Class 12

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. सार्वजनिक वस्तुओं की विशेषता है-
(A) ये अप्रतिस्पर्धी होती हैं
(B) ये अवर्ण्य होती हैं
(C) इनके उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. निम्नलिखित में से सरकारी बजट के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(B) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की वास्तविक आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(C) इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों के संबंध में कोई चर्चा नहीं होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

3. बजट में-
(A) पिछले वर्ष की आय का विवरण होता है
(B) चालू वर्ष की आय-व्यय की संशोधित स्थिति होती है
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं

4. सरकारी बजट के निम्नलिखित में से कौन-से उद्देश्य हैं?
(A) आय और संपत्ति का पुनः वितरण
(B) आर्थिक स्थिरता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सार्वजनिक उद्यमों को निजी क्षेत्र को सौंपना
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. राजस्व प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती
(B) परिसंपत्तियों में कमी होती है
(C) कोई देयता उत्पन्न नहीं होती
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

6. निम्नलिखित में से कौन-सी करेत्तर प्राप्ति (Non-tax Receipts) है?
(A) उपहार कर
(B) बिक्री कर
(C) उपहार और अनुदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) उपहार और अनुदान

7. कर एक
(A) ऐच्छिक भुगतान है
(B) अनिवार्य भुगतान है
(C) एक कानूनी भुगतान नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अनिवार्य भुगतान है

8. जब किसी कर का करापात तथा कराघात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे कहते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष कर

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) मनोरंजन कर
(B) उत्पादन कर
(C) आय कर
(D) सेवा कर
उत्तर:
(C) आय कर

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10. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) उत्पादन कर
(B) सेवा कर
(C) मनोरंजन कर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण नहीं है?
(A) निगम कर
(B) संपत्ति कर
(C) सेवा कर
(D) आय कर
उत्तर:
(C) सेवा कर

12. निम्नलिखित में से प्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आयात-निर्यात कर
(B) उत्पादन कर
(C) बिक्री कर
(D) आय कर
उत्तर:
(D) आय कर

13. निम्नलिखित में से अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आय कर
(B) निगम कर
(C) मृत्यु कर
(D) आयात-निर्यात कर
उत्तर:
(D) आयात-निर्यात कर

14. कारकों के आबंटन की दृष्टि से अच्छे होते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर

15. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर नहीं है?
(A) सीमा शुल्क
(B) निगम कर
(C) केंद्रीय उत्पाद शुल्क
(D) व्यापार कर
उत्तर:
(B) निगम कर

16. कर की दर के अनुसार एक आनुपातिक कर प्रणाली क्या है?
(A) कर की दर समान रहे
(B) प्रत्येक को समान कर राशि चुकानी पड़े
(C) कर की दर में कमी हो
(D) कर की दर में वृद्धि हो
उत्तर:
(A) कर की दर समान रहे

17. प्रगतिशील कर पद्धति में-
(A) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत कम होता रहता है
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है
(C) आय कम हो या अधिक कर का प्रतिशत समान रहता है
(D) निर्धनों पर कर का भार अधिक पड़ता है
उत्तर:
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है

18. प्रगतिशील कर का उद्देश्य होता है-
(A) त्याग का समान बंटवारा
(B) कर में वृद्धि
(C) हानिप्रद उपभोग पर प्रतिबंध
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) त्याग का समान बंटवारा

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19. प्रतिगामी कर वह कर है जो
(A) व्यक्ति की आय बढ़ने पर बढ़ता प्रतिशत लेता है
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है
(C) व्यक्ति की आय का सापेक्षिक रूप में निम्न प्रतिशत होता है
(D) व्यक्ति की आय का स्थिर प्रतिशत लेता है
उत्तर:
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है

20. आय के असमान वितरण को कम किया जा सकता है-
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा
(B) आनुपातिक कर प्रणाली द्वारा
(C) प्रतिगामी कर प्रणाली द्वारा
(D) अवरोही कर प्रणाली द्वारा
उत्तर:
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा

21. सरकार की गैर-कर आय का मुख्य स्रोत कौन-सा है?
(A) फीस
(B) लाइसेंस तथा परमिट
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) आय कर पर सरचार्ज
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

22. पूँजीगत प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) देयता उत्पन्न होती है
(B) देयता उत्पन्न नहीं होती
(C) परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देयता उत्पन्न होती है

23. निम्नलिखित में से सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ कौन-सी हैं?
(A) ऋणों की वसूली
(B) उधार तथा अन्य देयताएँ
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्नलिखित में से कौन-सी पूँजीगत प्राप्ति है?
(A) कर राजस्व
(B) सरकारी निवेश से प्राप्त आय
(C) फीस व जुर्माने से प्राप्त राशि
(D) उधार ली गई राशि
उत्तर:
(D) उधार ली गई राशि

25. निम्नलिखित में से कौन-सी गैर-राजस्व प्राप्ति नहीं है?
(A) फीस
(B) उपहार कर
(C) जुर्माना
(D) अनुदान
उत्तर:
(B) उपहार कर

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26. विनिवेश से अभिप्राय है-
(A) वर्तमान निवेश को कम करना
(B) वर्तमान निवेश को शून्य करना
(C) लोगों के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) सरकार की परिसंपत्तियों को बढ़ाना
उत्तर:
(A) वर्तमान निवेश को कम करना

27. राजस्व व्यय वह व्यय है जिसके फलस्वरूप-
(A) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण होता है
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता
(C) सरकार की देयता में कमी होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता

28. पूँजीगत व्यय सरकार की वे अनुमानित व्यय हैं जो सरकार की-
(A) परिसंपत्ति में वृद्धि करते हैं
(B) देयता को कम करते हैं
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) देयता को बढ़ाते हैं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

29. निम्नलिखित में कौन-सा गैर-विकासात्मक (विकासेत्तर) व्यय है?
(A) देश की सुरक्षा पर व्यय
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय
(C) वृद्धावस्था पेंशन
(D) बेरोज़गारी भत्ता
उत्तर:
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय

30. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास व्यय नहीं है?
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय
(B) शिक्षा और चिकित्सा पर व्यय
(C) बिजली उत्पादन पर व्यय
(D) सड़क निर्माण पर व्यय
उत्तर:
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय

31. शिक्षा, प्रशिक्षण, जनस्वास्थ्य आदि पर व्यय कहलाता है-
(A) पूँजीगत निर्माण
(B) मानव पूँजीगत
(C) तकनीकी प्रगति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मानव पूँजीगत

32. बजट घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से-
(A) कम होता है
(B) अधिक होता है।
(C) बराबर होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अधिक होता है

33. राजस्व घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) इसका संबंध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है
(B) इसका संबंध पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय से है
(C) यह राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

34. राजकोषीय घाटा =
(A) बजट व्यय – उधार को छोड़कर बजट प्राप्तियाँ
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ

35. राजकोषीय घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही है?
(A) इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है
(B) इससे विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है
(C) इससे ऋणों में वृद्धि होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. प्राथमिक घाटा =
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
(B) राजकोषीय घाटा + ब्याज भुगतान
(C) राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान
(D) राजकोषीय घाटा x ब्याज भुगतान
उत्तर:
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

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37. सरकार की कुल आय तथा कुल व्यय का अंतर कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) राजकोषीय घाटा
(C) मौद्रिक घाटा
(D) राजस्व घाटा
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा

38. राजस्व घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटे का आकार हमेशा होगा?
(A) बड़ा
(B) छोटा
(C) एक जैसा
(D) अनियत
उत्तर:
(A) बड़ा

39. राजस्व घाटे में सरकार की किस आय को शामिल किया जाता है?
(A) कर स्रोत को
(B) गैर-कर स्रोत को
(C) (A) और (B) दोनों को
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों को

40. राजकोषीय घाटे में से ब्याज की अदायगियाँ घटा देने पर प्राप्त होने वाला घाटा कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) प्राथमिक घाटा
(C) राजस्व घाटा
(D) मौद्रिक घाटा
उत्तर:
(B) प्राथमिक घाटा

41. राजस्व प्राप्ति + पूँजीगत प्राप्ति – गैर-आयोजन व्यय + आयोजन व्यय-पर गणना किसे प्रदर्शित करती है?
(A) बजटीय घाटा को
(B) प्राथमिक घाटा को
(C) राजस्व घाटा को
(D) राजकोषीय घाटा को
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा को

42. सरकार का राजकोषीय घाटा बराबर होता है
(A) चालू आय – चालू व्यय
(B) कुल आय – कुल व्यय
(C) पूँजीगत प्राप्तियाँ – पूँजीगत भुगतान
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)
उत्तर:
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)

43. राजस्व घाटा (Revenue Deficit) बजटीय घाटे से कम होगा यदि-
(A) पूँजीगत खाते में घाटा हो
(B) पूँजीगत खाता संतुलित हो
(C) पूँजीगत खाते में बचत (Surplus) हो
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पूँजीगत खाते में बचत हो

44. निम्नलिखित में से सही है
(A) बजट घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व आय
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय
(C) बजट घाटा = चालू व्यय – चालू आय
(D) बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय – सकल राजस्व आय
उत्तर:
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय

45. यदि सरकार द्वारा दिया गया ब्याज प्राथमिक घाटे में जोड़ दिया जाए तो यह बराबर होगा-
(A) राजस्व घाटे के
(B) बजट घाटे के
(C) मौद्रिक घाटे के
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) राजस्व घाटे के

46. एक बजट में राजस्व = व्यय हो तो उसे कहते हैं-
(A) घाटे का बजट
(B) संतुलित बजट
(C) बचत का बजट
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित बजट।

47. सरकारी व्यय उसकी आय से अधिक होने की स्थिति को क्या कहते हैं?
(A) संतुलित बजट
(B) बचत का बजट
(C) घाटे का बजट
(D) स्फीतिक बजट
उत्तर:
(C) घाटे का बजट

48. निम्नलिखित में से कौन-सा असंत त बजट है?
(A) बचत का बजट
(B) घाटे का बजट
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

49. घाटे का बजेट वह बजट है जिसमें
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय (B) सरकार की अनुमानित आय > सरकार का अनुमानित व्यय
(C) सरकार की अनुमानित आय = सरकार का अनुमानित व्यय
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय

50. बजट के घाटे को निम्नलिखित में से किस उपाय द्वारा दूर किया जा सकता है?
(A) मुद्रा का विस्तार
(B) जनता से उधार लेना
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगियाँ घटाने पर क्या प्राप्त होता है?
(A) बजटीय घाटा
(B) राजस्व घाटा
(C) प्राथमिक घाटा
(D) कुल उधार
उत्तर:
(C) प्राथमिक घाटा

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52. बजटीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था की जाती है
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) ऋणों द्वारा
(C) बचतों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

53. राजकोषीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था होती है-
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) घरेलू ऋण उगाही द्वारा
(C) विदेशी ऋणों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. बजट 1 अप्रैल से ………………. तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है। (आगामी 31 मार्च/आगामी 30 अप्रैल)
उत्तर:
आगामी 31 मार्च

2. राजस्व प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में ……………… (कोई कमी नहीं होती/कमी होती है)
उत्तर:
कोई कमी नहीं होती

3. कर एक ……………… भुगतान है। (ऐच्छिक/अनिवार्य)
उत्तर:
अनिवार्य

4. जब किसी कर का कराधान तथा करापात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे ……………… कहते हैं। (प्रत्यक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर)
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर

5. प्रगतिशील कर का वास्तविक भार ………….. पर अधिक पड़ता है। (अमीरों/गरीबों)
उत्तर:
गरीबों

6. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय राजस्व प्राप्तियाँ ……………… (पूँजीगत व्यय/ पूँजीगत प्राप्तियाँ)
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ

7. ……………… = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय। (घाटे का बजट/संतुलित बजट)
उत्तर:
घाटे का बजट

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. आय कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  2. सरकारी बजट प्रति मास पेश किया जाता है।
  3. भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च की अवधि तक होता है।
  4. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क अप्रत्यक्ष कर है।
  5. सार्वजनिक ऋण वह ऋण है जो सरकार केवल जनता से लेती है
  6. राजस्व घाटे का सम्बन्ध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है।
  7. अप्रत्यक्ष करों में कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता है।
  8. कर एक अनिवार्य भुगतान नहीं है।
  9. संपत्ति कर एवं उपहार कर प्रत्यक्ष कर हैं।
  10. राजस्व, सार्वजनिक वित्त तथा राज्य वित्त पर्यायवाची हैं।
  11. निजी वित्त और सार्वजनिक वित्त में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता।
  12. सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  13. कर सदा उपभोग में कमी लाते हैं।
  14. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि सदा मुद्रास्फीति लाती है।
  15. प्रगतिशील कर पद्धति में आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निजी वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निजी वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो एक व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर उपभोग में लाई जाती है। उदाहरण के लिए-

  • कपड़े
  • कार।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जिसका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए-

  • सड़कें
  • पुलिस सुरक्षा।

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प्रश्न 3.
मुफ्तखोरी (Free-Rider) की समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुफ्तखोरी की समस्या से अभिप्राय यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का शुल्क एकत्रित करना या तो बहुत कठिन या असंभव होता है इसलिए इन्हें मुफ्त ही प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक प्रावधान का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सार्वजनिक प्रावधान का तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का वित्त प्रबंधन बजट के माध्यम से मुफ्त में उपलब्ध होता है।

प्रश्न 5.
सरकार के नियतन फलन (Allocation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के नियतन फलन से अभिप्राय लोगों को वे वस्तुएँ उपलब्ध करवाना है जिन्हें कीमत तंत्र द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.
सरकार के वितरण फलन (Distribution Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के वितरण फलन से अभिप्राय लोगों को अंतरण भुगतान करके अथवा लोगों से कर एकत्रित करके लोगों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय प्रभावित करना है।

प्रश्न 7.
सरकार के स्थिरीकरण फलन (Stablisation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के स्थिरीकरण फलन से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में होने वाले उच्चावचनों को नियंत्रित करना है।

प्रश्न 8.
सरकारी बजट क्या होता है?
उत्तर:
सरकारी बजट 1 अप्रैल से आगामी 31 मार्च तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है।

प्रश्न 9.
भारत में वित्तीय वर्ष से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में वित्तीय वर्ष से अभिप्राय किसी वर्ष के 1 अप्रैल से दूसरे वर्ष के 31 मार्च की अवधि से है।

प्रश्न 10.
बजट को किस प्रकार विभाजित किया जाता है?
उत्तर:
बजट को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • राजस्व बजट
  • पूँजीगत बजट।

प्रश्न 11.
राजस्व बजट (Revenue Budget) क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्तियों और अनुमानित राजस्व भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 12.
पूँजीगत बजट (Capital Budget) क्या है?
उत्तर:
पूँजीगत बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित पूँजीगत प्राप्तियों और अनुमानित पूँजीगत भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 13.
राजस्व की मदों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजस्व मदें, वे मौद्रिक मदें हैं जो सरकार के लिए कोई देयता उत्पन्न नहीं करती तथा परिसंपत्तियों में कोई कमी उत्पन्न नहीं करतीं।

प्रश्न 14.
राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि नहीं करती और जिनकी प्रकृति प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती है। राजस्व प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • आय कर
  • लाइसेंस फीस।

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प्रश्न 15.
पूँजीगत प्राप्तियों (Capital Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि करती हैं और जिनकी प्रकृति आकस्मिक होती है। पूँजीगत प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • सार्वजनिक ऋण
  • अनुदान।

प्रश्न 16.
राजस्व अथवा आगम व्यय (Revenue Expenditure) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व अथवा आगम व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कोई कमी आती है। राजस्व व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन।

प्रश्न 17.
पूँजीगत व्यय (Capital Revenue) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप भौतिक तथा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा जिनके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है। पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का विकास।

प्रश्न 18.
कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से एकत्रित की गई राशियों से है।

प्रश्न 19.
गैर-कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए करों से एकत्रित की गई राशियों के अलावा प्राप्त की गई राशियों से है। यह करों के अतिरिक्त राजस्व के अन्य स्रोतों; जैसे लाभ, ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश आदि का जोड़ होता है।

प्रश्न 20.
कर क्या है?
उत्तर:
कर एक व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सरकार को बिना किसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है।

प्रश्न 21.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अन्य व्यक्तियों पर डाला नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, (i) आय कर, (ii) संपत्ति कर।

प्रश्न 22.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अंशतः या पूर्णतया अन्य व्यक्तियों पर डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए-

  • बिक्री कर
  • उत्पादन शुल्क।

प्रश्न 23.
मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर लगाए जाने वाले कर को मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर (Value Added Tax-VAT) कहा जाता है।

प्रश्न 24.
प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर क्या हैं? अथवा प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर वह कर है जिसका भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। प्रतिगामी कर वह कर है जिसका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक तथा धनी व्यक्तियों पर कम पड़ता है।

प्रश्न 25.
आनुपातिक कर क्या है?
उत्तर:
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें कर की दर समान रहती है। आय के बढ़ने या घटने पर भी इसकी दर में परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 26.
गैर-योजना व्यय क्या होता है?
उत्तर:
गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। यह व्यय सरकारी प्रशासन और सामान्य गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने पर किया जाता है। चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं।

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प्रश्न 27.
विकासात्मक व्यय (Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिन्हें सरकार द्वारा देश की आर्थिक तथा सामाजिक विकास संबंधी योजनाओं के अंतर्गत व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विकासात्मक व्यय का प्रत्यक्ष संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 28.
गैर-विकासात्मक व्यय (Non-Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसे सरकार सामान्य सामाजिक सेवाओं व प्रशासन, पुलिस आदि पर करती है।

प्रश्न 29.
संतुलित बजट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलित बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय दोनों बराबर होते हैं।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल राजस्व व्यय कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है।

प्रश्न 31.
घाटे के बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

प्रश्न 32.
प्राथमिक घाटे (Primary Deficit) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से पुराने ऋणों पर ब्याज घटाने पर जो घाटा प्राप्त होता है, उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं।

प्रश्न 33.
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की सुरक्षित सीमा क्या है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा तब तक मानी जाती है जब तक उसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा सकल घरेलू उत्पाद के 5% के बराबर मानी जाती है।

प्रश्न 34.
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय क्यों है?
उत्तर:
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय है क्योंकि ब्याज की अदायगी से न तो कोई दायित्वों में वृद्धि होती है और न ही संपत्तियों में कोई कमी होती है।

प्रश्न 35.
आभ्यांतरिक स्थिरक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आभ्यांतरिक स्थिरक से अभिप्राय यह है कि निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है तो व्यय में स्वतः बढ़ोत्तरी हो जाती है अथवा करों में स्वतः कमी हो जाती है जिससे अर्थव्यवस्था स्वतः स्थिर दशा को प्राप्त करती है।

प्रश्न 36.
सरकारी व्यय गुणक निकालने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)

प्रश्न 37.
रिकॉर्डो समतुल्यता क्या है?
उत्तर:
रिकॉर्डों समतुल्यता वह सिद्धांत है जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ऋण ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता है।

प्रश्न 38.
कर गुणक की गणना का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणक की गणना = \(\frac { -c }{ 1-c }\)

प्रश्न 39.
आनुपातिक कर गुणक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
आनुपातिक कर गुणक = \(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है, जिनका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुओं और निजी वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-
(i) निजी वस्तुओं का लाभ केवल एक ही उपभोक्ता तक सीमित होता है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ सभी लोगों तक उपलब्ध होता है। किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता। इससे मुफ्तखोरी की समस्या उत्पन्न होती है।

(ii) निजी वस्तुओं की कुछ-न-कुछ कीमत होती है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं की कोई कीमत नहीं होती। ये सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त उपलब्ध करवाई जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है।

प्रश्न 2.
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के कार्य बताइए।
उत्तर:
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(i) नियतन कार्य (आबंटन कार्य)-सरकारी बजट के मुख्य कार्य लोगों को सार्वजनिक वस्तुएँ; जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, सरकारी प्रशासन आदि उपलब्ध करवाना है।

(ii) वितरण कार्य-सरकारी बजट आय के वितरण को न्यायपूर्ण बनाता है, ताकि आय की असमानताओं को दूर किया जा सके। स्थिरीकरण कार्य-सरकारी बजट अर्थव्यवस्था में उच्चावचों के प्रभाव को समाप्त करता है, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रह सके।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
कर की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कर एक अनिवार्य भुगतान है।
  2. कर एक कानूनी भुगतान है।
  3. कर से प्राप्त आय जन-कल्याण हेतु खर्च की जाती है।
  4. कर देना प्रत्येक व्यक्ति का निजी उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 4.
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. संसाधनों का पुनः आबंटन-बजट का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा सामाजिक संसाधनों को घोषित कर सामाजिक और आर्थिक हितों के अनुरूप पुनः आबंटित करना है।

2. आय संपत्ति का पुनः वितरण-सरकारी बजट द्वारा क्षेत्रीय तथा व्यक्तिगत असमानताओं को कम करना है। सार्वजनिक व्यय द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाता है तथा निर्धन वर्ग को मुफ्त या रियायती दरों पर सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

3. स्थिरीकरण बजट का उद्देश्य व्यापार चक्रों की संभावनाओं को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करना है।

4. सामाजिक कल्याण में वृद्धि-बजट द्वारा सामाजिक कल्याण में वृद्धि का प्रयास किया जाता है। बजट द्वारा सार्वजनिक उद्यमों के उत्तम प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 5.
बजट समाज को किन तीन स्तरों पर प्रभावित करता है?
उत्तर:
बजट समाज को निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रभावित करता है-
1. वित्तीय अनुशासन-बजट समग्र स्तर पर वित्तीय अनुशासन लागू करता है। वित्तीय अनुशासन का अर्थ राजस्व के स्तर का पूर्व निर्धारण कर व्यय पर अंकुश रखना है।

2. संसाधनों का आवंटन-सामान्यतया संसाधनों का आबंटन बाज़ार में कीमत प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। जब बाज़ार संसाधनों के कुशलतम आबंटन में असफल रहता है तो बजट द्वारा संसाधनों के कुशलतम आबंटन का प्रयास किया जाता है। बजट सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर संसाधनों का आबंटन करता है।

3. लक्ष्यों की प्राप्ति-बजट विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं को प्रदान किए जाने का प्रभावी एवं कुशल माध्यम है। बजट के द्वारा सरकार अपने लक्ष्यों को न्यूनतम आर्थिक व सामाजिक लागत पर प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 6.
एक अच्छी कर संरचना की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक अच्छी कर संरचना की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उत्पादकता एक अच्छी कर संरचना में सभी प्रकार के कर होने चाहिएँ, ताकि सरकार को नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में आय प्राप्त होती रहे।

2. लोच-एक अच्छी कर संरचना में लोचशीलता का गुण होना चाहिए जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ कर आगम में भी वृद्धि होती रहे।

3. न्यायसंगत कर प्रणाली को न्यायसंगत होना चाहिए अर्थात् कर प्रणाली के अंतर्गत निर्धन वर्ग की तुलना में धनी वर्ग पर कर का भार अधिक होना चाहिए।

4. प्रशासनिक व्यवहार्यता-कर के एकत्रीकरण के लिए समय, प्रयास और लागत आवश्यक होते हैं। इसलिए कर प्रणाली को सरल और मितव्ययी होना चाहिए। कर अपवचन की संभावनाएँ न्यूनतम होनी चाहिएँ। कर प्रणाली करदाताओं के लिए सुविधाजनक होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार प्रत्यक्ष कर अप्रत्यक्ष कर
(i) अंतिम भार प्रत्यक्ष कर का अंतिम भार उसी व्यक्ति को सहन करना पड़ता है जिस पर इसे लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष कर कां अंतिम भार उस व्यक्ति को नहीं सहन करना पड़ता जिस पर इसे लगाया जाता है।
(ii) करों का टालना प्रत्यक्ष कर के भार को टाला नहीं जा सकता। अप्रत्यक्ष कर के भार को टाला जा सकता है।
(iii) प्रकृति प्रत्यक्ष कर प्रायः प्रगतिशील होते हैं अर्थात् आय बढ़ने पर इनका भार बढ़ता है। अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी होते हैं। इनका भार गरीबों पर अधिक पड़ता है।

प्रश्न 8.
राजस्व प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार राजस्व प्राप्तियाँ पूँजीगत प्राप्तियाँ
(i) प्रकृति राजस्व प्राप्तियाँ प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती हैं। पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति आकस्मिक होती हैं।
(ii) उद्देश्य इसका उद्देश्य नियमित व्ययों को पूरा करना है। इसका उद्देश्य दायित्व का निर्माण करना अथवा संपत्तियों में कमी करना है।
(iii) संघटक इसमें कर और गैर-कर दोनों प्राप्तियाँ सम्मिलित हैं। इसमें केवल गैर-कर प्राप्तियाँ सम्मिलित होती हैं।
(iv) उदाहरण आय कर लोगों से ऋण

प्रश्न 9.
पूँजीगत व्यय और राजस्व व्यय का क्या अर्थ है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
अथवा
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इस व्यय के फलस्वरूप भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों की कमी होती है। राजस्व व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। इन व्ययों की प्रकृति प्रतिवर्ष किए जाने की होती है। इसके विपरीत, पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय के उदाहरण

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन, पेंशन आदि।

पूँजीगत व्यय के उदाहरण

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का निर्माण।

प्रश्न 10.
योजना व्यय और गैर-योजना व्यय का क्या अर्थ है? अथवा सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दें।
उत्तर:
सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इसका संबंध देश के आर्थिक विकास की योजनाओं से है। योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस, प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 11.
कारण बताते हुए निम्नलिखित को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत कीजिए
(i) आर्थिक सहायता
(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान
(iii) ऋणों की अदायगी
(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण।
उत्तर:
(i) आर्थिक सहायता राजस्व व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। आर्थिक सहायता अल्पकालीन और बार-बार होने वाला व्यय है और इसकी आवृत्ति अधिक होती है।

(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान राजस्व व्यय है क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही इसके दायित्वों में कमी आती है।

(iii) ऋणों की अदायगी पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है।

(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप संपत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 12.
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि अमुक कर के भार को दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है या नहीं। यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर नहीं टाला जा सकता तो वह प्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे आय कर, लाभ (निगम) कर, उत्पादन शुल्क, संपत्ति कर आदि। इसके विपरीत, यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है तो वह, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे बिक्री कर जिसे दुकानदार पहले सरकार को अदा करता है और फिर दुकानदार अपने ग्राहक से कीमत में मिलाकर बिक्री कर वसूल करता है। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष कर के अन्य उदाहरण हैं; जैसे मनोरंजन कर, उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क आदि।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक ऋण तथा कर में अंतर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण तथा कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार कर सार्वजनिक ऋण
(i) प्रकृति कर सरकार की आय का निर्माण स्रोत है। सार्वजनिक ऋण विशेष परिस्थितियों में लिया जाता है।
(ii) मात्रा कर से एक सीमित मात्रा में ही धन एकत्रित किया जाता है। सार्वजनिक ऋण से बहुत अधिक मात्रा में धन एकत्रित किया जा सकता है।
(iii) भार एवं लाभ कर का भार एवं लाभ वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होता है। सार्वजनिक ऋणों का भार व लाभ भावी पीढ़ी को प्राप्त होता है।
(iv) वापसी का दायित्व करों से प्राप्त रकम को वापिस नहीं करना पड़ता। सार्वजनिक ऋणों को सरकार को वापिस करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
राजस्व घाटे का क्या अर्थ है? इससे क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थव्यवस्था में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। राजस्व घाटे का अर्थ है कि सरकार को अपने नियमित राजस्व व्यय के लिए अपनी बचत को प्रयोग करना पड़ेगा। राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान तथा ऋणों पर ब्याज के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक राजस्व घाटा सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है। राजस्व घाटे से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने लगती है जिससे देश की आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 15.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जब सरकार का राजस्व व्यय (योजना व्यय), राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में अधिक होता है तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटा सरकार की अवबचतें (Dissavings) को दर्शाता है क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजीगत प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) जब बज व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय), उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियों + पूँजीगत प्राप्तियों) से अधिक होता है तो इसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। गहराई से देखें तो राजकोषीय घाटा वास्तव में उधार के बराबर होता है। यह बजट को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
संतुलन आय पर एकमुश्त करों में परिवर्तन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
एकमुश्त करों में परिवर्तन का संतुलन आय पर पड़ने वाला प्रभाव कर गुणक पर निर्भर करता है, जिसे हम निम्नलिखित प्रकार से निकाल सकते हैं-
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 1
इस प्रकार संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तन होगा
∆Y = कर गुणक x ∆T
= \(\frac { -c }{ 1-c }\)∆T
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में E संतुलन बिंदु है जहाँ OY संतुलन आय है। जब कर में कमी होती है तो वैयक्तिक प्रयोज्य आय बढ़ जाती है और समस्त माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाता है। परिणामस्वरूप नया संतुलन बिंदु E’ हो जाता है और सतुलन आय बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 17.
क्या संतुलित बजट भारत के लिए लाभकारी है? समझाइए।
उत्तर:
यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। संतुलित बजट वह होता है जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ, अनुमानित व्यय के बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, करों से प्राप्त राशि, व्यय राशि के बराबर होती है। यद्यपि संतुलित बजट आर्थिक स्थायित्व (Financial Stability) लाता है और सरकार को फिजूलखर्ची से बचाता है परंतु यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया को अवरुद्ध भी करता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ बेरोज़गारी और गरीबी व्याप्त है, सरकार को व्यय बढ़ाना चाहिए ताकि रोज़गार के अधिक-से-अधिक अवसर उत्पन्न हों और अधिक उत्पादन से बेरोज़गारी दूर करने में सहायता मिले। इसलिए भारत के लिए इस समय घाटे का बजट (अनुमानित व्यय > अनुमानित प्राप्तियाँ) अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।

प्रश्न 18.
संतुलन आय पर सरकारी व्यय में परिवर्तन के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय समस्त माँग का एक भाग है। इस प्रकार सरकारी व्यय संतुलन आय को प्रभावित करता है। आय पर होने वाला प्रभाव सरकारी व्यय गुणक पर निर्भर करता है जिसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 2
संतुलन आय में परिवर्तन को निम्नलिखित सूत्र से निकाल सकते हैं राष्ट्रीय आय में परिवर्तन (∆Y) = ∆G x गुणक
= \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि संतुलन आय OY है। सरकारी व्यय में वृद्धि होने से संतुलन आय OY से बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 19.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है? घाटे के बजट के लाभ बताइए।
उत्तर:
घाटे के बजट का अर्थ-घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

घाटे के बजट के लाभ-घाटे के बजट के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. घाटे के बजट द्वारा महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. अल्पविकसित देशों को घाटे के बजट से अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है।
  3. घाटे के बजट से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक व्यय क्या है? इसके मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय का अर्थ-सार्वजनिक व्यय (Government Expenditure) से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

सार्वजनिक व्यय के उद्देश्य-सार्वजनिक व्यय के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करना
  2. सरकारी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना
  3. लोगों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु हस्तांतरण भुगतान से वृद्धि लाना
  4. पूँजीगत संपत्तियों व आधारित ढाँचे (Infrastructure) का निर्माण करना
  5. अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी को नियंत्रित करना
  6. आर्थिक विकास की गति बढ़ाना
  7. क्षेत्रीय विकास में असमानता दूर करना आदि।

प्रश्न 21.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) से आप क्या समझते हैं? पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ है? इसकी श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर का अर्थ-वस्तु एवं सेवा कर, देश में सबसे बड़ा कर सुधार है जो 30 जून/1 जुलाई, 2017 की अर्धरात्रि को संसद द्वारा देश में लागू किया गया। यह कर उत्पाद को सेवा प्रदायकों से सीधे ही वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति पर लगाया जाता है। यह कर पूरे भारत में एक ही प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही दर से लागू होता है।

पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था श्रेष्ठ अनेकों मध्यवर्ती वस्तुएँ/सेवाएँ, जो GST लगने से पहले अर्थव्यवस्था में उत्पादन कर रही थीं, उनके प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर एवं वस्तु सेवा के कुल मूल्य पर बिना किसी आगत कर जमा (ITC) के कर लगाए जाते थे जिसमें कुल मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं/सेवाओं पर दिया गया कर सम्मिलित था। इससे करों का सोपानन हो जाता था। GST पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर लिया जाता है। यह प्रभावी रूप से पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर एक मूल्य वर्जित कर है। हमारी तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए यह पूरे देश में कराधार में समता और मूल्य संवर्धित करके सिद्धांतों को सभी वस्तुओं और सेवाओं पर स्थापित करता है।

इसने केन्द्र/राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों के द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के करों/उपकरों को प्रतिस्थापित कर दिया है। केन्द्र द्वारा लगाए गए कुछ कर केन्द्रीय उत्पादन कर, सेवाकर, केन्द्रीय बिक्री कर और कृषि कल्याण कर, स्वच्छ भारत कर उपकर थे।

GST की शुरुआत में पैट्रोलियम पदार्थों को बाहर रखा गया था, लेकिन समय बीतने के साथ इन्हें भी GST में समाहित कर दिया। मानव उपयोग के लिए मादक पेयों पर राज्य सरकारें वस्तु और सेवा कर लगाती रहेगी।

श्रेणियाँ-GST की श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं-
1. SGST-SGST का पूर्ण रूप State Goods and Services Tax है जिसका अर्थ राज्य माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो राज्य सरकार को मिलता है। इस कर को वसूलने के लिए भिन्न राज्यों ने अपने यहाँ SGST Act पारित किए हैं। यह उन्हीं सौदों पर लगता है जो उस राज्य के भीतर होते हैं।

2. CGST-CGST का पूर्ण रूप Central Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्र माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो केन्द्र सरकार को मिलता है।

3. UTGST- UTGST का पूर्ण रूप Union Territory Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्रशासित प्रदेश का माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए GST का वह भाग होता है जो केंद्रशासित प्रदेश को मिलता है।

4. IGST-IGST का पूर्ण रूप Integrated Goods and Services Tax है जिसका अर्थ समेकित या एकीकृत माल एवं सेवा कर होता है। किसी माल की पूर्ति पर IGST तब लगाया जाता है जब वह माल किसी अन्य राज्य में भेजा जाता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकारी बजट को परिभाषित कीजिए। बजट के घटक (Components) भी बताइए।
उत्तर:
बजट का अर्थ “बजट आगामी वित्तीय वर्ष में सरकार की अनमानित आय और अनमानित व्यय का मदवार विवरण होता है।” दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Head) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ और व्यय। भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शरू होकर अगले वर्ष 31 मार्च को समाप्त होता है।

बजट की परिभाषाएँ:
1. प्रो० जॉनसन के अनुसार, “सरकार का बजट आगामी अवधि, जो कि आमतौर पर एक वर्ष होती है, के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्यय का ब्यौरा है।”

2. प्रो० रिचर्ड गुड के अनुसार, “एक सरकारी बजट सरकार के व्यय और आय संबंधी एक वित्तीय योजना है।” इस प्रकार बजट में सम्मिलित तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • यह सरकार की प्राप्तियों और व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
  • बजट अनुमानों की अवधि सामान्यतया एक वर्ष होती है।
  • व्यय की मदें और आय के स्रोत सरकार की नीतियों और लक्ष्यों के अनुरूप रखे जाते हैं।
  • बजट लागू करने से पहले इसे संसद अथवा विधानसभा द्वारा पास करवाना आवश्यक होता है।

बजट के घटक बजट को दो भागों-राजस्व बजट और पूँजीगत बजट में बाँटा जाता है। राजस्व बजट में सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ और इनके द्वारा पूरे किए गए खर्चों का विवरण होता है। राजस्व प्राप्तियों में दोनों राजस्व कर और गैर-राजस्व प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं। पूँजीगत बजट में सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतानों का विवरण होता है। पुनः बजट प्राप्तियों और बजट खर्चों को राजस्व और पूँजी के संदर्भ में विभक्त किया जाता है जैसाकि आगे दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 3

प्रश्न 2.
बजट से क्या अभिप्राय है? इसके उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है। दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित (Expected) व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों (Proposed Sources of Financing Expenditure) का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ (Receipts) और व्यय (Expenditure)।

बजट के उद्देश्य सरकारी बजट सरकार की अनुमानित प्राप्तियों अथवा आय और व्ययों का एक सांख्यिकीय ब्यौरा मात्र नहीं है। यह सरकार की नीतियों और उद्देश्यों का विवरण है। बजट के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. आर्थिक विकास-सभी देशों का मुख्य उद्देश्य अपना-अपना आर्थिक विकास करना होता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बजटीय नीति का प्रयोग किया जाता है। एक देश की विकास दर उसकी बचत और निवेश की दरों पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से बचत की भूमिका बजट और निवेश में वृद्धि के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने की रहनी चाहिए।

2. संसाधनों का उचित आबंटन-निजी उद्यमी सदा यही चाहेंगे कि संसाधनों का आबंटन उत्पादन के उन क्षेत्रों में किया जाए जहाँ ऊँचे लाभ मिलने की आशा हो। परंतु यह भी संभव है कि उत्पादन के कुछ क्षेत्रों द्वारा सामाजिक कल्याण में कोई वृद्धि न हो। अतः सरकार अपनी बजटीय नीति में संसाधनों के आबंटन को इस प्रकार से प्रकट करती है जिससे अधिकतम लाभ और सामाजिक कल्याण के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके।

3. आर्थिक स्थिरता आर्थिक स्थिरता लाना भी सरकारी बजट का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र निरंतर चलते रहते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रों से सुरक्षित रखने के लिए सदा ही वचनबद्ध होती है। बजट सरकार के हाथों में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसके द्वारा सरकार अवस्फीतिक और मुद्रा स्फीतिक की स्थितियों का मुकाबला करती है। ऐसा करके सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

4. आर्थिक समानता-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पाई जाती हैं परंतु एक सीमा से अधिक आर्थिक विषमताएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अवांछनीय मानी जाती हैं। अतः आर्थिक विषमताओं में कमी लाने का महत्त्वपूर्ण उपकरण बजटीय नीति अथवा बजट है। अमीरों और गरीबों के बीच आय और धन की विषमता को कम करने के लिए कर (Tax) और सार्वजनिक व्यय के उपायों को अपनाया जा सकता है।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध-सरकार की बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों के माध्यम से विकास की गति को तेज करने के लिए उत्सुक है। अक्सर सार्वजनिक उद्यमों को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता जहाँ प्राकृतिक एकाधिकार पाया जाता है। प्राकृतिक एकाधिकार से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जहाँ विशाल स्तर पर उत्पादन की बचतें मिलती हैं और कोई एक अकेली फर्म निम्न औसत लागत पर उत्पादन कर सकती है।

6. रोज़गार का सृजन-रोज़गार का सृजन भी सरकार की बजट संबंधी नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस दृष्टि से आवश्यक है कि सरकार श्रम गहन तकनीक और सड़क, बाँध, नहरें व पुल निर्माण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करे और विशिष्ट रोज़गार कार्यक्रमों को अपनाए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
बजट (सरकारी) व्यय किसे कहते हैं? इसके मुख्य घटकों या अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय का अर्थ-सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

बजट व्यय के घटक बजट व्यय भी दो प्रकार का होता है-
(i) राजस्व व्यय

(ii) पूँजीगत व्यय, परंतु सरकारी व्यय के संदर्भ में नोट करने वाली बात यह है कि समस्त सरकारी व्यय को पहले

  • योजना व्यय और
  • गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत किया जाता है और फिर उन्हें राजस्व व्यय तथा पूँजीगत व्यय में बाँटा जाता है। जैसे निम्नलिखित चार्ट में घटकों सहित दिखाया गया है।

मोटे रूप में व्यय को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
(a) योजना और गैर-योजना व्यय
(b) राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय
(c) विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 4

प्रश्न 4.
राजस्व प्राप्तियों के घटकों व स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों के घटक-सरकार की राजस्व प्राप्तियों (अथवा आय) को दो भागों में बाँटा जाता है (i) करों से प्राप्त राजस्व और (ii) गैर-करों से प्राप्त राजस्व। कर राजस्व से अभिप्राय सभी प्रकार के करों से प्राप्त राजस्व (आय) से है। उदाहरण के लिए, आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क आदि। गैर-कर राजस्व से अभिप्राय कर-भिन्न राजस्व के स्रोतों (जैसे ब्याज प्राप्तियाँ, लाभ, लाभांश आदि) से है। राजस्व प्राप्तियों के स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
1. कर राजस्व-यह सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से प्राप्त राशियों का योग होता है। कर, सरकारी राजस्व का मुख्य स्रोत है। कर एक कानूनी अनिवार्य भुगतान (Legal Compulsory Payment) है जो सरकार द्वारा व्यक्तियों व कंपनियों की आय व लाभ पर लगाया जाता है। बदले में मिलने वाली सरकारी सेवा का इससे कोई संबंध नहीं होता। इसी प्रकार सरकार वस्तुओं के उत्पादन पर, बिक्री पर, आयात-नि ति पर तथा धन व उपहार आदि पर कर लगाती है। करों से प्राप्त आय की सामूहिक आवश्यकताएँ (जैसे सड़के, पुल, पार्क, स्कूल, अस्पताल, कानून व्यवस्था, सुरक्षा आदि) पूरी करने व सार्वजनिक हित में व्यय करती है।

कर अदा न करने पर सरकार उचित सजा देती है। करदाता सरकार से बदले में कुछ माँग नहीं सकता। जैसे कोई अमीर व्यक्ति विद्यालय चलाने हेतु सरकार द्वारा लगाए गए कर को देने से इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि उसकी कोई संतान नहीं है। केंद्रीय (या संघ) सरकार विभिन्न प्रकार के करों से राजस्व एकत्रित करती है; जैसे आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, व्यय कर, धन कर, ब्याज कर, उपहार कर आदि। विभिन्न प्रकार के कर लगाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी राजस्व बढ़ाना
  • आय व संपत्ति में विषमता कम करना
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपभोग नियंत्रित करना
  • विदेशी व्यापार को व्यवस्थित करना
  • देश के संसाधनों को सुरक्षित रखना
  • विकास कार्यों और प्रशासन चलाने के लिए आवश्यक धन जुटाना।

कर कई प्रकार के होते हैं; जैसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर, प्रगतिशील व आनुपातिक कर आदि।

2. गैर-कर राजस्व-यह कर भी सरकार की आय (राजस्व) का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसमें सरकारी उद्यमों द्वारा बेची गई वस्तुओं व सरकारी विभागों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त आय शामिल की जाती है। गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) के मुख्य स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
(i) ब्याज प्राप्तियाँ-केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों, स्थानीय सरकारों, निजी उद्यमों व लोगों को दिए गए ऋण पर बड़ी मात्रा में ब्याज प्राप्त होता है। यह सरकार को गैर-कर आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

(ii) लाभ और लाभांश-गत कुछ वर्षों से सरकार ने आय का एक अन्य स्रोत विकसित किया है। सरकार ने सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises) स्थापित किए हैं जो निजी उद्यमों की भाँति वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करते हैं और बिक्री से लाभ अर्जित करते हैं; जैसे राष्ट्रीयकृत बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय बीमा निगम (LIC), STC, MMTC, BHEL इत्यादि। इसी प्रकार सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में उद्यमों के किए गए निवेश से लाभांश भी प्राप्त होता है।

(iii) फीस और जर्माना सरकार को विभिन्न प्रकार की फीस वसल करने से भी कछ आय होती है; जैसे स्कल में पढ़ाई की फीस, अस्पताल में कार्ड बनवाने की फीस, भूमि की रजिस्ट्री करवाने की फीस, पासपोर्ट बनवाने की फीस, कोर्ट फीस, स्कूटर कार चलाने हेतु लाइसेंस बनवाने की फीस आदि। इन्हें प्रशासकीय राजस्व (Administrative Revenue) कहते हैं क्योंकि यह प्रशासकीय कार्यों से प्राप्त होती है। इसी प्रकार कानून तोड़ने वालों से जुर्माने के रूप में भी सरकार को आय प्राप्त होती है।

(iv) विशेष आकलन-जब सरकार किसी विशेष क्षेत्र में सड़कें, नालियाँ व पार्क बनवाती है या सीवरेज व्यवस्था उपलब्ध करवाती है तो इसके फलस्वरूप आस-पास स्थित मकानों की कीमतें व किराए बढ़ जाते हैं जो मकान मालिकों की मेहनत का परिणाम नहीं है। इसलिए सरकार ऐसे मकान मालिकों से उनकी संपत्ति को पहुँचने वाले लाभ का विशेष आकलन करके सुधारों पर किए गए व्यय का कुछ भाग वसूल करती है। इसे विशेष आकलन (Special Assessment) कहते हैं जो सरकार की आय का एक स्रोत बन जाता है।

(v) विदेशी सहायता अनुदान-सरकार को विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे WHO, UNESCO आदि) से अनुदान, उपहार, भेंट और योगदान के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। यह भी गैर-कर राजस्व का एक स्रोत है।

3. पूँजीगत प्राप्तियों के स्रोत-यह पहले भी बताया जा चुका है कि सरकार की वे प्राप्तियाँ जो (i) देनदारियाँ पैदा करती हैं या (ii) जो परिसंपत्तियाँ कम कर देती हैं पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
(i) आंतरिक व विदेशी ऋण-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए (a) खुले बाज़ार से, (b) भारतीय रिज़र्व बैंक से, (c) विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक) से कर्ज लेती है। उधार से एकत्रित की गई धनराशि पूँजीगत प्राप्ति मानी जाती है, क्योंकि इसमें सरकार की देनदारी बढ़ती है।

(ii) ऋणों व अग्रिमों की वसूली केंद्र सरकार द्वारा (a) राज्य सरकारों व केंद्र-शासित प्रदेशों, (b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और (c) विदेशी सरकारों को जो ऋण व अग्रिम, भूतकाल में दिए गए थे, उनकी वसूली, पूँजीगत प्राप्ति का अंग है क्योंकि इससे वित्तीय परिसंपत्ति कम होती है।

(iii) विनिवेश-सरकार विनिवेश के माध्यम से भी धन इकट्ठा करती है। विनिवेश (Disinvestment) का अर्थ है सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उद्यमों के शेयर्ज (Shares) पूर्ण रूप या आंशिक रूप से बेचना। इसके फलस्वरूप सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आ जाती है। कभी-कभी विनिवेश को निजीकरण (Privatisation) भी कहा जाता है क्योंकि इससे सरकारी उद्यमों का स्वामित्व, निजी क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाता है।

(iv) लघु बचतें इसमें छोटी-छोटी बचतें; जैसे डाकघर बचत खातों में जमा सामान्य भविष्य निधि (GPF) में जमा, राष्ट्रीय बचत योजना (NSS) में जमा, किसान विकास पत्रों के रूप में जमा राशियाँ शामिल की जाती हैं।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक (सरकारी) व्यय का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय-वे सभी व्यय जो पूँजी का निर्माण करते हैं अथवा दायित्वों में कमी करते हैं पूँजीगत व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं। वे सभी व्यय जो न तो संपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही दायित्वों में कमी करते हैं राजस्व व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं।

पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • स्कूल के भवन का निर्माण।
  • सड़कों का निर्माण।

राजस्व व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • वेतन।
  • ब्याज का भुगतान।

2. विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है। विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा
  • चिकित्सा
  • उद्योग
  • कृषि
  • यातायात
  • बिजली।

गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध सरकारी प्रशासन तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों से है। गैर-विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कानून व्यवस्था
  • वेतन
  • वृद्धावस्था पेंशन
  • ऋण पर ब्याज।

3. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक
विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए। (क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय। (ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय।
उत्तर:
(क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय में अंतर-जब किसी व्यय से वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है तो यह विकासात्मक व्यय है अन्यथा गैर-विकासात्मक व्यय होता है।
1. विकासात्मक व्यय ऐसे कार्यों पर व्यय जिनका देश के आर्थिक व सामाजिक विकास से प्रत्यक्ष संबंध होता है, विकासात्मक व्यय कहलाता है; जैसे कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि से संबंधित क्रियाओं पर व्यय, विकासात्मक व्यय कहलाता है।

2. गैर-विकासात्मक व्यय-सरकार का आवश्यक सामान्य सेवाओं पर व्यय, गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। उदाहरण के लिए, प्रशासन, कानून व्यवस्था, पुलिस, जेल, न्यायाधीशों, कर वसूली आदि पर व्यय गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। यद्यपि ऐसा व्यय राष्ट्रीय उत्पाद में प्रत्यक्ष योगदान नहीं देता फिर भी आर्थिक विकास की गति देने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देता है। इस दृष्टि से गैर-विकासात्मक व्यय, विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक भाग है।

(ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर
1. योजना व्यय इससे अभिप्राय उस अनुमानित व्यय से है जिसे चालू पंचवर्षीय योजना में शामिल परियोजनाओं और कार्यक्रमों (projects and programmes) के लागू करने पर व्यय करने का प्रावधान बजट में किया गया हो। बजट में ऐसे व्ययों का प्रावधान, ‘योजना व्यय’ कहलाता है। इसमें तात्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती हैं; जैसे

  • सड़कों व पुलों का निर्माण
  • विद्युत उत्पादन
  • सिंचाई व ग्रामीण विकास
  • विज्ञान, टेक्नॉलोजी तथा पर्यावरण आदि।

इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित केंद्रीय योजना के वित्तीयन (financing) पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की योजनाओं हेतु केंद्र सरकार द्वारा दी गई सहायता भी योजना व्यय में शामिल की जाती है। योजना व्यय को राजस्व व्यय और पूँजी व्यय में बाँटा जाता है।

2. गैर-योजना व्यय चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर सरकार के अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं। ये व्यय मुख्यतः सरकारी प्रशासन व सामान्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने पर किए जाते हैं। ऐसे व्यय प्रत्येक सरकार के लिए आवश्यक होते हैं, चाहे योजना हो या न हो। उदाहरण के लिए, कोई भी सरकार लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने तथा विदेशी आक्रमण से देश को बचाने जैसे अपने बुनियादी कर्तव्यों से बच नहीं सकती। अतः इसके लिए सरकार को पुलिस, न्यायाधीशों, सेना आदि पर व्यय करना पड़ता है। इसी प्रकार सरकार को सरकारी विभागों को सामान्य रूप से चलाने तथा आर्थिक व सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने पर व्यय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
संतुलित बजट क्या है? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
संतुलित बजट (Balanced Budget)-संतुलित बजट वह बजट होता है जिसमें सरकार की अनुमानित आय (राजस्व प्राप्तियाँ अथवा आय + पूँजीगत प्राप्तियाँ अथवा आय) के बराबर होती हैं। अर्थात्
संतुलित बजट : अनुमानित आय = अनुमानित व्यय

संतुलित बजट के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Balanced Budget)-

  • सरकार की फिजूलखर्ची पर प्रभावी रूप से रोक लगाने की दृष्टि से संतुलित बजट को उपयोगी माना जाता है।
  • संतुलित बजट के द्वारा अर्थव्यवस्था में आने वाले आर्थिक उतार-चढ़ावों से बचा जा सकता है।
  • मंदी को दूर करने के लिए घाटे का बजट बनाना आवश्यक नहीं है।

संतुलित बजट के विपक्ष में तर्क (Arguments against Balanced Budget)

  • ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में केवल घाटे का बजट ही सहायक हो सकता है।
  • केज के अनुसार, कई बार तो संतुलन बनाने के लिए अपनाए गए बजटीय उपाय ही आगे चलकर बजटीय घाटे का कारण बन जाते हैं।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संतुलित बजट सरकार के द्वारा वित्तीय अनुशासन और कुशल वित्तीय प्रशासन लाने वाला सिद्ध हो।
  • पहले से ही यह नियम बनाकर चलना कि बजट हमेशा संतुलित रहना चाहिए, सरकार की स्वतंत्रता छीन लेता है और सरकार उचित राजकोषीय नीति का प्रयोग नहीं कर पाती।

प्रश्न 8.
संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे के बजट का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बजट की तीन श्रेणियाँ होती हैं संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे का बजट। प्रत्येक का विवरण इस प्रकार से है
1. संतुलित बजट-सरकार का वह बजट जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ (राजस्व व पूँजी) सरकार के अनुमानित व्यय के बराबर दिखाई गई हों, संतुलित बजट कहलाता है।
उदाहरण के लिए, सरलता के लिए मान लीजिए कि सरकार के राजस्व (आय) का एकमात्र स्रोत एकमुश्त कर है। यदि कर राजस्व, सरकारी व्यय के बराबर है तो यह संतुलित बजट कहलाएगा।
सांकेतिक रूप में संतुलित बजट वह है जिसमें
संतुलित बजट : अनुमानित प्राप्तियाँ = अनुमानित व्यय
परंपरावादी (Classical) अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केञ्ज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं रहे। उनके मत में संतुलित बजट के कुल व्यय (सरकारी तथा निजी व्यय), पूर्ण रोज़गार की अवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यय से कम रहता है। इसलिए सरकार ने इस अंतराल को भरने के लिए अपना व्यय बढ़ाना चाहिए अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए।

असंतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय, सरकार की अनुमानित प्राप्तियों से कम या अधिक दिखाया गया हो। असंतुलित बजट के दो रूप हो सकते हैं-सरकारी व्यय या तो सरकारी प्राप्तियों से अधिक है या कम है।

2. बचत (आधिक्यपूर्ण) बजट-जब बजट में सरकार की प्राप्तियाँ सरकार के खर्चों से अधिक दिखाई जाती हैं तो उस बजट को बचत का बजट,कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बचत बजट उस स्थिति का प्रतीक है जब सरकार का राजस्व, सरकार के व्यय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
बचत बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ > अनुमानित सरकारी व्यय
आधिक्यपूर्ण (बचत) बजट दर्शाता है कि सरकार अधिक मुद्रा उगाह रही है और आर्थिक प्रणाली में उससे कम मुद्रा डाल रही है। फलस्वरूप समग्र माँग (Aggregate Demand) गिरने लगती है जिससे कीमत स्तर भी गिरने लगता है। अतः मंदी या अवस्फीतिक (Deflation) की स्थिति में, बचत बजट से बचना चाहिए (अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए)। हाँ तेजी व स्फीतिकारी (Inflationary) स्थिति में बचत का बजट लाभकारी व उचित माना जाता है।

3. घाटे का बजट-जब बजट में सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से अधिक दिखाया जाता है तो उस बजट को घाटे का बजट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे के बजट में सरकारी व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
घाटे का बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय
विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के दो विशेष लाभ हैं-

  • यह आर्थिक संवृद्धि की गति को बढ़ाता है और
  • यह लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रम को लागू करने में सहायक है।

साथ ही घाटे के बजट के दोष भी हैं; जैसे-

  • यह सरकार की अनावश्यक और फिजूलखर्ची को बढ़ाता है और
  • इससे वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होने का डर बना रहता है।

संक्षेप में, तेजी (निरंतर बढती हुई कीमतों की स्थिति में बचत वाला बजट और मंदी (कीमतों और रोजगार स्थिति में घाटे वाला बजट अपनाना चाहिए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं? इसे कैसे पूरा किया जाता है?
उत्तर:
बजटीय घाटा-बजटीय घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजी व्यय) को कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक होने से है। दूसरे शब्दों में जब सरकार की चालू राजस्व प्राप्तियों और निवल पूँजी प्राप्तियों का जोड़, कुल व्यय से कम रह जाता है तो उसे बजटीय घाटा (या कुल बजट घाटा) कहते हैं। सांकेतिक रूप में
बजटीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी वर्ष के लिए केंद्रीय बजट में कुल व्यय 90,000 करोड़ रुपए और कुल प्राप्तियाँ 80,000 करोड़ रुपए दिखाई गई है। ऐसी स्थिति में बजटीय घाटा 10,000 (90,000-80,000) करोड़ रुपए होगा क्योंकि कुल प्राप्तियाँ कुल व्यय से 10,000 करोड़ रुपए कम रह गई हैं।

बजट घाटे को कैसे पूरा किया जाता है?
(1) घाटे की वित्त व्यवस्था-बजट घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार अपने ट्रेजरी बिल (Treasury Bill) जारी करके बदले में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार ले लेती है। दूसरे शब्दों में, सरकार अपने कुल खर्चे और कुल प्राप्तियों के अंतर को पाटने की वित्त-व्यवस्था, रिज़र्व बैंक से उधार लेकर करती है और रिज़र्व बैंक इसके लिए नए करेंसी नोट छापता है। इसे तकनीकी भाषा में घाटे की वित्त-व्यवस्था (Deficit Financing) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे की । वित्त-व्यवस्था से अभिप्राय बजटीय घाटे को नए करेंसी नोट छापकर पूरा करने से है। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति (Supply) में वृद्धि होने से कीमतें लगातार बढ़ने लगती हैं और यह स्फीतिकारी स्थिति कई अन्य समस्याओं को जन्म देती उपाय (नए करेंसी नोट छापने) का तभी प्रयोग करना चाहिए जब उसके पास कोई अन्य विकल्प न हो।

(2) ऋण लेना-बजट घाटे को घरेलू बाज़ार व विदेशों से ऋण लेकर भी पूरा किया जा सकता है। बजट के घाटे से संबंधित तीन अवधारणाएँ हैं-राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और प्राथमिक घाटा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 5

घाटा सांकेतिक रूप में[-

  1. राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – व्याज अदायगियाँ

प्रश्न 10.
राजस्व घाटा किसे कहते हैं? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
राजस्व घाटा-राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में राजस्व व्यय (योजना राजस्व + गैर-योजना राजस्व व्यय) के अधिक होने से है। संक्षेप में, सरकार जब प्राप्त किए गए राजस्व से अधिक व्यय करती है तो उसे राजस्व घाटा सहन करना पड़ता है। ध्यान रहे, राजस्व घाटे में केवल वे मदें शामिल की जाती हैं जो सरकार की चालू (Current) राजस्व आय और व्यय को प्रभावित करती है। सांकेतिक रूप में-
राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे को पूँजीगत प्राप्तियों से अर्थात् उधार लेकर या परिसंपत्ति के विक्रय से पूरा किया जाता है। राजकोषीय घाटा स्थिर (या उतना) रहने पर, अधिक राजस्व घाटा, कम राजस्व घाटे की तुलना में बदतर (Worse) होगा क्योंकि इससे भविष्य में पुनर्भुगतान (Repayment) का भार बढ़ जाएगा जबकि इतनी राशि निवेश करने से लाभ सृजित होगा।

प्रभाव-
(i) राजस्व घाटा सरकार की अवबचतों (Dissavings) को दर्शाते हैं क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजी प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) चूँकि सरकार अपने आधिक्य उपभोग व्यय को मुख्यतः पूँजी खाते से उधार लेकर पूरा करती है। इसलिए स्फीतिकारी स्थिति उत्पन्न होने का भय बना रहता है।

(iii) राजस्व घाटे को पूरा करने हेतु लिए गए ऋण से कर्ज का भार और अधिक बढ़ जाएगा क्योंकि ऋण की राशि और उस पर ब्याज वापस करना होगा। फलस्वरूप भविष्य में राजस्व घाटा और बढ़ाता जाएगा और यह कुचक्र का रूप धारण कर लेगा।

उपाय-

  1. सरकार अमीर लोगों पर लगे करों की दर बढ़ाए और नए कर लगाएँ।
  2. सरकार को खर्चे कम करने चाहिएँ और अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए।

प्रश्न 11.
राजकोषीय घाटा क्या है? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार के कुल व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय) का उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार बिना पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक हो जाना। सांकेतिक रूप में-
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ-उधार रहित पूँजी प्राप्तियाँ

वास्तव में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।
राजकोषीय घाटे के संबंध में नोट करने वाली बात यह है कि इसमें उधार (Borrowing), जो पूँजी प्राप्तियों का एक घटक है, को शामिल नहीं किया जाता है।

प्रभाव – राजकोषीय घाटा सरकार की उधार संबंधी जरूरतों को प्रकट करता है। यह बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि राजकोषीय घाटे की संपूर्ण राशि व्यय पूरा करने के लिए उपलब्ध नहीं होती क्योंकि इसका एक भाग ब्याज अदा करने में लग जाता है। पुनः जैसे-जैसे सरकार द्वारा लिए गए ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भविष्य में ब्याज सहित ऋण वापस करने की सरकार की देनदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं जिसके फलस्वरूप राजकोषीय घाटा और भी बढ़ता जाता है। अंत में यह एक कुचक्र का रूप धारण कर लेता है। अतः सरकार को राजकोषीय घाटा यथासंभव न्यूनतम रखना चाहिए।

उपाय – जब सार्वजनिक व्यय और राजस्व व्यय में कटौती करने पर भी राजकोषीय घाटा दूर नहीं होता तो इसे निम्नलिखित दो उपायों ऋण और मौद्रिक प्रसार-से दूर करना चाहिए।
1. उधार-आंतरिक और विदेशी स्रोतों से उधार लेकर घाटे को पूरा करना चाहिए।

2. घाटे की वित्त-व्यवस्था (अर्थात् नए करेंसी नोट छापना)-राजकोषीय घाटे को रिज़र्व बैंक से उधार लेकर पूरा किया जा सकता है जो सरकारी प्रतिभूतियों (Securities) के बदले में नए करेंसी नोट छापकर सरकार को उधार देता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि घाटे की वित्त-व्यवस्था से मुद्रास्फीति तथा अन्य कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अतः इसका यथासंभव कम-से-कम सहारा लेना चाहिए।

संख्यात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें) (करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय 1,00,000
(ii) कुल प्राप्तियाँ 92,000

हल:
बजट घाटा = कुल व्यय > कुल आय
Budget Deficit = Total Expenditure >Total Receipts
or
Budget Deficit = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
बजट घाटा = 1,00,000 > 92,000 करोड़ रुपए
= 8000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें) (करोड़ रुपए)
(i) राजस्व व्यय 60,000
(ii) पूँजीगत व्यय 30,000
(iii) राजस्व प्राप्तियाँ 50,000
(iv) पूँजीगत प्राप्तियाँ 25,000

हल:
बजट घाटा = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
= 60,000 + 30,000 > 50,000 + 25,000 करोड़ रुपए
= 90,000 > 75000 करोड़ रुपए
= 15,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजस्व घाटा ज्ञात करें

(मदें) (करोड़ रुपए)
(i) राज प्राप्तियाँ 80,000
(ii) राजस्व व्यय 90,000

हल:
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ (जब राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ)
(Revenue Deficit) = (RE) – (RR) जब RE > RR
= 90,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजकोषीय घाटा ज्ञात करें

(मदें) (करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय 75,000
(ii) राजस्व प्राप्तियाँ 60,000
(iii) गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ 5,000

हल:
राजकोषीय घाटा = बजट व्यय या कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – ऋण छोड़कर बजट प्राप्तियाँ या कुल प्राप्तियाँ (राजस्व प्राप्तियाँ + ऋण छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ) जब कुल व्यय > ऋण छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
= 75,000 – (60,000 + 5000) करोड़ रुपए
= 75,000 – 65,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें-

(मदें) (करोड़ रुपए)
(i) राजकोषीय घाटा 10,000
(ii) सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान 600

हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
PD = FD – IP
= 10,000 – 600 करोड़ रुपए
= 9400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 6.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और व्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 8,000 करोड़ रुपए
= 28,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 7.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 7,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 7,000 करोड़ रुपए
= 27,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और ऋण की वसूली 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – ऋण की वसूली
= 60,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= (-)20,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
एक सरकारी बजट 5,600 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा दिखाता है। ब्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 599 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा ज्ञात करें।
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
5,600 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 599 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 5,600 करोड़ रुपए + 599 करोड़ रुपए = 6,199
= 6,199 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और उधार 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार और अन्य दायित्व = 80,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
एक सरकारी बजट में 4,400 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा है। व्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 400 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4,400 + 400
= 4,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 12.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 10,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल : राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 10,000 + 8,000
= 18,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 13.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 50,000 करोड़ रुपए है और उधार 75,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार = 75,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 500 करोड़ रुपए है तथा ब्याज का भुगतान 200 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज का भुगतान
500 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 200 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 500 करोड़ रुपए + 200 करोड़ रुपए
= 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 15.
सरकार के बजट में कुल व्यय 1500 करोड़ रुपए है। राजस्व आय 1100 करोड़ रुपए है तथा गैर-ऋण पूँजी आय 300 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा बताइए।
हल:
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (ऋण के अतिरिक्त)
= 1500 करोड़ रुपए – (1100 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए)
= 1500 करोड़ रुपए – 1400 करोड़ रुपए
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 16.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। राष्ट्रीय आय में क्या वृद्धि होगी यदि
(a) सरकारी व्यय में 1000 रुपए की वृद्धि होती है?
(b) कर में 1000 रुपए की कटौती होती है?
हल:
(a) सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}\) = 5
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 × 1000
= 5,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि =\(\frac{1}{1-c}\) ∆G = \(\frac{1}{1-0.8}\) × 1000 = \(\frac{1}{0.2}\) × 1000
= 5,000 रुपए

(b) कर गुणक = \(\frac{-c}{1-c}\) = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) = \(\frac{0.8}{0.2}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 4 × 1000
= 4,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = \(\frac{-c}{1-c}\) ∆T = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) × 1000
= 4,000 रुपए

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

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पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से यह अनुभव किया जाता है कि सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए
(i) सार्वजनिक वस्तुओं का उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अप्रतिस्पर्धी (Non-rivalrous) होती हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे की संतुष्टि में कमी किए बगैर अपनी संतुष्टि में वृद्धि कर सकता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अवर्ण्य (Non-excludable) होती हैं अर्थात् किसी को इन वस्तुओं का लाभ उठाने से वर्जित करने का कोई संभव तरीका नहीं है। इसे ही मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है।

(ii) सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है, जबकि निजी उद्यम आमतौर पर ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध नहीं कराते हैं।

प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय के बीच निम्नलिखित भेद हैं-

  1. राजस्व व्यय अल्पकालीन और बार-बार होने वाले व्यय हैं जबकि पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन तथा आकस्मिक होने वाले व्यय हैं।
  2. राजस्व व्ययों की आवृत्ति अधिक होती है जबकि पूँजीगत व्ययों की आवृत्ति बहुत कम होती है।
  3. राजस्व व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता और न ही ये व्यय दायित्वों में कमी करते हैं। पूँजीगत व्ययों से या तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है या दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा पर व्यय
  2. कानून व्यवस्था पर व्यय
  3. स्वास्थ्य पर व्यय।

पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. गैर-आवासीय इमारतों पर व्यय
  2. वैज्ञानिक अनुसंधान संगठनों पर व्यय
  3. सड़कों एवं पुलों पर व्यय।

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प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार को ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से अभिप्राय उस घाटे से है जिसमें सरकार का कुल बजट व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों के जोड़ से अधिक होता है। अर्थात्

राजकोषीय घाटा = कुल बजट (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय + सरकार द्वारा दिए गए शुद्ध ऋण) – राजस्व प्राप्तियाँ-गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ

इस प्रकार राजकोषीय घाटे में ऋण सम्मिलित नहीं होता। राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार के पास ऋण ग्रहण के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। सरकार के पास ऋण ग्रहण के निम्नलिखित तीन स्रोत होते हैं-

  • लोगों से ऋण
  • केंद्रीय बैंक से ऋण
  • विदेशों से ऋण।

इस प्रकार,
राजकोषीय घाटा = सरकार का ऋणभार।

प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में संबंध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय (चालू व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ (कर प्राप्तियाँ – गैर-कर प्राप्तियाँ)
राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा एक विस्तृत तथ्य है जबकि राजस्व घाटा एक संकुचित तथ्य है और यह राजकोषीय घाटा में सम्मिलित है।

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो (a) संतुलन आय का स्तर क्या है? (b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें। (c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है, तो संतुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग = C = 100 + 0.75Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 100
c = 0.75
निवल कर (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
निवेश (I) = 260
सरकार का क्रय (G) = 150
(a) संतुलन आय का स्तर (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
= 100 + 0.75 [Y – 100] + 200 + 150
= 100 + 0.75Y – 75 + 350
= 0.75Y + 375
Y – 0.75Y = 375
0.25Y = 375
Y = \(\frac{375 \times 100}{25}\)
संतुलन आय स्तर = 1,500 उत्तर

(b) सरकारी व्यय गुणक =\(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\) = 4
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1 – c }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 1 – 0.75 }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 0.25 }\)
= – 3 उत्तर

(c) संतुलन आय में परिवर्तन (∆Y) = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
= सरकारी व्यय गुणक – सरकारी व्यय में परिवर्तन
= 4 x 200 = 800
यदि सरकारी व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है तो संतुलन आय में 800 की बढ़ोत्तरी होगी। उत्तर

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प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन हैं-
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का संतुलन.स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोत्तरी का भुगतान किया जा सके, तो संतुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग (C) = 20 + 0.80Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 20
c = 0.80
निवेश (I) = 30
सरकारी व्यय (G) = 50
अंतरण (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
(a) आय का संतुलन स्तर (Y) = C + c[Y- (T – TR )] + I + G
Y = 20 + 0.80 [Y – (-100)] + 30 + 50
= 20 + 0.80 [Y + 100] + 80
= 20 + 0.08Y + 80 + 80
= 0.80Y + 180
Y – 0.80 = 180
0.20Y = 180
Y = 900
आय का संतुलन स्तर = 900
स्वायत्त व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.20 }\)
= 5 उत्तर

(b) संतुलन आय में वृद्धि (∆Y) = व्यय गुणक x व्यय में वृद्धि
= 5 x 30 = 150 उत्तर

(c) कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 0.20 }\)
= – 4
संतुलन आय में परिवर्तन = कर गुणक x कर में वृद्धि
= – 4 x 30
= – 120
संतुलन आय में कमी = 120 उत्तर

प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10% की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10% की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
अंतरण गुणक = \(\frac { c }{ 1-c }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 0.20 }\) = 4
अंतरण में वृद्धि = 10%
निर्गत में अंतरण के कारण वृद्धि
= अंतरण गुणक x अंतरण में वृद्धि
= 4 x 10% = 40%
एकमुश्त कर में वृद्धि = 10%
निर्गत में एकमुश्त कर में वृद्धि के कारण कमी
= 4 x 10% = 40% उत्तर
अंतरण में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और एकमुश्त कर में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में कमी होगी। चूँकि अंतरण व कर में वृद्धि की मात्रा व गुणक एक बराबर हैं, अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव शून्य होगा।

प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, 1 = 90, G = 100, T = 0.10Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए। (b) संतुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट संतुलित बजट है?
हल:
(a) C = 70 + 0.70YD
यहाँ पर, \(\overline{\mathrm{C}}\) = 70
c = 0.70
I = 90 G = 100
T = 0.10Y
संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
Y = 70+ 0.70[Y – (0.10Y)] + 90 + 100
Y = 70+ 0.70[Y – 0.10Y] + 190
Y = 260 + 0.70Y – 0.07Y
Y = 260 + 0.63Y
Y – 0.63Y = 260
0.37Y = 260
Y = 703 (लगभग)
संतुलन आय = 703 उत्तर

(b) T = 0.10Y
T = 0.10 x 703
T = 70.3
कर राजस्व = 70.3
चूँकि सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व 70.3 है और सरकार द्वारा किया व्यय 100 है, इसलिए सरकार का बजट संतुलित नहीं है। संतुलित बजट के लिए यह आवश्यक है कि सरकारी व्यय और कर राजस्व दोनों ही एक-दूसरे के बराबर हों।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75
आनुपातिक आय कर (t) = 20%
सरकारी व्यय गुणक =\(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)
= \(\frac{1}{(1-0.75)(1-0.20)}\)
\(\frac{1}{0.25 \times 0.80}\) = 5
अंतरण गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
= 4
(a) सरकार के क्रय में वृद्धि = 20
संतुलन आय में वृद्धि = 20 x 5 = 100 उत्तर

(b) अंतरण में कमी = 20
संतुलन आय में कमी = 20 x 4 = 80 उत्तर
अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव = संतुलन आय में 20 की वृद्धि

प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कहना सही है कि निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है।
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1 – c }\)
‘इसका कारण यह है कि सरकारी व्यय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है जबकि कर गुणक राष्ट्रीय आय को प्रयोज्य आय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में घनिष्ठ संबंध है। सरकारी घाटा प्रवाह अवधारणा है, लेकिन सरकारी घाटा ऋण के स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष प्रतिवर्ष ऋण ग्रहण करती है तो ब्याज के दायित्व में वृद्धि से बजट घाटे में भी वृद्धि करती है। इस प्रकार बजट घाटा ऋण का कारण और प्रभाव दोनों हैं।

प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण हमेशा बोझ नहीं बनता, लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में सार्वजनिक ऋण बोझ बन जाता है-

  1. सार्वजनिक ऋण का भार भावी पीढ़ी पर पड़ता है।
  2. विदेशियों से लिए गए ऋण के बदले में ब्याज की अदायगी के अनुरूप वस्तुएँ विदेश भेजनी पड़ती हैं।
  3. देश में कुल माँग में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के फलस्वरूप माँग में वृद्धि और निर्गत में वृद्धि होती है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के मूल्य से कम अर्थव्यवस्था में निर्गत होता है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है।

प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
घाटे में कटौती करने के बारे में दोनों प्रकार के तर्क दिए जाते हैं। घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित नहीं माना जाता

  • घाटे से महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  • घाटे से अल्पविकसित देशों को अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
  • घाटे से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित माना जाता है-

  • घाटे के बजट से सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • घाटे के बजट से मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होती है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
  • घाटे का बजट सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है।

घाटे में कटौती निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-

  • करों में वृद्धि
  • सार्वजनिक व्यय में कमी
  • विनिवेश।

सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था HBSE 12th Class Economics Notes

→ बजट-बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (आय) और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है।

→ बजट के संघटक बजट के दो मुख्य संघटक हैं-

  • बजट प्राप्तियाँ तथा
  • बजट व्यय।

→ बजट प्राप्तियाँ बज़ट प्राप्तियों से अभिप्राय उस मौद्रिक आय से है जो कि सरकार को आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने का अनुमान है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • राजस्व प्राप्तियाँ
  • पूँजीगत प्राप्तियाँ।

→ राजस्व प्राप्तियाँ-राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्ति अथवा आय है जिसमें सरकार की कोई देनदारियाँ नहीं होती और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी होती है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • कर राजस्व प्राप्तियाँ
  • गैर-कर राजस्व प्राप्तियाँ।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

→ पूँजीगत प्राप्तियाँ-पूँजीगत प्राप्तियों में सरकार की वह आय आती है जो या तो देनदारियाँ पैदा करती है या सरकार की परिसंपत्तियों में कमी करती है। इनका विभाजन तीन भागों में किया गया है

  • ऋणों की वसूली
  • उधार तथा अन्य देयताएँ
  • अन्य प्राप्तियाँ।

→ कर-कर एक ऐसा भगतान है जोकि लोगों द्वारा सरकार को किया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा-प्राप्ति की आशा – नहीं की जा सकती।

→ कर के प्रकार कर तीन प्रकार के होते हैं

  • प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर
  • मूल्यवृद्धि कर तथा वजन अनुसार कर
  • प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर।

→ प्रत्यक्ष कर वह कर, जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो इसका भुगतान करता है। इसके उदाहरण हैं-आयकर, व्यवसाय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।

→ अप्रत्यक्ष कर वह कर जिसका प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरों पर टालने में सफल हो जाता है। इसके उदाहरण हैं-बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा शुल्क आदि।

→ बजट व्यय बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न मदों पर किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है। इसमें दो प्रकार के व्यय शामिल किए जाते हैं-

  • राजस्व व्यय
  • पूँजीगत व्यय।

→ राजस्व व्यय-राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियों में कमी होती है।

→ पूँजीगत व्यय-पूँजीगत व्यय सरकार का वह खर्च है जो या तो सरकार के लिए परिसंपत्तियाँ पैदा करता है या सरकारी देनदारियाँ कम करता है।

→ बजट के प्रकार बजट तीन प्रकार का होता है-

  • संतुलित बजट
  • बचत का बजट
  • घाटे का बजट।

→ संतुलित बजट-संतुलित बजट = कुल व्यय = कुल प्राप्तियाँ।

→ बचत का बजट-बचत का बजट = कुल व्यय < कुल प्राप्तियाँ। → घाटे का बजट-घाटे का बजट = कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ।

→ बजट घाटा-बजट घाटे का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से अधिक होता है। बजट घाटा तीन प्रकार का होता है-

  • राजस्व घाटा
  • राजकोषीय घाटा
  • प्राथमिक घाटा।

→ राजस्व घाटा-राजस्व घाटा = राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ।

→ राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटा = कुल व्यय > (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ)

→ प्राथमिक घाटा-प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज की अदायगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

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पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु-विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली का अर्थ मुद्रा का आविष्कार होने से पूर्व, वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप से विनिमय के आधार पर होता था। इसे ही वस्तु-विनिमय प्रणाली कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, वस्तु-विनिमय प्रणाली से अभिप्राय वस्तुओं के ऐसे व्यापार से है जहाँ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ लेन-देन किया जाता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, घोड़ों का विनिमय मकान से करना आदि। इसी प्रकार, एक अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान गेहूँ अथवा चावल के रूप में किया जा सकता है। ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें लेन-देन वस्तुओं के माध्यम से संपन्न होते हैं, वस्तु-विनिमय अर्थव्यवस्था (Barter Economy) अथवा C-C Economy कहलाती है।

वस्तु-विनिमय की कमियाँ-वस्तु-विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ हैं-
1. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव-वस्तु-विनिमय प्रणाली में ऐसी सामान्य इकाई का अभाव होता है, जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का माप किया जा सके जैसे एक मीटर कपड़े के बदले में कितना अनाज देना चाहिए या एक मकान के बदले कितनी जमीन का टुकड़ा आता है या एक जोड़ी जूते के बदले कितना घी-दूध देना चाहिए, यह जानना चाहे असंभव न हो, परंतु
कठिन अवश्य है।

2. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव-वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी संभव हो सकता है जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो; जैसे एक व्यक्ति के पास भैंस है और उसे चने चाहिएँ तो उसे ऐसा व्यक्ति चाहिए जिसके पास चने हों। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या उत्पन्न होती है।

3. वस्तु की अविभाज्यता-जो वस्तुएँ अविभाज्य होती हैं, उनकी विनिमय दर का निर्धारण करना विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है; जैसे एक भैंस तथा कुत्तों का विनिमय करने में कठिनाई उपस्थित होती है।

4. संचय की समस्या-वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं का संग्रह करके रखने की समस्या उत्पन्न होती है; जैसे अनाज, फल, सब्जियाँ आदि का संग्रह करके रखने की समस्या सामने आती है।

5. भविष्य में भुगतान करने की समस्या-वर्तमान में उधार ली गई वस्तुओं के भुगतान के संबंध में समस्या उत्पन्न हो सकती है। भुगतान की जाने वाली वस्तु की किस्म को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकता है। ब्याज का भुगतान करने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

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प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है?
उत्तर:
मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विनिमय का माध्यम।
  • मूल्य का मापक।
  • स्थगित भुगतान का आधार।
  • मूल्य संचय।

मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है-
1. विनिमय का माध्यम मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और बेचने से प्राप्त रकम से अन्य वस्तुओं व सेवाओं का क्रय करते हैं।

2. मूल्य मापक-मुद्रा एक सामान्य मूल्य मापक के रूप में काम करती है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या हल कर देती है।

3. स्थगित भुगतान का मानक-चूँकि मुद्रा को निश्चित एवं मानकित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है और सामान्यतः मुद्रा का मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है। मुद्रा स्थगित भुगतान का मानक होती है। इस प्रकार मुद्रा ने वस्तु-विनिमय की उधार के लेन-देन की कठिनाई दूर करके भविष्य में भुगतान किए जाने वाले सौदों को संभव बना दिया है।

4. मूल्य के भंडार के रूप में जब मुद्रा को मूल्य की इकाई और भुगतान का माध्यम मान लिया जाता है तो मुद्रा सहज ही मूल्य के भंडार का कार्य करने लगती है। यद्यपि संपत्तियों को मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी रूप में संचित किया जा सकता है, परंतु मुद्रा संपत्ति (क्रय-शक्ति) को संचय करने का सबसे किफायती व सुविधाजनक तरीका है। इस प्रकार मुद्रा ने मूल्य संचय के रूप में वस्तु-विनिमय के मूल्य संचय की कठिनाई दूर कर दी है।

प्रश्न 3.
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग (Transaction Demand for Money) से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में संव्यवहारों को पूरा करने के लिए मुद्रा की माँग से है।
सूत्र के रूप में, मुद्रा की संव्यवहार माँग \(\left(\mathrm{M}_{\mathrm{T}}^{d}\right)\) = k.T
यहाँ, k = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का कुल मौद्रिक मूल्य (Total Value of Transactions Over Unit Period)
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य में घनिष्ठ संबंध है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य अधिक है तो मुद्रा की माँग भी अधिक होगी।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रुपए के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?
हल:
माना बंधपत्र की कीमत = A
ब्याज की दर = 5%
समय = 2 वर्ष
पहले वर्ष का ब्याज = (\(\frac{\mathrm{A} \times 5}{100}\)) = \(\frac { 5A }{ 100 }\)
दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत = A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { A }{ 20 }\)
= \(\frac { 21A }{ 20 }\)
दूसरे वर्ष का ब्याज = \(\frac{\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times 5}{100}\)
= \(\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times \frac{1}{20}=\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
कुल ब्याज = \(\frac{5 \mathrm{~A}}{100}+\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
= \(\frac{20 \mathrm{~A}+21 \mathrm{~A}}{400}=\frac{41 \mathrm{~A}}{400}\)
चूँकि, = \(\frac { 41A }{ 400 }\) = 500
A = \(\frac{500 \times 400}{41}\)
= 4,878
अतः बंधपत्र की कीमत = 4,878 रुपए उत्तर

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प्रश्न 5.
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध होता है। इसका अर्थ यह है कि अधिक ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग कम होगी और कम ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग अधिक होगी। यदि ब्याज दर अधिक है तो लोग बंधपत्र अधिक खरीदेंगे और कम मुद्रा रखना चाहेंगे। यदि ब्याज दर कम है तो लोग बंधपत्र में निवेश कम अथवा नहीं करेंगे और अपने पास अधिक मुद्रा रखेंगे।

प्रश्न 6.
तरलता पाश क्या है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टे की माँग ब्याज की दर का ऋणात्मक फलन होती है। ब्याज की दर जितनी ऊँची होती है मुद्रा की सट्टे की माँग उतनी ही कम होगी, क्योंकि बहुत ऊँची ब्याज की दर पर लोग अपनी समस्त मुद्रा राशि आय अर्जित करने वाले बंधपत्र में परिवर्तित कर देते हैं। इसी प्रकार ब्याज की दर के घटने पर लोग बंधपत्र में निवेश कम करेंगे। ब्याज की दर मुद्रा अधिशेष की अवसर लागत अथवा कीमत है। यदि ब्याज की दर पहले से ही काफी निम्न है तो इस दर पर सट्टे की माँग पूर्णतया लोचदार बन जाती है क्योंकि लोग यह अनुभव करते हैं कि ब्याज की दर और नीचे नहीं गिरेगी। इस स्थिति में बंधपत्रों में मुद्रा निवेश करना अनाकर्षक और जोखिमपूर्ण हो जाता है। इस स्थिति को तरलता पाश (Liquidity Trap) कहते हैं। तरलता पाश को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि ORH ऊँची ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग शून्य है क्योंकि हर व्यक्ति बंधपत्रों में निवेश करना चाहेगा। जैसे-जैसे ब्याज दर कम होती जाती है, मुद्रा की सट्टा माँग बढ़ती जाएगी। जब ब्याज दर ORm पर निम्नतम होती है तो मुद्रा का सट्टा माँग वक्र एक सीधी रेखा बन जाता है और मुद्रा की सट्टा माँग अनंत (∞) अर्थात् पूर्ण लोचदार हो जाती है। जैसे संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र बिंदु L के बाद X-अक्ष के समानांतर हो जाता है। रेखांचित्र में LT तरलता पाश की स्थिति है।

प्रश्न 7.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर सभी प्रकार की मुद्राओं (कागज़ी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है। भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ निम्नलिखित चार रूपों में प्रकाशित करता है जिनके नाम क्रमशः M1, M2, M3 और M4 हैं। ये सभी निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किए जा सकते हैं
(i) M1 – M1 मुद्रा पूर्ति मापन का यह सबसे संकुचित दृष्टिकोण है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M1 = C + DD + OD
जहाँ, C = जनता के पास धारित करेंसी।
DD = बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ।
OD = भारतीय रिज़र्व बैंक के पास संगृहीत समस्त जमाएँ।।

(ii) M2 – M2 को भी मुद्रा पूर्ति मापन का संकुचित मत माना जाता है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ।

(iii) M3 – M3 मुद्रा पूर्ति का सबसे अधिक प्रयोग होने वाला मापक है। M3 को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों का नाम दिया जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M3 = M1 + बैंकों के पास जमा निवल सावधि जमाएँ।

(iv) M4 – M1 को सर्वाधिक विस्तृत मुद्रा (Broad Money) का माप माना जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M4 = M1 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ। (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों (NSCs) को छोड़कर) उपरोक्त रचनाएँ स्पष्ट दर्शाती हैं कि M1 और M2 संकुचित मुद्रा (Narrow Money) के माप हैं। जबकि M3 और M4 विस्तृत मुद्रा (Broad Money) के माप हैं। इनमें M3 के पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। इसी को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों (Aggregate Monetary Resources) का नाम दिया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति .के उपरोक्त चार मानों का तरलता के स्तर (Degree of Utility) के आधार पर भी वर्गीकृत करता है। M4 सर्वाधिक तरल है जबकि M4 सबसे कम तरल है। तरलता का अर्थ है किसी परिसंपत्ति को (मूल्य में घाटा उठाए बिना) तुरंत नकदी में बदलने की क्षमता।

प्रश्न 8.
वैधानिक पत्र क्या है? कागज़ी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
वैधानिक पत्र अथवा वैधानिक मुद्रा (Legal Tender) से अभिप्राय उस मुद्रा से है जिसे विधि (कानून) का समर्थन प्राप्त है और कोई भी व्यक्ति इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 100 रुपए के नोटों को लेने से कोई व्यक्ति मना नहीं कर सकता और अगर कोई ऐसा करता है तो वह दंड का भागी होगा।

प्रादिष्ट मुद्रा (Fiat Money) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्कों को कहते हैं। इसका सोने और चाँदी के सिक्कों की तरह कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता और यह सरकार के आदेश पर प्रचलित होती है। इस मुद्रा को आवेश मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है; जैसे भारत में मौद्रिक प्राधिकरण (Monetory Authority) द्वारा जारी कागज़ी मुद्रा।

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प्रश्न 9.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?
उत्तर:
उच्च शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) से अभिप्राय देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा निर्गमित की गई मुद्रा से है। इसे मौद्रिक आधार के नाम से भी जाना जाता है। उच्च शक्तिशाली मुद्रा में करेंसी तथा व्यावसायिक बैंक और भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई जमाएँ आती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्गमित किए गए करेंसी नोट को उसके सामने प्रस्तुत करने पर उसे अंकित मूल्य की राशि के बराबर भुगतान करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमाओं की स्वीकृति-व्यावसायिक बैंक व्यक्तियों, व्यावसायिक फर्मों और अन्य संस्थाओं से निम्नलिखित रूपों में जमाएँ स्वीकार करते हैं

  • चालू जमा खाता
  • बचत जमा खाता
  • सावधि जमा।

2. ऋण देना-व्यावसायिक बैंक सामान्यतया निम्नलिखित रूपों में ऋण प्रदान करते हैं-

  • नकद साख
  • माँग उधार
  • अल्पावधि ऋण
  • अधिविकर्ष (ओवरड्राफ्ट)
  • हुंडियों (बिलों) की कटौती।

3. जमा राशियों का निवेश-व्यावसायिक बैंक अपने पास संगृहीत धनराशियों का सरकारी व अनुमोदित प्रतिभूतियों में भी निवेश करते हैं।

4. एजेंसी कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित एजेंसी कार्य भी करता है-

  • नकद कोषों का हस्तांतरण।
  • नकद संग्रहण।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों व अन्य प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों पर लाभांश और ऋणपत्रों पर ब्याज वसूलना।
  • ग्राहकों के निर्देश पर उनके भुगतान करना।
  • वसीयतों (Wills) के न्यासी (Executor) एवं प्रबंधकर्ता (Trustee) का दायित्व निभाना।
  • ग्राहकों को आय कर से संबंधित परामर्श देना।
  • ग्राहकों की ओर से माल के आवागमन (Transportation) संबंधित प्रलेखों की व्यवस्था करना।

5. अन्य कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य भी करता है

  • विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय।
  • पर्यटक तथा उपहार चैक जारी करना।
  • कीमती वस्तुओं को लॉकरों में संभालकर रखना।
  • प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

प्रश्न 11.
मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किन अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?
उत्तर:
मुद्रा गुणक (Money Multiplier) से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में मुद्रा के स्टॉक और शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक के अनुपात से है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निर्धारित किया जाता है
मुद्रा गुणक = \(\frac { M }{ H }\)
यहाँ, M= मुद्रा का स्टॉक
H = शक्तिशाली मुद्रा
चूँकि मुद्रा का स्टॉक सामान्यतया शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है, इसलिए मुद्रा गुणक का मूल्य 1 से अधिक होता है।
मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में निम्नलिखित अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है-
1. करेंसी जमा अनुपात करेंसी जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
करेंसी जमा अनुपात = \(\frac { CU }{ DD }\)
यहाँ, CU = लोगों के पास रखी हुई करेंसी
DD = व्यावसायिक बैंक की कोष्ठ नकदी

2. रिज़र्व जमा अनुपात-रिज़र्व जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
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प्रश्न 12.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मद्रा की पर्ति को स्थिर करता है?
उत्तर:
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण निम्नलिखित हैं-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपने माँग जमा दायित्व का एक न्यूनतम प्रतिशत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात में वृद्धि करके बैंकों के नकदी साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपने ऋण को कम करने पर मजबूर किया जा सकता है।

2. बैंक दर या कटौती दर में परिवर्तन भारतीय रिज़र्व बैंक (जैसे थोक ऋण के व्यापारी) जिस दर पर व्यावसायिक बैंकों (जैसे परचून में ऋण का व्यापार करने वालों) को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (I.O.U) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ तथा ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोटों की पुनः कटौती करके। बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए होती है। कटौती की दर बढ़ाकर भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को प्रत्यक्ष रूप से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है।

3. खली बाजार प्रक्रिया-खली बाजार प्रक्रिया से अभिप्राय भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। इन प्रक्रियाओं से नकदी आरक्षण की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है और अंततः कुल लागत तथा ऋण की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है। सरकारी प्रतिभूतियों के बेचने से बैंकों के पास नकदी रिज़र्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरीकों से कम हो जाती है जिससे जमाराशि भी कई गुना कम हो जाती है।

4. बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा पूर्ति का स्थिरीकरण-बाह्य आघातों (Exogeneous Shocks) के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक स्थिरीकरण के द्वारा मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है। स्थिरीकरण से अभिप्राय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी विनिमय अंतःप्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थाई रखने के लिए किए गए हस्तक्षेप से है। स्थिरीकरण के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी विनिमय की मात्रा के बराबर की मात्रा में सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री खुले बाज़ार में करता है जिससे अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति अपरिवर्तित रहती है।

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प्रश्न 13.
क्या आप ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही ‘मुद्रा का निर्माण करते’ हैं?
उत्तर:
हाँ, हम ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं। व्यावसायिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य जमाओं के रूप में नकदी को स्वीकार करना है और अपने ग्राहकों को ऋण देना है। जब एक बैंक ऋण प्रदान करता है तो बैंक ऋणी को नकदी नहीं देता, बल्कि उनके खाते में उनके लिए दावे (Claims) और निक्षेप (Advance) उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार एक बैंक अपनी जमा राशि की तुलना में कई गुना अधिक साख निर्माण करता है। व्यावसायिक बैंक सरकारी बंधपत्रों और प्रतिभूतियों के क्रय में निवेश करके भी मुद्रा निर्माण करता है।

प्रश्न 14.
भारतीय रिज़र्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?
उत्तर:
अंतिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जब व्यावसायिक बैंक को अन्य किसी स्रोत से ऋण प्राप्त नहीं होता, तो ऐसे समय में भारतीय रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बिलों की पुनःकटौती करके अथवा प्रतिभूतियों की जमानत पर ऋण प्रदान करता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यावसायिक बैंक को अपने ग्राहकों की नकद मुद्रा की माँग के भुगतान के लिए कभी-कभी अधिक मात्रा में मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में जब व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों की माँग की पूर्ति अपने साधनों से नहीं कर पाते तो वे भारतीय रिज़र्व बैंक से सहायता की माँग करते हैं तथा भारतीय रिजर्व बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में अनिवार्य रूप से उनकी सहायता करता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा व्यावसायिक बैंकों को इस प्रकार की साख देने के लाभ इस प्रकार हैं

  • व्यावसायिक बैंक थोड़े से ही नकद कोषों के आधार पर अपना व्यवसाय चला सकते हैं।
  • संकटकाल में व्यावसायिक बैंकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध हो जाने पर बैंक संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकते हैं।
  • व्यावसायिक बैंक उद्योग और व्यापार की वित्त संबंधी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  • इससे भारतीय रिज़र्व बैंक को देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने का अच्छा अवसर मिल जाता है। भारत में
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) केंद्रीय बैंक के रूप में अंतिम ऋणदाता की भूमिका निभाता है।

मुद्रा और बैंकिंग HBSE 12th Class Economics Notes

→ वस्तु विनिमय प्रणाली-जब एक वस्तु का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप में दूसरी वस्तु से होता है, तो उसे वस्तु विनिमय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तु विनिमय प्रणाली उस प्रणाली को कहा जाता है जिसमें वस्तु का लेन-देन (विनिमय) वस्तु से या वस्तु का वस्तु से व्यापार किया जाता है। जो अर्थव्यवस्था वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित होती है उसे वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था (Commodity for Commodity Economy) कहा जाता है।

→ वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ-

  • आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
  • विनिमय की समान इकाई का अभाव
  • भावी भुगतान के मान का अभाव
  • मूल्य के संचय का अभाव।

→ मुद्रा के कार्य-

  • यह एक विनिमय का माध्यम है
  • मुद्रा मूल्य का माप है
  • यह स्थगित भुगतानों का माप है
  • यह मूल्य का संचय है
  • भावी भुगतान का मान है
  • यह मूल्य के हस्तांतरण आदि का कार्य भी करती है।

→ भारतीय मौद्रिक प्रणाली-भारतीय मौद्रिक प्रणाली, पत्र मुद्रा मान पर आधारित है।

→ करेंसी का जारी करना भारत में जारी करेंसी न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली पर आधारित है। भारत में जारी करेंसी अपरिवर्तनशील (Inconvertible) है। निर्गमन अधिकारी इसे सोने या चाँदी में परिवर्तित नहीं करेगा।

→ मुद्रा की माँग केज के अनुसार मुद्रा की माँग से अभिप्राय लोगों द्वारा मुद्रा को अपने पास तरल (नकदी) के रूप में रखने की इच्छा से है। इसे ही उन्होंने तरलता अधिमान कहा है।

→ मुद्रा की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है। किसी समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा का स्टॉक ही मुद्रा की पूर्ति कहलाता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

→ मुद्रा की पूर्ति के माप-M1, M2, M3 तथा M4। भारत में RBI के अनुसार मुद्रा की पूर्ति के चार मापक हैं
M1 = जनता के पास करेंसी + माँग जमाएँ + रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में जमा राशियाँ
M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल सावधि जमाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठनों की कुल जमा राशियाँ

  • M1 मुद्रा पूर्ति का बहुत तरल किंतु बहुत कम विस्तृत मापक है।
  • M2 को मुद्रा पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • M4 मुद्रा पूर्ति का बहुत विस्तृत किंतु सबसे कम तरल मापक है।

→ बैंक का अर्थ बैंक ऐसी संस्था है जो लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा व साख में लेन-देन करती है।

→ व्यावसायिक बैंक ये ऐसी वित्तीय संस्थाएँ हैं जो लोगों से जमाएँ स्वीकार करने तथा उन्हें ऋण देने का कार्य करती हैं।

→ व्यावसायिक बैंकों के प्राथमिक कार्य-

  • जमा स्वीकार करना
  • ऋण प्रदान करना
  • साख निर्माण।

→ व्यावसायिक बैंकों के गौण कार्य-

  • बैंकों के एजेंसी कार्य
  • बैंकों की सामान्य उपयोगिता संबंधी सेवाएँ।

→ साख निर्माण-बैंकों द्वारा उनकी प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं के विस्तार को साख निर्माण कहते हैं। बैंक अपनी प्राथमिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं।

→ केंद्रीय बैंक केंद्रीय बैंक एक देश की समस्त बैंकिंग प्रणाली का सिरमौर बैंक है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।

→ केंद्रीय बैंक के कार्य-

  • नोट जारी करने का एकाधिकार
  • सरकार का बैंकर
  • बैंकों का बैंक
  • अंतिम ऋणदाता
  • देश के विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षक
  • साख नियंत्रण
  • समाशोधन गृह का कार्य
  • आँकड़े इकट्ठे करना।

→ मौद्रिक नीति-मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपभोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

→ भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण-RBI की मौद्रिक नीति के उपकरण हैं-

  • खुली बाज़ार कार्रवाई
  • बैंक दर नीति
  • आरक्षित आवश्यकताओं में अंतर तथा
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बाह्य आघातों के विरुद्ध स्थिरीकरण।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi Prakaranam संधि प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

सन्धि अथवा संहिता-दो वर्णों के, चाहे वे स्वर हों या व्यञ्जन, के मेल से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि अथवा संहिता कहते हैं। यथा
विद्या + अर्थीः = विद्यार्थीः
वाक् + ईशः = वागीशः।

सन्धियों के भेद
जिन दो वर्णों (व्यवधान रहित) में हम सन्धि करते हैं वे वर्ण प्रायः अच् (स्वर) तथा हल् (व्यञ्जन) होते हैं और कई बार पहला विसर्ग तथा दूसरा कोई व्यञ्जन अथवा स्वर भी हो सकता है। अतः सन्धियों के मुख्य तीन भेद किए गए हैं
(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
(ख) हल् सन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
(ग) विसर्ग सन्धि ।

(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच् सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के क्रमशः आठ भेद हैं –
(1) दीर्घ सन्धि
(2) गुण सन्धि
(3) वृद्धि सन्धि
(4) यण् सन्धि
(5) अयादि सन्धि
(6) पूर्वरूप सन्धि
(7) पररूप सन्धि
(8) प्रकृतिभाव सन्धि

(1) दीर्घसन्धि
ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋके परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे अ या आ हो तो दोनों को आ हो जाता है; अर्थात् अ/आ + अ/आ = आ।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः ।
च + अपि = चापि।
उत्तम + अङ्गम् = उत्तमाङ्गम्।
च + अस्ति = चास्ति।
हिम + आलयः = हिमालयः।
देव + आलयः = देवालयः ।
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
रत्न + आकरः = रत्नाकरः।
मुर + अरिः = मुरारिः।
प्रधान + आचार्यः = प्रधानाचार्यः ।
तव + आशा = तवाशा।
तथा + अपि = तथापि।
दया + आनन्दः = दयानन्दः ।
महा + आशयः = महाशयः।
सा + अपि = सापि।
विद्या + आलयः = विद्यालयः।

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(ii) नियम-यदि इ या ई से परे इ या ई हो तो दोनों को ई हो जाता है, अर्थात् इ/ई + इ/ई = ई।
उदाहरण:
मही + इन्द्रः = महीन्द्रः।
कवि + ईशः = कवीशः।
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
गिरि + ईशः = गिरीशः।
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा।
लक्ष्मी + ईश्वरः = लक्ष्मीश्वरः।
सुधी + इन्द्रः = सुधीन्द्रः।
लक्ष्मी + इन्द्रः = लक्ष्मीन्द्रः।
महती + इच्छा = महतीच्छा।
श्री + ईशः = श्रीशः।
लक्ष्मी + ईशः = लक्ष्मीशः।
गिरि + इन्द्रः = गिरीन्द्रः।
नदी + ईशः = नदीशः।
मुनि + इन्द्रः = मुनीन्द्रः।
रजनी + ईशः = रजनीशः।

(iii) नियम-यदि उ या ऊ से परे उ या ऊ हो तो दोनों को ऊ हो जाता है ; अर्थात् उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ।
उदाहरण
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः।
सिन्धु + ऊर्मिः = सिन्धूर्मिः।
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम्।
लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः।
भानु + उदयः = भानूदयः।

(iv) नियम-यदि ऋ से परे ऋ हो तो दोनों को ऋ हो जाता है, अर्थात् ऋ + ऋ = ऋ।
उदाहरण:
पितृ + ऋणम् = पितृणम् ।
भ्रातृ + ऋद्धिः = भ्रातृद्धिः ।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

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2. गुणसन्धि
यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे इ या ई आ जाए तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + इ/ ई = ए।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः।
उमा + ईशः = उमेशः।
नर + ईशः = नरेशः।
नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः।
गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः।
गण + ईशः = गणेशः।
पूर्ण + इन्दुः = पूर्णेन्दुः।
परम + ईश्वरः = परमेश्वरः।
तथा + इति = तथेति।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + उ/ऊ = ओ।
उदाहरण
हित + उपदेशः = हितोपदेशः।
देव + उरुः = देवोरुः।
चन्द्र + उदयः =चन्द्रोदयः।।
तस्य + उपरिः = तस्योपरि।
गीता + उपदेशः = गीतोपदेशः ।
गङ्गा + ऊर्मिः = गङ्गोर्मिः।
गङ्गा + उदकम् = गगोदकम्।
पर + उपकारः = परोपकारः।
महा + उदयः = महोदयः।
महा + ऊर्मिः = महोर्मिः।

(i) नियम-यदि अ या आ से परे ऋ हो तो दोनों के स्थान पर अर हो जाता है; अर्थात् अ/आ + ऋ = अर्।
उदाहरण
परम + ऋषिः = परमर्षिः ।
कृष्ण + ऋद्धिः = कृष्णर्द्धिः।
महा + ऋषिः = महर्षिः।
राज + ऋषिः = राजर्षिः ।
देव + ऋषिः = देवर्षिः।
पुरुष + ऋषभः = पुरुषर्षभः ।

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3. वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अया आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।
अत्र + एव = अत्रैव।
परम्परा + एषा = परम्परैषा।
मम + एव = ममैव।
तथा + एव = तथैव।
तव + एव = तवैव।
महा + ऐरावत: = महैरावतः।
च+ एव = चैव।
कृष्ण + एकत्वम् = कृष्णैकत्वम्।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे आया औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है अर्थात अ/आ + ओ/ औ = औ।
उदाहरण
मम + ओष्ठः = ममौष्ठः।
महा + औदार्यम् =महौदार्यम्।
महा + औषधिः = महौषधिः।
चित्त + औदार्यम् = चित्तौदार्यम्।
तव + औषधिः = तवौषधिः।
महा + औत्सुक्यम् = महौत्सुक्यम्।
मम + औषधिः = ममौषधिः।
जल + ओघः = जलौघः।
नव + औषधिः = नवौषधिः ।
तव + औदार्यम् = तवौदार्यम्।

(iii) नियम-यदि अया आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर आर् हो जाता है; अर्थात्/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण
प्र + ऋच्छतिः = प्रार्छतिः।
सुख + ऋतः = सुखार्तः ।
पिपासा + ऋतः = पिपासातः।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः।

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4. यण्सन्धि
यदि इ ई, उ ऊ, ऋ, ल से परे कोई असवर्ण स्वर हो तो वे क्रमशः य, व, र, ल में बदल जाते हैं।
(i) नियम-यदिइ, ई से परेइ, ईको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो’इ’याईको यहो जाता है ; अर्थात् इ ई + अन्य स्वर अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = य् + अन्य स्वर।
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि।
इति + अपि = इत्यपि।
वारि+अधिगच्छति = वार्यधिगच्छति।
महती + एषणा = महत्येषणा।
इति + आदिः = इत्यादिः।
सरस्वती + औघः = सरस्वत्यौघः।
नदी + अस्ति = नद्यस्ति।
पिबति + अत्र = पिबत्यत्र।
अति + आचारः = अत्याचारः।
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः।
नदी + अम्बुः = नद्यम्बुः।
देवी + अस्ति = देव्यस्ति।
सखी + उक्तम् = सख्युक्तम्।
देवी + आगता = देव्यागता।
गोपी + एषा = गोप्येषा।
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्

(ii) नियम-यदि उ, ऊ से परे उ, ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘उ’ या ‘ऊ’ को व हो जाता है; अर्थात् उ या ऊ + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = व् + अन्य स्वर।
उदाहरण
सु + आगतम् = स्वागतम्।
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः।
मधु + अरिष्टः = मध्वरिष्टः।
पचतु + ओदनम् = पचत्वोदनम्।
गुरु + आदिः = गुर्वादिः।
गच्छतु + एकः = गच्छत्वेकः।
साधु + आचरणम् = साध्वाचरणम्।
साधु + इष्टम् = साध्विष्टम्
वधू + आदिः = वध्वादिः।

(iii) नियम-यदि ‘ऋ’ के बाद ऋको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘ऋ’को र हो जाता है ; अर्थात् ऋ+ अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = र् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
मातृ + अनुग्रहः = मात्रनुग्रहः ।
धातृ + अंशः = धात्रंशः।
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।
पितृ + अभिलाषः = पित्रभिलाषः ।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पितृ+ऐश्वर्यम् = पित्रैश्वर्यम्।।

(iv) नियम-लु के बाद ल को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो लु को ल हो जाता है ; अर्थात् ल + अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ= ल् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
लृ + आकृतिः = लाकृतिः।
ल + आकारः = लाकारः।

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5. अयादिसन्धि

यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
(i) नियम-‘ए’ से परे कोई स्वर आने पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है; अर्थात् ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर।
उदाहरण
कवे + ए = कवये।
ने + अनम् = नयनम्।
हरि + ए = हरये।
जे + अति = जयति।
मुने + ए = मुनये।
ने + अति = नयति।
शे + अनम् = शयनम्।

(ii) नियम-‘ऐ से परे कोई स्वर आने पर ‘ऐ’ को ‘आय’ हो जाता है; अर्थात् ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई
उदाहरण
नै + अक: = नायकः।
रे + ऐ = रायै।
गै+ अकः = गायकः।
रै + ओः = रायोः ।

(iii) नियम-‘ओ’ से परे कोई स्वर आने पर ओ के स्थान पर अव हो जाता है; अर्थात् ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
साधो + अ = साधवः।
विष्णो + ए = विष्णवे।
भो + अति = भवति।
भो + अनम् = भवनम्।
भानो + ए = भानवे।
साधो + ए = साधवे।
गो + इ = गवि।
पो + अनः = पवनः।
गो + ए = गवे।

(iv) नियम-‘औ’ से परे कोई स्वर आने पर औ के स्थान पर आव् हो जाता है। अर्थात् औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
पौ + अकः = पावकः।
गौ + औ = गावौ।
भौ + उकः = भावुकः।
तौ + आगतौ = तावागतौ।
नौ + आ = नावा।
रौ + अनः = रावणः।

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6. पूर्वरूपसन्धि
नियम-यदि पदान्त ए या ओ से परे ह्रस्व अ हो तो अका लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह ” चिह्न लगता है।
उदाहरण
ते + अपि = तेऽपि।
ग्रामो + अपि = ग्रामोऽपि।
ते + अत्र = तेऽत्र।
साधो + अत्र = साधोऽत्र।
कवे + अवेहि = कवेऽवेहि।
सर्वे + अपि = सर्वेऽपि।
विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र।
प्रभो + अत्र = प्रभोऽत्र।
प्रभो + अनुगृहाण = प्रभोऽनुगृहाण।
कवे + अत्र = कवेऽत्र।

7. पररूपसन्धि
नियम-‘अ’ वर्ण से अन्त होने वाले उपसर्ग के बाद अगर कोई ऐसी धातु का रूप हो जिसके आदि में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हो तो उस उपसर्ग के अ को पररूप हो जाता है, अर्थात् ए’ अथवा ‘ओ’ जैसा रूप हो जाता है। उदाहरण-प्र + एजते = प्रेजते।।
उप + ओषति = उपोषति ।

8. प्रकृतिभाव सन्धि
प्रकृतिभाव शब्द से तात्पर्य है पहले जैसा रूप रहना अर्थात कोई परिवर्तन न होना। जहाँ सन्धि के नियमानुसार सन्धि नहीं होती, उसे प्रकृतिभाव सन्धि कहते हैं।
(i) नियम-द्विवचन वाले पद के अन्त में ई, ऊ, ए से परे कोई भी स्वर होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
कवी + इमौ = कवी इमौ।
हरी + एतौ = हरी एतौ।
याचेते + अर्थम् = याचेते अर्थम्।।
साधू + इमौ = साधू इमौ।

(ii) नियम-अदस् शब्द के ‘अमी’ और ‘अमू’ रूपों से परे ‘ई’ और ‘ऊ’ स्वर परे होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
अमू + आसते = अमू आसते।
अमू + उपविशतः = अमू उपविशतः ।
अमी + अश्वाः = अमी अश्वाः।
अमी + ईशाः = अमी ईशाः ।

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(ख) हलसन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः ।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः।
व्यञ्जनसन्धि के कुछ मुख्य-मुख्य नियम निम्नलिखित हैं
1.श्चुत्त्व सन्धि (स्तोश्चुनाश्चः )-जब ‘स्तु’ अर्थात् सकार और तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) से पहले या बाद में ‘श्चु’. अर्थात् शकार और चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) आए तो सकार को शकार और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग होता है
(क) स् को श् – हरिस् + शेते = हरिश्शेते।
कस् + चित् = कश्चित्।
(ख) तवर्ग को चवर्गसत् + चित् = सच्चित्।
सत् + जनः = सज्जनः।
शत्रून् + जयति = शत्रूञ्जयति ।

2. ष्टुत्व-सन्धि (ष्टुनाष्टुः)-
जब ‘स्तु’ से पहले या बाद में ष्टु अर्थात् षकार या टवर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) आए तो सकार को षकार तथा तवर्ग को टवर्ग हो जाता है। जैसे
(क) स् को – . रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
(ख) तवर्ग को टवर्गतत् + टीका = तट्टीका।
उद् + डीयते – उड्डीयते।
कृष् + नः = कृष्णः।
विष् + नुः = विष्णुः।

3. जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते):
पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क्, च्, ट्, त् प्, के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्त:स्थ य, र, ल, व् या ह् बाद में हों तो उनके स्थान पर ‘जश्त्व’ हो जाता है। (संस्कृत में ज्, ब्, ग, ड्, ह की संज्ञा ‘जश्’ है।) जैसे
क् को ग्-वाक् + ईशः = वागीशः।
च् को ज्-अच् + अन्तः – अजन्तः।
च् को ड्-षट् + एव = षडेव।
त् को द्-जगत् + बन्धुः = जगबन्धुः।
प् को ब्-अप् + जः = अब्जः ।

4. अनुस्वार-सन्धि (मोऽनुस्वारः)
पद के अन्त में यदि ‘म्’ हो और उसके बाद कोई व्यञ्जन हो तो ‘म्’ के स्थान में अनुस्वार हो जाता है, (बाद में स्वर हो तो अनुस्वार नहीं होता) जैसे
हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे।।
पुस्तकम् + पठति = पुस्तकं पठति।
(सम् + आचारः = समाचार:-यहाँ स्वर परे है अत: अनुस्वार नहीं हुआ)।

5. (क) परसवर्ण-सन्धि:
(वा पदान्तस्य) पूर्व अनुस्वार से परे वर्ग का कोई भी अक्षर हो तो अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण हो जाता है। परसवर्ण का अर्थ है-उसी अक्षर का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है।
जैसेकवर्ग में-किं + खादति = किखादति।
चवर्ग में-किं + च = किञ्च।
टवर्ग में-किं + ढौकसे = किण्ढौकसे।
तवर्ग में–अन्नं + ददाति = अन्नन्ददाति।
पवर्ग में-अन्नं + पचामि = अन्नम्पचामि।

(ख) अनुस्वार को परसवर्ण:
पदान्तरहित ‘म्’ के बाद वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा य र ल व में से कोई भी वर्ण हो तो ‘म्’ को परसवर्ण हो जाता है। जैसे
शाम् + तः = शान्तः (तवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ‘न्’)
अम् + कः = अकः (कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ङ्)
कुम् + ठितः = कुण्ठितः (टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ण) इत्यादि।

(ग)
(i) तोर्लि-यदि तवर्ग से परे ‘ल’ हो तो उसे ‘ल’ परसवर्ण हो जाता है। जैसे
तत् + लयः = तल्लयः।
तत् + लाभः = तल्लाभः ।

(ii) यदि ‘न्’ से परे ‘ल’ हो तो अनुनासिक ‘ल’ हो जाता है। जैसे
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति।

6. अनुनासिक-सन्धि (नश्छव्यप्राशान्):
यदि पद के अन्त में ‘न्’ हो और उसके आगे च-छ, ट्-ठ् तथा त्थ, में से कोई वर्ण हो तो ‘न्’ के स्थान में अनुनासिक या अनुस्वार तथा च छ परे रहने पर ‘श्’, ट् ठ् परे रहने पर ‘ष’, त् थ् परे रहने पर ‘स्’ अनुनासिक या अनुस्वार हो जाता है। जैसे
कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित्।
महान् + छेदः = महाँश्छेदः।
महान् + ठाकुरः = महाँष्ठाकुरः।
महान् + टङ्कारः = महाँष्टङ्कारः ।
चक्रिन् + त्रायस्व = चक्रिस्त्रायस्व।
पतन् + तरुः = पतँस्तरुः।

7. द्वित्व-सन्धि (डमोह्रस्वादचि डमुण नित्यम्)
यदि ह्रस्व स्वर के बाद इण् न हों, उनके बाद भी स्वर हो तो ङ् ण् न् को द्वित्व हो जाता है अर्थात् एक-एक और ङ् ण् न् आ जाता है। जैसे
ङ्-प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्डात्मा।
ण् -सुगण् + ईशः = सुगण्णीशः ।
न् – पठन् + अस्ति = पठन्नस्ति।

8. चकार-सन्धि (छे च)- ह्रस्व स्वर से परे यदि छकार आए तो छकार से पहले चकार जोड़ दिया जाता है।
जैसे
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः।।
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।

9. छकार-सन्धि (शश्छोऽटि):
यदि ‘तकार’ के बाद ‘शकार’ आ जाए तो ‘तकार को चकार’ नित्य होता है तथा शकार को छकार विकल्प से होता है। जैसे
तत् + शिवः = तच्छिवः, तच्शिवः।
तत् + श्लोकेन = तच्छ्लोकेन, तच्श्लोकेन।

10. रेफ लोप सन्धि (रोरि)- यदि रेफ (र्) स परे रेफ (र) हो तो एक ‘र’ का लोप हो जाता है तथा पूर्व स्वर को दीर्घ हो जाता है।
जैसेपुनर् + रमते = पुना रमते।
निर् + रोगः = नीरोगः।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधू रमते।

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(ग) विसर्गसन्धि

विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए उसमें जो विकार आता है, उसे विसर्गसन्धि कहते हैं।
जैसे- रामः + चलति = रामश्चलति।
विसर्गसन्धि के नियम इस प्रकार हैं
1. विसर्ग (:) को स् श् ष् (विसर्जनीयस्य सः)
(i) यदि विसर्ग के बाद त् थ् और स हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘स’ हो जाता है। जैसे
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
देवाः + सन्ति = देवास्सन्ति।
(ii) यदि विसर्ग के बाद च , छ या श हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘श’ हो जाता है। जैसे
बाल: + चलति = बालश्चलति।
हरिः + शेते = हरिश्शेते।
(iii) यदि विसर्ग के बाद ट ठ या ष हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है। जैसे
रामः + टीकते = रामष्टीकते।
धनुः + टंकारः = धनुष्टङ्कारः।
रामः + षष्ठः = रामष्षष्ठः।

2. विसर्ग (रु) को उ
(i) (हशि च)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और बाद में हश् अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र् ल् व् ह्-इनमें से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग (रु) को ‘उ’ हो जाता है। यही ‘उ’ विसर्ग पूर्ववर्ती ‘अ’ के साथ मिल कर ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
शिवः + वन्द्य = शिवो वन्द्यः।
यश: + दा = यशोदा
मनः + भावः = मनोभावः।
मनः + हरः = मनोहरः।

(ii) (अतो रो रुः प्लुतादप्लुते)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में भी ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है। उस ‘उ’ को पूर्ववर्ती अ के साथ गुण होकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती ‘अ’ को पूर्वरूप हो जाने पर ‘अ’ लोपवाचक अवग्रह-चिह्न (s) लगा दिया जाता है। जैसे
सः + अपि = सोऽपि
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
क: + अयम् = कोऽयम्
स: + अगच्छत् = सोऽगच्छत्।

3. विसर्गलोपः-(विसर्ग का लोप हो जाने पर पुनः सन्धि नहीं होती)
(क) यदि विसर्ग से पूर्व में ‘अ’ हो तो उसके बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
अतः + एव = अत एव ।
रामः + उवाच = राम उवाच ।

(ख) यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और उसके बाद कोई स्वर अथवा वर्ण के प्रथम, द्वितीय अक्षरों को छोड़कर अन्य कोई अक्षर अथवा य् र् ल् व् ह हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
छात्राः + अपि = छात्रा अपि।
जनाः + इच्छन्ति = जना इच्छन्ति।
अश्वाः + गच्छन्ति = अश्वा गच्छन्ति।
जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।

(ग) ‘स’ और ‘एष’ की विसर्गों का लोप हो जाता है यदि बाद में ‘अ’ को छोड़कर अन्य कोई अक्षर हो। जैसे
सः + आगच्छति = स आगच्छति।
एषः + एति = एष एति।
सः + वदति = स वदति।
एषः + हसति = एष हसति।

4. विसर्ग को ‘र’- यदि विसर्ग से पहले अ, आ से भिन्न कोई भी स्वर हो और बाद में कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे पाँचवें अक्षर अथवा य र ल व् ह हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है। जैसे
मुनिः + आगतः + मुनिरागतः ।
धेनु: + इयम् = धेनुरियम्।
भानुः + उदेति = भानुरुदेति ।
मुनिः + याति = मुनिर्याति ।
शिशुः + लिखति = शिशुर्लिखति। इत्यादि।

5. विसर्ग को ‘र’
अ के बाद ‘र’ के स्थान पर होने वाले विसर्ग को स्वर, वर्ग के तृतीय, चतुर्थ या पञ्चम वर्ण तथा य, र् ल् व् ह् इनमें से किसी वर्ण के परे रहते ‘र’ हो जाता है। जैसे
प्रात: + एव = प्रातरेव।
पुनः + अपि = पुनरपि।
पुनः = वदति – पुनर्वदति।
मातः देहि = मातर्देहि।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण

ईशावास्यम् = ईश + आवास्यम्
कुर्वन्नेव = कुर्वन् + एव
तास्ते = तान् + ते
प्रेत्यापि = प्रेत्य + अपि
येऽविद्याम् = ये + अविद्याम्
चाविद्याम् = च + अविद्याम्
वेदोभयम् = वेद + उभयम्
जिजीविषेच्छतम् = जिजीविषेत् + शतम्
तद्धावतः = तत् + धावतः
अनेजदेकम् = अनेजत् + एकम्
आहुरविद्यया = आहुः + अविद्यया
अन्यथेत: = अन्यथा + इतः
अत्येति = अति + एति
क्षितीशम् = क्षिति + ईशम्
प्रत्युज्जगाम = प्रति + उत् + जगाम
यतस्त्वया = यतः + त्वया
तवार्हतः = तव + अर्हतः
स्वार्थोपपत्तिम् = स्वार्थ + उपपत्तिम्
इत्यवोचत् = इति + अवोचत्
इवावशिष्टः = इव + अवशिष्टः
चातकोऽपि = चातक: + अपि
नार्दति = न + नर्दति
एतावदुक्त्वा = एतावत् + उक्त्वा
अन्वयुक्त = अनु + अयुक्त
चाहर = च + आहर
आहरेति = आहर + इति
गुर्वर्थम् = गुरु + अर्थम्
इत्ययम् = इति + अयम्
जहातीह = जहाति + इह
ह्यकर्मणः = हि + अकर्मणः
शरीरयात्रापि = शरीरयात्रा + अपि
पुरुषोऽश्नुते = पुरुषः + अश्नुते
तिष्ठत्यकर्मकृत् = तिष्ठति + अकर्मकृत्
प्रकृतिजैर्गुणैः = प्रकृतिजैः + गुणैः
कर्मणैव = कर्मणा + एव
लोकस्तदनुवर्तते = लोकः + तत् + अनुवर्तते
जनयेदज्ञानाम् = जनयेत् + अज्ञानाम्
एवातिगहनम् = एव + अतिगहनम्
गर्भेश्वरत्वम् = गर्भ + ईश्वरत्वम्
गुरूपदेशः = गुरु + उपदेशः
येवम् = हि + एवम्
नाभिजनम् = न + अभिजनम्
नोपसर्पति = न + उपसर्पति.
नालम्बते = न + आलम्बते
कोऽपि = कः + अपि
चन्द्रोज्ज्वलाः = चन्द्र + उज्ज्वलाः

पदम् सन्धिच्ठेद: सन्धिनाम
यद्यहम् यदि + अहम् (यण् सन्धि:)
पर्याकुला: परि + आकुला: (यण् सन्धि:)
पुनरपि पुनः + अपि ( विसर्ग सन्धि: )
किज्चित् किम् + चित् (परसवर्ण सन्धि: )
ततो उन्या तत: + अन्या ( विसर्ग/पूर्वरूपसन्धि: )
अध्यासितव्यम् अधि + आसितव्यम् (यण् सन्धि:)
भोजेनोक्तम् भोजेन + उक्तम् (गुण सन्धि:)
तस्यौदार्यम् तस्य + औदार्यम् (वृद्धि सन्धि:)
तस्येप्सितम् तस्य + ईप्सितम् (गुण सन्धि:)
व्यसनेष्वसक्तम् व्यसनेषु + असक्तम् (यण् सन्धि:)
हरन्त्यन्ये . हरन्ति + अन्ये (यण् सन्धि:)
इत्येवम् इति + एवम् (यण् सन्धि:)
आत्मोन्नतिम् आत्म + उन्नतिम् (गुण सन्धि:)
स्वल्पम् सु + अल्पम् (यण् सन्धि:)
अधुनात्र अधुना + अत्र (दीर्घ सन्धि:).
अनाथाश्रम: अनाथ + आश्रम: (दीर्घ सन्धि:)
तस्मिन्नवसरे तस्मिन् + अवसरे (द्वित्वसन्धि: )
प्रत्येकम् प्रति + एकम् (यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपि कस्मिन् + अपि (द्वित्वसन्धि:)
उपर्युपरि उपरि + उपरि (यण् सन्धि:)
हरितेनैव हरितेन + एव (गुण सन्धि:)
भवन्तो नित्यम् भवन्तः + नित्यम् (विसर्ग सन्धि:)
कश्चित् क: + चित् (विसर्ग सन्धि:)
सोऽपि स: + अपि (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
कोऽपि क: + अपि (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
प्रेषितोऽहम् प्रेषितः + अहम् (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पुष्पाঞ्जलि: पुष्प + अऊ्जलि: (दीर्घ सन्धि:)
हिंसावृत्तिस्तु हिंसावृत्ति + तु (विसर्ग सन्धि:)
प्रत्युत्तरम् प्रति + उत्तरम् (यण् सन्धि:)
प्रत्यागच्छति प्रति + आगच्छति (यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपि कस्मिन् + अपि (द्वित्व सन्धि:)
यत्राहम यत्र + अहम् (दीर्घ सन्धि:)
प्रेषितस्त्वम् प्रेषितः + त्वम् ( विसर्ग सन्धि:)
प्राप्तैव प्राप्ता + एव (वृद्धि सन्धि:)
यथैव यथा + एव (वृद्धि सन्धि:)
तस्यैव तस्य + एव (वृद्धि सन्धि:)
क्रूरोडयम् क्रूर: + अयम् (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धः)
स्वोदरपूर्तिम् स्व + उदरपूर्तिम् (गुणसन्धि: )
प्रावोचत् प्र + अवोचत् (दीर्घ सन्धि:)
मानवा इव मानवा: + इव (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अद्यापि अद्य + अपि (दीर्घ सन्धि:)
पुनरेष: पुन: + एष: (विसर्ग सन्धि:)
तत्रैव तत्र + एव (वृद्धि सन्धि: )
सहसाम्रियत सहसा + अम्रियत (दीर्घ सन्धिः)
रत्नार्यर्पयित्वा रत्नानि + अर्पयित्वा (यण् सन्धि:)
सर्वोडपि सर्व: + अपि (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अन्नेनैव अन्नेव + एव (वृद्धि सन्धः:)
नावलोक्यते न + अवलोक्यते (दीर्घ सन्धि:)
महोत्साह: महा + उत्साह: (गुण सन्धि: )
पित्रोक्तम् पित्रा + उक्तम् (गुण सन्धि:)
स्नुषयोक्तम् स्नुषया + उक्तम् (गुण सन्धि:)
भार्ययोक्तम् भार्यया + उक्तम् (गुण सन्धि:) .
पुत्रेणोक्तम् पुत्रेण + उक्तम् (गुण सन्धि:)
राजापि राजा + अपि (दीर्घ सन्धि: )
चत्वार्यपि चत्वारि + अपि (यण् सन्धि:)
द्वयोरुपरि द्वयो: + उपरि (विसर्ग सन्धि:)
सर्वाण्येव सर्वाणि + एव (यण् सन्धि:)
मन्निर्मितम् मत् + निर्मितम् (परसवर्ण सन्धि:)
तच्छुत्वा तत् + श्रुत्वा (छत्व सन्धि:)
त्वर येवम् त्वयि + एवम् (यण् सन्धि:)
लोकास्तिष्ठन्ति लोका: + तिष्ठन्ति (विसर्ग सन्धि:)
सोपानवज्जानन्ति सोपानवत् + जानन्ति (श्चुत्वसन्धि:)
पौराणिकास्तु पौराणिका: + तु (विसर्ग सन्धि:)
सुमेरोरुत्तरतः सुमेरो: + उत्तरत: ( विसर्ग सन्धि:)
कैलासश्च कैलास: + च (विसर्ग सन्धि:)
स्वर्गस्पोपरि स्वर्गस्य + उपरि (गुण सन्धि:)
जन्तवस्तिष्ठन्ति जन्तव: + तिष्ठन्ति ( विसर्ग सन्धि:)
अथाकस्मात् अथ + अकस्मात् (दीर्घ सन्धि: )
प्रादुरभूत् : प्रादु: + अभूत् ( विसर्ग सन्धि:)
मासोडयम् मास: + अयम् (विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पर्वतश्रेणीरिव पर्वतश्रेणी: + इव (विसर्ग सन्धि:)
यथेच्छम् यथा + इच्छम् (गुण सन्धि:)
महान्धकार: महा + अन्धकार: (दीर्घ सन्धि:)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

I. स्वरसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच्सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहा जाता है। दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण् आदि इसके अनेक प्रकार हैं।
उदाहरण
परम + आनन्दः = परमानन्दः
सु + उक्तिः = सूक्तिः
देव + इन्द्रः = देवेन्द्र:
यदि + अपि = यद्यपि।

II. गुणसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् – यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
हित + उपदेशः = हितोपदेशः
देव + ऋषिः = देवर्षिः

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

III. व्यञ्जनसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम – व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः । सत् + चित् = सच्चित्।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः। वाक् + ईशः = वागीशः।

IV. यण्सन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-यदि इ / ई, उ / ऊ, ऋ / ऋ, ल से परे कोई असमान स्वर हो तो वे क्रमश: य, व, र, ल में बदल जाते
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि
सु + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
तव + लकारः = तवल्कारः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

V. विसर्गसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए जो विकार आता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे
रामः + चलति = रामश्चलति।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
मुनिः + आगच्छत् = मुनिरागच्छत् ।

VI. दीर्घसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम्-दीर्घसन्धि- ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ के परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

VII. अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-अयादिसन्धि–यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
उदाहरण:
ने + अनम् = नयनम् ।
नै + अकः = नायकः ।
भो + अनम् = भवनम्।
पौ + अकः = पावकः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

VIII. वृद्धिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अ या आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।

(ii) नियम-यदि अ/ आसे परे आ /औ, ऋहो तो दोनों के स्थान पर क्रमशः औ तथा आर् हो जाते हैं; अर्थात् अ/ आ + ओ / औ = औ। ऋ/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण:
महा + औषधिः = महौषधिः ।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः ।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) खुली अर्थव्यवस्था में विश्व के अन्य राष्ट्रों से आयात-निर्यात होता है
(B) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(D) खुली अर्थव्यवस्था में अन्य राष्ट्रों के साथ वित्तीय परिसंपत्तियों में भी व्यापार होता है
उत्तर:
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं

2. भुगतान शेष से अभिप्राय है
(A) निर्यात तथा आयात के दृश्य मदों में अंतर
(B) निर्यात तथा आयात के अदृश्य मदों में अंतर
(C) स्वर्ण के बाहरी तथा आंतरिक प्रवाह में अंतरं
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा
उत्तर:
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा

3. व्यापार शेष से अभिप्राय है
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(B) सेवाओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(C) पूँजी के निर्यात तथा आयात में अंतर
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर

4. भुगतान शेष में शामिल होते हैं-
(A) दृश्य मदें
(B) अदृश्य मदें
(C) पूँजी हस्तांतरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

5. व्यापार शेष में निम्नलिखित में से किसको शामिल नहीं किया जाता?
(A) सेवाओं के आयात-निर्यात को
(B) देशों के बीच ब्याज तथा लाभांश के भुगतान को
(C) पर्यटकों द्वारा व्यय को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. भुगतान शेष के चालू खाते में निम्नलिखित में से कौन-से सौदे रिकॉर्ड किए जाते हैं?
(A) वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात और निर्यात
(B) एक देश से दूसरे देश को एक-पक्षीय हस्तांतरण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

7. भुगतान शेष के एक-पक्षीय हस्तांतरण-
(A) एक देश से दूसरे देश को एक-तरफा किए जाते हैं.
(B) इनका व्यावसायिक लेन-देन से कोई संबंध नहीं होता
(C) इनमें प्राप्तियों के बदले में कोई भुगतान नहीं किए जाते; जैसे-उपहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. भुगतान शेष के पूँजी खाते की मुख्य मदें निम्नलिखित में से कौन-सी हैं?
(A) विदेशी निवेश
(B) ऋण
(C) बैंकिंग पूँजी लेन-देन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

9. वे सभी पूँजीगत सौदे जिनके कारण विदेशी विनिमय का प्रवाह देश से बाहर को जाता है, उन्हें भुगतान शेष के पूँजी खाते में किन मदों में लिखा जाता है?
(A) धनात्मक मदों में
(B) ऋणात्मक मदों में
(C) शून्य मदों में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक मदों में

10. निर्यात-आयात के मूल्य के अंतर को कहते हैं-
(A) व्यापार शेष
(B) भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष

11. केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है-
(A) व्यापार शेष में
(B) भुगतान शेष में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष में

12. व्यापार शेष
(A) भुगतान शेष + शुद्ध अदृश्य मदें
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें

13. स्वायत्त (Autonomous) मदें उन सौदों से संबंधित होती हैं जिनका-
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है
(B) संबंध भुगतान शेष की स्थिति से नहीं होता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

14. समायोजक (Accommodating) मदें भुगतान शेष के खाते की वे मदें हैं जिनका
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता
(B) संबंध देश के भुगतान शेष की धनात्मक अथवा ऋणात्मक स्थिति से होता है
(C) उद्देश्य भुगतान शेष की समानता स्थापित कराना होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

15. भुगतान शेष सदैव होता है
(A) प्रतिकूल
(B) संतुलित
(C) अनुकूल
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित

16. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष है
(A) अधिक व्यापक
(B) कम व्यापक
(C) व्यापक भी तथा नहीं भी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिक व्यापक

17. भुगतान शेष के असंतुलन से अभिप्राय है-
(A) बचत वाला भुगतान शेष
(B) घाटे वाला भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

18. भुगतान शेष का घाटे वाला असंतुलन तब होता है जब-
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है
(B) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) है
(C) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष बराबर (=) है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं ।
उत्तर:
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है

19. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था किस वर्ष से प्रारंभ हुई?
(A) 1944 से
(B) 1960 से
(C) 1994 से
(D) 1947 से
उत्तर:
(A) 1944 से

20. यदि व्यापार शेष (-) 600 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है तो आयात का मूल्य होगा
(A) -1,300 करोड़ रुपए
(B) 300 करोड़ रुपए
(C) 1,100 करोड़ रुपए
(D) 1,200 करोड़ रुपए
उत्तर:
(C) 1,100 करोड़ रुपए

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21. विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में-
(A) कीमत से है
(B) विनिमय के अनुपात से है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) वस्तु विनिमय से है
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

22. वर्तमान में विनिमय दरों के किस रूप को अपनाया जाता है?
(A) स्थिर विनिमय दरों के
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के

23. स्थिर विनिमय प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करेंसी की एक इकाई में निहित निम्नलिखित में से किसके आधार पर किया जाता है?
(A) चाँदी की मात्रा
(B) सोने की मात्रा
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सोने की मात्रा

24. टकसाली दर से अभिप्राय है-
(A) समान क्रय-शक्ति
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार
(C) विदेशी करेंसी की माँग तथा पूर्ति
(D) दो देशों में कीमत स्तर
उत्तर:
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार

25. विनिमय दर की समंजनीय प्रणाली (या ब्रेटन वुडस प्रणाली) के अनुसार-
(A) विभिन्न करेंसियों को एक करेंसी (अमेरिकी डॉलर) के साथ संबंधित कर दिया गया
(B) अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित कीमत पर स्वर्ण मूल्य निर्धारित कर दिया गया
(C) दो करेंसियों के बीच समता उनमें पाई जाने वाली स्वर्ण की मात्रा द्वारा निर्धारित की जाती थी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

26. वर्तमान समय में एक देश की मुद्रा की विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर-
(A) एक ही होगी
(B) अलग-अलग होगी.
(C) निश्चित होगी
(D) अनिश्चित होगी
उत्तर:
(B) अलग-अलग होगी

27. निम्नलिखित में से स्थिर विनिमय प्रणाली का कौन-सा लाभ नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा
(C) स्थिरता
(D) समष्टिगत नीतियों में समन्वय
उत्तर:
(A) अस्थिरता

28. स्थिर विनिमय प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) विशाल अंतर्राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता
(B) पूँजी का असीमित आवागमन
(C) जोखिम पूँजी का निरुत्साहित होना
(D) साधनों के आबंटन में कठोरता
उत्तर:
(B) पूँजी का असीमित आवागमन

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

29. नम्य(लोचशील) वह दर है जिसका निर्धारण-
(A) मुद्रा में निहित सोने की मात्रा द्वारा होता है
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है
(C) एक करेंसी के टकसाली मूल्य द्वारा होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है

30. जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति के बराबर हो जाए तो उसे कहते हैं-
(A) विनिमय की समानता दर
(B) विनिमय की असंतुलन दर
(C) संतुलन दर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) संतुलन दर

31. विदेशी विनिमय की माँग निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिए की जाती है?
(A) अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करने के लिए
(B) शेष विश्व में निवेश करने के लिए
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. विदेशी मुद्रा की माँग तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) कोई संबंध नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विपरीत

33. विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) बहुत निकट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) प्रत्यक्ष

34. नम्य विनिमय दर प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) समष्टिगत नीतियों के समन्वय में कठिनाई
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता

35. विदेशी विनिमय बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें संसार के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय करेंसियों को-
(A) बेचा जाता है
(B) खरीदा जाता है
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है
(D) विनिमय नहीं होता
उत्तर:
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

36. हाजिर (चालू) बाज़ार का अर्थ उस बाज़ार से है जिसमें-
(A) केवल चालू या हाजिर लेन-देन किया जाता है
(B) किसी भविष्य में किसी तिथि पर लेन-देन किया है
(C) तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

37. वर्तमान समय में विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) IMF ART
(B) IBRD द्वारा
(C) WTO GRI
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा

38. विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग से
(B) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग से
(C) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग व पूर्ति से
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से

39. स्वतंत्र विनिमय बाज़ार में जब पूर्ति यथास्थिर रहते हुए विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में ……………. होती है और जब माँग यथास्थिर रहे परंतु पूर्ति बढ़ जाए तो विनिमय दर में …………. हो जाती है।
(A) कमी, शून्य
(B) वृद्धि, कमी
(C) वृद्धि, शून्य
(D) वृद्धि, वृद्धि
उत्तर:
(B) वृद्धि, कमी

40. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय प्रणाली में विनिमय दर निर्धारित होती है-
(A) देश के मौद्रिक प्राधिकरण (Authority) द्वारा
(B) स्वर्ण कीमत द्वारा
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा
(D) विनिमय मूल्यांतर द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा

41. देश में मुद्रास्फीति बढ़ने पर विनिमय दर-
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है
(B) देश के पक्ष में हो जाती है
(C) अप्रभावित रहती है।
(D) उपर्युक्त सभी दशाएँ संभव हैं
उत्तर:
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है

42. नम्य विनिमय दर प्रणाली में इंग्लैंड के पौंड की अमेरिका में माँग बढ़ती है, तब-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा
(B) पौंड का मूल्यह्रास होगा
(C) डॉलर की मूल्यवृद्धि (Appreciation) होगी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

43. विनिमय दर यदि 3 डॉलर = 1 पौंड से बदल कर 2 डॉलर = 1 पौंड हो जाती हे तब इसका अर्थ है-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि
(C) पौंड की मूल्यवृद्धि
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि

44. यदि किसी देश में किसी समय स्टोरियों द्वारा विदेशी मुद्रा को अधिक मात्रा में खरीदा जाता है, तब उस देश में विनिमय दर-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर बनी रहती है
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(B) बढ़ती है

45. देश में विस्तारवादी मौद्रिक नीति देश में विनिमय दर को-
(A) घटाती है
(B) बढ़ाती है
(C) अप्रभावित रखती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटाती है

46. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय दर के लिए कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) विनिमय दर परिवर्तनशील होती है
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है
(C) इसमें माँग और पूर्ति की शक्तियों के फलस्वरूप परिवर्तन होता है
(D) उपर्युक्त सभी सत्य
उत्तर:
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है

47. विनिमय दर का निर्धारण माँग व पूर्ति से होता है, इस संदर्भ में किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में माँग किससे निर्धारित होती है? (A) उस देश के आयात से
(B) उस देश द्वारा लिए गए ऋणों से
(C) उस देश के निर्यातों से
(D) उस देश की राष्ट्रीय आय से
उत्तर:
(C) उस देश के निर्यातों से

48. नम्य (लोचदार) विनिमय दर नीति-
(A) माँग के नियम पर आधारित है
(B) पूर्ति के नियम पर आधारित है
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है
(D) उपर्युक्त में से किसी पर भी आधारित नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है।

49. स्वर्णमान में विनिमय दर का निर्धारण किया जाता था-
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा
(B) क्रय-शक्ति समता सिद्धांत द्वारा
(C) (A) और (B) दोनों द्वारा
(D) उपर्युक्त में से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा

50. वर्तमान में विनिमय दर का निर्धारण टकसाली समता सिद्धांत द्वारा महत्त्वहीन हो गया है क्योंकि-
(A) वर्तमान में किसी भी देश ने स्वर्णमान नहीं अपना रखा है
(B) वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्वर्ण आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगे हुए हैं
(C) वर्तमान में सभी देशों ने अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रामान अपना रखा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. स्वर्णमान वाले देशों की मुद्राओं की विनिमय दरों के उच्चावचन की सीमाएँ निर्धारित होती हैं-
(A) उनके स्वर्ण के मूल्यों के बीच
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच
(C) रजत तथा स्वर्ण की मात्रा पर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच

52. क्रय-शक्ति समता सिद्धांत के अनुसार विनिमय दर किस देश के पक्ष में होगी यदि पाँच वर्ष में A देश का सूचकांक 150 और B देश का सूचकांक 200 हो जाए।
(A) ‘A’ देश के
(B) ‘B’ देश के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से किसी के नहीं
उत्तर:
(A) ‘A’ देश के

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53. विनिमय दर को निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा बाज़ार के सभी भागों में समान बनाया जा सकता है-
(A) सट्टे (Specutation) द्वारा
(B) विनिमय की मध्यस्थता (Arbitrage) द्वारा
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा
(D) ब्याज मध्यस्थता द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा

54. हाजिर दर (Spot Rate) एवं अग्रिम दर (Forward Rate) के बीच निम्न में से कौन-सी क्रिया होती है?
(A) सट्टा
(B) द्वैद्य रक्षण
(C) मध्यस्थता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

55. वायदा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें-
(A) भविष्य में पूरा होने वाला लेन-देन का कारोबार होता है
(B) यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

56. यदि 50 रुपए 2 डॉलर खरीदने के लिए आवश्यक हैं तो विनिमय दर है-
(A) 50 रुपए = 2 डॉलर
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर
(C) 20 रुपए = 1 डॉलर
(D) 100 रुपए = 4 डॉलर
उत्तर:
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर

57. नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

58. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा ………………….. कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
भुगतान शेष

2. वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर ………………… कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
व्यापार शेष

3. भुगतान शेष सदैव होता है। (असंतुलित/संतुलित)
उत्तर:
संतुलित

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4. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष ………………… होता है। (अधिक व्यापक/कम व्यापक)
उत्तर:
अधिक व्यापक

5. यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो वह ………………… बाज़ार कहलाता है। (हाजिर/कारक)
उत्तर:
हाजिर

6. नम्य विनिमय दर में विनिमय दर का निर्धारण ………………….. माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। (बाज़ार/कारक)
उत्तर:
बाज़ार

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. नम्य विनिमय दर पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  2. व्यापार-शेष और भुगतान-शेष में अंतर पाया जाता है।
  3. भुगतान-शेष एक आर्थिक बैरोमीटर है जिसकी सहायता से किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
  4. व्यापार-शेष को दृश्य वस्तुओं का सन्तुलन भी कहा जाता है।
  5. भुगतान-शेष व्यापार-शेष से विस्तृत धारणा है।
  6. वास्तविक विनिमय दर, स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है।
  7. किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष क्षमता का माप, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर कहलाती है।
  8. विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
  9. स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  10. सेयर्स के अनुसार मुद्राओं के आपसी मूल्यों को विदेशी विनिमय दर कहते हैं।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक बंद अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसका अन्य देशों के साथ कोई आर्थिक संबंध नहीं होता।

प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंध होते हैं।

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प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद में कुल विदेशी व्यापार के अनुपात के रूप में एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को मापा जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष (BOP) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष (Balance of Payment) देश के शेष विश्व से आर्थिक लेन-देन के फलस्वरूप समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापार शेष से अभिप्राय किसी देश के केवल वस्तुओं या दृश्य मदों के आयात और निर्यात के अंतर से है।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते से अभिप्राय शेष विश्व के साथ किसी दिए हुए वित्तीय वर्ष में आर्थिक लेन-देनों के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू व पूँजी खातों के मुख्य घटक बताएँ।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते के घटक हैं-(i) वस्तुओं का आयात-निर्यात, (ii) सेवाओं का आयात-निर्यात और (ii) एक-पक्षीय हस्तांतरण।
भुगतान शेष के पूँजी खाते के घटक हैं-(i) निजी लेन-देन, (ii) सरकारी लेन-देन, (iii) प्रत्यक्ष निवेश और (iv) पत्राधार निवेश।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष के पूँजी खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष का पूँजी खाता वह खाता है जिसमें एक देश के निवासियों द्वारा शेष विश्व से पूँजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों के आदान-प्रदानों का लेखा किया जाता है।

प्रश्न 9.
एक देश के भुगतान शेष खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
एक देश के भुगतान शेष खाते में एक देश के अन्य देशों के साथ किए गए वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों के लेन-देन दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में घाटे (Deficit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में घाटे से अभिप्राय यह है कि समस्त प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) होता है।

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प्रश्न 11.
भुगतान शेष में आधिक्य (Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में आधिक्य से अभिप्राय यह है कि सभी प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 12.
समायोजक (Accommodating) और स्वायत्त (स्वप्रेरित) (Autonomous) मदों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समायोजक मदों का अभिप्राय उन लेन-देनों से है जो भुगतान शेष (BOP) में किन्हीं अन्य गतिवधियों के कारण करने जरूरी हो जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा वित्तीयन।

स्वायत्त (स्वप्रेरित) मदों से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं।

प्रश्न 13.
विदेशी मुद्रा बाज़ार क्या है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है।

प्रश्न 14.
विनिमय बाज़ार में संतुलन कहाँ होगा?
उत्तर:
विनिमय बाज़ार में संतुलन वहाँ होगा जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र विदेशी मुद्रा के पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
विदेशी मुद्रा की माँग के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  2. विदेशों से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय।

प्रश्न 16.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. निर्यात
  2. विदेशी निवेश।

प्रश्न 17.
विनिमय की दर में वृद्धि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय की दर में वृद्धि का अर्थ यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई के लिए अपने देश की पहले से अधिक मुद्रा देनी होगी।

प्रश्न 18.
आंतरिक मुद्रा के मूल्यहास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आंतरिक मुद्रा के मूल्यह्रास से अभिप्राय देशीय मुद्रा इकाइयों में विदेशी मुद्राओं की कीमत में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, आंतरिक मुद्रा के ह्रास से अभिप्राय देश की मुद्रा के मूल्य में कमी से है।।

प्रश्न 19.
मुद्रा अधिमूल्यन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुद्रा अधिमूल्यन से अभिप्राय देशी मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में कमी से है।

प्रश्न 20.
एक देश में विनिमय दर की कौन-सी दो व्यवस्थाएँ हो सकती हैं?
उत्तर:

  1. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था
  2. नम्य (लोचदार) विनिमय दर व्यवस्था।

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प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार द्वारा घोषित की गई दर पर होते हैं। इस विनिमय दर में बहुत मामूली उतार-चढ़ाव मान्य होते हैं।

प्रश्न 22.
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था (Adjustable Peg System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था से अभिप्राय एक देश द्वारा अपनी मुद्रा की विनिमय दर को किसी अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में नियत करने से है। इस नियत दर में किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही परिवर्तन किया जाता है।

प्रश्न 23.
नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और आपूर्ति द्वारा होता है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इसे लचीली विनिमय दर भी कहते है।

प्रश्न 24.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें प्रत्येक सदस्य देश को उसकी घोषित विनिमय दर से 10% तक उतार-चढ़ाव करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 25.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 26.
विदेशी मुद्रा का हाजिर बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें तुरंत होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 27.
विदेशी मुद्रा का वायदा बाज़ार (Forward Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के वायदा बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें भविष्य में किसी तिथि पर होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था के क्या लाभ हैं? अथवा ‘एक खुली अर्थव्यवस्था में चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है।’ समझाइए।
उत्तर:
यह कहना उचित है कि एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था में लोगों को चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-(i) उपभोक्ताओं और फर्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है, (i) निवेशकों को घरेलू व विदेशी परिसंपत्तियों के बीच चयन का अवसर मिलता है, (iii) फर्मों को उत्पादन के स्थान का चयन करने और श्रमिकों को कहाँ काम देने, यह चयन की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 2.
भुगतान शेष लेखांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष खाते में सभी लेन-देन को दोहरी लेखा प्रणाली के आधार पर लिखा जाता है। प्रत्येक लेन-देन को दो प्रविष्टियों के रूप में लिखा जाता है- एक पक्ष ‘नाम’ और दूसरा पक्ष ‘जमा’। इन दोनों प्रविष्टियों का आकार समान होता है, जिसके कारण ‘जमा’ पक्ष की प्रविष्टियों का योगफल सदा ‘नाम’ पक्ष की प्रविष्टियों के योग के बराबर रहता है। उदाहरण के लिए, जब किसी अन्य देश से भुगतान प्राप्त होता है तो यह क्रेडिट सौदा है और जब किसी अन्य देश को भुगतान किया जाता है तो यह डेबिट सौदा है। भुगतान शेष खाते के लेन-देन को हम निम्नलिखित पाँच प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं-

  • वस्तुएँ और सेवाएँ खाता
  • एक-पक्षीय हस्तांतरण खाता
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता|
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता।

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प्रश्न 3.
पूँजी खाते के संघटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी खाते के संघटक निम्नलिखित हैं-

  1. निजी लेन-देन-इस लेन-देन से व्यक्तियों, व्यवसायों और गैर-सरकारी निकायों द्वारा निजी रूप से धारित परिसंपत्तियाँ और दायित्व प्रभावित होते हैं।
  2. सरकारी लेन-देन सरकारी लेन-देन सरकार और उसकी संस्थाओं की परिसंपत्तियों और दायित्वों को प्रभावित करते हैं।
  3. प्रत्यक्ष निवेश-प्रत्यक्ष निवेश किसी परिसंपत्ति को खरीदकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
  4. पत्राधार निवेश-पत्राधार निवेश (Perfect Investment) परिसंपत्तियों के क्रेता को उन पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता। सरकार को विदेशी बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना इस वर्ग में आता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है? भुगतान शेष, व्यापार शेष से किस प्रकार विस्तृत अवधारणा है? अथवा व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष का अर्थ-मोटे रूप में, भुगतान शेष एक लेखा वर्ष में एक देश के समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है। भुगतान शेष लेखा एक देश का अन्य देशों के साथ एक वर्ष में किए गए समस्त आर्थिक सौदों का एक क्रमबद्ध लेखा है। इसमें दृश्य मदें (वस्तुएँ), अदृश्य मदें (गैर-साधन सेवाएँ) एक-पक्षीय हस्तांतरण और पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं। भौतिक वस्तुओं (जैसे मशीनरी, चाय) का आयात-निर्यात दृश्य मदें हैं, क्योंकि वे दिखाई देती हैं जबकि सेवाएँ (जैसे जहाज़रानी, बीमा आदि) अदृश्य मदें हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय सीमा को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। पुनः भुगतान शेष खाता दोहरी लेखांकन प्रणाली के अनुसार लिखा जाता है जिससे भुगतान और प्राप्तियाँ सदा बराबर रहती हैं। दूसरे शब्दों में, भुगतान शेष, तकनीकी दृष्टि से सदा संतुलन में रहता है।

व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर-भुगतान शेष, व्यापार शेष की तुलना में एक व्यापक व विस्तृत अवधारणा है क्योंकि व्यापार शेष, भुगतान शेष के चार घटकों में से केवल एक घटक (दृश्य मदों के आयात-निर्यात का अंतर) है। यह दोनों के बीच अंतर से स्पष्ट है

व्यापार शेष भुगतान शेष
1. व्यापार शेष में केवल दृश्य मदें (वस्तुएँ) शामिल होती हैं। 1. भुगतान शेष में दृश्य मदें (वस्तुएँ) और अदृश्य मदें (सेवाएँ) दोनों शामिल होती हैं।
2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल नहीं होते। 2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं।
3. यह भुगतान शेष के चालू खाते का एक भाग है। 3. यह संपूर्ण चालू खाते और पूँजी खाते का भाग है।
4. यह अनुकूल, प्रतिकूल या संतुलित हो सकता है। 4. यह लेखांकन दृष्टि से सदा संतुलित रहता है।
5. इसके घाटे को भुगतान शेष की मदों से पूरा किया जा सकता है। 5. इसके घाटे को व्यापार शेष द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर के लाभ निम्नलिखित हैं:
(i) स्थिर विनिमय दर विदेशी व्यापार को सविधाजनक बनाती है क्योंकि उनसे व्यापार में आने वाली वस्तुओं की कीमतों का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

(ii) स्थिर विनिमय दर व्यवस्था में कोई अनिश्चितता नहीं होती और न ही कोई जोखिम होता है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर व्यवस्थित तथा अबाध रूप से दीर्घकालीन पूँजी प्रवाहों को प्रोत्साहन देती है।

(iii) स्थिर विनिमय दर प्रणाली एक प्रतिबंध का काम करती है और सरकार पर यह अनुशासन लगाती है कि वे देश के भीतर उत्तरदायित्वपूर्ण वित्तीय नीतियों का पालन करे।

(iv) स्थिर विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सट्टेबाजी समाप्त हो जाती है क्योंकि सट्टेबाजी का विनिमय दर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 6.
व्यापार शेष (Balance of Trade) और चालू खाता शेष (Balance of CurrentAccount) में भेद कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष केवल दृश्य मदों (वस्तुओं) के निर्यात मूल्य और आयात मूल्य का अंतर है। दूसरे शब्दों में, व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है। इसके विपरीत चालू खाता शेष में दृश्य मदें, अदृश्य मदें (सेवाएँ) और एक-पक्षीय हस्तांतरण के आयात-निर्यात का ब्यौरा दिया होता है। इस प्रकार व्यापार शेष, चालू खाता शेष का एक भाग है। स्पष्टतः व्यापार शेष की तुलना में ‘चालू खाता शेष’ एक विस्तृत अवधारणा है।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा दर का क्या अर्थ है? तीन कारण दीजिए कि क्यों लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा को अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में बदला जा सकता है। निम्नलिखित कारणों के लिए लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं-

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष अंतर्राष्ट्रीय प्राप्तियों और भुगतानों से संबंधित होता है। इसलिए भुगतान शेष राष्ट्रीय आय को प्रभावित करते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर समस्त व्यय में घरेलू क्षेत्र के उपभोक्ताओं, निवेशकों तथा सरकार के व्यय के साथ ही विदेशियों द्वारा उक्त देश से आयात पर व्यय को जोड़ा जाता है। अर्थात्
Y = C + I + G + X
इस प्रकार सृजित आय का प्रयोग उपभोग, बचत और कर भुगतान में होता है। विदेशों से आयात पर व्यय (M) भी इसी में से किया जाता है। अर्थात्
Y = C + S + T + M
राष्ट्रीय आय लेखांकन सिद्धांत के अनुसार सृजित आय का मान प्रयोग की गई आय के समान होगा। अर्थात्
Y = C+ I + G + x
= C + S + T + M
I + G + x = S + T + M
इनमें I, G, X आय के चक्रीय प्रवाह में भरण (Injections) हैं और S, T, M क्षरण (Leakages) हैं। इसलिए संतुलन में प्रयोजित भरणों (Planned Injections) का योग, प्रायोजित क्षरणों (Planned Leakages) के योग के बराबर होगा। यही राष्ट्रीय आय और भुगतान शेष में संबंध है।

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प्रश्न 9.
विदेशी मुद्रा दर क्या है? विदेशी मुद्रा की कीमत कम होने से इसकी माँग क्यों बढ़ती है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा से विनिमय किया जाता है। विदेशी मुद्रा की माँग के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए।
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए।
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

विदेशी मुद्रा बाज़ार में भी माँग का नियम लागू होता है और विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है। जब विदेशी मुद्रा की कीमत कम होती है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है।

प्रश्न 10.
विदेशी विनिमय बाज़ार से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाज़ार से अभिप्राय उस बाज़ार से है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है। विदेशी विनिमय बाज़ार निम्नलिखित तीन कार्य करता है

  • हस्तांतरण कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार देशों के बीच क्रय-शक्ति का हस्तांतरण करता है।
  • साख कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी व्यापार के लिए साख स्रोत का प्रावधान करता है।
  • जोखिम पूर्वोपाय कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी विनिमय जोखिम से बचाव करता है।

प्रश्न 11.
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण कैसे होता है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण मुद्रा बाज़ार में संतुलन द्वारा होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र और मुद्रा का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हों। विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है, जबकि विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर दाईं ओर उठता हुआ होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र 1

संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति । हैं जहाँ संतुलन विनिमय दर OP है और संतुलन विदेशी मुद्रा की मात्रा OQ है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार या मौद्रिक अधिकारी द्वारा घोषित की गई दरों पर होते हैं। नम्य विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जो विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है, जबकि नम्य विनिमय दर की दशा में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप नहीं होता। पूर्ण रूप से स्थिर विनिमय दर को अव्यावहारिक माना जाता है, इसलिए यह प्रचलित नहीं है। सामान्यतया नम्य विनिमय दर को ही व्यावहारिक माना जाता है।

प्रश्न 13.
नम्य विनिमय दर प्रणाली के किन्हीं चार लाभों (गुणों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नम्य विनिमय दर प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. नम्य विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती।
  2. यह व्यापार तथा पूँजी के आवागमन के प्रति अवरोधों की समाप्ति में सहायक है।
  3. यह संसाधनों का कुशलतम आबंटन करती है जिससे अर्थव्यवस्था की कशलता में वृद्धि होती है।
  4. नम्य विनिमय दर की व्यवस्था सरल है। विनिमय दर अपने आप स्वतंत्र रूप से बदलती रहती है तथा माँग और पूर्ति में समानता लाती है।

प्रश्न 14.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था (प्रणाली) और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देशों को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से 10 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव कर सकता है। इस छूट का मुख्य उद्देश्य भुगतानों में आसानी से समायोजन करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश को भुगतान शेष के घाटों का सामना करना पड़ रहा है तो वह 10 प्रतिशत तक अपनी मुद्रा की दर कम करके इस समस्या से निपट सकता है।

प्रश्न 15.
चलित सीमाबंध व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमाबंध व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार विभिन्न करेंसियों की विनिमय दर में लघु सीमा तक किंतु समय-समय पर नियमित रूप से परिवर्तन की छूट होती है। चलित सीमाबंध के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देश को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से केवल एक प्रतिशत तक ही उतार-चढ़ाव कर सकता है। वास्तव में यह लघु समायोजन है, किंतु इसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है। समायोजन का आकार तथा बारंबारता इस बात पर निर्भर करते हैं कि समायोजन करने वाले देश के पास विदेशी मुद्रा के भंडार कितने हैं।

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प्रश्न 16.
समायोजक (Accommodating) मदों और स्वप्रेरित (Autonomous) मदों की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते से संबंधित मदों के लिए अर्थशास्त्री विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे-स्वायत्त (स्वप्रेरित), समायोजक, रेखा के ऊपर, रेखा के नीचे आदि। इनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है।

स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें-भुगतान शेष में प्रयोग किए गए स्वायत्त अथवा स्वप्रेरित (Autonomous items) शब्द से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। ऐसे सौदे (लेन-देन), देश के भुगतान शेष की स्थिति की परवाह किए बिना होते हैं। इन्हीं को ही भुगतान शेष खाते में रेखा से ऊपर मदें’ (above the line items) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण बताइए।
उत्तर:
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-

  1. निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना।
  2. बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं।
  3. ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना।
  4. चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र।
  5. पूर्ति के नए स्रोतों का विकास।
  6. नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना।
  7. उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

प्रश्न 18.
गंदी तरणशीलता तिरती (Dirty Floating) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह अवधारणा विनिमय दर की प्रबंधित तरणशीलता तिरती व्यवस्था से संबंधित है। ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नियमों और अधिनियमों की परवाह किए बिना प्रबंधित तरणशीलता व्यवस्था को लागू किया जाता है। एक देश जब विनिमय दर को किसी अन्य देश के हित के विरूद्ध कम या अधिक करता है तब इस प्रकार के व्यवहार को गंदी तरणशीलता/तिरती व्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) की व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था स्थिर और नम्य विनिमय दरों का मिश्रण है। प्रबंधित तिरती व्यवस्था में मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर के निर्धारण में हस्तक्षेप करते हैं लेकिन इसमें हस्तक्षेप के लिए आधिकारिक रूप से नियम और मार्गदर्शक सत्रों की घोषणा होती है। परंत मौद्रिक अधिकारी कोई विनिमय दर नियत नहीं करते और न ही विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई समय-सीमा निर्धारित की जाती है। जब भी मौद्रिक अधिकारी को हस्तक्षेप की आवश्यकता अनुभव होती है वे उपयुक्त कदम उठा सकते हैं।

प्रश्न 20.
विस्तृत सीमापट्टी चलित सीमाबंध कैसे एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
दोनों व्यवस्थाएँ विनिमय दर में समायोजन की अनुमति देती हैं। चलित सीमाबंध की तुलना में विस्तृत सीमापट्टी में अधिक समायोजन (Wider adjustments) किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, विस्तृत सीमापट्टी की तुलना में चलित सीमाबंध एक संकुचित सीमापट्टी (Narrow Bond) है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भुगतान शेष खाते’ (Balance of Payment Accounts) का क्या अर्थ है? एक उदाहरण द्वारा BOP खाते की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते का अर्थ-भुगतान शेष खाता किसी देश के निवासियों और शेष विश्ववासियों के बीच नियत अवधि में हुए सारे आर्थिक लेन-देनों का व्यवस्थित रिकॉर्ड होता है। यह दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) के आधार पर तैयार किया जाता है। लेखांकन की दृष्टि से भुगतान शेष, सदा संतुलन में रहता है क्योंकि भुगतान शेष लेखा, दोहरी लेखा पद्धति में प्रस्तुत किया जाता है जिसके अनुसार प्राप्ति पक्ष, सदैव भुगतान पक्ष के बराबर रहता है।

दोहरी लेखा प्रणाली-समस्त अंतर्राष्ट्रीय सौदों (लेन-देनों को ‘दोहरी लेखा प्रणाली’ के आधार पर भगतान शेष खाते में रिकॉर्ड किया जाता है। प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय सौदा, बराबर मूल्य की लेनदारी (Credit) और देनदारी (Debit) की प्रविष्टि (Entry) दिखाता है। समस्त अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन, इन तीन प्रवाहों के कारण उत्पन्न होते हैं-(i) वस्तुओं के प्रवाह, (ii) सेवाओं व अन्य अदृश्य मदों के प्रवाह और (iii) पूँजी के प्रवाह। भुगतान शेष लेखा के यही मुख्य घटक हैं। भुगतान शेष खाते के दो पक्ष-लेनदारी पक्ष और देनदारी पक्ष होते हैं। लेखे के लेनदारी पक्ष में वे मदें शामिल की जाती हैं जिनसे विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान प्राप्त होता. है और प्राप्त भुगतान की राशि दिखाई जाती है, इन्हें लेनदारी मदें कहते हैं। देनदारी पक्ष में यह लेखा उन मदों और मदों की राशि को दर्शाता है जिनका विदेशी मुद्रा के रूप में विदेशियों को भुगतान किया जाता है। इन्हें देनदारी मदें कहते हैं।

एक देश के भुगतान शेष का एक काल्पनिक सरल उदाहरण निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है। इसका बायाँ भाग वे सभी स्रोत दिखाता है जिनसे कोई देश विदेशी करेंसी प्राप्त करता है जबकि दायाँ भाग शेष विश्व को भुगतान की गई विदेशी करेंसी का ब्यौरा देता है।
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प्रतिकूल, अनुकूल व संतुलित भुगतान शेष जब देनदारियाँ (भुगतान), लेनदारियों (प्राप्तियों) से अधिक हो जाती हैं तो इसे प्रतिकूल (या घाटे का) भुगतान संतुलन (शेष) कहते हैं। जब देनदारियाँ, लेनदारियों से कम होती हैं तो इसे अनुकूल (या बचत का) भुगतान शेष (संतुलन) कहते हैं। देनदारियाँ और लेनदारियाँ बराबर होने पर भुगतान शेष संतुलित कहलाता है।

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प्रश्न 2.
भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य एवं अदृश्य मदों का अर्थ बताते हुए भुगतान शेष खाते के संघटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते की दृश्य और अदृश्य मदें भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य मदों से अभिप्राय भौतिक वस्तुओं से है जो राष्ट्रीय सीमा को पार (Cross) करती देखी जाती हैं। दृश्य मदों (Visible Items) के उदाहरण हैं-मशीनरी, चाय, चावल, वस्त्रों का आयात-निर्यात जिन्हें आँखों से देखा जा सकता है। भुगतान शेष खाते में दृश्य मदों के आयात-निर्यात के शेष को ‘दृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है। भुगतान शेष की अदृश्य मदें वे मदें हैं जिन्हें राष्ट्रीय सीमा (National Border) पार करते नहीं देखा जाता है। सब प्रकार की सेवाएँ; जैसे जहाज़रानी, बैंकिंग, पर्यटन, सॉफ्टवेयर तथा एक-पक्षीय हस्तांतरण अदृश्य मदें हैं। अदृश्य मदों (Invisible Items) के आयात-निर्यात के शेष (Balance) को ‘अदृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है।

भुगतान शेष खाते के संघटक-भुगतान शेष खाते के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तओं का निर्यात व आयात (दृश्य मदें) विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका वस्तुओं का निर्यात है। विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं का आना-जाना खुले रूप में होता है और सीमा शुल्क अधिकारी इन्हें देखकर प्रमाणित कर सकते हैं। ये दृश्य मदें (Visible Items) कहलाती हैं। ऐसी सभी मदें देश का दृश्य व्यापार (Visible Trade) दर्शाती हैं।

2. सेवाओं का निर्यात व आयात (अदृश्य मदें) इसमें गैर-साधन आय; (जैसे-जहाज़रानी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सॉफ्टवेयर सेवाओं से आय और साधन आय; जैसे ब्याज, लाभांश, लाभ के रूप में विदेशों में हमारी परिसंपत्तियों से आय आदि मदें शामिल की जाती हैं। ध्यान रहे, ब्याज, लाभांश और लाभ जो एक देश के नागरिक विदेशों में निवेश करने पर कमाते हैं, निवेश आय है जिसे साधन आय माना जाता है। ये अदृश्य मदें हैं जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। ऐसी सभी मदें देश का अदृश्य व्यापार (Invisible Trade) दर्शाती हैं।

3. एक-पक्षीय हस्तांतरण या अप्रतिदत्त हस्तांतरण-इसमें वे मदें शामिल की जाती हैं जिनके बदले में प्राप्त करने वाले को कुछ भी नहीं देना पड़ता; जैसे उपहार, प्रेषणाएँ, अनुदान क्षतिपूर्ति आदि। इसमें निजी और सरकारी दोनों प्रकार के हस्तांतरण शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशों से प्राप्त उपहार, अनिवासियों (Emigrants) द्वारा अपने रिश्तेदारों को भेजी गई प्रेषणाएँ और युद्ध में पराजित देश द्वारा क्षतिपूर्ति आदि की प्राप्तियाँ। (नोट-भारत में एक-पक्षीय हस्तांतरणों को अदृश्य व्यापार में शामिल किया जाता है।)

4. पूँजीगत प्राप्तियाँ व भुगतान-इसमें निजी व सरकारी ऋण, सोने के स्टॉक व विदेशी मुद्रा के भंडार में परिवर्तन, परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय, पूँजीगत अनुदान आदि जैसी मदें शामिल की जाती हैं। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सौदे एक देश की शेष विश्व से देनदारियों और परिसंपत्तियों (Liabilities and Assets) को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक देश की सरकार, दूसरे देश की सरकार से ऋण लेती है, एक फर्म विदेश में शेयर्स का निर्गमन करती है या एक बैंक विदेश में ऋण शुरू करता है या एक देश के नागरिक विदेश में भूमि, मकान, प्लांट, आदि के रूप में संपत्तियों का क्रय-विक्रय करते हैं-ये सब पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतान के रूप हैं।

प्रश्न 3.
भगतान शेष में असंतलन के कारण और उसे दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण अनेक कारणों से भुगतान शेष में घाटा (Deficit) या आधिक्य (Surplus) के रूप में असंतुलन पैदा हो जाता है। ध्यान रहे, इस घाटे या आधिक्य का संबंध मुख्यतः भुगतान शेष के चालू खाते से होता है। इन साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है
1. आर्थिक साधन-

  • निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना
  • बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं
  • ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना
  • चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र
  • पूर्ति के नए स्रोतों का विकास
  • नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना
  • उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

2. राजनीतिक साधन अनुभव बताता है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता और दंगों से-

  • देश से बड़े पैमाने पर पूँजी का पलायन होता है
  • विदेशी निवेश रुक जाता है और
  • नए घरेलू उद्योगों की स्थापना धीमी पड़ जाती है।

3. सामाजिक कारण-

  • लोगों के फैशन, अभिरुचियों और प्राथमिकताओं के कारण आयात-निर्यात प्रभावित होते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है
  • गरीब व पिछड़े देशों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से निर्यात घट जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन पैदा हो जाता है।

भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय-भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय निम्नलिखित है-
1. निर्यात बढ़ाना-उद्यमियों और निर्यातकों को भारी आर्थिक सहायता, अनुदान व रियायतें देकर निर्यात संवर्धन (Promote) करना चाहिए और आयात यथासंभव सीमित करना चाहिए।

2. आयात प्रतिस्थापन-आयात की जाने वाली वस्तुओं का स्थान लेने वाली अर्थात् प्रतिस्थापित वस्तुएँ देश के अंदर निर्मित करनी चाहिएँ जिससे आयात कम हो सके।

3. घरेलू करेंसी का अवमूल्यन-जब घरेलू मुद्रा का विदेशी मुद्रा में मूल्य घटाया जाता है तो विदेशियों के लिए हमारी घरेलू वस्तुएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे निर्यात में वृद्धि होती है। ध्यान रहे, घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन सरकार द्वारा होता है जब देश में स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था लागू हो।

4. विनिमय नियंत्रण-सरकार द्वारा सब निर्यातकों (Exporters) को विदेशी मुद्रा (विनिमय) केंद्रीय बैंक में समर्पण (Surrender) करने के आदेश देकर विदेशी विनिमय पर नियंत्रण करना चाहिए। केवल लाइसेंस प्राप्त आयातकों (Importers) को राशन के रूप में विदेशी विनिमय देनी चाहिए।

5. निरंतर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना तेजी या बढ़ती कीमतों से निर्यात कम होता है और आयात बढ़ता है। इसलिए सरकार को न केवल कीमतों में वृद्धि की प्रवृत्ति रोकनी चाहिए, बल्कि कीमतें गिराने के उपाय भी करने चाहिए।

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प्रश्न 4.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था इस व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मद्रा की विनिमय दर को सोने के रूप में या किसी दसरी करेंसी के रूप में घोषित करती है। चूंकि इस दर को लगभग स्थिर रखा जाता है, इसलिए इसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं। इस दर में बहुत मामूली अंतर ही मान्य होता है। यह प्रणाली 1880-1914 तक लागू स्वर्णमान व्यवस्था (Gold Standard System) में अपनाई गई थी जिसके अंतर्गत प्रत्येक देश अपनी मुद्रा का मूल्य सोने के निश्चित भार के रूप में घोषित करता था।

इन घोषित मूल्यों के आधार पर विभिन्न मुद्राओं (करेंसियों) का आपस में विनिमय दर तय हो जाता था, इसे विनिमय की टकसाल मान समता दर (Mint Parity . Value of Exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए, यदि एक रुपए के बदले शुद्ध सोने के 20 ग्राम मिलते हैं तथा एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 ग्राम मिलते हैं तो एक डॉलर 100/20 = 5 रुपए का है। ऐसी स्थिति में एक डॉलर = 5 रुपए की विनिमय दर निश्चित हो जाएगी।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इससे विनिमय दर में स्थायित्व (Stability) आता है जो विदेशी व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • अंतर्निर्भर विश्व अर्थव्यवस्था में, देशों की समष्टि स्तर की आर्थिक नीतियों में यह समन्वय लाने में सहायता करती है।
  • यह प्रणाली सदस्य देशों में गंभीर आर्थिक उथल-पुथल से बचाती है क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती है।
  • यह विश्व व्यापार को बढ़ाने में सहायता करती है, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता नहीं रहती।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा अवमूल्यन का भय-जब माँग अधिक होती है तो केंद्रीय बैंक, स्थिर विनिमय दर बनाए रखने के लिए अपने रिज़र्व का इस्तेमाल करता है, परंतु जब सुरक्षित रखा रिज़र्व भी समाप्त हो जाए और माँग आधिक्य जारी रहे तो सरकार को मजबूर होकर घरेलू मुद्रा के मान में ह्रास करना पड़ता है। यदि सट्टेबाजों ने इसकी माँग और बढ़ा दी तो घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ जाएगा। यही इसका सबसे बड़ा दोष है।

2. कारकों (साधनों) के आबंटन में कठोरता-इस प्रणाली के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में विशेष रूप से कारकों के आबंटन में कठोरता (Rigidity) आती है।

3. पूँजी का सीमित आवागमन-स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने हेतु बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की जरूरत पड़ती है, इस कारण पूँजी का विभिन्न देशों में आवागमन बहुत सीमित (Restricted) हो जाता है।

प्रश्न 5.
नम्य (लचीली) विनिमय दर प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नम्य (लचीली) विनिमय दर व्यवस्था-नम्य (लचीली) विनिमय दर वह दर है जो विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी देश की मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी करेंसी की माँग और पूर्ति में परिवर्तन के अनुसार यह दर बदलती रहती है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप बिलकुल नहीं होता। सामान्य रूप से केंद्रीय बैंक भी दखल नहीं देता। नम्य विनिमय दर एक प्रकार से स्थिर विनिमय दर के बिलकुल विपरीत दूसरे सिरे पर है क्योंकि यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और पूर्ति में उतार-चढ़ाव के फलस्वरूप निरंतर बदलती रहती है। इसीलिए इस दर को नम्य या लचीली विनिमय दर कहते हैं। जैसे समाचार-पत्रों में हम डॉलर और रुपयों में हर रोज़ बदलती हुई विनिमय दर पढ़ते हैं।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • भुगतान शेष में असंतुलन स्वतः दूर हो जाता है।
  • केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार (Reserve) रखने की जरूरत नहीं रहती। अतः भंडार रखने व प्राप्त करने की लागत से बचा जा सकता है।
  • यह व्यापार और पूँजी के आवागमन में आने वाली रुकावटों को दूर करने में सहायक है।
  • इससे अर्थव्यवस्था में संसाधनों का सर्वोत्तम आबंटन होता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  • इस प्रणाली में जोखिम पूँजी को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
  • इस प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की आवश्यकता नहीं होती।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सट्टेबाजी को बढ़ावा देती है जिससे विनिमय दर में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।
  • विनिमय दर में बार-बार उतार-चढ़ाव से विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में रुकावट आती है।
  • भुगतान शेष घाटा पूरा करने के लिए मद्रा अवमूल्यन से कीमतों में निरंतर वृद्धि (मद्रास्फीति) होने लगती है।
  • यह प्रणाली समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करने में कठिनाई उत्पन्न कर देती है।
  • इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्र मुद्रा बाज़ार में, संतुलन (साम्य) विनिमय दर उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग, विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर हो जाए अर्थात् संतुलन विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन द्वारा होता है। वस्तुतः जिस प्रकार किसी वस्तु की कीमत उसकी माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है उसी प्रकार नम्य विदेशी विनिमय दर भी विदेशी मुद्रा (करेंसी) की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। मान लीजिए, दो देश भारत और अमेरिका की करेंसी अर्थात् रुपया और डॉलर की विनिमय दर निर्धारित होनी है। इस समय भारत और अमेरिका दोनों में चलायमान विनिमय दर (Floating Exchange Rate) व्यवस्था है। इसलिए प्रत्येक देश की करेंसी का, दूसरी करेंसी के रूप में मूल्य, दोनों करेंसियों की माँग और पूर्ति पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में संतुलन विनिमय दर के निर्धारण की चर्चा निम्नलिखित तीन भागों माँग, पूर्ति तथा संतुलन-शीर्षकों के अंतर्गत की गई है

(क) विदेशी विनिमय (मुद्रा) की माँग (जैसे अमेरिकी डॉलर)-विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए की जाती है

  • विदेशों से वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदने (आयात करने) के लिए
  • विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  • विदेश में वित्तीय परिसंपत्तियों (अर्थात् बॉण्ड व शेयर) खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यों पर सट्टेबाजी के लिए
  • विदेशों में जाने वाले पर्यटकों की विदेशी विनिमय की माँग पूरी करने के लिए।

विदेशी विनिमय की दर और विदेशी विनिमय की माँग में संबंध-दोनों में विपरीत संबंध (Inverse Relations) हैं अर्थात् कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है और कीमत बढ़ने (महँगा होने) पर विदेशी विनिमय की माँग कम हो जाती है। मान लीजिए विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की कीमत 1 डॉलर = 45 रुपए गिरकर 1 डॉलर = 40 रुपए हो गई है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिकी वस्तुएँ भारत के लोगों के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि 1 डॉलर मूल्य की अमेरिकी वस्तुएँ खरीदने के लिए उन्हें 45 रुपए देने की बजाय 40 रुपए देने होंगे।

फलस्वरूप भारत, अमेरिका से अधिक माल आयात करने लगेगा जिसके लिए अमेरिकी डॉलर की माँग भारत में बढ़ जाएगी। अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) गिरने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 45 रुपए से गिरकर 40 रुपए होने पर), विदेशी विनिमय (यहाँ डॉलर) की माँग बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय की दर बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है। इसी कारण विदेशी मुद्रा का माँग वक्र का आकार बाएँ से दाएँ ऋणात्मक ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर गिरने पर विदेशी मुद्रा की माँग इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि तब विदेशी वस्तुएँ देशीय लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ख) विदेशी विनिमय की पूर्ति (जैसे अमेरिकी डॉलर)-किसी देश (जैसे भारत) में विदेशी विनिमय निम्नलिखित स्रोतों से आती है

  • विदेशियों द्वारा उस देश (जैसे भारत) की वस्तुओं व सेवाओं की खरीद अर्थात् भारत द्वारा निर्यात
  • विदेशी निगमों द्वारा उस देश (भारत) में निवेश
  • विदेशी पर्यटकों का उस देश (भारत) में भ्रमण
  • मुद्रा के व्यापारियों और सट्टेबाजों की गतिविधियाँ
  • विदेश में रहने वालों (भारतीयों) द्वारा प्रेषणाएँ।

विदेशी विनिमय की दर (कीमत) और विदेशी विनिमय की पूर्ति में संबंध दोनों में प्रत्यक्ष संबंध (Direct Relation) हैं अर्थात् कीमत बढ़ने पर विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ जाती है। मान लीजिए कि विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की भारतीय मुद्रा में कीमत 1 डॉलर = 65 रुपए से बढ़कर 1 डॉलर = 67 रुपए हो गई है। इसका अर्थ है कि भारतीय वस्तुएँ अमेरिका के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि अब 1 डॉलर से 65 रुपए की बजाय 67 रुपए की भारतीय वस्तुएँ अर्थात् अधिक वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। फलस्वरूप अमेरिका, भारत से अधिक आयात करने लगेगा जिससे विदेशी विनिमय अर्थात् अमेरिकी डॉलर की पूर्ति भारत में बढ़ जाएगी।

अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) बढ़ने से उसकी पूर्ति बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय दर कम होने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 65 रुपए से गिरकर 63 रुपए होने पर) विदेशी विनिमय की पूर्ति कम हो जाती है। इसीलिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति वक्र का आकार दाईं ओर ऊपर की तरफ ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी मुद्रा की पूर्ति इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि तब देशी वस्तुएँ विदेशियों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ग) विनिमय बाज़ार में संतुलन-संतुलन विनिमय दर, उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग और विदेशी विनिमय की पूर्ति आपस में बराबर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन (Intersection) से संतुलन दर और संतुलन मात्रा का निर्धारण हो जाता है। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपर्युक्त उदाहरण के संदर्भ में डॉलर की रुपयों में कीमत को Y-अक्ष पर दर्शाया गया है जबकि डॉलर की माँग और पूर्ति को X-अक्ष पर दर्शाया गया है। इस रेखाचित्र में माँग वक्र नीचे की ओर ढालू है जो यह दर्शाता है कि ऊँची विनिमय दर होने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की माँग कम होती है। पूर्ति वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ वक्र है जो इस बात का प्रतीक है कि
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विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की पूर्ति बढ़ती जाती है। दोनों वक्र एक-दूसरे को बिंदु E पर प्रतिच्छेदित करते हैं जिसका यह अर्थ है कि OR (QE) विनिमय दर पर माँग और पूर्ति की मात्रा बराबर है (क्योंकि दोनों OQ के बराबर हैं)। अतः संतुलन विनिमय दर OR है और संतुलन विनिमय मात्रा OQ है।

विनिमय दर में परिवर्तन होने पर अमेरिकी डॉलर के लिए भारत की माँग बढ़ने पर माँग वक्र DD ऊपर खिसक कर वक्र D’D’ हो जाएगा। फलस्वरूप विनिमय पर (डॉलर की रुपयों में कीमत) OR से बढ़कर OR, हो जाएगी। इसका अर्थ होगा भारत को प्रत्येक अमेरिकी डॉलर के लिए पहले से अधिक रुपए देने होंगे। इसी को भारतीय रुपए के मान में हास (Depreciation of Indian Currency) कहा जाता है।

इसी प्रकार अमेरिकी डॉलरों की पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र SS नीचे खिसककर S’S’ हो जाएंगा। फलस्वरूप रुपयों में डॉलर की कीमत गिर जाएगी। यह भारतीय रुपए का अधिमूल्यन (Appreciation of Indian Currency) होगा क्योंकि तब एक डॉलर खरीदने के लिए कम रुपए देने होंगे।

प्रश्न 7.
विदेशी विनिमय बाज़ार में हाजिर बाज़ार (Spot Market) और वायदा बाज़ार (Forward Market) के बारे में आप क्या जानते हैं? .
उत्तर:
हाजिर बाज़ार-यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो उसे हाजिर या चालू (Current) बाज़ार कहते हैं। विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार में लागू हो रही विनिमय दर को हाजिर दर (Spot Rate) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हाजिर दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर विदेशी करेंसी तत्काल उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए, यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी समय बिंदु पर एक अमेरिकी डॉलर 65 रुपए में खरीदा जा सकता है तो यह विदेशी मुद्रा (डॉलर) की हाजिर दर होगी। निस्संदेह तुरंत होने वाले सौदों में विदेशी मुद्रा की हाजिर (या तात्कालिक) दर बहुत उपयोगी होती है परंतु हाजिर दर की मात्रा क्या है इसे जानना भी जरूरी होता है।

वायदा बाज़ार-यह विदेशी मुद्रा का वह बाज़ार है जिसमें विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा वर्तमान में हो जाता है, परंतु करेंसी की देयता (Delivery) भविष्य में तयशुदा किसी तिथि पर होती है। दूसरे शब्दों में, भविष्य में विदेशी मुद्रा की देयता का बाज़ार, वायदा बाज़ार कहलाता है। हम जानते हैं कि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन (या सौदे) उसी दिन पूरे नहीं हो जाते, बल्कि जिस दिन सौदों के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर होते हैं उसके कई दिनों बाद वह लेन-देन पूरा होता है। ऐसी स्थिति में भविष्य में होने वाली संभावित विनिमय दर की ओर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। विनिमय की वह दर जो भविष्य की किसी तिथि पर विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर लागू होती है, वायदा दर (Forward Rate) कहलाती है। इस प्रकार वायदा दर वह दर है जिस पर भविष्य में विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा होता है।

भविष्य में सौदा करने के दो उद्देश्य होते हैं-

  • विनिमय दर के बदलने से संभावित जोखिम को कम करना। इसे जोखिम का पूर्वोपाय (Hedging) कहते हैं।
  • सौदे से लाभ कमाना। इसे सट्टेबाजी कहते हैं। स्पष्ट है कि वायदा बाज़ार में वे व्यापारी होते हैं जिन्हें भविष्य में किसी दिन को विदेशी मुद्रा की आवश्यकता (माँग) होगी अथवा उसकी पूर्ति करनी होगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन (Appreciation) और मुद्रा का मूल्यहास (Depreciation)।
(ख) (O NEER, (ii) REER और (iii) RER को परिभाषित कीजिए।
(ग) चलित सीमाबंध (Crawling Peg) व प्रबंधित तरणशीलता (Managed Floating)।
उत्तर:
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन और मुद्रा का मूल्यहास:
1. मुद्रा का अधिमूल्यन-मुद्रा (करेंसी) के अधिमूल्यन से अभिप्राय, अन्य विदेशी करेंसी के मूल्य में कमी से है। दूसरे शब्दों में, मुद्रा अधिमूल्यन तब होता है जब घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत कम हो जाए अर्थात विदेशी मुद्रा के रूप में घरेलू मुद्रा का मूल्य बढ़ जाए। उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 64 रुपए हो जाए तो इसे भारतीय करेंसी (रुपया) का अधिमूल्यन कहा जाएगा, क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए कम (65 रुपए की बजाय 64 रुपए) रुपए देने पड़ेंगे अर्थात् रुपए की क्रय-शक्ति बढ़ गई है। यह भारतीय मुद्रा के प्रबल होने का प्रतीक है। तुलन में, हम यह भी कह सकते हैं कि जब भारतीय रुपए का अमेरिकी डॉलर के रूप में अधिमूल्यन (Appreciation) होता है तो अमेरिकी डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होता है।

2. मुद्रा का मूल्यहास-मुद्रा (करेंसी) के मूल्यह्रास से अभिप्राय, दूसरी विदेशी करेंसी के मूल्य में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, का मूल्यह्रास उस समय होता है जब घरेलू मद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाए उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 66 रुपए हो जाए तो यह भारतीय करेंसी (रुपए) का मूल्यह्रास माना जाएगा क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए अब अधिक रुपए (65 रुपए की बजाए 66 रुपए) देने पड़ेंगे। यह भारतीय रुपए,के दुर्बल होने का प्रतीक है। स्पष्ट है नम्य विनिमय दर व्यवस्था में किसी करेंसी का विनिमय मूल्य, उसकी माँग व पूर्ति में बार-बार परिवर्तन के आधार पर घटता बढ़ता रहता है।

(ख) NEER, REER, RER की परिभाषाएँ:
1. मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (Nominal Effective Exchange Rate-NEER)-किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति या क्षमता का मान (माप), प्रभावी विनिमय दर कहलाता है। चूंकि कीमतों में परिवर्तन के प्रभावों को हम समाप्त नहीं करते, इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (NEER) कहते हैं।

2. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (Real Effective Exchange Rate-REER)-यह ऐसी प्रभावी विनिमय दर है जो मौद्रिक दर की बजाय वास्तविक विनिमय दरों पर आधारित होती है।

3. वास्तविक विनिमय दर (Real Exchange Rate-RER) यह स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है। पुनः यह कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से मुफ्त (स्वतंत्र) होती है।

(ग) चलित सीमाबंध और प्रबंधित तरणशीलता:
1. चलित (परिवर्तनशील) सीमाबंध-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर के बीच का एक समझौता है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार देश अपनी करेंसी का समता मान (Parity Value) नियत करता है और इसके इर्द-गिर्द थोड़ा उतार-चढ़ाव (जैसे समता मान से ± 1%) की इजाजत देता है।

2. प्रबंधित तरणशीलता-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य (लचीली) विनिमय दर के प्रबंध की अंतिम संकर प्रजाति या मिश्रण है जो सरकार द्वारा प्रबंधित या नियंत्रित होती है। इसे प्रबंधित तरणशीलता कहते हैं, परंतु यह नियत दर समय-समय पर जरूरत के अनुसार मौद्रिक अधिकारी द्वारा संशोधित की जाती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब व्यापार शेष 400 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 300 करोड़ रुपए का है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
400 करोड़ रुपए = 300 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 300 करोड़ रुपए – 400 करोड़ रुपए
अतः
आयात का मूल्य = (-) 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
जब व्यापार शेष 500 करोड़ रुपए है और आयात का मूल्य 300 करोड़ रुपए है, तो निर्यात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
500 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य – 300 करोड़ रुपए
500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
800 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
अतः निर्यात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
जब व्यापार शेष (-) 400 करोड़ रुपए हो और निर्यातों का मूल्य 300 करोड़ रुपए हो, तो आयातों के मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = (-) 400 करोड़ रुपए
निर्यातों का मूल्य = 300 करोड़ रुपए
आयातों का मूल्य = 300 + 400
अतः आयातों का मूल्य = 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
व्यापार शेष (-) 300 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
(-) 300 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
जब व्यापार शेष में घाटा 800 करोड़ रुपए का है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
– 800 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 800 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 1300 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) और समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) में अग्रलिखित अंतर हैं-

व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र
1. इसमें व्यक्तिगत इकाई के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है; जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म (उत्पादक) आदि। 1. इसमें बड़े आर्थिक समूहों का अध्ययन व अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया जाता है; जैसे समग्र माँग, समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय।
2. यह अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की मान्यता पर आधारित है। 2. यह अर्थव्यवस्था में संसाधनों के अपूर्ण व अल्प रोज़गार पर आधारित है।
3. इसकी मुख्य समस्या कीमत निर्धारण है, इसलिए इसे ‘कीमत सिद्धांत’ भी कहा जाता है। 3. इसकी मुख्य समस्या आय व रोज़गार का निर्धारण है। इसलिए इसे ‘आय व रोज़गार का सिद्धांत’ भी कहते हैं।
4. इसका उद्देश्य संसाधनों के सर्वोत्तम आबंटन से होता है। 4. इसका उद्देश्य संसाधनों के पूर्ण रोज़गार व विकास से होता है।
5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ की मान्यता के अनुसार सिद्धांत बनाए जाते हैं। अध्ययन को केवल महत्त्वपूर्ण तत्त्वों तक सीमित रखने के कारण इसे आंशिक संतुलन विधि कहा जाता है। 5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ जैसी कोई मान्यता तो नहीं है परंतु आर्थिक तत्त्वों के सभी समूहों की परस्पर निर्भरता जानने के कारण इसे सामान्य संतुलन विधि कहा जाता है।
6. इसमें कीमत आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है। 6. इसमें आय आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है।

प्रश्न 2.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें आर्थिक क्रियाकलापों से संबंधित निम्नलिखित (विशेषताएँ) लक्षण पाए जाते हैं-

  1. उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है।
  2. बाज़ार में निर्गत को बेचने के लिए ही उत्पादन किया जाता है।
  3. श्रमिकों की सेवाओं का क्रय-विक्रय एक निश्चित कीमत पर होता है, जिसे मज़दूरी की दर कहते हैं।
  4. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण न होकर निजी लाभ होता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित चार प्रमुख क्षेत्रक हैं-
1. पारिवारिक क्षेत्रक-परिवार से अभिप्राय एकल व्यक्तिगत उपभोक्ता अथवा कई व्यक्तियों के समूह से है जो अपने उपभोग संबंधित निर्णय अकेले अथवा संयुक्त रूप से लेते हैं। परिवार बचत भी करते हैं और सरकार को कर (Tax) का भुगतान भी करते हैं।

2. व्यापारिक क्षेत्रक-व्यापारिक क्षेत्र से अभिप्राय उत्पादन इकाइयों अथवा फर्मों से है। किसी फर्म के कारोबार के संचालन का दायित्व उद्यमियों पर होता है। उद्यमी ही श्रम, भूमि तथा पूँजी जैसे उत्पादन कारकों को नियोजित कर उत्पादन प्रक्रिया का संचालन करता है। उनका उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर (जिसे निर्गत कहा जाता है) बाज़ार में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बेचना है। इस प्रक्रिया में उसे जोखिम एवं अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।

3. सरकार-अर्थव्यवस्था में सरकार भी अनेक उत्पादन कार्य करती है। कर लगाने और सार्वजनिक आधारभूत संरचना के निर्माण पर व्यय करने के अतिरिक्त स्कूल, कॉलेज भी चलाए जाते हैं और स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

4. बाह्य क्षेत्रक-विश्व के अन्य देशों से व्यापार करना, आयात-निर्यात करना अथवा विभिन्न देशों के बीच पूँजी प्रवाह होना।

प्रश्न 4.
1929 की महामंदी का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों (Classical Economists) की विचारधारा प्रचलित व मान्य थी कि “पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।” परंत 1929-33 की Depression) की घटना ने परंपरावादी मान्यता को चूर-चूर कर दिया। मंदी के कारण अमरीका औ आय व रोज़गार में भारी गिरावट आई। इसका प्रभाव दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ा। बाज़ार में वस्तुओं की माँग कम थी और कई कारखाने बेकार पड़े थे। श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया था। संयुक्त राज्य अमरीका में 1929 से 1933 तक बेरोजगारी की दर 3 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई थीं। इस अवधि के दौरान अमरीका में समस्त उत्पादन में 33 प्रतिशत की गिरावट आई।

परंपरावादी अर्थशास्त्री उत्पादन, आय व रोज़गार में आई इस भारी गिरावट का जवाब नहीं दे सकें। मंदी की ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया। तभी सन् 1936 ई० में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केञ्ज ने अपनी पुस्तक ‘रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत’ (The General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने परंपरावादी सिद्धांत की आलोचना करते हुए एक नया वैकल्पिक सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसे केज का सिद्धांत या समष्टि सिद्धांत कहते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद आर्थिक चिंतन में भारी क्रांति आई, जिसे केजीयन (Keynesian) क्रांति कहते हैं। केज के सिद्धांत को आधुनिक समष्टि स्तर पर चिंतन का आरंभिक बिंदु माना जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय HBSE 12th Class Economics Notes

→ समष्टि अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसमें हम समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, कुल आय अथवा राष्ट्रीय आय, कुल रोज़गार, सामान्य कीमत स्तर आदि तत्त्वों का अध्ययन करते हैं।

→ समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव (प्रादुर्भाव)-समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव 1930 के दशक में 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी के कटु अनुभव के उपरांत हुआ जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति को स्वतः ही बनाए रखने के लिए परंपरावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाए गए समाधान असफल सिद्ध हुए। केजीयन विचारधारा का विकास भी इसी समय हुआ।

→ समष्टिगत आर्थिक चर-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बड़े भागों और औसतों का अध्ययन किया जाता है; जैसे समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, सामान्य कीमत स्तर, सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा आय।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

→ व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र परस्पर प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक हैं व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे के प्रतियोगी न होकर पूरक हैं। एक का ज्ञान दूसरे के अध्ययन के लिए जरूरी है। अनेक बार व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण के लिए समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत आय कुल राष्ट्रीय आय पर निर्भर करती है, जबकि कुल राष्ट्रीय आय व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों और उद्योगों की आय का जोड़ होती है।

→ समष्टि आर्थिक विरोधाभास-समष्टि आर्थिक विरोधाभास से अभिप्राय है कि जो बात व्यक्तिगत स्तर पर सही है, आवश्यक नहीं है कि वह समष्टिगत स्तर पर भी सही हो।

→ केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा पूर्ण रोज़गार की स्थिति को अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति नहीं मानती। इसके अनुसार बेरोज़गारी और मंदी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

→ परंपरावादी विचारधारा-परंपरावादी विचारधारा स्वतंत्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति को एक सामान्य स्थिति मानती है, जोकि अर्थव्यवस्था में स्वचालित (स्वयंमेव) सामंजस्य के परिणामस्वरूप स्वतः ही बनी रहती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

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Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. संतुलन कीमत उस कीमत को कहते हैं जिस पर-
(A) क्रेता वस्तु को खरीदने के लिए तैयार है
(B) विक्रेता वस्तु को बेचने के लिए तैयार है
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है
(D) वस्तु की कीमत वस्तु की उपयोगिता के बराबर होती है
उत्तर:
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है

2. पूर्ति के स्थिर रहने तथा माँग के कम होने पर कीमत
(A) बढ़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) कम होती है

3. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत-
(A) बड़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(A) बढ़ती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

4. जब माँग और पूर्ति एक साथ बढ़ती है परंतु माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में होने वाली वृद्धि से अधिक होती है तो कीमत
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

5. जब माँग और पूर्ति में बराबर वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा-
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

6. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत
(A) बढ़ती है
(B) कम होती है
(C) स्थिर रहती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) स्थिर रहती है

7. जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो तथा माँग में वृद्धि हो तो संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होगा?
(A) समान रहेगी
(B) घटेगी
(C) बढ़ेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

8. पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर माँग में वृद्धि होने से संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) समान रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

9. माँग पूर्णतया बेलोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समान रहेगी

10. माँग पूर्णतया लोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) समान रहेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

11. बाजार कीमत का निर्धारण किया जाता है
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(B) अति-अल्पकाल में

12. संतुलन कीमत से कम, कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है

13. संतुलन कीमत से अधिक, कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है।

14. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कहा जाता है-
(A) समर्थन मूल्य
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत
(C) न्यूनतम निर्धारित कीमत
(D) उचित कीमत
उत्तर:
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत

15. अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का वस्तु की कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है
(B) कीमत और विनिमय मात्रा समान रहती है
(C) कीमत और विनिमय मात्रा में कमी होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है

16. किसी अव्यवहार्य (Non-viable) उद्योग का पूर्ति वक्र माँग वक्र की तुलना में कहाँ स्थित होता है?
(A) पूर्ति वक्र माँग वक्र के नीचे होता है
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है
(C) पूर्ति वक्र माँग वक्र को प्रतिच्छेदित करता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ति के स्थिर तथा माँग के कम होने पर कीमत …………… होती है। (कम/अधिक)
उत्तर:
कम

2. माँग के …………. होने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है। (स्थिर/परिवर्तित)
उत्तर:
स्थिर

3. जब माँग और पूर्ति में …………. वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा बढ़ती है। (समान/असमान)
उत्तर:
समान

4. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत ………….. रहती है। (परिवर्तित स्थिर)
उत्तर:
स्थिर

5. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे ………….. निर्धारित कीमत कहा जाता है। (न्यूनतम/उच्चतम)
उत्तर:
उच्चतम

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

6. वस्तु की वह मात्रा जिसे संतुलन कीमत पर बेचा और खरीदा जाता है, वह …………. कहलाती है। (संतुलन मात्रा पूर्ति मात्रा)
उत्तर:
संतुलन मात्रा

7. फर्म उस समय संतुलन में होता है, जब उसे अधिकतम ………….. प्राप्त होता होती है। (लाभ/हानि)
उत्तर:
लाभ

8. बिक्री कर लगाना और आर्थिक सहायता देना ………… बाज़ार व्यवस्था के उदाहरण हैं। (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष)
उत्तर:
अप्रत्यक्ष

9. संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से …………… की स्थिति उत्पन्न होती है। (अधिपूर्ति/न्यूनपूर्ति)
उत्तर:
अधिपूर्ति

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. पूर्ण बाज़ार में विक्रेता कीमत-स्वीकारक नहीं होता।
  2. पूर्ण बाज़ार में विक्रय लागतों का महत्त्व होता है।
  3. बाज़ार कीमत वह कीमत है जिसकी बाज़ार में प्रचलित होने की प्रवृत्ति होती है।
  4. समर्थन मूल्य संतुलन कीमत से अधिक होता है।
  5. पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में शुद्ध प्रतियोगिता अधिक वास्तविक होती है।
  6. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तुएँ समरूप होती हैं।
  7. पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत को प्रभावित करती है।
  8. पूर्ण प्रतियोगिता उस समय तक नहीं पाई जाती जब तक बाज़ार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश नहीं होता।
  9. अल्पकाल में वस्तु की कीमत पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  10. सामान्य कीमत का संबंध अल्पकाल से होता है।
  11. पूर्ति तथा स्टॉक में अंतर होता है।
  12. अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का अलग बाज़ार होता है।
  13. एकाधिकार में अन्य बाज़ारों की अपेक्षा कीमत कम व उत्पादन अधिक होता है।
  14. एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न नहीं होती।
  15. द्वि-अधिकार में दो क्रेता होते हैं।
  16. अल्पाधिकार में अनेक विक्रेता होते हैं।
  17. एकाधिकार में एक नई फर्म का बाज़ार में प्रवेश हो सकता है।
  18. यदि किसी वस्तु की माँग बढ़ती है, अन्य बातें समान रहने पर उसकी कीमत कम होती है।
  19. दीर्घकाल में एक वस्तु की कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है।
  20. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. गलत
  8. सही
  9. गलत
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. गलत
  15. गलत
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन से अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति का अभाव हो।

प्रश्न 2.
उन दो कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर संतुलन कीमत निर्भर करती है।
उत्तर:

  • वस्तु की बाज़ार माँग।
  • वस्तु की बाज़ार पूर्ति।

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत के निर्धारण में किस बाज़ार शक्ति, माँग तथा पूर्ति, का अधिक योगदान होता है?
उत्तर:
संतुलन कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति का बराबर योगदान होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ माँग और पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
उपभोग में प्रतिस्थापक (Substitute) वस्तु की कीमत में वृद्धि का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से संतुलन कीमत में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि इस वस्तु की माँग बढ़ जाएगी।

प्रश्न 5.
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा दोनों में वृद्धि होगी।

प्रश्न 6.
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा में कमी आती है।

प्रश्न 7.
कीमत नियंत्रण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण से अभिप्राय यह है कि सरकार ने कुछ वस्तुओं की कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारित कर दी है।

प्रश्न 8.
कीमत नियंत्रण का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना होता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रित कीमत और संतुलन कीमत में क्या संबंध है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हित की रक्षा के लिए सरकार नियंत्रित कीमत को संतुलन कीमत से कम रखती है।

प्रश्न 10.
नियंत्रित कीमत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार द्वारा वस्तु की संतुलन कीमत से कम निर्धारित कीमत, नियंत्रित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 11.
सरकार किन दो रूपों में कीमत नियंत्रित करती है?
उत्तर:
सरकार अधिकतम कीमत तथा न्यूनतम कीमत निर्धारित करके कीमत नियंत्रित करती है।

प्रश्न 12.
उच्चतम कीमत सीमा (Price Ceiling) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कीमत की उच्चतम सीमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
न्यूनतम (समर्थन) कीमत क्या है?
उत्तर:
न्यूनतम (समर्थन) कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जो सरकार द्वारा प्रचलित कीमत से अधिक निर्धारित की जाती है और उस कीमत पर सरकार वस्तुओं का क्रय करती है अर्थात् संतुलन कीमत से अधिक निर्धारित कीमत समर्थन कीमत कहलाती है।

प्रश्न 14.
राशनिंग से आप क्या समझते हैं? उत्तर:राशनिंग का अर्थ एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपभोग या क्रय की उच्चतम सीमा का निर्धारण करना है। प्रश्न 15. ‘कालाबाजारी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कालाबाजारी का अर्थ किसी वस्तु को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना है।

प्रश्न 16.
मज़दूरी दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मज़दूरी दर का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति बराबर हो।

प्रश्न 17.
वस्तु की माँग और श्रम की माँग में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु की माँग उपभोक्ता द्वारा की जाती है और श्रम की माँग उत्पादक द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 18.
वस्तु के पूर्ति वक्र और श्रम के पूर्ति वक्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रवणता नीचे से ऊपर होती है जबकि श्रम के पूर्ति वक्र की प्रवणता एक सीमा के बाद पीछे की ओर मुड़ी हुई होती है।

प्रश्न 19.
किसी उद्योग के व्यवहार्य (अर्थक्षेम) (Viable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवहार्य या अर्थक्षेम उद्योग वह होता है जिसके माँग वक्र और पूर्ति वक्र उत्पादन के धनात्मक स्तर पर परस्पर काटते हैं।

प्रश्न 20.
‘बाज़ार’ (Market) अवधारणा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जिसमें वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

प्रश्न 21.
बाज़ार व्यवस्था के मुख्य तत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. पदार्थ या सेवा का उपलब्ध होना
  2. क्षेत्र, जहाँ वस्तु का लेन-देन हो
  3. क्रेता व विक्रेता का विद्यमान होना
  4. क्रेताओं व विक्रेताओं में संपर्क होना है। ध्यान रहे क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच संपर्क (प्रतिस्पर्धा) आमने-सामने होने के अतिरिक्त डाक-तार या टेलीफोन से भी हो सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए (क) पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत संप्राप्ति (MR), औसत संप्राप्ति (AR) के बराबर क्यों होते हैं? (ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा X-अक्ष के समानांतर क्यों होते हैं?
उत्तर:
(क) पूर्ण प्रतियोगिता में AR, MR के बराबर (AR=MR) होने का कारण यह है कि उद्योग कीमत निर्धारित करता है और फर्म इसे स्वीकार करती है। स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म जितनी भी इकाइयाँ बेचेगी, उसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से आगम (अर्थात् MR) उस कीमत (अर्थात् AR) के बराबर मिलेगा। फलस्वरूप MR औसत आगम (AR) के बराबर होगा, क्योंकि कीमत और A=R सदा समान होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में MR, AR व कीमत बराबर होते हैं अर्थात् MR = AR = कीमत।

(ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा (वक्र) एक समतल सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) होती है जो X-अक्ष के समानांतर होती है। इसका कारण यह है कि MR और AR बराबर होते हैं। MR,AR के बराबर इसलिए होता है क्योंकि फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर ही वस्तु बेच सकती है। MR,AR और कीमत बराबर होने के फलस्वरूप उनका वक्र एक ही बनता है जो X-अक्ष के समानांतर होता है। चूंकि AR कीमत के बराबर होता है, इसलिए AR वक्र को कीमत रेखा भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों की सहायता से बाज़ार संतुलन का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र भी बनाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा नहीं, बल्कि उद्योग द्वारा वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति की शक्तियों द्वारा किया जाता है। बाज़ार में एक वस्तु की कीमत सामान्यतः वस्तु की माँग और पूर्ति शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। जिस कीमत पर वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति के बराबर होती है, वह बाज़ार कीमत निर्धारित होती है। इसे हम सारणी व रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं

गेहूँ की कीमत (रुपए) गेहूँ की माँग (क्विंटल) गेहूँ की पूर्ति (क्विंटल)
900 80 25
1000 70 40
1100 50 50
1200 30 70
1300 15 90

उपर्युक्त सारणी में गेहूँ की बाज़ार कीमत 1100 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि रेखाचित्र में बाज़ार की कीमत OP है। क्योंकि इस कीमत पर वस्तु की माँग (50 क्विंटल) वस्तु की बाज़ार पूर्ति (50 क्विंटल) बराबर है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत या साम्य कीमत (Equilibrium Price) तथा बाज़ार संतुलन (Market Equilibrium) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संतुलन कीमत-वह कीमत जिस पर वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती है, संतुलन कीमत कहलाती है और माँग व पूर्ति की मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। जिस निश्चित बिंदु पर माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं उसे संतुलन बिंदु कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
बाज़ार संतुलन-बाज़ार संतुलन तब होता है जब वस्तु की माँगी गई मात्रा और पूर्ति की मात्रा बराबर होती है। ऐसी अवस्था में न तो आधिक्य माँग होती है और न ही आधिक्य पूर्ति होती है अर्थात् बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति में पूर्ण संतुलन होता है। बाजार कीमत वह कीमत है जिस पर बाज़ार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। यह संतुलन कीमत से कम या अधिक हो सकती है।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा
(i) जब पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ उसी अनुपात में माँग में भी वृद्धि हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं। (ii) जब माँग पूर्णतया लोचदार हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2

प्रश्न 5.
रेखाचित्र की सहायता से संतुलन कीमत और मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाइए जब-
(i) माँग पूर्णतया लोचदार है और पर्ति घटती है।
(ii) पूर्ति पूर्णतया लोचदार है और माँग बढ़ती है।
उत्तर:
(i) जब माँग पूर्णतया लोचदार है और पूर्ति घटती है तो कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अग्रांकित रेखाचित्र में पूर्ति घटने के पश्चात् भी कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है लेकिन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती हैं। जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) यदि पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार है और माँग बढ़ती है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होती है लेकिन वस्तु की मात्रा पूर्ववत् रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र में माँग बढ़ने पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है लेकिन वस्तु की मात्रा OQ ही बनी रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 3

प्रश्न 6.
बाज़ार कीमत और विनिमय मात्रा पर क्या प्रभाव होगा, जब (i) माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए। (i) माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए। (ii) माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो जाए।
उत्तर:
(i) जब माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए तो बाज़ार कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा भी बढ़ जाएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो गई है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) जब माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए तो संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विनिमय मात्रा में वृद्धि होगी जैसाकि रेखाचित्र (ii) में कीमत OP रहती है लेकिन विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(iii) जब माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो तो बाज़ार कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन विनिमय मात्रा में कमी आएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP ही रहेगी परंतु विनिमय मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाएगी। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (iii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की संतुलन कीमत व मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के दायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि से उस वस्तु का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत में कमी और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती है। जब पूर्ति वक्र खिसकर S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP1 है जो पूर्व संतुलन कीमत से कम है लेकिन संतुलन मात्रा OQ1 है जो पूर्व संतुलन मात्रा से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 8.
जब किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी होती है जो उस वस्तु की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? एक रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के माँग वक्र के बायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी से उस वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है जिससे उस वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा भी कम हो जाती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में DD वस्तु का प्रारंभिक मॉग वक्र है जो वस्तु के पूर्ति वक्र SS को E बिंदु परं काटता है जिसके फलस्वरूप OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग वक्र के दायीं ओर खिसकने से माँग वक्र D1D1 हो जाता है जो पूर्व पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत OP से कम होकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 9.
एक वस्तु की पूर्ति में कमी का उसकी संतुलन कीमत और मात्रा वस्तु की मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
एक वस्तु की पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने का अर्थ है कि वस्तु की पूर्ति में कमी हुई है। एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उस वस्तु की संतुलन कीमत और मात्रा पर जो प्रभाव पड़ेगा उसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7a
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है जो माँग वक्र DD को बिंदु E पर काटता है जिससे OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति वक्र SS के बाईं ओर खिसकने से पूर्ति वक्र SS1 हो जाता है जो माँग वक्र को E1 पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार एक वस्तु की पूर्ति में कमी से संतुलन कीमत में वृद्धि होगी और संतुलन मात्रा में कमी होगी।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार का अर्थ-पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें असंख्य क्रेता और विक्रेता स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हैं और वस्तु एक-समान कीमत पर बाज़ार में बिकती है। वस्तुएँ समरूप (Homogeneous) होती हैं। उद्योग वस्तु की कीमत निर्धारित (Price Maker) करता है और फर्म कीमत स्वीकार (Price taker) करती है। क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान होता है और बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश या बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं व विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता दोनों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी अकेली फर्म या व्यक्ति अपने व्यक्तिगत व्यवहार से प्रचलित कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विक्रेता और क्रेता बाज़ार में वस्तु की कुल पूर्ति/माँग का बहुत थोड़ा अंश बेचता या खरीदता है।

2. समरूप वस्तुएँ विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ, गुण, रंग, रूप तथा आकार में समरूप होती हैं। वस्तु (उत्पाद) एक समान या समरूप होने के कारण कोई भी विक्रेता किसी वस्तु की कीमत अधिक वसूल नहीं कर सकता अन्यथा वह ग्राहक खो बैठेगा। इसी प्रकार कोई क्रेता किसी विशेष फर्म द्वारा बनाई वस्तु को प्राथमिकता नहीं दे सकता, क्योंकि वस्तु की इकाइयाँ हर दृष्टि से एक-समान होती हैं और उनमें भेद करना कठिन होता है।

3. निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन-पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को उद्योग में आने और छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। यदि फर्म को किसी उद्योग के अंतर्गत असामान्य लाभ दिखाई देता है और फर्म उद्योग में आना चाहे तो आ सकती है और यदि हानि दिखाई दे तो फर्म उद्योग को छोड़कर जा सकती है। इसलिए सब फर्मे केवल सामान्य लाभ कमा सकती हैं।

4. परिवहन लागत का अभाव कीमत की समानता के लिए जरूरी है कि परिवहन लागत स्थिर होनी चाहिए। कीमत की समानता के लिए यह मान लिया जाता है कि वस्तु को लाने व ले जाने में परिवहन व्यय नहीं होता। गुण, आकार तथा रूप में वस्तु एक जैसी होने के कारण इसके विज्ञापन पर विक्रेता को व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।

5. पूर्ण ज्ञान-क्रेताओं और विक्रेताओं को कीमत संबंधी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। क्रेताओं को मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु की क्या कीमत है और विक्रेताओं को भी मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु किस कीमत पर बिक रही है। इसलिए यदि दोनों को कीमत की पूर्ण जानकारी होगी तो विक्रेता क्रेता से वस्तु की अधिक कीमत नहीं ले सकेगा।

6. पूर्ण गतिशीलता यहाँ उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ण गतिशीलता होती है अर्थात् वे मनपसंद धंधे में आ-जा सकते हैं। इसी प्रकार वस्तुओं को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब अर्थव्यवस्था में साधनों और वस्तुओं की पूरी गतिशीलता होगी तो बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत होगी।

7. समान कीमत–पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में वस्तु की कीमत समान होगी, क्योंकि कीमत उद्योग की समस्त माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है जिसे प्रत्येक फर्म स्वीकार करती है।

8. माँग (AR) वक्र माँग वक्र पूर्ण लोचशील और X-अक्ष के समानांतर होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत निर्धारित करता (Price Maker) है और फर्म कीमत स्वीकार करती (Price Taker) है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत-निर्धारक व फर्म कीमत-स्वीकारक होती है-
1. उद्योग और फर्म में अंतर-मोटे रूप में किसी वस्तु विशेष के क्रेताओं और विक्रेताओं के समूह को उस वस्तु का उद्योग कहते हैं और उद्योग में व्यक्तिगत उत्पादन इकाई को फर्म कहते हैं। परंतु यहाँ उद्योग का अभिप्राय उन फर्मों के समूह से है जो एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं; जैसे जूतों के सभी उत्पादकों के समूह को जूता उद्योग (Shoe Industry) और कपड़ा बनाने वाली सभी मिलों के समूह को कपड़ा उद्योग कहेंगे।

2. कीमत निर्धारण में उद्योग व फर्म की भूमिका पूर्ण प्रतियोगिता में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण समस्त उद्योग की माँग व पूर्ति द्वारा होता है। यहाँ वस्तु की कीमत का निर्धारण किसी एक उत्पादक (या फम) द्वारा नहीं होता, बल्कि उस उद्योग की सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति द्वारा होता है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत प्रत्येक फर्म को स्वीकार करनी पड़ती है। फर्म को केवल इतनी छूट है कि इस दी हुई कीमत पर जितना चाहे बेच सकती है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को कीमत-निर्धारक और फर्म को कीमत-स्वीकारक कहा जाता है।

3. कीमत का निर्धारण–पूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग की कुल माँग व कुल पूर्ति के संतुलन पर होता है। इसे उद्योग की संतुलन कीमत भी कहते हैं। इसे अग्रांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7
दी गई तालिका व रेखाचित्र से स्पष्ट है कि इस उद्योग में माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत 6 रुपए प्रति इकाई होगी, क्योंकि इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर हैं अर्थात् 60-60 इकाइयाँ हैं। उद्योग द्वारा निर्धारित इस कीमत को प्रत्येक फर्म स्वीकार करेगी। यदि कोई फर्म इस कीमत से अधिक लेने का प्रयत्न करेगी तो उसकी वस्तु कोई नहीं खरीदेगा। यदि वह कम लेगी तो हानि सहन करेगी। अतः कीमत 6 रुपए ही रहेगी चाहे कोई फर्म इस कीमत पर कम बेचे या अधिक बेचे, उद्योग में रहे या उद्योग छोड़कर चली जाए।

प्रश्न 3.
एक वस्तु की एक दी हुई कीमत पर ‘माँग आधिक्य’ है। क्या यह कीमत एक संतुलन कीमत है? यदि नहीं, तो संतुलन कीमत कैसे स्थापित होगी? (रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य का अर्थ यह है कि वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति से अधिक है। ऐसी कीमत संतुलन कीमत नहीं हो सकती। संतुलन कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जिस पर वस्तु की माँग उसकी पूर्ति के बराबर होती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 8
यदि एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य है तो संतुलन कीमत पर निम्नलिखित विकल्पों द्वारा पहुँचा जा सकता है-
(i) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उत्पादकों को माँग आधिक्य को दूर करने के लिए उसी कीमत पर अधिक पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र (i) में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप AB (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए पूर्ति वक्र को SS से S1S1 तक खिसकाना होगा अर्थात् पूर्ति में वृद्धि करनी होगी ताकि OP कीमत बन जाए। B बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ1 होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 9

(ii) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उपभोक्ताओं को माँग में कमी करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा, जिससे माँग वक्र बाईं ओर खिसक आए। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप EE1 (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए माँग वक्र को DD से D1D1 तक खिसकाना होगा अर्थात् माँग में कमी करनी होगी ताकि OP कीमत पर ही संतुलन कीमत बन जाए। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ होगी।

प्रश्न 4.
एक वस्तु की माँग में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग में वृद्धि से माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 10
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 5.
एक वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति में वृद्धि से पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत गिर जाती है और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 11

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक पूर्ति SS है जो माँग वक्र DD को E बिंद पर काटता है। यहाँ संतलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब पूर्ति वक्र SS से बढ़कर S1S1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 6.
एक वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति दोनों में एक साथ वृद्धि से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं? समझाइए।
उत्तर:
माँग और पूर्ति में एक साथ वृद्धि का प्रभाव हम जानते हैं कि माँग और पूर्ति में वृद्धि होने के कारण वस्तु की संतुलित मात्रा में अवश्य वृद्धि होती है। परंतु कीमत में कोई परिवर्तन होगा या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि माँग व पूर्ति में बराबर की वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में अधिक वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में कम वृद्धि होती है। अतः पूर्ति में एक साथ परिवर्तन से संतुलन कीमत पर प्रभाव के संबंध में तीन स्थितियाँ हो सकती हैं। इन्हें निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 12
रेखाचित्र (i) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति की वृद्धि के बराबर है ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह OP1 रहती है। केवल संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग और पूर्ति में समान वृद्धि होती है तो संतलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। परंत संतलन मात्रा में परिवर्तन होता है अर्थात यह बढ़ जाती है।

रेखाचित्र (ii) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 से अधिक होती है। संतुलन मात्रा भी OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है।

रेखाचित्र (iii) में पूर्ति में होने वाली वृद्धि माँग में होने वाली वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 की तुलना में कम होगी और संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 होगी। अतः जब पूर्ति में वृद्धि माँग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की पूर्ति (1) पूर्णतया लोचदार व (ii) पूर्णतया बेलोचदार हो तो उसकी माँग में वृद्धि और कमी से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है? (रेखाचित्र बनाइए)
उत्तर:
(i) जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो-यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो, तो माँग में होने वाली वृद्धि या कमी का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, केवल वस्तु की मात्रा पर ही प्रभाव पड़ता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 13
रेखाचित्र में DD माँग वक्र और SS पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र हैं। दोनों एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं। OP संतुलन कीमत तथा OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग में वृद्धि होने पर माँग वक्र ऊपर खिसककर D1D1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 होगा। संतुलन कीमत तो OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसके विपरीत माँग में कमी होने पर माँग वक्र नीचे की ओर D2D2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 होगा। संतुलन कीमत OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा कम होकर OQ2 हो जाती है।

(ii) जब पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार हो-वस्तु की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर कीमत और माँग का प्रत्यक्ष संबंध हो जाता है अर्थात् माँग में वृद्धि से कीमत बढ़ जाती है और माँग में कमी से कीमत कम हो जाती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 14

रेखाचित्र में SS पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति वक्र है जिसका अभिप्राय है कि मूल्य में परिवर्तन होने पर पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन नहीं होता। आरंभ में DD माँग वक्र E पर काटता है। OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो पूर्ति की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। कीमत बढ़कर OP1 और इसी प्रकार माँग के कम होने पर कीमत कम होकर OP2 हो जाती है।

प्रश्न 8.
पूर्ति की स्थिति परिवर्तन (Supply Shift) के कारण समझाइए और संतुलन कीमत व विनिमय मात्रा पर उनके प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति में स्थिति-परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जिनके संतुलन कीमत और विनिमय मात्रा का प्रभाव नीचे स्पष्ट किया गया है
1. साधन आदानों की कीमतों में परिवर्तन-साधन आदानों की कीमतों (लगान, मज़दूरी, ब्याज आदि) में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादन में कमी आती है जिससे पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत साधन आदान की कीमत गिरने से पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

2. तकनीकी प्रगति-चूँकि यह उत्पादन लागत घटाती है इसलिए तकनीकी प्रगति, पूर्ति वक्र को दाहिनी ओर खिसका देती है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है। किंतु उत्पादन की घटिया एवं पुरानी तकनीकों को अपनाने से पूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

3. उत्पादन में संबंधित वस्तु की कीमत में वृद्धि उत्पादन में प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से वस्तु विशेष का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है (क्योंकि उत्पादक अब प्रतिस्थापक वस्तु का उत्पादन करना लाभदायक समझता है।)

प्रभाव-दी. की कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा कम हो जाएगी। परिणाम तब विपरीत होता है जब प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत गिर जाती है तो दी हुई वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है, दी हुई वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

4. उत्पादन शुल्क में परिवर्तन वस्तु के उत्पादन पर, उत्पादन शुल्क में वृद्धि होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत उत्पादन शुल्क की दर कम होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथ विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

5. बाज़ार में फर्मों की संख्या फर्मों की संख्या बढ़ने पर पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत (प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण) कम हो जाएगी तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाएगी। प्रभाव इसके विपरीत होते हैं जब बाज़ार में फर्मों की संख्या कम हो जाती है।

6. अन्य कारक हैं मौसम की दशा में परिवर्तन (जैसे बाढ़, सूखा आदि), उत्पादकों के लक्ष्यों में परिवर्तन, भविष्य में कीमतों में परिवर्तन की आशा तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता आदि।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
X-वस्तु के बाज़ार में 20,000 समरूप क्रेता है। प्रत्येक का माँग फलन Qx = 12 – 2 Px है। दूसरी ओर वस्तु के 2,000 समरूप विक्रेता हैं, प्रत्येक का आपूर्ति फलन Q1 = 20 Px दिया हुआ है। संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग फलन = 20,000 (12 – 2Px)
आपूर्ति फलन = 2,000 (20 Px)
जैसाकि हमें विदित है कि संतुलन की स्थिति में मांगी गई मात्रा (Qx) आपूर्ति की मात्रा (Sx) के बराबर होती है। अतः संतुलन स्तर पर
20,000 (12 – 2Px) = 2,000 (20 Px)
2,40,000 – 40,000 Px = 40,000 Px
2,40,000 = 80,000 Px
Px = 3
अर्थात् संतुलन कीमत 3 रु० प्रति इकाई है।
संतुलन मात्रा का परिकलन
20,000 (12 – 2Px)
20,000 (12 – 2 x 3)
20,000 x 6 = 1,20,000 इकाइयाँ (माँगी गई मात्रा)
अथवा
2,000 (20Px)
2,000 (20 x 3) =1,20,000 इकाइयाँ (आपूर्ति की मात्रा)। स्पष्ट है 3 रु० प्रति इकाई की कीमत पर माँगी गई मात्रा और आपूर्ति की मात्रा समान है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 2.
यदि qd = 10 – p और qs = p तो एक वस्तु विशेष के माँग और पूर्ति कक्रों के लिये संतुलन कीमत और मात्रा की गणना कीजिए। यह भी बताइये कि यदि उस वस्तु की बाज़ार कीमत 7 रु० या 3 रु० प्रति इकाई हो तो उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हल:
(i) संतुलित कीमत = qd = qs
10 – p = p
∴ – p – p = – 10
– 2p = – 10
∴ p = \(\frac { 10 }{ 2 }\) = 5
वस्तु विशेष की संतुलित कीमत = 5 रु० प्रति इकाई
∴ संतुलित मात्रा = qd = 10 – 5
qd = 5 (माँग पक्ष)
∴ संतुलित मात्रा = 5 इकाई

(ii) बाज़ार कीमत 7 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० अधिक हो जाएगी अतः वस्तु विशेष की माँग कम होने से अतिरिक्त पूर्ति का समायोजन करना होगा।

(iii) बाज़ार कीमत 3 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० कम है अतः वस्तु विशेष की माँग बढ़नी आवश्यक होगी।

प्रश्न 3.
एक वस्तु विशेष की माँग और पूर्ति के समीकरण क्रमशः Qd = 8000 – 3000 p तथा Qs = – 6000 + 4000p दिए गए हों, तो संतुलन कीमत और मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
संतुलित कीमत : Qd = Qs
∴ 8000 – 3000 p = – 6000 + 4000p
⇒ – 3000p – 4000p = – 6000 – 8000
⇒ – 7000 p = – 14000
∴ p = \(\frac { 14000 }{ 2 }\)= 2 रुपए
संतुलित मात्रा = p का मान समीकरण (i) में रखने पर
= 8000 – 3000 x 2 = – 6000 + 4000 x 2
= 8000 – 6000
= – 6000 + 8000
= 2000
= 2000
संतुलित मात्रा = 2000 उत्तर

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Apathit Avbodhanam अपठित-अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

अपठित-गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि

1. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत कस्मिंश्चित् अरण्ये अनेके पशवः वसन्ति स्म। एकदा पशूनां राजा सिंहः रोगपीड़ितः अभवत्। एकं शृगालं विहाय सर्वे पशवः रोगपीड़ितं नृपं द्रष्टुमागताः। एकः उष्ट्रः नृपाय एतत् न्यवेदयत् यत् अहंकारिणं शृगालं विहाय सर्वे भवन्तं द्रष्टुमागताः। एतच्छ्रुत्वा सिंहः क्रोधितोऽभवत्। स्वमित्रैः एतत्ज्ञात्वा शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः । क्रोधितेन सिंहेन विलम्बेन आगमनकारणं पृष्टः शृगालोऽवदत् यदहं तु सर्वप्रथममागन्तुम् ऐच्छम् परं चिकित्सकात् औषधमपि आनेयमिति विचिन्त्य तत्रागच्छम्। तच्छ्रुत्वा प्रसन्नः सिंहः औषधविषये पृष्टवान्। शृगालः अवदत् यत्तेन औषधिस्तु न दत्ता परं चिकित्साक्रमम् उक्तवान् यत् उष्ट्रस्य रक्तपानेनैव रोगस्य शान्तिः भविष्यति। तदा सिंहः उष्ट्रमाहूय भक्त्या आगतं तं मारयित्वा तस्य रक्तं पीतवान् एवं स्वपिशुनतायाः दुष्फलम् उष्ट्रेण स्वयमेव प्राप्तम्।
प्रश्ना:
(क) अनेके पशवः कुत्र वसन्ति स्म ?
(ख) शृगालः शीघ्रमेव कस्य समीपे प्राप्तः ?
(ग) उष्ट्रेण कस्याः दुष्फलं प्राप्तम् ?
(घ) रोगपीडितः कः अभवत् ?
(ङ) ‘पृष्टः’ – अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि
(क) अनेके पशवः अरण्ये वसन्ति स्म।
(ख) शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः।
(ग) उष्ट्रेव स्वपिशुनतायाः दुष्फलं प्राप्तम्।
(घ) सिंह: रोगपीड़ितः अभवत्।
(ङ) ‘पृष्टः’ अत्र क्त प्रत्ययः।

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2. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत गङ्गा सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा अस्ति। सा लोकत्रयस्य कल्याणकारिणी अस्ति।सा भौतिकसुखदृष्ट्या आध्यात्मिक सुखदृष्ट्या कल्याणप्रदा। यं गङ्गा पूर्णरूपेण समर्पितो-भवति, तस्य जीवनं धन्यं भवति। इह संसारे यः जनः राज्ञा भगीरथेन आनीतां भगवती गङ्गां सदा वन्दते स एव शोभन: चतुरः कथ्यते। यः जनः आदरपूर्वकं जहनुतनयां मनसा ध्यायति, स एव सम्यक् तपस्वी भवति। यः गङ्गायाः नामानि गुणान् च सदा स्मरति, स एव श्रेष्ठः पुरुषः कथ्यते। यस्य जनस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, यथार्थरूपेण स एव कर्मयोगी अस्ति, स एव सर्वेषां स्वामी भवति।
प्रश्ना:
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी का अस्ति ?
(ख) इह संसारे गङ्गां कः आनीतवान् ?
(ग) यः आदरपूर्वकं जह्नतनयां ध्यायति सः किं भवति ? ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स किम् अस्ति ?
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी गङ्गा अस्ति।
(ख) इह संसारे गङ्गां भगीरथः आनीतवान् ।
(ग) यः आदरपूर्वकं जहनुतनयां ध्यायति सः सम्यक् तपस्वी भवति ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स कर्मयोगी अस्ति।
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र – ‘इष्ठन्’ प्रत्ययः ।

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3. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सत्सङ्गति धियः जाड्यं हरति। वाचि सत्यं सिञ्चति। मानोन्नतिं करोति। पापम् अपाकरोति। मनः प्रसादयति। सर्वत्र यशः तनोति। कथय, मनुष्याणां कृते सत्सङ्गति किं न करोति, अर्थात् सर्वेषामेव उत्तमगुणानां विकासं करोति। ईदृशः अस्ति सत्सङ्गतेः महिमा। अयम् एकः स्वाभाविकः अभिप्रायोऽस्ति यत् मनुष्यस्य सङ्गतिः यादृक्प्रवृत्तिधारकेण सह भवति, सः तादृशः एव भवति। यदि तस्य उत्थानम् उपवेशनं दुष्टैः सह, तदा सोऽपि भविष्यति। परं सज्जनै: साकं संसर्गात् स एव जनः सुजनः भवितुं शक्नोति।प्रभावस्तु अवश्यमेव पतति अन्योऽन्ययोः, एतत् तु स्वीकरणीयमेव जायिष्यते। यदा वयं सङ्गतेः प्रभावं जडपदार्थेषु पश्यामः, तदा चेतनः प्राणी कथं नु प्रभवितुं क्षमते।
प्रश्ना:
(क) सत्सङ्गतिः धियः किं हरति ?
(ख) सत्सङ्गतिः केषां विकासं करोति ?
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः कीदृशः भवितुं शक्नोति ?
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं केषु पदार्थेषु पश्याम: ?
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सत्सङ्गतिः धियः जाड्यं हरति ।
(ख) सत्सङ्गतिः सर्वेषाम् उत्तमगुणानां विकासं करोति।
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः सुजनः भवितुं शक्नोति ।
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं जडपदार्थेषु पश्यामः ।
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र – ‘तुमुन्’ प्रत्ययः ।

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4. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत’रघुवंशम्’ कालिदासप्रणीतम् एकं महाकाव्यम्। एतस्य एकोनविंशतिसर्गेषु सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति। अस्य महाकाव्यस्य कथानकं रामायणे पुराणेषु च आधारितम्। प्रथमे सर्गे सूर्यवंशिराज्ञां वर्णनानन्तरं दिलीपस्य चरित्रस्य, तस्य अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे गमनस्य च वर्णनं वर्तते। द्वितीये सर्गे दिलीपस्य नन्दिन्याः सेवया पुत्रप्राप्तिवरदानस्य च चित्रणम् अस्ति। तृतीये सर्गे रघुजन्मनः वर्णनम्। चतुर्थे सर्गे रघोः दिग्विजयनिरूपणम्। अतः परेषु सर्गेषु रघोः सर्वस्वदानम्, अजजन्म, अजस्य विजयः, राज्यशासनम्, अजविलापः, दशरथजन्म, रामकथा-आदिकानि घटनानि वर्णितानि सन्ति। सम्भाव्यते कवेः देहान्तरस्य हेतोः काव्यस्य अन्तः भवति यतो हि कथायाः विधिवत् समाप्तिर्न जाता अस्ति। एतत् कालिदासस्य द्वितीयं महाकाव्यम् अस्ति। संस्कृतकाव्यशास्त्र-परम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
प्रश्नाः
(क) केषां कीर्तिगानम् अस्ति ?
(ख) दिलीप: केन कारणेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ?
(ग) ‘रघुवंशम्’ केन प्रणीतं महाकाव्यम् ?
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं कीदृशं महाकाव्यं स्वीकृतम् ?
(ङ) गमनम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि.
(क) सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति।
(ख) दिलीपः अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ।
(ग) ‘रघुवंशम्’ कालिदासेन प्रणीतं महाकाव्यम् ।
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
(ङ) ‘गमनम्’ अत्र – ‘ल्युट्’ प्रत्ययः।।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

5. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् धारानगर्यां भोजो नाम राजा। सिंहासनम् अधिष्ठितः सः सुप्रबन्धं स्वराज्यं समृद्धमकरोत्। तस्य राज्ये विद्यार्थिनः विद्याभ्यासं, विद्वांसः च अध्यापनं कुर्वन्ति स्म। धनिनः विपत्तौ निर्धनानां साहाय्यं कुर्वन्ति स्म। भोजः एतादृशः गुणग्राही आसीत् यत् यः कोऽपि विद्वान् राजसदसि स्वकीयां कवितां, नवीनम् आविष्कारं वा प्रस्तौति स्म तस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत्।
प्रश्नाः
(क) भोजो नाम राजा कुत्र आसीत् ?
(ख) धनिनः केषां सहायतां कुर्वन्ति स्म?
(ग) भोजः किं समृद्धम् अकरोत् ?
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यास के कुर्वन्ति स्म?
(ङ) भोजः कस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ?
उत्तराणि
(क) भोजो नाम राजा धारानगर्याम् आसीत् ।
(ख) धनिनः निर्धनानां सहायतां कुर्वन्ति स्म ।
(ग) भोजः स्वराज्यं समृद्धम् अकरोत् ।
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यासं विद्यार्थिनः कुर्वन्ति स्म।
(ङ) भोजः विद्वद्भ्यः भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ।

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6. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुःनदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति। प्रपात: तस्याः प्रथमावस्था अस्ति। शनैः शनैः सा सागरं प्रति गच्छति। तस्याः बालुकायुक्ततटेषु हरिताः तरवः भवन्ति। तेषां वृक्षाणामुपरि काकाः, चटकाः, शुकाः कोकिला: च वसन्ति। पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः तस्याः तटा: गुञ्जायमानाः भवन्ति परं केचन जनाः अत्रागत्य मनोरञ्जनं कुर्वन्ति, खादन्ति, भोजनस्य अवशिष्टं च तस्याः जले एव पातयन्ति। एवं तस्यां जलं दूषितं भवति। दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् अस्ति। अत: जलं दूषितं न कर्त्तव्यम् यतः जलम् एव प्राणिनां जीवनम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) नद्याः प्रथमावस्था का ?
(ख) नदी केभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति ?
(ग) कीदृशं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ?
(घ) नद्याः तटाः कथं गुञ्जायमानाः भवन्ति ?
(ङ) जलं केषां जीवनम् ?
उत्तराणि
(क) नद्याः प्रथमावस्था प्रपातः ।
(ख) नदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति।
(ग) दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ।
(घ) नद्याः तटाः पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः गुञ्जायमानाः भवन्ति ।
(ङ) जलं प्राणिनां जीवनम्।

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7. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् पुरा कस्मिंश्चित् वने निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं किमपि आश्रमपदम्। तत्र तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म। ऋषीणां तपः प्रभावात् परस्परं वैरभावम् अपहाय पशवः पक्षिणश्च निर्भयं तत्र विचरन्ति स्म। आसीत् तत्र वरतन्तुनामा कुलपतिः। तत्र अनेके मेधाविनः पटवश्च बटवः अपठन्। तेषु कश्चन आकृत्या मृदुलः प्रकृत्या सरलः कौत्सनामा बटुः आसीत् अयं बालः स्वल्पेनैव कालेन वेदानां वेत्ता, पुराणानां पठिता, दर्शनशास्त्राणां विज्ञाता चाभवत्।
प्रश्ना:
(क) आश्रमपदं कीदृशम् आसीत् ?
(ख) आश्रमपदे के वसन्ति स्म ?
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कः आसीत् ?
(घ) केषां प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म ?
(ङ) कौत्सनामा बटुः केषां वेत्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(क) आश्रमपदं निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं च आसीत्।
(ख) आश्रमपदे तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म ।
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कुलपतिः आसीत् ।
(घ) ऋषीणां तपः-प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म।
(ङ) कौत्सनामा बटुः वेदानां वेत्ता अभवत् ।

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8. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुः गङ्गाम् उभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिता: ग्रामाः आसन्। तत्र एकस्मिन् ग्रामे एकः जीर्णः कूपः आसीत्। तस्मिन् कूपे मण्डूकानाम् अधिपतिः गङ्गदत्तः परिजनैः सह निवसति स्म। सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्। अतः गर्वितः अभवत्। तस्य दुर्व्यवहारेण केचित् प्रमुखाः भेकाः रुष्टाः जाताः। ते गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन्। तद् ज्ञात्वा गंगदत्तः विषादम् अनुभवति स्म। “शत्रूणां नाशः कथं भवेत्।” इति एकान्ते चाटुकारैः सह मन्त्रणाम् अकरोत्।
प्रश्ना:
(क) गङ्गामुभयतः के आसन्?
(ख) मण्डूकानामधिपतिः कः आसीत्?
(ग) सः कथं गर्वितः अभवत् ?
(घ) के गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ?
(ङ) गंगदत्तः कै: सह मन्त्रणामकरोत् ?
उत्तराणि
(क) गङ्गामुभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिताः ग्रामाः आसन् ।
(ख) मण्डूकानामधिपतिः गङ्गदत्तः आसीत् ।
(ग) ‘सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्, अतः सः गर्वितः अभवत्।
(घ) प्रमुखाः भेका: गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ।
(ङ) गंगदत्तः चाटुकारैः सह मन्त्रणामकरोत् ।

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9. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत अद्यत्वे विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते। वैज्ञानिकाः आविष्कारैः न केवलं विस्मापयन्ति, अपितु मनोविनोदम् अपि कुर्वन्ति। अद्य दूरदर्शनं विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः। अस्य आविष्कारः मूलत: ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः। अयं आकाशवाण्याः एव विकसितः प्रयासः अस्ति। वयम् आकाशवाणीयन्त्रैः अभीष्टस्थानस्य कार्यक्रमं एव आकर्णयामः, परं दूरदर्शनेन वयं दर्शनमपि कुर्मः। साम्प्रतं दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।
प्रश्ना:
(क) कस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते ?
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः किमस्ति ?
(ग) अस्य आविष्कारः केन कृतः ?
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः कीदृशं साधनमस्ति ?
उत्तराणि
(क) विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते।
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कार: दूरदर्शनम् अस्ति।
(ग) अस्य आविष्कारः ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः।
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।

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10. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सजानानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते। जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति। आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते। सदाचारात् एव मनुष्यः दीर्घमायुः वैभवं च प्राप्नोति। यतः यः नरः सर्वलक्षणहीनः अपि अस्ति, परं सदाचारवान् अस्ति, स शतं वर्षाणि जीवति। सद्व्यवहारस्य बलेनैव मनुष्याः सुन्दरान् गुणान् अर्जयितुं समर्थाः भवन्ति। जनः उन्नतिं करोति। आचारहीनाः जनाः अपवित्राः भवन्ति। वेदाः अपि तान् रक्षितुं तं समर्थाः भवन्ति। सर्वस्य तपसः मूलं सदाचारः एव अस्ति। अतएव सदाचरणं सर्वेषाम् कृते अत्यावश्यकम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) सदाचारः किम् कथ्यते ?
(ख) जीवने कस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति ?
(ग) सदाचारः कस्य मूलम् अस्ति ?
(घ) कः सर्वत्र पूज्यते ?
उत्तराणि
(क) सज्जनानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते।
(ख) जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति।
(ग) सदाचारः सर्वस्य तपसः मूलम् अस्ति।
(घ) आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

HBSE 12th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) भूमिविषयके अभियोगे ‘किन्तु’-ना का बाधा उपस्थापिता ?
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं केन विनाश्यते ?
(ग) लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य कथम् इतिश्रीरभूत् ?
(घ) नेतृमहोदयः पुस्तकप्रशंसां कुर्वन् ‘किन्तु’ प्रयोगेन कं परामर्शम् अददात् ?
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले कीदृशी प्रदर्शनी समायोजिता आसीत् ?
(च) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(छ) धर्मव्यवस्थापक: विधवायाः पुनर्विवाहमुचितं मन्यमानोऽपि व्यवस्थां किमर्थं न ददौ ?
(ज) गृहिणी पत्युः कर्णसमीपे आगत्य शनैः किम् अवदत् ?
(झ) लोकाः किन्तु-युक्तां वार्ता केन कारणेन विगुणां गणयन्ति ?
(ञ) किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः कः ?
उत्तरम्:
(क) ‘राजस्वविभागस्य प्रधानः अधिकारी तद्-विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवान्’- इति बाधा किन्तुना उपस्थापिता।
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं किन्तुना विनाश्यते।
(ग) “किन्तु किञ्चित् स्वगृहाभिमुखं विलोकनीयम्’ इति अध्यापकवचनेन लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य इति श्रीः अभूत्।
(घ) नेतृमहोदयः परामर्शम् अददात्- “यदि इदं पुस्तकं हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यग् अभविष्यत्।”
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी समायोजिता आसीत्।
(च) लेखकमहोदयस्य कण्ठनलिकां स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ अरुधत्।
(छ) यतः धर्मव्यवस्थापक: प्राचीनमर्यादाम् अपि रक्षितुम् इच्छति स्म, अतः सः पुनर्विवाहस्य व्यवस्थां न ददौ।
(ज) सा अवदत्-“अन्धकारेऽस्मिन् त्वम् अवश्यं यासि, ‘किन्तु’ दृश्यताम्, स शस्त्रं न प्रहरेत्।”
(झ) यतः किन्तुयुक्तायाः वार्तायाः सिद्धौ किन्तुना बाधा अवश्यमेव स्थाप्यते, अतः लोकाः किन्तुयुक्तां वार्ता विगुणां गणयन्ति।
(ञ) एषः किन्तुः सर्वासां वार्तानां मध्ये प्रविश्य वार्तायाः विच्छेदम् अवश्यं करोति इत्येव किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः ।

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2. उपयुक्तशब्दान् चित्वा रिक्तस्थानानां पूर्तिः विधेया
(दुर्घटा, अवधानम्, सन्दानितः, स्वामिमहोदयम्, संस्कृते, विवाहस्य, शान्तम्, पलायांचक्रे, कालात्, संकटे)
(क) अहं…………….. अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता…………. अस्ति।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण ……………अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने……………..अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः……………..कदाचिदुपयुक्तो भवेत् ।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः……………..न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः………………..
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं……………..निःश्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या …………….. अद्य तृतीयो दिवसः ।
(ञ) बहुकालानन्तरं…………….. एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।
उत्तरम्:
(क) अहं स्वामिमहोदयम् अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि ।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्यै सफलता दुर्घटा अस्ति ।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितः अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानम् अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत्।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहो: कालात् न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे।
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं नि:श्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः।
(ब) बहुकालानन्तरं संस्कृते एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।

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3. अधोलिखितैः उचितक्रियापदैः रिक्तस्थानानि पूरयत परिगण्येत, परावर्तिषि, आच्छिनत्ति, मन्यामहे, दीयेत, अलिखिष्यत्।
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं ………… ।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव …………. ।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् …………. तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था ………….।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि ………… ।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः ……….. ।
उत्तरम्:
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूर: ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत।

4. सन्धिच्छेदं कुरुत
उत्तरसहितम्
(क) तत्रैवास्य = तत्र + एव + अस्य
(ख) सर्वाण्येव = सर्वाणि + एव
(ग) मन्निर्मितमेकम् = मत् + निर्मितम् + एकम्
(घ) किलैकोऽधिकारी = किल + एकः + अधिकारी
(ङ) द्वयोरुपर्येव = द्वयोः + उपरि + एव।

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5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम्
(क) निर्मुच्य = निर् + √मुच् + क्त्वा > ल्यप्
(ख) आदाय = आ + √दा + क्त्वा > ल्यप्
(ग) प्रविष्टः = प्र + √विश् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(घ) आगत्य = आ + √गम् + क्त्वा > ल्यप्
(ङ) परिज्ञातम् = परि + √ज्ञा + क्त (नपुंसकलिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)

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6. अधोलिखितेषु पदेषु विभक्तिं वचनं च दर्शयत
उत्तरसहितम्
(क) कार्ये कार्य-सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(ख) अभियोक्तुः अभियोक्तृ-पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(ग) बालिकायाः बालिका – पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(घ) न्यायालयेन न्यायालय-तृतीया विभक्तिः, एकवचनम्
(ङ) नेतुः नेतृ – सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(च) शक्तौ शक्ति – सप्तमी विभक्तिः, एकवचनम्
(छ) औषधिम् औषधि – द्वितीया विभक्तिः, एकवचनम्

7. स्वरचितवाक्येषु अधोलिखितपदानां प्रयोगं कुरुत
किन्तु, गन्तुम, मह्यम्, विभीषिका, भरणपोषणम्, दृष्ट्वा
उत्तरम्:
(क) किन्तु-अहं धावनप्रतियोगितायां सर्वतो अग्रे आसम्, किन्तु सहसा मम पादस्खलनम् अभवत्।
(ख) गन्तुम्-अहं विद्यालयं गन्तुम् इच्छामि।
(ग) मह्यम्-मयं पठनम् अतीव रोचते।
(घ) विभीषिका-परीक्षायाः विभीषिका मनः उद्वेलयति।
(ङ) भरणपोषणम्-परिवारस्य भरणपोषणं तु सर्वेषां कर्तव्यम् अस्ति।
(च) दृष्ट्वा-अधः दृष्ट्वा कथं न गच्छसि ?

8. विलोमशब्दान् लिखत
उत्तरसहितम्: – विलोमपदम्
(क) विगुणः – सगुणः
(ख) शौर्यम् – अशौर्यम्
(ग) सुरक्षितः – विनष्टः
(घ) शत्रुता – मित्रता
(ङ) धीरः – अधीरः
(च) भयम् – निर्भयम्

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

योग्यताविस्तारः
1. स्वकल्पनया वाक्यपूर्तिं कुरुत
उत्तरम्
(क) अहम् उच्चाध्ययनं कर्तुमिच्छामि, किन्तु आर्थिकस्थितिः न अनुमन्यते।
(ख) छात्राः कक्षायामुपस्थिताः किन्तु अध्यापकः एव नास्ति।
(ग) सः गन्तुमिच्छति, किन्तु बसयानम् एव निर्गतम्।
(घ) वयं तर्तुच्छिामः, किन्तु क्लिन्नाः भवितुं न इच्छामः ।
(ङ) ते कार्यं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु अवसरः एव न लभन्ते।
(च) अर्वाचीनाः जना अपि प्राचीनां भाषां पठितुमिच्छन्ति, किन्तु यदि तया आजीविका सिध्येत तदैव ।
(छ) निर्धना अपि धनमिच्छन्ति, किन्तु धनेन एव धनम् अर्च्यते इति समस्या।
(ज) सर्वे जना आजीविकामिच्छन्ति, किन्तु सर्वेभ्यः सा सुलभा न भवति।
(झ) मूकोऽपि वक्तुमिच्छति, किन्तु असमर्थः अस्ति। ..
(ञ) अध्यापका अध्यापनं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु केचन छात्राः एव पठितुं न इच्छन्ति।

2. अधोलिखितानाम् आभाणकानां समानार्थकानि वाक्यानि पाठात् अन्वेष्टव्यानि
(क) मुँह का कौर छीनना।
(ख) कुछ दिन पहले की बात है।
(ग) खोटा सिक्का और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं।
(घ) नाक-भौंह सिकोड़ना।
उत्तरम्:
(क) मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(ख) स्वल्पदिनानामेव वार्तास्ति।
(ग) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचित् उपयुक्तो भवेत्।
(घ) नासा-भ्रूसकोचः।

HBSE 9th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(A) पत्नी
(B) स्वामिमहोदस्य किन्तुः
(C) मन्त्रिमहोदयस्य किन्तुः
(D) शिक्षकः।
उत्तराणि
(B) स्वामिमहोदयस्य किन्तुः ।

(ii) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्य केन विनाश्यते ?
(A) स्वामिना
(B) सेवकेन
(C) अधिकारिणा
(D) किन्तुना।
उत्तराणि
(C) किन्तुना

(iii) गरिष्ठवस्तुनो भोजने किम् अत्यावश्यकम् ?
(A) मिष्ठान्नम्
(B) तिक्त-व्यञ्जनम्
(C) अवधानम्
(D) क्षीरम्।
उत्तराणि
(B) अवधानम्

(iv) गहिणी कस्य कर्णसमीगे आगत्य शनैः अवदत् ?
(A) पत्युः
(B) अधिकारिणः
(C) किन्तोः
(D) मन्त्रिणः।
उत्तराणि
(A) पत्युः

(v) कस्य कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटा अस्ति ?
(A) पत्न्याः
(B) न्युः
(C) किन्तोः
(D) स्वामिनः।
उत्तराणि
(A) किन्तोः

(vi) भूमेः अभियोगः कुत्र चलति स्म ?
(A) ग्रामपञ्चायते
(B) न्यायालये
(C) नगरे
(D) ग्रामे।
उत्तराणि
(D) न्यायालये।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

II. रेखाकितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) क्रूरः किन्तुः मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।
(A) कः
(B) काः
(C) के
(D) किम्।
उत्तराणि:
(D) किम्

(ii) राजस्वविभागस्य एक: अधिकारी एतद्विरोधे पत्रं प्रेषितवान्।
(A) काः
(B) कस्मात्
(C) कस्य
(D) कस्मिन्।
उत्तराणि:
(C) कस्य

(iii) कन्यायाः पतिः सहसा अम्रियत।
(A) कस्याः
(B) कः
(C) कथम्
(D) को।
उत्तराणि:
(B) कः

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) किम्
(B) कुत्र
(C) कस्मात्
(D) कस्य।
उत्तराणि:
(B) कुत्र

(v) स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुना अहं नीरोगः अभवम्।
(A) कीदृशः
(B) काः
(C) के
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(A) कीदृशः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठ्यांशः

1. कुटिलेनामुना ‘किन्तु’-ना कियत्कालात् क्लेशितोऽस्मि। यत्र यत्राहं गच्छामि तत्र तत्रैवास्य शत्रुता सम्मुखस्थिता भवति। अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटास्ति। बहून् वारान् दृष्टवानस्मि यत्कार्यं सर्वथा सज्जं सम्पद्यते, सर्वप्रकारैः सिद्धिहस्तगता भवति, यथैव सफलताया मूर्तिः सम्मुखमागच्छन्ती विलोक्यते तथैव क्रूरोऽयं किन्तुर्मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।

हिन्दी-अनुवादः इस कुटिल ‘किन्तु’ शब्द से मैं कितने ही समय से पीड़ित हूँ। मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, वहाँ-वहाँ ही इसकी शत्रुता सामने आ खड़ी होती है। इस ‘किन्तु’ के कारण किसी भी कार्य में सफलता अति-कठिन है। मैंने बहुत बार देखा है कि जो काम पूरी तरह से तैयार होता है, सब प्रकार से सफलता हाथ में आने वाली होती है, जैसे ही सफलता की मूर्ति सामने आती हुई दिखाई पड़ती है, वैसे ही यह क्रूर ‘किन्तु’ बीच में घुसकर सब नष्ट-भ्रष्ट कर देता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च क्लेशितः = दुःखी; कष्टापन्नः, √क्लेिश + क्त । दुर्घटा = असम्भव, कठिन; दुःखेन घटयितुं शक्या, दुर् + √घट् + आ। बहून् वारान् = बहुत बार; अनेकवारम्। आगच्छन्ती = आती हुई; आयान्ती, आ + √गम् + शतृ + ङीप्।

2. राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः कालान्यायालये चलति स्म। अस्मिन्नभियोगे प्राविवाकमहोदयो निर्णयं श्रावयन् अवोचत् … वयं पश्यामो यदभियोक्तुः पक्षादावश्यकानि सर्वाण्येव प्रमाणान्युपस्थितानि सन्ति। राज्यतो लब्धाया भूमेर्दानपत्रमप्युपस्थापितमस्ति। न्यायालयेन परिज्ञातं यत् इयं भूमिरभियोक्तुरधिकारभुक्ताऽस्ति……..।’
अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं निःश्वासममुचम्। मया सर्वथा स्थिरीकृतं यद्भाग्य-लक्ष्मीरनुपदमेव मे कन्धरायां विजयमाल्यं प्रददातीति। परं प्राविवाकमहोदयः पुनरग्रे प्रावोचत्- ……… किन्तु राजस्व-विभागस्य प्रधानः किलैकोऽधिकारी एतद्विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।’ मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे। किन्तु’-कुन्तो ममान्तः-करणं समन्तात् कृन्तति स्म। निजहृदयमवष्टभ्य न्यायं प्रशंसन् गृहमागमम्।

हिन्दी-अनुवादः राज्य से प्राप्त भूमि का अभियोग बहुत समय से न्यायालय में चल रहा था। इस अभियोग में जज महोदय ने निर्णय सुनाते हुए कहा-‘हम देखते हैं कि अभियोक्ता के पक्ष की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर दिए गए हैं। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी उपस्थित कर दिया गया है। न्यायालय ने अच्छी तरह जान लिया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है………….।

मैंने निश्चिन्तता से एक शान्त श्वास छोड़ी। मैंने पूरी तरह से निश्चय कर लिया कि भाग्यलक्ष्मी तुरन्त ही मेरे गले में विजयमाला पहनाने वाली है। परन्तु जज महोदय ने फिर आगे कहा-‘…………किन्तु राजस्व विभाग के एक मुख्य अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है। इस पर भी एक नज़र डालना मैं आवश्यक समझता हूँ।’ मेरा सारा उत्साह फुर्र हो गया (गायब हो गया)। किन्तु’ रूपी भाला मेरे चित्त को चारों तरफ से काट रहा था। मैं अपने हृदय को सान्त्वना देकर न्याय की प्रशंसा करते हुए घर वापस आ गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अभियोगः = मुकद्दमा; अभि + √युज् + घञ्, पुंल्लिङ्ग, प्रथम पुरुष एकवचन। अभियोक्तुः = मुद्दई का, मुकद्दमा चलाने वाले का; अभि + √युज् + तृ। ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग, पञ्चमी एकवचन। कुन्तः = भाला। मुद्रा = मुखाकृति । प्राबल्यस्य = प्रबलता का, वेगपूर्वक; प्र + √बल + ष्यञ्, नपुंसकलिङ्ग, षष्ठी एकवचन। निर्वाणा = समाप्त हो चुकी; निर् + √वा + क्त, स्त्रीलिङ्ग, प्रथमपुरुष, एकवचन। इतिश्रीः = समाप्ति। मार्मिकः = तत्त्वज्ञ, विषयज्ञ; मर्म + ठक्, प्रथमपुरुष एकवचन। कन्धरायाम् = गले में, गर्दन पर। प्राड्विवाकः = जज, न्यायाधीश। लक्ष्यदानम् = दृष्टिपात, ध्यानदेना; लक्ष्यस्य दानम्, षष्ठी-तत्पुरुष। कृन्तति स्म = काट रहा था। अवष्टभ्य = रोककर; अव + √स्तम्भ (अवरोध) + ल्यप्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

3. दृष्टं मया यदेष ‘किन्तुः’ दयाधर्मादिष्वपि अनधिकारचेष्टातो न विरतो भवति। प्रातः कालस्यैव कथास्ति…. धर्मव्यवस्थापकमहोदयस्य समीपे एको दीनः करुणक्रन्दनपुरःसरं न्यवेदयत्-“महाराज! नववार्षिकी मे कन्या। जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः। नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत। तस्याः पतिः सहसाऽम्रियत। हा हन्त! तस्या अबोधबालिकाया अग्रे किं भावि? अस्तकर्मसंख्यावृद्धौ किं ममोच्चकुलमपि सहायकं भविष्यति? आज्ञापयन्तु श्रीमन्तः किं मया साम्प्रतं कर्तव्यम्।” पण्डितमहोदयो गभीरतममुद्रयाऽवोचत्… “अवश्यमिदं दयास्थानम्। वर्तमानकाले समाजस्य भीषणपरिस्थितेः पर्यालोचन इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवं विधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत…. किन्तु’ वयं मुखेन कथमेतत् कथयितुं शक्नुमः। प्राचीनमर्यादापि तु रक्षितव्या स्यात्।”

हिन्दी-अनुवादः मैंने देखा है कि यह ‘किन्तु’ दया धर्म आदि में भी अपनी अनधिकार चेष्टा से रुकता नहीं है। प्रातः काल की ही बात है……. धर्मव्यवस्थापक महोदय के पास एक गरीब ने करुणक्रन्दन पूर्वक निवेदन किया-“महाराज! नौ वर्ष की मेरी कन्या है। उसका विवाह हुए तीन दिन बीत गए। आज भी ‘चतुर्थी कर्म’ पूरा नहीं हुआ, जिससे विवाह पूर्ण गिना जाए। उसका पति अचानक मर गया। हाय! उस अबोध बालिका का अब आगे क्या होगा? ‘अस्तकर्म’ की संख्या बढ़ाने में क्या मेरा उच्च कुल भी सहायक होगा ? आप आज्ञा कीजिए कि मुझे क्या करना है?” पण्डित महोदय ने गम्भीरतम मुद्रा में कहा-“यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है। वर्तमान समय में समाज की
भीषण परिस्थिति को देखते हुए यही उचित प्रतीत होता है कि ऐसी दशा में पुनर्विवाह की व्यवस्था दे दी जाए (नियम बना दिया जाए)। ‘किन्तु हम अपने मुख से यह बात कैसे कह सकते हैं? प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो की जानी चाहिए।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च विरतः = विरत, पृथक्, अलग; वि + √रम् + क्त। चतुर्थीकर्म = विवाहोपरान्त चौथे दिन किया जाने वाला कर्म, चतुर्थे अहनि क्रियमाणं कर्म, मध्यमपदलोपी समास। न्यवेदयत् = निवेदन किया, नि + अवेदयत्, √विद् (ज्ञाने) लङ् लकार णिजन्त, प्रथमपुरुष, एकवचन । नववार्षिकी = नौ वर्ष की आयु वाली। परिगण्येत = गिना जाए; परि + √गण (संख्याने) + विधिलिङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। साम्प्रतम् = अभी, वर्तमान में, सम्प्रति एव साम्प्रतम्। गभीरतमम् = गम्भीरतम; गभीर + तमप्। पर्यालोचने = देखने पर, समग्र दृष्टिपात करने पर; परि + आ + √लोच् + ल्युट् सप्तमी विभक्ति, एकवचन (दर्शन, अंकन)।

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4. कुत्रचित् सोऽयं ‘किन्तुः’ नितान्तमनुतापं जनयति। अनेकवर्षाणां परिश्रमस्य फलस्वरूपं मन्निर्मितमेकं नवीनसंस्कृतपुस्तकमादाय साहित्यमर्मज्ञस्य एकस्य देशनेतुः समीपेऽगच्छम्। ‘नेतृ’-महोदयः पुस्तकस्य गुणान् सम्यक् परीक्ष्य प्रसन्नः सन्नवोचत्… “पुस्तकं वास्तव एव अद्भुतं निर्मितमस्ति बहुकालानान्तरं संस्कृते एवंविधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।… ‘किन्तु’ मत्सम्मत्यां तदिदं पुस्तकं भवान् संस्कृते न विलिख्य यदि हिन्दीभाषायामलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।” अनेन ‘किन्तु’-ना मह्यं सा शिक्षा दत्तास्ति यद्यहं सत्पुरुषः स्यां तर्हि पुनरस्मिन् मार्गे पदनिक्षेपस्य नामापि न गृह्णीयाम्।

हिन्दी-अनुवादः – कहीं पर तो यह ‘किन्तु’ अत्यधिक दुःख पैदा करता है। अनेक वर्षों के परिश्रम के फलस्वरूप अपने द्वारा रचित एक नवीन संस्कृत पुस्तक लेकर एक साहित्य-मर्मज्ञ देश के नेता के समीप पहुँचा। नेता जी ने पुस्तक के गुणों की उचित परीक्षा करके प्रसन्न होते हुए कहा-“पुस्तक तो वास्तव में अद्भुत लिखी गई है। बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की नवीनता देखी गई है।…….. किन्तु’ मेरी सम्मति में आप इस पुस्तक को संस्कृत में न लिखकर यदि हिन्दी भाषा में लिखते तो बहुत अच्छा होता।”

घर वापस लौटते हुए मैं ‘किन्तु’ द्वारा दी गई इस मर्मवेधक शिक्षा पर, घर के पूरे रास्ते कान मसलता हुआ चला गया। इस ‘किन्तु’ ने मुझे वह शिक्षा दी थी कि यदि मैं सत्पुरुष हूँ तो फिर इस रास्ते पर पाँव रखने का नाम भी न लूँ।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च नितान्तम् = अत्यधिक। अनुतापम् = पश्चात्ताप, पछतावा; अनु + तापम्। परीक्ष्य = परीक्षा करके, परि + √ईक्ष् + ल्यप्। निवर्तमानः = लौटता हुआ; नि + √वृत् + शानच । मर्मवेधकशिक्षायाः = मर्मभेदी शिक्षा के। मर्दयन् = मसलता हुआ। पदनिक्षेपः = कदम रखना; पदयोः निक्षेपः (षष्ठी-तत्पुरुष)

5. कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमप्याच्छिनत्ति। स्वल्प-दिनानामेव वार्तास्ति। आयुर्वेदमार्तण्डस्य श्रीमतः स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुनैवाहं नीरोगोऽभवम्।अस्मिन्नेव समये मित्रगोष्ठ्या अहं स्वामिमहोदयमप्राक्षम्… ‘किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।’ उत्तरमलभ्यत… ‘तादृशी हानिस्तु नास्ति। ‘किन्तु’ गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानमत्यावश्यकम् अधुनापि दौर्बल्यमस्ति।

हिन्दी-अनुवादः कभी-कभी तो यह क्रूर किन्तु मुख के कवल (ग्रास) को भी छीन लेता है। थोड़े ही दिनों की बात है। आयुर्वेद मार्तण्ड श्री स्वामी जी महाराज की औषधि का सेवन करके अब मैं स्वस्थ हो गया हूँ। इसी समय मित्र मण्डली की ओर से निमन्त्रण प्राप्त हुआ। भोजनगोष्ठी (पार्टी) में सम्मिलित होने के लिए मेरी इच्छा शक्ति की प्रबलता का प्रवाह पूरी तरह से बढ़ रहा था। मैंने स्वामी जी महाराज से पूछा-“क्या मैं वहाँ जा सकता हूँ।” उत्तर मिला-“वैसे तो कोई हानि नहीं है, ‘किन्तु’ गरिष्ठ पदार्थों के सेवन में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है, अभी भी कमजोरी है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च कवलम् = ग्रास। आच्छिनत्ति = छीन लेता है; आ + √छिद् + लट्लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन। स्वल्पदिनानाम् एव वार्ता = थोड़े दिनों की ही बात। निषेव्य = सेवन करके; नि + √सेव् + ल्यप् । समवेतुम् = सम्मिलित होने के लिए; सम्मिलितुम्, सम् + अव + √इ + तुमुन्। प्रवर्द्धमानः = अत्यधिक बढ़ा हुआ; प्र + √वृध् + शानच्। अप्राक्षम् = पूछा। अवधानम् = सावधानी, परहेज; अव + √धा + ल्युट > अन। दौर्बल्यम् = दुर्बलता, कमज़ोरी; दुर्बल + ण्यत्।

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6. उत्साहस्य ज्वाला या पूर्वं प्रचण्डतमा आसीत् अर्द्धमात्रायां तु तत्रैव निर्वाणाभवत्। अस्तु येन केनापि प्रकारेण भोजनगोष्ठ्याविशेषाधिवेशनेऽस्मिन् सम्मिलितस्त्वभवमेव। भोजनपीठे अधिकारं कुर्वन्नेवाहमपश्यं यत् सर्वागपूर्णा एका भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी सम्मुखे वर्तत इति।धीरगम्भीरक्रमेणाहं भोजनकाण्डस्यारम्भमकरवम्। अहं मोदकस्यैकं ग्रासमगृह्णम्। तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितोऽहं यथैव द्वितीय ग्रासमगृह्ण तथैव ‘स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्। मुखस्य ग्रासो मुख एवाऽभ्राम्यत् अग्रे गन्तुं नाशक्नोत्। ‘किन्तोः’ भीषणविभीषिका प्रत्येकवस्तुनि गरिष्ठतां सम्पाद्य भोजनं तत्रैव समाप्तमकरोत्।

हिन्दी-अनुवादः – उत्साह की जो ज्वाला पहले अत्यधिक प्रचण्ड हो रही थी, आधे ही मिनट में वहीं बुझ गई। भोजन के आसन पर अधिकार जमाते हुए मैंने देखा कि एक सर्वांगपूर्ण भोज्य व्यंजनों की प्रदर्शनी सामने लगी हुई है। धीर-गम्भीर क्रम से मैंने भोजनकाण्ड की शुरुआत कर दी। मैंने लड्डू का एक ग्रास लिया। उसके स्वाद सूत्र से बँधे हुए मैंने जैसे ही दूसरा ग्रास ग्रहण किया तभी स्वामी महोदय की ‘किन्तु’ से मेरी कण्ठनली ही रुंध गई। मुख का ग्रास मुख में ही घूम गया, आगे जा ही न सका। ‘किन्तु’ के भीषण भय ने प्रत्येक वस्तु में गरिष्ठता बता कर भोजन वहीं समाप्त कर दिया।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अर्द्धमात्रायाम् = आधे मिनट में। निर्वाणा = शान्त हो गई, बुझ गई। सम्मिलितस्त्व- भवमेव = सम्मिलितः + तु + अभवम् + एव। स्वादसूत्रेण = स्वाद रूपी रस्सी से। सन्दानितः = बँधा हुआ; सन्दान + इतच् । अभ्राम्यत् = घूम गया। विभीषिका = भय, डर; वि + √भी + णिच् + ण्वुल् + टाप, षुक्, आगम और इत्व।

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7. अहं देशसेवां कर्तुं गृहाद बहिरभवम्। मया निश्चितमासीत् ‘एतावन्ति दिनानि स्वोदरसेवायै क्लिष्टोऽभवम। इदानीं कियन्तं कालं देशसेवायामपि लक्ष्यं ददामि। यथैवाहं मार्गेऽग्रेसरो भवामि, तथैव मम बाल्याध्यापकमहोदयः सम्मुखोऽभवत्। मास्टरमहोदयेन प्रस्थानहेतौ पृष्टे सति सम्पूर्णसमाचारनिवेदनं ममाऽऽवश्यकमभूत्। अध्यापकमहोदयः प्रावोचत्… “तात, सर्वमिदं सम्यक्। किन्तु स्वगृहाभिमुखमपि किञ्चिद्विलोकनीयं भवेत्। येषां भरणपोषणं भवत्येवायत्तम् तान् किं भवान् निराधारमेव निर्मुच्य स्वैरं गन्तुमर्हेत्।”
पुनः किमासीत्। अत्रैव परोपकारविचाराणाम् इतिश्रीरभूत्। किन्तु’-महोदयेन देशसेवायाः सर्वापि विचारपरम्परा परपारे परावर्त्यत गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।

हिन्दी-अनुवादः मैं देशसेवा करने के लिए घर से बाहर हुआ। मैंने निश्चय किया था कि इतने दिनों तक अपनी पेट-पूजा के लिए कष्ट उठाया है। अब कुछ समय देशसेवा में भी लगाता हूँ। जैसे ही मैं रास्ते में आगे-आगे हुआ, तभी मेरे बचपन के अध्यापक मेरे सामने आ गए। मास्टर महोदय द्वारा प्रस्थान का कारण पूछने पर मेरे लिए सारा समाचार निवेदन करना आवश्यक हो गया था। अध्यापक महोदय ने कहा-“पुत्र, यह सब तो ठीक है। ‘किन्तु’ अपने घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। जिनके भरण-पोषण की आपने ज़िम्मेदारी ली है, क्या आप उन्हें बेसहारा छोड़कर अपनी इच्छानुसार जा सकते हो?” फिर क्या था, यहीं पर परोपकार के विचार की इतिश्री हो गई। ‘किन्तु’ जी महाराज ने देशसेवा की सारी विचार परम्परा को परले पार कर (लौटा) दिया। घर की ओर मुँह करते हुए उसी स्थान से वापस लौट गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च स्वोदरसेवायै = अपनी पेट-पूजा के लिए। क्लिष्टः = दुःखी। कियन्तं कालम् = कुछ समय। अग्रेसरः = आगे चलने वाला। आयत्तम् = प्राप्त किया गया, स्वीकार किया गया। निराधारम् = व्यर्थ। निर्मुच्य = छोड़कर; परित्यज्य, निः + √मुच् + ल्यप्। स्वैरम् = स्वेच्छानुसार। गन्तुम् अर्हेत् = जा सकते हो; ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्दों के साथ √अर्ह धातु का प्रयोग √शक् धातु (= सकना) के अर्थ में होता है। परपारे = परले पार, दूसरी ओर। परावर्त्यत = लौटा दिया।

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8. मयानुभूतमस्ति यदयं कुटिलः ‘किन्तुः’ नानादेशेषु नानारूपाणि सन्धार्य गुप्तं विचरति। यथैव लोकानां कार्यसिद्धेरवसरः समुपतिष्ठते तथैवायं प्रकटीभूय लोकानां कार्याणि यथावस्थितमवरुणद्धि। अहमेतस्य ‘किन्तु’कुठारस्य कठोरतया नितान्तमेव तान्तोऽस्मि। अहं वाञ्छामि यदेतस्याक्रमणात् सुरक्षितो भवेयम्। परं नायं मां त्यक्तुमिच्छति। बहवो मार्मिका मामबोधयन् यत् ‘त्वम् एतं सम्मुखमायान्तं दृष्ट्वैव कथं वित्रस्यसि, कुतश्च एनमपसारयितुं प्रयतसे ? किमेनं सर्वथा अहितकारिणमेव निश्चितवानसि ? नेदं सम्यक् पशुघातकस्य छुरिकापि पाश-पतितस्य गलबन्धनं छित्त्वा समये प्राणरक्षां कुर्वती दृष्टा।’ अहमपि सत्यस्यैकान्ततोऽपलापं न करिष्यामि। एतस्य कथनस्य सत्यताया मयापि परिचयः कदाचित् कदाचित् प्राप्तोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः मैंने अनुभव किया कि यह कुटिल ‘किन्तु’ अनेक स्थानों पर अनेक रूप धारण करके गुप्त रूप से विचरण करता है। जैसे ही लोगों की कार्य सिद्धि का अवसर समीप होता है, तभी यह प्रकट होकर लोगों के कार्यों को उसी स्थिति में रोक देता है। मैं इस ‘किन्तु’ के कुल्हाड़े की कठोरता से बुरी तरह पीड़ित हूँ। मैं चाहता हूँ कि इसके आक्रमण से बच जाऊँ। परन्तु यह मुझे छोड़ना ही नहीं चाहता। बहुत से मर्मज्ञों ने मुझे समझाया कि तुम इसे सामने आता हुआ देखकर ही क्यों डर जाते हो और क्यों इसे दूर करने के लिए यत्नशील रहते हो ? क्यों इसे सर्वथा अहितकर ही मानते हो ? यह ठीक नहीं। पशुघातक की छुरी भी जाल में बँधे हुए के गले का बन्धन काटकर, अवसर आने पर प्राण रक्षा करती हुई देखी गई है। मैं भी सच्चाई को पूरी तरह से नहीं झुठलाऊँगा। इस कथन की सत्यता का परिचय मुझे भी कभी कभी प्राप्त हुआ है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सन्धार्य = धारण करके; सम् + √धृ + णिच् + ल्यप्। तान्तः = पीड़ित, परेशान। वित्रस्यसि = डर रहे हो; वि + √त्रस, लट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन। अपसारयितुम् = दूर भागने के लिए; अप + √सृ + णिच् + तुमुन्। पाशपतितस्य = जाल में फंसे हुए के। अपलापम् = झुठलाना, सत्य को असत्य और असत्य को सत्य करना।

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9. ‘शब्दैः प्रतीयते यद गहे चौरः प्रविष्टोऽस्ति’ इति सभयमनुलपन्ती गहिणी रात्रौ मामबोधयत् । अहं निजशौर्य प्रकाशयन् महता वीरदर्पण लगुडमात्रमादाय अन्धकार एव चौरनिग्रहाय प्रचलितोऽभवम्। गृहिणी कर्णसमीप आगत्य शनैरवदत्… “अन्धकारे-ऽस्मिन् यासि त्वमवश्यम्, ‘किन्तु’ दृश्यताम् स शस्त्रं न प्रहरेत्।” पुनः किमासीत्। मम वीरदर्पस्य शौर्यस्य च प्रज्वलितं ज्योतिस्तत्रैव निर्वाणमभूत। चौरनिग्रहः कीदृशः, निजप्राणपरित्राणमेव मे अन्वेषणीयमभवत्। लगडं प्रक्षिप्य कोष्ठके निलीनोऽभवम्। तत एव च कम्पित-कण्ठेन चीत्कारमकरवम्-“लोका: ! आगच्छत, चौरः प्रविष्टोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः ‘आवाजों से प्रतीत होता है कि घर में चोर घुस आया है’-इस प्रकार भयपूर्वक कहती हुई मेरी घरवाली ने रात्री में मुझे जगाया। मैं अपनी शूरवीरता प्रकट करते हुए बड़े घमण्ड से लाठी मात्र लेकर अन्धकार में ही चोर को पकड़ने के लिए चल पड़ा। पत्नी ने कान के पास आकर धीरे से कहा-“अन्धकार में तुम जाना ज़रूर, ‘किन्तु’ देखना, कहीं वह शस्त्रप्रहार न कर दे।” फिर क्या था। मेरे वीरोचित घमण्ड और शूरता की जली हुई ज्योति वहीं बुझ गई। चोर का पकड़ना कैसा, मैं अपनी प्राणरक्षा ही खोजने लगा। लाठी फैंक कर कोठे (कमरे) में छिप गया। तभी काँपते हुए स्वर से मैं चीखा-“लोगो ! आओ, चोर घुस आया है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अनुलपन्ती = कहती हुई; अनु + √लप् + शतृ + ङीप्। चौरनिग्रहाय = चोर को पकड़ने के लिए; चौरस्य निग्रहाय (चतुर्थी तत्पुरुष)। परित्राणम् = रक्षण, बचाव, परि + √त्रैङ् (पालने) + ल्युट नपुंसकलिङ्ग प्रथमपुरुष एकवचन। अन्वेषणीयम् = ढूँढने योग्य, खोजने योग्य; अनु + √इष् + अनीयर् प्रत्यय। लगुडम् = लाठी, दण्ड। निलीनः = छुपा हुआ; नि + √ली + क्त प्रत्यय।

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10. एकेन अमुना ‘किन्तु’-ना चौरस्य चपेटाभ्योऽवमुच्य सौख्यस्य सुरक्षिते प्रकोष्ठकेऽहं प्रवेशितः। अनेन किन्तुना कस्मिन्नपि संकटसमये कदाचित् किञ्चित्कार्यं कामं कृतं स्यात् परं भूयसा तु अस्माद् भयमेव भवति। अस्य हि सार्वदिकः स्वभाव एव यत् वार्ता काममुत्तमास्तु अधमा वा परमयं मध्ये प्रविश्य तस्याः कथाया विच्छेदमवश्यं करिष्यति। एतएव कस्मिन्नपि समये कार्यसाधकत्वेऽपि लोका अस्माद् वित्रस्यन्त्येव।वैरिणां भारावताराय कदाचित् हिताधराऽपि करवालधारा क्रूराकारा प्रखरप्रकारा एव प्रसिद्धा लोकेषु। विगुणः कार्षापणः, कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत् परन्तु जनसमाजे द्वयोरुपर्येव नासा-भूसकोचो जातो जनिष्यते च। इदमेव कारणं यत् यस्यां वार्तायां ‘किन्तुः’ उत्पद्यते तां वार्ता लोका विगुणां गणयन्ति।

हिन्दी-अनुवादः इस एक किन्तु ने चोर की चपेटों से छुड़वाकर मुझे सुख के सुरक्षित कोठे (कमरे) में प्रविष्ट करवा दिया। इस किन्तु ने किसी संकट के समय कभी कोई कार्य शायद किया हो, परन्तु अधिकतर तो इससे भय ही होता है। इसका सदा-सदा रहने वाला स्वभाव ही है कि चाहे बात अच्छी हो बुरी परन्तु यह बीच में प्रविष्ट होकर उस बात को अवश्य ही काट देगा। इसीलिए किसी भी समय कार्य सिद्धि में लोग इससे डरते ही हैं। वैरियों का भार उतारने के लिए शायद हितकारक तलवार की धार भी क्रूर आकार तथा तीखे रूप वाली ही संसार में प्रसिद्ध होती है। खोटा सिक्का तथा निन्दित पुत्र संकट में कभी काम भले ही आ जाए, परन्तु जनसमाज में तो दोनों के ऊपर ही नाक-भौंह सिकोड़ी जाती रही है और आगे भी सिकोड़ी जाती रहेगी। यही कारण है कि जिस किसी बात में ‘किन्तु’ लग लग जाता है, उस बात को लोग खटाई में पड़ी हुई बात ही समझते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्श्च चपेटाभ्यः = थप्पड़ों से। अवमुच्य = छुड़ाकर। प्रकोष्ठके = घर में। कामम् = भले ही। सार्वदिकः = सर्वदा होने वाला। भारावताराय = भार उतारने के लिए। कदाचित् = शायद। करवालधारः = तलवार की धार। विगुणः कार्षापणः = खोटा सिक्का। कुत्सितः = निन्दित, कुत्स + इतच्। नासा-भ्रूसकोचः = नाक-भौंह सिकोड़ना। विगुणाम् = गुण रहित, खटाई में पड़ी हुई।

किन्तोः कुटिलता (किन्तु’ की कुटिलता) Summary in Hindi

किन्तोः कुटिलता पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ‘किन्तोः कुटिलता’ देवर्षि श्रीकलानाथ शास्त्री द्वारा सम्पादित पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्धपारिजातः’ से संकलित किया गया है।

पं० भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के पिता पं० भट्ट द्वारकानाथ जयपुर निवासी थे। पं० भट्ट मथुरानाथ का जन्म जयपुर में सन् 1889 ई० में हुआ और निधन भी 4 जून, 1964 ई० को जयपुर में ही हुआ। श्री भट्ट की पूर्वज परम्परा अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न रही। इन्होंने महाराजा संस्कृत कॉलेज से साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की और वहीं व्याख्याता बन गए। आप जयपुर से प्रकाशित ‘संस्कृतरत्नाकर’ पत्रिका के सम्पादक रहे। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री द्वारा प्रणीत संस्कृत की रचनाओं में ‘जयपुरवैभवम्’, ‘गोविन्दवैभवम्’, ‘संस्कृतगाथासप्तशती’ और ‘साहित्यवैभवम्’ विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने चालीस कथाएँ और सौ से भी अधिक निबन्ध संस्कृत में लिखे। इनकी ‘सुरभारती’, ‘सुजनदुर्जन-सन्दर्भः’ और ‘युद्धमुद्धतम्’ नामक पद्य रचनाएँ भी उल्लेखनीय हैं।

यहाँ संकलित पाठ में श्री भट्ट जी ने दिखाया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है, तब बहुधा वह पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर उसे दोषपूर्ण और सम्बोधित व्यक्ति के लिए दुःख पैदा करने वाला, उसके उत्साह का नाशक और शत्रुरूप बना देता है। ऐसे अवसर विरल होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ सम्बोधित व्यक्ति के लिए सुखदायक सिद्ध होता है।

लेख की भाषा सरल व सुबोध है, अलंकारों और दीर्घ समासों आदि का प्रयोग नहीं किया गया है। भाव सुस्पष्ट और सामान्य जीवन में जनसाधारण द्वारा अनुभूत हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठस्य सारः

‘किन्तोः कुटिलता’ यह पाठ पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्ध संग्रह ‘प्रबन्धपारिजात:’ से संकलित किया गया है। इस पाठ में दिखाया गया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है तब प्रायः पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर वह ‘किन्तु’ उसे दोषपूर्ण बना देता है। तथा सम्बोधित व्यक्ति के लिए कष्टकारी, उत्साहनाशक तथा शत्रुरूप बन जाता है। ऐसे अवसर बहुत कम होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ शब्द संबोधित व्यक्ति के लिए सुखकारी सिद्ध होता है। लेखक ने अपने जीवन में घटित तीन- चार घटनाओं के अनुभव से ‘किन्तु’ के इस षड्यन्त्र को प्रमाणपूर्वक पाठकों के समक्ष-प्रस्तुत किया है।

एक बार लेखक का राज्य से प्राप्त हुई भूमि के सम्बन्ध में लम्बे समय से एक मुकदमा न्यायालय में चल रहा था। जज महोदय ने लेखक के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा अभियोक्ता की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर किन्तोः कुटिलता दिए गए। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी प्रस्तुत कर दिया गया और न्यायालय को इस बात का पूरा निश्चय हो गया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है।” जज महोदय के निर्णय से लेखक बड़ा प्रसन्न हो रहा था कि भूमि मेरे पास आ ही गई है। तभी जज महोदय ने आगे कहा-“किन्तु राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है, उस पर दृष्टिपात करना भी हम अपना कर्तव्य समझते हैं।” किन्तु शब्द के इस भाले ने लेखक के हृदय को चीरकर रख दिया।

इसी प्रकार की एक अन्य घटना में लेखक बताता है कि एक बार धर्माधिकारी के पास एक ग़रीब आदमी चीख पुकार करता हुआ कहने लगा कि मेरी नौ वर्ष की कन्या के विवाह को तीन ही दिन हुए हैं। चतुर्थी कर्म (गौना) न होने से विवाह भी पूरा नहीं हुआ और उसके पति की मृत्यु हो गई। ऐसी दशा में मैं क्या करूँ। धर्माधिकारी ने कहा कि यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है, वर्तमान समय में समाज की भयंकर दशा पर विचार करते हुए इसके पुनर्विवाह की व्यवस्था दी जानी चाहिए।..किन्तु हम अपने मुँह से कैसे कहे, हमें प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो करनी है। यहाँ भी किन्तु ने उस अबोध बालिका के जीवन को नरक बना दिया।

लेखक ने एक बहुत ही उत्तम पुस्तक संस्कृत में लिखी और एक साहित्य प्रेमी देश के नेता को समीक्षा के लिए दी। नेता जी ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए अंतिम वाक्य कहा-“बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की अद्भुत पुस्तक लिखी गई है।……..किन्तु ये हिन्दी में लिखी जाती तो उचित होता।” नेताजी के किन्तु शब्द ने लेखक को मार्मिक पीड़ा दी और वह अपना कान मसलता हुआ घर की ओर निकल गया।

लेखक एक बार बीमार हो गया। एक वैद्य की औषध सेवन से वह स्वस्थ हो गया। तभी लेखक के पास मित्रों की ओर से भोजन गोष्ठी का निमंत्रण आया। लेखक ने वैद्य से उसमें सम्मिलित होने के लिए पूछा। उत्तर में वैद्य ने कहा”कोई खास हानि तो नहीं है…किन्तु गरिष्ठ वस्तुओं के सेवन से परहेज करना।” लेखक प्रीतिभोज में सम्मिलित हुआ, स्वादिष्ट व्यंजन सामने आए। जैसे ही लेखक ने एक ग्रास गले के नीचे उतारा वैद्य के किन्तु ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। लेखक ने एक बार देशसेवा करने के लिए घर छोड़ने का निश्चय किया। रास्ते में बचपन के मास्टर जी मिल गए। उन्होंने पूछा तो बताना पड़ा। मास्टर जी ने कहा-“बेटा यह सब तो ठीक है…….किन्तु जिस परिवार का भार तुम्हारे सिर पर है उसे निराधार छोड़कर अकेले कैसे जा सकते हो।”

मास्टर जी के किन्तु ने लेखक के सिर से देशसेवा का भूत उतार दिया। एक बार लेखक की पत्नी ने भयपूर्वक कहा-“शायद घर में कोई चोर घुस आया है।” लेखक बड़ी वीरता से अंधेरे में ही लाठी लेकर चोर को पकड़ने चल पड़ा तभी पत्नी ने कान के पास आकर बुदबुदाया, “अन्धकार में अकेले जा तो रहे हो……. किन्तु देखना कहीं वह शस्त्र का प्रहार न कर दे।” लेखक की वीरता तुरन्त गायब हो गई और वह प्राण बचाने के लिए लाठी फैंककर घर के अन्दर छिप गया और वहीं से चीखते स्वर में बोला- लोगो ! आओ, चोर घुस आया है। पत्नी की इस एक किन्तु ने चोर के थप्पड़ों से छुड़वाकर लेखक को सुरक्षित घर में भेज दिया था। विचारने वाली बात यह है कि यह किन्तु ऐसा कल्याणकारी कार्य भूले भटके ही करता है। खोटा सिक्का तथा नालायक बेटा संकट में कभी भले ही काम आ जाते हों, परन्तु अधिकांश में तो समाज इन दोनों पर नाक भौंह सिकोड़ता रहा है और सिकोड़ता रहेगा। यही दशा ‘किन्तु’ की है। यह ‘किन्तु’ जीवन में एक आध बार ही सुखदायी होता है, संकट से बचाता है और सुखदायी होती है। अधिकांश में तो जिस कथन के साथ ‘किन्तु’ महाराज लग जाते हैं। समझिए वह काम खटाई में पड़ गया। कोई न कोई बाधा आ पड़ी और काम बीच में अटक गया।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

HBSE 12th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरत
(क) ‘उद्भिजपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(च) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म कीदृशम् ?
उत्तरम्:
(क) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः पण्डित-हृषीकेश-भट्टाचार्यः अस्ति।
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः अश्वत्थ-देवः आसीत्।
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् स्नेहम् उपेक्षन्ते।
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम निकृष्टतमा सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(च) पशुहत्या मनुष्याणाम् आक्रीडनम्।
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम् अस्ति।

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2. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु ……………सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां ……………… निरवधिः।।
(ग) नहि ते करतलगतानपि ……………… उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते……………… ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि ……….. एव।
उत्तरम्:
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः ।
(ग) नहि ते करतलगतानपि हरिण-शशकादीन् उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्हेनम् ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्साराः एव।

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3. अधोलिखितानां पदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत
मायाविनः, श्वापदान्, निरवधिः, विसर्जयामास, बिभ्यति, पर्याकुलाः, लजन्ते, विरमन्ति, कापुरुषाः, प्रकटयति।
उत्तरम्:
(वाक्यप्रयोगः)
(क) मायाविनः-सृष्टिधारासु मानवाः सर्वाधिकाः मायाविनः सन्ति।
(ख) श्वापदान्-मानवाः स्वमनोविनोदाय श्वापदान् हन्ति।
(ग) निरवधि:-मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(घ) विसर्जयामास-सभापतिः सभां विसर्जयामस।
(ङ) बिभ्यति-मानवाः पापाचारेभ्यः किमपि न बिभ्यति।
(च) पर्याकुला:-विपत्तिषु मानवाः पर्याकुलाः भवन्ति।
(छ) लज्जन्ते-मानवाः अनृतव्यवहारात् किञ्चिद् अपि न लज्जन्ते।
(ज) विरमन्ति – स्वार्थसाधनपरा: मानवाः परपीडनात् न विरमन्ति।
(झ) कापुरुषा:-कापुरुषाः तु आत्मरक्षाम् अपि कर्तुं न शक्नुवन्ति।
(ञ) प्रकटयति-शिशुः क्रोधं प्रकटयति।

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4. सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।
उत्तरम्:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ से संकलित है। इस निबन्ध में वृक्षों की सभा के सभापति पीपल ने मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति के प्रति तीखा व्यंग्य-प्रहार किया गया है।

व्याख्या – हिंसा के दो प्रमुख रूप हैं-(1) स्वाभाविक भूख की शान्ति के लिए हिंसा (2) मन बहलाने के लिए हिंसा। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। परन्तु सिंह-व्याघ्र आदि पशुओं का स्वाभाविक भोजन मांस ही है। अतः ऐसे पशुओं को न चाहते हुए भी केवल पेट की भूख शान्त करने हेतु पशुवध करना पड़ता है। परन्तु इन पशुओं की यह विशेषता भी है कि भूख शान्त होने पर पास खड़े हुए हिरण आदि का भी ये वध नहीं करते। पशुओं का पशुवध भूख शान्ति तक ही सीमित होता है। परन्तु मनुष्य की पशुहिंसा असीम है। क्योंकि वह तो अपने बेचैन मन की प्रसन्नता के लिए ही पशुवध करता है। मनुष्य की इस विलक्षण एवं भयावह हिंसावृत्ति पर वृक्षों की सभा के सभापति अश्वत्थ (पीपल) को अत्यन्त खेद है और जड़ होने पर भी मनुष्य के इस दुष्कर्म से उसका हृदय फटा जा रहा है।

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्निकृष्टतमा, उपगम्य, प्रवर्तमाना, अतिक्रान्तम्, व्याख्याय, कथयन्तु, उपजन्ति, आक्रीडनम्।
उत्तरम्:
प्रकृतिः + प्रत्ययः
(क) निकृष्टतमा नि + √कृष् + क्त + तमप् + टाप्
(ख) उपगम्य उप + √गम् + ल्यप्
(ग) प्रवर्तमाना प्र + √वृत् + शानच् + टाप्
(घ) अतिक्रान्तम् अति + √क्रम् + क्त
(ङ) व्याख्याय वि + आ + √चक्षि > ख्या + ल्यप्
(च) कथयन्तु √कथ् + लोट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(छ) उपघ्नन्ति उप + √हन् + लट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(ज) आक्रीडनम् आ + √क्रीड् + ल्युट् , अन (नपुं०, प्रथमा-एकवचनम्)

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6. सन्धिच्छेदं कुरुत
मानवा इव, भवन्तो, स्वोदरपूर्तिम्, हिंसावृत्तिस्तु, आत्मोन्नतिम्, स्वल्पमपि।
उत्तरम्
(क) मानवा इव = मानवाः + इव
(ख) भवन्तो नित्यम् = भवन्तः + नित्यम्
(ग) स्वोदरपूर्तिम् = स्व + उदरपूर्तिम्
(घ) हिंसावृत्तिस्तु = हिंसावृत्तिः + तु
(ङ) आत्मोन्नतिम् = आत्म + उन्नतिम्
(च) स्वल्पमपि = सु + अल्पम् + अपि

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7. अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत
महापादपाः, सृष्टिधारासु, करतलगतान्, वीरपुरुषाः, शान्तिसुखम्।
उत्तरम्
(क) महापादपाः – महान्तः पादपा:-कर्मधारयः।
(ख) सृष्टिधारासु – सृष्टिः एव धारा, तासु-कर्मधारयः ।
(ग) करतलगतान् – करतलं गतान्-द्वितीया-तत्पुरुषः ।
(घ) वीरपुरुषाः – वीराः पुरुषाः-कर्मधारयः ।
(ङ) शान्तिसुखम् – शान्तिः च सुखं च तयोः समाहारः-द्वन्द्वः।

योग्यताविस्तारः
(1) प्रचुरोदकवृक्षो यो निवातो दुर्लभातपः।
अनूपो बहुदोषश्च समः साधारणो मतः॥ चरकसंहिता

(2) मानवं पुत्रवद् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च।
पुत्रवत्परिपाल्यास्ते पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(3) एतेषां सर्ववृक्षाणां छेदनं नैव कारयेत्।
चतुर्मासे विशेषेण विना यज्ञादिकारणम्। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(4) एकेनापि सुवृक्षण पुष्यितेन सुगन्धिना।
वासितं वै वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥ महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(5) “दशकूपसमा वापी दशपुत्रसमो द्रुमः।”
वृक्षविषयिण्यः ईदृश्य अन्य सूक्तयोऽपि गवेषणीयाः॥

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HBSE 9th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(A) आर्यभट्टः
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः
(C) बाणभट्टः
(D) अम्बिकादत्तव्यासः ।
उत्तराणि:
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः

(ii) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(A) देवाधिपतिः
(B) देवराज इन्द्रः
(C) आम्रः
(D) अश्वत्थदेवः।
उत्तराणि:
(C) अश्वत्थदेवः

(iii) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(A) आत्मानम्
(B) खगान्
(C) स्नेहम्
(D) पशून्।
उत्तराणि:
(B) स्नेहम्

(iv) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टि: ?
(A) उत्कृष्टतमा
(B) निकृष्टतमा
(C) उत्तमा
(D) बृहत्तमा।
उत्तराणि:
(A) निकृष्टतमा

(v) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(A) निरवधिः
(B) सावधिः
(C) मासावधिः
(D) वर्षावधिः।
उत्तराणि:
(A) निरवधिः

(vi) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(A) पुरुषाणाम्
(B) स्त्रीणाम्
(C) सिंहानाम्
(D) मनुष्याणाम्।
उत्तराणि:
(D) मनुष्याणाम्।

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) सावहिताः शृणवन्तु भवन्तः।
(A) कः
(B) के
(C) को
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) के

(ii) मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः ।
(A) केषाम्
(B) कस्याम्
(C) कस्मात्
(D) कैः।
उत्तराणि:
(A) केषाम्

(iii) मनुजन्मानः प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय प्रवर्तन्ते।
(A) कम्
(B) के
(C) किमर्थम्
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(B) किमर्थम्

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) कस्मात्
(B) कम्
(C) किम्
(D) किमर्थम्।
उत्तराणि:
(D) कस्मात्

(v) मनुष्याः महारण्यम् उपगम्य यथेच्छं पशुधातं कुर्वन्ति ?
(A) के
(B) काः
(C) कस्मै
(D) किम।
उत्तराणि:
(A) किम्

(vi) जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवाः इव हिंसानिरताः जीवाः न विद्यन्ते।
(A) के
(B) कथम्
(C) कीदृशाः
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) कीदृशाः।

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उद्भिज्ज-परिषद् पाठ्यांशः

1. अथ सर्वविधविटपिनां मध्यभागे स्थितः सुमहान् अश्वत्थदेवः वदति-“भो भो वनस्पतिकुलप्रदीपा महापादपाः कुसुमकोमलदन्तरुचः लता-कुलललनाश्च ! सावहिताः शृण्वन्तु भवन्तः। अद्य मानववार्रवास्माकं समालोच्यविषयः । मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः, जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवा इव पर-प्रतारकाः स्वार्थसाधनपराः, मायाविनः, कपट-व्यवहारकुशलाः, हिंसानिरताः, जीवा: न विद्यन्ते। भवन्तो नित्यमेवारण्यचारिणः सिंहव्याघ्रप्रमुखान् हिंस्रत्वभावनया प्रसिद्धान् श्वापदान् अवलोकयन्ति। ततो भवन्त एव कथयन्तु याथातथ्येन किमेते हिंसादिक्रियासु मनुष्येभ्यो भृशं गरिष्ठाः।

हिन्दी-अनुवादः सभी प्रकार के वृक्षों के मध्यभाग में स्थितं विशाल अश्वत्थदेव (पीपल का वृक्ष) कहता है-“हे हे वनस्पतिकुल के दीपक महान् पौधो! और पुष्प रूपी कोमल दाँतों से सुशोभित लतावंश की ललनाओ” आप ध्यानपूर्वक सुनिएआज मनुष्य व्यवहार ही हमारी आलोचना का विषय है। सभी सृष्टिधाराओं में सबसे निकृष्ट सृष्टि मनुष्य ही है। जीवसृष्टिप्रवाहों में मनुष्य की भाँति पर-पीड़क, स्वार्थपरायण, मायावी, कपट-व्यवहार में कुशल, हिंसा में संलग्न जीव नहीं हैं। आप नित्य ही जंगलों में घूमने वाले हिंसात्मक भावना के लिए प्रसिद्ध सिंह, व्याघ्र आदि पशुओं को देखते हैं। फिर आप ही ठीक-ठीक बताएं कि क्या ये (पशु) हिंसक-क्रियाओं में मनुष्यों से बढ़कर हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च उद्भिज्जः = वनस्पति (उद्भिज्य जायते इति उद्भिज्जः)। विटपी = वृक्ष (विटप + इनि > इन्)। अश्वत्थः = पीपल का पेड़। कुलललनाः = कुल की स्त्रियाँ; कुलस्य ललनाः। सावहिता = सावधान । सृष्टिधारासु = सृष्टि की परम्परा में; सृष्टे: धारा, सृष्टिधारा, तासु, षष्ठी तत्पुरुष समास। निकृष्टतमा = अत्यधिक नीच; निकृष्ट + तमप्। परप्रतारकाः = दूसरे को पीड़ित करने वाले; परस्य प्रतारकः, षष्ठी-तत्पुरुष समास।

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2. श्वापादानां हिंसाकर्म किल जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम्। प्रशान्तजठरानले सकृदुपजातायां स्वोदरपूर्ती नहि ते करतलगतानपि हरिणशशकादीन् उपघ्नन्ति। न वा तथाविध-दुर्बलजीवानां घातार्थम् अटवीतोऽटवीं परिभ्रमन्ति। मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः । पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।

हिन्दी-अनुवादः पशुओं का हिंसाकर्म पेट की आग बुझाने मात्र के लिए होता है। जठराग्नि के शान्त हो जाने पर, एक बार अपनी उदरपूर्ति हो जाने पर वे (पशु) हाथ में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी नहीं मारते। और न ही इस प्रकार के दुर्बल प्राणियों को मारने के लिए वे एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमते हैं।

मनुष्यों की हिंसावृत्ति तो असीम है। पशुहत्या तो उनका खेल है। केवल अपने बेचैन मन को प्रसन्न करने के लिए बड़े जंगल में जाकर वे जी-भरकर निर्दयतापूर्वक पशुवध करते हैं। उनके पशुप्रहार के व्यवहार को देखकर हम जड़वृक्षों का हृदय भी फट जाता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च श्वापदान् = जंगली जानवरों को। याथातथ्येन = वस्तुतः । भृशम् = अत्यधिक। जठरानल-निर्वाणम् = पेट की अग्नि, भूख की शान्ति; जठरानलस्य निर्वाणम्, षष्ठी तत्पुरुष समास। करतलगतान् = हाथ में आए हुए; करतलगतान्। उपघ्नन्ति = मारते हैं; उप + √हन् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। घातार्थम् = मारने के लिए। अटवीतः अटवीम् = एक जंगल से दूसरे जंगल को; अटवी + तस्। निरवधिः = असीम। आक्रीडनम् = खेल; आ + √क्रीड् + ल्युट् प्रत्यय। विक्लान्तः= थका हुआ; वि + √क्लम् + क्त प्रत्यय। उपगम्य = पास जाकर; उप + √गम् + क्त्वा (ल्यप् प्रत्यय)।

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3. निरन्तरम् आत्मोन्नतये चेष्टमानाः लोभाक्रान्त-हृदयाः मनुजन्मानः किल प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय सर्वात्मना प्रवर्तन्ते। न धर्ममनुधावन्ति, न सत्यमनुबध्नन्ति। परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्नेहम्। अहितमिव परित्यजन्ति आर्जवम्। अमङ्गलमिव उपघ्नन्ति विश्वासम्। न स्वल्पमपि बिभ्यति पापाचारेभ्यः न किञ्चिदपि लज्जन्ते मुहुरनृतव्यवहारात्। नहि क्षणमपि विरमन्ति परपीडनात्।

हिन्दी-अनुवादः निरन्तर अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील, लोभ से ग्रस्त हृदय वाले मनुष्य सब प्रकार से अपनी स्वार्थसाधना के लिए प्रतिक्षण लगे रहते है। न धर्माचरण करते हैं, न सत्य को स्वीकारते हैं; अपितु स्नेह (= प्राणिमात्र के प्रति प्यार) को अतितुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा करते हैं। सरलता को हानिकर वस्तु की भाँति त्याग देते हैं। विश्वास को अमंगल (= अपशकुन) समझकर नष्ट कर देते हैं। पापाचार से वे थोड़ा भी नहीं डरते। बार-बार के झूठे व्यवहार से उन्हें थोड़ीसी भी लज्जा नहीं होती। दूसरों को पीड़ित करने से वे क्षणभर भी विराम नहीं लेते।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सर्वात्मना = पूरे मन से (सभी प्रकार से)। प्रवर्तन्ते = प्रवृत्त होते हैं; प्र + √वृत् + लट्लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। उपेक्षन्ते = उपेक्षा करते हैं; उप + √ईक्ष् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। आर्जवम् = सीधापन; ऋजोर्भावः आर्जवम्। बिभ्यति = डरते हैं; √भी + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। पापाचारेभ्यः = अनुचित आचरण से; पाप-श्चासौ आचारः, पापाचारः तेभ्यः। विरमन्ति = रुकते हैं; वि + √रम् धातु + लट्लकार + प्रथम पुरुष बहुवचन।

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4. न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्सारा एव। तृणानि खलु वात्यया सह स्वशक्तितः सुचिरमभियुध्य सम्मुखसमरप्रवर्तमाना वीरपुरुषा इव शक्तिक्षये क्षितितले निपतन्ति, न तु कदाचित् कापुरुषा इव स्वस्थानम् अपहाय प्रपलायन्त। मनुष्याः पुनः स्वचेतसा एव भविष्यत्-समये संघटिष्यमाणं कमपि विपत्पातमाकलय्य परिकम्पमानकलेवराः दुःख-दुःखेन समयमतिवाहयन्ति। परिकल्पयन्ति च पर्याकुला बहुविधान् प्रतिकारोपायान् येन मनुष्यजीवने शान्तिसुखं मनोरथपथादतिक्रान्तमेव।

हिन्दी-अनुवादः वे (मनुष्य) न केवल पशुओं से भी अधिक निकृष्ट हैं, (अपितु) तिनकों से भी अधिक तुच्छ हैं। तिनके तो आँधी के साथ अपनी शक्ति के अनुसार देर तक लड़कर, सम्मुख उपस्थित युद्ध में लगे हुए वीर पुरुषों की भाँति शक्तिक्षीण होने पर धरती पर गिर जाते हैं, न कि एक बार भी कायरों की तरह अपना स्थान छोड़कर भागते हैं। मनुष्य तो फिर अपने मन (ज्ञान) से ही भविष्य में होने वाली किसी विपत्ति का विचार कर कँपकँपाते शरीर वाले बड़े कष्टपूर्वक अपना समय बिताते हैं। और अति व्याकुल होकर प्रतिकार के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं, जिसके कारण मनुष्य जीवन में शान्ति और सुख उनके मनोरथ के मार्ग से दूर ही रहते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च – वात्यया = आँधी से। अभियुध्य = संघर्ष करके; अभि + √युध् + क्त्वा > ल्यप्। कापुरुषाः = कायर। प्रपलायन्त = भागते हैं; प्र + परा + √अय् + लङ् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। अग्रतः = आगे; अग्र + तस्। संघटिष्यमाणम् = घटित होने वाले; सम् + √घट + शानच् प्रत्यय। परिकम्पमानः = काँपता हुआ; परि + √कम्प् + कानच् प्रत्यय, प्रथमा, विभक्ति एकवचन। अतिवाहयन्ति = बिताते हैं; अति + √वह + णिच् + लट् लकार, प्रथमपुरुष बहुवचन। पर्याकुलाः = बेचैन; परि + आकुलाः । अतिक्रान्तम् = बाहर जा चुका है; अति + √क्रम् + क्त प्रत्यय, प्रथम पुरुष एकवचन। अप्यसाराः = सारहीन; अपि + असाराः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

5. अथ ते तावत्तृणेभ्योऽप्यसाराः पशुभ्योऽपि निकृष्टतराश्च । तथा च तृणा-दिसष्टेरनन्तरं तथाविधजीवनिर्माणं विश्वविधातुः कीदृशं नाम बुद्धिमत्ताप्रकर्ष प्रकटयति। इत्येव हेतुप्रमाणपुरस्सरं सुचिरं बहुविधं विशदं च व्याख्याय सभापतिरश्वत्थदेव उद्भिज्ज-परिषद् विसर्जयामास।

हिन्दी-अनुवादः – इस प्रकार वे (मनुष्य) तिनकों से भी तुच्छ तथा पशुओं से भी निकृष्ट हैं। वनस्पति आदि की सृष्टि के पश्चात् इस प्रकार के जीवों (मनुष्यों) का निर्माण करना विश्व के सृजनहार विधाता की कैसी बुद्धिमत्ता की अधिकता को प्रकट करता है ?

इस प्रकार कारण और प्रमाण निर्देशपूर्वक बहुत देर तक, बहुत प्रकार से तथा विस्तृत व्याख्या करके सभापति अश्वत्थदेव (पीपल-देव) ने वृक्षों की सभा को विसर्जित किया।
शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च प्रकर्षम् = अधिकता। पुरस्सरम् = पूर्वक, आगे; पुरः सरतीति पुरस्सरः तम्। सुचिरम् = देर तक। विशदम् = . विस्तारपूर्वक। व्याख्याय = व्याख्यान देकर; वि + आ + √ख्या + ल्यप्। सभापतिरश्वत्थदेवः = सभापतिः + अश्वत्थदेव।

उद्भिज्ज-परिषद् (वृक्षों की सभा) Summary in Hindi

उद्भिज्ज-परिषद् पाठ परिचय

आधुनिक गद्य लेखकों में पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका समय 1850-1913 ई० है। ये ओरियण्टल कॉलेज, लाहौर में संस्कृत के प्राध्यापक थे। इन्होंने ‘विद्योदयम्’ नामक संस्कृत पत्रिका के माध्यम से 44 वर्ष तक निबन्ध-लेखन करके संस्कृत में निबन्ध-विधा को जन्म दिया है। श्री भट्टाचार्य द्वारा लिखित संस्कृत निबन्धों का एक संग्रह ‘प्रबन्धमञ्जरी’ के नाम से 1930 ई० में प्रकाशित हुआ। इसमें 11 निबन्ध संगृहीत हैं। इनमें से अधिकांश निबन्ध व्यङ्ग्य-प्रधान शैली में लिखे गए हैं। संस्कृत में व्यङ्ग्य-शैली का प्रादुर्भाव श्री भट्टाचार्य के इन निबन्धों से ही माना जाता है। इनका व्यंग्य अत्यन्त शिष्ट, परिष्कृत और प्रभावोत्पादक है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता, मधुरता तथा सुबोधता है। इनकी भाषा में संस्कृत के महान् गद्यकार बाण की शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ श्री भट्टाचार्य की इसी प्रबन्ध-मञ्जरी’ से सम्पादित करके लिया गया है। उद्भिज्ज शब्द का अर्थ है-वृक्ष और परिषद् का अर्थ है-सभा। इस प्रकार ‘उदभिज्ज-परिषद्’ शब्द का अर्थ हुआ ‘वृक्षों की सभा।’ इस सभा के सभापति हैं अश्वत्थ-पीपल। सभापति अपने भाषण में मानवों पर बड़े ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार करते हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

उद्भिज्ज-परिषद् पाठस्य सार:

प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज-परिषद्’ श्री हृषीकेष भट्टाचार्य जी द्वारा रचित ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ नामक निबन्ध संग्रह से सम्पादित किया गया है। ‘उद्भिज्ज’ शब्द का अर्थ है-वृक्ष और ‘परिषद्’ का अर्थ है सभा। वृक्षों की इस सभा के सभापति अश्वत्थ ‘पीपल’ हैं। वे अपने भाषण में मनुष्य पर बड़ा ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार कर रहे हैं।

सभी प्रकार के वृक्षों की सभा लगी हुई है। सभा के सभापति अश्वत्थ सभी वृक्ष-वनस्पतियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज हमारे विचार का विषय ‘मानव व्यवहार’ है इस सृष्टि में मानव से लड़कर कोई भी निकृष्ट जीवन नहीं है। सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे अधिक दूसरों को पीड़ित करने वाला स्वार्थी, मायावी, छली, कपटी और निरन्तर हिंसा में लगा रहने वाला जीव है। सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक भावना के लिए प्रसिद्ध पशु हैं। परन्तु इन पशुओं की हिंसा पेट की आग बुझाने के लिए होती है भूख शान्त हो जाने पर पंजे में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी

ये नहीं मारते। मनुष्य तो अपना मनोरञ्जन करने के लिए पशुपक्षियों की हत्या करता है। जीव हिंसा करना मनुष्य का खेल है। हिंसक पशुओं की हिंसा तो पेट की आग बुझाने तक सीमित होती है। परन्तु मनुष्य की हिंसा असीम है। इसके इस हिंसा व्यवहार को देखकर जड़ कही जाने वाली वृक्ष वनस्पतियों के हृदय भी फट जाते हैं।

मनुष्य केवल अपनी उन्नति के लिए लोभ से आक्रांत तथा स्वार्थी होकर कार्य करता है। यह किसी भी पापाचार से नहीं डरता। मनुष्य पशुओं से ही घटिया नहीं है, अपितु तिनकों से भी तुच्छ है। आँधी-तूफान आने पर मैदान में खड़ा हुआ एक घास का तिनका भी पूरी शक्ति के साथ तूफान का सामना करता है। गर्मी-सर्दी, बरसात को सहता है। मनुष्य इन सबसे बेचैन होकर इनसे बचने के उपाय खोजता रहता है। इसी से सिद्ध होता है कि मनुष्य से बढ़कर कोई डरपोक भी नहीं है।

सभा पति अश्वत्थ अपने भाषण को समाप्त करते हुए निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि इसीलिए मैं कहता हूँ कि यह आदमी नाम का जन्तु तिनकों से भी तुच्छ और पशुओं से भी निकृष्ट है। वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी आदि की सुन्दर सृष्टि रच लेने के बाद इस विचित्र स्वभाव वाली मानव सृष्टि की रचना करके विधाता ने अपनी किस बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है। इस प्रकार कारण और प्रमाणों के साथ बड़े विस्तारपूर्वक व्याख्यान करके सभापति अश्वत्थ देव ने वृक्ष-सभा को विसर्जित किया। वृक्षों की सभा के माध्यम से लेखक ने मनुष्य के हिंसापरक, परपीड़क तथा स्वार्थी व्यवहार पर तीखा व्यंग्य किया

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाज़ार संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है, जहाँ बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती हैं।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिमाँग के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार माँग वस्तु की बाज़ार पूर्ति से अधिक है।
अधिमाँग = बाज़ार माँग > बाज़ार पूर्ति अथवा अतिरिक्त माँग = बाज़ार माँग – बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिपूर्ति के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार पूर्ति वस्तु की बाज़ार माँग से अधिक है।
अधिपूर्ति = बाज़ार पूर्ति > बाज़ार माँग अथवा अतिरिक्त पूर्ति = बाज़ार पूर्ति – बाज़ार माँग

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य (a) संतुलन कीपत से अधिक है? (b) संतुलन कीमत से कम है?
उत्तर:
(a) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से अधिक है तो अधिपूर्ति की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक होगी।(b) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से कम है तो अधिमाँग की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति . से अधिक होगी।

प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति के वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। इसे संलग्न रेखाचित्र के द्वारा दर्शाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
संलग्न रेखाचित्र में वस्तु का पूर्ति वक्र SS वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है। परिणामस्वरूप OP बाज़ार कीमत का निर्धारण होता है। OP कीमत से अधिक कोई भी कीमत जैसे OP1 बाज़ार में अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न करेगी। इसी प्रकार OP कीमत से कम कोई भी कीमत जैसे OP2 बाज़ार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न करेगी।

प्रश्न 6.
मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाज़ार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाज़ार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
यदि बाज़ार में फर्मों का निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन है तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से ऊँचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य लाभ हो रहा है। इस स्थिति में नई फ बाज़ार में प्रवेश करेंगी और अंततः बाज़ार कीमत घटकर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से नीचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य हानि हो रही है। इस स्थिति में कुछ फर्मे बाज़ार से बाहर चली जाएँगी और अंततः बाज़ार कीमत बढ़कर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। इस प्रकार बाज़ार कीमत प्रत्येक स्थिति में न्यूनतम औसत लागत के समान होगी।

प्रश्न 7.
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाज़ार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है तो फर्म की बाज़ार कीमत, कीमत के उस स्तर पर होती है जहाँ वह न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। फलस्वरूप बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा जो X-अक्ष के समानांतर होगा।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2
ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से बाज़ार की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु संतुलन मात्रा में परिवर्तन होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में PP कीमत रेखा तथा पूर्ति वक्र है तथा प्रारंभिक माँग वक्र DD है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर स्पर्श करते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब वस्तु की माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 तथा संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी।

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प्रश्न 8.
एक बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
जब फर्मों को बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो प्रत्येक फर्म की पूर्ति एक समान (q0f) होगी। इस प्रकार बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर होगी जो P0 निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0f मात्रा की पूर्ति करेगी। इस प्रकार
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प्रश्न 9.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में
(a) वृद्धि होती है।
(b) कमी होती है।
उत्तर:
(a) जब उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होती है तो उपभोक्ता की क्रय करने की शक्ति में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(b) जब उपभोक्ताओं की आय में कमी होती है तो उपभोक्ताओं की क्रय करने की शक्ति में भी कमी होती है। परिणामस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, जिसके फलस्वरूप वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 से कम होकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जानी वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते और मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग साथ-साथ किया जाता है। पूरक वस्तुओं की स्थिति में, जूतों की कीमतों में कमी से दूसरी वस्तु, मोजों की जोड़ी की माँग में वृद्धि होगी और जूतों की कीमतों में वृद्धि से दूसरी वस्तु मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। इस प्रकार जूतों की कीमतों में वृद्धि से मोजों की जोड़ी का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप मोजों की जोड़ी की कीमत व मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में मोजों की जोड़ी का प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से घटकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफ़ी और चाय स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति में एक उपभोक्ता इन वस्तुओं का उपभोग एक-दूसरे के स्थान पर सुगमतापूर्वक कर सकता है। कॉफ़ी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग कम हो जाएगी और चाय की माँग बढ़ जाएगी। कॉफ़ी की कीमत में कमी से कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग में कमी होगी। इस प्रकार कॉफ़ी की कीमत में परिवर्तन चाय की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों को प्रभावित करेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7
संलग्न रेखाचित्र में DD चाय का प्रारंभिक माँग वक्र है और SS पूर्ति वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब कीमत में बढ़ोतरी से चाय की माँग बढ़ जाती है तो माँग वक्र दाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP, और संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब कीमत में कमी से चाय की माँग कम हो जाती है तो माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु हो जाता है। जहाँ संतुलन कीमत OP2 और संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों (Inputs) की कीमतों में परिवर्तन होता है तो उस वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन होगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से उत्पादन लागत में कमी आएगी और उस वस्त की पर्ति बढ जाएगी। परिणामस्वरूप पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से उत्पादन लागत में वृद्धि होगी और उस वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी। फलस्वरूप पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। पूर्ति वक्र में परिवर्तन से संतुलन कीमत और मात्रा में भी परिवर्तन होगा, जिसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 8
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP1 तथा वस्तु की मात्रा OQ1 होगी। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से पूर्ति वक्र S2S2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP2 तथा वस्तु की मात्रा OQ2 होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 13.
यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
जब X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है तो X-वस्तु की माँग। में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता Y-वस्तु के बदले X-वस्तु की ओर आकर्षित होगा। परिणामस्वरूप X-वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा, जिससे संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 9
संलग्न रेखाचित्र में DD, X-वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती। है। X-वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से नई माँग D1D1 हो जाती है जो पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 14.
बाज़ार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
जब बाज़ार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, संतुलन स्थिति (संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा) बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। जब माँग वक्र का स्थानांतरण होता है तो संतुलन स्थिति में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 10
संलग्न रेखाचित्र में, DD वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र में दाईं ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से बढ़कर OP1 और संतुलन मात्रा OQ1 से OQ हो जाती है। जब माँग वक्र में बाईं वस्तु की मात्रा ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से कम होकर OP2 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ2 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 11
जंब बाज़ार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति पाई जाती है तो संतुलन कीमत फर्म की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा, जो X-अक्ष के समानांतर होगा। ऐसी स्थिति में बाज़ार की संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से संतुलन मात्रा में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। संलग्न रेखाचित्र में, संतुलन बिंदु E है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब माँग वक्र D2D2 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दाईं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग और पूर्ति वक्र दोनों ही दाईं ओर शिफ्ट होते (खिसकते) हैं तो इसका अर्थ है-दोनों में वृद्धि होना। इस संबंध में तीन परिस्थितियाँ हो सकती हैं
1. जब माँग और पूर्ति दोनों में समान वृद्धि हो-इस स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि मात्रा बढ़ जाएगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है। संतुलन कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है, जबकि संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

2. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा अधिक हो इस स्थिति में संतुलन कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

3. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा कम हो इस स्थिति में नई संतुलन कीमत आरंभिक कीमत की अपेक्षा कम होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से गिरकर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 12

प्रश्न 16.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब (a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं? (b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर:
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों समान (एक) दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व संतुलन मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों में परिवर्तन की मात्रा कितनी है? इस संबंध में निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(i) यदि माँग और पर्ति दोनों वक्र बाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतलन मात्रा में कमी आएगी. परंत संतलन कीमत में परिवर्तन नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में कमी समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं आता। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में गिरावट आ जाती है।

(ii) यदि माँग और पूर्ति दोनों वक्र दाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी, परंतु संतुलन कीमत में परिवर्तन आ भी सकता है और नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में वृद्धि एक-समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में कमी हो जाती है। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है।

(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग और पूर्ति वक्र दोनों विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करते हैं कि दोनों में शिफ्ट की मात्रा कितनी है? यदि माँग वक्र बाईं ओर तथा पूर्ति वक्र दाईं ओरं शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत में कमी आएगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात में बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में कमी आएगी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

यदि माँग वक्र दाईं ओर तथा पूर्ति वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात के बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में कमी होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 17.
वस्तु बाज़ार में तथा श्रम बाज़ार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाज़ार और श्रम बाज़ार में माँग और पूर्ति के स्रोत में अंतर होता है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग फर्मों से आती है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की माँग घर-परिवार से आती है। श्रम बाज़ार में श्रम की पूर्ति घर-परिवार द्वारा होती है और वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की पूर्ति फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग व्युत्पन्न (अप्रत्यक्ष) माँग है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तु की माँग प्रत्यक्ष है। श्रम की माँग श्रम की उत्पादकता से प्रभावित होती है। श्रम की माँग स्थानापन्न साधन अर्थात् पूँजी की कीमत पर निर्भर होगी। यदि पूँजी की कीमत कम हो तो श्रम की माँग कम होगी। श्रम की पूर्ति वस्तु की पूर्ति से निम्नलिखित संदर्भो में होती है
(i) श्रम वस्तु की तुलना में कम गतिशील होता है।

(ii) श्रम का पूर्ति वक्र पीछे की ओर मुड़ता हुआ होता है जो यह दिखाता है कि एक सीमा के पश्चात् मजदूरी दर के बढ़ने पर श्रम की पूर्ति कम होने कार्य के घंटे+ लगती है क्योंकि मजदूरी के एक उच्च स्तर पर श्रमिक काम की तुलना में अवकाश अधिक पसंद करने लगते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 13
संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है कि M बिंदु तक मजदूरी के बढ़ने से श्रम की पूर्ति बढ़ती है परंतु उसके बाद जब मज़दूरी ow, से बढ़कर ow, हो जाती है तो श्रम की पूर्ति OL2 से घटकर OL1 रह जाती है।

प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ मज़दूरी दर श्रम की सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है अर्थात्
W = MPL
अथवा
मज़दूरी की दर = श्रम की सीमांत उत्पादकता

प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण उस बिंद पर होता है जहाँ श्रम की माँग श्रम की पूर्ति के बराबर हो। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 14
इस रेखाचित्र में DLDL श्रम का माँग वक्र है जो श्रम की पूर्ति वक्र SLSL को E बिंदु पर काटता है। इस प्रकार E संतुलन बिंदु है जहाँ मजदूरी दर OW निर्धारित होती है। यदि मज़दूरी दर OW से अधिक (अर्थात् OW1) है तो श्रम की अधिमाँग पूर्ति श्रम की माँग से अधिक होगी। यदि मज़दूरी दर OW से कम (अर्थात् ow2) है तो श्रम की माँग श्रम की पूर्ति से अधिक होगी। इस प्रकार OW मज़दूरी दर ही संतुलित मजदूरी दर है जहाँ श्रम की माँग व पूर्ति बराबर है।

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प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
भारत में पेट्रोल, अनाज आदि पर उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना है। नियंत्रित कीमत संतुलन कीमत से कम होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 15
संलग्न रेखाचित्र में OP संतुलन कीमत है जिस पर OQ मात्रा का विनिमय किया जाता है। सरकार OP1 नियंत्रित कीमत निर्धारित करती है जिससे MN अर्थात् RT मात्रा में वस्तु की कमी उत्पन्न हो जाएगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को राशनिंग की नीति अपनानी चाहिए। राशनिंग का अर्थ है-एक व्यक्ति के लिए वस्तु के क्रय की उच्चतम सीमा निर्धारित करना। राशनिंग व्यवस्था के अंतर्गत निम्नलिखित दोष होते हैं
(i) प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
वस्तु की मात्रा

(ii) क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत की दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव पड़ता है, क्योंकि माँग में परिवर्तन कीमत में परिवर्तन करते हैं। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो कीमत में वृद्धि होती है और यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट करता है. तो कीमत में कमी होती है।

जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन होगा। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में कमी होती है।

प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु X की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार दिए गए है qd = 700 – p
qs = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि ≤ 0 p ≤ 15
मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपए से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु X की बाज़ार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
हल:
वस्तु का बाज़ार माँग वक्र qd = 700 – p
वस्तु का बाज़ार पूर्ति वक्र-
qd = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15
वस्तु X की बाज़ार पूर्ति 15 रुपए से कम किसी भी कीमत पर शून्य होगी क्योंकि यह वस्तु X को उत्पादित करने की न्यूनतम औसत लागत है। यदि एक फर्म 15 रुपए से कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति करती है तो फर्म को हानि सहन करनी होगी। इस प्रकार पूर्ति वक्र का प्रारंभिक बिंदु 15 रुपए की कीमत होगा।

संतुलन बिंदु पर-
qd = qs
700 – p = 500 + 3p
4p = 200
p = 50
इस प्रकार 50 रुपए संतुलन बिंदु है। संतुलन मात्रा की गणना निम्नलिखित प्रकार से होगी-
संतुलन मात्रा = 700 – p
= 700 – 50
= 650 उत्तर

प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु X का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाज़ार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार से है-
qsf = 8+ 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 20
(a) p = 20 का क्या महत्त्व है?
(b) बाज़ार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
हल:
एक वस्तु का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 700 – p (अभ्यास 22 में दिया गया है)
एक एकल फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है-
qsf = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 0
= 0 क्योंकि 0 ≤ P< 20
(a) p = 20 का महत्त्व यह है कि यह फर्मों की न्यूनतम औसत लागत है। इस कीमत स्तर से नीचे एक फर्म वस्तु की पूर्ति के लिए इच्छुक नहीं होगी।

(b) X के लिए बाज़ार में संतुलन 20 रुपए की कीमत पर होगा। जब बाज़ार में फर्मों का प्रवेश और बहिर्गमन निर्बाध रूप से होता है तो बाजार का संतुलन उस कीमत पर होगा जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो। इसी कीमत पर बाजार की माँग और पूर्ति बराबर होगी।

(c) माँग वक्र से हम संतुलन मात्रा का परिकलन कर सकते हैं-
q0 = 700 – 20
= 680
P0 = 20 पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति है-
qsf = 8 + 3p
= 8 + (3 x 20)
= 68
फर्मों की संख्या (n0) = \(\frac{q_{0}}{q_{0 f}}\)
= \(\frac { 680 }{ 68 }\)
= 10 उत्तर

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प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है-
qd = 1000 – p
qs = 700 + 2P
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है
qs = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपए प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
हल:
नमक का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 1000 – p
नमक का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है–
qs = 700 + 2p
(a) संतुलन पर नमक की माँग और नमक की पूर्ति बराबर होंगे-
qd = qs
1000 – p = 700 + 2p
– 3p = 700 – 1000
– 3p = – 300
3p = 300
p = 100
संतुलन कीमत = 100
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 100
= 900 उत्तर

(b) नमक का माँग वक्र है
qd = 100 – p
नमक की नई पूर्ति वक्र है-
qs = 400 – 2p
नए संतुलन के लिए भी qd = qs की शर्त का लागू होना आवश्यक है।
इसलिए
qd = qs
1000 – p = 400 + 2 p
– 3p = 400 – 1000
3p = 600
p = 200
नई संतुलन कीमत = 200
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 200 = 800
संतुलन मात्रा में कमी = 900 – 800
= 100
संतुलन कीमत में वृद्धि = 200 – 100
= 100 उत्तर
ये परिवर्तन हमारी अपेक्षा के अनुकूल हैं। जब नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो वस्तु की लागत में वृद्धि होगी। फलस्वरूप संतुलन कीमत में वृद्धि तथा संतुलन मात्रा में कमी होना स्वाभाविक है।

(c) नमक पर बिक्री कर = 3 रुपए
कर पूर्व माँग वक्र है = 1000 – p
कर पश्चात् माँग वक्र होगा = 1000 – 3 – p
= 997 – p
कर पूर्व पूर्ति वक्र है = 700 + 2p
कर पश्चात् पूर्ति वक्र होगा = 700 + 2 (p – 3)
= 700 + 2p – 6
= 694 + 2p
संतुलन स्थिति है- qd = qs
997 – p = 694 + 2p
3p = 303
p = \(\frac { 303 }{ 3 }\)
p = 101 रुपए
संतुलन कीमत = 101 रुपए
संतुलन मात्रा = 997 – p
= 997 -101
= 896 उत्तर
इस प्रकार 3 रुपए प्रति इकाई के कर के परिणामस्वरूप संतुलन कीमत 100 रुपए से बढ़कर 101 रुपए हो गई है और संतुलन मात्रा 900 से 896 तक घट गई है।

प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाज़ार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेंटों के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है तो इसका अर्थ यह होगा कि सरकार द्वारा निर्धारित किया हआ किराया बाजार द्वारा निर्धारित (संतलन) किराए से कम होगा। इसके परिणामस्वस एपार्टमेंट की पूर्ति उसकी माँग से कम हो जाएगी। इस प्रकार एपार्टमेंट की माँग की तुलना में पूर्ति कम होगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को नियंत्रित किराए पर एपार्टमेंट की पूर्ति स्वयं बढ़ानी होगी। यदि सरकार किसी भी कारणवश ऐसा नहीं कर पाती है तो बाज़ार में कालाबाज़ारी का बोलबाला हो जाएगा।

बाज़ार संतुलन HBSE 12th Class Economics Notes

→ संतुलन वह स्थिति है, जहाँ किसी परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन वहाँ होता है, जहाँ बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति बराबर होती है।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति ।

→ फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत तथा मात्रा, बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है।

→ प्रत्येक फर्म श्रम का उपयोग उस बिंदु तक करती है, जहाँ श्रम का सीमांत संप्राप्ति (आगम) उत्पाद, मजदूरी दर के बराबर होता है। यही बिंदु श्रम की इष्टतम मात्रा का बिंदु होता है।

→ पर्ति वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब माँग वक्र दायीं (बायीं ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है।

→ माँग वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब पूर्ति वक्र दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है तथा संतुलन कीमत में गिरावट (घृद्धि) होती है।

→ जब माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र समान दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो संतलन मात्रा पर इसका प्रभाव सस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलम कीमत पर इसका प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र, दोनों का दायीं ओर शिफ्ट होता है, तो संतलन मात्रा में बद्धि होती है जबकि संतलन कीमत में वृद्धि, कमी हो सकती है अथवा अपरिवर्तित भी रह सकती है। यह माँग और पूर्ति चक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशाओं में शिफ्ट होते हैं, तो संतुलन कीमत पर इसका प्रभाव सुस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलन मात्रा पर प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का बायीं ओर शिफ्ट होना है, तो संतुलन मात्रा में कमी होती है, जबकि संतुलन कीमत ‘ में वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यह माँग और पूर्ति वक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ संतुलन कीमत से कम कीमत का उच्चतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिमाँग उत्पन्न होती है।

→ संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिपूर्ति उत्पन्न होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में समरूपी के साथ यदि फर्मे बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती है, तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के ही बराबर होती है अर्थात् P = न्यूनतम औसत लागत।

→ नर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन होने पर माँग में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं होता, परंतु संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में परिवर्तन माँग की दिशा में परिवर्तन के समान होता है।

→ फर्मों की स्थिर संख्या वाले बाज़ार की तुलना में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाज़ार में माँग वक्र के शिफ्ट का संतुलन मात्रा पर प्रभाव अधिक प्रबल होगा।