HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जड़ी बूटियाँ एवं घास कौनसे स्तर पर निवास करते हैं-
(अ) उर्ध्वाधर स्तर
(ब) तिरछा स्तर
(स) धरातलीय स्तर
(द) ऊपरी स्तर
उत्तर:
(स) धरातलीय स्तर

2. जैव मात्रा के उत्पादन की दर को कहते हैं-
(अ) उत्पादकता
(ब) पोषण चक्र
(स) ऊर्जा प्रवाह
(द) अपघटन
उत्तर:
(अ) उत्पादकता

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

3. सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटाने पर प्रास्त होती है-
(अ) द्वितीयक उत्प्पादकता
(ब) प्राथमिक उत्पादकता
(स) तृतीयक उत्पादकता
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता

4. अपरद (डेट्राइटस) किससे मिलकर बने होते हैं?
(अ) फूल तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष
(ब) पत्तियाँ
(स) छाल एवं मलादि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. बैक्टीरिया एवं कवकीय एंजाइम्स अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को कहते हैं-
(अ) अपचय
(ब) खनिजीकरण
(स) ह्यूमीफिकेशन
(द) निक्षालन
उत्तर:
(अ) अपचय

6. ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्व का निर्माण होता है, जिसे कहते हैं-
(अ) अपरद
(ब) ह्यूमस
(स) खनिज भवन
(द) निक्षालन
उत्तर:
(ब) ह्यूमस

7. अपघटन की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण चरण है-
(अ) खंडन
(ब) निक्षालन
(स) ह्यूस भवन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. एक विशिष्ट समय पर प्रत्येक पोषण स्तर का जीवित पदार्थ की कुछ खास मात्रा होती है, जिसे कहा जाता है-
(अ) खड़ी फसल
(ब) आहार जाल
(स) जैव मात्रा
(द) पूर्तिजीवी
उत्तर:
(अ) खड़ी फसल

9. पारिस्थितिक पिरैमिड जिसका आमतौर पर अध्ययन किया जाता है, वह है-
(अ) संख्या का पिरैमिड
(ब) जैवमात्रा का पिरैमिड
(स) ऊर्जा का पिरेमिड
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:

10. एक गैरैया जब बीज, फल व मटर खाती है तो वह कहलाती है-
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) प्राथमिक उत्पादक
उत्तर:
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता

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11. पारिस्थितिक तंत्र में किसी निश्चित समय में, तंत्र में उपस्थित, अजैव पदार्थों की मात्रा को कहते हैं-
(अ) म्लानी अवस्था
(ब) स्थायी उपभोक्ता
(स) पोष रीति
(द) समस्थापन
उत्तर:
(ब) स्थायी उपभोक्ता

12. पारिस्थितिक तंत्र में अजैविक व जैविक घटकों के मध्य की योजक कड़ी है-
(अ) अकार्बनिक पदार्थ
(ब) खाद्य जाल
(स) कार्बनिक पदार्थ
(द) पोष रीति
उत्तर:
(स) कार्बनिक पदार्थ

13. जीवों या सफल पादप समुदायों द्वारा पर्यावरण और परिवर्तित करने की क्रिया को कहते हैं-
(अ) प्रतिस्पर्धा
(ब) समुच्चयन
(स) प्रतिक्रिया
(द) चरम समुदाय
उत्तर:
(स) प्रतिक्रिया

14. निम्न में से शुष्कतारम्भी (Xerarch) है-
(अ) शैल अनुक्रमक
(ब) बालुकानुक्रमक
(स) लवणक्रमक
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

15. एक सुनिश्चित क्षेत्र की प्रजाति संरचना में उचित रूप से आकलित परिवर्तन को कहते हैं-
(अ) पारिस्थितिक अनुक्रमण
(ब) शुष्कतारंभी अनुक्रमण
(स) जलारंभी अनुक्रमण
(द) चरम सीमा अनुक्रमण
उत्तर:
(अ) पारिस्थितिक अनुक्रमण

16. एक पारितंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्वों की गतिशीलता को कहते हैं-
(अ) पोषक चक्र
(ब) परपोषी चक्र
(स) स्वयं पोषक चक्र
(द) परजीवी पोषक चक्र
उत्तर:
(अ) पोषक चक्र

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17. जैवमण्डल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष कितने कार्बन का स्थिरीकरण होता है?
(अ) 3 × 1013 किग्रा.
(ब) 4 × 1013 किग्रा.
(स) 5 × 1013 किग्रा.
(द) 6 × 1012 किग्रा.
उत्तर:
(ब) 4 × 1013 किग्रा.

18. ऊर्जा के प्रवाह के वैकल्पिक परिपथ किनमें पाये जाते हैं?
(अ) खाद्य जाल
(ब) खाद्य भृंखला
(स) पारिस्थितिक स्तूप
(द) जैव-भू-रासायनिक चक्र
उत्तर:
(अ) खाद्य जाल

19. मांसाहारियों द्वारा स्वांगीकृत ऊर्जा का लगभग कितना भाग श्वसन में उपयोग होता है?
(अ) 10%
(ब) 20%
(स) 90%
(द) 60%
उत्तर:
(स) 90%

20. मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र है-
(अ) वन पारिस्थितिक तंत्र
(ब) फसल पारिस्थितिक तंत्र
(स) घास स्थल पारिस्थितिक तंत्र
(द) अलवणीय जल पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(ब) फसल पारिस्थितिक तंत्र

21. मृत पाद्प व जन्तु अंशों से अपना भोजन प्रास करते हैं-
(अ) परजीवी
(ब) सहजीवी
(स) मृतोपजीवी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) मृतोपजीवी

22. खाद्य-जाल में ऊर्जा का प्रवाह होता है-
(अ) एक-दिशीय
(ब) द्वि-दिशीय
(स) चतुर्दिशीय
(द) त्रि-दिशीय
उत्तर:
(अ) एक-दिशीय

23. पोषक चक्र को और किस नाम से जाना जाता है?
(अ) अजैव भू रसायन चक्र
(ब) जैव भू रसायन चक्र
(स) जैव भू कार्बन चक्र
(द) जैव भू फास्फोरस चक्र
उत्तर:
(ब) जैव भू रसायन चक्र

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24. उत्पादकता को निम्न में से किस रूप में व्यक्त किया जा सकता है?
(अ) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1
(ब) g3yr2 या (Kcal m3) yr-1
(स) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1
(द) g2yr-1 या (Kcal m3) yr+1
उत्तर:
(अ) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1

25. जी.पी.पी. – आर = एन.पी.पी. यह किसको प्रदर्शित करती है-
(अ) प्राथमिक उत्पादकता
(ब) सरल प्राथमिक उत्पादकता
(स) द्वितीयक उत्पादकता
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता

26. परितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) पारितंत्र सेवाएँ
(ब) जैव भू रसायन चक्र
(स) अवसादी सेवाएँ
(द) पोषक चक्र
उत्तर:
(अ) पारितंत्र सेवाएँ

27. निम्न में से पारितंत्र सेवाएँ हैं-
(अ) सूखा एवं बाढ़ को घटाना
(ब) वायु एवं जल को शुद्ध बनाना
(स) भूमि को उर्वर बनाना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. प्रकृति के जीवन समर्थक (आधारीय) सेवाओं की एक कीमत निर्धारित करने का प्रयास किसने किया?
(अ) रॉबर्ट कोसटैजा एवं उनके साथी
(ब) रॉबर्ट ब्राउन एवं उनके साथी
(स) रॉबर्ट हुक एवं उनके साथी
(द) रॉबर्ट डिसोजा एवं उनके साथी
उत्तर:
(अ) रॉबर्ट कोसटैजा एवं उनके साथी

29. वह प्रजाति, जो खाली एवं नग्न क्षेत्र पर आक्रमण करती है, उसे कहते हैं-
(अ) मूल अन्वेषक जाति
(ब) परमूल अन्वेष जाति
(स) अन्वेषक जाति
(द) जलारंभी
उत्तर:
(अ) मूल अन्वेषक जाति

30. चट्टानों को पिघलाने के लिए निम्न में किसके द्वारा अम्ल का स्राव किया जाता है-
(अ) वैलिसेनरिया
(ब) जलकुम्भी
(स) लाइकेन
(द) माइकोराइजा
उत्तर:
(स) लाइकेन

31. जल में प्राथमिक अनुक्रमण में मूल अन्वेषक होते हैं-
(अ) लघु पादपप्लवक
(ब) जड़ वाले प्लावी पादप
(स) दलदली घास
(द) दलदली नरकुल
उत्तर:
(अ) लघु पादपप्लवक

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32. द्वितीयक अनुक्रमण में प्रजाति का आक्रमण निम्न में से किस पर निर्भर करती है-
(अ) मृदा की स्थिति
(ब) जल की स्थिति
(स) पर्यावरण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

33. निम्न में से कौनसा अनुक्रमण है जिसे चरमावस्था तक पहुँचने में शायद हजारों वर्ष लगते हैं-
(अ) प्राथमिक अनुक्रमण
(ब) द्वितीयक अनुक्रमण
(स) तृतीयक अनुक्रमण
(द) चतुर्थक अनुक्रमण
उत्तर:
(अ) प्राथमिक अनुक्रमण

34. सभी अनुक्रमण चाहे पानी में हों या भूमि पर एक ही प्रकार से चरम समुदाय किस की ओर अग्रसर होते हैं-
(अ) सीजिक
(ब) मीजिक
(स) पीजिक
(द) धीजिक
उत्तर:
(ब) मीजिक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
खाद्य स्तर तथा खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रकृति में प्रत्येक जीव खाद्य प्राप्ति हेतु एक-दूसरे से संबंधित रहते हैं। एक जीव दूसरे जीव पर निर्भर करता है। सभी जीव खाद्य के स्रोत हैं। जिस स्तर या जीव में खाद्य है, वह खाद्य स्तर है। एक जीव दूसरे जीव को खाता है अर्थात् एक श्रृंखला होती है, इसे खाद्य श्रृंखला तथा इसके प्रत्येक स्तर को खाद्य स्तर कहते हैं ।

प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तंत्र के कार्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कार्य से अभिप्राय पारिस्थितिक तंत्र में जैव ऊर्जा का प्रवाह तथा पोषक खनिज पदार्थों के परिसंचरण से है ।

प्रश्न 3.
पादप अनुक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी एक ही स्थान पर होने वाले दीर्घकालीन, एकदिशीय क्रमिक समुदाय परिवर्तनों को पादप अनुक्रमण कहते हैं।

प्रश्न 4.
पादप अनुक्रमण में कौनसी अवस्थायें आती हैं?
उत्तर:
अनाच्छादान, आक्रमण, आस्थापन, उपनिवेशन, समूहन, प्रतिस्पर्धा ।

प्रश्न 5.
भू – रासायनिक चक्र क्या है?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में आवश्यक खनिजों एवं पोषक पदार्थों की पूर्ति हेतु जो चक्र चलते हैं, उन्हें भू-रासायनिक चक्र कहते हैं।

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तक किसे व क्यों कहते हैं?
उत्तर:
स्वपोषी या उत्पादक को कोरोमेन्डी ने परिवर्तक या पारक्रमी कहा है क्योंकि ये सौर ऊर्जा को रासायनिक स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित कर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 7.
परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं ? इसका एक उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला हरे पादपों से आरंभ होकर अनुक्रम में मांसाहारी जंतुओं से होती हुई चरम मांसाहारी जंतुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है अर्थात् छोटे जीवों से प्रारंभ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उपयुक्त उदाहरण घास स्थलीय खाद्य श्रृंखला का है-
घास → टिड्डा → मेंढक → साँप → मोर

प्रश्न 8.
अपरद खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह आहार श्रृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारंभ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण- अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील

प्रश्न 9.
खाद्य जाल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में पायी जाने वाली खाद्य श्रृंखलाएं संबद्ध होकर अन्तर्ग्रथित प्रतिरूप बनाती हैं जिसे खाद्य जाल कहते हैं।

प्रश्न 10.
सबसे स्थिर पारिस्थितिक तंत्र कौनसा है ?
उत्तर:
महासागर ( Ocean )

प्रश्न 11.
अपरद खाद्य श्रृंखला का आरंभक बिंदु क्या होता है?
उत्तर:
पादपों के मृत अवशेष जैसे-पत्तियाँ, छाल, फूल तथा प्राणियों के मृत अवशेष, मलादि सहित अपरद

प्रश्न 12.
द्वितीयक उत्पादकता क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता के द्वारा निर्मित नवीन कार्बनिक पदार्थों तथा उनके स्वांगीकरण की दर द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है।

प्रश्न 13.
तालाब पारिस्थितिक तंत्र की खाद्य श्रृंखला को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 1

प्रश्न 14.
कौनसा स्थलीय जीवोम वानस्पतिक विकास व जैव समुदाय के दृष्टिकोण से सबसे अधिक उन्नत है?
उत्तर:
उष्ण सदाबहार कटिबंधीय वन क्षेत्र वानस्पतिक विकास की दृष्टि में सबसे अधिक उन्नत है।

प्रश्न 15
पारितंत्र सेवाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
पारितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को पारितंत्र सेवाओं के नाम से जाना जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
गैसीय चक्र तथा अवसादी चक्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गैसीय चक्र व अवसादी चक्र में अंतर-

गैसीय चक्र अवसादी चक्र
1. इनका निचय कुण्ड (Reservoir pool) वायु- मण्डल या जल-मण्डल होता है। इनका निचय कुण्ड स्थलमण्डल होता है।
2. इनके चक्र पूर्ण होते हैं। इनके चक्र अपूर्ण होते हैं।
3. बार-बार चक्रीय प्रवाह के दौरान इनकी मात्रा कम नहीं होती है। मात्रा कम होती है क्योंकि कुछ मात्रा समुद्र, भूमि या अन्य जलाशयों की तलहटी में समाहित हो जाती है।
4. उदाहरण-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन चक्र। उ दाह र ण-सल्फ र, फॉस्फोरस चक्र।

प्रश्न 2.
फसल पारिस्थितिक तन्त्र को समझाइये |
उत्तर:
फसल पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक हरे पौधे (फसल) होते हैं। टिड्डियाँ, तितलियाँ, चींटे, बकरी, गाय, खरगोश, हिरण, गिलहरी, तोते, मानव सभी प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं। लोमड़ी व अन्य मांसाहारी द्वितीयक उपभोक्ता तथा बाज, चीता, शेर व यहाँ तक कि मानव तृतीयक उपभोक्ता होते हैं। अजैविक घटक में मृदा व वायुमण्डल के अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ होते हैं इस तंत्र में जीव संख्या का तथा जीव भार का स्तूप सीधा होता है तथा ऊर्जा का स्तूप भी सीधा होता है।

प्रश्न 3.
पारिस्थितिक तंत्रों के प्रकार बताइये ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र दो प्रकार के होते हैं –
I. प्राकृतिक तथा
II. कृत्रिम ।
I. प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक रूप से जो पृथ्वी पर पाये जाते हैं, वे निम्न प्रकार के होते हैं-
1. स्थलीय भूमि पर विद्यमान पारिस्थितिक तंत्र, जैसे – वन, घास स्थल, मरुस्थल आदि ।

2. जलीय- यह दो प्रकार के होते हैं-
(क) अलवण जलीय (Fresh Water) – जिसमें

  • सरित (Lotic, बहता पानी) जैसे झरना, नदी, सरिता आदि तथा
  • स्थिर जलीय (Lentic, रुका हुआ जल) जैसे- झील, तालाब, पोखर, अनूप आदि ।

(ख) समुद्रीय या लवण जलीय (Marine Water ) – जैसे- समुद्र, ज्वारनद्मुख, लवण झीलें आदि।

II. कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र- यह मानव द्वारा सुनियोजित ढंग से बनाये जाते हैं, जैसे-फसलों के खेत, उद्यान, सामाजिक वन ।

प्रश्न 4.
खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं को बताइये ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादकों से खाद्य ऊर्जा का स्थानान्तरण जीवों के द्वारा होता है जिसमें बार-बार खाते हैं व बार-बार खाये जाते हैं। इस श्रृंखला में शाकाहारी, मांसाहारी व अपघटक होते हैं। ऐसी श्रृंखला को खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य श्रृंखलायें होती हैं –
1. परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला (Predator or Grazing Food Chain) – इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला प्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा पर आधारित होती है, जो हरे पादपों से आरम्भ होकर अनुक्रम में मांसाहारी जन्तुओं से होती हुई चरम मांसाहारी जन्तुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है। सामान्यतः यह छोटे जीवों से प्रारम्भ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उदाहरण- घास स्थलीय खाद्य श्रृंखला ।

2. परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic Food Chain) – यह बड़े जन्तुओं से प्रारम्भ होकर छोटे जीवों (परजीवी) पर समाप्त होती है। बड़े शाकाहारी जीवों को पोषिता (Host) या परपोषी (Heterotrophs) या आतिथेय कहते हैं।
उदाहरण-
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 2

3. अपरदी या मृतोपजीवी खाद्य श्रृंखला (Detritus or Saprophytic Food Chain) – यह आहार श्रृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारम्भ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण-
अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 5.
पारिस्थितिक दक्षता किसे कहते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में जीव अपना भोजन प्राप्त करते हैं तथा आहार को जैवभार में परिवर्तित कर दूसरे उच्च पोषण स्तर को उपलब्ध कराते हैं। खाद्य शृंखला के विभिन्न पोष स्तरों के मध्य प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की मात्रा के अनुपात को यदि प्रतिशत में व्यक्त किया जावे तो इसे पारिस्थितिक दक्षता (Ecological Efficiency) कहते हैं।

ऊर्जा की मात्रा को किलो कैलोरी प्रतिवर्ग मीटर प्रतिवर्ष (Kcal/m2/yr) इकाई में नापा जाता है। उत्पादक स्तर पर प्रकाश संश्लेषी दक्षता तथा वास्तविक उत्पादन दक्षता महत्त्वपूर्ण होती है। उत्पादक द्वारा सौर विकिरण ऊर्जा को उपयोग करने की दक्षता का मापन प्रकाश- संश्लेषी दक्षता द्वारा किया जाता है।
प्रकाश-संश्लेषी दक्षता (उत्पादक स्तर)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 3

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा के पिरामिड समझाइये ।
अथवा
पारिस्थितिक पिरामिड से क्या तात्पर्य है? ऊर्जा के एक आदर्श पिरामिड का चित्र सहित वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
पारिस्थितिक पिरामिड चार्ल्स एल्टन ने 1927 में पारिस्थितिक पिरामिड की अवधारणा दी। प्रत्येक पारितन्त्र में पाये जाने वाले सभी पोषक स्तर एक के बाद एक सोपानों में व्यवस्थित रहते हैं। प्रथम पोषक स्तर को आधार मानकर उत्तरोत्तर पोषक स्तरों को चित्र द्वारा निरूपित किया जाये तो पिरामिड बनता है, जिसे पारिस्थितिक पिरामिड कहते हैं।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 4

ऊर्जा के पिरामिड पूर्ण रूप से पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति का स्पष्ट चित्रण करते हैं। भोजन श्रृंखला में भोजन उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक जाता है अर्थात् भोजन एक स्तर से दूसरे स्तर में जाता रहता है या यों कहा जा सकता है कि ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर प्रवाहित होती है। यह सुनिश्चित है कि ऊर्जा एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर पर जाने पर कम होती जाती है।

यह देखा गया है कि एक पोष स्तर से संचित ऊर्जा जब दूसरे पोष स्तर में जाती है तो कुल ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत ही जीवभार के रूप में रूपान्तरित होता है। अतः उत्पादकों में ऊर्जा सर्वाधिक तथा प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक और उच्चतम उपभोक्ता में ऊर्जा धीरे- धीरे कम होती जाती है इसलिए ऊर्जा के आधार पर चित्रण किये जाने से पिरामिड सदैव सीधे बनते हैं।

ऊर्जा के आधार पर बनने वाले पिरामिड का आधार सदैव बड़ा तथा शीर्ष छोटा होता है। यद्यपि इस पर जीवों के आकार और उपापचय दर का प्रभाव नहीं होता परन्तु इस प्रकार के पिरामिड बनाने में समय तथा क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऊर्जा के आधार पर जीवों का अध्ययन एक इकाई क्षेत्र तथा समय के आधार पर किया जाता है।

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प्रश्न 7.
पुरोगामी समुदाय तथा चरम समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर:
पुरोगामी समुदाय तथा चरम समुदाय में अन्तर-

पुरोगामी समुदाय (Pioneer Community) चरम समुदाय (Climax Community)
1. यह अनुक्रम की प्रथम अवस्था है। यह अन्तिम अवस्था होती है।
2. पुरोगामी अन्य स्थानों से आकर नये आवास में उगते हैं। ये उसी स्थान पर उगते हैं।
3. पुरोगामी नये आवास के कारकों को सहन करते हैं। वहाँ का पर्यावरण उनके अधिक अनुकूल नहीं होता है। समस्त कारक उनके अनुकूल होते हैं।
4. पुरोगामी पादप छोटे होते हैं। चरम अवस्था में पादप बहुत बड़े होते हैं।
5. इनमें स्थायित्व नहीं होता, जैवभार कम होता है तथा सहजीवन क्रियायें नहीं पाई जाती हैं। इनमें सर्वाधिक स्थायित्व, अधिक जैवभार तथा सहजीवन क्रियायें मिलती हैं।

प्रश्न 8.
प्राथमिक अनुक्रमण तथा द्वितीयक अनुक्रमण में विभेद कीजिए ।
उत्तर:
प्राथमिक अनुक्रमण वनस्पतिरहित स्थलों पर होने वाला अनुक्रमण होता है। भू-स्खलन, ज्वालामुखी के फटने, कोरल शैलों के निर्माण, रेतीले टीले, नग्न चट्टानें आदि इसकी श्रेणी में आते हैं। द्वितीयक अनुक्रमण को गौण अनुक्रमण भी कहते हैं। वे स्थान जहाँ पूर्व में वनस्पति थी परन्तु किन्हीं कारणों से वह वनस्पति नष्ट हो गई, ऐसे स्थलों पर होने वाला अनुक्रमण द्वितीयक होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र में विद्यमान खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल पर विस्तार से लिखिये ।
उत्तर:
खाद्य शृंखला व खाद्य जाल (Food Chain and Food Web) प्रकृति में पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न जीव जैसे उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिये एकदूसरे पर निर्भर होते हैं। हरे पौधे क्लोरोफिल, सौर विकिरण ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड आदि की सहायता से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं (स्वपोषी या प्राथमिक उत्पादक), जिसका उपयोग प्राथमिक उपभोक्ता (मांसाहारी) करते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ताओं को द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी) एवं द्वितीयक उपभोक्ता को तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक से उपभोक्ता श्रेणी के सभी जीव एक क्रम या शृंखला में व्यवस्थित रहते हैं। इस शृंखला में प्रत्येक स्तर या कड़ी या जीव को पोषण स्तर (trophic level) या ऊर्जा स्तर (energy level) कहते हैं। अन्योन्याश्रित (interdependent) जीवों की एक श्रृंखला को जिसमें खाने और खाये जाने की पुनरावृत्ति द्वारा ऊर्जा का प्रवाह होता है, खाद्य शृंखला (Food chain) कहलाती है। जैसे –

(i) घास स्थल में खाद्य शृंखला
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 5

(ii) जलीय पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला
पादप प्लवक → जन्तु प्लवक → छोटी मछली → बड़ी मछली → मनुष्य

(iii) वन पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला
पादप → हिरन → भेड़िया → शेर
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 6

प्रकृति में सामान्यतः एक खाद्य शृंखला में पांच-छः से अधिक कड़ियाँ (links) या जीव नहीं होते हैं क्योंकि खाद्य ऊर्जा के एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में जाने पर 90% ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में अपव्यय (श्वसन क्रिया में) हो जाता है तथा सबसे ऊँचे पोष स्तर को बहुत कम ऊर्जा उपलब्ध होती है। प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य शृंखलाएं होती हैं-

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(i) परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य शृंखला (Predator or grazing food chain) – इस प्रकार की खाद्य शृंखला सौर ऊर्जा पर आधारित होती है जो हरे पौधों से प्रारंभ होकर मांसाहारी जंतुओं से होती हुई सर्वोच्च मांसाहारी जंतुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है। अतः यह छोटे जीवों से प्रारंभ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उदा. घास स्थलीय खाद्य शृंखला।

(ii) परजीवी खाद्य शृंखला (Parasitic food chain)-यह बड़े जंतुओं (शाकाहारी) से प्रारंभ होकर छोटे जीवों (परजीवी) पर समाप्त होती है अर्थात् परपोषी से परजीवी की ओर अग्रसर होती है। उदाहरण-
जड़ें → निमेटोड → जीवाणु

(iii) अपरदी या मृतोपजीवी खाद्य शृंखला (Detritus or Saprophytic food chain)-यह आहार शृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारंभ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण-
अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील
इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला वनों व घास स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों में बहुत महत्व की है।

खाद्य जाल (Food web)
उपरोक्त खाद्य श्रृंखलाओं में एक स्तर से अन्य स्तर पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। जलीय पारिस्थितिक तंत्र में चारण खाद्य शृंखला (Grazing food chain = GFC) ऊर्जा प्रवाह का महत्वपूर्ण साधन है परंतु स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में चारण खाद्य शृंखला की तुलना में अपरद खाद्य शृंखला (Detritus food chain = DFC) द्वारा अधिक ऊर्जा प्रवाहित होती है।

पारिस्थितिक तंत्र में सभी जीव एक समुदाय में अन्य जीवों के साथ रहते हैं। सभी जीव अपने पोषण या आहार के स्रोत के आधार पर खाद्य श्रृंखला में एक विशेष स्थान ग्रहण करते हैं, जिसे पोषण स्तर (trophic level) कहा जाता है (चित्र 14.3)। एक विशिष्ट समय पर प्रत्येक पोषण स्तर के जीवित पदार्थ की कुछ खास मात्रा होती है, जिसे स्थित शस्य या खड़ी फसल (Standing crop) कहते हैं।

इसे इकाई क्षेत्र में उपस्थित जीवों की संख्या या जैवभार (biomass) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। वस्तुतः प्रकृति में उपरोक्त वर्णित सरल खाद्य शृंखलायें नहीं पायी जाती हैं अपितु विभिन्न खाद्य शृंखलाएँ आपस में किसी न किसी पोष स्तर से जुड़कर एक अत्यन्त जटिल खाद्य जाल (food web) का निर्माण करती हैं। इसका कारण यह है कि एक ही प्राणी कई प्रकार के प्राणियों को अपना भोजन बना सकता है।

उदाहरणार्थ, एक घास स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्राथमिक उत्पादकों को टिड्डी एवं चूहों के अतिरिक्त खरगोश, गाय, बकरी या अन्य शाकाहारी द्वारा भी खाया जा सकता है। इसी प्रकार चूहों को सर्प तथा सर्पों को गिद्ध खाते हैं परंतु इन्हें सर्पों व गिद्ध के अतिरिक्त अन्य जंतुओं द्वारा भी खाया जा सकता है।
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किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य जाल जितना जटिल और विशाल होगा उतना ही वह पारिस्थितिक तंत्र स्थिरता व संतुलन लिये होगा क्योंकि इसमें उपभोक्ता के लिये अनेक प्रकार के जीव उपयोग हेतु उपलब्ध रहेंगे। किसी जीव के किसी कारणवश नष्ट हो जाने पर खाद्य जाल के स्थायित्व (stability) पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि खाद्य जाल में वैकल्पिक व्यवस्था (alternative arrangement) होती है, जिससे उस जीव के स्थान की पूर्ति अन्य किसी जीव द्वारा हो जाती है तथा ऊर्जा का प्रवाह वैकल्पिक परिपथों से होने लगता है।

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इस प्रकार की व्यवस्था खाद्य शृंखलाओं में नहीं होती है। खाद्य जाल, समुदाय में जीवों के बहुदिशीय संबंधों को प्रकट करता है। खाद्य जाल में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होते हुए भी अनेक वैकल्पिक परिपथों से होकर होता है। खाद्य शृंखला में एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में केवल 10% ऊर्जा प्रवाहित होती है।

प्रश्न 2.
पारितन्त्र क्या है? इसके जैविक घटकों का उल्लेख कीजिए। एक घास वन पारितन्त्र की चार पोष स्तर वाली खाद्य श्रृंखला का आरेख बनाइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द का प्रयोग ए.जी. टैन्सले (A.G. Tansley, 1935) ने किया था। ‘Eco’ शब्द का तात्पर्य पर्यावरण से है तथा ‘system’ का बोध अन्योन्य क्रियाओं (Interactions) से है। टेन्सले ने इकोसिस्टम को परिभाषित करते हुए कहा कि “इकोसिस्टम वह तंत्र है जो पर्यावरण के सम्पूर्ण सजीव व निर्जीव कारकों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा प्रक्रियाओं द्वारा प्रकट होता है ” या इकोसिस्टम प्रकृति का वह तंत्र है जिसमें जीवीय व अजीवीय घटकों की संरचना व कार्यों का पारिस्थितिक सम्बन्ध निश्चित नियमों के अुनसार गतिज संतुलन में रहता है तथा ऊर्जा व पदार्थों का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता रहता है।

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना (Structure of Ecosystem)पारिस्थितिक तंत्र की संरचना के दो मुख्य घटक होते हैं-
I. जीवीय घटक (Biotic Component) तथा
II. अजीवीय घटक (Abiotic Component)

I. जीवीय घटक (Biotic Component)-पारिस्थितिक तंत्र में जीवीय घटक का प्रथम स्थान होता है। इस तंत्र में नाना प्रकार के प्राणियों व वनस्पति की समष्टि (Population) के समुदाय होते हैं तथा ये सभी जीव आपस में किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित होते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्य या इन विभिन्न जीवों के भोजन प्राप्त करने के प्रकार के अनुसार इस जीवीय घटक को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है-

(क) स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophs or Producers)-पारिस्थितिक तंत्र के वे सजीव सदस्य, जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों को प्राप्त कर, सूर्य प्रकाशीय ऊर्जा को ग्रहण कर जटिल पदार्थों अर्थात् प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया कर भोजन का संश्लेषण करते हैं। अपने पोषण हेतु स्वयं भोजन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं। ऐसे सजीव सदस्य स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) कहलाते हैं।

यह अद्भुत क्षमता प्राय: क्लोरोफिल युक्त हरे पौधों में तथा विशेष प्रकार के रसायन संश्लेषी जीवाणुओं में होती है। स्वपोषी घटक को प्राथमिक उत्पादक भी कहते हैं, क्योंकि हरे पौधे भोजन का निर्माण कर उन्हें संचित करते हैं तथा यह संचित खाद्य पदार्थ ही अन्य समस्त प्रकार के जीवों हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के रूप में प्रयुक्त होता है।

स्थल पर उगने वाले समस्त पौधे तथा जलीय माध्यम (तालाब, झील व समुद्र) में विद्यमान जलोद्भिद पादप शैवाल व सूक्ष्मदर्शी पौधे उत्पादक की श्रेणी में आते हैं। समस्त पौधे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं न कि ऊर्जा का। वास्तविक रूप से उत्पादक पौधे प्रकाशीय ऊर्जा को जटिल कार्बनिक पदार्थ की रासायनिक स्थितिज ऊर्जा (Potential Chemical Energy) में परिवर्तित करते हैं। इसी कारण कोरोमेन्डी (Koromondy) ने इन्हें उत्पादक के स्थान पर परिवर्तक या पारक्रमी (Converter or Transducer) कहा है।

(ख) विषमपोषी या उपभोक्ता (Heterotrophs or Consumers) – पारिस्थितिक तंत्र के वे जीव जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन पर निर्भर रहते हैं। इन सजीव सदस्यों में भोजन सृजन की क्षमता नहीं होती है। इस प्रकार के जीवों को विषमपोषी कहते हैं। वस्तुतः ये उत्पादकों द्वारा संश्लेषित भोजन का उपयोग करते. हैं। इसलिए इन्हें उपभोक्ता (Consumers) भी कहते हैं। इन परपोषित या उपभोक्ता जीवों को पुनः दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है-

1. वृहद् या गुरु उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Macroconsumers or Phagotrophs) – वे जीव उपभोक्ता जो अपना भोजन जीवित पौधों या जन्तुओं से प्राप्त करते हैं उन्हें वृहद् उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Phagotroph, Phago = to eat) कहते हैं। इस प्रकार के उपभोक्ता भोजन को ग्रहण कर अपने शरीर के अन्दर उसका पाचन करते हैं। शाक या पादप भक्षी शाकाहारी (Herbivores), जन्तुभक्षी मांसाहारी (Carnivores) तथा शाक व मांस दोनों को खाने वाले को सर्वाहारी (Omnivores) कह सकते हैं।

उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में विभेदित किया गया है –
(i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers)-वे जीव जो भोजन की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। ऐसे प्राथमिक उपभोक्ता मुख्य रूप से शाकाहारी (Herbivores) जन्तु होते हैं। जैसे-कीट, गाय, भैंस, बकरी, खरगोश, भेड़, हिरण, चूहा इत्यादि। स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के सामान्यतः शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं।

(ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers)-इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्रथम श्रेणी के शाकाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं। इस श्रेणी के उपभोक्ता प्रायः मांसाहारी (Carnivores) होते हैं, जैसे-मेंढक, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली, चीता इत्यादि।

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(iii) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers)-इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन द्वितीयक श्रेणी के मांसाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं और यही नहीं, यहाँ तक सर्वाहारी व शाकाहारी का भी भक्षण कर लेते हैं। कुछ उपभोक्ता उच्च मांसाहारी (Top Carnivores) होते हैं, जो स्वयं तो अन्य मांसाहारी जन्तुओं को खा जाते हैं किन्तु उन्हें कोई प्राणी नहीं खा सकता। इस प्रकार के उपभोक्ताओं को शीर्ष या उच्च उपभोक्ता (Top Consumers) कहा जाता है; जैसे-शेर, चीता, बाज व गिद्ध इत्यादि।

अतः उपर्युक्त उपभोक्ताओं की श्रेणियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भोजन उत्पादकों से होता हुआ उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों से गुजर कर उच्य उपभोक्ताओं तक पहुँच जाता है। अतः भोजन या खाद्य की इस शृंखला को खाद्य शृंखला (Food Chain) कहते हैं।

2. सूक्ष्म या लघु उपभोक्ता या अपघटक जीव (Microconsumers or Decomposers)-लघु उपभोक्ता भी पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण सजीव घटक हैं। इस श्रेणी के जीव विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थो को उनके अवयवों में विघटित कर देते हैं। इस क्रिया में यह जीव पाचन विकर का स्रवण कर भोजन को सरल पदार्थों में तोड़कर इस पचित भोजन को अवशोषित करते हैं। इनमें मुख्यत: कवक, जीवाणु, एक्टिनोमाइसीटिज तथा मृतोपजीवी होते हैं।

इन्हें अपघटक या मृतोपजीवी (Saprotrophs) या परासरणजीवी (Osmotrophs) कहते हैं। इस प्रकार के जीव उत्पादक तथा उपभोक्ता के मृत शरीरों पर क्रिया कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण पदार्थों में परिवर्तित करते हैं। इन साधारण कार्बनिक पदार्थ पर अन्य प्रकार के जीवाणु क्रिया कर अन्त में इन्हें अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं।
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बह प्राणी क्रिया करते समय अपघटन से निर्मित उत्पादों का स्वयं अवशोषण कर अपने पोषण में उपयोग कर लेते हैं व अन्य पदार्थों को बातावरण में मुक्त कर देते है। अपघटक व परिवर्तक क्रिया से निर्मित अकार्बनिक पदार्थ पुनः उत्पादकों या हरे पौधों द्वारा उपयोग में ले लिये जाते हैं। इस प्रकार से हरे पौधों में जिसमें भोजन का निर्माण या संचय हुआ था उसका उपयोग उपभोक्ताओं ने किया तथा उपभोक्ताओं व उत्पादकों के मृत होने पर ये सुक्ष्म उपभोक्ता अपघटन क्रिया कर अकार्बनिक पदार्थों को पर्यावरण में वापस लौटाने का कार्य करते है। अतः अपघटनकर्ता तथा परिवर्तक पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व को बनाये रखने में महत्तपपर्ण कार्य करते हैं।

II. अजीवीय घटक (Abiotic Component)-ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय घटक हैं। तंत्र के प्रथम भाग में जीवीय घटक का उल्लेख करते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश ड्डाला गया है। उसी प्रकार अजीवीय घटक जो कि भौतिक पर्यावरण से बनता है, यह भी उतना ही महत्तपपर्ण है।

इस भौतिक पर्यावरण को तीन भागों में विभाजित किया गया है –
(क) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances)-जैसेमृदा, जल, कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कैल्सियम काबोनेट ब फॉस्फेट इत्यादि जो पारिस्थितिक तंत्र में चक्रीय पर्थों से गुजरते हैं, जिसे जैव-भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) कहते हैं।

(ख) कार्बनिक पदार्ध (Organic Substances)-इसमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, हूमस, क्लोरोफिल, लिपिड इत्यादि होते हैं तथा ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय और जीवीय घटकों को जोड़ने का सम्बन्ध स्थापित करने में प्रयुक्त होते हैं।

(ग) जलवायवीय कारक (Climatic Factors)-जैसे-प्रकाश, तापक्रम, आर्द्रता, पवन, वर्षा इत्यादि भौतिक कारक हैं। इन सभी भौतिक कारकों में से सूर्य की विकिरण ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र के ऊर्जा स्रोत के लिए महत्चपूर्ण होती है। किसी पारिस्थितिक-तंज्र में नियत समय में उपस्थित अजैव पदार्थों की मात्रा को स्थायी अवस्था (Standing State) या स्थायी गुणता (Standing Quality) कहा जाता है, जबकि जैविक पदार्थों या कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा को खड़ी फसल या स्थित शस्य (Standing Crop) कहते हैं। इसे इकाई क्षेत्र में उपस्थित जीवों की संख्या या जैवभार (Biomass) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

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उपर्युक्त अजीवीय घटक पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति को सुनिश्चित कर इसमें जीवों को सीमित रखते हुए इस तंत्र के प्रकार्यों को नियंत्रित करते हैं। मृदा में पाये जाने वाले खनिजों को पौधे अवशोषित कर शरीर निर्माण में उपयोग लेते हैं तथा सूर्य के प्रकाश में उपस्थित ऊर्जा के सहयोग से भोजन का निर्माण करते हैं।

इन सभी खनिजों में से विशेषत: C,H, N, P इत्यादि पौधों तथा जन्तुओं के शरीर निर्माण हेतु परम आवश्यक हैं। जीवों की मृत्यु पश्चात् इनके शरीर अपघटित कर दिये जाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में वापस चली जाती है तथा खजिन लवण पुन: भूमि में मिल जाते हैं तथा इस भूमि से पौधे उनका पुनः अवशोषण करते रहते हैं।

अतः इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में खानिज लवणों का चक्र चलता रहता है। इसे खनिज प्रवाह कहा जाता है। इस खनिज प्रवाह को चलायमान रखने हेतु जीवीय तथा अजीवीय दोनों घटक निरन्तर क्रियाशील रहते हैं। इसलिए इसे खनिज प्रवाह के साथ-साथ जैवभूरासायनिक चक्र (Bio-geochemical cycle) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
(i) पारिस्थितिक अनुक्रमण किसे कहते हैं?
(ii) प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रमण में प्रमुख अन्तर बताइए।
(iii) खाली एवं नग्न क्षेत्र में पादपों का अनुक्रमण समझाइए।
(iv) कुंज चरण का चित्र बनाइए।
उत्तर:
(i) किसी एक ही स्थान पर होने वाले दीर्घकालीन एकदिशीय (unidirectional) समुदाय परिवर्तनों को या समुदाय के विकासीय प्रक्रम को पारिस्थितिक अनुक्रमण कहते हैं।

प्राथमिक अनुक्रमण द्वितीयक अनुक्रमण
वनस्पति रहित स्थलों (प्राथमिक अनाच्छादित क्षेत्र) पर होने वाला अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण क ह लाता है। भू-स्खलन, ज्वालामुखी के फटने, कोरल शैलों (Coral reef) के निर्माण, रेतीले टीले, नग्न चट्टानें आदि क्षेत्र इसी श्रेणी में आते हैं। ऐसे स्थल जहाँ पूर्व में वनस्पति हो, लेकिन बाढ़, अग्नि, काष्ठ कर्तन (Wood Cutting), कृषि या अन्य कारणों से नष्ट हो गई हो तथा नई प्रकार की वनस्पति पुनः स्थापित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो तो उसे द्वितीयक अनुक्रमण कहते हैं।

(iii) नग्न चट्टानों पर सर्वप्रथम उगने वाले अर्थात् पुरोगामी पौधे प्रायः नील हरित शैवाल व पर्पटी लाइकेन उगते हैं। ये चट्टानों का संक्षारण कर मृदा की एक पतली परत बना देते हैं। अनुक्रमण के द्वितीय चरण में इस परिवर्तित आवास में अनेक मॉस जातियाँ उगने लगती हैं जो वायु में उपस्थित मृदा कणों को संग्रहित कर मृदा संचयन की प्रक्रिया को बढ़ाती हैं तथा अम्लीय स्थिति उत्पन्न कर खनिजों के जल अपघटन करती हैं।

अब मृदा में जल धारण क्षमता, कार्बनिक पदार्थ व खनिज पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ने से यह स्थान इनके लिए उपयुक्त नहीं रहता। अनुक्रमण के तृतीय चरण में अब एकवर्षीय तत्पश्चात् द्विवर्षीय व बाद में बहुवर्षीय शाकीय पौधे उगने लगते हैं। इन सभी पौधों की जड़ें शैल विघटन की क्रिया को बढ़ाती हैं।

अंतत: अनुक्रमण के चतुर्थ चरण में मरुद्भिद क्षुप आदि प्रकट होने लगते हैं जो शाकीय पौधों को प्रतिस्थापित करते हैं। ये चट्टानों का अधिक विघटन करते हैं तथा इनके सूखे गिरे पत्ते व टहनियाँ मृदा को अधिक उर्वर बनाते हैं। अब कुछ वर्षों बाद इनके स्थान पर मरुद्भिद वृक्ष उगने लगते हैं।
(iv) कुंज चरण का चित्र –
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प्रश्न 4.
(i) पोषण चक्र किसे कहते हैं?
(ii) गैसीय तथा अवसादी पोषक चक्र में प्रमुख अन्तर बताइए।
(iii) पारितंत्र में कार्बन चक्र को संक्षेप में समझाइए।
(iv) भूमण्डल में कार्बन चक्र के सरलीकृत मॉडल का चित्र बनाइए।
उत्तर:
(i) पोषण चक्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्वों की गतिशीलता को पोषण चक्रण (nutrient cycle) कहते हैं।

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(ii) गैसीय तथा अवसादी पोषक चक्र में प्रमुख अन्तर बताइए ।
उत्तर:

गैसीय चक्र अवसादी चक्र
1. इनका निचय कुण्ड (Reservoir pool) वायु- मण्डल या जल-मण्डल होता है। इनका निचय कुण्ड स्थलमण्डल होता है।
2. इनके चक्र पूर्ण होते हैं। इनके चक्र अपूर्ण होते हैं।
3. बार-बार चक्रीय प्रवाह के दौरान इनकी मात्रा कम नहीं होती है। मात्रा कम होती है क्योंकि कुछ मात्रा समुद्र, भूमि या अन्य जलाशयों की तलहटी में समाहित हो जाती है।
4. उदाहरण-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन चक्र। उ दाह र ण-सल्फ र, फॉस्फोरस चक्र।

(iii) पारितंत्र में कार्बन चक्र को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
पारितंत्र-कार्बन चक्र (Ecosystem-Carbon cycle) सजीवों की संरचना का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि जीवों के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग कार्बन से बना होता है। जल के पश्चात् सर्वाधिक मात्रा कार्बन की ही होती है। यदि भूमण्डलीय कार्बन की कुल मात्रा का ध्यान करें तो हम यह पाते हैं कि समुद्र में 71 प्रतिशत कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है।

यह सागरीय कार्बन भंडार वायुमण्डल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है (चित्र 14.9)। कुल भूमण्डलीय कार्बन का केवल एक प्रतिशत भाग ही वायुमण्डल में समाहित है। जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के भंडार का प्रतिनिधित्व करता है। कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित व मृतजीवों द्वारा सम्पन्न होता है।

अनुमानानुसार जैव मण्डल में प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 × 1013 कि.ग्रा. कार्बन का स्थिरीकरण होता है। एक महत्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। इसके साथ ही भूमि एवं सागरों की कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री की अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
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पोषक और पादप पोषक में जुड़ते हैं। जब कुल प्राथमिक उत्पादन, श्वसन से अधिक होता है तब पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन-समृद्ध जैविक पदार्थ संचित होता है। प्राचीन समय में इस प्रकार का संचयन जीवाष्मी ईंधन, कोयला और तेल के रूप में होता था। यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है।

लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि के अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त किया जाता है। कार्बन चक्र में मानवीय क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण प्रभाव है। तेजी से जंगलों का विनाश तथा परिवहन एवं ऊर्जा के लिए जीवाश्मी ईंधनों को जलाने आदि से महत्वपूर्ण रूप से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करने की दर बढ़ी है।

(iv) भूमण्डल में कार्बन चक्र के सरलीकृत मॉडल का चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं? एक स्थलीय पारितंत्र में अपघटन चक्र का वर्णन कीजिए। इसका आरेखीय निरूपण बनाइए ।
उत्तर:
अपघटक जटिल कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक तत्त्वों जैसे CO2, जल एवं पोषक पदार्थों में खण्डित करने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया को अपघटन (decomposition) कहते हैं । इस प्रक्रिया में कवक, जीवाणुओं, अन्य सूक्ष्म जीवों के अतिरिक्त छोटे प्राणियों जैसे निमेटोड, कीट, केंचुए आदि का मुख्य योगदान रहता है। पौधों तथा जन्तुओं के मृत अवशेषों को अपरद (detritus) कहते हैं।
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अपघटन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण चरण खंडन निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस बनना (humification) व खनिजीकरण (mineralisation ) हैं। अपरदहारी (जैसे कि केंचुए) अपरद को छोटे-छोटे कणों में खंडित कर देते हैं। इसे खंडन कहते हैं। निक्षालन प्रक्रिया के अन्तर्गत जल – विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदासंस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं।

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‘जीवाणुवीय एवं कवकीय एन्जाइम्स अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्त्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को अपचयन कहते हैं। अपघटन की सभी क्रियायें अपरद पर समानांतर रूप से निरंतर चलती रहती हैं (चित्र को देखिए)। ह्यूमीफिकेशन (humification) और खनिजीकरण (mineralisation) की प्रक्रिया अपघटन के दौरान मृदा में सम्पन्न होती है।

ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्त्व का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस (humus) कहते हैं। इसका अपघटन बहुत ही धीमी गति से चलता रहता है। इसकी प्रकृति कोलाइडल होने से यह पोषक के भंडार का कार्य करता है। ह्यूमस पुन: कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित होता है और खनिजीकरण प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पोषक उत्पन्न होते हैं।
अथवा
(i) पोषक चक्र क्या है?
(ii) भूमण्डल में कार्बन चक्र का आरेखित चित्र बनाकर समझाइये |
उत्तर:
(i) पोषक चक्र (Nutrient Cycle) – एक पारितंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्त्वों की गतिशीलता को पोषक चक्र कहा जाता है। पोषक चक्र का एक अन्य नाम जैव भू रसायन चक्र (Biogeochemical cycle) भी है।

(ii) कार्बन चक्र (Carbon Cycle) – जीवों के शुष्क भार का 49% भाग कार्बन से बना होता है। समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में होती है। यह सागरीय कार्बन भंडार वायुमंडल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है। कुल भूमंडलीय कार्बन का केवल एक प्रतिशत भाग वायुमंडल में समाहित है।

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जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के भंडार हैं। कार्बन चक्र वायुमंडल, सागर तथा जीवित एवं मृतजीवों द्वारा सम्पन्न होता है। अनुमानानुसार जैव मंडल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 × 103 किग्रा. कार्बन का स्थिरीकरण होता है । उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमंडल में महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में वापस आती है। इसी के साथ भूमि एवं सागरों के कचरा सामग्री व मृत कार्बनिक सामग्री की अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी CO2 की काफी ।

प्रश्न 6
पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह से आप क्या समझते हैं? विभिन्न पोषण स्तरों में से होते हुए ऊर्जा प्रवाह को समझाइए । एक खाद्य श्रृंखला का आरेखी चित्र बनाइए ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवेश, स्थानान्तरण, रूपान्तरण एवं वितरण ऊष्मागतिकी के दो मूल नियमों (Law of thermodynamics) के अनुरूप होता है। कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। प्रत्येक जीव को अपनी जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का एकमात्र एवं अन्तिम मुख्य स्रोत सूर्य है। पृथ्वी पर पहुँचने वाली कुल प्रकाश ऊर्जा का केवल 1% भाग प्रकाश संश्लेषण द्वारा खाद्य ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित हो पाता है।

वन वृक्षों में यह दक्षता 5% तक हो सकती है। शेष ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में ह्रास हो जाता है। पृथ्वी पर कुल प्रकाश संश्लेषण का लगभग 90% भाग जलीय पौधों विशेषत: समुद्रीय डायटमों (Diatoms) शैवालों द्वारा सम्पन्न होता है। और शेष भाग स्थलीय पौधों द्वारा होता है। इनमें भी वन वृक्ष सबसे अधिक प्रकाश संश्लेषण करते हैं। इसके बाद कृष्य ( cultivated ) पौधे तथा घास जातियाँ आती हैं।

कोई भी जीव प्राप्त की गई ऊर्जा के औसतन 10% से अधिक ऊर्जा अपने शरीर निर्माण में प्रयोग नहीं कर पाता है तथा शेष 90% ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में श्वसन आदि क्रियाओं में ह्रास हो जाता है अर्थात् खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा के स्थानान्तरण में एक पोष स्तर पर लगभग 10% ऊर्जा ही संग्रहित होती है। इसे पारिस्थितिक दशांश का नियम (Rule of ecological tenthe) कहते हैं।

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इस प्रकार यदि किसी स्थान पर सौर ऊर्जा की मात्रा 100 कैलोरी हो तो पादपों (प्राथमिक उत्पादक) को 10 कैलोरी, उन पादपों का चारण करके शाकभक्षी को केवल 1 कैलोरी और उस शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता) को खाकर मांसाहारी (द्वितीयक उपभोक्ता) में केवल 0.1 कैलोरी ऊर्जा संग्रहित होगी तथा अपघटक तक यह बहुत न्यून मात्रा में पहुँचेगी । वास्तव में ऊर्जा संकल्पना में ऊर्जा का एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में स्थानान्तरण एवं रूपान्तरण है।
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पादप प्लवक → जन्तु प्लवक → छोटी मछली → बड़ी → मछली → मनुष्य

प्रश्न 7.
पारिस्थितिक पिरैमिड से आप क्या समझते हैं? घास मैदान में जैवमात्रा पिरैमिड का वर्णन चित्र की सहायता से कीजिए ।
उत्तर:
यदि पारितंत्र के प्रथम पोष स्तर को आधार मानकर क्रमशः उत्तरोत्तर विभिन्न पोष स्तरों को चित्र में दिखाया जावे तो इससे स्तूपाकार (Pyramid ) लेखाचित्र प्रदर्शित होता है तथा इन्हें ही पारिस्थितिक स्तूप या पिरैमिड कहते हैं। जीवभार के पिरामिड (Pyramid of Biomass ) – पारिस्थितिक तंत्र में भोजन श्रृंखला तथा प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के पारस्परिक सम्बन्ध दर्शाने का अन्य पारिस्थितिक पिरामिड जीवभार पिरामिड है ।

एक पारिस्थितिक तंत्र के जीवों का जो इकाई क्षेत्र में शुष्क भार (Dry Weight) होता है उसे जीवभार (Biomass) कहते हैं। इसमें भी यदि प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के जीवभार के आधार पर लेखाचित्र बनाया जावे तो यह ठीक स्तूप जैसा बनता है। जीवभार या जैवभार के आधार पर जो पिरैमिड बनते हैं उनसे यह ज्ञात होता है कि प्रायः उत्पादक स्तर का जीवभार सर्वाधिक होता है तथा धीरे-धीरे अन्य स्तरों में यह जीवभार क्रमशः कम होता है। जीवभार के आधार पर स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के पिरैमिड सीधे बनते हैं; जैसे- घास के जैवमात्रा के पिरैमिड इसमें उत्पादक से उपभोक्ता की ओर क्रमश: जैवमात्रा की निरन्तर कमी होती जाती है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 15

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. एक पारितंत्र में सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है? (NEET-2020)
(अ) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से अधिक होती है।
(ब) सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता एक ही हैं और अभिन्न हैं।
(स) सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है।
(द) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से कम होती है।
उत्तर:
(अ) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से अधिक होती है।

2. घास भूमि पारितंत्र में पोषी स्तरों के साथ जातियों के सही उदाहरण को सुमेलित कीजिए- (NEET-2020)

1. चतुर्थ पोषी स्तर (i) कौआ
2. द्वितीय पोषी स्तर (ii) गिद्ध
3. प्रथम पोषी स्तर (iii) खरगोश
4. तृतीय पोषी स्तर (iv) घास
(1) (2) (3) (4)
(अ) (iii) (ii) (i) (iv)
(ब) (iv) (iii) (ii) (i)
(स) (i) (ii) (iii) (iv)
(द) (ii) (iii) (iv) (i)

उत्तर:

(द) (ii) (iii) (iv) (i)

3. निम्नलिखित में से कौनसा पारिस्थितिकी पिरैमिड सामान्यतः उल्टा होता है? (MHCET-2003, Mains-2005, NEET-2019)
(अ) एक समुद्र में जैवभार का पिरैमिड
(ब) घास भूमि में संख्या का पिरैमिड
(स) ऊर्जा का पिरैमिड
(द) एक वन में जैवभार का पिरैमिड
उत्तर:
(अ) एक समुद्र में जैवभार का पिरैमिड

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

4. किस पारितंत्र में अधिकतम जैवभार होता है? (NEET-2017)
(अ) वन पारितंत्र
(ब) घास स्थल पारितंत्र
(स) ताल पारितंत्र
(द) झील पारितंत्र
उत्तर:
(अ) वन पारितंत्र

5. एक नग्न चट्टान पर एक अग्रगामी जीव के रूप में निम्नलिखित में से कौन आयेगा? (NEET I-2016)
(अ) मॉस
(ब) हरित शैवाल
(स) लाइकेन
(द) लिवरवर्ट
उत्तर:
(स) लाइकेन

6. इकोसिस्टम (पारितंत्र) शब्द सबसे पहले किसने बनाया था? (RPMT-2005, NEET-2016)
(अ) ई. हेकल
(ब) ई. वार्मिग
(स) ई.पी. ओडम
(द) ए.जी. टेन्सले
उत्तर:
(द) ए.जी. टेन्सले

7. ज्यादातर जन्तु जो गहरे समुद्र में रहते हैं, वे होते हैं- (NEET-2015)
(अ) द्वितीयक उपभोक्ता
(ब) तृतीयक उपभोक्ता
(स) अपरद भोजी
(द) प्राथमिक उपभोक्ता
उत्तर:
(स) अपरद भोजी

8. निम्नलिखित में से दोनों युग्मकों में सही संयोजन है- (NEET-2015)

(अ) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र – कार्बन और सल्फर नाइट्रोजन और फास्फोरस
(ब) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र – नाइट्रोजन और सल्फर कार्बन और फास्फोरस
(स) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र – सल्फर और फास्फोरस कार्बन और नाइट्रोजन
(द) गैसीय पोष्ण चक्त अवसादी पोषण चक्र – कार्बन और नाइट्रोजन् सल्फर और फास्फोरस

उत्तर:

(द) गैसीय पोष्ण चक्त अवसादी पोषण चक्र – कार्बन और नाइट्रोजन् सल्फर और फास्फोरस

9. फास्फोरस का प्राकृतिक भण्डार कौनसा है- (NEET-2013)
(अ) समुद्री जल
(ब) प्राणी अस्थियाँ
(स) शैल
(द) जीवाश्म
उत्तर:
(स) शैल

10. द्वितीयक उत्पादकता किसके द्वारा नये कार्बनिक पदार्थ बनाने की दर है- (NEET-2013)
(अ) उत्पादक
(ब) परजीवी
(स) उपभोक्ता
(द) अपघटक
उत्तर:
(स) उपभोक्ता

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11. निम्नलिखित में वह कौन एक है जो पारिस्थितिक तंत्र की कोई कार्यात्मक इकाई नहीं है? [CBSE PMT (Pre), NEET-2012]
(अ) ऊर्जा प्रवाह
(ब) अपघटन
(स) उत्पादकता
(द) स्तरीकरण (स्ट्रैटीफिकेशन)
उत्तर:
(द) स्तरीकरण (स्ट्रैटीफिकेशन)

12. संख्या का सीधा पिरामिड किसमें नहीं होता है? [NEET-2012, CBSE PMT (Pre) 2012]
(अ) ताल
(ब) वन
(स) झील
(द) घास स्थल
उत्तर:
(ब) वन

13. निम्नलिखित खाद्य शृंखला में संभावित कड़ी ‘A’ क्या हो सकती है, पहचानिए-
पौधा→ कीट→ मेंढ़क→ ‘A ‘→ गिद्ध [CBSE PMT (Pre)-2012]
(अ) खरगश
(ब) भेड़िया
(स) नाग
(द) तोता
उत्तर:
(स) नाग

14. निम्नलिखित में से वह कौनसा एक प्राणी है जो एक ही पारितंत्र के भीतर एक ही समय पर एक से अधिक पोषक स्तरों को ग्रहण कर सकता है- [NEET 2009, CBSE PMT (Mains)-2011]
(अ) बकरी
(ब) मेंढ़क
(स) गाँरैया
(द) शेर
उत्तर:
(स) गाँरैया

15. चरना (grazing) खाद्य श्शृंखला में, मांसाहारी को कहा जाता है- (Kerala PMT-2011)
(अ) प्राथमिक उत्पादक
(ब) द्वितीयक उत्पादक
(स) प्राथमिक उपभोक्ता
(द) द्वितीयक उपभोक्ता
उत्तर:
(द) द्वितीयक उपभोक्ता

16. केंचुए द्वारा अपशिष्ट को छोटे टुकड़ों में तोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं- (Mains-2011)
(अ) अपचयन
(ब) ह्यूमिकरण
(स) विखण्डन
(द) खनिजीकरण
उत्तर:
(स) विखण्डन

17. ऊर्जा का पिरामिड होता- [RPMT-2005, AMU (Med)-2010, AFMC-2010]
(अ) सीधा
(स) तिरछा
(ब) उल्टा
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सीधा

18. प्रत्येक ट्रेफिक स्तर के जीव द्वारा ऊर्जा का कितना प्रतिशत उपभोग होता है- (BHU-2005, 2008, DUMET-2010)
(अ) 20%
(ब) 30%
(स) 90%
(द) 10%
उत्तर:
(द) 10%

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19. एक पारिस्थिनिकी तंत्र के लिए ऊर्जा का स्रोत है- (CPMT-2002, RPMT-2005, Orissa-2010)
(अ) सर्यू
(ब) ATP
(स) पौधों द्वारा निर्मित शर्करा
(द) हरे पौधे
उत्तर:
(अ) सर्यू

20. इकोसिस्टम की प्राथमिक उत्पादकता की प्राय: सीमा क्या होती है? (Orissa JEE-2009)
(अ) सोलर विकिरण
(ब) ऑक्सीजन
(स) उपभोक्ता
(द) नाइट्रोजन
उत्तर:
(अ) सोलर विकिरण

21. सही खाद्य श्रृंखला को पहचानिए- (WB JEE-2009)
मृत जानवर → मैगट फ्लाइ का प्रवाह → सामान्य मेंढ़क → सांप
(अ) चरण खाद्य शृंखला
(ब) मृत खाद्य श्रृंखला
(स) अपघटन खाद्य शृंखला
(द) परभक्षी खाद्य श्रृंखला
उत्तर:
(ब) मृत खाद्य श्रृंखला

22. निम्न में से कौन मनुष्य निर्मित इकोसिस्टम है- (WB JEE-2009)
(अ) हरबेरियम
(ब) एक्यूरेयिम
(स) ऊतक संवर्धन
(द) वन
उत्तर:
(ब) एक्यूरेयिम

23. तालाब के पारितंत्र में कौनसा जीव एक से अधिक पोषक स्तर पर स्थान ग्रहण करता है- (CBSE AIPMT-2009)
(अ) पादपप्लवक
(ब) जन्तुप्लवक
(स) मछली
(द) मेंढक
उत्तर:
(स) मछली

24. निम्न में से कौन अपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है- (WB JEE-2008)
(अ) घास मैदान
(ब) गुफा
(स) नदी
(द) वेट लैण्ड
उत्तर:
(ब) गुफा

25. लघु जीव क्या है? (J&K CET-2008)
(अ) प्रारम्भिक उपभोका
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) अपघटक
उत्तर:
(द) अपघटक

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26. पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा है- (MP PMT-2006)
(अ) पौधे का वह समूह जो ऊर्जा आपूर्ति करता है
(ब) पौधों का वह समूह जो जनसंख्या बनाता है
(स) पारिस्थितिक अध्ययन की कार्यिकी इकाई है
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पारिस्थितिक अध्ययन की कार्यिकी इकाई है

27. अपघटक होते हैं- (BHU-2006)
(अ) स्वपोषी
(ब) ऑर्गेनोट्रॉप्स
(स) स्वतः विषमपोषी
(द) विषमपोषी
उत्तर:
(द) विषमपोषी

28. पारितंत्र होता है- (MP PMT-2002; Orissa JEE-2005)
(अ) खुला
(ब) बंद
(स) दोनों खुला और बंद
(द) न ही खुला न बंद
उत्तर:
(अ) खुला

29. झील पारितंत्र में जैवभार का पिरैमिड होता है- (Bihar-2005)
(अ) सीधा
(ब) उल्टा
(स) कोई भी संभव है
(द) कोई भी सत्य नहीं है
उत्तर:
(ब) उल्टा

30. स्थाई पारितंत्र में पिरैमिड जो उल्टा नहीं हो सकता, वह पिरैमिड है- (HP PMT-2005; ORISSA JEE-2005)
(अ) संख्या का
(ब) ऊर्जा का
(स) जैव भार (Biomass) का
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) ऊर्जा का

31. यदि पारितंत्र को बनाये रखा जाये तो निम्न में से क्या परिरक्षित रह पायेगा- (Kerala PMT-2004)
(अ) उत्पादक तथा मांसाहारी
(ब) उत्पादक तथा अपघटक
(स) मांसाहारी तथा अपघटक
(द) शाकाहारी तथा मांसाहारी
उत्तर:
(ब) उत्पादक तथा अपघटक

32. शाकाहारी से मांसाहारी स्तर में ऊर्जा स्थानान्तरण में कितनी कमी आती है- (AIEEE-2004)
(अ) 5%
(ब) 10%
(स) 20%
(द) 30%
उत्तर:
(ब) 10%

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33. खाद्य शृंखला के समय सर्वाधिक ऊर्जा संचित होती है- (MHCET-2001; Pb. PMT-2004)
(अ) उत्पादक
(ब) अपघटक
(स) शाकाहारी
(द) मांसाहारी
उत्तर:
(अ) उत्पादक

34. ये प्राथमिक उपभोक्ता की श्रेणी से संबंधित होते हैं- (KCET-2004)
(अ) सर्प और मेंढक
(ब) जलीय कीट
(स) बाज और सर्प
(द) कीट और मवेशी
उत्तर:
(द) कीट और मवेशी

35. खाद्य श्रृंखला का प्रारम्भ होता है- (BVP-2002; MP PMT-2004)
(अ) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवों से
(ब) प्रकाश-संश्लेषण से
(स) श्वसन से
(द) अपघटकों से
उत्तर:
(ब) प्रकाश-संश्लेषण से

36. खाद्य शृंखला में जीवित पदार्थों की कुल मात्रा को किसके द्वारा प्रदर्शित किया जाता है- (Pb. PMT-2004)
(अ) जैवभार के पिरैमिड
(ब) ऊर्जा का पिरैमिड
(स) संख्या का पिरैमिड
(द) पोषक स्तर
उत्तर:
(अ) जैवभार के पिरैमिड

37. निम्न में से किस पारितंत्र की सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता उच्चतम है- (CBSE PMT-2004)
(अ) घास के मैदान
(ब) कोरल रीफ
(स) मैन्यूव
(द) वर्षा वन
उत्तर:
(ब) कोरल रीफ

38. पादप अनुक्रमण में अंतिम स्थिर समुदाय कहलाता है- (DPMT-2004)
(अ) क्रमक समुदाय
(ब) अग्रणी समुदाय
(स) इकोस्फीयर
(द) चरम समुदाय
उत्तर:
(द) चरम समुदाय

39. निम्नलिखित में से कौनसा सर्वाधिक स्थाई पारितंत्र है- (RPMT-2004)
(अ) वन का
(ब) पर्वतों का
(स) मरुस्थल का
(द) सागर का
उत्तर:
(द) सागर का

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40. निम्नलिखित में से किस पारितंत्र में उच्च सकल प्राथमिक उत्पादकता होती है- (DPMT-2003)
(अ) मैंग्रूव
(ब) वर्षा वन
(स) कोरल रीफ्स
(द) घास स्थल
उत्तर:
(ब) वर्षा वन

41. यदि अपघटनकर्ताओं को हटा दिया जाये तो पारिस्थितिक तंत्र का क्या होगा? (BHU-2003)
(अ) ऊर्जा का चक्रीकरण रुक जायेगा
(ब) खनिजों का चक्रीकरण रूक जायेगा
(स) उपभोक्ता सौर ऊर्जा को अवशोषित नहीं कर पायेंगे
(द) खनिजों के विखंडन की दर बढ़ जायेगी।
उत्तर:
(ब) खनिजों का चक्रीकरण रूक जायेगा

42. जैव संतुलन किसमें पाया जाता है- (MHCET-2003)
(अ) केवल उत्पादक
(ब) उपभोक्ता एवं उत्पादक
(स) अपघटक
(द) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक
उत्तर:
(द) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक

43. किसी पारितंत्र में प्रकाश ऊर्जा का कार्बनिक अणुओं की रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन की दर कहलाती है- (Kerala CET-2003)
(अ) नेट प्राथमिक उत्पाद्कता
(ब) सकल द्वितीयक उत्पादकता
(स) नेट द्वितीयक उत्पादकता
(द) सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता

44. खाद्य शृंखला में सम्मिलित है- (MP PMT-2000, 03)
(अ) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटनकर्त्ता
(ब) उत्पादक, मांसाहारी एवं अपघटनकर्त्ता
(स) उत्पादक एवं प्राथमिक उपभोक्ता
(द) उत्पादक, शाकाहारी एवं मांसाहारी
उत्तर:
(अ) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटनकर्त्ता

45. खाद्य भृंखला में शेर है एक- (MHCET-2003)
(अ) द्वितीयक उपभोक्ता
(ब) प्राथमिक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) द्वितीयक उत्पादक
उत्तर:
(स) तृतीयक उपभोक्ता

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46. पारितंत्र में होते है- (PB PMT-2003)
(अ) उत्पादक
(ब) उपभोक्ता
(स) अपघटक
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

47. फॉस्फोरस चक्र में अपक्षरण द्वारा उत्पन्न फॉस्फेट सर्वप्रथम उपलब्ध होती है- (AMU-2002)
(अ) उत्पादकों को
(ब) अपघटकों को
(स) उपभोक्ताओं को
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) उत्पादकों को

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