HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता को परिभाषित करें।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के विद्वान मैक्नी के अनुसार, “स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि युक्ति-रहित प्रतिबंधों के स्थान पर युक्ति-युक्त प्रतिबंधों को लगाना है।”

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के नकारात्मक रूप का वर्णन करें।
उत्तर:
नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होना और उसकी स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध न होना, परंतु स्वतंत्रता का यह अर्थ सही नहीं है। यदि स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध न हो तो समाज में अराजकता फैल जाएगी और समाज में एक ही कानून होगा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस ।’

प्रश्न 3.
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि लोगों को अपनी जीविका कमाने की स्वतंत्रता हो तथा इसके लिए उन्हें उचित साधन व सुविधाएं प्राप्त हों। नागरिकों की बेरोज़गारी और भूख से मुक्ति हो तथा प्रत्येक को काम करने के समान अवसर प्राप्त होने चाहिएँ।

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तात्पर्य है कि व्यक्ति को ऐसे कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करना जो केवल उस तक ही सीमित हों और उनके करने से दूसरों पर किसी प्रकार का प्रभाव न पड़ता हो।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है? उत्तर प्राकृतिक स्वतंत्रता से तात्पर्य है कि मनुष्य को वह सभी कुछ करने की स्वतंत्रता दी जाए जो कुछ वह करना चाहता है। प्रश्न 6. स्वतंत्रता की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव नहीं है,
  • स्वतंत्रता केवल समाज में ही प्राप्त हो सकती है,
  • स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को समान रूप से मिलती है।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपयोग की आवश्यक दो दशाएँ बताइए।
अथवा
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक किन्हीं दो शर्तों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता के उपयोग के लिए आवश्यक है कि स्वतंत्रता सबके लिए एक समान हो तथा सबको स्वतंत्रता एक समान मिलनी चाहिए।
  • शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध स्वतंत्रता का होना अनिवार्य है। स्वतंत्रता के उपयोग के लिए लोकतंत्र तथा प्रेस की स्वतंत्रता का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 8.
क्या स्वतंत्रता असीम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता व्यक्ति के विकास के लिए अति आवश्यक है। स्वतंत्रता का सही अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उन कार्यों को करने का अधिकार हो जिससे दूसरे व्यक्तियों को हानि न पहुंचे। स्वतंत्रता पर अनैतिक तथा निरंकुश बंधन नहीं होने चाहिएँ, परंतु स्वतंत्रता असीम नहीं है। सभ्य समाज में स्वतंत्रता बिना बंधनों व कानूनों के दायरे में होती है, परंतु स्वतंत्रता पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित बंधन नहीं होने चाहिएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 9.
स्वतंत्रता के किन्हीं चार प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के चार प्रकार निम्नलिखित हैं

  • प्राकृतिक स्वतंत्रता,
  • नागरिक स्वतंत्रता,
  • आर्थिक स्वतंत्रता तथा
  • राजनीतिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 10.
स्वतंत्रता के किन्हीं तीन संरक्षकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के तीन संरक्षक निम्नलिखित हैं

  • मौलिक अधिकारों की घोषणा,
  • प्रजातंत्र व्यवस्था का होना,
  • कानून का शासन।

प्रश्न 11.
सकारात्मक स्वतंत्रता की किन्हीं तीन विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है।
  • सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ विशेषाधिकारों का अभाव है।
  • राज्य स्वतंत्रताओं का रक्षक है।

प्रश्न 12.
स्वतंत्रता के मार्क्सवादी सिद्धांत की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • पूंजीवादी व्यवस्था में स्वतंत्रता संभव नहीं है।
  • हिंसात्मक क्रांति द्वारा परिवर्तन।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका का अभाव।

प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के मार्क्सवादी सिद्धांत की आलोचना के दो शीर्षकों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • व्यक्तिगत संपत्ति का विरोध गलत है।
  • पूंजीवादी समाज की आलोचना अनुचित।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता शब्द को अंग्रेज़ी भाषा में ‘Liberty’ कहते हैं। ‘लिबर्टी’ शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से निकला है, जिसका अर्थ है-‘पूर्ण स्वतंत्रता’ अथवा किसी प्रकार के बंधनों का न होना। इस प्रकार स्वतंत्रता का अर्थ है-व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बंधन नहीं होना चाहिए, परंतु स्वतंत्रता का यह अर्थ गलत है। स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबंध नहीं होने चाहिएं, वरन उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जिनसे उसे अपना विकास करने में सहायता मिलती हो।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की कोई तीन परिभाषाएँ लिखिए।
उत्तर:
1. गैटेल के अनुसार, “स्वतंत्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनंद प्राप्त होता है जो कि करने योग्य हैं।”

2. कोल के अनुसार, “बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने का नाम स्वतंत्रता है।”

3. प्रो० लास्की के अनुसार, “स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण की उत्साहपूर्ण रक्षा करना है जिससे मनुष्य को अपना उज्ज्वलतम स्वरूप प्रकट करने का अवसर प्राप्त होता है।” अतः स्वतंत्रता अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों का होना है। स्वतंत्रता उस वातावरण को कहा जा सकता है, जिसका लाभ उठाकर व्यक्ति अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास कर सके।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता की कोई पाँच विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • सभी तरह की पाबंदियों का अभाव स्वतंत्रता नहीं है।
  • निरंकुश, अनैतिक, अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
  • स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होती है।
  • व्यक्ति को वह सब कार्य करने की स्वतंत्रता है जो करने योग्य हैं।
  • स्वतंत्रता का प्रयोग समाज के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
नागरिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नागरिक स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है जो व्यक्ति को एक संगठित समाज का सदस्य होने के रूप में मिलती है। जीवन के विकास के लिए व्यक्ति को अनेक प्रकार की सुविधाओं की आवश्यकता होती है। ऐसी सुविधाएं केवल संगठित समाज में ही संभव हो सकती हैं। समाज में रह रहे व्यक्ति को राज्य के कानूनों के प्रतिबंधों के प्रसंग में जो सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उन सुविधाओं को सामूहिक रूप से नागरिक स्वतंत्रता का नाम दिया जाता है।

नागरिक स्वतंत्रता प्राकृतिक स्वतंत्रता के बिल्कुल विपरीत है। प्राकृतिक स्वतंत्रता संगठित समाज में प्रदान नहीं की जा सकती, जबकि नागरिक स्वतंत्रता केवल संगठित समाज में ही संभव हो सकती है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय राजनीतिक अधिकारों का प्राप्त होना है। ऐसे अधिकार केवल प्रजातांत्रिक समाज में ही प्राप्त हो सकते हैं। जिन राज्यों में राजनीतिक अधिकार प्रदान नहीं किए जाते, वहां राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व नहीं हो सकता। राजनीतिक स्वतंत्रता का अभिप्राय राज्य के कार्यों में भाग लेने के सामर्थ्य से है। मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने का अधिकार, याचिका देने का अधिकार आदि कुछ ऐसे राजनीतिक अधिकार हैं जिनकी प्राप्ति पर ही राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व निर्भर करता है।

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के दो संरक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के दो संरक्षण निम्नलिखित हैं

1. लोकतंत्र की व्यवस्था लोकतंत्रीय व्यवस्था में ही लोगों को स्वतंत्रता अधिक समय तक और अधिक-से-अधिक मात्रा में मिल सकती है। स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक आधार है और शासक जनता के प्रतिनिधि होने के कारण आसानी से स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते।

2. मौलिक अधिकारों की घोषणा अधिकारों का अतिक्रमण होने की संभावना राज्य की ओर से अधिक होती है। मौलिक अधिकार संविधान में लिखे होते हैं। ऐसा होने से अधिकारों का हनन राज्य द्वारा या व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता। मौलिक अधिकारों की घोषणा से स्वतंत्रता की रक्षा होती है।

प्रश्न 7.
स्वतंत्रता के सकारात्मक दृष्टिकोण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष से अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को वह सब कुछ करने की स्वतंत्रता है जो सभ्य समाज में करने के योग्य होता है। स्वतंत्रता के इस पक्ष का अर्थ प्रत्येक प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनैतिक, निरंकुश तथा अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों का अभाव है। स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष का अभिप्राय एक ऐसा वातावरण स्थापित करना है, जिसमें मनुष्य को अपना सर्वोत्तम विकास करने के लिए उपयुक्त अवसर प्राप्त हों। स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप का साधारण अर्थ है करने योग्य कार्यों को करने तथा उपभोग योग्य वस्तुओं का उपभोग करने की स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
आर्थिक स्वतंत्रता तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के संबंधों का वर्णन करें।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है-भूख और अभाव से मुक्ति। जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अवसर, काम की उचित मजदूरी की व्यवस्था तथा आर्थिक अभाव से छुटकारा । राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है-मत डालने, चुनाव लड़ने, सार्वजनिक पद प्राप्त करने और सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता। राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता में घनिष्ठ संबंध है।

जहाँ आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है, वहां राजनीतिक स्वतंत्रता कोई अर्थ नहीं है और यह वास्तविक नहीं है। एक भूखे व्यक्ति के लिए मताधिकार का भी कोई मूल्य नहीं, यदि वह अपनी रोजी-रोटी के लिए दूसरे की दया पर निर्भर है। एक मजदूर को यदि उसका मालिक बिना कारण तुरंत नौकरी से निकाल सकता है और उसे भूखा मरने पर मजबूर कर सकता है तो क्या वह मजदूर अपने मत का प्रयोग अपने मालिक की इच्छा के विरुद्ध नहीं कर सकता।

एक भूखे व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ने के अधिकार का तो कोई अर्थ ही नहीं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए धन चाहिए। गरीबी के कारण वोट बेचे जाते हैं और धनवान व्यक्ति उन्हें खरीदते हैं। यह भी सत्य है कि जिस व्यक्ति का धन पर नियंत्रण है, उसका प्रशासन पर भी प्रभाव जम जाता है। एक दिन की मजदूरी खोकर कोई भी मजदूर अपनी आत्मा की आवाज़ के अनुरूप वोट डालने नहीं जा सकता। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता में गहरा संबंध है तथा दोनों साथ-साथ ही रह सकती हैं।

प्रश्न 9.
आधुनिक राज्य में स्वतंत्रता किस प्रकार सुरक्षित रखी जा सकती है? अथवा स्वतंत्रता की सुरक्षा के कोई पांच उपाय बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता मनुष्य के विकास व उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वतंत्रता की सुरक्षा के विभिन्न उपायों में से पांच उपाय अग्रलिखित हैं

1. प्रजातंत्र-स्वतंत्रता व प्रजातंत्र में गहरा संबंध है। स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रजातंत्र में ही की जा सकती है क्योंकि इस प्रकार की प्रणाली में जनता की सरकार होती है और लोगों के अधिकारों को छीना नहीं जा सकता। इसके विपरीत राजतंत्र प्रणाली में स्वतंत्रता की सुरक्षा नहीं हो सकती।

2. मौलिक अधिकारों की घोषणा जनता को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए लोगों के मौलिक अधिकारों की घोषणा कर उन्हें संविधान में लिख दिया जाता है, ताकि संविधान द्वारा लोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा हो सके।

3. स्वतंत्र प्रेस स्वतंत्र प्रेस भी लोगों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने में सहायता करती है। यदि प्रेस पर अनुचित दबाव हो तो कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक प्रकट नहीं कर सकता। स्वतंत्र प्रेस ही सरकार की सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखती है।

4. कानून का शासन-कानून का शासन स्वतंत्रता की सुरक्षा करता है। कानून के सामने सभी समान होने चाहिएं और सभी लोगों के लिए एक-सा कानून होना चाहिए। इससे शासन वर्ग की स्वेच्छाचारिता पर रोक लगती है।

5. स्वतंत्र न्यायपालिका स्वतंत्र न्यायपालिका लोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा करती है। कानून कितने ही अच्छे क्यों न हों, जब तक न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होती, कानूनों को सही ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। अतः कानूनों को लागू करने के लिए न्यायाधीश स्वतंत्र, निडर व ईमानदार होने चाहिएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 10.
क्या स्वतंत्रता पूर्ण होती है?
उत्तर:
स्वतंत्रता वास्तविक रूप में पूर्ण नहीं हो सकती। किसी भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से वह सब कुछ करने का अवसर या आजादी नहीं दी जा सकती जो वह करना चाहता है। समाज में रहते हुए व्यक्ति सामाजिक नियमों व कर्तव्यों से बंधा हुआ होता है और उसे अपने सभी कार्य दूसरों के सुख-दुःख, सुविधा-असुविधा को ध्यान में रखकर करने पड़ते हैं। पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ है स्वेच्छाचारिता, जो सामाजिक जीवन में संभव नहीं है।

समाज लोगों के आपसी सहयोग पर खड़ा है और कार्य कर रहा है। यदि प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए मनमानी करेगा तो समाज की शांति समाप्त हो जाएगी तथा जंगल जैसा वातावरण पैदा हो जाएगा। एक सभ्य समाज में हम पूर्ण स्वतंत्रता की कल्पना भी नहीं कर सकते। इस प्रकार स्वतंत्रता पूर्ण नहीं होती, बल्कि उचित प्रतिबंधों के अस्तित्व में ही कायम रहती है।

प्रश्न 11.
“शाश्वत जागरूकता ही स्वतंत्रता की कीमत है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
प्रो० लास्की ने ठीक ही कहा है, “शाश्वत जागरुकता ही स्वतंत्रता की कीमत है।” स्वतंत्रता की सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय स्वतंत्रता के प्रति जागरुक रहना है। नागरिकों में सरकार के उन कार्यों के विरुद्ध आंदोलन करने की हिम्मत व हौंसला होना चाहिए जो उनकी स्वतंत्रता को नष्ट करते हों। सरकार को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि यदि उसने नागरिकों की स्वतंत्रता को कुचला तो नागरिक उसके विरुद्ध पहाड़ की तरह खड़े हो जाएंगे। लास्की के शब्दों में, “नागरिकों की महान भावना, न कि कानूनी शब्दावली स्वतंत्रता की वास्तविक संरक्षक है।”

प्रश्न 12.
कानून तथा स्वतंत्रता में क्या संबंध है? अथवा ‘कानून स्वतंत्रता का विरोधी नहीं है।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिवादियों के मतानुसार, राज्य जितने अधिक कानून बनाता है, व्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही कम होती है। अतः उनका कहना है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कम-से-कम करे। परंतु आधुनिक लेखकों के मतानुसार स्वतंत्रता तथा कानून परस्पर विरोधी न होकर परस्पर सहायक तथा सहयोगी हैं।

राज्य ही ऐसी संस्था है जो कानूनों द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का आनंद उठा सकता है। राज्य कानून बनाकर एक नागरिक को दूसरे नागरिक के कार्यों में हस्तक्षेप करने से रोकता है। राज्य कानूनों द्वारा सभी व्यक्तियों को समान सुविधाएं प्रदान करता है, ताकि मनुष्य अपना विकास कर सके। स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। लॉक ने ठीक ही कहा है, “जहाँ कानून नहीं, वहां पर स्वतंत्रता भी नहीं।”

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? स्वतंत्रता के नकारात्मक तथा सकारात्मक सिद्धांतों का वर्णन करें।
अथवा
नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर बतलाइए। अथवा सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता का मानव समाज में बड़ा महत्त्व है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा उसकी प्रसन्नता के लिए इसका होना बहुत ही आवश्यक है। स्वतंत्र व्यक्ति ही अपने जीवन को अपनी इच्छा के अनुसार ढालकर उसे प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत कर सकता है। एक व्यक्ति को दूसरे के आदेश से किसी कार्य को करने में उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी कि उसे उसी कार्य को अपनी इच्छा के अनुसार करने से होती है।

इसके अतिरिक्त अपने व्यक्तिगत मामलों को जितनी अच्छी तरह से एक व्यक्ति स्वयं समझ सकता है और उनकी गुत्थियों को सुलझा सकता है, उतनी अच्छी तरह से दूसरा व्यक्ति न तो उन मामलों को समझ सकता है और न ही उनकी गुत्थियों को सुलझा सकता है। स्वतंत्रता से व्यक्ति का नैतिक स्तर भी ऊंचा होता है। उसमें आत्म-विश्वास, स्वावलंबिता तथा कार्य को प्रारंभ करने की शक्ति आदि गुण उत्पन्न होते हैं।

इस दृष्टिकोण से यह प्रजातंत्र के लिए भी आवश्यक है। वास्तव में, स्वतंत्रता प्रजातंत्र का आधार है। इंग्लैंड में तो स्वतंत्रता, जिसका अर्थ उस समय जनता के स्वार्थों की रक्षा करना ही समझा जाता था, की भावना तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ही दिखाई दी थी, जब मैग्ना कार्टा (MagnaCarta) नामक नागरिक स्वतंत्रता के अधिकार-पत्र की राजा जॉन के द्वारा घोषणा करवाई गई, परंतु इसका विस्तार से प्रचार व प्रसार सत्रहवीं शताब्दी में ही हुआ।

इंग्लैंड की महान क्रांति तथा फ्रांस की क्रांति ने यूरोप के सभी देशों में स्वतंत्रता की भावना फैला दी। फ्रांस की क्रांति के बाद लोकतंत्र के सिद्धांतों (Liberty, Equality, Fraternity) का झंडा सर्वत्र फहराया जाने लगा। बीसवीं शताब्दी तक यह झंडा एशिया व अफ्रीका के देशों में भी फहराया जाने लगा। व्यक्तिगत व राष्ट्रीय स्वतंत्रता अब भी सभी लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता है। स्वतंत्रता अर्थात Liberty शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से बना है, जिसका अर्थ है ‘कोई भी कार्य अपनी इच्छा के अनुसार करने की स्वतंत्रता’

साधारण व्यक्ति इस शब्द का अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता से लेता है जो बिल्कुल प्रतिबंध-रहित हो, परंतु राजनीति शास्त्र में प्रतिबंध-रहित स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता (Licence) है, स्वतंत्रता नहीं। राजनीति शास्त्र में स्वतंत्रता का अर्थ उस हद तक स्वतंत्रता है, जिस हद तक वह दूसरों के रास्ते में बाधा नहीं बनती। इसलिए स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं, ताकि प्रत्येक व्यक्ति की समान स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।

इसी कारण से मैक्नी ने कहा है, “स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि युक्तिरहित प्रतिबंधों के स्थान पर युक्तियुक्त प्रतिबंधों को लगाना है।” इसकी पुष्टि करते हुए जे०एस० मिल ने कहा है, “स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि हम अपने हित के अनुसार अपने ढंग से उस समय तक चल सकें जब तक कि हम दूसरों को उनके हिस्से से वंचित न करें और उनके प्रयत्नों को न रोकें।”

मानव अधिकारों की घोषणा (1789) में भी स्वतंत्रता का अर्थ इसी प्रकार से दिया है। इस घोषणा के अनुसार स्वतंत्रता व्यक्ति की वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति वे सभी कार्य कर सकता है जो दूसरों के उसी प्रकार के अधिकारों पर कोई दुष्प्रभाव न डालें।

राजनीति विज्ञान के आधुनिक विद्वान स्वतंत्रता को केवल बंधनों का अभाव नहीं मानते, बल्कि उनके अनुसार स्वतंत्रता सामाजिक बंधनों में जकड़ा हुआ अधिकार है।

(क) स्वतंत्रता के दो रूप (Two Aspects of Liberty) स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप के समर्थक लॉक, एडम स्मिथ, हरबर्ट स्पैंसर, जे०एस०मिल आदि हैं। प्रारंभिक उदारवादियों ने नकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया। इस प्रकार एडम स्मिथ व रिकार्डो आदि अर्थशास्त्रियों ने खुली प्रतियोगिता का समर्थन किया और कहा कि राज्य को व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) ने अपनी पुस्तक ‘On Liberty’ में व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में विभाजित किया है-स्व-संबंधी कार्य व पर-संबंधी कार्य। मिल व्यक्ति के स्व-संबंधी कार्यों में राज्य के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करता। यहां तक कि व्यक्ति के गलत कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इनका संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से होता है,

परंतु यदि व्यक्ति के कार्यों का प्रभाव दूसरे व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है तो राज्य या समाज उसमें हस्तक्षेप कर सकता है। इसलिए जे०एस० मिल व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्र छोड़ देने के पक्ष में है। व्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए।

1. स्वतंत्रता का नकारात्मक स्वरूप (Negative Aspect of Liberty):
स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी में ‘लिबर्टी’ (Liberty) शब्द का प्रयोग किया जाता है। लिबर्टी शब्द लेटिन भाषा के Liber शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है-स्वतंत्र। इसका प्रायः यही अर्थ लिया जाता है कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की छूट हो। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति जैसा चाहे करे, उस पर कोई नियंत्रण या बंधन न हो, उसके काम का दूसरों पर चाहे जो भी प्रभाव पड़े।

इस प्रकार इसका अर्थ है-‘सभी प्रतिबंधों का अभाव’, परंतु सभ्य समाज में रहकर इस प्रकार की अनियंत्रित स्वतंत्रता मिलनी असंभव है। समाज में रहकर व्यक्ति अपनी इच्छा से जो चाहें, नहीं कर सकते। किसी भी व्यक्ति को चोरी करने या दूसरों को मारने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। यह स्वतंत्रता का निषेधात्मक या नकारात्मक अर्थ है। समाज व्यक्ति को स्वेच्छा-अधिकार नहीं दे सकता, क्योंकि वह तो स्वतंत्रता न होकर उच्छृखलता हो जाती है। इससे ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। ऐसी स्वतंत्रता केवल सबल व्यक्ति ही उपयोग में ला सकेंगे, निर्बलों के लिए उसका कोई अर्थ नहीं होगा।

स्वतंत्रता के नकारात्मक स्वरूप के विश्लेषण के पश्चात इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्टं होती हैं

  • कानून एक बुराई है, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है।
  • व्यक्ति को विकास के लिए विभिन्न राजनीतिक व नागरिक स्वतंत्रताएं मिलनी चाहिएं।
  • व्यक्ति को स्व-कार्यों में पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • आर्थिक गतिविधियों और विचार व भाषण पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
  • पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थन करते हैं।
  • मताधिकार को व्यापक बनाना चाहिए।
  • सरकार का कार्यक्षेत्र सीमित होना चाहिए। वह सरकार सबसे अच्छी सरकार है जो सबसे कम काम करती है।

2. स्वतंत्रता का सकारात्मक स्वरूप (Positive Aspect of Liberty):
नकारात्मक स्वतंत्रता, स्वतंत्रता न होकर लाइसैंस बन जाती है। इससे व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से बिना किसी प्रतिबन्ध के कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इससे किसी को स्वतंत्रता नहीं मिलती। स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है, “प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा काम करने की छूट, जिससे दूसरों को हानि न पहुंचे।” समाज में रहते हुए मनुष्य सीमित और नियंत्रित स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकता है।

सभी पर न्यायोचित और समान प्रतिबंध होना चाहिए, जिससे स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं होता, बल्कि ऐसे प्रतिबंधों का अभाव होता है जो अन्यायपूर्ण, असमान तथा अनुचित हों। परंतु स्वतंत्रता केवल नकारात्मक अर्थ ही नहीं रखती, वरन उसका एक सकारात्मक अर्थ भी है। इसका अर्थ केवल अन्यायपूर्ण, अनुचित तथा असमान प्रतिबंधों का अभाव ही नहीं है,

बल्कि उन अवसरों की उपस्थिति भी है जो व्यक्ति को करने योग्य कामों को करने के और भोगने योग्य वस्तुओं को भोगने के योग्य बनाती है। इस प्रकार सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है “वे परिस्थितियां, जिसमें मनुष्यों को अपने व्यक्तित्व के विकास का और अपने आपको अच्छा बनाने का पर्याप्त अवसर मिलता है।”

(ख) सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क (Arguments in Favour of Positive Liberty):
सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थकों का कहना है कि राज्य के कानून तथा नियम मनुष्यों की स्वतंत्रता का विनाश नहीं करते, बल्कि उसकी स्वतंत्रता में वृद्धि करते हैं। लेकिन जो प्रतिबंध राज्य द्वारा लगाए जाएं, वे जनता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए लगाए जाने चाहिएं। यदि वे प्रतिबंध व्यक्ति के कार्यों में किसी प्रकार भी बाधक होंगे तो यह स्वतंत्रता के लिए हानिकारक है।

स्वतंत्रता का सकारात्मक सिद्धांत मनुष्य को उस स्तर तक उठाने से संबंधित है जिस स्तर तक वह अपने मानसिक और नैतिक गुणों का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग कर सके। यह सरकार का दायित्व है कि वह नागरिकों को इसके लिए शिक्षित करे और उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाए। इस सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि व्यक्ति क्योंकि स्वयं विचारशील है, उसे स्वयं सोचना चाहिए कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति अपने हित के अनुसार ही कार्य करता है।

लास्की, लॉक, टी०एच० ग्रीन, मैक्नी, मैकाइवर और गैटेल आदि स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव नहीं है। मनुष्य समाज में रहता है और समाज का हित ही उसका हित है। समाज-हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के अवसर की प्राप्ति ही ब्दों में, “स्वतंत्रता एक सकारात्मक चीज है। इसका मतलब केवल बंधनों का अभाव नहीं है।” लास्की के अनुसार, “स्वतंत्रता से मेरा अभिप्राय उस वातावरण की स्थापना से है, जिसमें मनुष्यों को अपना सर्वोत्तम विकास करने का अवसर मिलता है।”

टी०एच० ग्रीन के अनुसार, “स्वतंत्रता से अभिप्राय प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। स्वतंत्रता का सही अर्थ है उन कार्यों को करने या उन सुखों को भोग सकने की क्षमता जो वास्तव में भोगने योग्य हों।” संक्षेप में, सकारात्मक स्वतंत्रता का क्षेत्र नकारात्मक स्वतंत्रता के क्षेत्र से कहीं अधिक विस्तृत तथा व्यापक है। सकारात्मक स्वतंत्रता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक उचित प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं, परंतु वे अनुचित प्रतिबंधों के विरुद्ध हैं। सामाजिक हित के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

(2) स्वतंत्रता का अर्थ केवल नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी है। आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है आर्थिक सुरक्षा की भावना जिसे राज्य अपने अनेक कानूनों द्वारा उपलब्ध कराएगा।

(3) राज्य का कार्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।

(4) राज्य का कार्य ऐसी परिस्थितियां पैदा करना है जो व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।

(5) स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं हैं। कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।

(6) स्वतंत्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान होना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।

(7) स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है। जितनी अधिक स्वतंत्रता होगी, उतने ही अधिक अधिकार होंगे। अधिकारों के बिना व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार कौन-कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए। अथवा स्वतंत्रता का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता को अंग्रेजी में ‘Liberty’ कहते हैं, जो लैटिन भाषा के शब्द ‘Liber’ से निकला है, जिसका अर्थ है “सब प्रतिबंधों का अभाव अर्थात प्रत्येक मनुष्य पर से सब प्रकार के प्रतिबंध हटा दिए जाएं और उसे अपनी इच्छानुसार कार्य करने का अधिकार दे दिया जाए।” परंतु राजनीति विज्ञान में स्वतंत्रता का अर्थ उस हद तक स्वतंत्रता है जिस हद तक वह दूसरों की स्वतंत्रता के मार्ग में बाधा नहीं बनती। यदि व्यक्ति को सभी प्रकार के कार्य करने की स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में अराजकता उत्पन्न हो जाएगी।

इसका अर्थ यह होगा कि केवल शक्तिशाली ही अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकेंगे और समाज में एक ही कानून होगा-“जिसकी लाठी उसकी भैंस”। किसी भी व्यक्ति को चोरी करने या दूसरों की हत्या करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। अतः स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है-“प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा कार्य करने की छूट जिससे दूसरों को हानि न पहुंचे।”

परंतु स्वतंत्रता केवल नकारात्मक अर्थ ही नहीं रखती, बल्कि उसका सकारात्मक अर्थ भी है। इस रूप में स्वतंत्रता का अर्थ केवल अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबंधों का अभाव ही नहीं, बल्कि उन अवसरों की उपस्थिति भी है, जो व्यक्ति को करने योग्य कार्यों को करने और भोगने योग्य वस्तुओं को भोगने का अवसर भी प्रदान करती है। विभिन्न विद्वानों द्वारा स्वतंत्रता की विभिन्न परिभाषाएं और विभिन्न अर्थ बताए गए हैं तथा परिभाषाओं के आधार पर ही स्वतंत्रता के विभिन्न तत्त्वों का उल्लेख किया गया है। अतः उन तत्त्वों के आधार पर स्वतंत्रता के निम्नलिखित विभिन्न रूपों का वर्णन किया जा सकता है

1. प्राकृतिक स्वतंत्रता (Natural Liberty):
प्राकृतिक स्वतंत्रता की कल्पना समझौतावादी विचारकों ने विशेष रूप से की है। प्राकृतिक स्वतंत्रता का ठीक-ठीक अर्थ क्या है, यह कहना कठिन है। रूसो के कथनानुसार, “मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न होता है, किंतु प्रत्येक स्थान पर वह बंधन से बंधा हुआ है।” इसका अर्थ है कि प्रकृति ने व्यक्ति को स्वतंत्र पैदा किया है और यदि उसमें कोई दासता की भावना है, तो वह समाज द्वारा दी गई स्वतंत्रता का परिणाम है।

समाज बनने से पहले व्यक्ति जंगल में रहने वाले पशु-पक्षियों की तरह स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करता था। प्राकृतिक स्वतंत्रता के होने से सब व्यक्ति इच्छानुसार जीवन व्यतीत करते थे और वे किसी कानून या नियम से नहीं बंधे हुए थे। उस समय तेरे-मेरे की भावना नहीं थी, आवश्यकता की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में लोगों को मिल जाया करती थीं, इसलिए मनुष्य प्राकृतिक स्वतंत्रता का उपभोग करता था।

परंतु इस मत से अधिकांश विचारक सहमत नहीं हैं, क्योंकि निरंकुश स्वतंत्रता का अर्थ है कि कोई भी स्वतंत्र नहीं है। प्राकृतिक स्वतंत्रता केवल जंगल की स्वतंत्रता है जो वास्तव में स्वतंत्रता है ही नहीं। सच्चे अर्थ में तो स्वतंत्रता केवल राजनीतिक दृष्टि से संगठित समाज में ही पाई जा सकती है। प्राकृतिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता के बीच मौलिक अंतर यह है कि प्राकृतिक स्वतंत्रता व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति के आधार पर ही प्राप्त करता है, जबकि नागरिक स्वतंत्रता का संरक्षण राज्य करता है। प्राकृतिक स्वतंत्रता बलवानों की वस्तु है, किंतु नागरिक स्वतंत्रता सभी की वस्तु है।

2. नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberty) नागरिक स्वतंत्रता प्राकृतिक स्वतंत्रता से उलट है। जहाँ प्राकृतिक स्वतंत्रता राज्य की स्थापना से पहले मानी जाती है, वहां नागरिक स्वतंत्रता राज्य के द्वारा सुरक्षित मानी जाती है। गैटेल के अनुसार, “नागरिक स्वतंत्रता में वे अधिकार और विशेषाधिकार शामिल हैं जिन्हें राज्य अपनी प्रजा के लिए बनाता और सुरक्षित रखता है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक (व्यक्ति) को कानून की सीमा के अंदर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने का अधिकार है। इसमें दूसरे लोगों के हस्तक्षेप से रक्षा करना या सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा करना शामिल हो सकते हैं।”

इस प्रकार नागरिक स्वतंत्रता उन अधिकारों के समूह का नाम है जो कानून के द्वारा मान लिए गए हों और राज्य जिनको सुरक्षित रखता हो। दूसरे शब्दों में, इसी बात को गिलक्राइस्ट इस प्रकार कहते हैं कि कानून दो प्रकार के होते हैं सार्वजनिक (Public) तथा व्यक्तिगत (Private)। सार्वजनिक कानून स्वतंत्रता की सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा करता है। बार्कर के अनुसार, “नागरिक स्वतंत्रता तीन प्रकार की है-

  • शारीरिक स्वतंत्रता,
  • मानसिक स्वतंत्रता और
  • व्यावहारिक स्वतंत्रता।

वह शारीरिक स्वतंत्रता में जीवन, स्वास्थ्य और घूमना-फिरना, मानसिक स्वतंत्रता में विचारों और विश्वासों का प्रकट करना तथा व्यावहारिक स्वतंत्रता में दूसरे व्यक्तियों के साथ संबंधों और समझौतों से संबंधित कार्यों में अपनी इच्छा और छांट आदि को शामिल करता है।”

अमेरिका के संविधान में भी नागरिक स्वतंत्रताओं का उल्लेख मिलता है। संविधान में कहा गया है कि कानून की उचित प्रक्रिया के बिना किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की हद तथा तरीके का आधार सरकार का रूप है। प्रजातंत्र में नागरिक स्वतंत्रता अधिक सुरक्षित होती है, जबकि स्वेच्छाचारी सरकार में इसकी अधिक सुरक्षा नहीं होती।

इससे यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए । नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन नहीं होता। लोकतंत्र में भी व्यक्तियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं, जिनसे नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लग जाती है, जैसे भारत के संविधान में विभिन्न स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं। इसके साथ संविधान में ही निवारक नजरबंदी कानून, भारत सुरक्षा अधिनियम, आंतरिक सुरक्षा कानून आदि के द्वारा समाज व राष्ट्र की सुरक्षा का बहाना लेकर नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा दी गई है।

अतः नागरिक स्वतंत्रता का बहुत अधिक महत्त्व है। इस स्वतंत्रता के आधार पर ही देश की उन्नति व विकास का अनुमान लगाया जा सकता है। जिस देश में नागरिक स्वतंत्रता जितनी अधिक होगी, वह देश उतना ही विकासशील होगा।

3. आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Liberty):
प्रजातंत्र तभी वास्तविक हो सकता है जब राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता भी हो। लेनिन के शब्दों में, “नागरिक स्वतंत्रता आर्थिक स्वतंत्रता के बिना निरर्थक है।” आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ वह नहीं, जिसे पूंजीवादी मुक्त प्रतिद्वंद्विता (Free Competition) कहते हैं वरन इसका अर्थ शोषण का अभाव और मालिक के अत्याचार से मुक्ति है।

प्रो० लास्की के अनुसार, “आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ मनुष्य को अपना दैनिक भोजन कमाते हुए युक्तियुक्त रूप में सुरक्षा व अवसर प्राप्त होना है।” प्रत्येक नागरिक को बेकारी और अभाव के भय से स्वतंत्र बनाया जाना ही सच्ची स्वतंत्रता है। आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कराने के लिए ऐसी आर्थिक व्यवस्था स्थापित की जाए जिसमें व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से अन्य व्यक्तियों के अधीन न रहे।

सब व्यक्तियों को अपनी आर्थिक उन्नति करने का समान अवसर प्राप्त हो। यदि इसके लिए राज्य को व्यक्ति के आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप भी करना पड़े तो उसे करना चाहिए। आर्थिक स्वतंत्रता का यह विचार उस आर्थिक व्यवस्था की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ है, जिसमें पूंजीपति श्रमिकों का मनमाना शोषण करते थे और उनकी मजदूरी का एक बड़ा भाग स्वयं हड़प करके धनी बन जाते थे।

इसलिए जिस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक शक्ति को कुछ लोगों के हाथों से निकालकर जनता के हाथों में सौंपा गया, उसी प्रकार आर्थिक शक्ति भी थोड़े-से पूंजीपतियों के हाथों से निकालकर जन-साधारण को दी जानी चाहिए। इसके लिए एक ओर मजदूरों के कुछ आर्थिक अधिकार हों; जैसे काम पाने,

उचित घंटे काम करने, उचित मजदूरी पाने, अवकाश पाने, बेकारी, बीमारी, बुढ़ापे और दुर्घटना की अवस्था में सहायता व सुरक्षा पाने तथा मजदूर संघ बनाकर अपने हितों की रक्षा करने के अधिकार तो दूसरी ओर मजदूरों को उद्योग-धंधों के प्रबंध में भागीदार बनाया जाना चाहिए। समाजवादी विचारक भी इसी बात पर बल देते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता व्यर्थ है।

4. राष्ट्रीय स्वतंत्रता (National Liberty):
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है-विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्रता। जनता की राजनीतिक तथा नागरिक स्वतंत्रता तभी संभव है जब राष्ट्र स्वयं पूर्ण रूप से प्रभुसत्ता-संपन्न राज्य हो। साम्राज्यवादी देश के अधीन रहने पर विदेशी सत्ता जनता को अपनी सरकार बनाने या शासन में हिस्सा लेने का मौका नहीं देती तथा शासन के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को भाषण, संगठन, प्रकाशन आदि तक नहीं करने देती।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता साम्राज्यवाद को नष्ट करना चाहती है। व्यक्ति का पूर्ण विकास एक स्वतंत्र राष्ट्र में ही हो सकता है। इसलिए व्यक्ति की उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्वतंत्रता आवश्यक है। भारत ने 15 अगस्त, 1947 को राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त की। तभी से जनता को वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव होने लगा।

5. व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty):
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अभिप्राय उन कार्यों को करने की स्वतंत्रता है जो व्यक्ति के अपने निजी जीवन से संबंधित हों। कुछ मामले ऐसे हैं जो व्यक्ति के निजी जीवन से संबंधित होते हैं। ऐसे कार्यों में कोई भी व्यक्ति दूसरे का हस्तक्षेप सहन नहीं करता, यहाँ तक कि निजी संबंधियों का भी हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाता।

अपने निजी मामलों में प्राप्त स्वतंत्रता को व्यक्तिगत स्वतंत्रता कहते हैं, जैसे वस्त्र, रहन-सहन, पारिवारिक जीवन, विवाह-संबंध आदि। मिल का कहना है, “प्रत्येक व्यक्ति के कुछ कार्य ऐसे हैं जिनका दूसरों पर प्रभाव नहीं पड़ता और इन मामलों में उसे पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी आवश्यक है, परंतु वास्तव में व्यक्ति का ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसका प्रभाव केवल उसी तक सीमित हो, दूसरों पर भी उसका कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है।

व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में भी सामाजिक हित, कानून और व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्र की सुरक्षा आदि के आधार पर कुछ अंकुश लगाए जाते हैं। निरंकुशता या पूर्ण स्वतंत्रता जैसी कोई बात समाज में नहीं हो सकती।”

6. राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty):
राजनीतिक स्वतंत्रता व्यक्ति के राजनीतिक जीवन को उन्नत और विकसित करने के लिए आवश्यक है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को जो राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं, उनका यह स्वतंत्रतापूर्वक प्रयोग करे, वह कानून-निर्माण तथा प्रशासन में भाग ले। लास्की ने कहा है, “राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति से है।

यह स्वतंत्रता केवल लोकतंत्र में ही संभव है, राजतंत्र और तानाशाही में नहीं। प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मतदान की स्वतंत्रता, चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता, सार्वजनिक पद प्राप्त करने की स्वतंत्रता, सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता केवल लोकतंत्र में ही मिलती है। अधिनायकतंत्र में यह स्वतंत्रता लोगों को प्राप्त नहीं होती।

लीकॉक महोदय ने राजनीतिक स्वतंत्रता को संवैधानिक स्वतंत्रता का नाम दिया है और कहा है कि जनता को अपनी सरकार स्वयं चुनने का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता के अंतर्गत केवल सरकार के कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं है, बल्कि सरकार का विरोध करना भी इसके अंतर्गत आता है।

राजनीतिक दलों का निर्माण करना व उनकी सदस्यता ग्रहण करना इस स्वतंत्रता में आते हैं। इस प्रकार की स्वतंत्रता साम्यवादी राज्यों में प्रदान नहीं की जाती है। अंत में इस प्रकार की स्वतंत्रता को सीमित तो किया जा सकता है, लेकिन पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए राजनीतिक क्षेत्र में उसे अधिकार देना अत्यंत आवश्यक है।

7. धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Liberty):
धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके विश्वास के अनुसार किसी धर्म को मानने, पूजा-पाठ करने व धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है, इसलिए व्यक्ति अपने धर्म में किसी दूसरे व्यक्ति या राज्य के हस्तक्षेप को सहन नहीं करता। आधुनिक युग में अधिकांश देशों ने अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है।

जिन देशों में विभिन्न संप्रदायों के लोग निवास करते हैं, वहां धार्मिक स्वतंत्रता का महत्त्व और भी अधिक होता है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने से अल्पसंख्यकों में देश के शासन के प्रति विश्वास बना रहता है और राज्य में स्थिरता आती है। भारत ने इसी भावना के अनुसार धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया है। भारतीय संविधान में धारा 25 से 28 तक प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में कोई मतभेद नहीं करेगा। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है।

8. नैतिक स्वतंत्रता (Moral Liberty):
स्वतंत्रता केवल बाह्य परिस्थितियों द्वारा ही प्रदान नहीं की जा सकती। यह एक मनोवैज्ञानिक भावना है जिसे मनुष्य अनुभव करता है। व्यक्ति केवल तभी पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो सकता है, जब वह नैतिक रूप से भी स्वतंत्र हो। नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि व विवेक के अनुसार तथा अन्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व को सम्मान प्रदान करते हुए निर्णय ले सके तथा कार्य कर सके।

आदर्शवादी राजनीतिक विचारकों ने नैतिक स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया है। हीगल (Hegel), ग्रीन (Green) व बोसांके (Bosanquet) के अनुसार, “नैतिक स्वतंत्रता केवल राज्य में ही प्राप्त की जा सकती है। राज्य उन परिस्थितियों का निर्माण करता है, जिनमें रहकर मनुष्य नैतिक उन्नति कर सकता है और नैतिक रूप से स्वतंत्र हो सकता है।”

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मुख्य उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग की आवश्यक दो दशाएं बताइए। अथवा स्वतंत्रता के मुख्य सरंक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अति आवश्यक है। स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं वरन व्यक्ति के विकास के लिए उचित परिस्थितियों का रहना है, इसलिए स्वतंत्रता में वे अधिकार तथा परिस्थितियां शामिल हैं, जिनसे मनुष्य को अपने व्यक्तित्व के विकास में सहायता मिलती है। राज्य उन अधिकारों को सुरक्षित रखता है।

इसके लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे न तो सरकार और न ही लोग किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को नष्ट कर सकें। इसलिए निम्नलिखित साधन स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए अपनाए जाते हैं स्वतंत्रता के संरक्षण (Safeguard of Liberty) स्वतंत्रता के संरक्षण निम्नलिखित हैं

1. प्रजातंत्र की स्थापना (Establishment of Democracy):
लोगों की स्वतंत्रता पर सरकार के रूप का भी प्रभाव पड़ता है। जहाँ राजतंत्र या कुलीनतंत्र होता है, वहां स्वेच्छाचारिता की अधिक संभावना होती है। प्रजातंत्र में सभी लोगों का प्रतिनिधित्व होता है, इसलिए जिन लोगों के अधिकारों पर आक्षेप होता है, उनके प्रतिनिधि विशेष रूप से और सांसद आम तौर से उनके लिए लड़ते हैं।

आम लोग भी ऐसे अवसरों पर भाषण और प्रैस आदि की स्वतंत्रताओं का लाभ उठा सकते हैं तथा स्वतंत्र न्यायालय फैसले में उनकी सहायता कर सकता है। वास्तव में, स्वतंत्रता के दूसरे रक्षा कवच; जैसे प्रैस, पक्षपात रहित न्यायालय, अधिकारों का संवैधानीकरण, मजबूत विरोधी दल, कानून का शासन आदि प्रजातंत्र में ही जीवित रह सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए प्रजातांत्रिक सरकार होनी चाहिए।

2. जागरूकता तथा शिक्षा (Vigilance and Education):
स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए लोगों का जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए कहा जाता है, “शाश्वत-जागरूकता स्वतंत्रता की कीमत है।” (Eternal vigilance is the price of Liberty.) स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को हमेशा देखते रहना चाहिए कि सरकार, कोई संघ या कोई व्यक्ति उनकी स्वतंत्रता पर आक्षेप तो नहीं कर रहा है।

यदि आक्षेप होता है तो तुरंत उसका विरोध करना चाहिए। जागरूकता के लिए और अधिकारों के ज्ञान की प्राप्ति के लिए तथा उन्हें सुरक्षित रखने के ढंग को जानने के लिए शिक्षा अनिवार्य है, क्योंकि अशिक्षित आदमी , अपने अधिकारों को और उन्हें सुरक्षित रखने के ढंग को नहीं समझ सकता है।

3. मौलिक अधिकारों की घोषणा (Declaration of Fundamental Rights):
जनता को स्वतंत्रता प्रदान करने वाले नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों को संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में घोषित कर दिया जाना चाहिए। इससे उनकी स्थायी सुरक्षा हो जाती है और उनका उल्लंघन सुगमता से नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार स्वतंत्रता देश के संविधान द्वारा सुरक्षित कर दी जाती है। वह सरकार द्वारा छीनी भी नहीं जा सकती, क्योंकि वह उनकी पहुंच से बाहर हो जाती है।

4. न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary):
किसी भी देश के लोगों की स्वतंत्रता तब तक सुरक्षित नहीं रह सकती, जब तक कि न्यायालय स्वतंत्र न हों। कानून चाहे कितने ही अच्छे हों, परंतु उनसे स्वतंत्रता की रक्षा तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उन कानूनों को लागू करने वाले न्यायधीश स्वतंत्र, ईमानदार, निडर तथा निष्पक्ष न हों।

न्यायधीशों पर न तो कार्यपालिका का और न ही विधानमंडल का दबाव होना चाहिए, तब ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता व अधिकारों को अधिकारियों के दबाव से या लोगों से सुरक्षित रख सकते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि वैयक्तिक स्वतंत्रता बहुत कुछ उस पद्धति पर निर्भर है, जिसके द्वारा न्याय किया जाता है।

5. शक्ति का पृथक्करण (Separation of Powers):
न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए शक्ति का पृथक्करण (Separation of Power) आवश्यक है। शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का प्रतिपादन माण्टेस्क्यू ने किया। उसने सरकार के तीनों अंगों के अलग होने पर बल डाला है। न्यायालय तभी स्वतंत्र रह सकते हैं जबकि राज्य में शासन-सत्ता को अलग-अलग अंगों में विभाजित कर दिया जाए अर्थात कानून बनाने वाली, शासन करने वाली तथा न्याय करने वाली संस्थाएं अलग-अलग संगठित हों तथा उनका एक-दूसरे पर कोई दबाव या प्रभाव न हो। इससे जनता की स्वतंत्रता की गारंटी मिल जाती है।

6. शक्ति का विकेंद्रीयकरण (Decentralization of Authority):
स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक अन्य उपाय सत्ता का विकेंद्रीयकरण है। जहाँ भी शासन-सत्ता केंद्रित की जाती है, वहां तानाशाही व अनुत्तरदायी शासन स्थापित हो जाता है। अतः राज्य में स्वायत्त-शासन संस्थाओं को अधिक-से-अधिक सत्ताएं सौंपी जाएं। इससे जनता भी राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करती है। स्थानीय संस्थाएं राष्ट्रीय-स्वशासन की पाठशालाएं कहलाती हैं।

इस संदर्भ में लास्की ने विचार व्यक्त किया हैं, “राज्य में शक्तियों का जितना अधिक वितरण होगा, उसकी प्रकृति उतनी अधिक विकेंद्रित होगी और व्यक्तियों में अपनी स्वतंत्रता के लिए उतना ही अधिक उत्साह होगा।” इसी प्रकार डॉ० टॉक्विल ने भी कहा है, “किसी भी राष्ट्र में स्वतंत्र सरकार स्थापित की जा सकती है, लेकिन स्वशासन की संस्थाओं के बिना लोगों में स्वतंत्रता की भावना विकसित नहीं हो सकती है।”

7. आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय (Economic Equality and Social Justice):
यह बिल्कुल उचित कहा गया है कि स्वतंत्रता आर्थिक समानता के बिना बिल्कुल व्यर्थ है (Liberty without Economic Equality is a farce)। स्वतंत्रता, वास्तविकता में साधन है, साध्य नहीं। स्वतंत्रता की आवश्यकता व्यक्तित्व के विकास और समान अवसरों के उपभोग के लिए पड़ती है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत कर सके और अपने विचारानुसार जीवन के ध्येय की प्राप्ति कर सके।

परंतु यह सब आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय के बिना संभव नहीं, क्योंकि सभी अधिकारों से पूरा लाभ उठाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है और समाज के भेदभाव भी उसमें बाधक सिद्ध हो सकते हैं। इस तरह के तत्त्व एक देश में होने से वहां के लोगों की स्वतंत्रता पूरी तरह से सुरक्षित रह सकती है। प्रत्येक देश में इन सारे तत्त्वों का होना आवश्यक नहीं है। सरकार के रूप के अनुसार इनमें थोड़ा-बहुत भेद हो सकता है, परंतु इनमें से अधिकतर प्रत्येक देश में होने चाहिएं।

8. कानून (Law) कानून भी स्वतंत्रता की सुरक्षा में बहुत अधिक सहायता करता है हालांकि कभी-कभी कानून स्वतंत्रता का विरोध भी करता है परंतु साधारणतः यह स्वतंत्रता को सुरक्षित ही रखता है। समान स्वतंत्रता कानून के बिना असंभव है। कानून अधिकारों को सरकार तथा दूसरे लोगों के आक्षेप से बचाता है। जो लोग दूसरे लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए कानून को तोड़ते हैं, उन पर मुकद्दमे चलाए जाते हैं और न्यायपालिका उन्हें दंड देती है। जो कानून स्वतंत्रता को सुरक्षित नहीं रखता और असमानता फैलाता है, वह अच्छा नहीं समझा जाता और कई बार ऐसे कानूनों का विरोध किया जाता है।

आधुनिककाल में ‘कानून का शासन’ (Rule of Law) सबसे अच्छा समझा जाता है। कानून के सामने सब समान होने चाहिएँ और सब लोगों पर, साधारण व्यक्ति से लेकर प्रधानमंत्री तक एक ही कानून लागू होना चाहिए। किसी व्यक्ति या वर्ग को कोई विशेषाधिकार (Privileges) नहीं दिए जाने चाहिएं। कानून के शासन का यह भी अर्थ है कि किसी व्यक्ति को बिना कानून तोड़े हुए दंड नहीं दिया जाना चाहिए।

9. सशक्त विरोधी दल (Strong Opposition Party):
स्वतंत्रता की सुरक्षा में विरोधी दल का भी बड़ा भारी हाथ होता है। जब कभी भी शासक दल लोगों के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है, उसी समय विरोधी दल संसद में तथा संसद से बाहर उसकी आलोचना करता है। आलोचना से सरकार को भी जनमत के खिलाफ होने का भय रहता है। यदि विरोधी दल मज़बूत है तो शासक दल को आने वाले निर्वाचनों में हार जाने का भय हो सकता है। इस प्रकार मज़बूत विरोधी दल स्वतंत्रता की सुरक्षा में सहायक सिद्ध होता है।

10. स्वतंत्र प्रैस (Free Press):
स्वतंत्र प्रैस भी लोगों की स्वतंत्रताओं को सुरक्षित रखने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यदि प्रैस के ऊपर कोई दबाव और अनुचित नियंत्रण नहीं है तो प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों को स्वतंत्रता-पूर्वक प्रकट कर सकता है। यदि कभी किसी व्यक्ति या संघ के अधिकारों पर कोई आक्षेप होता है तो प्रैस उस मामले के सत्य को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचा सकता है।

जनमत बनाने में भी स्वतन्त्र प्रैस की अहम भूमिका होती है। स्वतंत्र प्रेस से सरकार भी डरती है जिसके कारण वह कोई ऐसा कार्य नहीं करती जिससे लोगों के अधिकारों को कोई ठेस पहुंचे। प्रैस की स्वतंत्रता में प्रेस सरकार के तथा धनी लोगों के अनुचित प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए तथा प्रैस को भी रंग, जाति, धर्म तथा भाषा आदि के आधार पर कोई पक्षपात नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)-दी गई चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए रक्षा कवचों का होना अनिवार्य है। स्वतंत्रता की रक्षा पर लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करता है। लोकतंत्र ऐसी शासन व्यवस्था है जो लोगों को जागरूक व कर्त्तव्यपरायण बनाती है। लोगों की कर्त्तव्यपरायणता और जागरूकता पर स्वतंत्रता की सुरक्षा हो सकती है। ऐसा होने से शासक वर्ग व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अपहरण करने का दुःसाहस नहीं कर सकेंगे।

प्रश्न 4.
कानून व स्वतंत्रता के आपसी संबंधों की विवेचना कीजिए। अथवा कानून और स्वतंत्रता में क्या संबंध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता और कानून के संबंधों का विषय इतना महत्त्वपूर्ण है कि अनेक विद्वानों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है। विद्वानों ने स्वतंत्रता और कानून के संबंध के विषय में दो दृष्टिकोण व्यक्त किए हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(क) स्वतंत्रता और कानून परस्पर विरोधी हैं (Liberty and Law opposed to each other):
पहले दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति कानून व स्वतंत्रता को एक-दूसरे का विरोधी मानती है। 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में अधिकांश राजनीतिक विचारक यह मत रखते हैं कि स्वतंत्रता और कानून में परस्पर विरोध है। अराजकतावादियों तथा व्यक्तिवादियों का यह भी मत रहा है कि स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी हैं।

जितने अधिक कानून होंगे, उतनी कम स्वतंत्रता होगी। राज्य का कार्य-क्षेत्र इतना व्यापक है कि मनुष्य को हर कदम पर कानून रोकता है। इससे व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है और उसका काम करने का उत्साह मारा जाता है। इसलिए इनका मत है कि कानून स्वतंत्रता का विरोधी है। इस संबंध में विलियम गोडविन (Villiam Godwin) ने कहा है, “कानून स्वतंत्रता के लिए सबसे अधिक हानिकारक संस्था है।” इसी प्रकार कोकर (Coker) का भी यही विचार है, “राजनीतिक सत्ता अनावश्यक तथा अवांछनीय है।” इन विचारकों के मत निम्नलिखित हैं

1. व्यक्तिवादियों का मत (View of Individualists):
18वीं शताब्दी में व्यक्तिवादियों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर कि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक प्रतिबंध है, इसलिए व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है, जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कम-से-कम करे, अर्थात उनके मतानुसार, “वह सरकार अच्छी है जो कम-से-कम शासन या कार्य करती है।” इसी प्रकार जे०एस० मिल (J.S. Mill) ने भी कहा है, “सरकार का हस्तक्षेप व्यक्ति के शारीरिक अथवा मानसिक विकास के कुछ-न-कुछ भाग को अवरुद्ध कर देता है।”

2. अराजकतावादियों का मत (View of Anarchists):
अराजकतावादियों के अनुसार राज्य प्रभुसत्ता का प्रयोग करके नागरिकों की स्वतंत्रता को नष्ट करता है, अतः अराजकतावादियों ने राज्य को समाप्त करने पर जोर दिया ताकि राज्य-विहीन समाज की स्थापना की जा सके। इसी संदर्भ में अराजकतावादी प्रोधा (Prondha) ने विचार व्यक्त किया है, “मनुष्य पर मनुष्य का किसी भी रूप में शासन अत्याचार है।”

3. सिंडीकलिस्ट का मत (View of Syndicalists):
सिंडीकलिस्ट अराजकतावादियों की तरह राज्य को पूर्णतः समाप्त करना चाहते हैं, क्योंकि उनके मतानुसार राज्य सदैव पूंजीपतियों का समर्थन करता है जिससे व्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। इस प्रकार सिंडीकलिस्ट राज्य और सरकार को समाप्त करके उसके स्थान पर श्रमिक संघों का शासन स्थापित करने के पक्ष में हैं। श्रमिक संघों की व्यवस्था में व्यक्तियों की स्वतंत्रता अधिक सुरक्षित रहती है।

4. बहुत्ववादियों का मत (View of Pluralists):
बहुत्ववादियों का विचार है कि राज्य के पास जितनी अधिक सत्ता होती है, उससे व्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही कम होती है, इसलिए वे राज्य सत्ता को विभिन्न समुदायों में बांटने के पक्ष में हैं। इस प्रकार बहुत्ववादी राज्य को भी एक संस्था मानते हैं और उसे अन्य संस्थाओं से अधिक शक्ति देने के पक्ष में नहीं हैं। अगर राज्य को अधिक शक्ति दी गई तो उससे व्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट हो जाएगी। इस विचार का समर्थन करते हुए लास्की (Laski) महोदय ने कहा है, “असीमित और अनत्तरदायी राज्य मानवता के हितों के विरुद्ध है।”

(ख) स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं (Liberty and Law are not opposed to Each Other) स्वतंत्रता और कानून को एक-दूसरे का विरोधी होने का विचार ऐसे लेखकों ने दिया जो स्वतंत्रता के नकारात्मक पक्ष में विश्वास रखते थे। यह विचार उस समय व्यक्त किया गया जिस समय तानाशाही प्रवृत्तियां पूरे जोर पर थीं, परंतु जैसे-जैसे लोकतंत्रात्मक प्रवृत्तियां सामने आईं तो राजनीतिक विचारकों ने यह स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया कि कानून और स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।

अतः स्वतंत्रता और कानून के संबंध के विषय में दूसरा दृष्टिकोण यह है कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का अस्तित्व दूसरे के बिना खतरे में पड़ जाएगा। इस दृष्टिकोण के समर्थक समाजवादी और आदर्शवादी हैं। इन विचारकों का कहना है कि कानून स्वतंत्रता का हनन नहीं करता, बल्कि उसकी रक्षा करता है।

इसलिए लॉक (Locke) महोदय ने ठीक ही कहा है, “जहाँ कानून नहीं है, वहां स्वतंत्रता नहीं है।” हॉकिंस (Hockins) ने भी लिखा है, “व्यक्ति जितनी अधिक स्वतंत्रता चाहता है, उतना ही उसे सत्ता के आगे झुकना पड़ता है।” इस दृष्टिकोण का विस्तारपूर्वक वर्णन निम्नलिखित है

1. कानून स्वतंत्रता का रक्षक है (Law safeguards Liberty):
अराजकतावादियों तथा अन्य विचारकों का मत सही नहीं है। कानून स्वतंत्रता का विरोधी तभी दिखाई देता है, जब स्वतंत्रता का अर्थ ही स्वेच्छाचारिता लगाया जाता है। स्वतंत्रता को जब मनमाना काम करने की छूट समझ लिया जाता है, तब बुरे कामों की रुकावट के लिए जो कानून नज़र आते हैं, वे विरोधी ही कहलाएंगे।

व्यक्ति को जब कानून चोरी-डकैती, लूटमार, जुआ, शराबखोरी नहीं करने देता तो ऐसे व्यक्ति कानून को उनकी स्वतंत्रता का बाधक समझेंगे ही, परंतु भले-मानसों की सुरक्षा तथा उनकी सुविधा के लिए ऐसे कानून बनाना राज्य के लिए जरूरी है। यह व्यक्ति के हित में होता है कि मनमाने काम करने की स्वतंत्रता पर सीमाएं लगाई जाएं, नहीं तो व्यक्ति एक-दूसरे के दायरे में कदम आघात करेंगे। इसलिए स्वतंत्रता का अर्थ सभी के लिए सीमित स्वाधीनता है।

अपने दायरे में रहकर अपना विकास करना ही स्वतंत्रता है, जिसका अभिप्राय है कि सब पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं, जिससे वे एक-दूसरे की स्वतंत्रता न छीन सकें। ऐसे प्रतिबंध किसी व्यक्ति या संस्था के निजी प्रतिबंध नहीं हो सकते। यह कार्य तो राज्य ही अपनी शक्ति द्वारा कर सकता है। राज्य अपनी सत्ता कानून द्वारा प्रदर्शित करता है, इसलिए कानून सबकी स्वतंत्रता के लिए आवश्यक होते हैं। कानून स्वतंत्रता के विरोधी नहीं, बल्कि उसकी पहली शर्त होते हैं। वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं।

इसलिए लॉक (Locke) ने कहा था, “जहाँ कानून नहीं होते, वहां स्वतंत्रता नहीं होती।” जब तक हम कानून को बाहरी बंधन के रूप में मानते हैं तब तक उसके प्रति विरोध और असंतोष रहता उसे उचित समझकर अपनी अंतरात्मा से उसे स्वीकार कर लें तो वह स्वतंत्रता का सहायक नज़र आता है। जैसे रूसो ने कहा है, “उस कानून का पालन, जिसे हम अपने लिए बनाते हैं, स्वतंत्रता कहलाता है।”

2. कानून स्वतंत्रता की पहली शर्त है (Law is the first condition of Liberty):
जो विचारक स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ स्वीकार करते हैं और स्वतंत्रता पर उचित बंधनों को आवश्यक मानते हैं, वे कानून को स्वतंत्रता की सुरक्षा की पहली शर्त समझते हैं और सत्ता को आवश्यक मानते हैं। हॉब्स, जो निरंकुशतावादी (Absolutist) माना जाता है, स्वीकार करता है कि कानून के अभाव में व्यक्ति हिंसक पशु बन जाता है।

अतः सत्ता व कानून का होना आवश्यक है, ताकि व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक जीवन बिता सके। मॉण्टेस्क्यू (Montesquieu) ने स्वतंत्रता की परिभाषा करते हुए कहा है, “स्वतंत्रता वे सभी कार्य करने का अधिकार है, जिनको करने की अनुमति कानून देता है।” रूसो (Rousseau) ने सामान्य इच्छा (General Will) को मानने को ही वास्तविक स्वतंत्रता कहा है। विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “स्वतंत्रता केवल वहीं सुरक्षित है, जहाँ बंधन हैं।”

रिचि (Ritchie) के स-विकास के सुअवसर के रूप में स्वतंत्रता को संभव बनाते हैं और सत्ता के अभाव में इस प्रकार की स्वतंत्रता संभव नहीं हो सकती।” स्वतंत्रता की प्रकृति में ही प्रतिबंध हैं और प्रतिबंध इसलिए आवश्यक हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर व सुविधाएं प्राप्त हो सकें और एक व्यक्ति की स्वतंत्रता किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता या सामाजिक हित में बाधक न बन सके।

स्वतंत्रता को वास्तविक रूप देने के लिए आवश्यक है कि उसे सीमित किया जाए। समाज में रहते हुए शांतिमय जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के व्यवहार पर कुछ नियंत्रण लगाए जाएं। नियंत्रणों से मर्यादित व्यक्ति ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है और समाज की एक लाभदायक इकाई सिद्ध हो सकता है। अरस्तू (Aristotle) ने ठीक ही कहा है, “मनुष्य अपनी पूर्णता में सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है, लेकिन जब वह कानून व न्याय से पृथक हो जाता है तब वह सबसे निकृष्ट प्राणी बन जाता है।”

3. आदर्शवादियों के विचार (View of Idealist) आदर्शवादी (Idealist) विचारकों ने कानून व स्वतंत्रता में घनिष्ठ संबंध स्वीकार किया है और इनके अनुसार स्वतंत्रता न केवल कानून द्वारा सुरक्षित है, अपितु कानून की देन है। हीगल (Hegel) के अनुसार, “राज्य में रहते हुए कानून के पालन में ही स्वतंत्रता निहित है।” हीगल ने राज्य को सामाजिक नैतिकता की साक्षात मूर्ति कहा है और कानून चूंकि राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति है। अतः नैतिक रूप से भी व्यक्ति की स्वतंत्रता कानून के पालन में ही निहित है।

टी०एच० ग्रीन (T.H. Green) के अनुसार, “हमारे अधिकांश कानून हमारी सामाजिक स्वतंत्रता को कम करते हैं, परंतु इनका उद्देश्य ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करना है जिनके अंतर्गत व्यक्ति अपने गुणों का पूर्ण विकास कर सकता है।” स्पष्ट है कि स्वतंत्रता व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है और व्यक्तित्व का विकास कानून के पालन द्वारा ही हो सकता है। रूसो ने भी कहा है, “ऐसे कानून का पालन, जो हम स्वयं अपने लिए निश्चित करते हैं, वही स्वतंत्रता है।”

4. क्या प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का रक्षक है? (Does every law protect the Liberty?)-प्रत्येक कानून स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करता। कई बार ऐसे कानूनों का निर्माण किया जाता है जो शासकों के हित में होते हैं, न कि समस्त जनता के हित में। ब्रिटिश साम्राज्य के समय भारत में कई बार ऐसे कानूनों का निर्माण किया गया था, जिनका उद्देश्य भारतीयों की स्वतंत्रता को नष्ट करना होता था।

तानाशाही राज्य में ऐसे कानूनों का निर्माण किया जाता है। नागरिकों को उन कानूनों का पालन करना चाहिए जो नैतिकता पर आधारित हों तथा समाज के हित में हों। परंतु नागरिकों को शांतिपूर्वक उन कानूनों का विरोध करना चाहिए जो उनकी स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए पास किए गए हों।

निष्कर्ष (Conclusion) दिए गए विवरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि कानून स्वतंत्रता का विरोधी है या सहयोगी, यह परिस्थितियों पर निर्भर है। यदि कानून जनता के हित को ध्यान में रखकर बनाया जाता है तो वह स्वतंत्रता का सहयोगी होता है और स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है परंतु जब कानून थोड़े-से लोगों के हित को ध्यान में रखकर बनाए जाएं अथवा शासकों के हित में बनाए जाएं तो ऐसे कानून स्वतंत्रता के विरोधी होते हैं। स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रजातंत्र की स्थापना सर्वोत्तम साधन है, क्योंकि प्रजातंत्र में जनता स्वयं ही शासक और शासित होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. लेटिन भाषा के लिबर (Liber) शब्द का शाब्दिक अर्थ निम्नलिखित में से है
(A) बंधनों का अंकुश
(B) बंधनों से मुक्ति
(C) प्रतिबंधों की उपस्थिति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बंधनों से मुक्ति

2. “जिस तरह बदसूरती का न होना स्वतंत्रता नहीं है, उसी तरह बंधनों का होना स्वतंत्रता नहीं है।” यह कथन किस विद्वान का है?
(A) बार्कर
(B) लास्की
(C) हरबर्ट स्पेंसर
(D) ग्रीन
उत्तर:
(A) बार्कर

3. नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ निम्नलिखित में से है
(A) स्व-कार्यों में पूर्ण स्वतंत्रता
(B) व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के कारण कानून एक बुराई है
(C) सरकार का सीमित कार्यक्षेत्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. सकारात्मक स्वतंत्रता की विशेषता निम्नलिखित में से है
(A) अनुचित प्रतिबंधों के विरुद्ध जबकि उचित प्रतिबंधों का समर्थन
(B) कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं बल्कि रक्षा करते हैं
(C) स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, परंतु प्रत्येक स्थान पर वह बंधन में बंधा हुआ है।” यह कथन निम्न में से है
(A) रूसो
(B) हॉब्स
(C) लॉक
(D) मिल
उत्तर:
(A) रूसो

6. राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ निम्न में से है
(A) एक राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से पूर्णतः स्वतंत्रता का प्राप्त होना
(B) एक राष्ट्र की विदेश नीति पर अन्य राष्ट्र का नियंत्रण होना
(C) एक राष्ट्र के आंतरिक मामलों में अन्य राष्ट्रों का हस्तक्षेप न होना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) एक राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से पूर्णतः स्वतंत्रता का प्राप्त होना

7. निम्नलिखित में से स्वतंत्रता का संरक्षण माना जाता है
(A) कानून का शासन
(B) मौलिक अधिकारों की संवैधानिक व्यवस्था
(C) स्वतंत्र प्रेस
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. स्वतंत्रता की सुरक्षा हेतु निम्नलिखित उपाय उपयुक्त नहीं है
(A) निरंकुशतंत्र की स्थापना
(B) सशक्त विरोधी सत्तापक्ष
(C) न्यायपालिका एवं विधानपालिका में पृथक्करण
(D) प्रजातंत्र की स्थापना
उत्तर:
(A) निरंकुशतंत्र की स्थापना

9. “स्वतंत्रता अति शासन का उल्टा रूप है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है
(A) मिल
(B) गैटेल
(C) लास्की
(D) रूसो
उत्तर:
(C) लास्की

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

10. “व्यक्ति जितनी अधिक स्वतंत्रता चाहता है, उतना ही उसे सत्ता के आगे झुकना पड़ता है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है?
(A) हॉकिन्स
(B) लास्की
(C) प्रोंधा
(D) मिल
उत्तर:
(A) हॉकिन्स

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. अंग्रेजी भाषा के लिबर्टी (Liberty) शब्द की उत्पत्ति लिबर (Liber) शब्द से हुई है। यह शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर:
लेटिन भाषा से।

2. “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
बाल गंगाधर तिलक का।

3. सामाजिक समझौता (Social Contract) नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
रूसो।

4. “जहाँ कानून नही होते, वहाँ स्वतंत्रता नहीं होती।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
जॉन लॉक।

रिक्त स्थान भरें

1. अंग्रेजी भाषा के ‘लिबर्टी’ शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के …………. शब्द से हुई है।
उत्तर:
लिबर

2. …………… विचारधारा के विद्वान कानून को स्वतंत्रता का शत्रु नहीं मानते।
उत्तर:
समाजवादी

3. “पूँजीवाद के उदय से मजदूर लगातार जंजीरों में जकड़ा हुआ है।” यह कथन ……………. का है।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स

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