Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख
अति लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
सिली सिलाई मर्दाना शर्ट को खरीदते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं दो बातों के बारे में बताएं।
उत्तर :
1. व्यवसाय अनुसार शर्ट खरीदनी चाहिए।
2. शर्ट का रंग, डिजाइन और प्रिंट ऐसा होना चाहिए जो उसके शरीर पर अच्छा लगे।
प्रश्न 2.
कपड़ों पर लगे सूचना लेबल हमें क्या जानकारी देते हैं ?
उत्तर :
सूचना लेबल से निम्नलिखित जानकारी मिलती है –
- वस्त्र किस रेशे का बना है।
- वस्त्र किस तरह प्रयोग करना है।
- माप बड़ा अथवा बीच का अथवा छोटा है।
- निर्माता कम्पनी के नाम का पता चलता है।
प्रश्न 3.
वस्त्रों पर लगे देख-रेख लेबल से हमें क्या सूचना मिलती है ?
उत्तर :
इससे हमें पता चलता है कि कपड़ों को कैसे धोएं, गर्म या ठण्डे पानी में धोएं, प्रैस का तापमान कितना होना चाहिए, कपड़ों को धूप में सुखाएं या छांव में आदि।
प्रश्न 4.
कारण बताते हुए समझाएं कि छोटे बच्चों के लिए निम्न में से कौन से वस्त्र अधिक उचित हैं और क्यों (क) बने बनाए वस्त्र (ख) दर्जी से सिलवाए गए।
उत्तर :
बने बनाए वस्त्र बच्चों के लिए ठीक रहते हैं। बाज़ार में बच्चों के लिए –
भिन्न-भिन्न प्रकार के भिन्न-भिन्न रंगों के वस्त्र बड़ी मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। बच्चों की वृद्धि भी तीव्रता से होती है इसलिए दर्जी से बार-बार जाने से समय तथा पैसा दोनों की बर्बादी होती है। बाजार से बने बनाए वस्त्रों को खरीदने से समय की बचत, पैसे की बचत हो जाती है तथा इन्तज़ार नहीं करना पड़ता। किसी भी तरह की मांग की पूर्ति हो जाती है।
प्रश्न 5.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने के कोई दो लाभ व दो हानियां लिखें।
उत्तर :
लाभ (1) दर्जी से वस्त्र सिलवाने से कपड़ों की फिटिंग अच्छी होती है। (2) वस्त्रों पर डिज़ाइन अपनी पसंद का डलवाया जा सकता है। हानियां (1) कपड़ों को प्राप्त करने के लिए इन्तजार करना पड़ता है। (2) कई बार फिटिंग नहीं आती तो ठीक करवाना पड़ता है।
प्रश्न 6.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने के दो लाभ बताएं।
उत्तर :
नोट-देखें प्रश्न 5.
प्रश्न 7.
गुणवत्ता से क्या भाव है ?
उत्तर :
किसी वस्त्र की प्रकार, प्रकृति उसकी बनावट की श्रेष्ठता की मात्रा को उसकी गुणवत्ता कह सकते हैं।
प्रश्न 8.
बाज़ारी वस्त्रों का चुनाव करने के लिए क्या ढंग अपनाएंगे ?
उत्तर :
निम्न बातों को ध्यान में रख कर चुनाव किया जाना चाहिए। वस्त्र में निम्न गुण हों –
- आकर्षक
- आरामदायक
- अच्छी कारीगरी
- बजट में
- अपने कार्य के अनुसार
- रंग का चयन आदि।
प्रश्न 9.
अच्छी कारीगरी के गुण बताएं।
उत्तर :
धागा, सीन का मिलान, कटाई, कॉलर तथा कफ, प्लेटें, बटन, काज, जि, लाईनिंग।
प्रश्न 10.
कारीगरी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
कारीगरी का अर्थ है तैयार वस्त्रों के नाप, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, वन्धक, कालर, कफ और अलंकरण से है। इनका प्रयोग कैसे हो कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे।
प्रश्न 11.
रेडीमेड कपड़े खरीदने का कोई एक (दो) लाभ लिखें।
उत्तर :
1. समय की बचत हो जाती है।
2. दर्जियों के पास आने-जाने की समस्या भी नहीं रहती।
प्रश्न 12.
दर्जी से कपड़े सिलवाते समय ध्यान रखने योग्य किसी एक बात का उल्लेख करें।
उत्तर :
दर्जी को चाहिए कि कपड़े की सिलाई मज़बूत धागे तथा कपड़े के रंग वाले धागे से ही करे।
प्रश्न 13.
दर्जी से सिलवाये गये वस्त्रों की कारीगरी की जाँच करने के लिए किसी एक बिन्दु का उल्लेख करें।
उत्तर :
सिलाई का वखिया छोटा होना चाहिए। कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण वखिया मोटा कर देते हैं जो टिकाऊ नहीं होता।
प्रश्न 14.
दर्जी से कपड़े सिलवाने का कोई एक लाभ लिखें।
उत्तर :
कपड़ों की फिटिंग अच्छी रहती है।
प्रश्न 15.
बच्चों के लिए रेडीमेड कपड़े खरीदने का कोई एक लाभ लिखें।
उत्तर :
बाज़ार में बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न रंगों तथा नमूनों वाले कपड़े उपलब्ध हैं तथा मनपसन्द वस्त्र चुनना आसान रहता है।
प्रश्न 16.
अपने लिए रेडीमेड सूट खरीदते समय उसकी कारीगरी का आंकलन करने का कोई एक बिन्दु लिखें।।
उत्तर :
वस्त्र सिलने के लिए प्रयोग किया गया धागा वस्त्र से मिलता हो तथा मज़बूत हो तथा धागे का रंग भी पक्का हो।
प्रश्न 17.
रंगीन रेडीमेड कपड़ों के लेबल पर क्या-क्या सूचना होनी चाहिए ?
उत्तर :
इस पर कपड़े को कैसे धोया जाए ठण्डे या गर्म पानी से, किस प्रकार का साबुन या डिटरजेंट प्रयोग करें, धूप में सुखाया जाए या छांव में, आदि जानकारी होनी चाहिए। कपडे पर कितनी गर्म प्रेस का प्रयोग करें। यह सब जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए।
प्रश्न 18.
तीन वर्षीय बालक के लिए रेडीमेड वस्त्रों का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य दो बातें लिखिए।
उत्तर :
1. वस्त्र आसानी से पहनने तथा उतारने वाले हों माता की कम सहायता लेनी पड़े।
2. वस्त्रों पर अधिक नमूने नहीं होने चाहिए इससे वस्त्र भारी हो जाते हैं।
प्रश्न 19.
आजकल पुरुषों के लिए रेडीमेड कमीज़ क्यों बेहतर मानी जाती है, कोई दो कारण लिखें।
उत्तर :
- यह आरामदायक रहती है।
- सस्ती होती है।
- समय की बचत हो जाती है।
- दर्जियों के चक्करों से छुटकारा मिल जाता है।
प्रश्न 20.
दर्जी से छोटे बच्चों के कपड़े सिलवाते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं दो बातों का उल्लेख करें।
उत्तर :
1. बच्चों का शरीर जल्दी बढ़ता है इसलिए दर्जी से सिलवाए कपड़े में अधिक दाब रखना चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वस्त्र खुला किया जा सके।
2. वस्त्र सरलता से पहने तथा उतारे जा सकें ऐसे होने चाहिए।
प्रश्न 21.
वस्त्रों पर ‘देखरेख लेबल’ क्या होता है ?
उत्तर :
देखरेख लेबल रेडीमेड वस्त्रों पर लगा रहता है। इस पर वस्त्र की देखरेख जैसे धुलाई, सुखाना, प्रैस करना आदि के बारे में जानकारी दी गई होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न :
बने बनाए वस्त्र खरीदते समय उसकी कारीगरी का मूल्यांकन किस प्रकार करोगे?
अथवा
अपने लिए रेडीमेड सूट खरीदते समय उसकी कारीगरी की जांच कैसे करेंगे ? किन्हीं दो बिन्दुओं का उल्लेख करें।
उत्तर :
कारीगरी का अर्थ तैयार वस्त्रों के नाम, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, बन्धक, कालर, कफ़ और अलंकरण से है। इनका कैसे प्रयोग किया जाए कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे। कारीगरी का मूल्यांकन करने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों को देखना पड़ता है –
- नमूना-नमूनों का अर्थ है कि विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना। ये सजावटी तथा रचनात्मक हो सकते हैं।
- कपड़े की कटाई-कपड़ा सिलने से पहले कपड़े की कटाई ठीक होनी चाहिए। कपड़े की कटाई ठीक होगी तो कपड़े की सिलाई भी अच्छी होगी।
- सिलाई-सिलाई का बखिया छोटा होना चाहिए। कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण बखिया मोटा कर देते हैं जो टिकाऊ नहीं होता।
- उलेड़ी-जब वस्त्र तैयार हो जाता है तो कई स्थानों; जैसे घेरे पर, गले की रेखा पर उलेड़ी करनी पड़ती है यदि ऐसा न हो तो इन स्थानों से धागे निकलने लगते हैं जो अच्छे नहीं लगते।
- बन्धक-बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार-पहन सकते हैं। इसके लिए हुक-आई, बटन, काज और जिप का प्रयोग किया जाता है। यदि यह ठीक हो तो वस्त्र की फाल अच्छी आती है वस्त्र पहना हुआ अच्छा लगता है।
- कालर, कफ़, जेब-कालर और कफ़ की फिटिंग ठीक होनी चाहिए इन पर झोल नहीं होनी चाहिए। जेब ठीक दिशा में लगी हो।
- पलीटस, डार्टस और चुन्नटें-इनसे कपड़े में लचीलापन आ जाता है।
- अलंकरण-कपड़े को आकर्षक बनाने के लिए लेस, पाईपिंग, झालर आदि लगाई जाती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
रेडीमेड वस्त्रों की ज़रूरत क्यों है ?
अथवा
रेडीमेड वस्त्र खरीदने के कोई दो लाभ लिखो ?
उत्तर :
1. समय को बचाना (Saves Time) – आजकल हर व्यक्ति अपने कार्य में व्यस्त रहता है जिससे उसके पास समय का अभाव है। उसके पास इतना समय नहीं होता कि वह कपड़ा खरीदे, डिज़ाइन का फैसला ले, दर्जी को माप दे। अगर फिटिंग नहीं आती तो ठीक करवाये। इन सब झंझटों से वह बच जाता है।
2. इन्तज़ार नहीं करना पड़ता (No Waiting) – तैयार वस्त्रों को पहनने के लिए इन्तज़ार नहीं करना पड़ता है। जैसे ही वस्त्र खरीदते हैं तुरन्त उसे पहन लेते हैं।
3. रचनात्मकता की ज़रूरत नहीं (Need for Creativity) – बाज़ारी वस्त्र किसी विशेषज्ञ के द्वारा तैयार किये जाते हैं। वही अपनी बुद्धिमत्ता से विभिन्न नमूनों वाले वस्त्र तैयार करता है। इससे पहनने वाले को डिजाइन के लिए सोचने की ज़रूरत नहीं होती है।
4. अलग-अलग आर्थिक स्तर के लोगों के लिए उपलब्धि (Availability of Readymade Garments for Different Income Groups) – तैयार वस्त्र हर आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए सिले होते हैं जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ती जा रही है। हमारे समाज में तीन तरह के आर्थिक स्तर वाले लोग हैं।
उच्च आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए उत्तम गुणों वाले महंगे तैयार वस्त्र उपलब्ध होते हैं। ये वस्त्र काफ़ी दृढ़ और मज़बूत होते हैं। इनकी रंग और सिलाई पक्की होती है। तैयार वस्त्र मध्यम आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए भी होते हैं। यह छोटे शोरूम में उपलब्ध होते हैं। ये भी मज़बूत होते हैं और धुलाई के बाद खराब नहीं होते हैं। तैयार वस्त्र निम्न आर्थिक स्थिति वाले लोगों के लिए भी उपलब्ध होते हैं। हमारे देश के अधिकतर लोग गरीब हैं। इसलिए निम्न आय वर्ग के लिए तैयार वस्त्र काफ़ी संख्या में उपलब्ध हैं। ये कपड़े सस्ते होते हैं। इनका कपड़ा साधारण होता है। इनकी सिलाई, धागा, रंग पक्का नहीं होता है। यह धोने के बाद सिकुड़ भी जाते हैं।
5. उचित लटकाव (Proper Drape) – तैयार वस्त्र जब हम खरीदते हैं तो हम उसी समय खरीदने से पहले डालकर उनका आकार, फिटिंग आदि का निरीक्षण कर लेते हैं जिससे यह वस्त्र हमारे शरीर की बनावट पर पूरे उतरते हैं और हमें जचते भी हैं।
6. कम दाम (Less Price) – बाज़ारी वस्त्र घर पर सिले वस्त्रों से कम मूल्य के पड़ते हैं क्योंकि वस्त्र को बाज़ारी रूप से तैयार करने के लिए कपड़ा काफ़ी मात्रा में थोक रेट में इकट्ठा खरीदा जाता है जिसके कारण यह सीधा फैक्टरी अथवा मिलों से भी खरीदा जाता है। कपड़े को जब इकट्ठा बड़े स्तर पर खरीदा जाता है तो उनको इकट्ठा ही काटा जाता है। इससे कपड़ा व्यर्थ नहीं जाता और यह कपड़ा किसी कटाई विशेषज्ञ के द्वारा ही काटा जाता है जिससे वह कपड़े का छोटे से छोटा टुकड़ा भी व्यर्थ नहीं फेंकते। कपड़ा काटने के बाद सिलाई के लिए सक्षम दर्जियों को दिया जाता है जो इतनी अधिक मात्रा में सिलाई कार्य मिलने के कारण सिलाई करने के दाम कम लेते हैं।
7. तुरन्त ज़रूरतों की पूर्ति करना (Fullfilling Immediate Requirements) – कई बार हमें किसी वस्त्र की बहुत जल्दी ज़रूरत होती है तो हम तैयार वस्त्र को उसी समय खरीद कर अपनी ज़रूरत को पूरा कर लेते हैं।
8. दर्जियों के चक्करों से छुटकारा (Protection from Harassment of Tailors) तैयार वस्त्र खरीदने के लिए उसे दर्जियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। वह अपनी इच्छानुसार और फिटिंग अनुसार तैयार वस्त्र खरीद कर पहन लेता है।
9. अधिक विभिन्नता (More Variety) – तैयार वस्त्रों के नमूने विशेष डिज़ाइनर और फैशन विशेषज्ञ के द्वारा बनाये जाते हैं। वह अधिकतर प्रचलित फैशन के सम्पर्क में होते हैं जिससे वह वही नमूना और डिज़ाइन बनाते हैं जो उपभोक्ता को पहली बार देखने में भी पसन्द आ जाता है। वह विभिन्न नमूने तैयार करके बाज़ारी वस्त्रों में अधिक विभिन्नता पैदा करते हैं।
10. विस्तृत पसन्द (Wider Choice) – रेडीमेड वस्त्र विभिन्न रंग, डिजाइन और बनावट के होते हैं। इनको देखकर व्यक्ति की पसन्द भी अधिक हो जाती है। उसके सामने एक ही ज़रूरत को पूरा करने के लिए कई तरह के वस्त्र होते हैं और अपनी रुचि अनुसार इन वस्त्रों को वह खरीद सकता है।
11. किसी भी तरह की मांग की पूर्ति (Meeting of any Type of Demands) – उपभोक्ता की जैसी भी मांग होती है जैसा भी नमूना वह चाहते हैं, जैसा स्टाइल उपभोक्ता चाहते हैं, निर्माता उसी तरह के वस्त्र उपभोक्ता को देते हैं। जिससे उपभोक्ता अधिक सन्तुष्ट होते हैं।
प्रश्न 2.
रेडीमेड कपड़ों के दो लाभ बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।
प्रश्न 3.
बने बनाए वस्त्रों को खरीदते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं चार बातों का उल्लेख करो।
अथवा
रेडीमेड कपड़े खरीदते समय ध्यान रखने योग्य कोई दो बातें लिखें।
उत्तर :
बाज़ारी वस्त्रों को चुनते हुए ध्यान रखने योग्य बातें (Criteria for Selection of Readymade Garment) । आजकल तैयार वस्त्र अधिक पसन्द किए जाते हैं। इनकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अधिकतर लोग पसन्द करते हैं कि वह सिले सिलाए कपड़ों की अपेक्षा बाज़ारी तैयार वस्त्र ही लें। हर उपभोक्ता वस्त्र पर धन खर्च करने से पहले यही चाहता है कि जिस वस्त्र को वह खरीदे वह उत्तम किस्म का और ठीक मूल्य का हो और उपभोक्ता की ज़रूरतों के अनुसार होना चाहिए। इसलिए उपभोक्ता को तैयार वस्त्रों को चुनते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. वस्त्र की गुणवत्ता (Quality of Garments) – वस्त्र को खरीदने से पहले हमें उसकी गुणवत्ता परख लेनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए
(क) कपड़े का तन्तु कैसा है अगर यह तन्तु मिश्रित है, तो कपड़े की मजबूती अधिक होगी।
(ख) कपड़े की बुनाई घनी होनी चाहिए।
(ग) परिधान पर डिज़ाइनिंग के लिए जो भी वस्तु प्रयोग की गई हो वह मुख्य वस्त्र से मिलती होनी चाहिए।
(घ) कपड़ा ऐसा हो जो शरीर पर अच्छी तरह से ड्रेप होता है। अगर यह शरीर के अनुसार ड्रेप होते हैं तो यह देखने में काफ़ी सुन्दर लगते हैं। इससे शरीर की फिटिंग ठीक रहती है।
(ङ) कपड़ा ऐसा हो जिसको ड्राइकलीन की ज़रूरत न हो।
(च) कपड़े पर रगड़ने और धुलाई के साबुन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
(छ) कपड़े के रेशे सीधी दिशा में होने चाहिएं न कि टेढ़े। इनकी मोटाई एक समान होनी चाहिए।
2. कारीगरी (Workmanship) – कारीगरी का अर्थ है तैयार वस्त्रों के नाप, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, बन्धक, कालर, कफ़ और अलंकरण से है। इनका कैसे प्रयोग किया जाए कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे। वस्त्र की कारीगरी अच्छी है तो वस्त्र की कीमत होगी वह गुणात्मक रूप से भी अच्छा होगा। अगर कारीगरी अच्छी नहीं होगी तो ऐसे वस्त्र को पहनकर व्यक्ति को अच्छा नहीं लगेगा। कारीगरी के निम्नलिखित तत्त्व आते हैं –
(i) नमूना (Design) – नमूनों का अर्थ होता है कि विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना। यह सजावटी और रचनात्मक हो सकते हैं। अपनी इच्छानुसार व्यक्ति किसी तरह के नमूने का अपनी पोशाक के लिए चयन कर सकता है। आजकल निर्माता उपभोक्ता की मांग पर आकर्षक नमूने वाले वस्त्र बना रहे हैं जिनको देखकर हमारा मन खरीदने के लिए लालायित हो जाता है। नमूना अगर अलग-अलग टुकड़े काट कर बना हआ है तो वह ट्रकडे ठीक लगे हए होने चाहिए, अगर नमूने के टुकड़े में धारियां अथवा चैक हैं तो उनकी लाइनें ठीक मिलनी चाहिए। अगर नमूना छपे हुए कपड़े का है तो छपे हुई नमूने की दिशा एक तरफ जाना चाहिए ऐसा नहीं कि एक रेखा ऊपर की ओर और दूसरी रेखा नीचे की ओर जा रही हो। अगर कपड़ा रोएंदार है तो वस्त्र के रोये एक ही दिशा में होने चाहिए।
(ii) कपड़े की कटाई (Cutting) – कपड़ा सिलने से पहले कपड़े की कटाई ठीक होनी चाहिए। कपड़े की कटाई ठीक होगी, तो कपड़े की सिलाई भी अच्छी होगी। वह वस्त्र व्यक्ति को पहना हुआ भी अच्छा लगेगा। अधिकतर निर्माता कपड़े की कटाई की तरफ विशेष ध्यान नहीं देते। कटाई के बाद सिलाई के दौरान उसमें सुधार नहीं किया जा सकता। उसमें दोष वैसे के वैसे ही रहेंगे। इसलिए कटाई की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए।
कपड़े की कटाई में निम्नलिखित बातों को देखना चाहिए –
(क) अधिकतर जो कपड़ा लम्बाई अथवा सीधे रुख की तरफ काटा गया है उस कपड़े का टिकाऊपन अधिक होता है जो चौड़ाई के रेशों पर काटा गया है। उसका टिकाऊपन कम होता है, हमें यह देखना चाहिए कि परिधान के सब टुकड़ों की लम्बाई कपड़े की लम्बाई वाले रेशों की तरफ और चौड़ाई कपड़े के चौड़ाई वाले रेशों की तरफ कटी हुई होनी चाहिए।
इससे कपड़ों को सिलने के बाद जब पहना जाता है तो अच्छा लगता है और किसी भी तरह का कोई खिंचाव उत्पन्न नहीं होता परन्तु जब कपड़े की लम्बाई को चौड़ाई वाले पर काटा जाता है तो इसमें कपड़े का टिकाऊपन कम होता है। कपडे में खिंचाव अधिक रहता है और कपड़ा थोड़े समय के बाद ही फटना शुरू हो जाता है। इसलिए इस बात का वस्त्र खरीदने से पहले अच्छी तरह परख लेना चाहिए। अगर ग्रेन की दिशा को देखने पर पता नहीं चल रहा तो आप कपड़े को पहनकर इसका परीक्षण कर सकते हैं।
(ख) गले की रेखा पर वास्तविक उरेब पट्टी (True Bias) लगी होनी चाहिए। इससे गले की फिटिंग सही आती है और उसमें ढीलापन नहीं आता।
(ग) कपड़े को काटते हुए कई बार कपड़े की सिलवटें नहीं निकाली जाती उसको पूरी तरह समतल करके कपड़ा नहीं काटा जाता। इससे कई बार कपड़े का मुख्य ग्रेन सही नहीं होता और कपड़े में काण आ जाती है और ऐसे कपड़े को जब पहना जाता है तो वह अलग से लटकना शुरू हो जाता है।
(घ) कपड़े की लम्बाई और चौड़ाई वाले पैटर्न आपस में मिलते होने चाहिए।
(ङ) कपड़े में कोई छिद्र अथवा कट नहीं होना चाहिए इससे कपड़ा जल्दी ही फटना शुरू हो जाता है।
(iii) सिलाई (Seam) – बाज़ारी वस्त्रों की सिलाई का निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए –
(क) सिलाई दृढ़ होनी चाहिए। सिलाई का बखिया छोटा होना चाहिए कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण बखिया मोटा कर देते हैं जो इतना टिकाऊ नहीं होता और थोड़े ही समय के बाद उधड़ने शुरू हो जाते हैं। ऐसे वस्त्रों की मरम्मत बहुत जल्दी करनी पड़ती है लम्बाई कपड़े की मोटाई के अनुसार होनी चाहिए परन्तु लम्बाई एक जैसी होनी चाहिए।
(ख) सिलाई यहां खत्म होती है वहां पर लटकते हुए धागे या तो बंधे हुए होने चाहिए या कटे हुए होने चाहिए।
(ग) कपड़ों की सिलाई में दबाव पर्याप्त होना चाहिए। अधिकतर रेडीमेड वस्त्रों में दबाव बहुत कम रखा जाता है।
(ङ) जिस स्थान पर कपड़े के दो टुकड़ों को जोड़ा जाता है वहां पर सिलाई अधिक मज़बूत होनी चाहिए।
(च) साधारण सिलाई के किनारों पर या तो कटाव होने चाहिए या इन्टरलोकिंग होनी चाहिए।
(छ) सिलाई सपाट होनी चाहिए विशेषकर बच्चों के लिए बच्चों की त्वचा कोमल होती है।
(ज) अगर कपड़े के नीचे लाइनिंग लगी है तो लाइनिंग की सिलाई देखना भी ज़रूरी है लाइनिंग का हर हिस्सा कपड़े से जुड़ा हुआ होना चाहिए।
(iv) उलेडी (Hem) – जब वस्त्र तैयार हो जाता है तो कई स्थानों पर उलेडी करनी पड़ती है जैसे घेरे पर, गले की रेखा पर और बाजू की मोहरी पर जिससे वस्त्र के निकले हुए धागों को अन्दर की तरफ मोड़कर सफाई से कस दिया जाता है। अगर उलेडी न की हो तो वस्त्र के धागे वहां से निकलते रहेंगे वस्त्र देखने में अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए तुरपन बहुत जरूरी हो जाती है। तुरपन में हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(क) उलेड़ी अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए इसके टांके पास-पास और समान दूरी के होने चाहिए।
(ख) उलेड़ी की चौड़ाई वस्त्र के नमूने के अनुसार होनी चाहिए।
(ग) उलेड़ी में धागा कहीं अटका हुआ नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर कहीं धागा अटक जाता है तो तुरपन खींचकर सारी उधड़ सकती है।
(घ) उलेड़ी जिस स्थान पर खत्म होती है वहां से पक्की तरह बन्द हुई होनी चाहिए।
(ङ) उलेड़ी के धागे का रंग कपड़े के धागे के रंग के साथ मिलना चाहिए क्योंकि उलेड़ी के धागे का रंग सीधी तरफ भी दिखाई देता हैं। धागा अच्छी किस्म का होना चाहिए और उसका रंग अच्छा होना चाहिए कई बार धागे का रंग पक्का नहीं होता तो जिस स्थान पर तुरपन हुई होती है उस स्थान पर रंग उतरना शुरू हो जाता है जिससे कपड़ा देखने में भद्दा लगता है।
(च) उलेडी का कपड़ा इतना मुड़ा हुआ होना चाहिए कि अगर हम किसी स्थान पर लम्बाई बढ़ाने के इच्छुक हैं तो उलेड़ी को खोलकर कपड़े की लम्बाई बढ़ा सकें।
(v) बन्धक (Fasteners) – बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार सकते हैं। उसे पहन सकते हैं इसके लिए हुक-आई, बटन काज और जिप का प्रयोग किया जाता है। अगर ये ठीक से लगे हों तो वस्त्र की फाल अच्छी आती है, वस्त्र पहना हुआ अच्छा लगता है। वस्त्र की फिटिंग ठीक आती है अगर ये ठीक न लगे हों तो वस्त्र की दिखावट बिगड़ सकती है। इसलिए वस्त्र चुनते हुए इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए इसके लिए निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए –
(क) बटन और हुक की पट्टी वस्त्र के अनुसार लगी हुई होनी चाहिए। इसकी लम्बाई और चौड़ाई व्यक्ति की ज़रूरत अनुसार होनी चाहिए इसको लगाने के लिए अलग कपड़े की ज़रूरत होती है और कई बार कपड़ा बचाने के चक्कर में पट्टी बहुत छोटी लगाते हैं। इससे कपड़े की फिटिंग ठीक नहीं आती और वस्त्र पहनने में कठिनाई होती है। यह पट्टी इतने आकार की होनी चाहिए कि कपड़े को आसानी से पहना और उतारा जा सके। अगर यह पट्टी सीधे रूप में और सफ़ाई से लगी होगी, तो वस्त्र आकर्षक लगेगा इस पट्टी पर बटन अथवा हुक एक जैसी दूरी पर लगे होने चाहिए। इनका टांका पक्का होना चाहिए। बटन और हुक अच्छी किस्म की होनी चाहिए। कई बार घटिया किस्म के होने के कारण जल्दी टूट जाती है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बटन ऐसे तो नहीं लगे जिनको धोते समय अलग करना पड़े तो हमें ऐसा वस्त्र नहीं खरीदना चाहिए।
(ख) काज की पट्टी सीधी होनी चाहिए और ऐसे हो कि अधिक दिखाई न दें।
(ग) काज के टांके कसे हुए होने चाहिएं ढीले नहीं होने चाहिएं। काज को बनाने के बाद कोई भी धागा नज़र नहीं आना चाहिए काज का कटा भाग धागे से अच्छी तरह टका होना चाहिए।
(घ) हुक और आँख भी सफ़ाई से लगी होने चाहिए। जिप भी अच्छी किस्म की लगी होनी चहिए। इसको खोलकर और बन्द करके देख लेना चाहिए कि इसका कार्य ठीक है।
(vi) कालर, कफ, जेब (Collar, Cuff & Pocket) यदि वस्त्र पर कालर कफ, पाकेट, इत्यादि लगे हों तो उनको भी ध्यान से देख लेना चाहिए इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(क) कालर, कफ का कपड़ा वस्त्र के कपड़े से मिलना चाहिए इनकी दोनों साइड में एक जैसा कपड़ा इस्तेमाल होना चाहिए।
(ख) कालर और कफ की फिटिंग ठीक से होनी चाहिए इन पर झोल नहीं होना चाहिए।
(ग) कालर और कफ मुख्य डिज़ाइन के अनुसार ही बने हुए होने चाहिएं।
(घ) कालर की सिलाई के दबाव को पीछे की तरफ कटिंग कर देनी चाहिए ताकि कालर में झोल न पड़े।
(ङ) जेब बिल्कुल ठीक दिशा में लगी होनी चाहिए इसका कपड़ा मुख्य कपड़े जैसा होना चाहिए। इस पर डबल सिलाई होनी चाहिए जेब पर की गई उलेड़ी ऐसी हो जो सीधी तरफ से दिखाई न दे पाकेट का आकार वस्त्र के अनुसार होना चाहिए इतना आकार होना चाहिए कि उसमें हाथ डालते हुए अटके नहीं।
(च) कफ की सिलाई भी ठीक होनी चाहिए आसानी से उधड़ने वाली नहीं होनी चाहिए।
(vii) पलीटस, डार्टस और चुन्नटें (Pleats, Darts & Gathers) – का मुख्य कार्य शरीर के झुकावों और मोड़ों के अनुसार कपड़े में फिटिंग को उत्पन्न करना। चुन्नटों के द्वारा कपड़े में लचीलापन पैदा किया जाता यह कपड़े को आकर्षक बना देती है। इससे कपड़े का आकार सुविधाजनक रहता है इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(क) डार्ट और पलीट ऐसे हों जो शरीर की रूपरेखा के साथ मेल खाते हैं। ये कोणों पर कम चौड़ाई के होने चाहिए।
(ख) डार्ट और पलीटस बनाने के बाद समतल हुए होने चाहिए।
(ग) चुन्नटें एक जैसी होनी चाहिएं। इनके बीच में अगर कपड़ा अधिक लिया जाता है तो यह अच्छी लगती है इनका प्रभाव अच्छा आता है इनको बनाने के बाद अच्छी तरह से प्रेस करना चाहिए।
(घ) चुन्नटों के लिए प्रयोग किया गया धागा मज़बूत होना चाहिए और जब चुन्नटों को खींचा जाए तो टूटना नहीं चाहिए।
(viii) अलंकरण (Trimming) – कपड़े को आकर्षक और सुन्दर बनाने के लिए उन पर अलंकरण का प्रयोग किया जाता है। अलंकरण में लेस, पाइपिंग, झालर, फ्रिल और कढाई आता है अलंकरण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(क) अलंकरण की बनावट वस्त्र जैसी होनी चाहिए। अगर वस्त्र की बनावट चमकीली है तो अलंकरण की बनावट भी चमकीली होनी चाहिए।
(ख) अलंकरण का रंग अच्छी किस्म का और पक्का होना चाहिए।
(ग) जो परिधान धोए जाते हैं उन पर ऐसे अलंकरण नहीं लगाने चाहिए जिनको हम धो नहीं सकते।
(घ) बैल्ट अगर कपड़े के साथ लगी है तो अच्छी तरह लगी होनी चाहिए।
3. रंग (Colour) – वस्त्र का चुनाव करते हुए इनमें रंग का भी ध्यान रखना चाहिए। रंग पोशाक के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है रंग के द्वारा ही पहना हुआ वस्त्र अच्छा, सुन्दर आकर्षक और लुभावना लगता है। वस्त्रों में रंग का चुनाव करते हुए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(क) परिधान में जितने भी टुकड़े प्रयोग किए गए हैं उनका रंग पक्का होना चाहिए। रंग उतरना नहीं चाहिए जो भी अलंकरण का प्रयोग किया गया हो उनका भी रंग पक्का होना चाहिए।
(ख) रंग मौसम के अनुसार हो, ठण्डे और हल्के रंग गर्म मौसम में पहनने चाहिएं।
(ग) वस्त्र का रंग पहनने वाले व्यक्ति के शरीर में अच्छा लगना चाहिए।
(घ) वस्त्र खरीदने से पहले हमें देख लेना चाहिए कि किन-किन रंगों का वस्त्र हम खरीदना चाहते हैं यह रंग एक-दूसरे से मिलते-जुलते होने चाहिएं। विशेषकर एक ही पोशाक के वस्त्रों के रंग।
(ङ) हमें अपनी, फब्बत देखनी चाहिए। जो रंग हमें जंचता हो जिसमें हम सुन्दर लगते हैं, हमें वही रंग चुनना चाहिए।
(छ) जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है हल्के रंगों का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
(ज) हमें सफेद रंग का प्रयोग गहरे रंगों के वस्त्रों के साथ करना चाहिए।
(झ) पोशाक के बड़े क्षेत्र में हल्का रंग अधिक होना चाहिएं और बाकी में हम गहरा रंग प्रयोग कर सकते हैं।
4. लेबल (Label) – खरीदने से पहले उसका लेबल ध्यानपूर्वक देखना चाहिए और उसके ऊपर दी गई पूरी जानकारी का विश्लेषण करना चाहिए एक वस्त्र सम्बन्धी अच्छे लेबल पर प्रायः निम्नलिखित तरह की जानकारी होती है –
(क) वस्त्र किस रेशे का बना हुआ है अर्थात् इसमें कितने प्रतिशत सूत कितने प्रतिशत टैरीलिन कितने प्रतिशत पोलिएस्टर अर्थात् मिश्रित तन्तु के वस्त्र में विभिन्न रेशों का प्रतिशत बताया जाता है।
(ख) वस्त्र किस तरह का कार्य करेगा तुम्हारे लिए कैसे सहायक हैं।
(ग) वस्त्र का किस तरह प्रयोग करना है।
(घ) इसको कैसे धोना है, हाथ के साथ अथवा मशीन के साथ।
(ङ) क्या यह धोने के बाद सिकुड़ेगा या नहीं अर्थात् इसको preshrink किया गया है।
(च) इसका रंग पक्का है अथवा उतरने वाला है।
(छ) माप बड़ा छोटा अथवा बीच का है।
(ज) निर्माता अथवा वितरक का नाम होना चाहिए, अच्छे लेबल में सूचना स्पष्ट और सीधी होनी चाहिए। समझी जाने वाली भाषा में होनी चाहिए ताकि हर व्यक्ति इस पर दी गई जानकारी को पढ सके परन्तु अधिकतर निर्माता लेबल पर पर्याप्त निर्देश नहीं देते हैं जिसे उपभोक्ता को कोई लाभ नहीं मिलता और न ही उसका मार्ग दर्शन होता है।
5. फैशन (Fashion) – जो भी परिधान हम खरीद रहे हों प्रचलित फैशन का होना चाहिए। वस्त्रों में फैशन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(क) परिधान का स्टाइल हमारे विचारों के अनुसार होना चाहिए।
(ख) परिधान की सुन्दरता नमूना, लम्बाई और चौड़ाई हमारे शरीर पर अच्छी लगनी चाहिए।
(ग) हमें उसी फैशन को अपनाना चाहिए जो हमारे शरीर के लिए आरामदायक हो।
(घ) जो फैशन हमारे शरीर में कोई विकार उत्पन्न करे उस फैशन का हमें बिना सोचे समझे नकल नहीं करनी चाहिए।
(ङ) हमें अपने वस्त्रों के लिए फैशन का चुनाव खुद करना चाहिए। हमें विक्रेता की बातों में नहीं आना चाहिए।
6. लटकाव और माप (Drape and Size) – बाज़ारी बस्त्र खरीदते समय लटकाव का भी ध्यान रखना चाहिए। ड्रेप हम वस्त्र को देखकर तह नहीं कर सकते हैं इसका अंदाजा तभी लग सकता है जब हम इसको पहनकर देखें हमें इसको पहनकर (Trial) लेना चाहिए और शीशे में देखना चाहिए कि वह हमारे शरीर पर कैसे जचता है और कैसे दिखाई देता है। सामान्य रूप में दुकानदार वस्त्र को इतना आकर्षक बना देते हैं कि उपभोक्ता उस वस्त्र का परीक्षण किए बिना ही उसे खरीद लेते हैं। वस्त्रों को जब खरीदने से पहले हम उनकी ड्रेप का निरीक्षण करते हैं उसके साथ ही हमें माप का भी ध्यान रखना चाहिए।
कई बार कमीज़-सलवार में कमीज़ तो सही बनाते हैं परन्तु सलवार का घेर छोटा बनाते हैं जिससे सल्वार का घेरा पहनने से फटना शुरू हो जाता है। इसी तरह पायजामा में भी अधिक दबाव नहीं दिया जाता है। अलग-अलग बाज़ारी तैयार वस्त्रों में अलग-अलग माप दिया जाता है जैसे पुरुषों की पैंट का माप कमर के माप से मापा जाता है, और उनकी शर्ट का माप छाती के माप से जैसे 44”, 42” 40” दिया जाता है महिलाओं के वस्त्र फ्री आकार में आते हैं जैसे XL Extra large, L (Large) M (Medium) S (Small) परन्तु बाज़ारी वस्त्र खरीदने से पहले पहनकर अवश्य देख लें कि उनका माप, आपके शरीर पर सही बैठता है कि नहीं अगर माप में कुछ अन्तर है तो उसमें सुधार करवाया जा सकता है।
7. आकर्षकता (Attractiveness) – वस्त्र चाहे कैसा भी हो यह सुन्दर और आकर्षक होना चाहिए जो पहनने वाले पर जंचना चाहिए क्योंकि सभी तरह के डिजाइन और रंग हर व्यक्ति के शरीर पर नहीं जचते। सुन्दरता निम्नलिखित तत्त्वों से बनती है –
(क) वस्त्र का प्रकार (Type of Cloth) – वस्त्र की बनावट वस्त्र की सुन्दरता को प्रभावित करती है। वस्त्र नरम अथवा सख्त बनावट का हो सकता है। वस्त्र की बुनाई ठीक होनी चाहिए। यह इतनी ढीली नहीं होनी चाहिए नहीं तो वस्त्र जल्दी फट जाएगा। वस्त्र पर परिसज्जा ठीक होनी चाहिए।
(ख) डिज़ाइन और स्टाइल (Design and Style) – वस्त्रों के कई डिजाइन और स्टाइल बनाए जाते हैं। परन्तु सभी को यह फबते नहीं हैं। भारी डिजाइन के वस्त्र, भारी व्यक्ति पर अच्छे नहीं लगते। कपडे पर समतल रेखाएं व्यक्ति को छोटा बना देती हैं और लम्बी रेखाएं लम्बा बना देती हैं। भारी साड़ी जिसका चौड़ा बार्डर है, लम्बी और पतली स्त्री पर अच्छी लगती है।
(ग) अनुरूपता (Harmony) – कपड़े की सुन्दरता में अनुरूपता का बहुत हाथ है। जैसे सिल्क सलवार सिलक की कमीज़ के साथ अच्छी लगती है। इस तरह रंग भी एक दूसरे के अनुरूप होने चाहिएं।
8. मूल्य (Cost) – परिधान हमें अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही खरीदना चाहिए। हमें पहले से ही पता होना चाहिए कि हमने किस रेंज में किस वस्त्र को खरीदना है तो इससे हमारा भी समय बचता है और दुकानदार का भी समय बचता है परन्तु इसे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर वस्त्र गुणात्मक रूप में अच्छा है और कीमत थोड़ी सी अधिक है तो हमें तभी खरीदना चाहिए।
9. सविधाजनक (Comfortability) – जो भी परिधान हम खरीदें वे आरामदायक होने चाहिएं। इसके पहनने से हमारी शारीरिक क्रियाशीलता में कमी नहीं आनी चाहिए। कई बार कपड़ा आड़ा कटा होता है जो कि पहनने पर फट जाता है इसलिए कपड़ों को पहन कर चल फिर कर देख लेना चाहिए अगर कहीं से दबाव कम हो तो उसको भी देख लेना चाहिए।
प्रश्न 4.
कपड़ों की सुन्दरता को प्रभावित करने वाले कारक बताएं।
उत्तर :
कपड़ों की सुन्दरता को प्रभावित करने वाले कारक हैं – रंग, डिज़ाइन, अलं करण, वस्त्र का प्रकार, अनुरूपता आदि।
एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –
(क) निम्न का उत्तर एक-शब्द में दें
प्रश्न 1.
अच्छी कारीगरी का एक गुण बताएं।
उत्तर :
कटाई।
प्रश्न 2.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने की एक हानि बताओ।
उत्तर :
समय नष्ट होता है।
प्रश्न 3.
रेडीमेड कपड़ा खरीदने का एक लाभ बताओ।
उत्तर :
समय की बचत।
(ख) रिक्त स्थान भरो –
1. रेडीमेड वस्त्र खरीदने से ……….. की बचत होती है।
2. ……….. का अर्थ है विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना।
3. ……….. लेबल रेडीमेड कपड़ों पर लगा रहता है।
4. वस्त्र सिलने के लिए प्रयोग धागा ……….. से मिलता हो।
5. परिधान का स्टाईल तथा डिज़ाईन ……….. के अनुसार हो।
उत्तर :
1. समय
2. नमूने
3. देख-रेख
4. वस्त्र
5. आयु।
(ग) ठीक /गलत बताएं
1. बच्चों के वस्त्र सरलता से पहने तथा उतारे जा सकें।
2. दर्जी से वस्त्र सिलाने से फिटिंग अच्छी होती है।
3. सूचना लेबल पर वस्त्र के रेशे की सूचना भी होती है।
4. वस्त्र का रंग कोई भी हो चलेगा।
5. बड़ी आयु में गहरे रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✓) 4. (✗) 5. (✗)
बहु-विकल्पीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
कारीगरी का अर्थ है –
(A) नाप
(B) कटाई
(C) सिलाई
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।
प्रश्न 2.
निम्न में ठीक है –
(A) दर्जी से वस्त्र सिलवाने से कपड़ों की फिटिंग अच्छी होती है
(B) वस्त्रों पर डिजाइन अपनी पंसद का डलवाया जा सकता है
(C) कपड़ों को प्राप्त करने का इन्तजार करना पड़ता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।
प्रश्न 3.
अच्छी कारीगरी है –
(A) धागा
(B) सीन का मिलान
(C) बटन
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।
प्रश्न 4.
कारीगरी का मूल्यांकन करने लिए …………. देखें।
(A) नमूना
(B) कपड़े की कटाई
(C) उलेड़ी
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।
प्रश्न 5.
निम्न में ठीक नहीं है –
(A) तैयार वस्त्र खरीदने पर भी समय नष्ट होता है
(B) दर्जी से वस्त्र सिलवाने पर समय नष्ट नहीं होता
(C) बड़ी आयु वाले व्यक्ति के लिए हल्के रंग के वस्त्र ठीक रहते हैं
(D) बच्चों के वस्त्र नर्म होने चाहिएं।
उत्तर :
दर्जी से वस्त्र सिलवाने पर समय नष्ट नहीं होता।
प्रश्न 6.
निम्न में ठीक है –
(A) बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार सकते हैं
(B) उलेड़ी की चौड़ाई वस्त्र के नमूने के अनुसार हो।
(C) कालर पर सोल न हो
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।
प्रश्न 7.
निम्न में गलत है
(A) कपड़े की बुनाई घनी हो।
(B) दर्जी को कपड़े की सिलाई कच्चे धागे से करनी चाहिए।
(C) कपड़ा ऐसा खरीदे जिसे ड्राइक्लीन की आवश्यकता न हो
(D) सभी गलत है।
उत्तर :
दर्जी को कपड़े की सिलाई कच्चे धागे से करनी चाहिए।
प्रश्न 8.
कपड़ों पर लगे सूचना लेबल से हमें …………… जानकारी मिलती है।
(A) वस्त्र के रेशे की
(B) वस्त्र के प्रयोग की
(C) माप की
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।
बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख HBSE 10th Class Home Science Notes
ध्यानार्थ तथ्य –
→ रेडीमेड वस्त्रों से समय बचता है।
→ रेडीमेड वस्त्रों से दर्जियों के चक्करों से छुटकारा मिलता है।
→ बाज़ारी वस्त्र खरीदते समय ध्यान दें कि इनकी सिलाई दृढ़ होनी चाहिए।
→ वस्त्र का चुनाव करते समय रंग का भी ध्यान रखना चाहिए।
→ अधिक आयु वाले व्यक्ति के लिए हल्के रंग के परिधान लें।
→ खरीदने से पहले वस्त्रों पर लेबल को ध्यानपूर्वक देख लें।
→ प्रचलित फैशन का ही परिधान खरीदना चाहिए।
→ वस्त्र अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही खरीदें।