HBSE 10th Class Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

जाति, धर्म और लैंगिक मसले प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न-1.
राजनीति विज्ञान से घरेलू कामकाज की चर्चा राजनीति होती हैं? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ ; 40)
उत्तर-
घरेलू कामकाज की चर्चा इस रूप में राजनीति हैं क्योंकि स्त्रियों द्वारा किए गए घरेलू कामों को ‘निजी’ मानकर लिगभेद किया जाता है। और फिर परिवार में पुरुष की प्रधानता ‘सत्ता’ से जुड़ा तत्व हैं। .

जाति, धर्म और लैंगिक मसले के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न-2.
परिवार में काम करने वाली महिला अपने आपकों हाउसवाइफ कहती है और सारा दिन काम करती रहती है। तब भी वह कहती हैं कि वह काम नहीं करती। क्या इसका काम क्यों काम नहीं कहलाता? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 43)
उत्तर-
परिवार में महला द्वार किए गए काम का वेतन नहीं मिलता। वेतन न मिलने वाला काम को लोग काम नहीं समझते।

प्रश्न-3.
क्या नारीवाद अच्छा हैं? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 45)
उत्तर-
नारीवाद महिलाओं को समाज में पुरुषों के बराबर अधिकार व सुविधाएँ देने की मांग करता है। इस दृष्टि से नारीवाद साम्प्रदायिकतावाद व जातिवाद से बहतर है। नारीवाद महिलाओं पर हुए अत्याचार का विरोध करता है।

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प्रश्न-4.
लोग धार्मिक नहीं होते, क्यों उन्हें साम्प्रदायिकता और धर्म-निरपेक्षता की परवाह करनी चाहिए? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 46)
उत्तर-
धार्मिक व धार्मिक न होना एक अलग-सी स्थिति है। एक गैर-धार्मिक व्यक्ति को साम्प्रदायिकता की परवाह इसलिए करनी चाहिए, क्योंकि साप्प्रदायिकता का कुप्रभाव इस पर भी हो सकता है। धर्म-निरपेक्षता का कुप्रभाव भी व्यक्ति पर हो सकता है।

प्रश्न-5.
क्या जाति की चर्चा जातिवाद को बढ़ावा देती हैं? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठः 51)
उत्तर-
जातिवाद की चर्चा से हम जाति के कुप्रभावों की जानकारी प्राप्त करते है इससे जातिवाद को बढ़ावा नहीं मिलता।

प्रश्न-6.
क्या चुप रहने से जाति व्यवस्था समाप्त हो जाती है? (इन्टैक्स प्रश्न : पृष्ठ : 51)
उत्तर-
जातिवाद की बुराइयाँ चुप रहने से कभी भी समाप्त नहीं होती। हम इसकी जितनी चर्चा करेंगे, हमें इसके कुप्रभावों का उतनी गहन समझ आएगी।

प्रश्न-7.
उन देशों का नाम बताइए जहां के सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर ऊँचा होता हैं?
उत्तर-
स्वीडर, नावे।, फिनलैंड।

प्रश्न-8.
भारत में महिलाओं की साक्षरता दर कितनी
उत्तर-
2001 की गणना के अनुसार, 54%।

प्रश्न-9.
भारत में लिंग अनुपात कितना हैं?
उत्तर-
2001 की गणना के अनुसार, 933 प्रति हजार पुरुष।

प्रश्न-10.
ग्रामीण व शहरी निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या बताइए।
उत्तर-
प्रायः यह संख्या सन्तोषजनक हैं।

प्रश्न-11.
साम्प्रदायिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जब धर्म को किहीं राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन बनाया जाता है तो उसे साम्प्रदायिकता कहा जाता है।

प्रश्न-12.
धर्म-निरपेक्ष राज्य में राज्य की क्या भूमिका होती हैं?
उत्तर-
धर्म-निरपेक्ष राज्य में राज्य सभी धर्मो को एक दृष्टि से देखता है तथा सबका एक समान सम्मान करता है।

प्रश्न-13.
किन्हीं दो भारतीय नेताओं के नाम बताइए जिन्होंने जातिवाद के विरुद्ध आवाज उठायी थीं?
उत्तर-
ज्योतिबा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर।

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प्रश्न-14.
भारत में 2001 में हिंदुओं की संख्या कितनी थी?
उत्तर-
पूरी जनसंख्या का 80.5% ।

प्रश्न-15.
2001 गणना के अनुसार भारत में मुसलमानों की संख्या बताइए।
उत्तर-
कुल जनसंख्या का 13.4%

प्रश्न-16.
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जातियों व जनजातियों की संख्या बताइए।
उत्तर-
अनुसूचित जाति के लोग कुछ जनसंख्या का 16. 2%तथा जनजाति के लोग 8.2%।

प्रश्न-17.
भारत में पिछड़ी जातियों की कितनी संख्या है?
उत्तर-
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2004-2005 के अनुसार पिछड़ी जातियों के लोगों की संख्या कुल संख्या का 41% हैं।

प्रश्न-18.
अपने समाज में आदर्श स्त्री के बारे में प्रचलित धारणाओं की चर्चा कीजिए। आदर्श स्त्री के बारे में आपकी धारणा क्या हैं? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ट 41)
उत्तर-
आदर्श स्त्री ड्राइिंगरूम में सोफे पर बैठी टी.वी. देखने वाली स्त्री नहीं होती क्योंकि ऐसी स्त्री कोई सामाजिक कार्य नहीं करती। फैशन-उद्योग में भाग लेने वाली स्त्री को भी आदर्श स्त्री नहीं कहा जा सकता। स्त्रियां सुंदरता की प्रतीक अवश्य हाते हैं, पर उन्हें इस कारण आदर्श नही कहा जा सकता। आदर्श स्त्री घर में काम करने वाली ग्रहिणी नहीं होती; वह तो समस्त समय शोषित व्यक्ति के रूप में गुजारती आदर्श – स्त्री तो परिवार, समाज व सार्वजनिक जीवन में अपनी सही भूमिका निभाने वाली पुरुष के समान सदस्या होती है।

प्रश्न-19.
भारत में लिंग अनुपात की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
2001 की जनगणना के अनुसार, भार में लिंग अनुपात 933 है। कुछेव राज्यों में प्रति हजार पुरुषों में स्त्रियों की संख्या 800 से भी कम रही है। पंजाब, हरियाणा हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में स्थिति बड़ी गंभीर है। इन राज्यों में बाम लिंग अनुपात तेजी से घटा है। यहां प्रति हजार बालकों के मुकाबले में बालिकाओं की संख्या 800 से भी कम थीं।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों का प्रतिशत अनुपात,
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प्रश्न-20.
उदाहरण सहित श्रम के लैंगिक विभाजन की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
औरतों व पुरुषों के बीच श्रम को लेकर लैंगिक विभाजन की चर्चा इस प्रकार की जाती है कि औरतें घर का काम करती हैं तथा पुरुष, बाहर का। औरतें घर के अन्दर का सारा कामकाज जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं। इस आधार पर औरतों के काम को घर के अन्दर काम में व पुरुषों को ‘घर के बाहर के कामों में’ श्रम आधार पर बाँट दिया जाता है। औरतों के काम को कम मूल्यावन तथा पुरुषों के बाद को अधिक मूल्यवान मान लिया जाता है।

प्रश्न-21.
श्रम के लैंगिक विभाजन का परिणाम बताइए।
उत्तर-
श्रम के लैंगिक विभाजन का नतीजा यह हुआ है कि औरत तो घर की चारदीवारी में सिमट के रह गई है और बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में आ गया है। मनुष्य जाति की आबादी में औरतों का हिस्सा आधा है पर सार्वजनिक जीवन में उन की भूमिका नगण्य ही है। हाल के कुल वर्षों में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है।

प्रश्न-22.
नारीवादी आन्दोलन किसे कहते हैं?
उत्तर-
महिलाओं के पक्ष में होने वाले आन्दोलनों को नारीवादी आन्दोलन कहा जाता है। इन आन्दोलनों में महिलाओं के लिए अधिक सुविधाओं की माँगें की जाती हैं। संसार के अलग-अलग हिस्सों में औरतों ने अपने संगठन बनाए हैं और पुरुषों के मुकाबले में बराबरी के अधिकार प्राप्त करने की माँग की है; अनेक अन्यों ने महिलाओं के राजनीतिक व वैधानिक दर्जे को ऊँचा करने की आवाजें भी उठायी हैं। यह सब नारीवादी आन्दोलन के कुछ पहलू कहे जा सकते हैं।

प्रश्न-23.
नारीवादी आन्दोलनों के क्या प्रभाव हुए हैं अथवा हो रहे हैं?
उत्तर-
लैंगिक विभाजन में महिलाओं की स्थिति हेतु चलाए गए नारीवादी आन्दोलनों ने सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को बढाने में मदद की है। आज हम वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में शिक्षक जैसे पेशों में बहुत-सी औरतों को देख पाते हैं जबकि पहले महिलाओं के इन कामों के लायक नहीं समझा जाता था। दुनिया के कुछ हिस्सों, जैसे स्वीडन, नार्वे और फिनलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।

प्रश्न-24.
भारत के पुरुष प्रधान समाज में औरतों के साथ हो रहे भेदभाव को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
भारत में, भले ही महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। इसके बावजूद अभी भी कई तरह से औरतों के साथ भेदभाव होते हैं, उनका दमन होता है। इनका साक्षरता दर पुरुषों के मुकाबले में कम है, ऊँचे पदों पर पहुँचनी वाली स्त्रियों की संख्या बहुत कम है। लड़कों के मुकाबले में लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। पारिवारिक कानून जितना पुरुषों के पक्ष में है, उतने स्त्रियों के पक्ष में नहीं है।

प्रश्न-25.
साम्प्रदायिकता क्या है?
उत्तर-राजनीति में धर्म को जोड़ना साम्प्रदायिकता होती है। जब कोई एक धार्मिक समूह अपनी मांगों के लिए धर्म का सहारा लेता है तथा उस समूह के नेता धार्मिक भावनाओं को उकसाते हैं, तो इसे साम्प्रदायिकता कहा जाता है। राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए धर्म का प्रयोग साम्प्रदायिकता है। लोगों की धार्मिक भावनाओं को उकसाना साम्प्रदायिकता है। राजनीति में धर्म का प्रयोग साम्प्रदायिकता है।

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प्रश्न-26.
साम्प्रदायिकता क्यों भारत के लिए एक चुनौती
उत्तर-
साम्प्रदायिकता भारत में कुछ लोगों के लिए ही खतरा नहीं है। यह सम्पूर्ण देश के लिए, सामाजिक व्यवस्था के लिए, कानून व व्यवस्था के लिए चुनौती है। यह भारत की बुनियादी अवधारणा के लिए एक चुनौती है, एक खतरा है। हमारी तरह का धर्म-निरपेक्ष संविधान जरूरी चीज है पर अकेले इसी के बूते साम्प्रदायिकता का मुकाबला नहीं किया जा सकता। हमें अपने दैनिक जीवन में साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों और दुष्प्रचारों का मुकाबला करना होगा तथा धर्म पर आधारित गोलबंदी का मुकाबला राजनीति के दायरे में करने की जरूरत है। .

प्रश्न-27.
जाति की जटिलता को उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर-
जाति की जटिलता उसकी विशेषता होती है। एक जाति समूह के लोग एक या मिलते-जुलते पेशों के तो होते ही हैं साथ ही उन्हें एक अलग सामाजिक समुदाय के रूप में भी देखा जाता है। उनमें आपस में ही बेटी-रोटी अर्थात् शादी और खानपान का संबंध रहता है। अन्य जाति समूहों में उनके बच्चों की न तो शादी हो सकती है न महत्त्वपूर्ण पारिवारिक और सामुदायिक आयोजनों में उनकी पाँत में बैठकर दूसरी जाति के लोग भोजन कर सकते हैं।

प्रश्न-28.
राजनीति किस प्रकार जातिगत पहचान को प्रभावित करती है?
उत्तर-
केवल राजनीति ही जातिग्रस्त नहीं होती, जाति भी राजनीतिग्रस्त होती है। राजनीति जातियों व उनकी उपजातियों को एक-दूसरे के के साथ अपने साथ लाने का प्रयास करती है। जातियाँ एक-दूसरे के निकट आती है अथवा निकट लायी जाती हैं ताकि उनकी राजनीतिक ताकत की पहचान बढ़ साके। राजनीति इस प्रकार के प्रयास करती है। राजनीति जातियों में गोलबंदी बनाए रखने का प्रयास करती है।

प्रश्न-29.
पुरुषों के मुकाबले में महिलाओं के साथ हुए भेदभाव के मुख्य उदाहरण बताइए।
उत्तर-
पुरुषों के मुकाबले में महिलाओं के साथ हुए भेदभाव के कुछैक मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54 फीसदी है जबकि पुरुषों में 76 फीसदी। इसी प्रकार स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पायी हैं।
  • इस स्थिति के चलते अब भी ऊँची तनख्वाह वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है। भारत में औसतन एक स्त्री एक पुरुष की तुलना में रोजाना एक घंटा ज्यादा काम करती है। पर उसको ज्यादातर काम के लिए पैसे नहीं मिलते। इसलिए अक्सर उसके काम को मूल्यवान
    नहीं माना जाता।
  • समान मजदूरी से संबंधित अधिनियम में कहा गया है कि समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी। बहरहाल, काम के हर क्षेत्र में यानी खेल-कूद की दुनिया से लेकर सिनेमा के संसार तक और कल कारखानों से लेकर खेत खलिहान तक महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है, भले ही दोनों ने समान काम किया हो।
  • भारत के अनेक हिस्सों में माता-पिता को सिर्फ लड़के की चाह होती है। लड़की को जन्म लेने से पहले ही खत्म कर देने के तरीके इसी मानसिकता से पनपते हैं। इससे देश का लिंग अनुपात [प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या] गिरकर 927 रह गया है। तथ्यों से यह संकेत मिलता है कि कई जगहों पर यह अनुपात गिरकर 850 और कहीं-कहीं तो 800 से भी नीचे चला गया है।

प्रश्न-30.
भारत में राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर चर्चा करें।
उत्तर-
भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत की कम है। जैसे, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या कभी कुल सदस्यों की दस फीसदी तक भी नहीं पहुंची है। राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 फीसद से भी कम है। इस मामले में भारत का नंबर दुनिया के देशों में काफी नीचे है। भारत इस मामले में अफ्रीका और लातिन अमरीका के कई विकासशील देशों से भी पीछे है। कभी-कभार कोई महिला प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की कुर्सी तक आ गई है पर मंत्रिमंडलों में पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है।
इस समस्या को सुलझाने का एक तरीका तो निर्वाचित संस्थाओं में महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक उचित हिस्सा तय कर देना है। भारत में पंचायती राज के अंतर्गत कुछ ऐसी ही व्यवस्था की गई है। स्थानीय सरकारों यानी पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक तिहाई पद महिलाओं के लिए
आरक्षित कर दिए गए हैं। आज भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या खासी ज्यादा है। लोकसभा और राज्य विधान सभाओं की भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हेतु संसद में इस आशय का एक विधेयक पेश भी किया गया था पर दस वर्षों से ज्यादा अवधि से वह लटका पड़ा है।

प्रश्न-31.
साम्प्रदायिक राजनीति किस सोच पर आध रित है? समझाइए।
उत्तर-
साम्प्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि धर्म ही सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है। इस मान्यता के अनुकूल सोचना साम्प्रदायिकता है। इस सोच के अनुसार एक खास धर्म से आस्था रखने वाले लोग एक ही समुदाय के होते हैं उनके मौलिक हित एक जैसे होते हैं तथा समुदाय के लोगों के आपसी मतभेद सामुदायिक जीवन में कोई अहमियत नहीं रखते। इस सोच में यह बात भी शामिल है कि किसी अलग धर्म को मानने वाले लोग दूसरे सामाजिक समुदाय का हिस्सा नहीं हो सकते; अगर विभिन्न धर्मों के लोगों की सोच में कोई समानता दिखती है तो यह ऊपरी और बेमानी होती है। अलग-अलग धर्मों के लोगों के हित तो अलग-अलग होंगे ही और उनमें टकराव भी होगा। साम्प्रदायिक सोच जब ज्यादा आगे बढ़ती है तो उसमें यह विचार जुड़ने लगता है कि दूसरे धर्मों के अनुयायी एक ही राष्ट्र में समान नागरिक के तौर पर नहीं रहे सकते। यह मानसिकता हानिकारक हो सकती है।

प्रश्न-32.
साम्प्रदायिकता राजनीति में किस प्रकार के रूप धारण कर सकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
साम्प्रदायिकता राजनीति में किस प्रकार के रूप ध गरण कर सकती है। इसमें प्रमुख का वर्णन निम्नलिखित है

  • साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनिक जीवन में ही दिखती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी बनाई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं। ये चीजें इतनी आम है कि अक्सर हम उन पर ध्यान तक नहीं देते जबकि ये हमारे अंदर ही सहमति होती है।
  • साम्प्रदायिक सोच अक्सर अपने धार्मिक समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के फिराक में रहती है। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है। जो अल्पसंख्यक समुदाय के होते हैं उनमें यह विश्वास अलग राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा का रूप ले लेता है।
  • साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इसमें धर्म के पवित्र प्रतीकों, धर्मगुरुओं, भावनात्मक अपील और अपने ही लोगों के मन में डर बैठाने जैसे तरीकों का उपयोग बहुत आम है। चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं या हितों की बात उठाने जैसे तरीके अक्सर अपनाए जाते हैं।
  • कई बार साम्प्रदायिकता सबसे गंदा रूप लेकर सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है। विभाजन के समरा भारत और पाकिस्तान में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। आजादी के बाद भी बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई है।

प्रश्न-33.
भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता से सम्बन्धि त कुछेक प्रावधान मिल गए हैं। उनमें प्रमुख का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता से सम्बन्धित कुछेक प्रावधान प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से , किए गए हैं। इनमें कुछेक वर्णन निम्नलिखित है
(क) भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
(ख) संविधान सभी नागरिकों और समुदायों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है।
(ग) संविधान धर्म के आधार पर कि जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।
(घ) इसके साथ ही संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। जैसे यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।
इस हिसाब से देखें तो धर्म-निरपेक्षता कुछ पार्टियों या व्यक्तियों की एक विचारधारा भर नहीं है। यह विचार हमारे संविधान की बुनियाद है।

प्रश्न-34.
राजनीति में जाति के मुख्य रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राजनीति में जाति के मुख्य रूपों को निम्नलिखित बताया जा सकता है-

  • जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती है ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए। जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान देखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए।
  • राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों का विवश किया है कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हों। इससे उन जातियों के लोगों में नयी चेतना पैदा हुई जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था।

प्रश्न-35.
क्या चुनावों को जातियों का खेल कहा जा सकता है? अपने पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर-
चुनावों को जातियों का खेल नहीं कहा जा सकता। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

  • देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है इसलिए हर पार्टी और उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए एक जाति और एक समुदाय से ज्यादा लोगों का भरोसा हासिल करना पड़ता है।
  • कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती। जब लोग किसी जाति विशेष को किसी एक पार्टी का ‘वोट बैंक’ कहते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि उस जाति के ज्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं।
  • अगर किसी चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों का प्रभुत्व माना जा रहा हो तो अनेक पार्टियों को उसी जाति का उम्मीदवार खड़ा करने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में कुछ मतदाताओं के सामने उनकी जाति के एक से ज्यादा उम्मीदवार होते हैं तो किसी-किसी जाति के मतदाताओं के सामने उनकी जाति का एक भी उम्मीदवार नहीं होता।
  • हमारे देश में सत्तारूढ़ दल, वर्तमान सांसदों और विध यकों को अक्सर हार का सामना करना पड़ता है। अगर जातियों और समुदायों की राजनीतिक पसंद एक ही होती तो संभव नहीं हो पाता।

विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में सही व गलत की चयन कीजिए।
(i) भारत में पुरुषों के मुकाबले में स्त्रियों का अनुपात अधि क है।
(ii) नारीवादी लैंगिक विभाजन को बनावटी मानते हैं।
(iii) साम्प्रदायिकता लोकतंत्र को सुदृढ़ करती है।
(iv) भारत में जातिप्रथा की उत्पति वर्ण-अवस्था से की जाती है।
(v) लोकतंत्र में जातिगत भावनाएँ उसे कमजोर बनाती है।
उत्तर-
(i) गलत,
(ii) सही,
(iii) गलत,
(iv) सही,
(v) सही।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को उचित शब्दों में भरें
(i) लैंगिक अनुपात ……… के पक्ष में है। (स्त्रियों, पुरुषों)
(ii) साम्प्रदायिकता ……….. का नकारात्मक रूप है। (ध र्म, लोकतंत्र)
(iii) जातिवाद से जुड़े लोग ………. जाति के हित को ध्यान में रखते हैं। (अपनी, दूसरों)
(iv) भारत …….. प्रधान देश है। (स्त्री, पुरुष)
उत्तर-
(i) पुरुषों,
(ii) धर्म,
(iii) अपनी,
(iv) पुरुष।

प्रश्न 3.
(क) सही विकल्प का चयन करें
(i) गाँधी जी धर्म को नैतिक रूप में समझते थे।
(ii) जातिवाद लोकतंत्र को मजबूत बनाता है।
(iii) धर्म साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है।
उत्तर-
(i) सही

(ख) (i) भारत में लैंगिक अनुपात स्त्रियों व पुरुषों के बीच लगभग समान हैं।
(ii) साम्प्रदायिकता धर्म का राजनीतिकीकरण है।
कूट 1. (i) ठीक है, (ii) गलत है
2. (i) गलत है, (i) ठीक है
3. (i) तथा (ii) दोनों ठीक हैं
4. (i) तथा (i) दोनों गलत हैं।
उत्तर-
2. (i) गलत तथा (ii) ठीक है।

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