Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 22 रासायनिक समन्वय तथा एकीकरण Important Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 22 रासायनिक समन्वय तथा एकीकरण
(A) बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions
1. होंमोन होता है-
(A) एन्जाइम
(B) रासायनिक सन्देशवाहक
(C) ग्रन्थिल स्नाव
(D) उत्सर्जी पदार्थ
उत्तर:
(B) रासायनिक सन्देशवाहक
2. वृद्धि हॉर्मोन का स्राव किससे होता है ?
(A) एड्रीनल
(B) थायरॉइड
(C) पिट्यूटरी
(D) थाइमस
उत्तर:
(C) पिट्यूटरी
3. शरीर में तालमेल स्थापित करने वाले तन्र होते हैं-
(A) अन्त स्रावी
(B) रुधि परिवहन
(C) तन्त्रिकीय
(D) तन्त्रिकीय एवं अन्तःर्तावी
उत्तर:
(D) तन्त्रिकीय एवं अन्तःर्तावी
4. शरीर की कोशिकाओं में आधारी उपापचय दर का संचालन कौन करता है ?
(A) पैराथाइरॉइड
(B) थाइरॉइड
(C) पिट्यूटरी
(D) थाइमस
उत्तर:
(B) थाइरॉइड
5. रुधिर दमब तथा हृदय स्पन्दन किस हॉर्मोन द्वारा बढ़ जाते हैं ?
(A) ऐड्रीनेलिन
(B) थाइरॉक्सिन
(C) सीक्रिटिन
(D) गैस्ट्रिन
उत्तर:
(A) ऐड्रीनेलिन
6. गोनेडोट्रॉपिन हॉमोन का स्रावण कहाँ से होता है ?
(A) एड्रीनल कर्टेक्स
(B) एड्रीनल मेड्यूला
(C) थाइरॉइड
(D) ऐडीनोहाइपोफाइसिस
उत्तर:
(D) ऐडीनोहाइपोफाइसिस
7. ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित करने धाला हॉर्मोन स्र्रावित होता है-
(A) पिट्यूटरी
(B) थाइमस
(C) अग्न्याशय
(D) थाइरॉइड
उत्तर:
(C) अग्न्याशय
8. पीयूष ग्रन्थि या पिट्यूटरी कहाँ स्थित होती है ?
(A) जनद
(B) मस्तिष्क
(C) श्वास नाल के इधर-उधर
(D) अगन्याशय
उत्तर:
(B) मस्तिष्क
9. एण्ड्रोजन किससे खावित होता है ?
(A) पीयूष ग्रन्थि
(B) वृषण
(C) अण्डाशय
(D) थाइरॉइड
उत्तर:
(B) वृषण
10. मधुमेह का सम्बन्ध किससे है ?
(A) पेयर के गुच्छे
(B) ग्लिसन कोष
(C) लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ
(D) प्रॉफियन पुटिकाएँ।
उत्तर:
(C) लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ
11. शरीर की मास्टर ग्रन्थि किसे कहा जाता है ?
(A) पीयूष मन्थि
(B) थाइरॉइड
(C) थाइमस
(D) रड्रीनल
उत्तर:
(A) पीयूष मन्थि
12. न्यूरोहाइपोफाइसिस से क्या खावित होता है ?
(A) वेसोप्रेसिन
(B) ऑक्सीटोसिन
(C) ऑक्सीटोसिन व प्रोलेक्टिन
(D) बेसोप्रेसिन व ऑक्सीटोसिन
उत्तर:
(D) बेसोप्रेसिन व ऑक्सीटोसिन
13. ग्लूकागॉन का खावण कहाँ से होता है
(A) लोडिग कोशिकाएँ
(B) लैंगर हेन्स की द्वीपिकाएँ
(C) कॉर्पस ल्यूटियम
(D) ग्लिसन कोष
उत्तर:
(B) लैंगर हेन्स की द्वीपिकाएँ
14. ग्लूकागॉन के अतिवावण से हो जाता है-
(A) टैटनी
(B) उदकमेह
(C) एकोमिगेली
(D) ग्लाइकोरिया
उत्तर:
(D) ग्लाइकोरिया
15. लैगरहेन्स की द्वीपिकाएँ कहाँ स्थित होती हैं ?
(A) यकृत
(B) तिल्ली
(C) अग्न्याशय
(D) पीयूष मन्थि
उत्तर:
(C) अग्न्याशय
16. TSH का पूरा नाम क्या है ?
(A) थाइरॉक्सिन स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन
(B) टायरोसीन स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन
(C) टायरोसीन स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन
(D) धायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन
उत्तर:
(D) धायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन
17. कौन-सी प्रति वहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी दोनों का कार्य करती है ?
(A) पीयूष ग्रन्थि
(B) यकृत
(C) थाइरॉइड
(D) अग्न्याशय
उत्तर:
(D) अग्न्याशय
18. महाकायता व अप्रातिकायता किस कारण होते हैं ?
(A) पीयूष पन्थि का अतिस्रावण
(B) पीयूष ग्रन्थि का अल्पस्रावण
(C) थाइरॉइड मन्थि का अतिस्रावण
(D) थायरॉइड पन्थि का अल्पखावण
उत्तर:
(A) पीयूष पन्थि का अतिस्रावण
19. लीडिंग कोशिकाओं का कार्य होता है-
(A) शुक्राणु जनन
(B) प्रोजेस्टेरॉन का स्त्रावण
(C) टेस्टोस्टेरॉन का खावण
(D) शुक्राणु का पोषण
उत्तर:
(C) टेस्टोस्टेरॉन का खावण
20. मनुष्य में पैराथॉर्मोन की कमी से -कौन-सा रोग हो जाता है ?
(A) हाइपरकेल्सिमिया
(B) हाइपोकैल्सिमिया
(C) घेंघा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) हाइपोकैल्सिमिया
21. गोनेडोट्रॉपिन का वायण कहाँ होता है ?
(A) वृषण में
(B) अण्डाशय में
(C) पीयूष मन्थि में
(D) थाइमस में
उत्तर:
(C) पीयूष मन्थि में
22. लंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ, जिनसे ग्लूकागॉन हॉर्मोन स्रावित होता है कहलाती है-
(A) अल्फा कोशिकाएँ
(B) बीटा कोशिकाएँ
(C) डेल्टा कोशिकाएँ
(D) मीटा और डेल्टा कोशिकाएँ
उत्तर:
(A) अल्फा कोशिकाएँ
23. पीयूष ग्रन्थि का नियंत्रण कौन करता है ?
(A) एड्रीनल ग्रन्थि
(B) हाइपोथैलेमस
(C) पीनियल काय
(D) थाइरॉइड ग्रन्थि
उत्तर:
(B) हाइपोथैलेमस
24. आपातकालीन हॉमॉन है-
(A) थाइरॉक्सिन
(B) पेड्रीनेलिन
(C) इन्सुलिन
(D) प्रोजेस्टेरॉन
उत्तर:
(B) पेड्रीनेलिन
25. कौन-सी अन्तःस्रावी ग्रन्थि वृद्ध आयु में निष्क्रिय हो जाती है ?
(A) एड्रीनल
(C) थाइमस
(B) पीनियल काय
(D) पीयूष ग्रन्थि
उत्तर:
(C) थाइमस
26. अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के खावण को कहते हैं-
(A) हॉर्मोन्स
(B) फीरोमोन्स
(C) एन्जाइम्स
(D) म्यूकॉइड्स
उत्तर:
(A) हॉर्मोन्स
27. मेड़क के टैडपोल में कायान्तरण किस हॉर्मोन द्वारा प्रेरित होता है ?
(A) थायरॉक्सिन
(C) ग्लूकागॉन
(B) इन्सुलिन
(D) एड्रीनेलिन
उत्तर:
(A) थायरॉक्सिन
28. किस हॉर्मोन के कारण रुधिर दाव एवं हृदय गति में वृद्धि होती है ?
(A) एड्रिनेलिन
(C) सीक्रिटिन
(B) थायरॉक्सिन
(D) गैस्ट्रिन
उत्तर:
(A) एड्रिनेलिन
29 नलिकाविहीन प्रतियों के स्राव को कहते हैं-
(A) एन्जाइम
(C) म्यूकस
(B) फीरोमोन
(D) हॉर्मोन
उत्तर:
(D) हॉर्मोन
30. किस हॉर्मोन के अत्यस्राव के कारण मूत्रलता उत्पन्न होती है ?
(A) वेसोप्रेसिन
(C) कैल्सिटोनिन
(B) थायरॉक्सिन
(D) ऑक्सीटोसिन
उत्तर:
(A) वेसोप्रेसिन
31. मनुष्य में आयोडीन की कमी से होने वाला रोग है-
(A) मिक्सिडिमा
(C) ऐक्रोमिगेली
(B) ऐडीसन रोग
(D) पेघा
उत्तर:
(D) पेघा
32. कैल्सियम व फॉस्फोरस उपापचय का नियन्त्रण करने वाला हॉमॉन कहाँ से स्वावित होता है ?
(A) थाइमस
(B) थाइरॉइड
(C) पैराथाइरॉइड
(D) अग्न्याशय
उत्तर:
(C) पैराथाइरॉइड
33. लैंगर हैन्स की द्वीपिकाओं की बीटा कोशिकाओं द्वारा स्रावित हॉर्मोन है –
(A) ग्लूकागॉन
(B) इन्सुलिन
(C) सोमेटोस्टेटिन
(D) मिलैटोनिन
उत्तर:
(B) इन्सुलिन
34. संकटकालीन परिस्थितियों में मनुष्य को लड़ने, डरने तथा पलायन को प्रेरित करने वाली ग्रन्थि है –
(A) एड्रीनल
(B) थाइमस
(C) भाइरॉइड
(D) पीयूष
उत्तर:
(A) एड्रीनल
35. त्वचा में उपस्थित रंग का कारण हैं –
(A) स्ट्रेटम मन्यूलोसम परत में पाया जाने वाला क्रेटाहापलिन
(B) उपत्वचीय परत में पाया जाने वाला संयोजी ऊतक
(C) डर्मिस में उपस्थित मेलेनिन
(D) (A) व (B) दोनों।
उत्तर:
(C) डर्मिस में उपस्थित मेलेनिन
36. स्तन प्रवियों व्युत्पन है –
(A) स्वेद मन्थियों से
(C) हेयर फॉलिकल से
(B) वसीय ऊतक से
(D) सिबेसियस ग्रन्धि से।
उत्तर:
(A) स्वेद मन्थियों से
37. DCT में H20 का अवशोषण नियन्त्रित होता है –
(A) ADH द्वारा
(B) ACTH द्वारा
(C) LH द्वारा
(D) ऑक्सीटोसिन द्वारा।
उत्तर:
(A) ADH द्वारा
38. ACTH का स्रावण होता है –
(A) थाइरॉइड से
(B) थाइमस से
(C) पिट्यूटरी से
(D) लैंगर हैंस की द्वीपिकाओं से
उत्तर:
(C) पिट्यूटरी से
39. घेंघा ( goiter) सम्बन्धित है –
(A) ग्लूकेगॉन से
(B) थाइरॉक्सिन से
(C) प्रोजेस्ट्रान से
(D) टेस्टोस्टीरॉन से।
उत्तर:
(B) थाइरॉक्सिन से
40. नोरएपी नेफ्रीन का कार्य है-
(A) रुधिर दाब बढ़ाना
(B) मूत्र निर्माण
(C) एड्रिनेलिन का स्राव बढ़ाना
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) रुधिर दाब बढ़ाना
41. अमीनो अम्ल व्युत्पन्न हार्मोन हैं –
(A) इंसुलिन
(B) ऑक्सीटोसिन
(C) एरीथ्रोपोएटिन
(D) धाइरॉक्सिन।
उत्तर:
(D) धाइरॉक्सिन।
42. कौन-सा गोनेडोट्रोपिक हार्मोन है –
(A) GH
(B) MSH
(C) ADH
(D) FSH व LH
उत्तर:
(D) FSH व LH
43. आमाशयी रस का स्त्राव नियन्त्रित होता है –
(A) गेल्ट्रिन द्वारा
(B) कोलिस्टो काइनिन द्वारा
(C) एन्टीरोगोस्ट्रिन द्वारा
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) गेल्ट्रिन द्वारा
44. थाइरोक्सिन हार्मोन का कार्य है-
(A) वृद्धि में सहायक
(B) विकास में सहायक
(C) स्वप्रतिरक्षित
(D) उपापचयी नियन्त्रण।
उत्तर:
(D) उपापचयी नियन्त्रण।
45. स्टीरॉइड हार्मोन जो ग्लूकोज उपापचय का नियमन करता है –
(A) कार्टिसोल
(C) 11-डि कोर्टिकोस्टेरॉन
(B) कोर्टिकोस्टेरॉन
(D) कॉटिसोन।
उत्तर:
(A) कार्टिसोल
46. जब चूहे के दोनों अण्डाशयों को हटा दिया जाए तो रुचिर में कौन से हार्मोन की कमी होगी –
(A) ऑक्सिटोसिन
(B) प्रोलैक्टिन
(C) एस्ट्रोजन
(D) गोनेडीट्रोपिक रिलीजिका कारक
उत्तर:
(C) एस्ट्रोजन
47. मुख्य रूप से कौन से हार्मोन मानव मासिक चक्र को निर्धारित करते हैं-
(A) FSH
(B) LH
(C) FSH, LH, एस्ट्रोजन
(D) प्रोजेस्ट्रोन।
उत्तर:
(C) FSH, LH, एस्ट्रोजन
48. स्तनीय थाइमस ग्रन्थि सम्बन्धित है –
(A) ताप नियन्त्रण से
(B) वृद्धि नियन्त्रण से
(C) प्रतिरक्षा से
(D) थाइरोट्रोपिन स्त्रावण से।
उत्तर:
(A) ताप नियन्त्रण से
49. वयस्क मानव में सबसे बड़ी अन्त: स्रावी ग्रन्थि है –
(A) थाइमस
(B) यकृत
(C) थाइरॉइड
(D) अग्न्याशय।
उत्तर:
(C) थाइरॉइड
50. फेरोमोन्स होते हैं –
(A) अन्तःस्रावी ग्रन्थि उत्पाद
(B) संप्रेषण रसायन
(C) संदेशवाहक RNA
(D) प्रोटीन
उत्तर:
(B) संप्रेषण रसायन
51. सबसे छोटी अन्तस्रावी ग्रन्थि हैं –
(A) थाइरॉइड
(B) पैराथाइरॉइड
(C) पीयूष
(D) एड्रीनल।
उत्तर:
(C) पीयूष
52. स्तनधारियों के अण्डाशय का कौन-सा भाग अण्डोत्सर्ग के बाद अन्तःस्रावी ग्रन्थि का कार्य करने लगता हैं-
(A) माफियन फैलिकल
(B) पीठिका
(D) पीतकी झिल्ली।
(D) प्रोटीन
उत्तर:
(A) माफियन फैलिकल
(B) अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
अन्तःस्रावी तन्त्र का सर्वोच्च कमाण्डर कौन कहलाता है ?
उत्तर:
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) को अन्तःस्रावी तंत्र का सर्वोच्च कमाण्डर (supreme commander of endocrine system) कहा जाता है।
प्रश्न 2.
लैंगर हैन्स की डीपिकाएँ शरीर में कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
सैगरहैन्स की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) अग्न्याशय ग्रन्थि (pancreas) की पालियों के बीच-बीच में उपस्थित संयोजी ऊतकों में पायी जाती हैं।
प्रश्न 3.
शरीर की सबसे बड़ी अन्तःस्रावी ग्रन्थि का नाम लिखिए।
उत्तर:
शरीर की सबसे बड़ी अन्तःसावी मन्थि थायरॉइड (thyroid) होती
प्रश्न 4.
थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के अधिक स्राव के कारण होने वाले रोग का नाम लिखिए।
उत्तर:
थाइरॉक्सिन (thyroxin) हॉर्मोन के अधिक स्राव के कारण नेत्रोत्सेधी गलगण्ड ( exophthalmic goiter ) तथा प्लूमर का रोग (Plummer’s Disease) हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
पैराथॉमॉन के विपरीत रूप में कार्य करने वाले हॉमोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
थाइरॉइड (thyroid) ग्रन्थि द्वारा सावित कैल्सिटोनिन (calcitonin) पैराथॉमॉन (parathormone) के विपरीत कार्य करता है।
प्रश्न 6.
किस प्रन्थि को लिम्फोसाइट्स का प्रशिक्षण केन्द्र कहा जाता है ?
उत्तर:
थाइमस ग्रन्थि (thymus gland) को T- लिम्फोसाइट्स का प्रशिक्षण केन्द्र कहा जाता है।
प्रश्न 7.
शरीर में लैंगिक जैविक घड़ी की भाँति कार्य करने वाली ग्रन्थि का नाम लिखिए।
उत्तर:
पीनियल काय (pineal body) शरीर में लैंगिक जैविक घड़ी (sexual biological clock) की भांति कार्य करती है।
प्रश्न 8.
यदि लैंगर हैन्स द्वीपिकाएँ कार्य करना बन्द कर दें तो किन हॉर्मोन्स की कमी होगी ?
उत्तर:
यदि लैंगरहैन्स द्वीपिकाएँ कार्य करना बन्द कर दें तो इन्सुलिन ( insulin) हॉर्मोन की कमी होगी।
प्रश्न 9.
जीवन रक्षक हॉर्मोन्स किस अन्तःस्रावी ग्रन्थि द्वारा खावित होते हैं ?
उत्तर:
जीवन रक्षक हॉर्मोन्स अधिवृक्क प्रन्थि अथवा एड्रीनल ग्रन्थि (adrenal gland) द्वारा स्लावित होते हैं।
प्रश्न 10.
कॉर्पस ल्युटियम द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
कॉर्पस ल्युटियम (corpus luteum) द्वारा प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन (progesterone hormone) का स्राव होता है।
प्रश्न 11.
हॉर्मोनी क्रिया में द्वितीय सन्देशवाहक का कार्य कौन करता
उत्तर:
हॉर्मोनी क्रिया में द्वितीय सन्देशवाहक का कार्य साइक्लिक एडीनोसीन मोनो फॉस्फेट या साइक्लिक AMP या cAMP (cyclic AMP) द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 12.
यदि भोजन में आयोडीन की कमी हो तो कौन-सा हॉर्मोन नहीं बनेगा ?
उत्तर:
यदि भोजन में आयोडीन की कमी हो तो थाइरॉक्सिन हॉर्मोन नहीं बनेगा।
प्रश्न 13.
यदि अधिवृक्क ग्रन्थि को काटकर निकाल दें तो क्या होगा ?
उत्तर:
अधिवृक्क मन्धि को काटकर निकाल देने से कॉर्टिकॉइड्स तथा एड्रीनलीन हॉर्मोन्स नहीं बन सकेंगे और इनके अभाव में कई जैविक क्रियाएँ नहीं हो सकेंगी तथा जीव की मृत्यु हो जायेगी।
प्रश्न 14.
मिक्सीडिमा रोग किन दशाओं में होता है ?
उत्तर:
मिक्सीडिमा रोग प्रौढ़ व्यक्तियों में थाइरॉइड के द्वारा थाइरॉक्सिन (thyroxin) के अल्पस्रावण से होता है।
प्रश्न 15.
लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ कहाँ पायी जाती हैं और किन हॉर्मोन्स का स्वायण करती हैं ?
उत्तर:
लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ अग्न्याशय (pancreas) में पायी जाती हैं। इसकी 8 कोशिकाएँ इन्सुलिन (insulin) तथा अल्फा कोशिकाएँ ग्लूकागॉन (glucagon) का स्रावण करती हैं।
प्रश्न 16.
उस हॉर्मोन का नाम बताइए जो थाइरॉक्सिन की मात्रा को नियन्त्रित करता है।
उत्तर:
पीयूष ग्रन्थि से निकलने वाला थाइरोट्रापिन हॉर्मोन थाइरॉक्सिन की मात्रा को नियन्त्रित करता है।
प्रश्न 17.
यदि बाल्यावस्था में ही थाइरॉक्सिन की कमी हो जाये तो बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर:
थाइरॉक्सिन (thyroxin) की कमी बच्चा अवटुवामन अथवा बौना रह जायेंगा।
प्रश्न 18.
घेंघा रोग किस हॉर्मोन की कमी से हो जाता है ?
उत्तर:
भोजन में आयोडीन की कमी से थाइरॉइड मन्धि फूल जाती है तथा थाइरॉक्सिन (thyroxin) का स्राव बहुत कम हो जाता है। अतः थाइरॉक्सिन की कमी से घेंघा या गलगण्ड रोग हो जाता है।
प्रश्न 19.
इन्सुलिन किस प्रकार का हॉर्मोन है ? इनका निर्माण किन कोशिकाओं द्वारा होता है ?
उत्तर:
इन्सुलिन (insulin) दो पॉलिपेप्टाइड (polypeptide ) श्रृंखलाओं से बना हॉर्मोन है। इसका स्रावण लैंगर हैन्स की द्वीपिकाओं (islets of langerhans) की बीटा कोशिकाओं (B cells) द्वारा होता है।
प्रश्न 20.
किस हॉर्मोन की कमी से ग्लाइकोसूरिया नामक रोग हो जाता है ?
उत्तर:
इन्सुलिन (insulin) की कमी से ग्लाइकोसूरिया (glycosuria) रोग हो जाता है।
प्रश्न 21.
पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) से निकलने वाले हॉर्मोन्स का नाम लिखिए।
उत्तर:
पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) से प्रोजेस्टेरॉन (progesteron) हॉर्मोन का स्त्रावण होता है।
प्रश्न 22.
पीयूष ग्रन्थि की पश्च पालि से स्वावित होने वाले दो हॉर्मोन्स के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) वेसोप्रेसिन (vasopressin) तथा
(ii) ऑक्सीटोसिन (oxytocin )।
प्रश्न 23.
एकोमिक्रिया रोग क्या है और किन में तथा क्यों हो जाता है ?
उत्तर:
एक्रोमिक्रिया रोग वामन व्यक्तियों में वृद्धि हॉर्मोन्स की अधिकता से उत्पन्न हुए अनुपातहीन वृद्धि को कहते हैं।
प्रश्न 24.
स्नूकागॉन हॉर्मोन्स कौन-सी द्वीपिकाओं से स्वावित होता है ? इसका क्या कार्य है ?
उत्तर:
ग्लूकागॉन (glucagon) हॉर्मोन लेंगरहेन्स की द्वीपिकाओं (Islets of Langerhans) की अल्फा कोशिकाओं (a cells) से स्त्रावित होता है तथा यह यकृत में वसीय अम्लों तथा अमीनों अम्लों से ग्लूकोज के स्त्रावण को प्रेरित करता है तथा आवश्यकता के समय संचित ग्लाइकोजन को विखण्डित करके ग्लूकोज बनाने की क्रिया को प्रेरित करता है।
प्रश्न 25.
अन्तः:वावी प्रन्थियों के अध्ययन को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
अन्तः सांवी मन्दियों के अध्ययन को अन्तःस्रावी विज्ञान अथवा एण्डोक्राइनोलॉजी (endocrinology) कहते हैं।
प्रश्न 26.
कौन-सा हॉर्मोन वृक्क नलिकाओं में जल अवशोषण का नियमन करता है ?
उत्तर:
एण्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन (antidiuretic Hormone ADH) वृक्क नलिकाओं में जल अवशोषण का नियमन करता है।
प्रश्न 27.
रक्त में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस की मात्रा का नियमन कौन करता है ?
उत्तर:
रक्त में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस की मात्रा का नियमन पैराथॉमन (parathormone) करता है।
प्रश्न 28.
बाँझपन व नपुंसकता किस हॉमॉन की कमी के कारण होती
उत्तर:
बांझपन एस्ट्रोजन ( estrogen) की कमी से तथा नपुंसकता एण्ड्रोजन्स (endrogens) हॉर्मोन्स की कमी से हो जाती है।
प्रश्न 29.
हॉर्मोन्स शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया था ?
उत्तर:
हॉर्मोन (hormone) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग स्टरलिंग (sterling) ने किया था।
प्रश्न 30.
शरीर की मास्टर ग्रन्थि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पीयूष मन्थि (pituitary gland) को शरीर की मास्टर प्रन्थि कहते
(C) लघुत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
अन्तःस्रावी तथा वहिःस्रावी प्रन्थियों में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्रावी तथा वहिःस्रावी ग्रन्थियों में अन्तर
अन्त:स्रावी ग्रन्धियाँ: | बहिस्तावी ग्रन्थियाँ: |
ये नलिका विहीन होती हैं। | ये नलिका युक्त होती हैं। |
इनमें संश्लेषित होने वाला स्राव सीधे ही रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँचता है। | इनमें संश्लेषित होने वाला स्राव नलिकाओं द्वारा किसी निश्चित अंग या शरीर की सतह पर पहुँचता है। |
इनसे स्तावित पदार्थों को हॉर्मोन्स कहते हैं। | इनमें स्रावित पदार्थों को हॉमोन्स नहीं कहते हैं। इनमें कोई भी रसायन हो सकता है। |
उदाहरण-पीयूष ग्रन्थि, थाइाॉयड प्रन्थि, एड्रीनल मन्थि आदि। | उदाहरण-यकृत, स्नेह मन्थियाँ, दुग्ध मन्थियाँ आदि। |
प्रश्न 2.
हाइपोथैलेमस द्वारा स्त्रावित मोचक तथा निरोधी हॉर्मोन्स का ना लिखिए।
उत्तर:
हाइपोथैलेमस की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं (neurosecretar cells) से लगभग 10 तन्त्रिका हॉर्मोन्स (neurohormones) का स्राव होत है जो पीयूष ग्रन्थि की अप्र व पश्चपालियों से हॉर्मोन्स के स्राव का नियम- करते हैं। ये न्यूरोहॉर्मोन्स दो प्रकार के होते हैं –
(I) मोचक हॉर्मोन्स (Releasing Hormones) – ये हॉर्मोन्स पीयू ग्रन्थि से हॉर्मोन्स के स्राव या मोचन को उद्दीपित करते हैं। ये निम्नलिखित होत
(1) थाइरोट्रॉपिन मोचन कारक या थाइरोट्रॉपिन मोचक हॉर्मोन्स (Thyrotropin-Releasing Factor: TRF)
(2) एंड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉपिन मोचक हॉर्मोन (Adrenocorticotropin Releasing Hormone : ACTRH)
(3) ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Luteinizing Hormone Releasing Hormone: LHRH)
(4) फॉलिकल उद्दीपन हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Follicle stimulating Hormone-Releasing Hormone: FSHRH)
(5) वृद्धि हॉर्मोन या सोमेटोट्रॉपिन-मोचक हॉर्मोन (Growth Hormone or Somatotropin-Releasing Hormone)
(6) प्रोलेक्टिन मोचक हॉर्मोन (Prolactin Releasing Hormone : PRH)
(7) मिलेनोसाइट उद्दीपन हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Melanocyte stimulating Hormone-Releasing Hormone: MSHRH)
(II) निरोधी हॉर्मोन्स (Inhibiting Hormones : IH ) – ये हॉर्मोन्स पीयूष ग्रन्थि से कुछ हॉर्मोन्स के स्राव को रोकते हैं।
ये निम्नलिखित होते हैं –
(1) वृद्धि हॉर्मोन्स निरोधी हॉर्मोन (Growth Hormone Release-Inhibiting Hormone: GHR-IH)
(2) प्रोलेक्टिन मोचन -निरोधी हॉर्मोन (Prolactin Release-Inhibiting Hormone: PR-IH)
(3) मिलेनोसाइट उद्दीपन हॉर्मोन मोचन निरोधी हॉर्मोन (Melanocyte Hormone-Release Inhibiting Hormone stimulating MSH-RIH)
प्रश्न 3.
पीयूष ग्रन्थि के वृद्धि हॉर्मोन के अतिस्राव के कारण होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पीयूष पन्थि (pituitary gland) के वृद्धि हॉर्मोन (growth hormones) के अतिस्राव (hypersecretion ) से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं –
(1) अतिवृद्धि (Gigantism) – बाल्यकाल में वृद्धि हॉमोंन की अधिकता से बहुत लम्बे तथा हृष्टपुष्ट भीमकाय (giant) व्यक्तियों का विकास होता है । इन्हें पिट्यूटरी जायण्ट (pituitary giants) कहते हैं।
(2) अप्रातिकायता (Acromegaly ) वृद्धिकाल के बाद वृद्धि हॉर्मोन की अधिकता से गोरिल्ला के समान कुरूप भीमकाय व्यक्ति बनते हैं। क्योंकि हड्डियों की लम्बाई में वृद्धि सम्भव नहीं होती तो शरीर लम्बाई में नहीं बढ़ पाता है, अतः हाथ, पाँव, चेहरे के कुछ भाग जबड़े आदि अधिक लम्बे हो जाते हैं। हड्डियाँ मोटाई में बढ़ती हैं, जिससे चेहरा व शरीर भद्दा हो जाता है। इस अवस्था को एक्रोमेगैली (acromegaly) कहते हैं।
(3) काइफोसिस (Kyphosis) – कभी-कभी कशेरुक दण्ड के झुक जाने से व्यक्ति कुबड़ा हो जाता है।
प्रश्न 4.
क्या कारण है कि प्रायः घेंघा की बीमारी पहाड़ी क्षेत्र पर रहने वाले मनुष्यों में ज्यादा होती है ?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्र में उपलब्ध जल एवं मिट्टी में आयोडीन की कमी होती है। अतः भोजन व पेयजल में आयोडीन की कमी से इस क्षेत्र के लोगों में प्रायः घेंघा रोग हो जाता है। इस रोग में गले की ‘थाइरॉइड ग्रन्थि’ फूल जाती है, जिससे गर्दन कुरूप हो जाती है। आयोडीन की उपयुक्त मात्रा सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है। इस रोग से बचने के लिए भोजन के साथ आयोडीनयुक्त नमक का सेवन करना चाहिए।
प्रश्न 5.
थायरॉक्सिन हॉर्मोन के कार्यों को समझाइए।
उत्तर:
थायरॉक्सिन हॉर्मोन (thyroxin hormone) के निम्नलिखित कार्य होते हैं –
- थाइरॉक्सिन सभी उपापचय क्रियाओं की गति का नियमन करता है। यह ऊर्जा उत्पन्न करने वाली ऑक्सीकृत प्रक्रियाओं की गति को बढ़ाता है।
- यह आन्त्र में ग्लूकोज अवशोषण, कोशिकाओं में ग्लूकोज की खपत, हृदय स्पन्दन दर, प्रोटीन संश्लेषण की गति व शरीर के ताप आदि में वृद्धि है करता है।
- यह शरीर के तापमान को बढ़ाता है।
- थाइरॉक्सिन वृद्धि एवं भिन्नन (growth and differentiation) के लिए अति आवश्यक है। यह अधिवृक्क वल्कुट (adrenal cortex) तथा जनदों की क्रिया को उत्तेजित करता है।
- न्यूरोस्स्रावी रसायन ऐड्रीनेलिन ( adrenalin) तथा नॉरऐड्रीनेलिन (nor adrenalin) की क्रिया विधि को बढ़ाता है।
- कायान्तरण में इसकी विशेष भूमिका होती है। इसकी कमी से कायान्तरण नहीं होता।
- शीत रुधिर या अनियततापी कशेरुकी प्राणियों में थाइरॉइड हॉर्मोन परासरण नियमन (osmoregulation) तथा निर्मोचन (moulting) का नियन्त्रण करता है।
प्रश्न 6.
लैंगर हैन्स की द्वीपिकाओं द्वारा स्रावित हॉर्मोनों के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं में तीन प्रकार की अन्तःस्रावी कोशिकाएँ पायी जाती हैं –
बीटा कोशिकाएँ – cells, अल्फा कोशिकाएँ (c-cells) तथा डेल्टा कोशिकाएँ (D-cells)। इनके द्वारा क्रमशः इन्सुलिन ( Insulin), ग्लूकागॉन (glucagon) तथा सोमेटोस्टेटिन (somatostatin) हॉर्मोन्स का स्त्राव किया जाता है।
इनके कार्य निम्नलिखित हैं –
(A) इन्सुलिन के कार्य (Functions of Insulin) –
- कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) के पाचन से बने ग्लूकोज (Glucose) को ग्लाइकोजन (glycogen) में बदल देता है और यकृत (liver) एवं पेशियों (muscles) में संगृहीत करता है।
- ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से ऊर्जा विमुक्त होती है।
- रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा निश्चित बनाये रखता है।
- कोशिकाओं की आधारी उपापचयी दर (Basal Metabolic Rate : BMR) को प्रभावित करता है।
- वसा ऊतकों में वसा संश्लेषण अर्थात् लाइपोजेनेसिस ( lipogenesis) को प्रभावित करता है।
(B) ग्लूकैगॉन के कार्य (Function of Glucagon ) –
(1) यह यकृत (liver) में ऐमीनो अम्लों तथा वसा से ग्लूकोज के संश्लेषण अर्थात् लूकोजीनोलाइसिस (gluconeogenesis) को प्रेरित करता है।
(2) वसा ऊतक में वसा के विघटन अर्थात् लाइपोलाइसिस (lypolysis ) को प्रेरित करता है।
(3) यकृत में ग्लूकोज को बनाने (glycogenalysis) को प्रेरित करता है।
(C) सोमेटोस्टेटिन के कार्य (Functions of Somatostatin) – यह हॉर्मोन पचे हुए भोजन के स्वांगीकरण की अवधि बढ़ाता है। इससे शरीर में भोजन की उपयोगिता अधिक समय तक रहती है।
प्रश्न 7.
हॉर्मोनी क्रिया में CAMP की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ हॉर्मोनी क्रियाओं में साइक्लिक एडीनोसिन मोनो फॉस्फेट (Cyclic Adenosine Monophosphate) द्वितीयक सन्देशवाहक (Second messenger) की भाँति कार्य करता है। कुछ हॉर्मोन (hormone) के अणु बड़े होते हैं जिस कारण ये लक्ष्य कोशिका की कोशिका कला से पारगमित नहीं हो पाते हैं। इन लक्ष्य कोशिकाओं की कला में हॉर्मोन माही प्रोटीन होती है। यह हॉर्मोन माही प्रोटीन प्रथम सन्देशवाहक कहलाती है। माही प्रोटीन के हॉर्मोन से क्रिया करने पर कोशिका कला की G प्रोटीन सक्रिय हो जाती है जो कि कोशिका कला में उपस्थित एडीनिलेट साइक्लेस (adenylate cyclase) एन्जाइम को उद्दीपित कर देता है। यह उद्दीपित एन्जाइम अणु ATP को CAMP (एडीनोसिन ट्राइ फॉस्फेट को चक्रीय एडीनोसीन मोनो फॉस्फेट) में बदल देता है।
चक्रीय एडीनोसीन मोनो फॉस्फेट (Cyclic Adensosine Monophosphate cAMP) के सक्रिय अणु प्रोटीन काइनेस एन्जाइम्स (protein kinase enzymes) को सक्रिय कर देते हैं जो कि कोशिकाओं की उपापचयी क्रियाओं को उत्प्रेरित करता है। अतः उपरोक्त हॉर्मोनी क्रियाओं में CAMP एक मध्यस्थ दूत या द्वितीयक दूत (second messenger) की भाँति कार्य करता है।
प्रश्न 8.
हॉर्मोन्स एवं एन्जाइम में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
हॉर्मोन एवं एन्जाइम में अन्तर –
हॉर्मोन (Hormone) | एन्जाइम (Enzyme) |
हॉर्मोन किसी क्रिया को उत्तेजित या उद्दीप्त करते हैं | एन्जाइम किसी क्रिया में उत्र्रेरक का कार्य करते हैं और पुनः दूसरी क्रिया में काम करते हैं। |
हॉर्मोन ‘रोटीन व स्टीरॉइड, वसा अम्ल, टायरोसिन के समान प्रकृति के होते हैं। | सभी एन्जाइम्स प्रोटीन के बने होते हैं। |
हॉर्मोन का अणुभार कम और अणु छोटे होते हैं। | एन्जाइम के अणु बड़े और इनका अणुभार अधिक होता है। |
ये रासायनिक अभिक्रियाओं में विधटित हो जाते हैं और ये इनमें पुन: भाग नहीं ले सकते हैं। | ये रासायनिक अभिक्रियाओं में विघटित नहीं होते हैं और इनमें ये पुन: भाग ले सकते हैं। |
हॉर्मोन्स अन्तःावी ग्रन्थियों में स्रावित होते हैं तथा इनका कार्यक्षेत्र उत्पत्ति स्थान से दूर होता है। | एन्जाइम कोशिका व बहिंस्रावी ग्रन्थियों में बनते हैं तथा इनका कार्यक्षेत्र उत्पत्ति स्थान के पास होता है। |
ये शरीर में संचित नहीं हो सकते। | ये कुछ समय के लिए शरीर में संचित हो सकते हैं। |
प्रश्न 9.
एस्ट्रोजन एवं एड्रीनेलिन हॉर्मोन के स्रोत तथा कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) एस्ट्रोजन (Estrogen) यह अण्डाशय की मैफियन पुटिकाओं की धीका इण्टरना कोशिकाओं से स्त्रावित होता है। यह सभी सहायक जननांगों अण्डवाहिनी, गर्भाशय, योनि लेबिया, क्लाइटोरिस आदि एवं द्वितीयक लैंगिक लक्षणों यथा दुग्ध-प्रन्थियों के विकास को प्रेरित करता है। स्त्रियों में रजोधर्म इसी के प्रभाव से प्रारम्भ होता है।
(2) एड्रीनेलिन ( Adrenaline ) – यह एड्रीनल अन्थि के मैड्यूला से स्त्रावित होता है। यह व्यक्ति को संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है, इसके प्रमुख कार्य है-भय, क्रोध, पीड़ा, अपमान, दुर्घटना, अत्यधिक ठण्ड या गर्मी के प्रभाव का नियन्त्रण व नियमन, हृदय, यकृत, कंकाल पेशियों व मस्तिष्क की रुधिर वाहिनियों का प्रसार हृदय की स्पन्दन दर रुधिर दाब, श्वास दर व उपापचय दर में वृद्धि पुतलियों का प्रसार आदि।
प्रश्न 10.
अप्रातिकायता, घेघा एडीसन का रोग तथा हाइपोग्लाइसीमिया रोग से कौन-से हॉर्मोॉन सम्बन्धित हैं ?
उत्तर:
रोग का नाम | सम्बन्यित हॉरोंन |
अमातिकायता (Acromegaly) | सोमेटोट्रॉपिन का अतिस्रावण (Hypersecretion of Somatotropin) |
घेंघा (Goiter) | थाइर्र्क्सिन का अल्पस्नावण (Hyposecretion of Thyroxin) |
एडीसन का रोग (Addison’s disease) | ग्लूकोकॉर्टिकायड्स हॉर्मोन का अल्प सूवण (Hyposecretion Glucocorticoids Hormone) |
हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) | ग्लूकोकॉर्टिकायड्स की कमी (Hyposecretion of Glucocorticoids) |
प्रश्न 11.
जनद ग्रन्थियों में उपस्थित अन्तःस्रावी प्रवियों द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन्स का शरीर में महत्व लिखिए।
उत्तर:
जनद प्रन्थियों में उपस्थित अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ जनद प्रन्थियाँ जनन कोशिकाएँ बनाने के अतिरिक्त अन्तःस्रावी मन्धियों के समान कार्य करती हैं जनद ग्रन्थियों में उपस्थित अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ व उनके हॉर्मोन्स निम्नलिखित है –
(i) वृषण एवं नर हॉर्मोन्स (Testes and Male Hormones) वृषणों में अन्तराली कोशिकाएं ( interstitial cells) या लीडिंग कोशिकाएँ (Leydig’s cells) नर हॉर्मोन्स के रूप में एण्ड्रोजन्स का स्त्रावण करती है। प्रमुख नर हॉर्मोन्स हैं –
(i) एण्ड्रोजन टेस्टोस्टेरॉन
(ii) एण्ड्रोस्टेरॉन
ये नर में पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्धन तथा यौन आचरण को प्रेरित करते। इनके अतिरिक्त टेस्टोस्टेरॉन शुक्राणु जनन को प्रेरित करता है।
(ii) अण्डाशय एवं मादा हॉर्मोन्स (Ovary and Female Hormones) – स्तनियों के अण्डाशय के स्ट्रोमा के कॉर्टेक्स भाग में अनेक विकासशील वैफियन पुटिकाएँ (graffian follicles) पायी जाती हैं। मैफियन पुटिकाओं की थीका इण्टरना (theca interna) एस्ट्रोजन (estrogen) हॉर्मोन का लावण करती है। यह हॉर्मोन यौवनावस्था प्रारम्भ से लेकर रजोनिवृत्ति की आयु तक साबित होता है।
कॉर्पस ल्यूटियम से भी दो हॉर्मोन्स –
(i) प्रोजेस्टेरॉन तथा
(ii) रिलैक्सिन स्त्रावित होते हैं।
(a) एस्ट्रोजन जननांगों व स्तनों के विकास को प्रेरित करता है।
(b) प्रोजेस्टेरॉन रजोचक्र का नियमन करता है, भ्रूण का रोपण करता है तथा गर्भधारण के बाद गर्भाशय के संकुचन को भी रोकता है।
(c) रिलैक्सिन शिशु जन्म के समय श्रोणि मेखला के प्यूबिक सिम्फाइसिस तथा पेशियों के शिथिलन का नियमन करता है।
प्रश्न 12.
अप्रातिकायता (Acromegaly) किसे कहते हैं ? यह किन परिस्थितियों में होता है ? इस रोग के लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अप्रातिकायता (acromegaly ) – पीयूष ग्रन्थि की अग्र पालि से सावित वृद्धि हॉर्मोन (growth hormone /GH) या सोमेटोट्रॉपिक हॉर्मोन (somatotropic hormone / STH) के आधिक्य से शरीर की कोशिकाओं में अमीनो अम्ल आवश्यकता से अधिक पहुँचने लगते हैं। इसके फलस्वरू कंकाल एवं अन्य ऊतकों की अतिवृद्धि हो जाती है और व्यक्ति की ऊँचाइ औसत से अधिक (7 फुट या इससे अधिक) हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को महाकाय तथा रोग को महाकाय या अतिकायता (gigantism) कहते हैं। यदि इस हॉर्मोन का स्राव वयस्कावस्था प्राप्त करने के बाद या कंकालीय वृद्धि पूरी होने के बाद बढ़ा हो तो रोग को अप्रातिकायता कहते हैं।
अश्रातिकायता रोग के लक्षण-इस रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं –
- कंकाल की सभी अस्थियों में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती है।
- हाथ व पैर लम्बे हो जाते हैं।
- निचला जबड़ा आगे की ओर निकल आता है।
- गालों की अस्थियाँ उभर आती हैं।
- शरीर बेडौल, बड़ा व लम्बा हो जाता है।
प्रश्न 13.
अप्डाशय के हॉमोंस के नाम तथा कार्य बतताइए।
उत्तर:
अण्डाशय के हॉर्मोन्स व उनके कार्य खियों के अण्डाशय से तीन प्रकार के हॉमोन्स स्रावित होते हैं-
(1) एट्टोजन (Estrogen)-यह अण्डाशय की मैफियन पुटिकाओं की थीका इण्टरना कोशिकाओं से यौवनावस्था से लेकर रजोनिवृत्ति की आयु (लगभग 48 वर्ष) तक स्वावित होता है। यह सभी सहायक जननांगों एवं द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास को प्रेरित करता है। स्तियों में रजोधर्म इसी के प्रभाव से – प्रारम्भ होता है। इसे नारी विकास ‘होंमोंन’ भी कहते हैं। इस हॉमोंन का नियन्तण पीयूष मन्थि के दो हॉर्मोन्स FSH तथा LH द्वारा होता है।
(2) प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone)-यह् अण्डाशय की मैफियन पुटिका कोशिकाओं से अप्डोत्सर्ग के बाद बनी पीले रंग के पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) नामक प्रन्थियों से स्रावित होता है। यह स्तियों में मासिक-चक्र का नियमन करके गर्भाधान के लिए आवश्यक दशाओं के विकास को प्रेरित करता है। गर्भधारण के समय होने वाले परिवर्तन का नियन्त्रण इसी हॉर्मोन द्वारा किया जाता है। इसके प्रभाव से गर्भकाल में स्तन अधिक विकसित हो जाते हैं और दुग्ध-ग्रन्थियाँ सक्रिय होकर बड़ी हो जाती हैं। प्रोजेस्टेरॉन का स्रावण पीयूष प्रन्थि के हॉम्योंन LH दूारा नियान्तित होता है।
(3) रिलैक्सिन (Relaxin)-इस हॉमोंन का स्रावण भी पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) द्वारा गर्भावस्था की समाप्ति पर शिशु-जन्म के समय होता है। यह हाँरोन शिशु-जन्म के समय जघन सन्धान (pubic symphysis) नामक जोड़ व इससे सम्बन्धित प्रेियों का शिथिलन करके शिशु-जन्म को सुगम बनाता है।
प्रश्न 14.
मधुमेह (Diabetes) किसे कहते हैं ? यह रोग क्यों हो जता है ? इसके लक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
इन्सुलिन के अनियमित स्रावण से कौन-से रोग उत्पन्न हो जाते हैं ?
उत्तर:
इन्सुलिन की अनियमितता से उत्पन्न रोग
(क) अल्पस्रावण (Hypoinsulinism) का प्रभाव मधुमेह या डाइबिटीज (Diabetes) रोग-यह रोग इन्तुलिन हॉर्मोन के अल्प या न्यून स्रावण के कारण उत्पन्न होता है। इन्दुलिन के अल्पस्रावण के कारण शरीर की कोशिकाएँ रुधिर से ग्लूकोज को नहीं ले पाती हैं। इससे रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। अधिक वृद्धि हो जाने पर ग्लूकोज मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है। अन्त में जब रुधिर और मात्र में ग्लूकोज की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है तो मधुमेह का रोग हो जाता है।
4 % मनुष्यों में यह रोग आनुवंशिक होता है। इस रोग में बहुमूत्रता के कारण शरीर में निर्जलीकरण एवं प्यास की शिकायतें हो जाती हैं। शरीर की कोशिकाएँ रुधिर से ग्लूकोज प्रहण न कर पाने के कारण ऊर्जा उत्पादन हेतु अपनी प्रोटीन्स का विखण्डन करने लगती हैं। इससे शरीर कमजोर हो जाता है। वसा ऊतकों में वसा के अपूर्ण विखण्डन से कीटोन काय (ketone bodies) बनने लगते हैं। ये मीठे, अम्लीय तथा विषाक्त होते हैं। धीरे-धीरे शरीर में इनकी मात्रा और अम्लीयता में वृद्धि हो जाने से रोगी बेहोश होने लगता है और शीष्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मधुमेह के रोगियों को इन्सुलिन के इंजेक्शन देने से लाभ होता है।
(ख) अतिस्नावण (Hyperinsulinism) का प्रभाव हाइपोम्लाइसीमिया (Hypoglycemia) रोग-यह रोग इन्सुलिन के अधिक स्रावण के कारण उत्पन्न होता है। इन्सुलिन के अतिस्रावण के कारण शरीर-कोशिकाएँ रुधिर से अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने लगती हैं, जिससे रुधिर में इसकी मात्रा कम होने लगती है। इसके कारण आवश्यक ऊर्जा प्राप्ति हेतु तन्त्रिका कोशिकाओं, नेत्रों की रेटिना व जननिक एपीथीलियम की कोशिकाओं की ग्लूकोज की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती है। अतः रोगी का दृष्टि ज्ञान एवं जनन क्षमता कम हो जाती है। मस्तिष्क की कोशिकाओं में अत्यधिक उत्तेजना से थकान, मूर्च्छा व ऐंठन अनुभव होती है और अन्त में मृत्यु हो जाती है। एश्रीनेफ्रीन, वृद्धि हॉमोंन, कॉर्टीसोल ग्लूकागॉन देने से इस रोग में लाभ होता है।
प्रश्न 15.
अन्त स्वावी विज्ञान के जनक कौन शे ? हॉर्मोंस का रासायनिक स्वभाव क्या होता है ?
उत्तर:
अन्तःसावी विझान के जनक धॉमस ए्ड़सन थे। होमोंन्स का रासायनिक स्वभाव-हॉर्मोन्स जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं, जिनका स्वभाव भिन्न-भिन्न हो सकता है यथा-
(1) अमीनो अम्ल (Amino acids) – कुछ हॉमोंन अमीनो अम्ल या इनके व्युत्पन्न पदार्थ होते हैं। जैसे-धाइर्रॉक्सन हॉर्मोन।
(2) प्रोटीन या पॉलीपेप्टाइ्ड्स (Proteins or Polypeptides) – ये कम अणुभार वाले प्रोटीन या इससे व्युत्पन्न पदार्थ होते हैं; जैसे पीयूष ग्रन्यि के हॉमोंस्स।
(3) स्टीरॉइडस (Steroids) – इनका आधार पदार्थ कलेस्ट्रॉल होता है जैसे लिंग होंगोन्स अधिवृक्क गन्थि के कुछ होंगोन्स।
(4) कैटेकोलेमीन्स (Catecholamines)-जैसे- एड़नेलिन। हॉर्मोन्स रासायनिक उत्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। ये रासायनिक क्रियाओं का नियन्न्रण करने में सहयोग देते हैं। अधिकतर हॉमोंन्स उपापचयिक अभिक्रियाओं में सीधे भाग न लेकर इनकी क्रियाशीलता के स्तर को प्रभावित करते हैं। ये जल में विलेय होते हैं।
प्रश्न 16.
कौन-सी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हॉमोन्स का स्रावण करती हैं-
(1) वृद्धि हॉमोन
(2) ऑक्सीदोसि
(3) बाइरॉक्सि
(4) कैस्तिटोनिन
(5) धाइमोसिन
(6) इन्सुलिन
(7) ग्लूकाग्नों
(8) ग्लूकोकर्टिकॉयड्स
(9) ऐडीनेलिन
(10) टेस्टोस्टेरॉन।
उत्तर:
हॉमोंन | अन्त:स्तावी ग्रन्यि |
वृद्धि हॉर्मोन (Growth hormone) | एडीनोहाइपोफाइसिस (Adenohypophysis) |
ऑक्सीटोसिन (Oxytocin or Pitocin) | न्यूरोहापोफाइसिस (Neurohypophysis) |
थाइरॉक्सिन (Thyroxin) | थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland) |
कैल्सिटॉनिन (Calcitonin) | थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland) |
थाइमोसिन (Thymosin) | थाइमस प्रन्थि (Thymus gland) |
इन्सुलिन (Insulin) | अग्याशय (Pancreas) में उपस्थित लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) |
ग्लूकागॉन (Glucagon) | अग्याशय (Pancreas) में उपस्थित लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) |
ग्लूकोकॉर्टिकॉयड्स (Glucocorticoids) | एड्रीनल कॉर्टेक्स (Adrenal cortex) |
ऐड्रीनेलिन (Adrenalin) | एड्रीनल मैड्यूला (Adrenal Medulla) |
टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) | वृषण (Testes) |
प्रश्न 17.
मनुष्य में उपस्थित अन्य अन्तःस्रावी अंगों का वर्णन कीजिए। उत्तर – मनुष्य में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों (Endocrine glands) के अतिरिक्त कुछ अन्य अंग भी हॉर्मोन्स उत्पन्न करते हैं जो शरीर की क्रियाओं पर अपना प्रभाव डालते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अंग निम्न हैं –
(1) वृक्क की जक्स्टा मेड्यूलरी जटिल कोशिकाएँ (Complex cells of Juxta Medullary Nephrons) वृक्क की जक्स्टा मेड्यूलरी जटिल कोशिकाओं द्वारा रेनिन (renin) नामक हॉर्मोन का स्राव होता है जो कि बुक्क नलिकाओं (nephrons) में परानिस्यन्दन (ultrafiltration) तथा एल्डोस्टेरॉन (aldosteron) हॉर्मोन के स्त्रावण को प्रेरित करता है तथा रक्त दाब में वृद्धि है।
(2) त्वचा (Skin) त्वचा में उपस्थित तैल पन्थियों की कोशिकाएँ विटामिन डी का स्त्रावण करती हैं जो कि आन्त्र द्वारा कैल्सियम के अवशोषण तथा अस्थि निर्माण को प्रेरित करता है।
(3) अपरा या जरायु (Placenta ) अपरा या जरायु की कोरियोनिक उपकला (chorionic epithelium) द्वारा ऐस्टूडियॉल (Estradiol) हॉर्मोन जो कि गर्भाशय की पेशियों के संकुचन का नियन्त्रण करता है तथा प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) हॉर्मोन, जोकि गर्भावस्था को बनाये रखता है का स्त्रावण किया जाता है। इसके द्वारा कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन्स (chorionic gonado tropic hormone) का स्त्रावण किया जाता है जो कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus luteum) के विकास का नियन्त्रण करता है। अपरा लैक्टोजन (Placental lactogen) द्वारा दुग्ध मन्धियों के विकास को प्रेरित किया जाता है।
प्रश्न 18.
तंत्रिकीय एवं अन्तःस्रावी संचार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तंत्रिका तंत्र एवं अन्तःस्रावी तंत्र ये दोनों ही शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण, नियमन एवं समन्वयन करते हैं। इन दोनों ही तंत्रों की क्रियाविधि में अग्रलिखित अंतर होते हैं –
तंत्रिकीय एवं अन्तःस्त्रावी संचार में अन्तर –
तंत्रिकीय संचार (Nervous Communication): | अन्त:सावी संचार (Endocrine Communication): |
तंत्रिकाएँ जिस अंग की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं, उनके सम्पर्क में रहती हैं। | अन्त:सावी भन्थि किसी अंग से सम्बन्धित नहीं होती हैं। इनसे स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स रक्त के माध्यम से अंग या लक्ष्य कोशिका तक पहुँचते हैं। |
तंत्रिकीय नियंत्रण अतिशीघ्र होता है। इसका प्रभाव तत्काल होता है। जिस अंग तक प्रेरणा पहुँचती है, उसमें तत्काल सम्बन्धित क्रिया सम्पन्न होती है । | अन्त:स्रावी नियंत्रण धीमी गति से होता है। इसका प्रभाव तत्काल नहीं होता है। हॉमोंन उपापचयी क्रिया को प्रभावित करके प्रभाव डालते हैं। |
तंत्रिका तंत्र बाहरी सूचनाओं (या उह्दीपनों) को प्रहण करके संगृहीत कर सकता है और भविष्य में उनका उपयोग कर सकता है। | अंतःन्नावी तंत्र में इस प्रकार सूचनाएँ संगृहीत करने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। |
(D) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions )
प्रश्न 1.
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों क्या हैं ? मनुष्य में पाये जाने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम, स्थिति तथा प्रत्येक से उत्पन्न हॉर्मोन्स के नाम लिखिए तथा उनके कार्य बताइए।
उत्तर:
हॉर्मोन्स-परिभाषा एवं विशेषताएँ (Hormones-Definition and Properties):
हॉर्मोन (Hormone) -ये अन्तस्रावी प्रन्थियों में बनने वाले ऐसे सक्रिय तथा कार्यकारी जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं, जो रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर विशेष अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार ये रासायनिक उत्रेरक का कार्य करते हैं। रासायनिक दृष्टि से ये स्टीरॉइड्स या प्रोटीन या प्रोटीन से व्युत्पन्न होते हैं।
हॉमोंस की विशेष्ताएँ (Properties of Hormones):
- हार्मोन्स कार्बनिक रासायनिक पदार्थ (Organic Chemical Substances) होते हैं, जिनका निर्माण कोशिकाओं द्वारा होता है।
- हॉंमॉन्स अन्तस्रावी प्रन्थियों द्वारा रुधिर में स्रावित किए जाते हैं।
- हॉमॉन्स का संमहण नहीं किया जाता है। ये तीव्र विसरणशील होते हैं।
- हॉम्मोन्स जल में घुलनशील होते हैं।
- ये उत्पत्ति स्थल से दूर जाकर क्रिया करते हैं अर्थात् इनके लक्ष्य निश्चित होते हैं।
- हॉमोन्स का अणुभार एन्जाइम्स की तुलना में कम होता है।
- हॉर्मोंस का निर्माण प्रोटीन्स या स्टीरॉइड्स से होता है।
- हॉर्मोन्स अल्प मात्रा में स्रावित होकर शरीर की उपापचयी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
मनुष्य की अन्त: व्वावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands of Human):
मनुष्य के शरीर में भिन्न-भिंन्न स्थानों पर निम्नलिखित अन्त्रावी मन्थियाँ स्थित होती है-
(1) हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)
(2) थाइॉॉइड प्रन्थि (Thyroid gland)
(3) पैराथाइडॉइड प्रन्थि (Parathyroid gland)
(4) थाइमस प्रन्थि (Thymus gland)
(5) अधिवृक्क भ्रन्थि (Adrenal gland)
(6) पीयूू मन्थि (Pituitary gland)
(7) पीनियल काय (Pineal body)
(8) अग््याशय यन्थि (Pancreas)
(9) वृषण (Testes)
(10) अण्डाशय (Ovaries)।
(11) अन्य (Others) – प्लेसेन्टा (Placenta), कार्पसल्यूटियस (Corpus Leutium), आहारनाल (Alimentary canal), यकृत (liver), वृक्क आदि (kidney) ।
प्रश्न 2.
पीयूष ग्रन्थि का नामांकित चित्र बनाते हुए एडीनोहाइपोफाइसिस तथा न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा स्वावित हॉमोंनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पीयूष ग्रन्थि/हाइपोफाइसिस (Pituitary Gland/ Hypophysis):
पीयूष ग्रन्थि एक जटिल ग्रन्थि होती है। यह अग्रमस्तिष्क के पश्च भाग-डाइएनसेफेलॉन (diencephalon) की आधारभित्ति हाइपोथैलेमस (hypothalamus) से एक छोटे से वृन्त इन्फण्डीबुलम (infundibulum) द्वारा जुड़ी रहती है। पीयूष ग्रन्थि को हाइपोफाइसिस सेरीब्राइ (hypophysis cerebri) भी कहते हैं। इसका आकार मटर के दाने के बराबर होता है। इसका भार 5-6 ग्राम होता है। स्रियों में यह कुछ अधिक बड़ी होती है तथा गर्भावस्था में इसका आकार बढ़ जाता है।
रचना तथा कार्य की दृष्टि से यह दो भागों में बँटी होती है –
(1) एडीनोहाइपोफाइसिस (Aden- ohypophysis) – यह पीयूष प्रन्थि का अगला गुलाबी भाग है जो कुल प्रन्थि का $75 \%$ है। यह भूरूण की मसनी (pharynx) से राथके कोष्ठ (Rathke pouch) के रूप में एक्टोडर्म से विकसित होता है। इसे पीयूष यन्थ का अप्रपिण्ड या अप्र पालि भी कहते हैं। यह स्वयं तीन भागों से मिलकर बना होता है-
(a) इन्फण्डीबुलर बृन्त से लिपटी समीपस्थ पालि (pars infundibularis or tuberalis)
(b) बड़ी फूली हुई गुलाबी-सी दूरस्थ पालि (pars distalis)
(c) संकरी पट्टीनुमा मध्य पालि (pars intermedia or intermediate lobe)।
(2) ग्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis) – यह हाइपोथैलेमस के इन्मण्डीबुलम से विकसित होता है। इसे पश्चपालि (posterior lobe) या तन्त्रिकीय पिण्ड (pars nervosa) भी कहते हैं। यह पीयूष प्रन्थि का एक-चौथाई भाग बनाता है। एडीनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्रावित हॉम्मोन्स (Hormones of Adenohypophysis)
(1) सोमेटोटॉंपिक होंमोन अथवा वृद्धि होंमोंन (Somatotropic Hormone or Growth Hormone) – यह शरीर की वृद्धि को प्रभावित करता है। यह ऊतकों के क्षय को रोकता है, कोशिका के विभाजन, हहुुियों व पेशियों के विकास तथा संयोजी ऊतक की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। यकृत में ऐमीनो अम्लों से ग्लूकोज तथा ग्लूकोज से ग्लाइकोजन के संश्लेषण को बढ़ाता है। वसा के विघटन को प्रेरित करता है। इसकी कमी से व्यक्ति बौना रह जाता है तथा अधिकता से भीमकायता (acromegaly) हो जाता है।
कार्य –
- शारीरिक वृद्धि के नियमन करता है।
- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा के उपापचय का नियमन करता है।
- अग्याशय से इन्सुलिन व ग्लूकेगॉन हार्मोन का स्रावण उद्दीपित करता है।
- यह यूरिया उत्सर्जन व मूत्र निष्कासन में वृद्धि करता है।
- स्तनियों में दुग्ध हावण को उद्दीपित करता है।
- कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है।
- ग्लूकोनियोजिनोसिस तथा ग्लाइकोजिनेसिस को प्रेरित करता है।
(2) गोनेडोट्रॉपिक हॉम्नोस्स (Gonadotropic Hormones: GTH) – यह हॉर्मोन नर तथा मादा में क्रमशः वृषण तथा अण्डाशय को उत्तेजित करता है। ये हॉर्मोन जनन ग्रन्थियों तथा अन्य सहायक जननांगों की सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
नलिकाओं (seminiferous tubules) तथा शुक्राणु निर्माण (sperm formation) प्रेरित करता है तथा स्रियों में अण्डाशयी पुटिकाओं की वृद्धि एवं एस्ट्रोजन (estrogens) के स्रावण को प्रेरित करता है।
(ब) ल्युटिनाइर्जिं हॉर्मोन अथवा अन्तराली कोशिका प्रेरक हॉर्मोन (Lutenizing Hormone : LH, or Interstitial Cell Stimulating Hormone : CSH – स्त्रियों में यह कॉर्पस ल्यूटिनम (corpus leutium) कोशिकाओं को प्रोजस्टेरॉन (Progesteron) हॉर्मोन के स्राव को प्रेरित करता है तथा पुरुषों में एण्ड्रोजन्स के स्राव को प्रेरित करता है।
(3) थाइ्रॉइड उस्तेजक होर्मोन (Thyroid Stimulating Hormone : TSH) – यह एक ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) हॉर्मोन है जो थाइरॉइड ग्रन्थि की वृद्धि एवं स्रावण क्रिया को उत्तेजित करता है।
(4) ऐड्रिनोकोर्टिकोट्रॉपिक हॉर्मोन (Adrenocorticotropic Hormone : ACTH) – यह एड्रीनल प्रन्थि (adrenal gland) के वल्कुट भाग (cortex) को हॉर्मोन स्रावण के लिए प्रेरित करता है।
कार्य –
- यह एड्रीनल प्रन्थि के कारेक्स भाग से स्रावित हॉर्मोन के उत्पादन व स्रावण को उत्रेरित करता है।
- वसा अपघटनीय एन्जाइमों को सक्रिय करता है।
- मेलेनिन के संश्लेषण को उत्रेरित करता है।
(5) लैक्टोजेनिक या प्रौलैक्टिन अथवा मैमोर्ट्रोपिक होंरोंन (Lactogenic Hormone : LTH)-यह हॉर्मोन स्त्रियों में गर्भावस्था के समय अधिक मात्रा में स्रावित होकर स्तनों की वृद्धि को प्रेरित करता है। शिशु जन्म के बाद दुग्ध स्राव को प्रेरित करता है।
(6) मिलैनोसाइट प्रेरक हॉर्मोन (Melanocyte Stimulating Hormone : MSH) – यह मध्यपिण्ड द्वारा स्रावित हॉर्मोन है जो त्वचा की वर्णकता का नियमन करता है। मानव में यह तिल बनने तथा चकत्ते बनने को प्रेरित करता है।
न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा स्तावित हॉर्मोन्स (Hormones of Neurohypophysis):
(1) वेसाप्रेसिन या पिट्रोसिन या एण्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन (Vasopressin or Pitrossin or Antidiuretic Hormone- ADH) – यह वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ भागों एवं संग्रह नलिकाओं से जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है जिससे मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। अतः इसे मूत्ररोधी या प्रतिमूत्रल हॉंमोन भी कहते हैं। यह शरीर के कुछ भागों की रुधिर वाहिनियों को सिकोड़कर रुधिर दाब को बढ़ाता है।
(2) ऑक्सीटोसिन (Oxytocin-OT) या पिटोसिन (Pitocin)-यह हॉर्मोन स्त्रियों में प्रसव पीड़ा उत्पन्न करके शिशु जन्म को आसान बनाता है। शिशु जन्म के बाद गर्भाशय को सामान्य अवस्था में लाता है। स्तनों में दुग्ध स्राव को प्रेरित करता है। यह गर्भाधान क्रिया को सुगम बनाता है।
वृद्धि हॉर्मोन GH के अति स्रावण से होने वाले रोग पीयूष म्रन्थि (Pituitary gland) के वृद्धि हॉमोंन (growth hormones) के अतिस्नाव (hypersecretion) से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं –
(1) अतिवृद्धि (Gigantism) – बाल्यकाल में वृद्धि हॉर्मोन की अधिकता से बहुत लम्बे तथा छष्टपुष्ट भीमकाय (giant) व्यक्तियों का विकास होता है। इन्हें पिट्यूटरी आयण्ट (pituitary giants) कहते हैं।
(2) अश्रातिकायता (Acromegaly) – वृद्धिकाल के बाद वृद्धि हॉमोंन की अधिकता से गोरिल्ला के समान कुरूप भीमकाय व्यक्ति बनते हैं। क्योंकि हडुदुयों की लम्बाई में वृद्धि सम्भव नहीं होती तो शरीर लम्बाई में नहीं बढ़ पाता है, अत: हाथ, पाँव, चेहरे के कुछ भाग जबड़े आदि अधिक लम्बे हो जाते हैं। हडुद्याँ मोटाई में बढ़ती हैं जिससे चेहरा व शरीर भद्दा हो जाता है। इस अवस्था को एकोमेगैली (acromegaly) कहते हैं।
(3) काइफोसिस (Kyphosis) – कभी-कभी कशेरुक दण्ड के झुक जाने से व्यक्ति कुबड़ा हो जाता है।
वृद्धि हॉमोंन GH के अल्पस्तावण से होने वाले रोग –
1. बाल्यकाल में STH या GH के अल्प स्रावण से व्यक्ति बौना रह जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति नपुसंक या बाँझ (sterile) होते हैं। पिट्टयूटरी से होने वाले बौनेपन को एटिओलिसिस (ateolisis) तथा ऐसे व्यक्तियों को मिगेद्स (midgets) कहते हैं। सरकस में काम करने वाले बौने मिगेद्स होते हैं। साइमण्ड रोग (Simonds’ Disease) – यह रोग वृद्धिकाल के बाद STH की कमी के कारण होता है। इसके कारण शरीर से ऊतक क्षतिग्रस्त होने लगते हैं, जिससे व्यक्ति दुर्बल हो जाता है।
प्रश्न 3.
थाइरॉइड ग्रन्थि के द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन्स व उनके अनियमित स्वाव के कारण उत्पन्न रोगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland):
थाइरॉइड प्रन्थि (thyroid gland) शरीर की सबसे बड़ी अन्त.स्रावी (endocrine gland) है जो कि गर्दन में श्वास नली के अगले भाग पर स्वरयन्त्र (larynx) के नीचे स्थित होती है। वयस्क मनुष्य में यह लगभग 5 सेमी लम्बी तथा 3 सेमी चौड़ी होती है। इसका भार लगभग 25-30 प्राम होता है। स्तियों में यह अपेक्षाकृत बड़ी होती है।
थाइरॉइड प्रन्थि अनेक छोटे-छोटे गोलाकार फॉलिकल्स (follicles) के समूहों की बनी होती है जो संयोजी ऊतक द्वारा आपस में बँधे रहते हैं। ये संयोजी ऊतक स्ट्रोमा (stroma) कहलाते हैं। इनमें कहीं-कहीं पर कोशिकाओं के ठोस गुच्छे पाये जाते हैं। इन्हें पैरापुटिकीय कोशिकाएँ (parafollicular cells या C- cells) कहते हैं।
थाइरॉइड ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन्स थाइरॉइड ग्रन्थि से तीन हॉर्मोन्स का स्राव होता है –
(1) थाइरॉक्सिन या टेट्रा आयोडोथाइरोनिन (Thyroxin or Tetraiodo-thyronine : T4)
(2) ट्राइआयोडोथाइरोनिन (Tri-iodothyronine T3)
(3) कैल्सिटोनिन (Calcitonin)।
(1) टेट्रा आयोडो थाइरोनिन (Tetra lodothyronine, T4 ) – इस हार्मोन का नियमन पीयूष ग्रन्थि के TSH हार्मोन द्वारा किया जाता है। इसकी कुल मात्रा 65 से 90% तक होती है। इसे थायरॉक्सिन हार्मोन के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण आयोडीन व टायरोसिन के द्वारा होता है। यह अपेक्षाकृत कम सक्रिय होता है। प्रत्येक टेट्रा आयोडोथाइरोनिन में टाइरोसीन के दो अणु तथा आयोडीन के चार परमाणु (T2 + T2 = T4)होते हैं।
(2) ट्राई- आयोडो थाइरोनिन (Tri- lodothyronine, T3 ) – यह भी आयोडीन युक्त हार्मोन है लेकिन यह T4 की तुलना में अत्यधिक सक्रिय व शक्तिशाली होता है। यह कुल हॉर्मोन का 10% भाग बनाता है। प्रत्येक ट्राइ आयडोथाइरोनिन में दो अणु टाइरोसीन के तथा आयोडीन के तीन परमाणु (T2 + T1 + होते हैं। T4 व T3 दोनों थाइरॉइड ग्रन्थि में बनने वाले आयोडीन युक्त हार्मोन हैं। इन दोनों के निर्माण में टाइरोसीन अमीनो अम्ल का उपयोग होता है।
इन दोनों हार्मोन्स का संग्रह पुटिकाओं की गुहा में उपस्थित कोलॉइड पदार्थ करता है। T4 व T3 हार्मोन्स पुटिका कोशिकाओं से मुक्त होकर रक्त में पहुंच जाते हैं। जब रक्त से यह हार्मोन्स ऊतक द्रव में जाते हैं तब अधिकांश T4 अणुओं का आयोडीन हरण या डीआयोडीनेशन होने पर T3 अणु बनते हैं । प्रत्येक T4 अणु से एक आयोडीन अणु पृथक् हो जाता है जिससे वह T3 में बदल जाता है। T3 तथा T4 को सम्मिलित रूप में थायरॉइड हार्मोन कहते हैं।
(3) कैल्सिटोनिन (Calcitonin ) – इस हार्मोन का स्त्रावण थायरॉइड ग्रन्थि की C-कोशिकाओं के द्वारा किया जाता है। ये पैरापुटिका कोशिकाएँ या “C” कोशिकाएँ थाइरॉइड ग्रन्थि की पीठिका / स्ट्रोमा में पाई जाती हैं। इस हार्मोन को थाइरोकैल्सिटोनिन भी कहते हैं। यह आयोडीन रहित हार्मोन है। यह हार्मोन मूत्र में कैल्सियम (Ca+2) के उत्सर्जन में वृद्धि तथा अस्थियों के विघटन को कम करने का कार्य करता है। यह हार्मोन पैराथायरॉइड ग्रन्थि के पैराथारमोन (PTH) के विपरीत कार्य करता है।
थाइरॉक्सिन के कार्य –
1. आधारी उपापचयी दर (BMR Basal Metabolic Rate) में वृद्धि करता है। जिससे ऊर्जा उत्पादन बढ़ता है इससे “जीवन की रफ्तार” ( Tempo of life) भी बढ़ती है।
2. यह सभी उपापचयी क्रियाओं का नियमन करता है।
3. यह कोशिकीय श्वसन दर को भी बढ़ाता है।
4. देह के तापक्रम को नियमित करता है।
5. मेढ़क के टेडपोल लार्वा के कायान्तरण में सहायक होता है।
गुडरनैश (Gudrnatsch; 1912 ) ने उभयचरों के टेडपोल लार्वा के कायान्तरण का अध्ययन कर यह बताया कि थायरॉक्सिन हार्मोन कायान्तरण (metamorphosis ) हेतु आवश्यक होता है। यदि टेडपोल की थाइरॉइड ग्रन्थि निष्क्रिय हो जाये या निकाल दी जाये या जल में आयोडीन की कमी हो तो टैडपोल लार्वा में कायान्तरण नहीं होता है तथा टेडपोल शारीरिक वृद्धि कर आकार में बड़ा हो जाता है। उत्तरी अमेरिका के पहाड़ी क्षेत्रों में ऐक्सोलोटल लार्वा (Axolotal Larva) बहुतायत से मिलता है।
यह लार्वा एम्बीस्टोमा (Ambistoma) नामक पुच्छयुक्त उभयचर का होता । जल में आयोडीन की कमी के कारण लार्वा की थायरॉइड ग्रन्थि का विकास नहीं हो पाता है। इस कारण थायरॉक्सिन हार्मोन नहीं बन पाता है। फलस्वरूप लार्वा में कायान्तरण नहीं होता है। यह ऐक्सोलोटल लार्वा शारीरिक वृद्धि कर बड़ा हो जाता है। इससे जननांग विकसित हो जाते हैं तथा ये पीडोजेनेटिक (pedogenetic) हो जाता है। इसी अवस्था में यह जनन प्रारम्भ कर देता है। यह प्रक्रिया नियोटिनी (neotiny) कहलाती है।
6. यह एड्रीनल कोर्टेक्स व जनदों की क्रिया को उत्तेजित करता है ।
7. जल सन्तुलन में सहायक होता है।
४. यह शीत रक्तधारी प्राणियों में त्वचा के निर्मोचन को नियन्त्रित करता है 1
9. यह शरीर की वृद्धि व विभेदन को प्रेरित करता है।
10. यह हृदय स्पन्दन व श्वसन दर को बढ़ाता है।
11. यह विद्युत अपघट्यों का नियमन भी करता है।
12. यह RBCs निर्माण में भी सहायक होता है।
13. लक्ष्य कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या और माप बढ़ जाता है। ATP का अधिक उत्पादन होता है। ग्लूकोज व ऑक्सीजन का उपयोग बढ़ जाता है। इसे हार्मोन का कैलोरीजनिक प्रभाव कहते हैं।
थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताएँ एवं उत्पन्न होने वाले रोग
शरीर में थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के अनियमित स्रावण से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं –
(क) अल्पस्त्रावण (Hypothyroidism) का प्रभाव थाइरॉइड में हॉर्मोन्स का अल्पस्रावण आनुवंशिक दोष या भोजन में आयोडीन की कमी, मूत्र में आयोडीन के अधिक उत्सर्जन आदि के कारण होता है।
इससे निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
(1) जड़-वामनता (Cretinism ) – यह रोग बच्चों में थाइरॉक्सिन हॉर्मोन की कमी से हो जाता है। आधारी उपापचय दर (BMR), हृदय गति, शारीरिक ताप, उपापचय, ऑक्सीजन की खपत, अस्थियों की वृद्धि आदि की दर घट जाने से शरीर व मस्तिष्क की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। ऐसे बच्चे बौने और कुरूप हो जाते हैं। इनके ओंठ मोटे, जीभ निकली हुई, त्वचा मोटी व शुष्क, उदर भाग बाहर निकला हुआ और जननांग अपूर्ण विकसित होने से प्रजनन के अयोग्य होते हैं। ये मानसिक रूप से अल्प विकसित होते हैं।
(2) मिक्सिडिमा (Myxeedema ) – यह रोग वयस्कों में थाइरॉक्सिन की कमी से हो जाता है। इस रोग में त्वचा फूल जाती है, उपापचय की दर घट जाती है तथा प्रोटीन संश्लेषण के कम हो जाने से शरीर भारी किन्तु कमजोर और सुस्त हो जाता है। समय से पूर्व ही बुढ़ापे की सी कमजोरी, क्षीण रुधिर दाब, बालों का झड़ना व सफेद हो जाना, त्वचा का पीलापन, आवाज धीमी व भारी, मस्तिष्क व पेशियों की कमजोरी, ठण्ड सहन-क्षमता का घट जाना एवं प्रजनन क्षमता की कमी आदि लक्षण दिखायी देने लगते हैं। ऐसे रोगी को थाइरॉक्सिन को दवा के रूप में देने से रोग नष्ट हो जाता है।
(3) सामान्य घेंघा रोग या गलगण्ड (Simple Goitre) – यह रोग भोजन व पेयजल में आयोडीन की कमी से हो जाता है । थाइरॉक्सिन की कमी को पूरा करने के लिए थाइरॉइड ग्रन्थि अधिक स्त्रावण हेतु बड़ी होकर फूलने लगती है। इससे गर्दन . फूलकर मोटी और कुरूप हो जाती है। इसे घेंघा रोग या गलगण्ड कहते हैं। यह रोग उन पहाड़ी क्षेत्रों में, जहाँ जल व मिट्टी में आयोडीन की कमी होती है, अधिकांश मनुष्यों में हो जाता है।
नेत्रोत्सेधी गलगंड (Exophthalmic Goitre)
(4) हाशीमोटो रोग (Hashimoto’s Disease) – इस रोग में थाइरॉक्सिन की अत्यधिक कमी हो जाती है पर इसकी आपूर्ति हेतु दी गयी दवाएँ स्वयं शरीर में विष या ऐण्टीजेन्स का कार्य करने लगती हैं। इससे शरीर में प्रतिविष या एण्टीबॉडी बनने लगते हैं जो कि ग्रन्थि को ही नष्ट कर देते हैं।
सामान्य घेंघा (Simple Goitre)
(ख) अतिस्रावण (Hyperthyroidism) का प्रभाव थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के अतिस्रावण से उपापचय दर, रुधिर दाब, हृदय की स्पन्दन – दर, आन्त्र में ग्लूकोज का अवशोषण, ऑक्सीजन की खपत आदि में वृद्धि हो जाती है। माइटोकॉण्ड्रिया में अत्यधिक ऊर्जा बनने से यह ATP में संचित न होकर ऊष्मा के रूप में मुक्त होने लगती है। अतः शरीर में अनावश्यक उत्तेजना, थकान, उच्चताप, घबराहट, चिड़चिड़ापन एवं कम्पन हो जाता है और अत्यधिक पसीना निकलने लगता है।
थाइरॉक्सिन के अतिस्रावण से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं –
(1) नेत्रोत्सेधी गलगण्ड (Exophthalmic Goitre) – इस रोग में नेत्र गोलकों के नीचे श्लेष्म एकत्रित हो जाने से गोलक बाहर की ओर उभर आते हैं, जिससे नेत्र चौड़े हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति की दृष्टि घूरती हुई-सी व भयावह होती है।
(2) प्लूमर रोग (Plummer’s Disease) – इस रोग में थाइरॉइड ग्रन्थि में जगह-जगह गाँठें बन जाने से यह फूल जाती है
(3) ग्रेवी रोग (Grave’s Disease) – इस रोग में थाइरॉइड ग्रन्थि असमान रूप से वृद्धि करके फूल जाती है।
प्रश्न 4.
एड्रीनल ग्रन्थि के द्वारा स्त्रावित विभिन्न हार्मोनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland):
प्रत्येक वृक्क के अगले सिरे पर एक-एक पीले भूरे रंग की टोपी के समान अधिवृक्क या एड्रीनल प्रन्थि (adrenal gland) लगी रहती है। इसका वजन 4-5 माम होता है। इसका बाहरी भाग कर्टेक्स (cortex) तथा केन्द्रीय भाग मेडूला (medulla) कहलाता है।
(A) तडीनल कर्टिक्स (Adrenal Cortex) – यह एड़ीनल का परिधीय भाग है। यह पीला-सा होता है तथा कुल प्रन्थि का 80-90% भाग बनाता
है। यह धूरण की मीसोडर्म से बनता है। इस भाग की कोशिकाएँ लगभग 50 हार्मोन्स का स्रावण करती हैं। इनको सामूहिक रूप से कॉर्टिककोस्टिरॉएड्स (corticosteroids) कहते हैं। कार्य की दृष्टि से इनको तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(I) ग्लूकोज नियन्रण हॉर्मोन्स या ग्लूकोकॉर्टिकोस्टीरॉयइस (Glucocorticosteroids)-इनमें कॉर्टिसोल (cortisol) तथा कॉर्टिकोस्टीरोन (corticosterone) मुख्य हैं। ये शरीर में निम्नलिखित कार्य करते हैं-
(1) यकृत में प्रोटीन संश्लेषण, यूरिया संश्लेषण, ग्लाइकोजेनेसिस तथा ग्लूकोनिओजेनेसिस तथा ग्लूकोनिओजेनेसिस की क्रिया को प्रेरित करना।
(2) इन्सुलिन के विपरीत कार्य करके रुधिर में ग्लूकोज, ऐमीनो अम्लों तथा वसा अम्लों की मात्रा में वृद्धि करना।
(3) लसिका ऊतकों, वसाकायों, अस्थियों एवं आहारनाल में प्रोटीन संश्लेषण तथा ग्लूकोज के उपयोग को रोकना।
(4) ग्लूकोकॉर्टिकोस्टिरॉइड्स प्रतिरक्षी निषेधात्मक (Immuno suppressors) होते हैं। अतः एलर्जीं के उपचार में तथा अंगों के प्रत्यारोपण को सफल बनाने के लिए इनका इंजेक्शन दिया जाता है।
(5) ये लाल रुधिराणुओं की संख्या को बढ़ाते हैं तथा श्वेत रुधिराणुओं की संख्या को घटाता है।
(II) खन्जि नियन्तक होमोन्स या मिनरेलो-कॉर्टिकोस्टिरॉइस्स (Mineralocoticosteroids) – ये हॉम्मोन्स रुधिर में खनिज आयनों की सान्द्रता को नियन्त्रित रखते हैं। इनमें एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) मुख्य है। यह वृक्क नलिकाओं द्वारा Na+तथा Cl-ऑयन के अवशोषण को तथा K+ आयनों का उत्सर्जन बढ़ा देता है।
(III) लिंग हॉर्मोन्स (Sex Hormones) – एड्रीनल कर्टेक्स से कुछ मात्रा में लिंग हॉर्मोन्स भी स्रावित होते हैं। इनमें नर हॉर्मोन एण्ड्रोजन्स (Androgens) तथा मादा हॉमोंन ऐस्ट्रोजेन्स (estrogens) स्रावित होकर पेशियों तथा जननांगों के विकास को प्रेरित करते हैं।
(B) एड़्रिक मेडुला (Adrenal Medulla) – यह एड्रीनल का केन्द्रीय भाग है। यह भूरे लाल रंग का होता है। यह रूपान्तरित तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है। यह अधिवृक्क म्नन्थि का लगभग 10% भाग बनाता है। ये अनुकम्पी स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र की ही रूपान्तरित कोशिकाएँ होती हैं। एड्रीनल मेड्यूला द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स (Hormones Secreted From Adrenal Medulla) इस भाग में क्रोमेफिन कोशिकाएँ टाइरोसीन अभीनो अम्ल से दो हॉर्मोस्स बनाती हैं, जो कैटेकोलेमीन होते हैं। ये निम्न हैं –
(1) ऐरीनेलिन या एपीनैक्रीन (Adrenaline or Epine-phrine)- मैड्यूला से स्रावित इस हॉमोन का 80% भाग ऐड्रीनेलिन होता है। यह व्यक्ति को संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।
इसके प्रमुख कार्य हैं –
(i) भय, क्रोध, पीड़ा, अपमान, दुर्घटना, व्यम्रता, बेचैनी, मानसिक तनाव, जल जाने, अचानक कोई रोग हो जाने, जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने, विषाक्त पदार्थों के शरीर में पहुँच जाने, अधिक ठण्ड या गर्मी लगने आदि आकस्मिक संकटकालीन दशाओं में अनुकम्पी प्रेरणा के फलस्वरूप ऐड्रीनेलिन का स्राव बढ़ जाता है, जिससे इन दशाओं का सामना करने हेतु उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है।
(ii) यह शरीर की समस्त रुधिर वाहिनियों को सिकोड़कर रुधिर दाब को बढ़ाता है।
(iii) यह कंकाल पेशियों, हदय, यकृत, मस्तिष्क आदि की रुधिर वाहिनियों को फैलाकर इनमें रुधिर संचार को बढ़ाता है।
(iv) यह हृदय स्पन्दन की दर, श्वास दर, आधारी उपापचय दर तथा रुधिर में पोषक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि करता है।
(v) इसके प्रभाव से तिल्ली संकुचित होकर संचित रुधिर को मुक्त कर देती है। पुतलियाँ फैल जाती हैं। रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मस्तिष्क व संवेदांग अधिक सक्रिय हो जाते हैं। त्वचा पीली पड़ जाती है। लार के कम निकलने से मुख सूखने लगता है। रुधिर के थक्का जमने का समय कम हो जाता है।
(2) नॉरएड़ीनेलिन या नॉरएपीनैफ्रीन (Noradrenaline or Norepinephrine)- मेड्यूला से स्तावित हॉर्मोन का यह $20 \%$ भाग होता है। यह सम्पूर्ण शरीर की रुधि वाहिनियों को संकुचित करके रुधि दाब को बढ़ाता है। ऐड्रीनल स्रावण की अनियमितताएँ एवं उत्पन्न रोग एड्रीनल प्रन्थि के अनियमित स्राव से निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
(क) अल्पस्नावण (Hyposecretion) का प्रभाव:
(1) एडीसन रोग (Addison’s Disease) – यह रोग ऐड्रीनल प्रन्थि के ग्लूकोकॉर्टिकॉएड्स से अल्पस्नाव (कमी) से हो जाता है। इस रोग में सोडियम तथा जल की अधिक मात्रा का मूत्र के साथ उत्सर्जन हो जाने से शरीर का निर्जलीकरण (dehydration) हो जाता है और रुधिर दाब (blood pressure) घट जाता है। चेहर, गर्दन व हाथ की त्वचा में चकते पड़ जाते हैं।
(2) हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) – ग्लूकोकॉर्टि-कॉएड्स की कमी से रुधिर में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे हृदय की पेशियों, यकृत एवं मस्तिष्क की क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं। आधारी उपापचय दर (BMR) और शरीर-ताप घट जाते हैं। भूख की कमी, मिचली व घबराहट आदि होने लगती है। ठण्ड, गर्मी व संक्रमण आदि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
(3) कान्स रोग (Conns’ Disease) – यह रोग मिनरेलोकॉर्टिकॉएड्स की कमी से उत्पन्न होता है। इसमें सोडियम तथा पोटैशियम का सन्तुलन बिगड़ जाता है, जिससे तन्त्रिकाओं में अव्यवस्था हो जाने से पेशियों में अकड़न हो जाती है। रोगी प्रायः कुछ दिनों में मर जाता है।
(ख) अतित्रावण (Hypersecretion) का प्रभाव:
(1) हाइपरफ्लाइसीमिया (Hyperglycemia) – यह रोग एड्रीनेलिन के अति स्रावण के कारण होता है। इसमें रुधिर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह (Diabetes) हो सकता है।
(2) इ्डीमा (Edema)- ऐड्रीनेलिन के अतिस्रावण से रुधर में सोडियम व जल की मात्रा बढ़ जाने से रुधिर दाब बढ़ जाता है और जगह-जगह से शरीर फूल जाता है। इसके साथ ही शरीर में पोटैशियम की अत्यधिक कमी हो जाने से पेशियों व तन्त्रिका तन्त्र के कार्य अव्यवस्थित हो जाते हैं। इससे लकवा (Paralysis) भी हो सकता है। इसे इडीमा रोग कहते हैं।
(3) कुर्शिग का रोग (Cushing’s Disease) – इस रोग में वक्षस्थल में वसा का असामान्य जमाव हो जाने से शरीर बेडौल हो जाता है।
(4) ऑस्टियोपोरोस्सि (Osteoporosis) – इस रोग में अस्थियाँ गलने लगती हैं।
(5) ऐड़ीनल विरलिज्म (Adrenal virilism) – इसमें लड़कियों में लड़कों जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं; जैसे-आवाज का भारी हो जाना, चेहरे पर दाढ़ी-मूँछों का आ जाना आदि। लड़कियों में बाँझपन (sterility) हो जाता है। लड़कों में लैंगिक परिपक्वता समय से पूर्व ही (शीघ्र) हो जाती है।
एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव:
एल्डोस्टेरॉन की अधिकता | एल्डोस्टेरॉन की कमी |
नेफ्रोन में Na+ तथा Cl– T के अवशोषण का बढ़ना। | नेफ्रोन में Na+ अवशोषण कम होना। |
K+ का कम अवशोषण। | K+ का अधिक अवशोषण। |
रुधिर में Na+ की मात्रा का बढ़ना तथा K+ की मात्रा घटना। | इससे रुधिर में Na+ की मात्रा का कम होना तथा K+ की मात्रा का बढ़ना। |
प्रश्न 5.
एड्रीनल ग्रन्थि अनियमित स्त्रावण के फलस्वरूप होने वाले रोगों को संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर:
अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland):
प्रत्येक वृक्क के अगले सिरे पर एक-एक पीले भूरे रंग की टोपी के समान अधिवृक्क या एड्रीनल प्रन्थि (adrenal gland) लगी रहती है। इसका वजन 4-5 माम होता है। इसका बाहरी भाग कर्टेक्स (cortex) तथा केन्द्रीय भाग मेडूला (medulla) कहलाता है।
(A) तडीनल कर्टिक्स (Adrenal Cortex) – यह एड़ीनल का परिधीय भाग है। यह पीला-सा होता है तथा कुल प्रन्थि का 80-90% भाग बनाता
है। यह धूरण की मीसोडर्म से बनता है। इस भाग की कोशिकाएँ लगभग 50 हार्मोन्स का स्रावण करती हैं। इनको सामूहिक रूप से कॉर्टिककोस्टिरॉएड्स (corticosteroids) कहते हैं। कार्य की दृष्टि से इनको तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(I) ग्लूकोज नियन्रण हॉर्मोन्स या ग्लूकोकॉर्टिकोस्टीरॉयइस (Glucocorticosteroids)-इनमें कॉर्टिसोल (cortisol) तथा कॉर्टिकोस्टीरोन (corticosterone) मुख्य हैं। ये शरीर में निम्नलिखित कार्य करते हैं-
(1) यकृत में प्रोटीन संश्लेषण, यूरिया संश्लेषण, ग्लाइकोजेनेसिस तथा ग्लूकोनिओजेनेसिस तथा ग्लूकोनिओजेनेसिस की क्रिया को प्रेरित करना।
(2) इन्सुलिन के विपरीत कार्य करके रुधिर में ग्लूकोज, ऐमीनो अम्लों तथा वसा अम्लों की मात्रा में वृद्धि करना।
(3) लसिका ऊतकों, वसाकायों, अस्थियों एवं आहारनाल में प्रोटीन संश्लेषण तथा ग्लूकोज के उपयोग को रोकना।
(4) ग्लूकोकॉर्टिकोस्टिरॉइड्स प्रतिरक्षी निषेधात्मक (Immuno suppressors) होते हैं। अतः एलर्जीं के उपचार में तथा अंगों के प्रत्यारोपण को सफल बनाने के लिए इनका इंजेक्शन दिया जाता है।
(5) ये लाल रुधिराणुओं की संख्या को बढ़ाते हैं तथा श्वेत रुधिराणुओं की संख्या को घटाता है।
(II) खन्जि नियन्तक होमोन्स या मिनरेलो-कॉर्टिकोस्टिरॉइस्स (Mineralocoticosteroids) – ये हॉम्मोन्स रुधिर में खनिज आयनों की सान्द्रता को नियन्त्रित रखते हैं। इनमें एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) मुख्य है। यह वृक्क नलिकाओं द्वारा Na+तथा Cl-ऑयन के अवशोषण को तथा K+ आयनों का उत्सर्जन बढ़ा देता है।
(III) लिंग हॉर्मोन्स (Sex Hormones) – एड्रीनल कर्टेक्स से कुछ मात्रा में लिंग हॉर्मोन्स भी स्रावित होते हैं। इनमें नर हॉर्मोन एण्ड्रोजन्स (Androgens) तथा मादा हॉमोंन ऐस्ट्रोजेन्स (estrogens) स्रावित होकर पेशियों तथा जननांगों के विकास को प्रेरित करते हैं।
(B) एड़्रिक मेडुला (Adrenal Medulla) – यह एड्रीनल का केन्द्रीय भाग है। यह भूरे लाल रंग का होता है। यह रूपान्तरित तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है। यह अधिवृक्क म्नन्थि का लगभग 10% भाग बनाता है। ये अनुकम्पी स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र की ही रूपान्तरित कोशिकाएँ होती हैं। एड्रीनल मेड्यूला द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स (Hormones Secreted From Adrenal Medulla) इस भाग में क्रोमेफिन कोशिकाएँ टाइरोसीन अभीनो अम्ल से दो हॉर्मोस्स बनाती हैं, जो कैटेकोलेमीन होते हैं। ये निम्न हैं –
(1) ऐरीनेलिन या एपीनैक्रीन (Adrenaline or Epine-phrine)- मैड्यूला से स्रावित इस हॉमोन का 80% भाग ऐड्रीनेलिन होता है। यह व्यक्ति को संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।
इसके प्रमुख कार्य हैं –
(i) भय, क्रोध, पीड़ा, अपमान, दुर्घटना, व्यम्रता, बेचैनी, मानसिक तनाव, जल जाने, अचानक कोई रोग हो जाने, जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने, विषाक्त पदार्थों के शरीर में पहुँच जाने, अधिक ठण्ड या गर्मी लगने आदि आकस्मिक संकटकालीन दशाओं में अनुकम्पी प्रेरणा के फलस्वरूप ऐड्रीनेलिन का स्राव बढ़ जाता है, जिससे इन दशाओं का सामना करने हेतु उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है।
(ii) यह शरीर की समस्त रुधिर वाहिनियों को सिकोड़कर रुधिर दाब को बढ़ाता है।
(iii) यह कंकाल पेशियों, हदय, यकृत, मस्तिष्क आदि की रुधिर वाहिनियों को फैलाकर इनमें रुधिर संचार को बढ़ाता है।
(iv) यह हृदय स्पन्दन की दर, श्वास दर, आधारी उपापचय दर तथा रुधिर में पोषक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि करता है।
(v) इसके प्रभाव से तिल्ली संकुचित होकर संचित रुधिर को मुक्त कर देती है। पुतलियाँ फैल जाती हैं। रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मस्तिष्क व संवेदांग अधिक सक्रिय हो जाते हैं। त्वचा पीली पड़ जाती है। लार के कम निकलने से मुख सूखने लगता है। रुधिर के थक्का जमने का समय कम हो जाता है।
(2) नॉरएड़ीनेलिन या नॉरएपीनैफ्रीन (Noradrenaline or Norepinephrine)- मेड्यूला से स्तावित हॉर्मोन का यह $20 \%$ भाग होता है। यह सम्पूर्ण शरीर की रुधि वाहिनियों को संकुचित करके रुधि दाब को बढ़ाता है। ऐड्रीनल स्रावण की अनियमितताएँ एवं उत्पन्न रोग एड्रीनल प्रन्थि के अनियमित स्राव से निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
(क) अल्पस्नावण (Hyposecretion) का प्रभाव:
(1) एडीसन रोग (Addison’s Disease) – यह रोग ऐड्रीनल प्रन्थि के ग्लूकोकॉर्टिकॉएड्स से अल्पस्नाव (कमी) से हो जाता है। इस रोग में सोडियम तथा जल की अधिक मात्रा का मूत्र के साथ उत्सर्जन हो जाने से शरीर का निर्जलीकरण (dehydration) हो जाता है और रुधिर दाब (blood pressure) घट जाता है। चेहर, गर्दन व हाथ की त्वचा में चकते पड़ जाते हैं।
(2) हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) – ग्लूकोकॉर्टि-कॉएड्स की कमी से रुधिर में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे हृदय की पेशियों, यकृत एवं मस्तिष्क की क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं। आधारी उपापचय दर (BMR) और शरीर-ताप घट जाते हैं। भूख की कमी, मिचली व घबराहट आदि होने लगती है। ठण्ड, गर्मी व संक्रमण आदि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
(3) कान्स रोग (Conns’ Disease) – यह रोग मिनरेलोकॉर्टिकॉएड्स की कमी से उत्पन्न होता है। इसमें सोडियम तथा पोटैशियम का सन्तुलन बिगड़ जाता है, जिससे तन्त्रिकाओं में अव्यवस्था हो जाने से पेशियों में अकड़न हो जाती है। रोगी प्रायः कुछ दिनों में मर जाता है।
(ख) अतित्रावण (Hypersecretion) का प्रभाव:
(1) हाइपरफ्लाइसीमिया (Hyperglycemia) – यह रोग एड्रीनेलिन के अति स्रावण के कारण होता है। इसमें रुधिर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह (Diabetes) हो सकता है।
(2) इ्डीमा (Edema)- ऐड्रीनेलिन के अतिस्रावण से रुधर में सोडियम व जल की मात्रा बढ़ जाने से रुधिर दाब बढ़ जाता है और जगह-जगह से शरीर फूल जाता है। इसके साथ ही शरीर में पोटैशियम की अत्यधिक कमी हो जाने से पेशियों व तन्त्रिका तन्त्र के कार्य अव्यवस्थित हो जाते हैं। इससे लकवा (Paralysis) भी हो सकता है। इसे इडीमा रोग कहते हैं।
(3) कुर्शिग का रोग (Cushing’s Disease) – इस रोग में वक्षस्थल में वसा का असामान्य जमाव हो जाने से शरीर बेडौल हो जाता है।
(4) ऑस्टियोपोरोस्सि (Osteoporosis) – इस रोग में अस्थियाँ गलने लगती हैं।
(5) ऐड़ीनल विरलिज्म (Adrenal virilism) – इसमें लड़कियों में लड़कों जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं; जैसे-आवाज का भारी हो जाना, चेहरे पर दाढ़ी-मूँछों का आ जाना आदि। लड़कियों में बाँझपन (sterility) हो जाता है। लड़कों में लैंगिक परिपक्वता समय से पूर्व ही (शीघ्र) हो जाती है।
एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव:
एल्डोस्टेरॉन की अधिकता | एल्डोस्टेरॉन की कमी |
नेफ्रोन में Na+ तथा Cl– T के अवशोषण का बढ़ना। | नेफ्रोन में Na+ अवशोषण कम होना। |
K+ का कम अवशोषण। | K+ का अधिक अवशोषण। |
रुधिर में Na+ की मात्रा का बढ़ना तथा K+ की मात्रा घटना। | इससे रुधिर में Na+ की मात्रा का कम होना तथा K+ की मात्रा का बढ़ना। |
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(A) थाइमस मन्दि
(C) पीनियल ग्रन्थि
उत्तर:
(A) थाइमस ग्रन्थि (Thymus Gland):
यह मन्थि हृदय के आगे स्थित चपटी व गुलाबी रंग की द्विपिण्डकीय संरचना होती है। ये पिण्ड संयोजी ऊत्तक से ढंके रहते हैं। यह प्थन्थि जन्म के समय विकसित होती है और 8-10 वर्ष या यौवनावस्था तक बड़ी होती रहती है। इसके बाद आकार में घटने लगती है और वृद्धावस्था में एक तन्तुकीय डोरी के रूप में रह जाती है। इसकी बाहरी सतह पर लिम्फोसाइट्स जमा रहती है, जो शिशुओं में जीवाणुओं के संक्रमण से शरीर की रक्षा करती है थाइमस म्रन्थि थाइमोसीन (Thymosin) नामक हॉर्मोन का स्राव करती है। थाइमोसीन लिम्फोसाइट्स को जीवाणुओं या इनके द्वारा मुक्त प्रतिजन पदार्थों (एण्टीजेन्स) को नष्ट करने की प्रेरणा देता है। इसके बाद लिम्फोसाइट विभाजित होकर प्लाज्मा में आ जाती है और प्रतिरक्षी (antibodies) बनाकर शरीर की रक्षा करती है।
पैराथाइरॉइड ग्रन्थि (Parathyroid Gland):
पैराथाइॉॉडड प्रन्थि मटर के दाने के बराबर चार छोटी एवं गोल रचनाएँ हैं। ये थाइॉइड प्रन्थि की पृष्ठ सतह में धँसी रहती हैं। मनुष्य में प्रत्येक प्रन्थि 6-7 मिमी लम्बी एवं 3-4 मिमी चौड़ी होती है। इसका भार 0.01 से 0.03 प्राम तक होता है। पैराथाइॉॉडड ग्रन्थि से दो हॉमोंन स्नावित होते हैं –
(1) पैराथॉमोन (Parathormone) – इसे कॉलिप हॉमोंन (Colip’s hormone) भी कहते हैं। इसके निम्नलिखित कार्य हैं-
(a) फॉस्फेट के उत्सर्जन में वृद्धि करता है।
(b) आन्त्र द्वारा कैल्सियम के अवशोषण तथा वृक्क द्वारा इसके पुनरावशोषण में वृद्धि करता है।
(c) यह अस्थियों की वृद्धि तथा दाँतों के निर्माण का नियमन करता है।
(d) नई अस्थियों के अनावश्यक भागों को विघटित करता है।
(e) पेशियों को क्रियाशील रखता है।
(I) रुधिर में कैल्सियम तथा फॉस्फेट आयनों की मात्रा का नियमन करके शरीर के अन्तःवातावरण में होमियोस्टेसिस को बनाये रखता है।
(2) कैल्सिटोनिन होंमोंन (Calcitonin Hormone) – यह पैराथॉमोंन के विपरीत कार्य करता है। यह अस्थियों के विघटन को कम करता है।
पैराथॉम्रोन की कमी से हाइपोपैराथाइरिडिज्म (Hypopara-thyroidism), टिटेनी (Tetany), हाइपोकैल्सीमिया (Hypocalcemia) तथा गुर्दें में पथरी Kidney stones) बनने लगती है। आन्त्र एवं आमाशय में रुधिर स्राव की आशंका रहती है।
(C) पीनियल काय (Pineal Body)
यह प्रन्थि अप्र मस्तिष्क में डायनसिफेलॉन (diencephalon) के मध्य पृष्ठ तल पर स्थित होती है। इसे एपीफाइसिस सेरीबाई (epiphysis ceribri) भी कहते हैं।
यह एक छोटी, सफेद व चपटी रचना होती है और एक खोखले वृन्त पर स्थित रहती है। इसका भार 150 मिलीग्राम होता है। यह उत्तक पिण्डों में बँटी होती है। इसकी उत्पत्ति न्यूरल एक्टोडर्म से होती है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ होती है –
(i) पीनिपलोसाइटस तथा
(ii) न्यूरोग्लियल कोशिकाएँ।
इस ग्रन्थि के द्वारा स्वावित हॉर्मोन को मिलैटोनिन हॉमोंन (melatonin hormone) कहते हैं।
मिलैटोनिन हॉमोंन के कार्य-इस हॉर्मोन के कार्य अग्रलिखित हैं –
- निम्नकोटि के कशेरुकियों में इसके प्रभाव से त्वचा का रंग हल्का हो जाता है।
- स्तनियों में जननांग के विकास एवं उनके कार्यों का अवरोधन करता है।
- यह प्रन्थि लैंगिक आचरण को प्रकाश की विभिन्नताओं के अनुसार नियन्त्रित करके एक ‘जैविक घड़ी’ का कार्य करती है।
- जन्म से अन्धे बच्चों में प्रकाश प्रेरणा के अभाव में मिलैटोनिन का यथोचित स्रावण न होने से यौवनावस्था शीघ ही आ जाती है।
(D) अग्याशय ग्रन्थि (Pancreas)
अग्याशय मुख्यतः एक पाचक मन्थि (digestive gland) है जो भोजन के पाचन के लिए अग्याशयी रस स्रावित करती है। इसकी लम्बाई लगभग 15 सेमी तथा वजन लगभग 8.5 ग्राम होता है। यह अन्त सावी (endocrine) तथा बहिख्रावी (exocrine) प्रन्थि (मिश्रित ग्नि्थि) का कार्य करती है। इस मन्थि की पालियों में उपस्थित संयोजी ऊतक में अन्त:्रावी कोशिकाओं के समूह पाये जाते हैं जिन्हें लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ (Islets of Langerhans) कहते हैं। इनमें तीन प्रकार की अन्तःावी कोशिकाएँ (endocrine cells) होती हैं –
(1) बीटा कोशिकाएँ (Beta beta or cells) – ये कोशिकाएँ आकार में बड़ी व संख्या में सर्वाधिक होती हैं। इनके द्वारा इन्सुलिन हॉर्मोंन का सावण किया जाता है। रुधर में ग्लूकोज का सामान्य स्तर बनाये रखता है तथा आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज को यकृत एवं पेशियों में ग्लाइकोजन में बदलने की क्रिया को प्रेरित करता है।
(2) अल्का कोशिकाएँ (Alpha or (alpha) cells) – ये कोशिकाएँ मध्यम आकार की एवं संख्या में लगभग 25% होती हैं। इन कोंशिकाओं द्वारा ग्लूकागॉन (glucagon) हॉर्मोन का स्ताव होता है जो ग्लाइकोजन (glycogen) को ग्लूकोज (glucose) में परिवर्तित करता है। यह वसा अम्लों एवं अमीनो अम्लों से ग्लूकोनियोजेनेसिस (gluconeogensesis) क्रिया द्वारा ग्लूकोज के संश्लेषण को प्रेरित करता है।
(3) डेल्टा कोशिकाएँ (Delta or delta-cells) – ये संख्या में सबसे कम या छोटी कोशिकाएँ होती हैं, जो सोमेटोस्टेटिन (somatostatin) का स्राव करती हैं। यह इन्सुलिन (insulin) तथा ग्लूकागॉन (glucagon) की क्रिया में अवरोध उत्पन्न करता है तथा पचे हुए भोजन के स्वांगीकरण की अवधि को बढ़ाता है। अन्याशयी प्रन्यि द्वारा स्रावित ह्वार्मोन्स एवं उनके कार्य- लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं में तीन प्रकार की अन्त.्रावी कोशिकाएँ पायी जाती हैं-बीटा कोशिकाएँ beta-cells), अल्फा कोशिकाएँ alpha-cells तथा डेल्टा कोशिकाएँ (delta-cells) इनके द्वारा क्रमशः इन्सुलिन (Insulin), ग्लूकागॉन (Glucagon) तथा सोमेटोस्टेटिन (Somatostain) हॉमोंन्स का स्राव किया जाता है। इनके कार्य हैं –
I. इन्सुलिन के कार्य (Functions of Insulin) –
- कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) के पाचन से बने ग्लूकोज (Glucose) को ग्लाइकोजन (glycogen) में बदल देता है और यकृत (liver) एवं पेशियों (muscles) में संगृहीत करता है।
- ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से ऊर्जा विमुक्त होती है।
- रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा निश्चित बनाये रखता है।
- कोशिकाओं की आधारी उपापचयी दर (Basal Metabolic Rate : BMR) को प्रभावित करता है।
- वसा ऊतकों में वसा संश्लेषण अर्थात् लाइपोजेनेसिस (lipogenesis) को प्रभावित करता है।
इन्सुलिन की अनियमितता से उत्पन्न रोग –
(क) अल्पस्तावण (Hypoinsulinism) का प्रभाव मधुमेह या डाइबिटीज (Diabetes) रोग-यह रोग इन्सुलिन हॉर्मोन के अल्प या न्यून स्रावण के कारण उत्पन्न होता है। इन्सुलिन के अल्पस्रावण के कारण शरीर की कोशिकाएँ रुधिर से ग्लूकोज को नहीं ले पाती हैं। इससे रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। अधिक वृद्धि हो जाने पर ग्लूकोज मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है। अन्त में जब रुधिर और मूत्र में ग्लूकोज की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है तो मधुमेह का रोग हो जाता है। $4 \%$ मनुष्यों में यह रोग आनुवंशिक होता है।
इस रोग में बहुमूत्रता के कारण शरीर में निर्जलीकरण एवं प्यास की शिकायतें हो जाती हैं। शरीर की कोशिकाएँ रुधिर से ग्लूकोज ग्रहण न कर पाने के कारण ऊर्जा उत्पादन हेतु अपनी प्रोटीन्स का विखण्डन करने लगती हैं। इससे शरीर कमजोर हो जाता है। वसा ऊतकों में वसा के अपूर्ण विखण्डन से कीटोन काय (Ketone bodies) बनने लगते हैं। ये मीठे, अम्लीय तथा विषाक्त होते हैं। धीरे-धीरे शरीर में इनकी मात्रा और अम्लीयता में वृद्धि हो जाने से रोगी बेहोश होने लगता है और शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मधुमेह के रोगियों को इन्सुलिन के इंजेकशन देने से लाभ होता है।
(ख) अतिस्तावण (Hyperinsulinism) का प्रभाव:
हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) रोग-यह रोग इन्सुलिन के अधिक स्रावण के कारण उत्पन्न होता है। इन्सुलिन के अतिस्रावण के कारण शरीर-कोशिकाएँ रुधिर से अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने लगती हैं जिससे रुधिर में इसकी मात्रा कम होने लगती है। इसके कारण आवश्यक ऊर्जा प्राप्ति हेतु तन्त्रिका कोशिकाओं, नेत्रों की रेटिना व जननिक एपीथीलियम की कोशिकाओं की ग्लूकोज की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती है। अतः रोगी का दृष्टि ज्ञान एवं जनन क्षमता कम हो जाती है। मस्तिष्क की कोशिकाओं में अत्यधिक उत्तेजना से थकान, मूच्छा व ऐंठन अनुभव होती है और अन्त में मृत्यु हो जाती है। एप्रीनेक्रीन, वृद्धि हॉर्मोन, कॉर्टीसोल ग्लूकागॉन देने से इस रोग में लाभ होता है।
II. ग्लूकैगॉन के कार्य (Function of Glucagon) –
(1) यह यकृत (liver) में ऐमीनो अम्लों तथा वसा से ग्लूकोज के संश्लेषण अर्थात् ग्लूकोजीनोलाइसिस (Gluconeogenesis) को प्रेरित करता है।
(2) वसा ऊतक में वसा के विघटन अर्थात् लाइपोलाइसिस (lypolysis) को प्रेरित करता है।
(3) यकृत में ग्लूकोज को बनाने अर्थात् ग्लाइकोजीनोलाइसिस (glycogenolysis) को प्रेरित करता है।
III. सोमेटोस्टेटिन के कार्य (Functions of.Somatostatin) – यह हॉर्मोन पचे हुए भोजन के स्वांगीकरण की अवधि बढ़ाता है। इससे शरीर में भोजन की उपयोगिता अधिक समय तक रहती है।
प्रश्न 7.
हाइपोथैलेमस से स्वावित कीजिए।
उत्तर:
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
हाइपोथैलेमस अममस्तिष्क पश्च के डाएनोसिफेलॉन की गुहा, डायोसील (diocoel) अर्थात तृतीय निलय का फर्श बनाता है। इसके श्वेत पदार्थ में धूसर पदार्थ के अनेक क्षेत्र बिखरे रहते हैं। इन्हें हाइपोथेलेमिक बेण्ड कहते हैं। इनके न्यूरॉन्स विशेष हॉर्मोन्स का संश्लेषण करते हैं। ये हॉर्मोन्स हाइपोथैलेमस से निकलकर रुधिर द्वारा एडिनोहाइपोफाइसिस में पहुँचकर पिट्टयूटरी ग्रन्थि की अप्रपालि को विभिन्न हॉमोन्स के स्रावण के लिए उद्दीपित करते हैं।
पिट्टयूटरी ग्रन्थि एक छोटे से वृन्त द्वारा हाइपोथेलेमस से निकले कीपनुमा इन्फन्डीबुलम से जुड़ी होती है। हाइपोथेलेमस की तंत्रिकास्रावी कोशिकाएँ अग्र पिट्टयुटरी को हाइपोथेलेमो हाइपोफाइसियल निवाहिका शिराओं के रुधिर द्वारा अपने हॉर्मोन्स पहुँचाती हैं और उसकी अंतःस्रावी कोशिकाओं से हॉर्मोन्स के स्राव को नियन्त्रित करती हैं।
हाइपोथेलेमस तन्त्रिका कोशकाओं के एक्सॉन्स द्वारा पश्च पिट्टयूटरी से सम्बन्धित होता है। हाइपोथेलेमस एवं पिट्यूटरी ग्रन्थि के घनिष्ठ सम्बन्ध से तंत्रिका एवं अन्तःस्रावी तन्त्रों के बीच समाकलन (integration) का पता चलता है। इस प्रकार पिट्टयूटरी ग्रन्थि के माध्यम से हाइपोथेलेमस शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करता है। हॉर्मोन्स – हाइपोथैलेमस की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं (neurosecretary cells) से लगभग 10 तन्त्रिका – हॉर्मोन्स (neurohormones) का स्त्राव होता है, जो पीयूष ग्रन्थि की अप्र व पश्चपालियों से हॉर्मोन्स के स्त्राव का नियमन करते हैं।
ये न्यूरोहॉर्मोन्स दो प्रकार के होते हैं –
(I) मोचक हॉर्मोन्स (Releasing Hormones) – ये हॉर्मोन्स पीयूष ग्रन्थि से हॉर्मोन्स के स्त्राव या मोचन को उद्दीपित करते हैं। ये निम्नलिखित होते हैं –
- थाइरोट्रॉपिन मोचन कारक या थाइरोट्रॉपिन मोचक हॉर्मोन्स (Thyrotropin Releasing Factor : TRF)
- एड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉपिन मोचक हॉर्मोन (Adrenocorticotropin Releasing Hormone : ACTRH)
- ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Luteinizing Hormone Releasing Hormone LHRH)
- फॉलिकल उद्दीपन हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Follicle stimulating Hormone Releasing Hormone : FSHRH)
- वृद्धि हॉर्मोन या सोमेटोट्रॉपिन मोचक हॉर्मोन (Growth Hormone or Somatotropin Releasing Horemone)
- प्रोलेक्टिन मोचक हॉर्मोन (Prolactin Releasing Hormone : PRH)
- मिलेनोसाइट उद्दीपन हॉर्मोन मोचक हॉर्मोन (Melanocyte stimulating Hormone Releasing Hormone : MSHRH)
(II) निरोधी हॉर्मोन्स (Inhibiting Hormones : IH) – ये हॉर्मोन्स पीयूष ग्रन्थि से कुछ हॉर्मोन्स के स्राव को रोकते हैं। ये निम्नलिखित होते हैं-
(1) वृद्धि हॉर्मोन्स निरोधी हॉर्मोन (Growth Hormone Release Inhibiting Hormone : GHR-IH)
(2) प्रोलेक्टिन मोचन -निरोधी हॉर्मोन (Prolactin Release – Inhibiting Hormone : PR-IH)
(2) प्रोलेक्टिन मोचन -निरोधी हॉर्मोन (Prolactin Release-Inhib )
(3) मिलेनोसाइट उद्दीपन हॉर्मोन – मोचन निरोधी हॉर्मोन (Melanocyte stimulating Hormone-Release Inhibiting Hormone : MSH-RIH) पिट्ट्यूटरी ग्रन्थि की पश्च पालि से स्रावित हॉर्मोन्स वास्तव में हाइपोथेलेमस के न्यूरॉन्स में संश्लेषित होते हैं एवं इनके एक्सॉन सिरों एवं पश्च पालि में संग्रहीत हो जाते हैं तथा आवश्यकतानुसार मोचित होते हैं। हाइपोथैलेमिक-पिट्ट्यूटरी तन्त्र समस्थापन के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि शरीर में यह अधिकांश शरीर क्रियात्मक क्रियाओं का नियममन करता है। यह अन्तःस्रावी तन्त्र तथा तन्त्रिका तन्त्र के निकटवर्ती सम्बन्धों को भी इंगित करता है।
प्रश्न 8.
वृद्धि हार्मोन (GH) के अल्पखावण व अतिस्रावण के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
पीयूष (Pituitary Gland/Hypophysis)
पीयूष ग्रन्थि एक जटिल प्रन्थि होती है। यह अप्रमस्तिष्क के पश्च भाग – डाइएनसेफेलॉन (diencephalon) की आधारभित्ति हाइपोथैलेमस (hypothalamus) से एक छोटे से वृन्त इन्फण्डीबुलम (infundibulum) द्वारा जुड़ी रहती है। पीयूष ग्रन्थि को हाइपोफाइसिस सेरीब्राइ (hypophysis cerebri) भी कहते हैं। इसका आकार मटर के दाने के बराबर होता है। इसका भार 5 -6 ग्राम होता है। स्यियों में यह कुछ अधिक बड़ी होती है तथा गर्भावस्था में इसका आकार बढ़ जाता है। रचना तथा कार्य की दृष्टि से यह दो भागों में बँटी होती है –
(1) एडीनोहाइपोफाइसिस (Aden- ohypophysis) – यह पीयूष प्रन्थि का अगला गुलाबी भाग है जो कुल प्रन्थि का $75 \%$ है। यह भ्रूण की प्रसनी (pharynx) से राथके कोष्ठ (Rathke pouch) के रूप में एक्टोडर्म से विकसित होता है। इसे पीयूष यन्थि का अप्रपिण्ड या अप्र पालि भी कहते हैं।
यह स्वयं तीन भागों से मिलकर बना होता है –
(a) इन्फण्डीबुलर वृन्त से लिपटी समीपस्थ पालि (pars infundibularis or tuberalis)
(b) बड़ी फूली हुई गुलाबी-सी दूरस्थ पालि (pars distalis)
(c) संकरी पट्टीनुमा मध्य पालि (pars intermedia or intermediate lobe)।
(2) न्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis) – यह हाइपोथैलेमस के इन्फण्डीबुलम से विकसित होता है। इसे पश्चपालि (posterior lobe) या तन्त्रिकीय पिण्ड (pars nervosa) भी कहते हैं। यह पीयूष प्रन्थि का एक-चौथाई भाग बनाता है। एडीनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्तावित हॉमोन्स (Hormones of Adenohypophysis)
(1) सोमेटोटोंपिक हॉर्मोन अथवा वृद्धि हॉमोंन (Somatotropic Hormone or Growth Hormone)-यह शरीर की वृद्धि को प्रभावित करता है।
यह ऊतकों के क्षय को रोकता है, कोशिका के विभाजन, हुुद्यों व पेशियों के विकास तथा संयोजी ऊतक की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। यकृत में ऐमीनो अम्लों से ग्लूकोज तथा ग्लूकोज से ग्लाइकोजन के संश्लेषण को बढ़ाता है। वसा के विघटन को प्रेरित करता है। इसकी कमी से व्यक्ति बौना रह जाता है तथा अधिकता से भीमकायता (acromegaly) हो जाता है।
कार्य –
- शारीरिक वृद्धि के नियमन करता है।
- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा के उपापचय का नियमन करता है।
- अग्याशय से इन्सुलिन व ग्लूकेगॉन हार्मोन का स्रावण उद्दीपित करता है।
- यह यूरिया उत्सर्जन व मूत्र निष्कासन में वृद्धि करता है।
- स्तनियों में दुग्ध स्तावण को उद्दीपित करता है ।
- कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है।
- ग्लूकोनियोजिनोसिस तथा ग्लाइकोजिनेसिस को प्रेरित करता है।
(2) गोनेडोट्रॉपिक हॉमॉन्स (Gonadotropic Hormones: GTH) – यह हॉर्मोन नर तथा मादा में क्रमशः वृषण तथा अण्डाशय को उत्तेजित करता है। ये हॉर्मोन जनन ग्रन्थियों तथा अन्य सहायक जननांगों की सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
(अ) पुटिका प्रेरक हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone : FSH) – पुरुषों में यह शुक्रजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) तथा शुक्राणु निर्माण (sperm formation) प्रेरित करता है तथा स्तियों में अण्डाशयी पुटिकाओं की वृद्धि एवं एस्ट्रोजन (estrogens) के स्रावण को प्रेरित करता है।
(ब) ल्युटिनाइजिंग होंमोन अथवा अन्नराली कोशिका प्रेरक होंमोन (Lutenizing Hormone : LH, or Interstitial Cell Stimulating Hormone : ICSH)-स्तियों में यह कॉर्पस ल्यूटिनम (corpus leutium) कोशिकाओं को प्रोजेस्टेरॉन (Progesteron) हॉर्मोन के स्राव को प्रेरित करता है तथा पुरुषों में एण्ड्रोजन्स के त्राव को प्रेरित करता है।
(3) थाइरॉइड उतेजक हॉर्मोन (Thyroid Stimulating Hormone : TSH) – यह एक ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) हॉर्मोन है जो थाइॉइड ग्रन्थि की वृद्धि एवं स्रावण क्रिया को उत्तेजित करता है।
(4) ऐड़िनोकोर्टिकोट्रोंपिक होंरोंन (Adrenocorticotropic Hormone : ACTH) – यह एड्रीनल यन्थि (adrenal gland) के वल्कुट भाग (cortex) को हॉमोंन स्रावण के लिए प्रेरित करता है।
कार्य –
- यह एड्रीनल प्रन्थि के कारेंक्स भाग से स्रावित हॉर्मोन के उत्पादन व स्रावण को उत्रेरित करता है।
- वसा अपषटनीय एन्जाइमों को सक्रिय करता है।
- मेलेनिन के संश्लेषण को उत्रेरित करता है।
(5) लैक्टोजेनिक या प्रौलैक्टिन अथवा मैमोट्रोंपिक होंरोंन (Lactogenic Hormone : LTH)-यह हॉर्मोन स्रियों में गर्भावस्था के समय अधिक मात्रा में स्रावित होकर स्तनों की वृद्धि को प्रेरित करता है। शिशु जन्म के बाद दुग्ध स्राव को प्रेरित करता है।
(6) मिलैनोसाइट प्रेरक होंमोन (Melanocyte Stimulating Hormone : MSH ) – यह मध्यपिण्ड द्वारा स्रावित हॉमोंन है जो त्वचा की वर्णकता का नियमन करता है। मानव में यह तिल बनने तथा चकते बनने को प्रेरित करता है। न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स (Hormones of Neurohypophysis)
(1) वेसाप्रेसिन या पिट्रोसिन या एण्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन (Vasopressin or Pitrossin or Antidiuretic Hormone- ADH) – यह वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ भागों एवं संप्रह नलिकाओं से जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है जिससे मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। अतः इसे मूत्ररोधी या प्रतिमून्रल होंमोंन भी कहते हैं। यह शरीर के कुछ भागों की रुधिर वाहिनियों को सिकोड़कर रुधिर दाब को बढ़ाता है।
(2) ऑक्सीटोसिन (Oxytocin-OT) या पिटोसिन (Pitocin) – यह हॉर्मोन स्तियों में प्रसव पीड़ा उत्पन्न करके शिशु जन्म को आसान बनाता है। शिशु जन्म के बाद गर्भाशय को सामान्य अवस्था में लाता है। स्तनों में दुग्ध स्राव को प्रेरित करता है। यह गर्भाधान क्रिया को सुगम बनाता है।
वृद्धि हॉर्मान GH के अति स्रावण से होने वाले रोग पीयूष प्रन्थि (Pituitary gland) के वृद्धि हॉमोंन (growth hormones) के अतिस्नाव (hypersecretion) से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं –
(1) अतिवृद्धि (Gigantism)-बाल्यकाल में वृद्धि हॉर्मोन की अधिकता से बहुत लम्बे तथा छष्टपुष्ट भीमकाय (giant) व्यक्तियों का विकास होता है। इन्हें पिट्यूटरी जायण्ट (pituitary giants) कहते हैं।
(2) अप्रातिकायता (Acromegaly) – वृद्धिकाल के बाद वृद्धि हॉमोंन की अधिकता से गोरिल्ला के समान कुरूप भीमकाय व्यक्ति बनते हैं। क्योंकि हहुुुयों की लम्बाई में वृद्धि सम्भव नहीं होती तो शरीर लम्बाई में नहीं बढ़ पाता है, अत: हाथ, पाँव, चेहरे के कुछ भाग जबड़े आदि अधिक लम्बे हो जाते हैं। हरुदुयाँ मोटाई में बढ़ती हैं जिससे चेहरा व शरीर भद्दा हो जाता है। इस अवस्था को एक्रोमेगैली (acromegaly) कहते हैं।
(3) काइफोसिस (Kyphosis) – कभी-कभी कशेरुक दण्ड के झुक जाने से व्यक्ति कुबड़ा हो जाता है।
वृद्धि हॉर्मोंन GH के अल्पस्वावण से होने वाले रोग –
1. बाल्यकाल में STH या GH के अल्प स्रावण से व्यक्ति बौना रह जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति नपुसक या बाँझ (sterile) होते हैं। पिट्टयूटरी से होने वाले बौनेपन को एटिओलिसिस (ateolisis) तथा ऐसे व्यक्तियों को मिगेद्स्स (midgets) कहते हैं। सरकस में काम करने वाले बौने मिगेद्स होते हैं। साइमण्ड रोग (Simonds’ Disease) – यह रोग वृद्धिकाल के बाद STH की कमी के कारण होता है। इसके कारण शरीर से ऊतक क्षतिग्रस्त होने लगते हैं, जिससे व्यक्ति दुर्बल हो जाता है।
प्रश्न 9.
वृषण एवं अण्डाशय से स्त्रावित हॉर्मोन्स का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृषण (Testes):
स्तनधारियों में वृषण, उदर गुहा के बाहर स्क्रोटल कोषों (scrotal sacs) में स्थित होते हैं क्योंकि शुक्राणु जनन के लिए कम ताप की आवश्यकता होती है। वृषण की शुक्र जनन नलिकाओं के बीच के स्थान में भरे संयोजी ऊत्तक में अन्तराली कोशिकाएँ या लेडिग कोशिकाएँ (interstitial cells or Leydig cells) होती हैं। ये कोशिकाएँ नर हार्मोन्स बनाती हैं जिन्हें एड्ड्रोजन्स (Androgens) कहते हैं।
एन्ड्रोजन्स (Androgens) – ये मुख्य रूप से टेस्टोस्टीरॉन (testosteron) तथा एण्ड्रोस्टीरोन (Androsteron) हैं। ये स्टीरॉइड हामोंन हैं और वसा में घुलनशील हैं। ये नर में गौण लैंगि लक्षणों (secondary sexual characters) के लिए उत्तरदायी होते हैं। यह हार्मोन पौरुष विकास हार्मोन (masculiniqation hormone) कहलाते हैं। इस हाम्मोन का नियन्त्रण पीयूष य्यन्थि के LH व ICSH द्वारा होता है।
कार्य –
(i) ये स्क्रोटल कोष, एपीडिडाइमिस, शुक्रवाहनियों, शुक्राशयों तथा सहायक जनन ग्रन्थियों के विकास को प्रेरित करते हैं।
(ii) इनके प्रभाव से गौंण लैंगिक लक्षणों जैसे-दाढ़ी-मूँछ, भारी आवाज, सुदृढ़ अस्थियों एवं पेशियों का विकास, शरीर पर बालों का उगना, आक्रामक रवैया, उत्साह, मैथुन इच्छा के विकास को प्रेरित करता है।
(iii) शुक्राणु जनन (spermatogenesis) की प्रक्रिया को पूरा करने में सहायक हैं। बधियाकरण या आकीडिक्टोमी (Castration or Archidectomy) यह वृषणों को काटकर हटा देने की क्रिया है। यौवनारम्भ से पूर्व बधिया कर कर देने से अतिरिक्त लैंगिक लक्षणों का विकास नहीं होता है और व्यक्ति नपुंसक या हिजड़ा (eunch) हो जाता है। इससे आक्रमणशीलता कम हो जाती है तथा ये मृदु स्वभाव के हो जाते हैं। बधिया घोड़े गेर्डिंग (Gelding), बधिया मुर्गे केपॉन (Capon) तथा बधिया बैल स्टीयर (Steer) कहलाते हैं।
अण्डाशय (Ovary):
स्तनधारियों की उदर गुहा में एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries), गर्भाशय (uterus), के दोनों ओर एक-एक स्थित होते हैं। ये मीसेन्ट्री द्वारा गर्भाशय की दीवार से जुड़े होते हैं। बाल्यावस्था में बालिकाओं के अण्डाशयों से हार्मोन स्वावित नहीं होते हैं। किशोरावस्था में (11-13 वर्ष की आयु में) अण्डाशय सक्रिय हो जाता है। अब इससे विभिन्न हार्मोन्स का स्राव होता है।
स्तियों के अण्डाशय से तीन प्रकार के हॉर्मोन्स स्वावित होते हैं –
(1) एस्ट्रोजन (Estrogen) – यह अण्डाशय की ग्रैफियन पुटिकाओं की थीका इण्टरना कोशिकाओं से यौवनावस्था से लेकर रजोनिवृत्ति की आयु (लगभग 48 वर्ष) तक स्नावित होता है। यह सभी सहायक जननांगों एवं द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास को प्रेरित करता है। स्तियों में रजोधर्म इसी के प्रभाव से प्रारम्भ होता है। इसे नारी विकास ‘हॉर्मों’ भी कहते हैं। इस हॉर्मोन का नियन्त्रण पीयूष प्रन्थि के दो हॉम्मोन्स FSH तथा LH द्वारा होता है।
(2) प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone) – यह अण्डाशय की प्रैफियन पुटिका कोशिकाओं (grafian follicle cells) से अण्डोत्सर्ग के बाद बनी पीले रंग के पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) नामक प्रन्थियों से स्वावित होता है। यह स्तियों में मासिक-चक्र का नियमन करके गर्भाधान के लिए आवश्यक दशाओं के विकास को प्रेरित करता है। गर्भधारण के समय होने वाले परिवर्तन का नियन्त्रण इसी हॉमोन द्वारा किया जाता है। इसके प्रभाव से गर्भकाल में स्तन अधिक विकसित हो जाते हैं और दुग्-ग्रन्थियाँ सक्रिय होकर बड़ी हो जाती हैं। प्रोजेस्टेरॉन का स्रावण पीयूष प्रन्थि के हॉर्मोन LH द्वारा नियन्त्रित होता है।
(3) रिलैक्सिन (Relaxin)-इस हॉमोंन का स्रावण भी पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) द्वारा गर्भावस्था की समाप्ति पर शिशु-जन्म के समय होता है। यह हॉर्मोन शिशु-जन्म के समय जघन सन्धान (Pubic symphysis) नामक जोड़ व इससे सम्बन्धित पेशियों का शिथिलन करके शिशु-जन्म को सुगम बनाता है।
प्रश्न 10.
हार्मोन्स की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर:
हार्मोन्स की क्रिया-विधि (Mechanism of Hormone):
हॉमोन्स अति सूक्ष्म मात्रा में स्रावित किये जाते हैं, इनकी अतिसूक्ष्म मात्रा भी कोशिकाओं की क्रियाशीलता को प्रभावित करती है। एक ही हॉर्मोन की लक्ष्य कोशिकाएँ कई प्रकार की हो सकती हैं। हॉर्मोन्स कोशिकाओं की सक्रियता बढ़ाने का कार्य निम्नलिखित तीन विधियों से करते हैं –
(1) जीन स्तर पर प्रोटीन संश्लेषण को प्रभावित करके।
(2) द्वितीयक सन्देशवाहक के माध्यम से कोशिका की कार्यिकी को प्रभावित करके।
(3) कोशिका कला की पारगम्यता बदलकर कोशिका की कार्यिकी को प्रभावित करके।
(1) जीनस्तर पर उपापचयी परिवर्तन (Change of Metabolism at gene level) – स्टेरॉइड हॉर्मोन्स तथा थाइरॉइड प्रन्थि के हॉर्मोन्स लिपिड में घुलनशील होते हैं। ये लक्ष्य कोशिकाओं की कोशिका कला से पारित होकर कोशिकाद्रव्य में पहुँच जाते हैं। जहाँ ये ग्राही प्रोटीन के अणु से मिलकर हॉर्मोन + ग्राही प्रोटीन
संकर का निर्माण करते हैं। यह संकर केन्द्रक में पहुँचकर सुप्त जीन्स को सक्रिय कर देते हैं। इससे बने m-RNA अणु कोशिका में विशिष्ट प्रोटीन्स का संश्लेषण प्रारम्भ करके कोशिका के उपापचय को प्रभावित करते हैं।
(2) द्वितीय सन्देशवाहक के माध्यम से कोशिकीय उपापचयी परिवर्तन (Changes in cells matabolism through Second messenger) – कुछ हॉमोंन्स के अणु बड़े होते हैं, ये लक्ष्य कोशिका की कोशिका कला को पार नहीं कर पाते हैं। अतः इन हॉर्मोन्स के लिए लक्ष्य कोशिका की कोशिका कला पर प्राही प्रोटीन स्थित होती है। हॉर्मोन तथा प्राही प्रोटीन संकर बनते ही G-प्रोटीन सक्रिय हो जाती है।
यह ऐडेनिलेट साइक्लेस (Adenylate cyclase) के एक अणु को उद्दीपित करता है। यह कोशिकाद्रव्य में उपस्थित ऐडीनोसीन ट्राइ फॉस्फेट (Adenosin tri phosphate : ATP) के जलीय अपघटन को प्रेरित करता है जिससे साइक्लिक एडीनोसिन मोनो फॉस्पेट (Cyclic Adenosin Monophosphate : cAMP) के कई अणु बनते हैं जो प्रोटीन काइनेस एन्जाइम (Protein kinase enzyme) को सक्रिय करते हैं। जिससे कोशिका का एन्जाइम तन्त सक्रिय हो जाता है तथा कोशिका की उपापचयी क्रियाओं को उत्रेरित करता है। उपर्युक्त क्रिया में cAMP एक मध्यस्थ दूत या द्वितीय दूत (Second messenger) की भाँति कार्य करता है।
(3) कोशिकाकला की पारगम्यता को बदलने में उपापचयी परिवर्वन (Change in Metabolism by changing Membrane Permeability) – कुछ हॉर्मोन्स कोशिका कला की पारगम्यता को प्रभावित करते हैं। इन हॉमोंन्स के प्राही प्रोटीन्स भी लक्ष कोशिकाओं की कोशिका कला में पाये जाते हैं। ये गाही प्रोटीन्स भी कोशिका कला के आर-पार दोनों सतहों पर निकले रहते हैं। सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम आदि के आयनों का आवागमन भी इन्हीं प्रोटीन्स के द्वारा होता है। हॉमोंस्स इन प्रोटीन्स के साथ संयोग करके इन आयनों के आवागमन को रोक देते हैं जिससे कोशिका कला की पारगम्यता बदल जाती है। पारगम्यता बदलने से कोशिका की उपापचय प्रक्रिया में भी परिवर्तन आ जाता है।