HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 8 सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 8 सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 8 सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा

HBSE 9th Class Physical Education सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
सुरक्षा शिक्षा से क्या अभिप्राय है? सुरक्षा शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। अथवा बचाव शिक्षा क्या है? खेलों में लगने वाली चोटों के कारण बताते हुए इसकी आवश्यकता का वर्णन करें।
उत्तर:
सुरक्षा/बचाव शिक्षा का अर्थ (Meaning of Safety Education):
सुरक्षा/बचाव शिक्षा से अभिप्राय उस शिक्षा से है, जिसके द्वारा हम यह सीखते हैं कि हमें अपने जीवन में स्वयं का तथा दूसरे का बचाव कैसे करना है। सुरक्षा शिक्षा से ही हमें पता चलता है कि घर में बिजली या आम से, सड़क पर बस या ट्रक आदि के नीचे आने से, तालाब आदि में डूब जाने से और खेल के मैदान में चोट लगने से कैसे बचाव करना है।

खेलों में लगने वाली चोटों के कारण (Causes of Sports Injuries):
खेल के मैदान में प्रायः चोटें लगती रहती हैं। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) खेल का मैदान समतल न होना।
(2) खेलों में घटिया किस्म के सामान का प्रयोग।
(3) मैदान की खराब योजनाबंदी।
(4) खेल की घटिया निगरानी या प्रबंध।
(5) अकुशल व अपरिपक्व खिलाड़ियों का खेलों में भाग लेना।
(6) खेलने से पहले शरीर का अच्छी तरह गर्म (Warm up) न होना।
(7) खिलाड़ियों में बदले की भावना होना।
(8) खिलाड़ी का थका होना।
(9) खिलाड़ियों की लापरवाही व जल्दबाजी।
(10) खिलाड़ियों का नशा करके खेलना।

कुछ खेलों; जैसे मुक्केबाज़ी, कुश्ती, साइकिल दौड़, कारों की दौड़, नेज़ा फेंकना, हैमर फेंकना, हॉकी तथा कबड्डी आदि में अधिक चोटें लगती हैं।

सुरक्षा शिक्षा की आवश्यकता (Need of Safety Education):
आज के मशीनी युग में यातायात के साधनों के बढ़ने के कारण सुरक्षा शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। इससे हम काफी सीमा तक होने वाली दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पा सकते हैं। आजकल साधारण तौर पर बच्चे सड़क पर चलते-फिरते अथवा खेलते समय दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि वे यातायात के नियमों का पालन नहीं करते। इससे कई बार उनको अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है। यदि हमें सुरक्षा शिक्षा का पता होगा तो हम प्रतिदिन होने वाली दुर्घटनाओं से मुक्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता या चिकित्सा से क्या अभिप्राय है? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालिए। अथवा प्राथमिक सहायता क्या है? इसकी आवश्यकता व उपयोगिता का वर्णन करें। अथवा प्राथमिक सहायता क्या होती है? इसकी हमें क्यों आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर;
प्राथमिक सहायता का अर्थ (Meaning of First Aid):
किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा जो सीमित उपचार किया जाता है, उसे प्राथमिक चिकित्सा या सहायता (First Aid) कहते हैं। इसका उद्देश्य कम-से-कम साधनों में इतनी व्यवस्था करना होता है कि चोटग्रस्त व्यक्ति को सम्यक इलाज कराने की स्थिति में लाने में लगने वाले समय में कम-से-कम नुकसान हो। अतः प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा कम-से-कम साधनों में किया गया सरल व तत्काल उपचार है।

प्राथमिक सहायता की आवश्यकता (Need of First Aid):
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को ओर अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है। इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। यदि घायल अथवा रोगी व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता मिल जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। कुछ चोटें तो इस प्रकार की हैं, जो खेल के मैदान में बहुत होती हैं, जिनको मौके पर प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, यदि हमें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी उचित जानकारी हो। इस प्रकार रोगी की स्थिति बिगड़ने से बचाने और उसके जीवन की रक्षा के लिए प्राथमिक सहायता की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए प्राथमिक सहायता की आज के समय में बहुत आवश्यकता हो गई है। इसका ज्ञान प्रत्येक नागरिक को प्राप्त करना आवश्यक होना चाहिए।

प्राथमिक सहायता की महत्ता (Importance of First Aid):
प्राथमिक सहायता रोगी के लिए वरदान की भाँति होती है और प्राथमिक सहायक भगवान की ओर से भेजा गया दूत माना जाता है। आज के समय में कोई किसी के दुःख-दर्द की परवाह नहीं करता। एक प्राथमिक सहायक ही है जो दूसरों के दर्द को समझने और उनके दुःख में शामिल होने की भावना रखता है। आज प्राथमिक सहायता की महत्ता बहुत बढ़ गई है; जैसे
(1) प्राथमिक सहायता द्वारा किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की बहुमूल्य जान बच जाती है।
(2) प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति में दूसरों के प्रति स्नेह और दया की भावना और तीव्र हो जाती है।
(3) प्राथमिक सहायता प्राथमिक सहायक को समाज में सम्मान दिलाती है।
(4) प्राथमिक सहायता लोगों को दूसरों के काम आने की आदत सिखाती है जिससे मानसिक संतुष्टि मिलती है।
(5) प्राथमिक सहायता देने वाला व्यक्ति डॉक्टर के कार्य को सरल कर देता है।
(6) प्राथमिक सहायता द्वारा लोगों के आपसी रिश्तों में सहयोग की भावना बढ़ती है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता के नियमों या सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक सहायता आज की जिंदगी में बहुत महत्त्व रखती है। इसकी जानकारी बहुत आवश्यक है। प्राथमिक सहायता के नियम निम्नलिखित हैं
(1) रोगी अथवा घायल को विश्राम की स्थिति में रखना।
(2) घाव से बह रहे रक्त को बंद करना।
(3) घायल की सबसे जरूरी चोट की ओर अधिक ध्यान देना।
(4) दुर्घटना के समय जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तुरंत उपलब्ध करवाना।
(5) घायल की स्थिति को खराब होने से बचाना।
(6) घायल की अंत तक सहायता करना।
(7) घायल के नजदीक भीड़ एकत्रित न होने देना।
(8) घायल को हौसला देना।
(9) घायल को सदमे से बचाकर रखना।
(10) प्राथमिक सहायता देते समय संकोच न करना।
(11) घायल को सहायता देते समय सहानुभूति और विनम्रता वाला व्यवहार करना।
(12) प्राथमिक सहायता देने के बाद शीघ्र ही किसी अच्छे डॉक्टर के पास पहुँचाने का प्रबंध करना।
(13) यदि घायल व्यक्ति की साँस नहीं चल रही हो तो उसे कृत्रिम श्वास (Artificial Respiration) देना चाहिए।
(14) रोगी को आराम से लेटे रहने देना चाहिए, जिससे उसकी तकलीफ़ ज़्यादा न बढ़ सके।
(15) यदि यह पता लगे कि रोगी ने जहर पी लिया है तो उसे उल्टी करवानी चाहिए।
(16) यदि घायल व्यक्ति को साँप या जहरीले कीट ने काट लिया हो तो काटे हुए स्थान को ऊपर की तरफ से बाँध देना चाहिए ताकि ज़हर सारे शरीर में न फैले।
(17) यदि घायल व्यक्ति पानी में डूब गया है तो उसे बाहर निकालकर सबसे पहले उसे पेट के बल लेटाकर पानी निकालना चाहिए तथा उसे कम्बल आदि में लपेटकर रखना चाहिए।.

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प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायता का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा एक अच्छे प्राथमिक चिकित्सक या उपचारक के गुणों का वर्णन करें।
अथवा
प्राथमिक चिकित्सा देने वाले व्यक्ति में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता का अर्थ (Meaning of First Aid):
घायल या मरीज को तत्काल दी जाने वाली सहायता प्राथमिक सहायता कहलाती है।

प्राथमिक चिकित्सक या उपचारक के गुण (Qualities of First Aider):
घायल व्यक्ति को गंभीर स्थिति में जाने से रोकने के लिए और उसका जीवन बचाने के लिए प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी हो सकता है यदि प्राथमिक सहायक बुद्धिमान और होशियार हो और प्राथमिक सहायता के नियमों से परिचित हो। प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ

(1) प्राथमिक सहायक चुस्त और बुद्धिमान होना चाहिए ताकि घायल के साथ घटी हुई घटना के बारे में समझ सके।
(2) प्राथमिक सहायक निपुण एवं सूझवान होना चाहिए ताकि प्राप्त साधनों के साथ ही घायल को बचा सके।
(3) वह बड़ा फुर्तीला होना चाहिए ताकि घायल व्यक्ति को शीघ्र संभाल सके।
(4) प्राथमिक सहायक योजनाबद्ध व्यवहार कुशल होना चाहिए, जिससे वह घटना संबंधी जानकारी जल्द-से-जल्द प्राप्त करते हुए रोगी का विश्वास प्राप्त कर सके।
(5) उसमें सहानुभूति की भावना होनी चाहिए ताकि वह घायल को आराम और हौसला दे सके।
(6) प्राथमिक सहायक सहनशील, लगन और त्याग की भावना वाला होना चाहिए।
(7) प्राथमिक सहायक अपने काम में निपुण होना चाहिए ताकि लोग उसकी सहायता के लिए स्वयं सहयोग करें।
(8) वह स्पष्ट निर्णय वाला होना चाहिए ताकि वह निर्णय कर सके कि कौन-सी चोट का पहले इलाज करना है।
(10) प्राथमिक सहायक दृढ़ इरादे वाला व्यक्ति होना चाहिए ताकि वह असफलता में भी सफलता को ढूँढ सके।
(11) उसका व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए ताकि घायल को ज़ख्मों से आराम मिल सके।
(12) प्राथमिक सहायक दूसरों के प्रति विनम्रता वाला और मीठा बोलने वाला होना चाहिए।
(13) प्राथमिक सहायक स्वस्थ और मज़बूत दिल वाला होना चाहिए ताकि मौजूदा स्थिति पर नियंत्रण पा सके।

प्रश्न 5.
मोच (Sprain) क्या है? इसके कारण एवं उपचार के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
मोच कितने प्रकार की होती है? इसके लक्षण व इलाज के बारे में बताएँ।
अथवा
मोच किसे कहते हैं? इसके लिए प्राथमिक सहायता क्या हो सकती है?
अथवा
मोच के कारणों, लक्षणों व बचाव एवं उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोच (Sprain):
किसी जोड़ के अस्थि-बंधकों (Ligaments) के फट जाने को मोच आना कहते हैं अर्थात् जोड़ के आसपास के जोड़-बंधनों तथा तन्तु वर्ग (Tissues) फट जाने या खिंच जाने को मोच कहते हैं। सामान्यतया घुटनों, रीढ़ की हड्डी तथा गुटों में ज्यादा मोच आती है। इसकी प्राथमिक चिकित्सा जल्दी शुरू कर देनी चाहिए।

प्रकार (Types):
मोच तीन प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है
1. नर्म मोच (Mold or Minor Sprain):
इसमें जोड़-बंधनों पर खिंचाव आता है। जोड़ में हिलजुल करने पर दर्द अनुभव होता है। इस हालत में कमजोरी तथा दर्द महसूस होता है।

2. मध्यम मोच (Medicate or Moderate Sprain):
इसमें जोड़-बंधन काफी मात्रा में टूट जाते हैं। इस हालत में सूजन तथा दर्द बढ़ जाता है।

3. पूर्ण मोच (Complete or Several Sprain):
इसमें जोड़ की हिलजुल शक्ति समाप्त हो जाती है। जोड़-बंधन पूरी तरह टूट जाते हैं। जोड़-बंधनों के साथ-साथ जोड़ कैप्सूल भी जख्मी हो जाता है। इस हालत में दर्द असहनीय हो जाता है।

कारण (Causes):
मोच आने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) खेलते समय सड़क पर पड़े पत्थरों पर पैर आने से मोच आ जाती है।
(2) किसी गीली अथवा चिकनी जगह पर; जैसे ओस वाली घास, खड़े पानी में पैर रखने से मोच आ जाती है।
(3) खेल के मैदान में यदि किसी गड्ढे में पैर आ जाए तो यह मोच का कारण बन जाता है।
(4) अनजान खिलाड़ी यदि गलत तरीके से खेले तो भी मोच आ जाती है।
(5) अखाड़ों की गुड़ाई ठीक न होने के कारण भी मोच आ जाती है।
(6) असावधानी से खेलने पर भी मोच आ जाती है।

लक्षण (Symptoms);
मोच के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) सूजन वाले स्थान पर दर्द शुरू हो जाता है।
(2) थोड़ी देर बाद जोड़ के मोच वाले स्थान पर सूजन आने लगती है।
(3) सूजन वाले भाग में कार्य की क्षमता कम हो जाती है।
(4) सख्त मोच की हालत में जोड़ के ऊपर की चमड़ी का रंग नीला हो जाता है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
खेलों में मोच से बचाव की विधियाँ निम्नलिखित हैं
(1) पूर्ण रूप से शरीर के सभी जोड़ों को गर्मा लेना चाहिए।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिएँ।
(3) मैदान समतल व साफ होना चाहिए।
(4) सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

उपचार (Treatment):
मोच के उपचार/इलाज हेतु निम्नलिखित प्राथमिक सहायता की जा सकती है
(1) मोच वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए। आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
(2) मोच वाले स्थान पर 48 घंटे तक पानी की पट्टी रखनी चाहिए।
(3) यदि मोच टखने पर हो तो आठ के आकार की पट्टी बाँध देनी चाहिए। प्रत्येक मोच वाले स्थान पर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
(4) मोच वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए बल्कि मदद के लिए कोई सहारा लेना चाहिए।
(5) हड्डी टूटने के शक को दूर करने के लिए एक्सरे करवा लेना चाहिए।
(6) 48 घंटे से 72 घंटे के बाद सेक तथा मालिश कर लेनी चाहिए।
(7) मोच वाले स्थान का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसी स्थान पर बार-बार मोच आने का डर रहता है।

प्रश्न 6.
खिंचाव से क्या अभिप्राय है? इसके कारणों, लक्षणों व बचाव एवं उपचार का वर्णन कीजिए।
अथवा
माँसपेशियों के तनाव से आपका क्या अभिप्राय है? इसके चिह्न तथा इलाज के बारे में लिखें। अथवा पट्ठों का तनाव क्या होता है? यह किस कारण होता है? अथवा पट्ठों का फटना या खिंच जाना किसे कहते हैं? इसके कारण, लक्षण तथा उपचार के उपाय बताएँ।
उत्तर:
पट्ठों का तनाव/खिंचाव (Pull in Muscles/Strain):
खिंचाव माँसपेशी की चोट है। खेलते समय कई बार खिलाड़ियों की माँसपेशियों में खिंचाव आ जाता है जिसके कारण खिलाड़ी अपना खेल जारी नहीं रख सकता। कई बार तो माँसपेशियाँ फट भी जाती हैं, जिसके कारण काफी दर्द महसूस होता है। प्रायः खिंचाव वाले हिस्से में सूजन आ जाती है। खिंचाव का मुख्य कारण खिलाड़ी का खेल के मैदान में अच्छी तरह गर्म न होना है। इसे पट्ठों का खिंच जाना भी कहते हैं।

कारण (Causes):
खिंचाव आने के निम्नलिखित कारण हैं
(1) शरीर के सभी अंगों का आपसी तालमेल ठीक न होना।
(2) अधिक शारीरिक थकान।
(3) पट्ठों को तेज़ हरकत में लाना।
(4) शरीर में से पसीने द्वारा पानी का बाहर निकलना।
(5) खिलाड़ी द्वारा शरीर को बिना गर्म किए खेल में हिस्सा लेना।
(6) खेल का समान ठीक न होना।
(7) खेल का मैदान अधिक सख्त या नरम होना।
(8) माँसपेशियों तथा रक्त केशिकाओं का टूट जाना।

चिह्न/लक्षण (Signs/Symptoms):
माँसपेशियों या पट्ठों में खिंचाव आने के लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) खिंचाव वाले स्थान पर बहुत तेज दर्द होता है।
(2) खिंचाव वाले स्थान पर माँसपेशियाँ फूल जाती हैं, जिसके कारण दर्द अधिक होता है।
(3) शरीर के खिंचाव वाले अंग को हिलाने से भी दर्द होता है।
(4) चोट चाला स्थान नरम हो जाता है।
(5) खिंचाव वाले स्थान पर गड्ढा-सा दिखता है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
खेल में खिंचाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए
(1) गीले व चिकने ग्राऊंड, ओस वाली घास पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(2) ऊँची तथा लंबी छलाँग हेतु बने अखाड़ों की जमीन सख्त नहीं होनी चाहिए।
(3) खेलने से पहले कुछ हल्का व्यायाम करके शरीर को अच्छी तरह गर्म करना चाहिए। इससे खेलने के लिए शरीर तैयार हो जाता है।
(4) चोटों से बचने के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को आवश्यक शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
(5) खिलाड़ी को सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

उपचार (Treatment):
खिंचाव के उपचार/इलाज के उपाय निम्नलिखित हैं.
(1) खिंचाव वाली जगह पर पट्टी बाँधनी चाहिए।
(2) खिंचाव वाले स्थान पर ठंडे पानी अथवा बर्फ की मालिश करनी चाहिए।
(3) माँसपेशियों में खिंचाव आ जाने के कारण खिलाड़ी को आराम करना चाहिए।
(4) खिंचाव वाले स्थान पर 24 घंटे बाद सेक देना चाहिए।
(5) चोटग्रस्त क्षेत्र को आराम देने तथा सूजन कम करने के लिए मालिश करनी चाहिए।
(6) दर्द कम होने पर सामान्य क्रिया धीरे-धीरे जारी रखनी चाहिए।

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प्रश्न 7.
रगड़ या खरोंच क्या है? इसके कारण, बचाव के उपाय तथा इलाज लिखें।
अथवा
खरोंच के कारण, लक्षण एवं उपचार के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रगड़ (Abrasion):
रगड़ त्वचा की चोट है। प्रायः रगड़ एक मामूली चोट होती है लेकिन कभी-कभी यह गंभीर भी साबित हो जाती है। अगर रगड़ का चोटग्रस्त क्षेत्र विस्तृत हो जाए और उसमें बाहरी कीटाणु हमला कर दें तो यह भयानक हो जाती है।

कारण (Causes):
रगड़ आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) कठोर धरातल पर गिर पड़ना।
(2) कपड़ों में रगड़ पैदा करने वाले तंतुओं के कारण।
(3) जूतों का पैरों में सही प्रकार से फिट न आना।
(4) हैलमेट और कंधों के पैडों का असुविधाजनक होना।

लक्षण (Symptoms):
रगड़ के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) त्वचा पर रगड़ दिखाई देती है और वहाँ पर जलन महसूस होती है।
(2) रगड़ वाले स्थान से खून बहने लगता है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
रगड़ से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) सुरक्षात्मक कपड़े पहनने चाहिएँ, इनमें पूरी बाजू वाले कपड़े, बड़ी-बड़ी जुराबें, घुटनों व कुहनी के पैड शामिल हैं।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता वाले होने चाहिएँ और प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को गर्मा लेना चाहिए।
(3) फिट जूते पहनने चाहिएँ।
(4) ऊबड़-खाबड़ खेल के मैदान से बचना चाहिए।

इलाज (Treatment):
रगड़ के इलाज या उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिएँ- ..
(1) चोटग्रस्त स्थान को ऊँचा रखना चाहिए।
(2) चोटग्रस्त स्थान को जितनी जल्दी हो सके गर्म पानी व नीम के साबुन से धोना चाहिए।
(3) यदि रगड़ अधिक हो तो उस स्थान पर पट्टी करवानी चाहिए। पट्टी खींचकर नहीं बाँधनी चाहिए।
(4) चोटग्रस्त स्थान को प्रत्येक दिन गर्म पानी से साफ करना चाहिए।
(5) चोट के तुरंत बाद एंटी-टैटनस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
(6) दिन के समय चोट पर पट्टी बाँधनी चाहिए और रात को चोट खुली रखनी चाहिए।
(7) चोट लगने के तुरंत बाद खेलना नहीं चाहिए। ऐसा करने से दोबारा उसी जगह पर चोट लग सकती है जो खतरनाक सिद्ध हो सकती है।

प्रश्न 8.
जोड़ उतरना क्या है? इसके कारण, लक्षण तथा इलाज बताएँ। अथवा जोड़ उतरने के कारण, चिन तथा उपचार के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
जोड़ों के विस्थापन (Dislocation) से आप क्या समझते हैं? इनके प्रकारों, कारणों, लक्षणों तथा बचाव व उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जोड़ उतरना या जोड़ों का विस्थापन (Dislocation):
एक या अधिक हड्डियों के जोड़ पर से हट जाने को जोड़ उतरना कहते हैं। कुछ ऐसी खेलें होती हैं जिनमें जोड़ों की मज़बूती अधिक होनी चाहिए; जैसे जिम्नास्टिक, फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी आदि। इन खेलों में हड्डी का उतरना स्वाभाविक है। प्रायः कंधे, कूल्हे

कारण (Causes):
जोड़ उतरने के निम्नलिखित कारण हैं
(1) खेल का मैदान ऊँचा नीचा होना अथवा अधिक सख्त या नरम होना।
(2) खेल सामान का शारीरिक शक्ति से भारी होना।।
(3) खेल से पहले शरीर को हल्के व्यायामों द्वारा गर्म न करना।
(4) खिलाड़ी का अचानक गिरने से हड्डी का हिल जाना।

लक्षण या चिह्न (Symptoms or Signs):
जोड़ उतरने के लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) जोड़ों में तेज दर्द होती है तथा सूजन आ जाती है।
(2) जोड़ों का रूप बदल जाता है।
(3) जोड़ में खिंचाव-सा महसूस होता है।
(4) जोड़ में गति बन्द हो जाती है। थोड़ी-सी गति से दर्द होता है।
(5) उतरे हुए स्थान से हड्डी बाहर की ओर उभरी हुई नज़र आती है।

बचाव (Prevention):
इससे बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) असमतल मैदान या जगह पर संभलकर चलना चाहिए।
(2) गीली या फिसलने वाली जगह पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(3) खेलने से पूर्व शरीर को गर्मा लेना चाहिए।
(4) प्रतियोगिता के दौरान सतर्क व सावधान रहना चाहिए।

उपचार/इलाज (Treatment):
जोड़ उतरने के इलाज निम्नलिखित हैं
(1) घायल को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
(2) घायल अंग को गद्दियों या तकियों से सहारा देकर स्थिर रखें। हड्डी पर प्लास्टिक वाली पट्टी बांधनी चाहिए।
(3) उतरे जोड़ को चढ़ाने का प्रयास कुशल प्राथमिक सहायक को सावधानी से करना चाहिए।
(4) जोड़ पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टी बाँधनी चाहिए।
(5) घायल को प्राथमिक सहायता के बाद तुरंत अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाएँ।
(6) चोट वाले स्थान पर भार नहीं पड़ना चाहिए।
(7) चोट वाले स्थान पर शलिंग (Sling) डाल देनी चाहिए, ताकि हड्डी स्थिर रहे।

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प्रश्न 9.
फ्रैक्चर (Fracture) की कितनी किस्में होती हैं? सबसे खतरनाक कौन-सा फ्रैक्चर है?
अथवा
टूट कितने प्रकार की होती है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रैक्चर का अर्थ (Meaning of Fracture):
किसी हड्डी का टूटना, फिसलना अथवा दरार पड़ जाना टूट (Fracture) कहलाता है। हड्डी पर जब दुःखदायी स्थिति में दबाव पड़ता है तो हड्डी से सम्बन्धित माँसपेशियाँ उस दबाव को सहन नहीं कर सकतीं, जिस कारण हड्डी फिसल अथवा टूट जाती है। अतः फ्रैक्चर का अर्थ है-हड्डी का टूटना या दरार पड़ जाना।

हड्डी टूटने या फ्रैक्चर के प्रकार (Types of Fracture):
हड्डी टूटने या फ्रैक्चर के प्रकार निम्नलिखित हैं
1. साधारण या बंद फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture):
जब हड्डी टूट जाए, परन्तु घाव न दिखाई दे, तो वह बंद फ्रैक्चर होता है।

2. जटिल फ्रैक्चर (Complicated Fracture):
इस फ्रैक्चर से कई बार हड्डी की टूट के साथ जोड़ भी हिल जाते हैं। कई बार हड्डी टूटकर शरीर के किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचा देती है; जैसे रीढ़ की हड्डी की टूट मेरुरज्जु को, सिर की हड्डी की टूट दिमाग को और पसलियों की हड्डियों की टूट दिल, फेफड़े और जिगर को नुकसान पहुँचाती हैं। ऐसी स्थिति में टूट काफी जटिल टूट बन जाती है।

3. विशेष या खुला फ्रैक्चर (Compound or Open Fracture):
जब हड्डी त्वचा को काटकर बाहर दिखाई दे तो वह खुला फ्रैक्चर होता है। इस स्थिति में बाहर से मिट्टी के रोगाणुओं को शरीर के अंदर जाने का रास्ता मिल जाता है।

4. बहुसंघीय या बहुखंडीय फ्रैक्चर (Comminuted or Multiple Fracture):
जब हड्डी कई भागों से टूट जाए तो इसे बहुसंघीय या बहुखंडीय फ्रैक्चर या टूट कहा जाता है।

5. चपटा या संशोधित टूट या फ्रैक्चर (Impacted Fracture):
जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में घुस जाते हैं तो वह चपटी टूट कहलाती है।

6.कच्चा फ्रैक्चर (Green-stick Fracture):
यह छोटे बच्चों में होता है क्योंकि छोटी आयु के बच्चों की हड्डियाँ बहुत नाजुक होती हैं जो शीघ्र मुड़ जाती हैं। यही कच्चा फ्रैक्चर होता है।

7. दबी हुई टूट या फ्रैक्चर (Depressed Fracture):
सामान्यतया यह टूट सिर की हड्डियों में होती है। जब खोपड़ी के ऊपरी .. भाग या आस-पास से हड्डी टूट जाने पर अंदर फंस जाती है तो ऐसी टूट दबी हुई टूट कहलाती है।
सबसे अधिक खतरनाक टूट या फ्रैक्चर जटिल फ्रैक्चर होता है क्योंकि इसमें हड्डी टूटकर किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचाती है। इस फ्रैक्चर में घायल की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
हड्डी टूटने (Fracture) के कारण, लक्षण, बचाव तथा इलाज या उपचार के बारे में लिखें।
अथवा
अस्थि-भंग (Fracture) कितने प्रकार के होते हैं? इनके कारणों, लक्षणों तथा बचाव व उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अस्थि-भंग (Fracture) सात प्रकार का होता है। कारण (Causes):
हड्डी टूटने या फ्रैक्चर के कारण निम्नलिखित हैं
(1) यदि कोई भार तेजी से आकर हड्डी में लगे तो हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है।
(2) खेल मैदान का ऊँचा-नीचा होना अथवा असमतल होना।
(3) खेल सामान का शारीरिक शक्ति से भारी होना।
(4) खिलाड़ी के अचानक गिरने से हड्डी का हिल जाना।
(5) माँसपेशियों में कम शक्ति के कारण अकसर हड्डियाँ टूट जाती हैं।
(6) किसी भी दशा में गिरने से सम्बन्धित जोड़ के पास की माँसपेशियों का सन्तुलन ठीक न होने के कारण हड्डी टूट जाती है; जैसे घुटने के जोड़, कूल्हे (Hip) का जोड़ आदि।

लक्षण (Symptoms):
हड्डी टूटने के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर दर्द होता है।
(2) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
(3) टूटी हुई हड्डी के स्थान वाले अंग कुरूप हो जाते हैं।
(4) टूट वाले स्थान में ताकत नहीं रहती।
(5) हाथ लगाकर हड्डी की टूट की जाँच की जा सकती है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
फ्रैक्चर से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) असमतल मैदान पर ठीक से चलना चाहिए।
(2) फिसलने वाले स्थान पर सावधानी से चलना चाहिए।
(3) कभी भी अधिक भावुक.होकर नहीं खेलना चाहिए।
(4) खेल-भावना तथा धैर्य के साथ खेलना चाहिए।

उपचार/इलाज (Treatment):
फ्रैक्चर के इलाज या उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) टूट वाले स्थान को हिलाना-जुलाना नहीं चाहिए।
(2) टूट के उपचार को करने से पहले रक्तस्त्राव एवं अन्य तीव्र घावों का उपचार करना चाहिए।
(3) टूटी हड्डी को पट्टियों व कमठियों के द्वारा स्थिर कर देना चाहिए।
(4) टूटी हड्डी पर पट्टियाँ पर्याप्त रूप से कसी होनी चाहिएँ। पट्टियाँ इतनी न कसी हों कि रक्त संचार में बाधा पैदा हो जाए।
(5) कमठियाँ इतनी लम्बी होनी चाहिएँ कि वे टूटी हड्डी का एक ऊपरी तथा एक निचला जोड़ स्थिर कर दें।
(6) घायल की पट्टियों को इस प्रकार से सही स्थिति में लाएँ कि उसको कोई तकलीफ न हो।
(7) घायल व्यक्ति को कंबल या किसी कपड़े के द्वारा गर्म करना चाहिए ताकि उसे कोई सदमा न पहुँचे।

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प्रश्न 11.
कृत्रिम श्वास से क्या अभिप्राय है? कृत्रिम श्वास की विभिन्न विधियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कृत्रिम श्वास (Artificial Respiration):
कई बार किसी घटना के कारण व्यक्ति का श्वास काफी देर तक रुका रह जाता है और श्वास चलना बंद हो जाता है। व्यक्ति बेहोशी की स्थिति में होता है और कई बार तो उसकी जान खतरे में पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को जो श्वास दिया जाता है, वह कृत्रिम श्वास कहलाता है। कृत्रिम श्वास से उस व्यक्ति की जान बच सकती है। इस प्रकार कृत्रिम श्वास व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्त्व रखती है।

कृत्रिम या बनावटी श्वास देने की विधियाँ (Techniques of Artificial Respiration):
कृत्रिम श्वास की प्राथमिक सहायता में बहुत महत्ता है। दुर्घटना में आमतौर पर व्यक्ति का श्वास रुक जाता है। श्वास को पुन: चलाने के लिए कृत्रिम श्वास की आवश्यकता पड़ती है। प्राथमिक सहायक को इस बारे में पूरी तरह जानकारी होनी चाहिए । मनुष्य के जीवन में कृत्रिम श्वास देने के लिए विभिन्न विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं, जिनमें हैं

(क) शैफर विधि (Schafer Technique): शैफर विधि का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है
1. रोगी का आसन (Posture of Patient):
रोगी को आसन पर मुँह के बल इस प्रकार लेटा दें कि उसकी बाजू सिर के ऊपर की दिशा की ओर हों।

2. प्राथमिक सहायक का आसन (Posture of First Aider):
रोगी के एक ओर होकर घुटनों के बल बैठे। उस समय आपका मुँह रोगी के सिर की ओर होना चाहिए और फिर अपने हाथ रोगी की कमर पर इस प्रकार रखें कि दोनों हाथ रीढ़ की हड्डी को दबाते हों। इस स्थिति में दोनों बाजुएँ सीधी रहनी चाहिएँ।
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3. कृत्रिम श्वास की विधि (Technique of Artificial Respiration):
(1) धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए शरीर का सारा भार कमर पर डालें। इससे रोगी के पेट के सारे अंग जमीन के साथ लगे होने के कारण फेफड़ों पर दबाव पड़ने से श्वास बाहर निकलने की क्रिया आरंभ हो जाती है।

(2) दो सेकिण्ड के बाद अपना सारा भार पहले वाली स्थिति में ले आएँ। इस प्रकार बाहर की हवा अंदर आने की क्रिया आरंभ हो जाएगी।
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(ख) सिल्वेस्टर विधि (Silvester Technique):
सिल्वेस्टर विधि का प्रयोग उस समय करना चाहिए, जिस समय रोगी मुँह के बल लेटने के योग्य न हो।

1. रोगी का आसन (Posture of Patient):
रोगी को साफ स्थान पर पीठ के बल लेटा दें और यह ध्यान रखें कि उसकी गर्दन पीछे की ओर लटकी होनी चाहिए। इस स्थिति में उसकी जुबान को पकड़कर रखना चाहिए।

2. प्राथमिक सहायक का आसन (Posture of First Aider):
प्राथमिक सहायक ने रोगी को सिर की ओर कोहनी करके सीधा लेटाना चाहिए। रोगी की कोहनियों को दोनों हाथों से पकड़ना चाहिए।

3. कृत्रिम श्वास की विधि (Technique ofArtificial Respiration):
रोगी की बाजुओं को उसकी छाती पर एक-दूसरे के पास रखें और बाजुओं को अपनी ओर खींचते हुए कोहनियों को जोर से दबाएँ। इस प्रकार छाती का आकार बढ़ने से हवा फेफड़ों में भर जाती है।

(ग) होल्गर नीलसन विधि (Holger Nielson Technique):
इस विधि में पीठ पर दबाव डालकर फेफड़ों में से हवा बाहर निकल जाती है और बाजू ऊपर उठाकर हवा को फेफड़ों में दाखिल होने दिया जाता है।

1. रोगी का आसन (Posture of Patient):
रोगी को मुँह के बल लेटाकर इस प्रकार करें कि उसकी हाथों की तलियाँ उसके माथे के नीचे हों।

2. प्राथमिक सहायंक का आसन (Posture of First Aider):
प्राथमिक सहायक का दायाँ घुटना सिर के पास और बायाँ घुटना कोहनी के पास रखना चाहिए। दोनों बाजुओं को सीधी करके रोगी के कंधों पर भार डालना चाहिए। .

3. कृत्रिम श्वास की विधि (Technique of Aritificial Respiration):
(1) अपनी बाजुओं को सीधी करके शरीर का भार रोगी के कंधों पर डालें। हवा फेफड़ों में से बाहर निकल जाएगी।
(2) रोगी की बाजुओं को ऊपर की ओर उठाएँ। ध्यान रखें कि छाती जमीन के। साथ लगी रहे। इस प्रकार हवा फेफड़ों में प्रवेश कर जाएगी।
(3) जब तक प्राकृतिक श्वास क्रिया पुनः आरंभ न हो जाए, उस समय तक बाजुओं और कंधों को ऊपर उठाते और नीचे करते रहो।

प्रश्न 12.
घरों में होने वाली दुर्घटनाओं के कारण तथा उनसे बचाव के तरीके बताएँ। अथवा घर में किस प्रकार की दुर्घटनाएँ घटती हैं? उन दुर्घटनाओं से बचने के लिए कौन-कौन-सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
घरों में होने वाली दुर्घटनाएँ (Accidents occur at Homes):
घरों में आमतौर पर रसोईघर, रिहायशी कमरे, सीढ़ियाँ और आँगन आदि में दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित है
1. रसोईघर में दुर्घटना होने के कारण-
(i) धुएँ के निकलने का उचित प्रबंध न होना।
(ii) बिजली की तारों आदि का नंगे होना।
(iii) फर्श अधिक फिसलना होना।
(iv) चीजों आदि का अधिक ऊँचाई पर होना।
(v) रसोई में सफाई न होना।
(vi) आग भड़कने वाले कपड़े पहनकर काम करना।
(vii) मिट्टी के तेल और ईंधन सामग्री आदि का उचित स्थान पर न रखा होना।
(viii) जूठे बर्तनों का सही ढंग से न रखा होना।
(ix) साबुन और सर्फ का रसोई में सही जगह पर न रखा होना।

2. स्नानघर में दुर्घटना होने के कारण
(i) स्नानघर बहुत छोटा होना जिससे उठते अथवा बैठते समय चोट लग जाती है।
(ii) स्नानघर में कई बार काई जम जाती है, जिससे दुर्घटना हो सकती है।
(iii) फर्श आदि पर तेल अथवा साबुन का गिरा होना।
(iv) कपड़े टाँगने के लिए किल्लियाँ उचित स्थान पर न होना।
(v) फव्वारे अथवा पानी के नलों की ऊँचाई ठीक न होना।

3. रिहायशी कमरे में दुर्घटना के कारण:
(i) कमरों में सामान इधर-उधर बिखरा होना।
(ii) आग को सुलगते छोड़कर सोना।
(iii) फर्नीचर रखने की अवस्था सही न होना।
(iv) रोशनी का ठीक प्रबंध न होना।
(v) फर्श अधिक फिसलना होना।
(vi) बच्चों के खिलौनों का बिखरे होना।
(vii) कैंची अथवा चाकू का बिस्तरों पर बिखरे होना।

4. सीढ़ियों से दुर्घटना के कारण:
(i) सीढ़ियों का सही ढंग से न बने होना।
(ii) सीढ़ी चढ़ते समय अथवा उतरते समय पकड़ने की सही व्यवस्था न होना।
(iii) सीढ़ियाँ तंग होना और कई बार टूटी भी होना।
(iv) बच्चों वाले घर में सीढ़ियों के आगे दरवाजा न लगा होना।
(v) बाँस की सीढ़ी का सही ढंग से प्रयोग न करना।
(vi) सीढ़ियों में रोशनी का ठीक प्रबंध न होना।

5. आँगन में दुर्घटना के कारण:
(i) आँगन तंग और ऊँचा-नीचा होना।
(ii) घर का कूड़ा-कर्कट आँगन में इधर-उधर फेंका होना।
(iii) जानवरों को आँगन में बाँधना।
(iv) बच्चों द्वारा आँगन में खेलते हुए खड्डे आदि का खोदना।

बचाव के तरीके/सावधानियाँ (Safety Methods/Precautions):
घरों में होने वाली दुर्घटनाओं से बचाव/सुरक्षा के तरीके निम्नलिखित हैं
(1) घर का सारा सामान एक निश्चित स्थान पर सलीके से रखना चाहिए।
(2) माचिस आदि के सुलगते हुए टुकड़े इधर-उधर नहीं बिखेरने चाहिएँ।
(3) रोशनी का उचित प्रबंध होना चाहिए।
(4) स्नानघर में काई आदि नहीं जमने देनी चाहिए और स्नानघर को साफ रखना चाहिए।
(5) घर के फर्श पर पानी अथवा तेल गिर जाने पर उसको उसी समय अच्छी तरह साफ करना चाहिए।
(6) घर को अच्छी प्रकार रगड़कर साफ करना चाहिए।
(7) घर व रसोई में प्रत्येक वस्तु सही स्थान पर और सही ऊँचाई पर रखी होनी चाहिए।
(8) घर का कूड़ा-कर्कट एक स्थान पर डालना चाहिए।
(9) जलती लकड़ियाँ और कोयले के प्रति लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
(10) सीढ़ियों में चढ़ते-उतरते समय पक्के और मज़बूत सहारे होने चाहिएँ।
(11) चाकू, छुरी, कील आदि वस्तुओं का प्रयोग करने के उपरांत उनको उचित स्थान पर रख देना चाहिए।
(12) आँगन समतल होना चाहिए।
(13) बच्चों के खिलौने बिखरे नहीं होने चाहिएँ।

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प्रश्न 13.
स्कूल में होने वाली दुर्घटनाओं के कारण तथा इनसे बचाव के तरीके बताइए।
अथवा
विद्यालय में किस प्रकार की दुर्घटनाएं घटती हैं? उन दुर्घटनाओं से बचने के लिए कौन-कौन-सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
स्कूल या विद्यालय में होने वाली दुर्घटनाएँ (Accidents occur at School):
दुर्घटनाएँ न केवल घरों में होती हैं, बल्कि स्कूलों में भी हो जाती हैं। स्कूल में होने वाले दुर्घटनाएँ-फर्श से फिसलकर गिर जाना, खेलते हुए चोट लगना, खेलने का सामान ठीक न होने के कारण चोट लगना, स्कूल की सीढ़ियों से गिर जाना, पानी वाले स्थान के आस-पास काई जमी होने के कारण फिसलकर गिर जाना आदि।
संक्षेप में, स्कूल में दुर्घटनाएँ होने के कारण अग्रलिखित हैं
(1) स्कूल का फर्श और कमरे गंदे व चिकने होना।
(2) खेल का मैदान साफ और समतल न होना।
(3) खेल का टूटा-फूटा सामान इधर-उधर बिखरा हुआ होना।
(4) खेलों के नियमों का उल्लंघन करना।
(5) खेलों का निरीक्षण और नेतृत्व विशेषज्ञ अध्यापकों की निगरानी में न होना।
(6) कबड्डी और कुश्ती आदि खेलों में अंगूठी अथवा कोई अन्य तीखी चीज़ डालना।
(7) स्कूल में तैरने के तालाब, स्नानघर और नलों आदि की ठीक सफाई न होना।
(8) शौचालय की उचित व्यवस्था व सफाई न होना।
(9) स्कूल की सीढ़ियों पर काई का जमा होना।
(10) पीने वाले पानी के स्थान के आस-पास काई का जमा होना।

बचाव के तरीके या सावधानियाँ (Safety Methods or Precautions):
स्कूल में सुरक्षा बहुत आवश्यक है। स्कूलों में बचाव निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है.
(1) स्कूल में सारे कमरे हवादार और खुले होने चाहिएँ।
(2) स्कूल में खेलने का स्थान समतल और साफ-सुथरा होना चाहिए।
(3) खेलने की वस्तुएँ उचित स्थान पर रखी होनी चाहिएँ।
(4) कबड्डी और कुश्ती जैसी खेलें खेलते समय अँगूठी, कड़ा या कोई तीखी चीज़ पहनने की मनाही होनी चाहिए।
(5) खेलों के नियम का उल्लंघन करने वाले के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए।
(6) स्कूल में पीने वाले पानी की सफाई जरूर होनी चाहिए।
(7) पीने वाले पानी के स्थान पर काई आदि नहीं जमने देनी चाहिए।

प्रश्न 14.
किसी व्यक्ति के जल जाने के कारण, लक्षण तथा इलाज के उपाय लिखें।
अथवा
किसी व्यक्ति के जल जाने के लक्षण, उपचार तथा उस स्थिति में न करने योग्य बातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केवल आग के संपर्क में आकर ही नहीं, किसी भी गर्म वस्तु के शरीर से छू जाने पर त्वचा जल जाती है। जले हुए स्थान पर बहुत दर्द होता है। कई बार त्वचा पर छाले भी पड़ जाते हैं। किसी गर्म वस्तु अथवा आग के संपर्क में शारीरिक त्वचा के आ जाने से त्वचा की ऊपरी अथवा निचली परत की बनावट के जल जाने को जलन कहा जाता है। साधारण तौर पर शरीर पर जलन से संबंधित घटनाएँ रसोईघर, कारखानों और प्रयोगशालाओं में होती रहती हैं।

कारण (Causes):
जलने के कारण निम्नलिखित हैं
(1) आग के प्रत्यक्ष संपर्क से।
(2) किसी गर्म वस्तु के छूने से।
(3) बिजली के करंट से।
(4) आकाशीय बिजली गिरने से।
(5) तेजाब से।
(6) गर्म दूध,पानी, घी और तेल आदि से।

लक्षण (Symptoms):
जलन पैदा होने के निम्नलिखित लक्षण होते हैं
(1) जलन से त्वचा लाल हो जाती है।
(2) त्वचा पर छाले पड़ जाते हैं।
(3) प्रभावित अंग या भाग में दर्द होता है।
(4) जलन से तंतु नष्ट हो जाते हैं।
(5) जले हुए अंग कुरूप दिखाई देते हैं।

इलाज/उपचार (Treatment) जलन का इलाज निम्नलिखित तरीके से करना चाहिए
(1) रोगी को कंबल में लपेट देना चाहिए, ताकि उसका शरीर गर्म रहे।
(2) जले हुए स्थान को स्थिर रखने के लिए पट्टियों अथवा फट्टियों का प्रयोग करना चाहिए।
(3) जलन होने की स्थिति में पड़े छाले नहीं छेड़ने चाहिएँ और उन पर नर्म पट्टी का लेप करना चाहिए।
(4) रोगी को गर्म चाय अथवा दूध देना चाहिए।
(5) जलन वाले स्थान को मीठे सोडे से धो लें, रोगी को आराम मिलेगा।
(6) यदि जलन तेजाबी हो तो खारे पानी के साथ धो लें।
(7) जलन पर पूरी तरह नियंत्रण करने के लिए डॉक्टर की सलाह लें।

जलन की स्थिति में न करने योग्य बातें (Things to Avoid in Burns Situation):
जलन की स्थिति में न करने योग्य बातें निम्नलिखित हैं
(1) जले हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए।
(2) जले हुए व्यक्ति के शरीर पर पड़े छाले नहीं छेड़ने चाहिएँ।
(3) जिस किसी व्यक्ति के कपड़ों में आग लगी हो, उसे दौड़ने नहीं देना चाहिए क्योंकि दौड़ने से आग तीव्र होती है।
(4) यदि जले हुए व्यक्ति के कपड़े उसकी त्वचा से चिपक जाएँ तो उन्हें खींचना नहीं चाहिए।

प्रश्न 15.
लू लगने के लक्षण तथा इलाज के बारे में लिखें।
उत्तर:
लू ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की गर्मी के प्रभाव से लगती है। तेज़ धूप में काम करते, खेलते अथवा चलते-फिरते सूर्य की तेज़ किरणों के शरीर पर पड़ जाने के कारण शरीर में असंतुलन की अवस्था का पैदा हो जाना लू लगना (Heat Stroke or Sunstroke) कहलाता है। लू लगने से कई बार रोगी बेहोश भी हो जाता है।

लक्षण (Symptoms): लू लगने के निम्नलिखित लक्षण होते हैं
(1) साँस रुक-रुक कर आती है।
(2) लू लगने से व्यक्ति की नब्ज तेज़ चलने लगती है।
(3) रोगी के चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है।
(4) लू के प्रभाव से रोगी बेहोश हो जाता है।
(5) रोगी की त्वचा गर्म हो जाती है।
(6) रोगी को साँस लेने में कठिनाई आती है।
(7) लू के कारण रोगी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है।

इलाज (Treatment):
लू लगने की स्थिति में निम्नलिखित अनुसार इलाज किया जा सकता है
(1) लू लगने की स्थिति में रोगी के कपड़े ढीले कर दें।
(2) रोगी को शीघ्रता से ठंडे स्थान पर ले जाना चाहिए।
(3) रोगी को होश में लाने की कोशिश करनी चाहिए।
(4) रोगी को हवादार वातावरण में रखें ताकि उसको लू से राहत मिल सके।
(5) रोगी के आस-पास लोगों को एकत्रित न होने दें।
(6) रोगी के शरीर पर बर्फ के टुकड़े रखें ताकि उसके शरीर का तापमान साधारण स्थिति में आ जाए।
(7) रोगी के शरीर पर बर्फ का लेप करते रहना चाहिए।
(8) रोगी को होश आने की स्थिति में ठंडा पानी अथवा ग्लूकोज़ देना चाहिए।
(9) रोगी को विश्राम की स्थिति में रखना चाहिए।
(10) रोगी को शीघ्रता से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

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प्रश्न 16.
साँप के डसने तथा पागल कुत्ते के काटने की प्राथमिक सहायता का वर्णन करें।
अथवा
साँप के काटने के चिह्नों तथा प्राथमिक चिकित्सा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1. साँपका डसना (Biting by Snake):
हमारे देश में विभिन्न प्रकार के साँप पाए जाते हैं जिनमें से कई बहुत जहरीले होते हैं, जिनके डसने से मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसे मनुष्य को समय पर प्राथमिक सहायता देकर बचाया जा सकता है।
चिह्न (Remarks): साँप के डसने के चिह्न का निम्नलिखित कारणों से पता चलता है
(1) डसे हुए स्थान पर बहुत दर्द होता है।
(2) व्यक्ति के हाथ-पैर काँपने लग जाते हैं
(3) मुँह में से झाग और लारें निकलनी शुरू हो जाती हैं।
(4) उल्टियाँ आनी आरंभ हो जाती हैं।
(5) व्यक्ति की जुबान बाहर निकल आती है।
(6) साँस लेने में कठिनाई होती है।

प्राथमिक सहायता (FirstAid):
साँप के डसने की प्राथमिक सहायता निम्नलिखित है
(1) साँप के डसे हुए अंग के बीच रक्त संचार को रोक देना चाहिए।
(2) डसे हुए स्थान को लाल दवाई से धो दें।
(3) रोगी को गर्म चाय पिलाएँ।
(4) साँस बंद होने की स्थिति में कृत्रिम श्वास दें।
(5) रोगी को नींद न आने दें।

2. पागल कुत्ते के काटने की प्राथमिक सहायता (First Aid of Mad Dog Biting):
पागल कुत्ते का ज़हर व्यक्ति की केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालता है। इसके काटने से व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता काट जाए तो हमें प्राथमिक सहायता निम्नलिखित अनुसार देनी चाहिए
(1) कटे हुए जख्म से रक्त बहाने का प्रयत्न करें।
(2) कटे हुए स्थान को रस्सी अथवा रूमाल के साथ बाँध दें ताकि रक्त बाहर की ओर बह सके।
(3) पागल कुत्ते के काटे हुए स्थान को लाल दवाई के साथ धो दें।
(4) कटे हुए स्थान को नीचे की ओर रखें।
(5) रोगी को गर्म चाय अथवा गर्म कॉफी दें।
(6) रोगी को विश्राम की स्थिति में रखें।
(7) डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही टीके लगवाएँ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
खेल की चोटों को कम करने के आधारभूत चरण क्या हैं? अथवा क्या खेलों की चोटों में बचाव के पक्ष, उपचार से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
खेल की चोटों को कम करने के आधारभूत चरण निम्नलिखित हैं
(1) प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को गर्माना।
(2) सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग खेल की आवश्यकता के अनुसार करना।
(3) तैयारी के समय उचित अनुकूलन बनाए रखना।
(4) प्रतियोगिता के दौरान सतर्क व सावधान रहना।
(5) सुरक्षात्मक कपड़ों व जूतों का प्रयोग करना।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण के आधार पर खेलों की चोटों में बचाव के पक्ष, उपचार से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि सावधानी हमेशा सभी औषधियों या दवाइयों से बेहतर होती है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के मुख्य नियमों या सिद्धांतों का वर्णन कीजिए। उत्तर-प्राथमिक सहायता के नियम निम्नलिखित हैं
(1) रोगी अथवा घायल को विश्राम की स्थिति में रखना।
(2) घाव से बह रहे रक्त को बंद करना।
(3) घायल की सबसे जरूरी चोट की ओर अधिक ध्यान देना।
(4) दुर्घटना के समय जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तुरंत उपलब्ध करवाना।
(5) घायल की स्थिति को खराब होने से बचाना।
(6) घायल की अंत तक सहायता करना।
(7) घायल के नजदीक भीड़ एकत्रित न होने देना।

प्रश्न 3.
खेलों में चोटों के प्राथमिक उपचार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। अथवा खेलों में चोट लगने पर क्या उपचार करना चाहिए?
उत्तर:
खेलों में चोट लगने पर निम्नलिखित उपचार करने चाहिएँ:
(1) खेलों में चोट लगने पर सबसे पहले बर्फ की मालिश करनी चाहिए। बर्फ सूजन और रक्त के बहाव को रोकती है।

(2) दबाव का प्रयोग करके भी सूजन को घटाया जा सकता है। बर्फ की मालिश के बाद पट्टी को उस स्थान पर इस प्रकार बाँधना चाहिए कि जिससे रक्त का प्रवाह भी न रुके तथा न ही इतनी ढीली होनी चाहिए जिससे कि दोबारा सूजन हो जाए।

(3) खेलों में चोट लगने पर यह जरूरी है कि आराम किया जाए। जब भी शरीर के किसी हिस्से पर चोट लगती है तो चोट वाले स्थान पर दर्द, सूजन जैसे चिह्न बन जाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए आराम करना जरूरी है।

(4) चोट लगने पर उस स्थान का उसी के अनुसार इलाज करना चाहिए। यदि शरीर के निचली तरफ चोट लगी है तो उस दर्द और सूजन से बचाने के लिए आराम और सोते समय चोट लगने वाला हिस्सा ऊँचा रखना चाहिए। यदि चोट शरीर के ऊपरी हिस्से में लगी है तो दर्द और सूजन से बचने के लिए ऊपरी हिस्सा थोड़ा ऊँचा कर देना चाहिए। इससे चोट वाले
स्थान को आराम मिलता है।

प्रश्न 4.
खेल में खिंचाव से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
खेल में खिंचाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए
(1) गीले व चिकने ग्राऊंड, ओस वाली घास पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(2) ऊँची तथा लंबी छलाँग हेतु बने अखाड़ों की जमीन सख्त नहीं होनी चाहिए।
(3) खेलने से पहले कुछ हल्का व्यायाम करके शरीर को अच्छी तरह गर्मा लेना चाहिए। इससे खेलने के लिए शरीर तैयार हो जाता है।
(4) चोटों से बचने के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को आवश्यक शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
(5) खिलाड़ी को सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायक को किन तीन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता देने की विधि रोगी की स्थिति के अनुसार देनी चाहिए, जिसके लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है
1. चोट की स्थिति-ध्यान रखा जाए कि चोट से शरीर का कौन-सा अंग और कौन-सी प्रणाली प्रभावित हुई है। उसके अनुसार उपचार विधि अपनाई जाए।
2. चोट का जोर-जहाँ चोट का अधिक ज़ोर हो, पहले उसको संभालने का प्रयत्न किया जाए।
3. प्राथमिक सहायता की विधि-जिस प्रकार की चोट लगी हो, उपचार विधि उसी के अनुसार अपनाई जानी चाहिए। मौके पर उपलब्ध साधनों के अनुसार प्राथमिक सहायता देने की विधि अपनाई जानी चाहिए।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के मुख्य नियमों या सिद्धांतों का वर्णन कीजिए। उत्तर-प्राथमिक सहायता के नियम निम्नलिखित हैं
(1) रोगी अथवा घायल को विश्राम की स्थिति में रखना।
(2) घाव से बह रहे रक्त को बंद करना।
(3) घायल की सबसे जरूरी चोट की ओर अधिक ध्यान देना।
(4) दुर्घटना के समय जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तुरंत उपलब्ध करवाना।
(5) घायल की स्थिति को खराब होने से बचाना।
(6) घायल की अंत तक सहायता करना।
(7) घायल के नजदीक भीड़ एकत्रित न होने देना।

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प्रश्न 3.
खेलों में चोटों के प्राथमिक उपचार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
खेलों में चोट लगने पर क्या उपचार करना चाहिए?
उत्तर:
खेलों में चोट लगने पर निम्नलिखित उपचार करने चाहिएँ
(1) खेलों में चोट लगने पर सबसे पहले बर्फ की मालिश करनी चाहिए। बर्फ सूजन और रक्त के बहाव को रोकती है।

(2) दबाव का प्रयोग करके भी सूजन को घटाया जा सकता है। बर्फ की मालिश के बाद पट्टी को उस स्थान पर इस प्रकार बाँधना चाहिए कि जिससे रक्त का प्रवाह भी न रुके तथा न ही इतनी ढीली होनी चाहिए जिससे कि दोबारा सूजन हो जाए।

(3) खेलों में चोट लगने पर यह जरूरी है कि आराम किया जाए। जब भी शरीर के किसी हिस्से पर चोट लगती है तो चोट वाले स्थान पर दर्द, सूजन जैसे चिह्न बन जाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए आराम करना जरूरी है।

(4) चोट लगने पर उस स्थान का उसी के अनुसार इलाज करना चाहिए। यदि शरीर के निचली तरफ चोट लगी है तो उस दर्द और सूजन से बचाने के लिए आराम और सोते समय चोट लगने वाला हिस्सा ऊँचा रखना चाहिए। यदि चोट शरीर के ऊपरी हिस्से में लगी है तो दर्द और सूजन से बचने के लिए ऊपरी हिस्सा थोड़ा ऊँचा कर देना चाहिए। इससे चोट वाले
स्थान को आराम मिलता है।

प्रश्न 4.
खेल में खिंचाव से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
खेल में खिंचाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए
(1) गीले व चिकने ग्राऊंड, ओस वाली घास पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(2) ऊँची तथा लंबी छलाँग हेतु बने अखाड़ों की जमीन सख्त नहीं होनी चाहिए।
(3) खेलने से पहले कुछ हल्का व्यायाम करके शरीर को अच्छी तरह गर्मा लेना चाहिए। इससे खेलने के लिए शरीर तैयार हो जाता है।
(4) चोटों से बचने के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को आवश्यक शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
(5) खिलाड़ी को सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायक को किन तीन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता देने की विधि रोगी की स्थिति के अनुसार देनी चाहिए, जिसके लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है
(1) चोट की स्थिति-ध्यान रखा जाए कि चोट से शरीर का कौन-सा अंग और कौन-सी प्रणाली प्रभावित हुई है। उसके अनुसार उपचार विधि अपनाई जाए।
(2) चोट का जोर-जहाँ चोट का अधिक ज़ोर हो, पहले उसको संभालने का प्रयत्न किया जाए।
(3) प्राथमिक सहायता की विधि-जिस प्रकार की चोट लगी हो, उपचार विधि उसी के अनुसार अपनाई जानी चाहिए। मौके पर उपलब्ध साधनों के अनुसार प्राथमिक सहायता देने की विधि अपनाई जानी चाहिए।

प्रश्न 6.
मोच कितने प्रकार की होती है? वर्णन कीजिए। इत्तर-मोच तीन प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है
(1) नर्म मोच-इसमें जोड़-बंधनों (Ligaments) पर खिंचाव आता है। जोड़ में हिलजुल करने पर दर्द अनुभव होता है। इस हालत में कमजोरी तथा दर्द महसूस होता है।
(2) मध्यम मोच-इसमें जोड़-बंधन काफी मात्रा में टूट जाते हैं। इस हालत में सूजन तथा दर्द बढ़ जाता है।
(3) पूर्ण मोच-इसमें जोड़ की हिलजुल शक्ति समाप्त हो जाती है। जोड़-बंधन पूरी तरह टूट जाते हैं। जोड़-बंधनों के साथ-साथ जोड़ कैप्सूल भी जख्मी हो जाता है। इस हालत में दर्द असहनीय हो जाता है।

प्रश्न 7
आजकल प्राथमिक सहायता की पहले से अधिक आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को और अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है। इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। यदि घायल अथवा रोगी व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता मिल जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। कुछ चोदें तो इस प्रकार की हैं, जो खेल के मैदान में निरंतर लगती रहती हैं, जिनको मौके पर प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, यदि हमें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी उचित जानकारी हो। इस प्रकार रोगी की स्थिति बिगड़ने से बचाने और उसके जीवन की रक्षा के लिए प्राथमिक सहायता की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए प्राथमिक सहायता की आज के समय में बहुत आवश्यकता हो गई है।

प्रश्न 8.
आज के मशीनी युग में सुरक्षा शिक्षा की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
आज के मशीनी युग में मशीनों के द्वारा काम करने का रुझान बढ़ गया है और यातायात के साधनों का बहुत तीव्रता से विकास हो रहा है। अनजान व्यक्ति द्वारा मशीनों का प्रयोग और लापरवाही से चलाई बस, कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल आदि हमेशा दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं। आधुनिक समय में इन दुर्घटनाओं से बचने के लिए प्रत्येक प्रकार के वाहनों और मशीनों का प्रयोग करने संबंधी शिक्षा की आवश्यकता बढ़ गई है। आज का प्रत्येक कार्य जोखिम भरा बन गया है, जिस कारण सुरक्षा शिक्षा की आवश्यकता हर समय प्रत्येक व्यक्ति को होती है।

प्रश्न 9.
सुरक्षा के लिए सामाजिक स्तर पर लोगों को क्या समझाना चाहिए?
उत्तर:
सामाजिक स्तर पर लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए समझाना चाहिए कि वे घातक बीमारियों के फैलने से बचाव के लिए गली-मौहल्ले को साफ रखें। साधारण लोगों के लिए प्रयोग किए जा रहे रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और कार्पोरेशन की ओर से बनाए पाखानों का सही प्रयोग करें। सड़कों पर छिलके न फेंकें और न ही अपना कोई वाहन, रेहड़ी आदि सड़क पर खड़ी करके यातायात में रुकावट उत्पन्न करें, बल्कि प्रत्येक प्रकार की उत्पन्न हुई सामाजिक रुकावटों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 10.
मोच (Sprain) क्या है? इसके बचाव की विधियाँ बताएँ। अथवा खेल में मोच से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
मोच लिगामेंट की चोट होती है। सामान्यतया मोच कोहनी के जोड़ या टखने के जोड़ पर अधिक आती है। किसी जोड़ के संधिस्थल के फट जाने को मोच आना कहते हैं।
मोच से बचाव की विधियाँ-खेलों में मोच से बचाव की विधियाँ निम्नलिखित हैं
(1) पूर्ण रूप से शरीर के सभी जोड़ों को गर्मा लेना चाहिए।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिएँ।
(3) मैदान समतल व साफ होना चाहिए।
(4) थकावट के समय खेल रोक देना चाहिए।
(5) सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 11.
मोच आने के कौन-कौन-से कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
मोच आने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) खेलते समय सड़क पर पड़े पत्थरों पर पैर आने से मोच आ जाती है।
(2) किसी गीली अथवा चिकनी जगह पर; जैसे ओस वाली घास या खड़े पानी में अचानक पैर के फिसल जाने से मोच आ जाती है।
(3) खेल के मैदान में यदि किसी गड्ढे में पैर आ जाए तो यह मोच का कारण बन जाती है।
(4) अनजान खिलाड़ी यदि गलत तरीके से खेले तो भी मोच आ जाती है।
(5) अखाड़ों की गुड़ाई ठीक न होने के कारण भी मोच आ जाती है।
(6) असावधानी से खेलने पर भी मोच आ जाती है।

प्रश्न 12.
बिजली के झटके (Electric Shock) की प्राथमिक सहायता का वर्णन करें।
उत्तर:
बिजली की नंगी तार में करंट के कारण व्यक्ति बिजली के साथ चिपक जाता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। कई बार व्यक्ति झटका खाकर गिर पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति तार के साथ चिपक जाए तो सबसे पहले मेन-स्विच को बंद करें ताकि उसकी जान बचाई जा सके। ऐसे समय में घबराना नहीं चाहिए बल्कि बुद्धिमता से काम लेना चाहिए। बिजली के झटके की स्थिति में निम्नलिखित प्राथमिक सहायता दी जा सकती है

(1) बिजली के झटके के कारण साँस रुकने की स्थिति में कृत्रिम श्वास देनी चाहिए।
(2) रोगी को दूध, कॉफी अथवा चाय पिलानी चाहिए।
(3) बिजली के झटके के पश्चात् जले हुए स्थान का इलाज करना चाहिए।
(4) डॉक्टर की सहायता लेनी चाहिए।
(5) ऐसी दुर्घटना होने पर व्यक्ति को सीधे हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए, बल्कि सूखी लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए।
(6) बिजली के झटके की स्थिति में सबसे पहले मेन-स्विच को बंद करना चाहिए ताकि बिजली के प्रवाह को रोका जा सके।

प्रश्न 13.
किसी व्यक्ति के जल जाने की स्थिति में न करने योग्य बातों का वर्णन कीजिए। उत्तर-किसी व्यक्ति के जल जाने की स्थिति में न करने योग्य बातें निम्नलिखित हैं
(1) जले हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए।
(2) जले हुए व्यक्ति के शरीर पर पड़े छाले नहीं छेड़ने चाहिएँ।
(3) जिस किसी व्यक्ति के कपड़ों में आग लगी हो, उसे दौड़ने नहीं देना चाहिए क्योंकि दौड़ने से आग तीव्र होती है।
(4) यदि जले हुए व्यक्ति के कपड़े उसकी त्वचा से चिपक जाएँ तो उन्हें खींचना नहीं चाहिए।

प्रश्न 14.
सड़कों पर दुर्घटनाएँ होने के साधारण कारण कौन-से होते हैं?
उत्तर:
सड़कों पर दुर्घटनाएँ होने के साधारण कारण निम्नलिखित हैं
(1) शराब पीकर वाहन चलाना।
(2) सिग्नल बत्तियों को नजरअंदाज करके चौक पार करना।
(3) मोटरगाड़ियों को लंबे समय तक बिना निरीक्षण करवाए चलाना।
(4) ड्राइवरों द्वारा थकावट और नींद की स्थिति में मोटरगाड़ियाँ चलाना।
(5) ट्रकों में आवश्यकता से अधिक भार लादना और बसों में अधिक सवारियाँ बिठाना।

प्रश्न 15.
घावों के प्राथमिक उपचार पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
घावों के प्राथमिक उपचार हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं
(1) सबसे पहले रोगी को अनुकूल आसन में बैठाएँ।
(2) रक्त बहते हुए अंग को थोड़ा ऊपर उठाकर रखें।
(3) घाव में यदि कोई बाहरी चीज दिखाई पड़े जो आसानी से हटाई जाए तो साफ पट्टी से हटा दीजिए।
(4) घाव को जहाँ तक हो सके खुला रखें अर्थात् कपड़े आदि से न ढके।
(5) घाव पर मरहम पट्टी लगाएँ।
(6) घायल अंग को स्थिर रखें।
(7) घाव पर पट्टी इस प्रकार से बाँधनी चाहिए जिससे बहता रक्त रुक सके।
(8) घायल के घाव को आयोडीन टिंक्चर या स्प्रिट से भली-भाँति धो देना चाहिए।
(9) घायल को प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत डॉक्टर के पास ले जाए।

प्रश्न 16.
जोड़ या हड्डी के उतर जाने (Dislocation) की प्राथमिक सहायता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जोड़ के उतर जाने की प्राथमिक सहायता निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए.
(1) घायल को आरामदायक या सुखद स्थिति में रखना चाहिए।
(2) घायल अंग को गद्दियों या तकियों से सहारा देकर स्थिर रखें।
(3) उतरे जोड़ को चढ़ाने का प्रयास कुशल प्राथमिक सहायक को सावधानी से करना चाहिए।
(4) यदि दर्द अधिक हो तो गर्म पानी की टकोर करनी चाहिए।
(5) जोड़ पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टी बाँधनी चाहिए।
(6) घायल को प्राथमिक सहायता के बाद तुरंत अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाएँ।

प्रश्न 17.
प्राथमिक सहायक या उपचारक के कर्तव्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक सहायक या उपचारक के प्रमुख कर्त्तव्य या दायित्व निम्नलिखित हैं
(1) प्राथमिक उपचारक को रोगी या घायल को अस्पताल ले जाने के लिए योग्य सहायता का उपयोग करना चाहिए।
(2) उसको घायल की पूरी देखभाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(3) घायल के शरीरगत चिह्नों; जैसे सूजन, कुरूपता आदि को प्राथमिक उपचारक को अपनी ज्ञानेंद्रियों से पहचानकर उचित सहायता देनी चाहिए।
(4) प्राथमिक चिकित्सक को स्थिति को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।
(5) प्राथमिक सहायक को घायल या रोगी को यह महसूस करवाना चाहिए कि वह अच्छा है, उसे कुछ नहीं हुआ है। उसे उसके साथ उत्साहपूर्ण बातें करनी चाहिएँ।
(6) प्राथमिक सहायक को घायल का तुरंत उपचार शुरू करना चाहिए। यदि घायल के किसी अंग से रक्त बह रहा हो तो उसे तुरंत रोकने का प्रयास करना चाहिए।
(7) प्राथमिक सहायक को घायल के आस-पास लोगों को इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
(8) यदि घायल को डॉक्टर की जरूरत है तो प्राथमिक सहायक को तुरंत डॉक्टर को बुलाना चाहिए।

प्रश्न 18.
हड्डी टूटने या अस्थिभंग (Fracture) के प्राथमिक उपचार या सहायता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
टूटी हड्डी के उपचार हेतु किन-किन नियमों (उपायों) का पालन करना चाहिए? उत्तर-टूटी हड्डी के प्राथमिक उपचार के लिए निम्नलिखित उपायों या नियमों को अपनाना चाहिए
(1) टूटी हड्डी का उसी स्थान पर प्राथमिक उपचार करना चाहिए।
(2) टूट के उपचार को करने से पहले रक्तस्राव एवं अन्य तीव्र घावों का उपचार करना चाहिए।
(3) टूटी हड्डी को पट्टियों व कमठियों के द्वारा स्थिर कर देना चाहिए।
(4) टूटी हड्डी पर पट्टियाँ पर्याप्त रूप से कसी होनी चाहिएँ। पट्टियाँ इतनी न कसी हों कि रक्त संचार में बाधा पैदा हो जाए।
(5) कमठियाँ इतनी लम्बी होनी चाहिएँ कि वे टूटी हड्डी का एक ऊपरी तथा एक निचला जोड़ स्थिर कर दें।
(6) घायल की पट्टियों को इस प्रकार से सही स्थिति में लाएँ कि उसको कोई तकलीफ न हो।
(7) घायल व्यक्ति को कंबल या किसी कपड़े के द्वारा गर्म करना चाहिए ताकि उसे कोई सदमा न पहुँचे।
(8) प्राथमिक सहायता या उपचार देने के बाद घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा देना चाहिए ताकि उसका उचित उपचार किया जा सके।

प्रश्न 19.
आज के दैनिक जीवन में सुरक्षा शिक्षा का महत्त्व क्यों अधिक बढ़ गया है?
अथवा
व्यक्तियों के लिए सुरक्षा शिक्षा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक युग में दुर्घटनाएँ होना साधारण बात हो गई है। कहीं-न-कहीं बड़ी अथवा छोटी दुर्घटनाएँ निरंतर घटती रहती हैं। दुर्घटना में व्यक्ति को या तो गम्भीर चोट लग जाती है या हड्डियाँ आदि टूट जाती हैं। प्राकृतिक आपदा; जैसे बाढ़ आदि की स्थिति में कई व्यक्ति नदी के पानी में डूब जाते हैं। खेतों में काम करते समय किसान साँप के डंक का शिकार हो जाता है या कई बार व्यक्ति जहरीली वस्तु खा लेता है। ये दुर्घटनाएँ किसी समय भी घटित हो सकती हैं। आज के युग में व्यक्तियों को सुरक्षा शिक्षा की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि सुरक्षा शिक्षा से हमें अनेक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इससे हम काफी सीमा तक होने वाली दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पा सकते हैं।

इस शिक्षा से हमें घरेलू एवं यातायात संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण नियमों की जानकारियाँ होती हैं जिनको अपनाकर हम दुर्घटनाओं से अपना बचाव कर सकते हैं। एक प्रसिद्ध कहावत है-“सावधानी हटी-दुर्घटना घटी।” सुरक्षा शिक्षा में इसी कहावत को व्यापक रूप से समझाया जाता है। प्रायः देखा गया है कि सड़क पर अधिकतर दुर्घटनाएँ असावधानी के कारण होती हैं । यदि सावधान व सतर्क रहा जाए तो ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। यह शिक्षा हमें अपने जीवन के प्रति सजग करती है और हमें अनेक नियमों की जानकारी देकर हमारे जीवन को सुरक्षित करने में सहायता करती है। यदि हमें सुरक्षा संबंधी नियमों का पता होगा तभी हम दुर्घटनाओं से स्वयं का बचाव कर पाएंगे।

प्रश्न 20.
सुरक्षा शिक्षा के प्रमुख सिद्धांतों या नियमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(1) सामान्य दुर्घटनाओं से बचने के लिए अनेक क्षेत्रों से संबंधित सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिए; जैसे बिजली की तारें नंगी नहीं रहनी चाहिएँ। सुरक्षा शिक्षा के अन्तर्गत अनेक प्रकार के यातायात संबंधी नियमों की जानकारी प्रदान की जाती है।

(2) सीढ़ियों पर चढ़ने एवं उतरने में सावधानी बरतनी चाहिए।

(3) सुरक्षा शिक्षा के अन्तर्गत नशीले पदार्थों के सेवन के दुष्परिणामों से अवगत करवाया जाता है; जैसे किसी व्यक्ति द्वारा शराब आदि पीकर वाहन नहीं चलाना चाहिए।

(4) यह शिक्षा हमें हमेशा सतर्कता हेतु प्रेरित करती है, क्योंकि जरा-सी असावधानी के कारण दुर्घटना हो सकती है।

(5) इसमें सुरक्षा संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है। इसलिए हमें सुरक्षा शिक्षा के संबंध में दी जा रही जानकारियों को ध्यान से सुनना एवं समझना चाहिए।

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प्रश्न 21.
सुरक्षा शिक्षा में डूबने पर क्या प्राथमिक उपचार दिए जाने की शिक्षा दी जाती है?
उत्तर:
सुरक्षा शिक्षा में डूबने पर प्राथमिक उपचार की शिक्षा दी जाती है जो निम्नलिखित है
(1) सबसे पहले डूबते व्यक्ति को पानी से बाहर निकालना चाहिए।
(2) उसे जमीन पर पेट के बल लिटाना चाहिए।
(3) यदि वह बेहोश हो तो उसे सी०पी०आर० (कृत्रिम श्वास) देनी चाहिए।
(4) उसके शरीर से पानी निकालने के लिए उचित तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए।
(5) यदि व्यक्ति श्वास नहीं ले पा रहा हो तो सी०पी०आर० को दोहराना चाहिए। जब तक व्यक्ति श्वास शुरू नहीं करता या आपातकालीन सहायता नहीं आती, तब तक यह प्रक्रिया दोहराते रहना चाहिए।

प्रश्न 22.
तेजधार वाली वस्तुओं का प्रयोग करते समय कौन-कौन-सी बातें ध्यान रखने योग्य हैं?
उत्तर:
तेजधार वाली वस्तुओं का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान रखने योग्य हैं.
(1) तेजधार वाली वस्तुओं का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
(2) तेजधार वाली वस्तुओं या यंत्रों को चलाने में निपुणता या कुशलता होनी चाहिए।
(3) तेजधार वाली वस्तुओं का प्रयोग सुरक्षा शिक्षा के नियमों के अनुसार करना चाहिए।
(4) व्यक्ति जिस टूल या मशीन को चलाने में निपुण हो, उसी टूल को चलाना चाहिए।
(5) तेजधार वाली वस्तुओं का प्रयोग तकनीकी सहायक की सलाहानुसार करना चाहिए।
(6) उत्तम व बढ़िया किस्म की तेजधार वाली वस्तुएँ ही प्रयोग करनी चाहिए क्योंकि इनके टूटने की संभावना कम रहती है।

प्रश्न 23.
सुरक्षा शिक्षा में सहायक प्रमुख संस्थाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
सुरक्षा शिक्षा की जिम्मेवारी किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था की नहीं है, बल्कि इसमें सबको मिलकर भाग लेना चाहिए।
1. सरकारी स्तर पर-सरकार के द्वारा सड़कों पर पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ का ठीक प्रबंध किया जाना चाहिए। यातायात के नियमों से लोगों को अवगत करवाना चाहिए। सड़कों पर रोशनी का ठीक प्रबंध हो। सड़कों की स्थिति ठीक हो। सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए।

2. शैक्षिक स्तर पर स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को भी इस शिक्षा से परिचित करवाना चाहिए। इसका प्रचार समय-समय पर होते रहना चाहिए।

3. म्यूनिसिपल कमेटी अथवा कार्पोरेशन स्तर पर-इस संस्था की जिम्मेदारी बनती है कि गलियों, सड़कों और मकानों का निर्माण ठीक प्रकार से करवाया जाए। गलियों और सड़कों पर रोशनी का सही प्रबंध हो।

4. सामाजिक स्तर पर-लोगों को अपने कर्तव्य को मुख्य रखते हुए सड़कों पर गंदगी नहीं फैलानी चाहिए। यदि मनुष्य सड़क पर कोई ऐसी वस्तु देखे जिससे दुर्घटना हो सकती है तो उसको पीछे कर दे या उसको वहाँ से हटा दे।

प्रश्न 24.
जख्मी या दुर्घटनाग्रस्त खिलाड़ियों के इलाज के बारे में लिखें।
उत्तर:
बहुत-सी सावधानियाँ रखते हुए और सुरक्षा का पूरा ध्यान देने पर भी खिलाड़ियों को चोटें लगती रहती हैं। कई बार खिलाड़ियों का जीवन खतरे में भी पड़ जाता है। खेल में प्राथमिक सहायता के प्रबंध बहुत जरूरी हैं। इसलिए खेल के मैदान में जख्मी खिलाड़ियों के तुरंत इलाज के लिए प्राथमिक सहायता बहुत आवश्यक है
(1) खेलों के मुकाबले के दौरान हर समय प्रत्येक टीम के डॉक्टर का मौके पर हाजिर रहना जरूरी है। खेल समाप्त होने तक डॉक्टर मैदान में मौजूद रहना चाहिए।
(2) शारीरिक शिक्षा के सभी अध्यापकों और कोचों को प्राथमिक सहायता की जानकारी होनी चाहिए।
(3) खेलों के दौरान मैदान में प्राथमिक सहायता के बॉक्स भी अवश्य रखे जाने चाहिएँ।
(4) प्राथमिक सहायता के प्रबंधकों के पास एक मेडिकल वैन अथवा कार होनी चाहिए, जिससे जख्मी खिलाड़ी को उसी समय अस्पताल पहुँचाया जा सके।
(5) खेल के दौरान हुई किसी खतरनाक दुर्घटना के लिए बीमे की योजना भी लागू की जानी चाहिए। यदि उपर्युक्त सभी बातों को अच्छी तरह ध्यान में रखा जाए और खेल के मैदान में उचित सुरक्षा-ढंगों को अपनाया जाए तो जख्मी खिलाड़ियों की गिनती बहुत हद तक कम की जा सकती है।

प्रश्न 25.
स्कूल में बच्चों को दुर्घटनाओं से बचाने हेतु सफाई की कैसी व्यवस्था होनी चाहिए?
उत्तर:
स्कूल में सफाई का प्रबंध निम्नलिखित तरीके से करना चाहिए
(1) पाखाने या शौचालय साफ रखे जाएँ और पानी के निकास का सही प्रबंध हो।
(2) पानी पीने के लिए रखी टंकी में समय-समय पर लाल दवाई डाली जाए और यहाँ की उचित सफाई की जाए।
(3) प्रयोग न किए जाने वाले स्थानों की समय-समय पर सफाई की जाए।
(4) कमरों के डैस्क, दरवाजे, खिड़कियाँ सही स्थिति में रखी जाएँ।
(5) स्कूल के खेल का मैदान समतल व साफ-सुथरा होना चाहिए।

प्रश्न 26.
खेलों में दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
खेलों में दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ
(1) खेल के मैदान साफ रखे जाएँ और नैट, पोल और गोल पोस्टों में हुई कमियों को तुरंत ठीक किया जाए।
(2) खेलों का निरीक्षण खेल विशेषज्ञ अध्यापकों और कोचों द्वारा नियमानुसार किया जाए।
(3) खतरनाक खेलों; जैसे बॉक्सिंग, कबड्डी, जिम्नास्टिक्स, कराटे और तैराकी आदि के अभ्यास करते समय आवश्यक सुरक्षा प्रबंध किए जाएँ।
(4) खिलाड़ियों को आवश्यक सुरक्षा गार्ड पहनकर खेलना चाहिए।

प्रश्न 27.
लू लगने से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
लू लगने से बचने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए
(1) लू लगने की स्थिति में रोगी के कपड़े ढीले कर दें,
(2) रोगी को शीघ्रता से ठंडे स्थान पर ले जाना चाहिए,
(3) रोगी को होश में लाने की कोशिश करनी चाहिए,
(4) रोगी को हवादार वातावरण में रखें ताकि उसको लू से राहत मिल सके,
(5) रोगी के आस-पास लोगों को एकत्रित न होने दें,
(6) रोगी के शरीर पर बर्फ के टुकड़े रखें ताकि उसके शरीर का तापमान साधारण स्थिति में आ जाए,
(7) रोगी के शरीर पर बर्फ का लेप करते रहना चाहिए,
(8) रोगी को होश आने की स्थिति में ठंडा पानी अथवा ग्लूकोज़ देना चाहिए,
(9) रोगी को विश्राम की स्थिति में रखना चाहिए,
(10) रोगी को शीघ्रता से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

प्रश्न 28.
रिहायशी अथवा सोने वाले कमरे को दुर्घटना-रहित करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
रिहायशी अथवा सोने वाले कमरे को दुर्घटना-रहित करने के निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ.
(1) रिहायशी कमरे में रखे हथियारों को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
(2) सर्दियों में सुलगती अंगीठी सोते समय कमरे में न रखें।
(3) माचिस आदि के सुलगते टुकड़े इधर-उधर न फेंकें।
(4) फर्नीचर को कमरे में सही स्थान पर रखें।
(5) कमरे में रोशनी का ठीक प्रबंध करें।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
सुरक्षा शिक्षा (Safety Education) क्या है?
अथवा
बचाव शिक्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सुरक्षा या बचाव शिक्षा से अभिप्राय है कि किसी कार्य अथवा खेल के दौरान संभावित पैदा होने वाली दुर्घटना अथवा हादसे के प्रति ज्ञान हासिल करना तथा दुर्घटना से बचने के लिए पहले प्रबंध करना। सुरक्षा शिक्षा द्वारा हम सीखते हैं कि किसी चोट अथवा दुर्घटना से आपको कैसे बचना है तथा दूसरों को किस प्रकार बचाना है। इसलिए प्रत्येक कार्य जो आप करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपको पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। इसी को सुरक्षा शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता (First Aid) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी व्यक्ति द्वारा जो तुरंत सीमित उपचार किया जाता है, उसे प्राथमिक चिकित्सा या सहायता (First Aid) कहते हैं। इसका उद्देश्य कम-से-कम साधनों में इतनी व्यवस्था करना होता है कि चोटग्रस्त व्यक्ति को सम्यक इलाज कराने की स्थिति में लाने में लगने वाले समय में कम-से-कम नुकसान हो।

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प्रश्न 3.
“सुरक्षा में ही बचाव है।” वाक्य का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
इस वाक्य का अर्थ है कि यदि आप दूसरों का बचाव करेंगे तो आपका भी बचाव होगा। जब आप अपनी मोटरगाड़ी यातायात के नियमों के अनुसार सुरक्षित चलाते हैं तो इससे आपका भी बचाव होता है और दूसरों का भी। इसलिए हमें सुरक्षा के नियमों का तत्परता से पालन करना चाहिए।

प्रश्न 4.
यदि किसी व्यक्ति को लू लग जाए तो आप क्या करेंगे?
उत्तर:
रोगी को तुरंत छाया में ले आएँगे और उसको होश में लाने के लिए कपड़े अथवा पंखे से हवा करेंगे। यदि उसकी बेहोशी के कारण साँस रुकती हो तो कृत्रिम श्वास देंगे। उसके शरीर के बढ़े हुए तापमान को साधारण स्थिति में करने के लिए उसके सिर और रीढ़ की हड्डी पर बर्फ की थैलियाँ रखने का प्रयोग करेंगे।

प्रश्न 5.
किसी रोगी को प्राथमिक सहायता देने के कोई तीन लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) प्राथमिक सहायता द्वारा किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की बहुमूल्य जान बच जाती है।
(2) प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति में दूसरों के प्रति स्नेह व दया की भावना और तीव्र हो जाती है। उसको आत्मिक खुशी प्राप्त होती है।
(3) प्राथमिक सहायता देने वाले का समाज में सम्मान बढ़ता है।

प्रश्न 6.
बिजली के झटके (Electric Shock) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बिजली की नंगी तार जिसमें बिजली का करंट हो उससे शरीर का छू जाना अथवा किसी धातु अथवा गीली वस्तु द्वारा संपर्क हो जाने से जोरदार झटका लगता है अथवा व्यक्ति तार के साथ चिपक जाता है। इसको बिजली का झटका अथवा धक्का लगना कहते हैं । झटका लगने से व्यक्ति का शरीर झुलस सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 7.
यदि कोई व्यक्ति बिजली की तार के साथ चिपक जाए तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-:
(1) मेन स्विच शीघ्र बंद कर देना चाहिए,
(2) सूखी लकड़ी के साथ तार से छुड़वाने का प्रयत्न करना चाहिए,
(3) पैरों ‘ में रबड़ के जूते और हाथों में रबड़ के दस्ताने डालकर ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को हाथ लगाएँ।

प्रश्न 8.
प्राथमिक सहायता के कोई दो उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
(1) घायल व्यक्ति की जान बचाना,
(2) घायल की स्थिति को नियंत्रित करना।

प्रश्न 9.
दुर्घटनाओं से बचाव हेतु किन सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए?
उत्तर:
(1) यातायात के नियमों का पालन करना,
(2) सुरक्षा संबंधी नियमों का पालन करना,
(3) सड़क पर चलते समय सतर्क रहना।

प्रश्न 10.
सड़क पार करते समय रखी जाने वाली कोई तीन सावधानियाँ बताएँ।
उत्तर:
(1) हमें हमेशा जेब्रा क्रॉसिंग से ही सड़क पार करनी चाहिए।
(2) सड़क पार करते समय किसी वार्तालाप में स्वयं को व्यस्त नहीं करना चाहिए।
(3) सड़क के दाएं-बाएं देखकर ही सड़क पार करनी चाहिए और दौड़कर कभी भी सड़क पार नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 11.
खिलाड़ियों को खेल शिक्षा देने के साथ सुरक्षा शिक्षा देना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
खेल कला सिखाने के साथ-साथ खिलाड़ियों को सुरक्षा शिक्षा देना भी बहुत जरूरी है। खिलाड़ियों, अधिकारियों तथा कोचों की लापरवाही के कारण अधिकतर खेलते समय घातक हादसे हो जाते हैं जिससे खिलाड़ी तथा दर्शक गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक खेल से संबंधित बचाव प्रबंध करके खेल करवानी चाहिए। खिलाड़ियों को स्वयं के बचाव संबंधी उचित शिक्षा देनी चाहिए।

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प्रश्न 12.
खेलने से पहले शरीर गर्म करना क्या चोटों से बचाता है?
उत्तर:
खेलने से पहले अच्छी तरह शरीर गर्म करना चोटों से बचाता है। शरीर को गर्म करने से शरीर के सभी अंग पूरी तरह क्रियाशील हो जाते हैं। माँसपेशियों में लचक आ जाती है। वे शरीर पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को सहन करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती हैं। तंतु, नाड़ी तथा माँसपेशियों में तालमेल बढ़ने से शरीर खेल के दौरान पैदा हो रहे प्रत्येक प्रकार के खतरे से सचेत हो जाता है तथा शरीर चोटों से बचा रहता है।

प्रश्न 13.
क्या थके हुए खिलाड़ी को खेल के दौरान बदल लेना चाहिए?
उत्तर:
अच्छा खिलाड़ी यदि खेलते हुए बुरी तरह थक जाता है तो उसे किसी दूसरे खिलाड़ी से बदल लेना चाहिए।खेलते समय जीतने की भावना खिलाड़ी में बेकाबू होती है। थका हुआ खिलाड़ी अपने शरीर का अधिक जोर लगाकर जीतने की कोशिश करता हुआ संकट में फंस सकता है। थकावट की हालत में खेलते हुए कई बार खेल के मैदान में मौत के हादसे भी हो सकते हैं। इसलिए थके हुए खिलाड़ी को अन्य खिलाड़ी से बदल लेना चाहिए।

प्रश्न 14.
प्राथमिक सहायता बॉक्स में कौन-कौन-सी चीजें होनी चाहिएँ?
उत्तर:
(1) मिली-जुली चिपकने वाली पट्टियाँ,
(2) पतला कागज,
(3) आवश्यक दवाइयाँ,
(4) रुई का बंडल,
(5) कैंची,
(6) सेफ्टी पिन,
(7) तैयार की हुई आकार के अनुसार कीटाणुरहित पट्टियाँ,
(8) कमठियों का एक सैट,
(9) चिपकने वाली पलस्तर,
(10) मरहम पट्टियाँ,
(11) साल वोलाटाइल,
(12) डैटॉल आदि।

प्रश्न 15.
किन कारणों से श्वास क्रिया में रुकावट आ सकती है?
उत्तर:
(1) पानी में डूब जाने से,
(2) सड़क अथवा घरेलू दुर्घटना होने से,
(3) बिजली के करंट लगने से,
(4) ज़हरीली गैसों के सूंघने से,
(5) गले में किसी चीज के फँस जाने अथवा तंतु सूजने से श्वास क्रिया में रुकावट आ सकती है।

प्रश्न 16.
प्राथमिक सहायक कौन होता है?
उत्तर:
घायल व्यक्ति को गंभीर स्थिति में जाने से रोकने के लिए तथा उसका जीवन बचाने के लिए प्राथमिक सहायता देने में निपुण व्यक्ति को प्राथमिक सहायक कहा जाता है।

प्रश्न 17.
खेल के मैदान में खेलते समय चोट लगने के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर;
(1) खेलों का घटिया सामान तथा घटिया निगरानी।
(2) ऊँचे-नीचे या असमतल खेल के मैदान।
(3) बचाव संबंधी उचित सामान की कमी।
(4) खिलाड़ियों द्वारा लापरवाही तथा बदले की भावना से खेलना।

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प्रश्न 18.
“इलाज से परहेज़ बेहतर है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
“इलाज से परहेज़ बेहतर है।” यह बात बिल्कुल ठीक है। परहेज़ करने में कोई मूल्य नहीं लगता तथा न शरीर को कष्ट सहना पड़ता है। इलाज करवाने से खर्चा भी होता है, शरीर कष्ट भी सहता है। इलाज के पश्चात् भी शरीर पूरी तरह ठीक हो अथवा न हो, कुछ कहा नहीं जा सकता। गलत खाने से, गलत ढंग से खेलने से, खराब हालत में खेलने से तथा खराब वस्तु के प्रयोग करने से परहेज करना बहुत अच्छा होता है।

प्रश्न 19.
क्या खेल मैदान के आस-पास दर्शकों की भीड़ चोट का कारण बन सकती है?
उत्तर:
दर्शकों की बहुत भीड़ खेल के मैदान में चोट का कारण बन सकती है। कई बार खेल के मैदान तथा दर्शकों के लिए बाड़ अथवा दीवार खेल प्रबंधकों द्वारा नहीं बनाई होती। दर्शक खेल के मैदान में आ जाते हैं। बॉल, जैवलिन, डिस्कस अथवा हैमर जैसे खेल उपकरण किसी दर्शक को ज़ख्मी कर सकते हैं। कई बार दर्शक अपनी टीम के पक्ष में भावुक होकर दूसरे खिलाड़ियों तथा विरोधी सहायकों से लड़ पड़ते हैं तथा एक-दूसरे को घातक चोटें लगवा बैठते हैं । इसलिए दर्शकों को प्रत्येक हालत में खेल के मैदान से आवश्यक दूरी पर रखना चाहिए।

प्रश्न 20.
कंट्यूशन/भीतरी घाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कंट्यूशन माँसपेशी की चोट होती है। यदि एक प्रत्यक्ष मुक्का या कोई खेल उपकरण शरीर को लग जाए तो कंट्यूशन का कारण बन सकता है। मुक्केबाजी, कबड्डी और कुश्ती आदि में कंट्यूशन होना स्वाभाविक है। कंट्यूशन में माँसपेशियों में रक्त कोशिकाएँ टूट जाती हैं और कभी-कभी माँसपेशियों से रक्त भी बहने लगता है।

प्रश्न 21.
कृत्रिम श्वास (Artificial Respiration) देने से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब किसी कारण किसी व्यक्ति की प्राकृतिक श्वास क्रिया में रुकावट आ जाए और श्वास लेने में तकलीफ हो तो उसके फेफड़ों में कृत्रिम ढंग से ऑक्सीजन के प्रवेश करवाने की क्रिया को कृत्रिम श्वास देना कहा जाता है। कृत्रिम श्वास देने से अभिप्राय फेफड़ों में कृत्रिम विधि द्वारा हवा का प्रवेश करवाना और बाहर निकालना है ताकि रोगी की जान बच सके।

प्रश्न 22.
कृत्रिम श्वास देने के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) कृत्रिम श्वास देने की क्रिया द्वारा श्वास रुके व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है।
(2) कृत्रिम श्वास द्वारा रोगी को उसकी बेहोशी की हालत में से शीघ्र निकाला जा सकता है।

प्रश्न 23.
जोड़ उतर जाने (Dislocation) से क्या अभिप्राय है?
अथवा
जोड़ उतरना क्या है?
उत्तर:
हड्डी का अपने जोड़ वाले स्थान से हट जाना या खिसक जाना, जोड़ उतरना कहलाता है। कुछ ऐसे खेल होते हैं जिनमें हड्डी का उतरना स्वाभाविक है। प्रायः कंधे, कूल्हे तथा कलाई आदि की हड्डी अधिक उतरती है।

प्रश्न 24.
फ्रैक्चर का क्या अर्थ है?
अथवा
हड्डी का टूटना क्या है?
उत्तर:
किसी हड्डी का टूटना, फिसलना अथवा दरार पड़ जाना टूट (Fracture) कहलाता है। हड्डी पर जब दुःखदायी स्थिति में दबाव पड़ता है तो हड्डी से सम्बन्धित मांसपेशियाँ उस दबाव को सहन नहीं कर सकतीं, जिस कारण हड्डी फिसल अथवा टूट जाती है। अतः फ्रैक्चर का अर्थ है-हड्डी का टूटना या दरार पड़ जाना।

प्रश्न 25.
जटिल फ्रैक्चर क्या होता है? गुंझलदार टूट (Complicated Fracture) क्या है?
उत्तर:
जटिल फ्रैक्चर से कई बार हड्डी की टूट के साथ जोड़ भी हिल जाते हैं। कई बार हड्डी टूटकर शरीर के किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचा देती है; जैसे रीढ़ की हड्डी की टूट मेरुरज्जु को, सिर की हड्डी की टूट दिमाग को और पसलियों की हड्डियों की टूट दिल, फेफड़े और जिगर को नुकसान पहुँचाती हैं। ऐसी स्थिति में टूट काफी जटिल टूट बन जाती है।

प्रश्न 26.
दबा हुआ फ्रैक्चर (Depressed Fracture) क्या होता है? ।
उत्तर:
सामान्यतया यह फ्रैक्चर सिर की हड्डियों में होता है। जब खोपड़ी के ऊपरी भाग या आस-पास से हड्डी टूट जाने पर अंदर फंस जाती है तो ऐसा फ्रैक्चर दबा हुआ फ्रैक्चर कहलाता है।

प्रश्न 27.
जोड़ों का विस्थापन (Dislocation) कितने प्रकार का होता है? उत्तर-जोड़ों का विस्थापन तीन प्रकार का होता है
(1) कूल्हे का विस्थापन,
(2) कन्धे का विस्थापन,
(3) निचले जबड़े का विस्थापन।

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प्रश्न 28.
प्राथमिक सहायता के उपकरण (First Aid Equipments) कैसे होने चाहिएँ?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता के बॉक्स में जो उपकरण या सामग्री हो वह जो काम किया जाना है उसी के अनुकूल होनी चाहिए। उसका आधार स्वास्थ्य के नियमों तथा समय की आवश्यकतानुसार ही होना चाहिए। प्राथमिक सहायता के बॉक्स में सभी आवश्यक उपकरण होने चाहिएँ।

HBSE 9th Class Physical Education सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
वह शिक्षा जो हमें दुर्घटनाओं आदि से बचाती है, क्या कहलाती है?
उत्तर:
वह शिक्षा जो हमें दुर्घटनाओं आदि से बचाती है, सुरक्षा शिक्षा कहलाती है।

प्रश्न 2.
आज के मशीनी युग में किस प्रकार की शिक्षा की अधिक आवश्यकता है?
उत्तर:
आज के मशीनी युग में सुरक्षा शिक्षा की अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
सामान्यतया सड़कों पर बच्चों के साथ दुर्घटनाएँ क्यों होती हैं?
उत्तर:
क्योंकि बच्चे सड़कों पर चलने संबंधी यातायात के नियमों का पालन नहीं करते।

प्रश्न 4.
चौक पार करते समय किस बात की ओर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
चौक पार करते समय ट्रैफिक पुलिसकर्मी के इशारे की ओर ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 5.
रसोईघर में दुर्घटना के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
(1) फर्श का चिकना होना,
(2) जल्दी आग पकड़ने वाले वस्त्र पहनना।

प्रश्न 6.
घायल या मरीज़ को तुरंत दी जाने वाली सहायता क्या कहलाती है?
उत्तर:
घायल या मरीज़ को तुरंत दी जाने वाली सहायता प्राथमिक सहायता कहलाती है।

प्रश्न 7.
रसोईघर या स्नानघर का फर्श किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर:
रसोईघर या स्नानघर का फर्श चिकनाहट-रहित तथा समतल होना चाहिए।

प्रश्न 8.
प्राथमिक सहायता मेंABC का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
A= Airways,
B = Breathing,
C = Compression ,

प्रश्न 9.
घाव कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
घाव चार प्रकार के होते हैं
(1) कट जाने का घाव,
(2) फटा हुआ घाव,
(3) छिपा हुआ घाव,
(4) कुचला हुआ घाव।

प्रश्न 10.
प्राथमिक चिकित्सा की प्रमुख विशेषता या गुण क्या है?
उत्तर;
घायल की जान बचाना।

प्रश्न 11.
जेब्रा क्रॉसिंग (Zebra Crossing) की लाइनें कैसी होती हैं?
उत्तर:
जेब्रा क्रॉसिंग में क्षैतिज आकार की काली और सफेद लाइनें लगी होती हैं; जैसा कि चित्र में दिया गया है

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प्रश्न 12.
हमें सड़क पार करते समय किसका प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर:
हमें सड़क पार करते समय जेब्रा क्रॉसिंग का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 13.
N.C.C. का क्या अर्थ है?
उत्तर:
N.C.C. का अर्थ है-National Cadet Corps.

प्रश्न 14.
घर पर दुर्घटनाओं से बचाव हेतु दो उपाय बताएँ।
उत्तर:
(1) प्रकाश का उचित प्रबंध हो,
(2) घर में बिजली की नंगी तारें न हों।

प्रश्न 15.

सीढ़ियों पर चढ़ते समय किन दो बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
(1) सीढ़ियों की एक-एक पौड़ी चढ़नी चाहिए,
(2) दौड़कर सीढ़ियाँ न चढ़ें।

प्रश्न 16.
किस प्रकार की मोच में दर्द असहनीय हो जाता है?
उत्तर:
पूर्ण मोच में दर्द असहनीय हो जाता है।

प्रश्न 17.
रगड़ किस अंग की चोट है?
उत्तर:
रगड़ त्वचा की अंग की चोट है।

प्रश्न 18.
कंट्यूशन किस अंग की चोट है?
उत्तर:
कंट्यूशन माँसपेशियों की चोट है।

प्रश्न 19.
खिंचाव कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
खिंचाव माँसपेशियों की चोट है। यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है
(1) साधारण खिंचाव,
(2) असाधारण खिंचाव।

प्रश्न 20.
किसी जोड़ के सन्धि-स्थल (Ligaments) के फट जाने या खिंच जाने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
किसी जोड़ के सन्धि-स्थल (Ligaments) के फट जाने या खिंच जाने को मोच कहते हैं।

प्रश्न 21.
साधारण अथवा बन्द फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture) क्या होता है?
उत्तर:
जब हड्डी टूट जाए, परन्तु घाव न दिखाई दे, तो वह बंद फ्रैक्चर होता है।

प्रश्न 22.
किस प्रकार की टूट अधिक खतरनाक होती है?
उत्तर:
जटिल टूट अधिक खतरनाक होती है।

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प्रश्न 23.
मुक्केबाजी में प्राय: कैसी चोट लगती है?
उत्तर:
मुक्केबाजी में कंट्यूशन या भीतरी घाव चोट लगती है।

प्रश्न 24.
कच्ची अस्थि-भंग प्रायः किन्हें होता है? उत्तर-कच्ची अस्थि-भंग प्रायः बच्चों को होता है।

प्रश्न 25.
ऑस्टिओपोरोसिस (Oesteoporosis) के कारण किस प्रकार की चोट लग सकती है?
उत्तर:
ऑस्टिओपोरोसिस (Oesteoporosis) के कारण फ्रैक्चर हो सकता है।

प्रश्न 26.
मूर्च्छित रोगी या घायल व्यक्ति को होश में लाने के लिए किस उपाय का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
मूर्च्छित रोगी या घायल व्यक्ति को होश में लाने के लिए कृत्रिम श्वास का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 27.
चोट के तुरंत बाद खिलाड़ी को कौन-सा टीका लगवाना चाहिए?
उत्तर:
चोट के तुरंत बाद खिलाड़ी को एंटी-टैटनस का टीका लगवाना चाहिए।

प्रश्न 28.
खेल चोटों का कोई एक कारण लिखें।
उत्तर:
शरीर को बिना गर्माए अभ्यास या प्रतियोगिता में भाग लेना।

प्रश्न 29.
मोच किस अंग की चोट है?
उत्तर:
मोच लिगामेंट की चोट है।

प्रश्न 30.
पागल कुत्ते के काटने पर घाव को सर्वप्रथम किससे धोना चाहिए?
उत्तर:
पागल कुत्ते के काटने पर घाव को सर्वप्रथम साफ पानी से धोना चाहिए।

प्रश्न 31.
मोच क्या है ?
उत्तर:
किसी जोड़ के संधि-स्थल के फट जाने को मोच कहते हैं।

प्रश्न 32.
खिलाड़ी को प्रशिक्षण व प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
खिलाड़ी को प्रशिक्षण व प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को भली-भाँति गर्मा लेना चाहिए।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
बत्ती वाला चौक कब पार करना चाहिए?
(A) हरी बत्ती होने पर
(B) लाल बत्ती होने पर
(C) पीली बत्ती होने पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) हरी बत्ती होने पर

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प्रश्न 2.
घर में पक्की सीढ़ी बनाते समय ध्यान रखना चाहिए
(A) सीढ़ी की पटरियों की समान दूरी का ।
(B) सीढ़ियों में उचित रोशनी का
(C) सीढ़ी के दोनों ओर सुरक्षा पाइप लगवाने का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
सड़क पर पैदल चलने के लिए कौन-सा प्रबंध होना चाहिए?
(A) रोशनी का प्रबंध
(B) फुटपाथ का प्रबंध
(C) ट्रैफिक पुलिस का प्रबंध
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) फुटपाथ का प्रबंध

प्रश्न 4.
यातायात को ठीक ढंग से चलाने के लिए चौराहों पर किसका प्रबंध होना चाहिए?
(A) सिग्नल लाइटों का
(B) पुलिस का
(C) आपातकालीन सेवाओं का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सिग्नल लाइटों का

प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायता बॉक्स में कौन-कौन-से उपकरण होने चाहिएँ?
(A) तैयार की हुई आकार के अनुसार कीटाणुरहित पट्टियाँ
(B) आवश्यक दवाइयाँ व रुई का बंडल
(C) चिपकने वाली पलस्तर व मरहम पट्टियाँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
प्राथमिक सहायता के नियम हैं
(A) घायल की सबसे बड़ी चोट की ओर अधिक ध्यान देना
(B) घायल की स्थिति को खराब होने से बचाना
(C) रोगी अथवा घायल को विश्राम की स्थिति में रखना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
सड़कों पर दुर्घटनाओं से बचाव के लिए सरकार को कौन-सी शिक्षा का प्रचार करना चाहिए?
(A) सर्व शिक्षा
(B) शारीरिक शिक्षा
(C) सुरक्षा शिक्षा
(D) प्राथमिक शिक्षा
उत्तर:
(C) सुरक्षा शिक्षा

प्रश्न 8.
सूर्य की तेज धूप में शरीर का गर्मी के प्रभाव में आ जाना क्या कहलाता है?
(A) जलन
(B) लू लगना
(C) आग लगना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) लू लगना

प्रश्न 9.
शरीर की चेतना के खो जाने को क्या कहते हैं?
(A) चेतनता
(B) बेहोशी
(C) तनाव
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बेहोशी

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प्रश्न 10.
प्राथमिक सहायक होना चाहिए-
(A) बुद्धिमान व फुर्तीला
(B) सूझवान व शांत स्वभाव वाला
(C) सहानुभूति वाला एवं विनम्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 11.
दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण है
(A) जल्दबाजी एवं लापरवाही
(B) यातायात के नियमों का पालन न करना
(C) शराब या अन्य नशीले पदार्थ का सेवन करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
“सुरक्षा या एहतियात इलाज से बेहतर है।” यह कथन है
(A) हरबर्ट स्पेंसर का
(B) जॉनसन का
(C) एडवर्ड कोक का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) एडवर्ड कोक का

प्रश्न 13.
किन कारणों से श्वास क्रिया में रुकावट आ सकती है?
(A) पानी में डूब जाने से
(B) जहरीली गैसों के सूंघने से
(C) बिजली के करंट लगने से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 14.
कंट्यूशन किस अंग की चोट है?
(A) माँसपेशियों की
(B) हड्डियों की
(C) त्वचा की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) माँसपेशियों की

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प्रश्न 15.
खेलों में लगने वाली सामान्य चोट है
(A) रगड़
(B) मोच
(C) खिंचाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा Summary

सुरक्षा शिक्षा तथा प्राथमिक शिक्षा परिचय

सुरक्षा शिक्षा (Safety Education):
आज के युग में व्यक्तियों को सुरक्षा शिक्षा की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि सुरक्षा शिक्षा से हमें अनेक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इससे हम काफी सीमा तक होने वाली दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पा सकते हैं। इस शिक्षा से हमें घरेलू एवं यातायात संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण नियमों की जानकारियाँ होती हैं जिनको अपनाकर हम दुर्घटनाओं से अपना बचाव कर सकते हैं। एक प्रसिद्ध कहावत है-“सावधानी हटी-दुर्घटना घटी।” सुरक्षा शिक्षा में इसी कहावत को व्यापक रूप से समझाया जाता है। प्रायः देखा गया है कि सड़क पर अधिकतर दुर्घटनाएँ असावधानी के कारण होती हैं। यदि सावधान व सतर्क रहा जाए तो ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। यह शिक्षा हमें अपने जीवन के प्रति सजग करती है और हमें अनेक नियमों की जानकारी देकर हमारे जीवन को सुरक्षित करने में सहायता करती है। यदि हमें सुरक्षा संबंधी नियमों का पता होगा तभी हम दुर्घटनाओं से स्वयं का बचाव कर पाएंगे।

प्राथमिक सहायता (First Aid):
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को ओर अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है। इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। यदि घायल अथवा रोगी व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता मिल जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। कुछ चोटें तो इस प्रकार की हैं, जो खेल के मैदान में बहुत होती हैं, जिनको मौके पर प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, यदि हमें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी उचित जानकारी हो। इस प्रकार रोगी की स्थिति बिगड़ने से बचाने और उसके जीवन की रक्षा के लिए प्राथमिक सहायता की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए प्राथमिक सहायता की आज के समय में बहुत आवश्यकता हो गई है। इसका ज्ञान प्रत्येक नागरिक को प्राप्त करना आवश्यक होना चाहिए।

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