Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 16 पाचन एवं अवशोषण Important Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 16 पाचन एवं अवशोषण
(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
1. ट्रिप्सिनोजन को ट्रिप्सिन में बदलने में सहायक होता है-
(A) HCI
(B) एण्टेरोकाइनेज
(C) पेप्सिन
(D) गैस्ट्रिन
उत्तर:
(B) एण्टेरोकाइनेज
2. रेनिन का स्राव कहाँ से होता है ?
(A) क्षुद्रान्त्र से
(B) वृक्क से
(C) यकृत से
(D) आमाशय से
उत्तर:
(D) आमाशय से
3. कौन-से एन्जाइम प्रोटीन पाचक हैं-
(A) टायलिन, पेप्सिन, इरेप्सिन
(B) ट्रिप्सिन एमाइलेज
(C) ट्रिप्सिन, पेप्सिन, इरेप्सिन
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(C) ट्रिप्सिन, पेप्सिन, इरेप्सिन
4. अग्न्याशयी रस होता है-
(A) अम्लीय
(B) क्षारीय
(C) एन्जाइम
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) क्षारीय
5. वसा का इमल्सीकरण पित्त द्वारा कहाँ पर होता है ?
(A) महणी में
(B) आन्त्र में
(C) आमाशय में
(D) यकृत में
उत्तर:
(B) आन्त्र में
6. काइमोट्रिप्सिन क्या है ?
(A) प्रोटीन पाचक एन्जाइम
(B) विटामिन
(D) हॉर्मोन्स
(C) वसा पाचक एन्जाइम
उत्तर:
(A) प्रोटीन पाचक एन्जाइम
7. केसीन क्या है ?
(A) दुग्ध शर्करा
(B) दुग्ध प्रोटीन
(C) दुग्ध जीवाणु
(D) दुग्ध वसा
उत्तर:
(B) दुग्ध प्रोटीन
8. पित्त का प्रमुख कार्य है-
(A) पाचन में वसा का इमल्सीकरण
(B) उत्सर्जी पदार्थों का बहिष्करण
(C) एन्जाइम द्वारा वसा का पाचन
(D) पाचन क्रियाओं में तालमेल रखना
उत्तर:
(A) पाचन में वसा का इमल्सीकरण
9. कार्बोहाइड्रेट पाचन के अन्तिम उत्पाद हैं-
(A) गैलेक्टोज, माल्टोज, फ्रक्टोज
(B) माल्टोज, फ्रक्टोज, लैक्टोज
(C) ग्लाइकोजन, ग्लूकोज, गैलेक्टोज
(D) ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गैलेक्टोज
उत्तर:
(D) ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गैलेक्टोज
10. ट्रिप्सिनोजन एन्जाइम स्रावित होता है-
(A) आमाशय से
(B) महणी से
(C) अग्न्याशय से
(D) यकृत से
उत्तर:
(C) अग्न्याशय से
11. लार में कौन-सा एन्जाइम होता है-
(A) एमाइलेज
(B) टायलिन
(C) रेनिन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) रेनिन
12. अग्न्याशयी रस किसके पाचन में सहायक होता है ?
(A) प्रोटीन
(B) प्रोटीन और वसा
(C) प्रोटीन और कार्बोहाइट्रेट
(D) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा ।
उत्तर:
(D) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा ।
13. मण्ड (स्टार्च) का पाचन कहाँ होता है ?
(A) आमाशय में
(B) आमाशय तथा महणी में
(C) मुखगुहिका एवं प्रासनली में
(D) मुखगुहिका एवं महणी में
उत्तर:
(D) मुखगुहिका एवं महणी में
14. आन्त्रीय रसांकुरों का प्रमुख कार्य है-
(A) पचे हुए भोजन का स्वांगीकरण
(B) परानिस्पंदन
(C) अवशोषण तल को बढ़ाना
(D) एन्जाइमों का स्रावण
उत्तर:
(C) अवशोषण तल को बढ़ाना
15. पूर्ण पाचन के फलस्वरूप प्रोटीन टूटती है-
(A) ग्लूकोज में
(B) ट्राइग्लिसराइड में
(C) अमीनो अम्ल में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अमीनो अम्ल में
16. पित्त लवणों की वसाओं पर प्रतिक्रिया को कहते हैं-
(A) जल अपघटन
(C) साबुनीकरण
(B) इमल्सीकरण
(D) अपघटन
उत्तर:
(B) इमल्सीकरण
17. यदि आन्ध्र में रसांकुरों (villi) की संख्या चौथाई कर दी जाये तो पचे हुए भोजन का अवशोषण-
(A) नहीं होगा
(B) बिना असर चलता रहेगा
(C) बढ़ जायेगा
(D) घट जायेगा
उत्तर:
(D) घट जायेगा
18. यदि यकृत निष्क्रिय हो जाय तो रुधिर में किसकी मात्रा बढ़ जायेगी ?
(A) यूरिया की
(B) यूरिक अम्ल की
(C) अमोनिया की
(D) प्रोटीन्स की
उत्तर:
(A) यूरिया की
19. निम्न में से कौन-सा दाँत जीवन में केवल एक बार निकलता है ?
(A) प्रीमोलर
(B) किनाइन
(C) इन्साइजर
(D) मोलर
उत्तर:
(D) मोलर
20. बालीरुविन और वाइलीनि कहाँ पाये जाते हैं ? (RPMT)
(A) पित्त में
(B) रक्त में
(C) लार में
(D) लसीका में
उत्तर:
(A) पित्त में
21. यकृत में ग्लाइकोजन का संश्लेषण (RPMT)
(A) ग्लाइकोलिसिस द्वारा
(B) ग्लाइकोनीनोलिसिस द्वारा
(C) ग्लाइकोजिनेसिस द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) ग्लाइकोजिनेसिस द्वारा
22. विटामिन है- (RPMT)
(A) कार्बनिक पदार्थ
(B) हॉर्मोन
(C) खनिज लवण
(D) लवण।
उत्तर:
(A) कार्बनिक पदार्थ
23. जीवद्रव्य निर्माण में उपयोगी पोषक पदार्थ है- (RPMT)
(A) वसा
(B) प्रोटीन
(C) कार्बोहाइड्रेट
(D) कैल्शियम
उत्तर:
(B) प्रोटीन
24. पावन का वह भाग जो भोजन में नहीं होता- (RPMT)
(A) बड़ी आंत
(B) छोटी और
(C) ट्रेकिया
(D) यकृत
उत्तर:
(C) ट्रेकिया
25. सार परिवर्तित करती है ? (RPMT)
(A) स्टार्च को माल्टोज में
(B) वसा को वसीय अम्ल में
(C) ग्लाइकोजन को ग्लूकोज
(D) प्रोटीन को अमीनो अम्ल में
उत्तर:
(A) स्टार्च को माल्टोज में
26. वह कौन सा रस है, जो प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट दोनों का पावन करता है- (RPMT)
(A) टायलिन
(B) पेप्सिन
(C) अग्याशयी रस
(D) लार।
उत्तर:
(C) अग्याशयी रस
27. विल्सन के संयुक्त पाए जाते हैं- (UPCPMT)
(A) यकृत में
(B) फेफड़े में
(C) वुक्क में
(D) आमाशय में
उत्तर:
(D) आमाशय में
28. ऑस्टिओमेलेशिया किसकी कमी से होता है- (UPCPMT)
(A) विटामिन-A
(B) विटामिन-B
(C) विटामिन-C
(D) विटामिन-D
उत्तर:
(D) विटामिन-D
29. दाँतों की पत्य गुहा सीमित होती है- (UPCPMT, RPMT)
(A) ओडटोब्लास्ट से
(B) कोन्ड्रोब्लास्ट से
(C) ओस्टिओब्लास्ट
(D) एमाइलोब्लास्ट से।
उत्तर:
(A) ओडटोब्लास्ट से
30. लार में उपस्थित एन्जाइम है- (UPCPMT)
(A) माल्टोज
(B) टाइलिन
(C) सुक्रेज
(D) इन्वर्टेज।
उत्तर:
(B) टाइलिन
31. कौन-सा जोड़ा सही सुमेलित नहीं है ? (CBSE PMT)
(A) विटामिन B12 – पर्नीशियस एनीमिया
(B) विटामिन B1 – बेरी-बेरी
(C) विटामिन C- स्कर्वी
(D) विटामिन B2 – पैलाग्रा।
उत्तर:
(D) विटामिन B2 – पैलाग्रा।
32. विटामिन C किस रूप में पाया जाता है- (RPMT)
(A) एस्कार्बिक अम्ल
(B) ग्लूटेरिक अम्ल
(C) एसीटिक अम्ल
(D) साइट्रिक अम्ल
उत्तर:
(A) एस्कार्बिक अम्ल
33. खरगोश के दाँत होते हैं- (UPCPMT)
(A) गर्तदंती
(B) द्विवदन्ती
(C) विषम दन्ती
(D) पेसकी
उत्तर:
(D) पेसकी
34. पाचन का अर्थ है- (UPCPMT)
(A) भोजन का जलना
(B) भोजन का ऑक्सीकरण
(C) भोजन का जल अपघटन
(D) भोजन का टूटना।
उत्तर:
(C) भोजन का जल अपघटन
35. आमाशयी रस का खाव नियन्त्रित होता है- (RPMT)
(A) गरिन
(B) कोलिस्टोकारनिन
(C) एन्टीरोगस्ट्रिन
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) गरिन
36. जन्तु शरीर का सबसे कठोरतम पदार्थ होता है- (RPMT)
(A) अस्थि
(B) रोम
(C) डेन्टीन
(D) इनैमल
उत्तर:
(D) इनैमल
37. लैमरस की द्वीपिकाएँ पापी जाती हैं- (RPMT)
(A) अग्न्याशय में
(B) आमाशय में
(C) यकृत में
(D) आहार नाल में।
उत्तर:
(A) अग्न्याशय में
38. वयस्क मानव में सबसे बड़ी पन्थि है- (UPCPMT)
(A) थाइमस
(B) यकृत
(C) थाइरॉइड
(D) अग्नाशय।
उत्तर:
(B) यकृत
39. लीवर कुशन की गुहिकाएं सम्मिलित होती है- (RPMT, UPCPMT)
(A) सक्कस एन्टेरिक्स के स्त्रावण में
(B) रेनिन के स्वायण में
(C) टायलिन के स्रावण में
(D) भोजन के पाचन में।
उत्तर:
(A) सक्कस एन्टेरिक्स के स्त्रावण में
40. कुफ्फर की कोशिकाएँ होती हैं- (RPMT, UPCPMT)
(A) यकृत में
(B) छोटी आंत
(C) अग्न्याशय
(D) पाइरॉइड
उत्तर:
(A) यकृत में
41. यदि जठर पन्दियों की पैराइटल कोशिकाओं के लवण को किसी एक संदमक के द्वारा रोक दिया जाए तो क्या परिणाम होगा ? (CBSE AIPMT)
(A) जठर रस में काइमोसिन का अभाव होगा
(B) जठर रस में पेप्सिनोजन का अभाव होगा
(C) HCL के खावी की अनुपस्थिति में निष्क्रिय पेप्सिनोजन में परिवर्तित नहीं होगा
(D) महणी श्लेष्मकला से स्टोरोकाइनेज नहीं निकलेगा और इस ट्रिप्सिनोजन का ट्रिप्सिल में परिवर्तन नहीं हो पाएगा।
उत्तर:
(C) HCL के खावी की अनुपस्थिति में निष्क्रिय पेप्सिनोजन में परिवर्तित नहीं होगा
42. भोजन के निम्नलिखित पटक युग्मों में से कौन मनुष्य के आमाशय में पूर्ण रूप से अपचित अवस्था में पहुँचता है ? (CBSE AIPMT)
(A) प्रोटीन तथा मण्ड
(B) मण्ड तथा वसा
(C) वसा तथा सेल्युलोज
(D) मण्ड तथा सैल्युलोज ।
उत्तर:
(C) वसा तथा सेल्युलोज
43. ट्रिप्सिनोजन सक्रिय होता है- (UPCPMT)
(A) ट्रान्सफरेज द्वारा
(B) हाइड्रोलेस द्वारा
(C) एन्टेरोमाइज द्वारा
(D) लाइपेज द्वारा।
उत्तर:
(C) एन्टेरोमाइज द्वारा
44. यदि किसी कारण हमारी गौवनेट कोशिकाएँ अक्रिय हो जाएँ तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा- (CBSE AIPMT)
(A) सोमेटोस्टेनिन के उत्पादन पर
(B) सीबेशियस मन्धियों से सीबम के लावग पर
(C) शुक्राणुओं के परिपक्वन पर
(D) आन्त्र में भोजन के नीचे की ओर गति पर
उत्तर:
(B) सीबेशियस मन्धियों से सीबम के लावग पर
45. मानव में दुग्ध के पाचन की क्रिया का प्रारम्भिक पद निम्नलिखित में से किस एन्जाइम द्वारा सम्पन्न होता है ? (CBSE AIPMT)
(A) रेनिन द्वारा
(B) लाइपेज द्वारा
(C) ट्रिप्सिन द्वारा
(D) पेप्सिन द्वारा।
उत्तर:
(D) पेप्सिन द्वारा।
46. शशक में सेल्युलोस का पाचन होता है- (UPCPMT)
(A) बृहदान्त्र (colon) में
(B) शेषान्त्र (ileum) में
(C) अन्धनाल (caccum) में
(D) मलाशय (rectum) में।
उत्तर:
(C) अन्धनाल (caccum) में
47. ग्लाइकोजनोलाइसिस में होता है-
(A) शर्करा का ग्लाइकोजन में परिवर्तन
(B) शर्करा का ऑक्सीकरण
(C) ग्लाइकोजन का शर्करा में परिवर्तन
(D) ग्लाइकोजन का वसा में परिवर्तन।
उत्तर:
(C) ग्लाइकोजन का शर्करा में परिवर्तन
48. निम्नलिखित में से किस पाचक रस में एन्ज़ाइम नहीं होते किन्तु पाचन में सहायक होता है- (RPMT)
(A) पिस
(B) शक्कर एण्टेरिकस
(C) काइल
(D) काहम
उत्तर:
(A) पिस
49. ट्रिप्सिन खावित होता है- (RPMT)
(A) अग्न्याशय द्वारा
(B) पिट्यूटरी द्वारा
(C) चाइमस द्वारा
(D) थाइरॉइड द्वारा
उत्तर:
(A) अग्न्याशय द्वारा
50. मनुष्य में किस प्रकार के दन्त पाए जाते हैं ? (UPCPMT)
(A) अग्रदन्ती
(B) गर्तदन्ती
(C) बहुदन्ती
(D) एकदन्ती।
उत्तर:
(B) गर्तदन्ती
(B) अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
आमाशय के तीन भागों के नाम लिखिए।
उत्तर:
आमाशय के तीन भाग हैं-
- कार्डियक भाग (cardiac part),
- पाइलोरिक भाग (pyloric part) तथा
- फण्डिक भाग (fundic part)।
प्रश्न 2.
अग्न्याशय रस के प्रमुख किकीय घटकों का नामांकन करें।
उत्तर:
- ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन
- एमाइलेज या एमाइलोप्सिन तथा
- स्टीएप्सिन या लाइपेज
प्रश्न 3.
लैगरहेन्स की द्वीपिकाएँ कहाँ पायी जाती हैं तथा इनके द्वारा उत्पादित रसायनों के क्या नाम होते हैं ?
उत्तर:
लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ अग्न्याशय (pancreas) में पायी जाती हैं। इनके द्वारा
- इन्सुलिन (insulin) तथा
- ग्लूकैगोन नामक हॉर्मोन्स का उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 4.
मनुष्य की आहारनाल में यूनर ग्रन्थियाँ कहाँ पायी जाती हैं ? इनका कार्य क्या है ?
उत्तर:
मनुष्य की आहारनाल में चुनर पन्थियाँ महणी की अधः श्लेष्मिका में पायी जाती हैं ये आन्त्रीय रस उत्पन्न करती हैं।
प्रश्न 5.
आमाशय के पेशी संकुचन को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
आमाशय के पेशी संकुचन को क्रमाकुंचन (peristalsis) कहते
प्रश्न 6.
मनुष्य की जर ग्रन्थियों से सावित दो एन्जाइमों के नाम तथा उनका कार्य लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य की जठर मन्थियों से निम्न दो हॉर्मोन्स लावित होते हैं-
- ट्रिप्सिन (Trypsin) यह प्रोटीन्स को पेप्टोन्स व प्रोटिओलेज में बदलता है।”
- रेजिन (Rennin) दूध में उपस्थित केसीनोजन प्रोटीन को केसीन में बदलता है।
प्रश्न 7.
यदि किसी कारणवश आहारनाल में क्रमाकुंचन गति रुक जाये तो क्या होगा ?
उत्तर:
भोजन आहारनाल में आगे नहीं बढ़ेगा, फलतः भोजन का पाचन रुक जायेगा।
प्रश्न 8.
मनुष्य के जर रस में पेप्सिनोजन तथा प्रोरेनिन नामक एन्जाइम निष्क्रिय अवस्था में पाये जाते हैं फिर ये भोजन के पाचन में किस प्रकार भाग लेते हैं ?
उत्तर:
मनुष्य के जठर रस में यद्यपि पेप्सिनोजन (pepsinogen) तथा प्रोरेनिन (prorannin) निष्क्रिय अवस्था में पाये जाते हैं, किन्तु इन्हें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL) द्वारा सक्रिय रूपों पेप्सिन व रेनिन में परिवर्तित कर दिया जाता है और ये भोजन के पाचन में भाग लेते हैं।
प्रश्न 9.
आन्त्रीय रस में पाये जाने वाले दो एन्जाइम के नाम तथा उनका कार्य चलाइए।
उत्तर:
- पेप्टिडेजेज (इरेप्सिन) – यह पेण्टोज शर्करा, प्रोटिओजेज एवं पॉलीपेप्टाइड्स को अपघटित करके इन्हें अमीनो अम्लों में परिवर्तित कर देता है।
- मल्टेज (Maltase) यह माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदल देता है।
प्रश्न 10.
मनुष्य में वसाओं का अवशोषण किस दशा में तथा किस प्रक्रिया द्वारा होता है ?
उत्तर:
मनुष्य में बसाओं का अवशोषण पायसीकृत (इमल्सीकृत) दशा में तथा कोशिकापायन (pinocytosis) प्रक्रिया द्वारा होता है।
प्रश्न 11.
पाचन क्रियाओं को नियन्त्रित करने वाले हॉर्मोन्स के नाम लिखिए।
उत्तर:
पाचन क्रिया को नियन्त्रित करने वाले हॉर्मोन्स
- गैस्ट्रिन,
- एण्टेरोगैस्ट्रिन,
- कोलेसिस्टोकाइनिन,
- सिक्रिटिन,
- पेन्क्रियोजाइमन तथा
- एण्टेरोकाइनिन हैं।
प्रश्न 12.
पचे हुए भोजन के अवशोषण की क्रियात्मक इकाई का नाम बताइए।
उत्तर:
रसांकुर (विलाई)।
प्रश्न 13.
डीएमीनेशन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
यकृत की कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्लों को ग्रहण करके उनको पाइरुविक अम्ल (pyruvic acid) तथा अमोनिया NH में विघटित कर देती हैं। इस प्रक्रिया को डीएमीनेशन कहते हैं।
प्रश्न 14.
गैस्ट्रिन की क्रिया का मुख्य स्थान कौन-सा है ?
उत्तर:
आमाशय (stomach) ।
प्रश्न 15.
कुफ्फर की कोशिकाएँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
यकृत (liver) में।
प्रश्न 16.
पचित वसा का अवशोषण कहाँ होता है ?
उत्तर:
पचित वसा का अवशोषण लसीका (lacteal) में होता है।
प्रश्न 17.
आहार नाल के किस भाग में रसांकुर पाये जाते हैं ? इनका कार्य बताइए।
उत्तर:
रसांकुर (villi) आहारनाल की क्षुद्रान्त्र में पाये जाते हैं। ये पचे हुए भोज्य पदार्थ का अवशोषण करते हैं।
प्रश्न 18.
लार में कौन-सा एन्जाइम होता है ? इसका कार्य बताइए।
उत्तर:
लार में टायलिन (ptylin) नामक एन्जाइम उपस्थित होता है। यह मण्ड (स्टार्च) को शर्करा (शुगर) में परिवर्तित करता है।
प्रश्न 19.
पेप्सिन किस रूप में स्रावित होता है ?
उत्तर:
पेप्सिन निष्क्रिय पेप्सिनोजन के रूप में स्त्रावित होता है।
प्रश्न 20.
अग्न्याशय से स्त्रावित होने वाले पाचक एन्जाइम के नाम लिखिए।
उत्तर:
- एमाइलेज
- ट्रिप्सिन
- कार्बोक्सीडेज
- लाइपेज
- ईस्टरेज
- न्यूक्लिएजेज।
प्रश्न 21.
पित रस का सबसे महत्वपूर्ण एक कार्य बताइए ।
उत्तर:
पित्त रस भोजन की वसा का इमल्सीकरण ( emulsification) करता है ताकि वसा का भलीभाँति पाचन हो सके।
प्रश्न 22.
पंचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है ?
उत्तर:
पचे हुए भोजन का पूर्ण अवशोषण आहारनाल की क्षुद्रान्त्र (small intestine) में होता है।
प्रश्न 23.
स्वांगीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कोशिका के अन्दर पचे हुए भोज्य पदार्थों के कोशिका द्रव्य में विलीन (आत्मसात) होने की क्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं।
प्रश्न 24.
मिसेल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वसा एवं पित्त लवणों की छोटी गोलाकार रचना को मिसेल ( micelles) कहते हैं।
प्रश्न 25.
पीलिया रोग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पीलिया (jaundice ) रोग में यकृत प्रभावित होता है। इस रोग में त्वचा और नेत्र पित्त वर्णकों के जमा हो जाने से पीले रंग के दिखाई देते हैं।
(C) लघु उत्तरात्मक प्रश्न ( Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
पायसीकरण किसे कहते हैं ? इसका क्या महत्व है ?
उत्तर:
पायसीकरण
(Emulsification)
बड़ी वसा गोलिकाओं का छोटे आकार की वसा बूंदों में टूट जाना पायसीकरण (emulsification) कहलाता है। भोजन में पाये जाने वाले वसा पर पित्त लवण एवं लैसीथिन अणु क्रिया करते हैं। इनका एक भाग ध्रुवीय तथा दूसरा भाग अध्रुवीय होता है। अध्रुवीय भाग वसा गोलिकाओं की सतह में घुल जाता है तथा ध्रुवीय भाग भोजन में उपस्थित जल में विलेय रहता है।
इस क्रिया के कारण वसा गोलिकाओं का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है, फलस्वरूप बड़ी वसा गोलिकाएँ (fat globules) बूँदों में परिवर्तित हो जाती हैं। पायसीकृत वसा पर एन्जाइम तीव्रता से क्रिया करते हैं ।
वसा + पित्त रस → पायसीकृत वसा
प्रश्न 2.
काइलोमाइकॉन क्या है ?
उत्तर:
काइलोमाइकॉन (Chylomicron)
पाचन क्रिया के पश्चात् पचित भोजन के फलस्वरूप वसा का अवशोषण वसा अम्लों, मोनोग्लिसरॉइड एवं कोलेस्ट्रॉल के रूप में विसरण द्वारा लसिका (lymph) में होता है। इन वसा के साथ पित्त रस (bile juice) सूक्ष्म जटिल रचनाएँ बनाता है ये सूक्ष्म रचनाएँ मिसेल कहलाती हैं जिनमें काइम विलेय रहता है। प्रत्येक मिसेल बसा एवं पित्त लवणों की छोटी गोलाकार या बेलनाकार गोलिका होती है।
इस गोलिका के केन्द्रीय भाग में वसा अम्ल एवं मोनोग्लिसरॉइड होते हैं, जिनके चारों ओर पित लवण एकत्र हो जाते हैं। जब मिसेल सूक्ष्मांकुर (microvilli) के समीप आती है तब इसमें स्थित वसा कोशिका मिसेल से निकलकर कोशिका में विसरित होने लगती है एवं पित्त लवण काइम में रह जाते हैं और पुनः मिसेल (micelle) बनाने लगते हैं। कोशिका में वसा अम्ल एवं मोनोग्लिसरॉइड चिकनी अन्तप्रद्रव्यी जालिका (SER) में प्रवेश कर ट्राइग्लिसरॉइड संश्लेषित करते हैं।
प्रश्न 3.
पाचन तथा पोषण में क्या अन्तर है ? मनुष्य में पाये जाने वाले किन्हीं दो पाचक रसों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पाचन (Digestion) प्राणी द्वारा ग्रहण किये गये अघुलनशील जटिल पदार्थों को सरल घुलनशील अणुओं में बदलने की प्रक्रिया को प्राचन कहते हैं जबकि पोषण (nutrition) वह सम्पूर्ण क्रिया है जिसके अन्तर्गत प्राणी भोज्य पदार्थों को ग्रहण करके, उसे कोशिकाओं में प्रयुक्त होने योग्य बनाता है। मनुष्य में पाये जाने वाले पाचक रस आमाशय से जठर रस (gastric juice) तथा अग्न्याशय (pancreas) से अग्न्याशयी रस (pancreatic juice) स्त्रावित होता है।
प्रश्न 4.
पित्त रस का रासायनिक संगठन एवं पाचन तन्त्र में इसके कार्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
पितरस (Bile Juice) पित्त रस हरे पीले रंग का द्रव्य होता है। इसका अधिकांश भाग जल तथा शेष कुछ भाग पित्त लवणों (bile salts) एवं पित्त रंगाओं (bile pigments) का बना होता है। पित्त रस में पाचक एन्जाइम (digestive enzyme) नहीं होते हैं, किन्तु पाचन क्रिया में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
पाचन तन्त्र में पितरस का महत्व-यकृत द्वारा निर्मित पित्त रस (bile juice) पाचन क्रिया में निम्नवत् योगदान करता है-
(1) पित्तरस क्षारीय (pH 7-9) होता है और यह आमाशय से ग्रहणी (duodenum) में काइम के रूप में आये हुए भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है तथा इसे अधिक तरल बनाता है, क्योंकि अग्न्याशयिक रस के एन्जाइम्स क्षारीय माध्यम में ही क्रियाशील होते हैं।
(2) भोजन को अम्लीय से क्षारीय, पित्त लवणों में उपस्थित अकार्बनिक सोडियम क्लोराइड (NaCl) तथा सोडियम कार्बोनेट (Na2 CO3) बनाते हैं। इसके अतिरिक्त वे अकार्बनिक लवण भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से रोकते हैं।
(3) पित्त रस में सोडियम ग्लाइकोलेट (sodium glycolate ), सोडियम टारकोलेट (sodium tarcholate) तथा कोलेस्ट्रॉल (cholestrol) नामक कार्बनिक लवण भी उपस्थित होते हैं। ये लवण भोजन की वसाओं का विखण्डन (पायसीकरण या इमल्सीकरण ( emulsification) करते हैं तथा अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) के लाइपेज एन्जाइम को वसा से प्रतिक्रिया करने के लिये उत्तेजित करते हैं ।
(4) पित्त रस (bile juice) में उपस्थित पित्त लवण वसा अम्लों तथा विटामिन A, D, E वK आदि के अवशोषण में सहायक होते हैं।
(5) पित्त में बाइलीरुबिन (bilirubin) तथा बाइलीवर्डिन (biliverdin) नामक रंगा (pigments) प्रमुख हैं। ये उत्सर्जी पदार्थ होते हैं जो लाल रक्त कणिकाओं के लिखण्डन से बनते हैं। ये पाचन में भाग नहीं लेते और मल के साथ शरीर के बाहर निकल जाते हैं।
प्रश्न 5.
मनुष्य की आहारनाल में कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन कैसे होता है ? सविस्तार बताइए ।
उत्तर:
आनुष्य की आहारनाल में कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन
(1) मनुष्य की आहारनाल में कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन मुखगुहा से ही प्रारम्भ होता है। भोजन चबाते समय इसमें लार मिल जाती है। लार में उपस्थित टायलिन (ptylin) नामक एन्जाइम स्टार्च (मण्ड – कार्बोहाइड्रेट) का जल अपघटन करके उसे माल्टोज (maltose) एवं डेक्सट्रिन नामक शर्करा में बदल देता है।
(2) आमाशय (stomach) में कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन नहीं होता है। इसके बाद कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन महणी में होता है। ग्रहणी में भोजन का माध्यम क्षारीय हो जाने पर अग्न्याशिक रस में उपस्थित एमाइलेज ( amylase) नामक एन्जाइम स्टार्च व ग्लाइकोजन को अपघटित करके उन्हें माल्टोज शर्करा में बदल देता है।
(3) इसके पश्चात् कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन क्षुद्रान्त्र (small intestine) में निम्नवत् होता है –
(i) आन्त्रीय / रस का माल्टेज (maltose) नामक एन्जाइम माल्टोज शर्करा ( maltose) को ग्लूकोज में बदल देता है।
(ii) लैक्टेज (lactose) नामक एन्जाइम दूध की लैक्टोज शर्करा को ग्लूकोज एवं गेलेक्टोज (galactose) में बदल देता है।
(iii) सुक्रेज ( sucrase) नामक एन्जाइम सुक्रोज शर्करा (sucrose sugar) को ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज (glucose and fructose) में परिवर्तित कर देता है ।
इस प्रकार मनुष्य की आहारनाल में मुखगुहा से क्षुद्रान्त्र तक आते-आते कार्बोहाइड्रेट्स का पूर्णतः पाचन हो जाता है।
प्रश्न 6.
मनुष्य के पाचन में भाग लेने वाली प्रमुख पाचन प्रन्थियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य की पाचन ग्रन्थियाँ (Digestive Glands in Man )
(1) लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands) – मनुष्य में तीन जोड़ी लार प्रन्थियाँ पायी जाती हैं-
- कर्णपूर्व (parotid),
- अधोजंभ (submaxillary),
- अधोजिहा (sublingual)।
इन मन्थियों से एक प्रकार का क्षारीय तरल साबित होता है। इस तरल में जल, टायलिन (ptylin) या α- एमाइलेज, लाइसोजाइम, श्लेष्मा एवं सोडियम क्लोराइड, पोटैशियम, बाइकार्बोनेट आदि आयन उपस्थित होते हैं। लार में पाया जाने वाला टायलिन (ptylin) एक पाचक एन्जाइम है जो कार्बोहाइड्रेट पर क्रिया करता है एवं भोजन
को लसलसा बनाकर निगलने योग्य बनाता है। इसमें उपस्थित लाइसोजाइम (lysozyme) जीवाणुओं को नष्ट करता है।
(2) यकृत (Liver) – यह शरीर की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण प्रन्थि है। यह उदरगुहा में दायीं ओर तनुपट के ठीक नीचे, मीसेण्ट्री द्वारा सधी, कत्थई रंग (brown colour) की एक बड़ी-सी कोमल, किन्तु ठोस रचना होती है जो गहरी खाँचों द्वारा दायीं पाली तथा बायीं पाली में बँटी होती है। दायीं बड़ी पाली के नीचे पित्ताशय (gall bladder) सटा रहता है। इसमें यकृत कोशिकाओं में बना पित रस (bile juice) एकत्रित होता है। पित्त के कारण पित्ताशय हरा, नीला-सा दिखायी देता है। पित्त रस पित्तवाहिनी (bile duct) द्वारा आवश्यकतानुसार समय-समय पर ग्रहणी में पहुँचता रहता है।
(3) अग्न्याशय (Pancreas) – यह अनियमित आकार की पत्ती जैसी हल्के पीले गुलाबी रंग की ग्रन्थि है, जो ग्रहणी के ‘U’ भाग के बीच में मीसेण्ट्री द्वारा सधी रहती है। इस प्रन्थि का प्रमुख ऊतक अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) स्त्रावित करता है जो अग्न्याशयिक वाहिनी (pancreatic duct) द्वारा ग्रहणी में पहुँचता है। प्रन्थि के प्रमुख ऊतक में ही जगह-जगह लैंगरहैन्स की डीपिकाएँ (Islets of Langerhans) नामक अन्तःस्रावी ग्रन्थि कोशिकाएँ होती हैं। इनसे इन्सुलिन (insulin) तथा ग्लूकागोन (glucagon) नामक हॉर्मोन्स स्त्रावित होते हैं जो रुधिर में शर्करा की मात्रा के उपापचय का नियमन (regulation) करते हैं।
प्रश्न 7.
टायलिन तथा पेप्सिन के स्रोत एवं कार्यों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
1. टायलिन (ptylin ) लार मन्थियों से स्त्रावित लार में उपस्थित होता है। यह एक एन्जाइम है जो भोजन की मण्ड (starch) को शर्करा में बदल देता है।
2. पेप्सिन (pepsin) नामक एन्जाइम जठर मन्थियों (gastric glands) से स्त्रावित जठर रस में निष्क्रिय पेप्सिनोजन (pepsinogen) के रूप में होता है जो आमाशय (stomach) में HCI के साथ मिलकर सक्रिय पेप्सिन (peptone) में बदल जाता है। यह भोजन की प्रोटीन को अपघटित करके पेप्टोन तथा पॉलीपेप्टाइड (polypeptide ) में बदल देता है।
प्रश्न 8.
रोटी अधिक देर तक चबाने पर मीठी क्यों लगती है ? सकारण उत्तर प्रस्तुत करें।
उत्तर:
रोटी में मण्ड (starch) नामक पॉलीसेकेराइड कार्बोहाइड्रेट अघुलनशील अवस्था में होता है। जब रोटी को अधिक देर तक चलाया जाता है तो उसमें लार ग्रन्थियों से निकली हुई लार मिल जाती है। लार में टायलिन (ptylin) नामक पाचक एन्जाइम उपस्थित होता है। टायलिन रोटी की 5% अघुलनशील मण्ड (starch) को घुलनशील शर्करा (sugar) में बदल देता है। इसलिए अधिक देर तक चबाने पर रोटी मीठी लगती है।
प्रश्न 9.
मनुष्य के जठर रस में मिलने वाले एन्जाइमों के नाम और उनके कार्य बताइए ।
उत्तर:
मनुष्य के जठर रस में नमक के अम्ल (HCl) के साथ पेप्सिनोजन तथा प्रोरेनिन नामक प्रोएन्जाइम्स (proenzyme ) होते हैं। ये एन्जाइम्स आमाशय में आए भोजन में मिलने से पूर्व निष्क्रिय अवस्था में होते हैं। आमाशय में आये हुए भोजन में मिलते समय निष्क्रिय पेप्सिनोजन HCI के साथ मिलकर सक्रिय पेप्सिन में बदल जाता है। इसी समय प्रोरेजिन भी रेनिन में बदल जाता है। रेनिन दूध को फाड़कर उसकी प्रोटीन-केसीन (cascine) को अलग कर देता है। अब पेप्सिन (pepsin) भोजन को प्रोटीन को अपघटित करके पेण्टोन तथा पॉलीपेप्टाइड में बदल देता है।
प्रश्न 10.
यदि किसी व्यक्ति का अग्न्याशय निष्क्रिय हो जाए तो उसकी पाचन क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
अथवा
यदि किसी मनुष्य का अग्न्याशय कार्य करना बन्द कर दे तो उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर:
अग्न्याशय के निष्क्रिय हो जाने या कार्य न करने पर –
(i) उससे अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) नहीं निकलेगा जिसमें ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमाइलेज तथा लाइपेज (स्टीएप्सिन), कार्बोक्सी पेप्टिडेज नामक एन्जाइम्स होते हैं। ये क्रमशः प्रोटीन, मण्ड एवं वसा का पाचन करते हैं। अतः अग्न्याशयिक रस के अभाव में भोजन की प्रोटीन, मण्ड तथा वसा का पाचन नहीं हो सकेगा।
(ii) अग्न्याशय में स्थित लैंगरहैन्स के द्वीप पुंज (islets of Langerhans) की बीटा तथा एल्फा नामक कोशिकाओं से इन्सुलिन तथा ग्लूकागोन हॉर्मोन्स का स्राव नहीं हो सकेगा, जिसके फलस्वरूप ग्लाइकोजिनेसिस ( यकृत में ग्लूकोस के ग्लाइकोजन में बदलने की क्रिया) तथा ग्लाइकोजिनोलाइसिस (यकृत कोशिका में संचित ग्लाइकोजन के पुनः ग्लूकोस में बदलने की क्रिया) की क्रियाएँ नहीं हो सकेंगी। परिणामस्वरूप रुधिर में शर्करा की मात्रा का सन्तुलन बिगड़ जाएगा। रुधिर में शर्करा की मात्रा आवश्यकता से अधिक बढ़ जाने से ऐसा व्यक्ति मधुमेह या डायबिटीज (diabetes) का रोगी हो जाएगा।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित कहाँ पाये जाते हैं ? प्रत्येक के एक प्रमुख कार्य का उल्लेख कीजिये-
उत्तर:
- कृन्तक
- एमाइलेज
- कार्बोहाइड्रेट
- अग्न्याशय
- पित्त।
फ्दार्थ/वस्तु का नाम | प्राप्ति स्थल/खाते | प्रमुख कार्य |
1. कृम्तक (incisors) | स्तनी जन्तु की मुख गुहा में जबड़ों पर | भोजन को चीरनाकाड़ना |
2. समाइलेज (amylase) | अग्याशयिक रस में उपस्थित | कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम |
3. कार्बोहाइड्रेटस (carbohydrates) | गेहूँ, चावल, मक्का, आलू व सभी फलों में | प्राणी शरीर को ऊर्जा प्रदान करना |
4. अग्नाशय (pancrease) | उदर गुहा में आमाशय के नीचे स्थित | एन्जाइमों द्वारा भोजन का पाचन, इन्सुलिन व ग्लूकागोन हॉमोंन्स द्वारा शर्करा का नियन्त्रण व नियमन |
5. पित्त (bile) | यकृत कोशिकाओं द्वारा स्नावित | पित्त वसाओं का इमल्सीकरण |
प्रश्न 12.
निम्नलिखित के कार्यों का वर्णन कीजिए-
(i) एमाइलेज (Amylase)
(ii) गैस्ट्रिन (Gastrin )
(iii) बिलिवर्डिन (Biliverdin)।
उत्तर:
(i) एमाइलेज (Amylase ) – यह अग्न्याशयिक रस में पाया जाने वाला मण्ड पाचक एन्जाइम है। यह मण्ड को शर्करा में परिवर्तित करता है-
(ii) गैस्ट्रिन (Gastrin ) – यह आमाशय की श्लेष्मकला से स्त्रावित होने वाला हॉर्मोन है। यह हॉर्मोन रुधिर के माध्यम से आमाशय की जठर मन्थियों (gastric glands) को उत्तेजित करता है
जिससे वे सक्रिय हो जाती हैं और जठर रस का स्राव करती हैं।
(iii) बिलिवर्डिन (Biliverdin) – यकृत में मृत लाल रुधिर कणिकाओं ( R. B. C. ) के हीमोग्लोबिन के विखण्डन से बिलिवर्डिन तथा बिलिरुबिन (vilirubin) नामक वर्णक (pigments) बनते हैं। ये उत्सर्जी पदार्थ हैं जो पित्त रस द्वारा ग्रहणी में पहुँचते हैं और फिर मल के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
प्रश्न 13.
मनुष्य की आन्त्र में वसा अवशोषण की प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर:
आन्त्र में वसा का अवशोषण वसा अम्लों, मोनोग्लिसरॉइड एवं कोलेस्ट्रॉल के रूप में विसरण द्वारा लसिका में होता है। इस वसा के साथ पित्त मिलकर सूक्ष्म जटिल रचनाएँ बनाता है। ये रचनाएँ मिसेल कहलाती हैं। ये मिसेल काइम में विलेय होती हैं। प्रत्येक मिसेल के केन्द्रीय भाग में वसा अम्ल एवं मोनोग्लिसरॉइड होता है, जिसके चारों ओर पित्त लवण एकत्रित रहते हैं। सूक्ष्मांकुर के समीप मिसेल के आते ही इसमें स्थित वसा कोशिका झिल्ली में घुलनशील होने के कारण मिसेल ( micelle) से निकलकर कोशिका में विसरित हो जाता है।
इसके विसरण के पश्चात् पित्त लवण एवं काइम शेष रह जाते हैं। अब कोशिका में वसा अम्ल एवं मोनोग्लिसरॉइड (monoglyceroids) चिकनी अन्त प्रद्रव्यी जालिका में प्रवेश करके ट्राइग्लिसराइड संश्लेषित करता है। ये ट्राइग्लिसरॉइड चारों ओर से प्रोटीन द्वारा
घिर जाते हैं। इस प्रकार लिपोप्रोटीन से 0.1 व्यास की गोलिकाएँ बनती हैं जिन्हें काइलोमाइक्रॉन (chylomicron) कहते हैं। काइलोमाइक्रॉन बहिर्कोशिकालयन (exocytosis) द्वारा बाहर निकलकर लसिका केशिका में चला जाता है। ये लसीका तन्त्र से होते हुए शिरा के रुधिर प्लाज्मा में पहुंच जाते हैं। अब प्लाज्मा में लिपोप्रोपीन लाइपेज की सहायता से इन्हें वसा अम्लों एवं मोनोग्लिसरॉइड में बदल देती है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित पाचक एन्जाइम भोजन के किस अवयव पर क्रिया करते हैं ?
उत्तर:
केवल रासायनिक अभिक्रिया द्वारा व्यक्त कीजिये।
(D) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
मनुष्य की आहारनाल का नामांकित चित्र बनाकर विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आहार नाल (Alimentary canal):
मनुष्य की आहार नाल 8-10 मीटर लम्बी कुण्डलित होती है। विभिन्न भागों में इसका व्यास अलग-अलग होता है। आहार नाल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
- मुख एवं मुख गुहिका,
- ग्रसनी,
- ग्रासनली,
- आमाशय,
- छोटी आंत,
- बड़ी आंत तथा
- मलाशय।
1. मुख एवं मुख गुहिका (Mouth and Buccal Cavity) – मुख सिर की अधर सतह पर एक अनुप्रस्थ दरार के रूप में होता है जो दो मांसल होठों (lips) द्वारा घिरा होता है। होंठ (lips) बाहर की ओर त्वचा से तथा भीतर की ओर श्लेष्मा कला (mucous membrane) के द्वारा ढके होते हैं। मुख अन्दर की ओर मुखगुहा में खुलता है। मुखगुहा (buccal cavity) में गालों व दांतों के बीच का स्थान प्रघाण (vestibule) कहलाता है। दाँतों की दोनों कतारों के बीच पेशीय जीभ (tongue) पायी जाती है। मुख गुहा की ऊपरी छत्त तालु कहलाती है। तालु (Palate) – मुख गुहिका की छत को तालु कहते हैं। यह मेहराब (arch) की भाँति होती है और मुखगुहिका को श्वसन मार्ग (Nasal passages) से अलग करता है।
तालु को दो भागों में बाँटा जा सकता है- तालु का अगला कड़ा व अस्थिल भाग होता है। यह मैक्सिला (maxilla) तथा पैलेटाइन (palatine) अस्थियों का बना होता है। इसे कठोर तालु (hard Palate) कहते हैं। इसे आस्तरित करने वाली श्लेष्मिका या म्यूकस झिल्ली पर खुरदरे अनुप्रस्थ मूल होते हैं। इनको तालु बलियाँ कहते हैं। तालु का पिछला भाग केवल संयोजी ऊतक (connective tissue) व पेशियों का बना होता है। इसे कोमल तालु (soft palate) कहते हैं। इसका पिछला भाग एक उभार के रूप में ग्रसनी (pharynx) की गुहा में लटका रहता है। इसको तालु विच्छद्द (velum palatiar uvula) कहते हैं। इसके समीप लसीका ऊतक के बने टॉन्सिल्स (tonsils) होते हैं।
2. जीभ (Tongue) – जीभ पेशीय व लचीली संरचना होती है। यह पीछे की ओर स्नायु के एक कोमल वलन, जिसे फ्रेनुलम (frenulum) कहते हैं, द्वारा मुख गुहिका के फर्श से जुड़ी रहती है। जीभ की म्यूकस झिल्ली श्लेष्म स्रावित करती है। श्लेष्म जीभ को गीली रखती है। जीभ की ऊपरी सतह पर जिह़्ा अंकुर (lingual papillae) तथा स्वाद कलिकाएँ होती हैं।
(a) जिता प्राकुर (Lingual papillae)-सूक्ष्म प्रांकुर है जो जीभ को खुरदरा बनाते हैं, इन पर स्वाद कलिकाएँ होती हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं-
- फिलिफार्म अंकुर (Filiform papillae)-ये छोटे शंक्वाकार अंकुर हैं जो जिह्हा की ऊपरी सतह पर छितरे रहते हैं। ये संख्या में सबसे अधिक होते हैं। इनकी उपस्थिति के कारण जीभ खुरदरी होती है।
- फंजीरार्म अंकुर (Fungiform papillae)-ये गोलाकार उभारों के रूप में जिन्का के छोर पर तथा पार्श्वों में केवल किनारे पर स्थित होते हैं।
- सरकम वैलेट अंकुर (Circumvallate papillae) ये जित्रा के आधार भाग की ऊपरी सतह पर उल्टे ‘V’ के आकार के होते हैं। प्रत्येक अंकुर के आधार के चारों ओर एक खाँच-सी होती है।
(b) स्वाद कलिकाएँ (Taste buds) – मुख्य रूप से जीभ की ऊपरी सतह तथा जिन्दा प्रांकुरों (lingual papillae) पर होती हैं। जीभ के अगले भाग पर मीठे, पिछले भाग पर कडुवे, दोनों ओर किनारों पर खट्टे तथा जीभ के अगले सिरे के पीछे कुछ भाग में नमकीन स्वाद की कलिकाएँ होती हैं। जीथ के कार्य-जीभ भोजन के स्वाद का ज्ञान कराती है। यह भोजन को मुखगुहा में इधर-उधर घुमाती है और इसमें लार को मिलाती है। यह भोजन को दाँतों की ओर धकेलकर उसको चबाने में मदद करती है। यह भोजन को निगलने में सहायता करती है तथा भोजन करने के बाद दाँतों में फँसे भोजन कणों को साफ करती है।
3. दाँत (Teeth) – मुखगुहा (buccal cavity) को बनाने वाले दोनों जबड़ों के किनारों पर दाँतों की एक-एक पंक्ति होती है। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (thecodont) तथा द्विबार दंती (diphyodont) होते हैं, अर्थात् दाँत अस्थियों में धँसे तथा दो बार उगते हैं। दाँत चार प्रकार के होते हैं। अतः ये विषमदन्ती (heterodont) कहलाते हैं। मनुष्य के प्रत्येक जबड़े में 16 तथा कुल 32 दाँत (teeth) होते हैं। प्रत्येक जबड़े को दो भागों दायीं ओर के दाँत तथा बायीं ओर के दाँतों में विभेदित किया जाता है।
प्रत्येक ओर दो कृन्तक (incisors; i) एक रदनक (canine;c) दो अप्र चवर्णक (Premolars; pm) तथा तीन चवर्णक (molars; m) दाँत पाए जाते हैं। कृन्तक (incisors) सबसे आगे तथा चपटे व धारदार होते हैं। ये भोजन को काटते हैं। रदनक नुकीले होते हैं जो कठोर भोजन को पकड़ने तथा चीर-फाड़ करने में मदद करते हैं। अग्र चवर्णक तथा चवर्णक (premolar and molars) चौड़े और मजबूत होते हैं। ये भोजन को चबाने का काम करते हैं। दन्त सूत्र (Dental formula) – दाँतों के विन्यास को प्रदर्शित करने के लिए दन्तसूत्र का प्रयोग किया जाता है। दन्त सूत्र में दिए गए ऊपरी व निचले-जबड़े के दाँतों की संख्या को जोड़कर अगर दो से गुणा कर दिया जाए तो दताँ की कुल संख्या ज्ञात हो जाती है।
i = कृन्तक दन्त (incisors) c = भेदक दन्त या रदनक (canine)
pm = अग्र चवर्णक दन्त (premolars) m = चवर्णक दन्त (molars)
दाँत की संरचना (Structure of tooth)
स्तनधारियों (mammals) के दाँत में तीन भाग पाए जाते हैं-(i) शीर्ष (head), (ii) ग्रीवा (neck) तथा (iii) मूल (root)। शीर्ष (crown) वह भाग है जो हमे दिखाई देता है। इस प्रकार इनैमल या दन्तवल्क (enamal) का कठोर चमकीला व पारदर्शी आवरण पाया जाता है जिसकी उत्पत्ति भूरूण की एक्टोडर्म (ectoderm) से होती है। इनैमल (enamal) स्तनधारियों के शरीर का सबसे कठोरतम भाग होता है। म्रीवा (neck) मसूड़े के अन्दर पाया जाने वाला भाग है। मूल (root) जबड़े की अस्थि के गर्त (bone socket) में पाया जाता है।
कृन्तक व रदनक में एक-एक अग्र चवर्णक में 2-3 तथा चवर्णक में 3-4 मूल पायी जाती है। दाँत की आंतरिक संरचना (Internal Structure of Tooth) दाँत में सबसे बाहर की ओर इनैमल (enamel) नामक स्तर पाया जाता है। यह रंगहीन व चमकदार स्तर होता है। इसमें 90-95% अकार्बनिक यौगिक (कैल्शियम फॉस्फेट व कार्बोनेट) व जल की मात्रा केवल 5-6% होती है। यह स्तर प्रायः शीर्ष तक ही सीमित रहता है।
दाँत को बनाने वाला मुख्य पदार्थ डेन्टीन (dentine) होता है। इसमें सूक्ष्म-नलिकाएँ कैनालीक्युली (canaliculi) होती हैं। केवल शिखर क्राउन (crown) भाग की डैन्टीन की बाह्य सतह पर इनैमल का आवरण होता है। दाँत अंदर से खोखला होता है। इस गुहा को पल्प गुहा (pulp cavity) कहते हैं। यह गुहा चारों ओर से डेन्टीन से घिरी होती है। डेन्टीन की आन्तरिक सतह पर ऑडोन्टोब्लास्ट (odontoblast) आवरण होता है जो ऑडोन्टोब्लास्ट कोशिकाओं का बना होता है।
इसी की क्रियाशीलता से दन्त के आकार में वृद्धि होती है। प्रायः एक निश्चित आयु के पश्चात् यह निक्किय होकर दाँत के विकास को रोक देता है। हाथी में ऊपरी कृन्तक (incisor) जीवनभर वृद्धि करते रहते हैं जो गजदन्त (tusk of elephant) कहलाते हैं। ऑडोन्टोब्लास्ट स्तर के अन्दर की ओर पल्प गुहा में रक्त वाहिनियाँ, तन्त्रिका तन्तु व संयोजी ऊतक का बना तरल द्रव्य भरा होता है। इसके आधार भाग में एक छिद्र पाया जाता है। इस छिद्र के द्वारा दन्त को रक्त व तन्त्रिकीय संवहन दिया जाता है।
3. ग्रसनी (Pharynx) – मुखगुहा पीछे की ओर एक कीपाकार गुहा में खुलती है, जिसे ग्रसनी (pharynx) कहते हैं। यह लगभग 12.5 सेमी लम्बी नली है, जो तीन भागों में बंटी होती है-
(1) नासोफैरिंक्स (Nasopharynx) – यह तालू (palate) के ऊपर का चौड़ा और कोमल भाग है। इसमें एक जोड़ी अन्त: नासाछिद्र (nostril) तथा एक जोड़ी यूस्टेकियन नलिका (eustachian tube) के छिद्र खुलते हैं। अन्त: नासाछिद्र का श्वसन से तथा यूस्टेकियन छिद्र का कर्णगुहा से सम्बन्ध होता है।
(2) ओरोफरिक्स (Oropharynx) – यह कोमल तालू (soft palate) के नीचे स्थित होता है। यह भोजन के संवह में सहायता करता है।
(3) लैरिंगोफरिक्स (Laryngopharynx) – यह कोमल तालू के नीचे तथा कंठ या लैरिंक्स (larynx) के पीछे स्थित होता है। इस भाग में दो मार्गों के छिद्र खुलते हैं। भोजन नली का द्वार (gullet) जो ग्रासनली (oesophagus) में खुलता है तथा श्वासनली का द्वार या घांटी द्वार (glottis) जो श्वसन नली में खुलता है। घांटी द्वार पर छोटी ढक्कन या एपिग्लॉटिस (epiglottis) नामक एक पतला-सा पर्दा लटका रहता है।
कार्य-भोजन तथा वायु क्रमशः म्मसनी (pharynx) में से होकर भोजन नली और श्वास नली में पहुँचते हैं। श्वास लेते समय घांटी ढक्कन (epiglottis) घांटी द्वार से हट जाता है परन्तु भोजन निगलते समय कोमल तालू (soft palate) उपर उठ जाता है तथा घांटी ढक्कन (epiglottis) घांटी द्वार को ढक लेता है जिससे भोजन कंठ (larynx) में नहीं जा पाता है। जब कभी भोजन के कण श्वास नली में चले जाते हैं तो भयंकर खाँसी आती है। इसे फंदा लगना कहते हैं।
4. ग्रासनली (Oesophagus) – म्रासनली लगभग 25 सेमी लम्बी पेशीय नली है। यह ट्रेकिया (trachea) के साथ-साथ गर्दन तथा वक्ष भाग से होती हुई डायाफ्राम (diaphragm) को बेधकर उदर गुहा में प्रवेश करने के बाद आमाशय (stomach) में खुलती है। ग्रासनली की दीवार की म्यूकस या श्लेष्मा प्रन्थियों से स्तावित श्लेष्मा (mucus) इसकी गुहा को तरल व लसदार बनाती है। मासनली की दीवार की क्रमाकुंचन गति द्वारा भोजन आसानी से आमाशय में पहुँच जाता है।
ग्रासनाल की औतिकी (Histology of oesophagus) – उदर गुहा के बाहर होने के कारण ग्रासनली की दीवार में बाहर की ओर सीरोसा (serosa) का स्तर नहीं होता बल्कि इसके स्थान पर ढीले अंतराली तंतुमय संयोजी ऊतक (fibrous connective tissue) का बाह्य स्तर होता है जिसे एडवेन्शिया एक्स्टर्ना (adventia externa) कहते हैं। ग्रासनली में पेशी स्तर सुविकसित होता है। बाहरी अनुलम्ब पेशी स्तर (longitudinal muscle layer) भीतरी वर्तुल पेशी स्तर (circular muscle layer) से अधिक मोटा होता है।
ग्रासनली के अगले भाग में पेशियाँ रेखित, मध्य भाग में रेखित व अरेखित तथा अन्तिम भाग में केवल अरेखित (unstriped) होती हैं। अधः श्लेष्मिका या सब म्यूकोसा (submucosa) मोटी होती है तथा इसमें छोटी श्लेष्म ग्रन्थियाँ (mucus glands) होती हैं। ये श्लेष्म का स्राव करती हैं। श्लेष्म के कारण ग्रासनली में भोजन सुगमता से फिसलता हुआ आमाशय (stomach) में पहुँचता है। अधः श्लेष्मिका या सबम्यूकोसा में पाचन ग्रन्थियाँ नहीं होतीं। श्लेष्मिक पेशी स्तर में अरेखित पेशी तन्तु होते हैं। म्यूकोसा स्तर स्तरित शल्की एपिथीलियम (stratified squamous epithelium) का बना होता है।
5. आमाशय (Stomach) – आमाशय डायाफ्राम के नीचे उदर गुहा में बायीं ओर होता है। यह लचीली थैली के समान रचना है। इसकी दीवारें मोटी, पेशीय तथा वलित होती हैं। इन वलनों को रगी (rugae) कहते हैं। आमाशय की दीवार की क्रमाकुंचन गति द्वारा आमाशय में भोजन पिसकर लेई जैसा हो जाता है। आमाशय को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-बायाँ बड़ा पिंडक कार्डियक भाग (cardiac part) दायाँ छोटा पिंडक पाइलोरिक भाग (pyloric part) तथा दोनों के बीच का फंडिक भाग (fundic part)।
प्रासनली (oesophagus) आमाशय के कार्डियक भाग में खुलती है। ग्रासनली के द्वार पर एक पेशीय कपाट होता है जिसे कार्डियक संकोचक (cardiac sphincter) कहते हैं। यह कपाट भोजन को म्रासनली से आमाशय (stomach) में आने तो देता है परन्तु वापस ग्रास नली में नहीं जाने देता है। इसी प्रकार पाइलोरिक भाग के ड्यूओडिनम (duodenum) में खुलने वाले छिद्र पर पाइलोरिक स्फिक्टर (pyloric sphincter) होता है जो आंत्र में आए हुए भोजन को आमाशय में वापस नहीं जाने देता।
प्रश्न 2.
संतुलित आहार से आप क्या समझते हैं ? संतुलित आहार के प्रमुख पोषक तत्व बताइए ।
उत्तर:
संतुलित आहार (Balanced Diet):
वह आहार जिसमें शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अर्थात् शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक पोषक पदार्थ समुचित मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार (balanced diet) कहते हैं। आहार में सभी पोषक पदार्थों का निश्चित अनुपात में होना अवश्यक होता है। हमारे भोजन का सबसे प्राथमिक पोषक कार्बोहाइड्रेट होता है जो ऊर्जा का सबसे प्रमुख ल्रोत है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं किन्तु ग्लूकोज सर्वमान्य ऊर्जा स्रोत है अर्थात् अन्य कार्बोहाइड्रेट्स भी ऊर्जा उत्पादन के समय ग्लूकोज (glucose) में बदल जाते हैं।
वसा में अत्यावश्यक वसीय अम्ल (जैसे-लिनोलिनिक अम्ल, लिनोलिक अम्ल, अरेकिडोनिक अम्ल आदि) होते हैं। यद्यपि वसा भी ऊर्जा स्रोत का कार्य करती हैं परन्तु इनका पचाना कठिन होता है। प्रोटीन्स में आवश्यक अमीनो अम्ल (वैलीन, हिस्टिडीन, आर्जिनीन, ट्रिप्टोफेन, लाइसीन आदि) होते हैं। प्रोटीन्स शरीर के निर्माणी अवयव (building components) होते हैं।
भोजन में रूक्ष रेशों (raugse fibres) का होना भी आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त एक संतुलित आहार में लवण एवं विटामिन्स होना भी आवश्यक होता है। लवण एवं विटामिन्स (salt and vitamins) शरीर में उपापचयी नियन्रक (metabolic regulators) कहलाते हैं। इनकी अनुपस्थिति या कमी से अनेक विकार (disorders) उत्पन्न हो जाते हैं। आयु अवस्था, शारीरिक, आकार, कार्य आदि के अनुसार संतुलित आहार में भी पोषक पदार्थों की मात्रा का अनुपात बदलता रहता है। जिसका विवरण निम्नांकित सारणी में दिया गया है।
खाध्य पदार्थों में उफलब्च ऊर्जा मात्रा-खाध्य पदार्थों में उपस्थित ऊर्जा की मात्रा को किलो कैलोरी (k. cal) में व्यक्त किया जाता है। एक किलो कैलोरी में खाद्य पदार्थ के एक ग्राम अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से मुक्त ऊर्जा को सकल कैलोरी मान (gross calory value) कहते हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों द्वारा हमारे शरीर में मुक्त की गयी ऊर्जा को कार्यिकीय ऊर्जा (functional energy) कहते हैं।
तालिका : आई. सी. एम. आर. द्वारा अनशंसित सन्तुलित आहार (मात्रा प्राम में पकेे)
खाद्य फदार्थ | सकल कैलारी मान | कार्यिकीय कैलोरी मान |
1. कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates) | 4.10 किलोकैलोरी/प्राम | 4.00 किलोकैलोरी/प्राम |
2. वसा (Fat) | 9.45 किलोकैलोरी/ग्राम | 9.00 किलोकैलोरी/म्राम |
3. प्रोटीन (Protein) | 5.11 किलोकैलोरी/म्राम | 4.00 किलोकैलोरी/म्राम। |
संतुलित आहार के प्रमुख पोषक तत्व (Chief Nutrients of Balanced Diet):
विभिन्न विटामिन, उनकी रासायनिक प्रकृति, साधारण नाम, महत्वपूर्ण स्रोत, कार्य, न्यूनता रोग (Various Vitamins, their Chemical Nature, Common Name, Important Sources, Functions and Deficiency Disorders):
पोषक तख्व (Nutrients) | प्रमुख खांध स्वेत (Source) | सामान्य कार्य (Functions) |
कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च, शर्करा, ग्लूकोस, फ्रक्टोज, लैक्टोस। | अन्न, आलू चीनी, दूध, पके फल। | ऊर्जा एवं संचित भोजन ग्लाइकोजन के रूप में। |
वसा (लिपिड) वसा अम्ल। | वनस्पति तेल, घी, दूध, अण्डा, मूँगफली, तिल। | ऊर्जा एवं संचित वसा के रूप में। |
प्रोटीन एवं ऐमीनो अम्ल (आवश्यक ऐमीनो अम्ल)। | दूध, माँस, दालें, अण्डा, सोयाबीन, सेम जन्तु प्रोटीन, सोयाबीन । | वृद्धि एवं मरम्मत व जैव उत्रेरक के रूप में। |
विटामिन A,B,C,D,E | यकृत, अण्डे का पीतक, दूध, सब्चियाँ, अन्न फल। | नियमन एवं सुरक्षा के रूप कार्य। |
खनिज Na,K,Ca,PI,Fe,Cl | सामान्य नमक, दूध, अण्डा, सब्जियाँ, माँस, फल। | नियमन एवं सुरक्षा के कार्य। |
तालिका 16.7. मनुष्य में मुख्य पाचक-विकरों की तालिका (Main Digestive Enzymes in Man):
प्रश्न 3.
मनुष्य में आंत्रीय पाचन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यांत्र या झलियम में पादन (Digestion of Food in Ileum) – इलियम में भोजन प्रवेश करते ही इसकी भित्ति से एन्दीरोकाइनिन (enterokinin) एवं इ्युओक्ईानि (duocrinin) नामक हार्मोंस स्नावित होते हैं जो आन्त्र को आन्न्रीय रस स्रावण करने के लिए उत्तेजित करते हैं। आंग्र स्राव
आंत्र के इलियम (ileum) भाग्ग में भोजन का लगभग पूर्ण पाचन हो जाता है। इस प्रकार काबोहाइड्रेट मोनोसैकेराइड में, प्रोटीन्स अमीनो अम्लों में, वसा वसीय अम्लों एवं ग्लसरॉल में तथा न्यूक्लिक अम्ल नाइड्रोजनी क्षारकों, पेट्टोज शर्करा एवं फॉस्पेट में विषटित हो जाते हैं। मानव में सेलुलोज (cellulose) का पाचन नहीं होता है। परन्तु यह पाचन में रफेज (raughes) का कार्य करके सहायक अवश्य होता है।
मनुष्य में मुख्य पाचक-विकरों की तालिका
(Main Digestive Enzymes in Man)
प्रश्न 4.
मनुष्य में पचे हुए भोजन का अवशोषण कहाँ और क्यों होता है-
उत्तर:
पचित पदार्थों का अवशोषण (Absorption of Digested Materials):
पचित भोज्य कणों का आंत्र की दीवार द्वारा रुधिर केशिकाओं या लसिका वाहनियों (lymph vessels) में पहुँचना अवशोषण कहलाता है। खाद्य पदार्थों का अवशोषण निक्किय एवं सक्रिय दोनों विधियों से होता है। निष्क्रिय अवशोषण में भोजन कणों का गमन अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होता है। इसके द्वारा वसीय अम्ल, वसा में विलेय पदार्थ, एक ग्लिसराइड व कोलेस्ट्रॉल (cholestrol) का अवशोषण होता है। जल तथा इसमें घुले लवणों का अवशोषण सामान्य परासरण विधि द्वारा हो जाता है।
सक्रिय अवशोषण के लिए ATP की ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसमें सान्द्रता प्रवणता के विरुद्ध अवशोषण होता है। जैसे अमीनो अम्ल एवं कुछ आयन्स का अवशोषण। पाचन क्रिया के पूर्ण होने पर भोजन अपनी सरल घटक इकाइयों में टूट जाता है। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, ऐल्कोहॉल, जल, विटामिन्स आदि का अवशोषण सामान्य रुधर काशकाओं द्वारा होता है। जबकि वसा का अवशोषण इलियम रसांकुरों (ileumvilli) में उपस्थित विशिष्ट लसीका वाहनियाँ लैक्टियल (lacteal) द्वारा होता है।
मुखगुहा (buccal cavity) एवं ग्रासनाल में अवशोषण की क्रिया नहीं होती है तथा आमाशय में केवल सम्पूर्ण एल्कोहल तथा कुछ मात्रा में लवणों का होता है। सर्वाधिक अवशोषण इलियम भाग में होता है क्योंकि इसकी श्लेष्मिका स्तर में ये उपस्थित रसांकुर (villi) इसका सतह क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं।
(i) ग्लूकोज एवं एमीनो अम्ल का अवशोषण ग्लूकोज एवं अमीनो अम्ल का अवशोषण सक्रिय अभिगमन द्वारा रुधिर में होता है। इसके लिए ऊर्जा सोडियम सह अभिगमन द्वारा प्राप्त होती है। इसमें सर्वप्रथम आंत्र की एपीथिलयम से Na+ सक्रिय अभिगमन द्वारा आन्त्र गुहा में आ जाते हैं। इसके लिए ATP की ऊर्जा प्रयुक्त होती है।
Na+ के बाहर आने से आंत्र उपकला में इनकी कमी होने लगती है। Na+ आयन सरल विसरण द्वारा उपकला में प्रवेश कर सकते हैं। परन्तु इस क्रिया में एक वाहक प्रोटीन (carrier protein) की आवश्यकता होती है। जब यह प्रोटीन Na+ व ग्लूकोज या एमीनो अम्ल से जुड़ जाता है तो सोडियम की विद्युत रासायनिक प्रवणता (electro-chemical gradient) के कारण सोडियम के साथ-साथ पोषक पदार्थ ग्लूकोज या एमीनो अम्ल आंत्र उपकला में प्रवेश कर जाते हैं इसे सोडियम सह अभिगमन कहते हैं।
(ii) वसा का अवशोषण-वसा का अवशोषण वसीय अम्ल, मोनोग्लिसरॉइड या कोलेस्ट्रॉल के रुप में आन्त्र विलाई में पायी जाने वाली विशिष्ट लसिका वाहिनी लैक्टियल (lacteal) द्वारा होता है। इसमें पित्त (bile) में पाए जाने वाले पित्त लवणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सर्वप्रथम संचित वसा अम्ल के अणुओं को पित्त लवण घेरकर गोल या बेलनाकार सूक्ष्म जटिल रचना बनाते हैं। जिसे मिसेल (micelles) कहते हैं। ये काइम (chyme) में विलेय होती हैं। प्रत्येक मिसेल के केन्द्र में वसा एवं परिधि पर पित्त लवण पाए जाते हैं। जब ये मिसेल सूक्ष्मांकुरों (microvilli) के सम्पर्क में आती हैं तो वसा उपकला कोशिका की झिल्ली को विसरित (diffuse) होकर अन्दर प्रवेश कर जाती है।
पित्त लवण पुन: काइम (chyme) में आकर इस क्रिया को पुनः आरम्भ कर देते हैं। कोशिका में वे त्वचा अम्ल SER प्रवेश कर नए ट्राइग्लसिराइड (triglyceride) बनाते हैं। ये प्रोटीन द्वारा घेर लिए जाते हैं और ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) बनाते हैं। ग्लाइकोप्रोटीन से बनी गोलियों को काइलोमाइक्रोन (chylomicron) कहते हैं।
ये एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से बाहर निकलकर लसिका कोशिका में चली जाती है और लसीका वन्त इन्हें शिरा द्वारा रुधिर प्लाज्मा में पहुँचा देता है। जहाँ लाइपेज विकर वसा (lipase enzyme) को वसा अम्लों व मोनोग्लिसराइड में तोड़ देता है। विटामिन्स तथा लवणों का अवशोषण निक्रिय एवं सक्रिय दोनों विधियों द्वारा होता है। जल का अवशोषण केवल विसरण विधि द्वारा होता है। बड़ी आँत में जल व विटामिन K का अवशोषण होता है।
आहारनाल के विभिन्न भागों में अवशोषण:
- मुख में अवशोषण जिन्हा (tongue) की निचली सतह की म्यूकोसा कुछ औषधियों का अवशोषण करती है।
- आमाशय में अवशोषण-जल, मोनोसैकराइड व एल्कोहल का अवशोषण आमाशय (stomach) में होता है।
- छोटी आँत में अवशोषण-यहाँ सर्वाधिक पोषकों का अवशोषण होता है। क्योंकि यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते भोजन का पाचन (digestion) पूर्ण हो जाता है। ग्लूकोज, फक्टोज,
प्रश्न 5.
मनुष्य की आहारनाल में मण्ड प्रोटीन तथा वसा का पाचन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
संतुलित आहार (Balanced Diet):
वह आहार जिसमें शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अर्थात् शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक पोषक पदार्थ समुचित मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार (balanced diet) कहते हैं। आहार में सभी पोषक पदार्थों का निश्चित अनुपात में होना अवश्यक होता है। हमारे भोजन का सबसे प्राथमिक पोषक कार्बोहाइड्रेट होता है जो ऊर्जा का सबसे प्रमुख ल्रोत है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं किन्तु ग्लूकोज सर्वमान्य ऊर्जा स्रोत है अर्थात् अन्य कार्बोहाइड्रेट्स भी ऊर्जा उत्पादन के समय ग्लूकोज (glucose) में बदल जाते हैं।
वसा में अत्यावश्यक वसीय अम्ल (जैसे-लिनोलिनिक अम्ल, लिनोलिक अम्ल, अरेकिडोनिक अम्ल आदि) होते हैं। यद्यपि वसा भी ऊर्जा स्रोत का कार्य करती हैं परन्तु इनका पचाना कठिन होता है। प्रोटीन्स में आवश्यक अमीनो अम्ल (वैलीन, हिस्टिडीन, आर्जिनीन, ट्रिप्टोफेन, लाइसीन आदि) होते हैं। प्रोटीन्स शरीर के निर्माणी अवयव (building components) होते हैं।
भोजन में रूक्ष रेशों (raugse fibres) का होना भी आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त एक संतुलित आहार में लवण एवं विटामिन्स होना भी आवश्यक होता है। लवण एवं विटामिन्स (salt and vitamins) शरीर में उपापचयी नियन्रक (metabolic regulators) कहलाते हैं। इनकी अनुपस्थिति या कमी से अनेक विकार (disorders) उत्पन्न हो जाते हैं। आयु अवस्था, शारीरिक, आकार, कार्य आदि के अनुसार संतुलित आहार में भी पोषक पदार्थों की मात्रा का अनुपात बदलता रहता है। जिसका विवरण निम्नांकित सारणी में दिया गया है।
खाध्य पदार्थों में उफलब्च ऊर्जा मात्रा-खाध्य पदार्थों में उपस्थित ऊर्जा की मात्रा को किलो कैलोरी (k. cal) में व्यक्त किया जाता है। एक किलो कैलोरी में खाद्य पदार्थ के एक ग्राम अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से मुक्त ऊर्जा को सकल कैलोरी मान (gross calory value) कहते हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों द्वारा हमारे शरीर में मुक्त की गयी ऊर्जा को कार्यिकीय ऊर्जा (functional energy) कहते हैं।
तालिका : आई. सी. एम. आर. द्वारा अनशंसित सन्तुलित आहार (मात्रा प्राम में पकेे)
खाद्य फदार्थ | सकल कैलारी मान | कार्यिकीय कैलोरी मान |
1. कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates) | 4.10 किलोकैलोरी/प्राम | 4.00 किलोकैलोरी/प्राम |
2. वसा (Fat) | 9.45 किलोकैलोरी/ग्राम | 9.00 किलोकैलोरी/म्राम |
3. प्रोटीन (Protein) | 5.11 किलोकैलोरी/म्राम | 4.00 किलोकैलोरी/म्राम। |
संतुलित आहार के प्रमुख पोषक तत्व (Chief Nutrients of Balanced Diet)
विभिन्न विटामिन, उनकी रासायनिक प्रकृति, साधारण नाम, महत्वपूर्ण स्रोत, कार्य, न्यूनता रोग (Various Vitamins, their Chemical Nature, Common Name, Important Sources, Functions and Deficiency Disorders)
पोषक तख्व (Nutrients) | प्रमुख खांध स्वेत (Source) | सामान्य कार्य (Functions) |
कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च, शर्करा, ग्लूकोस, फ्रक्टोज, लैक्टोस। | अन्न, आलू चीनी, दूध, पके फल। | ऊर्जा एवं संचित भोजन ग्लाइकोजन के रूप में। |
वसा (लिपिड) वसा अम्ल। | वनस्पति तेल, घी, दूध, अण्डा, मूँगफली, तिल। | ऊर्जा एवं संचित वसा के रूप में। |
प्रोटीन एवं ऐमीनो अम्ल (आवश्यक ऐमीनो अम्ल)। | दूध, माँस, दालें, अण्डा, सोयाबीन, सेम जन्तु प्रोटीन, सोयाबीन । | वृद्धि एवं मरम्मत व जैव उत्रेरक के रूप में। |
विटामिन A,B,C,D,E | यकृत, अण्डे का पीतक, दूध, सब्चियाँ, अन्न फल। | नियमन एवं सुरक्षा के रूप कार्य। |
खनिज Na,K,Ca,PI,Fe,Cl | सामान्य नमक, दूध, अण्डा, सब्जियाँ, माँस, फल। | नियमन एवं सुरक्षा के कार्य। |
मनुष्य में मुख्य पाचक-विकरों की तालिका (Main Digestive Enzymes in Man)
प्रश्न 6.
मनुष्य के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न पाचक एन्जाइमों को तालिकाबद्ध कीजिए। इनके कार्यक्षेत्र भी बताइए।
उत्तर:
स्वांगीकरण (Assimilation):
अवशोषित भोज्य पदार्थों का रुधिर के माध्यम से शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में पहुँचकर जीवद्रव्य का एक भाग बन जाना या ऊर्जा उत्पन्न करना स्वांगीकरण (assimilation) कहलाता है। उत्पन्न ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है।
भोजन के अवयवों का स्वांगीकरण निम्न प्रकार होता है –
(1) कार्बोंाइड्रेट का स्वांगीकरण-यकृत (liver) में पहुँचने के पश्चात्, मोनोसैकेराइइस रुधिर (blood) द्वारा बदय (heart) में और यहाँ से शरीर के विभिन्न भागों में भेज दिए जाते हैं। यहाँ ऊतकों के अन्दर ऑक्सीकरण द्वारा ये ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। अधिक मात्रा में उपस्थित शर्करा (sugar) को यकृत में ग्लाइकोजन में बदलकर संग्मह कर लिया जाता है।
(2) प्रोटीन का स्वांगीकरण-रुधिर द्वारा अमीनो अम्ल शरीर की प्रत्येक कोशिका में पहुँचकर कोशिका एवं उसके अवयवों का निर्माण करते हैं एन्जाइम्स तथा विभिन्न हॉर्मोन्स के निर्माण में भी अमीनो अम्ल भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त अमीनो अम्ल यकृत में डिएमिनेशन (deamination) द्वारा NH उत्पन्न करते हैं जो यूरिया (urea) का निर्माण करती है। यूरिया को मूत्र (urine) के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है।
(3) वसा का स्वांगीकरण-वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर संरचनात्मक विकास के साथ-साथ हार्मोंन्स का निर्माण करते हैं। अतिरिक्त वसा चर्म (skin) के नीचे वसा स्तर (adipose layer) के रूप में संमहित हो जाती हैं और ऊष्मारोधी स्तर (insulating layer) का कार्य करती है। जटिल वसा अम्ल, ट्राईग्लिसराइड्स, फॉस्फोलिपिड व कॉलेस्टेरॉल प्रोटीन के खोल में बन्द कर काइलोमाइक्रॉन (chylomicron) नामक वसा गोलिका (fat globule) में बदलकर लसिका में छोड़ दिये जाते हैं। जहाँ से केन्द्रीय लसिका वाहिनी (central lymph vessel) इन्हें रक्त में छोड़ देती है।