HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 सौवर्णशकटिका

Haryana State Board HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 सौवर्णशकटिका Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 सौवर्णशकटिका

HBSE 11th Class Sanskrit सौवर्णशकटिका Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) मृच्छकटिकम् इति नाटकस्य रचयिता कः?
(ख) दारकः (रोहसेनः) रदनिका किम याचत?
(ग) वसन्तसेना दारकस्य विषये किं पृच्छति?
(घ) रदनिका किमुक्त्वा दारकं तोषितवती?
(ङ) रोहसेनः कस्य पुत्रः आसीत् ?
(च) आर्यचारुदत्तः केन आत्मानं विनोदयति?
(छ) रोहसेनः कीदृशी शकटिकां याचते?’
(ज) वसन्तसेना कैः मृच्छकटिकां पूरयति?
(झ) रोहसेनेन स्वपितुः किम् अनुकृतम्?
(ज) वसन्तसेना किमुक्त्वा दारकं सान्त्वयामास?
उत्तराणि:
(क) मृच्छकटिकम् इति नाटकस्य रचयिता ‘महाकवि शूद्रकः’ अस्ति।
(ख) दारकः रदनिकां सौवर्णशकटिकाम् अयाचत् ।
(ग) वसन्तसेना दारकस्य विषये पृच्छति, कस्य अयं दारकः?
(घ) रदनिका दारकं कथयति “तातस्य पुनरपि ऋद्ध्या सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि। इति कथयित्वा तोषितवती।”
(ङ) रोहसेनः आर्यचारुदत्तस्य पुत्रः आसीत्।
(च) आर्यचारुदत्तः अनेन पुत्रेण आत्मानं विनोदयति।
(छ) रोहसेनः सौवर्णशकटिकां याचते स्म।
(ज) वसन्तसेना आभूषणैः मृच्छकटिकां पूरयति।
(झ) रोहसेनेन स्वपितुः रूपं शीलं च अनुकृतम्।
(ञ) वसन्तसेना आभरणानि दत्वा कथयति “सौवर्णशकटिकां कारय।” इति उक्त्वा दारकं सान्त्वयामास ।

2. हिन्दीभाषया व्याख्यां लिखत

(क) अनलकृतशरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्।
उत्तराणि:
प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। वसन्तसेना चारुदत्त के पुत्र को देखकर कहती है कि व्याख्या यद्यपि इस बालक के शरीर पर किसी भी प्रकार का आभूषण नहीं है फिर भी इसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर प्रतीत हो रहा है। इस कारण अपनी भोली आकृति के कारण मेरे हृदय को आनन्दित कर रहा है।

(ख) न केवलं रूपं शीलमपि तर्कयामि।
उत्तराणि:
प्रसंग-प्रस्तत नाटयांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उदधत है। वसन्तसेना रोहसेन के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर कहती है कि

व्याख्या इसका रूप तो बिल्कुल अपने पिता जैसा है। जब वसन्तसेना को यह मालूम हुआ कि रोहसेन आर्य चारुदत्त का पुत्र है तो वह अपने को यह कहने से न रोक पाई कि यह आकृति में अपने पिता के समान ही है। इसी मध्य रदनिका ने अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा कि केवल रूप ही नहीं, अपितु इसका स्वभाव भी आर्य चारुदत्त जैसा ही है।

(ग) पुष्करपत्रपतितजलबिन्दुसदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः।
उत्तराणि:
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। आर्य चारुदत्त की निर्धनता पर चिन्तन करते हुए वसन्तसेना कहती है कि

व्याख्या तुम कमल के पत्ते पर गिरी पानी की बूंद की भाँति मनुष्य के भाग्य से खेल रहे हो। जिस प्रकार कमल के पत्ते पर गिरी जल की बूंद क्षणभर के लिए मोती की सुन्दरता को धारण करती है और फिर यथावत् स्थिति को प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार तकदीर भी मनुष्यों को क्षण भर के लिए सुख पहुँचाती है तथा लम्बे समय के लिए दुःख उत्पन्न करती है।

(घ) जात! मुग्धेन मुखेन अतिकरुणं मन्त्रयसि।
उत्तराणि:
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। जब रदनिका ने यह कहा कि यह आर्या तुम्हारी माँ होती है। ऐसा सुनकर बालक ने अत्यन्त सरल रूप से कहा कि यह मेरी माँ है तो इन्होंने आभूषण क्यों धारण किए हैं। बालक के इस बात को सुनकर वसन्तसेना कहती है व्याख्या हे बेटे! तू भोले मुख से अत्यन्त करुणा व्यक्त कर रहा है।

वस्तुतः वसन्तसेना ने बालक की भावना को भली-भाँति समझ लिया और उसने आँसू बहाते हुए अपने सभी आभूषण उतारकर उस बालक को दे दिए। आभूषणों को देखकर उसने बच्चे से कहा कि तुम इन आभूषणों से सोने की गाड़ी बनवा लेना।

HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Chapter 5 सौवर्णशकटिका

3. अधोलिखितानां पदानां स्वसंस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत
मृत्तिकाशकटिकया, सुवर्णव्यवहारः, अश्रूणि, विनोदयति, प्रातिवेशिकः, ऋद्ध्या, रोदिति।
उत्तराणि:
मृत्तिकाशकटिकया मिट्टी की गाड़ी से किं मम एतया मृत्तिकाशकटिकया।
सुवर्णव्यवहारः-सोने का व्यवहार। कुतः अस्माकं सुवर्णव्यवहारः।
अश्रूणि आँसुओं को। सा अश्रूणि प्रमृज्य माम् अवदत्।
विनोदयति-बहलाता है। रोहसेनेन आर्यचारुदत्तः आत्मानं विनोदयति।
प्रातिवेशिकः-पड़ोसी। मम प्रतिवेशिकः अद्य अत्र नास्ति।
ऋद्ध्या-सम्पन्नता से। तातस्य ऋद्ध्या पुनः अपि सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।
रोदिति-रोती है। वसन्तसेना आभरणानि अवतार्य रोदिति।

4. अधोलिखितानां क्रियापदानि वीक्ष्य समुचितं कर्तृपदं लिखत
(क) …………. क्रीडावः।
(ख) ……………….. विनोदयामि।
(ग) ………… सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।
(घ) …………….. अलीकं भणसि।
(ङ) किं निमित्तम् …………………. रोदिति।
उत्तराणि:
(क) वत्स आवां क्रीडावः।
(ख) अहं रोहसेनं विनोदयामि।
(ग) त्वं सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।
(घ) त्वं अलीकं भणसि।
(ङ) किं निमित्तम् एषः रोदिति।

5. अधोलिखितानां पदानां सन्धिविच्छेदं कुरुत
(क) कुतोऽस्माकम् = …………….
(ख) पुनरपि = ………….
(ग) किनिमित्तम् = ………….
(घ) पुनस्ताम् = ……………..
(ङ) यद्यस्माकम् = ……………
(च) आभरणान्यवतार्य = ……………
उत्तराणि:
(क) कुतः + अस्माकम्।
(ख) पुन + अपि
(ग) किम् + निमित्तम्
(घ) पुनः + ताम्
(ङ) यदि + अस्माकम्
(च) आभरणानि + अवतार्य

6. निर्दिष्टप्रकृतिप्रत्ययनिर्मितं पदं लिखत
(क) निः + श्वस् + ल्यप् = ………………
(ख) अनु + कृ + क्त = ……………….
(ग) अलम् + कृ + क्त + टाप् = ………………..
(घ) अव + तृ + णिच् + ल्यप् = …………………
(ङ) पूर् + क्त्वा = ………………..
(च) आ + दा + ल्यप् = ……………
(छ) ग्रह + क्त्वा = ……………….
(ज) उप + सृ + ल्यप् = …………..
(झ) क्रीड् + क्त = ……………..
(ञ) प्र + मृज् + ल्यप् = …………
उत्तराणि:
(क) निःश्वस्य
(ख) अनुकृतम्
(ग) अलङ्कृता
(घ) अवतार्य
(ङ) पूरयित्वा
(च) आदाय
(छ) गृहीत्वा
(ज) उपसृत्य
(झ) क्रीडितम्
(ञ) प्रमृज्य

7. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत
(क) सौवर्णशकटिका = ……………
(ख) अलीकम् = ……………..
(ग) अलङ्कृता = ……………..
(घ) निष्क्रान्ता = …………….
(ङ) अपेहि = …………….
(च) परसम्पत्त्या = ……………
उत्तराणि:
(क) सौवर्णशकटिका = मृत्तिकाशकटिका
(ख) अलीकम् = सत्यम्
(ग) अलङ्कृता = अनलङ्कृता
(घ) निष्क्रान्ता = प्रविष्टा
(ङ) अपेहि = उपेहि
(च) परसम्पत्त्या = स्वसम्पत्त्या

8. अधोलिखितानां पदानां पर्यायवाचिपदानि लिखत
दारकः, पितुः, तर्कयामि, जननी, नीता, भणति, अलीकम् ।
उत्तराणि:
दारकः = बालः, शिशुः, बालकः, वत्सः।
पितुः = तातस्य, जनकस्य, जन्मदस्य, जनयितुः।
तर्कयामि = चिन्तयामि, विचारयामि, विकल्पयामि।
जननी = माता, अम्बा, प्रसूः, जनित्री, माता।
नीता = गृहीत्वागता, आदाता।
भणति = वदति, कथयति, उदीर्यति।
अलीकम् = अनृतम्, असत्यम्, मृषा, मिथ्यावचनम्।

HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Chapter 5 सौवर्णशकटिका

9. अधोलिखिताः पङ्क्तयः केन के प्रति उक्ताः
(क) एहि वत्स! शकटिकया क्रीडावः।
(ख) आर्यायाः वसन्तसेनायाः समीपम् उपसर्पिष्यामि।
(ग) एहि मे पुत्र! आलिङ्ग।
(घ) किं निमित्तं एष रोदिति।
(ङ) रदनिके! का एषा।
(च) जात! कारय सौवर्णशकटिकाम् ।
उत्तराणि:

पंक्तिःकः काकें प्रति
(क) एहि वत्स! शकटिकया क्रीडावः।रदनिकादारकम् प्रति
(ख) आर्यायाः वसन्तसेनायाः समीपम् उपसर्पिष्यामि।रदनिकास्वगतम्
(ग) एहि मे पुत्रक्! आलिड्ग।वसन्तसेनादारकम् प्रति
(घ) किं निमिंत्तं एष रोदिति।वसंन्तसेनादारकम् प्रति
(ङ) रदनिके! का एषा ।दारकःरदनिकाम्
(च) जात! कारय सौवर्णशकटिकाम्।वसन्तसेनादारकम्

10. पाठमाश्रित्य सोदाहरणं वसन्तसेनायाः रोहसेनस्य च चारित्रिकवैशिष्ट्यम् हिन्दीभाषायां लिखत
उत्तराणि:
वसन्तसेना-वसन्तसेना चारुदत्त की प्रेमिका है। गणिका होते हुए भी उसकी एक पुरुष के प्रति आसक्ति है। चारुदत्त के प्रति आसक्ति के कारण ही वह उसके पुत्र रोहसेन से मातृवत् प्रेम करती है। जब उसे रदनिका द्वारा पता चलता है कि यह चारुदत्त का पुत्र है तो उसके प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहती है कि ‘अनलङ्कृतशरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्।’ अर्थात् बिना अलंकार के शरीर वाला भी चन्द्रमा के समान मुख वाला मेरे हृदय को आनन्दित कर रहा है। वह रोहसेन के रूप सौन्दर्य को देखकर उसकी समता चारुदत्त से करती है।

वसन्तसेना अत्यन्त उदार हृदय वाली स्त्री है। जब उसे पता चलता है कि रोहसेन सोने की गाड़ी के लिए रो रहा है तो वह मनुष्य की निर्धनता पर दुःखी हो जाती है। वह दुर्भाग्य की निन्दा करते हुए कहती है कि-“पुष्कर पत्र पतित-जल बिन्दु सदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः।” अर्थात् कमल के पत्ते पर गिरी हुई जल की बूँद की भाँति तुम पुरुष के भाग्य से खेलते हो।

रोते हुए रोहसेन को प्रसन्न करने के लिए वह अपने सभी आभूषण उतार कर रोहसेन को मिट्टी की गाड़ी में रख देती है तथा उससे कहती है कि तुम इन आभूषणों से अपने लिए सोने की गाड़ी बनवा लेना। इस प्रकार वसन्तसेना का चरित्र एक कुशल प्रेमिका का तथा वात्सल्य से परिपूर्ण करुण हृदय वाली नायिका के रूप में वर्णित है।

रोहसेन-आर्य चारुदत्त का पुत्र रोहसेन अपने पिता की आर्थिक स्थिति को नहीं जानता बल्कि अपने पड़ोसी के बेटे जैसी सोने की गाड़ी माँगता है। इतना सब कुछ होते हुए रदनिका जब वसन्तसेना को उसकी माँ बताती है तो वह उसके आभूषणों से युक्त शरीर को देखकर कहने लगता है कि यह मेरी माँ कैसे हो सकती है, क्योंकि मैं एक ऐसे परिवार की सन्तान हूँ जिस परिवार में आभूषणों का प्रयोग नहीं होता। अपने पिता के समान ही रोहसेन स्वाभिमानी बालक है। जब वसन्तसेना अपने आभूषण रोते हुए उसे देती है तो वह लेने से इंकार कर देता है। वह कहता है तुम रो रही हो इसलिए मैं इन आभूषणों को नहीं लूँगा।

योग्यताविरतारः

सौवर्णशकटिका इति पाठस्य साभिनयं नाट्यप्रयोगं कुरुत
उत्तरम्:
छात्राः! प्राध्यापकस्य सहायतया अस्य नाट्यांशस्य अभिनयं कुरुत।

HBSE 11th Class Sanskrit सौवर्णशकटिका Important Questions and Answers

अतिरिक्त प्रश्नोत्तराणि

I. अधोलिखितान् नाट्यांशान् पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतेन लिखत
(निम्नलिखित नाट्यांशों को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए।)

(1) रदनिका- एहि वत्स! शकटिकया क्रीडावः।
दारकः- (सकरुणम्)
रदनिके! किम्मम एतया मृत्तिकाशकटिकया? तामेव सौवर्णशकटिकां देहि। रदनिका- (सनिर्वेदं निःश्वस्य)
जात! कुतोऽस्माकं सुवर्णव्यवहारः? तातस्य पुनरपि ऋद्ध्या सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि। (स्वगतम्) तद्यावद् विनोदयाम्येनम् । आर्याया वसन्तसेनायाः समीपमुपसर्पिष्यामि। (उपसृत्य) आर्ये! प्रणमामि। वसन्तसेना-रदनिके! स्वागतं ते। कस्य पुनरयं दारकः?
अनलकृत-शरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्।
(i) दारकः कस्य आसीत्?
(ii) अस्मिन् संवादे कति पात्राणि सन्ति?
(iii) वसन्तसेनायाः हृदयं किमर्थम् आनन्दयति?
उत्तराणि:
(i) दारकः चारुदत्तस्य आसीत्।
(ii) अस्मिन संवादे त्रीणि पात्राणि सन्ति।
(iii) अनलङ्कृतशरीरोऽपि चन्द्रमुखः चारुदत्तस्य पुत्रः रोहसेनः वसन्तसेनायाः हृदयम् आनन्दयति।

2. वसन्तसेना-हा धिक् हा धिक् ! अयमपि नाम परसम्पत्त्या सन्तप्यते? भगवन् कृतान्त! पुष्करपत्रपतित-जलबिन्दुसदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः। (इति सास्रा)। जात! मा रुदिहि! सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।
(i) अयं कया सन्तप्यते?
(ii) कृतान्तः कैः क्रीडति?
(iii) कृतान्त कीदृशैः क्रीडति?
उत्तराणि:
(i) अयं परसम्पत्त्या सन्तप्यते।
(ii) कृतान्तः पुरुषभागधेयैः क्रीडति।
(iii) कृतान्तः पुष्करपत्रपतितजलबिन्दुसदृशैः क्रीडति।

3. दारकः-रदनिके! का एषा?
रदनिका-जात! आर्या ते जननी भवति।
दारक:- रदनिके! अलीकं त्वं भणसि। यद्यस्माकमार्या जननी तत् केन अलङ्कृता?
वसन्तसेना-जात! मुग्धेन मुखेन अतिकरुणं मन्त्रयसि।
(i) आर्या ते का भवति?
(ii) दारकः मुग्धेन मुखेन किं मन्त्रयति?
(iii) दारकः वसन्तसेनायाः विषये किं कथितम्?
उत्तराणि:
(i) आर्या ते जननी भवति।
(ii) दारकः मुग्धेन मुखेन अतिकरुणं मन्त्रयति।
(iii) दारकः वसन्तसेनायाः विषये कथितम् सा अलीकं भणति। यद्यस्माकमार्या जननी तत् केन अलङ्कृता।

II. रेखांकित पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए।)
(i) रोहसेनः आर्यचारुदत्तस्य पुत्रः आसीत्।
(ii) दारकः रदनिका सौवर्णशकटिकाम् अयाचत्।
(iii) रोहसेनेन स्वपितुः रूपं शीलं च अनुकृतम्।
(iv) रोहसेनः सौवर्णशकटिकया क्रीडितुम् इच्छति।
उत्तराणि:
(i) रोहसेनः कस्य पुत्रः आसीत्?
(ii) दारकः रदनिका किम् अयाचत्?
(iii) रोहसेनेन स्वपितुः किम् अनुकृतम् ?
(iv) रोहसेनः कया क्रीडितुम् इच्छति?

HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Chapter 5 सौवर्णशकटिका

बहुविकल्पीय-वस्तुनिष्ठ प्रश्नाश्च

III. अधोलिखित दश प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धविकल्पं लिखत
(निम्नलिखित दस प्रश्नों के दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प लिखिए)

1. ‘मृच्छकटिकम्’ इति नाटकस्य रचयिता कः अस्ति?
(A) चारुदत्तः
(B) कालिदासः
(C) शूद्रकः
(D) अश्वघोषः
उत्तरम्:
(C) शूद्रकः

2. रोहसेनः कस्य पुत्रः आसीत्?
(A) रदनिकायाः
(B) आर्यचारुदत्तस्य
(C) वसन्तसेनायाः
(D) सुवर्णशकटिकस्य
उत्तरम्:
(B) आर्यचारुदत्तस्य

3. सौवर्णशकटिका अत्र कः समासः?
(A) कर्मधारयः
(B) द्वन्द्वः
(C) तत्पुरुषः
(D) अव्ययीभावः
उत्तरम्:
(D) तत्पुरुषः

4. ‘पुनरपि’ अस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(A) पुन + रपि
(B) पुनः + अपि
(C) पुर्न + रपि
(D) पुनर + अपि
उत्तरम्:
(B) पुनः + अपि

5. ‘यदि + अस्माकम्’ अत्र संधियुक्तपदम् अस्ति
(A) यद्यस्माकम्
(B) यद्यआस्माकम्
(C) यद्यअस्माकम्
(D) यदिडस्माकम्
उत्तरम्:
(A) यद्यस्माकम्

6. ‘अलम् + कृ + क्त + टाप्’ अत्र निष्पन्न रूपम् अस्ति
(A) अलङ्कृतम्
(B) अलंकृतः
(C) अलङ्कृता
(D) अलंकृतस्य
उत्तरम्:
(C) अलङ्कृता

7. ‘उपसृत्य’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(A) त्य
(B) ल्यप्
(C) क्त
(D) शत्
उत्तरम्:
(B) ल्यप्

8. ‘अलम्’ इति उपपदयोगे का विभक्तिः ?
(A) चतुर्थी
(B) प्रथमा
(C) तृतीया
(D) द्वितीया
उत्तरम्:
(B) प्रथमा

9. ‘आर्यायाः’ इति पदस्य विलोमपदं किम् ?
(A) आर्यम्
(B) आर्यास्या
(C) अनार्या
(D) आचार्यस्य
उत्तरम्:
(C) अनार्या

10. ‘अलीकम्’ इति पदस्य पर्यायवाचिपदं वर्तते
(A) सत्यम्
(B) लीकम्
(C) अनित्यम्
(D) असत्यम्
उत्तरम्:
(D) असत्यम्

IV. निर्देशानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत
(निर्देश के अनुसार रिक्त स्थान को पूरा कीजिए)

(क)
(i) ‘तामेव’ अस्य सन्धिविच्छेदः …………….. अस्ति ।
(ii) ‘गृहपति’ इति पदस्य विग्रहः ……….. अस्ति।
(iii) ‘क्रीडितम्’ अत्र प्रकृतिप्रत्यय विभागः …………… अस्ति।
उत्तराणि:
(क) (i) ताम् + एव,
(ii) गृहस्य पति,
(iii) क्रीड् + क्त।

(ख)
(i) ‘अव + तृ + णिच् + ल्यप्’ अत्र निष्पन्न रूपम् ……
(ii) ‘तातस्य’ इति पदस्य विलोमपदं …… ……. वर्तते। ।
(iii) ‘यमराजः’ इति पदस्य पर्यायपदम् ……. वर्तते।
उत्तराणि:
(i) अवतीर्य,
(ii) मातुः,
(iii) कृतान्तः।

(ग) अधोलिखितपदानां संस्कृत वाक्येषु प्रयोग करणीयः
(निम्नलिखित पदों का संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए)
(i) अलीकं,
(ii) अपेहि,
(iii) भणति।
उत्तराणि:
(i) अलीकं (झूठ) त्वं अलीकं वदसि।
(ii) अपेहि (दूर हटो)-अपेहि न ग्रहीष्यामि।
(iii) भणति (बोलना) वसन्तसेना सत्यं भणति।

नाट्यांशों के सरलार्थ एवं भावार्थ

1. (ततः प्रविशति दारकं गृहीत्वा रदनिका)
रदनिका- एहि वत्स! शकटिकया क्रीडाकः ।
दारकः- (सकरुणम्) रदनिके! किम्मम एतया मृत्तिकाशकटिकया? तामेव सौवर्णशकटिकां देहि।
रदनिका- (सनिर्वेद निःश्वस्य)
जात! कुतोऽस्माकं सुवर्णव्यवहारः? तातस्य पुनरपि ऋद्ध्या सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि। (स्वगतम्)
तद्यावद् विनोदयाम्येनम् । आर्याया वसन्तसेनायाः समीपमुपसर्पिष्यामि। (उपसृत्य) आर्ये! प्रणमामि।

शब्दार्थ-दारकम् = बच्चे को । शकटिकया = गाड़ी के द्वारा। मृत्तिकाशकटिकया = मिट्टी की गाड़ी द्वारा। सौवर्णशकटिकाम् = सोने की गाड़ी से । देहि = दो। सनिर्वेदम् = दुख के साथ। निःश्वस्य = ठंडी आह भरकर । सुवर्णव्यवहारः = सोने का लेन-देन। ऋद्ध्या = समृद्धि के द्वारा/सम्पन्नता होने पर। विनोदयाम्येनम् (विनोदयामि + एनम्) = इसका मनोरंजन करता हूँ/करती हूँ। उपसर्पिष्यामि = पास जाऊँगी।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि शूद्रक-प्रणीत ‘मृच्छकटिक’ प्रकरण के छठे अंक से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत नाट्यांश में रदनिका एवं दारक के वार्तालाप के माध्यम से बाल हठ का वर्णन किया गया है। सरलार्थ-उसके बाद बच्चे को लेकर दासी रदनिका प्रवेश करती है। रदनिका-आओ पुत्र! (हम दोनों) मिट्टी की गाड़ी से खेलते हैं।

बच्चा-(करुणा के साथ) अरी रदनिका! मुझे इस मिट्टी की गाड़ी से क्या? (मुझे तो) वही सोने की गाड़ी दो।

रदनिका (दुःख के साथ ठण्डी आह भरकर) बेटा! हमारा सोने का व्यवहार (लेन-देन) कहाँ? पिता के पुनः सम्पन्न होने पर सोने की गाड़ी से खेलोगे। (अपने मन में ही) तो तब तक इस (मिट्टी की गाड़ी) से इसे बहलाती हूँ। आर्या वसन्तसेना के पास पहुँचती हूँ। पास जाकर आर्ये (मैं) प्रणाम करती हूँ।

भावार्थ–इस गद्यांश में सोने की गाड़ी के लिए हठ करने वाले बालक के हठ को शान्त करने का प्रयास किया गया है। लोक में बाल-हठ, राज-हठ तथा नारी-हठ तीन प्रकार के हठ बताए गए हैं। रदनिका बच्चे को समझाती है कि हमारा सोने का व्यापार नहीं है। गरीबी का कष्ट भोग रहे तुम्हारे पिता अभी तो सोने की गाड़ी बनवा नहीं सकते। हाँ, जब अमीर हो जाएँगे तब तू सोने की गाड़ी से खेलेगा, परन्तु रोहसेन के न मानने पर रदनिका वसन्तसेना के पास पहुंचती है।

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2. वसन्तसेना-रदनिके! स्वागतं ते। कस्य पुनरयं दारकः? अनलङ्कृत- शरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्। रदनिका- एष खलु आर्यचारुदत्तस्य पुत्रो रोहसेनो नाम।
वसन्तसेना- (बाहू प्रसार्य) एहि मे पुत्रक! आलिङ्ग। (इत्यके उपवेश्य) अनुकृतमनेन पितुः रूपम्।
रदनिका- न केवलं रूपं, शीलमपि तर्कयामि। एतेन आर्यचारुदत्त आत्मानं विनोदयति।
वसन्तसेना- अथ किनिमित्तमेष रोदिति?

शब्दार्थ-अनलकृत शरीरः = बिना अलंकार के शरीर वाला, न सजा हुआ। प्रसार्य = फैलाकर। अङ्के = गोद में। उपवेश्य = बिठाकर। अनुकृतम् = अनुकरण किया है। किन्निमित्तम् = किस बात के लिए।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि शूद्रक-प्रणीत ‘मृच्छकटिक’ प्रकरण के छठे अंक से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत नाट्यांश में वसन्तसेना रोहसेन के विषय में जानकारी प्राप्त करती है।

सरलार्थ-वसन्तसेना-रदनिका! तुम्हारा स्वागत है। तो फिर यह किसका बालक है? बिना किसी अलंकार से युक्त शरीर वाला भी चन्द्रमा के समान इसका मुख मेरे हृदय को आनन्दित कर रहा है। रदनिका-निश्चय से यह आर्य चारुदत्त का रोहसेन नामक बेटा है।

वसन्तसेना-(दोनों भुजाएँ फैलाकर) आओ मेरे पुत्र! मुझे गले मिलो। (इस प्रकार अपनी गोद में बिठाकर)-इसने तो पिता के रूप का अनुकरण किया है, अर्थात् इसका रूप (सौन्दय) बिल्कुल अपने पिता के समान है। .. रदनिका-इसने न केवल रूप का ही अपितु शील का भी (अनुकरण किया है। ऐसा मैं समझती हूँ। इससे आर्य चारुदत्त अपने-आपको बहलाते हैं। वसन्तसेना-तो फिर यह किस बात के लिए रो रहा है?

भावार्थ-भाव यह है कि रोहसेन के रूप एवं सौन्दर्य को देखकर वसन्तसेना उस बालक पर मुग्ध हो जाती है। वह उसे अपनी गोद में बिठाती है तथा उसके रोने का कारण पूछती है। .

3. रदनिका- एतेन प्रातिवेशिकगृहपतिदारकस्य सुवर्णशकटिकया क्रीडितम्। तेन च सा नीता। ततः पुनस्तां मार्गयतो मयेयं मृत्तिकाशकटिका कृत्वा दत्ता। ततो भणति रदनिके! किम्मम एतया मृत्तिकाशकटिकया? तामेव सौवर्णशकटिकां देहि इति।
वसन्तसेना-हा धिक् हा धिक्! अयमपि नाम परसम्पत्त्या सन्तप्यते? भगवन् कृतान्त। पुष्करपत्रपतित-जलबिन्दुसदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः। (इति सास्रा)। जात! मा रुदिहि! सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।

शब्दार्थ-प्रातिवेशिक = पड़ोस में रहने वाले । गृहपति = घर के स्वामी। मार्गयतः = खोजने वाले का। भणति = कहता है। परसम्पत्त्या = पराई समृद्धि से। सन्तप्यते = सन्तप्त हो रहा है। कृतान्त = हे यमराज। पुष्कर पत्र पतित = कमल के पत्ते पर गिरे हुए। पुरुषभागधेयैः = मनुष्य के भाग्य के साथ। सास्रा = आँसू भरकर।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि शूद्रक-प्रणीत ‘मृच्छकटिक’ प्रकरण के छठे अंक से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस नाट्यांश में रदनिका वसन्तसेना को रोहसेन के रोने का कारण बताती है।

सरलार्थ-रदनिका-इसने पड़ोस में रहने वाले घर के स्वामी के पुत्र की सोने की गाड़ी से क्रीड़ा की है (खेलता रहा)। वह (पड़ोसी का पुत्र) उस गाड़ी को ले गया। तब उस सोने की गाड़ी को खोजने वाले इसको (रोहसेन को) मैंने यह मिट्टी की गाड़ी बनाकर दी। इसलिए वह बोलता है-अरी रदनिका! मुझे इस मिट्टी की गाड़ी का क्या करना है? मुझे तो वही सोने ?

वसन्तसेना-हाय धिक्कार है! हाय धिक्कार है! यह भी पराई समृद्धि से सन्तप्त हो रहा है। हे भगवन् यमराज! तू कमल के पत्ते पर गिरी पानी की बूंद के समान मनुष्य के भाग्य के साथ खेल रहा है। (इस प्रकार आँखों में आँसू भरकर) बेटा! मत रो! तू सोने की गाड़ी से खेलेगा।

भावार्थ भाव यह है कि वसन्तसेना बालक के रोने के कारण को जानकर व्यथित हो जाती है। इस नाट्यांश में मनुष्य के भाग्य की तुलना कमल के पत्ते पर गिरी पानी के बूंद से करने के कारण उपमा अलंकार है। इसके अतिरिक्त वसन्तसेना का वात्सल्य तथा निर्धनता के अभिशाप को भोगने वाले की मनोव्यथा की अभिव्यक्ति जो वसन्तसेना के द्वारा हुई है, वह भी देखते ही बनती है।

4. दारकः- रदनिके! का एषा?
रदनिका- जात! आर्या ते जननी भवति।
दारकः- रदनिके! अलीकं त्वं भणसि। यद्यस्माकमार्या जननी तत केन अलकता?

वसन्तसेना- जात! मुग्धेन मुखेन अतिकरुणं मन्त्रयसि।
(नाट्येन आभरणान्यवतार्य रोदिति) एषा इदानीं ते जननी संवृत्ता। तद् गृहाणैतमलङ्कारकम्, सौवर्णशकटिकां घटय।
दारकः- अपेहि, न ग्रहीष्यामि। रोदिषि त्वम्।
वसन्तसेना- (अश्रूणि प्रमृज्य) जात! न रोदिष्यामि। गच्छ, क्रीड। (अलङ्कारैर्मृच्छकटिकां पूरयित्वा) जात! कारय सौवर्णशकटिकाम्। (इति दारकमादाय निष्कान्ता रदनिका)

शब्दार्थ-एषा = यह। अलीकम् = झूठ। भणसि = बोलती है। अलङ्कृता = आभूषण पहने हुए। मुग्धेन मुखेन = भोले मुख से। आभरणानि = आभूषणों को। अवतार्य = उतारकर। रोदिति = रोती है। संवृत्ता = हो गई। अपेहि = दूर हटो। प्रमृज्य = पोंछ कर। पूरयित्वा = भरकर। मृच्छकटिकम् = मिट्टी की गाड़ी को। आदाय = लेकर। निष्कान्ता = बाहर निकल गई।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश ‘शाश्वती प्रथमो भागः’ पुस्तक के अन्तर्गत ‘सौवर्णशकटिका’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि शूद्रक-प्रणीत ‘मृच्छकटिक’ प्रकरण के छठे अंक से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस नाट्यांश में वसन्तसेना द्वारा अपने गहने उतारकर रोहसेन को देने का वर्णन किया गया है। बच्चा-अरी रदनिका! यह कौन है। रदनिका बेटा! आर्य तुम्हारी माँ लगती है। बच्चा-अरी रदनिका! तू झूठ बोल रही है। यदि आर्या हमारी माँ है तो (यह) किससे आभूषण पहनाई गई है (आभूषण पहने

वसन्तसेना-बेटा! (तू) भोले-भाले मुख से अत्यन्त करुणा वाली बातें कर रहा है। (अभिनय के साथ आभूषणों को उतारकर रोती है) यह लो अब मैं तुम्हारी माता बन गई। तो इन गहनों को ले लो और इनसे सोने की गाड़ी बनवा लो।

बच्चा-दूर हटो, नहीं लूँगा। तुम रो रही हो। वसन्तसेना-(आँसुओं को पोंछकर) बेटा अब नहीं रोऊँगी। जा खेल। (आभूषणों से मिट्टी की गाड़ी को भरकर) बेटा! सोने की गाड़ी बनवा लो। (इस प्रकार बच्चे को लेकर रदनिका बाहर निकल गई।)

भावार्थ भाव यह है कि वसन्तसेना ने अपने सारे आभूषण उतारकर रोहसेन को दे दिए। नाटककार ने यहाँ पर बाल मनोदशा का अत्यन्त सुन्दर चित्रण किया है। वसन्तसेना को रोती हुई देखकर रोहसेन गहने नहीं लेता। तब वसन्तसेना आँसू पोंछकर रोना .. बन्द करती है। तब बच्चा आभूषण लेने के लिए तैयार होता है।

सौवर्णशकटिका (वाणी (सरस्वती) का वसन्त गीत) Summary in Hindi

महाकवि शूद्रक-प्रणीत ‘मृच्छकटिक’ प्रकरण तत्कालीन समाज का दर्पण माना जाता है। अपने दानशील स्वभाव के कारण धनहीन ब्राह्मण सार्थवाह आर्यचारुदत्त तथा उज्जयिनी नगर की गणिका वसन्तसेना की प्रणयकथा पर आधारित यह नाट्यकृति उस युग की अराजकता, समाज में व्याप्त कुरीति, द्यूतव्यसन, चौर्यवृत्ति, न्यायालय में व्याप्त पक्षपात तथा राजा के सगे-सम्बन्धियों के स्वेच्छाचार का प्रामाणिक वृत्त प्रस्तुत करती है।

प्रस्तुत नाट्यांश ‘मृच्छकटिक’ के छठे अंक से लिया गया है। इसमें शिशु-मन को उद्वेलित करने वाली बालसुलभ इच्छा को मार्मिक ढंग से व्यक्त किया गया है। धनी-मानी पड़ोसी बच्चे की सोने की गाड़ी देख धनहीन चारुदत्त का बेटा रोहसेन अशांत हो जाता है। दासी रदनिका उसे मिट्टी की गाड़ी देकर फुसलाने का प्रयत्न करती है। परन्तु भोला शिशु अपनी जिद्द पर अड़ा रहता है।

रदनिका उसे वसन्तसेना के पास ले जाती है। बच्चे का परिचय तथा उसके रोने का कारण जानकर वसन्तसेना अपने सारे आभूषण बच्चे को सौंप देती है और कहती है “इनसे तुम भी सोने की गाड़ी बनवा लेना।” इस प्रकार प्रस्तुत नाट्यांश शिशुओं के निर्मल अन्तःकरण तथा संवेदनशील नारी की वत्सलता को प्रकाशित करता है।

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