukesh’s home. It is a half-built rough hut. In one part of it, the roof is covered with dry grass. There is firewood stove. A frail woman is cooking the evening meal for the family. She is the wife of Mukesh’s elder brother.

Mukesh’s father is a poor bangle maker. He has been making bangles for many long years. Yet he has not been able to renovate the house and to send his two sons to schools. He could just teach them the art of bangle-making. Mukesh’s grandfather had gone blind with the dust from polishing the glass of bangles.

(मुकेश फिरोजाबाद का चूड़ी बनाने वाला एक छोटा लड़का है। उसका परिवार कई पीढ़ियों से यह काम कर रहा है। चूड़ियाँ बनाने वाले अन्य परिवारों की तरह मुकेश का परिवार भी गरीब है। वे सोचते हैं कि उनका भाग्य तो तय कर दिया गया है और वे तो केवल मात्र चूड़ियाँ बनाकर ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे। लेकिन मुकेश का विचार भिन्न है। उसे पक्का यकीन है कि एक दिन वह उस काम को छोड़ देगा। वह एक मोटर मैकेनिक बनना चाहता है। वह एक दिन कार चलाने का सपना देखता है। लेखिका सोचती है कि मुकेश अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है क्योंकि उसका इरादा पक्का है।

लेखिका मुकेश के घर जाती है। वह एक बदबूदार गली में रहता है जो कि कूड़े से भरी पड़ी है। गलियों में बने घर मात्र सिर्फ छप्पर ही हैं जिनकी टूटी-फूटी दीवारें हैं और उनमें कोई खिड़की भी नहीं है। उन घरों में इन्सानों और पशुओं की भीड़ भरी हुई है। तब वे मुकेश के घर में प्रवेश करते हैं। उसका घर एक आधी बनी झोंपड़ी के समान है। इसके एक भाग में, छत सूखे घास से बनी हुई है। इसमें लकड़ी का चूल्हा रखा हुआ है। एक कमजोर-सी महिला परिवार के लिए रात्रि भोजन तैयार कर रही है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है। मुकेश का पिता एक गरीब चूड़ी बनाने वाला है। वह पिछले बहुत-से सालों से चूड़ियाँ बना रहा है। लेकिन फिर भी वह अपने घर की मुरम्मत नहीं करवा सका है और न ही अपने दो बेटों को स्कूल भेज सका है। वह तो उनको केवल मात्र चूड़ियाँ बनाने की कला ही सिखा पाया है। मुकेश का दादा काँच को पॉलिश करते समय उठी धूल की वजह से अंधा हो चुका था।)

The Lost Spring MCQ Questions with Answers

Multiple Choice Questions

1. Who is the writer of extract ‘Lost Spring’?
(A) Najees Jung
(B) Anees Jung
(C) Janees Aung
(D) Ganesh Gunj
Answer:
(B) Anees Jung

2. Who is Saheb?
(A) a shopkeeper
(B) a soldier
(C) a ragpicker
(D) a student
Answer:
(C) a ragpicker

3. From where did Saheb come?
(A) Dhaka
(B) Dhamaka
(C) Jorhat
(D) Chittagong
Answer:
(A) Dhaka

4. Why did Saheb and his family come to India leaving Bangladesh?
(A) they liked India
(B) they were expelled from there
(C) because of communal violence there
(D) because storms destroyed their homes and fields
Answer:
(D) because storms destroyed their homes and fields.

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5. What is Saheb’s full name?
(A) Saheb-e-Alam
(B) Alam-e-Saheb
(C) Laheb-e-Salam
(D) Maheb-e-Lalam
Answer:
(A) Saheb-e-Alam

6. What is the meaning of ‘Saheb-e-Alam’?
(A) great ragpicker
(B) chief of pick-pockets
(C) Lord of the Universe
(D) Lord of the pirates
Answer:
(C) Lord of the Universe.

7. Saheb’s name means “Lord of the Universe, but he leads a life of ………………………………..
(A) wealth and power
(B) opulence
(C) prosperity
(D) poverty and misery
Answer:
(D) poverty and misery

8. Why does Saheb remain barefoot?
(A) his feet are beautiful
(B) he hates shoes
(C) he is so poor that he cannot buy shoes and chappals
(D) his employer forbids him to wear shoes
Answer:
(C) he is so poor that he cannot buy shoes and chappals

9. Where does Saheb live?
(A) Seemapuri
(B) Peemasuri
(C) Maujpur
(D) Paujmur
Answer:
(A) Seemapuri

10. The houses in Seemapuri are made of ………………………………….
(A) bricks and concrete
(B) asbestos sheets
(C) mud, tin, and tarpaulin
(D) plywood
Answer:
(C) mud, tin and tarpaulin

11. For the people of Saheb’s colony what is more important than identity?
(A) gold
(B) Silver
(C) coats
(D) food
Answer:
(D) food

12. Where do Saheb and other such people pitch their tents?
(A) in a good colony
(B) wherever they find food
(C) by the bank of a river
(D) near a theatre
Answer:
(B) wherever they find food.

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13. What is Saheb watching from the fenced gate of a club?
(A) two young men playing tennis
(B) two women dancing
(C) two dogs quarreling dog
(D) a gardener planting flowers
Answer:
(A) two young men playing tennis

14. Later, Saheb is found wearing shoes. Who gave them the shoes?
(A) the writer
(B) a policeman
(C) a doctor
(D) a rich boy
Answer:
(D) a rich boy

15. Why did a rich boy give the tennis shoes to Saheb?
(A) he liked Saheb
(B) he hated his shoes
(C) there was a hole in one of them
(D) Saheb bought them from him.
Answer:
(C) there was a hole in one of them

16. Where does Saheb work after leaving the work of being a ragpicker?
(A) a factory
(B) in a tea stall
(C) on a farm
(D) in a school
Answer:
(B) in a tea stall

17. The writer describes the life of another poor boy. What is his name?
(A) Mukesh
(B) Sukesh
(C) Ramesh
(D) Sumesh
Answer:
(A) Mukesh

18. Where does Mukesh’s family work?
(A) in a school
(B) on a farm
(C) in a club
(D) in a bangle factory
Answer:
(D) in a bangle factory

19. Where does Mukesh live?
(A) in Ferozepur
(B) in Faridabad
(C) in Aurangabad
(D) in Firozabad
Answer:
(D) in Firozabad

20. What is Firozabad famous for?
(A) bangles
(B) sandals
(C) cloth
(D) electronics
Answer:
(A) bangles

21. What does Mukesh want to become?
(A) a doctor
(B) a motor mechanic
(C) teacher
(D) writer
Answer:
(B) a motor mechanic

22. What does the writer say about the street in which Mukesh’s house is situated?
(A) a fine street
(B) a wide street
(C) a street with civic amenities
(D) a stinking lane, choked with garbage
Answer:
(D) a stinking lane, choked with garbage.

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23. In what kind of house does Mukesh live?
(A) in a big house
(B) in a bungalow
(C) in a half-built rough hut
(D) in a flat
Answer:
(C) in a half-built rough hut

24. What’s Mukesh’s father?
(A) a doctor
(B) a poor bangle maker
(C) a teacher
(D) a leader
Answer:
(B) a poor bangle maker

25. What do the bangles symbolize in Indian culture?
(A) ‘Suhaag’
(B) corruption
(C) chastity
(D) farming
Answer:
(A) ‘Suhaag

The Lost Spring Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1.
“Why do you do this?” I ask Saheb whom I encounter every morning scrounging for gold in the garbage dumps of my neighbourhood. Saheb left his home long ago. Set amidst the green fields of Dhaka, his home is not even a distant memory. There were many storms that swept away their fields and homes, his mother tells him. That’s why they left, looking for gold in the big city where he now lives. “I have nothing else to do,” he mutters, looking away.

Word-meanings :
Encounter = come across (भेंट करना);
scrounging = searching for something (किसी चीज़ को खोजना);
dumps = heaps (ढेर)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(B) Lost Spring

(ii) Name the author of these lines.

(A) Alphonse Daudet
(B) Saheb
(C) Anees Jung
(D) none of these
Answer:
(C) Anees Jung

(iii) Who is Saheb?
(A) a school-going boy
(B) the son of a king
(C) a ragpicker boy
(D) the writer’s son
Answer:
(C) a ragpicker boy

(iv) Which city did Saheb’s family belong to?
(A) Dhaka
(B) Kolkata
(C) Patna
(D) Chennai
Answer:
(A) Dhaka

(v) What was Saheb scrounging for in the heaps of garbage?
(A) books
(B) food
(C) toys
(D) rags
Answer:
(D) rags

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Passage 2
After months of knowing him, I ask him his name. “Saheb-e-Alam,” he announces. He does not know what it means. If he knew its meaning – lord of the universe – he would have a hard time believing it. Unaware of what his name represents, he roams the streets with his friends, an army of barefoot boys who appear like the morning birds and disappear at noon. Over the months, I have come to recognize each of them.

Word-meanings :
Roam = wanders (घूमना);
barefooted = without shoes (बिना जूतों के);
disappear = go out of sight (नज़र न आना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(B) Lost Spring

(ii) Name the author of these lines.
(A) Alphonse Daudet
(B) Saheb
(C) Anees Jung
(D) none of these
Answer:
(C) Anees Jung

(iii) What is the meaning of ‘Saheb-e-Alam’?
(A) Lord of the state
(B) Lord of the universe
(C) Lord of the land
(D) none of the above
Answer:
(B) Lord of the universe

(iv) Who does Saheb roam with?
(A) his parents
(B) his brother
(C) his classmates
(D) his friends
Answer:
(D) his friends

(v) Did Saheb know the meaning of his name?
(A) Yes
(B) No
(C) Maybe
(D) May not be
Answer:
(B) No

Passage 3
I remember a story a man from Udipi once told me. As a young boy he would go to school past an old temple, where his father was a priest. He would stop briefly at the temple and pray for a pair of shoes. Thirty years later I visited his town and the temple, which was now drowned in an air of desolation. In the backyard, where lived the new priest, there were red and white plastic chairs. A young boy dressed in a grey uniform, wearing socks and shoes, arrived panting and threw his school bag on a folding bed.

Looking at the boy, I remembered the prayer another boy had made to the goddess when he had finally got a pair of shoes, “Let me never lose them.” The goddess had granted his prayer. Young boys like the son of the priest now wore shoes. But many others like the ragpickers in my neighbourhood remain shoeless. [H.B.S.E. 2017 (Set-A)]

Word-meanings :
Desolation = ruin (विनाश);
panting = breathing heavily (ज़ोर-से साँस लेना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(B) Lost Spring

(ii) Name the author of these lines.
(A) Alphonse Daudet
(B) Saheb
(C) Anees Jung
(D) None of these
Answer:
(C) Anees Jung

(iii) What was the young boys father?
(A) Priest
(B) Farmer
(C) Teacher
(D) Soldier
Answer:
(A) Priest

(iv) What did the boy pray for?
(A) A pair of shirts
(B) Books
(C) Money
(D) A pair of boots
Answer:
(D) A pair of boots

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(v) Who does “I’ refer to in the first line?
(A) Anees Jung
(B) Saheb
(C) Saheb’s father
(D) None of the above
Answer:
(A) Anees Jung

Passage 4
My acquaintance with the barefoot ragpickers leads me to Seemapuri, a place on the periphery of Delhi yet miles away from it, metaphorically. Those who live here are squatters who came from Bangladesh back in 1971. Saheb’s family is among them. Seemapuri was then a wilderness. It still is, but it is no longer empty. In structures of mud, with roofs of tin and tarpaulin, devoid of sewage, drainage or running water, live 10,000 ragpickers.

Word-meanings :
Acquaintance = introduction (परिचय);
squatters = illegal settlers (गैर-कानूनी स्थापित होना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(B) Lost Spring

(ii) Name the author of these lines.
(A) Alphonse Daudet
(B) Saheb
(C) Anees Jung
(D) none of these
Answer:
(C) Anees Jung

(iii) Where is Seemapuri situated?
(A) in the center of Delhi
(B) on the periphery of Delhi
(C) outside Delhi
(D) all of the above
Answer:
(B) on the periphery of Delhi

(iv) Who lived in Seemapuri?
(A) Farmers
(B) Politicians
(C) Traders
(D) Ragpickers
Answer:
(D) Ragpickers

(v) What change has come in Seemapuri over the years?
(A) It is no longer a wilderness
(B) Here structures of mud, with roofs of tin and tarpaulin have appeared here
(C) About 10,000 ragpickers live here
(D) all of the above
Answer:
(D) all of the above

Passage 5
“I, sometimes, find a rupee, even a ten-rupee note,” Saheb says, his eyes lighting up. When you can find a silver coin in a heap of garbage, you don’t stop scrounging, for there is hope of finding more. It seems that for children garbage has a meaning different from what it means to their parents. For the children it is wrapped in wonder, for the elders, it is a means of survival.

Word-meanings :
Garbage = rubbish (कूड़ा);
scrounging = searching for something (किसी चीज को खोजना);
wrapped = covered (लिपटा) ।

Questions :
(i) This passage has been taken from :
(A) The Last Lesson
(B) Deepwater
(C) Lost Spring
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Lost Spring

(ii) Who, sometimes, finds a rupee, even a ten-rupee note?
(A) The writer
(B) The story-teller
(C) Saheb
(D) His parents
Answer:
(C) Saheb

(iii) What does a heap of garbage stand for the children’s parents?
(A) A source of water
(B) A means of survival
(C) Both (A) and (B)
(D) neither (A) and (B)
Answer:
(B) A means of survival

(iv) The word “garbage’ means :
(A) rubbish
(B) expensive material
(C) rare material
(D) useful material
Answer:
(A) rubbish

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(v) The writer of the passage is :
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) W. Douglas
(D) none of these
Answer:
(B) Anees Jung

Type (ii)
Passage 6
They have lived here for more than thirty years without an identity, without permits but with ration cards that get their names on voters’ lists and enable them to buy grain. Food is more important for survival than an identity. “If at the end of the day we can feed our families and go to bed without an aching stomach, we would rather live here than in the fields that gave us no grain,” say a group of women in tattered saris when I ask them why they left their beautiful land of green fields and rivers.

Wherever they find food, they pitch their tents that become transit homes. Children grow up in them, becoming partners in survival. And survival in Seemapuri means rag-picking. Through the years, it has acquired the proportions of a fine art. Garbage to them is gold. It is their daily bread, a roof over their heads, even if it is a leaking roof. But for a child, it is even more.

Word-meanings:
Identity = recognition (पहचान);
aching = paining (पीड़ा);
survival = living (जीवन)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) Where have the rag-pickers lived for more than thirty years?
(iii) Why have the people left their green field’s behind?
(iv) What is gold to the ragpickers?
(v) Find words from the passage which mean the same as :
(a) painting,
(b) living.
Answers :
(i) Chapter: Lost Spring-Stories of Stolen Childhood.
Author: Anees Jung.
(ii) The ragpickers have lived for more than thirty years in Seemapuri.
(iii) The people have left their green fields behind because that gave no grain to them.
(iv) Garbage is gold to the ragpickers.
(v) (a) aching, (b) survival.

Passage 7
Saheb too is wearing tennis shoes that look strange over his discolored shirt and shorts. “Someone game them to me,” he says in the manner of an explanation. The fact that they are discarded shoes of some rich boy, who perhaps refused to wear them because of a hole in one of them, does not bother him. For one who had walked barefoot, even shoes with a hole is a dream come true. But the game he is watching so intently is out of his reach. [H.B.S.E. March 2018 (Set-B)]

Word-meanings :
Discard = given up/in disuse (छाड़ना);
intently = attentively (आभलाषा)।

Questions :
(i) Name the chapter from which the above lines have been taken.
(ii) Name the author of the chapter.
(iii) What looks strange?
(iv) Why did some rich boy discard the shoes?
(v) What is a dream come true for Saheb?
Answers:
(i) Lost Spring
(ii) Anees Jung
(iii) Tennis shoes that Saheb was wearing look strange.
(iv) Some rich boys discarded them because of a hole in one of them.
(v) Dream of wearing a shoe come true for Saheb.

Passage 8
Savita, a young girl in a drab pink dress, sits alongside an elderly woman, soldering pieces of glass. As her hands move mechanically like the tongs of a machine, I wonder if she knows the sanctity of the bangles she helps make. It symbolises an Indian woman’s suhag, auspiciousness in marriage. It will dawn on her suddenly one day when her head is draped with a red veil, her hands dyed red with henna, and the red bangles rolled onto her wrists. She will then become a bride. [H.B.S.E. March 2018 (Set-D)]

Word-meanings :
Drab = dull (नीरस);
soldering = welding (धातु जाड़न का टाका);
dyed = coloured (रग किया)।

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Questions :
(i) Name the chapter from which the above lines have been taken.
(ii) Name the author of the chapter.
(iii) What is Savita wearing?
(iv) What sanctity is attached to bangles?
(v) What job is Savita doing?
Answers:
(i) Lost Spring
(ii) Anees Jung
(iii) Savita is wearing a pink dress.
(iv) Bangles symboliseS an Indian woman’s suhag.
(v) Savita is soldering pieces of glass.

The Lost Spring Summary in English and Hindi

The Lost Spring Introduction to the Chapter
Anees Jung is one of the famous writers of India. She was born in Rourkela. But she spent her childhood in Hyderabad. She got her education in Hyderabad and in USA. Anees Jung began her literary career as writer and columnist for major newspapers of India. This lesson has been taken from her book ‘Lost Spring, Stories of Stolen Childhood. This lesson presents a depressing picture of modern India. She gives a realistic description of the grinding poverty and pathetic condition of poor and innocent children like Saheb of Seemapuri and Mukesh of Firozabad. Saheb is a ragpicker in Seemapuri, near Delhi. Mukesh works as a labourer in a bangle making factory of Firozabad in Uttar Pradesh. Like many others in India, the childhood of Saheb and Mukesh is full of abject poverty and misery.

(अनीस जंग भारत के प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म राऊरकेला में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना बचपन हैदराबाद में बिताया। उन्होंने अपनी शिक्षा हैदराबाद और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्राप्त की। अनीस जंग ने अपना साहित्यिक सफर भारत के प्रसिद्ध समाचार-पत्रों के लिए एक लेखक और स्तंभकार के रूप में शुरू किया। यह पाठ उनकी पुस्तक ‘Lost Spring Stories of Stolen Childhood’ से लिया गया है।

यह पाठ आधुनिक भारत की विषाद भरी तस्वीर का प्रदर्शन करता है। वे कष्टकारक गरीबी और सीमापुरी के साहेब और फिरोज़ाबाद के मुकेश जैसे (निर्दोष) बच्चों की करुणाजनक स्थिति का वास्तविक चित्रण करती हैं। साहेब दिल्ली के निकट सीमापुरी में एक कबाड़ इकट्ठा करने वाला है। मुकेश उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद में चूड़ियों का निर्माण करने वाली एक फैक्टरी में श्रमिक है। भारत में अन्य बहुत-से लोगों की तरह साहेब और मुकेश का बचपन भी दयनीय गरीबी और कष्टों से भरा हुआ है।)

The Lost Spring Summary

“Sometimes I find a rupee in the garbage” : Saheb is a ragpicker. Anees Jung sees him daily scrounging the garbage dumps. He came from Dhaka, which is in Bangladesh. He has no memory of his home. His family came away from Bangladesh because storms destroyed their homes and fields. Anees Jung asks him his full name. His full name is ‘Saheb-e-Alam,’ which means “Lord of the Universe”. This name is ironical as he is not the lord of even his own life. He leads a life of utter poverty and misery. He roams the streets with other ragpickers. Like them, he is also barefoot. They live in a state of perpetual poverty and cannot afford shoes or chappals.

Like many other families of ragpickers, Saheb’s family lives in Seemapuri. This is a dirty colony on the periphery of Delhi. About 10,000 ragpickers live there in miserable conditions. The colony shows no signs of development. The houses are made of mud and have roofs of tin and tarpaulin. The colony is devoid of sewage drainage or running water. They have lived for more than thirty years. They have no identity or permits. But they have ration cards that enable them to buy grain or to cast votes. For them food is more important than identity. Wherever they find food, they pitch their tents and become a transit camp.

One morning, the writer sees Saheb standing by the fenced gate of a club. He is watching two young men playing tennis. He tells her that he likes the game. Saheb is also wearing tennis shoes. These were given to him by a rich boy because there is a hole in one of the shoes. Now Saheb works in a tea stall. He gets 800 rupees plus meals. The writer observes that Saheb’s face has lost its carefree look. He is no longer his own master.
“I want to drive a car.”

Now the writer describes the life of another poor boy. His name is Mukesh. His family works in a bangle factory. He lives in a dusty street of Firozabad. This town is famous for its bangles. It is the center of India’s glass-blowing factory. Like other poor families of the town, Mukesh’s family has been making bangles for generations. But Mukesh has dreams in his eyes. He wants to be a motor mechanic. He says that he wants to learn to drive a car.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 2 Lost Spring

The author says that more than 20,000 children work in the bangle factories of Firozabad. They do not know that it is illegal for children to work in the glass furnaces with high temperatures. They work in dark cells without air and light. They live in miserable conditions. The author visits Mukesh’s home. He lives in a stinking lane, choked with garbage. The houses in the streets are just hovels with crumbling walls and no windows. They are crowded with families of humans and animals.

Then they enter: Mukesh’s home. It is a half-built rough hut. In one part of it, the roof is covered with dry grass. There is firewood stove. A frail woman is cooking the evening meal for the family. She is the wife of Mukesh’s elder brother. Mukesh’s father is a poor bangle maker. He has been making bangles for many long years. Yet he has not been able to renovate the house and to send his two sons to schools. He could just teach them the art of bangle-making. Mukesh’s grandfather had gone blind with the dust from polishing the glass of bangles.

There is great poverty in the families of these bangle makers. But they cannot give up their profession. They are born in the caste of bangle makers. They have nothing but bangles in their houses. In dark hutments, boys and girls sit with their fathers and mothers, welding pieces of coloured glass into circles of bangles. They work by flickering oil lamps.

The author meets a young girl in a dull pink dress, sitting alongside an elderly woman. The girl’s name is Savita. She is welding the pieces of glass. Her hands move mechanically while doing so. The author wonders whether she knows the sanctity of bangles. They symbolise an Indian woman’s ‘suhaag’. They stand for auspiciousness in marriage. Perhaps she will realise it one day when she herself becomes a bride.

These poor people have no money to do any other work except carry on the business of making bangles. Years of mind-numbing toil have killed all initiative and the ability to dream. The author asks some young men why they do not organise themselves into a cooperative. They say that even they make an attempt to do, they will be hauled up by the police, beaten and dragged to jail for doing something illegal.

The author realises that there are two distinct worlds. One is the world of the family, caught in a web of poverty. The other is the world of moneylenders, the middlemen and the policeman, the bureaucrats and the politicians. They all exploit the poor bangle makers. Mukesh’s eyes are full of hope. The author asks him if he dreams of flying an aeroplane. He says ‘no’ and is content to dreams of cars which he sees moving down the streets of his town. The child accepts his destiny as his father had accepted it.

(“कई बार मुझे कबाड़ में से एक रुपया मिल जाता है।” साहेब कबाड़ बीनने वाला है। अनीस जंग उसे हररोज कूड़े के ढेर के पास खोजबीन करते हुए देखती है। वह ढाका से आया था जो कि बंगलादेश में है। उसे अपने घर की कोई याददाश्त नहीं है। उसका परिवार बंगला देश से पलायन कर आया था क्योंकि तूफान में उनका घर और खेत नष्ट हो चुके थे। अनीस जंग उससे उसका पूरा नाम पूछती है। उसका पूरा नाम है ‘साहिब-ए-आलम’ जिसका अर्थ है ‘दुनिया का मालिक’। यह नाम व्यंग्यात्मक है क्योंकि वह तो खुद अपने जीवन का भी मालिक नहीं है। वह पूर्ण गरीबी और कष्टों भरा जीवन व्यतीत करता है। वह कबाड़ बीनने वाले दूसरे लड़कों के साथ गलियों में घूमता है। उनकी तरह वह भी नंगे पाँव है। वे कभी समाप्त न होने वाली गरीबी की स्थिति में रहते हैं और जूते या चप्पलें भी नहीं जुटा सकते हैं।

कबाड़ इकट्ठा करने वालों के अन्य बहुत-से परिवारों की तरह, साहेब का परिवार भी सीमापुरी में रहता है। यह दिल्ली की परिधि पर बसी एक गंदी बस्ती है। लगभग 10,000 कबाड़ इकट्ठा करने वाले वहाँ दयनीय स्थिति में रहते हैं। कॉलोनी में विकास का कोई संकेत नहीं है। मकान मिट्टी से बने हुए हैं और उनकी छतें टिन और तिरपाल से बनी हुई हैं। कॉलोनी मल निकासी और जलापूर्ति रहित है। वे तीस सालों से अधिक से यहाँ रह रहे हैं।

उनका कोई पहचान-पत्र या अनुमति पत्र नहीं है। लेकिन उनके पास राशन-कार्ड है। जिससे वे अनाज प्राप्त कर सकते हैं और वोट डाल सकते हैं। उनके लिए पहचान-पत्र की अपेक्षा राशन अधिक जरूरी है। जहाँ कहीं भी उन्हें भोजन मिल जाता है वे अपने तंबू गाड़ देते हैं और एक अस्थायी कैंप बना लेते हैं। एक सुबह लेखिका साहेब को एक क्लब में गेट के पास खड़े देखती है। वह दो नवयुवकों को टेनिस खेलते हुए देख रहा है। वह उसे बताता है कि वह उस खेल को पसंद करता है।

साहेब ने भी टेनिस के जूते पहन रखे हैं। उसको ये एक अमीर लड़के के द्वारा दिए गए थे क्योंकि एक जूते में सुराख हो गया था। अब साहेब एक चाय की दुकान पर काम करता है। उसे भोजन के साथ 800 रुपये मिलते हैं। लेखिका देखती है कि साहेब के चेहरे के चिंतामुक्त भाव खो गए हैं। अब वह अपनी मर्जी का मालिक नहीं रहा है।

“मैं कार चलाना चाहता हूँ।” अब लेखिका एक-दूसरे गरीब लड़के का वर्णन करती है। उसका नाम मुकेश है। उसका परिवार एक चूड़ियों के कारखाने में काम करता है। वह फिरोजाबाद की एक धूलभरी गली में रहता है। यह कस्बा अपनी चूड़ियों के कारण प्रसिद्ध है। यह भारत के काँच उद्योग का केंद्र है। कस्बे के अन्य गरीब परिवारों की भाँति, मुकेश का परिवार भी कई पीढ़ियों से चूड़ियाँ बनाने का काम कर रहा है। लेकिन मुकेश की आँखों में सपने हैं। वह एक मोटर मकैनिक बनना चाहता है। वह कहता है कि वह कार चलाना सीखना चाहता है।

लेखिका कहती है कि फिरोज़ाबाद के चूड़ियाँ बनाने वाले कारखानों में 20,000 से अधिक बच्चे काम कर रहे हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि इतने उच्च तापमान पर काँच पिघलाने वाले इन उद्योगों में बच्चों का भारी काम करना उनके लिए गैर-कानूनी है। वे बिना हवा और प्रकाश के अंधेरे कमरों में काम करते हैं। वे दयनीय परिस्थितियों में रहते हैं। लेखिका मुकेश के घर जाती है। वह एक बदबूदार गली में रहता है जो कि कबाड़ से भरी पड़ी है। उस गली के घर जीर्ण-शीर्ण दीवारों वाले छप्पर है और उनमें खिड़कियाँ नहीं हैं। उनमें मनुष्यों और पशुओं की भीड़ है। तब वे मुकेश के घर में प्रवेश करते हैं। यह एक आधी-अधूरी बनी भद्दी-सी झोपड़ी है। इसके एक भाग में, छत सूखी घास से ढकी हुई है। इसमें लकड़ी से चलने वाला चूल्हा रखा है।

एक दुबली-पतली महिला परिवार के लिए शाम का भोजन पका रही है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है। मुकेश का पिता एक गरीब चूड़ी निर्माता है। वह बहुत सालों से चूड़ियाँ बना रहा है। लेकिन फिर भी वह अपने घर की मुरम्मत नहीं करवा सका और न ही अपने दो बेटों को स्कूल भेज सका। वह उन्हें केवल चूड़ियाँ बनाने की कला ही सिखा पाया। मुकेश के दादा जी चूड़ियों के काँच पर पॉलिश करते हुए धूल के कारण अंधे हो गए थे।

इन चूड़ी निर्माताओं के परिवारों में बहुत अधिक गरीबी है। लेकिन वे अपना पेशा नहीं छोड़ सकते हैं। उनका जन्म चूड़ी निर्माताओं की जाति में हुआ है। उनके घरों में चूड़ियों के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। अंधेरी झोंपड़ियों में लड़के और लड़कियाँ अपने माता-पिता के साथ बैठकर रंगीन काँच के टुकड़ों को गोल चूड़ियों के रूप में जोड़ते हैं। वे तेल के दिए जलाकर काम करते हैं।

लेखिका एक छोटी लड़की से मिलती है जिसने फीके गुलाबी रंग की पोशाक पहन रखी थी और वह एक वृद्ध महिला के पास बैठी थी। लड़की का नाम सविता है। वह काँच के टुकड़ों को जोड़ रही है। ऐसा करते हुए उसके हाथ मशीन की तरह चल रहे हैं। लेखिका हैरान होती है कि क्या उस लड़की को चूड़ियों की पवित्रता का पता है। ये एक भारतीय महिला के ‘सुहाग’ का प्रतीक हैं। ये शादी में शुभ मानी जाती हैं। शायद उसे इसके बारे में एक दिन पता चल जाएगा जब वह दुल्हन बनेगी।

इन गरीब लोगों के पास चूड़ी बनाने के इस पेशे को जारी रखने के सिवाय और कोई काम करने के लिए धन नहीं है। मन को चेतना शून्य कर देने वाले वर्षों के परिश्रम ने उनकी सभी रुचियों और स्वप्नों को मार दिया है। लेखिका कुछ नवयुवकों से पूछती है कि वे स्वयं को एक सहकारी समिति के रूप में संगठित क्यों नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि यदि वे ऐसा करने का प्रयास भी करते हैं तो पुलिस उन्हें खींच लेगी और उनकी पिटाई करके उन्हें गैर-कानूनी कार्य करने के जुर्म में जेल में डाल देगी। लेखिका महसूस करती है कि दो भिन्न-भिन्न प्रकार का संसार है। एक संसार तो गरीबी के जाल में फंसे हुए परिवारों का है। दूसरा संसार साहूकारों, मध्यमवर्ग के लोगों और पुलिस वालों, अधिकारियों और राजनीतिज्ञों का है।

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वे सभी गरीब चूड़ी निर्माताओं का शोषण करते हैं। मुकेश की आँखें आशा से भरी हैं। लेखिका उससे पूछती है कि क्या वह हवाई जहाज उड़ाने का स्वप्न देखता है। वह कहता है “नहीं” और वह तो कार चलाने के सपने से ही संतुष्ट है जो कि उसे अपने कस्बे में गली से नीचे की ओर आती हुई जान पड़ती है। बच्चा अपने भाग्य को स्वीकार कर लेता है जैसे उसके पिता ने स्वीकार कर लिया था।)

The Lost Spring Word Meanings

[Page 13] :
Garbage (rubbish) = कूड़ा-कर्कट;
encounter (come across) = भेंट करना;
scrounging (searching for something)=किसी चीज़ को खोजना;
dumps (heaps)=ढेर;
amidst (in the middle of) =के बीच में;
distant (faroff) =से दूर;
swept away (washed away) = तहस-नहस करना;
else (any other thing) =अन्य वस्तु;
mutters (grumbles)= दुःख व्यक्त करना;
glibly (easily)= आसानी से;
hollow (empty) खाली;
sound (seem) = प्रतीत होना।

[Page 14] :
Broadly (widely)= चौड़ा ;
embarrassed (confused) = व्याकुल;
abound (in plenty)= प्रचुरता में;
bleak (dark, cheerless)= अंधेरा, उदास;
hard time (difficult time)= मुश्किल समय;
unaware (ignorant)= उपेक्षा करना;
represents (stands for)= पक्ष लेना;
roams (wanders) = घूमना;
barefoot (without shoes) = बिना जूतों के;
disappear (go out of sight)= नज़र न आना;
match (equal)= बराबर;
shuffles (keeps shifting)= बदलते रहना ;
lack (shortage)= कमी;
owned (possess) = अधिकार रखना;
tradition (custom)=रिवाज़;
wonder (surprise) = हैरान ।

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(Page 15) :
Excuse (pretext) = बहाना;
perpetual (never ending) = निरन्तर;
drowned (submerged)= डुबा देना;
Falt; briefly (for a short period)= संक्षेप में;
desolation (ruin) = विनाश;
panting (breathing heavily)= जोर से सांस लेना;
ragpickers (those who pickrags)= कूड़ा बीनने वाले;
acquaintance (introduction)= परिचय;
periphery (border) = सीमा रेखा;
metaphorically (symbolically) = लाक्षणिक रूप से;
squatters (illegal settlers)= गैर-काननी स्थापित होना;
wilderness (desolate area)= निर्जन स्थान;
tarpaulin (coarse waterproof cloth) = तिरपाला;
devoid (without)= रहित;
sewage (slush)= कीचड़;
identity (recognition)= पहचान;
grain (corn)= अनाज;
survival (living)= जीवन;
aching (paining)= पीड़;
tattered (torn to pieces) = फटा-पुराना;
transit (passing, temporary)= अस्थायी;
proportions(forms) = भाग, अंश |

[Page 16]:
Heap (mound)= मिट्टी का टीला;
wrapped (covered)= ढका हुआ;
fenced (having a fence around) = चारदीवारी;
content(satisfied)= सन्तुष्ट;
swing(to sway)= झूलना;
discarded (given up/in disuse) = छोड़ना;
intently (attentively)= अभिलाषा;
canister (tin) =

[Page 17]:
Insists (stresses)= मिट्टी का टीला;
announce (declare)= ढका हुआ;
mirage (false appearance)=झूठा दिखाना;
furnace (hearth)= भट्ठी;
illegal (against the law)= नियम के विरुद्ध;
dingy (dark and dirty) = काला और गन्दा;
slog (toil) = कठिन परिश्रम;
beam (brighten) = चमकीला;
volunteers (offers himself) = स्वयं सेवक;
stinking (foul smelling) = गन्दी दुर्गन्ध;
choked (blocked) = रोकना;
hovels (sheds) = छप्पर;
crumbling (falling) = गिरना;
wobbly (unstable)= अस्थिर;
primeval(very ancient) = आदियुगीन;
thatched (having a roofofstraw) = छप्पर;
vessel (utensil)= बर्तन;
spinach (a leafy vegetable) = पालक;
platters (large plates) = बड़ी थालियाँ;
frail (delicate)= कमज़ोर ।

[Page 18] :
Command (order) = आदेशः
bahu (daughter-in-law) = पुत्रवधू;
veil (face cover) = घूँघट;
impoverished (very poor)= बहुत गरीब;
despite (in spite of)= बावजूद;
renovate (repair) = मुरम्मत करना;
implies means) = अभिप्राय, अर्थ;
spirals (coils) = चक्कर;
mound heap = ढेर:
unkempt (messy/untidy) = कंघी न किया हुआ/अस्त-व्यस्त;
shanty (hut)=झोंपड़ी;
flickering (shining unsteadily)= अस्थिर चमकना;
drabdull =नीरस;
soldering (welding)= धातु जोड़ने का टांका;
suhaag (auspiciousness in marriage) = शादी का सौभाग्य;
dyed (coloured)= रग किया;
henna (mehandi) = मेंहदी।

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[Page 19]:
Entire (complete) = समूचा;
achieved (got) =प्राप्त करना;
echo (reflected sound)= अनुकरण ध्वनि गूँज;
organise (unite) = इकट्ठा करना;
vicious (wicked) = दुष्ट;
trapped (cheated)=छल-कपट;
hauled up (dragged ) = खींचना;
apathy (indifference) = विमुखता;
distinct (clear) = स्पष्ट।

[Page 20]:
Stigma (mark of disgrace) = धब्बा;
bureaucrats (officials) = नौकरशाही;
imposed (burdened forcibly) = प्रभावशाली दबाव;
flash (dazzle of light) = चमक;
murmur (grumble) = बड़बड़ाहट;
regret (repentance) = पश्चाताप;
hurtling (clattering) = बक-बक करना |

The Lost Spring Translation in Hindi

“Sometimes I find a Rupee in the garbage’ (कई बार मुझे कचरे में रुपया मिल जाता है।) “Why do you do this ?” I ask Saheb whom I encounter every morning scrounging for gold in the garbage dumps of my neighborhood. Saheb left his home long ago. Set amidst the green fields of Dhaka, his home is not even a distant memory. There were many storms that swept away their fields and homes, his mother tells him. That’s why they left, looking for gold in the big city where he now lives. “I have nothing else to do,” he mutters, looking away.

(“तुम यह काम क्यों करते हो ?” मैं साहेब से पूछती हूँ जब मैं प्रतिदिन कूड़े के ढेर में सोने की खोज करते हुए पड़ोस में उससे मिलती हूँ। साहब अपने घर से बहुत पहले ही आ गया था। ढाका के हरे खेतों के बीच में बने अपने घर की उसे जरा भी याद नहीं है। उसकी माँ उसे बताती है कि बहुत से तूफान आए जो उनके घरों और खेतों को बहाकर ले गए। यही कारण है कि वे सोने की तलाश में उस बड़े शहर में आ गए जहाँ वह अब रहता है। “मेरे पास और कोई काम नहीं है”, एक तरफ देखते हुए वह बड़बड़ाता है।)

“Go to school,” I say glibly, realising immediately how hollow the advice must sound. “There is no school in my neighbourhood. When they build one, I will go.” “If I start a school, will you come ?” I ask, half-joking. “Yes,” he says, smiling broadly. A few days later I see him running up to me. “Is your school ready ?” “It takes longer to build a school,” I say, embarrassed at having made a promise that was not meant. But promises like mine abound in every corner of his bleak world.

(“स्कूल जाओ”, मैं बिना विचारे कह देती हूँ परन्तु तुरन्त ही ध्यान आता है कि यह सलाह कितनी खोखली प्रतीत होती होगी। “मेरे आस-पास कोई स्कूल नहीं है। जब बन जाएगा तो मैं जाऊँगा।” “अगर मैं एक स्कूल शुरु करूँ तो क्या तुम आओगे ?” मैंने मजाकपूर्ण ढंग से पूछा। “हाँ,” एक चौड़ी मुस्कराहट से वह कहता है। कुछ दिन बाद मैं उसे भागकर अपने पास आता देखती हूँ। “क्या आपका स्कूल तैयार है ?” एक झूठे वायदे से असमंजस में पड़ी मैं कहती हूँ, “स्कूल बनाने में अधिक समय लगता है।” परन्तु मेरे जैसे वायदे तो उसकी अन्धेरी दुनिया में बहुत पड़े हैं।)’

After months of knowing him, I ask him his name. “Saheb-e-Alam,” he announces. He does not know what it means. If he knew its meaning-lord of the universe-he would have a hard time believing it. Unaware of what his name represents, he roams the streets with his friends, an army of barefoot boys who appear like the morning birds and disappear at noon. Over the months, I have come to recognise each of them. “Why aren’t you wearing chappals ?”I ask one. “My mother did not bring them down from the shelf,” he answers simply.

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(उसे जानने के कई महीने बाद मैं उससे उसका नाम पूछती हूँ। “साहब-ए-आलम,” वह कहता है। वह नहीं जानता कि इसका क्या अर्थ है ? अगर वह इसका अर्थ जानता होता-ब्रह्माण्ड का स्वामी तो उसे विश्वास करना मुश्किल हो जाता। अपने नाम के अर्थ से अनभिज्ञ, वह अपने मित्रों के साथ घूमता रहता है, यह नंगे-पैर वाले लड़कों की ऐसी सेना है जो सुबह पक्षियों की तरह नजर आते हैं और दोपहर होते-होते गायब हो जाते हैं। कई महीनों के बाद, अब मैं उनमें से प्रत्येक को पहचानने लगी हूँ। “तुमने चप्पल क्यों नहीं पहन रखी है ?” मैं उनमें से एक से पूछती हूँ। “मेरी माँ ने उन्हें सेल्फ से नीचे नहीं उतारा,” वह सादा-सा उत्तर देता है।)

“Even if she did he will throw them off,” adds another who is wearing shoes that do not match. When I comment on it, he shuffles his feet and says nothing. “I want shoes,” says a third boy who has never owned a pair all his life. Traveling across the country I have seen children walking barefoot, in cities, on village roads. It is not lack of money, but a tradition to stay barefoot is one explanation. I wonder if this is only an excuse to explain away a perpetual state of poverty.

(“यदि वह उतार भी देती तो ये उनको फेंक देता”, एक दूसरा कहता है जो ऐसे जूते पहने हुए है जो एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। जब मैंने इस पर टिप्पणी की, तो वह कुछ नहीं कहता, बस एक पैर से दूसरे पर खड़ा होता है। “मुझे जूते चाहिएँ”, एक तीसरा लड़का कहता है जिसने अपने जीवन में कभी जूते नहीं पहने थे। देश का भ्रमण करते हुए मैंने शहरों में गाँव की सड़कों पर नंगे पैर घूमते बच्चों को देखा है। एक स्पष्टीकरण यह है कि यह पैसे की कमी के कारण नहीं है बल्कि नंगे पैर रहना परम्परा के कारण है। मैं हैरान हुई कि क्या यह एक लगातार चलती गरीबी को उचित ठहराने का बहाना है।)

I remember a story a man from Udipi once told me. As a young boy he would go to school past an old temple, where his father was a priest. He would stop briefly at the temple and pray for a pair of shoes. Thirty years later I visited his town and the temple, which was now drowned in an air of desolation. In the backyard, where lived the new priest, there were red and white plastic chairs. A young boy dressed in a grey uniform, wearing socks and shoes, arrived panting and threw his school bag on a folding bed.

Looking at the boy, I remembered the prayer another boy had made to the goddess when he had finally got a pair of shoes, “Let me never lose them.” The goddess had granted his prayer. Young boys like the son of the priest now wore shoes. But many others like the ragpickers in my neighbourhood remain shoeless.

(मुझे एक कहानी याद आती है जो मुझे उडीपी के एक व्यक्ति ने सुनाई थी। जब वह छोटा लड़का था तब एक मन्दिर के पास से गुजरते हुए स्कूल जाता था, जहाँ उसका पिता एक पुजारी था। वह मन्दिर में एक जोड़ी जूते के लिए प्रार्थना करने के लिए थोड़ी देर रुकता था। तीस वर्ष बाद मैं उसके कस्बे में और उस मन्दिर में गई, जो अब वीरान था। पीछे के आँगन में, जहाँ नया पुजारी रहता था, लाल और सफेद प्लास्टिक की कुर्सियाँ थीं। एक छोटा लड़का

भूरे रंग की ड्रेस पहने हुए, जूते व जुराबें पहने हुए हाँफता हुआ आया और अपना बैग फोल्डिंग चारपाई पर फेंक दिया। बच्चे को देखते ही मुझे एक दूसरे लड़के द्वारा जूतों की जोड़ी के लिए देवी को की गई वह प्रार्थना याद आई जब उसे अन्त में एक जोड़ी जूते मिल गए थे–“मेरे यह जूते कभी गुम न हो।” देवी उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर चुकी थी। नौजवान लड़के अब पुजारी के बेटे की तरह जूते पहनते थे। परन्तु मेरे पड़ोस के कचरा बीनने वालों की तरह और भी हैं जो जूतों के बिना रहते हैं।)

My acquaintance with the barefoot ragpickers leads me to Seemapuri, a place on the periphery of Delhi yet miles away from it, metaphorically. Those who live here are squatters who came from Bangladesh back in 1971. Saheb’s family is among them. Seemapuri was then a wilderness. It still is, but it is no longer empty. In structures of mud, with roofs of tin and tarpaulin, devoid of sewage, drainage or running water, live 10,000 ragpickers. They have lived here for more than thirty years without an identity, without permits but with ration cards that get their names on voters’ lists and enable them to buy grain.

Food is more important for survival than an identity. “If at the end of the day we can feed our families and go to bed without an aching stomach, we would rather live here than in the fields that gave us no grain,” say a group of women in tattered saris when I ask them why they left their beautiful land of green fields and rivers. Wherever they find food, they pitch their tents that become transit homes. Children grow up in them, becoming partners in survival. And survival in Seemapuri means rag-picking. Through the years, it has acquired the proportions of a fine art. Garbage to them is gold. It is their daily bread, a roof over their heads, even if it is a leaking roof. But for a child it is even more.

(कूड़ा बीनने वालों से मेरी पहचान मुझे सीमापुरी ले आती है, जो ऐसा स्थान है जो दिल्ली के किनारे बसा है लेकिन रूपक के रूप में कहूँ तो दिल्ली से बड़ी दूर है। यहाँ रहने वाले वे अनाधिकृत निवासी हैं जो बहुत पहले 1971 में बांग्लादेश से आए थे। साहेब का परिवार भी उन्हीं में से एक है। सीमापुरी उन दिनों एक वीरान स्थान था। अभी भी है पर अब खाली नहीं है। यहाँ दस हजार कूड़ा बीनने वाले मिट्टी के ढाँचों में टिन और टारपालिन से बनी छतों के नीचे रहते हैं और यहाँ सीवेज, नालियाँ या पानी के कनेक्शन नहीं हैं। बिना किसी पहचान के वे यहाँ तीस से अधिक वर्षों से रह रहे हैं, उनके पास परमिट नहीं पर राशनकार्ड हैं जिनसे उनका नाम वोटर लिस्ट में आ जाता है और उससे वे अनाज खरीद सकते हैं।

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जिन्दा रहने के लिए पहचान से अधिक भोजन की जरूरत होती है। “अगर दिन ढलने पर हम अपने परिवार को खाना दे सकें और बिना खाली पेट के सो सकें तो उन खेतों की अपेक्षा पर जिनसे कोई अनाज नहीं मिलता था, हम यहाँ रहना अधिक पसन्द करेंगे,” फटी साड़ियाँ पहने औरतों का एक समूह यह बात तब मुझे बताता है जब मैं उनसे पूछती हूँ कि उन्होंने अपने हरे-भरे खेतों और नदियों को क्यों छोड़ दिया। जहाँ भी उन्हें भोजन मिलता है, वहाँ वे अपना टेंट गाड़ देते हैं जो उनका अस्थायी घर बन जाता है।

बच्चे वहाँ बड़े होते हैं और जीवित रहने की क्रिया के हिस्सेदार बन जाते हैं। और सीमापुरी में जीवित रहने का मतलब है कूड़ा बीनना। वर्षों के बीतने के साथ इसने एक ललित कला का रूप ले लिया है। कूड़ा उनके लिए सोना है। यह उनकी आजीविका है, उनके सिर के ऊपर की छत है फिर चाहे वह टपकती हुई क्यों न हो। परन्तु एक बच्चे के लिए यह और अधिक है।)

“I sometimes find a rupee, even a ten-rupee note,” Saheb says, his eyes lighting up. When you can find a silver coin in a heap of garbage, you don’t stop scrounging, for there is hope of finding more. It seems that for children garbage has a meaning different from what it means to their parents. For the children it is wrapped in wonder, for the elders it is a means of survival.

One winter morning I see Saheb standing by the fenced gate of the neighbourhood club, watching two young men dressed in white, playing tennis. “I like the game,” he hums, content to watch it standing behind the fence. “I go inside when no one is around,” he admits. “The gatekeeper lets me use the swing.”

(“कभी-कभी मुझे एक रुपया मिल जाता है, दस का नोट भी,” साहेब कहता है, उसकी आँखों में चमक है। अगर तुम्हें किसी कूड़े के ढेर में चाँदी का सिक्का मिल जाए तो तुम बीनना बन्द नहीं कर दोगे, क्योंकि और पाने की आशा बनी रहती है। ऐसा लगता है कि बच्चों के लिए कूड़े का अर्थ वह नहीं है जो उनके माँ-बाप के लिए है। बच्चों के लिए यह हैरानी से लिपटा है, बड़ों के लिए इसका अर्थ जीवित रहना है।

सर्दियों की एक सुबह पड़ोस के क्लब के बाड़ वाली गेट पर मैं साहेब को खड़ा देखती हूँ जो सफेद कपड़े पहने दो युवकों को टेनिस खेलता देख रहा है। “मुझे यह खेल पसन्द है,” बाड़े के पीछे खड़ा सन्तुष्टि से खेल को देखता हुआ वह कहता है। “जब कोई आस-पास नहीं होता तब मैं अन्दर चला जाता हूँ,” वह स्वीकार करता है। “चौकीदार मुझे झूला झूलने देता है।”)

Saheb too is wearing tennis shoes that look strange over his discoloured shirt and shorts. “Someone gave them to me,” he says in the manner of an explanation. The fact that they are discarded shoes of some rich boy, who perhaps refused to wear them because of a hole in one of them, does not bother him. For one who has walked barefoot, even shoes with a hole is a dream come true. But the game he is watching so intently is out of his reach.

(साहेब ने भी टेनिस के जूते पहने हुए हैं जो उसकी बदरंग कमीज और निक्कर के साथ अजीब लगते हैं। “किसी ने वे मुझे दिए थे,” वह सफाई देने के लहजे में कहता है। यह तथ्य कि वे किसी धनवान बच्चे के छोड़े हुए जूते थे जिसने उन्हें पहनने से मना कर दिया था, क्योंकि उनमें एक सुराख हो गया था, भी उसे परेशान नहीं करता। उस बच्चे के लिए जो नंगे पैर घूमता हो, सुराख वाले जूते भी उसका सपना पूरा होना जैसा है। परन्तु वह खेल जिसको वह इतने ध्यान से देख रहा था वह उसकी पहुँच से बाहर है।)

This morning, Saheb is on his way to the milk booth. In his hand is a steel canister. “I now work in a tea stall down the road,” he says, pointing in the distance. “I am paid 800 rupees and all my meals.” Does he like the job? I ask. His face, I see, has lost the carefree look. The steel canister seems heavier than the plastic bag he would carry so lightly over his shoulder. The bag was his. The canister belongs to the man who owns the tea shop. Saheb is no longer his own master!

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(आज सुबह साहेब मिल्क बूथ की तरफ जा रहा है। उसके हाथ में स्टील का एक डिब्बा है। “मैं अब सड़क के उस तरफ चाय की दुकान पर काम करता हूँ,” दूर इशारा करता हुआ वह कहता है। “मुझे 800 रुपए और पूरा भोजन मिलता है।” क्या उसे काम पसन्द है ? मैं पूछती हूँ। मैं देखती हूँ कि उसके चेहरे से बेफिक्री का भाव गायब हो गया है। स्टील का डिब्बा उस प्लास्टिक के बैग से भारी लगता है जिसे वह आराम से अपने कन्धे पर उठाया करता था। बैग उसका था। डिब्बा चाय की दुकान के मालिक का था। अब साहेब खुद का मालिक नहीं रह गया था!)

“I want to drive a car” . (“मैं एक कार चलाना चाहता हूँ”) Mukesh insists on being his own master. “I will be a motor mechanic,” he announces. “Do you know anything about cars ?” I ask. (मुकेश खुद का मालिक बनने की जिद्द करता है। “मैं एक मोटर मैकेनिक बनूँगा”, वह कहता है। “क्या तुम कारों के बारे में कुछ जानते हो ?” मैं पूछती हूँ।)

“I will learn to drive a car,” he answers, looking straight into my eyes. His dream looms like a mirage amidst the dust of streets that fill his town Firozabad, famous for its bangles. Every other family in Firozabad is engaged in making bangles. It is the center of India’s glass-blowing industry where families have spent generations working around furnaces, welding glass, making bangles for all the women in the land it seems.

(“मैं कार चलाना सीलूँगा,” सीधा मेरी आँखों में देखते हुए, वह उत्तर देता है। उसके सपने मृगतृष्णा की तरह गलियों की धूल से ऊपर उठे हुए हैं जो उसके शहर फिरोज़ाबाद को पूरी तरह भर देती है, फिरोज़ाबाद जो चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। फिरोज़ाबाद में हर एक परिवार चूड़ियाँ बनाने के धन्धे में लगा हुआ है। यह भारत के ग्लास उद्योग का केन्द्र है जहाँ पर परिवारों ने, ऐसा प्रतीत होता है, भट्टियों के चारों ओर काम करते हुए ग्लास को वैल्ड करते हुए, यहाँ की सभी औरतों के लिए चूड़ियाँ बनाने में पीढ़ियाँ गुजार दी हैं।)

Mukesh’s family is among them. None of them know that it is illegal for children like him to work in the glass furnaces with high temperatures, in dingy cells without air and light; that the law, if enforced, could get him and all those 20,000 children out of the hot furnaces where they slog their daylight hours, often losing the brightness of their eyes. Mukesh’s eyes beam as he volunteers to take me home, which he proudly says is being rebuilt. We walk down stinking lanes choked with garbage, past homes that remain hovels with crumbling walls, wobbly doors, no windows, crowded with families of humans and animals coexisting in a primeval state.

He stops at the door of one such house, bangs a wobbly iron door with his foot, and pushes it open. We enter a half-built shack. In one part of it, thatched with dead grass, is a firewood stove over which sits a large vessel of sizzling spinach leaves. On the ground, in large aluminum platters, are more chopped vegetables. A frail young woman is cooking the evening meal for the whole family. Through eyes filled with smoke she smiles. She is the wife of Mukesh’s elder brother.

Not much older in years, she has begun to command respect as the bahu, the daughter-in-law of the house, already in charge of three men her husband, Mukesh and their father. When the older man enters, she gently withdraws behind the broken wall and brings her veil closer to her face. As custom demands, daughters-in-law must veil their faces before male elders. In this case, the elder is an impoverished bangle maker. Despite long years of hard labour, first as a tailor, then a bangle maker, he has failed to renovate a house, send his two sons to school. All he has managed to do is teach them what he knows the art of making bangles.

(मकेश का परिवार भी उन्हीं में से एक है। उनमें से कोई नहीं जानता कि हवा और प्रकाश से वंचित अन्धेरी कोठरियों में ऊँचे तापक्रम वाली शीशे की भट्टी पर काम करना उस जैसे बच्चों के लिए गैर-कानूनी है। अगर कानून लागू किया गया तो वह और उसके जैसे 20000 बच्चे उन गर्म भट्टियों से छुटकारा पा सकते हैं जहाँ वे अपना दिन का समय बिताते हैं और प्रायः अपनी आँखों की चमक खो देते हैं। मुझे अपने घर ले चलने का आग्रह करते हुए मुकेश की आँखों में चमक आ जाती है। गर्व के साथ वह कहता है कि उसके घर को फिर से बनाया जा रहा है। हम कूड़े से बन्द बदबूदार गलियों को पार करते हैं, गिरती हुई दीवारों वाली झोपड़ियाँ जिन्हें घर कहते हैं, इनके कमजोर दरवाजे हैं, खिड़कियाँ नहीं हैं, मानव और पशुओं के परिवार प्राचीन जमाने की हालत में साथ-साथ रहते हैं। ऐसे ही एक दरवाजे पर वह रुकता है, लोहे के एक कमजोर दरवाजे पर वह जोर से ठोकर मारता है और धक्का देकर खोलता है।

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हम एक अधबने झोपड़ी में प्रवेश करते हैं। सूखे घास के छप्पर से ढके इसके एक हिस्से में लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है जिस पर एक बड़े बर्तन में पालक की पत्तियाँ उबल रही हैं। और कटी हुई सब्जियाँ बड़े एल्यूमीनियम के थालों में जमीन पर रखी हैं। एक कमजोर युवती पूरे परिवार का शाम का खाना बना रही है। धुएँ भरी आँखों से वह मुस्कुराती है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है। उम्र में कोई खास अधिक नहीं है लेकिन घर की बहू के रूप में आदर पाना प्रारम्भ कर दिया है, तीन पुरुषों का दायित्व उसे मिल ही चुका है-उसका पति, मुकेश और इनके पिता का। जब बुजुर्ग व्यक्ति अन्दर आता है, वह धीरे से टूटी दीवार के पीछे चली जाती है और अपना धूंघट अपने चेहरे पर डाल लेती है। रिवाज की माँग है कि बहू को घर के बड़े पुरुषों के सामने मुँह ढकना चाहिए। यहाँ बुजुर्ग एक गरीब चूड़ी बनाने वाला है। पहले दर्जी और फिर चूड़ी निर्माता के रूप में वर्षों तक कठिन परिश्रम करने के बाद भी वह न तो अपने घर की मरम्मत करवा सका है और न ही अपने दोनों लड़कों को स्कूल भेज सका है। वह केवल इतना ही कर सका है कि उन्हें वह सिखा दे जो वह जानता है-चूड़ियाँ बनाने की कला।)

“It is his karma, his destiny,” says Mukesh’s grandmother, who has watched her own husband to blind with the dust from polishing the glass of bangles. “Can a god-given lineage ever be broken ?” she implies. Born in the caste of bangle makers, they have seen nothing but bangles-in the house, in the yard, in every other house, every other yard, every street in Firozabad. Spirals of bangles-sunny gold, paddy green, royal blue, pink, purple, every colour born out of the seven colours of the rainbow-lie in mounds in unkempt yards, are piled on four-wheeled handcarts, pushed by young men along the narrow lanes of the shanty town.

And in dark hutments, next to lines of flames of flickering oil lamps, sit boys and girls with their fathers and mothers, welding pieces of coloured glass into circles of bangles. Their eyes are more adjusted to the dark than to the light outside. That is why they often end up losing their eyesight before they become adults.

(“यह उसका कर्म है, उसका भाग्य,” मुकेश की दादी कहती है जिसने अपने पति को शीशे की चूड़ियों पर पालिश करने वाली धूल से अन्धे होते हुए देखा है। उसका अभिप्राय है, “क्या भगवान के लिखे प्रारब्ध को मिटाया जा सकता है ?” चूड़ी वालों की जाति में जन्म लेकर उन्होंने चूड़ियों के अलावा कुछ नहीं देखा है-घर में, आँगन में और हर दूसरे घर में, फिरोज़ाबाद की हर गली में। चूड़ियों के गुच्छे-धूप सी सुनहरी, धान सी हरी, गहरी नीली, गुलाबी, बैंगनी, हर उस रंग की जो इन्द्रधनुष के सात रंगों में होता है-बेतरतीब आँगनों में उनके ढेर लगे होते हैं, और उन चार पहियों वाली रेड़ियों पर ढेर लगा है जिन्हें इन गन्दे मकानों के शहर की गलियों में नवयुवक हाथ में खींचते हुए ले जाते हैं और अन्धेरी झोपड़ियों में टिमटिमाते तेल के लैम्पों की लौ के पास लड़के और लड़कियाँ अपनी माताओं और पिताओं के पास बैठे शीशे के रंगीन टुकड़ों को जोड़कर गोल चूड़ियाँ बनाते हैं। उनकी आँखें बाहर के प्रकाश की अपेक्षा अन्धेरे के अधिक अनुकूल हैं। यही कारण है कि प्रायः वयस्क होने के पहले ही वे अपनी आँखों की रोशनी खो देते हैं।)

Savita, a young girl in a drab pink dress, sits alongside an elderly woman, soldering pieces of glass. As her hands move mechanically like the tongs of a machine, I wonder if she knows the sanctity of the bangles she helps make. It symbolizes an Indian woman’s suhaag, auspiciousness in marriage. It will dawn on her suddenly one day when her head is draped with a red veil, her hands dyed red with henna, and red bangles rolled onto her wrists. She will then become a bride.

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Like the old woman beside her who became one many years ago. She still has bangles on her wrist, but no light in her eyes. “Ek waqt ser bhar khana bhi nahin khaya,” she says, in a voice drained of joy. She has not enjoyed even one full meal in her entire lifetime that’s what she has reaped! Her husband, an old man with a flowing beard, says, “I know nothing except bangles. All I have done is make a house for the family to live in.”

(फीके गुलाबी रंग की ड्रेस पहने सविता नाम की लड़की, एक बुजुर्ग महिला के पास बैठी शीशे के टुकड़ों को जोड़ रही है। किसी मशीन के चिमटे की तरह उसके हाथ यन्त्रवत चलते रहते हैं, मैं सोचती हूँ कि क्या उसे उन चूड़ियों की पवित्रता के बारे में कुछ पता है जिन्हें बनाने में वह सहायता कर रही है। यह एक भारतीय महिला के सुहाग की निशानी है और विवाह में शुभ मानी जाती है। इसका पता उसे एक दिन अचानक ही लगेगा जब उसके सिर पर लाल दुपट्टा होगा, उसके हाथ लाल मेंहदी से रंगे होंगे और लाल चूड़ियाँ उसके हाथों की कलाई में चढ़ा दी जाएँगी। तब वह दुल्हन बन जाएगी।

अपने पास बैठी उस बुजुर्ग महिला की तरह जो बहुत पहले दुल्हन बनी थी। उसके हाथों में अब भी चूड़ियाँ हैं पर आँखों में रोशनी नहीं है। “एक वक्त सेर भर खाना भी नहीं खाया,” प्रसन्नता रहित आवाज में वह कहती है। उसने अपने पूरे जीवन में कभी भर-पेट खाना नहीं खाया यह है उसकी कमाई। लहराती हुई दाढ़ी वाला उसका बूढ़ा पति कहता है, “मुझे चूड़ियों के अलावा कुछ नहीं पता। मैंने सिर्फ इतना किया है कि परिवार के रहने के लिए मकान बनवा लिया है।”)

Hearing him, one wonders if he has achieved what many have failed in their lifetime. He has a roof over his head!
The cry of not having money to do anything except carry on the business of making bangles, not even enough to eat, rings in every home. The young men echo the lament of their elders. Little has moved with time, it seems, in Firozabad. Years of mind-numbing toil have killed all initiative and the ability to dream. “Why not organise yourselves into a cooperative ?” I ask a group of young men who have fallen into the vicious circle of middlemen who trapped their fathers and forefathers.

“Even if we get organized, we are the ones who will be hauled up by the police, beaten and dragged to jail for doing something illegal,” they say. There is no leader among them, no one who could help them see things differently. Their fathers are as tired as they are. They talk endlessly in a spiral that moves from poverty to apathy to greed and to injustice.

(उसकी बात सुनकर लगता है कि उसने कुछ ऐसा पा लिया है जो बहुत से लोग अपनी जीवन में नहीं कर पाते हैं। उसके सिर के ऊपर छत है। चड़ी के धन्धे को चलाने के अतिरिक्त किसी अन्य काम के लिए धन का न होना, पेट भर भोजन के भी न होने की चीख हर घर में सुनाई देती है। नवयुवक भी अपने बड़ों के अफसोस को दोहराते हैं। लगता है कि फिरोज़ाबाद में समय के साथ कुछ नहीं बदला है। दिमाग को सुन्न कर देने वाले वर्षों के परिश्रम ने सारी नेतृत्व क्षमता और स्वप्न देखने की सामर्थ्य को नष्ट कर दिया है।

“तुम लोग स्वयं को इकट्ठा करके एक सहकारी संस्था क्यों नहीं बनाते ?” मैं नौजवानों के एक समूह से पूछती हूँ जो बिचौलियों के कभी न निकलने वाले जाल में फँस गए हैं जिनके जाल में उनके पिता और पूर्वज फँसे थे। “यदि हम संगठित हो भी जाते हैं, तो पुलिस हमें ही घसीटती है, पीटती है और जेल में फेंक देती है, कुछ गलत करने के जुर्म में, वे कहते हैं। उनका कोई नेता नहीं है, कोई नहीं जो उनकी कुछ अलग तरह से देखने में सहायता करें। उनके पिता भी इतने थके हुए हैं जितने कि वे खुद हैं। वे न खत्म होते हुए एक चक्कर में बातें करते हैं जो उनकी गरीबी से उनकी दयनीयता, लालच और अन्याय तक चलता रहता है।”)

Listening to them, I see two distinct worlds-one of the family, caught in a web of poverty, burdened by the stigma of caste in which they are born; the other a vicious circle of the sahukars, the middlemen, the policemen, the keepers of law, the bureaucrats and the politicians. Together they have imposed the baggage on the child that he cannot put down. Before he is aware, he accepts it as naturally as his father. To do anything else would mean to dare. And daring is not part of his growing up.

When I sense a flash of it in Mukesh I am cheered. “I want to be a motor mechanic,” he repeats. He will go to a garage and learn. But the garage is a long way from his home. “I will walk,” he insists. “Do you also dream of flying a plane ?” He is suddenly silent. “No,” he says, staring at the ground. In his small murmur there is an embarrassment that has not yet turned into regret. He is content to dream of cars that he sees hurtling down the streets of his town. Few airplanes fly over Firozabad.

(उनकी बात सुनकर मुझे दो भिन्न संसार नजर आते हैं-एक परिवार का, जो गरीबी में फंसा और अपने जन्म की जाति के कलंक से दबा है, दूसरा साहूकारों, दलालों, सिपाहियों, कानून के रखवालों, सरकारी अफसरों और राजनीतिज्ञों का है। इन सबने मिलकर बच्चे के ऊपर वह बोझ डाल दिया है जिसे वह नहीं उतार सकता। कुछ चेतना आने से पहले ही वह इसे अपने पिता की तरह स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेता है। कुछ और करने का अर्थ होगा हिम्मत करना। और हिम्मत करना उसके पालन-पोषण का हिस्सा नहीं है।

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जब मैं मुकेश के अन्दर इसकी एक चिंगारी देखती हूँ तो मैं खुश हो जाती हूँ। “मैं एक मोटर मैकेनिक बनना चाहता हूँ,” वह दोहराता है। वह गैरेज में जाएगा और सीखेगा। पर गैरेज तो उसके घर से बहुत दूर है। “मैं पैदल चलूँगा,” वह जिद्द करता है। “क्या तुम जहाज उड़ाने का सपना भी रखते हो ?” वह अचानक चुप हो जाता है। “नहीं,” धरती की ओर देखता हुआ वह कहता है। उसकी इस छोटी-सी बुड़बुड़ाहट में एक असमंजस है जो अभी पश्चात्ताप में नहीं बदला है। वह उन कारों के सपनों से सन्तुष्ट है जिन्हें वह अपने शहर की गलियों में भागता देखता है। फिरोज़ाबाद के ऊपर जहाज बहुत कम उड़ते हैं।)

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