HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 11 पौधों में परिवहन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 11 पौधों में परिवहन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 11 पौधों में परिवहन

प्रश्न 1.
विसरण की दर को कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
विसरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Rate of diffusion ) – विसरण की दर को मुख्य रूप से चार कारक प्रभावित करते हैं-
1. तापमान (Temperature ) – ताप वृद्धि से विसरण की दर बढ़ जाती है क्योंकि ताप बढ़ाने से विसरित होने वाले अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है।
2. विसरित होने वाले पदार्थों का घनत्व (Density of Diffusing Substances ) – विसरण दर विसरित होने वाले पदार्थ के घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होती है।
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3. माध्यम जिसमें विसरण होता है (Medium in which Diffusion Occurs ) अधिक सान्द्र माध्यम में विसरण दर कम होती है तथा कम सान्द्रता वाले माध्यम में विसरण दर अधिक होती है।
4. विसरण दावप्रवणता (Diffusion Pressure Gradient) विसरण दाब प्रवणता (DPD) अधिक होने पर विसरण दर अधिक होती है।

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प्रश्न 2. पोरीन्स क्या हैं ? विसरण में ये क्या भूमिका निभाते ?
उत्तर;
पोरीन्स (Porins) जीवाणु कोशिका (bacterial cell ) माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria), लवक (plastids ) आदि की बाह्य कला में पोरीन प्रोटीन्स उपस्थित होती हैं। ये बाह्य कला में बड़े-बड़े छिद्रों का निर्माण करती हैं जो बड़े-बड़े अणुओं को कला के आर-पार जाने का पथ प्रदान करते हैं। ये पथ सदैव खुले या बन्द भी हो सकते हैं। कुछ पथ बड़े होते हैं जिनसे अन्य प्रोटीन्स के छोटे अणु आर-पार हो सकते हैं।

सम्मुख दिये गये चित्र से स्पष्ट है कि कोशिका के बाहर उपस्थित अणु परिवहन प्रोटीन (transporter protein) पर अनुबंधित होकर कोशिका कला की भीतरी सतह पर पहुँचकर मुक्त हो जाते हैं। तन्त्रिका कोशिकाओं (nerve cells) में तंत्रिका कला से सोडियम पोटैशियम का स्थानान्तरण विद्युत विभव परिवर्तन द्वारा नियंत्रित होता है। Na+ तथा K+ गेट विद्युत परिवर्तनों के फलस्वरूप खुलते और बन्द होते हैं।
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प्रश्न 3.
पादपों में सक्रिय परिवहन के दौरान प्रोटीन पम्प के द्वारा क्या भूमिका निभाई जाती है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सक्रिय परिवहन सान्द्रता प्रवणता के विपरीत अणुओं को पम्प करने में ऊर्जा का व्यय करता है। सक्रिय परिवहन कला प्रोटीन्स द्वारा पूर्ण किया जाता है। अतः कला के विभिन्न प्रोटीन्स सक्रिय तथा निष्क्रिय दोनों परिवहन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पम्प एक प्रकार का प्रोटीन है जो पदार्थों या कणों की कला को पार कराने में ऊर्जा का उपयोग करती हैं। ये पंप प्रोटीन पंप पदार्थों को कम सान्द्रता से अधिक सान्द्रता में भी पंप (pump) करा सकते हैं। परिवहन की गति अधिकतम तब होती है जब परिवहन करने वाले सभी प्रोटीन्स का प्रयोग हो रहा हो। विकरों (enzymes ) की भाँति वाहक प्रोटीन्स (carrier proteins) कला के पार होने वाले पदार्थों के प्रति अत्यधिक विशिष्ट (specific) होती हैं। ये प्रोटीन्स निरोधकों के प्रति भी संवेदनशील होती हैं जो पार्श्व शृंखला से प्रक्रिया करते हैं।

प्रश्न 4.
शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव क्यों होता है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल के अणुओं में स्वयं की गतिज ऊर्जा होती है अतः ये लगातार अनियमित गति करते रहते हैं। शुद्ध जल में जल के अणुओं की गतिज ऊर्जा अधिकतम होती है। शुद्ध जल में विलेय के घोलने पर जल के अणुओं की गतिज ऊर्जा कम हो जाती है तथा सामान्यता जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा (free energy) घटती है। अतः शुद्ध जल में जल के अणुओं का जल विभव विलयन की तुलना में अधिकतम (maximum) होता है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) विसरण एवं परासरण
(ख) वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन
(ग) परासारी दाव तथा परासारी विभव
(घ) विसरण तथा अन्तःशोषण
(च) पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट और सिम्प्लास्ट पथ
(छ) बिन्दुस्राव एवं परिवहन (अभिगमन) ।
उत्तर:
(क) विसरण (Diffusion ) एवं परासरण (Osmosis) में अन्तर

विसरण (Diffusion) परासरण (Osmosis)
यह छोटे कणों की गति है जिसमें विभिन्न पदार्थों के अणु अपनी सान्द्रता गुणांक (concentration coefficient) के अनुसार गत्ति करते हैं। यह केवल विलायक अणुओं या जल की गति है जिसमें वे अपने रासायनिक विभव गुणांक (chemical potential coefficient) के अनुसार गति करते हैं।
प्रत्येक पदार्थ स्वतंत्र विसरण प्रदर्शित करता है। विलायक के कण विसरण नहीं करते हैं।
प्रत्येक प्रकार के माध्यम में होता है। यह केवल तरल माध्यम में होता है।
अर्द्धपारगम्य कला (semipermeable membrane) की आवश्यकता नहीं होती है। अर्द्धपारगम्य (semipermeable membrane) कला की आवश्यकता होती है।
अन्य पदार्थों की उपस्थिति का प्रभाव नहीं होता है। अन्य पदार्थों विशेषकर विलेय अणुओं का प्रभाव पड़ता है।
इसमें विशेष दाब उत्पन्न नहीं होता है। परासरण दाब होता है जो विलयन की सान्द्रता पर निर्भर करता है।

(ख) वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण में अन्तर (Difference between Transpiration and Evaporation)

वाष्पोष्सर्जन (Transpiration) वाप्पीकरण (Evaporation)
यह एक जैविक क्रिया (vital process) है। यह एक भौतिक क्रिया (physical process) है।
पानी पत्ती के रन्ध्रों (stomata) से वाष्पित होता है। केवल जीवित कोशिकाओं द्वारा होता है। पानी किसी भी सतह से वाष्पित हो सकता है।
इसमें वाष्पन दाब, विसरण दाब, परासरण दाब आदि भाग लेते हैं। यह जीवित या अजीवित किसी भी पदार्थ से हो सकता है।
इसके फलस्वरूप पत्ती के चारों ओर नमी रहती है जिससे पत्ती झुलसती नहीं है। किसी प्रकार का दाब आवश्यक नहीं है।
वाष्पोष्सर्जन (Transpiration) यह सूखापन उत्पन्न करता है जिससे जीवित कोशिका झुलस सकती है।

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(ग) परासारी दाब (Osmotic Pressure) तथा परासारी विभव (Osmotic Potential) में अन्तर

परासारी दाब (Osmotic Pressure) परासारी विभव (Osmotic Potential)
1. यह किसी परासारी तंत्र (osmotic system) तंत्र में, जल के परासरणी प्रवेश के कारण उत्पन्न हुए दबाव को प्रदर्शित करता है। यह विलेय कणों की उपस्थिति के कारण जल की स्वतंत्र ऊर्जा में होने वाली कमी है।
2. इसे OP से प्रदर्शित किया जाता है। इसे Ψσ से प्रदर्शित किया जाता है।
3. इसका मापन किया जा सकता है इसे बार (Bars) में मापते हैं। (एक मेगापास्कल =10 बार) इसे मापा नहीं जा सकता है।
4. यह धनात्मक (+ve) होता है। यह ऋणात्मक (-ve) होता है।
5. यह परासारी विभव (osmotic potential) के बराबर व विपरीत होता है। संख्यात्मक आधार पर यह परासरण दाब (osmotic pressure) के बराबर किन्तु इसका चिह्न विपरीत होता है।

(घ) विसरण (Diffusion) एवं अन्तः शोषण (Imbibition) में अन्तर

विसरण (Diffusion) अन्त:शोषण (Imbibition)
1. इसमें विभिन्न पदार्थों के उनकी सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) के अनुसार छोटे कणों वाले अणुओं की गति होती है। इसमें ठोस सतह द्वारा जल का अवशोषण होता है।
2. सभी पदार्थ स्वतंत्र विसरण दर्शाते हैं। ठोस के अणु विसरण नहीं दर्शाते हैं।
3. दाब उत्पन्न नहीं होता है। यह बहुत उच्च अन्तःशोषण दाब विकसित करता है।
4. अणुओं या आयनों के बीच आकर्षण आवश्यक नहीं है । इसमें अवशोषक तथा माध्यम के अणुओं के बीच आकर्षण होना आवश्यक है।

(च) पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट और सिमप्लास्ट पथ में अन्तर (Difference between Apoplast and Symplast path ways of water absorption)

एपोप्लास्ट पथ (Apoplast Pathway) सिमप्लास्ट पथ (Symplast Pathway)
1. यह समीपवर्ती कोशिका भित्तियों का तंत्र है। यह एण्डोडर्मिस की कैस्पेरियन पह्टियों (casparian strips) को छोड़कर सम्पूर्ण पौर्धे में पाया जाता है। 1. यह सम्बन्धित जीवद्रव्य का तंत्र है। समीपवर्ती कोशिकाएँ कोशिका द्रव्यी तन्तुओं से जुड़ी रहती हैं।
2. यह केवल अन्तरकोशिकीय अवकाशों (intercellular space) और कोशिका भित्तियों में होता है। 2. यह कोशिकाओं के जीवद्रव्य और कोशिका द्रव्यी तन्तुओं (cytoplasmic fibres) के माध्यम से होता है।
3. यह जल परिवहन की गति प्रवणता पर निर्भर रहता है। यह मूलतः सामान्य विसरण एवं कोशिका क्रिया के कारण होता है। 3. जल को जाइलम (xylem) ऊतक में पहुँचाने के लिए मूलत: परासरण क्रिया होती है।

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(छ) बिन्दुस्राव ( Guttation) एवं परिवहन ( Transportation) में अन्तर

बिन्दुत्राव (Guttation) परिवहन (Transportation)
1. पौधों की पत्तियों से तरल कोशिका रस के जल बूँदों के रूप में स्राव को बिन्दुसाव (guttation) कहते हैं। 1. संवहनी ऊतकों (vascular tissues) द्वारा पदार्थों के स्थानान्तरण को परिवहन कहते हैं।
2. यह पत्तियों के किनारों पर स्थित जल रन्ध्रों (hydrathodes) से होता है। सामान्यतया मूलदाब (root pressure) के कारण कुछ शाकीय पौधों में रात्रि के समय होता है। 2. इसमें जाइलम तथा फ्लोएम भाग लेते हैं। जल एवं खनिज पदार्थों तथा खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण हर समय होता रहता है।

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प्रश्न 6.
जल विभव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए कौन-कौन से कारक इसे प्रभावित करते हैं ? जल विभव विलेय विभव तथा दाव विभव के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जल विभव (Water Potential ) – शुद्ध जल में जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा तथा किसी अन्य तन्त्र (जैसे- विलयन में जल या पादप कोशिका या ऊतक में जल) में जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा में अन्तर को जल विभव (water potential ) कहते हैं। इसे मीक अक्षर साई (p) से प्रदर्शित करते हैं। जल विभव को दाब के मात्रकों में भी व्यक्त किया जाता है।

I = 14.51b/in2 = 750mmHg = 0.987 atm.
1 atm पर शुद्ध जल का जल विभव शून्य (0) होता है। विलेय पदार्थ के कणों से जल की मुक्त ऊर्जा घटती है अतः जल विभव भी घटता है। अतः विलयन का जल विभव सदैव शून्य से कम अर्थात् ऋणात्मक होता है। जल विभव सान्द्रण प्रवणता तथा दाब द्वारा प्रभावित होता है। विलेय विभव (Solute Potential ) – विलेय की उपस्थिति के कारण जल विभव में आयी कमी विलेय विभव (solute potential, ps ) या परासरण विभव ( osmotic potential) कहलाती है।

दाय विभव (Pressure Potential ) कोशिका भित्ति प्रत्यास्थ होती है तथा कोशिकीय अवयवों पर अन्दर की ओर दाब आरोपित करती है जिसके परिणामस्वरूप रिक्तिका में द्रव स्थैतिक दाब उत्पन्न हो जाता है। दाब विभव सामान्यतः धनात्मक होता है तथा पादप कोशिका में भित्ति दाब ( wall pressure) तथा स्फीति दाब (turgor pressure) के रूप में कार्य करता है ।जल विभव (ψω), विलेय विभव (Ψσ ) तथा दाब विभव (ψp) में निम्न सम्बन्ध होता है-
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प्रश्न 7.
तब क्या होता है जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है ?
उत्तर:
यदि शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण (वायुमंडलीय ) के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लगाया जाए तो उसका जल विभव (water potential) बढ़ जाता है। यह एक जगह से दूसरी जगह पानी पंप करने के बराबर होता है। जब विसरण के कारण पौधे की कोशिका में जल प्रवेश करता है और वह कोशिका भित्ति की ओर बढ़ा देता है और कोशिका को स्फीत (turgid) बना देता है। यह दाब विभव को बढ़ा देता है। दाब विभव प्रायः धनात्मक होता है। यद्यपि पौधों में ऋणात्मक विभव या जाइलम के जल स्तम्भ में तनाव एक तने में जल के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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प्रश्न 8.
(क) रेखांकित चित्र की सहायता से पौधों में जीवद्रव्य कुंचन की विधि का वर्णन उदाहरण देकर कीजिए।
(ख) यदि पौधे की कोशिका को उच्च जल विभव वाले विलेय में रखा जाए तो क्या होगा ?
उत्तर:
(क) जीवद्रव्य संकुचन (Plasmolysis ) किसी रिक्तिका युक्त कोशिका को एक अतिपरासारी विलयन (hypertonic Solution) में रख देने पर कोशिका रस कोशिका से विलयन में रिसने लगता है। यह क्रिया बहिपरासरण (exosmosis) के कारण होती है। इसके फलस्वरूप जीवद्रव्य (protoplasm) सिकुड़कर कोशिका में एक ओर एकत्र हो जाता है। इस अवस्था में कोशिका पूर्णश्लथ (flaccid ) हो जाती है।

इस क्रिया को जीवद्रव्य कुंचन (plasmolysis) कहते हैं। जीवद्रव्य कुंचित कोशिका की कोशा भित्ति एवं जीवद्रव्य के बीच अतिपरासारी विलयन एकत्र हो जाता है लेकिन यह विलयन कोशा रिक्तिका में नहीं पहुँचता । इससे यह स्पष्ट होता है कि कोशिका भित्ति पारगम्य होती है एवं रिक्तिका कला अर्द्धपारगम्य (semipermeable) होती है।

जीवद्रव्य कुंचित कोशिका (plasmolysed cell ) को आसुत जल या अल्पपरासारी (hypotonic solution) में रखा जाता है तो यह अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इस क्रिया को जीवद्रव्य विकुंचन (deplasmolysis) कहते हैं। कोशिका को समपरासारी विलयन (isotonic solution) में रखने पर कोशिका पर कोई प्रभाव नहीं होता। इस क्रिया में कोशिका से जल के जितने अणु निकलते हैं उतने ही प्रवेश भी करते हैं।

(ख) यदि पौधे की कोशिका को उच्च जल विभव वाले विलयन में रखा जाता है तब जल ने अणु कोशिका में प्रवेश कर जाते हैं तथा कोशिका स्फीदि (turgid) दशा में आ जाती है।

प्रश्न 9.
पादप में जल एवं खनिज के अवशोषण में माइकोराइजल (कवकमूल सहजीवन) सम्बन्ध कितने सहायक हैं ?
उत्तर-
माइकोराइजल या कवकमूलीय सहजीवन (Mycorrhizal Association)
अनेक उच्च पादपों की जड़ें कवक द्वारा संक्रमित हो जाती हैं। जैसे-चीड़, देवदार, ओक आदि । कवक तन्तु (Fungal mycelia) पौधों की जड़ों की सतह पर या वल्कुट (cortex) में क्रमशः बाह्य कवक मूल (ectomycorrhiza) या अन्तः कवक मूल (endomycorrhiza ) का निर्माण करता है। इस प्रकार के सहजीवन (symbiosis) में कवक पौधे की जड़ों से अपना पोषण प्राप्त करता है तथा बदले में नमी एवं खनिज लवण अवशोषित करके पौधे को उपलब्ध कराता है।

कुछ आवृतबीजी पौधे जैसे निओशिया (Neottia) मोनोटापा (Monotrapa) आदि भी कवक मूल (mycorrhizal symbiosis) सहजीवन प्रदर्शित करते हैं। इन पौधों को कवक सहजीविता प्राप्त न होने पर ये मर जाते हैं। चीड़ (pinus) में नवांकुरों (seedlings) को यदि कवक सहजीविता प्राप्त नहीं होती तो ये वृद्धि नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 10.
पादप में जल परिवहन हेतु मूलदाब क्या भूमिका निभाता है ?
उत्तर:
मूल दाब (Root Pressure) मूल रोमों की कोशिकाओं की सान्द्रता अधिक होने के कारण मृदा से जल इन कोशिकाओं में प्रवेश करता है, फलस्वरूप ये स्फीति हो जाती हैं। अपनी सामान्य अवस्था में आने के लिए ये जल का स्थानान्तरण कॉर्टिकल कोशिकाओं (cortical cells) को कर देती हैं, जिससे कॉर्टिकल कोशिकाएँ आसून या स्फीति (turgid ) हो जाती हैं।

इस आसूनता (turgidity) के कारण जड़ों में जो दाब उत्पन्न होता है उसे मूल दाब (root Pressure) कहते हैं। मूलदाब सामान्यतया + 1 से 2 बार (bars) तक होता है, इससे जल पौधों में कुछ ऊँचाई तक चढ़ सकता है। शुष्क मृदा में मूलदाब उत्पन्न नहीं होता है। मूलदाब के द्वारा कुछ शाकीय पौधों (herbaceous plants) में जल ऊपर चढ़ता है। ऊँचे पौधों में मूलदाब नगण्य होता है।

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प्रश्न 11.
पादपों में जल परिवहन हेतु वाष्पोत्सर्जन खिंचाव मॉडल की व्याख्या कीजिए। वाष्पोत्सर्जन क्रिया को कौन-सा कारक प्रभावित करता है ? पादपों के लिए कौन उपयोगी है ?
उत्तर:
पौधों में रसारोहण या जल परिवहन ( Ascent of sap or Transportation of water in plants ) – पौधों में मूल रोमों (root hairs) द्वारा जल एवं खनिज लवण (mineral salts) अवशोषित होकर गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर चढ़कर पत्तियों तक पहुँचते हैं। यह ऊँचाई 370 फुट (सिकोया) तक है 1 हो सकती है। गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध पौधों में जल का ऊपर की ओर चढ़ना रसारोहण ( ascent of sap) कहलाता रसारोहण का सर्वमान्य मत वाष्पोत्सर्जनाकर्षण जलीय संसंजक मत (Transpiration pull cohesive force of water theory) है। इसके अनुसार रसारोहण निम्नलिखित कारणों से होता है-

1. वाष्पोत्सर्जन (Transpiration pull) पत्तियों की सतह से वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) होता है। यह जल पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं (mesophyll cell) से और इनमें संवहन बण्डल ( vascular bundle) से आता है। जल के वाष्पन के फलस्वरूप पर्णमध्योतक कोशिकाओं की परासरण सान्द्रता तथा विसरण दाब न्यूनता (DPD) अधिक हो जाती है। इसके फलस्वरूप जल जाइलम से परासरण द्वारा खिंचता रहता है। इसके फलस्वरूप जाइलम में एक जल स्तम्भ सतत रूप से कार्य करता है । जाइलम में जल की आपूर्ति मूल रोमों (root hairs) से होती है।

2. जल अणुओं का संसंजन बल (Cohesive force of water molecules) – जल के अणुओं के बीच एक संसंजन बल होता है। इस बल के कारण जाइलम का जल स्तम्भ 400 atm दाब पर भी खण्डित नहीं होता और इसकी निरंतरता बनी रहती है। इस बल के कारण जल 150 मीटर ऊंचाई तक चढ़ सकता है। :

3. जल तथा जाइलम भित्ति के मध्य आसंजन बल (Adhesion Force between water and cell wall of xylem tissues ) – जाइलम ऊतक की कोशिकाओं तथा जल के अणुओं के बीच एक बल कार्य करता है जिसे आसंजन ( adhesion force) बल कहते हैं। यह बल जल के स्तम्भ को सहारा प्रदान करता है। वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण उत्पन्न खिंचाव से जल स्तम्भ ऊपर की ओर गति करता है।

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वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Transpiration)
(अ) बाह्य कारक (External factors)
1. वायुमण्डलीय आपेक्षिक सान्द्रता (Relative humidity of atmosphere) – वायुमण्डलीय आर्द्रता कम होने पर वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है। नम वातावरण होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर घट जाती है।
2. प्रकाश (Light) – प्रकाश की उपस्थिति में रन्ध्र (stomata) खुलते हैं, जिससे वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है। रन्ध्र (stomata) बन्द होने की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
3. वायु (wind) – तीव्र वायु वेग की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) बढ़ जाता है।
4. तापक्रम (Temperature ) – ताप बढ़ने से आपेक्षिक आर्द्रता कम हो जाती है तथा वायुमण्डल अधिक नमी ग्रहण कर सकता है। इससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
5. मृदा जल (Soil water ) – मृदा में जल की कमी होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कम हो जाता है।

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(ब) आन्तरिक कारक (internal factors) पत्तियों की संरचना, रन्ध्रों की संरचना एवं प्रकार, रन्ध्रों (Stomata) की संख्या, जाइलम एवं मूलरोम (root hairs) की संरचना आन्तरिक कारक हैं। ये वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं।
वाष्पोत्सर्जन की उपयोगिता (Importance of Transpiration)
1. जल एवं खनिजों के अवशोषण के लिए वाष्पोत्सर्जन एक खिंचाव उत्पन्न करता है।
2. इससे मृदा जल विभिन्न पादप अंगों में खनिजों को वितरित करता है।
3. इसके द्वारा पत्तियों का ताप अपेक्षाकृत कम रहता है।
4. अतिरिक्त जल पौधों से बाहर निकलता है।
5. कोशिकाओं की स्फीति बनी रहती है।

प्रश्न 12.
पादपों में जाइलम रसारोहण के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मूल रोमों द्वारा अवशोषित जल गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force) के विपरीत ऊपर की पट्टियों तक चढ़ता है, इसे रसारोहण (ascent of sap) कहते हैं। रसारोहण की क्रिया मुख्यतः वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (transpiration pull) के कारण होती है। रसारोहण के लिए जिम्मेदार कारक निम्नलिखित
1. संसंजन (Cohesion) – यह जल के अणुओं के बीच आकर्षण बल होता है।
2. आसंजन (Adhesion)- यह जल अणुओं तथा जाइलम की दीवारों के बीच लगने वाला बल है
3. पृष्ठ तनाव (Surface Tension ) – यह जल की पृष्ठीय सतह पर उत्पन्न तनाव जल की उपर्युक्त विशिष्टताएँ जल को उच्च तनन सामर्थ्य (high tensile strength) प्रदान करती हैं।

प्रश्न 13.
पादपों में खनिजों के अवशोषण के दौरान अंतःस्त्वचा की आवश्यक भूमिका क्या होती है ?
उत्तर:
जड़ों की अन्तस्त्वचा (endodermis ) कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली पर अनेक वाहक प्रोटीन्स (carrier proteins) पायी जाती हैं। ये प्रोटीन्स मूल रोमों द्वारा अवशोषित जल में घुलनशील पदार्थों की मात्रा और उनके प्रकार को नियंत्रित करने वाले बिन्दुओं की तरह कार्य करती है अन्तः स्त्वचा (endodermis) की सुबेरिन युक्त कैस्पेरियन पट्टियाँ (suberinised casparian strips) द्वारा घुलित पदार्थों का चालन एक ही दिशा अर्थात् केन्द्रीय भाग की ओर होता है। अतः अन्तस्त्वचा खनिजों की मात्रा और प्रकार को जाइलम तक पहुँचने को नियंत्रित करती है। जल तथा खनिजों की गति मूलत्वचा (Epiblema) से अन्तस्त्वचा तक सिमप्लास्टिक (symplastic) होती है।

प्रश्न 14.
जाइलम परिवहन एकदिशीय तथा फ्लोएम परिवहन द्विदिशीय होता है ? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
जाइलम द्वारा परिवहन (Transport through xylem) – पौधे जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण मूलरोमों द्वारा मृदा से करते हैं। ये पदार्थ सक्रिय या निष्क्रिय अवशोषण या दोनों क्रियाओं द्वारा अवशोषित होकर जाइलम तक पहुँचते हैं। जाइलम में पहुँचे जल व खनिज लवण पत्तियों तक पहुँचते हैं। ये पदार्थ पौधे के किसी भाग से होकर पुनः मूलरोमों (root hairs) तक नहीं पहुँच सकते। अतः जाइलम द्वारा परिवहन एकदिशीय होता है। ये पदार्थ पौधों के वृद्धि क्षेत्र की ओर विसरण द्वारा पहुँचते हैं।

फ्लोएम द्वारा परिवहन (Transport through phloem) पत्तियों में निर्मित कार्बनिक भोज्य पदार्थों का परिवहन फ्लोएम द्वारा होता है। पौधों के वे भाग जो भोजन का संश्लेषण करते हैं, स्रोत (Source) तथा जहाँ भोजन का संचय होता है कुण्ड (sink ) कहलाता है। पौधों में स्रोत एवं कुण्ड आवश्यकतानुसार बदलते रहते हैं। स्रोत से सिंक (source to sink ) तक इन पदार्थों का स्थानान्तरण फ्लोएम द्वारा होता है। यदि किसी अंग में भोज्य पदार्थ की आवश्यकता होती है तब ये भोज्य पदार्थ पुनः फ्लोएम द्वारा कुंड (sink ) से उस अंग तक पहुँचते हैं। अतः फ्लोएम द्वारा परिवहन द्विदिशीय (bidirectional) होता है, पहले स्त्रोत से कुण्ड की ओर फिर कुण्ड से उपभोग स्थल की ओर।

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प्रश्न 15.
पादपों में शर्करा के स्थानान्तरण के दाव प्रवाह परिकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शर्करा के स्थानान्तरण की दाव प्रवाह परिकल्पना अथवा मुंच परिकल्पना (The Pressure flow or Mass Flow Hypothesis of Sugar Translocation or Munch hypothesis )- मुंच (Munch, 1930) ने इस परिकल्पना का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण सान्द्रता प्रवणता के अनुरूप फ्लोएम द्वारा पत्तियों से उपभोग के अंगों तक (source to sink) होता है।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पत्तियों में निर्मित पदार्थ शर्करा (sugar) में बदलता है जिससे विलयन की सान्द्रता बढ़ जाती है और परासरण दाब (OP) अधिक हो जाता है। पत्तियों की कोशिकाओं से यह विलयन तने में स्थित चालनी नलिकाओं (seive tubes) से होकर जड़ों तक पहुँचता है जहाँ से कुछ पदार्थ श्वसन में व्यय हो जाता है तथा शेष संचित हो जाता है। यह क्रिया एक सरल प्रयोग द्वारा दर्शायी जा सकती है। अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semi-permeable membrane) के बने दो बल्ब ‘A’ व ‘B’ लेते हैं तथा दोनों को एक नली T द्वारा जोड़ दिया जाता है।

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दोनों बल्बों को ऐसे दो बीकरों में रखते हैं जो आपस में ‘t’ नली द्वारा जुड़े रहते हैं। 4′ तथा ‘B’ की झिल्लियां केवल पानी के लिए पारगम्य (permeable) होती है। ‘A’ बल्ब में शर्करा का अधिक सान्द्र घोल तथा ‘B’ में जल भरते हैं। कुछ समय बाद ‘A’ बल्ब में जल के प्रवेश से स्फीति दाब TP उत्पन्न होता है। ‘A’ बल्ब का घोल T नली के द्वारा बल्ब ‘B’ की ओर बहना प्रारम्भ कर देता है।

यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि दोनों की सान्द्रता बराबर न हो जाए। यदि ऐसी व्यवस्था की जाए कि बल्ब ‘4’ में लगातार शर्करा प्रवेश कराते रहें तथा बल्ब ‘B’ से शर्करा का निष्कर्षण करते रहें तो 4′ से T नली से होकर शर्करा का घोल बल्ब B की ओर निरन्तर प्रवाहित होता रहेगा और जल नली ‘1’ से B की ओर आता रहेगा।

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प्रश्न 16.
वाष्पोत्सर्जन के दौरान रक्षकद्वार कोशिका खुलने एवं बन्द होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
रन्धों का खुलना एवं बन्द होना (Opening and Closing of Stomata) – रन्ध्र (stomata ) की रचनानुसार रक्षक द्वार कोशिका की अन्दर की ओर वाली भित्ति मोटी तथा बाह्य भित्ति पतली होती है। जब द्वार कोशिका की स्फीति (turgidity) बढ़ती है तो बाहरी भित्ति बाहर की ओर फैलती है जिससे छिद्र की ओर की भित्ति बाहर की ओर खिंचती है जिससे रन्ध्र खुल जाता है।

जब द्वार कोशिका श्लथ (flaccid ) अवस्था में आती है तो बाहरी भित्ति अन्दर की ओर आ जाती है जिससे भीतरी भित्ति पर खिंचाव नहीं रहता जिससे वह अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाता है। लायड (Llyod, 1908) के अनुसार अंधेरे में द्वार कोशिकाओं में मण्ड (starch) की मात्रा अधिक व ग्लूकोज (glucose) की मात्रा कम होती है।

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इसके विपरीत दिन के प्रकाश में ग्लूकोज की मात्रा अधिक तथा मण्ड की मात्रा कम होती है, क्योंकि दिन के समय प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ग्लूकोज (glucose) का निर्माण होता है। द्वार कोशिकाओं में अधिक ग्लूकोज की दशा में इनकी परासरण सान्द्रता बढ़ जाती है और समीपवर्ती कोशिकाओं से इनमें जल प्रवेश करने लगता है।

इसके फलस्वरूप द्वार कोशिकाओं की स्फीति बढ़ जाती है और रन्ध्र खुल जाते हैं। अंधेरे में चूंकि ग्लूकोज मण्ड (starch) में बदल जाता है। अतः द्वार कोशिकाओं की परासरण सान्द्रता ( osmotic concentration) कम हो जाती है और ये श्लथ हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

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