Author name: Bhagya

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
0°C पर केल्विन तापक्रम का सही मान है-
(a) 273.15 K
(b) 272.85 K
(c) 273K
(d) 273.2 K
उत्तर:
(a) 273.15 K

प्रश्न 2.
किसी रोगी का ताप 40°C है तो उसका ताप फॉरनहाइट स्केल पर होगा-
(a) 72°F
(b) 100°F
(c) 96°F
(d) 104°F
उत्तर:
(d) 104°F

प्रश्न 3.
ताप जो सेण्टीग्रेड तथा फॉरेनहाइट पैमाने पर समान ताप देता है,
(a) 0°
(b) 30°
(c) + 40°
(d) – 40°
उत्तर:
(d) – 40°

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प्रश्न 4.
ऑक्सीजन -183 °C पर उबलती है यह ताप लगभग है-
(a) -297°F
(c) -261°F
(b) -285°F
(d) -329°F
उत्तर:
(a) -297°F

प्रश्न 5.
किसी जल का सेल्सियस तथा फॉरेनहाइट पैमाने पर ताप का अनुपात 13 है जल का ताप है-
(a) 40°C
(b) -26.66°C
(c) -40°C
(d) 26.66°C
उत्तर:
(d) 26.66°C

प्रश्न 6.
परम शून्य ताप है-
(a) जिस पर गैस द्रवित हो जाए
(b) न्यूनतम सम्भव ताप
(c) जिस पर वास्तविक गैसों का आयतन शून्य हो जाए
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) न्यूनतम सम्भव ताप

प्रश्न 7.
गैस नियतांक का मात्रक है-
(a) कैलोरी / °C
(b) जूल / मोल
(c) जूल / मोल K
(d) जूल/ किग्रा
उत्तर:
(c) जूल / मोल K

प्रश्न 8.
यदि कोई गैस बॉयल के नियम का पालन करे तो उसके लिए PV वP के बीच ग्राफ होगा-
(a) अतिपरवलय
(b) PV अक्ष के समान्तर सरल रेखा
(c) P अक्ष के समान्तर सरल रेखा
(d) मूल बिन्दु से गुजरती P अक्ष से 45° कोण पर सरल रेखा ।
उत्तर:
(c) P अक्ष के समान्तर सरल रेखा

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प्रश्न 9.
किसी गैस की विशिष्ट ऊष्मा के मान-
(a) केवल दो मान Cp तथा Cv होते हैं
(b) किसी दिये हुए ताप पर केवल एकमात्र मान होता है।
(c) मान 0 से ∞ के बीच कुछ भी हो सकते हैं
(d) मान गैस के द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
उत्तर:
(c) मान 0 से ∞ के बीच कुछ भी हो सकते हैं

प्रश्न 10.
100°C की वायु से जलन उसी ताप पर भाप की जलन से-
(a) अधिक घातक
(b) कम घातक
(c) दोनों बराबर घातक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) कम घातक

प्रश्न 11.
कार के इंजन में पानी को रेडिएटर में शीतलक के रूप में प्रयोग किए जाने का कारण है-
(a) कम घनत्व के कारण
(b) निम्न क्वथनांक के कारण
(c) आसानी से उपलब्धता के कारण
(d) उच्च विशिष्ट ऊष्मा के कारण।
उत्तर:
(d) उच्च विशिष्ट ऊष्मा के कारण।

प्रश्न 12.
निम्न में कौन-सा ऊष्मा चालकता के बढ़ते क्रम में सही है-
(a) Al, Cu, Ag
(b) Cu, Ag. Al
(c) Al, Ag. Cu
(d) Ag. Cu, Al.
उत्तर:
(a) Al, Cu, Ag

प्रश्न 13.
यदि समान धातु की दो छड़ों की लम्बाइयों व त्रिज्याओं का अनुपात क्रमशः 12 तथा 23 हो तथा तापान्तर समान हो, तब स्थायी अवस्था में ऊष्मा प्रवाह की दर का अनुपात होगा-
(a) 8:9
(b) 4:3
(c) 1:3
(d) 3:2
उत्तर:
(a) 8:9

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प्रश्न 14.
दो समान लम्बाई की छड़ों A तथा B के दोनों सिरे नियत समान ताप तथा 02 पर हैं। छड़ों में ऊष्मा संचरण की समान दर के लिए शर्त होगी-
(a) K1A1 = K2A2
(b) K1²A1 = K2²A2
(c) K1A2 = K2A1
(d) K1A1² = K2A2²
उत्तर:
(a) K1A1 = K2A2

प्रश्न 15.
किसी छड़ का ऊष्मा चालकता गुणांक निर्भर करता है-
(a) छड़ के दोनों सिरों के बीच तापान्तर पर
(b) छड़ की लम्बाई पर
(c) छड़ के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर
(d) छड़ के पदार्थ पर |
उत्तर:
(d) छड़ के पदार्थ पर

प्रश्न 16.
स्थायी अवस्था में किसी छड़ का ताप-
(a) समय के साथ घटता है
(b) समय के साथ बढ़ता है
(c) समय के साथ नहीं बदलता परन्तु भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर भिन्न-भिन्न होता है
(d) समय के साथ नहीं बदलता तथा छड़ के प्रत्येक बिन्दु पर समान होता है।
उत्तर:
(c) समय के साथ नहीं बदलता परन्तु भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर भिन्न-भिन्न होता है

प्रश्न 17.
एक गर्म पानी से भरी बाल्टी 70°C से 65°C तक 11 मिनट में 65°C से 60°C तक 12 मिनट में तथा 60°C से 55°C तक मिनट में ठण्डी होती है, तो
(a) t1 = t2 = t3
(b) t1 < t2 < t3
(c) t1 > t2 > t3
(d) t1 < t2 > t3
उत्तर:
(b) t1 < t2 < t3

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
ऊष्मा के विभिन्न मात्रक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
ऊष्मा के विभिन्न मात्रक जूल तथा कैलोरी हैं।

प्रश्न 2.
स्वस्थ मनुष्य के शरीर का ताप C में कितना होता है?
उत्तर:
37°C.

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प्रश्न 3.
द्रवों एवं गैसों में ऊष्मा संचरण किस विधि से होता है?
उत्तर:
द्रवों एवं गैसों में ऊष्मा संचरण संवहन विधि से होता है

प्रश्न 4.
ताप मापने के लिए कौन-कौन से तापक्रम पैमाने प्रचलित हैं?
उत्तर:
सेल्सियस पैमाना, डिग्री फॉरेनहाइट तथा केल्विन पैमाने प्रचलित हैं।

प्रश्न 5.
बर्फ का गलनांक ०°C है पानी का हिमांक कितना होगा ?
उत्तर:
पानी का हिमांक C होगा।

प्रश्न 6.
किसी वस्तु का ताप किस ऊर्जा की माप है?
उत्तर:
किसी वस्तु का ताप उसके अणुओं की औसत ऊर्जा की माप है।

प्रश्न 7.
परम शून्य ताप से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
0 K ताप को परम शून्य ताप कहा जाता है। यह न्यूनतम सम्भव ताप है इसीलिए इसे परम शून्य ताप कहते हैं डिग्री सेल्सियस पैमाने पर इसके संगत ताप – 273.15°C है।

प्रश्न 8.
किसी वस्तु को ऊष्मा प्रदान करने पर उसमें किस तरह के प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं?
उत्तर:
वस्तु का ताप बढ़ सकता है, उसका प्रसार हो सकता है, उसकी अवस्था में परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 9.
केल्विन पैमाने पर जल का क्वथनांक कितना होता है?
उत्तर:
K = C + 273.15 – 100 + 273.15 = 373.15 K

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प्रश्न 10.
एक द्रव का नाम बताइए जो ऊष्मा का सुचालक है?
उत्तर:
पारा ऊष्मा का सुचालक है।

प्रश्न 11.
किसी पदार्थ के रेखीय प्रसार गुणांक तथा आयतन प्रसार गुणांक में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
आयतन प्रसार गुणांक
= 3 × रेखीव प्रसार गुणांक
γ = 3α

प्रश्न 12.
किसी धातु के रेखीय प्रसार गुणांक (α), क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (ß) तथा आयतन प्रसार गुणांक (γ) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
α : ß : γ = 1 : 2 : 3

प्रश्न 13.
क्या किसी पदार्थ को गर्म किए जाने पर उसका आयतन कम हो जाता है ? उदाहरण दें।
उत्तर:
हाँ, जल को 0°C से 4°C तक गर्म किए जाने पर जल का आयतन कम हो जाता है।

प्रश्न 14.
टेलीफोन के दो खम्भों के बीच तारों को कुछ ढीला क्यों छोड़ा जाता है?
उत्तर:
टेलीफोन के तारों को दो खम्भों के बीच ढीला इसलिए रखते हैं जिससे वे सर्दियों में सिकुड़कर टूट न जाएँ।

प्रश्न 15.
रेखीय प्रसार गुणांक का मात्रक लिखिए।
उत्तर:
रेखीय प्रसार गुणांक का मात्रक प्रति °C है।

प्रश्न 16.
विशिष्ट ऊष्मा का मात्रक क्या है?
उत्तर:
विशिष्ट ऊष्मा का मात्रक J kg-1 K-1 अथवा cal kg-1 °C-1 है।

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प्रश्न 17.
किस द्रव की विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक होती है?
उत्तर:
जल की विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक होती है।

प्रश्न 18.
जल की विशिष्ट ऊष्मा कितनी होती है?
उत्तर –
जल की विशिष्ट ऊष्मा = 1 Cal g-1 °C-1
अथवा 4.18 × 10³ J kg-1 C-1 होती है।

प्रश्न 19.
जल की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि जल देर में गर्म तथा देर में ठण्डा होता

प्रश्न 20.
यदि किसी वस्तु की ऊष्मा धारिता Q तथा उसका द्रव्यमान m हो तो वस्तु की विशिष्ट ऊष्मा क्या होगी ?
उत्तर:
वस्तु की विशिष्ट ऊष्मा (s) = \(\frac{\text { ऊष्मा धारिता (Q) }}{\text { द्रव्यमान (m) }}\)

प्रश्न 21.
ताँबा, लोहा, जल में से किसकी विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक है?
उत्तर:
जल की विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक है।

प्रश्न 22.
m द्रव्यमान तथा गुप्त ऊष्मा वाले पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के लिए कितनी ऊष्मा चाहिए ?
उत्तर:
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा Q = mL

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प्रश्न 23.
किसी लोहे के टुकड़े को हथौड़े से पीटने पर वह गर्म हो जाता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि हथौड़े की गतिज ऊर्जा, टुकड़े से टकराने पर ऊष्मा में बदल जाती है।

प्रश्न 24.
बर्फ की गुप्त ऊष्मा का J kg-1 में मान बताइए। अथवा बर्फ की गुप्त ऊष्मा का मान बताइए।
उत्तर:
बर्फ की गुप्त ऊष्मा 3.36 × 105 J kg-1 है।

प्रश्न 25.
लकड़ी, काँच, पारा तथा वायु में ऊष्मा का सबसे बुरा चालक कौन है?
उत्तर:
वायु, सबसे बुरा चालक है।

प्रश्न 26.
जल के क्वथनांक पर दाब का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
दाब के बढ़ने पर क्वथनांक बढ़ता है तथा दाब के घटने पर क्वथनांक घटता है।

प्रश्न 27.
द्रव में अपद्रव्य मिलाने पर क्वथनांक पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
क्वथनांक बढ़ जाता है।

प्रश्न 28.
ऊष्मा चालकता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पदार्थों का वह गुण, जिसके कारण उनमें चालन की प्रक्रिया द्वारा ऊष्मा का संचरण होता है, पदार्थ की ऊष्मा चालकता कहलाता है।

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प्रश्न 29.
स्थायी अवस्था में छड़ के प्रत्येक भाग का ताप स्थिर क्यों रहता है?
उत्तर:
क्योंकि इस अवस्था में छड़ का कोई भी भाग ऊष्मा का अवशोषण नहीं करता ।

प्रश्न 30.
ऊष्मीय विकिरण की प्रकृति कैसी होती है?
उत्तर:
ऊष्मीय विकिरण की प्रकृति विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के समान होती है। यही कारण है कि इसे चलने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 31.
सर्दियों में टेलीफोन की तारें तन जाती हैं, क्यों ?
उत्तर:
सर्दियों में ताप कम होने के कारण वे संकुचित हो जाती है, इस कारण वन जाती हैं।

प्रश्न 32.
निर्वात में प्रकाश की चाल क्या होती है?
उत्तर:
3 × 108 m/s.

प्रश्न 33.
ड्यूआर फ्लास्क अथवा धर्मस बोतल की भीतरी तथा बाहरी दीवारों पर किसका लेप होता है?
उत्तर:
चाँदी का |

प्रश्न 34.
दो व्यक्ति चाय पीने बैठते हैं। एक ने अपनी चाय में तुरन्त ठण्डा दूध मिला दिया पर दूसरे ने थोड़ी देर बाद किसकी चाय देरी से ठण्डी होगी ?
उत्तर:
जिसने तुरन्त दूध मिला दिया क्योंकि कम ताप वाली वस्तु के ठण्डी होने की दर कम होती है।

प्रश्न 35.
क्या भू-उपग्रह के भीतर जल को उबाला जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि भू-उपग्रह के भीतर वायु भारहीन होती है, अतः संवहन धाराएँ नहीं बहती हैं।

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प्रश्न 36.
जब चीनी को चाय में मिलाया जाता है तो यह ठण्डी हो जाती है, क्यों ?
उत्तर:
चीनी चाय से ऊष्मा अवशोषित कर लेती है, अतः चाय का ताप घट जाता है।

प्रश्न 37.
किसी हीटर में ऊष्मा निरन्तर उत्पन्न होती है। फिर भी कुछ समय पश्चात् इसका ताप स्थिर हो जाता है, क्यों ?
उत्तर:
कुछ समय पश्चात् ऊष्मा उत्पन्न होने की दर तथा विकिरण के द्वारा ऊष्मा हानि बराबर हो जाती है जिससे ताप स्थिर रहता है।

प्रश्न 38.
अत्यधिक ठण्ड होने पर प्राणी अपने आप को समेट कर बैठते हैं, क्यों ?
उत्तर:
ऐसा करने पर उनका क्षेत्रफल कम हो जाता है, जिससे ऊष्मा की क्षति कम होती है।

प्रश्न 39.
हाथ पर ईथर डालने से हाथ को ठण्डक का अनुभव क्यों होता है ?
उत्तर:
ईथर के वाष्पीकरण के लिए गुप्त ऊष्मा हाथ में लेने के कारण ठण्डक का अनुभव होता है।

प्रश्न 40.
अवस्था परिवर्तन में कौन सी राशि नहीं बदलती है ?
उत्तर:
ताप ।

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प्रश्न 41.
वीन के नियम के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
इसकी सहायता से सूर्य एवं अन्य नक्षत्रों के ताप ज्ञात किये जा सकते हैं।

प्रश्न 42.
गैसों के दाब गुणांकों का मान कितना होता है ?
उत्तर-
α = ß = \(\frac{1}{273}\)

प्रश्न 43.
ऊष्माधारिता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी पदार्थ की ऊष्माधारिता वह ऊष्मा है जो एकांक ताप परिवर्तन के लिए आवश्यक होती हैं।
S = \(\frac{∆Q}{∆T}\)

प्रश्न 44.
पूर्ण सूर्यग्रहण का समय फ्रॉनहॉफर रेखाएँ अपेक्षाकृत काली होती हैं या चमकीली ?
उत्तर:
चमकीली।

प्रश्न 45.
किरचॉफ के नियम के अनुसार अच्छे अवशोषक……. होते हैं।
उत्तर:
अच्छे उत्सर्जक ।

प्रश्न 46.
किस ताप पर डिग्री सेन्टीग्रेट व फॉरेनहाइट पैमाना बराबर होते हैं ?
उत्तर:
40°C पर ।

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लघु उत्तरीय प्रश्न ( Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्टीफन के नियम से न्यूटन के शीतलन के नियम की उत्पत्ति कीजिए।
उत्तर:
तापीय प्रसार (THERMAL EXPANSION):
जब किसी पदार्थ को गर्म किया जाता है, तो उसका ताप बढ़ने से पदार्थ के अनेक भौतिक गुण बदल जाते हैं। इनमें से एक प्रभाव पदार्थ के आकार पर भी पड़ता है। इसी को पदार्थ का तापीय प्रसार कहते हैं। तापीय प्रसार विभिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। ताप के बढ़ने से सभी पदार्थ (ठोस, द्रव या गैस) प्रसारित होते हैं।

ठोसों में तापीय प्रसार (Thermal Expansion In Solids):
ठोसों को गर्म करने पर अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप ठोस पदार्थों की लम्बाई, पृष्ठ का क्षेत्रफल तथा आयतन भी बढ़ जाता है। इस प्रकार ठोसों में प्रसार तीन प्रकार का होता है-

  • रेखीय प्रसार (Linear Expansion)
  • क्षेत्रीय प्रसार (Superficial Expansion)
  • आयतन प्रसार (Volume Expansion)

प्रश्न 2.
वीन के नियम से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
वीन का विस्थापन नियम (Wein’s Displacement Law):
कृष्णिका विकिरण में सभी तरंगदैर्घ्यों के लिए उत्सर्जन क्षमता eλ समान नहीं होती है। एक विशेष ताप पर एक विशेष तरंगदैर्घ्य को उत्सर्जकता अधिकतम होती है। इस तरंगदैर्घ्य को λm से व्यक्त करते हैं और ताप बढ़ाने पर λm का मान घटता है। वैज्ञानिक वीन से λm एवं ताप T में सम्बन्ध स्थापित करते हुए एक नियम दिया जो उन्हीं के नाम से ‘वीन का विस्थापन नियम’ के रूप में जाना गया। इस नियम के अनुसार ” λm का मान कृष्णिका के परम ताप (T) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।” अर्थात्
λm ∝ \(\frac{1}{T}\)
या λm ∝ \(\frac{b}{T}\)
या λm.T = b
यहाँ b एक नियतांक है जिसे ‘वीन-नियतांक’ (Wein Constant) कहते हैं। इसका मान कृष्णिका के लिए 2.90 × 103m होता है। इस नियम की सहायता से सूर्य के ताप की गणना निम्न प्रकार की जा सकती है। विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि सूर्य के लिए λm का मान 4753 × 10-10 होता है। अतः वीन के नियमानुसार
\(T=\frac{b}{\lambda_m}=\frac{2.90 \times 10^{-3}}{4753 \times 10^{-10}}=6100 \mathrm{~K}\)

प्रश्न 4.
धातु छड़ की स्थायी दशा एवं परिवर्तित दशा से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
ऊष्मा स्थानान्तरण (Heat Transfer):
ऊष्मा का संचरण सदैव उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है। ताप में अन्तर के कारण एक निकाय से दूसरे निकाय में अथवा किसी निकाय के एक भाग से उसके दूसरे भाग में ऊर्जा के स्थानान्तरण को ऊष्मा स्थानान्तरण कहते हैं। ऊष्मा स्थानान्तरण की निम्न तीन विधियाँ हैं-

  • चालन (Conduction)
  • संवहन (Convection) एवं
  • विकिरण (Radiation) ।

सामान्यतः ठोसों में ऊष्मा का स्थानान्तरण चालन विधि से होता है जबकि द्रवों व गैसों में ऊष्मा का संचरण संवहन विधि से होता है। सूर्य से पृथ्वी तक सूर्य की ऊर्जा विकिरण विधि से आती है। यहाँ पर यह उल्लेख भी आवश्यक है कि चालन व संवहन ऊष्मा संचरण की धीमी विधियाँ हैं जबकि विकिरण तीव्र गति की विधा है। चालन व संवहन के लिए माध्यम की आवश्यकता है जबकि विकिरण के लिए माध्य की आवश्यकता नहीं है।

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प्रश्न 5.
त्रिक बिन्दु से आप क्या समझते हैं? पानी के लिए इसका मान क्या होता है?
उत्तर:
त्रिक बिन्दु (Triple Point):
हम जानते हैं कि अवस्था परिवर्तन के समय किसी पदार्थ का ताप नियत रहता है। पदार्थ के दाब व ताप के मध्य खींच गया ग्राफ प्रावस्था आरेख कहलाता है। चित्र 11.13 में जल के लिए एवं चित्र (11.14) में CO2 के लिए प्रावस्था आरेख प्रदर्शित किये गये हैं। इस प्रकार के आरेख में P-T तल को ठोस, द्रव व वाष्प क्षेत्र में विभाजित किया जा सकता है। ये क्षेत्र विभिन्न वक्रों द्वारा प्रथक होते हैं। ये वक्र हैं-(i) ऊर्ध्वपातन वक्र (BO) (ii) वाष्पन वक्र (CO) (iii) संगलन वक्र (A O) । ऊर्ध्वपातन वक्र B O के बिन्दु उस अवस्था के व्यक्त करते हैं जिस पर ठोस व वाष्प अवस्थाएँ सहवर्ती होती हैं। इसी प्रकार वाष्पन वक्र CO के बिन्दुओं पर द्रव एवं वाष्प अवस्थाएँ सहवर्ती होती हैं। संगलन वक्र AO के बिन्दुओं पर ठोस व द्रव की अवस्थाएँ सहवर्ती होती हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 6.
उष्मीय चालकता गुणांक से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
ऊष्मा स्थानान्तरण (Heat Transfer):
ऊष्मा का संचरण सदैव उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है। ताप में अन्तर के कारण एक निकाय से दूसरे निकाय में अथवा किसी निकाय के एक भाग से उसके दूसरे भाग में ऊर्जा के स्थानान्तरण को ऊष्मा स्थानान्तरण कहते हैं। ऊष्मा स्थानान्तरण की निम्न तीन विधियाँ हैं-

  • चालन (Conduction)
  • संवहन (Convection) एवं
  • विकिरण (Radiation) ।

सामान्यतः ठोसों में ऊष्मा का स्थानान्तरण चालन विधि से होता है जबकि द्रवों व गैसों में ऊष्मा का संचरण संवहन विधि से होता है। सूर्य से पृथ्वी तक सूर्य की ऊर्जा विकिरण विधि से आती है। यहाँ पर यह उल्लेख भी आवश्यक है कि चालन व संवहन ऊष्मा संचरण की धीमी विधियाँ हैं जबकि विकिरण तीव्र गति की विधा है। चालन व संवहन के लिए माध्यम की आवश्यकता है जबकि विकिरण के लिए माध्य की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 7.
गलन की गुप्त ऊष्मा से क्या अभिप्राय है? बर्फ के लिए इसका क्या मान होता है?
उत्तर:
गुप्त ऊष्मा (Latent Heat):
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के समय ऊष्मा की आपूर्ति निरन्तर होती रहती है, लेकिन पदार्थ का ताप नहीं बदलता है। यह तब तक नियत रहता है जब तक सम्पूर्ण पदार्थ की अवस्था परिवर्तित नहीं हो जाती है। इस समय पदार्थ को दी गई ऊष्मा उसका ताप न बढ़ाकर उसके अणुओं को आणविक बलों के विरुद्ध अलग करने में व्यय होती है। “पदार्थ के
एकांक द्रव्यमान की अवस्था परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊष्मा को पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।” इसे L से व्यक्त करते हैं। चूँकि अवस्था परिवद्रन के समय दी गई ऊष्मा से ताप वृद्धि नहीं होती है इसलिए ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अवस्था परिवर्तन के दौरान ताप व दाब का मान नियत रहता है।

उदाहरण के लिए यदि -15°C पर स्थित बर्फ को ऊष्मा दी जाये तो पहले बर्फ का ताप बढ़कर 0°C तक पहुँचता है। यही बर्फ का गलनांक है। अतः ऊष्मा प्रदान करने की प्रक्रिया जारी रखी जाये तो बर्फ का अवस्था परिवर्तन अर्थात् पिघलना प्रारम्भ होता है। ताप का मान 0°C पर ही नियत रहेगा जब तक पूरी बर्फ नहीं गल जाती। अवस्था परिवर्तन की यही स्थिति वाष्पन के समय होती है। क्वथनांक पर द्रव का ताप नियत हो जाता है और तब तक नियत रहता है जब तक सारा द्रव वाष्प में परिवर्तित नहीं हो जाता है।
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प्रश्न 8.
वाष्पन की गुप्त ऊष्मा से क्या अभिप्राय है? भाप के लिए इसका क्या मान होता है?
उत्तर:
वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Vaporisation):
ऊष्मा की वह मात्रा जो पदार्थ के एकांक द्रव्यमान को उसके क्वथनांक पर द्रव से गैस अवस्था में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक होती है, पदार्थ की वाष्पन की गुप्त ऊष्मा Lv कहलाती है। अवस्था परिवर्तन से सम्बन्धित ऊष्मा व ताप के मध्य जल के लिए परिवर्तन चित्र में प्रदर्शित है।
यहाँ यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि अवस्था परिवर्तन के समय ऊष्मा चाहे ली जाये या दी जाये लेकिन ताप नियत रहता है। चित्र 11.15 में A B, C D तथा EF की प्रवणता समान नहीं है जिसका कारण।

विभिन्न अवस्थाओं में विशिष्ट ऊष्मा का असमान होना है। जल के लिए Lf = 2.33 × 105 J.kg-1 व Lv = 22.6 × 105 J.kg है अर्थात् 0°C पर 1 kg बर्फ को पूर्णतः पिघलाने के लिए 3.33 × 105 J ऊष्मा की आवश्यकता होती है और उक्त जल को 100°C पर पूर्णरूप से वाष्प में बदलने के लिए 22.6 × 105 J ऊष्मा की आवश्यकता होती है। स्पष्ट है कि 100°C के जल की अपेक्षा 100°C की भाप में 22.6 × 105 J ऊष्मा अधिक होती है। इसीलिए उबलते हुए जल की अपेक्षा भाप से अधिक जलन होती है। निम्न सारणी में कुछ पदार्थों के ताप व गुप्त ऊष्मा के मान दिये गये हैं-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -3
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 9.
विद्युत् हीटर का स्विच ऑन करने के कुछ समय पश्चात् हीटर का ताप स्थिर हो जाता है, जबकि उसमें धारा प्रवाहित होती रहती है, क्यों?
उत्तर:
कुछ समय के बाद स्थायी अवस्था आ जाती है, इस अवस्था मैं चालन, संवहन व विकिरण द्वारा ऊष्मा हानि दर हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर के बराबर हो जाती है।

प्रश्न 10.
जाड़ों में मोटी कमीज की अपेक्षा दो पतली कमीजें पहनना अधिक उपर्युक्त है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि दो पतों के मध्य वायु की एक पर्त बन जाती है जो कि ऊष्मा की कुचालक है, जिससे शरीर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती है।

प्रश्न 11.
किसी पदार्थ के उष्मीय प्रतिरोध से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
चालन (Conduction):
यदि किसी चालक छड़ के सिरों पर तापान्तर उत्पन्न किया जाता है तो ऊष्मा का संचरण उच्च ताप के सिरे से निम्न ताप के सिरे की ओर होने लगता है। ऊष्मा के इसी स्थानान्तरण को चालन कहते हैं। उदाहरण के लिए-लोहे की छड़ का एक सिरा गर्म करने पर दूसरे सिरे का गर्म हो जाना। हम जानते हैं कि ठोसों के अणु केवल अपने स्थान पर कम्पन कर सकते हैं लेकिन अपना स्थान नहीं छोड़ते। छड़ के गर्म सिरे पर अणु ऊष्मा ग्रहण करके अधिक आयाम के दोलन करने लगते हैं अर्थात् उनकी दोलन ऊर्जा बढ़ जाती है। इस प्रकार इस भाग के अणुओं की गतिज दूसरे पड़ोसी भाग के अणुओं की अपेक्षा अधिक हो जाती है। इन अणुओं की टक्क्र समीपवर्ती कम ऊर्जा वाले भाग के अणुओं से होती है, अतः ऊर्जा का स्थानान्तरण कम ऊर्जा वाले अणुओं को हो जाता है। यही प्रक्रिया आगे के भागों की ओर बढ़ती है और इस प्रकार अणुओं के माध्यम से ऊष्मीय ऊर्जा का स्थानान्तरण होता रहता है। यही चालन विधि है। स्पष्ट है कि इस विधा में केवल ऊष्मीय ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, द्रव्य का नहीं।

सभी पदार्थों का ऊष्मा के प्रति व्यवहार समान नहीं है। कुछ पदार्थ जैसे-ताँबा, चाँदी, लोहा आदि ऊष्मा के अच्छे चालक होते हैं। इसके विपरीत कुछ अन्य पदार्थ जैसे-काँच, प्लास्टिक, बेकेलाइट, प्लाईवुड आदि ऊष्मा के कुचालक होते हैं। धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन भी ऊष्मा चालन में सक्रिय योगदान देते हैं। “पदार्थों का वह गुण जो ऊष्मा के चालन की व्याख्या करता है उसे ऊष्मा चालकता से परिभाषित करते हैं। ऊष्मा चालन की व्याख्या किसी पदार्थ में किसी दिये गये तापान्तर पर ऊष्मा प्रवाह की दर से की जाती है।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -4

प्रश्न 12.
समान पदार्थ के दो गोलों की त्रिज्याओं एवं इसके पृष्ठ तापक्रम के मान क्रमशः r1,r2 एवं T1,T2 हैं तथा ये समान शक्ति की ऊर्जा विकिरित करते हैं, तो r1 एवं r2 का अनुपात कितना होगा?
उत्तर:
पदार्थ की शक्ति
(P) = Aσ T4 = 4πr²σ T4
P a r²T4
या r² ∝ \(\frac{1}{T^4}\) [∵ P = स्थिरांक ]
∴ \(\frac{r_1}{r_2}=\left(\frac{\mathrm{T}_2}{\mathrm{~T}_1}\right)^2\)

प्रश्न 13.
तीन कृष्ण पिण्डों के लिए तीव्रता- तरंग दैर्ध्य ग्राफ प्रदर्शित है। पिण्डों के ताप क्रमश: T1,T2 व T3 हों तो T1,T2 व T3 में सम्बन्ध ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -5
उत्तर:
चीन के नियम से, λm × \(\frac{1}{T}\) तथा चित्र से,
m)1 < (λm)3 < (λm)2
अतः T1 > T3 > T2 से।

प्रश्न 14.
चित्र में दिखाया गया ग्राफ किसी वस्तु के तापक्रम के लिए डिग्री सेल्सियस एवं डिग्री फॉरेनहाइट के बीच है, तब AB रेखा का ढाल ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -6
उत्तर:
सेण्टीग्रेड तथा फॉरेनहाइट तापक्रम पैमाने में सम्बन्ध
\(\frac{C}{5}=\frac{F-32}{9}\)
\(C=\frac{5}{9} F-\frac{160}{9}\)
उपर्युक्त समीकरण की तुलना y = mx + c से करने पर,
\(m=\frac{5}{9}\)
अतः रेखा की ढाल = \(\frac{5}{9}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 15.
वायु तथा लकड़ी दोनों ही ऊष्मा के कुचालक हैं, यदि तप्त तन्तु व अपने बीच लकड़ी का पर्दा रख दें, तो ऊष्मा हम तक नहीं पहुँच पाती, परन्तु बीच में केवल वायु होने से हम तप्त तन्तु की ऊष्मा का आभास करते हैं, क्यों?
उत्तर:
वायु तथा लकड़ी दोनों ही ऊष्मा की कुचालक हैं, परन्तु वायु में संवहन द्वारा ऊष्मा का संचरण हो सकता है जबकि लकड़ी में संवहन की प्रक्रिया नहीं होती, इसलिए तप्त तन्तु व हमारे बीच लकड़ी का पर्दा होने से तप्त तन्तु की ऊष्मा हम तक नहीं पहुँच पाती, परन्तु लकड़ी के पर्दे की अनुपस्थिति में तप्त तन्तु से ऊष्मा संवहन द्वारा हम तक पहुँच जाती है।

प्रश्न 16.
धातु के दो गोले S1 एवं S2 समान पदार्थ के बने हैं एवं इनकी सतहों की प्रकृति भी समान है। S1 गोले का द्रव्यमान, S2 के द्रव्यमान का तीन गुना है। दोनों गोलों को समान उच्च तापक्रम तक गर्म कर एक कमरे में एक-दूसरे से ऊष्मारोधित रूप में भिन्न तापक्रम पर रखा जाता है तो S1 एवं S2 के ठण्डा होने की दरों का अनुपात ज्ञात कीजिए ।
उत्तर-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -7

प्रश्न 17.
स्टील के खाना पकाने के बर्तनों की पेंदी में ताँबे की पर्त लगाई जाती है, क्यों?
उत्तर:
स्टील की अपेक्षा ताँबे की ऊष्मा चालकता काफी अधिक होती है, अतः ताँबे की अतिरिक्त तली होने के कारण आग पर रखने पर यह अधिक ऊष्मा का कम समय में संचरण करती है।

प्रश्न 18.
रेफ्रिजरेटर में शीतलक कुण्डलियाँ ऊपर क्यों बनाई जाती हैं ?
उत्तर:
ऊपर की वायु कुण्डलियों के सम्पर्क में आने पर ठण्डी होकर भारी हो जाती है अतः नीचे आने लगती है तथा नीचे की गर्म हल्की वायु ऊपर जाने लगती है। इस प्रकार रेफ्रिजरेटर में वायु में संवहन धाराएँ बन जाती हैं तथा पूरा स्थान ठण्डा हो जाता है, यदि शीतलक कुण्डलियाँ नीचे लगायी जाएँ, तो संवहन धाराएँ नहीं बनेंगी।

प्रश्न 19.
तारा A हरे रंग का, तारा B नीले रंग का प्रकाश उत्सर्जित करता है। इन दोनों में किसका ताप अधिक है?
उत्तर:
वीन के नियम के अनुसार, λmT = नियतांक,
इसके अनुसार, T ∝ \(\frac{1}{λ_m}\)
चूँकि नीले रंग की तरंगदैर्घ्य हरे रंग से कम होती है, अतः नीला रंग उत्सर्जित करने वाले तारे का ताप अधिक होगा अर्थात् तारे B का ताप A की अपेक्षा अधिक होगा।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 20.
यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल अनुपस्थित होता तो पृथ्वी इतनी ठण्डी हो जाती है कि यहाँ जीवन सम्भव नहीं होता। समझाइए, क्यों ?
उत्तर:
पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल अवरक्त विकिरणों के लिए एक कुचालक आवरण की भाँति व्यवहार करता है। यह दिन के समय पृथ्वी द्वारा प्राप्त की गई ऊष्मा को रात्रि के समय वापस जाने से रोक लेता है। किन्तु यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल अनुपस्थित होता तो पृथ्वी सारी ऊष्मा को उत्सर्जित कर देती और यदि सारी ऊष्मा पृथ्वी की सतह छोड़ देती तो यह अत्यधिक ठण्डी हो जाती।

प्रश्न 21.
वे बर्तन जिनके पैदे काले और खुरदुरे होते हैं उनमें रखा द्रव पॉलिश किये हुए आधार वाले बर्तन की तुलना में जल्दी उबलने लग जाता है, क्यों?
उत्तर:
काले और खुरदुरे पृष्ठ चमकीले पृष्ठों की तुलना में ऊष्मा के अच्छे अवशोषक होते हैं। इस कारण ही वे बर्तन जिनके पैदे काले और खुरदुरे होते हैं, उनमें रखा द्रव पॉलिश किये हुए पेंदे वाले बर्तन की तुलना में जल्दी उबलने लग जाता है।

प्रश्न 22.
मोटे काँच के गिलास में गर्म चाय डालने से गिलास टूट जाता है परन्तु चम्मच रखे गिलास में चाय डालने से गिलास नहीं टूटता है, क्यों?
उत्तर:
जब काँच के गिलास में गर्म चाय डालते हैं तो गिलास के भीतर की सतह फैलती है परन्तु काँच ऊष्मा का कुचालक होने के कारण ऊष्मा बाहर की सतह पर शीघ्र नहीं पहुँचती जिसके कारण गिलास टूट जाता है। यदि गिलास में चम्मच रख दें तो ऊष्मा चम्मच में फैल जाती है और गिलास टूटने से बच जाता है।

प्रश्न 23.
रेल की पटरियों के मध्य कुछ स्थान खाली क्यों छोड़ा जाता है?
उत्तर:
यदि रेल की पटरियों के मध्य स्थान खाली नहीं छोड़ा जायेगा तो गर्मियों में ताप वृद्धि के कारण ये प्रसारित होंगी और खाली स्थान के अभाव में मुड़ जाएंगी इससे ट्रेन पटरी से उतर सकती है। इसी कारण दो पटरियों के मध्य कुछ स्थान खाली रखा जाता है।

प्रश्न 24.
दो छड़ों के पदार्थों की ऊष्मा चालकताओं का अनुपात 4 : 3 है। यदि दोनों की त्रिज्या एवं ऊष्मीय प्रतिरोध समान हों तो उनकी लम्बाईयों का अनुपात क्या
होगा ?
उत्तर:
R = \(\frac{l}{KA}\) ∵ R1 = R2 तथा A1 = A2
∴ \(\frac{l_1}{\mathrm{~K}_1 \mathrm{~A}}=\frac{l_2}{\mathrm{~K}_2 \mathrm{~A}} \Rightarrow \frac{l_1}{l_2}=\frac{\mathrm{K}_1}{\mathrm{~K}_2}=\frac{4}{3}\)
∴ l1 : l2 = 4 : 3

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प्रश्न 25.
जिस रात आकाश में बादल होते हैं, उस रात अधिक गर्मी पड़ती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दिन में पृथ्वी सूर्य के ऊष्मीय विकिरण को अवशोषित करके गर्म हो जाती है तथा रात को ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित करके ठण्डी होती है, जब आकाश में बादल होते हैं जो कि ऊष्मीय विकिरण के अवशोषक हैं, तब पृथ्वी से उत्सर्जित विकिरण बादलों से परावर्तित होकर वापस पृथ्वी की ओर आ जाती है, जिससे पृथ्वी गर्म बनी रहती है।

प्रश्न 26.
पारे के एक तापमापी A का बल्ब गोलाकार तथा दूसरे का बेलनाकार है। दोनों में पारे की मात्रा समान है। इनमें से कौन-सा तापमापी गर्म जल का ताप शीघ्र नापेगा ?
उत्तर:
शेष सभी बातें समान हैं, ऊष्मा चालन की दर क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होती है, बेलनाकार बल्ब का पृष्ठ क्षेत्रफल गोलाकार बल्ब की अपेक्षा अधिक होता है, अतः बेलनाकार बल्ब में ऊष्मा चालान की दर अधिक होगी, अतः बेलनाकार बल्ब वाला तापमापी गर्म जल का ताप शीघ्र पढ़ेगा।

प्रश्न 27.
धातु की छड़ को गर्म करने पर परिवर्ती अवस्था में समय के साथ ताप का बढ़ना किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
विसरणशीलता पर।
विसरणशीलता = \(\frac{K}{ρs}\)
जहाँ K = ऊष्मा चालकता,
ρ = छड़ के पदार्थ का घनत्व
s = पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा

प्रश्न 28.
धातु की एक गेंद पर काला चिह्न है, गेंद को 1000° C तक गर्म करके अन्धेरे कमरे में ले जाया जाता है, यहाँ पर काला चिह्न शेष गेंद से अधिक चमकता हुआ दिखाई देता है, क्यों?
उत्तर:
काले धब्बे वाला भाग शेष सतह की तुलना में विकिरण का अच्छा अवशोषक है, अत: किरचॉफ के नियम के अनुसार उच्च ताप पर यह विकिरण का अच्छा उत्सर्जक भी है। यही कारण है कि उच्च ताप पर काला चिह्न, शेष गेंद की अपेक्षा अधिक चमकता हुआ दिखाई देता है।

प्रश्न 29.
ऊष्मा तापमापी में प्रयुक्त पदार्थ के क्या विभिन्न गुण हैं ?
उत्तर:
ऊष्मा तापमापी में प्रयुक्त पदार्थ में निम्न गुण हैं-
(i) क्वथनांक अधिक तथा हिमांक निम्न होना चाहिए जिससे अधिक परास के ताप को मापा जा सके।
(ii) पदार्थ का प्रसार गुणांक उच्च होना चाहिए जिससे तापमापी संवेदनशील हो ।
(iii) यह शुद्ध अवस्था में उपलब्ध होना चाहिए।
(iv) काँच की नली में यह चिपकना नहीं चाहिए।
(v) इसका ऊष्मा चालकता अच्छी होनी चाहिए।
(vi) इसका प्रसार एक समान होना चाहिए जिससे इसका अंशांकन युग्म हो सके।

प्रश्न 30.
बिजली के चूल्हे में ऊष्मा सतत निकलती रहती है, फिर भी उसका ताप कुछ समय बाद स्थिर हो जाता है, क्यों ?
उत्तर:
बिजली के चूल्हे में जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चूल्हा लगातार धीरे-धीरे गर्म होने लगता है जिससे उसका ताप बढ़ता है। गर्म होने पर उससे ऊष्मा विकरित होने लगती है। कुछ समय बाद जब चूल्हे में विद्युत् धारा के कारण ऊष्मा उत्पादन की दर और चूल्हे द्वारा विकरित ऊष्मा की दर बराबर हो जाती है, तब चूल्हे का ताप स्थिर हो जाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
तापमापन से क्या अभिप्राय है ? तापीय पैमाने क्या होते हैं ? इन्हें कैसे प्राप्त किया जाता है ? विभिन्न तापीय पैमानों के व्यंजक ज्ञात कीजिए एवं इनमें सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
ताप मापन (Temperature Measurement)
“तापमापन हेतु प्रयुक्त उपकरण तापमापी कहलाता है।” ताप के मापक्रम के लिए पदार्थ के ऐसे गुण का चयन किया जाता है, जो ताप के साथ परिवर्तित तथा प्रेक्षणीय होता है। पदार्थ के ऐसे गुण को “तापमापक गुण” कहते हैं। सामान्यतः उपयोग में आने वाला तापमापी काँच में द्रव के प्रसार (ताप के साथ आयतन में परिवर्तन) पर आधारित है।

इस प्रकार के तापमापियों में सामान्यतः पारा तथा ऐल्कोहॉल जैसे द्रवों का उपयोग किया जाता है। अन्य प्रकार के तापमापियों में गैसों के ऊष्मीय प्रसार (स्थिर आयतन पर गैस के दाब में परिवर्तन); चालक तार के विद्युत् प्रतिरोध को परिवर्तित होना आदि ताप मापक गुणों का उपयोग किया जाता है। तापमापी में अंशाकन इस प्रकार किया जाता है कि ताप को संख्यात्मक रूप से व्यक्त किया जा सके। किसी मानक तापमाप क्रम के निर्धारण हेतु दो नियत सन्दर्भ बिन्दुओं की आवश्यकता होती है। शुद्ध जल का हिमांक तथा क्वथनांक दो सुविधाजनक नियत बिन्दु हैं। ये ऐसे ताप हैं जो मानक दाब पर नियत रहते हैं तथा शुद्ध रूप से पुनरोत्पादित (reproduce) किये जा सकते हैं।
तापमापक गुणों के आधार पर तापमापियों को निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है-

  • द्रव तापमापी ( जैसे-पारा तापमापी एवं ऐल्कोहॉल तापमापी)
  • गैस तापमापी (जैसे-स्थिर आयतन वायुतापमापी, हाइड्रोजन गैस तापमापी)
  • प्रतिरोध तापमापी (जैसे-प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी)
  • ताप युग्म तापमापी, ताप बढ़ने पर ताप वैद्युत वाहक बल बढ़ने के सिद्धान्त पर आधारित है।
  • विकिरण तापमापी, ताप बढ़ने पर विकिरण की मात्रा पर आधारित है।
  • तप्त तन्तु तापमापी, प्रदीप्ति समानता पर आधारित है।
  • वाष्पदाब तापमापी, संतृप्त वाष्पदाब पर आधारित है।

प्रश्न 2.
न्यूटन के शीतलन नियम को लिखिए तथा इसके लिए आवश्यक प्रतिबन्ध निकालिए।
उत्तर:
न्यूटन का शीतलन नियम (Newton’s Law of Cooling):
इस नियम के अनुसार, “किसी तप्त वस्तु के शीतल \(\frac{d T}{d t}\) अथवा वस्तु द्वारा ऊष्मा क्षय की दर \(\frac{d Q}{d t}\) वातावरण के मध्य तापान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है तापान्तर अधिक न हो।” यदि वस्तु एवं वातावरण के ताप क्रमशः \mathrm{T}_0 हैं, तो न्यूटन के शीतलन नियम से
–\(\frac{d Q}{d t}\) ∝ (TY – T0)
या –\(\frac{d Q}{d t}\) = k(T – T0) ………(1)
जहाँ K एक नियतांक है जिसका मान धनात्मक होता है तथा इसका मान वस्तु के पृष्ठ व प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि T ताप पर वस्तु द्रव्यमान व विशिष्ट ऊष्मा क्रमशः m व S हों और d t समय में d T ताप हो,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -8

प्रश्न 3.
रेखीय प्रसार गुणांक, क्षेत्रीय प्रसार गुणांक तथा आयतन प्रसार गुणांक परिभाषित कर इनमें परस्पर सम्बन्ध प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
रेखीय प्रसार गुणांक तथा क्षेत्रीय प्रसार गुणांक में सम्बन्ध (Relation Between Coefficient of Linear Expansion and Coefficient of Superficial Expansion)
माना किसी ताप पर किसी पदार्थ के एक वर्गाकार पटल की प्रत्येक भुजा की लम्बाई l मीटर है, अतः इसका क्षेत्रफल l² मी² होगा। इस पटल का ताप ∆t°C बढ़ा देने पर पटल की प्रत्येक भुजा की लम्बाई (l+∆l) मीटर तथा क्षेत्रफल (l+∆l)² मी² हो जायेगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -9

रेखीय प्रसार गुणांक तथा आयतन प्रसार गुणांक में सम्बन्ध (Relation Between Coefficient of Linear Expansion and Coefficient of Volume Expansion):
माना किसी ताप पर किसी पदार्थ के घन की प्रत्येक भुजा 1 मीटर है। अतः इसका आयतन 1 मी०³ होगा। इस घन का ताप 1°C बढ़ा देने पर घन की प्रत्येक भुजा (1+α) मीटर तथा घन का आयतन (1+α)³ हो जाएगा।
अतः घन के आयतन में वृद्धि
∆V = अन्तिम आयतन – प्रारम्भिक आयतन
= (1+α)³ – 1
∆V = 1 + 3α + 3α² + α³ – 1
= 3α + 3α² + α³
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -10
∵ α का मान अत्यन्त कम है अतः α² व α³ के मान बहुत छोटे होंगे। अतः α² व α³ को छोड़ने पर,
आयतन में वृद्धि ∆V = 3 α
∴ आयतन प्रसार गुणांक
\(\gamma=\frac{\text { आयतन में वृद्धि }}{\text { प्रारम्भिक आयतन } \times \text { ताप में वृद्धि }}\)
\(\gamma=\frac{3 \alpha}{1 \times 1} \quad \text { या } \gamma=3 \alpha\)
अतः किसी पदार्थ का आयतन प्रसार गुणांक उसके रेखीय प्रसार गुणांक का तीन गुना होता है।
अत: α : β : γ = α : 2 α : 3 α \\
या α : β : γ = 1 : 2 : 3
यही रेखीय, क्षेत्रीय तथा आयतन प्रसार गुणांकों में सम्बन्ध है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 4.
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन से आप क्या समझते हैं ? इसे उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर:
अवस्था परिवर्तन (Change of State):
पदार्थ की तीन अवस्थाएँ ठोस, द्रव एवं गैस हैं उदाहरण के लिए, जल ठोस अवस्था में बर्फ (ice) के रूप में, द्रव अवस्था में जल के रूप में तथा गैसीय अवस्था में भाप के रूप में होता है। इन परिवर्तनों का कारण पदार्थ और उसके परिवेश के बीच ऊष्मा का विनिमय होता है।
अतः वह परिवर्तन जिसमें पदार्थ अपनी भौतिक अवस्था को परिवर्तित करता है, अवस्था परिवर्तन कहलाता है।
अवस्था परिवर्तन के बारे में अधिक जानकारी के लिए हम चित्र में प्रदर्शित प्रयोग पर विचार करते हैं।
एक बीकर में कुछ बर्फ के टुकड़े लेकर बर्फ का ताप (IPC) नोट कर लेते हैं। अब बीकर को बर्नर द्वारा गर्म करते हैं एवं तापमापी का पाठ्यांक हर दो मिनट बाद नोट करते जाते हैं विडोलक की सहायता से बर्फ को विडोलित करते रहते हैं प्रयोग में हम देखते हैं कि जब तक बीकर में बर्फ उपस्थित रहती है तब तक थर्मामीटर का पाठ्यांक नियत रहता है अर्थात् बढ़ता नहीं है। स्पष्ट है कि ऊष्मा की सतत आपूर्ति होने पर भी ताप के मान में कोई वृद्धि नहीं होती है। यहाँ ऊष्मा का उपयोग बर्फ (ठोस) से द्रव (जल) में अवस्था परिवर्तन में हो रहा है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -11
अवस्था परिवर्तन के लिए मुख्यतः दो शर्तें आवश्यक हैं-
(i) अवस्था परिवर्तन एक निश्चित ताप पर होता है।
(ii) जिस समय अन्तराल में अवस्था का परिवर्तन होता है उस बीच पदार्थ का ताप स्थिर रहता है, जब तक पूरे पदार्थ का अवस्था परिवर्तन नहीं हो जाता।

अवस्था परिवर्तन की कुछ मुख्य क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) गलन (Melting) : ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तन को गलन कहते हैं। यह क्रिया जिस निश्चित ताप पर होती है, वह गलनांक (Melting Point) कहलाता है।

(ii) क्वथन (Boiling) : जब कोई पदार्थ पूर्णत: किसी निश्चित ताप पर द्रव अवस्था से गैस अवस्था में बदलता है तो इस परिवर्तन को क्वथन कहते हैं। यह क्रिया जिस निश्चित ताप पर होती है, वह क्वथनांक (Boiling Point) कहलाता है।

(iii) वाष्पन (Vapourisation ) : ऊपरी सतह से द्रव सभी ताप पर गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता रहता है। यह क्रिया वाष्पन कहलाती है।

(iv) संघनन या द्रवण ( Condensation ) : वह क्रिया जिसमें गैस का ताप कम करने पर वह एक निश्चित ताप पर गैस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती है, द्रवण या संघनन कहलाती है। यह ताप द्रवणांक कहलाता है।

(v) ऊर्ध्वपातन (Sublimation ) : कुछ ठोस पदार्थ (जैसे- नौसादर, कपूर इत्यादि) ऐसे होते हैं, जो गर्म करने पर बिना द्रवित हुए भी ठोस अवस्था से सीधे गैस अवस्था में आ जाते हैं तथा ठण्डा होने या सीधे ठोस में बदल जाते हैं। इस क्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं। उदाहरण के लिए- आयोडीन, शुष्क हिम, नेप्यलीन इत्यादि ।

(vi) हिमायन (Freezing) : द्रव से ठोस अवस्था में परिवर्तन हिमायन (Freezing) कहलाता है। इस क्रिया के लिए आवश्यक निश्चित ताप हिमांक (Freezing point) कहलाता है।

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प्रश्न 5.
गलनांक एवं क्वथनांक पर दाब के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
गलनांक पर दाब का प्रभाव (Effect of Pressure on Meeting Point):
पदार्थ का गलनांक निश्चित दाब पर निश्चित (नियत) होता है लेकिन दाब बदलने पर गलनांक बदल जाता है। दाब बढ़ाने पर गलनांक भी बढ़ जाता है। इस तथ्य को समझने के लिए चित्र की भाँति एक प्रयोग करते हैं। एक बर्फ की पट्टिका पर चित्र की भाँति इसके दोनों ऊपर से गुजरते हुए तार के दोनों मुक्त सिरों पर समान भार (जैसे 5 kg) लटका देते हैं तो भार के कारण उत्पन्न दाब के कारण तार के नीचे की बर्फ कमरे के ताप पर भी पिघल जाती है जिससे तार बर्फ की पट्टिका में प्रवेश कर जाता है और धीरे-धीरे पूरी पट्टिका से आर-पार गुजर जाता है। तार नीचे धँसता जाता है और उसके ऊपर पिघली हुई बर्फ पुन: जम जाती है। इस क्रिया को ‘पुनर्हिमायन’ कहते हैं। स्पष्ट है कि दाब बढ़ाने पर गलनांक भी बढ़ जाता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -12

दाब पर क्वथनांक का प्रभाव (Effect of Pressure on Boiling Point):
द्रवों का क्वथनांक भी दाब पर निर्भर करता है। दाब बढ़ाने पर क्वथनांक बढ़ जाता है एवं दाब घटाने पर क्वथनांक कम हो जाता है। उदाहरण के लिए एक वायुमण्डलीय दाब पर जल का क्वथनांक 100°C होता है परन्तु दाब यदि दो वायुमण्डलीय दाब के बराबर कर दिया जाये तो जल का क्वथनांक 128°C हो जाता है। क्वथन की प्रक्रिया को समझने के लिए निम्न प्रयोग पर विचार करते हैं-
चित्र में प्रदर्शित व्यवस्था के अनुसार एक फ्लास्क में जल गर्म करते हैं जल को गर्म करने पर हम देखते हैं कि जल में घुली हुई वायु बुलबुलों के रूप में बाहर आती है इसके पश्चात् भाप के बुलबुले तली में बनते हैं किन्तु जैसे ही ऊपरी भाग के ठण्डे जल की ओर उठते हैं, संघनित होकर अदृश्य हो जाते हैं। जल का ताप जैसे ही 100°C पहुँचता है तो भाप के बुलबुले पृष्ठ पर पहुँचते हैं।

फ्लास्क के अन्दर भाप दिखाई नहीं देती हैं परन्तु जैसे ही वह बाहर आती है तो जल की अत्यन्त छोटी-छोटी बूँदों में संघनित होकर धुँध के रूप में प्रकट होती है। अब यदि कुछ देर के लिए भाप की निकासनली को बन्द कर दिया जाये तो फ्लास्क के भीतर दाब में वृद्धि होती है। क्वथन की प्रक्रिया कुछ देर के लिए रुक जाती है और फिर यह प्रक्रिया प्रारम्भ होती है तो हम देखते हैं कि थर्मामीटर का पाठ्यांक पहले से कुछ बढ़ जाता है। स्पष्ट है कि दाब बढ़ने पर जल का क्वथनांक बढ़ जाता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -13
अब यदि बर्नर को हटाकर जल को लगभग 80°C तक ठंडा करें और फ्लास्क से थर्मामीटर व निकास नली को हटाकर उसके मुख को कसकर बन्द कर दें तथा फ्लास्क को उल्टा करके उसके ऊपर बर्फ के समान ठंडा जल डालें तो फ्लास्क के भीतर की वाष्प संघनित होकर फ्लास्क के भीतर जल के पृष्ठ पर दाब को घटा देती है। अब निम्न दाब पर जल में पुन: क्वथन प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार दाब में कमी होने पर क्वथनांक कम हो जाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 6.
ऊष्मामिति का क्या सिद्धान्त है ? कैलोरीमापी की सहायता से द्रव ‘की विशिष्ट ऊष्मा ज्ञात करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कैलोरीमापी की संरचना:
कैलोरीमिति की क्रिया में प्रयोग किए जाने वाले उपकरण को कैलोरीमापी कहते हैं। इसमें ताँबे का बना एक बेलनाकार बर्तन होता है। ताँबे का प्रयोग करने का कारण इसकी विशिष्ट ऊष्मा कम होना (लगभग 0.095 कैलोरी / ग्राम°C) है। इसकी बाहरी सतह चमकदार बनायी जाती है जिससे विकिरण विधि द्वारा बाहर की ऊष्मा अन्दर तथा अन्दर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती है। इस बर्तन को लकड़ी के बड़े
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -14
डिब्बे में रखकर खाली स्थान में ऊष्मा-अवरोधी पदार्थ, जैसे-रूई आदि रख देते हैं जिससे चालन तथा संवहन से होने वाले ऊष्मा के स्थानान्तरण को रोका जाता है। कैलोरीमापी में रखे पदार्थ को हिलाने के लिए विलोडक होता है जो कि ताँबे का बना होता है। कैलोरीमापी को लकड़ी के ढक्कन से बन्द कर देते हैं जिससे कि संवहन द्वारा ऊष्मा हानि को रोका जा सके। अन्दर भरे द्रव का ताप ज्ञात करने के लिए तापमापी T का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
संवहन की प्रयोग द्वारा व्याख्या कीजिए एवं इसके निम्नलिखित दैनिक जीवन के उदाहरणों पर प्रकाश डालिए-
(i) हमारे पूरे शरीर का ताप समान रहना।
(ii) एअर कण्डीशनर का हीटर के रूप में उपयोग होना।
उत्तर:
संवहन (Convection):
संवहन ऊष्मा संचरण की वह विधि है, जिसमें ऊष्मा का संचरण पदार्थ की वास्तविक गति के द्वारा होता है। इस विधि द्वारा ऊष्मा का संचरण मुख्य रूप से द्रवों एवं गैसों में होता है। संवहन प्राकृतिक भी हो सकता है। प्राकृतिक संवहन में पदार्थ की गति घनत्व में अन्तर के कारण होती है और प्रणोदित भी हो सकता है। प्राकृतिक संवहन को समझने के लिए हम एक धातु के बर्तन में जल को गर्म करते हैं तो हम देखते हैं कि ऊष्मीय स्रोत से ऊष्मा प्राप्त करके बर्तन के पेढें के निकट के जल में प्रसार होता है, जिससे यहाँ का घनत्व घट जाता है। अतः उत्प्लावन के कारण यह ऊपर उठता है और इसकी जगह लेने के लिए ऊपर का ठंडा जल आता है तथा यह भी गर्म होकर पूर्व क्रिया को दोहराता है। इस प्रकार यही प्रक्रिया जारी रहती है और ऊष्मा का संचरण नीचे (अधिक ताप) से ऊपर (कम ताप) की ओर होता रहता है। स्पष्ट है संवहन में द्रव (तरल) के विभिन्न भागों का स्थूल अधिगमन होता है। तरल के इस अभिगमन को संवहन धारा से निरूपित करते हैं। इसी प्रकार गैसों (जैसे – वायु) में भी संवहन धारायें उत्पन्न होती हैं जिसके कारण ऊष्मा का संचरण अधिक ताप से निम्न ताप के क्षेत्र की ओर होता है।

संवहन की उक्त घटना को देखने के लिए हम जल में KMnO4 क्रिस्टल के कुछ कण एक फ्लास्क की तली में डालकर उसमें जल भर कर फ्लास्क को गर्म करते हैं तो हम देखते हैं कि गर्म करने पर KMnO4 के कण ऊपर की ओर गति करते हैं और संवहन धाराओं को रंग के आधार पर आसानी से देखा जा सकता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -15
प्रणोदित संवहन में पदार्थ को किसी पम्प या ब्लोअर द्वारा गति कराने हेतु विवश कराया जाता है।
संवहन के दैनिक जीवन में उदाहरण-
1. किसी स्वस्थ मनुष्य का हृदय एक पम्प की तरह कार्य करते हुए रक्त का पूरे शरीर में संचरण करता है जिसके कारण पूरे शरीर का ताप एक समान बना रहता है यह प्रणोदित संवहन का उदाहरण है।

2. ठंडे प्रदेशों में सर्दी के दिनों में बाहर का ताप 0°C से भी कम होता है जबकि किसी बन्द कमरे का ताप 20FC तक रखने के लिए एअर कंडीशनर को हीटर (Heater) की तरह काम में लाते हैं। यह भी प्रणोदित संवहन का उदाहरण है।

3. हम जानते हैं कि पृथ्वी को विषुवत् रेखीय व ध्रुवीय क्षेत्रों पर सूर्य से असमान ऊष्मा प्राप्त होती है विषुवत् रेखीय क्षेत्रों की वायु का तप्त होना तथा ध्रुवीय क्षेत्रों में वायु के शीतल होने का यही कारण है। इन्हीं कारणों से विषुवत् रेखीय क्षेत्रों से वायु का संचरण ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर होता है और पुनः विषुवत् रेखीय क्षेत्रों की ओर आती है। उक्त संवहन धाराओं को व्यापारिक धाराएँ कहते हैं। यह प्राकृतिक संवहन का उदाहरण है।

4. प्राकृतिक संवहन के कारण ही दिन में जलाशयों की तुलना में थल शीघ्र गर्म हो जाता है। इस घटना का मूल कारण जल की उच्च विशिष्ट ऊष्मा तथा मिश्रित धाराओं द्वारा अवशोषित ऊष्मा को बड़े आयतन के जल के सब भागों में विसरित करना है। जबकि गर्म जल के सम्पर्क वाली वायु चालन द्वारा गर्म होने से ऊपर की ओर फैलती है और अधिक घनत्व की वायु उसका रिक्त स्थान भरती है, फलस्वरूप गर्म वायु ऊपर उठती है व थल गर्म हो जाता है।

प्रश्न 8.
ऊष्मा चालन की परिवर्ती एवं स्थायी अवस्था की व्याख्या कीजिए तथा ऊष्मा चालक गुणांक की परिभाषा दीजिए। इसका मात्रक एवं विमीय सूत्र ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
चालन (Conduction):
यदि किसी चालक छड़ के सिरों पर तापान्तर उत्पन्न किया जाता है। तो ऊष्मा का संचरण उच्च ताप के सिरे से निम्न ताप के सिरे की ओर होने लगता है। ऊष्मा के इसी स्थानान्तरण को चालन कहते हैं। उदाहरण के लिए – लोहे की छड़ का एक सिरा गर्म करने पर दूसरे सिरे का गर्म हो जाना। हम जानते हैं कि ठोसों के अणु केवल अपने स्थान पर कम्पन कर- सकते हैं लेकिन अपना स्थान नहीं छोड़ते। छड़ के गर्म सिरे पर अणु ऊष्मा ग्रहण करके अधिक आयाम के दोलन करने लगते हैं अर्थात् उनकी दोलन ऊर्जा बढ़ जाती है। इस प्रकार इस भाग के अणुओं की गतिज दूसरे पड़ोसी भाग के अणुओं की अपेक्षा अधिक हो जाती है। इन अणुओं की टक्कर समीपवर्ती कम ऊर्जा वाले भाग के अणुओं से होती है, अतः ऊर्जा का स्थानान्तरण कम ऊर्जा वाले अणुओं को हो जाता है। यही प्रक्रिया आगे के भागों की ओर बढ़ती है और इस प्रकार अणुओं के माध्यम से ऊष्मीय ऊर्जा का स्थानान्तरण होता रहता है। यही चालन विधि है स्पष्ट है कि इस विधा में केवल ऊष्मीय ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, द्रव्य का नहीं।

सभी पदार्थों का ऊष्मा के प्रति व्यवहार समान नहीं है। कुछ पदार्थ जैसे – ताँबा, चाँदी, लोहा आदि ऊष्मा के अच्छे चालक होते हैं। इसके विपरीत कुछ अन्य पदार्थ जैसे- काँच, प्लास्टिक, बेकेलाइट, प्लाईवुड आदि ऊष्मा के कुचालक होते हैं। धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन भी ऊष्मा चालन में सक्रिय योगदान देते हैं। “पदार्थों का वह गुण जो ऊष्मा के चालन की व्याख्या करता है उसे ऊष्मा चालकता से परिभाषित करते हैं। ऊष्मा चालन की व्याख्या किसी पदार्थ में किसी दिये गये तापान्तर पर ऊष्मा प्रवाह की दर से की जाती है।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -4.1
चित्र 11.16 के अनुसार माना L लम्बाई तथा A अनुप्रस्थ परिच्छेद की एक चालक छड़ है जिसका एक सिरा गर्म एवं दूसरा सिरा ठंडा है अर्थात् दोनों सिरों के मध्य तापान्तर है। ऊष्मा की हानि को कम करने के लिए छड़ के पार्श्व पृष्ठ पर कुचालक पदार्थ की पट्टी लपेट देते हैं छड़ को सूक्ष्म लम्बाई के अनेक परिच्छेदों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। चालन प्रक्रिया के प्रारम्भ में छड़ का प्रत्येक परिच्छेद अपने पूर्ववर्ती परिच्छेद से कुछ ऊष्मा Q1 प्राप्त करता है।

इस ऊष्मा का कुछ भाग Q2 यह परिच्छेद अवशोषित कर लेता है जिससे इस अंश का ताप बढ़ता है। तथा ऊष्मा के शेष भाग Q3 को यह अपने बाद वाले अल्पांश को स्थानान्तरित कर देता है। अत: इस अवस्था में Q1 = (Q2 + Q3) होता है। “जब तक इस प्रक्रिया द्वारा चालक छड़ का कोई भाग ऊष्मा का अवशोषण करता रहता है अर्थात् छड़ के किसी भाग का ताप बढ़ता रहता है तब तक यह ऊष्मा चालन की परिवर्ती अवस्था कहलाती है।” इस अवस्था में छड़ के प्रत्येक परिच्छेद का ताप समय के साथ बढ़ता रहता है परन्तु गर्म सिरे से छड़ की लम्बाई के अनुदिश ताप का पतन होता है।

छड़ के एक सिरे को लगातार गर्म करते रहने पर कुछ समय बाद छड़ के प्रत्येक परिच्छेद अल्पांश का ताप नियत हो जाता है। इस अवस्था में छड़ के प्रत्येक परिच्छेद, अपने से पहले परिच्छेद से प्राप्त ऊष्मा Q1 को अगले परिच्छेद को स्थानान्तरित कर देता है अर्थात् व किसी परिच्छेद द्वारा ऊष्मा का अवशोषण नहीं होता है (Q2 = 0) अत: Q1 = Q3 होता है। “छड की यह अवस्था जब छड़ का कोई भी भाग ऊष्मा का अवशोषण नहीं करता है, ऊष्मा चालन की स्थायी अवस्था (Steady State of Heat Conduction) कहलाती है।” इस अवस्था में छड़ के किसी भी परिच्छेद से एकांक समय में प्रवाहित ऊष्मा ऊष्मीय धारा कहलाती है। इसे से व्यक्त करते हैं अतः
H= \(\frac{ΔQ}{Δt}\) ………(1)
जहाँ ΔQ = Δt समय में प्रवाहित ऊष्मा की मात्रा
यह पाया जात है कि ऊष्मा चालन की स्थायी अवस्था में,
H ∝ A, (छड़ का परिच्छेद क्षेत्रफल)
H ∝ (T1 – T2) (छड़ के सिरों का तापान्तर)
एवं H ∝ \(\frac{1}{L}\) (L = छड़ की लम्बाई)
H ∝ \(\frac{A(T_1-T_2)}{L}\)
या H ∝ \(\frac{A.ΔT}{L}\)
या H = K.A.\(\frac{ΔT}{L}\) ………….(2)
यहाँ एक नियतांक है जिसे छड़ के पदार्थ का ऊष्मा चालकता गुणांक (Coefficient of Heat Conduction) कहते हैं।
यदि A = 1 ताप प्रवणता \(\frac{ΔT}{L}\) = 1°C.m-1
तो H = K
अर्थात् “किसी पदार्थ का ऊष्मा चालकता गुणांक ऊष्मा प्रवाह की उस दर के तुल्य है जो उस, पदार्थ की एकांक अनुप्रस्थ परिच्छेद वाली किसी छड़ के सिरों के मध्य एकांक ताप प्रवणता उत्पन्न कर दे।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -16

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 9.
स्टीफन का नियम लिखिए एवं इसके लिये आवश्यक प्रतिबन्ध बतलाइये। न्यूटन के नियम की उत्पत्ति स्टीफन के नियम से कीजिये।
उत्तर:
स्टीफन के नियम से न्यूटन के शीतलन नियम की व्युत्पत्ति
(Deduction Of Newton’s Law of Cooling By Stefan’s Law)
माना किसी वस्तु का क्षेत्रफल A व परमताप T तथा वातावरण का ताप T0 है तो स्टीफेन के नियम से-
\(\frac{d \mathrm{Q}}{d t}=\frac{\sigma \varepsilon \mathrm{A}}{\mathrm{J}}\left(T^4-\mathrm{T}_0^4\right)\)
जहाँ σ = स्टीफन नियतांक; ε = वस्तु की उत्सर्जकता एवं dQ = d t समय से उत्सर्जित ऊष्मीय ऊर्जा।
dQ = dt समय से उत्सर्जित ऊष्मीय ऊर्जा।
यदि T व T0 के मध्य तापान्तर ∆T हो,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -17
अर्थात् किसी तप्त वस्तु के शीतलन की दर वस्तु एवं वातावरण के मध्य तापान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है बशर्तें कि तापान्तर कम हो। यही न्यूटन का शीतलन नियम है।

प्रश्न 10.
जल का असंगत प्रसार क्या है ? इसके दैनिक जीवन में उदाहरणों को समझाइये।
उत्तर:
जल का असंगत प्रसार (Anomalous Expansion of Water):
किसी द्रव को गर्म करने पर ताप वृद्धि के साथ-साथ उसके आयतन में भी वृद्धि होती है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -18
द्रव को ठण्डा करते जाने पर उसका ताप घटता जाता है तथा आयतन भी घटता जाता है। 4°C ताप तक आयतन कम होता है तथा 4°C के बाद जल के आयतन में वृद्धि होना प्रारम्भ होती है तथा 100°C तक वृद्धि होती जाती है।
4°C पर जल का आयतन सबसे कम तथा घनत्व सबसे अधिक (1.0 × 10³ kg / m³) होता है। इस प्रकार पानी का 0°C तथा 4°C के बीच में व्यवहार असामान्य होता है। इसे जल का असामान्य प्रसार कहते हैं।

प्रश्न 11.
ऊष्मीय विकिरण से क्या तात्पर्य है ? ऊष्मीय विकिरणों की क्या प्रकृति होती है ? समझाइये |
उत्तर:
विकिरण (Radiation)
“ऊष्मा संचरण की वह विधि जिसमें माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, विकिरण कहलाती है।” सूर्य से पृथ्वी तक ऊष्मा इसी विधि से आती है। चूँकि सूर्य व पृथ्वी सतह के मध्य कई करोड़ किलोमीटर की दूरी में विकिरण निर्वात् में गति करता है, जो इस बात का प्रमाण है कि विकिरण द्वारा ऊष्मा के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं है।

अन्य उदाहरण में यदि हम आग के पास खड़े होते हैं तो हमें तुरन्त गर्मी का अनुभव होने लगता है, क्योंकि वायु अल्प ऊष्मा चालक हैं तथा धाराएँ इतनी शीघ्रता से स्थापित नहीं हो सकती। विकिरण ऊर्जा चुम्बकीय तरंगों की तरंगदैर्घ्य अलग-अलग भी हो सकती है। प्रकाश के वेग (c = 3 × 108 ms-1) से निर्वात में गति करती हैं। पदार्थ (ठोस, द्रव व गैस) विकिरण ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं। वस्तु द्वारा उसके तापान्तर के कारण उत्सर्जित विद्युत चुम्बकीय (जैसे गर्म लाल लोहे से उत्सर्जित विकिरण) को ऊष्मा विकिरण कहते हैं।” ऊष्मा विकिरणों की तरंगदैर्घ्य परास 1 μm से 100μm तक ये तरंगें सीधी रेखा में गमन करती हैं तथा परावर्तन व अपवर्तन नियमों का पालन करती हैं। प्रत्येक वस्तु 0K ताप से अधिक ताप वाले ऊष्मीय विकिरणों का उत्सर्जन करती है तथा जब किसी विकिरण आपतित होते हैं तो आपतित विकिरण (Q) का का कुछ भाग परावर्तित (QR) कुछ भाग का अवशोषण (QA) व शेष भाग (QT) होता है। अर्थात्
Q = QR + QA + QT
या \(\frac{Q}{Q}=\frac{Q_R}{Q}+\frac{Q_A}{Q}+\frac{Q_T}{Q}\)
या 1 = r + a + t
यहाँ r, a व t क्रमशः परावर्तन, अवशोषण व परागमन कहलाते है
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण -19
उक्त तीनों क्रियाएँ (परावर्तन, अवशोषण तथा पारगमन पृष्ठ की प्रकृति व आपतित विकिरणों की तरंगदैर्घ्य पर निर्भर) है।

प्रश्न 12.
ऊष्मीय संचरण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ? उनका वर्णन कीजिये तथा इनके व्यावहारिक अनुप्रयोग बताइये ।
उत्तर:
ऊष्मा स्थानान्तरण (Heat Transfer):
ऊष्मा का संचरण सदैव उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है। ताप में अन्तर के कारण एक निकाय से दूसरे निकाय में अथवा किसी निकाय के एक भाग से उसके दूसरे भाग में ऊर्जा के स्थानान्तरण को ऊष्मा स्थानान्तरण कहते हैं। ऊष्मा स्थानान्तरण की निम्न तीन विधियाँ हैं-
(i) चालन (Conduction)
(ii) संवहन (Convection) एवं
(iii) विकिरण (Radiation) ।
सामान्यतः ठोसों में ऊष्मा का स्थानान्तरण चालन विधि से होता है जबकि द्रवों व गैसों में ऊष्मा का संचरण संवहन विधि से होता है। सूर्य से पृथ्वी तक सूर्य की ऊर्जा विकिरण विधि से आती है। यहाँ पर यह उल्लेख भी आवश्यक है कि चालन व संवहन ऊष्मा संचरण की धीमी विधियाँ हैं जबकि विकिरण तीव्र गति की विधा है। चालन व संवहन के लिए माध्यम की आवश्यकता है जबकि विकिरण के लिए माध्य की आवश्यकता नहीं है।

आंकिक प्रश्न (Numerical Question)

तापमापन पर आधारित

प्रश्न 1.
दो वस्तुओं के तापों में अन्तर 63°F है सेल्सियस पैमाने पर यह अन्तर कितना होगा ?
उत्तर:
35°C

प्रश्न 2.
एक अशुद्ध तापमापी के स्थिर बिन्दु 5°C तथा 95°C चिह्नित हैं। इस तापमापी द्वारा एक वस्तु का ताप 59° मापा गया। सेल्सियस पैमाने पर इस वस्तु के ताप का शुद्ध मान क्या होगा ?
उत्तर:
60°C

ऊष्मीय प्रसार पर आधारित

प्रश्न 3.
पीतल के एक घन की भुजा की लम्बाई 15°C ताप पर 10 सेमी है। 60°C ताप पर गर्म करने पर इसकी भुजा की लम्बाई तथा आयतन ज्ञात कीजिए रेखीय प्रसार गुणांक = 1.9 × 10 प्रति °C है।
उत्तर:
10.0085 सेमी, 10002.5 सेमी

प्रश्न 4.
एक पीतल की चकती में एक छेद है। 27°C ताप पर छेद का व्यास 2.50 सेमी है। चकती को 327°C ताप पर गर्म करने पर इसके छेद के व्यास परिवर्तन ज्ञात कीजिए दिया है, पीतल का रेखीय प्रसार गुणांक = 1.9 × 10-5°C-1
उत्तर:
0.0142 सेमी

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 5.
स्टील की लोलक युक्त एक घड़ी का 20°C पर आवर्तकाल 2 सेकण्ड है। यदि घड़ी का ताप बढ़ाकर 30°C कर दिया जाये तो प्रतिदिन समय में कमी या वृद्धि कितनी होगी? स्टील के लिए रेखीय प्रसार गुणांक = 1.2 × 10-5°C-1 है।
उत्तर:
5.18 सेकण्ड धीमी हो जायेगी।

प्रश्न 6.
काँच के बने एक फलास्क का °C पर आयतन 100 सेमी³ है। इसका 100°C पर आयतन क्या होगा ? दिया है, काँच का आयतन प्रसार गुणांक = 2.5 × 10-5°C-1
उत्तर:
1000.25 सेमी³

प्रश्न 7.
कोई व्यक्ति किसी बैलगाड़ी के लकड़ी के पहिए की नेमी पर लोहे की रिंग चढ़ाता है। यदि 37°C पर नेमी व लोहे की रिंग का व्यास क्रमश: 5,443 व 5.434m हैं तो लोहे को किस ताप पर गर्म किया जाये कि नेमी पहिये में ठीक से बैठ जाये यहाँ लोहे का रेखीय प्रसार गुणांक 1.20 × 10-5 K-1 है। |
उत्तर:
T2 = 175.02°C

प्रश्न 8.
यदि पारे का काँच के सापेक्ष आभासी प्रसार गुणांक 0.00040/°C व इसका वास्तविक प्रसार 0.00049/°C है तो काँच का रेखीय प्रसार गुणांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
αg = 0.00003°C

प्रश्न 9.
एक धातु का आयतन प्रसार गुणांक 6.0 × 105 प्रति °C है। इसका रेखीय प्रसार गुणांक तथा क्षेत्रीय प्रसार गुणांक का मान कितना होगा ?
उत्तर:
4.0 × 10-5 प्रति/°C

ऊष्मामिति पर आधारित

प्रश्न 10.
-20°C की 5 किग्रा बर्फ को 100°C की भाप में बदलने के लिए कितनी ऊष्मा की आवश्यकता होगी? बर्फ की विशिष्ट ऊष्मा 0.5 किलो कैलोरी / किग्रा °C बर्फ की गुप्त ऊष्मा = 80 किलो कैलोरी / किग्रा, भाप की गुप्त ऊष्मा = 540 किलोकैलोरी/किया। |
उत्तर:
3650 जूल

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 11.
किसी बाँध से जल 200 मी की ऊँचाई से गिरता है। यदि गिरने के कारण सम्पूर्ण ऊर्जा ऊष्मा में बदल जाती है और गिरते हुए जल द्वारा ग्रहण कर ली जाती है तो ताप वृद्धि ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
10.4°C

प्रश्न 12.
2 किलोग्राम अमोनिया प्रति मिनट बर्फ की मशीन में भेजी जाती है कितने समय में °C का 500 किग्रा जल बर्फ में बदल जायेगा ? (अमोनिया के वाष्पन की गुप्त ऊष्मा = 320 किलोकॅलोरी/किग्रा. बर्फ की गुप्त ऊष्मा = 80 किलो कैलोरी /किलोग्राम)
उत्तर:
62.5 मिनट

प्रश्न 13.
एक बर्तन जिसकी ऊष्मा धारिता 5 कैलोरी है, में 95 ग्राम जल 50°C पर भरा है। इसमें ‘C की 10 ग्राम बर्फ डालने पर मिश्रण का ताप क्या होगा ?
उत्तर:
38.2°C

ऊष्मा के चालन पर आधारित

प्रश्न 14.
काँच की खोखली नली की दीवारें 1.5 mm मोटी हैं तथा क्षेत्रफल 10 cm² है। इस नली में बर्फ भरकर इसे एक पात्र में रख दिया जाता है जिसका ताप 100°C हैं। जब काँच की दीवारों में से ऊष्मा का प्रवाह स्थायी हो जायेगा तो बर्फ के पिघलने की दर कितनी होगी ? काँच का ऊष्मीय चालकता गुणांक 1 Wm-1 K-1 तथा बर्फ की गुप्त ऊष्मा 334.8 Jg-1 है |
उत्तर:
0.199 ग्राम/सेकण्ड

प्रश्न 15.
1.5 m लम्बाई की एकसमान अनुप्रस्थ काट की कॉपर की एक छड़ का एक सिरा बर्फ के सम्पर्क में एवं दूसरा सिरा 100°C के जल के साथ रखा गया। इसकी लम्बाई में किस बिन्दु पर 200°C का तापमान बनाये रखना चाहिए जिससे कि स्थायी अवस्था में पिघली हुई बर्फ का द्रव्यमान उसी समयान्तराल में उत्पन्न भाव के बराबर हो । कल्पना कीजिए कि पूरी पद्धति चारों ओर से ऊष्मारोधी है। बर्फ के पिघलने की गुप्त ऊष्मा = 80 कैलोरी प्रति ग्राम पानी के भाप बनने की गुप्त ऊष्मा = 540 कैलोरी/ग्राम ।
उत्तर:
1.396 मीटर

प्रश्न 16.
25 cm लम्बी धातु की छड़ का एक सिरा भाप में तथा दूसरा में है। यदि 12 ग्राम बर्फ प्रति मिनट गल रही हो, तो धातु की ऊष्मा चालकता ज्ञात कीजिए। छड़ का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 5 cm² तथा बर्फ की गलन की गुप्त ऊष्मा = 3.4 × 105 J kg-1 है।
उत्तर:
3.4 × 10² J/m sec °C

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 17.
समान क्षेत्रफल की दो प्लेटें एक दूसरे के सम्पर्क में रखी जाती हैं। इसकी मोटाइयाँ क्रमश: 2.0 तथा 3.0 cm है। पहली प्लेट के बाह्य पृष्ठ का ताप -25°C तथा दूसरी प्लेट का बाह्य पृष्ठ का ताप 25°C है। इन प्लेटों के सम्पर्क पृष्ठ का ताप क्या होगा यदि (i) दोनों प्लेटें एक ही पदार्थ की बनी हों, (ii) दोनों प्लेटों के ऊष्मीय चालकता गुणांकों का अनुपात 2:3 हो ?
उत्तर:
(i) -5°C
(ii) 0°C

प्रश्न 18.
25.0 सेमी लम्बी और 8.80 वर्ग सेमी अनुप्रस्थ क्षेत्रफल की एक छड़ में ऊष्मा प्रवाहित हो रही है। छड़ के पदार्थ का ऊष्मा चालकता गुणांक 920 × 10-4 किलोकैलोरी मी-1 °C-1 से-1 है और स्थायी अवस्था में छड़ के सिरों के ताप 125°C और 0°C हैं निम्नलिखित गणनाएँ कीजिए-
(i) छड़ में ताप प्रवणता,
(ii) छड़ पर तप्त सिरे के 10.0cm दूर वाले बिन्दु पर ताप,
(iii) ऊष्मा स्थानान्तरण की दर
उत्तर:
(i) 5 × 10² °C / मीटर
(ii) 75°C
(iii) 4.1 × 10-2 k.cal/sec

प्रश्न 19.
4.0 cm व्यास वाली एवं 20 cm लम्बी ऐलुमिनियम की एक छड़ के ऊष्मीय प्रतिरोध की गणना कीजिए ऐलुमिनियम का ऊष्मा चालकता गुणांक 0.50 कैलोरी प्रति सेमी सेकण्ड °C है तथा ऊष्मा संचरण की दर छड़ की लम्बाई की दिशा में होती है। यदि छड़ के दोनों सिरों के बीच तापान्तर 50°C हो, तो ऊष्मा संचरण की दर ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
3.18 × 10³ s°C kcal, 1.57 × 10-2 kcals-1

प्रश्न 20.
एक समतल तली की केतली को स्टोव पर रखकर पानी उबाला जा रहा है। तली का क्षेत्रफल 270 cm², मोटाई 0.3 cm तथा उसके पदार्थ का ऊष्मा चालकता गुणांक 0.5 कैलोरी / sec °C cm है। यदि केतली में 10 ग्राम / मिनट की दर से भाप बन रही हो, तो तली के अन्दर तथा बाहर की सतह के तापान्तर की गणना कीजिए। (भाप की गुप्त ऊष्मा = 540 cal/gram)
उत्तर:
0.2°C

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प्रश्न 21.
35 cm लम्बी धातु की छड़ का एक सिरा भाप में दूसरा बर्फ में रहता है। यदि 10 gm. m-1 की दर से बर्फ पिघल रही हैं तो उस धातु की ऊष्मा चालकता ज्ञात कीजिए। यदि छड़ का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 7 cm² व बर्फ की गलन की गुप्त ऊष्मा 3.4 × 105 J. kg-1
उत्तर:
2.833 × 107 Jm-1s-1°C-1

स्टीफन के नियम पर आधारित

प्रश्न 22.
ताँबे का एक ठोस गोला (घनत्व ρ, विशिष्ट ऊष्मा C, त्रिज्या r) जिसका प्रारम्भिक ताप 200 K है, एक ऐसे कोष्ठ में लटका है। जिसकी दीवारें लगभग 0 K ताप पर हैं। गोले के ताप को 100 K तक गिरने में लगने वाला समय कितना होगा? (स्टीफन नियतांक σ है ।)
उत्तर:
\(\frac{7}{72} \frac{r \rho \mathrm{C}}{\sigma} \times 10^{-6} \mathrm{sec}\)

प्रश्न 23.
पृथ्वी अपने तल पर सूर्य से 14000 वाट/मी² की दर से विकिरण प्राप्त करती है। पृथ्वी के तल से सूर्य के केन्द्र की दूरी 1.5 × 1011 m है, तथा सूर्य की त्रिज्या 7.0 × 108 m है सूर्य को कृष्णिका मानते हुए इसका पृष्ठ-ताप ज्ञात कीजिए। (स्टीफन नियतांक σ = 5.67 × 10-8 वाट/m² K4)
उत्तर:
5803 K

प्रश्न 24.
एक कृष्णिका के पृष्ठ का क्षेत्रफल 5 × 10-4 m² तथा ताप 727°C है यह प्रति मिनट कितनी ऊष्मा विकिरित करेगा? स्टीफन नियतांक= 5.67 × 10 -8J/m² sec K4.
उत्तर:
1.7 × 10³ जूल

प्रश्न 25.
यदि सूर्य के प्रत्येक cm² पृष्ठ से ऊर्जा 1.5 × 10-3 cal s-1 cm-2 की दर से विकरित हो रही है। यदि स्टीफन नियतांक 5.7 × 10-8 Js m-2 K-1 हो तो सूर्य के पृष्ठ का ताप केल्विन में ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
5765.9K

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

प्रश्न 26.
127°C का ताप वाले कृष्णिका के तल से 1.6 × 106 J cm-2 की दर से उत्सर्जन हो रहा है। कृष्णिका के ताप का मान ज्ञात कीजिए जिस पर उत्सर्जन की दर 81 × 106J cm-2 हो।
उत्तर:
1200K

न्यूटन के शीतलन के नियम पर आधारित

प्रश्न 27.
एक द्रव 5 मिनट में 80°C से 70°C तक ठण्डा होता है इसे 70°C से 60°C तक ठण्डा होने में कितना समय लगेगा? वातावरण का ताप 40°C पर स्थिर है।
उत्तर:
7 मिनट

प्रश्न 28.
किसी पिण्ड को 60°C से 50°C तक ठण्डा होने में 10 मिनट का समय लगा है। यदि कमरे का ताप 25°C हो, तो न्यूटन के शीतलन नियम को उचित मानते हुए पिण्ड का ताप अगले 10 मिनट में कितना होगा?
उत्तर:
42.85°C

प्रश्न 29.
किसी बर्तन में भरे जल का ताप 5 min में 90°C से 80°C हो जाता है, जबकि कमरे का ताप 20°C है तब 63°C से 55°C ताप गिरने में कितना समय लगेगा ?
उत्तर:
6.67 मिनट

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 11 द्रव्य के तापीय गुण

वीन के विस्थापन नियम पर आधारित

प्रश्न 30.
दो तारे X और Y क्रमश: 4800Å तथा 6000Å तरंगदैर्ध्य पर अधिकतम विकिरण उत्सर्जित करते हैं। यदि Y का ताप 5800K हो तो X का ताप क्या होगा ?
उत्तर:
7250 K

प्रश्न 31.
तरंगदैर्घ्य λ के संगत कृष्ण पिण्ड अधिकतम ऊर्जा उत्सर्जित करता है। कृष्ण पिण्ड का ताप इस प्रकार बढ़ायें कि अधिकतम ऊर्जा के संगत तरंगदैर्घ्य \(\frac{5 λ}{7}\) हो जाती है। कृष्ण पिण्ड से उत्सर्जित शक्ति कितने गुना बढ़ जायेगी?
उत्तर:
\(\frac{2401}{625}\) गुना

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HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
कौन-सा कथन अशुद्ध है-
(a) द्रव के ऊपरी मुक्त तल पर द्रव का दाब शून्य होता है।
(b) किसी बर्तन में भरे द्रव का दाब सभी बिन्दुओं पर समान रहता है।
(c) किसी क्षैतिज तल में द्रव का दाब सभी बिन्दुओं पर समान रहता है।
(d) किसी तल पर द्रव का दाब क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता है।
उत्तर:
(b) किसी बर्तन में भरे द्रव का दाब सभी बिन्दुओं पर समान रहता है।

प्रश्न 2.
द्रव दाब निर्भर करता है-
(a) केवल गहराई पर
(b) केवल घनत्व पर
(c) केवल गुरुत्वीय त्वरण पर
(d) गहराई, घनत्व तथा गुरुत्वीय त्वरण तीनों पर।
उत्तर:
(d) गहराई, घनत्व तथा गुरुत्वीय त्वरण तीनों पर।

प्रश्न 3.
किसी बाह्य बल के कार्य न करने पर एक छोटी बूँद की आकृति निर्धारित होती है-
(a) द्रव के पृष्ठ तनाव से
(b) द्रव के घनत्व से
(c) द्रव की श्यानता से
(d) वायु के ताप से केवल ।
उत्तर:
(a) द्रव के पृष्ठ तनाव से

प्रश्न 4.
द्रव का पृष्ठ तनाव-
(a) क्षेत्रफल के साथ बढ़ता है
(b) क्षेत्रफल के साथ घटता है
(c) ताप के साथ बढ़ता है
(d) ताप के साथ घटता है।
उत्तर:
(d) ताप के साथ घटता है।

प्रश्न 5.
जल की बड़ी बूँद को छोटी-छोटी बूंदों में फुहारने की क्रिया में-
(a) ताप बढ़ता है
(b) ताप घटता है
(c) पृष्ठीय ऊर्जा घटती है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) ताप घटता है

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 6.
पेन्ट गन आधारित है-
(a) बरनौली के सिद्धान्त पर
(b) बॉयल के नियम पर
(c) आर्किमिडीज के सिद्धान्त पर
(d) न्यूटन के नियमों पर ।
उत्तर:
(a) बरनौली के सिद्धान्त पर

प्रश्न 7.
सीसे की गोली किसी श्यान द्रव में मुक्त रूप से गिर रही है। गोली का वेग-
(a) बढ़ जाता है
(b) घट जाता है
(c) सदैव समान रहता है
(d) बढ़ता है फिर गोली एक निश्चित वेग से गिरती रहती है।
उत्तर:
(d) बढ़ता है फिर गोली एक निश्चित वेग से गिरती रहती है।

प्रश्न 8.
त्रिज्या की एक छोटी गोली द्रव में गिर रही है। इसका सीमान्त वेग अनुक्रमानुपाती है-
(a) 1/r²
(b) 1/r
(c) r²
(d) r
उत्तर:
(c) r²

प्रश्न 9.
ताप बढ़ने पर गैस की श्यानता-
(a) बढ़ती हैं
(b) घटती है
(c) अपरिवर्तित रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) बढ़ती हैं

प्रश्न 10.
बरनौली प्रमेय आधारित है-
(a) संवेग संरक्षण पर
(b) ऊर्जा संरक्षण पर
(c) द्रव्यमान संरक्षण पर
(d) इनमें से किसी पर नहीं।
उत्तर:
(b) ऊर्जा संरक्षण पर

प्रश्न 11.
किसी असमान त्रिज्या वाली नली में जल बह रहा है नली के प्रविष्टि तथा निकासी सिरों पर त्रिज्याओं का अनुपात 5:7 है। नली में प्रविष्ट करने वाले तथा बाहर निकलने वाले जल के वेगों का अनुपात होगा-
(a) 25 : 49
(b) 125 : 343
(c) 49 : 25
(d) 1 : 1.
उत्तर:
(c) 49 : 25

प्रश्न 12.
श्यान द्रव में सीमान्त वेग से गिरने वाले पिण्ड का त्वरण है-
(a) शून्य
(b) g
(c) g से अधिक
(d) g से कम।
उत्तर:
(a) शून्य

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प्रश्न 13.
असमान अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षैतिज पाइप में जल बह रहा है। पाइप में संकरे स्थान पर होगा-
(a) वेग अधिक दाब अधिक
(b) वेग कम दाब अधिक
(c) वेग अधिक दाब कम
(d) वेग कम दाब कम ।
उत्तर:
(c) वेग अधिक दाब कम

प्रश्न 14.
दो गोलों की त्रिज्याओं का अनुपात 1:2 है। वे एक श्यान दव में नीचे गिर रहे हैं। इनके सीमान्त वेगों का अनुपात होगा-
(a) 1 : 2
(b) 2 : 1
(c) 1 : 4
(d) 4 : 1.
उत्तर:
(c) 1 : 4

प्रश्न 15.
जल से भरे बर्तन में मुक्त तल से 3-2 मीटर गहराई पर एक छिद्र हो, तो जल का बहिःस्राव वेग है। यदि गुरुत्वीय त्वरण 10 ms-2 होगा-
(a) 5.7 m/s
(b) 7.5 m/s
(c) 8 m/s
(d) 32 m/s.
उत्तर:
(c) 8 m/s

प्रश्न 16.
मोम युक्त केशनली को जल में डुबाने पर उसमें जल-
(a) ऊपर चढ़ेगा
(b) नीचे गिरेगा
(c) ऊपर चढ़कर फब्बारों के रूप में गिरेगा
(d) पहले चढ़ेगा फिर गिरेगा ।
उत्तर:
(b) नीचे गिरेगा

प्रश्न 17.
एक द्रव ठोस की सतह को नहीं भिगोएगा, यदि स्पर्श कोण है-
(a) 0°
(b) अधिक कोण
(c) 450
(d) 60°
उत्तर:
(b) अधिक कोण

प्रश्न 18.
किसी केशिका में चड़े हुए पानी की ऊँचाई होगी-
(a) 4°C पर अधिकतम
(b) 2°C पर अधिकतम
(c) 4°C पर न्यनतम
(d) 0°C पर न्यूनतम ।
उत्तर:
(c) 4°C पर न्यनतम

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प्रश्न 19.
पृष्ठ तनाव के कारण गोलाकार मुड़े हुए पृष्ठ के भीतर दाब आधिक्य होता है-
(a) \(\frac{2T}{r}\)
(b) \(\frac{T}{2r}\)
(c) \(\frac{T}{r_1}+\frac{T}{r_2}\)
(d) \(\frac{T}{r_1}-\frac{T}{r_2}\)
उत्तर:
(c) \(\frac{T}{r_1}+\frac{T}{r_2}\)

प्रश्न 20.
जब पानी की सतह पर तेल डाल दिया जाये तो मच्छर प्रजनन नहीं कर सकते, क्योंकि-
(a) उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलती है
(b) पृष्ठ तनाव कम हो जाता है।
(c) श्यानता बढ़ जाती है
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) पृष्ठ तनाव कम हो जाता है।

प्रश्न 21.
ताप कम करने पर पृष्ठ तनाव होता है-
(a) बढ़ता है
(b) कम होता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) बढ़ता है

प्रश्न 22.
रेनॉल्ड्स संख्या का विमीय सूत्र है-
(a) [M0L0T0]
(b) [M-1L0T1]
(c) [ML0T0]
(d) [MLT-2]
उत्तर:
(a) [M0L0T0]

प्रश्न 23.
वायु में अधिक ऊँचाई से जल की बूंद गिरती है। यदि बूँद h ऊँचाई से गिरे तो सीमान्त वेग है-
(a) h के समानुपाती
(b) √h के समानुपाती
(c) \(\frac{1}{h}\) के समानुपाती
(d) h पर निर्भर नहीं करता।
उत्तर:
(d) h पर निर्भर नहीं करता।

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प्रश्न 24.
पृथ्वी पर एक केश नली में द्रव स्तम्भ की ऊँचाई h है। चन्द्रमा पर जहाँ गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी का है, यह ऊँचाई है-
(a) \(\frac{h}{6}\)
(b) 6 h
(c) h
(d) शून्य ।
उत्तर:
(b) 6 h

प्रश्न 25.
क्रान्तिक ताप पर पृष्ठ तनाव हो जाता है-
(a) अनन्त
(b) शून्य
(c) ऋणात्मक एवं निश्चित
(d) धनात्मक एवं निश्चित ।
उत्तर:
(b) शून्य

प्रश्न 26.
ताप बढ़ने पर द्रवों तथा गैंसों में श्यानता-
(a) दोनों में बढ़ती है
(b) दोनों में घटती है
(c) द्रवों में बढ़ती है तथा गैसों में घटती है।
(d) द्रवों में घटती है तथा गैसों में बढ़ती है।
उत्तर:
(d) द्रवों में घटती है तथा गैसों में बढ़ती है।

प्रश्न 27.
यदि एक काँच की छड़ को पारे में डुबोकर निकालें तो पारा छड़ से नहीं चिपकता है, क्योंकि-
(a) स्पर्श कोण बहुत छोटा होता है
(b) ससंजक बल अधिक है
(c) आसंजक बल अधिक है।
(d) पारे का घनत्व अधिक है।
उत्तर:
(b) ससंजक बल अधिक है

प्रश्न 28.
पृष्ठ तनाव के कारण बेलनाकार मुड़े हुए पृष्ठ के भीतर दाब आधिक्य होता है-
(a) \(\frac{2T}{r}\)
(b) \(\frac{T}{r}\)
(c) \(2T {\frac{T}{r_1}+\frac{T}{r_2}}\)
(d) \(4T {\frac{T}{r_1}-\frac{T}{r_2}}\)
उत्तर:
(b) \(\frac{T}{r}\)

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प्रश्न 29.
चॉक द्वारा श्यामपट्ट पर लिखना किस गुण के कारण सम्भव है-
(a) ससंजक बल
(b) आसंजक बल
(c) पृष्ठ तनाव
(d) श्यानता।
उत्तर:
(b) आसंजक बल

प्रश्न 30.
बैरोमीटर को पहाड़ से खान में ले जाने पर पारे का तल-
(a) गिरेगा
(b) ऊपर उठेगा
(c) उतना ही रहेगा
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) ऊपर उठेगा

प्रश्न 31.
वायुमण्डलीय दाब में अचानक कमी का संकेत मिलता
(a) तूफान
(b) वर्षा
(c) साफ मौसम
(d) शीत लहर
उत्तर:
(a) तूफान

प्रश्न 32.
संकीर्ण नली के लिये रेनॉल्ड्स संख्या का मान होता है-
(a) 10
(b) 100
(c) 1000
(d) 10000.
उत्तर:
(c) 1000

प्रश्न 33.
एक नली में दाब P पर प्रवाहित जल की दर Q है। यदि नली की त्रिज्या पहले से आधी कर दी जाये तथा दाब को 2P कर दिया जाये तो प्रवाह दर होगी-
(a) 4Q
(b) \(\frac{Q^2}{4}\)
(c) \(\frac{Q}{4}\)
(d) \(\frac{Q}{8}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{Q}{8}\)

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
वायुमण्डलीय दाब के अचानक कम हो जाने पर क्या सूचना प्राप्त होती है ?
उत्तर:
तूफान आने की सूचना प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
सूटकेस के हत्थे चौड़े क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर: हत्थे चौड़े बनाने से क्षेत्रफल बढ़ जाता है जिससे दाव घट जाता है। यदि ऐसा न किया जाए तो हत्थे हाथ पर अधिक दबाव डालेंगे |

प्रश्न 3.
स्वस्थ मनुष्य का प्रकुंचन रक्त दाब कितना होता है ?
उत्तर:
स्वस्थ मनुष्य का प्रकुंचन रक्त दाब 120mm ऊँचाई वाले पारे के स्तम्भ के दाब के बराबर (120 टॉर) होता है।

प्रश्न 4.
क्या बहते हुए द्रव में दो धारा रेखाएँ एक-दूसरे को काट सकती हैं ?
उत्तर:
नहीं, दो धारा रेखाएँ एक-दूसरे को काटेंगी तो कटान बिन्दु पर द्रव के वेग की दो दिशाएँ होंगी जो कि असम्भव है।

प्रश्न 5.
द्रवों तथा गैसों की श्यानता पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
द्रवों की श्यानता ताप बढ़ाने पर घटती है जबकि गैसों की श्यानता ताप के बढ़ने पर बढ़ जाती है।

प्रश्न 6.
क्रिकेट तथा टेनिस के खेल में चक्रण करती हुई गेंद अपने मार्ग से घूम जाती है। इसकी व्याख्या किस सिद्धान्त या प्रमेव के आधार पर की जा सकती है ?
उत्तर:
क्रिकेट तथा टेनिस के खेल में चक्रण करती हुई गेंद के अपने मार्ग से घूम जाने की व्याख्या बरनौली प्रमेय के आधार पर की जा सकती है।

प्रश्न 7.
जल, वायु, रक्त तथा शहद को श्यानता के बढ़ते क्रम में लिखिए।
उत्तर:
वायु, जल, रक्त, शहद।

प्रश्न 8.
वर्षा की छोटी बूँदें जमीन पर नियत वेग से पहुँचती हैं, अथवा नियत त्वरण से।
उत्तर:
वायुमण्डल की श्यानता के कारण वर्षा की छोटी बूँदें नियत वेग से गिरती हैं।

प्रश्न 9.
नली में प्रवाहित द्रव की कौन-सी पर्त का वेग सबसे अधिक होता है ?
उत्तर:
नली के अक्ष पर स्थित पर्त का वेग सबसे अधिक होता है।

प्रश्न 10.
किस द्रव में पिण्ड का सीमान्त वेग कम होगा-जल में या ग्लिसरीन में ?
उत्तर:
ग्लिसरीन में, क्योंकि ग्लिसरीन की श्यानता अधिक होती है।

प्रश्न 11.
क्या बरनौली की प्रमेय विक्षुब्ध प्रवाह के लिए भी सत्य है ?
उत्तर:
नहीं, वरनौली की प्रमेय केवल धारा रेखीय प्रवाह के लिए ही सत्य है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 12.
यदि टंकी में ताजे जल के स्थान पर मिट्टी का तेल भर दें तो क्या मिट्टी के तेल का बाहर निकलने का वेग बदल जायेगा ?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि बहिःस्राव वेग द्रव के घनत्व पर निर्भर नहीं करता।

प्रश्न 13.
यदि हम धागे की रील के छेद में ऊपर से फूँक मारें तो उसके निचले सिरे पर रखा गत्ते का टुकड़ा नीचे नहीं गिरता, क्या कारण है ?
उत्तर:
रील व गत्ते के टुकड़े के बीच वायु वेग अधिक हो जाने से दाब वायुमण्डलीय दाब से कम हो जाता है।

प्रश्न 14.
जल के पृष्ठ तनाव को कैसे कम कर सकते हैं ?
उत्तर:
गर्म करके, तेल अथवा साबुन का घोल डालकर ।

प्रश्न 15.
कपड़े पर मोम रगड़ देने पर कपड़ा ‘वाटर प्रूफ’ हो जाता है, क्यों ?
उत्तर:
कपड़े के धागों में बनी केशनलियाँ समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 16.
थर्मामीटर की नली (काँच) में पारे का भरना कठिन होता है, क्यों ?
उत्तर:
पारे तथा काँच का स्पर्श कोण अधिककोण है, अतः जब थर्मामीटर की नली के एक सिरे को पारे में डुबोते हैं तो उसमें पारे का तल नीचे गिरता है।

प्रश्न 17.
क्या वर्षा की सभी बूँदें (बड़ी और छोटी) एक ही अन्तिम वेग से पृथ्वी पर पहुँचती हैं ?
उत्तर:
नहीं, चूँकि vt ∝ r², अतः बड़ी बूंद का अन्तिम वेग अधिक होता है।

प्रश्न 18.
समान आकार की लोहे की गेंद और टेनिस की गेंद एक ऊँची मीनार की चोटी से गिराई जाती हैं वायु का अक्षेप तथा श्यानता को ध्यान में रखते हुए यह बताइए कि कौन सी गेंद पृथ्वी पर पहले पहुँचेगी ?
उत्तर:
पहले लोहे की गेंद पहुँचेगी।

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प्रश्न 19.
एक बर्तन की तली में एक क्षैतिज केशनली जुड़ी है जिससे प्रति सेकण्ड प्रवाहित द्रव का आयतन Q है। अब यदि इस केशनली के साथ एक अन्य समान लम्बाई व समान त्रिज्या की केशनली को श्रेणीक्रम में जोड़ दिया जाये तो द्रव की प्रवाह दर क्या होगी ?
उत्तर:
\(Q=\frac{πpr^4}{8ηl}\), अत: लम्बाई दुगनी होने पर प्रवाह दर आधी अर्थात् \(\frac{Q}{2}\) रह जायेगी।

प्रश्न 20.
एक छोटी ठोस गोल गेंद किसी श्यान द्रव में छोड़ी जाती है। द्रव में इसके गमन के लिए वेग तथा चली दूरी में अनुमानित ग्राफ खींचिए ।
उत्तर:
वेग तथा चली दूरी के बीच ग्राफ चित्र के अनुसार होगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -1

प्रश्न 21.
पॉस्कल नियम के दो अनुप्रयोग लिखिये ।
उत्तर:
द्रवचालिक ब्रेक, द्रवचालित लिफ्ट

प्रश्न 22.
जल के पृष्ठ तनाव को कैसे कम कर सकते हैं ?
उत्तर:
गर्म करके, तेल अथवा साबुन का घोल डालकर ।

प्रश्न 23.
खेतों में बरसात के तुरन्त बाद जुताई कर दी जाती है, क्यों ?
उत्तर:
जुताई करने से मिट्टी में बनी केशनलियों टूट जाती हैं, जिससे मिट्टी के अन्दर का पानी ऊपर चढ़कर वाष्पित नहीं हो पाता है।

प्रश्न 24.
गर्म सूप ठण्डे सूप की अपेक्षा स्वादिष्ट क्यों लगता है ?
उत्तर:
गर्म सूप का पृष्ठ तनाव कम होने से वह जीभ के अधिक पृष्ठ क्षेत्रफल पर फैल जाता है और स्वादिष्ट लगता है।

प्रश्न 25.
तापवृद्धि से स्पर्श कोण के मान पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
स्पर्श कोण कम हो जाता है।

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प्रश्न 26.
क्षैतिज नली के लिए बर्नूली सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
(P1 – P2) = \(\frac{1}{2}\) ρ(v2² – v1²)

प्रश्न 27.
जल का पृष्ठ तनाव किस ताप पर अधिक होगा ?
उत्तर:
4°C पर ।

प्रश्न 28.
किस पदार्थ की केशनली में जल का नवचन्द्रक समतल होगा ?
उत्तर:
चाँदी की केशनली में।

प्रश्न 29.
पृष्ठ तनाव व पृष्ठ ऊर्जा में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
W = T.∆A

प्रश्न 30.
द्रव का पृष्ठ तनाव किस ताप पर शून्य हो जायेगा ?
उत्तर:
क्रान्तिक ताप पर ।

प्रश्न 31.
पृष्ठ तनाव की व्याख्या किन बलों के आधार पर करते
उत्तर:
अंतराणविक बलों के आधार पर।

प्रश्न 32.
फाउन्टेन पेन से अखबार के कागज की लिखावट अस्पष्ट हो जाती है क्या कारण है ?
उत्तर:
अखबार के कागज की केशनलियों से स्याही फैल जाती है।

प्रश्न 33.
श्यानता का CGS मात्रक लिखिए।
उत्तर:
प्वाइज या डाइन- से / सेमी²

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प्रश्न 34.
रेनॉल्डस संख्या से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यह शुद्ध संख्या है जो पाइप में तरल के प्रवाह की प्रकृति को बताती है।

प्रश्न 35.
पृष्ठ तनाव के लिए उत्तरदायी बल कौन-सा है ?
उत्तर:
ससंजक बल ।

प्रश्न 36.
गर्मियों में सूती कपड़े अधिक आरामदायक होते हैं ?
उत्तर:
सूती कपड़ों में धागों के मध्य केशनलियाँ होती हैं जिनसे पसीना उनमें प्रवेश कर जाता है और वाष्प बनकर उड़ जाता है अतः शरीर को ठण्डक का अनुभव होता है।

प्रश्न 37.
द्रव में हवा का बुलबुला ऊपर क्यों उठता है ?
उत्तर:
क्योंकि हवा के बुलबुले का सीमान्त वेग ऋणात्मक होता है अतः वह ऊपर उठता है।

प्रश्न 38.
बहते हुए द्रव के वेग शीर्ष एवं दाब शीर्ष के सूत्र लिखिए।
उत्तर:
वेग शीर्ष- \(\frac{v^2}{2g}\)
दाब शीर्ष – \(\frac{ρ}{ρg}\)

प्रश्न 39.
भारहीनता की स्थिति में यदि केशनली को पानी में डुबोया जाये तो क्या होगा ?
उत्तर:
भारहीनता की स्थिति में द्रव नली की पूरी लम्बाई तक चढ़ जायेगा।

प्रश्न 40.
एक सुई साफ पानी में तैरती है, लेकिन साबुन के पानी में ‘डूब जाती है। क्यों ?
उत्तर:
साफ पानी का पृष्ठ तनाव साबुन मिले पानी से अधिक होता है, अतः साफ पानी का पृष्ठ तनाव सुई के भार को सन्तुलित कर सकता है।

प्रश्न 41.
किसी बेलनाकार नली में बहते हुए द्रव में किस पर्त का वेग सर्वाधिक होता है ?
उत्तर:
नली की अक्ष के अनुदिश पर्त का।

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प्रश्न 42.
केशनली में पारा भरना कठिन क्यों है ?
उत्तर:
काँच के लिए पारे का स्पर्श कोण 135° है अतः यह केशनली में अवनमन दिखाता है।

प्रश्न 43.
यदि टंकी में ताजे जल के स्थान पर समुद्री जल भर दें तो क्या छिद्र से निकलने वाले जल का वेग बदल जाएगा ?
उत्तर:
नहीं, बहिस्राव वेग घनत्व पर निर्भर नहीं करता।

लघुत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
लालटेन की बत्ती में मिट्टी का तेल बराबर कैसे चढ़ता रहता है ?
उत्तर:
लालटेन की बत्ती के धागों के बीच में असंख्य केशनलियाँ होती हैं। जब मिट्टी के तेल में डुबोया जाता है तो मिट्टी का तेल इन केशनलियों में से ऊपर चढ़ जाता है।

प्रश्न 2.
दाबमापी में पारे का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
इसके निम्न कारण हैं-
(1) पारा केशनली की दीवारों से चिपकता नहीं है।
(2) पारे का घनत्व अधिक होने के कारण प्रयुक्त केशनली की लम्बाई कम होती है।
(3) पारे का वाष्प दाब कम होता है।

प्रश्न 3.
समुद्र की लहरों को शान्त करने के लिए लहरों पर तेल डाल देते हैं, क्यों ?.
उत्तर:
तेल डाल देने पर तेज हवा तेल को जल के पृष्ठ पर हवा की दिशा में दूर तक फैला देती है, बिना तेल वाले जल का पृष्ठ तनाव तेल वाले जल से अधिक होता है, अतः बिना तेल वाला जल, तेल वाले जल को वायु की विपरीत दिशा में खींचता है, जिससे समुद्र की लहरें शान्त हो जाती हैं।

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प्रश्न 4.
वायुयान लगभग 10 km की ऊंचाई पर ही उड़ाये जाते हैं जबकि इतनी ऊँचाई तक ले जाने में काफी ईंधन (Fuel) खर्च होता है, क्यों ?
उत्तर:
10 km से कम ऊँचाई पर वायुमण्डल सघन है, इसलिए 10 km से कम ऊँचाई पर वायु की श्यानता प्रभावी होती है। वायु की श्यानता के कारण वायुयान पर पीछे की ओर एक श्यान बल लगेगा, जो वायुवान के वेग के अनुक्रमानुपाती होगा। वायुयान का वेग अधिक होने के कारण श्यान बल भी अधिक होगा। इससे वायुवान गर्म हो जायेगा तथा ईंधन भी अधिक खर्च होगा, यही कारण है कि वायुयान 10 km से कम ऊँचाई पर नहीं उड़ाये जाते ।

प्रश्न 5.
एक असमान परिच्छेद वाले क्षैतिज पाइप में जल बह रहा है। जल का किसी बिन्दु P पर वेग एक अन्य बिन्दु Q पर जल के वेग का चार गुना है। बिन्दु P पर पाइप का व्यास बिन्दु Q के सापेक्ष कितना होगा ?
उत्तर:
सातत्य समीकरण से,
A1v1 = A2v2
πr1².v1 = πr2².v2
या \(\frac{\mathrm{D}_1^2}{4} \cdot v_1=\frac{\mathrm{D}_2^2}{4} \cdot v_2\)
या \(\mathrm{D}_1^2 \cdot 4 v_2=\mathrm{D}_2^2 v_2\)
या \(2 \mathrm{D}_1=\mathrm{D}_2 \Rightarrow \mathrm{D}_1=\mathrm{D}_2 / 2\)
अतः व्यास आधा होगा।

प्रश्न 6.
बरसात के बाद किसान भूमि की जुताई करते हैं, क्या कारण है ?
उत्तर:
खेत की जुताई कर देने से मिट्टी में बनी केशनलियाँ टूट जाती हैं, फलस्वरूप नीचे का जल पौधों के काम आता है। जुताई न करने पर मिट्टी में बनी केशनलियों में चढ़कर जल भूमि की सतह पर ऊपर आ जायेगा तथा वाष्प बन कर उड़ जायेगा।

प्रश्न 7.
यदि किसी द्रव व ठोस के बीच स्पर्श कोण 90° से कम हो तो क्या वह द्रव ठोस को भिगोयेगा ? उस ठोस से बनी केशनली में इसका पृष्ठ कैसा होगा ? क्या वह केशनली में चढ़ेगा ?
उत्तर:
भिगोयेगा, अवतल चढ़ेगा।

प्रश्न 8.
किसी ठोस के पृष्ठ और द्रव के बीच ‘स्पर्श कोण’ की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
स्पर्श कोण – “द्रव व ठोस के किसी स्पर्श विन्दु से द्रव के तल पर खींची गई स्पर्श रेखा तथा ठोस के तल पर द्रव के अन्दर की ओर खींची गई स्पर्श रेखा के बीच बने कोण को उस द्रव एवं ठोस के लिए स्पर्श कोण कहते हैं।

प्रश्न 9.
तेल में छोड़ी गई पानी की बूंद क्यों सिकुड़ जाती है?
उत्तर:
जल के अणुओं के बीच ससंजक बल, जल व तेल के अणुओं के बीच आसंजक बल की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है जब जल की बूँद तेल की सतह पर डाली जाती है तो जल के अणु ससंजक बलों के कारण परस्पर चिपके रहकर गोल आकृति ग्रहण किए रहते हैं तथा सतह पर नहीं फैलते हैं।

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प्रश्न 10.
पृष्ठ तनाव को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठ तनाव को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Surface Tension):

  • ताप का प्रभाव (Effect of temperature): ताप बढ़ने पर पृष्ठ तनाव रेखीय रूप से घटता है।
    लेकिन पिघले ताँबे तथा कैडमियम के लिए ताप बढ़ाने पर पृष्ठ तनाव बढ़ता है।
  • संदूषण पर (On Contamination): जल की सतह पर मिट्टी के कण या चिकनाई युक्त पदार्थ उपस्थित होने पर जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है।
  • विद्युतीकरण पर (On electrification): विद्युतीकरण के कारण द्रव का पृष्ठ तनाव घट जाता है क्योंकि इसके कारण द्रव के मुक्त पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की तरफ बल लगता है।
  • विलेय पदार्थ का प्रभाव (Effect of solute): सामान्यतः किसी द्रव में विलेय पदार्थ घुला हो तो उसका पृष्ठ तनाव कम हो जाता है। जल में साबुन या फीनॉल डालने पर उसका पृष्ठ तनाव घट जाता है, परन्तु यदि विलेय पदार्थ बहुत घुलनशील है तो द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है।

प्रश्न 11.
चक्रण गति करती हुई गेंद के पथ में परिवर्तन का कारण समझाइए है ?
उत्तर:
मैगनस प्रभाव (Magnus Effect):
टेनिस या क्रिकेट के खिलाड़ी जब गेंद को स्पिन (spin) करते हुए फेंकते हैं तो गेंद वायु में एक सरल रेखा पर न चलकर एक वक्राकार पथ पर चलती है जिसे गेंद का स्विंग (swing) करना कहते हैं। इसका कारण यह है कि जब गेंद स्पिन करती है तो उसके साथ-साथ उसके चारों ओर की वायु भी v वेग से घूमती है । स्पिन करती हुई गेंद जब आगे बढ़ती है तो गेंद के आगे की वायु गेंद द्वारा छोड़े गए खाली स्थान को भरने के लिए u वेग से पीछे की ओर दौड़ती है। गेंद के ऊपर वायु की धारा रेखाओं की दिशा गेंद की स्पिन गति के विपरीत है, अतः गेंद के ऊपर वायु का परिणामी वेग (u – v) हो जाता है। गेंद के नीचे वायु की धारा रेखाओं की दिशा गेंद की स्पिन गति की दिशा में है, अतः गेंद के नीचे वायु का परिणामी वेग (u + v) हो जाता है ।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -2

इस प्रकार गेंद के ऊपर वायु का वेग घट जाता है तथा नीचे बढ़ जाता है, अतः बर्नूली की प्रमेय के अनुसार गेंद के ऊपर वायुदाब अधिक तथा गेंद के नीचे वायुदाब कम हो जाता है। इस दाबान्तर के कारण गेंद सरल रेखा में न चलकर नीचे की ओर झुकते हुए वक्राकार पथ पर चलती है, इसे मैगनस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 12.
जल की छोटी बूँदें फुहारने से ठण्डक क्यों उत्पन्न होती
उत्तर:
पृष्ठ तनाव पर आधारित दैनिक घटनाएँ (Events in Daily Life Based on Surface Tension):
(i) सीसे के छर्रे बनाना-सीसे के गोल छर्रे बनाने के लिए पिघलते हुए सीसे को धीरे: धीरे ऊँचाई से पानी पर गिराते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण गिरते समय पिघला हुआ सीसा न्यूनतम पृष्ठ क्षेत्रफल घेरता हुआ गोलीय आकृति धारण कर लेता है तथा पानी में पहुँचने पर ठोस बन जाता है। इस प्रकार सीसे के छोटे-छोटे गोल छर्डे बन जाते हैं। छर्रा जितना अधिक बड़ा होगा, गुरुत्व बल उतना ही अधिक प्रभावी होगा तथा छर्रा भी उतना ही अधिक चपटा हो जायेगा।

(ii) जल की अपेक्षा साबुन के घोल के अधिक बड़े बुलबुले बनाए जा सकते हैं: साबुन के घोल का पृष्ठ तनाव शुद्ध जल की अपेक्षा कम होता है। पृष्ठ तनाव कम होने का अर्थ है कि द्रव के पृष्ठ की न्यूनतम क्षेत्रफल घेरने की प्रवृत्ति कम हो जाती है, अतः साबुन के घोल के अधिक बड़े बुलबुले बनाए जा सकते हैं जबकि जल के बड़े बुलबुले अधिक पृष्ठ तनाव के कारण टूट जाते हैं।

(iii) साबुन मिले हुए गरम जल से शुद्ध जल की अपेक्षा कपड़ों की धुलाई अधिक साफ होती है: साबुन के घोल का पृष्ठ तनाव शुद्ध जल की अपेक्षा काफी कम होता है, अतः साबुन के घोल की एक बूँद शुद्ध जल की एक बूँद की अपेक्षा कपड़े के अधिक क्षेत्रफल को भिगोती है।
इस प्रकार साबुन का घोल कपड़े के बारीक छिद्रों में घुसकर, वहाँ जमे मैल को अपने साथ चिपकाकर बाहर निकाल लाता है (क्योंकि घोल व मैल के बीच आसंजक बल का मान, घोल के अपने ससंजक बल के मान से अधिक होता है); यदि घोल को गरम कर दिया जाए तो उसका पृष्ठ तनाव और भी कम हो जाता है। इस प्रकार साबुन मिले हुए गरम जल से शुद्ध जल की अपेक्षा कपड़ों की धुलाई अधिक साफ होती है।

(iv) काँच की नली के सिरों का गर्म होने पर गोल हो जाना: जब काँच की एक नली को बर्नर की ज्वाला में गर्म करते हैं तो काँच पिघलकर द्रव बन जाता है। इस द्रव का पृष्ठ कम-से-कम क्षेत्रफल घेरने का प्रयत्न करता है। चूँकि दिए हुए आयतन के लिए गोले का क्षेत्रफल न्यूनतम होता है, अतः पिघला हुआ काँच गोले की आकृति लेने का प्रयत्न करता है जिससे नली के सिरे गोल हो जाते हैं।

(v) फुहारने से ठण्डक उत्पन्न होती है: जब किसी द्रव को फुहारा जाता है तो उसकी असंख्य छोटी-छोटी बूँदें बन जाती हैं। जिससे द्रव का पृष्ठीय क्षेत्रफल बहुत बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया में द्रव के भीतर के अणु ऊपर उठकर बूँदों के पृष्ठ पर पहुँचते हैं जिसके लिए उन्हें ससंजक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। इससे द्रव की आन्तरिक ऊर्जा कम हो जाती है और बूँदों का ताप गिर जाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 13.
यदि कोई वस्तु असमरूपी होती है तो वस्तु तरल में घूमने क्यों लग जाती है ?
उत्तर:
यह इसलिए होता है क्योंकि गुरुत्व केन्द्र, उत्प्लावन केन्द्र के सम्पाती नहीं होता है। इस कारण वस्तु का भार तथा द्रव का उत्प्लावक बल एक बल युग्म का निर्माण करते हैं। इस बल युग्म का आघूर्ण ही वस्तु को घूर्णन गति कराने के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 14.
दोनों सिरों पर खुली केशनली को जल में डुबाने पर केशनली में जल कुछ ऊपर तक क्यों चढ़ जाता है ?
उत्तर:
केशनली के भीतर, अवतल जल पृष्ठ के नीचे दाब, पृष्ठ के ऊपर वाले दाब से 2T / R कम होता है,
अतः केशनली के बाहर जल का आधिक्य दाब, केशनली में अतिरिक्त जल भेजकर जल को कुछ ऊपर तक चढ़ा देता है।

प्रश्न 15.
वह कपास जिसमें चर्बी तथा चिकनाई अलग कर दी जाती है, अधिक जल अवशोषित करती है, क्यों ?
उत्तर:
जब कपास को जल में डुबाते हैं तो उसमें बनी केशिकाओं में पृष्ठ तनाव के कारण जल चढ़ता है जिसकी ऊँचाई पृष्ठ तनाव पर निर्भर करती है। चिकनी कपास के सम्पर्क में जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है जिससे जल कम ऊपर चढ़ता है।

प्रश्न 16.
भारहीनता की अवस्था में (जैसे कृत्रिम उपग्रह में) यदि किसी केशनली को जल में डुबोया जाये तो उसमें जल का चढ़ना सामान्य अवस्था में जल के चढ़ने से किस प्रकार भिन्न होगा ?
उत्तर:
सामान्य अवस्था में पृष्ठ तनाव का बल (जिसके कारण जल केशनली में चढ़ता है) जब नली में चढ़े जल-स्तम्भ के भार के बराबर हो जाता है तो जल का चढ़ना रुक जाता है। भारहीनता की अवस्था में (g = 0) नली में चढ़ने वाले जल-स्तम्भ का प्रभावी भार शून्य होगा। अतः जल केशनली के दूसरे सिरे पर पहुँच जायेगा चाहे केशनली कितनी ही लम्बी क्यों न हो ?

प्रश्न 17.
गर्म सूप ठण्डे सूप की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट लगता है, क्यों ?
उत्तर:
द्रव का ताप बढ़ने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है जिस कारण गर्म सूप का पृष्ठ तनाव ठण्डे सूप की अपेक्षा कम हो जाता है पृष्ठ तनाव कम होने के कारण द्रव का क्षेत्रफल अधिक हो जाता है जिससे गर्म सूप जीभ के अधिक क्षेत्रफल में फैल जाता है और अधिक स्वादिष्ट लगता है।

प्रश्न 18.
आकाश में बादल तैरते क्यों दिखाई देते हैं ?
उत्तर:
जब वायु में उपस्थित जल की वाप्य धूल, धुएँ आदि के कणों पर संघनित होती है तो प्रारम्भ में बहुत छोटी बूँदें बनती हैं। जब ये बूँदें नीचे गिरती हैं तो वायु द्वारा इन पर ऊपर की ओर श्यान बल लगाया जाता है, अतः कुछ समय बाद ये बूँदें सीमान्त वेग से नीचे गिरने लगती हैं। चूँकि बूँदें बहुत ही छोटी होती हैं, अतः इनका सीमान्त वेग बहुत कम होता है। जिससे ये नीचे गिरने की बजाय आकाश में तैरती प्रतीत होती हैं, ऐसी अवस्था में इन्हें ‘बादल’ (clouds) कहते हैं।

प्रश्न 19.
फब्बारे के ऊपर हल्की गेंद क्यों टिकी रहती है ? नीचे क्यों नहीं गिर जाती ?
उत्तर:
गेंद फब्बारे की जल धारा पर ऊपर-नीचे नाचती रहती है, जल धारा से अलग होकर गिरती नहीं है, क्योंकि बरनौली प्रमेय के अनुसार जल फुहार का वेग अधिक होने के कारण वहाँ दाब कम रहता है, अतः जब भी गेंद जल धारा से बाहर आने की कोशिश करती है तो के दाब से जल धारा के भीतर कम दाब की ओर पुनः खिंच जाती है।

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प्रश्न 20.
आँधी में टीन की छतें क्यों उड़ जाती हैं ?
उत्तर:
आँधी में टीन की ऊपरी सतह पर से वायु का वेग अधिक होने के कारण बरनौली प्रमेय के अनुसार वायु की गतिज ऊर्जा बढ़ जाने से इसकी सतह पर वायु दाब टीन की निचली सतह पर वायु दाब की तुलना में कम हो जाता है। अतः टीन की नीचे की सतह के अधिक दाब के कारण टीन की छतें आँधी में उड़ जाती हैं।

प्रश्न 21.
वर्षां की बूंदें अन्त में नियत वेग से क्यों गिरती हैं ?
उत्तर:
जब वर्षा की बूँदें अपने भार के कारण पृथ्वी की ओर गिरती हैं तो वायु की श्यानता इनके गिरने का विरोध करती है। गुरुत्व के कारण जैसे-जैसे बूँदों के नीचे गिरने का वेग बढ़ता है, स्टोक्स के नियमानुसार वैसे-वैसे इसके विरुद्ध वायु का श्यान बल भी बढ़ता जाता है। एक विशेष स्थिति में विरोधी श्वान बल नीचे की ओर कार्य करने वाले प्रभावी गुरुत्व बल के बराबर हो जाता है। इस दशा में अन्त में बूँदें एक निश्चित सीमान्त वेग से गिरती हैं।

प्रश्न 22.
गहरा जल सदैव शान्त बहता है, कारण बताइए।
उत्तर:
बरनौली प्रमेय के अनुसार किसी द्रव के क्षैतिज प्रवाह के लिए P+ +2pv2 = नियतांक; अत: गहरे जल का दाब (P) अधिक होने से वेग ” का मान कम होता है।

प्रश्न 23.
जल की एक बड़ी बूँद को अनेक छोटी-छोटी बूँदों में विभाजित करने पर पृष्ठीय ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा ?
उत्तर:
एक बड़ी बूँद को अनेक छोटी बूंदों में विभाजित करने पर, जल का मुक्त पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ेगा। अतः पृष्ठीय ऊर्जा भी बढ़ेगी।

प्रश्न 24.
वर्षा की बूँदे अनन्त से नियत वेग से क्यों गिरती है ?
उत्तर:
जब बूँद वायु में नीचे गिरती है तो उस पर 40 लगने वाले बल चित्र में दर्शाए हैं। इन बलों में दो बल नियत रहते हैं- (i) बूँद का भार mg एवं बूँद पर ऊपर उछाल U; लेकिन स्टोक्स बल F = 6πnrv का मान बूँद का वेग बढ़ने के साथ बढ़ता हैं एक स्थिति ऐसी आती है जब बूंद का भार ऊपर की ओर लगने वाले बलों के योग के बराबर हो जाता है तो परिणामी बल शून्य हो जाने के कारण बूँद नियत वेग से गिरने लगती है।

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प्रश्न 25.
हिमखण्ड जल पर क्यों तैरता है ?
उत्तर:
हिमखण्ड का घनत्व जल के घनत्व से कम होता है, जिससे हिमखण्ड के आयतन के बराबर जल का mig उत्क्षेप-बल हिमखण्ड के भार से अधिक हो जाता है और हिमखण्ड जल पर तैरता रहता है। तैरते समय हिमखण्ड का केवल उतना आयतन ही जल में डूबता है, जितने आयतन के द्वारा हटाये गये जल का भार हिमखण्ड के भार के बराबर होता है।

प्रश्न 26.
काँच की छड़ के सिरे को उच्च ताप पर गर्म करने पर सिरा गोल क्यों हो जाता है ?
उत्तर:
जब काँच को गर्म करते हैं तो वह पिघलकर द्रव बन जाता है। इस द्रव का पृष्ठ कम-से-कम क्षेत्रफल घेरने का प्रयत्न करता है। हम जानते हैं कि दिये हुए आयतन के लिये गोले के पृष्ठ का क्षेत्रफल सबसे कम होता है। अतः पिघला हुआ काँच गोले का रूप लेने का प्रयत्न करता है जिससे कि नली के किनारे गोल हो जाते हैं।

प्रश्न 27.
चिपकन रहित खाना पकाने के लिए बर्तन पर टेफ्लॉन की परत क्यों चढ़ाई जाती है ?
उत्तर:
बर्तनों पर टेफ्लॉन की परत चढ़ाई जाती है, क्योंकि टेफ्लॉन की परत तथा तेल आदि के बीच का स्पर्श कोण 90° से अधिक होता है। इसके कारण वर्तन चिपकन रहित हो जाता है।

प्रश्न 28.
पास-पास लटकी दो हल्की गेंदों के मध्य फूँक मारने पर वे एक-दूसरे की ओर आकर्षित होती हैं क्यों ?
उत्तर:
फूँक मारने पर गेंदों के बीच का वायु वेग बढ़ जाता है, अतः बरनौली के प्रमेय से इसका दाब कम हो जाता है। इसीलिए गेंद परस्परं आकर्षण बल का अनुभव करती है।

प्रश्न 29.
भारी वाहनों के पहियों के टायर अधिक चौड़े क्यों बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
भारी वाहनों के पहियों के टायर चौड़े होने से सड़क अथवा जमीन पर लगने वाला दाब कम हो जाता है क्योंकि वाहन का भार अधिक क्षेत्रफल पर लगता है। इसलिये वाहन के पहिये सड़क पर भैंसने से बच जाते हैं।

प्रश्न 30.
धमनियों में बनूंली सिद्धान्त से रक्त के प्रवाहको समझने में किस प्रकार सहायता मिलती है ?
उत्तर:
धमनी की भीतरी दीवार पर प्लाक (Plaque) का जमाव होने के कारण धमनी भीतर से संकीर्ण हो जाती है इन संकरी धमनियों से रक्त प्रवाहित कराने के लिए हृदय की गतिविधि पर अधिक बोझ पड़ जाता है। इस क्षेत्र में रक्त के प्रवाह की चाल बढ़ जाती है और आन्तरिक दाब घट जाता है। बाहरी दाब के कारण धमनी दब जाती है। हृदय इस धमनी को खोलने के लिए रक्त को धक्का देता है। जैसे ही रक्त इसे खोलकर बाहर की ओर तीव्र गति से प्रवाहित होता है, आंतरिक दाब पुनः गिर जाता है और धमनी पुनः दब जाती है, इससे हार्ट अटैक हो सकता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 31.
चाय की केतली के ढ़क्कन में सुराख होता है, क्यों ?
उत्तर:
चाय की केतली के दक्कन में सुराख न होने पर चाय से भरी केतली के अन्दर का दाब वायुमण्डलीय दाब से कम होगा। स्पष्ट है, केतली को टेढ़ा करने पर उसकी टोंटी से चाय सरलता से नहीं निकलेगी क्योंकि बाहर का दाब केतली के अन्दर के दाब से अधिक होगा।

प्रश्न 32.
धारा रेखीय प्रवाह तथा विक्षुब्ध प्रवाह में अन्तर बताइये।
उत्तर:
धारा रेखीय प्रवाह व विक्षुब्ध प्रवाह में निम्नलिखित अन्तर हैं-

धारा रेखीय प्रवाहविक्षुब्ध प्रवाह
(1) यह द्रव का व्यवस्थित और नियमित रूप से प्रवाह है।यह द्रव का अव्यवस्थित व अनियमित प्रवाह है।
(2) धारा रेखीय प्रवाह में द्रव का वेग क्रांतिक वेग से कम होता है।इस प्रवाह में द्रव का वेग क्रान्तिक वेग से अधिक होता है।
(3) इस प्रवाह में द्रव के अन्दर भंवर धाराएँ उत्पन्न नहीं होती है।इस प्रवाह में द्रव के अन्दर भंवर धाराएँ उत्पन्न होती हैं।
(4) किसी बिन्दु से गुजरने वाले कणों के वेग की दिशा नियत रहती है।इस प्रवाह में किसी बिन्दु से गुजरने वाले कणों के वेग की दिशा परिवर्तित होती रहती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
बर्नूली प्रमेय का कथन लिखते हुए इसे सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
बर्नूली का सिद्धान्त (Bernoulli’s Theorem)
बर्नूली के सिद्धान्त के अनुसार, “जब कोई आदर्श द्रव (अश्यान एवं असंपीड्य) धारा रेखीय प्रवाह में बहता है तो प्रवाह के प्रत्येक स्थान पर द्रव की सम्पूर्ण ऊर्जा नियत रहती है अर्थात् द्वव की गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा तथा दाब ऊर्जा का योग नियत रहता है।” अर्थात्
दाब ऊर्जा + गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा = नियतांक
अतः एकांक आयतन के लिए,
P + \(\frac{1}{2}\)ρv² + ρgh = नियतांक
अथवा एकांक द्रव्यमान के लिए
\(\frac{{P}}{\rho}+\frac{1}{2} v^2+g h\) = नियतांक
अथवा
\(\frac{{P}}{\rho g}+\frac{v^2}{2 g}+h\) = नियतांक
जहाँ \(\frac{{P}}{\rho g}\) दाब शीर्ष, \(\frac{v^2}{2 g}\) वेग शीर्ष व h गुरुत्वीय शीर्ष है।

उपपत्ति (Derivation)
माना असमान परिच्छेद के क्षैतिज पाइप में एक आदर्श तरल का धारा रेखीय प्रवाह हो रहा है। पाइप के दो स्थानों {X} व {Y} पर पाइप का परिच्छेद क्षेत्रफल क्रमशः A1 व A2 है और इन स्थानों पर द्रव के वेग क्रमशः v1 व v2 हैं और इन स्थानों के गुरुत्वीय तल क्रमशः h1 व h2 हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -3
यदि एकांक समय में प्रवाहित द्रव का द्रव्यमान m हो तो अविरतता के सिद्धान्त से-
m = A1v1ρ = A2v2ρ
\(\frac{m}{ρ}\) = A1v1 = A2v2 …………..(11)
अतः विस्थापित द्रव पर किया गया कुल कार्य
\({W}={W}_1+{W}_2={P}_1 {~A}_1 v_1-{P}_2 {~A}_2 v_2\)
\({~W}=\frac{{P}_1 m}{\rho}-\frac{{P}_2 m}{\rho}\)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -4
इस प्रकार बर्नूली के सिद्धान्त में ऊर्जा संरक्षण के नियम का उपयोग किया गया और यह माना गया है कि घर्षण के कारण कोई ऊर्जा क्षति नहीं होती। परन्तु वास्तव में, जब तरल प्रवाह करता है तो आन्तरिक घर्षण के कारण कुछ ऊर्जा की हानि हो जाती है। इसी व्युत्पत्ति तरल की विभिन्न परतों के भिन्न-भिन्न वेगों के कारण होती है। यह सतें एक-दूसरे पर घर्षण बल लगाती हैं और परिणामस्वरूप ऊर्जा का ह्रस होता है। अतः बर्नूली का समीकरण शून्य श्यानता पर लागू होता है। बर्नूली प्रमेय पर एक और प्रतिबन्ध है कि यह असंपीड्य तरलों पर ही लागू होता है, क्योंकि तरलों की प्रत्यास्थ ऊर्जा को नहीं लिया गया है। अस्थिर अथवा विक्षोभ प्रवाह में भी बर्नूली समीकरण काम नहीं आता क्योंकि इसमें वेग तथा दाब समय में लगातार अस्थिर रहते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 2.
किसी टंकी में पानी के धरातल से मीटर नीचे छिद्र से बहिःस्राव वेग का सूत्र व्युत्पन्न कीजिए। टॉरिसेली सिद्धान्त को भी समझाइये।
उत्तर:
टॉरिसेली प्रमेय : बहिःस्राव वेग (Torricelli’s Theorem : Velocity of Efflux) :
कथन (Statement): इसके अनुसार द्रव से भरे किसी टैंक में किसी गहराई पर बने छिद्र से निकलने वाले द्रव का वेग अर्थात् बहिःस्त्राव वेग उस वेंग के बराबर होता है जो द्रव अपने स्वतन्त्र तल से छिद्र तक स्वतन्त्रतापूर्वक गिरने में प्राप्त कर लेता है। इसे बर्नूली-प्रमेय के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है।

उपपत्ति (Proof): चित्र में एक बर्तन दर्शाया गया है जिसमें H ऊँचाई तक कोई द्रव भरा है। इसका घनत्व माना ρ है। बर्तन में द्रव के स्वतन्त्र तल से h गहराई पर एक छिद्र A है। माना A से निकलने वाले द्रव का बहि:स्राव वेग v है। द्रव के स्वतन्त्र तल पर गतिज ऊर्जा शून्य है, केवल स्थितिज ऊर्जा है। परन्तु A से निकलने वाले द्रव में स्थितिज
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -5
तथा गतिज दोनों ही प्रकार की ऊर्जाएँ हैं। द्रव के स्वतन्त्र तल तथा छ्दिध्र से बाहर निकलते द्रव जैट दोनों पर वायुमण्डलीय दांब P होगा। माना छिद्र से निकलने वाले द्रव का बहिःसाव वेग v है। बर्नूली प्रमेय के अनुसार, द्रव के स्वतन्त्र तल पर तथा छिद्र के प्रत्येक बिन्दु पर दाब तथा द्रव के एकांक आयतन की कुल ऊर्जा का योग बराबर होना चाहिए। अतः
\({P}+0+\rho g {H}={P}+\frac{1}{2} \rho v^2+\rho g({H}-h)\)
अथवा \(\frac{1}{2} \rho v^2=\rho g h\) अथवा \(v=\sqrt{(2 g h)}\)
इस सूत्र की स्थापना सर्वप्रथम सन् 1644 ई. में टॉरिसली ने की थी।

द्रव की परास (Range of Liquid): छिद्र से निकलने वाले द्रव द्वारा तय की गयी क्षैतिज दूरी को द्रव की परास कहते हैं।”
छिद्र से निकलने वाले द्रव का वेग क्षैतिज होता है जबकि वह (H-h) ऊर्ध्व ऊँचाई गुरुत्वीय त्वरण के अन्तर्गत गिरता है, अतः द्रव का मार्ग परवलयाकार हो जाता है।
माना (H-h) ऊँचाई तय करने में द्रव को लगा समय t हो तो u = 0, a = +g तथा s = H – h
s = ut + \(\frac{1}{2}\)at²
(H – h) = 0 + \(\frac{1}{2}\)gt²
\(t=\sqrt{\frac{2(H-h)}{g}}\) …………..(2)
चूँकि क्षैतिज दिशा में कोई बल कार्य नहीं करता है अतः उसका क्षैतिज वेग v ही रहता है।
अतः
R = v.t
= \(\sqrt{2 g h} \cdot \sqrt{\frac{2({H}-h)}{g}}\)
= \(2 \sqrt{h({H}-h)}\) ………..(3)
अतः इस सूत्र द्वारा स्पष्ट होता है कि h तथा (H-h) को आपस में बदल देने पर द्रव की परास में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इसलिए क्षैतिज परास R समान रहता है।
अधिकतम परास के लिए,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -6

प्रश्न 3.
बेन्चयूरी प्रवाह मापी द्वारा नली में प्रति सेकण्ड बहने वाले द्रव की मात्रा के लिए सूत्र स्थापित कीजिए।
उत्तर:
(ii) वैंटुरीमापी (Venturimeter):
यह बर्नूली प्रमेय पर आधारित वह युक्ति है, जिसकी सहायता से किसी नली में बहने वाले द्रव के प्रवाह की दर ज्ञात की जा सकती है।

उपकरण का वर्णन-इसमें एक क्षैतिज नली RST होती है जिसका बीच का भाग (S) संकरा है। R व S भागों पर दो ऊर्ध्वाधर नलियाँ E तथा F जुड़ी रहती हैं। दोनों ऊर्ध्वाधर नलियाँ R व S स्थानों पर द्रव दाब नापने के लिए काम में लायी जाती हैं। इसे वैंटुरीमीटर कहते हैं। इसे उस नली के साथ जोड़ देते हैं, जिससे द्रव दाब की गणना करनी है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -7
कार्यविधि (Working): जब द्रव नली RST में प्रवाह करता है तो अविरतता के सिद्धान्त से नली के चौड़े भाग {R} की अपेक्षा संकरे भाग (S) पर वेग अधिक होता है, अतः बरनौली प्रमेय से चौड़े भाग की अपेक्षा संकरे भाग ({S}) पर दाब कम होता है। इस दाबान्तर को नलियों {E} तथा {F} में चढ़े द्रव के अन्तर को पढ़कर ज्ञात किया जा सकता है।
माना नली में आदर्श द्रव का प्रवाह धारा रेखीय है, नली के {R} से {S} स्थानों पर क्रमशः नली के परिच्छेद क्षेत्रफल A1 व A2 हैं, द्रव के प्रवाह वेग v1 व v2 तथा दाब P1 व P2 हैं।
चूँकि नली क्षैतिज है, अतः बर्नूली प्रमेय से,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -8
इस प्रकार द्रव के प्रवाह की दर ज्ञात की जाती है।
इस सिद्धान्त पर मोटर वाहनों में काबुरिटर में नोजल काम करती है जिसमें तीव्र गति से वायु प्रवाहित होती है। संकरी गर्दन पर दाब कम होता है इसलिए पेट्रोल भीतर की ओर चैम्बर में चूस लिया जाता है ताकि दहन के लिए वायु तथा ईंधन का सही मिश्रण प्राप्त हो सके।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 4.
केशिकत्व क्या है ? केशनली में चढ़े जल स्तम्भ की ऊँचाई के लिए सूत्र प्रतिपादित कीजिए ।
उत्तर:
केशनली में द्रव के उन्नयन के लिए सूत्र (Formula For Capillary Rise of Liquid):
माना ρ घनत्व का कोई द्रव r त्रिज्या की केशनली में भरा है, जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। द्रव का पृष्ठ तनाव T है। नली के अन्दर द्रव के वक्र तल की त्रिज्या R व स्पर्श कोण θ है। चढ़े हुए द्रव स्तम्भ की ऊँचाई h है। द्रव स्तम्भ के दाब में कमी \(\frac{2T}{R}\) है, अत:
द्रव स्तम्भ का दाब = दाब आधिक्य
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -9
स्पष्ट है कि r का मान जितना कम होगा अर्थात् नली जितनी संकीर्ण होगा, h का मान उतना ही अधिक होगा अर्थात् केशनली में द्रव का उन्नयन उतना ही अधिक होगा।

प्रश्न 5.
आन्तरिक बलों के आधार पर पृष्ठ तनाव की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
पृष्ठ तनाव की आण्विक बलों के आधार पर व्याख्या (Explanation of Surface Tension Based on Molecular Forces);
लाप्लास (Laplace) ने पृष्ठ तनाव को अन्तराण्विक बलों के आधार पर समझाया। हम पढ़ चुके हैं कि जब अणुओं के बीच की दूरी आण्विक परास (≈ 10-9. मीटर) से अधिक होती है तो उनके बीच लगने वाला ससंजक बल नगण्य होता है तथा जब अणुओं के बीच की दूरी आण्विक परास से कम होती है तो उनके बीच ससंजक बल कार्य करता है। किसी अणु को केन्द्र मानकर आण्विक परास की त्रिज्या के बराबर खींचा गया गोला, ‘आण्विक सक्रियता का गोला’ कहलाता है।

चित्र में बर्तन में भरे किसी द्रव में तीन अणु A, B व C दिखाए गए हैं। इन अणुओं के चारों ओर आण्विक सक्रियता के गोले खींचे गए हैं। अणु A पूर्णतः द्रव के अन्दर, अणु B द्रव के पृष्ठ के ठीक नीचे तथा अणु C द्रव के पृष्ठ पर स्थित है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -10
अणु A के आण्विक सक्रियता का गोला पूर्णतः द्रव के भीतर है, अतः यह अणु अपने चारों ओर के अणुओं द्वारा सभी दिशाओं में समान बल से आकर्षित होता है। इस प्रकार इस अणु पर परिणामी ससंजक बल का मान शून्य होता है। अणु B के आण्विक सक्रियता के गोले का कुछ भाग द्रव के पृष्ठ के बाहर है। इस स्थिति में इस अणु के नीचे स्थित अणुओं की संख्या, ऊपर स्थित अणुओं की संख्या से अधिक होती है जिससे यह अणु नीचे की ओर अधिक आकर्षित होता है, अतः अणु B पर द्रव के भीतर की ओर परिणामी बल कार्य करता है। अणु C के आण्विक सक्रियता के गोले का आधा भाग द्रव के पृष्ठ के बाहर तथा आधा भाग द्रव के अन्दर है, इस गोले के निचले अर्धभाग में ही द्रव के अणु हैं, अतः अणु C पर एक परिणामी ससंजक बल द्रव के पृष्ठ के लम्बवत् नीचे की ओर कार्य करता है जिसका मान अधिकतम होता है (पृष्ठ के द्रव वाष्प के अणुओं के कारण आकर्षण बल को नगण्य माना जा सकता है।)

इस प्रकार द्रव के पृष्ठ पर स्थित प्रत्येक अणु पर नीचे की ओर अधिकतम आकर्षण बल कार्य करता है। द्रव के पृष्ठ नीचे जाने पर इस आकर्षण बल का मान कम हो जाता है। द्रव के पृष्ठ से आण्विक परास की दूरी से अधिक दूरी पर इस परिणामी बल का मान शून्य हो जाता है। अतः द्रव के स्वतन्त्र पृष्ठ से आण्विक परास ( 10 m ) की गहराई तक द्रव का भाग पृष्ठीय झिल्ली (surface film) कहलाता है। पृष्ठीय झिल्ली में स्थित सभी अणु द्रव के अन्दर की ओर आकर्षण बल का अनुभव करते हैं।

जब किसी अणु को द्रव के अन्दर से पृष्ठीय झिल्ली में लाया जाता है, तो द्रव के अन्दर की ओर लगने वाले आकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यह कार्य अणु में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। स्पष्ट है कि पृष्ठीय झिल्ली में स्थित अणुओं की स्थितिज ऊर्जा द्रव के भीतर स्थित अणुओं की स्थितिज ऊर्जा से अधिक होती है। इस प्रकार द्रव के स्वतन्त्र पृष्ठ पर स्थित अणुओं की स्थितिज ऊर्जा अधिकतम होती है। यदि स्वतन्त्र पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक है तो उसमें स्थित अणुओं की संख्या भी अधिक होगी, अतः उसकी स्थितिज ऊर्जा भी अधिक होगी, परन्तु हम जानते हैं कि कोई भी निकाय (system) उस समय स्थायी साम्यावस्था में होता है जब उसकी स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होती है, अतः द्रव के पृष्ठ पर स्थित अणुओं की स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होने के लिए पृष्ठ का क्षेत्रफल कम-से-कम होना चाहिए। इस प्रकार द्रव का स्वतन्त्र पृष्ठ एक तनी हुई झिल्ली की भाँति कार्य करता है। द्रव की इस प्रवृत्ति को पृष्ठ तनाव कहते हैं।

प्रश्न 6.
एक अनन्त विस्तार के श्यान द्रव में गिर रहे गोले के लिए अन्तिम वेग का सूत्र प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
सीमान्त वेग (Terminal Velocity):
जब कोई गोलाकार वस्तु किसी श्यान माध्यम में स्वतन्त्रतापूर्वक गिरने दी जाती है तो वस्तु का वेग उसके भार (W) के कारण पहले बढ़ता है लेकिन वेग बढ़ने के साथ-साथ माध्यम द्वारा उस पर आरोपित घर्षण बल भी बढ़ता है जो गति के विपरीत दिशा में कार्य करता है। वस्तु के घर्षण बल का कारण यह है कि वस्तु के सम्पर्क में आने वाली परत वस्तु के साथ गति करना चाहती है अबकि दूर की अन्य परतें स्थिर रहती हैं। द्रव की परतों में इस आपेक्षिक गति के कारण परतों के मध्य आन्तरिक घर्षण बल उत्पन्न हो जाता है। यही श्यान बल होता है। एक स्थिति ऐसी आती है जब वस्तु का भार उस पर ऊपर की ओर लगने वाले उत्प्लावन बल एवं स्टोक्स बल के योग के बराबर हो जाता है तो वस्तु पर परिणामी बल शून्य हो जाता है और वह नियत वेग से गिरने लगती है। इसी नियत वेग को ‘सीमान्ते वेग’ या ‘ चरम वेग’ या ‘अधिकतम वेग’ या ‘अन्तिम वेग’ कहते हैं।

सीमान्त वेग के लिए सूत्र-माना r त्रिज्या एवं ρ घनत्व की एक गोलाकार वस्तु σ घनत्व एवं η श्यानता गुणांक वाले द्रव में स्वतन्त्रतापूर्वक गिर रही है। वस्तु पर लगने वाले बर्लों को चित्र में दिखाया गया है। इन बलों में केवल स्टोक्स बल वस्तु के वेग पर निर्भर करता है। अतः चरम वेग (vt) की अवस्था में,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -11
स्पष्ट है कि गोली का सीमान्त वेग (vt), गोली की त्रिज्या (r), गोली के घनत्व (ρ), माध्यम के घनत्व (σ) तथा माध्यम की श्यानता (η) पर निर्भर करता है।
यदि द्रव में गिरती हुई वस्तु के वेग एवं समय के मध्य ग्राफ खींचा जाये तो ग्राफ की भाँति मिलेगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -12

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 7.
कोशिका उन्नयन विधि द्वारा पृष्ठ तनाव ज्ञात करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोशिका उन्नयन विधि द्वारा जल का पृष्ठ तनाव ज्ञात करना
(Determination Of Surface Tensionof Liquid By Capillary Rise Method):
आवश्यक उपकरण-द्रत्र भरा बीकर, स्टैण्ड, एक समान व्यास की साफ केशनली तथा चल सूक्ष्मदर्शी।
आवश्यक सूत्र-द्रव का पृष्ठ तनाव \(\mathrm{T}=\frac{r h \rho g}{\cos \theta}\)
जहाँ r → केशनली की त्रिज्या
h → केशनली में चढ़े स्तम्भ की ऊँचाई
ρ → द्रव का घनत्व, g → गुरुत्वीय त्वरण
θ → स्पर्श कोण
प्रयोग विधि-प्रयोग के लिए काँच की केशनली को तनु नाइट्रिक अम्ल एवं कॉस्टिक सोडा के विलयन से साफ करके शुद्ध जल से धोकर सुखा लेते हैं। अब इस स्वच्छ नली को एक स्टैण्ड की सहायता से जल
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -13
से भरे बीकर में इस प्रकार डुबोया जाता है कि केशनली ऊर्ध्वाधर रहे । ऐसा करने पर केशनली में पृष्ठ तनाव के कारण (केशिकत्व) द्रव चढ़ने लगता है। जिस समय द्रव का चढ़ना बन्द हो जाए, केशनली में द्रव स्तम्भ की ऊँचाई चलायमान सूक्ष्मदर्शी की सहायता से नाप ली जाती है। नली की त्रिज्या भी सूक्ष्मदर्शी की सहायता से व्यास ज्ञात करके ज्ञात करते हैं। अब सूत्र में h व r के मान रखकर द्रव का पृष्ठ ज्ञात कर लेते हैं।

प्रायोगिक सावधानियाँ:

  • केशनली, बीकर, पैमाना सब बिल्कुल साफ होने चाहिए। जल भी स्वच्छ होना चाहिए। आसुत जल (distilled water) का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें कुछ-न-कुछ चिकनाई अवश्य मिली रहती है। थोड़ी-सी धूल अथवा चिकनाई पृष्ठ तनाव के मान को काफी बदल देती है।
  • केशनली की आन्तरिक त्रिज्या उसी स्थान पर नापनी चाहिए जहाँ तक द्रव नली में चढ़ा था। इसके लिए नली को उसी स्थान पर तोड़ लेना चाहिए।
  • प्रयोग में समस्त द्रव के ताप को अवश्य लिखना चाहिए क्योंकि पृष्ठ तनाव पर ताप का प्रभाव पड़ता है।
  • केशनली एकदम ऊर्ध्वाधर होनी चाहिए जिससे द्रव (पानी) के स्तम्भ की ऊँचाई ठीक-ठीक नापी जा सके।

प्रश्न 8.
किसी द्रव का क्षेत्रफल बढ़ाने में आवश्यक कार्य का पृष्ठ तनाव से सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठ तनाव तथा पृष्ठीय ऊर्जा में सम्बन्ध (Relation between Surface Tension and Surface Energy):
माना PQRS एक तार का आयताकार छल्ला है, जिसकी भुजा QR अपने सम्पर्क वाली भुजाओं पर गति करने के लिए स्वतन्त्र है। यदि इस छल्ले में किसी द्रव की कोई फिल्म बनायी जाये तो पृष्ठ तनाव के कारण फिल्म के प्रत्येक भुजा पर अन्दर की ओर बल आरोपित करेगी। भुजा Q, R की लम्बाई यदि $l$ हो तो इस भुजा पर F = 2T. l बल लगेगा। चूँकि फिल्म में दो पृष्ठ होते हैं। अतः तार की प्रति एकांक लम्बाई पर दोनों पृष्ठ एक ही दिशा में T पृष्ठ तनाव बल लगायेंगी। इस प्रकार प्रति एकांक लम्बाई पर 2T बल लगेगा। इस बल F के प्रभाव में भुजा QR अन्दर की ओर गति करने लगेगी। अतः इसे अपने स्थान पर बनाये रखने के लिए इस पर बाहर की ओर इतना ही बल F’ लगाना होगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -14
यदि F’ को थोड़ा बढ़ाकर QR भुजा को ∆x विस्थापन देकर Q’R’ स्थिति में पहुँचा दे तो इस क्रिया में पृष्ठ तनाव बल के विरुद्ध कृत कार्य

W =F . ∆x = 2T.l.∆x
W = F.2l.x
W = T.∆A
जहाँ ∆A = 2.l.∆x क्षेत्रफल में प्रभावी वृद्धि
यही कार्य बढ़े हुए पृष्ठ की पृष्ठीय ऊर्जा के रूप में संचित हो जायेगा। अतः पृष्ठीय ऊर्जा
Es = T.∆A
यदि ∆A =1 m² तो Es = T
“अर्थात् किसी द्रव के एकांक क्षेत्र की पृष्ठीय ऊर्जा उसके पृष्ठ तनाव के तुल्य होती है।”
\(\mathrm{T}=\frac{\mathrm{E}_s}{\Delta \mathrm{A}}=\frac{\mathrm{W}}{\Delta \mathrm{A}}\)

T का मात्रक- जूल / मी²
T का विमीय सूत्र- [M1L0T-2]

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 9.
पॉस्कल का नियम लिखिये और इसका सत्यापन कीजिये। इसके आधार पर कार्य करने वाले दो उपकरणों का नाम लिखिये । और उनका वर्णन कीजिये।
उत्तर:
पास्कल का नियम (Pascal’s Law)
इस नियम के अनुसार, “यदि गुरुत्व के प्रभाव को नगण्य मान लें तो किसी द्रव के किसी भाग पर लगाया गया दाब बिना क्षय हुए सम्पूर्ण द्रव में सभी दिशाओं में समान रूप से संचरित हो जाता है। इसे द्रव के दाब का संचरण नियम भी कहते हैं।”

नोट-इस नियम का प्रतिपादन करने वाले वैज्ञानिक ब्लेज पास्कल थे। ब्लेज पास्कल के नाम पर इस नियम को जाना जाता है पास्कल के सम्मान में दाब का S.I. मात्रक ‘पास्कल’ (Pa) लिया जाता है।

व्युत्पत्ति (Derivation): चित्र में विराम स्थिति के किसी तरल के भीतर कोई अवयव दिखाया गया है यह ABC-DEF एक समकोण प्रिज्म के रूप में है। इस अवयव पर आरोपित बल शेष तरल के कारण हैं। तरल के कारण बल पृष्ठों के अभिलम्बवत् कार्य करते हैं। अवयव के फलकों BEFC, ADFC तथा ADEB पर बल क्रमशः Fa, Fb, Fc तथा दाब क्रमशः Pa, Pb, Pc हैं तथा इन फलकों के क्षेत्रफल क्रमशः Aa, Ab व Ac हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -15
चित्र में प्रदर्शित अवयव (ABC-DEF) अत्यन्त छोटा है ताकि गुरुत्व के प्रभाव की उपेक्षा की जा सके, लेकिन स्पष्टता के दृष्टिकोण से इसे बड़ा दिखाया गया है।
साम्यावस्था में बलों में निम्न सम्बन्ध होंगे-
Fb sin θ = Fc; Fb cos θ = Fa
तथा ज्यामिति से,
Ab sin θ = Ac; Ab cos θ = Aa
अतः भाग देने पर
\(\frac{F_b}{A_b}=\frac{F_c}{A_c}\) तथा \(\frac{F_b}{A_b}=\frac{F_a}{A_a}\)
या Pa = Pc तथा Pb = Pa
या Pa = Pb = Pc
अतः विरामावस्था में द्रव के अन्दर सभी दिशाओं में दाब समान रूप से कार्य करता है। यही पास्कल का नियम है।

प्रश्न 10.
द्रव के भीतर स्थित किसी बिन्दु पर दाब के व्यंजक को ज्ञात कीजिये और सिद्ध कीजिये कि P ∝ h होता है यदि द्रव के मुक्त पृष्ठ पर वायुमण्डलीय दाब Po हो तो द्रव के मुक्त पृष्ठ से / गहराई पर कुल दाब ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
दाब (Pressure):
किसी क्षेत्रफल पर लगने वाले बल का प्रभाव क्षेत्रफल पर निर्भर करता है। क्षेत्रफल बदल जाने पर बल का प्रभाव भिन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि सुई पर थोड़ा भी बल लगाया जाये तो वह हमारी त्वचा में धँस जाती है जबकि चम्मच पर अधिक बल लगाने पर भी वह त्वचा में नर्ही धँसती है। इन दोनों घटनाओं में अन्तर क्षेत्रफल के कारण है। सुई की नोंक का सम्पर्क क्षेत्रफल अति अल्प जबकि चम्मच का सम्पर्क क्षेत्रफल अधिक होता है। स्पष्ट है क्षेत्रफल बढ़ाने पर बल का प्रभाव कम हो जाता है।

इन अनुभवों से स्पष्ट है कि बल के साथ-साथ वह क्षेत्रफल भी महत्त्वपूर्ण होता है जिस पर बल कार्य करता है। जब कोई पिण्ड किसी तरल में डूबा रहता है तो तरल द्वारा इस पिण्ड पर उसके पृष्ठ के लम्बवत् बल आरोपित किया जाता है। “एकांक क्षेत्रफल पर आरोपित बल को दाब कहते हैं।” यदि पृष्ठ का क्षेत्रफल A एवं इस पर आरोपित अभिलम्बवत् बल F हो तो दाब
\(P=\frac{F}{A}\).
सैद्धान्तिक रूप में पिण्ड के क्षेत्रफल को अत्यन्त सूक्ष्म ले सकते है। तब
\(\mathrm{P}=\lim _{\Delta \mathrm{A} \rightarrow 0} \frac{\Delta \mathrm{F}}{\Delta \mathrm{A}}=\frac{d \mathrm{~F}}{d \mathrm{~A}}\)
यदि समान परिमाण का बल भिन्न-भिन्न क्षेत्रफलों के पृष्ठ पर आरोपित किया जाये तो कम क्षेत्रफल वाले पृष्ठ पर कार्यरत दाब अधिक होगा। दाब एक अदिश राशि है।
मात्रक एवं विमीय सूत्र
मात्रक- MKS मात्रक न्यूटन / मी² \left(N-m-2) या पॉस्कल CGS मात्रक- डाइन/सेमी²
दाब के अन्य मात्रक-
(i) वायुमण्डलीय दाब: 76 सेमी पारा स्तम्भ का दाबं 1 वायुमण्डलीय दाब (1 atm दाब) कहलाता है।
1 वायुमण्डलीय दाब = 0.76 × 13.6 × 103 × 9.8
& =1.013 × 105 N-m-2

(ii) बार-मौसम विज्ञान में दाब को बार या मिलीबार में व्यक्त
1 बार (bar)=105 Pa
विमीय सूत्र – [M1L-1T-2]

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 11.
पानी की बड़ी बूँद को छोटी बूंदों में फुहारने पर पृष्ठ ऊर्जा में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
जल की एक बड़ी बूँद को m छोटी बूँदों में फुहारने पर पृष्ठीय ऊर्जा में वृद्धि (Increase in Surface Energy on Spraying a Big Water Drop):
पानी की बड़ी बूँद को छोटी बूँदों में फुहारने पर पृष्ठ क्षेत्रफल का मान बढ़ता है, अतः पृष्ठ ऊर्जा में वृद्धि होती है। लेकिन इस कार्य में आन्तरिक ऊर्जा में कमी होती है। अतः ताप गिरने से ठण्डक उत्पन्न होती है जिसे हम दैनिक जीवन में फब्वारे के नीचे नहते समय अनुभव करते हैं।
माना R त्रिज्या की एक बड़ी बूँद है जिसे r त्रिज्या की n छोटी समान बूँदों में फुहारा जाता है। इस क्रिया में आयतन नियत रहता है। अत:
बड़ी बूँद का आयतन = n × छोटी बूँदों का आयतन
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरलों के यांत्रिकी गुण -16

प्रश्न 12.
गोलीय बूंद के लिए दाब आधिक्य Pex = \(\frac{2T}{R}\) का व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठीय ऊर्जा (Surface Energy):
यदि किसी द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल बढ़ाया जाये तो कुछ अणु द्रव के अन्दर से द्रव के पृष्ठ पर आ जाते हैं। इन अणुओं को द्रव के पृष्ठ के ठीक नीचें वाले अणुओं के आकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यही कार्य नये पृष्ठ में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। इस प्रकार द्रव के पृष्ठ पर स्थित अणुओं के पास कुछ अतिरिक्त ऊर्जा को ही पृष्ठ ऊर्जा कहते हैं।

आंकिक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक व्यक्ति का भार 60 kg है तथा उसके प्रत्येक पैर का क्षेत्रफल 30 cm है। बताइए व्यक्ति द्वारा पृथ्वी पर कितना दाब डाला जायेगा यदि (i) वह एक पैर पर खड़ा है, (ii) दोनों पैरों पर खड़ा है।
उत्तर:
(i) 19.6 × 104 N/m²
(ii) 9.8 × 104 N/m²

प्रश्न 2.
एक बेलनाकार जार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 50 cm² है। यह 20 cm ऊँचाई तक जल से भरा हुआ है। इसके पिस्टन का द्रव्यमान नगण्य है। जब इसके पिस्टन पर 1 kg द्रव्यमान रखा जाता है तो जार की तली में दाब की गणना कीजिए। वायुमण्डलीय दाब को नगण्य मानिए।
उत्तर:
3.92 × 10³ N/m²

आर्किमिडीज के सिद्धान्त पर आधारित

प्रश्न 3.
एक ठोस गेंद जिसका घनत्व जल के घनत्व का आधा है, 19.6m की ऊँचाई से गुरुत्वीय क्षेत्र में स्वतन्त्रता पूर्वक गिरकर जल के अन्दर प्रवेश करती है गेंद जल में कितनी गहराई तक जायेगी ? जल की सतह पर फिर दुबारा आने में इसे कितना समय लगेगा ? (g = 9.8 m/sec²) जल की श्यानता तथा वायु के अवरोध को नगण्य मान लीजिए।
उत्तर:
19.6 m, 4 sec

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 4.
समुद्र में एक हिम शैल स्थित है, (i) जल की सतह के नीचे हिम शैल का प्रभाग ज्ञात कीजिए, (ii) जल की सतह के ऊपर हिम शैल का प्रभाग ज्ञात कीजिए। दिया है, बर्फ का घनत्व = 917 kg/m³ और समुद्री जल का घनत्व 1.024 × 103 kg/m³
उत्तर:
(i) 89.7% (ii) 10.3%

प्रश्न 5.
अन्दर से खोखली एक ताँबे की गेंद का वायु में धार 264 ग्राम तथा जल में डुबाने पर भार 221 ग्राम है यदि ताँबे का घनत्व 8.8 ग्राम / सेमी हो, तो गेंद के खोखले भाग का आयतन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
13 सेमी³

श्यानता पर आधारित

प्रश्न 6.
10 cm × 10 cm की एक समतल प्लेट तथा बड़ी प्लेट के बीच 1 mm मोटी ग्लिसरीन की तह है। यदि ग्लिसरीन का श्यानता गुणांक 1.0 kg/m sec हो, तो प्लेट को 10 cm/sec के वेग से चलाने के लिए कितना बल चाहिए।
उत्तर:
1.0 न्यूटन

प्रश्न 7.
100 cm² क्षेत्रफल की एक समतल प्लेट तथा एक बड़ी प्लेट के बीच ग्लिसरीन की 1.0mm मोटी तह है, यदि ग्लिसरीन का श्यानता गुणांक 1.0 kg/m sec हो, तो प्लेट को 7.0 cm/sec के वेग से चलाने के लिए कितना बल चाहिए।
उत्तर:
0.70 न्यूटन

प्रश्न 8.
5 cm² क्षेत्रफल की एक चौरस प्लेट तथा एक बड़ी प्लेट के बीच ग्लिसरीन की 1 mm मोटी पर्त है यदि ग्लिसरीन का n = 10 प्वॉइज हो तो प्लेट को 7 cm/see के वेग से चलाने के लिए कितना बल चाहिए ?
उत्तर:
0.035 न्यूटन

प्रश्न 9.
पानी की दो समान्तर परतों में आपेक्षिक वेग 18.0 cms-1 है। यदि परतों के बीच की लम्बवत् दूरी 0.1 cm हो तो वेग प्रवणता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
180 s-1

सीमान्त वेग पर आधारित

प्रश्न 10.
जल की एक बूँद का व्यास 0.003 mm है। यह वायु से गिर रही है, बूंद का सीमान्त वेग ज्ञात कीजिए।
वायु का श्यानता गुणांक 1.8 × 10-5 kg/m see वायु का घनत्व उपेक्षणीय है।
उत्तर:
2.72 × 10 m/sec

प्रश्न 11.
यदि बूँद का अन्तिम वेग 12 cm/sec हो तो वायु में गिरती हुई पानी की बूंदों की त्रिज्या ज्ञात कीजिए, वायु की श्यानता 1.8× 10-4 वॉइज है तथा वायु का घनत्व 1.21 × 10-3 ग्राम / सेमी है।
उत्तर:
3.15 × 10³ cm

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 12.
समान त्रिज्या की दो बूँदें वायु में गिर रही हैं। उनके क्रान्तिक वेग 10 cm/sec हैं। यदि बूँदें संयुक्त हो जाए तो क्रान्तिक वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
15.9 cm / sec

प्रश्न 13.
तेल की एक बूंद का वायु में सीमान्त वेग 5.0 × 10-4 m/sec है। बूँद की त्रिज्या क्या है ? यदि ऐसी ही दो बूँदें परस्पर मिल जायें तो परिणामी बूँद का सीमान्त वेग कितना होगा ? तेल का श्यानता गुणांक 1.8 × 10-3 kg/m-sec तथा घनत्व 9 × 10² kg/m² है। वायु का घनत्व तेल के सापेक्ष नगण्य है तथा (2)2/3 = 1.59, g = 9.8 m/sec²
उत्तर:
2.14 × 10-5m, 7.95 × 10-4 m / sec

अविरतता के समीकरण पर आधारित

प्रश्न 14.
8 × 10-3 m आन्तरिक व्यास वाली एक टोंटी से पानी सततः 4 × 10-1 m/sec के प्रारम्भिक वेग से बह रहा है। टोंटी के नीचे 2 × 10-1 m की दूरी पर पानी की धारा के व्यास की गणना कीजिए।
उत्तर:
3.56 × 10 m

प्रश्न 15.
हौज पाइप जिसका आन्तरिक व्यास 2.1 cm है, से जल 1.1m/sec की चाल से प्रवाहित हो रहा है नोजल का व्यास क्या होना चाहिए यदि इससे जल 4 m/sec की चाल से निकल रहा है ?
उत्तर:
1.1 cm

प्रश्न 16.
एक क्षैतिज पाइप लाइन के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल असमान है। इसमें जल 0.2m³/sec की दर से प्रवाहित हो रहा है उस बिन्दु पर जल के वेग की गणना कीजिए जहाँ पाइप के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 0.02 m² हो ।
उत्तर:
10 m/sec

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

बरनौली के प्रमेय तथा इसके अनुप्रयोगों (वेन्दुरीमीटर तथा बहिःस्राव वेग) पर आधारित

प्रश्न 17.
4 × 104 न्यूटन /मी दाब का जल 2 मीटर / सेकण्ड वेग से 0.02 मीटर² अनुप्रस्थ-परिच्छेद के पाइप से प्रवाहित होता है जिसका अनुप्रस्थ परिच्छेद घटकर 0.01 मी हो जाता है। पाइप के छोटे अनुप्रस्थ- परिच्छेद में कितना दाब है ?
उत्तर:
3.4 × 104 न्यूटन / मी²

प्रश्न 18.
हृदय से रुधिर को सिरे के शीर्ष (ऊर्ध्वाधर दूरी = 50 cm) तक पहुँचाने के लिए आवश्यक न्यूनतम दाब की गणना कीजिए। रुधिर का घनत्व 1.04 ग्रा. सेमी-3 है। घर्षण नगण्य है।
उत्तर:
5.096 × 104 डाइन / सेमी²

प्रश्न 19.
एक क्षैतिज पाइप जिसमें जल बह रहा है, उसके दो बिन्दुओं पर जल के दावों का अन्तर 1.4 cm पारे के स्तम्भ के बराबर है, यदि असमान परिच्छेद के कारण अधिक परिच्छेद वाले बिन्दु पर जल की चाल 60 cm/sec है, तो दूसरे बिन्दु पर जल की चाल की गणना कीजिए पारे का घनत्व 13.6 × 10 kg/m. तथा g = 9.8N/kg.
उत्तर:
2.02 m/sec

प्रश्न 20.
एक क्षैतिज नली के दो बिन्दुओं A व B पर अनुप्रस्थ क्षेत्रफल भिन्न-भिन्न हैं। A पर व्यास 4 cm तथा B पर 2 cm है। A तथा B पर दो मैनोमीटर भुजाएँ लगी हैं। जब 0.8 ग्राम / सेमी घनत्व का द्रव नली में से होकर बहता है तो मैनोमीटर की भुजाओं के बीच दावान्तर 8 cm है। नली में बहने वाले द्रव के प्रवाह की दर की गणना कीजिए। (g = 980 cm/sec²)
उत्तर:
406 cm³/sec

प्रश्न 21.
एक क्षैतिज सिरिंज में, जमीन से 1.25m की ऊँचाई पर, जल भरा है। प्लंजर का व्यास 8 mm एवं नोजिल का व्यास 2 mm है। प्लंजर को एक नियत चाल 0.25 m/sec से दबाया जाता है। जमीन पर सिरिंज से निकलने वाली जल धारा का क्षैतिज परास ज्ञात कीजिए। (g = 10 m/sec²)
उत्तर:
2m

प्रश्न 22.
35m ऊँचाई तक भरे जल की एक टंकी में जल पृष्ठ से 7m नीचे टंकी की दीवार में 1 cm त्रिज्या का एक छेद है। ज्ञात कीजिए – (i) बहि:स्राव वेग, (ii) छेद से जल प्रवाह की दर, (iii) जल का परास, (iv) जल पृष्ठ से वह गहराई जहाँ टंकी में छेद करने पर परास का मान वही हो जो 7m गहराई पर है, (v) वह गहराई जहाँ छेद पर परास का मान अधिकतम हो, (vi) अधिकतम परास ।
उत्तर:
(i) 11.7m/sec.
(ii) 3.67 10m / sec
(iii) 28 m.
(iv) 28 m
(v) 17.5 m
(vi) 35 m

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प्वाइजली सूत्र पर आधारित

प्रश्न 23.
एक केशिकानली का व्यास 1 mm व लम्बाई 15 cm है। इसे एक क्षैतिज विधि से किसी पात्र से जोड़ दिया जाता है जो ऐल्कोहॉल से भरा हुआ है जिसका घनत्व 0.8 ग्राम/सेमी³ है। केशिकानली के केन्द्र की गहराई ऐल्कोहॉल के मुक्त पृष्ठ से 25 cm नीचे है। यदि ऐल्कोहॉल की श्यानता 0.12 प्वॉइज हो तो 5 min में बहने वाले द्रव की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
6,408 ग्राम

पृष्ठ तनाव तथा पृष्ठीय ऊर्जा पर आधारित

प्रश्न 24.
एक पतला तार 3.0 cm व्यास की रिंग के रूप में मोड़ा गया है। इस रिंग को साबुन के घोल में क्षैतिज स्थिति में रखकर, धीरे-धीरे ऊपर उठाया जाता है रिंग व घोल के बीच बनी फिल्म को तोड़ने के लिए कितना उपरिमुखी (upward) बल चाहिए ? साबुन के घोल का पृष्ठ तनाव = 3.0 × 10-2 N/m
उत्तर:
5.652 × 10-3 N

प्रश्न 25.
जल की R त्रिज्या की एक बड़ी बूँद को 8000 समान आयतन की छोटी बूँदों में विभाजित करने में 5.582 πR² जूल कार्य करना पड़ता है जल का पृष्ठ तनाव ज्ञात कीजिए
उत्तर:
7.3 × 10-2 N/m

प्रश्न 26.
दो सीधे 10 cm लम्बाई वाले समान्तर तारों के बीच जो 0.5 cm दूर हैं, जल की एक फिल्म बनाई जाती है। यदि तारों के बीच की दूरी 1 mm बढ़ाई जाये, तो कितना कार्य करना पड़ेगा ? जल का पृष्ठ तनाव 72 × 10-3 N/m
उत्तर:
1.44 × 10-5 जूल

प्रश्न 27.
जल की 1000 छोटी बूँदों को जिनमें से प्रत्येक की त्रिज्या 10-7 m है, आपस में मिलाकर एक बुड़ी बूँद बनाने पर मुक्त ऊर्जा ज्ञात कीजिए। जल का पृष्ठ तनाव 7 × 10-2 N/m.
उत्तर:
7,92 × 10-12 Joule

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

दाब आधिक्य तथा केशिकत्व पर आधारित

प्रश्न 28.
साबुन के दो बुलबुलों की त्रिज्याएँ क्रमश: 0.5 cm व 1.0 cm है। इनके अन्दर दाबों का अन्तर 14 N/m² है। साबुन के घोल का पृष्ठ तनाव ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
0.035 N/m

प्रश्न 29.
1 mm व्यास की काँच की केशनली पारा भरे बीकर में ऊर्ध्वाधर खड़ी की जाती है। केशनली का निचला सिरा बीकर में पारे के पृष्ठ से 1 coin नीचे है। केशनली के निचले सिरे पर वायु का अर्द्धगोलीय बुलबुला . बनाने के लिए केशनली में वायु का गेज दाब क्या होना चाहिए ? पारे का पृष्ठ तनाव (0.465 N/m, तथा बुलबुले का व्यास केशनली के व्यास के बराबर मान लें।
उत्तर:
3193 N/m²

प्रश्न 30.
पारे के एक बैरोमीटर की नली का व्यास 3 mm है। पृष्ठ तनाव के कारण पाठ में क्या त्रुटि आयेगी ? स्पर्श कोण = 135° पारे का घनत्व = 13.5 × 10³ kg/m³ H T = 465 × 10-3 N/m.
उत्तर:
3.3 mm गिर जायेगा

प्रश्न 31.
एक U-नली की दोनों ऊर्ध्वाधर नलियों के व्यास क्रमश: 5.0 mm तथा 2.0 mm है। इसमें जल भरा है, नलियों में जल स्तम्भ की ऊँचाइयों में कितना अन्तर है ? जल का पृष्ठ तनाव = 7.3 × 10-2 N/ml
उत्तर:
8.94 mm

प्रश्न 32.
एक केशनली की लम्बाई 0.10 m है, जब इसे ऊर्ध्वाधर स्थिति में जल में रखा जाता है तो जल 0.06 m ऊँचाई तक चढ़ जाता है। यदि केशनली को ऊर्ध्वाधर स्थिति में 30° पर झुका दिया जाये तो केशनली में जल-स्तम्भ की लम्बाई क्या होगी ? यदि केशनली को बीचों-बीच से काट दिया जाये, तो केशनली में जल के पृष्ठ की स्थिति क्या होगी ? क्या जल फब्बारे के रूप में निकलने लगेगा ?
उत्तर:
6.94 cm, 0.05 m, जल पृष्ठ की वक्रता कम हो जायेगी।

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जीवन की उत्पत्ति की सबसे तर्कसंगत जैव रासायनिक मत का प्रतिपादन किया-
(अ) मूरे
(ब) वीजमान
(स) स्टैनले मिलर
(द) ओपेरिन
उत्तर:
(द) ओपेरिन

2. किस जहाज पर डार्विन को प्रकृति- वैज्ञानिक के पद पर रखा गया था ?
(अ) सेन्चुरी
(स) बिगुल
(ब) सीगल
(द) बीगल
उत्तर:
(द) बीगल

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

3. डी व्रिज ने किसका प्रतिपादन किया था ?
(अ) प्रबलता का नियम
(स) पृथक्करण का नियम
(ब) प्राकृतिक चयनवाद
(द) उत्परिवर्तनवाद
उत्तर:
(द) उत्परिवर्तनवाद

4. आस्ट्रेलोपिथेकस नामक आदि मानव का चेहरा था-
(अ) हाइपेग्निथस प्रकार का
(स) हाइपरथेस प्रकार का
(ब) प्रोग्रेस प्रकार का
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) प्रोग्रेस प्रकार का

5. अग्नि का प्रथम प्रयोग करने वाला प्रगैतिहासिक मानव सम्भवतः था-
(अ) पेकिंग मानव
(ब) निएन्डरथल
(स) क्रो-मैगनॉन
(द) जावा कपि मानव
उत्तर:
(अ) पेकिंग मानव

6. मानव का कपियों से भिन्न, एक प्रमुख लक्षण है-
(अ) पैर हाथों से लम्बे
(ब) वस्तुओं को पकड़ने योग्य हाथ
(स) आगे निकले हुए जबड़े
(द) सिर कम विकसित
उत्तर:
(अ) पैर हाथों से लम्बे

7. पृथ्वी पर “जीवन की उत्पत्ति” की दिशा में इनमें से कौनसे यौगिकों का उद्विकास हुआ-
(अ) प्रोटीन्स एवं अमीनो अम्ल
(ब) प्रोटीन्स एवं न्यूक्लिक अम्ल
(स) यूरिया एवं अमीनो अम्ल
(द) यूरिया एवं न्यूक्लिक अम्ल
उत्तर:
(ब) प्रोटीन्स एवं न्यूक्लिक अम्ल

8. संरचनाओं में कौनसे समुच्चय में केवल समवृति अंग है-
(अ) कॉकरोच, मच्छर व मधुमक्खी के मैण्डिबल्स
(ब) मानव, बंदर व कंगारू के हाथ
(स) चमगादड़, पक्षी तथा मधुमक्खी के पंख
(द) घोड़े, टिड्डी व चमगादड़ के पश्चपाद ।
उत्तर:
(स) चमगादड़, पक्षी तथा मधुमक्खी के पंख

9. प्राकृतिक चयन के विषय में हमारी आधुनिक समझ के अनुसार, योग्यतम सदस्य हैं-
(अ) जिनमें वातावरण के अनुसार अनुकूलन की सबसे अधिक क्षमता होती है।
(ब) जिनके वंशजों की संख्या अधिकतम होती है
(स) जो बहुत सी संतानें उत्पन्न करते हैं, परन्तु कुछ ही संतानें लैंगिक परिपक्वता तक जीवित रहती हैं
(द) जिनमें विशिष्ट वातावरणीय दशाओं का सामना करने की अधिकतम क्षमता होती है।
उत्तर:
(द) जिनमें विशिष्ट वातावरणीय दशाओं का सामना करने की अधिकतम क्षमता होती है।

10. डार्विन ने किस स्थान को उद्विकास की जीवित प्रयोगशाला माना-
(अ) गेल्पेगोस द्वीप
(ब) लक्ष्य द्वीप
(स) मेडागास्कर
(द) माल द्वीप
उत्तर:
(अ) गेल्पेगोस द्वीप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

11. जावा मानव का वैज्ञानिक नाम है-
(अ) पिथेकैन्थ्रोपस इरेक्टस
(ब) होमो इरेक्टस इरेक्टस
(स) होमो हैबिलिस
(द) अ व ब दोनों
उत्तर:
(द) अ व ब दोनों

12. निएन्डरथल मानव-
(अ) वर्तमान मानव से कम विकसित था
(ब) वर्तमान मानव से मिलता-जुलता था
(स) वर्तमान मानव से इसका मस्तिष्क बहुत बड़ा था
(द) इसका मस्तिष्क वर्तमान मानव के मस्तिष्क से छोटा था
उत्तर:
(अ) वर्तमान मानव से कम विकसित था

13. वीजमान अपने प्रयोग में पीढ़ी दर पीढ़ी नवजात चूहों की पूँछ को कर पृथक करते हरे । फिर भी पूँछ न तो गायब हुई और न ही छोटी हुई, उक्त प्रयोग से ज्ञात होता है-
(अ) लैमार्क के अर्जित लक्षणों की वंशागति का खण्डन
(ब) डार्विन के प्राकृतिक वरण मत का समर्थन
(स) डी – ब्रिज के उत्परिवर्तन मत का समर्थन
(द) सिद्ध होता है कि कशेरुकियों की पूँछ एक अनिवार्य लक्षण है
उत्तर:
(अ) लैमार्क के अर्जित लक्षणों की वंशागति का खण्डन

14. विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है-
(अ) इथोलॉजी
(ब) इरोलॉजी
(स) आर्निथोलॉजी
(द) पेलिओन्टोलॉजी
उत्तर:
(द) पेलिओन्टोलॉजी

15. जीनकोश (Gene pool) सदैव अपरिवर्तित रहते हैं, इसे कहते हैं-
(अ) आनुवंशिक संतुलन
(ब) रासायनिक संतुलन
(स) भौतिक संतुलन
(द) रासायनिक साम्य
उत्तर:
(अ) आनुवंशिक संतुलन

16. होमो सैपियंस (मानव) सर्वप्रथम विकसित हुआ-
(अ) ऑस्ट्रेलिया में
(ब) अफ्रीका में
(स) अमेरिका में
(द) रूस में
उत्तर:
(ब) अफ्रीका में

17. अमेरिकी वैज्ञानिक एच.एल. शैपिरो ने भावी मानव का नाम रखा है-
(अ) होमो फ्यूचेरिस
(ब) होमो यूचेरिस
(स) होमो ट्यूरेसिस
(द) होमो पीटूचेरिस
उत्तर:
(अ) होमो फ्यूचेरिस

18. जीव संख्या में सहसा आने वाले बड़े-बड़े परिवर्तन कहलाते हैं-
(अ) म्यूटेशन
(ब) आनुवंशिक संतुलन
(स) संस्थापक प्रवाह
(द) अभिसारी विकास
उत्तर:
(अ) म्यूटेशन

19. निम्न में औद्योगिक प्रदूषण का सूचक है-
(अ) पैन- स्पर्मिया
(ब) मृत यीस्ट
(स) बोगनविलिया
(द) लाइकेन
उत्तर:
(द) लाइकेन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

20. मलयआर्क पेलौगो पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक का नाम है-
(अ) डार्विन
(ब) एल्फ्रेड वॉलेस
(स) मेंडल
(द) लैमार्क
उत्तर:
(अ) डार्विन

21. 1938 में दक्षिण अफ्रीका में एक मछली पकड़ी गई जो …………….. थी।
(अ) सीलाकेंथि
(ब) पीलाकेंथि
(स) टीलाकेंथि
(द) मीलाकेंथि
उत्तर:
(अ) सीलाकेंथि

22. डी – व्रिज ने जैविक क्रम विकास से सम्बन्धित अपना उत्परिवर्तन मत किस जीव पर शोध करते हुए प्रस्तुत किया था ?
(अ) इवनिंग प्रिमरोज
(ब) ड्रोसोफिला
(स) पाइसम सेटाइवम
(द) ऐल्थीयारोजिया
उत्तर:
(अ) इवनिंग प्रिमरोज

23. एक पृथक्कृत जनसंख्या में जीन की आवृति में परिवर्तन क्या कहलाता है?
(अ) जेनेटिक ड्रिफ्ट
(ब) जीन प्रवाह
(स) उत्परिवर्तन
(द) प्राकृतिक वरण
उत्तर:
(अ) जेनेटिक ड्रिफ्ट

24. निम्न में से कौन मानव का सर्वाधिक निकट सम्बन्धी है ?
(अ) चिम्पैंजी
(ब) गोरिल्ला
(स) औरगउटान
(द) गिब्बन
उत्तर:
(अ) चिम्पैंजी

25. जीवों में विविधता का कारण है-
(अ) उत्परिवर्तन
(ब) दीर्घकालिक उद्विकासीय परिवर्तन
(स) क्रमिक परिवर्तन
(द) अल्पकालिक उद्विकासीय परिवर्तन
उत्तर:
(ब) दीर्घकालिक उद्विकासीय परिवर्तन

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26. वर्तमान फसली पादपों में तीव्र जाति उद्भवन का कारण है-
(अ) उत्परिवर्तन
(ब) पृथक्करण
(स) बहुगुणिता
(द) लैंगिक जनन
उत्तर:
(अ) उत्परिवर्तन

27. हार्डी – वेनवर्ग साम्यता को प्रभावित करने वाला घटक है-
(अ) जीन प्रवाह
(ब) आनुवंशिक विचलन
(स) उत्परिवर्तन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. ट्राइरेनोसोरस रेक्स की लगभग ऊँचाई कितनी थी ?
(अ) 20 फुट
(ब) 10 फुट
(स) 15 फुट
(द) 5 फुट
उत्तर:
(अ) 20 फुट

29. विशाल डरावने कटार जैसे दाँत वाला था-
(अ) डायनोसौर
(ब) ट्राइरेनोसोरस रेक्स
(स) इक्थियोसाएस
(द) ड्रायोपिथिकस
उत्तर:
(ब) ट्राइरेनोसोरस रेक्स

30. स्तनधारी प्राणी पूरी तरह से जल में रहते हैं-
(अ) समुद्री गायें
(ब) सील
(स) डॉल्फिन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

31. दिशात्मक परिवर्तन या विदारण (डिसरप्शन ) किसके दोनों सिरों पर होता है-
(अ) संग्रह चक्र
(ब) वृद्धि वक्र
(स) वितरण वक्र
(द) तिरछा वक्र
उत्तर:

32. शारवनी अवरोहण और प्राकृतिक वरण विकास, ये संरचनाएँ किस वैज्ञानिक की हैं—
(अ) मिलर
(ब) आपेरिन
(स) एल्फ्रेड वालेस
(द) डार्विन
उत्तर:
(अ) मिलर

33. एक तलछट पर दूसरे तलछट की परत पृथ्वी के लम्बे इतिहास की गवाह है। यह संकेत देता है-
(अ) अर्थक्रस्ट (भूपर्थरी) का अनुप्रस्थ काट
(ब) अर्थक्रस्ट का लम्बवत् काट
(स) अर्थक्रस्ट का तिरछा काट
(द) अर्थक्रस्ट का अनुदैर्घ्य काट
उत्तर:
(द) अर्थक्रस्ट का अनुदैर्घ्य काट

34. “बिग बैंग” नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त किससे सम्बन्धित है-
(अ) सूर्य की उत्पत्ति
(ब) मंगल ग्रह की उत्पत्ति
(स) ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
(द) चन्द्रमा की उत्पत्ति
उत्तर:
(अ) सूर्य की उत्पत्ति

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

35. खगोल वैज्ञानिक अभी भी अपना मन पसंदीदा सिद्धान्त मानते
(अ) बिग बैंग महाविस्फोट सिद्धान्त को
(ब) स्वतः जनन के सिद्धान्त को
(स) पेन- स्पर्मिया ( सर्वबीजाणु) सिद्धान्त को
(द) आपेरेन के सिद्धान्त को
उत्तर:
(स) पेन- स्पर्मिया ( सर्वबीजाणु) सिद्धान्त को

36. “मिल्की वे” क्या है?
(अ) आकाश गंगा
(ब) प्रकाश वर्ष
(स) महासागर
(द) पेन- स्पर्मिया
उत्तर:
(अ) आकाश गंगा

37. तारकीय दूरियों को मापा जाता है-
(अ) किलोमीटर में
(स) प्रकाश वर्ष में
(ब) मीलों में
(द) किलो वाट में
उत्तर:
(स) प्रकाश वर्ष में

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
किस वैज्ञानिक ने साल्टेशन को प्रजाति की उत्पत्ति का मुख्य कारण बताया?
उत्तर:
ह्यूगो डी ब्रिज वैज्ञानिक ने साल्टेशन को प्रजाति की उत्पत्ति का मुख्य कारण बताया।

प्रश्न 2.
जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त किसने दिया था?
उत्तर:
जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त हार्वे तथा हक्सले ने दिया था।

प्रश्न 3.
आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर:
आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सैपियन्स है।

प्रश्न 4.
वर्तमान मानव के सबसे निकट सम्बन्धी मानव का नाम बताइये।
उत्तर:
क्रोमैगनॉन मानव वर्तमान मानव का सबसे निकटतम सम्बन्धी है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी का उद्भव किस आकाश गंगा से हुआ ?
उत्तर:
पृथ्वी का उद्भव मिल्की आकाश गंगा से हुआ।

प्रश्न 6.
अध: मानव ( Subhuman) व आदि मानव किसे माना गया?
उत्तर:
रामापिथिकस को अधः मानव तथा आस्ट्रैलोपिथेकस को आदिमानव माना गया है।

प्रश्न 7.
तारकीय दूरियों को किसमें मापा जाता है ?
उत्तर:
तारकीय दूरियों को प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापा जाता है।

प्रश्न 8.
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति में कौनसा महाविस्फोटक का सिद्धान्त बताने का प्रयास करता है?
उत्तर:
बिग बैंग (Big Bang ) नामक महाविस्फोट ।

प्रश्न 9.
अनुरूपता ( Analogy) का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऑक्टोपस (Octopus) तथा स्तनधारियों की आँखें अनुरूपता का उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
औद्योगिक प्रदूषण के सूचक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लाइकेन (Lichen ) औद्योगिक प्रदूषण के सूचक होते हैं।

प्रश्न 11.
योजक कड़ी (Connecting Link) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जन्तुओं में कुछ जीव ऐसे होते हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण एक साथ पाये जाते हैं। ऐसे जन्तुओं को योजक कड़ी (Connecting Link) कहते हैं। उदाहरण- आर्किओप्टेरिस में रेप्टाइल्स व पक्षियों दोनों के लक्षण मिलते हैं ।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

प्रश्न 12.
योग्यतम की उत्तरजीविता से क्या समझते हो ?
उत्तर:
जीवन संघर्ष में केवल वे ही जीव जीवित रह पाते हैं. जिनमें वातावरण के अनुरूप अनुकूलन की क्षमता होती है। इसे ही योग्यतम की उत्तरजीविता कहते हैं।

प्रश्न 13.
जीवाश्म की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
चार्ल्स लायल के अनुसार – “पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं।”

प्रश्न 14.
अनुहरण (Mimicry) किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी जीव का दूसरों को धोखा देने के लिए, अपनी सुरक्षा या किसी अन्य लाभ (आक्रमण) के लिए दूसरे जीवों के या किसी अन्य प्राकृतिक वस्तु के समान दिखाई देना या नकल करना अनुहरण कहलाता है।

प्रश्न 15.
उत्परिवर्तन को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
जीवों के आनुवंशिक संगठन में अचानक वंशागत होने वाले परिवर्तन उत्परिवर्तन (Mutation) कहलाते हैं।

प्रश्न 16.
उस वैज्ञानिक का नाम बताइए जिसने स्वतः जननवाद (Spontaneous generations theory) को गलत सिद्ध किया ।
उत्तर:
लुईस पाश्चर (Louis Pasteur ) ने स्वतः जननवाद को गलत सिद्ध किया ।

प्रश्न 17.
डार्विनवाद की दो मुख्य संकल्पनाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:

  • शाखनी अवरोहण (Branching Descent )
  • प्राकृतिक वरण विकास (Natural Selection ) ।

प्रश्न 18.
होमोसेपियन्स के प्रवसन का कारण कौन-सी भौगोलिक प्रजातियाँ हैं ?
उत्तर:
चार प्रजातियाँ है- नीग्रॉयड (Negroid), ऑस्ट्रेलॉयड (Australoid), कॉकेसायड्स (Caucasoids) तथा मंगोलायड्स (Mongoloids)।

प्रश्न 19.
कौन से युग (काल) को डायनोसौर का स्वर्णिम युग कहते हैं?
उत्तर:
मीसोजोइक युग (काल) को डायनोसौर का स्वर्णिम युग कहते हैं।

प्रश्न 20.
किस समुद्री जहाज पर डार्विन ने प्रकृति का अध्ययन किया?
उत्तर:
बीगल नामक समुद्री जहाज पर डार्विन ने प्रकृति का अध्ययन किया।

प्रश्न 21.
मानव के किस पूर्वज ने सर्वप्रथम दो पैरों पर चलना आरम्भ किया?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस ने सर्वप्रथम दो पैरों पर चलना आरम्भ किया।

प्रश्न 22.
एक बच्चा पैदा हुआ जिसमें एक छोटी-सी पूँछ है, बताइए यह किसका उदाहरण है?
उत्तर:
पूर्वजानुरूपता का उदाहरण है।

प्रश्न 23.
क्रोमेग्नॉन मानव भोजन ग्रहण करने के आधार पर किस प्रकार का प्राणी था ?
उत्तर:
क्रोमेग्नॉन मानव भोजन ग्रहण करने के आधार पर मांसाहारी प्रकार का प्राणी था।

प्रश्न 24.
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
जीवाश्म विज्ञान (पेलियोन्टोलॉजी) शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 25
उस वैज्ञानिक का नाम बताइए जिसने स्वतः उत्पत्तिवाद सिद्धान्त का विरोध किया?
उत्तर:
वैज्ञानिक लुई पाश्चर (Louis Pasteur ) ने स्वत: उत्पत्तिवाद सिद्धान्त का विरोध किया।

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प्रश्न 26.
दो कशेरूकी शरीर के अंगों के नाम लिखिए जो मनुष्य की अग्रपाद के समजात अंग होते हैं।
उत्तर:

  • व्हेल के फ्लिपर
  • पक्षी का पंख ।

प्रश्न 27.
बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा का प्रतान किस प्रकार के अंग हैं समजात अथवा समवृत्ति ? उनमें इस प्रकार की समानता किस प्रकार के विकास से आयी है ?
उत्तर:
बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा का प्रतान समजात अंग हैं। यह समानता अपसारी विकास से आयी है।

प्रश्न 28.
मानव विकास के क्रम में कौनसे मानव के मस्तिष्क का आकार 1400 सी. सी. था?
उत्तर:
निएंडरथल (Neanderthal) मानव के मस्तिष्क का आकार 1400 सी. सी था

प्रश्न 29.
‘ड्रायोपिथिकस’ तथा ‘रामापिथिकस’ नामक नर वानर में दो समानताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके शरीर बालों से भरपूर थे।
  • दोनों गोरिल्ला एवं चिंपैंजी जैसे चलते थे ।

प्रश्न 30.
महाकपियों तथा मानव के पूर्वज के नाम लिखिए।
उत्तर:
महाकपियों तथा मानव के पूर्वज का नाम ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus) है।

प्रश्न 31.
किस वैज्ञानिक ने प्रयोग करते हुए यह प्रदर्शित किया कि “जीवन पहले से विद्यमान जीवन से ही निकलकर आता है “?
उत्तर:
लुई पाश्चर ।

प्रश्न 32.
ड्रायोपिथिकस तथा रामापिथिकस नरवानरों में अन्तर बताइए ।
उत्तर:
ड्रायोपिथिकस वनमानुष (ऐप) जैसे थे जबकि रामापिथिकस अधिक मनुष्यों जैसे थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पूर्वजता या प्रत्यावर्तन (Atavism or Reversion) किसे कहते हैं? इसके कोई दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
जीव जातियों में कभी-कभी अचानक ऐसे लक्षण आ जाते हैं जो उनकी स्वयं की जाति में नहीं पाये जाते किन्तु बहुत समय पूर्व पुराने पूर्वजों में ये लक्षण पाये जाते थे। इसे पूर्वजता या प्रत्यावर्तन कहते हैं।
इन संरचनाओं द्वारा यह सिद्ध होता है कि जो इन संरचनाओं को रखते हैं उनका विकास उन पूर्वजों से हुआ है जिनमें ये संरचनाएँ पूर्ण विकसित रही होंगी।
उदाहरण-

  • मानव शिशु में पूँछ की उपस्थिति
  • लम्बे तथा शरीर पर घने बाल हमारा आदि कपियों से संबध दर्शाता है।

प्रश्न 2.
स्वतः जननवाद (Spontaneous Creation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वतः जननवाद (Spontaneous Creation) – इसके अनुसार जीवों की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों द्वारा स्वत: हुई है। इस सिद्धान्त
का प्रतिपादन वान हैलमाण्ट ने किया था। इन्होंने बताया कि पसीने से भीगे कपड़े तथा गेहूं के भूसे को एक साथ रखने से 21 दिन में चूहे उत्पन्न हो जाते हैं। नील नदी पर जब सूर्य की किरणें गिरती हैं तो जीवों का निर्माण होता है। नम मिट्टी में मेंढक बनते हैं। भारत में आज भी कई लोग विश्वास करते हैं कि गधे के मूत्र और गाय के गोबर से बिच्छू उत्पन्न हो जाते हैं। इस विचार को वैज्ञानिकों ने अस्वीकार कर दिया है।

प्रश्न 3.
जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के संबंध में प्रमाणित हुए कोई चार तथ्य लिखिए।
उत्तर:
जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के संबंध में निम्न चार तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एककोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की योजक कड़ियों को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (Mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली (Pedigree) का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
जैव विकांस से क्या अभिप्राय है? समझाइये |
उत्तर:
ओपेरिन वैज्ञानिक के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद इसके जल भण्डार में रासायनिक पदार्थों के संयोजन से जीव की उत्पत्ति हुई। ये एक सरल कोशिका के बने जीव थे, इन्हीं से जैव विकास की क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई। उद्विकास या जैव विकास का शाब्दिक अर्थ है, “सिमटी वस्तु का खुलकर या फैलकर समय-समय पर हुए परिवर्तनों को प्रदर्शित करना, सरल जीवों से जटिल जीवों के उत्पत्ति क्रम को जैव विकास कहते हैं।

” अन्य शब्दों में प्रारम्भिक निम्न कोटि के जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा जटिल जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास कहते हैं। ‘परिवर्तन के साथ अवतरण’ जैव विकास की मौलिक कल्पना है। पृथ्वी पर आवास करने वाले जीवधारी एक-दूसरे से भिन्न हैं परन्तु इन सभी का संरचनात्मक संगठन एक ही है, अर्थात् प्रत्येक का शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। सभी जीवों में जैविक क्रियायें समान रूप से होती हैं। सभी जीव अपना जीवन एक कोशिका समान संरचना युग्मनज से प्रारम्भ करते हैं जो इन विविध जीवधारियों के एक पूर्वजता को दर्शाता है।

प्रश्न 5.
डार्विनवाद को समझाने के लिए वैज्ञानिक वालेस ने कौन-सा चार्ट प्रस्तुत किया? समझाइए ।
उत्तर:
डार्विनवाद को समझाने के लिए वालेस ने एक चार्ट प्रस्तुत किया जिसे वालेस चार्ट कहते हैं-
यह सिद्धान्त बाद में डार्विन की पुस्तक, प्राकृतिक वरण द्वारा जाति उत्पत्ति में समझाया गया।

प्रमाणित तथ्य (Facts)परिणाम (Consequences)
(अ) जीव-जन्तुओं में सन्तानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता

(ब) एक जाति के प्राणियों की संख्या स्थिर

जीवन संघर्ष
(अ) जीवन संघर्ष

(ब) विभिन्नताएँ तथा आनुवंशिकता

योग्यतम की उत्तरजीविता या प्राकृतिक वरण
(अ) योग्यतम की उत्तरजीविता

(ब) वातावरण में सतत् परिवर्तन

निर्तर प्राकृतिक वरण द्वारा नयी जाति की उत्पत्ति

प्रश्न 6.
जीवन की उत्पत्ति व विकास के सम्बन्ध में मिलर द्वारा किये गये प्रयोग को समझाइये |
अथवा
स्टैनले मिलर के प्रयोग का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइये ।
उत्तर:
मिलर ने एक तर्कपूर्ण प्रयोग किया। इस प्रयोग का उद्देश्य उस परिकल्पना का परीक्षण करना था जिसके अनुसार यह माना जाता है। कि अमीनो अम्ल सदृश पदार्थ अमोनिया, जल एवं मीथेन जैसे प्रथम यौगिकों से बने होंगे। मिलर ने एक विशिष्ट वायुरोधक उपकरण जिसे चिन्गारी विमुक्त उपकरण (Spark Discharge Apparatus) कहते हैं।

इस उपकरण में मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन (2:1:2) एवं जल का उच्च ऊर्जा ले विद्युत स्फुलिंग (High Energy Electrical Spark) में से परिवहन किया। जलवाष्प एवं उष्णता की पूत उबलते हुए जल के पात्र द्वारा की गई। परिवहन करती हुई जलवाष्प ठण्डी व संघनित होकर जल में परिवर्तित हो गई।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास 1

इस प्रयोग का उद्देश्य उन परिस्थितियों का निर्माण करना था जो कि जीव की उत्पत्ति के समय पृथ्वी पर रही होंगी। मिलर ने दो सप्ताह तक इस उपकरण में गैसों का परिवहन होने दिया । इसके बाद उसने उपकरण की ‘U’ नली में जमे द्रव को निकाल कर निरीक्षण किया तो इसमें अमीनो अम्ल एवं कार्बनिक अम्लों के साथ-साथ राइबोस, शर्करा, प्यूरीन्स, पिरामिडिन्स आदि पाये गए।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

प्रश्न 7.
निएण्डरथल मानव के जीवाश्म कहाँ पाये गये? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इसके जीवाश्म सी. फूहलरोट (C. Fullhrott) द्वारा 1956 में जर्मनी की निएण्डर घाटी से प्राप्त हुए या पाये गये । विशेषताएँ निम्न हैं-

  • इनकी उत्पत्ति और विकास 40,000 से 1 लाख वर्ष पहले हुआ।
  • ये खुले मैदानों में झोंपड़ियाँ बनाकर रहते थे।
  • कपाल गुहा का आयतन 1300-1600 सी.सी. (आज के मानव के समान) औसतन (1400 सी. सी.) ।
  • पूर्व ऊर्ध्व शरीर था।
  • शरीर पर बाल पूर्व मानव की तुलना में संख्या में कम थे ।
  • अल्पविकसित ठोड़ी (Chin) उपस्थित थी (आर्थीग्नेथस चेहरा) ।
  • बोलने का केन्द्र (Speech Centre) का प्रारम्भ इसी मानव से हुआ।
  • ये जानवरों की खाल के कपड़े पहनते थे ।
  • ये अपने मृतकों को क्रियाकर्म के साथ दफनाते थे।
  • स्वभाव में सर्वाहारी ।

प्रश्न 8.
जीवन की उत्पत्ति अंतरिक्ष से होने पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जीवन अंतरिक्ष से आया है। पूर्व ग्रीक विचारकों का मानना है कि जीवन की ‘स्पोर’ नामक इकाई विभिन्न या अनेक ग्रहों में स्थानान्तरित हुई, पृथ्वी जिसमें एक थी। कुछ खगोल वैज्ञानिक ‘पैन स्पर्मिया’ (सर्वबीजाणु) को अभी भी मान्यता देते हैं।

प्रश्न 9.
औद्योगिक अतिकृष्णता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक वरण के सिद्धान्त के अध्ययन के लिये इंग्लैण्ड में पाये जाने वाले विशेष शलभ (Moth Bistoy Betularia) का परीक्षण किया। इस प्रयोग के अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट हुआ कि इंग्लैण्ड में औद्योगिक विकास से पूर्व की वनस्पतियों के तने भूरे रंग के थे क्योंकि उन पर भूरी लाइकेन परत के रूप में जमा थी।

उस समय वहाँ भूरे रंग के शलभ की संख्या बहुत अधिक थी तथा काले रंग के शलभ कार्बोनेरिया संख्या में कम एवं दुर्लभ थे। इसका सम्भावित कारण तनों का भूरा रंग भूरे शलभों की मांसाहारी पक्षियों से सुरक्षा प्रदान कर रहा था क्योंकि तनों पर शलभ के समान पृष्ठभूमि के कारण पहचान में नहीं आते। औद्योगिक विकास होने पर कोयले का अत्यधिक उपयोग किया जाने लगा।

इससे वातावरण में कालिख की मात्रा बढ़ गई। जिसके फलस्वरूप तनों पर कालिख के जमने के कारण उनका रंग काला हो गया। इस समय भूरे शलभ पक्षियों की पहचान में आसानी से आने लगे। उन्होंने इन्हें मारकर नष्ट कर दिया। कुछ समय बाद देखा कि भूरे रंग की शलभों की संख्या तो कम हो गई परन्तु काले रंग के शलभों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई क्योंकि इस समय तनों का रंग काला उनको सुरक्षा प्रदान कर रहा है।

वर्तमान में उद्योगों में कोयले के स्थान पर बिजली का उपयोग किया जाने लगा जिससे वातावरण में कालिख एवं धुआँ लगभग समाप्त हो गया जिसके कारण वनस्पतियों के तने वापस अपने पूर्व रंग अर्थात् भूरे हो गये। इस रंग परिवर्तन का प्रभाव काले रंग के शलभों की संख्या पर भी पड़ा।

अब पक्षियों द्वारा काले शलभों को पहचान लिए जाने के कारण इनका भक्षण अधिक संख्या में होने लगा परन्तु भूरे रंग के शलभों को पक्षी द्वारा नहीं पहचान पाने के कारण शिकार होने से बच गये। इससे इनकी संख्या में पुनः पूर्ववत् वृद्धि हो गई। इस तरह प्रकृति जीवों के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 10.
कृत्रिम चयन ( Artificial Selection) किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइये |
उत्तर:
कृत्रिम चयन ( Artificial Selection ) – मानव द्वारा जननिक विभिन्नताओं का उपयोग जन्तुओं तथा पौधों की उत्तम क्वालिटी नस्ल सुधार के लिए किया जाता है मानव वांछनीय लक्षणों वाले सदस्यों का आबादी से चयन कर उन्हें उन सदस्यों से पृथक् कर लेता है जिनमें ये लक्षण नहीं पाये जाते। अब चयनित सदस्यों के बीच अंत:प्रजनन (Interbreeding) कराई जाती है।

इस प्रक्रिया को ही कृत्रिम वरण चयन ( Artificial Selection) कहते हैं। यदि यह प्रक्रिया कई पीढ़ियों तक जारी रहे तो अंततः एक नई वांछनीय लक्षणों वाली प्रजाति की उत्पत्ति हो जाती है। जन्तु प्रजनकों (Animal Breeders) द्वारा कृत्रिम चयन के माध्यम से अनेक पालतू जानवरों की वांछनीय लक्षणों युक्त जातियों का उनके सामान्य पूर्वजों से विकास किया गया है जैसे कुत्ता, घोड़ा, कबूतर, मुर्गी, गाय, बकरी, भेड़ और सुअर आदि।

इसी प्रकार पादप प्रजनकों (Plant breeders) द्वारा उपयोगी पौधों की उत्तम किस्मों को प्राप्त किया गया है जैसे गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, दाल, सब्जियाँ और फल आदि। कृत्रिम चयन प्राकृतिक वरण के ही समान हैं केवल इसमें प्रकृति का स्थान मानव द्वारा मानव उपयोगी लक्षणों के विकास के लिये ले लिया जाता है। चयनित लक्षण मानव उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 11.
जन्तु वर्गीकरण किस प्रकार से जैव विकास को प्रमाणित करता है?
उत्तर:
प्रकृति में पाये जाने वाले विविध जाति के जन्तुओं को समानताओं (similarities) एवं विभिन्नताओं (dissimilarities) के आधार पर छोटे या बड़े समहों में वर्गीकृत (classify) किया गया है। जैव विकास का यह महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। सभी जन्तुओं को सर्वप्रथम लीनियस ने द्विनाम पद्धति के आधार पर विभिन्न समुदायों में बाँटा था।

पृष्ठवंशी उपसमुदाय (Subphylum vertebrata) को कई वर्गों (classes) में बाँटा गया जो कि क्रमिक विकास के अनुसार चतुर्मुखीय (cyclostomes), मत्स उभयचरों (Amphibians), सरीसृपों (Reptiles), पक्षियों (Aves) तथा स्तनियों (Mammals) में श्रेणीबद्ध किया गया है।

इस क्रम से स्पष्ट है कि आदिकाल में किसी अपृष्ठवंशी (non-chordates) मछली सदृश जन्तु से परिवर्तित होकर मछली बनी, मछली से विकसित होकर उभयचर, उभयचर से सरीसृप, सरीसृप से पक्षी तथा बाद में स्तनी बने। इन सब वर्गों में क्रमिक विकास का प्रमाण इनमें पायी जाने वाली समानताओं के द्वारा मिलता है। वर्गीकरण की इस विधि से समस्त जन्तुओं व पेड़-पौधों का वंश वृक्ष (Family tree) तैयार किया जा सकता है जिससे समुदाय प्रोटोजोआ से लेकर पृष्ठवंशी (Chordata) तक विभिन्न समुदायों के जन्तुओं में क्रमिक विकास का प्रमाण मिलता है।

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प्रश्न 12.
संयोजक कड़ियों से आप क्या समझते हैं? उचित उदाहरण देकर इनका जैव विकास में महत्व को समझाइए ।
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connecting links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx ) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर के शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अत: इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं।

इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles ) से हुआ है। जैव विकास में संयोजक कड़ियों का महत्त्व-संयोजक कड़ियाँ जैव विकास को प्रमाणित करने के लिए महत्त्वपूर्ण आधार हैं। इनके माध्यम से विभिन्न जातियों एवं वर्गों की निश्चित वंशावली एवं पूर्वजों का ज्ञान उपलब्ध होता है। इनमें जैव विकास का क्रम और दिशा भी निर्धारित होती है।

प्रश्न 13.
उत्परिवर्तन किसे कहते हैं? उत्परिवर्तन सिद्धान्त के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिये ।
उत्तर:
डी – ब्रीज (1901) ने इवनिंग प्रिमरोज जाति के पौधों पर परीक्षणों के पश्चात् ज्ञात किया कि कुछ पौधे अकस्मात् अपनी जाति से बिल्कुल भिन्न हो जाते हैं। यही नहीं, विभिन्न लक्षण वंशागत होकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते रहते हैं और नयी जाति का निर्माण करते हैं। जातीय लक्षणों में अकस्मात् वंशागत परिवर्तनों की क्रिया को डी- ब्रीज ने उत्परिवर्तन की संज्ञा दी एवं उत्परिवर्तनवाद का सिद्धान्त दिया। आधुनिक अनुसंधानों से यह भी पता चल चुका है कि जीवों में उत्परिवर्तन उनकी जनन कोशिकाओं में स्थित गुणसूत्रों एवं जीन्स की व्यवस्था में परिवर्तन के कारण होता है।

डी- ब्रीज के उत्परिवर्तन सिद्धान्त के तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. प्राकृतिक रूप से जनन करने वाली जातियों या समष्टियों में समय-समय पर उत्परिवर्तन विकसित होते हैं। उत्परिवर्ती जीव (mutant organisms) जनक जीवों से भिन्न होते हैं।
  2. उत्परिवर्तन वंशागत होते हैं तथा इनसे नयी जातियों का विकास होता है।
  3. उत्परिवर्तन दीर्घ एवं आकस्मिक होते हैं।
  4. ये किसी भी दिशा में हो सकते हैं। अतः लाभप्रद भी हो सकते हैं और हानिकारक भी।
  5. उत्परिवर्तनों पर प्राकृतिक वरण का प्रभाव पड़ता है। लाभप्रद उत्परिवर्तन जीवों के अन्दर संचित कर लिये जाते हैं और हानिकारक उत्परिवर्तन वाले जीव प्राकृतिक वरण द्वारा नष्ट हो जाते हैं।
  6. डार्विन ने इन आकस्मिक परिवर्तनों को स्पोर्ट्स (Sports) का नाम दिया। अंगों का अत्यधिक विशेषीकरण (Specialization) की व्याख्या इन्हीं स्पोर्ट्स (Sports) या आकस्मिक उत्परिवर्तन द्वारा की जा सकती है।
  7. अंगों के विकास की प्रारम्भिक अवस्था को उत्परिवर्तन सिद्धान्त के द्वारा समझाया जा सकता है, क्योंकि उत्परिवर्तन प्रारम्भ से ही पूर्ण होते हैं।

उत्परिवर्तनवाद का महत्त्व – इसमें किंचित् मात्र भी सन्देह नहीं है कि उत्परिवर्तन प्रकृति में होते हैं तथा विकास में इनका योगदान होता है। प्राकृतिक वरण एवं उत्परिवर्तनों के फलस्वरूप ही जीवों में विकास होता है।

प्रश्न 14.
डार्विन के संदर्भ में जीवन-संघर्ष को समझाइए ।
अथवा
डार्विन के अनुसार प्रकृति में जीवन संघर्ष कितने प्रकार का होता है? समझाइए ।
उत्तर:
जीवन संघर्ष तीन प्रकार का होता है-
(i) अन्त: जातीय संघर्ष यह एक ही जाति के सदस्यों के मध्य होता है, जैसे-दो कुत्तों के मध्य रोटी का टुकड़ा फेंक दिया जाये तो वे आपस में लड़ने लगते हैं। उनमें से जो अधिक शक्तिशाली होता है वही रोटी ग्रहण कर लेता है। अन्त: जातीय संघर्ष भोजन, स्थान व जनन के लिये होता है।

(ii) अन्तर्जातीय संघर्ष – यह संघर्ष दो विभिन्न जातियों में होता है। प्राय: देखा जाता है कि चूहे को देखते ही बिल्ली उसे खाने को दौड़ती है। चूहा अपनी रक्षा का प्रयास करता है। यह संघर्ष प्रायः भोजन के लिये होता है।

(iii) वातावरण संघर्ष – पृथ्वी के वातावरण में कई परिवर्तन होते रहते हैं। जैसे अधिक सर्दी, अधिक गर्मी, भूचाल, वर्षा आदि। जीवों को ऐसे परिवर्तनों से संघर्ष करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
कपि एवं मानव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कपि (Apes) एवं मानव ( Human) में अन्तर –

कपि (Apes)मानव (Human)
1. अर्द्ध ऊर्ध्व स्थितिपूर्ण ऊर्ध्व स्थिति
2. गर्दन छोटी व धंसी हुईलम्बी तथा ऊर्ध्व गर्दन
3. पूर्ण शरीर पर बालों की घनी वृद्धिमानव में घनी वृद्धि केवल कुछ स्थानों पर होती है।
4. कपाल गुहा का आयतन (cranial capacity) कम होता है। (450-500 सी.सी.)कपाल गुहा का आयतन (cranial capacity) अधिक होता है (1300-1600 सी.सी.)
5. कम बुद्धिमान होते हैंअधिक बुद्धिमान होते हैं
6. अग्र पाद पश्च पादों से लम्बेअग्र पाद पश्च पादों से छोटे
7. जबड़े ‘U’ आकृति के होते हैंमानव में अर्द्धवृत्ताकार जबड़े होते हैं
8. ठोड़ी (Chin) अनुपस्थित होती हैठोड़ी (Chin) उपस्थित होती है
9. अंगूठा हथेली के समानान्तर होता हैसम्मुख अंगूठा (हथेली के समकोण पर स्थित)
10. श्रोणि मेखला दीर्घीतचौड़ी श्रोणि मेखला
11. प्रमुख रूप से वृक्षाश्रयी वासस्थलीय वास
12. ऊपरी होंठ पर खाँच नहीं होतीऊपरी होंठ पर मध्यवर्ती खाँच (Furrow) उपस्थित
13. शिशु एवं बाल्यावस्था अपेक्षाकृत छोटीशिशु एवं बाल्यावस्था लम्बी
14. मादा में उभरे हुए स्तन नहींमादा में स्तन उभरे हुए
15. प्रीमैक्सिली हड्डियाँ मैक्सिली से पृथक्प्रीमैक्सिली हड्डियाँ मैक्सिली से समेकित

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प्रश्न 16.
डी – ब्रीज और लेमार्क के सिद्धान्त में क्या अन्तर है? समझाइए ।
उत्तर:
डी ब्रीज और लेमार्क के सिद्धान्त में अन्तर-

डी-व्रीज के सिद्धान्तलेमार्क के सिद्धान्त
1. डी-व्रीज ने जैव विकास के उत्परिवर्तन के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।जबकि लैमार्क ने उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
2. डी-व्रीज के मतानुसार नई जातियों की उत्पत्ति छोटी-छोटी विभिन्नताओं के वंशागत होने से नहीं बल्कि उत्परिवर्तन के कारण आकस्मिक बड़ी विभिन्नताओं के वंशागत होने से होती है ।लैमार्क के मतानुसार जीवों की वृद्धि एवं उनकी आकृति पर वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है जिससे उनके अंगों की संरचना में धीरेधीरे परिवर्तन होने लगता है। यह उपार्जित परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पैतृक गुणों में वंशागत रहते हैं।
3. उदाहरण-इवनिंग प्रिमरोजउदाहरण-जिराफ की गर्दन का लम्बा होना।

प्रश्न 17.
पादप या उसके भागों में पायी जाने वाली समजातता एवं तुल्यरूपता उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
समजातता व्हेल, चमगादड़ों, चीता और मानव (सभी स्तनधारी) अग्रपाद की अस्थियों में समानता दर्शाते हैं। ये यद्यपि भिन्न-भिन्न क्रियाकलाप करते हैं परन्तु इनकी शारीरिक संरचना समान होती है। ये सभी संरचनाएँ समजातीय होती हैं, जिनमें समान पूर्वज परम्पराएँ होती हैं; इसे समजातता कहते हैं। तुल्यरूपता- पक्षी एवं तितलियों के पंख लगभग एक समान दिखते हैं; लेकिन इनमें पूर्वज परम्परा सामान्य नहीं है और न ही शरीर की रचना में समानता है। भले ही वे समान क्रिया को सम्पन्न करते हैं।

प्रश्न 18.
पृथ्वी पर जीवन के विकास की प्रक्रिया में डार्विन तथा डी- ब्रीज के मतों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
डार्विन तथा डी ब्रीज के मतों में अन्तर-

डार्विन का मतडी व्रीज का मत
1. डार्विन के परिवर्तन छोटे तथा दिशात्मक हैं।जबकि डी-व्रीज के उत्परिवर्तन (Mutation) आकस्मिक तथा दिशाहीन हैं।
2. डार्विन के अनुसार परिवर्तन तथा प्राकृतिक वरण अनेक पीढ़ियों के पश्चात् उत्पन्न होता है जो कि नई जाति के लिए उत्तरदायी होता है।जबकि डी-व्रीज के अनुसार आकस्मिक उत्परिवर्तन के द्वारा नयी जाति उत्पन्न होती है।
3. डार्विन के अनुस्रार विकास धीरे-धीरे अर्थात् चरणों में हुआ है।जबकि डी-व्रीज के अनुसार विकांस एक चरण में हुआ है।

प्रश्न 19.
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ऊपर दिखाये गए डार्विन के फिंच पक्षियों में आप क्या भिन्नताएँ देख रहे हैं? लिखिए।
अथवा
गैलेपेगॉस द्वीपों पर फिंचों की विभिन्न किस्मों के अस्तित्व को डार्विन ने किस प्रकार समझाया ?
उत्तर:
डार्विन ने दक्षिण अमेरिका के समीप स्थित गेलेपेगोस द्वीप (Galapogos Island) की भिन्न वातावरणीय परिस्थितियों के कारण उपस्थित भिन्न प्रकार के जन्तु और पादप समष्टि (Fauna \& Flora) अध्ययन किया। उन्होंने एक प्रकार की चिड़िया जिसे डार्विन की फिंच (Darwin’s Finch) के नाम से जाना जाता है, उसका अध्ययन किया।

उन्होंने लगभग 20 प्रकार की चिड़ियाँ (Finches) देखीं, जो विश्व के किसी क्षेत्र में नहीं मिलती हैं। इन सभी फिंच की चोंच की आकृति अलग-अलग प्रकार की थी। इसकी एक जाति की फिंच अपनी चोंच से पेड़ की छाल को भेद तो देती थी पर भेदे हुए छिद्र के अन्दर से कीटों (Insects) को निकालने में असमर्थ थी अत: यह फिंच चोंच से एक कांटे की सहायता से कीटों को निकाल कर भक्षण करती थी।

ये सभी चिड़ियाँ (फिंच) देखने पर भिन्न-भिन्न प्रकार की थीं लेकिन ये सभी फिंच जाती की थीं जिनका मूल निवास दक्षिणी अमेरिका था। इनमें से कुछ सम्भवतया इन द्वीपों पर पहुँच गयीं और धीरे-धीरे इनमें भिन्न वातावरण में अनुकूलन स्थापित होने के फलस्वरूप चिड़ियों के खाने में अर्थात् उपलब्ध भोजन के आधार पर परिवर्तन आया।

प्रारम्भ में ये बीजभक्षी थीं, फिर शाकाहारी और अन्त में कीटभक्षी हो गई। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन पक्षियों की चोंच में भिन्नता स्थानीय वातावरण एवं उसमें उपलब्ध भोजन से अनुकूलनता का परिणाम है। इस तरह मूल रूप से एक जाति के पक्षी में जो भिन्न-भिन्न वातावरण में अभिगमन कर गये उनसे अनेक जातियों एवं उपजातियों का विकास हुआ।

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प्रश्न 20.
(i) वह कौनसा विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है जहाँ ये जीव पाये जाते हैं?
(ii) उस परिघटना का नाम लिखिए एवं समझाइए जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में इतनी विविध जातियों का विकास हुआ है।
(iii) अपरा (प्लेसेन्टल) भेडिया और तस्मानियाई भेड़िया का साथ-साथ एक ही पर्यावरण में रहते रहना किस प्रकार सम्भव हुआ, कारण प्रस्तुत करते हुए समझाइए।
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उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम

निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है।

कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं । तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं।

कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
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बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2. गाजर व मूली ।

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1. अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं। जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं । जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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2. समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं। वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन ( Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. (ATP) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • साइटोक्रोम – सी (Cytochrome – C) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

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संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं।
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अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।

(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

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अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें, प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है।

इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों (Splint Bones)

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के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ।

बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी। यह एक विकासीय परिवर्तन था। इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं। इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं।

ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है। ”
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प्रश्न 21.
हार्डी-वेनबर्ग का नियम लिखिए।
उत्तर:
इसके अनुसार किसी समुदाय में यदि प्रजनन बेतरतीब (Random) होता है, यदि उत्परिवर्तन नहीं होते हैं तथा यदि समुदाय में सदस्यों की संख्या विशाल होती है तब इस समुदाय की जीन की जीन आवृत्ति (Gen Frequency) एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में स्थिर रहेगी अर्थात् यह समुदाय आनुवंशिक संतुलन (Genetic Equilibrium) स्थिति में होगा।

इस हार्डी – वेनबर्ग ने निम्न समीकरण द्वारा समझाया-
सभी अलील आवृत्तियों का योग 1 (एक) होता है तथा व्यष्टिगत आवृत्तियों को pq कहा गया । द्विगुणित में p तथा q अलील A तथा अलील a की आवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक जीव संख्या में AA की आवृत्ति साधारणतया P2 होती है। ठीक इस प्रकार से aa की आवृत्ति q2 होती है और Aa की 2pg होती है अत: P2 + 2pg + q2=1 हुआ। यह (p+q)2 की द्विपदी अभिव्यक्ति है।

इस प्रकार हार्डी – वेनबर्ग सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि यदि जीन आवृत्तियाँ परिवर्तित नहीं होती हैं अर्थात् वह समुदाय आनुवंशिक ‘संतुलन की दशा में होता है तब इसमें विकास की दर भी शून्य होती है । इस सिद्धान्त को दिये गये उदाहरण से समझाया जा सकता है। मान लीजिए किसी विशाल समुदाय में दी गई आवृत्ति में दो अलील (Allel) A व a उपस्थित हैं। मेन्डल के वंशागति नियमानुसार इस समुदाय में तीन प्रकार के सदस्य उपस्थित होंगे जिनका अनुपात निम्न होगा –

AAAaaa
36%48%16%

यदि यह माना जाये कि समुदाय के सदस्यों के बीच प्रजनन अव्यवस्थित (Random) ढंग से हो रहा तब ऐसी स्थिति में सभी सदस्य संख्या में लगभग एक सामान युग्मक उत्पादित करेंगे । यहाँ यह भी मान लें कि जीन A व a में उत्परिवर्तन नहीं होता है तब इस समुदाय के कुल उत्पादित युग्मकों ‘उत्पादित युग्मकों का प्रतिशत निम्न प्रकार का होगा-
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लैंगिक प्रजनन में इन युग्मकों में परस्पर निषेचन निम्नलिखित चार प्रकार से सम्भव होगा-
शुक्राणु A का संयुग्मन अण्ड A से
शुक्राणु a का संयुग्मन अण्ड a से
शुक्राणु A का संयुग्मन अण्ड a से तथा
शुक्राणु a का संयुग्मन अण्ड A से
उपर्युक्त उदाहरणानुसार युग्मकों के परस्पर संयुग्मन की आवृत्ति प्रतिशत निम्नलिखित प्रकार की होगी-
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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

अतः इस नयी अगली पीढ़ी में सदस्यों का वही अनुपात उपलब्ध होगा जो मूल जनक समुदाय में था । स्पष्ट है कि यहाँ जीन आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है अर्थात् यह समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवंशिक सन्तुलन की दशा में रहता है व ऐसे समुदाय में विकास की दर शून्य होगी। इस वर्णन से स्पष्ट है कि विकास परिवर्तन उसी दशा में सम्भव है जब हार्डी-वेनबर्ग नियम की एक या अधिक शर्तें भंग होती हैं तथा इसके फलस्वरूप जब समुदाय का आनुवंशिक सन्तुलन बिगड़ता है । पाँच घटक हार्डी-वेनबर्ग साम्यता को प्रभावति करते हैं जो निम्न हैं-

  • जीन पलायन (Gene Migration) या जीन प्रवाह (Gene flow),
  • आनुवंशिक विचलन (Genetic Drift),
  • उत्परिवर्तन (Mutation),
  • आनुवंशिक पुनर्योग (Genetic Recombination) और
  • प्राकृतिक वरण (Natural Selection )

इस प्रकार किसी समुदाय में प्राकृतिक चयन प्रक्रिया तभी होती है जब उस समुदाय में प्रजनन अव्यवस्थित प्रकार से नहीं होता है, जब उसमें आनुवंशिक उत्परिवर्तन होते या जब समुदाय में सदस्यों की संख्या कम होती है, तभी विकास सम्भव होता है। जब जीन संख्या का स्थान परिवर्तन होता है तो जीन आवृत्तियाँ भी बदल जाती हैं। यह दोनों मौलिक (पुरानी) तथा नई जीव संख्या में होता है।

नयी समष्टि में नई जीनें और अलील जोड़ दी जाती हैं व पुरानी समष्टि में ये घट जाती हैं।. यदि यही प्रक्रिया बार- बार होगी तो जीन प्रवाह सम्भव होगा। यदि यह परिवर्तन संयोगवश होता है तो आनुवंशिक अपवाह (Genetic Drift) कहलाता है । कभी-कभी अलील आवृत्ति का यह परिवर्तन समष्टि के नये नमूने में इतना भिन्न हो जाता है तो वह नूतन प्रजाति (Species) ही हो जाती है।

मौलिक अपवाहित (Original Drifted Population) संस्थापक बन जाती है व इस प्रभाव को संस्थापक प्रवाह कहा जाता है। सूक्ष्म जीवों पर किये गये प्रयोग यह दर्शाते हैं कि पूर्व विद्यमान लाभकारी उत्परिवर्तन का वरण होता है व नये फीनोटाइप (Phenotype) दिखाई देते हैं तथा कुछ पीढ़ियों के बाद यही नयी जाति हो जाती है। प्राकृतिक वरण में इन्हें जनन के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।

वास्तव में उत्परिवर्तन व युग्मों के निर्माण समय में पुनर्योजन या जीन अपवाह का परिणाम होता है, इससे आगामी पीढ़ी में जीन आवृत्ति में परिवर्तन आता है। धीरे-धीरे जनन की सफलता के सहारे से प्राकृतिक वरण इसे अलग समष्टि का रूप दे देता है। फिर प्राकृतिक वरण स्थायित्व प्रदान कर देता है। (व्यष्टियों को लक्षण प्राप्त होना) दिशात्मक परिवर्तन ( Directional) या विदारण (डिसरप्शन ) जो वितरण वक्र के दोनों सिरों में होता है।
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प्रश्न 22.
अपसारी विकास (Divergent Evolution) क्या है ? पौधों का उदाहरण लेते हुए समझाइये।
उत्तर:
अपसारी विकास (Divergent Evolution) – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं जिसे ही अपसारी विकास कहते हैं।

इन जातियों में समजात पाये जाते हैं- जैसे बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) समजात होते हैं। ये दोनों ही तने के रूपान्तरण हैं जो कार्य तथा भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार ( आकारिकी) रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्रश्न 23.
मानव के अवशेषी अंगों की सूची बनाइए ।
उत्तर:
मानव के शरीर में लगभग 180 अवशेषी अंग हैं जिनमें से सामान्य निम्नलिखित हैं-

  1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix )
  2. कर्ण पल्लव (Ear pinna)
  3. पुच्छ कशेरूकाएँ (Caudal Vertebrae)
  4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane)
  5. त्वचा के बाल (Hair )
  6. अक्कल दाढ़ (Wisdom Teeth)
  7. सरवाइकल फिस्टुला (Cervical Fistula)
  8. केनाइन दाँत (Canine teeth)
  9. अतिरिक्त चूचुक (Extra nipple )
  10. रूडीमेन्टरी गिल स्लिटस (Rudimentary gill slits)
  11. मानव शिशु में पूँछ (Human Body with Tail)

प्रश्न 24.
विकास के आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्त का वर्णन करें।
उत्तर:
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में हमें ‘बिग बैंग’ नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त यह कहता है कि एक महा विस्फोट के फलस्वरूप ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और तापमान में कमी आई। कुछ समय बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसें बनीं। ये गैसें गुरुत्वाकर्षण के कारण संघनीभूत हुईं और वर्तमान ब्रह्माण्ड की आकाश गंगाओं का गठन हुआ। आकाश गंगा के सौर मण्डल में पृथ्वी की रचना 4.5 बिलियन वर्ष (450 करोड़) पूर्व मानी जाती है। प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं था।

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जल, वाष्य, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया आदि धरातल को ढकने वाले गलित पदार्थों से निर्मुक्त हुई। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों ने पानी को (H2) तथा (O2) में विखण्डित कर दिया तथा हल्की (H2) मुक्त हो गई। ऑक्सीजन ने अमोनिया (NH2) एवं मीथेन (CH2) के साथ मिलकर पानी, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा अन्य गैसों आदि की रचना की।

पृथ्वी के चारों तरफ ओजोन परत का गठन हुआ। जब यह ठण्डा हुआ, तो जल-वाष्प बरसात के रूप में बरसी और गहरे स्थान भर गए, जिससे महासागरों की रचना हुई। पृथ्वी की उत्पत्ति के लगभग 50 करोड़ वर्ष बाद अर्थात् 400 करोड़ वर्ष पहले जीवन प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने समय-समय पर अपनी-अपनी परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कीं। इनमें प्रमुख

परिकल्पनाएँ निम्न हैं-
1. विशिष्ट सृष्टि का सिद्धान्त (Theory of Special Creation)-यह सिद्धान्त धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक फादर सुआरेझ (Father Suarez) थे, बाइबिल के अनुसार जीवन तथा सभी वस्तुओं की रचना भगवान द्वारा 6 दिनों में की गई।

प्रथम दिनस्वर्ग तथा नरक
द्वितीय दिनआकाश तथा जल
तीसरे दिनसूखी धरती और वनस्पति
चौथे दिनसूर्य, चन्द्रमा और तारे
पाँचवें दिनमछलियाँ और पक्षी
छठे दिनस्थलीय जन्तु और मनुष्य बने।

प्रथम मनुष्य (Adam) आदम बना और इसकी बारहवीं पसली से (Five) हौवा प्रथम नारी बनी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विश्व और सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा की गई। (प्रथम मानव मनु और प्रथम नारी श्रद्धा थे ) । इसके अनुसार जीवन अपरिवर्तनशील है तथा उत्पत्ति के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विशिष्ट सृष्टिवाद का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया।

2. स्वतः जनन का सिद्धान्त (अजीवात जीवोत्पत्ति) (Theory of Spontaneous Generation Abiogenesis or Autogenesis)-इस परिकल्पना का प्रतिपादन पुराने यूनानी दार्शानिक जैसे थेल्स, एनेक्सिमेन्डर, जेनोफेन्स, प्लेटो, एम्पीडोकल्स, अरस्तू द्वारा किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से अपने आप अचानक हुई। इनका विश्वास था कि नील नदी के कीचड़ पर प्रकाश की किरणें गिरने पर उससे मेंढ़क, सर्प, मगरमच्छ आदि उत्पन्न हो गये।

अजैविक उत्पत्ति का प्रायोगिक समर्थन वाल हेल्मोन्ट (Val Helmont 1642) द्वारा किया गया। इनके द्वारा अन्धेरे स्थल पर गेहूँ के चौकर (Barn) में पसीने से भीगी गन्दी कमीज (Shirt) को रखने पर 21 दिन में चूहों की उत्पत्ति को स्वतः जनन के द्वारा होना बताया।

3. ब्रह्माण्डवाद का सिद्धान्त (Cosmologic Theory)-यह सिद्धान्त रिचर (Richter) द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन पृथ्वी पर सर्वप्रथम किसी अन्य ग्रह या नक्षत्र से जीवद्रव्य (Protoplasm), बीजाणु (Spores) या अन्य कणों के रूप में कॉस्मिक धूल के साथ पहुँचा जिसने जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

4. कॉस्मिक पेनस्पर्मिया सिद्धान्त (Cosmic Panspermia Theory)-यह सिद्धान्त आरीनियस (Arrhenius) द्वारा प्रतिपाद्ति किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवों के बीजाणु (Spores) ब्रह्माण्ड में एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर स्वतन्त्र रूप से आ जा सकते हैं। इन्होंने ही पृध्व्वी पर पहुँचकर जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

5. जीवन की अनन्तकालता का सिद्धान्त (Theory of Eternity of Life)-हेल्महॉट्ज (Helmhotz) ने जीवन की अनन्तकालिता (Eternity of Life) में विश्वास किया। इनके अनुसार जीवन की उत्पत्ति या सृष्टि का प्रश्न उठता ही नहीं, क्योंकि ‘जीवन अमर है; ब्रह्माप्ड की उत्पत्ति के समय ही अजीव और सजीव पदार्थों की एक साथ उत्पत्ति हुई ।

6. जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त (Theory of Biogenesis)-यह सिद्धान्त हार्वे (Harvey, 1951) और हक्सले (T.H. Huxley, 1870) नामक वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपाद्त किया। इनके अनुसार पृथ्वी पर नये जीवन की उत्पत्ति या निर्माण पूर्व जीवों से होता है न कि निर्जीव पदार्थों से। यह सिद्धान्त स्वतः जनन (Spontaneous Generation) का तो खण्डन करता है किन्तु पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है। जीवात् जीवोत्पत्ति का प्रायोगिक सत्यापन और स्वतः जनन का प्रायोगिक खण्डन करने के लिए प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोग अग्र हैं।

7. फ्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi, 1668-इटालियन ) का प्रयोग-इन्होंने मरे हुए सांपों, मछलियों और माँस के टुकड़ों को जारों में रखकर कुछ जार खुुले छोड़े तथा कुछ को सील किया या जालीदार कपड़े में बंद किया। खुले जारों में मक्खियों ने माँस पर अण्डे दिये जिनसे डिम्भक (Larvae of maggots) निकले बंद जारों में मक्खियाँ नहीं घुस पायीं।

अतः इनके माँस में डिम्भक (Larvae or maggots) नहीं दिखाई दिये। इस प्रयोग द्वारा सिद्ध होता है कि डिम्भक का विकास मक्खियों द्वारा दिये गये अण्डों से हुआ जबकि बंद जार में मक्खियों के नहीं घुस पाने के कारण उनमें किसी प्रकार के डिम्भक (Larvae) का विकास नहीं हुआ। अतः जीव का जन्म पहले से उपस्थित जीव द्वारा संभव है न कि स्वतः जनन द्वारा।
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8. लैजेरो स्पैलैन्जनी (Lazzaro Spallanzani 1767 इटालियन) का प्रयोग-इन्होंने बंद फ्लास्कों में सब्जियों और माँस को उबालकर जीवाणु रहित (Sterilized) पोषक शोरबा (Broth) तैयार किया। खुले या ढीले कार्क से बन्द्र जारों में रखने पर इस शोरबे में अनेक जीवाणु पनप जाते थे, परन्तु सीलबन्द करके रखने पर इसमें जीवाणु उत्पन्न नहीं होते थे।

नीधम (Needham) ने इस प्रयोग के विरोध में कहा कि अधिक उबालने से यह शोरबा जीवों के स्वतः उत्पादन के योग्य नहीं रहा। इस पर स्पैलैन्जनी (Spallanzani) ने सीलबंद फ्लास्कों की नलियों को तोड़ दिया। कुछ दिन बाद हवा के भीतर पहुँचने के कारण, इन जारों के शोरबे में भी जीवाणु हो गये। इससे सिद्ध हुआ कि सूक्ष्म जीवाणु भी स्वतः उत्पादन द्वारा नहीं, वरन् हवा में उपस्थित जीवाणु से ही बनते हैं।

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9. लुईस पाश्चर (Louis Pasteur, 1860-1862-फ्रांसीसी) का प्रयोग-लुईस पाश्चर ने रोगों का रोगाणु सिद्धान्त (Germ Theory of Diseases or Germ Theory) प्रतिपादित के साथ अजैव उत्पत्ति को गलत सिद्ध किया।
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इन्होंने शक्कर और यीस्ट (Yeast) का घोल उबाल कर उसे जीवाणु रहित कर दिया। अब इस घोल को दो प्रकार के फ्लास्क में रखा एक जार (फ्लास्क) की गर्दन को गरम करके खींच कर ‘S’ आकार (हंस की गर्दन के समान) का बना दिया तथा दूसरे की गर्दन को तोड़ दिया  ‘S’ आकृति की गर्दन वाले फ्लास्क में कोई जीवाणु दिखाई नहीं दिये क्योंकि मुड़ी गर्दन पर धूल कण और सूक्ष्म जीव चिपक गए और विलयन तक नहीं पहुँच सके। जबकि टूटी ग्रीवा वाले फ्लांस्क में वायु और सूक्ष्म जीव आसानी से पहुँच जाने के कारण उसमें सूक्ष्म जीवों की कॉलोनी का विकास हो गया। लुईस पाश्चर के प्रयोगों से अजीवात् जीवोत्पत्ति की धारणा समाप्त हो गई और सजीवों से ही जीवन की उत्पत्ति सिद्ध हो गई।

10. ओपेरिन-हेल्डेन सिद्धान्त (Oparin-Haldane Theory of Origin of Life)-वैज्ञानिक ए.आई. ओपेरियन और जे.बी.एस. हेल्डेन (इंग्लैण्ड में जन्मे भारतीय वैज्ञानिक) ने प्रकृतिवाद् या रासायनिक विकास का सिद्धान्त (Naturalistic Theory or Theory of Chemical Evolution) प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Origin of Life) है। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया है-
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(i) परमाणु अवस्था (The Atomic Stage)-पृथ्व्वी की उत्पत्ति लगभग 4-6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) Molecular Stage (Origin of Molecules and Simple Inorganic Compounds)-पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं में संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्मूर्ण ऑक्सीजन से संबोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन नहीं रही।

इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचायी (Oxidising) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया (NH3) का निम्माण किया। जल तथा अमोनिया सम्भवतः प्रथम अकार्घनिक (Inorganic) यौगिक थे। इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2,CO N2,H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक याँगिकों की उत्पत्ति (Origin of Early Organic Compounds)-वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्चिक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जल वाष्प और धात्चिक कार्बाइड के क्रिया द्वारा प्रथम काबंनिक यौगिक मेथेन CH4 का निर्माण हुआ। इसके बाद HCN हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत हो जाता जिससे बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बंदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Simple Organic Compounds)-आदि सागर के जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड्स उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोग द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ जैसे अमीनो अम्ल, गिलसरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरीमिडीन आद्व। क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्बालामुखी आदि से प्राप्त हई ।

(v) जटिल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Complex Organic Compounds)-समुद्री जल में छोटे सरल कार्बनिक यौगिकों के संयोग से बड़े जटिल कार्बनिक यौगिक बनने लगे जैसे-एमीनो अम्लों के संयोग से बड़ी शृंखलाएँ पॉलीपेप्टाइड्स (Polypeptides) और प्रोटीन बने। वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के संयोग से वसा (Fat) और लिपिड (Lipid) बने।

सरल शर्कराओं के संयोग से डाइसैकेराइड और पॉलीसेकेराइड बने। शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक और फास्फेट्स के संयोग से न्यूक्लिओटाइड बने जिनकें बहुलीकरण से न्यूक्लिक अम्ल बने। इस प्रकार समुद्री जल में ऐसे दीर्घ अणुओं (Macro molecules) का निर्माण हो गया जो जीवद्रव्य के मुख्य घटकों का निर्माण करते हैं। अतः आदि सागर में जीवन की उत्पत्ति की संम्भावनाएँ स्थापित हो गईं।
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लम्बे समय के बाद रासायनिक विकास के परिणामस्वरूप आदि सागरों का जल इन कार्बनिक यौगिकों से पूर्णतया संतृप्त हो गया। कोसरवेट व न्यूक्लिओ प्रोटीन का निर्माण-बड़े कार्बनिक अणु जो कि सागर में अजैव संश्लेषण द्वारा बने थे, एक-दूसरे के समीप आने लगे जिससे बड़ी कोलाइडी बूँदों के समान संरचनाओं का निर्माण हुआ। इन्हीं कोलाइडी बूँदों का ऑपेरिन द्वारा कोसरवेट नाम दिया गया।

कोसरवेट (संराशयक) वृहद् अणुओं का झुण्ड था जिसमें प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, लिपिड्स और पॉलीसेकेराइड्स आदि थे। इनमें वातावरण से कार्बनिक अणुओं के अवशोषण की क्षमता थी, ये जीवाणुओं के समान मुकुलन द्वारा विभाजित हो सकते थे, इनमें ग्लूकोज के अपघटन जैसी क्रियाएँ होती थीं। रासायनिक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती थी।

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ओपैरिन के अनुसार कोसरवेट सर्वप्रथम बने सरलजीवीय अणु थे जिन्होंने बाद में कोशिका को जन्म दिया। स्टैनले मिलर का प्रयोग (Experiment of S. Miller)ओपैरिन की परिकल्पना के अनुसार, प्रबल ऊर्जा की उपस्थिति में, मीथेन, हाइड्रोजन, जलवाष्प एवं अमोनिया के संयोजन से अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण की सम्भावना को, अमेरिकी वैज्ञानिक स्टैनले मिलर (Stanley Miller 1953,1957)

ने अपने आचार्य-हेरोल्ड यूरे (Harold Urey) की देखरेख में एक साधारण से प्रयोग द्वारा सिद्ध किया। उन्होंने 5 लीटर के एक फ्लास्क में 2: 1: 2 के अनुपात में, मीथेन, अमोनिया एवं हाइड्रोजन का गैसीय मिश्रण भरा। एक आधा लीटर के फ्लास्क को काँच की नली द्वारा बड़े फ्लास्क से जोड़ा। इस छोटे फ्लास्क में जल भरकर इसे उबालने का प्रंबध किया जिससे जलवाष्प पूरे उपकरण में घूमती है।

बड़े फ्लास्क में टंग्टन (Tungsten) के दो इलेक्ट्रोड (Electrodes) फिट करके, आदिवायुमण्डल की बिजली जैसे प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए एक सप्ताह तक तीव्र विद्युत की चिन्गारियाँ मुक्त कीं। इसलिए इस उपकरण को चिन्गारी-विमुक्ति उपकरण (Spark-Discharge Apparatus) कहते हैं। बड़े फ्लास्क को उन्होंने दूसरी ओर एक U नली द्वारा भी छोटे फ्लास्क से जोड़ा।

इस नली को एक स्थान पर एक कन्डेंसर (Condenser) में से निकाला। प्रयोग के अन्त में बनी गैस वाष्प के साथ जब कन्डेंसर के कारण ठण्डी हुई तो U नली में एक गहरा लाल-सा ग़द्दला तरल भर गया। विश्लेषण से पता लगा कि यह तरल ग्लाइसीन एवं एलैनीन नामक सरलतम अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं, कार्बनिक अम्लों तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों का मिश्रण था।
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अन्य वैज्ञानिकों ने भी इसी प्रकार आदि पृथ्वी पर उपस्थित दशाओं को प्रयोगशाला में उत्पन्न करके सरल अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण को सिद्ध किया। उल्का पिण्डों सें प्राप्त रासायनिक विश्लेषण द्वारा भी पता चलता है कि अंतरिक्ष में भी यह घटना क्रम चलता होगा। इन कार्बनिक अणुओं से जीवन प्रारम्भ हुआ।

यह अणु अपने समान अणु बनाने में भी सक्षम थे। उसके पश्चात् एक कोशिकीय जीव जल में उत्पन्न हुए एवं उसके बाद धीरे-धीरे विकास की ओर लगातार बढ़ते हुए जैवविविधता बढ़ती गई व जो पृथ्वी पर आज हमें पादप व जीव-जन्तु देखने को मिलते हैं वह सभी एक कोशिकीय जलीय जीवों से विकसित हुये हैं।

प्रश्न 25.
समजात एवं तुल्यरूप अंगों में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
समजातता और समवृत्तता में अन्तर- समजात अंग (Homologous Organs) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हों समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं। इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं।

इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फिल्पर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं, जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।

इन अंगों की समजातता यह सिद्ध करती है कि इन सभी जन्तुओं के पूर्वज समान रहे होंगे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ हुआ है। अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवनभर पूर्ण विकास नहीं होता है ये जन्तु जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते हैं अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं ऐसे अंगों

को अवशेषी अंग कहते हैं। मनुष्य के शरीर में अनेक रचनाएँ होती हैं जो निम्न हैं-
1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरगोश जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं क्रियाशील होती है।

2. कर्ण पल्लव (Ear Pinna ) घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे प्राणियों के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है।

3. पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है। फिर भी कशेरुकदण्ड के अन्त में 3 से 5 तक (प्राय: अर्धविकसित) पुच्छ कशेरुकाएँ होती हैं। भ्रूणीय परिवर्धन पूरा होते-होते, ये समेकित (Fused) होकर हड्डी का एक ही टुकड़ा, कोक्सिस (Coccyx ) बना लेती हैं।

4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane) – मेंढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है। इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।

5. शरीर पर बाल (Hair on the Body ) – गाय, घोड़े, गधे, बन्दर आदि का पूर्ण शरीर वालों से ढका रहता है, जो शरीर के ताप आदि के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण सहायता देते हैं। मनुष्य अपने शरीर को तापक्रम के अनुकूल कपड़ों से ढक लेता है, अर्थात् बालों की आवश्यकता नहीं होती है, अतः ये बहुत सूक्ष्म होते हैं।

अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे। किन्तु इनके महत्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 26.
एक भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिन्दु से शुरू होकर अन्य भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होता है। उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
डार्विन जब अपनी यात्रा के दौरान गैलापैगो द्वीप गए तो उन्होंने प्राणियों में यह घटना देखी डार्विन को एक काली छोटी चिड़िया (डार्विन फिंच) ने आश्चर्यचकित किया। उन्होंने महसूस किया कि उसी द्वीप के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की फिंच भी पाई जाती हैं। जितनी भी किस्मों को उन्होंने परिकल्पित किया था, वे सभी उसी द्वीप में ही विकसित हुई थीं।

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ये पक्षी मूलतः बीजभक्षी विशिष्टताओं के साथ-साथ अन्य स्वरूप में बदलावों के साथ अनुकूलित हुई और चोंच के ऊपर उठने जैसे परिवर्तनों ने इसे कीट भक्षी एवं शाकाहारी फिंच बना दिया। एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से शुरू होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूल विकिरण (Adaptive radiation) कहा जाता है। डार्विन की फिंच इस प्रकार की घटना का एक सबसे अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 27.
आनुवंशिक संतुलन क्या है? हार्डी वेनबर्ग साम्यता को प्रभावित करने वाले कोई चार घटक लिखिए।
उत्तर:
हार्डी – वेनबर्ग के सिद्धान्तानुसार एक जीव संख्या में अलील (युग्मविकल्पी) आवृत्तियाँ और उनके लोकस (विस्थल) सुस्थिर होती हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक निरन्तर रहते हैं। जीन कोश सदा अपरिवर्तनीय रहते हैं। इसे आनुवंशिक संतुलन कहते हैं। इसे प्रभावित करने वाले चार घटक निम्न प्रकार से हैं-

  • जीन पलायन या जीन प्रवाह
  • उत्परिवर्तन |
  • आनुवंशिक विचलन ।
  • आनुवंशिक पुनर्योग।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वरण कितने प्रकार का होता है? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक वरण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है-

  1. स्थायीकारी वरण
  2. दिशात्मक वरण
  3. विचलित वरण

1. स्थायीकारी वरण (Stabilizing Selection ) – स्थायीकारी वरण तब कार्य करता है जब जीवों के लक्षण वातावरण के अनुकूल होते हैं। यह किसी भी पराकाष्ठा को रोक कर औसत या मध्यमान समलक्षणी समष्टि को प्रेरित करता है व घंटीनुमा आरेख (Bell-shaped Curve) के दोनों सिरों पर उपस्थित जीव धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं। स्थायीकारी चयन विभिन्नताओं को कम करता जाता है पर मध्यमान को नहीं बदलता है। इस प्रकार के वरण में उद्विकास की दर प्रारूपिक रूप से धीमी होती है।

स्थायीकारी वरण हमेशा अपरिवर्तित वातावरण में ही कार्य करता है। उदाहरण- शिशुओं में मृत्युदर मानव शिशुओं में जन्म के समय वजन (Birth weight) भी स्थायीकारी वरण का उदाहरण है। नये-नये जन्मे शिशुओं का उपयुक्ततम (Birth weight-7.3 पाउण्ड) होता है। जिनका वजन 55 पाउण्ड से कम या 10 पाउण्ड से ज्यादा होता है उनकी मृत्युदर ज्यादा होती है।

2.  दिशात्मक वरण (Directional) – इस प्रकार का वरण वातावरण संबंधी परिवर्तनों से संबद्ध होता है। यह पराकाष्ठा वाले जीवों का वरण करके समष्टि की जीनी संरचना को उसी दिशा की ओर प्रेरित करता है। इस प्रकार का वरण सामान्य या औसत के एक ओर स्थित जीवों की एक बड़ी संख्या को लुप्त करता है और इसकी ओर स्थित जीवों की संख्या में वृद्धि करता है।

यह ऐसे जीवों का वरण करता है जो परिवर्तित वातावरण के अनुसार सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रकार या समष्टि के मध्यमान को एक निश्चित दिशा में परिवर्तित कर देता है अर्थात् यह जीन- आवृति परिवर्तन उत्पन्न कर देता है। दिशात्मक वरण वातावरण संबंधी परिवर्तन के साथ-साथ उसके बाद होता है।

उदाहरण-

  • DDT के प्रति कीटों की प्रतिरोधकता ।
  • विस्टन बीटेलेरीया।

3.  विचलित वरण-यह एक दुर्लभ प्रकार का वरण होता है लेकिन उद्विकास के संदर्भ में काफी महत्त्वपूर्ण है। वातावरण की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार उस समष्टि में एक से ज्यादा समलक्षणी जीव उपयुक्ततम हो सकते हैं। जब यह वरण काम करता है। तो दोनों छोरों पर स्थित सजीव केन्द्र पर स्थित औरों की तुलना में अधिक संतानें उत्पन्न करते हैं व समष्टि में दो चोटियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार एक समष्टि दो उप समष्टि में विभक्त हो जाती है।

अगर इन दोनों उप समष्टि (Sub population) के बीच में जीन विनिमय (Gene flow) नहीं हो पाये तो प्रत्येक उपसष्टि (Sub population) से एक नयी जाति की उत्पत्ति हो जाती है। उदाहरण – समुद्री मॉलस्का (Limpets) में दो प्रकार के कवच पाये जाते हैं सफेद या भूरा सफेद रंग वाले मॉलस्का सफेद रंग के बार्नेकल जीव पर रहते हैं व भूरे वाले मॉलस्का भूरे रंग की चट्टानों पर रहते हैं। दोनों अपने-अपने वातावरण के सर्वाधिक अनुकूल होने के कारण बचे रहते हैं व समष्टि में दोनों की संख्या बनी रहती है।

प्रश्न 2.
भौगोलिक वितरण किस प्रकार जैव विकास में सहायक रहा? उपयुक्त उदाहरण द्वारा समझाइये।
उत्तर:
जीव-जन्तुओं के भौगोलिक वितरण से जैव-विकास के प्रमाण मिलते हैं। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे मिलते हैं। यद्यपि कुछ देश भौगोलिक दृष्टि से भिन्न होते हुए भी वहां समान प्रकार के जीव पाये जाते हैं जबकि समान जलवायु वाले ‘कुछ’ देशों में विभिन्न प्रकार के प्राणी व पौधे मिलते हैं।

उदाहरण के लिये हाथी तथा सिंह अफ्रीका में पाये जाते हैं परन्तु आस्ट्रेलिया व अमेरिका में नहीं। बाघ भारत में पाये जाते हैं परन्तु अमेरिका व आस्ट्रेलिया में नहीं। इसी प्रकार आस्ट्रेलिया में मार्सुपियोलिया गण के जन्तुओं जैसे कंगारू, तस्मानियन भेड़िया, अफ्रीका में दरियाई घोड़ा, जिराफ, गोरिल्ला आदि पाये जाते हैं, अन्यत्र नहीं मिलते।

डार्विन ने द. अमेरिका के पश्चिमी तट पर प्रशान्त महासागर में स्थित गेलेपगॉस द्वीप पर पायी जाने वाली फिन्चेज (काली चिड़िया) के अध्ययन में पाया कि ये पक्षी अमेरिका में पाये जाने वाले पक्षियों के समान हैं परन्तु इनके चोंच के आकार व संरचना में भिन्नता है।

उन्होंने बताया कि इन पक्षियों की चोंच में भिन्नता स्थानीय वातावरण एवं उसमें उपलब्ध भोजन से अनुकूलता का परिणाम है (चित्र पाठ्यपुस्तक के प्रश्न 8 में देखिये) । इस प्रकार मूल रूप से एक जाति के पक्षी में जो भिन्न- भिन्न वातावरण में अभिगमन कर गये उनसे अनेक जातियों एवं उप- जातियों का विकास हुआ। इस प्रकार जन्तुओं का भौगोलिक वितरण जैव-विकास में सहायक रहा।

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अतः एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से प्रारम्भ होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूली विकिरण (Adaptive Radiation) कहा गया। एक अन्य उदाहरण आस्ट्रेलियाई मासुंपियल (शिशुधानी प्राणियों) का है।

अधिकांश मार्सुपियल जो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे; एक पूर्वज प्रभाव से विकसित हुए, और वे सभी आस्ट्रेलियाई महाद्वीप के अंतर्गत हुए हैं। जब एक से अधिक अनुकूली विकिरण एक अलग- थलग भौगोलिक क्षेत्र में (भिन्न आवासों का प्रतिनिधित्व करते हुए) प्रकट होते हैं तो इसे अभिसारी विकास कहा जा सकता है।

आस्ट्रेलिया के अपरास्तनी जंतु भी इस प्रकार के स्तनधारियों की किस्मों के विकास में अनुकूली विकिरण प्रदर्शित करते हैं, जिनमें से प्रत्येक मेल खाते मासुंपियल (उदाहरणार्थ- अपरास्तनी भेड़िया तथा तस्मानियाई वूल्फ मासुपियल) के समान दिखते हैं।

प्रश्न 3.
जीवाश्मिकी (पुराजीवी विज्ञान) तथा श्रोणिकी से जैव विकास की पुष्टि के प्रमाण दीजिए।
उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं। इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं।

इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है।

कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं । तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं।

कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
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बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2. गाजर व मूली ।

1. अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं। जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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(ii) समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं।

वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm ) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन ( Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material ) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. ( ATP ) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • (vii) साइटोक्रोम – सी ( Cytochrome – C ) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।
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(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

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संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं

जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

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(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें, प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है।

इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं ।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

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ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों

(Splint Bones) के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ। बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी। यह एक विकासीय परिवर्तन था ।

इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं। इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं।

ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है।”
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प्रश्न 4.
समजातता और समवृत्तता का अन्तर बताइये समजात और अवशेषी अंगों को उदाहारण सहित समझाइये। इन सबसे किस प्रकार जैव विकास प्रमाणित होता है?
उत्तर:
समजातता और समवृत्तता में अन्तर- समजात अंग (Homologous Organs) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हों समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फिल्पर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं, जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं। इन अंगों की समजातता यह सिद्ध करती है कि इन सभी जन्तुओं के पूर्वज समान रहे होंगे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ हुआ है।

अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवनभर पूर्ण विकास नहीं होता है ये जन्तु जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते हैं अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं ऐसे अंगों को अवशेषी अंग कहते हैं। मनुष्य के शरीर में अनेक रचनाएँ होती हैं जो निम्न हैं-

1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरगोश जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं क्रियाशील होती है।

2. कर्ण पल्लव (Ear Pinna ) घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे प्राणियों के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है।

3. पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है। फिर भी कशेरुकदण्ड के अन्त में 3 से 5 तक (प्राय: अर्धविकसित) पुच्छ कशेरुकाएँ होती हैं। भ्रूणीय परिवर्धन पूरा होते-होते, ये समेकित (Fused) होकर हड्डी का एक ही टुकड़ा, कोक्सिस (Coccyx ) बना लेती हैं।

4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane) – मेंढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है। इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।

5. शरीर पर बाल (Hair on the Body ) – गाय, घोड़े, गधे, बन्दर आदि का पूर्ण शरीर वालों से ढका रहता है, जो शरीर के ताप आदि के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण सहायता देते हैं। मनुष्य अपने शरीर को तापक्रम के अनुकूल कपड़ों से ढक लेता है, अर्थात् बालों की आवश्यकता नहीं होती है, अतः ये बहुत सूक्ष्म होते हैं।

अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे। किन्तु इनके महत्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

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प्रश्न 5.
डार्विनिज्म पर एक निबंध लिखिये।
अथवा
डार्विनवाद क्या है? सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक वरण ( चयन) के सिद्धान्त के क्रियान्वयन के पदक्रमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवों के क्रमिक परिवर्तन से नई जाति का बनना जैव विकास कहलाता है। यह आज सर्वमान्य है परन्तु जैव विकास की क्रियाविधि क्या रही है? इस समस्या के समाधान हेतु 19 वीं शताब्दी के आरम्भ में ही लेमार्क (Lamarck) द्वारा, बाद में डार्विन (Darwin) एवं ह्यूगो डी व्रिज (Hugo de Vries) द्वारा प्रयास किया गया।

(1) लामार्कवाद (Lamarckism)-फ्रांस के वैज्ञानिक जीन बेपटिस्ट डी लामार्क (1744-1829) ने अपनी संकल्पना प्रस्तुत की जिसे लामार्कवाद कहते हैं। इन्होंने उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
लामार्कवाद की मुख्य चार अवधारणायें निम्न हैं-
(i) आंतरिक जैव बल (Internal vital force)-लामार्क के अनुसार सभी जीवों में कुछ आन्तरिक जैव बल उपस्थित हैं, इन बलों के कारण ही जीवों में अपने अंगों तथा पूर्ण शरीर के आकार में वृद्धि करने की प्रवृत्ति बनी रहती है।

(ii) वातावरण का प्रभाव और नई आवश्यकताएँ (Effect of environment and new needs)-वातावरण सभी प्रकार के जीवों को प्रभावित करता है। परिवर्तित वातावरण ही जीवों में नई आवश्यकताओं को उत्पन्न करता है। इन नई आवश्यकताओं के कारण जीव नई संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं जिससे उनके स्वभाव और संरचनाओं में परिवर्तन आ जाते हैं।

(iii) अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग (Use and disuse of organs)-यदि अंग लगातार उपयोग में आता है तो यह अधिक विकसित और शक्तिशाली हो जाता है तथा अनुपयोगी अंग धीरे-धीरे अपह्गासित होने लगते हैं।

(iv) उपार्जित लक्षणों की वंशागति (Inheritance of acquired character)-इस प्रकार जीव के जीवन काल में आंतरिक जैव बलों, वातावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव, नई आवश्यकता और अंगों के उपयोग तथा अनुपयोग के द्वारा नए लक्षणों का विकास हो जाता है। इन लक्षणों को उपार्जित लक्षण कहते हैं।

ये लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से वंशागत होते हैं, कई पीढ़ियों तक इन लक्षणों की वंशागति से एक नई जाति का विकास हो जाता है जो अपने पूर्वज से भिन्न होती है उदाहरण-जिराफ, अफ्रीका में पाया जाने वाला जन्तु है। इसके पूर्वजों की आकृति काफी छोटी थी और उस समय उनके निवास स्थान में घास-फूस अधिक थी अतः पूर्वज घास पर निर्वाह करते थे।

धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन हुआ जिसके कारण यह क्षेत्र रेगिस्तान बनने लगा। अतः जिराफ को भोजन के लिए ऊँचे पेड़-पौधों की पत्तियों पर निर्भर होना पड़ा। पेड़ों की पत्तियों तक पहुँचने के लिए छोटे जन्तु को अपनी गर्दन लगातार ऊपर करनी पड़ती तथा अग्र टाँगों द्वारा कूदकर पत्तियों तक पहुँचना पड़ता।

लामार्क ने बताया कि जिराफ की अगली टाँगों तथा गर्दन का अधिक उपयोग होने से ये अंग लम्बे होते गये। इन लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण हुआ। जिराफ के अंगों का लम्बा होना उपार्जित लक्षण तथा इसका हस्तानान्तरण वंशागति कहलाते हैं जिसके फलस्वरूप आधुनिक जिराफ का विकास हुआ।
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(2) माल्थस (Malthus, 1838), चार्ल्स लाइल (Charles Lyell)- हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer), वैलेस (Wallace 1823-1913) आदि के विचारों से प्रभावित होकर वैज्ञानिक वैलेस के साथ सन् 1858 में चार्स्स डार्विन ने जीवों में जीवन के लिए संघर्ष तथा प्रकृति द्वारा योग्य जातियों के चयन के विचार संयुक्त रूप से छपवाये। सन् 1959 में अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों की उत्पत्ति’ (Origin of Species by Natural Selection) का प्रकाशन कर प्राकृतिक वरण का सिद्धान्त के रूप में किया। इसे ही आज डार्विनवाद कहा जाता है।

प्राकृतिक वरणवाद के मुख्य बिन्दु निम्न हैं-
(1) अत्यधिक प्रजनन (Over Production)-सभी जीव जातियों में संतानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता होती हैं और जीव गुणात्मक रूप में अपनी जाति की संख्या में वृद्धि करते हैं। जैसे-

  • पादप हजारों की संख्या में बीज पैदा करते हैं।
  • कीट सैकड़ों अण्डे एक बार में देते हैं।
  • एक जोड़ा हाथी सम्पूर्ण जीवन में लगभग 6 संतान पैदा करता है।

यदि सभी संतानें जीवित रहें और इसी प्रकार प्रजनन करें तो लगभग 750 वर्ष में एक जोड़े हाथी से 19 मिलियन हाथी पैदा हो जायेंगे। कुछ जीव अधिक संतान पैदा करते हैं, जबकि कुछ जीव कम संख्या में संतानोत्पत्ति करते हैं, इसे विभेदात्मक जनन कहते हैं।

(2) उत्तरजीविता के लिए संघर्ष (Struggle of Existence)- प्रत्येक जीव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे स्थान, आवास और भोजन आदि के लिए अपनी ही जाति अथवा अन्य जाति के सदस्यों के साथ प्रतियोर्गिता करते हैं। इसे उत्तरजीविता के लिए संघर्ष कहते हैं। यह संघर्ष जीव के सम्पूर्ण जीवन में जारी रहता है, युग्मनज (Zygote) बनने से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक।

उत्तरजीविता के लिए संघर्ष तीन प्रकार से होता है-

  • सजातीय संघर्ष (Intraspecific Struggle)-यह संघर्ष एक ही जाति के सदस्यों के बीच उनकी समान आवश्यकताओं के लिए होता है जैसे भोजन, आवास और जनन (यह सबसे तीव्रतम संघर्ष होता है)।
  • अन्तरजातीय संधर्ष (Interspecific Struggle)-यह
    भिन्न जाति के सदस्यों के बीच होता है। भोजन तथा आवास के लिए।
  • वातावरणीय संघर्ष (Environmental Struggle)-यह जीवों के उनके वातावरण की भिन्न परिस्थितियों के बीच होने वाले संघर्ष हैं, जैसे-जीव वर्षा, बाढ़-सूखा, भूकम्प, सर्दी-गर्मी आदि से सुरक्षित रहने के लिए संघर्ष करते हैं।

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(3) विभिन्नताएँ एवं वंशागति (Variations \& Heredity)-केवल समान जुड़वाँ संतानों (Identical Twins) को छोड़कर कोई भी दो जीव तथा उनकी आवश्यकताएँ समान नहीं होतीं। इसका अर्थ है जीवों के मध्य अन्तर होते हैं, यही अन्तर विभिन्नताएँ कहलाती हैं। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण कुछ जीव दूसरों की अपेक्षा अपने वातावरण के प्रति अधिक अनुकूलित होते हैं।

डार्विन के अनुसार विभिन्नताएँ सतत होती हैं और ऐसी विभिन्नताएँ जो जीव को अपने वातावरण के प्रति अनुकूल बनाने या अनुकूलन स्थापित करने में सहायक होती हैं, अगली पीढ़ी में वंशागत हो जाती हैं जबकि अन्य विलुप्त हो जाती हैं।

(4) योग्यतम की उत्तरजीविता या प्राकृतिक वरण (Survival of Fittest or Natural Selection)-डार्विन के अनुसार उत्तरजीविता के लिए संघर्ष में केवल अधिक सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने वाले सदस्य ही योग्यतम सिद्ध होते हैं। संघर्ष में जो भी अधिक सक्षम होते हैं वही विजयी होकर योग्यतम सिद्ध होते हैं।

योग्यतम प्राणी ही अपने विशिष्ट लक्षणों के कारण लैंगिक प्रजनन के लिए संगम साथी (Mating Partner) को पाने में सफल होते हैं। इसे लैंगिक वरण (Sexual Selection) कहते हैं। उत्तरजीविता के लिए संघर्ष में केवल वही जीव जीवित रहते हैं जो लाभदायक विभिन्नताएँ रखते हैं अर्थात् प्रकृति केवल योग्यतम जीवों का ही चयन करती है, इसे प्राकृतिक वरण (Natural Selection) कहते हैं अर्थात् योग्यता अनुकूलन क्षमता का अन्तिम परिणाम होती है और प्रकृति द्वारा चयनित हो जाती है।

(5) नई जाति की उत्पत्ति (Origin of New Species)डार्विन ने स्पष्ट किया कि ऐसी विभिन्नताएँ जो वातावरणीय परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती हैं अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित हो जाती हैं जिससे नई संतान अपने पूर्वजों से भिन्नता प्रदर्शित करती है। अगली पीढ़ी में प्राकृतिक वरण का यही प्रक्रम पुनः दोहराया जाता है और कई पीढ़ियों के बाद अतंतः एक नई जाति का निर्माण हो जाता है।

प्राकृ तिक वरण के उदाहरण (Examples of Natural Selection)-
(i) औद्योगिक अतिकृष्णता (Industrial Melanism)-इस घटना का अध्ययन बेनार्ड केटलवेल द्वारा किया गया। औद्योगिक क्रान्ति के पहले श्लभ (मोथ विस्टन बेटेलेरिया) का स्लेटी रूप प्रभावी था, कारबोनेरिया रूप काला कम ही मिलता था क्योंकि यह पक्षी द्वारा परभक्षण के प्रति अनुकूलित (Susceptible) था। यह तभी दिखाई देता था जब पेड़ के तने पर विश्राम अवस्था में होता था।

औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में धुआँ (Somke) होता है जो पेड़ के तने पर जमा होता जाता है और उसे काला कर देता है। अब ग्रे रूप (स्लेटी) अनुकूलित (Susceptible) हो जाता है और काला रूप पनप जाता है। कोयले का तेल और बिजली द्वारा प्रतिस्थापित काले रूप के उत्पादन को कम करता है जिससे स्लेटी मॉथथ की आकृति पुन: बढ़ जाती है।

(ii) औषधि प्रतिरोधिता (Drug Resistance)-औषधियाँ जो रोगजनक (Pathogens) को नष्ट करती हैं समय के साथ अप्रभावी होती जा रही हैं क्योंकि रोगजनक जाति के सदस्य इनको झेल लेते हैं और जीवित रहते हैं, पनपते हैं और प्रतिरोधी समष्टि का उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 6.
‘जीवन की उत्पत्ति’ में केवल रासायनिक विकास ही हुआ। विस्तारपूर्वक लिखिये ।
उत्तर:
रासायनिक विकास का सिद्धान्त यह सिद्धान्त रूसी वैज्ञानिक ओपेरिन और हेल्डेन ने दिया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई, जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया-
(i) परमाणु अवस्था – पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी ।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) – पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं के संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्पूर्ण ऑक्सीजन से संयोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त O2 नहीं रही।

आरम्भिक जीव- कोशिका का निर्माण इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing ) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचाय (Oxidising ) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया का निर्माण किया । जल तथा अमोनिया संभवतः प्रथम अकार्बनिक यौगिक थे । इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2, CO, N2, H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति – वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्विक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जलवाष्प और धात्विक कार्बाइड की क्रिया द्वारा प्रथम कार्बनिक यौगिक मेथेन (CH4) का निर्माण हुआ। इसके बाद (HCN) हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता वह उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत होकर बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बूँदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे ।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति- आदि सागर में जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोगों द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ, जैसे- अमीनो अम्ल, ग्सिलरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरामिडिन आदि।

क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्वालामुखी आदि से प्राप्त हुई। लेडरबर्ग ने प्रतिकृति प्लेटिंग प्रयोग द्वारा जीवाणुओं को उनके वातावरण के प्रति अनुकूलता की आनुवंशिकता का प्रदर्शन किया।

प्रश्न 18.
जीवन की उत्पत्ति के सम्बंध में ऑपेरिन मत पर निबंध लिखिए ।
उत्तर:
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में हमें ‘बिग बैंग’ नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त यह कहता है कि एक महा विस्फोट के फलस्वरूप ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और तापमान में कमी आई। कुछ समय बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसें बनीं। ये गैसें गुरुत्वाकर्षण के कारण संघनीभूत हुईं और वर्तमान ब्रह्माण्ड की आकाश गंगाओं का गठन हुआ।

आकाश गंगा के सौर मण्डल में पृथ्वी की रचना 4.5 बिलियन वर्ष (450 करोड़) पूर्व मानी जाती है। प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं था। जल, वाष्य, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया आदि धरातल को ढकने वाले गलित पदार्थों से निर्मुक्त हुई। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों ने पानी को (H2) तथा (O2) में विखण्डित कर दिया तथा हल्की (H2) मुक्त हो गई।

ऑक्सीजन ने अमोनिया (NH2) एवं मीथेन (CH2) के साथ मिलकर पानी, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा अन्य गैसों आदि की रचना की। पृथ्वी के चारों तरफ ओजोन परत का गठन हुआ। जब यह ठण्डा हुआ, तो जल-वाष्प बरसात के रूप में बरसी और गहरे स्थान भर गए, जिससे महासागरों की रचना हुई। पृथ्वी की उत्पत्ति के लगभग 50 करोड़ वर्ष बाद अर्थात् 400 करोड़ वर्ष पहले जीवन प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने समय-समय पर अपनी-अपनी परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कीं। इनमें प्रमुख परिकल्पनाएँ निम्न हैं-

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1. विशिष्ट सृष्टि का सिद्धान्त (Theory of Special Creation)-यह सिद्धान्त धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक फादर सुआरेझ (Father Suarez) थे, बाइबिल के अनुसार जीवन तथा सभी वस्तुओं की रचना भगवान द्वारा 6 दिनों में की गई।

प्रथम दिनस्वर्ग तथा नरक
द्वितीय दिनआकाश तथा जल
तीसरे दिनसूखी धरती और वनस्पति
चौथे दिनसूर्य, चन्द्रमा और तारे
पाँचवें दिनमछलियाँ और पक्षी
छठे दिनस्थलीय जन्तु और मनुष्य बने।

प्रथम मनुष्य (Adam) आदम बना और इसकी बारहवीं पसली से (Five) हौवा प्रथम नारी बनी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विश्व और सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा की गई। (प्रथम मानव मनु और प्रथम नारी श्रद्धा थे ) । इसके अनुसार जीवन अपरिवर्तनशील है तथा उत्पत्ति के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विशिष्ट सृष्टिवाद का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया।

2. स्वतः जनन का सिद्धान्त (अजीवात जीवोत्पत्ति) (Theory of Spontaneous Generation Abiogenesis or Autogenesis)-इस परिकल्पना का प्रतिपादन पुराने यूनानी दार्शानिक जैसे थेल्स, एनेक्सिमेन्डर, जेनोफेन्स, प्लेटो, एम्पीडोकल्स, अरस्तू द्वारा किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से अपने आप अचानक हुई।

इनका विश्वास था कि नील नदी के कीचड़ पर प्रकाश की किरणें गिरने पर उससे मेंढ़क, सर्प, मगरमच्छ आदि उत्पन्न हो गये। अजैविक उत्पत्ति का प्रायोगिक समर्थन वाल हेल्मोन्ट (Val Helmont 1642) द्वारा किया गया। इनके द्वारा अन्धेरे स्थल पर गेहूँ के चौकर (Barn) में पसीने से भीगी गन्दी कमीज (Shirt) को रखने पर 21 दिन में चूहों की उत्पत्ति को स्वतः जनन के द्वारा होना बताया।

3. ब्रह्माण्डवाद का सिद्धान्त (Cosmologic Theory)-यह सिद्धान्त रिचर (Richter) द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन पृथ्वी पर सर्वप्रथम किसी अन्य ग्रह या नक्षत्र से जीवद्रव्य (Protoplasm), बीजाणु (Spores) या अन्य कणों के रूप में कॉस्मिक धूल के साथ पहुँचा जिसने जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

4. कॉस्मिक पेनस्पर्मिया सिद्धान्त (Cosmic Panspermia Theory)-यह सिद्धान्त आरीनियस (Arrhenius) द्वारा प्रतिपाद्ति किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवों के बीजाणु (Spores) ब्रह्माण्ड में एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर स्वतन्त्र रूप से आ जा सकते हैं। इन्होंने ही पृध्व्वी पर पहुँचकर जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

5. जीवन की अनन्तकालता का सिद्धान्त (Theory of Eternity of Life)-हेल्महॉट्ज (Helmhotz) ने जीवन की अनन्तकालिता (Eternity of Life) में विश्वास किया। इनके अनुसार जीवन की उत्पत्ति या सृष्टि का प्रश्न उठता ही नहीं, क्योंकि ‘जीवन अमर है; ब्रह्माप्ड की उत्पत्ति के समय ही अजीव और सजीव पदार्थों की एक साथ उत्पत्ति हुई ।

6. जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त (Theory of Biogenesis)-यह सिद्धान्त हार्वे (Harvey, 1951) और हक्सले (T.H. Huxley, 1870) नामक वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपाद्त किया। इनके अनुसार पृथ्वी पर नये जीवन की उत्पत्ति या निर्माण पूर्व जीवों से होता है न कि निर्जीव पदार्थों से।

यह सिद्धान्त स्वतः जनन (Spontaneous Generation) का तो खण्डन करता है किन्तु पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है। जीवात् जीवोत्पत्ति का प्रायोगिक सत्यापन और स्वतः जनन का प्रायोगिक खण्डन करने के लिए प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोग अग्र हैं।

7. फ्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi, 1668-इटालियन ) का प्रयोग-इन्होंने मरे हुए सांपों, मछलियों और माँस के टुकड़ों को जारों में रखकर कुछ जार खुुले छोड़े तथा कुछ को सील किया या जालीदार कपड़े में बंद किया। देखिए सामने। खुले जारों में मक्खियों ने माँस पर अण्डे दिये जिनसे डिम्भक (Larvae of maggots) निकले बंद जारों में मक्खियाँ नहीं घुस पायीं।

अतः इनके माँस में डिम्भक (Larvae or maggots) नहीं दिखाई दिये। इस प्रयोग द्वारा सिद्ध होता है कि डिम्भक का विकास मक्खियों द्वारा दिये गये अण्डों से हुआ जबकि बंद जार में मक्खियों के नहीं घुस पाने के कारण उनमें किसी प्रकार के डिम्भक (Larvae) का विकास नहीं हुआ। अतः जीव का जन्म पहले से उपस्थित जीव द्वारा संभव है न कि स्वतः जनन द्वारा।
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8. लैजेरो स्पैलैन्जनी (Lazzaro Spallanzani 1767 इटालियन) का प्रयोग-इन्होंने बंद फ्लास्कों में सब्जियों और माँस को उबालकर जीवाणु रहित (Sterilized) पोषक शोरबा (Broth) तैयार किया। खुले या ढीले कार्क से बन्द्र जारों में रखने पर इस शोरबे में अनेक जीवाणु पनप जाते थे, परन्तु सीलबन्द करके रखने पर इसमें जीवाणु उत्पन्न नहीं होते थे।

नीधम (Needham) ने इस प्रयोग के विरोध में कहा कि अधिक उबालने से यह शोरबा जीवों के स्वतः उत्पादन के योग्य नहीं रहा। इस पर स्पैलैन्जनी (Spallanzani) ने सीलबंद फ्लास्कों की नलियों को तोड़ दिया। कुछ दिन बाद हवा के भीतर पहुँचने के कारण, इन जारों के शोरबे में भी जीवाणु हो गये। इससे सिद्ध हुआ कि सूक्ष्म जीवाणु भी स्वतः उत्पादन द्वारा नहीं, वरन् हवा में उपस्थित जीवाणु से ही बनते हैं।

9. लुईस पाश्चर (Louis Pasteur, 1860-1862-फ्रांसीसी) का प्रयोग-लुईस पाश्चर ने रोगों का रोगाणु सिद्धान्त (Germ Theory of Diseases or Germ Theory) प्रतिपादित के साथ अजैव उत्पत्ति को गलत सिद्ध किया।
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इन्होंने शक्कर और यीस्ट (Yeast) का घोल उबाल कर उसे जीवाणु रहित कर दिया। अब इस घोल को दो प्रकार के फ्लास्क में रखा एक जार (फ्लास्क) की गर्दन को गरम करके खींच कर ‘S’ आकार (हंस की गर्दन के समान) का बना दिया तथा दूसरे की गर्दन को तोड़ दिया देखिए सामने ‘S’ आकृति की गर्दन वाले फ्लास्क में कोई जीवाणु दिखाई नहीं दिये क्योंकि मुड़ी गर्दन पर धूल कण और सूक्ष्म जीव चिपक गए और विलयन तक नहीं पहुँच सके।

जबकि टूटी ग्रीवा वाले फ्लांस्क में वायु और सूक्ष्म जीव आसानी से पहुँच जाने के कारण उसमें सूक्ष्म जीवों की कॉलोनी का विकास हो गया। लुईस पाश्चर के प्रयोगों से अजीवात् जीवोत्पत्ति की धारणा समाप्त हो गई और सजीवों से ही जीवन की उत्पत्ति सिद्ध हो गई।

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10. ओपेरिन-हेल्डेन सिद्धान्त (Oparin-Haldane Theory of Origin of Life)-वैज्ञानिक ए.आई. ओपेरियन और जे.बी.एस. हेल्डेन (इंग्लैण्ड में जन्मे भारतीय वैज्ञानिक) ने प्रकृतिवाद् या रासायनिक विकास का सिद्धान्त (Naturalistic Theory or Theory of Chemical Evolution) प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Origin of Life) है। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया है-
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(i) परमाणु अवस्था (The Atomic Stage)-पृथ्व्वी की उत्पत्ति लगभग 4-6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) Molecular Stage (Origin of Molecules and Simple Inorganic Compounds)-पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं में संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्मूर्ण ऑक्सीजन से संबोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन नहीं रही।

इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचायी (Oxidising) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया (NH3) का निम्माण किया। जल तथा अमोनिया सम्भवतः प्रथम अकार्घनिक (Inorganic) यौगिक थे। इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2,CO N2,H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक याँगिकों की उत्पत्ति (Origin of Early Organic Compounds)-वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्चिक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जल वाष्प और धात्चिक कार्बाइड के क्रिया द्वारा प्रथम काबंनिक यौगिक मेथेन CH4 का निर्माण हुआ। इसके बाद HCN हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत हो जाता जिससे बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बंदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Simple Organic Compounds)-आदि सागर के जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड्स उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोग द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ जैसे अमीनो अम्ल, गिलसरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरीमिडीन आद्व। क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्बालामुखी आदि से प्राप्त हई ।

(v) जटिल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Complex Organic Compounds)-समुद्री जल में छोटे सरल कार्बनिक यौगिकों के संयोग से बड़े जटिल कार्बनिक यौगिक बनने लगे जैसे-एमीनो अम्लों के संयोग से बड़ी शृंखलाएँ पॉलीपेप्टाइड्स (Polypeptides) और प्रोटीन बने। वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के संयोग से वसा (Fat) और लिपिड (Lipid) बने।

सरल शर्कराओं के संयोग से डाइसैकेराइड और पॉलीसेकेराइड बने। शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक और फास्फेट्स के संयोग से न्यूक्लिओटाइड बने जिनकें बहुलीकरण से न्यूक्लिक अम्ल बने। इस प्रकार समुद्री जल में ऐसे दीर्घ अणुओं (Macro molecules) का निर्माण हो गया जो जीवद्रव्य के मुख्य घटकों का निर्माण करते हैं। अतः आदि सागर में जीवन की उत्पत्ति की संम्भावनाएँ स्थापित हो गईं।
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लम्बे समय के बाद रासायनिक विकास के परिणामस्वरूप आदि सागरों का जल इन कार्बनिक यौगिकों से पूर्णतया संतृप्त हो गया। कोसरवेट व न्यूक्लिओ प्रोटीन का निर्माण-बड़े कार्बनिक अणु जो कि सागर में अजैव संश्लेषण द्वारा बने थे, एक-दूसरे के समीप आने लगे जिससे बड़ी कोलाइडी बूँदों के समान संरचनाओं का निर्माण हुआ।

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इन्हीं कोलाइडी बूँदों का ऑपेरिन द्वारा कोसरवेट नाम दिया गया। कोसरवेट (संराशयक) वृहद् अणुओं का झुण्ड था जिसमें प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, लिपिड्स और पॉलीसेकेराइड्स आदि थे। इनमें वातावरण से कार्बनिक अणुओं के अवशोषण की क्षमता थी, ये जीवाणुओं के समान मुकुलन द्वारा विभाजित हो सकते थे, इनमें ग्लूकोज के अपघटन जैसी क्रियाएँ होती थीं।

रासायनिक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती थी। ओपैरिन के अनुसार कोसरवेट सर्वप्रथम बने सरलजीवीय अणु थे जिन्होंने बाद में कोशिका को जन्म दिया। स्टैनले मिलर का प्रयोग (Experiment of S. Miller)ओपैरिन की परिकल्पना के अनुसार, प्रबल ऊर्जा की उपस्थिति में, मीथेन, हाइड्रोजन, जलवाष्प एवं अमोनिया के संयोजन से अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण की सम्भावना को, अमेरिकी वैज्ञानिक स्टैनले मिलर (Stanley Miller 1953,1957) ने अपने आचार्य-हेरोल्ड यूरे (Harold Urey) की देखरेख में एक साधारण से प्रयोग द्वारा सिद्ध किया।

उन्होंने 5 लीटर के एक फ्लास्क में 2: 1: 2 के अनुपात में, मीथेन, अमोनिया एवं हाइड्रोजन का गैसीय मिश्रण भरा। देखिए चित्र 7.5 में। एक आधा लीटर के फ्लास्क को काँच की नली द्वारा बड़े फ्लास्क से जोड़ा। इस छोटे फ्लास्क में जल भरकर इसे उबालने का प्रंबध किया जिससे जलवाष्प पूरे उपकरण में घूमती है।

बड़े फ्लास्क में टंग्टन (Tungsten) के दो इलेक्ट्रोड (Electrodes) फिट करके, आदिवायुमण्डल की बिजली जैसे प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए एक सप्ताह तक तीव्र विद्युत की चिन्गारियाँ मुक्त कीं। इसलिए इस उपकरण को चिन्गारी-विमुक्ति उपकरण (Spark-Discharge Apparatus) कहते हैं। बड़े फ्लास्क को उन्होंने दूसरी ओर एक U नली द्वारा भी छोटे फ्लास्क से जोड़ा।

इस नली को एक स्थान पर एक कन्डेंसर (Condenser) में से निकाला। प्रयोग के अन्त में बनी गैस वाष्प के साथ जब कन्डेंसर के कारण ठण्डी हुई तो U नली में एक गहरा लाल-सा ग़द्दला तरल भर गया। विश्लेषण से पता लगा कि यह तरल ग्लाइसीन एवं एलैनीन नामक सरलतम अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं, कार्बनिक अम्लों तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों का मिश्रण था।
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अन्य वैज्ञानिकों ने भी इसी प्रकार आदि पृथ्वी पर उपस्थित दशाओं को प्रयोगशाला में उत्पन्न करके सरल अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण को सिद्ध किया। उल्का पिण्डों सें प्राप्त रासायनिक विश्लेषण द्वारा भी पता चलता है कि अंतरिक्ष में भी यह घटना क्रम चलता होगा। इन कार्बनिक अणुओं से जीवन प्रारम्भ हुआ।

यह अणु अपने समान अणु बनाने में भी सक्षम थे। उसके पश्चात् एक कोशिकीय जीव जल में उत्पन्न हुए एवं उसके बाद धीरे-धीरे विकास की ओर लगातार बढ़ते हुए जैवविविधता बढ़ती गई व जो पृथ्वी पर आज हमें पादप व जीव-जन्तु देखने को मिलते हैं वह सभी एक कोशिकीय जलीय जीवों से विकसित हुये हैं।

प्रश्न 19.
तुलनात्मक शरीर रचना से जैव विकास के लिए क्या प्रमाण प्राप्त होते हैं? विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम

निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है। कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं ।

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तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं। कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास 39

बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2.  गाजर व मूली ।

(i)अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं। जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं । जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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(ii) समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं।

वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

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(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन (Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. ( ATP) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • साइटोक्रोम – सी ( Cytochrome – C) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।
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(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

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(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें,

प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

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जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं ।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों (Splint Bones) के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ। बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी।

यह एक विकासीय परिवर्तन था । इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं।

इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं। ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है। ”
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प्रश्न 20.
(a) 15 मिलियन साल पहले रहने वाले प्राइमेट्स का नाम दीजिए तथा उनके लक्षण दीजिए।
(b) (i) पहले मानव समान जन्तु कहाँ मिले?
(ii) निएण्डरथल, होमोबिलिस तथा होमोइरेक्टस इस पृथ्वी पर किस क्रम में विकसित हुए?
(iii) आधुनिक मानव इस गृह पर कब उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
(a) 15 मिलियन साल पहले रहने वाले प्राइमेट्स का नाम ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus) है।

ड्रायोपिथेकस के लक्षण निम्न हैं-

  • माथा गोल,
  • आधुनिक मानव के समान,
  • किन्तु इसके लम्बे कैनाइन दाँत कपि की भाँति थे,
  • यह कुछ झुक कर चारों पादों पर चलता था,
  • मानव तथा कपियों दोनों का ही पूर्वज रहा है।

(b) (i) प्रथम स्तनधारी श्रूज ( Shrews ) ईस्ट अफ्रीका,
(ii) होमो हे बिलस (Homohabilis), होमो इरेक्टस (Homoerectus), निएण्डरथल (Neanderthal),
(iii) 10,000 से 11,000 वर्ष पूर्व आधुनिक मानव उत्पन्न हुआ ।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. पेंग्विन एवं डॉल्फिन के पक्ष के उदाहरण हैं- (NEET-2020)
(अ) अभिसारी विकास का
(ब) औद्योगिक मैलेनिज्म का
(स) प्राकृतिक वरण का
(द) अनुकूली विकिरण का
उत्तर:
(अ) अभिसारी विकास का

2. एस. एल. मिलर ने अपने प्रयोग में एक बंद फ्लास्क में किसका मिश्रण कर ऐमिनो अम्ल उत्पन्न किये- (NEET-2020)
(अ) 800°C पर CH3 H2, NH3 और जल वाष्प
(ब) 600°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प
(स) 600°C पर CH3, H2, NH2 और जल वाष्प
(द) 800°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प
उत्तर:
(द) 800°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प

3. अनेक कशेरूकों के अग्रपाद की अस्थि संरचना में समानता किसका उदाहरण है? (NEET-2019)
(अ) अभिसारी विकास
(ब) तुल्यरूपता
(द) अनुकूली विकिरण
(स) समजातता
उत्तर:
(स) समजातता

4. निम्नलिखित अपसारी विकास के उदाहरण में से गलत विकल्प का चयन कीजिए-
(अ) चमगादड़, मनुष्य एवं चीता का मस्तिष्क
(ब) चमगादड़, मानव एवं चीता का हृदय
(स) मानव, चमगादड़ एवं चीता के अग्रपाद
(द) ऑक्टोपस, चमगादड़ एवं मानव की आँखें
उत्तर:
(द) ऑक्टोपस, चमगादड़ एवं मानव की आँखें

5. ह्यूगो डी ब्रिज के अनुसार विकास की क्रियाविधि किस प्रकार होती है- (NEET-2018)
(अ) लैंगिक दृश्य प्ररूप परिवर्तन (लक्षणप्ररूपी विभिन्नता)
(ब) साल्टेशन
(स) बहुवरण उत्परिर्वन
(द) लघु उत्परिवर्तन
उत्तर:
(ब) साल्टेशन

6. आदिमानव से अभिनव मानव तक मानव विकास का कालानुक्रमिक क्रम है- (NEET II-2016 )
(अ) रामपिथेकस → होमो हैविलिस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो इरेक्टस
(ब) आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → रामपिथेकस होमो → इरेक्टस
(स) आस्ट्रेलोपिथेकस → रामपिथेकस → होमो हैबिलिस → होमो इरेक्टस
(द) रामपिथेकस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → होमो इरेक्टस
उत्तर:
(द) रामपिथेकस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → होमो इरेक्टस

7. निम्नलिखित संरचनाओं में से कौनसी संरचना पक्षी के पंख के समजात है- (NEET-2016)
(अ) खरगोश का पश्च पाद
(ब) व्हेल का फ्लीपर
(स) शार्क का पृष्ठ पंख
(द) शलभ का पंख
उत्तर:
(ब) व्हेल का फ्लीपर

8. पक्षी के पंख और कीट के पंख- (NEET-2015)
(अ) अनुरूप संरचनाएँ और अभिसारी विकास को दर्शाती हैं।
(ब) वंशावली संरचनाएँ और अपसारी विकास को दर्शाती हैं।
(स) समजातीय संरचनाएँ हैं और अभिसारी विकास को दर्शाती हैं।
(द) समजातीय संरचनाएँ अपसारी विकास को दर्शाती हैं।
उत्तर:
(द) समजातीय संरचनाएँ अपसारी विकास को दर्शाती हैं।

9. बिल्ली और छिपकली के अग्रपाद चलने; व्हेल के अग्रपाद तैरने और चमगादड़ के अग्रवाद उड़ने के लिए होते हैं, ये किसके उदाहरण हैं- (NEET-2014)
(अ) समवृति अंग
(ब) अनुकूली विकिरण
(स) समजात अंग
(द) अभिसारी विकास
उत्तर:
(स) समजात अंग

10. अपने पूर्वजों से विकसित होने के दौरान, आधुनिक मानव (होमोसेपिएस) की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति क्या रही थी- (NEET-2012)
(अ) जबड़ों का छोटा होते जाना
(ब) द्विनेत्रीय दृष्टि
(स) बढ़ती जाति कपाल धारिता
(द) सीधी खड़ी देह भंगिमा
उत्तर:
(अ) जबड़ों का छोटा होते जाना

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11. पूर्वजों से आधुनिक मनुष्य (होमो सैपियन्स) के उद्विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति थी- (CBSE, 2011 )
(अ) जबड़ों का छोटा होना
(ब) द्विनेत्री बाइनोकुलर दृष्टि
(स) मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि
(द) सीधी मुद्रा
उत्तर:
(स) मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि

12. जब कभी विभिन्न वंशवृत्तों की दो स्पेशीज अनुकूलनों के कारण एक-दूसरे के समान दिखने लगती हैं, तब इस परिघटना को क्या कहा जाता है? (CBSE-2007, RPMT-2010).
(अ) अपसारी विकास
(ब) अभिसारी विकास
(स) सूक्ष्म विकास
(द) सह विकास
उत्तर:
(ब) अभिसारी विकास

13. मिलर के प्रयोग में निम्नलिखित में से कौन अनुपस्थित था ? (CPMT, 2010)
(अ) CH4
(ब) H2
(स) NH3
(द) O2
उत्तर:
(द) O2

14. डार्विन की फिन्च एक अच्छा उदाहरण है- (CBSE PMT-2008, CBSE, 2010)
(अ) औद्योगिक मीलेनीकरण का
(ब) संयोजी कड़ी का
(स) अनुकूली विकिरण का
(द) अभिसारी जैव – विकास का
उत्तर:
(स) अनुकूली विकिरण का

15. मानव के पूर्वजों में से मस्तिष्क का आकार 1000 सी.सी. से अधिक था- (RPMT-2010)
(अ) होमो निएण्डरथेलेन्सिस
(ब) होमो इरेक्टस
(स) रामापिथेकस
(द) होमो हैबिलिस
उत्तर:
(अ) होमो निएण्डरथेलेन्सिस

16. आधुनिक मानव का नवीनतम एवं सीधा प्रागैतिहासिक पूर्वज है- (RPMT-2009)
(अ) क्रोमैगनॉन मानव
(ब) प्री-निएण्डरस्थल मानव
(स) निएण्डरथल मानव
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) क्रोमैगनॉन मानव

17. एक सबसे पुराना सर्वश्रेष्ठतः संरक्षित तथा सर्वाधिक पूर्ण होमिनिड जीवाश्म, जिसे लूसी नाम से जाना जाता है, किस वंश का प्रतिनिधित्व करता है- [AMU (Med)-2009]
(अ) आरियोबाइथेकस
(ब) ड्रायोपाइथेकस
(स) पाइथेकेन्थ्रोपस
(द) आस्ट्रेलोपाइथेकस
उत्तर:
(द) आस्ट्रेलोपाइथेकस

18. इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के दौरान पैपर्ड मॉथ अथवा विस्टन बेटुलेरिया की काले रंग की प्रजाति, इसके हल्के रंग वाली प्रजातियों पर अधिक प्रभावी हो गयी। यह एक उदाहरण है- (RPMT 2006, CBSE, 2009)
(अ) प्राकृतिक चयन का, जिसमें गहरे रंग वाली प्रजातियों का चयन हुआ
(ब) सूर्य के प्रकाश की बहुत कम मात्रा के कारण गहरे रंग वाले जीवों की उत्पत्ति का
(स) सुरक्षात्मक मिमिक्री का
(द) अंधेरे वातावरण के कारण गहरे रंग के गुण की आनुवंशिकता का
उत्तर:
(अ) प्राकृतिक चयन का, जिसमें गहरे रंग वाली प्रजातियों का चयन हुआ

19. विकास का महत्त्वपूर्ण प्रमाण प्रदान करता है- (RPMT 2008)
(अ) जीवाश्म
(ब) आकारिकी
(स) भ्रूण
(द) अवशेषी अंग
उत्तर:
(अ) जीवाश्म

20. रासायनिक विकास की संकल्पना किस पर आधारित है- (CBSE-2007)
(अ) रसायनों का क्रिस्टलीकरण
(ब) तीव्र गर्मी में जल, वायु तथा मृत्तिका की परस्पर क्रिया
(स) रसायनों पर सौर विकिरण का प्रभाव
(द) उपयुक्त पर्यावरण परिस्थितियों में रसायनों के संयोजन द्वारा जीवन का संभावित उद्भव
उत्तर:
(द) उपयुक्त पर्यावरण परिस्थितियों में रसायनों के संयोजन द्वारा जीवन का संभावित उद्भव

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

21. अनुकूली विकिरण का क्या अर्थ है ? (CBSE, 2007)
(अ) भौगोलिक पृथक्करण के कारण होने वाले अनुकूलन
(ब) एक समान पूर्वज से विभिन्न स्पीशीज का विकास
(स) किसी स्पीशीज के सदस्यों का विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में प्रवास
(द) किसी एक व्यष्टि की, विभिन्न पर्यावरणों के लिए अनुकूलन क्षमता
उत्तर:
(ब) एक समान पूर्वज से विभिन्न स्पीशीज का विकास

22. गेलोपेगॉस द्वीप समूह के फिंच पक्षी किस एक के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करते हैं? (CBSE, 2007)
(अ) विशिष्ट सृजन
(ब) उत्परिवर्तनों के कारण हुआ विकास
(स) प्रतिगामी विकास
(द) जैव भौगोलिक विकास
उत्तर:
(द) जैव भौगोलिक विकास

23. मानव पूर्वजों में मस्तिष्क का आकार 1000 C. C. से ज्यादा किसका था? (CBSE, 2007)
(अ) होमो निएंडरथैलेसिस
(ब) होमो इरेक्टस
(स) रामापिथेकस
(द) होमो हैबिलिस
उत्तर:
(अ) होमो निएंडरथैलेसिस

24. प्राकृतिक वरण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया- (CPMT, 2006)
(अ) लैमार्क ने
(स) वैलेस ने
(ब) डार्विन ने
(द) वीजमान ने
उत्तर:
(द) वीजमान ने

25. जैव विकास के समर्थन में पाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण किसका पाया जाता है? (CBSE, 2006)
(अ) समजात तथा अवशेषी अंग
(ब) समवृत्ति तथा अवशेषी अंग
(स) केवल समजात अंग
(द) समजात एवं समवृत्ति अंग
उत्तर:
(अ) समजात तथा अवशेषी अंग

26. डी ब्रीज ने जैविक क्रमविकास से सम्बन्धित अपना उत्परिवर्तन मत किस जीव पर शोध करते हुए प्रस्तुत किया था- (CBSE, 2005)
(अ) इनोथेरा लैमार्कियाना ( सन्ध्या प्रिमरोज )
(ब) ड्रोसोफिलामेलोनोगेस्टर
(स) पाइसम सैटाइवम
(द) एल्थीया रोजिया
उत्तर:
(अ) इनोथेरा लैमार्कियाना ( सन्ध्या प्रिमरोज )

27. मुर्दे को दफन करने एवं धर्म के प्रमाण सर्वप्रथम किस जीवाश्म से मिलते हैं ? (RPMT, 2005 )
(अ) निएण्डरथल
(स) होमो इरेक्टस
(ब) क्रो-मैग्नॉन
(द) होमो हेबिलिस
उत्तर:
(अ) निएण्डरथल

28. निम्नलिखित में से किए गए प्रयोगों से ज्ञात होता है कि सरलतम सजीव जीवधारी निर्जीव पदार्थ से स्वतः जात उत्पन्न नहीं हो सकते थे- (NEET-2005)
(अ) सड़ते – गलते जैविक पदार्थों में लार्वा प्रकट हुए
(ब) मांस को यदि गर्म करके किसी पात्र में सील बंद करके रखा। गया तो मांस खराब नहीं हुआ
(स) भण्डारित मांस में सूक्ष्म जीव प्रकट नहीं हुए
(द) अनिजर्मीकृत जैव पदार्थ से सूक्ष्म जीव प्रकट हुए।
उत्तर:
(ब) मांस को यदि गर्म करके किसी पात्र में सील बंद करके रखा। गया तो मांस खराब नहीं हुआ

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

29. निम्न में से कौनसा गलत है- (Orissa JEE-2004)
(अ) कीटों एवं पक्षियों के पंख समरूप हैं।
(ब) कीटों एवं चमगादड़ के पंख समरूप हैं।
(स) कीटों एवं पक्षियों के पंख समजात अंग हैं
(द) चिड़ियों एवं चमगादड़ के पंख समजात अंग हैं।
उत्तर:
(स) कीटों एवं पक्षियों के पंख समजात अंग हैं

30. आलू और शकरकंद- (AIMS-2004)
(अ) में खांचशील भाग होते हैं जो समजात अंग होते हैं।
(ब) में खांचशील भाग होते हैं जो समवृद्धि अंग होते हैं।
(स) किसी एक बाहरी स्थान से भारत में प्रविष्ट कराए गए हैं।
(द) एक ही जीन के दो स्पीशीज ।
उत्तर:
(ब) में खांचशील भाग होते हैं जो समवृद्धि अंग होते हैं।

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HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
प्रत्यास्थता का विमीय सूत्र है-
(a) [MLT-2]
(b) [ML2T-2]
(c) [ML-1T-2]
(d) [M-1L-1T-2]
उत्तर:
(b) [ML2T-2]

प्रश्न 2.
यंग प्रत्यास्थता गुणांक का सही सूत्र है-
(a) \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{Mg} \Delta \mathrm{L}}{\pi r^2 \mathrm{~L}}\)
(b) \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{Mg}}{\pi r^2 \mathrm{~L}}\)
(c) \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{MgL}}{\pi r^2 \Delta \mathrm{L}}\)
(d) \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{Mgr^2}}{\pi \mathrm{L} \dot \Delta \mathrm{L}}\)
उत्तर:
(b) \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{Mg}}{\pi r^2 \mathrm{~L}}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 3.
निम्न में से सबसे अधिक प्रत्यास्थ पदार्थ है-
(a) स्टील
(b) क्वार्ट्ज
(c) काँच
(d) रबर ।
उत्तर:
(b) क्वार्ट्ज

प्रश्न 4.
पदार्थ का प्रत्यास्थता गुणांक ताप बढ़ाने पर –
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) निर्भर नहीं करता घटने लगता है।
(d) एक सीमा तक बढ़ता है फिर
उत्तर:
(b) घटता है

प्रश्न 5.
जब तार को संपीडित किया जाये तो उसके अणुओं की स्थितिज ऊर्जा-
(a) घटती है
(b) बढ़ती है
(c) अपरिवर्तित रहती है
(d) निश्चित नहीं ।
उत्तर:
(b) बढ़ती है

प्रश्न 6.
वे ठोस, जो प्रत्यास्थता सीमा के आगे टूट जाते हैं, कहलाते
(a) तन्य
(b) आघातवर्धनीय
(c) भंगुर
(d) प्रत्यास्थ
उत्तर:
(c) भंगुर

प्रश्न 7.
दो अणुओं के मध्य अन्तर- आण्विक बल-
(a) सदा आकर्षण का बल होता है।
(b) सदा प्रतिकर्षण का बल होता है।
(c) अधिक दूरी पर नगण्य उससे कम दूरी पर आकर्षण व बहुत कम दूरी पर प्रतिकर्षण बल हो जाता है
(d) अधिक दूरी पर प्रतिकर्षण बल होता है व कम दूरी पर आकर्षण बल होता है।
उत्तर:
(c) अधिक दूरी पर नगण्य उससे कम दूरी पर आकर्षण व बहुत कम दूरी पर प्रतिकर्षण बल हो जाता है

प्रश्न 8.
रबर स्टील, काँच को प्रत्यास्थता के बढ़ते हुए क्रम में लिखने पर सही क्रम होगा-
(a) स्टील, रबर, काँच
(b) रवर, काँच, स्टील
(c) काँच, स्टील, रबर
(d) काँच, रबर स्टील ।
उत्तर:
(b) रवर, काँच, स्टील

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 9.
किसी खिंचे हुए तार की प्रति एकांक आयतन की स्थितिज ऊर्जा होती है-
(a) \(\frac{1}{2}\) × प्रतिबल x विकृति
(b) \(\frac{1}{2}\) \(\frac{\text { प्रतिबल }}{\text { विकृति }}\)
(c) \(\frac{1}{2}\) × बंग प्रत्यास्थता गुणांक × विकृति
(d) \(\frac{1}{2}\) × बंग प्रत्यास्थता गुणांक × विकृति ।
उत्तर:
(c) \(\frac{1}{2}\) × बंग प्रत्यास्थता गुणांक × विकृति

प्रश्न 10.
एक ही पदार्थ तथा समान परिच्छेद क्षेत्रफल के दो तारों को लम्बाइयाँ 1 व 21 हैं। इन्हें लम्बाई के अनुदिश समान बल F लगाकर खींचा जाता है। तारों में उत्पन्न तनावों का अनुपात होगा-
(a) 1 : 1
(b) 1 : 2
(c) 2 : 1
(d) 4 : 1.
उत्तर:
(a) 1 : 1

प्रश्न 11.
एक ही पदार्थ के दो तारों पर जिनकी लम्बाईयाँ क्रमश: L तथा 2L और त्रिज्याएँ क्रमश: 2r तथा r हैं, समान भार लटकाया गया है। तारों की लम्बाई में वृद्धि का अनुपात होगा-
(a) 1 : 4
(b) 1 : 8
(c) 4 : 1
(d) 8 : 1.
उत्तर:
(b) 1 : 8

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 12.
एक तार से Mg भार लटकाने पर, तार की लम्बाई में वृद्धि l हो जाती है। इस प्रक्रिया में कृत कार्य होगा-
(a) Mgl
(b) 2mgl
(c) \(\frac{Mgl}{2}\)
(d) शून्य ।
उत्तर:
(c) \(\frac{Mgl}{2}\)

प्रश्न 13.
यदि किसी तार को खींचकर उसकी लम्बाई दोगुनी कर दी जाये, तो इसका यंग प्रत्यास्थता गुणांक होगा-
(a) आधा
(b) अपरिवर्तित
(c) दोगुना
(d) चार गुना।
उत्तर:
(b) अपरिवर्तित

प्रश्न 14.
एक आदर्श दृढ़ पिण्ड के लिए यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मान-
(a) शून्य
(b) अनन्त
(c) 1
(d) 100.
उत्तर:
(b) अनन्त

प्रश्न 15.
अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A व लम्बाई L का एक तार एक दृढ़ आधार से लटका है जिस पर M भार आरोपित है। इसकी लम्बाई में वृद्धि –
(a) L के व्युत्क्रमानुपाती होती है
(b) M के समानुपाती होती है
(c) यंग प्रत्यास्थता के समानुपाती होती है
(d) A के समानुपाती होती है।
उत्तर:
(b) M के समानुपाती होती है

प्रश्न 16.
रबर स्टील, काँच की प्रत्यास्थता के घटते क्रम में सही क्रम है-
(a) स्टील, रबर, काँच
(b) रबर, काँच, स्टील
(c) स्टील, काँच, रबर
(d) काँच, रबर, स्टील।
उत्तर:
(c) स्टील, काँच, रबर

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 17.
किसी पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक उस प्रतिबल के बराबर है, जो-
(a) तार की लम्बाई दोगुनी कर दें
(b) तार की लम्बाई अपरिवर्तित रहे
(c) तार की लम्बाई 50% बढ़ा दें
(d) तार की लम्बाई 25% बढ़ा दें।
उत्तर:
(a) तार की लम्बाई दोगुनी कर दें

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
प्रतिबल का मात्रक लिखिए।
उत्तर:
प्रतिबल = \(\frac{F}{A}\)
प्रतिबल का मात्रक = \(\frac{N}{m^2}\) = Nm-2.

प्रश्न 2.
वह गुण जिससे बाह्य बल हटा लिए जाने पर वस्तु अपने प्रारम्भिक स्वरूप को प्राप्त कर लेती है, क्या कहलाता है ?
उत्तर:
प्रत्यास्थता ।

प्रश्न 3.
प्रत्यास्थता सीमा में प्रतिबल एवं विकृति का अनुपात क्या कहलाता है ?
उत्तर:
प्रत्यास्थता गुणांक ।

प्रश्न 4.
अनुप्रस्थ विकृति एवं अनुदैर्घ्य विकृति का अनुपात क्या कहलाता है ?
उत्तर:
पॉयसन अनुपात ।

प्रश्न 5.
यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक लिखो ।
उत्तर:
न्यूटन / मी² या पॉस्कल ।

प्रश्न 6.
किसी द्रव का अपरूपण व बंग गुणांक कितना होता है?
उत्तर:
दोनों शून्य होते हैं।

प्रश्न 7.
किसी ठोस के यंग प्रत्यास्थता गुणांक पर ताप वृद्धि का क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
ताप वृद्धि के साथ यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मान घटता है।

प्रश्न 8.
मशीनों को घूर्णी गति देने के लिए शाफ्ट कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
खोखली तथा छोटी ताकि बलयुग्म अधिक उत्पन्न हो सके।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 9.
प्रतिबल तथा विकृति के बीच खिंचे ग्राफ का ढलान क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर:
प्रत्यास्थता गुणांक ।

प्रश्न 10.
एक पूर्ण दृढ़ पिण्ड का दृढ़ता गुणांक कितना होता है?
उत्तर:
अनन्त (00)।

प्रश्न 11.
जब एक ठोस को दबाया जाता है, तो उसके अणुओं की स्थितिज ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ता है? यदि ठोस खींचा जाये, तब ?
उत्तर:
दोनों स्थितियों में स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है।

प्रश्न 12.
ठोस, द्रव तथा गैस में से किसकी संपीड्यता सबसे अधिक होती है ?
उत्तर:
गैस ।

प्रश्न 13.
क्या प्रतिबल सदिश राशि है ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 14.
सुग्राही उपकरणों में निलम्बन तार प्रायः क्वार्ट्ज या फॉस्कर ब्रॉन्ज के ही क्यों बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
क्योंकि इन दोनों में प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव नगण्य होता है।

प्रश्न 15.
भंजन प्रतिबल किस पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
तार के पदार्थ पर।

प्रश्न 16.
गर्डर की आकृति के रूप में बनाने का क्या कारण है ?
उत्तर:
भार के कारण अवनमन कम से कम हो।

प्रश्न 17.
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक के व्युत्क्रम को क्या कहते हैं?
उत्तर:
संपीड्यता ।

प्रश्न 18.
सर्वाधिक प्रबल अन्तर- परमाण्विक बल कौन-सा है ?
उत्तर:
आयनी आबन्ध

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प्रश्न 19.
अन्तर- आण्विक व अन्तर- परमाण्विक बल किस प्रकृति के होते हैं ?
उत्तर:
वैद्युत् चुम्बकीय प्रकृति के

प्रश्न 20.
किसी ठोस को संपीडित करने पर परमाणुओं की स्थितिज ऊर्जा बढ़ेगी या घटेगी ?
उत्तर:
बढ़ेगी।

प्रश्न 21.
वे वस्तुएँ क्या कहलाती हैं जो अपना प्रारम्भिक आकार प्राप्त करने की प्रवृत्ति नहीं होती है और स्थायी रूप से विकृत हो जाते हैं ?
उत्तर:
सुघट्य या प्लास्टिक ।

प्रश्न 22.
जब प्रतिबल शून्य होने पर भी विकृति शून्य नहीं होती तब द्रव्य में स्थायी विरूपण हो जाता है। ऐसे विरूपण को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
प्लास्टिक विरूपण ।

प्रश्न 23.
प्रत्यास्थालक (इलास्टोमर्स) के दो उदाहरण लिखो ।
उत्तर:
महाधमनी व रबड़ ।

प्रश्न 24.
किसी प्रारूपिक चट्टान की प्रत्यास्थता सीमा कितनी होती है ?
उत्तर:
30 × 107 Nm-2

प्रश्न 25.
दृढ़ता गुणांक का विमीय सूत्र क्या है ?
उत्तर:
[M1L-1T-2],

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 26.
अन्तर- परमाण्विक बल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विभिन्न परमाणुओं के मध्य लगने वाले बलों को अन्तर- परमाण्विक बल कहते हैं।

प्रश्न 27.
मशीनों को घूर्णी गति देने के लिए शॉफ्ट कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर:
खोखली तथा छोटी ताकि अधिक बलयुग्म संचरित हो सके।

प्रश्न 28.
यंग प्रत्यास्थता गुणांक Y तथा अनुदैर्घ्य विकृति a के पदों में खिंचे तार के एकांक आयतन की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
U= \(\frac{1}{2}\)Yσ²

प्रश्न 29.
जब किसी तार को खींचते हैं तो हमें कार्य क्यों करना पड़ता है ?
उत्तर:
आन्तरिक प्रतिक्रिया बलों के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 30.
विकृति की विमा लिखिए।
उत्तर:
विकृति विमाहीन राशि है।

प्रश्न 31.
क्या द्रवों में दृढ़ता का गुण पाया जाता है ?
उत्तर:
नहीं, द्रवों में दृढ़ता का गुण नहीं पाया जाता है, क्योंकि द्रवों की कोई आकृति नहीं होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

तो
प्रश्न 1.
प्रत्यानयन बल क्या होते हैं ?
उत्तर:
जब विकृतकारी बल के प्रभाव में कोई वस्तु विकृत होती है। वस्तु के अन्दर प्रतिक्रियात्मक बल उत्पन्न होते हैं जो विकृतकारी का विरोध करते हैं और इन्हीं बलों के कारण बाध्य बल हटाने पर वस्तु अपनी प्रारम्भिक अवस्था में आ जाती है। इसीलिए इन बलों को प्रत्यानयन बल (Restoring Forces) कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रतिबल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रत्यानयन बल को प्रतिबल कहते हैं। अतः
प्रतिबल = \(\frac{\text { प्रत्यानयन बल }}{\text { क्षेत्रफल }}=\frac{F}{A}\)
∴ प्रतिबल का मात्रक – N/m².

प्रश्न 3.
प्रत्यास्थता की सीमा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विकृतकारी बल की वह सीमा जहाँ तक वस्तु पूर्ण प्रत्यास्थ रहती है ओर इससे अधिक बल लगाने पर वस्तु में स्थायी विकृति उत्पन्न हो जाती है, प्रत्यास्थता सीमा कहलाती है।

प्रश्न 4.
यदि हाथी दाँत तथा गीली मिट्टी की एक जैसी ठोस गोलियाँ एक ही ऊँचाई से फर्श पर गिरायी जाती हैं तो फर्श से टकराने के बाद कौन सी गोली अधिक ऊँचाई तक उठेगी और क्यों ?
उत्तर:
यदि विभिन्न पदार्थों से बनी दो ठोस गोलियाँ फर्श पर एक ही ऊँचाई से गिरायी जायें तो अधिक ऊँचाई तक उठने वाली गोली अधिक प्रत्यास्थ होगी। हाथी दाँत की प्रत्यास्थता गीली मिट्टी से अधिक है, अतः हाथी दाँत की गोली अधिक ऊँचाई तक उठेगी।

प्रश्न 5.
साइकिल खोखले पाइप की क्यों बनायी जाती है ?
उत्तर:
यदि बेलनाकार छड़ है तो उसके अवनमन का सूत्र होता है-
\(\delta=\frac{\mathrm{W} l^3}{12 \mathrm{Y} \pi \mathrm{R}^4}\)
जहाँ R छड़ के काट की त्रिज्या है।
उपर्युक्त सूत्र से स्पष्ट है कि समान द्रव्यमान की खोखली बेलनाकार छड़ ठोस छड़ से अधिक मजबूत होगी क्योंकि उसी द्रव्यमान की खोखली छड़ की त्रिज्या अधिक होगी। यही कारण है कि साइकिलों में ठोस छड़ की अपेक्षा खोखला पाइप प्रयोग करते हैं जिससे पाइप की सामर्थ्य भी बढ़े तथा धातु की बचत होने पर कम खर्च आये ।

प्रश्न 6.
पीतल, स्टील व रबर के प्रतिबल – विकृति वक्र चित्र में प्रदर्शित हैं।
रेखा A, B और C क्रमशः किन-किन वक़ों पर प्रदर्शित करती हैं?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -1
उत्तर:
प्रदर्शित ग्राफ में-
वक्र का ढलान = \(\frac{\text { y-अक्ष }}{\text { x-अक्ष }}=\frac{\text { प्रतिबल }}{\text { विकृति }}\) = यंग प्रत्यास्थता गुणांक
θA > θB > θC
अत: YA > YB > YC (ग्राफ द्वारा)
लेकिन तालिका से Yखुर < Yपीतल < Yस्टील
वक्र A = स्टील = 20 × 1010 M/m²
वक्र B = पीतल = 9 × 1010 M/m²
वक्र C = रबर = 0.05 × 1010 M/m²

प्रश्न 7.
चित्रानुसार ग्राफ तार की लम्बाई के व्यवहार को, तार के पदार्थ के लिए उस क्षेत्र को प्रदर्शित करता है जहाँ हुक के नियम का पालन होता है। A तथा B क्या प्रदर्शित करते हैं?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -2
उत्तर:
प्रत्यास्थता की सीमा के अन्दर
प्रतिबल ∝ विकृति (हुक के नियम से)
ग्राफ की प्रकृति = एक सरल रेखा
जो ग्राफ में प्रदर्शित नहीं है।
तार में संचित ऊर्जा के लिए-
U = \(\frac{1}{2}\)kx² या U ∝ x²
ग्राफ की प्रकृति = परवलयाकार
जो ग्राफ में प्रदर्शित है।
अत: A तथा B, ऊर्जा तथा लम्बाई में वृद्धि को प्रदर्शित करते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 8.
छोटी खोखली शाफ्ट लम्बी ठोस शाफ्ट से अधिक मजबूत होती है, क्यों?
उत्तर:
शाफ्ट एक ऐसी बेलनाकार छड़ है जो अन्य मशीनों को घूर्णन गति प्रदान करने में प्रयोग की जाती है। यदि शाफ्ट का एक सिरा दृढ़ता से कसकर दूसरे सिरे पर मरोड़ देने वाला बल लगायें तब छड़ में अपरूपण विकृति उत्पन्न हो जायेगी किसी ऐंठन कोण θ के लिए लगाये जाने वाले बल आघूर्ण का मान निम्न होता है-
\(\tau=\frac{\eta \pi r^4 \theta}{2 l}\)
जहाँ l = लम्बाई, r = शाफ्ट की त्रिज्या तथा η = शाफ्ट के पदार्थ का अपरूपण गुणांक है।
ठोस शाफ्ट में एकांक ऐंठन उत्पन्न करने के लिए आवश्यक बलयुग्म आघूर्ण –
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -3
अर्थात् समान द्रव्यमान व पदार्थ की खोखली व ठोस शाफ्टों में, खोखली शाफ्ट को ऐंठने में ठोस शाफ्ट को ऐंठने की अपेक्षा अधिक कार्य करना होगा, अतः छोटी खोखली शाफ्ट लम्बी ठोस शाफ्ट से अधिक मजबूत होती है।

प्रश्न 9.
रेल की पटरी आकार की क्यों बनाई जाती है?
उत्तर:
रेल की पटरी के ऊपरी तथा नीचे के भागों में अधिक विकृति उत्पन्न होती है, जबकि बीच के भाग में कम विकृति होती है, इस कारण से ऊपरी व निचले भागों का क्षेत्रफल अधिक रखा जाता है जिससे कि इन भागों पर अभिलम्ब प्रतिबल (PA) कम लगे। बीच के भागों की विकृति कम होने के कारण ये भाग कम चौड़ाई के बनाए जाते हैं। इससे लोहे की भी बचत होती है तथा पटरी की मजबूती भी उसी प्रकार की बनी रहती है।

प्रश्न 10.
L लम्बाई तथा A परिच्छेद क्षेत्रफल वाले एक ऊर्ध्वाधर तार के निचले सिरे से M द्रव्यमान का एक गोला लटकाया जाता है। यदि तार का यंग प्रत्यास्थता गुणांक ४ हो तो ऊर्ध्वाधर तल में पिण्ड के दोलन करने की आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना किसी तार में खिंचाव हैं तथा तार में प्रत्यानयन बल F है-
सूत्र-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -4

प्रश्न 11.
त्रिज्या की तार दो बिन्दुओं A व B के बीच बंधी है। सामान्य अवस्था में इसमें तनाव नहीं है। जब इसे खींचकर ACB के रूप का कर दिया जाता है तो तार में कितना तनाव है?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -5
उत्तर:
प्रारम्भिक लम्बाई AB = 2l
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -6

प्रश्न 12.
विभिन्न पदार्थों के तीन तारों के लिए प्रतिबल – विकृति ग्राफ चित्र में प्रदर्शित हैं A,B व C तारों की प्रत्यास्थता की सीमाएँ हैं। चित्र से A, B C के बारे में क्या निष्कर्ष निकलते हैं?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -7

उत्तर:
ग्राफ में प्रतिबल, X- अक्ष व विकृति Y-अक्ष पर प्रदर्शित है,
अतः ग्राफ से, Y = cot θ = \(\frac{1}{tan θ}\) ∝ \(\frac{1}{θ}\)
[जहाँ θ = प्रतिबल अक्ष से कोण है]
अर्थात् A की प्रत्यास्थता न्यूनतम व की अधिकतम है।

प्रश्न 13.
जब किसी तार को (i) खींचा जाता है तथा (ii) सम्पीडित किया जाता है तो प्रत्यानयन प्रतिबल किस कारण उत्पन्न होता है?
उत्तर:
जब किसी तार को खींचा जाता है तो अन्तर- परमाण्विक आकर्षण बलों के कारण प्रत्यानयन प्रतिबल उत्पन्न होता है तथा जब तार को सम्पीडित किया जाता है तो अन्तरपरमाण्विक प्रतिकर्षण के कारण प्रत्यानयन प्रतिबल उत्पन्न होता है।

प्रश्न 14,
यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक प्राप्त कीजिए। पीतल का बंग प्रत्यास्थता गुणांक लोहे से आधा है, पीतल के एक तार की लम्बाई लोहे के एक अन्य तार की लम्बाई के बराबर है। दोनों तारों पर एक-सा प्रतिबल लगा है। इन दोनों तारों की लम्बाई में वृद्धि के अनुपात की गणना कीजिए।
उत्तर:
Y का मात्रक = \(\frac{\text { प्रतिबल का मात्रक }}{\text { विकृति का मात्रक }}\)
= न्यूटन / मीर²
किसी पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -8

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 15.
समान पदार्थ के चार तारों (P, Q, R व S) के भारों का उनकी लम्बाई वृद्धि के साथ ग्राफ प्रदर्शित है। अधिकतम मोटाई का तार किस रेखा द्वारा प्रदर्शित होगा ?
उत्तर:
यंग प्रत्यास्थता गुणांक
Y = \(\frac{FL}{Al}\) ∴ l ∝ \(\frac{F}{A}\)
(∵ Y, L व F नियत हैं)
ग्राफ से स्पष्ट है कि समान भार के लिए न्यूनतम लम्बाई वृद्धि OS से प्रदर्शित है,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -9

∵ लम्बाई वृद्धि (l) न्यूनतम होने पर अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A अधिकतम है।
अतः अधिकतम मोटाई का तार OS से प्रदर्शित है।

प्रश्न 16.
इस्पात तथा तांबे की समान आकारों की स्प्रिंगों को समान वृद्धि तक खींचा जाता है किस पर अधिक कार्य करना पड़ेगा ?
उत्तर:
इस्पात का यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Y) ताँबे की तुलना में अधिक होता है अतः यदि स्प्रिंगें समान प्रकार की हैं (A. L बराबर हैं) तो बराबर-बराबर खींचने ( वृद्धि x) के लिए इस्पात की स्प्रिंग पर अधिक कार्य करना पड़ेगा।
चूँकि W = \(\frac{1}{2}\) \(\frac{YA}{L}\)x² ∴ W ∝ Y

प्रश्न 17.
यदि इन्हीं स्प्रिंगों को बराबर बल लगाकर खींचा जाये तब ?
उत्तर:
इस्पात की स्प्रिंग कम खिंचेगी। अतः अब की बार ताँबे की स्प्रिंग पर अधिक कार्य करना पड़ेगा।

प्रश्न 18.
पॉयसन अनुपात क्या होता है ?
उत्तर:
प्रत्यास्थता की सीमा के अन्दर अनुप्रस्थ (पार्श्व) विकृति एवं अनुदैर्घ्य विकृति का अनुपात पदार्थ का पॉयसन अनुपात कहलाता है। इसे σ से व्यक्त करते हैं।
पॉयसन अनुपात σ = \(\frac{\text { पार्श्व विकृति}}{\text { अनुदैर्ध्य विकृति }}\)

प्रश्न 19.
हुक का नियम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर, प्रतिबल विकृति के समानुपाती होता है।
अर्थात् प्रतिवल ∝ विकृति

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 20.
स्प्रिंगें इसपात की ही क्यों बनायी जाती हैं ?
उत्तर:
इस्पात का यंग प्रत्यास्थता गुणांक अन्य धातुओं जैसे- ताँबा, ऐल्यूमिनियम आदि से अधिक होता है इसीलिए स्प्रिंगें इस्पात की बनायी जाती है ताकि बाहरी बल हटाने पर स्प्रिंग शीघ्र अपनी पूर्वावस्था में आ जाये।

प्रश्न 21.
हम तार को बार-बार मोड़कर उसे तोड़ने में सफल क्यों हो जाते हैं ?
उत्तर:
जब किसी पदार्थ को बार बार विकृत किया जाता है तो पदार्थ का प्रत्यास्थ गुण तेजी से घटने लगता है, इसी को प्रत्यास्थता श्रांति कहते हैं। इसलिए तार को बार-बार मोड़कर हम उसे तोड़ने में सफल हो जाते हैं।

प्रश्न 22.
अनुदैर्घ्य विकृति तथा अनुदैर्घ्य प्रतिबल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अनुदैर्घ्य विकृति : लम्बाई में परिवर्तन तथा आरम्भिक लम्बाई के अनुपात को अनुदैर्ध्य विकृति कहते हैं। तनन प्रतिबल के कारण, तार या छड़ की प्रारम्भिक लम्बाई L में ∆L वृद्धि हो तो,
अनुदैर्घ्य विकृति = \(\frac{∆L}{L}\)
अनुदैर्घ्य प्रतिबल : जब किसी तार पर बल आरोपित किया जाये तो वस्तु के प्रति एकांक काट क्षेत्र पर उत्पन्न प्रत्यानयन बल को अनुदैर्घ्य प्रतिबल कहते हैं।
अनुदैर्घ्यं प्रतिबल = \(\frac{F}{A}\)

प्रश्न 23.
पूर्ण प्रत्यास्थ, प्लास्टिक एवं दृढ़ पिण्ड किन्हें कहते हैं ? इनकी सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जो वस्तुएँ विरूपक बल हटाने से अपनी पूर्व अवस्था में लौट आती है। उन्हें पूर्ण प्रत्यास्थ कहते हैं जैसे- क्वार्ट्ज, फॉस्फर ब्रांज ।
जो वस्तुएँ विरूपक बल हटाने पर अपनी पूर्व अवस्था में नहीं लौटती हैं, बल्कि सदैव के लिए विरूपित हो जाती हैं, उन्हें प्लास्टिक या पूर्ण सुघट्य कहते हैं; जैसे – मोम, गीली मिट्टी।
यदि किसी पदार्थ में अणु या परमाणुओं के मध्य दूरी निश्चित हो एवं बाह्य बल के प्रभाव में भी अपरिवर्तित हो तो वह दृढ़ पिण्ड कहलाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
यंग प्रत्यास्थता गुणांक को परिभाषित कीजिए। यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात करने की सल की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young’s Modulus of Elasticity):
“प्रत्यास्थता सीमा में अनुदैर्घ्य प्रतिबल एवं अनुदैर्घ्य विकृति के अनुपात को यंग प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।” इसे Y से व्यक्त करते हैं।
यंग प्रत्यास्थता गुणांक \(Y=\frac{\text { अनुदैर्घ्य प्रतिबल }}{\text { अनुद्र्घ्य विकृति }}=\frac{\sigma}{\varepsilon}\)
यदि L लम्बाई एवं A अनुप्रस्थ परिच्छेद के तार पर F बल लगाने पर उसकी लम्बाई में वृद्धि $\Delta \mathrm{L}$ हो जाती है तो
अनुदुर्घ्य प्रतिबल \(\sigma=\frac{\mathrm{F}}{\mathrm{A}}\)
तथा अनुदैर्घ्य विकृति \(\varepsilon=\frac{\Delta \mathrm{L}}{\mathrm{L}}\)
\(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{F} / \mathrm{A}}{\Delta \mathrm{L} / \mathrm{L}}\)
या \(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{F} \cdot \mathrm{L}}{\Delta \mathrm{L} \cdot \mathrm{A}}\)
यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक न्यूटन / मीटर² \(\left(\mathrm{~N}-\mathrm{m}^{-2}\right)\) या पॉस्कल (Pa) तथा विमीय सूत्र \(\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^{-1} \cdot \mathrm{T}^{-2}\right]\) है। यंग प्रत्यास्थता गुणांक Y केवल ठोस पदार्थों के लिए ही होता है।

यदि तार के परिच्छेद की त्रिज्या r तथा Mg भार लटकाकर विरूपक बल लगाया गया हो तो
\(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{MgL}}{\pi r^2 \Delta \mathrm{L}}\)
यदि तार का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल \(\mathrm{A}=\pi r^2=1 \mathrm{~m}^2\) तथा लम्बाई में वृद्धि ∆L = L हो तो Y = F
“अर्थात् किसी पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक उस बल के तुल्य होता है जो प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर उस पदार्थ के एकांक अनुप्रस्थ परिच्छेद के तार की लम्बाई को दोगुना कर दे।”

किसी तार के पदार्थ का यंग गुणांक का मापन (Measurement of Young’s Modulus of Elasticity of Material of a Wire):
किसी तार के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात करने की सर्ल विधि (Searl Method) के लिए प्रयुक्त उपकरण चित्र में दर्शाया है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -10
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -11

इसमें समान लम्बाई एवं समान त्रिज्या के दो ऊर्ध्वाधर पास-पास दृढ़ आधार से लटके होते हैं। इनमें तार A को सन्दर्भ तार (Reference wire) कहते हैं। इस निचले सिरे पर मिलीमीटर में अंकित प्रधान स्केल (Main Scale) M लगी होती है और एक स्थिर भार लटकाया जाता है, ताकि तार तना रहकर अपनी मूल लम्बाई में रहे। दूसरा तार B प्रायोगिक तार (Experimental Wire) होता है। जिसके निचले सिरे पर एक वर्नियर स्केल V लगी होती है जिसका सम्बन्ध मुख्य स्केल से रहता है और तार पर भार लटकाने के लिए एक हैंगर लगा होता है।

स्क्रूगेज की सहायता से तार B का व्यास कई स्थानों पर ज्ञात करके उसका औसत लेकर तार की त्रिज्या r ज्ञात कर लेते हैं। मीटर स्केल की सहायता से इस तार की प्रारम्भिक लम्बाई L ज्ञात कर लेते हैं। अब लम्बाई में वृद्धि ∆L ज्ञात करने के लिए मुख्य स्केल का पाठ पहले ज्ञात कर लेते हैं। इसके पश्चात् तार B के हैंगर पर क्रमशः वजन रखकर वर्नियर स्केल की सहायता से विभिन्न भारों के लिए लम्बाई में वृद्धि के मान ज्ञात कर लेते हैं। लम्बाई में वृद्धि एवं आरोपित भार के साथ ग्राफ खींचते हैं जो चित्र की भाँति सरल रेखा प्राप्त होती है। ग्राफीय रेखा के किसी एक बिन्दु के संगत M व ∆l के मान नोट कर लेते हैं। इसके मान को निम्न सूत्र में रखकर तार के पदार्थ का यंग गुणांक का मान ज्ञात कर लेते हैं-
\(\mathrm{Y}=\frac{\mathrm{MgL}}{\pi r^2 \Delta \mathrm{L}}\)

पदार्थयंग गुणांक (×109 Nm-2))
एल्युमिनियम70
ताँबा110
लोहा190
इस्पात200
काँच65
कक्रीट30
लकड़ी13
अस्थि9
पॉलीस्टीरीन3

प्रश्न 2.
बढ़ते भार के अन्तर्गत खिंचे तार के व्यवहार को प्रतिबल – विकृति ग्राफ की सहायता से समझाइए पराभव सामर्थ्य तथा चरम तनन सामर्थ्यं भी स्पष्ट कीजिए।
उतर:
प्रतिबल – विकृति वक्र (Stress-Strain Curve):
तनन प्रतिबल के प्रभाव में किसी दिए गए द्रव्य के लिए प्रतिबल तथा विकृति के मध्य सम्बन्ध एक प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। किसी बेलन या तार को एक प्रत्यारोपित बल (भार) द्वारा विस्तारित किया जाता है। लम्बाई में भिन्नात्मक परिवर्तन (विकृति) तथा इस विकृति के लिए आवश्यक विरूपक बल को नोट कर लेते हैं प्रत्यारोपित बल (या भार) को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं और लम्बाई में वृद्धि के मान को नोट कर लेते हैं। अब सभी प्रेक्षणों के लिए प्रतिबल (\(\frac{F}{A}\)) तथा विकृति (\(\frac{∆l}{L}\)) के मान ज्ञात कर लेते हैं। प्रतिबल तथा विकृति के बीच ग्राफ खींचते हैं। किसी दी गई धातु के लिए एक प्रारूपिक प्रतिबल – विकृति ग्राफ चित्र में दर्शाया है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -12

प्रतिबल-विकृति ग्राफ के अध्ययन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं-
(1) O से A तक वक्र रैखिक है अर्थात् इस क्षेत्र में हुक के नियम का पालन होता है। जब विरूपक बल हटा लिया जाता है तो तार पुनः अपनी प्रारम्भिक स्थिति में आ जाता है इस क्षेत्र में ठोस एक प्रत्यास्थ वस्तु जैसा आचरण करता है। A विन्दु को अनुक्रमानुपातीय सीमा- (Proportionality Limit) कहते हैं।

(2) A से B तक के क्षेत्र में प्रतिबल तथा विकृति अनुक्रमानुपाती नहीं है फिर भी भार हटा लेने पर तार अपनी प्रारम्भिक अवस्था में आ जाता है। बिन्दु B को पराभव बिन्दु अथवा प्रत्यास्थता सीमा कहते हैं तथा उसके संगत प्रतिबल को द्रव्य की पराभव सामर्थ्य (S) कहते हैं।

(3) भार को और अधिक बढ़ाने पर विकृति का मान बढ़ते प्रतिबल की तुलना में शीघ्रता से बढ़ता है तथा वक्र का B से D तक का भाग प्राप्त होता है। यदि B व D के मध्य कोई बिन्दु C माना जाये तो इस बिन्दु के संगत भार हटा लेने पर तार अपनी प्रारम्भिक स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता है। अर्थात् तार का प्रत्यास्थ गुणं समाप्त हो जाता है। इस स्थिति में प्रतिबल को शून्य कर देने पर भी विकृति का मान शून्य नहीं होता है। अर्थात् तार में स्थायी विरूपण हो जाता है। स्थायी विरूपण को ‘प्लास्टिक विरूपण’ कहते हैं। ग्राफ पर बिन्दु D को द्रव्य की चरम तनन सामर्थ्य कहते हैं और इसे S से प्रदर्शित करते हैं। बिन्दु D पर प्रतिबल अपने अधिकतम सम्भव मान पर होता है इसे भंजक प्रतिबल (Breaking Stress) कहते हैं। बिन्दु D पर लगाये गये भार को विच्छेदन भार (Breaking Load) कहते हैं।

(4) बिन्दु D से आगे यदि आरोपित बल को घटाया भी जाये तब भी अतिरिक्त विकृति उत्पन्न हो जाती है तथा बिन्दु E पर तार टूट जाता है। यदि D और E पास-पास है तो पदार्थ भंगुर है तथा D व E अधिक दूरी पर होने पर द्रव्य को ‘तन्य’ पदार्थ कहते हैं।

(5) कुछ पदार्थों जैसे रबड़ के लिए ग्राफ का OA भाग सरल रेखा में नहीं होता क्योंकि ऐसे पदार्थों की प्रत्यास्थता की सीमा बहुत अधिक होती है, लेकिन हुक के नियम का पालन नहीं करते। इन्हें प्रत्यास्थक (Elastomer) कहते हैं।

प्रत्यास्थता से सम्बन्धित महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Important Definition Related to Elasticity):
प्रत्यास्थता की सीमा (Limit of Elasticity) : विरूपक बल के उस अधिकतम मान को जिसके परे पदार्थ की प्रत्यास्थता का गुण समाप्त हो जाता है, उस पदार्थ की प्रत्यास्थता की सीमा कहते हैं।

प्रत्यास्थता भ्रांति (Elastic Fatigue) : जब किसी वस्तु पर प्रत्यास्थता की सीमा के अन्दर एक विरूपक बल अधिक समय तक लगाये रखा जाता है, तो वस्तु में उत्पन्न विकृति का मान समय के साथ धीरे-धीरे कम होता जाता है। ऐसा लगता है कि वस्तु थक गई। यदि कुछ समय के लिए वस्तु पर से विरूपक बल हटा लिया जाए, तो उसमें पुनः नियमित विकृति होने लगती है। इसे प्रत्यास्थता श्रांति कहते हैं।

प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव (Elastic After Effect) : जब किसी वस्तु पर प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर विरूपक बल लगाया जाता है तो विकृति उत्पन्न होती है। विरूपक बल हटा लेने पर वस्तु तुरन्त ही अपनी पूर्वावस्था ग्रहण नहीं कर पाती, बल्कि कुछ समय लगता है। इसे प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव कहते हैं।
धारामापी जैसे सुग्राही यंत्रों में निलम्बन तार फॉस्फर ब्रॉज तथा क्वार्टज के बनाने का कारण इन पदार्थों की नगण्य प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव ही है।

प्रत्यास्थ शैथिल्य (Elastic Hysteresis) : “विकृति को प्रतिलोमत करने पर प्रतिबल – विकृति वक्र का अपने मार्ग की पुनरावृत्ति न करना प्रत्यास्थ शैथिल्य कहलाता है।” सभी प्रत्यास्थकों जैसे रबड़, हृदय से रक्त ले जाने वाली महाधमनी में प्रत्यास्थ शैथिल्य पाया जाता है। रबड़ के एक नमूने के लिए प्रतिबल – विकृति वक्र चित्र 9.8 में प्रदर्शित है जिनमें भार बढ़ाते समय का वक्र OAB एवं भार घटाते समय का वक्र BCO है। स्पष्ट है कि उक्त दोनों वक्र भिन्न हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -13

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 3.
ठोसों के प्रत्यास्थ व्यवहार को स्प्रिंग गेंद मॉडल की सहायता से समझाइए ।
उत्तर:
ठोसों का प्रत्यास्थ व्यवहार (Elastic Behaviour Of Solids)
ठोसों के प्रत्यास्थ व्यवहार को परमाणवीय मॉडल के आधार पर भली प्रकार समझा जा सकता है। प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना है। एक ठोस क्रिस्टल में ये परमाणु एक निश्चित व्यूह में वैद्युत आकर्षण बलों के द्वारा बँधे रहते हैं। इन वैद्युत बलों को अंतरा परमाणुक बल या अंतरा आणविक बल कहते हैं।

परमाणुओं के मध्य एक निश्चित दूरी पर आण्विक बल शून्य होता है अर्थात् वैद्युत आकर्षण बल एवं प्रतिकर्षण बल परिमाण में समान होता है। जब अन्तर परमाण्विक दूरी का मान से अधिक बढ़ता है तो To आकर्षण बल पहले बढ़ता है परन्तु एक सीमा से अधिक दूरी बढ़ाने पर आकर्षण बल घटने लगता है। बल की इस सीमा को प्रत्यास्थता सीमा कहते हैं। इसके बाद भी यदि बाह्य बल बढ़ाया जाता है तो आकर्षण बल घटते घटते शून्य हो जाता है और विच्छेद / भंजन (Breaking) की स्थिति आ जाती है ।

यदि अन्तर परमाण्विक दूरी का मान से कम हो जाता है तो इस दशा में परमाणुओं के बीच आवेश का वितरण इस प्रकार बदल जाता है। कि उनके बीच एक नेट प्रतिकर्षण बल लगने लगता है। बाह्य विरूपक बल हटा लेने पर परमाणु इसी प्रतिकर्षण बल के कारण एक-दूसरे से दूर हट कर अपनी पूर्व प्रारम्भिक स्थिति में लौटता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -14
उक्त विवेचना में प्रत्यानयन बल की क्रियाविधि को समझने के लिए चित्र पर विचार करें, इसमें गेंद स्प्रिंग मॉडल में गेंद परमाणुओं को तथा स्प्रिंग अंतरा परमाण्विक बलों को निरूपित करती है। यदि किसी गेंद को अपनी स्थिति से विस्थापित करने का प्रयास करते हैं तो स्प्रिंग तन्त्र उस गेंद को वापस लाने का प्रयास करेगा। इस प्रकार ठोसों का प्रत्यास्थ व्यवहार ठोस की सूक्ष्मीय प्रकृति के आधार पर समझाया जा सकता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -15

प्रश्न 4.
किसी तार को खींचने में किये गये कार्य का सूत्र व्युत्पन्न कीजिए।
उत्तर:
खिंचे हुए तार में स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy in Astretching Wire)
जब किसी तार पर बाह्य बल लगाकर उसे खींचा जाता है तो तार में विकृति उत्पन्न होने पर उसके अन्दर प्रत्यानयन बल उत्पन्न होता है।
इसी प्रत्यानयन बल के विरुद्ध तार की लम्बाई बढ़ाने में जो कार्य करना पड़ता है, वह खिचे हुए तार में उसकी ‘प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा’ के रूप में निहित हो जाता है। इसका मान निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं-
माना तार पर P बल लगाने पर इसकी लम्बाई में वृद्धि हो जाती है। चूँकि जो प्रत्यानयन बल उत्पन्न होते हैं, उनका प्रारम्भिक मान शून्य होता है जो अन्त में F हो जाता है अतः
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आंकिक प्रश्न

यंग प्रत्यास्थता गुणांक पर आधारित

प्रश्न 1.
4 मीटर लम्बे तथा 1.2 सेमी² अनुप्रस्थ काट वाले ताँबे के तार को 4.8 × 10³ न्यूटन कल द्वारा खींचा जाता है। यदि ताँबे के लिए यंग प्रत्यास्थता गुणांक Y = 1.2 × 1011 न्यूटन / मी हो तो ज्ञात कीजिए- (i) प्रतिबल (ii) विकृति
उत्तर:
(i) 4 × 107 न्यूटन /मी²
(ii) 3.3 × 10-4

प्रश्न 2.
ताँबे के तार की लम्बाई 10 मीटर है तथा इसका द्रव्यमान 50 ग्राम/मी है। यदि इस तार पर 2 किग्रा का भार लटकाया जाता है, तो लम्बाई में वृद्धि की गणना कीजिए ताँबे का यंग प्रत्यास्थता गुणांक = 1.2 × 1011 न्यूटन / मी तथा ताँबे का घनत्व p = 8.9 × 10³ kg/m³ है।
उत्तर:
10.29 मिमी

प्रश्न 3.
2 मीटर लम्बी एक हल्की छड़ समान लम्बाई के दो ऊर्ध्वाधर तारों से क्षैतिज लटकाई गई है। एक तार स्टील का है जिसका अनुप्रस्थ परिच्छेद 0.1 सेमी² है दूसरा तार पीतल का है जिसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 0.2 सेमी² है। दोनों तारों में (i) समान प्रतिबल (ii) समान विकृति उत्पन्न करने के लिए किसी भार को छड़ पर कहाँ लटकाना चाहिए? (स्टील के लिए Y = 2.0 ×1011 N/m² तथा पीतल के लिए Y = 10× 1011 N/m²)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण -17
उत्तर:
(i) स्टील के तार से 4/3m दूर
(ii) स्टील के तार से 1 m दूर

प्रश्न 4.
एक तार A पर kg भार लटकाने से उसकी लम्बाई में 1 mm की वृद्धि होती है, इसी धातु के दूसरे तार B के लिए 1.5 kg का भार लटकाने पर लम्बाई में वृद्धि का परिकलन कीजिए जबकि तार B की लम्बाई A की लम्बाई की 4/5 तथा उसका व्यास A के व्यास का 5/2 गुना है,
उत्तर:
0.192mm

प्रश्न 5.
एक पीतल की छड़ का व्यास 4.00 मिमी है। पीतल का बंग प्रत्यास्थता गुणांक 9.2 × 1010 न्यूटन / मी² है। (i) पीतल की छड़ की लम्बाई में 0.25% की वृद्धि करने पर प्रतिबल एवं विकृति की गणना कीजिए। (ii) आरोपित बल का मान क्या होगा ?
उत्तर:
2.3 × 108 Nm², 2.5 × 10-3, 2889 न्यूटन

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 9 ठोसों के यांत्रिक गुण

प्रश्न 6.
1 मीटर लम्बे स्टील के एक खम्भे को 5000 किग्रा की इमारत को सँभालना है। यदि खम्भे की लम्बाई में अधिक-से-अधिक 2 मिमी का परिवर्तन सम्भव हो, तो खम्भे के न्यूनतम अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल की गणना कीजिए। स्टील का यंग प्रत्यास्थता गुणांक Y = 2.2 × 1011 न्यूटन / मी²
उत्तर:
1.114 × 10-4 मीटर²

प्रश्न 7.
एक लिफ्ट का द्रव्यमान 3200 किग्रा है तथा लोहे के मोटे तारों से बंधा है। यदि लिफ्ट का महत्तम त्वरण 1.2 मी/से² हो राधा तार का अधिकतम सुरक्षित प्रतिबल 2.8 × 108 न्यूटन / मी² हो, तो तार का न्यूनतम व्यास क्या होना चाहिए ?
उत्तर:
1.27 मिमी

प्रश्न 8.
लोहे की एक छड़ जिसकी लम्बाई 2 मी है दो दृढ़ आधारों के मध्य बंधी है। यदि छड़ को 100°C तक गर्म किया जाये तो छड़ की विकृति ऊर्जा की गणना कीजिए। यदि रेखीय प्रसार गुणांक = 18 × 10-6/°C तथा अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A- 1 cm² |
उत्तर:
64.8 जूल

भंजक प्रतिबल तथा भंजक बल पर आधारित

प्रश्न 9.
स्टील के लिए भंजक प्रतिबल 8.5 × 106 Nm-2 है इसका घनत्व 8.5 × 10³ किग्रा / मी³ है इसके लिए किसी तार की वह अधिकतम लम्बाई ज्ञात कीजिए जिससे वह अपने ही भार के अन्तर्गत बिना टूटे लटकाया जा सके। (g = 10m / sec²)
उत्तर:
100 मी

प्रश्न 10.
ऐलुमिनियम का भंजक प्रतिबल 7.5 × 108 डाइन / सेमी² है। ऐलुमिनियम के तार की वह अधिकतम लम्बाई ज्ञात कीजिए जिसे तार टूटे बिना प्राप्त किया जा सकता है ऐलुमिनियम का घनत्व 2.7 ग्राम / सेमी³ है।
उत्तर:
2.834 किमी

तार में संचित ऊर्जा पर आधारित

प्रश्न 11.
एक तार (Y = 2 × 1011 N/m²) जिसकी लम्बाई 2 m तथा काट क्षेत्रफल 10-6 m² है तो 0.1mm खींचने में कितना कार्य करना पड़ेगा ?
उत्तर:
5 × 10-4 J

आयतन प्रत्यास्थता गुणांक पर आधारित

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प्रश्न 12.
रबर की एक गेंद को किसी झील की तली में 300 m गहराई पर ले जाने से उसके आयतन में 0.15% की कमी हो जाती है। रबर के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक की गणना कीजिए। झील के जल का घनत्व 1.0 × 103 kg/m3 है तथा g 10m/sec2|
उत्तर:
2.0 × 109 N/m²

प्रश्न 13.
जब 1 cm त्रिज्या के एक वायु के बुलबुले को पारे के एक पात्र में । m की गहराई तक डुबोया जाता है तो बुलबुले की त्रिज्या में परिवर्तन क्या होगा ? पारे की सम्पीड्यता 3.7 × 10-11N-1m² तथा पारे का घनत्व 13.6 ग्राम / सेमी’ दिया गया है।
उत्तर:
0.162 mm

प्रश्न 14.
हिन्द महासागर की औसत गहराई लगभग 3 km है महासागर की तली में पानी के भिन्नात्मक संपीडन \(\frac{∆V}{V}\) की गणना कीजिए। दिया है कि पानी का आयतन गुणांक 2.2 × 109 N-m² है। g = 10 ms-2)
उत्तर:
1.36%

दृढ़ता गुणांक पर आधारित

प्रश्न 15.
एक 7 cm भुजा वाले रबर के घन का एक फलक स्थिर है जबकि 200 kg भार का एक स्पर्शरेखीय बल विपरीत फलक पर आरोपित किया गया है। उत्पन्न अपरूपण विकृति और विकृत भुजा द्वारा तय दूरी ज्ञात कीजिए। रबर के लिए η = 2 × 107 डाइन/सेमी
उत्तर:
0.2 रेडियन, 1.4cm

प्रश्न 16.
किसी 5 cm भुजा वाले रबर के घन का एक फलक स्थिर है जबकि इसके विपरीत फलक पर एक 180 kg का स्पर्शरेखीय बल आरोपित किया गया है, इसके द्वारा अपरूपण विकृति तथा धन की विकृत भुजा का पाश्र्व विस्थापन ज्ञात कीजिए। रबर का दृढ़ता प्रत्यास्थता गुणांक 2.4 × 106 न्यूटन मी दिया गया है।
उत्तर:
0.294 रेडियन, 0.0147 मी

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HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि हल्का ग्रह भारी तारे के परितः R त्रिज्या के वृत्तीय पथ पर गति कर रहा है तथा इसका परिक्रमण काल 7 है। भारी ग्रह व तारे के बीच गुरुत्वाकर्षण बल R-5/2 के अनुक्रमानुपाती हो तो-
(a) T² ∝ R³
(b) T² ∝ R7/2
(c) T² ∝ R3/2
(d) T² ∝ R3.75
उत्तर:
(b) T² ∝ R7/2

प्रश्न 2.
m द्रव्यमान के एक पिण्ड को पृथ्वी तल से h = R/5 ऊँचाई पर ले जाया जाता है, जहाँ R पृथ्वी की त्रिज्या है। यदि पृथ्वी तल पर गुरुत्वीय त्वरण (g) हो तो पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि होगी-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -1
(a) mgh
(b) \(\frac{4}{5}\)mgh
(c) \(\frac{5}{6}\)mgh
(d) \(\frac{6}{7}\)migh
उत्तर:
(b) \(\frac{4}{5}\)mgh

प्रश्न 3.
सोने के दो एकसमान ठोस गोले एक-दूसरे को स्पर्श कर रहे हैं। इनके बीच गुरुत्वाकर्षण बल होगा-
(a) त्रिज्या के वर्ग के समानुपाती ।
(b) त्रिज्या के घन के समानुपाती ।
(c) त्रिज्या के चतुर्थ घात के समानुपाती ।
(d) त्रिज्या के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती ।
उत्तर:
(c) त्रिज्या के चतुर्थ घात के समानुपाती ।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 4.
चन्द्रमा पर वायुमण्डल की अनुपस्थिति का निम्न कारण है-
(a) चन्द्रमा काफी हल्का है।
(b) चन्द्रमा पृथ्वी के परितः परिक्रमण करता है।
(c) गैसों के अणुओं की वर्ग माध्य मूल वेग पलायन वेग से अधिक है।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) गैसों के अणुओं की वर्ग माध्य मूल वेग पलायन वेग से अधिक है।

प्रश्न 5.
सूर्य के चारों ओर घूमते ग्रह की माध्य त्रिज्या दी जाती है-
(a) दीर्घवृत्त की अर्ध दीर्घ अक्ष (a) के बराबर ।
(b) दीर्घवृत्त की अर्ध लघु अक्ष (b) के बराबर ।
(c) अर्घ दीर्घ व अर्थ लघु अक्ष का माध्य \(\frac{a+b}{2}\)।
(d) अर्ध दीर्घ व अर्ध लघु अक्ष का गुणोत्तर माध्य \(\sqrt{ab}\)।
उत्तर:
(a) दीर्घवृत्त की अर्ध दीर्घ अक्ष (a) के बराबर ।

प्रश्न 6.
पृथ्वी तल से \(\sqrt{gR_e}\), वेग से फेंके गये प्रक्षेप्य की ऊर्जा क्या होगी? (Re पृथ्वी की त्रिज्या है)।
(a) 2Re
(b) Re / 2
(c) Re
(d) अनन्त
उत्तर:
(c) Re

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 7.
गुरुत्वीय त्वरण का मान अधिकतम होता है-
(a) पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर
(b) पृथ्वी के ध्रुवों पर
(c) किसी पहाड़ की चोटी पर
(d) पृथ्वी के अन्दर गहरी खान में
उत्तर:
(b) पृथ्वी के ध्रुवों पर

प्रश्न 8.
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक G की विमा है-
(a) [ML2T-2]
(b) [M-1LT-2]
(c) [M-1L3T-2]
(d) [M-1L3T-1]
उत्तर:
(c) [M-1L3T-2]

प्रश्न 9.
यदि पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ जाये तो अक्षांश पर स्थित किसी वस्तु का भार-
(a) बढ़ जायेगा
(b) घट जायेगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) कुछ निश्चित नहीं है
उत्तर:
(b) घट जायेगा

प्रश्न 10.
पृथ्वी की सतह के निकट चक्कर लगा है। उपग्रह का कक्षीय वेग लगभग होगा-
(a) 8km/s
(c) 4 km/s
(b) 11.2 km/s
(d) 6km/s
उत्तर:
(a) 8km/s

प्रश्न 11.
चन्द्रमा पर पलायन वेग है (लगभग).
(a) 11.2 km/s
(b) 5 km/s
(c) 10 km/s
(d) 2.4 km/s
उत्तर:
(d) 2.4 km/s

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 12.
पृथ्वी व चन्द्रमा के द्रव्यमान तथा त्रिज्या क्रमशः M1,R1 व M2,R2 हैं। उनके केन्द्रों के बीच की दूरी d है। उनके बीच मध्य- बिन्दु से m द्रव्यमान के कण को किस न्यूनतम वेग से प्रक्षेपित किया जाना चाहिए जिससे वह अनन्त पर पहुँच जाए?
(a) \(2 \sqrt{\frac{G}{d}\left(M_1+M_2\right)}\)
(b) \(2 \sqrt{\frac{2G}{d}\left(M_1+M_2\right)}\)
(c) \(2 \sqrt{\frac{2G}{d}\left(M_1+M_2\right)}\)
(d) \(2 \sqrt{\frac{GM(M_1+M_2)}{d(M_1+M_2)}}\)
उत्तर:
(a) \(2 \sqrt{\frac{G}{d}\left(M_1+M_2\right)}\)

प्रश्न 13.
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम सार्वत्रिक होता है क्योंकि-
(a) वह सदैव आकर्षण होता है।
(b) वह सौरमण्डल के सभी सदस्यों एवं कणों पर लागू होता है।
(c) यह सभी द्रव्यमान पर दूरियों के लिए लागू होता है तथा माध्यम से प्रभावित नहीं होता है।
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) यह सभी द्रव्यमान पर दूरियों के लिए लागू होता है तथा माध्यम से प्रभावित नहीं होता है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी तल के निकट परिक्रमा करने वाले कृत्रिम उपग्रह का परिक्रमण काल होता है-
(a) 24 घण्टा
(b) 84 मिनट
(c) 48 मिनट
(d) 12 घण्टा
उत्तर:
(b) 84 मिनट

प्रश्न 15.
किसी खोखले गोले के केन्द्र पर गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता होती है-
(a) \(\frac{GM}{r^2}\)
(b) g
(c) 0
(d) \(\frac{2GM}{r^2}\)
उत्तर:
(c) 0

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
धूमकेतु की पूँछ सूर्य से दूर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
सूर्य द्वारा उत्सर्जित विकिरणों के दाव के कारण इस पर उपस्थित गैसें सूर्य से दूर की ओर पूँछ बना लेती हैं।

प्रश्न 2.
किसी उपग्रह का वेग उसके द्रव्यमान पर किस प्रकार निर्भर करता है?
उत्तर:
उपग्रह का वेग उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।

प्रश्न 3.
समुद्र में उत्पन्न ज्वार भाटे का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
चन्द्रमा का पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ज्वार भाटे का प्रमुख कारण है।

प्रश्न 4.
तुल्यकाली उपग्रह क्या होता है?
उत्तर:
ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के किसी निश्चित भू-भाग के ऊपर सदैव देखा जा सकता है तुल्यकाली उपग्रह कहलाता है। इसका आवर्तकाल 24 घंटे होता है।

प्रश्न 5.
चन्द्रमा पर 10°C पर पानी से भरी बोतल का ढक्कन खोलने पर क्या होगा?
उत्तर:
पानी उबलने लगेगा क्योंकि चन्द्रमा पर वायुमण्डल न होने के कारण क्वथनांक काफी घट जाता है और पानी उबलने लगता है।

प्रश्न 6.
पृथ्वी के अन्दर केन्द्र की ओर जाने पर g का मान दूरी के साथ कैसे बदलता है?
उत्तर:
पृथ्वी अन्दर की ओर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण का परिवर्तन चित्र की भाँति रेखीय रूप से होता है।

प्रश्न 7.
समुद्र में ज्वार भाटा क्यों उत्पन्न होता है?
उत्तर:
चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण ज्वार भाटा उत्पन्न होता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 8.
पृथ्वी ध्रुवों पर चपटी क्यों है?
उत्तर:
अपनी अक्ष पर घूर्णन के कारण पृथ्वी ध्रुवों पर चपटी होती

प्रश्न 9.
यदि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर वृत्तीय कक्षा में घूमती है, तो गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा किया गया कार्य क्या होगा?
उत्तर:
शून्य; क्योंकि पृथ्वी पर सूर्य का आकर्षण बल (अभिकेन्द्रीय बल) सदैव पृथ्वी की गति के लम्बवत् होता है।

प्रश्न 10.
1 kg wt (किग्रा भार ) में कितने न्यूटन होते हैं?
उत्तर:
1kg wt = 1kg द्रव्यमान का भार = mg
= 1 × 9.8 न्यूटन
1kg wt = 9.8 न्यूटन

प्रश्न 11.
एक उपग्रह को ग्रह के परितः घूमने के लिए अभिकेन्द्रीय बल कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
ग्रह एवं उपग्रह के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल ही आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
किसी उपग्रह की बन्धन ऊर्जा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊर्जा की वह मात्रा जो उपग्रह को देने पर उपग्रह पलायन कर जाये, उपग्रह की बन्धन ऊर्जा कहलाती है। इसका मान,
\(E_b=\frac{1}{2} \frac{G M m}{r}\)

प्रश्न 13.
सरल लोलक पर आधारित घड़ी उपग्रह पर काम में नहीं ली जाती है, क्यों?
उत्तर:
उपग्रह में वस्तुएँ भारहीनता की स्थिति में होती हैं अतः g = 0 होता है इसलिए सरल लोलक पर आधारित घड़ी \(\left(T=2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\right)\) कार्य नहीं करती है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर g का मान किस प्रकार बदलता है? ग्राफ बनाइये।
उत्तर:
पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर g का मान घटता है व निम्न चित्र के अनुसार बदलता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -2

प्रश्न 15.
कृत्रिम उपग्रह में चलने कूदने तथा पानी पीने में कठिनाई महसूस होती है, क्यों?
उत्तर:
भारहीनता के कारण।

प्रश्न 16.
किसी वस्तु को पृथ्वी तल से अनन्त तक ले जाने में कितना कार्य करना पड़ता है?
उत्तर:
पृथ्वी तल पर वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा \(\frac{GMm}{R}\) के बराबर कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 17.
यदि दो वस्तुओं के मध्य दूरी % घटा दी जाये तो उनके मध्य लगने वाला बल कितने प्रतिशत बढ़ जायेगा ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -3

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 18.
पृथ्वी के केन्द्र पर ४ का मान क्या होगा?
उत्तर:
शून्य ।

प्रश्न 19.
संचार उपग्रह पृथ्वी सतह से कितनी ऊँचाई पर परिक्रमा करते हैं?
उत्तर:
36000km की ऊँचाई पर

प्रश्न 20.
ध्रुवीय उपग्रह किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे कृत्रिम उपग्रह जिनकी कक्षा का तल पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के पास से गुजरता है, ध्रुवीय उपग्रह कहलाते हैं। इनकी कक्षा पश्च गतिक होती है।

प्रश्न 21.
समस्त पृथ्वी पर एक साथ संचार लिंक करने की दृष्टि से न्यूनतम कितने भू-स्थाई उपग्रह आवश्यक हैं?
उत्तर:
तीन

प्रश्न 22.
पार्किंग कक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर;
उपग्रह की वह कक्षा जिसका केन्द्र पृथ्वी के केन्द्र से सम्पाती होता है, पार्किंग कक्षा कहलाती है।

प्रश्न 23.
ठोस गोले के केन्द्र पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का मान क्या होता है? यह मान सतह पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के मान का कितने प्रतिशत होता है?
उत्तर:
गोले के केन्द्र पर स्थितिज ऊर्जा \(U_0=\frac{3}{2} \frac{G M m}{R}\)
सतह पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा \(U_s=-\frac{G M m}{R}\)
∴ \(\frac{U_0}{U_s} \times 100=\frac{3}{2} \times 100=\mathbf{1 5 0} \%\)

प्रश्न 24.
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण, पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण का कौन-सा भाग है?
उत्तर:
चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण का \(\frac{1}{6}\) भाग होता है अर्थात्
\(g_m=\frac{g_e}{6}\)

प्रश्न 25.
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं? इसकी विमा लिखिए।
उत्तर:
किसी वस्तु को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में जो कार्य करना पड़ता है उसे उस बिन्दु पर उस वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। इसका विमीय सूत्र = [M1L2T-2]

प्रश्न 26.
पृथ्वी तल से किसी वस्तु के लिए पलायन वेग का मान 11.2 km / s है। जब वस्तु क्षैतिज से 30° पर फेंकी जाये तो पलायन वेग का मान क्या होगा?
उत्तर:
पलायन वेग प्रक्षेपण कोण पर निर्भर नहीं करता है अतः 30° के कोण पर प्रक्षेपित करने पर भी पलायन वेग 11.2 kms-1 ही होगा।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 27.
चन्द्रमा पृथ्वी की तुलना में बहुत हल्का है, फिर ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा गिरता क्यों नहीं?
उत्तर:
चन्द्रमा पृथ्वी के परितः वृत्तीय कक्षा में परिक्रमा करता है। अतः पृथ्वी द्वारा आरोपित समस्त गुरुत्वाकर्षण बल अभिकेन्द्र बल के रूप में व्यय हो जाता है इसीलिए हल्का होने पर भी चन्द्रमा गिरता नहीं है।

प्रश्न 28.
10g सोने का भार ध्रुवों पर भूमध्य रेखा की तुलना में अधिक होता है, क्यों?
उत्तर:
किसी स्थान पर किसी वस्तु का भार mg
स्पष्ट है कि भार का मान 8 पर निर्भर करता है, और ध्रुवों पर गुरुत्वीय त्वरण अधिकतम तथा भूमध्य रेखा पर न्यूनतम होता है। इसीलिए 10g सोने का भार ध्रुवों पर भूमध्य रेखा की अपेक्षा अधिक होता है।

प्रश्न 29.
भारत द्वारा छोड़े गये प्रथम उपग्रह का नाम बताइये।
उत्तर:
आर्यभट्ट 19 अप्रैल 1975 ।

प्रश्न 30.
गुरुत्वीय क्षेत्र की विमा लिखिए।
उत्तर:
गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता,
\(E_g=\frac{F}{M}\)
∴ Eg का विमीय सूत्र = \(\frac{\left[M^1 L^1 T^{-2}\right]}{\left[M^1\right]}=\left[M^0 L^1 T^{-2}\right]\)

प्रश्न 31 –
केप्लर का द्वितीय नियम किस भौतिक राशि के संरक्षण पर आधारित है?
उत्तर:
कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त पर

प्रश्न 32.
पृथ्वी की परिक्रमा करते उपग्रह में बैठा अंतरिक्ष यात्री एक गेंद उपग्रह के बाहर छोड़ देता है। क्या गेंद पृथ्वी तल पर पहुँचेगी?
उत्तर:
नहीं गेंद भी उपग्रह के साथ-साथ पृथ्वी की परिक्रमा करेगी।

प्रश्न 33.
जब कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिरती है तो क्या पृथ्वी भी उस वस्तु की ओर गिरती है? यदि हाँ तो पृथ्वी का गिरना हमें दिखाई क्यों नहीं देता?
उत्तर:
क्योंकि पृथ्वी का द्रव्यमान बहुत अधिक होने के कारण, पृथ्वी का वस्तु की ओर त्वरण नगण्य होता है।

प्रश्न 34.
पृथ्वी के केन्द्र से R दूरी पर गुरुत्वीय विभव कितना होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र से R दूरी पर गुरुत्वीय विभव
\(V_G=- \frac{GM}{R}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 35.
केप्लर के तीसरे नियम का गणितीय स्वरूप क्या है?
उत्तर:
T² = K r³ ;
जहाँ T = ग्रह का आवर्तकाल
r = सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य औसत दूरी;
K = नियतांक

प्रश्न 36.
चन्द्रमा पर उतरने से पहले अंतरिक्ष यात्री अपनी पीठ पर भारी वजन क्यों बाँध लेते हैं?
उत्तर:
चन्द्रमा पर 8 का मान कम होने के कारण।

प्रश्न 37.
किसी पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा शुक्र ग्रह पर.7.5 × 106 J है। पिण्ड को ग्रह से बाहर फेंकने के लिए आवश्यक ऊर्जा का मान बताइये।
उत्तर:
आवश्यक ऊर्जा =.0. (-7.5 × 106) J
= 7.5 × 105 J

प्रश्न 38.
पृथ्वी तल पर पलायन वेग का मान कितना है?
उत्तर:
पृथ्वी तल पर पलायन वेग 11.2 km.s-1 है।

प्रश्न 39.
किसी प्रक्षेप्य द्वारा प्राप्त महत्तम ऊँचाई का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
\(h=\frac{v^2 R}{2 g R-v^2}\)

प्रश्न 40.
एक कमानीदार तुला एक कृत्रिम उपग्रह में टंगी है जिससे 11 द्रव्यमान का एक पिण्ड लटका है। तुला का पाठ्यांक कितना होगा?
उत्तर:
शून्या

प्रश्न 41 –
गुरुत्वाकर्षण नियतांक 6 को सार्वत्रिक नियतांक क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि G का मान समय स्थिति अथवा पिण्डों की प्रकृति व अवस्था पर निर्भर नहीं होता है, अतः इसे सार्वत्रिक नियतांक कहते हैं।

प्रश्न 42 –
क्या घर्षण बल गुरुत्वाकर्षण से बढ़ता है?
उत्तर:
नहीं; क्योंकि घर्षण बल की उत्पत्ति विद्युतीय प्रकृति की है।

प्रश्न 43.
किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम G का प्रायोगिक मान ज्ञात किया?
उत्तर:
कैवेन्डिश

प्रश्न 44.
कृत्रिम उपग्रह की कक्षा को वायुमण्डल से बाहर क्यों रखा जाता है?
उत्तर:
ताकि वायु के घर्षण के कारण उपग्रह की ऊर्जा कम न हो जाये।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भार व द्रव्यमान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भार व द्रव्यमान में अन्तर

भारद्रव्यमान
1. पृथ्वी द्वारा पिण्ड पर आरोपित आकर्षण बल पिण्ड का भार कहलाता है।1. किसी पिण्ड में उपस्थित द्रव्य की मात्रा को उसका द्रव्यमान कहते हैं।
2. इसका मात्रक न्यूटन या किग्रा-भार है।2. इसका मात्रक किग्रा है।
3. यह सदिश राशि है।3. यह अदिश राशि है।
4. इसका मान g के साथ परिवर्तित होता हैं।4. इसका मान g के साथ परिवर्तित नहीं होता है।

प्रश्न 2.
यदि कोई पिण्ड पृथ्वी तल से v(v > ve) वेग से फेंका जाता है तो पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र के बाहर इसका वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी तल पर कुल ऊर्जा = अनन्त पर कुल ऊर्जा
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -4

प्रश्न 3.
दो पिण्डों A व B के बीच की दूरी है। गुरुत्वाकर्षण की पारस्परिक क्रिया में बल को दूरी के व्युत्क्रम वर्ग के नियम के अनुसार लेने पर पिण्ड 1 का त्वरण है। यदि पारस्परिक क्रिया दूरी के व्युत्क्रम चतुर्थ घात के नियम का पालन करे, तो पिण्ड का त्वरण क्या होगा ?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -5
उत्तर:
A पर B के कारण गुरुत्वीय बल
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -6

प्रश्न 4.
किसी ग्रह से सूर्य की औसत दूरी पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी की नौ गुनी है। ग्रह कितने वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करेगा?
उत्तर:
केप्लर के तृतीय नियम से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -7

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 5.
दो पिण्डों के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल F है। यदि उनके बीच की दूरी 2 गुनी कर दें, तो उनके मध्य आकर्षण बल कितना होगा?
उत्तर:
r दूरी पर बल F = \(\frac{G m_1 m_2}{r^2}\)
और 2r दूरी पर बल F’ = \(\frac{G m_1 m_2}{(2 r)^2}=\frac{1}{4} \frac{G m_1 m_2}{r^2}=\frac{1}{4} F\)
या F’ = \(\frac{F}{4}\)

प्रश्न 6.
बृहस्पति पर वातावरण हल्की गैसों (सामान्यतः हाइड्रोजन) से युक्त है, जबकि पृथ्वी के वातावरण में बहुत कम हाइड्रोजन गैस है, क्यों?
उत्तर:
बृहस्पति ग्रह पर पलायन वेग पृथ्वी पर पलायन वेग से काफी अधिक है। इसलिए वहाँ से वस्तुओं को पलायन के लिए काफी अधिक वेग की आवश्यकता होती है। ऊष्मीय वेग इस पलायन वेग से कम होता है; अतः वहाँ से हल्की गैसें पलायन नहीं कर पाती हैं। इसीलिए हाइड्रोजन गैस बृहस्पति ग्रह के वातावरण में अधिक पायी जाती है।

प्रश्न 7.
रेडियन प्रति घंटा में भूस्थिर उपग्रह का कोणीय वेग कितना होगा?
उत्तर:
भूस्थिर उपग्रह का आवर्तकाल
T = पृथ्वी के घूर्णन का आवर्तकाल = 24 घंटे
∴ कोणीय वेग ω = \(\frac{2π}{T}=\frac{2π}{24}\) रेडियन प्रति घंटा
या w = \(\frac{π}{12}\) रेडियन / घंटा

प्रश्न 8.
जब कोई उपग्रह गिरता हुआ पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करता है तो वह गर्म हो जाता है, अर्थात् उसकी यान्त्रिक ऊर्जा में ह्रास होता है। परन्तु उपग्रह बढ़ती हुई चाल से कुण्डलिनी के रूप में नीचे गिरता है, क्यों?
उत्तर:
अपनी कक्षा में घूमते हुए उपग्रह की कुल ऊर्जा ऋणात्मक होती है जब उपग्रह पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करता है तो उसकी यांत्रिक ऊर्जा में (जोकि ऋणात्मक होती है) हास होता है अतः यह और ऋणात्मक हो जाती है परन्तु कक्षीय चाल vo = \(\frac{GM_e}{R_e+h}\) तभी बढ़ेगी जब ऊँचाई घटेगी। अतः उपग्रह कुण्डलिनी के रूप में बढ़ती हुई चाल से नीचे गिरता है।

प्रश्न 9.
पृथ्वी पर कोई पिण्ड आपस में गुरुत्वीय बल के कारण एक दूसरे की तरफ गति नहीं करते; क्यों?
उत्तर:
दो पिण्डों के मध्य आकर्षण बल, पृथ्वी की तुलना में उनके कम द्रव्यमानों के कारण नगण्य होता है अतः इनसे निर्मित त्वरण भी बहुत कम (शून्य) होता है इसीलिए वे एक दूसरे की ओर गति नहीं करते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -8

प्रश्न 10.
पृथ्वी के परितः गतिशील उपग्रह पर एक बल लगता है। इस बल के कारण पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर कितना कार्य किया जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल उपग्रह को आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करने में व्यय हो जाता है। चूंकि अभिकेन्द्र बल एवं उपग्रह की कक्षीय चाल vo परस्पर लम्बवत् होते हैं। अतः इस बल द्वारा कोई कार्य नहीं किया जाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 11.
चन्द्रमा के खिंचाव के कारण ज्वार भाटा अधिक तथा सूर्य के खिंचाव के कारण ज्वार भाटा कम प्रभावी होता है जबकि सूर्य का खिंचाव चन्द्रमा की अपेक्षा अधिक होता है। समझाइये क्यों?
उत्तर:
जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण बल दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है उसी प्रकार ज्वार भाटा दूरी की तृतीय घात के व्युत्क्रमानुपाती है। चूँकि पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी सूर्य की तुलना में काफी कम है, इसीलिए चन्द्रमा के खिचाव के कारण ज्वार भाटा अधिक आता है।

प्रश्न 12.
एक हाथी एवं एक चींटी में से किसका पलायन वेग अधिक होगा और किसकी पलायन ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
पलायन वेग के सूत्र ve = \(\sqrt{\frac{2GM}{R}}\) में वस्तु का द्रव्यमान (m) नहीं है। अतः हाथी एवं चीटी दोनों के लिए पलायन वेग समान होगा। परन्तु पलायन ऊर्जा Ee = \(\frac{1}{2}\)mve² द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती होती है अतः हाथी के लिए पलायन ऊर्जा काफी अधिक होगी।

प्रश्न 13.
समझाइये कि टेनिस की गेंद पहाड़ी पर अधिक एवं मैदान पर कम क्यों उछलती है?
उत्तर;
गुरुत्वीय त्वरण g का मान मैदान की अपेक्षा पहाड़ी पर कम होता है अतः टेनिस की गेंद का भार (mg) पहाड़ी पर कम एवं मैदान पर अधिक होता है भार जितना कम होता है गेंद उतनी ही अधिक उछलती है। इसीलिए मैदान की अपेक्षा पहाड़ी पर टेनिस की गेंद अधिक उछलती है।

प्रश्न 14.
मध्य रात्रि में सूर्य हमें पृथ्वी की दिशा में खींचता है। परन्तु मध्य दिन में पृथ्वी की विपरीत दिशा में खींचता है। क्या हमारा भार रात को अधिक एवं दिन में कम होता है? समझाइये |
उत्तर:
नहीं; क्योंकि गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पिण्ड को निश्चित अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है जिससे वह अपनी कक्षा में घूर्णन कर सके। वह पिण्ड के भार में परिवर्तन नहीं करता है।

प्रश्न 15.
m द्रव्यमान का एक कण, त्रिज्या के क्षैतिज वृत्त में एक अभिकेन्द्रीय बल \(\frac{k}{r^2}\) के अन्तर्गत् घूम रहा है, जहाँ k नियतांक है। कण में कुल कितनी ऊर्जा है ?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा K = \(\frac{1}{2}\)mv²
दिया है –
F = \(\frac{k}{r^2}=frac{mv^2}{r^2}\) ⇒ mv² = \(\frac{k}{r}\)
∴ K = \(\frac{1}{2}\)mv² = \(\frac{k}{2r}\)
स्थितिज ऊर्जा U = -F.r = –\(\frac{k}{r^2}\).r = \(– \frac{k}{r}\)
कुल ऊर्जा,
Et = K + U = \(\frac{k}{2r}-\frac{k}{r}=- \frac{k}{2r}\)
या Et = \(– \frac{k}{2r}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 16.
अपनी अक्ष पर पृथ्वी के घूमने की वह चाल ज्ञात कीजिए ताकि भूमध्य रेखा पर किसी वस्तु का भार इस समय के भार का 3/5 हो जाये। भूमध्य रेखा की त्रिज्या 6400 km मान लीजिए।
उत्तर:
दिया है- g’ = \(\frac{3}{5}\)g
जहाँ g = पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण
भूमध्य रेखा के लिए-
∵ g’ = g – R ω²
∴ \(\frac{3}{5}\)g = g – R ω²
या R ω² = g – \(\frac{3}{5}\)g = \(\frac{2}{5}\)g
या ω² = \(\frac{2g}{5R}\) ⇒ ω = \(\sqrt{\frac{2g}{5R}}=\sqrt{\frac{2 \times 9.8}{5 \times 6.4 \times 10^6}}\)
या ω = 7.8 × 10-4 rad.s-1

प्रश्न 17.
पृथ्वी के परितः वृत्तीय पथ पर परिक्रमा करते उपग्रह पर अभिकेन्द्र बल है। इस पर पृथ्वी का गुरुत्वीय बल कितना है? तथा इस पर परिणामी बल कितना है?
उत्तर:
पृथ्वी के परितः वृत्तीय पथ पर परिक्रमा करने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल गुरुत्वीय बल ही प्रदान करता है। अतः गुरुत्वीय बल ही परिणामी बल F है।

प्रश्न 18.
क्या घर्षण बल व अन्य सम्पर्क बल गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
नहीं; घर्षण अथवा अन्य सम्पर्क बलों की उत्पत्ति विद्युत बलों के कारण होती है।

प्रश्न 19.
यदि दो ग्रहों की त्रिज्याएं R1 व R2 हों तथा माध्य घनत्व ρ1 व ρ2 हों तो सिद्ध कीजिए कि दोनों ग्रहों पर गुरुत्वीय त्वरणों का अनुपात R1ρ1 : R2ρ2 होगा।
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -9

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 20.
यदि किसी उपग्रह की घूर्णन आवृत्ति N हो तो सिद्ध कीजिए कि (R+h)³ ∝ \(\frac{1}{N^2}\)
उत्तर:
उपग्रह का आवर्तकाल
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -10

प्रश्न 21.
यदि पृथ्वी के समीप परिक्रमा कर रहे उपग्रह की गतिज ऊर्जा दो गुनी हो जाये तो क्या उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जायेगा? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा दो गुनी हो जाती है अतः
K’ = 2K
या \(\frac{1}{2}\)mv’² = \(\frac{1}{2}\)mv² × 2
या v’ = vo√2
पृथ्वी के समीप परिक्रमा करने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल vo एवं पलायन वेग में निम्न सम्बन्ध होता है-
∵ ve = vo√2
∴ v’ = ve (पलायन वेग )
अतः उपग्रह अपनी कक्षा छोड़कर पलायन कर जायेगा।

प्रश्न 22.
साधारणतः पृथ्वी से फेंके गये प्रक्षेप्य का पथ परवलयाकार होता है परन्तु अधिक ऊँचाई तक फेंके गये प्रक्षेप्यों का पथ दीर्घ वृत्ताकार होता है, क्यों?
उत्तर;
साधारण ऊँचाई तक g का मान लगभग नियत रहता है। अतः प्रक्षेप्य लगभग नियत त्वरण के अन्तर्गत गति करता है जिससे इसका पथ परवलयाकार हो जाता है परन्तु अत्यधिक ऊंचाई पर गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती g ∝ \(\frac{1}{r^2}\) होता है, फलस्वरूप g का मान घटता चला जाता है अतः परिवर्ती गुरुत्वीय त्वरण के कारण प्रक्षेप्य पथ दीर्घ वृत्ताकार हो जाता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -11

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 23.
किसी धातु के दो समान आकार के गोले (ठोस) एक-दूसरे को स्पर्श करते हुए रखे हैं। उनके बीच कार्य करने वाला बल उनकी त्रिज्या से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
गोलों के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल,
\(F=G \frac{m_1 m_2}{r^2}\)
गोले समान धातु के हैं अतः इनके घनत्व (ρ) भी समान होंगे अतः
= \(\frac{G m_1 m_2}{(2 r)^2}=\frac{G \frac{4}{3} \pi r^3 \rho \frac{4}{3} \pi r^3 \rho}{4 r^2}\)
\(F=\frac{4}{9} \pi^2 G \rho^2 r^4\)
या F ∝ r4

प्रश्न 24.
एक पिण्ड को पृथ्वी के केन्द्र से ऊपर उठाते हुए चन्द्रमा तक ले जाते हैं। पिण्ड के भार में क्या परिवर्तन होंगे?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र पर g= 0, अतः पिण्ड का भार भी शून्य होता है। पृथ्वी के केन्द्र से ऊपर जाने पर g का मान भी बढ़ता है और पृथ्वी सतह पर अधिकतम हो जाता है पुनः पृथ्वी सतह से ऊपर जाने पर g का मान दूरी घटने के साथ-साथ घटता है और जहाँ पर पृथ्वी व चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण सीमाएं मिलती है, वहाँ पर भार शून्य हो जाता है। इसके बाद चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण भार पुनः बढ़ता जायेगा।

प्रश्न 25.
पृथ्वी सतह से h ऊँचाई पर जाने पर यदि वस्तु पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल आधा रह जाता है तो h व R में सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
∵ Fh = \(\frac{1}{2}\)Fs
∴ \(\frac{G M \cdot m}{(R+h)^2}=\frac{1}{2} \frac{G M m}{R^2} \Rightarrow \frac{1}{(R+h)^2}=\frac{1}{2 R^2}\)
या (R+h )² = 2R²
या (R+h) = R√2
या h = R√2 – R = R(√2 – 1)
या h = R(1.414 – 1)
या h = 0.414 R

प्रश्न 26.
एक उपग्रह किसी ग्रह के समीप परिक्रमा करता है। यदि उपग्रह का आवर्तकाल T एवं ग्रह का माध्य घनत्व d हो, तो सिद्ध कीजिए कि T × √d एक सार्वत्रिक नियतांक है।
उत्तर:
किसी ग्रह के उपग्रह का आवर्तकाल,
\(T=2 \pi \sqrt{\frac{(R+h)^3}{G M}}\)
∵ उपग्रह ग्रह के समीप परिक्रमा करता है अतः h << R
∴ h को छोड़ने पर
\(2 \pi \sqrt{\frac{R^3}{G \cdot \frac{4}{3} \pi R^3 \cdot d}}=\sqrt{\frac{4 \pi^2 \times 3}{4 \pi G d}}=\sqrt{\frac{3 \pi}{G d}}\)
या T × √d = \(\sqrt{\frac{3 \pi}{G d}}\) = एक सार्वत्रिक नियतांक
या T . √d = सार्वत्रिक नियतांक

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 27.
एक ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या से दो गुनी है तथा ग्रह तथा पृथ्वी दोनों के औसत घनत्व समान हैं। यदि ग्रह एवं पृथ्वी पर पलायन वेग क्रमशः vp तथा ve हों, तो सिद्ध कीजिए कि vp = 2ve.
उत्तर:
दिया है-
Rp = 2Re
ρp = ρe = ρ
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -12

प्रश्न 28.
कोई ग्रह सूर्य के परितः v ms-1 की चाल से Ts में एक पूरा चक्कर लगाता है। दिखाइये कि इस ग्रह पर सूर्य की ओर दिष्ट
त्वरण का मान \(\frac{2πv}{T}\) होता है।
उत्तर:
अभिकेन्द्रीय त्वरण,
ac = \(\frac{v^2}{r}\)
= \(\frac{v}{r}\) v = ω v = \(\frac{2π}{T}\) v
या ac = \(\frac{2πv}{r}\)

प्रश्न 29.
यदि हम अपनी छोटी अंगुली भी हिलाते हैं तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को छोड़ना पड़ता है, क्यों?
उत्तर:
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से इस ब्रह्माण्ड का प्रत्येक कण दूसरे कणों को आकर्षित करता है और यह आकर्षण बल दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है अतः जब हम अपनी अंगुली उठाते हैं तो कणों के मध्य दूरी बदलती है जिससे आकर्षण बदलता है यह ब्रह्माण्ड को विचलित कर देता है।

प्रश्न 30.
कृत्रिम उपग्रह में कोई ईंधन नहीं होता फिर भी यह पृथ्वी के चारों ओर घूमता है क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी तथा उपग्रह के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उपग्रह को पृथ्वी के चारों ओर वृत्तीय कक्षा में घूमने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है। इसीलिए उपग्रह पृथ्वी के परितः घूमता रहता है।

प्रश्न 31.
अंतरिक्ष यान में भारहीनता के कारण एक यात्री को क्या-क्या परेशानियाँ अनुभव होती हैं? इनका समाधान क्या है?
उत्तर:
भारहीनता के कारण अंतरिक्ष यात्री गिलास से पानी नहीं पी सकता है और न ही गिलास से पानी डाल सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए अंतरिक्ष यान इस तरह बनाया जाता है कि इसमें खोखले रिम वाले बड़े-बड़े पहिए बनाये जाते हैं, पहियों को घुमा दिया जाता है। इस रिम में बने कैबिन में बैठा यात्री अभिकेन्द्र बल के कारण भार अनुभव करता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions )

प्रश्न 1.
केप्लर के ग्रहीय गति के नियम लिखिए एवं केप्लर के तृतीय नियम से गुरुत्वाकर्षण नियम का सत्यापन कीजिए।
उत्तर:
केप्लर के नियम (Kepler’s Laws)
केप्लर (1571-1630) ने टायको ब्रेह (1546-1601) के द्वारा किये गये प्रहीय प्रेक्षणों का कई वर्षों तक अध्ययन किया और निम्नलिखित तीन नियम प्रस्तुत किये-

प्रथम नियम : प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घ-वृत्ताकार कक्षा (elliptical orbit) में परिक्रमण करता है और सूर्य कक्षा की एक नाभि (focus) पर स्थित होता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -13
द्वितीय नियम : ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समयान्तराल में समान क्षेत्रफल तय करती है अर्थात् ग्रह की क्षेत्रीय चाल (Areal Speed) नियत रहती है।
माना ग्रह dt समय में dA क्षेत्रफल प्रस्थार्पित करता है, तो क्षेत्रीय चाल \(\frac{d A}{d t}\) = नियतांक। चित्र में ग्रह को B से A तक जाने में जितना समय लगता है, उतना ही समय B’ से A’ तक जाने में लगता है। अत: क्षेत्रफल SAB = क्षेत्रफल SA’B’ । दोनों क्षेत्रफल समान होने का अर्थ है कि ग्रह की कक्षीय चाल बदलती है। सूर्य से दूर जाने पर कक्षीय चाल घटती है और पास आने पर बढ़ती है। अतः क्षेत्रीय चाल कोणीय संवेग के रूप में लिखने पर घूमते हुए ग्रह का कोणीय संवेग नियत रहता है। अर्थात्
\(\frac{d A}{d t}=\frac{L}{2m}\)
यहाँ L कोणीय संवेग है तथा m ग्रह का द्रव्यमान है।
तृतीय नियम-ग्रह के आवर्त काल का वर्ग ग्रह एवं सूर्य के बीच औसत दूरी के घन के अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात्
T² ∝ r³
या T² = k r³
जहाँ k, एक नियतांक है एवं r, सूर्य एवं ग्रह के मध्य औसत दूरी है।

केप्लर के नियम से न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम (Derivation of Newton’s Law of Gravitation from Kepler’s Law) :
न्यूटन ने पाया कि अधिकांश ग्रह सूर्य के परित: लगभग वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते हैं। केप्लर के द्वितीय नियम के अनुसार, ग्रह के त्रिज्यीय सदिश की क्षेत्रफलीय चाल नियत रहती है। अत: वृत्ताकार कक्षा में त्रिज्य सदिश की तथा स्वयं ग्रह की रेखीय चाल क्रमशः v तथा ω नियत रहेगी।
माना r त्रिज्या के वृत्ताकार पथ पर गतिशील होने के कारण ग्रह के द्रव्यमान m पर केन्द्र की ओर लगने वाला अभिकेन्द्र बल F लगता है, तो
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -14
इस प्रकार केप्लर के नियमों के आधार पर न्यूटन ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले-

  • ग्रहों पर अभिकेन्द्र बल आरोपित होता है जिसकी दिशा सूर्य की ओर होती है।
  • इस बल का परिमाण, ग्रह तथा सूर्य के बीच दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है। (F ∝ \(\frac{1}{r^2}\))
  • यह बल ग्रह के द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती है,
    (F ∝ m)

प्रश्न 2.
गुरुत्वीय विभव से क्या तात्पर्य है? बिन्दु द्रव्यमान के लिए सूत्र निगमित कीजिए ।
उत्तर:
गुरुत्वीय विभव (Gravitational Potential) :
एकांक द्रव्यमान को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में जो कार्य करना पड़ता है, उसे उस बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव कहते हैं।” ये सदैव ऋणात्मक होता है और अनन्त पर इसका मान शून्य मानते हैं। इसे V से व्यक्त करते हैं। इसका मात्रक Jkg-1 एवं विमीय सूत्र [M0 L2 T-2] है।

किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य गुरुत्वीय विभवान्तर उस कार्य के बराबर है जो एकांक द्रव्यमान को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में करना पड़ता है। अत: A व B दो बिन्दुओं के बीच गुरुत्वीय विभवान्तर
\(V_B-V_A=\left(\frac{U_B-U_A}{m}\right)\) …………..(1)

बिन्दु द्रव्यमान के कारण विभव (Potential due to Point Mass) :
माना M द्रव्यमान का कण स्थिति A पर रखा है। कण के केन्द्र से r दूरी पर बिन्दु P है जिस पर हमें कण के कारण गुरुत्वीय विभव ज्ञात करना है। बिन्दु P की स्थिति r का फलन है अत: इस बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव भी r का फलन होगा। अत: P पर गुरुत्वीय विभव-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -15

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 3.
गुरुत्वीय विभव से क्या तात्पर्य है? किसी ठोस गोलाकार पिण्ड के कारण विभिन्न स्थितियों में गुरुत्वीय विभव के लिए सूत्र निगमित कीजिए ।
उत्तर:
गुरुत्वीय विभव (Gravitational Potential) :
एकांक द्रव्यमान को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में जो कार्य करना पड़ता है, उसे उस बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव कहते हैं।” ये सदैव ऋणात्मक होता है और अनन्त पर इसका मान शून्य मानते हैं। इसे V से व्यक्त करते हैं। इसका मात्रक Jkg-1 एवं विमीय सूत्र [M0 L2 T-2] है।

किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य गुरुत्वीय विभवान्तर उस कार्य के बराबर है जो एकांक द्रव्यमान को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में करना पड़ता है। अत: A व B दो बिन्दुओं के बीच गुरुत्वीय विभवान्तर
\(V_B-V_A=\left(\frac{U_B-U_A}{m}\right)\) …………..(1)

किसी ठोस गोलाकार पिण्ड के कारण गुरुत्वीय विभव (Gravitational Potential Due to Solid Sphere) :
माना M द्रव्यमान एवं R त्रिज्या का एक ठोस गोला है जिसका केन्द्र O है। किसी बाहरी बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव ज्ञात करने के लिए गोले को बिन्दु द्रव्यमान माना जा सकता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -16
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -17

प्रश्न 4.
खोखले गोले के कारण उसके बाहर पृष्ठ पर एवं उसके अन्दर गुरुत्वीय विभव के लिए सूत्र प्राप्त कीजिए ।
उत्तर:
गोलीय कोश के कारण गुरुत्वीय विभव (Gravitational Potential due to Hollow Sphere):
1. बाह्य बिन्दु A पर (r > R) गुरुत्वीय विभव
\(V_{\text {out }}=-\frac{G M}{r}\) ………..(7)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -18
2. पृष्ठ पर स्थित बिन्दु (r = R) पर गुरुत्वीय विभव-
\(V_s=-\frac{G M}{R}\) ………….(8)

3. गोले के आन्तरिक बिन्दु C(r < R) पर विभव-
गोले के अन्दर गुरुत्वीय क्षेत्र का मान शून्य होता है। अत: एकांक द्रव्यमान को पृष्ठ के अन्दर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में कोई अतिरिक्त कार्य नहीं करना पड़ता है। अतः अन्दर किसी बिन्दु पर गुरुत्वीय वभव वही होगा जो उसके पृष्ठ पर होता है।
∴ \(V_{\text {in }}=-\frac{G M}{R}\) ……….(9)
खोखले गोले के कारण दूरी के साथ गुरुत्वीय विभव में परिवर्तन निम्न चित्र (8.23) में प्रदर्शित है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -19

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 5.
एक कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी के निकट निश्चित वृत्तीय कक्षा में चक्कर लगा रहा है। सिद्ध कीजिए कि इसका परिक्रमण काल \(T=\sqrt{\frac{3π}{ρG}}\) होगा, जहाँ ρ पृथ्वी का घनत्व एवं G गुरुत्वाकर्षण नियतांक है।
उत्तर:
उपग्रह का परिक्रमण काल (Revolution Period of Satellite):
उपग्रह अपने ग्रह के चारों ओर एक चक्कर लगाने में जितना समय लेता है, उसे उपग्रह का परिक्रमण काल कहते हैं।
यदि उपग्रह का परिक्रमण काल T हो, तो
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -20
\(T=2π \sqrt{\frac{(R+h)^3}{GM}}\)
उपग्रह पृथ्वी के अति निकट परिक्रमा करता है अत: h<< R
h को R की तुलना में छोड़ने पर-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -21

प्रश्न 6.
उपग्रह की ऊर्जा एवं बन्धन ऊर्जा से क्या अभिप्राय है?
इनके लिए सूत्र प्राप्त कीजिए ।
उत्तर:
उपग्रह की ऊर्जा (Energy of Satellite)
अपनी कक्षा में परिक्रमण करते समय उपग्रह की कक्ष्पिय चाल के कारण उसमें गतिज ऊर्जा होती है और उसकी स्थिति के कारण स्थितिज ऊर्जा होती है। इन दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का योग उपग्रह की कुल ऊर्जा होती है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -22
स्पष्ट है कि कुल ऊर्जा ऋणात्मक होती है जिसका अभिप्राय है कि उपग्रह ग्रह के साथ बद्ध निकाय है। इसे मुक्त करने के लिए बाह्य ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

उपग्रह की बन्धन ऊर्जा (Binding Energy of Satellite) :
“ऊर्जा की वह न्यूनतम मात्रा जो किसी उपग्रह को दे देने पर उपग्रह सदैव के लिए अपनी कक्षा छोड़कर चला जाये अर्थात् पलायन कर जाये, उपग्रह की बन्धन ऊर्जा कहलाती है।’ इसे Eb से व्यक्त करते हैं।
उपग्रह की कुल ऊर्जा, E_t=-\frac{1}{2} \frac{G M m}{r}
उपग्रह जब पलायन कर जायेगा तो अनन्त पर उसकी ऊर्जा शून्य हो जायेगी। अत: उपग्रह की बन्धन ऊर्जा
\(E_b=E_{\infty}-E_t=0-\left[-\frac{1}{2} \frac{G M m}{r}\right]\)
या \(E_b=\frac{1}{2} \frac{G M m}{r}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि पलायन वेग पिण्ड के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
उत्तर:
पलायन वेग (Escape Velocity) :
“वह न्यूनतम वेग जिससे फेंके जाने पर कोई वस्तु पलायन कर जाये अर्थात् पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा के बाहर चली जाये और लौटकर वापस न आ सके, पलायन वेग कहलाता है।’ इसकी कोई निश्चित दिशा नहीं होती है। अत: इसे पलायन वेग न कहकर पलायन चाल कहना अधिक यथार्थ होगा। आदतन हम इसे पलायन वेग कह देते हैं।

(i) पृथ्वी सतह से पलायन वेग के लिए सूत्र-हम जानते हैं कि जब किसी वस्तु को पृथ्वी सतह से दूर की ओर फेंका जाता है तो उसकी गतिज ऊर्जा गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा में बदलने लगती है और जहाँ पर सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है, वहीं से वस्तु वापस लौट आती है। इस आधार पर स्पष्ट है कि यदि वस्तु को पृथ्वी सतह से उसकी गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के बराबर गतिज ऊर्जा दे दी जाये तो वह अनन्त पर पहुँच जायेगी अर्थात पलायन कर जायेगी। अत:
पलायन ऊर्जा = गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का परिमाण
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -23

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 8.
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम लिखिए एवं सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (G) की परिभाषा, मात्रक एवं विमीय सूत्र ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम (Universal Law of Gravitation) इस नियम के अनुसार, “बह्माण्ड में प्रत्येक द्रव्य कण किसी भी अन्य द्रव्य कण को अपनी ओर एक बल द्वारा आकर्षित करता है जिसका मान (परिमाण) दोनों कणों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती एवं उनके द्रव्यमान केन्द्रों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।” इस बल की दिशा दोनों कण्णों को मिलाने वाली रेखा की सीध में होती है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -24
माना m1 व m2 द्रव्यमान के दो कण परस्पर r दूरी पर चित्र के अनुसार हैं।
यदि इन दोनों के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल F हो तो उक्त गुरुत्वाकर्षण बल के नियमानुसार
एवं \(F \propto m_1 m_2\)
\(F \propto \frac{1}{r^2}\)
दोनों नियमों को मिलाने पर
या \(F \propto \frac{m_1 m_2}{r^2}\)
या \(F=G \frac{m_1 m_2}{r^2}\) ……….(1)
जहाँ G एक नियतांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Constant of Gravity) कहते हैं। खगोलीय पिण्डों या पृथ्वी व सूर्य के मध्य दूरी इनके व्यास की तुलना में अत्यधिक होने के कारण इन्हें कण माना जा सकता है। अतः समीकरण (1) ऐसी समस्याओं पर भी लागू होता है।

सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (G):
1. परिभाषा-
∵ गुरुत्वाकर्षण बल, \(F=G \frac{m_1 m_2}{r^2}\)
यदि m1 = m2 = 1, r = 1 तो F = G
अर्थात् “सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक उस गुरुत्व बल के तुल्य है जो एकांक द्रव्यमान के दो कणो के मध्य एकांक दूरी पर कार्य करता है।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -25

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 9.
पृथ्वी का उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर क्यों घूमता है? इसके आवर्तकाल एवं कक्षीय चाल के लिए सूत्रों का निगमन कीजिए।
उत्तर;
उपग्रह की कक्षीय चाल, परिक्रमण काल एवं कुल ऊर्जा (Orbital Speed, Period of Revolution and Total Energy):
उपग्रह (Satellite):
वे आकाशीय पिण्ड जो ग्रहों की परिक्रमा करते हैं, उपग्रह कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellites)
उदाहरण-चन्द्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है।
(2) कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellites)
उदाहरण-सभी मानव निर्मित उपग्रह कृत्रिम उपग्रह की श्रेणी में आते हैं; जैसे-INSAT-1A, IB; EDUSAT; G-SAT आदि।

उपग्रह का कक्षीय वेग (Orbital Velocity of Satellite) :
माना m द्रव्यमान का उपग्रह पृथ्वी (द्रव्यमान M ) सतह से h ऊँचाई पर vo कक्षीय चाल से पृथ्वी की परिक्रमा करता है। उपग्रह की कक्षा की त्रिज्या,
r = (R + h)
पृथ्वी एवं उपग्रह के मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण -26

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

आंकिक प्रश्न (Numerical Questions) :

गुरुत्वाकर्षण नियम पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1,.
M, 2M, 3M, 4M द्रव्यमान के चार कण a भुजा वाले वर्ग के शीर्षों पर रखे गये हैं तो वर्ग केन्द्र पर रखे M द्रव्यमान वाले कण पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
\(\frac{4 \sqrt{2} G M^2}{a^2}\)

प्रश्न 2.
दो गोलों के द्रव्यमान 60 kg तथा 50 kg हैं। इनके गुरुत्व केन्द्रों के बीच की दूरी 0.50m है। इनके बीच कितना गुरुत्वाकर्षण बल होगा?
उत्तर:
8.0 × 10-7 N

प्रश्न 3.
M द्रव्यमान का एक समरूप गोला तथा m द्रव्यमान और L लम्बाई की एक समरूप छड़ इस प्रकार रखे गये हैं कि छड़ का पास वाला सिरा गोले के केन्द्र से r दूरी पर स्थित हो तो गोले व छड़ के मध्य लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल की गणना कीजिए।
उत्तर:
\(\frac{GMm}{r(r+L)}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वीय त्वरण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
एक व्यक्ति का पृथ्वी तल पर भार 80 kg है। इस व्यक्ति का चन्द्रमा पर भार क्या होगा? दिया है, चन्द्रमा का द्रव्यमान 7.34 × 1022 kg त्रिज्या = 1.75 × 106 m; गुरुत्वीय नियतांक = 6.67 × 10-11 Nm.kg-2 व्यक्ति का चन्द्रमा पर द्रव्यमान क्या होगा?
उत्तर:
128 N; 80 kg

प्रश्न 5.
यदि पृथ्वी का व्यास उसके वर्तमान व्यास का आधा हो जाये तथा घनत्व वही रहे तो इस आहे आकार की पृथ्वी की सतह पर ‘8 का मान कितना होगा?
उत्तर:
4.90 ms

प्रश्न 6.
किसी व्यक्ति का पृथ्वी पर भार 490 N है। पृथ्वी पर . गुरुत्वीय त्वरण g 9.8 Nkg है। चन्द्रमा की सतह पर गुरुत्वीय त्वरण & है। ज्ञात कीजिए-
(i) चन्द्रमा की सतह पर व्यक्ति का भार ।
(ii) पृथ्वी व चन्द्रमा पर व्यक्ति का द्रव्यमान ।
(iii) यदि व्यक्ति पृथ्वी सतह पर 1 min में 150 m चलता है तो चन्द्रमा पर मिनट में कितना चलेगा?
(iv) यदि व्यक्ति पृथ्वी तल पर 2 mm कूद सकता हो चन्द्रमा पर कितना कूदेगा?
उत्तर:
(i) 81.67 N;
(ii) पृथ्वी व चन्द्रमा दोनों पर द्रव्यमान
(iii) 150m;
(iv) 12m ]

गुरुत्वीय त्वरण में परिवर्तन पर आधारित

प्रश्न 7.
पृथ्वी की सतह से / ऊंचाई तक जाने पर किसी वस्तु के भार में 1% कमी आती है। यदि वस्तु के सतह से / गहराई नीचे ले जाया जाये तो भार में परिवर्तन कितना होगा?
जिससे
उत्तर:
0.5%

प्रश्न 8.
अपनी अक्ष पर पृथ्वी के घूर्णन की चाल ज्ञात कीजिए। ‘भूमध्य रेखा पर किसी व्यक्ति का भार इस समय के भार का
जाये। भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की त्रिज्या 6400 किमी है।
उत्तर:
5.53 x 104 रेडियन / से०

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 9.
किस ऊँचाई पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी की के मान का (i) 4% तथा (ii) 50% होगा? पृथ्वी की त्रिज्या 6400 km है।
उत्तर:
(i) 25600 km;
(ii) 2649.6 km

प्रश्न 10.
पृथ्वी तल से कितना नीचे जाने पर गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण का (i) आधा रह जायेगा (ii) एक चौथाई रह जायेगा ? (पृथ्वी की त्रिज्या = 6400km )
उत्तर:
(i) 3200 km
(ii) 4800km

गुरुत्वीय क्षेत्र तथा गुरुत्वीय विभव पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
चन्द्रमा तथा पृथ्वी के बीच की औसत दूरी 3.85 × 108 m है। दोनों के मध्य किस स्थान पर गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता शून्य होगी?
(दिया है- पृथ्वी का द्रव्यमान = 5.96 × 1024 kg: चन्द्रमा का द्रव्यमान 7.36 ×1022 kg)
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र से 3.465 × 108 m

प्रश्न 12.
2 किग्रा द्रव्यमान का एक कण 1.0 मी त्रिज्या तथा 100 किग्रा द्रव्यमान के एक समान गोले पर रखा है। गोले के पृष्ठ पर गुरुत्वीय विभव ज्ञात करो तथा कण को दूर करने में गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध किया गया कार्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
V = 6.67 × 10-9 J/kg, W = 1.3340 × 10-8 J

प्रश्न 13.
(i) चन्द्रमा तथा पृथ्वी के बीच की दूरी 3.85 × 108 m है। दोनों के मध्य किस बिन्दु पर गुरुत्वीय बल क्षेत्र शून्य होगा? (पृथ्वी का द्रव्यमान = 6 × 1024 kg; चन्द्रमा का द्रव्यमान = 7.5 × 1022 kg)
(ii) इस बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव कितना होगा?
उत्तर:
(i) पृथ्वी के केन्द्र से 3.46 × 108 cm;
(ii) -1.30 × 106 J.kg-1

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा पर आधारित प्रश्नं

प्रश्न 14.
पृथ्वी का द्रव्यमान 6.0 × 1024 kg तथा त्रिज्या 6.4 × 106 m है।
(i) 4 kg के एक पिण्ड को पृथ्वी तल से अनन्त तक ले जाने में कितना कार्य करना होगा?
(ii) 4kg के पिण्ड की पृथ्वी तल पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कितनी होगी?
(iii) पृथ्वी तल पर गुरुत्वीय विभव कितना होगा?
(iv) यदि पिण्ड अनन्त से पृथ्वी तल पर गिरे तो पृथ्वी तल से टकराते समय पिण्ड का वेग क्या होगा?
(G = 6.67 × 10-11 N.m²kg-2)
उत्तर:
(i) 2.5 × 108 J;
(ii) -2.5 × 108 J;
(iii) -6.25 × 107 J.kg-1;
(iv) 11.18 × 10³ ms-1

प्रश्न 15.
200g द्रव्यमान के तीन कण अनन्त से लाकर किसी समबाहु त्रिभुज के शीर्षो पर रखे जाते हैं। यदि त्रिभुज की प्रत्येक भुजा 40 cm हो तो किया गया कार्य कितना होगा?
उत्तर:
2.0 × 10-11 J

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

उपग्रह की कक्षीय चाल, पलायन वेग तथा परिक्रमण काल पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 16.
यदि पृथ्वी का द्रव्यमान और त्रिज्या किसी ग्रह की क्रमशः 9 गुनी तथा दुगुनी है तो रॉकेट को इस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम वेग की गणना कीजिए। पृथ्वी की सतह पर पलायन वेग 11.2 km.s-1 लीजिए।
उत्तर:
5.28k.ms-1

प्रश्न 17.
m द्रव्यमान का एक पिण्ड पृथ्वी की सतह से 4R ऊंचाई पर स्थित है, जहाँ R पृथ्वी की त्रिज्या है। पिण्ड को कितना न्यूनतम वेग दिया जाये कि वह पलायन कर जाये?
उत्तर:

प्रश्न 18.
पृथ्वी के समीप उसकी परिक्रमा करने वाले उपग्रह के कक्षीय वेग की गणना कीजिए। यदि पृथ्वी की त्रिज्या 6.4 × 106 m तथा गुरुत्वीय त्वरण 10 ms-2 हो। यदि उपग्रह पृथ्वी तल से 2000 km की ऊँचाई पर रहे तब कक्षीय वेग कितना होगा?
उत्तर:
8 km.s-1; 6.98 kms-1

उपग्रह द्वारा प्राप्त ऊँचाई पर ऊर्जा पर आधारित

प्रश्न 19.
500g के पिण्ड को पृथ्वी से पलायन करने के लिए कितनी आवश्यक ऊर्जा ज्ञात कीजिए। (g = 10 ms-2 तथा पृथ्वी की from Re = 6400 km)
उत्तर:
3.2 × 107 J

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 8 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 20.
किसी पिण्ड को पृथ्वी तल से किस वेग से फेंका जाये कि वह (i) 2Re; (ii) 4Re ऊँचाई तक पहुँच जाये? (पृथ्वी त्रिज्या R = 6400km; g = 10 ms-1)
उत्तर:
(i) 9.24 km.s-1;
(ii) 10.11 km.s-1

प्रश्न 21.
500kg का एक कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी से 1800 km की ऊंचाई पर पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है। उपग्रह की (i) स्थितिज ऊर्जा, (ii) गतिज ऊर्जा, (iii) कुल ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है- पृथ्वी की त्रिज्या 6400 km तथा g = 10 ms-1
(i) 2.5 × 1010 J;
(ii) 1.25 × 1010 J;
(iii) -1.25 × 1010 J

केप्लर के नियमों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 22.
नेप्चून ग्रह की सूर्य से दूरी पृथ्वी से सूर्य की दूरी की 30 गुनी है। पृथ्वी का परिक्रमण काल 1 वर्ष है। नेप्चून के परिक्रमण काल की गणना कीजिए।
उत्तर:
164.3 वर्ष

प्रश्न 23.
बृहस्पति ग्रह की सूर्य से दूरी पृथ्वी की सूर्य से दूरी की 5.2 गुनी है तो बृहस्पति के घूर्णन का आवर्त्तकाल ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
11.86 वर्ष

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. मनुष्य के अगुणित डी.एन.ए. में कितने क्षार युग्म होते हैं?
(अ) 5.5 × 107
(ब) 4.6 × 106
(स) 3.3 × 109
(द) 6.3 × 108
उत्तर:
(स) 3.3 × 109

2. केन्द्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ डी.एन.ए. की खोज किसने की थी?
(अ) फ्रेडरीच मेस्वर
(ब) राबर्ट हुक
(स) वाटसन क्रिक
(द) राबर्ट ब्राउन
उत्तर:
(अ) फ्रेडरीच मेस्वर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

3. डी.एन.ए. का वह खण्ड जो आर. एन. ए. का कूटलेखन करता है, उसे कहते हैं-
(अ) रज्जुक
(ब) क्रोमोसोम
(स) जीन
(द) इंट्रान
उत्तर:
(स) जीन

4. फिंगर प्रिंट के लिए निम्न में से किसका DNA का सैम्पल लिया जाता है-
(अ) कपड़ों पर लगे वीर्य
(ब) योनि स्राव
(स) बाल या मृत व्यक्ति के बाल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. मानव में लगभग 1.4 करोड़ जगहों पर अलग इकहरा क्षार पाया जाता है जिसे कहते हैं-
(अ) स्निप्स
(ब) पिनिप्स
(स) जिनीप्स
(द) टिनिप्स
उत्तर:
(अ) स्निप्स

6. मानव में ज्ञात सबसे बड़ी जीन डिसट्राफिन (Distraphin) में कितने करोड़ क्षार पाए जाते हैं-
(अ) 2.4 करोड़
(ब) 3.4 करोड़
(स) 4.4 करोड़
(द) 5.4 करोड़
उत्तर:
(अ) 2.4 करोड़

7. गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चयी (Haploid set ) को क्या कहते हैं?
(अ) अनुलेखन
(ब) आनुवंशिक कूट
(स) लैक ओपेरॉन
(द) जीनोम
उत्तर:
(द) जीनोम

8. डी.एन.ए. में अनुलेखन इकाई का भाग नहीं है-
(अ) उन्नायक (प्रमोटर )
(ब) संरचनात्मक जीन
(स) समापक
(द) लैक ओपेरॉन ।
उत्तर:
(द) लैक ओपेरॉन ।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

9. पहला आनुवांशिक पदार्थ था-
(अ) DNA
(ब) RNA
(स) प्रोटीन
(द) CSC
उत्तर:
(ब) RNA

10. आर.एन.ए. के रासायनिक रूपांतरण से किसका विकास हुआ-
(अ) tRNA
(ब) mRNA
(स) rRNA
(द) DNA
उत्तर:
(द) DNA

11. फ्रेडेरिक ग्रिफीथ (1928) ने स्ट्रेप्टोकोकस नीमोनी किस रोग के लिए जिम्मेदार माना-
(अ) हैजा
(ब) निमोनिया
(स) टीबी
(द) टॉयफाइड
उत्तर:
(ब) निमोनिया

12. ‘न्यूक्लिन’ नाम किस वैज्ञानिक ने दिया?
(अ) मेण्डल ने
(ब) हर्ष ने
(स) ओसवाल्ड एवेरी ने
(द) फ्रेडरीच मेस्चर ने।
उत्तर:
(द) फ्रेडरीच मेस्चर ने।

13. निम्न में से किसे पालिन्यूक्लिओटाइड एंजाइम कहते हैं?
(अ) पॉलीमरेज- I
(ब) पॉलीमरेज- II
(स) लाइगेज
(द) राइबोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(स) लाइगेज

14. न्यूक्लिओसाइड न्यूक्लिोटाइड से भिन्न होता है, क्योंकि इसमें नहीं होता-
(अ) फास्फेट
(ब) शर्करा
(स) नाइट्रोजन क्षारक
(द) फास्फेट व शर्करा
उत्तर:
(अ) फास्फेट

15. 64 कोडोन्स में से 61 कोडोन्स 20 अमीनो अम्ल को कोड करते हैं, यह कहलाता है-
(अ) कोडोन की वॉवलिंग
(ब) जीन का अतिव्यापन
(स) कोडोन की सार्वभिकता
(द) जेनिटिक कोड का ह्रास
उत्तर:
(द) जेनिटिक कोड का ह्रास

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

16. संरचनात्मक जीन्स की क्रिया किसके द्वारा नियंत्रित होती है –
(अ) आपरेटर
(ब) प्रमोटर
(स) लाइगेज
(द) रेग्यूलेटरी जीन ।
उत्तर:
(अ) आपरेटर

17. DNA का अनुलेखन (Transcription ) किसके द्वारा सहायक होता है?
(अ) RNA पॉलीमरेज
(ब) DNA पॉलीमरेज
(स) एक्सोन्यूक्लिएज
(द) रीकाम्बीनेज
उत्तर:
(अ) RNA पॉलीमरेज

18. ओकाजाकी खण्ड किस समय दिखाई देते हैं-
(अ) प्रतिलिपिकरण (Replication)
(ब) पारक्रमण (Transduction )
(स) ट्रांसक्रिप्शन (Transcription)
(द) अनुलिपिकरण (Translation)
उत्तर:
(अ) प्रतिलिपिकरण (Replication)

19. DNA का एक्सरे क्रिस्टलोग्राफी द्वारा अध्ययन करने वाले थे-
(अ) गिफिथ
(ब) वाटसन एवं क्रिक
(स) विलकिन्स
(द) मैकलिन्टॉक
उत्तर:
(स) विलकिन्स

20. आनुवंशिक कूट होते हैं-
(अ) एकक
(ब) द्विक
(स) त्रिक
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) त्रिक

21. आनुवंशिक कूट का वहन करने वाले हैं-
(अ) इन्ट्रॉन
(ब) एम्सॉन
(स) स्पलाइसोम
(द) SRNA
उत्तर:
(ब) एम्सॉन

22. कोशिका जैविकी का केन्द्रीय सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया?
(अ) वाटसन
(ब) विलिकिन्स
(स) ग्रिफिथ
(द) क्रिक
उत्तर:
(द) क्रिक

23. प्रोटीन संश्लेषण स्थान पर अमीनो अम्लों को कौन ले जाता है?
(अ) m.RNA
(स) t.RNA
(ब) r.RNA
(द) DNA
उत्तर:
(स) t.RNA

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24. न्यूक्लिक अम्ल के खोजकर्ता थे-
(अ) मीशर
(स) खुराना
(ब) वानमोल
(द) वाटसन क्रिक
उत्तर:
(अ) मीशर

25. यूकैरियोटोप में DNA के अनुलेखन के पश्चात् बनने वाले RNA को कहते हैं-
(अ) rRNA
(स) RNA
(ब) mRNA
(द) H RNA
उत्तर:
(द) H RNA

26. DNA में क्षारक युग्मों की परस्पर दूरी होती है-
(अ) 20A°
(स) 344°
(ब) 3.4A°
(द) 10A°
उत्तर:
(ब) 3.4A°

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
DNA आनुवंशिक पदार्थ है। इसके बारे में सुस्पष्ट प्रमाण किसने दिये ?
उत्तर:
अल्फ्रेड हर्षे व मार्था चेस ने।

प्रश्न 2.
DNA में शर्करा एवं फॉस्फोरिक अम्ल के मिलने से कौनसा बन्ध बनता है?
उत्तर:
फॉस्फो डाइएस्टर बन्ध ।

प्रश्न 3.
ऐसे खण्डों का नाम बताइये जो hnRNA में से RNA स्प्लाइसिंग के द्वारा काटकर अलग कर दिये जाते हैं।
उत्तर:
इन्ट्रॉन (Intron ) ।

प्रश्न 4.
उस एन्जाइम का नाम लिखिये जो अनुलेखन में सहायता करता है।
उत्तर:
RNA पॉलीमरेज विकर।

प्रश्न 5.
जीन अभिव्यक्ति के नियमन की ऑपेरॉन अवधारणा किन वैज्ञानिकों ने दी ?
उत्तर:
जैकब एवं मोनाड ।

प्रश्न 6.
hnRNA में पाये जाने वाले वे खण्ड जो प्रोटीन संश्लेषण में भाग नहीं लेते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
इन्ट्रॉन (Intron ) ।

प्रश्न 7.
ऋणात्मक नियमन क्या है ?
उत्तर:
इस नियमन में नियामक जीन का उत्पाद जीन की अभिव्यक्ति को रोक देता है। उदाहरण- लेक ऑपेरॉन ।

प्रश्न 8.
आनुवंशिक कूट में कोमारहित का क्या तात्पर्य है? उत्तर- दो कोडोन के बीच विराम नहीं होता है। एक के बाद दूसरा कोडोन तुरन्त प्रारम्भ हो जाता है।

प्रश्न 9.
snRNP का पूर्ण नाम बताइये ।
उत्तर:
लघुकेन्द्रकीय राइबोन्यूक्लियोप्रोटीन ( Small nuclear ribonucleoprotein) |

प्रश्न 10
सबसे छोटा RNA कौनसा होता है व इसमें कितने न्यूक्लियोटाइड होते हैं?
उत्तर:
t.RNA सबसे छोटे होते हैं। इसमें 75-80 न्यूक्लियोटाइड होते हैं।

प्रश्न 11.
सिस्ट्रॉन की संख्या के आधार पर m. RNA कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के मोनोसिस्ट्रानिक ( Monocistronic) तथा पॉलीसिस्ट्रॉनिक (Polycistronic)।

प्रश्न 12.
मोनोसिस्ट्रॉनिक किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह m. RNA जिसमें केवल एक सिस्ट्रॉन अर्थात् प्रोटीन के एक अणु के संकेत अनुलेखित होते हैं। उदाहरण-यूकैरियोटिक कोशिकाओं में।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 13.
रेप्लीसोम ( Replisome) किसे कहते हैं?
उत्तर:
DNA प्रतिकृति विधि में एन्जाइमों की एक श्रृंखला भाग लेती है जिसे रेप्लीसोम कहते हैं।

प्रश्न 14.
DNA के एक कुण्डल की लम्बाई तथा एक कुण्डल में नाइट्रोजनी क्षारकों की संख्या बताइये।
उत्तर:
लम्बाई 34A° तथा क्षारकों की संख्या 11) होती है।

प्रश्न 15.
RNA कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
तीन प्रकार के r. RNA. t.RNA m. RNA तथा इनके अतिरिक्त विषमांगी केन्द्रकी RNA (hnRNA) तथा लघु केन्द्रकीय RNA भी होते हैं।

प्रश्न 16.
कोशिका में कितने प्रकार के r.RNA अणु पाये जाते हैं?
उत्तर:
लगभग 60 विभिन्न प्रकार के ।

प्रश्न 17.
ओकाजाकी खंड किस घटना से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
प्रतिकरण से ।

प्रश्न 18.
BAC व YAC का पूर्ण नाम लिखिए।
उत्तर:
BAC = Bacterial Artificial Chromosome YAC = Yeast Artificial Chromosome.

प्रश्न 19
प्रोटीन में अमीनो अम्लों के अनुक्रमों को निर्धारित करने वाली विधि के विकास का श्रेय किसे जाता है ?
उत्तर:
फ्रेडिरक सेंगर ।

प्रश्न 20.
DNA अंगुलिछापी में किन DNA का महत्त्व है?
उत्तर:
पुनरावृत्ति DNA ( Repetitive DNA ) व अनुषंगी DNA (Satellite DNA) का।

प्रश्न 21.
आनुवंशिक पदार्थ के अणु हेतु आवश्यक चार मानदण्डों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक पदार्थ के अणु हेतु आवश्यक चार मानदण्ड निम्न हैं-

  • यह अपनी प्रतिकृति बनाने में सक्षम है। (प्रतिकृति)
  • इसे रचना व रासायनिक संगठन के आधार पर स्थित होना चाहिये।
  • इसमें धीमे परिवर्तनों (उत्परिवर्तन) की सम्भावना होती है जो विकास के लिये आवश्यक है।
  • इसे स्वयं ‘मेंडल के लक्षण’ के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए।

प्रश्न 22.
आनुवंशिक कूट की चार विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर:

  • प्रकूट त्रिक होता है।
  • एक प्रकूट केवल एक अमीनो अम्ल का कूट लेखन होता है अतः यह असंदिग्ध व विशिष्ट होता है।
  • कुछ अमीनो अम्ल का कूट लेखन एक से अधिक प्रकूटों द्वारा होता है, इस कारण इन्हें अपहासित कूट कहते हैं।
  • कूट लगभग सार्वभौमिक होते हैं।

प्रश्न 23.
यदि DNA के एक रज्जुक का अनुक्रम निम्नानुसार है-
5′ – AAGTTACTAGAC – 3′
तो इसके आधार पर बनने वाले m RNA के अनुक्रम लिखिए।
उत्तर:
5′- AAGUUACUAGAC – 3′

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पॉलीन्यूक्लियोटाइड से क्या तात्पर्य है? इनके घटकों को बताइये ।
उत्तर:
अनेक न्यूक्लियोटाइड्स आपस में जुड़कर पॉलीन्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला बनाकर DNA व RNA की संरचना बनाते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड के तीन घटक होते हैं – नाइट्रोजनी क्षार, पेंटोस शर्करा (RNA में रिबोस तथा DNA में डीऑक्सीरिबोज) और एक फॉस्फेट समूह । नाइट्रोजनी क्षार दो प्रकार के होते हैं प्यूरीन्स (एडेनीन व ग्वानीन) व पायरिमिडीन (साइटोसीन, यूरेसिल व थाइमीन) । साइटोसीन DNA व RNA दोनों में मिलता है जबकि थाइमीन DNA में मिलता है ।

थाइमीन के स्थान पर यूरेसील RNA में मिलता है । नाइट्रोजनी क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा पेंटोस शर्करा से जुड़कर न्यूक्लियोटाइड बनाता है जैसे एडीनोसीन या डीऑक्सी एडीनोसीन, ग्वानोसीन या डीऑक्सी ग्वानोसीन, साइटीडीन या डीऑक्सी साइटीडीन व यूरीडीन या डीऑक्सी थाइमीडिन ।

जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड 5′ हाइड्रॉक्सिल समूह से जुड़ जाता है तब संबंधित न्यूक्लियोटाइड्स का निर्माण होता है। दो न्यूक्लियोटाइड्स 3-5 फॉस्फोडाइस्टर बंध द्वारा जुड़कर डाइन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। इस तरह से अनेक न्यूक्लियोटाइड्स जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 2.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये-
(i) चारगाफ का तुल्यता नियम
(ii) अर्द्ध-संरक्षणीय प्रतिकृतिकरण
(iii) क्लोवर पत्ती प्रतिरूप
(iv) स्प्लाइसियोसोम
(v) समापन कोडोन
(vi) विपरीत अनुलेखन
(vii) बहुराइबोसोम
(viii) hnRNA
उत्तर:
(i) चारगाफ का तुल्यता नियम- चारगाफ ने 1949 में विभिन्न स्रोतों से DNA प्राप्त कर व अध्ययन कर नियम बनाये, जिन्हें चारगाफ का नियम कहते हैं-

  • प्यूरीन की कुल मात्रा पिरिमिडीन की कुल मात्रा के बराबर होती है (A + G = T + C) ।
  • A वT तथा G और C का अनुपात बराबर होता है परन्तु A + T व G+ C का समान होना आवश्यक नहीं है अतः A = T,

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 1

(ii) अर्द्ध संरक्षणीय प्रतिकृतिकरण – DNA के प्रतिकृतिकरण सम्बन्ध में मेसलसन एवं स्टाइल (1958) के द्वारा प्रस्तुत अर्द्ध संरक्षणीय प्रतिकृत मत सर्वमान्य है । इसके अनुसार DNA अणु के दोनों सूत्र एक- दूसरे से अलग होकर अपने-अपने अस्तित्व को बनाये रखते हैं और प्रत्येक सूत्र, कोशिका में उपलब्ध न्यूक्लिओटाइडों के कुण्ड (pool) से अपने सम्पूरक सूत्र का संश्लेषण करते हैं।

इस प्रकार नये बने DNA अणु में एक सूत्र पूर्ववर्ती DNA अणु का एवं एक सूत्र नया संश्लेषित होता है अर्थात् आधा पूर्व जैसा तथा आधा नया, इसे अर्ध संरक्षणीय प्रतिकृति कहते हैं। मेसलसन एवं स्टाइल ने इसकी पुष्टि ई कोलाई जीवाणु पर भारी समस्थानिक N15 का उपयोग करके की थी ।

(iii) क्लोवर पत्ती प्रतिरूप – 1- RNA की संरचना का राबर्ट होले ने प्रतिरूप प्रस्तुत किया जिसे क्लोवर पत्ती प्रतिरूप कहते हैं। क्लोवर पत्ती प्रतिरूप के अनुसार RNA की एक पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला मुड़कर के पांच भुजाएँ बनाती है। मुड़ने के कारण 5 व 3 सिरे पास-पास आ जाते हैं। प्रत्येक tRNA अणु के 3 छोर पर CCA अनुक्रम होता है, इस पर अमीनो अम्ल सिन्थेटेज एन्जाइम की सहायता से एक विशिष्ट अमीनो अम्ल जुड़ जाता है। 5′ छोर पर ‘G’ होता है। दो भुजाएँ –

  • TψC भुजा – इसकी सहायता से 1-RNA राइबोसोम्स से बन्धन करता है तथा
  • D भुजा या DHU भुजा – यह अमीनो अम्ल सिन्थेटेज से बन्धन में भाग लेती है। 1-RNA के नीचे लूप वाले भाग पर तीन क्षारों का अनुक्रम एन्टीकोडन वाले होते हैं। यह m RNA के विशिष्ट कोडोन से क्षार युग्मन करती है।

(iv) स्प्लाइसियोसोम – यूकैरियोटों में अनुलेखन के बाद बनने वाले RNA को hnRNA कहते हैं। RNA दो प्रकार के भागों का बना होता है। इसमें एक को इन्ट्रॉन ( Intron ) कहते हैं, इसमें कोड नहीं होता है। दूसरे भाग को एक्सॉन (Exon) कहते हैं जो आनुवंशिक कूट का वाहन करता है। इनमें से इन्ट्रॉन को RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा निकाल दिया जाता है। स्प्लाइसियोसोम नामक केन्द्रकीय अवयव इस प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

(v) समापन कोडोन – ये कोड प्रोटीन श्रृंखला के निर्माण को रोकने या समापन के लिए होते हैं अर्थात् ये किसी भी अमीनो अम्ल को कोड नहीं करते हैं। ये UAA, UAG व UGA हैं। इन्हें स्टोप सिग्नल (Stop Signal) कहते हैं अर्थात् अनर्थक कोडोन (Nonsense Codon) होते हैं। ऐसे कुल 03 कोडोन होते हैं।

(vi) विपरीत अनुलेखन (Reverse transcription)-1970 में टेमिन एवं बाल्टीमोर (Temin and Baltimore) ने इसकी खोज की। अनेक ट्यूमर जनक विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ के रूप में RNA होता है जिससे पूरक DNA बनता है। यह विपरीत अनुलेखन ट्रान्सक्रिप्टेज द्वारा किया जाता है। ऐसे विषाणुओं को रेट्रो वाइरस (Retro Virus) कहते हैं। इसके अन्तर्गत एड्स रोग HIV विषाणु भी आते हैं।

(vii) बहुराइबोसोम (Polyribosome ) – कभी प्रोटीन संश्लेषण के दौरान m – RNA पर अनेक राइबोसोम का समूह एकत्रित हो जाता है, इसे बहुराइबोसोम कहते हैं। ये राइबोसोम m. RNA के ऊपर 5′ सिरे से 3 सिरे की ओर गति करते हैं । m RNA की लम्बाई के अनुसार 5 से 20 तक राइबोसोम एक के बाद एक क्रम में जुड़ते जाते हैं। वह राइबोसोम जो 5′ सिरे के निकट होता है वह सबसे छोटी तथा जो 3 सिरे के पास होता है सबसे बड़ी पैप्टाइड श्रृंखलायुक्त होता है।

(viii) hnRNA – इसे विषमांगी केन्द्रकी RNA (Heterogenous nuclear RNA) कहते हैं। यूकैरियोटों में DNA के अनुलेखन पश्चात् बनने वाले RNA को ही hnRNA कहते हैं। इसे उच्च आणविक भार RNA या पूर्व केन्द्रकीय RNA या DNA जैसा RNA भी कहते हैं। यह प्राथमिक दूत RNA दो प्रकार के भागों का बना होता है।

इसमें एक को इन्ट्रॉन (Intron ) कहते हैं, इसमें कोड नहीं होता है। दूसरे भाग को एक्सॉन (Exon) कहते हैं जो आनुवंशिक कूट को वहन करता है। इनमें से इन्ट्रॉन को RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा निकल दिया जाता है। स्प्लाइसिओसोम (Spliceosome) नामक केन्द्रकीय अवयव इस प्रक्रिया में सहायता करता है। इसके बाद m – RNA का निर्माण होता है, जो अनुवादन की क्रिया में भाग लेता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 2

प्रश्न 3.
निम्न में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(i) न्यूक्लिओसाइड एवं न्यूक्लिओटाइड
(ii) DNA एवं RNA
(iii) इन्ट्रॉन एवं एक्सॉन
(iv) कोडोन एवं एन्टीकोडोन
(v) अनुलेखन एवं अनुवादन
(vi) प्रेरणीय एवं निरोधक नियमन
(vii) RNA स्प्लाइसिंग एवं RNA सम्पादन ।
उत्तर:
(i) न्यूक्लिओसाइड एवं न्यूक्लिओटाइड (Nucleoside and Nucleotide ) – एक अणु नाइट्रोजन क्षारक के साथ एक अणु शर्करा, के जुड़ने से जो संरचना बनती है, उसे न्यूक्लियोसाइड कहते हैं। इसी प्रकार एक अणु न्यूक्लियोसाइड के साथ फॉस्फोरिक अम्ल का एक अणु जुड़कर न्यूक्लियोटाइड बनता है।

  • नाइट्रोजन क्षारक + शर्करा = न्यूक्लियोसाइड
  • नाइट्रोजन क्षारक + शर्करा + फॉस्फोरिक अम्ल = न्यूक्लियोटाइड ।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

(ii) DNA u RNA

लक्षणDNARNA
1. प्राप्ति स्थानपादप विषाणुओं के अतिरिक्त अन्य विषाणुओं एवं सभी जीवों में पाया जाता है।जन्तु विषाणु, जीवाणुभोजियों (Bacterio-phages) के अतिरिक्त अन्य विषाणुओं में तथा सभी जीवों में पाया जाता है।
2. कोशिका में स्थितिप्रायः केन्द्रक में पाया जाता है।प्रायः कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।
3. रज्जुकों की संख्याद्विरज्जुकीयएकरज्जुकीय
4. पैन्टोस शर्कराडीऑक्सीराइबोस (C5H10O4)राइबोज (C5H10O4)
5. पिरमिडीन क्षारकथायमीन एवं साइटोसिनयूरेसिल एवं साइटोसिन
6. प्यूरीन एवं पिरिमिडीन की मात्राबराबर होती है।नहीं होती।
7. असामान्य क्षारकये बहुत ही कम अथवा अनुपस्थित होते हैं।इसमें अधिक संख्या में पाये जाते हैं।
8. क्षारकों का युग्मनपूरी लम्बाई में होता है।केवल मुड़े हुए भाग में होता है।
9. संश्लेषण के लिए एन्जाइमडी एन ए पॉलीमरेज।आर एन ए पॉलीमरेज।
10. कार्ययह प्राणियों में आनुवंशिक पदार्थ का कार्य करता है।इसका मुख्य कार्य प्रोटीन संश्लेषण होता है। पादप विषाणुओं एवं कुछ अन्य विषाणुओं में यह आनुवंशिक पदार्थ का कार्य करता है।

(iii) इन्ट्रॉन एवं एक्सॉन

इन्ट्रॉन (Intron)एक्सॉन (Exon)
इसमें कोड नहीं होता है अतः ये आनुवंशिक कूट को वहन नहीं करते।यह आनुवंशिक कूट को वहन करता है।
RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिये जाते हैं।बाहर नहीं निकाले जाते हैं।
अनुवादन की क्रिया में भाग नहीं लेता है।भाग लेता है।

(iv) कोडोन एवं एन्टीकोडोन

कोडोन (Codon)एन्टीकोडोन (Anticodon)
m-RNA पर तीन अक्षरों के कोडोन होते हैं।t-RNA पर तीन अक्षरों का एन्टीकोडोन होता है।
इसमें अनर्थक कोडोन (nonsense codons) होते हैं जो संख्या में तीन होते हैं।अनर्थक एन्टीकोडोन नहीं होते हैं।
m-RNA जिस पर कोडोन होते हैं वह m-RNA स्थिर होता है।t-RNA कोशिकाद्रव्य से अमीनो अम्ल को पकड़कर t-RNA उस स्थल पर लगते हैं जहाँ उपयुक्त कोडोन होता है।

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(v) अनुलेखन एवं अनुवाद

अनुलेखन (Transcription)अनुवादन (Translation)
इसमें आनुवंशिक सूचना का स्थानांतरण DNA से RNA में होता है ।m-RNA में न्यूक्लिओटाइडों की शृंखला का अमीनो अम्लों की पॉलिपेप्टाइड शृंखला में परिवर्तन होता है।
यह क्रिया केन्द्रक में होती है तथा वहां से m-RNA कोशिकाद्रव्य में आता है।यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम की सतह पर होती है।
इसमें कोडोन होते हैं, राइबोसोम पर m-RNA के 5 सिरे पर जुड़ता है।राइबोसोम की m-RNA की 3 सिरे की तरफ गति के होने से m = RNA के कोडोन अनुवादित होते हैं।
इस क्रिया के लिए DNA टेम्पलेट, RNA पॉलीमरेज विकर, सक्रिय अग्रदूत तथा द्विसंयोजक धातु आयन की आवश्यकता होती है।इसके लिये m-RNA, t-RNA राइबोसोम, अमीनो अम्ल विभिन्न अनुवादन कारक आवश्यक होते हैं।

(vi) प्रेरणीय नियमन एवं निरोधक नियमन

प्रेरणीय नियमन (Inducible Regulation)निरोधक नियमन (Repressible Regulation)
इस नियमन के द्वारा जीन को प्रोटीन उत्पन्न करने के लिए प्रेरित किया जाता है।इसमें जीन की सक्रियता निरुद्ध हो जाती है, जिसके कारण प्रोटीन संश्लेषण रुक जाता है।
इन पदार्थों को प्रेरक (Inducer) कहते हैं।इन्हें दमनकर (Repressor) कहते हैं।
उदा.-ई. कोलाई में लेक्टोज के अपचय का नियमन।उदा.-ई.कोलाई के ट्रप्टीफान ऑपेरॉन, हिस्टीडीन ऑपेरॉन।

(vii) RNA स्प्लाइसिंग एवं RNA सम्पादन

RNA स्प्लाइसिंग (RNA Splicing)RNA सम्पादन (RNA Processing)
RNA में से इन्ट्रॉन निकालने की क्रिया है।विभिन्न प्रकार के RNA जैसे m-RNA, t-RNA तथा r-R N A इत्यादि।
प्रोटीन संश्लेषण से पूर्व यह क्रिया होती है।प्रोटीन संश्लेषण के दौरान आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
DNA की आणविक संरचना का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
DNA एक दीर्घ अणु है। इसकी इकाइयों को न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में तीन यौगिक- पेन्टोज शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल तथा नाइट्रोजनी क्षारक होते हैं।
I. पेन्टोज शर्करा (Pentose Sugar) – यह पाँच कार्बन युक्त शर्करा होती है जिसे डीआक्सीराइबोज कहते हैं। इसमें राइबोज शर्करा की तुलना में दूसरे कार्बन पर एक ऑक्सीजन का अणु कम होता है।
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II. फॉस्फोरिक अम्ल (Phosphoric Acid ) – यह आर्थोफॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) होता है। न्यूक्लिक अम्लों में फॉस्फोरिक अम्ल एवं पैन्टोज शर्करा एकान्तर क्रम में पाये जाते हैं अर्थात् दो शर्करा के अणुओं के बीच फॉस्फोरिक अम्ल का एक अणु पाया जाता है। प्रत्येक फॉस्फेट समूह एक शर्करा के 3°C तथा दूसरी शर्करा के 5°C से जुड़कर फॉस्फो डाइएस्टर बन्ध (Phospho diester bond) बनाता है। न्यूक्लिक अम्ल की श्रृंखला 5°C से प्रारम्भ होकर 3°C पर समाप्त होती है अथवा 3°C शुरू होकर 5°C पर समाप्त होती है।

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III. नाइट्रोजनी क्षारक (Nitrogenous bases) – ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) पिरिमिडीन (Pyrimidine ) – इनमें एक विषमचक्रीय षट्भुजी वलय होती है जिसमें चार कार्बन एवं दो नाइट्रोजन होते हैं। DNA में दो प्रकार के पिरिमिडीन थाइमीन (Thymine = T) एवं साइटोसीन (Cystosine = C ) पाये जाते हैं। RNA में थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल (Uracil = U) होता है।

(ii) प्यूरीन (Purine ) – इसमें पिरिमिडीन वलय के चौथे एवं पाँचवें कार्बन से एक इमिडेजोल वलय (imidazole ring) संयुक्त होती है। DNA तथा RNA दोनों में ही एडीनीन (Adenine = A) एवं गुआनीन (Guanine = G) नामक प्यूरीन पाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
DNA प्रतिकृतिकरण में भाग लेने वाले प्रमुख एन्जाइमों के नाम लिखिये।
उत्तर:
DNA प्रतिकृतिकरण में भाग लेने वाले एन्जाइम निम्न प्रकार से हैं-

  • हेलिकेज एन्जाइम – DNA की द्विकुण्डली खोलते हैं।
  • एस. एस. बी. प्रोटीन्स एकल लड़ी बंधन प्रोटीन्स सम्बद्ध होकर स्थिति को स्थिर रखते हैं।
  • टोपोआइसोमेरेज एन्जाइम कुण्डलीकरण तनाव को कम करते हैं।
  • R.N.A. पॉलिमेरेज या प्राइमेज एन्जाइम (R.N.A. प्राइमर) – DNA संश्लेषण की प्रक्रिया करने के लिए RNA का छोटा हिस्सा बनाते हैं।
  • DNA पॉलीमेरेज III एन्जाइम प्राइमर को 5-3 दिशा में आगे बढ़ाने का कार्य करने हैं।
  • DNA पॉलीमेरेज I-DNA के खण्डों के मध्य पाये जाने वाले रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हैं।
  • लाइगेज एन्जाइम – DNA के खण्डों को जोड़ते हैं।
  • एण्डोन्यूक्लिएज एवं एक्सोन्यूक्लिएज एन्जाइम सही न्यूक्लियोटाइड को जोड़ने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
tRNA के क्लोवर पत्ती प्रतिरूप का नामंकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राबर्ट होले (Robert Holley) तथा उनके साथियों ने यीस्ट के एलीनीन T- RNA की संरचना का अध्ययन कर बताया कि 1- RNA की संरचना क्लोवर की पत्ती की भांति होती है, इसे क्लोवर पत्ती प्रतिरूप (Model) कहते हैं। इसके अनुसार RNA की एक पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला मुड़कर के पाँच भुजायें बनाती है। मुड़ने के कारण इसके 5 व 3 सिरे पास-पास आ जाते हैं। 5 सीमान्त छोर पर गुआनीन अवशेष ‘G’ तथा 3 सिरे पर ‘CCA अयुग्मित अनुक्रम होता है। अमीनो अम्ल को केवल 3’ छोर पर स्वीकार किया जाता है

क्लोवर पत्ती प्रतिरूप के अनुसार 1-RNA में निम्न भुजायें होती हैं-

  1. ग्राही भुजा (Acceptor arm ) – इसके 3 सिरे पर अमीनो अम्ल जुड़ता है।
  2. डाइहाइड्रो यूरीडीन भुजा (DHU भुजा अथवा D भुजा) – यह अमीनो अम्ल सिन्थेटेज नामक एन्जाइम को बाँधती है।
  3. एन्टीकोडोन (Anticodon arm ) – इसकी लूप में तीन न्यूक्लिओटाइडों का विशिष्ट क्रम प्रतिकूट (anticodon) होता है जो mRNA के कूट (Codon) से क्षार युग्मन करता है।
  4. अतिरिक्त भुजा – यह एन्टीकोडोन भुजा एवं TC भुजा के मध्य पाई जाती है। इसकी लम्बाई अनिश्चित होती है।
  5. TyC भुजा – इसकी भुजा से प्रोटीन संश्लेषण के समय राइबोसोम जुड़ता है।

t.RNA का कार्य – इसकी मुख्य भूमिका प्रोटीन संश्लेषण में त्रिक् आनुवंशिक कूट को पहचान कर अनुरूप अमीनो अम्लों को राइबोसोम तक पहुँचाना है।

प्रश्न 7.
विषमांगी केन्द्रकी RNA व लघुकेन्द्रकीय RNA पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विषमांगी केन्द्रकी RNA (Heterogenous nuclear RNA = hnRNA)- यूकैरियोटों में DNA में अनुलेखन के पश्चात् बनने वाले RNA को ही hnRNA कहते हैं। इसे उच्च आणविक भार या पूर्व केन्द्रीय RNA या DNA जैसा RNA कहते हैं। यह प्राथमिक m. RNA दो प्रकार के भागों इन्ट्रॉन (intron ) एवं एक्सॉन (exon) से बना होता है। एक्सॉन आनुवंशिक कूट वहन करता ।

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परन्तु इन्ट्रॉन वहन नहीं करता । इन्ट्रॉन को RNA Splicing विधि द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है, इसके लिए केन्द्रकीय अवयव स्प्लाइसिओसोम (Spliceosome) सहायता करते हैं। इसके बाद m- RNA का निर्माण होकर अनुवादन क्रिया में भाग लेता है। लघुकेन्द्रकीय RNA ( Small nuclear RNA = snRNA)- यह यूकैरियोटों के केन्द्रक में मिलता है।

यह केन्द्रक में प्रोटीनों के साथ मिलकर लघुकेन्द्रकीय राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन (snRNP) का निर्माण करता है। इसे प्राय: स्नर्प (Snurps ) भी कहते हैं । इनसे स्प्लाइसिओसोम बनता है जो RNA Splicing में सहायता करता है।

प्रश्न 8.
अनुवादन के प्रमुख चरणों के नाम लिखिये ।
उत्तर:
m – RNA में न्यूक्लिओटाइडों की श्रृंखला का अमीनो अम्लों की पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में परिवर्तन को ही अनुवादन (Translation) कहते हैं । यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम की सतह पर होती है। राइबोसोम – RNA के 5 ́ सिरे पर जुड़ता है तथा इसकी 3 ́ सिरे की ओर गति होने से m-RNA के कोडोन अनुवादित हो जाते हैं। अनुवादन हेतु m-RNA, t-RNA राइबोसोम, अमीनो अम्ल व विभिन्न अनुवादन कारक आवश्यक होते हैं। प्रोकैरियोटों में यह क्रिया निम्न चरणों में पूर्ण होती है-

  1. अमीनो अम्ल का सक्रियण ।
  2. सक्रिय अमीनो अम्ल का t-RNA से जुड़ना ।
  3. पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का समारम्भ।

समारम्भ की प्रक्रिया में समारम्भ कारक (Initiation Factors) आवश्यक होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ये IFs होते हैं ।

प्रश्न 9.
सेंट्रल डोमा सिद्धान्त किसने बताया व उससे क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आण्विक जीव विज्ञान में फ्रांसिस क्रिक ने सेंट्रल डोमा (Central dogma) का विचार प्रस्तुत किया । सिद्धान्त के अनुसार आनुवंशिक सूचनाओं का बहाव DNA से RNA व इससे प्रोटीन की ओर होता है (DNA → RNA → प्रोटीन) । यद्यपि कुछ विषाणुओं में यह बहाव विपरीत दिशा अर्थात् RNA से DNA की ओर होता है।
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प्रश्न 10.
RNA प्रथम आनुवंशिक पदार्थ है, व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
RNA पहला आनुवंशिक पदार्थ था । अब बहुत पर्याप्त प्रमाण हैं कि जीवन के आवश्यक प्रक्रमों (जैसे- उपापचयी, स्थानांतरण, संबंधन आदि) का विकास RNA से हुआ। RNA आनुवंशिक पदार्थ के साथ एक उत्प्रेरक (जैविक तंत्र में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ हैं जो RNA उत्प्रेरक द्वारा उत्प्रेरित की जाती हैं, प्रोटीन एंजाइम का इसमें कोई योगदान नहीं है )

RNA उत्प्रेरक के रूप में क्रियाशील लेकिन अस्थायी है। इस कारण से RNA के रासायनिक रूपांतरण से DNA का विकास हुआ, जिससे यह अधिक स्थायी है। DNA के द्विरज्जुकों व पूरक रज्जुकों के कारण तथा इनमें मरम्मत प्रक्रियाओं के विकास से अपने में होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधी है।

प्रश्न 11.
अनुलेखन की इकाई व जीन को समझाइये |
उत्तर:
जीन वंशागति ( inheritance) की क्रियात्मक इकाई है। जीन DNA पर स्थित होती हैं। DNA अनुक्रम जो 1. RNA व r. RNA को कोडित (Coding) करते हैं उसे भी जीन परिभाषित करते हैं। परिभाषा के अनुसार समपार (Cistron) DNA का वह खंड है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन (Coding) करता है, अनुलेखन (transcription ) इकाई में संरचनात्मक जीन मोनोसिस्ट्रानिक (Monocistronic ) या पॉलीसिस्ट्रानिक (Polycistronic) हो सकती है।

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प्रायः सुकेन्द्रकी (cukaryotic) में मोनोसिस्ट्रानिक तथा पॉलीसिस्ट्रानिक जीवाणु या असीमकेन्द्री (Prokaryotic) में होती है। सुकेन्द्रकी में मोनोसिस्ट्रानिक संरचनात्मक जीन मिलती है जिसमें अंतरापित कूटलेखन (Interrupted Coding) अनुक्रम पाये जाते हैं। सुकेन्द्रकी में जीन विखंडित (Split) होते हैं। कूटलेखन अनुक्रम या अभिव्यक्त अनुक्रमों को व्यक्तेक (exon) कहते हैं।

व्यक्तेक वे अनुक्रम हैं जो परिपक्व या संसाधित (Processed) RNA में मिलते हैं। व्यक्तेक, अव्यक्तेक (intron ) द्वारा अंतरापित (interrupted) होते हैं। अव्यक्तेक या मध्यवर्ती ( intervening) अनुक्रम परिपक्व या संसाधित RNA में नहीं मिलते हैं। लक्षण की वंशागति संरचनात्मक जीन के उन्नायक व नियामक (Promotor and Regulatory) अनुक्रमों द्वारा प्रभावित होती है. क्योंकि कभी-कभी नियामक अनुक्रम अस्पष्ट रूप से नियामक जीन कहलाते हैं। इसके बावजूद भी ये अनुक्रम किसी RNA या प्रोटीन का कूटलेखन नहीं करते हैं ।

प्रश्न 12.
DNA के अग्रक रज्जुक एवं पश्चगामी रज्जुक में अन्तर बताइये ।
उत्तर:

अग्रक रज्जुक (Leading strand)पश्चगामी रज्जुक (Lagging strand)
1. अग्रक सूत्र या रज्जुक DNA के 3→5 सूत्र पर संश्लेषित होता है ।पश्चगामी सूत्र जनक DNA के 5→3 सूत्र पर संश्लेषित होता है ।
2. इसके संश्लेषण की दिशा 5→3 व द्विगुणन शाख की तरफ होती है।यह पूर्ण सूत्र 3→5 दिशा में तथा द्विगुणन शाख के विपरीत दिशा में संश्लेषित होता है परन्तु इनके खण्डों का संश्लेषण 5→3 दिशा में ही होता है।
3. इसका संश्लेषण एक शृंखला के रूप में होता है।पश्चगामी रज्जुक का संश्लेषण छोटे -छोटे पॉलीन्यूक्लियोटाइड खण्डों में होता है जिन्हें ओकाजॉकी खण्ड कहते हैं।
4. इसके संश्लेषण हेतु केवल एक RNA प्राइमर होता है।इसमें ओकाजॉकी खण्ड के संश्लेषण हेतु अलग-अलग RNA प्राइमर चाहिए।
5. इसमें संश्लेषण के लिये DNA लाइगेज एन्जाइम की आवश्यकता नहीं होती है।इनमें ओकाजॉकी खण्डों को जोड़ने के लिये DNA लाइगेज एन्जाइम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 13.
रो – कारक (Rho – factor ) क्या होते हैं?
उत्तर:
ई. कोलाई ( E. coli ) जीवाणु में वह प्रोटीन जो RNA पॉलीमरेज द्वारा एक प्रकार के अनुलेखन (transcription ) समापन स्थलों (terminating sites) पर अनुलेखन समाप्त करने में सहायक होता है, ऐसे स्थलों को रो – निर्भर समापन स्थल कहते हैं। प्रोकैरियोट्स के समापन स्थलों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है-

  • रो – स्वतन्त्र समापन स्थल ( rho independent terminator)
  • रो- आश्रित समापन स्थल (rho-dependent terminator)

प्रश्न 14.
यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले RNA पॉलीमरेज एन्जाइम की स्थिति, कार्य व प्रतिशत को – बताइये ।
उत्तर:

एन्जाइम (Enzyme)स्थिति (Position)कार्य (Functions)प्रतिशतता (Percentage)
1. RNA पॉलीमेरेज-Iकेन्द्रक मेंr.RNA का संश्लेषण50-70%
2. RNA पॉलीमेरेज-IIकेन्द्रक द्रव्य मेंm.RNA का संश्लेषण20-40%
3. RNAपॉलीमेरेज-IIIकेन्द्रक द्रव्य मेंt.RNA व 5 S RNA का संश्लेषण10%

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प्रश्न 15.
प्रेरण व दमन में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:

प्रेरण (Induction)दमन (Repression)
1. यह ऑपेरॉन को प्रारम्भ करता है।यह समाप्त करता है।
2. यह अनुलेखन व अनुवादन को प्रारम्भ करता है।यह अनुलेखन व अनुवादन को रोकता है।
3. यह उपचयी पथ (metabolic path) को सुचारु व व्यवस्थित करता है ।यह उपचयी पथ को संचालित करता है।
4. ऑपेरॉन जीन से जुड़ने से प्रेरण द्वारा दमन को रोका जाता है।ऑपरेटर जीन से सह-दमनकर के जुड़ने से एपोरिप्रेसर उत्पन्न होता है।

प्रश्न 16.
प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक कोशिकाओं में होने वाले अनुलेखन में क्या अन्तर होता है? तुलना कीजिए।
उत्तर:

लक्षणप्रोकैरियोटिक अनुलेखनयूकैरियोटिक अनुलेखन
1. स्थानकोशिक द्रव्य में सम्पन्न होता है।केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) में होता है।
2. समयइसके लिये कोशिका चक्र की कोई निश्चित अवस्था नहीं होती है।कोशिका चक्र की G1 व G2 अवस्थाओं में अनुलेखन होता है।
3. RNA संसाधनविभिन्न प्रकार के RNAs का संसाधन या परिपक्वन कोशिका द्रव्य में होता है।RNAS का संसाधन केन्द्रक द्रव्य में होता है।
4. अनुलेखन इकाईएक इकाई में एक से अधिक जीन हो सकते हैं।इसमें केवल एक जीन होती है।
5. एन्जाइमतीनों प्रकार के RNA के संश्लेषण हेतु केवल एक एन्जाइम, RNA पॉलीमेरे ज-I की आवश्यकता होती है।तीनों प्रकार के RNA संश्लेषण हेतु अलग-अलग प्रकार के एन्जाइम की आवश्यकता होती है। इसमें पॉलीमेरेज-I, II व III की आवश्यकता होती है।
6. RNA पॉलीमरेज की संरचनाRNA पॉलीमरेज, 5-पॉलीपेप्टाइड शृंखला की जटिल संरचना है।RNA पॉलीमरे ज में 10-15 पॉलीपे प्टाइ ड शृंखलायें होती हैं।
7. अनुलेखन व अनुवादनm.RNA का अनुलेखन तथा पॉलीपेप्टाइड श्वृंखला का अनुवादन साथ होते हैं।ऐसा नहीं होता है।
8. राइबोसोमी RNAतीन प्रकार के राइबोसोमी RANs (23S, 16S, 5S) के लिये केवल एक प्राथमिक ट्रान्सक्रिप्ट RNA अणु बनता है।चार प्रकार के राइबोसोमी RNA के लिये दो प्राथमिक प्रतिलिपि RNA बनते हैं। एक अनुलेखन से 28S, 18S व 5.8S r.RNA बनते हैं तथा दूसरे से केवल 5S r.RNA बनता है।
9. प्रमोटरसरल व छोटा होता है।तुलनात्मक जटिल, बड़ा व विविधापूर्ण होता है।
10 अनुलेखन संकुलक्रोड एन्जाइम + σ  कारकRNA पॉलीमरेज व अनुलेखन कारक।

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प्रश्न 17.
प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक DNA में अन्तर बताइये ।
उत्तर:

प्रोकैरियोटिक DNAयूकैरियोटिक DNA
1. DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन्स नहीं पाये जाते हैं।हिस्टोन प्रोटीन्स पाये जाते हैं।
2. निष्क्रिय (non-coding) DNA की बहुत कम मात्रा होती है।बहुत अधिक होती है।
3. कोडिंग खण्डों में नॉन-कोडिंग अनुक्रम (introns) नहीं होते हैं।नॉन-कोडिंग खण्ड पाये जाते हैं।
4. DNA अणु वृत्ताकार होता है।केन्द्रकीय DNA अणु रैखिक (linear) होता है।
5. DNA एक अति कुण्डलित गुणसूत्र बनाता है।गुणसूत्रों की संख्या सदैव एक से अधिक होती है।

प्रश्न 18.
लैक ओपेरॉन क्या है? लैक ओपेरॉन की संरचना तथा इसकी कार्यविधि समझाइये। लेक ओपेरॉन प्रक्रिया का नामांकित चित्र बनाइये ।
उत्तर:
लैक-प्रचालेक (Lac-Operon)-
1. लैक ऑपेरॉन के विषय में स्पष्ट जानकारी जैकब व मोनाड (Jacob \& Monod) ने दी।

2. लैक ऑपेरॉन (यहाँ लैक से तात्पर्य लैक्टोज से है) में पॉलीसिस्ट्रोनिक संरचनात्मक जीन का नियमन एक सामान्य प्रमोटर व नियामक (regulatory) जीन द्वारा होता है। इस प्रकार की व्यवस्था जीवाणु में बहुत सामान्य रूप से देखने को मिलती है व इसे ऑपेरॉन कहा जाता है। उदाहरणार्थ val ऑपेरॉन, his ऑपेरॉन, trp ऑपेरॉन, lac ऑपेरॉन आदि।

3. मानव की आंत में पाये जाने वाले जीवाणु ई-कोलाई सामान्यतया लैक्टोज के अपचय से ऊर्जा को प्राप्त करते हैं। जैकब व मोनाड ने ज्ञात किया कि इसके DNA में तीन जीन का एक समूह लैक्टोज का अपचय करने वाले तीन एन्जाइम के संश्लेषण से सम्बन्धित होता है।
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4. जब पोषण माध्यम में लैक्टोज उपस्थित होता है तो ये जीन सक्रिय होते हैं किन्तु लैक्टोज की अनुपस्थिति होने पर ये निष्क्रिय होते हैं। जैकब व मोनाड ने इन जीन की सक्रियता के नियमन के लिये ऑपेरॉन संकल्पना (operon concept) दी।

5. उक्त संकल्पना के अनुसार जीन की सक्रियता का नियमन अनुलेखन (transcription) स्तर पर प्रेरण या दमन (induction or repression) द्वारा होता है।

6. लैक्टोज के अपघटन और उससे ऊर्जा उत्पादन हेतु तीन एन्जाइम्स की आवश्यकता होती है-

  • बीटा गैलेक्टोसाइडेज (beta-galactosidase),
  • परमिएज (permease) तथा
  • ट्रान्सएसीटिलेज (transacetylase)।

7. इन एन्जाइ म्स का संश्लेषण एक बहु सिस्ट्र भॅनिक (polycistronic) m.RNA अणु के अनुवादकरंण (translation) से होता है। इस बहुसिस्ट्रॉनिक m.RNA का संश्लेषण लैक ऑपेरॉन में स्थित तीन संरचनात्मक जीन्स या सिस्ट्रॉन्स (structural genes or cistrons) की शृंखला के अनुलेखन (transcription) के द्वारा होता है।

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8. इन तीन संरचनात्मक जीन या सिस्ट्रॉन में-

  • सिस्ट्रॉन-Z,
  • सिस्ट्रॉन-Y तथा सिस्ट्रॉन- a होती है। ये एक-दूसरे के समीप होती हैं व इनमें परस्पर समन्वय होता है। ये तीनों जीन इनको कन्ट्रोल करते हैं। इन्हें रेगुलेटर जीन (Regulator gene), प्रोमोटर जीन (Promotor gene) तथा ओपरेटर जीन (Operator gene) कहते हैं।

9. सिस्ट्रॉन- Z जीन बींटा गैलेक्टोसाइडेज के लिये कोड करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज का जल अपघटन करके उन्हें गैलेक्टोज व ग्लूकोज में विभक्त कर देता है। सिस्ट्रॉन-Y जीन परमीएज के लिये कोड करता है जो beta-गैलेक्टोसाइडेज के लिये कोशिका की पारगम्यता को बढ़ा देते हैं। सिस्ट्रॉन-a जीन ट्रान्सएसीटिलेज के लिये कोड करता है। अतः लैक्टोज के उपापचय के लिये तीनों जीन के उत्पाद लैक ऑप्रॉन में आवश्यक हैं।

लैक ऑपेरॉन का प्रकार्य (Functioning of Lac Operon)-
ई.कोलाई जीवाणु में लैक ऑपेरॉन की कार्यविधि को दो प्रकार से स्पष्ट किया गया है-
(i) लैक्टोज की उपस्थिति में-माध्यम में लैक्टोज-प्रेरक (inducer) के उपस्थित होने पर प्रेरक कोशिका में प्रवेश करके नियामक जीन (regulator gene) से उत्पन्न दमनकारी (repressor) के साथ जुड़ जाता है। परिणामस्वरूप दमनकारी प्रचालक (operator) जीन से नहीं जुड़ने पाता और प्रचालक जीन स्वतन्त्र रहती है।

यह RNA पॉलीमरेज को प्रमोटर जीन (promotor gene) के समारम्भन स्थल से जुड़ने के लिये प्रेरित करता है। फलस्वरूप संरचनात्मक जीन या सिस्ट्रॉन से बहुसिस्ट्रॉनिक m.RNA का अनुलेखन होता है जो लैक्टोज उपयोग के लिये आवश्यक तीनों एन्जाइम्स को कोडित करता है अर्थात् यह लेक्टोज उत्प्रेरक का कार्य करता है। अतः सम्पूर्ण क्रिया एन्जाइम प्रेरण है या यह उत्प्रेरण या प्रेरण (induction or inducer) का उदाहरण है।

(ii) लैक्टोज की अनुपस्थिति में-लैक्टोज प्रेरक की अनुपस्थिति में नियामक जीन एक दमनकारी प्रोटीन उत्पन्न करता है (यह i जीन द्वारा संश्लेषित होता है) जो ओपरेटर स्थल से जुड़कर इसके अनुलेखन को रोक देती है। अतः संरचनात्मक जीन m.RNA का संश्लेषण नहीं कर पाते और प्रोटीन का निर्माण रुक जाता है।

यह संदमन या दमनकारी (repression) का उदाहरण है। कभी-कभी लैक्टोज उत्प्रेरक से जुड़कर दमनकारी में संरचनात्मक परिवर्तन करता है और ओपरेटर से जुड़कर इसके अनुलेखन को रोक देता है। इस प्रकार के उत्प्रेरक को सहदमनकारी (co-repressor) कहते हैं। क्योंकि यह प्रचालक स्थल (operator side) को निष्क्रिय करने के लिये दमनकारी (repressor) को सक्रिय करता है।

प्रश्न 19.
अनुलेखन ( ट्रांसक्रिप्सन) से क्या तात्पर्य है? अनुलेखन क्रिया को चित्र सहित समझाइए ।
अथवा
अनुलेखन किसे कहते है ? जीवाणु में अनुलेखन प्रक्रिया को नामांकित चित्र बनाकर समझाइए ।
उत्तर:

  1. आनुवंशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण, DNA से RNA में होता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा DNA से RNA का निर्माण होता है, अनुलेखन या ट्रांसक्रिप्सन (Transcription) कहलाती है।
  2. हम जानते हैं कि DNA विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन्स का संश्लेषण करता है। प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं के केन्द्रकाय ( Nucleoid) तथा यूकेरियोटिक कोशिकाओं के केन्द्रक में DNA पाये जाते हैं परन्तु प्रोटीन संश्लेषण कोशिका द्रव्य में होता है।
  3. DNA अणु केन्द्रक से कोशिका द्रव्य में नहीं जाते और सीधे ही प्रोटीन संश्लेषण को निर्देशित नहीं करते हैं।
  4. DNA अणु प्रोटीन संश्लेषण की सूचनाओं को सन्देशवाहक RNA (m.RNA) पर अंकित करते हैं और कोशिका द्रव्य में जाकर राइबोसोम से जुड़ते हैं। अत: DNA फर्मे (DNA Template) पर RNA के निर्माण को अनुलेखन कहते हैं।
  5. DNA पर जब m. RNA का निर्माण होता है तो इसमें नाइट्रोजन बेस थायमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है।
  6. यह प्रक्रिया विशेष प्रकार के एन्जाइम RNA पॉलीमरेज (RNA Polymerase) की उपस्थिति में होती है।

अनुलेखन इकाई (Transcription Unit) –
1. एक DNA खण्ड, जो RNA के अणु का अनुलेखन करता है, उसे अनुलेखन इकाई कहते हैं। अनुलेखन इकाई एक जीन के समान या इसमें अनेक सतत जीन हो सकते हैं।

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2. DNA में अनुलेखन इकाई के मुख्यतः तीन भाग होते हैं-

  • उन्नायक ( Promoter )
  • संरचनात्मक जीन (Structural gene)
  • समापक (Treminator)

3. DNA निर्भर RNA पॉलीमरेज बहुलकीकरण केवल एक दिशा 5→3′ की ओर उत्प्रेरित होते हैं।

4. रज्जुक जिसमें ध्रुवत्व 3→5 की ओर होता है वह टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है। इस कारण इसे टेम्पलेट रज्जुक (Template Strand) कहते हैं।

5. दूसरा रज्जुक जिसमें ध्रुवत्व 5→3′ होता है व अनुक्रम (Sequences) RNA के समान होते हैं (थायमीन के स्थान पर यूरेसिल) वह अनुलेखन प्रक्रिया के दौरान विस्थापित (displaced ) या स्थानांतरित हो जाता है। वह रज्जुक जो किसी के लिये कूटलेखन नहीं करता है उसे कूटलेखन रज्जुक (Coding Strand) कहते हैं।

सभी उपर्युक्त बिन्दु या संदर्भ बिन्दु (reference point) जो अनुलेखन इकाई के भाग होते हैं। वे कूटलेखन रज्जुक से बने होते हैं। उदाहरण के रूप में एक परिकल्पित अनुलेखन इकाई के अनुक्रम निम्न प्रकार के होंगे- 3′-AT GC AT GC AT GC AT GC AT GC AT GC 5′ टेम्पलेट रज्जुक 5′-TA CG TA CG TA CG TA CG TA CG TA CG-3′ कूटलेखन रज्जुक

6. अनुलेखन इकाई में संरचनात्मक जीन के दोनों सिरों पर प्रमोटर (उन्नायक ) व टर्मिनेटर ( समापक) जीन उपस्थित होती हैं। संरचनात्मक जीन के 5 (प्रतिप्रवाह upstream) सिरे पर प्रमोटर जीन तथा 3′ ( अनुप्रवाह; down stream) सिरे पर समापन जीन होती है और इससे अनुलेखन प्रक्रम की समाप्ति का निर्धारण होता है। इसके अतिरिक्त उन्नायक (Promoter) के प्रतिप्रवाह ( upstream) व अनुप्रवाह (downstream) की तरफ नियामक अनुक्रम (regulatory sequences) उपस्थित होते हैं।
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6.5.2 अनुलेखन इकाइ व जान (Transcription unit and Gene) –
1. जीन वंशागति ( inheritance) की क्रियात्मक इकाई है। यह t.DNA पर स्थित होते हैं। वह DNA अनुक्रम जो T. RNA अथवा r. RNA अणु के लिये कूटलेखन (Code) करता है, वह भी जीन कहलाता है।

2. समपार या सिस्ट्रॉन (Cistron) DNA का वह खण्ड है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन करता है या जिसमें एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण की सूचना कोडित होती है। अतः यह एक जीन के समतुल्य है तथा सिस्ट्रॉन शब्द का प्रयोग एक जीन के लिये ही किया जाता है।

3. प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में एक ही m. RNA अणु में प्राय: एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बहुलकीकरण (Polymerization) की सूचना निहित होती है। अतः इन m. RNA अणुओं को पॉलीसिस्ट्रॉनिक (Polycistronic ) कहते हैं।

4. यूकेरियोटिक कोशिकाओं के m. RNA अणु में केवल एक ही पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के बहुलकीकरण की सूचना निहित होती है। इसलिये इन्हें मोनोसिस्ट्रॉनिक (Monocistronic ) कहते हैं।

5. जैसा कि यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अधिकांश जीनों में एक ही प्रोटीन के संश्लेषण की संकेत सूचना DNA के कई छोटे-छोटे खण्डों में होती है। इस कारण इन्हें विपटित जीन (Split genes) कहते हैं। ये DNA खण्ड व्यक्तेक या एक्सॉन ( exon) कहलाते हैं। एक्सॉन्स के बीच-बीच में अक्रिय DNA खण्ड पाये जाते हैं जिनमें प्रोटीन संश्लेषण की सूचना नहीं होती है।

DNA के ये निष्क्रिय खण्ड अव्यक्तेक या इन्ट्रॉन्स (introns) कहलाते हैं। अतः RNA की प्राथमिक प्रतिलिपियों में एक्सॉन्स व इन्ट्रॉन्स दोनों प्रकार के खण्ड होते हैं। RNA की ऐसी प्राथमिक प्रतिलिपि को विषमांगी केन्द्रकीय RNA (heterogenous nuclear RNA or hn RNA) भी कहते हैं।

RNA के प्रकार व अनुलेखन का प्रक्रम (Types of RNA and Process of Transcription)-
1. अनुलेखन में आनुवंशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण DNA से RNA में होता है। इस क्रिया में DNA कुण्डली की एक श्रृंखला पर RNA के न्यूक्लियोटाइड्स ( राइबोन्यूक्लियोटाइड्स) आकर जुड़ जाते हैं जिससे एक अस्थायी DNA-RNA संकर का निर्माण हो जाता है। कुछ समय पश्चात् RNA की समजात (complementary) श्रृंखला अलग हो जाती है। इसमें नाइट्रोजन बेस थायमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है। इस क्रिया को अनुलेखन कहते हैं। यह क्रिया एन्जाइम RNA पॉलीमरेज (RNA polymerase) द्वारा होती है।

प्रोकेरियोट्स में अनुलेखन (Transcription in Prokaryotes) –
1. प्रोकेरियोट्स में पॉलिसिस्ट्रानिक व सतत संरचनात्मक जीन पाये जाते हैं।

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2. जीवाणुओं में RNA पॉलिमरेज की एक ही जाति से m. RNA, t.RNA तथा r. RNA का संश्लेषण होता है ये तीनों प्रकार के RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये आवश्यक होते हैं। m. RNA टेम्पलेट प्रदान करता है, t.RNA अमीनो अम्लों के लाने व आनुवंशिक कूट को पढ़ने का काम व r.RNA स्थानान्तरण के दौरान संरचनात्मक व उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है।

3. RNA पॉलीमरेज एन्जाइम अनुलेखन के प्रारम्भ होने वाले DNA का वर्धक व प्रमोटर स्थल को पहचानने में सहायता करता है। इस एन्जाइम के दो भाग होते हैं-क्रोड एन्जाइम (Core enzyme) तथा क्रोड एन्जाइम के साथ जुड़ने वाला सिग्मा (०) कारक, जो कि RNA का संवर्धन का प्रारम्भन ( initiation) करता है।

4. क्रोड एन्जाइम चार प्रकार के पॉलीपेप्टाइडों से बना होता है-

  • दो a श्रृंखलायें ये पॉलीपेप्टाइड वर्धक (Promotor) DNA के साथ बंध बनाते हैं।

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  • पहली B श्रृंखला – RNA संवर्धन हेतु प्रयुक्त . न्यूक्लियोटाइड को बाँधने का काम यह श्रृंखला करती है।
    दूसरी श्रृंखला – यह टेम्पलेट DNA के बंध स्थापित कर अनुलेखन क्रिया में सहायता करती है।.

5. सिग्मा (σ) कारक क्रोड एन्जाइम के साथ सम्बद्ध होकर इसे सक्रिय बनाने का काम करता है। यह DNA के वर्धक या प्रमोटर स्थल को पहचान करके क्रोड RNA पॉलीमरेज को इसके साथ जोड़ता है एवं अनुलेखन का समारंभ ( initiation) करने में सक्रिय भाग लेता है ।

6. RNA के संवर्धन में (DNA से अनुलेखन की क्रिया में), क्रोड RNA पॉलीमरेज का सिग्मा कारक से सम्बद्ध (bind) होकर सक्रिय हो जाता है । वर्धक स्थल (promotor site ) पर सिग्मा युक्त RNA पॉलीमरेज का बन्धन हो जाता है। इस स्थान से DNA रज्जुक खुल जाता है। दोनों रज्जुकों की पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलायें खुलकर अलग हो जाती हैं। दोनों रज्जुकों में से केवल एक रज्जुक (प्रधान रज्जुक) पर ही संदेशवाहक RNA अणु का निर्माण होता है।
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7. प्रधान रज्जुक फर्मों की भांति काम करता है। प्रधान रज्जुक के क्षारक क्रमों के अनुसार RNA रज्जुक पर क्षारक आते जाते हैं। इस प्रकार RNA श्रृंखला का निर्माण होता जाता है व RNA पॉलीमरेज आगे बढ़ता चला जाता है और अन्त में एक विशेष कारक (रो-p-कारक ) की उपस्थिति में समापन (termination) हो जाता है तथा पॉलीमरेज अलग हो जाता है। इस प्रकार RNA रज्जुक का निर्माण पूरा हो जाता है।

यूकेरियोट्स में अनुलेखन (Transcription in Eukaryotes)-
1. यूकेरियोट्स में तीन प्रकार के पॉलीमरेज होते हैं। इनमें से एक केन्द्रक में होता है तथा इसे RNA पॉलीमरेज – I या RNA पॉलीमरेज (A) कहते हैं। यह राइबोसोमल RNA (285, 18S व 5.8S) को अनुलेखित करता है ।

2. दूसरा RNA पॉलीमरेज केन्द्रकद्रव्य ( Nucleoplasm ) में पाया जाता है। इसे RNA पॉलीमरेज- II या RNA पॉलीमेरज B कहा जाता है। यह hn RNA ( heterogenous nuclear RNA ) के संश्लेषण हेतु उत्तरदायी होता है।

3. तीसरा RNA पॉलीमरेज भी केन्द्रकद्रव्य में ही पाया जाता है। इसे RNA पॉलीमरेज -III कहते हैं जो 5sr RNA व छोटे केन्द्रकीय RNA (snRNA) तथा t. RNA के संश्लेषण के लिये उत्तरदायी होता है।
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4. यूकेरियोट्स में अधिकतर जीन्स विभक्त या स्पिलिट जीन (Split gene) होते हैं। इन खण्डों में संबंधित प्रोटीन अणुओं के संश्लेषण की संकेत सूचना होती है। इन खण्डों को एक्सॉन्स ( exons) कहते हैं। एक्सॉन्स के बीच-बीच में निष्क्रिय DNA के खण्ड होते हैं, जिनमें प्रोटीन अणुओं को संश्लेषण की संकेत सूचना नहीं होती है। DNA के इन निष्क्रिय खण्डों को इन्ट्रॉन्स ( introns) कहते हैं। अनुलेखन क्रिया दोनों ही प्रकार के खण्डों की होती है। अतः इस प्रकार के RNA अणु को प्राथमिक प्रतिलिपि या विषमांगी केन्द्रकीय RNA ( heterogenous nuclear RNA=hnRNA ) कहते हैं।

5. hnRNA अणु को एन्जाइम्स द्वारा पहले एक्सॉन्स तथा इन्ट्रान्स की प्रतिलिपियों में तोड़ा जाता है और इसके बाद केवल एक्सॉन्स की प्रतिलिपियों को संयोजित करके वास्तविक और परिपक्व RNA अणु का निर्माण किया जाता है। इस प्रक्रिया को RNA अणुओं का संसाधन (Processing) या समबंधन ( Splicing) कहते हैं ।

hnRNA में आच्छादन (Capping) व पुच्छन (Tailing) की. अतिरिक्त क्रियाएँ भी होती हैं। आच्छादन के दौरान एक असाधारण न्यूक्लियोटाइड मीथाइल ग्वानोसीन ट्राइफास्फेट hnRNA के 5′ सिरे से जुड़ जाता है व पुच्छन में 200-300 एडीनायलेट अवशेष ( Adenylate residue) hnRNA टेम्पलेट के 3′ सिरे पर स्वतन्त्र रूप से जुड़ जाते हैं।

अब यह पूर्णरूप से संसाधित (Processed) hnRNA या m. RNA कहलाता है व ट्रांसलेशन की क्रिया के लिये केन्द्रक से बाहर स्थानान्तरित हो जाता है। यूकेरियोट्स में अनुलेखन प्रक्रिया में व्याप्त जटिलतायें व विभक्त जीन व्यवस्था (Split gene arrangement) जीनोम के आद्य लक्षण (Primitive character) को दर्शाते हैं।

प्रश्न 20
अर्थ- संरक्षी प्रतिकृति से आपका क्या तात्पर्य है? DNA में अर्ध-संरक्षी प्रतिकृतियन की क्रिया होती है, को प्रमाणित करने के लिए मैथ्यू मेसेल्सन तथा फ्रैंकलिन स्टाल द्वारा किये गये प्रयोग का वर्णन कीजिए। अर्थ- संरक्षी DNA प्रकृतियन प्रतिरूप का चित्र बनाइए।
उत्तर:
जब कोई कोशिका वृद्धि की अधिकतम सीमा तक पहुँच जाती है तो उसके बाद विभाजन के लिये तैयार होती है, इसमें DNA का द्विगुणन भी होता है। सभी जीवों के सम्पूर्ण जीवन चक्र में आनुवंशिक पदार्थ अर्थात् DNA-की बारंबार प्रतिकृति होती है। प्रतिकृति के फलस्वरूप संतति कोशिकाओं में DNA की हूबहू प्रतिलिपियाँ प्राप्त होती हैं।

यद्यपि प्रतिकृति क्रिया के दौरान किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होती है परन्तु थोड़ी बहुत ज्रुटि होनी भी चाहिये जिससे उत्परिवर्तन होते रहें। इन उत्परिवर्तनों के फलस्वरूप आनुवंशिक विविधता होती रहती है जो कि जैविक विकास हेतु आवश्यक है।
1. सभी जैविक अणुओं में केवल DNA अणु ही स्वद्विगुणन (Self-duplication) करने में सक्षम होते हैं। DNA स्वद्विगुणन की प्रक्रिया को प्रतिकृतिकरण या रेप्लिकेशन (replication) कहते हैं।

2. सुकेन्द्रीय कोशिकाओं (Eucaryotic cells) में यह प्रतिकृतिकरण कोशिका चक्र की अन्तरालवस्था (interphase) की S-प्रावस्था (synthesis phase) में होती है । प्रतिकृतिकरण की क्रिया केन्द्रक के अन्दर होती है।

3. DNA का प्रतिकृतिकरण तीन प्रकार से हो सकता है-परिक्षेपी (Dispersive), संरक्षी (Conservative) तथा अर्ध-संरक्षी (Semi-conservative) । परन्तु DNA का प्रतिकृतिकरण अर्ध-संरक्षी विधि से ही होता है, इसके अनेक साक्ष्य प्राप्त किये जा चुके हैं।

4. अर्ध-संरक्षी विधि में DNA के दोनों रज्जुक अलग होकर सांचे (Templete) के रूप में कार्यकर नये पूरक रज्जुकों का निर्माण करते हैं। प्रतिकृति के पूर्ण होने पर जो DNA अणु बनता है उसमें एक पैतृक व एक नई निर्मित लड़ी रज्जुक होती है।

प्रायोगिक प्रमाण (Experimental evidence)-
1. यह सिद्ध हो चुका है कि DNA का अर्ध-संरक्षी विधि से प्रतिकृति होती है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम जानकारी इस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) से प्राप्त हुई।

2. मैथ्यू मेसेल्सन व फ्रेंकलिन स्टाल (Mathew Meselson and Franklin Stahl) ने 1958 में जीवाणु ई.कोलाई (E.coli) में DNA द्विगुणन की पुष्टि की थी। जबकि टेलर (Taylor) ने 1957 में यूकेरियोटिक DNA के अर्ध-संरक्षी द्विगुणन को सर्वप्रथम बताया था।
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वाटसन तथा क्रिक (Watson and Crick) ने DNA के द्विरज्जुक (Double helix ) का मॉडल प्रस्तुत करते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि DNA का द्विगुणन या प्रतिकृतिकरण अर्द्ध संरक्षी होगा।

मेसेल्सन व स्टाल का प्रयोग (Experiments of Meselson and Stahl) –
1. इन्होंने मानव की आन्त्र में पाये जाने वाले ई-कोलाई को ऐसे संवर्धन माध्यम में विकसित किया जिसमें 15NH4 CI (15N नाइट्रोजन का भारी समस्थानिक है, यह सामान्य 14N नाइट्रोजन अणु से भारी होता है। नाइट्रोजन का स्रोत होता है। इसी संवर्धन माध्यम में इन जीवाणुओं को कई पीढ़ियों तक पुनरुत्पादन करने दिया गया।

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2. जब इन जीवाणुओं के DNA का अध्ययन किया गया तो यह पाया गया कि इनके प्यूरीन्स तथा पिरीमिडिन्स ( Purine and Pyrimidines) में 14N के स्थान पर 15N नाइट्रोजन के आइसोटोप या समस्थानिक थे।

3. इस भारी DNA (15N युक्त) अणु को सामान्य DNA (14N) से सोडियम क्लोराइड के घनत्व प्रवणता में अपकेंद्रीकरण (Cen trifugation) करने से अलग कर सकते हैं। इसके बाद तत्कालीन जीवाणु संतति (15N) को उस माध्यम में स्थानान्तरित कर दिया गया जिसमें नाइट्रोजन स्रोत में नाइट्रोजन का
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सामान्य आइसोटोप 14N उपस्थित था। इस आइसोटोप का घनत्व 15N से कम होता है। तदुपरान्त DNA को विलगित करके आल्ट्रासेन्ट्रीफ्यूगेशन द्वारा (सीजियम क्लोराइड घनत्व प्रवणता पर) उसका घनत्व ज्ञात किया तो यह पाया गया कि प्रथम विभाजन चक्र के बाद संकर DNA अणु को व्यक्त करने वाली केवल एक ही घनत्व की पट्टी प्राप्त हुई थी जिसमें एक श्रृंखला 14N नाइट्रोजन द्वारा तथा दूसरी 15N नाइट्रोजन द्वारा अंकित थी ।

4. इसी प्रकार दूसरे विभाजन चक्र के बाद (ई. कोलाई 20 मिनट में विभाजित होता है, प्रत्येक 20 मिनट बाद नई पीढ़ी बनती है DNA को व्यक्त करने के लिये दो घनत्व पट्टियाँ दिखाई दीं। पहली में दो DNA द्विक कुण्डलों में 15N नाइट्रोजन तथा दूसरी दो में संकर DNA अणु के लिये थी ।

5. संकर DNA अणु में उन्होंने पाया कि दोनों श्रृंखलाओं में परिणामस्वरूप इस अणु का घनत्व 15N वाले DNA तथा 14N वाले DNA अणु के घनत्व के बीच का था। इस प्रयोग द्वारा उन्होंने सिद्ध किया कि DNA की प्रतिकृति अर्ध-संरक्षी विधि से होती है।
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6. इसी प्रकार का प्रयोग टेलर (Taylor) व उनके सहयोगियों ने 1958 में विसिया फाबा (Vicia faba) की मूलाग्र कोशिकाओं पर रेडियोएक्टिव थाइमीडिन का प्रयोग करके किया था । इन्होंने सिद्ध किया कि DNA अर्ध-संरक्षी विधि द्वारा प्रतिकृत होता है।

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DNA द्विगुणन की कार्य प्रणाली व एंजाइम (Mechanism of DNA duplication and Enzymes)-
द्विगुणन प्रक्रिया में प्रत्येक रज्जुक (Strand) का निर्माण 53′ दिशा में बढ़ता है। अतः अलग होने वाले दोनों रज्जुओं पर विपरीत दिशा में नये रज्जुओं के बनने की विधि भिन्न-भिन्न होती है-
(i) 3→5′ दिशा वाले रज्जुक पर श्रृंखला का सतत निर्माण (continuous synthesis) होता है।

(ii) 5’→3′ दिशा वाले रज्जुक पर यह निर्माण असतत तथा छोटे-छोटे भागों में होता है।

इन छोटे-छोटे टुकड़ों को ओकाजाकी खण्ड (Okazaki segments) कहते हैं। बाद में ये खण्ड फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध ( Phosphodiester bond) बनाकर DNA लाइगेज (DNA ligase) एन्जाइम की उपस्थिति में आपस में मिलकर सूत्र बनाते हैं। उपरोक्त क्रियाओं के प्रत्येक चरण को चलाने के लिये निश्चित प्रोटीन्स तथा एन्जाइम होते हैं। सभी एन्जाइम एक एन्जाइम तन्त्र के रूप में होते हैं। इसे रेप्लीसोम ( Replisome) कहते हैं। DNA द्विगुणन अग्र चरणों में होता है-

(i) समारम्भन बिन्दु का अभिज्ञान ( Recognition of initiation point)-जिस स्थान से DNA द्विगुणन का प्रारम्भ होता है, उस स्थान को प्रारम्भन का स्थान (Initiation site) कहते हैं। प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में द्विगुणन प्रारम्भ होने का केवल एक ही बिन्दु होता है, जबकि यूकेरियोटिक कोशिकाओं में DNA अणु में अनेक स्थानों पर एक साथ द्विगुणन प्रारम्भ होता है।

(ii) दोहरे हेलिक्स का खुलना (Unwinding of double helix)-एन्जाइम हेलीकेज (Helicase) DNA के रज्जुकों को खोलने का कार्य करता है। जब रज्जुक खुल जाते हैं, तब एन्जाइम 5 टोपो आइसोमरेज (Topoisomerase) या DNA गाइरेज की सहायता से रज्जुक कट जाता है जिससे कुण्डलित DNA का तनाव समाप्त हो जाता है।

हेलिक्स डीस्टैबिलाइजिंग प्रोटीन (Helix destabilizing protein) अलग हुए रज्जुकों को अलग ही बनाए रखने में सहायक होता है। दोहरे हेलिक्स के खुलने के कारण एक Y के आकार की प्रतिकृति द्विशाख (Replication fork) जैसी रचना बन जाती है।

(iii) न्यूक्लियोसाइड्स का सक्रियकरण (Activation of nucleosides)-केन्द्रकद्रव्य में उपस्थित न्यूक्लियोसाइड फॉस्फोरिलेज (Phosphorylase) एन्जाइम तथा ATP की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को फॉस्फोरिलेशन ( Phosphorylation) कहते हैं।

(iv) R.N.A. प्राइमर का निर्माण (Formation of RNA Primer) – DNA टेम्पलेट ( DNA Template) पर पहले RNA का एक छोटा टुकड़ा स्थित होता है। इसे RNA प्राइमर कहते हैं। RNA प्राइमर का निर्माण प्राइमेज (Primase) एन्जाइम या RNA पॉलीमरेज (RNA Polymerase) की सहायता से होता है।

(v) DNA श्रृंखला का निर्माण तथा लम्बा होना (Formation of DNA Chain and elongation of Chain)- DNA पॉलीमरेज III (DNA Polymerase III) या रेप्लिकेज ( Replicase) एन्जाइम R. N.A. प्राइमर में 5→3′ दिशा में नए क्षारकों को जोड़ता है। इन क्षारकों का क्रम DNA टेम्प्लेट के अनुसार होता है। DNA के दोनों रज्जुक प्रति समानान्तर होते हैं अर्थात् एक रज्जुक की दिशा 5→3′ होती है और दूसरे रज्जुक की दिशा 3’5′ होती है।
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एन्जाइम DNA पॉलीमरेज III क्षारकों को केवल 5→3′ दिशा में ही जोड़ सकता है; अतः 3→5 दिशा वाले रज्जुक (टेम्पलेट) पर DNA श्रृंखला का सतत् निर्माण होता है। जिस रज्जुक का निर्माण सतत् होता है, उसे अग्रक रज्जुक (Leading Strand) कहते हैं। जिस रज्जुक का निर्माण 3’5′ दिशा में होता है अर्थात् 5’3′ दिशा वाले पितृ रज्जुक (टेम्पलेट) पर होता है, यह लगातार नहीं होता।

छोटे-छोटे टुकड़ों का निर्माण होता है जिन्हें ओकाजाकी खण्ड (Okazaki segments) कहते हैं। इन टुकड़ों को एन्जाइम DNA लाइगेज (Ligase) की सहायता से जोड़ा जाता है। इस प्रकार 35′ दिशा वाले रज्जुक का निर्माण असतत् (Discontinuous ) होता है। इस रज्जुक को पश्चगामी पुत्री रज्जुक (Lagging daughter strand) कहते हैं। DNA द्विगुणन के साथ ही DNA अणु का दोहरा कुण्डल आगे की ओर खुलता चला जाता है।

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(vi) RNA प्राइमर का हटना ( Removal of RNA Primer)-DNA श्रृंखला की लम्बाई बढ़ जाने के बाद RNA प्राइमर श्रृंखला से हट जाता है। एन्जाइम आर. एन. ऐज एच (R.N. Aas H) की सहायता से RNA प्राइमर को DNA श्रृंखला से हटाया जाता है। RNA प्राइमर के हटने से उत्पन्न रिक्त स्थान को भरने में एन्जाइम DNA पॉलीमरेज I सहायता करता है।

(vii) DNA द्विगुणन का अन्त (Termination of DNA Replication)-जब DNA निर्माण पूर्ण हो जाता है, तब एक टर्मिनेशन बाइंडिंग प्रोटीन (Termination binding protein) एन्जाइम DNA हेलीकेज (DNA Helicase) की क्रिया को रोक देता है। DNA द्विगुणन का अन्त टर्मिनेशन जोन (Termination Zone) में पहुँचने पर या दूसरी ओर के द्विगुणन बिन्दु से मिलने पर होता है ।

प्रश्न 21.
पुनरावृत्ति DNA किसे कहते हैं ? अल्फ्रेड हर्षे तथा मार्थांचेज के प्रयोग को सचित्र समझाइये कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है’।
उत्तर:
DNA फिंगरप्रिन्ट के लिये DNA अनुक्रम में कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विभिन्नता का पता लगाते हैं। इन स्थानों पर DNA का छोटा भाग कई बार पुनरावृत्त (repeated) होता है। उसे पुनरावृत्ति DNA कहते हैं।
आनुवंशिक पदार्थ DNA है (DNA is Genetic material)-
ए.डी. हर्षे (A.D. Hershey) तथा एम.जे. चेज (M.J. Chase) ने सन् 1952 में विषाणु T2 भोजी (बेक्टिरियोफेज; Bacteriophage) पर प्रयोग करके यह परिणाम निकाला कि DNA आनुवंशिक पदार्थ है, क्योंकि इस क्रिया में संक्रमण करने वाले भोजी का केवल DNA अंश ही परपोषी जीवाणु कोशिका में प्रवेश करता है। वही आनुवंशिक सूचनाओं का वहन करता है जिससे नई भोजी सन्तानें बनती हैं।
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– इन वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में रेडियोएविटव सल्फर S35 तथा रेडियोएक्टिव फॉस्फोरस P32 बुक्त माध्यम पर उगाकर जीवाणुभोजी DNA को रेडियोएक्टिव बना दिया, क्योंकि जीवाणुभोजी कणों के प्रोटीन में फॉस्फोरस नहीं होता है, किन्तु DNA में फॉस्फोरस होता है इसलिए केवल DNA ही रेडियोएक्टिव फॉस्फोरस द्वारा अंकित होता है।

इसी प्रकार जीवाणुभोजी प्रोटीन में ही सल्फर पाया जाता है। जिसे उन्होंने रेडियोएक्टिव सल्फर (S35) द्वारा अंकित कर दिया। इस प्रकार के विभेदी अंकन द्वारा जीवाणुभोजी के DNA व प्रोटीन घटकों को बिना किसी रासायनिक परीक्षण के सरलता से अलग-अलग पहचानना सम्भव हो पाया।

हर्षे व चेज ने इन अंकित जीवाणुभोजी कणों से अलग-अलग जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित कराया तो, उन्ह्रोंने पाया कि केवल रेडियोएक्टिव (P32) ही जीवाणवीय कोशिकाओं के साथ सम्बद्ध था, किन्तु रेंयोएक्टिव S35 का नहीं था, इन प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हुआ कि जीवाणवीय कोशिका में केवल DNA ही प्रवेश करता है न कि प्रोटीन।

प्रोटीन आवरण परपोषी के बाहर ही रह जाता है तथा DNA ही प्रवेश करने के बाद अपने समान नये जीवाणुभोजी कणों का संश्लेषण करता है। हर्षें तथा चेज के इस प्रयोग द्वारा और अधिक स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो गया कि DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है।

आनुवंशिक पदार्थ के गुण (Characteristics of Genetic material)-
(i) उपरोक्त प्रयोगों से यह स्पष्ट है कि DNA आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है परन्तु कुछ विषाणुओं में RNA आनुवंशिक पदार्थ होता है, उदाहरण-टोबैको मोजेक वाइरस (TMV), क्यूबीटा बैक्टिरियोफेज आदि।

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(ii) वह अणु जो आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है वह निम्न मापदंडों को निश्चित रूप से पूरा करता है-
(क) यह अपनी प्रतिकृति बनाने में सक्षम होता है।
(ख) इसे संरचना व रासायनिक संगठन के आधार पर स्थिर होना चाहिए।
(ग) इसमें धीमी गति से उत्परिवर्तन होते हैं, यह विकास हेतु आवश्यक है।
(घ) इसे स्वयं ‘मेंडल के लक्षण’ के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए।

(iii) सजीव तंत्र में जितने अणु पाये जाते हैं उनमें प्रतिकृति की क्षमता नर्हीं होती है परन्तु दोनों न्यूक्लिक अम्लों (DNA \& RNA) में यह क्षमता होती है।

(iv) आनुवंशिक पदार्थ स्थायी होता है, जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में आने वाले परिवर्तनों का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता है जैसे प्रिफिथ के ‘रूपान्तरित कारक’ से स्पष्ट है कि ताप से जीवाणु की मृत्यु हो जाती है परन्तु आनुर्वंशिक पदार्थ की कुछ विशेष्ताएँ नष्ट नहीं हो पाती हैं।

(v) DNA के दोनों रू्जुक एक-दूसरे के पूरक होते हैं जो गर्म करने पर एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं परन्तु पुन: उचित परिस्थिति के आने पर एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। RNA के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड पर 2 -हाइड्राक्सिल समूह मिलता है। यह एक क्रियाशील समूह है जिसके कारण RNA अस्थिर व आसानी से विखंडित हो जाता है। इस कारण DNA रासायनिक संगठन की दृष्टि से कम सक्रिय व संरचनात्मक दृष्टि से अधिक स्थायी होता है। अतः दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्लों में से DNA एक अच्च्छा आनुर्वंशिक पदार्थ है।

(vi) DNA में यूरेसील के स्थान पर थाइमीन होने से उसमें. अधिक स्थायित्व होता है।

(vii) दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल उत्परिवर्तित हो सकते हैं। RNA अस्थायी व तीव्र गति से उत्परिवर्तित होता है। यही कारण है कि विषाणुओं में RNA होने से इनकी जीवन अवधि छोटी व तेजी से उत्परिवर्तित होने वाली होती है।

(viii) RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये सीधे कूटलेखन करते हैं, इसी कारण वे आसानी से लक्षण व्यक्त करते हैं। जबकि DNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये RNA पर निर्भर है।

(ix) अत: DNA व RNA दोनों अनुर्वंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं। DNA के अधिक स्थायी होने से वह आनुर्वंशिक सूचनाओं के संचय हेतु अधिक उपयोगी है तथा RNA आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानान्तरण हेतु डपयुक्त है।

प्रश्न 22.
द्विकुंडली DNA की संरचना की कोई चार मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(i) यह दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है जिसका आधार शर्करा- फॉस्फेट का बना होता है व क्षार भीतर की ओर प्रक्षेपी होते हैं।

(ii) दोनों श्रृंखलाएँ प्रति समानांतर ध्रुवणता रखती हैं। इसका मतलब एक श्रृंखला की ध्रुवणता 5 से 3′ की ओर हो तो दूसरी की ध्रुवणता 3′ से 5′ की तरह होगी।

(iii) दोनों रज्जुकों के क्षार आपस में हाइड्रोजन बंध द्वारा युग्मित होकर क्षार युग्मक बनाते हैं। एडेनिन व थाइमिन जो विपरीत रज्जुकों में होते हैं, आपस में दो हाइड्रोजन बंध बनाते हैं। ठीक इसी तरह से ग्वानीन, साइटोसीन से तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा बंधा रहता है जिसके फलस्वरूप सदैव प्यूरीन के विपरीत दिशा में पिरिमीडीन होता है। इससे कुंडली के दोनों रज्जुकों के बीच लगभग समान दूरी बनी रहती है ।

(iv) दोनों श्रृंखलाएँ दक्षिणवर्ती कुंडलित होती हैं। कुंडली का पिच 3.4 नैनोमीटर व प्रत्येक घुमाव में लगभग 10 क्षार युग्मक मिलते हैं। परिणामस्वरूप एक कुंडली में एक क्षार युग्मक के बीच लगभग 0.34 नैनोमीटर की दूरी होती है ।

प्रश्न 23.
न्यूक्लियोसोम किसे कहते हैं? डीएनए कुंडली का पैकेजिंग समझाइए। न्यूक्लियोसोम का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
यदि DNA द्विकुंडली की लम्बाई की गणना की जाए तो यह लम्बाई काफी अधिक होती है परन्तु जीवों में DNA कुंडली का विशेष पैकेजिंग होता है जो न्यूक्लियोसोम के रूप में होता है। यूकैरियोटिक गुणसूत्रों में 50% अधिक प्रोटीन होती है जो DNA तथा RNA के संश्लेषण से सम्बन्धित होती है परन्तु इनमें से एक बड़ा भाग हिस्टोन का होता है।

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हिस्टोन्स धनात्मक आवेशित क्षारीय प्रोटीन का समूह होता है। हिस्टोन्स में क्षारीय एमीनो अम्लीय लाइसीन व आरजीनीन अधिक मात्रा में मिलते हैं। दोनों एमीनो अम्ल की पार्श्व श्रृंखलाओं पर धनात्मक आवेश होता है। हिस्टोन व्यवस्थित होकर आठ हिस्टोन अणुओं की एक इकाई बनाता है जिसे हिस्टोन अष्टक कहते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

धनात्मक आवेशित हिस्टोन अष्टक चारों तरफ से ऋणात्मक आवेशित DNA से सटा होता है जिसे न्यूक्लियोसोम कहते हैं। एक प्रारूपी न्यूक्लियोसोम 200 क्षार युग्म की DNA कुंडली होती है । प्रत्येक हिस्टोन अष्टक में H2A, H2B, H3 तथा H के दो-दो अणु होते हैं। न्यूक्लियोसोम संयोजक DNA (linker DNA)

द्वारा एक- दूसरे से जुड़े होते हैं तथा क्रोमेटीन डोरी पर लगभग छ: न्यूक्लियोसोम मिलकर सोलेनायड का निर्माण करते हैं। केन्द्रक में मिलने वाला क्रोमेटीन एक धागे के जैसा होता है तथा इस डोरी पर धूक्लियोसोम गोल मणियों के जैसे दिखाई देते हैं ।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
आनुवंशिक कूट क्या हैं? इनकी चार विशेषताएँ लिखिए। tRNA का चित्र बनाइए ।
उत्तर:
सजीवों की कोशिकाओं में विभिन्न 20 प्रकार के अमीनो अम्ल होते हैं। प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में अमीनो अम्लों का निश्चित क्रम m. RNA पर उपस्थित चार नाइट्रोजनी क्षारकों (A, G, C, U) के क्रम पर निर्भर रहता है। अतः m. RNA के चार क्षारकों के क्रम व 20 अमीनो अम्लों के बीच आनुवंशिक सूचना के संचरण को ही आनुवंशिक कूट कहते हैं। आनुवंशिक कूट के विषय में जानकारी देने का श्रेय

नीरेनबर्ग (Nirenberg, 1961 ) व उनके सहयोगियों को है। आनुवंशिक कूट की विशेषताएँ-

1. कोड के अक्षर ( Code letters) – m. RNA पर चार क्षार होते हैं अतः ये अक्षर A, G, U, C हैं।

2. कोड शब्द (Code words ) – A, G, U, C चार अक्षरों से त्रिक कोड अनुसार 64 शब्द बनते हैं, इन्हें कोडोन (Codon) कहते हैं। गैमो (Gammow, 1959 ) के अनुसार आनुवंशिक कोड तीन अक्षरों का होता है। कुल 64 कोडोनों में 61 कोड तो 20 अमीनो अम्लों को कोडित करने तथा शेष 03 किसी भी अमीनो अम्ल को कोडित नहीं करते। अतः ये निरर्थक कोडोन (nonsense codon) होते हैं।

3. पठन दिशा (Reading Direction ) – m. RNA के ऊपर आनुवंशिक कोड का पठन 5 से 3′ दिशा की ओर होता है।

4. प्रारम्भी कोडोन (Initiation Codon ) – प्राय m. RNA के प्रारम्भ में 5′ सिरे पर AUG कोडोन पाया जाता है, इसे प्रारम्भी कोडोन कहते हैं। यह कोड मेथियोनीन अमीनो अम्ल को कोडित करता है।

प्रश्न 2.
मानव जीनोम परियोजना क्या है? मानव जीनोम परियोजना की विशेषताएँ लिखिए। मानव जीनोम परियोजना का निरूपक आरेख दीजिए।
उत्तर:
मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project HGP) को जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि जीनोम क्या है। किसी भी जीव की जीनी संरचना उसका जीनोम कहलाता है और क्योंकि जीन गुणसूत्रों पर पाये जाते हैं इसलिये गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चयी (Haploid set ) को जीनोम कहते हैं।

सन्तान को अपने जनकों (Parents) से जो गुणसूत्र प्राप्त होते हैं उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंश DNA है। इस DNA के एक खण्ड को जिसमें आनुवंशिक कूट निहित होता है, उसे वैज्ञानिक ‘जीन’ कहते हैं। अतः किसी भी जीव की आनुवंशिक व्यवस्था उसके DNA में मिलने वाले अनुक्रम से निर्धारित होती है।

दो विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाला DNA अनुक्रम कुछ जगहों पर भिन्न-भिन्न होता है। सन् 1990 में मानव जीनोम के अनुक्रमों को ज्ञात करने के लिए यह योजना प्रारम्भ की गई। – मानव जीनोम परियोजना मानव जीनोम की मुख्य विशेषताएँ-
में निम्न मुख्य विशेषताएँ हैं-

  • मानव जीनोम में 3164.7 करोड़ न्यूक्लियोटाइड क्षार हैं।
  • औसतन जीन में 3000 क्षार होते हैं परन्तु इनके आकार में विभिन्नताएँ मिलती हैं। मानव में ज्ञात सबसे बड़ी जीन डिस्ट्रॉफिन (Dystrophin) में 24 करोड़ क्षार होते हैं।
  • कुछ जीनों की संख्या 30,000 होती है तथा लगभग सभी व्यक्तियों में मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड क्षार एकसमान होते हैं।
  • दो प्रतिशत से कम जीनोम प्रोटीन का कूटलेखन करते हैं।
  • मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्ति अनुक्रम द्वारा होता है।
  • पुनरावृत्ति अनुक्रम डीएनए के फैले हुए भाग हैं जिनकी कभी-कभी सौ से हजार बार पुनरावृत्ति होती है। जिनके बारे में यह विचार है कि इनका सीधा कूटलेखन में कोई कार्य नहीं है लेकिन इनसे गुणसूत्र की संरचना, गतिकीय व विकास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
  • गुणसूत्र | में सर्वाधिक जीन (2968) व Y गुणसूत्र में सबसे कम जीन (231) मिलते हैं।
  • वैज्ञानिकों ने मानव में लगभग 14 करोड़ जगहों पर अलग इकहरा क्षार (SNPs – एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता; सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमारफीजम; जिसे ‘स्निप्स’ कहा जाता है) का पता लगाया । उपरोक्त जानकारी से गुणसूत्रों में उन जगहों जो रोग आधारित अनुक्रम मानव इतिहास का पता लगाने में सहायक हैं, के विषय में जानकारी एकत्र करने में अधिक सहयोग प्रदान किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

1. ट्रांसलेशन (अनुवादन/ स्थानान्तरण) की प्रथम अवस्था कौनसी होती है ? (NEET-2020)
(अ) डी. एन. ए. अणु की पहचान
(ब) tRNA का एमीनोएसीलेशन
(स) एक एन्टी-कोडॉन की पहचान
(द) राइबोसोम से mRNA का बंधन
उत्तर:
(ब) tRNA का एमीनोएसीलेशन

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2. निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है (NEET 2020 )
(अ) एडीनीन एक H-बंध के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।
(ब) एडीनीन तीन H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है
(स) एडीनीन थायमीन के साथ युग्म नहीं बनाता है
(द) एडीनीन दो H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।
उत्तर:
(द) एडीनीन दो H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।

3. यदि दो लगातार क्षार युग्मों के बीच की दूरी 0.34 nm है और एक स्तनपायी कोशिका की DNA द्विकुण्डली में क्षार युग्मों की कुल संख्या 6.6 x 10 bp है। (NEET-2020)
(अ) 2.5 मीटर
(ब) 2.2 मीटर
(स) 2.7 मीटर
(द) 2.0 मीटर
उत्तर:
(ब) 2.2 मीटर

4. अनुलेखन के समय डी.एन.ए. की कुण्डली को खोलने में कौनसा एंजाइम मदद करता है? (NEET-2020)
(अ) डी.एन.ए. . हैलीकेज
(ब) डी. एन. ए. पॉलिमरेज
(स) आर. एन. ए. पॉलिमरेज
(द) डी.एन.ए. लाइगेज
उत्तर:
(स) आर. एन. ए. पॉलिमरेज

5. डी.एन.ए. एवं आर. एन. ए. दोनों में पाये जाने वाले प्यूरीन कौनसे हैं ? (NEET-2019)
(अ) साइटोसिन और थाईमीन
(ब) एडेनीन और थाईमीन
(स) ऐडेनीन और ग्वानीन
(द) ग्वानीन और साइटोसीन
उत्तर:
(स) ऐडेनीन और ग्वानीन

6. व्यक्त अनुक्रम घुंडी (ई.एस.टी.) का क्या तात्पर्य है? (NEET-2019)
(अ) नूतन डी.एन.ए. अनुक्रम
(ब) आर. एन. ए. रूप में जीनों का अभिव्यक्त होना
(स) पॉलिपेप्टाइड अभिव्यक्ति
(द) डी. एन. ए. बहुरूपता ।
उत्तर:
(ब) आर. एन. ए. रूप में जीनों का अभिव्यक्त होना

7. बहुत से राइबोसोम एक mRNA से संबद्ध होकर एक साथ पॉलिपेप्टाइड की प्रतियाँ बनाते हैं। राइबोसोम की ऐसी श्रृंखलाओं को क्या कहते हैं?(NEET-2018)
(अ) प्लस्टिडोम
(स) बहुसूत्र
(ब) बहुतलीय पिण्ड
(द) केन्द्रिकाय
उत्तर:
(स) बहुसूत्र

8. डी.एन.ए. एक आनुवंशिक पदार्थ है? इसका अंतिम प्रमाण किसके प्रयोग से आया ? (NEET-2017)
(अ) ग्रिफिथ
(ब) हर्शे और चेस
(स) अवरी मैकलॉड और मैककार्टी
(द) हरगोविन्द खुराना
उत्तर:
(ब) हर्शे और चेस

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9. निम्नलिखित में से कौन संरचनात्मक जीन के समान है ? (NEET-2016)
(अ) ओपेरॉन
(ब) रिकॉन
(स) म्यूटान
(द) सिस्टॉन
उत्तर:
(द) सिस्टॉन

10. निम्नलिखित में से कौनसा RNA पर लागू नहीं होता ? (NEET-2015)
(अ) 5 फास्फोरिल और 3 हाइड्रोक्सिल सिरे
(ब) विषम चक्रीय नाइट्रोजीनी बेस
(स) चारगॉफ नियम
(द) सम्पूरक बेस युग्मन
उत्तर:
(स) चारगॉफ नियम

11. दिया गया आलेख DNA के आनुवांशिक विचार को महत्त्वपूर्ण संकल्पना दर्शाता है। रिक्त स्थानों (A से लेकर C तक) की पूर्ति कीजिए- (NEET-2013)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 17
(अ) A – अनुलेखन B – प्रतिकृतिय C – इरविन चारगॉफ
(ब) A – ट्रांसलेशन B – अनुलेखन C – इरविन चारगॉफ
(स) A – अनुलेखन B – ट्रांसलेशन C – फ्रांसिस क्रिक
(द) A – ट्रांसलेशन B – विस्तार C – रोजेलिन फ्रैंकलिन
उत्तर:
(ब) A – ट्रांसलेशन B – अनुलेखन C – इरविन चारगॉफ

12. यदि DNA के एक रज्जुक के नाइट्रोजनी क्षारकों का अनुक्रम ATCTG है तो उसके पूरक RNA रज्जुक में क्या अनुक्रम होगा? (NEET-2012)
(अ) TTAGU
(ब) UAGAC
(स) AACTG
(द) ATCGU
उत्तर:
(स) AACTG

13. जीव विज्ञान के इतिहास में मानव जीनोम प्रोजेक्ट के अधीन किसका विकास किया गया ? (Mains-2011)
(अ) बायोस्टिमेटिक
(ब) जैव प्रौद्योगिक
(स) बायोमॉनिटरिंग
(द) जैव सूचनिकी
उत्तर:
(द) जैव सूचनिकी

14. निम्नलिखित में से कौनसा एक है जिसमें आण्विक जीवविज्ञान के सेन्ट्रल-डोरमा का अनुसरण नहीं होता? (NEET-2010)
(अ) म्यूकर
(ब) स्लेमाइडोमोनास
(स) HIV
(द) मटर
उत्तर:
(अ) म्यूकर

15. DNA की अर्धसंरक्षी प्रतिकृति सर्वप्रथम किसमें प्रदर्शित की गयी थी? (NEET-2009)
(अ) साल्मोनेला टाइफीमुरिम
(ब) ड्रोसोफिला मैलेनोगेस्टर
(स) एशरिशिचया कोलाई
(द) स्ट्रेप्टोकॉकस न्यूमोनी
उत्तर:
(स) एशरिशिचया कोलाई

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

16. DNA अणु के भीतर- (NEET-2008)
(अ) थाइमीन के प्रति ऐडेनीन का अनुपात अलग-अलग जीव में अलग-अलग होता है।
(ब) दो रज्जुक होते हैं जो एक-दूसरे के प्रति समान्तर चलते हैं। एक 53 दिशा में तथा दूसरा 35 दिशा में ।
(स) प्यूरीन न्यूक्लियोटाइडों तथा पाइरिमिडिन न्यूक्लियोटाइडों की सकल मात्रा सदैव बराबर नहीं होती ।
(द) दो रज्जुक होते हैं जो 53 दिशा में समानान्तर चलते हैं।
उत्तर:
(ब) दो रज्जुक होते हैं जो एक-दूसरे के प्रति समान्तर चलते हैं। एक 53 दिशा में तथा दूसरा 35 दिशा में ।

17. DNA के खंडों को जोड़ने का कार्य करने वाला एंजाइम है- (Kerala PMT-2005, 09)
(अ) DNA पॉलीमरेज- I
(स) DNA लाइगेज
(ब) DNA पॉलीमरेज – III
(द) एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(स) DNA लाइगेज

18. लैक ऑपेरॉन परिकल्पना में संरचनात्मक जीन का अनुक्रम होता है- (Karnataka CET-2007)
(अ) Lac-a, Lac-Z, Lac – Y
(ब) Lac-Y, Lac-Z, Lac-a
(स) Lac-a, Lac -Y, Lac Z
(द) Lac Z, Lac -Y, Lac-a
उत्तर:
(द) Lac Z, Lac -Y, Lac-a

19. लैक- ऑपेरॉन मॉडल में रिप्रेशर प्रोटीन किस स्थान से जुड़ता है-
(अ) आपरेटर
(ब) प्रमोटर
(स) रेग्यूलेटर
(द) संरचनात्मक जीन
उत्तर:
(अ) आपरेटर

20. श्रृंखला समापन कोडॉन (Stop Codons) हैं- (Bihar CECE -2006; DPMT-2006)
(अ) AGT, TAG UGA
(ब) GAT, AAT, AGT
(स) TAG TAA, TGA
(द) UAG, UGA, UAA
उत्तर:
(द) UAG, UGA, UAA

21. DNA की प्रतिकृति (replication) होता है- (Haryana PMT-2005)
(अ) 25 दिशा में
(ब) 35 दिशा में
(स) 35 व 53 दोनों दिशाओं में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) 35 व 53 दोनों दिशाओं में

22. RNA में अनुपस्थित तत्व है- (AMU-2005)
(अ) नाइट्रोजन
(ब) सल्फर
(स) ऑक्सीजन
(द) हाइड्रोजन
उत्तर:
(ब) सल्फर

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23. RNA का कौन-सा सर्वाधिक हेटरोजीनस होता है? (Haryana PMT-2005)
(अ) t.RNA
(स) r.RNA
(ब) m. RNA
(द) hn. RNA
उत्तर:
(द) hn. RNA

24. यदि एडिनिन का प्रतिशत 30 है तो ग्वानिन का क्या प्रतिशत होगा- (Haryana PMT-2005)
(अ) 10%
(स) 30%
(ब) 20%
(द) 40%
उत्तर:
(ब) 20%
नोट- क्योंकि A+ G का प्रतिशत 50% के बराबर होता है, प्रकार ग्वानिन का प्रतिशत 20% होता है।

25. ओकाजाकी खण्ड का एक सही क्रम में जुड़ते हैं- (Kerala PMT-2005)
(अ) DNA पॉलीमरेज द्वारा
(ब) DNA लाइगेज द्वारा
(स) RNA पॉलीमरेज द्वारा
(द) प्राइमेज द्वारा
उत्तर:
(द) प्राइमेज द्वारा

नोट- अन्तिम चरण में फास्फोडाईएस्टर बंध के द्वारा ओकाजाकी खण्ड को जोड़ने के लिए लेगिंग स्ट्रेन्ड (lagging strand) के पूर्ण संश्लेषण की आवश्यकता होती है जो DNA लाइगेज के द्वारा पूर्ण होती है।

26. ई. कोलाई DNA के रेप्लीकेशन की विधि होती है- (CPMT-2005)
(अ) संरक्षी और एकदिशीय
(ब) अर्द्धसंरक्षी और एकदिशीय
(स) संरक्षी और द्विदिशीय
(द) अर्द्धसंरक्षी और द्विदिशीय
उत्तर:
(द) अर्द्धसंरक्षी और द्विदिशीय

27. निम्न में से कौन-सा सही नहीं है? (DPMT-2003; Haryana PMT 2005 )
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 21
(ब) A+ T = G+ C
(स) A+G = C + T
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) A+ T = G+ C

28. निम्न में से कौन DNA संश्लेषण हेतु RNA का टेम्पलेट के रूप में प्रयोग होता है- (CBSE PMT-2005)
(अ) रिवर्स ट्रॉन्सक्रिप्टेज
(ब) DNA डिपेन्डेन्ट RNA पॉलीमरेज
(स) DNA पॉलीमरेज
(द) RNA पॉलीमरेज
उत्तर:
(अ) रिवर्स ट्रॉन्सक्रिप्टेज
नोट- टेमिन ओर बाल्टीमोर द्वारा यह ज्ञात किया गया कि RNA टेम्पलेट पर DNA का निर्माण या RNA से भी DNA का निर्माण होता है, इसे रिवर्स ट्रान्सक्रिप्सन या टेमिनिज्म कहते हैं। यह रिवर्स ट्रान्सक्रिप्सन, रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज एन्जाइम के प्रभाव से होता है।

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29. सुपर कोइल्ड ( Super coiled) DNA पाया जाता है- (Wardha-2005)
(अ) प्रोकैरियोट्स व यूकैरियोट्स में
(ब) केवल यूकैरियोट्स में
(स) केवल प्रोकैरियोट्स में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोकैरियोट्स व यूकैरियोट्स में

30. गर्म करने के बाद DNA के विघटन ( Degeneration) का अध्ययन निम्न में से किसकी तुलना करके किया जा सकता है- (Wardha-2005)
(अ) AT अनुपात
(ब) G C अनुपात
(स) शर्करा : फॉस्फेट
(द) न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या
उत्तर:
(द) न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या

31. जीन का वह भाग जो अनुलेखित (transcript) होता है परन्तु उसका अनुलिपिकरण ( translation) नहीं होता, वह है- (CPMT-2005)
(अ) एक्सॉन
(ब) इन्ट्रॉन
(स) सिस्ट्रॉन
(द) कोडोन
उत्तर:
(ब) इन्ट्रॉन

32. किस RNA का क्लोवर लीफ मॉडल होता है? (CBSE, PMT-2004)
(अ) t.RNA
(ब) r.RNA
(स) hn. RNA
(द) m. RNA
उत्तर:
(अ) t.RNA

33. अनुलेखन के दौरान, यदि DNA में न्यूक्लियोटाइडों का क्रम ATACG है तब m.RNA में न्यूक्लियोटाइडों का क्रम होगा- (CBSE PMT-2004)
(अ) UAUGC
(स) TATGC
(ब) UATGC
(द) TCTGG
उत्तर:
(अ) UAUGC

34. DNA रिपेयरिंग (Repairing) किसके द्वारा की जाती है- (Kerala CET-2002; AFMC-2004; Orissa JEE-2004)
(अ) लाइगेज
(स) DNA पालिमरेज
(ब) DNA पालिमरेज III
(द) DNA पालिमरेज I
उत्तर:
(अ) लाइगेज

35. DNA स्ट्रैण्ड की दिशा से सम्बन्धित सही कथन चुनिए- (MHCET-2004; BVP-2004)
(अ) टेम्पलेट स्ट्रेण्ड पर 5→3
(ब) नए स्ट्रेण्ड पर 3→5
(स) लीडिंग स्ट्रेण्ड पर 5→3
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) लीडिंग स्ट्रेण्ड पर 5→3

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36. वाटसन और क्रिक के डबल हैलिक्स मॉडल को किसके द्वारा जाना जाता है- (CPMT-2004)
(अ) C-DNA
(ब) B-DNA
(स) Z-DNA
(द) D-DNA
उत्तर:
(ब) B-DNA

37. ऑपेरॉन अवधारणा में रेग्यूलेटर जीन किस तरह कार्य करता है- (KCET-2004)
(अ) रिप्रेसर (Represser )
(ब) रेग्यूलेटर ( Regulator)
(स) इनहीबीटर (Inhibitor)
(द) सभी
उत्तर:
(अ) रिप्रेसर (Represser )

38. वह एन्जाइम जो DNA के अणु को खण्डों में काटता है, उसे कहते हैं- (Orissa PMT-2002; Kerala CET-2003)
(अ) DNA पॉलीमरेज
(ब) DNA लाइगेज
(स) रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम
(द) DNA जाइरेज
उत्तर:
(स) रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम

39. निम्न में से कौन-सा चित्र DNA रेप्लीकेशन की सही विधि को दर्शाता है- (AIIMS 2003)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 18
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 22

40. DNA पॉलीमरेज एन्जाइम के खोजकर्त्ता थे- (Kerala CET 2003; Kerala PMT 2003)
(अ) ओकाजाकी
(ब) कॉर्नबर्ग
(स) वाट्सन-क्रिक
(द) जैकब-मोनॉड
उत्तर:
(ब) कॉर्नबर्ग

41. यूकैरियोटिक RNA पॉलीमरेज III किसके संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है- (Kerala CET 2003)
(अ) m.RNA
(ब) t.RNA
(स) 18.5 r.RNA
(द) इन्ट्रॉन्स
उत्तर:
(ब) t.RNA

42. निम्न में से कौन-सा कोडोन UGC के समान सूचना को कोड करता है- (AIIMS 2003)
(अ) UGU
(ब) UGA
(स) UAG
(द) UGG
उत्तर:
(अ) UGU

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

45 RNA पॉलीमरेज का सम्बन्ध किससे है- (CPMT 2003)
(अ) ट्रांसलेशन
(ब) ट्रांसक्रिप्सन
(स) ट्रांसलोकेशन
(द) रेप्लीकेशन
उत्तर:
(ब) ट्रांसक्रिप्सन

44. निम्न में से किस RNA की आयु न्यूनतम होती है- (MP PMT 2002)
(अ) m. RNA
(ब) r.RNA
(स) r.RNA
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) m. RNA

45. प्रोटीन संश्लेषण का सेन्ट्रल डोग्मा होता है- (MHCET 2002)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 19
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 20

46. DNA टेम्पलेट पर नये स्ट्रेण्ड का प्रारम्भन किया जाता है- (MHCET 2002)
(अ) RNA पॉलीमरेज
(ब) DNA पॉलीमरेज
(स) DNA लाइगेज
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं

47. यदि दिये गये DNA खण्ड में ग्वानिन के न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या 75 और थाइमिन के 75 हैं तो उस खण्ड में कुल उपस्थित न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या होगी -(MHCET 2002)
(अ) 75
(ब) 750
(स) 225
(द) 300
उत्तर:
(द) 300

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HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
द्रव्यमान केन्द्र की गति का मुख्य कारण है-
(a) पारस्परिक बल
(b) नाभिकीय बल
(c) बाह्य बल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बाह्य बल

प्रश्न 2.
एक तार जिकसी लम्बाई L तथा द्रव्यमान M है, को वृत्ताकार छल्ले में मोड़ा जाता है। इसका जड़त्व आघूर्ण केन्द्र से गुजरने वाली तथा तल के लम्बवत् अक्ष के परित: है-
(a) \(\frac{ML²}{8π²}\)
(b) 8π² ML²
(c) \(\frac{ML²}{4π²}\)
(d) π² ML²
उत्तर:
(c) \(\frac{ML²}{4π²}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 3.
द्रव्यमान केन्द्र वह बिन्दु है जिसके सापेक्ष किसी पिण्ड के लिए निम्न राशि का मान शून्य होता है-
(a) कोणीय आघूर्ण
(b) बलाघूर्ण
(c) द्रव्यमान आघूर्ण
(d) भार
उत्तर:
(c) द्रव्यमान आघूर्ण

प्रश्न 4.
द्रव्यमान केन्द्र हमेशा वह बिन्दु है-
(a) जो पिण्ड का ज्यामितीय केन्द्र है
(b) जहाँ से सभी कणों की दूरी समान है।
(c) जहाँ पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केन्द्रित माना जा सके
(d) जो निर्देश तन्त्र का मूल बिन्दु है।
उत्तर:
(c) जहाँ पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केन्द्रित माना जा सके

प्रश्न 5.
यदि HCI अणु में H की द्रव्यमान केन्द्र से दूरी हो तो CI35 की दूरी होगी-
(a) 35x
(b) x
(c) \(\frac{36x}{35}\)
(d) \(\frac{x}{35}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{x}{35}\)

प्रश्न 6.
बाह्य बल की अनुपस्थिति में द्रव्यमान केन्द्र से सम्बद्ध राशि नियत रहती है-
(a) वेग
(b) त्वरण
(c) स्थिति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वेग

प्रश्न 7.
एक घूमती हुई चकती की त्रिज्या यकायक आधी कर दी जाये परन्तु द्रव्यमान स्थिर रहे तो उसका कोणीय वेग हो जायेगा-
(a) दोगुना
(b) आधा
(c) चार गुना
(d) अपरिवर्तित
उत्तर:
(c) चार गुना

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 8.
कोणीय संवेग का 2 घटक रैखिक संवेग के घटकों रूप में निम्न है-
(a) Lz =xpy – yPx
(b) Lz = ypy – xPx
(c) Lz = yPx – xPy
(d) Lz =xpx – ypz
उत्तर:
(a) Lz =xpy – yPx

प्रश्न 9.
ग्रहों की परिभ्रमण गति में नियत रहता है-
(a) गुरुत्वीय बल
(b) अभिकेन्द्र बल
(c) कोणीय संवेग
(d) कोणीय त्वरण
उत्तर:
(c) कोणीय संवेग

प्रश्न 10.
घूर्णन गति में किया गया कार्य होता है-
(a) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\alpha}\)
(b) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\theta}\)
(c) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\omega}\)
(d) \(\vec{L} \cdot \vec{\theta}\)
उत्तर:
(b) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\theta}\)

प्रश्न 11.
केन्द्रीय बल क्षेत्र में नियत रहता है-
(a) रैखिक संवेग
(b) कोणीय संवेग
(c) गतिज ऊर्जा
(d) स्थितिज ऊर्जा
उत्तर:
(b) कोणीय संवेग

प्रश्न 12.
दो बिन्दु द्रव्यमान क्रमश: m1,m2 अपने परस्पर गुरुत्वीय आकर्षण बल के प्रभाव में गति करते हैं। यदि कोई अन्य बल नहीं लग रहा हो तो संरक्षित रहेगा-
(a) केवल रैखिक संवेग
(b) केवल कोणीय संवेग
(c) दोनों रैखिक एवं कोणीय संवेग
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) दोनों रैखिक एवं कोणीय संवेग

प्रश्न 13.
यदि दो द्रव्यमान m1 तथा m2 की द्रव्यमान केन्द्र से दूरी क्रमशः r1 तथा r2 हो तो का मान होगा-
(a) m1 / m2
(b) (m1 / m2
(c) m2 / m1
(d) (m2 / m1
उत्तर:
(c) m2 / m1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 14.
दो कण जिनके द्रव्यमान 10 तथा 30 किलोग्राम हैं और इनके स्थिति सदिश क्रमश: \((\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})\) तथा \((-\hat{i}-\hat{j}-\hat{k})\) है तो निकाय का द्रव्यमान केन्द्र होगा-
(a) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)
(b) \(\frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)
(c) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{4}\)
(d) \(\frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{4}\)
उत्तर:
(a) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)

प्रश्न 15.
एक समान वर्गाकार प्लेट ABCD के दो किनारों B व C पर एक-एक किग्रा के पिण्ड रखे हैं। एक तीसरे 2 किग्रा द्रव्यमान के पिण्ड को प्लेट पर कहाँ रखें कि प्लेट का द्रव्यमान केन्द्र वर्ग के केन्द्र 0 पर ही रहे?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -1
(a) P
(b) 2
(c) R
(d) s
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 16.
जूल सेकण्ड मात्रक है-
(a) शक्ति का
(b) कोणीय संवेग का
(c) बल आघूर्ण का
(d) रैखिक संवेग का
उत्तर:
(b) कोणीय संवेग का

प्रश्न 17.
डिस्क की स्वयं की अक्ष के प्रति घूर्णन त्रिज्या है-
(a) R / 2
(b) R / √2
(c) R
(d) R√2
उत्तर:
(b) R / √2

प्रश्न 18.
लम्बाई तथा द्रव्यमान के एक पतले तार को अर्धवृतत के रूप में मोड़ा गया है। उसके स्वतन्त्र किनारों को मिलाने वाली रेखा के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण होगा-
(a) \(\frac{m l^2}{2 \pi^2}\)
(b) \(\frac{m l^2}{2}\)
(c) \(\frac{m l^2}{\pi^2}\)
(d) ml²
उत्तर:
(a) \(\frac{m l^2}{2 \pi^2}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 19.
एक छल्ला किसी नत तल पर प्रथम बार बिना लुढ़के खिसकता है तथा दूसरी बार बिना खिसके लुढ़कता है तो दोनों परिस्थितियों में उत्पन्न त्वण का अनुपात है-
(a) 1 : 1
(b) 2 : 1
(c) 1 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(b) 2 : 1

प्रश्न 20.
एक पतला खोखला बेलन जिसका व्यास 0.3 मीटर है, 2 मीटर ऊँचे नत तल पर विरामावस्था से लुढ़कता है पैदे पर पहुँचने पर उसका रेखीय वेग होगा-
(a) 2g
(b) √2g
(c) g/2
(d) \(\frac{3g}{10}\)
उत्तर:
(b) √2g

प्रश्न 21.
बाह्य बल की अनुपस्थिति में द्रव्यमान केन्द्र का वेग-
(a) शून्य है
(b) नियत रहेगा
(c) बढ़ेगा
(d) छटेगा।
उत्तर:
(b) नियत रहेगा

प्रश्न 22.
किसी पदार्थ के गोले के लिए उसके व्यास के जड़त्व आघूर्ण / का मान उसकी त्रिज्या R की किस घात के समानुपाती है?
(a) R²
(b) R²
(c) R4
(d) R²
उत्तर:
(b) R²

प्रश्न 23.
किसी ठोस गोले का व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण का मान I है तो गोले का उसकी स्पर्श रेखा के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण होगा-
(a) \(\frac{7}{2}\)I
(b) \(\frac{5}{2}\)I
(c) \(\frac{2}{5}\)I
(d) \(\frac{1}{2}\)I
उत्तर:
(a) \(\frac{7}{2}\)I

प्रश्न 24.
1 मीटर व 5 मीटर त्रिज्या की दो वलय एक नत तल पर एक साथ बिना फिसले प्रारम्भ करते हैं। पृथ्वी तल पर कौन-सी वलय पहले पहुंचेगी?
(a) बड़ी वलय
(b) छोटी वलय
(c) दोनों एक साथ
(d) कुछ नहीं कहा जा सकता।
उत्तर:
(c) दोनों एक साथ

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
दृढ़ पिण्ड की साम्यावस्था के लिए प्रतिबन्ध लिखिए।
उत्तर:
ΣF = 0 तथा Στ = 0

प्रश्न 2.
द्विपरमाणुक अणु के जड़त्व आघूर्ण के लिए व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
I = \(\frac{m_1m_2}{m_1+m_2}\)r² जहाँ दोनों परमाणुओं के मध्य दूरी।

प्रश्न 3.
क्या किसी पिण्ड की घूर्णन त्रिज्या अचर राशि है?
उत्तर:
नहीं; घूर्णन अक्ष बदलने पर जड़त्व आघूर्ण एवं घूर्णन त्रिज्या दोनों के मान बदल जाते हैं।

प्रश्न 4.
धनात्मक आघूर्ण व ऋणात्मक आघूर्ण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यदि बल की प्रवृत्ति पिण्ड को वामावर्त (Anticlockwise) दिशा में घुमाने की है तो उसका बल आघूर्ण धनात्मक आघूर्ण कहलाता है। इसके विपरीत पिण्ड को दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घुमाने की प्रवृत्ति रखने वाले बल का आघूर्ण ऋणात्मक आघूर्ण कहलाता है।

प्रश्न 5.
किसी गोले को पिघलाकर उसे चकती का स्वरूप प्रदान कर दिया जाता है तो उसके जड़त्व आघूर्ण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
चकती का जड़त्व आघूर्ण गोले के जड़त्व आघूर्ण से अधिक होगा।

प्रश्न 6.
क्या द्रव्यमान केन्द्र व गुरुत्व केन्द्र सम्पाती होते हैं?
उत्तर:
समरूप द्रव्यमान घनत्व वाली वस्तुओं में उक्त दोनों केन्द्र सम्पाती होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 7.
पेंचकस का हत्या चौड़ा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
पेंचकस के हत्थे पर अंगूठे एवं उँगलियों की सहायता से बलयुग्म लगाकर उसे घूर्णन गति प्रदान की जाती है और बलयुग्म का आघूर्ण τ = F × r
अतः r के मान को बढ़ाने के लिए पेंचकस का हत्था चौड़ा लिया जाता है ताकि कम बल (F) लगाने पर भी अधिक बलयुग्म का आघूर्ण (τ) प्राप्त हो सके और पेंच को आसानी से खोला या कसा जा सके।

प्रश्न 8.
किसी दृढ़ पिण्ड के समस्त कणों के कोणीय वेग एक समान होते हैं या भिन्न-भिन्न?
उत्तर:
दृढ़ पिण्ड के सभी कणों के कोणीय वेग समान होते हैं।

प्रश्न 9.
समान द्रव्यमान त्रिज्या तथा आकृति की खोखली तथा ठोस वस्तुओं में किसका जड़त्व अधिक होगा?
उत्तर:
खोखली वस्तुओं का जड़त्व अधिक होता है ।

प्रश्न 10.
क्या घर्षण रहित नत तल पर कोई वस्तु लोटनी गति कर सकती है?
उत्तर:
नहीं; वह फिसल जायेगी।

प्रश्न 11.
किसी पिण्ड के कोणीय संवेग J, जड़त्व आघूर्ण एवं कोणीय वेग 00 में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
J = I.ω ।

प्रश्न 12.
किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
(i) घूर्णन अक्ष की स्थिति पर
(ii) घूर्णन अक्ष के सापेक्ष पिण्ड के द्रव्यमान वितरण पर ।

प्रश्न 13.
क्या यह आवश्यक है कि द्रव्यमान केन्द्र पर द्रव्यमान उपस्थित हो?
उत्तर:
नहीं। उदाहरण के लिए वलय का द्रव्यमान केन्द्र उसके केन्द्र पर होता है जहाँ द्रव्यमान नहीं होता है।

प्रश्न 14.
क्या द्रव्यमान केन्द्र एक वास्तविकता है?
उत्तर:
नहीं, यह केवल एक गणितीय अवधारणा है।

प्रश्न 15.
क्या रेखीय गति में वस्तु में कोणीय संवेग हो सकता है?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 16.
यदि पृथ्वी की त्रिज्या कम हो जाये तो दिन की लम्बाई में क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
पृथ्वी की त्रिज्या कम होने पर जड़त्व आघूर्ण (I) कम हो जायेगा। फलस्वरूप कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार (I.ω = नियतांक) उसका कोणीय वेग ω का मान बढ़ेगा और ω का मान बढ़ने से (ω = \(\frac{2π}{T}\)) आवर्तकाल T का मान कम होगा। परिणामस्वरूप दिन की लम्बाई घट जायेगी।

प्रश्न 17.
किस अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण न्यूनतम होता है?
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण न्यूनतम होता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 18.
एक व्यक्ति घूर्णन कर रही मेज पर अपनी भुजाएं फैलाये हुए बैठा है। यदि वह भुजाएं सिकोड़ ले तो क्या होगा?
उत्तर:
भुजाएं सिकोड़ने पर उसका जड़त्व आघूर्ण कम होने से उसका कोणीय वेग बढ़ जायेगा।

प्रश्न 19.
एक पतली छड़ का द्रव्यमान M एवं इसकी लम्बाई L है तो छड़ के सिरे से छड़ के लम्बवत् गुजरने वाली अक्ष के सापेक्ष उसका जड़त्व आघूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{ML^{2}}{3}\)

प्रश्न 20.
गतिशील वाहनों के पहिए बीच में खोखले एवं परिधि पर मोटे बनाये जाते हैं क्यों?
उत्तर:
ऐसा करने से पहिए का जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है और वह गति पालक चक्र (Flywheel) की भाँति कार्य करने लगता है। फलस्वरूप इंजन बन्द कर देने पर भी वाहन अचानक नहीं रुकता है।

प्रश्न 21.
क्या पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण का मान उसके कोणीय वेग पर निर्भर करता है?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 22.
M द्रव्यमान तथा / लम्बाई के एक खोखले बेलन की आंतरिक तथा बाह्य त्रिज्याएं क्रमश: R1 व R2 हैं। इसके केन्द्र से होकर जाने वाली तथा बेलन के लम्बवत् अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण कितना होता है?
उत्तर:
\(I=M\left[\frac{l^2}{12}+\frac{R_1^2+R_2^2}{4}\right]\)

प्रश्न 23.
कोणीय संवेग में परिवर्तन की दर किस भौतिक राशि को प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
बल आघूर्ण को = \(\left[\tau=\frac{\Delta J}{\Delta t}\right]\)

प्रश्न 24.
बलयुग्म किस प्रकार की गति उत्पन्न करता है?
उत्तर:
केवल घूर्णन गति उत्पन्न करता है।

प्रश्न 25.
साइकिल के पहिए तानेंदार (spokes) क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर:
जड़त्व आघूर्ण बढ़ाने के लिए साइकिल के पहिए तानेदार बनाये जाते हैं।

प्रश्न 26.
जब कोई वस्तु क्षैतिज से θ कोण पर झुके तल पर फिसलती है तो उसका त्वरण क्या होता है?
उत्तर:
g sin θ

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 27.
समान कोणीय वेग से घूर्णन कर रहे एक वृत्ताकार प्लेटफार्म के किनारे के निकट एक व्यक्ति बैठा है। यदि वह अचानक प्लेटफार्म के केन्द्र की ओर चलना प्रारम्भ करता है तो प्लेटफार्म के कोणीय वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
केन्द्र की ओर व्यक्ति के चलने पर कुल जड़त्व आघूर्ण कम होगा फलस्वरूप कोणीय संरक्षण के सिद्धान्त से कोणीय वेग बढ़ जायेगा।

प्रश्न 28.
विलगित निकाय क्या होता है?
उत्तर:
वह निकाय जिस पर कोई बाह्य बल न लग रहा हो, विलगित निकाय कहलाता है।

प्रश्न 29.
यदि दो विभिन्न द्रव्यमान के तरबूज एक पुल से एक साथ ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर गिराये जायें तो तरबूजों के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण क्या होगा?
उत्तर:
दोनों तरबूजों के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण g होगा।

प्रश्न 30.
एक त्रिभुजाकार पटल के द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति क्या होगी?
उत्तर:
त्रिभुजाकार पटल की तीनों मध्यिकाओं का कटान बिन्दु ही पटल का द्रव्यमान केन्द्र होगा।

प्रश्न 31.
एक आयताकार पटल का द्रव्यमान M, लम्बाई l व चौड़ाई b है तो उसके तल के लम्बवत् तथा उसके द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष के परित: उसका जड़त्व लिखिए ।
उत्तर:
\(I=M\left[\frac{l^2+b^2}{12}\right]\)

प्रश्न 32.
ठोस गोले का उसके किसी व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{2}{5}\) MR²,
जहाँ M = गोले का द्रव्यमान
R = गोले की त्रिज्या

प्रश्न 33.
किसी वलय का उसके व्यास के सापेक्ष जड़त्व आपूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{1}{2}\) MR²
जहाँ M= वलय का जड़त्व आघूर्ण;
R = वलय की त्रिज्या

प्रश्न 34.
रेखीय गति में बल = द्रव्यमान × त्वरण होता है। इससे संगत घूर्णन गति का व्यंजक लिखिये।
उत्तर:
बल आघूर्ण = जड़त्व आघूर्ण × कोणीय त्वरण

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 35.
पेन का ढक्कन दो अंगुलियों की सहायता से आसानी से खुल जाता है परन्तु एक अंगुली से नहीं, क्यों?
उत्तर:
पेन का ढक्कन खोलने के लिए बलयुग्म की आवश्यकता होती है जो दो अंगुलियों द्वारा ही सम्भव हो पाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
धातु की दो वृत्ताकार चकतियाँ A व B के द्रव्यमान व मोटाई समान हैं। 4 का घनत्व B के घनत्व का दो गुना है। चकती व B का इनके अक्षों के प्रति जड़त्व आघूर्णो का अनुपात क्या होगा ?
उत्तर:
चकती का जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{1}{2}\) Mr²
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -2

प्रश्न 2.
जब ठोस गोला किसी नत तल पर लुढ़कता है तो घूर्णन ऊर्जा कुल ऊर्जा का कितना प्रतिशत होगी?
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -3

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 3.
तीन वलय जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान M एवं त्रिज्या है, त्रिभुजाकार आकृति में व्यवस्थित है। इस निकाय का YY” अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -4
उत्तर:
वलय का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण = MR²
वलय का व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण
Id = \(\frac{1}{2}\) MR²
अतः व्यास के समान्तर स्पर्शरेखीय अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण
IT = \(\frac{3}{2}\) MR²
अतः पूरे निकाय का YY’ अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण
IYY’ = I1 + I2 + I3
= \(\frac{3}{2}\) MR² + \(\frac{3}{2}\) MR² + \(\frac{1}{2}\) MR²
या IYY’ = \(\frac{7}{2}\) MR²

प्रश्न 4.
एक सीढ़ी दीवार के सहारे तिरछी लगी है। यदि वह फिसले तो उसका तात्क्षणिक घूर्णन केन्द्र कहाँ होगा?
उत्तर:
ऊपरी सिरे के स्पर्श बिन्दु पर दीवार के लम्बवत् तथा नीचे के स्पर्श बिन्दु पर जमीन के लम्ब के कटान बिन्दु पर होगा।

प्रश्न 5.
द्रव्यमान m का एक कण v वेग से X-दिशा में गतिशील है। जब वह बिन्दु (x,y,z) पर स्थित होता है तो उस पर मूल बिन्दु के परितः कण के कोणीय संवेग के घटक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कण X- अक्ष के अनुदिश गतिशील है अतः उसका रेखीय संवेग
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -5

प्रश्न 6.
समान पदार्थ के गोलों के लिए जड़त्व आघूर्ण तथा त्रिज्या का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
ठोस गोले का जड़त्व आघूर्ण
I = \(\frac{2}{5}\) MR²
∵ M = \(\frac{4}{3}\) πR³ . ρ
∴ I = \(\frac{2}{5}\) × \(\frac{4}{3}\) πR³ . ρ . R²
= \(\frac{8}{15}\) πρR5
∴ I ∝ R5 (क्योंकि \(\frac{8πρ}{15}\) = नियतांक)

प्रश्न 7.
एक वलय का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण मात्रक है। वलय का उसके तल में स्थित परितः अक्ष (अर्थात् वलय के तल में स्पशरिखीय अक्ष) के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
दिया है MR² = 8 मात्रक
∴ वलय के तल में स्थित स्पर्शरेखीय अक्ष के सापेक्ष वलय का जड़त्व आघूर्ण समान्तर अक्षों की प्रमेव से-
I = ICM + MR² = Id + MR² = \(\frac{1}{2}\)MR² + MR²
I = \(\frac{3}{2}\) MR²
= \(\frac{3}{2}\) × 8 = 12 मात्रक
या I = 12 मात्रक

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 8.
समान द्रव्यमान के ठोस गोले भिन्न-भिन्न पदार्थों के बनाये जाते हैं। गोलों के जड़त्व आघूर्ण का उनके घनत्व d के साथ क्या सम्बन्ध होगा?
उत्तर;
ठोस गोले का जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{1}{2}\)MR²
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -6

प्रश्न 9.
यदि एक ठोस गोला जिसका द्रव्यमान M है, ऊर्ध्वाधर दिशा में एक नत तल पर से hm नीचे लुढ़ककर आ जाता है। गोले का वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
नत तल पर लुढ़कने पर प्राप्त वेग,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -7

प्रश्न 10.
हेलिकॉप्टर में दो नोदक (Propellers) क्यों काम में लाये जाते हैं?
उत्तर:
हेलिकॉप्टर में केवल एक नोदक लगाने पर कोणीय संवेग संरक्षण के नियमानुसार हेलिकॉप्टर स्वयं नोदक के घूर्णन के विपरीत दिशा में घूम जायेगा। फलस्वरूप वह ऊपर नहीं उठ पायेगा। इस समस्या के निदान के लिए दो नोदक प्रयोग में लाये जाते हैं।

प्रश्न 11.
मोम की एक चकती को पिघलाकर ठोस गोले के रूप में डाल दिया जाता है। केन्द्र से गुजरने वाली उभयनिष्ठ अक्ष के प्रति जड़त्व आघूर्ण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
चकती को पिघलाकर गोले के रूप में डाल देने उसकी त्रिज्या (R) का मान काफी कम हो जायेगा अतः गोले का जड़त्व आघूर्ण (\(\frac{2}{5}\)MR1²) चकती के जड़त्व आघूर्ण (\(\frac{1}{2}\)MR²) से काफी कम हो जायेगा।

प्रश्न 12.
मूल बिन्दु से (\((2 \hat{i}-4 \hat{j}+2 \hat{k})\))m दूरी पर एक बिन्दु पर बल \((3 \hat{i}+2 \hat{j}-4 \hat{k})\) N कार्य कर रहा है। बल आघूर्ण का परिमाण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -8

प्रश्न 13.
समान द्रव्यमान के एवं समान त्रिज्या के एक ठोस व खोखले गोले को एक साथ समान कोणीय वेग से घुमाया जाता है तो कौन सा गोला पहले रुकेगा?
उत्तर:
ठोस गोला क्योंकि इसका जड़त्व आघूर्ण कम है अतः यह समान घूर्णन गति का विरोध कम करेगा।

प्रश्न 14.
m1, m2 तथा m3 द्रव्यमानों के तीन कण एक समबाहु त्रिभुज के तीन शीर्षो पर स्थित हैं। त्रिभुज की प्रत्येक भुजा की लम्बाई a हो, तो इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण त्रिभुज की m1 द्रव्यमान से गुजरने वाली माध्यिका के परितः ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
द्रव्यमानों एवं माध्यिका की व्यवस्था संलग्न चित्र में प्रदर्शित है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -9

प्रश्न 15.
द्रव्यमान m व त्रिज्या r की एक ठोस चकती क्षैतिज तल पर कोणीय चाल ω से लुढ़क रही है। मूल बिन्दु O के परितः चकती का कोणीय संवेग ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -10
उत्तर:
OX अक्ष के सापेक्ष चकती का जड़त्व आघूर्ण
I = ICM + Mr² = \(\frac{1}{2}\)Mr² + Mr²
या I = \(\frac{3}{2}\) Mr²
∴ चकती का कोणीय संवेग,
J = I.ω = \(\frac{3}{2}\) Mr².ω

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 16.
समान द्रव्यमान तथा समान मोटाई की दो कतियाँ A व B भिन्न धातुओं की बनी हैं जिनके घनत्व ρA व ρBA > ρB) हैं। यदि उनके वृत्ताकार तलों के लम्बवत् तथा गुरुत्वीय केन्द्रों से पारित अक्षों के परितः जड़त्व आघूर्ण IA व IB हों तो IA व IB में कौन बड़ा होगा?
उत्तर:
चकती का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{3}{2}\) MR²
यदि चकतियों की मोटाई t हो तो चकती का द्रव्यमान
M = आयतन × घनत्व = πR².t.ρ
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -11

प्रश्न 17.
यदि ध्रुवों पर जमी हुई बर्फ पिघल जाये तो दिन-रात, की अवधि पर क्या प्रभाव सम्भव है?
उत्तर:
ध्रुवों पर दिन रात की अवधि पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन गति पर निर्भर करती है। यदि ध्रुवों की बर्फ पिघल जाये तो यह पृथ्वी की सतह पर फैल जायेगी जिससे पृथ्वी का द्रव्यमान विस्तार बढ़ने से जड़त्व आघूर्ण बढ़ जायेगा और जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाने पर कोणीय वेग घट जायेगा। अत: सूत्र (ω = \(\frac{2π}{T}\)) के अनुसार ω घटने से T (दिन-रात की अवधि) का मान बढ़ जायेगा अर्थात् दिन-रात की अवधि बढ़ जायेगी।

प्रश्न 18.
न्यूटन का गति विषयक नियम निकाय के अलग-अलग कणों के लिए लागू है, फिर भी निकाय की गति को न्यूटन के नियम द्वारा वर्णित किया जा सकता है। समझाइये।
उत्तर:
निकाय का सम्पूर्ण द्रव्यमान निकाय के द्रव्यमान केन्द्र पर संकेन्द्रित माना जा सकता है तथा सभी बाह्य बल भी द्रव्यमान केन्द्र पर लगे माने जा सकते हैं। तब न्यूटन के नियम के अन्तर्गत द्रव्यमान केन्द्र की गति निकाय की गति को व्यक्त करेगी।

प्रश्न 19.
एक बिल्ली गिरने पर अपने पैरों पर सुरक्षित उत्तर जाती है। क्यों?
उत्तर:
कोणीय संवेग संरक्षण के अनुसार,
Iω = नियतांक ⇒ ω ∝ \(\frac{1}{I}\)
जब बिल्ली नीचे गिरती है तो यह अपनी पूँछ एवं शरीर को तान लेती है जिससे बिल्ली का जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है और फलस्वरूप उसका कोणीय वेग घट जाता है। इस प्रकार बिल्ली गिरने पर अपने पैरों पर सुरक्षित उतर जाती है।

प्रश्न 20.
गुरुत्व केन्द्र एवं द्रव्यमान केन्द्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए। क्या ये पिण्ड में एक ही बिन्दु पर होते हैं?
उत्तर:
\(\vec{r}_{C M}=\frac{\Sigma m_i \overrightarrow{r_i}}{\Sigma m_i}\) तथा \(\overrightarrow{r_{C G}}=\frac{\Sigma m_i g_i \overrightarrow{r_i}}{\Sigma m_i g_i}\)
अतः एक समान गुरुत्व केन्द्र में अर्थात् पिण्ड का आकार पृथ्वी की तुलना में बहुत छोटा होने पर, इसके प्रत्येक कण पर का मान समान होने से दोनों द्रव्यमान केन्द्र व गुरुत्व केन्द्र सम्पाती होंगे।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 21.
घूर्णन गति करने वाली दो वस्तुओं 4 तथा B के जड़त्व आघूर्ण IA व IB हैं। यदि इनके कोणीय संवेग बराबर हों, तो किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी? दिया है- IA > IB
उत्तर;
दिया है: JA = JB
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -12

प्रश्न 22.
छोटी डोरी से एक पत्थर के टुकड़े को बाँधकर घुमाना आसान होता है जबकि बड़ी डोरी से बाँधकर इसे घुमाना कठिन है, क्यों?
उत्तर:
पत्थर का जड़त्व आघूर्ण I = mr²
यदि डोरी छोटी है, तो वृत्त की त्रिज्या (r) कम होगी अतः जड़त्व आघूर्ण कम होगा। इसके विपरीत डोरी बड़ी होने पर जड़त्व आघूर्ण अधिक होगा। घूर्णन गति के समीकरण τ = Iα के अनुसार समान कोणीय त्वरण उत्पन्न करने के लिए छोटी डोरी की स्थिति में कम व बड़ी डोरी की स्थिति में अधिक बल-आघूर्ण लगाना पड़ेगा। अतः छोटी डोरी से पत्थर को बाँधकर घुमाना आसान है।

प्रश्न 23.
चक्रवात में चक्करदार वायु के झोंके के अक्ष के निकट की परतों का वेग बहुत अधिक होता है। समझाइये क्यों?
उत्तर:
चक्रवात में वायु की आन्तरिक परतें अक्ष के बहुत निकट होती हैं जिससे वायु के कणों का जड़त्व आघूर्ण बहुत कम हो जाता है अतः कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से इन आन्तरिक परतों का कोणीय वेग बहुत अधिक हो जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
दृढ़ पिण्ड से क्या अभिप्राय है? इसकी स्थानान्तरीय एवं घूर्णन गतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दृढ पिण्ड (Rigid Body) :
“वे पिण्ड जिनकी आकृति बाह्य बल लगाने पर भी अपरिवर्तित रहती है अर्थात् जिनके कणों की आन्तरिक दूरियाँ अपरिवर्तित रहती हैं, दृढ़ पिण्ड कहलाते हैं।”
प्रकृति में कोई वस्तु पूर्णतः दृढ़ पिण्ड नहीं होती है क्योंकि उच्च दाब या बल लगाकर वस्तु में विकृति उत्पन्न की जा सकती है। अतः ऐसी वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए आदर्श दृढ़ पिण्ड की कल्पना करते हैं जिसमें विकृतियाँ नगण्य रहती हैं। दृढ पिण्ड की गति में स्थानान्तरीय गति (Translational motion) तथा घूर्णन गति (Rotational motion) सम्मिलित होती है। यदि दृढ पिण्ड उससे गुजरने वाली स्थिर अक्ष के प्रति घूर्णन करती है, तो उसे पिण्ड की शुद्ध घूर्णन गति (Pure-rotational motion) कहते हैं तथा अक्ष घूर्णन अक्ष (axis of rotation) कहलाती है, उदाहरण के लिए छत से लटके पंखे की गति शुद्ध घूर्णन गति होती है। परन्तु कुछ स्थितियों में दृढ़ पिण्ड की गति के दौरान घूर्णन अक्ष स्थिर नहीं रहती है। इस स्थिति में पिण्ड में घूर्णन गति के साथ-साथ स्थानान्तरीय गति भी होती है। यदि गति के दौरान दृढ़ पिण्ड के कण परस्पर समान्तर पथ में गति करते हैं, तो वह स्थानान्तरीय गति कहलाती है । उदाहरण के लिए किसी पिण्ड का किसी तल पर फिसलना व्यक्ति का किसी तल पर चलना आदि।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -13

जब गति के दौरान दृढ़ पिण्ड के कण घूर्णन अक्ष के सापेक्ष अपनी स्थिति परिवर्तित करते हैं तो वह गति घूर्णन एवं स्थानान्तरीय गतियों का मिश्रण होती है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -14

दौरान दृढ पिण्ड का प्रत्येक कण घूर्णन अक्ष के परितः वृत्ताकार गति करता है। गति के दौरान घूर्णन अक्ष स्थिर या अपनी दिशा परिवर्तित कर सकती है। अतः “यदि दृढ़ पिण्ड का प्रत्येक बिन्दु वृत्ताकार पथ में गति करता हो तथा प्रत्येक वृत्त का केन्द्र एक उभयनिष्ठ रेखा पर स्थित हो, तो उस गति को शुद्ध घूर्णन गति कहते हैं तथा रेखा को घूर्णन-अक्ष कहते हैं।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -15

चित्र में पिण्ड की घूर्णन गति को दर्शाया गया है। चित्र में पिण्ड के तीन कण P, Q R दिखाये गये हैं जो घूर्णन अक्ष AB से क्रमशः r1, r2 व r3 दूरियों पर स्थित हैं। पिण्ड की घूर्णन गति के दौरान इन कणों के वृत्तीय पथों की त्रिज्याएं क्रमशः r1, r2 व r3 होगी और इन पथों के केन्द्र O, O’ और O” उभयनिष्ठ अक्ष AB पर होंगे। इन सभी कणों के कोणीय वेग एवं आवर्तकाल समान होंगे।

कुछ विशेष स्थितियों में दृढ़ पिण्ड के घूर्णन अक्ष की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है परन्तु उसमें कोई स्थानान्तरण नहीं होता है। उदाहरण के लिए घूमते हुए लट्टू की गति। इस गति को शुद्ध पुरस्सरण गति (Pure Precessional motion) कहते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 2.
द्रव्यमान केन्द्र से क्या अभिप्राय है? इसके कार्तीय घटकों के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass) :
दृढ़ पिण्डों की जटिल गतियों, जिनमें वह स्थानान्तरीय गति के साथ-साथ घूर्णन गति भी करता है, को समझना गणितीय रूप से अत्यधिक कठिन होता है। इस प्रकार की गतियों को समझने के लिए यदि हम पिण्ड के एक विशेष बिन्दु पर ध्यान रखें तो गति का विश्लेषण करना अत्यधिक सरल हो जाता है। इस विशेष बिन्दु को द्रव्यमान केन्द्र कहते हैं। द्रव्यमान केन्द्र को निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं-
“किसी दृढ़ पिण्ड अर्थात् कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र वह बिन्दु है जो इस प्रकार गति करता है कि मानों निकाय का समस्त द्रव्यमान वहाँ पर केन्द्रित हो और समस्त बाह्य बल इसी बिन्दु पर कार्यरत् हों।” उदाहरण के लिए ठोस गोले का केन्द्र ही द्रव्यमान केन्द्र होता है। सामान्यत: नियमित आकार के पिण्डों का द्रव्यमान केन्द्र उनका ज्यामितीय केन्द्र होता है।

दो कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass of a System of Two Particles) :
माना किसी निकाय में दो कण हैं जिनके द्रव्यमान क्रमशः m1 व m2 हैं तथा निर्देश बिन्दु O से जिनके स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}\) व \(\overrightarrow{r_2}\) हैं एवं इन कणों का आपस में तथा बाह्म वातावरण से सम्बन्ध है। इनके द्रव्यमान केन्द्र (C.M.) का स्थिति सदिश,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -16
उपपत्ति (Proof):
माना इन कणों पर कार्य करने वाले बाह्य बल क्रमश: \(\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}\) व \(\overrightarrow{F_{2 \mathrm{ext}}}\) तथा आन्तरिक बल क्रमश: \(\overrightarrow{F_{12}}\) व \(\overrightarrow{F_{21}}\) हैं। अतः कण A पर नेट बल,
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माना किसी क्षण पर द्रव्यमान केन्द्र के स्थिति सदिश, वेग तथा त्वरण क्रमशः \(\overrightarrow{r_{c m}} ; \overrightarrow{v_{c m}}\) एवं \(\overrightarrow{a_{c m}}\) हैं।
निकाय का कुल द्रव्यमान M = (m1 + m2)
∵ द्रव्यमान केन्द्र की अभिधारणा से कुल बाह्य बल \(\vec{F}=\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}+\vec{F}_{2 \mathrm{ext}}\) द्रव्यमान केन्द्र पर कार्य करता है तथा कुल द्रव्यमान भी द्रव्यमान केन्द्र पर केन्द्रित माना जाता है। अत: न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -18

प्रश्न 3.
सतत् पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र के लिए सूत्र प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
दो कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass of a System of Two Particles) :
माना किसी निकाय में दो कण हैं जिनके द्रव्यमान क्रमशः m1 व m2 हैं तथा निर्देश बिन्दु O से जिनके स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}\) व \(\overrightarrow{r_2}\) हैं एवं इन कणों का आपस में तथा बाह्म वातावरण से सम्बन्ध है। इनके द्रव्यमान केन्द्र (C.M.) का स्थिति सदिश,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -16.1
उपपत्ति (Proof):
माना इन कणों पर कार्य करने वाले बाह्य बल क्रमश: \(\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}\) व \(\overrightarrow{F_{2 \mathrm{ext}}}\) तथा आन्तरिक बल क्रमश: \(\overrightarrow{F_{12}}\) व \(\overrightarrow{F_{21}}\) हैं। अतः कण A पर नेट बल,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -17.1

माना किसी क्षण पर द्रव्यमान केन्द्र के स्थिति सदिश, वेग तथा त्वरण क्रमशः \(\overrightarrow{r_{c m}} ; \overrightarrow{v_{c m}}\) एवं \(\overrightarrow{a_{c m}}\) हैं।
निकाय का कुल द्रव्यमान M = (m1 + m2)
∵ द्रव्यमान केन्द्र की अभिधारणा से कुल बाह्य बल \(\vec{F}=\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}+\vec{F}_{2 \mathrm{ext}}\) द्रव्यमान केन्द्र पर कार्य करता है तथा कुल द्रव्यमान भी द्रव्यमान केन्द्र पर केन्द्रित माना जाता है। अत: न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -18.1

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प्रश्न 4.
सिद्ध कीजिए कि जब किसी तन्त्र पर बाह्य बल शून्य होता है तो उसका द्रव्यमान केन्द्र नियत वेग से गति करता है।
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र का रेखीय संवेग (Linear Momentum of Centre of Mass) :
माना कि एक निकाय n कणों से मिलकर बना है, जिसके कणों का द्रव्यमान क्रमशः \(m_1, m_2, m_3 \ldots . m_n\) तथा वेग क्रमशः \(v_1, v_2, v_3 \ldots . v_n\) है इसलिए इस निकाय का संवेग
\(\vec{p}=m \overrightarrow{v_1}+m \overrightarrow{v_2}+m \overrightarrow{v_3}+\ldots \ldots . .+m_n \overrightarrow{v_n}\)
लेकिन हम जानते हैं
\(\overrightarrow{v_cm}=\frac{1}{2}(m \overrightarrow{v_1}+m \overrightarrow{v_2}+m \overrightarrow{v_3}+\ldots \ldots . .+m_n \overrightarrow{v_n})\)
\(\vec{p}=M \vec{v_cm}\) ………….(1)
अर्थात् कणों के निकाय का कुल रेखीय संवेग, निकाय के कुल द्रव्यमान तथा द्रव्यमान केन्द्र के वेग के गुणनफल के बराबर होता है।
समी० (1) का समय t के सापेक्ष अवकलन करने पर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -19
अर्थात् जब किसी निकाय पर आरोपित बाह्य बलों का योग शून्य होता है तब उस निकाय का कुल रेखीय संवेग नियत अर्थात् संरक्षित रहता है। यह किसी निकाय के द्रव्यमान केन्द्र का रेखीय संरक्षण नियम कहलाता है।
∴ \(\frac{d \vec{p}}{d t}=0\) होने पर
\(\frac{d}{d t}\left(M v_{c m}\right)=0\)
v cm= नियतांक ………….(4)
या \(m_A \overrightarrow{a_A}+m_B \overrightarrow{a_B}=0\)
यहाँ \(\overrightarrow{a_A}[latex] व [latex]\overrightarrow{a_B}\) क्रमश: A व B की गतियों में त्वरणों का मान है। यदि \(\overrightarrow{F_{A B}}\) एवं \(\overrightarrow{F_{B A}}\) क्रमशः A व B पर B व A के कारण लगने वाले आन्तरिक बल हैं, तो-
\(\overrightarrow{F_{A B}}+\overrightarrow{F_{B A}}=0\)
या \(\overrightarrow{F_{A B}}=-\overrightarrow{F_{B A}}\)
यह न्यूटन का क्रिया एवं प्रतिक्रिया का नियम है।

प्रश्न 5.
बल आघूर्ण की परिभाषा दीजिए एवं इसके लिए सूत्र प्राप्त कीजिए तथा दैनिक जीवन में बल आघूर्ण के उपयोग समझाइये।
उत्तर:
बल आघूर्ण (Torque) tau :
“घूर्णन गति में दिये गये घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी कण पर कार्यरत् बल का आघूर्ण ही बल आघूर्ण कहलाता है।’ इसे \(\vec{\tau}\) (tau) से व्यक्त करते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -20
चित्र में एक कण P पर बल \(\vec{F}\) आरोपित है। जिससे वह O से गुजरने वाले घूर्णन अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करता है।
बल आघूर्ण = बल × बल की घूर्णन अक्ष से लम्बवत् दूरी
τ = F(OM)
= F r sin θ
τ = r F sin θ
सदिश गुणन के रूप में \(\vec{\tau}=\vec{r} \times \vec{F}\)
यहाँ पर \theta, \(\vec{r}\) और \(\vec{F}\) के मध्य कोण है। बल आघूर्ण की दिशा \(\vec{r}\) तथा \(\vec{F}\) के तल के लम्बवत् दक्षिणावर्ती पेंच नियम से ज्ञात करते हैं। चित्र में \(\vec{r}\) व \(\vec{F}\) X-Y तल में है अतः बल आघूर्ण Z अक्ष की धन दिशा में होगा।
बल आघूर्ण का मात्रक-न्यूटन-मीटर होता है तथा इसका विमीय सूत्र \(\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-2}\right]\) होता है।

प्रश्न 6.
कोणीय वेग एवं कोणीय त्वरण की परिभाषा दीजिए तथा घूर्णन गति के समीकरणों की उपपत्ति दीजिए।
उत्तर:
कोणीय वेग (Angular Velocity) :
“समय के साथ कोणीय विस्थापन के परिवर्तन की दर को कोणीय वेग कहते हैं।” इसे ω से व्यक्त करते हैं। यह सदिश राशि है। यह एक अक्षीय सदिश है जिसकी दिशा पिण्ड की घूर्णन अक्ष के अनुदिश होती है। यदि दृढ़ पिण्ड वामावर्त (anti clockwise) दिशा में घूर्णन करता है, तो उसका कोणीय वेग घूर्णन अक्ष के अनुदिश पिण्ड के तल से बाहर की ओर होगा। अर्थात् यदि पिण्ड X-Y तल में वामावर्त (anti clockwise) दिशा में घूर्णन गति करता है तो कोणीय वेग +z दिशा में होगा। इसी प्रकार यदि पिण्ड दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घूर्णन करता है तो कोणीय वेग -z दिशा के अनुदिश होगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -21
कोणीय वेग की दिशा को दाहिने हाथ के नियम से व्यक्त किया जाता है जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है। कोणीय वेग की दिशा को ज्ञात करने के लिए दाहिने हाथ से घूर्णन अक्ष को इस पकड़े जाने की कल्पना करें कि अंगूठा अक्ष के समान्तर रहे तो यदि उँगलियों के घुमाव से पिण्ड के घूर्णन की दिशा व्यक्त होती है तो अँगूठे द्वारा कोणीय वेग की दिशा व्यक्त होगी। कोणीय वेग को rad.s-1 में मापा जाता है।
यदि समयान्तर ∆t = (t2 – t1 ) में कोणीय विस्थापन ∆θ = (θ2 – θ1 ) हो तो औसत कोणीय वेग
\(\omega_{a v}=\vec{\omega}=\frac{\Delta \theta}{\Delta t}=\frac{\left(\theta_2-\theta_1\right)}{\left(t_2-t_1\right)}\)
यदि ∆t का मान अत्यल्प हो अर्थात् ∆t → 0 तो पिण्ड के कोणीय वेग का तात्क्षणिक मान (Instantaneous Values of Angular Velocity) निम्न प्रकार व्यक्त होगा-
\(\omega=\lim _{\Delta t \rightarrow 0} \frac{\Delta \theta}{\Delta t}=\frac{d \theta}{d t}\) ………..(2)
\(\omega=\frac{d \theta}{d t}\)
इसी तात्क्षणिक कोणीय वेग को ‘कोणीय वेग’ के नाम से जाना जाता है। कोणीय वेग धनात्मक एवं ऋणात्मक हो सकता है लेकिन कोणीय चाल सदैव धनात्मक होती है।

कोणीय त्वरण (Angular Acceleration) :
जब किसी पिण्ड के कोणीय वेग का मान परिवर्तित होता है तो उसमें कोणीय त्वरण होता है। उदाहरण के लिए जब हम साइकिल चलाते हैं या उसको रोकते हैं तो दोनों स्थितियों में उसके कोणीय वेग में परिवर्तन होता है अर्थात् साइकिल पहियों में कोणीय त्वरण होता है। अतः “पिण्ड के कोणीय वेग में परिवर्तन की दर को कोणीय त्वरण कहते हैं।” इसे द्वारा प्रदर्शित करते हैं और यह एक सदिश राशि है और इसका मात्रक rad.s-2 होता है।
माना t2 एवं t1 क्षण पर दृढ पिण्ड के कोणीय वेग ω1 व ω2 हैं।
अतः पिण्ड का औसत कोणीय त्वरण
\(\alpha_{a v}=\bar{\alpha}=\frac{\omega_2-\omega_1}{t_2-t_1}=\frac{\Delta \omega}{\Delta t}\) ……(1)
कोणीय त्वरण की दिशा को दाँये हाथ के नियम से ज्ञात किया जा सकता है। α की दिशा पिण्ड के कोणीय वेग में वृद्धि की दिशा में होगी। अर्थात् यदि ω2 > ω1 तो कोणीय वेग में वृद्धि होने पर α का मान धनात्मक होगा एवं ω2 < ω1 होने पर कोणीय वेग में कमी होगी और फलस्वरूप α का मान ऋणात्मक होगा। अतः धनात्मक α त्वरण की दिशा कोणीय वेग ω की दिशा में एवं ऋणात्मक α की दिशा कोणीय वेग की विपरीत दिशा में होगी।
यदि ∆t का मान अत्यल्प हो अर्थात् ∆t → 0 तो पिण्ड के कोणीय त्वरण को तात्क्षणिक कोणीय त्वरण या केवल कोणीय त्वरण के नाम से जाना जाता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -22

प्रश्न 7.
निम्नलिखित राशियों में सम्बन्ध स्थापित कीजिए-
(i) रेखीय वेग, कोणीय वेग तथा त्रिज्या में।
(ii) रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण में ।
उत्तर:
रेखीय वेग तथा कोणीय वेग में संबंध (Relation between Linear Velocity and Angular Velocity) :
जब कोई दृढ़ पिण्ड अपनी स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन करता है तो उसका प्रत्येक कण विभिन्न त्रिज्याओं के वृत्तीय पथों पर गति करता है। सभी पथों के केन्द्र घूर्णन अक्ष पर होते हैं और सभी का कोणीय वेग समान होता है लेकिन उनकी चाल घूर्णन अक्ष से उनकी दूरी अर्थात् उनके वृत्तीय पथों की त्रिज्या पर निर्भर करती है। दूरी बढ़ने पर चाल बढ़ जाती है। शुद्ध घूर्णी गति में कण की चाल का मान उसके कोणीय वेग के अनुक्रमानुपाती होता है। संलग्न चित्र (7.18) में दृढ़ पिण्ड का कण P त्रिज्या r के वृत्तीय पथ में घूर्णन गति कर रहा है। यदि किसी क्षण उसका कोणीय विस्थापन θ rad. हो तो, चाप PP’ की लम्बाई s निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -23
शुद्ध घूर्णी गति में सभी कणों के लिए कोणीय वेग ω समान होता है अत: समी० (2) से स्पष्ट है कि घूर्णन अक्ष से दूरी (r) बढ़ने पर रेखीय वेग (v) उतना ही अधिक बढ़ जायेगा।
उक्त सम्बन्ध [समी० (2)] को सदिश गुणनफल में निरूपित करने के लिए माना कण P का t = 0 पर स्थिति सदिश \(\vec{R}=\overrightarrow{O P}\) है। अत: चित्र से-
\(\frac{r}{R}=\sin \phi \quad \text { या } \quad r=R \sin \phi\)
अत: समी० (2) से
\(v=\omega \cdot R \sin \phi\)
चूँकि \(\omega R \sin \phi\) कोणीय वेग ω के तल के लम्बवत् है, अत: उक्त समी० (2) को सदिश गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।
\(\vec{v}=\vec{\omega} \times \overrightarrow{\boldsymbol{R}}\)
यहाँ यह ध्यान देने योग्य कि \(\phi=\frac{\pi}{2} \mathrm{rad}\) की स्थिति में R का मान वृत्तीय पथ की त्रिज्या r के तुल्य होगा।

रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण में सम्बन्ध (Relation between Linear Acceleration and Angular Acceleration):
जब कोई कण वृत्तीय पथ पर नियत कोणीय वेग से गति करता है, तो उस पर केवल त्रिज्य त्वरण \(\vec{a}_{\mathrm{rad}}\) ही कार्य करता है, लेकिन कण की चाल (v) भी बदलती है, तो उसमें \(\vec{a}_{\mathrm{rad}}\) के साथ-साथ स्पर्श रेखीय त्वरण \(\vec{a}_{\mathrm{tan}}\) भी होता है। इन्हीं दोनों त्वरणों का परिणामी कण का त्वरण \(\overrightarrow{a_R}\) होता है। इन दोनों घटकों एवं परिणामी त्वरण \(\left(\overrightarrow{a_R}\right)\) को संलग्न चित्र 7.19 में दिखाया गया है। स्पर्श रेखीय त्वरण \(\left(\vec{a}_{\text {tan }}\right)\) की दिशा कण के रेखीय वेग \(\vec{v}\) की दिशा में होती है, क्योंकि इस त्वरण की उत्पत्ति रेखीय वेग \(\vec{v}\) के परिमाण में परिवर्तन से ही होती है। अत:
\(a_{\mathrm{tan}}=\frac{d v}{d t}=r \cdot \frac{d \omega}{d t}=r \cdot \alpha\)

यहाँ \(\alpha=\frac{d \omega}{d t}\) कण का कोणीय त्वरण है। कण के त्रिज्य त्वरण \(\left(a_{\mathrm{rad}}\right)\) का मान कण के रेखीय वेग की दिशा में परिवर्तन से सम्बन्धित होता है। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -24
कण के रेखीय त्वरण व कोणीय त्वरण के सम्बन्ध को सदिश रूप में निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं।
यदि कण का स्थिति सदिश \(\vec{R}\) हो तो चित्र से,
r =R sin ϕ
atan =αR sin ϕ
या \(\overrightarrow{a_{\tan }} \propto R \sin \hat{n}\)

जहाँ \(\hat{n}\) घूर्णन तल के लम्बवत् दिशा में एकांक सदिश को व्यक्त करता है। अत:

\(\vec{a}_{\mathrm{tan}}=\vec{a}=\vec{\alpha} \times \vec{R}\) ………………..(3)
यदि \(\phi=\frac{\pi}{2} \mathrm{rad} तो R \sin \phi=r\)
अतः a = α . r
यदि घूर्णन अक्ष स्थिर है तो कण के ω व α के मान स्थिर रहेंगे। कण पर परिणामी त्वरण
\(a_R=\sqrt{a_{\mathrm{rad}}^2+a_{\mathrm{tan}}^2} \text { क्योंकि } \vec{a}_{\mathrm{rad}} \perp \vec{a}_{\mathrm{tan}}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 8.
जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा दीजिए एवं दैनिक जीवन में इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia):
न्यूटन के प्रथम नियम के अनुसार बाह्य बल की अनुपस्थिति में वस्तुएँ अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती हैं अर्थात् यदि वस्तु विरामावस्था में है, तो वह गति में आने का विरोध करती हैं और यदि गतिशील हैं तो उसी दिशा में उसी वेग से चलती रहना चाहती है और वेग तथा वेग की दिशा में परिवर्तन का विरोध करती है। वस्तुओं के इस गुण को जड़त्व (Inertia) कहते हैं जो कि पदार्थ का मूल गुण है। इसीलिए न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

इसी प्रकार यदि कोई वस्तु किसी अक्ष के परितः घूर्णन के लिए स्वतन्त्र हैं तो बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में वह अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है अर्थात् यदि विरामावस्था में है तो घूर्णन गति करने का विरोध करती है और यदि घूर्णन कर रही है तो कोणीय वेग में ‘ परिवर्तन का विरोध करती है। किसी अक्ष के परितः वस्तुओं के इस गुण को घूर्णन जड़त्व या ‘जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia) कहते हैं। इसे प्रायः I से व्यक्त करते है “पिण्ड के किसी कण का घूर्णन अक्ष के परित: जड़त्व आघूर्ण उस कण के द्रव्यमान तथा उसकी घूर्णन अक्ष से दूरी के वर्ग के गुनणनफल के बराबर होता है।” अर्थात्
I = mr²
I का मात्रक = kg.m²
तथा I का विमीय सूत्र = [M1L2T0] …(1)

1. कणों के निकाय का जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia of a System of Particles ) :
माना M द्रव्यमान का कोई दृढ पिण्ड (कणों का निकाय) चित्र में प्रदर्शित एक बिन्दु O से गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः घूर्णन के लिए स्वतन्त्र है और पिण्ड का इसी अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण ज्ञात करना है। माना पिण्ड विभिन्न द्रव्यमानों m1, m2, m3 …………., mn के n कणों से मिलकर बना है और घूर्णन अक्ष से इन कणों की दूरियाँ क्रमश: r1, r2, r3 …………., rn हैं। इन सभी कणों के जड़त्व आघूर्णो का योग पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण प्रदान करेगा अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -25

2. सतत् द्रव्यमान वितरण वाले पिण्ड या निकाय का जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia of a Block of Homogeneous Mass Distribution ) :
यदि किसी पिण्ड में कणों की संख्या अत्यधिक व अति पास-पास स्थित हो जैसे- बेलन, चकती, गोला, मीटर स्केल आदि तो ऐसे पिण्डों को या निकाय को सतत् द्रव्यमान वितरण वाले निकाय के रूप में जाना जाता है। इन पिण्डों के जड़त्व आघूर्ण ज्ञात करने के लिए समाकलन (Integration) विधि का उपयोग करते हैं।
माना dm द्रव्यमान का एक अल्पांश घूर्णन अक्ष से r दूरी पर स्थित है तो इस अल्पांश का जड़त्व आघूर्ण
dI = dm.r² …..(3)
अतः पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उचित सीमाओं के अन्तर्गत समी० (3) का समाकलन ज्ञात करके ज्ञात करते हैं, अर्थात्
I = \(\int r^2 \cdot d m\) ………….(4)

जड़त्व आघूर्ण का भौतिक महत्व (Physical Significance of Moment of Inertia):
जब किसी वस्तु पर कोई बाह्य बल लगाया जाता है, तो यदि वह विरामावस्था में है अथवा सीधी रेखा में किसी वेग से गतिशील है, अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है। वस्तुओं या पिण्डों के इस गुण को ‘जड़त्व’ कहते हैं। किसी पिण्ड का द्रव्यमान जितना अधिक होता है, उसकी अवस्था परिवर्तन हेतु उतने ही अधिक बल की आवश्यकता होती है अतः किसी पिण्ड का द्रव्यमान ही उसके जड़त्व की माप है।

ठीक इसी प्रकार किसी पिण्ड को जो विरामावस्था में है, किसी अक्ष के परितः घुमाने के लिए अथवा घूर्णन गति कर रहे पिण्ड के कोणीय वेग में परिवर्तन के लिए उस पर बल आघूर्ण लगाने की आवश्यकता होती है। पिण्ड के इस गुण को ‘जड़त्व आघूर्ण’ कहते हैं। पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण जितना अधिक होता है, उसकी अवस्था परिवर्तन ( घूर्णन गति में) के लिए उतने ही अधिक बल आघूर्ण की आवश्यकता होती है।

उक्त विवेचना से स्पष्ट है कि “रेखीय गति में जो भूमिका द्रव्यमान की होती है, वही भूमिका घूर्णन गति में जड़त्व आघूर्ण की होती है। इसी प्रकार जो भूमिका रेखीय गति में बल की होती है वही भूमिका घूर्णन गति में बल आघूर्ण की होती है।”

जड़त्व तथा जड़त्व आघूर्ण में अन्तर (Difference between Inertia and Moment of Inertia):
पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण केवल पिण्ड के द्रव्यमान पर निर्भर करता है परन्तु पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण पिण्ड के द्रव्यमान पर तो निर्भर करता ही है, साथ ही साथ पिण्ड की घूर्णन अक्ष से दूरी पर भी निर्भर करता है अर्थात् पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण इस तथ्य पर निर्भर करता है कि पूरे पिण्ड के द्रव्यमान का घूर्णन अक्ष के परितः वितरण कैसा है। पिण्ड के द्रव्यमान का जितना अधिक भाग घूर्णन अक्ष से दूर होगा, पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उतना ही अधिक होगा।

जड़त्व आघूर्ण का दैनिक जीवन में महत्व :
(Importance of Moment of Inertia in Daily Life)
हमारे दैनिक जीवन में जड़त्व आघूर्ण की अहम् भूमिका है। स्कूटर, मोटर साइकिल, साइकिल, रिक्शा, ताँगा तथा बैलगाड़ी इत्यादि में पहिए का जड़त्व आघूर्ण बढ़ाने के लिए पदार्थ की अधिकतम मात्रा परिधि पर रखने का प्रयास किया जाता है परिधि का घेरा तानों द्वारा घूर्णन अक्ष से जुड़ा होता है। ऐसा करने से पहिये में ‘गतिपालक चक्र’ (Fly wheel) का गुण उत्पन्न हो जाता है अर्थात् साइकिल के पैडल चलाना बन्द कर देने पर भी साइकिल कुछ दूरी तक चलती रहती है।

जड़त्व आघूर्ण का व्यावहारिक एवं अच्छा उपयोग ऑटोमोबाइल क्षेत्र में होता है। ऑटोमोबाइल इंजन जो घूर्णी गति पैदा करता है, इसमें बहुत अधिक जड़त्व आघूर्ण वाली एक चकती लगी रहती हैं जिसे गतिपालक चक्र कहते हैं। जब शैफ्ट को घुमाने वाले बल आघूर्ण का मान घटता या बढ़ता है, तो गतिपालक चक्र अपने अधिक जड़त्व आघूर्ण के कारण लगभग एक समान चाल से घूमता रहता है जिससे झटके वाली स्थिति से बच जाते हैं।

बच्चों के खिलौने के मोटर के नीचे भी एक छोटा सा गतिपालक चक्र लगा रहता है। इसे जमीन से रगड़ कर घुमाकर छोड़ देते हैं। जड़त्व आघूर्ण के कारण मोटर कुछ देर तक चलती रहती है।

प्रश्न 9.
बल आघूर्ण एवं जड़त्व में सम्बन्ध स्थापित कीजिए और इसकी सहायता से जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
बल आघूर्ण, जड़त्व आघूर्ण एवं कोणीय त्वरण में सम्बन्ध (Relation between Torque, Moment of Inertia and Angular Acceleration) :
किसी घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी बल का आघूर्ण बल एवं घूर्णन अक्ष से बल की क्रिया रेखा की लम्बवत् दूरी के गुणनफल से प्राप्त होता है; अर्थात्
बल आघूर्ण = बल × घूर्णन अक्ष से बल की क्रिया रेखा की लम्बवत् दूरी
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -26

या τ = F × r
∵ F = ma एवं a = r.a
जहाँ a रेखीय त्वरण एवं α कोणीय त्वरण है।
τ = ma × r = m × r α × r
या τ = mr²α
यदि पिण्ड बड़ा है तो उसे अनेक छोटे-छोटे द्रव्यमान कणों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं जिनके द्रव्यमान क्रमश: \(m_1, m_2, \ldots, m_n\) हैं। सभी कणों का कोणीय त्वरण पिण्ड के कोणीय त्वरण α के बराबर होगा। इन सभी कणों पर लगने वाले बल आघूर्णों का योग पूरे पिण्ड का बल आघूर्ण प्रदान करेगा। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -27
उक्त समीकरण में यदि α = 1 rad.s-2 तो τ = I “अर्थात् किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उस बल आघूर्ण के तुल्य है जो पिण्ड में एकांक कोणीय त्वरण उत्पन्न कर दे।”

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 10.
घूर्णन ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए एवं इसकी सहायता से जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
घूर्णन गतिज ऊर्जा (Rotational Kinetic Energy):
घूर्णन गति में किसी कण की गतिज ऊर्जा ही घूर्णन गतिज ऊर्जा कहलाती है। इसे ER से व्यक्त करते हैं। यदि m द्रव्यमान का कण घूर्णन अक्ष के परितः r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर v चाल से घूर्णन गति करता है तो उसकी घूर्णन गतिज ऊर्जा
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -28
यदि पिण्ड बड़ा है तो उसे अनेक छोटे-छोटे द्रव्यमान कणों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। इन कणों के द्रव्यमान क्रमशः \(m_1, m_2, m_3, \ldots, m_n\) एवं घूर्णन अक्ष से इनकी दूरियाँ क्रमश: \(r_1, r_2, r_3, \ldots, r_n\) हैं। चूँकि पूरा पिण्ड ω कोणीय वेग से घूर्णन गति करता है, अत: सभी कणों का कोणीय वेग ω होगा। सभी कणों की घूर्णन गतिज ऊर्जाओं का योग पूरे पिण्ड की घूर्णन गतिज ऊर्जा प्रदान करेगा; अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -29
जहाँ I = Σmr² = पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण
समी० (1) एक समान घूर्णन गति में घूर्णन ऊर्जा का सूत्र है। स्पष्ट है कि जिस प्रकार किसी पिण्ड की रेखीय गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2} m v^2\)) पिण्ड के द्रव्यमान m तथा रेखीय वेग के वर्ग v² के गुणनफल की आधी होती है; उसी प्रकार घूर्णन गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2} I \omega^2\)) पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण I एवं कोणीय वेग के वर्ग ω² के गुणनफल की आधी होती है।
समी० (1) में यदि ω = 1 rad.s-1
तो I = 2 Er
अर्थात् “किसी घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी पिण्ड का जड़त्त आघूर्ण उसकी घूर्णन ऊर्जा के दोगुने के तुल्य है जो पिण्ड में एकांक कोणीय वेग की अवस्था में होती है।”
यदि कोई पिण्ड अपनी अक्ष पर घूमने के साथ-साथ सरल रेखा में भी गतिमान हो (जैसे चलते हुए वाहनों के पहिए) तो उसकी कुल गतिज ऊर्जा उसकी घूर्णन गतिज ऊर्जा एवं रेखीय गतिज ऊर्जा के योग के बराबर होगी। अर्थात्
\(E_{\text {total }}=E_K+E_R[latex]
या [latex]E_{\text {total }}=\frac{1}{2} m v^2+\frac{1}{2} I \omega^2\) ………..(2)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 11.
सिद्ध कीजिए
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र की गति (Motion of Centre of Mass) :
माना एक निकाय n कणों से मिलकर बना है, जिसके द्रव्यमान \(m_1, m_2, m_3 \ldots . m_n\) हैं तथा स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}, \overrightarrow{r_2}, \vec{r}_3, \ldots . \vec{r}_n\) हैं। द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा के अनुसार इस निकाय के द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -30
न्यूटन के द्वितीय नियम से, पहले कण पर बल \(\vec{F}_1=m_1 \vec{a}_1\) तथा द्वितीय कण पर बल \(\overrightarrow{F_2}=m_2 \overrightarrow{a_2}\) तथा इसी प्रकार अन्य सभी कणों के लिए बल लेते हैं। अत:
\(M \overrightarrow{a c m}_{c m}=\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots . \vec{F}_n=\sum_{i=1}^n \vec{F}_i\)
सभी कणों पर लगने वाले बाह्य बलों का योग \(\vec{F}=\sum_{i=1}^n \vec{F}_i\) है। कणों के मध्य लाने वाले आन्तरिक बल, बराबर तथा विपरीत युग्म में होते हैं। अत: वे परस्पर निरस्त हो जाते हैं। इस प्रकार
\(M \overrightarrow{a_{c m}}=\vec{F}=\overrightarrow{F_{\mathrm{ext}}}\)
अत: निकाय का द्रव्यमान तथा द्रव्यमान केन्द्र के त्वरण का गुणनफल निकाय पर आरोपित बाह्म बलों के सदिश योग के बराबर होता है।

प्रश्न 12.
दिखाइये कि क्षैतिज से 8 कोण पर झुके तल पर बिना फिसले लुढ़कने वाले पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण निम्न सम्बन्ध द्वारा दिया जाता है-
\(a=\frac{g \sin \theta}{1+\frac{K^2}{R^2}}\)
जहाँ गुरुत्वीय त्वरण; K पिण्ड की घूर्णन त्रिज्या एवं R त्रिज्या है।
उत्तर:
नत तल पर लोटनी गति (Rolling Motion on Inclined Plane):
जब आनत तल पर कोई पिण्ड बिना फिसले लुढ़कता है तो पिण्ड की इस गति को लोटनी गति कहते हैं। इस गति में पिण्ड अपने द्रव्यमान केन्द्र के परित: अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करती है तथा साथ ही वस्तु का द्रव्यमान केन्द्र भी आगे बढ़ता है। इस प्रकार लोटनी गति में स्थानान्तरीय एवं घूर्णन गति दोनों प्रकार की गति होती है। नत तल पर जब वस्तु नीचे की ओर लोटनी गति करती है तो पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा कम होती है और गतिज ऊर्जा बढ़ती है।

माना एक नत तल θ° के कोण पर झुका है और तल के शीर्ष की ऊँचाई h है। शीर्ष से कोई पिण्ड स्वतन्त्रतापूर्वक नत तल पर छोड़ दिया जाता है तो लोटनी गति करते हुए नीचे आती है। तल के आधार पर पहुँचने पर पिण्ड की सम्पूर्ण स्थितिज ऊर्जा (M g h), पिण्ड की गतिज ऊर्जा \(\left(\frac{1}{2} M v^2\right)\) एवं घूर्णन ऊर्जा \(\left(\frac{1}{2} I \omega^2\right)\) में बदल जाती है। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -31

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प्रश्न 13.
कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
कोणीय संवेग संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Angular Momentum):
जब कोई पिण्ड एक बाह्य बल आघूर्ण के अन्तर्गत किसी अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करता है तो पिण्ड के कोणीय संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले बल आघूर्ण के बराबर होती है। अर्थात्
\(\vec{\tau}=\frac{d \vec{J}}{d t}\)
\(\text { यदि } \vec{\tau}=0 \text { तो } \frac{d \vec{J}}{d t}=0\)
\(\text { या } \vec{J}\text { नियतांक }\)
\(\text { या } J=I \omega\text { नियतांक }\)
अर्थात् “बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में कण या पिण्ड का कुल कोणीय संवेग नियत रहता है। यही कोणीय संवेग संरक्षण का नियम है।”
बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में यदि घूर्णन गति के दौरान किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण I1 से बदलकर I1 कर दिया जाये तो माना उसका कोणीय वेग ω1 से ω2 में बदल जाता है। अतः कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से,
I1ω1 = I2ω2 …………(1)

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प्रश्न 14.
दृढ़ पिण्डों के संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दृढ़ पिण्डों का संतुलन (Equilibrium of Rigid Bodies):
किसी पिण्ड पर आरोपित बल के कारण स्थानान्तरीय गति उत्पन्न होती है जिसके कारण पिण्ड के रेखीय संवेग में परिवर्तन होता है। रेखीय संवेग में परिवर्तन की दर आरोपित बल के बराबर होती है। ठीक उसी प्रकार यदि पिण्ड पर बल आघूर्ण क्रिया करता है तो पिण्ड घूर्णन गति करता है, जिसके कारण पिण्ड के कोणीय संवेग में परिवर्तन होता है और कोणीय संवेग में परिवर्तन की दर आरोपित बल आघूर्ण के बराबर होती है।

यदि बाह्म बल का मान शून्य हो जाये तो रेखीय संवेग नियत हो जाता है और यदि बल आघूर्ण शून्य हो जाये तो कोणीय संवेग का मान नियत हो जाता है। अत: स्पष्ट है बाह्य बल एवं बल आघूर्ण दोनों शून्य होने पर पिण्ड का रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण दोनों शून्य हो जाते हैं।
” किसी दृढ़ पिण्ड को यांत्रिक संतुलन की अवस्था में तब कहा जाता है जब इसके रेखीय व कोणीय दोनों प्रकार के संवेग समय के साथ न बदलें।” अर्थात् पिण्ड में न तो रेखीय त्वरण हो और न ही कोणीय त्वरण हो। इस प्रकार किसी पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए-
(i) पिण्ड पर लगने वाले सभी बलों का सदिश योग शून्य होना चाहिए, अर्थात्
\(\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots+\vec{F}_n=\sum_{i=1}^n F_i=0\) …………(1)
यदि पिण्ड पर लगने वाला कुल बल शून्य होगा तो उस पिण्ड के रेखीय संवेग में समय के साथ परिवर्तन नहीं होगा। समी० (1) को पिण्ड के स्थानान्तरीय संतुलन की शर्त कहते हैं।
समी० (1) को x, y व z घटकों के रूप में निम्न प्रकार लिख सकते
हैं-
\(\sum_{i=1}^n \vec{F}_{i x}=0 ; \sum_{i=1}^n \vec{F}_{i y}=0 ; \sum_{i=1}^n \vec{F}_{i z}=0\) ……….(2)

यहाँ Fix, Fiy व Fiz बल Fi के क्रमशः X, Y व Z दिशाओं में घटक हैं।

(ii) दृढ़ पिण्ड पर लगने वाले बल आघूर्णों का सदिश योग शून्य होना चाहिए, अर्थात्
\(\overrightarrow{\tau_1}+\overrightarrow{\tau_2}+\overrightarrow{\tau_3}+\ldots+\overrightarrow{\tau_n}=\sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_i}=0\) ………..(3)
यदि पिण्ड पर आरोपित कुल बल आघूर्ण शून्य है तो उसका कुल कोणीय संवेग समय के साथ नहीं बदलेगा। समीकरण (3) को पिण्ड के घूर्णी संतुलन की शर्त है। समी० (3) निम्न तीन समीकरणों के तुल्य हैं-
\(\sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i x}}=0 ; \sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i y}}=0 ; \sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i z}}=0\)

जहाँ, τix, τiy व τiz क्रमशः X, Y व Z दिशाओं में τi के घटक हैं। समीकरण (2) व (4) किसी दृढ़ पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए आवश्यक छः ऐसी शर्तें बताते हैं जो एक-दूसरे पर निर्भर नहीं करती हैं।

यदि किसी पिण्ड पर लगने वाले बल एक तल में हों तो पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए केवल तीनों शर्तों का पूर्ण होना आवश्यक होगा। इनमें से दो शर्तें स्थानान्तरीय संतुलन के संगत होंगी जिनके अनुसार सभी बलों के इस तल स्वच्छ चुनी गईं दो परस्पर लम्बवत् अक्षों के अनुदिश अवयवों का सदिश योग अलग-अलग शून्य होगा। तीसरी शर्त घूर्णी संतुलन के संगत है। बलों के तल के अभिलम्बवत् अक्ष के अनुदिश बल आघूर्णों का सदिश योग शून्य होगा।

एक पिण्ड आंशिक संतुलन में तभी हो सकता है अर्थात् दृढ़ पिण्ड स्थानान्तरीय संतुलन में तो हो, परन्तु घूर्णी संतुलन में न हो या फिर घूर्णी संतुलन में तो हो परन्तु स्थानान्तरीय संतुलन में न हो।

सुमेलन सम्बन्धित प्रश्न
(Matrix Matching Type Questions)

प्रश्न 1.
पृथ्वी की त्रिज्या व द्रव्यमान M है। यदि पृथ्वी की त्रिज्या सिकुड़कर आधी हो जाये जबकि उसका द्रव्यमान परिवर्तित न हो तो स्तम्भ को स्तम्भ ।। से सुमेलित कीजिए ।

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) पृथ्वी का कोणीय वेग(P) दो गुना हो जायेगा
(B) पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन का परिक्रमण काल(Q) चार गुना हो जायेगा
(C) पृथ्वी की घूर्णन गतिज ऊर्जा(R) नियत रहेगा
(S) कोई नहीं

उत्तर:

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) पृथ्वी का कोणीय वेग(R) नियत रहेगा
(B) पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन का परिक्रमण काल(S) कोई नहीं
(C) पृथ्वी की घूर्णन गतिज ऊर्जा(Q) चार गुना हो जायेगा

प्रश्न 2.
सूची (A) तथा सूची (B) को सुमेलित कीजिए ।

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) वृत्ताकार वलय ( इसके केन्द्र से गुजरने वाली एवं इसके तल के लम्बवत् अक्ष)(P) \(I=\frac{2}{5} M R^2\)
(B) वृत्ताकार डिस्क (ज्यामितीय अक्ष)(Q) \(I=\frac{2}{3} M R^2\)
(C) ठोस गोला (व्यास)(R) \(I=\frac{1}{2} M R^2\)
(D) खोखला गोला (व्यास)(S) \(I=M R^2\)

उत्तर:

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) वृत्ताकार वलय ( इसके केन्द्र से गुजरने वाली एवं इसके तल के लम्बवत् अक्ष)(S) \(I=M R^2\)
(B) वृत्ताकार डिस्क (ज्यामितीय अक्ष)(R) \(I=\frac{1}{2} M R^2\)
(C) ठोस गोला (व्यास)(P) \(I=\frac{2}{5} M R^2\)
(D) खोखला गोला (व्यास)(Q) \(I=\frac{2}{3} M R^2\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

आंकिक प्रश्न (Numerical Questions )

द्रव्यमान केन्द्र पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
1 kg तथा 3 kg के दो कण क्रमश: \((2 \hat{i}+3 \hat{j})\) तथा \((3 \hat{i}-4 \hat{j})\) ms-1 के वेग से गतिमान हैं। द्रव्यमान केन्द्र का वेग बताइये।
उत्तर:
\(\frac{1}{4}(11 \hat{i}-9 \hat{j})\)

प्रश्न 2.
तीन बिन्दु द्रव्यमान m1 = 1kg, m2 = 2 kg एवं m3 = 3 kg एक समबाहु त्रिभुज के तीनों शीर्षो पर स्थित हैं। त्रिभुज की प्रत्येक भुजा की लम्बाई ० है द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति के सापेक्ष
उत्तर:
\(-\left(\frac{7}{12} a, \frac{3 \sqrt{3}}{12} a, 0\right)\)

प्रश्न 3.
दो कणों के एक निकाय में, कणों के द्रव्यमान क्रमशः 2 व 5 kg हैं। इनकी स्थितियाँ t = 0 पर क्रमश: \((4 \hat{i}+3 \hat{j})\) तथा \((6 \hat{i}-3 \hat{j}+7 \hat{k})\) m हैं तथा उनके वेग क्रमशः \((10 \hat{i}-6 \hat{k})\) तथा \((3 \hat{i}+6 \hat{j})\) ms-1 है। इस कण तन्त्र के द्रव्यमान केन्द्र का वेग ज्ञात कीजिए | समय t = 0 तथा t = 4 पर द्रव्यमान केन्द्र की स्थितियाँ क्या होंगी?
उत्तर:
\(v_{C M}=\frac{1}{7}(35 \hat{i}+30 \hat{j}-12 \hat{k}) \mathrm{ms}^{-1}\)
\(t=0 \text { पर } \overrightarrow{r_{C M}}=\frac{1}{7}(38 \hat{i}-29 \hat{j}+35 \hat{k}) \mathrm{m}\)
\(t=4 \text { पर } \overrightarrow{r_{C M}}=\frac{1}{7}(178 \hat{i}+91 \hat{j}-13 \hat{k}) \mathrm{m}\)

बल आघूर्ण, कोणीय संवेग तथा घूर्णन गति के नियमों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
m द्रव्यमान का एक कण वेग से क्षैतिज से 6 कोण पर फेंका जाता है जब कण महत्तम ऊँचाई पर पहुँचता हैं तब प्रक्षेपण बिन्दु के परितः कोणीय संवेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
\(\frac{m v^3 \sin ^2 \theta \cos \theta}{2 g}\)

प्रश्न 5.
0.05 kg.m² जड़त्व आघूर्ण वाला एक गतिमान पहिया 10 चक्कर / मिनट से अपने अक्ष के परितः घूर्णन कर रहा है। उसको 5 गुना तेजी से घुमाने के लिए और कितना कार्य करना पड़ेगा?
उत्तर:
0.6573 J

प्रश्न 6.
20 kg द्रव्यमान का एक पिण्ड 0.20m व्यास के वृत्ताकार पथ पर 3 सेकण्ड में 100 चक्कर की दर से घूम रहा है। ज्ञात कीजिए – (i) पिण्ड की घूर्णन गतिज ऊर्जा, (ii) पिण्ड का कोणीय संवेग, r = 9.86
उत्तर:
(i) 4.382×10³ J
(ii) 41.87 J.s.

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 7.
किसी वलय (ring) का जड़त्व आघूर्ण 0.40 kg.m² है। यदि यह प्रति मिनट 2100 चक्कर लगा रही हो तो इसे 2s में रोकने के लिए कितने बल आघूर्ण की आवश्यकता होगी?
उत्तर:
44 N.m

प्रश्न 8.
एक व्यक्ति अपने हाथों में 10-10 kg के गोले लेकर 2s में 1 चक्कर लगाने वाली घूमती मेज पर खड़ा है। उसकी भुजाएं फैली हैं तथा प्रत्येक गोला घूर्णन अक्ष से 3 m दूर है। यदि वह व्यक्ति गोलों को दूर फेंक दे तो मेज का नया कोणीय वेग क्या होगा? व्यक्ति सहित मेज का जड़त्व आघूर्ण 15 kg.m² है।
उत्तर:
6.5 चक्कर / सेकण्ड

प्रश्न 9.
5 × 10 kg.m-4 जड़त्व आघूर्ण की एक चकती अपनी अक्ष के परितः 40 चक्कर / मिनट लगा रही है। यदि 0.02 Kg की मोम की एक गोली अक्ष से 0.08m की दूरी पर धीरे से गिरा दी जाती है। तो अब वह कितने चक्कर प्रति मिनट करेगी?
उत्तर:
31.85 चक्कर / मिनट

प्रश्न 10.
25 cm त्रिज्या तथा 5000 g द्रव्यमान का ऊर्ध्वाधर ठोस पहिया अपनी क्षैतिज धुरी पर घूमने के लिए स्वतन्त्र है। पहिए पर एक डोरी लिपटी है। डोरी को 2 N के बल से 55 तक खींचा जाता है। गणना कीजिए कि पहिया किस कोणीय वेग से घूमने लगेगा? (धुरी घर्षण रहित है।)
उत्तर:
16 rad.s-1

संतुलन पर आधारित

प्रश्न 11.
समान घनत्व की एक मीटर लम्बी छड़ 40 cm के निशान पर कीलकित की जाती है। 10g द्रव्यमान एक ब्लॉक 10 cm के चिन्ह पर लटकाया जाता है। यदि छड़ सन्तुलित अवस्था में हो तो उसका द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -32
उत्तर:
30 g

प्रश्न 12.
एक छड़ जिसका भार W है, दो समान्तर क्षुरधारों A व B पर आधारित है, क्षैतिज स्थिति में संतुलित है। क्षुरधारों के बीच की दूरी d है। छड़ का द्रव्यमान केन्द्र क्षुरधार A से x दूरी पर है। बिन्दु A व B पर अभिलम्ब प्रतिक्रियाएं ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
\(R_A=\frac{W(d-x)}{d} ; R_B=\frac{W \cdot x}{d}\)

जड़त्व आघूर्ण, घूर्णन गतिज ऊर्जा तथा संरक्षण के नियमों पर आधारित

प्रश्न 13.
लकड़ी के हल्के मीटर पैमाने 18 पर 200 g व 300 g के भार क्रमश: 20 cm व 70 cm के चिन्हों पर रखे हैं। इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण (i) 0cm; (ii) 50 cm (iii) 100 cm वाले चिन्हों से गुजरने वाली तथा मीटर पैमाने के लम्बवत् अक्षों के परितः ज्ञात
कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -33
उत्तर:
(i) 15.5 × 105 g.cm²;
(ii) 3 × 105 g.cm²;
(iii) 5.9 × 105 g.cm²

प्रश्न 14.
एक वृत्ताकार चकती जिसका द्रव्यमान 49 kg तथा त्रिज्या 50 cm है, अपनी अक्ष के परितः 120 घूर्णन / मिनट की दर से घुमायी जाती है। चकती की गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए।
उत्तर:
484J

प्रश्न 15.
एक मीटर लम्बी एक पतली छड़ पर पाँच बिन्दुवत् कण जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान 1 kg है, समान दूरी पर क्रमश: A, B, C, D और E पर चित्र के अनुसार स्थित हैं। छड़ का द्रव्यमान 0.5 है जो केन्द्रीय बिन्दु पर केन्द्रित माना गया है। इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण से पारित एवं छड़ के लम्बवत् अक्ष के सापेक्ष ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
2 kg.m²

प्रश्न 16.
यदि पृथ्वी अचानक सिकुड़ जाती है जिससे इसकी त्रिज्या पूर्व त्रिज्या की एक तिहाई रह जाये तो अब दिन कितना छोटा हो जायेगा? यह मान लीजिए कि द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है।
उत्तर:
21 घंटे 20 मिनट

प्रश्न 17.
एक पुच्छल तारें की सूर्य से अधिकतम एवं न्यूनतम दूरी क्रमश: 1.4 × 1012 m एवं 7 × 1010 m है। यदि सूर्य के निकटतम इसका वेग 6 × 104 ms-1 है तो दूरस्थ स्थिति में इसका वेग ज्ञात कीजिए। पुच्छल तारे का पथ वृत्ताकार माना गया है।
उत्तर:
3 × 10³ ms-1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 18.
एक 500 kg द्रव्यमान एवं 1 m त्रिज्या वाला गतिपालक चक्र 500 घूर्णन प्रति मिनट की दर से घूम रहा है। यह मानते हुए कि उसका सम्पूर्ण द्रव्यमान इसकी परिधि पर रहा है, निम्नलिखित की गणना कीजिए।
(i) कोणीय वेग (ii) जड़त्व आघूर्ण (iii) घूर्णन ऊर्जा ।
उत्तर:
(i) 52.33 rad.s-1
(ii) 500 kg.m²;
(iii) 6.85 × 105 J

लोटनी गति पर आधारित

प्रश्न 19.
10 kg द्रव्यमान तथा 20 cm त्रिज्या का एक गोला 5 mis के रेखीय वेग से एक क्षैतिज पर बिना फिसले लुढ़क रहा है। इसकी कुल गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
175 J

प्रश्न 20.
एक वृत्ताकार चकती का द्रव्यमान 0.05 kg तथा त्रिज्या 0.01 m है। यह क्षैतिज तल पर 0.05 ms-1 के वेग से लुढ़कता है। कुल गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए।
उत्तर:
9.4 × 10-5 J

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. बहुजीनी वंशागति में पर्यावरण के प्रभाव का उदाहरण है-
(अ) मानव त्वचा का रंग
(ब) डाउन सिन्ड्रोम
(स) फेनिल कीटोमेह रोग
(द) क्लाईनफेल्टर – सिन्ड्रोम
उत्तर:
(अ) मानव त्वचा का रंग

2. मेंडल के अध्ययन में मुख्यतः किन लक्षणों का वर्णन किया गया-
(अ) स्पष्ट विकल्पी रूप
(ब) अस्पष्ट विकल्पी रूप
(स) 50% स्पष्ट विकल्पी तथा 50% अस्पष्ट विकल्पी रूप
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) स्पष्ट विकल्पी रूप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

3. लक्षण सामान्यत: तीन अथवा अधिक जीनों द्वारा नियंत्रित करते हैं उन्हें कहते हैं-
(अ) बहुप्रभाविता के लक्षण
(ब) बहुजीनी लक्षण
(स) एकजीनी लक्षण
(द) न्यूनजीनी लक्षण
उत्तर:
(ब) बहुजीनी लक्षण

4. तीन प्रभावी अलील तथा तीन अप्रभावी अलील वाले जीनोटाइप की त्वचा का रंग होगा-
(अ) अग्रवर्ती
(ब) मध्यवर्ती
(स) पश्चवर्ती
(द) कोई अन्तर नहीं आयेगा
उत्तर:
(ब) मध्यवर्ती

5. एक एकल जीन अनेक फीनोटाइप लक्षणों को प्रकट करता है, ऐसे जीन को कहते हैं-
(अ) बहुप्रभावी जीन
(ब) लीथल जीनं
(स) लिंग जीन
(द) सहलग्न जीन
उत्तर:
(अ) बहुप्रभावी जीन

6. फेनिल कीटोमेह व्याधि किसका उदाहरण है ?
(अ) सहप्रभाविता का
(ब) बहुप्रभाविता का
(स) अपूर्ण प्रभाविता का
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(ब) बहुप्रभाविता का

7. फेनिल कीटोमेह व्याधि का लक्षण है-
(अ) मानसिक मंदन
(ब) बालों का कम होना
(स) त्वचीय रंजन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. फेनिल कीटोमेह व्याधि किस एन्जाइम के लिए उत्तरदायी जीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है ?
(अ) फेनिल हाइड्रोक्सीलेज
(ब) एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज
(स) फेनिल कीटो हाइड्रोक्सीलेज
(द) फेनिल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज ।
उत्तर:
(द) फेनिल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज ।

9. अगुणित – द्विगुणित लिंग निर्धारण प्रणाली पायी जाती है-
(अ) मानव में
(ब) मधुमक्खी में
(स) कबूतर में
(द) बंदर में
उत्तर:
(ब) मधुमक्खी में

10. मधुमक्खी के एक शुक्राणु एवं अण्डे के युग्मन से उत्पन्न संतति होगी-
(अ) रानी तथा श्रमिक
(ब) ड्रोन व रानी
(स) श्रमिक तथा नर
(द) रानी तथा नर
उत्तर:
(अ) रानी तथा श्रमिक

11. अनिषेचित अण्ड अनिषेकजनन (Parthenogenesis ) द्वारा विकसित होते हैं-
(अ) श्रमिक
(ब) रानी
(स) नर
(द) नर एवं रानी
उत्तर:
(स) नर

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12. मादा मधुमक्खी में क्रोमोसोम की संख्या होती है-
(अ) 32
(ब) 16
(स) 30
(द) 34
उत्तर:
(अ) 32

13. किस रोग में व्यक्ति लाल एवं हरे वर्ण (रंग) में विभेद नहीं कर पाता-
(अ) वर्णांधता
(स) दात्रकोशिका अरक्तता
(ब) फीनाइल कीटोनूरिया
(द) थैलीसिमिया
उत्तर:
(अ) वर्णांधता

14. HBA1 एवं HBA2 किस रोग से सम्बन्धित हैं-
(अ) वर्णांधता
(ब) थैलेसीमिया
(स) दात्रकोशिका अरक्तता
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(ब) थैलेसीमिया

15. नर (ड्रोन) किस विभाजन द्वारा शुक्राणु उत्पादित करते हैं-
(अ) अर्धसूत्री विभाजन
(स) समसूत्री विभाजन
(ब) असूत्री विभाजन
(द) कोशिकाद्रव्य विभाजन
उत्तर:
(स) समसूत्री विभाजन

16. अगुणित 16 क्रोमोसोम निम्न में से किसमें होता है-
(अ) नर में
(स) श्रमिक में
(ब) मादा में
(द) नर व मादा दोनों में
उत्तर:
(अ) नर में

17. विकृत हीमोग्लोबिन का संश्लेषण किस रोग में होता है ?
(अ) वर्णांधता
(स) थैलेसीमिया
(ब) दात्रकोशिका अरक्तता
(द) फीनाइलकीटोन्यूरिया
उत्तर:
(स) थैलेसीमिया

18. थैलेसीमिया रोग का नियंत्रण किस जीन द्वारा किया जाता है-
(अ) HBA1 एवं HBA2
(ब) HBA3 एवं HBA4
(स) HBA1 एवं HBA5
(द) HBA6 एवं HBA7
उत्तर:
(अ) HBA1 एवं HBA2

19. मेंडल की सफलता का मुख्य कारण था-
(अ) मटर के पौधे का चयन किया था
(ब) अपने संकरण में केवल एक लक्षण को एक बार में लिया
(स) वंशावली अभिलेख रखे थे
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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20. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम सिद्ध किया जाता है-
(अ) F1 पीढ़ी की समस्त संतति लम्बी होती है
(ब) लम्बे तथा बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में प्रकटन द्वारा
(स) F2 पीढ़ी में चिकने तथा झुर्रीदार बीजों वाले पौधों के प्रकटनद्वारा
(द) F2 पीढ़ी में लम्बे तथा बौने पौधों के प्रकटन द्वारा
उत्तर:
(स) F2 पीढ़ी में चिकने तथा झुर्रीदार बीजों वाले पौधों के प्रकटनद्वारा

21. एक संकर संकरण की F2 पीढ़ी का लक्षण प्ररूप अनुपात होता है-
(अ) 9 : 33 : 1
(ब) 3 : 1
(स) 1 : 1
(द) 2 : 1
उत्तर:
(ब) 3 : 1

22. लाल तथा सफेद के संकरण से उत्पन्न संतति गुलाबी है। इसमें R जीन किस प्रकार का होना सिद्ध करता है-
(अ) संकर
(ब) अप्रभावी
(स) अपूर्ण प्रभावी
(द) उत्परिवर्ती
उत्तर:
(स) अपूर्ण प्रभावी

23. रुधि वर्ग AB समूह वाले मनुष्य का जीनोटाइप प्रभाव दिखाई
(अ) प्रभावी अप्रभावी देती है, जो कहलाता है-
(ब) अपूर्ण प्रभाविता
(स) सहप्रभाविता
(द) संपूरक
उत्तर:
(स) सहप्रभाविता

24. निम्न में से मंडलीय विकार है-
(अ) सिस्टिक फाइब्रोसिस
(ब) वर्णांधता
(स) थैलेसीमिया
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

25. एक X क्रोमोसोम का अभाव अर्थात 45 क्रोमोसोम की (XO) स्थिति, किस रोग में होती है-
(अ) टर्नर सिन्ड्रोम
(ब) क्लाइनफेल्टर
(स) डाउन सिन्ड्रोम
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) टर्नर सिन्ड्रोम

26. ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर पर आनुवंशिक अध्ययन करने वाले थे-
(अ) सटन
(ब) बोवेरी
(स) मोरगन
(द) मेंडल
उत्तर:
(स) मोरगन

27. मेंडल के आनुवंशिकी नियमों का अपवाद है-
(अ) सहलग्नता
(ब) पूर्ण प्रभाविता
(स) समयुग्मता
(द) विपर्यासी लक्षण
उत्तर:
(अ) सहलग्नता

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28. इनमें कौनसा परीक्षण क्रॉस है-
(अ) F1 × कोई सा जनक
(ब) F1 × F1
(स) F1 × अप्रभावी जनक
(द) F2 × प्रभावी जनक
उत्तर:
(स) F1 × अप्रभावी जनक

29. मेंडल के वंशागति नियमों की पुनः खोज करने वाले थे-
(अ) डीब्रिज, सटन
(ब) डीब्रिज, कॉरेन्स, बोवेरी
(स) सटन, बोवेरी, बान शेरमाक
(द) डीब्रिज, कॉरेन्स, वान शेरमाक
उत्तर:
(द) डीब्रिज, कॉरेन्स, वान शेरमाक

30. HBAI एवं HBA2 जीन जनक के कौनसे क्रोमोसोम पर स्थित होती है-
(अ) क्रोमोसोम 15
(ब) क्रोमोसोम 16
(स) क्रोमोसोम 17
(द) क्रोमोसोम -18
उत्तर:
(ब) क्रोमोसोम 16

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
आनुवंशिक विज्ञान में किसका अध्ययन होता है ?
उत्तर:
इस शाखा में वंशागति व विविधता दोनों का अध्ययन होता है।

प्रश्न 2.
मेंडल ने मटर के पौधे के किन लक्षणों पर विचार किया ?
उत्तर:
मेंडल ने विपरीतार्थ लक्षणों पर विचार किया, इन्हें विपर्यासी लक्षण (Contrasting Character) भी कहते हैं। उदाहरण – लंबे या बौने पौधे, पीले या हरे बीज ।

प्रश्न 3.
तद्रूप प्रजनन – सम (True Breeding) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वह लक्षण जो अनेक पीढ़ियों तक स्व-परागण के फलस्वरूप वही लक्षण प्रकट करता हो ।

प्रश्न 4.
मेंडल ने मटर की कितनी तद्रूप प्रजननी किस्मों को चुना ?
उत्तर:
14 तद्रूप प्रजननी मटर किस्मों को चुना।

प्रश्न 5.
मेंडल के प्रयोगों में F1 से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रथम संतति पीढ़ी (Filial Progeny)।

प्रश्न 6.
समयुग्मजी व विषमयुग्मजी को समझाइये
उत्तर:
यदि पौधे की आनुवंशिक संरचना में किसी युग्म के दोनों विकल्प (alleles) गुण एकसमान हों जैसे (RR), तो पौधों को समयुग्मजी (homozygous) पादप कहते हैं। जब युग्म (gene pair) के दोनों विकल्प भिन्न हों, जैसे Rr, तो पादप को विषमयुग्मजी ( heterozygous) कहते हैं।

प्रश्न 7.
जीन प्ररूप (genotype ) व लक्षण प्ररूप ( phenotype ) को समझाइये।
उत्तर:
पौधे के बाहरी दिखने वाले लक्षण जैसे लाल, लम्बा आदि को लक्षण प्ररूप कहते हैं तथा उसमें स्थित जीनी संरचना को जीन प्ररूप कहते हैं; जैसे -RR, Rr आदि।

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प्रश्न 8.
द्विसंकर संकरण का लक्षण व जीन प्ररूप बताइये।
उत्तर:
लक्षण प्ररूप 9 : 3 : 3 : 1
जीन प्ररूप 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 2 : 1

प्रश्न 9.
द्विसंकर परीक्षण संकरण में लक्षण प्ररूप व जीन प्ररूप का अनुपात बताइये।
उत्तर:
लक्षण प्ररूप व जीन प्ररूप दोनों 1 : 1 : 1 : 1 अनुपात में होते हैं।

प्रश्न 10.
सह-प्रभाविता से क्या समझते हैं ? उदाहरण बताइये।
उत्तर:
इसमें F1 पीढ़ी दोनों जनकों से मिलती-जुलती है। इसका अच्छा उदाहरण मानव ABO रुधिर वर्ग है।

प्रश्न 11.
वाल्टर सटन और थियोडोर बोवेरी का क्या कार्य था ?
उत्तर:
इन्होंने बताया कि गुणसूत्रों का व्यवहार जीन जैसा होता है। इन्होंने मेंडल के नियमों को गुणसूत्रों की गतिविधि द्वारा समझाया। इन्होंने गुणसूत्रों के विसंयोजन के ज्ञान को मेंडल के सिद्धान्तों के साथ जोड़कर ‘वंशागति का क्रोमोसोमवाद या सिद्धान्त’ प्रस्तुत किया।

प्रश्न 12.
व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal Cross) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्रयोग में मुख्य जनक का उपयोग दो अलग-अलग प्रयोगों में विपरीत तरीके से किया जावे, जैसे पहले प्रयोग में यदि ‘A’ नर तथा ‘B’ मादा होगा तो दूसरे प्रयोग में ‘B’ को नर तथा ‘A’ को मादा के रूप में प्रयोग में लाते हैं। इस प्रकार के संकरण को व्युत्क्रम संकरण कहते हैं।

प्रश्न 13.
सहलग्नता, पुनर्योजन (Recombination) शब्द किसने दिया तथा रीकोम्बीनेशन मैप बनाने वाले कौन थे ?
उत्तर:
मोरगन ने सहलग्नता व पुनर्योजन शब्द दिया तथा इनके शिष्य एल्फ्रेड स्टर्टीवेंट ने रीकोम्बीनेशन मैप बनाया।

प्रश्न 14.
‘X काय’ नाम किसने दिया व मानव में लिंग निर्धारण किससे होता है?
उत्तर:
हेंकिंग ने ‘X काय’ नाम दिया। मानव में XX व XY से लिंग निर्धारण होता है।

प्रश्न 15.
फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन किससे होता है ?
उत्तर:
DNA के क्षार युग्मों के घटने-बढ़ने से फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन होता है।

प्रश्न 16.
मानव में वंशागत ऐसे दो लक्षण दीजिए जिनके जीन्स लिंग गुणसूत्र पर स्थित हों।
उत्तर:
सिकिल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) तथा गंजापन (Boldness) मानव में वंशागत होने वाले लक्षण हैं। इनके जीन्स लिंग गुणसूत्र पर स्थित नहीं होते हैं।

प्रश्न 17.
यदि किसी बच्चे में 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र हों तो उस बच्चे में किस प्रकार के विकार की सम्भावना है?
उत्तर:
उस बच्चे में ‘मंगोलिक विकार’ नामक विकार होने की सम्भावना होगी।

प्रश्न 18.
विषमयुग्मकता (Heterogamety) क्या है? एक जीव का उदाहरण दीजिए, जो इसे प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
जिन जीवों में लिंग गुणसूत्र भिन्न प्रकार के होते हैं वे दो प्रकार के युग्मक उत्पन्न करते हैं, अतः ये विषमयुग्मकता प्रदर्शित करते हैं। उदा. ड्रॉसोफिला नर।

प्रश्न 19
सहप्रभाविता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
‘A’, ‘B’ तथा ‘O’ रुधिर वर्गों के जीन्स सहप्रभावी ( Codominant) होते हैं।

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प्रश्न 20.
सामान्य जनकों के यहाँ हीमोफीलिया युक्त पुत्र का जन्म हुआ। उनके जनकों का जीनोटाइप बताइये।
उत्तर:
एक हीमोफिलिक पुत्र का जन्म एक सामान्य जनकों के यहाँ माता के वाहक होने पर हो सकता है-
अतः पिता सामान्य = XY
माता वाहक = XXh

प्रश्न 21.
बिन्दु उत्परिवर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर:
डीएनए के एकल क्षार युग्म ( बेस पेयर) के परिवर्तन को बिन्दु उत्परिवर्तन (Point mutation) कहते हैं।

प्रश्न 22.
मेण्डल के द्विसंकरण प्रयोग का समलक्षणी (फीनोटाइप) अनुपात लिखिए।
उत्तर:
मेण्डल के द्विसंकरण प्रयोग का समलक्षणी (फीनोटाइप) अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 है।

प्रश्न 23.
वंशागति के ‘गुणसूत्र सिद्धान्त’ को प्रतिपादित करने वाले वैज्ञानिकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सटन और बोवेरी।

प्रश्न 24.
मानव में पाये जाने वाले अलिंग सूत्री प्रभावी तथा अलिंग सूत्री अप्रभावी मेण्डलीय दोष से प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
मायोटोनिक दुष्पोषण (डिस्ट्रोफी), दात्र कोशिका अरक्तता ( सिकल सेल एनीमिया ) ।

प्रश्न 25
बिंदु उत्परिवर्तन के कारण कौन-सा रोग होता है ?
उत्तर:
दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia)।

प्रश्न 26.
मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन के कोई दो उपयोग लिखिये।
उत्तर:
इसका उपयोग विशेष लक्षण, अपसामान्यता या रोग का पता लगाने में किया जाता है।

प्रश्न 27.
वाल्टर सटन द्वारा प्रस्तुत वंशागति के सिद्धांत का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘ वंशागति का क्रोमोसोमवाद या सिद्धान्त’।

प्रश्न 28.
उत्परिवर्तजन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन रासायनिक और भौतिक कारकों द्वारा उत्परिवर्तन होता है, उन्हें उत्परिवर्तजन (म्यूटाजन) कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
दो माता-पिता श्री X व श्रीमती X तथा श्री Y व श्रीमती Y एक ही बच्चे को अपनी-अपनी सन्तान बताते हैं। श्री व श्रीमती X दोनों का ही रुधिर वर्ग A तथा श्री Y का रुधिर वर्ग O व श्रीमती Y का रुधिर वर्ग AB है। परन्तु बच्चे का रुधिर वर्ग O है । बताइए कि वह बच्चा किसका हो सकता है और क्यों?
उत्तर:
श्री व श्रीमती X का रुधिर वर्ग A होने पर उनकी सन्तान का रुधिर वर्ग A या O हो सकता है। इसी प्रकार श्री Y का रुधिर वर्ग O तथा श्रीमती Y का रुधिर वर्ग AB होने पर उनकी सन्तान का रुधिर वर्ग A या B होगा ।

माता-पिता का रुधिर वर्ग

 

सन्तान का रुधिर वर्ग
हो सकता हैनहीं हो सकता
1. श्री व श्रीमती X A×AA या OB, AB
2. श्री व श्रीमती O×ABA या BAB या O

क्योंकि बच्चे का रुधिर वर्ग O है अतः उपरोक्त परिणामानुसार बच्चा श्री व श्रीमती X का है।

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प्रश्न 2.
सामान्य पुरुष तथा हीमोफीलिया से ग्रस्त स्त्री द्वारा हीमोफीलिया की वंशागति को बताइये ।
उत्तर:
जब एक सामान्य पुरुष किसी हीमोफिलिक स्त्री से विवाह करता है तो उसके सभी पुत्र हीमोफिलिक रोग से ग्रस्त होंगे तथा पुत्रियाँ हीमोफीलिया जीन की वाहक होंगी।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 1

प्रश्न 3.
एक पुरुष का रुधिर वर्ग ‘A’ है तथा उसकी स्त्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। इनके बच्चे किस रुधिर वर्ग के नहीं होंगे? कारण सहित बताइये।
उत्तर:
पुरुष का रुधिर वर्ग ‘A’ है अतः जीनी संरचना = IAIA/IAIO स्त्री का रुधिर वर्ग -‘O’ है अतः जीनी संरचना = IoIo रुधिर वर्ग प्रदर्शित करने वाली तीन जीन Ia , Ib तथा Io होती हैं। इनमें से  Ia  व  Ib  सहप्रभावी (Co-dominant ), परन्तु Io दोनों का अप्रभावी होता है। इस प्रकार इनके दो क्रॉस सम्भव हैं-

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इस प्रकार शिशु का रुधिर वर्ग ‘A’ या ‘O’ सम्भव है। ‘A’ रुधिर वर्ग होने पर यह ‘B’ तथा ‘O’ वर्ग वाले व्यक्तियों के लिये हानिकारक होगा, परन्तु ‘O’ होने पर यह सार्विक दाता होगा। अतः यह किसी भी व्यक्ति को हानिकारक नहीं होगा।

प्रश्न 4.
दात्र कोशिका अरक्तता या सिकेल सेल रक्ताल्पता (Sickle Cell Anaemia) की वंशागति को समझाइये
उत्तर:
इस रोग की प्रकृति आनुवंशिक है जो एक अप्रभावी जीन (HbS) के कारण होती है। यह जीन आटोसोमल होती है तथा अपूर्ण प्रभावी जीन (HbA) के साथ होने पर अर्थात् विषमयुग्मजी (HbA HbS ) अवस्था में कम या आंशिक रूप से परन्तु समयुग्मजी ( HbSHbS) होने पर पूर्ण रोग उत्पन्न करती है। विषमयुग्मजी अवस्था वाला व्यक्ति कम थकान का कार्य करके सामान्य व्यक्ति के जैसे जीता है। किन्तु समयुग्मजी अप्रभावी (HbS HbS) जीन वाले व्यक्ति में सभी RBC पिचककर हंसिये की जैसे हो जाती हैं और वे व्यर्थ की हो जाती हैं, अन्ततः ऐसे रोगी की मृत्यु हो जाती है।

वंशागति को निम्न चित्र से समझाया गया है –
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प्रश्न 5
हीमोफीलिया की वंशागति को समझाइये
उत्तर:
प्रायः पुरुष ही हीमोफीलिया रोग से ग्रसित होते हैं, स्त्रियाँ इस रोग की वाहक होती हैं। इस रोग से ग्रसित पुरुष भी प्राय: बाल्यावस्था या यौवन से पूर्व ही मर जाते हैं। वाहक स्त्रियों के द्वारा ही सामान्यतः इस रोग की वंशानुगति होती है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 4

प्रश्न 6.
सहलग्नता किसे कहते हैं? पक्षियों में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर:
गुणसूत्र पर दो जीनों का भौतिक संयोग या जुड़े होने को मोरगन ने सहलग्नता बताया था। पक्षियों में लिंग गुणसूत्रों को Z व W गुणसूत्र कहा जाता है। इनमें मादा के अन्दर एक Z तथा एक W गुणसूत्र होता है जबकि नर में अलिंग गुणसूत्रों के अलावा Z-गुणसूत्र का एक जोड़ा होता है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 5

प्रश्न 7.
सहप्रभाविता से क्या अभिप्राय है? मानव में रुधिर वर्ग का उदाहरण देकर सहप्रभाविता को समझाइए।
उत्तर:
जब प्रभावी व अप्रभावी दोनों एलील स्वतन्त्र रूप से अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं तो उसे सहप्रभाविता (codominance) कहते हैं अर्थात् इसमें F1 पीढ़ी दोनों जनकों से मिलती-जुलती है। इसका एक अच्छा उदाहरण मानवों में ABO रुधिर वर्गों का निर्धारण करने वाली विभिन्न प्रकार की लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC) हैं। ABO रुधिर वर्गों का नियंत्रण जीन ‘I’ करती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

RBC की प्लाज्मा झिल्ली में सतह से बाहर निकलते हुए शर्करा बहुलक होते हैं। इस बहुलक का प्रकार क्या होगा यहाँ इस बात का नियंत्रण जीन ‘I’ से होता है। इस जीन ‘I’ के तीन अलील IA IB और i होते हैं। अलील IA और अलील IB कुछ भिन्न प्रकार की शर्करा का उत्पादन करते हैं और अलील i किसी भी प्रकार की शर्करा का उत्पादन नहीं करती। मानव जीन (2n) द्विगुणित होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में इन तीन में से दो प्रकार के जीन अलील होते हैं।

और IA तो के ऊपर पूर्णरूप से प्रभावी होते हैं अर्थात् जब IA और तो केवल IB अभिव्यक्त होता है और जब IB और विद्यमान हों तो केवल ” अभिव्यक्त होता है, तो शर्करा बनाता ही नहीं है। विद्यमान हों जब IA और IB दोनों उपस्थित हों तो ये दोनों अपने-अपने प्रकार की शर्करा की अभिव्यक्ति कर देते हैं। यह घटना ही सह प्रभाविता है। इसी कारण RBC में A और B दोनों प्रकारों की शर्करा होती है।

प्रश्न 8.
मानव में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
मानव में लिंग निर्धारण XY प्रकार का होता है। मानव में कुल 23 जोड़े अर्थात् 46 गुणसूत्र होते हैं। नर में 44 गुणसूत्र अलिंग गुणसूत्र (Autosomes ) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome ) ‘X’ तथा ‘Y’ होते हैं। स्त्री या मादा में भी 44 गुणसूत्र ऑटोसोम (Autosomes) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र ‘X’ व ‘Y’ होते हैं। जब शुक्राणु बनते हैं तो 50% शुक्राणु 22+X गुणसूत्र वाले तथा शेष 50% शुक्राणु 22+Y गुणसूत्र वाले होते हैं।

जबकि स्त्री या मादा के सभी अण्डों में 22+X गुणसूत्र होते हैं। सन्तान मैं कितनो लड़कियाँ ताकि लड़के यह इस पर निर्भर करता है कि कौनसा शुक्राणु अण्ड से निषेचित करता है। मानव में नर बच्चे का होना ‘Y’ गुणसूत्र की उपस्थिति पर निर्भर करता है। एक शुक्राणु में केवल ‘X’ या ‘Y’ लिंग गुणसूत्र ही हो सकता है, अतः पिता का ‘X’ गुणसूत्र लड़कियों में तथा ‘Y गुणसूत्र लड़कों में मिलता है।
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निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बहुविकल्पता या बहुगुण ऐलीलवाद ( Multiple Allelism) को मानव रुधिर वर्ग की सहायता से बताइये ।
उत्तर:
मेंडल के नियमों के अनुसार, परन्तु उसके आधारभूत कारक युग्म (Factor Pairs) के सिद्धान्त से हटकर बहुगुण ऐलीलंवाद पाया जाता है। इस प्रकार की वंशागति दो या दो से अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स या एलील्स (Alleles) पर निर्भर करती है। मानव में रुधिर वर्गों की वंशागति बहु-विकल्पता का उदाहरण है।

मानव की आबादी में चार प्रकार के रुधिर वर्ग A, B, AB तथा 0 पाये जाते हैं। रुधिर वर्ग का वर्गीकरण इनमें पाये जाने वाले एन्टीजन (Antigen ) के आधार पर होता है। मानव के रुधिर प्लाजमा में इन प्रतिजनों के प्रति विशिष्ट प्रोटीन्स पाये जाते हैं, जिन्हें प्रतिरक्षी (Antibodies) कहते हैं।

रुधिर वर्ग (Blood Group)प्रतिजन (Antigen)प्रतिरक्षी (Antibodies)
AAAnti-B or ‘b’
BBAnti-A or ‘A’
ABA,Bअनुपस्थित
Oनहीं‘a’ और ‘b’

मानव में रुधिर वर्ग वंशानुगत लक्षण है एवं जनकों से संततियों में मेंडल के नियम के आधार पर वंशानुगत होते हैं। रुधिर वर्ग की वंशागति जनकों से प्राप्त होने वाले जीन्स पर निर्भर करती है। जीन्स जो मनुष्य में रुधिर वर्गों को नियंत्रित करते हैं उनकी संख्या दो के स्थान पर तीन होती है एवं मल्टीपल एलील्स (बहुविकल्पी) कहलाते हैं। अर्थात् दो से अधिक यानी तीन अलील एक ही लक्षण को नियंत्रित करते हैं।

ये सभी तीनों जीन या एलील्स समजात गुणसूत्र में एक ही लोकस (स्थान) पर पाये जाते हैं। एक व्यक्ति में इन तीनों जीनों में से एक साथ केवल दो जीन ही पाये जा सकते हैं, जो प्रकृति में दोनों समान या असमान हो सकते हैं। ये जीन्स ही संतति में रुधिर वर्ग / एन्टीजन्स के उत्पादन को नियंत्रित करते हैं।

जीन जो कि एन्टीजन A उत्पन्न करता है उसे IA से चिन्हित करते हैं, एन्टीजन B के लिये IB जीन एवं दोनों एन्टीजन की अनुपस्थिति के लिये I° जीन होती है। अक्षर I का प्रचलन एक लोकस पर जीन की उपस्थिति दिखाने के लिये आधारीय प्रतीक के रूप में किया जाता है (I = आइसोहीमएग्लूटीनोजन)। इस प्रकार मानव जनसंख्या में चार रुधिर वर्गों के लिये छः प्रकार के जीनोटाइप सम्भव हैं।

संतति का जीनोटाइपसंतति का रुधिर वर्ग
Ia IaA
Ia IoA
IbIbB
IbIoB
IaIbAB
IoIoO

इस आधार पर ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का चित्रात्मक प्रदर्शन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(i) रुधिर वर्ग A के लिये समयुग्मजी पुरुष (IaIa) द्वारा O रुधिर वर्ग वाली स्त्री (या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सन्तानों का रुधिर वर्ग A होगा ।
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सभी सन्तानें A रुधिर वर्ग के लिये विषमयुग्मजी हैं।

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(ii) रुधिर वर्ग B के लिये समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग की स्त्री ( या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सन्तानों में रुधिर वर्ग B होगा ।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 8

सभी सन्तानें रुधिर वर्ग B के लिये विषमयुग्मजी होंगी।

(iii) A रुधिर वर्ग के लिये समयुग्मजी पुरुष द्वारा B रुधिर वर्ग की समयुग्मजी स्त्री से विवाह करने पर सन्तानें AB रुधिर वर्ग की होंगी ।
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सभी सन्तानें AB रुधिर वर्ग की होंगी।

(iv) AB रुधिर वर्ग वाले पुरुष द्वारा AB रुधिर वर्ग वाली स्त्री से विवाह करने पर 25% सन्तानें A रुधिर वर्ग की, 50% AB रुधिर वर्ग की तथा 25% सन्तानें B रुधिर वर्ग की होंगी।
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(v) विषमयुग्मजी A तथा B रुधिर वर्ग वाले स्त्री-पुरुषों से उत्पन्न सन्तानों में चारों प्रकार की सन्तानें 1:1:1:1 के अनुपात में उत्पन्न होने की सम्भावना है।
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(vi) यदि स्त्री व पुरुष के रुधिर वर्ग क्रमशः AB तथा O हैं तो उनकी सन्तानों में केवल A अथवा B रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
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प्रश्न 2.
अपूर्ण प्रभाविता क्या है? श्वान पुष्प नामक पौधे में अपूर्ण प्रभाविता को चैकर बोर्ड द्वारा समझाइए । फीनोटाइप व जीनोटाइप अनुपात भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance)-
मेंडल ने मटर पर प्रयोग कर प्रभावी व अप्रभावी लक्षणों के विषय में बताकर प्रभाविता का नियम भी दिया। किन्तु इसी प्रकार के प्रयोग कुछ अन्य पादपों में करने पर यह देखा कि F1 में जो लक्षण उत्पन्न होता है वह किसी भी जनक से नहीं मिलता है, वस्तुतः प्रकट होने वाला लक्षण दोनों जनकों के मध्य का होता है। अतः यहाँ प्रभावित का नियम लागू नहीं होता, वरन् यह मेंडल के नियमों का अपवाद है। इसे अपूर्ण प्रभावित कहते हैं।

श्वान पुष्प या एंटीराइनम (Snap dragon or antirrhinum majus) में जब शुद्ध लाल पुष्प वाली (RR) और शुद्ध सफेद पुष्य (rr) वाली प्रजाति के बीच क्रॉस करवाया गया तो F1 में गुलाबी पुष्पों (Rr) वाली संतति प्राप्त हुई। जब F1 संतति को स्व-परागित किया गया तो परिणामों का अनुपात 1(RR) लाल : 2(Rr) गुलाबी (rr) सफेद था।

यहाँ जीनोटाइप अनुपात तो मेंडलीय एकसंकरण की (1 : 2 : 1) जैसे ही है परन्तु फीनोटाइप अनुपात 3: 1 के स्थान पर 1: 2: 1 हो जाता है। यहाँ R कारक पूर्ण रूप से r पर प्रभावी न होकर अपूर्ण प्रभावी होता है (चित्र 5.5)। गुलावास पादप (Mirabillus jalapa or 4 ‘o’ clock plant) में भी अपूर्ण प्रभाविता पाई जाती है।

प्रभाविता नामक संकल्पना का स्पष्टीकरण-जैसा ज्ञात है कि प्रत्येक जीन में विषेष लक्षण को अभिव्यक्त (Experss) करने की क्षमता होती है। द्विगुणित जीव में प्रत्येक लक्षण को नियंत्रित करने वाली जीन के दो प्रारूप विद्यमान होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि जीन के दोनों प्रारूप सदैव एक जैसे हों। इनमें से कभी-कभी भिन्नता के कारण परिवर्तन आ जाता है।

उदाहरण के लिये एक ऐसी जीन जिसमें एक विशेष एन्जाइम को उत्पन्न करने की सूचना है। इस जीन के दोनों प्रतिरूप इसके दो अलील रूप हैं। मान लेते हैं कि सामान्य अलील ऐसा एन्जाइम उत्पन्न करता है जो एक सबस्ट्रेट ‘S’ के रूपान्तरण के लिये जरूरी है। रूपान्तरित अलील निम्न में से किसी एक परिवर्तन हेतु उत्तरदायी हो सकता है-

  • सामान्य एन्जाइम या
  • कार्य अक्षम एंजाइम निर्मित करना या
  • एन्जाइम अनुपस्थित होना।

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प्रथम परिवर्तन में रूपान्तरित अलील ठीक अरूपांतरित अलील की जैसे कार्य कर रहा है अर्थात् यह सबस्ट्रेट ‘S’ को बदलकर वही फीनोटाइप (जो होना चाहिए) का उत्पादन करेगा। परन्तु जब अलील किसी भी प्रकार के एन्जाइम का उत्पादन नहीं करता या अक्षम एन्जाइम का उत्पादन करता है तो फीनोटाइप प्रभावित हो सकता है।

वस्तुत: फीनोटाइप अरूपान्तरित अलील के कार्य पर निर्भर होता है। सामान्यत: अरूपान्तरित अलील प्रभावी व रूपान्तरित अलील अप्रभावी होता है। अतः इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि अप्रभावी अलील के उपस्थित होने पर या तो एन्जाइम बनता ही नहीं है या फिर कार्य अक्षम होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. मेंडल ने स्वतंत्र रूप से प्रजनन करने वाली मटर के पौधे की कितनी किस्मों को युग्मों के रूप में चुना जो विपरीत विशेषकों वाले एक लक्षण के अलावा एक समान थीं? (NEET-2020)
(अ) 2
(ब) 14
(स) 8
(द) 4
उत्तर:
(ब) 14

2. सही मिलान का चयन करो- (NEET-2020)
(अ) फेनिलकीटोन्यूरिया – अलिग क्रोमोसोम प्रभावी लक्षण
(ब) दात्र कोशिका अरक्तता – अलिग क्रोमोसोम अप्रभावी लक्षण, क्रोमोसोम- 11
(स) थैलेसीमिया – X संलग्न
(द) हीमोफीलिया – Y संलग्न
उत्तर:
(ब) दात्र कोशिका अरक्तता – अलिग क्रोमोसोम अप्रभावी लक्षण, क्रोमोसोम – 11

3. वंशागति के गुणसूत्र सिद्धान्त का प्रायोगिक प्रमाण किसने किया था? (NEET-2020)
(अ) सटन
(ब) बोवेरी
(स) मार्गन
(द) मेंडल
उत्तर:
(स) मार्गन

4. वह आनुवंशिक विकार कौन है, जिसमें एक व्यक्ति में मुख्यतः पौरुष विकास होता है, मादा लक्षण होते हैं और बांझ होता है – (NEET-2019)
(अ) डाउन सिन्ड्रोम
(ब) टर्नर सिन्ड्रोम
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(द) एडवर्ड सिन्ड्रोम
उत्तर:
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम

5. जीनों के बीच की दूरी के मापन के रूप में ही गुणसूत्र पर जीन युग्मों के बीच पुनर्योगजन की आवृति की व्याख्या किसके द्वारा की गई थी? (NEET-2019)
(अ) सटन बोवेरी
(ब) टी.एच. मार्गन
(स) ग्रेगर जे मेण्डल
(द) अलफ्रेड स्टुअर्टवेन्ट
उत्तर:
(द) अलफ्रेड स्टुअर्टवेन्ट

6. एंटीराइनम (स्नैपड्रेगन) में एक लाल पुष्प को श्वेत पुष्प के साथ प्रजनन किया तब F1 में गुलाबी पुष्प प्राप्त हुए। जब गुलाबी पुष्पों को स्वपरागित किया गया तब F2 में श्वेत, लाल और गुलाबी पुष्प प्रास हुए। निम्नलिखित में से गलत कथन का चयन कीजिए- (NEET-2019)
(अ) इस प्रयोग में पृथक्करण का नियम लागू नहीं होता
(ब) यह प्रयोग प्रभाविता के सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता
(स) F1 में गुलाबी रंग, अपूर्ण प्रभाविता के कारण आया।
(द) F2 का अनुपात 14 (लाल), 24 (गुलाबी), 14 (श्वेत) है।
उत्तर:
(स) F1 में गुलाबी रंग, अपूर्ण प्रभाविता के कारण आया।

7. निम्नलिखित में से कौनसा युग्म गलत रूप में सुमेलित किया गया है- (NEET-2018)
(अ) XO प्रकार लिंग निर्धारण : टिड्डा
(ब) ABO रक्त समूहन : सहप्रभाविता
(स) मटर में मंड संश्लेषण : बहुविकल्पी
(द) टी.एच. मार्गन : सहलग्नता
उत्तर:
(स) मटर में मंड संश्लेषण : बहुविकल्पी

8. एक स्त्री के एक X- गुणसूत्र में X- संलग्न अवस्था है। यह गुणसूत्र किनमें वंशागत होगा? (NEET-2018)
(अ) केवल पोता-पोतियों/नाती-नातियों में
(ब) केवल पुत्रों में
(स) केवल पुत्रियों में
(द) पुत्रों व पुत्रियों दोनों में
उत्तर:
(द) पुत्रों व पुत्रियों दोनों में

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9. निम्नलिखित अभिलक्षणों में से कौनसे मनुष्य में रुधिर वर्गों की वंशागति को दर्शाते हैं- (NEET-2018)
(i) प्रभाविता
(ii) सहप्रभाविता
(iii) बहु अलील
(iv) अपूर्ण प्रभाविता
(v) बहुजीनी वंशागति

(अ) (ii), (iv) एवं (v)
(ब) (i), (ii) एवं (iii)
(स) (ii), (ii) एवं (v)
(द) (i), (iii) एवं (v)
उत्तर:
(ब) (i), (ii) एवं (iii)

10. यदि पति एवं पति का जीनोटाइप IAIB एवं IAi है। इनके बच्चों का रुधिर वर्गों में कितने जीनोटाइप एवं फीनोटाइप संभव है-
(NEET-2017)
(अ) 3 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप
(ब) 3 जीनोटाइप, 4 फीनोटाइप
(स) 4 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप
(द) 4 जीनोटाइप, 4 फीनोटाइप
उत्तर:
(स) 4 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप

11. एक रोग, जो अलिंगसूत्र प्राथमिक अवियोजन के कारण होता है, कौनसा है? (NEET-2017)
(अ) डाठन सिन्ड्रोम
(ब) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(स) टर्नर सिन्ड्रोम
(द) दात्र कोशिका अरक्तता
उत्तर:
(अ) डाठन सिन्ड्रोम

12. निम्नलिखित में से मटर के कौनसे लक्षण पर मेंडल द्वारा अपने प्रयोगों में विचार नहीं गया था? (NEET-2017)
(अ) तना – लम्बा या बौना
(ब) त्वचारोम – ग्रंथिल या ग्रंधिल रहित
(स) बीज – हरा या पीला
(द) फली – फूली हुई या संकुचित
उत्तर:
(ब) त्वचारोम – ग्रंथिल या ग्रंधिल रहित

13. एक वर्णांध पुरुष एक ऐसी स्त्री से विवाह करता है जो सामान्य रंग दृष्टि के लिए समयुग्मजी है। उनके पुत्र के वर्णांध होने की संभावना क्या होगी? (NEET II-2016)
(अ) 0.75
(ब) 1
(स) 0
(द) 0.5
उत्तर:
(स) 0

14. कॉलम-I के शब्दों को कॉलम-II में दिए गए उनके वर्णन से मिलान कीजिए तथा सही विकल्प चुनिए- (NEET-2016)

कॉलम-Iकॉलम-II
1. प्रभाविता(i) अनेक जीन एकल लक्षण का नियंत्रण करते हैं।
2. सहप्रभाविता(ii) विषमयुग्मजी जीव में केवल एक ही अलील स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
3. बहुप्रभाविता(iii) विषमयुग्मजी जीव में दोनों ही अलील स्वयं को पूरी तरह अभिव्यक्त करते हैं।
4. बहुजीनी वंशागति(iv) एकल जीन अनेक लक्षणों को प्रभावित करता है।
विकल्प :1234
(अ)(iv)(i)(ii)(iii)
(ब)(iv)(iii)(i)(ii)
(स)(ii)(i)(iv)(iii)
(द)(ii)(iii)(iv)(i)

उत्तर:

(द)(ii)(iii)(iv)(i)

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

15. यदि दोनों ही जनक थैलेसीमिया, जो एक अलिंगसूत्री अप्रभावी विकार हैं, के लिए वाहक हैं तो गर्भधारण करने की क्या संभावनाएँ हैं जिसके फलस्वरूप प्रभावित बच्वा पैदा होगा- (NEET-2013)
(अ) कोई संभावना नहीं
(ब) 50%
(स) 25%
(द) 100%
उत्तर:
(स) 25%

16. ऐसे प्रसंकरण के द्वारा कौनसे मेंडलीय विचार प्रदर्शित होता है है जिसमें F1 पीढ़ी दोनों ही जनकों में मिलती है? (NEET-2013)
(अ) अपूर्ण प्रभाविता
(ब) प्रभाविता का नियम
(स) एक जीन की वंशागति
(द) सहप्रभाविता
उत्तर:
(द) सहप्रभाविता

17. एक मेंडलीय संकरण में, F2 पीढ़ी में पाया गया कि जीनी प्रारूपी तथा लक्षण प्रारूपी दोनों अनुपात एक समान 1: 2: 1 है, यह मामला क्या दर्शाता है ? (NEET-2012)
(अ) सह प्रभाविकता
(ब) द्विसंकर संकरण
(स) सम्पूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण
(द) अपूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण।
उत्तर:
(द) अपूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण।

18. मानव वंशावली विश्लेषण में निम्नलिखित में से कौनसा प्रतीक एवं जिस सूचना को प्रदर्शित करता है, सही मिलाया गया है- (NEET-2010)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 13
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 16

19. निम्नलिखित में से कौनसा एक लक्षण बहुजीनीय वंशागति का उदाहरण है- (NEET-2006)
(अ) मिरैविलिस जलापा में फूल का रंग
(ब) नर मधुमक्खी का उत्पादन
(स) उद्यान मटर में फलों की आकृति
(द) मानवों में त्वचा का रंग
उत्तर:
(द) मानवों में त्वचा का रंग

20. क्लाइनेफेल्टर्स सिन्ड्रोम में लिंग गुणसूत्र संघटक होते हैं- (BHU-2006)
(अ) 22 A+XXY
(ब) 22 A+XO
(स) 22 A+XY
(द) 22 A+XX
उत्तर:
(अ) 22 A+XXY

21. एक परिवार में पाँच पुत्रियाँ हैं तथा पुत्र नहीं हैं। छ्ठे बच्चे के लिए पुत्र की क्या सम्भावना होगी- (AFMC, 2000; CPMT-2005)
(अ) 50%
(ब) 75%
(स) पूर्ण
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) 50%

22. नीचे दिए जा रहे एक वंशावली चार्ट में एक खास लिंग-सहलग विशेषक (Trait) की वंशावली दर्शायी गयी है- (AIIMS-2005)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 14

ऊपर दिए गए वंशावली चार्ट के अध्ययन पश्चात् विशेषक कैसा है-
(अ) प्रभावी X- सहलग्न
(ब) अप्रभावी X- सहलग्न
(स) प्रभावी Y – सहलग्न
(द) अप्रभाव Y- सहलग्न
उत्तर:
(अ) प्रभावी X- सहलग्न

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

[हल-पुरुषों में अप्रभावी जीन एकल X – सहलग्न प्रभावी जीन को फीनोटिपिकिली प्रदर्शित करती है जबकि महिला में लिंग से सम्बन्धित एकल क्रीनोटिपिकिल लक्षणों को निर्धारित करने के लिए दो X- सहलग्न जीनों की आवश्यकता होती है। अप्रभावी X – सहलग्न जीन्स में विशिष्ट क्रिस क्रॉस वंशागति पायी जाती है ।

23. एलील्स का निर्माण होता है- (MP. PMT-2005; Haryana PMT-2005)
(अ) जीन
(ब) गुणसूत्र
(स) DNA
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) जीन

24. मेंडल के नियम निम्न में से किसके लिए मान्य हैं- (MP PMT-2005)
(अ) अलैंगिक प्रजनन
(ब) लैंगिक प्रजनन
(स) कायिक प्रजनन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) लैंगिक प्रजनन

25. मेंडल का पृथक्करण का नियम लागू होता है- (Wardha-2005)
(अ) केवल द्विसंकर क्रॉस के लिए
(ब) केवल एकसंकर क्रॉस के लिए
(स) दोनों द्विसंकर और एकसंकर क्रॉस के लिए
(द) द्विसंकर के लिए परन्तु एकसंकर के लिए नहीं।
उत्तर:
(स) दोनों द्विसंकर और एकसंकर क्रॉस के लिए

26. वंशानुगति की कार्यिकी इकाई होती है- (Haryana PMT-2005)
(अ) सिस्ट्रॉन
(ब) जीन
(स) इन्ट्रॉन
(द) गुणसूत्र
उत्तर:
(ब) जीन

27. निम्न में से कौन-सा रक्त समूह $\mathrm{A}$ रक्त समूह वालों को स्थानान्तरित किया जा सकता है? (MP PMT-2005)
(अ) A तथा O
(ब) AB तथा O
(स) AB
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) A तथा O

28. ABO रक्त समूह का प्रतिपादक है- (BCECE-2005)
(अ) वीनर
(ब) लेविन
(स) फिशर
(द) लैण्डस्टीनर
उत्तर:
(द) लैण्डस्टीनर

29. गुणसत्र की 2 n-1 अवस्था होती है- (BHU-2005)
(अ) मोनोसोमी (Monosomy)
(ब) नलीसोमी (Nullisomy)
(स) ट्राइसोमी (Trisomy)
(द) टेट्रासोमी (Tetrasomy)
उत्तर:
(अ) मोनोसोमी (Monosomy)

30. वह अमीनो अम्ल जो कि सिकल सेल एनीमिया में प्रतिस्थापित हो जाता है- (Kerala CET-2004, 05)
(अ) वेलीन के लिए ग्लूटामिक अम्ल, α शृंखला में
(ब) वेलीन के लिए ग्लूटामिक अम्ल, β श्रृंखला में
(स) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, α श्रृंखला में
(द) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, β शृंखला में
उत्तर:
(द) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, β शृंखला में

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

31. मेंडल के मोनोहाइब्रिड (Monohybrid) क्रॉस का जीनोटिपिक अनुपात होता है- (MP PMT, 2005)
(अ) 1: 3
(ब) 3: 1
(स) 1: 2: 1
(द) 1: 1: 1: 1
उत्तर:
(स) 1: 2: 1

32. नर में लिंग सहलग्न लक्षण किसके द्वारा स्थानान्तरित होते हैं? (MP PMT-2004)
(अ) Y-गुणसूत्र
(ब) ऑटोसोम्स
(स) X- गुणसूत्र
(द) X व Y तथा ऑटोसोम्स
उत्तर:
(स) X- गुणसूत्र

[नोट-क्योंकि नर में केवल एक X गुणसूत्र होता है तथा Y गुणसूत्र बिना एलील के होता है। इसलिए नर में एकल अप्रभावी एलील अपना प्रभाव दिखाते हैं ]

33. यदि AA और aa के बीच क्रॉस कराया जाए तो F1 संतति का स्वभाव होगा (CPMT-2004)
(अ) जीनोटिपिकली AA, फीनोटिपिकली a
(ब) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली a
(स) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली A
(द) जीनोटिपिकली aa, फीनोटिपिकली A
उत्तर:
(ब) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली a

34. टर्नर सिन्ड्रोम किसका उदाहरण है- (Kerala PMT 2004)
(अ) मोनोसोमी
(स) ट्राईसोमी
(ब) बाई सोमी
(द) पोलीयनाइडी
उत्तर:
(अ) मोनोसोमी

35. ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर में लिंग निर्धारण आधारित होता है- (AIEEE-2004)
(अ) XY गुणसूत्र की क्रियाविधि
(ब) ऑटोसोम्स और X गुणसूत्र के बीच आनुवंशिक संतुलन
(स) गुणसूत्र वातावरण की पारस्परिक क्रिया
(द) स्यूडोएलील्स
उत्तर:
(ब) ऑटोसोम्स और X गुणसूत्र के बीच आनुवंशिक संतुलन

36. डाउन सिन्ड्रोम की आवृत्ति में वृद्धि होती है, जब माता की आयु (Orissa JEE-2004)
(अ) 35 वर्ष से अधिक होती है।
(ब) 35 वर्ष से कम होती है
(स) प्रथम गर्भावस्था के समय
(द) तीन बच्चों की माता में
उत्तर:
(अ) 35 वर्ष से अधिक होती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

[ नोट- यह 1/700 जन्म लेने वाले बच्चों में पाया जाता है। इसमें महिला की उम्र 25 वर्ष या इससे कम होती है। इसकी आवृति उम्र के समय बढ़ती है। यह 40 वर्ष की महिला के लिए 1/100 तथा 45 वर्ष की महिला के लिए 1/10 होती है।]

37. गायनेकोमेस्टिया (Gynacomastia) लक्षण है- (KCET-2004)
(अ) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम का
(ब) टर्नर्स सिन्ड्रोम का
(स) सार्स का
(द) डाउन्स सिन्ड्रोम का
उत्तर:
(अ) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम का

38. मनुष्य के लिए X गुणसूत्र पर स्थित अप्रभावी जीन सदैव- (CBSE PMT 2004 )
(अ) नर में अभिव्यक्त होते हैं
(ब) मादा में अभिव्यक्त होते हैं।
(स) घातक होते हैं
(द) अर्ध घातक होते हैं
उत्तर:
(अ) नर में अभिव्यक्त होते हैं

39. पाइसम सटाइवम में सहलग्न समूहों की संख्या क्या है- (BVP-2004)
(अ) 2
(ब) 5
(स) 7
(द) 9
उत्तर:
(स) 7

[ नोट उद्यान मटर के पौधों में गुणसूत्र के 7 जोड़े होते हैं और समान संख्या में सहलग्न समूह होते हैं ।

40. एक पुरुष जिसका रक्त समूह B है A रक्त समूह वाली महिला से विवाह करता है और उसकी पहली संतान का रक्त समूह B है तो उसकी संतान का जीनोटाइप क्या होगा- (CPMT 2004)
(अ) IaIb
(ब) IaIo
(स) IbIo
(द) IbIb
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 15

उत्तर:
(स) IbIo

41. एक पौधे में लाल रंग का फल (R) पीले रंग के फल (r) पर प्रभावी है तथा लम्बापन (T) बौनेपन (t) पर प्रभावी है। यदि RRTt जीनोटाइप के पौधे का क्रॉस rrtt वाले पौधे से कराते हैं, तब- (CBSE PMT 2004)
(अ) 75% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
(ब) सभी सन्तति पौधे लाल फल वाले एवं लम्बे होंगे।
(स) 25% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
(द) 50% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
उत्तर:
(द) 50% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

42. सर्वत्र आदाता (Recipient ) का रक्त वर्ग कौन-सा है- (MP. PMT 2003)
(अ) AB
(स) B
(ब) A
(द) O
उत्तर:
(अ) AB

43. एक समयुग्मज अप्रभावी एवं विषमयुग्मज पौधों के बीच संकरण कहलाता है- (MHCET 2003)
(अ) एकसंकर संकरण
(ब) द्विसंकर संकरण
(स) परीक्षण क्रॉस
(द) पश्च क्रॉस
उत्तर:
(स) परीक्षण क्रॉस

44. एक टेस्ट क्रॉस में 1 : 1 फीनोटाइपिक अनुपात क्या प्रदर्शित करता है- (AIEEE 2003)
(अ) एलील्स सहप्रभावी हैं
(ब) जनक के प्रभावी फीनोटाइप हेटेरोजायगस थे
(स) एलील्स का स्वतन्त्र पृथक्करण होता है।
(द) एलील्स प्रभावी हैं।
उत्तर:
(ब) जनक के प्रभावी फीनोटाइप हेटेरोजायगस थे

45. मेंडल का प्रथम नियम है- (CPMT 2003)
(अ) वंशागति का नियम
(ब) विभिन्नता का नियम
(स) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम
(द) पृथक्करण का नियम
उत्तर:
(द) पृथक्करण का नियम

46. मेंडल ने मटर के पौधे का चयन किया क्योंकि- (BVP 2003)
(अ) ये सस्ते थे
(ब) उनमें सात जोड़े विपरीत प्रकार के लक्षण उपस्थित थे
(स) वे आसानी से मिल जाते थे
(द) वे अधिक आर्थिक महत्त्व के थे।
उत्तर:
(ब) उनमें सात जोड़े विपरीत प्रकार के लक्षण उपस्थित थे

47. मेंडल के नियम का अपवाद है – (PB PMT 2000; RPMT 2002)
(अ) स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम
(ब) पृथक्करण का नियम
(स) प्रभाविता का नियम
(द) सहलग्नता का नियम
उत्तर:
(द) सहलग्नता का नियम

48. यदि एक लाल पुष्प वाले समयुग्मजी पौधे का क्रॉस एक सफेद पुष्प वाले समयुग्मजी पौधे से कराया जाये तो संतति उत्पन्न होगी – ( AIIMS, 2002)
(अ) आधी लाल पुष्प वाली
(ब) आधी सफेद पुष्प वाली
(स) पूरी लाल पुष्प वाली
(द) आधी गुलाबी पुष्प वाली
उत्तर:
(स) पूरी लाल पुष्प वाली

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

49. मेंडल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम किस पर लागू होता है- (Orissa PMT 2002)
(अ) सभी जीवों में सभी जीन्स पर
(ब) केवल मटर के सभी जीन्स पर
(स) सभी सहलग्न जीन्स पर
(द) केवल सभी असहलग्न जीन्स पर
उत्तर:
(द) केवल सभी असहलग्न जीन्स पर

[नोट- जो स्वतन्त्र रूप से संचरण करते हैं, जीन्स से सहलग्न नहीं होते।]

50. लैंगिक जनन बढ़ाता है- (CPMT 2002)
(अ) आनुवंशिक पुनसंयोजन
(ब) बहुगुणिता
(स) एन्यूप्लॉइडी (Anueploidy)
(द) यूप्लॉइडी (Euploidy)
उत्तर:
(अ) आनुवंशिक पुनसंयोजन

51. जब कोई जीन एक से अधिक रूपों में उपस्थित रहता है तो विभिन्न रूपों को कहते हैं- (CPMT 2002)
(अ) विषमयुग्मजी
(ब) पूरक जीन
(स) समजीनी ( Genotype)
(द) युग्मविकल्पी (Alleles)
उत्तर:
(द) युग्मविकल्पी (Alleles)

52. मेंडल के अनुसार निम्न में से कौन-सा प्रभावी लक्षण है- (AFMC 2000)
(अ) बौना पौधा व पीला फल
(ब) शीर्षस्थ फल व झुर्रीदार बीज
(स) सफेद बीजचोल व पीला पेरीकार्य
(द) हरा फल व गोल बीज
उत्तर:
(द) हरा फल व गोल बीज

[हल मेंडल के अनुसार फली का पीला रंग और झुर्रीदार बीज अप्रभावी लक्षण होते हैं।]

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53. पुरुषों में गुणसूत्र की स्थिति होती है- (JIPMER 2000)
(अ) 44 AA+XO
(स) 44 AA+XY
(ब) 44 AA+XX
(द) 44 AA+XXY
उत्तर:
(द) 44 AA+XXY

54. सहलग्नता का सर्वप्रथम अवलोकन किस पौधे में किया गया है- (AFMC 2000)
(अ) फील्ड मटर
(ब) घास मटर
(स) मीठी मटर
(द) मटर
उत्तर:
(स) मीठी मटर

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HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

बहुविकल्पीय प्रश्न:

1. प्रथम संक्रमण श्रेणी का कौनसा तत्व उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है?
(अ) Ni
(ब) Fe
(स) Mn
(द) Cr
उत्तर:
(स) Mn

2. निम्नलिखित में से कौनसे आयन का जलीय विलयन रंगीन नहीं होगा?
(अ) Mn2+
(ब) Fe2+
(स) Zn2+
(द) Cr2+
उत्तर:
(स) Zn2+

3. निम्नलिखित में से किस आयन का चुम्बकीय आघूर्ण अधिकतम होता है?
(अ) V3+
(ब) Fe3+
(स) Co3+
(द) Cr3+
उत्तर:
(ब) Fe3+

4. संक्रमण धातुओं का युग्म है-
(अ) Lu, Cu
(ब) Lu, Zn
(स) Cu, Zn
(द) Au, Cu
उत्तर:
(द) Au, Cu

5. निम्नलिखित में से कौनसा तत्व +8 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है?
(अ) Pt
(ब) Mn
(स) Os
(द) Cu
उत्तर:
(स) Os

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

6. किसी संक्रमण तत्व की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था किसके बराबर हो सकती है?
(अ) ns इलेक्ट्रॉन
(ब) (n-1)d इलेक्ट्रॉन
(स) (n-1)d + ns इलेक्ट्रॉन
(द) (n+1) d इलेक्ट्रॉन
उत्तर:
(स) (n-1)d + ns इलेक्ट्रॉन

7. निम्नलिखित में से कौनसे आयन में अनुचुम्बकीय गुण सर्वाधिक होगा?
(अ) Cu2+
(ब) Mn2+
(स) Zn2+
(द) Ti+2
उत्तर:
(ब) Mn2+

8. d खण्ड के अन्य तत्वों की भाँति Zn परिवर्तनशील संयोजकता नहीं दर्शाता, क्योंकि-
(अ) यह नर्म धातु है।
(ब) इसमें d कक्षक पूर्ण भरा है।
(स) इसका गलनांक कम है।
(द) इसके बाह्यतम कक्षक में दो इलेक्ट्रॉन हैं।
उत्तर:
(ब) इसमें d कक्षक पूर्ण भरा है।

9. निम्नलिखित में से कौनसा तत्व केवल एक ही प्रकार की ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है-
(अ) Mn
(ब) Zn
(स) Cr
(द) Ni
उत्तर:
(ब) Zn

10. संक्रमण धातुओ के लवण सामान्यतः रंगीन होते हैं, क्योंकि-
(अ) इनमें पूर्ण भरे d कक्षक होते हैं।
(ब) ये पराबेंगनी प्रकाश को अवशोष्तित करते हैं।
(स) इनमें d-d संक्रमण होता है।
(द) ये विद्युत चुम्बक्जीय विकिएगों से ऊर्जा का अवशोषण करते हैं।
उत्तर:
(स) इनमें d-d संक्रमण होता है।

11. कौनसे युग्म की धातुओं का आकार लगभग समान है?
(अ) Cd, Hg
(ब) Cu, Zn
(स) Sc, Ti
(द) Cr, Mo
उत्तर:
(अ) Cd, Hg

12. लैन्थेनॉयड श्रेणी के तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था कौनसी है?
(अ) +1
(ब) +3
(स) +2
(द) +5
उत्तर:
(ब) +3

13. K2Cr2O7 के जलीय विलयन में SO2 गैस प्रवाहित करने पर Cr की ऑक्सीकरण अवस्था में क्या परिवर्तन होगा?
(अ) +3 से +1
(ब) +6 से +3
(स) +3 से +6
(द) +6 से +4
उत्तर:
(ब) +6 से +3

14. निम्नलिखित में से किस धातु का घनत्व अधिकतम होता है?
(अ) Pd
(ब) Hg
(स) Os
(द) Pt
उत्तर:
(स) Os

15. निम्नलिखित में से कौनसा ऑक्साइड उभयधर्मी है?
(अ) CoO
(ब) ZnO
(स) FeO
(द) CrO2
उत्तर:
(ब) ZnO

16. निम्नलिखित में से कौनसे आयन प्रतिचुंककीय हैं?
(अ) Cu2+
(ब) Ti3+, Co2+
(स) Ni2+, Mn2+
(द) Sc3+
उत्तर:
(द) Sc3+

17. निम्नलिखित में से आयनों के किस युग्म में निम्न (Lower) ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी है?
(अ) Tl+2 , Tl3+
(ब) Cu+1, Cu2+
(स) Cr2+, Cr3+
(द) Mn+2, Mn+4
उत्तर:
(द) Mn+2, Mn+4

18. लैन्थेनॉयड संकुचन के कारण होने वाला प्रभाव है-
(अ) Zr तथा Nb की समान ऑक्सीकरण अवस्था
(ब) Zr तथा Hf का लगभग समान परमाणु आकार
(स) Zr तथा Y का लगभग समान परमाणु आकार
(द) Zr तथा Zn की समान ऑक्सीकरण अवस्था
उत्तर:
(ब) Zr तथा Hf का लगभग समान परमाणु आकार

19. La3+ (परमाणु क्रमांक = 57) की त्रिज्या 1.06 Å है तो Lu3+ (परमाणु क्रमांक =Lu) की त्रिज्या का मान (लगभग) होगा-
(अ) 1.40 Å
(ब) 1.06 Å
(स) 0.85 Å
(द) 1.60 Å
उत्तर:
(स) 0.85 Å

20. Ce+4 के स्थायित्व का कारण है-
(अ) 4f7 विन्यास
(ब) 4f0 विन्यास
(स) 4f14
(द) 4f76s2
उत्तर:
(ब) 4f0 विन्यास

21. f-ब्लॉक के तत्वों के लिए कौनसा कथन सत्य नहीं है?
(अ) ये आन्तरिक संक्रमण तत्व कहलाते हैं।
(ब) ये सभी तत्व रेडियोधर्मी होते हैं।
(स) इनमें इलेक्ट्रॉन सामान्यतः 4f तथा 5f में भरे जाते हैं।
(द) लैन्थेनॉयडों की तुलना में ऐक्टिनॉयडों में परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अधिक होती हैं।
उत्तर:
(ब) ये सभी तत्व रेडियोधर्मी होते हैं।

22. प्रथम संक्रमण श्रेणी में किस धातु का गलनांक उच्चतम होता है?
(अ) Mn
(ब) Cr
(स) Fe
(द) Cu
उत्तर:
(ब) Cr

23. \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}\) क्षारीय माध्यम में बनाता है-
(अ) CrO3
(ब) \(\mathrm{CrO}_4^{2-}\)
(स) CrO2
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) \(\mathrm{CrO}_4^{2-}\)

24. अम्लीय पोटेशियम परमैंगनेट विलयन की ऑक्सेलेट आयन से क्रिया कराने पर प्राप्त उत्पाद है-
(अ) \(\mathrm{CO}_3^{2-}\)
(ब) CO2
(स) KHCO3
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) CO2

25. क्षारीय माध्यम में पोटैशियम परमैंगनेट कितने इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है?
(अ) 5
(ब) 4
(स) 3
(द) 2
उत्तर:
(स) 3

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

26. निम्नलिखित में से किस तत्व की तृतीय आयनन एन्थैल्पी सर्वाधिक होती है?
(अ) Mn
(ब) Cr
(स) Fe
(द) V
उत्तर:
(अ) Mn

27. निम्नलिखित में से अम्लीय ऑक्साइड कौनसा है?
(अ) MnO
(ब) Mn2O3
(स) MnO2
(द) Mn2O7
उत्तर:
(द) Mn2O7

28. K2Cr2O7 का तुल्यांकी भार क्या होगा यदि अणुभार = M हो?
(अ) M
(ब) M/3
(स) M/6
(द) M/2
उत्तर:
(स) M/6

29. लोहचुम्बकीय धातुओं का समूह है-
(अ) Cu, Ag, Au
(ब) Cr, Mo, W
(स) Fe, CO, Ni
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) Fe, CO, Ni

30. रंगहीन आयनों का युग्म है-
(अ) Cu+, Zn2+
(ब) Cu2+, Zn2+
(स) V3+, Cr3+
(द) Mn3+, Fe3+
उत्तर:
(अ) Cu+, Zn2+

31. Cr, Mn, Fe तथा Co के लिए \(\mathrm{E}_{\mathrm{M}^{3+} / \mathrm{M}^{2+}}\) मान क्रमशः -0.41, + 1.57, 0.77 तथा +1.97V हैं। इनमें से किस धातु की ऑक्सीकरण अवस्था सुगमतापूर्वक +2 से +3 हो जायेगी?
(अ) Cr
(ब) Mn
(स) Fe
(द) Co
उत्तर:
(अ) Cr

32. निम्नलिखित बाह्यतम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले परमाणुओं में से सर्वाधिक ऑक्सीकरण संख्या किस परमाणु द्वारा प्रदर्शित होती है?
(अ) (n – 1) d8ns2
(ब) (n – 1) d5ns1
(स) (n – 1) d3ns2
(द) (n – 1) d5ns2
उत्तर:
(द) (n – 1) d5ns2

33. Ti3+ आयन का प्रभावी चुम्बकीय आघूर्ण है-
(अ) 1.73 BM
(ब) 270 BM
(स) 5.92 BM
(द) 2.83 BM
उत्तर:
(अ) 1.73 BM

34. Ti(22), V(23), Cr(24) तथा Mn(25) की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के घटते मानों का सही क्रम है-
(अ) Cr > MN > V > Ti
(ब) V > Mn > Cr > Ti
(स) Mn > Cr > Ti > V
(द) Ti > V > Cr > Mn
उत्तर:
(अ) Cr > MN > V > Ti

35. निम्नलिखित में से कौनसा यौगिक रंगीन नहीं है?
(अ) TiCl3
(ब) TiCl4
(स) K2Cr2O7
(द) KMnO4
उत्तर:
(ब) TiCl4

36. K2Cr2O7 का जलीय विलयन H2S के साथ अम्लीय परिस्थिति में क्रिया करके हरा उत्पाद (A) देता है। (A) है-
(अ) Cr2(SO4)3
(ब) CrSO4
(स) K2CrO4
(द) CrO3
उत्तर:
(अ) Cr2(SO4)3

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
Ni2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:
Ni2+ = 1s2 2s2 2p6 3s6 3p6 3d8 4s0

प्रश्न 2.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के उन तत्वों के नाम बताइए जो केवल एक ही प्रकार की ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं।
उत्तर:
Sc तथा Zn

प्रश्न 3.
MnO की प्रकृति बताइए।
उत्तर:
MnO क्षारीय प्रकृति का होता है।

प्रश्न 4.
संक्रमण हत्वों की 3d श्रेणी की सामान्य औक्सीकरण अवस्था कौनसी होती है?
उत्तर:
संकमण तत्चों की 3d क्रेणी की सामान्य औंकसीकरण अवस्थ +2 होती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस औँक्साह्ड में सक्तंयोजी गुण अभिकतम होगा? Sc2O3, TiO2, Mn2O7 तथा V2O5
उत्तर:
Mn2O7

प्रश्न 6.
Cu+ तथा Cu+2 में कौनसी अवस्था अधिक स्थायी होती है?
उत्तर:
Cu2+ अवस्था अधिक स्थ्युी होती है।

प्रश्न 7.
d-ब्लॉक में वाध्यशील धातुएं कौनसी होती हैं तथा क्यों?
उत्तर:
d-क्लांक में Zn. Cd तथा Hg वाप्मशौल धातुएँ होती हैं क्योंकि इनके गलनांक तथा क्वथनांक कम क्षोते हैं।

प्रश्न 8.
CrO, Cr2O3, CrO2 तध CrO3 को अम्लीय गुण के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
CrO < Cr2O3 < CrO2 < CrO3

प्रश्न 9.
Cu, Ag तथा Au में d10 विन्यास है फित्र भी ये संक्रमण तथव हैं। क्यों?
उत्तर:
Cu, Ag तथा Au के धनायनों में d10 विन्यास नरी रहत़ा है अतः ये संक्रमण तत्व है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 10.
संक्रमण कत्वों में किसका गलनांक न्यूनतम होता है?
उत्तर:
संक्रमण तत्बों में मकंरी (Hg) का गलनांक न्यूनतम होत है।

प्रश्न 11.
संक्रमण हत्वों में अधिकत गलनांक वाला धातु कौनसा है?
उत्तर:
टंस्ट्टन (W)

प्रश्न 12.
CuSO4.5 H2O तथा ZnSO4 में से कौनसा यौगिक रेगहीन है?
उत्तर:
ZnSO4

प्रश्न 13.
संक्रमण धातुएं, मित्र धातु बनाती हैं, क्यों?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की त्रिज्या में समानता तथा इ्नके अभिलाषणिक गुणों के कारण ये मिक्ष धातु आसानी से बना लेती हैं।

प्रश्न 14.
मिश्र धातु, पीतल किन धातुओ से बनती है?
उत्तर:
कॉपर तथा जिक।

प्रश्न 15.
कोंपर की दो मिश्र धातुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
काँस तथा पीतल।

प्रश्न 16.
Zn2+ प्रतिचुम्बकीय होता है जबकि Cu2+ अनुचुम्बकीय, क्यों?
उत्तर:
Zn+2(3d10) में एक भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है जबकि Cu2+ (3d9) में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है अतः Zn2+ प्रतिचुम्बकीय होता है लेकिन Cu2+ अनुचुम्बकीय होता है।

प्रश्न 17.
MnVI के असमानुपातन का समीकरण लिखिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 1

प्रश्न 18.
\(\mathrm{CrO}_4^{2-}\) आयन की संरचना कैसी होती है?
उत्तर:
\(\mathrm{CrO}_4^{2-}\) की संरचना चतुष्फलकीय होती है।

प्रश्न 19.
K2Cr2O2 के नारंगी क्लियन में प्रबल क्षार (NaOH या KOH) मिलाने पर विलयन पीला हो जाता है। क्यों?
उत्तर:
K2Cr2O7 के नारंगी विलयन में प्रब्ल क्षार मिलाने पर क्रोमेट बन जाता है अतः विलयन पीला हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 2

प्रश्न 20.
KI विलयन की क्रिया अम्लीय तथा क्षारीय KMnO4 से कराने पर बने उत्पाद्ध बताइए।
उत्तर:
KI विलयन की क्रिया अम्लीय KMnO4 के साथ कराने पर आयोडीन (I2) तथा क्षारीय KMnO4 से कराने पर पोटैशेशिय आयोडेट (KIO3) प्राप्त होता है।

प्रश्न 21.
बेयर अभिकर्मक का उपयोग बताइए।
उत्तर:
बेयर अभिकमंक (1% क्षारीय KMnO4) से असंतृप्तत का परीक्षण किया जाता है।

प्रश्न 22.
डाइक्रोमेट आयन की हाइड्रोजन परॉक्साइड से अभिक्रिया कराने पर बने उत्पादों को दर्शाने वाले समीकरण लिखिए।
उत्तर:
\(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+4 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}_2+2 \stackrel{+}{\mathrm{H}} \rightarrow 2 \mathrm{CrO}_5+5 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}\)

प्रश्न 23.
लेन्थेनॉयडों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सैन्थेनॉयडों को दुर्लभ मृदा धातु के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 24.
लैन्थेनोंयड संकुचन किसे कहते हैं?
उत्तर:
La से Lu तक परमाणु क्रमांक बढने पर परमाणु कथा आयनिक त्रिज्याओ में कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 25.
Lu(OH)3 की तुलना में La(OH)3 अधिक क्षारीय होता है, क्यों?
उत्तर:
La से Lu तक हाइ्ड्रोंक्साइडों की धारीय प्रकृति कम होती है क्यांकि इनकी आयनिक त्रिज्या में कमी होती है अतः Lu(OH)3 की तुलना में La(OH)3 अधिक क्षारीय होता है।

प्रश्न 26.
ऐक्टनोंयडों द्वारा प्रदर्शित अधिकतम औक्सीकरण अवस्था बताइए।
उत्तर:
ऐक्टनॉयड अधिकतम +7 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदार्शित करते हैं।

प्रश्न 27.
परायूरेनियम तत्व किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
\(\begin{aligned}
& U \\
& 92
\end{aligned}\) के बाद के रैडियोसक्रिय तथा कूत्रिम तत्वों को परायूरोनियम तत्व कहते हैं।

प्रश्न 28.
d-ब्लॉक के तत्वों में किसका गलनांक न्यूनतम होता है?
उत्तर:
मर्करी (Hg)

प्रश्न 29.
शल्य चिकित्सा में उपयोग में आने वाले उपकरणों को KMnO4 द्वारा साफ किया जाता है, क्यों?
उत्तर:
KMnO4 के जर्मनाशी गुण के कारण इसे शल्य चिकित्सा में उपयोग में आने वाले उपकरणों को साफ करने में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 30.
ऐक्टिनॉयड संकुचन, लैन्थेनॉयड संकुचन की तुलना में अधिक होता है, क्यों?
उत्तर:
5f इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण ऐक्टिनॉयड संकुचन, लैन्थेनॉयड संकुचन की अपेक्षा अधिक होता है।

प्रश्न 31.
सिक्का धातु कौनसे होते हैं?
उत्तर:
कॉपर, सिल्वर तथा गोल्ड।

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
(a) CuI2 अस्थायी होता है। क्यों?
(b) मैंग्नीज, फ्लुओरीन के साथ उच्चतम +4 ऑक्सीकरण अवस्था (MnF4) दर्शाता है जबकि ऑक्सीजन के साथ + (Mn2O7) क्यों?
उत्तर:
(a) CuI2 में आयोडीन के बड़े आकार के कारण बन्ध दुर्बल होता है तथा Cu2+, I को I2 में ऑक्सीकृत कर देता है अतः CuI2 अस्थायी होता है।
2Cu2+ + 4I → Cu2I2(s) + I2

(b) मैंगनीज (Mn), फ्लुओरोन के साथ अच्वतम ऑक्सीकरण अवस्था + 4(MnF4) ही दर्शाता है जबकि ऑक्सीजन के साथ यह उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था + 7(Mn2O7) दर्शाता है, क्योंकि फ्लुओरीन की अपेक्षा ऑक्सीजन की उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाओं को स्थायित्व प्रदान करने की क्षमता अधिक होती है जिसका कारण ऑक्सीजन की धातुओं के साथ बहबन्ध बनाने की क्षमता है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 2.
(a) \(\stackrel{+}{\mathbf{C}} \mathbf{u} \overline{\mathbf{X}}\) अस्थायो होता है, क्या?
अथवा
जलीय विलयन में Cu+ की तुलना में Cu2+ अधिक स्थायी होता है, क्यों?
(b) Mn2O7 तथा \(\mathrm{MnO}_4^{-}\) की संरचना बताइए।
उत्तर:
(a) \(\mathrm{Cu}^{+} \mathrm{X}^{-}\) अस्थायी होता है क्योंक जलीय विलयन में Cu+ का असमानुपातन हो जाता है-
\(2 \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+} \longrightarrow \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{2+}+\mathrm{Cu}_{(\mathrm{s})}\)

अतः जलीय विलयन में Cu+ की तुलना में Cu2+ अधिक स्थायी होता है क्योंकि Cu2+ की जलयोजन एन्थैल्पी का मान Cu+ की तुलना में बहुत अधिक ऋणात्मक होता है जो कि Cu+ से Cu2+ बनाने के लिए आवश्यक ऊर्जा (द्वितीय आयनन एन्थैल्पी) को आसानी से संतुलित कर देती है।

(b) Mn2O7 में प्रत्येक Mn परमाणु चतुष्फलकीय रूप से ऑक्सीजन परमाणुओं से घिरा होता है तथा इसमें एक Mn-O-Mn सेतुबन्ध भी पाया जाता है तथा \(\mathrm{MnO}_4\) की संरचना भी चतुष्फलकीय होती है।

प्रश्न 3.
चुम्बकीय गुण कितने प्रकार के होते हैं? पदार्थों में चुम्बकीय गुण उत्पन्न होने का कारण भी बताइए।
उत्तर:
पदार्थों में चुम्बकीय गुण मुख्यतः इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है तथा इलेक्ट्रॉन स्वयं एक बहुत छोटे चुम्बक के समान कार्य करता है। किसी पदार्थ पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर कई प्रकार के चुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित होते हैं लेकिन इनमें से निम्नलिखित तीन गुण मुख्य होते हैं-
(i) प्रतिचुम्बकत्व
(ii) अनुचुम्बकत्व तथा
(iii) लोहचुम्बकत्व।
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ वे होते हैं जो प्रयुक्त चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं लेकिन अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं। वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं, उन्हें लोहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। वास्तव में लोहचुम्बकत्व, अनुचुम्बकत्व का ही अधिकतम रूप है।
पदार्थों में चुम्बकीय गुणों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों की दो प्रकार की गति है-

(i) कक्षीय गति (Orbital motion) तथा (ii) चक्रण गति (Spin motion)
अतः किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic moment) कक्षीय कोणीय संवेग (orbital angular momentum) तथा चक्रण कोणीय संवेग (spin angular momentum) के सम्मिलित प्रभाव के कारण होता है। संक्रमण तत्वों में (n – 1)d उपकोश के इलेक्ट्रॉन सतह पर ही स्थित होते हैं अतः ये बाहरी वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं।

इस कारण इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति बहुत सीमित हो जाती है तथा कक्षीय कोणीय संवेग का योगदान अधिक प्रभावी नहीं रहता इसलिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है अतः चुम्बकीय आघूर्ण का मान केवल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है। चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया गया है तथा इसे चक्रण मात्र (spin only) सूत्र कहते हैं-

चुम्बकीय आघूर्ण (µ)= \(\sqrt{n(n+2)}\), n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
चुम्बकीय आघूर्ण का मात्रक बोर मैग्नेटॉन (BM) होता है।
1 BM = \(\frac { eh }{ 4πmc }\)

यहाँ e = इलेक्ट्रॉन का आवेश, h = प्लांक स्थिरांक, m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान तथा c = प्रकाश का वेग है।
अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर चुम्बकीय आघूर्ण का मान भी बढ़ता है। अतः प्रेक्षित (observed) चुम्बकीय आघूर्ण मानों से परमाणुओं, अणुओं या आयनों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का संकेत प्राप्त हो जाता है। विभिन्न चुम्बकीय गुणों का विस्तृत विवरण अग्र प्रकार है-

(i) प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 3
प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

(ii) अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 4
(iii) लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं। चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।

Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 5

प्रश्न 4.
चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए तथा बताइए कि इसे ज्ञात करने के लिए चक्रण मात्र सूत्र ही क्यों प्रयुक्त किया जाता है?
उत्तर:
पदार्थों में चुम्बकीय गुण मुख्यतः इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है तथा इलेक्ट्रॉन स्वयं एक बहुत छोटे चुम्बक के समान कार्य करता है। किसी पदार्थ पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर कई प्रकार के चुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित होते हैं लेकिन इनमें से निम्नलिखित तीन गुण मुख्य होते हैं-
(i) प्रतिचुम्बकत्व
(ii) अनुचुम्बकत्व तथा
(iii) लोहचुम्बकत्व।
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ वे होते हैं जो प्रयुक्त चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं लेकिन अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं। वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं, उन्हें लोहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। वास्तव में लोहचुम्बकत्व, अनुचुम्बकत्व का ही अधिकतम रूप है।
पदार्थों में चुम्बकीय गुणों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों की दो प्रकार की गति है-

(i) कक्षीय गति (Orbital motion) तथा (ii) चक्रण गति (Spin motion)
अतः किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic moment) कक्षीय कोणीय संवेग (orbital angular momentum) तथा चक्रण कोणीय संवेग (spin angular momentum) के सम्मिलित प्रभाव के कारण होता है। संक्रमण तत्वों में (n – 1)d उपकोश के इलेक्ट्रॉन सतह पर ही स्थित होते हैं अतः ये बाहरी वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं। इस कारण इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति बहुत सीमित हो जाती है तथा कक्षीय कोणीय संवेग का योगदान अधिक प्रभावी नहीं रहता इसलिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है अतः चुम्बकीय आघूर्ण का मान केवल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है। चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया गया है तथा इसे चक्रण मात्र (spin only) सूत्र कहते हैं-

चुम्बकीय आघूर्ण (µ)= \(\sqrt{n(n+2)}\), n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
चुम्बकीय आघूर्ण का मात्रक बोर मैग्नेटॉन (BM) होता है।
1 BM = \(\frac { eh }{ 4πmc }\)

यहाँ e = इलेक्ट्रॉन का आवेश, h = प्लांक स्थिरांक, m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान तथा c = प्रकाश का वेग है।
अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर चुम्बकीय आघूर्ण का मान भी बढ़ता है। अतः प्रेक्षित (observed) चुम्बकीय आघूर्ण मानों से परमाणुओं, अणुओं या आयनों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का संकेत प्राप्त हो जाता है। विभिन्न चुम्बकीय गुणों का विस्तृत विवरण अग्र प्रकार है-

(i) प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
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प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

(ii) अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
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(iii) लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं। चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।

Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
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प्रश्न 5.
प्रतिचुम्बकत्व क्या होता है? समझाइए।
उत्तर:
प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
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प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

प्रश्न 6.
अनुचुम्बकत्च की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
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प्रश्न 7.
लोहचुम्बकत्व का गुण क्या होता है ? समझाइए।
उत्तर:
लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं।

चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है। Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
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प्रश्न 8.
निर्जल CuSO4 श्वेत होता है लेकिन जलयोजित CuSO4 नील्ना होता है जबकि दोनों में ही Cu2+ आयन होते हैं। क्यों?
उत्तर:
निर्जल CuSO4 तथा CuSO4 . 5H2O (जलयोजित कपर सल्फेट) दोनों में ही Cu+2 है जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रांन (3d9) है लेकिन निजल CuSO4 में H2O (लिगन्ड) के बिना d-कक्षकों का विपाटन t2g तथा eg कक्षकों में विपाटन नहीं हो पाता अतः d-d संक्रमण नहीं होता है इसलिए यह रंगहीन होता है। जबकि जलयोजित CuSO4 में d-d संक्रमण हो जाता है, अतः यह नीला होता है।

प्रश्न 9.
(a) Mn का वह लवण कौनसा है जो KClO4 के समसंरचनात्मक होता है?
(b) मैंगनेट तथा परमेंगनेट आयनों की संरचना तथा चुम्बकीय गुण बताइए।
उत्तर:
(a) KMnO4 (पोटैशियम परमें गनेट) KClO4 (पोंटेशियम क्लोरेद) के समसंरचनात्मक होता है अर्थात् दोनों की संरचना समान होती है।

(b) मैंगनेट तथा परमैंगनेट आयन चतुष्फलकीय ह्रोते हैं जिनमें आवसीजन के p-कथक तथा Mn के d कथकों के मध्य अंत्यापन, से π-बन्ध बनता है तथा इनमें Mn पर sp3 संकरण होता है। इनकी संरचना निम्न प्रकार होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 12
परमैंगनेट आयन प्रतिचुम्बकीय होता है जिसे 513 K पर गर्म करने पर यह मैंगनेट आयन में परिवर्तित हो जाता है जो कि अनुचुंबकीय होता है क्योंकि इसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉंन होता है।

प्रश्न 10.
परमैंगनेट आयन \(\left(\mathrm{MnO}_4^{-}\right)\) हाइड्रोजन आयनों की भिन्न-भिन्न सान्द्रताओं प्रर भिन्न-भिन्न अपचयन उत्पाद् देता है, इनके समीकरण लिखिए।
उत्तर:
परमैंगनेट आयन की अपचयन अभिक्रिया से बने उत्पाद हाइ्ड्रोजन आयन की संद्रता पर निभर करते हैं। H+ की विभिन्न सान्द्रताओं पर होने वाली अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार हैं-
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[H+] = 1 पर परमैंगनेट आयन द्वारा जल का आंक्सीकरण होना चाहिए लेकिन यह अभिक्रिया बहुत धीमी गति से होती है लोकिन इसमें Mn2+ आयन उत्त्रेसक के रूप में प्रयुक्त करने पर या ताप बन्ढ़ने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 11.
क्रोमिल क्नोराइड परीक्षणा को समझाइए।
उत्तर:
(vi) क्रोमिल क्लोराइड परीक्षण-यह क्लोराइड आयन का निश्चयात्मक परीक्षण है। जब किसी क्लोराइड लवण को प्रबल अम्लीय माध्यम (सान्द्र H2SO4) में K2Cr2O7 के साथ गर्म किया जाता है तो क्रोमिल क्लोराइड (CrO2Cl2) की नारंगी धूम बनती है।
K2Cr2O7 + 6H2SO4 + 4KCl → 2CrO2Cl2 + 6KHSO4 + 3H2O

प्रश्न 12.
एथीलीन की बेयर अभिकर्मक से क्रिया को समझाइए।
उत्तर:
एथिलीन की क्रिया 1% क्षारीय KMnO4 (बेयर अभिकर्मक) से करवाने पर एथिलीन ग्लाइकॉल बनता है जिसके कारण विलयन गुलाबी से रंगहीन हो जाता है। इस अभिक्रिया की सहायता से असंतृप्तता C = C या (C ≡ C) का परीक्षण किया जाता है तथा इसे बेयर परीक्षण कहते हैं।
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प्रश्न 13.
(i) Ce+4 प्रबल ऑक्सीकारक होता है, क्यों?
(ii) Eu2+ प्रबल अपचायक होता है, क्यों?
उत्तर:
(i) Ce+4 में उंत्कृष्ट गैस विन्यास होते हुए भी यह प्रचल ऑक्स्रीकारक होता है क्योंक Ce+4/Ce+3 के लिए मानक इलेबट्रॉड विभव का मान उच्च होता है अतः यह आसानी से इलेक्ट्रॉन ग्रहृण करके Ce+3 (सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था) बना लेता है। अतः यह जल को भौ ऑंक्सीकृत कर द्तेता है।

(ii) Eu2+ प्रबल अपचायक होता है क्योंक यह इलेक्ट्रॉन त्यागकर लैन्थेनॉयडों की सामान्य औक्सीकरण अवस्था +3 में परिवर्तित हो ज्ञात है।

प्रश्न 14.
लैन्थेनॉयडों के रंग तथा चुम्बकीय गुणों को समझाइए।
उत्तर:
रंग तथा चुम्बकीय गुण (Colour and Magnetic Property)一लैन्थेनॉयडों में कुछ त्रिसंयोजी आयन ठोस अवस्था तथा विलयन में रंगीन होते हैं। इन आयनों का रंग f इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण होता है। La3+ तथा Lu3+ आयन रंगहीन हैं परन्तु शेष लैन्थेनॉयड आयन रंगीन होते हैं। लेकिन f स्तर पर (f-f संक्रमण) ही उत्तेजना के कारण अवशोषण बैंड संकीर्ण (narrow) होते हैं। कुछ आयनों का रंग समान होता है। जैसे- Pr3+ व Tm+3 हरे रंग के तथा Nd3+ व Er3+ गुलाबी होते हैं। 4f0 (La3+ तथा Ce4+) एवं 4f14(Yb2+ तथा Lu3+) विन्यास के अतिरिक्त अन्य सभी विन्यासयुक्त लैन्थेनॉयड आयन अनुचुंबकीय होते हैं तथा नियोडिमियम का अनुचुंबकीय गुण अधिकतम होता है।

प्रश्न 15.
लैन्थेनॉयडों के अपचायक गुण का कारण तथा क्रम बताइए।
उत्तर:
अपचायक गुण (Reducing Property) – अर्धअभिक्रिया \(\operatorname{Ln}_{(a q)}^{3+}+3 \mathrm{e}^{-} \rightarrow \operatorname{Ln}_{(s)}\) के लिए E0 के मान लगभग – 2.2 से – 2.4 V तक होते हैं। E0 के इन उच्च ऋणात्मक मानों से ज्ञात होता है कि लैन्थेनॉयड प्रबल अपचायक होते हैं तथा आसानी से Ln3+ बना देते हैं। La से Lu तक E0 के मान कम ऋणात्मक होते जाते हैं अतः इनका अपचायक गुण कम होता जाता है। अपचायक गुण के कारण ही ये धातुएँ विद्युत धनी होती हैं।

प्रश्न 16.
ऐक्टिनॉयडों के परमाणु तथा आयनिक आकार को समझाइए।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयडों में परमाणु तथा आयनिक आकार की सामान्य प्रवृत्ति लैन्थेनॉयडों के समान ही होती है। श्रेणी में बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु आकार तथा आयनिक आकार (M+3) में क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयड संकुचन कहते हैं। आकार में यह कमी एक तत्व से दूसरे तत्व में उत्तरोत्तर बढ़ती है, जिसका कारण 5f इलेक्ट्रॉनों का दुर्बल परिरक्षण प्रभाव है।

बोर्ड परीक्षा के दुष्टिकोण से सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रिया समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+\mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
उत्तर:
(i) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq})+16 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}(\mathrm{aq})+8 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(\mathrm{l})+10 \mathrm{CO}_2(\mathrm{~g})\)

(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+14 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{3+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{3+}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)\)

प्रश्न 2.
आप निम्नलिखित के क्या कारण समझते हैं-
(i) बहुत से संक्रमण तत्व और उनके यौगिक अच्छे उत्प्रेरकों का कार्य करते हैं।
(ii) संक्रमण तत्वों की तीसरी (5d) श्रेणी के तत्चों की धात्विक त्रिज्याएँ लगभग वही होती हैं जो दूसरी श्रेणी के तत्सम्बन्धी तत्वों की होती हैं।
(iii) ऐक्टिनॉयडों में उपचयन अवस्थाओं (ऑक्सीकरण अवस्थाओं) का परास लैन्थेनॉयडों की अपेक्षा अधिक होता है।
उत्तर:
(i) संक्रमण तत्य और उनके यौगिक अच्छे उत्त्रेरक होते हैं क्योंकि इनमें परिवर्तनशील औंक्सीकरण अवस्था, अयुग्मित इ्लेक्ट्रॉन एवं रिक्त $d$ कक्षक पाए जाते हैं अतः ये आसानी से मध्यवर्तो यौगिक बना लेते हैं।

(ii) संक्रमण तात्वों की तीसरी श्रेणी (5d) के तत्वों की धात्थिक त्रिज्याएँ लगभग वही होती हैं जो दूसरी श्रेणी के संग्त तत्वों की होती है क्योंकि इल्लेक्ट्रॉन, 5d से पहले 4f कक्षकों में भर जाते हैं जिनके कारण परमाणु आकार में होने वाली वृद्धि का प्रभाव 4f के 14 तत्वों के नाभिकीय आवेश द्वारा संतुलित हो जाता है।

(iii) ऐक्टिनायडों में उपचयन अवस्थाओं का परास लैन्थेनोंयडों की अपेक्षा अधिक होता है क्यांकि इनमें 5f, 6d तथा 7s उपकोशों की ऊर्जा लमभग समान होती है। अतः इनके इलेकर्रोन बन्ध बनाने में भाग लेते हैं।

प्रश्न 3.
(a) निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{~S}(\mathrm{~g})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cu}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathbf{I}^{-}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)

(b) निम्नलिखित को कारण लिखकर स्पष्ट कीजिए-
(i) ऑक्सोत्रुणायनों की ऑक्सीकरण क्षमता \(\mathrm{VO}_2^{+}<\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}<\mathrm{MnO}_4^{-}\) के क्रम में होती है।
(ii) मैंगनीज (Z = 25) की तृतीय आयनन एन्थैल्पी अनअपेक्षित: उच्च्च होती है।
(iii) Cr2+ अपेक्षाकृत Fe2+ के अधिक प्रबल अपचायक है।
अथवा
(a) निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+\mathrm{S}_2 \mathrm{O}_3^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)

(b) निम्नलिखित अवलोकनों की व्याख्या कीजिए-
(i) La3+ (Z = 57) और Lu3+ (Z = 71) विलयनों में कोई रंग नहीं दर्शांते।
(ii) प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के द्विसंयोजन धनायनों में मैंगनीज सर्वाधिक अनुचुम्बकत्व प्रदर्शित करता है।
(iii) जलीय विलयनों में Cu+ आयन का अस्तित्व नहीं जाना जाता।
उत्तर:
(a) (i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{~S}(\mathrm{~g})+8 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{+3}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(\mathrm{l})+3 \mathrm{~S}(\mathrm{~s})\)
(ii) \(2 \mathrm{Cu}^{2+}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{I}^{-}(\mathrm{aq}) \rightarrow \mathrm{Cu}_2^{+2}(\mathrm{aq})+\mathrm{I}_2\)

(b) (i) ऑक्सोत्रशणायनों की ऑँक्सीकरण क्षमता \(\mathrm{VO}_2^{+}<\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}<\mathrm{MnO}_4^{-}\) के क्रम में होने का कारण धातु की ऑक्सीकरण अवस्था बट़ना है। इनमें V, Cr तथा Mn की आंक्सीकरण अवस्थाएँ क्रमशः + 5, + 6 तथा +7 है जिससे इलेक्ट्रॉंनों को आकर्षित करने की प्रवृत्ति बढ़ती है तथा इनके अपचयन के बाद प्राप्त उत्पादों का स्थायित्व बढ़ता है।

(ii) मैंगनीज की तृतीय आयनन एन्थैल्पी अनअपेक्षितः उच्च होती है क्योंकि दो इलेक्ट्रॉन निकलने के पश्चात् स्थायी अर्धपूरित (3d5) विन्यास प्राप्त हो जाता है जिसमें से तीसरा इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(iii) पाड्यानिहित प्रश्न 8.7 का उत्तर देखें।
अथवा
(a) (i) \(8 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{~S}_2 \mathrm{O}_3^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow 8 \mathrm{MnO}_2(\mathrm{~s})+6 \mathrm{SO}_4^{2-}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{OH}^{-}(\mathrm{aq})\)

(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+14 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{+3}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{3+}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)\)

(b) (i) La3+ तथा Lu3+ विलयनों में कोई रंग नहीं दर्शाते क्योंकि इन आयनों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्रमशः 4f0 तथा 4f14 है जिनमें कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है अतः इनमें इलेक्ट्रॉनों का संक्रमण (f–f संक्रमण) नहीं हो सकता।

(ii) प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के द्विसंयोजक धनायनों में मैंगनीज (Mn2+) सर्वीधिक अनुचुम्बकत्व दर्शाता है क्योंकि इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन (5) पाए जाते हैं।

(iii) Fe2+ की तुलना में Cr2+ एक प्रबल अपचायक पदार्थ है, क्योंकि Cr2+ से Cr3+ बनने में d4 का d3 में परिवर्तन होता है किन्तु Fe2+ से Fe3+ बनने में d6 का d5 में परिवर्तन होता है तथा जल जैसे माध्यम में d5 की तुलना में d3 अधिक स्थायी है। इसका कारण \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}{ }^3\) विन्यास का अधिक स्थायी होना है तथा इनके E0 मानों से भी यह स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित को कारण सहित स्पष्ट कीजिए-
(i) Cr2+ एक अपचायक है जबकि समान d-ऑर्बिटल विन्यास (d4) के साथ Mn3+ एक उपचायक (ऑक्सीकारक) होता है।
(ii) संक्रमण धातुओं की किसी श्रेणी में, जो तत्व सर्वाधिक संख्या में उपचयन अवस्थाएँ (ऑक्सीकरण अवस्थाएँ) प्रदर्शित करने वाला है, वह श्रेणी के मध्य में पाया जाता है।
उत्तर:
(i) Cr2+ एक अपचायक है; क्योंकि इसका विन्यास d4 से d3 में परिवर्तित होता है जिसमें अर्ध-पूरित t2g स्तर (\(\left(t_{2 g}^3\right)\)) होता है। दूसरी ओर Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जो इसे अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करता है जिसके कारण यह ऑक्सीकारक होता है।

(ii) संक्रमण धातुओं की किसी श्रेणी में मध्य में पाए जाने वाला तत्व सर्वाधिक संख्या में उपचयन अवस्थाएँ दर्शाता है क्योंक इसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है अतः इसमें साझेदारी या त्यागने के लिए अधिक इलेक्ट्रॉन उपलब्ध हैं तथा साझेदारी के लिए d कक्षक भी अधिक संख्या में पाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
तत्वों की 3d श्रेणी में Cr3+, Mn2+, Fe3+ और बाद में M2+ आयनों के विपरीत 4d और 5d श्रेणियों के धातु सामान्यतः ऐसे स्थायी धनायनी स्पीशीज नहीं बनाते।
उत्तर:
4d तथा 5d श्रेणियों के धातु 3d श्रेणी के तत्वों के समान निम्न ऑक्सीकरण अवस्था नहीं दर्शाते क्योंकि इनमें उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अधिक स्थायी होती हैं जबकि 3d श्रेणी के तत्वों के उच्च ऑक्सीकरण अवस्था के यौगिक अपचयित हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रिया समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+\mathrm{I}^{-}+\mathrm{H}^{+} \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{MnO}_4^{-}+\mathrm{NO}_2^{-}+\mathrm{H}^{+} \rightarrow\)
उत्तर-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+6 \mathrm{I}^{-}+14 \mathrm{H}^{+} \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{3+}+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}+3 \mathrm{I}_2\)
(ii) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}+5 \mathrm{NO}_2^{-}+6 \mathrm{H}^{+} \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}+5 \mathrm{NO}_3^{-}+3 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}\)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित को आप कारण सहित कैसे स्पष्ट करेंगे-
(i) लैन्थेनॉयडों में Ln(III) यौगिक प्रमुख होते हैं। परन्तु कभी-कभी विलयनों अथवा ठोस यौगिकों में, +2 और +4 आयन भी पाए जाते हैं।
(ii) \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+} / \mathbf{M}}^{\circ}\) का मान कॉपर के लिए धनात्मक (0.34 V) है। संक्रमण तत्वों के प्रथम श्रेणी में ऐसा व्यवहार दिखाने वाली कॉपर अकेली धातु है।
उत्तर:
(i) लैन्थेनॉयडों की मुख्य ऑक्सीकरण अवस्था +3(Ln3+) होती है। इसके अतिरिक्त ठोस अवस्था में या विलयन में कुछ यौगिकों में + 2 तथा + 4 अवस्था भी पाई जाती है। इसका कारण इनमें उपस्थित रिक्त (f0), अर्धपूरित (f7) तथा पूर्ण पूरित (f14) f-कक्षकों का अधिक स्थायित्व है।

(ii) कॉपर के लिए \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+} / \mathbf{M}}^{\circ}\) का मान धनात्मक होता है क्योंकि कॉपर की क्रियाशीलता कम होती है तथा Cu2+ बनने के लिए 3d10 पूर्णपूरित स्थायी विन्यास में से इलेक्ट्रॉन निकलता है जिसके लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.
(i) लैन्थेनॉयड संकुचन किसे कहते हैं?
(ii) क्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट प्राप्त करने की रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर:
(i) लैन्थेनॉयड संकुचन (Lanthanoid Contraction)लैन्थेनॉयडों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम) तक परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में समग्र (over all) कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं।

परमाणु त्रिज्याओं के मानों में यह कमी नियमित नहीं होती है जैसा कि M+3 आयनो में नियमित रूप से कमी होती है। यह संकुचन भी सामान्य संक्रमण श्रेणियों के समान ही है तथा इसका कारण भी समान है अर्थात् एक ही उपकोश में एक इलेक्ट्रॉन का दूसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा परिरक्षण प्रभाव अपूर्ण होता है। फिर भी श्रेणी में नाभिकीय आवेश बढ़ने पर एक d-इलेक्ट्रॉन पर दूसरे d-इलेक्ट्रॉन के परिशक्षण प्रभाव की तुलना में, एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव कम होता है तथा f-कक्षकों की आकृति भी इसके लिए अनुकूल नहीं है।

अतः श्रेणी में बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ परमाणु आकार में एक नियमित कमी पायी जाती है, लेकिन Eu की परमाणु त्रिज्या अधिक होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 15
(ii) पोटैशियम डाइक्रोमेट (Potassium dichromate) (K2Cr2O7)
बनाने की विधि- K2Cr2O7 को क्रोमाइट अयस्क (FeCr2O4) से बनाया जाता है।
क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाने में निम्नलिखित पद प्रयुक्त होते हैं-(i) पहले क्रोमाइट अयस्क को वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित किया जाता है, तो क्रोमेट प्राप्त होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 16

प्रश्न 9.
Ni2+ आयन का चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
Ni2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d8
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 17
अतः अयुग्मित इलेक्ट्रोंनों की संख्या, n = 2
चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
µ = \(\sqrt{2(2+2)}\) =
√8 = 2.82 BM

प्रश्न 10.
कारण दीजिए-
(अ) संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है।
(ब) Cr2+ तथा Mn3+ दोनों का d4 विन्यास है, परन्तु Cr2+ अपचायक और MnCr3+ ऑक्सीकारक है।
उत्तर:
(अ) संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn सबसे अधिक संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+2 से +7) दर्शाता है क्योंकि इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।

(ब) Cr2+ एक अपचायक है; क्योंकि इसका विन्यास d4 से d3 में परिवर्तित होता है जिसमें अर्ध-पूरित t2g स्तर (\(t_{2 \mathrm{~g}}^3\)) होता है। दूसरी और Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जो इसे अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करता है जिसके कारण यह ऑक्सीकारक होता है।

प्रश्न 11.
Zn, Cd एवं Hg को संक्रमण तत्व नहीं माना जाता है। कारण दीजिए।
उत्तर:
Zn, Cd एवं Hg की मूल अवस्थाओं तथा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं में d-कक्षक पूर्ण भरे होते हैं अतः इन्हें संक्रमण तत्व नहीं माना जाता है। संक्रमण तत्वों में मूल अवस्था अथवा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था में d-कक्षक अपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 12.
क्रोमेट आयन की आकृति केसी होती है? इसकी संरचना बनाइए।
उत्तर:
क्रोमेट आयन \(\left(\mathrm{CrO}_4^{2-}\right)\) कौ अकृति चतुण्फलकीय होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 18

प्रश्न 13.
Ti4+ आयन संगहीन होता है। कारण बताइए।
उत्तर:
Ti4+ आयन का बहातम इलेक्ट्रानिक विन्यास 3d0 है जिसमें कोई अयुग्मित इ्लेक्टान नहीं है अत्ता इसमें इलेक्टौन का उत्तेजन सम्भग नहीं है। इसकिए Ti4+ आयन रेगहीन होता है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित के कारण दीजिए-
(1) (a) Mn3+ एक अच्छा अंबसीकास्क है।
(b) संक्रमण तत्वो की प्रथम श्रेणी में \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+}, \mathbf{M}}^{\circ}\) के मान नियमित नहीं हैं।
(c) यद्वापि फ्लुओरीन की विद्युतक्रणता औंक्सीजन से अधिक होती है फिर भी Mn का उच्चतम फ्लुओराइड MnF4 है जबकि इसका उच्चतम ऑक्साइड Mn2O7 है।

(ii) निम्नलिखित समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 19
उत्तर:
(i) (a) Mn3+/Mn2+ के लिए E° का मन उच्च धनात्मक है अन्तः Mn3+ आसानी से Mn2+ सें अपचयित हो सकता है तथा Mn2+ में अर्धपरित (3d5) स्थायी विन्बास है इसलिए वह Mn+3 से अंक र्थ्यायी है। इसी कारण Mn3+ एक अच्छ कौनसीकारक है।

(b) प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं के लिए E0(Mn2+/M) के मान नियमित नहीं हैं। E0 मान आयनन एन्थैल्पी में अनियमित परिवर्तन (△iH1+△iH2) तथा ऊर्ध्वपातन एन्थैल्पी पर निर्भर करता है। V तथा Mn के लिए आयनन एन्थैल्पी तथा ऊर्ध्वपातन एन्थैल्पी अपेक्षाकृत कम होती है, अतः E0 के मान अनियमित हो जाते हैं।

(c) अन्य मकत्वपूर्ण प्रश्न (लमूतरत्मक) संख्या lb का उतर देखें।
(ii) HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 20

प्रश्न 15.
(i) निम्नलिखित को कैसे बनाएंगे? केवल समीकरण बीजिए।
(a) MnO2 से K2MnO4
(b) Na2CrO4 से Na2Cr2O7
(ii) +3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के सन्दर्ध गें Mn2+, Fe+2 की तुलना में अधिक स्थायी होता है, क्यों ?
(iii) ऐकिटनॉयडों में ऑवसीकरण अवस्थाओं की परास अधिक होती है, क्यों?
उत्तर:
(i) (a) 2MnO2 + 4KOH + O2 → 2K2MNO4 + 2H2O
(b) 2Na2CrO4 + \(2 \stackrel{+}{\mathrm{H}}\) → Na2Cr2O7 + \(2 \mathrm{Na}^{+}\)

(ii) जिंक में 3d कक्षकों के इलेक्ट्रॉन धात्विक बन्ध बनाने में प्रयुक्त नहीं होते हैं क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d104s2 होता है जबकि 3d श्रेणी के अन्य सभी धातुओं के d कक्षक अपूर्ण भरे होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन धात्विक बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः Zn में धात्विक बन्ध दुर्बल होता है इसलिए इसकी कणन एन्थैल्पी (परमाणुकरण की एन्थैल्पी) सबसे कम होती है।

(iii) ऐक्टिनायडों में उपचयन अवस्थाओं का परास लैन्थेनोंयडों की अपेक्षा अधिक होता है क्यांकि इनमें 5f, 6d तथा 7s उपकोशों की ऊर्जा लमभग समान होती है। अतः इनके इलेकर्रोन बन्ध बनाने में भाग लेते हैं।

प्रश्न 16.
कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही क्यों प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
ऑक्सीजन तथा फ्लुओरोन की उच्च विद्युत्तरणता तथा इनके छोटे आकार के कारण ये धातुओं को उचतम ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देते हैं अतः कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही प्रद्रार्शित करती है।

प्रश्न 17.
(अ) सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d-कक्षक (4 d10) हैं, फिर भी यह एक संक्रमण तत्व है। कैसे?
(ब) ऐक्टिनॉयड आकुंचन समझाइए।
उत्तर:
(अ) सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d कक्षक (4 d10) होते हुए भी यह एक संक्रमण तत्व है क्योंकि इसकी ऑक्सीकरण अवस्था (Ag2+) में d-कक्षक अपूर्ण हो जाते हैं।

(ब) ऐक्टिनॉयड श्रेणी में बाएं से दाएं जाने पर परमाणु आकार तथा आयनिक आकार (M+3) में धीरे-धीरे क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयंयड आकुंचन कहते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 18.
(अ) लैन्थेनॉयड आकुंचन किसे कहते हैं?
(ब) अंतराकाशी यौगिक किसे कहते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
(स) M2+ (जलीय) आयन (Z = 29) के लिए ‘प्रचक्रण मात्र’ चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
उत्तर:
(अ) लैन्थेनॉयडों में La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम ) तक परमाणु क्रमांक बढ़ने पर परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड आकुंचन (संकुचन ) कहते हैं।

(ब) संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल में परमाणुओं के निबिड़ संकुलित होने के बाद भी उनके मध्य छोटे-छोटे रिक्त स्थान बच जाते हैं, जिन्हें अन्तराकाश कहते हैं। इन रिक्त स्थानों में छोटे अधातु परमाणु जैसे H. B, C तथा N आदि आ जाते हैं तो इस प्रकार बने यौगिकों को अन्तराकाशी यौगिक कहते हैं। उदाहरण- Fe3H

(स) परमाणु क्रमांक (Z) = 29 के M2+ आयन (Cu2+) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न है-
Cu2+ = [Ar] 3d9
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 21
यहाँ अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या n = 1, अतः प्रचक्रण मात्र चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
µ = \(\sqrt{1(1+2)}\) BM
µ = √3 BM
µ = 1.732 BM

प्रश्न 19.
संक्रमण तत्त्व परिवर्तनशील उपचयन अवस्थाएँ क्यों दिखलाते हैं? d-ब्लॉक की उपचयन अवस्थाएँ p-ब्लॉक के तत्त्वों की उपचयन अवस्थाओं से कैसे भिन्न होती हैं?
उत्तर:
संक्रमण तत्त्व परिवर्तनशील उपचयन (ऑक्सीकरण) अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं क्योंकि इनके (n – 1) d तथा ns कक्षकों की ऊर्जा में अन्तर बहुत कम होता है तथा इनके d-कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन भी पाए जाते हैं। अतः इनमें ns इलेक्ट्रॉनों के साथ (n – 1)d इलेक्ट्रॉन भी बन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं।

d-ब्लॉक की उपचयन अवस्थाओं में एक का अन्तर होता है। जैसे Mn,+ 2,+ 3,+ 4,+ 5,+ 6 तथा +7 अवस्था दर्शाता है जबकि p-ब्लॉक के तत्त्वों में उपचयन अवस्थाओं में सदैव दो का अन्तर होता है। जैसें- Sn,+2 तथा + 4 अवस्था दर्शाता है।

प्रश्न 20.
(i) Mn3+/Mn2+ युग्म के लिए E0 का मान धनात्मक (+1.5 V) है जबकि Cr3+/Cr2+ के लिए यह ऋणात्मक (- 0.4 V) है। क्यों?
(ii) संक्रमण धातुएँ यौगिक बनाती हैं। क्यों?
(iii) निम्नलिखित समीकरण को पूर्ण कीजिए-
\(2 \mathrm{MnO}_4^{-}+16 \mathrm{H}^{+}+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-} \rightarrow\)
उत्तर:
(i) Mn3+/Mn2+ युग्म के लिए E0 का मान धनात्मक है जबकि Cr3+/Cr2+ के लिए यह ऋणात्मक है क्योंकि Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जबकि Cr+3 से Cr+2 में परिवर्तन से अधिक स्थायी अर्धपूरित t2g स्तर (\(\left(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3\right)\)) कम स्थायी \(\left(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^2\right)\) विन्यास में परिवर्तित होता है।

(ii) संक्रमण धातुओं के यौगिक सामान्यतः रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे दृश्य प्रकाश द्वारा d-d संक्रमण (t2g से eg) आसानी से हो जाता है। लिगन्ड (जल इत्यादि) की उपस्थिति में d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं- t2g तथा eg । इसी कारण इनका रंग जलीय विलयन या जलयोजित अवस्था में ही प्रेक्षित होता है।

(iii) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+16 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}(\mathrm{aq})+8 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)+10 \mathrm{CO}_2(\mathrm{~g})\)

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. आपातकालिक गर्भनिरोधक मैथुन के कितने घण्टे के भीतर लेनी चाहिए-
(अ) 72 घण्टे
(ब) 82 घण्टे
(स) 92 घण्टे
(द) 100 घण्टे
उत्तर:
(अ) 72 घण्टे

2. जनसंख्या दिवस मनाया जाता है-
(अ) 11 जुलाई
(ब) 21 जुलाई
(स) 31 जुलाई
(द) 11 अगस्त
उत्तर:
(ब) 21 जुलाई

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

3. जो दम्पति बच्चे के इच्छुक हैं उनके लिए संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है-
(अ) टेस्ट ट्यूब बेबी
(ब) गोद लेकर
(स) पात्रे निषेचन
(द) कृत्रिम गर्भाशय वीर्य सेचन
उत्तर:
(ब) गोद लेकर

4. जनन स्वास्थ्य शब्द से क्या तात्पर्य है-
(अ) शारीरिक स्वास्थ्य
(ब) व्यवहारात्मक स्वास्थ्य
(स) भावात्मक स्वास्थ्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. रोध (बैरियर) विधि कौन-सी है?
(अ) निरोध
(ब) गर्भाशय ग्रीवा टोपी
(स) डायफ्राम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

6. कौनसी तकनीकी पुरुषों से सम्बन्धित है?
(अ) मुखीय गोली
(ब) वैसक्टोमी
(स) ट्यूबेक्टोमी
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वैसक्टोमी

7. सिफलिस (Syphillis) रोग का रोगजनक है-
(अ) ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस
(ब) मानव पैपिलोमा वायरस
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम
(द) निसेरिया गोनोही
उत्तर:
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम

8. निम्न में से ऐसा कौनसा रोग है जो उपचार योग्य नहीं है-
(अ) यकृत शोध (बी)
(ब) जननिक परिसर्प
(स) एच.आई.वी. संक्रमण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

9. विद्यालयों में यौन शिक्षा की पढ़ाई क्यों जरूरी है?
(अ) सुरक्षित और स्वच्छ यौन क्रियाओं के लिए
(ब) यौन संचारित रोगों एवं एड्स की जानकारी के लिए
(स) यौन सम्बन्धी गलत धारणाओं से छुटकारा पाने के लिए
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

10. परखनली के सम्बन्ध में सत्य है-
(अ) मादा के जननांग में निषेचन तथा परखनली में वृद्धि
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन
(स) निषेचन तथा परिवर्धन गर्भाशय के बाहर
(द) जन्मपूर्व शिशु को इन्क्यूबेटर में रखना
उत्तर:
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन

11. औषधि रहित आई यू डी निम्न में से कौन-सी है?
(अ) लिप्पेस लूप
(ब) कॉपर-टी
(स) सी यू
(द) प्रोजेस्टासर्ट
उत्तर:
(अ) लिप्पेस लूप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

12. उल्बवेधन (ऐमीनोसेंटेसिस) जाँच क्या है?
(अ) गर्भनिरोधक परीक्षण
(ब) बंध्यता परीक्षण
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण
(द) यौन संचारित रोग परीक्षण
उत्तर:
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण

13. जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम किस नाम से प्रसिद्ध है?
(अ) एस.सी.एच.
(ब) एच.सी.एच.
(स) आर.सी.एच.
(द) एफ.सी.एच.
उत्तर:
(स) आर.सी.एच.

14. ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अण्डाणु उत्पत्न नहीं कर सकतीं, लेकिन उनके लिए एक विधि अपनाई जाती है, जिसमें दाता से अंडाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस तकनीक को क्या कहते हैं?
(अ) जी.आई.एफ.टी.
(ब) ए.आर.टी.
(स) ई.टी.
(द) उत्तर:जेड.आई .एफ.टी.
उत्तर:
(अ) जी.आई.एफ.टी.

15. मानव जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि का कारण है-
(अ) औसत आयुकाल में वृद्धि
(ब) अच्छी चिकित्सीय सुविधाएँ
(स) मृत्युदर में कमी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

16. परिवार नियोजन की शुरुआत भारत में कब हुई?
(अ) सन् 1951
(ब) सन् 1961
(स) सन् 1941
(द) सन् 197
उत्तर:
(अ) सन् 1951

17. दम्पति के बंध्य होने का कारण हो सकता है-
(अ) शारीरिक
(ब) जन्मजात
(स) रोगजन्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

18. निम्न में से यौन संचारित रोग है-
(अ) तपेदिक
(ब) पीलिया
(स) सुजाक
(द) जुकाम
उत्तर:
(स) सुजाक

19. जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्य योजना बनाने वाला विश्व का पहला देश कौनसा था?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) भारत
(स) रूस
(द) अमेरिका
उत्तर:
(ब) भारत

20. स्तनपान अनार्तव विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा कितने माह की अवधि तक कारगर मानी गई है?
(अ) 6 माह
(ब) 8 माह
(स) 10 माह
(द) 12 माह
उत्तर:
(अ) 6 माह

21. प्रति हजार व्यक्तियों में जन्म लेने वाली संख्या को क्या कहते हैं?
(अ) वृद्धि दर
(ब) लगभग (crude) जन्म दर
(स) गर्भधारण दर
(द) प्रजनन दर
उत्तर:
(ब) लगभग (crude) जन्म दर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

22. मुखीय गर्भनिरोधक निम्न में से किसके विभित्न संयोग से बनता है?
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन
(ब) ऑक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सीन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन

23. सासाहिक रूप से खाने वाली गर्भ निरोधक गोली का व्यापारिक नाम है-
(अ) माला
(ब) सहेली
(स) माला ए
(द) माला डी
उत्तर:
(ब) सहेली

24. दैनिक रूप से खाने वाल गर्भ निरोधक गोली कौनसी है?
(अ) माला C
(ब) माला N तथा माला D
(स) माला A
(द) माला D
उत्तर:
(ब) माला N तथा माला D

25. महिलाओं के लिए एक नया ओरल गर्भ ‘सहेली’ वैज्ञानिकों ने किस संस्थान पर विकसित किया?
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ
(ब) आई.आई .एससी.-बैंगलोर
(स) सी.एस.आई.आर.-नई दिल्ली
(द) आई.सी.एम.आर.-नई दिल्ली
उत्तर:
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ

26. निम्न में से लोगों की जनन सम्बन्धी समस्या है-
(अ) सगर्भता
(ब) गर्भपात
(स) प्रसव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

27. यौन संचारित रोग का लक्षण है-
(अ) गुसांग में खुजली
(ब) तरल स्राव आना
(स) हल्का दर्द तथा सूजन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. यौन संचारित रोगों का समय पर उपचार न होने पर निम्न में से कौनसी जटिलता पैदा हो सकती है-
(अ) श्रोणि-शोथज रोग (पी.आई.डी.)
(ब) अस्थानिक सगर्भता
(स) जनन मार्ग का केंसर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

29. गर्भनिरोधक विधियों के सम्भावित दुष्प्रभाव हैं-
(अ) मतली
(ब) उदरीय पीड़ा
(स) अनियमित आर्तव रक्तस्राव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

30. महिलाओं द्वारा मुँह से लेने वाली गोलियाँ 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं। इन्हें क्या कहते हैं?
(अ) पिल्स
(ब) विल्स
(स) किल्स
(द) मिल्स
उत्तर:
(अ) पिल्स

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

31. नीचे एक स्तम्भ में गर्भनिरोध प्राप्त करने की चार रीतियाँ (1-4) और दूसरे स्तम्भ में उनके कार्य करने की चार विधियाँ (i-iv) दी गई हैं। इन रीतियों और उनकी कार्य विधियों के सही मिलान को चुनिये-

स्तम्भ-I ( रीतियाँ )स्तम्भ-II ( कार्य विधियाँ)
1. गोली(i) शुक्रणुओं को सर्विक्स में पहुँचने से रोकना
2. कंडोम(ii) अंतर्रोपण को न होने देना
3. शुक्रवाहिका छेदन(iii) अण्डोत्सर्ग न होने देना
4. कॉपर-T(iv) वीर्य में शुक्राणुओं का न होना।

मिलान

(अ)1-(iii)2-(iv)3-(i)4-(ii)
(ब)1-(ii)2-(iii)3-(i)4-(iv)
(स)1-(iii)2-(i)3-(iv)4-(ii)
(द)1-(iv)2-(i)3-(ii)4-(iii)

उत्तर:

(स)1-(iii)2-(i)3-(iv)4-(ii)

32. प्रतिनिधि माँ (सरोगेट मदर) का उपयोग के लिए होता है।
(अ) दुगध स्त्रावण के प्रेरण
(ब) कृत्रिम वीर्यसेचित मादा
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ
(द) कृत्रिम वीर्यसेचन।
उत्तर:
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ

33. एम्नियोसेन्टेसिस विधि में द्रव कहाँ से निकाला जाता है?
(अ) भूण के रक्त से
(ब) माता के रक्त से
(स) माता के शरीर के द्रव से
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।
उत्तर:
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर:
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में अवस्थित है ।

प्रश्न 2.
परिवार नियोजन को अब किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
परिवार नियोजन को अब परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 3.
कंडोम के उपयोग से कोई एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
गर्भधारण के अलावा यौन संचारित रोगों से बचाव जैसा लाभ है।

प्रश्न 4.
उल्बभेदन (Amniocentesis) का एक धनात्मक तथा एक ऋणात्मक अनुप्रयोग बताइये ।
उत्तर:

  • धनात्मक अनुप्रयोग – यह भ्रूणावस्था में आनुवंशिक रोग की जाँच में प्रयुक्त किया जाता है।
  • ऋणात्मक अनुप्रयोग – यह मादा भ्रूण हत्या को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 5.
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम लिखिए।
उत्तर:
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम सहेली है।

प्रश्न 6.
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनके निषेचन की क्षमता को कम करती है।

प्रश्न 7.
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में कौनसा हार्मोन पाया जाता है ?
उत्तर:
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन नामक हार्मोन पाया जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

प्रश्न 8.
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए कौनसी युक्ति आदर्श गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक युक्ति है।

प्रश्न 9.
चिकित्सीय सगर्भता समापन किसे कहते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम.टी.पी.) कहते हैं।

प्रश्न 10.
IUCD का पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
इन्ट्रा यूटेराइन कान्ट्रासेप्टिव डिवाइस |

प्रश्न 11.
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता ( Infertility) कहते हैं।

प्रश्न 12.
महिला नसबंदी से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर;
महिला के उदर में छोटा-सा चीरा लगाकर अथवा योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या धागे से बाँधने की क्रिया को महिला नसबंदी अथवा नलिका उच्छेदन (टूबैक्टोमी) कहते हैं।

प्रश्न 13.
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति कब प्रदान की गई ?
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति सन् 1971 ई. में प्रदान की गई।

प्रश्न 14.
STD का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) |

प्रश्न 15.
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान गर्भधारण शून्य होता है, क्यों?
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान अण्डोत्सर्ग और आर्तव चक्र शुरू नहीं होता है। इसलिए गर्भधारण शून्य होता है।

प्रश्न 16.
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम क्या है जो काफी लोकप्रिय है ?
उत्तर:
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है 1

प्रश्न 17.
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री तथा पुरुष के लिए क्या सुनिश्चित है ?
उत्तर:
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री के लिए 18 वर्ष तथा पुरुष के लिए 21 वर्ष सुनिश्चित है।

प्रश्न 18.
दो STD के नाम लिखिए जो संदूषित रक्त से संचारित होते हैं।
उत्तर:

  • एड्स
  • हिपेटाइटिस – B

प्रश्न 19.
गर्भाशय वीर्य सेचन ( Intrauterine insemination) किसे कहते हैं?
उत्तर:
पति या स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा गर्भाशय ( Uterus) में प्रविष्ट कराना गर्भाशय वीर्य सेचन कहलाता है ।

प्रश्न 20.
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को क्या कहते हैं एवं क्यों?
उत्तर:
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile period) कहते हैं। क्योंकि इस अवधि में निषेचन एवं गर्भधारण के अवसर अधिक होते हैं।

प्रश्न 21.
पुरुष साथी स्त्री को वीर्यसेचित कर सकने योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण किस तकनीक से किया जा सकता है?
उत्तर:
कृत्रिम वीर्य सेचन ( Artificial Insemination)।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

प्रश्न 22.
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत के किस संस्थान में की गई?
उत्तर:
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत में लखनऊ स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (CDRI) में की गई।

प्रश्न 23.
लैंगिक सम्पर्क से होने वाले कोई दो रोग बताइए ।
उत्तर:

  • सूजाक (Gonorrhoea)
  • सिफिलिस (Syphilis)

प्रश्न 24.
छोटे परिवार को प्रोत्साहन देने हेतु गर्भ निरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित नारा ‘हम दो हमारा एक’ गाँव में ज्यादा लोकप्रिय है या शहर में ?
उत्तर:
शहरों में कामकाजी युवा दम्पतियों ने ‘हम दो हमारा एक’ का नारा अपनाया है।

प्रश्न 25.
HIV एवं AIDS का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
HIV- ह्यूमन इम्यूनो डेफीसिएन्सी वाइरस । AIDS – एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम ।

प्रश्न 26.
दो घटनाओं के नाम लिखिए जो मनुष्य में गर्भधारण से रोकथाम के लिए मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करने से होती हैं ?
उत्तर:
मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों से अण्डोत्सर्ग की क्रिया परिवर्तित होती है तथा रोपण की क्रिया नहीं होती है। इसके अलावा सर्वाइकल म्यूकस की गुणवत्ता को रूपान्तरित करती है जिससे शुक्राणुओं का प्रवेश बाधित हो जाता है।

प्रश्न 27.
डायफ्राम एवं वाल्ट क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
डायफ्राम एवं वाल्ट रबर से बने रोधक उपाय हैं। इनका उपयोग स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने में किया जाता है।

प्रश्न 28.
ZI FT का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
युग्मनज अन्तः डिम्बवाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer)

प्रश्न 29.
लिंग अनुपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समष्टि में प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या लिंग अनुपात कहलाता है।

प्रश्न 30.
जनसंख्या की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक विशिष्ट स्थान पर एक समय में पाये जाने वाले एक जाति के सदस्यों के समूह को जनसंख्या कहते हैं ।

प्रश्न 31.
STD क्या है? इसके दो रोगों को बताइए ।
उत्तर:
वे रोग जो मैथुन (Sexual Inter Course) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases, STD ) कहते हैं। इन्हें रति रोग अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive Tract Infection) भी कहते हैं।
दो रोग –

  • सुजाक (Gonorrhoea)
  • सिफलिस (Syphilis ) ।

प्रश्न 32.
परखनली शिशु क्या है?
उत्तर:
परखनली शिशु ( Test Tube baby) – कुछ महिलाएँ गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। इन महिलाओं के अण्डाणु को कृत्रिम माध्यम पर शुक्राणु द्वारा निषेचित कराकर पुनः भ्रूण को गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है जहाँ भ्रूण का सामान्य विकास होता है। सामान्य प्रसव के बाद जो शिशु जन्म लेता है इसे परखनली शिशु कहते हैं ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
एक वर्ष की पुत्री की माता अपने दूसरे बच्चे में अन्तर रखना चाहती है। उसकी डाक्टर ने उसे Cu – T की सलाह दी। इसके गर्भनिरोधक प्रभाव को समझाइए ।
अथवा
Cu-T किस प्रकार महिलाओं के लिए एक असरकारक गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
कॉपर-टी एक कॉपर आयन मुक्त करने वाली अन्तः गर्भाशयी युक्ति है। इससे निकलने वाले कॉपर आयन शुक्राणुओं ( Sperms) के लिए भक्षाणुओं की तरह कार्य कर उन्हें समाप्त कर देते हैं इससे शुक्राणुओं की गतिशीलता व निषेचन की क्षमता समाप्त हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन (Fertilization ) एवं. गर्भधारण की क्रिया नहीं होती है।

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प्रश्न 2.
आदर्श गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? गर्भनिरोधक उपायों के संभावित कोई पाँच दुष्प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला, आसानी से उपलब्ध, प्रभावी तथा जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो बहुत ही कम । इसके साथ ही यह उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक न हो उसे एक आदर्श गर्भनिरोधक ( Ideal Contraceptive ) कहते हैं।
गर्भनिरोधक उपायों के संभावित पाँच दुष्प्रभाव निम्न हैं-

  • मतली (Nausea)
  • उदरीय पीड़ा (Abdominal pain)
  • बीच-बीच में रक्तस्राव ( Breakthrough bleeding).
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव (Irregular menstrual bleeding)
  • स्तन कैंसर (Breast Cancer) ।

प्रश्न 3.
भारत में गर्भनिरोधक दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि कौनसी है? इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि अंतः गर्भाशयी युक्ति (Intra Uterine Device) है ये युक्तियाँ डाक्टरों एवं अनुभवी नसों द्वारा योनि मार्ग से गर्भाशय ( Uterus) में लगाई जाती हैं। आजकल विभिन्न प्रकार की अंत: गर्भाशयी युक्तियाँ उपलब्ध हैं; जैसे कि औषधिरहित आई यू डी (उदाहरण- लिप्पेस लूप), तांबा मोचक आई यू डी (कॉपर-टी, कॉपर-7 मल्टी लोड 375 कॉपर टी) तथा हार्मोन मोचक आई यू डी (प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी -20) आदि।

आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सीयू) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन क्षमता को कम करती है। इसके अलावा आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाते तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक (Ideal Contraceptives) है।

प्रश्न 4.
कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है। समझाइए ।
उत्तर:
वैज्ञानिकों द्वारा मनुष्य के लाभ के लिए अनेक युक्तियों की खोज की जाती है। विभिन्न बीमारियों के इलाज की विधियाँ खोजी जाती हैं परन्तु मनुष्य अपने स्वार्थवश उनका दुरुपयोग करने लगता है जिसका परिणाम अति भयंकर होता है। उदाहरण के लिए उल्चवेधन ऐसी युक्ति है जिसमें माँ के गर्भ में पल रहे शिशु या गर्भ में उत्पन्न आनुवंशिक कमियों तथा उसकी स्थिति का पता लगाया जा सकता है परन्तु लालची मनुष्य ने इस युक्ति का प्रयोग लिंग की पहचान करने में प्रारम्भ कर दिया है।

लिंग का पता करके मनुष्य अवांछित भ्रूण को गर्भपात द्वारा नष्ट करा देता है। खासकर मानव समाज में लड़की के जन्म को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनकी इस युक्ति से पहचान कर गर्भ में हत्या कर दी जाती है। इसे भ्रूण हत्या कहते हैं। यह एक अमानवीय व्यवहार है। इससे यह सिद्ध होता है कि कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है।

प्रश्न 5.
पिल्स क्या है? यह गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करती है? समझाइए ।
उत्तर:
महिलाओं के द्वारा खाया जाने वाला गर्भनिरोधक प्रोजेस्टोजन अथवा प्रोजेस्टोजन और एस्ट्रोजन का संयोजन है जिसे थोड़ी मात्रा में मुँह द्वारा लिया जाता है। यह मुँह से टिकिया (Tablets) के रूप में ली जाती है और यह पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय है। ये गोलियाँ ( Pills ) 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं और इन्हें आर्तव चक्र (Menstrual cycle) के प्रथम पाँच दिनों, मुख्यत: पहले दिन से ही शुरू करना चाहिये। गोलियाँ (Pills)

समाप्त होने के सात दिनों के अंतर के बाद जब पुन: आर्तव चक्र शुरू होता है, फिर से वैसे ही लिया जाता है और यह क्रम तब तक जारी रहता है जब तक गर्भनिरोधक की आवश्यकता होती है । ये अण्डोत्सर्जन (Ovulation) और रोपण (Implantation ) को रोकने के साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा गुणता को बदल देती हैं, जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है, या उनकी गति धीरे अथवा मंद हो जाती है।

ये गोलियाँ ( Pills) बहुत ही प्रभावशाली तथा बहुत कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। महिलाओं द्वारा ये खूब स्वीकार्य हैं । सहेली (Saheli) नामक नयी गर्भनिरोधक गोली है । यह हफ्ते में एक बार ली जाने वाली गोली है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा यह उच्च निरोधक क्षमता वाली होती है।

प्रश्न 6.
जन्मदर व मृत्युदर में कोई चार अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
जन्मदर तथा मृत्युदर में कोई चार अन्तर-

जन्मद्रमृत्युदर
1.प्रति हजार जनसंख्या में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले प्राणियों की संख्या को जन्मदर कहते हैं।प्रति ह जार जनसंख्या में प्रतिवर्ष मरने वाले प्राणियों की संख्या को मृत्युदर कहते हैं।
2. जन्मदर को नियंत्रित करने वाले कारक निम्न हैं-आर्थिक विकास एवं मानव महत्वाकांक्षाएँ।जबकि मृत्युदर को निम्न कारकों से कम किया जा सकता है -प्राकृ तिक आपदाओं से रक्षा, भण्डारण की सुविधा, कृषि का विकास आदि।
3. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व का मान भी बढ़ जाता है ।मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व के मान में कमी आती है ।
4. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या में वृद्धि होती है।मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या में कमी आती है।

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प्रश्न 7.
गर्भनिरोध की शल्यक्रिया विधि को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइए ।
उत्तर:
शल्यक्रिया विधियाँ (Surgical methods ) – इन्हें बंध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं । प्रायः यह उन लोगों को सुझाई जाती है, जिन्हें बच्चा नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष / स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक ( Gametes) के परिवहन को रोक दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है । बंध्यकरण (Sterilisation) प्रक्रिया को पुरुषों के लिए शुक्रवाहक – उच्छेदन (Vasectomy) तथा महिलाओं के लिए डिंबवाहिनी नलिका उच्छेदन ( Tubectomy) कहा जाता है।

जनसाधारण इन क्रियाओं को पुरुष नसबंदी या महिला नसबंदी के नाम से जानते हैं। शुक्रवाहक- उच्छेदन में अंडकोष (Scrotum) शुक्रवाहक में चीरा मार कर छोटा-सा भाग काटकर निकाल या बाँध दिया जाता है।  (अ) को। जबकि स्त्री के उदर में छोटा- सा चीरा मारकर या योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली (Fallopian Tube) का छोटा-सा भाग निकाल या बाँध दिया जाता है। देखिए चित्र (ब) को । ये तकनीकें बहुत ही प्रभावशाली होती हैं पर इनमें पूर्व स्थिति लाने की गुंजाइश बहुत ही कम होती है।
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प्रश्न 8.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन स्वास्थ्य का अर्थ क्या है? जनन स्वास्थ्य कार्य योजनाओं के उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनन स्वास्थ्य का अर्थ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य अर्थात् शारीरिक, भावनात्मक, व्यवहारात्मक तथा सामाजिक स्वास्थ्य है । इसलिए ऐसे समाज को जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज कहा जा सकता है, जिसमें लोगों के जनन अंग शारीरिक रूप से प्रकार्यात्मक रूप से सामान्य हों, यौन संबंधी सभी पहलुओं में जिनकी भावनात्मक और व्यावहारिक पारस्परिक क्रियाएँ सामान्य हों।

जनन स्वास्थ्य कार्ययोजनाओं के उद्देश्य – राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई गई हैं। ये सारी कार्ययोजनाएँ वर्तमान में जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के अन्तर्गत आगे बढ़ाई जा रही हैं। जनन स्वास्थ्य हासिल करने की दिशा में लोगों के बीच जनन अंगों, किशोरावस्था एवं उससे जुड़े बदलावों, सुरक्षित एवं स्वच्छतापूर्ण यौन प्रक्रियाओं, एच.आई.वी.एड्स सहित यौन संचारित रोगों के बारे में परामर्श देना एवं जागरूकता पैदा करना इस दिशा में पहला कदम है।

चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराना तथा आर्तव (ऋतुस्राव) में अनियमितताएँ, सगर्भता संबंधी पहलुओं, प्रसव चिकित्सीय सगर्भता समापन आदि से जुड़ी समस्याओं की देखभाल, इनके लिए चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना और जन्म नियन्त्रण, प्रसवोत्तर शिश् एवं माता की देखभाल एवं प्रबंधन आदि आर. सी. एच. कार्यक्रम से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं ।

प्रश्न 9.
गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? महिलाओं द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले किन्हीं दो गर्भनिरोधक का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
प्राकृतिक तथा यांत्रिक विधियों द्वारा निषेचन को रोकना तथा गर्भनिरोधक विधियों द्वारा अण्डे और शुक्राणुओं के संलयन को रोका जाता है।
महिलाओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले दो गर्भनिरोधक निम्न हैं-

  1. गर्भनिरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills ) – गर्भनिरोधक गोलियों को रोज खाना पड़ता है, जिनसे महिला में अण्डोत्सर्ग नहीं होता है। इन गोलियों से केवल अण्डोत्सर्ग नहीं हो सकता है और रजचक्र की रक्तस्राव एवं गर्भाशय की दीवार के अस्तर का उतरना सामान्य रूप से होता रहता है।
  2. डायाफ्राम ( Diaphragm ) – इसे चिकित्सक द्वारा गर्भाशय के मुख (Cervix) पर फिट किया जाता है जिससे शुक्राणु सर्विक्स नलिका में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 10.
चिकित्सीय सगर्भता समापन से क्या तात्पर्य है? इसका क्यों एवं कब उपयोग करना चाहिए? समझाइए ।
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन (Medical Termination of Pregnancy ) – गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जान- बूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन ( abortion ) को चिकित्सीय सगर्भता समापन कहते हैं। इसे प्रेरित गर्भपात (Induced abortion) भी कहते हैं। हमारे देश में चिकित्सीय सगर्भता समापन को वैधानिक मान्यता प्राप्त है।

सामान्य रूप से चिकित्सीय सगर्भता का उपयोग बलात्कार जैसे मामलों से हुई अनचाही सगर्भता तथा सामान्य या कभी-कभार के यौन संबंधों आदि से पैदा हुई सगर्भता को समाप्त कराने हेतु किया जाता है ऐसे मामलों में भी चिकित्सीय सगर्भता समापन (medical termination of pregnancy) किया जाता है जहाँ बार – बार की सगर्भता माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।

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सगर्भता 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही घातक होता है। अधिकतर चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम टी पी) गैर-कानूनी रूप से अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं जो कि न केवल असुरिक्षत होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं । आजकल शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्बवेधन (Amniocentesis) का दुरुपयोग उच्च स्तर पर हो रहा है।

यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है। दम्पति को मादा भ्रूण का पता लगने पर शीघ्र ही एम.टी.पी. करा लिया जाता है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस प्रकार की प्रवृत्ति से बचना चाहिये क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। इसके साथ ही जनसंख्या में लिंग अनुपात ( Sex Ratio in Population) में अन्तर आ जायेगा जो सामाजिक दृष्टि में अच्छा नहीं रहेगा एवं इससे भविष्य में कई प्रकार की विषमताएँ उत्पन्न हो जायेंगी ।

प्रश्न 11.
सहेली क्या है? सहेली एवं मल्टी लोड 375 में कोई तीन विभेद लिखिए।
उत्तर:
सहेली – यह एक गर्भनिरोधक गोली एक गैर-स्टेराइड (Non-steroid) पदार्थ वाली होती है। इसे हफ्ते में एक बार लिया जाता है। इसकी निरोधक क्षमता उच्च तथा दुष्प्रभाव कम होता है।

सहेलीमल्टी लोड 375
1. यह प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन हार्मोन युक्त होती है।इसमें उक्त हार्मोन का अभाव होता है।
2. यह मुख द्वारा खायी जाती है।जबकि इसे स्त्री की योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाया जाता है।
3. इसके द्वारा अण्डोत्सर्ग व रोपण कार्य को रोका जाता है।इसके द्वारा मोचित कॉपर आयन शुक्राणुओं की गतिशीलता को कम कर निषेचन क्रिया को रोकती है।

प्रश्न 12.
IUD क्या है? ये कितनी प्रकार की होती है? औषधि रहित IUD का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
IUD का पूरा नाम अन्तः गर्भाशयी युक्ति ( Intra Uterine Device) है। इसे अनुभवी चिकित्सकों द्वारा स्त्री के योनि मार्ग में गर्भाशय में लगाया जाता है। जब तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं होता है। इस प्रकार की युक्तियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं।
IUD (अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ) तीन प्रकार की होती हैं-

  1. औषधि रहित IUD
  2. ताँबा मोचक IUD
  3. हार्मोन मोचक IUD

औषधिरहित IUD (Non-medicated IUDs) – इसमें कोई किसी प्रकार की औषधि नहीं होती है इसलिए इसे औषधिरहित IUD कहते हैं। केवल अण्डवाहिनी (Oviduct ) में लिप्पेस लूप (Lippes Loops) बनाकर अण्डाणु व शुक्राणु के संयोजन (Fertilization) को रोका जाता है। उदाहरण- लिप्पेस लूप ।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों में से बताइए कि कौन-सा वाक्य सत्य है और कौन-सा गलत है?
1. पात्रे – निषेचन के बाद भ्रूण स्थानान्तरण के द्वारा महिला के जनन मार्ग में भ्रूण को स्थापित करके संतान प्राप्त की जाती है। यह एक सामान्य विधि है जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम कहा जाता है।
उत्तर:
सत्य ।

2. माला-डी गर्भनिरोधक गोली स्टीरॉएड युक्त होती है ।
उत्तर:
सत्य ।

3. एल एन जी -20 एक औषधि रहित IUD है।
उत्तर:
गलत ।

4. मैथुन के समय कंडोम का प्रयोग नहीं करने से यौन संचारित रोग नहीं होते हैं।
उत्तर:
गलत ।

5. जब किसी जनसंख्या में जन्मदर तथा मृत्युदर समान होती है।
और जनसंख्या में कोई भी वृद्धि नहीं होती तो इसे शून्य जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।

6. विश्व में हमारा देश चौथा ऐसा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई हैं ।
उत्तर:
गलत ।

7. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तथा जीवन के रहन-सहन की बेहतर परिस्थितियाँ होने के कारण जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई हैं।
उत्तर:
सत्य ।

8. दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के ‘बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।

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प्रश्न 14.
सुजाक रोग क्या है? इसके लक्षण व उपचार लिखिए ।
उत्तर:
सुजाक रोग – इसे गोनोरिया (Gonorrhoea) भी कहते हैं। यह रोग निसेरिया गोनोरिया (Neisseria gonorrhoea) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है। यह रोग लैंगिक सम्पर्क के माध्यम से फैलता है।
सुजाक रोग के लक्षण-

  • मूत्र विसर्जन के समय तेज दर्द ।
  • शुक्राणु प्रवाह रुक जाता है।
  • संक्रमित नर मनुष्य के मूत्र मार्ग द्वारा श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव होता है एवं रोग की अधिकता के कारण अधिवृषण भी संक्रमित हो जाती है।
  • महिलाओं में मासिक चक्र में व्यवधान के कारण बाँझपन आ जाता है।
  • महिलाओं में बार्थोलिन ग्रन्थि (Bartholian gland) एवं

मूत्र जनन मार्ग के संक्रमण के फलस्वरूप मूत्र त्याग में तेज दर्द होना आदि सुजाक रोग का लक्षण है।
उपचार-

  • इस रोग के उपचार में सल्फोनेमाइड तथा स्पेक्टिनोमाइसिम टेट्रासाइक्लिन आदि औषधियाँ दी जाती हैं।
  • सुरक्षित यौन सम्बन्ध व रोगी के सम्पर्क में न आवें ।
  • वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।

प्रश्न 15
परखनली शिशु पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर:
परखनली शिशु (Test Tube Babies) – कुछ महिलाओं में अण्डावाहिनी अवरुद्ध हो जाती है जिसके कारण अण्डे का निषेचन नहीं हो पाता। इस समस्या का निदान परखनली शिशु तकनीक की सहायता से किया जा सकता है। इस तकनीक में स्त्री अण्डाशय से एक या अधिक परिपक्व अण्डे एक विशेष पिचकारी ( Syringe ) द्वारा खींचे जाते हैं।

इन अण्डों को स्त्री के पुरुष साथी के शुक्राणुओं के साथ एक डिश में अनुकूलतम परिस्थितियों में कुछ घण्टों के लिए रखा जाता है। शुक्राणु अण्डों को निषेचित करते हैं और इससे एक भ्रूण निर्मित होता है। तब इस भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। जहाँ पर यह एक शिशु के रूप में परिवर्धित होता है।

प्रश्न 16.
कॉलम – I के पदों को कॉलम-II के साथ सही-सही क्रम में मिलाइए-

कॉलम-Iकॉलम-II
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन
(b) पहला उल्बवेधन जाँच2. एल एन जी-20
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि3. भ्रूणलिंग निर्धारण
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी)
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए5. भारत
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन6. स्तनपान अनार्तव

उत्तर:

कॉलम-Iकॉलम-II
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में5. भारत
(b) पहला उल्बवेधन जाँच3. भ्रूणलिंग निर्धारण
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि6. स्तनपान अनार्तव
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी2. एल एन जी-20
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी)
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन

प्रश्न 17.
सिफलिस रोग के रोग जनक, संक्रमण विधि, उद्भवन अवधि, लक्षण, रोकथाम एवं उपचार लिखिए।
उत्तर:
रोगजनक – ट्रोपोनेमा पैलीडम ।
संक्रमण की विधि-संक्रमित व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क | उद्भवन अवधि – सम्पर्क के 10-90 दिन के बाद लक्षण स्पष्ट होते हैं लेकिन सामान्यतया जीवाणु द्वारा संक्रमित होने के 3-4 सप्ताह में लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
लक्षण – लक्षण कई चरणों में प्रकट होते हैं। सिलफिस के सामान्य लक्षण निम्न हैं-

  • ज्वर, त्वचा में गले में, मूत्र प्रजनन क्षेत्र विशेषकर योनि या लिंग, गुदा, मलाशय व मुँह में अल्सर होते हैं। अल्सर (व्रण) गोल व दृढ़ व बहुधा पीड़ारहित होते हैं
  • हाथों, पाँवों व हथेली में दाने ।
  • मुँह में सफेद धब्बे ।
  • जाँघ में मुँहासे के समान मस्से ।
  • संक्रमित क्षेत्र से बालों का झड़ना ।
  • अन्तिम तीन लक्षण काफी हो सकते हैं।

ये बहुधा अंदरूनी हो जाते हैं और मस्तिष्क, तन्त्रिका, नेत्रों, रक्त वाहिनियों, अस्थियों व जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जो संक्रमण के 10 वर्ष बाद प्रकट होते हैं। इससे पक्षाघात, अंधापन, मनोभ्रम (Dementia) व बंध्यता (Sterility) हो सकती है।

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रोकथाम व उपचार-

  • केवल एक ही व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क
  • वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।
  • संयम बरतना व कंडोम का प्रयोग करना ।
  • व्यक्तिगत स्वच्छता रखनी चाहिए व उचित औषधीय उपचार लेना चाहिये ।

प्रश्न 18.
जीव विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते बंध्य दम्पतियों को संतान प्राप्ति हेतु आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
उत्तर:
स्त्री व पुरुष दोनों की बंध्यता क्लीनिक में जाँच करवानी चाहिए तथा सहायक जनन प्रौद्योगिकियों ( ए आर टी) की मदद लेनी चाहिए। इन्हें टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम का लाभ उठना चाहिये ।

प्रश्न 19.
(i) IUD का पूर्ण नाम लिखिए।
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs को, बच्चों के बीच में अन्तर रखने के लिए उत्तम गर्भनिरोधक माना जाता है। क्यों ?
उत्तर:
(i) IUD का पूर्ण नाम- इन्द्रा यूटेराइन डिवाइस (Intra Uterine Devices)
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs उत्तम गर्भनिरोधक हैं क्योंकि
(a) शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phogocytosis) को बढ़ा देती है।
(b) जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है।
(c) गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं।

प्रश्न 20.
जन्म नियन्त्रण की स्तनपान अनार्तव (लैक्टेशनल एमेनोरिया) विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)- यह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णत: स्तनपान कराना जारी रखती है, गर्भधारण का अवसर शून्य होता है।

इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए। इस दौरान मैथुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना नहीं होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है।

प्रश्न 21.
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण (ZIFT) तकनीक की व्याख्या करें। यह अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण तकनीक में 8 ब्लास्टोमियर तक के भ्रूण को स्त्री फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरण किया जाता है। जबकि अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक में 32 ब्लास्टोमीयर के भ्रूण को गर्भाशय में स्थानान्तरण किया जाता है।

प्रश्न 22.
आपके विचार से यौन संचारित रोगों से बचने का सर्वाधिक उपयुक्त उपाय क्या है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए ।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – यौन संबंधों द्वारा संचारित होने वाले रोगों या संक्रमणों को यौन संचारित रोग (STD) कहा जाता है। इन्हें रतिज रोग (Veneral Diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहा जाता है। ये रोग निम्न हैं- सुजाक (Gonorrhoea), सिफिलिस (Syphilis), हर्पीस (Herpes), जननिक हर्पिस (Genital herpes), क्लेमिडियता (Chlamydiasis), ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis), यकृत शोध-बी (Hepatitis B ), लैंगिक मस्से ( Genital warts), एड्स (AIDS) आदि। इनसे बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिये-

  • मैथुन के समय हमेशा कंडोम (Condoms ) का उपयोग करना चाहिये ।
  • किसी अनजान व्यक्ति अथवा बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।
  • यदि कोई आशंका है तो तत्काल ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराना चाहिए।

प्रश्न 23.
मानव स्त्री द्वारा प्रयोग की जाने वाली किसी एक गर्भ निरोधक गोली का नाम लिखिए। मुखीया गोलियाँ कैसे जन्म नियन्त्रण में सहायता करती हैं?
अथवा
मानव मादाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मुख से सेवन किये जाने वाले गर्भनिरोधक का हार्मोनी संघटन बताइए। यह एक गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर:
गर्भनिरोधक गोली का नाम पिल्स (Pills) है। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है। अगली माहवारी के बाद पुनः शुरू कर दिया जाता है।

ये गोलियाँ ( Pills) अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और रोपण (Implentation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती है। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।
हैं?

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प्रश्न 24.
कुछ स्त्रियाँ ‘सहेली’ गोलियों का सेवन क्यों करती
अथवा
स्त्री के लिए ‘सहेली’ गर्भनिरोधक को उत्तम माना जाता है। क्यों?
उत्तर:
सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्च निरोधक क्षमता वाली है।

प्रश्न 25.
यदि पुरुष नसबंदी करते समय चिकित्सक दायीं तरफ की शुक्रवाहक को बाँधना भूल जाता है, तो बन्ध्यकरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुरुष नसबंदी में दोनों बायें व दायें शुक्रवाहक को बाँधा जाता है। यदि दायीं तरफ की शुक्रवाहक को नहीं बाँधता है तो युग्मक परिवहन निरन्तर होगा व नसबंदी अपूर्ण होगी।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
गर्भनिरोधक साधनों को कौनसी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है ? किन्हीं तीन श्रेणियों (विधियों) का वर्णन कीजिए। उत्तर- गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्राकृतिक / परम्परागत (Natural / Traditional)
  2. रोध (Barrier)
  3. आईयूडीज (IUDS)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. टीका ( Injectables)
  6. अंतरोंप (Implants )
  7. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods )

1. प्राकृतिक / परम्परागत विधियाँ (Natural / Traditional Methods)- ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु ( Sperm) के मिलने (संयोजन) को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न हैं-
(i) आवधिक संयम (Periodic abstinence ) – इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र ( menstrual cycle) के 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अंडोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अवधि मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर (गर्भधारण) के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं अतः उक्त अवधि में सहवास / संभोग न करके गर्भाधान से बचा जा सकता है।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or coitus interruptus) – इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री की योनि से अपना लिंग (penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea) – यह विधि भी इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भधारण के अवसर लगभग शून्य होते हैं। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक ही कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

2. रोध (Barrier) – इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अंडाणु (Ovum) और शुक्राणु ( Sperm) को भौतिक रूप से मिलने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष व स्त्री दोनों के लिए उपलब्ध हैं। निरोध (Condoms) एक रोधक उपाय है जिसे पतली रबर या लेटेक्स से बनाया जाता है ताकि इसके उपयोग से पुरुष के लिंग (Penis) या स्त्री की योनि (Vagina) एवं गर्भाशय (Uterus) ग्रीवा को संभोग से ठीक पहले, ढक दिया जाए और स्खलित शुक्राणु स्त्री के जननमार्ग में प्रवेश न कर सकें।

यह गर्भाधान से बचा सकता है। पुरुषों के लिए कंडोम (Condoms) का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए नीचे चित्र में पुरुष व स्त्री के कंडोम । हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में तेजी से वृद्धि हुई है। क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एड्स से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं।

इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है। डायफ्राम (Diaphragms), गर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vaults) आदि भी रबर से बने रोधक उपाय हैं जो स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने के लिए लगाए जाते हैं।

ये गर्भाशय ग्रीवा को ढक कर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोककर गर्भाधान से छुटकारा दिलाते हैं। इन्हें पुनः उपयोग में लिया जा सकता है। इसके साथ ही इन रोधक साधनों के साथ-साथ शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Creams), जेली (Jelly ) एवं फोम (Foams) का प्रायः उपयोग किया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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3. अंतर्रोप (Implants) – स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप ( Implant) के रूप में किया जाता है । (देखिए चित्र में )
डालिए ।
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प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य समस्याएँ एवं कार्यनीतियों पर प्रकाश
उत्तर:
[ संकेत – बिन्दु 4.1 का अवलोकन करें ।]
जनन स्वास्थ्य-समस्याएँ एवं कार्यनीतियाँ (Reproductive Health-Problems and Strategies)
मानव समुदाय में जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक प्रत्येक सदस्य को आयु स्तर के सोपानों से होकर गुजरना पड़ता है। इन अवस्थाओं में बाल्यावस्था (Childhood), किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था शामिल हैं। इन सभी अवस्थाओं में किशोरावस्था एक महत्त्वपूर्ण  अवस्था होती है क्योंकि किसी भी समष्टि के भविष्य की समृद्धि एवं उसका आकार इसके द्वारा निर्धारित होता है।

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किशोरावस्था में त्वरित वृद्धि तथा अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकासात्मक परिवर्तन आते हैं। इस अर्वधि में किशोरों में लैंगिक परिपक्वन हेतु परिवर्तन उत्पन्न होते हैं जो कि लैंगिक परिपव्वता तक जारी रहते हैं। लड़कों में यह अवधि 719 वर्ष तक और लड़कियों में 8-18 वर्ष की आयु मानी जाती है। इस कालावधि में दोनों ही विशिष्ट हार्मोन्स का उत्पादन व स्रावण होता है जो कि उनमें शारीरिक, क्रियात्मक एवं व्यवहारात्मक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।

ऐसे युवाओं को आगे चलकर वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर सन्तानोत्पत्ति व उनके उचित पालन-पोषण की जिम्मेदारी हेतु शारीरिक व मानसिक रूप से अपने आपको योग्य बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त कारणों से यह अव्वधि अत्यधिक संवेदनशील पायी जाती है।

चूँकि जनन स्वास्थ्य, जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य है अतः जनन सम्बन्धी अनेक समस्याओं जैसे जनन अंगों का सामान्य रूप से कार्य न करना, प्रजनन के समय विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न होना, विभिन्न प्रकार के जननिक रोगों की उत्पत्ति, शिशु मृत्युदर में वृद्धि, स्त्री एवं पुरुषों में जननिक दशाओं में अनियमितता आदि को जनन स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में जाना जाता है।

जिनमें कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं-

  • लोगों में जनन स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता की कमी।
  • तेजी से बढ़ती हुई मानव जनसंख्या अर्थात् जनसंख्या विस्फोट।
  • गर्भावस्था की जटिलताएँ, शिशु जन्म एवं असुरक्षित गर्भपात।
  • प्रसव के समय वांछित सुविधाओं व देखरेख का अभाव।
  • जन्मजात एवं उपार्जित बन्ध्यता।
  • सन्तानों के बीच का कम अन्तराल व अधिक सन्तानों की उत्पत्ति।
  • युवक-युवतियों में लैंगिक संचारित रोगों (Sexually transmitted diseases) का उच्च संक्रमण। एड्स (AIDS) जैसे भयावह व लाइलाज रोग।
  • किशोरियों में मासिक चक्र की अनियमितता व उसका रुकना जैसी कार्यियकीय असमानताएँ।
  • यौन रोगों को छिपाना।
  • विद्यालयों में यौन शिक्षा की कमी।
  • समय पर टीकाकरण न कराना। जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों एवं स्तनपान के महत्त्व का अभाव।
  • पुत्र को कन्या के मुकाबले अत्यधिक महत्च एवं मादा भुण हत्या।
  • कम उम्र में विवाह, प्रजनन, गर्भधारण की अनिवार्यता, गर्भपात आदि 15-19 वर्ष की महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।

उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने समय-समय पर कुछ कार्ययोजना एवं कार्यक्रमों की शुरुआत की। वास्तव में भारत ही विश्व का पहला ऐससा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना और कार्यक्रमों की शुरुआत की।

इन कार्यक्रमों को परिवार नियोजन और आधुनिक समय में परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है। इन कार्यक्रमों की शुरुआत 1951 में हुई। पिछले दशकों में समय-समय पर इनका स्थिर मूल्यांकन भी किया गया है। जनन संबंधित और आवधिक क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित करते हुए बहुत उन्नत व व्यापक कार्यक्रम फिलहाल ‘जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम’ (Reproductive and Child Health Care RCH Programme)

के नाम से प्रसिद्ध है। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत जनन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं के बारे में जन सामान्य में जागरूकता पैदा करते हुए और जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने के लिए अनेक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। दुश्य एवं श्रव्य (Audio-Visual) और मुद्रित सामग्री की सहायता से सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन के माध्यम से जनता के बीच जनन सम्बन्धी सभी पहलुओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए विभिन्न उपाय सुझा रहे हैं।

उपरोक्त सूचनाओं को प्रसारित करने में माता-पिता, अन्य निकट सम्बन्धी, शिक्षक एख्वं मित्रों की प्रमुख भूमिका है। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में यौन शिक्षा (Sex Education) को बढ़ावा देकर युवाओं को सही जानकारी उपलव्य कराना लाकि बच्चों को यौन संबंधी फैली भान्तियों पर विश्वास न हो एवं उन्हें यौन संबंधी गलत धारणाओं से निजात मिल सके।

लोगों को जनन अंगों, किशोराबस्था एवं उससे सम्बन्धित परिवर्तनों, सुरक्षेत और स्वच्छ यौन क्रियाओं, यौन संचारित रोगों एवं एड्स के बारे में जानकारियां उपल्नव्य कराना। विशेष रुप से इस प्रकार की जानकारियां किशोर आयु वर्ग के लोगों के लिए जनन सम्बन्धी र्वस्थ जीवन बिताने में सहायक होती है।

लोगों को शिक्षित करना, विशेष रूप से जननक्षम जोड़ी तथा वे लोग जिनकी आयु विवाह योग्य हैं, उन्हें उपलब्ब जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों तथा गर्भवती माताओं की देखभाल, माँ और बच्चे की प्रसवोत्तर (Postnatal) देखभाल आदि के बारे में तथा स्तनपान के महत्व, लड़का या लड़की को समान महत्व एवं समान अवसर देने की जानकारियों आदि से जागरूक स्वस्थ परिवर्तनों का निर्माण होगा।

लोगों को जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों, जनन अपराधों, यौन दुरुपयोग, सामाजिक उत्पीड़नों आदि के प्रति जागरूक करना जिससे वे इन बुराइयों से बचकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें। जनन स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए विभिन्न कार्यदोजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्बयन के लिए मजबूत संरचनात्मक सुविधाओं, व्यावसायिक विशेषजता तथा भरपूर भौतिक सहारों की आवश्यकता होती है।

लोगों को जनन सम्बन्धी समस्याओं जैसे कि सगर्भता (Pragnancy), प्रसव (Parturition), यौन संचारित रोगों, गर्भपात (Abortion), गर्भनिरोधकों (Anti-pregnancy agents), आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सम्बन्धी समस्याओं, बांपन (Infertility) आदि के बारे में चिकित्सा सहायता एवं देखभाल उपलब्ध करवाना समय-समय पर बेहतर तकनीकों और नई कार्यनीतियों को क्रियान्वित करने की भी आवश्यकता है, ताकि लोगों की अधिक सुचारु रूप से देखभाल और सहायता की जा सके ।

बढ़ती मादा भूरण हत्या की कानूनी रोक के लिए उल्बवेधन (Aminiocentesis) जाँच (भूणीय लिंग के निर्धारण की जाँच), लिंग परीक्षण पर वैधानिक प्रतिबंध तथा व्यापक बाल प्रतिरक्ष्कीकरण (टीका) आदि कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को शामिल किया गया है। जनन सम्बन्धी बिभिन्न अनुसंधानों को बढ़ावा देने के लिए हमारे देश की सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां नयी विधियाँ तलाशने तथा कार्येशील प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने का काम कर रही हैं।

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लखनक स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute, CDRI) ने ‘सहेली’ नामक गर्भनिरोधक गोली का निर्माण किया। यौन सम्बन्धी मामलों के बारे में बेहतर जागरूकता अधिकाधिक रूप से चिकिल्सा सहायता प्राप्त प्रसव तथा बेहतर प्रसवोत्तर देखभाल से मातृ एवं शिशु मृत्युदर में कमी आई है। छोटे परिवार वाले जोड़ों की संख्या बढ़ी है। यौन संचारित रोगों की सही जाँच तथा देखभाल और लगभग सभी जनन स्वास्थ्य समस्याओं हेतु विकसित चिकित्सा सुविधाओं के होने से बेहतर समाज बेहतर जनन स्वास्थ्य के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं? जनसंख्या विस्फोट के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।

हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।

]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।

जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-

  • कृषि प्रधानता
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता।

(ख) सामाजिक कारक-

  • अशिक्षा
  • धार्मिक मान्यताएँ
  • बाल विवाह
  • अन्धविश्वास
  • विवाह की अनिवार्यता
  • संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।

(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-

  • प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
  • कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
  • भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  • उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
  • रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।

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(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-

  • विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
  • पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
  • मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
  • जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।

जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।

शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।

एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-

  • एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
  • गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।

गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
  2. रोध (Barrier)
  3. अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
  6. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)

(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )

के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।

इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।

आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।

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हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
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स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।

(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-

  • औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
  • तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
  • हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।

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आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।

(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।

अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।

ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।

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इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
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(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।

(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।

बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।

निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
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(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
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चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।

इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-

  • मतली आना
  • उदरीय पीड़ा
  • बीच-बीच में रक्तस्राव
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव
  • स्तन कैंसर।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
बंध्यता से क्या तात्पर्य है? इसके निवारण से सम्बन्धित तकनीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सहायक जनन प्रौद्योगिकी किसे कहते हैं ? विभिन्न तकनीकों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बन्ध्यता (Sterility) कहते हैं।
बन्ध्यता के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें मुख्य निम्न हैं-

  • शारीरिक
  • जन्मजात
  • औषधिक
  • प्रतिरक्षात्मक
  • मनोवैज्ञानिक आदि।

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ये समस्याएँ पुरुष अथवा स्त्री किसी में भी हो सकती हैं। हमारे देश में बच्चा न होने की स्थिति में प्रायः सिर्फ स्त्री को ही दोष दिया जाता है जबकि हमेशा ऐसा नहीं होता है। यह समस्या पुरुष में भी हो सकती है। इसके लिए अर्थात् सामान्य विकारों को बन्ध्यता क्लीनिक के योग्य चिकित्सकों की सेवायें लेकर दोषों की जाँच एवं उपचार के माध्यम से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिल सकती है।

फिर भी जहाँ ऐसे विकार या दोषों को ठीक करना सम्भव नहीं है वहाँ कुछ विशेष तकनीकों की सहायता द्वारा संतान पैदा करने में सहायता की जा सकती है। ऐसी तकनीकों को सहायक जनन प्रौद्योगिकी (Addid Reproductive Technique) कहते हैं। इनमें कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं-

(1) पात्रे निषेचन (In vitro fertilization)-पात्रे निषेचन से तात्पर्य है कि शरीर के बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियाँ निर्मित करना व निषेचन कराना अर्थात् निषेचन की क्रिया पात्र (Test Tube) में की जाती है इसलिए इसे पात्रे निषेचन कहते हैं। यह विधि टेस्ट ट्यूब बेबी (Test Tube Baby) कार्यक्रम के नाम से लोकप्रिय है।

इस तकनीक में पत्नी या दाता स्त्री के अण्डे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं (Sperms) को प्रयोगशाला में एकत्रित किया जाता है। इसके बाद अनुकूल परिस्थितियों में निषेचन कराकर युग्मनज (Zygote) बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। अब इस युग्मनज (Zygote) को स्त्री के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। स्थानान्तरण दो विधियों द्वारा किया जा सकता है-

(i) अन्तः डिम्ब वाहिनी (फैलोपी) स्थानान्तरण (Intra Fallopian Tube Transfer)-इसे युग्मनज अन्त: डिम्ब वाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत युग्मनज या 8 ब्लास्टोमियर तक के भूरण को स्त्री की फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरित किया जाता है।

(ii) इन्द्रा यूटेराइन ट्रांसफर (Intra Uterine Transfer)-इस तकनीक के अन्तर्गत 8 ब्लास्टोमीयर से अधिक के भ्रूण को गर्भाशय (Uterus) में स्थानान्तरित किया जाता है। इसलिए इसे इन्ट्रा यूटेराइन ट्रांसफर कहते हैं। अब निषेचित भ्रूण का स्त्री में स्थानान्तरण के बाद परिवर्धन शरीर के भीतर होता है।

(2) जीवे निषेचन (In vitro Fertilization)-ऐसी स्त्रियाँ जिनको गर्भधारण करने में समस्या आती है उनके लिए यह तकनीक सर्वोत्तम है। इसके अन्तर्गत युग्मकों का निषेचन स्त्री के भीतर ही होता है।

(3) युग्मक फैलोपी नलिका में स्थानान्तरण (Gamete Intra Fallopian Transfer)-ऐसी स्त्रियाँ जिनमें अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते हैं परन्तु निषेचन और भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं। ऐसी स्त्रियों के लिए GIFT तकनीक अपनाई जाती है।
इसके अन्तर्गत दाता के अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन क्रिया प्राकृतिक होती है।

(4) अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (Intracytoplasm Sperm Injection)-इस तकनीक द्वारा प्रयोगशाला में शुक्राणु (Sperm) को सीधे ही अण्डाणु में अंतःक्षेपित (Injected) किया जाता है।

(5) कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination)-ऐसे पुरुष जो स्त्री को वीर्य सेचित करने में सक्षम नहीं हैं अथवा उनके वीर्य में शुक्राणुओं (Sperms) की संख्या बहुत ही कम होती है, उन पुरुषों के दोष के निवारण हेतु कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्राणु (Sperm) लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा उसके गर्भांशय (Uterus) में प्रविष्ट कराया जाता है। इसे गभराशय वीर्य सेचन (Intra Uterine Insemination) कहते हैं।

इस प्रकार हमारे पास बहुत सारी तकनीकें हैं लेकिन इनका उपयोग करने हेतु विशेषीकृत व्यावसायिक विशेषजों की आवश्यकता होती है। ये तकनीकें मंहगी होती हैं। इसलिए ये सुविधाएँ भारत के कुछ शहरों में ही उपलब्थ हैं। अतः इनका लाभ कुछ ही लोगों को मिल पाता है। इन विधियों को अपनाने में धार्मिक, सामाजिक व भावात्मक घटक बाधक होते हैं।

इन सभी विधियों का लक्ष्य मात्र केवल संतान प्राप्ति का है। भारत में अनेक अनाथ और दीनहीन बच्चे हैं जिनकी देखभाल नहीं की जावे तो वे जीवित नहीं रहेंगे। ऐसे निःसंतान दम्पतियों को यदि संतान चाहिए तो इन्हें गोद् लेकर माता-पिता बन सकते हैं। यह संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। हमारे देश में कानून शिशु को गोद लेने की इजाजत भी देता है।

प्रश्न 5.
गर्भनिरोधक साधन कौन-सी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।

हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।

]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।

जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-

  • कृषि प्रधानता
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता।

(ख) सामाजिक कारक-

  • अशिक्षा
  • धार्मिक मान्यताएँ
  • बाल विवाह
  • अन्धविश्वास
  • विवाह की अनिवार्यता
  • संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।

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(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-

  • प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
  • कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
  • भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  • उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
  • रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।

(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-

  • विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
  • पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
  • मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
  • जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।

जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।

शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।

एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-

  • एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
  • गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।

गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
  2. रोध (Barrier)
  3. अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
  6. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)

(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )

के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।

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इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।

आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।

हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
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स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।

(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-

  • औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
  • तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
  • हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।

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आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।

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(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।

अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।

ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।

इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
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(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।

(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।

बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।

निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। देखिए चित्र 4.5 में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
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(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
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चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।

इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-

  • मतली आना
  • उदरीय पीड़ा
  • बीच-बीच में रक्तस्राव
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव
  • स्तन कैंसर।

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इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न लैंगिक संचारित रोग के रोगजनक एवं लक्षण लिखिए-

  1. सिफिलस
  2. सुजाक
  3. हर्पीज जेनाइटेलिस
  4. ट्राइकोमोनियासिस
  5. क्लेमाइडियेसिस
  6. एड्स
  7. जेनाइटल मस्सा
  8. वेजाइनिटिस (Vaginitis ) I

उत्तर:
लैंगिक संचारित रोग, उनके रोगजनक एवं लक्षण

रोग का नाम (Diseases)रोग जनक (Pathogens)लक्षण (Symptoms)
1. सिफिलस (Syphilis)नि पोनिमा पैलिडम Pallidum)जनन अंगों पर उभरते हुए गोलाकार घाव
2. सुजाक या गोनोरिया (Gonorrhea)निसेरिया गोनोही (Neisseria Gonorrhoeae)नर में-मूत्रमार्ग का संक्रमण, मूत्र मार्ग से श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव व मूत्र विसर्जन में पीड़ा। मादा में-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) में संक्रमण तथा मूत्र त्यागने में जलन व दर्द।
3. हर्पीज जेनाइटेलिस (Herpes genealis)एच एस वी-2 (डी एन ए) वाइरस (HSV-2, DNA Virus)नर में शिश्नमुंडछद (Prepuce), शिश्नमुंड (Glans) व शिश्न पर पीड़ा युक्त फफोले मादा में-भग द्वार (Vulva) एवं योनि (Vagina) के ऊपरी भाग में फफोले
4. ट्राइकोमोनियासिस (Trichomoniasis)ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस (Trichomonas Vaginalis)योनि से हरित-पीत स्राव (Greenish-Yellow Vaginal discharge)
5. क्लेमाइडियेसिस (Chlamydiasis)क्लेमाइडिया ट्रेकोमैटिस (ChlamydiaTrachomatis)मूत्र मार्ग में पुनरावर्ती पीड़ा व संक्रमण
6. एड्स (AIDS)ह्यूमन इम्यूनोडेफीशियेन्सी विषाणु (HIV)प्रतिरक्षित तन्त्र का पूर्णतः निष्क्रिय होना, ज्वर, अतिसार इत्यादि।
7. जेनाइटल मस्सा (Genital Warts)मानव पैपिलोमा वायरस (Human Papilloma Virus)गुदा के आसपास, शिश्न, लेबिया एवं योनि के पास मस्से बनना।
8. वेजाइनिटिस (Vaginitis)गार्नेरेला वैजाइनैलिस (Gardnerella Vaginalis)मादा में योनि से श्वेत-धूसर स्राव

प्रश्न 7.
यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? इनके नाम लिखिए। इनमें से किन्हीं दो रोगों के संचरण के माध्यम, रोग के लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – वे रोग जो मैथुन (Sexual intercourse) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually transmitted diseases) कहते हैं । इन्हें रतिरोग (Veneral diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहते हैं।
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases)- निम्न हैं-

  1. सुजाक (Gonorrhoea)
  2. सिफिलिस (Syphilis)
  3. हर्पीस (Herpes)
  4. जननिक परिसर्प ( Genital Herpes)
  5. क्लेमिडियता (Chlamydiasis)
  6. ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis)
  7. लैगिंक मस्से (Genital Warts)
  8. यकृतशोथ – बी (Hepatitis-B)
  9. एड्स (AIDS)

यकृतशोथ-बी (Hepatitis B ) तथा एच. आई. वी. के संचरण के माध्यम

  1. संक्रमित व्यक्ति के साझे प्रयोग वाली सूई (टीका)
  2. शल्य क्रिया के औजार
  3. संदूषित रक्ताधान (Blood Transfusion)
  4. संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु ( नर से मादा, मादा से नर, माता से शिशु में जरायु के माध्यम से आदि)
  5. समलैंगिकता ।

रोग के लक्षण (Symptoms of Diseases) – इन सभी रोगों के शुरुआती लक्षण बहुत ही हल्के-फुल्के होते हैं जो कि जननिक क्षेत्र (Genital region) गुप्तांगों में खुजली, तरल स्राव (Fluid discharge) आना, हल्का दर्द तथा सूजन आदि होते हैं । संक्रमित महिलाओं में लक्षण कभी-कभी प्रकट भी नहीं होते हैं । इसलिए लम्बे समय तक उनका पता ही नहीं चल पाता। इसके साथ ही संक्रमित व्यक्ति समाज के भय से जाँच एवं उपचार भी नहीं करा पाता है ।

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इसके कारण आगे चलकर जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं । जैसे- श्रोणि-शोथज रोग (Pelvic inflammatory diseases), • गर्भपात (Abortions), मृतशिशु जन्म ( Still-births), अस्थानिक सगर्भता (Ectopic pregnancies ), बंध्यता ( Infertility) अथवा जनन मार्ग (Reproductive tract) का कैंसर (Cancer) हो सकता है । यौन संचारित रोग स्वस्थ समाज के लिए खतरा हैं। यद्यपि सभी लोग इन संक्रमणों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं लेकिन 15 से 24 वर्ष की आयु के लोग इन रोगों से ज्यादा ग्रसित हैं ।

निम्न नियमों का पालन करने पर इन रोगों के संक्रमण से बचा जा सकता है-

  1. किसी अनजान व्यक्ति या बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध न रखें।
  2. मैथुन (Sexual intercourse) के समय सदैव निरोध (Condom) का इस्तेमाल करें।
  3. समलैंगिकता को नकारा जाना चाहिए ।
  4. सदैव निर्जर्मीकृत सूई का प्रयोग करना चाहिए।
  5. रक्त आधान में एच. आई. वी. मुक्त रक्त ही स्थानान्तरित करना चाहिए ।
  6. नशीली दवाओं के रक्त के माध्यम से प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. यदि कोई आशंका है तो तुरन्त ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराएँ।

प्रश्न 8.
एक गर्भवती महिला को सगर्भता का चिकित्सीय समापन (MTP) कराने की सलाह दी गयी। उसके डॉक्टर ने जाँच में पाया था कि उस महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण एक ऐसे युग्मनज से परिवर्धित हुआ जो Y-धारक शुक्राणु द्वारा निषेचित हुए X X – अण्डे से बना है। उस महिला को M. T. P. कराने की सलाह क्यों दी गई ?
उत्तर:
इस गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण का चिकित्सीय समापन (MTP) करने की सलाह दी क्योंकि भ्रूण में लिंग गुणसूत्र दो के बजाय तीन और प्राय: XXY होगा। अर्थात् 44 + XXX होगा। क्योंकि अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया में अवियोजन के कारण होता है। यदि अण्डा Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु के साथ मिलता है तो भ्रूण में गुणसूत्र की संख्या 47 (44+XXY) हो जायेगी ।

अर्थात् भ्रूण क्लाईनफेल्टर सिण्ड्रोम (Klinefelter’s Syndrome) से ग्रसित होगा । Y गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण, भ्रूण का शरीर लगभग सामान्य पुरुषों जैसा होगा, लेकिन एक अतिरिक्त X गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण छोटे होंगे और इनमें शुक्राणु नहीं बनेंगे। अतः यह नपुंसक होंगे। प्रायः इनमें स्त्रियों जैसे स्तनों का विकास हो जाता है। गाइनीकोमास्टि (Gynaecomastia) औसतन 500 पुरुषों में एक क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम होता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा महिला को M. T. P. कराने की सलाह दी गई।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. निम्न में से किस तकानीक की सहायता से ऐसी स्वियाँ जो गर्भधारण नहीं कर सकर्तीं, में भूण को स्थानान्तरित किया जाता है? (NEET-2020)
(अ) GIFT एवं ZIFT
(ब) ICSI एवं ZIFT
(स) GIFT एवं ICSI
(द) ZIFT एवं IUT
उत्तर:
(द) ZIFT एवं IUT

2. यौन संचारित रोगों के सही विकल्प का चयन करो। (NEET-2020)
(अ) सुजाक, मलेरिया, जननिक परिसर्प
(ब) AIDS, मलेरिया, फाइलेरिया
(स) कैंसर, AIDS, सिफिलिस
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प
उत्तर:
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प

3. निम्न में से किन गर्भनिरोधक तरीकों में हॉमोंन भूमिका अदा करता है? (NEET-2019)
(अ) गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक, रोध विधियाँ
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक
(स) रोध विधियाँ, स्तनपान, अनार्तब, गोलियाँ
(द) CuT गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक।
उत्तर:
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक

4. हॉर्मोन मोचक अंतःगर्भाशयी युकियों का चयन करो- (NEET-2019)
(अ) लिप्पेस लूप, मल्टीलोड 375
(ब) बाल्टस, LNG-20
(स) मल्टीलोड 375 , प्रोजेस्टासर्ट
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20
उत्तर:
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20

5. निम्न में कौनसा यौन संचारित रोग पूर्णतः साध्य नहीं है- (NEET-2019)
(अ) क्लेमिडियता
(ब) सुजाक
(स) लैंगिक मस्से
(द) जननिक परिसमें
उत्तर:
(द) जननिक परिसमें

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6. गर्भ निरोधक ‘सहेली’- (NEET-2018)
(अ) एक IUD है।
(ब) मादाओं में एस्ट्रोजन की सान्द्रता को बड़ाती है एवं अण्डोत्सर्ग को रोकती है।
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।
(द) एक पश्च-मैधुन गर्भनिरोधक है।
उत्तर:
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।

7. स्वस्भ I में दिए गए, यौन संचारित रोगों को उनके रोग कारकों (स्तम्भ II) के साथ सुमेलित कीजिए और सही़ी विकल्प का चयन कीजिए- (NEET-2017)

स्तम्भ-Iस्तम्भ-II
1. सुजाक(i) HIV
2. सिफिलिस(ii) नाइडिरिया (Neisseria)
3. जनन मस्से(iii) ट्रेखोनिया
4. AIDS(iv) ह्यामन पैपिलोमा।
कूट :1234
(अ)(ii)(iii)(iv)(i)
(ब)(iii)(iv)(i)(ii)
(स)(iv)(ii)(iii)(i)
(द)(iv)(iii)(ii)(i)

उत्तर:

(अ)(ii)(iii)(iv)(i)

8. एक दंपति जिसके पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम है, उनके लिए निषेचन की कौन-सी तकनीक उचित रहेगी? (NEET-2017)
(अ) अंतः गभाशय स्थानान्तरण
(ब) गैमीट इन्ट्रा फैल्लोपियन ट्रांसफर
(स) कृत्रिम बीर्य सेचन
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण
उत्तर:
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण

9. कॉपर मोचित ‘IUD’ कोंपर आयनों का क्या कार्य होता है? (NEET-2017)
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।
(ब) ये युग्मक जनन को रोकते हैं।
(स) बे गभाशशय को रोपण के लिए अनुपयुक बना देते है।
(द) ये अण्डोत्सर्ग को संदमित करते है।
उत्तर:
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।

10. शुक्रवाहक-उच्छेदन के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा गलत है? (NEET II-2016)
(अ) शुक्रवाहक को काटकर बांध दिया जाता है
(य) अनुक्फ्रमणीय बंध्यता
(स) बीर्य में शुक्राणु नहीं होते है
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।
उत्तर:
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।

11. एम्नीओसेटेसिस के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है? (NEET 1-2016)
(अ) इसे छडन सिन्ड्रेम का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।
(स) यह आमतौर पर तब किया जाता है जब स्त्री को 14-16 सताह के बीच का गर्भ होता है।
(द) इसे प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण के लिए प्रबुक्त किया जाता है।
उत्तर:
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।

12. निम्नलिखित उपागमों में से कौनसा उपागम किसी गर्भनिरोधक को परिभाषित क्रिया नहीं बताता- (NEET II-2016)

(अ) हॉर्मोनी गर्भनिरोधकशुक्राणुओं के प्रवेश को रोकते हैं। उसकी दर को धीमा कर देते हैं, अण्डोत्सर्ग और निषेचन नहीं होने देते।
(ब) शुक्रवाहक उच्छेदनशुकाणुजनन नहीं होने देते।
(स) रोध (बैरियर विधियाँ)निषेचन रोकती है।
(द) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँशुक्राणुओं की भक्ष कोशिकता बढ़ा देती हैं, शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता का मंदन करती हैं।

उत्तर:

(ब) शुक्रवाहक उच्छेदनशुकाणुजनन नहीं होने देते।

13. पात्रे निषेचन द्वारा निमिंत 16 से अधिक कोरकखण्ड्डों (Blasomeres) वाले भ्रूण को स्थानान्तरित कर दिया जाता है- (NEET-2016)
(अ) झालर में
(ब) ग्रीवा में
(स) गर्भाशय में
(द) फैलोपियन नली
उत्तर:
(स) गर्भाशय में

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14. एक निःसंत्रान दम्यति को GIFT नामक तकनीक के जरिये बच्चा प्रास करने में मदद की जा सकती है। इस तकनीक का पूरा नाम है- (NEET-2015)
(अ) युग्मक आंतरिक निषेचन और स्थानान्तरण
(ब) जनन कोशिका का आंतरिक फैलोपियन नलिका स्थानान्तरण
(स) युग्मक वीर्य सेचित का फैलोपियन स्थानान्तरण
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।
उत्तर:
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।

15. निम्नलिखित में से कौन एक होंमोन मोचित करने वाली इंट्रायूटेराइन युकि (आई.यू.डी.) है? (NEET-2014)
(अ) मल्टीलोड-375
(ब) एल.एन.जी-20
(स) ग्रीवा टोपी
(द) वाल्ट।
उत्तर:
(ब) एल.एन.जी-20

16. ट्यूबेक्टोमी बंध्यकरण की एक विधि है जिसमें- (NEET-2014)
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।
(ब) अण्डाशय को शस्य क्रिया विधि से निकाल दिया जाता है।
(स) वास डेफरेन्स का छोटा भाग निकाल दिया जाता है या बांध दिया जाता है।
(द) गर्भांशय शल्य क्रिया विधि द्वारा निकाल दिया जाता है।
उत्तर:
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।

17. सहायक जनन प्रौद्योगिकी आई,वी,एक. के अन्तर्गत किसका स्थानान्तरण होता है ? (NEET-2014)
(अ) अण्डाणु का फैलोपियन नलिका में
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में
(स) युग्मनज का गर्भाशय में
(द) 16 ब्लास्टोमीयर्स वाले श्रूण का फैलोपियन नलिका में
उत्तर:
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में

18. कृत्रिम वीर्य सेचन से आपका क्या वात्पर्य है? (NEET-2013)
(अ) किसी स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्षानान्तरित का देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(ब) पति के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्थानान्तरित कर देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।
(द) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को सीधे ही अण्छाशय के भीतर डाल देना।
उत्तर:
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।

19. जन्म नियंग्नण (बर्थ कंट्रोल) के लिए एक वैध विधि है- (NEET-2013)
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(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना
(ब) आर्तव-चक्र के 10 वें दिन से लेकर 17 वे दिन तक मैधुन से बचन
(स) प्रातःकाल मैथुन करना
(द) मैध्युन के दौरान कालपूर्व स्ललन करना।
उत्तर:
(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना

20. नीचे दिए जा रहे चित्र में विशिएथत क्या दर्शाया गया है? (CBSE PMT-2012, NEET-2012)
(अ) अण्डाशबी कैंसर
(ब) गभाशायी कैंसर
(स) ट्युबेक्टोमी
(द) बासेक्टोमी
उत्तर:
(स) ट्युबेक्टोमी

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21. परखनली शिशु (टेस्टट्यूब्ब बेबी) कार्यक्रम में निम्नलिखित में से किस एक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है- (NEET-2012, CBSE PMT (Pre)-2012)
(अ) अंतःकोशिकीय द्रव्यी शुक्राणु इन्जेषशन (ICSI)
(ब) अंतःगभांशयी वीर्य सेचन (IUI)
(स) युग्मक अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (GIFT)
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)
उत्तर:
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)

22. चिकित्सीय सगर्धता समापन (MTP) को कितने ससाह की गर्भावस्था तक सुरक्षिता माना जाता है? (NEET-2011)
(अ) आठ ससाह
(ब) बारह सताह
(स) अट्ठारह ससाह
(द) हैः सताह
उत्तर:
(ब) बारह सताह

23. वर्तमान समय में भारत में गर्भनिरोध की सर्वाधिक मान्य विधि है- (NEET-2011)
(अ) ट्यूबेक्टॉमी
(ब) डायफ्राम
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ
(द) सर्वाइकल कैप
उत्तर:
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ

24. सहेली है- (Kerala PMT-2011)
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक
(ब) महिलाओं के लिए बंध्यकरण की शल्य विधि
(स) महिलाखं के लिए डायफ्राम
(द) नरों में बंध्यकरण की शल्य विधि
उत्तर:
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक

25. कॅपर मोचक अन्तरा-गर्भाशायी युक्तिर्यों (Intra Uterine Device, IUD) से निर्मुक्त होने वाले कॉपर आयन- (NEET-2010)
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं
(ब) शुक्रापुओं के भक्षकाणु क्रिया में वृद्धि करते है
(स) शुक्राणुओं की गति का संदमन करते हैं
(द) अण्डोत्सर्ग को रोकते हैं।
उत्तर:
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं

26. गैमीट इन्ट्रफेलोंपियन ट्रंस्रफर (GIFT) अर्थात् युग्मक अन्तःफैलोपी स्थानान्तरण तक्नीक की सलाह उन महिलाओं के लिए दी जाती है- [NEET-2011, CBSE PMT (Main) 2011]
(अ) जिनकी गर्भारय ग्रीवा नाल इतनी संकीर्ण होती है कि उसमें से शुक्राणु प्रवेश नहीं कर सकते
(ब) जिनमें निषेचन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध? नहीं हों सकता
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता
(द) जो भ्राण को गर्भाशय के मीतर बनाए नहीं रख सकती।
उत्तर:
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता

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27. जीवे (In vitro) निषेचन की तकनीक के अन्तर्गत निम्नलिखित में से किसका स्थानान्तरण फैल्लोपियन नलिका में किया जाता है? (NEET-2010)
(अ) केवल भूरण का आठ-कोशिकीय अवस्था तक
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का
(स) बत्तीस-कोशिकीय अवस्था के भ्र्ण का
(द) केवल युग्मनज का
उत्तर:
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का

28. एम्नियोसेण्टेसिस की तकनीक का अनुमोदित डपयोग है- (NEET-2010)
(अ) अजन्मे गभं के लिए लिंग की जाँच
(ब) कृत्रिम बीर्य सेचन
(स) सरोगेट माता के गर्भाशय कें भ्रृण का स्थानान्तरण
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच
उत्तर:
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच

29. निम्न में ओरल पिलों का अवयख है- (AFMC-2009)
(अ) प्रोजेस्टेरोन
(ब) अंक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सिन
(द) उपयुंक से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्टेरोन

30. परखनली शिशु को उत्पग्न करने के लिए भ्रृण को कौनसी अवस्था में स्त्री के इरीर में रोषित किया जाता है ? (CPMT-2009)
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में
(ब) 64 कोशिकीय अवस्था में
(स) 100 कोशिकीय अवस्था में
(द) 164 कोशिकीय अवस्था में
उत्तर:
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में

31. गर्भनिरोधक के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और उनके आगे पूछे जा रहे प्रश्न का उत्तर दीजिए- (CBSE-2008)
(1) प्रथम त्रिमास में चिकित्सीय गर्भ समापन (MTP) सामान्यत: निरापद (खतरे से बाहर) होता है
(2) जब तक माँ अपने शिशु को दो वर्ष तक स्तनपान कराती रहती है तब तक गर्भाधान की सम्भावनाएँ नहीं होती हैं
(3) कॉपर-T जैसी आंतर गर्भाशय युक्तियाँ कारगर गर्भनिरोधक होती हैं
(4) संभोग के बाद गर्भनिरोधक गोलियों का एक सताह तक सेवन करने से गर्भाधान रुक जाता है।

(अ) 2,3
(ब) 3,4
(स) 1,3
(द) 1,2
उत्तर:
(स) 1,3

32. अंडवाहिनी में सीधे ही युग्मक प्रवेश करने की तकनीक है- (Manipal-2004)
(अ) MTS
(ब) IVF
(स) POST
(द) ET
उत्तर:
(ब) IVF

33. मादा में मुखीय गर्भनिरोधक किसे रोकती है- (JK. CMEE-2004)
(अ) अण्डोत्सर्ग
(ब) निषेचन
(स) रोपण
(द) योनि में शुक्राणु का प्रवेश
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग

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34. कॉपर-T का कार्य क्या है- (AFMC-2010, BHU-2002)
(अ) विद्लन रोकना
(ब) निषेचन रोकना
(स) उत्परिवर्तन रोकना
(द) गेस्ट्रुलेशन रोकना
उत्तर:
(ब) निषेचन रोकना

35. गर्भनिरोधक गोलियों में प्रोजेस्ट्रोन- (AIPMT-2000)
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है
(ब) एस्ट्रेजन को बाधित करता है
(स) एन्ड्रोमेट्रियम से युग्मनज के जुड़ाव को रोकता है
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है

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HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
ऊर्जा का मात्रक नहीं है-
(a) बाट
(b) किलोवाट घण्टा
(c) जूल
(d) इलेक्ट्रॉन बोल्ट
उत्तर:
(a) बाट

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तु की गतिज ऊर्जा का मान-
(a) नियत रहता है
(b) घटता रहता है
(c) बढ़ता रहता है।
(d) शून्य रहता है।
उत्तर:
(c) बढ़ता रहता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 3.
चित्र में वेग समय चक्र दर्शाया गया है। बल द्वारा C से D तक किया गया कार्य होगा-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -1
(a) धनात्मक
(b) शन्य
(c) ऋणात्मक
(d) अनन्त
उत्तर:
(b) शन्य

प्रश्न 4.
यदि एक बल को किसी पिण्ड पर लगाने से उस पिण्ड को वेग प्राप्त होता है तो शक्ति होगी-
(a) F/V
(b) FV²
(c) FV
(d) E/V²
उत्तर:
(c) FV

प्रश्न 5.
एक लड़का दूरी तक सिर पर वजन रखकर ढोता है उसे अधिकतम कार्य करना पड़ता है जब वह वस्तु को लेकर
(a) खुरदरे क्षैतिज सतह पर चलता है।
(b) चिकनी क्षैतिज सतह पर चलता है।
(c) नत तल पर चलता है
(d) ऊर्ध्व तल पर ऊपर चलता है।
उत्तर:
(d) ऊर्ध्व तल पर ऊपर चलता है।

प्रश्न 6.
एक बॉक्स को फर्श से उठाकर किसी टेबिल पर रख देते हैं। हमारे द्वारा बॉक्स पर किया गया कार्य निर्भर करता है-
(a) बॉक्स को रखने में विभिन्न पथों पर
(b) हमारे द्वारा लिये गये स्थान पर
(c) हमारे भार पर
(d) बॉक्स से भार पर
उत्तर:
(d) बॉक्स से भार पर

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 7.
किसी निकाय पर संरक्षी आन्तरिक बल द्वारा किये गये कार्य का ऋणात्मक मान तुल्य होता है-
(a) कुल ऊर्जा में परिवर्तन के
(b) गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के
(c) स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के

प्रश्न 8.
किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो उसके संवेग में प्रतिशत वृद्धि होगी-
(a) 0.05%
(b) 0.1%
(c) 1.0%
(d) 10%
उत्तर:
(a) 0.05%

प्रश्न 9.
राशियाँ जो किसी टक्कर में नियत रहती है-
(a) संवेग, गतिज ऊर्जा तथा ताप
(b) संवेग, लेकिन गतिज ऊर्जा तथा ताप नहीं
(c) संवेग, गतिज ऊर्जा लेकिन ताप नहीं
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) संवेग, लेकिन गतिज ऊर्जा तथा ताप नहीं

प्रश्न 10.
दो स्प्रिंगों के बल नियतांक व 2 हैं। उनमें समान खिंचाव x उत्पन्न किया जाता है। इनकी प्रत्यास्थ ऊर्जा E व E2 हो तो E1 व E2 का अनुपात होगा-
(a) \(\frac{k_1}{k_2}\)
(b) \(\frac{k_2}{k_1}\)
(c) \(\frac{\sqrt{k_2}}{\sqrt{k_1}}\)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) \(\frac{k_1}{k_2}\)

प्रश्न 11.
पिण्ड पर किया गया कार्य निर्भर नहीं करता है-
(a) आरोपित बल पर
(b) पिण्ड की प्रारम्भिक चाल पर
(c) बल व विस्थापन के मध्य कोण पर
(d) विस्थापन पर
उत्तर:
(b) पिण्ड की प्रारम्भिक चाल पर

प्रश्न 12.
यदि किसी पिण्ड का संवेग दुगना कर दिया जाये तो गतिज ऊर्जा में वृद्धि होगी-
(a) 400%
(b) 200%
(c) 300%
(d) 50%
उत्तर:
(c) 300%

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 13.
m व 4m द्रव्यमान के दो अणुओं की गतिज ऊर्जा समान है। उनमें रेखीय संवेग का अनुपात होगा-
(a) 1 : 4
(b) 4 : 1
(c) 1 : 2
(d) 1 : √2
उत्तर:
(c) 1 : 2

प्रश्न 14.
एक पिण्ड समान वेग से चलता हुआ दूसरे समान द्रव्यमान के स्थिर पिण्ड से द्विविमीय टक्कर करता है। टक्कर के पश्चात् दोनों के मध्य कोण होगा-
(a) 450
(b) 90°
(c) 60°
(d) 30°
उत्तर:
(b) 90°

प्रश्न 15.
m द्रव्यमान की गोली 1 वेग से क्षैतिज दिशा में दागी जाती है। यह गोली m द्रव्यमान के रेत के थैले में धँस जाती है। टक्कर के कारण रेत के थैले का वेग होगा-
(a) \(\frac{mu}{M+m}\)
(b) \(\frac{m}{(M+m)u}\)
(c) \(\frac{mM}{(M+m)u}\)
(d) o
उत्तर:
(a) \(\frac{mu}{M+m}\)

प्रश्न 16.
पूर्णत: प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक ९ का मान होता है-
(a) 1
(b)0
(c) ∞
(d) – 1
उत्तर:
(a) 1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 17.
एक रेलगाड़ी को रोकने के लिए समान मन्दन बल लगाया जाता है। यदि चाल दोगुनी कर दी जाये तो दूरी होगी-
(a) समान
(b) दो गुनी
(c) आधी
(d) चार गुनी
उत्तर:
(d) चार गुनी

प्रश्न 18.
एक गेंद 5 मीटर ऊँचाई से गिरकर 1.8 मीटर ऊँचाई तक उछलती है, उछलने के पश्चात् तथा पूर्व गेंद के वेगों का अनुपात होगा –
(a) \(\frac{4}{5}\)
(b) \(\frac{1}{5}\)
(c) \(\frac{2}{5}\)
(d) \(\frac{3}{5}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{3}{5}\)

प्रश्न 19.
यदि \(\vec{F}=(20 \hat{i}+15 \hat{j}-5 \hat{k}) \mathrm{N} \text { तथा } \vec{v}=(6 \hat{i}-4 \hat{j}+3 \hat{k}) \mathrm{m} / \mathrm{s}\) है तो तात्क्षणिक शक्ति होगी-
(a) 35 W
(b) 25 W
(c) 90 W
(d) 45 W
उत्तर:
(d) 45 W

प्रश्न 20.
√Ek में खींचा गया वक्र है-
(E = गतिज ऊर्जा तन्त्र, p = रेखीय संवेग)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -2
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -3

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
गुरुत्व के विरुद्ध किसी मनुष्य द्वारा किया गया कार्य कितना होगा, यदि वह समतल में चल रहा हो ?
उत्तर:
∵ W =F.d cos θ
समतल में चलने पर θ = 90° और F = mg
तो W = mg × cos 90°
या W = 0

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 2.
एक मनुष्य 10kg के भार को 1 min तक अपने कन्धों पर उठाये रखता है। मनुष्य द्वारा किया गया कार्य कितना होगा?
उत्तर:
W = F.d
यहाँ d = 0
W = 0

प्रश्न 3.
क्या यांत्रिक ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है?
उत्तर:
नहीं; केवल विलगित निकाय की यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है जबकि असंरक्षी बल शून्य हो।

प्रश्न 4.
घड़ी में चाबी भरने पर स्प्रिंग में कौन-सी ऊर्जा संचित होती है? घड़ी चलते रहने पर यह ऊर्जा कौन-सी ऊर्जा में परिवर्तित होती है?
उत्तर:
घड़ी में चाबी भरने पर स्प्रिंग में उसकी स्थितिज ऊर्जा के रूप में ऊर्जा एकत्र होती है। घड़ी के चलते रहने पर यहीं स्थितिज ऊर्जा सुइयों की गतिज ऊर्जा में बदलती है।

प्रश्न 5.
क्या किसी निकाय के संवेग में परिवर्तन किये बिना गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; निकाय के कणों का कुल संवेग अपरिवर्तित रहेगा परन्तु उसके कणों के अलग-अलग संवेग बदल सकते हैं और फलस्वरूप गतिज ऊर्जा में परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 6.
क्या किसी कण की गतिज ऊर्जा परिवर्तित किये बिना इसका संवेग परिवर्तित किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; एक समान वृत्तीय गति में कण की चाल नियत होने से उसकी गतिज ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है लेकिन प्रति क्षण वेग की दिशा बदलने से संवेग परिवर्तित होगा।

प्रश्न 7.
क्या किसी पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर में सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा क्षय हो सकती है?
उत्तर:
हाँ जब एक स्प्रिंग को दबाते हैं या वस्तु खुरदरे तल पर नियत वेग से खींची जाये।

प्रश्न 8.
संरक्षी बलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
गुरुत्वीय बल स्प्रिंग बल ।

प्रश्न 9.
असंरक्षी बलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घर्षण बल श्यान बल ।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 10.
आइन्स्टीन का द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
E = mc²
जहाँ m = ऊर्जा में बदलने वाला द्रव्यमान
एवं c = प्रकाश की चाल = 3 × 100 ms-1

प्रश्न 11.
क्या किसी वस्तु की (EU) राशि ऋणात्मक हो सकती है? यहाँ E कुल ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा है।
उत्तर:
नहीं, क्योंकि राशि (EU) कुल गतिज ऊर्जा को व्यक्त करती है और गतिज ऊर्जा ऋणात्मक नहीं हो सकती है।

प्रश्न 12.
क्या किसी वस्तु पर बाह्य बल लगाये बिना निकाय की गतिज ऊर्जा परिवर्तित की जा सकती है?
उत्तर:
हाँ, जैसे बम विस्फोट में।

प्रश्न 13.
क्या रेखीय संवेग सदैव संरक्षित रहता है?
उत्तर:
नहीं; रेखीय संवेग केवल विलगित निकाय (Isolated System) में ही संरक्षित रहता है।

प्रश्न 14.
क्या किसी वस्तु पर बिना गतिज ऊर्जा परिवर्तन के बल लगाया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; जब एक स्प्रिंग को दबाते हैं या वस्तु खुरदरे तल पर नियत वेग से खींची जाये।

प्रश्न 15.
पानी में एक हवा का बुलबुला ऊपर उठता है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
स्थितिज ऊर्जा घटेगी।

प्रश्न 16.
ऋणात्मक कार्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि विस्थापन बल के विपरीत है अर्थात् कार्य बल के विरुद्ध किया गया।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 17.
1 kWh में जूल (J) की संख्या लिखिए।
उत्तर:
1 kWh = 36 × 106 J

प्रश्न 18.
खिंची हुई स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा का मान कितना है?
उत्तर:
U(x) = \(\frac{1}{2}\) kx²

प्रश्न 19.
क्या यांत्रिक ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है?
उत्तर:
नहीं; केवल विलगित निकाय की यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है, जब आन्तरिक असंरक्षी बल शून्य हो।

प्रश्न 20.
जब संरक्षी बल किसी वस्तु पर धनात्मक कार्य करता है, तो पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
स्थितिज ऊर्जा घटती है।

प्रश्न 21.
धनात्मक कार्य के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घोड़े द्वारा गाड़ी खींचना गिरते हुए पिण्ड पर गुरुत्व बल द्वारा कृत कार्य

प्रश्न 22.
एक व्यक्ति अपने हाथ में सूटकेस लिए हुए प्लेटफार्म पर खड़ा है, क्या वह कोई कार्य कर रहा है?
उत्तर:
नहीं; क्योंकि विस्थापन शून्य है।

प्रश्न 23.
1 जूल में कितने अगं होते हैं?
उत्तर:
1 जूल 107 अर्ग

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 24.
नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में स्थितिज ऊर्जा होती है अथवा नहीं?
उत्तर:
ऋणात्मक विद्युत् स्थितिज ऊर्जा होती है।

प्रश्न 25.
ऊर्जा के चार रूप लिखिए।
उत्तर:
ऊष्मीय ऊर्जा, विद्युत् ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा और प्रकाश ऊर्जा।

प्रश्न 26.
माचिस की तीली जलाने पर तीली से कौन-सी ऊर्जा ऊष्मा में बदलती है?
उत्तर:
रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा में बदलती है।

प्रश्न 27.
किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता क्या कहलाती है?
उत्तर:
ऊर्जा।

प्रश्न 28.
जब किसी वस्तु का ताप बढ़ता है तो उसकी आन्तरिक ऊर्जा में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
आन्तरिक ऊर्जा बढ़ती है।

प्रश्न 29.
कमान से छोड़े गये तीर में गतिज ऊर्जा होती है, तीर को वह गतिज ऊर्जा कहाँ से मिलती है?
उत्तर:
तीर और कमान निकाय की स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है जो तीर को मिल जाती है।

प्रश्न 30.
क्या पूर्ण अप्रत्यास्थ संघट्ट में निकाय की सम्पूर्ण ऊर्जा क्षय हो जाती है?
उत्तर:
नहीं; केवल उतनी ही गतिज ऊर्जा का क्षय होता है जितनी कि संवेग संरक्षण के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 31.
प्रत्यास्थ और अप्रत्यास्थ संघट्ट में से किसमें संवेग संरक्षित रहता है और किसमें यांत्रिक ऊर्जा ?
उत्तर:
प्रत्यास्थ और अप्रत्यास्थ दोनों ही प्रकार के संघट्टों में संवेग संरक्षित रहता है लेकिन यांत्रिक ऊर्जा केवल प्रत्यास्थ संघट्ट में संरक्षित रहती है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
शून्य कार्य, धनात्मक कार्य एवं ऋणात्मक कार्य के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(i) शून्य कार्य –
∵ W = F.s.cos θ
यदि θ = 90° तो cos θ = 0 अत: W = 0
उदाहरण के लिए – वृत्तीय पथ पर गतिशील पिण्ड पर अभिकेन्द्रीय बल द्वारा कृत कार्य शून्य होता है।
धनात्मक कार्य – W=Fs.cos θ जब 80° तो cos 9 = 1 अतः W – F. अर्थात् कार्य धनात्मक होगा।
उदाहरण के लिए – जब कोई व्यक्ति किसी भार को ऊपर उठाता है तो व्यक्ति द्वारा कृत कार्य धनात्मक होता है।
ऋणात्मक कार्य – जब 0-180° तो cos81. अतः WFs अर्थात् कार्य ऋणात्मक होगा।
उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति किसी भार को ऊपर उठाता है तो गुरुत्वीय बल द्वारा कृत कार्य ऋणात्मक (-mgh) होता है।

प्रश्न 2.
किसी बन्दूक से गोली दागी जाती है, तो बन्दूक एवं गोली में से किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
∵ Ek = \(\frac{p^{2}}{2m}\)
या Ek ∝ \(\frac{1}{m}\) यदि p का मान नियत है।
∵ गोली एवं बन्दूक के संवेग परिमाण में समान होते हैं अतः गोली की गतिज ऊर्जा अधिक होगी क्योंकि इसका द्रव्यमान कम होता है।

प्रश्न 3.
गतिज ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह ऊर्जा जो किसी पिण्ड में उसकी गति के कारण होती है. गतिज ऊर्जा कहलाती है और इसकी माप उस कार्य से की जाती है, जो शून्य वेग की अवस्था से उस वेग की अवस्था तक लाने में करना पड़ता है। 1 वेग की अवस्था में
K = \(\frac{1}{2}\) v²

प्रश्न 4.
तोप से दागा गया गोला ऊपर जाकर वायु में फट जाता है। संवेग तथा गतिज ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
जब गोला फटता है तो संवेग संरक्षित रहता है लेकिन गतिज ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 5.
गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध बताइये और इसकी सहायता से बताइये कि यदि हल्के एवं भारी पिण्डों के संवेग समान हैं तो किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा,
\(K_i=\frac{1}{2} m v^2=\frac{m^2 v^2}{2 m}=\frac{p^2}{2 m}\)
या \(K=\frac{p^2}{2 m}\)
यदि P का मान नियत है, तो K ∝ \(\frac{1}{m}\)
स्पष्ट है कि हल्के पिण्ड ( कम द्रव्यमान m) की गतिज ऊर्जा अधिक होगी।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 6.
कार्य निर्देश तन्त्र पर किस प्रकार निर्भर करता है? समझाइये।
उत्तर:
कार्य, निर्देश तन्त्र पर निर्भर करता है क्योंकि निर्देश तन्त्र परिवर्तित होने से विस्थापन परिवर्तित हो जाता है। जैसे-यदि किसी बॉक्स जिसका द्रव्यमान है, को कोई व्यक्ति सिर पर रखकर ऊँचाई तक ले जाता है, तो व्यक्ति के सापेक्ष बॉक्स का विस्थापन शून्य होता है। अतः व्यक्ति के सापेक्ष कार्य शून्य होगा, लेकिन प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के लिए इसका मान Www.gh होता है क्योंकि प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के लिए बॉक्स का विस्थापन है।

प्रश्न 7.
स्थितिज ऊर्जा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।

किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

स्थितिज ऊर्जा की अवधारणा
(Concept of Potential Energy)
किसी कण या पिण्ड या तन्त्र की वह ऊर्जा है जो उसकी स्थिति या अभिविन्यास के कारण होती है, स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
यह धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है। स्थितिज ऊर्जा सदैव सम्पूर्ण निकाय की होती है।

प्रतिकर्षण बलों के कारण स्थितिज ऊर्जा का मान धनात्मक तथा आकर्षण बलों के कारण स्थितिज ऊर्जा का मान ऋणात्मक होता है।
जब कणों के बीच लगने वाला बल आकर्षण होता है तो उनके बीच दूरी बढ़ाने पर स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है और जब कणों के बीच लगने वाला बल प्रतिकर्षण होता है तो उनके बीच की दूरी बढाने पर स्थितिज ऊर्जा घटती है।
आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन चित्र 6.9 में दर्शाया है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -4

प्रश्न 8.
संरक्षी बलों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संरक्षी तथा असंरक्षी बल
(Conservative and Non-conservative Forces)
प्रथम परिभाषा-जब किसी कण पर एक या एक एक से अधिक
बल इस प्रकार कार्य करते हैं कि कण की अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौटने पर वही गतिज ऊर्जा रहती है, जो प्रारिम्भक अवस्था में थी, तो ये बल संरक्षी बल कहलाते है। गतिज ऊर्जा के मान में कमी होने पर बलों को असंरक्षी बल कहते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -5
द्वितीय परिभाषा : वे बल जिनके द्वारा पिण्ड को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करने में किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है, संरक्षी बल कहलाते है। अर्थात् पथों 1,2 व 3 के लिये
W1 = W2 = W3
उदाहरणार्थ – गुरुत्वीय बल, प्रत्यास्थ बल आदि।
इसके विपरीत जिन बलों के प्रभाव में वस्तुऐं एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करनें में कृत कार्य पथ पर निर्भर करता है, असंरक्षी बल कहलाते हैं अर्थात् इनके लिए
W1 ≠ W2 ≠ W3
उदाहरण के लिए – घर्षण बल, श्यान बल आदि।

तृतीय परिभाषा : किसी बल को किसी कण पर लगाने से एक एक पूर्ण चक्कर में बल द्वारा सम्पन्न कार्य शून्य हो तो बल को संरक्षी बल कहते हैं। यदि कुल कार्य का परिमाण शून्य नहीं है तो बल को असंरक्षी कहते हैं।

संरक्षी तथा असंरक्षी बलों के उदाहरण
(i) गुरुत्वीय बल संरक्षी बल है : यदि एक गेंद को पृथ्वी की सतह पर कुछ गतिज ऊर्जा देकर ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंका जाए तो कुछ समय पश्चात वह पुन: पृथ्वी पर लौट आती है तथा उसकी गतिज ऊर्जा वही होती है जितनी ऊपर की ओर फेकते समय थी।

(ii) स्प्र्रग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल है : माना पिण्ड द्रव्यमान रहित स्प्रिग के सिरे से जुड़ा है। स्प्रिग का दूसरा सिरा एक दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग तथा गुटके का यह निकाय एक घर्षण रहित चिकने क्षैतिज धरातल पर रखा है। गुर्युके को दीवार की ओर कुछ विस्थापित करने पर स्प्रिग संपीडित होती है। स्प्रिग प्रत्यास्थता के कारण गुटके के विस्थापन के विपरीत दिशा में एक प्रत्यानयन बल आरोपित करती है। जिससे गुटका स्थिर हो जायेगा तथा उसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है। अब संपीडित स्प्रिग विपरीत दिशा में प्रसारित होता है जिससे गुटका पूर्व गति के विपरीत दिशा में गतिशील होता है। जब गुटका अपनी प्रारस्भिक स्थिति में पहुँचता है तो उसका वेग तथा गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक मान के बराबर होते हैं। अतः परिवर्तन के पूर्ण चक्र में गुटके की गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्प्रिग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल होता है।

(iii) घर्षण बल एवं श्यान बल : यदि क्षैतिज तल चिकना न हो अर्थात् घर्षण युक्त हो या गेंद पर वायु प्रतिरोधी श्यान बल करें तो गुटके या गेंद के प्रारम्भिक अवस्था में लौटकर आने पर उनकी गतिज ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी। स्पष्ट है कि घर्षण बल तथा श्यान बल असंरक्षी बल होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 9.
टक्कर के लिए न्यूटन का नियम लिखिए।
उत्तर:
संघट्ट या टक्कर (Collision) :
किन्हीं दो पिण्ड़ों के मध्य अल्प समय के लिए पारस्परिक क्रिया (mutual interaction) का होना जिसके द्वारा पिण्ड़ों के संवेग तथा ऊर्जाएँ बदल जायें, संघट्ट कहलाता हैं अर्थात् “जब एक पिण्ड दूसरे पिण्ड की ओर गति करता है तो समीप आने अथवा अन्योन्य क्रिया के कारण उनकी गति में परिवर्तन होता है तो इस प्रक्रिया को संघट्ट या टक्कर कहते है।”

मुख्य तथ्य-
1. टक्कर में दो पिण्डों का परस्पर सम्पर्क में आना आवश्यक नहीं है। साधारणतः दो स्थूल पिण्ड टक्कर में एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं। परन्तु सूक्ष्म कणों की टक्कर में उनके बीच स्पर्श नहीं होता है। उदाहरणार्थ-किसी गेंद तथा बल्ले के बीच टक्कर में स्पर्श होता हैं परन्तु नाभिक द्वारा α-कण के प्रकीर्णन में कोई स्पर्श नहीं होता है।
2. टक्कर की प्रक्रिया में पिणड़ों के रेखीय संवेगों में पुनर्वितरण होता हैं लेकिन कुल संवेग संरक्षित रहता है।
3. टक्कर में कुल ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है।
4. यदि एक टक्कर में टकराने वाले कण टक्कर से पूर्ण तथा टक्कर के पश्चात् एक ही सरल रेखा के अनुदिश गतिशील हों, तो इसे सम्मुख टक्कर (Head on collision) कहते है। वे टक्कर एक विमीय कहलाती है, जबकि यदि टक्कर करने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं होने तथा टक्कर से पूर्व और पश्चात् एक ही तल में स्थित होने पर टक्कर द्विविमीय कहलाती है। इसे तिर्यक टक्कर (Oblique collision) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
किसी वस्तु के संवेग में 50% की वृद्धि करें तो उसकी गतिज ऊर्जा में कितनी वृद्धि हो जायेगी ?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -6

प्रश्न 11.
तिर्यक टक्कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
यदि टक्कर करने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं होते हैं और टक्कर के पूर्व तथा पश्चात् एक ही तल में होते हैं। तो इस टक्कर को द्विविमीय टक्कर या तिर्यक टक्कर कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
कार्य किसे कहते हैं? परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य किस प्रकार ज्ञात करते हैं? समझाइये।
उत्तर:
अनुच्छेद 6.2 व 6.5 का अवलोकन कीजिए।
कार्य (Work) :
साधारण भाषा में कार्य शब्द किसी भी क्रिया को व्यक्त करता है जिसमें भौतिक या शारीरिक रूप से कोई कार्य सम्मिलित होता है। भौतिकी में कार्य का अर्थ अलग है। यदि किसी पिण्ड पर बल लगाया जाये और वह पिण्ड बल की दिशा में विस्थापित हो तो कहा जाता है कि कार्य किया गया है।

6.5. परिवर्तो बल के द्वारा किया गया कार्य (Work Done by Variable Force)
परिवर्ती बल की स्थिति में माना बिन्दु P पर बल \(\vec{F}\) द्वारा \(\vec{d} r\) विस्थापन देने में कृत कार्य
\(d W=\vec{F} \cdot \overrightarrow{d r}\)
या dW = Fdr cos θi …….(1)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -7
यहाँ θi बिन्दु P पर \(\vec{F}\) व \(\vec{d}\) r के मध्य कोण है। \(\vec{d} r \)का मान इतना अत्यल्प है कि इस विस्थापन के लिये \(\vec{F}\) को नियत मान सकते हैं। इस प्रकार अल्प विस्थापन d r के संगत किया गया कार्य d W है। इस प्रकार सम्पूर्ण दूरी \(A \rightarrow B\) के लिये कृत कार्य ज्ञात करने के लिये सम्पूर्ण दूरी को अल्पांशों \(\Delta \overrightarrow{r_1}, \Delta \overrightarrow{r_2} \ldots\). इत्यादि में बाँट लेते हैं। ये अल्पांश इतने अल्प होने चाहिये कि इनके संगत बल को नियत माना जा सके। यदि इन अल्पांशों के संगत बलों के मान क्रमश: \(\vec{F}_1, \vec{F}_2, \vec{F}_3, \ldots\) इत्यादि हों, तो सम्पूर्ण विस्थापन में किया गया कार्य
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -8

प्रश्न 2.
गतिज ऊर्जा किसे कहते हैं? सिद्ध करें कि किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा mp” होती है? कार्य-कर्जा प्रमेय को समझाते हुए इसे व्युत्पन्न कीजिए।
उत्तर;
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।
किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

कार्य-ऊर्जा प्रमेय (Work-Energy Theorem)
कथन-
” किसी बल द्वारा क्षैतिज तल पर एक वस्तु को विस्थापित करने में कृत कार्य उसकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि के बराबर होता है।’ अर्थात्
W = ∆K
नियत बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय-माना कोई कण जिसका द्रव्यमान m है, किसी क्षण प्रारम्भिक वेग \(\vec{u}\) से गतिमान है। अब यदि कोई बल \(\vec{F}\) उस पर गति की दिशा में लगाने से वस्तु का s दूरी तय करने के बाद अन्तिम वेग \(\vec{v}\) हो जाता है तथा वस्तु में उत्पन्न त्वरण \(\vec{a}\) है, तो गति के तृतीय नियम को सदिश रूप से लिखने पर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -9
अत: किसी वस्तु पर लगाये गये कुल बल द्वारा सम्पन्न कार्य, वस्तु की दो विशिष्ट अवस्थाओं में विद्यमान गतिज ऊर्जाओं के अन्तर के बराबर होता है। यही कार्य-ऊर्जा प्रमेय है। स्पष्ट है कि-
(i) यदि W > 0 तो (Kf – Ki) >0 या Kf > Ki अर्थात् यदि सम्पन्न कार्य धनात्मक है तो अन्तिम गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक गतिज ऊर्जा से अधिक होगी।
(ii) यदि W < 0 तो (Kf – Ki) < 0 या Kf < Ki अर्थात् यदि सम्पन्न कार्य ऋणात्मक है तो अन्तिम गतिज ऊर्जा प्रारिम्भक गतिज ऊर्जा से कम होगी।

परिवर्ती बल के अन्तर्गत कार्य ऊर्जा प्रमेय –
गतिज ऊर्जा \(K=\frac{1}{2} m v^2\)
गतिज ऊर्जा में परिवर्तन की दर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -10
इस प्रकार परिवर्ती बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय सिद्ध होती है। वास्तव में यह न्यूटन के द्वितीय का समालकन रूप है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 3.
ऊर्जा किसे कहते हैं? यांत्रिक ऊर्जा कितने प्रकार की होती है? यांत्रिक ऊर्जा का संरक्षण गुणत्व के अधीन स्वतंत्रतापूर्वक गिरते पिण्ड का उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।

किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।
हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

यह नियम असंरक्षीय बल (अर्थात् क्षयकारी बल) जैसे-घर्षण बल के लिए लागू नहीं होता है क्योंकि असंरक्षी बलों (Non conservative forces) के कारण यान्त्रिक ऊर्जा का कुछ भाग ध्वनि, ऊष्मा, प्रकाश या अन्य प्रकार की ऊर्जाओं में परिवर्तित हो जाता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 4.
स्प्रिंग नियतांक वाली एक प्रत्यास्थ स्प्रिंग को x दूरी तक संपीडित किया जाता है, दशांइये कि स्थितिज ऊर्जा \(\frac{1}{2}\)Kx² होती है।
उत्तर:
यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।
हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

यह नियम असंरक्षीय बल (अर्थात् क्षयकारी बल) जैसे-घर्षण बल के लिए लागू नहीं होता है क्योंकि असंरक्षी बलों (Non conservative forces) के कारण यान्त्रिक ऊर्जा का कुछ भाग ध्वनि, ऊष्मा, प्रकाश या अन्य प्रकार की ऊर्जाओं में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 5.
सिद्ध कीजिए कि दो समान द्रव्यमान की एक ही रेखा में गतिशील गेंदों के मध्य होने वाली प्रत्यास्थ टक्कर में गेंदे अपने वेगों को परस्पर बदल लेती हैं।
उत्तर:
एक विमीय प्रत्यास्थ टक्कर (One Dimensional Elastic Collision) :
माना चित्र में m1 व m2 द्रव्यमान के दो पिण्ड क्रमशः \(\overrightarrow{u_1}\) व \overrightarrow{u_2}[/latex] नियत वेगों \(\left(\vec{u}>\overrightarrow{u_2}\right)\) से एक सरल रेखा में चलते हुए प्रत्यास्थ रूप से टकराते हैं और टक्कर के बाद के उसी दिशा में क्रमश: \(\overrightarrow{v_1}\) व \(\overrightarrow{v_2}\) वेग से गति करते हैं।

प्रत्यास्थ टक्कर में ऊर्जा एवं संवेग दोनों संरक्षित रहते हैं। अतः संवेग संरक्षण के नियम से-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -11
इस प्रकार एक विमीय सम्मुख प्रत्यास्थ टक्कर में टक्कर के पूर्व कणों के समीप आने का आपेक्षिक वेग (u1 – u2) टक्कर के पश्चात् उनके दूर जाने के आपेक्षिक वेग (v2 – v1) के बराबर होता है अत: इस टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -12

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 6.
दो विमीय टक्कर का वर्णन कीजिए। इस प्रकार की टक्कर में कणों के अन्तिम वेग किस प्रकार ज्ञात किये जाते हैं?
उत्तर:
द्विविमीय टक्कर अथवा तिर्यक टक्कर (Two Dimensional Collision or Oblique Collision) :
टक्कर के पश्चात् यदि टकराने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं रहते तथा टक्कर के पूर्व व पश्चात् उनके तल समान रहते हैं तो इस प्रकार की टक्कर को द्विविमीय टक्कर कहते हैं। इसे तिर्यक टक्कर (oblique collision) भी कहते हैं।
चित्र में माना m1 द्रव्यमान का पिण्ड u1 वेग से चलते हुये m2 द्रव्यमान के स्थिर पिण्ड (u2 = 0) से टकराता है और टक्कर के पश्चात् वे मूल दिशा से क्रमशः θ व ϕ कोणों पर समान तल में गति करते हैं। अतः सदिश निरुपण में
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -13

प्रश्न 7.
बल विस्थापन ग्राफ की सहायता से कार्य का आंकलन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
परिवर्तो बल के द्वारा किया गया कार्य (Work Done by Variable Force)
परिवर्ती बल की स्थिति में माना बिन्दु P पर बल \(\vec{F}\) द्वारा \(\vec{d} r\) विस्थापन देने में कृत कार्य
\(d W=\vec{F} \cdot \overrightarrow{d r}\)
या dW = Fdr cos θi …….(1)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -7.1
यहाँ θi बिन्दु P पर \(\vec{F}\) व \(\vec{d}\) r के मध्य कोण है। \(\vec{d} r \)का मान इतना अत्यल्प है कि इस विस्थापन के लिये \(\vec{F}\) को नियत मान सकते हैं। इस प्रकार अल्प विस्थापन d r के संगत किया गया कार्य d W है। इस प्रकार सम्पूर्ण दूरी \(A \rightarrow B\) के लिये कृत कार्य ज्ञात करने के लिये सम्पूर्ण दूरी को अल्पांशों \(\Delta \overrightarrow{r_1}, \Delta \overrightarrow{r_2} \ldots\). इत्यादि में बाँट लेते हैं। ये अल्पांश इतने अल्प होने चाहिये कि इनके संगत बल को नियत माना जा सके। यदि इन अल्पांशों के संगत बलों के मान क्रमश: \(\vec{F}_1, \vec{F}_2, \vec{F}_3, \ldots\) इत्यादि हों, तो सम्पूर्ण विस्थापन में किया गया कार्य
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -8.1

प्रश्न 8.
यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण नियम क्या है? प्रत्यास्थ स्प्रिंग लोलक का उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।

हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

(B) प्रत्यास्थ स्प्रिंग में यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण (Mechanical energy consevnation in elastic spring):
स्प्रिग बल भी संरक्षी परिवर्ती बल का उदाहरण है। चित्र में एक स्प्रिग जिसका बल नियतांक k है, दर्शाया है जिसका दूसरा सिरा किसी दृढ़ दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग को द्रव्यमान रहित माना जा सकता है। स्प्रिग के लिए आदर्श स्थिति में बल का नियम निम्न है-

इसे हुक का नियम भी कहते हैं।
(i) जब गुटके को बाहर की ओर खींचते हैं तो विस्थापन x है। स्प्रिग बल द्वारा किया गया कार्य
\(W=\int_0^x F_x d x=-\int_0^x k x d x\)
\(W=-\frac{k x^2}{2}\)
यदि स्प्रिग को संपीडित किया जाता है तब भी उपर्युक्त व्यंजक सत्य है। परन्तु इस स्थिति में स्प्रिग बल धनात्मक होता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -14
किस स्प्रिग के गुटके को xi से पुन: xi तक आने दिया जाए तो किया गया कार्य
\(W=-\int_{x_i}^{x_i} k x d x=0\)
अर्थात् पूर्ण चक्र में किया गया कार्य शून्य होगा। अत: स्प्रिग बल एक संरक्षी बल है।
जब स्प्रिग को x दूरी संपीडित किया जाता है तो स्थितिज ऊर्जा
\(U_{(x)}=\frac{1}{2} k x^2\)
यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण के नियम से गुटके की चाल v हो तो गतिज ऊर्जा साम्यावस्था (xm = 0) पर अधिकतम होगी।
\(K=\frac{1}{2} m v_m^2=\frac{1}{2} k x_m^2\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 9.
संरक्षी व असंरक्षी बलों से क्या अभिप्राय है? समझाकर लिखिए।
उत्तर:
संरक्षी तथा असंरक्षी बल (Conservative and Non-conservative Forces) :
प्रथम परिभाषा-जब किसी कण पर एक या एक एक से अधिक-
बल इस प्रकार कार्य करते हैं कि कण की अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौटने पर वही गतिज ऊर्जा रहती है, जो प्रारिम्भक अवस्था में थी, तो ये बल संरक्षी बल कहलाते है। गतिज ऊर्जा के मान में कमी होने पर बलों को असंरक्षी बल कहते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -5
द्वितीय परिभाषा : वे बल जिनके द्वारा पिण्ड को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करने में किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है, संरक्षी बल कहलाते है। अर्थात् पथों 1,2 व 3 के लिये
W1 = W2 = W3
उदाहरणार्थ – गुरुत्वीय बल, प्रत्यास्थ बल आदि।
इसके विपरीत जिन बलों के प्रभाव में वस्तुऐं एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करनें में कृत कार्य पथ पर निर्भर करता है, असंरक्षी बल कहलाते हैं अर्थात् इनके लिए
W1 ≠ W2 ≠ W3
उदाहरण के लिए – घर्षण बल, श्यान बल आदि।

तृतीय परिभाषा : किसी बल को किसी कण पर लगाने से एक एक पूर्ण चक्कर में बल द्वारा सम्पन्न कार्य शून्य हो तो बल को संरक्षी बल कहते हैं। यदि कुल कार्य का परिमाण शून्य नहीं है तो बल को असंरक्षी कहते हैं।

संरक्षी तथा असंरक्षी बलों के उदाहरण
(i) गुरुत्वीय बल संरक्षी बल है : यदि एक गेंद को पृथ्वी की सतह पर कुछ गतिज ऊर्जा देकर ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंका जाए तो कुछ समय पश्चात वह पुन: पृथ्वी पर लौट आती है तथा उसकी गतिज ऊर्जा वही होती है जितनी ऊपर की ओर फेकते समय थी।

(ii) स्प्र्रग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल है : माना पिण्ड द्रव्यमान रहित स्प्रिग के सिरे से जुड़ा है। स्प्रिग का दूसरा सिरा एक दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग तथा गुटके का यह निकाय एक घर्षण रहित चिकने क्षैतिज धरातल पर रखा है। गुर्युके को दीवार की ओर कुछ विस्थापित करने पर स्प्रिग संपीडित होती है। स्प्रिग प्रत्यास्थता के कारण गुटके के विस्थापन के विपरीत दिशा में एक प्रत्यानयन बल आरोपित करती है। जिससे गुटका स्थिर हो जायेगा तथा उसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है। अब संपीडित स्प्रिग विपरीत दिशा में प्रसारित होता है जिससे गुटका पूर्व गति के विपरीत दिशा में गतिशील होता है। जब गुटका अपनी प्रारस्भिक स्थिति में पहुँचता है तो उसका वेग तथा गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक मान के बराबर होते हैं। अतः परिवर्तन के पूर्ण चक्र में गुटके की गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्प्रिग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल होता है।

(iii) घर्षण बल एवं श्यान बल : यदि क्षैतिज तल चिकना न हो अर्थात् घर्षण युक्त हो या गेंद पर वायु प्रतिरोधी श्यान बल करें तो गुटके या गेंद के प्रारम्भिक अवस्था में लौटकर आने पर उनकी गतिज ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी। स्पष्ट है कि घर्षण बल तथा श्यान बल असंरक्षी बल होते हैं।

प्रश्न 10.
शक्ति से आप क्या समझते हैं? इसके मात्रक की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
शक्ति (Power) :
“किसी मशीन या यन्त्र द्वारा कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं।”
यदि यन्त्र द्वारा ∆t समय में कृत कार्य ∆W है, तो औसत शक्ति
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -15
अर्थात् बल तथा वेग का अदिश गुणनफल शक्ति प्रदान करता है। यदि θ = 0° अर्थात् बल एवं वेग समान दिशा में है, तो
cos θ = 1
∴ P = F.v
मात्रक एवं विमीय सूत्र-मात्रक :
∵ P = F.v = \(\frac{W}{t}\)
∴ P का मात्रक = \(\frac{J}{s}\) = वाट (Watt)
यदि W = 1 J, t = 1 s, तो P = 1 वाट
अर्थात् यदि कोई मशीन 1 s में 1 J कार्य करती है तो उसकी शक्ति 1 वाट होती है।
विद्युत् उपकरणों में शक्ति किलोवाट (kwatt) में नापी जाती है।
∴ 1 kW = 1000 Js-1 या वाट
व्यवहारिक मात्रक अश्वशक्ति (H.P.) = 746 वाट
विमीय सूत्र ∵ P = \(\frac{W}{t}\)
∴ P का विमीय सूत्र = \(\frac{\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-2}\right]}{\left[\mathrm{T}^1\right]}=\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-3}\right]\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 11.
प्रत्यावस्थान गुणांक से क्या अभिप्राय है? विभिन्न प्रकार की टक्करों के लिए इसके मानों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यावस्थान गुणांक (Coefficient of Restitution):
“न्यूटन के अनुसार टक्कर के पश्चात् कणों के दूर आने आपेक्षिक वेग तथा टक्कर के पूर्व उनके समीप आने के आपेक्षिक वे का अनुपात नियत रहता है। यह नियतांक प्रत्यावस्थान गुणां कहलाता है।” इसे e से व्यक्त करते हैं।
अत: \(e=\frac{v_2-v_1}{u_1-u_2}\)
या \(\left(v_2-v_1\right)=e\left(u_1-u_2\right)\)
जहाँ v2 – v1= टक्कर के पश्चात् दूर जाने का आपेक्षिक वेग u1 – u1 = टक्कर के पूर्व समीप आने का आपेक्षिक वेग
e का मान शून्य से 1 के मध्य होता है अर्थात् 0 ≤ e ≤ 1

e का मान के आधार पर टक्करों के प्रकार-

  • प्रत्यास्थ टक्कर के लिए e = 1
  • अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए 0 < e < 1
  • पूर्ण अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए e = 0

सुमेलन सम्बन्धित प्रश्न (Matrix Match Type Questions)

प्रश्न 1.
स्तम्भ I में कुछ राशियाँ एवं स्तम्भ II में उनके दिये गये हैं। स्तम्भ I को स्तम्भ II से सुमेलित कीजिए।

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) किसी बल द्वारा कृत कार्य(p) शून्य
(B) गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध(q) 1
(C) प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान(r) p = √2mk
(D) पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान(s) \(\vec{F} \cdot \vec{s}\)
(t) \(\int_{x_1}^{x_2} F d x\)

उत्तर:

स्तम्भ – Iस्तम्भ – II
(A) किसी बल द्वारा कृत कार्य(s) \(\vec{F} \cdot \vec{s}\), (t) \(\int_{x_1}^{x_2} F d x\)
(B) गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध(r) p = √2mk
(C) प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान(q) 1
(D) पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान(p) शून्य

आंकिक प्रश्न (Numerical Questions )

कार्य पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी निकाय पर तीन बल है \(\vec{F}_1=(2 \hat{i}+3 \hat{j}+4 \hat{k})\); \(\vec{F}_2=(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})\) तथा \(\vec{F}_3=(3 \hat{i}-2 \hat{j}-\hat{k})\) एक ही दिशा में कार्य कर रहे हैं। ये यल निकाय को बिन्दु (2, 3, 6) से बिन्दु (5, 3, 8) तक विस्थापित कर देते हैं। इस स्थिति में बल द्वारा किये गये कार्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
26 मात्रक

प्रश्न 2.
नियत बल के अन्तर्गत गतिमान एक कण के विस्थापन तथा समय के बीच सम्बन्ध √x + 3 है, जहाँ x मीटर में एवं सेकण्ड में है। ज्ञात कीजिए-
(i) कण का उस क्षण विस्थापन जब इसका वेग शून्य है,
(ii) पहले 65 में बल द्वारा किया गया कार्य।
उत्तर:
(i) शून्य
(ii) शून्य

प्रश्न 3.
एक स्प्रिंग जिसका बल नियतांक है, हुक के नियम का पालन करती है। इसको मूल लम्बाई से 10 cm खींचने में 4 जूल कार्य की आवश्यकता होती है। गणना करें-
(i) A का मान,
(ii) इसे अतिरिक्त 10 cm लम्बाई तक खींचने में कृत कार्य।
उत्तर:
(i) 800 Nmal,
(ii) 123

प्रश्न 4.
एक 6 kg का पत्थर जिसका घनत्व 2g .cm-3 है, पानी में डूबा हुआ है। इसे पानी के अन्दर 4m गहराई से 1 m की गहराई तक उठाने में किये गये कार्य की गणना कीजिए ।
उत्तर:
90 J

ऊर्जा पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
चित्र में ABC एक चिकना वक्रीय पथ है जिसका 8 से आगे का भाग त्रिज्या के उर्ध्व वृत्त के रूप में है। इस पथ पर एक गेंद को किस न्यूनतम ऊँचाई से छोड़ा जाये कि वह पथ के सम्पर्क में रहते हुए उच्चतम बिन्दु C को पार कर ले?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -16
उत्तर:
h = (\(\frac{5}{2}\)) r

प्रश्न 6.
एक गेंद 10m की ऊंचाई से प्रारम्भिक वेग μ0 से नीचे की ओर फेंकी जाती है। यह पृथ्वी से टकराने पर 50% ऊर्जा खो देती है। तथा फिर उसी ऊँचाई तक उठती है। ज्ञात कीजिए-
(i) प्रारम्भिक वेग μ0
(ii) यदि प्रारम्भिक स्थिति नीचे न होकर ऊपर को हो तो पृथ्वी से टकराने के बाद गेंद कितनी ऊपर उठेगी?
उत्तर:
(i) 14 ms-1
(ii) 10 m

प्रश्न 7.
एक 50 kg भार का व्यक्ति एक 15 kg भार की वस्तु को अपने सिर पर उठाता है। यदि वह 20 m की दूरी तय करता है, तो उसके द्वारा किया गया कार्य ज्ञात कीजिए-
(a) क्षैतिज तल पर;
(b) 5 में 1 से झुके हुए तल पर [ g = 10 ms-2]
उत्तर:
(a) शून्य
(b) 2600 J

शक्ति पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 8.
एक पेट्रोल चालित पानी का पम्प, 30m गहराई से 0.50m³ min-1 की दर से पानी खींचता है। यदि पम्प की दक्षता 70% है, तो इंजन द्वारा जनित शक्ति ज्ञात कीजिए। (g = 10 ms-2 तथा पानी का घनत्व 10³ kg ):
उत्तर:
3500 वाट

प्रश्न 9.
एक ट्यूबवेल प्रति मिनट 2400 kg पानी खींचता है। यदि पाइप से पानी 3 ms-1 के वेग से बाहर निकलता है तो पम्प की शक्ति ज्ञात कीजिए 10 घण्टे में पम्प कितना कार्य करता है? (g = 10 ms-2 )।
उत्तर:
180 W; 6.48 × 106 J

प्रश्न 10.
एक मोटर वोट 36 km hr-1 की नियत चाल से गतिशील है। यदि नाव की गति के विरुद्ध प्रतिरोध 4000 N है, तो इंजन की शक्ति ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
40 kW

संघट्ट पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
10 kg द्रव्यमान के एक पिण्ड की जिसका वेग 5ms-1 है। एक अन्य 10 kg द्रव्यमान के अन्य पिण्ड से जो विरामावस्था में है, सम्मुख प्रत्यास्थी टक्कर होती है। टक्कर के बाद दोनों पिण्डों के वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
v1 = 0, v2 = 5 ms-1

प्रश्न 12.
एक प्रोटॉन 500 ms-1 के वेग से गति करते हुए दूसरे प्रोटॉन से जो विरामावस्था में है, प्रत्यास्थ संघट्ट करता है। संघ के पश्चात् पहला प्रोटॉन अपनी प्रारम्भिक गति की दिशा से 60° कोण पर प्रकीर्णित हो जाता है। दूसरे प्रोटॉन की संघट्ट के बाद गति की दिशा क्या होगी ? संघट्ट के पश्चात् दोनों प्राटोंनों की चाल क्या होगी ?
उत्तर:
प्रथम प्रोटॉन की प्रारम्भिक गति की दिशा से 30° कोण पर; 250 ms-1 व 433 ms-1

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