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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

HBSE 12th Class Sanskrit रघुकौत्ससंवादः Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत
(क) कौत्सः कस्य शिष्यः आसीत् ?
(ख) रघुः कम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म ?
(ग) कौत्सः किमर्थं रघु प्राप ?
(घ) मन्त्रकृताम् अग्रणीः कः आसीत् ?
(ङ) तीर्थप्रतिपादितद्धिः नरेन्द्रः कथमिव आभाति स्म ?
(च) चातकोऽपि कं न याचते ?
(छ) कौत्सस्य गुरुः गुरुदक्षिणात्वेन कियद्धनं देयमिति आदिदेश ?
(ज) रघुः कस्मात् परीवादात् भीतः आसीत् ?
(झ) कस्मात् अर्थं निष्क्रष्टुम् रघुः चकमे ?
(ञ) हिरण्मयीं वृष्टिं के शशंसुः ?
(ट) कौ अभिनन्धसत्वौ अभूताम् ?
उत्तरम्:
(क) कौत्सः महर्षेः वरतन्तोः शिष्यः आसीत्।
(ख) रघुः ‘विश्वजित्’-नामकम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म।
(ग) कौत्सः गुरुदक्षिणार्थं धनं याचितुं रघु प्राप।
(घ) मन्त्रकृताम् अग्रणी: महर्षिः वरतन्तुः आसीत्।
(ङ) तीर्थप्रतिपादितर्द्धिः नरेन्द्रः स्तम्बेन अवशिष्टः नीवारः इव आभाति स्म।
(च) चातकोऽपि निर्गलिताम्बुग) शरद्घनं न याचते।
(छ) कौत्सस्य गुरु: गुरुदक्षिणात्वेन चतुर्दशकोटी: सुवर्णमुद्राः प्रदेयाः इति आदिदेश।
(ज) ‘कश्चित् याचक: गुरुप्रदेयम् अर्थं रघोः अनवाप्य अन्यं दातारं गतः’ इति परीवादात् रघुः भीतः आसीत्।
(झ) कुबेरात् अर्थं निष्क्रष्टुम् रघुः चकमे।
(ञ) हिरण्मयीं वृष्टिं गृहकोषे नियुक्ताः अधिकारिणः शशंसुः ।
(ट) द्वौ रघुकौत्सौ अभिनन्द्यसत्त्वौ अभूताम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

2. कोष्ठकात् समुचितं पदमादाय रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) यससा ………………… अतिथिं प्रत्युज्जगाम। (प्रकाशः, कृष्णः, आतिथेयः)
(ख) मानधनाग्रयायी ……………….. तपोधनम् उवाच। (विशाम्पतिः, अकृताञ्जलिः, कौत्सः)
(ग) कुशाग्रबुद्धे ! ………………… कुशली। (ते शिष्यः, ते गुरुः, अग्रणी:)
(घ) हे राजन् ! सर्वत्र ………………… अवेहि। (दुःखम्, वार्तम्, असुखम्)
(ङ) स्तम्बेन अवशिष्टः …………… इव आभासि। (धान्यम्, नीवारः, वृक्षः)
(च) हे विद्वन् ! ………………… गुरवे कियत् प्रदेयम्।। (त्वया, मया, लोकेन)
(छ) ………………… अचिन्तयित्वा गुरुणा अहमुक्तः। (शरीरक्लेशम्, अर्थकार्यम्, रोगक्लेशम्)
उत्तरम्:
(क) प्रकाशः
(ख) विशाम्पतिः
(ग) ते गुरुः
(घ) वार्तम्
(ङ) नीवारः
(च) त्वया
(छ) अर्थकार्यम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

3. अधोलिखितानां सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
(क) कोटीश्चतस्रो दश चाहर।
(ख) माभूत्परीवादनवावतारः।
(ग) द्वित्राण्यहान्यर्हसि सोढुमर्हन्।
(घ) निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्।
(ङ) दिदेश कौत्साय समस्तमेव।
उत्तरम्:
(क) कोटीश्चतस्रो दश चाहर।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ से ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ कविकुलशिरोमणि महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग में से सम्पादित किया गया है। इसमें महर्षि वरतन्तु के शिष्य कौत्स का गुरुदक्षिणा के लिए आग्रह, बार-बार के आग्रह से क्रोधित ऋषि द्वारा पढ़ाई गई चौदह विद्याओं की संख्या के अनुरूप चौदह करोड़ मुद्राएँ देने का आदेश, सर्वस्वदान कर चुके राजा रघु से कौत्स की धनयाचना ‘रघु के द्वार से’ याचक खाली हाथ लौट गया-इस अपकीर्ति के भय से रघु का कुबेर पर आक्रमण का विचार तथा भयभीत कुबेर द्वारा रघु के खजाने में धन वर्षा करने को संवाद रूप में वर्णित किया गया है।

व्याख्या-महर्षि वरतन्तु मन्त्रद्रष्टा ऋषि थे। न उनमें विद्या का अभिमान था, न गुरुदक्षिणा में धन का लोभ। कौत्स नामक एक शिष्य ने ऋषि से चौदह विद्याएँ अत्यन्त भक्ति भाव से ग्रहण की। विद्याप्राप्ति के पश्चात् कौत्स ने गुरुदक्षिणा स्वीकार करने का आग्रह किया। ऋषि ने कौत्स के भक्तिभाव को ही गुरुदक्षिणा मान लिया। परन्तु कौत्स गुरुदक्षिणा देने के लिए जिद्द करता रहता रहा और इस जिद्द से रुष्ट होकर कवि ने उसे पढ़ाई गई एक विद्या के लिए एक करोड़ सुवर्णमुद्राओं के हिसाब से चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ भेंट करने का आदेश दे दिया–’कोटीश्चतस्त्रो दश चाहर’।

(ख) मा भूत्परीवादनवावतारः।
(किसी निन्दा का नया प्रादुर्भाव न हो जाए।)
(ग) द्वित्राण्यहान्यर्हसि सोढमर्हन।
(हे पूजनीय ! दो-तीन तक आप मेरे पास ठहर जाएँ।)
(घ) निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्।
(रघु ने कुबेर से धन ग्रहण करने की इच्छा की।)
(ङ) दिदेश कौत्साय समस्तमेव ।
(रघु ने कुबेर से प्राप्त सारा धन कौत्स के लिए दे दिया।)
उत्तर:
(ख), (ग), (घ) तथा (ङ) के लिए संयुक्त प्रसंग एवं व्याख्या

प्रसंग-(क) वाला ही उपयोग करें।

व्याख्या-महर्षि वरतन्तु का शिष्य कौत्स राजा रघु के पास गुरुदक्षिणार्थ धन याचना के लिए आता है। रघु विश्वजित् यज्ञ में सर्वस्व दान कर चुके हैं, अतः वे सुवर्णपात्र के स्थान पर मिट्टी के पात्र में जल आदि लेकर कौत्स का स्वागत करते हैं। कौत्स मिट्टी का पात्र देखकर अपने मनोरथ की पूर्ति में हताश हो जाता है और वापस लौटने लगता है। राजा रघु खाली हाथ लौटते हुए कौत्स को रोकते हैं क्योंकि सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश मृत्यु से बढ़कर होता है अत: उन्हें भय यह है कि कहीं प्रजा में यह निन्दा न फैल जाए कि कोई याचक रघु के पास आया था और खाली हाथ लौट गया था। वे कौत्स से उसका मनोरथ पूछते हैं। कौत्स सारा वृत्तान्त सुनाते हुए कहता है कि गुरु के आदेश के अनुसार चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा में भेंट करनी हैं। रघु कौत्स से दो-तीन के लिए

आदरणीय अतिथि के रूप में ठहरने का अग्रह करते हैं, जिससे उचित धन का प्रबन्ध किया जा सके। कौत्स राजा की प्रतिज्ञा को सत्य मानकर ठहर जाता है। रघु भी उसकी याचना पूर्ति के लिए धन के स्वामी कुबेर पर आक्रमण का विचार करते हैं। कुबेर रघु के पराक्रम से भयभीत होकर रघु के खजाने में सुवर्ण वृष्टि कर देते हैं। उदार रघु यह सारा धन कौत्स को दे देते हैं, परन्तु निर्लोभी कौत्स उनमें से केवल 14 करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ लेकर लौट जाता है।

दाता सम्पूर्ण धनराशि देकर अपनी उदारता प्रकट करते हैं और याचक आवश्यकता से अधिक एक कौड़ी भी ग्रहण न करके उत्तम याचक का आदर्श उपस्थित करते हैं। इस प्रकार दोनों ही यशस्वी हो जाते हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

4. अधोलिखितेषु रिक्तस्थानेषु विशेष्य विशेषणपदानि पाठ्यांशात् चित्वा लिखत
(क) ………………….. अध्वरे।
(ख) ………………….. कोषजातम्।
(ग) …………………… अनुमितव्ययस्य।
(घ) ………………….. फलप्रसूतिः।
(ङ) ………………….. विवर्जिताय।
उत्तरम्
(क) विश्वजिति अध्वरे।
(ख) निःशेष-विश्राणित-कोषजातम्।
(ग) अर्घ्यपात्र-अनुमितव्ययस्य ।
(घ) आरण्यकोपात्त-फलप्रसूतिः।
(ङ) स्मयावेश-विवर्जिताय।

5. विग्रहपूर्वकं समासनाम निर्दिशत
(क) उपात्तविद्यः
(ख) तपोधनः
(ग) वरतन्तुशिष्यः
(घ) महर्षिः
(ङ) विहिताध्वराय
(च) जगदेकनाथः
(छ) नृपतिः
(ज) अनवाप्य
उत्तरम्:
(क) उपात्तविद्यः = उपात्ता प्राप्ता विद्या येन सः। (बहुव्रीहिः समासः)
(ख) तपोधनः = तपः एव धनं यस्य सः। (बहुव्रीहिः समासः)
(ग) वरतन्तुशिष्यः = वरतन्तोः शिष्यः (षष्ठी-तत्पुरुषः)
(घ) महर्षिः = महान् ऋषिः (कर्मधारयः)
(ङ) विहिताध्वराय = विहितम् अध्वरं येन सः, तस्मै। (बहुव्रीहिः समासः)
(छ) नृपतिः = नृणां पतिः। (षष्ठी-तत्पुरुषः)
(ज) अनवाप्य = न अवाप्य।

6. अधोलिखितानां पदानां समुचितं योजनं कुरुत
(अ) – (आ)
(क) ते (1) चतुर्दश
(ख) चतस्र: दश च (2) गुरुदक्षिणार्थी
(ग) अस्खलितोपचाराम् (3) अहानि
(घ) चैतन्यम् (4) स्वस्ति अस्तु
(ङ) कौत्स: (5) प्रबोध: प्रकाशो वा
(च) द्वित्राणि (6) भक्तिम्
उत्तरम-
(क) ते स्वस्ति अस्तु
(ख) चतस्र: दश च चतुर्दश
(ग) अस्खलितोपचारां भक्तिम्
(घ) चैतन्यम् प्रबोधः प्रकाशो वा
(ङ) कौत्सः गुरुदक्षिणार्थी
(च) द्वित्राणि अहानि

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

7. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम्
(क) अर्थी (ख) मृण्मयम् (ग) शासितुः (घ) अवशिष्टः (ङ) उक्त्वा
(च) प्रस्तुतम् (छ) उक्तः (ज) अवाप्य (झ) लब्धम् (ब) अवेक्ष्य।
उत्तरम्:
(क) अर्थी = अर्थ + इनि > इन् (पुंल्लिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)
(ख) मृण्मयम् = मृत् + मयट् (नपुं०, प्रथमा-एकवचनम्)
(ग) शासितुः = √शास् + तृच् (पुंल्लिङ्गम् षष्ठी-एकवचनम्)
(घ) अवशिष्टः = अव + √शास् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ङ) उक्त्वा = √वच् + क्त्वा (अव्ययपदम्)
(च) प्रस्तुतम् = प्र + √स्तु + क्त (नपुं०, प्रथमा-एकवचनम्)
(छ) उक्तः = √वच् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ज) अवाप्य = अव + √आप् + ल्यप् (अव्ययपदम्)
(झ) लब्धम् = √लभ् + क्त (नपुं, प्रथमा-एकवचनम्)
(ब) अवेक्ष्य = अव + √ईक्ष् + ल्यप् (अव्ययपदम्)

8. विभक्ति-लिङ्ग-वचनादिनिर्देशपूर्वकं पदपरिचयं कुरुत
(क) जनस्य (ख) द्वौ (ग) तौ (घ) सुमेरोः (ङ) प्रातः (च) सकाशात् (छ) मे (ज) भूयः (झ) वित्तस्य
(ब) गुरुणा
उत्तरम्:
HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः img-1

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

9. अधोलिखितानां क्रियापदानाम् अन्येषु पुरुषवचनेषु रूपाणि लिखत
(क) अग्रहीत् (ख) दिदेश (ग) अभूत् (घ) जगाद (ङ) उत्सहते (च) अर्दति (छ) याचते (ज) अवोचत्।
उत्तरम्:
HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः img-2

10. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत
(क) नि:शेषम् (ख) असकृत् (ग) उदाराम् (घ) अशुभम् (ङ) समस्तम्
उत्तरम्:
(विलोमपदानि)
(क) नि:शेषम् – शेषम्
(ख) असकृत् – सकृत्
(ग) उदाराम् – अनुदाराम्
(घ) अशुभम् – शुभम्
(ङ) समस्तम् – असमस्तम्

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

11. अधोलिखितानां पदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत
(क) नृपः (ख) अर्थी (ग) भासुरम् (घ) वृष्टिः (ङ) वित्तम् (च) वदान्यः (छ) द्विजराजः (ज) गर्वः
(झ) घनः (ब) वार्तम्
उत्तरम्:
(वाक्यप्रयोगाः)
(क) नृपः (राजा)-नृपः रघुः कौत्साय समस्तं धनम् अयच्छत्।
(ख) अर्थी (याचक:)-कौत्सः गुरुदक्षिणार्थम् अर्थस्य अर्थी आसीत्।
(ग) भासुरम् (भास्वरम्)-रघुः भासुरं सुवर्णराशिं कौत्साय अयच्छत् ।
(घ) वृष्टिः (वर्षा)-रघोः कोषगृहे सुवर्णमयी वृष्टिः अभवत्।
(ङ) वित्तमद् (धनम्)-मुनीनां तपः एव वित्तं भवति।।
(च) वदान्यः (दानी)-रघुः याचकेषु उदारः वदान्यः आसीत्।
(छ) द्विजराजः (चन्द्रमाः)-रात्रौ आकाशे द्विजराजः दीव्यति।
(ज) गर्वः (अहंकारः)-गर्वः उचितः न भवति।।
(झ) घनः (मेघ:)-वर्षौ घनः गर्जति वर्षति च।
(ञ) वार्तम् (कुशलताम्)-राजा प्रजायाः वार्तम् इच्छति।

12. अधोलिखितानाम् (श्लोकानाम्) अन्वयं कुरुत
(क) सः मृण्मये वीतहिरण्मयत्वात् …….. आतिथेयः।
(ख) समाप्तविद्येन मया महर्षिः ……………….. पुरस्तात्।
(ग) स त्वं प्रशस्ते महिते मदीये ………………….. त्वदर्थम्।
उत्तरम्:
उपुर्यक्त तीनों श्लोकों का अन्वय पाठ में देखें।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

13. अधोलिखितेषु प्रयुक्तानाम् अलङ्काराणां निर्देशं कुरुत
(क) ‘यतस्त्वया ज्ञानमशेषमाप्तं लोकेन चैतन्यमिवोष्णरश्मेः’।
(ख) शरीरमात्रेण नरेन्द्र ! तिष्ठना भासि …………… इवावशिष्टः॥
(ग) तं भूपतिर्भासुरहेमराशिं ………………. वज्रभिन्नम्।
उत्तरम्:
(क) उपमा – अलङ्कारः।
(ख) उपमा – अलङ्कारः ।
(ग) अनुप्रासः, उपमा च अलङ्कारौ।

14. अधोलिखितेषु छन्दः निर्दिश्यताम्
(क) तमध्वरे विश्वजिति क्षितीशं ………….. वरतन्तुशिष्यः॥
(ख) गुर्वर्थमर्थी श्रुतपारदृश्वा …… नवावतारः॥
(ग) स त्वं प्रशस्ते महिते …………. त्वदर्थम्॥
उत्तरम्:
(क) उपजातिः छन्दः
(ख) उपजाति: छन्दः
(ग) उपजातिः छन्दः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

15. ‘रघुकौत्ससंवाद’ सरलसंस्कृतभाषया स्वकीयैः वाक्यैः विशदयत
उत्तरम्-रघुः विश्वजिते यज्ञे सर्वस्वदानम् अकरोत्। तदा एव वरतन्तुशिष्यः कौत्सः गुरुदक्षिणार्थं धनं याचितुं रघुम् उपागच्छत् । रघुः मृत्तिकापात्रे अर्घ्यम् आदाय कौत्सं सत्कृतवान्। मृत्तिकापात्रेण कौत्सः ज्ञातवान् यत् रघुः तस्य धनाशां पूरयितुं समर्थः न अस्ति। अत: कौत्सः राज्ञे स्वस्ति कथयित्वा प्रतियातुकामः अभवत्। ‘रघोः द्वारात् याचकः अपूर्णकामः निवृत्तः’ इति परिवादात् भीत: रघुः कौत्सम् अवरुध्य तस्य मनोरथम् अपृच्छत्। कौत्सः सर्वं वृत्तान्तं कथयन् अवदत्

महर्षि-वरतन्तोः अहं चतुदर्श विद्याम् अधीतवान्। ततः अहं तस्मै गुरुदक्षिणायै निवेदितवान्। सः मम गुरुभक्तिम् एव गुरुदक्षिणाम् अमन्यत। मम भूयोभूयः निर्बन्धात् महर्षिः रुष्ट: जातः । सः चतुदर्शविद्यापरिसंख्यया मह्यं चतुर्दशकोटी: सुवर्णमुद्राः उपहर्तुम् आदिदेश। अतः एव अहं धनार्थी सन् भवतः समीपे आगच्छम्।।

रघुः सर्वं वृत्तान्तं श्रुत्वा कौत्साय द्वित्राणि दिनानि अतिथिरूपेण स्थातुं निवेदितवान्। कौत्सः राज्ञः निवेदनं स्वीकृतवान्। याचक-मनोरथं पूरयितुं रघुः प्रातः एव कुबेरम् आक्रमितुम् अचिन्तयत्। आक्रमणभीत: कुबेर: रात्रौ एव रघोः कोषगृहे सुवर्णवृष्टिम् अकरोत्। रघुः उदारभावात् समस्तं सुवर्णराशिं कौत्साय अयच्छत्। परन्तु कौत्सः केवलं चतुर्दशकोटी: मुद्राः एव गृहीत्वा गतवान्। एवम् उदारः रघुः निर्लोभः कौत्सः च द्वौ एव जगति धन्यौ अभवताम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

योग्यताविस्तारः

कालिदासीया काव्यशैली सहृदयानां मनो नितरां रञ्जयति। प्रतिमहाकाव्यं सुललितैः सुमधुरैः प्रसादगुणभरितैः च शब्दसन्दर्भ: मनोहारिणः संवादान् कविः समायोजयति । तत्र हृदयङ्गमाः परिसरसन्निवेशाः आश्रमोपवनादयः, लतागुल्मादयः, शुक-पिक-मयूर-मरन्द-हरिणादयः स्वभावरमणीयाः कविना चित्र्यन्ते। तादृशाः संवादाः कालिदासीयमहाकाव्योः सन्त्यनेको। यथा-रघुवंशे एवं द्वितीयसर्गे सिंह-दिलीपयोः संवादे’
अलं महीपाल तव श्रमेण प्रयुक्तमप्यस्त्रमितो वृथा स्यात् ।
न पादपोन्मूलनशक्तिरंह: शिलोच्चये मूर्च्छति मारुतस्य ॥ रघुवंशम् 2.34
सम्बन्धमाभाषणपूर्वमाहुर्वृत्तः स नौ सङ्गतयोर्वनान्ते ।
तदभूतनाथानुग ! नार्हसि त्वं सम्बन्धिनो मे प्रणयं विहन्तुम् ॥
कालिदासः उपमालङ्कारप्रियः। तस्य सर्वेषु काव्येषु उपमायाः हृदयहारीणि उदाहरणानि लभ्यन्ते। यथा
वन्यवृत्तिरिमां शश्वदात्मानुगमनेन गाम्।
विद्यामभ्यसनेनेव प्रसादयुित मर्हसि॥ रघुवंशम् 1.88

अर्घ्यम् – अय॑म् इति पदेन अतिथिसत्कारार्थं सङ्ग्राह्यं द्रव्यम् अभिधीयते। भारतीयायाम् अतिथिसत्कार परम्परायाम् एतेषां द्रव्याणां नितरां महत्त्वं वर्तते । तानि द्रव्याणि दूरादागतस्य अतिथिजनस्य अध्वश्रमम् अपनेतुं समर्थानि; अत एव तानि अर्घ्यद्रव्येषु स्थानं भजन्ते। अर्घस्य, अय॑स्य वा द्रव्याणि तु – दूर्वा, अक्षतानि, सर्षपाः पुष्पाणि, सुगन्धीनि, चन्दनादिसुगन्धिद्रव्याणि, स्वादु शीतलं जलञ्च। अर्घः अयं वा अतिथीनाम् उपचारार्थम्, आदरार्थं वा विधीयत इति याज्ञवलक्यः प्राह । तद्यथा’दूर्वा सर्षपपुष्पाणां दत्त्वाघ पूर्णमञ्जलिम्’ इति।

विद्या – प्राचीनकाले चतुर्दश विद्याः पाठ्यन्ते स्म। ताः स्मृतिषु उल्लिखिताः सन्ति। तद्यथा
अगानि वेदाश्चत्वारो मीमांसा-न्यायविस्तरः।
पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या येताश्चतुर्दश॥
शिक्षा, व्याकरणं, छन्दः, निरुक्तं, ज्यौतिषं, कल्पः इति षट् वेदाङ्गानि; ऋक्, साम, यजुः, अथर्वण इति चत्वारो वेदाः । वेदार्थविचाराय प्रवृत्तं मीमांसाशास्त्रम्, न्यायविस्तरशब्देन ज्ञायमाना आन्वीक्षिकी, दण्डनीतिः, वार्ता च अष्टादश-पुराणानि; धर्मशास्त्रञ्च चतुर्दश-विद्यासु अन्तर्भवन्ति।

मन्त्रः- मन्त्र इति पदं ‘मत्रि’ (गुप्तभाषणे) धातोः घञ् प्रत्यये कृते निष्पन्नः, ऋषिभिः दृष्टानाम् आनुपूर्वाप्रधानाम् ऋग्यजुस्सामाथाख्यानां सामान्येन बोधकम्। प्रत्येकं वेदे अन्तर्गतानां मन्त्राणां बोधकतया भिन्नाः भिन्नाः शब्दाः प्रयुज्यन्ते। केवलम् ऋङ्मन्त्रणां कृते ‘ऋच’ इति साममन्त्राणां ‘सामानि’ इति, यजुर्मन्त्राणां ‘यजूंषि’ इति अथर्वमन्त्राणां ‘आथर्वा’ इति च संज्ञा। ज्ञानाथकात् ‘मन्’ धातोः अपि मन्त्रशब्दस्य व्युत्पत्तिं प्रदर्शयन्ति। ध्यानावस्थायां मन्त्रान् ऋषयः अपश्यन् इति कारणात् ते ‘मन्त्रद्रष्टार’ इत्युच्यन्ते। सर्वदा मननं कुर्वन्ति, ध्यानमग्ना भवन्ति इति कारणात् ऋषयः मन्त्रकृत इत्यपि उच्यन्ते।

बहुभाषाज्ञानम् -अधोलिखितानाम् अन्यभाषाशब्दानां समानार्थकानि पदानि पाठे अन्वेष्टव्यानि मेजबान (Host) अगवानी (to receive) जिद (insistance)

उत्तरम्- मेजबान (Host) = आतिथेयः।
आगवानी (to receive) = प्रति + उत् + √गम्।
जिद (Insistance) = निर्बन्धः।

विशिष्टवाक्यनिर्माणकौशलम्
‘सूर्ये तपति कथं तमिस्रा’-एतत्सदृशानि वाक्यानि निर्मेयानि
1. सूर्ये अस्तम् ………………. (गम्) चन्द्र उदेति।
2. मयि मार्गे ……………….. (स्था) यानम् आगतम् ।
3. तस्मिन् …………………. (प्रच्छ्) अहम् उत्तरम् अयच्छम्।
उत्तरम्:
1. सूर्ये अस्तं गते चन्द्र उदेति।
2. मयि मार्गे स्थिते यानम् आगतम्।
3. तस्मिन् पृष्टे अहम् उत्तरम् अयच्छम्।

अनेकार्थकशब्दः – पाठ्यांशे दृष्टानाम् अनेकार्थकशब्दानां सङ्ग्रहं कृत्वा नाना अर्थान् उल्लिखत।
काव्यसौन्दर्यबोधः – कालिदासस्य अन्येषु काव्येषु – ऋतुसंहार-मेघदूतयोः, मालविकाग्निमित्र विक्रमोर्वशीयाभिज्ञानशाकुन्तलेषु कुमारसम्भवे च भवद्भिः अवलोकिताः अलङ्कारैः सुशोभिताः श्लोकाः सङ्ग्राह्याः, काव्यसौन्दर्यं च समुपस्थापनीयम्।
चित्रलेखनम् – कालिदासकृतं प्रकृतिचित्रणम्, आश्रमचित्रणं, वृक्षादीनां पशुपक्षिणां च चित्रणं श्लोकोल्लेखनपूर्वकं फलकेषु पत्रेषु वा वर्णैः लेपनीयम्।

HBSE 9th Class Sanskrit रघुकौत्ससंवादः Important Questions and Answers

I. समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) रघुवंशस्य रचयिता कः ?
(A) भासः
(B) कालिदासः
(C) माघः
(D) अश्वघोषः

(ii) कौत्सः कस्य शिष्यः आसीत् ?
(A) रघोः
(B) महर्षेः
(C) महर्षिवरतन्तोः
(D) वसिष्ठस्य।

(ii) रघुः कम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म ?
(A) विश्वजित्-नामकम्
(B) पुत्रीयेष्टि-नामकम्
(C) पौर्णमास-नामकम्
(D) पाक्षिकम्।

(iv) मन्त्रकृताम् अग्रणीः कः आसीत् ?
(A) रघुः
(B) दिलीपः
(C) रामः
(D) वरतन्तुः

(v) कस्मात् अर्थं निष्क्रष्टुम् रघुः चकमे ?
(A) कृष्णात्
(B) इन्द्रात्
(C) कुबेरात्
(D) शिवात्।

(vi) हिरण्मयीं वृष्टिं के शशंसुः ?
(A) अधिकारिणः
(B) मित्राणि
(C) याचकाः
(D) प्रजाः।

(vii) कौ अभिनन्धसत्वौ अभूताम् ?
(A) गुरुशिष्यौ
(B) वरतन्तुकौत्सौ
(C) रघुकौत्सौ
(D) रघुवरतन्तू।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितम् पदं चित्त्वा लिखत
(i) मा भूत् परीवादनवावतारः।
(A) कस्य
(B) कस्मात्
(C) कस्मिन्
(D) कस्याम्।
उत्तरम्:
(A),कस्य

(ii) दिदेश कौत्साय समस्तमेव।
(A) कः
(B) कस्मिन्
(C) कस्मै
(D) कम्।
उत्तराणि:
(C) कस्मै

(ii) कौत्सः वरतन्तोः शिष्यः आसीत्।
(A) कम्
(B) कस्मै
(C) कस्मात्
(D) कस्य।
उत्तराणि:
(D) कस्य

(iv) रघुः विश्वजितम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म।
(A) कः
(B) कम्
(C) कस्मै
(D) कस्याः ।
उत्तराणि:
(B) कम्

(v) वरतन्तुः मन्त्रकृताम् अग्रणीः आसीत्।
(A) केषाम्
(B) कस्य
(C) कस्मिन्
(D) कस्याः ।
उत्तराणि:
(A) केषाम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

रघुकौत्ससंवादः पाठ्यांशः

1 .तमध्वरे विश्वजिति क्षितीशं
निःशेषविश्राणितकोषजातम्।
उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी
कौत्सः प्रपेदे वरतन्तुशिष्यः॥ 1 ॥

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः img-3
अन्वयः- विश्वजिति अध्वरे नि:शेषविश्राणितकोशजातं तं क्षितीशं (रघुम्) उपात्तविद्यः वरतन्तुशिष्यः कौत्सः गुरुदक्षिणार्थी प्रपेदे।

प्रसंगः-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित किया गया है। इस पाठ में ऋषि वरतन्तु के शिष्य कौत्स तथा महाराजा रघु के बीच हुए संवाद को वर्णित किया गया है। (पूरे पाठ में इसी प्रसंग का प्रयोग किया जा सकता है)।

सरलार्थ:–‘विश्वजित्’ नामक यज्ञ में अपनी सम्पूर्ण धनराशि दान कर चुके उस राजा रघु के पास वरतन्तु ऋषि का विद्यासम्पन्न शिष्य कौत्स गुरुदक्षिणा देने की इच्छा से धनयाचना करने के लिए पहुँचा।।

भावार्थ:-प्राचीन काल में राजा लोग ‘विश्वजित्’ यज्ञ करते थे। राजा रघु ने भी यह यज्ञ किया और अपना सम्पूर्ण खजाना (राजकोष-धनधान्य) दान कर दिया। तभी वरतन्तु का शिष्य कौत्स भी राजा के पास इस आशा में पहुँचा कि वह अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में देने के लिए चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ राजा रघु से माँग लेगा।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च विश्वजिति अध्वरे = विश्वजित् नामक यज्ञ में। कोषजातम् = धनसमूह, सम्पूर्ण धनराशि। विश्राणितम् = प्रदत्तम्; दान में दिया हुआ। वि + √श्रणु (दाने) + क्त; दत्तम् । उपात्तविद्यः = विद्या को प्राप्त किया हुआ, विद्यासम्पन्न। उपात्ता विद्या येन सः (बहुव्रीहि)। गुरुदक्षिणार्थी = गुरुदक्षिणा देने की इच्छा से प्रार्थना करने वाला। गुरुदक्षिणायै अर्थी (चतुर्थी-तत्पुरुष) प्रपेदे = पहुँचा। प्र + √पद् (गतौ) + लिट् + प्रथम पुरुष एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

2. स मृण्मये वीतहिरण्मयत्वात्
पात्रे निधायार्थ्यमनर्घशीलः।
श्रुतप्रकाशं यशसा प्रकाशः
प्रत्युजगामातिथिमातिथेयः॥ 2॥

अन्वयः-सः अनर्घशीलः, यशसा प्रकाशः, आतिथेयः, वीतहिरण्मयत्वात् मृण्मये पात्रे अर्घ्यं निधाय श्रुतप्रकाशम् अतिथिं (कौत्सम्) प्रति उज्जगाम।

सरलार्थः-वह प्रशंसनीय स्वभाव वाला, यश से प्रकाशवान, अतिथि सत्कार करने वाला राजा रघु सुवर्ण-निर्मित पात्र न रहने से मिट्टी के बने हुए पात्र में अर्घ्य अर्थात् सत्कार के लिए जल आदि लेकर वेदज्ञान से प्रकाशमान अतिथि कौत्स के पास उठकर गया।

भावार्थ:-विश्वजित् यज्ञ में सम्पूर्ण धन-कोष दान कर देने के कारण राजा रघु निर्धन हो चुका था। अब उसके पास सोने के बर्तन नहीं थे। परन्तु अतिथि का सत्कार तो प्रत्येक दशा में करना ही चाहिए। इसी भाव से रघु मिट्टी के पात्र में सत्कार-सामग्री रखकर, अपने आसन से उठकर याचक ब्रह्मचारी कौत्स के पास पहुंचे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
मृण्मये= मिट्टी के बने हुए। मृत् + मयट्। वीतहिरण्मयत्वात् = सोने के बने हुए पात्रों के न रहने से। हिरण्यस्य विकारः = हिरण्मयम्। वि + √इण् + क्त = वीतम्। निधाय = रखकर । संस्थाप्य। नि + √धा + ल्यप् । अर्घ्यम् = अर्घ निमित्तक द्रव्य। अर्घार्थम् योग्यम् इदं द्रव्यम् अर्घ + यत्। अनर्धशीलः = असाधारण आचारवान्, प्रशंसनीय स्वभाववाला। अमूल्यस्वभावः, असाधारण-स्वभावो वा। नञ् + अर्घः = अनर्घः = अमूल्यम्। श्रुतप्रकाशं = वेदादि शास्त्रों के अध्ययन से प्रसिद्ध। श्रुतम् = शास्त्रम्। श्रुतेन प्रकाशः। यस्मिन् तम् (बहुव्रीहि)। श्रुतम् = वेदादि शास्त्र। श्रूयते इति श्रुतम्-वेदादिशास्त्रम्। √श्रु + क्त। प्रत्युजगाम = पास उठकर गया। प्रति + उत् + गम् + लिट् । प्रथमपुरुष एकवचन। आतिथेयः = अतिथि सत्कार करने वाला, मेजबान (Host) अतिथये साधुः । अतिथि + ढञ्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

3. तमर्चयित्वा विधिवद्विधिज्ञः
तपोधनं मानधनाग्रयायी।
विशांपतिर्विष्टरभाजमारात्
कृताञ्जलिः कृत्यविदित्युवाच॥ ३॥

अन्वयः-विधिज्ञः मानधनाग्रयायी कृत्यवित् विशांपतिः विष्टरभाजं तं तपोधनं विधिवत् अर्चयित्वा आरात् कृताञ्जलिः सन् इति उवाच।।

सरलार्थः-शास्त्रविधि को जानने वाले, स्वाभिमान को ही धन मानने वालों में अग्रगण्य, अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को समझने वाले, प्रजा के स्वामी राजा रघु ने आसन पर विराजमान उस तपस्वी कौत्स का विधिपूर्वक सत्कार करके निकट ही हाथ जोड़े हुए (रघु ने) इस प्रकार कहा

भावार्थ:-स्वाभिमानी राजा रघु ने तपस्वी कौत्स का पूजन करके आदरपूर्वक हाथ जोड़कर अगले पद्यों में कहे जाने वाले वचन कहे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अर्चयित्वा = पूजन करके, सत्कार करके। √अर्च् (पूजायाम्) + णिच् + क्त्वा। स्वार्थे णिच्। विधिवत् = शास्त्रोक्त नियमों के अनुरूप। यथाशास्त्रम्। विधि + वत्। विधिज्ञः = शास्त्रज्ञ । शास्त्र नियमों के वेत्ता। तपोधनम् = ऋषि को। रघुकौत्ससंवादः जिसका तप ही धन है। तपः धनं यस्य (बहुब्रीहि समास)। मानधनाग्रयायी = आत्म गौरव को ही धन मानने वालों में अग्रगण्य/अग्रेसर। विशाम्पतिः = राजा। विश् = प्रजा। पति = स्वामी। विशां पतिः (अलुक्-षष्ठी तत्पुरुष) विष्टरभाजाम् = आसन पर/पीठ पर बैठे हुए। विष्टरम् = आसनम् अथवा पीठम्। आरात् = समीप में। दूर और समीप दोनों अर्थों में ‘आरात्’ पद का प्रयोग होता है। अव्यय। कृत्यवित्= अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को समझने वाला। √कृ + यत् + √विद् + क्विप्। उवाच = √वच् (परिभाषणे) लिट्, प्रथम पुरुष, एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

4. अप्यग्रणीमन्त्रकृतामृषीणां
कुशाग्रबुद्धे कुशली गुरुस्ते।
यतस्त्वया ज्ञानमशेषमाप्तं
लोकेन चैतन्यमिवोष्णरश्मेः॥ 4॥

अन्वयः-(हे) कुशाग्रबुद्धे ! अपि मन्त्रकृताम् ऋषीणाम् अग्रणीः ते गुरुः कुशली ? यतः त्वया अशेषं ज्ञानं लोकेन उष्णरश्मेः चैतन्यम् इव आप्तम्।

सरलार्थ:-राजा रघु ने कौत्स से विनयपूर्वक कहा-हे तीव्रबुद्धि ! क्या मन्त्रद्रष्टा ऋषियों में अग्रगण्य आपके गुरु कुशलपूर्वक हैं ? क्योंकि आपने समस्त ज्ञान अपने गुरु से उसी प्रकार प्राप्त किया है, जिस प्रकार संसार के समस्त लोग उष्णरश्मि (= सूर्य) से जागृति प्राप्त करते हैं।

भावार्थ:-वरतन्तु मन्त्रद्रष्टा श्रेष्ठ ऋषि हैं। राजा रघु उनके शिष्य से ऋषिश्रेष्ठ का कुशल समाचार पूछकर सज्जनोचित शिष्टाचार प्रकट कर रहे हैं। जैसे सूर्य से लोग ऊर्जा प्राप्तकर चेतनावान् हो जाते हैं, इसी प्रकार कौत्स वरतन्तु से समस्त 14 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर विद्यावान् हुआ है।

विशेष:-यहाँ उपमा अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
मन्त्रकृताम्= मन्त्रद्रष्टाओं में। मनन करने वालों में। चिन्तन करने वालों में। कृ-धातु का प्रथम अर्थ ‘दर्शन करना’ है न कि निर्माण करना। ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः । कुशाग्रबुद्धे = हे सूक्ष्मदर्शी ! कुशस्य अग्र कुशाग्रं कुशाग्रमिव बुद्धिर्यस्य सः कुशाग्रीयम्। तत्सम्बोधनम्। कुश एक विशेष प्रकार की तीखी नोंक वाली घास होती है जिसका उपयोग यज्ञ-यागादि में किया जाता है। अशेषम् = सम्पूर्ण। अविद्यमानः शेषः यस्मिन् तत्। न + शेषम्। शेष न रहने तक। लोकेन = लोगों से। समूहवाचीपद। उष्णरश्मिः =सूर्य। उष्णः रश्मिः यस्य सः। बहुव्रीहि समास। आप्तम् = प्राप्त किया गया। आप्लु (व्याप्तौ) + क्त।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

5. तवाहतो नाभिगमेन तृप्तं मनो नियोगक्रिययोत्सुकं मे।
अप्याज्ञया शासितुरात्मना वाप्राप्तोऽसि सम्भावयितुं वनान्माम् ॥5॥

अन्वयः-अर्हतः तव अभिगमनेन नियोगक्रियया उत्सुकं मे मनः न तृप्तम् अपि शासितुः आज्ञया आत्मना वा मां संभावयितुं वनात् प्राप्तः असि ?

सरलार्थ:-राजा रघु ने कौत्स से पुन: कहा-“आप पूजनीय के आगमन से आज्ञापालन के लिए उत्सुक मेरा मन सन्तुष्ट/प्रसन्न हो गया है। क्या आप गुरु की आज्ञा से अथवा अपने-आप से ही मुझ पर कृपा करने के लिए वन (आश्रम) से यहाँ पधारे हैं ?”

भावार्थ:-राजा रघु स्वभाव से विनम्र एवं शिष्टाचार में निपुण हैं। वे तपस्वियों की याचना को भी अपने ऊपर तपस्वियों की कृपा ही मानते हैं। रघु के पूछने का तात्पर्य है कि वह अपने गुरुदेव के प्रयोजन से मेरे पास आया है अथवा उसका कोई अपना ही व्यक्तिगत प्रयोजन है ?

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अर्हतः = प्रशंसा के योग्य का। √अर्ह (पूजायाम्) + शत, षष्ठी एकवचन। अहूं-धातु से ‘प्रशंसा’ के अर्थ में ही शतृ प्रत्यय होता है। अभिगमेन = आगमन से। तृप्तम् = सन्तुष्ट। √तृप् (प्रीणने) + क्त। नियोगक्रियया = आज्ञा से। उत्सुकम् = उत्कण्ठित। सम्भावयितुम् = कृतार्थ करने के लिए। सम् + √भू + णिच् + तुमुन्।

6. इत्यर्घ्यपात्रानुमितव्ययस्य
रघोरुदारामपि गां निशम्य।
स्वार्थोपपत्तिं प्रति दुर्बलाशः
तमित्यवोचद्वरतन्तुशिष्यः॥6॥

अन्वयः-अर्घ्यपात्रेण अनुमितव्ययस्य रघोः इति उदारां गाम् अपि निशम्य वरतन्तुशिष्यः स्वाथोपपत्तिं प्रति दुर्बलाशः तम् इति अवोचत्।

सरलार्थ:-अर्घ्यपात्र मिट्टी का बना हुआ होने से जिसके खर्च करने की सामर्थ्य का अनुमान किया जा सकता है, ऐसे उस राजा रघु की इस उदारतापूर्ण वाणी को सुनकर भी वरतन्तु के शिष्य कौत्स ने अपने कार्य की सिद्धि के प्रति हताश होते हुए राजा रघु से ये वचन कहे

भावार्थ:-राजा रघु विश्वजित् यज्ञ में अपना सम्पूर्ण धन दान कर चुके हैं, अत: कौत्स का सत्कार करने के लिए आज उनके पास सोने का पात्र नहीं है; अपितु मिट्टी का पात्र है। इस मिट्टी के बर्तन से ही अब रघु की दान शक्ति का परिचय मिल जाता है। कौत्स को अपने उद्देश्य की सिद्धि पूर्ण होती हुई प्रतीत नहीं होती, इसीलिए वह हताश होकर अगले पद्यों में कहे गए वचन राजा रघु के सामने निवेदन करता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अर्घ्यपात्रानुमितव्ययस्य = (मृण्मय) अर्घ्यपात्र से ही जिसके सम्पूर्ण धन के व्यय हो जाने का पता लगता है, उसका। अर्घ्यस्य पात्रम् अर्घ्यपात्रेण अनुमितः व्ययः यस्य सः, तस्य = रघोः। गाम् = वाणी को। ‘गो’ शब्द अनेकार्थक है, इस स्थान पर वाणी का वाचक है। निशम्य = सुनकर। नि + √शम् + ल्यप् । स्वार्थोपपत्तिम् = अपने प्रयोजन (कार्य) की सिद्धि को। यहाँ अर्थ शब्द प्रयोजन वाचक है। दुर्बलाशः = निराश होते हुए; शिथिल मनोरथ होते हुए दुर्बला आशा यस्य सः (बहुव्रीहि) अवोचत् = बोला। √वच् + (परिभाषणे) लङ् प्रथमपुरुष, एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

7. सर्वत्र नो वार्तमवेहि राजन् !
नाथे कुतस्त्वय्यशुभं प्रजानाम्।
सूर्ये तपत्यावरणाय दृष्टे:
कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्त्रा॥7॥

अन्वयः-(हे) राजन् ! सर्वत्र नः वार्तम् अवेहि। त्वयि नाथे प्रजानाम् अशुभं कुतः ? सूर्ये तपति तमिस्रा लोकस्य दृष्टेः आवरणाय कथं कल्पेत ? .

सरलार्थ:-वरतन्तु के शिष्य कौत्स ने राजा रघु को सम्बोधन करते हुए कहा-हे राजन् ! आप तो सभी जगह हमारी कुशलता को जानते ही हैं। आप के राजा होते हुए प्रजाओं का अशुभ कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं। सूर्य के प्रकाशमान होने पर अंधकार समूह (कृष्ण पक्ष की रात्री) संसार के लोगों की दृष्टि को ढकने में कैसे समर्थ हो सकता

भावार्थ:-कौत्स राजा रघु के राजा होने पर सन्तुष्ट है और राजा के समक्ष वह स्पष्ट कर रहा है कि उनके राजा रहते हुए उनके शासन में किसी भी प्रकार के अनिष्ट की कल्पना नहीं की जा सकती। समस्त प्रजा का केवल कल्याण ही होता है। सूर्य के रहते हुए अंधकार कैसे ठहर सकता है?

विशेषः-प्रस्तुत पद्य में पहले वाक्य की कही गई बात को दूसरे वाक्य की बात से पुष्ट किया गया है। अत: यहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
वार्तम् = कुशलता, नीरोगता। ‘वार्तम् , स्वास्थ्यम्, आरोग्यम्, अनामयम्’ इति पर्यायपदानि। अवेहि = जानो। अव + इहि । √इण् गतौ, लोट् मध्यमपुरुष एकवचन । सूर्ये तपति (सति) = सूर्य के प्रकाशमान होने पर। सती सप्तमी प्रयोग। तपति – √तप् + शतृ सप्तमी विभक्ति एकवचन (पुंल्लिंग) कथं कल्पेत = कैसे पर्याप्त होगा। (समर्थ नहीं होगा)। √क्लुप् (सामर्थ्य) विधिलिङ्, प्रथम पुरुष एकवचन। तमिस्रा = अन्धकार समूह, कृष्णपक्ष की रात्री ‘तमिस्रा तु तमस्ततौ’।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

8. शरीरमात्रेण नरेन्द्र तिष्ठन्
आभासि तीर्थप्रतिपादितर्द्धिः।
आरण्यकोपात्तफलप्रसूतिः
स्तम्बेन नीवार इवावशिष्टः॥ 8॥

अन्वयः-(हे) नरेन्द्र ! तीर्थे प्रतिपादितार्द्धिः अपि शरीरमात्रेण तिष्ठन् आरण्यकोपात्त-फलप्रसूतिः स्तम्बेन अवशिष्टः नीवारः इव आभासि।

सरलार्थ:-वरतन्तु के शिष्य कौत्स ने राजा रघु से कहा-हे राजन् ! सत्पात्रों को अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति दान. में देने वाले आप केवल शरीर से उसी प्रकार सुशोभित हो रहे हैं जैसे वनों में रहने वाले मुनि लोगों को अपने फल प्रदान कर देने वाले नीवार के पौधे डंठल मात्र से शेष रहकर सुशोभित होते हैं।

भावार्थ:-रघु सर्वस्व दान कर देने के पश्चात् भी सुशोभित हो रहे हैं, क्योंकि उन्होंने यह दान सदाचारी याचकों को दिया है। कवि कालिदास ने धन-सम्पत्ति से रहित होने के कारण शरीर मात्र से विद्यमान रघु को उसी प्रकार सुशोभित बताया है जिस प्रकार मुनियों द्वारा नीवार-अन्न (साँवकी) ग्रहण कर लेने पर नीवार का पौधा डंठल मात्र रहकर सुशोभित होता है।

विशेषः- यहाँ उपमा अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च शरीरमात्रेण = केवल शरीर से। केवलं शरीरं शरीरमात्रम्। मात्रच् प्रत्यय। आभासि = सुशोभित हो रहे हो। आ + √भा (दीप्तौ) लट्लकार मध्यम पुरुष एकवचन। तीर्थप्रतिपादितार्द्धिः = सत्पात्रों को सारी सम्पत्ति दान करने वाले। तीर्थ-सत्पात्रे प्रतिपादिता-दत्ता ऋद्धिः-समृद्धिः (सम्पत्) येन सः। आरण्यकाः = अरण्य में निवास करने वाले मुनिजन आदि। अरण्ये भवाः आरण्यकाः । स्तम्बेन = डाँठ (डंठल) मात्र से। तृतीया विभक्ति एकवचन। नीवारः =धान्य विशेष। जंगल में स्वतः उत्पन्न हुआ धान्य विशेष।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

9. तदन्यतस्तावदनन्यकार्यों
गुर्वर्थमाहर्तुमहं यतिष्ये।
स्वस्त्यस्तु ते निर्गलिताम्बुगर्भ
शरद्घनं नार्दति चातकोऽपि ॥ १॥

अन्वयः-तत् तावत् अनन्यकार्यः अहम् अन्यतः गुर्वर्थम् आहर्तुं यतिष्ये। ते स्वस्ति। चातकः अपि निर्गलिताम्बुगर्भ शरद्-घनं न अर्दति।

सरलार्थ:-कौत्स राजा रघु से कह रहा है-(क्योंकि आप पहले ही सब कुछ दान कर चुके हैं। इसीलिए (धन याचना के अतिरिक्त मेरा) कोई अन्य प्रयोजन न होने से मैं किसी दूसरे राजा के पास गुरुचरणों में दक्षिणा रूप में देने के लिए धन-याचना करने का प्रयास करूंगा। आपका कल्याण हो। जल वर्षा कर देने से रिक्त हुए शरद् ऋतु के बादलों से तो चातक भी जल की याचना नहीं करता।

भावार्थ:-जिसके पास जो वस्तु हो, उससे वही वस्तु माँगनी चाहिए। कौत्स को धन की आवश्यकता है। राजा रघु पहले ही सम्पूर्ण धन का दान कर चुके हैं। कौत्स का धन याचना के अतिरिक्त कोई अन्य प्रयोजन भी नहीं है। अतः वह राजा रघु से कह रहा है कि मैं गुरुदक्षिणा के लिए धन प्राप्त करने हेतु किसी अन्य राजा से निवेदन करूँगा क्योंकि जल रहित बादलों से तो चातक पक्षी भी याचना नहीं करता। विशेष:-पहले वाक्यार्थ की पुष्टि दूसरे वाक्यार्थ से हो रही है। अतः यहाँ ‘अर्थान्तरन्यास’ अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अनन्यकार्यः = जिसे निर्दिष्ट उद्देश्य के अतिरिक्त अन्य कार्य न हो। प्रयोजनान्तर-रहितः । न विद्यते अन्यकार्यं यस्य, सः (बहुव्रीहि समास) अन्यच्च तत् कार्यञ्च अन्यकार्यम् (कर्मधारय समास) आहर्तुम् = ग्रहण करने के लिए आ + √ह (हरणे) + तुम्। यतिष्ये = प्रयत्न करूँगा। √यती (प्रयत्ने) + लृट् उत्तम पुरुष बहुवचन। निर्गलिताम्बुगर्भ = जिसके गर्भ से जल निकल चुका हो। अम्ब्वेव गर्भः अम्बुगर्भः । निर्गलितः अम्बुगर्भः यस्मात् सः। शरधनम् = शरत्कालिक मेघ । नार्दति =याचना नहीं करता है। न + अर्दति। √अर्दु (गतौ याचने च) लट्लकारप्रथम पुरुष एकवचन। चातकः = पपीहा (पक्षी-विशेष) चातक पक्षी।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

10. एतावदुक्त्वा प्रतियातुकामं
शिष्यं महर्षेर्नृपतिर्निषिध्य।
किं वस्तु विद्वन् ! गुरवे प्रदेयं
त्वया कियद्वेति तमन्वयुक्तं ॥ 10॥

अन्वयः – एतावद् उक्त्वा प्रतियातुकामं महर्षेः शिष्यं नृपतिः (रघुः) निषिध्य-“(हे) विद्वन् ! त्वया गुरवे प्रदेयं वस्तु किम्, कियत् वा” इति तम् अन्वयुक्त।

सरलार्थः-उपर्युक्त वचन कहकर जब महर्षि वरन्तु का शिष्य वापस लौटने लगा तब महाराज रघु ने उसे रोक कर इस प्रकार पूछा- “हे विद्वान् ! अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में देने के लिए क्या वस्तु चाहिए और कितनी चाहिए ?”

भावार्थ:-कौत्स अपनी धन याचना पूर्ण न होते हुए देखकर वापस लौट जाना चाहता है। रघु उसे रोकते हैं क्योंकि महाराज रघु एक स्वाभिमानी राजा हैं और किसी याचक का खाली हाथ लौट जाना रघु को स्वीकार नहीं है। इसीलिए वे कौत्स से पूछते हैं कि उसे गुरुदक्षिणा में देने के लिए कितने परिमाण में किस वस्तु की आवश्यकता

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
प्रतियातुकामम् = लौट जाने की इच्छा वाले को। प्रतियातुं कामः यस्य सः तम्। प्रति = √या (प्रापणे) + तुम्। ‘तुंकाममनसोरपि’ इस नियम से ‘तुम्’ प्रत्यय के मकार का लोप होता है। निषिध्य = निवारण कर। निवार्य। नि + √षिध् (गत्याम्) + ल्यप्। प्रदेयम् = देने योग्य। प्र + √दा (दाने) + यत्। कियत् = कितना ? किं परिमाणम् ? अन्वयुक्त = पूछा। अनु + (युज् + लङ् प्रथम पुरुष एकवचन। अयुक्त, अयुजाताम्, अयुञ्जत।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

11. ततो यथावद्विहिताध्वराय
तस्मै स्मयावेशविवर्जिताय।
वर्णाश्रमाणां गुरवे स वर्णी
विचक्षणः प्रस्तुतमाचचक्षे॥ 11 ॥

अन्वयः-ततः यथावत् विहिताध्वराय स्मयावेशविर्जिताय वर्णाश्रमाणां गुरवे तस्मै स: विचक्षणः वर्णी प्रस्तुतम् आचचक्षे।

सरलार्थ:-राजा रघु के पूछने पर विधिपूर्वक यज्ञ अनुष्ठान कर लेने वाले अभिमान से शून्य ब्राह्मण आदि वर्गों तथा ब्रह्मचर्य आदि आश्रमों के व्यवस्थापक उस राजा रघु को वरतन्तु के शिष्य कौत्स ने अपना उद्देश्य कहा।

भावार्थ:-राजा रघु धर्मवृत्ति हैं, उनमें नाममात्र को भी अभिमान नहीं है। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों; ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास इन चारों आश्रमों पर नियन्त्रण करने वाले हैं। ऐसे प्रजापालक राजा के पूछने पर कौत्स ने अपना मनोरथ राजा के सामने प्रकट किया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
यथावत् = विधिवत् शास्त्रों के नियमानुरूप। स्मयावेशविवर्जिताय = जो गर्व के आवेश से वर्जित हो, अभिमानशून्य, गर्वाभिनिवेशशून्याय। स्मयः = गर्वः। वर्णी = ब्रह्मचारी। वर्ण + इन्। (पुंल्लिंग, प्रथमा-एकवचन) आचचक्षे = कहने लगा था। आ + √चिक्षिङ् (व्यक्तायां वाचि) लिट् प्रथमपुरुष एकवचन। गुरवे = नियामक व्यवस्थापक को। प्रजानां नियामकाय।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

12. समाप्तविद्येन मया महर्षिर्
विज्ञापितोऽभूद्गुरुदक्षिणायै।
स मे चिरायास्खलितोपचारां
तां भक्तिमेवागणयत्पुरस्तात्॥ 12 ॥

अन्वयः-समाप्तविद्येन मया महर्षिः गुरुदक्षिणायै विज्ञापितः अभूत्। स चिराय अस्खलितोपचारां तां मे भक्तिम् एव पुरस्तात् अगणयत्।

सरलार्थः-कौत्स ने राजा रघु को सारा वृत्तान्त समझाते हुए कहा कि जब मैंने विद्या समाप्त कर ली तो महर्षि वरतन्तु से मैंने गुरु दक्षिणा स्वीकार कर लेने के लिए प्रार्थना की। उन आदरणीय गुरु जी ने पहले तो मेरी पूर्ण निष्ठापूर्वक की गई उस भक्ति को ही बहुत दिनों तक गुरुदक्षिणा रूप में समझा (जो विद्या अध्ययन करते समय मैंने निष्ठापूर्वक गुरु सेवा की थी)।

भावार्थ:-महर्षि वरतन्तु सच्चे गुरु थे, उन्हें धन की कोई इच्छा नहीं थी। इसीलिए वे कौत्स के सेवाभाव को ही बहुत दिनों तक गुरु दक्षिणा के रूप में मानते रहे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
गुरुदक्षिणायै = गुरुदक्षिणा स्वीकार करने हेतु। चिराय = चिरकाल से (बहुत वर्षों से/बहुत दिनों से)। यह एक अव्यय है जिसके अन्त में नाना विभक्तियों के रूप दिखाई पड़ते हैं। जैसे चिरम्, चिरात्, चिरस्य। ये सभी समानार्थक हैं। अगणयत् = गिन लिया। √गिण (संख्याने) + णिच् + लङ्। चुरादिगण। पुरस्तात् = सब से पहले। अव्यय।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

13. निर्बन्धसञ्जातरुषार्थकार्य
मचिन्तयित्वा गुरुणाहमुक्तः
वित्तस्य विद्यापरिसंख्यया मे
कोटीश्चतस्रो दश चाहरेति ॥ 13 ॥

अन्वयः-निर्बन्धसञ्जातरुषा अर्थकार्यम् अचिन्तयित्वा अहं वित्तस्य चतस्रः दश च कोटीः आहर इति विद्यापरिसंख्यया उक्तः।

सरलार्थः-कौत्स महाराज रघु से शेष वृत्तान्त निवेदन करते हुए कहता है-“मेरे बार-बार प्रार्थना (जिद्द) करने से क्रोधित हुए गुरु जी ने मेरी निर्धनता का विचार किए बिना मुझे कहा कि चौदह विद्याओं की संख्या के अनुसार तुम चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ ले आओ।” ।

भावार्थ:-गुरुदेव वरतन्तु को न धन का लोभ था, न विद्या का अभिमान । परन्तु शिष्य कौत्स की बार-बार जिद्द ने उन्हें क्रोधित कर दिया और उन्होंने कौत्स को पढ़ाई गई चौदह विद्याओं के प्रतिफल में चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा में समर्पित करने का आदेश दे दिया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
निर्बन्धेन = बार-बार किए जाने से। प्रार्थनातिशयेन। अर्थकाय॑म् = अर्थसंकट, दारिद्रय। अचिन्तयित्वा = बिना सोचे। नञ् + √चिती (संज्ञाने) + णिच् + त्वा। विद्यापरिसङ्ख्यया = विद्या की गणना (संख्या) के अनुसार। आहर = लाओ। आ + √हृ + लोट्। मध्यम पुरुष एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

14. इत्थं द्विजेन द्विजराजकान्ति
रावेदितो वेदविदां वरेण।
एनोनिवृत्तेन्द्रियवृत्तिरेनं
जगाद भूयो जगदेकनाथः ॥ 14 ॥

अन्वयः-द्विजराजकान्तिः एनोनिवृत्तेन्द्रियवृत्तिः जगदेकनाथ: वेदविदां वरेण द्विजेन इत्थम् आवेदितः एनं भूयः जगाद।

सरलार्थः-वेद विद्या को जानने वालों में श्रेष्ठ उस ब्राह्मण कौत्स के द्वारा इस प्रकार निवेदन किए गए, चन्द्रमा के समान कान्ति वाले, जितेन्द्रिय, संसार के पालन करने वाले उस राजा रघु ने याचक कौत्स को फिर कहा-

भावार्थ:-राजा रघु ने कौत्स द्वारा कहे गए सम्पूर्ण घटनाक्रम को सुनकर अगले पद्य में कहे जाने वाले वचन कौत्स से कहे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
द्विजराजकान्तिः = चन्द्रमा के समान कान्ति वाले। द्विजराजः (चन्द्रमाः) इव कान्ति यस्य सः (बहुव्रीहि समास) वेदविदाम् वरेण = वेदविद्या को जानने वालों में श्रेष्ठ। वेदं वेत्ति जानाति इति वेदवित् तेषाम्। एनोनिवृत्तेन्द्रियवृत्तिः = जितेन्द्रिय। पापों से निवृत्त इन्द्रियवृत्ति वाले। एनः = पाप, अपराध। जगाद = कहा √गिद् (व्यक्तायां वाचि) + लिट। प्रथमपुरुष एकवचन।

15. गुर्वर्थमर्थी श्रुतपारदृश्वा
रघोः सकाशादनवाप्य कामम्।
गतो वदान्यान्तरमित्ययं मे
मा भूत्परीवादनवावतारः ॥ 15 ॥

अन्वयः-श्रुतपारदृश्वा गुर्वर्थम् अर्थी रघोः सकाशात् कामम् अनवाप्य वदान्यान्तरं गतः इति अयं परीवादनवावतारः मे मा भूत्।

सरलार्थ:–राजा रघु ने कौत्स से कहा कि आप शास्त्रों को जानने वाले हैं तथा गुरुदक्षिणा देने के लिए धन याचना करने वाले है आप रघु के पास से अपना मनोरथ पूरा किए बिना किसी दूसरे दानी के पास चले गए-इस प्रकार की निन्दा का नया प्रार्दुभाव न हो जाए।

भावार्थ:-सम्मानित व्यक्तियों के लिए समाज में फैला हुआ अपयश मृत्यु से भी बढ़कर होता है, इसीलिए राजा रघु बिल्कुल नहीं चाहते कि समाज में यह निन्दा फैल जाए कि कोई वेद का विद्वान्, शास्त्रों का ज्ञाता ब्राह्मण अपने गुरु को गुरुदक्षिणा देना चाहता था और इसी उद्देश्य से धन याचना करने के लिए वह राजा रघु के पास आया और खाली हाथ लौट गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
श्रुतपारदृश्वा = शास्त्रज्ञ, शास्त्रमर्मज्ञ। श्रुतस्य पारं दृष्टवान् । श्रुत + पार + √दृश् + क्वनिप्। सकाशात् = पास से। अव्यय। वदान्यान्तरम् = दूसरे दाता। वदान्यः = दानी। अन्यः वदान्यः वदान्यान्तरम्। माभूत् = न होवे। माङ् + अभूत् । √भू + लुङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। परीवादः = निन्दा। ‘परिवाद’ शब्द भी निन्दार्थक है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

16. स त्वं प्रशस्ते महिते मदीये
वसंश्चतुर्थोऽग्निरिवाग्न्यगारे
द्वित्राण्यहान्यहसि सोढुमर्हन्
यावद्यते साधयितुं त्वदर्थम्॥ 16 ॥

अन्वयः-स त्वं मदीये महिते प्रशस्ते अग्न्यगारे चतुर्थः अग्निः इव वसन् द्वित्राणि अहानि सोढुम् अर्हसि। (हे) अर्हन् ! त्वदर्थं साधयितुं यावत् यते।

सरलार्थ:- रघु ने कौत्स से निवेदन किया कि आप मेरी विशाल तथा प्रशंसनीय यज्ञशाला में चतुर्थ अग्नि के समान दो-तीन दिन बिता सकते हैं। हे पूजनीय ब्रह्मचारी! मैं आपके प्रयोजन को सिद्ध के लिए यत्न करूंगा।

भावार्थ:-दक्षिणाग्नि, गार्हपत्याग्नि और आहवनीयाग्नि नाम से यज्ञ की अग्नि तीन प्रकार की होती है, ये तीनों अग्नियाँ याजकों के लिए अति श्रद्धेय होती हैं। रघु कौत्स को चतुर्थ अग्नि की भाँति पूजनीय समझते हैं और उससे निवेदन करते हैं की आप मेरी ही यज्ञशाला में दो-तीन दिन तक प्रतीक्षा करें, जिससे 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का प्रबन्ध किया जा सके।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
वसन् = रहते हुए। वस् (निवासे) + शतृ। प्रथमा विभक्ति, एकवचन। चतुर्थः अग्निः इव = चौथी अग्नि जैसा। दक्षिणाग्नि, गार्हपत्याग्नि और आहवनीयाग्नि नाम से अग्नि के तीन प्रकार हैं। अग्न्यगारे = अग्निशाला में। यज्ञशाला में। अग्नि + अगारे। त्वदर्थं साधयितुं यावद्यते = तुम्हारा प्रयोजन पूरा करने के लिए यत्न करूँगा। तव + अर्थम्, = त्वदर्थम् यावत् = यते। ‘यतिष्ये’ इस अर्थ में ‘यते’ का प्रयोग। यती (प्रयत्ने) + लट्, आत्मनेपदी। उत्तमपुरुष एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

17. तथेति तस्यावितथं प्रतीत:
प्रत्यग्रहीत्सङ्गरमग्रजन्मा।
गामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य
निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्।। 17 ॥

अन्वयः-अग्रजन्मा प्रतीतः तस्य अवितथं सगारं तथा इति प्रत्यग्रहीत्। रघुः अपि गाम् आत्तसाराम् अवेक्ष्य कुबेरात् अर्थं निष्क्रष्टुं चकमे।।

सरलार्थः-ब्राह्मण कौत्स ने प्रसन्न होकर उस राजा रघु के सत्यवचन । प्रतिज्ञा को ‘ठीक है’ यह कहकर स्वीकार किया। रघु ने भी पृथिवी को प्राप्तधन वाली देखकर कुबेर से धन छीन लेने की इच्छा की।

भावार्थः-याचक कौत्स और दाता रघु दोनों को परस्पर विश्वास है। कौत्स ने रघु के वचनों को सत्य प्रतिज्ञा के रूप में ग्रहण किया। रघु ने कौत्स की याचना के पूर्ण करने हेतु धन के स्वामी कुबेर पर आक्रमण कर उसका धन हरण कर लेने की इच्छा की।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अवितथम् = सत्य। वितथम् = मिथ्या, न वितथम् = अवितथम्। प्रत्यग्रहीत् = स्वीकार किया। प्रति + √ग्रह + लुङ् प्रथमपुरुष एकवचन। सङ्गरम् = प्रतिज्ञा को, वचन को। ‘सङ्गर’ समानार्थक शब्द है। गाम् = भूमि को। ‘गाम्’ अनेकार्थक शब्द है। निष्क्रष्टुम् = हर लेने के लिए। आहर्तुम्। निर् + √क्रिष् + तुमुन्। आत्तसाराम् = प्राप्तधन वाली। अवेक्ष्य = देखकर । अ + √ईक्ष् + ल्यप् । चकमे = इच्छा की। √कम् (कान्तौ), लिट्, आत्मनेपदी, प्रथमपुरुष एकवचन। प्रतीतः = प्रसन्न। प्रति√इ + क्त = प्रतीतः । प्रीतः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

18. प्रातः प्रयाणाभिमुखाय तस्मै
सविस्मयाः कोषगृहे नियुक्ताः।
हिरण्मयी कोषगृहस्य मध्ये
वृष्टिं शशंसुः पतितां नभस्तः ॥ 18 ॥

अन्वयः-प्रातः प्रयाणाभिमुखाय तस्मै कोषगृहे नियुक्ताः सविस्मयाः (सन्तः) कोषगृहस्य मध्ये नभस्तः पतितां । हिरण्मयीं वृष्टिं शशंसुः।।

सरलार्थ:-प्रात:काल (कुबेर की ओर) प्रस्थान करने के लिए तैयार हुए उस रघु के कोषगृह में नियुक्त अधिकारियों ने आश्चर्यचकित होते हुए खजाने में आकाश से गिरने वाली सुवर्णमयी वर्षा के बारे में कहा।

भावार्थ:-राजा रघु जैसे ही प्रातःकाल कुबेर की ओर प्रस्थान करने के लिए तैयार हुआ, तभी रघु के कोशगृह के अधिकारियों ने देखा कि उस खजाने में सुवर्ण मुद्राओं की वर्षा हो चुकी है। अधिकारियों को यह सब देखकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने राजा रघु को यह समाचार सुनाया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
प्रयाणाभिमुखाय = प्रस्थान के लिए तैयार। सविस्मयाः = आश्चर्यचकित। आश्चर्यचकिताः । कोषगृहे = खजाने में। ‘कोशगृह’ पद भी प्रचार में है। हिरण्मयीम् = सुवर्ण वाली। सुवर्णमयीम् । सुवर्ण + मयट + ङीप्। शशंसु = कहा था। कथयामासुः √शिंस् + लिट् प्रथम पुरुष बहुवचन। नभस्तः = आकाश की ओर से। नभस् + तसिल्। अव्यय।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

19. तं भूपतिर्भासुरहेमराशिं
लब्धं कुबेरादभियास्यमानात्।
दिदेश कौत्साय समस्तमेव
पादं सुमेरोरिव वज्रभिन्नम्॥ 19 ॥

अन्वयः-भूपतिः अभियास्यमानात् कुबेरात् लब्धं वज्रभिन्नं सुमेरोः पादम् इव तं भासुरं समस्तम् एव हेमराशिं कौत्साय दिदेश।

सरलार्थ:-राजा रघु ने आक्रमण किए जाने वाले कुबेर से प्राप्त, वज्र के द्वारा टुकड़े किए गए सुमेरु पर्वत के चतुर्थ भाग के समान प्रतीत हो रही, उन चमकती हुई समस्त सुवर्ण मुद्राओं को कौत्स के लिए दे दिया।

भावार्थ:-कुबेर ने रघु के आक्रमण के भय से उसके खजाने को सुवर्ण मुद्राओं से भर दिया। वे सुवर्ण मुद्राएँ परिमाण में इतनी अधिक थी कि ऐसा लगता था मानो सुमेरु पर्वत का ही वज्र से काटकर उसका चौथा हिस्सा खजाने में रख दिया। महाराज रघु ने कुबेर से प्राप्त हुई सभी सुवर्ण मुद्राएँ याचक कौत्स को प्रदान कर दी अर्थात् चौदह करोड़ ही न देकर पूरा खजाना ही कौत्स को सौंप दिया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
भासुरम् = चमकते हुए। चमकीला। भास्वरम्। अभियास्यमानात् = आक्रमण किए जाने वाले (कुबेर से)। अभि + √या (प्रापणे) + लृट् (कर्मणि) यक् + शानच् । अभिगमिष्यमाणात्। दिदेश = दे दिया। √दिश् (अतिसर्जने) लिट् प्रथम पुरुष एकवचन। सुमेरोः = सुमेरु पर्वत का। पुराणों के अनुसार यह स्वर्णमय पर्वत है। वज्रभिन्नम् = वज्रायुध से कटा हुआ। ‘वज्र’ इन्द्र का आयुध है। उसने वज्रायुध से पर्वतों के पंख काट दिए, ऐसी पौराणिक कथा है। पादम्तलहटी, चतुर्थभाग। गिरिपादः। प्रत्यन्तपर्वतमिव स्थितम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

20. जनस्य साकेतनिवासिनस्तौ
द्वावप्यभूतामभिनन्धसत्त्वौ।
गुरुप्रदेयाधिकानिःस्पृहोऽर्थी
नृपोऽर्थिकामादधिकप्रदश्च ॥ 20॥

अन्वयः-तौ द्वौ अपि साकेतनिवासिनः जनस्य अभिनन्द्यसत्त्वौ अभूताम्। गुरुप्रदेयाद् अधिकनिःस्पृहः अर्थी अर्थिकामात् अधिकप्रदः नृपः च (आसीत्)।

सरलार्थः-वे (महाराजा रघु और कौत्स) दोनों ही अयोध्यावासी लोगों के लिए प्रशंसनीय व्यवहार वाले हो गए। क्योंकि गुरु को समर्पण करने योग्य धन से अधिक.धन लेने में इच्छा न रखने वाला याचक कौत्स था और याचक की याचना से अधिक धन देने वाला राजा रघु था।

भावार्थ:-कौत्स की निर्लोभता की सीमा नहीं थी और महाराज रघु की उदारता की सीमा नहीं थी। कौत्स गुरुदक्षिणा में देने योग्य चौदह करोड़ मुद्राओं से एक थी अधिक नहीं लेना चाहता और राजा सारा खजाना ही उसे दे देना चाहते थे-दोनों के इस अद्भुत व्यवहार से अयोध्यावासी धन्य हो गए और दोनों की ही अत्यधिक प्रशंसा करने लगे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अभिनन्द्यसत्त्वौ = प्रशंसनीय व्यवहार वाले (दोनों)। अभिनन्द्यं सत्त्वं ययोः तौ। गुरुप्रदेयाधिकानिःस्पृहः = गुरु को देने से अधिक द्रव्य को लेने में इच्छा न रखने वाला (अर्थी) अधिकप्रदः = अधिक देने वाला। अधिकं प्रददाति इति। साकेतनिवासिनः = अयोध्या के निवासी लोग। साकेत + निवास + इन्। षष्ठी विभक्ति एकवचन।

हिन्दीभाषया पाठस्य सारः

प्रस्तुत पाठ ‘रघुकौत्ससंवादः’ महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंश-महाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित है। इसमें महाराज रघु एवं वरतन्तु ऋषि के शिष्य कौत्स नामक ब्रह्मचारी के मध्य साकेत नगरी में हुआ संवाद वर्णित है।

कौत्स अपने गुरु ऋषि वरतन्तु से वेद, पुराण, वेदाङ्ग, दर्शन आदि 14 विद्याओं का अध्ययन समाप्त करके अपने गुरु से बार-बार गुरुदक्षिणा लेने की प्रार्थना करता है। गुरु द्वारा गुरुभक्ति को ही गुरुदक्षिणा रूप में मानने पर भी कौत्स गुरुदक्षिणा स्वीकार करने की निरन्तर प्रार्थना करता है। इससे रुष्ट होकर वरतन्तु उसे गुरुदक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्णमुद्राएँ देने की आज्ञा देते हैं।

महाराज रघु विश्वजित् नामक यज्ञ में सर्वस्व दान कर चुके हैं। कौत्स उनके पास गुरुदक्षिणा के लिए धन माँगने आता है। कौत्स महाराज रघु की धनहीनता देखकर वापस लौटने लगता है। महाराज रघु उसे रोकते हैं और पूछते हैं कि वह अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में क्या देना चाहता है ? वह बताता है कि गुरुदेव ने चौदह विद्याओं को पढ़ाने के प्रतिफल में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा के रूप में देने का आदेश दिया है। ब्रह्मचारी कौत्स की याचना पूर्ण करने के उद्देश्य से महाराज रघु धनपति कुबेर पर आक्रमण करने की योजना बनाते हैं। भयभीत कुबेर रघु के कोषागार में सुवर्ण-वृष्टि कर देते हैं। रघु कौत्स को सारा धन प्रदान कर सन्तुष्ट होते हैं परन्तु कौत्स उनमें से केवल 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ देने के लिए गुरुदक्षिणा प्राप्त कर सन्तुष्ट भाव से लौट जाते हैं।

प्रस्तुत पाठ से यह सन्देश मिलता है कि महाराज रघु की भाँति शासक को सर्वसाधारण जन के प्रति उदार एवं कल्याणकारी होना चाहिए तथा याचक को कौत्स की भाँति अपनी आवश्यकता से अधिक धन प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः

रघुकौत्ससंवादः (रघु और कौत्स का संवाद) Summary in Hindi

रघुकौत्ससंवादः पाठ परिचय

कविकुलशिरोमणि, कविताकामिनी के विलास, उपमासम्राट् दीपशिखा कालिदास आदि विरुदों से विभूषित महाकवि कालिदास भारतवर्ष के ही नहीं समस्त विश्व के अनन्य कवि हैं। ये महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कालिदास का समय ईसापूर्व प्रथम शताब्दी है। संस्कृतसाहित्य में कालिदास की सात रचनाएँ प्रामाणिक मानी गई हैं। इनमें रघुवंशम्, कुमारसम्भवम्-दो महाकाव्य, मेघदूतम् तथा ऋतुसंहारम्-दो खण्डकाव्य तथा मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् तथा अभिज्ञानशाकुन्तलम्-तीन नाटक हैं। काव्यकला एवं नाट्यकला की दृष्टि से कालिदास का कोई सानी नहीं है। नवरस वर्णन में भी कालिदास सर्वोपरि हैं। ‘उपमा अलंकार’ की सटीकता में वर्णन के कारण ही कालिदास के विषय में ‘उपमा कालिदासस्य’ कहा गया है तथा ‘दीपशिखा’ की उपाधि से अलंकृत किया गया है। यही नहीं इनकी रचनाओं में वैदर्भी रीति की विशिष्टता, माधुर्यगुण का सतत प्रवाह तथा सरसता ही इन्हें आज तक सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में प्रतिष्ठित किए हुए हैं।
रचनाओं का संक्षिप्त परिचय

1. रघुवंशम्-19 सर्गीय रघुवंश कालिदास की अनन्यतम कृति है। इसमें रघुवंशीय दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम और कुश तक के राजाओं का विस्तृतरूपेण चित्रण तथा अन्य राजाओं का संक्षिप्त विवरण बड़े ही परिपक्व एवं प्रभावरूपेण किया गया है। जहाँ दिलीप की नन्दिनी सेवा, रघु की दिग्विजय, अज एवं इन्दुमती का विवाह, इन्दुमति की मृत्यु पर अज विलाप, राम का वनवास, लंका विजय, सीता का परित्याग, लव-कुश का अश्वमेधिक घोड़े को रोकना तथा अन्तिम सर्ग में राजा अग्निवर्ण का विलासमय चित्रण उनकी सूक्ष्मपर्यवेक्षण शक्ति का परिचय देता है।

2. कुमारसम्भवम्-17 सर्गीय कुमारसम्भव शिव-पार्वती के विवाह, कार्तिकेय के जन्म तथा तारकासुर के वध की कथा को लेकर लिखित सुप्रसिद्ध महाकाव्य है। कुछ आलोचक केवल आठ सर्गों को ही कालिदास लिखित मानते हैं लेकिन अन्यों के अनुसार सम्पूर्ण रचना कालिदास विरचित है। इस ग्रन्थ में हिमालय का चित्रण, पार्वती की तपस्या, शिव के द्वारा पार्वती के प्रेम की परीक्षा, उमा के सौन्दर्य का वर्णन, रतिविलाप आदि का चित्रण कालिदास की परिपक्व लेखनशैली को घोषित करता है। अन्त में कार्तिकेय के द्वारा तारकासुर के वध के चित्रण में वीर रस का सुन्दर परिपाक द्रष्टव्य है।

3. ऋतुसंहारम्-महाकवि कालिदास का ऋतुसंहार संस्कृत के गीतिकाव्यों में विशिष्टता लिए हुए हैं। जिसमें ऋतुओं के परिवर्तन के साथ-साथ मानव जीवन में बदलने वाले स्वभाव, वेशभूषा, एवं प्राकृतिक परिवेश का अवतरण द्रष्टव्य है। इसमें छः सर्ग तथा 144 पद्य हैं जिनमें ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर तथा वसन्त के क्रम से छः ऋतुओं का वर्णन छः सर्गों में किया गया है।

4. मेघदूतम्- मेघदूत न केवल कालिदास का महान् गीतिकाव्य है, अपितु सम्पूर्ण संस्कृतसाहित्य का एक उज्ज्वल रत्न है। सम्पूर्ण मेघदूत दो भागों में विभक्त है-पूर्वमेघ तथा उत्तरमेघ जिनमें कुल 121 पद्य हैं। इस गीतिकाव्य में मन्दाक्रान्ता छन्द में एक यक्ष की विरहव्यथा का मार्मिक चित्रण किया गया है। पूर्वमेघ में कवि ने यक्ष द्वारा मेघ को अलकापुरी तक पहुँचने के मार्ग का उल्लेख करते हुए उस मार्ग में आने वाले प्रमुख नगरों, पर्वतों, नदियों तथा वनों का भी सुन्दर चित्रण किया है। उत्तरमेघ में अलकापुरी का वर्णन, उसमें यक्षिणी के घर की पहचान तथा घर में विरह-व्यथा से पीड़ित अपनी प्रेयसी की विरह पीड़ा का मार्मिक वर्णन द्रष्टव्य है।

5. मालविकाग्निमित्रम्-पाँच अंकों में लिखित महाकवि कालिदास की प्रारम्भिक कृति ‘मालविकाग्निमित्र’ में विदिशा के राजा अग्निमित्र तथा मालवा के राजकुमार की बहन मालविका की प्रणयकथा का वर्णन है। मालविकाग्निमित्र रघुकौत्ससंवादः कवि की आरम्भिक रचना होने पर भी नाटकीय नियमों की दृष्टि से इसके कथा निर्वाह, घटनाक्रम, पात्रयोजना आदि सभी में नाटककार के असाधारण कौशल की छाप है।

6. विक्रमोर्वशीयम्-नाटक रचनाक्रम की दृष्टि से कालिदास की द्वितीय कृति ‘विक्रमोर्वशीयम्’ एक उपरूपक है। जिसमें राजा पुरुरवा तथा उर्वशी नामक अप्सरा की प्रणयकथा वर्णित है। इस नाटक में कवि की प्रतिभा अपेक्षाकृत अधिक जागृत एवं प्रस्फुटित है।

7. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास का अन्तिम तथा सर्वोत्कृष्ट नाटक ‘अभिज्ञान-शाकुन्तलम्’ सात अंकों में विभक्त है; जिसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला की प्रणय कथा वर्णित है। यह नाटक संस्कृत का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। जिसमें कालिदास की कथानकीय मौलिकता, चरित्रचित्रण की सजीवता, रसों की परिपक्वता, संवादों की सुष्ठु योजना, प्रकृतिचित्रण की मर्मज्ञता तथा भाषा-शैली की विशिष्टता आदि स्वयं में अनुपम हैं। इन्हीं गुणों के कारण कहा गया है”

काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला”

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

HBSE 12th Class Sanskrit विद्ययाऽमृतमश्नुते Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत
(क) ईशावास्योपनिषद् कस्याः संहितायाः भागः?
(ख) जगत्सर्वं कीदृशम् अस्ति?
(ग) पदार्थभोगः कथं करणीयः?
(घ) शतं समाः कथं जिजीविषेत्?
(ङ) आत्महनो जनाः कीदृशं लोकं गच्छन्ति?
(च) मनसोऽपि वेगवान् कः?
(छ) तिष्ठन्नपि कः धावतः अन्यान् अत्येति?
(ज) अन्धन्तमः के प्रविशन्ति?
(ङ) धीरेभ्यः ऋषयः किं श्रुतवन्तः?
(च) अविद्यया किं तरति?
(ट) विद्यया किं प्राप्नोति?
उत्तरम्:
(क) ईशावास्योपनिषद् ‘यजुर्वेद-संहितायाः’ भागः ।
(ख) जगत्सर्वम् ईशावास्यम् अस्ति।
(ग) पदार्थभोगः त्यागभावेन करणीयः।
(घ) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(ङ) आत्महनो जनाः ‘असुर्या’ नामकं लोकं गच्छन्ति।
(च) मनसोऽपि वेगवान् आत्मा अस्ति।
(छ) तिष्ठन्नपि परमात्मा धावतः अन्यान् अत्येति।
(ज) ये अविद्याम् उपासते ते अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(ङ) धीरेभ्यः ऋषयः इति श्रुतवन्तः यत् विद्यया अन्यत् फलं भवति अविद्यया च अन्यत् फलं भवति।
(च) अविद्यया मृत्युं तरति।
(ट) विद्यया अमृतं प्राप्नोति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

2. ‘ईशावास्यम्…….कस्यस्विद्धनम्’ इत्यस्य भावं सरलसंस्कृतभाषया विशदयत
उत्तरम्:
(संस्कृतभाषया भावार्थः)
अस्मिन् सृष्टिचक्रे यत् किमपि जड-चेतनादिकं जगत् अस्ति, तत् सर्वम् ईश्वरेण व्याप्तम् अस्ति। ईश्वरः संसारे व्यापकः अस्ति, सः एव च संसारस्य सर्वेषां पदार्थानाम् ईशः = स्वामी। अतः त्यागभावेन एव सांसारिक-पदार्थानाम् उपभोगः करणीयः। कदापि कस्य अपि धने लोभ: न करणीयः।

3. ‘अन्धन्तमः प्रविशन्ति…….विद्यायां रताः’ इति मन्त्रस्य भावं हिन्दीभाषया आंग्लभाषया वा विशदयत
उत्तरम्:
पञ्चममन्त्रस्य भावार्थं पश्यत।

4. ‘विद्यां चाविद्यां च…….ऽमृतमश्नुते’ इति मन्त्रस्य तात्पर्यं स्पष्टयत
उत्तरम्:
सप्तममन्त्रस्य भावार्थं पश्यत।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

5. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) इदं सर्वं जगत् ………………..।
(ख) मा गृधः …………………..!
(ग) शतं समाः ………………….. जिजीविषेत्।
(घ) असुर्या नाम लोका ………………….. आवृताः ।
(ङ) आवद्योपासकाः ………………….. प्रविशन्ति।
उत्तरम्:
(क) इदं सर्वं जगत् ईशावास्यम्।
(ख) मा गृधः कस्यस्वित् धनम्।
(ग) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(घ) असुर्या नाम लोका अन्धेनतमसा आवृताः ।
(ङ) अविद्योपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।

6. अधोलिखितानां सप्रसंग हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
(क) तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः।
(ख) न कर्म लिप्यते नरे।
(ग) तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति।
(घ) अविद्यया मृत्युं ती| विद्ययाऽमृतमश्नुते।
(ङ) एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति।
(च) तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।
(छ) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनदेवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।
उत्तरम्:
(क) तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। (त्यागपूर्वक भोग कर)
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ से संगृहीत ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ के ‘ईशावास्यम्……….’ मन्त्र से लिया गया है। इसमें त्यागपूर्वक भोग करने का उपदेश दिया गया है।

व्याख्या-परमेश्वर सब जड़-चेतन पदार्थों में व्यापक है। वही संसार के सभी पदार्थों का स्वामी है। मनुष्य का कर्तव्य है कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन पदार्थों को त्यागपूर्वक ग्रहण करे। इनके उपयोग में लोभकदापि न करे, क्योंकि लोभवश पदार्थों का उपभोग करने से प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ जाता है और मनुष्य का अपना शरीर भी रोगी हो जाता है। प्रकृति के संरक्षण में ही अपनी सुरक्षा छिपी है। इस मन्त्रांश में सन्तुलित एवं स्वस्थ जीवन का रहस्य छिपा है

पदार्थ + त्यागभाव = भोजन, पदार्थ + लोभवृत्ति = भोग। भोजन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और भोग करने में रोग का भय रहता है-‘भोगे रोगभयम्’।

(ख) न कर्म लिप्यते नरे।
(मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है)
प्रसंगः-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संगृहित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ के दूसरे मन्त्र से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि निष्काम कर्म बन्धन का कारण नहीं होते।

व्याख्या-मन्त्रांश का अर्थ है-‘मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है।’ वे कौन से कर्म हैं, उन कर्मों की क्या विधि है, जिनसे कर्म मनुष्य के बन्धन का कारण नहीं बनते। पूरे मन्त्र में इस भाव को अच्छी प्रकार स्पष्ट किया गया है। मन्त्र में कहा गया है कि मनुष्य अपनी पूर्ण इच्छाशक्ति से जीवन भर कर्म करे, निठल्ला-कर्महीन-अकर्मण्य बिल्कुल न रहे, पुरुषार्थी बने। जिन पदार्थों को पाने के लिए हम कर्म करते हैं, उनका वास्तविक स्वामी सर्वव्यापक ईश्वर है। वही प्रतिक्षण हमारे अच्छे बुरे कर्मों को देखता है। अतः यदि मनुष्य पदार्थों के ग्रहण में त्याग भाव रखते हुए, ईश्वर को सर्वव्यापक समझते हुए कर्तव्य भाव से (अनासक्त भाव से) कर्म करता है तो ऐसे निष्काम कर्म मनुष्य को सांसारिक बन्धन में नहीं डालते अपितु उसे जीवन्मुक्त बना देते हैं।

(ग) तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति। (उसी में वायु जलों को धारण करता है)
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संगृहीत ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ में संकलित मन्त्र से लिया गया है। इसमें वायु को जलों का धारण करने वाला कहा गया है।

व्याख्या-मन्त्र में परमात्मा का स्वरूप वर्णन करते हुए उसे अचल, एक तथा मन से भी गतिशील बताते कहा गया है कि इस संसार में ईश्वर-व्यवस्था निरन्तर कार्य कर रही है। उसी के नियम से वायु बहती है, सूर्य-चन्द्र चमकते हैं, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, फल-फूल-वनस्पतियाँ पैदा होती हैं। यहाँ तक कि वायु = गैसों से जल का निर्माण भी ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन ही होता है। मित्र-वरुण नामक दो वायुतत्त्व (गैसें) हैं, इन्हें विज्ञान की भाषा में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन कह सकते हैं, इनके मेल से (H2 ,O) से जल का निर्माण होता है। ‘अप:’ का अर्थ जल के अतिरिक्त कर्म भी होता है। सभी प्राणी ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन होकर अपने-अपने कर्म फलों को प्राप्त करते हैं। यह भी मन्त्रांश का भाव है।

(घ) अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ से संकलित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को जीतकर अध्यात्म ज्ञान द्वारा अमरत्व प्राप्ति का रहस्य उद्घाटित किया गया है।

व्याख्या-प्रस्तुत मन्त्रांश की व्याख्या के लिए सप्तम मन्त्र के भावार्थ का उपयोग करें।

(ङ) एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से सम्पादित विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संकलित मन्त्र से उद्धत है। इस मन्त्रांश में उस मार्ग की ओर संकेत किया गया है, जिस मार्ग पर चलकर मनुष्य कर्मबन्धन में नहीं पड़ता।

व्याख्या-मन्त्रांश का सामान्य अर्थ है-‘इस प्रकार तुझ में (कर्म का लेप नहीं होता), इससे भिन्न कोई मार्ग नहीं। यह मन्त्रांश ईशोपनिषद् के पहले दो मन्त्रों के उपदेश की ओर पाठक का ध्यान केन्द्रित करता है। साधारण रूप से कर्म के सम्बन्ध में यह धारणा है कि कर्म चाहे अच्छा हो या बुरा-मनुष्य कर्मबन्धन में अवश्य बँधता है। परन्तु इन दो मन्त्रों में एक ऐसा मार्ग बताया गया है, जिसके अनुसार कर्म करने/जीवन यापन करने पर मनुष्य कर्मबन्धन में नहीं पड़ता। वह मार्ग है ईश्वर को सदा सर्वत्र व्यापक मानते हुए आसक्ति छोड़कर कर्तव्य भाव से कर्म करने का मार्ग। अनासक्त भाव से किया गया कर्म सदा शुभ ही होता है, अतः ऐसे कर्म मनुष्य के बन्धन का कारण नहीं होते अपितु उसे जीवन्मुक्त बना देते हैं। इस मार्ग को छोड़कर जीवन्मुक्त होने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है।

(च) ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।
प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में आत्मा का तिरस्कार करने वाले मनुष्यों की मरण-उपरान्त गति के बारे में बताया गया है।

व्याख्या-प्रस्तुत मन्त्रांश की व्याख्या के लिए तृतीय मन्त्र के भावार्थ का उपयोग करें।

(छ) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद् देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से सम्पादित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है।

व्याख्या-‘अनेजत्’ का अर्थ है-कम्पन से रहित, अचल, स्थिर। परमात्मा अनेजत्-अर्थात् कम्पन रहित है, वह अपने स्वरूप में सदा स्थिर बना रहता है। परमात्मा के स्वरूप की दूसरी विशेषता है कि वह एक अर्थात् अद्वितीय है। वह स्थिर होकर भी मन से अधिक वेग वाला है। उसका वेग इतना अधिक है कि देव अर्थात् प्रकाशक इन्द्रियाँ उसको पकड़ ही नहीं पाती क्योंकि परमात्मा सूक्ष्म से सूक्ष्म है और इन्द्रियाँ केवल स्थूल वस्तु का ही ज्ञान कर पाती हैं। परमात्मा सर्वव्यापक है अतः वह ‘पूर्वम् अर्षत्’-सभी जगह पहले से पहुँचा हुआ रहता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

7. उपनिषन्मन्त्रयोः अन्वयं लिखत.
(क) अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे॥
(ख) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥
उत्तरम्:
उपर्युक्त दोनों मन्त्रों का अन्वय पाठ में दिया जा चुका है।

8. प्रकृति प्रत्ययं च योजयित्वा पदरचनां कुरुत
त्यज् + क्तः; कृ + शत; तत् + तसिल्
उत्तरम्:
(क) त्यज् + क्त = त्यक्तः
(ख) कृ + शतृ = कुर्वन्
(ग) तत् + तसिल् = ततः

9. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम्
प्रेत्य, तीर्खा, धावतः, तिष्ठत्, जवीयः
उत्तरम्:
(क) प्रेत्य = प्र + इ + ल्यप्
(ख) तीर्त्वा = √तृ + क्त्वा
(ग) धावतः = √धाव् + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, षष्ठी-एकवचनम्)
(घ) तिष्ठत् = (स्था + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ङ) जवीयः = जव + ईयसुन् > ईयस् (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)

10. अधोलिखितानि पदानि आश्रित्य वाक्यरचनां कुरुत
जगत्याम्, धनम्, भुञ्जीथाः, शतम्, कर्माणि, तमसा, त्वयि, अभिगच्छन्ति, प्रविशन्ति, धीराणाम्, विद्यायाम्, भूयः, समाः ।
उत्तरम्:
(वाक्यरचना)
(i) जगत्याम्-जगत्याम् अनेके ग्रहाः उपग्रहाः च सन्ति ।
(ii) धनम्-कस्य अपि धनं मा गृधः ।
(iii) भुञ्जीथा:-जगतः भोगान् त्यागभावेन भुञ्जीथाः।
(iv) शतम्-कर्माणि कुर्वन् एवं शतं वर्षाणि जिजीविषेत्।
(v) कर्माणि-सदा शुभानि कर्माणि एव कुर्यात्।
(vi) तमसा-एतत् कूपं तमसा आवृतम् अस्ति।
(vii) त्वयि-त्वयि कः स्निहयति ?
(viii) अभिगच्छन्ति-छात्राः पठनाय गुरुम् अभिगच्छन्ति।
(ix) प्रविशन्ति-अविद्यायाः उपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(x) धीराणाम्-धीराणाम् उपदेशः धैर्येण श्रोतव्यः।
(xi) विद्यायाम्-प्रायः योगिनः विद्यायाम् एव रताः भवन्ति ।
(xii) भूयः (पुनः)-सः आगत्य भूयः अगच्छत्।
(xiii) समाः (वर्षाणि)-सदाचारिणः जनाः शतं समाः जीवन्ति।

11. सन्धि/सन्धिच्छेदं वा कुरुत
उत्तरम्:
(क) ईशावास्यम् – ईश + आवास्यम्
(ख) कुर्वन्नेवेह – कुर्वन् + एव + इह
(ग) जिजीविषेत् + शतं – जिजीविषेच्छतम्
(घ) तत् + धावतः – तद्धावतः
(ङ) अनेजत् + एकं – अनेजदेकम्
(च) आहुः + अविद्यया – आहुरविधया
(छ) अन्यथेतः – अन्यथा + इतः
(ज) ताँस्ते – तान् + ते।

12. अधोलिखितानां समुचितं योजनं कुरुत
धनम् – वायुः
समाः – आत्मानं ये घ्नन्ति
असुर्याः – श्रुतवन्तः स्म
आत्महनः – तमसाऽऽवृताः
मातरिश्वा – वर्षाणि शुश्रुम
अमरतां अमृतम् – वित्तम्
उत्तरम्:
धनम् – वित्तम्
समाः – वर्षाणि
असुर्याः – तमसाऽऽवृताः
आत्महनः – आत्मानं ये जन्ति
मातरिश्वा – वायुः
शुश्रुम – श्रुतवन्तः स्म
अमृतम् – अमरताम्

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13. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि लिखत
नरे, ईशः, जगत, कर्म, धीराः, विद्या, अविद्या
उत्तरम्:
(पर्यायपदानि)
नरे = मनुष्ये
ईशः = ईश्वरः
जगत् = संसारः
कर्म = कार्यम्
धीराः = विद्वांसः, पण्डिताः
विद्या = अध्यात्मज्ञानम्
अविद्या = अध्यात्मेतरविद्या, व्यावहारिकज्ञानम्

14. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत
एकम्, तिष्ठत्, तमसा, उभयम्, जवीयः, मृत्युम्
उत्तरम्:
(विलोमपदानि)
एकम् – अनेकम्
तिष्ठत् – धावत्
तमसा – प्रकाशन
उभयम् – एकम्
जवीयः – शनैश्चरम्, तिष्ठत्
मृत्युम् – अमृतम्

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योग्यताविस्तारः
समग्रेऽस्मिन् विश्वे ज्ञानस्याद्यं स्रोतो वेदराशिरिति सुधियः आमनन्ति। तादृशस्य वेदस्य सार: उपनिषत्सु समाहितो वर्तते। उपनिषदां ‘ब्रह्मविद्या’ ‘ज्ञानकाण्डम्’ ‘वेदान्तः’ इत्यपि नामान्तराणि विद्यन्ते। उप-नि इत्युपसर्गसहितात् सद् (षद्लु) धातोः क्विप् प्रत्यये कृते उपनिषत्-शब्दो निष्पद्यते, येन अज्ञानस्य नाशो भवति, आत्मनो ज्ञानं साध्यते, संसारचक्रस्य दुःखं शिथिलीभवति तादृशो ज्ञानराशिः उपनिषत्पदेन अभिधीयते । गुरोः समीपे उपविश्य अध्यात्मविद्याग्रहणं भवतीत्यपि कारणात् उपनिषदिति पदं सार्थकं भवति।

प्रसिद्धासु 108 उपनिषत्स्वपि 11 उपनिषदः अत्यन्तं महत्त्वपूर्णाः महनीयाश्च । ताः ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्डकमाण्डूक्य-ऐतरेय-तैत्तिरीय-छान्दोग्य-बृहदारण्यक-श्वेताश्वतराख्याः वेदान्ताचार्याणां टीकाभिः परिमण्डिताः सन्ति।

आद्यायाम् ईशावास्योपनिषदि ‘ईशाधीनं जगत्सर्वम्’ इति प्रतिपाद्य भगवदर्पणबुद्ध्या भोगो निर्दिश्यते। ईशोपनिषदि ‘जगत्यां जगत्’ इति कथनेन समस्तब्रह्माण्डस्य या गत्यात्मकता निरूपिता सा आधुनिकगवेषणाभिरपि सत्यापिता। सततं परिवर्तमाना ब्रह्माण्डगता चलनस्वभावा या सृष्टि:-पशूनां प्राणिनां, तेजः पुञ्जानां, नदीनां, तरङ्गाणां वायोः वा; या च स्थिरत्वेन अवलोक्यमाना सृष्टि:-पर्वतानां, वृक्षाणां, भवनादीनां वा सा सर्वा अपि सृष्टिः ईश्वराधीना सती चलत्स्वभावा एव। ईश्वरस्य विभूत्या सर्वा अपि सृष्टिः परिपूर्णा चलत्स्वभावा च चकास्ते। तदुक्तं भगवद्गीतायाम्

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोऽशसम्भवम् ॥ इति ॥ भगवद्गीता-10.41

उपनिषत्प्रस्थानरहस्यं विद्याया अविद्यायाश्च समन्वयमुखेन अत्र उद्घाटितमस्ति। ये जना अविद्यापदवाच्येषु यज्ञयागादिकर्मसु, भौतिक-शास्त्रेषु, लौकिकेषु ज्ञानेषु दैनन्दिनसुखसाधन-सञ्चयनार्थं संलग्नमानसा भवन्ति ते लौकिकीम् उन्नतिं प्राप्नुवन्त्येव; किन्तु तेषां तेषां जनानाम् आध्यात्मिकं बलम्, अन्तरसत्त्वं वा निस्सारं भवति। ये तु विद्यापदवाच्ये आत्मज्ञाने एव केवलं संलग्नमनसः भवन्ति, भौतिकज्ञानस्य साधनसामग्रीणां च तिरस्कारं कुर्वन्ति ते जीवननिर्वाहे, लौकिकेऽभ्युदये च क्लेशमनुभवन्ति।

अत एव अविद्यया भौतिकज्ञानराशिभिः मानवकल्याणकारीणि जीवनयात्रासम्पादकानि वस्तूनि सम्प्राप्य विद्यया आत्मज्ञानेन-ईश्वरज्ञानेन जन्ममृत्युदुःखरहितम् अमृतत्वं प्राप्नोति । विद्याया अविद्यायाश्च ज्ञानेन एव इहलोके सुखं परत्र च अमृतत्वमिति कल्याणी वाचम् उपदिशति उपनिषत् ‘अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते’ इति।

पाठ्यांशेन सह भावसाम्यं पर्यालोचयत
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायोऽह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ॥ भगवद्गीता-3.8
अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात्प्रमुच्यते॥ कठोपनिषत्-3.15

कठोपनिषदि प्रतिपादितं श्रेयं प्रेयश्च अधिकृत्य सङ्ग्रणीत-दिङ्मानं यथा

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ
संपरीत्य विविनक्ति धीरः।
श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते
प्रेयो मन्दो योगक्षेमात् वृणीते॥ कठोपनिषत्-2.2

विविधासु उपनिषत्सु प्रतिपादिताम् आत्मप्राप्तिविषयकजिज्ञासां विशदयत
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष
आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम् ।। कठोपनिषत्-2.23

वैदिकस्वराः
वैदिकमन्त्रेषु उच्चारणदृष्ट्या त्रिविधानां ‘स्वराणां’ प्रयोगो भवति। मन्त्राणाम् अर्थमधिकृत्य चिन्तनं, प्रकृतिप्रत्यययोः योगं, समासं वाश्रित्य भवति। तत्र अर्थनिर्धारणे स्वरा महत्त्वपूर्णा भवन्ति। ‘उच्चैरुदात्त:’ ‘नीचैरनुदात्तः’ ‘समाहारः स्वरितः’ इति पाणिनीयानुशासनानुरूपम् उदात्तस्वर: ताल्वादिस्थानेषु उपरिभागे उच्चारणीयः, अनुदात्तस्वरः ताल्वादीनां नीचैः स्थानेषु, उभयोः स्वरयोः समाहाररूपेण (समप्रधानत्वेन)स्वरित उच्चारणीय इति उच्चारणक्रमः। वैदिकशब्दानां निर्वचनार्थं प्रवृत्ते निरुक्ताख्ये ग्रन्थे पाणिनीयशिक्षायां च स्वरस्य महत्त्वम् इत्थमुक्तम्

मन्त्रो हीनस्स्वरतो वर्णतो वा
मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह।
स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति
यथेन्द्रशत्रुस्स्वरतोऽपराधात्॥

मन्त्राः स्वरसहिताः उच्चारणीया इति परम्परा। अतः स्वरितस्वरः अक्षराणाम् उपरि चिह्नन, अनुदात्तस्वरः अक्षराणां नीचैः चिह्नन उदात्तस्वरः किमपि चिह्न विना च मन्त्राणां पठन-सौकर्यार्थं प्रदर्श्यते।

निष्कर्षः
वैदिक मन्त्रों के उच्चारण में तीन प्रकार के स्वरों का प्रयोग होता है-1. उदात्तस्वर, 2. अनुदात्तस्वर और 3. स्वरितस्वर। स्वरों के परिवर्तन से कभी-कभी अर्थ-परिवर्तन भी हो जाता है। अतः मन्त्रों के सस्वर पाठ की प्राचीन परम्परा रही है। लेखन में अक्षर के ऊपर स्वरितस्वर के लिए खड़ी रेखा (इति), अनुदात्तस्वर के लिए नीचे पड़ी रेखा (ततः) लगाई जाती है। उदात्तस्वर के लिए किसी चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे-(यः)।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

HBSE 9th Class Sanskrit विद्ययाऽमृतमश्नुते Important Questions and Answers

1. समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ईशावास्योपनिषद् कस्याः संहितायाः भागः ?
(A) ऋग्वेदसंहितायाः
(B) यजुर्वेदसंहितायाः
(C) सामवेदसंहितायाः
(D) अथर्ववेदसंहितायाः।
उत्तराणि:
(B) यजुर्वेदसंहितायाः

(ii) जगत्सर्वं कीदृशम् अस्ति ?
(A) वास्यम्
(B) आवास्यम्
(C) सर्वम्
(D) ईशावास्यम्।
उत्तराणि:
(D) ईशावास्यम्

(iii) पदार्थभोगः कथं करणीयः ?
(A) त्यागभावेन
(B) लोभवृत्त्या
(C) साधुवृत्त्या
(D) भोगभावेन।
उत्तराणि:
(A) त्यागभावेन

(iv) आत्महनो जनाः कीदृशं लोकं गच्छन्ति ?
(A) सूर्यलोकम्
(B) चन्द्रलोकम्
(C) असुर्यालोकम्
(D) ब्रह्मलोकम्।
उत्तराणि:
(C) असुर्यालोकम्

(v) मनसोऽपि वेगवान् कः ?
(A) वायुः
(B) आत्मा
(C) आत्मीयः
(D) वायव्यः।
उत्तराणि:
(B) आत्मा

(vi) तिष्ठन्नपि कः धावतः अन्यान् अत्येति ?
(A) परमात्मा
(B) दुरात्मा
(C) अश्वः
(D) मनः।
उत्तराणि:
(A) परमात्मा

(vii) अविद्यया किं तरति ?
(A) अमृतम्
(B) वित्तम्
(C) ऋतम्
(D) मृत्युम्।
उत्तराणि:
(D) मृत्युम्

(vii) विद्यया किं प्राप्नोति ?
(A) अमृतम्
(B) धनम्
(C) यशः
(D) मृत्युम्।
उत्तराणि:
(A) अमृतम्।

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितम् पदं चित्वा लिखत
(i) इदं सर्वं जगत् ईशावास्यम्
(A) कः
(B) कीदृशम्
(C) कति
(D) कस्मात्।
उत्तराणि:
(B) कीदृशम्

(ii) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(A) कस्य
(B) केषाम्
(C) किम्
(D) कुत्र।
उत्तराणि:
(C) किम्

(iii) असुर्या नाम लोका अन्धेन तमसा आवृताः।
(A) केन
(B) कस्य
(C) कस्मै
(D) कस्याम्।
उत्तराणि:
(A) केन

(iv) अविद्योपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(A) कः
(B) को
(C) काः
(D) के।
उत्तराणि:
(D) के।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठ्यांशः

1. शावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य॑ स्विद्धनम्॥1॥

अन्वयः-इदं सर्वं यत् किं च जगत्यां जगत् (तत्) ईशावास्यम्, तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः, कस्यस्वित् धनं मा गृधः ।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में परमात्मा की सर्वव्यापकता तथा त्यागपूर्वक भोग का उपदेश दिया गया है।

सरलार्थ:-यह सब जो कुछ सृष्टि में चराचर जगत् है, वह सब परमेश्वर से व्याप्त है। इसीलिए त्याग भाव से सृष्टि के पदार्थों का उपभोग कर। किसी के भी धन का लालच मत कर।

भावार्थ:-इस सृष्टि में जो भी जड़-चेतन पदार्थ दृष्टिगोचर हो रहे हैं, उन सबमें एकरस होकर परमात्मा व्यापक त्यागभाव से ही सृष्टि के पदार्थों का उपभोग करना चाहिए। किसी के भी धन पर गृद्ध दृष्टि नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अन्ततः यह धन किसी का भी नहीं। त्यागपूर्वक भोग शरीर के लिए भोजन (शरीर की शक्ति) बन जाता है और आसक्ति/लालच से किसा गया भोग विषय-भोग बन जाता है। ऐसा आसक्तिमय भोग ही रोग का कारण होता है-‘भोगे रोगभयम्’।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च

ईशावास्यम् = ईश के रहने योग्य अर्थात् ईश्वर से व्याप्त। ईशस्य ईशेन वा आवास्याम्। जगत्याम् = जगती अर्थात् ब्रह्माण्ड/सृष्टि में। सप्तमी एकवचन। जगत् = सतत परिवर्तनशील संसार। गच्छति इति जगत्। सततं परिवर्तमानः प्रपञ्चः । भुञ्जीथाः = भोग करो। विषय वस्तु का ग्रहण करो। भोगं कुरु। ।भुज् (पालने अभ्यवहारे च), आत्मनेपदी, विधिलिङ् मध्यम पुरुष, एकवचन। मा गृधः = लोलुप मत हो। लोभ मत करो। लोलुपः मा भव। गध (अभिकांक्षायाम) लङ् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में ‘अगृधः’ रूप बनता है। व्याकरण के नियमानुसार निषेधार्थक ‘माङ्’ अव्यय के योग में ‘अगृधः’ के आरम्भ में विद्यमान ‘अ’ कार का लोप हो जाता है। कस्यस्विद् = किसी का। इसके समानार्थक पद हैं-कस्यचित्, कस्यचन। अव्यय।।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

2. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
वं त्वयि नान्यथेतोस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥2॥

अन्वयः-इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समाः जिजीविषेत् । एवं त्वयि नरे कर्म न लिप्यते। इतः अन्यथा (मार्गः) न अस्ति। __ प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में कर्तव्य भाव से कर्म करने की प्रेरणा दी गई है।

सरलार्थः-इस संसार में कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करे। इस प्रकार तुझ मनुष्य में कर्मों का लेप/बन्धन नहीं होता। इससे अन्य दूसरा कोई मार्ग नहीं है।

भावार्थ:-उपनिषद् के पहले मन्त्र में त्यागपूर्वक भोग की बात कही गई है। इस मन्त्र में कर्म करते हुए-पुरुषार्थी बनकर ही सौ वर्षों के दीर्घजीवन का संकल्प प्रकट किया गया है। दोनों मन्त्रों का समन्वित भाव यह है कि मनुष्य को संसार में अनासक्त भाव से कर्म करते हुए स्वाभिमान पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। लोभ/आसक्ति के कारण ही मनुष्य पाप कर्म करता है-‘लोभः पापस्य कारणम्’। कर्तव्य भाव से किए गए कर्म सदा शुभ होते हैं। अतः ऐसे निष्काम कर्म मनुष्य को कर्म-बन्धन में नहीं बाँधते अपितु उसे मुक्त जीवन प्रदान करते है। श्रीमद्भगवद्गीता के निष्काम कर्मयोग का मूल स्रोत उपनिषद् के ये वचन ही हैं।

प्रस्तुत मन्त्र का यह सारगर्भित सन्देश है कि मनुष्य को निठल्ले रहकर नहीं अपितु जीवन भर पुरुषार्थी बनकर कर्तव्य भाव से शुभ कर्म करते हुए ही अपना जीवन यापन करना चाहिए। जीवन्मुक्त होने का यही एक उपाय है, इससे भिन्न कोई उपाय नहीं है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
कुर्वन्नेव = करते हुए ही। कृ + शत, पुंल्लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन। कुर्वन् + एव। जिजीविषेत् = जीने की इच्छा करें। जीवितुम् इच्छेत्। Vजीव् (प्राणधारणे), इच्छार्थक सन् प्रत्यय से विधिलिङ्। जीव + सन् + विधिलिङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। शतं समाः = सौ वर्ष; शतं वर्षाणि। कर्म न लिप्यते = कर्म लिप्त नहीं होता। लिप् (उपदेहे), लट्, कर्मणि प्रयोग। ‘कर्म नरे न लिप्यते-यह एक विशिष्ट वैदिक प्रयोग है। तुलना कीजिए–’लिप्यते न स पापेन।’ – (भगवद्गीता-5.10)।

पन्थाः = मार्ग, उपाय। पथिन्, पुंल्लिग, प्रथमा-एकवचन। अन्यथा इतः = इससे भिन्न।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

3. असुर्या ना ते लोकाऽन्धेसाऽऽवृताः।
ताँस्ते प्रेत्यापिं गच्छन्ति ये के चात्मनो जनाः ॥3॥

अन्वयः-असुर्याः नाम ते लोकाः, (ये) अन्धेन तमसा आवृताः (सन्ति), ये के च आत्महनः जनाः (भवन्ति), ते प्रेत्य तान् अभिगच्छन्ति।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में आत्मस्वरूप का तिरस्कार करने वाले को आत्महन्ता कहा गया है।

सरलार्थः-असुरों अर्थात् केवल प्राणपोषण में लगे हुए लोगों के वे प्रसिद्ध लोक (योनियाँ) हैं, जो गहरे अज्ञानअन्धकार से ढके हुए हैं। जो कोई लोग आत्मा के हत्यारे (आत्मा के विरुद्ध अधर्म का आचरण करने वाले) होते हैं, वे मरकर उन अज्ञान के अन्धकार से युक्त योनियों को प्राप्त करते हैं।

भावार्थ:-आत्मा अमर है, यह कभी नहीं मरता। आत्मा के विरुद्ध अधर्म का आचरण करना तथा आत्मा की सत्ता को स्वीकार न करना ही आत्महत्या है। आत्मा के दो रूप हैं-परमात्मा और जीवात्मा। परमात्मा सम्पूर्ण जड-चेतन में व्यापक होकर उसे अपने शासन में रखता है। जीवात्मा शरीर में व्यापक होकर उसे अपने नियन्त्रण में रखता है। जो लोग आत्मा के इस स्वरूप का तिरस्कार करते हैं तथा अपने प्राणपोषण के लिए आसक्तिपूर्वक सृष्टि के पदार्थों का भोग करते हैं, वे असुर हैं। ऐसे राक्षसवृत्ति लोगों को मरने के पश्चात् उन ‘असुर्या’ नामक अन्धकारमयी योनियों में जन्म मिलता है, जहाँ ज्ञान का प्रकाश नहीं होता।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
असुर्याः = प्रकाशहीन। अथवा असुर सम्बन्धी। अविद्यादि दोषों से युक्त, प्राणपोषण में निरत। असुषु प्राणेषु रमते यः सः असुरः। असुर + यत् = असुर्य। प्रथमा विभक्ति बहुवचन। अन्धेन तमसा = अज्ञान रूपी घोर अन्धकार से। ‘तमः’ शब्द अज्ञान का बोधक। आवृताः = आच्छादित। आ +/ वृ (वरणे) + क्त। प्रेत्य = मरणं प्राप्य, मरण प्राप्तकर। इण (गतौ) धातु। प्र + इ + ल्यप्। आत्महनः = आत्मानं ये घ्नन्ति । आत्मा की व्यापकता को जो स्वीकार नहीं करते। ‘आत्मानं = ईशं सर्वतः पूर्ण चिदानन्दं घ्नन्ति = तिरस्कुर्वन्ति (शाकरभाष्ये)’।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

4. अनेदेकं मनसो जवीयो नैनदेवा आप्नुन् पूर्वमर्शत्।
तद्धावतोऽन्यानत्यति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मारिश्वा दधाति॥4॥

अन्वयः-अनेजत्, एकम् मनसः जवीयः। देवाः एनत् न आप्नुवत्। पूर्वम् अर्षत्। तत् तिष्ठत् धावतः अन्यान् अत्येति। तस्मिन् मातरिश्वा अपः दधाति।।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में सर्वव्यापक परमात्मा के स्वरूप का निरूपण किया गया है।

सरलार्थ:-(वह परमात्मा) निश्चल, एक, मन से भी अधिक वेग वाला है। देव (इन्द्रियाँ) उस तक नहीं पहुँच पाते हैं। (यह सर्वव्यापक होने से सब जगह) पहले से ही पहुँचा हुआ है। इसीलिए वह परमात्मा अपने स्वरूप में स्थिर रहते हुए दौड़ने वाले दूसरे ग्रह-उपग्रह आदि का अतिक्रमण कर जाता है। उसी परमात्मा के नियम से वायु जलों को धारण करता है अथवा यह जीवात्मा कर्मों को धारण करता है।

भावार्थ:-वह परमात्मा अचल, एक, मन से भी अधिक वेगवान् तथा इन्द्रियों की पहुँच से परे है। परमात्मा की व्यवस्था से ही मित्र और वरुण नामक वायु मिलकर जल का रूप (H2,O) धारण करते हैं अथवा परमात्मा की व्यवस्था में ही सभी जीवात्माएँ अपने-अपने कर्मों को धारण करती हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अनेजत् = कम्पन रहित। विकार रहित, स्थिर, अचल। √ एज़ (कम्पने)। न + √ एज् + शतृ। नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। जवीयः = अधिक वेगवाला। अतिशयेन जववत्। जव + ईयस्। नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। देवाः = इन्द्रियाँ । न आप्नुवन् = प्राप्त नहीं किया। /आप्लु (व्याप्तौ), लङ् लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। अर्षत् = गच्छत्। गमनशील। √ ऋषी (गतौ)। शतृ प्रत्यय, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। अथवा √ऋ (गतौ), लेट् लकार। तिष्ठत् = स्थिर रहने वाला। परिवर्तन रहित। (स्था + शतृ, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। अपः = जल, कर्म । मातरिश्वा = वायु , प्राणवायु। मातरि – अन्तरिक्षे श्वयति – गच्छति इति मातरिश्वा। नकारान्त पुंलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

5. न्धन्तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
तो भूय इ ते तमो य उ विद्याया रताः॥

अन्वयः-ये अविद्याम् उपासते, (ते) अन्धन्तमः प्रविशन्ति। ततः भूयः इव ते तमः (प्रविशन्ति), ये उ विद्यायां रताः ।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽ-मृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में बताया गया है कि केवल अविद्या = भौतिक विद्या अथवा केवल विद्या = अध्यात्म विद्या में लगे रहना अन्धकार में पड़े रहने के समान है।

सरलार्थः-जो लोग केवल अविद्या अर्थात् भौतिक साधनों की प्राप्ति कराने वाले ज्ञान की उपासना करते हैं, वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। परन्तु उनसे भी अधिक घोर अन्धकारमय जीवन उन लोगों का होता है, जो केवल विद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने में ही लगे रहते हैं।

भावार्थ:-अविद्या और विद्या वेद के विशिष्ट शब्द हैं। ‘अविद्या’ से तात्पर्य है शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता करने वाला ज्ञान। ‘विद्या’ का अर्थ है, आत्मा के रहस्य को प्रकट करने वाला अध्यात्म ज्ञान। वेद मन्त्र का तात्पर्य है कि यदि व्यक्ति केवल भौतिक साधनों को जुटाने का ज्ञान ही प्राप्त करता है और ‘आत्मा’ के स्वरूपज्ञान को भूल जाता है तो बहुत बड़ा अज्ञान है, उसका जीवन अन्धकारमय है। परन्तु जो व्यक्ति केवल अध्यात्म ज्ञान में ही मस्त रहता है, उसकी दुर्दशा तो भौतिक ज्ञान वाले से भी अधिक दयनीय होती है। क्योंकि भौतिक साधनों के अभाव में शरीर की रक्षा भी कठिन हो जाएगी। अत: वेदमन्त्र का स्पष्ट संकेत है कि भौतिक ज्ञान तथा अध्यात्म ज्ञान से युक्त सन्तुलित जीवन ही सफल और आनन्दित जीवन है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अन्धन्तमः = घोर अन्धकार। प्रविशन्ति= प्रवेश करते हैं। प्र + विश् (प्रवेशने) लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। उपासते = उपासना करते हैं। उप + आसते। आस् (उपवेशने) धातु लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। आस्ते आसाते आसते। ततो भूय इव = उससे अधिक। तीनों पद अव्यय हैं। ततः + भूयः + इव। रताः = रमण करते हैं। निरत हैं। रिम् (क्रीडायाम्) + क्त प्रथमा विभक्ति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

6. न्यदेवाहुर्विद्यया न्याहुरविद्यया।
इति शुश्रु धीराणां ये स्तद्विचचक्षिरे॥6॥

अन्वयः-विद्यया अन्यत् एव (फलम्) आहुः । अविद्यया अन्यत् एव (फलम् आहुः) इति धीराणां (वचांसि) शुश्रुम, ये नः तत् विचचक्षिरे।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में विद्या और अविद्या के अलग-अलग फल की चर्चा की गई है।

सरलार्थ:-अविद्या अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान का अलग प्रकार का फल होता है और विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान का अलग प्रकार का फल होता है। इस प्रकार से हमने उन विद्वान् ज्ञानी पुरुषों के वचनों को सुना है, जिन विद्वानों ने उस विद्या और अविद्या के रहस्य को हमारे लिए स्पष्ट उपदेश किया है।

भावार्थ:-व्यावहारिक ज्ञान से सांसारिक सुख-साधनों की प्राप्ति तथा शरीर की भूख-प्यास दूर होती है। अध्यात्मज्ञान आत्मा को अपने स्वरूप में स्थिर बनाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार का ज्ञान अलग-अलग उद्देश्य को सिद्ध करता है। जिन विद्वान् लोगों ने अविद्या और विद्या के इस रहस्य को हमारे कल्याण के लिए समझाया है, उन्हीं से हमने ऐसा सुना

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
आहुः = कहते हैं। ब्रूञ् (व्यक्तायां वाचि), लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन । शुश्रुम = सुन चुके हैं। √श्रु (श्रवणे), लिट् लकार उत्तम पुरुष बहुवचन। विचचक्षिरे = स्पष्ट उपदेश किए थे। वि + √चक्षिङ् (आख्याने), लिट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। चचक्षे चचक्षाते चचक्षिरे। विद्या = ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान। । √विद् (ज्ञाने) + क्यप् + टाप् । यहाँ ‘अध्यात्म विद्या’ के अर्थ में ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग हुआ है। इस चराचर जगत् में सर्वत्र व्याप्त आत्मस्वरूप ईश्वर के ज्ञान को तथा शरीर में व्याप्त आत्मस्वरूप जीव के ज्ञान को ‘अध्यात्मविद्या’ की संज्ञा दी गई है। यह यथार्थ ज्ञान ‘विद्या’ है। इसे ही ‘मोक्ष विद्या’ नाम से भी जाना जाता है। अविद्या = अध्यात्मेतर विद्या, व्यावहारिक विद्या। अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सभी ज्ञान। न + विद्या ‘न’ का अर्थ है ‘इतर’ अथवा ‘भिन्न’। अर्थात् ‘आत्मविद्या से भिन्न’ जो भी ज्ञानराशि है; जैसे-सृष्टिविज्ञान, यज्ञविद्या, भौतिक विज्ञान, आयुर्विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सूचना-तन्त्र-ज्ञान आदि अविद्या पद में समाहित

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

7. विद्यां चाविद्यां यस्तद्वेदोभयं ह।
अविद्यया मृत्युं तीर्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते॥7॥

अन्वयः-यः विद्यां च अविद्यां च उभयं सह वेद, (सः) अविद्यया मृत्यु तीा विद्यया अमृतम् अश्नुते।

प्रसंगः-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में अध्यात्मज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान द्वारा सन्तुलित जीवन यापन करने का आदेश दिया है।

सरलार्थः-जो मनुष्य विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान तथा अविद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सभी प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान, दोनों को एक साथ जानता है। वह व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को पारकर अध्यात्म ज्ञान द्वार। जन्ममृत्यु के दुःख से रहित अमरत्व को प्राप्त करता है।

भावार्थ:-‘विद्या’ और ‘अविद्या’-ये दोनों शब्द विशिष्ट वैदिक प्रयोग हैं। ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग यहाँ अध्यात्म ज्ञान’ के अर्थ में हुआ है। इस जड़-चेतन जगत् में सर्वत्र व्याप्त परमात्मा तथा शरीर में व्याप्त जीवात्मा के ज्ञान को अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। यह मोक्षदायी यथार्थ ज्ञान ही ‘विद्या’ है। इससे भिन्न सभी प्रकार के ज्ञान को ‘अविद्या’ नाम दिया गया है। अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सृष्टिविज्ञान, यज्ञविज्ञान, भौतिकविज्ञान, आयुर्विज्ञान, गणितविज्ञान, अर्थशास्त्र प्रौद्योगिकी, सूचनातन्त्र आदि सभी प्रकार का ज्ञान ‘अविद्या’ शब्द में समाहित हो जाता है। यह अध्यात्मेतर ज्ञान मनुष्ट को मृत्यु दुःख से छुड़वाता है और इसी अध्यात्म ज्ञान द्वारा मनुष्य फिर अमरत्व अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, जन्ममरण के चक्र से छूट जाता है। इस प्रकार यह दोनों प्रकार का ज्ञान ही मनुष्य के लिए आवश्यक है, तभी वह इहलोक तथा परलोक दोनों को सिद्ध कर सकता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
वेद = जानता है। विद् (ज्ञाने), लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचन । उभयम् = दोनों। तीर्वा =पार जाकर, तरणकर। √तृ (प्लवनतरणयोः) + क्त्वा। अव्यय। अमृतम् = अमरता को। जन्म-मृत्यु के दुःख से रहित अमरत्व को। अश्नुते = प्राप्त करता है। अश् (भोजने) भोजनार्थक धातु इस सन्दर्भ में प्राप्ति के अर्थ में है। (अश्नुते प्राप्तिकर्मा; निघण्टुः 2.18)

विद्ययाऽमृतमश्नुते (अध्यात्मज्ञान से अमरता प्राप्त होती है) Summary in Hindi

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठ-परिचय

“सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान का आदिस्रोत ‘वेद’ ही हैं”-ऐसा विद्वानों का मत है। वेदों का सार उपनिषदों में निहित है। उपनिषदों को ‘ब्रह्मविद्या’, ‘ज्ञानकाण्ड’ अथवा ‘वेदान्त’ नाम से भी जाना जाता है। ‘उप’ तथा ‘नि’ उपसर्ग पूर्वक सद् (षद्ल) धातु से ‘क्विप्’ प्रत्यय होकर ‘उपनिषद्’ शब्द निष्पन्न होता है-उप + नि + √सद् + क्विप् > 0 = उपनिषद् जिससे अज्ञान का नाश होता है, आत्मा का ज्ञान सिद्ध होता है, संसार चक्र का दुःख छूट जाता है; वह ज्ञानराशि ‘उपनिषद्’ कही जाती है। गुरु के समीप बैठकर अध्यात्मविद्या ग्रहण की जाती है-इस कारण भी ‘उपनिषद्’ शब्द सार्थक है।

‘उपनिषद्’ नाम से 200 से भी अधिक ग्रन्थ मिलते हैं। परन्तु प्रामाणिक दृष्टि से उन में 11 उपनिषद् ही महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हीं पर आचार्य शकर का भाष्य भी मिलता है। इनके नाम इस प्रकार हैं-1. ईशावास्य 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छान्दोग्य, 10. बृहदारण्यक तथा 11. श्वेताश्वतर। • इनमें भी ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ सबसे अधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है। ‘यजुर्वेद’ का अन्तिम चालीसवाँ अध्याय ही ‘ईशोपनिषद्’ के नाम से प्रसिद्ध है, इसमें कुल 17 मन्त्र हैं।

इस उपनिषद् में ‘समस्त जगत् ईश्वाराधीन है’- यह प्रतिपादित करके भगवद्-अर्पणबुद्धि से जगत् के पदार्थों का उपभोग करने का निर्देश किया गया है। ‘जगत्यां जगत्”ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है, सब जगत् अर्थात् गतिमय है’-उपनिषद् के इस सिद्धान्त की पुष्टि आधुनिक विज्ञान एवं आधुनिक खोज द्वारा भी होती है। निरन्तर परिवर्तन तथा निरन्तर गतिमयता ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य + चन्द्र + पृथ्वी आदि ग्रह-उपग्रहों का स्वभाव है।

इस उपनिषद् में ‘विद्या’ ‘अविद्या’ दो विशिष्ट वैदिक पदों का प्रयोग हुआ है। जो लोग ‘अविद्या’ शब्द द्वारा कहे जाने वाले यज्ञयाग, भौतिकशास्त्र आदि सांसारिक ज्ञान में दैनिक सुख-साधनों की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहते हैं; उनकी सांसारिक उन्नति तो बहुत होती है, परन्तु उनका अध्यात्म पक्ष निर्बल रह जाता है। जो लोग केवल अध्यात्म ज्ञान में ही लीन रहते हैं और भौतिक ज्ञान की साधन सामग्री की अवहेलना करते हैं, वे सांसारिक जीवन के निर्वाह तथा सांसारिक उन्नति में पिछड़ जाते हैं।

इसीलिए अविद्या अर्थात् भौतिकज्ञान द्वारा जीवन की सुख-साधन सामग्री अर्जित कर विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान द्वारा जन्म-मरण के दुःख से रहित अमृतपद को प्राप्त करने का सारगर्भित उपदेश इस उपनिषद् में दिया गया है-‘अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते’। श्रीमद्भगवद्गीता में ईशोपनिषद् के ही दार्शनिक विचारों का विस्तार से व्याख्यान किया गया है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठस्य सारः

प्रस्तुत पाठ ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संकलित है। ‘ईशावास्यम्’ पद से आरम्भ होने के कारण इसे ‘ईशावास्योपनिषद्’ नाम दिया गया है। इसे ही ‘ईशोपनिषद्’ के नाम से भी जाना जाता है। यह उपनिषद् यजुर्वेद की माध्यन्दिन एवं काण्व संहिता का 40वाँ अध्याय है, जिसमें 18 मन्त्र हैं।

इस पाठ के पहले दो मन्त्रों में ईश्वर की सर्वत्र विद्यमानता को दर्शाते हुए, कर्तव्य भावना से कर्म करने एवं त्यागपूर्वक संसार के पदार्थों का उपयोग एवं संरक्षण करने का उल्लेख है। तीसरे मन्त्र में उन लोगों को अज्ञानी तथा आत्महन्ता कहा गया है जो लोग परमात्मा की व्यापकता को स्वीकार नहीं करते हैं। चतुर्थ मन्त्र में चैतन्य स्वरूप, स्वयं प्रकाश एवं विभु सर्वव्यापक आत्म तत्त्व का निरूपण है। पञ्चम एवं षष्ठ मन्त्रों में अविद्या अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान एवं विद्या अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान पर सूक्ष्म चिन्तन किया गया है। अन्तिम मन्त्र में यह स्पष्ट किया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान से लौकिक अभ्युदय एवं अध्यात्मज्ञान से अमरता की प्राप्ति होती है।

इस पाठ में संकलित मन्त्रों में परमात्मा की सर्वव्यापकता, त्यागपूर्वक भोग, स्वाभिमान से पूर्ण कर्मनिष्ठ जीवन का उपदेश देते हुए यह सारगर्भित सन्देश दिया गया है कि लौकिक एवं अध्यात्म विद्या एक-दूसरे की पूरक हैं तथा मानव जीवन की परिपूर्णता और उसके सर्वांगीण विकास में समान रूप से महत्त्व रखती हैं।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

Question 1.
निम्नलिखित संख्याओं के वर्गमूल ज्ञात करने में .इकाई अंक की क्या संभावना है-
(i) 9801
(ii) 99856
(iii) 998001
(iv) 657666025
हल:
(i) 9801 – चूंकि 9801 में इकाई का अंक 1 है, अत: इसके वर्गमूल का इकाई अंक 1 या 9 हो सकता है।

(ii) 99856 – चूंकि इस संख्या में इकाई का अंक 6 है, अत: इसके वर्गमूल का इकाई अंक 4 . या 6 हो सकता है।

(iii) 998001 – चूंकि इसमें इकाई का अंक 1 है, अत: इसके वर्गमूल का इकाई अंक 1 या 9 हो सकता है।

(iv) 657666025 – चूँकि इस संख्या का इकाई का अंक 5 है, अत: इसके वर्गमूल का इकाई का अंक भी 5 होगा ।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 2.
बिना गणना किये वह संख्या बताएं जो वास्तव में पूर्ण वर्ग नहीं है –
(i) 153 (ii) 257 (iii) 408 (iv) 441
हल :
नियम: जिन संख्याओं में इकाई के अंक 2,3,7 या 8 होते हैं, वे संख्याएँ कभी पूर्ण वर्ग संख्या नहीं होती हैं ।
(i) 153 – चूँकि इस संख्या में इकाई का अंक 3 है ।
अतः 153 पूर्ण वर्ग नहीं है ।

(ii) 257 – चूँकि इस संख्या में इकाई का अंक 7 है।
अत: 257 पूर्ण वर्ग नहीं है ।

(iii) 408 – चूँकि इस संख्या में इकाई का अंक 8 है।
अत: 408 पूर्ण वर्ग नहीं है।

(iv) 441 – चूँकि इस संख्या में इकाई का अंक 1 है ।
अत: 441 पूर्ण वर्ग हो सकती है ।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 3.
बार-बार घटाने की विधि से 100 तथा 169 का वर्गमूल ज्ञात कीजिए।
हल:
(a) 100 – 1 = 99
(b) 99 – 3 = 96
(c) 96 – 5 = 91
(d) 91 – 7 = 84
(e) 84 – 9 = 75
(f) 75 – 11 = 64
(g) 64 – 13 = 51
(h) 51 – 15 = 36
(i) 36 – 17 = 19
(j) 19 – 19 = 0
चूँकि संख्या 1 से क्रमागत विषम संख्याओं को 100 में से घटाने पर 10 वाँ पद (0) शून्य प्राप्त होता है ।
अत: \(\sqrt {100}\) = 10

(ii) 169
(a) 169 – 1 = 168
(b) 168 – 3 = 165
(c) 165 – 5 = 160
(d) 160 – 7 = 153
(e) 153 – 9= 144
(f) 144 – 11 = 133
(g) 133 – 13 = 120
(h) 120 – 15 = 105
(i) 105 – 17= 88
(j) 88 – 19 = 69
(k) 69 – 21 = 48
(l) 48 – 23 = 25
(m) 25 – 25 = 0
चूँकि संख्या 1 से क्रमागत विषम संख्याओं को 169 में से घटाने पर 13 वाँ पद 0 शून्य प्राप्त होता है ।
अत: \(\sqrt {169}\) = 13

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 4.
अभाज्य गुणनखण्ड विधि से निम्नांकित संख्याओं का वर्गमूल ज्ञात कीजिए –
(i) 729
(ii) 400
(ii) 1764
(iv) 4096
(v) 7744
(vi) 9604
(vii) 5929
(viii) 9216
(ix) 529
(x) 8100
हल:
(i) 729
729 = 3 × 3 × 3 × 3 × 3 × 3
= 32 × 32 × 32
= (3 × 3 × 3)2
= (27)2
अत: \(\sqrt {729}\) = 27
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -1

(ii) 400
400 = 2 × 2 × 2 × 2 × 5 × 5
= 22 × 22 × 52
= (2 × 2 × 5)2
= (20)2
अत: \(\sqrt {200}\) = 20
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -2

(iii) 1764
1764 = 2 × 2 × 3 × 3 × 7 × 7
= 22 × 32 × 72
= (2 × 3 × 7)2
= (42)2
अत: \(\sqrt {1764}\) = 42
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -3

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

(iv) 4096
4096 = 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2
= 22 × 22 × 22 × 22 × 22 × 22
= (2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2)2
= (64)2
अत: \(\sqrt {4096}\) = 64
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -4

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -5

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 5.
निम्नलिखित संख्याओं में प्रत्येक के लिए वह सबसे छोटी पूर्ण संख्या ज्ञात कीजिए, जिससे इस संख्या को गुणा करने पर यह एक पूर्ण वर्ग संख्या बन जाये । इस पूर्ण वर्ग संख्या का वर्गमूल ज्ञात कीजिए
(i) 252
(ii) 180
(iii) 1008
(iv) 2028
(v) 1458
(vi) 768
हल :
(i) 252
252 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 7
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -6
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 7 का जोड़ा नहीं है।
अत: यदि 7 का एक जोड़ा बनाते हैं तब संख्या 252 पूर्ण वर्ग हो जायेगी ।
अत: 252 में 7 का गुणा करने पर-
252 × 7 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{7 \times 7}\)
= 1764 एक पूर्ण वर्ग संख्या है।
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 7
और \(\sqrt {1764}\) = 2 × 3 × 7
= 42.

(ii) 180
180 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 5
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -7
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 5 का जोड़ा नहीं है।
अत: 180 में 5 का गुणा करने पर-
180 × 5 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{5 \times 5}\)
= 900 (पूर्ण वर्ग संख्या )
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 5
और \(\sqrt {900}\) = 2 × 3 × 5
= 30.

(iii) 1008
1008 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 7.
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -8
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 7 का जोड़ा नहीं है।
अत: 1008 में 7 का गुणा करने पर-
1008 × 7 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{7 \times 7}\)
= 7056 (पूर्ण वर्ग संख्या)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 7
तथा \(\sqrt {7056}\) = 2 × 2 × 3 × 7 = 84.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

(iv) 2028
2028 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{13 \times 13}\) × 3
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -9
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 3 का जोड़ा नहीं है।
अत: 2028 में 3 का गुणा करने पर-
2028 × 3 =\(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{13 \times 13}\) (पूर्ण वर्ग संख्या)
= 6084
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 3
और ∴ \(\sqrt {6084}\) = 2 × 3 × 13 = 78

(v) 1458
1458 = \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 2
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -10
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 2 का जोड़ा नहीं है।
अत: 1458 में 3 का गुणा करने पर-
1458 × 2 = \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{2 \times 2}\) (पूर्ण वर्ग संख्या)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 2
अत: \(\sqrt {2916}\) = 2 × 3 × 3 × 3 = 54

(vi) 768
768 = 2 × 2 × 2 × 2 ×2 × 2 × 2 × 2 × 3
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -11
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 3 का जोड़ा नहीं है।
अत: 768 में 3 का गुणा करने पर-
768 × 3 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 3
\(\sqrt {2304}\) = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 = 48.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 6.
निम्नलिखित संख्याओं में प्रत्येक के लिए वह सबसे छोटी पूर्ण संख्या ज्ञात कीजिए जिससे इस संख्या को भाग देने पर वह एक पूर्ण वर्ग संख्या बन जाए। इस तरह ज्ञात की गई संख्या का वर्गमूल भी ज्ञात कीजिए।
(i) 252
(ii) 2925
(iii) 396
(iv) 2645
(v) 2800
(vi) 1620
हल:
(i) 252
252 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 7
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -12
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 7 का जोड़ा नहीं है।
इसलिए, 252 में 7 का भाग दिया जाय, तो
252 ÷ 7 = 36
= \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 7
और \(\sqrt {36}\) = 6

(ii) 2925
2925 = \(\underline{5 \times 5}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 13
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -13
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 13 का जोड़ा नहीं है।
इसलिए, 2925 में 13 का भाग दिया जाय, तो
2925 ÷ 13 = 225
= \(\underline{5 \times 5}\) × \(\underline{3 \times 3}\)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 13 और
\(\sqrt {225}\) = 15

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

(iii) 396
396 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 11
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -14
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 11 का जोड़ा नहीं है।
अत: 396 में 11 का भाग देने पर-
396 ÷ 11 = 36 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\)
अत: सबसे छोटी वांछित संख्या = 11
और \(\sqrt {36}\) = 2 × 3 = 6

(iv) 2645
2645 = \(\underline{23 \times 23}\) × 5
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -15
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 5 का जोड़ा नहीं है।
अत: 2645 में 5 का भाग देने पर-
2645 ÷ 5 = 529 = 23 × 23
अत: सबसे छोटी संख्या = 5
और \(\sqrt {529}\) = 23.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

(iv) 2800
2800 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{5 \times 5}\) × 7
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -16
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 7 का जोड़ा नहीं है।
अत: 2800 में 7 का भाग देने पर-
2800 ÷ 7 = 400 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{5 \times 5}\)
अत: सबसे छोटी संख्या = 7
और \(\sqrt {400}\) = 2 × 2 × 5 = 20

(iv) 1620
1620 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 5
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -17
अभाज्य गुणनखण्ड के अनुसार 5 का जोड़ा नहीं है।
अत: 1620 में 5 का भाग देने पर-
1620 ÷ 5 = 324 = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{3 \times 3}\)
अत: सबसे छोटी संख्या = 5
और \(\sqrt {324}\) = 2 × 2 × 3
\(\sqrt {324}\) = 18

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 7.
एक राष्ट्रीय विद्यालय में कक्षा VIII के सभी विद्यार्थियों ने प्रधानमंत्री राहत कोष में 2401 रुपए दान में दिए। प्रत्येक विद्यार्थी ने उतने ही रुपए दान में दिए जितने कक्षा में विद्यार्थी थे। कक्षा के विद्यार्थियों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल:
माना, विद्यार्थियों में कुल संख्या = x
प्रत्येक विद्यार्थी ने दान में दिए = ₹ x
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -18
अतः x × x = 2401 (∵ कुल दान में रु. दिये)
x2 = 2401
x = \(\sqrt{2401}\)
= \(\sqrt{7 \times 7 \times 7 \times 7}\)
x = 7 × 7 = 46
अत: कक्षा में कुल विद्यार्थियों की संख्या = 49

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3

प्रश्न 8.
एक बाग में 2025 पौधे इस प्रकार लगाये जाने हैं कि प्रत्येक पंक्ति में उतने ही पौधे हों, जितनी पंक्तियों की संख्या हो । पंक्तियों की संख्या और प्रत्येक पंक्ति में पौधों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल:
माना, पंक्तियों की संख्या = x
तथा प्रत्येक पंक्ति में पौधों की संख्या =x
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -19
∴ कुल पौधों की संख्या= x × x = 2025
∴ x2 = 2025
x = \(\sqrt{2025}\) = \(\sqrt{3 \times 3 \times 3 \times 3 \times 5 \times 5}\)
∴ x = 5 × 3 × 3 = 45
अतः पंक्तियों की संख्या = 45 तथा
प्रत्येक पंक्ति में पौधे की संख्या = 45

प्रश्न 9.
वह सबसे छोटी वर्ग संख्या ज्ञात कीजिए जो 4, 9 और 10 प्रत्येक से विभाजित हो जाए।
हल:
4,9 व 10 का ल. स. प.
= 2 × 2 × 3 × 3 × 5
= 180
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -20

180 का अभाज्य गुणनखण्ड = \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × 5
इस गुणनखण्ड में 5 का जोड़ा नहीं है।
∴ 180 पूर्ण वर्ग संख्या नहीं है।
अतः 180 को पूर्ण वर्ग संख्या बनाने के लिए 5 का गुणा किया जाये, जिससे 180 के गुणनखण्ड में 5 का जोड़ा बन जायेगा ।
∴ 180 × 5 = 900 (यह पूर्ण वर्ग संख्या है)
= \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{5 \times 5}\)
अत: अभीष्ट सबसे छोटी वर्ग सख्या = 900

प्रश्न 10.
वह सबसे छोटी वर्ग संख्या ज्ञात कीजिए, जो प्रत्येक 8, 15 और 20 से विभाजित हो जाये।
हल :
8, 15 व 20 का ल. स. प.
= 2 × 2 × 2 × 3 × 5
= 120
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.3 -21
अत: इनके जोड़ा बनाने के लिए 120 में 2,3 व 5 का गुणा करना पड़ेगा।
अत: संख्या = 120 × 2 × 3 × 5
= 3600 ⇒ \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{2 \times 2}\) × \(\underline{3 \times 3}\) × \(\underline{5 \times 5}\)
अत: पूर्ण वर्ग संख्या = 3600
जो कि, क्रमशः प्रत्येक 8, 15, 20 से पूर्णतः विभाजित भी होगी ।
अभीष्ट सबसे छोटी वर्ग संख्या = 3600

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2

नोट: संख्याओं का वर्ग ज्ञात करने के लिए मुख्य संख्या को उचित रूप से दो संख्याओं में इस प्रकार विभाजित करेंगे कि उनका योग मुख्य संख्या हो, तब निम्नांकित प्रकार से उसको हल करेंगे। जैसे संख्या का वर्ग ज्ञात करना है,
तो
x2 = (a + b)2
= (a + b)(a + b)
x2 = a(a + b) + b(a + b)

प्रश्न 1.
निम्न संख्याओं का वर्ग ज्ञात कीजिए-
(i) 32
(ii) 35
(iii) 86
(iv) 93
(v) 71
(vi) 46.
हल:
(i) 32
322 = (30 + 2)2
= (30 + 2) (30 + 2)
= 30(30 + 2) + 2(30 + 2)
= 30 × 30 + 30 × 2 + 2 × 30 + 2 × 2
= 900 + 60 + 60 + 4 = 1024.
अतः 322 = 1024.

(ii) 35
352 = (30 + 5)2
= 30(30 + 5) + 5(30 + 5)
= 30 × 30 + 30 × 5 + 5 × 30 + 5 × 5
= 900 + 150 + 150 + 25 = 1225
अतः 352 = 1225.

(iii) 86
862 = (80 + 6)2
= 80(80 + 6) + 6(80 + 6)
= 80 × 80 + 80 × 6 + 6 × 80 + 6 × 6
= 6400 + 480 + 480 + 36 = 7396
अतः 862 = 1225.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2

(iv) 93
932 = (90 + 3)2
= (90 + 3) (90 + 3)
= 90 × 90 + 90 × 3 + 3 × 90 + 3 × 3
= 8100 + 270 + 270 + 9
= 8649
अतः 932 = 8649.

(v) 71
712 = (70 + 1)2
= 70(70 + 1) + 1(70 + 1)
= 70 × 70 + 2 × 70 × 1 + 1 × 1
= 4900 + 140 + 1 = 5041
अतः 712 = 5041.

(vi) 46
462 = (40 + 6)2
= 40(40 + 6) + 6(40 + 6)
= 40 × 40 + 40 × 6 + 6 × 40 + 6 × 6
= 1600 + 240 + 240 + 36
= 2116
अतः 462 = 2116.

प्रश्न 2.
पाइथागोरस त्रिक लिखिए जिसका एक सदस्य है-
(i) 6
(ii) 14
(iii) 16
(iv) 18.
हल:
(i) 6
m2 – 1 = 6
m2 = 6 + 1 = 7
m2 = 7
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
m2 + 1 = 6
m2 = 6 – 1 = 5
m2 = 5
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
इसलिए,
2m = 6
∴ m = 3
फिर, m2 – 1 = 32 – 1 = 9 – 1 = 8
तथा, m2 + 1 = 32 + 1 = 9 + 1 = 10
अतः त्रिक् हैं – 6, 8, 10

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2

(ii) 14
m2 – 1 = 14
m2 = 14 + 1 = 15
m2 = 15
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
m2 + 1 = 14
m2 = 14 – 1 = 13
m2 = 13
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
इसलिए,
2m = 14
∴ m = 7
फिर, m2 – 1 = 72 – 1 = 49 – 1 = 48
तथा, m2 + 1 = 72 + 1 = 49 + 1 = 50
अतः त्रिक् हैं – 14, 48, 50

(iii) 16
m2 – 1 = 16
m2 = 16 + 1 = 17
m2 = 17
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
m2 + 1 = 16
m2 = 16 – 1 = 15
m2 = 15
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
इसलिए,
2m = 16
∴ m = 8
फिर, m2 – 1 = 82 – 1 = 64 – 1 = 63
तथा, m2 + 1 = 82 + 1 = 64 + 1 = 65
अतः त्रिक् हैं – 16, 63, 65

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 6 वर्ग और वर्गमूल Ex 6.2

(iv) 18
m2 – 1 = 18
m2 = 18 + 1 = 19
m2 = 19
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
m2 + 1 = 18
m2 = 18 – 1 = 17
m2 = 17
अतः m का मान पूर्णांक नहीं होगा ।
इसलिए,
2m = 18
∴ m = 9
फिर, m2 – 1 = 92 – 1 = 81 – 1 = 80
तथा, m2 + 1 = 92 + 1 = 81 + 1 = 82
अतः त्रिक् हैं – 18, 80, 82

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना InText Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

प्रश्न 1.
निम्न आकृतियों का सुमेलन कीजिए
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -1
हल:
इनका सुमेलन निम्न प्रकार है-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -2
उत्तर:
1. (c), 2. (d), 3. (b), 4. (a).

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

(इन्हें कीजिए। – पृष्ठ 44)

प्रश्न 1.
कोई एक चतुर्भुज, माना ABCD, लीजिए (आकृति के अनुसार)। एक विकर्ण खींचकर, इसे दो त्रिभुजों में बाँटिए। आप छः कोण 1,2,3,4,5 और 6 प्राप्त करते हैं। त्रिभुज के कोण-योग वाले गुणधर्म का उपयोग कीजिए और तर्क कीजिए कि कैसे ∠A, ∠B, ∠C तथा ∠D की मापों का योगफल 180° + 180° = 360° हो जाता है।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -3
हल :
माना कि ABCD एक चतुर्भुज है, जिसका एक विकर्ण AC है।
अतः ∠1 + ∠4 = ∠A
तथा ∠2 + ∠5 = ∠C
हम जानते हैं कि किसी त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180* होता है। इस प्रकार
ΔABC में, ∠4 + ∠5 + ∠B = 180° ….(1)
तथा, ΔACD में, .
∠1 + ∠2 + ∠D = 180° …..(2)

अब समी. (1) और (2) को जोड़ने पर,
(∠4 + ∠5 + ∠B) + (∠1 + ∠2 + ∠D) = 180° + 180°
⇒ (∠1 + ∠4) + ∠B + (∠2 + ∠5) + ∠D = 360°
⇒ ∠A + ∠B + ∠C + ∠D = 360°
[∵ ∠1 + ∠4 = ∠A तथा ∠2 + ∠5 = ∠C]
अतः ∠A, ∠B, ∠C तथा ∠D कि मापों का योगफल 180° + 180° = 360° हो जाता है।

प्रश्न 2.
किसी चतुर्भुज ABCD की गत्ते वाली चार सर्वांगसम प्रतिलिपियाँ लीजिए, जिनके कोण आकृति (i) में दर्शाए गए हैं। इन प्रतिलिपियों को इस प्रकार से व्यवस्थित कीजिए, जिससे ∠1, ∠2, ∠3, ∠4, एक ही बिन्दु पर मिलें जैसा कि आकृति (ii) में दर्शाया गया है।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -4
आप ∠1, ∠2, ∠3 तथा ∠4 के योगफल के बारे में क्या कह सकते हैं?
हल :
चूंकि एक चतुर्भुज के चारों कोणों की मापों का योगफल 360 होता है, अत: चतुर्भुज ABCD में,
∠A + ∠B + ∠C+ ∠D = 360
∴ m∠1+ m∠2+ m∠3+ m∠4 = 360°

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

प्रश्न 3.
चतुर्भुज ABCD पर विचार कीजिए (आकृति के अनुसार)।माना इसके अभ्यंतर में कोई बिन्दु P स्थित है।
P को शीर्षों A, B, C तथा D से जोडिए।आकृति में, ΔPAB पर विचार कीजिए।हम देखते हैं कि x = 180° – m∠2 – m∠3; इसी प्रकार APBC, से y = 180° – m∠4 – m∠5, ΔPCD से z = 180° – m∠6 – m∠7 और ΔPDA, w = 180° – m∠8 – m∠1 इसका उपयोग करके कुल माप m∠1 + m∠2 + … + m∠8, ज्ञात कीजिए। क्या यह आप को परिणाम तक पहुंचाने में सहायता करता है? याद रखिए, ∠x + ∠y + ∠z + ∠w = 360° है।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -5
हल :
हम जानते हैं कि किसी त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180° होता है।
अतः x = 180° – ∠2 – ∠3 …..(1)
y = 180° – ∠4 – ∠5 …..(2)
z = 180° – ∠6 – ∠7 …..(3)
w = 180° – ∠8 – ∠1 …..(4)

(1), (2), (3) तथा (4) को जोड़ने पर,
x + y + z + w = 720° – (∠1 + ∠2 + ∠3 + ∠4 + ∠5 + ∠6 + ∠7 + ∠8)
परन्तु x + y + z + w = 360°
∴ 360° = 720° – (∠1 + ∠2 + ∠3 + ∠4 + ∠5 + ∠6 + ∠7 + ∠8)
⇒ ∠1 + ∠2 + ∠3 + ∠4 + ∠5 + ∠6 + ∠7 + ∠8
= 720° – 360° = 360°
इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किसी चतुर्भुज के चारों कोणों का योग 360° होता है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

प्रश्न 4.
ये सभी चतुर्भुज उत्तल (Convex) चतुर्भुज थे। यदि चतुर्भज उत्तल नहीं होते तो क्या होता? चतुर्भुज ABCD पर विचार कीजिए। इसे दो त्रिभुजों में बाँटिए और अंतःकोणों का योगफल ज्ञात कीजिए। (आकृति देखें) ।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -6
हल:
चतुभुज ABCD में BD को मिलाया, जैसा कि आकृति में दिखाया गया है। कोणों को चिह्नित कर नाम दिया।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -7
चूँकि त्रिभुज के तीनों कोणों के योग 180° होता है, अतः
∠1 + ∠2 + ∠3 + ∠4 + ∠5 + ∠6 + ∠7 + ∠8 = 180° + 180°
⇒ ∠1 + (∠2 + ∠6) + ∠5 + (∠3 + ∠4) = 360°
⇒ ∠A + ∠B + ∠C + ∠D = 360°
अतः अंतःकोणों का योग 360° है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

(प्रयास कीजिए – पृष्ठ 47)

प्रश्न 1.
एक सम षड्भुज लीजिए (आकृति के अनुसार)
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -8
(i) बाह्य कोणों x, y, z, p, q तथा r की मापों का योग क्या है?
(ii) क्या x = y = z = p = q = r है? क्यों?
(iii) प्रत्येक की माप क्या है?
(a) बाह्य कोण
(b) अन्तःकोण
(iv) इस क्रियाकलाप को निम्नलिखित के लिए दोहराएँ:
(a) एक सम अष्टभुज
(b) एक सम 20 भुज
हल:
(i) चूँकि समषड्भुज बाह्य कोण x तथा अन्त:कोण a रैखिक युग्म बनाता है और रैखिक युग्म के कोणों का योग 180° होता है।
∴ x + ∠a = 180°
इसी प्रकार, y + ∠a = 180°
z + ∠a = 180°
p + ∠a = 180°
q + ∠a= 180°
r + ∠a = 180°
दोनों पक्षों के कोणों को जोड़ने पर,
(∠x + ∠y + ∠z + ∠p + ∠q + ∠r) + (∠a + ∠a + ∠a + ∠a + ∠a + ∠a) = 180° × 6 = 1080°
⇒ (∠x + ∠y + ∠z + ∠p + ∠q + ∠r) + (6 – 2) × 180° = 1080°
⇒ (∠x + ∠y + ∠z + ∠p + ∠q + ∠r) + 720° = 1080°
⇒ ∠x + ∠y + ∠z + ∠p + ∠q + ∠r = 1080° – 720° = 360°
अतः बाह्य कोणों की मापों का योग 360° होता है।

(ii) हाँ, x = y = z = p = q = r; क्योंकि इनमें से प्रत्येक 180° – a के बराबर है।

(iii) (a) प्रत्येक बाह्य कोण = \(\frac{360°}{6}\) = 60°
(ii) प्रत्येक अन्तःकोण = \(\frac{(n-2) \times 180^{\circ}}{n}\),
जहाँ n = 6,
= \(\frac{(6-2) \times 180^{\circ}}{6}\) = \(\frac{4 \times 180^{\circ}}{6}\)
= 4 × 30° = 120°

(iv) (a) एक सम,अष्टभुज के सन्दर्भ में, n = 8 लेने पर
प्रत्येक अंत:कोण = \(\frac{(8-2) \times 180^{\circ}}{8}\) = \(\frac{6 × 180°}{8}\) = 135°
और प्रत्येक बाह्य कोण = 180° -135° = 450
(b) एक सम 20 भुज के सन्दर्भ में, n = 20 लेने पर
प्रत्येक अंत:कोण = \(\frac{(20-2) \times 180^{\circ}}{8}\)
= 18 × 9° = 162°

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

इन्हें कीजिए (पृष्ठ 49)

प्रश्न 1.
समान सर्वांगसम त्रिभुजों के कटे हुए भाग लीजिए जिनकी भुजाएँ 3 cm, 4 cm, 5 cm हैं। इन्हें व्यवस्थित कीजिए जैसा कि आकृति में दर्शाया गया है।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -9
आपको एक समलम्ब प्राप्त होता है। (निरीक्षण कीजिए) यहाँ पर कौन-सी भुजाएँ समान्तर हैं? क्या असमान्तर भुजाएँ बराबर माप की होनी चाहिए?
इन समान त्रिभुजों के समूह का उपयोग कर आप दो और समलम्ब प्राप्त कर सकते हैं। उनको ढूंढ़िए और अकी आकृतियों की चर्चा कीजिए।
हल:
दी गयी आकृति में भुजा AB || DC । दिए गये समलम्ब चतुर्भुज में असमान्तर भुजा AD = 4 cm तथा BC =3cm, अतः असमान्तर भुजाएँ बराबर नहीं है।
दिए गए समान त्रिभुजों के समूह से दो समलम्ब चतुर्भुज इस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -10

इन्हें कीजिए (पृष्ठ 51)

प्रश्न 1.
दो अलग-अलग चौड़ाई वाली गत्ते की आयताकार पट्टियाँ लीजिए (आकृति के अनुसार)
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -11
एक गत्ते की पट्टी को समतल पर रखिए और इसके किनारों के अनुदिश रेखाएँ खींचिए।
अब दूसरी पट्टी को खींची गई रेखाओं के ऊपर तिरछी दिशा में रखिए और इसका उपयोग करते हुए दो और रेखाओं को खींचिए।
हल:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -12
इन चार रेखाओं से बनी बंद आकृति चतुर्भुज है [आकृति (ii)]
यह समान्तर रेखाओं के दो युग्मों से मिलकर बनी है। यह एक समांतर चतुर्भुज है।
समांतर चतुर्भुज एक चतुर्भुज होता है जिसकी सम्मुख भुजाएँ समांतर होती हैं।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

प्रयास कीजिए। (पृष्ठ 52)

प्रश्न 1.
30° – 60° – 90° कोणों वाले दो समान सेट-स्क्वे यर लीजिए। अब इन्हें आपस में इस प्रकार मिलाकर रखिए जिससे एक समांतर चतुर्भुज बन जाए (आकृति के अनुसार)। क्या यह ऊपर बताए गए गुण की पुष्टि करने में आपकी सहायता करता है?
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -13
हल:
एक समान्तर चतुर्भुज ABCD लेते हैं।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions -14
समान्तर चतुर्भुज ABCD में एक विकर्ण AC खींचते हैं।
हम देखते हैं कि ∠1 = ∠2 और ∠3 = ∠4
क्योंकि त्रिभुज ABC और ADC में ∠1 = ∠2, ∠3 = ∠4 और AC उभयनिष्ठ है इसलिए, ASA सर्वांगसमता कसौटी
द्वारा –
∆ ABC ≃ ∆CDA
अत:
AB = DC और BC = AD

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए (पृष्ठ 54)

प्रश्न 1.
m∠R = m∠N = 70°, दर्शाने के उपरान्त क्या आप किसी अन्य विधि से m∠I और m∠G को ज्ञात कर सकते हैं?
Img 15
हल:
यह दिया गया है कि एक समान्तर चतुर्भुज RING में, m∠R = 70°
चूँकि RI ∥ GN और RG एक प्रतिच्छेदक है जो इनको क्रमशः R और G पर प्रतिच्छेदित करता है इसलिए
∠R + ∠G = 180° [अंतःसम्मुख कोण]
⇒ 70° + ∠G = 180°
⇒ ∠G = 180° – 70°
= 110°

अन्यविधि : RG|| IN तथा RI प्रतिच्छेदक है, जो क्रमश: R और I पर प्रतिच्छेदित करता है, इसलिए
∠R + ∠I = 180° [अन्तःसम्मुख कोण]
⇒ 70° + ∠I = 180°
⇒ ∠I = 180° – 70° = 110°
अतः ∠I = ∠G = 110°

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

इन्हें कीजिए (पृष्ठ 55)

प्रश्न 1.
समान्तर चतुर्भुज (मान लीजिए ABCD) का एक कटा हुआ भाग लीजिए (देखें आकृति)। माना इसके विकर्ण \(\overline{\mathrm{AC}}\) तथा \(\overline{\mathrm{DB}}\) एक-दूसरे को ‘O’ पर प्रतिच्छेद करते हैं। C को A पर रखकर एक तह (Fold) के द्वारा \(\overline{\mathrm{AC}}\) का ‘मध्य-बिन्दु ज्ञात कीजिए। क्या मध्य-बिन्दु O ही है? क्या यह दर्शाता है कि विकर्ण \(\overline{\mathrm{DB}}\), विकर्ण \(\overline{\mathrm{AC}}\) को बिन्दु ‘O’ पर समद्विभाजित करता है? अपने मित्रों के साथ इसकी चर्चा कीजिए। इस क्रियाकलाप को यह ज्ञात करने के लिए दोहराएँ कि \(\overline{\mathrm{DB}}\) का मध्य-बिन्दु कहाँ पर स्थित होगा?
हल:
C को A पर रखने पर हम पाते हैं कि \(\overline{\mathrm{AC}}\) का मध्य बिन्दु O है जो विकर्ण AC तथा BD का प्रतिच्छेदक बिन्दु है। अतः समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए (पृष्ठ 61)

प्रश्न 1.
एक राजमिस्त्री एक पत्थर की पट्टी बनाता है। वह उसे आयताकार बनाना चाहता है। कितने अलगअलंग तरीकों से उसे यह विश्वास हो सकता है कि यह आयताकार है?
हल :
राजमिस्त्री को निम्नलिखित अलग-अलग तरीकों से यह विश्वास हो सकता है कि उसने जो पत्थर की पट्टी बनाई है वह आयताकार है-
(i) यदि इसका प्रत्येक कोण 90° का हो।
(ii) यदि इसके विकर्ण बराबर हो।।
(iii) यदि इसकी सम्मुख भुजाएँ बराबर हों।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Intext Questions

प्रश्न 2.
वर्ग को आयत के रूप में परिभाषित किया गया था जिसकी सभी भुजाएँ बराबर होती हैं। क्या हम इसे समचतुर्भुज के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जिसके कोण बराबर माप के हों? इस विचार को स्पष्ट कीजिए।
हल :
हम समचतुर्भुज के रूप में वर्ग को परिभाषित कर सकते हैं। एक समचतुर्भुज, जिसके कोण बराबर माप के हों, वर्ग है; क्योंकि कोण बराबर होते ही समचतुभुज का प्रत्येक कोण \(\frac{360°}{4}\) = 90° होगा। इस प्रकार सभी भुजाएँ बराबर लम्बाई की तथा सभी कोण 90 माप के हो जाते हैं। अतः यह एक वर्ग है।

प्रश्न 3.
क्या एक समलम्ब के सभी कोण बराबर माप के हो सकते हैं? क्या इसकी सभी भुजाएँबराबर हो सकती हैं? वर्णन कीजिए।
हल :
हाँ, जब समलम्ब के सभी कोण बराबर माप के हो जाते हैं, तब वह या तो आयत या वर्ग होता है। परन्तु जब समलम्ब की सभी भुजाएँ बराबर हो जाती हैं, तब वह या तो समचतुर्भुज होता है या वर्ग होता है।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3

प्रश्न 1.
इन प्रयोगों में आप जो परिणाम देख सकते हैं, उन्हें लिखिये
(a) पहिये को घुमाना,
(b) दो सिक्कों को एक साथ उछालना ।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3 -1
हल :
(a) पहिये को घुमाने पर परिणाम है-
A,B,C,D

(b) दो सिक्कों को एक साथ उछालने पर परिणाम है
HT, HH, TH, TT.

(i) HT – पहले सिक्के पर Head तथा दूसरे सिक्के पर Tail.
(ii) HH – दोनों सिक्कों पर Head.
(iii) TH – पहले सिक्के पर Tail तथा दूसरे पर Head.
(iv) TT – दोनों सिक्कों पर Tail.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3

प्रश्न 2.
जब एक पासे को फेंका जाता है, तब निम्नलिखित घटना से प्राप्त होने वाले परिणामों को लिखिए-
(i) (a) एक अभाज्य संख्या,
(b) एक अभाज्य संख्या नहीं

(ii) (a) 5 से बड़ी एक संख्या
(b) 6 से बड़ी संख्या नहीं ।
हल:
(i) (a) अभाज्य संख्या प्राप्त करने की घटना के परिणाम – 2, 3, 5.
(b) एक अभाज्य संख्या नहीं के परिणाम – 1, 4, 6.
(ii) (a) 5 से बड़ी संख्या के परिणाम – 6
(b) 5 से बड़ी संख्या नहीं के परिणाम अर्थात् 6 से छोटी संख्या प्राप्त करने की घटना का परिणाम- 1, 2, 3, 4, 5.

प्रश्न 3.
ज्ञात कीजिए-
(a) [प्रश्न 1(a)] में सूचक के D पर रुकने की प्रायिकता ।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3 -2
(b) अच्छी प्रकार से फेंटी हुई 52 तार्थों की एक गड्डी में से एक इक्का प्राप्त करने की प्रायिकता ।
(c) एक लाल सेब प्राप्त करने की प्रायिकता
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3 -3
हल :
(a) सूचक के D पर रुकने की प्रायिकता = \(\frac{1}{5}\)
(b) 1 इक्का प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{42}{52}\) = \(\frac{1}{13}\)
(:. गड्डी में 4 इक्के होते हैं)
(c) आकृति में, लाल सेब = 4
हरे सेब =3
कुल सेब = 7
1 लाल सेब प्राप्त करने की प्रायिकता = 4

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3

प्रश्न 4.
10 पृथक् पर्चियों पर 1 से 10 तक संख्याएँ लिखी हुई हैं (1 पर्ची पर एक संख्या), उन्हें एक बॉक्स में रखकर अच्छी प्रकार से मिला दिया जाता है । बॉक्स के अन्दर से बिना देखे एक पर्ची निकाली जाती है । निम्नलिखित की प्रायिकता क्या है ?
(i) संख्या 6 प्राप्त करना ।
(ii) 6 से छोटी एक संख्या प्राप्त करना ।
(ii) 6 से बड़ी एक संख्या प्राप्त करना ।
(iv) 1 अंक की एक संख्या प्राप्त करना ।
हल :
(i) संख्या 6 प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{1}{10}\)
(ii) 6 से छोटी एक संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{5}{10}\) = \(\frac{1}{2}\)
(iii) 6 से बड़ी एक संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{4}{10}\) = \(\frac{2}{5}\)
(iv) 1 अंक की एक संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{9}{10}\)

प्रश्न 5.
यदि आपके पास 3 हरे त्रिज्यखण्ड, 1 नीला त्रिज्यखण्ड तथा 1 लाल त्रिज्यखण्ड वाला एक घूमने वाला पहिया है, तो एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने की प्रायिकता क्या है? ऐसा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने की प्रायिकता क्या है, जो नीला न हो ?
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.3 -4
हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{हरे रंगों की संख्या}{कुल रंगों की संख्या}\) = \(\frac{3}{5}\)
एक ऐसा त्रिज्यखंड प्राप्त करने की प्रायिकता, जो नीला नहीं है = \(\frac{4}{5}\)

प्रश्न 6. प्रश्न 2 में दी हुई घटनाओं की प्रायिकताएँ ज्ञात कीजिए।
हल :
(a) एक अभाज्य संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{3}{6}\) = \(\frac{1}{2}\)
(b) एक ऐसी संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता, जो अभाज्य नहीं हैं = \(\frac{3}{6}\) = \(\frac{1}{2}\)
(c) 5 से बड़ी संख्या प्राप्त करने की प्रायिकता = \(\frac{1}{6}\)
(d) 5 से बड़ी संख्या प्राप्त नहीं करने की प्रायिकता = \(\frac{4}{6}\) = \(\frac{5}{6}\)

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए (पृष्ठ 64)

प्रश्न 1.
अरशद के पास एक चतुर्भुज ABCD की पाँच माप हैं। ये माप AB = 5 cm, ∠A = 50°, AC = 4 cm, BD = 5 cm और AD = 6 cm हैं। क्या वह इन मापों से एक अद्वितीय चतुर्भुज बना सकता है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर:
दिए गए आँकड़ों से वह चतुर्भुज ABCD नहीं बमा सकता है, क्योंकि दिए गए प्रश्न में चतुर्भुज ABCD के बिन्दु C को निर्धारित करने के लिए कोई भी मान नहीं दिया गया है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

पृष्ठ 66

प्रश्न (i).
हमने देखा कि एक चतुर्भुज को पाँच मापों से एक अद्वितीय चतुर्भुज की रचना की जा सकती है। क्या आप सोचते हैं कि चतुर्भुज की किन्हीं पाँच मापों से ऐसी रचना की जा सकती है?
उत्तर:
एक चतुर्भुज के बनाने के लिए निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच मापों का होना आवश्यक है-
(i) जब चार भुजाएँ और एक विकर्ण दिया हुआ हो।
(ii) जब दो विकर्ण और तीन भुजाएँ दी गई हो।
(iii) जब दो आसन्न भुजाएँ और तीन कोण दिए गए
(iv) जब तीन भुजाएँ और इनके बीच के दो कोण दिए गए हों।
(v) जब अन्य विशिष्ट गुण जात हों।

प्रश्न (ii).
क्या आप एक समान्तर चतुर्भुज BATS की रचना कर सकते हैं, जिसमें BA = 5 cm, AT = 6 cm और AS = 6.5 cm हों? क्यों?
उत्तर:
दिया है-
BA = 5 cm
AT = 6 cm
AS = 6.5 cm
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -1
हम जानते हैं कि समान्तर चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएँ बराबर होती हैं,
अत: चतुर्भुज BATS में,
BA = ST = 5 cm.
AT = BS = 6 cm.

रचना-
(i) सर्वप्रथम BA = 5 cm खींचा
(ii) बिन्दु B से 6 cm तथा बिन्दु A से 6.5 cm के चाप लगाये जो बिन्दु S पर काटते हैं।
(iii) बिन्दु से 5 cm तथा बिन्दु A से 6 cm के चाप लगाया, जो बिन्दु T पर काटते हैं।
(iv) B को S से तथा T को S और A से मिलाया। BATS अभीष्ट चतुर्भुज है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

प्रश्न (iii).
क्या आप एक समचतुर्भुज (Rhombus) ZEAL की रचना कर सकते हैं, जिसमें ZE = 3.5 cm, विकर्ण EL = 5cm है? क्यों?
उत्तर:
हम जानते हैं कि समचतुर्भुज की सभी भुजाएँ बराबर होती हैं। अत: चतुर्भुज ZEAL में प्रत्येक भुजा = ZE = 3.5 cm तथा विकर्ण EL = 5 cm.
अत: चतुर्भुज ZEAL की रचना की जा सकती है।

प्रश्न (iv).
एक विद्यार्थी एक चतुर्भुज PLAY की रचना करने का प्रयास करता है, जिसमें PL = 3 cm, LA = 4 cm, AY = 4.5 cm, PY = 2 cm और LY = 6 cm, है, परन्तु वह इसकी रचना नहीं कर सका। कारण बताइए।
[संकेत-एक कच्ची आकृति की सहायता से चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यहाँ दिए गए आँकड़ों द्वारा खींची गई रफ आकृति दी गई है। इसके अनुसार,
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -2

(iv) HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -6, अत: ∆PLY की रचना सम्भव नहीं है। अतः वह रचना नहीं कर पाया।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

पृष्ठ 68

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ-संख्या 68 पर दिए गए उदाहरण-2 में क्या हम पहले AABD खींचकर उसके बाद चतुर्थ बिन्दु C को ज्ञात करके चतुर्भुज की रचना कर सकते हैं?
उत्तर:
हम जानते हैं कि त्रिभुज की रचना के लिए त्रिभुज की तीन मापों का होना आवश्यक है, लेकिन प्रश्न में AABD की दो माप AD और BD दी गयी हैं। अत: इस प्रकार चतुर्भुज की रचना नहीं की जा सकती है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

प्रश्न 2.
क्या आप एक चतुर्भुज PQRS की रचना कर सकते हैं, जिसमें PQ = 3 cm, RS = 3 cm, PS = 7.5 cm, PR = 8 cm और SQ = 4 cm हैं? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
दिए गए आंकड़ों के आधार पर चतुर्भुज PQRS की रचना नहीं कर सकते, क्योंकि AQSP नहीं बना सकते, क्योंकि
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -7
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -3

पृष्ठ 69

प्रश्न 1.
यदि हमें M पर 75° माप के स्थान पर 100° की माप दी गई हो, तो क्या आप पाठ्य-पुस्तक की पृष्ठ संख्या 68 पर दिए गए उदाहरण 3 में बताए गए चतुर्भुज MIST की रचना कर सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, M पर 75° की माप के स्थान पर 100° की माप लेकर चतुर्भुज MIST की रचना की जा सकती है।

प्रश्न 2.
क्या आप एक चतुर्भुज PLAN की रचना कर सकते हैं, यदि PL = 6 cm, ∠A = 9.5 cm, ∠P = 75°, ∠L = 150° और ∠A = 140° हैं?
उत्तर:
क्योंकि ∠P = 75°, ∠L = 150° और ∠A = 140°
∠P + ∠L + ∠A = 75° + 150° + 140° = 365°
हम जानते हैं कि चतुर्भुज के चारों कोणों का योग 360° होता है।
अत: चतुर्भुज PLAN की रचना सम्भव नहीं है।

प्रश्न 3.
एक समान्तर चतुर्भुज में दो आसन्न भुजाओं की लम्बाइयाँ दी हुई हैं। क्या हमें रचना करने के लिए अभी भी कोणों की मापों की आवश्यकता है जैसा कि पाठ्य-पुस्तक के उदाहरण-3(पृष्ठ 68) में दिया है?
उत्तर:
प्रश्न में दी गई मापों से समान्तर चतुर्भुज की रचना सम्भव नहीं है। एक अद्वितीय चतुर्भुज प्राप्त करने के लिए चतुर्भुज में पाँच मापों की आवश्यकता होती है, लेकिन इस प्रश्न के अनुसार एक समान्तर चतुर्भुज की केवल दो आसन्न भुजाओं की लम्बाइयाँ दी गई हैं, अत: इस समान्तर चतुर्भुज की रचना करने के लिए कोणों की मापों की आवश्यकता है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

पृष्ठ 71

प्रश्न 1.
पाठ्य-पुस्तक में पृष्ठ संख्या 70 पर दिए गए उदाहरण-4 में हमने सर्वप्रथम BC रेखा खींची। इसके स्थान पर दूसरे अन्य प्रारम्भ बिन्दु और कौन-से हो सकते
उत्तर:
BC खींचने के स्थान पर रेखा AB अथवा रेखा CD से चतुर्भुज की रचना आरम्भ की जा सकती है।

प्रश्न 2.
हमने अभी तक चतुर्भुजों की रचना के लिए कोई पाँच मापों का प्रयोग किया। क्या एक चतुर्भुज की रचना करने के लिए पाँच मापों के अलग-अलग समुच्चय (अभी तक देखी गईं मापों के अतिरिक्त) हो सकते हैं?
निम्नलिखित समस्याएँ प्रश्नों के उत्तर देने में आपकी सहायता कर सकती हैं
(i) चतुर्भुज ABCD जिसमें AB = 5 cm, BC = 5.5 cm, CD = 4 cm, AD = 6 cm और ∠B = 80° हैं।
(ii) चतुर्भुज PQRS, जिसमें PQ = 4.5 cm, ∠P = 70°, ∠Q = 100°, ∠R = 80° और ∠S = 110° हैं।
आप स्वयं कुछ और उदाहरणों की रचना कीजिए और एक चतुर्भुज की रचना के लिए आंकड़ों की पर्याप्तता/ अपर्याप्तता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(i) दिए गए आँकड़ों से चतुर्भुज की रचना हो सकती है।
(ii) दिए गए आँकड़ों से चतुर्भुज नहीं खींच सकते हैं।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती InText Questions

प्रयास कीजिए। (पृष्ठ 72)

प्रश्न 1.
आप एक आयत PQRS की रचना कैसे करेंगे, यदि आप केवल PQ और QR की लम्बाई जानते हैं?
ज्ञात है:
आयत की भुजा PQ तथा QR की लम्बाई हम जानते हैं कि आयत की सम्मुख भुजाएँ बराबर होती हैं,
अत: PQ = SR तथा QR = PS तथा ∠P = ∠Q = ∠R = ∠S = 90°.
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -4
रचना-
(i) रेखा PQ खींचा।
(ii) बिन्दु P पर PS लम्बाई का तथा बिन्दु Q पर QR लम्बाई का लम्ब डाला।
(iii) S को P तथा R से तथा R को Q से मिलाया।
(iv) PORS अभीष्ट आयत है।

प्रश्न 2.
एक पतंग EASY की रचना कीजिए, यदि AY = 8 cm, EY = 4 cm और SY = 6 cm हैं (आकृति देखें)। रचना के दौरान आपने पतंग के कौन-से गुणों का प्रयोग किया है?
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 4 प्रायोगिक ज्यामिती Intext Questions -5
दिया है-
AY = 8 cm, EY = 4 cm तथा SY = 6 cm.
या AE = EY = 4 cm तथा AS = SY = 6 cm.

AO = OY ………..(i)
AY = AO + OY
⇒ AY= AO + AO […(i) से।]
⇒ AY = 2AO
⇒ 8 = 2AO
⇒ AO = = 4 cm
तथा OY = 4 cm

रचना-
(i) कोई भी उपयुक्त लम्बाई लेकर रेखा PQ खींची।
(ii) PQ पर कोई बिन्दु O लिया।
(iii) O से PQ पर OY = 4 cm तथा OA = 4 cm लम्बाई के लम्ब डाले।
(iv) बिन्दुYसे PQ पर EY = 4cm तथा SY = 6cm का चाप काटा।
(v) Y को E तथा 5 से तथा A को E तथा 5 से मिलाया।
(vi) EASY अभीष्ट पतंग है।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2

प्रश्न 1.
किसी शहर के युवा व्यक्तियों के एक समूह का यह जानने के लिए एक सर्वे किया गया कि वे किस प्रकार का संगीत पसन्द करते हैं । इनसे प्राप्त आंकड़ों को संलग्न पाई चार्ट में दर्शाया गया है । इस पाई चार्ट से अग्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -1
(i) यदि 20 व्यक्ति शास्त्रीय संगीत पसन्द करते हैं, तो कुल कितने युवा व्यक्तियों का सर्वे शास्त्रीय मनोरंजन किया गया था?
(ii) किस प्रकार का संगीत सबसे अधिक व्यक्तियों द्वारा लोक संगीत पसन्द किया जाता है?
(iii) यदि कोई कैसेट कम्पनी 1000 सी.डी. (C.D.) बनाये, तो वह प्रत्येक प्रकार की कितनी सी.डी. बनायेगी?
हल :
शास्त्रीय संगीत पसन्द करते हैं = 20 व्यक्ति,
परन्तु पाई चार्ट में दिया है कि संगीत पसन्दं करते हैं = 10%
माना x युवा व्यक्तियों का सर्वे किया है ।
तब, का 10% = 20
x × \(\frac { 10 }{ 100 }\) = 20
⇒ x = 20 × 100
⇒ \(\frac{20 \times 100}{10}\)
⇒ x = 200
अत: 200 व्यक्ति शास्त्रीय संगीत पसन्द करते हैं।

(ii) सबसे अधिक व्यक्तियों द्वारा मनोरंजन संगीत पसन्द किया जाता है। (40%)

(iii) (a) शास्त्रीय संगीत के लिए सी.डी. = \(\frac{10 \times 1000}{100}\) = 100

(b) लोक संगीत के लिए सी.डी. = \(\frac{30 \times 1000}{100}\) = 300

(c) मनोरंजक संगीत के लिए सी.डी. = \(\frac{40 \times 1000}{100}\) = 400

(d) उपशास्त्रीय संगीत के लिए सी.डी. = \(\frac{20 \times 1000}{100}\) = 200

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.1

प्रश्न 2.
360 व्यक्तियों के एक समूह से तीन ऋतुओं- वर्षा, सर्दी और गर्मी में से अपनी मनपसन्द ऋतु के लिए मतदान करने को कहा गया । इनसे प्राप्त आँकड़ों को संलग्न चित्र में दर्शाया गया है-

ऋतुमतों की संख्या
गर्मी90
वर्षा120
शीत150

(i) किस ऋत को सबसे ऋतु अधिक मत मिले ?
(ii) प्रत्येक त्रिज्यखण्ड का केन्द्रीय कोण ज्ञात कीजिए ।
(iii) इस सूचना को दर्शाने के लिए शीत एक पाई चार्ट खींचिए।
हल :
(i) शीत ऋतु को सबसे अधिक मत (150) मिले।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -2

(iii) पाई चार्ट-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -3

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना को दर्शाने वाला एक पाई चाट खींचिए। यह सारणी व्यक्तियों के एक समूह द्वारा पसन्द किये जाने वाले रंगों को दर्शाती है-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -4
हल :
प्रत्येक त्रिज्यखण्ड का केन्द्रीय कोण ज्ञात करने की सारणी –
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -5

पाई चार्ट-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -6

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.1

प्रश्न 4.
संलग्न पाई चार्ट एक विद्यार्थी द्वारा किसी परीक्षा में हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान में प्राप्त किये गये अंकों को दर्शाता है । यदि उस विद्यार्थी द्वारा प्राप्त किए गएं कुल अंक 540 थे, तो निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -7
(i) किस विषय में उस विद्यार्थी ने 105 अंक प्राप्त किये?
(संकेत- 540 अंकों के लिए केन्द्रीय कोण 360° है।)
अत: 105 अंकों के लिए केन्द्रीय कोण क्या होगा?
(ii) उस विद्यार्थी ने गणित में हिन्दी से कितने अधिक 9 अंक प्राप्त किए ?
(iii) जाँच कीजिए कि क्या सामाजिक विज्ञान और गणित में प्राप्त किए गए अंकों का योग विज्ञान और हिन्दी में प्राप्त किये गये अंकों के योग से अधिक है।
(संकेत : केवल केन्द्रीय कोणों पर ध्यान दीजिए ।)
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -8
(i) विद्यार्थी ने हिन्दी विषय में 105 अंक प्राप्त किये ।
(ii) गणित में प्राप्तांक = 135
तथा हिन्दी में प्राप्तांक – 105
प्राप्तांकों में अन्तर = 135 – 105 = 30
गणित में हिन्दी से 30 अंक अधिक प्राप्त किये ।

(iii) सामाजिक विज्ञान तथा गणित में प्राप्तांकों का योग = 97.5 + 135 = 232.5 अंक
विज्ञान तथा हिन्दी में प्राप्तांकों का योग = 120 + 105 =225
अंक अत: सामाजिक विज्ञान तथा गणित में प्राप्त किए गए अंकों का योग हिन्दी और विज्ञान में प्राप्त किए गए अंकों के योग से अधिक है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.1

प्रश्न 5.
किसी छात्रावास में विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले विद्यार्थियों की संख्या दी गई है । इन आंकड़ों को एक पाई चार्ट द्वारा प्रतिक

भाषाहिन्दीअंग्रेजीमराठीतमिलबंगालीयोग
विद्यार्थियों की संख्या401297472

हल:
त्रिज्यखण्ड के केन्द्रीय कोण की सारणी-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -9

पाई चार्ट-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन Ex 5.2 -10

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

पृष्ठ 73-74

प्रश्न 1.
एक चित्रालेख (pictograph) –
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 1
(i)जुलाई के महीने में कितनी कारों का उत्पादन हुआ ?
(ii)किस महीने में कारों का अधिकतम उत्पादन हुआ?
हल :
(i) जुलाई में 250 कारों का उत्पादन हुआ।
(i) सितम्बर में कारों का अधिकतम उत्पादन 400 हुआ।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

प्रश्न 2.
एक-दण्ड आलेख (bar graph) :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 2
(i) इस दंड आलेख द्वारा क्या सूचना दी गई है?
(ii) किस वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या में अधिकतम वृद्धि हुई?
(iii) किस वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या अधिकतम है?
(iv) बताइए कि यह सत्य है या असत्य : “2005-2006 में विद्यार्थियों की संख्या 2003-04 की संख्या की दुगुनी है।”
हल :
(i) इस दण्ड आलेख में विभिन्न शैक्षिक वर्षों में कक्षा VIII के छात्रों की संख्या दी गई है।
(i)विद्यार्थियों की संख्या में अधिकतम वृद्धि वर्ष 2004-05 में हुई।
(iii)विद्यार्थियों की संख्या अधिकतम शैक्षिक वर्ष 2007-08 में है।
(iv) यह कथन असत्य है।

प्रश्न 3.
द्वि-दण्ड आलेख (double bar graph) : .
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 3
(i) इस द्वि-दण्ड आलेख द्वारा क्या सूचना दी गई है?
(ii) किस विषय में विद्यार्थी के प्रदर्शन में सबसे अधिक सुधार हुआ है?
(iii) किस विषय में प्रदर्शन में गिरावट आई है?
(vi) किस विषय में प्रदर्शन समान रहा है?
हल :
(i) वर्ष 2005-05 और 2006-07 में एक विद्यार्थी द्वारा विभिन्न विषयों में प्राप्तांकों की सूचना दण्ड आलेख में दी गई है।
(ii) विद्यार्थी के प्रदर्शन में अधिकतम सुधार गणित में हुआ है।
(iii) अंग्रेजी में प्रदर्शन में गिरावट हुई है।
(iv) हिन्दी में प्रदर्शन एक-सा रहा है।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए। (पृष्ठ 75)

प्रश्न 1.
यदि हम एक-दण्ड आलेख के दण्डों में से किसी एक की स्थिति बदल दें, तो क्या प्रदर्शित जानकारी में कोई बदलाव या परिवर्तन होगा? क्यों?
हल :
नहीं, सूचना में दण्डों की स्थिति बदलने से प्रदर्शित जानकारी में कोई परिवर्तन नहीं बनेगा।

प्रयास कीजिए (पृष्ठ 75)

दी हुई सूचना को निरूपित करने के लिए एक उपयुक्त आलेख खाचिए।

प्रश्न 1.

महीनाबेची गई घड़ियों की संख्या
जुलाई1000
अगस्त1500
सितम्बर1500
अक्टूबर2000
नवम्बर2500
दिसम्बर1500

हल :
दिए गए आँकड़ों का दण्ड आलेख खींचने के लिए X-अक्ष पर महीने और Y-अक्ष पर बेची गई घड़ियों की संख्या को अंकित करेंगे। हमें 6 गणितीय आँकड़े दिए गए है, अत: हम क्षैतिज रेखा पर समान दूरी पर 6 बिन्दु लगाएँगे और इन बिन्दुओं पर समान मोटाई के आयत खींचेंगे।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

प्रश्न 2.

बच्चों की संख्या, जिन्हें पसन्द हैस्कूल Aस्कूल Bस्कूल C
पैदल चलना405515
साइकिल चलाना452535

हल :
दिए गए आँकड़ों को दण्ड आलेख द्वारा अंकित करने के लिए X-अक्ष पर पसन्द और Y-अक्ष पर बच्चों की संख्या दिखायेंगे। स्कूल A, B और C के पैदल व साइकिल से आनेवाले दोनों बिन्दुओं के आँकड़े दिए गए हैं। अत: क्षैतिज रेखा पर दो बिन्दु लेंगे तथा प्रत्येक बिन्दु पर समान चौड़ाई के तीन आयत खींचेंगे। इनकी ऊँचाई गणितीय आँकड़ों का संगत चित्रानुसार होगी।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 4

प्रश्न 3.
8 सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट टीमों द्वारा ODI में जीतने का प्रतिशत:

टीमचैम्पियन ट्रॉफी  से वर्ल्ड कप 2006 तक2007 में पिछले 10 ODI
दक्षिण अफ्रीका75%78%
ऑस्ट्रेलिया61%40%
श्रीलंका54%38%
न्यूजीलैंड47%50%
इंग्लैंड46%50%
पाकिस्तान45%44%
वेस्टइंडीज44%30%
भारत43%56%

हल:
X-अक्ष पर टीम और Y-अक्ष पर उनकी जीत का प्रतिशत अंकित करते हैं। चैम्पियन ट्रॉफी से वर्ल्ड कप 2006 तक के प्रतिशत को बिन्दु अंकित रेखा से तथा 2007 में ODI के प्रतिशत को गहरी रेखा से दर्शाते हैं।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 5

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

पृष्ठ 76

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों के एक समूह से यह बताने को कहा गया है कि वे किस पशु को सबसे अधिक घर में पालना पसन्द करेंगे। इसके परिणाम नीचे दिए गए हैं:
कुत्ता, बिल्ली, बिल्ली, मछली, बिल्ली, खरगोश, कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, कुत्ता, बिल्ली, कुत्ता, कुत्ता, कुत्ता, बिल्ली, गाय, मछली, खरगोश, कुत्ता, बिल्ली, कुत्ता, बिल्ली, बिल्ली, कुत्ता, खरगोश, बिल्ली, मछली, कुत्ता।

उपर्युक्त के लिए एक बारम्बारता बंटन सारणी बनाइए।
हल :
हम मिलान चिन्ह का प्रयोग करके आँकड़ों को बारम्बारता सारणी में रखेंगे
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 6

पृष्ठ 78

प्रश्न 1.
निम्नलिखित बारम्बारता बंटन सारणी का अध्ययन कीजिए और उसके नीचे दिए हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 7
(i) वर्ग-अन्तरालों की माप क्या है?
(ii) किस वर्ग की सबसे अधिक बारम्बारता है?
(iii) किस वर्ग की सबसे कम बारम्बारता है?
(iv) वर्ग-अन्तराल 250-275 की उच्च सीमा क्या है?
(v) किन दो वर्गों की बारम्बारता एक ही है?
हल:
(i) वर्ग-अन्तरालों की माप 25 है।
(ii) वर्ग 200-225 की बारम्बारता सबसे अधिक है।
(iii) वर्ग 300-325 की सबसे कम बारम्बारता है।
(iv) वर्ग-अन्तराल 250-275 की उच्च सीमा 275 है।
(v) वर्ग 150-175 और 225-250 की बारम्बारता एक जैसी है।

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प्रश्न 2.
अन्तरालों 30-35, 35-40 इत्यादि का प्रयोग करते हुए एक कक्षा के 20 विद्यार्थियों के भारों (kg में) के निम्नलिखित आँकड़ों के लिए एक बारम्बारता बंटन सारणी बनाइए:
40, 38, 33, 48, 60, 53, 31, 46, 34, 36, 49, 41, 55, 49, 65, 42, 44, 47, 38, 39
हल :
बारम्बारता बंटन निम्नांकित प्रकार से बनेगा :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 8

पृष्ठ 79

प्रश्न 1.
इस आयत चित्र के दण्ड़ों से निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 9
(i) कितने अध्यापकों की आयु 45 वर्ष या उससे अधिक है परंतु 50 वर्ष से कम है?
(ii)35 वर्ष से कम आयु वाले अध्यापकों की संख्या कितनी है?
हल :
(i) 5 अध्यापक
(ii) 35 वर्ष से कम आयु वाले अध्यापकों की संख्या = 4 + 5 + 6 = 15

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

पृष्ठ 80

प्रश्न 1.
आयत चित्र को देखिए और अके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 10
(i) इस आयत चित्र के द्वारा क्या सूचना दी जा रही है?
(ii) किस वर्ग में अधिकतम लड़कियाँ हैं?
(iii) कितनी लड़कियों की लम्बाई 145 cm या उससे अधिक है?
(iv) यदि हम लड़कियों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित करें, तो प्रत्येक श्रेणी में कितनी लड़कियाँ होंगी?
150 cm या उससे अधिक – समूह A
140 cm या उससे अधिक परन्तु 150 cm से कम – समूह B
140 cm से कम – समूह C
हल :
(i) इस आयत चित्र के द्वारा कक्षा VII की लड़कियों की ऊँचाई (cm) के बारे में सूचना है।
(ii) 140-145 वर्ग में लड़कियाँ अधिकतम हैं।
(iii) 145 cm या उससे अधिक लम्बाई सात लड़कियों की है।
(iv) 2 + 1 = 3 लड़कियाँ समूह A के हैं।
7+ 4 = 11 लड़कियों समूह B के हैं।
1 + 2 + 3 = 6 लड़कियाँ समूह C के हैं।

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पृष्ठ 83

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पाई चार्टी में से प्रत्येक (आकृति) आपकी कक्षा के बारे में एक भिन्न प्रकार की सूचना देता है। इनमें से प्रत्येक सूचना को निरूपित करने वाले वृत्त का भाग ज्ञात कीजिए।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 11
हल :
(i) पाई-चार्ट से स्पष्ट है,
लडकियों की संख्या = \(\frac{50%}{100%}\) = \(\frac{\frac{50}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{50}{100}\) = वृत्त का \(\frac{1}{2}\) भाग

लड़कों की संख्या = \(\frac{50%}{100%}\) = \(\frac{\frac{50}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{50}{100}\) = वृत्त का \(\frac{1}{2}\) भाग

(ii) पाई-चार्ट से स्पष्ट है,
पैदल आनेवालों की संख्या = \(\frac{40%}{100%}\) = \(\frac{\frac{40}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{40}{100}\) = वृत्त का \(\frac{2}{5}\) भाग

बस अथवा कार से आनेवालों की संख्या = \(\frac{40%}{100%}\) = \(\frac{\frac{40}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{40}{100}\) = वृत्त का \(\frac{2}{5}\) भाग

साइकिल से आने वालों की संख्या = \(\frac{20%}{100%}\) = \(\frac{\frac{20}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{20}{100}\) = वृत्त का \(\frac{1}{5}\) भाग

(iii) पाई-चार्ट से स्पष्ट है,
गणित पसन्द करने वाले विद्यार्थी = \(\frac{(100-15)%}{100%}\) = \(\frac{\frac{85}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{85}{100}\) = वृत्त का \(\frac{17}{20}\) भाग

गणित नापसन्द करने वाले विद्यार्थी = \(\frac{15%}{100%}\) = \(\frac{\frac{15}{100}}{\frac{100}{100}}\)
= \(\frac{15}{100}\) = वृत्त का \(\frac{3}{20}\) भाग

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

प्रश्न 2.
दिए हुए पाई चार्ट के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 12
(i)किस प्रकार के कार्यक्रम सबसे अधिक देखे जाते हैं?
(ii) किन दो प्रकार के कार्यक्रमों को देखनेवालों की कुल संख्या खेलों के कार्यक्रमों को देखनेवालों की संख्या के बराबर है?
टी.वी. पर विभिन्न प्रकार के चैनलों को देखनेवालों की संख्या
हल :
उपर्युक्त पाई चार्ट से स्पष्ट है-
(i) मनोरंजन के कार्यक्रम सबसे अधिक देखे जाते हैं।
(ii)समाचार और ज्ञानप्रद कार्यक्रमों को देखनेवालों की कुल संख्या खेलों के कार्यक्रमों को देखनेवालों की संख्या के बराबर है।

पृष्ठ 85

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए आंकड़ों के लिए एक पाई चार्ट खींचिए :
एक बच्चे द्वारा एक दिन में व्यतीत किया गया समय निम्नांकित प्रकार है:
सोना – 8 घण्टे
स्कूल – 6 घण्टे
गृहकार्य – 4 घण्टे
खेल – 4 घण्टे
अन्य – 2 घण्टे
हल :
इन आँकड़ों को पाई चार्ट में दर्शाते हैं। केन्द्र पर कुल कोण 360° के तथा त्रिज्यखण्ड कोण 360° के भाग होंगे।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 13
हम नीचे दर्शाए अनुसार पाई चार्ट बनाएँगे :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 14

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए (पृष्ठ 86)

निम्नलिखित आँकड़ों को दर्शाने के लिए किस प्रकार का आलेख उपयुक्त रहेगा ?

प्रश्न 1.
किसी राज्य के खाद्यान्न का ज्पादन :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 15
हल :
दण्ड आलेख।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

प्रश्न 2.
व्यक्तियों के एक समूह के भोजन की पसन्द :

मनपसन्द भोजनव्यक्तियों की संख्या
उत्तर भारतीय30
दक्षिण भारतीय40
चाइनीज़25
अन्य25
योग120

हल :
वृत्त आलेख या पाई चार्ट।

प्रश्न 3.
किसी फैक्ट्री के श्रमिकों के एक समूह की दैनिक आय:

दैनिक आय (₹ में)श्रमिकों की संख्या (एक फैक्ट्री में)
75-10045
100-12530
125-150125
150-175140
175-200480
200-22525
225-25035
योग50

हल :
आयत चित्र।

प्रयास कीजिए (पृष्ठ 88-89)
प्रश्न 1.
यदि आप एक स्कूटर चलाना प्रारम्भ करें, तो सम्भव परिणाम क्या हैं?
हल :
स्कूटर चलाने के सम्भावित परिणाम होंगे
(i) स्कूटर चलेगा
(ii) स्कूटर नहीं चलेगा।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

प्रश्न 2.
जब एक पासे (dice) को फेंका जाता है, तो सम्भव छः परिणाम क्या है?
हल :
एक पासे को फेंकने पर सम्भावित परिणाम पासे पर अंकित 1,2,3,4,5,6 में से कोई एक होगा।

प्रश्न 3.
जब आप पहिए को घुमाएंगे,तो सम्भावित परिणाम क्या होंगे (आकृति) ? इनकी सूची बनाइए।
[यहाँ परिणाम का अर्थ है कि वह त्रिज्यखण्ड, जहाँ पर सूचक (Pointer) घुमाने पर रुकेगा।]
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 16
हल :
पहिए को घुमाने के सम्भावित परिणाम होंगे-
(i) पहिया Aत्रिज्यखण्ड पर रुक सकता है।
(ii) पहिया B त्रिज्यखण्ड पर रुक सकता है।
(iii) पहिया C त्रिज्यखण्ड पर रुक सकता है।

प्रश्न 4.
आपके पास एक थैला है और उसमें भिन्न-भिन्न रंगों की पांच एक जैसी गेंदें हैं (आकृति) आप बिना देखे इसमें से एक गेंद निकालते हैं। प्राप्त होने वाले परिणामों को लिखिए।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 17
हल :
एक थैला, जिसमें W, R, B,Gऔर Y गेंदें हैं। उनमें से निकलने वाली गेंद W, R, B,G और Y में से कोई एक होगी।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions

सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए (पृष्ठ 89)

प्रश्न 1.
एक पासे को फेंकने पर :

  • क्या पहले खिलाड़ी के 6 प्राप्त करने का संयोग अधिक है?
  • क्या उसके बाद खेलने वाले खिलाड़ी के 6 प्राप्त करने का संयोग कम है?
  • मान लीजिए कि दूसरा खिलाड़ी 6 प्राप्त कर लेता है। क्या इसका अर्थ यह है कि तीसरे खिलाड़ी द्वारा 6 प्राप्त करने का कोई संयोग नहीं है?

हल :
जब हम पासे को अनेकों बार फेंकते हैं, तो प्रत्येक बार 1 अथवा 2 अथवा 3 अथवा 4 अथवा 5 अथवा 6 में से 6 प्राप्त करने की सम्भावना समान अर्थात् 1/6 रहती है। इसलिए प्रत्येक खिलाड़ियों की दशा में 6 प्राप्त करने का संयोग समान है।

प्रयास कीजिए (पृष्ठ 91)

प्रश्न 1.
मान लीजिए कि आप पहिए को घुमाते हैं-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 18
(i) इस पहिए पर एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने के परिणामों की संख्या और हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त न होने के परिणामों की संख्या लिखिए।
(ii) एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
(iii) एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त नहीं होने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
हल :
(i) दिए गए पहिए में एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने के परिणामों की संख्या = 5
और एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त नहीं करने के परिणामों की संख्या = 3
(ii) एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त करने की प्रायिकता = HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 5 आँकड़ो का प्रबंधन InText Questions 19 = \(\frac{5}{8}\)
(iii) एक हरा त्रिज्यखण्ड प्राप्त नहीं होने की प्रायिकता = 1 – \(\frac{5}{8}\) = \(\frac{3}{8}\)

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4

प्रश्न 1.
बताइए, कश्चन सत्य हैं या असत्य
(a) सभी आयत वर्ग होते हैं ।
(b) सभी सम चतुर्भुज समान्तर चतुर्भुज होते हैं ।
(c) सभी वर्ग सम चतुर्भुज और आयत भी होते हैं ।
(d) सभी वर्ग समान्तर चतुर्भुज नहीं होते हैं ।
(e) सभी पतंगें सम चतुर्भुज होती हैं ।
(f) सभी सम चतुर्भुज पतंग होते हैं ।
(g) सभी समान्तर चतुर्भुज समलम्ब होते हैं ।
(h) सभी वर्ग समलम्ब होते हैं ।
हल :
(a) असत्य
(b) सत्य
(c) सत्य
(d) असत्य
(e) असत्य
(f) सत्य
(g) सत्य
(h) सत्य

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4

प्रश्न 2.
उन सभी चतुर्भुजों की पहचान कीजिए, जिनमें-
(a) चारों भुजाएँ समान लम्बाई की हो ।
(b) चार समकोण हो ।
हल : (a) समचतुर्भुज और वर्ग →
(b) वर्ग और आयत →

प्रश्न 3.
बताइए कैसे एक वर्ग –
(i) एक चतुर्भुज
(ii) एक समान्तर चतुर्भुज
(iii) एक सम चतुर्भुज
(iv) एक आयत है।
हल :
(i) एक वर्ग में चार भुजाएँ होती हैं।
(ii) एक वर्ग की सम्मुख भुजाएँ समान्तर होती हैं ।
(iii) एक वर्ग की सभी भुजाएँ बराबर होती हैं तथा विकर्ण एक दूसरे को समकोण पर समद्विभाजित करते हैं ।
(iv) एक वर्ग के सभी कोण समकोण होते हैं ।

प्रश्न 4.
एक चतुर्भुज का नाम बताइए जिसके विकर्ण :
(i) एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हों,
(ii) एक दूसरे पर लम्ब-समद्विभाजक हों,
(iii) बराबर हो ।
हल :
(i) समान्तर चतुर्भुज, सम चतुर्भुज, वर्ग, आयत के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं ।
(ii) समचतुर्भुज और वर्ग के विकर्ण एक-दूसरे को लम्ब-समद्विभाजित करते हैं ।
(iii) वर्ग और आयत के विकर्ण बराबर होते हैं।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4

प्रश्न 5.
बताइए एक आयत उत्तल चतुर्भुज है।
हल :
किसी आयत में जब हम इसके बिन्दुओं को मिलाते हैं, तो इसके दोनों विकर्ण अभ्यतंर में स्थित होते हैं तथा इसके प्रत्येक कोण 180° से कम होते है।

प्रश्न 6.
ABC एक समकोण त्रिभुज है। ‘0’ समकोण की सम्मुख भुजा का मध्यबिन्दु है । बताइए कैसे ‘0’ बिन्दु A, B तथा C से समान दूरी पर स्थित है ? (बिन्दुओं में चिह्नित अतिरिक्त भुजाएं आपकी सहायता के लिए खींची गई हैं।)
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.4 - 1
AD || BC तथा AB || CD की रचना की ।
ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं ।
∴ OA = OB = OC.
अत: O, बिन्दु A, B तथा C से समान दूरी पर है।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3

प्रश्न 1.
ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है। प्रत्येक कथन को परिभाषा या प्रयोग किये गये गुण द्वारा पूरा कीजिए।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 1
(i) AD = ……………….
(ii) ∠DCB = ………..
(iii) OC = ………….
(iv) m ∠DAB + m ∠CDA = …………
हल :
(i) AD = BC (∵ समान्तर चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएँ समान होती हैं ।)
(ii) ∠DCB = ∠DAB (∵ समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते हैं ।)
(iii) OC = OA (∵ समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण । एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं ।)
(iv) m∠DAB + m∠CDA = 180°. (∵ समान्तर चतुर्भुज में दो आसन्न अन्तःकोणों का योग 180° होता है।)

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3

प्रश्न 2.
निम्नांकित समान्तर चतुर्भुजों में अज्ञात के मानों को ज्ञात कीजिए:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 2
हल :
(i) समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते हैं।
अत: ∠D = ∠B तथा ∠A = ∠C
∴ y = 100°
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 3
समान्तर चतुर्भुज के दो आसन्न कोणों का योग = 180° होता है ।
∴ ∠A + ∠B = 180°
z + 100° = 180°
z = 180° – 100° = 80°
∴ z = 80°

परन्तु. ∠C = ∠A
∴ x = 80°
अतः x = 80°, y = 100° तथा z = 80°

(ii) समान्तर चतुर्भुज के दो आसन्न कोणों का योग 180° होता है।
∴ 50° + x = 180°
∴ x = 180°- 50° = 130°
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 4
अतः ∠x = 130°
परन्तु ∠x = ∠y
∠y = 130° (संगत कोण हैं)

तथा ∠x = ∠z
∠z = 130°
अतः x = 130°, y = 130° तथा z = 130°

(iii) ∠AOB = ∠COD शीर्षाभिमुख कोण है
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 5
90° = x
∴ x = 90°
∵ x + y + 30° = 180° (∵ ∆ COD के अन्त:कोणों का योग = 180° है)
⇒ 90° + y + 30° = 180°
⇒ y + 120° = 180°
⇒ y = 180° – 120° = 60°
∴ y = 60°
∵ एकान्तर कोण, y = z
∴ z = 60°
अतः x = 90°, y = 60° तथा z = 60°

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(iv) समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते हैं ।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 6
∴ ∠D = ∠B
∠D = 80°
अत: आसन्न अन्त:कोण हैं।
परन्तु, ∠A + ∠B = 180°
x + 80° = 180°
∴ x = 180°- 80° = 100°
अत: x = 100°

∵ AB || CD
z = ∠B (संगत कोण).
∴ z = 80°
अतः x = 100°, y = 80° तथा z = 80°

(v) HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 7
∵ ∠D = ∠B
∴ y = 112°
परन्तु, ∆ ACD में,
⇒ x + y + 40° = 180°
⇒ x + 112° + 40° = 180°
⇒ x + 152° – 180°
∴ x = 180° – 152° = 28°
अत: x = 28°

∵ CD || AB तथा AC तिर्यक् रेखा है
∴ x = z (एकान्तर कोण)
28° = z
∴ z = 28°
अतः x = 28°, y = 112° तथा z = 28°

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प्रश्न 3.
क्या एक चतुर्भुज ABCD समान्तर चतुर्भुज हो सकता है, यदि:
(i) ∠D + ∠B = 180° ?
(ii) AB = DC = 8 सेमी, AD = 4 सेमी और BC = 4.4 सेमी ?
(iii) ∠A = 70° और ∠C = 65° ?
हल :
(i) ∠D+ ∠B = 180° वर्ग में यह कथन सत्य है, क्योंकि वर्ग के प्रत्येक अन्त:कोण का मान 90° होता है, परन्तु अन्य समान्तर चतुर्भुज में सम्भव नहीं है।
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(ii) यह समान्तर चतुर्भुज नहीं हो सकता है: क्योंकि समान्तर चतुर्भुज की सम्मुख भुजाएँ समान होती है।
लेकिन यहाँ, AD ≠ BC
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(iii) नहीं, क्योंकि समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते हैं।
अत: यहाँ ∠A ≠ ∠C.
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प्रश्न 4.
एक चतुर्भुज की कच्ची आकृति खींचिए, जो समान्तर चतुर्भुज न झे, परन्तु जिसके दो सम्मुख कोणों की माप बराबर हो ।
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 11
पतंग ABCD में,
AB = AD तथा CB = CD है|
यह पतंग ABCD समान्तर चतुभुज नहीं है।
लेकिन, ∠ABC = ∠ADC
अतः इसके सम्मुख कोण बराबर होते हैं।

प्रश्न 5.
किसी समान्तर चतुर्भुज के दो आसन्न कोणों का अनुपात 3:2 है । समान्तर चतुर्भुज के सभी कोणों का मान ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 12
दिया है-दो आसन्न कोणों का अनुपात 3 : 2 है।
अत: दो आसन्न कोण 3x तथा 2x हैं।
∵ समान्तर चतुर्भुज के दो आसन्न कोणों का योग 180° होता है।
∵ ∠A + ∠B = 180°
⇒ 3x + 2x = 180°
⇒ 5x = 180°
x = \(\frac { 180° }{ 5 }\)
अतः ∠A = 3x = 3 × 36° = 108°
तथा ∠B = 2x = 2 × 36° = 72°

∵ समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते है।
अत: ∠C = ∠A = 108° तथा ∠D = ∠B = 72°
अत: ∠A= 108°, ∠B = 72°, ∠C= 108° तथा ∠D = 72°

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प्रश्न 6.
किसी समान्तर चतुर्भुज के दो आसन्न कोणों की माप बराबर है। इस चतुर्भुज के सभी कोणों की माप ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण समान होते हैं ।
∠A = ∠C
और ∠B = ∠D
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 13
∵ समान्तर चतुर्भुज के आसन्न कोणों का योग 180° होता है ।
∵ ∠A + ∠B = 180°
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 14
परन्तु, ∠A = ∠B
∠A + ∠A = 180°
∠2A = 180°
∠A = \(\frac{180°}{2}\) = 90°
अत: ∠A = ∠B = ∠C = ∠D = 90°
अतः प्रत्येक कोण 90° का होगा ।
अत: हम कह सकते हैं कि यह समान्तर चतुर्भुज, एक आयत या वर्ग होगा ।

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प्रश्न 7.
संलग्न आकृति HOPE एकसमान्तर चतुर्भुज है। और कोणों की माप ज्ञात कीजिए । ज्ञात करने में प्रयोग किये गये गुणों को बताइए।
हल :
HOPE एक समान्तर चतुर्भुज है।
∆ HOP में,
∠HOP = 180° – 70° = 110°
अत: ∠HOP = 110°
समान्तर चतुर्भुज के आसन्न कोणों का योग 180° होता है।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 15
अत: ∠EHO + ∠HOP = 180°
40° + z + 110° = 180°
150° + z = 180°
∠z = 180°- 150° = 30°
∠z = 30°

अब, AHOP में,
∠z + ∠y + ∠HOP = 180°
30° + ∠y + 110° = 180°
140° + ∠y = 180°
∠y = 180°- 140°- 40°
∠y = 40°

अब, समान्तर चतुर्भुज के सम्मुख कोण बराबर होते हैं।
∠HEP = ∠HOP
∠x = 110°
अतः ∠x = 110°
∠y = 40°, ∠z = 30°

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प्रश्न 8.
निम्नांकित आकृतियों GUNS और RUNS समान्तर चतुर्भुज हैं । तथा । ज्ञात कीजिए । (लम्बाई cm में )-
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 16
हल :
(i)GUNS एक समान्तर चतुर्भुज है । समान्तर चतुर्भुज के आमने-सामने की भुजाएँ समान होती है। अत: GU = SN अत: 3y-1326
अतः ∴ GU = SN
अतः 3y – 1 = 26
⇒ 3y = 26 + 1
⇒ 3y = 27
⇒ y = \(\frac{27}{3}\) = 9
∴ y = 9

तथा 3x = 18
⇒ x = \(\frac{18}{3}\)
∴ x = 6
अत: x = 6 तथा y = 9

(ii) RUNS एक समान्तर चतुर्भुज हैं । समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं ।
अतः OS = OU
तथा OR = ON
OS = OU
⇒ y + 7 = 20
⇒ y = 20 – 7
∴ y = 13

अब, ON = OR
⇒ x + y = 16
⇒ x + 13 = 16
⇒ x = 16 – 13
∴ x = 3
अत: x = 3 तथा y = 13

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प्रश्न 9.
दी गई आकृति में RISK तथा CLUE दोनों समान्तर चतुर्भुज है,* का मान ज्ञात कीजिए।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 17
हल :
RISK तथा CLUE समान्तर चतुर्भुज हैं।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 18
(i) समान्तर चतुर्भुज RISK में,
∠K + ∠S = 180°
⇒ 120° + ∠S = 180°
⇒ ∠S = 180°- 120° = 60°
अत: ∠S = 60°

अब, समान्तर चतुर्भुज CLUE में,
हम जानते हैं कि सम्मुख कोण समान होते हैं ।
∴ ∠L = ∠E
∴ ∠E = 70°

∆EOS में,
∆ के तीनों कोणों का योग 180° होता है।
∴ ∠E + ∠O + ∠S = 180°
⇒ 70° + x + 60° = 180°
⇒ 130° + x = 180°
⇒ ∠x = 180° – 130° = 50°
अतः x = 50°

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प्रश्न 10.
बताइए कैसे यह आकृति एक समलम्ब है। इसकी कौन सी दो भुजाएँ समान्तर 80 हैं?
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 19
हल :
समलम्ब में, अन्तः आसन्न कोणों का योग 180° होता है।
अत: ∠M + ∠L = 180°
⇒ 100° + 80° = 180°
∴ 180° = 180°
इसलिए, KLMN एक समलम्ब है ।
⇒ \(\overline{\mathrm{NM}}\) || \(\overline{\mathrm{KL}}\).

प्रश्न 11.
निम्न आकृति में m∠C ज्ञात कीजिए, यदि \(\overline{\mathrm{AB}}\) || \(\overline{\mathrm{DC}}\).
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 20
हल :
दिया है, AB || DC
अतः, आसन्न अन्त:कोणों का योग = 180°
⇒ ∠B + ∠C = 180°
⇒ 120°+ ∠C = 180°
⇒ ∠C = 180° – 120° = 60°
अतः ∠C = 60°.

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प्रश्न 12.
संलग्न आकृति में s ∠P तथा ∠S की माप ज्ञात | कीजिए । यदि \(\overline{\mathrm{SP}}\).\(\overline{\mathrm{RQ}}\) है । (यदि आप m∠R ज्ञात करते है, तो क्या m∠P को ज्ञात करने की एक से अधिक विधि है।)
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 3 चतुर्भुजों को समझना Ex 3.3 - 21
हल :
दिया है, SP || RQ. अत: अन्तः आसन्न कोणों का योग = 180°
∴ ∠P + ∠Q = 180°
⇒ ∠P + 130° = 180°
⇒ ∠P = 180° – 130° = 50°
∴ ∠P = 50°

अब, ∠R + ∠S = 180°
∠S + 90° = 180°
∠S = 180° – 90° = 90°
∠S = 90°
अत:, ∠P = 50° तथा ∠S = 90°

हाँ, m∠P ज्ञात करने की अन्य विधि भी है।
∴ चतुर्भुज में चारों कोणों का योगफल 360° होता है।
m∠P + m∠Q + m∠R + m∠S = 360°
⇒ m∠P + 130° + 90° + 90° = 360°
⇒ m∠P = 360° – 310°
∴ m∠P= 50°

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