HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. किस रोग में फुप्फुस (lungs) के वायु कोष्ठ (एलव्यूलाई) संक्रमि हो जाते हैं-
(अ) टाइफाइड
(ब) न्यूमोनिया
(स) जुकाम
(द) हैजा
उत्तर:
(ब) न्यूमोनिया

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2. निम्न में से मलेरिया के लिए उत्तरदायी है-
(अ) प्लै. वाइबैम्स
(ब) फ्लै. मेलिरिआई
(स) प्लै. फैल्सीपेरम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

3. मलेरिया परजीबी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए निम्न में से किस परपोषी की जरूरत पड़ेगी?
(अ) मनुष्य
(ब) मादा एनाफिलिज
(स) प्रोटोओओआ
(द) (अ) व (ब) दोनों
उत्तर:
(अ) मनुष्य

4. विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ निम्न में से किस प्रोटीन का स्रावण करती है-
(अ) इंटरफेरॉन
(ब) टाइकोफाइटॉन
(स) एपिड्रोर्मोफाइटान
(द) क्लोस्ट्रम
उत्तर:
(अ) इंटरफेरॉन

5. ऐलर्जी, मास्ट कोशिकाओं से किस रसायन के निकलने से होती है
(अ) सीरोटोनिन
(ब) मीरोटोनिन
(ख) टौरोटोनिन
(द) लीरोटोनिन
उत्तर:
(अ) सीरोटोनिन

6. निम्न में से द्वितीयक लसीकाभ अंग है-
(अ) प्लीहा
(ब) टांसिल
(स) परिशेषिका
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

7. संक्रमण होने एवं एड्स के लक्षप प्रकट होने के बीच अव्वधि होती है
(अ) 1 से 3 वर्ष
(ब) 5 से 10 वर्ष
(स) 12 से 15 वर्ष
(द) 3 माह से 9 माह तक
उत्तर:
(ब) 5 से 10 वर्ष

8. रक्त परिसंचरण की खोज करने वाले वैज्ञानिक हैं-
(अ) विलियम हार्चे
(ब) राबर्ट हुक
(स) श्लाईडेन एवं श्वान
(द) राबर्ट श्राउन
उत्तर:
(अ) विलियम हार्चे

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9. खमीर से बनने वाला टीका है-
(अ) चेचक का टीका
(ब) यकृत शोथ-बी का टीका
(स) खसरे का टीका
(द) फ्लू का टीका
उत्तर:
(ब) यकृत शोथ-बी का टीका

10. तंबाकू में पाया जाने वाला रासायनिक पदार्थ है-
(अ) निकोटिन
(ब) कोकीन
(स) क्रैक
(द) बार्बीट्यूरेट
उत्तर:
(अ) निकोटिन

11. मलेरिया की रोकधाम के लिए मच्छर के लार्वा का भक्षण करने वाली मछली है-
(अ) बारबस
(ब) लेबियो
(स) गेम्बुसिया
(द) एक्सोसीट्स
उत्तर:
(स) गेम्बुसिया

12. ऐल्कोहॉल के चिरकारी उपयोग से सबसे ज्याद्रा शरीर के किस अंग की क्षति होती है-
(अ) आमाशय
(ब) मलाशाय
(स) फेफड़े
(द) यकृत
उत्तर:
(द) यकृत

13. हमारे शरीर में प्रतिरक्षा की पहली पंक्ति है-
(अ) फेफड़े
(ब) इ्वसन
(स) त्वचा
(द) मेक्रोफैजेज कोशिकायें
उत्तर:
(स) त्वचा

14. अर्बुद को नह करने में सहायक है-
(अ) Y – इन्टरफेरोन
(ब)) Z – इन्टरफेरोन
(स) X – इन्टरफेरोन
(द) Z – इन्टरफेरोन
उत्तर:
(अ) Y – इन्टरफेरोन

15. दुर्दम अबुर्द प्रयुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज कहलाता है-
(अ) कटिक्ट इसहिखिसन
(ब) नियोप्लास्टिक
(स) एलीसा एंजाइमा
(द) इम्यूनोजारवेट
उत्तर:
(ब) नियोप्लास्टिक

16. तम्बाकू के धुएँ में वपस्थित रासायनिक कैंसरजन किस अंग के कैसर के मुख्य कारण है-
(अ) यकृत
(ब) प्लीहा
(स) फेफड़े
(द) जननांग
उत्तर:
(स) फेफड़े

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17. कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु (वायरस) कहलाते हैं-
(अ) आंकोजोनिक वायरस
(ब) प्रोटो आंकोजेनिक बायरस
(स) मैटास्टेसिस वायरस
(द) कीटो आंकोजेनिक वायरस
उत्तर:
(अ) आंकोजोनिक वायरस

18. निम्न में से कौनसे बिषाणु फैक्ट्री (Factory) की तरह काम करते हैं-
(अ) पोलियो वाइरस
(ब) आर्थोमिम्सो वाइरस
(स) एच.आई. वाइरस
(द) पैरामिम्सो वाइरस
उत्तर:
(स) एच.आई. वाइरस

19. प्राकृतिक केनिबिनॉइड कैनेबिस सैटाइवा पौधे के किस भाग से प्राप्त किया जाता है-
(अ) जड़
(ब) पुष्पक्रम
(स) पुष्मासन
(द) तने
उत्तर:
(ब) पुष्पक्रम

20. मलेरिया रोगी में कंपकंपी का कारण है-
(अ) हीमोजॉइन
(ब) हिप्पनोटोक्सिन
(स) हीमेटिन
(द) मीरोजोइट्स
उत्तर:
(अ) हीमोजॉइन

21. साल्मोनेला टाइफा एक रोगजनक जीवाणु जिससे कौनसा ज्वर होता है-
(अ) न्यूमोनिया ज्वर
(ब) टाइफाइड ज्वर
(स) सामान्य जुकाम ज्वर
(द) मलेरिया ज्वर
उत्तर:
(ब) टाइफाइड ज्वर

22. असंक्रामक रोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है-
(अ) कैंसर
(ब) मलेरिया
(स) एड्स
(द) न्यूमोनिया
उत्तर:
(अ) कैंसर

23. हमारे रक्त में प्रोटीनों की सेना उत्पन्न करते हैं-
(अ) बी-लसीकाणु
(ब) टी-मारक कोशिका
(स) टी-निरोधी कोशिकाएँ
(द) टी-सहायक कोशि
उत्तर:
(अ) बी-लसीकाणु

24. किशोरावस्था माना जा सकता है-
(अ) 8 से 10 वर्ष
(ब) 12 से 18 वर्ष
(स) 19 से 22 वर्ष
(द) 23 से 25 वर्ष
उत्तर:
(ब) 12 से 18 वर्ष

25. ड्रग या एल्कोहल की नियमित मात्रा अचानक बंद कर वि पर किस सिन्द्रोम के रूप में व्यक्त होती है?
(अ) विद्ड्रावल सिन्ड्रोम
(ब) टर्नर सिन्ड्रोम
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(अ) विद्ड्रावल सिन्ड्रोम

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26. ड्रगों की अत्यधिक मात्रा से होता है-
(अ) श्वसन पात (रेस्पाइरेटरी फेल्योर)
(ब) हृद्य पात (हार्ट फेल्योर)
(स) प्रमस्तिष्क रक्त स्राव (सरेब्रल हेमरेज)
(द) उपरोक सभी
उत्तर:
(द) उपरोक सभी

27. महिलाओं में उपचयी स्टेराइडों के सेवन से होता है-
(अ) मैस्कुलिनाइजेसन (यानी पुरुष जैसे लक्षण)
(ब) विनिवर्तन संलक्षण
(स) सुदम अर्बुद
(द) संस्पर्श सदमन
उत्तर:
(अ) मैस्कुलिनाइजेसन (यानी पुरुष जैसे लक्षण)

28. अमापन एलीसा किस रोग से सम्बन्धित है-
(अ) चेचक
(ब) कैंसर
(स) टायफाइड
(द) एडस
उत्तर:
(द) एडस

29. कौनसा अर्बुद सामान्यतया अपने मूल स्थान तक सीमित रहता है-
(अ) सुदम अर्बुद
(ब) दुर्दम अर्बुद
(स) अदुर्दम अर्बुद
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सुदम अर्बुद

30. निम्न में से प्राथमिक लसिकाय अंग है-
(अ) आमाशय
(ब) यकृत
(स) अस्थिमज्ञा
(द) फुफ्फुस
उत्तर:
(स) अस्थिमज्ञा

31. प्लाजमोडियम की कौनसी जाति मनुष्य के लिए मृत्युजनक है-
(अ) प्लाजमोडियम फैल्सीपेरम
(ब) प्लाजमोडियम मैलेरी
(स) प्लाजमोडियम ऑवेल
(द) प्लाजमोडियम वाइवेक्स
उत्तर:
(अ) प्लाजमोडियम फैल्सीपेरम

32. मैरी मैलान पेशे से क्या थी?
(अ) मोची
(ब) धोबी
(स) रसोईया
(द) स्वीपर
उत्तर:
(स) रसोईया

33. मलेरिया का वाहक है-
(अ) मादा एनोफिलीज
(ब) नर क्यूलेक्स
(स) मादा क्यूलेक्स
(द) नर एनोफिलीज
उत्तर:
(अ) मादा एनोफिलीज

34. प्राकृतिक कैनिबिनाइड कैनेबिस सैटाइवा पौधे के किस भाग से प्रास किया जाता है-
(अ) जड़
(ब) पुष्प क्रम
(स) पुष्पाषन
(द) तना
उत्तर:
(ब) पुष्प क्रम

35. हमारे शरीर में एण्टीबॉडीज (प्रतिपिंड) किसके सम्मिश्र होते हैं?
(अ) लाइपोप्रोटीन्स
(ब) स्टेरायड्स
(स) प्रोस्टेग्लेंडिन्स
(द) ग्लोइकोप्रोटीन्स
उत्तर:
(ब) स्टेरायड्स

36. निम्नलिखित में से कौन मनुष्य के शरीर में सूक्ष्मजीवी के प्रवेश के विरुद्ध कार्यिकीय अवरोध (Physiological barrier) का कार्य करता है?
(अ) आँसू
(ब) मोनोसाइट्स
(स) त्वचा
(द) मूत्र जनन मार्ग की उपकला
उत्तर:
(अ) आँसू

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
फाइलेरिएसिस से पीड़ित व्यक्ति के पैरों में सूजन किसके द्वारा होती है ?
उत्तर:
पैरों की लिम्फेटिक नलिकाओं में फाइलेरिया कृमि, वुचेरिया बैक्राफ्टी के द्वारा फाइलेरिया रोग होता है ।

प्रश्न 2.
मैरी मैलॉन का उपनाम क्या है?
उत्तर:
मैरी मैलॉन का उपनाम टाइफाइड मैरी है।

प्रश्न 3.
मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् (HIV) जिन दो कोशिकाओं में गुणित होता है, उनके नाम लिखिए ।
उत्तर:
मैक्रोफेजेज तथा सहायक T – लिम्फोसाइट्स ।

प्रश्न 4.
न्यूमोनिया रोग में शरीर के कौनसे अंग संक्रमित होते हैं ?
उत्तर:
न्यूमोनिया रोग में फुफ्फुस (Lungs) के वायुकोष्ठ (Alveoli) संक्रमित होते हैं।

प्रश्न 5
तीव्र ज्वर, भूख की कमी, पेट में दर्द तथा कब्ज से पीड़ित लक्षणों के आधार पर चिकित्सक किस प्रकार पुष्टि करेगा कि व्यक्ति को टायफायड है, अमीबिएसिस नहीं ।
उत्तर:
टायफाइड रोग की पुष्टि विडाल परीक्षण के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 6.
कुछ ऐलर्जनों (प्रत्यूर्जकों) से छींकों का आना तथा हाँफना शुरू हो जाता है। शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया न होना किससे होता है ?
उत्तर:
शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया ऐलर्जनों के प्रति एलर्जी (Allergy) के कारण होती है।

प्रश्न 7
संक्रामक रोग किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से संचारित होते हैं संक्रामक रोग कहलाते हैं।

प्रश्न 8.
एल. एस. डी. का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर:
लाइसार्जिक अम्ल डाइएथिल एमाइड्स।

प्रश्न 9.
कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु अर्बुदीय विषाणु ( आंकोजेनिक वाइरस) कहलाते हैं।

प्रश्न 10.
विशिष्ट इम्यूनिटी को प्राप्त करने के लिए आवश्यक दो मुख्य कोशिकाओं के समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • T – लिम्फोसाइट्स
  • B लिम्फोसाइट्स |

प्रश्न 11.
हेरोइन क्या है? इसका शरीर पर पड़ने वाले एक प्रभाव को बताइए ।
उत्तर:
हेरोइन एक तीव्र स्वापक (narocotic) नशा है। इससे शरीर में आलस्य व उदासीनता आती है ।

प्रश्न 12.
लसीकाभ अंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे अंग जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति, परिपक्वन एवं प्रचुरोद्भवन होता है लसीकाभ अंग कहते हैं ।

प्रश्न 13.
अस्थिमज्जा और थामइस टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन एवं परिपक्वन के लिए क्या मुहैया कराते हैं?
उत्तर:
अस्थिमज्जा और थाइमस टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन एवं परिपक्वन के लिए सूक्ष्म-पर्यावरण मुहैया कराते हैं।

प्रश्न 14.
कोकिन किस पादप से प्राप्त की जाती है एवं यह पौधा मूल रूप से किस देश का है?
उत्तर:
कोकिन एरिप्रोजाइलम कोका से प्राप्त की जाती है। यह पौधा मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का है।

प्रश्न 15.
एक चिकित्सक के द्वारा यह पुष्टि की गयी कि किसी व्यक्ति के शरीर का प्रतिरोधी तंत्र (Immune System) अवरोधित हो गया है। व्यक्ति को कौनसा रोग है तथा इसका कारक क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति को एड्स रोग है। इसका कारक HIV (Human Immuno Deficiency Virus) है।

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प्रश्न 16.
वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में चिकनगुनिया रोग की पुष्टि हुई है। इस रोग के लिए उत्तरदायी (बैक्टर) वाहक का नाम लिखिए।
उत्तर:
चिकनगुनिया रोग के लिए उत्तरदायी (बैक्टर) वाहक का नाम एडीज मच्छर है।

प्रश्न 17.
बचपन और प्रौढ़ता को जोड़ने वाले पुल का नाम लिखिए।
उत्तर:
बचपन और प्रौढ़ता को जोड़ने वाले पुल का नाम किशोरावस्था है।

प्रश्न 18.
प्रतिरक्षा कितने प्रकार की होती है ? नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है, जिन्हें क्रमशः सहज प्रतिरक्षा एवं उपार्जित प्रतिरक्षा कहते हैं।

प्रश्न 19.
वयस्क कृमि (वूचेरिया) कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
वयस्क कृमि लिम्फ ग्रंथियां व लिम्फ मार्ग में पाया जाता है।

प्रश्न 20.
अर्बुद कितने प्रकार के होते हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
अर्बुद दो प्रकार के होते हैं-

  • सुदम (बिनाइन)
  • दुर्दम (मैलिग्नेंट)।

प्रश्न 21.
विषाणुओं का कौनसा समूह है जो मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम (Common Cold) फैलाता है ?
उत्तर:
नासा विषाणुओं का समूह (Rhinoviruses – राइनोवाइरस) जो मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम फैलाता है।

प्रश्न 22.
रिंगवर्म ( दाद) के लिए कौनसा कवक उत्तरदायी है? केवल एक नाम लिखिए।
उत्तर:
रिंगवर्म (दाद) के लिए माइक्रोस्पोरम नामक कवक उत्तरदायी है।

प्रश्न 23.
मलेरिया परजीवी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए कितने परपोषियों की आवश्यकता पड़ती है? नाम लिखिए।
उत्तर:
मलेरिया परजीवी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता पड़ती है-

  • मनुष्य
  • मच्छर (मादा एनोफिलीज) ।

प्रश्न 24.
चोट लगने के स्थान पर लाल रंग हो जाता है, इसका कारण बताइये ।
उत्तर:
चोट लगने के स्थान पर लाल रंग सक्रिय प्रतिरक्षा के कारण होता है।

प्रश्न 25.
भांग पीने वाला व्यक्ति हँसता है तो हँसता रहता है और रोता है तो रोता जाता है, क्यों?
उत्तर:
भांग सोचने व समझने की क्षमता को समाप्त कर मस्तिष्क को अनियंत्रित कर देती है जिसके कारण व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार करता है।

प्रश्न 26.
एड्स रोग से शरीर को कौनसी प्रमुख हानि होती है?
उत्तर:
एड्स रोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है।

प्रश्न 27.
गुटका सेवन करने वाले व्यक्ति के जबड़े की मांसपेशियाँ कठोर हो जाने के कारण उसका जबड़ा ठीक से नहीं खुलता है। संभावित रोग का नाम बताइये।
उत्तर:
सबम्यूकस फाइब्रोसिस रोग होता है।

प्रश्न 28.
डी पी टी टीके का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया पर्टुसिस टिटेनस ।

प्रश्न 29.
कैंसर में दी जाने वाली दवाओं व उपचार के अनुषंगी प्रभाव (Side effect) बताइये ।
उत्तर:
बालों का झड़ना एवं एनिमिया ।

प्रश्न 30.
NAC का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ।

प्रश्न 31
मरीजुआना किस पौधे का सत्व (Extract) है? नाम बताइये ।
उत्तर:
भांग ( केनाविस सेटाइवा ) ।

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प्रश्न 32.
अफीम, मार्फीन, हेरोइन, पेथीडीन तथा मेथेडोन को सामूहिक रूप से क्या कहते हैं?
उत्तर:
ओपिमेट नारकोटिक्स ।

प्रश्न 33.
दो तकनीकी विधियों के नाम लिखिए जिनके द्वारा जीवाणु या विषाणु संक्रमित रोग के लक्षण शरीर पर प्रकट होने से पहले चिन्हित कर लिये जाते हैं।
उत्तर:

  1. रिकॉम्बिनेन्ट डी एन ए तकनीकी
  2. एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बन्ट एसे ( ELISA ) ।

प्रश्न 34.
मनुष्य में मैलिग्नेंट मलेरिया उत्पन्न करने वाले पैथोजन का वैज्ञानिक नाम लिखिए ।
उत्तर:
मनुष्य में मैलिग्नेंट मलेरिया उत्पन्न करने वाले पैथोजन का वैज्ञानिक नाम प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम |

प्रश्न 35.
AIDS के दो लक्षण बताइए ।
उत्तर:

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना।

प्रश्न 36.
निकोटिन के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
निकोटिन के निम्न प्रभाव हैं –

  1. रुधिर वाहिकाओं के संकीर्णन को बढ़ाता है।
  2. धड़कन, रक्तदाब की दर को बढ़ाता है।
  3. पेशियों को विश्रान्त करता है।

प्रश्न 37.
दो लैंगिक संचारित रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • एड्स
  • सिफिलिस ।

प्रश्न 38.
मेटास्टेसिस से क्या समझते हैं?
उत्तर:
अर्बुद की विभाजनशील कोशिकाएँ शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती है तथा वहां अर्बुद उत्पन्न करती है। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेसिस कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य को किस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है? स्वास्थ्य किन बातों से प्रभावित होता है? लिखिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ है मात्र रोग की अनुपस्थिति अथवा शारीरिक स्वस्थता नहीं है। इसे पूर्णरूपेण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

स्वास्थ्य निम्न बातों से प्रभावित होता है –

  1. आनुवंशिक विकार ( Genetic Disorders) – वे अपूर्णताएं जिनको लेकर बच्चा जन्मता है और वे अपूर्णताएँ जो बच्चे को जन्म से ही माता-पिता से वंशागत रूप से मिलती हैं ।
  2. संक्रमण और
  3. हमारी जीवन शैली जिसमें जो खाना हम खाते हैं और जो पानी हम पीते हैं, जो विश्राम हम शरीर को देते हैं और जो व्यायाम हम करते हैं, जो स्वभाव हमारे भीतर है और जिनकी हम में कमी है आदि शामिल हैं।

प्रश्न 2.
निम्न को परिभाषित कीजिए-
(i) प्रतिरक्षा
(ii) एन्टीजन
(iii) एन्टीबॉडी
(iv) टॉक्साइड
(v) प्रतिरक्षा तंत्र |
उत्तर:
(i) प्रतिरक्षा (Immunity ) – शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरक्षा कहलाती है।

(ii) एन्टीजन (Antigen ) – शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं एवं विषैले पदार्थों को प्रतिजन (Antigen) कहते हैं। इनको सीधे अथवा विशेष प्रतिरक्षी पदार्थों, एन्टीबॉडीज के द्वारा नष्ट किया जाता है। एन्टीजन, एन्टीबॉडीज के उत्पादन को उद्दीप्त प्रेरित करने वाले रसायन एन्टीजन कहलाते हैं।

(iii) एन्टीबॉडी (Antibody) – शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इस एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ एन्टीबॉडी (Antibody) कहलाते हैं।

(iv) टॉक्साइड (Toxoid) – यह एक बैक्टीरियल बाह्य विष होता है जो एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा अविष (Detoxication) में परिवर्तित किया जाता है तथा जो इम्यूनाइजेशन में रोगों के विरुद्ध सावधानीपूर्वक कार्य करते हैं।

(v) प्रतिरक्षा तंत्र ( Immune system) – शरीर का वह तंत्र जो शरीर को बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है, प्रतिरक्षा तंत्र कहलाता है ।

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प्रश्न 3.
इन्टरफेरॉन्स तथा प्रतिरक्षी में कोई चार अंतर लिखिए।
उत्तर:
इन्टरफेरॉन्स तथा प्रतिरक्षी में अन्तर (Difference between Interferons and Antibodies)

इन्टरफेरॉन्स (Interferons) प्रतिरक्षी (Antibodies)
1. ये तीव्र प्रतिक्रिया दर्शाते हैं। जबकि ये धीमी क्रिया वाले होते हैं।
2. ये अस्थाई सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करते हैं।
3. ये शरीर का द्वितीय रक्षा स्तर बनाते हैं। ये शरीर का तीसरा स्तर बनाते हैं।
4. इन्टरफेरान्स कोशिकाओं के अंदर क्रिया करते हैं। जबकि प्रतिरक्षी कोशिका के बाहर क्रिया करते हैं।
5. ये सूक्ष्म जीव से संक्रमित किसी भी कोशिका से स्रावित होते हैं। जबकि ये केवल प्लाज्मा (Plasma) की B-कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं।
6. संक्रमित कोशिका से समीपवर्ती स्वस्थ कोशिका में प्रवेश कर उन्हें संक्रमणरोधी बनाते हैं। प्रतिजन (Antigen) से लड़ने के लिए रक्त (Blood) लसीका (Lymph) में भ्रमण करते हैं।

प्रश्न 4.
मानव में सबसे ज्यादा कौनसा संक्रामक रोग फैलता है ? इस रोग का संक्रमण एवं लक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम (Common Cold) फैलता है। इस रोग का रोगकारक राइनोवायरस (Rhinoviruses) है। संक्रमण-ये नाक और श्वसन पथ को संक्रमित करते हैं। संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींकों से निकले बिंदुक (Droplets) जब स्वस्थ व्यक्ति द्वारा श्वास लेने पर अंदर जाते हैं अथवा पेन, किताबों, प्यालों, दरवाजे के हत्थे, कम्प्यूटरों के की-बोर्ड (Key Board) या माउस आदि जैसी संदूषित हुई वस्तुओं के संपर्क में आता है, तो उसे भी संक्रमण हो जाता है। रोग के लक्षण – नासीय संकुलता (Nasal congestion) और आस्राव (Discharge), कंठदाह ( Sore throat), स्वरुक्षता अर्थात् फटी आवाज, खाँसी (Cough), सिर दर्द, थकावट आदि । ये लक्षण प्रायः 3-7 दिन तक रहते हैं।

प्रश्न 5.
कैंसर किसे कहते हैं? अर्बुद के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कैंसर (Cancer) – कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
अर्बुद (Tumour) दो प्रकार के होते हैं –
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour) – ये हानिकारक नहीं होते हैं एवं स्थानीय होते हैं अर्थात् शरीर के दूसरे भागों या आस-पास की कोशिकाओं में नहीं फैलते हैं। इस कारण इसे नॉन मेटास्टेसिस (Non Metasis) कहते हैं। स्थान विशेष पर अर्बुद बनती है जो आकार में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इसे शल्य क्रिया द्वारा शरीर से अलग करने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।

(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour) – इसमें विभाजनशील कोशिकाएँ शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती हैं तथा वहाँ अर्बुद उत्पन्न करती हैं। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेटिस (Metasis) कहते हैं। ऐसे अर्बुद खतरनाक होते हैं जिसके कारण मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 6.
ऐल्कोहॉल क्या है? इसके सेवन से होने वाले प्रभाव लिखिये ।
उत्तर:
ऐल्कोहॉल (Alcohol) – यह मदिरा का मुख्य संघटक है. जो कि प्रतिरोधी एवं विलायक के रूप में उपयोगी है।
ऐल्कोहॉल के प्रभाव –

  1. इसके सेवन से विकृत सोच, उत्तेजनशीलता, उच्चारण अस्पष्टता एवं निद्राजनक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
  2. ऐल्कोहॉल के सेवन से सेरीबेलम भाग प्रभावित होता है। इससे पेशीय समन्वय नहीं हो पाता है। इससे व्यक्ति लड़खड़ाने लगता है।
  3. याददाशत में कमी आ जाती है।
  4. ऐल्कोहॉल के सेवन से आमाशय की भित्ति में सूजन आ जाती है।
  5. रुधिर में ऐल्कोहॉल की अत्यधिक मात्रा यकृत में वसा के संश्लेषण को बढ़ा देती है और यह वसा, यकृत कोशिकाओं तथा पित्त नली में जमा होने लगती है। इसे फेटी लिवर सिन्ड्रोम कहते हैं। फेटी लिवर तथा लिवर सिरोसिस हो जाता है।

प्रश्न 7.
निम्न रोगों के रोगकारक, संक्रमण एवं लक्षणों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
(i) अमीबा
(ii) हैजा
(iii) मलेरिया ।
उत्तर:

रोग का नाम कारक संक्रमण लक्षण
1. अमीबता (Amoebiasis) एन्ट अमीबा (हिस्टोलिटिका) दूषित जल और भोजन द्वारा, बिना धुली सक्जियों द्वारा एवं मक्खियों द्वारा उद्रीय दर्द, प्रतिदिन 5 से 6 रक्त युक्त एवं रक्त श्लेष्मल युक्त मल का आना।
2. हैजा (Cholera) जीवाणु (बिब्रियो कोलेरी) दूषित भोजन व जल रोगी के मल में उपस्थित रोगाणुओं से पतले दस्त, पेशी ऐंठन एवं वमन निर्जलीकरण।
3. मलेरिया (Malaria) मलेरिया परजीवी (प्लाजमोडियम) मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने पर एक-दो दिन छोड़-छोड़कर तेज बुखार का आना, शरीर में ठण्ड लगकर कंपकंपी आना, सिर-दर्द प्लीहा एवं यकृत का बढ़ना।

प्रश्न 8.
प्रतिजन व प्रतिरक्षी में विभेद कीजिए ।
उत्तर:
प्रतिजन व प्रतिपक्षी में विभेद (Difference between Antigen and Antibody)

प्रतिजन (Antigen) प्रतिरक्षी (Antibody)
1. शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं एवं विषैले पदार्थों को प्रतिजन (Antigen) कहते हैं। शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B – लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ प्रतिरक्षी (Antibody) कहलाते हैं।
2. ये रोग उत्पन्न करते हैं। ये रोग उत्पन्न नहीं करते बल्कि रोगाणुओं को नष्ट करते हैं।
3. ये मेक्रोफेजेज से संयुक्त होकर T- सहायक कोशिका को सक्रिय कर प्रतिरक्षा उत्पन्न करते हैं। ये सीधे ही प्रतिजन पर आक्रमण कर समिश्र बनाते हैं और प्रतिजन को नष्ट कर देते हैं।
4. एन्टीजन बाहर से प्रवेश करते हैं। जबकि प्रतिरक्षी शरीर के अंदर बनते हैं।
5. ये सूक्ष्म जीवों के शरीर की सतह पर या स्वतंत्र अवस्था में पाये जाते हैं। ये रक्त प्लाज्मा कोशिका की सतह पर या शरीर के ऊतक द्रव्य में पाये जाते हैं।
6. ये विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे-जीवाणु, विषाणु प्रोटोजोअल, परागकण, दवाइयां, विष आदि। जबकि ये पाँच प्रकार के होते हैं-
IgM, IgG, IgA, IgE, IgD.

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प्रश्न 9.
तंबाकू का प्रयोग किस रूप में किया जाता है? इससे होने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
धूम्रपान से तीव्र ड्रगों के सेवन का रास्ता खुल जाता है। इससे क्या तात्पर्य है? समझाइए ।
उत्तर:
तंबाकू का प्रयोग मनुष्य चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से करता आ रहा है। तंबाकू (धूमपान ) पीया जाता है, चबाया जाता है या सूंघा जाता है। तंबाकू में बहुत से रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनमें एक एल्केलाइड भी शामिल है, जिसे निकोटिन (Nicotine) कहते हैं। निकोटीन अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) को उद्दीपित करता है जिसके फलस्वरूप अधिवृक्क ग्रंथि से एड्रिनलीन (Adrenaline) और नॉर एड्रिनलीन (Nor Adrenaline) का स्रावण रक्त परिसंचरण (Blood circulation) किया जाता है।

ये दोनों हार्मोन रक्तचाप (Blood pressure) एवं हृदय के स्पंदन ( Heart beat ) की दर को बढ़ाते हैं। धूम्रपान फुफ्फुस, मूत्राशय और गले के कैंसर, श्वसनी शोध (Bronchitis), वातस्फीति (Emphysema), हृदय रोग, जठर व्रण (Gastric Ulcer) से संबद्ध है। धूम्रपान से रक्त में कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और हीमआबद्ध ( Heambound ) ऑक्सीजन की सांद्रता घट जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।

प्रश्न 10.
B- कोशिकाओं तथा T – कोशिकाओं में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
B- कोशिकाओं तथा T- कोशिकाओं में अंतर (Difference between B-cells and T-cells)

B-कोशिकाएँ (B-cells) T-कोशिकाएँ (T-cells)
1. इन कोशिकाओं का निर्माण प्लाज्मा कोशिकाओं के विभाजन के फलस्वरूप होता है। जबकि इनका लिम्फोलाइट, मारक, सहायक तथा निरोधक कोशिकाओं के विभाजन से होता है।
2. प्लाज्मा कोशिकाओं में प्रतिरक्षा दमन की क्षमता नहीं होती है। निरोधक कोशिकाओं में दमन की क्षमता होती है।
3. प्लाज्मा कोशिकाएँ संक्रमण स्थल पर नहीं जाती हैं। जबकि लिम्फोब्लास्ट संक्रमण स्थल पर पहुँच जाती है।
4. ये कोशिकाएँ तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती हैं। जबकि ये कोशिकाएं माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती हैं।
5. ये कोशिकाएँ प्रमुख रूप से पेयर्ज पेचेज, फीटल यकृत एवं टॉन्सिल में ही सीमित रहती हैं। ये थाइमस ग्रंथि में विभेदित होती हैं।
6. प्लाज्मा कोशिकाएँ केंसर (Cancer) कोशिकाओं से नहीं लड़तीं। जबकि मारक कोशिकाएँ केंसर कोशिकाओं से लड़ती हैं।
7. प्लाज्मा कोशिकाएँ प्रतिरक्षी (Antibody) का स्रावण करती हैं जो रुधिर व लसीका द्वारा संक्रमण स्थल पर पहुँचकर एंटीजन से लड़ती हैं। मारक कोशिका संक्रमण स्थल पर पहुँचकर सूक्ष्म जीवों की कोशिका को भेदकर उन्हें नष्ट करती हैं।

प्रश्न 11.
सामुदायिक स्वास्थ्य किसे कहते हैं? सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किए जाने वाले किन्हीं सात महत्वपूर्ण कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
सामुदायिक स्वास्थ्य सरकार अथवा स्थानीय संगठनों द्वारा लोगों का स्वास्थ्य बनाए रखने की गतिविधियाँ, सामुदायिक स्वास्थ्य कहलाती हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किए जाने वाले सात महत्त्वपूर्ण कार्य निम्न हैं –

  1. स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना ।
  2. खाद्य पदार्थों का मानक बनाए रखना, खाद्य भंडारों, मांस व दुग्ध केन्द्रों का नियमित निरीक्षण करना ।
  3. स्वच्छ व रोगाणुरहित पेयजल उपलब्ध कराना ।
  4. बस्तियों के कचरे का निकास व उचित स्वच्छता का प्रबंधन ।
  5. हानिकारक कीटों के विनाश के लिए कीट रसायनों का छिड़काव करना ।
  6. किसी बीमारी के फैलने का खतरा उत्पन्न होने पर विभिन्न प्रतिरक्षाकरण कार्यक्रमों तथा कई अन्य स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों को चलाना ।
  7. मच्छरों का प्रजनन रोकने के लिए खुली नालियों का ढकाव व रुके हुए पानी की सतह पर कैरोसिन तेल का डालना ।

प्रश्न 12.
टाइफॉइड ज्वर के रोगजनक का नाम बताइए। इस रोग का संचरण एवं लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टाइफॉइड ज्वर ( Typhoid fever) का रोगजनक साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) नामक जीवाणु है। रोग का संचरण यह रोगजनक आमतौर से संदूषित ( Contaminated) भोजन और पानी द्वारा छोटी आंत में प्रवेश कर जाता है और वहाँ से रुधिर द्वारा शरीर के अंगों में पहुँच जाता है। आयुर्विज्ञान में एक चिरप्रतिष्ठित मामला मैरी मैलान (उपनाम टाइफाइड मैरी) का है। वह पेशे से रसोइया थी जो खाना वह बनाती थी, उसके द्वारा वर्षों तक टाइफॉइड वाहक ( Typhoid Carrier) के रूप में टाइफॉइड फैलाती रही।

रोग के लक्षण –

  1. रोगी को लगातार उच्च ज्वर (39° से 40° सेंटी.) आना
  2. कमजोरी आना
  3. आमाशय में पीड़ा
  4. कब्ज
  5. सिर दर्द
  6. भूख न लगना ।
    गंभीर मामलों में आंत्र में छेद और मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 13.
वेस्टर्न ब्लाट परीक्षण से किस रोग का निदान किया जाता है? इस रोग के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम व चार लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वेस्टर्न ब्लाट परीक्षण से एड्स रोग का निदान किया जाता है। इस रोग के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम ह्यूमन इम्यूनो- डेफीशियन्सी वायरस (HIV) है।
इस रोग के चार लक्षण निम्न हैं-

  1. रोगी को लगातार बुखार आना।
  2. लंबे समय तक लगातार खाँसी होना।
  3. शरीर का भार कम होना।
  4. लसीका गाँठों में सूजन आना ।

प्रश्न 14.
सहज प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? इसमें पाये जाने वाले रोधों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सहज प्रतिरक्षा (इनेट इम्यूनिटी) एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है जो जन्म के समय मौजूद होती है। यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं।

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जैसे –
(1) कार्यिकीय रोध (फीजियोलॉजिकल बैरियर) – आमाशय अम्ल, मुँह में लार, आँखों में आँसू, ये सभी रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं।

(2) शारीरिक रोध (फिजिकल बैरियर) – हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है। श्वसन, जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) और जननमूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा आलेप (म्यूकस कोटिंग) भी शरीर में घुसने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है।

(3) कोशिकीय रोध (सेल्युलर बैरियर) – हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केंद्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पी.एम.एन.एल., न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेंद्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊतकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।

(4) साइटोकाइन रोध-विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ इंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्रावण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु संक्रमण से बचाती हैं। लिखिए ।

प्रश्न 15.
एलर्जन से आप क्या समझते हैं? इसके दो उदाहरण ( माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2007)
उत्तर:
एलर्जन-जिन पदार्थों के प्रति एलर्जी होती है, उनको एलर्जन कहते हैं। जैसे- कार्बन कण, पराग कण, धूल कण आदि ।
कभी-कभी एलर्जन पदार्थ अत्यन्त तीव्र, उग्र व घातक प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। ऐसे एलर्जन को तीव्रग्राहिता कहते हैं। उदाहरण- पेनिसिलीन, इन्सुलिन तथा कुछ भोज्य पदार्थ, जैसे-मछली, अण्डे आदि ।

प्रश्न 16.
प्लाज्मोडियम की विभिन्न जातियों के नाम लिखिए। इनमें सबसे घातक जाति कौनसी है और क्यों?
उत्तर:
प्लाज्मोडियम (Plasmodium) की निम्न जातियाँ हैं-
(1) प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (Plasmodium vivax)
(2) प्लाज्मोडियम मेलिरिआई (Plasmodium malariae)
(3) प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) मलेरिया परजीवी अथवा प्लाज्मोडियम की सबसे घातक जाति प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) है। इसके द्वारा उत्पन्न मलेरिया ज्वर प्रत्येक 36 और 46 घंटे बाद आता है। इस प्रकार के मलेरिया से मनुष्य की मृत्यु दर अधिक होती है। इसलिए यह सबसे घातक मलेरिया है। इस मलेरिया से संक्रमित RBC रुधिर कोशिकाओं को अवरुद्ध कर देती है जिससे रक्त प्रवाह रुक जाता है। और रोगी की मृत्यु हो जाती है ।

प्रश्न 17.
प्लाज्मोडियम को परपोषी की आवश्यकता क्यों होती है? उत्तर – प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने हेतु परपोषी की आवश्यकता होती है। प्लाज्मोडियम के दो परपोषी (Host) हैं-

  1. मनुष्य
  2. मादा एनोफिलीज ।

मनुष्य प्राथमिक ( Primary ) एवं मादा एनोफिलीज द्वितीयक परपोषी (Secondary Host) है। यदि दोनों में से एक भी परपोषी नहीं मिलता है तो इसका जीवन समाप्त हो जायेगा । प्लाज्मोडियम एक अन्त: परजीवी (Endoparasite) है जो भोजन के लिए इन परपोषियों पर निर्भर है।

प्रश्न 18.
अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए क्या आवश्यक है? अच्छे स्वास्थ्य के कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए निम्न आवश्यक हैं-

  1. संतुलित आहार
  2. व्यक्तिगत स्वच्छता
  3. नियमित व्यायाम
  4. संक्रामक रोगों के प्रति टीकाकरण
  5. अपशिष्टों का समुचित निपटान
  6. नियमित रूप से योग का अभ्यास
  7. रोग एवं शरीर के विभिन्न प्रकार्यों पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता
  8. रोगवाहकों का नियंत्रण
  9. खाने-पीने के संसाधनों का स्वच्छ रख-रखाव अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक ।

अच्छे स्वास्थ्य के लाभ-

  1. व्यक्ति स्वस्थ होते हैं तो वे काम में अधिक सक्षम होते हैं।
  2. इससे उत्पादकता बढ़ती है।
  3. आर्थिक संपन्नता आती है।
  4. आयुकाल बढ़ता है।
  5. शिशु तथा मातृ मृत्युदर में कमी होती है।

प्रश्न 19.
आदर्श टीके की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आदर्श टीके की विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. टीका प्रयोग करने में नितांत सुरक्षित होना चाहिए।
  2. आदर्श रूप में एक बार लगाने पर ही प्रभावी होना चाहिए।
  3. टीका प्रतिरक्षित प्राणी में जीवनपर्यन्त प्रतिरोधकता क्षमता प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
  4. टीका सुगमतापूर्वक उपलब्ध हो व उत्पादन लागत अधिक न हो ।

प्रश्न 20.
कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा व तरल माध्यित प्रतिरक्षा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा व तरल माध्यित प्रतिरक्षा में अंतर (Difference between Cell Mediate Immunity \& Humoral Mediate Immunity)

कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा (Cell Mediate Immunity) तरल माध्यित प्रतिरक्षा (Humoral Mediate Immunity)
1. टी-कोशिकायें माध्यित प्रतिरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं। तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा के लिए B – लिम्फोसाइट कोशिकायें जिम्मेदार हैं।
2. ये कोशिकायें ऐसे पदार्थों का स्रावण करती हैं, जो कि लक्ष्य कोशिकाओं की कोशिका कला को घोल कर इसमें छिद्र उत्पन्न कर नष्ट कर देते हैं। प्रविष्ट होने वाले विभिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न B -लिम्फोसाइट्स होती हैं जो नष्ट करने का कार्य करती हैं।
3. सक्रिय लसिका कोशिकाओं से लिम्फोकाइन्स नियमनकारी प्रोटीन्स मुक्त किये जाते हैं। किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमण जीव या विष को नष्ट करने के लिए विशिष्ट एन्टीबॉडी का निर्माण किया जाता है।
4. यह नियमनकारी प्रोटीन्स अथवा लिम्फोकाइन्स वृहत् भक्षकाणुओं की कोशिका भक्षण किया, इनकी संख्या एवं समूहन क्षमता में वृद्धि करती है। जिसके फलस्वरूप संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। यह एन्टीबॉडी रुधि लसिका तथा ऊतक द्रव्य में संचरित होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों को नष्ट करती है।
5. तपेदिक, कैंसर, कोढ़ आदि रोगों से यह सुरक्षा करती है। यह टिटनेस, जुकाम, चेचक, खसरा, हैजा आदि रोगों से रक्षा करती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 21.

  • संलग्न दिये गये आरेख में क्या चीज दर्शायी गई है?
  • ‘a’ तथा ‘b’ नामांकित भागों के नाम लिखिए।
  • इस अणु को बनाने वाले कोशिका प्रारूप का नाम लिखिए ।

उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 1

  • एण्टीबॉडी (Antibody) अणु की संरचना ।
  • ‘a’ प्रतिजन बंधक स्थल (Antigen Binding site ) तथा b – भारी श्रृंखला का परिवर्ती क्षेत्र ।
  • यह B – लिम्फोलाइट (Lymphocyte) से बनता है।

प्रश्न 22.
(i) मलेरिया परजीवी के उस स्वरूप का नाम लिखिए जिसमें वह क्रमश:
(a) मानव शरीर में तथा
(b) मादा ऐनाफिलीज के शरीर में प्रवेश करता है।

(ii) उन परपोषियों का नाम लिखिए जिनके भीतर मलेरिया परजीवी का क्रमशः लैंगिक एवं अलैंगिक जनन होता है।

(iii) मानव में मलेरिया के रोग लक्षण प्रकट करने वाले उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम लिखिए। ये रोग लक्षण आवर्ती प्रकार के क्यों हुआ करते हैं?
उत्तर:
(i) (a) मानव शरीर में स्पोरोजोइट (Sporozoite)
(b) मादा ऐनाफिलीज के शरीर में गेमीटोसाइट (Gametocyte)

(ii) मनुष्य – अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) मादा एनोफिलीज – लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

(iii) मानव में मलेरिया के रोग लक्षण प्रकट करने वाले उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम हीमोज्वाइन (Haemozoin) है। इस रोग के लक्षण आवर्ती होते हैं। अर्थात् स्पोरोजोइट RBC पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देता है। इसे रुधिर कोशिका चक्र (Erythocytic cycle) कहते हैं। एक चक्र के पूरा होने में जितना समय लगता है उसके बाद उस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं।

प्रश्न 23.
सुद ट्यूमर तथा दुर्दम ट्यूमर में अंतर बताइए ।
उत्तर:
सुद ट्यूमर तथा दुर्दम ट्यूमर में अंतर

सुदम ट्यूमर (Benign Tumour) दुर्दम ट्यूमर (Malignant Tumour)
1. ये हानिकारक नहीं होते हैं ये खतरनाक व हानिकारक होते हैं।
2. ये स्थानीय होते हैं भ्रमणशील होते हैं।
3. इन्हें नॉन मेटास्टेसिस कहते हैं। इन्हें मेटास्टेटिस कहते हैं।
4. इनसे कैंसर रोग नहीं होता है इन ट्यूमर से कैंसर रोग होता है।
5. इनकी वृद्धि धीरे-धीरे होती है। इनकी वृद्धि तेजी से होती है।

प्रश्न 24.
एन्टीबॉडी किसे कहते हैं? एन्टीबॉडी (प्रतिरक्षी ) अणु की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एन्टीबॉडी (Antibody ) – शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इस एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ प्रतिरक्षी अथवा एन्टीबॉडी कहलाते हैं । एन्टीबॉडी की संरचना (Structure of Antibody) – यह जटिल ग्लाइको प्रोटीन से मिलकर बना अणु होता है।

जिसमें चार पोलीपेप्टाइड श्रृंखलायें दो भारी (440 अमीनो अम्ल) तथा दो हल्की श्रृंखला (220 अमीनो अम्ल) आपस में डी – सल्फाइड बंध द्वारा जुड़कर Y आकृति बनाती हैं, देखिए नीचे चित्र में एन्टीबॉडी को H2L2 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह अणु शीर्ष पर उपस्थित दो बिंदुओं पर एंटीजन (बड़ा और जटिल बाह्य अणु, मुख्य रूप से प्रोटीन जो विशिष्ट प्रतिरक्षा को सक्रिय करता है)

से ताला कुंजी (Lock & Key) के सिद्धांत के अनुसार. जुड़कर एंटीजन एंटीबॉडी कॉम्पलेक्स बनाता है। एंटीबॉडी का पुच्छीय भाग (Tail portion) भारी श्रृंखला से बना होता है, यह स्थिर खण्ड कहलाता है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी उत्पन्न किये जाते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं- IgA, IgM, IgE एवं IgG।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 2

प्रश्न 25.
निम्नलिखित औषधियाँ किन पादपों से प्राप्त की जाती हैं? केवल नाम लिखिए।
(i) एल एस डी
(ii) कैफीन
(iii) अफीम
(iv) कोकेन
(v) चरस ।
उत्तर:

औषधि का नाम पौधे जिससे औषधि प्राप्त की जाती है
1. एल एस डी क्लैविसेप्स परप्यूरिया
2. कैफीन कोफिआ अंरैबिका
3. अफीम पापी के अपरिपक्व कैम्पसूल
4. कोकेन कोफिआ अरैबिका
5. चरस कैनाविनस सैटाइवा

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प्रश्न 26.
कैंसर को परिभाषित कीजिए। इसके प्रमुख कोई पाँच लक्षण लिखिए ।
उत्तर:
कैंसर की परिभाषा – कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
कैंसर के प्रमुख लक्षण-

  1. किसी ठोस कारण के बिना वजन में कमी होना ।
  2. कोई तिल या मस्सा जो बढ़ता जा रहा हो व उसमें खुजली या रक्तस्राव होता हो।
  3. लगातार पुनरावृत्त होने वाला तीव्र सिरदर्द ।
  4. कोई छाला, घाव या चकत्ता जो तीन सप्ताह में भी ठीक नहीं हो पा रहा हो।
  5. लगातार गले में खराश व बलगम में खून आना।
  6. स्तनों में गांठें व उनमें विरूपता ।
  7. मल-मूत्र विसर्जन के स्वभाव में परिवर्तन आना।
  8. योनि द्वारा रक्तस्राव व मासिक चक्र के बीच-बीच में रक्तस्राव होना ।
  9. वृषणों की आकृति एवं आकार में परिवर्तन होना ।

प्रश्न 27.
औषधि निर्भरता को समझाइये |
उत्तर:
औषधि निर्भरता (Drug Dependence ) – कुछ औषधियों के लंबे समय तक गैर-चिकित्सकीय प्रयोग के कारण व्यक्ति धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है कि उस औषधि के प्रयोग को बंद करने से उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएँ सामान्य रूप से संचालित नहीं हो पाती हैं तथा वह व्यक्ति उस विशेष औषधि का सेवन करने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति को औषधि निर्भरता कहते हैं । औषधि निर्भरता शारीरिक या मानसिक या दोनों प्रकार की हो सकती है, किंतु मानसिक औषधि निर्भरता अधिक चिंतनीय होती है व इसका समाधान मुश्किल होता है।

प्रश्न 28.
उपार्जित प्रतिरोधकता के विशिष्ट लक्षण लिखिये ।
उत्तर:
उपार्जित प्रतिरोधकता के विशिष्ट लक्षण निम्न हैं-
(1) प्रतिजनी विशिष्टता (Antigenic Specificity) – यह प्रत्येक रोगकारक जीवाणु, विषाणु तथा रोग के लिए विशिष्ट होती है। तथा अलग-अलग रोगकारक पर अलग-अलग प्रकार से प्रक्रिया कर उन्हें विशिष्ट रूप से नष्ट करती है।

(2) विविधता (Diversity) – इनमें अनेक प्रकार के रोगकारकों को पहचानने की आश्चर्यजनक विविधता पाई जाती है।

(3) प्रतिरक्षात्मक स्मृति ( Immunological Memory) – प्रतिरक्षित तंत्र द्वारा एक बार किसी प्रतिजन का अभिज्ञान होने व उसके प्रति प्रतिरक्षी अनुक्रिया दर्शाने के बाद जीव में उस विशिष्ट प्रतिजन के लिए स्मृति स्थापित हो जाती है। यदि इस विशिष्ट प्रतिजन का भविष्य में पुनः संक्रमण होता है तो प्रतिरक्षात्मक स्मृति के कारण प्रतिरक्षित तंत्र अनुक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया की तुलना में अधिक तीव्र होती है।

(4) दीर्घकालिकता (Longevity) – किसी विशेष रोग की विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ उत्पादित होने के बाद व्यक्ति विशेष को उस खास रोग से दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करती हैं। क्योंकि ये प्रतिरक्षियाँ लंबी अवधि तक शरीर में बनी रहती हैं।

(5) अपने एवं पराये (Self & Non-self)- यह सिद्धांत फ्रेंक मैक़फारलेन बर्नेट ने प्रतिपादित किया। उपार्जित असंक्राम्यता प्रणाली विजातीय या पराये अणुओं की पहचान कर उनके विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दर्शाने में समर्थ होती है। दूसरी तरफ स्वयं के शरीर में उपस्थित अणुओं के प्रति अनुक्रिया नहीं प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 29.
सक्रिय एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा को समझाइए।
उत्तर:
जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करना है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा ( एक्टिव इम्यूनिटी) कहलाती है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। प्रतिरक्षीकरण (इम्यूनाइजेशन) के दौरान जानबूझकर रोगाणुओं का टीका देना अथवा प्राकृतिक संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेषित करता है।

जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्यूनिटी) कहलाती है। दुग्धस्रावण ( लैक्टेशन) के प्रारंभिक दिनों के दौरान माँ द्वारा स्रावित पीले से तरल पीयूष (कोलोस्ट्रम) में प्रतिरक्षियों (IgA) की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।

प्रश्न 30.
T सहायक कोशिकाओं व T-मारक कोशिकाओं. में अंतर समझाइए |
उत्तर:
T- सहायक कोशिकाओं व T-मारक कोशिकाओं में अंतर

T-सहायक कोशिकाएं T-मारक कोशिकाएं
1. ये कोशिकाएं इन्टरल्यूकिन्स पदार्थ का स्रावण कर टी-मारक कोशिकाओं तथा सुग्राहित टी-कोशिकाओं की क्रियाशीलता बनाती है। जबकि ये कोशिकाएं सूक्ष्म जीवों के संपर्क में आने के बाद एक साइटोटाक्सिक पदार्थ का स्रावण सीधे ही सूक्ष्म जीव के शरीर से कर इसे नष्ट करती हैं।
2. ये वृहत् भक्षकाणुओं को कोशिकाभक्षी क्रिया हेतु उद्दीपित करती हैं। एड्स विषाणु इन कोशिकाओं को ही निष्क्रिय या नष्ट करके प्रतिरक्षा प्रणाली को पंगु बना देते हैं। ये मारक कोशिकाएं विषाणुओं से संक्रमित ऊतक कोशिकाओं का भी भक्षण करती हैं।

प्रश्न 31.
स्वाभाविक प्रतिरक्षा के अंतर्गत किस प्रकार से सुरक्षात्मक प्रक्रियाओं के द्वारा स्वतः वातावरणीय कीटाणुओं से सुरक्षा की जाती है?
अथवा
स्वाभाविक प्रतिरक्षा में बाह्य रोगकारी कारकों के प्रवेश को किस प्रकार रोकते हैं? समझाइये।
उत्तर:
इससे निम्नलिखित सुरक्षात्मक प्रक्रिया द्वारा स्वतः वातावरणीय कीटाणुओं से सुरक्षा होती रहती है-

  1. त्वचा सतत रूप से विभिन्न कीटाणुओं के प्रवेश को रोकती है ।
  2. रक्त में WBC व एन्टीबॉडीज विभिन्न विषैले पदार्थों को नष्ट करते रहते हैं।
  3. ऊतकों में मैक्रोफेज कोशिकायें जीवाणुओं का भक्षण करती रहती हैं।
  4. जठर रस का HCL तथा इसके पाचक रस कीटाणुओं को नष्ट करते रहते हैं।

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प्रश्न 32.
मनुष्य के शरीर पर मलेरिया से होने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य के शरीर पर मलेरिया का प्रभाव –

  1. इरिथ्रोसाइटिक चक्रों के परिणामस्वरूप RBC की संख्या घट जाती है। इससे रक्तक्षीणता (anaemia) की उत्पत्ति होती है।
  2. प्रीइरिथ्रोसाइटिक व एक्सोइरिथ्रोसाइटोसिस के परिणामस्वरूप यकृत कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
  3. हीमोग्लोबिन के नष्ट होने से बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है व पीलिया (Jaundice) हो जाता है।
  4. प्लीहा का आकार बड़ा हो जाता है व इससे लाइसोलेसिथन का स्रावण होता है जिससे RBC नष्ट होती है। कभी- कभी प्लीहा फट जाता है।
  5. परजीवी द्वारा हीमोलाइसिन का स्रावण होता है जो हीमोलाइसिस के लिये उत्तरदायी है।
  6. प्लीहा का बढ़ना स्पलीनोमिगेली व यकृत का बढ़ना हिपेटोमिगेली (Hepatomegaly) कहलाती है।
  7. थ्रोम्बोसिस (Thrombosis) हो जाता है। यह प्रभाव प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम में देखने को मिलता है।
  8. प्लाज्मोडियम की उपस्थिति में अनिद्रा (insomnia) उत्पन्न होती है।
  9. शरीर में लिम्फोसाइट्स की संख्या भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 33.
अमिबिएसिस रोग के विशिष्ट लक्षण क्या-क्या हैं? सूची बनाइए। इसके उत्पन्नकर्ता जीव का नाम लिखिए । उत्तर- अमिबिएसिस रोग के लक्षण-

  1. कोष्ठबद्धता (कब्ज)
  2. उदरीय पीड़ा
  3. ऐंठन
  4. अत्यधिक श्लेष्मल और रक्त के थक्के वाला मल । इस रोग के उत्पन्नकर्ता जीव का नाम एन्ट अमीबा हिस्टोलाइटिका (Ent Amoeba Histolytica) है।

प्रश्न 34.
तम्बाकू का प्रयोग किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। समझाइए ।
उत्तर;
तम्बाकू का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, क्योंकि-

  1. तम्बाकू में उपस्थित निकोटिन रक्त चाप (Blood Pressure) एवं हृदय के स्पंदन (Heartbeat ) की दर को बढ़ाता है।
  2. तम्बाकू को चबाने से मुख का कैंसर हो जाता है।
  3. धूम्रपान से रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है अर्थात् हाइपोक्सिया (Hypoxia) हो जाता है।
  4. धूम्रपान फेफड़ों की जैव क्षमता (Vital Capacity) को कम करता है।
  5. खाँसी एवं ब्रोंकाइटिस हो जाता है।
  6. आमाशय एवं डयूडोनम में अल्सर हो जाते हैं।

प्रश्न 35.
पोषक तथा स्थान बताइए जहाँ मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र में निम्नलिखित अवस्थाएँ होती हैं-
(a) गेमिटोसाइट का निर्माण
(b) गेमिटोसाइट का संलयन ।
उत्तर:
(a) गेमिटोसाइट ( Gametocytes) का निर्माण मनुष्य की RBC में होता है।
(b) मादा एनाफिलिज मच्छर के आमाशय में संलयन होता है।

प्रश्न 36.
(i) फाइलेरिएसिस पैदा करने वाले फाइलेरिआई कृमियों की दो स्पंशीज के वैज्ञानिक नाम लिखिए।
(ii) संक्रमित व्यक्तियों के शरीर को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
(iii) यह रोग किस प्रकार फैलता है?
उत्तर:
(i) (a) वुचेरिया ब्रैकाँफ्टी
(b) वुचेरिया मैलेगी।

(ii) इस कृमि के अधिक संक्रमण से मनुष्य की लसिका ग्रन्थियाँ एवं वाहिनियों में जीवित एवं मृत कृमि एकत्रित होने लग जाते हैं और अन्त में लसिका वाहिनियाँ तथा ग्रन्थियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं। जिसके कारण हाथ-पैर तथा जनन अंगों में सूजन आ जाती है।

(iii) क्यूलेक्स या ऐडीज मच्छर वाहक का कार्य करते हैं।

प्रश्न 37.
नीचे दी गई तालिका में a, b, c तथा d की पूर्ति कीजिए-
उत्तर:

ड्रूग का नाम पादप स्रोत प्रभावित अंग का नाम
1. a पॉपी पौधा b
2. मैरिजुआना c d

(a) मार्फीन
(b) केन्द्रीय तन्त्रिका तंत्र
(c) कैनाबिस सटाइवा
(d) कॉर्डियोवेस्कुलर तन्त्र ।

प्रश्न 38.
तम्बाकू का प्रयोग किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है? समझाइए ।
उत्तर:
इनके सेवन करने से मनुष्य पर घातक दुष्प्रभाव होता है क्योंकि ये पदार्थ शारीरिक उपापचयी क्रियाओं, अंगों, येशियों व मानसिक क्रियाओं को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। शीघ्र ही सेवनकर्ता व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है। खेद की बात है कि आज की युवा पीढ़ी में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है।

आज युवा वर्ग विज्ञापन संस्कृति से प्रभावित होकर मुख्य रूप से तंबाक युक्त पदार्थ जैसे बीड़ी, सिगरेट, सिगार, चिलम, खाने वाला तंबाकू, पान मसाले के विभिन्न रूप जो पुड़िया में मिलते हैं। इनके अतिरिक्त शराब, अफीम, हिरोइन, मार्फिन, स्मैक, गांजा, भांग, हशीश, चरस, मैरिजुआना आदि कई नशीले पदार्थों (डूग्स) का उपयोग करने लगा है। ये नशीले पदार्थ देश की युवा पीढ़ी को नशे का गुलाम व अकर्मण्य बना रहे हैं।

आम तौर पर जिन ड्रगों का कुप्रयोग किया जा रहा है वे निम्न हैं –
(1) ओपिऑइड्स (Opioids)
(2) कैनेबिनाइड्स (Canabinoids)
(3) कोका एल्कैलाइड्स (Coca-alkaloids)

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(1) ओपिऑइड्स (Opioids)-ओपिऑइड्स ऐसे ड्रग हैं जो हमारे केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) और जठरांत्र पथ (Gastrointestinal tract) में उपस्थित विशिष्ट ओपिऑइ इ्स ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। सामान्यतः स्मैक (Smack) के नाम से मशहृर  हिरोइन (Heroin),

रासायनिक रूप से ड T इ एसिटि ल मार्फीन (Diacetyl morphin) है जो एक सफेद, गंधहीन, तीखा रवेदार यौगिक है। यह मार्फीन के एसीटिलीकरण से देखिए सामने चित्र में मॉर्फीन की रासायनिक संरचना है। जो पोस्त के पौधे पैपेवर सोम्नीफेरम (Papaver Somniferum) के लेटेक्स के निष्कर्षण द्वारा प्राप्त किया जाता है देखिए आगे चित्र में।
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हिरोइन (Heroin) सबसे ज्यादा खतरनाक ओपिएट है और चिकित्सीय उपयोग के लिए प्रतिबंध लगा हुआ है। यह बहुत ज्यादा व्यसनी बना देने वाला ड्रग है। हिरोइन को गैर कानूनी तरीके से बनाया और बेचा जाता है क्योंकि इसमें पैसे का बहुत ज्यादा लाभ होता है। महंगी होने के कारण इसमें अव्सर हानिकारक पदार्थों की मिलावट कर दी जाती है। जिससे दूसर किस्म की बीमारियां हो जाती हैं।

ड्रग्स लेने वाले अपनी लूइयों के लिए लापरवाह होते हैं जिसके कारण उन्हें रक्त के विषावतन, सीरम हिपिटाइटिस तथा एड्स का खतरा होता है। हिरोइन का प्रयोग मुख द्वारा, सूंघकर या इंजेक्शन के द्वारा किया जाता है। यह आलस्य एवं निद्रा लाने वाला ड्रिग है। यह मनुष्य व नशेड़ी में अवसाद उत्पन्न करती है। इसके साथ ही शारीरिक क्रियाओं व प्रकार्यों को धीमा कर देती है जिससे स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।

(2) कैनेबिनॉइड (Canabinoids)-कैनेबिनॉइ ड्स रसायनों का समूह है जो मुख्य रूप से मस्तिष्क में मौजूद कैनेबिनॉइड्स ग्राहि यों से पारस्परिक क्रिया करते हैं। देखिए चित्र कैनेबिनॉइड्स अणु की संरचना। पाक् ति क कै नेंबनाइ ड कैनेबिस सैटाइला (Canabis sativa) पौधे के पुध्यक्रम (Inflorescences) से प्राप्त किया जाता है।

भांग के फूलों के शीर्ष, पत्तियाँ और राल (Resin) के विभिन्न संयोजन से मैरिजुआना (Marijuana), हशीश (Hashish), चरस (Charas) और गाँजा (Ganja) बनाने के काम आते हैं। देखिए सामने चित्र में कैनेबिस सैटाइवा (भांग) की पत्तियाँ। आमतौर पर अंतःश्वसन और मुँह द्वारा खाए जाने वाले मादक द्रव्य (Drugs) शरीर के हृदय वाहिका तंत्र (Cardio vascular system) को प्रभावित करते हैं।
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(3) कोका एल्कैलाइड्स (Coca-alkaloids)-कोका एल्कैलाइड्स या कोकेन कोका पादप ऐरिथ्रोज़ाइलम कोका (Erythroxylum Coca) से प्राप्त किया जाता है। यह मूलरूप से दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। यह तंत्रिकाप्रेषक (Neurotransmeter) डोपेमीन के परिवहन में बाधा डालता है। कोकेन जिसे सामान्यतः कोक (Coke) या क्रेक (Crack) कहते हैं, यह एक सफेद रंग का क्रिस्टलीय कड़वा पाउडर होता है। यह एक वाहिनी संकुचकन कारक है। इसके प्रयोग से स्थायी चेतना शून्यता के लिए प्रयोग किया जाता है।
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कोकेन का प्रयोग चबाकर, खाकर पेय पदार्थ में डालकर किया जाता है। इसको इंजेक्शन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके पाउडर को जोर से श्वास लेकर अंदर खींचा जाता है। जिसके फलस्वरूप केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) पर जोरदार उद्दीपक असर पड़ता है, जिससे सुख की अनुभूति होती है।

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कोकेन की अत्यधिक मात्रा से विभ्रम (Hallucination) हो जाता है। अन्य प्रसिद्ध पादप जिनमें विभ्रम उत्पन्न करने का गुण है, जैसे एट्रोपा बेलेडोना और धतूरा हैं। देखिए ऊपर चित्र में। वर्तमान में विभिन्न खेलों के कुछ खिलाड़ी भी इन कैनेबिनाइडों का दुरुपयोग कर रहे हैं ताकि स्पर्धा में विजेता को हासिल कर सकें।

लाइसर्जिक अम्ल डाइएथिल एमाइड्स (एल एस डी)-यह एक प्रबल हैल्यूसिनोजन है। इसे क्लेविसेप्स परफ्यूरिया (Claviceps perfuria) नामक कवक के फलनकाय (Fruiting body) से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग व्यक्ति धूम्र के रूप में करते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति भ्रमित हो जाता है एवं इसमें मानसिक रूप से उत्तेजना आ जाती है अर्थात् मानसिकता गड़बड़ा जाती है। वैसे एल एस डी का प्रयोग गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित करने एवं हेमरेज को रोकने के लिए इसे औषधि के रूप में किया जाता है।

यह सबसे ज्यादा लत पड़ने वाली ड्रूग है। अधिक सेवन से निम्न प्रभाव हो सकते हैं –

  1. मचलियाँ आना
  2. उल्टियाँ
  3. दस्त
  4. क्रोमोसोमो में विंपथन
  5. गर्भ में असामान्यताएँ
  6. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को गंभीर क्षति
  7. अचेतनता और यहां तक कि मृत्यु तक हो सकती है।

एम्फीटेमिन्स (Amphetamins)-इसे अनिद्रा औषधि कहते हैं। इसके सेवन से नींद नहीं आती है। यह एक संश्लेषित औरधि है जिसे सामान्यतया पेप पिल्स (Pep Pills) भी कहते हैं। इस औरधि का दुरुपयोग रात्रिकालीन कर्मचारी, ट्रक ड्राइवर, छात्र आदि जागने के लिए करते हैं। लेकिन इसके प्रभाव से निर्णय शक्ति एवं आंखें कमजोर हो जाती हैं।

एम्फीटेमिन्स का उपयोग खाँसी व अस्थमा के लिए इन्हेलेन्ट स्ट्रे के बनाने में औरधि के रूप में काम में लिया जाता है। बर्बिट्यूरेट (Barbiturates), बें जोडायजे पीन (Benzodiazepin) आदि औरधियों का उपयोग ऐसे लोग जो नशा छोड़ने में असमर्थ होते हैं तथा व्यक्ति अवसाद् (डिप्रेशन) एवं अनिद्रा (इनसोम्नीया) एवं मानसिक रोगों से ग्रसित हो उनके लिए फायदेमंद है। लेकिन इनका भी कुप्रयोग नशे के लिए किया जाने लगा है।

विभमी गुणों वाले अनेक पौधे, फल, बीजों का विश्व भर में लोक औषधि, धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में सैकड़ों वर्षों से उपयोग हो रहा है। जब ये औषधियाँ चिक्रित्सा के बजाय दूसरे उद्देश्य से ली जाती हैं या इतनी मात्रा में ली जाती हैं कि व्यक्ति की शारीरिक कार्यिकी अथवा मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों को असंतुलित कर देती हैं तो यह ड्रगों का कुप्रयोग बन जाता है।

तम्बाकू (Tobacco)-प्रयोग में लिये जाने वाला तम्बाकू निकोटिआना टोबेकम (Nicotiana tobacum) एवं निकोटिआना रस्तिका (Nicotiana Rustica) नामक पौधे की सूखी पत्तियाँ हैं। जिनका प्रयोग मनुष्य चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से करता आ रहा है। तंबाकू (धूम्रपान) पीया जाता है, चबाया जाता है या सूंघा जाता है। तंबाकू में बहुत से रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनमें एक एल्केलाइड भी शामिल है, जिसे निकोटिन (Nicotine) कहते हैं।

निकोटिन के प्रभाव (Effect of Nicotine)-
(i) निकोटीन अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) को उद्दीपित करता है जिसके फलस्वरूप अधिवृक्क ग्रंथि से एड्रिनलीन (Adrernaline) और नॉरएड्रिनलीन (Nor-Adrenaline) का स्रावण रक्त परिसंचरण (Blood circulation) में किया जाता है। ये दोनों हार्मोन रक्तचाप (Blood pressure) एवं हृदय के स्पंदन (Heart beat) की दर को बढ़ाते हैं।

  • पेशियों में शिथिलन आ जाता है।
  • तंत्रिका आवेगों का प्रवाह तीव्र हो जाता है।
  • रुधिर वाहिकाओं के संकीर्णन को बढ़ाता है।

धूम्रपान और रोग (Tobaco Smoking and Disease)तम्बाकू के निरंतर सेवन से निम्नांकित रोग होने की संभावना रहती है –

  • फुफ्फुस, मूत्राशय और गले का कैंसर
  • वातस्फीति (Emphysema)
  • हदय रोग
  • आमाशय एवं ड्यूडोनम में अल्सर
  • खाँसी एवं ब्रोंकाइटिस
  • धूम्रपान से रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और हीमआबद्ध (Heambound) ऑक्सीजन की सांद्रता घट जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है अर्थात् हाइपोक्सिया (Hypoxia) हो जाता है।
  • धूम्रपान फेफड़ों की जैव क्षमता (Vital Capacity) को कम करता है।
  • गर्भवती स्त्रियों द्वारा धूम्रपान करने से गर्भ में स्थित शिशु के विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

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इसके उपयोग को रोकने हेतु 31 मई को विश्व में तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में 1 दिसंबर 2004 को लागू किया गया कि शिक्षण संस्थानों के 100 मीटर के दायरे में कोई भी तंबाकू का विक्रय नहीं होना चाहिये। इसी प्रकार सिगरेट एवं तम्बाकू के प्रत्येक पैकिट पर भी वैधानिक चेतावनी अनिवार्य रूप से अंकित होती है। वर्तमान में हमारे देश में तम्बाकू एवं तम्बाकू से बनी सभी वस्तुओं के सार्वजनिक विजापन पर प्रतिबंध है।

प्रश्न 39.
(i) मानवों में टाइफॉयड (मियादी बुखार) के पैदा करने वाले कर्ता का नाम लिखिए।
(ii) इस रोग की पुष्टि करने वाले परीक्षण का नाम लिखिए।
(iii) इसका रोगजनक मानव शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता है? इसके नैदानिक रोग लक्षण लिखिए और गम्भीर मामलों में शरीर का जो अंग इससे प्रभावित होता है, उसका नाम लिखिए।
उत्तर:

  • साल्मोनेला टाइफी ( Salmonella Typhi)
  • विडाल परीक्षण (Widal Test)
  • संदूषित (Contaminated) भोजन और पानी द्वारा रोगजनक छोटी आन्त्र में प्रवेश करते हैं।

रोग के लक्षण

  • रोगी को लगातार उच्च ज्वर आना
  • कमजोरी आना
  • आमाशय में पीड़ा
  • कब्ज
  • सिरदर्द
  • भूख न लगना
  • गम्भीर अवस्था में आंत्र में छेद। प्रभावित अंग-आंत्र की दीवार।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए-
(1) कोकेन
(2) दाद
(3) एस्केरिएसिस
(4) तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया।
उत्तर:
(1) कोका एल्केलाइड या कोकेन कोका पादप ऐरिथ्रोजाइलम कोका (Erythroxylum coca) से प्राप्त किया जाता । यह मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। यह तंत्रिकाप्रेषक Neurotransmitter) डोपेमीन के परिवहन में बाधा डालता है। कोकेन जिसे सामान्यतः कोक (Coke) या क्रैक (Crack) कहते हैं। इसे जोर से श्वास द्वारा खींचा जाता है।

इसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) पर जोरदार उद्दीपक असर पड़ता है जिससे सुख की अनुभूति (Euphoria) एवं ऊर्जा में वृद्धि की अनुभूति होती है। कोकेन की अत्यधिक मात्रा से विभ्रम (Hallucinations) हो जाता है। अन्य प्रसिद्ध पादप जिनमें विभ्रम उत्पन्न करने का गुण है। जैसे एट्रोपा बेलेडोना एवं धतूरा। देखिए सामने चित्र में। रोग
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(2) दाद (Ringworm) – यह माइक्रोस्पोरम (Microsporum), ट्राइको फाइटॉन (Trichophyton) और एपिडर्मोफाइटॉन (Epidermophyton) आदि वंश के कवक के द्वारा होता है। यह एक मनुष्य में सामान्य संक्रामक रोग हैं। शरीर के विभिन्न भागों जैसे त्वचा, नाखून और शिरोवल्क (Scalp) पर सूखी, शल्की विक्षतियां (Scaly lesions ) इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

इन विक्षतियों में तेज खुजली होती है। उष्मा और नमी इन कवकों को त्वचा के वलनों, जैसे ग्रोइन अथवा पादंगुलियों के बीच पनपने में मदद करती है। दाद आमतौर पर मिट्टी से या संक्रमित व्यक्तियों के कपड़े, तौलिए या कंघे तक का प्रयोग करने से हो जाता है।

(3) एस्केरिएसिस (Ascariasis) – यह रोग एस्केरिस नामक गोलकृमि (roundworms) के द्वारा होता है। यह कृमि मनुष्य की आंत्र में पाया जाने वाला परजीवी है। आंतरिक रक्तस्राव, पेशीय पीड़ा (muscular pain), ज्वर, अरक्तता ( anemia) एवं आंत्र का अवरोध होना इस रोग के लक्षण हैं। इस परजीवी (ऐस्केरिस) के अंडे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकलते हैं और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण जल, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है।
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(4) तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया (Humoral Immune Response) – इस प्रकार की प्रतिरक्षा में शरीर में प्रवेश होने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं तथा विषैले पदार्थों के प्रभाव को नष्ट करने हेतु अलग-अलग प्रकार की बी लसीका कोशिका निर्धारित होती है। किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमणकारी जीव या विष पदार्थ को नष्ट करने के लिए विशेष प्रकार की लसिकाणु विशिष्ट ग्लोब्यूलिन प्रोटीन उत्पन्न करती है।

यह प्रोटीन रुधिर, लसीका तथा ऊतक द्रव्य में से होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों का नाश करती है। ऐसी प्रोटीन्स प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स प्रकृति की होती है व प्रतिरक्षी या प्रतिपिंड कहलाती है। चूंकि इन प्रतिपिंडों एवं प्रतिजनों के मध्य विशिष्ट अंतर्क्रिया सामान्यतः रक्त या लसीका जैसे तरल माध्यम में होती है इसलिए इसे तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा अथवा तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार की होती है ? सहज प्रतिरक्षा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारे शरीर में प्रतिदिन वातावरण में उपस्थित कई प्रकार के रोगाणुओं जैसे जीवाणुओं, विषाणुओं, परजीवी जन्तुओं तथा कवकों इत्यादि का आक्रमण होता रहता है। इसके अलावा कई विषैले पदार्थ भी वातावरण से शरीर में पहुँच जाते हैं। शरीर के ही रोगग्रस्त ऊतकों तथा आक्रमणकारी जीवों द्वारा विषैले पदार्थ मुक्त होते रहते हैं। शरीर में प्रविष्ट होने वाले ऐसे रोगकारक विघैले पदार्थ प्रतिजन (Antigen) कहलाते हैं।

जन्तु शरीर में विभिन्न प्रतिजनी पदार्थों के निरन्तर प्रवेश करने के बावजूद भी सामान्यतः शरीर रोगग्रस्त नहीं होता है। ऐसा जन्तुओं में उपस्थित एक विशेष क्षमता के कारण होता है जो रोगकारी प्रतिजन पदार्थों को सीधे अथवा विशेष प्रतिरक्षी पदार्थों (Antibodies) के द्वारा नष्ट कर शरीर को सुरक्षित रखती है। जन्तुओं की क्षमता को प्रतिरोधक क्षमता या असंक्राम्यता अथवा प्रतिरक्षा (Immunity) कहते हैं।

वे समस्त संरचनाएँ जो रोगप्रतिरोधक क्षमता से संबंधित होती हैं प्रतिरक्षित तन्त्र (Immune System) का निर्माण करती हैं। प्रतिरक्षित तन्त्र के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (Immunology) कहा जाता है। इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण एमिल वॉन बेरिंग (Emil Von Behring) को पतिरक्षा विज्ञान का जनक (Father of Immunology) कहा जाता है।

प्रतिरक्षा प्रमुखतः दो प्रकार की होती है –

  • सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity)
  • उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)

सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity):
इसे प्राकृतिक एवं स्वाभाविक प्रतिरक्षा के नाम से भी जाना जाता है। यह शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो कि जन्मजात (Inborn) उपस्थित होती है। इसमें वे सभी अवरोध शामिल हैं जो बाह्य रोगकारी कारकों के प्रवेश को रोकते हैं। यदि किसी प्रकार से रोगकारक शरीर में प्रविष्ट होने में सफल भी हो जाते हैं तो सहज प्रतिरक्षा के घटक जैसे वृहत् भक्षाणु उन्हें समाप्त कर देते हैं। अतः यह जीवों की सुरक्षा हेतु प्रथम रक्षा पंक्ति (First Line of Defence) बनाती है।

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सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं –
(i) सहज रोध (Physical Barriers)-इस प्रकार का अवरोध रोगाणुओं को शरीर में अन्दर प्रवेश होने से रोकता है। त्वचा की बाह्य परत किरैटिन की बनी होती है और रोगाणुओं के लिये लगभग अभेद्य होती है। त्वचा की तैल ग्रन्थियां लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करके अम्लीय वातावरण का निर्माण करती हैं जो रोगाणुओं को नष्ट करता है।

श्वसन तन्त्र जठरांत्र (Gastrointestinal) और जनन मूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा (Mucous) आवरण भी शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है। इसी प्रकार शरीर के साव जैसे पसीना भी रोगाणुओं को दूर बनाये रखता है ।

(ii) कार्यिकीय रोध (Physiological Barriers)-जंतु शरीर का ताप, विभिन्न अंगों द्वारा स्रावित पदार्थ एवं पी.एच. (pH) प्रमुख कार्यिकीय अवरोधकों का कार्य करते हैं। आमाशय की ग्रंथियों द्वारा स्रावित HCl, निम्न (pH) माध्यम उत्पन्न करता है जो कि भोजन के साथ प्रविष्ट सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है।

जंतु कोशिकाओं व ऊतकों द्वारा उत्पन्न अन्य विलेय कारक जैसे श्लेष्म एवं अश्रुस्राव में उपस्थित लाइसोजाइम, रक्त सीरम में मिलने वाले संपूरक कारक तथा वायरस संक्रमित कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न इंटरफेरॉन्स (Interferons) प्रोटीन भी कार्यिकी अवरोधों का कार्य करते हैं। लाइसोजाइम जलअपघटनी क्रिया द्वारा जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में उपस्थित पेप्टाइडोग्लाइकन स्तर को विघटित कर देते हैं। इन्टरफेरॉन प्रोटीन्स कोशिकाओं को विषाणुओं के संक्रमण से सुरक्षित रखती है।

(iii) भक्षकाणिवक अवरोध (Phogocytic Barriers)-शरीर में उपस्थित विशिष्ट कोशिकाएँ जैसे रक्त की मोनोसाइट्स (Monocytes), न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) कोशिकाओं व ऊतकों को वृहत् भक्षकाणु जंतुओं के अंदर प्रवेश करने वाले बाह्य कोशिकीय कणिकीय पदार्थों जैसे रोगजनक सूक्ष्मजीवों को कोशिकाशन (Phagocytosis) द्वारा नष्ट करते रहते हैं।

कोशिकाशन (Phagocytosis) एक महत्वपूर्ण स्वाभाविक प्रतिरक्षी क्रिया है। इसके अतिरिक्त ऊतकों में उपस्थित प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ शरीर में उपस्थित अर्बुद कोशिकाओं एवं विषाणु संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। भक्षकाणु कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं, जिन्हें सूक्ष्म भक्षकाणु (Microphase) और महाभक्षकाणु (Macrophase) कहते हैं।

सूक्ष्मभक्षकाणु (Microphase)-ऐसी श्वेत रक्त कोशिकाएँ हैं जिनमें दो या दो से अधिक पाली वाला केन्द्रक होता है। ये आकार में छोटी और अल्प-जीवी होती हैं। महाभक्षकाणु (Macrophase)-एककेन्द्री भक्षक कोशिकाएं होती हैं जो आकार में बड़ी और दीर्घ जीवी होती हैं। ये लगभग सभी अंगों और ऊतकों में पायी जाती हैं। लेकिन विशेष रूप से ये फेफड़ों, यकृत व प्लीहा में पायी जाती हैं।

(iv) शोथ अवरोध (Inflammatory Barriers)-शरीर के ऊतकों के घाव, चोट या रोगजनक सूक्ष्मजीवों के आक्रमण से क्षतिग्रस्त होने की अवस्था में कई जटिल व क्रमबद्ध प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं जिन्हें संयुक्त रूप से शोथ अनुक्रिया कहते हैं। इस अनुक्रिया में क्षतिग्रस्त ऊतकों की मास्ट कोशिकाओं (Mast cells) द्वारा उत्पन्न हिस्टामीन व प्रोस्टाग्लेंडिन एवं रक्त प्लाज्मा में उपस्थित काइनिन्स प्रमुख मध्यस्थ अणुओं का कार्य करते हैं।

इस अनुक्रिया के फलस्वरूप प्रभावित ऊतकों व अंगों में लाली, दर्द, सूजन व गर्माहट के लक्षण उत्पन्न होते हैं। मेश्नीकॉफ ने इसे एक सुरक्षात्मक (Protective) अनुक्रिया बताया। इस क्रिया के माध्यम से हानिकारक कारकों के प्रभाव को प्रभावित ऊतकों तक ही सीमित रखकर ऊतकों की मरम्मत एवं सुरक्षा की जाती है।

प्रश्न 3.
ड्रगों का दुरुपयोग खिलाड़ियों के द्वारा क्यों किया जाता है? इन ड्रगों के अनुषंगी प्रभावों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
ड्रगों का दुरुपयोग कुछ खिलाड़ियों द्वारा अपने प्रदर्शन को और बेहतर करने के लिए किया जाता है। वे खेलों में स्वापक पीड़ाहर (narcotic analgesics), उपचयी स्टेराइडों (anabolic steroids), मूत्रल दवाओं (Diuretics) एवं कुछ हार्मोन का कुप्रयोग, मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने और आक्रामकता को बढ़ाने और फलस्वरूप खेल प्रदर्शन के लिए करते हैं। ड्रगों के अनुषंगी प्रभाव (Side-effects of Drugs) – महिलाओं में उपचयी स्टेराइडों के सेवन के अनुषंगी प्रभाव निम्न हैं –

  1. पुंस्त्वन (Masculinisation) अर्थात् पुरुष जैसे लक्षण
  2. बढ़ी आक्रामकता (Increased aggresiveness)
  3. भावदशा में उतार-चढ़ाव
  4. अवसाद
  5. असामान्य आर्तव चक्र
  6. मुँह तथा शरीर पर बालों की अत्यधिक वृद्धि
  7. आवाज का भारी होना।

पुरुषों में ड्रगों के सेवन से निम्न अनुषंगी प्रभाव होते हैं-

  1. पुरुषों में मुँहासे
  2. बढ़ी आक्रामकता
  3. भावदशा में उतार-चढ़ाव
  4. अवसाद
  5. वृषणों (Testis) के आकार में कमी
  6. शुक्राणु उत्पादन में कमी
  7. यकृत (Liver) एवं वृक्क (Kidney) की संभावित दुष्क्रियता
  8. स्तनों में वृद्धि
  9. समय से पूर्व गंजापन
  10. प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि ।

लंबे समय तक सेवन करने से उक्त प्रभाव स्थायी हो सकते हैं । युवा पुरुष या महिलाओं में मुँह और शरीर के सख्त मुँहासे और लंबी अस्थियों के वृद्धि केन्द्रों के समय पूर्व बंद होने के फलस्वरूप वृद्धि रुक जाती है।

प्रश्न 4.
व्यसन किसे कहते हैं? ड्रग ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यसन और निभरंरता (Addiction and Dependence):
व्यक्ति की किसी भी पदार्थ पर जैसे कि तम्बाकू, ऐेल्कोहॉल तथा ड्रूस पर शारीरिक तथा मान्नसक निर्भरता व्यसन (Addiction) कहलाती है । ड्रग्स का उपवोग करने वाले व्यक्ति की मानसिक तथा शारीरिक दशा बदल जाती है। इसके लगातार ग्रहण करने से व्यक्ति इूस के लिए व्यसनी (लती) हो जाता है क्योंकि इ्रगों के ब्यार-बार उपबोग से हमारे शरीर में उपस्थित ग्राहियों का सद्ध स्तर बढ़ जाता है।

इसके फलस्वरूप ग्राही, इूगों या ऐल्कोहॉल की केक्ल उध्तम मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है अथात् निर्भर हो जाता है एवं इनके बिना उसका नीना कटिन हो जाता है। जब किसी आदतन ड्रग/ऐल्कोहॉल लेने वाले ख्यक्ति की नियमित मात्रा को अचानक बंद कर दिया जाता है तो उसे शई प्रकार के सम्मिलित जटिल प्रभावों युक्त लक्षणों का आभास होता है। ये लक्षण विनिवरंन संलक्षण (Withdrawal Syndrome) करलाते हैं। ऐसे सक्षण निम्न हैं –

  1. ड्रास्स के बार-बार उपयोग करने की मारसिक इ्चा
  2. हल्के कंषन
  3. प्रबल दौरे
  4. उद्धेग
  5. तरित बेहोशी
  6. पसीना आन्ता
  7. बिंता
  8. मिचली आना
  9. ब्दय की गति बढ़ जाना
  10. सहनता (शारीर में ड्रग्स की बढ़ती जाती सहनता के कारण व्यसनी को उसकी और ज्यादा मात्रा का चाहना)
  11. ड़स्स से कुछ समब दूर रहने के बाद भी ड्रग का व्यसन।

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कई बार यह स्थिति काफी गंभीर हो सकती है व पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। अनः वापसी अबधि चिकित्सकीय देख-रेख में होनी चाहिए। प्रयोग की जा रही ड्राग को अचानक बंद करने या परिवर्जन (Abstinence) के कारण वह्ठ व्यक्ति याचना करने लगता है। ऐसे व्यक्ति को मानसिक सहारा (Psychological Support) की अत्बन्त आवश्यकता होती है तधा ऐसे संमय में परिवार के सद्स्यों एवं मित्रों का सकारान्मक सहियोग होना चाहिये।

ड्रग/ऐल्कोहॉल कुप्रयोग के प्रभाव (Impact of Drug) Alcohol Abuse):
इूगों की अत्यधिक मात्रा के सेबन से श्वसन पात्त (Respiratory Failure), हदय पात (Heart Faliure) अथवा प्रमस्तिष्क रक्तम्नांव (Cerebral bemorrhage) के कारण व्यक्ति कोमा में चला जाता है अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। विशेष तौर से किशोरों के इस व्यसनों की चपेट में आने के मुख्य कारण अग्र हैं –

  1. शैक्षिक क्षेत्र में प्रदर्शन में कमी,
  2. बिना किसी स्पष्ट कारण के विद्यालय अथवा महाविद्यालय (College) से अनुपस्थिति,
  3. व्यक्तिगत स्वच्छता की रुचि में कमी,
  4. विनिवर्तन,
  5. एकाकीपन,
  6. अवसाद, थकावट,
  7. आक्रमणशील और विद्रोही व्यवहार,
  8. परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध,
  9. शौक की रुचि में कमी,
  10. सोने और खाने की आदतों में परिवर्तन,
  11. भूख और वजन में कमी अथवा बढ़ना।

ड्रग अथवा ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। व्यक्ति (व्यसनी) अपने परिवार व मित्रों के लिए भी मानसिक संताप का कारण बन जाता है। अपना शौक पूरा करने के लिए ड्रग व ऐल्कोहॉल के लिए चोरी करना, घर का सामान बेचना, घर को बेचना आदि कृत्य करता है।

जो लोग (व्यसनी) सूई (Injection) से नशा करते हैं उनमें HIV/AIDS या यकृत शोथ (Hepatitis) होने व उसके स्थानान्तरण का खतरा अधिक होता है क्योंकि व्यसनी एक-दूसरे के सूई (Injection) का इस्तेमाल करने अथवा संक्रमित सूई द्वारा ड्रगग लेने से एक-दूसरे से वायरस (Virus) स्थानान्तरित हो जाते हैं। अधिक ऐल्कोहॉल पीने से यकृत (Liver) में ग्लाइकोजन (Glycogen) का संचय होने की बजाय वसा का संचय होता है, जिससे वसा-यकृत सिन्ड्रोम की दशा बन जाती है जिससे सिरोसिस (Cirrhosis) बन जाता है।

(यकृत कड़ा हो जाता है तथा सूख जाता है)। अधिक सांद्रता वाले ऐल्कोहॉल के सेवन से आमाशय में दर्द युक्त प्रदाह होता है। इसे गेस्ट्राइटिस (Gastritis) कहते हैं। गर्भावस्था के दौरान ऐल्कोहॉल अथवा ड्रगों का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आजकल खिलाड़ी अपनी मांसपेशियों की थकान दूर करने एवं उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु ड्रगों का दुरुपयोग करते हैं।

इन ड्रग्स में स्वापक पीड़ानाशक (Narcotic Analgesic), स्टीरॉइड्स (Steroids), मूमल ड्रग्स एवं विभिन्न प्रकार के हार्मोन होते हैं। स्त्रियों में उपचयी स्टेरॉइडों के प्रयोग से स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण (masculinisation) विकसित हो जाते हैं, इसके अतिरिक्त निम्न लक्षण प्रकट हो जाते हैं –

  • भावदशा में उतार-चढ़ाव
  • असामान्य आर्तव चक्र (menstrual cycle)
  • मुंह और चेहरे पर बालों की अत्यधिक वृद्धि
  • भगशेफ (Clitoris) का बढ़ जाना
  • आवाज गहरा होना
  • बड़ी आक्रामकता, अवसाद आदि।

पुरुषों में इन ड्रग्स को लेने से उत्पन्न लक्षणों में वृषणों (Testis) के आकार का घटना, शुक्राणुओं (Sperms) के उत्पादन में कमी, स्तनों (Mammary Glands) का आकार में बढ़ना, प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate gland) का बढ़ना, समय से पहले बाल उड़ना (गंजापन), चेहरे पर मुंहासे, बढ़ी आक्रामकता भावदशा में उतार-चढ़ाव, अवसाद, वृक्क (Kidney) की संभावित अक्रियाशीलता आदि शामिल हैं। लंबे समय तक सेवन से ये प्रभाव स्थायी हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
स्वप्रतिरक्षा किसे कहते हैं? मानव में स्वप्रतिरक्षा रोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वप्रतिरक्षा (Auto Immunity):
प्रतिरक्षा तंत्र में आत्मस्थ (अपने) घटक तथा आत्मेतर (पराया) घटकों के बीच भेद कर सकने की क्षमता होती है। सामान्यतः आत्मस्थ घटकों के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं होती यानी अपने ही ऐन्टीजनों को सहन कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया को स्वःसहायता कहते हैं। कभी-कभी शरीर में अपने ही ऊतकों के प्रति शरीर द्वारा एंटीबॉडी माध्यित (तरलीय) अथवा कोशिका माध्यित आक्रमण होने लगता है जिससे स्वप्रतिरक्षा पैदा हो जाती है। इससे कोशिका अथवा ऊतक क्षति होती है या इनके कार्यों में अंतर आ जाता है।

इस प्रकार पैदा होने वाले दोषों को स्वप्रतिरक्षा दोष अथवा रोग कहते हैं। ऐसी एंटीबॉडियों, जो आत्मस्थ घटकों अथवा आत्मस्थ ऐंटीजनों (स्व एंटीजनों) के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं, को स्व एंटीबॉडी कहते हैं। स्वप्रतिरक्षा रोग 5-10 प्रतिशत मानव जनसंख्या को प्रभावित करते हैं। ये रोग चिरकालिक कमजोरी समस्याओं के बाद आ जाते हैं। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में स्वप्रतिरक्षा ज्यादा होती है। मानव में स्वप्रतिरक्षा रोग निम्न हैं-

  • मायस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia Gravis)-पेशियों का स्वयं नष्ट होना।
  • जीर्ण रक्ताल्पता (Chronic Anaemia)-स्वयं की लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) का नष्ट होना।
  • हाशिमोटो रोग (Hashimoto disease)-इसे थाइरॉइड की आत्महत्या भी कहते हैं।
  • जीर्ण यकृत शोथ (Chronic hepatitis)-यकृत द्वारा स्वयं की कोशिकाओं को नष्ट करना।
  • आमावाती संधिशोथ (रुमेटोयाड आर्थाइटिस), इंसुलिननिर्भरता मधुमेह एवं बहुस्थानिक स्क्लेरोसिस आदि।

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प्रश्न 6.
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस) किसे कहते हैं? पश्चविषाणु की प्रतिकृति को चित्र की सहायता से प्रदर्शित कीजिए ।
उत्तर:
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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प्रश्न 7.
टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण (Vaccination and Immunisation):
किसी अनुग्र (Non-virulent) या मृत (killed) सूक्ष्मजीवों या उनके द्वारा आविषों (Toxins) की अति सूक्ष्म मात्रा को शरीर में प्रविष्ट कराना टीकाकरण कहलाता है तथा जो पदार्थ प्रविष्ट कराया जाता है उसे टीका कहते हैं। इस क्रिया द्वारा जीव में किन्हीं विशिष्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है। एडवर्ड जेनर ने गो-चेचक का प्रयोग करके 1796 में चेचक से प्रतिरक्षण का टीका (Vaccine) प्रारंभ किया। इस उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें प्रतिरक्षण का जनक (Father of Immunisation) कहा जाता है।

टीकाकरण या प्रतिरक्षण क्रिया सिद्धांत प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति कोशिकाओं के ऊपर आधारित है। टीकाकरण के द्वारा प्रविष्ट विशिष्ट प्रतिजनी पदार्थ शरीर में पहुँचकर प्राथमिक प्रतिरक्षा अनुक्रिया उत्पन्न करता है व साथ ही स्मृति B व T कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में वह व्यक्ति या जीव यदि उसी विशिष्ट रोगकारक द्वारा संक्रमित होता है तो वहां उपस्थित B व T कोशिकाएं उस रोगकारक को तुरंत पहचान कर प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

एक आदर्श टीके (Vaccine) में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए –

  • टीका प्रतिरक्षित प्राणी में जीवनपर्यंत प्रतिरोधकता क्षमता प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
  • टीका सुगमतापूर्वक उत्पन्न हो सके व उत्पादन लागत अधिक न हो।
  • आदर्श रूप में एक बार लगाने पर ही प्रभावी होना चाहिए।
  • टीका प्रयोग करने में नितांत सुरक्षित होना चाहिए।

टीके के प्रकार (Types of Vaccines)-सामान्यतः टीके निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  • आविषाभ टीके (Toxoids)-आविषाभ (Toxoids) एक रासायनिक व भौतिक रूप से परिष्कृत जीव-विष है जो कि हानिकारक तो नहीं होता है किंतु इसकी प्रतिरोग क्षमताजनकता बनी रहती है। उदाहरण-डिफ्थीरिया एवं टिटेनस के टीके।
  • जीवाणुजन्य टीके (Bacterial Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में मारे गये जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणटायफाइड, हैजा, कुकर खाँसी, तपेदिक, प्लेग के टीके।
  • विषाणुजन्य टीके (Viral Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में जीवित क्षीणीकृत (Living attenuated) अथवा मारे गये विषाणुओं का उपयोग किया जाता है। उदाहरण-खसरा, चेचक, इन्फ्लुएंजा (Influenza) व पोलियो के टीके।
  • न्यूक्लिक अम्ल टीके (Nucleic acid Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में नग्न डी.एन.ए. का उपयोग किया जाता है अर्थात् ये नग्न DNA से निर्मित होत्रे हैं। उदाहरण-हिपेटाइटिस-बी का टीका।
  • संयुग्मित टीके (Conjugated Vaccines)-ये प्रोटीन अणुओं से योजित पॉलिसैकेराइड्स से निर्मित होते हैं। उदाहरणन्यूमोनिया के टीके।

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प्रश्न 8.
मानव में विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स का विवरण दीजिये ।
उत्तर:
तालिका – मानव में विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स का विवरण

प्रतिरक्षियों का वर्ग कुल मात्रा प्रमुख लक्षण एवं उपस्थिति कार्य
1. IgA 10 नवदुग्ध (Colostrum) में उपस्थित प्राथमिक प्रतिरक्षी; अणु भार 1,60,000; लार, श्लेष्मा व अन्य बाह्य स्रावों में उपस्थित श्लेष्मी कलाओं (Mucous Membranes), देह की बाह्य सतह की सुरक्षा तथा निःश्वसित (Inhaled) एवं अन्तर्रहित रोगाणुओं से सुरक्षा प्रदान करना
2. IgD 1-3 अति सूक्ष्म मात्रा में रक्त में लसिका कोशिकाओं की सतह पर उपस्थित; अणुभार -1,85,000 बी-लसिका कोशिकाओं का सक्रियण, प्रतिरक्षी अभिक्रिया के विकास एवं परिपक्वन में भूमिका
3. IgE 0.05 अत्यन्त कम मात्रा में उपस्थित; मास्ट कोशिकाओं व बेसोफिल्स से विशिष्ट सहलग्नता दर्शाने वाली; अणुभार- 2,00,000 मास्ट कोशिकाओं का उत्तेजन, प्रत्यूर्जता (Allergy) अभिक्रियाओं से संबंधित परजीवियों से सुरक्षा
4. IgG 75-80 सर्वाधिक प्रचुरता में मिलने वाली; ऑवल (Placenta) से पार होने की क्षमता युक्त, अणुभार -1,50,000 रक्त एवं अंतराली द्रवों का प्रमुख प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन संपूरक तंत्र को उत्तेजित करना, मानव भ्रूण को रोग क्षमता प्रदान करना, भक्षाणु कोशिकाओं से भक्षाणुनाशन हेतु विशिष्ट सहलग्नता
5. IgM 5-10 प्रतिजन की अनुक्रिया में उत्पन्न प्रथम प्रतिरक्षी; रक्त प्लैज्मा व अंतराली द्रवों प्रतिरक्षी; रक्त प्लैज्मा व अंतराली द्रवों में उपस्थित; अणुभार -9,00,000 पेन्टामर के रूप में; सर्वाधिक वृहत् प्रकार का प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन। जीवाणुओं से सुरक्षा की प्रथम पंक्ति बनाते हैं, समूहन क्रिया का प्रभावीकरण, संपूरक स्थिरन व प्रतिजन के स्कन्दन में प्रभावी।

प्रश्न 9.
कैंसर क्या है? कैंसर के प्रमुख प्रकार लिखिए। कैंसर के कम से कम तीन घातक संकेतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
अर्बुद या ट्यूमर (Tumour) दो प्रकार के होते हैं –
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour)
(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour)
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour)-ये हानिकारक नहीं होते हैं एवं स्थानीय होते हैं अर्थात् शरीर के दूसरे भागों या आस-पास की कोशिकाओं में नहीं फैलते हैं। इस कारण इसे नॉनमेटास्टेसिस (non-metasis) कहते हैं। स्थान विशेष पर अर्बुद बनती है जो आकार में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इसे शल्य-क्रिया द्वारा शरीर से अलग करने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।

(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour)-इसमें विभाजनशील कोशिकायें शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती हैं तथा वहाँ अर्बुद उत्पन्न करती हैं। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेटिस (Metasis) कहते हैं। ऐसे अर्बुद खतरनाक होते हैं जिसके कारण मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

कैंसर के प्रकार (Types of Cancer)-कैंसर निम्न प्रकार का होता है –

  • कार्सीनोमास (Carcinomas)-कैंसर का यह प्रकार सर्वाधिक रूप में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से उपकला ऊतकों में होने वाली अनियंत्रित वृद्धि का परिणाम है। उदाहरण के लिए छाती का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, अग्न्याशय का कैंसर तथा आमाशय का कैंसर।
  • सारकोमास (Sarcomas)-यह पेशी व लसीका ग्रंथियो का कैंसर है। भ्रूणीय मीसोडर्म से व्युत्पन्न संयोजी ऊतकों में होने वाली दुर्दम वृद्धि सारकोमा कहलाती है।
  • ल्यूकीमिआ (Leucaemia)-रुधिर तथा अस्थिमज्जा की कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विभाजित होकर ल्यूकीमिआ कैंसर उत्पन्न करती हैं। इस रोग से ग्रसित रोगी में ल्यूकोसाइट की संख्या में अधिक मात्रा में वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिए-रक्त कैंसर।
    इसके अतिरिक्त कभी-कभी छोटे बच्चों में नेत्र, वृक्क तथा प्रमस्तिष्क में अति दुर्दम ट्यूमर पाये गये हैं।

उपर्युक्त के अतिरिक्त कैंसर के कुछ अन्य प्रकार निम्न हैं-

  1. मायोमा (Myoma)-पेशी ऊतकों का कैंसर
  2. एडीनोमा (Adenoma)-ग्रंथियों का कैंसर
  3. मैलानोमा (Melanoma)-त्वचा की वर्णक कोशिकाओं का कैंसर
  4. लिम्फोमा (Lymphoma)-लसिका ऊतकों का कैंसर
  5. ग्लियोमा (Glioma)-केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की ग्लियल कोशिकाओं का कैंसर।

मनुष्य में सबसे अधिक प्रकार का कैंसर फेफड़ों का होता है जो द्वितीय स्थान के कैंसर त्वचा कैंसर की तुलना में लगभग दो गुणा व्यक्तियों को प्रभावित करता है। महिलाओं में स्तन कैंसर सर्वाधिक होता है। (भारत में मनुष्यों में मुख, गला कैंसर एवं महिलाओं में गर्भाशयी सर्विक्स कैंसर सामान्य कैंसर हैं।)

कैंसर के कारण (Causes of Cancer)-सामान्य कोशिकाओं का कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तन भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक कारकों के द्वारा होता है। इन कारकों को कैंसरजन (Carcinogens) कहते हैं। आयनकारी विकिरण जैसे एक्स किरणें, गामा किरणें और अनायनकारी विकिरण जैसे पराबैंगनी विकिरण DNA को नष्ट कर नवद्रव्यी अथवा कैंसर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। रासायनिक कैंसरजन (Carcinogen) तंबाकू के धुएँ में पाया जाता है जो कि फेफड़ों के कैंसर के लिए उत्तरदायी है।

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कैंसर उत्पन्न करने वाले वायरस को अर्बुदीय विषाणु (Oncopgenic Viruses) कहते हैं। इनमें पायी जाने वाली जीन को विषाणुवीय अर्बुदजीन (Viral oncogenes) कहते हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य कोशिकाओं में कई जीनों का पता चला है जिन्हें कुछ विशेष परिस्थितियों में सक्रिय किए जाने पर वे कोशिकाओं का कैंसरजनी रूपान्तरण कर देते हैं। ये जीन कोशिकीय अर्बुदजीन (Cellular oncogenes) अथवा आदि अर्बुदजीन (Proto oncogenes) कहलाते हैं।

कैंसर का प्रसार (Spread of Cancer)-कैंसर शरीर में निम्न प्रकार से फैलता है-

  • किसी स्थान विशेष पर कैंसर कोशिकाएं विभाजन करके अर्बुद (Tumor) बना लेती हैं। अब यह अर्बुद समीपवर्ती ऊतकों के ऊपर फैलकर उन्हें नष्ट कर देती है।
  • कभी-कभी कैंसर कोशिकाएं अर्बुद से पृथक् होकर लसीका संचरण के साथ शरीर के अन्य भागों में पहुँच कर विभाजन कर देती हैं। इन्हें द्वितीयक वृद्धि या मेटास्टेसिस कहते हैं। इस प्रकार का कैंसर सबसे घातक होता है। एक बार मेटास्टेसिस बनना प्रारंभ होने पर उसका निवारण असंभव होता है। अंततः रोगी की मृत्यु का कारण बनते हैं।
  • अस्थि मज्जा तथा संयोजी ऊतक में उत्पन्न कैंसर अर्बुद की कोशिकाएँ रुधिर के साथ तीव्रता से शरीर के अन्य भागों में स्थानान्तरित होती हैं।

कैंसर रोग के प्रमुख लक्षण –

  1. शरीर के वजन में तेजी से कमी होना
  2. घाव का लंबे समय तक नहीं भरना
  3. बारंबार तेज सिरदर्द का होना
  4. लगातार पेटदर्द् रहना
  5. वृषणकोष/ स्तन ग्रंथियों की आकृति में परिवर्तन
  6. मूत्र के साथ बिना दर्द के रक्त निकलना
  7. तिल में परिवर्तन होना
  8. छाती में गांठ का होना
  9. लगातार खाँसी होना
  10. स्त्रियों में रजोधर्म के समय अधिक रुधिर आना
  11. सूजन आना, गले का प्राय: दुखना
  12. पाचन तथा शौच आदतों में लगातार परिवर्तन होना।

कैंसर का अभिज्ञान एवं निदान (Cancer detection and diagnosis)-कैंसर का अभिज्ञान ऊतकों की जीवूतिपरीक्षा (Biopsy) और ऊतक विकृति (Histopathological) अध्ययनों तथा बढ़ती कोशिका गणना के लिए रुधिर (Blood) तथा अस्थिमज्जा (Bonemarrow) पर आधारित है। जैसा कि अधिश्वेतरक्तता (Lukemias) के मामले में होता है।

जीवूतिपरीक्षा (biopsy) में जिस ऊतक पर शंका होती है, उसका एक टुकड़ा लेकर पतले अनुच्छेदों (Sections) में काटकर अभिरं जित कर के रोगविज्ञानी (Pathologist) परीक्षण किया जाता है। आंतरिक अंगों (Internal organs) के कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण चित्रण (Radiography), अभिकलित टोमोगफफी (Computed Tomography) एवं चुम्बकीय अनुनादी इमेजिंग (MRIMagnetic resonance imaging) तकनीकें बहुत उपयोगी हैं।

अभिकलित टोमोग्राफी एक्स किरणों का उपयोग करके किसी अंग के भीतरी भागों की त्रिविम प्रतिबिंब (Three-dimensional image) बनाती है। जीवित ऊतकों में वैकृतिक (Pathological) और कार्यिकीय (Physiological) परिवर्तनों का सही पता लगाने के लिए एम-आरआई में तेज चुंबकीय क्षेत्रों और अनायनकारी विकिरणों का उपयोग किया जाता है। कुछ कैंसरों का पता लगाने के लिए कैंसर विशिष्ट प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षियों (Antibodies) का भी उपयोग किया जाता है।

कुछ कैंसरों के प्रति वंशागत सुग्राहिता वाले व्यक्तियों में जीनों का पता लगाने के लिए आण्विक (Molecular) जैविकी की तकनीकों को काम में लाया जाता है। ऐसे जीनों की पहचान, जो किसी व्यक्ति को विशेष कैंसरों के प्रति प्रवृत्त (Predispose) करते हैं, कैंसर की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कुछ ऐसे विशेष कैंसरजनों से, जिनके प्रति वे सुग्राही हैं, जैसे फुफ्फुस कैंसर में तंबाकू के धुएँ से बचने की सलाह देनी चाहिये।

कैंसरों का उपचार (Treatment of Cancer)-

  • आमतौर पर कैंसरों के उपचार के लिए शल्यक्रिया (Surgery), विकिरण चिकित्सा (Radiation therapy) एवं प्रतिरक्षा चिकित्सा (Immuno therapy) का उपयोग किया जाता है।
  • सामान्यतः रोगग्रस्त भाग को शल्यक्रिया द्वारा निकाला जाता है।
  • कैंसर कोशिकाओं को विकिरण द्वारा नष्ट कर दिया जाता है (Radiotherapy)।
  • कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने हेतु अनेक रसोचिकित्सीय (Chemotherapeutic) औरधियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ औषधियाँ विशेष अर्बुद के लिए विशिष्ट होती हैं।
  • अधिकांश कैंसर का उपचार शल्यकर्म, विकिरण चिकित्सा और रसोचिकित्सा के संयोजन से किया जाता है।
  • अर्बुद कोशिकाएँ प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पता लगाए जाने और नष्ट किए जाने से बचती हैं। इसलिए रोगी को ऐसे पदार्थ दिये जाते हैं जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपांतरण (Biological response modifiers) कहते हैं। जैसे Y- इंटरफेरॉन, जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करता है एवं अर्बुद को नष्ट करने में सहायता करता है।

प्रश्न 10.
प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र का चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं का नामांकित चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र (Life cycle of Plasmodium ) – जब संक्रमित मादा एनोफेलीज मनुष्य को काटती है तो प्लाज्मोडियम जीवाणुज अथवा स्पोरोजॉइट्स (Sporozoites) के रूप में मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। स्पोरोजॉइट्स संक्रामक रूप है। प्रारंभ में परजीवी यकृत में अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं और फिर लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) पर आक्रमण करते हैं जिसके फलस्वरूप लाल रुधिर कणिकाएँ फट जाती हैं। RBC के फटने के साथ ही एक विषैला पदार्थ भी निकलता है जिसे हीमोजोइन (Haemozoin) कहते हैं।

इस पदार्थ के रुधिर में मुक्त होते ही यह मनुष्य के रुधिर के प्लाज्मा में घुल जाता है तथा इसकी वजह से ही मनुष्य को जाड़ा व कंपकंपी देकर मलेरिया बुखार चढ़ने लगता है जब मादा एनोफेलीज मच्छर किसी संक्रमित मनुष्य को काटती है। तब परजीवी उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उनका आगे का परिवर्धन मादा एनोफेलीज में होता है।

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ये परजीवी मादा एनोफेलीज में बहु संख्यात्मक रूप से बढ़ते रहते हैं और स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) बन जाते हैं जो मादा एनोफेलीज की लार ग्रंथियों (Salivary glands) में जमा हो जाते हैं अब यह मादा एनोफेलीज किसी स्वस्थ मनुष्य को काटती है तो स्पोरोजोइट्स उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं मनुष्य को संक्रमित कर देते हैं।

इस प्रकार मलेरिया परजीवी अर्थात् प्लाज्मोडियम अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इस प्रकार प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता होती है जिन्हें मनुष्य एवं मादा एनोफेलीज़ कहते हैं। मनुष्य प्राथमिक एवं मादा एनोफेलीज द्वितीयक परपोषी होते हैं। मादा एनोफेलीज रोगवाहक (Transmitting agent ) का कार्य करती है।
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प्रश्न 11.
मानव में पाये जाने वाले प्रतिरक्षा तंत्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) निम्न रचनाओं से मिलकर बना होता है-

  1. लसीकाभ अंग ( Lymphoid organs)
  2. कोशिकाएँ (Cells)
  3. ऊतक (Tissues )
  4. घुलनशील अणु जैसे प्रतिरक्षी ( Soluble molecule like antibodies)

प्रतिरक्षा तंत्र विजातीय प्रतिजनों को पहचानता है, इनके प्रति अनुक्रिया करता है और इन्हें याद रखता है। प्रतिरक्षा तंत्र एलर्जी प्रतिक्रियाओं (allergic reactions ), स्व-प्रतिरक्षा रोगों (auto- immune diseases) और अंग प्रतिरोपण (Organ transplantation) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लसीकाभ अंग (Lymphoid Organs) – ये वे अंग हैं जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति अथवा परिपक्वन और प्रचुरोद्भन होता है।

लसीकाभ अंग दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्राथमिक लसीकाभ अंग ( Primary Lymphoid Organs) – ऐसे अंग जिनमें अपरिपक्व लसीकाणु, प्रतिजन संवेदनशील लसीकाणुओं में विभेदित होते हैं, प्राथमिक लसीकाभ अंग कहलाते हैं। उदाहरण- अस्थिमज्जा एवं थाइमस ।
  2. द्वितीयक लसीकाभ अंग (Secondary Lymphoid Organs) – परिपक्वन के पश्चात् लसीकाणु द्वितीयक लसीकाभ अंगों में चले जाते हैं।

जहाँ लसीकाणुओं की प्रतिजन के साथ पारस्परिक क्रिया होती है जो बाद में प्रचुर संख्या में उत्पन्न होकर प्रभावी कोशिकाएँ बन जाते हैं। उदाहरण – प्लीहा, लसीका ग्रंथियाँ, टांसिल क्षुद्रांत्र के पेयर पेंच एवं परिशेषिका। मानव के शरीर में लसीकाभ अंगों की स्थिति हेतु देखिए चित्र में। अस्थिमज्जा (Bonemarrow) एक मुख्य लसीकाभ अंग है जिसमें लसीकाणुओं एवं सभी रुधिर कोशिकाओं का निर्माण होता है। थाइमस (Thymus) एक पालियुक्त अंग है जो हृदय के पास उरोस्थि (Sternum) के नीचे स्थित होती है।

जन्म से थाइमस काफी बड़ी होती है लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे इसका आकार घटता जाता है और यौवनावस्था आने पर यह बहुत छोटे आकार की रह जाती है। अस्थि मज्जा एवं थामइस दोनों ही टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन और परिपक्वन के लिए सूक्ष्म पर्यावरण (Micro environment) उपलब्ध करवाते हैं।
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प्लीहा (Spleen) की आकृति सेम के बीज के समान होती है। एवं आकार में बड़ा होता है। इसमें मुख्य रूप से लसीकाणु (Lymphocytes) और भक्षकाणु (Phagocytes) पाये जाते हैं। यह रुधिर में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवों को फांसकर रुधिर निस्यंदक ( Filter) के रूप में कार्य करते हैं। प्लीहा लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) का भण्डार होता है।

लसीका ग्रंथियाँ लसीका तंत्र पर भिन्न- भिन्न स्थलों पर स्थित होती हैं। ये लसीका ग्रंथियाँ आकार में छोटी एवं ठोस होती हैं। लिम्फ ग्रंथियाँ जो सूक्ष्म जीव या दूसरे प्रतिजन लसीका एवं ऊतक तरल में आ जाते हैं, उन्हें फाँस लेती हैं। लसीका ग्रंथियों में फंसे प्रतिजन वहाँ उपस्थित लसीकाणुओं के सक्रियण और प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी हैं।

श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊतक – प्रमुख पथों जैसे श्वसन, पाचन और जननमूत्र पथ आदि के आस्तरों के भीतर लसीकाभ ऊतक स्थित होते हैं जिन्हें श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊतक (Mucosal Associated Lymphoid Tissue) कहते हैं। यह मानव शरीर के लसीकाभ ऊतक का लगभग पचास प्रतिशत है।

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प्रश्न 12.
डिफ्थीरिया रोग का कारक, रोग लक्षण एवं बचाव के उपाय लिखिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया (Diphtheria)-इस रोग का रोगजनक कॉर्निबैक्टीरियम डिफ्थेरी (Cornybacterium diphtherea) है।
यह रोग प्राय: 1 से 5 वर्ष के बच्चों से होता है। संक्रमण अथवा संचरण वायु द्वारा होता है। इसकी उद्भवन अवधि 2-4 दिन की है।

रोग के लक्षण-

  1. हल्का ज्वर
  2. गले में दर्द
  3. गले में अर्ध ठोस पदार्थ का निकलना जो एक कठोर झिल्ली के रूप में बदल जाता है।
  4. इस झिल्ली से वायु पथ अवरुद्ध हो जाने से मृत्यु हो जाती है।

रोकथाम एवं उपचार-

  1. शिशुओं को डीपीटी का टीका लगाना चाहिये
  2. संक्रमित शिशु के थूक (कफ), मुख व नासिका स्रावों का निस्तारण किया जाना चाहिये।
  3. संक्रमित शिशु को अलग रखना चाहिये।
  4. चिकित्सक की देखरेख में एंटीबायोटिक औषधियाँ दी जा सकती हैं।

प्रश्न 13.
एड्स के HIV वायरस की संरचना बनाते हुए इसके संचरण, लक्षण व उपचार दीजिए।
अथवा
HIV का नामांकित चित्र बनाइए। इसकी संरचना का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
एड्स का पूरा नाम उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) इसका अर्थ है प्रतिरक्षातंत्र की न्यूनता, जो व्यक्ति के जीवन काल में उपार्जित होती है। 1981 में सबसे पहले एड्स का पता चला और पिछले 25 वर्षो में सारे संसार में फैल गया। इस रोग के कारण 2 करोड़ पचास लाख व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। एड्स एक विषाणु (Virus) जनित रोग है जो मनुष्य में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Human Immuno- deficiency Virus, HIV) के कारण होता है। एचआईवी RNA से निर्मित रिट्रोवायरस (Retrovirus) श्रेणी का वायरस है।

एच.आई.वी. की संरचना (Structure of HIV)-वायरस की सतह चारों ओर से फॉस्फोलिपिड (Phospholipid) की दो परतों से बनी होती है। जिसमें दो प्रकार की ग्लाइकोप्रोटीन्स, जी पी- 120 एवं जीपी -41 धँसी रहती हैं। विषाणु के मध्य में एक सूत्रीय आर एन ए के दो अणु पाये जाते हैं जिनसे रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) अणु जुड़े होते हैं।

आर एन ए अणु दो प्रोटीन आवरणों से घिरे होते हैं। जिनमें अंत आवरण (Inner coat) P-24 प्रोटीन्स से तथा बाह्य आवरण (Outer coat) P-17 प्रोटीन्स से निर्मित होता है। देखिए आगे चित्र में। रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की सहायता से एच आई वी RNA से DNA का निर्माण कर सकता है। एच आई वी दो प्रकार के होते हैं-

  1. एच आई वी-1
  2. एच आई वी-2

एच आई वी-1 (HIV-1) को एड्स रोग के लिए वर्तमान में जिम्मेदार मानते हैं।
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रोग का संचरण एच आई बी संचरण (Transmission of HIV)-एच आई वी सामान्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, बीर्य एवं योनि स्रावों में उपस्थित रहते हैं। अतः इनका संचरण ऐसी क्रियाओं के माध्यम से होता है जिनसे ये द्रव स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आते हैं सामान्यतः रोग का संचरण लैंगिक तथा रक्त संपर्क से होता है।

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एच आई वी का संचरण निम्न माध्यमों द्वारा होता है –

  1. समलैंगिक व्यक्तियों के बीच गुदा मैथुन क्रिया द्वारा
  2. संक्रमित व्यक्ति के रक्त आधान
  3. एक ही सुई द्वारा नशीले पदार्थों का उपयोग
  4. माता से शिशु में प्लेसेन्टा द्वारा
  5. संक्रमित व्यक्ति का किस (Kiss) लेने से HIV का संचरण हो जाता है जिसके मुंह में घाव होता है
  6. संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क

एड्स एक संक्रामक रोग है लेकिन यह छूत का रोग नहीं है। एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसके कपड़े उपयोग में लाने, शुष्क चुम्बन, बर्तनों के प्रयोग से, टॉयलेट सीट के माध्यम से, पूर्ण निर्जर्मीकृत सूइयों का प्रयोग कर रक्ताधान तथा रोगी की देखभाल से एड्स का संक्रमण नहीं होता है।

रोगजनकता एवं लक्षण-एड्स विषाणु अर्थात् एच आई वी शरीर में प्रवेश करने पर मुख्यतः सहायक टी लसीका कोशिकाओं को संक्रमित करता है। इन लसीका कोशिकाओं पर सी डी -4 ग्राही अणु उपस्थित होते हैं जिनसे विषाणु जुड़ जाते हैं। अब ये विषाणु इन कोशिकाओं (T4 Cells) को नष्ट करने लगते हैं।

चूंकि T- सहायक कोशिकाओं का कार्य अन्य लसीका कोशिकाओं को प्रतिरक्षा क्रिया के लिए सक्रिय करने का होता है, अतः T- सहायक कोशिकाओं की निरंतर कमी के कारण संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पूर्णतः शिथिल हो जाती है व रोगी कई प्रकार के गंभीर संक्रमणों का शिकार होकर अंततः मृत्यु को प्राप्त होता है।

संक्रमण होने और एड्स के लक्षण प्रकट होने की अवधि कुछ महीनों से लेकर कई वर्षों (प्राय: 5-10 वर्ष) की हो सकती है। अतः संभव है कि संक्रमित व्यक्ति कई वर्षों तक स्वयं रोगग्रस्त न हो किंतु वह एच आई वी के संचरण का माध्यम बना रह सकता है जबकि कुछ अन्य अपेक्षाकृत कम अवधि में ही रोगग्रस्त हो जाएँ व कुछ वर्षो बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। एड्स दरअसल में कोई एक रोग नहीं है किंतु एक ऐसी दशा है जिसमें एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को समाप्त कर देता है। जिससे वह कई रोगों से ग्रसित हो जाता है।

जिसके फलस्ववरूप निम्न लक्षण प्रकट होते हैं –

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना
  • लसीका गांठों का फूलना
  • लंबे समय तक लगातार खाँसी होना
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना
  • त्वचा पर कैंसर के लक्षण।

एड्स वास्तव में रोग की अंतिम अवस्था है जिसमें सर्वाधिक प्रमुख लक्षणों में न्यूमोसिस्टिस कैरीनाई न्यूमोनिया तथा कैपोसी का सार्कोमा (Kaposi’s Sarcoma) शामिल है। निदान-संक्रमण के पश्चात् छः से आठ सप्ताह के अंदर शरीर में प्रतिरक्षी अनुक्रिया प्रकट होना प्रारंभ हो जाती है।

इसके परीक्षण हेतु निम्नलिखित तीन परीक्षण किये जाते हैं –

  • एलाइजा परीक्षण (Enzyme Linked Immunosorbent Assay)-इसमें AIDS-KIT का प्रयोग करते हैं जो कि HIV प्रतिंजन से युक्त होती है।
  • वेस्टर्न ब्लाड परीक्षण (Western Blod Test)-यह परीक्षण महंगा नहीं होता है। इसके साथ ही यह विश्वसनीय व सटीक परीक्षण है। इस परीक्षण में समय भी कम लगता है।
  • लार परीक्षण (Saliva Test)-यह परीक्षण लार (Saliva) का परीक्षण है व ऐसी मान्यता पर आधारित है कि एड्स का संचरण लार द्वारा होता है।

उपचार (Treatment)-एड्स के उपचार की कोई निश्चित रूपरेखा नहीं है। संक्रमण जो बढ़ते हैं या हो गये हैं, का उपचार संभव है। सामान्य प्रबंध, जाँच व विशिष्ट एंटी HIV एजेंट का उपयोग किया जाता है। मौकापरस्त संक्रमणों व अर्बुदों का उपचार प्राथमिक अवस्था में लाभदायक होता है एवं रोगी सामान्य जीवन लंबे समय तक व्यतीत करने योग्य बना रहता है। विषाणुओं को नष्ट करने योग्य औष्षधियां जैसे इंटरफेरॉन, रोबाविरीन, सूरामिन, फासकारनेट आदि उपयोग में लायी जा रही हैं।

जीडोव्यूडीन AZT विशेष तौर पर उपयोगी पाई गयी है। दो न्यूक्लिओक्साइड एनालोग AZT अर्थात् जीडोब्यूडीन (3 azido-3′ deoxy thymidine) तथा लेमीब्यूडीन (3 TC) एवं एक प्रभावी प्रोटीएज अवरोधक (Inhibitor) इन्डिनेविर (Indinavir) द्वारा रक्त में विषाणु की मात्रा 20,000 से 10 Lac RNA की प्रतियां प्रति 1 मिलि प्लाज्मा में घटने के प्रमाण मिले हैं। यह कमी 90% रोगियों में लगभग एक वर्ग तक बनी रहती है।

इसके अतिरिक्त एड्स के उपचार के लिए प्रभावी टीके (Vaccines) के निर्माण में वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। कुछ टीके जैसे HIV-HiG बायोसिन आदि का विकास संभव हो पाया है। किंतु व्यावहारिक तौर पर अभी तक कोई भी टीका एड्स से पूर्ण बचाव करने में सक्षम नहीं है।

ऐसी स्थिति में जबकि एड्स का कोई संपूर्ण व प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है. व इसके कारकों से बचाव ही रोग से बचने के उपाय हैं तो सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा व्यापक स्तर पर जनसाधारण को इसकी समुचित जानकारी देना व संक्रमण से बचने के उपायों के अनुरूप जीवन पद्धति अपनाने को प्रेरित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण व आवश्यक है।

निम्नलिखित उपाय एड्स से बचाव करने में उपयोगी हैं-

  1. सदैव निर्जर्मीकृत सुई का प्रयोग करना चाहिये।
  2. रक्त आधान में एच.आई.वी. मुक्त रक्त ही स्थानान्तरित करना चाहिये।
  3. वेश्यावृत्ति को नकारा जाना चाहिये।
  4. समलैंगिकता को नकारा जाना चाहिये।
  5. एक से अधिक स्त्री या पुरुष से शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करने चाहिए।
  6. नशीली दवाओं के रुधिर के माध्यम से प्रयोग पर रोक लगानी चाहिये।
  7. आम जनता को इस रोग के बारे में शिक्षित कर उससे बचाव हेतु जागरूक बनाना चाहिये।

हमारे देश में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संघटन (National AIDS Control Organisation) और अन् गैर सरकारी संगठन (NGO) लोगों को एड्स के बारे में शिक्षित करने के लिए बहुत कार्य कर रहे हैं। एच आई वी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अनेक कार्यक्रम प्रारंभ किये।

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इन कार्यक्रमों में निम्नलिखित पर ध्यान दिया जा रहा है-

  • निरोधों (कण्डोम) का निःशुल्क वितरण।
  • सुरक्षित यौन संबंधों पर जोर।
  • सार्वजनिक एवं निजी अस्पतालों में केवल डिस्पोजेबल सुइयाँ या सीरिज का ही उपयोग हो।
  • रुधिर एवं रुधि उत्पादों का अनिवार्य रूप से एच आई वी मुक्त होना।
  • एच आई वी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना।
  • ड्रग के कुप्रयोगों को नियंत्रित करना।

प्रश्न 14.
व्यसन एवं निर्भरता से आप क्या समझते हैं? व्यसनी बनाने वाली किसी एक ड्रग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
व्यसन और निर्भरता (Addiction and Dependence):
व्यक्ति की किसी भी पदार्थ पर जैसे कि तम्बाकू, ऐल्कोहॉल तथा ड्रग्स पर शारीरिक तथा मानसिक निर्भरता व्यसन (Addiction) कहलाती है। ड्रग्स का उपयोग करने वाले व्यक्ति की मानसिक तथा शारीरिक दशा बदल जाती है। इसके लगातार ग्रहण करने से व्यक्ति ड्रग्स के लिए व्यसनी (लती) हो जाता है क्योंकि ड्रगों के वार-बार उपयोग से हमारे शरीर में उपस्थित ग्राहियों का सह़्ा स्वर बढ़ जाता है।

इसके फलस्वलूप ग्राही, ड्रगों या ऐल्कोहॉल की केवल उच्चतम मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है अर्थात् निर्भर हो जाता है एवं इनके बिना उसका जीना कठिन हो जाता है। जब किसी आदतन ड्रग/ऐल्कोहॉल लेने वाले व्यक्ति की नियमित माश्रा को अचानक बंद कर दिया जाता है तो उसे कई प्रकार के सम्मिलित जटिल प्रभावों युक्त लक्षणों का आभास होता है। ये लक्षण विनिवर्तन संलक्षण (Withdrawal Syndrome) कहलाते हैं। ऐसे लक्षण निम्न हैं-

  • ड्रत्स के बार-बार उपयोग करने की मानसिक इच्छा
  • हल्के कंपन
  • प्रबल दौरे
  • उद्वेग
  • त्वरित बेहोशी
  • पसीना आना
  • घिंता
  • मिचली आना
  • हुदय की गति बढ़ जाना
  • सहनता (शरीर में ड्रग्स की बढ़ती जाती सहनता के कारण व्यसनी को उसकी और ज्यादा मात्रा का घाहना)
  • ड्रग्ल से कुछ समय दूर रहने के बाद भी डूग का व्यसन।  सकारात्मक सहयोग होना चाहिये।

कई बार यह स्थिति काफी गंभीर हो सकती है व पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। अतः वापसी अवधि चिक्रिसकीय देख-रेख में होनी चाहिए। प्रयोग की जा रही ड्रग को अचानक बंद करने या परिवर्जन (Abstinence) के कारण वह व्यक्ति याचना करने लगता है। ऐसे व्यक्ति को मानसिक सहारा (Psychological Support) की अत्यन्त आवश्यकता होती है तथा ऐसे समय में परिवार के सदस्यों एवं मित्रों का।

प्रश्न 15.
उपार्जित असंक्राम्यता की परिभाषा दीजिए तथा इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity):
यह एक प्रतिरोध है जो व्यक्ति विशेष को जीवन के दौरान प्राप्त होता है। यह सूक्ष्म जीवों के संपर्क के प्रभाव से उत्पन्न होता है। इस प्रकार की प्रतिरक्षा केवल कशेरुकों में पायी जाती है। इसे विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहते हैं। यह प्रतिरक्षा जन्म के पश्चात् व्यक्ति द्वारा अर्जित की जाती है तथा इसके द्वारा किसी भी जीवाणु के शरीर में प्रवेश करने पर पहचान कर विशिष्ट क्रिया द्वारा नष्ट किया जाता है।

उपार्जित प्रतिरक्षा के विशिष्ट लक्षण –

  1. प्रतिजनी विशिष्टता (Antigenic Specificity)-यह प्रत्येक रोगकारक जीवाणु, विषाणु तथा रोग के लिए विशिष्ट होती है तथा अलग-अलग रोगकारक पर अलग-अलग प्रकार से प्रक्रिया कर उन्हें विशिष्ट रूप से नष्ट करती है।
  2. विविधता (Diversity)-इनमें अनेक प्रकार के रोगकारकों को पहचानने की आश्चर्यजनक विविधता पाई जाती है।
  3. प्रतिरक्षात्मक स्मृति (Immunological Memory)प्रतिरक्षित तंत्र द्वारा एक बार किसी प्रतिजन का अभिज्ञान होने व उसके प्रति प्रतिरक्षी अनुक्रिया दर्शाने के बाद जीव में उस विशिष्ट प्रतिजन के लिए स्मृति स्थापित हो जाती है। यदि इस विशिष्ट प्रतिजन का भविष्य में पुनः संक्रमण होता है तो प्रतिरक्षात्मक स्मृति के कारण प्रतिरक्षित तंत्र अनुक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया की तुलना में अधिक तीव्र होती है ।
  4. दीर्घकालिकता (Longevity)-किसी विशेष रोग की विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ उत्पादित होने के बाद व्यक्ति विशेष को उस खास रोग से दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करती है। क्योंकि ये प्रतिरक्षियाँ लंबी अवधि तक शरीर में बनी रहती हैं।
  5. अपने एवं पराये (Self & Non-self)-यह सिद्धांत फ्रेंक मैकफारलेन बर्नेट ने प्रतिपादित किया। उपार्जित प्रतिरक्षा प्रणाली विजातीय या पराये अणुओं की पहचान कर उनके विरुद्ध प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया दर्शाने में समर्थ होती है।

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दूसरी तरफ स्वयं के शरीर में उपस्थित अणुओं के प्रति अनुक्रिया नहीं प्रदर्शित करती है प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं (Cells of Immunne System) –
(1) लसीका कोशिकाएं (Lymphocytes)-ये सभी आरंभ में अस्थिमज्ञा की रुधिर उत्पन्न करने वाली, स्टेम सेल अथवा वृंत कोशिकाओं से व्युत्पन्न होती हैं। वृन्त कोशिकाओं का अर्थ अविभेदित कोशिकाओं से है जिनमें असीमित विखंडन हो सकता है और जो एक या अनेक प्रकार की कोशिकाओं को उत्पन्न कर सकती हैं।

अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएं बंट कर लाल रुधिर कणिकाएँ (erythrocytes), रक्त बिम्बाणु (blood platelets), एककणिकीय श्वेत रुधि कोशिकाएं (Granulocytes) व श्वेत रक्त कोशिकाएं (Monocytes) बनाती हैं। ये श्वेत रुधिर कोशिकाओं से व्युत्पन्न होती हैं। प्रतिरक्षण कार्य करने के लिए उत्तरदायी मुख्य कोशिकीय प्रकार लसीका कोशिकाएं हैं। लगभग 1012 लसीका कोशिकाएं परिपक्व लसीका प्रणाली का निर्माण करती हैं।

कार्य के अनुसार इन्हें दो भागों में बांटा गया है-
(क) B कोशिकाएं या B लसीका कोशिकाएं
(ख) T कोशिकाएं या T लसीका कोशिकाएं
आकृति के आधार पर इन कोशिकाओं में भेद नहीं किया जा सकता है लेकिन क्रियात्मक रूप से ये भिन्न होती हैं। प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाओं में विशिष्ट कोशिका सतही संकेतक की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर भेद किया जा सकता है ।
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(क) B कोशिकाएं (B-लसीका कोशिकाएं एवं इनकी उत्पत्ति)
‘B’ Bursa बर्सा (श्लेषपुटी) के लिए प्रयुक्त होता है। पक्षियों पर किये गये अध्ययन से पता चलता है कि पक्षियों में पाया जाने वाला फेब्रिसियस की श्लेषपुटी पश्च आहार नली का लसीका अंग एंटीबॉडी कोशिकाओं के आरंभिक विकास का स्थान था। इन कोशिकाओं को B-कोशिकाएं कहा जाता है। (B की व्युत्पत्ति Bursa of Fabricius से हुई है)।

B- कोशिकाएं अस्थिमज्जा में परिपक्व होती हैं और तत्पश्चात् रक्त द्वारा परिधीय लसीका अंगों को ले जायी जाती हैं। स्तनधारियों में B-कोशिका वंश आरंभ में भ्रूणीय यकृत में उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया मानव गर्भावस्था के आठवें सप्ताह में प्रारंभ होती है। भ्रूणीय यकृत B- कोशिकाओं के उत्पादन का प्रमुख स्थान है और गर्भावस्था के 4 से 6 माह तक बना रहता है। स्टेम कोशिकाएं फिर अस्थि मज्ञा में बस जाती हैं। इसके बाद उम्र भर B- कोशिकाएं अनवरत रूप से अस्थि मज्ञा में उत्पन्न होती रहती हैं।

B कोशिकाओं के प्रमुख कार्य –

  • एन्टीबॉडी माध्यमित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रारंभ करना
  • एन्टीबॉडी बनाने वाली प्लाज्मा कोशिकाओं में रूपान्तरित होना।

कोशिकाओं के विशिष्ट लक्षण :

  1. B कोशिकाएं इम्यूनोग्लोब्यूलिन को अपनी कोशिका झिल्ली के एकीकृत प्रोटीन के रूप में दर्शाती हैं।
  2. यह सतही इम्यूनोग्लोब्यूलिन (एंटीबॉडी) इसके विशिष्ट (ऐन्टीजन) प्रतिजन के लिए अभिग्राहक का काम करती है।
  3. B कोशिकाएं एंटीबॉडी के निर्माण के लिए उत्तरदायी हैं। सक्रियत B कोशिकाएं प्लाज्मा कोशिकाओं में परिवर्तित होती हैं।
  4. B-कोशिकाओं की कुछ संततियां प्लाज्मा-कोशिकाओं में विभेदित नहीं होती हैं, वरन् स्मृति कोशिकाएं (Memory Cells) बन जाती हैं जो प्रतिजन के भविष्य में पुनः प्रकट होने की स्थिति में ऐंटीबॉडी बनाती हैं।
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(ख) T-कोशिकाएँ (T-लसीका-कोशिकाएँ )-Bकोशिकाओं के विपरीत दूसरी लसीका कोशिकाएं भूणीय अवस्था या जीवन की आरंभिक अवस्था में अस्थि मज्ञा छोड़ देती हैं। ये थाइमस में ले जायी जाती हैं। इस अंग में परिपक्व होती हैं तदुपरांत परिधीय लसीका (लिम्फ) अंगों की ओर गमन करती हैं। ये कोशिकाएं द्वितीय लसीका कोशिकीय वर्ग का निर्माण करती हैं जिन्हें T- लसीका कोशिकाएँ या T-कोशिकाएँ कहते हैं। T की व्युत्पत्ति थाइमस (Thymus) से हुई है। लेकिन B-कोशिकाओं की भाँति इनका भी परिधीय लसीका-अंगों में सूत्री विभाजन होता है और संतति कोशिकाएँ मूल T कोशिकाओं के समरूप होती हैं।

T-कोशिकाओं के कार्य –

  1. प्रतिरक्षण प्रतिक्रिया का नियमन
  2. कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा-अनुक्रिया की मध्यस्थता।
  3. प्रतिरक्षा बनाने के लिए B कोशिकाओं को प्रेरित करना।

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T कोशिकाओं को उनकी क्रियाशीलता के अनुसार तीन वर्गों में विभाजित किया गया है –

  1. सहायक T कोशिकाएँ (TH) -B कोशिकाओं की अनुक्रिया को बढ़ाती हैं जिससे ऐंटीबॉडी का निर्माण होता है। अन्य T कोशिकाओं को क्रियाशील बनाती हैं।
  2. कोशिका विष T कोशिकाएं (TC) – ये विषाणुओं से संक्रमित व अबुर्द कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
  3. संदमक T कोशिकाएं (TS) – ये सहायक T कोशिकाओं और संभवतः B कोशिकाओं का दमन करती हैं और B कोशिकाओं की क्रियाशीलता का नियमन करती हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि T कोशिकाएँ दो सामान्य प्रकार के प्रतिरक्षी कार्य करती हैं –

  • प्रभावकारक
  • नियामक

संरचनात्मक रूप से, T कोशिकाओं को कुछ विशिष्ट सतही अणुओं (T कोशिका अभिग्राहकों) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर विभेदित किया जाता है। B कोशिकाएं व T कोशिकाएं एकदूसरे के लिए सहयोगी हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है –
(1) कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा-कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा के लिए T कोशिकाओं का एक उपसमूह T मारक कोशिकाएं अथवा कोशिका विष T कोशिकाएं जिम्मेदार हैं। T- मारक कोशिकाएं एक ऐसे पदार्थ का निर्माण करती हैं जो पर्फोरिन्स प्रोटीन से निर्मित होता है। इसकी सहायता से लक्ष्य कोशिकाओं की कोशिका कला को घोल कर उसमें छिद्र उत्पन्न करके नष्ट कर दिया जाता है ।
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किसी रोगजनक परजीवी या प्रतिजन के किसी जंतु की कोशिका को संक्रमित करने पर विशिष्ट प्रकार की T संवेदी कोशिका उस प्रतिजन के प्रतिजनी निर्धारक स्थलों के संपर्क में आती है। यह कोशिका अब क्लोन बनाने का कार्य प्रारंभ कर देती है। सक्रिय लसीका कोशिकाओं द्वारा लिम्फोकाइन्स पदार्थ मुंक्त किये जाते हैं।

इन लिम्फोकाइन्स को इन्टरल्यूकिन्स भी कहते हैं। ये लिम्फोकाइन्स नियमनकारी प्रोटीन्स होते हैं जो वृहत् भक्षकाणुओं की कोशिका भक्षण क्रिया, इनकी संख्या एवं समूहन क्षमता में वृद्धि करते हैं जिसके फलस्वरूप संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रतिरक्षा की सहायता से धीरे-धीरे बढ़ने वाले रोगों से सुरक्षा की जाती है जैसे कैंसर, तपेदिक, कुष्ठ, ब्रुसैलोसिर्स, कैन्डीडियासिस, रिकैटशिया आदि।

(2) तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा-इस प्रकार की प्रतिरक्षा में शरीर में प्रवेश होने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं तथा विषैले पदार्थों के प्रभाव को नष्ट करने हेतु अलग-अलग प्रकार की B-लसीका कोशिका निर्धारित होती हैं। किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमणकारी जीव या विष पदार्थ को नष्ट करने के लिए विशेष प्रकार की लसिकाणु विशिष्ट ग्लोब्यूलिन प्रोटीन उत्पन्न करती है।

ये प्रोटीन रुधि, लसीका तथा ऊतक द्रव्य में से होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों का नाश करती हैं। ऐसी प्रोटीन्स प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स प्रकृति की होती हैं व प्रतिरक्षी या प्रतिपिंड कहलाती हैं।

चूंकि इन प्रतिपिंडों एवं प्रतिजनों के मध्य विशिष्ट अंतक्रिया सामान्यतः रक्त या लसीका जैसे तरल माध्यम से होती है इसलिए इसे तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा कहते हैं। प्रतिरक्षी अणु ( एंटीबॉडी) की संरचना (Structure of Antibody)-यह जटिल ग्लाइको प्रोटीन से मिलकर बना अणु होता है जिसमें चार पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ दो भारी ( 440 अमीनो अम्ल) तथा दो हल्की श्रृंखला ( 220 अमीनो अम्ल) आपस में डी-सल्फाइड बंध द्वारा मुड़कर Y आकृति बनाती हैं, देखिए नीचे चित्र में। एंटीबॉडी को H2 L2 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 21
यह अणु शीर्ष पर उपस्थित दो बिंदुओं पर एंटीजन (बड़ा और जटिल बाह्य अणु, मुख्य रूप से प्रोटीन जो विशिष्ट प्रतिरक्षा को सक्रिय करता है) से ताला-कुंजी (Lock \& Key) के सिद्धांत के अनुसार जुड़कर एंटीजन एंटीबॉडी कॉम्पलेक्स बनाता है। एंटीबॉडी का पुच्छीय भाग (Tail portion) भारी श्रृंखला से बना होता है, यह स्थिर खण्ड कहलाता है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी उत्पन्न किये जाते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं- IgA IgM}, IgE एवं lg।

अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplanation)-जब शरीर के किसी अंग का संतोषजनक रूप से काम करना बंद कर दे अथवा दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण, एकमात्र उपचार प्रत्यारोपण होता है। इन अंगों के स्थान पर किसी उपयुक्त दाता से प्राप्त स्वस्थ अंग को आरोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया को अंग प्रत्यारोपण कहते हैं।

हृदय, नेत्र, वृक्क, यकृत, अग्नाशय, फेफड़े आदि अंगों का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया जाता है। अंग प्रत्यारोपण की सफलता शरीर कोशिकाओं पर उपस्थित मुख्य ऊतक संयोज्यता प्रतिजनों के मध्य उचित मिलान (Proper matching) होने पर निर्भर करती है।

मानव में ये प्रतिजनी पदार्थ मानव श्वेताणु प्रतिजन कहलाते हैं। मानव श्वेताणु प्रतिजन जीन के युग्मविकल्पी सहप्रभावी होते हैं। इन जीन्स के उत्पाद दाता व ग्राही के ऊतकों के मध्य ऊतक संयोज्यता का निर्धारण करते हैं। अंग प्रत्यारोपण को कई बार ग्राही द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है क्योंकि ग्राही के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा प्रत्यारोपित अंग को प्रोटीन्स की पराये या विजातीय की तरह पहचान की जाती है व

ग्राही का प्रतिरक्षा तंत्र उसके विरुद्ध प्रतिपिंड (Antibodies) उत्पन्न करने लगता है और कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा द्वारा प्रत्यारोपित अंग को अस्वीकार कर दिया जाता है। ऊतक अस्वीकार्यता को रोकने हेतु ग्राही को प्रतिरक्षी क्रिया दमनक औषधियाँ (Immuno Suppressive drugs) दी जाती हैं। वृक्क, हदय एवं यकृत प्रत्यारोपण के समय साइक्लोस्पोरीन नामक औषधि दी जाती है जो कि T कोशिकाओं की क्रियाशीलता को रोकती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 16.
‘टाइफॉयड’ रोग का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए-
(i) रोगजनक का नाम
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम
(iii) संक्रमण का तरीका
(iv) रोग के चार प्रमुख लक्षण
(v) प्रतिरक्षी अणु की संरचना का चित्र ।
उत्तर:
(i) साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi)
(ii) विडाल परीक्षण ( Widal test)
(iii) यह रोगजनक आमतौर से संदूषित (contaminated) भोजन और पानी द्वारा छोटी आंत में प्रवेश कर जाता है और वहाँ से रुधिर द्वारा शरीर के अंगों में पहुँच जाता है।
(iv) रोग होने पर निरन्तर उच्च ज्वर (39 से 40 सेंटी.) आना, कमजोरी, आमाशय में पीड़ा, कब्ज, सिरदर्द, भूख न लगना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। गंभीर अवस्था में आंत्र में छेद और मृत्यु भी हो सकती है ।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 8

प्रश्न 17.
‘एड्स’ रोग का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए-
(i) रोगजनक का नाम
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम
(iii) रोग के चार प्रमुख लक्षण
(iv) रोकथाम के चार उपाय
(v) पश्च विषाणु की प्रतिकृति का चित्र |
उत्तर:
(i) यह रोग HIV के कारण होता है। HIV का पूरा नाम Human immuno deficiency Virus विषाणु है।
(ii) एड्स परीक्षण हेतु एलीसा टेस्ट (Elisa test) किया जाता मानव प्रतिरक्षा न्यूनता हैं।
(iii) (क) शरीर में प्रतिरक्षा क्षमता कम हो जाती है।
(ख) संक्रमित व्यक्ति में थकावट, ज्वर, सिरदर्द, खांसी आदि प्रारम्भिक लक्षण होते हैं।
(ग) लिम्फ ग्रन्थियों (Lymph glands) में सूजन आ जाती है।
(घ) सामान्य उपचार के बाद ठीक न होना।

(iv) (क) रुधिर आधान के समय यह जाँच कर लेनी चाहिए कि रुधिर HIV मुक्त हो ।
(ख) लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने में सावधानी रखनी चाहिए, कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।
(ग) दाढ़ी बनाने के लिए सदैव अपना ही ब्लैड प्रयुक्त करना चाहिए।
(घ) इंजेक्शन की सुई का प्रयोग एक बार ही करना चाहिए।
(v) पश्चविषाणु की प्रतिकृति का चित्र [नोट- यह चित्र निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 6 के उत्तर में देखें ।]

प्रश्न 18.
प्रतिरक्षा ( इम्यूनिटी) से क्या तात्पर्य है ? सहज प्रतिरक्षा के चार रोध कौन-कौन से हैं? समझाइए । प्रतिरक्षी अणु की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
प्रतिरक्षा (Immunity) – शरीर में रोग या रोगाणुओं से लड़कर स्वयं को रोग से सुरक्षित बनाये रखने की क्षमता को प्रतिरक्षा (Immunity) कहते हैं। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं। जैसे-
(1) कार्यिकीय रोध (फीजियोलॉजिकल बैरियर) – आमाशय में अम्ल, मुँह में लार, आँखों में आँसू, ये सभी रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं।

(2) शारीरिक रोध (फिजिकल बैरियर) – हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है। श्वसन, जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेटाइनल) और जननमूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा आलेप (म्यूकस कोटिंग) भी शरीर में घुसने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है।

(3) कोशिकीय रोध (सेल्युलर बैरियर) – हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केंद्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पी एम एन एल- न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेंद्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊतकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।

(4) साइटोकाइन रोध-विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ इंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्रवण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु संक्रमण से बचाती हैं।

प्रश्न 19.
एड्स शब्द का पूरा नाम लिखिए। इस रोग के कारक वाइरस को किस नाम से जाना जाता है? एड्स रोग के लक्षण व रोकथाम के उपाय बताइये। एड्स वाइरस की प्रतिकृति का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
एड्स शब्द का पूरा नाम उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिन्ड्रोम) है। इस रोग के कारक वाइरस को एच आई वी (ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के नाम से जाना जाता है। एड्स रोग में व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है जिससे वह कई गम्भीर रोगों से ग्रसित हो जाता है।

जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं –

  • रोगी को लगातार बुखार आना ।
  • लम्बे समय तक लगातार खाँसी आना ।
  • शरीर का भार कम होना ।
  • लसीका गांठों में सूजन आना।
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना ।

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एड्स रोग के रोकथाम के उपाय –

  • एच आई वी संक्रमण से युक्त व्यक्ति के साथ कोई भी यौन सम्पर्क नहीं होना चाहिए।
  • डिस्पोजल ( एक बार प्रयोगी) सूइयों का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • जरूरतमंद व्यक्ति के लिए चढ़ाया जाने वाला रक्त, HIV रोगाणु मुक्त होना चाहिए।
  • वेश्यागमन तथा समलैंगिकता से बचना चाहिए।
  • कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए ।
  • एड्स पीड़ित स्त्री को माँ नहीं बनने देना चाहिए।
  • समष्टि में एच आई वी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना ।
  • इस रोग के फैलाव को समाज और चिकित्सक वर्ग के सम्मिलित प्रयास से रोका जा सकता है।

पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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प्रश्न 20.
(i) प्रतिरक्षा किसे कहते हैं?
(ii) सक्रिय प्रतिरक्षा एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर लिखिए ।
(iii) निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण को समझाइए ।
(iv) मच्छर परपोषी में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की अवस्थाओं का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
(i) प्रतिरक्षा (Immunity ) – शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरक्षा कहलाती है।
(ii) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर (Difference between Active and Passive Immunity)-

सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity) निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity)
1. जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणुओं या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। 1. जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है।
2. सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है। 2. जबकि निष्क्रिय प्रतिरक्षा तेज होती है।
3. यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। 3. यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय नहीं लेती है।
4. यह पूरे जीवन कार्य करती है। उदाहरण-मानव में चेचक रोग के प्रति प्रतिरक्षा। 4. इसका प्रभाव कुछ समय के लिए होता है। उदाहरण-मानव में सांप के जहर (वेनम), टिटेनस, रैबीज रोग के टीकाकरण द्वारा प्रतिरक्षा।

(iii) निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण (Passive Immunity) – कुछ रोगों से बचाव के लिए प्रयोगशाला में उपयुक्त एण्टीबॉडीज तैयार करके, रोग की सम्भावना से पहले ही शरीर में इंजैक्ट कर दिये जाते हैं। ये कुछ समय के लिए शरीर में सक्रिय बने रहते हैं। यदि इस बीच सम्बन्धित रोगाणु या एण्टीजेन्स शरीर में पहुंच जाते हैं तो ये एण्टीबॉडीज इन्हें नष्ट कर देते हैं। इसे शरीर की निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहते हैं ।

यह विधि टिटेनस, पोलियो, हिपैटाइटिस से प्रतिरक्षा में काम आती है। माता के रुधिर परिसंचरण से एण्टीबॉडीज ऑवल या अपरा (placenta ) द्वारा गर्भस्थ शिशु को प्राप्त होती है। नवजात शिशु को माता के दुग्धपान द्वारा निष्क्रिय प्रतिरक्षा मिलती है। इसमें IgA एण्टीबॉडीज होती है।

शिशु जन्म के पश्चात् पहली बार बच्चे को दूध जैसा पदार्थ कोलस्ट्रम (colstrum) इसीलिए दिया जाता है कि उसमें IgA एण्टीबॉडीज प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है। ये शिशु की किसी भी रोग के रोगाणुओं के संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा सुरक्षा प्रदान करती है। इस प्रकार निष्क्रिय प्रतिरक्षा उपार्जित प्रतिरक्षा होती है।

(iv) मच्छर परपोषी में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की अवस्थाओं का नामांकित चित्र-
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(i) कैंसर रोग के कारण लिखिए।
(ii) कैंसर अभिज्ञान को समझाइए ।
(iii) लसीका तंत्र का आरेखीय चित्र बनाइए ।
उत्तर:
(i) कैंसर रोग के कारण (Causes of Cancer) – इस रोग में कोशिका विभाजन अनियन्त्रित, अनियमित तथा तीव्र गति से होता है। ये कोशिकाएँ न तो क्रियाकारी (functional) होती हैं और न इनका विभेदीकरण (differentiation) होता है। ये कोशिकाएँ अन्य कोशिकाओं को पोषक पदार्थों को ग्रहण नहीं करने देतीं, जिससे उनकी मृत्यु होने लगती है। इस प्रकार के तीव्र कोशिका विभाजन से उस स्थान विशेष पर गाँठ या अर्बुद (tumour) बन जाती है।

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शरीर में कोशिका वृद्धि तथा विभेदन अत्यन्त नियमित एवं नियन्त्रित क्रिया विधि के द्वारा होता है। प्रसामान्य कोशिकाओं में यह गुण जिसे संस्पर्श संदमन (contact inhibition) कहते हैं, दूसरी कोशिकाओं की अनियन्त्रित वृद्धि को संदमित करता है। कैंसर कोशिकाओं में इस प्रकार का संदमन समाप्त हो जाता है।

कैंसर का कारण कोशिकाओं में उपस्थित ऑन्कोजीन्स (onchogenes) का सक्रिय होना माना जाता है। यद्यपि ऑन्कोजीन्स सभी कोशिकाओं में होती हैं, किन्तु सामान्यतः ये निष्क्रिय होती हैं। किसी विशेष कारण से वे सक्रिय हो सकती हैं। इन कारणों में क्रोमियम, निकिल, एस्बेस्टॉस, धुआँ, कोलतार, तम्बाकू अथवा कुछ विषाणु आदि कारक हो सकते हैं।

(ii) कैंसर का अभिज्ञान (Cancer detection) – कैंसर का अभिज्ञान ऊतकों का जीवतिपरीक्षा (Biopsy) और ऊतक विकृति (Histopathological) अध्ययनों तथा बढ़ती कोशिका गणना के लिए रुधिर (Blood) तथा अस्थिमज्जा (Bonemarro) पर आधारित है। जैसाकि अधिश्वेतरक्तता (Lukemias) के मामले में होता है जीवूतिपरीक्षा (biopsy) में जिस ऊतक पर शंका होती है, उसका एक टुकड़ा लेकर पतले अनुच्छेदों (Sections) में काटकर अभिरंजित करके रोगविज्ञानी (Pathologist) परीक्षण किया जाता है।

आन्तरिक अंगों (Internal organs) के कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण चित्रण (Radiography), अभिकलित टोमोग्राफी (Computed Tomography) एवं चुम्बकीय अनुनादी इमेजिंग (MRI- Magnetic resonance imaging) तकनीकें बहुत उपयोगी हैं। अभिकलित टोमोग्राफी एक्स किरणों का उपयोग करके किसी अंग के भीतरी भागों की त्रिविम प्रतिबिंब (Three-dimensional image) बनाती है।

जीवित ऊतक में वैकृतिक (Pathological) और कार्यिकीय (Physiological) परिवर्तनों का सही पता लगाने के लिए एम.आर.आई. में तेज चुम्बकीय क्षेत्रों और अनायनकारी विकिरणों का उपयोग किया जाता है। कुछ कैंसरों का पता लगाने के लिए कैंसर विशिष्ट प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षियों (Antibodies) का भी उपयोग किया जाता है।

कुछ कैंसरों के प्रति वंशागत सुग्राहिता वाले व्यक्तियों में जीनों का पता लगाने के लिए आण्विक (Molecular) जैविकी की तकनीकों को काम में लाया जाता है। ऐसे जीनों की पहचान, जो किसी व्यक्ति को विशेष कैंसरों के प्रति प्रवृत्त (Predispose) करते हैं, कैंसर की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कुछ ऐसे विशेष कैंसरजनों से, जिनके प्रति वे सुग्राही हैं, जैसे फुफ्फुस कैंसर में तंबाकू के धुएँ से बचने की सलाह देनी चाहिये।

(iii) लसीका तंत्र का आरेखीय चित्र-
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प्रश्न 21.
पश्च विषाणु की प्रतिकृति का चित्र बनाइए। एड्स रोगजनक का पूरा नाम लिखिए। इसका संकरण कैसे होता है? मानव शरीर में एड्स के लक्षणों को समझाइए।
उत्तर:
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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एड्स रोगजनक का नाम-
HIV =  Human Immuno Deficiency Virus प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु
रोग का संचरण – एचआईवी सामान्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य एवं योनि स्त्रावों में उपस्थित रहते हैं। अतः इनका संचरण ऐसी क्रियाओं के माध्यम से होता है जिनसे ये द्रव स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। सामान्यतः रोग का संचरण लैंगिक तथा रक्त संपर्क से होता है। एचआईवी का संचरण निम्न माध्यमों द्वारा होता है –

  • समलैंगिक व्यक्तियों के बीच गुदा मैथुन क्रिया द्वारा।
  • संक्रमित व्यक्ति के रक्त आधान।
  • एक ही सुई द्वारा नशीले पदार्थों का उपयोग।
  • माता से शिशु में प्लेसेन्टा द्वारा।
  • संक्रमित व्यक्ति के मुँह में घाव होता है अतः ऐसे व्यक्ति का किस (Kiss ) लेने से HIV का संचरण हो जाता है।
  • संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क।

एड्स एक संक्रामक रोग है परन्तु यह छूत का रोग नहीं है। एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसके कपड़े उपयोग में लाने, शुष्क चुम्बन, बर्तनों के उपयोग से, टॉयलेट सीट के माध्यम से, पूर्ण निर्जर्मीकृत सूइयों का प्रयोग कर रक्ताधान तथा रोगी की देखभाल से एड्स का संक्रमण नहीं होता है।

मानव शरीर में एड्स के लक्षण- एड्स वास्तव में कोई एक रोग नहीं है किंतु एक ऐसी दशा है जिसमें एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को समाप्त कर देता है। जिससे वह कई रोगों से ग्रसित हो जाता है जिसके फलस्वरूप अग्र लक्षण प्रकट होते हैं –

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना
  • लसीका गांठों का फूलना
  • लंबे समय तक लगातार खाँसी होना
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना
  • त्वचा पर कैंसर के लक्षण।

अथवा
टाइफाइड के रोगजनक का नाम दीजिए। मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइए । उत्तर- टाइफाइड ज्वर का रोगजनक साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) नामक जीवाणु है। मलेरिया परजीवी या प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र – जब संक्रमित मादा एनोफेलीज मनुष्य को काटती है तो प्लाज्मोडियम जीवाणुज अथवा स्पोरोजॉइट्स (Sporozoites) के रूप में मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। स्पोरोजॉइट्स संक्रामक रूप है।

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प्रारंभ में परजीवी यकृत में अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं और फिर लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) पर आक्रमण करते हैं जिसके फलस्वरूप लाल रुधिर कणिकाएँ फट जाती हैं। RBC के फटने के साथ ही एक विषैला पदार्थ भी निकलता है जिसे हीमोजोइन (Haemozoin) कहते हैं। इस पदार्थ के रुधिर से मुक्त होते ही यह मनुष्य के रुधिर के प्लाज्मा में घुल जाता है तथा इसकी वजह से ही मनुष्य को जाड़ा व कंपकंपी देकर मलेरिया बुखार चढ़ने लगता है।

जब मादा एनोफेलीज मच्छर किसी संक्रमित मनुष्य को काटती है। तब परजीवी उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उनका आगे का परिवर्धन मादा एनोफेलीज में होता है। ये परजीवी मादा एनोफेलीज में बहु संख्यात्मक रूप से बढ़ते रहते हैं और स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) बन जाते हैं जो मादा एनोफेलीज की लार ग्रंथियों (Salivary glands) में जमा हो जाते हैं।

अब यह मादा एनोफेलीज किसी स्वस्थ मनुष्य को काटती है तो स्पोरोजोइट्स उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं मनुष्य को संक्रमित कर देते हैं। इस प्रकार मलेरिया परजीवी अर्थात् प्लाज्मोडियम अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इस प्रकार प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता होती है जिन्हें मनुष्य एवं मादा एनोफेलीज कहते हैं। मनुष्य प्राथमिक एवं मादा एनोफेलीज द्वितीयक परपोषी होते हैं। मादा एनोफेलीज रोगवाहक ( Transmitting agent ) का कार्य करती है।
(चित्र के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 10 को देखिए।)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. प्लाज्मोडियम की संक्रामक अवस्था जो मानव शरीर में प्रवेश करती है- (NEET-2020)
(अ) जीवाणुज (स्पोरोजॉइट)
(स) नर युग्मकजनक
(ब) मादा युग्मकजनक
(द) पोषाणु
उत्तर:
(अ) जीवाणुज (स्पोरोजॉइट)

2. निम्न रोगों को उनके पैदा करने वाले जीवों के साथ मिलान कर सही विकल्प का चयन करो। (NEET-2020)

स्तम्भ-I स्तम्भ-II
(1) टाइफाइड (i) वुचैरिया
(2) न्यूमोनिया (ii) प्लाज्मोडियम
(3) फाइलेरिएसिस (iii) साल्मोनेला
(4) मलेरिया (iv) हीमोफिलस
कूट : (1) (2) (3) (4)
(अ) (iii) (iv) (i) (ii)
(ब) (ii) (i) (iii) (iv)
(स) (iv) (i) (ii) (iii)
(द) (i) (iii) (ii) (iv)

उत्तर:

(ब) (ii) (i) (iii) (iv)

3. प्रतिरक्षा के संदर्भ में गलत कथन को पहचानिये- (NEET-2020)
(अ) जब बने बनाये प्रतिरक्षी प्रत्यक्ष रूप से दिए जाते हैं, इसे ‘निष्क्रिय प्रतिरक्षा’ कहते हैं।
(ब) सक्रिय प्रतिरक्षा जल्दी होती है और पूर्ण प्रतिक्रिया देती है।
(स) श्रूण माता से कुछ प्रतिरक्षी प्राप्त करता है यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा का उदाहरण है
(द) जब परपोषी का शरीर (जीवित अथवा मृत) प्रतिजन के सम्पर्क में आता है और उसके शरीर में प्रतिरक्षी उत्पन्न होते हैं। इसे सक्रिय प्रतिरक्षा कहते हैं।
उत्तर:
(ब) सक्रिय प्रतिरक्षा जल्दी होती है और पूर्ण प्रतिक्रिया देती है।

4. दुग्ध स्रावण के आरम्भिक दिनों में माता द्वारा स्रावित पीला तरल कोलोस्ट्रेम नवजात में प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसमें होती है- (NEET-2019)
(अ) इम्युनोग्लोबुलिन A
(ब) प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ
(स) एक केन्द्रकाणु
(द) भक्षाणु
उत्तर:
(अ) इम्युनोग्लोबुलिन A

5. ‘हेरोइन’ नामक ड्रग कैसे संश्लेषित की जाती है? (Kerala PMT-2009, NEET-2019)
(अ) मार्फिन के नाइट्रीकरण से
(ब) मार्फिन के मिथाइलीकरण से
(स) मार्फिन के एसीटाइलीकरण से
(द) मार्फिन के ग्लाइकोसीकरण से
उत्तर:
(स) मार्फिन के एसीटाइलीकरण से

6. निम्नलिखित में से कौनसा स्वप्रतिरक्षा रोग नहीं है- (NEET-2018)
(अ) एल्जाइमर
(ब) रूमेटी संधिशोथ
(स) सोरिऐसिस
(द) विटिलिगो
उत्तर:
(अ) एल्जाइमर

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7. “स्मैक” नामक ड्रगग पोस्त पौधे के किस भाग से प्रास होती है- (NEET-2018)
(अ) जड़ों से
(ब) लैटेक्स से
(स) फूलों से
(द) पत्तियों से
उत्तर:
(ब) लैटेक्स से

8. ऊतकों/अंगों का प्रतिरोपण अधिकतर रोगी के शरीर द्वारा अस्वीकृति के कारण असफल हो जाता है। इस प्रकार के निराकरण के लिए कौनसी प्रतिरक्षी अनुक्रिया उत्तरदायी है? (NEET-2017)
(अ) स्व-प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(ब) कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(स) हॉर्मोनल प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(द) कार्यिकीय प्रतिरक्षा अनुक्रिया
उत्तर:
(ब) कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा अनुक्रिया

9. रोगों का निम्नलिखित में से कौनसा समूह जीवाणुओं द्वारा संक्रमित होता है? (NEET II-2016)
(अ) टिटेनस और गलसुआ
(ब) हर्पीज और इन्फ्लुएंजा
(स) हैजा और टिटेनस
(द) टाइफाइड और चेचक (स्मॉलॉॉक्स)
उत्तर:
(स) हैजा और टिटेनस

10. यदि आप किसी व्यक्ति में प्रतिरक्षियों की गंभीर कमी का अनुमान लगा रहे हैं तो आप पुष्टि के निम्नलिखित में से किससे प्रमाण प्रात्त करेंगे? (NEET-2015)
(अ) सीरम एल्ब्यूमिन
(ब) हीमोसाइट
(स) सीरम ग्लोब्यूलिन
(द) प्लाज्मा में फाइब्रोनोजन
उत्तर:
(स) सीरम ग्लोब्यूलिन

11. निम्नलिखित में से कौनसा रोग प्रोटोजोआ के कारण होता है? (NEET-2015)
(अ) इन्फ्लूएंजा
(ब) बैबसिओसिस
(स) ब्लास्टोमाइकोसिस
(द) सिफलिस
उत्तर:
(ब) बैबसिओसिस

12. वह कौनसा विशेष प्रकार का मादक द्रव्य है जो उस पौधे से प्रास होता है जिसकी एक पुष्पित शाखा नीचे दिखाई गई है? (NEET-2014)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 11
(अ) हेलुसिनोजन
(ब) अवनमक
(स) उद्दीपक
(द) दर्द-निवारक
उत्तर:
(अ) हेलुसिनोजन

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13. एस्केरिस का संक्रमण सामान्यतः किसके कारण होता है? (NEET-2013)
(अ) एस्केरिस के अण्डों से युक्त जल के पीने के कारण
(ब) अपूर्ण रूप से पकाए गये सूअर के मांस को खाने के कारण
(स) सेट्सी मक्खी द्वारा
(द) मच्छर के काटने से
उत्तर:
(अ) एस्केरिस के अण्डों से युक्त जल के पीने के कारण

14. मानव शरीर में कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा किसके द्वारा कार्यान्वित होती है? (NEET-2013)
(अ) T – लिम्फोसाइट्स द्वारा
(ब) B – लिम्फोसाइट्स द्वारा
(स) श्रोम्बोसाइट्स द्वारा
(द) रक्ताणुओं द्वारा
उत्तर:
(अ) T – लिम्फोसाइट्स द्वारा

15. यकृत (जिगर) का सिरोसिस रोग किसके लगातार सेवन से होता है? (NEET-2012)
(अ) अफीम
(ब) एल्कोहॉल
(स) तम्बाकू (चबाना)
(द) कोकीन
उत्तर:
(ब) एल्कोहॉल

16. नीचे दिखाये जा रहे अणुओं (A) तथा (B) को पहचानिये तथा उनके स्रोत एवं उपयोग के विषय में सही विकल्प चुनिये- (Mains-2012)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 12

विकल्प : आद्न स्रोत उपयोग
(अ) (A) कोकीन एरिथ्रोजायलम कोका डोपैमीन के परिवहन को तीव्रतर बना देती है।
(ब) (B) हेरोइन कैनेबिस सैटाइवा शामक तथा देह कार्यों को धीमा करती है।
(स) (C) कैनेबिनॉइड ऐट्रेपा बेलाडोना विभ्रम पैदा करता है।
(द) (D) मॉर्फीन पैपेवर सोम्नीफेरम शामक तथा पीड़ानाशक

उत्तर:

(द) (D) मॉर्फीन पैपेवर सोम्नीफेरम शामक तथा पीड़ानाशक

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

17. विडाल टेस्ट द्वारा किसकी पहचान की जाती है- (NEET-2012)
(अ) मलेरिया
(ब) मधुमेह
(स) HIV/AIDS
(द) टाइफाइड ज्वर
उत्तर:
(द) टाइफाइड ज्वर

18. सामान्य जुकाम प्रतिजैविकों द्वारा सही नहीं होती है क्योंकि यह- (NEET-2011)
(अ) संक्रमण रोग नहीं है
(ब) विषाणु द्वारा होती है
(स) ग्राम – धनात्मक जीवाणु द्वारा होता है
(द) ग्राम – ऋणात्मक जीवाणुओं द्वारा होता है
उत्तर:
(ब) विषाणु द्वारा होती है

19. एक रोगी के एक्वायर्ड इम्यूनो डेफीशिएन्सी सिण्डूरम से पीड़ित होने का संदेह है। इसकी पुष्टि हेतु आप किस नैदानिक तकनीक का सुझाव देंगे? CBSE, 2011)
(अ) MRI
(ब) अल्ट्रासाठण्ड
(स) विडाल
(द) ELISA
उत्तर:
(द) ELISA

20. मलेरिया परजीवी के स्पोरोजॉएट (Sporozoites) हेतु आप कहाँ देखेंगे? (CBSE, 2011)
(अ) मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति की लाल रुधिर कणिकाओं में
(ब) संक्रमित मनुष्य की प्लीहा में
(स) ताजे निर्मोचित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार ग्रंथियों में
(द) संक्रमित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार में
उत्तर:
(द) संक्रमित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार में

21. निम्नलिखित में से किसके निदान हेतु विडाल परीक्षण का प्रयोग किया जाता है? (CBSE, 2010)
(अ) मलेरिया
(ब) न्यूमोनिया
(स) ट्यूबरकुलोसिस
(द) टायफॉइड
उत्तर:
(द) टायफॉइड

22. एड्स के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है? (CBSE, 2010)
(अ) एच आई वी किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ भोजन करने से संचारित हो सकता है।
(ब) ड्राग्स के आदी व्यक्ति एच आई वी संक्रमण के प्रति सबसे कम सुग्राह्य होते हैं।
(स) उचित देखभाल तथा पोषण के द्वारा एड्स के रोगियों का पूर्ण रूप से शत प्रतिशत उपचार किया जा सकता है।
(द) रोगकारी एच आई वी रिट्रोविषाणु सहायक टीलिम्फोसाइटस में प्रवेश कर जाता है तथा उनकी संख्या को घटा देता है।
उत्तर:
(द) रोगकारी एच आई वी रिट्रोविषाणु सहायक टीलिम्फोसाइटस में प्रवेश कर जाता है तथा उनकी संख्या को घटा देता है।

23. निम्नलिखित कथनों में से सही कथन का चयन कीजिए- (CBSE, 2010)
(अ) जब अपराधियों को शमनकारक औषधियाँ दी जाती हैं तो वे सत्य बोलने लगते हैं।
(ब) ऐसे व्यक्ति जिनकी शल्य-चिकित्सा की गई हो, उन्हें दर्द-निवारक के रूप में प्रायः मॉर्फीन दी जाती है।
(स) तम्बाकू चबाने से रक्त दाब तथा हुदय दर कम हो जाते हैं।
(द) शल्य चिकित्सा के उपरांत रोगी को कोकेन दिया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य की पुनः प्राप्ति (Recovery) को प्रेरित करता है।
उत्तर:
(ब) ऐसे व्यक्ति जिनकी शल्य-चिकित्सा की गई हो, उन्हें दर्द-निवारक के रूप में प्रायः मॉर्फीन दी जाती है।

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24. ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) के लिए कौनसा टीका प्रयुक्त किया जाता है? (AFMC, 2010)
(अ) BCG
(ब) DPT
(स) TT
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) BCG

25. मनुष्य में दाद (Ringworm) नामक रोग उत्पन्न होता है- (CBSE, 2010)
(अ) जीवाणु द्वारा
(ब) कवक द्वारा
(स) निमेटोड द्वारा
(द) विषाणु द्वारा
उत्तर:
(ब) कवक द्वारा

26. निम्नलिखित में से किसमें प्रति हिस्टेमाइन तथा स्टीरॉएड का प्रयोग तुरन्त आराम देता है? (CBSE, 2009)
(अ) एलर्जी
(ब) मतली
(स) खाँसी
(द) सिरदर्द
उत्तर:
(अ) एलर्जी

27. एण्ट अमीबा हिस्टोलाइटिका की संक्रामक अवस्था होती है- (RPMT, 2009)
(अ) ट्राफोज्वॉइट अवस्था
(ब) द्विकेन्द्रकीय पुटी अवस्था
(स) चतुष्केन्द्रकीय पुटी अवस्था
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) चतुष्केन्द्रकीय पुटी अवस्था

28. निम्नलिखित में से कौनसा युग्म विषाणु जनित रोगों को प्रदर्शित करता है? (CBSE, 2009)
(अ) दाद एड्स
(ब) सामान्य शीत, एड्स
(स) अतिसार, सामान्य शीत
(द) टायफॉइड ट्यूबरकुलोसिस
उत्तर:
(ब) सामान्य शीत, एड्स

29. शिशु को कोलोस्ट्रम (colostrum) देने पर कौनसी प्रतिरक्षा प्रणाली उत्पन्न होगी- (AMU, 2009)
(अ) ऑटो प्रतिरक्षा
(ब) अक्रिय प्रतिरक्षा
(स) सक्रिय प्रतिरक्षा
(द) स्वाभाविक प्रतिरक्षा
उत्तर:
(ब) अक्रिय प्रतिरक्षा

30. निम्नलिखित में से कौनसा कथन सत्य है? (CBSE, 2009)
(अ) शल्य चिकित्सा वाले रोगियों को दर्द निवारण हेतु कैनेबिनाएँड दिये जाते हैं।
(ब) बेनाइन ट्यूमर, मेटास्टेसिस दर्शाते हैं।
(स) हेरोइन शरीर क्रियाओं में वृद्धि करती है।
(द) मैलिग्नेण्ट ट्यूमर मेटास्टेसिस प्रदर्शित करते हैं।
उत्तर:
(द) मैलिग्नेण्ट ट्यूमर मेटास्टेसिस प्रदर्शित करते हैं।

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31. एच.आई ,वी. घटाता है- (BHU 2000, 2008)
(अ) केवल T- सहायक कोशिकाओं को
(ब) सभी T- कोशिकाओं को
(स) केवल B-कोशिकाओं को
(द) दोनों B एवं T- कोशिकाओं को
उत्तर:
(अ) केवल T- सहायक कोशिकाओं को

32. मनुष्य में कार्डियोवेस्कुलर प्रभाव को बढ़ाने में उपयोगी ड्रग है- (J\&KCET, 2008)
(अ) कोकीन
(ब) बार्बीट्यूरेट
(स) बेजोडायजेपिन
(द) इन्सुलिन
उत्तर:
(अ) कोकीन

33. मुँह की लार तथा आँखों से निकले आँसू, सहज प्रतिरक्षा के अन्तर्गत किस रोधी प्रारूप के वर्ग में आते हैं? (NEET-2008)
(अ) कार्यिकी रोधी
(ब) भौतिक रोधी
(स) साइटोकाइनिन रोधी
(द) कोशिकीय रोधी
उत्तर:
(अ) कार्यिकी रोधी

34. किसी विशिष्ट मनोवृत्ति औषधि के विषय में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन सही है? (NEET-2008)
(अ) मार्फीन से भ्रांतियाँ पैदा होती हैं एवं गलत भावनाएँ आने लगती हैं
(ब) बार्बिट्यूरेटा से विश्रांति तथा अस्थाई सुख-बोध पैदा होता है
(स) भांग से अनुबोध अवगम तथा विभ्रम पैदा होता है
(द) अफीम से तंत्रिका तंत्र उत्तेजित होता है तथा विभ्रम पैदा होता है
उत्तर:
(स) भांग से अनुबोध अवगम तथा विभ्रम पैदा होता है

35. कैंसर की कोशिकाएं आसानी से विकिरणों द्वारा नष्ट की जा सकती हैं, इसका कारण है- (RPMT, 2007)
(अ) तीव्र कोशिका विभाजन
(ब) पोषण की कमी
(स) तेज परिवर्तन
(द) ऑक्सीजन की कमी
उत्तर:
(स) तेज परिवर्तन

36. यदि आपको किसी व्यक्ति में प्रतिपिण्डों (एण्टीबॉडीज) के बड़े अभाव का शक है तो आप निम्नलिखित में से किसका पुष्टीकरण प्रमाण जानना चाहेंगे? (CBSE, 2007)
(अ) सीरम एल्बुमिनो का
(ब) सीरम ग्लोब्यूलिनो का
(स) प्लाज्मा में फाइब्रिनोजेन का
(द) रुधिराणुओं का
उत्तर:
(ब) सीरम ग्लोब्यूलिनो का

37. उपार्जित प्रतिरक्षा की विशेषता है- (DPMT, 2007)
(अ) एण्टीजन की विशेषता
(ब) विभेदन करना (सेल्फ तथा नॉन-सेल्फ एण्टीजन)
(स) स्मृति को बनाये रखना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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38. कुछ खास ऋतुओं में बढ़ते जाते दमा रोग का सम्बन्ध किससे होता है? (NEET-2007)
(अ) घटता तापमान
(ब) गर्म एवं नमी वाला पर्यावरण
(स) टिन के डिब्बों में परिलक्षित फलों का खाना
(द) ऋतुपरक पराग का सांस द्वारा भीतर जाना
उत्तर:
(द) ऋतुपरक पराग का सांस द्वारा भीतर जाना

39. हमारे शरीर में एंटीबॉडीज (प्रतिपिण्ड) किसके सम्मिश्र होते हैं? (NEET-2006)
(अ) लाइपोप्रोटीन्स
(ब) स्टेरॉयड्स
(स) प्रोस्टेलैडिन्स
(द) ग्लाइकोप्रोटीन्स
उत्तर:
(द) ग्लाइकोप्रोटीन्स

40. एस्केरिस पाया जाता है- (RPMT, 2004)
(अ) देहगुहा में
(ब) लिम्फनोड में
(स) ऊतक में
(द) आहार नाल में
उत्तर:
(द) आहार नाल में

41. ह्यूमोरल प्रतिरक्षा का कारण होता है। (Orrisa PMT, 2004)
(अ) B – लिम्फोसाइट्स
(ब) T- लिम्फोसाइट्स
(स) L – {लिम्फोसाइट्स}
(द) P-लिम्फोसाइट्स
उत्तर:
(अ) B – लिम्फोसाइट्स

42. प्लाज्मोडियम की मानव को संक्रमित करने वाली अवस्था है- (RPMT, 2004)
(अ) स्पोरोज्वॉइट
(ब) ट्रोफोज्वॉइट
(स) गैमीटोसाइट्स
(द) मीरोज्वाइट
उत्तर:
(अ) स्पोरोज्वॉइट

43. T – कोशिकायें एक प्रकार की लिम्फोसाइट्स होती हैं जो कि कोशिकीय प्रतिरक्षा उत्पन्न करती हैं। ये कोशिकाएँ किससे उत्पन्न होती हैं- (MP PMT, 2003)
(अ) थाइमस
(ब) यकृत
(स) प्लीहा
(द) रक्त वाहिनियों की एण्डोथीलियम
उत्तर:
(अ) थाइमस

44. निम्न में से कौन एस्केरिस संक्रमण हेतु प्रभावी है- (RPMT, 2003)
(अ) क्लोरोक्वीन
(ब) सिनकोना
(स) कोल्चीकम
(द) चीनोपोडियम का तेल
उत्तर:
(द) चीनोपोडियम का तेल

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45. एड्स दिवस कब होता है- (RPMT, 2003)
(अ) 1 जून
(ब) 1 मई
(स) 1 दिसम्बर
(द) 20 दिसम्बर
उत्तर:
(स) 1 दिसम्बर

46. हीमोज्वॉइन क्या है? (RPMT, 2002)
(अ) प्लाज्मोडियम की ट्राफोज्वाइट द्वारा रुधिर का अपचयित भाग
(ब) एनोफिलीज का रुधिर वर्णक
(स) मीरोज्वाइट में विखण्डित रुधिर
(द) संक्रमित मनुष्य के रुधिर में अणु
उत्तर:
(अ) प्लाज्मोडियम की ट्राफोज्वाइट द्वारा रुधिर का अपचयित भाग

47. एल.एस.डी. है- (NEET-2001)
(अ) विभ्रामक
(ब) सेडेटिव
(स) उत्तेजनात्मक
(द) ट्रांसक्वेलाइजर
उत्तर:
(अ) विभ्रामक

48. कौनसा सबसे अधिक संक्रमणकारी रोग है? (NEET-2001)
(अ) हीपेटाइटिस-B
(ब) एड्स
(स) खाँसी तथा जुकाम
(द) मलेरिया
उत्तर:
(अ) हीपेटाइटिस-B

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49. ‘सक्रिय इम्यूनिटी’ का अर्थ है- (CBSE PMT, 1999)
(अ) रोग के पश्चात् उत्पन्न प्रतिरोध
(ब) रोग के पूर्व उत्पन्न प्रतिरोध
(स) हृदय गति दर में प्रतिरोध
(द) रक्त मात्रा में वृद्धि
उत्तर:
(अ) रोग के पश्चात् उत्पन्न प्रतिरोध

50. कैंसर सम्बन्धित है-
(अ) ऊतकों की अनियंत्रित वृद्धि से
(ब) नॉन-मेलिगनेन्ट ट्यूमर से
(स) ऊतकों के नियंत्रित विभाजन से
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) ऊतकों की अनियंत्रित वृद्धि से

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