HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

बहुविकल्पीय प्रश्न 

1. निम्नलिखित में से कौनसा पदार्थ दर्द निवारक (पीड़ाहारी) है?
(अ) ऐस्प्रिन
(स) इण्डिगो
(ब) पेनिसिलिन
(द) सैकरीन
उत्तर:
(अ) ऐस्प्रिन

2. निम्नलिखित में से कौनसा पदार्थ पूतिरोधी है ?
(अ) पैरासिटैमॉल
(ब) ल्यूमीनल
(स) डेटॉल
(द) प्रोथजिन
उत्तर:
(स) डेटॉल

3. सोडियम बेन्जोएट है-
(अ) खाद्य रंग
(ब) खाद्य परिरक्षक
(स) कृत्रिम मधुरक
(द) प्रति-ऑक्सीकारक
उत्तर:
(ब) खाद्य परिरक्षक

4. सैकरीन है-
(अ) खाद्य परिरक्षक
(ब) खाद्य रंग
(स) प्रति आक्सीकारक
(द) कृत्रिम मधुरक
उत्तर:
(द) कृत्रिम मधुरक

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5. अपमार्जक होते हैं-.
(अ) प्राकृतिक पदार्थ
(ब) क्षारीय
(स) संश्लेषित पदार्थ
(द) दुर्बल अम्ल तथा प्रबल क्षार का लवण
उत्तर:
(स) संश्लेषित पदार्थ

6. पैरासिटैमॉल का सही संरचना सूत्र निम्नलिखित में से कौनसा है?
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उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन 2

7. निम्नलिखित में से कौनसा पदार्थ लक्ष्य- अणु अथवा औषध-लक्ष्य है?
(अ) कार्बोहाइड्रेट
(ब) प्रोटीन
(स) न्यूक्लीक अम्ल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. निम्नलिखित में से कौनसा पदार्थ कृत्रिम मधुरक है?
(अ) ऐस्पार्टेम
(ब) ऐलिटेम
(स) सूक्रालोस
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

9. निम्नलिखित में से अपमार्जक का सूत्र कौनसा है?
(अ) (C17H35COO)2Ca
(ब) CH3(CH2)10CH2O SO3 Na
(स) C17H35COONa
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) CH3(CH2)10CH2O SO3 Na

10. निम्नलिखित में से कौनसा पदार्थ पूतिरोधी तथा विसंक्रामक दोनों की भाँति कार्य करता है?
(अ) आयोडीन
(ब) फीनॉल
(स) क्लोरीन
(द) सोफ्रामाइसिन
उत्तर:
(ब) फीनॉल

11. साबुन तथा अपमार्जक होते हैं-
(अ) पृष्ठ अक्रिय
(ब) जल विरोधी
(स) पृष्ठ सक्रिय
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पृष्ठ सक्रिय

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12. निम्नलिखित में से कौनसी औषध प्रतिजैविक नहीं है?
(अ) क्लॉरैम्फेनिकॉल
(ब) सल्फा औषध
(स) पेनिसिलिन
(द) बाइथायोनल
उत्तर:
(द) बाइथायोनल

13. 2-ऐसिटॉक्सी बेन्जोइक अम्ल है-
(अ) प्रतिरोधी
(ब) ज्वरनाशी
(स) प्रतिअम्ल
(द) प्रतिजैविक
उत्तर:
(ब) ज्वरनाशी

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
एन्जाइम संदमक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे औषध जो एन्जाइम के उत्प्रेरक कार्य में अवरोध उत्पन्न करती हैं, उन्हें एन्जाइम संदमक कहते हैं।

प्रश्न 2.
रासायनिक संदेशवाहक किन्हें कहते हैं ?
उत्तर:
वे रसायन जो दो तंत्र कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) और तंत्र कोशिकाओं तथा पेशी के मध्य संदेश का संचार करते हैं, उन्हें रासायनिक संदेशवाहक कहते हैं।

प्रश्न 3.
प्रतिहिस्टैमिन के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
संश्लिष्ट औषध, ब्रोमफेनिरामिन तथा टरफेनाडीन (सेलडेन) प्रतिहिस्टैमिन का कार्य करते हैं।

प्रश्न 4.
पीड़ाहारी के दो प्रकार बताइए ।
उत्तर:
पीड़ाहारी (i) अस्वापक (अनासक्त) या नॉन एडिक्टिव तथा (ii) स्वापक (नारकोटिक) प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 5.
जनन नियंत्रण गोलियों में प्रयुक्त प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न का नाम बताइए ।
उत्तर:
नॉरएथिनड्रान संश्लिष्ट प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न है जिसे जनन नियंत्रण गोलियों में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 6.
दर्द को कम करने के लिए प्रयुक्त मुख्य स्वापक पीड़ाहारी वर्ग कौनसा होता है?
उत्तर:
मार्फीन एक महत्त्वपूर्ण स्वापक पीड़ाहारी वर्ग है।

प्रश्न 7.
फेनैसिटीन किस बीमारी के इलाज के लिए प्रयुक्त किया जाता है?
उत्तर:
फेनैसिटीन एक ज्वरनाशी औषध होती है।

प्रश्न 8.
प्रभावी प्रतिअम्लों के उदाहरण बताइए।
उत्तर:
सिमेटिडीन तथा रेनिटिडीन (जैनटेक) प्रभावी प्रतिअम्ल हैं।

प्रश्न 9.
प्रशांतक क्या होते हैं?
उत्तर:
वे औषध जो बिना नींद के मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाती हैं तथा जिनका उपयोग तनाव तथा मानसिक बीमारियों में किया जाता है उन्हें प्रशान्तक कहते हैं।

प्रश्न 10.
पीड़ाहारी औषध क्या होते हैं?
उत्तर:
वे औषध जो तंत्रिका तंत्र में बाधा उत्पन्न किए बिना दर्द को कम अथवा समाप्त कर देती हैं, उन्हें पीड़ाहारी औषध कहते हैं।

प्रश्न 11.
प्रतिसूक्ष्म जैविक औषध क्या होते हैं?
उत्तर:
वे औषध जो जीवाणु, कवक, वायरस या परजीवियों को चयनित करके उनका विनाश करती हैं या उनकी वृद्धि को रोकती हैं अथवा सूक्ष्मजीवियों के परजीवी प्रभाव को रोकती हैं, उन्हें प्रतिसूक्ष्म जैविक औषध कहते हैं।

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प्रश्न 12.
आँखों के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पूतिरोधी का नाम बताइए।
उत्तर:
बोरिक अम्ल (H3BO3)

प्रश्न 13.
प्रतिजनन क्षमता औषध क्या होती है? इसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
वे औषध जो जीव की जनन क्षमता में कमी करती हैं उन्हें प्रतिजनन क्षमता औषध कहते हैं। उदाहरण- नारएथिनड्रान तथा एथाइनिलएस्ट्राडाइऑल (नोवएस्ट्रॉल)।

प्रश्न 14.
जैव निम्ननीकृत अपमार्जक में किस प्रकार की शृंखलाएँ होती हैं?
उत्तर:
जैव निम्ननीकृत अपमार्जक में अशाखित श्रृंखलाएँ होती हैं।

प्रश्न 15.
खाद्य पदार्थों में परिरक्षक क्यों मिलाए जाते हैं?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकने के लिए परिरक्षक मिलाए जाते हैं ताकि वे खराब न हों।

प्रश्न 16.
कृत्रिम मधुरक सैकरीन का संरचना सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सैकरीन का संरचना सूत्र अग्रलिखित है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन 2a

प्रश्न 17.
अनआयनिक अपमार्जक किन यौगिकों से मिलकर बनता है?
उत्तर:
अनआयनिक अपमार्जक स्टीऐरिक अम्ल तथा पॉलिएथिलीन ग्लाइकॉल की अभिक्रिया से बनता है।

प्रश्न 18.
धनायनी अपमार्जक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड, एक धनायनी अपमार्जक है।

प्रश्न 19.
किसी औषध के लिए आण्विक लक्ष्य के चयन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
किसी औषध के वांछित चिकित्सकीय प्रभाव को प्राप्त करने के लिए आण्विक लक्ष्य का चयन किया जाता है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित रोगों के इलाज में कौनसा ऐल्केलॉयड उपयोग किया जाता है ?

  1. मलेरिया बुखार
  2. हाइपर टेंशन
  3. दर्द

उत्तर:

  1. क्विनीन
  2. रेसर्पिन
  3. मॉर्फीन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
औषधों का वर्गीकरण किन-किन मापदंडों के अनुसार किया जाता है ?
उत्तर:
औषधों का वर्गीकरण निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर किया जाता है-

  • भेषजगुणविज्ञानीय (फार्माकोलोजिकल) प्रभाव
  • औषध का प्रभाव
  • रासायनिक संरचना
  • लक्ष्य अणु।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित व्यापारिक नाम युक्त औषधियों में उपस्थित रसायनों का नाम बताइए-
(a) (i) क्रोसीन, (ii) डिस्प्रिन।
(b) साबुन में पूतिरोधी गुण उत्पन्न करने के लिए कौनसा यौगिक मिलाया जाता है?
उत्तर:
(a) (i) क्रोसीन – पेरासिटैमॉल, (ii) डिस्प्रिन – ऐसिटिल-सैलिसिलिक अम्ल।
(b) साबुन में पूतिरोधी गुण उत्पन्न करने के लिए बाइथायोनॉल मिलाया जाता है।

प्रश्न 3.
बाइथायोनॉल तथा क्लोरैम्फेनिकॉल की संरचना बताइए।
उत्तर:
(i) डेटॉल, क्लोरोजाइलिनॉल टर्पीनिऑल तथा परिशुद्ध ऐल्कोहॉल का मिश्रण होता है।
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(ii) बाइथायोनॉल (बाइथायोनैल) को साबुन में पूतिरोधी गुण उत्पन्न करने के लिए मिलाया जाता है।
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(iii) आयोडोफॉर्म (CHl3) को घावों पर पूतिरोधी के रूप में प्रयोग करते हैं क्योंकि यह विघटित होकर आयोडीन देता है।

(iv) बोरिक अम्ल (H3BO3) का तनु जलीय विलयन आँखों के लिए दुर्बल पूतिरोधी होता है।

(v) आयोडीन एक प्रबल पूतिरोधी है तथा इसके ऐल्कोहॉल-जल मिश्रण में 2-3% विलयन को आयोडीन का टिंक्चर कहते हैं। इसे घाव पर लगाया जाता है।

(vi) अनेक कार्बनिक रंजकों में बैक्टीरियाई कोशिका के केन्द्रक में उपस्थिति क्रोमेटिन से जुड़कर उसे निष्क्रिय कर देने की क्षमता होती है जिससे बैक्टीरिया निष्प्रभावी हो जाते हैं। उदाहरण- मेथिलीन ब्लू, मर्क्युरोक्रोम तथा जेन्शियन वायलेट।

(vii) पूतिरोधियों को टूथपेस्ट, माउथवाश, फेस पाउडर तथा साबुन को दुर्गन्धरहित करने के लिए भी मिलाया जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित औषधों का वर्गीकरण उनके उपयोग के आधार पर कीजिए –
(a) फीनॉल, बाइथॉयोनॉल, क्लोरोजाइलिनॉल तथा ऐम्पिसिलिन
(b) इक्वेनिल, ल्यूमिनल, फेनैसिटीन तथा वेरोनल।
उत्तर:
(a) पूतिरोधी – फीनॉल, बाइथॉयोनॉल, क्लोरोजाइलिनॉल, प्रतिजैविक – ऐम्पिसिलिन।
(b) प्रशान्तंक – इक्वेनिल, ल्यूमिनल तथा वेरोनल फेनैसिटीन – ज्वरनाशी।

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प्रश्न 5.
प्रतिअम्ल (एन्ट – एसिड) क्या होते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
मनुष्य द्वारा अत्यधिक मात्रा में चाय, कॉफी, अचार तथा ऐलोपेथी दवाइयों इत्यादि के सेवन से आमाशय में अम्ल का उत्पादन बढ़ जाता है जिससे अत्यधिक पीड़ा होती है तथा कभी-कभी आमाशय में घाव (अल्सर) भी हो जाते हैं। आमाशय की इस अम्लता को कम करने के लिए प्रतिअम्ल प्रयुक्त किए जाते हैं। अतः वे रासायनिक पदार्थ जो आमाशय की

अम्लता को कम करने के लिए प्रयुक्त होते हैं उन्हें प्रतिअम्ल कहते हैं।

प्रारम्भ में अम्लता का उपचार सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट (NaHCO3) या ऐलुमिनियम तथा मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड। Al(OH)3 तथा Mg(OH)2] द्वारा किया जाता था लेकिन NaHCO3 की अधिक मात्रा के कारण आमाशय क्षारीय हो जाता है जिसके कारण अम्ल का उत्पादन अधिक होता है। अतः धात्विक हाइड्रॉक्साइड अच्छे प्रतिअम्ल माने जाते हैं क्योंकि ये अविलेय होते हैं जिससे pH का मान 7 (उदासीन) से अधिक नहीं हो पाता है। इनोफ्रूटसाल्ट भी एक सामान्यतः प्रयुक्त किए जाने वाला प्रतिअम्ल है जिसे जल के साथ प्रयुक्त किया जाता है। उपरोक्त सभी प्रतिअम्लों से रोग का कारण ठीक नहीं होता, केवल रोग के लक्षण नियंत्रित होते हैं, अतः अत्यधिक मात्रा में अल्सर होना प्राणघातक भी हो सकता है। इस कारण पहले आमाशय के रोगयुक्त भाग को ही निकाल दिया जाता था।

आजकल पुदीन हरा जैसे हर्बल प्रतिअम्ल भी प्रयोग में लिए जाते हैं। आगे के शोध से ज्ञात हुआ कि सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन (ज़ैनटेक) प्रभावी प्रतिअम्ल हैं। हिस्टैमिन, आमाशय की दीवारों में स्थित ग्राही के साथ क्रिया करता है जिससे आमाशय में पेप्सिन तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उत्पादन बढ़ जाता है जिसे रोकने के लिए सिमेटिडीन औषध का प्रयोग किया जाता है। लेकिन आजकल रेनिटिडीन को प्रतिअम्ल के रूप में सर्वाधिक मात्रा में उपयोग में लिया जाता है। वर्तमान में ओमेप्रेजॉल तथा लैन्सोप्रेजॉल को भी प्रतिअम्ल के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है।
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प्रश्न 6.
ग्राही (Receptors) किस प्रकार औषध लक्ष्य की तरह कार्य करते हैं? समझाइए।
उत्तर:
शरीर की संचार व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाने वाले प्रोटीनों को ग्राही कहते हैं। इनमें से अधिकतर प्रोटीन, कोशिका झिल्ली (कला) में पाए जाते हैं तथा ये ग्राही प्रोटीन, कोशिका झिल्ली में इस प्रकार स्थित होते हैं कि उनकी सक्रिय सतह वाला छोटा भाग कोशिका झिल्ली के बाहरी क्षेत्र की और खुलता है।

शरीर में दो न्यूरॉन्स (तंत्र कोशिका) एवं न्यूरॉन तथा पेशी (Muscle) के मध्य संदेश का संचार कुछ रसायनों द्वारा होता है उन्हें रासायनिक संदेशवाहक (Chemical Messengers) कहा जाता है। ये रसायन ग्राही की बंधनी सतह द्वारा ग्रहण किए जाते हैं। ग्राही के आकार में परिवर्तन होने से संदेशवाहक, ग्राही के साथ समायोजित हो जाता है जिससे संदेश कोशिका तक पहुँच जाता है। इस प्रकार रासायनिक संदेशवाहक कोशिका में प्रवेश किए बिना ही संदेश को कोशिका के अन्दर पहुँचा देते हैं। रासायनिक संदेशवाहक दो प्रकार के होते हैं : (i) हॉर्मोन तथा (ii) तत्त्रिकीय संदेशवाहक।
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प्रश्न 7.
हिस्टैमिन तथा प्रतिहिस्टैमिन क्या होते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
प्रतिहिस्टैमिन, वे रासायनिक पदार्थ हैं जो त्वचा (Skin) पर उत्पन्न खुजली तथा जल इत्यादि के प्रभाव को कम करते हैं। हिस्टैमिन एक वाहिका विस्फारक (वैसोडाइलेटर) पदार्थ है जो कि श्वास नलिकाओं तथा आहार नली की पेशियों को संकुचित करता है एवं रुधिर वाहिकाओं की दीवारों को नरम (Relax) करता है। जुकाम के कारण होने वाला नासिक संकुलन (Nasal congestion) तथा परागकणों के कारण उत्पन्न एलर्जी भी हिस्टैमिन के कारण ही होती है। प्रतिहिस्टैमिन, हिस्टैमिन के प्राकृतिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं।

प्रतिहिस्टैमिन, ग्राही की उस बंधनी सतह पर जुड़ती है जिस पर हिस्टैमिन अपना प्रभाव डालती है अर्थात् इस बंधनी सतह के लिए हिस्टैमिन तथा प्रतिहिस्टैमिन में प्रतिस्पर्धा होती है। ब्रोमफेनिरामिन (डाइमेटेप) तथा टरफेनाडीन (सेलडेन ) नामक संश्लिष्ट औषध, प्रतिहिस्टैमिन का कार्य करती हैं। प्रतिहिस्टैमिन, आमाशय के अम्ल स्रवण पर प्रभाव नहीं डालती क्योंकि प्रतिएलर्जी तथा प्रति-अम्ल औषध भिन्न-भिन्न ग्राहियों पर कार्य करती है।
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प्रश्न 8.
स्वापक पीड़ाहारी क्या होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
स्वापक (नारकोटिक या ऐनाल्जेसिक) पीड़ाहारी-ये पीड़ाहारी दर्द को कम करते हैं लेकिन इनसे नींद तथा बेहोशी आती है। इनकी अधिक मात्रा के सेवन से भावशून्यता (Stupor), कोमा में आना (सम्मूच्छा ) तथा मरोड़ (Convulsions) जैसे प्रभाव उत्पन्न होते हैं तथा अन्त में मृत्यु भी हो सकती है।

मॉर्फीन एक महत्वपूर्ण स्वापक पीड़ाहारी वर्ग है, इन्हें ओपिएट्स (अहिफेनी) भी कहते हैं क्योंकि ये पोस्त (ओपियम पौपी) से प्राप्त किए जाते हैं। ये पीड़ाहारी मुख्यतः हृदय के दर्द, ऑपरेशन (शल्य चिकित्सा) के बाद होने वाले दर्द, प्रसव पीड़ा तथा कैंसर की अन्तिम अवस्था में होने वाले दर्द से आराम देने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इन पीड़ाहारियों के प्रयोग से मनुष्य इनका आदी हो जाता है। हेरोइन तथा कोडीन भी महत्वपूर्ण स्वापक पीड़ाहारी होती हैं। हेरोइन को मॉर्फीन के ऐसिटिलीकरण द्वारा बनाया जाता है तथा यह एक शक्तिशाली पीड़ाहारी है।
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प्रश्न 9.
प्रतिजैविक (एन्टिबायोटिक) क्या होते हैं ? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिजैविक (ऐन्टिबॉयोटिक) या प्रतिजीवाणु-प्रतिजैविक वे औषध हैं, जो सूक्ष्म जीवों (Micro organisms) जैसे जीवाणु (वायरस) तथा कवक (फफूँदी) द्वारा उत्पन्न होते हैं तथा ये अन्य सूक्ष्मजीवों के उपापचयी प्रक्रमों में अवरोध उत्पन्न करके उनकी वृद्धि को रोकते हैं या उनका विनाश करते हैं। प्रतिजैविक, पूर्ण अथवा आंशिक रासायनिक संश्लेषण द्वारा प्राप्त की जाती हैं।

इन्हें कम सान्द्रता में प्रयुक्त किया जाता है तथा ये कम विषैली होती हैं अतः इन्हें संक्रमण (Infections) के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी में ऐसे रसायनों की खोज हुई जो आक्रमणकारी जीवाणुओं पर तो प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, लेकिन परपोषी (होस्ट) पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता। प्रतिजैविकों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. आर्सेनिक आधारित औषध आर्सफेनेमीन (सैल्वरसैन) सिफलिस के उपचार के लिए प्रयुक्त होती है, जिसकी खोज पॉल एर्लिश ने की थी। सैल्वरसैन मनुष्य के लिए विषैली होती है, लेकिन इसका प्रभाव मनुष्य की अपेक्षा सिफलिस उत्पन्न करने वाले जीवाणु (स्पाइरोकीट) पर अधिक होता है।

2. प्रॉन्टोसिल एक प्रतिजीवाणु है जो शरीर में सल्फैनिलऐमाइड में बदल जाता है जो कि वास्तविक असरकारक सल्फा औषध है।
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3. सल्फा औषधों में सल्फापिरिडीन सर्वाधिक प्रभावकारी प्रतिजैविक होती है।
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4. सल्फोनैमाइडों की सफलता के बाद 1929 में ऐलेक्जेन्डर फ्लैमिंग ने पेनिसिलियम नोटेटम नामक फफूँदी से एक प्रतिजैविक औषधि पेनिसिलिन की खोज की, जिसका सामान्य सूत्र निम्नलिखित है-
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पेनिसिलिन देने से पहले इसके प्रतिएलर्जी का परीक्षण करना आवश्यक होता है। प्रतिजैविक, सूक्ष्म जीवों को नष्ट करते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोकते हैं। कुछ जीवाणुनाशी (Bactericidal) तथा जीवाणुरोधी (Bacteriostatic) प्रतिजैविकों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

जीवाणुनाशीजीवाणुरोधी
पेनिसिलिनएरिश्रोमाइसिन
ऐमीनोग्लाइकोसाइडटेट्रासाइक्लीन
ऑफ्लोक्सासिनक्लौरैम्फेनिकॉल

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प्रश्न 10.
प्रतिजनन क्षमता औषध क्या होती हैं? समझाइए।
उत्तर:
वे औषध जो जीव की जनन क्षमता में कमी करती हैं, उन्हें प्रतिजननक्षमता औषध कहते हैं। जनन नियंत्रण गोलियों में संशिलष्ट एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्नों का मिश्रण होता है। ये दोनों ही हार्मोन होते हैं। प्रोजेस्टेरोन अंडोत्सर्ग को निरोधित करता है। संश्लेषित प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न प्राकृतिक प्रोजेस्टेरोन की तुलना में अधिक प्रभावशाली होते हैं। नॉरएथिनड्रान एक संशिलष्ट प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न है जिसे मुख्य रूप से जनन नियंत्रण गोलियों में प्रयुक्त किया जाता है। एथाइनिलएस्ट्राडाइऑल (नोवएस्ट्रॉल) एक एस्ट्रोजन व्युत्पन्न है जिसे प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न के साथ जनन नियंत्रण गोलियों में प्रयुक्त किया जाता है।
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वे यौगिक जो गर्भधारण में रुकावट डालते हैं उन्हें गर्भ निरोधक पदार्थ (Contraceptive Substances) कहते हैं तथा वे रसायन जिनसे सन्तानोत्पत्ति की क्षमता नष्ट हो जाती है उन्हें रसोबन्ध्यक (Chemosterilants) कहा जाता है।

उदाहरण-
(i) मटर के तेल से प्राप्त m-जाइलोहाइड्रोक्विनोन चूहों में गर्भ धारण क्षमता को कम कर देता है तथा इसका महिलाओं की गर्भधारण क्षमता पर भी काफी प्रभाव होता है।
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(ii) डैनैजॉल नामक रसायन से पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या में प्रभावी कमी आ जाती है।

(iii) बिनौले के तेल से प्राप्त गोसिपॉल नामक ऐरोमैटिक हेक्साहाइड्रॉक्सीडाइऐल्डिहाइड पुरुषों के लिए सर्वाधिक प्रभावी प्रतिनिषैची (प्रतिजनन क्षमता) कर्मक होता है।
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प्रश्न 11.
सैकरीन के संश्लेषण में प्रयुक्त अभिक्रिया अनुक्रम लिखिए।
उत्तर:
वे पदार्थ जो शर्करा (Sugar) के स्थान पर मधुरक (Sweetening agent) के रूप में प्रयोग में लिए जाते हैं लेकिन उनका कोई पोषण मान (Nutritional value) नहीं होता, उन्हें कृत्रिम मधुरक कहते हैं।

प्राकृतिक मधुरक जैसे सूक्रोस इत्यादि ग्रहण की गई कैलोरी मान को बढ़ाते हैं। अतः आजकल बहुत से व्यक्ति कृत्रिम मधुरकों का प्रयोग करने लगे हैं। सैकरीन एक प्रथम अधिक प्रचलित कृत्रिम मधुरक है जिसकी खोज 1879 में हुई थी। यह सूक्रोस से लगभग 550 गुना अधिक मीठी होती है तथा इसका रासायनिक नाम आर्थोसल्फो-बेन्जीनीमाइड है तथा यह एक श्वेत क्रिस्टलीय ठोस है।

सैकरीन के प्रयोग का लाभ यह है कि इसका शरीर में पाचन नहीं होता तथा यह अपरिवर्तित रूप में ही मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाती है क्योंकि यह पूर्णतः अक्रिय होता है तथा इससे कोई हानि भी नहीं होती। इसी कारण इसे मधुमेह के रोगियों के लिए आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है।

सैकरीन जल में अविलेय होती है लेकिन इसका सोडियम लवण जल में विलेय होता है। सैकरीन का संश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है-
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सैकरीन के अतिरिक्त ऐस्पार्टेम सूक्रालोस तथा ऐलिटेम भी महत्वपूर्ण कृत्रिम मधुरक हैं।
(i) ऐस्पार्टेम-यह एक व्यापक रूप से प्रयुक्त किए जाने वाला कृत्रिम मधुरक है। यह एस्पार्टिक अम्ल तथा फेनिलऐलानिन से बने डाइपेप्टाइड का मेथिल एस्टर है। यह सूक्रोस की तुलना में लगभग 100 गुना अधिक मीठा होता है। एस्पार्टेम का प्रयोग केवल ठंडे खाद्य एवं पेय पदार्थों को मीठा करने के लिए ही प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि इसे खाना बनाने के ताप तक गर्म करने पर यह विघटित हो जाता है। इसकी संरचना निम्नलिखित है-
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(ii) सूक्रालोस-यह सूक्रोस का ट्राइक्लोरो व्युत्पन्न है। शर्करा के समान यह भी क्रिस्टलीय ठोस होता है लेकिन यह सूक्रोस की तुलना में लगभग 600 गुना मीठा होता है। यह खाना पकाने के तापमान पर स्थायी होता है तथा इससे कोई कैलोरी प्राप्त नहीं होती है। सूक्रालोस संरचना निम्नलिखित है-
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(iii) ऐलिटेम-यह एक प्रबल कृत्रिम मधुरक है तथा ऐस्पार्टेम की तुलना में अधिक स्थायी होता है। यह सूक्रोस से लगभग 2000 गुना अधिक मीठा होता है तथा इसकी मिठास को नियंत्रित करना कठिन होता है। इसकी संरचना निम्नलिखित है-
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प्रश्न 12.
एक अच्छे खाद्य परिरक्षक के गुण बताइए।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों को पड़ा रखने पर उनमें सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण ये खराब हो जाते हैं। अतः वे पदार्थ जिन्हें खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उन्हें खाद्य परिरक्षक कहते हैं।

कुछ सामान्य परिक्षक निम्नलिखित हैं-साधारण नमक, चीनी, वनस्पति तेल, सोडियम बेन्जोएट (C6H5COONa), सॉर्बिक अम्ल तथा प्रोपेनॉइक अम्ल के लवण।

सोडियम बेन्जोएट का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जाता है क्योंकि यह शरीर द्वारा उपापचयित हो जाता है।

एक अच्छे खाद्य परिरक्षक में निम्नलिखित गुण होने चाहिये-

  • खाद्य पदार्थों पर इनका लम्बे समय तक असर रहना चाहिए।
  • ये स्वादहीन होने चाहिए।
  • इन्हें अल्प मात्रा में ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए।
  • इनकी खाद्य पदार्थों से कोई क्रिया नहीं होनी चाहिए।
  • इनके प्रयोग से जलन, अम्लता, एलर्जी, गैस तथा पित्त नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 13.
साबुन क्या होते हैं तथा इन्हें किस प्रकार बनाया जाता है ?
उत्तर:
दीर्घ श्रृंखलायुक्त वसा अम्लों के सोडियम तथा पोटैशियम लवणों को साबुन कहते हैं। संतृप्त तथा असंतृप्त मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों को वसा अम्ल (Fatty Acids) कहते हैं। जैसे स्टिऐरिक अम्ल (C17H35COOH), पामिटिक अम्ल (C15H31COOH) तथा ओलीक अम्ल (C17H33COOH)। ये प्रकृति में प्रमुखता से पाये जाते हैं।

वसा अम्लों के सेडियम लवणों को सोडियम साबुन अथवा कठोर साबुन (Hard Soaps) अथवा धावन साबुन (Washing Soaps) कहते हैं, जबकि पोटैशियम साबुन को नहाने के साबुन (Bathing Soaps) अथवा मृदु साबुन (Soft Soaps) कहते हैं।

साबुन बनाना – वसा (वसा अम्लों के ग्लिसरिल एस्टर) को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के जलीय विलयन के साथ गर्म करने पर साबुन प्राप्त होता है तथा साबुन बनाने की इस प्रक्रिया को साबुनीकरण ( Saponification) कहते हैं। इस अभिक्रिया में वसा अम्लों के एस्टर का जल अपघटन होता है तथा प्राप्त साबुन कोलॉइडी अवस्था में होता है। इसे विलयन में सोडियम क्लोराइड (NaCl) डालकर अवक्षेपित कर लेते हैं। साबुन को पृथक् कर लेने के बाद बचे हुए विलयन में ग्लिसरॉल रह जाता है जिसे प्रभाजी आसवन के द्वारा प्राप्त किया जाता है।
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आठ से अठारह कार्बन परमाणु युक्त साबुन की गुणवत्ता अच्छी होती है । अठारह से अधिक कार्बन होने पर इनकी जल में विलेयता कम होती है तथा अठारह से कम कार्बन होने पर इनकी शोधन शक्ति (Cleansing Power) कम हो जाती है। सोडियम तथा पोटेशियम साबुन जल में विलेय होते हैं तथा इन्हें सफाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पोटेशियम साबुन मृदु होते हैं अतः इस प्रकार के साबुन त्वचा के लिए कोमल होते हैं। पोटेशियम साबुन बनाने के लिए NaOH के विलयन के स्थान पर KOH का विलयन लिया जाता है।

साबुन के प्रकार (Types of Soaps ) साबुनों के उपयोगों के आधार पर ये अग्रलिखित प्रकार के होते हैं-
(i) प्रसाधन साबुन (Toilet Soap ) – ये अच्छे वसा एवं तेलों से बनाए जाते हैं तथा इनसे क्षार के आधिक्य को निकाल लिया जाता है। इन्हें आकर्षक बनाने के लिए इनमें रंग तथा सुगंध मिलाते हैं।

(ii) पानी में तैरने वाले साबुन (Floating Soap ) – तैरने वाले साबुन बनाने के लिए इनके कठोर होने से पहले इनमें वायु के छोटे-छोटे बुलबुले विस्पंदित (प्रवाहित ) किए जाते हैं।

(iii) पारदर्शी साबुन (Transparent Soap ) – साबुन को एथेनॉल में मोलकर और फिर विलायक के आधिक्य को वाष्पित करने से पारदर्शी साबुन बनते हैं।

(iv) औषध ‘साबुन (Medicated Soap ) – इनमें औषधीय गुण वाले पदार्थ मिलाए जाते हैं। कुछ साबुनों में गंधहारी (Deodorants) पदार्थं भी मिलाए जाते हैं।

(v) दाढ़ी बनाने का साबुन (Shaving Soap ) – दाढ़ी बनाने साबुन बनाने के लिए इसमें रोजिन नामक गोंद मिलायी जाती है जिससे सोडियम रोजिनेट बनता है जो झाग बनाने में मदद करता है तथा इसे जल्दी सूखने से बचाने के लिए इसमें ग्लिसरॉल भी मिलाया जाता है।

धुलाई के साबुन में सोडियम रोजिनेट, सोडियम कार्बोनेट, सोडियम सिलिकेट तथा बोरेक्स जैसे पूरक (Fillers) भी मिलाए जाते हैं तथा साबुन की छीलन ( Soap Chips) बनाने के लिए ठंडे सिलिंडर पर साबुन की पतली परत चढ़ाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में खुरच लिया जाता है। दानेदार साबुन (Soap Granules) सूखे हुए साबुन के छोटे-छोटे बुलबुले होते हैं।

साबुन का पाउडर तथा मार्जन साबुन में कुछ साबुन, मार्जक (अपघर्षी) जैसे झामक चूर्ण ( Powdered Pumice) या बारीक रेत तथा सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) एवं ट्राइसोडियम फॉस्फेट (Na3PO4) जैसे बिल्डर मिले होते हैं। बिल्डर से साबुन की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।

साबुन की शोधन क्रिया (Cleansing Action of Soaps) – साबुन की शोधन क्रिया में पायसीकरण ( इमल्सीकरण ) होता है। इस प्रक्रिया में साबुन, कपड़े पर लगे ग्रीस तथा मिट्टी के कणों का जल के साथ इमल्सन (पायस) बनाने में मदद करता है।

स्पष्टीकरण (Explanation ) – साबुन के अणु में अध्रुवीय जल विरोधी तथा ध्रुवीय जलस्नेही भाग होता है। कपड़े की सतह पर मिट्टी के कण, ग्रीस या तेल द्वारा चिपके रहते हैं। ग्रीस या तेल जल में अविलेय होता है अतः मिट्टी के कणों को केवल जल द्वारा नहीं हटाया जा सकता। जब साबुन का प्रयोग किया जाता है तो इसका अध्रुवीय एल्किल समूह तेल की बूंदों में विलेय होता है जबकि ध्रुवीय – COON+a समूह जल में विलेय होता है अतः तेल की प्रत्येक बूँद के चारों ओर ऋणावेश आ जाता है इससे इमल्सन बन जाता है तथा मिट्टी के कण युक्त तेल की बूँदें जल द्वारा साफ हो जाती हैं।
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साबुन केवल मृदु जल (Soft Water) में ही कार्य करते हैं। कठोर जल में नहीं, क्योंकि कठोर जल में Ca2+ तथा Mg2+ आयन होते हैं इसलिए सोडियम अथवा पोटैशियम साबुन को कठोर जल में घोलने पर वह अघुलनशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम साबुन में परिवर्तित हो जाता है।
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ये अघुलनशील साबुन, मलफेन (Scum) की भाँति जल से पृथक् हो जाते हैं तथा शोधन अभिकर्मक के रूप में उपयुक्त नहीं रहते। ये अच्छी धुलाई में रुकावट डालते हैं क्योंकि यह अवक्षेप कपड़ों पर चिपक जाता है। कठोर जल से धुले बाल इसी चिपचिपे पदार्थ के कारण ही चमकदार नहीं होते हैं। कठोर जल और साबुन से धुले कपड़ों में इस चिपचिपे पदार्थ के कारण रंजक भी एकसमान रूप से अवशोषित नहीं होता है।

प्रश्न 14.
अपमार्जकों के संश्लेषण की विधियों के समीकरण लिखिए।
उत्तर:
अपमार्जकों का संश्लेषण (Synthesis of Detergents) – अपमार्जकों को निम्नलिखित विधियों द्वारा संश्लेषित किया जाता है-
(i)
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(ii) रीड अभिक्रिया द्वारा (By Reed Reaction)
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साबुन तथा अपमार्जक में अन्तर (Difference between Soaps and Detergents)
(i) उच्चतर (दीर्घ श्रृंखला युक्त) मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों का सोडियम अथवा पोटैशियम लवण साबुन कहलाता है, जबकि उच्चतर ऐल्केन सल्फोनिक अम्ल अथवा ऐल्केन हाइड्रोजनसल्फेट के सोडियम लवणों को अपमार्जक कहते हैं। अर्थात् साबुन तथा अपमार्जक के ध्रुवीय सिरे में रासायनिक भिन्नता होती है।

(ii) साबुन दुर्बल अम्ल (RCOOH) तथा प्रबल क्षार के लवण होते हैं; जबकि अपमार्जक, प्रबल अम्ल (RSO3H अथवा RSO4H ) तथा प्रबल क्षार के लवण होते हैं। इसी कारण कठोर जल में उपस्थित Ca2+ तथा Mg2+ आयन साबुन के साथ क्रिया करके कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण बनाते हैं, जो कि सहसंयोजी होने के कारण जल में अविलेय होते हैं। अपमार्जक कठोर जल में भी शोधन करते हैं क्योंकि इनके कैल्सियम तथा मैग्नीशियम आयनिक प्रकृति के होने के कारण जल में विलेय होते हैं।

(iii) साबुन जल अपघटित होकर क्षारीय विलयन देते हैं, जबकि अपमार्जक का जलीय विलयन उदासीन होता है। इसी कारण अपमार्जकों को ऊनी, रेशमी तथा अन्य कोमल वस्त्रों को धोने के काम में लेते हैं, लेकिन साबुन द्वारा इन कोमल वस्त्रों का शोधन नहीं किया जा सकता है।
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बोर्ड परीक्षा के दृष्टिकोण से सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदार्थ क्या होते हैं? प्रत्येक का एक- एक उदाहरण दीजिए-
(i) धनायनी अपमार्जक
(ii) एन्जाइम
(iii) स्वीटनिंग कर्मक या मिठासकारक (मधुरक)।
उत्तर:
(i) धनायनी अपमार्जक ऐमीनो के ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड आयनों के साथ बने चतुष्क अमोनियम लवण होते हैं। उदाहरण- सेटिलट्राइमेथिल अमोनियमब्रोमाइड।

(ii) जैव रासायनिक अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले प्रोटीन युक्त पदार्थों को एन्जाइम अथवा जैव उत्प्रेरक कहते हैं। उदाहरण- यूरिऐस।

(iii) वे पदार्थ जो शर्करा के स्थान पर मधुरक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं, उन्हें कृत्रिम मधुरक कहते हैं। उदाहरण- सैकरीन।

प्रश्न 2.
प्रत्येक स्थिति में एक-एक उदाहरण सहित निम्नलिखित पदों की व्याख्या कीजिए-
(i) खाद्य परिरक्षक
(ii) अपमार्जक
(iii) एन्टासिड (Antacid)।
उत्तर:
(i) खाद्य परिरक्षक- वे पदार्थ जो खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं उन्हें खाद्य परिरक्षक कहते हैं। उदाहरण- सोडियम बेन्जोएट।

(ii) अपमार्जक – वे शोधन अभिकर्मक जिनमें साबुन के सभी गुण पाए जाते हैं लेकिन रासायनिक दृष्टि से ये साबुन नहीं होते हैं उन्हें अपमार्जक कहते हैं। उदाहरण- सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड।

(iii) एन्टासिड (प्रतिअम्ल) वे औषध होती हैं जो आमाशय में उत्पन्न अधिक अम्ल के प्रभाव को समाप्त करके पीड़ा से बचाती हैं। जैसे- रैनिटिडीन।

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प्रश्न 3.
रोगाणुनाशी और पूतिरोधी पदार्थों के बीच अंतर कीजिए।
उत्तर:
पूतिरोधी तथा विसंक्रामी (संक्रमणहारी) ऐसे रसायन होते हैं जो या तो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोकते हैं।

पूतिरोधियों (Antiseptic) को सजीव ऊतकों, जैसे-घाव, चोट तथा अल्सर पर लगाया जाता है। फ्यूरासिन तथा सोफ्रामाइसिन इसके मुख्य उदाहरण हैं।

संक्रमणहारी (रोगाणुनाशी) (Disinfectant) भी सूक्ष्मजीवियों को नष्ट करते हैं तथा इनका प्रयोग निर्जीव वस्तुओं जैसे-फ़र्श, नालियाँ तथा यंत्रों को रोगाणुमुक्त करने में प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरण-फ़ीनॉल का एक प्रतिशत विलयन।

प्रश्न 4.
(i) ऋणायनिक एवं धनायनिक अपमार्जक किसे कहते हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी लिखिए।
(ii) निम्नलिखित के संरचना सूत्र लिखिए-
(A) बाईथायोनल
(B) सैकरीन।
अथवा
(i) साबुन किसे कहते हैं? साबुनीकरण की अभिक्रिया लिखिए। साबुन के दो प्रकारों का वर्णन कीजिए।
(ii) स्वापक व अस्वापक पीड़ाहारी में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
(i) संश्लिष्ट अपमार्जक (Synthetic Detergents) – संश्लिष्ट अपमार्जक वे शोधन अभिकर्मक (Cleansing Agents) होते हैं जिनमें साबुन के सभी गुण पाए जाते हैं लेकिन रासायनिक दृष्टि से ये साबुन नहीं होते हैं। अतः इन्हें साबुन रहित साबुन या सिन्डेट्स भी कहा जाता है।

अपमार्जक कठोर जल में भी झाग बनाते हैं अतः इन्हें कठोर तथा मृदु दोनों प्रकार के जल में उपयोग में लिया जा सकता है।

संश्लिष्ट अपमार्जक तीन प्रकार के होते हैं-
(a) धनायनी अपमार्जक
(b) ऋणायनी अपमार्जक
(c) अनआयनिक अपमार्जक।
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(a) धनायनी अपमार्जक (Cationic Detergents)-धनायनी अपमार्जक एमीनों के ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड आयनों के साथ बने चतुष्क अमोनियम लवण होते हैं। इनमें धनात्मक भाग में लंबी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला तथा नाइट्रोजन परमाणु पर धन आवेश होता है। अतः इन्हें धनायनी अपमार्जक कहते हैं। उदाहरण-सेटिलट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड।

धनायनी अपमार्जकों को बालों के कन्डीशनरों में प्रयुक्त किया जाता है तथा इनमें जीवाणुनाशक गुण पाया जाता है। महंगे होने के कारण इनका उपयोग सीमित मात्रा में होता है।

(b) ऋणायनी अपमार्जक (Anionic Detergents)-ऋणायनी अपमार्जक लम्बी श्रंखलायुक्त सल्फोनीकृत ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सोडियम लवण होते हैं। जैसे-सोडियम p-ऐल्किल बेन्जीन सल्फ्रेनेट तथा सोडियम लॉरिल सल्फोनेट या सल्फेट। दीर्घ शृंखला वाले ऐल्कोहॉलों की सांद्र सल्प्यूरिंक अम्ल (H2SO4 के साथ अभिक्रिया कराने पर पहले ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट बनते हैं जिनकी क्रिया क्षार से कराने पर ऋणायनी अपमार्जक बनते हैं। इसी प्रकार ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट, ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनिक अम्लों की क्षार के साथ क्रिया से प्राप्त होते हैं।
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ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेटों के सोडियम लवण महत्त्वपूर्ण ऋणायनी अपमार्जक होते हैं। ऋणायनी अपमार्जकों में इनका ऋणात्मक भाग शोधन (Cleansing) क्रिया में भाग लेता है। ये सामान्यतः घरेलू उपयोग में आते हैं। ऋणायनी अपमार्जक दंतमंजन में भी प्रयुक्त किए जाते हैं।

(c) अनआयनिक अपमार्जक (Non-Ionic Detergents) अनायनिक अपमार्जकों में कोई आयन नहीं होता है, अतः इसे अनआयनिक अपमार्जक कहते हैं। उदाहरण-(i) स्टिऐरिक अम्ल तथा पॉलीएथिलीन ग्लाइकॉल की अभिक्रिया से बना अपमार्जक।
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(ii) संरचना सूत्र
(A) बाईथायोनल
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(B) सैकरीन
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प्रश्न 5.
(अ) साबुन व संश्लेषित अपमार्जक में दो अन्तर दीजिए।
(ब) निम्नलिखित को कृत्रिम मधुरक, परिरक्षक, साबुन, अपमार्जक में वर्गीकृत कीजिए-
सोडियम पॉमिटेट, सुक्रालोस, सार्बिक अम्ल का लवण, सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड ।
अथवा
(अ) पूतिरोधी व विसंक्रामी में दो अन्तर दीजिए।
(ब) निम्नलिखित को प्रतिहिस्टैमिन, प्रतिअम्ल, प्रशांतक, प्रतिजैविक औषधि में वर्गीकृत कीजिए-
पेनिसिलीन, मेप्रोबमेट, टरफेनाडीन, रैनिटिडीन।
उत्तर:
(अ) (i) साबुन कठोर जल में कार्य नहीं करते जबकि संश्लेषित अपमार्जक कठोर जल में भी कार्य करते हैं।
(ii) साबुन को मृदु कपड़ों (Soft cloths) जैसे ऊन, रेशम आदि को धोने में प्रयुक्त नहीं किया जाता है जबकि अपमार्जकों द्वारा इन्हें धोया जा सकता है।

(ब) कृत्रिम मधुरक- सुक्रालोस
परिरक्षक-सार्विक अम्ल का लवण
साबुन- सोडियम पॉमिटेट
अपमार्जक सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड।
अथवा
(अ) पूतिरोधी तथा विसंक्रामी (संक्रमणहारी) ऐसे रसायन होते हैं जो या तो सूक्ष्मजीवों का विनाश करते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोकते हैं। पूतिरोधियों (Antiseptic) को सजीव ऊतकों, जैसे- घाव, चोट तथा अल्सर पर लगाया जा सकता है। उदाहरण- फ्यूरासिन तथा सोफ्रामाइसिन।

संक्रमणहारी (Disinfectant) का प्रयोग निर्जीव वस्तुओं, जैसे- फर्श, नालियों तथा यंत्रों पर किया जाता है। उदाहरण- फीनॉल का एक प्रतिशत विलयन सान्द्रता परिवर्तन से वही पदार्थ पूतिरोधी अथवा विसंक्रामी का कार्य कर सकता है।

(ब) प्रतिहिस्टैमिन – टरफेनाडीन
प्रतिअम्ल – रैनिटिडीन
प्रशांतक – मेप्रोबमेट
प्रतिजैविक – पेनिसिलीन

प्रश्न 6.
(अ) मधुमेह के रोगियों को कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
(ब) एक खाद्य परिरक्षक का नाम लिखिए। यह खाद्य परिरक्षण किस प्रकार करता है?
(स) ऋणायनी अपमार्जक का नाम एवं सूत्र लिखिए।
उत्तर:
(अ) प्राकृत मधुरक जैसे सूक्रोस ग्रहण की गई कैलोरीमान बढ़ाते हैं अतः मधुमेह के रोगियों को कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि कृत्रिम मधुरक अपरिवर्तित रूप में ही मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं तथा ये पूर्णतः अक्रिय होते हैं एवं इनसे कोई हानि नहीं होती। ये कैलोरी में भी वृद्धि नहीं करते हैं।

(ब) सोडियम बेन्जोएट एक खाद्य परिरक्षक है। खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म जीवों की वृद्धि होती है जिसके कारण ये खराब हो जाते हैं। खाद्य परिरक्षक इन सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकते हैं जिससे खाद्य पदार्थ खराब नहीं होते हैं।

(स) सोडियम लॉरिल सल्फेट [CH3(CH2)10CH2OSO2Na+] एक ऋणायनी अपमार्जक है।

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प्रश्न 7.
(i) रैनिटिडीन किस वर्ग की औषध है?
(ii) यदि जल में Ca2+ आयन घुले हुए हैं तो कपड़ों को साफ
करने के लिए आप साबुन तथा अपमार्जक में से किसे प्रयुक्त करेंगे?
(iii) निम्नलिखित में से कौनसा पूतिरोधी है ?
0.2% फीनॉल, 1% फीनॉल
उत्तर:
(i) रैनिटिडीन एक प्रतिअम्ल है क्योंकि यह आमाशय की अम्लता को दूर करती है।

(ii) जल में Ca2+ आयन घुले हुए हैं अतः यह कठोर जल है। इसलिए कपड़ों को साफ करने के लिए साबुन की तुलना में अपमार्जकों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि अपमार्जकों के कैल्सियम लवण जल में विलेय होते हैं जबकि साबुन के कैल्सियम लवण जल में अविलेय होते हैं अतः अधिक साबुन बेकार चला जाता है।

(iii) 0.2% फीनॉल, पूतिरोधी की भांति व्यवहार करता है जबकि 1% फीनॉल रोगाणुनाशी होता है।

प्रश्न 8.
(i) दो वृहत अणुओं के उदाहरण बताइए जिन्हें औषध लक्ष्य की तरह चुना जाता है।
(ii) पूतिरोधी क्या होते हैं ? एक उदाहरण दीजिए।
(iii) ऐस्पार्टेम का प्रयोग ठंडे खाद्य तथा पेय पदार्थों तक ही क्यों सीमित है ?
उत्तर:
(i) न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन ऐसे वृहत अणु हैं जिन्हें औषध लक्ष्य की तरह चुना जाता है।

(ii) पूतिरोधी वे रसायन हैं जो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोक देते हैं लेकिन जिनका ऊतकों पर कोई प्रभाव नहीं होता है। उदाहरण-बोरिक अम्ल का तनु विलयन

(iii) ऐस्पार्टेम खाना बनाने के ताप तक गर्म करने पर यह विघटित हो जाता है अतः इसका प्रयोग ठंडे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक ही सीमित है।

प्रश्न 9.
निम्न को समझाइए –
(अ) पूतिरोधी
(ब) कृत्रिम मधुरक
(स) प्रतिअम्ल।
अथवा
निम्न को समझाइए – (अ) विसंक्रामी (ब) खाद्य परिरक्षक (स) प्रशांतक ।
उत्तर:
(अ) पूतिरोधी-वे रसायन होते हैं जो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोक देते हैं। पूतिरोधियों को सजीव ऊतकों जैसे घाव, चोट तथा अल्सर पर लगाया जा सकता है। उदाहरण-सोफ्रामाइसिन, डेटॉल, आयोडोफार्म तथा बोरिक अम्ल इत्यादि।

(ब) कृत्रिम मधुरक-वे पदार्थ जो शर्करा (Sugar) के स्थान पर मधुरक (Sweetening agent) के रूप में प्रयोग में लिए जाते हैं लेकिन उनका कोई पोषण मान (Nutritional value) नहीं होता, उन्हें कृत्रिम मधुरक कहते हैं।
उदाहरण सैकरीन (आर्थों सल्फोबेन्जीनीमाइड), सूकालोस तथा ऐलिटेम।

(स) प्रतिअम्ल-रासायनिक पदार्थ जो आमाशय की अम्लता को कम करने के लिए प्रयुक्त होते हैं उन्हें प्रतिअम्ल कहते हैं।
उदाहरण-धात्विक हाइड्रॉक्साइड जैसे Mg(OH)2। इसके अतिरिक्त सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन प्रभावी प्रतिअम्ल होते हैं।
अथवा
(अ) विसंक्रामी – वे रसायन होते हैं जो सूक्ष्मजीवियों को नष्ट करते हैं परन्तु जैव ऊतकों पर इनका उपयोग सुरक्षित नहीं होता है। अतः इन्हें निर्जीव वस्तुओं जैसे फर्श, नालियाँ तथा यंत्रों इत्यादि को रोगाणुमुक्त करने के काम में लिया जाता है। उदाहरण क्लोरीन, सल्फरडाइऑक्साइड।

(ब) खाद्य परिरक्षक-खाद्य पदार्थों को पड़ा रखने पर उनमें सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण ये खराब हो जाते हैं। अतः वे पदार्थ जो खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं उन्हें खाद्य परिरक्षक कहते हैं। उदाहरण साधारण नमक, चीनी, वनस्पति तेल तथा सोडियम बेन्जोएट।

(स) प्रशांतक वे औषध जो बिना नींद के मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाती हैं उन्हें प्रशांतक कहते हैं। अतः प्रशांतकों का उपयोग तनाव तथा मानसिक बीमारियों में किया जाता है। उदाहरण-इप्रोनाइजिड तथा फिनल्जिन (नारडिल)।

प्रश्न 10.
(अ) अस्वापक पीड़ाहारी किसे कहते हैं? एक उदाहरण लिखिए।
(ब) ठण्डे पेय एवं खाद्य पदार्थों में ही कृत्रिम मधुरक एस्पार्टेम का उपयोग क्यों किया जाता है?
(स) पूतिरोधी व रोगाणुनाशी में कोई एक अंतर लिखिए।
अथवा
(अ) ऋणायनी अपमार्जक किसे कहते हैं ? एक उदाहरण लिखिए।
(ब) खाद्य पदार्थों में रसायन क्यों मिलाये जाते हैं ? कोई दो कारण लिखिए।
(स) विस्तृत स्पेक्ट्रम व संकीर्ण स्पेक्ट्रम प्रतिजीवाणु में कोई एक अंतर लिखिए।
उत्तर:
(अ) वे पीड़ाहारी जो दर्द को कम करते हैं लेकिन इनकी आदत नहीं पड़ती अर्थात् व्यक्ति इनका आदी नहीं होता उन्हें अस्वापक पीड़ाहारी कहते हैं। उदाहरण – ऐस्पिरिन।

(ब) (i) न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन ऐसे वृहत अणु हैं जिन्हें औषध लक्ष्य की तरह चुना जाता है।

(ii) पूतिरोधी वे रसायन हैं जो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोक देते हैं लेकिन जिनका ऊतकों पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
उदाहरण-बोरिक अम्ल का तनु विलयन

(iii) ऐस्पार्टेम खाना बनाने के ताप तक गर्म करने पर यह विघटित हो जाता है अतः इसका प्रयोग ठंडे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक ही सीमित है।

(स) पूतिरोधी व रोगाणुनाशी दोनों ही सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोकते हैं लेकिन पूतिरोधी को सजीव ऊतकों, जैसे-घाव, चोट तथा अल्सर पर लगाया जाता है जबकि रोगाणुनाशी का प्रयोग निर्जीव वस्तुओं, जैसे- फर्श तथा नालियों को रोगाणुमुक्त करने में किया जाता है परन्तु जैव ऊतकों पर इनका उपयोग सुरक्षित नहीं होता है।

अथवा

(अ) वे अपमार्जक जिनमें यौगिक का ऋणायनिक भाग अपमार्जन का कार्य करता है उन्हें ऋणायनी अपमार्जक कहते हैं। ऋणायनी अपमार्जक लम्बी श्रृंखलायुक्त सल्फोनीकृत ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सोडियमलवण होते हैं। जैसे- सोडियम p- ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट तथा सोडियम लॉरिल सल्फेट।

(ब) खाद्य पदार्थों में रसायन मिलाने के निम्न कारण हैं-

  • खाद्य पदार्थों का परिरक्षण तथा
  • खाद्य पदार्थों की पौष्टिक गुणवत्ता बढ़ाना।

(स) संकीर्ण स्पेक्ट्रम प्रतिजीवाणु मुख्यतः ग्रैम ग्राही या ग्रैम अग्राही जीवाणुओं पर ही अपना प्रभाव डालते हैं, जबकि विस्तृत स्पेक्ट्रम प्रतिजीवाणु ग्रैम ग्राही तथा ग्रैम अग्राही दोनों प्रकार के जीवाणुओं के विस्तृत परास को नष्ट करते हैं या उनका निरोध करते हैं। पेनिसिलिन जी संकीर्ण स्पेक्ट्रम प्रतिजीवाणु है जबकि ऐम्पिसिलिन एक विस्तृत स्पेक्ट्रम प्रतिजीवाणु है।

प्रश्न 11.
जवान बच्चों में मधुमेह और अवसाद (उदासी) की बढ़ती संख्या को देखकर, एक प्रसिद्ध स्कूल के प्रिंसिपल श्री लुगानी ने एक सेमिनार का आयोजन किया जिसमें अन्य प्रिंसिपलों और बच्चों के माता-पिताओं को आमंत्रित किया। यह निर्णय लिया गया कि स्कूलों में सड़े खाने (Junk Food) की वस्तुएँ बन्द की जाएँ और स्वास्थ्यवर्धक वस्तुएँ, जैसे सूप, लस्सी, दूध आदि उपलब्ध कराई जाएँ।

उन्होंने यह भी निर्णय लिया कि स्कूलों में रोज प्रात:काल की ऐसेम्बली के साथ बच्चों को आधा घण्टे का शारीरिक व्यायाम अनिवार्य रूप से कराया जाए। छः माह पश्चात्, श्री लुगानी ने अधिकतर स्कूलों में फिर स्वास्थ्य परीक्षण कराया और बच्चों के स्वास्थ्य में अनुपम सुधार पाया गया।

उपर्युक्त विवरण को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) श्री लुगानी द्वारा किन मूल्यों (कम-से-कम दो) को प्रदर्शित किया गया?
(ii) एक विद्यार्थी के रूप में, आप इस विषय में कैसे जागरूकता फैलाएँगे?
(iii) प्रति-अवसादक (ऐन्टिडीप्रीसेन्ट) ड्रग्स क्या हैं? एक उदाहरण दीजिए।
(iv) एक मधुमेह के रोगी के लिए मिठाई बनाने के लिए जो मीठाकारी अभिकर्मक (मधुकर) प्रयुक्त होता है, उसका नाम दीजिए।
उत्तर:
(i) श्री लुगानी द्वारा अपने कर्त्तव्य तथा बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी जैसे मूल्यों को प्रदर्शित किया गया।

(ii) एक विद्यार्थी के रूप में, मैं समाज तथा अपने निवास स्थान के आसपास भी सड़ा खाना नहीं खाना तथा शारीरिक व्यायाम के बारे में जागरूकता फैलाऊँगा, इसके लिए सभाओं का आयोजन करूँगा।

(iii) जब नॉरएड्रीनेलिन की मात्रा कम हो जाती है तो व्यक्ति अवसादग्रस्त हो जाता है तो इसके लिए प्रयुक्त ड्रग को प्रति अवसादक कहते हैं। ये ड्रग नॉरएड्रीनेलिन का निम्नीकरण करने वाले एन्जाइम को संदमित करती है। उदाहरण-फिनल्जिन।

(iv) सैकरीन एक मीठाकारी अभिकर्मक (मधुकर) है।

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