HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes.

Haryana Board 10th Class Social Science Notes History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Class 10 Notes In Hindi

1. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
→ राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के साथ हुई। जैसा कि आपको याद होगा. 1789 में फ़्रांस एक ऐसा राज्य था जिसके संपूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का आधिपत्य था।

→ फ्रांसीसी क्रांति सेजो राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव हुए उनसे प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकल कर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हस्तांतरित हो गई। क्रांति ने घोषणा की कि अब लोगों द्वारा राष्ट्र का गठन होगा और वे ही उसकी नियति तय करेंगे।

→ प्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना पैदा हो सकती थी। पितृभूमि (la patrie) और नागरिक (le citoyen) जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।

→ अतः एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा (the tricolour) चुना गया जिसने पहले के राजध्वज की जगह ले ली। इस्टेट जेनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदल कर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।

→ नयी स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गई, शहीदों का गुणगान हुआ-और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ। एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।

→ आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई। क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।

→ क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ़्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य था कि वह यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराए। दूसरे शब्दों में, फ़्रांस यूरोप के अन्य लोगों को राष्ट्रों में गठित होने में मदद देगा।

→ जब फ्रांस की घटनाओं की ख़बर यूरोप के विभिन्न शहरों में पहुँची तो छात्र तथा शिक्षित मध्य-वर्गों के अन्य सदस्य जैकोबिन क्लबों की स्थापना करने लगे। उनकी गतिविधियों और अभियानों ने उन फ्रेंच सेनाओं के लिए रास्ता तैयार किया जो 1790 के दशक में हॉलैंड, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड और इटली के बड़े इलाके में घुसी।

→ क्रांति कारी युद्धों के शुरू होने के साथ ही फ़्रांसीसी सेनाएँ राष्ट्रवाद के विचार को विदेशों में ले जाने लगीं। नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया वहाँ उसने ऐसे अनेक सुधारों की शुरुआत की जिन्हें फ्रांस में पहले ही आरंभ किया जा चुका था। फ्रांस में राजतंत्र वापस लाकर नेपोलियन ने नि:संदेह वहाँ प्रजातंत्र को नष्ट किया था।

→ मगर प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके। 1804 की नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे।

→ उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया। इस संहिता को फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया। डच गणतंत्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।

→ शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया। यातायात और संचार-व्यवस्थाओं को सुधारा गया। किसानों, कारीगरों, मज़दूरों और नए उद्योगपतियों ने नयी-नयी मिली आज़ादी चखी।

→ उद्योगपतियों और खासतौर पर समान बनाने वाले लघु उत्पादक यह समझने लगे कि एकसमान क़ानून, मानक भार तथा नाप और एक राष्ट्रीय मुद्रा से एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूँजी के आवागमन में सहूलियत होगी।

→ लेकिन जीते हुए इलाकों में स्थानीय लोगों की फ्रांसीसी शासन के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं। शुरुआत में अनेक स्थानों जैसे हॉलैंड और स्विट्ज़रलैंड और साथ ही कई शहरों जैसे-ब्रसेल्स, मेंज, मिलान और वॉरसा में फ्रांसीसी सेनाओं का स्वतंत्रता का तोहफा देने वालों की तरह स्वागत किया गया।

→ मगर यह शुरुआती उत्साह शीघ्र ही दुश्मनी में बदल गया जब यह साफ़ होने लगा कि नयी प्रशासनिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं थीं।

→ बढ़े हुए कर, सेंसरशिप और बाक़ी यूरोप को जीतने के लिए फ्रेंच सेना में जबरन भर्ती से हो रहे नुकसान प्रशासनिक परिवर्तनों से मिले फ़ायदों से कहीं ज्यादा नज़र आने लगे।

HBSE 10th Class History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

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2. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
→ अगर आप मध्य अठारहवीं सदी के यूरोप के नक्शे को देखें तो उसमें वैसे ‘राष्ट्र-राज्य’ नहीं मिलेंगे जैसे कि आज हैं। जिन्हें आज हम जर्मनी, इटली और स्विट्ज़रलैंड के रूप में जानते हैं वे तब राजशाहियों, डचियों (duchies) और कैंटनों (cantons) में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे।

→ पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतंत्रों के अधीन थे और इन इलाकों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एकसामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे। अकसर वे अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे और विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे।

→ उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रिया-हंगरी पर शासन करने वाला हैब्सबर्ग साम्राज्य कई अलग-अलग क्षेत्रों और जनसमूहों को जोड़ कर बना था। इसमें ऐल्प्स के टिरॉल, ऑस्ट्रिया और सुडेटेनलैंड जैसे इलाकों के साथ-साथ बोहेमिया भी शामिल था जहाँ के कुलीन वर्ग में जर्मन भाषा बोलने वाले ज़्यादा थे। हैब्सबर्ग साम्राज्य में लॉम्बार्डी और वेनेशिया जैसे इतालवी-भाषी – प्रांत भी शामिल थे।

→ सामाजिक और राजनीतिक रूप से ज़मीन का मालिक कुलीन वर्ग यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग था। इस वर्ग के सदस्य एक साझा जीवन शैली से बँधे हुए थे जो क्षेत्रीय विभाजनों के आर-पार व्याप्त थी। वे ग्रामीण इलाकों में जायदाद और शहरी-हवेलियों के मालिक थे।

→ राजनीतिक कार्यों के लिए तथा उच्च वर्गों के बीच वे फ्रेंच भाषा का प्रयोग करते थे। उनके परिवार अकसर वैवाहिक बंधनों से आपस में जुड़े होते थे। मगर यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग संख्या के लिहाज़ से एक छोटा समूहथा। जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे।

→ पश्चिम में ज्यादातर ज़मीन पर किराएदार और छोटे काश्तकार खेती करते थे जबकि पूर्वी और मध्य यूरोप में भूमि विशाल जागीरों में बँटी थी जिस पर भूदास खेती करते थे।

→ पश्चिमी और मध्य यूरोप के हिस्सों में औद्योगिक उत्पादन और व्यापार में वृद्धि से शहरों का विकास और वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ जिनका अस्तित्व बाज़ार के लिए उत्पादन पर टिका था।

→ इंग्लैंड में औद्योगीकरण अठारहवीं सदी के दूसरे भाग में आरंभ हुआ लेकिन फ़्रांस और जर्मनी के राज्यों के कुछ हिस्सों में यह उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान ही हुआ।

→ यूरोप में उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में राष्ट्रीय एकता से संबंधित विचार उदारवाद से करीब से जुड़े थे। उदारवाद यानी liberalism शब्द लातिन भाषा के मूल liber पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘आज़ाद’।

→ नए मध्य वर्गों के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी। राजनीतिक रूप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो सहमति से बनी हो।

→ फ्रांसीसी क्रांति के बाद से उदारवाद निरंकुश शासक और पादरीवर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था। उन्नीसवीं सदी केउदारवादी निजी संपत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।

Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय History 10th Class

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3. क्रांतियों का युग : 1830-1848
→ जैसे-जैसे रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताकत को और मज़बूत बनाने की कोशिश की, यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़ कर देखा जाने लगा।

→ इटली और जर्मनी के राज्य, ऑटोमन साम्राज्य के सूबे, आयरलैंड और पोलैंड ऐसे ही कुछ क्षेत्र थे। इन क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी-राष्ट्रवादियों ने किया जो शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोग थे। इनमें प्रोफेसर, स्कूली-अध्यापक, क्लर्क और वाणिज्य व्यापार में लगे मध्यवर्गों के लोग शामिल थे।

→ प्रथम विद्रोह फ़्रांस में जुलाई 1830 में हुआ। बूबों राजा, जिन्हें 1815 के बाद हुई रूढ़िवादी प्रतिक्रिया के दौरान सत्ता में बहाल किया गया था, उन्हें अब उदारवादी क्रांतिकारियों ने उखाड़ फेंका। उनकी जगह एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया गया जिसका अध्यक्ष लुई फिलिप था।

→ मैटरनिख ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि ‘जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप की सर्दी-जुकाम हो जाता है।’ जुलाई क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया।

→ एक घटना जिसने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया, वह थी, यूनान का स्वंतत्रता संग्राम। पंद्रहवीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 में आरंभ हो गया।

→ यूनान में राष्ट्रवादियों को निर्वासन में रह रहे यूनानियों के साथं पश्चिमी यूरोप के अनेक लोगों का भी समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति (Hellenism) के प्रति सहानुभूति रखते थे।

→ कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बता कर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया।

→ अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गए जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।

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4. जर्मनी और इटली का निर्माण
जर्मनी-क्या सेना राष्टं की निर्माता हो सकती है?
→ 1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और वंति से – अलगाव होने लगा। राज्य की सना को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए रूढ़िवादियों ने अकसर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया।

→ इसे उस प्रक्रिया में देखा जा सकता है जिससे जर्मनी और इटली एकीछत होकर राष्ट्र-राज्य बने। जैसा आपने देखा है, राष्ट्रवादी भावनाए!

→ मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं और उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़ कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था।

→ मगर राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल राजशाही और फ़ौज की ताक़त ने मिलकर दबा दी। उसके पश्चात प्रशासन ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया।

→ उसका प्रमुख मंत्री, ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशासन की सेना और नौकरशाही की मदद ली। सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और फ़्रांस से तीन युणे में प्रशासन को जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।

→ जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशासन के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।

→ 18 जनवरी 1871 की सुबह बेहद ठंडी थी। जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिमिायों और प्रमुखमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क समेत प्रशा के महन्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक वर्साय के महल के बेहद ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ़ मिरर्स) में हुई।

→ सभा ने प्रशा के काइज़र विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की।

→ जर्मनी में राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया ने प्रशा राज्य की शक्ति के प्रभुत्व को दर्शाता था।

इटली
→ जर्मनी की तरह इटली में भी राजनीतिक विखंडन का एक लंबा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहु-राष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।

→ उन्नीसवीं सदी के समय में इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था जिनमें से केवल एक-सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था।

→ उनरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्गो के अमीन था, इस समय इलाकों पर पोप का शासन था और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बूढे राजाओं के अमीन थे। इतालवी भाषा ने भी साझा रूप हासिल नहीं किया था और अभी तक उसके विविमा क्षेत्रीय और स्थानीय रूप मौजूद थे।

→ 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था।

→ 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से युद्ध के ज़रिये इतालवी राज्यों को जोड़ने की ज़िम्मेदारी सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय पर आ गई।

→ इस क्षेत्र के शासक अभिजातवर्ग की नज़रों में एकीकृत इटली उनके लिए आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रभुत्व की संभावनाएँ उत्पन्न करता था।

→ मंत्री प्रमुख कावूर, जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया, न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था।

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5. राष्ट्र की दृश्य-कल्पना
→ किसी शासक को एक चित्र या मूर्ति के रूप में अभिव्यक्त करना आसान है किंतु एक राष्ट्र को चेहरा कैसे दिया जा सकता है?

→ अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके इस प्रश्न को हल किया। दूसरे शब्दों में, उन्होंने एक देश को कुछ यूँ चित्रित किया जैसे वह कोई व्यक्ति हो। उस समय राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाता था।

→ राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानी नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई।

→ आपको याद होगा कि फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया। इन आदर्शों को विशेष वस्तुओं या प्रतीकों से व्यक्त किया गया था।

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6. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
→ उन्नीसवीं सदी की अंतिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धांत बन गया।

→ इस बीच के दौर में राष्ट्रवादी समूह एक-दूसरे के प्रति अनुदार होते चले गए और लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। साथ ही प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।

→ 1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी। इसमें आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे।

→ क्षेत्र के निवासियों को आमतौर पर स्लाव पुकारा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था।

→ बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफ़ी विस्फोटक हो गई। उन्नीसवीं सदी में

→ ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के जरिए मज़बूत बनना चाहा था किंतु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली। एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं।

→ बाल्कन लोगों ने आज़ादी या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया। उन्होंने इतिहास का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया कि वे कभी स्वतंत्र थे किंतु तत्पश्चात विदेशी शक्तियों ने उन्हें अधीन कर लिया।

→ अतः बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षों को लंबे समय से खोई आजादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा।

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