Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 7 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes.
Haryana Board 10th Class Social Science Notes History Chapter 7 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes HBSE 10th Class
1. शुरूआती छपी किताबें
→ आरम्भ में छपाई का काम केवल जापान, कोरिया तथा चीन में ही होता था। चीन में पुस्तकें किनारों से मोड़कर बनाई जाती थीं जिसे एकॉर्डियन कहा जाता था।
→ यहाँ आरम्भ से नौकरशाही थी जिसका परीक्षाओं के लिए चीन में पुस्तकें छापी जाती थी। 17वीं सदी तक तकनीकी विकास के कारण मुद्रण प्रक्रिया चीन मे कुछ परिवार्तित हुई।
→ व्यापारी पुस्तकों से सूचना लेते तो पाठक वर्ग कहानियाँ आदि रुचि से पढ़ता। 19वीं सदी तक मशीनी छपाई का आरंभ हो गया। मध्यकाल में पुस्तकें जापान मे सस्ती थीं।
Chapter 7 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया HBSE 10th Class
2. यूरोप में मुद्रण का आना
→ यूरोप मे चीन बनने वाला कागज 11वीं शताब्दी में पहुँचा। इससे पाण्डुलिपियों का लेखन सम्भव हो पाया माको। पोलो चीन से बुडब्लॉक की संस्कृति लेकर इटली गया।
→ यह तकनीक जल्दी ही सम्पूर्ण यूरोप में फैल गई। इन पुस्तकों को व्यापारी और छात्र पढ़ते थे। यूरोप के पुस्तक विक्रेता इन पुस्तकों का निर्यात करने लगे।
→ पुस्तक विक्रेताओं के यहाँ भी सुलेखक काम करने लगे जो पहल केवल अमीरों के लिए ही काम करते थे। परन्तु पाण्डुलिपियों को लिखने में समय तथा धन अधिक खर्च होता तथा सम्भालना कठिन हो जाता था। 15वीं सदी में धार्मिक चित्रों आदि का मुदण होता था।
→ प्रिटिंग प्रेस मॉडल की इजाद गुटेन्बर्ग ने 1448 में की। उसमें पहली छपी पुस्तक ‘बादबल’ थी। 180 प्रतियाँ तीन वर्ष में छपी।
→ आरम्भ में इस प्रकार की पुस्तके पाण्डुलिपियों के समान ही थीं। 1450-1550 तक यूरोप के अधिकतर देशों में छापेखाने थे। यांत्रिक मुद्रण के कारण मुद्रण क्राति सम्भव हुई।
HBSE 10th Class Chapter 7 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
3. मुद्रण क्रांति और उसका असर
→ यांत्रिक मुद्रण तकनीकी के कारण मुद्रण क्राांति हुई जिसके कारण जीवन में परिवर्तन हुआ। जो लोग पहले केवल पुस्तकें सुना करते थे, जब वे उन्हें स्वयं पढ़ने लगे। अब पुस्तकें अधिक संख्या में छपती थीं।
→ इस कारण वे सस्ती थी। अतः अधिकतर लोग उन्हें खरीदने में सक्षम थे, परंतु केवल पढ़े-लिखे लोग ही पुस्तकें पढ़ पाते थे। साक्षरता डर अत्यन्त कम थीं। ऐसे लोग पुस्तकें सुनकर मनोरंजन प्राप्त करते।
→ फैलाने लगे जो बहस का मुद्दा भी बन जाते। छपी पुस्तकों के प्रति लोगों में डर होता था कि जनता पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा।
→ धर्म के क्षेत्र में इसी छपाई के द्वारा मार्टिग लूथर 95 स्थापनाएँ छापी। उन्होंने प्रोटेस्टेन्ट धर्म-सुधार का आरम्भ किया। छपे हुए साहित्य के कारण लोग धर्म की व्याख्याओं से परिचित हुए।
4. पढ़ने का जुनून
→ यूरोप में 17वीं तथा 18वीं सदी में 60% से 80% तक साक्षरता दर थी। इस कारण लोगों में पुस्तकें पढ़ने का जुनून उत्पन्न हुआ फेरीवाले गाँव-गाँव जाकर पुस्तकें बेचते.थें जिनमें पंचांग तथा चैपबुक्स प्रमुख थीं।
→ 18वीं सदी से पत्रिकाओं का मुद्रण हुआ जिसमें मनोरंजन भी होता था। अब लोग दार्शनिक और वैज्ञानिक पुस्तकें भी पढ़ने लगे।
→ लोग पुस्तकों को ज्ञान का भण्डार मानने लगे जिसक द्वारा परिवर्तन सम्भव था। मुद्रण संस्कृति के कारण ही फ्रांसीसी क्राति सम्भव हुई, क्योंकि इसके द्वार अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई।
5. उन्नीसवीं सदी
→ 19वीं सदी तक प्रथमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई। 1857 में फ्रांस ने एक प्रेस का आरम्भ किया जो बच्चों की पुस्तकें छापते थें। जल्दी ही महिला लेखिकाएँ और पाठिकाएँ समाज में अहम् हो गई।
→ 17वीं सदी में वे पुस्तकालय उभरे जो किराए पर पुस्तकें देते थे। 18वीं सदी में प्रेस धातु से बनती थी। 19वीं .सदी के अंत तक ऑफसेट प्रिटिंग आरम्भ हो गई फिर धारावाहिकों के रूप में उपन्यासों की पत्रिकाओं में छपने लगीं।
6. भारत का मुद्रण संसार
→ पुराने समय में पुस्तकें भारत में ताड़ के पत्तों या हस्तलिखित रूप में कागज पर लिखी जाती थीं। यह क्रम 19वीं सदी तक चला। प्रिटिंग प्रेस 16वीं सदी में पुर्तगाली गोवा लेकर आए।
→ 1674 तक 50 पुस्तकें कोंकणी एवं कन्नड़ में छपी। पुरानी पुस्तकों के अनुवाद, तमिल पुस्तकें आदि छापी गई। अंग्रेजीपत्रिका का सम्पादन 1780 में जैम्स ऑगस्टर, हिक्की ने आरम्भ किया। इस प्रकार 18वीं सदी के अंत तक पत्र-पत्रिकाएँ तथा अखबार बड़ी संख्या में छपने लगे।
7. धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें।
→ 19वीं सदी के आंभ में धार्मिक बहसें विद्यमान रहती थीं। कुछ समाज में परिवर्तन चाहते थे तो कुछ उसमें सुधार प्रिटिंग के कारण विचारों को दूर-दूर तक पहुँचा पाना संभव था।
→ भारत में सामाजिक बुराइयों का उल्लेख इन पुस्तकों में किया गया। 1810 में रामचरितमानस का प्रकाशन किया गया।
→ 19वीं सदी के मध्य तक लिथोग्राफी संस्करण छपने लगे। धार्मिक पुस्तकें अनेक भाषाओं में छपने लगी। पुस्तकों ने भारत को आपस में जोड़ने का काम भी किया।
8. प्रकाशन के नए रूप
→ यूरोप में उपन्यास नामक साहित्यिक विधा का जन्म हुआ जो कहानियों तथा फैटेसी पर आधारित होती थी। पाठकों ने उपन्यास से एक नए संसार का अनुभव किया 19वीं सदी के अतं तक चित्र आदि भी छपने लगे।
→ इसके अतिरिक्त कैलेण्डर आदि भी छपने लगे। 1870 के दशक से कार्टून भी छपने लगे जो व्यंग्यात्मक होते थे।
→ महिलाओं के जीवन पर भी पुस्तकें लिखी जाने लगी। नारी-शिक्षा को महत्ता दी जाने लगी। परंतु कट्टर परिवारों में औरतों का पढ़ना-लिखना बुरा माना जाता था।
→ जिन औरतों ने पढ़ना-लिखना सीखा, उन्होंने अपनी आप बीती आत्मकथाओं के रूप में लिखी। 20वींसदी में नारी अशिक्षा, विधवाजीवन/विवाह आदि पर पुस्तकें लिखी गई।
→ 19वीं सदी में मद्रासी क्षेत्रों में पुस्तकें सस्ते दामों में चौराहों पर बेची गई जिन्हें गरीब जनता ने खरीदा। सार्वजनिक पुस्तकालय खोले गए। 19वीं सदी में जाति, प्रथा के बारे में काफी कुछ लिखा गया।
9. प्रिंट और प्रतिबन्ध
→ 1820 में सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता में प्रेस की स्वतन्त्रता को नियंत्रित करने हेतु कानून पास किए। समाचार-पत्रों में धीरे-धीरे राष्ट्रवाद के प्रचार छपने लगे। 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू हुआ।
→ इसके द्वारा सरकार पिरोर्ट आदि को सेंसर कर सकती थी। इन सबके होते हुए भी औपनिवेशिक शासन का विरोध तथा राष्ट्रवाद का प्रचार जारी रहा। तिलक ने केसरी नामक अखबार निकाला।