Class 12

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) और समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) में अग्रलिखित अंतर हैं-

व्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
1. इसमें व्यक्तिगत इकाई के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है; जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म (उत्पादक) आदि।1. इसमें बड़े आर्थिक समूहों का अध्ययन व अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया जाता है; जैसे समग्र माँग, समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय।
2. यह अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की मान्यता पर आधारित है।2. यह अर्थव्यवस्था में संसाधनों के अपूर्ण व अल्प रोज़गार पर आधारित है।
3. इसकी मुख्य समस्या कीमत निर्धारण है, इसलिए इसे ‘कीमत सिद्धांत’ भी कहा जाता है।3. इसकी मुख्य समस्या आय व रोज़गार का निर्धारण है। इसलिए इसे ‘आय व रोज़गार का सिद्धांत’ भी कहते हैं।
4. इसका उद्देश्य संसाधनों के सर्वोत्तम आबंटन से होता है।4. इसका उद्देश्य संसाधनों के पूर्ण रोज़गार व विकास से होता है।
5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ की मान्यता के अनुसार सिद्धांत बनाए जाते हैं। अध्ययन को केवल महत्त्वपूर्ण तत्त्वों तक सीमित रखने के कारण इसे आंशिक संतुलन विधि कहा जाता है।5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ जैसी कोई मान्यता तो नहीं है परंतु आर्थिक तत्त्वों के सभी समूहों की परस्पर निर्भरता जानने के कारण इसे सामान्य संतुलन विधि कहा जाता है।
6. इसमें कीमत आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है।6. इसमें आय आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है।

प्रश्न 2.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें आर्थिक क्रियाकलापों से संबंधित निम्नलिखित (विशेषताएँ) लक्षण पाए जाते हैं-

  1. उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है।
  2. बाज़ार में निर्गत को बेचने के लिए ही उत्पादन किया जाता है।
  3. श्रमिकों की सेवाओं का क्रय-विक्रय एक निश्चित कीमत पर होता है, जिसे मज़दूरी की दर कहते हैं।
  4. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण न होकर निजी लाभ होता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित चार प्रमुख क्षेत्रक हैं-
1. पारिवारिक क्षेत्रक-परिवार से अभिप्राय एकल व्यक्तिगत उपभोक्ता अथवा कई व्यक्तियों के समूह से है जो अपने उपभोग संबंधित निर्णय अकेले अथवा संयुक्त रूप से लेते हैं। परिवार बचत भी करते हैं और सरकार को कर (Tax) का भुगतान भी करते हैं।

2. व्यापारिक क्षेत्रक-व्यापारिक क्षेत्र से अभिप्राय उत्पादन इकाइयों अथवा फर्मों से है। किसी फर्म के कारोबार के संचालन का दायित्व उद्यमियों पर होता है। उद्यमी ही श्रम, भूमि तथा पूँजी जैसे उत्पादन कारकों को नियोजित कर उत्पादन प्रक्रिया का संचालन करता है। उनका उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर (जिसे निर्गत कहा जाता है) बाज़ार में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बेचना है। इस प्रक्रिया में उसे जोखिम एवं अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।

3. सरकार-अर्थव्यवस्था में सरकार भी अनेक उत्पादन कार्य करती है। कर लगाने और सार्वजनिक आधारभूत संरचना के निर्माण पर व्यय करने के अतिरिक्त स्कूल, कॉलेज भी चलाए जाते हैं और स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

4. बाह्य क्षेत्रक-विश्व के अन्य देशों से व्यापार करना, आयात-निर्यात करना अथवा विभिन्न देशों के बीच पूँजी प्रवाह होना।

प्रश्न 4.
1929 की महामंदी का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों (Classical Economists) की विचारधारा प्रचलित व मान्य थी कि “पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।” परंत 1929-33 की Depression) की घटना ने परंपरावादी मान्यता को चूर-चूर कर दिया। मंदी के कारण अमरीका औ आय व रोज़गार में भारी गिरावट आई। इसका प्रभाव दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ा। बाज़ार में वस्तुओं की माँग कम थी और कई कारखाने बेकार पड़े थे। श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया था। संयुक्त राज्य अमरीका में 1929 से 1933 तक बेरोजगारी की दर 3 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई थीं। इस अवधि के दौरान अमरीका में समस्त उत्पादन में 33 प्रतिशत की गिरावट आई।

परंपरावादी अर्थशास्त्री उत्पादन, आय व रोज़गार में आई इस भारी गिरावट का जवाब नहीं दे सकें। मंदी की ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया। तभी सन् 1936 ई० में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केञ्ज ने अपनी पुस्तक ‘रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत’ (The General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने परंपरावादी सिद्धांत की आलोचना करते हुए एक नया वैकल्पिक सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसे केज का सिद्धांत या समष्टि सिद्धांत कहते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद आर्थिक चिंतन में भारी क्रांति आई, जिसे केजीयन (Keynesian) क्रांति कहते हैं। केज के सिद्धांत को आधुनिक समष्टि स्तर पर चिंतन का आरंभिक बिंदु माना जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय HBSE 12th Class Economics Notes

→ समष्टि अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसमें हम समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, कुल आय अथवा राष्ट्रीय आय, कुल रोज़गार, सामान्य कीमत स्तर आदि तत्त्वों का अध्ययन करते हैं।

→ समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव (प्रादुर्भाव)-समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव 1930 के दशक में 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी के कटु अनुभव के उपरांत हुआ जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति को स्वतः ही बनाए रखने के लिए परंपरावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाए गए समाधान असफल सिद्ध हुए। केजीयन विचारधारा का विकास भी इसी समय हुआ।

→ समष्टिगत आर्थिक चर-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बड़े भागों और औसतों का अध्ययन किया जाता है; जैसे समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, सामान्य कीमत स्तर, सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा आय।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

→ व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र परस्पर प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक हैं व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे के प्रतियोगी न होकर पूरक हैं। एक का ज्ञान दूसरे के अध्ययन के लिए जरूरी है। अनेक बार व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण के लिए समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत आय कुल राष्ट्रीय आय पर निर्भर करती है, जबकि कुल राष्ट्रीय आय व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों और उद्योगों की आय का जोड़ होती है।

→ समष्टि आर्थिक विरोधाभास-समष्टि आर्थिक विरोधाभास से अभिप्राय है कि जो बात व्यक्तिगत स्तर पर सही है, आवश्यक नहीं है कि वह समष्टिगत स्तर पर भी सही हो।

→ केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा पूर्ण रोज़गार की स्थिति को अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति नहीं मानती। इसके अनुसार बेरोज़गारी और मंदी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

→ परंपरावादी विचारधारा-परंपरावादी विचारधारा स्वतंत्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति को एक सामान्य स्थिति मानती है, जोकि अर्थव्यवस्था में स्वचालित (स्वयंमेव) सामंजस्य के परिणामस्वरूप स्वतः ही बनी रहती है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. संतुलन कीमत उस कीमत को कहते हैं जिस पर-
(A) क्रेता वस्तु को खरीदने के लिए तैयार है
(B) विक्रेता वस्तु को बेचने के लिए तैयार है
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है
(D) वस्तु की कीमत वस्तु की उपयोगिता के बराबर होती है
उत्तर:
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है

2. पूर्ति के स्थिर रहने तथा माँग के कम होने पर कीमत
(A) बढ़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) कम होती है

3. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत-
(A) बड़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(A) बढ़ती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

4. जब माँग और पूर्ति एक साथ बढ़ती है परंतु माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में होने वाली वृद्धि से अधिक होती है तो कीमत
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

5. जब माँग और पूर्ति में बराबर वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा-
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

6. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत
(A) बढ़ती है
(B) कम होती है
(C) स्थिर रहती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) स्थिर रहती है

7. जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो तथा माँग में वृद्धि हो तो संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होगा?
(A) समान रहेगी
(B) घटेगी
(C) बढ़ेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

8. पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर माँग में वृद्धि होने से संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) समान रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

9. माँग पूर्णतया बेलोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समान रहेगी

10. माँग पूर्णतया लोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) समान रहेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

11. बाजार कीमत का निर्धारण किया जाता है
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(B) अति-अल्पकाल में

12. संतुलन कीमत से कम, कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है

13. संतुलन कीमत से अधिक, कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है।

14. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कहा जाता है-
(A) समर्थन मूल्य
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत
(C) न्यूनतम निर्धारित कीमत
(D) उचित कीमत
उत्तर:
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत

15. अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का वस्तु की कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है
(B) कीमत और विनिमय मात्रा समान रहती है
(C) कीमत और विनिमय मात्रा में कमी होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है

16. किसी अव्यवहार्य (Non-viable) उद्योग का पूर्ति वक्र माँग वक्र की तुलना में कहाँ स्थित होता है?
(A) पूर्ति वक्र माँग वक्र के नीचे होता है
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है
(C) पूर्ति वक्र माँग वक्र को प्रतिच्छेदित करता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ति के स्थिर तथा माँग के कम होने पर कीमत …………… होती है। (कम/अधिक)
उत्तर:
कम

2. माँग के …………. होने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है। (स्थिर/परिवर्तित)
उत्तर:
स्थिर

3. जब माँग और पूर्ति में …………. वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा बढ़ती है। (समान/असमान)
उत्तर:
समान

4. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत ………….. रहती है। (परिवर्तित स्थिर)
उत्तर:
स्थिर

5. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे ………….. निर्धारित कीमत कहा जाता है। (न्यूनतम/उच्चतम)
उत्तर:
उच्चतम

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

6. वस्तु की वह मात्रा जिसे संतुलन कीमत पर बेचा और खरीदा जाता है, वह …………. कहलाती है। (संतुलन मात्रा पूर्ति मात्रा)
उत्तर:
संतुलन मात्रा

7. फर्म उस समय संतुलन में होता है, जब उसे अधिकतम ………….. प्राप्त होता होती है। (लाभ/हानि)
उत्तर:
लाभ

8. बिक्री कर लगाना और आर्थिक सहायता देना ………… बाज़ार व्यवस्था के उदाहरण हैं। (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष)
उत्तर:
अप्रत्यक्ष

9. संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से …………… की स्थिति उत्पन्न होती है। (अधिपूर्ति/न्यूनपूर्ति)
उत्तर:
अधिपूर्ति

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. पूर्ण बाज़ार में विक्रेता कीमत-स्वीकारक नहीं होता।
  2. पूर्ण बाज़ार में विक्रय लागतों का महत्त्व होता है।
  3. बाज़ार कीमत वह कीमत है जिसकी बाज़ार में प्रचलित होने की प्रवृत्ति होती है।
  4. समर्थन मूल्य संतुलन कीमत से अधिक होता है।
  5. पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में शुद्ध प्रतियोगिता अधिक वास्तविक होती है।
  6. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तुएँ समरूप होती हैं।
  7. पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत को प्रभावित करती है।
  8. पूर्ण प्रतियोगिता उस समय तक नहीं पाई जाती जब तक बाज़ार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश नहीं होता।
  9. अल्पकाल में वस्तु की कीमत पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  10. सामान्य कीमत का संबंध अल्पकाल से होता है।
  11. पूर्ति तथा स्टॉक में अंतर होता है।
  12. अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का अलग बाज़ार होता है।
  13. एकाधिकार में अन्य बाज़ारों की अपेक्षा कीमत कम व उत्पादन अधिक होता है।
  14. एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न नहीं होती।
  15. द्वि-अधिकार में दो क्रेता होते हैं।
  16. अल्पाधिकार में अनेक विक्रेता होते हैं।
  17. एकाधिकार में एक नई फर्म का बाज़ार में प्रवेश हो सकता है।
  18. यदि किसी वस्तु की माँग बढ़ती है, अन्य बातें समान रहने पर उसकी कीमत कम होती है।
  19. दीर्घकाल में एक वस्तु की कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है।
  20. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. गलत
  8. सही
  9. गलत
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. गलत
  15. गलत
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन से अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति का अभाव हो।

प्रश्न 2.
उन दो कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर संतुलन कीमत निर्भर करती है।
उत्तर:

  • वस्तु की बाज़ार माँग।
  • वस्तु की बाज़ार पूर्ति।

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत के निर्धारण में किस बाज़ार शक्ति, माँग तथा पूर्ति, का अधिक योगदान होता है?
उत्तर:
संतुलन कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति का बराबर योगदान होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ माँग और पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
उपभोग में प्रतिस्थापक (Substitute) वस्तु की कीमत में वृद्धि का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से संतुलन कीमत में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि इस वस्तु की माँग बढ़ जाएगी।

प्रश्न 5.
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा दोनों में वृद्धि होगी।

प्रश्न 6.
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा में कमी आती है।

प्रश्न 7.
कीमत नियंत्रण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण से अभिप्राय यह है कि सरकार ने कुछ वस्तुओं की कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारित कर दी है।

प्रश्न 8.
कीमत नियंत्रण का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना होता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रित कीमत और संतुलन कीमत में क्या संबंध है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हित की रक्षा के लिए सरकार नियंत्रित कीमत को संतुलन कीमत से कम रखती है।

प्रश्न 10.
नियंत्रित कीमत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार द्वारा वस्तु की संतुलन कीमत से कम निर्धारित कीमत, नियंत्रित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 11.
सरकार किन दो रूपों में कीमत नियंत्रित करती है?
उत्तर:
सरकार अधिकतम कीमत तथा न्यूनतम कीमत निर्धारित करके कीमत नियंत्रित करती है।

प्रश्न 12.
उच्चतम कीमत सीमा (Price Ceiling) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कीमत की उच्चतम सीमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
न्यूनतम (समर्थन) कीमत क्या है?
उत्तर:
न्यूनतम (समर्थन) कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जो सरकार द्वारा प्रचलित कीमत से अधिक निर्धारित की जाती है और उस कीमत पर सरकार वस्तुओं का क्रय करती है अर्थात् संतुलन कीमत से अधिक निर्धारित कीमत समर्थन कीमत कहलाती है।

प्रश्न 14.
राशनिंग से आप क्या समझते हैं? उत्तर:राशनिंग का अर्थ एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपभोग या क्रय की उच्चतम सीमा का निर्धारण करना है। प्रश्न 15. ‘कालाबाजारी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कालाबाजारी का अर्थ किसी वस्तु को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना है।

प्रश्न 16.
मज़दूरी दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मज़दूरी दर का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति बराबर हो।

प्रश्न 17.
वस्तु की माँग और श्रम की माँग में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु की माँग उपभोक्ता द्वारा की जाती है और श्रम की माँग उत्पादक द्वारा की जाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 18.
वस्तु के पूर्ति वक्र और श्रम के पूर्ति वक्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रवणता नीचे से ऊपर होती है जबकि श्रम के पूर्ति वक्र की प्रवणता एक सीमा के बाद पीछे की ओर मुड़ी हुई होती है।

प्रश्न 19.
किसी उद्योग के व्यवहार्य (अर्थक्षेम) (Viable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवहार्य या अर्थक्षेम उद्योग वह होता है जिसके माँग वक्र और पूर्ति वक्र उत्पादन के धनात्मक स्तर पर परस्पर काटते हैं।

प्रश्न 20.
‘बाज़ार’ (Market) अवधारणा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जिसमें वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

प्रश्न 21.
बाज़ार व्यवस्था के मुख्य तत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. पदार्थ या सेवा का उपलब्ध होना
  2. क्षेत्र, जहाँ वस्तु का लेन-देन हो
  3. क्रेता व विक्रेता का विद्यमान होना
  4. क्रेताओं व विक्रेताओं में संपर्क होना है। ध्यान रहे क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच संपर्क (प्रतिस्पर्धा) आमने-सामने होने के अतिरिक्त डाक-तार या टेलीफोन से भी हो सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए (क) पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत संप्राप्ति (MR), औसत संप्राप्ति (AR) के बराबर क्यों होते हैं? (ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा X-अक्ष के समानांतर क्यों होते हैं?
उत्तर:
(क) पूर्ण प्रतियोगिता में AR, MR के बराबर (AR=MR) होने का कारण यह है कि उद्योग कीमत निर्धारित करता है और फर्म इसे स्वीकार करती है। स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म जितनी भी इकाइयाँ बेचेगी, उसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से आगम (अर्थात् MR) उस कीमत (अर्थात् AR) के बराबर मिलेगा। फलस्वरूप MR औसत आगम (AR) के बराबर होगा, क्योंकि कीमत और A=R सदा समान होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में MR, AR व कीमत बराबर होते हैं अर्थात् MR = AR = कीमत।

(ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा (वक्र) एक समतल सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) होती है जो X-अक्ष के समानांतर होती है। इसका कारण यह है कि MR और AR बराबर होते हैं। MR,AR के बराबर इसलिए होता है क्योंकि फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर ही वस्तु बेच सकती है। MR,AR और कीमत बराबर होने के फलस्वरूप उनका वक्र एक ही बनता है जो X-अक्ष के समानांतर होता है। चूंकि AR कीमत के बराबर होता है, इसलिए AR वक्र को कीमत रेखा भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों की सहायता से बाज़ार संतुलन का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र भी बनाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा नहीं, बल्कि उद्योग द्वारा वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति की शक्तियों द्वारा किया जाता है। बाज़ार में एक वस्तु की कीमत सामान्यतः वस्तु की माँग और पूर्ति शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। जिस कीमत पर वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति के बराबर होती है, वह बाज़ार कीमत निर्धारित होती है। इसे हम सारणी व रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं

गेहूँ की कीमत (रुपए)गेहूँ की माँग (क्विंटल)गेहूँ की पूर्ति (क्विंटल)
9008025
10007040
11005050
12003070
13001590

उपर्युक्त सारणी में गेहूँ की बाज़ार कीमत 1100 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि रेखाचित्र में बाज़ार की कीमत OP है। क्योंकि इस कीमत पर वस्तु की माँग (50 क्विंटल) वस्तु की बाज़ार पूर्ति (50 क्विंटल) बराबर है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत या साम्य कीमत (Equilibrium Price) तथा बाज़ार संतुलन (Market Equilibrium) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संतुलन कीमत-वह कीमत जिस पर वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती है, संतुलन कीमत कहलाती है और माँग व पूर्ति की मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। जिस निश्चित बिंदु पर माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं उसे संतुलन बिंदु कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
बाज़ार संतुलन-बाज़ार संतुलन तब होता है जब वस्तु की माँगी गई मात्रा और पूर्ति की मात्रा बराबर होती है। ऐसी अवस्था में न तो आधिक्य माँग होती है और न ही आधिक्य पूर्ति होती है अर्थात् बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति में पूर्ण संतुलन होता है। बाजार कीमत वह कीमत है जिस पर बाज़ार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। यह संतुलन कीमत से कम या अधिक हो सकती है।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा
(i) जब पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ उसी अनुपात में माँग में भी वृद्धि हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं। (ii) जब माँग पूर्णतया लोचदार हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2

प्रश्न 5.
रेखाचित्र की सहायता से संतुलन कीमत और मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाइए जब-
(i) माँग पूर्णतया लोचदार है और पर्ति घटती है।
(ii) पूर्ति पूर्णतया लोचदार है और माँग बढ़ती है।
उत्तर:
(i) जब माँग पूर्णतया लोचदार है और पूर्ति घटती है तो कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अग्रांकित रेखाचित्र में पूर्ति घटने के पश्चात् भी कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है लेकिन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती हैं। जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) यदि पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार है और माँग बढ़ती है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होती है लेकिन वस्तु की मात्रा पूर्ववत् रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र में माँग बढ़ने पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है लेकिन वस्तु की मात्रा OQ ही बनी रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 3

प्रश्न 6.
बाज़ार कीमत और विनिमय मात्रा पर क्या प्रभाव होगा, जब (i) माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए। (i) माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए। (ii) माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो जाए।
उत्तर:
(i) जब माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए तो बाज़ार कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा भी बढ़ जाएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो गई है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) जब माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए तो संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विनिमय मात्रा में वृद्धि होगी जैसाकि रेखाचित्र (ii) में कीमत OP रहती है लेकिन विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(iii) जब माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो तो बाज़ार कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन विनिमय मात्रा में कमी आएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP ही रहेगी परंतु विनिमय मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाएगी। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (iii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की संतुलन कीमत व मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के दायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि से उस वस्तु का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत में कमी और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती है। जब पूर्ति वक्र खिसकर S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP1 है जो पूर्व संतुलन कीमत से कम है लेकिन संतुलन मात्रा OQ1 है जो पूर्व संतुलन मात्रा से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 8.
जब किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी होती है जो उस वस्तु की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? एक रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के माँग वक्र के बायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी से उस वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है जिससे उस वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा भी कम हो जाती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में DD वस्तु का प्रारंभिक मॉग वक्र है जो वस्तु के पूर्ति वक्र SS को E बिंदु परं काटता है जिसके फलस्वरूप OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग वक्र के दायीं ओर खिसकने से माँग वक्र D1D1 हो जाता है जो पूर्व पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत OP से कम होकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 9.
एक वस्तु की पूर्ति में कमी का उसकी संतुलन कीमत और मात्रा वस्तु की मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
एक वस्तु की पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने का अर्थ है कि वस्तु की पूर्ति में कमी हुई है। एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उस वस्तु की संतुलन कीमत और मात्रा पर जो प्रभाव पड़ेगा उसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7a
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है जो माँग वक्र DD को बिंदु E पर काटता है जिससे OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति वक्र SS के बाईं ओर खिसकने से पूर्ति वक्र SS1 हो जाता है जो माँग वक्र को E1 पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार एक वस्तु की पूर्ति में कमी से संतुलन कीमत में वृद्धि होगी और संतुलन मात्रा में कमी होगी।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार का अर्थ-पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें असंख्य क्रेता और विक्रेता स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हैं और वस्तु एक-समान कीमत पर बाज़ार में बिकती है। वस्तुएँ समरूप (Homogeneous) होती हैं। उद्योग वस्तु की कीमत निर्धारित (Price Maker) करता है और फर्म कीमत स्वीकार (Price taker) करती है। क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान होता है और बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश या बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं व विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता दोनों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी अकेली फर्म या व्यक्ति अपने व्यक्तिगत व्यवहार से प्रचलित कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विक्रेता और क्रेता बाज़ार में वस्तु की कुल पूर्ति/माँग का बहुत थोड़ा अंश बेचता या खरीदता है।

2. समरूप वस्तुएँ विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ, गुण, रंग, रूप तथा आकार में समरूप होती हैं। वस्तु (उत्पाद) एक समान या समरूप होने के कारण कोई भी विक्रेता किसी वस्तु की कीमत अधिक वसूल नहीं कर सकता अन्यथा वह ग्राहक खो बैठेगा। इसी प्रकार कोई क्रेता किसी विशेष फर्म द्वारा बनाई वस्तु को प्राथमिकता नहीं दे सकता, क्योंकि वस्तु की इकाइयाँ हर दृष्टि से एक-समान होती हैं और उनमें भेद करना कठिन होता है।

3. निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन-पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को उद्योग में आने और छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। यदि फर्म को किसी उद्योग के अंतर्गत असामान्य लाभ दिखाई देता है और फर्म उद्योग में आना चाहे तो आ सकती है और यदि हानि दिखाई दे तो फर्म उद्योग को छोड़कर जा सकती है। इसलिए सब फर्मे केवल सामान्य लाभ कमा सकती हैं।

4. परिवहन लागत का अभाव कीमत की समानता के लिए जरूरी है कि परिवहन लागत स्थिर होनी चाहिए। कीमत की समानता के लिए यह मान लिया जाता है कि वस्तु को लाने व ले जाने में परिवहन व्यय नहीं होता। गुण, आकार तथा रूप में वस्तु एक जैसी होने के कारण इसके विज्ञापन पर विक्रेता को व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।

5. पूर्ण ज्ञान-क्रेताओं और विक्रेताओं को कीमत संबंधी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। क्रेताओं को मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु की क्या कीमत है और विक्रेताओं को भी मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु किस कीमत पर बिक रही है। इसलिए यदि दोनों को कीमत की पूर्ण जानकारी होगी तो विक्रेता क्रेता से वस्तु की अधिक कीमत नहीं ले सकेगा।

6. पूर्ण गतिशीलता यहाँ उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ण गतिशीलता होती है अर्थात् वे मनपसंद धंधे में आ-जा सकते हैं। इसी प्रकार वस्तुओं को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब अर्थव्यवस्था में साधनों और वस्तुओं की पूरी गतिशीलता होगी तो बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत होगी।

7. समान कीमत–पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में वस्तु की कीमत समान होगी, क्योंकि कीमत उद्योग की समस्त माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है जिसे प्रत्येक फर्म स्वीकार करती है।

8. माँग (AR) वक्र माँग वक्र पूर्ण लोचशील और X-अक्ष के समानांतर होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत निर्धारित करता (Price Maker) है और फर्म कीमत स्वीकार करती (Price Taker) है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत-निर्धारक व फर्म कीमत-स्वीकारक होती है-
1. उद्योग और फर्म में अंतर-मोटे रूप में किसी वस्तु विशेष के क्रेताओं और विक्रेताओं के समूह को उस वस्तु का उद्योग कहते हैं और उद्योग में व्यक्तिगत उत्पादन इकाई को फर्म कहते हैं। परंतु यहाँ उद्योग का अभिप्राय उन फर्मों के समूह से है जो एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं; जैसे जूतों के सभी उत्पादकों के समूह को जूता उद्योग (Shoe Industry) और कपड़ा बनाने वाली सभी मिलों के समूह को कपड़ा उद्योग कहेंगे।

2. कीमत निर्धारण में उद्योग व फर्म की भूमिका पूर्ण प्रतियोगिता में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण समस्त उद्योग की माँग व पूर्ति द्वारा होता है। यहाँ वस्तु की कीमत का निर्धारण किसी एक उत्पादक (या फम) द्वारा नहीं होता, बल्कि उस उद्योग की सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति द्वारा होता है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत प्रत्येक फर्म को स्वीकार करनी पड़ती है। फर्म को केवल इतनी छूट है कि इस दी हुई कीमत पर जितना चाहे बेच सकती है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को कीमत-निर्धारक और फर्म को कीमत-स्वीकारक कहा जाता है।

3. कीमत का निर्धारण–पूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग की कुल माँग व कुल पूर्ति के संतुलन पर होता है। इसे उद्योग की संतुलन कीमत भी कहते हैं। इसे अग्रांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7
दी गई तालिका व रेखाचित्र से स्पष्ट है कि इस उद्योग में माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत 6 रुपए प्रति इकाई होगी, क्योंकि इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर हैं अर्थात् 60-60 इकाइयाँ हैं। उद्योग द्वारा निर्धारित इस कीमत को प्रत्येक फर्म स्वीकार करेगी। यदि कोई फर्म इस कीमत से अधिक लेने का प्रयत्न करेगी तो उसकी वस्तु कोई नहीं खरीदेगा। यदि वह कम लेगी तो हानि सहन करेगी। अतः कीमत 6 रुपए ही रहेगी चाहे कोई फर्म इस कीमत पर कम बेचे या अधिक बेचे, उद्योग में रहे या उद्योग छोड़कर चली जाए।

प्रश्न 3.
एक वस्तु की एक दी हुई कीमत पर ‘माँग आधिक्य’ है। क्या यह कीमत एक संतुलन कीमत है? यदि नहीं, तो संतुलन कीमत कैसे स्थापित होगी? (रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य का अर्थ यह है कि वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति से अधिक है। ऐसी कीमत संतुलन कीमत नहीं हो सकती। संतुलन कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जिस पर वस्तु की माँग उसकी पूर्ति के बराबर होती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 8
यदि एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य है तो संतुलन कीमत पर निम्नलिखित विकल्पों द्वारा पहुँचा जा सकता है-
(i) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उत्पादकों को माँग आधिक्य को दूर करने के लिए उसी कीमत पर अधिक पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र (i) में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप AB (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए पूर्ति वक्र को SS से S1S1 तक खिसकाना होगा अर्थात् पूर्ति में वृद्धि करनी होगी ताकि OP कीमत बन जाए। B बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ1 होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 9

(ii) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उपभोक्ताओं को माँग में कमी करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा, जिससे माँग वक्र बाईं ओर खिसक आए। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप EE1 (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए माँग वक्र को DD से D1D1 तक खिसकाना होगा अर्थात् माँग में कमी करनी होगी ताकि OP कीमत पर ही संतुलन कीमत बन जाए। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ होगी।

प्रश्न 4.
एक वस्तु की माँग में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग में वृद्धि से माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 10
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 5.
एक वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति में वृद्धि से पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत गिर जाती है और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 11

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक पूर्ति SS है जो माँग वक्र DD को E बिंद पर काटता है। यहाँ संतलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब पूर्ति वक्र SS से बढ़कर S1S1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 6.
एक वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति दोनों में एक साथ वृद्धि से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं? समझाइए।
उत्तर:
माँग और पूर्ति में एक साथ वृद्धि का प्रभाव हम जानते हैं कि माँग और पूर्ति में वृद्धि होने के कारण वस्तु की संतुलित मात्रा में अवश्य वृद्धि होती है। परंतु कीमत में कोई परिवर्तन होगा या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि माँग व पूर्ति में बराबर की वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में अधिक वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में कम वृद्धि होती है। अतः पूर्ति में एक साथ परिवर्तन से संतुलन कीमत पर प्रभाव के संबंध में तीन स्थितियाँ हो सकती हैं। इन्हें निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 12
रेखाचित्र (i) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति की वृद्धि के बराबर है ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह OP1 रहती है। केवल संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग और पूर्ति में समान वृद्धि होती है तो संतलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। परंत संतलन मात्रा में परिवर्तन होता है अर्थात यह बढ़ जाती है।

रेखाचित्र (ii) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 से अधिक होती है। संतुलन मात्रा भी OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है।

रेखाचित्र (iii) में पूर्ति में होने वाली वृद्धि माँग में होने वाली वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 की तुलना में कम होगी और संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 होगी। अतः जब पूर्ति में वृद्धि माँग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की पूर्ति (1) पूर्णतया लोचदार व (ii) पूर्णतया बेलोचदार हो तो उसकी माँग में वृद्धि और कमी से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है? (रेखाचित्र बनाइए)
उत्तर:
(i) जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो-यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो, तो माँग में होने वाली वृद्धि या कमी का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, केवल वस्तु की मात्रा पर ही प्रभाव पड़ता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 13
रेखाचित्र में DD माँग वक्र और SS पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र हैं। दोनों एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं। OP संतुलन कीमत तथा OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग में वृद्धि होने पर माँग वक्र ऊपर खिसककर D1D1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 होगा। संतुलन कीमत तो OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसके विपरीत माँग में कमी होने पर माँग वक्र नीचे की ओर D2D2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 होगा। संतुलन कीमत OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा कम होकर OQ2 हो जाती है।

(ii) जब पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार हो-वस्तु की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर कीमत और माँग का प्रत्यक्ष संबंध हो जाता है अर्थात् माँग में वृद्धि से कीमत बढ़ जाती है और माँग में कमी से कीमत कम हो जाती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 14

रेखाचित्र में SS पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति वक्र है जिसका अभिप्राय है कि मूल्य में परिवर्तन होने पर पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन नहीं होता। आरंभ में DD माँग वक्र E पर काटता है। OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो पूर्ति की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। कीमत बढ़कर OP1 और इसी प्रकार माँग के कम होने पर कीमत कम होकर OP2 हो जाती है।

प्रश्न 8.
पूर्ति की स्थिति परिवर्तन (Supply Shift) के कारण समझाइए और संतुलन कीमत व विनिमय मात्रा पर उनके प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति में स्थिति-परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जिनके संतुलन कीमत और विनिमय मात्रा का प्रभाव नीचे स्पष्ट किया गया है
1. साधन आदानों की कीमतों में परिवर्तन-साधन आदानों की कीमतों (लगान, मज़दूरी, ब्याज आदि) में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादन में कमी आती है जिससे पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत साधन आदान की कीमत गिरने से पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

2. तकनीकी प्रगति-चूँकि यह उत्पादन लागत घटाती है इसलिए तकनीकी प्रगति, पूर्ति वक्र को दाहिनी ओर खिसका देती है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है। किंतु उत्पादन की घटिया एवं पुरानी तकनीकों को अपनाने से पूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

3. उत्पादन में संबंधित वस्तु की कीमत में वृद्धि उत्पादन में प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से वस्तु विशेष का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है (क्योंकि उत्पादक अब प्रतिस्थापक वस्तु का उत्पादन करना लाभदायक समझता है।)

प्रभाव-दी. की कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा कम हो जाएगी। परिणाम तब विपरीत होता है जब प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत गिर जाती है तो दी हुई वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है, दी हुई वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

4. उत्पादन शुल्क में परिवर्तन वस्तु के उत्पादन पर, उत्पादन शुल्क में वृद्धि होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत उत्पादन शुल्क की दर कम होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथ विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

5. बाज़ार में फर्मों की संख्या फर्मों की संख्या बढ़ने पर पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत (प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण) कम हो जाएगी तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाएगी। प्रभाव इसके विपरीत होते हैं जब बाज़ार में फर्मों की संख्या कम हो जाती है।

6. अन्य कारक हैं मौसम की दशा में परिवर्तन (जैसे बाढ़, सूखा आदि), उत्पादकों के लक्ष्यों में परिवर्तन, भविष्य में कीमतों में परिवर्तन की आशा तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता आदि।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
X-वस्तु के बाज़ार में 20,000 समरूप क्रेता है। प्रत्येक का माँग फलन Qx = 12 – 2 Px है। दूसरी ओर वस्तु के 2,000 समरूप विक्रेता हैं, प्रत्येक का आपूर्ति फलन Q1 = 20 Px दिया हुआ है। संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग फलन = 20,000 (12 – 2Px)
आपूर्ति फलन = 2,000 (20 Px)
जैसाकि हमें विदित है कि संतुलन की स्थिति में मांगी गई मात्रा (Qx) आपूर्ति की मात्रा (Sx) के बराबर होती है। अतः संतुलन स्तर पर
20,000 (12 – 2Px) = 2,000 (20 Px)
2,40,000 – 40,000 Px = 40,000 Px
2,40,000 = 80,000 Px
Px = 3
अर्थात् संतुलन कीमत 3 रु० प्रति इकाई है।
संतुलन मात्रा का परिकलन
20,000 (12 – 2Px)
20,000 (12 – 2 x 3)
20,000 x 6 = 1,20,000 इकाइयाँ (माँगी गई मात्रा)
अथवा
2,000 (20Px)
2,000 (20 x 3) =1,20,000 इकाइयाँ (आपूर्ति की मात्रा)। स्पष्ट है 3 रु० प्रति इकाई की कीमत पर माँगी गई मात्रा और आपूर्ति की मात्रा समान है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 2.
यदि qd = 10 – p और qs = p तो एक वस्तु विशेष के माँग और पूर्ति कक्रों के लिये संतुलन कीमत और मात्रा की गणना कीजिए। यह भी बताइये कि यदि उस वस्तु की बाज़ार कीमत 7 रु० या 3 रु० प्रति इकाई हो तो उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हल:
(i) संतुलित कीमत = qd = qs
10 – p = p
∴ – p – p = – 10
– 2p = – 10
∴ p = \(\frac { 10 }{ 2 }\) = 5
वस्तु विशेष की संतुलित कीमत = 5 रु० प्रति इकाई
∴ संतुलित मात्रा = qd = 10 – 5
qd = 5 (माँग पक्ष)
∴ संतुलित मात्रा = 5 इकाई

(ii) बाज़ार कीमत 7 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० अधिक हो जाएगी अतः वस्तु विशेष की माँग कम होने से अतिरिक्त पूर्ति का समायोजन करना होगा।

(iii) बाज़ार कीमत 3 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० कम है अतः वस्तु विशेष की माँग बढ़नी आवश्यक होगी।

प्रश्न 3.
एक वस्तु विशेष की माँग और पूर्ति के समीकरण क्रमशः Qd = 8000 – 3000 p तथा Qs = – 6000 + 4000p दिए गए हों, तो संतुलन कीमत और मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
संतुलित कीमत : Qd = Qs
∴ 8000 – 3000 p = – 6000 + 4000p
⇒ – 3000p – 4000p = – 6000 – 8000
⇒ – 7000 p = – 14000
∴ p = \(\frac { 14000 }{ 2 }\)= 2 रुपए
संतुलित मात्रा = p का मान समीकरण (i) में रखने पर
= 8000 – 3000 x 2 = – 6000 + 4000 x 2
= 8000 – 6000
= – 6000 + 8000
= 2000
= 2000
संतुलित मात्रा = 2000 उत्तर

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Apathit Avbodhanam अपठित-अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

अपठित-गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि

1. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत कस्मिंश्चित् अरण्ये अनेके पशवः वसन्ति स्म। एकदा पशूनां राजा सिंहः रोगपीड़ितः अभवत्। एकं शृगालं विहाय सर्वे पशवः रोगपीड़ितं नृपं द्रष्टुमागताः। एकः उष्ट्रः नृपाय एतत् न्यवेदयत् यत् अहंकारिणं शृगालं विहाय सर्वे भवन्तं द्रष्टुमागताः। एतच्छ्रुत्वा सिंहः क्रोधितोऽभवत्। स्वमित्रैः एतत्ज्ञात्वा शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः । क्रोधितेन सिंहेन विलम्बेन आगमनकारणं पृष्टः शृगालोऽवदत् यदहं तु सर्वप्रथममागन्तुम् ऐच्छम् परं चिकित्सकात् औषधमपि आनेयमिति विचिन्त्य तत्रागच्छम्। तच्छ्रुत्वा प्रसन्नः सिंहः औषधविषये पृष्टवान्। शृगालः अवदत् यत्तेन औषधिस्तु न दत्ता परं चिकित्साक्रमम् उक्तवान् यत् उष्ट्रस्य रक्तपानेनैव रोगस्य शान्तिः भविष्यति। तदा सिंहः उष्ट्रमाहूय भक्त्या आगतं तं मारयित्वा तस्य रक्तं पीतवान् एवं स्वपिशुनतायाः दुष्फलम् उष्ट्रेण स्वयमेव प्राप्तम्।
प्रश्ना:
(क) अनेके पशवः कुत्र वसन्ति स्म ?
(ख) शृगालः शीघ्रमेव कस्य समीपे प्राप्तः ?
(ग) उष्ट्रेण कस्याः दुष्फलं प्राप्तम् ?
(घ) रोगपीडितः कः अभवत् ?
(ङ) ‘पृष्टः’ – अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि
(क) अनेके पशवः अरण्ये वसन्ति स्म।
(ख) शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः।
(ग) उष्ट्रेव स्वपिशुनतायाः दुष्फलं प्राप्तम्।
(घ) सिंह: रोगपीड़ितः अभवत्।
(ङ) ‘पृष्टः’ अत्र क्त प्रत्ययः।

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2. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत गङ्गा सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा अस्ति। सा लोकत्रयस्य कल्याणकारिणी अस्ति।सा भौतिकसुखदृष्ट्या आध्यात्मिक सुखदृष्ट्या कल्याणप्रदा। यं गङ्गा पूर्णरूपेण समर्पितो-भवति, तस्य जीवनं धन्यं भवति। इह संसारे यः जनः राज्ञा भगीरथेन आनीतां भगवती गङ्गां सदा वन्दते स एव शोभन: चतुरः कथ्यते। यः जनः आदरपूर्वकं जहनुतनयां मनसा ध्यायति, स एव सम्यक् तपस्वी भवति। यः गङ्गायाः नामानि गुणान् च सदा स्मरति, स एव श्रेष्ठः पुरुषः कथ्यते। यस्य जनस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, यथार्थरूपेण स एव कर्मयोगी अस्ति, स एव सर्वेषां स्वामी भवति।
प्रश्ना:
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी का अस्ति ?
(ख) इह संसारे गङ्गां कः आनीतवान् ?
(ग) यः आदरपूर्वकं जह्नतनयां ध्यायति सः किं भवति ? ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स किम् अस्ति ?
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी गङ्गा अस्ति।
(ख) इह संसारे गङ्गां भगीरथः आनीतवान् ।
(ग) यः आदरपूर्वकं जहनुतनयां ध्यायति सः सम्यक् तपस्वी भवति ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स कर्मयोगी अस्ति।
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र – ‘इष्ठन्’ प्रत्ययः ।

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3. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सत्सङ्गति धियः जाड्यं हरति। वाचि सत्यं सिञ्चति। मानोन्नतिं करोति। पापम् अपाकरोति। मनः प्रसादयति। सर्वत्र यशः तनोति। कथय, मनुष्याणां कृते सत्सङ्गति किं न करोति, अर्थात् सर्वेषामेव उत्तमगुणानां विकासं करोति। ईदृशः अस्ति सत्सङ्गतेः महिमा। अयम् एकः स्वाभाविकः अभिप्रायोऽस्ति यत् मनुष्यस्य सङ्गतिः यादृक्प्रवृत्तिधारकेण सह भवति, सः तादृशः एव भवति। यदि तस्य उत्थानम् उपवेशनं दुष्टैः सह, तदा सोऽपि भविष्यति। परं सज्जनै: साकं संसर्गात् स एव जनः सुजनः भवितुं शक्नोति।प्रभावस्तु अवश्यमेव पतति अन्योऽन्ययोः, एतत् तु स्वीकरणीयमेव जायिष्यते। यदा वयं सङ्गतेः प्रभावं जडपदार्थेषु पश्यामः, तदा चेतनः प्राणी कथं नु प्रभवितुं क्षमते।
प्रश्ना:
(क) सत्सङ्गतिः धियः किं हरति ?
(ख) सत्सङ्गतिः केषां विकासं करोति ?
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः कीदृशः भवितुं शक्नोति ?
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं केषु पदार्थेषु पश्याम: ?
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सत्सङ्गतिः धियः जाड्यं हरति ।
(ख) सत्सङ्गतिः सर्वेषाम् उत्तमगुणानां विकासं करोति।
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः सुजनः भवितुं शक्नोति ।
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं जडपदार्थेषु पश्यामः ।
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र – ‘तुमुन्’ प्रत्ययः ।

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4. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत’रघुवंशम्’ कालिदासप्रणीतम् एकं महाकाव्यम्। एतस्य एकोनविंशतिसर्गेषु सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति। अस्य महाकाव्यस्य कथानकं रामायणे पुराणेषु च आधारितम्। प्रथमे सर्गे सूर्यवंशिराज्ञां वर्णनानन्तरं दिलीपस्य चरित्रस्य, तस्य अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे गमनस्य च वर्णनं वर्तते। द्वितीये सर्गे दिलीपस्य नन्दिन्याः सेवया पुत्रप्राप्तिवरदानस्य च चित्रणम् अस्ति। तृतीये सर्गे रघुजन्मनः वर्णनम्। चतुर्थे सर्गे रघोः दिग्विजयनिरूपणम्। अतः परेषु सर्गेषु रघोः सर्वस्वदानम्, अजजन्म, अजस्य विजयः, राज्यशासनम्, अजविलापः, दशरथजन्म, रामकथा-आदिकानि घटनानि वर्णितानि सन्ति। सम्भाव्यते कवेः देहान्तरस्य हेतोः काव्यस्य अन्तः भवति यतो हि कथायाः विधिवत् समाप्तिर्न जाता अस्ति। एतत् कालिदासस्य द्वितीयं महाकाव्यम् अस्ति। संस्कृतकाव्यशास्त्र-परम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
प्रश्नाः
(क) केषां कीर्तिगानम् अस्ति ?
(ख) दिलीप: केन कारणेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ?
(ग) ‘रघुवंशम्’ केन प्रणीतं महाकाव्यम् ?
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं कीदृशं महाकाव्यं स्वीकृतम् ?
(ङ) गमनम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि.
(क) सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति।
(ख) दिलीपः अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ।
(ग) ‘रघुवंशम्’ कालिदासेन प्रणीतं महाकाव्यम् ।
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
(ङ) ‘गमनम्’ अत्र – ‘ल्युट्’ प्रत्ययः।।

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5. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् धारानगर्यां भोजो नाम राजा। सिंहासनम् अधिष्ठितः सः सुप्रबन्धं स्वराज्यं समृद्धमकरोत्। तस्य राज्ये विद्यार्थिनः विद्याभ्यासं, विद्वांसः च अध्यापनं कुर्वन्ति स्म। धनिनः विपत्तौ निर्धनानां साहाय्यं कुर्वन्ति स्म। भोजः एतादृशः गुणग्राही आसीत् यत् यः कोऽपि विद्वान् राजसदसि स्वकीयां कवितां, नवीनम् आविष्कारं वा प्रस्तौति स्म तस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत्।
प्रश्नाः
(क) भोजो नाम राजा कुत्र आसीत् ?
(ख) धनिनः केषां सहायतां कुर्वन्ति स्म?
(ग) भोजः किं समृद्धम् अकरोत् ?
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यास के कुर्वन्ति स्म?
(ङ) भोजः कस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ?
उत्तराणि
(क) भोजो नाम राजा धारानगर्याम् आसीत् ।
(ख) धनिनः निर्धनानां सहायतां कुर्वन्ति स्म ।
(ग) भोजः स्वराज्यं समृद्धम् अकरोत् ।
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यासं विद्यार्थिनः कुर्वन्ति स्म।
(ङ) भोजः विद्वद्भ्यः भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ।

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6. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुःनदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति। प्रपात: तस्याः प्रथमावस्था अस्ति। शनैः शनैः सा सागरं प्रति गच्छति। तस्याः बालुकायुक्ततटेषु हरिताः तरवः भवन्ति। तेषां वृक्षाणामुपरि काकाः, चटकाः, शुकाः कोकिला: च वसन्ति। पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः तस्याः तटा: गुञ्जायमानाः भवन्ति परं केचन जनाः अत्रागत्य मनोरञ्जनं कुर्वन्ति, खादन्ति, भोजनस्य अवशिष्टं च तस्याः जले एव पातयन्ति। एवं तस्यां जलं दूषितं भवति। दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् अस्ति। अत: जलं दूषितं न कर्त्तव्यम् यतः जलम् एव प्राणिनां जीवनम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) नद्याः प्रथमावस्था का ?
(ख) नदी केभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति ?
(ग) कीदृशं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ?
(घ) नद्याः तटाः कथं गुञ्जायमानाः भवन्ति ?
(ङ) जलं केषां जीवनम् ?
उत्तराणि
(क) नद्याः प्रथमावस्था प्रपातः ।
(ख) नदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति।
(ग) दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ।
(घ) नद्याः तटाः पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः गुञ्जायमानाः भवन्ति ।
(ङ) जलं प्राणिनां जीवनम्।

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7. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् पुरा कस्मिंश्चित् वने निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं किमपि आश्रमपदम्। तत्र तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म। ऋषीणां तपः प्रभावात् परस्परं वैरभावम् अपहाय पशवः पक्षिणश्च निर्भयं तत्र विचरन्ति स्म। आसीत् तत्र वरतन्तुनामा कुलपतिः। तत्र अनेके मेधाविनः पटवश्च बटवः अपठन्। तेषु कश्चन आकृत्या मृदुलः प्रकृत्या सरलः कौत्सनामा बटुः आसीत् अयं बालः स्वल्पेनैव कालेन वेदानां वेत्ता, पुराणानां पठिता, दर्शनशास्त्राणां विज्ञाता चाभवत्।
प्रश्ना:
(क) आश्रमपदं कीदृशम् आसीत् ?
(ख) आश्रमपदे के वसन्ति स्म ?
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कः आसीत् ?
(घ) केषां प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म ?
(ङ) कौत्सनामा बटुः केषां वेत्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(क) आश्रमपदं निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं च आसीत्।
(ख) आश्रमपदे तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म ।
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कुलपतिः आसीत् ।
(घ) ऋषीणां तपः-प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म।
(ङ) कौत्सनामा बटुः वेदानां वेत्ता अभवत् ।

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8. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुः गङ्गाम् उभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिता: ग्रामाः आसन्। तत्र एकस्मिन् ग्रामे एकः जीर्णः कूपः आसीत्। तस्मिन् कूपे मण्डूकानाम् अधिपतिः गङ्गदत्तः परिजनैः सह निवसति स्म। सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्। अतः गर्वितः अभवत्। तस्य दुर्व्यवहारेण केचित् प्रमुखाः भेकाः रुष्टाः जाताः। ते गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन्। तद् ज्ञात्वा गंगदत्तः विषादम् अनुभवति स्म। “शत्रूणां नाशः कथं भवेत्।” इति एकान्ते चाटुकारैः सह मन्त्रणाम् अकरोत्।
प्रश्ना:
(क) गङ्गामुभयतः के आसन्?
(ख) मण्डूकानामधिपतिः कः आसीत्?
(ग) सः कथं गर्वितः अभवत् ?
(घ) के गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ?
(ङ) गंगदत्तः कै: सह मन्त्रणामकरोत् ?
उत्तराणि
(क) गङ्गामुभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिताः ग्रामाः आसन् ।
(ख) मण्डूकानामधिपतिः गङ्गदत्तः आसीत् ।
(ग) ‘सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्, अतः सः गर्वितः अभवत्।
(घ) प्रमुखाः भेका: गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ।
(ङ) गंगदत्तः चाटुकारैः सह मन्त्रणामकरोत् ।

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9. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत अद्यत्वे विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते। वैज्ञानिकाः आविष्कारैः न केवलं विस्मापयन्ति, अपितु मनोविनोदम् अपि कुर्वन्ति। अद्य दूरदर्शनं विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः। अस्य आविष्कारः मूलत: ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः। अयं आकाशवाण्याः एव विकसितः प्रयासः अस्ति। वयम् आकाशवाणीयन्त्रैः अभीष्टस्थानस्य कार्यक्रमं एव आकर्णयामः, परं दूरदर्शनेन वयं दर्शनमपि कुर्मः। साम्प्रतं दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।
प्रश्ना:
(क) कस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते ?
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः किमस्ति ?
(ग) अस्य आविष्कारः केन कृतः ?
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः कीदृशं साधनमस्ति ?
उत्तराणि
(क) विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते।
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कार: दूरदर्शनम् अस्ति।
(ग) अस्य आविष्कारः ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः।
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।

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10. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सजानानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते। जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति। आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते। सदाचारात् एव मनुष्यः दीर्घमायुः वैभवं च प्राप्नोति। यतः यः नरः सर्वलक्षणहीनः अपि अस्ति, परं सदाचारवान् अस्ति, स शतं वर्षाणि जीवति। सद्व्यवहारस्य बलेनैव मनुष्याः सुन्दरान् गुणान् अर्जयितुं समर्थाः भवन्ति। जनः उन्नतिं करोति। आचारहीनाः जनाः अपवित्राः भवन्ति। वेदाः अपि तान् रक्षितुं तं समर्थाः भवन्ति। सर्वस्य तपसः मूलं सदाचारः एव अस्ति। अतएव सदाचरणं सर्वेषाम् कृते अत्यावश्यकम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) सदाचारः किम् कथ्यते ?
(ख) जीवने कस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति ?
(ग) सदाचारः कस्य मूलम् अस्ति ?
(घ) कः सर्वत्र पूज्यते ?
उत्तराणि
(क) सज्जनानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते।
(ख) जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति।
(ग) सदाचारः सर्वस्य तपसः मूलम् अस्ति।
(घ) आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते।

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HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 1.
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन का क्या अर्थ है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रायः किसी एक विचार या भाव पर निबंध लिखा जाता है। परंतु कभी-कभी लेखक नए और अप्रत्याशित विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत करता है। यदि लेखक सर्वथा नवीन और सामान्य विषयों से हटकर किसी विषय पर लेख लिखता है, तो उसे हम अप्रत्याशित विषय कह सकते हैं। अपने विचारों को व्यक्त करना बड़ा सरल है, परंतु लिखकर अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रायः लोगों को सुनियोजित ढंग से लिखने का अभ्यास नहीं होता। प्रायः विद्यार्थी दूसरों के द्वारा लिखे निबंधों को पढ़कर ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर देते हैं। कभी-कभी वे मौखिक ढंग से भी अपने विचार प्रकट कर देते हैं, परंतु उन्हें लिखित रूप देना कठिन होता है।

उदाहरण के रूप में, यदि किसी व्यक्ति ने रेल यात्रा की है, तो वह अपने अनुभवों को बड़ी आसानी से सुना सकता है। कैसे उसने लाइन में लगकर टिकट ली, कैसे सामान के साथ स्टेशन पर प्रतीक्षा की और कैसे गाड़ी आने पर भीड़ में से गुजरकर ट्रेन पर सवार हुआ आदि इन सबका विवरण वह बता सकता है, परंतु अपने अनुभवों को सुनियोजित ढंग से लिखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। अतः नए और अप्रत्याशित विषयों पर लिखना कोई सहज कार्य नहीं है। फिर भी यदि कोई विद्यार्थी प्रयास करे, तो यह इतना कठिन भी नहीं है। दो-चार बार लिखने के बाद वह स्वयं इस कार्य में पारंगत हो सकता है।

प्रश्न 2.
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखन का अर्थ है-भाषा के माध्यम से किसी विषय पर अपने विचारों को लिपिबद्ध करना। वस्तुतः भाव और भाषा को समन्वित रूप में अभिव्यक्त करना ही लेखन कहलाता है। यदि एक व्यक्ति के पास मौलिक विचार हैं, परंतु भाषा पर उसका मौलिक अधिकार नहीं है, तो वह अप्रत्याशित विषय पर लेख नहीं लिख सकता। इस प्रकार मौलिक विचार भी कुछ नया सोचने तथा चिंतन करने से बनते हैं। पिछले लंबे समय से विद्यार्थियों तथा शिक्षकों को तैयार सामग्री उपलब्ध होती आ रही है। इसलिए न तो कोई शिक्षक नया सोचता है, न ही लिखने का प्रयास करता है। शिक्षकों की यही मानसिकता विद्यार्थियों को प्रभावित करती है।

जब भी किसी विद्यार्थी को नए विषय पर लिखने के लिए कहा जाता है, तो वह लिख नहीं पाता। नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन के लिए विद्यार्थियों को कुछ नया सोचने की प्रेरणा दी जानी चाहिए, साथ ही उन्हें लिखने का अभ्यास भी करवाया जाना चाहिए। सबसे पहली शर्त है कि विद्यार्थियों को नए-नए विषयों के बारे में सोचने के लिए कहा जाए। ये नए विषय परंपरागत विषयों से अलग प्रकार के होने चाहिएँ। दूसरा विद्यार्थियों को शुद्ध भाषा लिखने का अभ्यास करवाया जाना चाहिए। यदि विद्यार्थियों की भाषा व्याकरण-सम्मत होगी, तो वे निश्चय से अपने मौलिक विचारों को सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर पाएंगे। नया सोचना और नया लिखना ही विद्यार्थी को अभिव्यक्ति कौशल प्रदान करता है।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 3.
कहा जाता है कि नए और अप्रत्याशित विषयों पर लिखना कठिन है। कौन-कौन से उपाय अपनाकर इसे सरल बना सकते हैं?
अथवा
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन-सी बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है?
उत्तर:
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को सरल बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं
(1) किसी भी नए और अप्रत्याशित विषय पर लेख लिखने से पहले उसके बारे में सोच-विचार करना चाहिए और मन में उसकी एक रूपरेखा बना लेनी चाहिए। तत्पश्चात उसे लिखना चाहिए।

(2) जिस विषय पर भी लेख लिखा जाना है, उस विषय की लेखक को समुचित जानकारी होनी चाहिए। विषय से संबंधित सभी विचारों को सुसंबद्धता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।

(3) नए और अप्रत्याशित विषय से जुड़ी सभी बातों को सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसा न हो कि पहले कही जाने वाली बात बाद में आ जाए और बाद में कही जाने वाली बात पहले आ जाए। यदि हम रोहतक से दिल्ली तक की रेल यात्रा का वर्णन करना चाहते हैं, तो हमें स्टेशन पहुँचने, टिकट खरीदने तथा रेल में चढ़ने की सभी बातों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। तभी
हमारा लिखना सार्थक होगा।

(4) नए और अप्रत्याशित विषयों के लिए आत्मपरक (मैं) शैली का प्रयोग किया जाना चाहिए। निबंधों के लिए यह शैली वर्जित है, लेकिन नए विषयों के लिए यह शैली अत्यधिक उपयोगी मानी गई है।

(5) नए और अप्रत्याशित लेखों की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिएँ। इसके वाक्य अधिक लंबे नहीं होने चाहिएँ। शब्द-प्रयोग तथा वाक्य-विन्यास सर्वथा भावानुकूल तथा विषयानुकूल होना चाहिए।

प्रश्न 4.
“अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत” पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
अकसर देखने में आया है कि लोग कोई दुर्घटना अथवा हानि होने के पश्चात पश्चात्ताप करने लगते हैं। यह तो वही हुआ कि “साँप निकल गया, अब बैठकर लकीर को पीटो।” जो हो चुका है, उसके बारे में सोचना अथवा पश्चात्ताप करना सबसे बड़ी मूर्खता है। कहा भी गया है कि मूर्ख लोग बीती बातों के बारे में अधिक सोचते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हम बीती हुई बातों पर व्यर्थ में ही सोच-सोचकर अपने समय को नष्ट करते हैं और अपने मन में अशांति उत्पन्न करते हैं कि “यदि मैं ऐसा न करता तो मेरे साथ ऐसा न होता।” इस प्रकार की सोच हमें नुकसान ही पहुँचाती है। हमें बीती बातों को भूलकर आगे के लिए सोचना चाहिए। यदि हम एक बार परीक्षा में असफल हो जाते हैं, तो उसके लिए रोना-धोना तथा पश्चात्ताप करना व्यर्थ है। बल्कि हमें फिर से एक नई योजना बनाकर अपनी पढ़ाई को आरंभ करना चाहिए। जो गलतियाँ हमने पिछली बार की थीं, उन्हें पुनः नहीं दोहराना चाहिए।

कहा भी तो गया है-“बीती ताहि बिसार के आगे की सुध ले।” – हमारे जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता आदि का भी महत्त्व है। पुरानी गलतियों से हम बहुत कुछ सीखते हैं, परंतु पुरानी गलतियों को फिर से करना सबसे बड़ी मूर्खता है। जीवन की प्रक्रिया तो निरंतर चलती रहती है। हमें कदम-कदम पर अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हमारा कर्तव्य है कि उन बाधाओं को दूर करना और निरंतर आगे बढ़ना। जो हो चुका है, उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो, संघर्ष करो। निश्चय से आपको सफलता मिलेगी। इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है-“अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।”

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 5.
क्या नए और अप्रत्याशित विषयों का लेखन अभिव्यक्ति कौशल में सहायक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
निबंध गद्य लेखन की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। निबंधकार इस विधा द्वारा अपने विचारों को व्यक्त करता है। निबंध लिखने की यह विधा बहुत पुरानी है। प्रायः कुछ परंपरागत विषयों पर निबंध लिखे जाते हैं। पुराने विषयों पर तैयार सामग्री हमें पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि न हम कुछ नया सोच पाते हैं, न ही किसी नए विषय पर लिख पाते हैं। हमारे अंदर अभिव्यक्ति की क्षमता अवरुद्ध हो जाती है। न निबंधकार की सोच आगे बढ़ पाती है, न ही विद्यार्थियों की।

उदाहरण के रूप में, मेरा प्रिय साहित्यकार, दीवाली, ग्रीष्म ऋतु, बेरोज़गारी की समस्या, आतंकवाद आदि विषयों पर लिखे-लिखाए निबंध मिल जाते हैं। न ही हम परंपरागत और बासी विषयों को छोड़ पाते हैं, न ही नए विषयों के बारे में सोच पाते हैं। इसके फलस्वरूप हम मौलिक अभिव्यक्ति से वंचित हो जाते हैं। सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है। यदि नए विषयों के लेखन में इस अधिकार का प्रयोग किया जाए, तो निश्चय से विद्यार्थियों के अभिव्यक्ति कौशल में आशातीत उन्नति होगी। इससे विद्यार्थी न केवल नए विषयों के बारे में चिंतन करेगा, बल्कि अपनी भाषा को भी समृद्ध कर सकेगा।

प्रश्न 6.
रटंत का क्या अर्थ है? क्या यह बुरी लत है? स्पष्ट करो।
उत्तर:
रटंत का अर्थ है किसी के द्वारा लिखी गई पठनीय सामग्री को रटा लगाकर ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत करना। इसको बुरी लत भी कहा गया है। हमारे आज के अधिकांश विद्यार्थियों में तोता-रटंत प्रवृत्ति है। शिक्षक कक्षा में उन्हें जो कुछ पढ़ाता है, वे रटा लगाकर याद कर लेते हैं और ज्यों-का-त्यों परीक्षा में लिख आते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वे हमेशा दूसरों के लिखे पर ही निर्भर रहते हैं। उनमें कुछ मौलिक सोचने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। यही प्रवृत्ति आगे चलकर घातक सिद्ध होती है। लिखना एक कला है। इस कला का विकास तभी हो सकता है, जब वे रटंत प्रवृत्ति पर निर्भर न रहें, वह स्वयं सोचकर लिखें। इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। अतः जो विद्यार्थी बार-बार सोचकर लिखने का प्रयास करेंगे, उनमें निश्चित ही मौलिक प्रतिभा का विकास होगा। किसी प्रसिद्ध व्यक्ति ने कहा है

“करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान रसरी आवतु जात ते सिल पर पड़त निशान”
इसलिए विद्यार्थियों तथा लेखकों को रटंत प्रवृत्ति को छोड़कर मौलिक लेखन की ओर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से ही वे नए और अप्रत्याशित विषयों के लेखन में पारंगत हो सकेंगे।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
अधूरे वाक्यों को अपने शब्दों में पूरा करें–

  1. हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि ………
  2. लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि ………..
  3. हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि ….
  4. लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि .
  5. लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि ……….

अभिव्यक्ति और माध्यम (नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन)
उत्तर:

  1. हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमें स्वयं लिखने और अपने भावों को अभिव्यक्त करने का अभ्यास नहीं होता। हम किसी दूसरे द्वारा लिखित पठनीय सामग्री को ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर देते हैं।
  2. लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि हम कुछ नया सोचने या लिखने की कोशिश नहीं करते, बल्कि हम पहले से ही किसी विषय पर लिखी हुई सामग्री का प्रयोग करते हैं।
  3. हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि यदि हम अपने विचारों को नियंत्रित करके किसी एक विषय पर लिखने का प्रयास करेंगे, तो हम उस विषय का सही विवेचन कर सकेंगे।
  4. लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि जब तक हमें यह स्पष्ट नहीं होगा कि हमें क्या और कैसे लिखना है, तब तक हम उस विषय को सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे।
  5. लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि लेख में लेखक अपने ही विचार प्रस्तुत करता है और लेखन में उसका व्यक्तित्व झलकता है, इसलिए लिखते समय वह कहता है-‘मेरे विचारानुसार’ अथवा ‘मैं ये कह रहा था।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित विषयों पर दो से तीन सौ शब्दों में लेख लिखिए
→ बाढ़ का प्रकोप
→ सावन की पहली झड़ी
→ अच्छे दिन
→ दीया और तूफान
→ इम्तहान के दिन
→ मेरा प्रिय टाइमपास
→ मेरे मुहल्ले का चौराहा
→ एक कामकाज़ी औरत की शाम [
उत्तर:
1. बाढ़ का प्रकोप–सूर्य देवता की प्रचण्ड किरणों के ताप से सभी जीव-जन्तु व्याकुल थे। इन्द्र देवता की कृपा-दृष्टि से आकाश में काले बादल छा गए। ठण्डी हवा के साथ ही मूसलाधार वर्षा होने लगी। चारों ओर उल्लास छा गया। लेकिन जब तीन दिन तक वर्षा नहीं रुकी तो लोग घबराने लगे। शीघ्र ही आशंका और भय का वातावरण छा गया। पर्वतीय क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण नदी में बाढ़ आ गई। बाढ़ का पानी अनेक गाँवों को तहस-नहस करता हुआ शहर की ओर बढ़ने लगा। दूर-दूर तक एक विशाल सागर-सा दिखाई दे रहा था। घर, मकान, झोंपड़ियाँ और फसलें सभी कुछ जल-मग्न हो गया। शीघ्र ही पानी ने नगर को चारों ओर से घेर लिया। नगर के चारों ओर बाँध बनाया जाने लगा। रेलवे लाइन पानी में डूब गयी। नौकाओं द्वारा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाने लगा। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में विद्यार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी कर्मचारी राहत कार्य के लिए जाने लगे। केन्द्रीय सरकार ने हैलीकॉप्टरों द्वारा खाने की वस्तुएँ और दवाइयाँ पहुचाने का कार्य आरम्भ कर दिया। प्रत्येक मकान में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया। लोग छतों पर बैठे पानी के उतरने की प्रतीक्षा करने लगे। असंख्य लोग तथा पशु इस विनाशकारी बाढ़ के शिकार बन गए। लोगों के घर और खेत बर्बाद हो गए।

2. अच्छे दिन-‘अच्छे दिन’ का अर्थ है जीवन में खुशहाली का आना। सभी प्रकार की उन्नति के साधनों का उपलब्ध होना ही अच्छे दिनों का आना है। किन्तु क्या कभी ऐसा होना सम्भव है? जीवन में यदि एक आवश्यकता पूरी होती है तो तत्काल दूसरी कामना का जन्म हो जाता है। उसके पूरा न होने पर अच्छे दिन होने की कल्पना गायब हो जाती है। आज के समय में ‘अच्छे दिन’ का अर्थ कुछ बदला हुआ रूप लेकर हमारे सामने आया है। इसका अर्थ है कि गरीबी न हो, महँगाई पर पूरा नियन्त्रण हो, दैनिक जीवन के प्रयोग की सभी वस्तुएँ सही कीमत पर उपलब्ध हों आदि। प्रश्न उठता है कि क्या यह सब सम्भव है। यदि सम्भव नहीं है तो अच्छे दिनों का यह नारा व्यर्थ सिद्ध होता है। अच्छे दिन किसी सरकार द्वारा नहीं लाए जा सकते। इन्हें लाने के लिए तो हम सबको मिलकर सहयोग करना पड़ेगा। इसके लिए चोर बाजारी, भ्रष्टाचार आदि को दूर करना होगा। अपनी आवश्यकताओं पर नियन्त्रण रखना होगा। जमाखोरी की भावना को त्यागना होगा। हर कार्य को ईमानदारी से करना होगा। तभी अच्छे दिन आने की सम्भावना बन सकती है।

3. सावन की पहली झड़ी-जेठ और आषाढ़ की भयंकर गर्मी से पूरा संसार तप रहा है। भयंकर लू के कारण पल-भर भी चैन नहीं मिलता। बिजली हर समय नदारद रहती है। जब हवा का चलना बंद हो जाता है, तो घुटन-सी होने लगती है। पसीने से सारा शरीर तर-बतर हो जाता है। न रात को चैन है, न दिन को। घर के सभी प्राणी बिस्तर पर करवटें लेते-लेते कब सो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। सभी लोग भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। अब तो सावन का महीना भी लग गया है, लेकिन वर्षा का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है, केवल गर्मी-ही-गर्मी है। लेकिन आज सुबह जब आँखें खुलीं, तो ऐसा महसूस हुआ कि ठंडी-ठंडी हवा चल रही हो। मैं शीघ्र ही बिस्तर से उठकर बाहर गया। देखा तो आकाश में घने काले बदल छाए हुए थे। सूर्य देवता कहीं नज़र नहीं आ रहा था। ठंडी-ठंडी बयार चल रही थी और नीले-काले बादलों से गड़-गड़ की आवाज़ आ रही थी। थोड़ी देर में हल्की-हल्की बूंदा-बाँदी होने लगी। मेरा मन खुशी से झूम उठा। अचानक हवा चलनी बंद हो गई। मस्त हाथियों जैसे काले-काले बादल ज़ोर-ज़ोर से गरजने लगे। वर्षा की मोटी-मोटी बूंदें टपकने लगीं। इससे पहले कि घर के बाहर बिखरा हुआ सामान भीतर रख पाते, मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

महीनों से प्यासी धरती की प्यास बुझने लगी। पेड़-पौधों के पत्ते धुल रहे थे और उनकी हरी-भरी कांति फिर से दिखाई देने लगी। पक्षी चहचहाने लगे और पानी में नहाने लगे। बच्चे घरों से बाहर आ गए और बारिश के पानी में उछलते-कूदते नहाने लगे। यह सावन की पहली झड़ी थी। थोड़ी देर में, सड़कों तथा गलियों में पानी की नदी-सी बहने लगी। इस बार की सावन की पहली झड़ी बड़ी खुशनुमा लग रही थी। मूसलाधार वर्षा सात-आठ घंटे से लगातार हो रही थी। कुछ लोग तो घबरा गए थे कि पता नहीं ये बरसात क्या करेगी? परंतु कुछ देर के लिए बरसात रुक गई। लोग घरों से बाहर आकर बिखरा सामान समेटने लगे। लगभग एक घंटे बाद फिर से रिमझिम बारिश शुरू हो गई। छत्तों के परनालों से पानी बहना फिर से शुरू हो गया था। अब यह बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मेरे पिता जी ने कहा कि यह शनिवार की झड़ी है अब तो एक सप्ताह बाद ही रुकेगी। मैं मन-ही-मन कामना करने लगा कि भगवान करे ऐसा ही हो। यदि सावन की पहली झड़ी लंबी होगी, तो सूखे खेत फिर से लहलहाने लगेंगे और भरपूर फसल से किसान खुशहाल हो जाएँगे।

4. इम्तहान के दिन इम्तहान के दिन भी क्या दिन हैं। बड़े-बड़े लोग इम्तहान का नाम सुनते ही काँप पड़ते हैं। हर एक के मन में यह डर लगा रहता है कि वह इम्तहान में पास होगा कि फेल होगा? मेरी बारहवीं की परीक्षा के दिन नज़दीक आ चुके हैं। स्कूल में पढ़ते समय बार-बार परीक्षा का डर दिखाया जाता है। घर के लोग भी बार-बार यही याद दिलाते हैं कि भई इम्तहान सिर पर आ चुका है। अब तो मन लगाकर पढ़ लो। यदि पास न हुए तो साल भर का परिश्रम बर्बाद हो जाएगा। भले ही मैंने सारा साल अच्छी तरह से पढ़ाई की हो और टेस्ट भी दिए हो, परंतु इम्तहान का भूत तो हमेशा डराता ही रहता था। पिता जी ने मेरी घबराहट देखकर टयूशन भी लगवा दी, परंतु इम्तहान का डर मन से निकलता नहीं था। आखिर इम्तहान का दिन नज़दीक आ गया। अगले दिन मेरा गणित का पेपर था, मैं रात-भर सो नहीं पाया। सुबह तीन बजे मैंने भगवान से प्रार्थना की कि मेरा बेड़ा पार लगा दो।

यदि मेरा पेपर आज ठीक हो जाए, तो मैं मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आऊँगा। यही सोचते-सोचते मेरी आँख लग गई और मुझे नींद आ गई। लगभग सात बजे पिता जी ने आकर उठाया और कहा कि अरे, तुम्हारा तो आज गणित का पेपर है, तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो। मैं घबराकर जाग गया। गहरी नींद आने से अब मेरा मन शांत था। ऐसा लगा कि मन की चिंता अब दूर हो गई है। मैंने नहा-धोकर प्रभु का नाम लिया और हल्का-सा भोजन करके इम्तहान देने चला गया। परीक्षा में बैठते ही मैं गणित के प्रश्नों का हल निकालने लगा। पता ही नहीं चला कि कब तीन घंटे बीत गए। मेरा सारा पेपर बड़े संतोषपूर्वक ढंग से हुआ था। कमरे से बाहर आया, तो मन प्रसन्न था। दोस्तों से बातचीत करते हुए मैं घर पहुंचा। अगला पेपर हिंदी का था। उसकी मुझे कोई चिंता नहीं थी। धीरे-धीरे एक के बाद एक सभी पेपर खत्म हो गए। मुझे आशा थी कि मैं अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो जाऊँगा। परंतु इन पंद्रह दिनों में यह अनुभव हुआ कि इम्तहान के दिन बड़े तनाव के दिन होते हैं। इन दिनों न ठीक से भूख लगती है, न खेलने को मन करता है। हर वक्त इम्तहान की चिंता लगी रहती है।

5. दीया और तूफान-मिट्टी से बना छोटा-सा दीपक जल रहा है। हवा का झोंका उसे बुझाना चाहता है, परंतु वह अधंकार को दूर भगाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसके द्वारा उत्पन्न किया गया हल्का-सा उजाला आस-पास के वातावरण में आशा की किरण जगाता है। इस घने-काले अंधकार में वह अपने मंद-मंद प्रकाश से लोगों को रास्ता दिखाता है। जैसे ही कोई हवा का झोंका आता है, तो दीये की लौ काँप उठती है। ऐसा लगता है कि यह लौ अंधकार में लीन हो जाएगी। फिर वह दीया टिमटिमाता हुआ पुनः प्रकाश की किरणें बिखेरने लग जाता है। सामने से आता हआ तूफान भी दीपक की लौ को बुझा नहीं पाता।

लगभग यही स्थिति मानव की है। उसके जीवन में अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। दीये के समान वह भी उन बाधाओं का सामना करता हुआ निरंतर आगे बढ़ता रहता है। जो लोग बाधाओं से घबराकर संघर्ष करना छोड़ देते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। परंतु जो निरंतर संघर्ष करते रहते हैं, वे निश्चय से ही अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं। उनकी स्थिति तूफान में दिये के समान होती है। मानव को जीवन की कठिनाइयों से कभी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। यदि एक नन्हा-सा दीपक तूफान का सामना कर सकता है, तो फिर मनुष्य क्यों नहीं कठिनाइयों का सामना कर सकता। जो लोग बाधाओं का सामना करके सफलता प्राप्त करते हैं, वे आग में तपे हुए सोने के समान शुद्ध होते हैं। वही समाज के लिए उपयोगी होते हैं। ऐसे लोग न केवल अपना निर्वाण करते हैं, बल्कि समाज के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

6. मेरे मुहल्ले का चौराहा मेरे घर के पास ही चौराहा है। कॉलोनी की चार मुख्य सड़कें इसके आर-पार से गुजरती हैं। कोने पर एक छोटा-सा पार्क है। मुहल्ले के चौराहे पर पीपल का एक विशाल पेड़ है जिसके नीचे मुहल्ले के लोगों ने एक छोटा-सा मंदिर बना रखा है। इस चौराहे पर हर समय हलचल बनी रहती है। पुल से आने वाली कार या रिक्शा इसी चौराहे से गुज प्रकार उत्तर दिशा के वाहन भी इस चौराहे से होकर दक्षिण दिशा में जाते हैं। लोगों के घरों में काम करने वाली औरतें प्रायः इसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठी रहती हैं। कुछ मनचले युवक भी यहाँ खड़े दिखाई देते हैं। चौराहे पर खड़ा होकर कोई भी व्यक्ति चारों ओर का नज़ारा देख सकता है। सब्जी और फलों की रेहड़ी वाले यहीं से होकर गुज़रते हैं तथा सांयकाल को यहाँ अपनी रेहड़ियाँ लगा लेते हैं। कॉलोनी की औरतें प्रायः उन्हीं से ही फल और सब्जियाँ खरीदती हैं। सुबह-सवेरे बच्चों की बसें और रिक्शा भी यहीं से निकलती हैं।

कभी-कभी रिक्शा में बैठे छोटे-छोटे बच्चे रोते हुए यहाँ से गुजरते हैं। उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। क्योंकि वे स्कूल नहीं जाना चाहते। हमारे मुहल्ले का चौराहा बहुत व्यस्त रहता है। कभी-कभी यहाँ आवारा युवक भी खड़े हो जाते हैं तथा आने-जाने वाली लड़कियों तथा युवतियों पर तानाकशी करते हैं। कई बार कॉलोनी के लोगों ने उन्हें समझाया भी पर वे बाज नहीं आए। आखिर एक दिन हमारे मुहल्ले के सूरी साहब ने कुछ पुलिस वालों को वहाँ बुला लिया। चार-पाँच युवक पुलिस की पकड़ में आ गए। उनकी जमकर पिटाई हुई। उसके बाद वे आवारा लड़के चौराहे पर नज़र नहीं आए। फिर भी हमारे मुहल्ले का चौराहा सारी कॉलोनी में प्रसिद्ध है। यहाँ का वातावरण आपेक्षक शांत है। पार्क में अनेक पेड़ लगे हुए हैं। पीपल के पेड़ की छाया तो बड़ी सुखद लगती है। मैं कभी-कभी सांयकाल को इस पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाता हूँ।

7. मेरा प्रिय टाइमपास-आज के भौतिकवादी युग में लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं। किसी के पास भी इतना समय नहीं है कि वह अपने सगे-संबंधियों के सुख-दुख में भाग ले सके अथवा उनकी सहायता कर सके। कभी-कभी वे अपने दायित्व को पूरा नहीं कर पाते। महानगरों के लोगों की निरंतर भाग-दौड़ लगी रहती है। मैं हरियाणा के नगर में रहता हूँ। प्रातः उठकर मैं नहा-धोकर कलेवा करने के बाद अपने दफ्तर जाता हूँ। दफ्तर में दिन-भर काम का बड़ा बोझ रहता है। कभी-कभी दोपहर का भोजन भी नहीं कर पाता। शाम को लौटकर घर के छोटे-मोटे काम करने पड़ते हैं। फिर भी मैं सात बजे के बाद कुछ समय के लिए खाली हो जाता हूँ। लगभग दो घंटे का समय काटे नहीं कटता। न मुझे टी०वी० देखना अच्छा लगता है, न ही सिनेमा, इसलिए मैंने अपने घर के एक छोटे-से कमरे में पुस्तकालय बना रखा है, जिसमें अंग्रेज़ी, हिंदी, पंजाबी की कुछ पुस्तकें हैं। मैं समय-समय पर नई पुस्तकें भी खरीदता रहता हूँ। टाइमपास करने का मेरा यह तरीका है साहित्यिक पुस्तकें पढ़ना। कभी-कभी तो पढ़ते-पढ़ते मैं इतना मग्न हो जाता हूँ कि मुझे ध्यान ही नहीं रहता कि मैंने रात का भोजन भी करना है। अन्ततः मेरी माँ मुझे आकर डाँटती है और भोजन करने के लिए कहती है।

के टाइमपास करने का सबसे बढ़िया तरीका पस्तकें पढना है, क्योंकि पस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। दिन-प्रतिदिन नई-नई पुस्तकें पढ़ने से जहाँ ज्ञान की वृद्धि होती है, वहाँ जीवन जीने के ढंग भी सीखने को मिलते हैं। मुंशी प्रेमचंद मेरा प्रिय साहित्यकार है। मैंने उनके उपन्यासों और कहानियों को अनेक बार पढ़ा है। ‘गोदान’ जैसे उपन्यास को तो बार-बार पढ़ने का मन करता है। शनिवार और रविवार को हमारा कार्यालय बंद होता है। इन दो दिनों में मैं खूब पुस्तकें पढ़ता हूँ। यद्यपि लोग टी०वी० देखकर अपना टाइमपास करते हैं, या इंटरनेट, कंप्यूटर पर बैठे हुए अपना समय व्यतीत करते हैं परंतु मैं समझता हूँ कि पुस्तकें पढ़ने से टाइमपास करने का ओर कोई बढ़िया तरीका नहीं हो सकता। इससे हमारे मन तथा मस्तिष्क की थकान खत्म होती है, परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है और समाज को समझने और जाँचने का संदेश मिलता है। टाइमपास करने का ऐसा ढंग होना चाहिए कि जिससे हमारा टाइम बर्बाद न हो क्योंकि समय सर्वाधिक मूल्यवान होता है। इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए, बल्कि समय को किसी सार्थक काम में काम लगाना चाहिए। पुस्तकें हमारे जीवन की साथी होती हैं। इन्हें पढ़ने से जहाँ ज्ञान की प्राप्ति होती है, वहाँ हमें जीवन के लिए संदेश भी मिलता है।

8. एक कामकाजी औरत की शाम-हमारे देश के मध्यवर्गीय परिवारों में पति-पत्नी दोनों को ही धन कमाने के लिए काम करना पड़ता है। एक ज़माना था, जब एक कमाता था, दस लोग खाते थे। परंतु आज वह ज़माना नहीं रहा। महँगाई के कारण सुख से जीना बड़ा कठिन हो गया है। इसलिए पति के साथ-साथ पत्नी भी कोई-न-कोई काम कर रही है। परंतु कामकाजी औरतों का जीवन पुरुषों की अपेक्षा बड़ा कठिन है। वह घर के साथ-साथ बाहर के कामों को भी सँभालती है। दफ़्तर से छुट्टी मिलने के बाद ही उसकी शाम शुरू हो जाती है। हमारे पड़ोस में राधेश्याम की पत्नी सरकारी दफ्तर में नौकरी करती है। छुट्टी मिलते ही वह रास्ते से फल और सब्जियाँ लेकर घर लौटती है। कभी-कभी उसे करियाने का सामान भी खरीदना होता है। उसके आने से पहले पति और बच्चे घर आ जाते हैं। वह भी दिन-भर की थकी-हारी होती है और कुछ आराम करना चाहती है, परंतु उसके भाग्य में आराम कहाँ? वह पति और अपने लिए चाय बनाती है और बच्चों के लिए कुछ पकाती है।

चाय पीते समय ही वह पति और बच्चों का हाल-चाल पूछती है। पति महोदय तो चाय पीकर घूमने के लिए बाहर निकल जाते हैं लेकिन वह बेचारी घर के काम-काज में व्यस्त हो जाती है। काम करते-करते शाम के सात बज जाते हैं। इसके बाद वह एक घंटे के लिए बच्चों की होमवर्क करने में सहायता करती है। इसी बीच उसे आस-पड़ोस के घरों में आना-जाना पड़ता है। इसके बाद वह रात का खाना तैयार करती है। उसका भी मन करता है कि वह टी०वी० के सीरियल देखे और अपना मनोरंजन करे, लेकिन कामकाजी औरत होने के कारण उसके पास खाली समय नहीं है। कभी वह पति की फरमाइश को पूरा करती है, कभी बच्चों की फरमाइश को। लगता है कामकाजी औरत की शाम दिन से अधिक कठिन है। उसका जीवन घड़ी की सुई के समान निरंतर गतिशील रहता है। मैं सोचता हूँ कि विधाता ने कामकाजी औरत के जीवन में सुख लिखा ही नहीं।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 3.
घर से स्कूल तक के सफर में आज आपने क्या-क्या देखा और अनुभव किया? लिखें और अपने लेख को एक अच्छा-सा शीर्षक भी दें।
उत्तर:
घर से स्कूल तक सफर
मेरा विद्यालय मेरे घर से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। मैं प्रातःकाल साइकिल पर सवार होकर घर से स्कूल के लिए चल पड़ता हूँ, क्योंकि मेरे गाँव में केवल एक ही प्राइमरी स्कूल है। बड़ी कक्षाओं के लिए पास के गाँव में जाना पड़ता है जहाँ पर एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है। गाँव की सड़क बड़ी ही ऊबड़-खाबड़ है। लगभग 4 वर्ष पहले इस सड़क का निर्माण हुआ था। इस पर अब ट्रैक्टर, ट्रालियाँ, बसें, कारें, ट्रक भी चलते रहते हैं। हमारे गाँव की सड़क मुख्य सड़क से जुड़ी है। सड़क पर जगह-जगह गड्ढे हैं। गाँव से बाहर निकलते ही मेरा सामना सामने हरे-भरे खेतों से होता है। सड़क के दोनों ओर वृक्ष लगे हैं। खेतों में स्त्री-पुरुष काम करते दिखाई देते हैं। कुछ किसान खेतों में ट्रैक्टर द्वारा हल चलाते देखे जा सकते हैं। प्रायः ग्रामीण स्त्रियाँ पशुओं के लिए चारा काटती हैं। यहाँ-वहाँ ट्यूबवैल भी लगे हैं। हम अपनी प्यास बुझाने के लिए यहीं का पानी पीते हैं। रास्ते में आते-जाते वाहन मिलते रहते हैं। मैं सावधान होकर साइकिल चलाता हूँ क्योंकि पिछले दिनों मेरा साथी मोटरसाइकिल से टकरा गया था जिससे उसको चोटें लगी थीं। कभी-कभी रास्ते में बस भी मिल जाती है जिसमें यात्री खचाखच भरे होते हैं। कुछ यात्री तो बस क ते हैं। इस सड़क पर थ्री-विलर और जीपें भी चलती हैं। ये वाहन लोगों को नगर तक पहँचाते हैं। जिन दिनों फसल पक कर तैयार हो जाती है, तब किसान उस फसल को ट्रालियों में भरकर बाहर की मंडी में ले जाते हैं। सड़क पर मैं तेज साइकिल नहीं चला सकता क्योंकि सड़क पर अनके गड्ढे हैं और हमेशा गिरने का भय लगा रहता है।

गाँव की पंचायत अनेक बार सरकार को पत्र लिख चुकी है कि वह इस सड़क की मरम्मत करा दे। परंतु अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगती। चुनाव के दिनों में यहाँ-वहाँ मरम्मत कर दी जाती है। चुनाव खत्म होते ही सड़कों का हुलिया फिर से बिगड़ जाता है। किंतु मुझे यह सड़क बहुत अच्छी लगती है। क्योंकि यहाँ खुली हवा है और प्रदूषण न के बराबर है। जिस बड़े गाँव में मेरा स्कूल है, वहाँ काफी भीड़ रहती है। आसपास कई दुकानें हैं, परंतु मैं इन सबसे बचते-बचाते स्कल पहँच जाता हूँ। मैं कई बार कि क्या ऐसी सरकार भी आएगी जो गाँवों की बिगड़ी हालत को सुधारने का काम करेगी।

प्रश्न 4.
आपने आसपास की किसी ऐसी चीज पर एक लेख लिखें, जो आपको किसी वजह से वर्णनीय प्रतीत होती हो। वह कोई चाय की दुकान हो सकती है, कोई सैलून हो सकता है, कोई खोमचेवाला हो सकता है या किसी खास दिन पर लगनेवाला हाट-बाज़ार हो सकता है। विषय का सही अंदाज़ा देनेवाला शीर्षक अवश्य दें।
उत्तर:
संडे बाजार अथवा ‘रविवारीय हाट-बाज़ार’
हमारे नगर में सार्वजनिक पार्क के पास एक बहुत बड़ा मैदान खाली पड़ा है। जिले के उपायुक्त ने हर रविवार को वहाँ मंडी आरंभ करने का निर्णय किया था। इस मंडी में प्रत्येक रविवार को गाँव के किसान अपने खेतों की ताजी सब्जियाँ सस्ते दामों पर बेचने आते थे। साँयकाल 4 बजे किसान लोग ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर सब्जी यहाँ लाते थे और स्वयं उसे बेचते थे। था-बिचौलियों की मुनाफाखोरी को समाप्त करना। वस्तुतः उपायुक्त महोदय की अच्छी सोच थी जो कि नगर के लोगों को काफी पसंद आई, लेकिन धीरे-धीरे यह मंडी संडे बाज़ार का रूप धारण करने लगी। अब यहाँ मुख्य सड़क के दोनों ओर व्यापारी रेडिमेड गारमेन्टस और प्रतिदिन के प्रयोग की वस्तुएँ बेचने के लिए प्रातःकाल ही अपनी दुकानें सजा लेते हैं। वस्तुतः ये दुकानदार बड़ी दुकानों के एजेंट होते हैं और वे बाज़ार की वस्तुएँ यहाँ पर बेचते हैं।

संडे बाज़ार से आप सस्ते कपड़े, जूते, चाय, चीनी, मोजे, बर्तन आदि सब कुछ खरीद सकते हैं। संडे बाज़ार में काफी चहल-पहल होती है। यहाँ-वहाँ खोमचे वाले खड़े होते हैं। चाय की भी दुकानें हैं और हलवाई की दुकानें भी हैं। सस्ते मोबाइल, रेडियो आदि इलैक्ट्रॉनिक चीजें भी यहाँ उपलब्ध हो जाती हैं। यहाँ दिन भर काफी भीड़ लगी रहती है। नगर भर के लोग यहाँ सस्ता सामान खरीदने आते हैं। अनजान व्यक्ति तो यहाँ धोखा खा जाता है। इस मंडी में अनेक बार लोगों की जेबें भी कट जाती हैं पुलिस का कोई बंदोबस्त नहीं है। दुकानदार ऊँची आवाज़ में ग्राहक को आवाजें देते हैं। जो समझदार ग्राहक होते हैं वही उचित मूल्य पर वस्तुएँ खरीद सकते हैं। साथ ही दुकानदार कह देते हैं कि बिका हुआ माल वापिस नहीं होगा।

पास में सब्जी और फलों की दुकानें भी हैं। इसी को लोग अपनी मंडी कहते हैं, परंतु यहाँ मुख्य मंडी के दुकानदार ही सब्जी बेचने आते हैं। वे मनमाने दामों पर सब्जियाँ बेचते हैं। लगभग चार बजे गाँव के कुछ किसान भी सब्जियाँ लेकर यहाँ पहुँच जाते हैं। गोभी, पालक, बैंगन, मूली, गाजर, टमाटर आदि हरी सब्जियाँ यहाँ उपलब्ध हो जाती हैं। उनके दाम भी सही होते हैं। जो ग्राहक संडे बाजार को अच्छी तरह समझते हैं, वे इन्हीं किसानों से सब्जी खरीदते हैं। यह बाज़ार सुबह 10 बजे खुलता है तथा रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहाँ सरकार द्वारा बिजली का प्रबंध तो है, परंतु कोई शैड नहीं बना। इसलिए दुकानदार स्वयं ही कोई तरपाल या शामियाना लगाकर सामान बेचते रहते हैं। मैं समझता हूँ कि यह संडे बाज़ार गरीब ग्राहकों का अच्छा सहारा है क्योंकि यहाँ पर मुख्य बाज़ार की अपेक्षा सस्ती वस्तुएँ मिल जाती हैं।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

HBSE 12th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) भूमिविषयके अभियोगे ‘किन्तु’-ना का बाधा उपस्थापिता ?
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं केन विनाश्यते ?
(ग) लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य कथम् इतिश्रीरभूत् ?
(घ) नेतृमहोदयः पुस्तकप्रशंसां कुर्वन् ‘किन्तु’ प्रयोगेन कं परामर्शम् अददात् ?
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले कीदृशी प्रदर्शनी समायोजिता आसीत् ?
(च) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(छ) धर्मव्यवस्थापक: विधवायाः पुनर्विवाहमुचितं मन्यमानोऽपि व्यवस्थां किमर्थं न ददौ ?
(ज) गृहिणी पत्युः कर्णसमीपे आगत्य शनैः किम् अवदत् ?
(झ) लोकाः किन्तु-युक्तां वार्ता केन कारणेन विगुणां गणयन्ति ?
(ञ) किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः कः ?
उत्तरम्:
(क) ‘राजस्वविभागस्य प्रधानः अधिकारी तद्-विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवान्’- इति बाधा किन्तुना उपस्थापिता।
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं किन्तुना विनाश्यते।
(ग) “किन्तु किञ्चित् स्वगृहाभिमुखं विलोकनीयम्’ इति अध्यापकवचनेन लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य इति श्रीः अभूत्।
(घ) नेतृमहोदयः परामर्शम् अददात्- “यदि इदं पुस्तकं हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यग् अभविष्यत्।”
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी समायोजिता आसीत्।
(च) लेखकमहोदयस्य कण्ठनलिकां स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ अरुधत्।
(छ) यतः धर्मव्यवस्थापक: प्राचीनमर्यादाम् अपि रक्षितुम् इच्छति स्म, अतः सः पुनर्विवाहस्य व्यवस्थां न ददौ।
(ज) सा अवदत्-“अन्धकारेऽस्मिन् त्वम् अवश्यं यासि, ‘किन्तु’ दृश्यताम्, स शस्त्रं न प्रहरेत्।”
(झ) यतः किन्तुयुक्तायाः वार्तायाः सिद्धौ किन्तुना बाधा अवश्यमेव स्थाप्यते, अतः लोकाः किन्तुयुक्तां वार्ता विगुणां गणयन्ति।
(ञ) एषः किन्तुः सर्वासां वार्तानां मध्ये प्रविश्य वार्तायाः विच्छेदम् अवश्यं करोति इत्येव किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः ।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

2. उपयुक्तशब्दान् चित्वा रिक्तस्थानानां पूर्तिः विधेया
(दुर्घटा, अवधानम्, सन्दानितः, स्वामिमहोदयम्, संस्कृते, विवाहस्य, शान्तम्, पलायांचक्रे, कालात्, संकटे)
(क) अहं…………….. अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता…………. अस्ति।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण ……………अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने……………..अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः……………..कदाचिदुपयुक्तो भवेत् ।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः……………..न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः………………..
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं……………..निःश्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या …………….. अद्य तृतीयो दिवसः ।
(ञ) बहुकालानन्तरं…………….. एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।
उत्तरम्:
(क) अहं स्वामिमहोदयम् अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि ।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्यै सफलता दुर्घटा अस्ति ।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितः अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानम् अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत्।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहो: कालात् न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे।
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं नि:श्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः।
(ब) बहुकालानन्तरं संस्कृते एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।

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3. अधोलिखितैः उचितक्रियापदैः रिक्तस्थानानि पूरयत परिगण्येत, परावर्तिषि, आच्छिनत्ति, मन्यामहे, दीयेत, अलिखिष्यत्।
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं ………… ।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव …………. ।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् …………. तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था ………….।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि ………… ।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः ……….. ।
उत्तरम्:
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूर: ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत।

4. सन्धिच्छेदं कुरुत
उत्तरसहितम्
(क) तत्रैवास्य = तत्र + एव + अस्य
(ख) सर्वाण्येव = सर्वाणि + एव
(ग) मन्निर्मितमेकम् = मत् + निर्मितम् + एकम्
(घ) किलैकोऽधिकारी = किल + एकः + अधिकारी
(ङ) द्वयोरुपर्येव = द्वयोः + उपरि + एव।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम्
(क) निर्मुच्य = निर् + √मुच् + क्त्वा > ल्यप्
(ख) आदाय = आ + √दा + क्त्वा > ल्यप्
(ग) प्रविष्टः = प्र + √विश् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(घ) आगत्य = आ + √गम् + क्त्वा > ल्यप्
(ङ) परिज्ञातम् = परि + √ज्ञा + क्त (नपुंसकलिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

6. अधोलिखितेषु पदेषु विभक्तिं वचनं च दर्शयत
उत्तरसहितम्
(क) कार्ये कार्य-सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(ख) अभियोक्तुः अभियोक्तृ-पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(ग) बालिकायाः बालिका – पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(घ) न्यायालयेन न्यायालय-तृतीया विभक्तिः, एकवचनम्
(ङ) नेतुः नेतृ – सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(च) शक्तौ शक्ति – सप्तमी विभक्तिः, एकवचनम्
(छ) औषधिम् औषधि – द्वितीया विभक्तिः, एकवचनम्

7. स्वरचितवाक्येषु अधोलिखितपदानां प्रयोगं कुरुत
किन्तु, गन्तुम, मह्यम्, विभीषिका, भरणपोषणम्, दृष्ट्वा
उत्तरम्:
(क) किन्तु-अहं धावनप्रतियोगितायां सर्वतो अग्रे आसम्, किन्तु सहसा मम पादस्खलनम् अभवत्।
(ख) गन्तुम्-अहं विद्यालयं गन्तुम् इच्छामि।
(ग) मह्यम्-मयं पठनम् अतीव रोचते।
(घ) विभीषिका-परीक्षायाः विभीषिका मनः उद्वेलयति।
(ङ) भरणपोषणम्-परिवारस्य भरणपोषणं तु सर्वेषां कर्तव्यम् अस्ति।
(च) दृष्ट्वा-अधः दृष्ट्वा कथं न गच्छसि ?

8. विलोमशब्दान् लिखत
उत्तरसहितम्: – विलोमपदम्
(क) विगुणः – सगुणः
(ख) शौर्यम् – अशौर्यम्
(ग) सुरक्षितः – विनष्टः
(घ) शत्रुता – मित्रता
(ङ) धीरः – अधीरः
(च) भयम् – निर्भयम्

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

योग्यताविस्तारः
1. स्वकल्पनया वाक्यपूर्तिं कुरुत
उत्तरम्
(क) अहम् उच्चाध्ययनं कर्तुमिच्छामि, किन्तु आर्थिकस्थितिः न अनुमन्यते।
(ख) छात्राः कक्षायामुपस्थिताः किन्तु अध्यापकः एव नास्ति।
(ग) सः गन्तुमिच्छति, किन्तु बसयानम् एव निर्गतम्।
(घ) वयं तर्तुच्छिामः, किन्तु क्लिन्नाः भवितुं न इच्छामः ।
(ङ) ते कार्यं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु अवसरः एव न लभन्ते।
(च) अर्वाचीनाः जना अपि प्राचीनां भाषां पठितुमिच्छन्ति, किन्तु यदि तया आजीविका सिध्येत तदैव ।
(छ) निर्धना अपि धनमिच्छन्ति, किन्तु धनेन एव धनम् अर्च्यते इति समस्या।
(ज) सर्वे जना आजीविकामिच्छन्ति, किन्तु सर्वेभ्यः सा सुलभा न भवति।
(झ) मूकोऽपि वक्तुमिच्छति, किन्तु असमर्थः अस्ति। ..
(ञ) अध्यापका अध्यापनं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु केचन छात्राः एव पठितुं न इच्छन्ति।

2. अधोलिखितानाम् आभाणकानां समानार्थकानि वाक्यानि पाठात् अन्वेष्टव्यानि
(क) मुँह का कौर छीनना।
(ख) कुछ दिन पहले की बात है।
(ग) खोटा सिक्का और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं।
(घ) नाक-भौंह सिकोड़ना।
उत्तरम्:
(क) मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(ख) स्वल्पदिनानामेव वार्तास्ति।
(ग) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचित् उपयुक्तो भवेत्।
(घ) नासा-भ्रूसकोचः।

HBSE 9th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(A) पत्नी
(B) स्वामिमहोदस्य किन्तुः
(C) मन्त्रिमहोदयस्य किन्तुः
(D) शिक्षकः।
उत्तराणि
(B) स्वामिमहोदयस्य किन्तुः ।

(ii) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्य केन विनाश्यते ?
(A) स्वामिना
(B) सेवकेन
(C) अधिकारिणा
(D) किन्तुना।
उत्तराणि
(C) किन्तुना

(iii) गरिष्ठवस्तुनो भोजने किम् अत्यावश्यकम् ?
(A) मिष्ठान्नम्
(B) तिक्त-व्यञ्जनम्
(C) अवधानम्
(D) क्षीरम्।
उत्तराणि
(B) अवधानम्

(iv) गहिणी कस्य कर्णसमीगे आगत्य शनैः अवदत् ?
(A) पत्युः
(B) अधिकारिणः
(C) किन्तोः
(D) मन्त्रिणः।
उत्तराणि
(A) पत्युः

(v) कस्य कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटा अस्ति ?
(A) पत्न्याः
(B) न्युः
(C) किन्तोः
(D) स्वामिनः।
उत्तराणि
(A) किन्तोः

(vi) भूमेः अभियोगः कुत्र चलति स्म ?
(A) ग्रामपञ्चायते
(B) न्यायालये
(C) नगरे
(D) ग्रामे।
उत्तराणि
(D) न्यायालये।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

II. रेखाकितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) क्रूरः किन्तुः मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।
(A) कः
(B) काः
(C) के
(D) किम्।
उत्तराणि:
(D) किम्

(ii) राजस्वविभागस्य एक: अधिकारी एतद्विरोधे पत्रं प्रेषितवान्।
(A) काः
(B) कस्मात्
(C) कस्य
(D) कस्मिन्।
उत्तराणि:
(C) कस्य

(iii) कन्यायाः पतिः सहसा अम्रियत।
(A) कस्याः
(B) कः
(C) कथम्
(D) को।
उत्तराणि:
(B) कः

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) किम्
(B) कुत्र
(C) कस्मात्
(D) कस्य।
उत्तराणि:
(B) कुत्र

(v) स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुना अहं नीरोगः अभवम्।
(A) कीदृशः
(B) काः
(C) के
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(A) कीदृशः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठ्यांशः

1. कुटिलेनामुना ‘किन्तु’-ना कियत्कालात् क्लेशितोऽस्मि। यत्र यत्राहं गच्छामि तत्र तत्रैवास्य शत्रुता सम्मुखस्थिता भवति। अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटास्ति। बहून् वारान् दृष्टवानस्मि यत्कार्यं सर्वथा सज्जं सम्पद्यते, सर्वप्रकारैः सिद्धिहस्तगता भवति, यथैव सफलताया मूर्तिः सम्मुखमागच्छन्ती विलोक्यते तथैव क्रूरोऽयं किन्तुर्मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।

हिन्दी-अनुवादः इस कुटिल ‘किन्तु’ शब्द से मैं कितने ही समय से पीड़ित हूँ। मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, वहाँ-वहाँ ही इसकी शत्रुता सामने आ खड़ी होती है। इस ‘किन्तु’ के कारण किसी भी कार्य में सफलता अति-कठिन है। मैंने बहुत बार देखा है कि जो काम पूरी तरह से तैयार होता है, सब प्रकार से सफलता हाथ में आने वाली होती है, जैसे ही सफलता की मूर्ति सामने आती हुई दिखाई पड़ती है, वैसे ही यह क्रूर ‘किन्तु’ बीच में घुसकर सब नष्ट-भ्रष्ट कर देता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च क्लेशितः = दुःखी; कष्टापन्नः, √क्लेिश + क्त । दुर्घटा = असम्भव, कठिन; दुःखेन घटयितुं शक्या, दुर् + √घट् + आ। बहून् वारान् = बहुत बार; अनेकवारम्। आगच्छन्ती = आती हुई; आयान्ती, आ + √गम् + शतृ + ङीप्।

2. राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः कालान्यायालये चलति स्म। अस्मिन्नभियोगे प्राविवाकमहोदयो निर्णयं श्रावयन् अवोचत् … वयं पश्यामो यदभियोक्तुः पक्षादावश्यकानि सर्वाण्येव प्रमाणान्युपस्थितानि सन्ति। राज्यतो लब्धाया भूमेर्दानपत्रमप्युपस्थापितमस्ति। न्यायालयेन परिज्ञातं यत् इयं भूमिरभियोक्तुरधिकारभुक्ताऽस्ति……..।’
अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं निःश्वासममुचम्। मया सर्वथा स्थिरीकृतं यद्भाग्य-लक्ष्मीरनुपदमेव मे कन्धरायां विजयमाल्यं प्रददातीति। परं प्राविवाकमहोदयः पुनरग्रे प्रावोचत्- ……… किन्तु राजस्व-विभागस्य प्रधानः किलैकोऽधिकारी एतद्विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।’ मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे। किन्तु’-कुन्तो ममान्तः-करणं समन्तात् कृन्तति स्म। निजहृदयमवष्टभ्य न्यायं प्रशंसन् गृहमागमम्।

हिन्दी-अनुवादः राज्य से प्राप्त भूमि का अभियोग बहुत समय से न्यायालय में चल रहा था। इस अभियोग में जज महोदय ने निर्णय सुनाते हुए कहा-‘हम देखते हैं कि अभियोक्ता के पक्ष की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर दिए गए हैं। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी उपस्थित कर दिया गया है। न्यायालय ने अच्छी तरह जान लिया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है………….।

मैंने निश्चिन्तता से एक शान्त श्वास छोड़ी। मैंने पूरी तरह से निश्चय कर लिया कि भाग्यलक्ष्मी तुरन्त ही मेरे गले में विजयमाला पहनाने वाली है। परन्तु जज महोदय ने फिर आगे कहा-‘…………किन्तु राजस्व विभाग के एक मुख्य अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है। इस पर भी एक नज़र डालना मैं आवश्यक समझता हूँ।’ मेरा सारा उत्साह फुर्र हो गया (गायब हो गया)। किन्तु’ रूपी भाला मेरे चित्त को चारों तरफ से काट रहा था। मैं अपने हृदय को सान्त्वना देकर न्याय की प्रशंसा करते हुए घर वापस आ गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अभियोगः = मुकद्दमा; अभि + √युज् + घञ्, पुंल्लिङ्ग, प्रथम पुरुष एकवचन। अभियोक्तुः = मुद्दई का, मुकद्दमा चलाने वाले का; अभि + √युज् + तृ। ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग, पञ्चमी एकवचन। कुन्तः = भाला। मुद्रा = मुखाकृति । प्राबल्यस्य = प्रबलता का, वेगपूर्वक; प्र + √बल + ष्यञ्, नपुंसकलिङ्ग, षष्ठी एकवचन। निर्वाणा = समाप्त हो चुकी; निर् + √वा + क्त, स्त्रीलिङ्ग, प्रथमपुरुष, एकवचन। इतिश्रीः = समाप्ति। मार्मिकः = तत्त्वज्ञ, विषयज्ञ; मर्म + ठक्, प्रथमपुरुष एकवचन। कन्धरायाम् = गले में, गर्दन पर। प्राड्विवाकः = जज, न्यायाधीश। लक्ष्यदानम् = दृष्टिपात, ध्यानदेना; लक्ष्यस्य दानम्, षष्ठी-तत्पुरुष। कृन्तति स्म = काट रहा था। अवष्टभ्य = रोककर; अव + √स्तम्भ (अवरोध) + ल्यप्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

3. दृष्टं मया यदेष ‘किन्तुः’ दयाधर्मादिष्वपि अनधिकारचेष्टातो न विरतो भवति। प्रातः कालस्यैव कथास्ति…. धर्मव्यवस्थापकमहोदयस्य समीपे एको दीनः करुणक्रन्दनपुरःसरं न्यवेदयत्-“महाराज! नववार्षिकी मे कन्या। जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः। नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत। तस्याः पतिः सहसाऽम्रियत। हा हन्त! तस्या अबोधबालिकाया अग्रे किं भावि? अस्तकर्मसंख्यावृद्धौ किं ममोच्चकुलमपि सहायकं भविष्यति? आज्ञापयन्तु श्रीमन्तः किं मया साम्प्रतं कर्तव्यम्।” पण्डितमहोदयो गभीरतममुद्रयाऽवोचत्… “अवश्यमिदं दयास्थानम्। वर्तमानकाले समाजस्य भीषणपरिस्थितेः पर्यालोचन इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवं विधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत…. किन्तु’ वयं मुखेन कथमेतत् कथयितुं शक्नुमः। प्राचीनमर्यादापि तु रक्षितव्या स्यात्।”

हिन्दी-अनुवादः मैंने देखा है कि यह ‘किन्तु’ दया धर्म आदि में भी अपनी अनधिकार चेष्टा से रुकता नहीं है। प्रातः काल की ही बात है……. धर्मव्यवस्थापक महोदय के पास एक गरीब ने करुणक्रन्दन पूर्वक निवेदन किया-“महाराज! नौ वर्ष की मेरी कन्या है। उसका विवाह हुए तीन दिन बीत गए। आज भी ‘चतुर्थी कर्म’ पूरा नहीं हुआ, जिससे विवाह पूर्ण गिना जाए। उसका पति अचानक मर गया। हाय! उस अबोध बालिका का अब आगे क्या होगा? ‘अस्तकर्म’ की संख्या बढ़ाने में क्या मेरा उच्च कुल भी सहायक होगा ? आप आज्ञा कीजिए कि मुझे क्या करना है?” पण्डित महोदय ने गम्भीरतम मुद्रा में कहा-“यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है। वर्तमान समय में समाज की
भीषण परिस्थिति को देखते हुए यही उचित प्रतीत होता है कि ऐसी दशा में पुनर्विवाह की व्यवस्था दे दी जाए (नियम बना दिया जाए)। ‘किन्तु हम अपने मुख से यह बात कैसे कह सकते हैं? प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो की जानी चाहिए।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च विरतः = विरत, पृथक्, अलग; वि + √रम् + क्त। चतुर्थीकर्म = विवाहोपरान्त चौथे दिन किया जाने वाला कर्म, चतुर्थे अहनि क्रियमाणं कर्म, मध्यमपदलोपी समास। न्यवेदयत् = निवेदन किया, नि + अवेदयत्, √विद् (ज्ञाने) लङ् लकार णिजन्त, प्रथमपुरुष, एकवचन । नववार्षिकी = नौ वर्ष की आयु वाली। परिगण्येत = गिना जाए; परि + √गण (संख्याने) + विधिलिङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। साम्प्रतम् = अभी, वर्तमान में, सम्प्रति एव साम्प्रतम्। गभीरतमम् = गम्भीरतम; गभीर + तमप्। पर्यालोचने = देखने पर, समग्र दृष्टिपात करने पर; परि + आ + √लोच् + ल्युट् सप्तमी विभक्ति, एकवचन (दर्शन, अंकन)।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

4. कुत्रचित् सोऽयं ‘किन्तुः’ नितान्तमनुतापं जनयति। अनेकवर्षाणां परिश्रमस्य फलस्वरूपं मन्निर्मितमेकं नवीनसंस्कृतपुस्तकमादाय साहित्यमर्मज्ञस्य एकस्य देशनेतुः समीपेऽगच्छम्। ‘नेतृ’-महोदयः पुस्तकस्य गुणान् सम्यक् परीक्ष्य प्रसन्नः सन्नवोचत्… “पुस्तकं वास्तव एव अद्भुतं निर्मितमस्ति बहुकालानान्तरं संस्कृते एवंविधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।… ‘किन्तु’ मत्सम्मत्यां तदिदं पुस्तकं भवान् संस्कृते न विलिख्य यदि हिन्दीभाषायामलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।” अनेन ‘किन्तु’-ना मह्यं सा शिक्षा दत्तास्ति यद्यहं सत्पुरुषः स्यां तर्हि पुनरस्मिन् मार्गे पदनिक्षेपस्य नामापि न गृह्णीयाम्।

हिन्दी-अनुवादः – कहीं पर तो यह ‘किन्तु’ अत्यधिक दुःख पैदा करता है। अनेक वर्षों के परिश्रम के फलस्वरूप अपने द्वारा रचित एक नवीन संस्कृत पुस्तक लेकर एक साहित्य-मर्मज्ञ देश के नेता के समीप पहुँचा। नेता जी ने पुस्तक के गुणों की उचित परीक्षा करके प्रसन्न होते हुए कहा-“पुस्तक तो वास्तव में अद्भुत लिखी गई है। बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की नवीनता देखी गई है।…….. किन्तु’ मेरी सम्मति में आप इस पुस्तक को संस्कृत में न लिखकर यदि हिन्दी भाषा में लिखते तो बहुत अच्छा होता।”

घर वापस लौटते हुए मैं ‘किन्तु’ द्वारा दी गई इस मर्मवेधक शिक्षा पर, घर के पूरे रास्ते कान मसलता हुआ चला गया। इस ‘किन्तु’ ने मुझे वह शिक्षा दी थी कि यदि मैं सत्पुरुष हूँ तो फिर इस रास्ते पर पाँव रखने का नाम भी न लूँ।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च नितान्तम् = अत्यधिक। अनुतापम् = पश्चात्ताप, पछतावा; अनु + तापम्। परीक्ष्य = परीक्षा करके, परि + √ईक्ष् + ल्यप्। निवर्तमानः = लौटता हुआ; नि + √वृत् + शानच । मर्मवेधकशिक्षायाः = मर्मभेदी शिक्षा के। मर्दयन् = मसलता हुआ। पदनिक्षेपः = कदम रखना; पदयोः निक्षेपः (षष्ठी-तत्पुरुष)

5. कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमप्याच्छिनत्ति। स्वल्प-दिनानामेव वार्तास्ति। आयुर्वेदमार्तण्डस्य श्रीमतः स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुनैवाहं नीरोगोऽभवम्।अस्मिन्नेव समये मित्रगोष्ठ्या अहं स्वामिमहोदयमप्राक्षम्… ‘किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।’ उत्तरमलभ्यत… ‘तादृशी हानिस्तु नास्ति। ‘किन्तु’ गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानमत्यावश्यकम् अधुनापि दौर्बल्यमस्ति।

हिन्दी-अनुवादः कभी-कभी तो यह क्रूर किन्तु मुख के कवल (ग्रास) को भी छीन लेता है। थोड़े ही दिनों की बात है। आयुर्वेद मार्तण्ड श्री स्वामी जी महाराज की औषधि का सेवन करके अब मैं स्वस्थ हो गया हूँ। इसी समय मित्र मण्डली की ओर से निमन्त्रण प्राप्त हुआ। भोजनगोष्ठी (पार्टी) में सम्मिलित होने के लिए मेरी इच्छा शक्ति की प्रबलता का प्रवाह पूरी तरह से बढ़ रहा था। मैंने स्वामी जी महाराज से पूछा-“क्या मैं वहाँ जा सकता हूँ।” उत्तर मिला-“वैसे तो कोई हानि नहीं है, ‘किन्तु’ गरिष्ठ पदार्थों के सेवन में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है, अभी भी कमजोरी है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च कवलम् = ग्रास। आच्छिनत्ति = छीन लेता है; आ + √छिद् + लट्लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन। स्वल्पदिनानाम् एव वार्ता = थोड़े दिनों की ही बात। निषेव्य = सेवन करके; नि + √सेव् + ल्यप् । समवेतुम् = सम्मिलित होने के लिए; सम्मिलितुम्, सम् + अव + √इ + तुमुन्। प्रवर्द्धमानः = अत्यधिक बढ़ा हुआ; प्र + √वृध् + शानच्। अप्राक्षम् = पूछा। अवधानम् = सावधानी, परहेज; अव + √धा + ल्युट > अन। दौर्बल्यम् = दुर्बलता, कमज़ोरी; दुर्बल + ण्यत्।

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6. उत्साहस्य ज्वाला या पूर्वं प्रचण्डतमा आसीत् अर्द्धमात्रायां तु तत्रैव निर्वाणाभवत्। अस्तु येन केनापि प्रकारेण भोजनगोष्ठ्याविशेषाधिवेशनेऽस्मिन् सम्मिलितस्त्वभवमेव। भोजनपीठे अधिकारं कुर्वन्नेवाहमपश्यं यत् सर्वागपूर्णा एका भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी सम्मुखे वर्तत इति।धीरगम्भीरक्रमेणाहं भोजनकाण्डस्यारम्भमकरवम्। अहं मोदकस्यैकं ग्रासमगृह्णम्। तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितोऽहं यथैव द्वितीय ग्रासमगृह्ण तथैव ‘स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्। मुखस्य ग्रासो मुख एवाऽभ्राम्यत् अग्रे गन्तुं नाशक्नोत्। ‘किन्तोः’ भीषणविभीषिका प्रत्येकवस्तुनि गरिष्ठतां सम्पाद्य भोजनं तत्रैव समाप्तमकरोत्।

हिन्दी-अनुवादः – उत्साह की जो ज्वाला पहले अत्यधिक प्रचण्ड हो रही थी, आधे ही मिनट में वहीं बुझ गई। भोजन के आसन पर अधिकार जमाते हुए मैंने देखा कि एक सर्वांगपूर्ण भोज्य व्यंजनों की प्रदर्शनी सामने लगी हुई है। धीर-गम्भीर क्रम से मैंने भोजनकाण्ड की शुरुआत कर दी। मैंने लड्डू का एक ग्रास लिया। उसके स्वाद सूत्र से बँधे हुए मैंने जैसे ही दूसरा ग्रास ग्रहण किया तभी स्वामी महोदय की ‘किन्तु’ से मेरी कण्ठनली ही रुंध गई। मुख का ग्रास मुख में ही घूम गया, आगे जा ही न सका। ‘किन्तु’ के भीषण भय ने प्रत्येक वस्तु में गरिष्ठता बता कर भोजन वहीं समाप्त कर दिया।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अर्द्धमात्रायाम् = आधे मिनट में। निर्वाणा = शान्त हो गई, बुझ गई। सम्मिलितस्त्व- भवमेव = सम्मिलितः + तु + अभवम् + एव। स्वादसूत्रेण = स्वाद रूपी रस्सी से। सन्दानितः = बँधा हुआ; सन्दान + इतच् । अभ्राम्यत् = घूम गया। विभीषिका = भय, डर; वि + √भी + णिच् + ण्वुल् + टाप, षुक्, आगम और इत्व।

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7. अहं देशसेवां कर्तुं गृहाद बहिरभवम्। मया निश्चितमासीत् ‘एतावन्ति दिनानि स्वोदरसेवायै क्लिष्टोऽभवम। इदानीं कियन्तं कालं देशसेवायामपि लक्ष्यं ददामि। यथैवाहं मार्गेऽग्रेसरो भवामि, तथैव मम बाल्याध्यापकमहोदयः सम्मुखोऽभवत्। मास्टरमहोदयेन प्रस्थानहेतौ पृष्टे सति सम्पूर्णसमाचारनिवेदनं ममाऽऽवश्यकमभूत्। अध्यापकमहोदयः प्रावोचत्… “तात, सर्वमिदं सम्यक्। किन्तु स्वगृहाभिमुखमपि किञ्चिद्विलोकनीयं भवेत्। येषां भरणपोषणं भवत्येवायत्तम् तान् किं भवान् निराधारमेव निर्मुच्य स्वैरं गन्तुमर्हेत्।”
पुनः किमासीत्। अत्रैव परोपकारविचाराणाम् इतिश्रीरभूत्। किन्तु’-महोदयेन देशसेवायाः सर्वापि विचारपरम्परा परपारे परावर्त्यत गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।

हिन्दी-अनुवादः मैं देशसेवा करने के लिए घर से बाहर हुआ। मैंने निश्चय किया था कि इतने दिनों तक अपनी पेट-पूजा के लिए कष्ट उठाया है। अब कुछ समय देशसेवा में भी लगाता हूँ। जैसे ही मैं रास्ते में आगे-आगे हुआ, तभी मेरे बचपन के अध्यापक मेरे सामने आ गए। मास्टर महोदय द्वारा प्रस्थान का कारण पूछने पर मेरे लिए सारा समाचार निवेदन करना आवश्यक हो गया था। अध्यापक महोदय ने कहा-“पुत्र, यह सब तो ठीक है। ‘किन्तु’ अपने घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। जिनके भरण-पोषण की आपने ज़िम्मेदारी ली है, क्या आप उन्हें बेसहारा छोड़कर अपनी इच्छानुसार जा सकते हो?” फिर क्या था, यहीं पर परोपकार के विचार की इतिश्री हो गई। ‘किन्तु’ जी महाराज ने देशसेवा की सारी विचार परम्परा को परले पार कर (लौटा) दिया। घर की ओर मुँह करते हुए उसी स्थान से वापस लौट गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च स्वोदरसेवायै = अपनी पेट-पूजा के लिए। क्लिष्टः = दुःखी। कियन्तं कालम् = कुछ समय। अग्रेसरः = आगे चलने वाला। आयत्तम् = प्राप्त किया गया, स्वीकार किया गया। निराधारम् = व्यर्थ। निर्मुच्य = छोड़कर; परित्यज्य, निः + √मुच् + ल्यप्। स्वैरम् = स्वेच्छानुसार। गन्तुम् अर्हेत् = जा सकते हो; ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्दों के साथ √अर्ह धातु का प्रयोग √शक् धातु (= सकना) के अर्थ में होता है। परपारे = परले पार, दूसरी ओर। परावर्त्यत = लौटा दिया।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

8. मयानुभूतमस्ति यदयं कुटिलः ‘किन्तुः’ नानादेशेषु नानारूपाणि सन्धार्य गुप्तं विचरति। यथैव लोकानां कार्यसिद्धेरवसरः समुपतिष्ठते तथैवायं प्रकटीभूय लोकानां कार्याणि यथावस्थितमवरुणद्धि। अहमेतस्य ‘किन्तु’कुठारस्य कठोरतया नितान्तमेव तान्तोऽस्मि। अहं वाञ्छामि यदेतस्याक्रमणात् सुरक्षितो भवेयम्। परं नायं मां त्यक्तुमिच्छति। बहवो मार्मिका मामबोधयन् यत् ‘त्वम् एतं सम्मुखमायान्तं दृष्ट्वैव कथं वित्रस्यसि, कुतश्च एनमपसारयितुं प्रयतसे ? किमेनं सर्वथा अहितकारिणमेव निश्चितवानसि ? नेदं सम्यक् पशुघातकस्य छुरिकापि पाश-पतितस्य गलबन्धनं छित्त्वा समये प्राणरक्षां कुर्वती दृष्टा।’ अहमपि सत्यस्यैकान्ततोऽपलापं न करिष्यामि। एतस्य कथनस्य सत्यताया मयापि परिचयः कदाचित् कदाचित् प्राप्तोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः मैंने अनुभव किया कि यह कुटिल ‘किन्तु’ अनेक स्थानों पर अनेक रूप धारण करके गुप्त रूप से विचरण करता है। जैसे ही लोगों की कार्य सिद्धि का अवसर समीप होता है, तभी यह प्रकट होकर लोगों के कार्यों को उसी स्थिति में रोक देता है। मैं इस ‘किन्तु’ के कुल्हाड़े की कठोरता से बुरी तरह पीड़ित हूँ। मैं चाहता हूँ कि इसके आक्रमण से बच जाऊँ। परन्तु यह मुझे छोड़ना ही नहीं चाहता। बहुत से मर्मज्ञों ने मुझे समझाया कि तुम इसे सामने आता हुआ देखकर ही क्यों डर जाते हो और क्यों इसे दूर करने के लिए यत्नशील रहते हो ? क्यों इसे सर्वथा अहितकर ही मानते हो ? यह ठीक नहीं। पशुघातक की छुरी भी जाल में बँधे हुए के गले का बन्धन काटकर, अवसर आने पर प्राण रक्षा करती हुई देखी गई है। मैं भी सच्चाई को पूरी तरह से नहीं झुठलाऊँगा। इस कथन की सत्यता का परिचय मुझे भी कभी कभी प्राप्त हुआ है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सन्धार्य = धारण करके; सम् + √धृ + णिच् + ल्यप्। तान्तः = पीड़ित, परेशान। वित्रस्यसि = डर रहे हो; वि + √त्रस, लट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन। अपसारयितुम् = दूर भागने के लिए; अप + √सृ + णिच् + तुमुन्। पाशपतितस्य = जाल में फंसे हुए के। अपलापम् = झुठलाना, सत्य को असत्य और असत्य को सत्य करना।

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9. ‘शब्दैः प्रतीयते यद गहे चौरः प्रविष्टोऽस्ति’ इति सभयमनुलपन्ती गहिणी रात्रौ मामबोधयत् । अहं निजशौर्य प्रकाशयन् महता वीरदर्पण लगुडमात्रमादाय अन्धकार एव चौरनिग्रहाय प्रचलितोऽभवम्। गृहिणी कर्णसमीप आगत्य शनैरवदत्… “अन्धकारे-ऽस्मिन् यासि त्वमवश्यम्, ‘किन्तु’ दृश्यताम् स शस्त्रं न प्रहरेत्।” पुनः किमासीत्। मम वीरदर्पस्य शौर्यस्य च प्रज्वलितं ज्योतिस्तत्रैव निर्वाणमभूत। चौरनिग्रहः कीदृशः, निजप्राणपरित्राणमेव मे अन्वेषणीयमभवत्। लगडं प्रक्षिप्य कोष्ठके निलीनोऽभवम्। तत एव च कम्पित-कण्ठेन चीत्कारमकरवम्-“लोका: ! आगच्छत, चौरः प्रविष्टोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः ‘आवाजों से प्रतीत होता है कि घर में चोर घुस आया है’-इस प्रकार भयपूर्वक कहती हुई मेरी घरवाली ने रात्री में मुझे जगाया। मैं अपनी शूरवीरता प्रकट करते हुए बड़े घमण्ड से लाठी मात्र लेकर अन्धकार में ही चोर को पकड़ने के लिए चल पड़ा। पत्नी ने कान के पास आकर धीरे से कहा-“अन्धकार में तुम जाना ज़रूर, ‘किन्तु’ देखना, कहीं वह शस्त्रप्रहार न कर दे।” फिर क्या था। मेरे वीरोचित घमण्ड और शूरता की जली हुई ज्योति वहीं बुझ गई। चोर का पकड़ना कैसा, मैं अपनी प्राणरक्षा ही खोजने लगा। लाठी फैंक कर कोठे (कमरे) में छिप गया। तभी काँपते हुए स्वर से मैं चीखा-“लोगो ! आओ, चोर घुस आया है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अनुलपन्ती = कहती हुई; अनु + √लप् + शतृ + ङीप्। चौरनिग्रहाय = चोर को पकड़ने के लिए; चौरस्य निग्रहाय (चतुर्थी तत्पुरुष)। परित्राणम् = रक्षण, बचाव, परि + √त्रैङ् (पालने) + ल्युट नपुंसकलिङ्ग प्रथमपुरुष एकवचन। अन्वेषणीयम् = ढूँढने योग्य, खोजने योग्य; अनु + √इष् + अनीयर् प्रत्यय। लगुडम् = लाठी, दण्ड। निलीनः = छुपा हुआ; नि + √ली + क्त प्रत्यय।

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10. एकेन अमुना ‘किन्तु’-ना चौरस्य चपेटाभ्योऽवमुच्य सौख्यस्य सुरक्षिते प्रकोष्ठकेऽहं प्रवेशितः। अनेन किन्तुना कस्मिन्नपि संकटसमये कदाचित् किञ्चित्कार्यं कामं कृतं स्यात् परं भूयसा तु अस्माद् भयमेव भवति। अस्य हि सार्वदिकः स्वभाव एव यत् वार्ता काममुत्तमास्तु अधमा वा परमयं मध्ये प्रविश्य तस्याः कथाया विच्छेदमवश्यं करिष्यति। एतएव कस्मिन्नपि समये कार्यसाधकत्वेऽपि लोका अस्माद् वित्रस्यन्त्येव।वैरिणां भारावताराय कदाचित् हिताधराऽपि करवालधारा क्रूराकारा प्रखरप्रकारा एव प्रसिद्धा लोकेषु। विगुणः कार्षापणः, कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत् परन्तु जनसमाजे द्वयोरुपर्येव नासा-भूसकोचो जातो जनिष्यते च। इदमेव कारणं यत् यस्यां वार्तायां ‘किन्तुः’ उत्पद्यते तां वार्ता लोका विगुणां गणयन्ति।

हिन्दी-अनुवादः इस एक किन्तु ने चोर की चपेटों से छुड़वाकर मुझे सुख के सुरक्षित कोठे (कमरे) में प्रविष्ट करवा दिया। इस किन्तु ने किसी संकट के समय कभी कोई कार्य शायद किया हो, परन्तु अधिकतर तो इससे भय ही होता है। इसका सदा-सदा रहने वाला स्वभाव ही है कि चाहे बात अच्छी हो बुरी परन्तु यह बीच में प्रविष्ट होकर उस बात को अवश्य ही काट देगा। इसीलिए किसी भी समय कार्य सिद्धि में लोग इससे डरते ही हैं। वैरियों का भार उतारने के लिए शायद हितकारक तलवार की धार भी क्रूर आकार तथा तीखे रूप वाली ही संसार में प्रसिद्ध होती है। खोटा सिक्का तथा निन्दित पुत्र संकट में कभी काम भले ही आ जाए, परन्तु जनसमाज में तो दोनों के ऊपर ही नाक-भौंह सिकोड़ी जाती रही है और आगे भी सिकोड़ी जाती रहेगी। यही कारण है कि जिस किसी बात में ‘किन्तु’ लग लग जाता है, उस बात को लोग खटाई में पड़ी हुई बात ही समझते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्श्च चपेटाभ्यः = थप्पड़ों से। अवमुच्य = छुड़ाकर। प्रकोष्ठके = घर में। कामम् = भले ही। सार्वदिकः = सर्वदा होने वाला। भारावताराय = भार उतारने के लिए। कदाचित् = शायद। करवालधारः = तलवार की धार। विगुणः कार्षापणः = खोटा सिक्का। कुत्सितः = निन्दित, कुत्स + इतच्। नासा-भ्रूसकोचः = नाक-भौंह सिकोड़ना। विगुणाम् = गुण रहित, खटाई में पड़ी हुई।

किन्तोः कुटिलता (किन्तु’ की कुटिलता) Summary in Hindi

किन्तोः कुटिलता पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ‘किन्तोः कुटिलता’ देवर्षि श्रीकलानाथ शास्त्री द्वारा सम्पादित पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्धपारिजातः’ से संकलित किया गया है।

पं० भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के पिता पं० भट्ट द्वारकानाथ जयपुर निवासी थे। पं० भट्ट मथुरानाथ का जन्म जयपुर में सन् 1889 ई० में हुआ और निधन भी 4 जून, 1964 ई० को जयपुर में ही हुआ। श्री भट्ट की पूर्वज परम्परा अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न रही। इन्होंने महाराजा संस्कृत कॉलेज से साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की और वहीं व्याख्याता बन गए। आप जयपुर से प्रकाशित ‘संस्कृतरत्नाकर’ पत्रिका के सम्पादक रहे। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री द्वारा प्रणीत संस्कृत की रचनाओं में ‘जयपुरवैभवम्’, ‘गोविन्दवैभवम्’, ‘संस्कृतगाथासप्तशती’ और ‘साहित्यवैभवम्’ विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने चालीस कथाएँ और सौ से भी अधिक निबन्ध संस्कृत में लिखे। इनकी ‘सुरभारती’, ‘सुजनदुर्जन-सन्दर्भः’ और ‘युद्धमुद्धतम्’ नामक पद्य रचनाएँ भी उल्लेखनीय हैं।

यहाँ संकलित पाठ में श्री भट्ट जी ने दिखाया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है, तब बहुधा वह पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर उसे दोषपूर्ण और सम्बोधित व्यक्ति के लिए दुःख पैदा करने वाला, उसके उत्साह का नाशक और शत्रुरूप बना देता है। ऐसे अवसर विरल होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ सम्बोधित व्यक्ति के लिए सुखदायक सिद्ध होता है।

लेख की भाषा सरल व सुबोध है, अलंकारों और दीर्घ समासों आदि का प्रयोग नहीं किया गया है। भाव सुस्पष्ट और सामान्य जीवन में जनसाधारण द्वारा अनुभूत हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठस्य सारः

‘किन्तोः कुटिलता’ यह पाठ पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्ध संग्रह ‘प्रबन्धपारिजात:’ से संकलित किया गया है। इस पाठ में दिखाया गया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है तब प्रायः पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर वह ‘किन्तु’ उसे दोषपूर्ण बना देता है। तथा सम्बोधित व्यक्ति के लिए कष्टकारी, उत्साहनाशक तथा शत्रुरूप बन जाता है। ऐसे अवसर बहुत कम होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ शब्द संबोधित व्यक्ति के लिए सुखकारी सिद्ध होता है। लेखक ने अपने जीवन में घटित तीन- चार घटनाओं के अनुभव से ‘किन्तु’ के इस षड्यन्त्र को प्रमाणपूर्वक पाठकों के समक्ष-प्रस्तुत किया है।

एक बार लेखक का राज्य से प्राप्त हुई भूमि के सम्बन्ध में लम्बे समय से एक मुकदमा न्यायालय में चल रहा था। जज महोदय ने लेखक के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा अभियोक्ता की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर किन्तोः कुटिलता दिए गए। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी प्रस्तुत कर दिया गया और न्यायालय को इस बात का पूरा निश्चय हो गया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है।” जज महोदय के निर्णय से लेखक बड़ा प्रसन्न हो रहा था कि भूमि मेरे पास आ ही गई है। तभी जज महोदय ने आगे कहा-“किन्तु राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है, उस पर दृष्टिपात करना भी हम अपना कर्तव्य समझते हैं।” किन्तु शब्द के इस भाले ने लेखक के हृदय को चीरकर रख दिया।

इसी प्रकार की एक अन्य घटना में लेखक बताता है कि एक बार धर्माधिकारी के पास एक ग़रीब आदमी चीख पुकार करता हुआ कहने लगा कि मेरी नौ वर्ष की कन्या के विवाह को तीन ही दिन हुए हैं। चतुर्थी कर्म (गौना) न होने से विवाह भी पूरा नहीं हुआ और उसके पति की मृत्यु हो गई। ऐसी दशा में मैं क्या करूँ। धर्माधिकारी ने कहा कि यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है, वर्तमान समय में समाज की भयंकर दशा पर विचार करते हुए इसके पुनर्विवाह की व्यवस्था दी जानी चाहिए।..किन्तु हम अपने मुँह से कैसे कहे, हमें प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो करनी है। यहाँ भी किन्तु ने उस अबोध बालिका के जीवन को नरक बना दिया।

लेखक ने एक बहुत ही उत्तम पुस्तक संस्कृत में लिखी और एक साहित्य प्रेमी देश के नेता को समीक्षा के लिए दी। नेता जी ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए अंतिम वाक्य कहा-“बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की अद्भुत पुस्तक लिखी गई है।……..किन्तु ये हिन्दी में लिखी जाती तो उचित होता।” नेताजी के किन्तु शब्द ने लेखक को मार्मिक पीड़ा दी और वह अपना कान मसलता हुआ घर की ओर निकल गया।

लेखक एक बार बीमार हो गया। एक वैद्य की औषध सेवन से वह स्वस्थ हो गया। तभी लेखक के पास मित्रों की ओर से भोजन गोष्ठी का निमंत्रण आया। लेखक ने वैद्य से उसमें सम्मिलित होने के लिए पूछा। उत्तर में वैद्य ने कहा”कोई खास हानि तो नहीं है…किन्तु गरिष्ठ वस्तुओं के सेवन से परहेज करना।” लेखक प्रीतिभोज में सम्मिलित हुआ, स्वादिष्ट व्यंजन सामने आए। जैसे ही लेखक ने एक ग्रास गले के नीचे उतारा वैद्य के किन्तु ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। लेखक ने एक बार देशसेवा करने के लिए घर छोड़ने का निश्चय किया। रास्ते में बचपन के मास्टर जी मिल गए। उन्होंने पूछा तो बताना पड़ा। मास्टर जी ने कहा-“बेटा यह सब तो ठीक है…….किन्तु जिस परिवार का भार तुम्हारे सिर पर है उसे निराधार छोड़कर अकेले कैसे जा सकते हो।”

मास्टर जी के किन्तु ने लेखक के सिर से देशसेवा का भूत उतार दिया। एक बार लेखक की पत्नी ने भयपूर्वक कहा-“शायद घर में कोई चोर घुस आया है।” लेखक बड़ी वीरता से अंधेरे में ही लाठी लेकर चोर को पकड़ने चल पड़ा तभी पत्नी ने कान के पास आकर बुदबुदाया, “अन्धकार में अकेले जा तो रहे हो……. किन्तु देखना कहीं वह शस्त्र का प्रहार न कर दे।” लेखक की वीरता तुरन्त गायब हो गई और वह प्राण बचाने के लिए लाठी फैंककर घर के अन्दर छिप गया और वहीं से चीखते स्वर में बोला- लोगो ! आओ, चोर घुस आया है। पत्नी की इस एक किन्तु ने चोर के थप्पड़ों से छुड़वाकर लेखक को सुरक्षित घर में भेज दिया था। विचारने वाली बात यह है कि यह किन्तु ऐसा कल्याणकारी कार्य भूले भटके ही करता है। खोटा सिक्का तथा नालायक बेटा संकट में कभी भले ही काम आ जाते हों, परन्तु अधिकांश में तो समाज इन दोनों पर नाक भौंह सिकोड़ता रहा है और सिकोड़ता रहेगा। यही दशा ‘किन्तु’ की है। यह ‘किन्तु’ जीवन में एक आध बार ही सुखदायी होता है, संकट से बचाता है और सुखदायी होती है। अधिकांश में तो जिस कथन के साथ ‘किन्तु’ महाराज लग जाते हैं। समझिए वह काम खटाई में पड़ गया। कोई न कोई बाधा आ पड़ी और काम बीच में अटक गया।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

HBSE 12th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरत
(क) ‘उद्भिजपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(च) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म कीदृशम् ?
उत्तरम्:
(क) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः पण्डित-हृषीकेश-भट्टाचार्यः अस्ति।
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः अश्वत्थ-देवः आसीत्।
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् स्नेहम् उपेक्षन्ते।
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम निकृष्टतमा सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(च) पशुहत्या मनुष्याणाम् आक्रीडनम्।
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम् अस्ति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

2. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु ……………सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां ……………… निरवधिः।।
(ग) नहि ते करतलगतानपि ……………… उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते……………… ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि ……….. एव।
उत्तरम्:
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः ।
(ग) नहि ते करतलगतानपि हरिण-शशकादीन् उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्हेनम् ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्साराः एव।

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3. अधोलिखितानां पदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत
मायाविनः, श्वापदान्, निरवधिः, विसर्जयामास, बिभ्यति, पर्याकुलाः, लजन्ते, विरमन्ति, कापुरुषाः, प्रकटयति।
उत्तरम्:
(वाक्यप्रयोगः)
(क) मायाविनः-सृष्टिधारासु मानवाः सर्वाधिकाः मायाविनः सन्ति।
(ख) श्वापदान्-मानवाः स्वमनोविनोदाय श्वापदान् हन्ति।
(ग) निरवधि:-मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(घ) विसर्जयामास-सभापतिः सभां विसर्जयामस।
(ङ) बिभ्यति-मानवाः पापाचारेभ्यः किमपि न बिभ्यति।
(च) पर्याकुला:-विपत्तिषु मानवाः पर्याकुलाः भवन्ति।
(छ) लज्जन्ते-मानवाः अनृतव्यवहारात् किञ्चिद् अपि न लज्जन्ते।
(ज) विरमन्ति – स्वार्थसाधनपरा: मानवाः परपीडनात् न विरमन्ति।
(झ) कापुरुषा:-कापुरुषाः तु आत्मरक्षाम् अपि कर्तुं न शक्नुवन्ति।
(ञ) प्रकटयति-शिशुः क्रोधं प्रकटयति।

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4. सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।
उत्तरम्:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ से संकलित है। इस निबन्ध में वृक्षों की सभा के सभापति पीपल ने मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति के प्रति तीखा व्यंग्य-प्रहार किया गया है।

व्याख्या – हिंसा के दो प्रमुख रूप हैं-(1) स्वाभाविक भूख की शान्ति के लिए हिंसा (2) मन बहलाने के लिए हिंसा। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। परन्तु सिंह-व्याघ्र आदि पशुओं का स्वाभाविक भोजन मांस ही है। अतः ऐसे पशुओं को न चाहते हुए भी केवल पेट की भूख शान्त करने हेतु पशुवध करना पड़ता है। परन्तु इन पशुओं की यह विशेषता भी है कि भूख शान्त होने पर पास खड़े हुए हिरण आदि का भी ये वध नहीं करते। पशुओं का पशुवध भूख शान्ति तक ही सीमित होता है। परन्तु मनुष्य की पशुहिंसा असीम है। क्योंकि वह तो अपने बेचैन मन की प्रसन्नता के लिए ही पशुवध करता है। मनुष्य की इस विलक्षण एवं भयावह हिंसावृत्ति पर वृक्षों की सभा के सभापति अश्वत्थ (पीपल) को अत्यन्त खेद है और जड़ होने पर भी मनुष्य के इस दुष्कर्म से उसका हृदय फटा जा रहा है।

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्निकृष्टतमा, उपगम्य, प्रवर्तमाना, अतिक्रान्तम्, व्याख्याय, कथयन्तु, उपजन्ति, आक्रीडनम्।
उत्तरम्:
प्रकृतिः + प्रत्ययः
(क) निकृष्टतमा नि + √कृष् + क्त + तमप् + टाप्
(ख) उपगम्य उप + √गम् + ल्यप्
(ग) प्रवर्तमाना प्र + √वृत् + शानच् + टाप्
(घ) अतिक्रान्तम् अति + √क्रम् + क्त
(ङ) व्याख्याय वि + आ + √चक्षि > ख्या + ल्यप्
(च) कथयन्तु √कथ् + लोट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(छ) उपघ्नन्ति उप + √हन् + लट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(ज) आक्रीडनम् आ + √क्रीड् + ल्युट् , अन (नपुं०, प्रथमा-एकवचनम्)

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6. सन्धिच्छेदं कुरुत
मानवा इव, भवन्तो, स्वोदरपूर्तिम्, हिंसावृत्तिस्तु, आत्मोन्नतिम्, स्वल्पमपि।
उत्तरम्
(क) मानवा इव = मानवाः + इव
(ख) भवन्तो नित्यम् = भवन्तः + नित्यम्
(ग) स्वोदरपूर्तिम् = स्व + उदरपूर्तिम्
(घ) हिंसावृत्तिस्तु = हिंसावृत्तिः + तु
(ङ) आत्मोन्नतिम् = आत्म + उन्नतिम्
(च) स्वल्पमपि = सु + अल्पम् + अपि

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7. अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत
महापादपाः, सृष्टिधारासु, करतलगतान्, वीरपुरुषाः, शान्तिसुखम्।
उत्तरम्
(क) महापादपाः – महान्तः पादपा:-कर्मधारयः।
(ख) सृष्टिधारासु – सृष्टिः एव धारा, तासु-कर्मधारयः ।
(ग) करतलगतान् – करतलं गतान्-द्वितीया-तत्पुरुषः ।
(घ) वीरपुरुषाः – वीराः पुरुषाः-कर्मधारयः ।
(ङ) शान्तिसुखम् – शान्तिः च सुखं च तयोः समाहारः-द्वन्द्वः।

योग्यताविस्तारः
(1) प्रचुरोदकवृक्षो यो निवातो दुर्लभातपः।
अनूपो बहुदोषश्च समः साधारणो मतः॥ चरकसंहिता

(2) मानवं पुत्रवद् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च।
पुत्रवत्परिपाल्यास्ते पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(3) एतेषां सर्ववृक्षाणां छेदनं नैव कारयेत्।
चतुर्मासे विशेषेण विना यज्ञादिकारणम्। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(4) एकेनापि सुवृक्षण पुष्यितेन सुगन्धिना।
वासितं वै वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥ महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(5) “दशकूपसमा वापी दशपुत्रसमो द्रुमः।”
वृक्षविषयिण्यः ईदृश्य अन्य सूक्तयोऽपि गवेषणीयाः॥

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HBSE 9th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(A) आर्यभट्टः
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः
(C) बाणभट्टः
(D) अम्बिकादत्तव्यासः ।
उत्तराणि:
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः

(ii) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(A) देवाधिपतिः
(B) देवराज इन्द्रः
(C) आम्रः
(D) अश्वत्थदेवः।
उत्तराणि:
(C) अश्वत्थदेवः

(iii) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(A) आत्मानम्
(B) खगान्
(C) स्नेहम्
(D) पशून्।
उत्तराणि:
(B) स्नेहम्

(iv) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टि: ?
(A) उत्कृष्टतमा
(B) निकृष्टतमा
(C) उत्तमा
(D) बृहत्तमा।
उत्तराणि:
(A) निकृष्टतमा

(v) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(A) निरवधिः
(B) सावधिः
(C) मासावधिः
(D) वर्षावधिः।
उत्तराणि:
(A) निरवधिः

(vi) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(A) पुरुषाणाम्
(B) स्त्रीणाम्
(C) सिंहानाम्
(D) मनुष्याणाम्।
उत्तराणि:
(D) मनुष्याणाम्।

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) सावहिताः शृणवन्तु भवन्तः।
(A) कः
(B) के
(C) को
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) के

(ii) मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः ।
(A) केषाम्
(B) कस्याम्
(C) कस्मात्
(D) कैः।
उत्तराणि:
(A) केषाम्

(iii) मनुजन्मानः प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय प्रवर्तन्ते।
(A) कम्
(B) के
(C) किमर्थम्
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(B) किमर्थम्

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) कस्मात्
(B) कम्
(C) किम्
(D) किमर्थम्।
उत्तराणि:
(D) कस्मात्

(v) मनुष्याः महारण्यम् उपगम्य यथेच्छं पशुधातं कुर्वन्ति ?
(A) के
(B) काः
(C) कस्मै
(D) किम।
उत्तराणि:
(A) किम्

(vi) जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवाः इव हिंसानिरताः जीवाः न विद्यन्ते।
(A) के
(B) कथम्
(C) कीदृशाः
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) कीदृशाः।

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उद्भिज्ज-परिषद् पाठ्यांशः

1. अथ सर्वविधविटपिनां मध्यभागे स्थितः सुमहान् अश्वत्थदेवः वदति-“भो भो वनस्पतिकुलप्रदीपा महापादपाः कुसुमकोमलदन्तरुचः लता-कुलललनाश्च ! सावहिताः शृण्वन्तु भवन्तः। अद्य मानववार्रवास्माकं समालोच्यविषयः । मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः, जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवा इव पर-प्रतारकाः स्वार्थसाधनपराः, मायाविनः, कपट-व्यवहारकुशलाः, हिंसानिरताः, जीवा: न विद्यन्ते। भवन्तो नित्यमेवारण्यचारिणः सिंहव्याघ्रप्रमुखान् हिंस्रत्वभावनया प्रसिद्धान् श्वापदान् अवलोकयन्ति। ततो भवन्त एव कथयन्तु याथातथ्येन किमेते हिंसादिक्रियासु मनुष्येभ्यो भृशं गरिष्ठाः।

हिन्दी-अनुवादः सभी प्रकार के वृक्षों के मध्यभाग में स्थितं विशाल अश्वत्थदेव (पीपल का वृक्ष) कहता है-“हे हे वनस्पतिकुल के दीपक महान् पौधो! और पुष्प रूपी कोमल दाँतों से सुशोभित लतावंश की ललनाओ” आप ध्यानपूर्वक सुनिएआज मनुष्य व्यवहार ही हमारी आलोचना का विषय है। सभी सृष्टिधाराओं में सबसे निकृष्ट सृष्टि मनुष्य ही है। जीवसृष्टिप्रवाहों में मनुष्य की भाँति पर-पीड़क, स्वार्थपरायण, मायावी, कपट-व्यवहार में कुशल, हिंसा में संलग्न जीव नहीं हैं। आप नित्य ही जंगलों में घूमने वाले हिंसात्मक भावना के लिए प्रसिद्ध सिंह, व्याघ्र आदि पशुओं को देखते हैं। फिर आप ही ठीक-ठीक बताएं कि क्या ये (पशु) हिंसक-क्रियाओं में मनुष्यों से बढ़कर हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च उद्भिज्जः = वनस्पति (उद्भिज्य जायते इति उद्भिज्जः)। विटपी = वृक्ष (विटप + इनि > इन्)। अश्वत्थः = पीपल का पेड़। कुलललनाः = कुल की स्त्रियाँ; कुलस्य ललनाः। सावहिता = सावधान । सृष्टिधारासु = सृष्टि की परम्परा में; सृष्टे: धारा, सृष्टिधारा, तासु, षष्ठी तत्पुरुष समास। निकृष्टतमा = अत्यधिक नीच; निकृष्ट + तमप्। परप्रतारकाः = दूसरे को पीड़ित करने वाले; परस्य प्रतारकः, षष्ठी-तत्पुरुष समास।

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2. श्वापादानां हिंसाकर्म किल जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम्। प्रशान्तजठरानले सकृदुपजातायां स्वोदरपूर्ती नहि ते करतलगतानपि हरिणशशकादीन् उपघ्नन्ति। न वा तथाविध-दुर्बलजीवानां घातार्थम् अटवीतोऽटवीं परिभ्रमन्ति। मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः । पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।

हिन्दी-अनुवादः पशुओं का हिंसाकर्म पेट की आग बुझाने मात्र के लिए होता है। जठराग्नि के शान्त हो जाने पर, एक बार अपनी उदरपूर्ति हो जाने पर वे (पशु) हाथ में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी नहीं मारते। और न ही इस प्रकार के दुर्बल प्राणियों को मारने के लिए वे एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमते हैं।

मनुष्यों की हिंसावृत्ति तो असीम है। पशुहत्या तो उनका खेल है। केवल अपने बेचैन मन को प्रसन्न करने के लिए बड़े जंगल में जाकर वे जी-भरकर निर्दयतापूर्वक पशुवध करते हैं। उनके पशुप्रहार के व्यवहार को देखकर हम जड़वृक्षों का हृदय भी फट जाता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च श्वापदान् = जंगली जानवरों को। याथातथ्येन = वस्तुतः । भृशम् = अत्यधिक। जठरानल-निर्वाणम् = पेट की अग्नि, भूख की शान्ति; जठरानलस्य निर्वाणम्, षष्ठी तत्पुरुष समास। करतलगतान् = हाथ में आए हुए; करतलगतान्। उपघ्नन्ति = मारते हैं; उप + √हन् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। घातार्थम् = मारने के लिए। अटवीतः अटवीम् = एक जंगल से दूसरे जंगल को; अटवी + तस्। निरवधिः = असीम। आक्रीडनम् = खेल; आ + √क्रीड् + ल्युट् प्रत्यय। विक्लान्तः= थका हुआ; वि + √क्लम् + क्त प्रत्यय। उपगम्य = पास जाकर; उप + √गम् + क्त्वा (ल्यप् प्रत्यय)।

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3. निरन्तरम् आत्मोन्नतये चेष्टमानाः लोभाक्रान्त-हृदयाः मनुजन्मानः किल प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय सर्वात्मना प्रवर्तन्ते। न धर्ममनुधावन्ति, न सत्यमनुबध्नन्ति। परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्नेहम्। अहितमिव परित्यजन्ति आर्जवम्। अमङ्गलमिव उपघ्नन्ति विश्वासम्। न स्वल्पमपि बिभ्यति पापाचारेभ्यः न किञ्चिदपि लज्जन्ते मुहुरनृतव्यवहारात्। नहि क्षणमपि विरमन्ति परपीडनात्।

हिन्दी-अनुवादः निरन्तर अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील, लोभ से ग्रस्त हृदय वाले मनुष्य सब प्रकार से अपनी स्वार्थसाधना के लिए प्रतिक्षण लगे रहते है। न धर्माचरण करते हैं, न सत्य को स्वीकारते हैं; अपितु स्नेह (= प्राणिमात्र के प्रति प्यार) को अतितुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा करते हैं। सरलता को हानिकर वस्तु की भाँति त्याग देते हैं। विश्वास को अमंगल (= अपशकुन) समझकर नष्ट कर देते हैं। पापाचार से वे थोड़ा भी नहीं डरते। बार-बार के झूठे व्यवहार से उन्हें थोड़ीसी भी लज्जा नहीं होती। दूसरों को पीड़ित करने से वे क्षणभर भी विराम नहीं लेते।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सर्वात्मना = पूरे मन से (सभी प्रकार से)। प्रवर्तन्ते = प्रवृत्त होते हैं; प्र + √वृत् + लट्लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। उपेक्षन्ते = उपेक्षा करते हैं; उप + √ईक्ष् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। आर्जवम् = सीधापन; ऋजोर्भावः आर्जवम्। बिभ्यति = डरते हैं; √भी + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। पापाचारेभ्यः = अनुचित आचरण से; पाप-श्चासौ आचारः, पापाचारः तेभ्यः। विरमन्ति = रुकते हैं; वि + √रम् धातु + लट्लकार + प्रथम पुरुष बहुवचन।

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4. न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्सारा एव। तृणानि खलु वात्यया सह स्वशक्तितः सुचिरमभियुध्य सम्मुखसमरप्रवर्तमाना वीरपुरुषा इव शक्तिक्षये क्षितितले निपतन्ति, न तु कदाचित् कापुरुषा इव स्वस्थानम् अपहाय प्रपलायन्त। मनुष्याः पुनः स्वचेतसा एव भविष्यत्-समये संघटिष्यमाणं कमपि विपत्पातमाकलय्य परिकम्पमानकलेवराः दुःख-दुःखेन समयमतिवाहयन्ति। परिकल्पयन्ति च पर्याकुला बहुविधान् प्रतिकारोपायान् येन मनुष्यजीवने शान्तिसुखं मनोरथपथादतिक्रान्तमेव।

हिन्दी-अनुवादः वे (मनुष्य) न केवल पशुओं से भी अधिक निकृष्ट हैं, (अपितु) तिनकों से भी अधिक तुच्छ हैं। तिनके तो आँधी के साथ अपनी शक्ति के अनुसार देर तक लड़कर, सम्मुख उपस्थित युद्ध में लगे हुए वीर पुरुषों की भाँति शक्तिक्षीण होने पर धरती पर गिर जाते हैं, न कि एक बार भी कायरों की तरह अपना स्थान छोड़कर भागते हैं। मनुष्य तो फिर अपने मन (ज्ञान) से ही भविष्य में होने वाली किसी विपत्ति का विचार कर कँपकँपाते शरीर वाले बड़े कष्टपूर्वक अपना समय बिताते हैं। और अति व्याकुल होकर प्रतिकार के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं, जिसके कारण मनुष्य जीवन में शान्ति और सुख उनके मनोरथ के मार्ग से दूर ही रहते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च – वात्यया = आँधी से। अभियुध्य = संघर्ष करके; अभि + √युध् + क्त्वा > ल्यप्। कापुरुषाः = कायर। प्रपलायन्त = भागते हैं; प्र + परा + √अय् + लङ् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। अग्रतः = आगे; अग्र + तस्। संघटिष्यमाणम् = घटित होने वाले; सम् + √घट + शानच् प्रत्यय। परिकम्पमानः = काँपता हुआ; परि + √कम्प् + कानच् प्रत्यय, प्रथमा, विभक्ति एकवचन। अतिवाहयन्ति = बिताते हैं; अति + √वह + णिच् + लट् लकार, प्रथमपुरुष बहुवचन। पर्याकुलाः = बेचैन; परि + आकुलाः । अतिक्रान्तम् = बाहर जा चुका है; अति + √क्रम् + क्त प्रत्यय, प्रथम पुरुष एकवचन। अप्यसाराः = सारहीन; अपि + असाराः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

5. अथ ते तावत्तृणेभ्योऽप्यसाराः पशुभ्योऽपि निकृष्टतराश्च । तथा च तृणा-दिसष्टेरनन्तरं तथाविधजीवनिर्माणं विश्वविधातुः कीदृशं नाम बुद्धिमत्ताप्रकर्ष प्रकटयति। इत्येव हेतुप्रमाणपुरस्सरं सुचिरं बहुविधं विशदं च व्याख्याय सभापतिरश्वत्थदेव उद्भिज्ज-परिषद् विसर्जयामास।

हिन्दी-अनुवादः – इस प्रकार वे (मनुष्य) तिनकों से भी तुच्छ तथा पशुओं से भी निकृष्ट हैं। वनस्पति आदि की सृष्टि के पश्चात् इस प्रकार के जीवों (मनुष्यों) का निर्माण करना विश्व के सृजनहार विधाता की कैसी बुद्धिमत्ता की अधिकता को प्रकट करता है ?

इस प्रकार कारण और प्रमाण निर्देशपूर्वक बहुत देर तक, बहुत प्रकार से तथा विस्तृत व्याख्या करके सभापति अश्वत्थदेव (पीपल-देव) ने वृक्षों की सभा को विसर्जित किया।
शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च प्रकर्षम् = अधिकता। पुरस्सरम् = पूर्वक, आगे; पुरः सरतीति पुरस्सरः तम्। सुचिरम् = देर तक। विशदम् = . विस्तारपूर्वक। व्याख्याय = व्याख्यान देकर; वि + आ + √ख्या + ल्यप्। सभापतिरश्वत्थदेवः = सभापतिः + अश्वत्थदेव।

उद्भिज्ज-परिषद् (वृक्षों की सभा) Summary in Hindi

उद्भिज्ज-परिषद् पाठ परिचय

आधुनिक गद्य लेखकों में पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका समय 1850-1913 ई० है। ये ओरियण्टल कॉलेज, लाहौर में संस्कृत के प्राध्यापक थे। इन्होंने ‘विद्योदयम्’ नामक संस्कृत पत्रिका के माध्यम से 44 वर्ष तक निबन्ध-लेखन करके संस्कृत में निबन्ध-विधा को जन्म दिया है। श्री भट्टाचार्य द्वारा लिखित संस्कृत निबन्धों का एक संग्रह ‘प्रबन्धमञ्जरी’ के नाम से 1930 ई० में प्रकाशित हुआ। इसमें 11 निबन्ध संगृहीत हैं। इनमें से अधिकांश निबन्ध व्यङ्ग्य-प्रधान शैली में लिखे गए हैं। संस्कृत में व्यङ्ग्य-शैली का प्रादुर्भाव श्री भट्टाचार्य के इन निबन्धों से ही माना जाता है। इनका व्यंग्य अत्यन्त शिष्ट, परिष्कृत और प्रभावोत्पादक है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता, मधुरता तथा सुबोधता है। इनकी भाषा में संस्कृत के महान् गद्यकार बाण की शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ श्री भट्टाचार्य की इसी प्रबन्ध-मञ्जरी’ से सम्पादित करके लिया गया है। उद्भिज्ज शब्द का अर्थ है-वृक्ष और परिषद् का अर्थ है-सभा। इस प्रकार ‘उदभिज्ज-परिषद्’ शब्द का अर्थ हुआ ‘वृक्षों की सभा।’ इस सभा के सभापति हैं अश्वत्थ-पीपल। सभापति अपने भाषण में मानवों पर बड़े ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार करते हैं।

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उद्भिज्ज-परिषद् पाठस्य सार:

प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज-परिषद्’ श्री हृषीकेष भट्टाचार्य जी द्वारा रचित ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ नामक निबन्ध संग्रह से सम्पादित किया गया है। ‘उद्भिज्ज’ शब्द का अर्थ है-वृक्ष और ‘परिषद्’ का अर्थ है सभा। वृक्षों की इस सभा के सभापति अश्वत्थ ‘पीपल’ हैं। वे अपने भाषण में मनुष्य पर बड़ा ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार कर रहे हैं।

सभी प्रकार के वृक्षों की सभा लगी हुई है। सभा के सभापति अश्वत्थ सभी वृक्ष-वनस्पतियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज हमारे विचार का विषय ‘मानव व्यवहार’ है इस सृष्टि में मानव से लड़कर कोई भी निकृष्ट जीवन नहीं है। सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे अधिक दूसरों को पीड़ित करने वाला स्वार्थी, मायावी, छली, कपटी और निरन्तर हिंसा में लगा रहने वाला जीव है। सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक भावना के लिए प्रसिद्ध पशु हैं। परन्तु इन पशुओं की हिंसा पेट की आग बुझाने के लिए होती है भूख शान्त हो जाने पर पंजे में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी

ये नहीं मारते। मनुष्य तो अपना मनोरञ्जन करने के लिए पशुपक्षियों की हत्या करता है। जीव हिंसा करना मनुष्य का खेल है। हिंसक पशुओं की हिंसा तो पेट की आग बुझाने तक सीमित होती है। परन्तु मनुष्य की हिंसा असीम है। इसके इस हिंसा व्यवहार को देखकर जड़ कही जाने वाली वृक्ष वनस्पतियों के हृदय भी फट जाते हैं।

मनुष्य केवल अपनी उन्नति के लिए लोभ से आक्रांत तथा स्वार्थी होकर कार्य करता है। यह किसी भी पापाचार से नहीं डरता। मनुष्य पशुओं से ही घटिया नहीं है, अपितु तिनकों से भी तुच्छ है। आँधी-तूफान आने पर मैदान में खड़ा हुआ एक घास का तिनका भी पूरी शक्ति के साथ तूफान का सामना करता है। गर्मी-सर्दी, बरसात को सहता है। मनुष्य इन सबसे बेचैन होकर इनसे बचने के उपाय खोजता रहता है। इसी से सिद्ध होता है कि मनुष्य से बढ़कर कोई डरपोक भी नहीं है।

सभा पति अश्वत्थ अपने भाषण को समाप्त करते हुए निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि इसीलिए मैं कहता हूँ कि यह आदमी नाम का जन्तु तिनकों से भी तुच्छ और पशुओं से भी निकृष्ट है। वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी आदि की सुन्दर सृष्टि रच लेने के बाद इस विचित्र स्वभाव वाली मानव सृष्टि की रचना करके विधाता ने अपनी किस बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है। इस प्रकार कारण और प्रमाणों के साथ बड़े विस्तारपूर्वक व्याख्यान करके सभापति अश्वत्थ देव ने वृक्ष-सभा को विसर्जित किया। वृक्षों की सभा के माध्यम से लेखक ने मनुष्य के हिंसापरक, परपीड़क तथा स्वार्थी व्यवहार पर तीखा व्यंग्य किया

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाज़ार संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है, जहाँ बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती हैं।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिमाँग के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार माँग वस्तु की बाज़ार पूर्ति से अधिक है।
अधिमाँग = बाज़ार माँग > बाज़ार पूर्ति अथवा अतिरिक्त माँग = बाज़ार माँग – बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिपूर्ति के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार पूर्ति वस्तु की बाज़ार माँग से अधिक है।
अधिपूर्ति = बाज़ार पूर्ति > बाज़ार माँग अथवा अतिरिक्त पूर्ति = बाज़ार पूर्ति – बाज़ार माँग

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य (a) संतुलन कीपत से अधिक है? (b) संतुलन कीमत से कम है?
उत्तर:
(a) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से अधिक है तो अधिपूर्ति की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक होगी।(b) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से कम है तो अधिमाँग की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति . से अधिक होगी।

प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति के वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। इसे संलग्न रेखाचित्र के द्वारा दर्शाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
संलग्न रेखाचित्र में वस्तु का पूर्ति वक्र SS वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है। परिणामस्वरूप OP बाज़ार कीमत का निर्धारण होता है। OP कीमत से अधिक कोई भी कीमत जैसे OP1 बाज़ार में अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न करेगी। इसी प्रकार OP कीमत से कम कोई भी कीमत जैसे OP2 बाज़ार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न करेगी।

प्रश्न 6.
मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाज़ार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाज़ार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
यदि बाज़ार में फर्मों का निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन है तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से ऊँचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य लाभ हो रहा है। इस स्थिति में नई फ बाज़ार में प्रवेश करेंगी और अंततः बाज़ार कीमत घटकर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से नीचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य हानि हो रही है। इस स्थिति में कुछ फर्मे बाज़ार से बाहर चली जाएँगी और अंततः बाज़ार कीमत बढ़कर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। इस प्रकार बाज़ार कीमत प्रत्येक स्थिति में न्यूनतम औसत लागत के समान होगी।

प्रश्न 7.
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाज़ार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है तो फर्म की बाज़ार कीमत, कीमत के उस स्तर पर होती है जहाँ वह न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। फलस्वरूप बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा जो X-अक्ष के समानांतर होगा।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2
ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से बाज़ार की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु संतुलन मात्रा में परिवर्तन होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में PP कीमत रेखा तथा पूर्ति वक्र है तथा प्रारंभिक माँग वक्र DD है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर स्पर्श करते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब वस्तु की माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 तथा संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी।

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प्रश्न 8.
एक बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
जब फर्मों को बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो प्रत्येक फर्म की पूर्ति एक समान (q0f) होगी। इस प्रकार बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर होगी जो P0 निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0f मात्रा की पूर्ति करेगी। इस प्रकार
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प्रश्न 9.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में
(a) वृद्धि होती है।
(b) कमी होती है।
उत्तर:
(a) जब उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होती है तो उपभोक्ता की क्रय करने की शक्ति में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(b) जब उपभोक्ताओं की आय में कमी होती है तो उपभोक्ताओं की क्रय करने की शक्ति में भी कमी होती है। परिणामस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, जिसके फलस्वरूप वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 से कम होकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जानी वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते और मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग साथ-साथ किया जाता है। पूरक वस्तुओं की स्थिति में, जूतों की कीमतों में कमी से दूसरी वस्तु, मोजों की जोड़ी की माँग में वृद्धि होगी और जूतों की कीमतों में वृद्धि से दूसरी वस्तु मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। इस प्रकार जूतों की कीमतों में वृद्धि से मोजों की जोड़ी का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप मोजों की जोड़ी की कीमत व मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में मोजों की जोड़ी का प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से घटकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफ़ी और चाय स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति में एक उपभोक्ता इन वस्तुओं का उपभोग एक-दूसरे के स्थान पर सुगमतापूर्वक कर सकता है। कॉफ़ी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग कम हो जाएगी और चाय की माँग बढ़ जाएगी। कॉफ़ी की कीमत में कमी से कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग में कमी होगी। इस प्रकार कॉफ़ी की कीमत में परिवर्तन चाय की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों को प्रभावित करेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में DD चाय का प्रारंभिक माँग वक्र है और SS पूर्ति वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब कीमत में बढ़ोतरी से चाय की माँग बढ़ जाती है तो माँग वक्र दाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP, और संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब कीमत में कमी से चाय की माँग कम हो जाती है तो माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु हो जाता है। जहाँ संतुलन कीमत OP2 और संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों (Inputs) की कीमतों में परिवर्तन होता है तो उस वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन होगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से उत्पादन लागत में कमी आएगी और उस वस्त की पर्ति बढ जाएगी। परिणामस्वरूप पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से उत्पादन लागत में वृद्धि होगी और उस वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी। फलस्वरूप पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। पूर्ति वक्र में परिवर्तन से संतुलन कीमत और मात्रा में भी परिवर्तन होगा, जिसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 8
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP1 तथा वस्तु की मात्रा OQ1 होगी। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से पूर्ति वक्र S2S2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP2 तथा वस्तु की मात्रा OQ2 होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 13.
यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
जब X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है तो X-वस्तु की माँग। में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता Y-वस्तु के बदले X-वस्तु की ओर आकर्षित होगा। परिणामस्वरूप X-वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा, जिससे संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 9
संलग्न रेखाचित्र में DD, X-वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती। है। X-वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से नई माँग D1D1 हो जाती है जो पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 14.
बाज़ार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
जब बाज़ार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, संतुलन स्थिति (संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा) बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। जब माँग वक्र का स्थानांतरण होता है तो संतुलन स्थिति में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 10
संलग्न रेखाचित्र में, DD वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र में दाईं ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से बढ़कर OP1 और संतुलन मात्रा OQ1 से OQ हो जाती है। जब माँग वक्र में बाईं वस्तु की मात्रा ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से कम होकर OP2 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ2 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 11
जंब बाज़ार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति पाई जाती है तो संतुलन कीमत फर्म की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा, जो X-अक्ष के समानांतर होगा। ऐसी स्थिति में बाज़ार की संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से संतुलन मात्रा में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। संलग्न रेखाचित्र में, संतुलन बिंदु E है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब माँग वक्र D2D2 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दाईं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग और पूर्ति वक्र दोनों ही दाईं ओर शिफ्ट होते (खिसकते) हैं तो इसका अर्थ है-दोनों में वृद्धि होना। इस संबंध में तीन परिस्थितियाँ हो सकती हैं
1. जब माँग और पूर्ति दोनों में समान वृद्धि हो-इस स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि मात्रा बढ़ जाएगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है। संतुलन कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है, जबकि संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

2. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा अधिक हो इस स्थिति में संतुलन कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

3. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा कम हो इस स्थिति में नई संतुलन कीमत आरंभिक कीमत की अपेक्षा कम होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से गिरकर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 12

प्रश्न 16.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब (a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं? (b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर:
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों समान (एक) दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व संतुलन मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों में परिवर्तन की मात्रा कितनी है? इस संबंध में निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(i) यदि माँग और पर्ति दोनों वक्र बाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतलन मात्रा में कमी आएगी. परंत संतलन कीमत में परिवर्तन नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में कमी समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं आता। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में गिरावट आ जाती है।

(ii) यदि माँग और पूर्ति दोनों वक्र दाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी, परंतु संतुलन कीमत में परिवर्तन आ भी सकता है और नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में वृद्धि एक-समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में कमी हो जाती है। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है।

(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग और पूर्ति वक्र दोनों विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करते हैं कि दोनों में शिफ्ट की मात्रा कितनी है? यदि माँग वक्र बाईं ओर तथा पूर्ति वक्र दाईं ओरं शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत में कमी आएगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात में बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में कमी आएगी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

यदि माँग वक्र दाईं ओर तथा पूर्ति वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात के बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में कमी होगी।

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प्रश्न 17.
वस्तु बाज़ार में तथा श्रम बाज़ार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाज़ार और श्रम बाज़ार में माँग और पूर्ति के स्रोत में अंतर होता है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग फर्मों से आती है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की माँग घर-परिवार से आती है। श्रम बाज़ार में श्रम की पूर्ति घर-परिवार द्वारा होती है और वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की पूर्ति फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग व्युत्पन्न (अप्रत्यक्ष) माँग है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तु की माँग प्रत्यक्ष है। श्रम की माँग श्रम की उत्पादकता से प्रभावित होती है। श्रम की माँग स्थानापन्न साधन अर्थात् पूँजी की कीमत पर निर्भर होगी। यदि पूँजी की कीमत कम हो तो श्रम की माँग कम होगी। श्रम की पूर्ति वस्तु की पूर्ति से निम्नलिखित संदर्भो में होती है
(i) श्रम वस्तु की तुलना में कम गतिशील होता है।

(ii) श्रम का पूर्ति वक्र पीछे की ओर मुड़ता हुआ होता है जो यह दिखाता है कि एक सीमा के पश्चात् मजदूरी दर के बढ़ने पर श्रम की पूर्ति कम होने कार्य के घंटे+ लगती है क्योंकि मजदूरी के एक उच्च स्तर पर श्रमिक काम की तुलना में अवकाश अधिक पसंद करने लगते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 13
संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है कि M बिंदु तक मजदूरी के बढ़ने से श्रम की पूर्ति बढ़ती है परंतु उसके बाद जब मज़दूरी ow, से बढ़कर ow, हो जाती है तो श्रम की पूर्ति OL2 से घटकर OL1 रह जाती है।

प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ मज़दूरी दर श्रम की सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है अर्थात्
W = MPL
अथवा
मज़दूरी की दर = श्रम की सीमांत उत्पादकता

प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण उस बिंद पर होता है जहाँ श्रम की माँग श्रम की पूर्ति के बराबर हो। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 14
इस रेखाचित्र में DLDL श्रम का माँग वक्र है जो श्रम की पूर्ति वक्र SLSL को E बिंदु पर काटता है। इस प्रकार E संतुलन बिंदु है जहाँ मजदूरी दर OW निर्धारित होती है। यदि मज़दूरी दर OW से अधिक (अर्थात् OW1) है तो श्रम की अधिमाँग पूर्ति श्रम की माँग से अधिक होगी। यदि मज़दूरी दर OW से कम (अर्थात् ow2) है तो श्रम की माँग श्रम की पूर्ति से अधिक होगी। इस प्रकार OW मज़दूरी दर ही संतुलित मजदूरी दर है जहाँ श्रम की माँग व पूर्ति बराबर है।

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प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
भारत में पेट्रोल, अनाज आदि पर उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना है। नियंत्रित कीमत संतुलन कीमत से कम होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 15
संलग्न रेखाचित्र में OP संतुलन कीमत है जिस पर OQ मात्रा का विनिमय किया जाता है। सरकार OP1 नियंत्रित कीमत निर्धारित करती है जिससे MN अर्थात् RT मात्रा में वस्तु की कमी उत्पन्न हो जाएगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को राशनिंग की नीति अपनानी चाहिए। राशनिंग का अर्थ है-एक व्यक्ति के लिए वस्तु के क्रय की उच्चतम सीमा निर्धारित करना। राशनिंग व्यवस्था के अंतर्गत निम्नलिखित दोष होते हैं
(i) प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
वस्तु की मात्रा

(ii) क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत की दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव पड़ता है, क्योंकि माँग में परिवर्तन कीमत में परिवर्तन करते हैं। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो कीमत में वृद्धि होती है और यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट करता है. तो कीमत में कमी होती है।

जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन होगा। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में कमी होती है।

प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु X की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार दिए गए है qd = 700 – p
qs = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि ≤ 0 p ≤ 15
मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपए से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु X की बाज़ार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
हल:
वस्तु का बाज़ार माँग वक्र qd = 700 – p
वस्तु का बाज़ार पूर्ति वक्र-
qd = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15
वस्तु X की बाज़ार पूर्ति 15 रुपए से कम किसी भी कीमत पर शून्य होगी क्योंकि यह वस्तु X को उत्पादित करने की न्यूनतम औसत लागत है। यदि एक फर्म 15 रुपए से कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति करती है तो फर्म को हानि सहन करनी होगी। इस प्रकार पूर्ति वक्र का प्रारंभिक बिंदु 15 रुपए की कीमत होगा।

संतुलन बिंदु पर-
qd = qs
700 – p = 500 + 3p
4p = 200
p = 50
इस प्रकार 50 रुपए संतुलन बिंदु है। संतुलन मात्रा की गणना निम्नलिखित प्रकार से होगी-
संतुलन मात्रा = 700 – p
= 700 – 50
= 650 उत्तर

प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु X का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाज़ार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार से है-
qsf = 8+ 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 20
(a) p = 20 का क्या महत्त्व है?
(b) बाज़ार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
हल:
एक वस्तु का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 700 – p (अभ्यास 22 में दिया गया है)
एक एकल फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है-
qsf = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 0
= 0 क्योंकि 0 ≤ P< 20
(a) p = 20 का महत्त्व यह है कि यह फर्मों की न्यूनतम औसत लागत है। इस कीमत स्तर से नीचे एक फर्म वस्तु की पूर्ति के लिए इच्छुक नहीं होगी।

(b) X के लिए बाज़ार में संतुलन 20 रुपए की कीमत पर होगा। जब बाज़ार में फर्मों का प्रवेश और बहिर्गमन निर्बाध रूप से होता है तो बाजार का संतुलन उस कीमत पर होगा जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो। इसी कीमत पर बाजार की माँग और पूर्ति बराबर होगी।

(c) माँग वक्र से हम संतुलन मात्रा का परिकलन कर सकते हैं-
q0 = 700 – 20
= 680
P0 = 20 पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति है-
qsf = 8 + 3p
= 8 + (3 x 20)
= 68
फर्मों की संख्या (n0) = \(\frac{q_{0}}{q_{0 f}}\)
= \(\frac { 680 }{ 68 }\)
= 10 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है-
qd = 1000 – p
qs = 700 + 2P
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है
qs = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपए प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
हल:
नमक का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 1000 – p
नमक का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है–
qs = 700 + 2p
(a) संतुलन पर नमक की माँग और नमक की पूर्ति बराबर होंगे-
qd = qs
1000 – p = 700 + 2p
– 3p = 700 – 1000
– 3p = – 300
3p = 300
p = 100
संतुलन कीमत = 100
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 100
= 900 उत्तर

(b) नमक का माँग वक्र है
qd = 100 – p
नमक की नई पूर्ति वक्र है-
qs = 400 – 2p
नए संतुलन के लिए भी qd = qs की शर्त का लागू होना आवश्यक है।
इसलिए
qd = qs
1000 – p = 400 + 2 p
– 3p = 400 – 1000
3p = 600
p = 200
नई संतुलन कीमत = 200
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 200 = 800
संतुलन मात्रा में कमी = 900 – 800
= 100
संतुलन कीमत में वृद्धि = 200 – 100
= 100 उत्तर
ये परिवर्तन हमारी अपेक्षा के अनुकूल हैं। जब नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो वस्तु की लागत में वृद्धि होगी। फलस्वरूप संतुलन कीमत में वृद्धि तथा संतुलन मात्रा में कमी होना स्वाभाविक है।

(c) नमक पर बिक्री कर = 3 रुपए
कर पूर्व माँग वक्र है = 1000 – p
कर पश्चात् माँग वक्र होगा = 1000 – 3 – p
= 997 – p
कर पूर्व पूर्ति वक्र है = 700 + 2p
कर पश्चात् पूर्ति वक्र होगा = 700 + 2 (p – 3)
= 700 + 2p – 6
= 694 + 2p
संतुलन स्थिति है- qd = qs
997 – p = 694 + 2p
3p = 303
p = \(\frac { 303 }{ 3 }\)
p = 101 रुपए
संतुलन कीमत = 101 रुपए
संतुलन मात्रा = 997 – p
= 997 -101
= 896 उत्तर
इस प्रकार 3 रुपए प्रति इकाई के कर के परिणामस्वरूप संतुलन कीमत 100 रुपए से बढ़कर 101 रुपए हो गई है और संतुलन मात्रा 900 से 896 तक घट गई है।

प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाज़ार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेंटों के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है तो इसका अर्थ यह होगा कि सरकार द्वारा निर्धारित किया हआ किराया बाजार द्वारा निर्धारित (संतलन) किराए से कम होगा। इसके परिणामस्वस एपार्टमेंट की पूर्ति उसकी माँग से कम हो जाएगी। इस प्रकार एपार्टमेंट की माँग की तुलना में पूर्ति कम होगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को नियंत्रित किराए पर एपार्टमेंट की पूर्ति स्वयं बढ़ानी होगी। यदि सरकार किसी भी कारणवश ऐसा नहीं कर पाती है तो बाज़ार में कालाबाज़ारी का बोलबाला हो जाएगा।

बाज़ार संतुलन HBSE 12th Class Economics Notes

→ संतुलन वह स्थिति है, जहाँ किसी परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन वहाँ होता है, जहाँ बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति बराबर होती है।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति ।

→ फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत तथा मात्रा, बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है।

→ प्रत्येक फर्म श्रम का उपयोग उस बिंदु तक करती है, जहाँ श्रम का सीमांत संप्राप्ति (आगम) उत्पाद, मजदूरी दर के बराबर होता है। यही बिंदु श्रम की इष्टतम मात्रा का बिंदु होता है।

→ पर्ति वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब माँग वक्र दायीं (बायीं ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है।

→ माँग वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब पूर्ति वक्र दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है तथा संतुलन कीमत में गिरावट (घृद्धि) होती है।

→ जब माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र समान दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो संतलन मात्रा पर इसका प्रभाव सस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलम कीमत पर इसका प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र, दोनों का दायीं ओर शिफ्ट होता है, तो संतलन मात्रा में बद्धि होती है जबकि संतलन कीमत में वृद्धि, कमी हो सकती है अथवा अपरिवर्तित भी रह सकती है। यह माँग और पूर्ति चक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशाओं में शिफ्ट होते हैं, तो संतुलन कीमत पर इसका प्रभाव सुस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलन मात्रा पर प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का बायीं ओर शिफ्ट होना है, तो संतुलन मात्रा में कमी होती है, जबकि संतुलन कीमत ‘ में वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यह माँग और पूर्ति वक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ संतुलन कीमत से कम कीमत का उच्चतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिमाँग उत्पन्न होती है।

→ संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिपूर्ति उत्पन्न होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में समरूपी के साथ यदि फर्मे बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती है, तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के ही बराबर होती है अर्थात् P = न्यूनतम औसत लागत।

→ नर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन होने पर माँग में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं होता, परंतु संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में परिवर्तन माँग की दिशा में परिवर्तन के समान होता है।

→ फर्मों की स्थिर संख्या वाले बाज़ार की तुलना में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाज़ार में माँग वक्र के शिफ्ट का संतुलन मात्रा पर प्रभाव अधिक प्रबल होगा।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi Prakaranam संधि प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

सन्धि अथवा संहिता-दो वर्णों के, चाहे वे स्वर हों या व्यञ्जन, के मेल से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि अथवा संहिता कहते हैं। यथा
विद्या + अर्थीः = विद्यार्थीः
वाक् + ईशः = वागीशः।

सन्धियों के भेद
जिन दो वर्णों (व्यवधान रहित) में हम सन्धि करते हैं वे वर्ण प्रायः अच् (स्वर) तथा हल् (व्यञ्जन) होते हैं और कई बार पहला विसर्ग तथा दूसरा कोई व्यञ्जन अथवा स्वर भी हो सकता है। अतः सन्धियों के मुख्य तीन भेद किए गए हैं
(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
(ख) हल् सन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
(ग) विसर्ग सन्धि ।

(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच् सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के क्रमशः आठ भेद हैं –
(1) दीर्घ सन्धि
(2) गुण सन्धि
(3) वृद्धि सन्धि
(4) यण् सन्धि
(5) अयादि सन्धि
(6) पूर्वरूप सन्धि
(7) पररूप सन्धि
(8) प्रकृतिभाव सन्धि

(1) दीर्घसन्धि
ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋके परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे अ या आ हो तो दोनों को आ हो जाता है; अर्थात् अ/आ + अ/आ = आ।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः ।
च + अपि = चापि।
उत्तम + अङ्गम् = उत्तमाङ्गम्।
च + अस्ति = चास्ति।
हिम + आलयः = हिमालयः।
देव + आलयः = देवालयः ।
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
रत्न + आकरः = रत्नाकरः।
मुर + अरिः = मुरारिः।
प्रधान + आचार्यः = प्रधानाचार्यः ।
तव + आशा = तवाशा।
तथा + अपि = तथापि।
दया + आनन्दः = दयानन्दः ।
महा + आशयः = महाशयः।
सा + अपि = सापि।
विद्या + आलयः = विद्यालयः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ii) नियम-यदि इ या ई से परे इ या ई हो तो दोनों को ई हो जाता है, अर्थात् इ/ई + इ/ई = ई।
उदाहरण:
मही + इन्द्रः = महीन्द्रः।
कवि + ईशः = कवीशः।
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
गिरि + ईशः = गिरीशः।
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा।
लक्ष्मी + ईश्वरः = लक्ष्मीश्वरः।
सुधी + इन्द्रः = सुधीन्द्रः।
लक्ष्मी + इन्द्रः = लक्ष्मीन्द्रः।
महती + इच्छा = महतीच्छा।
श्री + ईशः = श्रीशः।
लक्ष्मी + ईशः = लक्ष्मीशः।
गिरि + इन्द्रः = गिरीन्द्रः।
नदी + ईशः = नदीशः।
मुनि + इन्द्रः = मुनीन्द्रः।
रजनी + ईशः = रजनीशः।

(iii) नियम-यदि उ या ऊ से परे उ या ऊ हो तो दोनों को ऊ हो जाता है ; अर्थात् उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ।
उदाहरण
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः।
सिन्धु + ऊर्मिः = सिन्धूर्मिः।
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम्।
लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः।
भानु + उदयः = भानूदयः।

(iv) नियम-यदि ऋ से परे ऋ हो तो दोनों को ऋ हो जाता है, अर्थात् ऋ + ऋ = ऋ।
उदाहरण:
पितृ + ऋणम् = पितृणम् ।
भ्रातृ + ऋद्धिः = भ्रातृद्धिः ।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

2. गुणसन्धि
यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे इ या ई आ जाए तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + इ/ ई = ए।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः।
उमा + ईशः = उमेशः।
नर + ईशः = नरेशः।
नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः।
गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः।
गण + ईशः = गणेशः।
पूर्ण + इन्दुः = पूर्णेन्दुः।
परम + ईश्वरः = परमेश्वरः।
तथा + इति = तथेति।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + उ/ऊ = ओ।
उदाहरण
हित + उपदेशः = हितोपदेशः।
देव + उरुः = देवोरुः।
चन्द्र + उदयः =चन्द्रोदयः।।
तस्य + उपरिः = तस्योपरि।
गीता + उपदेशः = गीतोपदेशः ।
गङ्गा + ऊर्मिः = गङ्गोर्मिः।
गङ्गा + उदकम् = गगोदकम्।
पर + उपकारः = परोपकारः।
महा + उदयः = महोदयः।
महा + ऊर्मिः = महोर्मिः।

(i) नियम-यदि अ या आ से परे ऋ हो तो दोनों के स्थान पर अर हो जाता है; अर्थात् अ/आ + ऋ = अर्।
उदाहरण
परम + ऋषिः = परमर्षिः ।
कृष्ण + ऋद्धिः = कृष्णर्द्धिः।
महा + ऋषिः = महर्षिः।
राज + ऋषिः = राजर्षिः ।
देव + ऋषिः = देवर्षिः।
पुरुष + ऋषभः = पुरुषर्षभः ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

3. वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अया आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।
अत्र + एव = अत्रैव।
परम्परा + एषा = परम्परैषा।
मम + एव = ममैव।
तथा + एव = तथैव।
तव + एव = तवैव।
महा + ऐरावत: = महैरावतः।
च+ एव = चैव।
कृष्ण + एकत्वम् = कृष्णैकत्वम्।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे आया औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है अर्थात अ/आ + ओ/ औ = औ।
उदाहरण
मम + ओष्ठः = ममौष्ठः।
महा + औदार्यम् =महौदार्यम्।
महा + औषधिः = महौषधिः।
चित्त + औदार्यम् = चित्तौदार्यम्।
तव + औषधिः = तवौषधिः।
महा + औत्सुक्यम् = महौत्सुक्यम्।
मम + औषधिः = ममौषधिः।
जल + ओघः = जलौघः।
नव + औषधिः = नवौषधिः ।
तव + औदार्यम् = तवौदार्यम्।

(iii) नियम-यदि अया आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर आर् हो जाता है; अर्थात्/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण
प्र + ऋच्छतिः = प्रार्छतिः।
सुख + ऋतः = सुखार्तः ।
पिपासा + ऋतः = पिपासातः।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः।

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4. यण्सन्धि
यदि इ ई, उ ऊ, ऋ, ल से परे कोई असवर्ण स्वर हो तो वे क्रमशः य, व, र, ल में बदल जाते हैं।
(i) नियम-यदिइ, ई से परेइ, ईको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो’इ’याईको यहो जाता है ; अर्थात् इ ई + अन्य स्वर अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = य् + अन्य स्वर।
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि।
इति + अपि = इत्यपि।
वारि+अधिगच्छति = वार्यधिगच्छति।
महती + एषणा = महत्येषणा।
इति + आदिः = इत्यादिः।
सरस्वती + औघः = सरस्वत्यौघः।
नदी + अस्ति = नद्यस्ति।
पिबति + अत्र = पिबत्यत्र।
अति + आचारः = अत्याचारः।
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः।
नदी + अम्बुः = नद्यम्बुः।
देवी + अस्ति = देव्यस्ति।
सखी + उक्तम् = सख्युक्तम्।
देवी + आगता = देव्यागता।
गोपी + एषा = गोप्येषा।
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्

(ii) नियम-यदि उ, ऊ से परे उ, ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘उ’ या ‘ऊ’ को व हो जाता है; अर्थात् उ या ऊ + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = व् + अन्य स्वर।
उदाहरण
सु + आगतम् = स्वागतम्।
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः।
मधु + अरिष्टः = मध्वरिष्टः।
पचतु + ओदनम् = पचत्वोदनम्।
गुरु + आदिः = गुर्वादिः।
गच्छतु + एकः = गच्छत्वेकः।
साधु + आचरणम् = साध्वाचरणम्।
साधु + इष्टम् = साध्विष्टम्
वधू + आदिः = वध्वादिः।

(iii) नियम-यदि ‘ऋ’ के बाद ऋको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘ऋ’को र हो जाता है ; अर्थात् ऋ+ अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = र् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
मातृ + अनुग्रहः = मात्रनुग्रहः ।
धातृ + अंशः = धात्रंशः।
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।
पितृ + अभिलाषः = पित्रभिलाषः ।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पितृ+ऐश्वर्यम् = पित्रैश्वर्यम्।।

(iv) नियम-लु के बाद ल को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो लु को ल हो जाता है ; अर्थात् ल + अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ= ल् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
लृ + आकृतिः = लाकृतिः।
ल + आकारः = लाकारः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्
5. अयादिसन्धि

यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
(i) नियम-‘ए’ से परे कोई स्वर आने पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है; अर्थात् ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर।
उदाहरण
कवे + ए = कवये।
ने + अनम् = नयनम्।
हरि + ए = हरये।
जे + अति = जयति।
मुने + ए = मुनये।
ने + अति = नयति।
शे + अनम् = शयनम्।

(ii) नियम-‘ऐ से परे कोई स्वर आने पर ‘ऐ’ को ‘आय’ हो जाता है; अर्थात् ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई
उदाहरण
नै + अक: = नायकः।
रे + ऐ = रायै।
गै+ अकः = गायकः।
रै + ओः = रायोः ।

(iii) नियम-‘ओ’ से परे कोई स्वर आने पर ओ के स्थान पर अव हो जाता है; अर्थात् ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
साधो + अ = साधवः।
विष्णो + ए = विष्णवे।
भो + अति = भवति।
भो + अनम् = भवनम्।
भानो + ए = भानवे।
साधो + ए = साधवे।
गो + इ = गवि।
पो + अनः = पवनः।
गो + ए = गवे।

(iv) नियम-‘औ’ से परे कोई स्वर आने पर औ के स्थान पर आव् हो जाता है। अर्थात् औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
पौ + अकः = पावकः।
गौ + औ = गावौ।
भौ + उकः = भावुकः।
तौ + आगतौ = तावागतौ।
नौ + आ = नावा।
रौ + अनः = रावणः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

6. पूर्वरूपसन्धि
नियम-यदि पदान्त ए या ओ से परे ह्रस्व अ हो तो अका लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह ” चिह्न लगता है।
उदाहरण
ते + अपि = तेऽपि।
ग्रामो + अपि = ग्रामोऽपि।
ते + अत्र = तेऽत्र।
साधो + अत्र = साधोऽत्र।
कवे + अवेहि = कवेऽवेहि।
सर्वे + अपि = सर्वेऽपि।
विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र।
प्रभो + अत्र = प्रभोऽत्र।
प्रभो + अनुगृहाण = प्रभोऽनुगृहाण।
कवे + अत्र = कवेऽत्र।

7. पररूपसन्धि
नियम-‘अ’ वर्ण से अन्त होने वाले उपसर्ग के बाद अगर कोई ऐसी धातु का रूप हो जिसके आदि में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हो तो उस उपसर्ग के अ को पररूप हो जाता है, अर्थात् ए’ अथवा ‘ओ’ जैसा रूप हो जाता है। उदाहरण-प्र + एजते = प्रेजते।।
उप + ओषति = उपोषति ।

8. प्रकृतिभाव सन्धि
प्रकृतिभाव शब्द से तात्पर्य है पहले जैसा रूप रहना अर्थात कोई परिवर्तन न होना। जहाँ सन्धि के नियमानुसार सन्धि नहीं होती, उसे प्रकृतिभाव सन्धि कहते हैं।
(i) नियम-द्विवचन वाले पद के अन्त में ई, ऊ, ए से परे कोई भी स्वर होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
कवी + इमौ = कवी इमौ।
हरी + एतौ = हरी एतौ।
याचेते + अर्थम् = याचेते अर्थम्।।
साधू + इमौ = साधू इमौ।

(ii) नियम-अदस् शब्द के ‘अमी’ और ‘अमू’ रूपों से परे ‘ई’ और ‘ऊ’ स्वर परे होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
अमू + आसते = अमू आसते।
अमू + उपविशतः = अमू उपविशतः ।
अमी + अश्वाः = अमी अश्वाः।
अमी + ईशाः = अमी ईशाः ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ख) हलसन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः ।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः।
व्यञ्जनसन्धि के कुछ मुख्य-मुख्य नियम निम्नलिखित हैं
1.श्चुत्त्व सन्धि (स्तोश्चुनाश्चः )-जब ‘स्तु’ अर्थात् सकार और तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) से पहले या बाद में ‘श्चु’. अर्थात् शकार और चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) आए तो सकार को शकार और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग होता है
(क) स् को श् – हरिस् + शेते = हरिश्शेते।
कस् + चित् = कश्चित्।
(ख) तवर्ग को चवर्गसत् + चित् = सच्चित्।
सत् + जनः = सज्जनः।
शत्रून् + जयति = शत्रूञ्जयति ।

2. ष्टुत्व-सन्धि (ष्टुनाष्टुः)-
जब ‘स्तु’ से पहले या बाद में ष्टु अर्थात् षकार या टवर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) आए तो सकार को षकार तथा तवर्ग को टवर्ग हो जाता है। जैसे
(क) स् को – . रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
(ख) तवर्ग को टवर्गतत् + टीका = तट्टीका।
उद् + डीयते – उड्डीयते।
कृष् + नः = कृष्णः।
विष् + नुः = विष्णुः।

3. जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते):
पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क्, च्, ट्, त् प्, के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्त:स्थ य, र, ल, व् या ह् बाद में हों तो उनके स्थान पर ‘जश्त्व’ हो जाता है। (संस्कृत में ज्, ब्, ग, ड्, ह की संज्ञा ‘जश्’ है।) जैसे
क् को ग्-वाक् + ईशः = वागीशः।
च् को ज्-अच् + अन्तः – अजन्तः।
च् को ड्-षट् + एव = षडेव।
त् को द्-जगत् + बन्धुः = जगबन्धुः।
प् को ब्-अप् + जः = अब्जः ।

4. अनुस्वार-सन्धि (मोऽनुस्वारः)
पद के अन्त में यदि ‘म्’ हो और उसके बाद कोई व्यञ्जन हो तो ‘म्’ के स्थान में अनुस्वार हो जाता है, (बाद में स्वर हो तो अनुस्वार नहीं होता) जैसे
हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे।।
पुस्तकम् + पठति = पुस्तकं पठति।
(सम् + आचारः = समाचार:-यहाँ स्वर परे है अत: अनुस्वार नहीं हुआ)।

5. (क) परसवर्ण-सन्धि:
(वा पदान्तस्य) पूर्व अनुस्वार से परे वर्ग का कोई भी अक्षर हो तो अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण हो जाता है। परसवर्ण का अर्थ है-उसी अक्षर का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है।
जैसेकवर्ग में-किं + खादति = किखादति।
चवर्ग में-किं + च = किञ्च।
टवर्ग में-किं + ढौकसे = किण्ढौकसे।
तवर्ग में–अन्नं + ददाति = अन्नन्ददाति।
पवर्ग में-अन्नं + पचामि = अन्नम्पचामि।

(ख) अनुस्वार को परसवर्ण:
पदान्तरहित ‘म्’ के बाद वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा य र ल व में से कोई भी वर्ण हो तो ‘म्’ को परसवर्ण हो जाता है। जैसे
शाम् + तः = शान्तः (तवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ‘न्’)
अम् + कः = अकः (कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ङ्)
कुम् + ठितः = कुण्ठितः (टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ण) इत्यादि।

(ग)
(i) तोर्लि-यदि तवर्ग से परे ‘ल’ हो तो उसे ‘ल’ परसवर्ण हो जाता है। जैसे
तत् + लयः = तल्लयः।
तत् + लाभः = तल्लाभः ।

(ii) यदि ‘न्’ से परे ‘ल’ हो तो अनुनासिक ‘ल’ हो जाता है। जैसे
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति।

6. अनुनासिक-सन्धि (नश्छव्यप्राशान्):
यदि पद के अन्त में ‘न्’ हो और उसके आगे च-छ, ट्-ठ् तथा त्थ, में से कोई वर्ण हो तो ‘न्’ के स्थान में अनुनासिक या अनुस्वार तथा च छ परे रहने पर ‘श्’, ट् ठ् परे रहने पर ‘ष’, त् थ् परे रहने पर ‘स्’ अनुनासिक या अनुस्वार हो जाता है। जैसे
कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित्।
महान् + छेदः = महाँश्छेदः।
महान् + ठाकुरः = महाँष्ठाकुरः।
महान् + टङ्कारः = महाँष्टङ्कारः ।
चक्रिन् + त्रायस्व = चक्रिस्त्रायस्व।
पतन् + तरुः = पतँस्तरुः।

7. द्वित्व-सन्धि (डमोह्रस्वादचि डमुण नित्यम्)
यदि ह्रस्व स्वर के बाद इण् न हों, उनके बाद भी स्वर हो तो ङ् ण् न् को द्वित्व हो जाता है अर्थात् एक-एक और ङ् ण् न् आ जाता है। जैसे
ङ्-प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्डात्मा।
ण् -सुगण् + ईशः = सुगण्णीशः ।
न् – पठन् + अस्ति = पठन्नस्ति।

8. चकार-सन्धि (छे च)- ह्रस्व स्वर से परे यदि छकार आए तो छकार से पहले चकार जोड़ दिया जाता है।
जैसे
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः।।
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।

9. छकार-सन्धि (शश्छोऽटि):
यदि ‘तकार’ के बाद ‘शकार’ आ जाए तो ‘तकार को चकार’ नित्य होता है तथा शकार को छकार विकल्प से होता है। जैसे
तत् + शिवः = तच्छिवः, तच्शिवः।
तत् + श्लोकेन = तच्छ्लोकेन, तच्श्लोकेन।

10. रेफ लोप सन्धि (रोरि)- यदि रेफ (र्) स परे रेफ (र) हो तो एक ‘र’ का लोप हो जाता है तथा पूर्व स्वर को दीर्घ हो जाता है।
जैसेपुनर् + रमते = पुना रमते।
निर् + रोगः = नीरोगः।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधू रमते।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ग) विसर्गसन्धि

विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए उसमें जो विकार आता है, उसे विसर्गसन्धि कहते हैं।
जैसे- रामः + चलति = रामश्चलति।
विसर्गसन्धि के नियम इस प्रकार हैं
1. विसर्ग (:) को स् श् ष् (विसर्जनीयस्य सः)
(i) यदि विसर्ग के बाद त् थ् और स हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘स’ हो जाता है। जैसे
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
देवाः + सन्ति = देवास्सन्ति।
(ii) यदि विसर्ग के बाद च , छ या श हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘श’ हो जाता है। जैसे
बाल: + चलति = बालश्चलति।
हरिः + शेते = हरिश्शेते।
(iii) यदि विसर्ग के बाद ट ठ या ष हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है। जैसे
रामः + टीकते = रामष्टीकते।
धनुः + टंकारः = धनुष्टङ्कारः।
रामः + षष्ठः = रामष्षष्ठः।

2. विसर्ग (रु) को उ
(i) (हशि च)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और बाद में हश् अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र् ल् व् ह्-इनमें से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग (रु) को ‘उ’ हो जाता है। यही ‘उ’ विसर्ग पूर्ववर्ती ‘अ’ के साथ मिल कर ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
शिवः + वन्द्य = शिवो वन्द्यः।
यश: + दा = यशोदा
मनः + भावः = मनोभावः।
मनः + हरः = मनोहरः।

(ii) (अतो रो रुः प्लुतादप्लुते)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में भी ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है। उस ‘उ’ को पूर्ववर्ती अ के साथ गुण होकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती ‘अ’ को पूर्वरूप हो जाने पर ‘अ’ लोपवाचक अवग्रह-चिह्न (s) लगा दिया जाता है। जैसे
सः + अपि = सोऽपि
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
क: + अयम् = कोऽयम्
स: + अगच्छत् = सोऽगच्छत्।

3. विसर्गलोपः-(विसर्ग का लोप हो जाने पर पुनः सन्धि नहीं होती)
(क) यदि विसर्ग से पूर्व में ‘अ’ हो तो उसके बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
अतः + एव = अत एव ।
रामः + उवाच = राम उवाच ।

(ख) यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और उसके बाद कोई स्वर अथवा वर्ण के प्रथम, द्वितीय अक्षरों को छोड़कर अन्य कोई अक्षर अथवा य् र् ल् व् ह हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
छात्राः + अपि = छात्रा अपि।
जनाः + इच्छन्ति = जना इच्छन्ति।
अश्वाः + गच्छन्ति = अश्वा गच्छन्ति।
जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।

(ग) ‘स’ और ‘एष’ की विसर्गों का लोप हो जाता है यदि बाद में ‘अ’ को छोड़कर अन्य कोई अक्षर हो। जैसे
सः + आगच्छति = स आगच्छति।
एषः + एति = एष एति।
सः + वदति = स वदति।
एषः + हसति = एष हसति।

4. विसर्ग को ‘र’- यदि विसर्ग से पहले अ, आ से भिन्न कोई भी स्वर हो और बाद में कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे पाँचवें अक्षर अथवा य र ल व् ह हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है। जैसे
मुनिः + आगतः + मुनिरागतः ।
धेनु: + इयम् = धेनुरियम्।
भानुः + उदेति = भानुरुदेति ।
मुनिः + याति = मुनिर्याति ।
शिशुः + लिखति = शिशुर्लिखति। इत्यादि।

5. विसर्ग को ‘र’
अ के बाद ‘र’ के स्थान पर होने वाले विसर्ग को स्वर, वर्ग के तृतीय, चतुर्थ या पञ्चम वर्ण तथा य, र् ल् व् ह् इनमें से किसी वर्ण के परे रहते ‘र’ हो जाता है। जैसे
प्रात: + एव = प्रातरेव।
पुनः + अपि = पुनरपि।
पुनः = वदति – पुनर्वदति।
मातः देहि = मातर्देहि।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण

ईशावास्यम् = ईश + आवास्यम्
कुर्वन्नेव = कुर्वन् + एव
तास्ते = तान् + ते
प्रेत्यापि = प्रेत्य + अपि
येऽविद्याम् = ये + अविद्याम्
चाविद्याम् = च + अविद्याम्
वेदोभयम् = वेद + उभयम्
जिजीविषेच्छतम् = जिजीविषेत् + शतम्
तद्धावतः = तत् + धावतः
अनेजदेकम् = अनेजत् + एकम्
आहुरविद्यया = आहुः + अविद्यया
अन्यथेत: = अन्यथा + इतः
अत्येति = अति + एति
क्षितीशम् = क्षिति + ईशम्
प्रत्युज्जगाम = प्रति + उत् + जगाम
यतस्त्वया = यतः + त्वया
तवार्हतः = तव + अर्हतः
स्वार्थोपपत्तिम् = स्वार्थ + उपपत्तिम्
इत्यवोचत् = इति + अवोचत्
इवावशिष्टः = इव + अवशिष्टः
चातकोऽपि = चातक: + अपि
नार्दति = न + नर्दति
एतावदुक्त्वा = एतावत् + उक्त्वा
अन्वयुक्त = अनु + अयुक्त
चाहर = च + आहर
आहरेति = आहर + इति
गुर्वर्थम् = गुरु + अर्थम्
इत्ययम् = इति + अयम्
जहातीह = जहाति + इह
ह्यकर्मणः = हि + अकर्मणः
शरीरयात्रापि = शरीरयात्रा + अपि
पुरुषोऽश्नुते = पुरुषः + अश्नुते
तिष्ठत्यकर्मकृत् = तिष्ठति + अकर्मकृत्
प्रकृतिजैर्गुणैः = प्रकृतिजैः + गुणैः
कर्मणैव = कर्मणा + एव
लोकस्तदनुवर्तते = लोकः + तत् + अनुवर्तते
जनयेदज्ञानाम् = जनयेत् + अज्ञानाम्
एवातिगहनम् = एव + अतिगहनम्
गर्भेश्वरत्वम् = गर्भ + ईश्वरत्वम्
गुरूपदेशः = गुरु + उपदेशः
येवम् = हि + एवम्
नाभिजनम् = न + अभिजनम्
नोपसर्पति = न + उपसर्पति.
नालम्बते = न + आलम्बते
कोऽपि = कः + अपि
चन्द्रोज्ज्वलाः = चन्द्र + उज्ज्वलाः

पदम्सन्धिच्ठेद:सन्धिनाम
यद्यहम्यदि + अहम्(यण् सन्धि:)
पर्याकुला:परि + आकुला:(यण् सन्धि:)
पुनरपिपुनः + अपि( विसर्ग सन्धि: )
किज्चित्किम् + चित्(परसवर्ण सन्धि: )
ततो उन्यातत: + अन्या( विसर्ग/पूर्वरूपसन्धि: )
अध्यासितव्यम्अधि + आसितव्यम्(यण् सन्धि:)
भोजेनोक्तम्भोजेन + उक्तम्(गुण सन्धि:)
तस्यौदार्यम्तस्य + औदार्यम्(वृद्धि सन्धि:)
तस्येप्सितम्तस्य + ईप्सितम्(गुण सन्धि:)
व्यसनेष्वसक्तम्व्यसनेषु + असक्तम्(यण् सन्धि:)
हरन्त्यन्ये .हरन्ति + अन्ये(यण् सन्धि:)
इत्येवम्इति + एवम्(यण् सन्धि:)
आत्मोन्नतिम्आत्म + उन्नतिम्(गुण सन्धि:)
स्वल्पम्सु + अल्पम्(यण् सन्धि:)
अधुनात्रअधुना + अत्र(दीर्घ सन्धि:).
अनाथाश्रम:अनाथ + आश्रम:(दीर्घ सन्धि:)
तस्मिन्नवसरेतस्मिन् + अवसरे(द्वित्वसन्धि: )
प्रत्येकम्प्रति + एकम्(यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपिकस्मिन् + अपि(द्वित्वसन्धि:)
उपर्युपरिउपरि + उपरि(यण् सन्धि:)
हरितेनैवहरितेन + एव(गुण सन्धि:)
भवन्तो नित्यम्भवन्तः + नित्यम्(विसर्ग सन्धि:)
कश्चित्क: + चित्(विसर्ग सन्धि:)
सोऽपिस: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
कोऽपिक: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
प्रेषितोऽहम्प्रेषितः + अहम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पुष्पाঞ्जलि:पुष्प + अऊ्जलि:(दीर्घ सन्धि:)
हिंसावृत्तिस्तुहिंसावृत्ति + तु(विसर्ग सन्धि:)
प्रत्युत्तरम्प्रति + उत्तरम्(यण् सन्धि:)
प्रत्यागच्छतिप्रति + आगच्छति(यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपिकस्मिन् + अपि(द्वित्व सन्धि:)
यत्राहमयत्र + अहम्(दीर्घ सन्धि:)
प्रेषितस्त्वम्प्रेषितः + त्वम्( विसर्ग सन्धि:)
प्राप्तैवप्राप्ता + एव(वृद्धि सन्धि:)
यथैवयथा + एव(वृद्धि सन्धि:)
तस्यैवतस्य + एव(वृद्धि सन्धि:)
क्रूरोडयम्क्रूर: + अयम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धः)
स्वोदरपूर्तिम्स्व + उदरपूर्तिम्(गुणसन्धि: )
प्रावोचत्प्र + अवोचत्(दीर्घ सन्धि:)
मानवा इवमानवा: + इव(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अद्यापिअद्य + अपि(दीर्घ सन्धि:)
पुनरेष:पुन: + एष:(विसर्ग सन्धि:)
तत्रैवतत्र + एव(वृद्धि सन्धि: )
सहसाम्रियतसहसा + अम्रियत(दीर्घ सन्धिः)
रत्नार्यर्पयित्वारत्नानि + अर्पयित्वा(यण् सन्धि:)
सर्वोडपिसर्व: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अन्नेनैवअन्नेव + एव(वृद्धि सन्धः:)
नावलोक्यतेन + अवलोक्यते(दीर्घ सन्धि:)
महोत्साह:महा + उत्साह:(गुण सन्धि: )
पित्रोक्तम्पित्रा + उक्तम्(गुण सन्धि:)
स्नुषयोक्तम्स्नुषया + उक्तम्(गुण सन्धि:)
भार्ययोक्तम्भार्यया + उक्तम्(गुण सन्धि:) .
पुत्रेणोक्तम्पुत्रेण + उक्तम्(गुण सन्धि:)
राजापिराजा + अपि(दीर्घ सन्धि: )
चत्वार्यपिचत्वारि + अपि(यण् सन्धि:)
द्वयोरुपरिद्वयो: + उपरि(विसर्ग सन्धि:)
सर्वाण्येवसर्वाणि + एव(यण् सन्धि:)
मन्निर्मितम्मत् + निर्मितम्(परसवर्ण सन्धि:)
तच्छुत्वातत् + श्रुत्वा(छत्व सन्धि:)
त्वर येवम्त्वयि + एवम्(यण् सन्धि:)
लोकास्तिष्ठन्तिलोका: + तिष्ठन्ति(विसर्ग सन्धि:)
सोपानवज्जानन्तिसोपानवत् + जानन्ति(श्चुत्वसन्धि:)
पौराणिकास्तुपौराणिका: + तु(विसर्ग सन्धि:)
सुमेरोरुत्तरतःसुमेरो: + उत्तरत:( विसर्ग सन्धि:)
कैलासश्चकैलास: + च(विसर्ग सन्धि:)
स्वर्गस्पोपरिस्वर्गस्य + उपरि(गुण सन्धि:)
जन्तवस्तिष्ठन्तिजन्तव: + तिष्ठन्ति( विसर्ग सन्धि:)
अथाकस्मात्अथ + अकस्मात्(दीर्घ सन्धि: )
प्रादुरभूत् :प्रादु: + अभूत्( विसर्ग सन्धि:)
मासोडयम्मास: + अयम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पर्वतश्रेणीरिवपर्वतश्रेणी: + इव(विसर्ग सन्धि:)
यथेच्छम्यथा + इच्छम्(गुण सन्धि:)
महान्धकार:महा + अन्धकार:(दीर्घ सन्धि:)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

I. स्वरसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच्सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहा जाता है। दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण् आदि इसके अनेक प्रकार हैं।
उदाहरण
परम + आनन्दः = परमानन्दः
सु + उक्तिः = सूक्तिः
देव + इन्द्रः = देवेन्द्र:
यदि + अपि = यद्यपि।

II. गुणसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् – यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
हित + उपदेशः = हितोपदेशः
देव + ऋषिः = देवर्षिः

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

III. व्यञ्जनसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम – व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः । सत् + चित् = सच्चित्।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः। वाक् + ईशः = वागीशः।

IV. यण्सन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-यदि इ / ई, उ / ऊ, ऋ / ऋ, ल से परे कोई असमान स्वर हो तो वे क्रमश: य, व, र, ल में बदल जाते
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि
सु + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
तव + लकारः = तवल्कारः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

V. विसर्गसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए जो विकार आता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे
रामः + चलति = रामश्चलति।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
मुनिः + आगच्छत् = मुनिरागच्छत् ।

VI. दीर्घसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम्-दीर्घसन्धि- ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ के परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

VII. अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-अयादिसन्धि–यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
उदाहरण:
ने + अनम् = नयनम् ।
नै + अकः = नायकः ।
भो + अनम् = भवनम्।
पौ + अकः = पावकः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

VIII. वृद्धिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अ या आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।

(ii) नियम-यदि अ/ आसे परे आ /औ, ऋहो तो दोनों के स्थान पर क्रमशः औ तथा आर् हो जाते हैं; अर्थात् अ/ आ + ओ / औ = औ। ऋ/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण:
महा + औषधिः = महौषधिः ।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः ।

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HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1.
रदरफोर्ड ने स्वर्ण-पत्र से α-कणों के प्रकीर्णन के द्वारा परमाणु में नाभिक के अस्तित्व को सिद्ध किया। नाभिक पर था:
(अ) धनात्मक आवेश
(ब) ऋणात्मक आवेश
(स) कोई आवेश नहीं
(द) धन व ऋण दोनों प्रकार के आवेश
उत्तर:
(अ) धनात्मक आवेश

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 2.
नाभिक की त्रिज्या, परमाणु की त्रिज्या की तुलना में छोटी होती है, लगभग:
(अ) 106 भाग
(ब) 104 भाग
(स) 108 भाग
(द) 1010 भाग
उत्तर:
(ब) 104 भाग

प्रश्न 3.
किसी परमाणु के नाभिक के मूल कण होते हैं:
(अ) न्यूट्रॉन व प्रोटॉन
(ब) प्रोटॉन य इलेक्ट्रॉन
(स) न्यूट्रॉन व इलेक्ट्रॉन
(द) न्यूट्रॉन, प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन
उत्तर:
(अ) न्यूट्रॉन व प्रोटॉन

प्रश्न 4.
न्यूट्रॉन की माध्य आयु होती है:
(अ) लगभग 100 सेकण्ड
(ब) लगभग 1000 सेकण्ड
(स) लगभग 10 सेकण्ड
(द) लगभग 1 सेकण्ड
उत्तर:
(ब) लगभग 1000 सेकण्ड

प्रश्न 5.
प्रभावी नाभिकीय बलों की प्रकृति होती है:
(अ) प्रबल वैद्युत प्रतिकर्षण
(ब) प्रबल वैद्युत आकर्षण
(स) प्रबल आकर्षण बल
(द) वाण्डर वाल बलों जैसी
उत्तर:
(स) प्रबल आकर्षण बल

प्रश्न 6.
किसी परमाणु के नाभिक की त्रिज्या (R) व परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) में सम्बन्ध होता है:
(अ) R = Ro A2/3
(ब) R = R0 A1/3
(स) R = R0 A1/2
(द) R = R0 A
उत्तर:
(ब) R = R0 A1/3

प्रश्न 7.
एक रेडियोधर्मी सैम्पल का क्षय नियतांक λ है। इस सैम्पल की अर्द्ध आयु है:
(अ) \(\frac{1}{\lambda}\) loge2
(ब) \(\frac{1}{\lambda}\)
(स) λloge2
(द) \(\frac{\lambda}{\log _{\mathrm{e}} 2}\)
उत्तर:
(अ) \(\frac{1}{\lambda}\) loge2

प्रश्न 8.
निम्न रेडियोएक्टिव क्षय 82X23487Y222 में उत्सर्जित α तथा β कणों की संख्या होगी:
(अ) 3, 3
(ब) 3, 1
(स) 5,3
(द) 3,5
उत्तर:
(ब) 3, 1

प्रश्न 9.
निम्न अभिक्रिया पूरी करो:
92U235 + 0n138Sr90
(अ) 57Xe142
(ब) 54Xe145
(स) 54Xe143 + 3n1
(द) 54Xe142 + 0n1
उत्तर:
(स) 54Xe143 + 3n1

प्रश्न 10.
एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक (amu) बराबर होगा:
(अ) कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग
(ब) ऑक्सीजन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग
(स) हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का 16 वां भाग
(द) हीलियम परमाणु के द्रव्यमान का 16 वां भाग
उत्तर:
(अ) कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 11.
किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा तुल्य होती है:
(अ) नाभिक के द्रव्यमान के
(ब) प्रोटॉन के द्रव्यमान के
(स) नाभिक की द्रव्यमान क्षति के
(द) न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के
उत्तर:
(स) नाभिक की द्रव्यमान क्षति के

प्रश्न 12.
किसी नाभिक में प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा दर्शाती है:
(अ) उसके स्थायित्व को
(ब) उसके आकार को
(स) उसके द्रव्यमान को
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(अ) उसके स्थायित्व को

प्रश्न 13.
हीलियम की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा होती है:
(अ) 8 Mev
(ब) 7.0 Mev
(स) 11 Mev
(द) 4.0 Mev
उत्तर:
(ब) 7.0 Mev

प्रश्न 14.
द्रव्यमान संख्या 40 से 120 तक नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा होती है:
(अ) 1.2 Mev
(ब) 2.4 Mev
(स) 6.8 Mev
(द) 8.5 MeV
उत्तर:
(द) 8.5 MeV

प्रश्न 15.
किस नाभिक के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा का मान सर्वाधिक होगा:
(अ) 26Fe56
(ब) 8O16
(स) 2He4
(द) 92U238
उत्तर:
(अ) 26Fe56

प्रश्न 16.
नाभिकीय विखण्डन में न्यूट्रॉनों को काम में लाया जाता है, क्योंकि:
(अ) नाभिक के द्वारा न्यूट्रॉन आकर्षित होते हैं
(ब) न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान प्रोटॉनों से अधिक होता है
(स) न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं जिससे नाभिकों से उनका प्रतिकर्षण नहीं होता है
(द) न्यूट्रॉनों को त्वरित कर अधिक ऊर्जा दी जा सकती है।
उत्तर:
(स) न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं जिससे नाभिकों से उनका प्रतिकर्षण नहीं होता है

प्रश्न 17.
रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य आयु 2309 वर्ष है, उसकी अर्द्ध आयु होगी:
(अ) 1600 वर्ष
(ब) 1800 वर्ष
(स) 900 वर्ष
(द) 400 वर्ष
उत्तर:
(अ) 1600 वर्ष

प्रश्न 18.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व से उत्सर्जित β-कण होते हैं:
(अ) विद्युत चुम्बकीय विकिरण
(ब) नाभिक के प्रति परिक्रमा करते हुये इलेक्ट्रॉन
(स) नाभिक से उत्सर्जित आवेशित कण
(द) अनावेशित कण
उत्तर:
(स) नाभिक से उत्सर्जित आवेशित कण

प्रश्न 19.
रेडियोएक्टिव क्षय में cx कणों का ऊर्जा स्पेक्ट्रम होता है:
(अ) अनिश्चित
(ब) संतत
(स) संतत एवं रेखिल
(द) विविक्त एवं रेखिल
उत्तर:
(द) विविक्त एवं रेखिल

प्रश्न 20.
β- विघटन में कोणीय संवेग व ऊर्जा संरक्षण की व्याख्या के लिये β-कणों के साथ उत्सर्जित होने वाला अन्य कण होगा:
(अ) न्यूट्रॉन
(ब) न्यूट्रिनो
(स) प्रोटॉन
(द) a-कण
उत्तर:
(ब) न्यूट्रिनो

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 21.
नाभिक का आकार लगभग होता है:
(अ) 10-10 मीटर
(ब) 10-15 मीटर
(स) 10-15 मीटर
(द) 10-18 मीटर
उत्तर:
(ब) 10-15 मीटर

प्रश्न 22.
न्यूट्रॉन की खोज किस वैज्ञानिक ने की:
(अ) रदरफोर्ड
(ब) फर्मी
(स) चैडविक
(द) पॉली
उत्तर:
(स) चैडविक

प्रश्न 23.
नाभिक का आकार:
(अ) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के समानुपाती होता है।
(ब) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के वर्गमूल के समानुपाती होता है।
(स) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के घनमूल के समानुपाती होता है।
(द) परमाणु के परमाणु क्रमांक (Z) के समानुपाती होता है।
उत्तर:
(स) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के घनमूल के समानुपाती होता है।

प्रश्न 24.
संलयन प्रक्रिया उच्च ताप पर होती है क्योंकि उच्च ताप पर:
(अ) परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं।
(ब) अणु विघटित हो जाते हैं।
(स) नाभिक विघटित हो जाते हैं।
(द) नामिकों को इतनी अधिक ऊर्जा मिल जाती है, जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सके।
उत्तर:
(द) नामिकों को इतनी अधिक ऊर्जा मिल जाती है, जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सके।

प्रश्न 25.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु 20 मिनट है। समय t2 जब वह अपनी मात्रा का \(\frac{2}{3}\) क्षय हो गया हो तथा समय t1 जब वह अपनी मात्रा का \(\frac{1}{3}\)क्षय हो गया हो, तो उनके बीच का लगभग समय अन्तराल (t2 – t1) होगा:
(अ) 20 मिनट
(ब) 28 मिनट
(स) 7 मिनट
(द) 14 मिनट
उत्तर:
(अ) 20 मिनट

प्रश्न 26.
जनक नाभिक के लिए प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा E1 है और क्षयजात नामिकों के लिए E2 है तब:
(अ) E1 = 2E2
(ब) E1 > E2
(स) E2 > E1
(द) E2 = 2E1
उत्तर:
(स) E2 > E1

प्रश्न 27.
यदि t1/2 पदार्थ की अर्द्ध-आयु है तब t3/4 वह समय है जिसमें पदार्थ का
(अ) \(\frac{3}{4}\) भाग विघटित होता है।
(ब) \(\frac{3}{4}\) भाग अविघटित होता है।
(स) \(\frac{1}{2}\) भाग विघटित होता है।
(द) \(\frac{1}{2}\) भाग अविघटित होता है।
उत्तर:
(अ) \(\frac{3}{4}\) भाग विघटित होता है।

प्रश्न 28.
नाभिकीय अभिक्रिया
ZXAZ+1 XAZ-1 RA-4Z-1 RA-4
में उत्सर्जित कण (या विकिरण) होंगे:
(अ) α, β, γ
(स) γ, α, β
(ब) β, γ α
(द) β, α, γ
उत्तर:
(द) β, α, γ

प्रश्न 29.
एक रेडियोएक्टिव नाभिक एक α-कण व एक गामा किरण उत्सर्जित करता है तो उसकी
(अ) द्रव्यमान संख्या 4 कम हो जायेगी।
(ब) द्रव्यमान संख्या 1 कम हो जायेगी।
(स) परमाणु संख्या 2 बढ़ जायेगी।
(द) ऊर्जा कम हो जाती है।
उत्तर:
(अ) द्रव्यमान संख्या 4 कम हो जायेगी।

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प्रश्न 30.
रेडियोएक्टिव विघटन में-
(अ) α, β व γ-कण एक साथ उत्सर्जित होते हैं।
(ब) α व β कण साथ उत्सर्जित होते हैं।
(स) पहले α, फिर β व अन्त में γ-कण उत्सर्जित होते हैं।
(द) पहले α, तत्पश्चात् γ या पहले β तत्पश्चात् γ उत्सर्जित होते हैं।
उत्तर:
(द) पहले α, तत्पश्चात् γ या पहले β तत्पश्चात् γ उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 31.
न्यूट्रिनो की परिकल्पना से बीटा विघटन के लिये निम्न संरक्षण का नियम समझाया जा सकता है:
(अ) ऊर्जा संरक्षण
(स) ऊर्जा व संवेग
(ब) कोणीय संवेग
(द) ऊर्जा व कोणीय संवेग
उत्तर:
(द) ऊर्जा व कोणीय संवेग

प्रश्न 32.
यदि 27Al की नाभिकीय त्रिज्या 3.6 फर्मी है तो 64Cu की नाभिकीय त्रिज्या फर्मी में लगभग होगी-
(अ) 2.4
(ब) 1.2
(स) 4.8
(द) 3.6
उत्तर:
(स) 4.8

प्रश्न 33.
किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की प्रारम्भिक सान्द्रता No है। इसका अर्द्ध- आयुकाल t1/2 = 5 वर्ष है तो 15 वर्षों बाद शेष पदार्थ होगा:
(अ) \(\frac{\text { No }}{8}\)
(ब) \(\frac{\text { No }}{16}\)
(स) \(\frac{\text { No }}{2}\)
(द) \(\frac{\text { No }}{4}\)
उत्तर:
(अ) \(\frac{\text { No }}{8}\)

प्रश्न 34.
यदि किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की अर्द्धआयु 4 दिन है तो 2 दिन के पश्चात् इसका कितना भाग अविघटित रहेगा?
(अ) √2
(ब) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
(स) \(\frac{\sqrt{2}-1}{\sqrt{2}}\)
(द) \(\frac{1}{2}\)
उत्तर:
(ब) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)

प्रश्न 35.
नाभिकीय रिएक्टर में मंदक का कार्य है:
(अ) न्यूट्रॉनों की गति मन्द करना
(ब) न्यूट्रॉनों की गति तीव्र करना
(स) इलेक्ट्रॉनों की गति कम करना
(द) इलेक्ट्रॉनों की गति तीव्र करना
उत्तर:
(अ) न्यूट्रॉनों की गति मन्द करना

प्रश्न 36.
द्रव्यमान संख्या A व परमाणु क्रमांक Z वाला एक नाभिक X, एक कण व एक B-कण का उत्सर्जन करता है। परिणामी नाभिक R की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक होंगे:
(अ) (A – Z) व (Z – 1)
(ब) (A – Z) व (Z – 2)
(स) (A – 4) व (A – Z)
(द) (A – 4) व (Z – 1)
उत्तर:
(द) (A – 4) व (Z – 1)

प्रश्न 37.
नाभिकीय अभिक्रियाओं की विशिष्टताओं में से एक यह है कि उनके विघटित या संलयित भाग में:
(अ) कुल आवेश संख्या स्थिर रहती है।
(ब) कुल आवेश संख्या बदलती है।
(स) कुल द्रव्यमान संख्या बदलती है।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) कुल आवेश संख्या बदलती है।

प्रश्न 38.
आयनीकरण का गुण होता है:
(अ) α-कणों में सर्वाधिक
(स) β-किरणों में सर्वाधिक
(ब) γ- कणों में सर्वाधिक
(द) तीनों में बराबर।
उत्तर:
(अ) α-कणों में सर्वाधिक

प्रश्न 39
संलयन प्रक्रिया उच्च ताप पर होती है, क्योंकि उच्च ताप पर
(अ) परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं।
(ब) अणु विघटित हो जाते हैं।
(स) नाभिक विघटित हो जाते हैं।
(द) नाभिकों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सकें।
उत्तर:
(द) नाभिकों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सकें।

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प्रश्न 40.
सूर्य अपनी विकिरण ऊर्जा प्राप्त करता है:
(अ) विखण्डन प्रक्रम से
(ब) विघटन प्रक्रम से
(स) प्रकाश-विद्युत् प्रभाव से
(द) संलयन प्रक्रम से।
उत्तर:
(द) संलयन प्रक्रम से।

प्रश्न 41.
नाभिकीय रियेक्टर में या भारी पानी का उपयोग करते ग्रेफाइट हैं:
(अ) अनावश्यक न्यूट्रॉनों के अवशोषण के लिये
(ब) न्यूट्रॉन के त्वरण के लिये
(स) तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का वेग कम करने के लिये.
(द) ऊर्जा विनिमय के लिये।
उत्तर:
(अ) अनावश्यक न्यूट्रॉनों के अवशोषण के लिये

प्रश्न 42.
नाभिकीय संलयन में उत्पन्न ऊर्जा कहलाती है:
(अ) यांत्रिकी ऊर्जा
(ब) परमाणु ऊर्जा
(स) ताप नाभिकीय ऊर्जा
(द) विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा।
उत्तर:
(स) ताप नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 43.
ऋणात्मक B क्षय में:
(अ) परमाणु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।
(ब) नाभिक में पूर्व से ही उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिक से उत्सर्जित होता है।
(स) नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन के क्षय से प्राप्त इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।
(द) नाभिक की बन्धन ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन में परिवर्तित हो जाता है।
उत्तर:
(स) नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन के क्षय से प्राप्त इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।

प्रश्न 44.
एक रेडियोएक्टिव तत्व की अर्ध आयु 1600 वर्ष है। इसकी माध्य आयु होगी:
(अ) 2309 वर्ष
(ब) 1109 वर्ष
(स) 2400 वर्ष
(द) 3200 वर्ष
उत्तर:
(अ) 2309 वर्ष

प्रश्न 45.
1. a. mu. के तुल्य ऊर्जा है:
(अ) 1 eV
(ब) 14.2 MeV
(स) 931 Mev
(द) 0.693 Mev
उत्तर:
(स) 931 Mev

प्रश्न 46.
किरणें नाभिक के स्थायित्व के लिए-
(अ) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा अधिक होनी चाहिए।
(ब) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कम होनी चाहिए।
(स) इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होनी चाहिए।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा अधिक होनी चाहिए।

प्रश्न 47.
निम्न पदार्थ विखण्डन को नियंत्रित करता है:
(अ) भारी पानी
(ब) ग्रेफाइट
(स) केडमियम
(द) बेरलियम ऑक्साइड
उत्तर:
(स) केडमियम

प्रश्न 48.
नाभिकीय रिएक्टर क्रान्तिक होता है, यदि गुणात्मक कारण K का मान है:
(अ) 1
(ब) 1.5
(स) 2.1
(द) 2.5
उत्तर:
(अ) 1

प्रश्न 49.
एक नाभिक से गामा किरण उत्सर्जन में-
(अ) केवल न्यूट्रॉन संख्या परिवर्तित होती है।
(ब) केवल प्रोटॉन संख्या परिवर्तित होती है।
(स) दोनों न्यूट्रॉन संख्या और प्रोटॉन संख्या परिवर्तित होती हैं।
(द) प्रोटॉन संख्या और न्यूट्रॉन संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्तर:
(द) प्रोटॉन संख्या और न्यूट्रॉन संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 50.
बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन सम्बन्ध, द्रव्यमान संख्या के सापेक्ष-
(अ) पहले घटता है, फिर बढ़ता है।
(ब) पहले बढ़ता है, फिर घटता है।
(स) बढ़ता है।
(द) घटता है।
उत्तर:
(ब) पहले बढ़ता है, फिर घटता है।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
कोई तत्व A निम्न दो चरण प्रक्रियाओं द्वारा तत्व C में विघटित होता है-
A → 2He + B
B → 2(1e0) + C
तत्वों A, B व C में से समस्थानिक युग्म छाँटिए।
उत्तर:
A व C।

प्रश्न 2.
किसी दिये गये रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता (एक्टिवता) को परिभाषित कीजिए। इसका SI मात्रक लिखिए।’
उत्तर:
रेडियोएक्टिव पदार्थ के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित परमाणुओं की संख्या उसकी सक्रियता कहलाती है।
सक्रियता A = -dN/dt इसका SI मात्रक बैकरेल (Bq) है।
1 Bq = 1 विघटन प्रति सेकण्ड

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प्रश्न 3.
न्यूक्लियर रिएक्टर में प्रयुक्त दो मंदकों के नाम दीजिए।
उत्तर:
प्रायः प्रयुक्त होने वाले अवमंदक जल, भारी जल (D2O) तथा ग्रेफाइट है।

प्रश्न 4.
नाभिकीय बल के दो विशिष्ट अभिलक्षण बताइए।
उत्तर:
विशिष्ट अभिलक्षण:
(i) नाभिकीय बल हमेशा अनाश्रित होते हैं।
(ii) नाभिकीय बल प्रकृति का सबसे प्रबल बल होता है।

प्रश्न 5.
दो नाभिकों के द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात 1 : 3 है उनकी नाभिकीय घनत्व का अनुपात क्या है?
उत्तर:
चूँकि नाभिकीय घनत्व सभी नाभिकों के लिए समान होता है, अतः P1 : P2 : : 1 : 1 होगा।

प्रश्न 6.
किसी नाभिक की त्रिज्या उसके द्रव्यमान संख्या से कैसे सम्बन्धित होती है?
अथवा
किसी नाभिक की त्रिज्या R एवं द्रव्यमान संख्या A में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
नाभिक को सन्निकटतः
गोलाकार मानने पर उसकी
त्रिज्या R तथा द्रव्यमान संख्या A में निम्न सम्बन्ध होता है-
R = R2 A1/3
जहाँ Ro एक नियतांक है।

प्रश्न 7.
दो नाभिकों के द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात 1 : 8 है उनके नाभिकीय त्रिज्यायों का अनुपात क्या है?
उत्तर:
प्रश्नानुसार
या
A1 : A2 = 1 : 8
∵R = R0A1/3
∴ \(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\frac{A_1^{1 / 3}}{A_2^{1 / 3}}\) = \(\left(\frac{A_1}{A_2}\right)^{1 / 3}\)
\(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\left(\frac{1}{8}\right)^{1 / 3}\) = \(\frac{1}{2}\)

प्रश्न 8.
किसी परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या क्या होगी, यदि परमाणु की द्रव्यमान संख्या A व परमाणु क्रमांक Z हो ?
उत्तर:
(A – Z)

प्रश्न 9.
किसी नाभिक की द्रव्यमान क्षति ∆M व उसकी बन्धन ऊर्जा (E) में क्या सम्बन्ध होगा?
उत्तर:
E = ∆M C2

प्रश्न 10.
नाभिक का स्थायित्व कौनसी भौतिक राशि पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा।

प्रश्न 11.
प्रति न्यूक्लिऑन औसत बन्धन ऊर्जा का मान क्या होता है?
उत्तर:
8.5 Mev

प्रश्न 12.
नाभिक में प्रभावी बलों की क्या प्रकृति होती है?
उत्तर:
प्रबल आकर्षण बल।

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प्रश्न 13.
किसी नाभिक की त्रिज्या R व परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
R = RoA1/3

प्रश्न 14.
एक द्रव्यमान मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग।

प्रश्न 15.
यूरेनियम नाभिक के विखण्डन से औसतन प्रति नाभिक प्राप्त होने वाले न्यूट्रॉनों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
लगभग 2.5

प्रश्न 16.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रियाओं के नाम लिखिये।
उत्तर:
नियंत्रित व अनियंत्रित।

प्रश्न 17.
विखण्डन की कौनसी श्रृंखला अभिक्रिया पर परमाणु भट्टी आधारित है?
उत्तर:
नियंत्रित।

प्रश्न 18.
परमाणु भट्टी में मंदक के रूप में काम आने वाले किसी एक पदार्थ का नाम लिखिये।
उत्तर:
ग्रेफाइट।

प्रश्न 19.
परमाणु भट्टी में नियंत्रक छड़ें किस पदार्थ की बनी होती हैं तथा ये कौनसे कणों का अवशोषण करने में उपयोग होती हैं?
उत्तर:
केंडमियम, न्यूट्रॉन का।

प्रश्न 20.
अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया पर आधारित कौनसी युक्ति होती है?
उत्तर:
परमाणु बम।

प्रश्न 21.
सूर्य से ऊर्जा उत्पादन के लिये कौनसी नाभिकीय अभिक्रिया उत्तरदायी होती है?
उत्तर:
संलयन अभिक्रिया।

प्रश्न 22.
किसी तत्व के स्वतः विघटन की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
रेडियोएक्टिवता।

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प्रश्न 23.
एक रेडियोएक्टिव तत्व जिसकी द्रव्यमान संख्या 226 है व परमाणु क्रमांक 88 है α कण उत्सर्जित करता है। नये तत्व की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक क्या होंगे?
उत्तर:
222, 86 चूँकि α कण उत्सर्जित होने पर परमाणु क्रमांक में 2 की कमी तथा परमाणु भार द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी हो जाती है।
अतः नये तत्व की द्रव्यमान संख्या = 226 – 4 = 222 तथा परमाणु क्रमांक = 88 – 2 = 86

प्रश्न 24.
एक रेडियोएक्टिव तत्व जिसकी द्रव्यमान संख्या 218 व परमाणु क्रमांक 84 है, β-कण उत्सर्जित करता है विघटन के पश्चात् तत्व की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक क्या होंगे?
उत्तर:
218, 85 चूंकि β-कण के उत्सर्जन के बाद तत्व की द्रव्यमान संख्या में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। लेकिन उसके परमाणु क्रमांक में 1 की वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 25.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की दो अर्द्ध-आयुओं के बराबर समय में उसमें उपस्थित परमाणुओं की संख्या कितनी रह जावेगी?
उत्तर:
प्रारम्भिक संख्या की एक-चौथाई।

प्रश्न 26.
किसी रेडियो न्यूक्लिाइड की सक्रियता को परिभाषित कीजिए। इसकी S. I इकाई लिखिए।
उत्तर:
किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श में इकाई समय में क्षयित होने वाले नाभिकों की संख्या को उसकी सक्रियता कहते हैं। इसकी SI इकाई बैकरेल होती है।

प्रश्न 27.
किसी नाभिक के दो अभिलक्षणों द्रव्यमान संख्या (A) तथा परमाणु संख्या Z में से किसका B-क्षय में परिवर्तन नहीं होता है?
उत्तर:
β = -1ve, अतः β-क्षय में द्रव्यमान A का परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 28.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु व उसके क्षयांक में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
अर्द्ध आयु क्षयांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है। T = 0.693/λ

प्रश्न 29.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य-आयु के समान समय में परमाणुओं की कितने प्रतिशत संख्या अविघटित रह जाती है?
उत्तर:
लगभग 37 प्रतिशत।

प्रश्न 30.
β-क्षय में उत्सर्जित न्यूट्रिन का द्रव्यमान व आवेश क्या होंगे?
उत्तर:
शून्य शून्य।

प्रश्न 31.
परमाणु के नाभिक में कौन-कौनसे कण होते हैं?
उत्तर:
प्रोटॉन व न्यूट्रॉन।

प्रश्न 32.
नाभिकीय बल विद्युत चुम्बकीय बलों से कितना गुना अधिक होता है?
उत्तर:
100 गुना।

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प्रश्न 33.
परमाणु भट्टी में भारी पानी, ग्रेफाइट इत्यादि पदार्थ किस काम में आते हैं?
उत्तर:
मंदक के रूप में।

प्रश्न 34.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध- आयु में उसमें उपस्थित परमाणुओं की संख्या कितनी रह जावेगी?
उत्तर:
आधी।

प्रश्न 35.
रेडियोएक्टिव तत्त्व की अर्द्ध आयु उसके क्षयांक पर किस प्रकार निर्भर करती है?
उत्तर:
क्षयांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
यदि माध्य आयु Ta हो तो Ta = 1/λ, जहाँ λ क्षयांक है।

प्रश्न 36.
रेडियोएक्टिव विघटन में Q कणों का ऊर्जा स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
विविक्त एवं रेखिल।

प्रश्न 37.
परमाणु क्रमांक Z = 11 तथा द्रव्यमान क्रमांक A = 24 के नाभिक में कितने इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होंगे?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन = 11, न्यूट्रॉन = 13

प्रश्न 38.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की आयु किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
निश्चित रहती है।

प्रश्न 39.
उस अभिक्रिया का नाम बताइए जो कम ऊर्जा के न्यूट्रॉन किरण के नाभिक 92U235 से टकराने पर होती है उत्पन्न नाभिकीय अभिक्रिया को लिखिए।
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन है।
नाभिकीय अभिक्रिया होती है-
<sub>92</sub>U<sup>235</sup> → <sub>0</sub>n<sup>1</sup> → <sub>56</sub>Ba<sup>141</sup> + <sub>36</sub>Kr<sup>92</sup> + <sub>0</sub>n<sup>1</sup>  + ऊर्जा

प्रश्न 40.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया कितने प्रकार की होती है? प्रत्येक का नाम लिखिये।
उत्तर:
दो प्रकार की होती है- (1) नियंत्रित (2) अनियंत्रित

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प्रश्न 41.
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा का क्या महत्त्व होता है?
उत्तर:
नाभिक के न्यूक्लिऑनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिये नाभिकीय बन्धन ऊर्जा के बराबर ऊर्जा बाह्य रूप से देनी पड़ती है।

प्रश्न 42.
सूर्य से ऊर्जा हमें कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
सूर्य से ऊर्जा हमें नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के द्वारा प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
कौनसा पदार्थ न्यूट्रॉन का सबसे अच्छा मंदक होता है?
उत्तर:
भारी जल D2O

प्रश्न 44.
नाभिकीय संलयन अभिक्रिया, नाभिकीय विखण्डन के सापेक्ष अधिक कठिन होती है क्यों?
उत्तर:
नाभिकीय संलयन के लिये 107 K की कोटि का उच्च ताप होना आवश्यक होता है जिसको प्राप्त करना कठिन होता है।

प्रश्न 45.
नाभिकीय ऊर्जा का शान्तिपूर्ण उपयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
परमाणु भट्टी में।

प्रश्न 46.
द्रव्यमान संख्या A वाले नाभिक के लिए द्रव्यमान क्षति Am है। इसकी बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन कितनी होगी?
उत्तर:
नाभिक की बन्धन ऊर्जा
ΔΕ = Δmc2
इसलिए बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन
Eb = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\)
या
Ep = \(\frac{\Delta \mathrm{m} \cdot \mathrm{c}^2}{\mathrm{~A}}\)

प्रश्न 47.
परमाणु द्रव्यमान मात्रक (amu) की परिभाषा कीजिए और इसके तुल्य ऊर्जा लिखिए।
उत्तर:
6C12 के एक परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग को
परमाणु द्रव्यमान मात्रक कहते हैं
अर्थात्
1 amu = \(\frac{1}{12}\) x (6C12 के एक परमाणु का द्रव्यमान )
1 amu = 1.66 × 10-27 Kg
1 amu के तुल्य ऊर्जा = 931 Mev

प्रश्न 48.
यदि A127 के नाभिक की त्रिज्या 3.6 फर्मी है तो Fe125 नाभिक की त्रिज्या क्या होगी?
उत्तर:
A α (A) 1/3
∴ \(\frac{\mathrm{R}_{\mathrm{Fe}}}{\mathrm{R}_{\mathrm{Al}}}\) = \(\left(\frac{\mathrm{A}_{\mathrm{Fe}}}{\mathrm{A}_{\mathrm{Al}}}\right)^{1 / 3}\) = \(\left(\frac{125}{27}\right)^{1 / 3}\) = \(\frac{5}{3}\)
RFe = \(\frac{5}{3}\) × RAl = \(\frac{5}{3}\) × 3.6 फर्मी
RFe = 6.0 फर्मी

प्रश्न 49.
एक तत्त्व के रेडियोधर्मी समस्थानिक और स्थायी समस्थानिक के रासायनिक गुणों में क्या अन्तर होगा?
उत्तर:
कोई अन्तर नहीं, क्योंकि रासायनिक गुण परमाणु के इलेक्ट्रॉनों पर निर्भर है, जबकि समस्थानिकों में नाभिक के न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न होती है।

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प्रश्न 50
(i) अर्द्धआयु T (ii) माध्य आयु Ta को क्षयांक A के पदों में व्यक्त कीजिये।
उत्तर:
(i) T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
(ii) To = \(\frac{1}{\lambda}\)

प्रश्न 51.
नाभिकीय अभिक्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
नाभिकीय अभिक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें नाभिकीय कणों की टक्कर से किसी बड़े नाभिक की संरचनाओं में अन्तर लाया जाता है।

प्रश्न 52.
नाभिकीय संलयन किसे कहते हैं?
उत्तर:
उच्च ताप व दाब पर हल्के नाभिक संयोजित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हुये ऊर्जा मुक्त करते हैं, उसे नाभिकीय संलयन कहते हैं।

प्रश्न 53.
प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कितनी होती है?
उत्तर:
यदि किसी A द्रव्यमान संख्या वाले नाभिक की बन्धन ऊर्जा Eb हो तो प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
\(\frac{E_b}{F}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{m} \times \mathrm{c}^2}{\mathrm{~A}}\)

प्रश्न 54.
नाभिकीय रिएक्टर के कौन-कौनसे भाग हैं?
उत्तर:
(i) ईंधन
(ii) मंदक
(iii) नियन्त्रण छड़ें
(iv) शीतलक
(v) परिरक्षक।

प्रश्न 55.
प्राकृतिक एवं कृत्रिम रेडियोएक्टिवता में किन-किन भौतिक राशियों का संरक्षण होता है ?
उत्तर:
(1) इनका आवेश संरक्षित रहता है।
(2) द्रव्यमान, ऊर्जा का योग संरक्षित रहता है।
(3) कोणीय संवेग एवं रेखीय संवेग संरक्षित रहता है।

प्रश्न 56.
दो नाभिकों की त्रिज्याओं का अनुपात 1 : 2 है। इनकी द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात लिखिए।
उत्तर:
नामिक की त्रिज्या
R = R0A1/3
या
A = \(\left(\frac{\mathrm{R}}{\mathrm{R}_0}\right)^3\)
यहाँ पर A = द्रव्यमान संख्या,
R0 = नियतांक
∴ \(\frac{\mathrm{A}_1}{\mathrm{~A}_2}\) = \(\frac{\mathrm{R}_1^3}{\mathrm{R}_2^3}\) = \(\frac{1^3}{2^3}\) =\(\frac{1}{8}\)
A1 : A2 = 1 : 8

प्रश्न 57.
एक रेडियोएक्टिव तत्व का क्षय स्थिरांक 0.693 प्रति मिनट है इसकी अर्द्ध-आयु तथा औसत आयु क्या होगी?
उत्तर:
दिया है क्षय स्थिरांक A = 0.693 प्रति मिनट
= 0.693 (मिनट)1
इसलिये अर्द्ध-आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 1
T = 1 मिनट = 60 सेकण्ड
औसत आयु = \(\frac{1}{\lambda}\) = \(\frac{1}{0.693}\)
= \(\frac{1000}{693}\) मिनट
= 1.443 मिनट
= 1.443 × 60
= 8.658 सेकण्ड

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
समीकरण R = R0A1/3 के आधार पर दर्शाइये कि नाभिकीय द्रव्य का घनत्व लगभग अचर रहता है (यहाँ R एक नियतांक तथा A द्रव्यमान संख्या है।)
उत्तर:
नाभिकीय घनत्व – यदि एक न्यूक्लिऑन का औसत द्रव्यमान m तथा नाभिक की द्रव्यमान संख्या A हो तो इसमें न्यूक्लिऑनों की संख्या = A, अतः नाभिक का द्रव्यमान M = mA
नाभिक का आयतन V = 4/3πR3
= \(\frac{4}{3}\) π\(\left(R_o A^{\frac{1}{3}}\right)^3\)
R = R0A1/3
इसलिये नाभिक का आयतन V = \(\frac{4}{3}\) πR3A
इसलिये नाभिक का घनत्व p = IMM = \(\frac{M}{V}\)
= \(\frac{\mathrm{mA}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}_{\mathrm{o}}^3 \mathrm{~A}}\) = \(\frac{3 \mathrm{~m}}{4 \pi \mathrm{R}_{\mathrm{o}}^3}\)
अतः यहाँ यह स्पष्ट होता है कि घनत्व, A पर निर्भर नहीं करता है। इसका तात्पर्य यह है कि सभी परमाणुओं के नाभिकों के घनत्व लगभग समान होते हैं।

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प्रश्न 2.
रेडियोएक्टिव क्षमता का नियम लिखिए। किसी रेडियोएक्टिव तत्व का क्षयांक 103 प्रतिवर्ष है। इसकी अर्ध- आयु का मान वर्ष में ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
रेडियोएक्टिव क्षमता नियम (Law of Radioactive Decay ) – “किसी क्षण रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण पदार्थ में विद्यमान परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। यदि किसी क्षण पर उपस्थित परमाणुओं की संख्या N है तथा (t + dt) पर यह संख्या घटकर (N – dN) रह जाती है तो परमाणुओं के क्षय होने की दर -dN/dt होगी।
रदरफोर्ड व सोडी के नियम के अनुसार
\(\frac{-\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) α N अथवा \(\frac{4}{3}\) = -λN
यहाँ λ एक नियतांक है जिसे क्षय नियतांक (decay constant) कहते हैं किसी एक तत्व के लिए क्षय नियतांक λ का मान नियत होता है, परन्तु भिन्न-भिन्न तत्वों के लिए इसका मान भिन्न-भिन्न होता
है।
अर्द्ध-आयु तथा क्षय नियतांक में सम्बन्ध
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
लेकिन
λ = 10-3प्रतिवर्ष ( दिया है)
T = \(\frac{0.693}{10^{-3}}\)
= 0.693 × 103
= 693 वर्ष

प्रश्न 3.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु से आप क्या समझते हैं? रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु एवं क्षय नियतांक में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
वह समय जिसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अवघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्व की अर्द्ध आयु कहलाती है। इसे हम T से व्यक्त करते हैं। रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु T और क्षय नियतांक A में निम्न सम्बन्ध होता है
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)

प्रश्न 4.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ ‘A’ का क्षय निम्नानुसार होता है:
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As के द्रव्यमान संख्या एवं परमाणु संख्या के मान क्या होंगे ?
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 3
A4 की द्रव्यमान संख्या → 172
A4 की द्रव्यमान संख्या → 69

प्रश्न 5.
रदरफोर्ड सॉडी का रेडियोएक्टिव विघटन नियम लिखिए तथा क्षय समीकरण प्राप्त कीजिए । अर्ध आयु एवं माध्य आयु में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
रदरफोर्ड और सॉडी ने निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार:
(i) रेडियो एक्टिव परमाणुओं का स्वतः विघटन अनियमित (Random ) होता है अर्थात् यह निश्चित नहीं होता है कि कौनसा परमाणु कब विघटित होगा। परन्तु एक निश्चित अवधि (time) में विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या निश्चित होती है।
(ii) किसी समय परमाणुओं के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या उस समय पर उपस्थित कुल सक्रिय परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
\(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}}\) α dt
इसे चर घातांकी क्षय नियम भी कहते हैं।
अथवा
\( = λN
जहाँ λ रेडियोएक्टिव क्षय स्थिरांक अथवा विघटन- स्थिरांक है।
∆t समय में दिए गए नमूने में नाभिकों की संख्या में हुआ परिवर्तन है। dN = -∆N अतः [जब ∆t → 10] तो N में परिवर्तन की दर है
[latex]\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}}\) = -λN
अथवा
\(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{N}}}\)= – λ dt
दोनों तरफ का समाकलन करने पर
\(\int_{N_0}^N \frac{d N}{N}\) = \(-\lambda \int_{t_0}^t d t\)
या
\(\{\log N\}_{N_0}^N\) = \(-\lambda(\mathrm{t})_{t_0}^t\)
अथवा
log N – log No = – λ(t – to)
to = शून्य रखने पर
log N – log No = – λt
loge \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = – λt
∴\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = e-λt
या
N (t) = No e-λt
उपर्युक्त समीकरण क्षय समीकरण है।
अर्द्ध आयु एवं माध्य आयु में सम्बन्ध:
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
माध्य आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\)
अतः अर्द्ध आयु = 0.693 × माध्य आयु
या T = 0.693 To

प्रश्न 6.
परमाणु द्रव्यमान मात्रक को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
परमाणु द्रव्यमान मात्रक नाभिकीय कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान इतना कम होता है कि किलोग्राम मात्रक में व्यक्त करने पर वे 10-27 किग्रा की कोटि के होते हैं इतनी छोटी राशियों को उपयोग में लाना बहुत सुविधाजनक नहीं होता है। अतएव नाभिक के द्रव्यमानों को एक छोटे मात्रक में व्यक्त किया जाता है। इसे परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u.) कहते हैं। 6C12 के द्रव्यमान को मानक मानकर इसके 12वें भाग को 1 amu. मानते हैं।
अर्थात् 1 amu = HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 4
= 1.660565 × 10-27 किलोग्राम

प्रश्न 7.
नाभिकीय द्रव्यमान क्षति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नाभिकीय द्रव्यमान क्षति नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों के कुल द्रव्यमान व नाभिक के वास्तविक द्रव्यमान के अन्तर को द्रव्यमान क्षति कहते हैं।
द्रव्यमान क्षति = गणना द्वारा प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान
नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान
∆m = Mc – ma
यहाँ पर calculated mass को संक्षेप में m से और actual mass को ma से दिखाया गया है।
∆m = [ प्रोटॉनों का द्रव्यमान + न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान] नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान
या
∆m = [Z.my + (A – Z) ma] – m
जहाँ Z परमाणु का परमाणु क्रमांक, A द्रव्यमान संख्या, mp प्रोटॉन का द्रव्यमान mn न्यूट्रॉन का द्रव्यमान तथा m नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान है।

प्रश्न 8.
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा- जब नाभिकीय कण, नाभिकीय बलों के अन्तर्गत अन्योन्य क्रिया करते हैं तो प्रबल नाभिकीय अन्योन्य क्रिया के माध्यम से निकाय द्वारा कार्य किया जाता है तथा निकाय एक बद्ध अवस्था प्राप्त कर लेता है। इस बद्ध अवस्था को प्राप्त करने के लिये जो ऊर्जा इस प्रक्रम में मुक्त होती है वह द्रव्यमान क्षति के द्वारा प्राप्त होती है यही नाभिकीय बन्धन ऊर्जा है। किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\left(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\right)\) नाभिक के स्थायित्व ( stability) को प्रदर्शित करता है।
∴ प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
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यदि द्रव्यमान को am. u. में लें तब बन्धन ऊर्जा
= (∆m) × 931 Mev
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
= \(\frac{(\Delta \mathrm{m}) \times 931}{\mathrm{~A}}\) MeV / न्यूक्लिऑन

प्रश्न 9.
उस नाभिक का नाम बताइये जिसके लिये प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा सर्वाधिक होती है।
उत्तर:
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) नाभिक के स्थायित्व (stability) को प्रदर्शित करता आयरन (Fe) के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{492.8}{56}\) = 8.8MeV
जो कि सबसे अधिक है। अतः यह नाभिक सबसे अधिक स्थायी है।

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प्रश्न 10.
नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
किसी भारी नाभिक का हल्के-हल्के नाभिक में टूटने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखण्डन कहते हैं। यह क्रिया स्वतः चालित होती है। इसमें विशाल मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 6
परमाणु बम एवं नाभिकीय रियेक्टर का आधार नाभिकीय विखण्डन ही है।

प्रश्न 11.
यदि रेडियोएक्टिवता नाभिकीय प्रक्रिया है तो β-कण (इलेक्ट्रॉन) कहाँ से निकलते हैं, क्योंकि नाभिक में तो इलेक्ट्रॉन होते ही नहीं?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉन अस्थायी होता है। इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में यह न्यूट्रॉन निम्नलिखित समीकरण के अनुसार विघटित होकर प्रोटॉन में बदल जाता है और साथ ही एक- एक इलेक्ट्रॉन व ऐण्टी- न्यूट्रिनो को उत्पन्न करता है। ये इलेक्ट्रॉन नाभिक से β-कण के रूप में निकलते हैं।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 7
इस प्रकार β-कण नाभिक के अन्दर से निकलते हैं, नाभिक के बाहर की इलेक्ट्रॉन कक्षाओं से नहीं।

प्रश्न 12.
यदि एक नाभिक X एक कण तथा एक α-कण उत्सर्जित करता है तो उत्पाद नाभिक की द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु क्रमांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
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इसलिए उत्पाद की द्रव्यमान संख्या = m – 4 तथा परमाणु क्रमांक = n – 1

प्रश्न 13.
प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का क्या अर्थ है? न्यूट्रॉन (1H2 ) तथा α-कण ( 2He4 ) की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा क्रमशः 1.25 तथा 7.2 Mev प्रतिन्यूक्लिऑन है। कौनसा नाभिक अधिक स्थायी है?
उत्तर:
किसी नाभिक से एक न्यूक्लिऑन को अलग करने के लिए आवश्यक औसत ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कहलाती है। α-कण की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा ड्यूट्रॉन की तुलना में अधिक है। अतः α-कण अधिक स्थायी है।

प्रश्न 14.
नाभिकीय अभिक्रियाओं में किन-किन नियमों की पालना होती है?
उत्तर:
नाभिकीय अभिक्रियाओं में निम्नलिखित नियमों का पालन होता है:
(i) आवेश संरक्षित रहता है।
(ii) रेखीय एवं कोणीय संवेग संरक्षित रहते हैं।
(iii) द्रव्यमान एवं ऊर्जा का योग संरक्षित रहता है।
(iv) न्यूक्लिऑन का संरक्षण होता है।

प्रश्न 15.
नियंत्रित व अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया – यदि विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया इस प्रकार नियंत्रित की जा सके कि उसमें न तो वृद्धि हो और न ही कमी अर्थात् अभिक्रिया का एक ऐसा स्तर बना रहे जिससे प्रति सेकण्ड – मुक्त होने वाली ऊर्जा सदैव विस्फोट की सीमा से कम रहे तो इसे नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। इस प्रकार की अभिक्रिया का विद्युत ऊर्जा उत्पादन में प्रयोग किया जाता है नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया ही ‘परमाणु भट्टी’ का मूल आधार है। अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया – इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन औसत एक से अधिक न्यूट्रॉन विखण्डन की क्रिया में भाग लेते हैं यहाँ K 1 होता है। इससे नाभिकों के विखण्डन की दर तेजी से बढ़ती है तथा कुछ ही क्षणों में अत्यधिक अपार ऊर्जा मिलती है तथा प्रचण्ड विस्फोट का कार्य करती है। परमाणु बम में यही अभिक्रिया होती है।

प्रश्न 16.
नाभिकीय संलयन से क्या तात्पर्य है? इस अभिक्रिया में क्या होता है?
उत्तर:
नाभिकीय संलयन- जब दो हल्के नाभिक परस्पर मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं संलयन क्रिया से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान संलयन करने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कम होता है। यह द्रव्यमान में क्षति आइन्सटाइन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अनुसार अत्यधिक ऊष्मा के रूप में प्राप्त होती है। नाभिकीय संलयन होने के लिए निम्न क्रिया होना आवश्यक होता है:
(i) अति उच्च ताप (107 – 108 K) होना चाहिये।
(ii) जहाँ नाभिकीय संलयन प्रक्रिया हो, वहाँ क्रिया करने वाले नाभिकों की बाहुल्यता होनी चाहिये।
नाभिकीय संलयन की क्रिया सूर्य एवं सूर्य की तरह अन्य तारों में ऊर्जा का स्रोत होती है। वैज्ञानिक ब्रीथे ने यह प्रस्तावित किया कि सौर ऊर्जा नाभिकीय संलयन के द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें प्रोटॉन निरंतर संलयन से He नाभिकों में रूपान्तरित होते रहते हैं।

प्रश्न 17.
रेडियोएक्टिवता को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
रेडियोएक्टिवता – परमाणुओं के स्वतः विघटन की परिघटना को रेडियोएक्टिवता कहते हैं। सन् 1896 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक बेकुरल ने पाया कि यूरेनियम तथा इसके लवणों से कुछ अदृश्य किरणें स्वतः ही निकलती रहती हैं जो अपारदर्शी पदार्थों में प्रवेश करने की क्षमता रखती हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रभाव डालती हैं। इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते हैं किसी पदार्थ से स्वतः ही किरणें उत्सर्जित होते रहने की घटना को ‘रेडियोएक्टिवता’ कहते हैं तथा ऐसे पदार्थ को ‘रेडियोएक्टिव पदार्थ’ कहते हैं यूरेनियम में रेडियोएक्टिवता के गुण की खोज के पश्चात् यह ज्ञात हुआ कि यूरेनियम ही नहीं वरन् थोरियम, पोलोडियम, ऐक्टिनियम आदि अन्य तत्व भी रेडियोएक्टिव हैं।

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में
(i) समन्यूट्रॉनिक
(ii) समस्थानिक
(iii) समभारिक छाँटिए
6C2, 2He3, 80Hg198, 1H3, 79Au197, 6C14
उत्तर:
(i) समन्यूटॉनिक ( A-Z) समान : 80Hg198, 79Au197
(ii) समस्थानिक [Z समान तथा A भिन्न] : 6C2, 6C14
(iii) समभारिक [A समान तथा Z भिन्न] : 2He3 1H3

प्रश्न 19
α कणों की अपेक्षा β कणों की आयनीकरण क्षमता कम किन्तु भेदन क्षमता अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
β- कणों की गतिज ऊर्जा α-कणों की अपेक्षा काफी अधिक होती है अतः वे किसी परमाणु के पास बहुत कम समय तक रुक पाते हैं और इसी कारण इनकी आयनीकरण क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। दूसरे, इससे इनकी ऊर्जा का हास बहुत धीरे-धीरे होता है। इसलिए वे माध्यम को पर्याप्त दूरी तक भेद सकते हैं। अर्थात् उनकी भेदन क्षमता अधिक होती है।

प्रश्न 20.
4Be9 नाभिक की बन्धन ऊर्जा 58.0 Mev तथा 2He4 की 28.3 Mev होती है। इनमें कौन अधिक स्थायी होता है और क्यों?
उत्तर:
4Be9 की कुल बन्धन ऊर्जा = Eb = 58.0 Mev
तथा इसके लिए A = 9
∴ इसकी प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा Eb = Eb/9
= \(\frac{58.0 \mathrm{MeV}}{9}\)
= 6.44MeV
2He4 की कुल बंधन ऊर्जा Eb/4 = 28.3 Mev तथा
इसके लिए A = 4
∴ इसकी प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा Eb = Eb/4
= \(\frac{28.3 \mathrm{MeV}}{4}\)
= 7.07Mev
12He4 के लिए Eb‘ का मान 4Be9 के लिए Eb के मान से अधिक है।
अतः 2He4 अधिक स्थायी है।

प्रश्न 21.
रदरफोर्ड व सॉडी नियम का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
रदरफोर्ड और सॉडी ने निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार
(i) रेडियो एक्टिव परमाणुओं का स्वतः विघटन अनियमित (Random ) होता है अर्थात् यह निश्चित नहीं होता है कि कौनसा परमाणु कब विघटित होगा। परन्तु एक निश्चित अवधि (time) में विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या निश्चित होती है।
(ii) किसी समय परमाणुओं के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या उस समय पर उपस्थित कुल सक्रिय परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
\(\frac{-\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) α N
इसे चर घातांकी क्षय नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 22.
रेडियोएक्टिव तत्व की अर्द्ध आयु व माध्य आयु की परिभाषा दीजिये व उनमें सम्बन्ध लिखिये।
उत्तर:
अर्द्ध आयु (T) – जितने समय में किसी रेडियोएक्टिव तत्व के परमाणुओं की संख्या अपनी प्रारंभिक संख्या से आधी रह जाती है, उस समय को उस तत्व की अर्द्ध आयु T कहते हैं।
यदि प्रारम्भ में रेडियोएक्टिव तत्व के No परमाणु हों तो अर्द्ध आयु T सेकण्ड बाद उस तत्व के बचे हुये परमाणुओं की संख्या
N= No/2 होगी।
माध्य आयु (औसत आयु ) किसी रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य आयु उसके सभी परमाणुओं की आयु का योग और परमाणुओं की कुल संख्या का अनुपात होती है।
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अर्द्ध आयु व माध्य आयु में सम्बन्ध:
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\) …………(1)
माध्य आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\) ………..(2)
अतः
अर्द्ध आयु = 0.693 x माध्य आयु
या T = 0.693T,

प्रश्न 23.
α-क्षय किसे कहते हैं? α-कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
अथवा
α-विघटन किसे कहते हैं? α-कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
α-क्षय- जब भी किसी तत्व का α कणों के उत्सर्जन विघटन होता है तो इसे क्षय कहते हैं। α- विघटन से तत्व का परमाणु क्रमांक मूल तत्व के परमाणु क्रमांक के सापेक्ष दो कम हो जाता है तथा परमाणु भार मूल तत्व के परमाणु भार से चार परमाणु- द्रव्यमान मात्रक (amu) कम हो जाता है।
उदाहरण के लिये:
(i) जब 20U238 के नामिक से एक α-कण निकलता हो तो 900Th234 का नाभिक बनता है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 10
α-कणों के ऊर्जा स्पेक्ट्रम में सूक्ष्म संरचना (Fine structure) होती है। अर्थात् कण अनेक विविक्त परन्तु समीपवर्ती ऊर्जाओं से उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 24.
β- किरण स्पेक्ट्रम एक संतत ऊर्जा स्पेक्ट्रम होता है, से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
p-विघटन प्रक्रिया जब भी किसी तत्व का β-कणों के उत्सर्जन से विघटन होता है तो एक नवीन रासायनिक तत्व की उत्पत्ति होती है। β विघटन से तत्व के परमाणु भार में अन्तर नहीं होता परन्तु परमाणु क्रमांक एक से बढ़ या घट जाता है। चूँकि β-कण का आवेश, धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है इसलिये धनात्मक आवेश के β- कण β+ के उत्सर्जन से नये तत्व के परमाणु क्रमांक का मान एक से कम तथा ऋणात्मक आवेश के कण (β) के उत्सर्जन से नये तत्व के परमाणु क्रमांक का मान एक से बढ़ जाता है। उदाहरणार्थ-
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 12
अतः β-क्षय प्रक्रिया में समभारिक नाभिकों (परमाणुओं) की उत्पत्ति होती है।
β- स्पेक्ट्रम संतत (continuous) होता है, अर्थात् एक अधिकतम मान तक सभी ऊर्जाओं के β-कण प्राप्त होते हैं।
एक विशिष्ट नाभिक के एक विशिष्ट ऊर्जा के मान के लिये उत्सर्जित β- कणों की संख्या अधिकतम होती है। इस प्रकार β स्पेक्ट्रम, विविक्त α स्पेक्ट्रम से पूर्णतः भिन्न होता है।

प्रश्न 25.
न्यूट्रिनो परिकल्पना, β-क्षय की प्रक्रिया में किन नियमों की व्याख्या के लिये सहायक होती है?
उत्तर:
न्यूट्रिनो परिकल्पना-न्यूट्रिनो परिकल्पना के अनुसार नाभिक से β-कण के उत्सर्जन के साथ-साथ एक अन्य कण भी उत्सर्जित होता है, जिसे न्यूट्रिनो कहते हैं। न्यूट्रिनो का आवेश व द्रव्यमान शून्य होता है तथा चक्रणी कोणीय संवेग का मान (+1/2) होता है। यह प्रकाश के वेग से गतिमान होता है तथा β कणों के उत्सर्जन की प्रक्रिया में ऊर्जा संरक्षण तथा संवेग संरक्षण की व्याख्या करने के लिये उत्तरदायी है।

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प्रश्न 26.
गामा किरणों का उत्सर्जन किस प्रकार होता है तथा ये किरणें द्रव्य से अन्योन्य क्रिया करके कौन-कौनसे प्रभाव उत्पन्न करती हैं?
उत्तर:
γ किरणों की उत्पत्ति के लिये यह कल्पना की जाती है कि ये नाभिक के एक ऊर्जा अवस्था से दूसरी ऊर्जा अवस्था में संक्रमण से उत्पन्न होती हैं। जब भी कोई नाभिक α तथा β- कणों के उत्सर्जन के द्वारा विघटित होता है तो विघटित नाभिक उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा यहाँ से मूल अवस्था में आने के लिये γ-कणों या γ- किरणों का उत्सर्जन करता है। क्रिस्टलों से विवर्तन के द्वारा ज्ञात होता है कि ये किरणें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं तथा इनका स्पेक्ट्रम विविक्त रेखिल स्पेक्ट्रम होता है।
γ-किरणें जब द्रव्य
अन्योन्य क्रिया करती हैं तो भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में निम्न तीन मुख्य प्रभाव उत्पन्न होते हैं-
(i) प्रकाश विद्युत प्रभाव
(ii) क्रॉम्पटन प्रभाव
(iii) युग्म उत्पादन।

प्रश्न 27.
रेडियोएक्टिव संतुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव संतुलन किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता यदि विघटन प्रक्रिया में समय के साथ परिवर्तित नहीं होती है तो यह अवस्था रेडियोएक्टिव संतुलन कहलाती है। इस अवस्था में रेडियोएक्टिव प्रक्रिया के प्रथम व अंत्य तत्व के अतिरिक्त शेष सभी तत्वों के विघटन की नेट दर किसी समय शून्य हो जाती है अर्थात् λANA = λBNB = λcNcनियतांक इस नियतांक को रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की सक्रियता भी कहते है।

प्रश्न 28.
सिद्ध कीजिये कि ड्यूटेरियम नाभिक की तुलना में हीलियम व ऑक्सीजन नाभिकों की संरचना अधिक स्थायी है।
उत्तर:
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) नाभिक के स्थायित्व (Stability) को प्रदर्शित करता है। ऑक्सीजन के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{127}{16}\) = 7.93 = 8 MeV
हीलियम की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{27.9}{4}\) = 7.0 Mev
ड्यूटेरियम के लिये प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{2.23}{2}\) = 11Mev
इससे सिद्ध होता है कि ड्यूटेरियम नाभिक की तुलना में हीलियम व ऑक्सीजन नाभिकों की संरचना अधिक स्थायी है।

प्रश्न 29.
नाभिक की त्रिज्या (R) परमाणु द्रव्यमान संख्या (A) पर किस प्रकार निर्भर करती है?
उत्तर:
अधिकांश नाभिकों के लिये नाभिक की त्रिज्या R द्रव्यमान संख्या A के (1/3) घात के समानुपाती होती है, अर्थात्
या
R α A\(\frac{1}{3}\)
R = Ro A\(\frac{1}{3}\)
जहाँ A परमाणु की द्रव्यमान संख्या है तथा Ro नियतांक है। परमाणु त्रिज्या की कोटि 10-10 मीटर की होती है। अतः परमाणु की त्रिज्या नामिक की त्रिज्या से 10-5 गुना अधिक होती है।

प्रश्न 30.
रेडियोएक्टिव सक्रियता क्या होती है?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता- किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के क्षय होने की दर उस पदार्थ की सक्रियता (R) कहलाती है रदरफोर्ड तथा सोडी के अनुसार किसी क्षण पदार्थ के क्षय होने की दर उस क्षण पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। अतः पदार्थ की सक्रियता भी पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। इस प्रकार यदि किसी क्षण रेडियोएक्टिव पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या N हो तो उस क्षण पदार्थ की सक्रियता होती है।
R α N
रेडियोएक्टिव पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या अर्थात् पदार्थ की रेडियोएक्टिव सक्रियता समय के साथ-साथ लगातार घटती जाती है। पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या (अथवा सक्रियता ) तथा समय के बीच ग्राफ को दिखाया गया है, इस ग्राफ से पदार्थ की अर्द्ध-आयु T का मान पढ़ा जा सकता है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 13
सक्रियता का मात्रक क्यूरी (curie) है। यदि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ में 3.7 x 1010 विघटन प्रति सेकण्ड होते हैं तो उस पदार्थ की सक्रियता 1 क्यूरी कहलाती है। सक्रियता का एक अन्य मात्रक रदरफोर्ड भी है।

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 31.
भारी नाभिकों में विखण्डन की प्रवृत्ति होगी जबकि हल्के नाभिकों में संलयन की इस कथन की कारण सहित व उदाहरण देकर पुष्टि कीजिये।
उत्तर:
भारी नाभिकों की बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन हल्के नाभिकों से कम होती है और नाभिकीय बल व विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाजुक स्तम्भ अवस्था में होते हैं। जब न्यूट्रॉन इनकी नाभि में प्रवेश कर उनमें ठहर जाता है तब विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाभिकीय बल से अधिक हो जाता है। जिसके कारण भारी नामिक विभक्त होकर कई स्थायी नाभिकों में टूट जाता है जिनका कुल द्रव्यमान विभक्त होने वाले नाभि के द्रव्यमान से कम होता है और भारी नाभिक के विखण्डन पर जो द्रव्यमान में कमी हो जाती है वह ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इसी कारण से भारी नाभिक में विखण्डन होता है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 14
भारी नाभिकों में नाभिकीय बल और विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाजुक साम्य अवस्था में होते हैं भारी नाभिकों का यदि संलयन हो, तब जो नाभिक बनेगा उसका नाभिकीय बल विद्युत चुम्बकीय बल से कम होगा जिसके कारण भारी नाभिकों में संलयन की क्रिया सम्भव नहीं होती है।
हल्के नाभिकों में नाभिकीय बल/न्यूक्लिऑन कम होता है जिसके कारण उनमें स्थायित्व कम होता है। इसलिये उनमें संलयन कर ज्यादा स्थाई नाभि में परिवर्तन होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। हाइड्रोजन बम तथा सूर्य की ऊर्जा इसी नाभिकीय संलयन सिद्धान्त पर आधारित है।

प्रश्न 32.
रियेक्टर का उपयोग किन कार्यों में किया जाता है? परमाणु भट्टी से विद्युत उत्पादन का एक सरल चित्र बनाइये।
उत्तर:
रियेक्टर का उपयोग शोध कार्य के लिये, न्यूट्रॉन पुंज प्राप्त करने तथा अनेक रेडियो समस्थानिकों को उत्पन्न करने के लिये भी किया जाता है।
भारत में मुम्बई के पास चार शोध रियेक्टर कार्यरत हैं। महाराष्ट्र के तारापुर में, राजस्थान के रावतभाटा में और चेन्नई में कल्पाक्कम में शक्ति रियेक्टर कार्यरत हैं।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 15

प्रश्न 33.
प्राकृतिक एवं प्रेरित रेडियोएक्टिवता को उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
प्राकृतिक रेडियोएक्टिवता प्रकृति में कुछ पदार्थ ऐसे भी पाये जाते हैं जिनके नाभिक धीरे-धीरे विघटित होते रहते हैं। Z = 82 से अधिक परमाणु संख्या वाले नामिकों में रेडियोएक्टिवता का गुण पाया जाता है। रेडियोएक्टिव पदार्थ के नाभिकों में सभी नाभिक सक्रिय होते हैं, लेकिन विघटन एक साथ नहीं होता है।
उदाहरणार्थ: यूरेनियम विघटित होकर थोरियम बनता है तथा α कण उत्सर्जित होते हैं।
92U23590Th234 + 2He4
90Th23491Pa232 + -1e0
प्रेरित रेडियोएक्टिवता कृत्रिम रेडियोएक्टिवता नाभिकीय अभिक्रिया के बाद उत्पाद नाभिक में पायी जाती है।
AI पर जब α कणों की बौछार की जाती है तो न्यूट्रॉन कणों के साथ-साथ पॉजिट्रॉन कण भी निकलते हुये पाये जाते हैं। पॉजिट्रॉन कण इलेक्ट्रॉन जैसे हैं, किन्तु ये धन आवेश वाले कण होते हैं, परन्तु α स्रोत हटा लेने के बाद न्यूट्रॉन कणों का निकलना तो बन्द हो जाता है, लेकिन पॉजिट्रॉन का उत्सर्जन होता रहता है। यह उत्सर्जन, समय बीतने के साथ घटता जाता है अर्थात् कणों के संघात के α कारण कोई ऐसा नाभिक बनता है जो रेडियोएक्टिव होता है एवं जिससे पॉजिट्रॉन का उत्सर्जन होता है। इस प्रकार से स्थायी नाभिक के अन्दर रेडियोएक्टिवता प्रेरित की जा सकती है। उपर्युक्त नाभिकीय प्रक्रिया को निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया गया है
13Al27 + 2He415P30 + 0n1
प्रेरित रेडियोएक्टिवता की अभिक्रिया में भी आवेश रेखीय संवेग, कोणीय संवेग एवं द्रव्यमान ऊर्जा के योग का संरक्षण होता है।

प्रश्न 34.
प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र से आप क्या समझते हैं? कार्बन- नाइट्रोजन चक्र से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र इस चक्र में कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम नाभिक का निर्माण करते हैं।
1H1 + 1H11H2 + 1e0 (B+) + v + ऊर्ज …..(1)
1H2 + 1H12He3 + ऊर्जा …..(2)
2He3 + 1H12He4 + +1e0+ + ऊर्जा …..(3)
तीनों समीकरणों का योग करने पर
4H12He4 + 2 +1e0 + 2v + ऊर्जा
इस चक्र में लगभग 26 Mev ऊर्जा प्राप्त होती है प्रोटॉन- प्रोटॉन चक्र कम ताप पर सम्पन्न होता है जबकि अधिक उच्च तापों पर कार्बन – नाइट्रोजन चक्र सम्पन्न होता है।

प्रश्न 35.
नाभिकीय बल की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) ये प्रकृति में पाये जाने वाले बलों में सबसे अधिक प्रबल होते हैं।
(2) नाभिकीय बलों की परास अति लघु होती है। इनकी परास नाभिक की त्रिज्या (10-15 मीटर) की कोटि की होती है। अर्थात् यह बल 10-15 मीटर की दूरी तक ही प्रभावी होते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो यह बल परमाणुओं से अणुओं की रचना में विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया के सापेक्ष अधिक प्रभावी होते हैं।

प्रश्न 36.
किसी रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु को परिभाषित कीजिए तथा अर्द्ध-आयु का निम्न के साथ संबंध लिखिए: (a) रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक (विघटन स्थिरांक) (b) रेडियोऐक्टिव तत्व की औसत आयु।
अथवा
किसी नाभिक की द्रव्यमान क्षति को समझाइए 8016 की बंधन ऊर्जा 127.5 Mev है तो इसकी ‘बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन’ का मान लिखिए। 1eV का मान जूल में लिखिए।
उत्तर:
वह समय जिसमें किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के अवघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्व की अर्द्ध-आयु कहलाती है।” हम इसे T व्यक्त करते हैं।
(a) अर्द्ध आयु (T) का रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक (विघटन स्थिरांक) में सम्बन्ध
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
जहाँ λ रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक अथवा विघटन स्थिरांक है।
(b) रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु T व औसत आयु T में सम्बन्ध
T = 0.693T,
जहाँ पर औसत आयु Ta = \(\frac{1}{\lambda}\)
अथवा
द्रव्यमान क्षति (Mass Defect )
परमाणु की नाभिक का द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूक्लिआनों (प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन) के द्रव्यमान के योग से कुछ कम होता है। यदि किसी नाभिक में Z प्रोटॉन व N न्यूट्रॉन है तथा प्रोटॉन, न्यूट्रॉन व से प्रदर्शित करें तो
नाभिक के द्रव्यमान क्रमश: mp mn mmc
Zmp + Nmn > muc
इस प्रकार से प्रत्येक नाभिक का द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूक्लिआनों के द्रव्यमान के योग से कुछ कम होता है। द्रव्यमान के इस अन्तर को द्रव्यमान क्षति (Mass Defect ) कहते हैं।
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान
नाभिक के स्थायित्व (Stability) को प्रदर्शित करता है।
ऑक्सीजन के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\bar{B}\) = \(\frac{E_{\mathrm{b}}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{127.5}{16}\) = 7.97 mEV
अर्थात
\(\bar{B}\) = 8 Mev
1 eV का मान 1.6 x 10-19 जूल के बराबर होता है।

प्रश्न 37.
(a) चित्र में द्रव्यमान संख्या A के फलन के रूप में बन्धन ऊर्जा (BE) प्रति न्यूक्लिऑन का वक्र दर्शाया गया है। इस वक्र पर अक्षर A, B, C, D और E प्ररूपी नाभिकों की स्थितियों को निरूपित करते हैं। कारण सहित दो प्रक्रियाओं को (A, B, C, D और E के पदों में) निर्दिष्ट कीजिए, एक तो वह जो नाभिकीय विखण्डन के कारण होती है और दूसरी जो नाभिकीय संलयन के द्वारा होती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 16
(b) नीचे दिए गए क्षय प्रक्रम में प्रत्येक चरण में उत्सर्जित रेडियोएक्टिव विकिरणों की प्रकृति पहचानिए ।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 17
उत्तर:
(a) न्यूट्रॉनों की बमबारी से यूरेनियम का नाभिक दो लगभग बराबर खण्डों में टूट जाता है।
E → C + D
A + B → C
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 18

आंकिक प्रश्न:

प्रश्न 1.
यूरेनियम की विखण्डन अभिक्रिया में प्रति विखण्डन लगभग 200 x 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा मुक्त होती है। यदि कोई रियेक्टर 6 मेगावाट शक्ति प्रदान करता है तो शक्ति के इस स्तर के लिए कितने विघटन प्रति सेकण्ड आवश्यक होंगे?
उत्तर:
यदि प्रति सेकण्ड N विखण्डन सम्पन्न होते हैं तो उत्पादित शक्ति
P = N × 200 × 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट / सेकण्ड
= N × 200 × 1.6 × 10-13 जूल / सेकण्ड
= N × 3.2 × 10-17 मेगावाट
प्रश्न के अनुसार इसका मान 6 मेगावाट होना चाहिए।
N × 3.2 × 10-17 = 6
या
N = \(\frac{6}{3.2 \times 10^{-17}}\) = \(\frac{6 \times 10^{18}}{32}\)
= 1.875 × 1017
= 1.875 x 107 विखण्डन / सेकण्ड

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 2.
यदि विखण्डन 200 x 106 यूरेनियम की विखण्डन अभिक्रिया में प्रति इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा मुक्त होती है तो एक मिलीग्राम U235 के विखण्डन से कितने कैलोरी ऊष्मा प्राप्त होगी?
उत्तर:
U235 ग्राम U235 में परमाणुओं की संख्या = आवोगाद्रो संख्या
= 6.02 × 1023
1 मिलीग्राम यूरेनियम में परमाणुओं की संख्या होगी
= \(\frac{6.02 \times 10^{23} \times 10^{-3}}{235}\) = \(\frac{6.02 \times 10^{20}}{235}\)
प्रति विखण्डन मुक्त ऊर्जा = 200 x 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट = 200 × 1.6 x 10-13 जूल
= \(\frac{200 \times 1.6 \times 10^{-13}}{4.2}\) कैलोरी
∴ 1 मिली. ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से प्राप्त ऊष्मा का मान होगा
= \(\frac{200 \times 1.6 \times 10^{-13}}{4.2}\) × \(\frac{6.02 \times 10^{20}}{235}\)
= \(\frac{1926.4}{987}\) × 107
= 1.952 x 107 कैलोरी

प्रश्न 3.
कोई रेडियोएक्टिव तत्व विघटन के कारण 24 वर्ष में अपने प्रारम्भिक मान का 25% रह जाता है। तत्व की अर्द्ध आयु ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
रेडियोएक्टिव तत्व का द्रव्यमान उसके प्रारम्भिक द्रव्यमान का 25% रह जाता है।
∴ शेष बचा भाग = 25% प्रारम्भिक मान का
= \(\frac{25}{100}\) प्रारम्भिक मान का
= \(\frac{1}{4}\) प्रारम्भिक मान का
माना कि इस विघटन में n अर्द्ध आयु काल लगेंगे तब
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{4}\)
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\)
∴ n = 2 अर्द्ध आयुकाल
∵ 2 अर्द्ध आयुकाल = 24 वर्ष
∴ 1 अर्द्ध आयुकाल = 24/2 = 12 वर्ष

प्रश्न 4.
थोरियम की अर्द्ध आयु 1.4 x 1010 वर्ष है। इसके एक नमूने के 10 प्रतिशत को विघटित होने में लगे समय की गणना कीजिये।
उत्तर:
थोरियम की अर्द्धआयु = 1.4 × 1010 वर्ष
∴ थोरियम का क्षयांक λ = \(\frac{0.693}{T}\)
λ = \(\frac{0.693}{1.4 \times 10^{10}}\) वर्ष …..(1)
यदि किसी समय रेडियोएक्टिव तत्व का द्रव्यमान No हो और उसके t समय बाद उसका द्रव्यमान N रह जाये और तत्व का क्षयांक
λ हो, तब
N = No e-λt
या
\(\frac{N}{N_0}\) = e-λt …………(2)
माना कि वर्ष t में तत्व 10 प्रतिशत विघटित हो जाता है। t तब अविघटित रहे तत्व का द्रव्यमान
= 90% प्रारम्भिक द्रव्यमान का
∴ \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\frac{90}{100}\) = \(\frac{9}{10}\) …………(3)
समीकरण (2) से
\(\frac{9}{10}\) = e-λt
या
\(\frac{10}{9}\) = e-λt
दोनों तरफ लघुगणक लेने पर
loge e-λt = loge(10/9)
⇒ λt loge e = loge 10 – loge 9
λt = 2.303 [log1010 – 10109] (∵ logee = 1 )
= 2.303 [1 – 0.9542]
= 2.303 x 0.0458
∴ t = \(\frac{2.303 \times 0.0458}{\lambda}\)
समीकरण (1) से का मान रखने पर
= \(\frac{2.303 \times 0.0458 \times 1.4 \times 10^{10}}{0.693}\)
= 2.13 x 109 वर्ष

प्रश्न 5.
रेडियम की अर्द्ध आयु 1600 वर्ष है। कितने समय बाद रेडियम के किसी टुकड़े का यह भाग रेडियोएक्टिव क्षय से विघटित हो जायेगा?
उत्तर:
रेडियम के टुकड़े में रेडियम का अविघटित भाग
= 1 – \(\frac{15}{16}\) = \(\frac{1}{16}\)
माना कि यह विघटन n अर्द्ध-आयु कालों में हुआ है।
\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\left(\frac{1}{2}\right)^n\)
चूँकि दिया है
\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\frac{1}{16}\)
चूँकि रेडियम का अर्द्ध-आयु काल = 1600
∴ वर्ष विघटन में लगा समय = 4 x T
= 4 x 1600
= 6400 वर्ष

प्रश्न 6.
यदि एक रेडियोधर्मी पदार्थ में 0.1 मिलीग्राम Th234 हो तो यह 120 दिनों बाद कितना अविघटित रह जायेगा? Th234 की अर्द्ध-आयु 24 दिन है।
उत्तर:
विघटन के 120 दिन = \(\frac{120}{24}\) अर्द्ध-आयु काल 24
= 5 अर्द्ध-आयु काल
120 दिन में अविघटित भाग = \(\left(\frac{1}{2}\right)^5\) = \(\frac{1}{32}\)
चूँकि विघटन से पहले Th234 का द्रव्यमान = 0.1 मिलीग्राम है।
∴ अविघटित Th234 का द्रव्यमान
= \(\frac{0.1 \times 1}{32}\) = \(\frac{1}{320}\)
मिलीग्राम
= 0.003125
= 3.125 × 10-3 मिलीग्राम

प्रश्न 7.
निम्न संलयन अभिक्रिया में मुक्त ऊर्जा का परिकलन
41H1 → 2He4 + 21e0
उत्तर:
4 प्रोटॉनों का द्रव्यमान
= 4 × 1.0078
= 4.0312 amu.
हीलियम परमाणु का द्रव्यमान
= 4.0026 amu.
द्रव्यमान के अन्तर AM 0.0286 amu.
मुक्त ऊर्जा = 0.0286 × 931
= 26.62 MeV

प्रश्न 8.
निम्न संलयन अभिक्रिया में मुक्त ऊर्जा के मान की गणना कीजिए:
1H2 + 1H32He4 + 0n1 + E
1H2 का द्रव्यमान = 2.0141 amu
1H3 का द्रव्यमान = 3.0160 amu
2He4 का द्रव्यमान = 4.0026amu
0n1 का द्रव्यमान 1.0087 amu
उत्तर:
अभिक्रिया के पूर्व कणों का कुल द्रव्यमान
2.0141 + 3.0160
= 5.0301 amu
अभिक्रिया के पश्चात् कणों का द्रव्यमान
= 4.0026 + 1.0087
= 5.0113 amu
अभिक्रिया में द्रव्यमान क्षति
= 5.0301 – 5.0113
= 0.0188 amu
मुक्त ऊर्जा:
= 0.0188 x 931
= 17.50 Mev

प्रश्न 9.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु T है सिद्ध कीजिये कि n अर्द्ध आयुकाल में पदार्थ का (1/2)n भाग शेष रह जायेगा।
उत्तर:
अर्द्धआयु की परिभाषा के अनुसार:
t = 0 पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No = No
t = T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = \(\frac{N_0}{2}\) = \(\mathbf{N}_0\left(\frac{1}{2}\right)^1\)
t = 2T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = \(\frac{N_0}{4}\) = \(\mathbf{N}_0\left(\frac{1}{2}\right)^2\)
t = 3T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No/8 = N0
इसी प्रकार n अर्द्ध- आयुकाल बाद सक्रिय परमाणुओं की संख्या
t = nT पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No \(\frac{1}{2}\)
या
N/No =\(\frac{1}{2}\)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 19

प्रश्न 10.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ के नमूने में 106 रेडियोएक्टिव नाभिक हैं इसकी अर्द्ध आयु 20 सेकण्ड है 10 सेकण्ड के पश्चात् कितने नाभिक रह जायेंगे?
उत्तर:
यदि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के नमूने में प्रारम्भ No नाभिक हैं, तब n अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे नाभिकों की संख्या
N = No (1/2)n
रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु 20 सेकण्ड है, अतः 10
सेकण्ड में अर्द्ध- आयुओं की संख्या
N = N0(1/2)n
यहाँ प्रारम्भ में नाभिकों की संख्या No = 106 अतः \(\frac{1}{2}\)
(आधी) अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे नाभिकों की संख्या
N = 106 \(\left(\frac{1}{2}\right)^{\frac{1}{2}}\) = 106 × \(\sqrt{\frac{1}{2}}\)
= \(\frac{10^6}{\sqrt{2}}\) = \(\frac{10^6}{1.41}\) = \(\frac{10}{1.41}\) × 105
= 7.1 x 105 (लगभग)

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 11.
रेडॉन की अर्द्धआयु 4 दिन है। कितने दिन बाद में रेडॉन के किसी नमूने का केवल \(\frac{1}{16}\) वां भाग शेष रह जाता है?
उत्तर:
हम जानते हैं-
N = N0e-λt
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = e-λt
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = e-λt
चूँकि
loge \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = λt loge e = λt
loge e = 1
loge \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{0.693}{T}\)
2.30310g10 \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{0.693}{T}\)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 20
t = 16 दिन अर्थात् 16 दिन बाद।

प्रश्न 12.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की मात्रा 10 वर्ष में घटकर 25% रह जाती है उसकी अर्द्ध-आयु एवं क्षयांक की गणना कीजिये।
उत्तर:
यदि रेडियोएक्टिव पदार्थ का प्रारम्भिक द्रव्यमान 12 हो, तब 10 वर्ष में उसका रहा परिणाम = \(\frac{25m}{100}\) = \(\frac{m}{4}\)
माना कि 10 वर्ष = n अर्द्ध- आयुकाल
तब
\(\mathrm{m}\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{n}}\) = \(\frac{m}{4}\)
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\)
∴ n = 2 अर्द्ध- आयुकाल:
पुनः 2 अर्द्ध-आयुकाल = 10 वर्ष
∴ 1 अर्द्ध-आयुकाल = 5 वर्ष
λ (क्षयांक) = \(\frac{0.693}{5}\)
λ (क्षयांक) = 0.1386 प्रतिवर्ष

प्रश्न 13.
(i) रेडियोएक्टिव विघटन द्वारा 90Th232 का 82Pb208 में रूपान्तरण होता है तो उत्सर्जित α व β कणों की संख्या लिखिए।
(ii) किसी रेडियोएक्टिव तत्व की सक्रियता 10-3 विघटन / वर्ष है। इसकी अर्द्ध आयु व औसत आयु का अनुपात ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(i) 90Th23282Pb208 + a2He4 + be01
232 = 208 + 4a + bx0
24 = 4a
∴ a = 6
90 = 82 + 2a + b (-1)
8 = 2 × 6 – b
b = 12 – 8 = 4:
∴ a उत्सर्जित कणों की संख्या = 6
और β उत्सर्जित कणों की संख्या = 4

(ii)
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\) …..(1)
औसत आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\) …..(2)
समीकरण (1) में समीकरण (2) का भाग देने पर एक स्थिरांक \(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) प्राप्त होता है। अर्द्ध आयु और औसत आयु पर निर्भर नहीं करते हैं अतः दोनों का अनुपात एक स्थिरांक प्राप्त होगा।

प्रश्न 14.
एक रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की अर्द्ध आयु 1386 वर्ष है। अपनी प्रारंभिक मात्रा का 90% विघटित होने में यह कितना समय लेगा?
उत्तर:
दिया गया है:
अर्द्ध आयु = 1386 वर्ष
रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श का 90% विघटित होने पर अविघटित
भाग रहा = 10%
= \(\frac{10}{100}\) = \(\frac{1}{10}\) भाग
माना कि यह विघटित n अर्द्ध आयु काल में हुआ है।
∴ \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{n}}\)
चूंकि दिया हुआ है:
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{1}{10}\)
\(\left(\frac{1}{2}\right)^n\) = \(\frac{1}{10}\)
2n = 10
दोनों तरफ लघुगणक लेने पर
log10 2n = 10g10 10
n log10 2 = log1010
n x 0.3010 = 1
n = \(\frac{1}{0.310}\) = \(\frac{10000}{3010}\)
∵ 1 अर्द्ध आयुकाल = 1386 वर्ष
∴ विघटन में लगा समय = n x T
= \(\frac{10000}{3010}\) × 1386
= 4604.7 वर्ष

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. मानव के आर्थिक क्रियाकलापों को कितने प्रमुख वर्गों में बांटा गया है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(C) 4

2. मानव की नितांत आवश्यकताएँ हैं
(A) भोजन, आवास, वस्त्र
(B) भोजन, लकड़ी, आग
(C) जल, वस्त्र, आग
(D) वायु, आवास, भोजन
उत्तर:
(A) भोजन, आवास, वस्त्र

3. संसार के विकसित राष्ट्रों में कितने प्रतिशत लोग प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न हैं?
(A) 2 प्रतिशत
(B) 3 प्रतिशत
(C) 5 प्रतिशत
(D) 7 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 5 प्रतिशत

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

4. कालाहारी के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) पिग्मी
(B) इनुइट
(C) सान
(D) पिंटुपी
उत्तर:
(C) सान

5. अफ्रीका के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) सान
(B) इनुइट
(C) पिंटुपी
(D) पिग्मी
उत्तर:
(D) पिग्मी

6. दक्षिण भारत के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) सेमांग
(B) पालियान
(C) ऐनु
(D) टोबा
उत्तर:
(B) पालियान

7. ‘पिंटुपी’ आखेटक तथा संग्राहक निम्नलिखित में किस क्षेत्र से संबंधित है?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) अफ्रीका
(C) दक्षिण अमेरिका
(D) कालाहारी
उत्तर:
(A) ऑस्ट्रेलिया

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

8. लैब्रेडोर के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) इन्नू
(B) इनुइट
(C) खेकी
(D) ऐनु
उत्तर:
(A) इन्नू

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक व्यवसाय नहीं है?
(A) आखेट
(B) संग्रहण
(C) मत्स्य पकड़ना
(D) सूती वस्त्र बनाना
उत्तर:
(D) सूती वस्त्र बनाना

10. निम्नलिखित में से कौन-से देश में चलवासी पशुचारण पाया जाता है?
(A) सऊदी अरब
(B) उत्तरी अमेरिका
(C) दक्षिणी अफ्रीका
(D) न्यूजीलैंड
उत्तर:
(A) सऊदी अरब

11. ऑस्ट्रेलिया में विश्व की कितने प्रतिशत भेड़ें पाली जाती हैं?
(A) 20 प्रतिशत
(B) 35 प्रतिशत
(C) 50 प्रतिशत
(D) 65 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 50 प्रतिशत

12. ‘डियर’ कहाँ पाला जाता है?
(A) विकसित चरागाहों में
(B) कम घास वाले क्षेत्रों में
(C) शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में
(D) शुष्क प्रदेशों में
उत्तर:
(C) शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में

13. खनिज तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन-सा है?
(A) इराक
(B) सऊदी अरब
(C) ईरान
(D) कुवैत
उत्तर:
(B) सऊदी अरब

14. गुज्जर तथा बकरवाल किस प्रदेश के निवासी हैं?
(A) पठारी प्रदेश
(B) पर्वतीय प्रदेश
(C) तटीय प्रदेश
(D) मैदानी प्रदेश
उत्तर:
(B) पर्वतीय प्रदेश

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

15. निम्नलिखित में हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला प्रमुख जानवर कौन-सा है?
(A) लामा
(B) यॉक
(C) घोड़ा
(D) रेडियर
उत्तर:
(B) यॉक

16. उत्तर:पूर्वी भारत में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
(A) रोका
(B) चेनगिन
(C) झूमिंग
(D) मसोले
उत्तर:
(C) झूमिंग

17. मलेशिया में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
(A) रोका
(B) झूमिंग
(C) लदांग
(D) मसोले
उत्तर:
(C) लदांग

18. कौन-सी स्थानांतरित कृषि नहीं है?
(A) झूमिंग
(B) चेनगिन
(C) रोका
(D) रेशम-कृषि
उत्तर:
(D) रेशम-कृषि

19. फलों व सब्जियों की कृषि को कहा जाता है-
(A) डेयरी कृषि
(B) ट्रक कृषि
(C) रोपण कृषि
(D) स्थानांतरी कृषि
उत्तर:
(B) ट्रक कृषि

20. पृथ्वी के सबसे अधिक क्षेत्र पर पैदा की जाने वाली फसल कौन-सी है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) गन्ना
उत्तर:
(A) गेहूं

21. निम्नलिखित में कौन-सी खाद्य फसल नहीं है?
(A) गेहूं
(B) आलू
(C) चावल
(D) कपास
उत्तर:
(D) कपास

22. निम्नलिखित में से किस खाद्य फसल की उपज सर्वाधिक है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) आलू
उत्तर:
(D) आलू

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

23. निम्नलिखित में से किस फसल को तैयार होते समय बादल रहित आकाश की आवश्यकता होती है?
(A) कहवा
(B) कपास
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) कपास

24. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल श्रम प्रधान है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) चावल

25. मक्का का सर्वाधिक उत्पादन किस देश में होता है?
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका
(B) चीन
(C) भारत
(D) ब्राजील
उत्तर:
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका

26. सस्ते और कुशल श्रम की उपलब्धता किस फसल के लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) कहवा
(B) गेहूं
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) चाय

27. पहाड़ी ढलानों पर उगाई जाने वाली फसल कौन-सी है?
(A) चाय
(B) कहवा
(C) तंबाकू
(D) मक्का
उत्तर:
(A) चाय

28. जब एक ही खेत में एक ही वर्ष में दो या दो से अधिक फसलें उत्पन्न की जाएँ तो ऐसी कृषि को क्या कहा जाता है?
(A) उद्यान कृषि
(B) बहुफसली कृषि
(C) जीविकोपार्जी कृषि
(D) वाणिज्यिक कृषि
उत्तर:
(B) बहुफसली कृषि

29. ‘पाला’ किस फसल के लिए हानिकारक है?
(A) चाय
(B) तंबाकू
(C) कहवा
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) कहवा

30. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है?
(A) गेहूं
(B) चुकंदर
(C) गन्ना
(D) आलू
उत्तर:
(C) गन्ना

31. गेहूँ मुख्य रूप से फसल है-
(A) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र की
(B) टुण्ड्रा क्षेत्र की
(C) मरुस्थल की
(D) शीतोष्ण कटिबन्ध की
उत्तर:
(D) शीतोष्ण कटिबन्ध की

32. कौन-सी फसल रेशेदार है?
(A) रबड़
(B) तंबाकू
(C) कसावा
(D) कपास
उत्तर:
(D)

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली कोई एक फसल का नाम बताएँ।
उत्तर:
गन्ना।

प्रश्न 2.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि संसार के किन क्षेत्रों में की जाती है?
उत्तर:
मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में।

प्रश्न 3.
किस प्रकार की कृषि में खट्टे रसदार फलों की कृषि की जाती है?
उत्तर:
भूमध्य-सागरीय कृषि।

प्रश्न 4.
किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?
उत्तर:
डेनमार्क में।

प्रश्न 5.
फूलों की कृषि क्या कहलाती है?
उत्तर:
पुष्पोत्पादन।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 6.
संसार के विकसित राष्ट्रों में कितने प्रतिशत लोग प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न हैं?
उत्तर:
5 प्रतिशत लोग।

प्रश्न 7.
मलेशिया में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
लदांग।

प्रश्न 8.
प्राथमिक व्यवसाय में लगे हुए श्रमिक किस रंग वाले श्रमिक कहलाते हैं?
उत्तर:
लाल।

प्रश्न 9.
सहारा व एशिया के मरुस्थलों में कौन-से पशु पाले जाते हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, ऊँट।

प्रश्न 10.
आदिमकालीन मानव का जीवन-निर्वाह किन दो कार्यों पर निर्भर था?
उत्तर:
आखेट, संग्रहण।

प्रश्न 11.
उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका में कौन-से पशु पाले. जाते हैं?
उत्तर:
गाय, बैल।

प्रश्न 12.
आर्कटिक व उत्तरी उप-ध्रुवीय क्षेत्रों में कौन-सा पशु पाला जाता है?
उत्तर:
रेडियर।

प्रश्न 13.
सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
कालेखहोज।

प्रश्न 14.
दक्षिणी-पूर्वी एशिया, मध्य अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका की प्रमुख खाद्यान्न फसल कौन-सी है?
उत्तर:
कसावा।

प्रश्न 15.
सब्जियों की कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ट्रक कृषि।

प्रश्न 16.
मक्का का सर्वाधिक उत्पादन किस देश में होता है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 17.
रोपण कृषि विश्व के किन क्षेत्रों में की जाती है?
उत्तर:
यूरोपीय देशों के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 18.
विश्व की प्राचीनतम आर्थिक क्रिया कौन-सी है?
उत्तर:
आखेट व संग्रहण।

प्रश्न 19.
किस प्रदेश में विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि नहीं की जाती?
उत्तर:
अमेजन बेसिन में।

प्रश्न 20.
भारत व श्रीलंका में चाय बागानों का विकास सर्वप्रथम किस देश ने किया?
उत्तर:
ब्रिटेन ने।

प्रश्न 21.
आदिमकालीन मानव के दो क्रियाकलाप बताइए।
उत्तर:
आखेट व संग्रहण।

प्रश्न 22.
कालाहारी के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सान।

प्रश्न 23.
अफ्रीका के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पिग्मी।

प्रश्न 24.
ऑस्ट्रेलिया में विश्व की कितने प्रतिशत भेड़ें पाली जाती हैं?
उत्तर:
50 प्रतिशत।

प्रश्न 25.
भूमध्यसागरीय कृषि की मुख्य फसल क्या है?
उत्तर:
अंगूर की फसल।

प्रश्न 26.
उत्तर-पूर्वी भारत में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
झूमिंग।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक आर्थिक क्रियाकलाप क्या होता है?
अथवा
प्राथमिक क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर:
प्राथमिक आर्थिक क्रियाकलाप वे क्रियाएँ होती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती हैं क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों; जैसे-भूमि, जल, वनस्पति, भवन-निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बताती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं के अंतर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य आदि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
कृषि पद्धति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी खास उद्देश्य को लेकर की जाने वाली खेती के लिए जिन तौर-तरीकों व विधियों को अपनाया जाता है, उन्हें कृषि पद्धति कहा जाता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 3.
स्थानांतरी कृषि को विभिन्न क्षेत्रों में किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानांतरी कृषि को झूम, मलेशिया में लदांग, इंडोनेशिया में हुआ, मध्य अमेरिका व मैक्सिको में मिल्पा, ब्राजील में रोका, जायरे व मध्य अमेरिका में मसोले तथा फिलीपींस में चेनगिन कहा जाता है।

प्रश्न 4.
स्थानबद्ध कृषि क्या होती है?
उत्तर:
स्थानबद्ध कृषि खेती की वह पद्धति होती है जिसमें किसान अथवा किसान समूह अपने परिवारों के साथ एक निश्चित स्थान पर स्थाई रूप से रहकर कृषि का व्यवसाय करते हैं।

प्रश्न 5.
विशिष्टीकरण वाणिज्यिक कृषि की प्रमख विशेषता क्यों होती है?
उत्तर:
इस कृषि में फ़सलों को बेचने के लिए पैदा किया जाता है। कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए आवश्यक है कि फसलों का विशिष्टीकरण हो।

प्रश्न 6.
लोहे को उन्नति का बैरोमीटर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि लोहे से ही विकास के लिए जरूरी अवसंरचना का निर्माण होता है; जैसे-औज़ार, मशीनें, कारखाने, परिवहन के साधन, जहाज इत्यादि।

प्रश्न 7.
आर्थिक क्रियाओं या क्रियाकलापों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसी क्रियाएँ जिनमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण एवं उपभोग का संबंध हो और जिनसे आर्थिक वृद्धि होती हो, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 8.
मानव क्रियाकलापों के प्रमुख वर्गों के नाम लिखिए। अथवा
आर्थिक
क्रियाकलाप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. प्राथमिक क्रियाकलाप
  2. द्वितीयक क्रियाकलाप
  3. तृतीयक क्रियाकलाप
  4. चतुर्थक क्रियाकलाप
  5. पंचम क्रियाकलाप।

प्रश्न 9.
प्राथमिक व्यवसायों के प्रमुख क्षेत्र बताएँ।
उत्तर:
आखेट, एकत्रीकरण, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी, खनन तथा कृषि इत्यादि प्राथमिक व्यवसायों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
आखेट (Hunting) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वनों से जंगली जानवरों का शिकार करना तथा जल से मछली आदि जंतुओं को पकड़ना आखेट कहलाता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के विभिन्न व्यवसायों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. कृषि व्यवसाय
  2. खनन व्यवसाय
  3. मत्स्यन व्यवसाय
  4. पशु-पालन व्यवसाय आदि।

प्रश्न 12.
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मध्य एशिया
  2. दक्षिण-पश्चिमी एशिया
  3. टुंड्रा प्रदेश।

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प्रश्न 13.
संग्रहण (Gathering) किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
संग्रहण का अभिप्राय एकत्रीकरण करना है। वनों में रहने वाली आदिम जातियों द्वारा अपने निर्वाह के लिए वनों से विभिन्न वस्तुओं को इकट्ठा करने के व्यवसाय को संग्रहण कहते हैं।

संग्रहण के प्रकार-यह तीन प्रकार का है-

  1. साधारण पैमाने पर जीविकोपार्जन संग्रहण
  2. वाणिज्यिक संग्रहण
  3. संगठित पैमाने पर संग्रहण।

प्रश्न 14.
विश्व की कोई चार खाद्य फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. चावल
  2. गेहूँ
  3. मक्का
  4. आलू।

प्रश्न 15.
चावल की फसल बोने की प्रमुख विधियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. छिड़ककर या छिड़काव विधि
  2. हल चलाने वाली विधि
  3. प्रतिरोपण विधि।

प्रश्न 16.
वाणिज्य फसलों के कोई तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. रबड़
  2. कपास
  3. गन्ना।

प्रश्न 17.
रोपण फसलों के कोई तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चाय
  2. केला
  3. कहवा।

प्रश्न 18.
चावल को खुरपे की कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
चावल की खेती में मशीनों का प्रयोग नगण्य है। भूमि की जुताई, बुआई, पौधों का प्रतिरोपण, फसल की कटाई, धान का छिलका हटाना तथा इसे कूटने आदि का सारा काम हाथों से किया जाता है। समय की अधिकता के कारण चावल की खेती को खुरपे की कृषि (Hoe Agriculture) कहा जाता है।

प्रश्न 19.
गहन कृषि संसार के किन देशों में की जाती है?
उत्तर:
जापान, बांग्लादेश, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम व भारत इत्यादि मानसून एशिया के देशों में गहन कृषि की जाती है।

प्रश्न 20.
गन्ने की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
गन्ने की खेती के लिए चूना तथा फॉस्फोरस युक्त गहरी, सुप्रवाहित तथा उपजाऊ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 21.
चलवासी पशुचारण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक जीवन निर्वाह पद्धति है। इस पद्धति में चारा प्राकृतिक रूप से विकसित होता है। इस पद्धति में पशुओं को चराने वाले चारे व पानी की तलाश में इधर-उधर घूमते रहते हैं। ये स्थायी निवास नहीं कर पाते, इसी कारण इन्हें चलवासी कहा जाता है।

प्रश्न 22.
डेयरी कृषि के लिए अनुकूल कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं। पशुओं के उन्नत पालन-पोषण के लिए पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। वाणिज्य डेयरी के मुख्य क्षेत्र उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, कनाडा, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 23.
कहवा का पौधा बड़े वृक्षों की छाया में लगाया जाता है, क्यों?
उत्तर:
कहवा भी चाय की तरह ही एक पेय पदार्थ है। यह एक झाड़ीनुमा पेड़ के फलों से प्राप्त बीज का चूर्ण बनाकर तैयार किया जाता है। अधिक धूप एवं पाला कहवे के लिए हानिकारक है। इसलिए कहवे के वृक्षों को धूप तथा पाले से बचाने के लिए बड़े-बड़े छायादार वृक्ष उगाए जाते हैं।

प्रश्न 24.
शीतकालीन गेहूँ क्या है?
उत्तर:
शीतकालीन गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट दिया जाता है। यह उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ साधारण शीत ऋतु होती है। विश्व का अधिकांश गेहूँ (लगभग 80%) इसी मौसम में बोया जाता है।

प्रश्न 25.
सहकारी कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे, उसे सहकारी कृषि कहते हैं। सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार से सहायता उपलब्ध कराती है। इस प्रकार की कृषि का उपयोग डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली जैसे देशों में सफलतापूर्वक किया जाता है।

प्रश्न 26.
कृषि क्या है?
उत्तर:
मिट्टी को जोतने, गोड़ने, उसमें विभिन्न फसलें एवं फल-फूल उगाने तथा पशुपालन से जुड़ी कला या विज्ञान को कृषि कहा जाता है।

प्रश्न 27.
प्रेयरी तथा स्टेपीज प्रदेश में गेहूँ की पैदावार अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
जिस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है, उसमें गेहूँ की पैदावार अच्छी एवं अधिक होती है। प्रेयरी तथा स्टेपीज प्रदेश की मिट्टी में पर्याप्त ह्यूमस उपलब्ध है। ये ही कारण है कि यहाँ गेहूँ की पैदावार अधिक या अच्छी होती है।

प्रश्न 28.
गेहूँ की उपज के लिए कितने तापमान व वर्षा की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
गेहूँ के लिए उगते समय 10° सेल्सियस तथा पकते समय 20° सेल्सियस तापमान तथा 50 से०मी० से 75 से०मी० तक वर्षा अनुकूल होती है।

प्रश्न 29.
शीतकालीन गेहूँ एवं बसंतकालीन गेहूँ में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:

  1. शीतकालीन गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोई जाती है, जबकि बसंतकालीन गेहूँ बसंत ऋतु में बोई जाती है।
  2. शीतकालीन गेहँ ग्रीष्म ऋत के आरंभ में काटी जाती है, जबकि बसंतकालीन गेहँ शीत ऋत के आगमन पर काटी जाती है।

प्रश्न 30.
भूमध्यसागरीय कृषि के क्षेत्र व प्रमुख फसलें कौन-सी हैं?
उत्तर:
भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में टयूनीशिया से एटलांटिक तट तक फैला है। दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी-पूर्वी भाग एवं ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-जैसे-अंगूर की कृषि यहाँ की विशेषता है। अंजीर, जैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है।

प्रश्न 31.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि के प्रमुख मैदानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्धशुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि के मैदान हैं यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेन्टाइना के पंपाज, दक्षिणी अफ्रीका के वैल्डस, ऑस टरबरी के मैदान। इसकी मुख्य फसल गेहँ है। अन्य फसलें जैसे-मक्का, जई, जौ, राई भी बोई जाती है। इस कषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं।

प्रश्न 32.
संसार के पाँच प्रमुख कपास उत्पादक देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कपास एक महत्त्वपूर्ण अखाद्य फसल है व एक विश्वव्यापी रेशा है। वनस्पति के औद्योगिक रेशेदार उत्पादों में कपास सबसे महत्त्वपूर्ण है। भारत और मिस्र इसके प्राचीन उत्पादक देश हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका व प्यूरटोरिको में लम्बे रेशे वाली कपास पाई जाती है। मिस्र की नील नदी की घाटी, मध्य एशिया, ब्राजील में कपास का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 33.
कपास की फसल पकते समय बादल रहित आकाश क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
कपास की फसल के पकते समय शुष्क मौसम आवश्यक है। कपास में डोडी आने के पश्चात स्वच्छ आकाश आवश्यक है तथा तेज धूप लाभदायक है, जिससे तेज धूप में डोडी के फूल आसानी से खिल सकें तथा कपास की चुनाई आसानी से हो सके। इसलिए कपास की फसल के पकते समय वर्षा नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 34.
व्यापारिक पशुपालन क्या है?
उत्तर:
जब बड़े पैमाने पर आय प्राप्त करने के उद्देश्य से तथा व्यापारिक दृष्टिकोण से पशुपालन किया जाए, उसे व्यापारिक पशुपालन कहा जाता है। उत्तरी अमेरिका के विस्तृत घास के मैदानों में यह व्यवसाय बड़ी तेजी से विकसित हुआ। इसमें पशुओं को . बड़े-बड़े बाड़ों (Ranches) में रखा जाता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 35.
चावल की बहत बड़ी मात्रा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपलब्ध नहीं है, क्यों?
उत्तर:
चावल उत्पादक देशों की जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। इसलिए चावल की उपज का अधिकतर भाग उत्पादक देशों में ही खप जाता है। इसलिए चावल के विश्व के कुल उत्पादन का केवल पांच प्रतिशत भाग ही व्यापार के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध है। इसलिए चावल की बहुत बड़ी मात्रा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 36.
विस्तृत कृषि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से की जाती है, क्यों?
उत्तर:
विस्तृत कृषि में खेतों का आकार बड़ा होता है। इसमें कृषि योग्य भूमि तथा मनुष्य का अनुपात अधिक होता है। इस प्रकार की कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में होती है। इसलिए यहाँ श्रम आसानी से उपलब्ध नहीं होता। इसलिए विस्तृत कृषि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति में क्या अंतर है?
उत्तर:
कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति में निम्नलिखित अंतर हैं-

कृषि क्रांतिऔद्योगिक क्रांति
1. यह प्रकृति में उपलब्ध जैविक उत्पादों के अधिक संगठित तरीके से उपयोग करने से शुरू हुई।1. यह प्रकृति में कोयला एवं पैट्रोल के रूप में संचित ऊर्जा शक्ति के प्रयोग पर निर्भर थी।
2. कृषि कार्य शारीरिक दृष्टि से बहुत कष्टपूर्ण थे।2. औद्योगिक क्रांति ने लोगों को श्रम की पीड़ा से मुक्ति दिलाई।

प्रश्न 2.
धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
छोटे खेतों पर अधिक पूँजी तथा श्रम का प्रयोग करके अधिक उपज प्राप्त करने वाली कृषि गहन कृषि कहलाती है। इसमें बोई जाने वाली प्रमुख फसल धान अर्थात् चावल है। धान की कृषि मुख्य रूप से मानसूनी प्रदेशों में की जाती है। धान की कृषि में मुख्य रूप से सभी कार्य मनुष्य अपने हाथों से करता है। इसलिए इस कार्य के लिए सस्ते तथा अधिक मज़दूरों की आवश्यकता होती है। श्रम की अधिक माँग होने के कारण यहाँ रोजगार मिल जाता है। इसलिए धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

प्रश्न 3.
रोपण कृषि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
रोपण कृषि एक लाभ देने वाली उत्पादन प्रणाली है। इस कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि इस कृषि में क्षेत्र का आकार बहुत बड़ा होता है। इसमें अधिक पूँजी, उन्नत तकनीक व वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है। इसके लिए अधिक श्रम की व विकसित यातायात के साधनों की आवश्यकता होती है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले व अनानास आदि फसलों का उपयोग करके रोपण कृषि का विस्तार किया है।

प्रश्न 4.
मिश्रित कृषि की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि जिसमें फसलों को उगाने के साथ-साथ पशुओं को पालने का कार्य भी किया जाता है, उसे मिश्रित कृषि कहा जाता है। इस कृषि में खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ चारे और नकदी फसलों को भी उसी पैमाने पर उगाया जाता है। मिश्रित कृषि का अधिक प्रचलन पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेन्टाइना, पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी अफ्रीका, न्यूजीलैंड व दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में है। संयुक्त राज्य अमेरिका में मिश्रित कृषि मक्के की पेटी (Maize Belt) में की जाती है। इसके अतिरिक्त मिश्रित कृषि में राई, गेहूँ व घास भी पैदा की जाती है। रूस में मिश्रित खेती में गेहूँ, आलू, चुकंदर, सूरजमुखी जैसी फसलों के साथ-साथ पशु-पालन किया जाता है।

प्रश्न 5.
गहन निर्वाह कृषि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि मानसून एशिया के घनी बसी आबादी वाले देशों में की जाती है। यह कृषि दो प्रकार की है-
1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-इस प्रकार की कृषि की मुख्य फसल चावल होती है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों के कारण इसमें जोतों का आकार छोटा होता है और किसान का पूरा परिवार इस काम में लगा होता है। मानवीय श्रम, गोबर की खाद व हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।

2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया में अनेक भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल हर जगह उगाना संभव नहीं है। इस प्रकार की कृषि में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 6.
खनन के प्रकारों/विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अयस्कों की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार हैं-

  • धरातलीय खनन
  • भूमिगत खनन।

1. धरातलीय खनन-इसे विवृत खनन भी कहा जाता है। यह खनन का सबसे सस्ता तरीका है क्योंकि इस विधि में सुरक्षा, कम खर्च व उत्पादन शीघ्र और अधिक होता है।

2. भूमिगत खनन-जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत खनन का प्रयोग किया जाता है। यह खनन जोखिम भरा होता है क्योंकि जहरीली गैस, आग और बाढ़ के कार टिना का भय
बना रहता है। खदानों में काम करने वाले श्रमिकों को विशेष प्रकार की लिफ्ट बेधक, वायु संचार प्रणाली और माल ढोने की गाड़ियों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 7.
चलवासी पशुचारण क्षेत्रों के प्रमुख उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

  1. इसका प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अफ्रीका के अटलांटिक तट से सहारा मरुस्थल, अफ्रीका के पूर्वी तटीय भाग, अरब प्रायद्वीप, इराक, ईरान, अफगानिस्तान होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक फैला हुआ है।
  2. दूसरा क्षेत्र यूरेशिया में टुंड्रा के दक्षिणी सीमांत पर स्थित है जो पश्चिम में नार्वे व स्वीडन से होता हुआ रूस के पूर्वी भाग में स्थित कमचटका प्रायद्वीप तक फैला है।
  3. तीसरा क्षेत्र अपेक्षाकृत टा है जो दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका तथा मेडागास्कर के पश्चिमी भाग में फैला हुआ है।

प्रश्न 8.
व्यापारिक पशुचारण क्षेत्रों के प्रमुख उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक पशुपालन के प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. उत्तरी अमेरिका का प्रेयरी क्षेत्र
  2. दक्षिणी अमेरिका में वेनेजुएला का लानोस क्षेत्र
  3. ब्राज़ील के पठारी भाग से अर्जेंटीना की दक्षिणी सीमा तक का क्षेत्र
  4. दक्षिणी अफ्रीका का वेल्ड क्षेत्र
  5. ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड की शीतोष्ण घास भूमि
  6. कैस्पियन सागर के पूर्व में स्थित क्षेत्र
  7. अरब सागर के उत्तर में स्थित क्षेत्र आदि।

प्रश्न 9.
मिश्रित कृषि एवं डेयरी कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि एवं डेयरी कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

मिश्रित कृषिडेयरी कृषि
1. मिश्रित कृषि में फसलों का उत्पादन तथा पशुपालन साथ-साथ किया जाता है।1. डेयरी कृषि में मुख्य रूप से दुधारु पशुओं को पाला जाता है।
2. इसमें खाद्यान्न के खपत क्षेत्र उत्पादन क्षेत्र से दूर होते हैं।2. यह व्यवसाय बड़े नगरों तथा औद्योगिक केंद्रों के निकट स्थापित होते हैं।
3. यहाँ पशुओं के लिए चारा कृषि योग्य भूमि के कुछ भाग पर बोया जाता है।3. यहाँ पशुओं के लिए चारे के लिए कृषि फार्मों तथा चारे की मिलों की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 10.
आदिम जीविकोपार्जी कृषि एवं गहन जीविकोपार्जी कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदिम जीविकोपार्जी कृषि एवं गहन जीविकोपार्जी कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

आदिम जीविकोपार्जी कृषिगहन जीविकोपार्जी कृषि
1. इस प्रकार की कृषि में उत्पादन बहुत कम होता है।1. इस प्रकार की कृषि में उत्पादन अधिक होता है।
2. यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।2. यह कृषि बढ़ती हुई जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
3. इसमें फसलों का और खेतों का हेर-फेर नहीं होता।3. इसमें फसलों का हेर-फेर किया जाता है।
4. इस कृषि में खादों का प्रयोग नहीं किया जाता।4. इसमें उत्तम बीज, रासायनिक उर्वरकों तथा सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
5. इसमें मुख्य रूप से खाद्य फसलें बोई जाती हैं।5. इसमें आय की वृद्धि के लिए अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 11.
रोपण कृषि एवं उद्यान कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोपण कृषि एवं उद्यान कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

रोपण कृषिउद्यान कृषि
1. यह कृषि बड़े-बड़े फार्मों पर की जाती है।1. इस कृषि में फार्मों का आकार छोटा होता है।
2. इस प्रकार की कृषि की उपजों का अधिकतर भाग निर्यात किया जाता है।2. इसमें मुख्य रूप से उत्पादित वस्तुएँ स्थानीय बाज़ारों में बिक जाती हैं।
3. रोपण कृषि की मुख्य फसलें रबड़, चाय, कहवा, गन्ना, नारियल, केला हैं।3. उद्यान कृषि में मुख्य रूप से सब्जियाँ, फल तथा फूल बोए जाते हैं।
4. यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।4. यह कृषि सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
5. इस कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरकों तथा अधिक पूँजी का प्रयोग होता है।5. इस कृषि में केवल पशुओं की नस्ल सुधार तथा दुग्ध दोहने के यंत्रों का प्रयोग होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 12.
जीविकोपार्जी कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीविकोपार्जी कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

जीविकोपार्जी कृषिवाणिज्यिक कृषि
1. इस कृषि का मुख्य उद्देश्य अपने परिवार का भरण-पोषण करना है।1. इस कृषि में व्यापार के उद्देश्य से फसलों का उत्पादन किया जाता है।
2. इस कृषि में कृषि फार्म या खेत का आकार छोटा होता है।2. इसमें खेतों का आकार बड़ा होता है।
3. इस कृषि में मशीनों, कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता।3. इस कृषि में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक तथा मशीनों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. यह कृषि अधिकतर अल्पविकसित और विकासशील देशों में की जाती है।4. यह कृषि मुख्यतः विकसित देशों में की जाती है।

प्रश्न 13.
व्यापारिक पशुपालन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक पशुपालन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. चरवाहे स्थाई रूप से पशुपालन करते हैं तथा बड़ी संख्या में पशुओं को रखते हैं।
  2. व्यापारिक पशुपालन का उद्देश्य दूध, घी, मक्खन, पनीर, मांस तथा ऊन का अधिक-से-अधिक उत्पादन करके उसे बाजार में बेचकर अधिक लाभ कमाना है।
  3. कृषक पशुओं के लिए चारा उगाते हैं तथा उन्हें चारे की तलाश में इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता।
  4. पशुओं के लिए पशुशालाएँ तथा स्थायी निवास बनाए जाते हैं।
  5. पशुओं के पीने के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था की जाती है।
  6. व्यापारिक पशुपालन में पशुओं के प्रजनन, नस्ल-सुधार तथा बीमारियों के उपचार की उचित व्यवस्था की जाती है।
  7. पश पदार्थों के विशिष्टीकरण पर बल दिया जाता है।
  8. पशुओं से प्राप्त पदार्थों का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया जाता है।

प्रश्न 14.
ऋतु प्रवास (Transhumance) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
ऋतु प्रवास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण का व्यवसाय चलवासी चरवाहों (Nomadic Pastoral Population) द्वारा किया जाता है। इन लोगों का प्राकृतिक चरागाहों तथा पशुओं दोनों से घनिष्ठ संबंध है। पशुचारण उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में चरागाह (घास के मैदान) तथा पानी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। जहाँ चरागाहों का अच्छा विकास हुआ है, वहाँ गाय, बैल पाले जाते हैं, जबकि कम घास वाले क्षेत्रों में भेड़, बकरियां पाली जाती हैं। शुष्क तथा अर्द्धशुष्क प्रदेशों में घोड़े, गधे और ऊँट पाले जाते हैं तथा शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में रेडियर मुख्य पशु है। पर्वतीय क्षेत्रों में चलवासी चरागाहों द्वारा यह पशुचारण किया जाता है। शीत ऋतु में ये लोग अपने पशुओं को लेकर घाटियों में आ जाते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ बर्फ पिघल जाती है, अपने पशओं को लेकर चले जाते हैं। कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में इस प्रकार का मौसमी स्थानांतरण होता है। कश्मीर के गज्जर इस प्रकार का पशुपालन करते हैं। इस प्रकार के चलवासी पशुचारण को ऋतु-प्रवास (Transhumance) कहते हैं।

प्रश्न 15.
गहन निर्वाह कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके दो मुख्य प्रकारों व विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि-यह कृषि की वह पद्धति है जिसमें अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति इकाई भूमि पर पूँजी और श्रम का अधिक मात्रा में निवेश किया जाता है। छोटी-छोटी जोतों और मशीनों के अभाव के कारण यद्यपि प्रति व्यक्ति उपज कम होती है। इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।
प्रकार-गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं-
1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के उन देशों में जहाँ गर्मी अधिक और वर्षायुक्त लंबा वर्धनकाल पाया जाता है, वहाँ चावल एक महत्त्वपूर्ण फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है और कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है। यहाँ के भारत, चीन, जापान, म्याँमार, कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों में चावल की माँग अधिक है। इस कृषि में अधिक वर्षा के कारण सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती।

2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच जलवायु, मृदा तथा भौगोलिक दशाएँ चावल की खेती के लिए अनुकूल नहीं हैं । ऐसे ठंडे और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में चावल की फसल उगाना संभव नहीं है। यहाँ चावल की अपेक्षा गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरघम बोया जाता है। इसमें सिंचाई द्वारा कृषि की जाती है।

गहन निर्वाह कृषि की विशेषताएँ-

  • जनसंख्या के अधिक घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है।
  • कृषि की गहनता इतनी अधिक है कि एक वर्ष में तीन या चार फसलें उगाई जाती हैं।
  • अंतर्फसली कृषि यहाँ कृषि की गहनता का एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत करती है।
  • इस प्रकार की कृषि में खेत व पशु समूह आत्म-निर्भर होते हैं।

निष्कर्ष-गहन कृषि के क्षेत्रों में रासायनिक खादों, फफूंदी नाशक एवं कीटनाशक दवाओं तथा सिंचाई सुविधाओं का प्रयोग होने से परंपरागत जीविका कृषि से वाणिज्यिक कृषि की कुछ विशेषताएँ विकसित हो गई हैं।

प्रश्न 16.
गेहूँ सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र में उगाया जाने वाला खाद्यान्न क्यों है?
उत्तर:
गेहूँ एक शीतोष्ण कटिबंधीय तथा संसार की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। गेहूँ की कृषि 25 सें०मी० से 100 सें०मी० वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में सफलतापूर्वक हो जाती है। विश्व के आधे भू-भाग पर 25 सें०मी० से 100 सें०मी० वर्षा होती है। इसलिए गेहूँ सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र में उगाया जाता है। दूसरे गेहूँ की अत्यधिक किस्में होने के कारण इसे संसार के किसी न किसी भाग पर बोया या काटा जा रहा होता है।

प्रश्न 17.
वाणिज्यिक कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वाणिज्यिक कृषि का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए उत्पन्न करना है। इसमें मुख्य रूप से व्यापारिक दृष्टिकोण होता है। इस प्रकार की कृषि में खाद्यान्नों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। इस प्रकार की कृषि में एक प्रकार की फसल पर अधिक बल दिया जाता है जिससे उत्पाद का निर्यात किया जा सके। इसमें अधिकतर कार्य मशीनों से किए जाते हैं तथा कृषि में आधुनिक तकनीकों को अपनाकर फसलों का विशिष्टीकरण करना आवश्यक होता है जिससे अधिक-से-अधिक उपज उत्पन्न करके अधिक-से-अधिक लाभ कमाया जा सके।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव क्रियाकलापों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव समाज अपने विकास के लंबे दौर में अपनी आवश्यकताओं और अस्तित्व के लिए भौतिक पर्यावरण पर निर्भर रहा है। हिमयुगों के प्रतिकूल वातावरण में आदिमानव गुफाओं में रहने को विवश था। धीरे-धीरे पत्थरों की रगड़ से आदि मानव ने आग का आविष्कार किया। तत्पश्चात जलवायु में परिवर्तन हुए और पाषाण युग में मनुष्य पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर रहा। मानव की आवश्यकताएँ सीमित थीं परंतु फिर भी जीवन बड़ा कठिन था। मानव समाज अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए तथा पेट भरने के लिए जंगलों में आखेट करता था। इस युग में मानव ने पत्थरों के हथियार व सामान्य औजार बनाने सीख लिए थे।

बाद में कृषि आधारित समाज का विकास हुआ जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। नदी-घाटियों की उपजाऊ मिट्टी में मानव ने कृषि प्रारंभ की। हल के आविष्कार से घास के मैदानों का खेती के लिए प्रयोग शुरु हुआ। कृषि से उत्पादित पदार्थों पर पशुपालन को प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार मानव ने पशुओं से दूध और दुग्ध पदार्थ प्राप्त किए। धीरे-धीरे पशुओं की खाल से वस्त्र तथा जूते आदि बनाने आरंभ किए। इस प्रकार आखेटी मानव अब कृषक बन गया। कृषि की नींव डालने में निम्नलिखित चार घटक महत्त्वपूर्ण थे

  • भोजन बनाने तथा उसे पकाने के लिए आग का आविष्कार
  • फसलों की खेती के लिए हल का आविष्कार
  • पशुपालन अर्थात् पशुओं को घरेलू बनाना
  • स्थायी जीवन के परिणामस्वरूप गाँवों का बसाव।

कृषि क्रांति के साथ सामाजिक परिवर्तन हुए। कृषि ने मानव को सुरक्षा, स्थायित्व और व्यवस्थित जीवन दिया। खेती से काफी मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध होने से लोगों को शिल्प विकसित करने के लिए पर्याप्त समय और सुविधा मिली। मानव को सौंदर्यात्मक बोध होने लगा। शिल्पियों ने अपनी बनाई वस्तुओं का भोजन तथा अन्य वस्तुएँ प्राप्त करने के लिए व्यापार किया। व्यापार से नए मार्ग खुले, जनसंख्या बढ़ी। परिणाम यह हुआ कि लोग छोटे-मोटे शिल्प कार्यों तथा विभिन्न वस्तुओं के छोटे स्तर के उत्पादन कार्यों में लग गए। जीवन-यापन की दशा सुधरी और गाँवों का आकार बढ़ने लगा तथा उपजाऊ मैदानों व नदियों के तट पर अनेक बड़े व सुव्यवस्थित नगरों का उदय हुआ।

औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) ईसा से लगभग 10,000 वर्ष पूर्व धातु युग का आरंभ हुआ। इस युग में मानव ने धातुओं का प्रगलन, शोधन तथा उनके यंत्र बनाने की कला सीख ली थी। हाथ से काम करके छोटे पैमाने पर वस्तुओं के उत्पादन के तरीके की समाप्ति और मशीनों के जरिए बड़े पैमाने पर उत्पादन की शुरुआत ही औद्योगिक क्रांति है। 1763 में जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन के आविष्कार ने औद्योगिक क्रांति की आधारशिला रखी। औद्योगिक समाज में उत्पादन और उपभोग में भारी वृद्धि हुई। ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय संसाधनों के इस्तेमाल में भारी बढ़ोतरी हुई। साथ ही प्रदूषण, संसाधनों का लगातार कम होना, जनसंख्या का बढ़ना तथा अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण जैसी समस्याएँ बढ़ती चली गईं। परिणामस्वरूप औद्योगिक ढांचे से लोगों की आस्था डगमगाने लगी।

20वीं शताब्दी के अंत में ज्ञान का प्रचार और प्रसार एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय बनने लगा। फलस्वरूप विश्व में सूचना क्रांति का आगमन हआ। सचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग ने लोगों को रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर प्रदान किए।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 2.
कृषि विकास की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण दिशाओं तथा परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि विकास की प्रक्रिया में आदिकाल से आधुनिक काल तक अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। प्राचीन एवं आदिमकालीन कृषि में स्थानांतरी कृषि की जाती थी जो अब भी संसार के कुछ भागों में प्रचलित है। इस प्रकार की कृषि में जंगलों में आग लगाकर उसकी राख को मिट्टी के साथ मिलाकर फसलें बोई जाती हैं। सामान्यतः तीन चार साल तक फसलों का उत्पादन करने के बाद जब इन खेतों की मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है, तब इन खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है। स्थानांतरी कृषि ने लोगों को एक स्थान पर अधिक समय के लिए स्थाई रूप से रहने को प्रेरित किया। तत्पश्चात् अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में स्थाई कृषि प्रणाली का प्रारंभ हुआ। इसमें किसान एक निश्चित स्थान पर स्थाई रूप से रह कर निश्चित भूमि में कृषि करने लगा।

अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में जन्मी औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि के मशीनीकरण में वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। अनेक देशों में फसलं प्रतिरूप बदल गए। कृषि का विशिष्टीकरण किया गया। प्रमुख फसलें; जैसे कपास, गन्ना, चावल, चाय तथा रबड़ इत्यादि को यूरोपीय कारखानों में संशोधित किया गया। तब यूरोप में इन फसलों की मांग तेजी से बढ़ने लगी। इनमें से कुछ फसलों की बड़े पैमाने पर व्यापारिक कृषि प्रारंभ की गई जिसे रोपण कृषि कहते हैं। रोपण कृषि में एक फसल के उत्पादन के लिए बड़े-बड़े बागान बनाए गए जिनका वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया गया। इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार द्वारा धन अर्जित करना था।

उत्तरी अमेरिका में यंत्रीकरण के प्रभाव से कृषकों को उन वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाने तथा विशिष्टीकरण के योग्य बनाने पर जोर दिया गया, जिन्हें अधिकतम लाभ के साथ बेचा जा सके। इस प्रकार विशिष्ट व्यापारिक कृषि प्रणाली का उदय हुआ जिससे अनेक फसल प्रदेशों का सीमांकन हुआ; जैसे गेहूं पेटी, कपास पेटी, मक्का पेटी तथा डेयरी कृषि इत्यादि । इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं तथा उत्तम बीजों के प्रयोग से फसलों के प्रति एकड़ उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई।

प्रश्न 3.
संसार में फसलों के वितरण प्रतिरूप को भौतिक पर्यावरण कैसे प्रभावित करता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक पर्यावरण फसलों के वितरण प्रतिरूप के लिए कुछ विस्तृत सीमाएँ निर्धारित करता है, जिनके भीतर किसी खास फसल को अच्छे ढंग से उगाया जा सकता है। भौतिक पर्यावरण के वे तत्त्व, जो फसलों के वितरण प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं, निम्नलिखित हैं
1. जलवायु (Climate) – किसी निश्चित फसल के क्षेत्र को सीमांकित करने में जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण कारक तापमान और वर्षा हैं।
(i) तापमान (Temperature) – यह फसलों के वितरण को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। उपयुक्त तापमान बीजों को अंकुरण से लेकर फसलों के पकने तक आवश्यक है। तापमान की आवश्यकता के आधार पर फसलों को दो वर्गों में बांटा गया है
(क) उष्ण कटिबंधीय अर्थात् ऊंचे तापमान में उगने वाली फसलें; जैसे चावल, चाय, कहवा, गन्ना इत्यादि। (ख) शीतोष्ण कटिबंधीय अर्थात् निम्न तापमान की दशाओं में उगने वाली फसलें; जैसे गेहूं, जौं, राई इत्यादि।

(ii) वर्षा (Rainfall) – मिट्टी में नमी की मात्रा फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। यह नमी वर्षा से प्राप्त होती है। विभिन्न . फसलों के लिए जल की आवश्यकता में अंतर पाया जाता है; जैसे गेहूं की खेती के लिए 75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। जबकि चावल की खेती के लिए 125 से 200 सें०मी० वार्षिक वर्षा आवश्यक है। अतः फसलों के लिए जल की एक आदर्श मात्रा की आवश्यकता होती है। जल की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा भी पूरा किया जा सकता है।

गेहूं को 25 सें०मी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है क्योंकि सिंचाई द्वारा आवश्यक जलापूर्ति फसल के लिए संभव हो सकती है। . 2. मृदा (Soil)-मिट्टी भूपर्पटी की ऊपरी सतह का आवरण है। चट्टानों के अपक्षय तथा जीव-जंतुओं के अवशेषों से मिट्टी का निर्माण होता है। मिट्टी एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें परतें पाई जाती हैं। मिट्टी जैविक तथा अजैविक दोनों पदार्थों के मिश्रण से बनती है।

एच० रॉबिंसन के अनुसार, “मिट्टी से आशय चट्टानों पर बिछी धरातल की सबसे ऊपरी परत से है जो असंगठित या ढीले पदार्थों से निर्मित होती है तथा जिन पर पौधों की वृद्धि हो सकती है।” मिट्टी में बारीक कण, ह्यूमस तथा विभिन्न खनिज पदार्थ मिले होते हैं।

मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर कृषि तथा विभिन्न फसलों की उत्पादकता आधारित है। मिट्टी की परत के नष्ट होने से इसकी उत्पादकता शक्ति कम हो जाती है जिससे फसलों का उत्पादन कम हो जाता है।

मिट्टी में फसलों के लिए आवश्यक प्रमुख पोषक तत्त्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा सल्फर आदि होते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी में कुछ गौण पोषक तत्त्व; जैसे जिंक और बोरोन आदि भी पाए जाते हैं। मिट्टी का उपजाऊपन मूल चट्टानों की सरंचना तथा जलवायुवीय तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में भारी वर्षा के कारण मिट्टी के पोषक तत्त्व बह जाते हैं जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में मिट्टी के पोषक तत्त्व अधिक पाए जाते हैं। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में उत्पादन अधिक होता है। फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सघन जनसंख्या निवास करती है। इसके विपरीत अनुपजाऊ और कम गहरी मिट्टी में कृषि उत्पादन कम होता है तथा जनसंख्या घनत्व और लोगों का जीवन स्तर दोनों निम्न होते हैं।

3. उच्चावच (Relief) – उच्चावच के तीन प्रमुख तत्त्व होते हैं जो कृषि क्रियाओं के प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं। ये हैं-

  • ऊंचाई तथा कृषि
  • ढाल और
  • धरातल।

(i) ऊंचाई तथा कृषि (Height and Agriculture) – ऊंचाई बढ़ने पर वायुदाब घटता है तथा तापमान भी कम होता जाता है। ऊंचाई के साथ मिट्टी की परत पतली हो जाती है तथा वह कम उपजाऊ होती है। इसलिए यहाँ कृषि क्रियाएँ सीमित हो जाती हैं।

(ii) ढाल (Slope) – ढाल की दिशा कृषि को अत्यधिक प्रभावित करती है। उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणवर्ती ढाल उत्तरवर्ती ढाल की अपेक्षा अधिक समय तक तेज धूप प्राप्त करते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन का जोखिम बना रहता है।

(ii) धरातल (Surface) – सामान्यतः कृषि क्रियाओं के लिए समतल भूमि को आदर्श माना जाता है। ऊबड़-खाबड़ धरातल पर कृषि क्रियाएँ असुविधाजनक होती हैं। सामान्य ढाल वाला धरातल जल निकासी के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 4.
चावल की फसल के लिए भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। विश्व में इसके वितरण प्रतिरूप का वर्णन करें।
अथवा
विश्व में चावल की फसल के स्थानिक वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चावल विश्व की लगभग आधी जनसंख्या का भोज्य पदार्थ है। यह एशिया महाद्वीप की एक प्रमुख फसल है। एशिया महाद्वीप में चावल प्रमुख खाद्यान्न है। एशिया के बड़े देशों; जैसे चीन, भारत, जापान, म्यांमार, थाइलैंड आदि में चावल एक प्रमुख खाद्यान्न है। इतिहासकार चावल की कृषि का शुभारंभ चीन से मानते हैं। चीन से ही यह भारत तथा अन्य दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में विकसित हुआ। 15वीं शताब्दी से यूरोपीय देशों में तथा 17वीं शताब्दी से संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका उत्पादन प्रारंभ हुआ। धीरे-धीरे विश्व के अनेक देशों में भी इसका विस्तार हुआ।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) – चावल उष्ण कटिबन्धीय पौधा है जिसके लिए उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। चावल की फसल के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature) – चावल की कृषि के सफल उत्पादन के लिए 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस के मध्य तापमान की आवश्यकता होती है। चावल की फसल के पकते समय तापमान अपेक्षाकृत अधिक होना चाहिए और बोते समय 21° सेल्सियस तापमान पर्याप्त रहता है।

2. वर्षा (Rainfall) – वर्षा चावल के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। चावल की कृषि के लिए 125 सें०मी० से 200 सें०मी० तक वर्षा की आवश्यकता होती है। चावल के पौधे का जब क्यारियों में रोपण करते हैं तो प्रारंभ के एक महीने तक खेत में लगभग 15 सें०मी० पानी भरा होना चाहिए। फसल के पकने से पूर्व खेत को पानी से मुक्त रखा जाना चाहिए। पकते समय तेज धूप तथा स्वच्छ आकाश आवश्यक है। जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी रहती है, वहाँ जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है।

3. मिट्टी (Soil) – विश्व के अनेक भागों में चावल विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पैदा होता है लेकिन इसके लिए जलोढ़ मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। नदियों के डेल्टाओं तथा बाढ़ के मैदानों में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी में पानी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। लंबे समय तक मिट्टी में नमी रहती है जो चावल की पैदावार के लिए आवश्यक है।

4. श्रम (Labour) – चावल की कृषि में अधिकांश कार्य हाथ से किया जाता है। इसलिए पर्याप्त श्रम की आवश्यकता होती है। चावल को खुरपे की कृषि (Hoe Agriculture) भी कहते हैं। इसमें बीज बोना, उनका प्रतिरोपण करना, निराई-गुड़ाई आदि सभी कार्य हाथ से किए जाते हैं। विगत वर्षों में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने धान के पौधों के प्रतिरोपण के लिए मशीन का आविष्कार किया है लेकिन अभी यह प्रचलन में नहीं है।

चावल बोने की विधियाँ (Methods of Sowing Rice)-विश्व में चावल निम्नलिखित तीन विधियों से बोया जाता है-
1. छिड़ककर या छिड़काव विधि (Broadcasting Method) – यह विधि उन क्षेत्रों में प्रयोग में लाई जाती है, जहाँ सिंचाई के साधनों का अभाव हो। चावल की कृषि वर्षा पर ही निर्भर है। इस विधि में खेत में हाथ से बीज छिड़ककर फिर हल चलाते हैं। इस विधि में पैदावार कम होती है।

2. हल चलाकर (Drilling Method) – इस विधि में एक व्यक्ति हल चलाता है तथा दूसरा व्यक्ति उसके पीछे नाली में बीज डालता जाता है। यह विधि शुष्क प्रदेशों में प्रयुक्त की जाती है। इसमें भी पैदावार अपेक्षाकृत कम होती है।

3. प्रतिरोपण विधि (Transplantation Method) – इस विधि में पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है। पौध 30 से 40 दिन में तैयार हो जाती है। उसके बाद खेत में पानी डालकर हल चलाया जाता है तथा पौध का रोपण तैयार किए गए खेत में किया जाता है। यह विधि प्रायः अधिक वर्षा या सिंचाई के साधनों की सुलभता वाले प्रदेशों में अपनाई जाती है। दक्षिणी-पूर्वी एशिया में अधिकांशतः यही विधि अपनाई जाती है। इस विधि में प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होती है। पौधों के प्रतिरोपण के बाद लगभग . 20-30 दिन तक खेत में पर्याप्त पानी रहना चाहिए।

चावल का विश्व वितरण (World Distribution of Rice)-विश्व का लगभग 92% चावल दक्षिणी पूर्वी एशिया में उत्पन्न किया जाता है। पिछले कछ वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्राजील में भी चावल के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है। दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में चीन, भारत, इंडोनेशिया और बांग्लादेश विश्व का लगभग 70% चावल उत्पन्न करते हैं। इन चा थाइलैंड, जापान, वियतनाम, फिलीपींस, कोरिया आदि प्रमुख चावल उत्पादक देश हैं।

1. चीन (China) – चीन चावल का प्रमुख उत्पादक देश है जो विश्व का लगभग 36% चावल उत्पन्न करता है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 17 करोड़ मीट्रिक टन चावल पैदा किया जाता है। चीन में चावल उत्पादन के प्रमुख चार क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  • जेच्चान बेसिन
  • ह्यांग-हो घाटी का निचला मैदान
  • सिक्यांग तथा यांग्त्सी बेसिन प्रांत
  • दक्षिणी-पूर्वी तटीय प्रांत।

चीन में नदियों की घाटियों तथा डेल्टाई भागों में चावल की कृषि अधिक विकसित अवस्था में है। दक्षिणी तटीय मैदान में वर्ष में चावल की तीन फसलें पैदा की जाती हैं। इसी कारण दक्षिणी चीन को चावल का कटोरा (Rice Bowl) भी कहते हैं। पिछले कुछ दशकों में चीन में चावल के क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ प्रति हेक्टेयर उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। चीन में भारत की अपेक्षा चावल के अंतर्गत कम क्षेत्रफल होने के बावजूद भी चावल का उत्पादन भारत से अधिक है।

2. भारत (India) – चीन के बाद भारत दूसरा प्रमुख चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 17% चावल उत्पन्न किया जाता है। भारत में कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 24% भाग पर चावल की खेती की जाती है। भारत में जहाँ वर्षा 150 सें०मी० से अधिक होती है, उन क्षेत्रों में चावल उगाया जाता है। भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादन चीन, जापान तथा अन्य कई देशों से कम है। भारत में चावल के उत्पादन क्षेत्रों को चार वर्गों में रखा जा सकता है

  • पूर्वांचल में असम, मेघालय व मणिपुर राज्य।
  • मध्य गंगा तथा निचला मैदान (पूर्व उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल)।
  • पूर्वी तट (ओडिशा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय मैदान)।
  • पश्चिमी तट (केरल, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के तटीय मैदान)।

3. इंडोनेशिया (Indonesia) – चावल इंडोनेशिया की प्रमुख फसल है। यहाँ देश की कल कृषि योग्य भूमि के 45% भाग पर चावल की कृषि की जाती है। इंडोनेशिया विश्व का लगभग 8% चावल उत्पन्न करने वाला विश्व का तीसरा प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त सुमात्रा, कालिमंटन और सुलावेसी द्वीपों पर भी चावल की कृषि की जाती है। चावल अधिकांशतः तटीय तथा दलदली भू-भागों में पैदा किया जाता है। जावा द्वीप की लावा युक्त मिट्टी तथा संवहनीय वर्षा चावल की पैदावार के लिए विशेषतया अनुकूल है। चावल यहाँ के निवासियों का मुख्य भोजन होने के कारण यह देश अपनी आवश्यकता का पूरा चावल उत्पन्न नहीं कर पाता, इसलिए यह विदेशों से भी चावल आयात करता है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 1

4. बांग्लादेश (Bangladesh) – बांग्लादेश विश्व का चौथा प्रमुख चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 5% चावल उत्पन्न होता है। यहाँ लगभग सभी जिलों में चावल की खेती की जाती है लेकिन गंगा ब्रह्मपुत्र का डेल्टाई भाग चावल के उत्पादन में विशेष स्थान रखता है। इस क्षेत्र में चावल तथा जूट दो ही प्रमुख फसलें हैं। गंगा ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भाग में लगभग 60% भाग पर चावल की कृषि की जाती है। डेल्टाई भाग में वर्ष में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं।

5. थाइलैंड (Thailand) – थाइलैंड में विश्व का लगभग 4% चावल उत्पन्न किया जाता है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 90% क्षेत्र में चावल की कृषि की जाती है। इस देश में मीकांग नदी की घाटी तथा डेल्टा की घाटी चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। थाइलैंड विश्व के प्रमुख चावल निर्यातक देशों में से एक है। बैंकॉक बंदरगाह द्वारा देश का लगभग 33% चावल निर्यात किया जाता है। इस देश के चावल के प्रमुख ग्राहक बांग्लादेश, इंडोनेशिया, जापान तथा मलेशिया हैं। थाइलैंड में सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है। इस कारण अधिकांश चावल की कृषि वर्षा पर आधारित है। इसलिए जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहाँ प्रति हेक्टेयर पैदावार कम है।

6. जापान (Japan) – चावल जापान की प्रमुख कृषि फसल है। यहाँ के लोगों का मुख्य भोजन चावल ही है। इस देश में विश्व का लगभग 3% चावल उत्पन्न होता है। चावल की कृषि समुद्री तटीय भागों तथा नदियों की घाटियों में की जाती है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 60% क्षेत्र में चावल उत्पन्न होता है लेकिन फिर भी यह अपनी आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाता और इसे चावल विदेशों से आयात करना पड़ता है। जापान में चावल उत्पन्न करने की विधि सर्वोत्तम है। इसलिए विश्व के अन्य चावल उत्पादक देश इस विधि को अपनाते हैं। जापान के अधिकांश चावल उत्पादक क्षेत्र होंशू द्वीप का दक्षिणी भाग, क्यूशू तथा शिकोक द्वीप हैं। जापान में वर्ष में चावल की दो फसलें उगाई जाती हैं।

उपर्युक्त प्रमुख चावल उत्पादक देशों के अतिरिक्त म्याँमार, वियतनाम, कोरिया, ब्राज़ील, फिलीपींस, द्वीप समूह तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी चावल की खेती होती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 5.
गेहूँ के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। विश्व में गेहूँ उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
विश्व में गेहूँ की फसल के स्थानिक (Spatial) वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खाद्यान्नों में गेहूँ एक महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी खाद्यान्न है जिसकी कृषि प्राचीनकाल से होती आ रही है। प्रस्तर युग में भी स्विट्जरलैंड की झीलों के आसपास के क्षेत्रों में गेहूँ उगाया जाता था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोजों से प्रमाणित हो चुका है कि आज से 4000 वर्ष पूर्व भी सिंधु घाटी में गेहूँ उगाया जाता था। गेहूँ एक पौष्टिक खाद्यान्न है जिसमें प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) – गेहूँ उत्तरी गोलार्ध में 30° से 55° उत्तरी अक्षांशों तथा दक्षिणी गोलार्ध में 30° से 40° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उगाया जाता है। गेहूँ शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की उपज है जो मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होती है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं-
1. तापमान (Temperature) – गेहूँ को बोते समय 10° सेल्सियस तथा पकते समय 20° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। औसत रूप से गेहूँ के लिए 15° से 20° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। गेहूँ के पकते समय आकाश स्वच्छ (बादलों रहित) होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) – गेहूँ शुष्क प्रदेशों की उपज है। इसकी पैदावार के लिए 50 सें०मी० से 75 सें०मी० वर्षा अनुकूल रहती है। 100 सें०मी० से अधिक वर्षा गेहूँ की फसल के लिए हानिकारक होती है।

3. मिट्टी (Soil) – गेहूँ अनेक प्रकार की मिट्टियों में पैदा किया जाता है लेकिन हल्की चिकनी मिट्टी तथा भारी दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी गेहूँ के लिए अधिक उपयोगी रहती हैं। जिस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, उसमें गेहूँ की पैदावार अच्छी होती है।

4. भूमि तथा श्रम (Land and Labour) – गेहूँ के लिए लगभग समतल भूमि की आवश्यकता है। मशीनी कृषि के लिए समतल तथा बड़े-बड़े फार्मों का होना आवश्यक है। गेहूँ के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि अधिकांश कृषि मशीनों से की जाती है। इसकी कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जाती है।

गेहूँ की किस्में (Kinds of Wheat)-विश्व में गेहूँ विभिन्न जलवायु प्रदेशों में बोया जाता है। साइबेरिया से लेकर उष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेशों तक गेहूँ की कृषि की जाती है। इसलिए गेहूँ को मुख्य रूप से दो वर्गों में रखा जा सकता है
1. शीतकालीन गेहूँ यह गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट दिया जाता है। यह उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ साधारण शीत ऋतु होती है। विश्व का अधिकांश गेहूँ (लगभग 80%) इसी मौसम में बोया जाता है।

2. बसंतकालीन गेहूँ यह गेहूँ बसंत ऋतु में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आगमन पर काट लिया जाता है। जहाँ कठोर शीत ऋतु होती है, वहाँ इस प्रकार का गेहूँ बोया जाता है। ऊंचे अक्षांशों में जहाँ शीत ऋतु में बर्फ पड़ती है, वहाँ बसंत ऋतु में गेहूँ बोया जाता है।

गेहूँ का विश्व वितरण (World Distribution of Wheat)-गेहूँ की खेती का विस्तार धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र पर है। गेहूँ उत्पादक देशों में मुख्य रूप से चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं।
1. चीन (China) – चीन विश्व का प्रथम बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। यह देश विश्व का लगभग 19.6% गेहूँ पैदा करता है। चीन में शीतकालीन तथा बसंतकालीन दोनों प्रकार का गेहूँ पैदा किया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ मंचूरिया तथा आंतरिक मंगोलिया में पैदा किया जाता है, जबकि शीतकालीन गेहूँ ह्यांग-हो तथा यांगटीसिक्यांग घाटी में पैदा किया जाता है।

2. भारत (India) – वर्ष 1965 तक भारत का गेहूँ के उत्पादन में विश्व में छठा स्थान था, लेकिन वर्तमान समय में भारत विश्व का दूसरा उत्पादक राष्ट्र है। विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 12% गेहूँ भारत उत्पन्न करता है। भारत में गेहूँ की पैदावार 100 सें०मी० वर्षा तक के क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है। जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सें०मी० से कम है, वहाँ सिंचाई के साधनों के विकास से गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। देश के कुल उत्पादन का लगभग 50% गेहूँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में पैदा किया जाता है। उत्तर प्रदेश भारत का गेहूँ उत्पन्न करने वाला सबसे प्रमुख राज्य है जो देश का लगभग एक-तिहाई गेहूँ पैदा करता है।

3. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व का लगभग 10.7% गेहूँ उत्पन्न होता है। अमेरिका में दोनों प्रकार का गेहूँ (बसंतकालीन तथा शीतकालीन) बोया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ का क्षेत्र उत्तरी डेकोटा से मोंटाना तक है। यहाँ शीत ऋतु में तापमान कम हो जाने के कारण बर्फ पड़ जाती है। इसलिए इस क्षेत्र में शीतकालीन गेहूँ बोना सम्भव नहीं है। दक्षिणी भाग में शीतकालीन गेहूँ की पेटी है जिसका विस्तार कंसास से पूर्वी कोलोरैडो तथा ओक्लाहोमा तक है।

4. कनाडा (Canada) – कनाडा विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश है। इस देश में अधिकांश बसंतकालीन गेहूँ उगाया जाता है। गेहूँ मुख्य रूप से प्रेयरी प्रदेश में उत्पन्न किया जाता है। देश का वितरण लगभग 75% गेहूँ इसी क्षेत्र में पैदा किया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ का क्षेत्र सास्केच्चान, मैनीटोबा तथा अलबर्टा प्रांत में है। इस क्षेत्र में विनिपेग नगर विश्व की सबसे बड़ी गेहूँ की मंडी है। शीतकालीन गेहूँ के क्षेत्र ओंटारियो तथा क्यूबेक राज्यों के दक्षिणी पूर्वी भाग में स्थित हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 2

5. रूस (Russia) – रूस में गेहूँ की खेती सहकारी पद्धति से की जाती है। यहाँ शीतकालीन तथा बसंतकालीन दोनों प्रकार का गेहूँ दक्षिणी भाग में अधिक उत्पन्न किया जाता है। गेहूँ की पेटी वोल्गा नदी बेसिन से यूराल क्षेत्र तथा साइबेरिया में बेकॉल झील तक फैली हुई है। साइबेरिया में बसंतकालीन गेहूँ पैदा किया जाता है।

रूस के अतिरिक्त गेहूँ पैदा करने वाले यूरोपीय देशों में यूक्रेन, स्पेन, इटली, हंगरी, रोमानिया, यूगोस्लाविया, फ्रांस, डेनमार्क, नीदरलैंड तथा ग्रेट ब्रिटेन आदि हैं। यूक्रेन तथा फ्रांस यूरोपीय देशों में महत्त्वपूर्ण निर्यातक देश हैं। प्रमुख गेहूँ आयातक देशों में इटली, जर्मनी, ब्रिटेन तथा नीदरलैंड आदि हैं।

6. ऑस्ट्रेलिया (Australia)-दक्षिणी गोलार्द्ध में ऑस्ट्रेलिया गेहूँ का महत्त्वपूर्ण उत्पादक देश है। ऑस्ट्रेलिया विश्व का लगभग 3.6% गेहूँ पैदा करता है। गेहूँ ऑस्ट्रेलिया का प्रमुख खाद्यान्न है तथा यह निर्यातक देश भी है। यहाँ गेहूँ का उत्पादन दो क्षेत्रों में होता है-

  • दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में मुर्रे-डार्लिंग का बेसिन
  • दक्षिणी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया।

प्रश्न 6.
कपास के उत्पादन की भौगोलिक दशाएँ तथा विश्व वितरण का वर्णन करें। अथवा कपास की फसल की भौगोलिक दशा और प्रकार का वर्णन करते हुए विश्व वितरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वस्त्र मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। वस्त्रों के निर्माण में रेशेदार पदार्थों का विशिष्ट योगदान है। रेशेदार पदार्थ विभिन्न प्रकार की वनस्पति तथा जीवों से प्राप्त होते हैं। वनस्पति या कृषिगत फसलों में कपास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूती कपड़े का निर्माण कपास से ही होता है। सूती कपड़े का प्रचलन विश्व में सबसे अधिक है। कपास एक रेशेदार फूल होता है जो एक झाड़ीनुमा वनस्पति पर लगता है। उस फूल से सूत काता जाता है तथा कपड़े तैयार किए जाते हैं। फूल के अंदर बीज होता है, जिसे बिनौला कहते हैं। यह पशुओं की खली (चारे) के काम आता है तथा दूध में वसा की मात्रा को बढ़ाता है। कपास के पौधे की सूखी लकड़ी ईंधन के रूप में प्रयोग की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) कपास शुष्क मानसूनी जलवायु की उपज है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनकल होती हैं-
1. तापमान (Temperature) – कपास के लिए अधिक तापमान वाले क्षेत्र अनुकूल रहते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आगमन पर इसका फूल तैयार हो जाता है। कपास का वर्धनकाल लगभग 6 महीने का होता है। कपास के लिए 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

2. वर्षा (Rainfall) – 50 सें०मी० से 100 सें०मी० वर्षा वाले क्षेत्र कपास के लिए उपयुक्त रहते हैं। इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई से कपास की खेती की जाती है। अंतिम दिनों में मेघ-रहित तथा वर्षा-रहित मौसम आवश्यक है।

3. मिट्टी (Soil) कपास के लिए लावा – युक्त मिट्टी, जिसमें चूने का अंश अधिक मात्रा में हो, अनुकूल रहती है। चीका प्रधान दोमट मिट्टी कपास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। भारत में लावा-युक्त मिट्टी का क्षेत्र मालवा के पठार में है जिसे कपास की मिट्टी कहते हैं, वहाँ पर्याप्त मात्रा में कपास उत्पन्न होती है। जहाँ मिट्टी में चूने की मात्रा कम हो, वहाँ उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।

कपास की किस्में (Kinds of Cotton) कपास की प्रायः चार किस्में होती हैं जिन्हें लंबाई के अनुसार बाँटा गया है-
1. अधिक लंबे रेशे वाली कपास (Very Long Staple Cotton)-इसके रेशे की लंबाई 5 सें०मी० से अधिक होती है। ऐसी कपास संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट, प्यूरिटोरिको तथा पश्चिमी द्वीप समूह के अन्य द्वीपों में बोई जाती है। इसे ‘समुद्र-द्वीपीय कपास’ भी कहते हैं।

2. लंबे रेशे वाली कपास (Long Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 3.75 सें०मी० से 5 सें०मी० तक लंबा होता है। इससे उत्तम किस्म का कपड़ा तैयार किया जाता है। ऐसी कपास संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, पेरू तथा चीन में उगाई जाती है।

3. मध्यम रेशे वाली कपास (Medium Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 2.5 सें०मी० से 3.75 सें०मी० तक लंबाई वाला होता है। इस प्रकार की कपास मुख्यतः मिस्र में नील घाटी, ब्राज़ील तथा चीन में उगाई जाती है।

4. छोटे रेशे वाली कपास (Small Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 2.5 सें०मी० से छोटा होता है। इस प्रकार की कपास मुख्य रूप से भारत, ब्राजील तथा चीन में उगाई जाती है।

कपास का विश्व वितरण (World Distribution of Cotton) – संसार में कपास के क्षेत्र साधारणतया 40° उत्तरी और दक्षिणी अक्षाशों के मध्य फैले हैं। विश्व में कपास के उत्पादन में 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के बाद वृद्धि हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, मिस्र, चीन तथा भारत प्रमुख कपास उत्पादक देश हैं।

1. चीन (China) – चीन विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है जो लगभग 21% कपास उत्पन्न करता है। इस देश में कपास की खेती प्राचीनकाल से ही हो रही है लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसके उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। चीन के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र यांग्टीसिक्यांग की निचली घाटी, हांग-हो और उसकी सहायक नदियों की घाटी तथा सिक्यांग का सिंचित क्षेत्र है। चीन की अधिकांश कपास देश में ही खप जाती है क्योंकि यहाँ सूती वस्त्रों की माँग अधिक है।

2. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में कपास की पेटी का विस्तार 37° उत्तरी अक्षांश लंबाई में 100° पश्चिमी देशांतर तक फैली है जिसको संयुक्त राज्य अमेरिका की कपास की मेखला के नाम से जाना जाता है। इस पेटी के अंतर्गत कैरोलीना, मिसीसीपी, जोर्जिया, अलाबामा, लुसियाना, अर्कनासौस, टैक्सास तथा ओक्लाहामा राज्य सम्मिलित हैं। टैक्सास संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

3. भारत (India) भारत में लंबे रेशे की कपास का उत्पादन कम होता है। भारत में अधिकांशतः छोटे रेशे की कपास ही उत्पन्न होती है। भारत में विश्व के कुल कपास क्षेत्र का लगभग 20% भाग है लेकिन उत्पादन लगभग 11% है। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में
भी कपास उत्पन्न की जाती है।

4. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील में साओ – पालो मुख्य कपास उत्पादक राज्य है। ब्राज़ील कुछ कपास का निर्यात भी करता है।

5. मिस्र (Egypt) – मिस्र की कपास अपने गुण तथा लंबे रेशे के लिए विश्व-भर में प्रसिद्ध है। यहाँ आसवान बाँध के निर्माण के बाद सिंचाई की सुविधाओं के कारण कपास की खेती का निरंतर विस्तार हुआ है और उत्पादन में वृद्धि हुई है। कपास की खेती का विस्तार दक्षिणी मिस्र में अधिक हुआ है। मिस्र की अर्थव्यवस्था में कपास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन प्रमुख उत्पादक देशों के अतिरिक्त पाकिस्तान, टर्की तथा सूडान कपास के उत्पादक देश हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 3

प्रश्न 7.
गन्ने के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं तथा विश्व में इसके वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
गन्ना दक्षिणी एशिया में उगने वाला सेकेरम ऑफिसिनरस (Saccharum Officinarus) नामक वनस्पति का वंशज है। इसका पौधा लगभग 2 मीटर तक लंबा होता है जो बांस के पौधे से मिलता-जुलता है। इस पौधे का मूल स्थान भारत बताया जाता है। इस पौधे की घास जंगली अवस्था में बंगाल की खाड़ी के तट पर उगी हुई मिली। यहीं से यह घास सतलुज गंगा के मैदान तथा दक्षिणी एशिया के देशों में ले जाई गई। पृथ्वी पर पाई जाने वाली कई वनस्पतियों में चीनी का अंश है जिनमें चुकंदर, ताड़, खजूर, नारियल, अंगूर तथा आड़ प्रमुख हैं, लेकिन गन्ना चीनी का सबसे बड़ा स्रोत है जो विश्व की लगभग 65% चीनी तैयार करता है। प्राचीनकाल में गन्ने से गुड़ तथा शक्कर घरों में कोल्हू से रस निकालकर बनाई जाती थी लेकिन अब वैज्ञानिक तरीके से मिलों में चीनी तैयार की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions ofYield) गन्ना उष्णार्द्ध जलवायु का पौधा है, जिसके लिए ऊंचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। धरातल पर गन्ने की खेती उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में भूमध्य रेखा से 30° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होती है। गन्ने की कृषि के लिए निम्नलिखित दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature) – गन्ने की उपज के लिए 20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में तापमान कम होता है, वहाँ वर्धनकाल अपेक्षाकृत बड़ा होता है। 15° सेल्सियस से कम तापमान वाले प्रदेशों में इसकी वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है।

2. वर्षा (Rainfall) – गन्ने की कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वर्षा की आवश्यकता होती है। गन्ने के विकास के समय जितनी अधिक वर्षा होगी, गन्ने में उतना ही रस का संचार होगा। गन्ने की कृषि के लिए 75 सें०मी० से 150 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में वर्षा का औसत कम है, वहाँ सिंचाई द्वारा गन्ने की कृषि की जाती है।

3. भूमि तथा मिट्टी (Land and Soil) – गन्ने की कृषि के लिए समतल मैदानी भाग अनुकूल रहते हैं। दोमट मिट्टी, जिसमें चूने का अंश अधिक हो गन्ने के विकास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी में नाइट्रोजन तथा पर्याप्त नमी धारण करने की क्षमता होनी चाहिए।

4. श्रम एवं यातायात (Labour and Transport) – गन्ने की खेती में अधिकांश कार्य हाथ से किया जाता है। गन्ने की रोपाई करने, निराई-गुड़ाई करने, उसे काटने तथा मिलों तक पहुँचाने का कार्य मानव श्रम द्वारा ही किया जाता है। इसलिए गन्ने की कृषि में सस्ता श्रम आवश्यक है। गन्ना एक भारी वस्तु है जिसकी परिवहन लागत अधिक आती है क्योंकि खेतों से चीनी मिलों तक गन्ना पहुँचाने के लिए सस्ते तथा सुलभ यातायात के साधनों का होना आवश्यक है। गन्ने को काटने के बाद जल्दी-से-जल्दी मिलों में भेजना पड़ता है वरना इसका रस सूख जाता है तथा चीनी की मात्रा कम निकलती है। गन्ने की खेती को अधिकांशतः बहुत-सी बीमारियाँ लग जाती हैं। अतः कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा कीड़ा लगे पौधों को खेतों से बाहर जला देना चाहिए।

गन्ने का विश्व वितरण (World Distribution of Sugarcane) विश्व में गन्ने का अधिकांश उत्पादन तीन देशों-ब्राजील, भारत तथा क्यूबा में होता है। इंडोनेशिया, चीन, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका भी गन्ने के उत्पादक देश हैं।
1. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। यह देश लगभग एक-चौथाई गन्ना उत्पन्न करता है। गन्ने की कृषि को सरकार द्वारा काफी प्रोत्साहन मिला है। ब्राज़ील में गन्ना उत्पादन निम्नलिखित क्षेत्रों में होता है

  • उत्तरी-पूर्वी तटीय क्षेत्र
  • दक्षिणी मिनास की उच्च भूमि
  • रियो-डी-जेनेरियो का उत्तर-पूर्वी तथा उत्तरी तटीय मैदान
  • साओ-पोलो क्षेत्र।

2. भारत (India) – भारत में संपूर्ण विश्व की अपेक्षा सबसे अधिक क्षेत्रफल पर गन्ना बोया जाता है, लेकिन उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत में बहुत कम है। भारत में गन्ने का उत्पादन दो क्षेत्रों में होता है-(i) उत्तरी क्षेत्र इसमें गन्ने के उत्पादन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है, (ii) दक्षिणी क्षेत्र उत्पादन के दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में तमिलनाडु सबसे प्रमुख राज्य है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक अन्य उत्पादक राज्य हैं।

3. क्यूबा (Cuba) – क्यूबा में गन्ने के बड़े-बड़े फार्म हैं। यह देश विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। क्यूबा की अर्थव्यवस्था में चीनी का बहुत बड़ा योगदान है। क्यूबा में चीनी की लगभग 160 मिलें हैं। क्यूबा वर्ष 1959 से पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका को अधिकांश चीनी का निर्यात करता था, लेकिन अब अधिकांश निर्यात पश्चिमी यूरोपीय देशों; जैसे रूस तथा चीन को किया जाता है। क्यूबा में गन्ने की खेती सभी द्वीपों में की जाती है। क्यूबा में गन्ने की खेती वैज्ञानिक स्तर पर मशीनों द्वारा की जाती है। क्यूबा चीनी का बहुत बड़ा निर्यातक देश है। इसका अधिकांश निर्यात रूस को किया जाता है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 4

4. चीन (China) – चीन में विश्व का लगभग 7% गन्ना पैदा किया जाता है। चीन का तटीय क्षेत्र तथा सिक्यांग बेसिन गन्ने के प्रमुख उत्पादक प्रदेश हैं। देश के उत्तरी भागों में अधिक सर्दी के कारण गन्ना नहीं उगाया जाता।

5. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में गन्ने का उत्पादन मिसीसिपी नदी के डेल्टाई भाग, लुसियाना राज्य तथा हवाई द्वीपों में किया जाता है। यहाँ की कृषि मशीनी कृषि है। यहाँ चुकंदर से भी चीनी तैयार की जाती है।

6. ऑस्ट्रेलिया (Australia) – ऑस्ट्रेलिया में गन्ने का उत्पादन न्यू साउथ वेल्स के तटीय मैदानों में किया जाता है।

7. पाकिस्तान (Pakistan) – पाकिस्तान में गन्ने की अधिकांश कृषि नहरी सिंचाई द्वारा की जाती है। लाहौर, मुल्तान, लायलपुर, सियालकोट, क्वेटा और रावलपिंडी गन्ने के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रश्न 8.
चाय के लिए भौगोलिक दशाएँ तथा विश्व वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
चाय विश्व का प्रमुख पेय पदार्थ है जिसको करोड़ों लोग प्रतिदिन पीते हैं। चाय का प्रयोग बहुत समय से हो रहा है लेकिन पहले इसे औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था। चाय का प्रयोग सर्वप्रथम चीन में ईसा से छठी शताब्दी में प्रचलित के निवासियों को इसका पता बहुत बाद में लगा। प्राचीनकाल में चीन के व्यापारी यात्रा के दौरान अपनी थकान मिटाने के लिए चाय का प्रयोग करते थे। यूरोप में 17वीं शताब्दी तक चाय एक विलासिता की वस्तु मानी जाती थी क्योंकि इसका मूल्य बहुत अधिक था। सन् 1664 में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों ने चाय के पैकेट भारत से ले जाकर सम्राट चार्ल्स को उपहार के रूप में प्रस्तुत किए। धीरे-धीरे इसकी रोपण कृषि आरंभ हुई और उत्पादन में वृद्धि होने से यह सर्वसुलभ वस्तु बन गई।

चाय में थीन (Thein) नामक तत्त्व है जो हल्का नशा तथा स्फूर्ति देता है। यह एक सदापर्णी झाड़ी है जिसकी पत्तियों को सुखाकर, पीसकर चाय तैयार की जाती है। चाय की कृषि बागानी कृषि है। पहले इसकी पौध तैयार की जाती है। जब पौध 20 सें०मी० ऊंची हो जाती है, तब इसे प्रतिरोपण करके दूर-दूर लगा दिया जाता है। जब पौधा बड़ा हो जाता है तो उसकी कटाई-छंटाई की जाती है। इसको 40-50 सें०मी० से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता है। जितनी अधिक छंटाई की जाएगी, उतनी अधिक चाय की पत्तियाँ आती हैं। चाय की पत्तियों को छाया में या मशीनों द्वारा गर्म हवा देकर सुखाया जाता है। कई देशों में हरी पत्तियों की चाय भी प्रयोग की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) चाय एक उपोष्ण जलवायु का पौधा है जो मानसून प्रदेश में पैदा होता है। इस पौधे के लिए अधिक तापमान तथा वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिए. निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature)-चाय की कृषि के लिए सामान्यतया 25° से 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। चाय की कृषि के लिए वर्षा की अधिकता के साथ-साथ अधिक तापमान अनुकूल रहता है।

2. वर्षा (Rainfall)-चाय के पौधों के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० औसत वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। अगर वर्षा बार-बार बौछारों के रूप में होती रहे तो अधिक अनुकूल रहती है। वर्षा का वितरण साल भर समान रूप से होता रहना चाहिए, जिससे चाय की पत्तियाँ निरंतर विकसित होती रहें। चाय के लिए ओस तथा धुंध वाला मौसम अच्छा रहता है। आर्द्रता वाला मौसम चाय की पत्तियों की प्रचुरता के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

3. धरातल (Relief)-चाय के लिए ढलावदार भूमि का होना आवश्यक है क्योंकि चाय आर्द्र जलवायु वाले प्रदेशों में उगती है और यदि पानी खड़ा रहा तो इसके पौधे की जड़ें गल जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इसलिए हल्के ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्र चाय के लिए उपयुक्त रहते हैं।

4. मिट्टी (Soil) चाय की कृषि के लिए बलवी दोमट मिट्टी, जिसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी में पोटाश, फास्फोरस, लोहा आदि तत्त्वों का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है। नाइट्रोजन तथा पोटैशियम युक्त उर्वरकों के प्रयोग से चाय का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

5. श्रम एवं पूँजी (Labour and Money)-चाय की कृषि में श्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान है क्योंकि चाय के पौधों का प्रतिरोपण, उसकी कटाई-छंटाई, निराई तथा पत्तियों को चुनने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता होती है। स्त्रियों तथा बच्चों द्वारा चाय की पत्तियों को चुनने में अत्यधिक मदद मिलती है। पत्तियों को चुनने के बाद मशीनों से पत्तियों को सुखाया तथा पीसा जाता है। चाय की कृषि के लिए अधिक पूँजी तथा परिवहन की उचित व्यवस्था आवश्यक है।

चाय का विश्व वितरण (World Distribution of Tea)-जलवायु की अनुकूलता की दृष्टि से चाय सामान्यतया उत्तरी गोलार्द्ध में 45° अक्षांश तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 30° अक्षांशों के मध्य उगाई जाती है। चाय आज भी दक्षिणी पूर्वी एशिया की महत्त्वपूर्ण उपज है जबकि ब्रिटेन इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चाय के प्रमुख उत्पादक देशों में भारत, चीन, श्रीलंका, जापान, रूस तथा इंडोनेशिया हैं। इनके अतिरिक्त केन्या तथा टर्की में भी चाय उत्पन्न की जाती है।
1. भारत (India)-विश्व में चाय के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। भारत देश में लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि पर चाय की कृषि की जाती है। संसार की लगभग 26% चाय अकेला भारत उत्पन्न करता है। भारत में चाय के बागान उत्तर:पूर्व में हिमालय के पर्वतीय ढलानों तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाए जाते हैं। भारत का उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, जिसमें असम राज्य अग्रणी है, चाय का प्रमुख उत्पादक राज्य है। असम के ब्रह्मपुत्र तथा सुरमा नदियों की घाटी चाय के उत्पादन के लिए विश्वविख्यात है। असम के अतिरिक्त पश्चिमी बंगाल में दार्जिलिंग तथा जलपाईगुडी चाय के विशिष्ट उत्पादक क्षेत्र हैं। दार्जिलिंग की चाय अपने रंग तथा स्वाद के लिए विश्वविख्यात है। उत्तर:पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा देहरादून और दक्षिणी भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में भी चाय के बागान हैं।

2. चीन (China) – चीन चाय का दूसरा महत्त्वपूर्ण उत्पादक देश है। यहाँ विश्व की लगभग 25% चाय उत्पन्न की जाती है। यहाँ चाय के प्रमुख तीन क्षेत्र हैं-(i) पूर्वी तटीय क्षेत्र, (ii) यांग्टीसिक्यांग की घाटी, (iii) जेच्वान बेसिन। यहाँ चाय का उत्पादन निजी ‘क्षेत्र तथा छोटे-छोटे बागानों में किया जाता है। चीन में अधिकांश उत्पादन घरेलू कार्यों के लिए ही होता है।

3. श्रीलंका (Sri Lanka) – श्रीलंका विश्व की लगभग 10% चाय उत्पन्न करता है। श्रीलंका के मध्यवर्ती पर्वतीय ढलानों पर केंडी के दक्षिण की ओर चाय के बागान हैं। श्रीलंका चाय का प्रमुख निर्यातक देश है। पिछले कुछ वर्षों से तमिल समस्या और आतंकवाद के कारण चाय के उत्पादन में कुछ कमी आई है।

इन प्रमुख देशों के अतिरिक्त इंडोनेशिया, जापान, रूस, टर्की, केन्या, युगांडा तथा मोजांबिक में भी चाय की कृषि की जाती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 9.
रबड़ की फसल के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं व विश्व वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रबड़ भूमध्य-रेखीय वनों में उगने वाला पेड़ है, जिसका दूध या रस चिपचिपा होता है, जिसे लैटेक्स (Latex) कहते हैं। सबसे पहले रबड़ का प्रयोग पेन्सिल के निशान को मिटाने (Rub) के लिए किया गया था। इसलिए इसका ना का वृक्ष सर्वप्रथम दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन में खोजा गया। रबड़ का वृक्ष बहुत लम्बा होता है है। जब यह वृक्ष छह-सात साल का हो जाता है तब इसके तनों पर चाकू से V आकार का खाँचा लगाकर नीचे गमला लटकाकर दूध या रस प्राप्त किया जाता है।

बीसवीं शताब्दी में रबड़ की माँग बढ़ने से इसके बागानों का विस्तार हुआ। रबड़ में लोच, जल-प्रतिरोधी तथा विद्युत का कुचालक जैसे विशेष गुण होने से इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वाहनों के टायरों (साइकिल से लेकर वायुयान तक), विद्युत के सामान में तथा अन्य अनेक वस्तुओं के निर्माण में इसका प्रयोग किया जाता है। वर्तमान समय में कृत्रिम रबड़ का प्रयोग भी अत्यधिक बढ़ रहा है क्योंकि प्राकृतिक रबड़ से आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं रही। इस समय विश्व में लगभग 60% रबड़ की पूर्ति कृत्रिम रबड़ से होती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (GeographicalConditions of Yield) रबड़ ऊष्णार्द्ध प्रदेशों का पौधा है, जिसके लिए साल भर ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी खेती भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में, जहाँ सारा साल सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा प्रत्येक दिन वर्षा होती है, वहाँ सफलतापूर्वक की जाती है।
1. तापमान (Temperature) रबड़ की कृषि के लिए 21° से 30° सेल्सियस औसत तापमान की आवश्यकता होती है। किसी भी माह का तापमान 18° सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) रबड़ की कृषि के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० औसत वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा वर्ष-भर निश्चित अन्तराल पर होनी आवश्यक है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में पर्याप्त वर्षा के कारण रबड़ एक सदाबहारी वनस्पति है, जो वर्ष-भर हरा-भरा रहता है। रबड़ के विकास के लिए भूमि में जल के निकास की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। सामान्य ढाल वाले मैदानी भाग इसके लिए उपयुक्त रहते हैं।

3. मिट्टी (Soil)-जलोढ़ मिट्टी रबड़ की कृषि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। लावा-निर्मित काली मिट्टी भी इसकी कृषि के लिए उपयुक्त रहती है।

4. श्रम (Labour)-रबड़ के बागान लगाने, उनकी देखभाल करने, दूध एकत्रित करने तथा उसे कारखानों तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त एवं सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
रबड़ का विश्व वितरण (World Distribution of Rubber)-संसार में उत्पन्न होने वाले प्राकृतिक रबड़ का लगभग 90% दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों, जिनमें मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, भारत तथा श्रीलंका सम्मिलित हैं, में मिलता है।
1. मलेशिया (Malasia) मलाया प्रायद्वीप का दक्षिण पश्चिमी तथा दक्षिणी भाग रबड़ के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के दो-तिहाई भाग पर रबड़ के बागान लगे हैं। इस देश में विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 50% रबड़ उत्पन्न होता है। यहाँ के रबड़ के बागानों में मलय, चीनी तथा तमिल लोग कार्य करते हैं।

2. इंडोनेशिया (Indonesia)-इंडोनेशिया विश्व का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है, जो विश्व का लगभग एक-चौथाई (24%) रबड़ उत्पन्न करता है। यहाँ पर रबड़ के तीन क्षेत्र हैं

जावा द्वीप का दक्षिणी तथा पश्चिमी तट
सुमात्रा का मध्य भाग,
बोर्नियो तथा सेलीबीज आदि द्वीपों के विषुवत् रेखा पर स्थित होने के कारण वर्षभर ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा के कारण रबड़ की कृषि सफलतापूर्वक होती है।

3. थाइलैंड (Thailand)-थाइलैंड विश्व का तीसरा उत्पादक देश है तथा कुल उत्पादन में थाइलैंड की भागीदारी लगभग 15% है। रबड़ के उत्पादन में अधिकतर भाग देश के प्रायद्वीपीय भाग में है, जहाँ पर मुख्य रूप से चीनी वंश के छोटे कृषक रबड़ का उत्पादन करते हैं।

4. भारत (India) भारत विश्व का लगभग 4% रबड़ उत्पन्न करता है। भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में रबड़ की कृषि की जाती है।

5. श्रीलंका (Sri Lanka)-श्रीलंका में दक्षिणी-पश्चिमी तटों तथा मध्यवर्ती उच्च भूमि के वर्षानुमुखी ढाल रबड़ की कृषि के लिए अनुकूल हैं तथा श्रीलंका का अधिकांश रबड़ इसी भाग में उत्पन्न होता है।
अन्य रबड़ उत्पादक देशों में नाइजीरिया, वियतनाम, साइबेरिया तथा ब्राज़ील आदि हैं।

प्रश्न 10.
कहवा के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं तथा विश्व वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर:
कहवा भी चाय की तरह एक पेय पदार्थ है। यह एक झाड़ीनुमा पेड़ के फलों से प्राप्त बीज का चूर्ण बनाकर तैयार किया जाता है। इसमें ‘बैफिन’ नामक नशीला पदार्थ होता है जिसके पीने से थकान दूर होती है तथा स्फूर्ति आती है। अरब के मोचा क्षेत्र से यह 11वीं शताब्दी में दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में लाया गया। कहवे का पौधा तीन वर्ष बाद फल देता है तथा 25-30 वर्षों तक फल देता रहता है।

कहवा दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका में इथोपिया के पठारी प्रदेश में जंगली अवस्था में उगा पाया गया। वहाँ इसका नाम ‘काफा’ था। अरब सौदागरों द्वारा 11वीं शताब्दी में इसे यहाँ लाया गया तथा दक्षिणी अमेरिका तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में उगाया गया। यह एक सदाबहारी वृक्ष है जो 3-4 मीटर तक ऊँचा होता है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) कहवे की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं-
1. तापमान (Temperature)-कहवा उष्ण कटिबन्धीय पौधा है जिसके लिए ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। कहवे की उपज के लिए 20° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तक तापमान उपयुक्त होता है तथा पाला हानिकारक होता है। अधिक धूप एवं पाले से बचाने के लिए कहवे का पौधा बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे लगाया जाता है जिससे उसे छाया मिलती रहे। सबसे ठंडे माह का तापमान 11° सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) कहवे के पौधे के लिए 100 सें०मी० से 200 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई करके इसकी कृषि की जाती है। शुष्क मौसम तथा अति-वृष्टि दोनों ही कहवे की खेती के लिए हानिकारक हैं। वृक्षों पर फल आते समय कम वर्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि अधिक वर्षा से फल गिर जाता है।

3. भूमि एवं मिट्टी (Land and Soil)-कहवे की कृषि के लिए चाय की तरह ढलवां भूमि की आवश्यकता होती है क्योंकि पानी इसकी जड़ों में रुकने से नुकसान पहुंचाता है। इसलिए कहवा पहाड़ी ढलानों या पठारी भागों में लगाया जाता है। कहवे की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी में लोहे का अंश तथा चूने की मात्रा अधिक होनी चाहिए। मिट्टी की गहराई पर्याप्त होनी चाहिए जिससे इसकी जड़ें गहराई तक प्रवेश कर सकें।

4. अधिक श्रम (More Labour)-चाय की भाँति कहवे की कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है क्योंकि कहवे की पौध लगाने व बीज एकत्रित करने तथा उन्हें सुखाने के लिए निपुण श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

कहवा का विश्व वितरण (World Distribution of Coffee) विश्व में कहवा उत्पन्न करने वाले देशों में ब्राज़ील, कोलंबिया, इक्वेडोर, वेनेजुएला, गुयाना, ग्वाटेमाला, एल्व-सल्वाडोर, मैक्सिको, क्यूबा हैरी, जमैका, अंगोला, आइवरी कोस्ट, युगांडा, इथोपिया, कैमरून, मालागैसी, भारत, इंडोनेशिया तथा श्रीलंका हैं।

1. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील विश्व का सबसे बड़ा कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 20% कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ कहवे की कृषि के लिए सभी भौगोलिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। ब्राज़ील में रियो-डि-जनेरो के पृष्ठ-प्रदेश में इसे पैदा करने की आदर्श दशाएँ मिलती हैं। यहाँ बड़े-बड़े बागानों को फैजेंडा कहते हैं। कहवा उत्पादक राज्यों में साओ-पालो तथा मिनास गेरास प्रमुख हैं। यहाँ के ढलावदार पठारी भागों में बड़े-बड़े बागान लगाए गए हैं। यहाँ कहवा के लिए रस्सी मार्ग द्वारा परिवहन की व्यवस्था की गई है।

2. कोलंबिया (Columbia) यह देश विश्व का लगभग 10% कहवा उत्पन्न करता है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 7 लाख टन कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ का उत्पादक क्षेत्र कोलंबिया की राजधानी बोगोटा के पश्चिम में फैला हुआ है। दूसरा उत्पादक क्षेत्र एंटीकुआ है। कोलंबिया के कहवा का रंग तथा स्वाद में अच्छा होने के कारण विश्व बाजार में इसकी माँग अधिक है।

3. मैक्सिको (Maxico) मैक्सिको विश्व का तीसरा कहवा उत्पादक देश है। यहाँ लगभग 5% कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ का कहवा उत्पादक क्षेत्र प्रशांत महासागर के तटवर्ती भाग की ढालनों से मध्यवर्ती उच्च भूमि तक फैला हुआ है।

4. मध्य अमेरिकी तथा कैरेबियन द्वीप (Mid-American and Caribean Continent) इस क्षेत्र के उत्पादक देश ग्वाटेमाला एल-सल्वाडोर, हैरी, जमैका, क्यूबा, पोर्टोरीको तथा त्रिनिदाद हैं।

5. अफ्रीका के मुख्य उत्पादक देश (Major Productive Countries of Africa)-इस क्षेत्र के उत्पादक देश आइबरी कोस्ट, युगांडा, अंगोला, केन्या, केमरुन तथा तंजानिया हैं।

6. दक्षिण-पूर्वी एशिया (South-East Asia) इस क्षेत्र के उत्पादक देश श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, भारत में कर्नाटक एवं तमिलनाडु हैं।

प्रश्न 11.
कृषि को परिभाषित कीजिए। विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Agriculture) कृषि (Agriculture) शब्द अंग्रेजी के Ager + Culture, दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘Ager’ का अर्थ है-मिट्टी या खेत और ‘Culture’ का अर्थ है-देखभाल या जोतना अर्थात् मिट्टी को जोतना तथा उसमें फसलें उगाना कृषि है, लेकिन यह इसका संकुचित अर्थ है। विस्तृत अर्थ में कृषि के अंतर्गत फसलें उगाना, पशुपालन, फलों की खेती करना आदि सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं। दूसरे शब्दों में, कृषि वह कला तथा विज्ञान है, जिसमें मनुष्य भूमि से भोज्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए उसका उपयोग करता है। प्रो० जिम्मरमैन के अनुसार, “कृषि में वे मानवीय प्रयास सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा मानव भूमि पर निवास करता है तथा यदि सम्भव हुआ तो पौधों तथा पशुओं की प्राकृतिक रूप से हो रही वृद्धि को नियन्त्रित करता है, जिससे इन उत्पादों और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।”

विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि (Different Types of Agriculture Found in World) विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं एवं इसी प्रभाव के कारण विभिन्न प्रकार की कृषि देखी जाती हैं। विश्व में निम्नलिखित प्रकार की कृषि पाई जाती हैं
1. निर्वाह कृषि (Subsistence Agriculture) इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है
(1) आदिकालीन निर्वाह कृषि (Primitive Subsistence Agriculture)-आदिकालीन निर्वाह कृषि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में की जाती है जहाँ आदिम जाति के लोग कृषि करते हैं। इसका क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्ण कटिबन्धीय भाग एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया है। इन क्षेत्रों की वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इस प्रकार यह कृषि कर्तन एवं दहन कृषि भी कहलाती है। कुछ समय पश्चात् जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है तो वे नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करते हैं।

(2) गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture) इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है। यह भी दो प्रकार की है
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture with Rice)-इसमें चावल प्रमुख फसल है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है और कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है।

(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture without Rice)-मानसून एशिया के अनेक भागों में भौगोलिक दशाओं में भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः संभव नहीं है। इसमें सिंचाई द्वारा कृषि की जाती है।

2. रोपण कृषि (Plantation Agriculture) रोपण कृषि में कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनानास आदि फसलों का उपयोग करके रोपण कृषि का विस्तार किया है।

3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि (Extensive Commercial Grain Cultivation) मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है। इसके अलावा मक्का, जौ, राई, जई भी बोई जाती है। इस कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है और सभी कार्य यंत्रों द्वारा संपन्न किए जाते हैं। इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है और प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।

4. मिश्रित कृषि (Mixed Farming)-इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश वाले भागों में इसका विस्तार है। इसमें फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्त्व दिया जाता है।

5. डेयरी कृषि (Dairy Farming)-डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं। पशुओं के उन्नत पालन-पोषण के लिए पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। वाणिज्य डेयरी के मुख्य क्षेत्र उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, कनाडा, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड हैं।

6. भूमध्य-सागरीय कृषि (Meditterranean Agriculture)- यह अति-विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्य-सागर के समीपवर्ती क्षेत्रों में है। अंगूर की कृषि भूमध्य-सागरीय क्षेत्र की विशेषता है। खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।

7. सहकारी कृषि (Co-operative Farming)-जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे, उसे सहकारी कृषि कहते हैं। सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार से सहायता उपलब्ध कराती है। इस प्रकार की कृषि का उपयोग डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली जैसे देशों में सफलतापूर्वक किया जाता है।

8. सामूहिक कृषि (Collective Farming) इस प्रकार की कृषि में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारंभ हुआ था। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कालेखहोज का नाम दिया गया। सभी कृषक अपने संसाधन; जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है और उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है।

9. ट्रक कृषि (Truck Farming)-जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है। वहाँ इसे ट्रक कृषि का नाम दिया जाता है। ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात-भर में तय करता है उसी आधार पर इसे ट्रक कृषि कहा जाता है।

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  • Chapter 2 The World Population : Distribution, Density and Growth Important Questions
  • Chapter 3 Population Composition Important Questions
  • Chapter 4 Human Development Important Questions
  • Chapter 5 Primary Activities Important Questions
  • Chapter 6 Secondary Activities Important Questions
  • Chapter 7 Tertiary and Quaternary Activities Important Questions
  • Chapter 8 Transport and Communication Important Questions
  • Chapter 9 International Trade Important Questions
  • Chapter 10 Human Settlements Important Questions

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  • Chapter 2 Migration : Types, Causes and Consequences Important Questions
  • Chapter 3 Human Development Important Questions
  • Chapter 4 Human Settlements Important Questions
  • Chapter 5 Land Resources and Agriculture Important Questions
  • Chapter 6 Water Resources Important Questions
  • Chapter 7 Mineral and Energy Resources Important Questions
  • Chapter 8 Manufacturing Industries Important Questions
  • Chapter 9 Planning and Sustainable Development in Indian Context Important Questions
  • Chapter 10 Transport and Communication Important Questions
  • Chapter 11 International Trade Important Questions
  • Chapter 12 Geographical Perspective on Selected Issues and Problems Important Questions
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