HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जैव विविधता शब्द किस जीव वैज्ञानिक द्वारा प्रचलित किया गया?
(अ) एडवर्ड विलसन
(ब) रॉबर्ट मेह
(स) टिल मैन
(द) पाल एहरालिक
उत्तर:
(अ) एडवर्ड विलसन

2. राइवोल्फीया वोमिटोरिया द्वारा प्रतिपादित रसायन का नाम है-
(अ) केसरपिन
(ब) रेसरपिन
(स) मेसरपिन
(द) जेसरपिन
उत्तर:
(ब) रेसरपिन
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3. भारत का भूमि क्षेत्र विश्व का केवल कितने प्रतिशत है?
(अ) 1.8 प्रतिशत
(ब) 2 प्रतिशत
(स) 2.2 प्रतिशत
(द) 2.4 प्रतिशत
उत्तर:
(द) 2.4 प्रतिशत

4. जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध होता है।
(अ) वर्गाकार अतिपरवलय
(ब) आयताकार अतिपरवलय
(स) त्रिकोणाकार अतिपरवलय
(द) चतुर्भुजाकार अतिपरवलय
उत्तर:
(ब) आयताकार अतिपरवलय

5. विभिन्न महाद्वीपों के उष्ण बटिबंध वनों के फलाहारी पक्षी तथा स्तनधारियों की रेखा की ढलान है ?
(अ) 1.15
(ब) 2.15
(स) 3.15
(द) 4.15
उत्तर:
(अ) 1.15

6. “विविधता में वृद्धि उत्पादकता बढ़ती है” यह किस वैज्ञानिक का कथन है?
(अ) डेविड टिलमैन
(ब) रॉबर्ट मेह
(स) रॉबर्ट हुक
(द) डेविड मिडिलमेन
उत्तर:
(अ) डेविड टिलमैन

7. पॉल एहरलिक द्वारा उपयोग की गई परिकल्पना है-
(अ) पोपर परिकल्पना
(ब) सोपर परिकल्पना
(स) सिवेट पोपर परिकल्पना
(द) रिबेट पोपर परिकल्पना
उत्तर:
(द) रिबेट पोपर परिकल्पना

8. निम्न में से वर्तमान में कितने प्रतिशत जातियाँ विलुसि के कगार पर हैं?
(अ) 12 प्रतिशत पक्षी
(ब) 23 प्रतिशत स्तनधारी
(स) 31 प्रतिशत आवृतबीजी की जातियाँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

9. किसी क्षेत्र की जैव विविधता की हानि से होने वाला प्रभाव है-
(अ) पादप उत्पादकता घटती है
(ब) पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे सूखा आदि के प्रति प्रतिरोध में कमी आती है
(स) कुछ पारितंत्र की प्रक्रियाओं जैसे पादप उत्पादकता, जल उपयोग, पीडक और रोग चक्रों की परिवर्तनशीलता बढ़ जाती है
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

10. पृथ्वी का फेफड़ा किसे कहा जाता है?
(अ) विशाल अमेजन वर्षा वन
(ब) सुन्दर वन
(स) काजीरंगा वन
(द) नागार्जुन उद्यान
उत्तर:
(अ) विशाल अमेजन वर्षा वन

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11. किस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चारागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया-
(अ) सुन्दर वन
(ब) अमेजन वन
(स) नागार्जुन वन
(द) काजीरंगा वन
उत्तर:
(ब) अमेजन वन

12. बिहार राज्य में किस वृक्ष की पूजा की जाती है?
(अ) इमली
(ब) महुआ
(स) कदम्ब
(द) ढाक
उत्तर:
(ब) महुआ

13. वनों की सघनता जैव विविधता में करती है-
(अ) कमी
(ब) वृद्धि
(स) स्थिरता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) वृद्धि

14. 2002 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वितीय कहाँ हुआ?
(अ) रियो-दि-जेनेरो
(ब) ब्राजील
(स) जोहान्सबर्ग
(द) दक्षिण अमेरिका
उत्तर:
(स) जोहान्सबर्ग

15. मानव द्वारा अति दोहन से पिछले 500 वर्षों निम्न में से कौनसी जातियाँ विलुप्त हुई हैं-
(अ) स्टीलर समुद्री गाय
(ब) पैसेंजर कबूतर
(स) मोर
(द) (अ) एवं (ब)
उत्तर:
(द) (अ) एवं (ब)

16. सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियों के विलुप्त होने का कारण है-
(अ) नाईल पर्च
(ब) समुद्री गाय
(स) लेटाना
(द) हायसिंथ
उत्तर:
(अ) नाईल पर्च

17. कैट फिश जाति की मछलियों को विदेशी कौनसी मछली से खतरा है-
(अ) अफ्रीकन कलैरियस गैरीपाइनस
(ब) ऑस्ट्रेलियन स्कोलिओडोन
(स) अमरीकन एनाबास
(द) जापानी एक्सोसीटस
उत्तर:
(अ) अफ्रीकन कलैरियस गैरीपाइनस

18. अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग कितने प्रतिशत ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है-
(अ) 5 प्रतिशत
(ब) 10 प्रतिशत
(स) 15 प्रतिशत
(द) 20 प्रतिशत
उत्तर:
(द) 20 प्रतिशत

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19. भारत का कौनसा भाग जैव विविधता की दृष्टि से अधिक समृद्ध है?
(अ) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
(ब) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
(स) दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र
(द) दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र
उत्तर:
(अ) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र

20. वृहद् वनस्पति विविधता के साथ-साथ वृहद् प्राणी विविधता वाला राष्ट्र कौनसा है?
(अ) चीन
(ब) नेपाल
(स) भारत
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) भारत

21. सार्वभौमिक विविधता किसे कहा जाता है?
(अ) जातीय विविधता
(ब) आनुवंशिक विविधता
(स) गामा विविधता
(द) जैव विविधता
उत्तर:
(ब) आनुवंशिक विविधता

22. प्रकृति में सन्तुलन की प्रक्रिया होती है।
(अ) नियंत्रित
(ब) स्वतः नियंत्रित
(स) अनियंत्रित
(द) नष्ट
उत्तर:
(ब) स्वतः नियंत्रित

23. एक बाघ को सुरक्षित रखने के लिए सारे जंगल को सुरक्षित रखना होता है। इसे कहते हैं-
(अ) स्वस्थाने (इन सिटू) संरक्षण
(ब) बाह्यस्थाने (एम्स सिटू) संरक्षण
(स) हॉट-स्पॉट
(द) स्थानिकता एडेमिज्म
उत्तर:
(अ) स्वस्थाने (इन सिटू) संरक्षण

24. जैव विविधता को जीवधारियों के पारिस्थितकीय संबंधों के आधार पर कितने भागों में वगीकृत किया जाता है?
(अ) पाँच
(ब) दो
(स) तीन
(द) सात
उत्तर:
(स) तीन

25. संसार में पायी जाने वाली सम्पूर्ण जैव विविधता का लगभग कितना प्रतिशत भाग भारत में विद्यमान है?
(अ) 12
(ब) 15
(स) 7
(द) 8
उत्तर:
(द) 8

26. निम्न में सर्वाधिक जैव विविधता किस देश में पायी जाती है?
(अ) ब्राजील
(ब) भारत
(स) दक्षिण अफ्रीका
(द) जर्मनी
उत्तर:
(अ) ब्राजील

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27. जैव विविधता की संकल्पना में मुख्यतः किसकी निर्णायक भूमिका होती है?
(अ) वंश
(ब) गण
(स) जाति
(द) कुल
उत्तर:
(स) जाति

28. किसमें अधिकतम जैव विविधता मिलती है?
(अ) बन प्रदेश
(ब) प्रवाल भित्तियाँ
(स) मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र
(द) उष्ण कटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(ब) प्रवाल भित्तियाँ

29. संसार में कुल जैव विविधता हॉट-स्पॉट हैं-
(अ) 25
(ब) 9
(स) 34
(द) 33
उत्तर:
(स) 34

30. हॉट-स्पॉट को विशेष सुरक्षा द्वारा विलोपन की दर को कितने प्रतिशत कम किया जा सकता है?
(अ) 10 प्रतिशत
(ब) 20 प्रतिशत
(स) 30 प्रतिशत
(द) 40 प्रतिशत
उत्तर:
(स) 30 प्रतिशत

31. मेघालय के कौनसे उपवन बहुत-सी दुर्लभ व संकटोत्पन्न पादपों की अन्तिम शरणास्थली है-
(अ) पवित्र उपवन
(ब) अपवित्र उपवन
(स) सुन्दर उपवन
(द) नागार्जुन उपवन
उत्तर:
(अ) पवित्र उपवन

32. 1992 में जैव विविधता का ऐतिहासिक सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(अ) जोहान्सबर्ग में
(ब) रियोडिजिनरियो में
(स) जकार्ता में
(द) इण्डोनेशिया में
उत्तर:
(ब) रियोडिजिनरियो में

33. लघुगणक पैमाने पर संबंध एक सीधी रेखा दर्शाता है देखिए चित्र में जो निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
(अ) logS = log C + ZlogA
(ब) logS = log A + ZlogA
(स) S = CAZ + Zlog A
(द) logS =Zlog C + log C
उत्तर:
(अ) logS = log C + ZlogA

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव विविधता को परिभाषित कीजिये ।
उत्तर:
किसी प्राकृतिक प्रदेश में पाये जाने वाले जीवधारियों (पादप, जीव-जन्तु) में उपस्थित विभिन्नता, विषमता तथा पारिस्थितिक जटिलता ही जैव विविधता कहलाती है।

प्रश्न 2.
जैव विविधता की संकल्पना विकसित होने का क्या आधार है?
उत्तर:
पर्यावरण ह्रास के कारण ही जैव विविधता की संकल्पना विकसित हुई है।

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प्रश्न 3.
जैव विविधता का अन्य नाम लिखिए।
उत्तर:
जैव विविधता का अन्य नाम जैविक विविधता है।

प्रश्न 4.
विश्व में न्यूनतम जैव विविधता कहाँ पर पायी जाती है?
उत्तर:
ध्रुवों पर न्यूनतम जैव विविधता होती है।

प्रश्न 5.
जैव मण्डल की जैव विविधता का मूलभूत आधार क्या है?
उत्तर:
जीन ।

प्रश्न 6.
मेडागास्कर पेरिविंकल पौधे से प्राप्त दो कैंसर रोधी औषधियों के नाम लिखो ।
उत्तर:
विनब्लास्टीन तथा विन्क्रिस्टीन ।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो प्रान्तों में पूजे जाने वाले पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • राजस्थान में कदम्ब,
  • उड़ीसा में आम ।

प्रश्न 8.
विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता कहाँ होती है?
उत्तर:
ब्राजील में ।

प्रश्न 9.
वनों की सघनता किसमें वृद्धि करती है?
उत्तर:
जैव विविधता में।

प्रश्न 10.
भारत के दो सघन जैव विविधता वाले क्षेत्रों के नाम लिखिये ।
उत्तर:

  • मेघालय,
  • अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह ।

प्रश्न 11.
एक ही जाति विशेष में मिलने वाली जीनों की विभिन्नता क्या कहलाती है?
उत्तर:
आनुवंशिक विविधता ।

प्रश्न 12.
आनुवंशिक विविधता का मापन किस स्तर पर होता है?
उत्तर:
जीन स्तर पर ।

प्रश्न 13.
प्रकृति संतुलन में महत्त्वपूर्ण योगदान कौन करते हैं?
उत्तर:
वन्य जीव ।

प्रश्न 14.
हमारे देश में अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में पाई जाती हैं।

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प्रश्न 15.
विश्व की आशंकित जातियों का विवरण किस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है?
उत्तर:
Red Data Book या लाल आंकड़ों की पुस्तक में ।

प्रश्न 16.
IUCN का पूर्ण शब्द विस्तार लिखिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ।

प्रश्न 17.
उत्स्थाने संरक्षण विधि का मुख्य प्रयोजन क्या है ?
उत्तर:
उत्स्थाने संरक्षण विधि का मुख्य प्रयोजन प्राणी एवं पादप जाति का विकास करके उन्हें पुनः उनके मूल वासस्थान में स्थापित करना है ।

प्रश्न 18.
‘ग्रीन बुक’ में किसका समावेश किया जाता है?
उत्तर:
संकटग्रस्त पादप जातियों, जिनका अस्तित्व वानस्पतिक उद्यानों में पाया जाता है, उसका लेखा-जोखा ‘ग्रीन बुक’ में समावेशित किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
विशेषक (Traits) तथा जीन कोश (Gene pool) को समझाइए ।
उत्तर:
विशेषक- विशेषक, जाति विशेष को जीवित रखने हेतु उत्तरदायी होते हैं। ये किसी भी समष्टि में जीन कोश संबंधित जाति के प्रतिनिधि होते हैं। जीन कोश- ” किसी भी समष्टि के जीवधारियों के जीनों का साथ- साथ जुड़ना जीन कोश कहलाता है” ताकि उनको संरक्षित कर इनका भविष्य में उपयोग कर सकें।

प्रश्न 2.
विश्व में जैव विविधता कहाँ कम एवं कहाँ अधिक है? बताइए ।
उत्तर:
विश्व में ब्राजील देश के भूमध्यरेखीय वनों में जीव-जन्तुओं व पशु-पक्षियों की सर्वाधिक जातियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार ब्राजील के पश्चात् विश्व में हमारा देश भारत ही ऐसा भाग्यशाली देश है, जहाँ पर सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है। विश्व में सबसे अधिक जैव विविधता अक्षांश के दोनों ओर तथा ध्रुवों पर सबसे कम जैव विविधता होती है।

प्रश्न 3.
जैव विविधता के औषधीय मूल्य पर टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर:
मेडागास्कर पेरेविंकल या सदाबहार के पौधे से विनब्लास्टीन एवं विन्क्रिस्टीन नामक कैंसर रोधी औषधियाँ निर्मित की जाती हैं। इन औषधियों से बाल्यकाल में होने वाले रक्त कैंसर ‘ल्यूकेमिया’ (Leukemia) पर 99 प्रतिशत नियंत्रण कर लेने में सफलता अर्जित हुई है। कवक द्वारा पैनीसिलीन, सिनकोना, पेड़ की छाल से कुनैन, बैक्टीरिया से एरिथ्रोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन नामक प्रतिजैविक औषधियाँ निर्मित की जाती हैं।

प्रश्न 4.
वनस्पतियों के सामाजिक मूल्य को सोदाहरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
वनस्पति का सामाजिक मूल्य प्राचीन काल से ही मनुष्य के जीवन का अंग रहा है। वनस्पति मानव के जीवन में आने वाले सभी शुभ-अशुभ अवसर पर मानव के साथ रहती है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा जीवन की विविधता विभिन्न रूपों में सामाजिक मान को प्रतिबिम्बित करती है।

उदाहरण- केला, तुलसी, पीपल, आम आदि ऐसे पौधे हैं जो हमारे घरों में आयोजित प्रत्येक धार्मिक समारोह का अविभाज्य अंग होते हैं। आम, अशोक ऐसे वृक्ष हैं, जिनकी पत्तियों की ‘बन्दनवार’ यज्ञ, विवाह, धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान अनिवार्य रूप से लगाई जाती है। नि:संदेह मनुष्य की इस प्रकार की मनोवृत्ति प्रकृति की वानस्पतिक सम्पदा को सुरक्षित रखती है।

प्रश्न 5
पारितंत्र में जैव विविधता का क्या महत्त्व है? समझाइए ।
उत्तर:
पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र अजैविक एवं जैविक घटक की वह व्यवस्था है, जिसमें ये दोनों एक-दूसरे से अन्योन्यक्रिया करते हैं। अलग-अलग पारिस्थितिक तन्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जीवनयापन करते हैं। उदाहरणार्थ – अलवणीय जल (मीठे पानी ) के जीवधारी लवणीय जल (खारे पानी) के जीवधारियों से सर्वथा भिन्न होते हैं।

किसी भी स्थान विशेष के जीवधारियों के वासस्थान तथा निकेत में जितनी ज्यादा विविधता विद्यमान होगी, उसकी पारिस्थितिकी तंत्र में विविधता भी उसी के अनुरूप निश्चित तौर पर ज्यादा होगी। उदाहरणार्थ- उष्णकटिबंधीय द्वीप के व्यापक क्षेत्र में व्यापक वर्षा होती है, फलस्वरूप वहां पर पारिस्थितिक तंत्र का फैलाव भी ज्यादा होता है। तट पर दलदली (मैंग्रोव ) पारितंत्र का तथा तट के निकट जलमग्न प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में जितनी ज्यादा जैव विविधता होती है, वह उतना ही ज्यादा स्थिर होता है।

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प्रश्न 6.
आनुवंशिक विविधता प्रधानतः कितने रूपों में दृष्टिगोचर हो सकती है ? उदाहरण सहित अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक विविधता दो रूपों में दृष्टिगोचर हो सकती है-

  • एक ही जाति की अलग-अलग समष्टियों में। उदाहरणार्थ- धान की विभिन्न किस्मों की उत्पत्ति ।
  • एक ही समष्टि की आनुवंशिक विभिन्नताओं के अन्तर्गत ।

उदाहरणार्थ- दो बच्चों के रंग, गुण, कद, बाल आदि कभी एक जैसे नहीं होते हैं। प्रत्येक जीवधारी के विशिष्ट गुणों हेतु उसकी कोशिका में उपस्थित विशिष्ट जीन प्रमुख तौर पर उत्तरदायी होते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस जीवधारी में जीनों की विभिन्नता जितनी ज्यादा व्यापक होगी, उसमें तथा उसकी आने वाली संतान में विशिष्ट गुणों की संख्या भी उसी के अनुरूप अधिकतम होगी। इस प्रकार जातीय विविधता में आनुवंशिक विविधता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 7.
आधुनिक काल में जैव विविधता का महत्त्व बताइये ।
उत्तर:
आधुनिक काल में जैव विविधता शब्द का प्रयोग विस्तृत हो गया है तथा इसका अनुप्रयोग जीन, जाति, समुदाय, पारिस्थितिक विविधता इत्यादि के लिए किया जाने लगा है। आनुवंशिक विविधता में उत्पत्ति पर्यावरण से जीवधारियों को अनुकूलित करने तथा जीवनयापन हेतु जरूरी है।

यदि किसी भी कारणवश जीवधारियों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो जाएं तो उनके जीनों का अभाव जैव विविधता को कम करेगा, उनके अनुकूलन में रिक्तता पैदा होगी; फलस्वरूप संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन अस्थिर हो जाएगा अर्थात् दूसरे शब्दों में पारिस्थितिक तंत्र में अस्थिरता उत्पन्न हो जाएगी।

जिन जीवों में आनुवंशिक विभिन्नता जितनी अल्प होगी, उनके विलुप्त (Extinct ) होने का खतरा उसी के अनुरूप उतना ही समग्र रूप से ज्यादा होगा क्योंकि वे ऐसी परिस्थिति में अपने आपको वातावरण के अनुसार अनुकूलित करने में सर्वथा असमर्थ रहेंगे।

प्रश्न 8.
प्रवाल भित्तियों पर टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर:
प्रवाल भित्तियाँ वृहद् आकार की चूनायुक्त संरचनाएँ हैं, जिनकी ऊपरी सतह, समुद्र की सतह के पास स्थित होती है। ये कैल्सियम कार्बोनेट की बनी होती हैं तथा ये अकशेरुकी प्राणियों के संघ सीलेनट्रेटा के वर्ग एन्थोजोआ के प्राणियों के पॉलिप द्वारा उत्पन्न होती हैं । प्रवाल भित्तियाँ, विश्व में पाए जाने वाले पारितंत्रों के अन्तर्गत सर्वाधिक उपजाऊ पारितंत्र हैं।

ये गर्म, छिछले पर्यावरण में विकसित होती हैं तथा ये जीवधारियों की काल्पनिक विविधता को समर्थन प्रदान करती हैं। इसके अलावा ये अनेक मत्स्यकी की नर्सरी (जीवशाला ) भी हैं, जिन पर कि मनुष्य खाद्य हेतु निर्भर है। हमारे देश में प्रवाल भित्तियाँ पूर्वी-पश्चिमी समुद्री तटीय क्षेत्रों में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में पायी जाती हैं। अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ केन्द्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में पाई जाती हैं।

प्रश्न 9.
विलुप्त जातियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस श्रेणी के अन्तर्गत ऐसी जैविक जातियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो निकट अतीत में जीवित थीं, किन्तु अब अपने वासस्थानों में नहीं हैं तथा अन्य दूसरे वासस्थानों में भी इनका अस्तित्व शेष नहीं रहा है अर्थात् ये जैवमण्डल से विलुप्त हो चुकी हैं। एक बार विलुप्त होने पर किसी जाति के विशिष्ट जीन कभी प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

मनुष्य बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थलीय जलीय तथा वायव प्राणियों का शिकार करता रहा है, जिसके फलस्वरूप अनेक जीव जातियाँ मानवीय गतिविधियों के कारण सदा-सदा के लिए जैवमण्डल से विलुप्त हो गई हैं। IUCN की लाल सूची (2004) के अनुसार पिछले 500 वर्षों में 784 जातियाँ (338 कशेरुकी, 359 अकशेरुकी तथा 87 पादप) लुप्त हो गयी हैं।

नयी विलुप्त जातियों में मॉरीशस की डोडो, अफ्रीका की क्वैगा, आस्ट्रेलिया की थाइलेसिन, रूस की स्टेलर समुद्री गाय एवं बाली, जावा तथा केस्पियन के बाघ की तीन उपजातियाँ शामिल हैं। भारत में भी भारतीय मगर, गोडावन, भारतीय सारस, हार्न बिल्स, महान भारतीय गैंडा, स्लोथ भालू व सोन कुत्ता विलुप्तप्रायः जातियाँ हैं । पूर्वी हिमालय क्षेत्र में विरल वनस्पति Sapria himaliyana पाई जाती है जो भी विलुप्तप्राय है।

प्रश्न 10.
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संसाधन संरक्षण संगठन की भूमिका को विवेचित कीजिए ।
उत्तर:
विश्व में तीव्र गति से घटती जा रही जैव विविधता की दर को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन का गठन 1948 में किया गया। इस संगठन के निर्देशानुसार उसके उत्तरजीविता आयोग ने विश्व की आशंकित जातियों को खोज करके उन्हें एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है, जिसे लाल आंकड़ों की पुस्तक कहते हैं।

इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन 1 जनवरी, 1972 को हुआ था। इस पुस्तक के अब तक कुल पाँच संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इस पुस्तक में अलग-अलग प्रकार के रंगीन पृष्ठों के माध्यम से जानकारी प्रदान की जाती है।

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प्रश्न 11.
लाल आंकड़ों की पुस्तक के बारे में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
लाल आंकड़ों की पुस्तक वह पुस्तक है जिसमें विश्व की विलुप्तप्रायः हो रही जातियाँ, जिनके बचाव का समग्र रूप से ध्यान रखना आवश्यक है, की जानकारी लाल पृष्ठों पर मुद्रित होती है। इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन 1 जनवरी, 1972 को हुआ था। लाल आंकड़ों की पुस्तक के अनुसार पूरे विश्व में लगभग 25,000 जैविक जातियाँ संकटग्रस्त हैं। इस पुस्तक के अनुसार मछलियों की 193, उभयचरों तथा सरीसृपों की 138, पक्षियों की 400 तथा स्तनधारी प्राणियों की 305 जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

प्रश्न 12.
संकटाधीन दृष्टिकोण के आधार पर आशंकित जैविक जातियों को कितनी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर- संकटाधीन दृष्टिकोण के आधार पर आशंकित जैविक जातियों को पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया है-

  1. विलुप्तप्रायः जातियाँ (Threatened Species = T) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनके सदस्यों की संख्या कम होने की आशंका
    है।
  2. संकटग्रस्त जातियाँ (Endangered Species = E) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनकी आबादी बहुत कम है एवं निकट भविष्य में इनके विलुप्त होने का खतरा है।
  3. सुमेघ जातियाँ (Vulnerable Species = V) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है तथा जिनके अतिशीघ्र ही संकटग्रस्त श्रेणी में आने की संभावना है।
  4. विरल जातियाँ (Rare Species =R) – ऐसी जैविक जातियाँ जो सीमित भौगोलिक क्षेत्रों में आबाद हैं या बहुत कम जनसंख्या में होने के कारण अकेले सदस्यों के रूप में रह गई हैं। इनके और भी विरल होने का डर है तथा ऐसी स्थिति में ये सुमेघ श्रेणी में आ सकती हैं।
  5. विलुप्त जातियाँ (Extinct Species = E) – ऐसी जातियाँ जिनका निकट अतीत में अस्तित्व था लेकिन अब ये अपने वासस्थानों के साथ-साथ अन्य वासस्थानों में भी पूर्णरूपेण समाप्त हो गई हैं।

प्रश्न 13.
जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
मानव वैदिककाल से ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रकृति से कुछ न कुछ प्राप्त करता ही रहा है। परन्तु विगत कुछ वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है जिससे पर्यावरणीय संतुलन असंतुलित हो गया है, जिसके फलस्वरूप अनेक जातियाँ विलुप्त हो गई हैं तथा अनेक विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। यही स्थिति यदि भविष्य में जारी रहती है तो मनुष्य जाति का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, अतः वर्तमान में जैव विविधता के संरक्षण की ओर ध्यान केन्द्रित किया जाना परम आवश्यक है।

प्रश्न 14.
स्वस्थाने संरक्षण तथा उत्स्थाने संरक्षण में क्या मूलभूत अन्तर है?
अथवा
स्वस्थाने संरक्षण और बाह्य संरक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
‘स्वस्थाने संरक्षण’, जैव विविधता, विशिष्ट तौर पर ‘आनुवंशिक विविधता’ के संरक्षण की आदर्श विधि है। इस विधि में प्राणियों अथवा पादपों का संरक्षण मुख्यतः उनके प्राकृतिक वासस्थान में ही किया जाता है, जहाँ पर कि प्रचुर जैव विविधता का वास होता है। जबकि उत्स्थाने संरक्षण विधि के अन्तर्गत वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाकर, कृत्रिम आवास में जैसे – आनुवंशिक संसाधन केन्द्रों पर, मानव निर्मित स्थलों अथवा आवासों में संरक्षण प्रदान किया जाता है। यह जीन विविधता को संरक्षित करने का सबसे अधिक सुरक्षित तरीका है।

प्रश्न 15
जैव विविधता के विभिन्न प्रकारों का सारगर्भित शब्दों में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
जैव विविधता को जीवधारियों के पारिस्थितिकीय संबंधों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) जातीय विविधता ( Species Diversity) – एक वंश की विभिन्न जातियों के बीच उपस्थित विविधता को जाति स्तर की जैव विविधता कहते हैं तथा एक समान जातियों का समूह वंश कहलाता है। उदाहरण – सिट्श वंश। इस वंश के अन्तर्गत नींबू, संतरा, भौसमी आदि की विभिन्न जातियाँ सम्मिलित की जाती हैं। जातीय विविधता को विवेचित रूप में निम्नलिखित तीन स्तरों में परिभाषित किया जा सकता है-

  • अल्फा विविधता (Alpha Diversity) – यह किसी भी स्थान में जाति समानता एवं जाति सम्पन्नता पर निर्भर करती है।
  • बीटा विविधता (Bita Diversity) इकाई आवास में हुए परिवर्तन के कारण जाति की संख्या में होने वाले बदलाव की दर को बीटा विविधता कहते हैं।
  • गामा विविधता (Gamma Diversity) – इसे सार्वभौमिक (Universal) विविधता कहा जाता है।

(2) पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity) – जैविक समुदायों की जटिलता एवं विविधता ही पारिस्थितिक तंत्र की विविधता होती है। अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जीवन यापन करते हैं।

(3) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) एक ही जाति विशेष में मिलने वाली जीनों की विभिन्नता आनुवंशिक विविधता कहलाती है। यह दो रूपों में दृष्टिगोचर होती है-

  • एक ही जाति की अलग-अलग समष्टियों में। उदाहरण-धान की विभिन्न किस्मों की उत्पत्ति ।
  • एक ही समष्टि की आनुवंशिक विभिन्नताओं के अंतर्गत । उदाहरण- दो बच्चों के रंग, गुण, कद, बाल इत्यादि कभी भी एक जैसे नहीं होते हैं।

प्रश्न 16.
सन् 1992 एवं 2002 में हुए चिन्तन के विषय में लिखिये ।
उत्तर:
जैव विविधता के लिए कोई राजनैतिक परिसीमा नहीं है। इसलिए इसका संरक्षण सभी राष्ट्रों का सामूहिक उत्तरदायित्व है। वर्ष 1992 में ब्राजील के रियोडिजिनरियो में हुई ‘जैवविविधता’ पर ऐतिहासिक सम्मेलन (पृथ्वी) में सभी राष्ट्रों का आवाहन किया गया कि वे जैव विविधता संरक्षण के लिए उचित उपाय करें, उनसे मिलने वाले लाभों का इस प्रकार उपयोग करें कि वे लाभ दीर्घकाल तक मिलते रहें । इसी क्रम में सन् 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सतत विश्वशिखर- सम्मेलन हुआ, जिसमें विश्व के 190 देशों ने शपथ ली कि वे सन् 2010 तक जैवविविधता की जारी क्षति दर में वैश्विक, प्रादेशिक व स्थानीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण कमी लायेंगे।

प्रश्न 17.
जैव विविधता के तप्त स्थल (Hot Spot of Biodiversity) पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में जैव विविधता समान रूप से वितरित नहीं होती। विश्व के कुछ निश्चित क्षेत्र, महाविविधता (Megadiversity) वाले होते हैं। हाल के उष्णकटिबंधीय वनों ने अपनी अधिक जैव विविधता आवासों के द्रुत विनाश के कारण सम्पूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। पृथ्वी के मात्र 7 प्रतिशत भू-भाग में फैले इन वनों में विश्व के कुल जीवों की 70 प्रतिशत से अधिक जातियाँ हैं।

ब्रिटेन के पारिस्थितिक विज्ञानी नार्मन मायर्स ने 1988 में स्वस्थाने संरक्षण हेतु क्षेत्रों की प्राथमिकता नामित करने हेतु तप्त स्थल (Hot Spot) की संकल्पना विकसित की। विश्वभर में जैव विविधता के संरक्षण हेतु स्थलीय तप्त स्थलों की पहचान की गई। अब तक पृथ्वी के 1.4 प्रतिशत भू-क्षेत्र को ये तप्त स्थल घेरे हुए हैं।

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इनमें से उष्ण कटिबंधी वन 15 तप्त स्थलों में, भूमध्य सागरीय प्रकार के क्षेत्र 5 क्षेत्रों में और 9 तप्त स्थल द्वीपों में हैं। विश्व के इन 25 तप्त स्थलों में से दो (पश्चिमी घाट एवं पूर्वी हिमालय) भारत में पाये जाते हैं। अब इस सूची में 9 तप्त स्थल और सम्मिलित किये गये हैं, अतः संसार में अब कुल 34 जैव विविधता के हॉट स्पॉट हैं। ये हॉट स्पॉट त्वरित आवासीय क्षति के क्षेत्र भी हैं। इसमें से 3 हॉट स्पॉट पश्चिमी घाट और श्रीलंका, इंडो- बर्मा व हिमालय हैं जो हमारे देश की उच्च जैवविविधता को दर्शाते हैं।

प्रश्न 18.
यदि पृथ्वी पर 20 हजार चींटी जातियों के स्थान पर केवल 10 हजार चींटी जातियाँ ही रहें, तब हमारा जीवन किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर:
चींटियां सर्वाहारी (Omnivorous) प्राणी होती हैं। चींटियाँ खाद्य पदार्थ, मृत जीव-जन्तुओं आदि का भक्षण कर सफाईकर्मी की तरह कार्य करती हैं। यदि चींटियों की जातियाँ 20000 से 10000 रह जायेंगी तो उन पदार्थों की मात्रा अधिक हो जायेगी जो वे खाती हैं। साथ ही चींटियों को खाने वाले प्राणी भूखे रह जायेंगे, चूँकि उनको पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिलेगा और वे मृत्यु को प्राप्त होंगे। अर्थात् खाद्य श्रृंखला में बाधा उत्पन्न हो जायेगी। पारितन्त्र असंतुलित हो जायेगा जिससे हमारा जीवन प्रभावित होगा।

प्रश्न 19.
यदि उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का विस्तार पृथ्वी के वर्तमान के 6% क्षेत्र के स्थान पर 12% कर दिया जाये तो जैव विविधता किस प्रकार प्रभावित होगी? सकारण समझाइए ।
उत्तर:
जब वर्षा वनों का पृथ्वी पर विस्तार होगा तो इससे जैव- विविधता में बढ़ोतरी होगी। वर्षा वनों में करोड़ों जातियाँ निवास करती हैं। जीव-जन्तुओं को अच्छा आश्रय व भोजन प्राप्त होगा तथा पर्याप्त सुरक्षा रहेगी। स्तनधारियों व पक्षियों की संख्या तथा समस्त प्रकार के जंगली जीवों की संख्या बढ़ेगी।

प्रश्न 20.
” जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर मानव क्रियाकलापों के कारण है।” कथन को कारण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
मानव ने अपनी आवश्यकता के लिये जन्तु व पौधों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट किया है। बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया है। मानव भोजन तथा आवास के लिये प्रकृति पर निर्भर रहा है। उसने प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन किया है। उसने खाने के लिये जीव-जन्तुओं का अधिक शिकार किया है। अतः मानव क्रियाकलापों के कारण ही अनेक जातियों का विलोपन हुआ है।

प्रश्न 21.
जैवविविधता की क्षति के कोई दो कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
वर्तमान में जातीय विलोपन की दर बढ़ती जा रही है। यह विलोपन मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। जाति क्षति के मुख्य दो कारण निम्न प्रकार से हैं-
(1) आवास विनाश (Habitat Destruction) – यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षावनों में होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा- वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे, परन्तु अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं। ये अधिक तेजी से नष्ट होते जा रहे हैं।

विशाल अमेजन वर्षा – वन (जिसे विशाल होने के कारण ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है) उसमें सम्भवत: करोड़ों जातियाँ निवास करती हैं। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिये काटकर साफ कर दिया गया है। अनेक घटनाओं में आवास विनाश करने वाले कारक बड़ी औद्योगिक और व्यावसायिक क्रियाएँ, भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था जैसे खनन (Mining), पशु रैंचन (Cattle Ranching), व्यावसायिक मत्स्यन (Commercial Fishing), वानिकी (Forestry), रोपण (Plantation), कृषि, निर्माण कार्य व बाँध निर्माण, जो लाभ के उद्देश्य से शुरू हुए हैं। आवास की बड़ी मात्रा प्रतिवर्ष लुप्त हो रही है क्योंकि विश्व के वन कट रहे हैं। वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय शुष्क वन, आर्द्रभूमियाँ (Wetlands), मैन्यूव (Mangrooves) और घास भूमियाँ ऐसे आवास हैं जिनका विलोपन हो रहा है और इनमें मरुस्थलीकरण हो रहा है।

(2) आवास खण्डन (Habitat Fragmentation) – आवास जो पूर्व में बड़े क्षेत्र घेरते थे ये प्रायः सड़कों, खेतों, कस्बों, नालों, पावर लाइन आदि द्वारा अब खंडों में विभाजित हो गए हैं। आवास खंडन वह प्रक्रम है जहाँ आवास के बड़े, सतत क्षेत्र, क्षेत्रफल में कम हो गए हैं और दो या अधिक खंडों में विभाजित हो गए हैं।

जब आवास क्षतिग्रस्त होते हैं वहाँ प्रायः आवास खंड छोटा भाग (Patch Work) शेष रह जाता है। ये खंड प्रायः एक-दूसरे से अधिक रूपांतरित या निम्नीकृत दृश्य भूमि (Degraded Landscape) द्वारा विलग होते हैं। आवास खंडन स्पीशीज के सामर्थ्य को परिक्षेपण (Dispersal) और उपनिवेशन (Colonisation) के लिए सीमित करता है।

प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन हुआ है, जिससे अनेक जातियों के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए, वे प्रभावित हो रहे हैं तथा प्रवासी (Migratory) स्वभाव वाले कुछ प्राणी भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (Population) में कमी होती है।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव विविधता के विभिन्न स्तरों को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर:
प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव होते हैं। इन जीवों में आपसी एक जटिल पारिस्थितिक संबंध होता है, जातियों में आनुवंशिक विविधता होती है व पारिस्थितिक प्रणालियों में भी विविधता मिलती है। जैव विविधता के संरक्षण की विधियों को विकसित करने से पूर्व हमें जैव विविधता की धारणा को समझना अतिआवश्यक है। जैविक विविधता के तीन स्तर होते हैं जैव विविधता के ये तीनों स्तर आपस में सम्बन्धित हैं, फिर भी ये इतने अस्पष्ट हैं। पृथ्वी पर जीवन यापन करते हुए इनके आपसी सम्बन्धों को समझने के लिए इन सबका अलग से अध्ययन करना जरूरी है।

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(1) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) – हम जानते हैं कि प्रत्येक जाति, जीवाणु से लेकर उच्च श्रेणी पादपों में प्रचुर मात्रा के अन्दर आनुवंशिक सूचनाएँ भरी होती हैं। उदाहणार्थ माइकोप्लाज्मा में 450-700 जीन संख्या, ई. कोलाई में 4000, ड्रोसोफिला में 13000, चावल में 32000-50000 व मानव में 35000 से 45000 तक जीन होती हैं।

आनुवंशिक विविधता जाति में जीनों की विभिन्नता को दर्शाती है। यह भिन्नता एलील (Allcles एक ही जीन के भिन्न प्ररूप) की या गुणसूत्रों की संरचना की हो सकती है। आनुवंशिक विविधता किसी समष्टि को इसके पर्यावरण के अनुकूल होने और प्राकृतिक चयन के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है।

आनुवंशिक विविधता जाति में जीनों की विभिन्नता को दर्शाती है । यह भिन्नता एलील (Alleles = एक ही जीन के भिन्न प्ररूप) की या गुणसूत्रों की संरचना की हो सकती है। आनुवंशिक विविधता किसी समष्टि को इसके पर्यावरण के अनुकूल होने और प्राकृतिक चयन के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है ।

आनुवंशिक भिन्नता की माप जाति उद्भवन (Speciation) अर्थात् नवीन जाति के विकास का आधार है। उच्च स्तर पर विविधता बनाए रखने में इसकी प्रमुख भूमिका है। किसी समुदाय की आनुवंशिक विविधता मात्र कुछ जातियां होने की तुलना में अधिक जातियाँ होने पर अधिक होगी। जाति में पर्यावरणीय भिन्नता के साथ आनुवंशिक विविधता प्रायः बढ़ जाती है, इससे विविधता समुदायों में जातियों की भिन्नता के साथ बढ़ती है। एक जाति या इसकी एक समष्टि में कुल आनुवंशिक विविधता को जीन कोश (Gene Pool) कहते हैं। यदि किसी जाति में आनुवंशिक

विविधता अधिक है तो यह बदली हुई पर्यावरणीय दशाओं में अपेक्षाकृत सभी प्रकार से अनुकूलन कर सकती है। किसी जाति में अपेक्षाकृत कम विविधता से एकरूपता उत्पन्न होती है। जैसा कि आनुवंशिक रूप से समान फसली पौधों के एकधान्य कृषि की स्थिति में होता है। इसका लाभ तब है, जब फसल उत्पादन में वृद्धि का विचार हो । लेकिन यह एक समस्या बन जाती है। जब कीट अथवा फफूंदी रोग खेत को संक्रमित करता है और इसकी सभी फसल को संकट उत्पन्न करता है।

(2) जाति विविधता (Species Diversity) – जातियाँ विविधता की स्पष्ट इकाई हैं, प्रत्येक की एक विशिष्ट भूमिका होती है। अतः जातियों का ह्रास संपूर्ण पारितंत्र के लिए होता है। जाति विविधता का आशय एक क्षेत्र में जातियों की किस्म से होता है। जातियों की संख्या में परिवर्तन पारितंत्र के स्वास्थ्य का एक अच्छा सूचक हो सकता है। किसी स्थान या समुदाय विशेष में जातियों की संख्या स्थान के क्षेत्रफल के साथ बहुत बढ़ती है।

सामान्यतः जातियों की संख्या अधिक होने पर जाति विविधता भी अधिक होती है। फिर भी, जातियों के मध्य प्रत्येक की संख्या में भिन्नता हो सकती है, जिसके कारण समरूपता (Evenness) या समतुल्यता (Equitability) में अंतर होता है। कल्पना कीजिए कि हमारे पास तीन क्षेत्र हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपने अनुसार विविधता है। प्रारूप क्षेत्र एक में पक्षियों की तीन जातियाँ हैं। दो जातियों का प्रतिनिधित्व प्रत्येक के एक पृथक् जन्तु द्वारा है, जबकि तीसरी जाति के चार अलग हैं।
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दूसरे प्रारूप क्षेत्र में भी ये ही तीन जातियाँ हैं, प्रत्येक जाति का प्रतिनिधित्व प्रत्येक के एक पृथक् जंतु करते हैं । यह प्रारूप क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक सम या एकरूपता प्रदर्शित करता है। इस प्रारूप क्षेत्र को पहले की तुलना में अधिक विविध माना जाएगा। तीसरे प्रारूप क्षेत्र में जातियों का प्रतिनिधित्व एक कीट, एक स्तनधारी एवं एक पक्षी द्वारा किया जा रहा है। यह प्रारूप क्षेत्र सबसे अधिक विविध है। क्योंकि इसमें वर्गों की दृष्टि से असंबंधित जातियाँ हैं। इस उदाहरण में जातियों की प्रकृति में, जातियों की संख्या एवं प्रति जाति व्यक्ति की संख्या दोनों भिन्न होती हैं जिसमें परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत अधिक विविधता होती है।

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(3) समुदाय एवं पारितंत्र विविधता (Community and Ecosystem Diversity) – एक समुदाय की जैविक अधिकता इसकी जाति विविधता द्वारा बताई जाती है। जाति अधिकता एवं समरूपता के संयोग का उपयोग समुदाय आवास में विविधता या अल्फा विविधता को समान हिस्सों में करने वाले जीवों की विविधता से है।

जब आवास या समुदाय में परिवर्तन होता है तो जातियाँ भी बहुधा परिवर्तित हो जाती हैं। आवासों या समुदायों के एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापित होने की दर बीटा विविधता (समुदाय विविधता के बीच) कहलाती है। समुदायों के जाति संघटन में पर्यावरणीय अनुपात के साथ अंतर होते हैं, उदाहरणार्थ – अक्षांश, ढाल, आर्द्रता आदि। किसी क्षेत्र में आवासों में विषमांगता अधिक होने या समुदायों के आवासों या भौगोलिक क्षेत्र की विविधता को गामा विविधता कहते हैं।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण 2

पारितंत्र की विविधता निकेतों (Niche), पोषज स्तरों एवं विभिन्न पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की संख्या बताती है जो ऊर्जा प्रवाह, आहार जाल. एवं पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण को संभालते हैं। इसका केन्द्र विभिन्न जीवीय पारस्परिक क्रियाओं तथा कुंजीशिला जातियों (Keystone Species) की भूमिका एवं अर्थ पर होता है । शीतोष्ण घासस्थलों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि विविध समुदाय, पर्यावरणीय तनाव जैसी दीर्घ स्थितियों में भी कार्य की दृष्टि से अधिक उत्पादक एवं स्थिर होते हैं।

जैसाकि हम जानते हैं कि एक क्षेत्र में कई आवास या पारिस्थितिक तंत्र हो सकते हैं। सवाना, वर्षा जल, मरुस्थल, गीले एवं नम भूमि और महासागर बड़े पारितंत्र हैं जहाँ जातियाँ निवास करती हैं और विकास करती हैं। एक क्षेत्र में उपस्थित आवासों व पारितंत्रों की संख्या भी जैव विविधता का एक भाग है। भारतीय जैव विविधता की स्थानिकता बहुत अधिक है, हमारे देश में मुख्यत: उत्तर-पूर्व, पश्चिमी घाट, उत्तर-पश्चिम हिमालय एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूहों में स्थानिक है।

अत्यधिक संख्या में उभयचर जातियाँ पश्चिमी घाट में स्थानिक हैं। भारत में अनेक पारितंत्रों की जैविक विविधता अभी भी अल्प आवेशित है। इन पारितंत्रों के गहरे महासागर, नमभूमि एवं झीलें तथा उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के वृक्ष एवं मृदा सम्मिलित हैं। अनुमानित कशेरुकी जन्तुओं का 33 प्रतिशत मृदुल मछली, 60 प्रतिशत उभयचरी, 36 प्रतिशत सरीसृप एवं 10 प्रतिशत स्तनधारी जन्तु स्थानिक हैं। इनमें से अधिकतर उत्तर-पूर्व, पश्चिमी घाट, उत्तर-पश्चिम हिमालय एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूहों में पाए गए हैं।

प्रश्न 2.
जातियों के विलोपन का इसकी सुग्रहिता एवं IUCN की लाल सूची के अनुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विलोपन एक प्राकृतिक प्रकिया है। पृथ्वी के दीर्घ भौगोलिक इतिहास में अनेक जातियाँ विलुप्त व अनेक नई जातियाँ विकसित हुई हैं। विलोपन प्रक्रिया तीन प्रकार से होती है-
(1) प्राकृतिक विलोपन (Natural Extinction) – पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन के साथ कुछ जातियाँ अदृश्य हो जाती हैं व अन्य, जो परिवर्तित हुई दशाओं हेतु अधिक अनुकूलित होती हैं, वे उनका स्थान ले लेती हैं। जातियों का इस प्रकार का विलोपन जो भूगर्भी अतीत में अत्यधिक धीमी दर से हुआ, इसे प्राकृतिक विलोपन कहते हैं।

(2) समूह विलोपन (Mass Extinction) – पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास में ऐसे अनेक समय आये हैं, जब जातियों की एक बड़ी संख्या प्राकृतिक विपदाओं के कारण विलुप्त हो गई । यद्यपि समूह विलोपन की घटनाएँ करोड़ों वर्षों में होती हैं।

(3) मानवोद्भवी विलोपन (Anthropogenic Extinction) – मानव क्रियाकलापों द्वारा पृथ्वी की सतह से अधिक जातियाँ विलोपित हो रही हैं। ऊपर दी गई प्रक्रियाओं की तुलना में मानवोद्भवी प्रक्रियाएँ अधिक खतरनाक हैं। यह विलोपन अल्प समय में ही हो रहा है। विश्व संरक्षण मॉनीटरिंग केन्द्र के अनुसार 533 जन्तु जातियों (अधिकांश कशेरुक) एवं 384 पादप जातियों (अधिकांश पुष्पी पादप) का पिछले 400 वर्षों में विलोपन हुआ है। द्वीप समूहों पर विलोपन दर अधिक है। पूर्व विलोपन की दर की तुलना में विलोपन की वर्तमान दर 1,000 से 10,000 गुना अधिक है। उष्णकटिबंध में और संपूर्ण पृथ्वी पर जातियों के वर्तमान ह्रास के बारे में कुछ रोचक तथ्य निम्न प्रकार से हैं-

  • उष्णकटिबंधीय वनों में दस उच्च विविधता वाले स्थानों से भविष्य में लगभग 17,000 स्थानिक विशेष क्षेत्रीय पादप जातियाँ एवं 3,50,000 स्थानिक जन्तु जातियों का ह्रास हो सकता है।
  • उष्णकटिबंधीय वनों से 14,000 40,000 जातियाँ प्रतिवर्ष की दर से अदृश्य हो रही हैं।
  • यदि विलोपन की वर्तमान दर चलती रहे तो आगामी 100 वर्षो में पृथ्वी से 50 प्रतिशत जातियाँ कम हो सकती हैं।

विलोपन के प्रति सुग्रहिता (Susceptibility to Extinction)-
विलोपन के प्रति विशेषतः सुग्रह जातियों के लक्षण निम्न प्रकार से होते हैं-

  • विशालकाय शरीर रचना जैसे-बंगाल बाघ, सिंह एवं हाथी ।
  • छोटा समष्टि आमाप एवं कम प्रजनन दर जैसे- नीली व्हेल एवं विशाल पांडा ।
  • खाद्य कड़ी में उच्च पोषण स्तर पर भोजन, जैसे- बंगाल बाघ एवं गंजी चील (Eagle)।
  • निश्चित प्रवास मार्ग (Migratory Route) व आवास, जैसे- नीली व्हेल एवं हूपिंग सारस (Crane) ।
  • सानिगत (Localised) एवं संकीर्ण परिसर वितरण (Narrow Range of Distribution), जैसे- वुडलैंड केरिबा (Caribou) एवं अनेक द्वीपीय जातियाँ ।

आई.यू.सी.एन. की लाल सूची (I.U.C.N. Red List) – लाल सूची ऐसी जातियों की सूची है जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। इस सूची से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  • सकंटग्रस्त जैव विविधता के महत्त्व के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना ।
  • संकटापन्न प्रजातियों की पहचान करना व उनका अभिलेखन करना ।
  • जैव विविधता के ह्रास की लिखित सूची तैयार करना ।
  • स्थानीय स्तर पर संरक्षण की प्राथमिकताओं को परिभाषित करना तथा संरक्षण कार्यों को निर्देशित करना ।

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आई.यू.सी.एन. जिसे अब विश्व संरक्षण संघ के नाम से जाना जाता है, की लाल सूची के अनुसार जातियों की आठ श्रेणियाँ हैं- विलुप्त, वन्य रूप में विलुप्त, गंभीर रूप से संकटापन्न, नष्ट होने योग्य, नाजुक, कम जोखिम, अपूर्ण आंकड़े एवं मूल्यांकित नहीं विलोपन के लिए संकटग्रस्त जातियों की श्रेणियों में सुभेद्य संकटान्नुपादन एवं गंभीर रूप से संकटग्रस्त सम्मिलित हैं।

सारणी : आई.यू.सी.एन. की संकटग्रस्त श्रेणियाँ

विलुप्त (Extinct)जाति के अंतिम सदस्य की समाप्ति (मृत्यु) पर जब कोई शंका न रहे।
वन्यरूप में विलुप्त (Extinct in the wild)जाति के सभी सदस्यों का किसी निश्चित आवास से पूर्ण रूप से समाप्ति।
गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically endangered)जब जाति के सभी सदस्य किसी उच्च जोखिम की वजह से एक आवास में शीघ्र ही लुप्त होने के कगार पर।
नष्ट होने योग्य (Endangered)जाति के सदस्य किसी जोखिम की वजह से भविष्य में लुप्त होने के कगार पर।
नाजुक (Vulnerable)जाति के आने वाले समय में समाप्त होने की आशा।
कम जोखिम (Lower risk)जाति जो समाप्त होने जैसी प्रतीत होती हो।
अपूर्ण सामग्री (Deficient data)जाति लुप्त होने के बारे में अपूर्ण अध्ययन एवं सामग्री।
मूल्यांकित नहीं (Not evaluated)जाति एवं उसके लुप्त होने के बारे में कोई भी अध्ययन या सामग्री न होना।

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वर्ग जिनकी विश्व में समष्टि कम है और जो वर्तमान में संकटापन्न या संकटग्रस्त नहीं हैं लेकिन उनके ऐसा होने का खतरा विरल कहलाता है। ये स्पीशीज सामान्यतः सीमित भौगोलिक क्षेत्रों या आवासों में स्थापित होती हैं या एक अधिक विस्तृत विस्तार में यहाँ-वहाँ बिखरी होती हैं। आई.यू.सी.एन. की लाल सूची प्रणाली 1963 में शुरू की गई थी तब से सभी जातियों एवं प्रजातियों का संरक्षण स्तर विश्व स्तर पर जारी है।

संकटग्रस्त जातियों का स्थान-वर्ष 2000 की लाल सूची में 11,096 जातियाँ (5485 जंतु एवं 5611 पादप) संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उनमें से 1939 क्रांतिक संकटग्रस्त (925 जंतु एवं 1014 पादप) के रूप में सूचीबद्ध हैं। लाल सूची अनुसार, भारत में 44 पादप जातियाँ क्रांतिक संकटापन्न हैं, 113 संकटापन्न एवं 87 सुमेघ (Vulnerable) अर्थात् नाजुक हैं। जन्तुओं में 18 क्रांतिक संकटापन्न एवं 143 नाजुक हैं।

श्रेणीपादपजन्तु
1. क्रांतिक संकटापन्न (Critical endangered)बारबेरिस निलघिरेंसिस (Barberis nilghiriensis)पिग्मी हाग (Sus salvanius)
2. संकटग्रस्त (Endangered)बेंटिंकिया निकोबारिका (Bentinckia nicobarica)लाल पांडा (Ailurus fulgeus)
3. नाजुक (Vulnerable)क्यूप्रेसस कासमेरीआना (Cupressus cashmeriana)कृष्ण मृग (Antilope cervicapre)

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प्रश्न 3.
जैव विविधता के संरक्षण के उपायों पर विस्तृत लेख लिखिये ।
उत्तर:
हम जानते हैं कि प्रदूषण, आक्रमणकारी जातियाँ, मानव द्वारा अधिशोषण एवं जलवायु परिवर्तन के कारण पारितंत्रों में बदलाव हो रहा है। प्रायः अब सभी व्यक्ति यह भी जानने लगे हैं कि जीन कोश, जाति एवं जैव समुदाय सभी स्तरों पर विविधता महत्त्वपूर्ण है, जिसका संरक्षण आवश्यक है। इस ग्रह पर मानव ही इसका प्रबंधन व संरक्षण करने वाला है।

अतः यह नैतिक कर्तव्य है कि हमारे पारितंत्र को सुव्यवस्थित व जाति विविधता को संरक्षित करें जिससे आने वाली पीढ़ी को आर्थिक व सौंदर्य लाभ मिल सके। हमें आवासों के विनाश एवं निम्नीकरण को रोकना होगा। जैव विविधता संरक्षण के लिए स्वस्थाने (In-Situ) व परस्थाने या बाह्यस्थाने (Ex-situ) दोनों विधियाँ जरूरी हैं।

स्व-स्थाने संरक्षण (In-situ Conservation) – इस विधि में जीवों का संरक्षण मुख्यतः उनके प्राकृतिक वासस्थान में ही किया जाता है। जहाँ प्रचुर जैव विविधता का वास होता है। संरक्षण की दृष्टि से इन वासस्थानों को सुरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया जाता है। जैसे प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण, जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र आदि।

रक्षित क्षेत्र (Protected Areas) – ये स्थल एवं समुद्र के ऐसे क्षेत्र हैं जो जैविक विविधता की तथा प्राकृतिक एवं संबद्ध सांस्कृतिक स्रोतों की सुरक्षा एवं निर्वहन के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं और जिनका प्रबंधन कानूनी या अन्य प्रभावी माध्यमों से किया जाता है। सुरक्षित क्षेत्रों में उदाहरण राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीवाश्रम स्थल (Sanctuaries) हैं।

सबसे पहले राष्ट्रीय उद्यान अमेरिका में यैलोस्टोन एवं सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) के समीप रॉयल हैं जिन्हें इनके दृश्य सौन्दर्य एवं मनोरंजन मूल्य के लिए चुना गया। भारत में 581 रक्षित क्षेत्र (89 उद्यान एवं 492 वन्य आश्रय स्थल) हैं। उत्तराखण्ड स्थित जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत में स्थापित प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है।

सुरक्षित क्षेत्रों के कुछ मुख्य लाभ हैं-

  • सभी मूल निवासी जातियों एवं उपजातियों की जीवन क्षय समष्टियों को संभालना।
  • समुदायों एवं आवासों की संख्या एवं वितरण को संभालना एवं सभी वर्तमान जातियों की आनुवंशिक विविधता को रक्षित रखना।
  • विदेशी जातियों की मानव जनित पुनःस्थापना को रोकना।

जैवमण्डल निचय (Biosphere Reserves) – मानव एवं जैव मण्डल (Man and Biosphere) कार्यक्रम के अन्तर्गत जैव मण्डल रिजर्व की संकल्पना यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 1975 में प्रारम्भ की गई। जैविक विविधता के संरक्षण के आर्टिकल 08 के अनुसार स्वस्थाने संरक्षण के माध्यम से इस प्रकार के सुरक्षित क्षेत्र अनिवार्यतः बनाये जाने चाहिए, जहाँ पर कि उनमें उपस्थित प्रत्येक प्रकार की जैव सम्पदा जैव

विविधता पूर्णतः सुरक्षित रूप में, भयमुक्त जीवनयापन कर सके। इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय उद्यानों व वन्यजीव अभयारण्यों की नींव रखी गई। आरक्षित जैवमंडल क्षेत्रों में विभिन्न अनुक्षेत्रों का सीमांकन करके, उनमें कई प्रकार के भूमि उपयोग की अनुमति दी जाती है।

इस आरक्षित भाग में मुख्यतः तीन अनुक्षेत्र बनाये जाते हैं-

  • कोर अनुक्षेत्र (Core Zone) – इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मानव क्रियाओं की अनुमति नहीं दी जाती है,
  • बफर अनुक्षेत्र (Buffer Zone)-इसमें सीमित मानव क्रिया की अनुमति दे दी जाती है तथा
  • कुशल योजना अनुक्षेत्र (Manipulation Zone) – इसमें पारितंत्र हेतु लाभकारी अनेक मानव क्रियाओं हेतु अनुमति दे दी जाती है।

ऐसे आरक्षित जैवमंडलीय भागों में वन्य आबादी, उस क्षेत्र की मूल मानव जातियाँ और विभिन्न घरेलू पशु व पादप एक साथ रहते हैं। मई, 2000 तक 94 देशों में 408 जैवमंडल रिजर्व थे। भारत में 13 जैवमंडल निचय हैं।

जैवमंडल निचय के निम्न मुख्य कार्य हैं-

  • संरक्षण – पारितंत्रों, जातियों एवं आनुवंशिक स्रोतों के संरक्षण को सुनिश्चित करना। यह संसाधनों के पारंपरिक उपयोग को भी प्रोत्साहित करता है।

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  • विकास आर्थिक विकास जो सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिस्थितिकीय दृष्टि से निर्वहनीय हो, का उन्नयन करना ।
  • वैज्ञानिक शोधक मॉनीटरिंग एवं शिक्षा – इसका उद्देश्य शोध, बोधन शिक्षा एवं संरक्षण तथा विकास के स्थानीय राष्ट्रीय एवं वैश्विक मुद्दों से संबंधित सूचना का आदान-प्रदान है।

पवित्र झीलें व वन (Sacred Lakes and Forests) – भारत तथा कुछ अन्य एशियाई देशों में जैव विविधता के संरक्षण की सुरक्षा के लिए एक पारंपरिक नीति अपनाई जाती रही है। ये विभिन्न आमापों के वन खंड हैं जो जनजातीय समुदायों द्वारा धार्मिक पवित्रता प्रदान किए जाने से सुरक्षित हैं। पवित्र वन सबसे अधिक निर्विघ्न वन हैं जहाँ मानव का कोई प्रभाव नहीं है।

ये द्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं और सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्त हैं। यद्यपि ये बहुधा अत्यधिक निम्नीकृत भू- दृश्य द्वारा घिरे होते हैं। भारत में पवित्र वन कई भागों में स्थित हैं, उदाहरणार्थ- कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, मेघालय आदि और कई भाग दुर्लभ, संकटापन्न एवं स्थानिक वर्गकों की शरणस्थली के रूप में कार्यरत हैं। इसी प्रकार सिक्किम की केचियोपालरी झील पवित्र मानी जाती है। एवं उसका संरक्षण जनता द्वारा किया जाता है।

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पर-स्थाने संरक्षण (Ex-situ Conservation) – इसमें वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, संरक्षण स्थल एवं जीन, परागकण, बीज, पौधे ऊतक संवर्धन एवं डी. एन. ए. बैंक सम्मिलित हैं। बीज, जीन बैंक, वन्य एवं खेतीय पौधों के जर्मप्लाज्म को कम तापमान तथा शीत प्रकोष्ठों में संग्रहित करने का सरलतम उपाय हैं। आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण सामान्य वृद्धि दशाओं में क्षेत्रीय जीन बैंकों में किया जाता है।

अलैंगिक प्रजनन से उत्पन्न की गई जातियाँ एवं वृक्षों के लिए क्षेत्रीय जीन बैंक विशेष रूप से प्रयोग किए जाते हैं। प्रयोगशाला में संरक्षण, विशेष रूप से द्रवीय नाइट्रोजन में 196°C तापमान पर हिमांकमितीय संरक्षण (Cryopreservation) कायिक जनन द्वारा उगाई गई फसलों, जैसे आलू के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।

हिमांकमितीय संरक्षण पदार्थ का अत्यंत कम तापमान पर या तो अति तीव्र शीतीकरण (बीजों के संग्रह के लिए प्रयुक्त) या शनै: शनैः शीतीकरण एवं साथ ही कम तापमान पर शुष्कन (ऊतक संवर्धन में प्रयुक्त) है। अनेक अलिंगी प्रजनित फसलों जैसे आलू, केसावा, शकरकंद, गन्ना, वनीला एवं केला के प्रयोगशालाओं में जर्मप्लाज्म बैंक हैं। इनकी सामग्री को कम निर्वहन शीतकरण इकाइयों में लम्बे समय के लिए संग्रहित रखा जा सकता है।

जैविक विविधता का वानस्पतिक उद्यानों में संरक्षण पहले से प्रचलन में है। विश्व में 1500 से अधिक वानस्पतिक उद्यान एवं वृक्ष उद्यान (Arboreta) हैं, जिनमें 80,000 से अधिक जातियाँ हैं। इनमें से अनेक में अब बीज बैंक, ऊतक संवर्धन सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसी प्रकार पूरे विश्व में 800 से अधिक व्यावसायिक रूप से प्रबंधित चिड़ियाघर हैं जिनमें स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं उभयचरों की लगभग 3000 जातियाँ उपलब्ध हैं।

इनमें से अधिकांश चिडियाघर में अति संरक्षित प्रजनन सुविधाएं हैं। शस्यपादपों के संबंधित वनीय पादप के संरक्षण और शस्य उपजातियों तथा सूक्ष्मजीवों के संवर्धन, प्रजनन विज्ञानी एवं आनुवंशिक इंजीनियरों को आनुवंशिक पदार्थ का त्वरित स्रोत प्रदान करते हैं । स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं उभयचरों की 3,000 से अधिक जातियाँ हैं।

इनमें से अनेक के लिए चिड़ियाघरों में सुविकसित प्रजनन कार्यक्रम हैं। फसली पौधों के वन्य संबंधियों के संरक्षण एवं फसल की किस्मों या सूक्ष्मजीवों के संवर्धन का संरक्षण प्रजनकों एवं आनुवंशिक इंजीनियरों को आनुवंशिक पदार्थ का एक सहज प्राप्य स्रोत प्रदान करता है। वानस्पतिक उद्यानों, वृक्षोद्यानों एवं चिड़ियाघरों में संरक्षित पादपों एवं जंतुओं का उपयोग निम्नीकृत भू-भाग को सुधारने, पूर्व स्थिति में लाने, जाति को वन्य अवस्था में पुनः स्थापित करने एवं कम हो गई समष्टियों को पुनः संचित करने में किया जा सकता है।

जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। जैसे IBP (International Biological Programme), MAB (Man and Biosphere) आदि। इन कार्यक्रमों के लिये आर्थिक सहायता विश्व वन्य जीव कोष (World Wild Life Fund = WWF) द्वारा प्रदत्त की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. विश्व के निम्नलिखित में से कौनसा क्षेत्र अधिकतम जाति विविधता दर्शाता है- (NEET-2020)
(अ) मेडागास्कूर
(ब) हिमालय
(स) एमेजॉन के जंगल
(द) भारत का पश्चिमी घाट
उत्तर:
(स) एमेजॉन के जंगल

2. रॉबर्ट मेए के अनुसार विश्व में जाति विविधता लगभग कितनी है? (NEET-2020)
(अ) 20 मिलियन
(ब) 50 मिलियन
(स) 7 मिलियन
(द) 15 मिलियन
उत्तर:
(स) 7 मिलियन

3. पादपों और जन्तुओं को विलोपन के कगार पर लाने के लिए निम्नलिखित में से कौनसा सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है? (KCET-2009, NEET I-2016, 2019)
(अ) विदेशी जातियों का आक्रमण
(ब) आवासीय क्षति व विखण्डन
(स) सूखा और बाढ़
(द) आर्थिक दोहन
उत्तर:
(ब) आवासीय क्षति व विखण्डन

4. निम्नलिखित में से कौन एक जैव विविधता के स्वस्थाने संरक्षण की विधि नहीं है- (NEET-2019)
(अ) पवित्र वन
(ब) जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र
(स) वन्यजीव अभ्यारण्य
(द) वानस्पतिक उद्यान
उत्तर:
(द) वानस्पतिक उद्यान

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5. निम्नलिखित में से कौनसा ‘बाह्यस्थाने संरक्षण’ में नहीं आता? (NEET-2018)
(अ) वानस्पतिक उद्यान
(ब) पवित्र उपवन
(स) वन्य जीव सफारी पार्क
(द) बीज बैंक
उत्तर:
(ब) पवित्र उपवन

6. एलैक्जैंडर वॉन हमबोल्ट ने सर्वप्रथम क्या वर्णित किया? (NEET-2017)
(अ) पारिस्थितिक जैव विविधता
(ब) सीमाकारी कारकों के नियम
(स) जाति क्षेत्र संबंध
(द) समष्टि वृद्धि समीकरण
उत्तर:
(स) जाति क्षेत्र संबंध

7. जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र का वह भाग, जो कानूनी रूप से सुरक्षित है और जहाँ मानव की किसी भी गतिविधि की आज्ञा नहीं होती, वह क्या कहलाता है- (NEET-2017)
(अ) क्रोड क्षेत्र
(ब) बफर क्षेत्र
(स) पारगमन क्षेत्र
(द) पुनः स्थापना क्षेत्र
उत्तर:
(अ) क्रोड क्षेत्र

8. लाल सूची किसके आंकड़े या सूचना उपलब्ध कराती है? (Kerala CET-2006, BHU-2008, NEET-2016)
(अ) संकटापन्न जातियाँ
(ब) केवल समुद्री कशेरुकी प्राणि
(स) आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण सभी पादप
(द) वे पादप जिनके उत्पाद अन्तर्रोष्ट्रीय व्यापार में हैं
उत्तर:
(अ) संकटापन्न जातियाँ

9. भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणि कौनसा है? (NEET I-2016)
(अ) ब्लू ह्रेल
(ब) समुद्री घोड़ा
(स) गंगा की शार्क
(द) नदी की डॉल्फिन
उत्तर:
(द) नदी की डॉल्फिन

10. बाह्यस्थाने संरक्षण का एक उदाहरण कौनसा है? (NEET-2014)
(अ) राष्ट्रीय उद्यान
(ब) बीज बैंक
(स) वन्य प्राणि अभ्यारण्य
(द) पवित्र उपवन
उत्तर:
(ब) बीज बैंक

11. एक जाति जो निकट भविष्य में विलोपन के उच्च जोखिम की चरमता का सामना कर रही है, उसे क्या कहा जाता है? (NEET-2014)
(अ) सुमेघ
(ब) स्थानिक
(स) क्रान्तिक संकटापन्न
(द) विलोप
उत्तर:
(स) क्रान्तिक संकटापन्न

12. कौनसा संगठन जातियों की रेड सूची प्रकाशित करता है- (NEET-2014)
(अ) आई.सी.एफ.आर.आई.
(स) यू.एन.ई.पी.
(ब) आई.यू.सी.एन.
(द) डब्न्यू.डब्ल्यू.एफ
उत्तर:
(ब) आई.यू.सी.एन.

13. वैश्विक जैव विविधता में किसकी जातियों की अधिकतम संख्या है? (NEET-2011, 12, 13)
(अ) शैवाल
(ब) लाइकेन
(स) कवक
(द) मॉस एवं फर्न
उत्तर:
(स) कवक

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14. भारत में निम्नलिखित में कौनसा एक क्षेत्र जैव विविधता का ‘हॉट-स्पॉट’ है ? (Mains NEET-2012)
(अ) पूर्वी घाट
(ब) गंगा का मैदान
(स) सुन्दर वन
(द) पश्चिमी घाट
उत्तर:
(द) पश्चिमी घाट

15. प्रकृति में सबसे अधिक संख्या में प्रजातियाँ किसकी होती हैं? (NEET-2011)
(अ) कवकों की
(ब) कीटों की
(स) पक्षियों की
(द) आवृतबीजियों की
उत्तर:
(ब) कीटों की

16. भारतवर्ष में सबसे अधिक आनुवंशिक विविधता निम्नलिखित में से किस एक में होती है? (CBSE PMT (Pre)-2011, NEET-2011)
(अ) मूँगफली
(ब) चावल
(स) मक्का
(द) आम
उत्तर:
(ब) चावल

17. जैव विविधता के हॉट-स्पॉट का अर्थ है-(DUMET-2010)
(अ) पृथ्वी का ऐसा क्षेत्र जिसमें बहुत-सी एडेमिक जातियाँ पाई जाती हैं
(ब) विशिष्ट क्षेत्र में सम्मूर्ण समुदाय के लिए जातियाँ प्रतिनिधि का कार्य करती हैं
(स) विशेष क्षेत्र/निकेत में जातियाँ
(द) विशेष क्षेत्र में जातिय विभित्रता
उत्तर:
(अ) पृथ्वी का ऐसा क्षेत्र जिसमें बहुत-सी एडेमिक जातियाँ पाई जाती हैं

18. पृथ्वी पर पौधों की जातीय विविधता है- (Kerala PMT-2010)
(अ) 24%
(ब) 22%
(स) 31%
(द) 85%
उत्तर:
(ब) 22%

19. कौनसा जन्तु भारत में अभी हाल में ही विलुस हुआ है? (Orissa JEE-2010)
(अ) भेड़िया
(ब) गैंडा
(स) दरयाई घोड़ा
(द) चीता
उत्तर:
(द) चीता

20. भारत में निम्न में से किसमें अत्यधिक जेनेटिक विविधता पायी जाती है- (CBSE AIPMT-2009)
(अ) टीक
(ब) आम
(स) गेहूँ
(द) चाय
उत्तर:
(ब) आम

21. निम्नलिखित में से किस एक राष्ट्रीय उपवन में बाघ एक निवासी नहीं है- (CBSE PMT-2009)
(अ) रणथम्भौर
(ब) सुंदरवन
(स) गिर
(द) जिम कार्बेट
उत्तर:
(स) गिर

22. निम्न में से किस एक को स्व-स्थाने संरक्षण में सम्मिलित नहीं किया गया है- (CBSE PMT-2006; KCET-2009)
(अ) बायोस्फीयर
(ब) राष्ट्रीय उद्यान
(स) अभयारण्य
(द) वनस्पति उद्यान
उत्तर:
(द) वनस्पति उद्यान

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23. निम्नलिखित में से कौनसी संरक्षण की स्व-स्थाने (in-situ) विधि है- (Kerala CET-2008)
(अ) वानस्पतिक उद्यान
(ब) राष्ट्रीय उद्यान
(स) ऊतक संवर्धन
(द) क्रायो-परिरक्षण
उत्तर:
(ब) राष्ट्रीय उद्यान

24. किसी भौगोलिक क्षेत्र की जैव विविधता से क्या निरूपित होता है? (CBSE PMT Mains-2008)
(अ) उस क्षेत्र की प्रभावी प्रजातियों में मौजूद आनुवंशिक विविधता
(ब) उस क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियाँ
(स) उस क्षेत्र में पायी जाने वाली संकटापन्न प्रजातियाँ
(द) उस क्षेत्र में रह रहे जीवों की विविधता
उत्तर:
(द) उस क्षेत्र में रह रहे जीवों की विविधता

25. रेड डाटा बुक किसके आंकड़े उपलब्ध करती है- (Kerala CET-2006; BHU-2008)
(अ) लाल पुष्पीय पौधों के
(ब) लाल रंग की मछलियों के
(स) विलुसप्राय पौधों व जंतुओं के
(द) लाल आँख के पक्षियों के
उत्तर:
(स) विलुसप्राय पौधों व जंतुओं के

26. भारत के दो हॉट स्पॉट उत्तर-पूर्व हिमालय तथा पश्चिम घाट पाये जाते हैं। इनमें अधिकता होती है- (AMU-2006)
(अ) उभयचर (Amphibians)
(ब) सरीसृप (Reptiles)
(स) तितली
(द) उभयचर, सरीसृप, कुछ स्तनधारी, तितली तथा पुष्पीय पादप
उत्तर:
(द) उभयचर, सरीसृप, कुछ स्तनधारी, तितली तथा पुष्पीय पादप

27. वन्य जीव अभयारण्य में निम्न में से क्या नहीं होता है- (BHU-2005)
(अ) फोना का संरक्षण
(ब) फ्लोरा का संरक्षण
(स) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग
(द) अन्वेषण (hunting) का निषेध
उत्तर:
(स) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग

28. वानस्पतिक उद्यानों का प्रमुख कार्य है- (CBSE PMT-2005)
(अ) ये पुनर्निर्माण हेतु सुंदर क्षेत्र उपलब्ध कराते हैं
(ब) यहाँ उष्णकटिबंधीय (tropical) पौधे पाये जा सकते हैं
(स) ये जर्मप्लाज्म का बाह्य-स्थाने (ex-situ) संरक्षण करते हैं
(द) ये वन्य जीव के लिये प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराते हैं
उत्तर:
(स) ये जर्मप्लाज्म का बाह्य-स्थाने (ex-situ) संरक्षण करते हैं

29. भारत में अत्यधिक जैव विविधता का धनी क्षेत्र है- (MP PMT-2005)
(अ) गंगा के क्षेत्र
(ब) ट्रांस हिमालय
(स) पश्चिमी घाट
(द) मध्य भारत
उत्तर:
(स) पश्चिमी घाट

30. संकटग्रस्त प्रजातियों (स्पीशीज) के बाह्य स्थाने (ex-situ) संरक्षण विधियों में से एक विधि है- (AIIMS-2005)
(अ) वन्य जीव अभयारण्य
(ब) जैव मण्डल आरक्षक (reserve)
(स) निम्नतापी परिरक्षण (Cryopreservation)
(द) राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर:
(स) निम्नतापी परिरक्षण (Cryopreservation)

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31. कृषि फसलों में आनुवंशिक विविधता को किससे खतरा है- (AIIMS-2005)
(अ) उच्च उत्पादन किस्मों का प्रवेश
(ब) उर्वरकों का गहन उपयोग
(स) व्यापक अंतरासस्यन
(द) जैवपीड़कनाशियों का गहन उपयोग
उत्तर:
(अ) उच्च उत्पादन किस्मों का प्रवेश

32. वन्य जीवन है- (Orissa JEE-2005)
(अ) मनुष्य, पालतू जानवर तथा फसलों के अतिरिक्त संपूर्ण बायोटा
(ब) संरक्षित वनों के सभी कशेरुकी (Vertebrates)
(स) संरक्षित वनों के सभी जंतु
(द) संरक्षित वनों के सभी जंतु तथा पादप
उत्तर:
(अ) मनुष्य, पालतू जानवर तथा फसलों के अतिरिक्त संपूर्ण बायोटा

33. रेड डाटा बुक की सूची में जातियां होती हैं- (Orissa-2004)
(अ) सुमेघ
(ब) संकटापत्र
(स) विलुसप्राय
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

34. क्षेत्र की पादप विविधता के संरक्षण की अत्यधिक प्रभावशाली पद्धति क्या होती है- (CBSE PMT-2004)
(अ) ऊतक संवर्धन
(ब) वानस्पतिक उद्यान
(स) जैव मण्डल आरक्षण
(द) बीज बैंक
उत्तर:
(द) बीज बैंक

35. यदि अत्यधिक ऊँचाई पर पक्षी दुर्लभ हो तो कौनसे पौधे अदृश्य हो जायेंगे- (AIIMS-2004)
(अ) पाइन
(ब) ऑर्किड्स
(स) ऑक
(द) रोडोडेन्ड्रोन
उत्तर:
(द) रोडोडेन्ड्रोन

36. वन्य संरक्षण में निम्न में से किसकी सुरक्षा एवं संरक्षण किया जाता है- (BHU-2004)
(अ) केवल डरावने जंतुओं का
(ब) केवल वन्य पौधों का
(स) अपरिष्कृत पौधों एवं अपालतूकृत जंतुओं का
(द) सभी जीवों का जो कि अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैं
उत्तर:
(द) सभी जीवों का जो कि अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैं

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37. राष्ट्रीय उद्यान हेतु क्या सत्य है- (Orissa JEE-2004)
(अ) पर्यटकों की तटस्थ क्षेत्रों (Buffer Zone) में स्वीकृति
(ब) मानव क्रियाकलाप की अस्वीकृति
(स) शिकार की केन्द्रीय क्षेत्र में स्वीकृति
(द) चरने वाले मवेशियों की तटस्थ क्षेत्र में स्वीकृति
उत्तर:
(ब) मानव क्रियाकलाप की अस्वीकृति

38. वह टैक्सॉन जो कि भविष्य में विलुप्तायः श्रेणी में सम्मिलित होंगे, वह है- (Kerala-2003)
(अ) लुस
(ब) दुर्लभ
(स) सुमेघ (Vulnerable)
(द) जीवित जीवाश्म
उत्तर:
(स) सुमेघ (Vulnerable)

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