Class 12

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जैव प्रोद्योगिकी का उपयोग निम्न में से किस में हो रहा है?
(अ) चिकित्सा शास्त्र में
(ब) निदान सूचक में
(स) जैब सुधार में
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

2. ऐसे पौधे, जीवाणु, कवक व जन्तु जिनके जीस हस्तकौशल द्वारा परिवर्तित किए जा चुके हैं, कहलाते हैं-
(अ) आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव
(ब) कीटनाशक
(स) मिल्वाडेगाइन इनकोगनीशिया
(द) रुपेटवाएड संधिशोथ
उत्तर:
(अ) आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

3. क्राइ 1 एबी निम्न में से किसे नियंत्रित करता है?
(अ) कपास छेदक
(ब) सुनहरा चावल छेदक
(स) मक्षा छेदक
(द) तम्बाकू छेदक
उत्तर:
(स) मक्षा छेदक

4. बच्चों में एडीए की कमी का उपचार किसके प्रत्यारोपण से होता है-
(अ) वृक्क
(ब) यकृत
(स) फुफ्फुस
(द) अस्थिमज्जा
उत्तर:
(द) अस्थिमज्जा

5. निम्न में से पारजीवी जन्तु है-
(अ) चूहे
(ब) खरगोश
(स) सूअर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

6. कम्प्यूटर की तर्ज पर निम्न में से किस तकनीक का विकास हुआ है-
(अ) जीन चिकित्सा
(ब) जीन चिप
(स) DNA अंगुली छापन
(द) हाइब्रिडोमा तकनीक
उत्तर:
(ब) जीन चिप

7. आनुवंशिक रोग में रोगकारी जीन को पहचान कर उसको स्वस्थ जीन द्वारा विस्थापित करने को कहते हैं-
(अ) जीन स्थानान्तरण
(ब) जीन रूपान्तरण
(स) जीन हेर-फेर
(द) जीन थेरेपी
उत्तर:.
(द) उपरोक्त सभी

8. ह्यूमिलिन है-
(अ) एंजाइम
(ब) प्रतिजैविक
(स) इन्सुलिन
(द) वृद्धि हार्मोन
उत्तर:
(स) इन्सुलिन

9. जीन में हेर-फेर से तात्पर्य है-
(अ) आनुवंशिक पदार्थ को जोड़ना
(ब) आनुवंशिक पदार्थ को हटाना
(स) आनुवंशिक पदार्थ को ठीक करना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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10. ट्रांसजैनिक पौधे विकसित किए जाते हैं-
(अ) जीन स्थानान्तरण द्वारा
(ब) रूपान्तरण द्वारा
(स) कलम द्वारा
(द) मुकुलन द्वारा
उत्तर:
(अ) जीन स्थानान्तरण द्वारा

11. बी टी विष (Bt Toxin) में होता है-
(अ) एन्जाइम
(ब) एल्केलाइड
(स) लिपिड
(द) क्राइ प्रोटीन
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

12. बी टी (Bt) जीन युक्त कपास को कहा जाता है-
(अ) किलर कॉटन
(ब) इजिपियन कॉटन
(स) रोमिल कॉटन
(द) देशी कॉटन
उत्तर:
(अ) किलर कॉटन

13. सबसे अधिक ट्रांसजेनिक पादप कहाँ निर्मित हो रहे हैं?
(अ) न्यूजीलैण्ड
(ब) इंग्लैण्ड
(स) स्कॉटलैण्ड
(द) फिनलैण्ड
उत्तर:
(अ) न्यूजीलैण्ड

14. कौनसा जीव प्राकृतिक आनुवंशिक इंजीनियर के नाम से जाना जाता है?
(अ) सूडोमोनास
(ब) एग्रोबेक्टिसिम ह्यूमिफेसिएन्स
(स) ई.कोलाई
(द) एजोटे बेक्टर
उत्तर:
(ब) एग्रोबेक्टिसिम ह्यूमिफेसिएन्स

15. खनिज तेलों के विघटक के रूप में जैव प्रौद्योगिकीय उपयोगिता का उदाहरण है-
(अ) बायोसेन्सर
(ब) बायोचिप
(स) बायोफिल्म
(द) सुपर बग
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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16. कीटों के लिए प्रतिरोधी जीन निम्न में से किसमें पाया जाता है?
(अ) बैसीलस थूरिजिन्जएन्सिस
(ब) बैसीलस सबटिलिस
(स) बैसीलस एन्थ्रेसिस
(द) सूडोमोनास पूटिडा
उत्तर:
(अ) बैसीलस थूरिजिन्जएन्सिस

17. निम्न में से किसका जीनोम इन्टरनेट पर जारी हो चुका है?
(अ) गोल्डन राइस
(ब) एरेकिस हाइपोजिया
(स) सोलेनम ट्यूबरोसम
(द) एलियम सिपा
उत्तर:
(अ) गोल्डन राइस

18. बैसिल थूरीनजिएंसीस से निर्मित प्रोटीन कौनसे विशिष्ट कीटों को मारने में सहायक है-
(अ) लीथोडोप्टेशन
(ब) कोलियोप्टेरान
(स) डीप्टेशन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

19. आनुर्वंशिक रोग के समय पैदा हुए व्यक्ति का किस विधि से उपचार सम्भव है?
(अ) जीन चिप
(ब) जीन चिकित्सा
(स) आणविक निदान
(द) बायोसेन्सर
उत्तर:
(ब) जीन चिकित्सा

20. मानव प्रोटीन (अल्फा-1 एंट्रीट्रिप्सीन) का उपयोग किसके निदान में होता है-
(अ) सिस्टिक फाइब्रोसिस
(ब) कैंसर
(स) इंफासीमा
(द) एड्स
उत्तर:
(स) इंफासीमा

21. मानव में बौनेपन के उपचार हेतु किस वृद्धि हॉर्मोन का निर्माण किया गया है?
(अ) एन्डोर्फिन
(ब) ह्यमिलिन
(स) प्रोटोपिन
(द) कोकीन
उत्तर:
(स) प्रोटोपिन

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22. जैव प्रौद्योगिकी की तकनीकी का सबसे अधिक उपयोग किस क्षेत्र में किया गया है?
(अ) उद्योगों में
(ब) कृषि में
(स) बायो गैस निर्माण में
(द) औषध क्षेत्र में
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

23. भारतीय मूल का फसली पौधा जिसका अमेरिका ने पेटेन्ट करवा लिया है-
(अ) ज्वार
(ब) बाजरा
(स) बासमती चावल
(द) गेहुं
उत्तर:
(स) बासमती चावल

24. किन देशों द्वारा जैव अनैतिकता की जा रही है-
(अ) औद्योगिक सम्पन्न देश
(ब) प्रौद्योगिकी सम्पन्न देश
(स) वित्तीय सम्पन्न देश
(द) उपरोक्त सभी के द्वारा
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

25. सुनहरा चावल एक बहुत ही सम्भावनापूर्ण पारजीनी फसल है। कृषि में उतारने पर यह किस चीज में सहायक होगा?
(अ) विटामिन A का अभाव दूर करने में
(ब) पीड़क प्रतिरोध में
(स) शाकनाशी सहनता से
(द) चावल से एक पेट्रोल-ईंधन बनाने में
उत्तर:
(अ) विटामिन A का अभाव दूर करने में

26. 1977 में सर्वप्रथम किस गाय से मानव सम्पन्न दुग्ध (2.4 ग्राम प्रति लीटर) प्रास किया गया?
(अ) पारजीवी गाय रोजी
(ब) पारजीवी गाय सोजी
(स) पारजीवी गाय जर्सी
(द) पारजीवी गाय पीजी
उत्तर:
(अ) पारजीवी गाय रोजी

27. रोजी गाय के दूध में क्या मिलता है जो साधारण गाय के दूध में नहीं मिलता है?
(अ) मानव एल्फा-लेक्टएल्बुमिन
(ब) मानव बीटा-लेक्टएल्बुमिन
(स) मानव डेल्य-लेकटएल्खुमिन
(द) मानव गामा-लेक्टएल्बुमिन
उत्तर:
(अ) मानव एल्फा-लेक्टएल्बुमिन

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28. निम्न में पीड़क प्रतिरोधी फसल है-
(अ) Bt कपास
(ब) Bt मक्का
(स) टमाटर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

29. बासमती धान अपनी सुगंध व स्वाद के लिए मशहूर है। इसकी कितनी किस्में भारत में उगाई जाती हैं?
(अ) 25 किस्में
(ब) 26 किस्में
(स) 27 किस्में
(द) 28 किस्में
उत्तर:
(स) 27 किस्में

30. ऐसे जन्तुओं जिनके डी.एन.ए, में परिचालन द्वारा एक अतिरिक्त (बाहरी) जीन व्यर्वस्थित होता है जो अपना लक्षण व्यक्त करता है उसे कहते हैं-
(अ) पारजीवी पादप
(ब) पारजीवी जन्तु
(स) पारजीवी कवक
(द) पारजीवी शैवाल
उत्तर:
(ब) पारजीवी जन्तु

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किसमें हो रहा है ?
उत्तर:
इसका उपयोग चिकित्साशास्त्र, निदानसूचक (diagnostics), कृषि में आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलें, संसाधित खाद्य (processed food), जैव सुधार (bioremediation), अपशिष्ट प्रतिपादन व ऊर्जा उत्पादन में हो रहा है।

प्रश्न 2.
खाद्य उत्पादन में वृद्धि के लिये किन तीन संभावनाओं के विषय में सोचा जा सकता है ?
उत्तर:

  • कृषि रसायन आधारित कृषि,
  • कार्बनिक कृषि और
  • आनुवंशिकतः निर्मित फसल आधारित कृषि।

प्रश्न 3.
वे जीव जिनके जींस हस्तकौशल द्वारा परिवर्तित किये जा चुके हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर:
आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव (Genetically modified organism=(GMO) ।

प्रश्न 4.
जी एम ओ का व्यवहार किस पर निर्भर करता है ?
उत्तर:
इनका व्यवहार स्थानांतरित जीन की प्रकृति, परपोषी पौधों, जंतुओं या जीवाणुओं की प्रकृति व खाद्य जाल पर निर्भर करता है।

प्रश्न 5.
जैव प्रौद्योगिकी के सहयोग से तैयार की गई पीड़क फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बी टी कपास, बी टी मक्का, धान, टमाटर व आलू तथा सोयाबीन।

प्रश्न 6.
बी टी विष (BT toxin) प्रोटीन किसके द्वारा उत्पन्न होता है?
उत्तर:
बैसीलस थूरीनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा।

प्रश्न 7.
बी टी विष किस जीन द्वारा कूटबद्ध होता है ?
उत्तर:
जींस को क्राई (cry) कहते हैं।

प्रश्न 8.
RNi का पूर्ण नाम लिखिए, यह क्या है?
उत्तर:
आर एन ए अंतरक्षेप (RNA interference) पूर्ण नाम है, यह सभी ससीमकेन्द्रकी (eukaryotes) जीनों में कोशिकीय सुरक्षा की एक विधि है।

प्रश्न 9.
वर्तमान में कितनी पुनर्योगज चिकित्सीय औषधियाँ विश्व में मानव प्रयोग हेतु स्वीकृत हो चुकी हैं व भारत में कितनी विपणित हो रही हैं?
उत्तर:
वर्तमान में लगभग 30 पुनर्योगज चिकित्सीय औषधियाँ विश्व में मानव के प्रयोग हेतु स्वीकृत हो चुकी हैं। वर्तमान में इनमें से 12 भारत में विपणित हो रही हैं।

प्रश्न 10.
आणविक निदान के लिये जब रोग के लक्षण स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं तो इसकी पहचान किसके द्वारा करते हैं?
उत्तर:
इसकी पहचान PCR द्वारा उनके न्यूक्लिक अम्ल के प्रवर्धन (amplification) द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 11.
जीन चिकित्सा किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीन चिकित्सा वह पद्धति है जिसके द्वारा आनुवंशिक रोग के साथ पैदा होने वाले जातकों का उपचार किया जाता है।

प्रश्न 12.
बायोपाइरेसी किसे कहते हैं?
उत्तर:
मल्टीनेशनल कम्पनियों व दूसरे संगठनों द्वारा किसी राष्ट्र या उससे सम्बन्धित लोगों से बिना व्यवस्थित अनुमोदन व क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है।

प्रश्न 13.
आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा रूपान्तरित जीवाणु उत्पाद का नाम लिखिए जिसका हृदयाघात के अग्रग मायोकार्डियल संक्रमण से गुजरे रोगी की रक्त वाहिकाओं से थक्का हटाने यानि ‘थक्का स्फोटन’, में उपयोग किया जाता है।
उत्तर:
स्ट्रैप्टोकाइनेज।

प्रश्न 14.
आनुवंशिक रोग से ग्रसित शिशु के रोगोपचार के लिए उपयुक्त चिकित्सा व्यवस्था का नाम लिखिए।
उत्तर:
जीन चिकित्सा।

प्रश्न 15.
आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ऐसे पौधे, जीवाणु, कवक व जंतु जिनके जींस (genes) हस्तकौशल द्वारा परिवर्तित किये जा चुके हैं, आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव (genetically modified organism) कहलाते हैं।

प्रश्न 16.
रोग जनकों के द्वारा उत्पन्न संक्रमण की पहचान कैसे की जाती है?
उत्तर:
रोग जनकों के द्वारा उत्पन्न संक्रमण की पहचान प्रतिजनों (प्रोटीनजन, ग्लाइकोप्रोटीस आदि) की उपस्थिति या रोग जनकों के विरुद्ध संश्लेषित प्रतिरक्षी की पहचान के आधार पर की जाती है।

प्रश्न 17.
उस जीवाणु का वैज्ञानिक नाम लिखिए जिससे Bt जीव विष निर्मित होता है।
उत्तर:
बैसीलस थुरीनजिएंसीस।

प्रश्न 18.
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का एक उपयोग बताइए।
उत्तर:
आनुवंशिकतः निर्मित इन्सुलिन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव प्रौद्योगिकी के तीन विवेचनात्मक अनुसंधान क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
इसके तीन विवेचनात्मक अनुसंधान क्षेत्र निम्न हैं-

  • उन्नत जीवों जैसे-सूक्ष्मजीवों या शुद्ध एंजाइम के रूप में सर्वोत्तम उत्प्रेरक का निर्माण करना।
  • उत्प्रेरक के कार्य हेतु अभियांत्रिकी द्वारा सर्वोत्तम परिस्थितियों का निर्माण करना।
  • अनुप्रवाह प्रक्रमण तकनीक का प्रोटीन/कार्बनिक यौगिक के शुद्धीकरण में उपयोग करना।

प्रश्न 2.
हरित क्रांति के बावजूद कोई इस प्रकार का वैकल्पिक रास्ता है जिससे खादों व रसायनों का न्यूनतम उपयोग कर सर्वाधिक उत्पादन लिया जा सकता है?
उत्तर:
यद्यपि हरित क्रांति से खाद्य आपूर्ति को बढ़ाकर खाद्य समस्या को हल किया गया है। उत्पादन में यह वृद्धि उन्नत किस्मों का उपयोग, उत्तम प्रबंधकीय व्यवस्था और कृषि रसायनों (खादों तथा पीड़कनाशकों) के प्रयोगों के कारण हुआ है। परन्तु रसायन व खादों का उपयोग एक मंहगी प्रक्रिया है तथा पर्यावरण पर भी हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।

अतः अब किसान आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलों का उपयोग कर अधिक उत्पादन ले सकेंगे। ये फसलें कम खाद व रसायन का उपयोग चाहने वाली होती हैं तथा इससे पर्यावरण पर भी कम हानिकारक प्रभाव होते हैं।

प्रश्न 3.
जीन चिकित्सा (Gene therapy) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यदि एक व्यक्ति आनुवंशिक रोग के साथ पैदा हुआ है, क्या इस रोग के उपचार हेतु कोई चिकित्सा व्यवस्था है? जीन चिकित्सा ऐसा ही एक प्रयास है। जीन चिकित्सा में उन विधियों का सहयोग लेते हैं जिनके द्वारा किसी बच्चे या भूरण में चिह्नित किए गए जीन दोषों का सुधार किया जाता है।

उसमें रोग के उपचार हेतु जीनों को व्यक्ति की कोशिकाओं या उतकों में प्रवेश कराया जाता है। आनुवंशिक दोष वाली कोशिकाओं के उपचार हेतु सामान्य जीन को व्यक्ति या भ्रूण में स्थानांतरित करते हैं जो निष्क्रिय जीन की क्षतिपूर्ति कर उसके कार्यों को संपन्न करते हैं।

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प्रश्न 4.
जैव अनैतिकता या अपहरण (Biopiracy) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ व दूसरे संगठनों द्वारा किसी राष्ट्र या उससे सम्बन्धित व्यक्तियों से बिना व्यवस्थित अनुमोदन व क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग करना जैव अनैतिकता या अपहरण कहलाता है। अनेक औद्योगिक राष्ट्र जो आर्थिक रूप से अत्यधिक सम्पन्न हैं परन्तु उनके पास जैव विविधता व परंपरागत ज्ञान की कमी है।

ठीक इसके विपरीत विकसित व अविकसित देश जैव विविधता व जैव संसाधनों से सम्बंधित परंपरागत ज्ञान से सम्पन्न हैं। ऐसे देशों से आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ राष्ट्र जैव अनैतिकता या अपहरण का कार्य करते हैं। इसी कारण विकसित व विकासशील राष्ट्रों के बीच अन्याय, अपर्याप्त क्षतिपूर्ति व लाभों की भागीदारी के प्रति भावना विकसित हो रही है।

प्रश्न 5.
जैव अनैतिकता (Biopiracy) को किसी उपयुक्त उदाहरण से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैविक अनैतिकता या अपहरण को स्पष्ट करने के लिये एक उदाहरण दिया जा रहा है। पशिमी अफ्रीका में एक पौधा पेन्टाडिप्लेन्ड्रा ब्रेजीइयाना (Pentadiplandra brazzeana) पाया जाता है। इस पौधे से ब्रेजीन (brazzein) नामक एक प्रोटीन का उत्पादन होता है जो कि शर्करा की तुलना में 2000 गुना मीठा होता है।

प. अफ्रीका के लोग इसके उपयोग के विषय में जानते हैं। इससे शक्कर का निर्यात करने वाले देशों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः इस प्रकार परंपरागत उपयोग का ज्ञान अर्जित कर वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रवेश करा, लाभ अर्जित की दृष्टि रखकर जैव स्रोतों का अपहरण करते हैं, इसे जैव अपहरण या अनैतिकता कहते हैं।

प्रश्न 6.
” कुछ जीवाणुओं द्वारा संश्लेषित बी टी (Bt) आविष प्रोटीन के रवे कीटों को तो मार देते हैं परन्तु स्वयं को नहीं।” कथन को कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वास्तव में बी टी जीव-विष प्रोटीन, प्राक्जीव विष निष्क्रिय रूप में होता है, ज्यों ही कीट इस निष्क्रिय जीव-विष को खाता है, इसके रवे आँत में क्षारीय पी.एच. के कारण घुलनशील होकर सक्रिय रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। सक्रिय जीव विष मध्य आँत के उपकलीय कोशिकाओं की सतह से बँधकर उसमें छिद्रों का निर्माण करते हैं, जिस कारण से कोशिकाएँ फूलकर फट जाती हैं और परिणामस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 7.
जी.एम. पौधों के उपयोग से होने वाले कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
आनुवंशिकतः रूपान्तरित फसलों (GM Crops) का उपयोग लाभदायक है क्योंकि आनुवंशिक रूपांतरण द्वारा-

  • अजैव प्रतिबलों (ठंडा, सूखा, लवण, ताप) के प्रति अधिक सहिष्णु फसलों का निर्माण
  • रासायनिक पीड़कनाशकों पर कम निर्भरता करना (पीड़कनाशी-प्रतिरोधी फसल)
  • कटाई के पश्चात् होने वाले (अन्नादि) नुकसानों को कम करने में सहायक”
  • पौधों द्वारा खानिज उपयोग क्षमता में वृद्धि (यह शीघ्र मृदा उर्वरता समापन को रोकता है)
  • खाद्य पदार्थों के पोषणिक स्तर में वृद्धि; उदाहरणार्थविटामिन ए समृद्ध धान।

उपरोक्त उपयोगों के साथ-साथ जी एम का उपयोग तदनुकूल पौधों के निर्माण में सहायक है, जिनसे वैकल्पिक संसाधनों के रूप में उद्योगों में वसा, ईंधन व भेषजीय पदार्थों की आपूर्ति की जाती है।

प्रश्न 8.
किसी बच्चे या भ्रूण में चिह्नित किये गए जीन दोषों का उपचार किस तकनीक द्वारा किया जाता है? उदाहरण द्वारा समझाइये।
उत्तर:
जीन चिकित्सा द्वारा किसी बच्चे या भ्रूण में चिद्धित किए गए जीन दोषों का सुधार किया जाता है। इसमें रोग के उपचार हेतु जीनों को व्यक्ति की कोशिकाओं या ऊतकों में प्रवेश कराया जाता है। आनुवंशिक दोष वाली कोशिकाओं के उपचार के लिये सामान्य जीन को व्यक्ति या भूर्ण में स्थानांतरित करते हैं जो निष्क्रिय जीन की क्षतिपूर्ति कर उसके कार्यों को सम्पन्न करते हैं।

सर्वप्रथम जीन चिकित्सा का प्रयोग वर्ष 1990 में एक चार वर्षीय लड़की में एडीनोसीन डिएमीनेज (ADA) की कमी को दूर करने के लिये किया गया था। यह एन्जाइम प्रतिरक्षातंत्र के कार्य के लिये अति आवश्यक होता है। यह कमी इसलिए हो जाती है क्योंकि एडीनोसीन डिएमीनेज के लिये जिम्मेदार जीन लुप्त हो जाती है।

जीन चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी के रक्त में से लसीकाणु (Lymphocytes) को निकालकर शरीर से बाहर संवर्धन किया जाता है। सक्रिय ADA का cDNA (पश्च विषाणु संवाहक का प्रयोग कर) लसीकाणु में प्रवेश कराकर अंत में रोगी के शरीर में वापस कर दिया जाता है। ये कोशिकाएँ मृतप्राय: होती हैं, इसलिये आनुवंशिक निर्मित लसीकाणुओं को समयसमय पर रोगी के शरीर से अलग करने की आवश्यकता होती है। यदि मज्जा कोशिकाओं (bone marrow) से विलगित अच्छे जीनों को प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं से उत्पादित ADA में प्रवेश करा दिया जाए तो यह एक स्थायी उपचार हो सकता है।

प्रश्न 9.
मधुमेह रोगियों को यदि असंसाधित प्राक् इन्सुलिन दिया जाए तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मानव सहित स्तनधारियों में इन्सुलिन प्राक्-हार्मोन (प्राक् एन्जाइम की जैसे प्राक्-हार्मोन को पूर्ण परिपक्व व क्रियाशील हार्मोन बनने से पूर्व संसाधित होने की आवश्यकता होती है) संश्लेषित होता है; जिसमें एक अतिरिक्त फैलाव होता है जिसे पेप्टाइड ‘सी’ कहते हैं। यह ‘सी’ पेप्टाइड परिपक्व इन्सुलिन में नहीं होता, जो परिपक्वता के दौरान इन्सुलिन से पृथक् हो जाता है। अतः मधुमेह रोगियों को संसाधित प्राक् इन्सुलिन देने पर नियंत्रण पाया जाता है। असंसाधित प्राक् इन्सुलिन से नियंत्रण नहीं किया जा सकता।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. Bt कपास की किस्म जो बैसिलस थुर्रिजनिसिस के विष जीन को समाविष्ट करके बनाई गयी प्रतिरोधी है- (NEET-2020)
(अ) कवकीय रोगों से
(ब) पादप सूत्रकृमि से
(स) कीट परभक्षी से
(द) कीट पीड़कों से
उत्तर:
(द) कीट पीड़कों से

2. निम्न स्तम्भों का,मिलान कर सही विकल्प का चयन करो- (NEET-2020)

स्तम्भ-Iस्तम्भ-II
1. बीटी कपास(i) जीन चिकित्सा
2. एडीनोसीन डिएमीनेज(ii) कोशिकीय सुरक्षा
3. आर.एल.ए. आई.(iii) HIV संक्रमण का पता लगाना
4. पी.सी.आर.(iv) वैसिलस थुरिजिनिसिस
कूट(1)(2)(3)(4)
(अ)(iii)(ii)(i)(iv)
(ब)(ii)(iii)(iv)(i)
(स)(i)(ii)(iii)(iv)
(द)(iv)(i)(ii)(iii)
(द)(iv)(i)(ii)(iii)

3. निम्न में कौनसा कथन सही नहीं है- (NEET-2020)
(अ) प्राक्-इन्सुलिन में एक अतिरित्क पेप्टाइड, जिसे सी-पेप्यइड कहते हैं, होती है
(ब) कार्यांत्मक इंसुलिन में A एवं B शृंखलाएँ होती है जो हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़ी होती है
(स) आनुवंशिक इंजीनियरी इंसुलिन ई-कोलाई द्वारा उत्पादित होता है
(द) मनुष्य में इंसुलिन प्राक्-इंसुलिन से संश्लेषित होता है।
उत्तर:
(ब) कार्यांत्मक इंसुलिन में A एवं B शृंखलाएँ होती है जो हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़ी होती है

4. जीव को उनके जैव प्रौद्योगिंकी में उपयोग के लिए सुमेलित कीजिए। (NEET-2020)

(अ) बैसिलस धुरिनाजिनिसिस(i) क्लोसिक वेक्टर
(ब) थर्मस एक्वेटिकस(ii) प्रथम rDNA अपु का निर्माय
(स) एग्रोयैक्टिसियम ट्यूसिफेसिएंस(iii) डी.एन.ए, पॉलिमरेज
(द) साल्मोनेला(iv) Cry प्रोटीन
कूट(1)(2)(3)(4)
(अ)(iv)(iii)(i)(ii)
(ब)(iii)(ii)(iv)(i)
(स)(iii)(iv)(i)(ii)
(द)(ii)(iv)(iii)(i)

उत्तर:

(अ)(iv)(iii)(i)(ii)

5. गोल्डन चावल के विषय में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है- (NEET-2019)
(अ) चावल की एक आध किस्म से जीन निवेशन के कारण इसके दाने पीले हैं।
(ब) यह डैफोडिल के जीन वाला विटामिन-ए प्रचुरित है।
(स) यह वैसिलस थुर्रिजिएसिस के जीन वाला पीड़क प्रतिरोधी है।
(द) एग्रोबैक्टीरियम वेक्टर का उपयोग कर विकसित किया गया है।
उत्तर:
(ब) यह डैफोडिल के जीन वाला विटामिन-ए प्रचुरित है।

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6. गोलभ शरलभ कृमि में वैसिलस धुर्रिजिएसिस के Bt आविष को सक्रिय करने के लिए प्रोटोक्सीन की सक्रियता किससे प्रेरित होती है? (NEET-2019)
(अ) आमाशय की अम्लीय pH
(ब) शरीर का तापमान
(स) मध्य आंत की नमी वाली सतह
(द) आंत की क्षारीय pH
उत्तर:
(द) आंत की क्षारीय pH

7. एक विदेशी कम्पनी द्वारा चावल की एक नई किस्म को पेटेन्ट किया गया था, यद्यपि ऐसी किस्में भारत में लम्बे समय से विद्यमान हैं। यह किससे सम्यन्धित है? (NEET-2018)
(अ) लेमो रोजो
(ब) शर्बती सोनोरा
(स) Co-667
(द) बासमती
उत्तर:
(द) बासमती

8. मानव लसिकाणुओं मे डी.एन.ए. के एक टुकड़े के निवेशन के लिए निम्नलिखित में से कौनसा वेक्टर सामान्यतः प्रयुक्त किया जाता है? (NEET-2018)
(अ) λ फाज
(ब) Ti प्लाज्मिड
(स) रेट्रोबाइरस
(द) pBR322
उत्तर:
(स) रेट्रोबाइरस

9. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और संगठनों द्वारा किसी देश या उसके लोगों की बिना अनुज्ञति के जैव संसाधनों के उपयोग को क्या कहा जाता है? (NEET-2018)
(अ) जैव अपघटन
(ब) बायोपाइरेसी
(स) जैब-उल्लंघन
(द) जैव शोषण
उत्तर:
(ब) बायोपाइरेसी

10. तम्बाकू के पौधे का कौनसा भाग मिलेइड्डोगाइन इन्कोग्रिटा द्वारा संक्रमित होता है? (NEET-2016)
(अ) तना
(ब) जड़
(स) पुष्प
(द) पत्ती
उत्तर:
(ब) जड़

11. वर्ष 1990 में एडिनोसीन डीऐमिनेज (ADA) की कमी से पीड़ित चार वर्ष की बालिका को निम्नलिखित से कौनसी चिकिल्सा दी गई? (NEET II-2016)
(अ) प्रतिरक्षा चिकिल्सा
(ब) विकिरण चिकिल्सा
(स) जीन चिकिल्सा
(द) रसायन चिकित्सा
उत्तर:
(स) जीन चिकिल्सा

12. सुनहरे (गोल्डन) चावल एक आनुवंशिक रूपान्तरित फसल पादप है। इसमें निवेशित जीन किसके जैविक संश्लेषण के लिए हैं? (NEET-2015)
(अ) विटामिन C
(ब) ओमेगा
(स) विटामिन A
(द) विटामिन B
उत्तर:
(स) विटामिन A

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

13. पादर्पों में t.DNA (tDNA) के प्रवेश से क्या होता है? (NEET-2015)
(अ) मृदा के pH में बदलाव आता है और पादप में प्रघात होता है।
(ब) पादर्पों को थोड़े अल्पकाल के लिए शीत में उद्भासित करना पड़ता है।
(स) पादप मूलों को जल में खड़े रहने देता है।
(द) पादप में एग्रोबेक्टिरियम ट्यूमिफेशिएन्स द्वारा संक्रमित होता है।
उत्तर:
(द) पादप में एग्रोबेक्टिरियम ट्यूमिफेशिएन्स द्वारा संक्रमित होता है।

14. पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादित पहला मानव हॉमोंन कौनसा है? (NEET-2014)
(अ) इंसुलिन
(ब) एस्ट्रोजन
(स) धॉयरॉक्सिन
(द) प्रोजेस्ट्रान
उत्तर:
(अ) इंसुलिन

15. निम्नलिखित Bt फसलों में से कौनसी फसल भारत में किसानों द्वारा उगाई जा रही है? (NEET-2013)
(अ) मक्का
(ब) कपास
(स) बैंगन
(द) सोयाबीन
उत्तर:
(ब) कपास

16. सबसे पहले नैदनिक जीन चिकित्सा किसके उपचार के लिए दी गई थी? (Mains-2012)
(अ) मधुमेह
(ब) छोटी माता
(स) रुमेठी गठिया
(द) एडीनोसीन डीएमीनेज अल्पता
उत्तर:
(द) एडीनोसीन डीएमीनेज अल्पता

17. विटामिन ‘A’ की कमी से आने वाला अंधापन किसके उपयोग से रोका जा सकता है? (CBSE PMT-2008, 2012, Mains-2012)
(अ) फ्लेवर सैवर टमाटर
(ब) कैनोला
(स) गोल्डन चावल
(द) Bt बैंगन
उत्तर:
(स) गोल्डन चावल

18. तम्बाकू के सूत्रकृमि-प्रतिरोधी पौधे बनाने के लिए उनमें DNA प्रवेश कराया गया जिससे (परपोषी कोशिकाओं के भीतर) किसका बनना संभव हुआ? (NEET-2012)
(अ) अर्थ तथा प्रति-अर्थ दोनों प्रकार का RNA
(ब) एक विशिष्ट हॉर्मोन
(स) एक एन्टीफीडेन्ट (प्रति भोज्य)
(द) एक विषाक्त प्रोटीन
उत्तर:
(अ) अर्थ तथा प्रति-अर्थ दोनों प्रकार का RNA

19. वर्तमान पारजीनी जन्तुओं में से इस समय सबसे अधिक संख्या किसकी है? (NEET-2011)
(अ) मछली
(ब) मूषक
(स) गाय
(द) सूअर
उत्तर:
(ब) मूषक

20. m.RNA की साइलेंसिग किसके प्रतिरोधी ट्रांसजैनिक पादप उत्पादन में उपयुक्त है? (NEET-2011)
(अ) बैक्टोरियल ब्नाइटस
(ब) बालवर्स
(स) नीमेटोद्धस
(द) काइट रस्ट
उत्तर:
(ब) बालवर्स

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21. पौधों में RVA इन्टरफिरेन्स प्रक्रिया (RVAI) का उपयोग किसके विरद्ध प्रतिरोध विकास करने के लिए किया गया है? (NEET-2011)
(अ) सूत्रकृमियों के
(ब) कवकों के
(स) वाइरसों के
(द) कीटों के
उत्तर:
(अ) सूत्रकृमियों के

22. बंसिलस थुरिजिएंसिस प्रोटीन क्रिस्टल बनाते हैं, जो कीट प्रतिरोधी प्रोटीन होती है, यह प्रोटीन- (NEET-2011)
(अ) वाहक जीवाणु को नहीं मारते क्योंकि वह स्वयं में विष के प्रति प्रतिरोधी होता है
(ब) कीट की मध्य-आहार नली की उपकलीय कोशिका द्वारा जुड़ी रहती है। अंततः इसे मार देते हैं।
(स) क्राई जीन सहित कई जीनों द्वारा कोडिल होती है।
(द) कीट की अग्र आहार नली अम्लीय pH द्वारा सक्रिय होती है।
उत्तर:
(ब) कीट की मध्य-आहार नली की उपकलीय कोशिका द्वारा जुड़ी रहती है। अंततः इसे मार देते हैं।

23. भारत में आनुवंशिकतः रूपान्तरित (GM) बैंगन किसके लिए विकसित किया गया है? (NEET-2010)
(अ) शेल्फ लाइफ (ताजा बनाए रखने) की अवधि बढ़ाना
(ब) खनिज तत्वों की मात्रा बढ़ाना
(स) सूखा प्रतिरोधी
(द) कीट प्रतिरोधी
उत्तर:
(द) कीट प्रतिरोधी

24. निम्नलिखित में से किस एक का जैव प्रौद्योगिकी विधि द्वारा व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है? (Mains-2010)
(अ) मोर्फीन
(ब) कुनैन
(स) इंसुलिन
(द) निकोटिन
उत्तर:
(स) इंसुलिन

25. बी टी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं परन्तु जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं क्योंकि- (NCERT-2009)
(अ) आविष अपरिपक्व है
(ब) जीवाणु आविष के लिये प्रतिरोधी है
(स) आविष निष्क्रिय होता है
(द) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है
उत्तर:
(द) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है

26. प्लाज्मिड्स उपस्थित होते हैं- (RPMT-2009)
(अ) विषाणुओं में
(ब) जीवाणुओं में
(स) कवकों में
(द) वायरॉंड्डस में
उत्तर:
(ब) जीवाणुओं में

27. भारतीय पौर्धों में विदेशी DNA स्थानांतरण में सामान्यत: प्रयोग की जाती है- (CBSE AIPMT-2009)
(अ) ट्राइकोडर्मा हाजीएवम
(ब) मेलोइडोगाइन इन्कोंग्नीटा
(स) एल्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेसिएन्स
(द) पेनीसीलिखन एक्सपेन्सम
उत्तर:
(स) एल्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेसिएन्स

28. निम्नलिखित में से किस एक की पारजीनी स्पीशीज से मानव इंसुलिन का व्यापरिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है ? (NEET-2008)
(अ) राइकोषियम
(ब) सेकैरामाइसीज
(स) एशरिश्चिया
(द) माइक्रोबैक्टौरियम
उत्तर:
(स) एशरिश्चिया

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29. धैसिलस धुर्रिर्जिएसिस से प्रात काई I एंडोटौंज्सिन किसके प्रति कारगार होते हैं? (NEET-2008)
(अ) नीमेयेक
(ब) वॉलवर्म
(स) मच्छ
(द) मखिख्यां
उत्तर:
(ब) वॉलवर्म

30. बायोपाइरेसौ सम्बन्धित है- (Maharashtra-2008)
(अ) मैव अणु तथा जौन्स की खोज से
(ब) परम्परागात ज्ञान से
(स) जैव अनुसंधान से
(द) उपरोक्त सभी से
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी से

31. गोल अधिप्लाव (छलकन) के गैषोपयार में सफलतापूर्वक उपयोग की जाने वाली आनुर्बशिकता इंजीनियरिंग सूक्ष्मजौब स्पौशीज किसकी है? (NEET-2007)
(अ) बेसिलस
(ब) स्यूडोमोन्तास
(स) ट्राइकोडमां
(द) जै घोमोनास
उत्तर:
(ब) स्यूडोमोन्तास

32. वाहल परीक्षण किसके निदान से सम्बन्धित है- (RPMT-2006)
(अ) यइ्फाइड
(ब) कोलेरा
(स) मलेरिया
(द) पीत ज्वर
उत्तर:
(अ) यइ्फाइड

33. लींच (जॉंक) कौन-सा प्रतिथक्कारी (anticoagulant) प्दार्थ युक्ति करता है- (AIIMS-2005)
(अ) हिपेरिन
(ब) हिराडिन
(स) हिस्ट्यमीन
(द) सीरोट्रोनिन
उत्तर:
(ब) हिराडिन

34. Bt टोंक्सिन है- (Wardha-2005)
(अ) अंतःकोशिकीय लिपिड
(ब) अन्तःकोशिकीय श्रिस्टलित प्रोटीन
(स) घाछ्म कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन
(द) लिपिक्ध किया जाता है-
उत्तर:
(स) घाछ्म कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन

35. बैसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bt) विभेद अपूर्व कार्य के लिये प्रयोग किया जाता है- (CBSE-2005)
(अ) बायोमेटलर्जिक तकनीक
(ब) बायोइन्सेक्टीसाइड्स पौधे
(स) जैव उर्वरक
(द) बायोमिनरेलाइजेशन प्रक्रम
उत्तर:
(ब) बायोइन्सेक्टीसाइड्स पौधे

36. Ti प्लाज्मिड जो आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होता है, प्राप्त होता है- (UP CPMT-2004)
(अ) ईश्चेरिचिया कोलाई से
(ब) बैसीलस थूरिनजिएन्सिस से
(स) एग्रोबैक्टीरियम राइजोजीन्स से
(द) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशिएन्स से
उत्तर:
(द) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशिएन्स से

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37. जीन थैरेपी का उदाहरण है- (AIMS-2004)
(अ) प्रविष्ट योग्य हिपेटाइटिस B वेक्सीन का उत्पादन
(ब) भोज्य फसलों में वेक्सीन का उत्पादन
(स) सीवियर कम्बाइन इम्यूनोडेफिफियन्सी से ग्रसित मनुष्यों में एडीनोसीन डीएमीनेज के लिए जीन्स का प्रवेश
(द) निषेचित अण्डों के प्रत्यारोपण और कृत्रिम इन्सेमिनेशन के द्वारा टेस्ट ट्यूब बेबी का उत्पादन
उत्तर:
(स) सीवियर कम्बाइन इम्यूनोडेफिफियन्सी से ग्रसित मनुष्यों में एडीनोसीन डीएमीनेज के लिए जीन्स का प्रवेश

38. एलिसा को विषाणुओं की पहचान में उपयोग किया जाता है जिसमें मुख्य अभिकर्मक होता है- (NEET-2003)
(अ) क्षारीय फास्फेटेज
(ब) कैटेलेज
(स) DNA प्रोब
(द) RNase
उत्तर:
(अ) क्षारीय फास्फेटेज

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. निम्नलिखित कथन प्रतिबंधन एण्ड्रोन्यूक्लिएज एंजाइम के लक्षणों का वर्णन करते हैं। गलत कथन को चुनिए-
(अ) यह एंजाइम डी.एन.ए. पर एक विशिष्ट पैलीन्ड्रोमिक न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम की पहचान करता है।
(ब) यह एंजाइम डी.एन.ए, पर पहचाने हुए स्थान पर डी.एन.ए. अणु को काटता है।
(स) यह एंजाइम डी.एन.ए. को विशेष स्थलों पर जोड़ता है और दो में से केवल एक लड़ी को काटता है।
(द) यह एंजाइम प्रत्येक लड़ी पर विशेष स्थलों पर शर्कराफास्फ्रेट रज्जु को काटता है।
उत्तर:
(स) यह एंजाइम डी.एन.ए. को विशेष स्थलों पर जोड़ता है और दो में से केवल एक लड़ी को काटता है।

2. विलोदित टैक जैव रिऐक्टर किस लिए अभिकल्पित किए गए हैं?
(अ) सारी प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन की प्राप्यता बनाए रखने के लिए
(ब) प्रवर्धन नलिका में अवायवीय दशाओं को बनाये रखने के लिए
(स) उत्पादों के शुद्धिकरण के लिए
(द) उत्पादों में परिरक्षकों को मिलाने के लिए
उत्तर:
(अ) सारी प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन की प्राप्यता बनाए रखने के लिए

3. निम्नलिखित में से कौनसा अनुप्रवाह प्रक्रमण का एक अवयव नहीं है ?
(अ) परिरक्षण
(ब) अभिव्यक्ति
(स) पृथक्करण
(द) शुद्धिकरण
उत्तर:
(ब) अभिव्यक्ति

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4. निम्नलिखित में से कौनसा एक प्लाज्मिड का अभिलक्षण नहीं है?
(अ) स्थानान्तरण योग्य
(ब) एकल-रज्जुकीय
(स) स्वतंत्र प्रतिकृतीयन
(द) वृत्तीय संरचना
उत्तर:
(ब) एकल-रज्जुकीय

5. निम्नलिखित में से कौनसा एक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज है?
(अ) डी.एन.एज. I
(ब) आर.एन.एज.
(स) हिन्द II
(द) प्रोटीएज
उत्तर:
(स) हिन्द II

6. प्रतिबन्ध एंजाइम प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं-
(अ) यूकैरियोटिक कोशिकाओं में
(ब) यीस्ट में
(स) जीवाणु में
(द) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(स) जीवाणु में

7. वे एन्जाइम जो DNA को विशिष्ट पहचान वाले स्थलों पर काटते हैं, वह हैं-
(अ) लाइगेज
(ब) एक्सोन्यूक्लिएज
(स) सीकामारी एन्डोन्यूक्लिएज
(द) DNA पॉलिमरेज
उत्तर:
(स) सीकामारी एन्डोन्यूक्लिएज

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8. उच्च श्रेणी के पादपों में जीन क्लोनिंग हेतु कौनसा जीवाणु अधिक उपयोगी है-
(अ) ई.कोली
(ब) राइजोबियम
(स) एग्रोबैक्टीरियम
(द) स्यूडोमोनॉस
उत्तर:
(स) एग्रोबैक्टीरियम

9. जीन में हेर-फेर से तात्पर्य है-
(अ) आनुवंशिक पदार्थ को जोड़ना
(ब) आनुवंशिक पदार्थ को हटाना
(स) आनुवंशिक पदार्थ को ठीक करना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

10. वांछित DNA को परपोषी कोशिका में पहुँचाने वाला अणु होता है
(अ) वाहक
(ब) परपोषी
(स) परजीवी
(द) एन्जाइम
उत्तर:
(अ) वाहक

11. निम्न में से कौनसा वांछित DNA हो सकता है-
(अ) संश्लेषित DNA
(ब) C-DNA
(स) जीनोमिक DNA
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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12. सीमाकारी एन्जाइम EcoRI DNA को निम्न में से किस स्थान पर काटता है-
(अ) GATTC
(ब) GACCTG
(स) AAATTT
(द) GGGCCC
उत्तर:
(अ) GATTC

13. न्यूक्लिक अम्ल का एकल रज्जु जिसके साथ एक रेडियोधर्मी अणु जोड़ दिया गया हो, क्या कहलाता है?
(अ) वेक्टर
(ब) चयनशील मार्कर
(स) प्लाज्मिड
(द) प्रोब
उत्तर:
(द) प्रोब

14. तथाकथित ‘चिपचिपे सिर’ किससे बने होते हैं?
(अ) अयुग्मित क्षारकों से
(ब) DNA तंतुक के सिरे पर चिपचिपे पॉलिसैकेराइड से
(स) मिथाइल समूह से
(द) अयुग्मित RNA क्षारकों से
उत्तर:
(अ) अयुग्मित क्षारकों से

15. द्विबीजपत्रियों में जीन स्थानान्तरण हेतु सामान्यतः प्रयुक्त प्लाज्मिड है-
(अ) PBR 322
(ब) PBR 235
(स) Ti प्लाज्मिड
(द) कास्मिड
उत्तर:
(स) Ti प्लाज्मिड

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16. प्रथम प्रतिबंधन एण्डोन्यूक्लिएज कौनसा पहचाना गया था?
(अ) EcoRI
(ब) Hind II
(स) Hind III
(द) Taq I
उत्तर:
(ब) Hind II

17. एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेशिएंस का DNA खंड (T-DNA) सामान्य पौधों की कोशिकाओं में क्या रोग उत्पन्न करता है-
(अ) कैंसर
(ब) अपघटन
(स) अर्बुद
(द) कुछ नहीं
उत्तर:
(स) अर्बुद

18. रीट्रोवाइरस (पश्च विषाणु) सामान्य जन्तु कोशिकाओं में कौनसा रोग उत्पन्न करता है?
(अ) कैंसर
(ब) विघटन
(स) अर्बुद
(द) कुछ नहीं
उत्तर:
(अ) कैंसर

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19. एक रेस्ट्रीक्शन (प्रतिबंधन) एन्डोन्यूक्लिएज को EcoRI का नाम दिया गया है। इसमें भाग “co” किसके लिए है?
(अ) colon (वृहदांत्र)
(ब) coelom (देहगुहा)
(स) coenzyme (सहएन्जाइम)
(द) coli (कोलाई)
उत्तर:
(द) coli (कोलाई)

20. जीवाणु कोशिका में गुणसूत्रीय DNA के अतिरिक्त पाया जाने वाला वर्तुल (Circular) DNA कहलाता है-
(अ) एपीसोम
(ब) कोस्मिड
(स) प्लाज्मिड
(द) फेज्मिड
उत्तर:
(स) प्लाज्मिड

21. pBR322 वाहक में किसके प्रति प्रतिरोधक जीन होती है?
(अ) एम्पीसिलिन
(ब) टेट्रासाइक्लिन
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(द) इनमें से कोई नहीं

22. प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज द्वारा DNA के कटे खण्डों को किस तकनीक द्वारा अलग करते हैं?
(अ) बायोरियक्टर
(ब) इलेक्ट्रोफोरेसिस
(स) बायोलिस्टिक
(द) माइक्राइंजेक्शन
उत्तर:
(ब) इलेक्ट्रोफोरेसिस

23. वह विधि जिसके द्वारा पुनर्योगज DNA को सीधे जंतु कोशिका के केन्द्रक के अन्दर अंतःक्षेपित कर सकते हैं, वह है-
(अ) जीन गन
(ब) बायोलिस्टिक
(स) माइक्रोइं जेक्शन
(द) बायोरियक्टर
उत्तर:
(स) माइक्रोइं जेक्शन

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24. प्लाज्मिड जिसमें वांछित DNA खण्ड जुड़ा रहता है, उसे कहते हैं-
(अ) विजातीय प्लाज्मिड
(ब) काइमेरिक प्लाज्मिड
(स) सेलेरा प्लाज्मिड
(द) विदलनीय प्लाज्मिड
उत्तर:
(ब) काइमेरिक प्लाज्मिड

25. कौनसे एंजाइम DNA को खण्डित करते हैं-
(अ) लाइगेज
(ब) टाइप II रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज
(स) पॉलीमरेज
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) टाइप II रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज

26. वाहक DNA है-
(अ) प्लाज्मिड
(ब) C-DNA
(स) संश्लेषित DNA
(द) उपर्युक्त DNA
उत्तर:
(अ) प्लाज्मिड

27. लेडरबर्ग के रेप्लीका प्लेटिंग प्रयगो में स्ट्रेप्टोमायसीन प्रतिरोधी विभेद प्राप्त करने हेतु किसका उपयोग किया गया?
(अ) न्यूनतम माध्यम एवं स्ट्रेप्टोमायसीन
(ब) पूर्ण माध्यम और स्ट्रेप्टोमायसीन
(स) केवल न्यूनतम माध्यम
(द) केवल पूर्ण माध्यम
उत्तर:
(अ) न्यूनतम माध्यम एवं स्ट्रेप्टोमायसीन

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28. निम्नलिखित में से किसका जीन क्लोनिंग में उपयोग किया जाता है?
(अ) लोमासोम्स
(ब) मीजोसोम्स
(स) प्लाज्मिडस
(द) न्यूक्लिओइडस
उत्तर:
(अ) लोमासोम्स

29. निम्न में जैव प्रौद्योगिकी का भाग है-
(अ) जीन का संश्लेषण एवं उपयोग
(ब) डी.एन.ए. टीका का निर्माण या दोषमुक्त
(स) पात्रे (इनविट्रो) निषेचन द्वारा परखनली शिशु का निर्माण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

30. जीव के आनुवंशिक रूपांतर में मूलभूत चरण है-
(अ) वांछित जीनयुक्त डी.एन.ए. की पहचान
(ब) चिन्हित डी.एन.ए. का परपोषी में स्थानान्तरण
(स) स्थानान्तरित डी.एन.ए. को परपोषी में सुरक्षित रखना तथा उसकी संतति में स्थानान्तरित करना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लक्ष्य जीन को पृथक् करने के लिए कौनसे एन्जाइम की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
लक्ष्य जीन को पृथक् करने के लिए प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एंजाइम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
कौनसा DNA पॉलीमरेज उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है?
उत्तर:
टेक (Taq) DNA पॉलीमरेज उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है।

प्रश्न 3.
किन्हीं तीन प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • EαRI,
  • Hind II
  • Hind III

प्रश्न 4.
PCR का पूर्ण नाम लिखिए। इसमें कौनसा एन्जाइम प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
पॉलिमरेज शृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction), इसमें टेक (Taq) DNA पॉलीमरेज एन्जाइम प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 5.
जीवाणुभोजी (Bacteriophage) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीवाणुओं को संक्रमित करने वाले विषाणु को जीवाणुभोजी कहते हैं।

प्रश्न 6.
प्रथम पुनर्योगज DNA का निर्माण किसमें हुआ था?
उत्तर:
जीवाणु सालमोनेला टाइफीमूरियम में।

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प्रश्न 7.
आणविक कैंची किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रतिबंधन एन्जाइम (Restriction Enzyme) को आणविक कैंची कहते हैं।

प्रश्न 8.
हिंड II (Hind II) DNA अणु को कहाँ से काटता है?
उत्तर:
हिंड II, DNA अणु को उस विशेष बिंदु पर काटते हैं जहाँ पर छः क्षारक युग्मों (Base pairs) का विशेष अनुक्रम होता है।

प्रश्न 9.
पैलिंड्रोम (Palindrom) क्या है?
उत्तर:
ये वर्णों के समूह हैं जिन्हें आगे व पीछे दोनों तरफ से पढ़ने पर एक ही शब्द बनता है जैसे ‘मलयालम’।

प्रश्न 10.
चिपचिपे सिरे किस एंजाइम के कार्य में सहायता करते हैं?
उत्तर:
एंजाइम DNA लाइगेज के कार्य में सहायता प्रदान करता है।

प्रश्न 11.
DNA खंड किस प्रकार के आवेशित अणु होते हैं?
उत्तर:
ऋणात्मक आवेशित (Charged) अणु होते हैं।

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प्रश्न 12.
इलेक्ट्रोफोरेसिस में DNA को देखने के लिये किससे अभिरंजित किया जाता है?
उत्तर:
इथीडियम ब्रोमाइड नामक यौगिक से अभिरंजित करते हैं।

प्रश्न 13.
रूपान्तरण (Transformation) क्या प्रक्रिया है?
उत्तर:
यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा DNA के एक खण्ड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराते हैं।

प्रश्न 14.
पौधों व जन्तुओं की कोशिकाओं में पुनर्योगज DNA को किस विधि से अंतःक्षेपित किया जाता है?
उत्तर:
पौधों में बायोलिस्टिक या जीन गन से तथा जन्तुओं में माइक्रोइंजेक्शन विधि से अंतःक्षेपित किया जाता है।

प्रश्न 15.
पुनर्योगज DNA टेक्नोलॉजी के विभिन्न चरण बताइये ।
उत्तर:
DNA का विलगन, DNA का खंडन, DNA खंड का संवाहक से बंधन, पुनर्योगज DNA का परपोषी में स्थानांतरण, परपोषी कोशिकाओं का माध्यम में व्यापक स्तर पर संवर्धन व वांछित उत्पाद का निष्कर्षण।

प्रश्न 16.
DNA पृथक्करण हेतु विभिन्न कोशिकाओं को किस प्रकार तोड़कर खोलते हैं?
उत्तर:
जीवाणु कोशिकाओं को लाइसोजाइम, पादप कोशिकाओं को सेलुलेज तथा कवक कोशिकाओं को काइटिनेज एंजाइम द्वारा तोड़ा जाता है अर्थात् भित्तियों को इन एंजाइम की क्रिया से नष्ट करते हैं।

प्रश्न 17.
लाभकारी जीन का प्रवर्धन किस प्रक्रिया द्वारा होता है?
उत्तर:
प्रवर्धन पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR) द्वारा होता है।

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प्रश्न 18.
पुनर्योगज प्रोटीन किसे कहते हैं?
उत्तर:
यदि कोई प्रोटीन कूटलेखन ( इनकोडिंग ) जीन किसी विषमजात (हेटेरोलोगस) परपोषी में अभिव्यक्त होता है तो उसे पुनर्योगज प्रोटीन कहते हैं।

प्रश्न 19.
बायोरिएक्टर कितने प्रकार के उपयोग में लिये जाते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के साधारण विलोडन हौज बायोरिएक्टर (simple stirred tank bioreactor) तथा दंड विलोडक हौज बायोरिएक्टर (sparged strirred tank bioreactor )।

प्रश्न 20.
इलेक्ट्रोफोरेसिस में क्या होता है ?
उत्तर:
DNA खंड का पृथक्करण एवं विलगन ।

प्रश्न 21.
यूरोपीय जैव प्रौद्योगिकी संघ द्वारा जैव प्रौद्योगिकी की क्या परिभाषा दी गई है ?
उत्तर:
जैव प्रौद्योगिकी-नये उत्पादों तथा सेवाओं के लिए प्राकृतिक विज्ञान व जीवों, कोशिकाओं, इसके अंग एवं आण्विक अवरूपों के समायोजन को जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं।

प्रश्न 22.
जीवाणु कोशिका में मिलने वाले वर्तुल डी एन ए का प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर:
यह संवाहक (वेक्टर) की तरह कार्य करता है।

प्रश्न 23.
किण्वक से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यावसायिक पैमाने पर सूक्ष्मजीवियों को पैदा करने के लिए बड़े बर्तन की आवश्यकता होती है जिसे किण्वक या फरमैंटर कहते हैं ।

प्रश्न 24.
उस तकनीक का नाम लिखिए, जिसके द्वारा डीएनए खंडों को अलग कर सकते हैं।
उत्तर:
जैल वैद्युत का संचलन (Electrophoresis)

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प्रश्न 25.
क्षारक युग्मों के ऐसे अनुक्रम को क्या कहते हैं, जिसे पढ़ने के अभिविन्यास को समान रखने पर डीएनए की दोनों लड़ियों को एक जैसा पढ़ा जाता है?
उत्तर:
पैलिंड्रोम क्षारक युग्म।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विजातीय DNA के खंड को परपोषी जीवों में पहुंचाने के लिये संवाहक का विचार जैव प्रौद्योगिकी वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में कैसे आया?
उत्तर:
जैव प्रौद्योगिकी में हम जानते हैं कि प्लाज्मिड DNA संवाहक (Vector) की तरह कार्य करता है जो इससे जुड़े DNA को स्थानान्तरित करता है। यह विचार मच्छर व कीट संवाहकों से उत्पन्न हुआ। प्रायः मच्छर, कीट संवाहक के रूप में मलेरिया परजीवी को मानव शरीर में स्थानान्तरित करता है। ठीक उसी तरह से प्लाज्मिड को संवाहक के रूप में प्रयोग कर विजातीय DNA के खंड को परपोषी जीवों में पहुंचाया जाता है।

प्रश्न 2.
प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइमों का नामकरण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
इन एंजाइमों के नामकरण में परंपरानुसार नाम का पहला शब्द वंश व दूसरा एवं तीसरा शब्द प्राकेंद्रकी कोशिकाओं की जाति से लिया गया है, जिनसे ये पृथक् किए गए थे। जैसे – ईको आर I ( EαRI) एशरिशिया कोलाई RY13, ईको आर I में अक्षर ‘आर (R) ‘ प्रभेद के नाम से लिया गया है। नाम के बाद रोमन अंक उस क्रम को दर्शाते हैं जिसको जीवाणु के प्रभेद से एंजाइम पृथक् किए गए थे।

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प्रश्न 3.
पुनर्योगज DNA को जीवाणु में प्रवेश करवाने के लिये क्या विधि अपनाई जाती है?
उत्तर:
DNA जलरागी (Hydrophillic) अणु है, इस कारण यह कोशिका झिल्ली के द्वारा प्रवेश नहीं कर पाता है। अतः जीवाणु को प्लाज्मिड ग्रहण करने हेतु सक्षम बनाया जाता है। इसके लिये कैल्सियम की विशिष्ट सान्द्रता के साथ संसाधित किया जाता है जिससे DNA को जीवाणु की कोशिका भित्ति में स्थित छिद्रों से प्रवेश करने में सहायता मिलती है। इन कोशिकाओं को पुनर्योगज DNA के साथ पहले बर्फ पर रखते हैं फिर पुनर्योगज DNA को उन कोशिकाओं में बलपूर्वक प्रवेश कराया जाता है। इसके पश्चात् कोशिकाओं को कुछ समय के लिए 42° सेल्शियस (तापप्रघात) पर रखते हैं व पुनः बर्फ पर रखते हैं। इससे पुनर्योगज DNA जीवाणु में प्रवेश कर जाता है।

प्रश्न 4.
परपोषी कोशिकाओं में विजातीय DNA को प्रवेश करवाने की अन्य विधियों के विषय में बताइये ।
उत्तर:
परपोषी कोशिकाओं में विजातीय डीएनए को प्रवेश कराने हेतु अन्य विधियाँ भी हैं। जैसे सूक्ष्म अंतःक्षेपण (microinjection) विधि में पुनर्योगज डीएनए को सीधे जंतु कोशिका के केंद्रक के भीतर अंतःक्षेपित किया जाता है।

दूसरी विधि जो पौधों के लिए उपयोगी है, कोशिकाओं पर डीएनए से विलेपित, स्वर्ण या टंग्स्टन के उच्च वेग सूक्ष्म कणों से बमबारी करते हैं जिसे बायोलिस्टिक या जीन गन (Biolistics or Gene gun) कहते हैं। अंतिम विधि जिसमें अहानिकारक रोगजनक संवाहक का उपयोग किया जाता है। इन संवाहकों को जब कोशिकाओं को संक्रमित करने दिया जाता है तब ये पुनर्योगज डीएनए को परपोषी में स्थानांतरित कर देते हैं।

प्रश्न 5.
पौधों तथा जन्तुओं में जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक सम्बन्ध में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जीवाणु व विषाणुओं से ज्ञान अर्जित कर पौधों व जन्तुओं में भी जीन क्लोनिंग करवाई गई। कुछ इस प्रकार के जीवाणु व विषाणुओं का अध्ययन किया गया जो पादप व जन्तुओं में रोगजनक पैथोजन है। उदाहरणार्थ- एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशिएंस कई द्विबीजपत्री पौधों का रोगजनक पैथोजन है।

वह डीएनए के एक खंड जिसे ‘टी- डीएनए’ कहते हैं, को स्थानांतरित कर सामान्य पौधों की कोशिकाओं को अर्बुद (ट्यूमर) में रूपांतरित करता है और ये अर्बुद कोशिकाएँ रोगजनक के लिए जरूरी रसायनों का उत्पादन करते हैं। ठीक इसी तरह से जंतु कोशिकाओं में पश्चविषाणु ( रीट्रोवायरस) सामान्य कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं पर रूपांतरित कर देते हैं। रोगजनकों द्वारा अपने सुकेंद्रकी परपोषी में जीन स्थानांतरण की कला को अच्छी तरह से समझ कर रोगजनकों की इस विधि का उपयोग कर, अच्छे संवाहक के रूप में प्रयोग कर, मानव के लिए उपयोगी जीन का स्थानांतरण कर सकते हैं।

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एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशियंस का टी आई (Ti) प्लाज्मिड क्लोनिंग संवाहक के रूप में अब रूपांतरित कर दिया गया है जो पौधों के लिए रोगजनक नहीं है, लेकिन इसका उपयोग अपनी अभिरुचि के जीन को अनेक पौधों में स्थानांतरित करने में किया जाता है। ठीक इसी तरह से पश्चविषाणु को अहानिकारक बनाकर जंतु कोशिकाओं में वांछित जीन को रूपांतरित करने में उपयोग किया जाता है। इस तरह से जब एक जीन या डीएनए के खंड को उचित संवाहक से जोड़ दिया जाता है तब इसे जीवाणु, पौधों व जंतु परपोषी में स्थानांतरित किया जाता है (जहाँ यह गुणित होता रहता है)।

प्रश्न 6.
क्लोनिंग के लिये ई. कोली जीवाणु को उपयुक्त परपोषी क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्लोनिंग के लिये ई. कोली जीवाणु को उपयुक्त परपोषी निम्न गुणों के कारण माना जाता है-

  1. यह आसानी से रूपान्तरित हो जाता है ।
  2. इसमें कार्यशील सीमाकारी एन्जाइमों का अभाव होता है।
  3. यह पुनर्योगज डी.एन.ए. की पुनरावृत्ति में सहायता करता है।
  4. इसके डी. एन. ए. की संरचना व अन्य जैव रासायनिक क्रियायें पूर्णत: ज्ञात हैं।
  5. इसके प्लाज्मिड व जीवाणुभोजियों को स्पष्ट रूप से अभिलक्षित किया जा चुका है।

प्रश्न 7.
वाहक के रूप में जीवाणुभोजी की उपयोगिता पर संक्षिप्त लेख लिखिए ।
उत्तर:
जीवाणुभोजी में सामान्य रूप से एक रैखिक डी. एन. ए. अणु पाया जाता है। इसको एक स्थान से तोड़ने पर दो खण्ड बन जाते हैं। इन दोनों खण्डों के बीच वांछित डी.एन.ए. के निवेशन से पुनर्योगज डी.एन.ए. का निर्माण हो जाता है। जीवाणुभोजी जीवाणुओं को संक्रमित कर लयन चक्र पूरा कर पुनर्योगज डी.एन.ए. की कई प्रतियाँ निर्मित कर लेता है। इस वन्य जीवाणुभोजी डी.एन.ए. में से आवश्यक भाग को हटाकर इसका पुनः निर्माण किया जाता है। इस पुनः निर्मित जीवाणुभोजी डी.एन.ए. में 20-25 Kb बाहरी DNA निवेशित किया
जाता है। कई जीवाणुभोजियों, मुख्य रूप से (लेम्डा) व M13 फाजी का वाहक के रूप में उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 8.
उत्तम वाहक के कोई चार गुणधर्म लिखिए ।
उत्तर:
उत्तम वाहक के गुणधर्म निम्न हैं-

  1. इसका बिलगन एवं शोधन सरल एवं सुविधाजनक होना चाहिए।
  2. इसको परपोषी कोशिका में सफलतापूर्वक प्रविष्ट कराया जा सके अर्थात् इसके द्वारा रूपान्तरण दक्ष एवं सरल होना चाहिए।
  3. इसको वांछित DNA की अभिव्यक्ति करनी होती हैं। इसलिए वाहक में प्रमोटर ऑपरेटर जैसे नियामक अवयव एवं अन्य आवश्यक क्रमों का उपस्थित होना आवश्यक है।
  4. जीन रूपान्तरण के लिए वाहक में यह क्षमता होनी चाहिए कि या तो वह स्वयं या अपने DNA निवेश को परपोषी क्रोमोसोम में समाकलित कर सके।
  5. इसमें उपयुक्त रिपोर्टर जीन होने चाहिये जिससे रूपान्तरित परपोषी कोशिकाओं का आसानी से वरण किया जा सके।

प्रश्न 9.
pBR322 क्या है? इसका चित्र बनाकर वर्णन कीजिये।
उत्तर:
इस प्लाज्मिड का क्लोनिंग वाहक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें p = प्लाज्मिड BR इसे बनाने वाले वैज्ञानिक बोलिवर तथा रोड्रिगन के नाम का प्रथम अक्षर तथा 322 उनके प्रयोग पर आधारित संख्या है। इनका आकार 1.5 Kb से लेकर 1500 Kb तक हो सकता है। इसमें तीन जीनों से लेकर कई हजार जीन हो सकते हैं।

इन वाहकों में 15 Kb से छोटे DNA खण्डों का ही क्लोन कर सकते हैं। इसमें दो प्रतिजीव प्रतिरोधिता जीनें पाई जाती हैं। एक जीन ऐम्पिसिलिन तथा दूसरी टेट्रासाइक्लिन में प्रतिरोधिता प्रदान करती है। इसमें अनेक विशिष्ट सीमाकारी एन्जाइमों का अभिज्ञान स्थल पाये जाते हैं। इसमें 4361 क्षार युग्म पाये जाते हैं तथा इसे शुद्ध रूप से प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 10.
पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया तथा जीन क्लोनिंग ‘तुलना कीजिए।
उत्तर:

पॉलीमरेज शृंखला अभिक्रिया (Polymerase chain reaction = PCR)जीन क्लोनिंग (Gene cloning)
1. इसमें बहुत कम DNA की आवश्यकता होती है, यहाँ तक जीन की एक प्रति भी पर्यास होती है।इसमें अधिक DNA की आवश्यकता होती है।
2. यह एक सस्ती विधि है क्योंकि इसमें महंगे प्रतिबन्धन एन्जाइम, लाइगेज व वाहक DNA की आवश्यकता नहीं होती है।इसमें इन सब की आवश्यकता होती है अतः यह एक महंगी विधि है।
3. इसमें कम समय (4-5 घन्टे) श्रम व दक्षता की आवश्यकता होती है।इसमें अधिक समय (2-4 दिन), श्रम व दक्षता की आवश्यकता होती है।
4. इसके अनेक अनुप्रयोग हैं और वर्तमान में नये अनुप्रयोग विकसित हो रहे हैं।इसके सीमित अनुप्रयोग हैं।
5. यह एक पूर्णरूप से स्वचालित विधि है।स्वचालित नहीं है।

प्रश्न 11.
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में प्रयुक्त कौनसे एन्जाइम आण्विक कैंची के नाम से प्रख्यात हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का नाम व कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में प्रयुक्त प्रतिबन्धन एन्जाइम (Restriction Enzyme) आण्विक कैंची के नाम से प्रख्यात है।

ये दो प्रकार के होते हैं –
1. प्रतिबंधन एक्सोन्यूक्लिएज (RestrictionExonuclease) – कार्य ये DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं।
2. प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज (Restriction Endonuclease) – कार्य ये DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लंबाई के निरीक्षण पश्चात् कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब यह DNA से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा – फॉस्फेट आधारस्तंभों के विशिष्ट केन्द्रों पर काटता है।

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प्रश्न 12.
पुनर्योगज डी एन ए किसे कहते हैं? परपोषी कोशिकाओं में विजातीय डी एन ए के प्रवेश करवाने की सूक्ष्म अंतःक्षेपण तथा जीन गन विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी एक जीव से DNA का एक खण्ड लेकर उसका दूसरे जीव के DNA के साथ संकरण करवाना पुनर्योगज DNA कहते हैं। इस तकनीक में एक जाति के DNA को दूसरी प्रजाति के DNA में प्रवेश करवा कर पुनर्योगज DNA (recombinant DNA ) प्राप्त किया जाता है।

सूक्ष्म अंतःक्षेपण (Microinjection) – इसमें DNA को प्रोटोप्लास्टों अथवा परागकणों अथवा सीधे ही विकासशील पुष्पक्रमों में दबाव के साथ अंत:क्षेपित (inject) कर प्रवेश करा दिया जाता है। जीन गन (Gene Gun) – DNA से विलोपित ( coated) स्वर्ण या टंग्स्टन के 1-3 माइक्रो मी. व्यास वाले कणों को बुलेट ( bullet) के द्वारा उच्च वेग से लक्ष्य कोशिकाओं में दाग दिया जाता है। इससे कोशिका भित्ति को भेदकर कोशिका के अन्दर प्रविष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
प्रतिबन्धित एन्जाइम किसे कहते हैं? जैल वैद्युत- संचलन तकनीक से डी एन ए खण्ड के पृथक्करण एवं विलगन की प्रक्रिया समझाइए |
उत्तर:
वे एन्जाइम जो DNA को निश्चित बिन्दुओं पर काटकर उसको निश्चित आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में कर देते हैं, इन्हें सीमाकारी या प्रतिबंधित एन्जाइम (Restriction enzyme) कहते हैं। जैल वैद्युत संचलन (Electrophoresis ) से DNA खण्ड का पृथक्करण एवं विलगन कर सकते हैं।

DNA खण्ड ऋणात्मक आवेशिक (charged) अणु होते हैं, इसलिए इन्हें विद्युत क्षेत्र में माध्यम / आधात्री द्वारा एनोड की तरफ बलपूर्वक भेजकर अलग कर सकते हैं। इसमें ऐगारोज माध्यम का उपयोग होता है। DNA खण्डों को ऐगारोज जैल के छलनी प्रभाव द्वारा उनके आकार के अनुसार अलग करते हैं। इस कारण खण्ड जितने छोटे आकार के होंगे, वे अधिक दूर तक जायेंगे।

इथीडियम ब्रोमाइड अभिरंजित जैल को पराबैंगनी प्रकाश से अनावृत करने पर DNA की चमकीली नारंगी रंग की पट्टी दिखाई पड़ती है। DNA की पृथक्कृत पट्टियों को ऐगारोज जैल से काट कर निकालते हैं और जैल के टुकड़ों से निष्कर्षित (extract) कर लेते हैं। इस प्रकार शुद्ध किये गये DNA को क्लोनिंग संवाहक से जोड़कर, पुनर्योगज DNA निर्माण में उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 14.
आनुवंशिक इंजीनियरिंग किसे कहते हैं? पुनर्योगज डीएनए निर्माण की तकनीक समझाइए ।
उत्तर:
वह तकनीक जिसमें एक जाति के DNA को दूसरी प्रजाति के DNA में प्रवेश करवा कर पुनर्योजी DNA (recombinant (DNA) प्राप्त किया जाता है, आनुवंशिक इंजीनियरिंग कहते हैं। आनुवंशिक इंजीनियरिंग में जीन क्लोनिंग एवं जीन स्थानांतरण का उपयोग कर पुनर्योगज डीएनए का निर्माण किया जाता है। प्रथम पुनर्योगज DNA का निर्माण सालमोनेला टाइफीमूरियम के प्लाज्मिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी कूटलेखन जीन के जुड़ने से हुआ था।

स्टेनले कोहेन व हरबर्ट बोयर ने 1972 में यह कार्य प्लाज्मिड से DNA का टुकड़ा काटकर सम्पन्न किया, जिसमें प्रतिजैविक प्रतिरोध प्रदान करने के लिए जिम्मेदार जीन थी। आणविक कैंची कहे जाने वाले ‘प्रतिबंधन एन्जाइम’ (Restriction Enzyme) की खोज से DNA को विशिष्ट जगहों पर काटना संभव हो सका। कटे हुए DNA का भाग प्लाज्मिड DNA से जोड़ा जाता है।

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यह प्लाज्मिड DNA संवाहक ( vector) की भांति कार्य करता है जो इससे जुड़े DNA को स्थानांतरित करता है। प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन को संवाहक के साथ जोड़ने का काम एंजाइम DNA लाइगेज के द्वारा होता है जो DNA अणु के कटे हुए भाग पर कार्य कर उसके किनारों को जोड़ने का काम करता है। इस संयोजन से पात्रे ( in vitro) नये गोलाकार स्वतः प्रतिकृति बनाने वाले DNA का निर्माण होता है जिसे पुनर्योगज DNA कहते हैं। जब यह DNA एशरिकिआ कोलाई में स्थानांतरित किया जाता है तो यह नए परपोषी के DNA पॉलीमरेज एंजाइम का उपयोग कर अनेक प्रतिकृतियाँ बना लेता है।

प्रश्न 15.
बायोरिएक्टर क्या है? इसकी कार्यप्रणाली समझाइए ।
उत्तर;
लगभग सभी पुनर्योगज प्रौद्योगिकियों का मुख्य उद्देश्य वांछित प्रोटीन का उत्पादन करना होता है। इसके लिए वांछित जीन को क्लोन करने, लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के पश्चात् इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन सम्भव है। लाभकारी जीनों को आश्रय देने वाली कोशिकाओं का छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में वर्धन किया जा सकता है।

संवर्धन को वांछित प्रोटीन का निष्कर्षण कर पृथक्करण की विभिन्न विधियों का प्रयोग कर प्रोटीन का शोधन कर सकते हैं। कोशिकाओं को सतत संवर्धन तंत्र में गुणित कर सकते हैं, जिसमें उपयोग किये गये माध्यम को एक तरफ से निकालकर दूसरी तरफ से ताजा माध्यम को भरते हैं ताकि कोशिकाएँ अपने क्रियात्मक रूप से सर्वाधिक सक्रिय लॉग (exponential) प्रावस्था में बनी रहें।

यह संवर्धन विधि अधिक जैव मात्रा के उत्पादन में वांछित प्रोटीन के अधिक उत्पादन हेतु उपयोगी है। इन उत्पादों के अधिक मात्रा में उत्पादन हेतु बायोरिएक्टर का उपयोग किया जाता है। बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान होते हैं, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जन्तुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एन्जाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। बायोरिएक्टर वांछित उत्पाद प्राप्त करने के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है।

तापमान, PH, क्रियाधार, लवण, विटामिन, ऑक्सीजन आदि वृद्धि हेतु अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं । प्रायः विलोडन ( stirring) प्रकार का बायोरिएक्टर सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है। विलोडित हौज बायोरिएक्टर (stirred tank bioreacter) बेलनाकार होते हैं। इसके आधार घुमावदार होने से बायोरिएक्टर के अंदर अंतर्वस्तु के मिश्रण में सहायता मिलती है। बायोरिएक्टर में ऑक्सीजन की उपलब्धता तथा मिश्रण मिलाने की विलोडन ( stirrer ) सुविधा होती है। एकान्तर में बायोरिएक्टर में हवा बुलबलों के रूप में भेजी जाती है।

बायोरिएक्टर में एक प्रक्षोभक तंत्र (agitator system), ऑक्सीजन प्रदाय तंत्र, झाग नियंत्रण तंत्र, पीएच नियंत्रण तंत्र, तापक्रम नियंत्रण तंत्र व प्रतिचयन प्रद्वार (sampling ports ) लगा होता है जिससे संवर्धन की थोड़ी मात्रा समय-समय पर निकाली जा सकती है।

प्रश्न 16.
जीन क्लोनिंग में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस के कार्य को समझाइए ।
उत्तर:
जीन क्लोनिंग में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस का उपयोग होता है। वैसे एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस अनेक द्विबीजपत्री पौधों का रोगजनक पैथोजन है। यह DNA के एक खण्ड जिसे ‘टी. डीएनए’ कहते हैं, को स्थानान्तरित कर सामान्य पौधों की कोशिकाओं को अर्बुद (Tumor ) में रूपान्तरित करता है और ये अर्बुद कोशिकाएँ रोगजनक के लिए आवश्यक रसायनों का उत्पादन करते हैं। इसी आधार पर एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस का टीआई (Ti) प्लाज्मिड क्लोनिंग संवाहक के रूप में अब रूपान्तरित कर दिया गया है जो पौधों के लिए रोगजनक नहीं है, परन्तु इसका उपयोग अपनी अभिरुचि के जीन को अनेक पौधों में स्थानान्तरित करने में किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी को परिभाषित कीजिए । इसके प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी (Genetic Engineering)-इस तकनीक द्वारा आनुवंशिक पदार्थों (डी.एन.ए. या आर.एन.ए.) के रसायन में परिवर्तन कर इसे परपोषी जोवों में प्रवेश कराकर इसके समलक्षणी (फीनोटाइप) में परिवर्तन करते हैं।

आनुवंशिक अभियांत्रिकी के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं –
(1) वांछित जीन अथवा लक्ष्य जीन की पहचान व पृथक्करण किसी भी जीन का चयन उसकी उपयोगिता पर निर्भर करता है। वैज्ञानिकों का उद्देश्य सूक्ष्मजीवों के जीनों का उपयोग कर मानव के लिए आवश्यक हार्मोन का संश्लेषण करना, रोगों का निदान करना, आवश्यक एन्जाइमों, विटामिन, ऐन्टीबायोटिक का उत्पादन बढ़ाना, ऐसे सूक्ष्म जीव उत्पन्न करना जो उपयोगी पौधों को शाकनाशी एवं कीटनाशियों के प्रभाव से बचा सकें। उच्च श्रेणी के पौधों की प्रकाश संश्लेषण की दक्षता बढ़ाना, लेग्यूमिनोसी कुल के अतिरिक्त अन्य पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता विकसित करना, फसल की पैदावार एवं पोषणिक मान बढ़ाना आदि हो सकते हैं। अतः वांछित DNA का चयन उद्देश्य पर निर्भर करता है।

वांछित डी. एन. ए. तीन प्रकार का होता है –

  1. जीनोमिक DNA
  2. C – DNA
  3. संश्लेषित DNA

क्लोनिंग के लिए वांछित जीन की पहचान कर उसे पृथक् करने का कार्य सीमाकारी एन्जाइम द्वारा किया जाता है।
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(2) पुनर्योगज DNA ( Recombinant DNA = r.DNA) या काइमेरिक DNA (Chimeric DNA ) का निर्माण – इस चरण में पृथक् की गई वांछित जीन को वाहक DNA के साथ जोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया DNA लाइगेज नामक एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित होती है। यह एन्जाइम प्रत्येक कोशिका में संश्लेषित होता है। वांछित जीन वाहक DNA में जोड़ने से पुनर्योगज DNA का निर्माण हो जाता है।

(3) पुनर्योगज DNA का परपोषी कोशिका अथवा ग्राही कोशिका में स्थानान्तरण- पुनर्योगज DNA का जीवाणु कोशिका में प्रवेश रूपान्तरण क्रिया द्वारा किया जाता है। इस हेतु पुनर्योगज DNA को जीवाणु कोशिकाओं के साथ 37-43°C वाले उष्ण विलयन में स्थानान्तरित कर इन्हें ताप प्रघात दिया जाता है जिससे r DNA जीवाणु कोशिका में प्रवेश कर जाता है।

यूकैरियोटिक जीन स्थानान्तरण के लिए यीस्ट कोशिकाओं तथा वाहक के रूप में यीस्ट प्लाज्मिड का उपयोग करते हैं। पादप कोशिकाओं में जीन स्थानान्तरण के लिए एग्रोबैक्टिरियम के Ti एवं Ri प्लाज्मिड का उपयोग होता है। संवर्धित माध्यम की कोशिकाओं में पुनर्योजी DNA का स्थानान्तरण ट्रांसफेक्शन के द्वारा किया जाता है।

(4) पुनर्योगज DNA युक्त परपोषी कोशिकाओं का चयन एवं गुणन निवेशित जीन की सफलता जानने के लिए सामान्यतः प्रतिजैविकों के लिए प्रतिरोधकता प्रदान करने वाली जीनों को चिन्हक जीनों के रूप में उपयोग किया जाता है। ये ऐम्पिसिलिन, टेट्रासाइक्लिन, केनामाइसिन आदि प्रतिजैविकों के लिए प्रतिरोधी जीन हो सकती हैं।

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जिन कोशिकाओं में क्लोनित जीन की उपस्थिति का परीक्षण करना हो उनका संवर्धन उपर्युक्त प्रतिजैविकों युक्त माध्यम में किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि ऐम्पिसिलिन के प्रतिरोधी जीन चिन्हक के रूप में प्रयोग की गई है और पुनर्योगज DNA युक्त कोशिकाएँ ऐम्पिसिलिन माध्यम में वृद्धि करती हैं तो इसका तात्पर्य है कि क्लोनित जीन ठीक स्थान पर निवेशित हुई ।

इसके विपरीत यदि इस माध्यम में कोशिकाओं की वृद्धि नहीं होती है तो निश्चित ही पुनर्योगज DNA में क्लोनित जीन ठीक स्थान पर निवेशित नहीं हुई है। चयनित जीवाणु कोशिकाओं को ठोस माध्यम पर संवर्धित किया जाता है। जहाँ प्लाज्मिड युक्त जीवाणुओं की कालोनियां बन जाती हैं, जीवाणु कोशिका में वृद्धि के साथ-साथ वांछित जीन की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है। इस क्रिया को क्लोनिंग कहते हैं।

(5) चयनित क्लोनों से वांछित जीन की ग्राही कोशिका में अभिव्यक्ति – चयनित पुनर्योगज कोशिकाओं व निवहों को विलगित कर वांछित उद्देश्य के अनुसार उपयोग किया जाता है। इन्हें वांछित प्रोटीन के संश्लेषण के लिए संवर्धित करते हैं। आवश्यकतानुसार इन जीनों को विभिन्न माध्यमों द्वारा जीवाणु, या यीस्ट, पादप व जन्तुओं में स्थानान्तरित किया जाता है।

इस तरह वांछित जीनों को अन्य जीवों में स्थानान्तरित कर इन जीवों को वांछित कार्य करने के लिए तैयार कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी पादप में रोगाणु प्रतिरोधी जीन का निवेशन करवाया जाता है तो वह पादप रोग के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. एक वेक्टर में सहलग्नी डी. एन. ए. की प्रति की संख्या को नियंत्रित करने वाले अनुक्रम को क्या कहा गया है? (NEET 2020)
(अ) ओरी साइट
(ब) पेलीड्रोमिक अनुक्रम
(स) रिकॉग्नीशन (पहचान ) साइट
(द) चयनयुक्त मार्कर
उत्तर:
(अ) ओरी साइट

2. जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस में पृथक् हुए डी.एन.ए. के खण्डों को किसकी सहायता से देखा जा सकता है? (NEET-2020)
(अ) UV विकिरण में एथिडियम ब्रोमाइड से
(ब) UV विकिरण में एसीटोकार्यिन से
(स) अवरक्त विकिरण में एथिडियम ब्रोमाइड
(द) चमकीले नीले प्रकाश में एसीटाकार्यिन से
उत्तर:
(अ) UV विकिरण में एथिडियम ब्रोमाइड से

3. प्रतिबंधन एंजाइमों के विषय में गलत कथन को पहचानिए- (NEET-2020)
(अ) ये डी.एन.ए. की लड़ी को पैलिन्ड्रोमिक स्थलों पर काटते हैं
(ब) ये आनुवंशिक इंजीनियरिंग में उपयोगी हैं।
(स) चिपचिपे सिरे डी. एन. ए. लाइगेज द्वारा जोड़े जा सकते हैं।
(द) प्रत्येक प्रतिबंधन एंजाइम डी.एन.ए. क्रम की लम्बाई का निरीक्षण करके कार्य करते हैं।
उत्तर:
(स) चिपचिपे सिरे डी. एन. ए. लाइगेज द्वारा जोड़े जा सकते हैं।

4. निम्नलिखित में से सही युग्म को चुनिए-( NEET 2020 )
(अ) पॉलिमरेज डी.एन.ए. को खण्डों में तोड़ता है
(ब) न्यूक्लियेज डी.एन.ए. के दो रज्जुकों को पृथक् करता है
(स) एक्सोन्यूक्लियेज डी.एन.ए. में विशिष्ट स्थानों पर काट लगाता है।
(द) लाइगेज दो डी.एन.ए. के अणुओं को जोड़ता है।
उत्तर:
(द) लाइगेज दो डी.एन.ए. के अणुओं को जोड़ता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

5. इको आर I द्वारा पहचाने जाने वाला पैलिन्ड्रोमिक क्रम है-(NEET-2020)
(अ) 5′ GGACC – 3′
3′ CCTTGG – 5′
(ब) 5′- CTTAAG – 3′
3′ – GAATTC – 5′
(स) 5′-GGATCC -3′
3′ CCTAGG – 5′
(द) 5′ GAATTC – 3′
3′ CTTAAG – 5′
उत्तर:
(द) 5′ GAATTC – 3′
3′ CTTAAG – 5′

6. जैव जीवाणुओं के एक मिश्रण में किससे उपचार करके डी.एन.ए. अवक्षेपण को प्राप्त किया जा सकता है? (NEET-2019)
(अ) शीतित क्लोरोफार्म से
(ब) आइसोप्रोपेनॉल से
(स) शीतित इथेनॉल से
(द) कमरे के तापमान पर मिथेनॉल से
उत्तर:
(स) शीतित इथेनॉल से

7. पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR) में चरणों का सही क्रम क्या है? (NEET-2018)
(अ) विकृतिकरण, विस्तारण, अनीलन
(ब) अनीलन, विस्तारण, विकृतिकरण
(स) विस्तारण, विकृतिकरण, अनीलन
(द) विकृतिकरण, अनीलन, विस्तारण
उत्तर:
(द) विकृतिकरण, अनीलन, विस्तारण

8. एमरोज जैल में पृथक् हुए डी.एन.ए. खण्ड को किसके अभिरंजन के बाद देखा जा सकता है? (NEET-2017)
(अ) ब्रोमोफिनोल ब्ल्यू
(ब) एसिटोकार्यिन
(स) एनिलीन ब्ल्यू
(द) इथिडियम ब्रोमाइड
उत्तर:
(द) इथिडियम ब्रोमाइड

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9. डी. एन. ए. के खण्ड कैसे होते हैं?
(अ) धनात्मक आवेशित
(ब) ऋणात्मक आवेशित
(स) उदासीन
(द) वे अपने आमाप के अनुसार धनात्मक या ऋणात्मक आवेशित हो सकते हैं।
उत्तर:
(ब) ऋणात्मक आवेशित

10. बाजार में भेजने से पहले अभिव्यक्त प्रोटीन के पृथक्करण और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को क्या कहा जाता है? (NEET-2017)
(अ) प्रतिप्रवाह प्रक्रमण
(ब) अनुप्रवाह प्रक्रमण
(स) जैव प्रक्रमण
(द) पश्च उत्पादन प्रक्रमण
उत्तर:
(ब) अनुप्रवाह प्रक्रमण

11. एक ही प्रतिबंधन एण्डोन्यूक्लिएज से काटे गये एक विजातीय DNA और प्लाज्मिड को पुनर्योगज प्लाज्मिड बनाने के लिए जिसका उपयोग करके इन्हें जोड़ा जा सकता है- (NEET II-2016)
(अ) पॉलिमरेज-III
(ब) लाइगेज
(स) EαRI
(द) टेक पॉलिमरेज
उत्तर:
(ब) लाइगेज

12. DNA को विशिष्ट स्थानों पर काट देना किसके आविष्कार से सम्भव हुआ? (NEET-2016)
(अ) प्रोब्स
(स) लाइगेज
(ब) सलैक्टेबल मार्करस
(द) रेस्ट्रिक्शन एंजाइम
उत्तर:
(द) रेस्ट्रिक्शन एंजाइम

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13. निम्नलिखित में से कौनसा प्रतिबंधित एंजाइम कुंठित सिरे उत्पन्न करता है? (NEET-2016)
(अ) Xαl
(ब) Hind III
(स) Sal I
(द) EαRV
उत्तर:
(द) EαRV

14. DNA अंगुलिछापी की किसी भी तकनीक के लिए निम्नलिखित में से किसी एक की आवश्यकता नहीं होती? ( NEET – 2016 )
(अ) प्रतिबंधित एन्जाइम
(ब) DNA-DNA संकरण
(स) पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया
(द) जिंक अंगुलि विश्लेषण
उत्तर:
(ब) DNA-DNA संकरण

15. उस DNA को क्या कहते जिसमें क्लोनिंग के लिए रूचि वाली जीन को समाकलित किया जाता है? (NEET-2015)
(अ) टेम्पलेट
(ब) वेक्टर
(स) करियर
(द) रूपान्तरक
उत्तर:
(ब) वेक्टर

16. कौनसा संवाहक DNA के केवल एक छोटे टुकड़े को क्लोन कर सकता है? (NEET-2014)
(अ) जीवाणु का कृत्रिम गुणसूत्र
(ब) यीस्ट का कृत्रिम गुणसूत्र
(स) प्लाज्मिड
(द) कॉस्मिड
उत्तर:
(स) प्लाज्मिड

17. मानव जीनोम अनुक्रमण के लिए आमतौर पर प्रयुक्त वेक्टर है- (NEET-2014)
(अ) T-DNA
(ब) बी.ए.सी. और बाई. ए.सी.
(स) अभिव्यक्ति वेक्टर
(द) T/A क्लोनिंग वेक्टर
उत्तर:
(ब) बी.ए.सी. और बाई. ए.सी.

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18. जीव और उसकी कोशिका भित्ति निम्नकारक एंजाइम के लिए निम्नलिखित में से कौन सही सुमेलित नहीं है? (NEET-2013)
(अ) जीवाणु – लाइसोजाइम
(ब) पादप कोशिकाएँ – सेलुलोज
(स) शैवाल मिथाइलेज
(द) कवक काइटीनेज
उत्तर:
(स) शैवाल मिथाइलेज

19. बायोलिस्टिक (जीन गोलाबारी) किसके लिए उपयुक्त है? (NEET-2012)
(अ) रोगजनक संवाहकों को निष्क्रिय करना
(ब) पादप कोशिकाओं का रूपान्तरण
(स) संवाहकों के साथ जोड़कर पुनर्योग्ज DNA का बनाना
(द) DNA फिंगर प्रिंटिंग
उत्तर:
(ब) पादप कोशिकाओं का रूपान्तरण

20. EαRI क्लोनिंग वेक्टर pBR322 के दिये जा रहे आरेखिये प्रतिदर्श में निम्नलिखित में से किस एक विकल्प के भाग को सही पहचान की गई है? [CBSE PMT] (Pre) – 2012, NEET-2012)
(अ) Ori-मूल कर्तन एंजाइम
(ब) rop घट गयी परासरणी दाब
(स) Hind III EcoRI चयनशील
(द) amp tet ऐन्टीबायोटिक प्रतिरोधी जीन
उत्तर:
(द) amp tet ऐन्टीबायोटिक प्रतिरोधी जीन

21. रूपान्तरण हेतु DNA से लेपित सूक्ष्म कण जिनको “जीन गन” से दागा जाता हो, किसके बने होते हैं? ” (NEET-2012)
(अ) रजत अथवा प्लेटिनम
(ब) प्लेटिनम अथवा जिंक
(स) सिलिकॉन अथवा प्लेटिनम
(द) स्वर्ण अथवा टंगस्टन
उत्तर:
(द) स्वर्ण अथवा टंगस्टन

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22. एक कोई रोगी जो अनुमानतः एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिन्ड्रोम (उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण) से पीड़ित है इसकी पहचान के लिए आप कौनसी निदान तकनीक की सलाह देंगे? (NEET-2012)
(अ) एलिसा
(ब) एम.आर.आई.
(स) अल्ट्रासाउण्ड
(द) विडाल
उत्तर:
(अ) एलिसा

23. निम्न में से कौनसी एक तकनीक आनुवंशिकी अभियांत्रिक जीवित जीवों को सम्भव बनाती है? (CBSE PMT Mains 2011, NEET 2011 )
(अ) संकरण
(ब) पुर्नसंयोजित DNA तकनीक
(स) X किरण परावर्तन
(द) भारी समस्थानिकों द्वारा चिन्हित करना
उत्तर:
(ब) पुर्नसंयोजित DNA तकनीक

24. अनुषंगी DNA किस एक क्षेत्र में उपयोगी साधन होता है ? (NEET-2010)
(अ) लिंग निर्धारण
(ब) फोरेन्सिक विज्ञान
(स) आनुवंशिक इंजीनियरिंग
(द) अंग प्रतिरोपण
उत्तर:
(ब) फोरेन्सिक विज्ञान

25. DNA प्रतिलिपिकरण के लिये आवश्यकता होती है- (CBSE-2010)
(अ) DNA पॉलीमरेज की
(ब) DNA लाइगेज की
(स) DNA पॉलीमरेज तथा DNA लाइगेज की
(द) ट्रांसलोकेज तथा RNA पॉलीमरेज की
उत्तर:
(स) DNA पॉलीमरेज तथा DNA लाइगेज की

26. प्रतिबन्धन एन्जाइम (Restriction enzyme ) – (RPMT-2010)
(अ) संवाहक हीन प्रत्यक्ष जीन के अन्तरण में सहायक होते हैं।
(ब) DNA खंडों को काटते या जोड़ते हैं
(स) एण्डोन्यूक्लिवेज होते हैं, जो DNA को विशेष स्थलों पर विदलित करते हैं
(द) विद्यमान DNA या RNA को पूरक DNA बनाते हैं।
उत्तर:
(स) एण्डोन्यूक्लिवेज होते हैं, जो DNA को विशेष स्थलों पर विदलित करते हैं

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27. जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel electrophoresis ) का प्रयोग होता है- (RPMT-2010)
(अ) DNA अणु के विगलन के लिये
(ब) DNA को खण्डों में काटने के लिये
(स) DNA अणुओं को उनके आकार के अनुसार पृथक् करने के लिए
(द) क्लोनकारी संवाहक को जोड़कर पुनर्योगज DNA निर्माण के लिए
उत्तर:
(स) DNA अणुओं को उनके आकार के अनुसार पृथक् करने के लिए

28. आनुवंशिकी अभियांत्रिकी में ‘आण्विक कैंची’ की तरह उपयोग किया जाता है- (KCET 2000; WBJWW-2009)
(अ) DNA पॉलीमरेज
(ब) DNA लाइगेज
(स) हेलिकेज
(द) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(द) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज

29. निम्नलिखित में से किस एक विजातीय DNA को फसली पौधों में डलने के लिए सामान्यतः उपयोग में लाया जाता है? (NEET-2009)
(अ) पेनिसीलियम एम्सपैसम
(ब) ट्राइकोडर्मा हरजिएनम
(स) मेलॉयडोगाइन एन्कोनिआ
(द) एप्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस
उत्तर:
(द) एप्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस

30. ऐन्टीबायोटिक प्रतिरोध जीन का प्लाज्मिड वाहक के साथ जोड़ा जा सकना किससे सम्भव हुआ? (CBSE PMT 2008, NEET 2008)
(अ) DNA पॉलीमरेजों से
(ब) एक्सोन्यूक्लिऐजों से
(स) DNA लाइगेज से
(द) एण्डोन्यूक्लिएजों से
उत्तर:
(स) DNA लाइगेज से

31. शाकनाशी- प्रतिरोधी आनुवंशिकता : रूपान्तरित (GM) फसलों के उत्पाद / उपयोग का मुख्य उद्देश्य क्या है? (CBSE PMT-2008, NEET-2008)
(अ) पर्य- प्रेमी शाकनाशियों को बढ़ावा देना
(ब) स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए खाद्य वस्तओं में शाकनाशी का संचयन कम करना
(स) मानव श्रम का उपयोग किए बिना ही खेत से खरपतवारों का सफाया कर देना
(द) बिना शाकनाशियों का उपयोग किए ही खेत से खरपतवारों को दूर कर देना
उत्तर:
(ब) स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए खाद्य वस्तओं में शाकनाशी का संचयन कम करना

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32. pBR322 वाहक में किसके प्रति प्रतिरोधक जीन होती है- (CBSE PMT-2006)
(अ) एम्पीसिलिन
(ब) टेट्रासाइक्लिन
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उपर्युक्त दोनों

33. प्रतिबन्धन एन्डोन्यूक्लिएज काटता है- (Haryana PMT-2006)
(अ) DNA के दोनों रज्जुकों को
(ब) एक DNA रज्जु को विशिष्ट स्थल पर
(स) DNA के दोनों रज्जुओं को किसी भी स्थल पर
(द) एकल रज्जुकी RNA को किसी भी स्थान पर
उत्तर:
(अ) DNA के दोनों रज्जुकों को

34. आनुवंशिक अभियांत्रिकी में प्रयोग होने वाले दो महत्त्वपूर्ण जीवाणु हैं- (CBSE PMT 2006 )
(अ) नाइट्रोबैक्टर एवं एजेटोबैक्टर
(ब) राइजोबियम एवं डिप्लोकोकस
(स) नाइट्रोसोमोनॉस एवं कैलिबसिल्ला
(द) इश्वीरिचिया एवं एग्रोबैक्टिरियम
उत्तर:
(द) इश्वीरिचिया एवं एग्रोबैक्टिरियम

35. प्लाज्मिड (Plasmid ) है, एक ( Haryana PMT-2006)
(अ) जीवाणु
(ब) कवक
(स) प्लाज्मा झिल्ली का एक भाग
(द) जीवाणु कोशिका में अतिरिक्त गुणसूत्रीय DNA
उत्तर:
(द) जीवाणु कोशिका में अतिरिक्त गुणसूत्रीय DNA

36. प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज का प्रयोग पुनर्योगज DNA तकनीक में व्यापक रूप से किया जाता है। ये प्राप्त किये जाते हैं- (KCET-2006)
(अ) प्लाज्मिड से
(ब) सभी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं से
(स) जीवाणुभोजी से
(द) जीवाणु कोशिका से
उत्तर:
(द) जीवाणु कोशिका से

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37. पारजीनी जीवों में लक्ष्य ऊतक में पारजीन की अभिव्यक्ति किसके द्वारा निर्धारित होती है ?
(अ) पारजीन (ट्रांसजीन)
(ब) रिपोर्टर द्वारा
(स) संवाहक (रिपोर्टर)
(द) संवृद्धिकर (एन्हेंसर) में ट्रांसजीन की ट्रांसजेनिक
उत्तर:
(स) संवाहक (रिपोर्टर)

38. लक्ष्य ऊतक (Target tissue) अभिव्यक्ति निर्धारित होती है-(NEET-2004)
(अ) इन्हेन्सर द्वारा
(ब) उन्नायक (प्रमोटर )
(स) प्रमोटर द्वारा
(द) ट्रांसजीन द्वारा
उत्तर:
(ब) उन्नायक (प्रमोटर )

39. आनुवंशिक पदार्थ पृथक् करने के लिए एन्जाइम का उपयोग होता है- (APMC-2004)
(अ) हाइड्रोलेज
(ब) एमाइलेज
(स) लाइगेज
(द) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(द) रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज

40. निम्नलिखित में से कौनसा एक जीवाणु पौधों में आनुवंशिक इंजीनियरिंग में सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है? (NEET-2003)
(अ) क्लास्ट्रिडियम सेप्टिकम
(ब) जेन्थेमोनास बिट्राइ
(स) बेसिलस कोएगुलेन्स
(द) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेसिएन्स
उत्तर:
(द) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेसिएन्स

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41. किसकी खोज के कारण आनुवंशिक अभियांत्रिकी में DNA का तोड़-फोड़ सम्भव हो सका ? (NEET-2002)
(अ) रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज
(ब) DNA लाइगेज
(स) ट्रांसक्रिप्टेज
(द) प्राइमेज
उत्तर:
(अ) रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज

42. अभी तक खोजे गये प्लाज्मिड्स में अधिकतम क्षारकों की संख्या (MP PMT-2000)
(अ) 50 किलो बेस
(ब) 500 किलो बेस
(स) 5000 किलो बेस
(द) 5 किलो बेस अभियान्त्रिकी में प्रयुक्त होता
उत्तर:
(ब) 500 किलो बेस

43. निम्न में से कौन-सा आनुवंशिक (NEET-2001)
(अ) RNA पॉलीमरेज
(ब) DNA पॉलीमरेज’
(स) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज
(द) न्यूक्लिएज
उत्तर:
(स) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज

44. निम्न में से किसके द्वारा पादपों और जन्तुओं को इच्छित (desired) लक्षणों के साथ प्रजनन करना सम्भव है- (KCET-1994)
(अ) आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा
(ब) गुणसूत्र इंजीनियरिंग द्वारा
(स) आइकेबाना विधि द्वारा
(द) ऊतक संवर्धन द्वारा
उत्तर:
(अ) आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. गोबर गैस संयंत्र में काम आने वाला जीवाणु है-
(अ) मीश्रेनोजनं
(ब) नाइट्रीकारी जीवाणु
(स) अमीनोकारी जीवाणु
(द) विनाइट्रीकारी जीवाणु
उत्तर:
(अ) मीश्रेनोजनं

2. ब्रेड बनाते समय किसकी क्रिया के द्वारा CO2 निकलने से यह छिद्रित हो जाती है ?
(अ) यीस्ट
(ब) जीवाणु
(स) वाइरस
(द) प्रोटोजोन्स
उत्तर:
(अ) यीस्ट

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

3. निम्न में से कौनसा युग्म जैव उर्वरक है-
(अ) एजोला तथा BGA
(ब) नास्टॉक तथा लेग्यूम
(स) राइजोबियम वास
(द) साल्मोनेला व इकोलाई
उत्तर:
(अ) एजोला तथा BGA

4. निम्नलिखित में से कौनसा एक जोड़ा गलत मिलाया गया है?
(अ) कोलिफॉर्मर्स – सिरका
(ब) मेथोनोजन्स – गोबर गैस
(स) यीस्ट – एथेनॉल
(द) स्ट्राप्टोमाईसाटीज – एंटीबायोटिक
उत्तर:
(अ) कोलिफॉर्मर्स – सिरका

5. ‘जीवन के खिलाफ’ किससे सम्बन्धित है-
(अ) प्रतिजैविक
(ब) जीवाणु
(स) कवक से
(द) शैवाल से
उत्तर:
(अ) प्रतिजैविक

6. कवक एवं पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध कहलाता है-
(अ) माइकोराइजा
(ब) लाइकेन
(स) सिम्बायोसिस
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) माइकोराइजा

7. बटर फ्लाई केटरपिलर के नियंत्रण में प्रयोग किया जाता है-
(अ) बैसीलस थूरिजिऐसिस
(ब) ट्राइकोडर्मा
(स) बैम्पूलोवायरेसिस
(द) मीथेनोबैक्टिरिया
उत्तर:
(अ) बैसीलस थूरिजिऐसिस

8. जल के एक नमूने में सूक्ष्जीवियों द्वारा ऑक्सीजन के उद्य्रहण की दर का मापन किया जाता है-
(अ) सी.ओ.डी. परीक्षण
(ब) एच.ओ.डी. परीक्षण
(स) एस.ओ.डी. परीक्षण
(द) बी.ओ.डी. परीक्षण
उत्तर:
(द) बी.ओ.डी. परीक्षण

9. ‘थक्का स्फोटन’ के रूप में निम्न में से प्रयोग किया जाता है-
(अ) स्ट्रेप्टोकाइनेज
(ब) लाइपेज
(स) एमाइलेज
(द) प्रोटिऐजिज
उत्तर:
(अ) स्ट्रेप्टोकाइनेज

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

10. सायनोबैक्टिरिया पोषण के आधार पर है-
(अ) परजीवी
(ब) परपोषी
(स) स्वपोषित
(द) मृतजीवी
उत्तर:
(स) स्वपोषित

11. एफिडो तथा मच्छरों से छुटकारा दिलवाने में निम्न में से लाभप्रद है-
(अ) ड्रेगनफ्लाई एवं बीटल
(ब) वैक्यूलोवायरेसिस
(स) बेसीलस थूरिजिऐसिस
(द) ट्राइकोडर्मी
उत्तर:
(अ) ड्रेगनफ्लाई एवं बीटल

12. ताड़ वृक्ष (palms) के किस भाग से प्राप्त स्राव को किण्वित कर टोडी (Toddy) तैयार किया जाता है-
(अ) जड़
(ब) पत्ती
(स) तना
(द) पुष्प
उत्तर:
(स) तना

13. कौनसा पीड़कनाशी वसा-स्नेही है?
(अ) आर्गेनोक्लोरीन
(ब) आर्गेनोफॉस्फेट
(स) ट्राइआजीन
(द) पायरिथोयड
उत्तर:
(अ) आर्गेनोक्लोरीन

14. निम्न में से किसका उत्पादन बिना आसवन के किया जाता है-
(अ) वाइन
(ब) व्हिस्की
(स) ब्रांडी
(द) रम
उत्तर:
(अ) वाइन

15. निम्न में से किसे किण्वित रस के आसवन द्वारा तैयार किया जाता है-
(अ) रम
(ब) बीयर
(स) वाइन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) रम

16. पैनिसिलीन के खोजकर्ता हैं-
(अ) एलैग्जेंडर हुक
(ब) एलैग्जैंडर फ्लैमिंग
(स) एलैग्जैंडर ब्राउन
(द) एलैग्जैंडर श्वान
उत्तर:
(ब) एलैग्जैंडर फ्लैमिंग

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

17. एसीटीक अम्ल के उत्पादन में निम्न में से कौनसा जीवाणु सहायक है-
(अ) लैक्टोबैसिलस
(ब) क्लोस्ट्रीडियम
(स) एसीटोबेक्टर एसिटाई
(द) पेनीसिलीयम नोटेटम
उत्तर:

18. निम्न में से कौनसा प्लान सूत्रपात किया गया ताकि देश की प्रमुख नदियों को प्रदूषण से बचाया जा सके-
(अ) यमुना एक्शन प्लान
(ब) गंगा एक्शन प्लान
(स) साँभर झील एक्शन प्लान
(द) (अ) व (ब) दोनों
उत्तर:
(द) (अ) व (ब) दोनों

19. व्यावसायिक पैमाने पर सूक्ष्मजीवियों को पैदा करने के लिए बड़े बर्तन की आवश्यकता होती है जिसे कहते हैं-
(अ) फरमैंटर
(ब) थरमैंटर
(स) इरमैंटर
(द) पीरमेंटर
उत्तर:
(अ) फरमैंटर

20. प्रतिजैविक कौनसे संक्रमित रोग के रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं?
(अ) डिप्थीरिया
(ब) काली खांसी
(स) निमोनिया
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

21. किस तत्व के पोषण के लिए माइकोराइजा उत्तरदायी है?
(अ) पोटैशियम
(ब) कॉपर
(स) जिंक
(द) फॉस्फोरस
उत्तर:
(द) फॉस्फोरस

22. द्वितीयक सीवेज उपचार मुख्यतः क्या है?
(अ) भौतिक प्रक्रिया
(ब) यांत्रिक प्रक्रिया
(स) रासायनिक प्रक्रिया
(द) जैविक प्रक्रिया
उत्तर:
(द) जैविक प्रक्रिया

23. सीवेज पर अवायवीय बैक्टिरिया को क्रिया द्वारा मुख्यतः क्या बनता है?
(अ) लाफिंग गैस
(ब) प्रोपेन
(स) मस्टर्ड गैस
(द) मार्स गैस
उत्तर:
(ब) प्रोपेन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

24. ‘फेड बैच’ किण्वन विधि में शर्करा को निरन्तर डालने की क्रिया निम्न में किस एक के लिए की जाती है?
(अ) मीथेन बनाने में
(ब) एन्यीबायोटिक्स प्रास्त करने में
(स) एन्जाइमों के शुद्धिकरण में
(द) सीवेज विघटन में
उत्तर:
(ब) एन्यीबायोटिक्स प्रास्त करने में

25. एथेनॉल के उत्पादन के लिए मद्यनिर्माणशालाओं (डिस्टिलेरीज) में सर्वाधिक सामान्यतः इस्तेमाल किया जाने वाला क्रियाधर (सब्ट्रेट) कौनसा होता है?
(अ) मकई का आटा
(ब) सोयाबीन का आटा
(स) चने का आटा
(द) शीरा
उत्तर:
(द) शीरा

26. मायोकार्डियल इन्फार्कस (हुदय पेशी रोध गलन) के रोगी को अस्पताल में लाने पर तत्काल सामान्यतः क्या दिया जाता है-
(अ) पेनेसिलिन
(ब) स्टेप्टोकाइनेज
(स) साइक्लोस्पोरिन
(द) स्टैटिन्स
उत्तर:
(द) स्टैटिन्स

27. सूक्ष्म जीवों का उपयोग करते हुए पीड़कों/रोगों के जैविकीय नियंत्रण का निम्नलिखित में से एक उदाहरण कौनसा है?
(अ) कुछ खास पादप रोग जनकों के लिए ट्राइकोडर्मा स्पी का होना।
(ब) ब्रैसिमा में श्वेत किट्ट के प्रति न्यूकिलयोपा हैड्रो वाइरस का होना
(स) कपास की उपज में बढ़ोतरी करने के लिए Bt कपास का बनाया जाना
(द) सरसों में कीटों के प्रति लेडी बर्ड बीटल का होना
उत्तर:
(अ) कुछ खास पादप रोग जनकों के लिए ट्राइकोडर्मा स्पी का होना।

28. निम्न में से कौनसा युग्म जैव उर्वरक का है ?
(अ) एजोला तथा BGA
(ब) नास्टॉक तथा लेग्यूम
(स) राइजोबियम तथा घास
(द) साल्मोनेला व ई. कोलाई
उत्तर:
(अ) एजोला तथा BGA

29. निम्नलिखित में से कौनसा एक जोड़ा सही नहीं मिलाया गया है?
(अ) सिरोटिया – औषधि व्यसन
(ब) स्पाइरूलाइना – एकल कोशिका प्रोटीन
(स) राइजोबियम – जैव उर्वरक
(द) स्ट्रेप्टोमाइसीज – एंटिबायोटिक
उत्तर:
(अ) सिरोटिया – औषधि व्यसन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

30. जैविक अपशिष्ट के अवायवीय पीपन के दौरान जैसा कि बायो गैस बनाने में होता है, निम्नलिखित में से कौनसा एक अंश अपघटित नहीं होता-
(अ) लिपिड
(ब) लिग्निन
(स) हेमोसेलुलोज
(द) सेलुलोज
उत्तर:
(ब) लिग्निन

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बैक्टीरिया का नाम लिखिए जो दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं ।
उत्तर:
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ।

प्रश्न 2.
ब्रेड बनाने में प्रयोग किये जाने वाले आटे में किस यीस्ट का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर:
ब्रेड बनाने में प्रयोग किये जाने वाले आटे में बैकर यीस्ट (Satcharomyces cerevisiae) का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
डोसा बनाये जाने वाले आटे की फूली एवं उभरी हुई शक्ल किस गैस के उत्पादन से होती है?
उत्तर:
डोसा बनाये जाने वाले आटे की फूली एवं उभरी हुई शक्ल CO2 गैस के उत्पादन से होती है।

प्रश्न 4.
दक्षिण भारत में कुछ भागों में पारंपरिक पेय टोडी (Toddy) किस वृक्ष के स्राव को किण्वित कराकर तैयार किया जाता है ?
उत्तर:
दक्षिण भारत के कुछ भागों में पारंपरिक पेय टोडी (Toddy) ताड़ वृक्ष (Palms) के तने के स्राव को किण्वित कराकर तैयार किया जाता है।

प्रश्न 5.
स्विस चीज में बड़े-बड़े छिद्र किस गैस के उत्पन्न होने के कारण होते हैं?
उत्तर:
स्विस चीज (Swiss Cheese) में बड़े-बड़े छिद्र अधिक मात्रा में CO2 गैस के उत्पन्न होने के कारण होते हैं ।

प्रश्न 6.
उस जीवाणु का नाम बनाइए जो स्विस चीज (Swiss Cheese) में CO2 का उत्पादन करता है?
उत्तर:
प्रोपिओ निबैक्टीरियम शारमे नाई (Propionibacterium sharmanii) नामक जीवाणु स्विस चीज में CO2 का उत्पादन करता है।

प्रश्न 7.
राक्यूफोर्ट चीज (Roquefort Cheese) में विशेष सुगंध किसके कारण आती है ?
उत्तर:
राक्यूफोर्ट चीज (Roquefort Cheese) एक विशेष प्रकार के कवक की वृद्धि से परिपक्व होते हैं जिससे विशेष सुगंध आती है।

प्रश्न 8.
सामान्यतः कौनसा यीस्ट ब्रीवर्स यीस्ट के नाम से प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
सैके रो माइ सीज सैरीविसी (Saccharomyces cerevisiae) यीस्ट ब्रीवर्स यीस्ट के नाम से प्रसिद्ध है ।

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प्रश्न 9.
उस कवक का नाम लिखिए जिससे पैनीसीलिन प्राप्त किया जाता है।
उत्तर:
पैनीसीलियम नोटेटम नामक कवक से पैनीसीलिन प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 10.
किन वैज्ञानिकों ने पैनीसीलिन की एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली एंटीबॉयोटिक के रूप में पुष्टि की ?
उत्तर:
अरनैस्ट चैन तथा हावर्ड फ्लौरे ने पैनीसीलिन की एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली एंटीबॉयोटिक के रूप में पुष्टि की।

प्रश्न 11.
पैनीसीलिन एंटीबॉयोटिक का प्रयोग दूसरे विश्व युद्ध में किसके लिए किया गया था ?
उत्तर:
पैनीसीलिन एंटीबॉयोटिक का प्रयोग दूसरे विश्व युद्ध में घायल अमरीकन सिपाहियों के उपचार में व्यापक रूप से किया गया था।

प्रश्न 12.
बाजार से खरीदा गया बोतल का फल रस अधिक साफ व स्वच्छ किसके प्रयोग के कारण दिखाई देता है?
उत्तर:
बाजार से खरीदा गया बोतल का फल रस अधिक साफ व स्वच्छ पेक्टीनेजिज तथा प्रोटीऐजिज के प्रयोग के कारण दिखाई देता है।

प्रश्न 13.
साइक्लोस्पोरिन ए का उत्पादन किस कवक से किया जाता है?
उत्तर:
साइक्लोस्पोरिन ए का उत्पादन ट्राइकोडर्मा पालोस्पोरम नामक कवक से किया जाता है।

प्रश्न 14.
मोनास्कस परप्यूरीअस यीस्ट से उत्पन्न स्टैटिन (Statins) का कार्य क्या है?
उत्तर:
मोनास्कस परप्यूरीअस यीस्ट से उत्पन्न स्टैटिन (Statins) का कार्य रक्त में उपस्थित कॉलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य करता है।

प्रश्न 15.
बी.ओ.डी. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
र- बॉयोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand)

प्रश्न 16.
पर्यावरण तथा वन मंत्रालय ने हमारे देश की प्रमुख नदियों को बचाने के लिए कौनसे दो ऐक्शन प्लान तैयार किए हैं?
उत्तर:

  • गंगा ऐक्शन प्लान
  • यमुना ऐक्शन प्लान ।

प्रश्न 17.
भारत में बायोगैस उत्पादन की प्रौद्योगिकी का विकास किसके प्रयासों से हुआ?
उत्तर:
भारत में बायोगैस उत्पादन की प्रौद्योगिकी का विकास निम्न के प्रयासों के द्वारा हुआ-

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान
  • खादी एवं ग्रामीण उद्योग आयोग

प्रश्न 18.
ऐसे रोगजनक का नाम लिखिए जो कीटों एवं संधिपादों (आर्थ्रोपोडों) पर हमला करते हैं ।
उत्तर:
बैक्यूलोवायेरेसिस ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा संधिपादों (आर्थ्रोपोडों) पर हमला करते हैं।

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प्रश्न 19.
औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में काम आने वाले किन्हीं तीन सूक्ष्मजीवों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • यीस्ट
  • जीवाणु
  • कवक

प्रश्न 20.
उद्योगों में सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके प्राप्त होने वाले दो उत्पादों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • ऐल्कोहॉल
  • प्रतिजैविक ।

प्रश्न 21.
लैक्टिक अम्ल जीवाणु के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर;

  • दूध में वृद्धि करते हैं।
  • दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न 22.
जलाक्रांत खेत में नॉस्टॉक एवं एनाबीना जैसे शैवालों की आबादी अधिक हो जाने से खेत किस प्रकार प्रभावित होगा? सकारण समझाइए ।
उत्तर:
जलाक्रांत खेत में नॉस्टॉक एवं एनाबीना आदि शैवालों की अधिकता से उर्वरता बढ़ जाती है क्योंकि ये वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करते हैं। ये शैवाल जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं। ये मृदा में कार्बनिक पदार्थ भी बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 23.
जैव वैज्ञानिक नियंत्रण के तहत कौन-सी कवक का उपयोग पादप रोगों के उपचार में किया जाता है?
उत्तर:
ट्राइकोडर्मा कवक ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
सूक्ष्मजीव की आवास व्यवस्था का वर्णन कीजिए। इन्हें पोषक माध्यमों पर क्यों उगाया जाता है? समझाइए ।
उत्तर:
सूक्ष्मजीव की आवास व्यवस्था – सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। ये मृदा, जल, वायु हमारे शरीर के अन्दर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाये जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे- गीजर के भीतर गहराई तक (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100°C तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक बर्फ की परतों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर पाये जाते हैं। सूक्ष्मजीव विविध रूपायित प्रोटोजोआ, जीवाणु, कवक तथा सूक्ष्मदर्शीय पादपों से होते हैं।
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सूक्ष्मजीवियों को जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान इसलिए पोषक माध्यमों पर उगाया जाता है, ताकि ये वृद्धि कर सकें एवं कॉलोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न आँखों से देखा जा सके। देखिए ऊपर चित्र में ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवी अध्ययन के दौरान लाभदायक होते हैं।

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प्रश्न 2.
वाइरस से विरोइड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वाइरस से विरोइड में भिन्नता-

वाइरस (Viruses)विरोइड (Viroids)
1. ये बैक्टीरिया से छोटे होते हैं।1. ये वायरस से छोटे होते हैं।
2. इनमें आनुवंशिक पदार्थ RNA अथवा DNA2. जबकि इनमें केवल RNA पाया जाता है।
3. हो सकता है। इनमें प्रोटीन का आवरण पाया जाता है।3. जबकि इनमें प्रोटीन का आवरण नहीं पाया जाता है।
4. इनके द्वारा निम्न रोग होते हैंएड्स, चेचक आदि।4. जबकि इनके द्वारा पोटेटो स्पाइन्डल ट्यूबर नामक रोग होता है।

प्रश्न 3.
बैक्टीरिया तथा सायनोबैक्टीरिया में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
बैक्टीरिया तथा सायनोबैक्टीरिया में चार अन्तर-

बैक्टीरिया (Bacteria)सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria)
1. छोटी कोशिकाएँ।1. अपेक्षाकृत बड़ी कोशिकाएँ।
2. कशाभ हो सकते हैं।2. कशाभ नहीं होते हैं।
3. कुछ बैक्टीरिया (हरे बैक्टीरिया) में प्रकाश- संश्लेषण एक अलग प्रकार से होता है, जिसमें ऑक्सीजन बाहर निकलती है।3. प्रकाश-संश्लेषण में सामान्य तरीके से ऑक्सीजन निकलती है जैसा कि हरे पौधों में होता है।
4. लैंगिक जनन संयुग्मन द्वारा।4. संयुग्मन होता नहीं देखा गया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित बैक्टीरिया के लाभकारी क्रियाकलाप लिखिए-

  • राइजोबियम
  • एजोटोबैक्टर
  • स्ट्रेप्टोमाइसीज
  • लेक्टोबैसिलस ।

उत्तर:
बैक्टीरिया के लाभकारी क्रियाकलाप निम्न हैं-

बैक्टीरियम का नामक्रियाकलाप
1. राइजोबियम (Rhizobium)1. लेग्यूमो (मटर, चना, दालें आदि) की जड़ों में रहता पाया जाता है, वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अमोनिया के रूप में स्थिर कर देता है जो फिर आगे उपयोगी ऐमिनो अम्लों में बदल जाती है।
2. एजोटोबैक्टर (Azotobacter)2. मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर कर देता है।
3. स्ट्रेप्टोमाइसीज (Streptomyces)3. इससे स्ट्रे प्टोमाइसिन नामक ऐंटिबायोटिक बनती है।
4. लेक्टोबैसिलस (Lactobacillus)4. लैक्टोज़ (दुग्ध शर्करा) का लैक्टिक अम्ल में किण्वन करता है। इससे दूध के दही में जमने में सहायता मिलती है।

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प्रश्न 5.
स्पाईरुलीना का खाद्य के रूप में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
स्पाईरुलीना नील हरित शैवाल का सदस्य है। इसका उपयोग सम्पूर्ण आहार के रूप में किया जा सकता है। स्पाईरुलीना में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, एमीनो अम्ल, विटामिन्स, मिनरल्स, एन्जाइम्स, वसा तथा पिगमेन्ट्स ये सभी तत्व इसमें विद्यमान होते हैं। स्पाईरुलीना में उपस्थित प्रोटीन की खास बात यह भी है कि यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि शरीर स्वयं अपने लिए तैयार करता है। इसमें दूध के बराबर कैल्सियम पाया जाता है तथा गाजर के मुकाबले 15 गुणा अधिक विटामिन A होता है।

प्रश्न 6.
चावल की खेती में खाद की आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती है?
उत्तर:
नील हरी शैवाल अर्थात् सायनोजीवाणु की कुछ जातियाँ जिनमें नॉस्टॉक, एनेबीना तथा टोलीपोथ्रिक्स आदि वायुमण्डल की नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करने में सक्षम होती हैं। ये शैवाल भूमि की उर्वरता में वृद्धि करती हैं। चावल की खेती में इनका योगदान सराहनीय है। अतः इसी कारण खाद की आवश्यकता नहीं रहती है।

प्रश्न 7.
माइकोराइजा किसे कहते हैं? इसके प्रमुख लाभ लिखिए।
उत्तर:
कवक तथा उच्च वर्ग के पादपों की मूल (root) का परस्पर सहजीवन माइकोराइजा कहलाता है। इसमें कवक अपने तन्तुओं द्वारा पादप की मूल के बाहर की तरफ चारों ओर पूरी तरह से एक आवरण बना लेता है। कवक तन्तु पादप मूल की कार्टेक्स कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिका (Intercellular) स्थान में प्रवेश कर जाते हैं और एक जाल रूपी संरचना बनाते हैं जिसको हारटिंग नेट कहते हैं। इसमें पादपमूल पर मूल रोम नहीं होते हैं। कवक मूल का मुख्य कार्य खनिज लवण (फॉस्फोरस) के अवशोषण में सहायता करना है। कवक के कारण मूल का अवशोषण क्षेत्र बढ़ जाता है।

माइकोराइजा के प्रमुख लाभ-

  1. मूलवातोढ (root-borne ) रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता ।
  2. कवक मूल से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
  3. कवक मूल से पादप की वृद्धि तीव्र तथा उत्पादन बढ़ता है।
  4. खनिज लवण व अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक मात्रा में व सुगमता से होता है। इस कारण पादप को बाह्य पोषक तत्वों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
  5. ऑक्सीजन का संश्लेषण बढ़ जाता है।
  6. कवकमूल में कवक के कारण अवशोषण सतह बढ़ जाती है।
  7. कुछ पादपों में यह सम्बन्ध बीज अंकुरण के लिए आवश्यक है।
  8. कवक मूल के कारण उर्वरकों पर पादप की निर्भरता कम होती है तथा इससे धन की बचत होती है।
  9. पादप में लवणता तथा सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है।
  10. चीड़ के पादप कवक सम्बन्ध के अभाव में कभी-कभी सड़ जाते हैं अतः यह सम्बन्ध जंगल निर्माण में सहायक होता है।
  11. एक्टोट्रॉफिक कवक मूल के कारण बहुत से पादपों से पिथियम, फाइटोप्थोरा, फ्यूसेरियम आदि का संक्रमण नहीं हो पाता है।

प्रश्न 8.
बीटी क्या है? यह किस प्रकार कीटों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
बीटी (Bt) एक प्रकार का जीवविष है । यह बैसीलस थुरीनजिएंसीस ( संक्षेप में बीटी) नामक जीवाणु से निर्मित होता है । बीटी जीवविष जीन जीवाणु से क्लोनीकृत होकर पौधों में अभिव्यक्त होकर कीटों (पीड़कों) के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है। जिससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं रह गई है। इस तरह से जैव पीड़कनाशकों का निर्माण होता है।

उदाहरण- बीटी कपास, बीटी मक्का, धान, टमाटर, आलू आदि । बीटी कपास – बैसीलस धूरीनजिएंसीस की कुछ नस्लें ऐसे प्रोटीन का निर्माण करती हैं जो विशिष्ट कीटों जैसे-लपीडोप्टेशन (तम्बाकू की कलिका कीड़ा, सैनिक कीड़ा) कोलियोप्टेरान (भृंग) व डीप्टेरान (मक्खी, मच्छर ) को मारने में सहायक हैं। बी. थूरीनजिएंसीस अपनी वृद्धि की विशेष अवस्था में कुछ प्रोटीन रवों का निर्माण करती है।

इन रवों में विषाक्त कीटनाशक प्रोटीन होता है। यह जीवविष बैसीलस को क्यों नहीं मारता? वास्तव में बीटी जीवविष प्रोटीन, प्राक्जीव विष निष्क्रिय रूप में होता है, ज्योंही कीट इस निष्क्रिय जीव विष को खाता है, इसके रवे आंत में क्षारीय पी. एच. के कारण घुलनशील होकर सक्रिय रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

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सक्रिय जीवविष मध्य आंत के उपकलीय कोशिकाओं की सतह से बंधकर उसमें छिद्रों का निर्माण करते हैं जिस कारण से कोशिकाएँ फूल. कर फट जाती हैं और परिणामस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है। विशिष्ट बीटी जीवविष बैसीलस थुरीनजिएंसीस से पृथक् कर कई फसलों जैसे कपास में समाविष्ट किया जा चुका है। जींस का चुनाव फसल व निर्धारित कीट पर निर्भर करता है। जबकि सर्वाधिक बीटी जीवविष कीट समूह विशिष्टता पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 9.
निम्न को कारण सहित समझाइए-
(1) अस्पतालों में उबले हुए उपकरणों का प्रयोग आवश्यक है।
उत्तर:
उपकरणों को उबालने से जीवाणु इत्यादि समाप्त हो जाते हैं जिससे संक्रमण होने की संभावना नहीं रहती है।

(2) लेग्यूमिनोसी कुल के पौधे जिस खेत में उगाये जाते हैं उसकी उर्वरता बनी रहती है।
उत्तर:
लेग्यूमिनोसी कुल के पादपों की जड़ें ग्रन्थिकामय होती हैं। इन ग्रन्थियों में राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम नामक जीवाणु रहते हैं जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं ।

(3) ताजा तथा बिना उबला हुआ दूध खट्टा होने की सम्भावना अधिक होती है।
उत्तर:
कुछ जीवाणु दूध में उपस्थित लेक्टोस शर्करा को लेक्टिक अम्ल में किण्वित करते हैं जिससे दूध खट्टा हो जाता है, जैसे-. स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस, लेक्टोबैसिलस कैसिआई, ले. एसिडोफिल्स आदि । दूध को उबालने से ये जीवाणु समाप्त हो जाते हैं तथा दूध को खट्टा होने से बचाया जा सकता है।

(4) शराब अधिक समय तक रखने पर खट्टी हो जाती है।
उत्तर:
शराब अधिक समय तक रखने पर जीवाणुओं का प्रकोप हो जाने से खट्टी हो जाती है।

(5) सड़ी-गली चीजों का सड़ते समय तापमान अधिक होता है।
उत्तर:
ये मृतोपजीवी जीवाणु होते हैं, कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण व उपापचय क्रियाओं से ऊर्जा निकलने के कारण ताप बढ़ जाता है।

प्रश्न 10.
बायोगैस का उत्पादन करते समय किण्वन सम्बन्धी कौन-कौनसी परिस्थितियाँ बनाए रखना आवश्यक है ?
उत्तर:
बायोगैस का उत्पादन करते समय किण्वन सम्बन्धी निम्न परिस्थितियाँ बनाए रखना आवश्यक है-

  1. किण्वन पूर्णत: अवायवीय पर्यावरण में कराया जाना चाहिए और किसी भी तरह मुक्त ऑक्सीजन मौजूद नहीं होनी चाहिए।
  2. फरमेंटर (किण्वक) के भीतर pH 6.8 से 7.6 तक लगभग उदासीन (Neutral) स्तर पर बनाए रखना चाहिए।
  3. किण्वन में मीथेनजनी बैक्टीरिया उपस्थित होने चाहिए।

प्रश्न 11.
उद्योगों में इस्तेमाल किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण सूक्ष्मजीव के नाम लिखिए। किन्हीं पाँच उत्पादों का नाम लिखिए जिनके निर्माण में सूक्ष्मजीवों का इस्तेमाल किया जाता है।
उत्तर:
उद्योगों में इस्तेमाल किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण सूक्ष्मजीव इस प्रकार हैं-

  1. यीस्ट (कवक)
  2. फंफूद (कवक)
  3. जीवाणु
  4. तंतुमय बैक्टीरिया (ऐक्टिनोमायेसिटीज) ।

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सूक्ष्मजीवों को अग्र उत्पादों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है-

  • ऐल्कोहॉल-युक्त पेय पदार्थ
  • दही
  • प्रतिजैविक
  • कार्बनिक रसायन जिनमें विटामिन, स्टीरॉइड एवं एंजाइम शामिल हैं।
  • बायोगैस ।

प्रश्न 12.
ऐसे कोई सामान्य पाँच एंटीबायोटिक लिखकर उनके स्रोत का भी नाम लिखिए।
उत्तर:
एंटीबायोटिक तथा उनके स्रोत

एंटीबायोटिकस्रोत
1. क्लोरोटेट्रासाइक्लिनस्ट्रेप्टोमाइसीज ऑरीफेसिस
2. स्ट्रेप्टोमाइसिनस्ट्रेप्टोमाइसीज ग्रीसेव्स
3. पैनिसीलिनपेनिसिलियम नोटेटम
4. सेफेलोस्पोरिनसेफेलोस्पोरियम एक्रीमोनियम
5. साइक्लोहेक्सिमाइडस्ट्पेप्टोमाइसीज ग्रीसेक्स

प्रश्न 13.
जैव उर्वरक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
जैव उर्वरक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
जैव उर्वरक (Biofertilisers) – मृदा की उर्वरता बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीवों को जैव उर्वरक अथवा बायोफर्टिलाइजर्स कहते हैं। कई नाइट्रोजन स्थायीकर जीवाणु, नीलहरित शैवालें, मूल कवकें आदि मृदा की उर्वरता बढ़ाते हैं। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण निम्न हैं-
(1) लेग्यूम – राइजोबियम सहजीवन- फलीदार पौधों की मूलों की ग्रंथियों में निवास करने वाली राइजोबियम की जातियाँ पौधे को उपयोग करने योग्य रूप में नाइट्रोजन उपलब्ध कराती हैं।

(2) एजोला – एनाबीना सहजीवन – एजोला एक जलीय टेरिडोफाइट है जो जल की सतह पर वृद्धि करता है। इसके साथ ऐनाबीना नामक नील हरित शैवाल सहजीवी रूप में रहती है तथा पादप को नाइट्रेट उपलब्ध कराती है।

(3) मुक्तजीवी सायेनोबैक्टीरिया तथा बैक्टीरिया-रिवुलेरिया व नॉस्टॉक (नील हरित शैवाल) तथा क्लोस्ट्रीडियम व एजेटोबेक्टर (मुक्तजीवी जीवाणु) मृदा में स्वतंत्र रूप से रहते हुये वायुमण्डल की नाइट्रोजन का यौगिककरण करते हैं। आजकल जैवप्रौद्योगिकी तकनीकों के अनुप्रयोग से सूक्ष्मजीवों के नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जीन (Nif जीन) को उच्च पादपों में स्थानांतरित करने के प्रयास जारी हैं।

प्रश्न 14.
लैग्यूमिनस पादप की जड़ों पर स्थित ग्रन्थियों को नष्ट कर दिया जाये तो पादप पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सकारण समझाइए ।
उत्तर:
जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लैग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर विद्यमान ग्रन्थियों (nodules) का निर्माण राइजोबियम जीवाणु के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं व पादप इसका उपयोग पोषकों के रूप में करते हैं। यदि इन पौधों से ग्रन्थियों को नष्ट कर दिया जाये तो पादप पोषक पदार्थों के अभाव में वृद्धि नहीं कर पायेंगे व धीरे-धीरे नष्ट हो जायेंगे।

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प्रश्न 15
विभिन्न पेय उत्पादन में सूक्ष्मजीवों के उपयोग को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
सूक्ष्मजीव विशेषकर यीस्ट का प्रयोग प्राचीन काल से वाइन, बियर, व्हिस्की, ब्रान्डी, जिन, रम आदि पेयों के उत्पादन में किया जाता रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वही यीस्ट- सैकेरोमाइसिस सिरेबिसी जो सामान्यतः बेकर्स यीस्ट के नाम से प्रसिद्ध है, ब्रेड बनाने वाले तथा माल्टीकृत धान्यों फलों के रसों में एथेनॉल उत्पन्न करने में प्रयुक्त किया जाता है। इन सभी क्रियाओं में किण्वन होता है, जिसे निम्न समीकरण द्वारा बताया जा रहा है-
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विभिन्न प्रकार के ऐल्कोहॉलीय पेय की प्राप्ति किण्वन तथा विभिन्न प्रकार के संसाधन (आसवन अथवा उसके बिना) कच्चे पदार्थों पर निर्भर करती है। शराब, बियर, सिडर, रेड वाइन, शैम्पियन, शैरी, टोड़ी आदि का उत्पादन बिना आसवन के होता है जबकि व्हिस्की, ‘ब्रान्डी तथा रम किण्वित रस के आसवन द्वारा तैयार किये जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीव से क्या तात्पर्य है? पेय पदार्थ बनाने में सूक्ष्मजीव किस प्रकार हमारी मदद करते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीव-उद्योगों में सूक्ष्मजीवियों का प्रयोग बहुत से उत्पादों के निर्माण में किया जाता है जो कि मनुष्य के लिए मूल्यवान होते हैं। मादक पेय तथा प्रतिजैविक (एंटीबॉयोटिक) इसके कुछ उदाहरण हैं । व्यावसायिक पैमाने पर सूक्ष्मजीवियों को पैदा करने के लिए बड़े बर्तन की आवश्यकता होती है जिसे किण्वक (Fermenter) कहते हैं।

सूक्ष्म जीव विशेषकर यीस्ट का प्रयोग प्राचीन काल से वाइन, बीयर, व्हिस्की, रम जैसे पेयों के उत्पादन में किया जाता आ रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यीस्ट सैकेरोमाइसीज सेरीविसी (Saccharomyces cerevisiae) ब्रेड बनाने तथा माल्टीकृत धान्यों तथा फलों के रसों से ऐथनॉल उत्पन्न करने में प्रयोग किया जाता है।

किण्वन तथा विभिन्न प्रकार के संसाधन (आसवन अथवा उसके बिना) कच्चे पदार्थों पर निर्भर करती है; वाइन तथा बीयर का उत्पादन बिना आसवन के; जबकि व्हिस्की, ब्रांडी तथा रम किण्वित रस के आसवन द्वारा तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 2.
जीवाणु फेज क्या हैं? इनकी संरचना का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विषाणु जो जीवाणुओं को संक्रमित कर नष्ट कर देते हैं, उन्हें जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) या संक्षेप में फेज (Phage) कहते हैं। फेज शब्द ग्रीक शब्द फेगॉस (Phagos) से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ दूसरों का भक्षण करना है। इनकी खोज ट्वार्ट एवं डी हैरेल द्वारा पृथक् रूप से की गई थी। जीवाणुभोजी जीवाणुओं की ही भाँति लगभग हर प्रकार के आवास एवं प्राकृतिक अवस्थाओं में पाये जाते हैं।

आकारिकी (Morophology) की दृष्टि से इनमें अत्यधिक असमानताएँ हैं। जीवाणुभोजी की संरचना – एक प्रारूपिक जीवाणुभोजी की संरचना टैडपोल के समान होती है, जो स्पष्ट शीर्ष एवं पुच्छ (Tail) में विभेदित होता है। अधिकांश जीवाणुभोजी (T2, T6) सिर प्रिज्माभ होता है जबकि इसकी पूँछ लम्बी एवं बेलनाकार होती है, पूँछ प्रिज्माभ सिर से जुड़ी रहती है।

इसकी सहायता से ये जीवाणु कोशिका से संलग्न होते हैं। इसकी लम्बाई लगभग सिर की लम्बाई के बराबर होती है। प्रिज्माभ सिर प्रोटीन अणुओं द्वारा बना होता है एवं इसके केन्द्रीय कोर में एक लम्बा DNA का एक वृहत् अणु होता है। सिर एवं पूँछ के मध्य एक कॉलर होती है। पूँछ के समीपस्थ छोर पर कॉलर से जुड़ी षट्कोणीय प्लेट होती है जिसे आधार प्लेट कहते हैं। आधार प्लेट की निचली सतह पर 6 पुच्छ तंतु जुड़े रहते हैं जिनकी सहायता से फेज जीवाणु की सतह से चिपका रहता है तथा इनके द्वारा स्त्रावित एन्जाइम जीवाणु की भित्ति से संलयन (Lysis) में सहायक होते हैं।
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प्रश्न 3.
जीवाणुओं की लाभदायक गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
हम किस प्रकार कह सकते हैं कि जीवाणु हमारे मित्र हैं? समझाइए ।
उत्तर:
लाभदायक गतिविधियाँ ( Useful activities) – बैक्टीरिया अत्यंत महत्त्वपूर्ण सूक्ष्मजीव हैं। ये वातावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं, डेयरी उद्योग में दही बनाने के काम आते हैं तथा अनेक प्रमुख प्रतिजैविक भी इन्हीं से मिलते हैं। बैक्टीरिया द्वारा मनुष्य को पहुँचने वाले लाभों की सूची अग्र दी गई है-
(1) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) – कुछ बैक्टीरिया वायुमण्डल में स्थित आणविक नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिक में बदल देते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-

  • स्वतंत्र रूप से रहने वाले (Fire Living) -मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले, जैसे- ऐजोटोबैक्टर, क्लॉस्ट्रीडियम आदि ।
  • सहजीवी (Symbiotic) -लेग्यूमिनोसी कुल के पौधों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में सहजीवन करने वाले, जैसे- राइजोबियम लेग्युमिनोसेर ।

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(2) नाइट्रीकरण जीवाणु (Nitrifying Bacteria) – ये दो प्रकार के होते हैं-

  • अमोनिया को नाइट्राइट (NO2) में बदल देने वाले, जैसे- नाइट्रोसोमोनास ।
  • अमोनिया को नाइट्रेट (NO3) में बदल देने वाले, जैसे- नाइट्रोबेक्टर ।

(3) अमोनीकरण (Ammonification)- ये बैक्टीरिया, प्रोटीन तथा कुछ अन्य जटिल पदार्थों को अमोनिया में बदल देते हैं, जैसे- बैसिलस माइकॉइडिस ।

(4) खाद्य श्रृंखला में (In Food Chains) – कुछ बैक्टीरिया, पौधे तथा जन्तुओं के मृत शरीर पर वृद्धि करते हैं और इन जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं। इस कारणवश मृदा में पौधों के लिए उपयोगी पोषक तत्त्व संचयित होते हैं । पौधे इन सरल अकार्बनिक तत्वों का अवशोषण करते हैं।

(5) डेयरी उद्योग में (In Dairy) – बैक्टीरिया, दूध में उपस्थित लैक्टोस (Lactose) शर्करा को लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं। इस कारणवश दूध खट्टा हो जाता है। इस प्रकार की किण्वन क्रिया करने वाले मुख्य बैक्टीरिया हैं स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस, लैक्टोबैसिलस कैसिआई, लै. एसिडोफिलस इत्यादि ।

(6) अन्य उद्योगों में (In other Industries) – अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थों का निर्माण विभिन्न बैक्टीरिया की सहायता से किया जाता है। सिरका, लैक्टिक अम्ल, लाइसीन, ऐसीटोन, ब्यूटोनोल निर्माण में तथा तन्तुओं को सड़ाने व तम्बाकू एवं चाय उद्योग में बैक्टीरिया का विशेष महत्त्व है।

(7) मानव के आंत्र में सहजीवन (Symbiosis in Human Intestine)-मानव तथा अनेक कशेरुकी प्राणियों के आंत्र में एशिरिकिआ कोली ( Escherichia coli) पाया जाता है। यह बैक्टीरिया सामान्यतः हानिकारक नहीं होता और पाचन क्रियाओं में सहायक होता है।

(8) रोमन्थी प्राणियों में (In Ruminate Animals) – इन प्राणियों के रुमेन (rumen, प्रथम आमाशय) में सेलुलोस के पाचन के काम करने वाले बैक्टीरिया, जैसे- रुमिनोकोकस एल्बस इत्यादि पाये जाते हैं। ये प्राणी मुख्यतः घास चरते हैं परन्तु घास के सेलुलोस को केवल उनके रुमेन में पाये जाने वाले बैक्टीरिया ही अपघटित कर सकते हैं।

(9) प्रतिजैविक अथवा ऐन्टिबायोटिक (Antibiotics) – ये जीवधारियों के उपापचयी व्युत्पन्न होते हैं। किसी अन्य सूक्ष्म बैक्टीरिया के लिए हानिकारक अथवा निरोधी ( inhibitory ) होते हैं। प्रतिजैविक प्रतियोगिता निरोध (competitive inhibition ) द्वारा रोगों को ठीक करते हैं। अधिकतर प्रतिजैविक, बैक्टीरिया से ही प्राप्त होते हैं।

(10) मल व्यवस्था ( Sewage Oxidation) – कृत्रिम जलाशयों में मलमूत्र इत्यादि एकत्रित करके बैक्टीरिया द्वारा उनका ऑक्सीकरण किया जाता है। इस क्रिया में निकलने वाली CO2 शैवाल उपयोग में ले जाते हैं। और यह शैवाल ऑक्सीजन छोड़ते हैं। यह ऑक्सीजन मलमूत्र के ऑक्सीकरण में उपयोगी होती है। शैवाल तथा बैक्टीरिया, मलव्यवस्था ताल (Sewage pond) में सहजीविता ( Symbiosis) दिखाते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. निम्न में से वाहित मल उपचार के लिए अवायवीय अपांक संपाचित्र में डाला जाता है- (NEET-2020)
(अ) तैरते हुए कूड़े-करकट
(ब) प्राथमिक उपचार के लिए वहिःसाव
(स) संक्रियीत अपांक
(द) प्राथमिक अपांक
उत्तर:
(स) संक्रियीत अपांक

2. निम्न स्तम्भों का मिलान कीजिए- (NEET-2020)

स्तम्भ-Iस्तम्भ-II
1. क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटायलिकम(i) साइक्लोस्पेरिन
2. टाइकोडर्मा पॉलीस्पोरम(ii) ब्यूटिरिक अम्ल
3. मोनास्कस परप्यूरीअस(iii) सिट्रिक अम्ल
4. एस्चरजिलस नाइगर(iv) रक्त-कोलेस्टेरोल कम करने वाला कारक
विकल्प :1234
(अ)(ii)(i)(iv)(iii)
(ब)(i)(ii)(iv)(iii)
(स)(iv)(iii)(ii)(i)
(द)(iii)(iv)(ii)(i)

उत्तर:

(अ)(ii)(i)(iv)(iii)

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3. निम्नलिखित में से किसे जैव नियंत्रण के एक कारक के रूप में पादप रोग उपचार के लिए उपयोग किया जा सकता है? (NEET-2019)
(अ) लैक्टोवेसीलस
(ब) ट्राइकोडर्मा
(स) क्लोरेला
(द) एनाबीना
उत्तर:
(ब) ट्राइकोडर्मा

4. निम्न में से कौन रुधिर कॉलेस्ट्राल कम करने वाला व्यावसायिक कारक है?
(NEET-2019)
(अ) लाइपेज
(ब) साइक्लोस्पोरीन
(स) स्टैनिन
(द) स्ट्रेप्टोकाइनेज
उत्तर:
(स) स्टैनिन

5. दूध के दही में रूपान्तरण से इसकी अच्छी पोषक क्षमता किसकी वृद्धि के कारण होता है? (NEET-2018)
(अ) विटामिन B12
(ब) विटामिन A
(स) विटामिनD
(द) विटामिन E
उत्तर:
(अ) विटामिन B12

6. बेमेल चुनिए- (NEET-2017)
(अ) फ्रंकिया – एलनस
(ब) रोडोस्पायरलम – कवकमूल
(स) एनाबीना – नाइट्रोजन स्थायीकारक\
(द) राइजोवियम-एल्फाएल्फा
उत्तर:
(ब) रोडोस्पायरलम – कवकमूल

7. निम्नलिखित में से कौनसा वाहितमल उपचार में निलम्बित हुए ठोसों को निकालता है? (NEET-2017)
(अ) तृतीयक उपचार
(ब) द्वितीयक उपचार
(स) प्राथमिक उपचार
(द) अपांक उपचार
उत्तर:
(स) प्राथमिक उपचार

8. निम्न में कौन उसके द्वारा उत्पन्न उत्पाद के साथ उचित रूप से मेलित है- (NEET-2017)
(अ) एसीटोवेक्टर : प्रतिजैविक
(ब) मीथोमोबैक्टीरियम : लैक्टिक अम्ल
(स) पेनीसिलीयम नोटेटम : एसीटिक अम्ल
(द) सैकरोसाइसीटीज सैरीवीसी : एथेनॉल
उत्तर:
(द) सैकरोसाइसीटीज सैरीवीसी : एथेनॉल

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9. नीचे दी गई तालिका में गलत मिलाई गई मदों को चुनिए- (NEET-2016)

विकल्प :सूक्ष्मजीवउत्पादअनुप्रयोग
(अ)स्ट्रेप्टोकॉकसस्ट्रेप्टोकाइनेजरुधिर वाहिका से थक्का को हटाना
(ब)क्लॉस्ट्रीडियमलाइपेजतेल के धब्बों को हटाना
(स)ट्राइकोडर्मा पोलीस्पोरमसाइक्लोस्पोरिन – Aप्रतिरक्षा संदमक औषधि
(द)मौनेस्कस परप्यूरियसस्टेटिंसरुधिर कॉलेस्ट्रोल को कम करना

उत्तर:
(ब)

10. कॉलम-I और कॉलम-II के बीच मिलान कीजिए- (NEET-2016)

कॉलम-Iकॉलम-II
1. सिट्रिक अम्ल(i) ट्राइकोडर्मा
2. साइक्लोस्पोरिन(ii) क्लास्ट्रिडियम
3. स्टेनिन(iii) ऐस्परिजिलस
4. ब्यूटाइरिक अम्ल(iv) मौनेस्कस
विकल्प :1234
(अ)(i)(iv)(ii)(iii)
(ब)(iii)(iv)(i)(ii)
(स)(iii)(i)(ii)(iv)
(द)(iii)(i)(iv)(ii)

उत्तर:

(द)(iii)(i)(iv)(ii)

11. वह कौनसा शैवाल है जिसे मानव के लिए खाद्य के रूप में नियोजित किया जा सकता है- (NEET-2014)
(अ) यूलोथ्रिक्स
(ब) क्लोरेला
(स) स्पाइरोगायरा
(द) पालिसाइफोनिया
उत्तर:
(ब) क्लोरेला

12. निम्नलिखित में से कौनसे कवक में हेलोसिनोजन होते हैं- (NEET-2014)
(अ) मारकेला एस्कुलेन्टा
(ब) अमानीरा मास्कादिया
(स) न्यूरोरचोरा जाति
(द) अस्टीलेगो जाति
उत्तर:
(ब) अमानीरा मास्कादिया

13. सिट्रिक अम्ल का अच्छा उत्पादक कौनसा है- (NEET-2013)
(अ) एस्चरजिलस
(ब) स्यूडोमोनास
(स) क्लॉस्ट्रीडियम
(द) सैकेरोमाइसीज
उत्तर:
(अ) एस्चरजिलस

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14. जल-मल के उपचार के दौरान विभिन्न बायो गैसें उत्पन्न होती हैं, जिनमें शामिल हैं- (NEET-2013)
(अ) मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बनडाइऑक्साइड
(ब) मीथेन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजनसल्फाइड
(स) हाइड्रोजनसल्फाइड, मीथेन सल्फरडाइऑक्साइड
(द) हाइड्रोजनसल्फाइड, नाइट्रोजन, मीथेन
उत्तर:
(अ) मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बनडाइऑक्साइड

15. धान के खेतों में एजोला के साथ साहचर्य बनाता हुआ एक नाइट्रोजन यौगीकरण जीवाणु कौनसा है- (NEET-2012)
(अ) स्पाइरूलाइना
(ब) ऐनाबीना
(स) फ्रेन्किया
(द) टोलीपेश्रिक्स
उत्तर:
(ब) ऐनाबीना

16. गोबर गैस में सबसे अधिक मात्रा किसकी होती है? (Mains-2012)
(अ) ब्यूटेन
(ब) मीथेन
(स) प्रोपेन
(द) कार्बन डाइऑक्साइड
उत्तर:
(ब) मीथेन

17. निम्नलिखित में से कौनसा एक जैव उर्वरक नहीं है? (NEET-2011)
(अ) एग्रोबेक्टिरियम
(ब) राइजोवियम
(स) नॉस्टॉक
(द) माइकोराइजा
उत्तर:
(अ) एग्रोबेक्टिरियम

18. मिथेनोजन कहे जाने वाले जीव प्रचुर मात्रा में कहाँ पाए जाते हैं? (NEET-2011)
(अ) गंधक की चट्टानों
(ब) मवेशी बाड़ा
(स) प्रदूषित सरिता
(द) उष्म झरने
उत्तर:
(ब) मवेशी बाड़ा

19. जैविक ऑक्सीजन आवश्यकता (Biological Oxygen Demand) एक माप है- (RPMT-2010)
(अ) जल स्रोतों में उड़ेले गये औद्योगिक अपशिष्टों की
(ब) जैविक यौगिकों द्वारा प्रदूषित जल के विस्तार की
(स) पृथक् न होने योग्य कार्बन मोनोऑक्साइड की हीमोग्लोबिन युक्त मात्रा
(द) रात्रि में हरे पौधों को आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा
उत्तर:
(द) रात्रि में हरे पौधों को आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा

20. जैव गैस उत्पादन में प्रयुक्त जीवाणु समूह है- (BSEB-2010)
(अ) यूबैक्टिरिया
(ब) आर्गेनोट्राॅफ
(स) मीथेनोट्रॉफ
(द) मेथेनोजन
उत्तर:
(द) मेथेनोजन

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21. सर्वाधिक एन्टीबायोटिक्स किससे प्राप्त किये जाते हैं- (MP PMT-2009)
(अ) बेसिलस द्वारा
(ब) पेनिसिलियम द्वारा
(स) स्ट्रेप्टोमायसिसं द्वारा
(द) सिफेलोस्पोरियम द्वारा
उत्तर:
(अ) बेसिलस द्वारा

22. निम्न में सहजीवी नाइट्रेजन स्थिरीकरण है- (CBSE PMT-2009)
(अ) एजेटेबैक्टर
(ब) फ्रेंकिया
(स) एजोला
(द) ग्लोमस
उत्तर:
(ब) फ्रेंकिया

23. निम्न में से किसका प्रयोग जैव कीटनाशी के रूप में नहीं किया जाता है- (CBSE PMT-2009)
(अ) ट्राइकोडर्मा हाराजिए्सिस
(ब) न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस वायरस (NPV)
(स) जैन्थोमोनास कैस्पेस्ट्रिस
(द) बेसीलस थूरिज्जिएन्सिस
उत्तर:
(ब) न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस वायरस (NPV)

24. लेक्टिक अम्ल जीवाणु (LAB) उचित तापक्रम पर दूध को दही में बदल देता है जिससे उसकी पोषक गुणवत्ता में निम्न में से कौन-सा विटामिन बढ़ जाता है- (AMU-2009)
(अ) A
(ब) B
(स) C
(द) D
उत्तर:
(ब) B

25. ऐलनस की मूल ग्रंथिकाओं में नाइट्रोजन स्थिरीकरण किसके द्वारा सम्पन्न होता है? (NEET-2008)
(अ) फ्रेन्किया
(ब) एजोराइजोवियम
(स) ब्रैडीराइजोवियम
(द) क्लास्ट्रीडियम
उत्तर:
(अ) फ्रेन्किया

26. ट्राइकोडर्मा हैर्जिएनम किस एक के लिए एक उपयोगी सूक्ष्म जीव सिद्ध हो चुका है? (NEET-2008)
(अ) उच्चतर पौधों में जीन स्थानान्तरण
(ब) मृदावाही पादप रोगजनकों के जैवकीय नियंत्रण
(स) सदूषित मृदाओं का जैवोपचार
(द) बंजर भूमि का पुनरुद्धार
उत्तर:
(ब) मृदावाही पादप रोगजनकों के जैवकीय नियंत्रण

27. प्रोबायोटिक्स (NEET-2007)
(अ) सजीव सूक्ष्मजीवीय खाद्य सम्पूरक
(ब) सुरक्षित एंटीबायोटिक्स
(स) कैंसर प्रेरक सूक्ष्मजीव
(द) नये प्रकार के खाद्य पदार्थ
उत्तर:
(अ) सजीव सूक्ष्मजीवीय खाद्य सम्पूरक

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30. स्ट्रैप्टोमाइसिन उत्पादित की जाती है- (BHU-2006)
(अ) स्ट्रेप्टोमाइसिस स्कोलियस द्वारा
(ब) स्ट्रेप्टोमाइसिस फ्रेडी द्वारा
(स) स्ट्रेप्टोमाइसिस वैनेजुएली द्वारा
(द) स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रीसिअस द्वारा
उत्तर:
(स) स्ट्रेप्टोमाइसिस वैनेजुएली द्वारा

31. ऐल्कोहॉल का किण्वन किसकी उपस्थिति में होता है- (RPMT-2006)
(अ) माल्टेज
(ब) जाइमेज
(स) एमाइलेज
(द) इन्वरटेज
उत्तर:
(ब) जाइमेज

32. बीयर बनाने में किण्वन (Fermentation) प्रक्रम के दौरान किस कच्चे पदार्थ का उपयोग किया जाता है- (Orissa JEE-2005)
(अ) सब्जियों का मण्ड
(ब) अनाजों का मण्ड
(स) फलों की शर्करा
(द) दालों की प्रोटीन
उत्तर:
(ब) अनाजों का मण्ड

33. बैसीलस थूरिन्जियन्सिस (Bt) प्रभेद का प्रयोग किया गया है- (CBSE-2005)
(अ) बायो-मैटालर्जिक तकनीक के लिए
(ब) बायो-मिनरेलाइजेशन प्रोसेस के लिये
(स) बायो-इन्सेक्टीसाइडल पौधों के लिए
(द) जैविक उर्वरकों के लिए
उत्तर:
(स) बायो-इन्सेक्टीसाइडल पौधों के लिए

34. एजोला का किसके साथ सहजीवी संबंध होता है- (CBSE-2004)
(अ) क्लोरेला
(ब) एनाबीना
(स) नोस्टोक
(द) टोलीपोश्रिक्स
उत्तर:
(ब) एनाबीना

35. Nif जीन पाया जाता है- (CPMT-2004)
(अ) पेनीसीलियम में
(ब) राइजोबियम में
(स) एस्परजिलस में
(द) स्ट्रैप्टोकोकस में
उत्तर:
(ब) राइजोबियम में

36. निम्नलिखित में से किसका उपयोग ब्रेड (bread) बनाने में होता है- (MP PMT-2004)
(अ) राइजोपस स्टोलोनीफर
(ब) जाइगोसैकरो माइसीज
(स) सैकेरोमाइसीज सेरेविसी
(द) सैकेरोमाइसीज लुडबीजाई
उत्तर:
(स) सैकेरोमाइसीज सेरेविसी

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37. स्ट्रैप्टोकॉकस किसके निर्माण में उपयोग किया जाता है- (BVP-2004)
(अ) वाइन (Wine)
(ब) ब्रेड (bread)
(स) चीज (Cheese)
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) चीज (Cheese)

38. निम्न में से कौनसे जीव का उपयोग रोक्यूफॉर्ट (Roquefort) पनीर को बनाने में किया जाता है- (BHU-2004)
(अ) म्युकर
(ब) राइजोपस
(स) एस्परजिलस
(द) पेनिसिलियम
उत्तर:
(द) पेनिसिलियम

39. ऐल्कोहॉलीय किण्वन के लिये कौन-सा जीवधारी प्रयोग किया जाता है- (MHCET-2004)
(अ) पेनिसिलियम (Penicillium)
(ब) स्यूडोमोनॉस (Pseudomonas)
(स) एस्पराजिलस (Aspergilus)
(द) सैकेरोमाइसीज (Saccharomyces)
उत्तर:
(द) सैकेरोमाइसीज (Saccharomyces)

40. गुंथे हुए आटे को पूरी रात गर्म वातावरण में रखने पर यह मुलायम एवं स्पंजी क्यों हो जाता है- (CBSE PMT-2004)
(अ) संसंजन (Cohesion) के कारण
(ब) परासरण
(स) वायुमण्डल में CO2 के अवशोषण के कारण
(द) किण्वन के कारण
उत्तर:
(द) किण्वन के कारण

41. इथाइल ऐल्कोहॉल व्यावसायिक रूप से किससे निर्मित होता है- (BHU-2004)
(अ) गेहूं
(ब) अंगूर
(स) मक्का
(द) गन्ना
उत्तर:
(द) गन्ना

42. स्ट्रेप्टोकोकस का प्रयोग तैयार करने में किया जाता है- (CBSE-2003)
(अ) वाइन
(ब) इडली
(स) पनीर
(द) ब्रेड
उत्तर:
(स) पनीर

43. एन्टीबायोटिक शब्द् सर्वप्रथम प्रयोग किया- (CBSE-2003)
(अ) फ्लेमिंग ने
(ब) पाश्चर ने
(स) वाक्समेन ने
(द) लिस्टर ने
उत्तर:
(स) वाक्समेन ने

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44. पनीर तथा योगर्ट किस प्रक्रिया के उत्पाद हैं- (MP PMT-2003)
(अ) आसवन
(ब) पाश्चुराइजेशन
(स) किण्वन
(द) निर्जलीकरण
उत्तर:
(स) किण्वन

45. प्राचीनकाल में पनीर या चीज (Cheese) बनाई जाती थी- (BVP-2003)
(अ) एस्परजिलस के उपयोग से
(ब) रेनेज एन्जाइम के उपयोग से
(स) क्लॉस्ट्रीडियम जीवाणु के उपयोग से
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) रेनेज एन्जाइम के उपयोग से

46. पनीर उद्योग में उपयोग आने वाला रेनिन क्या होता है- (BVP-2002)
(अ) प्रतिजैविक (Antibiotic)
(ब) एल्केलॉएड (Alkaloid)
(स) जैव उत्प्रेरक (Biocatalyst)
(द) संदमक (Inhibitor)
उत्तर:
(स) जैव उत्प्रेरक (Biocatalyst)

47. स्वतंत्रजीवी अवायवीय नाइट्रोजन स्थिरीकारी जीवाणु है- (MP PMT-2002)
(अ) राइजोबियम
(ब) स्ट्रैप्टोकोकस
(स) एजोटोबैक्टर
(द) क्लॉस्ट्रीडियम
उत्तर:
(द) क्लॉस्ट्रीडियम

48. सिट्रिक अम्ल का उत्पादन होता है- (CBSE-2002)
(अ) राइजोपस से
(ब) म्यूकर से
(स) एस्परजिलस से
(द) सैकरोमाइसिस से
उत्तर:
(अ) राइजोपस से

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49. नॉस्टॉक में नाइट्रोजिनेज एन्जाइम पाया जाता है- (MP PMT-2001)
(अ) वर्धी कोशिकाओं में
(ब) हेटरोसिस्ट में
(स) दोनों ‘अ’ व ‘ब’ में
(द) केवल हार्मोगोन्स में
उत्तर:
(ब) हेटरोसिस्ट में

50. सायनोबैक्टीरिया के लिये यह सही है कि- (CBSE-2001)
(अ) ऑक्सीजन उत्पादी व नाइट्रीकारी है
(ब) ऑक्सीजन उत्पादी व अनाइट्रीकारी है
(स) अ-ऑक्सीजन उत्पादी व नाइट्रीकारी है
(द) अ-ऑक्सीजन उत्पादी व अनाइट्रीकारी है
उत्तर:
(अ) ऑक्सीजन उत्पादी व नाइट्रीकारी है

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. कितनी कोशिका अवस्था वाले निषेचित अण्डे को बिना शल्य चिक्रिसा से प्रास कर प्रतिनियुक्त मादा में स्थानान्तरित किया जाता है-
(अ) 8-32 कोशिका
(ब) 6-8 कोशिका
(स) 1-5 कोशिका
(द) 33-40 कोशिका
उत्तर:
(ब) 6-8 कोशिका

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

2. निम्न में गौ पशुओं में सुधार का कार्यक्रम है-
(अ) मल्टीपल ओबियूलेशन
(ब) एैम्ब्रयो ट्रांसफर
(स) (अ) व (ब) दोनों
(द) अन्तःप्रजनन अवसादन
उत्तर:
(ब) एैम्ब्रयो ट्रांसफर

3. शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खिखों के छत्तों के रखरखाव को कहते हैं-
(अ) मौन पालन
(ब) मछली पालन
(स) पशुपालन
(द) कुक्कुट पालन
उत्तर:
(अ) मौन पालन

4. निम्न में से मधुमक्खी के द्वारा परागण की क्रिया होती है-
(अ) सूर्यमुखी
(ब) सरसों
(स) नाशपाती
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. स्पाइरुलिना किसका धनी स्रोत है ?
(अ) प्रोटीन
(ब) विटामिन
(स) खनिज
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) प्रोटीन

6. किसी कोशिका कर्तोतकी से पूर्ण पादप में जनित्र होने की क्षमता कहलाती है-
(अ) ऊतक संवर्धन
(ब) अमरता
(स) सूक्ष्म प्रवर्धन
(द) पूर्णशक्तता
उत्तर:
(द) पूर्णशक्तता

7. जल अभाव के प्रति प्रतिरोधी उच्च उत्पादन वाली किस्में हैं-
(अ) संकर मक्का
(ब) संकर ज्वार
(स) संकर बाजरा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. ए. ऐसकुलैटस की नई किस्म है-
(अ) हरित क्रान्ति
(ब) नील क्रान्ति
(स) परभनी क्रान्ति
(द) नरभनी क्रान्ति
उत्तर:
(स) परभनी क्रान्ति

9. पशुओं की फार्मिंग (रखरखाव) के दौरान एक किलो मांस उत्पन्न करने के लिए कितने किलो धान्यों की आवश्यकता होती है?
(अ) 3-10 किग्रा.
(ब) 10-12 किग्रा.
(स) 14-15 किग्रा.
(द) 17-18 किय्रा.
उत्तर:
(अ) 3-10 किग्रा.

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

10. भारतीय कृषि अनुसंधान, नई दिल्ली द्वारा मोचित की गई कौनसी सब्जी की फसल है जिसमें विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ?
(अ) करेला
(ब) बधुआ
(स) सरसों
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

11. डॉ. नार्गन बोरलॉग का नाम किससे जुड़ा है?
(अ) हरित क्रांति
(ब) स्वेत क्रांति
(स) पीत क्रांति
(द) नील क्रांति
उत्तर:
(अ) हरित क्रांति

12. गेहूं का किसके साथ संकरण द्वारा ट्रिटीकेल प्रास हुआ-
(अ) जई
(ब) जौ
(स) मक्का
(द) राई
उत्तर:
(द) राई

13. फसली पौधों में प्रेरित उत्परिवर्तनजन के लिए सामान्यतः किसका उपयोग किया जाता है?
(अ) गामा किरणें (कोबाल्ट 60 से)
(ब) ऐल्फा कफ
(स) X-किरणें
(द) UV (200 mm)
उत्तर:
(अ) गामा किरणें (कोबाल्ट 60 से)

14. कर्तोतक का उपयोग होता है-
(अ) आनुर्वंशिक अभियांत्रिकी में
(स) सूक्ष्म प्रवर्धन में
(ब) DNA पुनर्बोगज में
(द) संरक्षण में।
उत्तर:
(स) सूक्ष्म प्रवर्धन में

15. मूंग में जो पीत मोजेक वायरस तथा चूर्णिल आसिता के प्रति प्रतिरोधक क्षमता किसके द्वारा प्रेरित थी-
(अ) अन्तःप्रेजनन
(ब) उत्परिवर्तन
(स) बहि:प्रजनन
(द) कृत्रिम गर्भाधान
उत्तर:
(ब) उत्परिवर्तन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

16. विश्व की सर्वाधिक छाद्य अनाज प्रदान करने वाल तीन फसलें कौनसी हैं?
(अ) गेहु, चावल और मक्का
(ब) चावल, मक्का और सोरघम
(स) गेहूँ, मक्का और सोरघम
(द) गेहूं, चावल और जो
उत्तर:
(अ) गेहु, चावल और मक्का

17. गेहूँ की अर्द्धवामन किस्म का विकास किस वैज्ञानिक ने किया-
(अ) नारमैन ई. बारलौग
(ब) चारवेल ई. यारलौग
(स) चारमैन ई. लारलोग
(द) वारमैन ई. प्यारलौग।
उत्तर:
(द) वारमैन ई. प्यारलौग।

18. लबलब तथा गार्डन मटर में कौनसा पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है-
(अ) विटामिन-ए
(ब) विटामिन-सी
(स) आयरन एवं कैल्सियम
(द) प्रोटीन
उत्तर:
(द) प्रोटीन

19. विश्व की अत्यन्त उत्कृष्ट ऊन प्रदान करने वाली पश्मीना नस्ल किसकी है?
(अ) कश्मीर भेड़ तथा अफगान भेड़ का संकर
(ब) बकरी
(स) भेड़
(द) बकरी और भेड़ का संकर
उत्तर:
(ब) बकरी

20. गेहूँ के पास स्टेम सॉफ्लाई किसके कारण नहीं आती है?
(अ) जड़
(ब) पत्ती
(स) तना
(द) पुष्प
उत्तर:
(स) तना

21. मधुमक्खी पालन कहलाता है-
(अ) सेरीकल्चर
(ब) ऐपीकल्चर
(स) टिशूकल्चर
(द) पिसीकल्चर
उत्तर:
(ब) ऐपीकल्चर

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22. हिसरडैल क्या है?
(अ) गाय
(ब) बकरी
(स) सुअर
(द) भेड़
उत्तर:
(द) भेड़

23. निम्न में कौनसे तीन मुख्य खाद्य पदार्थ (वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट) एक साथ हमें मिलते हैं?
(अ) केला
(ब) मूंगफली
(स) नारंगी
(द) चना
उत्तर:
(ब) मूंगफली

24. मक्का में संकर औज का समायोजन किसके द्वारा किया जाता है?
(अ) उत्परिवर्तनों का प्ररेण करके
(ब) बीजों में DNA का प्रभेदन करके
(स) अन्तःप्रजनन किए गए दो जनक वंशक्रमों में प्रसंकरण करके
(द) सर्वाधिक उत्पादनशील पौधों से बीज प्राप्त करके
उत्तर:
(स) अन्तःप्रजनन किए गए दो जनक वंशक्रमों में प्रसंकरण करके

25. भारत में यूरोपीयन्स के आने से पहले कौनसी सब्जी अनुपस्थित थी?
(अ) आलू तथा टमाटर
(ब) शिमला मिर्च तथा बैंगन
(स) मक्का तथा चिचिडा
(द) करेला
उत्तर:
(अ) आलू तथा टमाटर

26. पूर्ण शक्तता (Totipotency) का अर्थ है-
(अ) जन्तुओं द्वारा खोये गये अंगों को पुनः उत्पन्न करने की क्षमता
(ब) कायिक कोशिकाओं द्वारा पूर्ण जीव उत्पन्न करने की क्षमता
(स) कोशिका के डी.एन.ए. में बाह्य जीन प्रविष्ट कराना
(द) अपरिपक्व भ्रूणों के वर्धन की तकनीक
उत्तर:
(ब) कायिक कोशिकाओं द्वारा पूर्ण जीव उत्पन्न करने की क्षमता

27. रोगाणुरहित पौधों को तैयार करने के लिए पौधे के कौनसे भाग में विभज्योतक का संवर्धन करते हैं?
(अ) कैम्बियम
(ब) प्ररोहशीर्ष
(स) अन्तर्वेशीय विभज्योतक
(द) मूलशीर्ष
उत्तर:
(ब) प्ररोहशीर्ष

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28. टमाटर का प्रोटोप्लास्ट आलू के प्रोटोप्लास्ट से युग्मित होने के परिणामस्वरूप किसका निर्माण होता है?
(अ) पोमेटो
(ब) टोमेटो
(स) सोमेटो
(द) जीटोमेटो
उत्तर:
(अ) पोमेटो

29. निम्न में से जीवाणु जनित रोग है-
(अ) तम्बाकू मोजेक
(ब) शलजम मोजेक
(स) आले पछेती अंगमारी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) आले पछेती अंगमारी

30. निम्न में पशुधन है-
(अ) भैंस
(ब) गाय
(स) सूअर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

31. कौनसी मछली मच्छर के लार्वा को चुन-चुन कर खाती है?
(अ) गेम्बूसिया
(ब) रोहू
(स) क्लेरियस
(द) एक्सोसीटस
उत्तर:
(अ) गेम्बूसिया

32. प्राणिकोशिका संवर्धन प्रौद्योगिकी का आज सर्वाधिक अनुप्रयोग किसके उत्पादन में हो रहा है ?
(अ) इंसुलिन
(ब) इंटरफेरोन
(स) वैक्सीन
(द) खाद्यशील प्रोटीन
उत्तर:
(स) वैक्सीन

33. कौनसा पीड़कनाशी वसा-स्नेही है-
(अ) आर्गेनोक्लोरीन
(ब) आर्गेनोफास्फेट
(स) ट्राइआजीन
(द) पायरिथोयड
उत्तर:
(अ) आर्गेनोक्लोरीन

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
उस जीव का नाम लिखिए जिसका प्रयोग एकल कोशिका प्रोटीन के व्यापारिक उत्पादन में किया जाता है।
उत्तर:
स्पाइरुलाइना जिसका प्रयोग एकल कोशिका प्रोटीन के व्यापारिक उत्पादन में किया जाता है।

प्रश्न 2.
डेयरी उद्योग किसका प्रबंधन है ?
उत्तर:
डेयरी उद्योग पशु प्रबंधन है।

प्रश्न 3.
कर्तोंतक किसे कहते हैं?
उत्तर:
संवर्धन आरम्भ करने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले पौधों से लिए गये ऊतक या अंग के कटे हुए टुकड़े को कर्तोतक कहते हैं।

प्रश्न 4.
पशुपालन किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव कल्याण के लिए पशुधन एवं देखभाल को पशुपालन कहते हैं।

प्रश्न 5
वांछित विशेषकों (ट्रेटों) के लिए मवेशियों में समयुग्मता बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली रणनीति के विषय में बताइए ।
उत्तर:
वांछित विशेषकों (ट्रेटों) के लिए मवेशियों में समयुग्मता बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली रणनीति के विषय अन्तः प्रजनन (Interbreeding) हैं।

प्रश्न 6.
अर्द्ध- वामन धान की किस्मों को किससे व्युत्पन्न किया गया ?
उत्तर:
अर्द्ध-वामन धान की किस्मों को IR-8 तथा थाइचूंग नेटिव -1 से व्युत्पन्न किया गया।

प्रश्न 7.
पामेटो का निर्माण किस-किसके प्रोटोप्लास्ट से युग्मन के फलस्वरूप होता है?
उत्तर:
पोमेटो का निर्माण टमाटर का प्रोटोप्लास्ट व आलू के प्रोटोप्लास्ट के युग्मन से बनता है।

प्रश्न 8.
जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म ) संग्रहण किसे कहते हैं?
उत्तर:
फसल में पाये जाने वाले सभी जीनों के विभिन्न अलील का समस्त संग्रहण (पादपों/ बीजों) को उसका जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म ) संग्रहण कहते हैं।

प्रश्न 9.
पादपों में विषाणु द्वारा उत्पन्न होने वाले किन्हीं दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(अ) तंबाकू मोजेक
(ब) शलजम मोजेक

प्रश्न 10.
एस. टी. पी. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
एस. टी. पी. का पूरा नाम एकल कोशिका प्रोटीन है।

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प्रश्न 11.
अलवण जल में पाई जाने वाली किन्हीं दो मछलियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • कतला
  • रोहू

प्रश्न 12.
स्पाइरुलाइना का आर्थिक महत्त्व क्या है?
उत्तर:
यह प्रदूषण को कम करने में एवं प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है।

प्रश्न 13.
हिसरडैल क्या है? इसका विकास किसके संगम से हुआ है?
उत्तर:
हिसरडैल भेड़ की नस्ल है। इसका विकास एवीज तथा मैरीनोरेम्स के बीच संगम कराने से हुआ है।

प्रश्न 14.
गाय में पुटक परिपक्वन तथा उच्च अंडोत्सर्जन को प्रेरित करने के लिए कौनसा हार्मोन दिया जाता है ?
उत्तर:
गाय में पुटक परिपक्वन तथा उच्च अंडोत्सर्जन को प्रेरित करने के लिए एफ एस एच (FSH) नामक हार्मोन दिया जाता है।

प्रश्न 15.
पारजीनी गाय रोजी से उत्पन्न दूध की क्या विशेषता
उत्तर:
पारजीनी गाय रोजी के दूध में वसा की मात्रा कम तथा प्रोटीन की मात्रा अधिक थी।

प्रश्न 16.
मधुमक्खी की उस प्रजाति का नाम लिखिए जिन्हें पाला जा सकता है।
उत्तर:
ऐपिस इंडिका मधुमक्खी की वह प्रजाति है जिसे पाला जा सकता है।

प्रश्न 17.
पुष्पीकरण के समय मधुमक्खी के छत्तों को खेत के बीच रखने पर पौधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुष्पीकरण के समय मधुमक्खी के छत्तों को खेत के बीच रखने पर पौधों की परागण क्षमता बढ़ जायेगी ।

प्रश्न 18.
अन्त: प्रजनन किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य होने वाले प्रजनन को अन्तः प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 19.
पशु प्रजनन का एक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
पशु प्रजनन का उद्देश्य पशुओं के उत्पादन को बढ़ाना तथा उनके उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार करना है।

प्रश्न 20.
हरित क्रान्ति से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
उच्च उत्पादन क्षमता वाली उन्नत किस्मों के विकास द्वारा खाद्यान्न ( धान व गेहूँ) में हुई तीव्र वृद्धि की प्रावस्था को हरित क्रान्ति कहते हैं।

प्रश्न 21.
बर्ड फ्लू के रोगकारक का नाम लिखिए।
उत्तर:
बर्ड फ्लू HgN, विषाणु है। के रोगकारक का नाम इन्फ्लुन्जा-ए-विषाणु या

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प्रश्न 22.
श्वेत क्रान्ति किससे सम्बन्धित है ?
उत्तर:
श्वेत क्रान्ति डेयरी उत्पादों में वृद्धि के लिए हुए क्रान्तिकारी परिवर्तनों से सम्बन्धित है।

प्रश्न 23.
कितनी कोशिका अवस्थाओं वाले निषेचित अण्डे को बिना शल्य चिकित्सा से प्राप्त कर प्रतिनियुक्त मादा (माँ) में स्थानांतरित किया जाता है ?
उत्तर:
8-32 कोशिका अवस्थाओं वाले निषेचित अण्डे को बिना शल्य चिकित्सा से प्राप्त कर प्रतिनियुक्त मादा (माँ) में स्थानांतरित किया जाता है।

प्रश्न 24.
बहि: प्रजनन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
भिन्न-भिन्न नस्लों के मध्य होने वाले प्रजनन को बहि: प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 25.
दक्षिण भारत में पैदा होने वाला उष्णकटिबंधीय गन्ने का वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में पैदा होने वाला उष्णकटिबंधीय गन्ने का वानस्पतिक नाम सैकरम ऑफीसिनेरम है।

प्रश्न 26.
पामफ्रैट एवं मैकेरेल कौनसे जल में पाई जाती है?
उत्तर:
पामफ्रैट एवं मैकेरेल लवणीय जल (समुद्र) में पाई जाती है।

प्रश्न 27.
परभनी क्रान्ति क्या है?
उत्तर:
परभनी क्रान्ति भिण्डी की पीत मॉजेक वायरस प्रतिरोधी किस्म है।

प्रश्न 28.
नीली क्रान्ति किससे सम्बन्धित है ?
उत्तर:
नीली क्रान्ति मात्स्यकी उद्योग में आये क्रान्तिकारी परिवर्तनों से सम्बन्धित है।

प्रश्न 29.
आनुवंशिक रूपान्तरित पादपों के कोई दो नाम लिखिए।
उत्तर:

  • गोल्डन राइस
  • फ्लेवर सेवर ।

प्रश्न 30.
जैव प्रबलीकरण का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
इसके द्वारा प्राप्त जैव पुष्टिकारक, विटामिन, खनिज, प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जननस्वास्थ्य को सुधारने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 31.
भेड़ की नयी नस्ल ‘हिसरडेल’ के जनकों के नाम दीजिए।
उत्तर:
बीकानेरी एैवीज (भेड़) तथा मैरीनो रेम्स (मेढ़ा या मेष)

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प्रश्न 32.
अन्त: प्रजनन किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य होने वाले प्रजनन को अन्तः प्रजनन कहते हैं।

प्रश्न 33.
जैव प्रबलीकरण का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
जैव पुष्टि कारक विटामिन तथा खनिज के उच्च स्तर वाली अथवा उच्च प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जन- स्वास्थ्य को सुधारने में महत्त्व है।

प्रश्न 34.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जो कृत्रिम वरण द्वारा उत्पन्न किये गये हैं।
उत्तर:

  • कल्याण सोना
  • शाइनिंग मूंग ।

प्रश्न 35.
सोमा क्लोन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ऊतक संवर्धन के अन्तर्गत एक पादप से प्राप्त कर्तोंतक द्वारा उत्पन्न सभी आनुवांशिक रूप से समान पादप सोमा क्लोन कहलाते हैं।

प्रश्न 36.
फसलों के सुधार के लिए उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऊतक संवर्धन ।

प्रश्न 37.
पूर्ण शक्तता (Totipotency) क्या है ?
उत्तर:
किसी कोशिका से सम्पूर्ण नये पौधे के उत्पन्न होने की क्षमता पूर्ण शक्तता (Totipotency) कहलाती है।

प्रश्न 38
इच्छित विशेषक (trait) के लिए पशुओं में समयुग्मजता (Homozygosity) वृद्धि के लिए कार्यनीति बताइये ।
उत्तर:
अन्त: प्रजनन समयुग्मजता प्राप्त करने की कार्यनीति है।

प्रश्न 39.
व्यावसायिक रूप में प्रयुक्त जीव का नाम बताइये जो एकल कोशिका प्रोटीन उत्पादित करता है।
उत्तर:
स्पाइरुलीना (Spirulina)।

प्रश्न 40.
आधुनिक गेहूँ के त्रिगुणित पूर्वज नाम क्या है?
उत्तर:
आधुनिक गेहूँ के त्रिगुणित पूर्वज का नाम ट्रिटिकम ड्यूरम (Triticum durum) है।

प्रश्न 41.
कवक द्वारा फसलों में उत्पन्न कोई एक रोग का नाम लिखिए ।
उत्तर:
श्वेत किट्ट रोग।

प्रश्न 42.
‘पोमेटो’ पादप का निर्माण किन दो पादपों के प्रोटोप्लास्ट संलयन से होता है?
उत्तर:
टमाटर तथा आलू ।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
अंतः विशिष्ट संकरण को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
अन्तः विशिष्ट संकरण (Inter Specific Hybridisation) – जन्तुओं में सुधार हेतु प्रयुक्त इस विधि में एक जाति के नर या मादा जन्तुओं का किसी अन्य जाति के मादा या नर जन्तुओं के साथ संगम कराया जाता है। ऐसे संगम से उत्पन्न संततियाँ सामान्यतः दोनों जनक जातियों से भिन्न लक्षण दर्शाती हैं।

दुर्भाग्य से अधिकतर अन्तरजातीय संकर जन्तु बन्ध्य होते हैं तथा इनकी उत्तरजीविता काफी कम होती है किन्तु कई बार ऐसे कुछ संकरों की संततियों में दोनों ही जनक प्रजातियों के वांछनीय लक्षण उपस्थित होते हैं जो कि आर्थिक महत्त्व के हो सकते हैं। उदाहरणार्थ घोड़ी एवं गधे के बीच संगम से उत्पन्न खच्चर (Mule) अपनी जनक प्रजातियों की तुलना में अधिक दमदार एवं पुष्ट होता है। यह कठिन मार्गों तथा पर्वतीय क्षेत्रों में दुलाई जैसे कठिन कार्य के लिए अधिक उपयोगी होता है।

प्रश्न 2.
पशुधन किसे कहते हैं? पशुधन में कौन-कौनसे जन्तु सम्मिलित हैं?
उत्तर:
पशुधन – ऐसे समस्त जन्तु या पशु जो उनकी मानव के लिए लाभदायक उपयोगिता के कारण मनुष्य द्वारा पालतू बनाए जाते हैं।
व उनकी देखभाल की जाती है, सामूहिक रूप से जन्तु सम्पदा या पशुधन कहते हैं। पशुधन में निम्न जन्तु सम्मिलित हैं-

  • गाय
  • बकरी
  • ऊँट
  • भैंस
  • बैल
  • घोड़ा
  • सूअर आदि।

प्रश्न 3.
एकल कोशिका प्रोटीन से क्या तात्पर्य है ? उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) – अनाज, दालें, सब्जियों, फल आदि के पारंपरिक कृषि उत्पादन से मनुष्यों तथा पशुओं की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, आहार संबंधी उसकी माँग पूरी नहीं हो पाती। अनाज से मांस की ओर बढ़ने से भी धान्यों की माँग बढ़ गई है क्योंकि पशुओं के रख-रखाव के दौरान एक किलोग्राम मांस उत्पन्न करने के लिए उसे तीन से दस किलोग्राम धान्यों की आवश्यकता होती है।

25 प्रतिशत से भी अधिक मानव की जनसंख्या भूख तथा कुपोषण (malnutrition) की शिकार है। पशु तथा मानव पोषण के लिए प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों में से एक एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) है। प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में सूक्ष्मजीवों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। मशरूम को आजकल अधिकांश लोगों के द्वारा भोजन के रूप में उपयोग किया जा रहा है।

अतः बड़े पैमाने पर मशरूम संवर्धन एक प्रकार से बढ़ता हुआ उद्योग है। जिससे अब विश्वास – सा होने लगा है कि सूक्ष्मजीव भी आहार के रूप में स्वीकार्य हो जायेंगे। सूक्ष्मजीव जैसे स्पाइरुलाइना (Spirulina) को आलू संसाधन संयंत्र (जिसमें स्टार्च है) घासफूस, शीरा, खाद और यहाँ तक वाहितमल पर आसानी से उगाया जा सकता है; ताकि बड़ी मात्रा में यह प्राप्त हो सके।

स्पाइरुलाइना (Spirulina) में प्रोटीन, खनिजों, वसा, कार्बोहाइड्रेटों तथा विटामिनों की प्रचुर मात्रा विद्यमान है। गणना के अनुसार 250 किलोग्राम वाली गाय 200 ग्राम प्रोटीन पैदा करती है। इतने ही समय में 250 ग्राम सूक्ष्मजीव जैसे- मिथायलोफिलस मिथायलो ट्राफस (Methylophilus Methylotrophus) इनकी वृद्धि तथा बायोमास उत्पादन की उच्चदर से सम्भावित 25 टन तक प्रोटीन उत्पन्न कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
पादपों में प्रजनन की क्रिया अपनाने से पूर्व किन महत्त्वपूर्ण दो बातों का ध्यान रखना चाहिए? कवक, जीवाणु एवं विषाणु द्वारा फसलों में होने वाले दो-दो रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पादपों में प्रजनन की क्रिया अपनाने से पूर्व निम्न दो बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. रोगकारक जीव के बारे में जानकारी
  2. उसके प्रसार की क्रियाविधि की जानकारी

1. कवकों द्वारा उत्पन्न रोग-

  • गेहूँ का भूरा किट्ट (Brown rust of wheat)
  • गन्ने का रैंड रॉट रोग (Red rot of sugarcane)

2. जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग-

  • आलू पछेती अंगमारी ( Late blight of potato)
  • क्रूसीफर का ब्लैक राट (Black rot of crucifers)

3. विषाणु द्वारा उत्पन्न रोग-

  • तंबाकू मोजेक (Tobacco mosaic)
  • शलजम मोजेक (Turnip mosaic )

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प्रश्न 5.
जैव तकनीक से प्राप्त एकल कोशिका प्रोटीन (SCP) के चार उपयोग लिखिए।
उत्तर:
एकल कोशिका प्रोटीन के निम्न चार उपयोग हैं-

  1. इनमें गुणवत्ता वाले प्रोटीन की मात्रा अधिक तथा वसा व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है।
  2. इनका उत्पादन वर्षभर किया जा सकता है तथा उत्पादन जलवायु पर निर्भर नहीं होता।
  3. सूक्ष्मजीवों की वृद्धि दर अधिक होने से कम क्षेत्रफल से अधिक मात्रा में SCP प्राप्त किया जा सकता है।
  4. विश्व में प्रोटीन की कमी को पूरा करने का यह एक उपयुक्त साधन है।

प्रश्न 6.
सूक्ष्मप्रवर्धन का संक्षिप्त महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
सूक्ष्मप्रवर्धन का महत्त्व – ऊतक संवर्धन के माध्यम से पादप के पुनर्जनन अथवा पुनर्उद्भवन को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं। इस तकनीक द्वारा कायिक प्रजनन करने वाले आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पौधों का बहुगुणन तेजी से किया जाता है। इस तकनीक की विशेषता यह है कि बहुत ही कम समय में कम स्थान में अधिक संख्या में पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।

इस तकनीक को कई पौधों के तीव्र बहुगुणन में काम में लिया जा चुका है, उदाहरण- आर्किडस कटेलीया, सिम्बिडियम, डेन्ड्रोबियम, वान्डा एवं शोभाकारी पादप- जरबेरा, गुलदाऊदी, कारनेशन, बिगोनिया आदि । भारत में व्यापक स्तर पर सूक्ष्मप्रवर्धन का उपयोग हो रहा है जिसमें अनेक प्राइवेट कम्पनियों ने सफलता प्राप्त की है।

इस विधि का प्रयोग निर्यात के लिए अलंकारिक पौधों को भारी संख्या में प्राप्त करने के लिए भी किया जा रहा है। कुछ पौधे जैसे केला में जहाँ बीज या तो कम बनते हैं या इनके विकसित होने में अनेक बाधायें आती हैं वहाँ यह लाभदायक तकनीक है। दुर्लभ एवं संकटग्रस्त या विलुप्ति के कगार पर पहुँचे पौधों का गुणन क्लोनिंग द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
कर्तोंतकों के प्रकार लिखिये ।
उत्तर:
कर्तोंतक चार प्रकार के होते हैं-

  1. पूर्ववर्ती विभज्योतक युक्त कर्तोतक (Explant having pre-existing meristems)
  2. पुमंगधानी (Anthers)
  3. तरुण भ्रूण (Young embryo)
  4. प्रोटोप्लास्ट (Protoplast)।

प्रश्न 8.
पादप प्रजनन क्या है? इसमें आनुवंशिकी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फसलों के जीनप्ररूप में मानव के लिए उपयोगी परिवर्तन करने की क्रिया को पादप प्रजनन कहते हैं। पादप प्रजनन में अच्छी किस्में तैयार की जाती हैं। ये किस्में खेती के लिए उपयोगी, अधिक उत्पादन करने वाली एवं रोग प्रतिरोधी होती हैं। पूर्व में पादप प्रजनकों को आनुवंशिकी का ज्ञान नहीं था।

1856 में मेण्डल ने वंशागति के नियमों का प्रतिपादन किया, फिर इन नियमों की 1900 में पुनः खोज हुई। बाद में जीन, अन्योन्यक्रिया, सहलग्नता की खोज हुई तथा ज्ञात हुआ कि जीन गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। मेण्डल के नियमों के अनुसार लक्षण जीन द्वारा नियंत्रित होते हैं। जीनों में विसंयोजन तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन होने के कारण लक्षणों में विविधता उत्पन्न होती है। पादप प्रजनकों द्वारा पहले दो किस्मों का आपस में संकरण किया जाता है।

इस संकरण से प्राप्त F, पीढ़ी में स्वपरागण किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त F पीढ़ी तथा बाद की पीढ़ियों में नए व उत्कृष्ट जीन संयोजनों वाले पौधों का चयन कर एक नई किस्म का विकास किया जा सकता है। इस प्रकार पादप प्रजनन विधियाँ आनुवंशिकी के सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं। पादप प्रजनक द्वारा फसल सुधार की परियोजनाओं का प्रारूप आनुवंशिकी सिद्धान्तों के आधार पर तैयार किया जाता है।

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प्रश्न 9.
कायिक संकरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कायिक संकरण का महत्त्व – कायिक संकरण विधि से ऐसी जातियों के संकर प्राप्त किये जा सकते हैं, जिनमें लैंगिक संकरण संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, आलू के पुष्पी एवं अपुष्पी क्लोन के कायिक संकर जननक्षम (Fertile) पुष्प देते हैं। गाजर एवं चावल के कायिक संकर प्राप्त कर सकते हैं। इनमें लैंगिक संकर प्राप्त करना संभव नहीं है। कायिक संकरों से जीन स्थानान्तरण एवं कोशिकाद्रव्य स्थानान्तरण किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
जन्तु नस्लों में सुधार के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
जन्तु नस्लों में सुधार के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-

  1. जन्तुओं की वृद्धि दर में सुधार करना
  2. दूध, मांस, अण्डे एवं ऊन आदि के उत्पादन में वृद्धि करना
  3. उक्त उत्पादों की गुणात्मक वृद्धि में सुधार
  4. जन्तुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
  5. उच्च स्तर या संतोषजनक स्तर की जनन दर
  6. उत्पादक जीवनकाल में वृद्धि आदि ।

प्रश्न 10.
जन्तु नस्लों में सुधार के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
जन्तु नस्लों में सुधार के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-

  1. जन्तुओं की वृद्धि दर में सुधार करना
  2. दूध, मांस, अण्डे एवं ऊन आदि के उत्पादन में वृद्धि करना
  3. उक्त उत्पादों की गुणात्मक वृद्धि में सुधार
  4. जन्तुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
  5. उच्च स्तर या संतोषजनक स्तर की जनन दर
  6. उत्पादक जीवनकाल में वृद्धि आदि।

प्रश्न 11.
संकर ओज क्या है?
उत्तर:
संकर ओज- आनुवंशिक गुणों में विभिन्न दो समयुग्मजी अन्तःप्रजातों का जब परस्पर क्रॉस कराते हैं तो प्राप्त संकरण संतति उत्पादकता, दृढ़ता और कद में जनकों से अधिक प्रबल या ओजस्वी अथवा श्रेष्ठ होती है। संकर सन्तान की जनकों की तुलना में अधिक उत्पादकता व अधिक उत्तमता को संकर ओज कहते हैं। जैविक प्रभाव – जनन क्षमता में वृद्धि, जीवन में अधिक सक्षमता, अनुकूलनता व रोग कीट प्रतिरोधकता में वृद्धि ।

गुणात्मक प्रभाव – आकार में वृद्धि, मात्रात्मक गुणों जैसी उपज प्रति हैक्टर में वृद्धि, पौधा अधिक प्रबल व बहुस्वस्थ । जनकों में जितनी अधिक वंशागत विभिन्नता होगी संकर संगति में उतना अधिक संकर ओज होगा। उदाहरण- संकर मक्का, संकर बाजरा आदि । जन्तुओं में कुक्कुटों एवं सूअरों के लगभग सभी संकर, अन्तःप्रजात क्रमों के मध्य संकरण द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

प्रश्न 12.
निम्न को परिभाषित कीजिये-

  1. कर्तोंतक (Explant)
  2. कैलस (Callus)
  3. जीवद्रव्यक ( Protoplast )
  4. निर्जर्म (Aseptic or Sterile )
  5. निर्जर्मीकरण (Sterilization)
  6. निवेशित करना ( Inoculate )
  7. पात्रे (In Vitro)
  8. भ्रूणाभ (Embryoid)

उत्तर:

  1. कर्तोंतक (Explant) – संवर्ध आरम्भ करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले पौधे से लिए गए ऊतक या अंग के काटे हुए टुकड़े।
  2. कैलस (Callus ) – प्रायः घाव से या ऊतक संवर्धन में विकसित होने वाली अविभेदित एवं विभेदित कोशिकाओं के सक्रिय रूप से विभाजित होने वाले असंगठित ऊतक ।
  3. जीवद्रव्यक ( Protoplast ) – कोशिका भित्ति के एन्जाइमी विघटन द्वारा प्राप्त होने वाली पादप कोशिका । क्रिया ।
  4. निर्जर्म (Aseptic or Sterile ) – सभी सूक्ष्मजीवों से मुक्त।
  5. निर्जर्मीकरण (Sterilization) – सूक्ष्मजीवों के उन्मूलन की
  6. निवेशित करना ( Inoculate ) – कर्तोंतकों को पोषक माध्यम में रखना ।
  7. पात्रे (In Vitro) – परखनली, बोतल आदि में संवर्धन।
  8. भ्रूणाभ (Embryoid ) – पात्रे कायिक कोशिकाओं के द्वारा उत्पन्न संरचना में भ्रूण सदृश पादपक (Plantlet = छोटे पौधे) ।

प्रश्न 13.
कायिक संकरण के लाभ लिखिये।
उत्तर:
कायिक संकरण के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • ऐसे संकरों की रचना सम्भव हो गई है जो वर्गिकीय या अन्य बाधाओं के कारण सामान्य संकरणों से सम्भव नहीं थी ।
  • ऐसे पौधों से संकर बनाना कायिक संकरण से सम्भव हो गया है, जिनमें लैंगिक अंग असामान्य होते हैं या जिनमें नरबन्ध्यता होती है।

प्रश्न 14.
संवर्धन माध्यम किसे कहते हैं? इन माध्यमों में एक निश्चित अनुपात में कौन-कौनसे पदार्थ लिये जाते हैं? नाम लिखिये ।
उत्तर:
संवर्धन माध्यम वह माध्यम जिस पर पादप अंगों, ऊतकों व कोशिकाओं को संवर्धित करते हैं, संवर्धन माध्यम कहलाता है।
इन माध्यमों में निम्न पदार्थ एक निश्चित अनुपात में लिये जाते हैं –

  1. अकार्बनिक पोषक
  2. विटामिन
  3. कार्बन स्रोत (सामान्यत: सुक्रोस)
  4. वृद्धि नियामक, जैसे ऑक्सिन व साइटोकाइनिन
  5. जटिल कार्बनिक पदार्थ जैसे नारियल का पानी, केसीन जल अपघटनी, टमाटर रस आदि ।

प्रश्न 15.
कृत्रिम गर्भाधान के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर:
कृत्रिम गर्भाधान ( Artificial Insemination) के लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. प्राकृतिक प्रजनन द्वारा एक वर्ष में एक सांड 60-100 गायें गर्भित कर सकता है, जबकि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा 10,000 या अधिक गायें गर्भित कराई जा सकती हैं।
  2. उत्तम नस्ल के सांड के उपलब्ध न होने पर वहाँ उनके वीर्य का उपयोग किया जा सकता है।
  3. वीर्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से ले जाया जा सकता है।
  4. कृत्रिम गर्भाधान विधि से बड़े सांड़ों का वीर्य छोटी गाय पर प्रयोग में लाया जा सकता है।
  5. इस प्रणाली में जो गायें लूली, लंगड़ी या चोट आदि लग जाने से प्राकृतिक सम्भोग के लिए अयोग्य होती हैं, उन्हें भी गर्भित करके बच्चे प्राप्त किए जा सकते हैं।
  6. कृत्रिम ढंग से पशु सुधार करने पर थोड़े ही सांड़ों द्वारा काम चल जायेगा।
  7. विदेशों से भी श्रेष्ठ एवं चयनित सांड़ों का वीर्य आयात कर प्रयोग में लिया जा सकता है।
  8. प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में इस विधि द्वारा गर्भाधान कराने में सफलता अधिक मिलती है।
  9. पशुपालक को सांड़ रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  10. इस विधि में मादाओं को जननेन्द्रिय रोग होने की आशंका नहीं होती है।
  11. कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा प्रजनन सम्बन्धित पूर्ण लेखा- जोखा रखा जा सकता है।

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प्रश्न 16.
पशुधन का भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। समझाइए ।
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश होने से यहाँ की जनसंख्या का 70 प्रतिशत भाग गाँवों में रहता है तथा पशुधन से अपनी आजीविका कमाता है। जिस देश की उपज अच्छी रहती है वहाँ की अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होती है।

प्रश्न 17.
पशुपालन किसे कहते हैं? पालतू जानवरों का संक्षिप्त में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
पशुपालन कृषि की वह शाखा है जिसका संबंध पालतू जानवरों के प्रजनन, उनके खाने-पिलाने और अन्य देखभाल करने से है। जब इसमें आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पालतू जानवरों के उचित उपयोग को शामिल कर लिया जाता है तब इसे पशुधन प्रबंधन (Livestock Management) कहते हैं।

पालतू जानवरों का महत्त्वश्रेणीउसके अन्तर्गत आने वाले प्राणी
1. दूध और मांस प्रदायीगाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, मुर्गा, मछली आदि
2. भारवाहकबैल, घोड़ा, गधा, खच्चर, ऊँट आदि
3. रेशा, खाल या चमड़ा प्रदायीभेड़, बकरी, गाय, भैंस, ऊँट आदि
4. अण्डा प्रदायीमुर्गी, बतख

प्रश्न 18.
डेयरी उत्पाद पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर:
डेयरी उत्पाद – दूध मनुष्यों तथा जानवरों के बच्चों के लिए सम्पूर्ण भोजन है। इसमें प्रोटीन, वसा, लैक्टोज, शर्करा, कैल्सियम तथा फॉस्फोरस जैसे खनिज, विटामिन ‘ए’ तथा ‘बी’ और साथ ही साथ प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले एंटीबॉडी भी होते हैं। अलग-अलग लोग अपनी-अपनी पसंद और आवश्यकतानुसार दूध को अनेक प्रकार से इस्तेमाल करते हैं। दही, मक्खन, मट्ठा, पनीर, घी, क्रीम, खोया, दूध का पाउडर, कंडेस्ट मिल्क आदि प्रमुख डेयरी उत्पाद हैं ।

प्रश्न 19.
मधुमक्खियों से मिलने वाले उत्पाद क्या हैं? प्रत्येक के दो-दो उपयोग भी लिखिए।
उत्तर:
मधुमक्खियों से मिलने वाले उत्पाद निम्न हैं-

  1. शहद
  2. मोम

शहद के उपयोग-

  1. भोजन – शहद एक पोषक भोजन है, इसमें भरपूर ऊर्जा तथा विटामिन होते हैं।
  2. औषध – आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में बहुत-सी दवाइयाँ शहद में मिलाकर या शहद के साथ दी जाती हैं। यह मृदुरोचक, रुधिर शोधक तथा जुकाम, खाँसी व ज्वर के रोध के रूप में कार्य करता है।
  3. मादक पेय तथा सौन्दर्य प्रसाधक लोशन तैयार करने के लिए।
  4. वैधानिक अनुसंधान में बैक्टिरिया के संवर्धन बनाने में।
  5. फल- मक्खियों तथा अन्य नाशकीटों के लिए विषैला चारा बनाने में।

मोम के उपयोग-

  1. मोमबत्तियों के बनाने में ।
  2. दवाइयों के निर्माण में ।
  3. वार्निशों तथा पेंट्स के बनाने में।
  4. जलरोधन तथा धागों पर मोम चढ़ाना।

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प्रश्न 20.
निम्न फसलों की किस्म का नाम बताइए जो पीड़क के प्रति प्रतिरोधकता रखते हैं, साथ ही पीड़क अथवा रोग प्रतिरोधक का नाम भी बताइए ।
(1) ब्रैसिका ( रेपसीड मस्टर्ड )
(2) फलैट बीन
(3) ओकरा (भिंडी) ।
उत्तर:
निम्न फसलों की किस्म एवं रोग के प्रति प्रतिरोधक –

फसल का नामकिस्मरोग के प्रति प्रतिरोधक
1. ब्रैसिका (रेपसीड मस्टर्ड)पूसा गौरवऐफिड
2. फलैट बीनपूसा सेम 2 पूसा सेम 3जैसिड, ऐफिड तथा फलभेदक
3. ओकरा (भिंड़ी)पूसा स्वामी पूसा-ए-4शूट तथा फलभेदक

प्रश्न 21.
मछली पालन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मछली पालन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. भोजन के रूप में मछलियों का पालन स्वादिष्ट एवं अधिक पौष्टिक मांस प्राप्ति हेतु किया जाता है।
  2. तेल- मछलियों से प्राप्त तेल स्नेहक, सौन्दर्य प्रसाधनों, पेन्ट एवं वार्निश के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
  3. मत्स्य त्वचा – मछलियों की त्वचा का उपयोग ताश के डिब्बे, आभूषणों के डिब्बे, जूते, स्त्रियों के लटकाने वाले विशेष पर्स आदि में किया जाता है।
  4. रजतशल्क द्वारा मोती का निर्माण-प्र – फ्रान्स में मछली के शल्कों का उपयोग कृत्रिम मोती निर्माण में किया जाता है।
  5. उर्वरक के रूप में मछलियों के मरने के बाद इनका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है। इनको सुखाकर मत्स्य चूर्ण तैयार किया जाता है जिसका उपयोग तम्बाकू, चाय व कॉफी की खेती में उर्वरक के रूप में किया जाता है।
  6. औषधि के रूप में मछलियों के यकृत निष्कर्षण द्वारा यकृत तेल प्राप्त होता है। इसमें विटामिन ए, सी, डी, ई की मात्रा पायी जाती है जो अभाव रोग के उपचार में औषधि का काम करती है। अनेक व्यक्ति मछली पालन के व्यवसाय से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।

प्रश्न 22.
मधुमक्खी पालन की सफलता के आवश्यक बिन्दु बताइये ।
अथवा
मधुमक्खी पालन की सफलता के लिए आप किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर:
सफल मधुमक्खी पालन के लिए निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं-

  1. मधुमक्खियों की प्रकृति तथा स्वभाव का ज्ञान ।
  2. मक्खी के छत्तों को रखने के लिए उपयुक्त स्थान का चयन ।
  3. मक्खियों के समूह ( दल) को पकड़ना तथा उन्हें छत्ते में रखना।
  4. विभिन्न मौसमों में छत्तों को प्रबंधन ।
  5. शहद तथा मोम का रख-रखावं तथा एकत्रीकरण ।
  6. मधुमक्खियाँ हमारी बहुत-सी फसलों जैसे- सूर्यमुखी, सरसों, सेब तथा नाशपाती के लिए परागणक हैं।

पुष्पीकरण के समय यदि इन छत्तों को खेतों के बीच रख दिया जाये तो इससे पौधों की परागण क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार फसल तथा शहद दोनों के उत्पादन में सुधार हो जाता है।

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प्रश्न 23.
कुक्कुट पालन से क्या तात्पर्य है? कुक्कुट पालन के महत्त्वपूर्ण घटक कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर:
मुर्गीपालन या कुक्कुट पालन (Poultry Farming)- मुर्गियों एवं कुछ अन्य पक्षियों की प्रजातियों का पालन और प्रजनन मुर्गीपालन कहलाता है। इन पक्षियों से प्राप्त मांस एवं अण्डे प्रोटीन के सम्पन्न स्रोत होते हैं। प्रोटीन के अतिरिक्त इनमें अन्य पोषक पदार्थ भी मिलते हैं। मुर्गीपालन को पशु-पालन (Cattle rearing ) की अपेक्षा अधिक उपयोगी माना जाता है क्योंकि ये अधिक दर से अण्डे देती हैं व विभिन्न जलवायु दशाओं में रह सकती हैं।

मुर्गीपालन के लिए बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त इनका पालन सरल होता है व कम समय में ही यह अच्छी आय का स्रोत बन सकता है ।

कुक्कुट पालन में उपयोगी पक्षी-पक्षियों की कई प्रजातियों को कुक्कुट पालन हेतु उपयोग में लिया जाता है जिनमें मुख्य प्रजातियाँ निम्न हैं-

  1. मुर्गा प्रजातियाँ (Breeds of Fowl ) – भारत में घरेलू मुर्गी (Domestic fowl), गैलस डोमेस्टिकस (Gallus domesticus) को मुख्य रूप से पाला जाता है।
  2. बतख ( Ducks) – बतखों से भी अण्डे व मांस प्राप्त किया जाता है। भारत में कुल कुक्कुटों की जनसंख्या (Poultry population) का 6 प्रतिशत योगदान बतखों का है। ये सामान्यतः भारत के दक्षिणी एवं पूर्वी प्रदेशों में पाई जाती हैं।
  3. टर्की (Turkey) – टर्की (Meleagris) हाल के कुछ वर्षों में ही पालतू बनाया गया पक्षी है।

कुक्कुट पालन के प्रमुख घटक – कुक्कुट फार्म प्रबंधन के लिए उपयुक्त नस्लें, सही, सुरक्षित फार्म की परिस्थितियाँ, सही-सही आहार तथा जल और सफाई एवं स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।

प्रश्न 24.
मुर्गीपालन के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण घटकों की
सूची बनायें।
उत्तर:

  • स्वास्थ्य तथा सफाई का ध्यान
  • रोगमुक्त तथा उपयुक्त जाति का चयन
  • सुरक्षित एवं नियमित फार्म परिस्थितियाँ
  • जल व दाने की समुचित व्यवस्था ।

प्रश्न 25.
किसी रोगयुक्त गन्ने के पौधे से पुनः स्वस्थ गन्ने के पौधे प्राप्त करने में वैज्ञानिक सफल हो गए हैं-
(a) पौधे के उस भाग का नाम लिखिए जिसे वैज्ञानिकों ने कर्तोंतक (एक्सप्लान्ट ) के रूप में उपयोग किया था।
(b) स्वस्थ पौधों की पुनःप्राप्ति के लिए वैज्ञानिकों ने जो कार्यविधि अपनाई उसका वर्णन कीजिए।
(c) फसलों के सुधार के लिए उपयोग की जाने वाली इस प्रौद्योगिकी का नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) विभज्योतक (meristem) शीर्षस्थ एवं अक्षीय ।
(b) अक्षीय विभज्योतक भाग को वैज्ञानिक द्वारा अलग करके उसे निजर्मीकरण कर लेते हैं तदुपरान्त कृत्रिम माध्यम में उगाया जाता है। इस माध्यम में पोषक तत्व तथा प्रतिजैविक का उपयोग किया जाता है, जिससे विषाणु रहित पौधे उत्पन्न होते हैं।
(c) फसलों के सुधार के लिए उपयोग की जाने वाली इस प्रौद्योगिकी को ऊतक संवर्धन (Tissue Culture) कहते हैं।

प्रश्न 26.
यदि कुक्कुट फार्म में कुछ कुक्कुट बर्ड फ्लू से संक्रमित हो जायें तब इसे फैलने से किस प्रकार रोकेंगे?
उत्तर:
बर्ड फ्लू से संक्रमित होने पर इसे निम्न प्रकार से फैलने से रोका जा सकता है-

  1. बर्ड फ्लू एक संक्रमित रोग है जो संक्रमित कुक्कुट से स्वस्थ कुक्कुट में तेजी से फैलता है अतः संक्रमित कुक्कुटों को स्वस्थ कुक्कुटों से अलग रखना चाहिये ।
  2. मृत संक्रमित कुक्कुटों को जमीन में गहरी दफना देना चाहिए।
  3. स्वस्थ कुक्कुटों का टीकारण करवाना चाहिए ।

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प्रश्न 27.
एक केला शाक वायरस संक्रमित हो गया है। इस शाक से आप केले का स्वस्थ पौधा कैसे प्राप्त करेंगे? समझाइये |
उत्तर:
इसके लिए ऊतक संवर्धन तकनीक का उपयोग करना चाहिए। यद्यपि पौधा विषाणु से संक्रमित है, परन्तु विभज्योतक ( शीर्ष एवं कक्षीय) विषाणु से अप्रभावित रहता है। अतः विभज्योतक को अलग कर उसे विट्रो में उगाया जाता है ताकि विषाणुमुक्त पादप तैयार हो सके।

प्रश्न 28.
शहद उत्पादन बढ़ जाता है जब छत्तों को खेतों में पुष्पन के दौरान रखा जाता है। समझाइए ।
उत्तर:
मधुमक्खियां बहुत-सी फसलों जैसे सूर्यमुखी, सरसों, सेब, नाशपाती के लिए परागणक है। पुष्पीकरण के समय यदि इन छत्तों को खेतों के बीच रखा जाता है तो इससे पौधों की परागण क्षमता बढ़ जायेगी और इस प्रकार फसल एवं शहद का उत्पादन भी बढ़ जायेगा ।

प्रश्न 29.
डेरी फार्म में पशुओं की दुग्ध उत्पादकता स्वास्थ्य तथा सफाई को उन्नत करने के लिए कौन-से प्रयास किये जा रहे हैं? समझाइये ।
उत्तर:
दुग्ध उत्पादन मूल रूप से फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अच्छी नस्ल का चयन तथा उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को महत्त्वपूर्ण माना जाता है अच्छी उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की देखभाल, जिससे उनके रहने का अच्छा घर तथा पर्याप्त जल तथा रोगाणुमुक्त वातावरण होना चाहिए। पशुओं का भोजन प्रदान करने का तरीका वैज्ञानिक होना चाहिए।

इसमें विशेषकर चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर बल दिया जाना चाहिये। इसके अलावा दुग्धीकरण, दुग्ध उत्पादों का भण्डारण तथा परिवहन के दौरान सफाई तथा पशु पर कार्य करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य सर्वोपरि है। समय-समय पर डेयरी फार्मों व पशुओं के स्वास्थ्य का परीक्षण भी आवश्यक है। किसी पशु चिकित्सक से पशुओं की नियमित जाँच होनी चाहिए।

प्रश्न 30.
हरित क्रान्ति क्या है?
उत्तर:
सन् 1952 में हमारे देश में गेहूँ तथा चावल की उपज क्रमश: 654 Kg. तथा 800 Kg. प्रति हेक्टर थी। यह उत्पादन की मांग की तुलना में बहुत कम था। अतः सरकार और कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि में सुधार की दिशा में खास ध्यान दिया। ऐसा करने से अनाज फसलों में भारी बढ़ोतरी हुई और हम आत्मनिर्भर हो गये। इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में जो भी विभिन्न कदम उठाये गये उन सबको एक साथ मिलाकर हरित क्रान्ति का नाम दिया जाता है।

हरित क्रान्ति – कृषि में आधुनिक तकनीकों को लगाकर खासतौर से अनाजों की फसलों में जो चमत्कारिक वृद्धि हुई उसे हरित क्रान्ति कहा जाता है। भारत में हरित क्रान्ति का जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है। विश्व संदर्भ में यह श्रेय नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत डॉ. नॉर्मन बोरलॉग को जाता है जिन्होंने कि 1963 में गेहूँ की अर्द्धवामन किस्म का विकास किया था।

हरित क्रान्ति में सहायक रहे कारक इस प्रकार थे-

  • फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों को शामिल किया गया।
  • बहुफसलन (multiple cropping), बेहतर सिंचाई और उर्वरकों की पर्याप्त सप्लाई ।
  • फसलों को रोगों तथा नाशी जीवों से बचाने के लिए सुरक्षा उपाय अपनाना ।
  • वैज्ञानिक कृषि को अनुसंधान खेतों से गाँव के किसानों तक पहुँचाना।
  • खेतों की उपज को बाजार तक पहुँचाने के लिए सुसंगठित प्रबंध करना।

प्रश्न 31.
मानव कल्याण में पशुपालन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विज्ञान की वह शाखा जिसका संबंध पालतू जानवरों तथा उनकी देखभाल से है, पशुपालन कहलाता है। प्रबंधन के फलस्वरूप अच्छे उत्पाद और सेवाएँ पशुपालन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। हसबेन्ड्री (पालन) शब्द हसबैण्ड (Husband) पति शब्द से आया है, जिसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो उचित देखभाल कर सके। जब इसमें आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पालतू जानवरों के उचित उपयोग के अध्ययन को शामिल कर लिया जाता है तब इसे पशु प्रबंधन (Livestock Management) कहते हैं।

पशुपालन का संबंध पशुधन जैसे गाय, भैंस, सूअर, घोड़ा, भेड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मनुष्य के लिए लाभप्रद हैं। इसमें कुक्कुट तथा मत्स्य पालन भी शामिल है। मत्स्य पालन के अन्तर्गत मत्स्यों (Fishes), मृदुकवची मोलस्का तथा क्रस्टेशियाई प्रॉन (Prawn) व केकड़ा (Crab) का पालन किया जाता है। इसके अन्तर्गत इन्हें पकड़ना, शिकार कर बेचना तथा पालन करना शामिल है।

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अति प्राचीन काल से मानव मधुमक्खी, रेशमकीट, झींगा (प्रॉन), केकड़ा (Crab), मछलियाँ, पक्षी, सूअर, भेड़, ऊँट आदि का प्रयोग उनके उत्पादों जैसे शहद, रेशम, मांस, दूध, अण्डे, ऊन आदि प्राप्त करने के लिए कर रहा है। एक गणना के अनुसार विश्व का सत्तर प्रतिशत से भी अधिक पशुधन भारत तथा चीन में है। अतः पशु प्रजनन तथा देखभाल की पारंपरिक पद्धतियों के अतिरिक्त गुणवत्ता तथा उत्पादकता में सुधार लाने के लिए नयी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना आवश्यक हो गया है।

प्रश्न 32.
MOET का पूरा नाम लिखें। पशुओं की उन्नति की इस तकनीक की व्याख्या करें।
उत्तर:
MOET का पूरा नाम मल्टीपल औवियूलेशन ऍम्ब्रयो ट्रांसफर (Mutiple Ovulation Embryo Transfer) है। इस तकनीक के अन्तर्गत एक गाय को पुटक परिपक्व एवं उच्च अण्डोत्सर्ग (ovulation ) प्रेरित करने के लिए FSH (Follicular Stimulating Hormone) हार्मोन दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गाय 6-8 अण्डे उत्सर्ग करती है जबकि सामान्यतः प्रतिचक्र में एक अण्डे का निर्माण होता है। इस गाय का क्रॉस उच्च नस्ल के साँड के साथ कराया जाता है या फिर कृत्रिम वीर्यसेचन (Artificial Insomination) कराया जाता है।

इसके बाद 8-32 कोशिकीय निषेचित अण्डे को सावधानीपूर्वक जनन मार्ग से होकर बाहर निकाल लिया जाता है। इसके पश्चात् इसका स्थानान्तरण सोरगेट मादा के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ भ्रूण का पुनः विकास होता है। इस तकनीक द्वारा कम समय में ही अधिक दुग्ध उत्पादन व उच्च गुणवत्ता वाले गौ पशुओं की नस्लें उत्पन्न की गई हैं। इस तकनीक (MOET) का प्रयोग सफलतापूर्वक गाय, भेड़, खरगोश, भैंस, घोड़ा आदि में किया जा सकता है।

प्रश्न 33.
एकल कोशिका प्रोटीन किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। मानवों के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
अनाज, दालें, सब्जियों, फल आदि के पारंपरिक कृषि उत्पादन से मनुष्यों तथा पशुओं की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, आहार संबंधी उसकी मांग पूरी नहीं हो पाती। अनाज से मांस की ओर बढ़ने से भी धान्यों की मांग बढ़ गई है क्योंकि पशुओं के रख-रखाव के दौरान एक किलोग्राम मांस उत्पन्न करने के लिए उसे तीन से दस किलोग्राम धान्यों की आवश्यकता होती है।

25 प्रतिशत से अधिक मानव की जनसंख्या भूख तथा कुपोषण की शिंकार है। पशु तथा मानव पोषण के लिए प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों में से एक एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) है। प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में सूक्ष्मजीवों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। मशरूम को आजकल अधिकांश लोगों के द्वारा भोजन के रूप में उपयोग किया जा रहा है।

अतः बड़े पैमाने पर मशरूम संवर्धन एक प्रकार से बढ़ता हुआ उद्योग है। जिससे अब विश्वास सा होने लगा है कि सूक्ष्मजीव भी आहार के रूप में स्वीकार्य हो जायेंगे। सूक्ष्मजीव जैसे स्पाइरूलाइना (Spirulina) को आलू संसाधन संयंत्र (जिसमें स्टार्च है)। घासफूस, शीरा, खाद और यहाँ तक वाहितमल पर आसानी से उगाया जा सकता है, ताकि बड़ी मात्रा में यह प्राप्त हो सके। स्पाइरूलाइना (Spirulina) में प्रोटीन, खनिजों, वसा, कार्बोहाइड्रेटों तथा विटामिनों की प्रचुर मात्रा विद्यमान है।

गणना के अनुसार 250 किलोग्राम वाली गाय 200 ग्राम प्रोटीन पैदा करती है। इतने ही समय में 250 ग्राम सूक्ष्म जीव जैसे मिथायलोफिलस मिथायलोट्राफस (Methylophilus Methylotrophus) इनकी वृद्धि तथा बायोमास उत्पादन की उच्च दर से सम्भावित 25 टन तक प्रोटीन उत्पन्न कर सकते हैं।

प्रश्न 34.
रोग प्रतिरोधक फसल प्राप्त करने के लिए कृषक के द्वारा उपयोग किये जाने वाले विभिन्न चार चरणों को क्रम से लिखिए।
उत्तर:
रोग प्रतिरोधक फसल प्राप्त करने के लिए कृषक द्वारा उपयोग किये जाने वाले चार चरण निम्न हैं-

  • प्रतिरोधकता स्रोतों के लिए जननद्रव्य को छानना।
  • चयनित जनकों का संकरण।
  • संकरों का चयन तथा मूल्यांकन।
  • नयी किस्मों का परीक्षण तथा उन्हें उत्पन्न करना।

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प्रश्न 35.
MOET कार्यक्रम ने पशुओं की वांछित प्रजाति की संख्या को अत्यधिक बढ़ाने में सहायता की है। कार्यक्रम को चलाने के लिए चरणों को बनाइये।
उत्तर:
MOET (मल्टीपल औवियूलेशन एैम्ब्रयो ट्रांसफर) कार्यक्रम को चलाने के लिए निम्नलिखित चरण हैं-

  • सुपरओव्यूलेशन (Superovulation ) – मादा पशु को FSH (Follicular Stimulating Hormone) हार्मोन देकर सुपर अण्ड निर्माण के लिए उद्दीपित किया जाता है।
  • सुपर ओव्यूलेटेड मादा का क्रॉस प्राकृतिक विधि से उच्च नस्ल के साँड (नर) या उच्च नस्ल नर (साँड) का वीर्य लेकर कृत्रिम विधि से मादा को निषेचित किया जाता है।
  • S-32 कोशिकीय निषेचित अण्ड को सोरगेट मादा के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है ।

प्रश्न 36.
उत्तरी भारत के क्षेत्रों में गन्ने के उच्च उत्पादन एवं वांछनीय गुण, , जैसे कि मोटा तना तथा उच्च शर्करा वाले पौधे प्राप्त करने के लिये कौन-सी तकनीक अपनाई जाती है? समझाइये।
उत्तर:
सैकेरम बारबरी ( Saccharum barberi) को मूलत: उत्तरी भारत में पैदा किया जाता था, परन्तु इसका शर्करा अंश तथा उत्पादन क्षमता बहुत कम थी। दक्षिण भारत में पैदा होने वाला उष्णकटिबंधीय गन्ना सैरम ऑफीसिनेरम (Saccharum officinarum) का तना मोटा था तथा इसमें शर्करा अंश कहीं अधिक था, परन्तु यह उत्तरी भारत में ठीक से नहीं पनप पाया। इन दोनों किस्मों को सफलतापूर्वक संकरित कराया गया ताकि उच्च उत्पादन के वांछनीय गुण जैसे कि मोटा तना तथा उच्च शर्करा वाले पौधे प्राप्त हो सकें और साथ ही इसे उत्तरी भारत के गन्ना उत्पादन क्षेत्रों में भी पैदा किया जा सके।

प्रश्न 37.
डेरी फार्म प्रबन्धन की प्रक्रियाओं को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
डेरी फार्म वह फार्म है जहाँ दुग्ध उत्पादों को प्राप्त करने के लिए दुग्ध उत्पन्न करने वाले पशुओं जैसे गाय, भैंस, ऊँट, बकरी आदि का पालन-पोषण किया जाता है। ऐसे कार्य जहाँ दूध का उत्पादन होता है, के प्रबन्धन को डेरी फार्म प्रबन्धन कहते हैं। इससे दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार तथा उसका उत्पादन बढ़ता है। दुग्ध उत्पादन मूल रूप से फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है अच्छी नस्ल का चयन तथा उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

अच्छी उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल, जिसमें उनके रहने का अच्छा घर तथा पर्याप्त जल तथा रोगाणुमुक्त वातावरण होना चाहिए। पशुओं को भोजन प्रदान करने का तरीका वैज्ञानिक होना चाहिए। इसमें विशेषकर चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त दुग्धीकरण, दुग्ध उत्पादों का भण्डारण तथा परिवहन के दौरान सफाई तथा पशु पर कार्य करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य सर्वोपरि है। समय-समय पर डेरी फार्मों की सफाई व पशुओं के स्वास्थ्य का परीक्षण भी आवश्यक है। किसी पशु चिकित्सक से पशुओं की नियमित जाँच होनी चाहिए जिससे उनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ दूर कराई जा सकें।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय उच्च उत्पादन वाली संकर फसलों का वर्णन कीजिए ।
अथवा
निम्न भारतीय संकर फसलों का वर्णन कीजिए-
(1) गेहूँ एवं धान
(2) गन्ना
(3) ज्वार ।
उत्तर:
पादप प्रजनन क्या है –
पादप प्रजनन पादप प्रजातियों का एक उद्देश्यपूर्ण परिचालन है ताकि-

  • वांछित पादप किस्में तैयार हो सकें।
  • किस्में खेती के लिए अधिक उपयोगी हों।
  • अच्छा उत्पादन करने वाली हों।
  • रोग प्रतिरोधी हों।
  • मृदा की अम्लीयता, लवणता व क्षारीयता के प्रति प्रतिरोधी किस्में तैयार करना।
  • फसल परिपक्वन काल में कमी लाना अर्थात् पादप जीवन चक्र (Plant life cycle) की अवधि को छोटा करना।

पूरे संसार के सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक कंपनियों द्वारा पादप प्रजनन कार्यक्रम अत्यन्त सुव्यवस्थित ढंग से चलाए जाते हैं।फसल की नयी आनुवंशिक नस्ल विकसित करने से प्रजनन के निम्नलिखित प्रमुख पद हैं-
(1) विभिन्नताओं का चयन (Selection of Variability)प्रजनन में किसी भी नस्ल के सुधार से विभिन्नताओं का उपस्थित होना व इनका चयन ही प्रमुख आधार है। अनेक फसलों में पूर्ववर्ती आनुवंशिक विभिन्नतायें उन्हें अपनी जंगली प्रजातियों से प्राप्त हुई हैं।

विभिन्न जंगली किस्मों, प्रजातियों तथा कृषि योग्य प्रजातियों के संबंधियों का संग्रहण एवं परिरक्षण तथा उनके अभिलक्षणों का मूल्यांकन उनके समष्टि में उपलब्य प्राकृतिक जीन के प्रभावकारी समुपयोजन के लिए पूर्वापेक्षित होता है। किसी जाति के सम्पूर्ण आनुवंशिक द्रव्य या उसमें उपस्थित समस्त जीनों के योग को उस जाति का जनन द्रव्य (Germ plasm) कहते हैं। जनन द्रव्य को नष्ट होने से बचाने के लिए द्रव्य संरक्षण किया जाता है। जनन द्रव्य संरक्षण प्रायः पादपों/बीजों के रूप में किया जाता है।

(2) जनकों का मूल्यांकन तथा चयन (Evaluation and selection of parents)-पादपों की पहचान हेतु जर्म प्लाजम (Germ plasm) का आकलन किया जाता है जिससे वाँछित लक्षणों का समावेश किया जा सके। चयनित वांछित लक्षणों वाले उत्कृष्ट पाद्पों की संख्या में वृद्धि (बहुगुणन) करके इनको संकरण प्रक्रिया के लिए काम में लेते हैं। यदि आवश्यकता होती है तो शुद्ध वंशक्रम भी प्राप्त कर लिया जाता है।

(3) चयनित जनकों के बीच पर संकरण (Crops Hybridization among selected parents)-वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न पादपों (जनकों) से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है। जैसे एक जनक में उच्च प्रोटीन उपस्थित है तथा दूसरे में रोग निरोधक गुण उपस्थित है तो ऐसे जनकों के गुणों का समावेश संकरण द्वारा संकर जाति में किया जाता है।

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इस क्रॉस संकरण द्वारा निर्मित संकर जाति में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन व रोग प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही पायी जाती हैं परन्तु यह अधिक प्रक्रिया कठिन एवं अधिक समय लेती है। इसके लिए वांछित गुणयुक्त नर के परागकणों को एकत्रित करके वांछित गुणों युक्त मादा पादप के वर्तिकाग्र पर छिड़काव किया जाता है। इसके फलस्वरूप बने पादपों में वांछित संयोजन की संभावना सैकड़ों हजारों में एक की ही रहती है।

(4) श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण (Selection and Testing of Superior Recombination)-इसके अन्तर्गत संकरों की संतति के बीच से पाद्प का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित होते हैं। अतः संतति का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप ऐसे पादप उत्पन्न होते हैं जो दोनों जनकों में श्रेष्ठ होते हैं। इनका कई पीढ़ियों तक स्वपरागण क्रिया तब तक कराते हैं जब तक कि समरूपता की अवस्था नहीं आ जाती (समयुग्मजता)। जिससे संतति में लक्षण विसंयोजित नहीं हो पाते।

(5) नये कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारीकरण (Test of New cultivative Release and Commercilization)-नव चयनित वंशक्रम का उनके उत्पादन, गुणवत्ता, कीट प्रतिरोधकता एवं रोग प्रतिरोधकता आदि के लक्षणों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन की कसौटी पर खरा उतरने पर इन पादपों को आदर्श परिस्थितियों में अनुसंधान वाले खेतों में उगाया जाता है।

यहाँ पादपों में वांछित गुणों का मूल्यांकन करते हैं। इसके पश्चात् इन पौधों का परीक्षण देश भर में किसानों के खेत में कई स्थानों पर, कम से कम तीन ऋतुओं तक किया जाता है। यदि नई किस्में स्थानीय श्रेष्ठ किस्म से अधिक उत्कृष्ट होती हैं तो इसे किस्म के रूप में मोचित किया जा सकता है। नई किस्म के मोचन का प्रस्ताव किस्म मोचन समिति के समक्ष रखा जाता है।

प्रस्ताव स्वीकार होने पर इसे एक नाम देकर नई किस्म के रूप में मोचित कर दिया जाता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की लगभग 33 प्रतिशत आय तथा समष्टि की लगभग 62 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार कृषि से प्राप्त होता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के सामने मुख्य चुनौती उसकी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए पर्याप्त आहार का उत्पादन करना था।

1960 के मध्य गेहूँ तथा धान की बहुत-सी उच्च उत्पादन वाली प्रजातियों का विकास पादप प्रजनन तकनीकों के प्रयोग से किया गया। परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। यही प्रावस्था सामान्यतः हरित क्रान्ति के नाम से जानी जाती है। उच्च उत्पादन वाली किस्मों की भारतीय संकर फसलों को नीचे चित्र में प्रदर्शित किया गया है-
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति 1

गेहूं तथा धान (Wheat & Paddy)- 1960 से 2000 तक के वर्षों के दौरान गेहूं का उत्पादन ग्यारह मिलियन टन से बढ़कर पचहत्तर मिलियन टन हुआ। जबकि धान का उत्पादन पैंतीस मिलियन टन से बढ़कर 89.5 मिलियन टन तक पहुँच गया। इसका कारण गेहूं तथा धान की अर्द्धवामन किस्मों का विकसित होना है। मैक्सिको स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर व्हीट एंड मेंज में नोबेल पुरस्कार पुरस्कृत डॉ. नॉरमैन ई. बारलौग ने गेहूं की अर्द्धवामन किस्म का विकास किया।

यह उसी का परिणाम है कि सन् 1963 में उच्च उत्पादन तथा प्रतिरोधी किस्मों की वंश रेखाएं जैसे सोनालिका तथा कल्याण सोना का विकास कर उन्हें भारत के गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में प्रयोग किया। अर्द्धवामन धान की प्रजातियों को IR-8 (इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट IRRI, फिलिपींस में विकसित) तथा थाइचूंग नेटिव-I (ताइवान) से व्युत्पन्न किया गया। सन् 1966 में इन किस्मों को प्रयोग में लाया गया।

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बाद में और अधिक उत्पादन क्षमता वाली अर्द्धवामन प्रजातियों जया तथा रत्ना का विकास भारत में किया गया। गन्ना (Sugarcane)-सै के रम बारबरी (Saccharum barberi) को मूलत: उत्तरी भारत (North India) में उगाया जाता था।. लेकिन इसमें शर्करा की मात्रा कम एवं इसकी उत्पादन की क्षमता कम थी। दक्षिणी भारत में पैदा होने वाला उष्णकटिबंधीय गन्ना सैकेरम ऑफीसिनेरम (Saccharum officinarum) का तना मोटा एवं इसमें शर्करा की मात्रा कहीं अधिक थी, किन्तु यह उत्तरी भारत में सही ढंग से विकसित नहीं हो रहा था।

इन दोनों किस्मों को सफलतापूर्वक संकरित किया गया ताकि उच्च उत्पादन के वांछनीय गुण जैसे कि मोटा तना तथा उच्च शर्करा वाले पौधे प्राप्त हो सकें और साथ ही इसे उत्तरी भारत (North India) के गन्ना उत्पादन क्षेत्रों में भी पैदा किया जा सके। ज्वार (Millets)-संकर मक्का, ज्वार और बाजरा का सफलतापूर्वक विकास भारत में किया जा चुका है। इनका विकास संकर प्रजनन (Hybrid Breeding) के फलस्वरूप हुआ है। ये किस्में जल अभाव के प्रति प्रतिरोधी एवं उच्च उत्पादन वाली हैं।

प्रश्न 2.
रोग प्रतिरोधकता के लिए प्रजनन विधियों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
रोग प्रतिरोधकता के लिए पादप प्रजनन (Plant breeding for Disease Resistant)-
अनेक प्रकार के रोगकारक, जैसे-कवक, जीवाणु तथा विषाणु उष्णकटिबन्धीय जलवायु की कृष्य जातियों को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। इन रोगकारकों के कारण फसलों को 20-30 प्रतिशत तक हानि या कभी-कभी पूर्ण हानि भी होती है। ऐसी परिस्थितियों में रोग के प्रति प्रतिरोधी खेतिहर जातियों में प्रजनन तथा विकास से खाद्य उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

इन्हें उगाने से जीवाणुनाशी तथा कवकनाशी पदार्थों का प्रयोग भी कम हो जाता है तथा उन पर आश्रितता कम हो जाती है। पोषी पादपों की प्रतिरोधकता उसकी रोगजनकों को रोग उत्पन्न करने से रोकने की क्षमता है तथा इसका निर्धारण पोषी पादप के आनुवंशिक ढाँचे द्वारा किया जाता है।

प्रजनन की क्रिया अपनाने से पहले रोगकारक जीव के बारे में जानकारी तथा उसके प्रसार की क्रियाविधि की जानकारी महत्वपूर्ण है। कवकों द्वारा उत्पन्न कुछ रोग निम्न हैं-गेहूं का भूरा किट्ट, गन्ने का रैड रॉट रोग तथा आलू पछेती अंगमारी। विषाणु द्वारा तथा जीवाणु द्वारा उत्पन्न रोग के उदाहरण क्रमशः निम्न हैं-तम्बाकू मोजेक, शलजम मोजेक, टमाटर का पर्ण बेलन आदि एवं जीवाणु द्वारा उत्पन्न रोग सिट्स कैकर चावल का किट्ट। रोग प्रतिरोधकता के लिए प्रजनन विधियाँ (Methods of Breeding for Disease Resistance)-
रोग प्रतिरोधकता उत्पन्न करने की परम्परागत विधियाँ निम्न प्रमुख हैं-

  1. संकरण (Hybridisation)
  2. चयन (Selection)

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित पदों को अपनाते हैं-

  • प्रतिरोधकता स्रोतों के जनन द्रव्य को छानना
  • चयनित जनकों का संकरण
  • संकरों का चयन
  • मूल्यांकन
  • नयी किस्मों का परीक्षण
  • तथा उन्हें उत्पन्न करना

संकरण तथा चयन द्वारा प्रजनित कुछ शस्य कवकों, जीवाणुओं तथा विषाणुओं के प्रति रोग प्रतिरोधकता होती है। ये शस्य प्रजातियाँ नीचे तालिका में दी गई हैं –

फसलकिस्म/प्रजातिरोग के प्रति प्रतिरोधक
1. गेहूंहिमगिरीपर्ण तथा धारी किट्ट हिलबंट
2. सरसोंपूसा स्वर्णिमश्वेत किट्ट
3. फूलगोभीपूसा शुभ्रा, पूसा स्नोबॉल K-1कुंचित अंगमारी (शीर्णन) कृष्ण विगलन
4. लोबियापूसा कोमलजीवाणीय अंगमारी (शीर्णन)
5. मिर्चपूसा सदाबहारचिली मोजेक वायरस, तम्बाकू मोजेक वायरस तथा पर्ण कुंचन

रोग प्रतिरोधी जीन जो विभिन्न फसलों की प्रजातियों अथवा उनकी जंगली प्रजातियों में उपस्थित रहती है लेकिन इनकी सीमित संख्या में उपलब्धि के कारण पारम्परिक प्रजनन प्रायः निरुद्ध होता है। पादपों में विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा उत्परिवर्तन (Mutation) प्रेरित किया जाता है तथा बाद में प्रतिरोधकता के लिए पादप पदार्थों की स्क्रीनिंग द्वारा वांछनीय जीन की पहचान की जाती है।

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वांछनीय लक्षण वाले पौधे को या तो सीधे ही गुणित किया जा सकता है अथवा इसका प्रयोग प्रजनन में किया जा सकता है। उत्परिवर्तन सोमाक्लोनल वैरिएंट तथा आनुवंशिक अभिंयान्त्रिकी में चुनाव की अन्य प्रजनन विधियाँ, जिनका प्रयोग इस कार्य में किया जाता है। उत्परिवर्तन (Mutation)-जीन के भीतर आधार अनुक्रम में परिवर्तन द्वारा जो आनुवंशिक भिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं, उसे उत्परिवर्तन (Mutation) कहते हैं। इसी के फलस्वरूप नये लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो अपने जनकों से भिन्न होते हैं।

उत्परिवर्तन को कृत्रिम रूप से रसायनों के प्रयोग अथवा विकिरण जैसे गामा विकिरण द्वारा प्रेरित किया जाता है। ऐसे पादपों के चयन एवं प्रयोग द्वारा जिनसे प्रजनन के लिए वांछनीय लक्षण स्रोत के रूप में उत्परिवर्तन प्रजनन (Mutation Breeding) कहलाता है। मूंग में जो पीत मोजेक वायरस (Yellow mosaic virus) तथा चूर्णिल आसिवा (Powdery mildew) के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्परिवर्तन के कारण ही है।

पादपों की विभिन्न कृष्य प्रजातियों से सम्बन्धित अधिकांश जंगली पादप कुछ प्रतिरोधक लक्षण प्रदर्शित करते हैं परन्तु उनका उत्पादन बहुत ही कम होता है, अतः उच्च उत्पादन के लिए इन प्रजातियों के जीनों को कृष्य प्रजातियों के जीनों में मिलाने की आवश्यकता है। भिण्डी (एबेलमासकाल ऐस्क्यूलैटस) में पीत मोजेक वायरस (Yellow mosaic virus) के प्रति प्रतिरोधकता इसकी जंगली प्रजाति से स्थानान्तरित की गई है। जिसके परिणामस्वरूप ए. ऐसकुलैटस की एक नई किस्म परमनी क्रान्ति उत्पन्न हुई।

प्रश्न 3.
फसलों में सुधार की आधुनिक तकनीक का नाम बताइए। यह फसल सुधार में किस प्रकार लाभदायक है? समझाइए ।
अथवा
ऊतक संवर्धन पर निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
फसलो में सुधार की आधुनिक तकनोंक उतक संवधन (Tissue Culture) है। जब पारम्परिक प्रजनन विधियों से फसलों की उन्नत किस्में तैजार की गई तब भी बढ़ती हुई खाद्यान्नों की मांगों को पूरा नहीं किया जा सका। अतः पर्याप्त उन्तत फसलों को तैयार करने व बढ़ती खाधान्न मांगों की आपूर्ति हेतु आधुनिक तकनीक ऊतक संवर्धन का सहारा लिया गया।

20 र्वी सदी के मध्य में जीच वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके बह ज्ञात किया कि पौधे के भाग से सम्पर्ण पौधों को युनर्जनित किया जाना सम्भव है, उसे कत्तोतक कहते हैं। किसी कोशिका कर्तोतक से पूर्ण पादप में जानत होने की क्षमता को पूर्णशक्तता कहते हैं। कर्तोतक का एक विशिष्ट पोश माध्यम में तथा रोगाणुरहित स्थिति में पात्रे संबर्धन किया जाता है। इस पोश माध्यम में कार्बन स्रोत जैसे सुक्रोज तथा अकार्यनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल तथा वृद्धि नियंत्रक जैसे-ऑंक्सिन, साइटोकाइटिन आदि उपस्थित होने चाहिए।

ऊतक संबर्धन विधि द्वारा पौधे के कायिक या वानस्पतिक प्रवर्धन को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं। इस विधि में बहुत छोटे कत्तोंतक का उपभोग करके बहुत छोटे-छोटे पौधे कम समय में उत्पादित करते हैं। इनमें प्रत्येक पादप आनुर्वंशिक रूप से मूल पादक के समान होते हैं, जहाँ से वह पैदा हुए हैं, इन्हें सोमाक्लोन (Somaclone) कहते हैं। ऊतक संवर्धन तक्रीक से रोगमुक्त पादपों का संबर्धन उत्पादन सम्भव है ।

प्रत्येक पादप विषाणु (Virus) से संक्रमित होते हैं, परन्तु उन पौधों के विभग्योतक (शीर्घ तथा कक्षीय) विषाणु से प्रभावित नहीं होते है। अतः विषाणुमुक्त पादप तैयार करने के लिए विभज्योतक को पृथक् कर उसका पात्रे संवर्धन करते हैं। संवर्धन से तैयार पादप विघाणु रोग से पूर्णतया मुक्त होते हैं। वैज्ञानिकों ने केला, गन्ना, आलू आदि में विभज्योतक संबर्धन द्वारा व्यापारिक स्तर पर रोगमुक्त पादप तैयार किये हैं।

कतक संवर्धन के अन्तर्गत चैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ पृथक् कर उनकी कोशिका भित्ति को सैल्यूलोज तथा पैविट्नेज एन्जाइम की सहायता से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा चिरा नग्न जीवद्रव्य पृथक कर लिया। प्रत्येक किस्म में वांधनीय लक्षण विद्यमान होते है। पादर्पों की दो आनुबंशिक रूप से भिन्न किस्मों से अलग किया गया जीवद्रव्य युग्मित होकर संकर जीवद्रव्य उत्पन्न करता है, जिससे नए पादप तैयार किये जाहे हैं।

यह संकर कायिक संकर, जबांक यह प्रक्रम कायिक संकरण कहलाता है। इस विधि के द्वारा पोमेटो (आलू तथा टमाटर के जोवद्रव्य संकरण से प्राप्त कायिक संकर) तथा ब्रोमेटो (थँगन तथा टमाटर के जीवद्रब्य संकरण से प्राप्त कायिक संकर) विकसित किये गये हैं। इन दोनों कायिक संकरों के पादपों में व्यावसायिक उपयोग हेतु वींहित्त समुचित अभिलक्षणों का अभाव था। ऊतक संवर्धन विधि का प्रयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने पादपों में विभिन्नता प्राप्त की, उसे सोमाक्लोनल विभिन्नता कहते हैं। ये विभिन्नताएँ स्थायी होती हैं तथा कृषि के लिए उपयोगी होती हैं।

प्रश्न 4.
मत्स्य पालन पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
उत्तर:
मत्स्य पालन- मछलियों की उपयोगी व उच्च उत्पादक क्षमता से युक्त प्रजातियों का संवर्धन मत्स्य पालन कहलाता है। मछलियों से हमें उत्तम किस्म की खास प्रोटीन, विटामिन ए व डी तथा कई अन्य उपयोगी व उपउत्पाद प्राप्त होते हैं। इनकी अत्यधिक उपयोगिता के कारण इनके संवर्धन व पालन हेतु विशेष वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग किया जाता है।

मछलियों समेत कई अन्य जलीय जीव जैसे-प्रॉन, लोब्स्टर, मोलस्का इत्यादि के पालन व संवर्धन को जल संवर्धन या जल कृषि (एक्वाकल्चर) कहते हैं। भारत का चीन के बाद विश्व में मत्स्य पालन में दूसरा स्थान है। एवं सम्पूर्ण विश्व में चौथे स्थान पर है। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल तथा पंजाब में मत्स्य पालन चावल के खेतों, बांधों, सिंचाई नहरों, झीलों व तालाबों के जलीय स्रोतों में किया जाता है।

संवर्धन योग्य मछलियाँ – इन मछलियों को दो भागों में बाँटा गया है –
(1) पारंपरिक स्वच्छ जलीय मछलियाँ अलवणीय जल की मछलियाँ – इनका पालन स्वच्छ अर्थात् अलवणीय जल में किया जाता है; जैसे- नदियां, तालाब व जलाशय आदि। उदाहरण- लेबियो रोहिता या रोहूं, कतला कतला, सिरिनस म्रिगला या मृगल, लेबियो कालबासु, चन्ना मछलियों की प्रजातियां, वैलेगो अट्टू (मुल्ली) आदि।

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(2) लवणीय जल की मछलियाँ – जिनका पालन लवण जल में किया जाता है, लवणीय मछलियां कहलाती हैं। मछलियों का उत्पादन खारे पानी की तुलना में मीठे पानी में अधिक होता है। उदाहरण- हिल्ला, सरडाइन, मैकेरल तथा पामफ्रैट आदि । पालने हेतु ऐसी मछलियों का चयन किया जाता है जो उच्च खाद्य गुणों से युक्त, उच्च प्रजनन एवं वृद्धि दर दर्शाने वाली, रोग प्रतिरोधी क्षमता से युक्त, वातावरणीय

परिवर्तन के प्रति सहनशीलता, प्राकृतिक एवं कृत्रिम भोजन को आसानी से ग्रहण करने में समर्थ तथा वातावरण में उपस्थित अन्य मछलियों के प्रति न्यूनतम प्रतिस्पर्धा आदि गुण रखती हों। मेजर कार्प, लेबियो रोहिता, कतला कतला, सिरिनस म्रिगंला आदि इन सभी मछलियों का प्रमुख विदेशी कार्प मछलियों के साथ उचित अनुपात में एक साथ सरोवर में पालन किया जाता है। इस तकनीक को कम्पोजिट मत्स्य पालन कहते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. किस विधि द्वारा बीकानेरी ऐबीज एवं मैरीनो रेक्स से भेड़ की नई नस्ल ‘हिसारडेल’ तैयार की गई है? (NEET-2020)
(अ) उत्परिवर्तन प्रजनन
(ब) संकरण
(स) अंतःप्रजनन
(द) बहिःप्रजनन
उत्तर:
(ब) संकरण

2. अधिक दूध देने वाली गायों को प्राप्त करने के लिए किया गया कृत्रिम वरण क्या दर्शाता है? (NEET-2019)
(अ) स्थायीकारक वरण क्योंकि यह जनसंख्या में इस लक्षण का स्थायीकरण करता है।
(ब) दिशात्मक वरण क्योंकि यह लक्षण माध्य को एक दिशा में धकेल देता है।
(स) विदारक क्योंकि यह जनसंख्या को दो में विभाजित करता है, एक अधिक उत्पादन करने वाली एवं अन्य कम उत्पादन करने वाली।
(द) स्थायीकारक के बाद विदारक क्योंकि यह जनसंख्या में उच्च उत्पादक गायों का स्थायीकरण करता है।
उत्तर:
(ब) दिशात्मक वरण क्योंकि यह लक्षण माध्य को एक दिशा में धकेल देता है।

3. अनुचित कथन का चयन करो- (NEET-2019)
(अ) अंतःप्रजनन श्रेष्ठ जीनों के संग्रह एवं अवांछनीय जीनों के उन्मूलन में सहायता करता है।
(ब) अंतः प्रजनन समयुग्मता में वृद्धि करता है।
(स) अंतःप्रजनन किसी जानवर को शुद्ध वंशक्रम के विकित होने के लिए आवश्यक है।
(द) अंतःप्रजनन हानिकारक अप्रभावी जीनों का चयन करता है जो जननता एवं उत्पादकता कम करते हैं।
उत्तर:
(द) अंतःप्रजनन हानिकारक अप्रभावी जीनों का चयन करता है जो जननता एवं उत्पादकता कम करते हैं।

4. पशुओं में शुद्ध वंशक्रम में समयुग्मजी किस प्रकार प्राप्त किए जा सकते हैं? (NEET-2017)
(अ) एक ही नस्ल के सम्बन्धित पशुओं के संगम द्वारा
(ब) एक ही नस्ल के असंबंधित पशुओं के स्रोत द्वारा
(स) विभिन्न नस्लों के पशुओं के संगम द्वारा
(द) विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के संगम द्वारा
उत्तर:
(अ) एक ही नस्ल के सम्बन्धित पशुओं के संगम द्वारा

5. एक वास्तविक प्रजनन पादप वह है जो कि- (NEET II-2016)
(अ) लगभग समजात हो और अपनी तरह की संतान उत्पन्न करता हो
(ब) अपने आनुवंशिक गहन में हमेशा समजात अप्रभावी हो।
(स) अपने आप प्रजनन कर सके।
(द) असंबद्ध पादपों के बीच पर-परागण से उत्पन्न किया गया हो।
उत्तर:
(अ) लगभग समजात हो और अपनी तरह की संतान उत्पन्न करता हो

6. निम्नलिखित खाद्यमछलियों में से कौनसी समुद्री मछली है जो ओमेगा-3 वसा अम्लों का उत्तम स्रोत है? (NEET-2016)
(अ) मिग्रल
(ब) मैकेरल
(स) मिस्टस
(द) मांगुर
उत्तर:
(ब) मैकेरल

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7. लेग्यूम या घास को चारागाह में या चक्रीय फसल द्वारा मिट्टी की संरचना या उत्पादकता को सुधारने के लिए जो प्रक्रिया अपनाते हैं, कहलाती है- (NEET I-2016)
(अ) स्ट्रिपखेती
(ब) शिफ्टिंग कृषि
(स) ले खेती
(द) काउण्टर खेती
उत्तर:
(स) ले खेती

8. ‘जीवद्रव्यक’ एक कोशिका है- (NEET-2015)
(अ) केन्द्रक रहित
(ब) विभाजित हुई
(स) कोशिका भित्ति रहित
(द) प्रद्रव्यरहित
उत्तर:
(स) कोशिका भित्ति रहित

9. पशुपालन में बहि:प्रजनन एक महत्त्वपूर्ण क्रियाविधि है क्योंकि यह- (NEET-2015)
(अ) जन्तुओं के शुद्ध वंशक्रमों को उत्पन्न करने में उपयोगी है।
(ब) अन्तःप्रजनन के अवसाद को दूर करने में उपयोगी है।
(स) हानिकारक अप्रभावी जीनों को अनावृत कर देता है जिन्हें चयन द्वारा निष्कासित किया जा सकता है।
(द) बेहतर जीनों के एकत्रीकरण में मदद करता है।
उत्तर:
(ब) अन्तःप्रजनन के अवसाद को दूर करने में उपयोगी है।

10. ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा रोगी पादप से विषाणु मुक्त स्वस्थ पादपों को प्रास करने के लिए रोगी पादप के किस भाग/भागों को लिया जाएगा? (NEET-2014)
(अ) केवल शीर्ष विभज्योतक
(ब) पेलीसेड पेरेन्काइमा
(स) शीर्ष और अक्षीय विभज्योतक दोनों ही
(द) केवल अधिचर्म।
उत्तर:
(स) शीर्ष और अक्षीय विभज्योतक दोनों ही

11. पादपों में स्वपात्रे क्लोनीय प्रवर्धन किसके द्वारा चित्रित होता है- (NEET-2014)
(अ) पी.सी.आर. और आर.ए.पी.डी.
(ब) नार्दन शोषण
(स) वैद्युत कण संचलन और एच.पी.एल.सी.
(द) सूक्ष्मदर्शीकी।
उत्तर:
(अ) पी.सी.आर. और आर.ए.पी.डी.

12. सूक्ष्मप्रवर्धन के लिए वाइरस रहित पौधे बनाने के लिए कौनसा भाग सबसे उपयुक्त होगा- (NEET-2012)
(अ) छाल
(ब) संवहनीय ऊतक
(स) विभज्योतक
(द) नोड (पर्व)
उत्तर:
(स) विभज्योतक

13. भारत में हरित क्रान्ति किस दौरान हुई थी? (Mains-2012)
(अ) 1960 के दशक में
(ब) 1970 के दशक में
(स) 1980 के दशक में
(द) 1950 के दशक में
उत्तर:
(अ) 1960 के दशक में

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14. किट्ट रोगजनक के विरुद्ध रोगरोधन के लिए संकरण तथा चयन द्वारा विकसित हिमगिरी किसकी एक किस्म है? (NEET-2011)
(अ) मिर्च
(ब) मक्का
(स) गन्ना
(द) गेहूं
उत्तर:
(द) गेहूं

15. भारत में सर्वाधिक आनुवंशिक विविधता प्रदर्शित करता है- (CBSE, 2011)
(अ) चावल
(ब) मक्का
(स) आम
(द) मूंगफली
उत्तर:
(स) आम

16. ट्रान्सजीनिक जन्तुओं के रूप में सर्वाधिक संख्या में पाये जाने वाले जीव हैं- (CBSE, 2011)
(अ) चूहे
(ब) गाय
(स) सूअर
(द) मछली
उत्तर:
(अ) चूहे

17. भारत में हरित क्रान्ति के लिए विकसित की गई ‘जया’ और ‘रत्ना’ किस्में हैं- (CBSE, 2011)
(अ) चावल की
(ब) गेहुँ की
(स) बाजरे की
(द) मक्के की
उत्तर:
(अ) चावल की

18. सोमेक्लोन (Somaclones) प्राप्त होते हैं- (NEET 2009, CBSE, 2010)
(अ) ऊतक संवर्धन द्वारा
(ब) पादप प्रजनन द्वारा
(स) विकिरणन द्वारा
(द) जीनी अभियान्त्रिकी द्वारा।
उत्तर:
(अ) ऊतक संवर्धन द्वारा

19. ट्रांसजीनिक बासमती चावल की उन्नत किस्म- (CBSE, 2010)
(अ) को रासायनिक उर्वरकों तथा वृद्धि हार्मोनों की आवश्यकता नहीं होती है।
(ब) उच्च उत्पादन तथा विटामिन- A से प्रचुर होती है।
(स) सभी कीट-पीड़कों तथा धान के रोगों के प्रति पूर्णतया प्रतिरोधक होती है ।
(द) उच्च उत्पादन करती है किन्तु इसमें कोई अभिलाक्षणिक सुगंध नहीं होती है।
उत्तर:
(ब) उच्च उत्पादन तथा विटामिन- A से प्रचुर होती है।

20. ऐसी फसलों के प्रजनन को, जिनमें खनिज प्रोटीन, विटामिन के स्तर ऊँचे हो, क्या कहते हैं? (NEET-2010)
(अ) जैव प्रबलीकरण
(ब) जैव आवर्धन
(स) सूक्ष्म प्रवर्धन
(द) कायिक संकरण
उत्तर:
(अ) जैव प्रबलीकरण

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

21. पॉली एथीलीन ग्लाइकॉल विधि का उपयोग किस काम के लिए किया जाता है- (NEET-2009)
(अ) मल जल (सीवेज) से ऊर्जा का उत्पादन
(ब) बिना किसी वेक्टर के जीन स्थानान्तरण
(स) बायोडीजल उत्पादन
(द) बीज रहित फल उत्पादन
उत्तर:
(ब) बिना किसी वेक्टर के जीन स्थानान्तरण

22. एक लोकप्रिय कवकनाशी के रूप में बोडों मिश्रण की खोज के साथ किसका सम्बन्ध रहा है? (NEET-2008)
(अ) गेहूं के श्लथ कंड
(ब) गेहूं का काला किट्ट
(स) चावल की जीवाण्विक पत्ती शीर्णता
(द) अंगूर की मृदुरोमिल आसिता
उत्तर:
(द) अंगूर की मृदुरोमिल आसिता

23. निम्नांकित सही मिलाया गया है- (RPMT, 2008)
(अ) एपीकल्चर-मधुमक्खी
(ब) पिसीकल्चर-सिल्कमॉथ
(स) सेरीकल्चर-मछली
(द) एक्वाकल्चर-मच्छर
उत्तर:
(अ) एपीकल्चर-मधुमक्खी

24. वह कौनसी एक पारजीनी खाद्य फसल है जिससे विकासशील देशों में रतौंधी की समस्या का समाधान हो सकता है? (NEET-2008)
(अ) फ्लैव सैव्र किस्म के टमाटर
(ब) स्टारालिंग मक्का
(स) Bt सोयाबीन
(द) गोल्डन राइस (सुनहरा चावल)
उत्तर:
(द) गोल्डन राइस (सुनहरा चावल)

25. सांड की तुलना में बैल अधिक सीधा-साधा (विनम्र) इसलिए होता है कि बैल के भीतर- (NEET-2007, CBSE-2007)
(अ) रक्त में ऐड्रीनलीन/नार ऐड्रीनलीन के निम्न स्तर होते हैं
(ब) कार्टिसोन के उच्च स्तर होते हैं
(स) थायरॉक्सिन केस्तर ऊँचे होते हैं
(द) रक्त टेस्टोस्टेरोन के स्तर निम्न होते हैं।
उत्तर:
(द) रक्त टेस्टोस्टेरोन के स्तर निम्न होते हैं।

26. निम्नलिखित में से कौनसी एक दशा मुर्गियों का एक विषाणु रोग है- (NEET-2007)
(अ) पाश्चुरेलोसिस
(ब) साल्मोनेलोसिस
(स) कोइराजा
(द) न्येकैस्टल रोग
उत्तर:
(द) न्येकैस्टल रोग

27. निम्नलिखित में से कौनसा एक जोड़ा गलत मिलाया गया है- (NEET-2007)
(अ) बाम्बिक्स मोराई-रेशम
(ब) पाइलाग्लोबोमा-मोती
(स) एपिस इण्डिका-शहद
(द) केनिया लाका-लाख।
उत्तर:
(अ) बाम्बिक्स मोराई-रेशम

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28. मवेशियों के क्लोनिंग में एक निषेचित अण्डे की माता गऊ के गर्भाशय से निकालकर- (CBSE, 2007)
(अ) उस अण्डे को 4 जोड़ी कोशिकाओं में विभाजित किया जाता है जिन्हें अन्य गायों के गर्भाशयों में अन्तर्रोपित कर दिया जाता है।
(ब) उसकी आठ कोशिका अवस्था में, कोशिकाओं को पृथक् किया जाता है और उन्हें छोटे-छोटे भ्रूण बनने तक संवर्धित किया जाता है जिसके बाद उन्हें अन्य गायों के गर्भाशय में अन्तर्रोपित कर दिया जाता है।
(स) उसकी आठ, कोशिका अवस्था में, कोशिकाओं को विद्युत् परिवेश में पृथक् कर दिया जाता है और उससे आगे का परिवर्धन संवर्धन माध्यम में किया जाता है।
(द) उससे आठ अभिन्न जुड़वाँ बच्चे पैदा किये जा सकते हैं।
उत्तर:
(ब) उसकी आठ कोशिका अवस्था में, कोशिकाओं को पृथक् किया जाता है और उन्हें छोटे-छोटे भ्रूण बनने तक संवर्धित किया जाता है जिसके बाद उन्हें अन्य गायों के गर्भाशय में अन्तर्रोपित कर दिया जाता है।

29. मक्का में संकर ओज किससे सबसे ज्यादा प्राप्त होता है? (CBSE, 2006)
(अ) जीवद्रव्यक में DNA बॉम्बार्ड करके
(ब) दो अन्तःप्रजात वंशक्रमों के बीच संकरण करके
(स) सर्वाधिक उत्पादनशील पौधों से बीज एकत्रित करके
(द) उत्परिवर्तनों को प्रेरित करके
उत्तर:
(ब) दो अन्तःप्रजात वंशक्रमों के बीच संकरण करके

30. सुनहरा चावल एक बहुत ही सम्भावनापूर्ण पारजीनी फसल है। कृषि में उतारने पर यह किस चीज में सहायक होगा? (CBSE 2006)
(अ) विटामिन-A का अभाव दूर करने में
(ब) पीड़क प्रतिरोध में
(स) शाकनाशी सहनता में
(द) चावल से एक पेट्रोल-सरीखा ईंधन बनाने में।
उत्तर:
(अ) विटामिन-A का अभाव दूर करने में

31. ऊतक संवर्धन द्वारा विषाणु-मुक्त पौधे प्राप्त करने की सबसे अच्छी विधि क्या है ? (CBSE, PMT 2006)
(अ) एन्थर संवर्धन
(ब) विभज्योतक संवर्धन
(स) जीवद्रव्य संवर्धन
(द) भूरण रस्क्यू
उत्तर:
(ब) विभज्योतक संवर्धन

32. एकल कृषि में उगाए जाने वाले फसल पौधे कैसे होते हैं? (CBSE, 2006)
(अ) कम उत्पादन करने वाले
(ब) अंतःजातीय स्पर्धा से मुक्त
(स) क्षीण मूल तन्त्र के अभिलक्षण वाले
(द) पीड़कों के लिए अति प्रवृत्त।
उत्तर:
(द) पीड़कों के लिए अति प्रवृत्त।

33. निम्न में से कौन फसल के सुधार में प्रयुक्त नहीं होता- (Bihar CECE, 2006)
(अ) अन्तःप्रजनन
(ब) परिचय
(स) संकरण
(द) उत्परिवर्तन
उत्तर:
(अ) अन्तःप्रजनन

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34. यदि किसी पादप कोशिका में सम्मूर्ण पौधा बनाने की क्षमता पायी जाती है तब कोशिका के उस गुण को क्या कहते हैं? (HP PMT, 2005)
(अ) ऊतक संवर्धन
(ब) टोटीपोटेन्सी
(स) प्ल्यूरीपोटेन्सी
(द) जीन क्लोनिंग
उत्तर:
(ब) टोटीपोटेन्सी

35. कायिक संकरण उत्पन्न होता है- (Manipal 2005)
(अ) जीवद्रव्य संयुग्मन द्वारा
(ब) टिशु कल्चर द्वारा
(स) परागण कल्चर द्वारा
(द) हाइब्रिडोमा प्रक्रिया द्वारा
उत्तर:
(अ) जीवद्रव्य संयुग्मन द्वारा

36. खच्चर (Mule) उत्पन्न होता है- (AFMC, 2004)
(अ) ब्रीडिंग द्वारा
(ब) म्यूटेशन द्वारा
(स) हाइब्रिडाइ जेशन द्वारा
(द) इन्टरस्पेस्फिक हाइब्रिडाइजेशन द्वारा
उत्तर:
(स) हाइब्रिडाइ जेशन द्वारा

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. किस रोग में फुप्फुस (lungs) के वायु कोष्ठ (एलव्यूलाई) संक्रमि हो जाते हैं-
(अ) टाइफाइड
(ब) न्यूमोनिया
(स) जुकाम
(द) हैजा
उत्तर:
(ब) न्यूमोनिया

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

2. निम्न में से मलेरिया के लिए उत्तरदायी है-
(अ) प्लै. वाइबैम्स
(ब) फ्लै. मेलिरिआई
(स) प्लै. फैल्सीपेरम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

3. मलेरिया परजीबी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए निम्न में से किस परपोषी की जरूरत पड़ेगी?
(अ) मनुष्य
(ब) मादा एनाफिलिज
(स) प्रोटोओओआ
(द) (अ) व (ब) दोनों
उत्तर:
(अ) मनुष्य

4. विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ निम्न में से किस प्रोटीन का स्रावण करती है-
(अ) इंटरफेरॉन
(ब) टाइकोफाइटॉन
(स) एपिड्रोर्मोफाइटान
(द) क्लोस्ट्रम
उत्तर:
(अ) इंटरफेरॉन

5. ऐलर्जी, मास्ट कोशिकाओं से किस रसायन के निकलने से होती है
(अ) सीरोटोनिन
(ब) मीरोटोनिन
(ख) टौरोटोनिन
(द) लीरोटोनिन
उत्तर:
(अ) सीरोटोनिन

6. निम्न में से द्वितीयक लसीकाभ अंग है-
(अ) प्लीहा
(ब) टांसिल
(स) परिशेषिका
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

7. संक्रमण होने एवं एड्स के लक्षप प्रकट होने के बीच अव्वधि होती है
(अ) 1 से 3 वर्ष
(ब) 5 से 10 वर्ष
(स) 12 से 15 वर्ष
(द) 3 माह से 9 माह तक
उत्तर:
(ब) 5 से 10 वर्ष

8. रक्त परिसंचरण की खोज करने वाले वैज्ञानिक हैं-
(अ) विलियम हार्चे
(ब) राबर्ट हुक
(स) श्लाईडेन एवं श्वान
(द) राबर्ट श्राउन
उत्तर:
(अ) विलियम हार्चे

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9. खमीर से बनने वाला टीका है-
(अ) चेचक का टीका
(ब) यकृत शोथ-बी का टीका
(स) खसरे का टीका
(द) फ्लू का टीका
उत्तर:
(ब) यकृत शोथ-बी का टीका

10. तंबाकू में पाया जाने वाला रासायनिक पदार्थ है-
(अ) निकोटिन
(ब) कोकीन
(स) क्रैक
(द) बार्बीट्यूरेट
उत्तर:
(अ) निकोटिन

11. मलेरिया की रोकधाम के लिए मच्छर के लार्वा का भक्षण करने वाली मछली है-
(अ) बारबस
(ब) लेबियो
(स) गेम्बुसिया
(द) एक्सोसीट्स
उत्तर:
(स) गेम्बुसिया

12. ऐल्कोहॉल के चिरकारी उपयोग से सबसे ज्याद्रा शरीर के किस अंग की क्षति होती है-
(अ) आमाशय
(ब) मलाशाय
(स) फेफड़े
(द) यकृत
उत्तर:
(द) यकृत

13. हमारे शरीर में प्रतिरक्षा की पहली पंक्ति है-
(अ) फेफड़े
(ब) इ्वसन
(स) त्वचा
(द) मेक्रोफैजेज कोशिकायें
उत्तर:
(स) त्वचा

14. अर्बुद को नह करने में सहायक है-
(अ) Y – इन्टरफेरोन
(ब)) Z – इन्टरफेरोन
(स) X – इन्टरफेरोन
(द) Z – इन्टरफेरोन
उत्तर:
(अ) Y – इन्टरफेरोन

15. दुर्दम अबुर्द प्रयुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज कहलाता है-
(अ) कटिक्ट इसहिखिसन
(ब) नियोप्लास्टिक
(स) एलीसा एंजाइमा
(द) इम्यूनोजारवेट
उत्तर:
(ब) नियोप्लास्टिक

16. तम्बाकू के धुएँ में वपस्थित रासायनिक कैंसरजन किस अंग के कैसर के मुख्य कारण है-
(अ) यकृत
(ब) प्लीहा
(स) फेफड़े
(द) जननांग
उत्तर:
(स) फेफड़े

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17. कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु (वायरस) कहलाते हैं-
(अ) आंकोजोनिक वायरस
(ब) प्रोटो आंकोजेनिक बायरस
(स) मैटास्टेसिस वायरस
(द) कीटो आंकोजेनिक वायरस
उत्तर:
(अ) आंकोजोनिक वायरस

18. निम्न में से कौनसे बिषाणु फैक्ट्री (Factory) की तरह काम करते हैं-
(अ) पोलियो वाइरस
(ब) आर्थोमिम्सो वाइरस
(स) एच.आई. वाइरस
(द) पैरामिम्सो वाइरस
उत्तर:
(स) एच.आई. वाइरस

19. प्राकृतिक केनिबिनॉइड कैनेबिस सैटाइवा पौधे के किस भाग से प्राप्त किया जाता है-
(अ) जड़
(ब) पुष्पक्रम
(स) पुष्मासन
(द) तने
उत्तर:
(ब) पुष्पक्रम

20. मलेरिया रोगी में कंपकंपी का कारण है-
(अ) हीमोजॉइन
(ब) हिप्पनोटोक्सिन
(स) हीमेटिन
(द) मीरोजोइट्स
उत्तर:
(अ) हीमोजॉइन

21. साल्मोनेला टाइफा एक रोगजनक जीवाणु जिससे कौनसा ज्वर होता है-
(अ) न्यूमोनिया ज्वर
(ब) टाइफाइड ज्वर
(स) सामान्य जुकाम ज्वर
(द) मलेरिया ज्वर
उत्तर:
(ब) टाइफाइड ज्वर

22. असंक्रामक रोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है-
(अ) कैंसर
(ब) मलेरिया
(स) एड्स
(द) न्यूमोनिया
उत्तर:
(अ) कैंसर

23. हमारे रक्त में प्रोटीनों की सेना उत्पन्न करते हैं-
(अ) बी-लसीकाणु
(ब) टी-मारक कोशिका
(स) टी-निरोधी कोशिकाएँ
(द) टी-सहायक कोशि
उत्तर:
(अ) बी-लसीकाणु

24. किशोरावस्था माना जा सकता है-
(अ) 8 से 10 वर्ष
(ब) 12 से 18 वर्ष
(स) 19 से 22 वर्ष
(द) 23 से 25 वर्ष
उत्तर:
(ब) 12 से 18 वर्ष

25. ड्रग या एल्कोहल की नियमित मात्रा अचानक बंद कर वि पर किस सिन्द्रोम के रूप में व्यक्त होती है?
(अ) विद्ड्रावल सिन्ड्रोम
(ब) टर्नर सिन्ड्रोम
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(अ) विद्ड्रावल सिन्ड्रोम

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26. ड्रगों की अत्यधिक मात्रा से होता है-
(अ) श्वसन पात (रेस्पाइरेटरी फेल्योर)
(ब) हृद्य पात (हार्ट फेल्योर)
(स) प्रमस्तिष्क रक्त स्राव (सरेब्रल हेमरेज)
(द) उपरोक सभी
उत्तर:
(द) उपरोक सभी

27. महिलाओं में उपचयी स्टेराइडों के सेवन से होता है-
(अ) मैस्कुलिनाइजेसन (यानी पुरुष जैसे लक्षण)
(ब) विनिवर्तन संलक्षण
(स) सुदम अर्बुद
(द) संस्पर्श सदमन
उत्तर:
(अ) मैस्कुलिनाइजेसन (यानी पुरुष जैसे लक्षण)

28. अमापन एलीसा किस रोग से सम्बन्धित है-
(अ) चेचक
(ब) कैंसर
(स) टायफाइड
(द) एडस
उत्तर:
(द) एडस

29. कौनसा अर्बुद सामान्यतया अपने मूल स्थान तक सीमित रहता है-
(अ) सुदम अर्बुद
(ब) दुर्दम अर्बुद
(स) अदुर्दम अर्बुद
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सुदम अर्बुद

30. निम्न में से प्राथमिक लसिकाय अंग है-
(अ) आमाशय
(ब) यकृत
(स) अस्थिमज्ञा
(द) फुफ्फुस
उत्तर:
(स) अस्थिमज्ञा

31. प्लाजमोडियम की कौनसी जाति मनुष्य के लिए मृत्युजनक है-
(अ) प्लाजमोडियम फैल्सीपेरम
(ब) प्लाजमोडियम मैलेरी
(स) प्लाजमोडियम ऑवेल
(द) प्लाजमोडियम वाइवेक्स
उत्तर:
(अ) प्लाजमोडियम फैल्सीपेरम

32. मैरी मैलान पेशे से क्या थी?
(अ) मोची
(ब) धोबी
(स) रसोईया
(द) स्वीपर
उत्तर:
(स) रसोईया

33. मलेरिया का वाहक है-
(अ) मादा एनोफिलीज
(ब) नर क्यूलेक्स
(स) मादा क्यूलेक्स
(द) नर एनोफिलीज
उत्तर:
(अ) मादा एनोफिलीज

34. प्राकृतिक कैनिबिनाइड कैनेबिस सैटाइवा पौधे के किस भाग से प्रास किया जाता है-
(अ) जड़
(ब) पुष्प क्रम
(स) पुष्पाषन
(द) तना
उत्तर:
(ब) पुष्प क्रम

35. हमारे शरीर में एण्टीबॉडीज (प्रतिपिंड) किसके सम्मिश्र होते हैं?
(अ) लाइपोप्रोटीन्स
(ब) स्टेरायड्स
(स) प्रोस्टेग्लेंडिन्स
(द) ग्लोइकोप्रोटीन्स
उत्तर:
(ब) स्टेरायड्स

36. निम्नलिखित में से कौन मनुष्य के शरीर में सूक्ष्मजीवी के प्रवेश के विरुद्ध कार्यिकीय अवरोध (Physiological barrier) का कार्य करता है?
(अ) आँसू
(ब) मोनोसाइट्स
(स) त्वचा
(द) मूत्र जनन मार्ग की उपकला
उत्तर:
(अ) आँसू

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
फाइलेरिएसिस से पीड़ित व्यक्ति के पैरों में सूजन किसके द्वारा होती है ?
उत्तर:
पैरों की लिम्फेटिक नलिकाओं में फाइलेरिया कृमि, वुचेरिया बैक्राफ्टी के द्वारा फाइलेरिया रोग होता है ।

प्रश्न 2.
मैरी मैलॉन का उपनाम क्या है?
उत्तर:
मैरी मैलॉन का उपनाम टाइफाइड मैरी है।

प्रश्न 3.
मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् (HIV) जिन दो कोशिकाओं में गुणित होता है, उनके नाम लिखिए ।
उत्तर:
मैक्रोफेजेज तथा सहायक T – लिम्फोसाइट्स ।

प्रश्न 4.
न्यूमोनिया रोग में शरीर के कौनसे अंग संक्रमित होते हैं ?
उत्तर:
न्यूमोनिया रोग में फुफ्फुस (Lungs) के वायुकोष्ठ (Alveoli) संक्रमित होते हैं।

प्रश्न 5
तीव्र ज्वर, भूख की कमी, पेट में दर्द तथा कब्ज से पीड़ित लक्षणों के आधार पर चिकित्सक किस प्रकार पुष्टि करेगा कि व्यक्ति को टायफायड है, अमीबिएसिस नहीं ।
उत्तर:
टायफाइड रोग की पुष्टि विडाल परीक्षण के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 6.
कुछ ऐलर्जनों (प्रत्यूर्जकों) से छींकों का आना तथा हाँफना शुरू हो जाता है। शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया न होना किससे होता है ?
उत्तर:
शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया ऐलर्जनों के प्रति एलर्जी (Allergy) के कारण होती है।

प्रश्न 7
संक्रामक रोग किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से संचारित होते हैं संक्रामक रोग कहलाते हैं।

प्रश्न 8.
एल. एस. डी. का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर:
लाइसार्जिक अम्ल डाइएथिल एमाइड्स।

प्रश्न 9.
कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु अर्बुदीय विषाणु ( आंकोजेनिक वाइरस) कहलाते हैं।

प्रश्न 10.
विशिष्ट इम्यूनिटी को प्राप्त करने के लिए आवश्यक दो मुख्य कोशिकाओं के समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • T – लिम्फोसाइट्स
  • B लिम्फोसाइट्स |

प्रश्न 11.
हेरोइन क्या है? इसका शरीर पर पड़ने वाले एक प्रभाव को बताइए ।
उत्तर:
हेरोइन एक तीव्र स्वापक (narocotic) नशा है। इससे शरीर में आलस्य व उदासीनता आती है ।

प्रश्न 12.
लसीकाभ अंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे अंग जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति, परिपक्वन एवं प्रचुरोद्भवन होता है लसीकाभ अंग कहते हैं ।

प्रश्न 13.
अस्थिमज्जा और थामइस टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन एवं परिपक्वन के लिए क्या मुहैया कराते हैं?
उत्तर:
अस्थिमज्जा और थाइमस टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन एवं परिपक्वन के लिए सूक्ष्म-पर्यावरण मुहैया कराते हैं।

प्रश्न 14.
कोकिन किस पादप से प्राप्त की जाती है एवं यह पौधा मूल रूप से किस देश का है?
उत्तर:
कोकिन एरिप्रोजाइलम कोका से प्राप्त की जाती है। यह पौधा मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का है।

प्रश्न 15.
एक चिकित्सक के द्वारा यह पुष्टि की गयी कि किसी व्यक्ति के शरीर का प्रतिरोधी तंत्र (Immune System) अवरोधित हो गया है। व्यक्ति को कौनसा रोग है तथा इसका कारक क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति को एड्स रोग है। इसका कारक HIV (Human Immuno Deficiency Virus) है।

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प्रश्न 16.
वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में चिकनगुनिया रोग की पुष्टि हुई है। इस रोग के लिए उत्तरदायी (बैक्टर) वाहक का नाम लिखिए।
उत्तर:
चिकनगुनिया रोग के लिए उत्तरदायी (बैक्टर) वाहक का नाम एडीज मच्छर है।

प्रश्न 17.
बचपन और प्रौढ़ता को जोड़ने वाले पुल का नाम लिखिए।
उत्तर:
बचपन और प्रौढ़ता को जोड़ने वाले पुल का नाम किशोरावस्था है।

प्रश्न 18.
प्रतिरक्षा कितने प्रकार की होती है ? नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है, जिन्हें क्रमशः सहज प्रतिरक्षा एवं उपार्जित प्रतिरक्षा कहते हैं।

प्रश्न 19.
वयस्क कृमि (वूचेरिया) कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
वयस्क कृमि लिम्फ ग्रंथियां व लिम्फ मार्ग में पाया जाता है।

प्रश्न 20.
अर्बुद कितने प्रकार के होते हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
अर्बुद दो प्रकार के होते हैं-

  • सुदम (बिनाइन)
  • दुर्दम (मैलिग्नेंट)।

प्रश्न 21.
विषाणुओं का कौनसा समूह है जो मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम (Common Cold) फैलाता है ?
उत्तर:
नासा विषाणुओं का समूह (Rhinoviruses – राइनोवाइरस) जो मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम फैलाता है।

प्रश्न 22.
रिंगवर्म ( दाद) के लिए कौनसा कवक उत्तरदायी है? केवल एक नाम लिखिए।
उत्तर:
रिंगवर्म (दाद) के लिए माइक्रोस्पोरम नामक कवक उत्तरदायी है।

प्रश्न 23.
मलेरिया परजीवी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए कितने परपोषियों की आवश्यकता पड़ती है? नाम लिखिए।
उत्तर:
मलेरिया परजीवी को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता पड़ती है-

  • मनुष्य
  • मच्छर (मादा एनोफिलीज) ।

प्रश्न 24.
चोट लगने के स्थान पर लाल रंग हो जाता है, इसका कारण बताइये ।
उत्तर:
चोट लगने के स्थान पर लाल रंग सक्रिय प्रतिरक्षा के कारण होता है।

प्रश्न 25.
भांग पीने वाला व्यक्ति हँसता है तो हँसता रहता है और रोता है तो रोता जाता है, क्यों?
उत्तर:
भांग सोचने व समझने की क्षमता को समाप्त कर मस्तिष्क को अनियंत्रित कर देती है जिसके कारण व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार करता है।

प्रश्न 26.
एड्स रोग से शरीर को कौनसी प्रमुख हानि होती है?
उत्तर:
एड्स रोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है।

प्रश्न 27.
गुटका सेवन करने वाले व्यक्ति के जबड़े की मांसपेशियाँ कठोर हो जाने के कारण उसका जबड़ा ठीक से नहीं खुलता है। संभावित रोग का नाम बताइये।
उत्तर:
सबम्यूकस फाइब्रोसिस रोग होता है।

प्रश्न 28.
डी पी टी टीके का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया पर्टुसिस टिटेनस ।

प्रश्न 29.
कैंसर में दी जाने वाली दवाओं व उपचार के अनुषंगी प्रभाव (Side effect) बताइये ।
उत्तर:
बालों का झड़ना एवं एनिमिया ।

प्रश्न 30.
NAC का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ।

प्रश्न 31
मरीजुआना किस पौधे का सत्व (Extract) है? नाम बताइये ।
उत्तर:
भांग ( केनाविस सेटाइवा ) ।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 32.
अफीम, मार्फीन, हेरोइन, पेथीडीन तथा मेथेडोन को सामूहिक रूप से क्या कहते हैं?
उत्तर:
ओपिमेट नारकोटिक्स ।

प्रश्न 33.
दो तकनीकी विधियों के नाम लिखिए जिनके द्वारा जीवाणु या विषाणु संक्रमित रोग के लक्षण शरीर पर प्रकट होने से पहले चिन्हित कर लिये जाते हैं।
उत्तर:

  1. रिकॉम्बिनेन्ट डी एन ए तकनीकी
  2. एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बन्ट एसे ( ELISA ) ।

प्रश्न 34.
मनुष्य में मैलिग्नेंट मलेरिया उत्पन्न करने वाले पैथोजन का वैज्ञानिक नाम लिखिए ।
उत्तर:
मनुष्य में मैलिग्नेंट मलेरिया उत्पन्न करने वाले पैथोजन का वैज्ञानिक नाम प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम |

प्रश्न 35.
AIDS के दो लक्षण बताइए ।
उत्तर:

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना।

प्रश्न 36.
निकोटिन के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
निकोटिन के निम्न प्रभाव हैं –

  1. रुधिर वाहिकाओं के संकीर्णन को बढ़ाता है।
  2. धड़कन, रक्तदाब की दर को बढ़ाता है।
  3. पेशियों को विश्रान्त करता है।

प्रश्न 37.
दो लैंगिक संचारित रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • एड्स
  • सिफिलिस ।

प्रश्न 38.
मेटास्टेसिस से क्या समझते हैं?
उत्तर:
अर्बुद की विभाजनशील कोशिकाएँ शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती है तथा वहां अर्बुद उत्पन्न करती है। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेसिस कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य को किस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है? स्वास्थ्य किन बातों से प्रभावित होता है? लिखिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ है मात्र रोग की अनुपस्थिति अथवा शारीरिक स्वस्थता नहीं है। इसे पूर्णरूपेण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

स्वास्थ्य निम्न बातों से प्रभावित होता है –

  1. आनुवंशिक विकार ( Genetic Disorders) – वे अपूर्णताएं जिनको लेकर बच्चा जन्मता है और वे अपूर्णताएँ जो बच्चे को जन्म से ही माता-पिता से वंशागत रूप से मिलती हैं ।
  2. संक्रमण और
  3. हमारी जीवन शैली जिसमें जो खाना हम खाते हैं और जो पानी हम पीते हैं, जो विश्राम हम शरीर को देते हैं और जो व्यायाम हम करते हैं, जो स्वभाव हमारे भीतर है और जिनकी हम में कमी है आदि शामिल हैं।

प्रश्न 2.
निम्न को परिभाषित कीजिए-
(i) प्रतिरक्षा
(ii) एन्टीजन
(iii) एन्टीबॉडी
(iv) टॉक्साइड
(v) प्रतिरक्षा तंत्र |
उत्तर:
(i) प्रतिरक्षा (Immunity ) – शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरक्षा कहलाती है।

(ii) एन्टीजन (Antigen ) – शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं एवं विषैले पदार्थों को प्रतिजन (Antigen) कहते हैं। इनको सीधे अथवा विशेष प्रतिरक्षी पदार्थों, एन्टीबॉडीज के द्वारा नष्ट किया जाता है। एन्टीजन, एन्टीबॉडीज के उत्पादन को उद्दीप्त प्रेरित करने वाले रसायन एन्टीजन कहलाते हैं।

(iii) एन्टीबॉडी (Antibody) – शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इस एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ एन्टीबॉडी (Antibody) कहलाते हैं।

(iv) टॉक्साइड (Toxoid) – यह एक बैक्टीरियल बाह्य विष होता है जो एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा अविष (Detoxication) में परिवर्तित किया जाता है तथा जो इम्यूनाइजेशन में रोगों के विरुद्ध सावधानीपूर्वक कार्य करते हैं।

(v) प्रतिरक्षा तंत्र ( Immune system) – शरीर का वह तंत्र जो शरीर को बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है, प्रतिरक्षा तंत्र कहलाता है ।

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प्रश्न 3.
इन्टरफेरॉन्स तथा प्रतिरक्षी में कोई चार अंतर लिखिए।
उत्तर:
इन्टरफेरॉन्स तथा प्रतिरक्षी में अन्तर (Difference between Interferons and Antibodies)

इन्टरफेरॉन्स (Interferons)प्रतिरक्षी (Antibodies)
1. ये तीव्र प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।जबकि ये धीमी क्रिया वाले होते हैं।
2. ये अस्थाई सुरक्षा प्रदान करते हैं।ये दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करते हैं।
3. ये शरीर का द्वितीय रक्षा स्तर बनाते हैं।ये शरीर का तीसरा स्तर बनाते हैं।
4. इन्टरफेरान्स कोशिकाओं के अंदर क्रिया करते हैं।जबकि प्रतिरक्षी कोशिका के बाहर क्रिया करते हैं।
5. ये सूक्ष्म जीव से संक्रमित किसी भी कोशिका से स्रावित होते हैं।जबकि ये केवल प्लाज्मा (Plasma) की B-कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं।
6. संक्रमित कोशिका से समीपवर्ती स्वस्थ कोशिका में प्रवेश कर उन्हें संक्रमणरोधी बनाते हैं।प्रतिजन (Antigen) से लड़ने के लिए रक्त (Blood) लसीका (Lymph) में भ्रमण करते हैं।

प्रश्न 4.
मानव में सबसे ज्यादा कौनसा संक्रामक रोग फैलता है ? इस रोग का संक्रमण एवं लक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव में सबसे ज्यादा संक्रामक रोग सामान्य जुकाम (Common Cold) फैलता है। इस रोग का रोगकारक राइनोवायरस (Rhinoviruses) है। संक्रमण-ये नाक और श्वसन पथ को संक्रमित करते हैं। संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींकों से निकले बिंदुक (Droplets) जब स्वस्थ व्यक्ति द्वारा श्वास लेने पर अंदर जाते हैं अथवा पेन, किताबों, प्यालों, दरवाजे के हत्थे, कम्प्यूटरों के की-बोर्ड (Key Board) या माउस आदि जैसी संदूषित हुई वस्तुओं के संपर्क में आता है, तो उसे भी संक्रमण हो जाता है। रोग के लक्षण – नासीय संकुलता (Nasal congestion) और आस्राव (Discharge), कंठदाह ( Sore throat), स्वरुक्षता अर्थात् फटी आवाज, खाँसी (Cough), सिर दर्द, थकावट आदि । ये लक्षण प्रायः 3-7 दिन तक रहते हैं।

प्रश्न 5.
कैंसर किसे कहते हैं? अर्बुद के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कैंसर (Cancer) – कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
अर्बुद (Tumour) दो प्रकार के होते हैं –
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour) – ये हानिकारक नहीं होते हैं एवं स्थानीय होते हैं अर्थात् शरीर के दूसरे भागों या आस-पास की कोशिकाओं में नहीं फैलते हैं। इस कारण इसे नॉन मेटास्टेसिस (Non Metasis) कहते हैं। स्थान विशेष पर अर्बुद बनती है जो आकार में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इसे शल्य क्रिया द्वारा शरीर से अलग करने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।

(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour) – इसमें विभाजनशील कोशिकाएँ शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती हैं तथा वहाँ अर्बुद उत्पन्न करती हैं। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेटिस (Metasis) कहते हैं। ऐसे अर्बुद खतरनाक होते हैं जिसके कारण मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 6.
ऐल्कोहॉल क्या है? इसके सेवन से होने वाले प्रभाव लिखिये ।
उत्तर:
ऐल्कोहॉल (Alcohol) – यह मदिरा का मुख्य संघटक है. जो कि प्रतिरोधी एवं विलायक के रूप में उपयोगी है।
ऐल्कोहॉल के प्रभाव –

  1. इसके सेवन से विकृत सोच, उत्तेजनशीलता, उच्चारण अस्पष्टता एवं निद्राजनक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
  2. ऐल्कोहॉल के सेवन से सेरीबेलम भाग प्रभावित होता है। इससे पेशीय समन्वय नहीं हो पाता है। इससे व्यक्ति लड़खड़ाने लगता है।
  3. याददाशत में कमी आ जाती है।
  4. ऐल्कोहॉल के सेवन से आमाशय की भित्ति में सूजन आ जाती है।
  5. रुधिर में ऐल्कोहॉल की अत्यधिक मात्रा यकृत में वसा के संश्लेषण को बढ़ा देती है और यह वसा, यकृत कोशिकाओं तथा पित्त नली में जमा होने लगती है। इसे फेटी लिवर सिन्ड्रोम कहते हैं। फेटी लिवर तथा लिवर सिरोसिस हो जाता है।

प्रश्न 7.
निम्न रोगों के रोगकारक, संक्रमण एवं लक्षणों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
(i) अमीबा
(ii) हैजा
(iii) मलेरिया ।
उत्तर:

रोग का नामकारकसंक्रमणलक्षण
1. अमीबता (Amoebiasis)एन्ट अमीबा (हिस्टोलिटिका)दूषित जल और भोजन द्वारा, बिना धुली सक्जियों द्वारा एवं मक्खियों द्वाराउद्रीय दर्द, प्रतिदिन 5 से 6 रक्त युक्त एवं रक्त श्लेष्मल युक्त मल का आना।
2. हैजा (Cholera)जीवाणु (बिब्रियो कोलेरी)दूषित भोजन व जल रोगी के मल में उपस्थित रोगाणुओं सेपतले दस्त, पेशी ऐंठन एवं वमन निर्जलीकरण।
3. मलेरिया (Malaria)मलेरिया परजीवी (प्लाजमोडियम)मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने परएक-दो दिन छोड़-छोड़कर तेज बुखार का आना, शरीर में ठण्ड लगकर कंपकंपी आना, सिर-दर्द प्लीहा एवं यकृत का बढ़ना।

प्रश्न 8.
प्रतिजन व प्रतिरक्षी में विभेद कीजिए ।
उत्तर:
प्रतिजन व प्रतिपक्षी में विभेद (Difference between Antigen and Antibody)

प्रतिजन (Antigen)प्रतिरक्षी (Antibody)
1. शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं एवं विषैले पदार्थों को प्रतिजन (Antigen) कहते हैं।शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B – लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ प्रतिरक्षी (Antibody) कहलाते हैं।
2. ये रोग उत्पन्न करते हैं।ये रोग उत्पन्न नहीं करते बल्कि रोगाणुओं को नष्ट करते हैं।
3. ये मेक्रोफेजेज से संयुक्त होकर T- सहायक कोशिका को सक्रिय कर प्रतिरक्षा उत्पन्न करते हैं।ये सीधे ही प्रतिजन पर आक्रमण कर समिश्र बनाते हैं और प्रतिजन को नष्ट कर देते हैं।
4. एन्टीजन बाहर से प्रवेश करते हैं।जबकि प्रतिरक्षी शरीर के अंदर बनते हैं।
5. ये सूक्ष्म जीवों के शरीर की सतह पर या स्वतंत्र अवस्था में पाये जाते हैं।ये रक्त प्लाज्मा कोशिका की सतह पर या शरीर के ऊतक द्रव्य में पाये जाते हैं।
6. ये विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे-जीवाणु, विषाणु प्रोटोजोअल, परागकण, दवाइयां, विष आदि।जबकि ये पाँच प्रकार के होते हैं-
IgM, IgG, IgA, IgE, IgD.

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प्रश्न 9.
तंबाकू का प्रयोग किस रूप में किया जाता है? इससे होने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
धूम्रपान से तीव्र ड्रगों के सेवन का रास्ता खुल जाता है। इससे क्या तात्पर्य है? समझाइए ।
उत्तर:
तंबाकू का प्रयोग मनुष्य चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से करता आ रहा है। तंबाकू (धूमपान ) पीया जाता है, चबाया जाता है या सूंघा जाता है। तंबाकू में बहुत से रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनमें एक एल्केलाइड भी शामिल है, जिसे निकोटिन (Nicotine) कहते हैं। निकोटीन अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) को उद्दीपित करता है जिसके फलस्वरूप अधिवृक्क ग्रंथि से एड्रिनलीन (Adrenaline) और नॉर एड्रिनलीन (Nor Adrenaline) का स्रावण रक्त परिसंचरण (Blood circulation) किया जाता है।

ये दोनों हार्मोन रक्तचाप (Blood pressure) एवं हृदय के स्पंदन ( Heart beat ) की दर को बढ़ाते हैं। धूम्रपान फुफ्फुस, मूत्राशय और गले के कैंसर, श्वसनी शोध (Bronchitis), वातस्फीति (Emphysema), हृदय रोग, जठर व्रण (Gastric Ulcer) से संबद्ध है। धूम्रपान से रक्त में कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और हीमआबद्ध ( Heambound ) ऑक्सीजन की सांद्रता घट जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।

प्रश्न 10.
B- कोशिकाओं तथा T – कोशिकाओं में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
B- कोशिकाओं तथा T- कोशिकाओं में अंतर (Difference between B-cells and T-cells)

B-कोशिकाएँ (B-cells)T-कोशिकाएँ (T-cells)
1. इन कोशिकाओं का निर्माण प्लाज्मा कोशिकाओं के विभाजन के फलस्वरूप होता है।जबकि इनका लिम्फोलाइट, मारक, सहायक तथा निरोधक कोशिकाओं के विभाजन से होता है।
2. प्लाज्मा कोशिकाओं में प्रतिरक्षा दमन की क्षमता नहीं होती है।निरोधक कोशिकाओं में दमन की क्षमता होती है।
3. प्लाज्मा कोशिकाएँ संक्रमण स्थल पर नहीं जाती हैं।जबकि लिम्फोब्लास्ट संक्रमण स्थल पर पहुँच जाती है।
4. ये कोशिकाएँ तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती हैं।जबकि ये कोशिकाएं माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती हैं।
5. ये कोशिकाएँ प्रमुख रूप से पेयर्ज पेचेज, फीटल यकृत एवं टॉन्सिल में ही सीमित रहती हैं।ये थाइमस ग्रंथि में विभेदित होती हैं।
6. प्लाज्मा कोशिकाएँ केंसर (Cancer) कोशिकाओं से नहीं लड़तीं।जबकि मारक कोशिकाएँ केंसर कोशिकाओं से लड़ती हैं।
7. प्लाज्मा कोशिकाएँ प्रतिरक्षी (Antibody) का स्रावण करती हैं जो रुधिर व लसीका द्वारा संक्रमण स्थल पर पहुँचकर एंटीजन से लड़ती हैं।मारक कोशिका संक्रमण स्थल पर पहुँचकर सूक्ष्म जीवों की कोशिका को भेदकर उन्हें नष्ट करती हैं।

प्रश्न 11.
सामुदायिक स्वास्थ्य किसे कहते हैं? सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किए जाने वाले किन्हीं सात महत्वपूर्ण कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
सामुदायिक स्वास्थ्य सरकार अथवा स्थानीय संगठनों द्वारा लोगों का स्वास्थ्य बनाए रखने की गतिविधियाँ, सामुदायिक स्वास्थ्य कहलाती हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किए जाने वाले सात महत्त्वपूर्ण कार्य निम्न हैं –

  1. स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना ।
  2. खाद्य पदार्थों का मानक बनाए रखना, खाद्य भंडारों, मांस व दुग्ध केन्द्रों का नियमित निरीक्षण करना ।
  3. स्वच्छ व रोगाणुरहित पेयजल उपलब्ध कराना ।
  4. बस्तियों के कचरे का निकास व उचित स्वच्छता का प्रबंधन ।
  5. हानिकारक कीटों के विनाश के लिए कीट रसायनों का छिड़काव करना ।
  6. किसी बीमारी के फैलने का खतरा उत्पन्न होने पर विभिन्न प्रतिरक्षाकरण कार्यक्रमों तथा कई अन्य स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों को चलाना ।
  7. मच्छरों का प्रजनन रोकने के लिए खुली नालियों का ढकाव व रुके हुए पानी की सतह पर कैरोसिन तेल का डालना ।

प्रश्न 12.
टाइफॉइड ज्वर के रोगजनक का नाम बताइए। इस रोग का संचरण एवं लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टाइफॉइड ज्वर ( Typhoid fever) का रोगजनक साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) नामक जीवाणु है। रोग का संचरण यह रोगजनक आमतौर से संदूषित ( Contaminated) भोजन और पानी द्वारा छोटी आंत में प्रवेश कर जाता है और वहाँ से रुधिर द्वारा शरीर के अंगों में पहुँच जाता है। आयुर्विज्ञान में एक चिरप्रतिष्ठित मामला मैरी मैलान (उपनाम टाइफाइड मैरी) का है। वह पेशे से रसोइया थी जो खाना वह बनाती थी, उसके द्वारा वर्षों तक टाइफॉइड वाहक ( Typhoid Carrier) के रूप में टाइफॉइड फैलाती रही।

रोग के लक्षण –

  1. रोगी को लगातार उच्च ज्वर (39° से 40° सेंटी.) आना
  2. कमजोरी आना
  3. आमाशय में पीड़ा
  4. कब्ज
  5. सिर दर्द
  6. भूख न लगना ।
    गंभीर मामलों में आंत्र में छेद और मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 13.
वेस्टर्न ब्लाट परीक्षण से किस रोग का निदान किया जाता है? इस रोग के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम व चार लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वेस्टर्न ब्लाट परीक्षण से एड्स रोग का निदान किया जाता है। इस रोग के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम ह्यूमन इम्यूनो- डेफीशियन्सी वायरस (HIV) है।
इस रोग के चार लक्षण निम्न हैं-

  1. रोगी को लगातार बुखार आना।
  2. लंबे समय तक लगातार खाँसी होना।
  3. शरीर का भार कम होना।
  4. लसीका गाँठों में सूजन आना ।

प्रश्न 14.
सहज प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? इसमें पाये जाने वाले रोधों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सहज प्रतिरक्षा (इनेट इम्यूनिटी) एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है जो जन्म के समय मौजूद होती है। यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं।

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जैसे –
(1) कार्यिकीय रोध (फीजियोलॉजिकल बैरियर) – आमाशय अम्ल, मुँह में लार, आँखों में आँसू, ये सभी रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं।

(2) शारीरिक रोध (फिजिकल बैरियर) – हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है। श्वसन, जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) और जननमूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा आलेप (म्यूकस कोटिंग) भी शरीर में घुसने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है।

(3) कोशिकीय रोध (सेल्युलर बैरियर) – हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केंद्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पी.एम.एन.एल., न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेंद्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊतकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।

(4) साइटोकाइन रोध-विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ इंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्रावण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु संक्रमण से बचाती हैं। लिखिए ।

प्रश्न 15.
एलर्जन से आप क्या समझते हैं? इसके दो उदाहरण ( माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2007)
उत्तर:
एलर्जन-जिन पदार्थों के प्रति एलर्जी होती है, उनको एलर्जन कहते हैं। जैसे- कार्बन कण, पराग कण, धूल कण आदि ।
कभी-कभी एलर्जन पदार्थ अत्यन्त तीव्र, उग्र व घातक प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। ऐसे एलर्जन को तीव्रग्राहिता कहते हैं। उदाहरण- पेनिसिलीन, इन्सुलिन तथा कुछ भोज्य पदार्थ, जैसे-मछली, अण्डे आदि ।

प्रश्न 16.
प्लाज्मोडियम की विभिन्न जातियों के नाम लिखिए। इनमें सबसे घातक जाति कौनसी है और क्यों?
उत्तर:
प्लाज्मोडियम (Plasmodium) की निम्न जातियाँ हैं-
(1) प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (Plasmodium vivax)
(2) प्लाज्मोडियम मेलिरिआई (Plasmodium malariae)
(3) प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) मलेरिया परजीवी अथवा प्लाज्मोडियम की सबसे घातक जाति प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) है। इसके द्वारा उत्पन्न मलेरिया ज्वर प्रत्येक 36 और 46 घंटे बाद आता है। इस प्रकार के मलेरिया से मनुष्य की मृत्यु दर अधिक होती है। इसलिए यह सबसे घातक मलेरिया है। इस मलेरिया से संक्रमित RBC रुधिर कोशिकाओं को अवरुद्ध कर देती है जिससे रक्त प्रवाह रुक जाता है। और रोगी की मृत्यु हो जाती है ।

प्रश्न 17.
प्लाज्मोडियम को परपोषी की आवश्यकता क्यों होती है? उत्तर – प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने हेतु परपोषी की आवश्यकता होती है। प्लाज्मोडियम के दो परपोषी (Host) हैं-

  1. मनुष्य
  2. मादा एनोफिलीज ।

मनुष्य प्राथमिक ( Primary ) एवं मादा एनोफिलीज द्वितीयक परपोषी (Secondary Host) है। यदि दोनों में से एक भी परपोषी नहीं मिलता है तो इसका जीवन समाप्त हो जायेगा । प्लाज्मोडियम एक अन्त: परजीवी (Endoparasite) है जो भोजन के लिए इन परपोषियों पर निर्भर है।

प्रश्न 18.
अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए क्या आवश्यक है? अच्छे स्वास्थ्य के कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए निम्न आवश्यक हैं-

  1. संतुलित आहार
  2. व्यक्तिगत स्वच्छता
  3. नियमित व्यायाम
  4. संक्रामक रोगों के प्रति टीकाकरण
  5. अपशिष्टों का समुचित निपटान
  6. नियमित रूप से योग का अभ्यास
  7. रोग एवं शरीर के विभिन्न प्रकार्यों पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता
  8. रोगवाहकों का नियंत्रण
  9. खाने-पीने के संसाधनों का स्वच्छ रख-रखाव अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक ।

अच्छे स्वास्थ्य के लाभ-

  1. व्यक्ति स्वस्थ होते हैं तो वे काम में अधिक सक्षम होते हैं।
  2. इससे उत्पादकता बढ़ती है।
  3. आर्थिक संपन्नता आती है।
  4. आयुकाल बढ़ता है।
  5. शिशु तथा मातृ मृत्युदर में कमी होती है।

प्रश्न 19.
आदर्श टीके की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आदर्श टीके की विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. टीका प्रयोग करने में नितांत सुरक्षित होना चाहिए।
  2. आदर्श रूप में एक बार लगाने पर ही प्रभावी होना चाहिए।
  3. टीका प्रतिरक्षित प्राणी में जीवनपर्यन्त प्रतिरोधकता क्षमता प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
  4. टीका सुगमतापूर्वक उपलब्ध हो व उत्पादन लागत अधिक न हो ।

प्रश्न 20.
कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा व तरल माध्यित प्रतिरक्षा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा व तरल माध्यित प्रतिरक्षा में अंतर (Difference between Cell Mediate Immunity \& Humoral Mediate Immunity)

कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा (Cell Mediate Immunity)तरल माध्यित प्रतिरक्षा (Humoral Mediate Immunity)
1. टी-कोशिकायें माध्यित प्रतिरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं।तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा के लिए B – लिम्फोसाइट कोशिकायें जिम्मेदार हैं।
2. ये कोशिकायें ऐसे पदार्थों का स्रावण करती हैं, जो कि लक्ष्य कोशिकाओं की कोशिका कला को घोल कर इसमें छिद्र उत्पन्न कर नष्ट कर देते हैं।प्रविष्ट होने वाले विभिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न B -लिम्फोसाइट्स होती हैं जो नष्ट करने का कार्य करती हैं।
3. सक्रिय लसिका कोशिकाओं से लिम्फोकाइन्स नियमनकारी प्रोटीन्स मुक्त किये जाते हैं।किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमण जीव या विष को नष्ट करने के लिए विशिष्ट एन्टीबॉडी का निर्माण किया जाता है।
4. यह नियमनकारी प्रोटीन्स अथवा लिम्फोकाइन्स वृहत् भक्षकाणुओं की कोशिका भक्षण किया, इनकी संख्या एवं समूहन क्षमता में वृद्धि करती है। जिसके फलस्वरूप संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है।यह एन्टीबॉडी रुधि लसिका तथा ऊतक द्रव्य में संचरित होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों को नष्ट करती है।
5. तपेदिक, कैंसर, कोढ़ आदि रोगों से यह सुरक्षा करती है।यह टिटनेस, जुकाम, चेचक, खसरा, हैजा आदि रोगों से रक्षा करती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 21.

  • संलग्न दिये गये आरेख में क्या चीज दर्शायी गई है?
  • ‘a’ तथा ‘b’ नामांकित भागों के नाम लिखिए।
  • इस अणु को बनाने वाले कोशिका प्रारूप का नाम लिखिए ।

उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 1

  • एण्टीबॉडी (Antibody) अणु की संरचना ।
  • ‘a’ प्रतिजन बंधक स्थल (Antigen Binding site ) तथा b – भारी श्रृंखला का परिवर्ती क्षेत्र ।
  • यह B – लिम्फोलाइट (Lymphocyte) से बनता है।

प्रश्न 22.
(i) मलेरिया परजीवी के उस स्वरूप का नाम लिखिए जिसमें वह क्रमश:
(a) मानव शरीर में तथा
(b) मादा ऐनाफिलीज के शरीर में प्रवेश करता है।

(ii) उन परपोषियों का नाम लिखिए जिनके भीतर मलेरिया परजीवी का क्रमशः लैंगिक एवं अलैंगिक जनन होता है।

(iii) मानव में मलेरिया के रोग लक्षण प्रकट करने वाले उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम लिखिए। ये रोग लक्षण आवर्ती प्रकार के क्यों हुआ करते हैं?
उत्तर:
(i) (a) मानव शरीर में स्पोरोजोइट (Sporozoite)
(b) मादा ऐनाफिलीज के शरीर में गेमीटोसाइट (Gametocyte)

(ii) मनुष्य – अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) मादा एनोफिलीज – लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

(iii) मानव में मलेरिया के रोग लक्षण प्रकट करने वाले उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम हीमोज्वाइन (Haemozoin) है। इस रोग के लक्षण आवर्ती होते हैं। अर्थात् स्पोरोजोइट RBC पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देता है। इसे रुधिर कोशिका चक्र (Erythocytic cycle) कहते हैं। एक चक्र के पूरा होने में जितना समय लगता है उसके बाद उस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं।

प्रश्न 23.
सुद ट्यूमर तथा दुर्दम ट्यूमर में अंतर बताइए ।
उत्तर:
सुद ट्यूमर तथा दुर्दम ट्यूमर में अंतर

सुदम ट्यूमर (Benign Tumour)दुर्दम ट्यूमर (Malignant Tumour)
1. ये हानिकारक नहीं होते हैंये खतरनाक व हानिकारक होते हैं।
2. ये स्थानीय होते हैंभ्रमणशील होते हैं।
3. इन्हें नॉन मेटास्टेसिस कहते हैं।इन्हें मेटास्टेटिस कहते हैं।
4. इनसे कैंसर रोग नहीं होता हैइन ट्यूमर से कैंसर रोग होता है।
5. इनकी वृद्धि धीरे-धीरे होती है।इनकी वृद्धि तेजी से होती है।

प्रश्न 24.
एन्टीबॉडी किसे कहते हैं? एन्टीबॉडी (प्रतिरक्षी ) अणु की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एन्टीबॉडी (Antibody ) – शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इस एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ प्रतिरक्षी अथवा एन्टीबॉडी कहलाते हैं । एन्टीबॉडी की संरचना (Structure of Antibody) – यह जटिल ग्लाइको प्रोटीन से मिलकर बना अणु होता है।

जिसमें चार पोलीपेप्टाइड श्रृंखलायें दो भारी (440 अमीनो अम्ल) तथा दो हल्की श्रृंखला (220 अमीनो अम्ल) आपस में डी – सल्फाइड बंध द्वारा जुड़कर Y आकृति बनाती हैं, देखिए नीचे चित्र में एन्टीबॉडी को H2L2 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह अणु शीर्ष पर उपस्थित दो बिंदुओं पर एंटीजन (बड़ा और जटिल बाह्य अणु, मुख्य रूप से प्रोटीन जो विशिष्ट प्रतिरक्षा को सक्रिय करता है)

से ताला कुंजी (Lock & Key) के सिद्धांत के अनुसार. जुड़कर एंटीजन एंटीबॉडी कॉम्पलेक्स बनाता है। एंटीबॉडी का पुच्छीय भाग (Tail portion) भारी श्रृंखला से बना होता है, यह स्थिर खण्ड कहलाता है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी उत्पन्न किये जाते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं- IgA, IgM, IgE एवं IgG।
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प्रश्न 25.
निम्नलिखित औषधियाँ किन पादपों से प्राप्त की जाती हैं? केवल नाम लिखिए।
(i) एल एस डी
(ii) कैफीन
(iii) अफीम
(iv) कोकेन
(v) चरस ।
उत्तर:

औषधि का नामपौधे जिससे औषधि प्राप्त की जाती है
1. एल एस डीक्लैविसेप्स परप्यूरिया
2. कैफीनकोफिआ अंरैबिका
3. अफीमपापी के अपरिपक्व कैम्पसूल
4. कोकेनकोफिआ अरैबिका
5. चरसकैनाविनस सैटाइवा

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प्रश्न 26.
कैंसर को परिभाषित कीजिए। इसके प्रमुख कोई पाँच लक्षण लिखिए ।
उत्तर:
कैंसर की परिभाषा – कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
कैंसर के प्रमुख लक्षण-

  1. किसी ठोस कारण के बिना वजन में कमी होना ।
  2. कोई तिल या मस्सा जो बढ़ता जा रहा हो व उसमें खुजली या रक्तस्राव होता हो।
  3. लगातार पुनरावृत्त होने वाला तीव्र सिरदर्द ।
  4. कोई छाला, घाव या चकत्ता जो तीन सप्ताह में भी ठीक नहीं हो पा रहा हो।
  5. लगातार गले में खराश व बलगम में खून आना।
  6. स्तनों में गांठें व उनमें विरूपता ।
  7. मल-मूत्र विसर्जन के स्वभाव में परिवर्तन आना।
  8. योनि द्वारा रक्तस्राव व मासिक चक्र के बीच-बीच में रक्तस्राव होना ।
  9. वृषणों की आकृति एवं आकार में परिवर्तन होना ।

प्रश्न 27.
औषधि निर्भरता को समझाइये |
उत्तर:
औषधि निर्भरता (Drug Dependence ) – कुछ औषधियों के लंबे समय तक गैर-चिकित्सकीय प्रयोग के कारण व्यक्ति धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है कि उस औषधि के प्रयोग को बंद करने से उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएँ सामान्य रूप से संचालित नहीं हो पाती हैं तथा वह व्यक्ति उस विशेष औषधि का सेवन करने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति को औषधि निर्भरता कहते हैं । औषधि निर्भरता शारीरिक या मानसिक या दोनों प्रकार की हो सकती है, किंतु मानसिक औषधि निर्भरता अधिक चिंतनीय होती है व इसका समाधान मुश्किल होता है।

प्रश्न 28.
उपार्जित प्रतिरोधकता के विशिष्ट लक्षण लिखिये ।
उत्तर:
उपार्जित प्रतिरोधकता के विशिष्ट लक्षण निम्न हैं-
(1) प्रतिजनी विशिष्टता (Antigenic Specificity) – यह प्रत्येक रोगकारक जीवाणु, विषाणु तथा रोग के लिए विशिष्ट होती है। तथा अलग-अलग रोगकारक पर अलग-अलग प्रकार से प्रक्रिया कर उन्हें विशिष्ट रूप से नष्ट करती है।

(2) विविधता (Diversity) – इनमें अनेक प्रकार के रोगकारकों को पहचानने की आश्चर्यजनक विविधता पाई जाती है।

(3) प्रतिरक्षात्मक स्मृति ( Immunological Memory) – प्रतिरक्षित तंत्र द्वारा एक बार किसी प्रतिजन का अभिज्ञान होने व उसके प्रति प्रतिरक्षी अनुक्रिया दर्शाने के बाद जीव में उस विशिष्ट प्रतिजन के लिए स्मृति स्थापित हो जाती है। यदि इस विशिष्ट प्रतिजन का भविष्य में पुनः संक्रमण होता है तो प्रतिरक्षात्मक स्मृति के कारण प्रतिरक्षित तंत्र अनुक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया की तुलना में अधिक तीव्र होती है।

(4) दीर्घकालिकता (Longevity) – किसी विशेष रोग की विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ उत्पादित होने के बाद व्यक्ति विशेष को उस खास रोग से दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करती हैं। क्योंकि ये प्रतिरक्षियाँ लंबी अवधि तक शरीर में बनी रहती हैं।

(5) अपने एवं पराये (Self & Non-self)- यह सिद्धांत फ्रेंक मैक़फारलेन बर्नेट ने प्रतिपादित किया। उपार्जित असंक्राम्यता प्रणाली विजातीय या पराये अणुओं की पहचान कर उनके विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दर्शाने में समर्थ होती है। दूसरी तरफ स्वयं के शरीर में उपस्थित अणुओं के प्रति अनुक्रिया नहीं प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 29.
सक्रिय एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा को समझाइए।
उत्तर:
जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करना है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा ( एक्टिव इम्यूनिटी) कहलाती है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। प्रतिरक्षीकरण (इम्यूनाइजेशन) के दौरान जानबूझकर रोगाणुओं का टीका देना अथवा प्राकृतिक संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेषित करता है।

जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्यूनिटी) कहलाती है। दुग्धस्रावण ( लैक्टेशन) के प्रारंभिक दिनों के दौरान माँ द्वारा स्रावित पीले से तरल पीयूष (कोलोस्ट्रम) में प्रतिरक्षियों (IgA) की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।

प्रश्न 30.
T सहायक कोशिकाओं व T-मारक कोशिकाओं. में अंतर समझाइए |
उत्तर:
T- सहायक कोशिकाओं व T-मारक कोशिकाओं में अंतर

T-सहायक कोशिकाएंT-मारक कोशिकाएं
1. ये कोशिकाएं इन्टरल्यूकिन्स पदार्थ का स्रावण कर टी-मारक कोशिकाओं तथा सुग्राहित टी-कोशिकाओं की क्रियाशीलता बनाती है।जबकि ये कोशिकाएं सूक्ष्म जीवों के संपर्क में आने के बाद एक साइटोटाक्सिक पदार्थ का स्रावण सीधे ही सूक्ष्म जीव के शरीर से कर इसे नष्ट करती हैं।
2. ये वृहत् भक्षकाणुओं को कोशिकाभक्षी क्रिया हेतु उद्दीपित करती हैं। एड्स विषाणु इन कोशिकाओं को ही निष्क्रिय या नष्ट करके प्रतिरक्षा प्रणाली को पंगु बना देते हैं।ये मारक कोशिकाएं विषाणुओं से संक्रमित ऊतक कोशिकाओं का भी भक्षण करती हैं।

प्रश्न 31.
स्वाभाविक प्रतिरक्षा के अंतर्गत किस प्रकार से सुरक्षात्मक प्रक्रियाओं के द्वारा स्वतः वातावरणीय कीटाणुओं से सुरक्षा की जाती है?
अथवा
स्वाभाविक प्रतिरक्षा में बाह्य रोगकारी कारकों के प्रवेश को किस प्रकार रोकते हैं? समझाइये।
उत्तर:
इससे निम्नलिखित सुरक्षात्मक प्रक्रिया द्वारा स्वतः वातावरणीय कीटाणुओं से सुरक्षा होती रहती है-

  1. त्वचा सतत रूप से विभिन्न कीटाणुओं के प्रवेश को रोकती है ।
  2. रक्त में WBC व एन्टीबॉडीज विभिन्न विषैले पदार्थों को नष्ट करते रहते हैं।
  3. ऊतकों में मैक्रोफेज कोशिकायें जीवाणुओं का भक्षण करती रहती हैं।
  4. जठर रस का HCL तथा इसके पाचक रस कीटाणुओं को नष्ट करते रहते हैं।

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प्रश्न 32.
मनुष्य के शरीर पर मलेरिया से होने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य के शरीर पर मलेरिया का प्रभाव –

  1. इरिथ्रोसाइटिक चक्रों के परिणामस्वरूप RBC की संख्या घट जाती है। इससे रक्तक्षीणता (anaemia) की उत्पत्ति होती है।
  2. प्रीइरिथ्रोसाइटिक व एक्सोइरिथ्रोसाइटोसिस के परिणामस्वरूप यकृत कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
  3. हीमोग्लोबिन के नष्ट होने से बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है व पीलिया (Jaundice) हो जाता है।
  4. प्लीहा का आकार बड़ा हो जाता है व इससे लाइसोलेसिथन का स्रावण होता है जिससे RBC नष्ट होती है। कभी- कभी प्लीहा फट जाता है।
  5. परजीवी द्वारा हीमोलाइसिन का स्रावण होता है जो हीमोलाइसिस के लिये उत्तरदायी है।
  6. प्लीहा का बढ़ना स्पलीनोमिगेली व यकृत का बढ़ना हिपेटोमिगेली (Hepatomegaly) कहलाती है।
  7. थ्रोम्बोसिस (Thrombosis) हो जाता है। यह प्रभाव प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम में देखने को मिलता है।
  8. प्लाज्मोडियम की उपस्थिति में अनिद्रा (insomnia) उत्पन्न होती है।
  9. शरीर में लिम्फोसाइट्स की संख्या भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 33.
अमिबिएसिस रोग के विशिष्ट लक्षण क्या-क्या हैं? सूची बनाइए। इसके उत्पन्नकर्ता जीव का नाम लिखिए । उत्तर- अमिबिएसिस रोग के लक्षण-

  1. कोष्ठबद्धता (कब्ज)
  2. उदरीय पीड़ा
  3. ऐंठन
  4. अत्यधिक श्लेष्मल और रक्त के थक्के वाला मल । इस रोग के उत्पन्नकर्ता जीव का नाम एन्ट अमीबा हिस्टोलाइटिका (Ent Amoeba Histolytica) है।

प्रश्न 34.
तम्बाकू का प्रयोग किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। समझाइए ।
उत्तर;
तम्बाकू का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, क्योंकि-

  1. तम्बाकू में उपस्थित निकोटिन रक्त चाप (Blood Pressure) एवं हृदय के स्पंदन (Heartbeat ) की दर को बढ़ाता है।
  2. तम्बाकू को चबाने से मुख का कैंसर हो जाता है।
  3. धूम्रपान से रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है अर्थात् हाइपोक्सिया (Hypoxia) हो जाता है।
  4. धूम्रपान फेफड़ों की जैव क्षमता (Vital Capacity) को कम करता है।
  5. खाँसी एवं ब्रोंकाइटिस हो जाता है।
  6. आमाशय एवं डयूडोनम में अल्सर हो जाते हैं।

प्रश्न 35.
पोषक तथा स्थान बताइए जहाँ मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र में निम्नलिखित अवस्थाएँ होती हैं-
(a) गेमिटोसाइट का निर्माण
(b) गेमिटोसाइट का संलयन ।
उत्तर:
(a) गेमिटोसाइट ( Gametocytes) का निर्माण मनुष्य की RBC में होता है।
(b) मादा एनाफिलिज मच्छर के आमाशय में संलयन होता है।

प्रश्न 36.
(i) फाइलेरिएसिस पैदा करने वाले फाइलेरिआई कृमियों की दो स्पंशीज के वैज्ञानिक नाम लिखिए।
(ii) संक्रमित व्यक्तियों के शरीर को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
(iii) यह रोग किस प्रकार फैलता है?
उत्तर:
(i) (a) वुचेरिया ब्रैकाँफ्टी
(b) वुचेरिया मैलेगी।

(ii) इस कृमि के अधिक संक्रमण से मनुष्य की लसिका ग्रन्थियाँ एवं वाहिनियों में जीवित एवं मृत कृमि एकत्रित होने लग जाते हैं और अन्त में लसिका वाहिनियाँ तथा ग्रन्थियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं। जिसके कारण हाथ-पैर तथा जनन अंगों में सूजन आ जाती है।

(iii) क्यूलेक्स या ऐडीज मच्छर वाहक का कार्य करते हैं।

प्रश्न 37.
नीचे दी गई तालिका में a, b, c तथा d की पूर्ति कीजिए-
उत्तर:

ड्रूग का नामपादप स्रोतप्रभावित अंग का नाम
1. aपॉपी पौधाb
2. मैरिजुआनाcd

(a) मार्फीन
(b) केन्द्रीय तन्त्रिका तंत्र
(c) कैनाबिस सटाइवा
(d) कॉर्डियोवेस्कुलर तन्त्र ।

प्रश्न 38.
तम्बाकू का प्रयोग किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है? समझाइए ।
उत्तर:
इनके सेवन करने से मनुष्य पर घातक दुष्प्रभाव होता है क्योंकि ये पदार्थ शारीरिक उपापचयी क्रियाओं, अंगों, येशियों व मानसिक क्रियाओं को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। शीघ्र ही सेवनकर्ता व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है। खेद की बात है कि आज की युवा पीढ़ी में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है।

आज युवा वर्ग विज्ञापन संस्कृति से प्रभावित होकर मुख्य रूप से तंबाक युक्त पदार्थ जैसे बीड़ी, सिगरेट, सिगार, चिलम, खाने वाला तंबाकू, पान मसाले के विभिन्न रूप जो पुड़िया में मिलते हैं। इनके अतिरिक्त शराब, अफीम, हिरोइन, मार्फिन, स्मैक, गांजा, भांग, हशीश, चरस, मैरिजुआना आदि कई नशीले पदार्थों (डूग्स) का उपयोग करने लगा है। ये नशीले पदार्थ देश की युवा पीढ़ी को नशे का गुलाम व अकर्मण्य बना रहे हैं।

आम तौर पर जिन ड्रगों का कुप्रयोग किया जा रहा है वे निम्न हैं –
(1) ओपिऑइड्स (Opioids)
(2) कैनेबिनाइड्स (Canabinoids)
(3) कोका एल्कैलाइड्स (Coca-alkaloids)

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(1) ओपिऑइड्स (Opioids)-ओपिऑइड्स ऐसे ड्रग हैं जो हमारे केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) और जठरांत्र पथ (Gastrointestinal tract) में उपस्थित विशिष्ट ओपिऑइ इ्स ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। सामान्यतः स्मैक (Smack) के नाम से मशहृर  हिरोइन (Heroin),

रासायनिक रूप से ड T इ एसिटि ल मार्फीन (Diacetyl morphin) है जो एक सफेद, गंधहीन, तीखा रवेदार यौगिक है। यह मार्फीन के एसीटिलीकरण से देखिए सामने चित्र में मॉर्फीन की रासायनिक संरचना है। जो पोस्त के पौधे पैपेवर सोम्नीफेरम (Papaver Somniferum) के लेटेक्स के निष्कर्षण द्वारा प्राप्त किया जाता है देखिए आगे चित्र में।
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हिरोइन (Heroin) सबसे ज्यादा खतरनाक ओपिएट है और चिकित्सीय उपयोग के लिए प्रतिबंध लगा हुआ है। यह बहुत ज्यादा व्यसनी बना देने वाला ड्रग है। हिरोइन को गैर कानूनी तरीके से बनाया और बेचा जाता है क्योंकि इसमें पैसे का बहुत ज्यादा लाभ होता है। महंगी होने के कारण इसमें अव्सर हानिकारक पदार्थों की मिलावट कर दी जाती है। जिससे दूसर किस्म की बीमारियां हो जाती हैं।

ड्रग्स लेने वाले अपनी लूइयों के लिए लापरवाह होते हैं जिसके कारण उन्हें रक्त के विषावतन, सीरम हिपिटाइटिस तथा एड्स का खतरा होता है। हिरोइन का प्रयोग मुख द्वारा, सूंघकर या इंजेक्शन के द्वारा किया जाता है। यह आलस्य एवं निद्रा लाने वाला ड्रिग है। यह मनुष्य व नशेड़ी में अवसाद उत्पन्न करती है। इसके साथ ही शारीरिक क्रियाओं व प्रकार्यों को धीमा कर देती है जिससे स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।

(2) कैनेबिनॉइड (Canabinoids)-कैनेबिनॉइ ड्स रसायनों का समूह है जो मुख्य रूप से मस्तिष्क में मौजूद कैनेबिनॉइड्स ग्राहि यों से पारस्परिक क्रिया करते हैं। देखिए चित्र कैनेबिनॉइड्स अणु की संरचना। पाक् ति क कै नेंबनाइ ड कैनेबिस सैटाइला (Canabis sativa) पौधे के पुध्यक्रम (Inflorescences) से प्राप्त किया जाता है।

भांग के फूलों के शीर्ष, पत्तियाँ और राल (Resin) के विभिन्न संयोजन से मैरिजुआना (Marijuana), हशीश (Hashish), चरस (Charas) और गाँजा (Ganja) बनाने के काम आते हैं। देखिए सामने चित्र में कैनेबिस सैटाइवा (भांग) की पत्तियाँ। आमतौर पर अंतःश्वसन और मुँह द्वारा खाए जाने वाले मादक द्रव्य (Drugs) शरीर के हृदय वाहिका तंत्र (Cardio vascular system) को प्रभावित करते हैं।
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(3) कोका एल्कैलाइड्स (Coca-alkaloids)-कोका एल्कैलाइड्स या कोकेन कोका पादप ऐरिथ्रोज़ाइलम कोका (Erythroxylum Coca) से प्राप्त किया जाता है। यह मूलरूप से दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। यह तंत्रिकाप्रेषक (Neurotransmeter) डोपेमीन के परिवहन में बाधा डालता है। कोकेन जिसे सामान्यतः कोक (Coke) या क्रेक (Crack) कहते हैं, यह एक सफेद रंग का क्रिस्टलीय कड़वा पाउडर होता है। यह एक वाहिनी संकुचकन कारक है। इसके प्रयोग से स्थायी चेतना शून्यता के लिए प्रयोग किया जाता है।
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कोकेन का प्रयोग चबाकर, खाकर पेय पदार्थ में डालकर किया जाता है। इसको इंजेक्शन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके पाउडर को जोर से श्वास लेकर अंदर खींचा जाता है। जिसके फलस्वरूप केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) पर जोरदार उद्दीपक असर पड़ता है, जिससे सुख की अनुभूति होती है।

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कोकेन की अत्यधिक मात्रा से विभ्रम (Hallucination) हो जाता है। अन्य प्रसिद्ध पादप जिनमें विभ्रम उत्पन्न करने का गुण है, जैसे एट्रोपा बेलेडोना और धतूरा हैं। देखिए ऊपर चित्र में। वर्तमान में विभिन्न खेलों के कुछ खिलाड़ी भी इन कैनेबिनाइडों का दुरुपयोग कर रहे हैं ताकि स्पर्धा में विजेता को हासिल कर सकें।

लाइसर्जिक अम्ल डाइएथिल एमाइड्स (एल एस डी)-यह एक प्रबल हैल्यूसिनोजन है। इसे क्लेविसेप्स परफ्यूरिया (Claviceps perfuria) नामक कवक के फलनकाय (Fruiting body) से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग व्यक्ति धूम्र के रूप में करते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति भ्रमित हो जाता है एवं इसमें मानसिक रूप से उत्तेजना आ जाती है अर्थात् मानसिकता गड़बड़ा जाती है। वैसे एल एस डी का प्रयोग गर्भाशय की पेशियों के संकुचन को प्रेरित करने एवं हेमरेज को रोकने के लिए इसे औषधि के रूप में किया जाता है।

यह सबसे ज्यादा लत पड़ने वाली ड्रूग है। अधिक सेवन से निम्न प्रभाव हो सकते हैं –

  1. मचलियाँ आना
  2. उल्टियाँ
  3. दस्त
  4. क्रोमोसोमो में विंपथन
  5. गर्भ में असामान्यताएँ
  6. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को गंभीर क्षति
  7. अचेतनता और यहां तक कि मृत्यु तक हो सकती है।

एम्फीटेमिन्स (Amphetamins)-इसे अनिद्रा औषधि कहते हैं। इसके सेवन से नींद नहीं आती है। यह एक संश्लेषित औरधि है जिसे सामान्यतया पेप पिल्स (Pep Pills) भी कहते हैं। इस औरधि का दुरुपयोग रात्रिकालीन कर्मचारी, ट्रक ड्राइवर, छात्र आदि जागने के लिए करते हैं। लेकिन इसके प्रभाव से निर्णय शक्ति एवं आंखें कमजोर हो जाती हैं।

एम्फीटेमिन्स का उपयोग खाँसी व अस्थमा के लिए इन्हेलेन्ट स्ट्रे के बनाने में औरधि के रूप में काम में लिया जाता है। बर्बिट्यूरेट (Barbiturates), बें जोडायजे पीन (Benzodiazepin) आदि औरधियों का उपयोग ऐसे लोग जो नशा छोड़ने में असमर्थ होते हैं तथा व्यक्ति अवसाद् (डिप्रेशन) एवं अनिद्रा (इनसोम्नीया) एवं मानसिक रोगों से ग्रसित हो उनके लिए फायदेमंद है। लेकिन इनका भी कुप्रयोग नशे के लिए किया जाने लगा है।

विभमी गुणों वाले अनेक पौधे, फल, बीजों का विश्व भर में लोक औषधि, धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में सैकड़ों वर्षों से उपयोग हो रहा है। जब ये औषधियाँ चिक्रित्सा के बजाय दूसरे उद्देश्य से ली जाती हैं या इतनी मात्रा में ली जाती हैं कि व्यक्ति की शारीरिक कार्यिकी अथवा मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों को असंतुलित कर देती हैं तो यह ड्रगों का कुप्रयोग बन जाता है।

तम्बाकू (Tobacco)-प्रयोग में लिये जाने वाला तम्बाकू निकोटिआना टोबेकम (Nicotiana tobacum) एवं निकोटिआना रस्तिका (Nicotiana Rustica) नामक पौधे की सूखी पत्तियाँ हैं। जिनका प्रयोग मनुष्य चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से करता आ रहा है। तंबाकू (धूम्रपान) पीया जाता है, चबाया जाता है या सूंघा जाता है। तंबाकू में बहुत से रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनमें एक एल्केलाइड भी शामिल है, जिसे निकोटिन (Nicotine) कहते हैं।

निकोटिन के प्रभाव (Effect of Nicotine)-
(i) निकोटीन अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) को उद्दीपित करता है जिसके फलस्वरूप अधिवृक्क ग्रंथि से एड्रिनलीन (Adrernaline) और नॉरएड्रिनलीन (Nor-Adrenaline) का स्रावण रक्त परिसंचरण (Blood circulation) में किया जाता है। ये दोनों हार्मोन रक्तचाप (Blood pressure) एवं हृदय के स्पंदन (Heart beat) की दर को बढ़ाते हैं।

  • पेशियों में शिथिलन आ जाता है।
  • तंत्रिका आवेगों का प्रवाह तीव्र हो जाता है।
  • रुधिर वाहिकाओं के संकीर्णन को बढ़ाता है।

धूम्रपान और रोग (Tobaco Smoking and Disease)तम्बाकू के निरंतर सेवन से निम्नांकित रोग होने की संभावना रहती है –

  • फुफ्फुस, मूत्राशय और गले का कैंसर
  • वातस्फीति (Emphysema)
  • हदय रोग
  • आमाशय एवं ड्यूडोनम में अल्सर
  • खाँसी एवं ब्रोंकाइटिस
  • धूम्रपान से रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और हीमआबद्ध (Heambound) ऑक्सीजन की सांद्रता घट जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है अर्थात् हाइपोक्सिया (Hypoxia) हो जाता है।
  • धूम्रपान फेफड़ों की जैव क्षमता (Vital Capacity) को कम करता है।
  • गर्भवती स्त्रियों द्वारा धूम्रपान करने से गर्भ में स्थित शिशु के विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

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इसके उपयोग को रोकने हेतु 31 मई को विश्व में तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में 1 दिसंबर 2004 को लागू किया गया कि शिक्षण संस्थानों के 100 मीटर के दायरे में कोई भी तंबाकू का विक्रय नहीं होना चाहिये। इसी प्रकार सिगरेट एवं तम्बाकू के प्रत्येक पैकिट पर भी वैधानिक चेतावनी अनिवार्य रूप से अंकित होती है। वर्तमान में हमारे देश में तम्बाकू एवं तम्बाकू से बनी सभी वस्तुओं के सार्वजनिक विजापन पर प्रतिबंध है।

प्रश्न 39.
(i) मानवों में टाइफॉयड (मियादी बुखार) के पैदा करने वाले कर्ता का नाम लिखिए।
(ii) इस रोग की पुष्टि करने वाले परीक्षण का नाम लिखिए।
(iii) इसका रोगजनक मानव शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता है? इसके नैदानिक रोग लक्षण लिखिए और गम्भीर मामलों में शरीर का जो अंग इससे प्रभावित होता है, उसका नाम लिखिए।
उत्तर:

  • साल्मोनेला टाइफी ( Salmonella Typhi)
  • विडाल परीक्षण (Widal Test)
  • संदूषित (Contaminated) भोजन और पानी द्वारा रोगजनक छोटी आन्त्र में प्रवेश करते हैं।

रोग के लक्षण

  • रोगी को लगातार उच्च ज्वर आना
  • कमजोरी आना
  • आमाशय में पीड़ा
  • कब्ज
  • सिरदर्द
  • भूख न लगना
  • गम्भीर अवस्था में आंत्र में छेद। प्रभावित अंग-आंत्र की दीवार।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए-
(1) कोकेन
(2) दाद
(3) एस्केरिएसिस
(4) तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया।
उत्तर:
(1) कोका एल्केलाइड या कोकेन कोका पादप ऐरिथ्रोजाइलम कोका (Erythroxylum coca) से प्राप्त किया जाता । यह मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। यह तंत्रिकाप्रेषक Neurotransmitter) डोपेमीन के परिवहन में बाधा डालता है। कोकेन जिसे सामान्यतः कोक (Coke) या क्रैक (Crack) कहते हैं। इसे जोर से श्वास द्वारा खींचा जाता है।

इसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) पर जोरदार उद्दीपक असर पड़ता है जिससे सुख की अनुभूति (Euphoria) एवं ऊर्जा में वृद्धि की अनुभूति होती है। कोकेन की अत्यधिक मात्रा से विभ्रम (Hallucinations) हो जाता है। अन्य प्रसिद्ध पादप जिनमें विभ्रम उत्पन्न करने का गुण है। जैसे एट्रोपा बेलेडोना एवं धतूरा। देखिए सामने चित्र में। रोग
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(2) दाद (Ringworm) – यह माइक्रोस्पोरम (Microsporum), ट्राइको फाइटॉन (Trichophyton) और एपिडर्मोफाइटॉन (Epidermophyton) आदि वंश के कवक के द्वारा होता है। यह एक मनुष्य में सामान्य संक्रामक रोग हैं। शरीर के विभिन्न भागों जैसे त्वचा, नाखून और शिरोवल्क (Scalp) पर सूखी, शल्की विक्षतियां (Scaly lesions ) इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

इन विक्षतियों में तेज खुजली होती है। उष्मा और नमी इन कवकों को त्वचा के वलनों, जैसे ग्रोइन अथवा पादंगुलियों के बीच पनपने में मदद करती है। दाद आमतौर पर मिट्टी से या संक्रमित व्यक्तियों के कपड़े, तौलिए या कंघे तक का प्रयोग करने से हो जाता है।

(3) एस्केरिएसिस (Ascariasis) – यह रोग एस्केरिस नामक गोलकृमि (roundworms) के द्वारा होता है। यह कृमि मनुष्य की आंत्र में पाया जाने वाला परजीवी है। आंतरिक रक्तस्राव, पेशीय पीड़ा (muscular pain), ज्वर, अरक्तता ( anemia) एवं आंत्र का अवरोध होना इस रोग के लक्षण हैं। इस परजीवी (ऐस्केरिस) के अंडे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकलते हैं और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण जल, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है।
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(4) तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया (Humoral Immune Response) – इस प्रकार की प्रतिरक्षा में शरीर में प्रवेश होने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं तथा विषैले पदार्थों के प्रभाव को नष्ट करने हेतु अलग-अलग प्रकार की बी लसीका कोशिका निर्धारित होती है। किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमणकारी जीव या विष पदार्थ को नष्ट करने के लिए विशेष प्रकार की लसिकाणु विशिष्ट ग्लोब्यूलिन प्रोटीन उत्पन्न करती है।

यह प्रोटीन रुधिर, लसीका तथा ऊतक द्रव्य में से होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों का नाश करती है। ऐसी प्रोटीन्स प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स प्रकृति की होती है व प्रतिरक्षी या प्रतिपिंड कहलाती है। चूंकि इन प्रतिपिंडों एवं प्रतिजनों के मध्य विशिष्ट अंतर्क्रिया सामान्यतः रक्त या लसीका जैसे तरल माध्यम में होती है इसलिए इसे तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा अथवा तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार की होती है ? सहज प्रतिरक्षा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारे शरीर में प्रतिदिन वातावरण में उपस्थित कई प्रकार के रोगाणुओं जैसे जीवाणुओं, विषाणुओं, परजीवी जन्तुओं तथा कवकों इत्यादि का आक्रमण होता रहता है। इसके अलावा कई विषैले पदार्थ भी वातावरण से शरीर में पहुँच जाते हैं। शरीर के ही रोगग्रस्त ऊतकों तथा आक्रमणकारी जीवों द्वारा विषैले पदार्थ मुक्त होते रहते हैं। शरीर में प्रविष्ट होने वाले ऐसे रोगकारक विघैले पदार्थ प्रतिजन (Antigen) कहलाते हैं।

जन्तु शरीर में विभिन्न प्रतिजनी पदार्थों के निरन्तर प्रवेश करने के बावजूद भी सामान्यतः शरीर रोगग्रस्त नहीं होता है। ऐसा जन्तुओं में उपस्थित एक विशेष क्षमता के कारण होता है जो रोगकारी प्रतिजन पदार्थों को सीधे अथवा विशेष प्रतिरक्षी पदार्थों (Antibodies) के द्वारा नष्ट कर शरीर को सुरक्षित रखती है। जन्तुओं की क्षमता को प्रतिरोधक क्षमता या असंक्राम्यता अथवा प्रतिरक्षा (Immunity) कहते हैं।

वे समस्त संरचनाएँ जो रोगप्रतिरोधक क्षमता से संबंधित होती हैं प्रतिरक्षित तन्त्र (Immune System) का निर्माण करती हैं। प्रतिरक्षित तन्त्र के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (Immunology) कहा जाता है। इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण एमिल वॉन बेरिंग (Emil Von Behring) को पतिरक्षा विज्ञान का जनक (Father of Immunology) कहा जाता है।

प्रतिरक्षा प्रमुखतः दो प्रकार की होती है –

  • सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity)
  • उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)

सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity):
इसे प्राकृतिक एवं स्वाभाविक प्रतिरक्षा के नाम से भी जाना जाता है। यह शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो कि जन्मजात (Inborn) उपस्थित होती है। इसमें वे सभी अवरोध शामिल हैं जो बाह्य रोगकारी कारकों के प्रवेश को रोकते हैं। यदि किसी प्रकार से रोगकारक शरीर में प्रविष्ट होने में सफल भी हो जाते हैं तो सहज प्रतिरक्षा के घटक जैसे वृहत् भक्षाणु उन्हें समाप्त कर देते हैं। अतः यह जीवों की सुरक्षा हेतु प्रथम रक्षा पंक्ति (First Line of Defence) बनाती है।

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सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं –
(i) सहज रोध (Physical Barriers)-इस प्रकार का अवरोध रोगाणुओं को शरीर में अन्दर प्रवेश होने से रोकता है। त्वचा की बाह्य परत किरैटिन की बनी होती है और रोगाणुओं के लिये लगभग अभेद्य होती है। त्वचा की तैल ग्रन्थियां लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करके अम्लीय वातावरण का निर्माण करती हैं जो रोगाणुओं को नष्ट करता है।

श्वसन तन्त्र जठरांत्र (Gastrointestinal) और जनन मूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा (Mucous) आवरण भी शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है। इसी प्रकार शरीर के साव जैसे पसीना भी रोगाणुओं को दूर बनाये रखता है ।

(ii) कार्यिकीय रोध (Physiological Barriers)-जंतु शरीर का ताप, विभिन्न अंगों द्वारा स्रावित पदार्थ एवं पी.एच. (pH) प्रमुख कार्यिकीय अवरोधकों का कार्य करते हैं। आमाशय की ग्रंथियों द्वारा स्रावित HCl, निम्न (pH) माध्यम उत्पन्न करता है जो कि भोजन के साथ प्रविष्ट सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है।

जंतु कोशिकाओं व ऊतकों द्वारा उत्पन्न अन्य विलेय कारक जैसे श्लेष्म एवं अश्रुस्राव में उपस्थित लाइसोजाइम, रक्त सीरम में मिलने वाले संपूरक कारक तथा वायरस संक्रमित कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न इंटरफेरॉन्स (Interferons) प्रोटीन भी कार्यिकी अवरोधों का कार्य करते हैं। लाइसोजाइम जलअपघटनी क्रिया द्वारा जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में उपस्थित पेप्टाइडोग्लाइकन स्तर को विघटित कर देते हैं। इन्टरफेरॉन प्रोटीन्स कोशिकाओं को विषाणुओं के संक्रमण से सुरक्षित रखती है।

(iii) भक्षकाणिवक अवरोध (Phogocytic Barriers)-शरीर में उपस्थित विशिष्ट कोशिकाएँ जैसे रक्त की मोनोसाइट्स (Monocytes), न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) कोशिकाओं व ऊतकों को वृहत् भक्षकाणु जंतुओं के अंदर प्रवेश करने वाले बाह्य कोशिकीय कणिकीय पदार्थों जैसे रोगजनक सूक्ष्मजीवों को कोशिकाशन (Phagocytosis) द्वारा नष्ट करते रहते हैं।

कोशिकाशन (Phagocytosis) एक महत्वपूर्ण स्वाभाविक प्रतिरक्षी क्रिया है। इसके अतिरिक्त ऊतकों में उपस्थित प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ शरीर में उपस्थित अर्बुद कोशिकाओं एवं विषाणु संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। भक्षकाणु कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं, जिन्हें सूक्ष्म भक्षकाणु (Microphase) और महाभक्षकाणु (Macrophase) कहते हैं।

सूक्ष्मभक्षकाणु (Microphase)-ऐसी श्वेत रक्त कोशिकाएँ हैं जिनमें दो या दो से अधिक पाली वाला केन्द्रक होता है। ये आकार में छोटी और अल्प-जीवी होती हैं। महाभक्षकाणु (Macrophase)-एककेन्द्री भक्षक कोशिकाएं होती हैं जो आकार में बड़ी और दीर्घ जीवी होती हैं। ये लगभग सभी अंगों और ऊतकों में पायी जाती हैं। लेकिन विशेष रूप से ये फेफड़ों, यकृत व प्लीहा में पायी जाती हैं।

(iv) शोथ अवरोध (Inflammatory Barriers)-शरीर के ऊतकों के घाव, चोट या रोगजनक सूक्ष्मजीवों के आक्रमण से क्षतिग्रस्त होने की अवस्था में कई जटिल व क्रमबद्ध प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं जिन्हें संयुक्त रूप से शोथ अनुक्रिया कहते हैं। इस अनुक्रिया में क्षतिग्रस्त ऊतकों की मास्ट कोशिकाओं (Mast cells) द्वारा उत्पन्न हिस्टामीन व प्रोस्टाग्लेंडिन एवं रक्त प्लाज्मा में उपस्थित काइनिन्स प्रमुख मध्यस्थ अणुओं का कार्य करते हैं।

इस अनुक्रिया के फलस्वरूप प्रभावित ऊतकों व अंगों में लाली, दर्द, सूजन व गर्माहट के लक्षण उत्पन्न होते हैं। मेश्नीकॉफ ने इसे एक सुरक्षात्मक (Protective) अनुक्रिया बताया। इस क्रिया के माध्यम से हानिकारक कारकों के प्रभाव को प्रभावित ऊतकों तक ही सीमित रखकर ऊतकों की मरम्मत एवं सुरक्षा की जाती है।

प्रश्न 3.
ड्रगों का दुरुपयोग खिलाड़ियों के द्वारा क्यों किया जाता है? इन ड्रगों के अनुषंगी प्रभावों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
ड्रगों का दुरुपयोग कुछ खिलाड़ियों द्वारा अपने प्रदर्शन को और बेहतर करने के लिए किया जाता है। वे खेलों में स्वापक पीड़ाहर (narcotic analgesics), उपचयी स्टेराइडों (anabolic steroids), मूत्रल दवाओं (Diuretics) एवं कुछ हार्मोन का कुप्रयोग, मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने और आक्रामकता को बढ़ाने और फलस्वरूप खेल प्रदर्शन के लिए करते हैं। ड्रगों के अनुषंगी प्रभाव (Side-effects of Drugs) – महिलाओं में उपचयी स्टेराइडों के सेवन के अनुषंगी प्रभाव निम्न हैं –

  1. पुंस्त्वन (Masculinisation) अर्थात् पुरुष जैसे लक्षण
  2. बढ़ी आक्रामकता (Increased aggresiveness)
  3. भावदशा में उतार-चढ़ाव
  4. अवसाद
  5. असामान्य आर्तव चक्र
  6. मुँह तथा शरीर पर बालों की अत्यधिक वृद्धि
  7. आवाज का भारी होना।

पुरुषों में ड्रगों के सेवन से निम्न अनुषंगी प्रभाव होते हैं-

  1. पुरुषों में मुँहासे
  2. बढ़ी आक्रामकता
  3. भावदशा में उतार-चढ़ाव
  4. अवसाद
  5. वृषणों (Testis) के आकार में कमी
  6. शुक्राणु उत्पादन में कमी
  7. यकृत (Liver) एवं वृक्क (Kidney) की संभावित दुष्क्रियता
  8. स्तनों में वृद्धि
  9. समय से पूर्व गंजापन
  10. प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि ।

लंबे समय तक सेवन करने से उक्त प्रभाव स्थायी हो सकते हैं । युवा पुरुष या महिलाओं में मुँह और शरीर के सख्त मुँहासे और लंबी अस्थियों के वृद्धि केन्द्रों के समय पूर्व बंद होने के फलस्वरूप वृद्धि रुक जाती है।

प्रश्न 4.
व्यसन किसे कहते हैं? ड्रग ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यसन और निभरंरता (Addiction and Dependence):
व्यक्ति की किसी भी पदार्थ पर जैसे कि तम्बाकू, ऐेल्कोहॉल तथा ड्रूस पर शारीरिक तथा मान्नसक निर्भरता व्यसन (Addiction) कहलाती है । ड्रग्स का उपवोग करने वाले व्यक्ति की मानसिक तथा शारीरिक दशा बदल जाती है। इसके लगातार ग्रहण करने से व्यक्ति इूस के लिए व्यसनी (लती) हो जाता है क्योंकि इ्रगों के ब्यार-बार उपबोग से हमारे शरीर में उपस्थित ग्राहियों का सद्ध स्तर बढ़ जाता है।

इसके फलस्वरूप ग्राही, इूगों या ऐल्कोहॉल की केक्ल उध्तम मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है अथात् निर्भर हो जाता है एवं इनके बिना उसका नीना कटिन हो जाता है। जब किसी आदतन ड्रग/ऐल्कोहॉल लेने वाले ख्यक्ति की नियमित मात्रा को अचानक बंद कर दिया जाता है तो उसे शई प्रकार के सम्मिलित जटिल प्रभावों युक्त लक्षणों का आभास होता है। ये लक्षण विनिवरंन संलक्षण (Withdrawal Syndrome) करलाते हैं। ऐसे सक्षण निम्न हैं –

  1. ड्रास्स के बार-बार उपयोग करने की मारसिक इ्चा
  2. हल्के कंषन
  3. प्रबल दौरे
  4. उद्धेग
  5. तरित बेहोशी
  6. पसीना आन्ता
  7. बिंता
  8. मिचली आना
  9. ब्दय की गति बढ़ जाना
  10. सहनता (शारीर में ड्रग्स की बढ़ती जाती सहनता के कारण व्यसनी को उसकी और ज्यादा मात्रा का चाहना)
  11. ड़स्स से कुछ समब दूर रहने के बाद भी ड्रग का व्यसन।

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कई बार यह स्थिति काफी गंभीर हो सकती है व पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। अनः वापसी अबधि चिकित्सकीय देख-रेख में होनी चाहिए। प्रयोग की जा रही ड्राग को अचानक बंद करने या परिवर्जन (Abstinence) के कारण वह्ठ व्यक्ति याचना करने लगता है। ऐसे व्यक्ति को मानसिक सहारा (Psychological Support) की अत्बन्त आवश्यकता होती है तधा ऐसे संमय में परिवार के सद्स्यों एवं मित्रों का सकारान्मक सहियोग होना चाहिये।

ड्रग/ऐल्कोहॉल कुप्रयोग के प्रभाव (Impact of Drug) Alcohol Abuse):
इूगों की अत्यधिक मात्रा के सेबन से श्वसन पात्त (Respiratory Failure), हदय पात (Heart Faliure) अथवा प्रमस्तिष्क रक्तम्नांव (Cerebral bemorrhage) के कारण व्यक्ति कोमा में चला जाता है अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। विशेष तौर से किशोरों के इस व्यसनों की चपेट में आने के मुख्य कारण अग्र हैं –

  1. शैक्षिक क्षेत्र में प्रदर्शन में कमी,
  2. बिना किसी स्पष्ट कारण के विद्यालय अथवा महाविद्यालय (College) से अनुपस्थिति,
  3. व्यक्तिगत स्वच्छता की रुचि में कमी,
  4. विनिवर्तन,
  5. एकाकीपन,
  6. अवसाद, थकावट,
  7. आक्रमणशील और विद्रोही व्यवहार,
  8. परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध,
  9. शौक की रुचि में कमी,
  10. सोने और खाने की आदतों में परिवर्तन,
  11. भूख और वजन में कमी अथवा बढ़ना।

ड्रग अथवा ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। व्यक्ति (व्यसनी) अपने परिवार व मित्रों के लिए भी मानसिक संताप का कारण बन जाता है। अपना शौक पूरा करने के लिए ड्रग व ऐल्कोहॉल के लिए चोरी करना, घर का सामान बेचना, घर को बेचना आदि कृत्य करता है।

जो लोग (व्यसनी) सूई (Injection) से नशा करते हैं उनमें HIV/AIDS या यकृत शोथ (Hepatitis) होने व उसके स्थानान्तरण का खतरा अधिक होता है क्योंकि व्यसनी एक-दूसरे के सूई (Injection) का इस्तेमाल करने अथवा संक्रमित सूई द्वारा ड्रगग लेने से एक-दूसरे से वायरस (Virus) स्थानान्तरित हो जाते हैं। अधिक ऐल्कोहॉल पीने से यकृत (Liver) में ग्लाइकोजन (Glycogen) का संचय होने की बजाय वसा का संचय होता है, जिससे वसा-यकृत सिन्ड्रोम की दशा बन जाती है जिससे सिरोसिस (Cirrhosis) बन जाता है।

(यकृत कड़ा हो जाता है तथा सूख जाता है)। अधिक सांद्रता वाले ऐल्कोहॉल के सेवन से आमाशय में दर्द युक्त प्रदाह होता है। इसे गेस्ट्राइटिस (Gastritis) कहते हैं। गर्भावस्था के दौरान ऐल्कोहॉल अथवा ड्रगों का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आजकल खिलाड़ी अपनी मांसपेशियों की थकान दूर करने एवं उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु ड्रगों का दुरुपयोग करते हैं।

इन ड्रग्स में स्वापक पीड़ानाशक (Narcotic Analgesic), स्टीरॉइड्स (Steroids), मूमल ड्रग्स एवं विभिन्न प्रकार के हार्मोन होते हैं। स्त्रियों में उपचयी स्टेरॉइडों के प्रयोग से स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण (masculinisation) विकसित हो जाते हैं, इसके अतिरिक्त निम्न लक्षण प्रकट हो जाते हैं –

  • भावदशा में उतार-चढ़ाव
  • असामान्य आर्तव चक्र (menstrual cycle)
  • मुंह और चेहरे पर बालों की अत्यधिक वृद्धि
  • भगशेफ (Clitoris) का बढ़ जाना
  • आवाज गहरा होना
  • बड़ी आक्रामकता, अवसाद आदि।

पुरुषों में इन ड्रग्स को लेने से उत्पन्न लक्षणों में वृषणों (Testis) के आकार का घटना, शुक्राणुओं (Sperms) के उत्पादन में कमी, स्तनों (Mammary Glands) का आकार में बढ़ना, प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate gland) का बढ़ना, समय से पहले बाल उड़ना (गंजापन), चेहरे पर मुंहासे, बढ़ी आक्रामकता भावदशा में उतार-चढ़ाव, अवसाद, वृक्क (Kidney) की संभावित अक्रियाशीलता आदि शामिल हैं। लंबे समय तक सेवन से ये प्रभाव स्थायी हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
स्वप्रतिरक्षा किसे कहते हैं? मानव में स्वप्रतिरक्षा रोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वप्रतिरक्षा (Auto Immunity):
प्रतिरक्षा तंत्र में आत्मस्थ (अपने) घटक तथा आत्मेतर (पराया) घटकों के बीच भेद कर सकने की क्षमता होती है। सामान्यतः आत्मस्थ घटकों के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं होती यानी अपने ही ऐन्टीजनों को सहन कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया को स्वःसहायता कहते हैं। कभी-कभी शरीर में अपने ही ऊतकों के प्रति शरीर द्वारा एंटीबॉडी माध्यित (तरलीय) अथवा कोशिका माध्यित आक्रमण होने लगता है जिससे स्वप्रतिरक्षा पैदा हो जाती है। इससे कोशिका अथवा ऊतक क्षति होती है या इनके कार्यों में अंतर आ जाता है।

इस प्रकार पैदा होने वाले दोषों को स्वप्रतिरक्षा दोष अथवा रोग कहते हैं। ऐसी एंटीबॉडियों, जो आत्मस्थ घटकों अथवा आत्मस्थ ऐंटीजनों (स्व एंटीजनों) के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं, को स्व एंटीबॉडी कहते हैं। स्वप्रतिरक्षा रोग 5-10 प्रतिशत मानव जनसंख्या को प्रभावित करते हैं। ये रोग चिरकालिक कमजोरी समस्याओं के बाद आ जाते हैं। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में स्वप्रतिरक्षा ज्यादा होती है। मानव में स्वप्रतिरक्षा रोग निम्न हैं-

  • मायस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia Gravis)-पेशियों का स्वयं नष्ट होना।
  • जीर्ण रक्ताल्पता (Chronic Anaemia)-स्वयं की लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) का नष्ट होना।
  • हाशिमोटो रोग (Hashimoto disease)-इसे थाइरॉइड की आत्महत्या भी कहते हैं।
  • जीर्ण यकृत शोथ (Chronic hepatitis)-यकृत द्वारा स्वयं की कोशिकाओं को नष्ट करना।
  • आमावाती संधिशोथ (रुमेटोयाड आर्थाइटिस), इंसुलिननिर्भरता मधुमेह एवं बहुस्थानिक स्क्लेरोसिस आदि।

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प्रश्न 6.
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस) किसे कहते हैं? पश्चविषाणु की प्रतिकृति को चित्र की सहायता से प्रदर्शित कीजिए ।
उत्तर:
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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प्रश्न 7.
टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण (Vaccination and Immunisation):
किसी अनुग्र (Non-virulent) या मृत (killed) सूक्ष्मजीवों या उनके द्वारा आविषों (Toxins) की अति सूक्ष्म मात्रा को शरीर में प्रविष्ट कराना टीकाकरण कहलाता है तथा जो पदार्थ प्रविष्ट कराया जाता है उसे टीका कहते हैं। इस क्रिया द्वारा जीव में किन्हीं विशिष्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है। एडवर्ड जेनर ने गो-चेचक का प्रयोग करके 1796 में चेचक से प्रतिरक्षण का टीका (Vaccine) प्रारंभ किया। इस उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें प्रतिरक्षण का जनक (Father of Immunisation) कहा जाता है।

टीकाकरण या प्रतिरक्षण क्रिया सिद्धांत प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति कोशिकाओं के ऊपर आधारित है। टीकाकरण के द्वारा प्रविष्ट विशिष्ट प्रतिजनी पदार्थ शरीर में पहुँचकर प्राथमिक प्रतिरक्षा अनुक्रिया उत्पन्न करता है व साथ ही स्मृति B व T कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में वह व्यक्ति या जीव यदि उसी विशिष्ट रोगकारक द्वारा संक्रमित होता है तो वहां उपस्थित B व T कोशिकाएं उस रोगकारक को तुरंत पहचान कर प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

एक आदर्श टीके (Vaccine) में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए –

  • टीका प्रतिरक्षित प्राणी में जीवनपर्यंत प्रतिरोधकता क्षमता प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।
  • टीका सुगमतापूर्वक उत्पन्न हो सके व उत्पादन लागत अधिक न हो।
  • आदर्श रूप में एक बार लगाने पर ही प्रभावी होना चाहिए।
  • टीका प्रयोग करने में नितांत सुरक्षित होना चाहिए।

टीके के प्रकार (Types of Vaccines)-सामान्यतः टीके निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  • आविषाभ टीके (Toxoids)-आविषाभ (Toxoids) एक रासायनिक व भौतिक रूप से परिष्कृत जीव-विष है जो कि हानिकारक तो नहीं होता है किंतु इसकी प्रतिरोग क्षमताजनकता बनी रहती है। उदाहरण-डिफ्थीरिया एवं टिटेनस के टीके।
  • जीवाणुजन्य टीके (Bacterial Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में मारे गये जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणटायफाइड, हैजा, कुकर खाँसी, तपेदिक, प्लेग के टीके।
  • विषाणुजन्य टीके (Viral Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में जीवित क्षीणीकृत (Living attenuated) अथवा मारे गये विषाणुओं का उपयोग किया जाता है। उदाहरण-खसरा, चेचक, इन्फ्लुएंजा (Influenza) व पोलियो के टीके।
  • न्यूक्लिक अम्ल टीके (Nucleic acid Vaccines)-इन टीकों के निर्माण में नग्न डी.एन.ए. का उपयोग किया जाता है अर्थात् ये नग्न DNA से निर्मित होत्रे हैं। उदाहरण-हिपेटाइटिस-बी का टीका।
  • संयुग्मित टीके (Conjugated Vaccines)-ये प्रोटीन अणुओं से योजित पॉलिसैकेराइड्स से निर्मित होते हैं। उदाहरणन्यूमोनिया के टीके।

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प्रश्न 8.
मानव में विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स का विवरण दीजिये ।
उत्तर:
तालिका – मानव में विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स का विवरण

प्रतिरक्षियों का वर्गकुल मात्राप्रमुख लक्षण एवं उपस्थितिकार्य
1. IgA10नवदुग्ध (Colostrum) में उपस्थित प्राथमिक प्रतिरक्षी; अणु भार 1,60,000; लार, श्लेष्मा व अन्य बाह्य स्रावों में उपस्थितश्लेष्मी कलाओं (Mucous Membranes), देह की बाह्य सतह की सुरक्षा तथा निःश्वसित (Inhaled) एवं अन्तर्रहित रोगाणुओं से सुरक्षा प्रदान करना
2. IgD1-3अति सूक्ष्म मात्रा में रक्त में लसिका कोशिकाओं की सतह पर उपस्थित; अणुभार -1,85,000बी-लसिका कोशिकाओं का सक्रियण, प्रतिरक्षी अभिक्रिया के विकास एवं परिपक्वन में भूमिका
3. IgE0.05अत्यन्त कम मात्रा में उपस्थित; मास्ट कोशिकाओं व बेसोफिल्स से विशिष्ट सहलग्नता दर्शाने वाली; अणुभार- 2,00,000मास्ट कोशिकाओं का उत्तेजन, प्रत्यूर्जता (Allergy) अभिक्रियाओं से संबंधित परजीवियों से सुरक्षा
4. IgG75-80सर्वाधिक प्रचुरता में मिलने वाली; ऑवल (Placenta) से पार होने की क्षमता युक्त, अणुभार -1,50,000 रक्त एवं अंतराली द्रवों का प्रमुख प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिनसंपूरक तंत्र को उत्तेजित करना, मानव भ्रूण को रोग क्षमता प्रदान करना, भक्षाणु कोशिकाओं से भक्षाणुनाशन हेतु विशिष्ट सहलग्नता
5. IgM5-10प्रतिजन की अनुक्रिया में उत्पन्न प्रथम प्रतिरक्षी; रक्त प्लैज्मा व अंतराली द्रवों प्रतिरक्षी; रक्त प्लैज्मा व अंतराली द्रवों में उपस्थित; अणुभार -9,00,000 पेन्टामर के रूप में; सर्वाधिक वृहत् प्रकार का प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन।जीवाणुओं से सुरक्षा की प्रथम पंक्ति बनाते हैं, समूहन क्रिया का प्रभावीकरण, संपूरक स्थिरन व प्रतिजन के स्कन्दन में प्रभावी।

प्रश्न 9.
कैंसर क्या है? कैंसर के प्रमुख प्रकार लिखिए। कैंसर के कम से कम तीन घातक संकेतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कोशिकाओं में होने वाला अनियंत्रित विभाजन जिसके कारण गाँठ या ट्यूमर का निर्माण होता है, कोशिकाओं का यह समूह कैंसर कहलाता है।
अर्बुद या ट्यूमर (Tumour) दो प्रकार के होते हैं –
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour)
(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour)
(1) सुदम अर्बुद (Benign Tumour)-ये हानिकारक नहीं होते हैं एवं स्थानीय होते हैं अर्थात् शरीर के दूसरे भागों या आस-पास की कोशिकाओं में नहीं फैलते हैं। इस कारण इसे नॉनमेटास्टेसिस (non-metasis) कहते हैं। स्थान विशेष पर अर्बुद बनती है जो आकार में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इसे शल्य-क्रिया द्वारा शरीर से अलग करने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।

(2) दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumour)-इसमें विभाजनशील कोशिकायें शरीर के किसी स्थान विशेष में सीमित न रहकर या लसिका में मिलकर शरीर के अन्य भागों में पहुँच जाती हैं तथा वहाँ अर्बुद उत्पन्न करती हैं। ऐसे अर्बुद को दुर्दम अर्बुद कहते हैं। इसको मेटास्टेटिस (Metasis) कहते हैं। ऐसे अर्बुद खतरनाक होते हैं जिसके कारण मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

कैंसर के प्रकार (Types of Cancer)-कैंसर निम्न प्रकार का होता है –

  • कार्सीनोमास (Carcinomas)-कैंसर का यह प्रकार सर्वाधिक रूप में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से उपकला ऊतकों में होने वाली अनियंत्रित वृद्धि का परिणाम है। उदाहरण के लिए छाती का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, अग्न्याशय का कैंसर तथा आमाशय का कैंसर।
  • सारकोमास (Sarcomas)-यह पेशी व लसीका ग्रंथियो का कैंसर है। भ्रूणीय मीसोडर्म से व्युत्पन्न संयोजी ऊतकों में होने वाली दुर्दम वृद्धि सारकोमा कहलाती है।
  • ल्यूकीमिआ (Leucaemia)-रुधिर तथा अस्थिमज्जा की कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विभाजित होकर ल्यूकीमिआ कैंसर उत्पन्न करती हैं। इस रोग से ग्रसित रोगी में ल्यूकोसाइट की संख्या में अधिक मात्रा में वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिए-रक्त कैंसर।
    इसके अतिरिक्त कभी-कभी छोटे बच्चों में नेत्र, वृक्क तथा प्रमस्तिष्क में अति दुर्दम ट्यूमर पाये गये हैं।

उपर्युक्त के अतिरिक्त कैंसर के कुछ अन्य प्रकार निम्न हैं-

  1. मायोमा (Myoma)-पेशी ऊतकों का कैंसर
  2. एडीनोमा (Adenoma)-ग्रंथियों का कैंसर
  3. मैलानोमा (Melanoma)-त्वचा की वर्णक कोशिकाओं का कैंसर
  4. लिम्फोमा (Lymphoma)-लसिका ऊतकों का कैंसर
  5. ग्लियोमा (Glioma)-केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की ग्लियल कोशिकाओं का कैंसर।

मनुष्य में सबसे अधिक प्रकार का कैंसर फेफड़ों का होता है जो द्वितीय स्थान के कैंसर त्वचा कैंसर की तुलना में लगभग दो गुणा व्यक्तियों को प्रभावित करता है। महिलाओं में स्तन कैंसर सर्वाधिक होता है। (भारत में मनुष्यों में मुख, गला कैंसर एवं महिलाओं में गर्भाशयी सर्विक्स कैंसर सामान्य कैंसर हैं।)

कैंसर के कारण (Causes of Cancer)-सामान्य कोशिकाओं का कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तन भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक कारकों के द्वारा होता है। इन कारकों को कैंसरजन (Carcinogens) कहते हैं। आयनकारी विकिरण जैसे एक्स किरणें, गामा किरणें और अनायनकारी विकिरण जैसे पराबैंगनी विकिरण DNA को नष्ट कर नवद्रव्यी अथवा कैंसर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। रासायनिक कैंसरजन (Carcinogen) तंबाकू के धुएँ में पाया जाता है जो कि फेफड़ों के कैंसर के लिए उत्तरदायी है।

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कैंसर उत्पन्न करने वाले वायरस को अर्बुदीय विषाणु (Oncopgenic Viruses) कहते हैं। इनमें पायी जाने वाली जीन को विषाणुवीय अर्बुदजीन (Viral oncogenes) कहते हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य कोशिकाओं में कई जीनों का पता चला है जिन्हें कुछ विशेष परिस्थितियों में सक्रिय किए जाने पर वे कोशिकाओं का कैंसरजनी रूपान्तरण कर देते हैं। ये जीन कोशिकीय अर्बुदजीन (Cellular oncogenes) अथवा आदि अर्बुदजीन (Proto oncogenes) कहलाते हैं।

कैंसर का प्रसार (Spread of Cancer)-कैंसर शरीर में निम्न प्रकार से फैलता है-

  • किसी स्थान विशेष पर कैंसर कोशिकाएं विभाजन करके अर्बुद (Tumor) बना लेती हैं। अब यह अर्बुद समीपवर्ती ऊतकों के ऊपर फैलकर उन्हें नष्ट कर देती है।
  • कभी-कभी कैंसर कोशिकाएं अर्बुद से पृथक् होकर लसीका संचरण के साथ शरीर के अन्य भागों में पहुँच कर विभाजन कर देती हैं। इन्हें द्वितीयक वृद्धि या मेटास्टेसिस कहते हैं। इस प्रकार का कैंसर सबसे घातक होता है। एक बार मेटास्टेसिस बनना प्रारंभ होने पर उसका निवारण असंभव होता है। अंततः रोगी की मृत्यु का कारण बनते हैं।
  • अस्थि मज्जा तथा संयोजी ऊतक में उत्पन्न कैंसर अर्बुद की कोशिकाएँ रुधिर के साथ तीव्रता से शरीर के अन्य भागों में स्थानान्तरित होती हैं।

कैंसर रोग के प्रमुख लक्षण –

  1. शरीर के वजन में तेजी से कमी होना
  2. घाव का लंबे समय तक नहीं भरना
  3. बारंबार तेज सिरदर्द का होना
  4. लगातार पेटदर्द् रहना
  5. वृषणकोष/ स्तन ग्रंथियों की आकृति में परिवर्तन
  6. मूत्र के साथ बिना दर्द के रक्त निकलना
  7. तिल में परिवर्तन होना
  8. छाती में गांठ का होना
  9. लगातार खाँसी होना
  10. स्त्रियों में रजोधर्म के समय अधिक रुधिर आना
  11. सूजन आना, गले का प्राय: दुखना
  12. पाचन तथा शौच आदतों में लगातार परिवर्तन होना।

कैंसर का अभिज्ञान एवं निदान (Cancer detection and diagnosis)-कैंसर का अभिज्ञान ऊतकों की जीवूतिपरीक्षा (Biopsy) और ऊतक विकृति (Histopathological) अध्ययनों तथा बढ़ती कोशिका गणना के लिए रुधिर (Blood) तथा अस्थिमज्जा (Bonemarrow) पर आधारित है। जैसा कि अधिश्वेतरक्तता (Lukemias) के मामले में होता है।

जीवूतिपरीक्षा (biopsy) में जिस ऊतक पर शंका होती है, उसका एक टुकड़ा लेकर पतले अनुच्छेदों (Sections) में काटकर अभिरं जित कर के रोगविज्ञानी (Pathologist) परीक्षण किया जाता है। आंतरिक अंगों (Internal organs) के कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण चित्रण (Radiography), अभिकलित टोमोगफफी (Computed Tomography) एवं चुम्बकीय अनुनादी इमेजिंग (MRIMagnetic resonance imaging) तकनीकें बहुत उपयोगी हैं।

अभिकलित टोमोग्राफी एक्स किरणों का उपयोग करके किसी अंग के भीतरी भागों की त्रिविम प्रतिबिंब (Three-dimensional image) बनाती है। जीवित ऊतकों में वैकृतिक (Pathological) और कार्यिकीय (Physiological) परिवर्तनों का सही पता लगाने के लिए एम-आरआई में तेज चुंबकीय क्षेत्रों और अनायनकारी विकिरणों का उपयोग किया जाता है। कुछ कैंसरों का पता लगाने के लिए कैंसर विशिष्ट प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षियों (Antibodies) का भी उपयोग किया जाता है।

कुछ कैंसरों के प्रति वंशागत सुग्राहिता वाले व्यक्तियों में जीनों का पता लगाने के लिए आण्विक (Molecular) जैविकी की तकनीकों को काम में लाया जाता है। ऐसे जीनों की पहचान, जो किसी व्यक्ति को विशेष कैंसरों के प्रति प्रवृत्त (Predispose) करते हैं, कैंसर की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कुछ ऐसे विशेष कैंसरजनों से, जिनके प्रति वे सुग्राही हैं, जैसे फुफ्फुस कैंसर में तंबाकू के धुएँ से बचने की सलाह देनी चाहिये।

कैंसरों का उपचार (Treatment of Cancer)-

  • आमतौर पर कैंसरों के उपचार के लिए शल्यक्रिया (Surgery), विकिरण चिकित्सा (Radiation therapy) एवं प्रतिरक्षा चिकित्सा (Immuno therapy) का उपयोग किया जाता है।
  • सामान्यतः रोगग्रस्त भाग को शल्यक्रिया द्वारा निकाला जाता है।
  • कैंसर कोशिकाओं को विकिरण द्वारा नष्ट कर दिया जाता है (Radiotherapy)।
  • कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने हेतु अनेक रसोचिकित्सीय (Chemotherapeutic) औरधियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ औषधियाँ विशेष अर्बुद के लिए विशिष्ट होती हैं।
  • अधिकांश कैंसर का उपचार शल्यकर्म, विकिरण चिकित्सा और रसोचिकित्सा के संयोजन से किया जाता है।
  • अर्बुद कोशिकाएँ प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पता लगाए जाने और नष्ट किए जाने से बचती हैं। इसलिए रोगी को ऐसे पदार्थ दिये जाते हैं जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपांतरण (Biological response modifiers) कहते हैं। जैसे Y- इंटरफेरॉन, जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करता है एवं अर्बुद को नष्ट करने में सहायता करता है।

प्रश्न 10.
प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र का चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं का नामांकित चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र (Life cycle of Plasmodium ) – जब संक्रमित मादा एनोफेलीज मनुष्य को काटती है तो प्लाज्मोडियम जीवाणुज अथवा स्पोरोजॉइट्स (Sporozoites) के रूप में मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। स्पोरोजॉइट्स संक्रामक रूप है। प्रारंभ में परजीवी यकृत में अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं और फिर लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) पर आक्रमण करते हैं जिसके फलस्वरूप लाल रुधिर कणिकाएँ फट जाती हैं। RBC के फटने के साथ ही एक विषैला पदार्थ भी निकलता है जिसे हीमोजोइन (Haemozoin) कहते हैं।

इस पदार्थ के रुधिर में मुक्त होते ही यह मनुष्य के रुधिर के प्लाज्मा में घुल जाता है तथा इसकी वजह से ही मनुष्य को जाड़ा व कंपकंपी देकर मलेरिया बुखार चढ़ने लगता है जब मादा एनोफेलीज मच्छर किसी संक्रमित मनुष्य को काटती है। तब परजीवी उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उनका आगे का परिवर्धन मादा एनोफेलीज में होता है।

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ये परजीवी मादा एनोफेलीज में बहु संख्यात्मक रूप से बढ़ते रहते हैं और स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) बन जाते हैं जो मादा एनोफेलीज की लार ग्रंथियों (Salivary glands) में जमा हो जाते हैं अब यह मादा एनोफेलीज किसी स्वस्थ मनुष्य को काटती है तो स्पोरोजोइट्स उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं मनुष्य को संक्रमित कर देते हैं।

इस प्रकार मलेरिया परजीवी अर्थात् प्लाज्मोडियम अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इस प्रकार प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता होती है जिन्हें मनुष्य एवं मादा एनोफेलीज़ कहते हैं। मनुष्य प्राथमिक एवं मादा एनोफेलीज द्वितीयक परपोषी होते हैं। मादा एनोफेलीज रोगवाहक (Transmitting agent ) का कार्य करती है।
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प्रश्न 11.
मानव में पाये जाने वाले प्रतिरक्षा तंत्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) निम्न रचनाओं से मिलकर बना होता है-

  1. लसीकाभ अंग ( Lymphoid organs)
  2. कोशिकाएँ (Cells)
  3. ऊतक (Tissues )
  4. घुलनशील अणु जैसे प्रतिरक्षी ( Soluble molecule like antibodies)

प्रतिरक्षा तंत्र विजातीय प्रतिजनों को पहचानता है, इनके प्रति अनुक्रिया करता है और इन्हें याद रखता है। प्रतिरक्षा तंत्र एलर्जी प्रतिक्रियाओं (allergic reactions ), स्व-प्रतिरक्षा रोगों (auto- immune diseases) और अंग प्रतिरोपण (Organ transplantation) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लसीकाभ अंग (Lymphoid Organs) – ये वे अंग हैं जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति अथवा परिपक्वन और प्रचुरोद्भन होता है।

लसीकाभ अंग दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्राथमिक लसीकाभ अंग ( Primary Lymphoid Organs) – ऐसे अंग जिनमें अपरिपक्व लसीकाणु, प्रतिजन संवेदनशील लसीकाणुओं में विभेदित होते हैं, प्राथमिक लसीकाभ अंग कहलाते हैं। उदाहरण- अस्थिमज्जा एवं थाइमस ।
  2. द्वितीयक लसीकाभ अंग (Secondary Lymphoid Organs) – परिपक्वन के पश्चात् लसीकाणु द्वितीयक लसीकाभ अंगों में चले जाते हैं।

जहाँ लसीकाणुओं की प्रतिजन के साथ पारस्परिक क्रिया होती है जो बाद में प्रचुर संख्या में उत्पन्न होकर प्रभावी कोशिकाएँ बन जाते हैं। उदाहरण – प्लीहा, लसीका ग्रंथियाँ, टांसिल क्षुद्रांत्र के पेयर पेंच एवं परिशेषिका। मानव के शरीर में लसीकाभ अंगों की स्थिति हेतु देखिए चित्र में। अस्थिमज्जा (Bonemarrow) एक मुख्य लसीकाभ अंग है जिसमें लसीकाणुओं एवं सभी रुधिर कोशिकाओं का निर्माण होता है। थाइमस (Thymus) एक पालियुक्त अंग है जो हृदय के पास उरोस्थि (Sternum) के नीचे स्थित होती है।

जन्म से थाइमस काफी बड़ी होती है लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे इसका आकार घटता जाता है और यौवनावस्था आने पर यह बहुत छोटे आकार की रह जाती है। अस्थि मज्जा एवं थामइस दोनों ही टी- लसीकाणुओं के परिवर्धन और परिपक्वन के लिए सूक्ष्म पर्यावरण (Micro environment) उपलब्ध करवाते हैं।
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प्लीहा (Spleen) की आकृति सेम के बीज के समान होती है। एवं आकार में बड़ा होता है। इसमें मुख्य रूप से लसीकाणु (Lymphocytes) और भक्षकाणु (Phagocytes) पाये जाते हैं। यह रुधिर में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवों को फांसकर रुधिर निस्यंदक ( Filter) के रूप में कार्य करते हैं। प्लीहा लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) का भण्डार होता है।

लसीका ग्रंथियाँ लसीका तंत्र पर भिन्न- भिन्न स्थलों पर स्थित होती हैं। ये लसीका ग्रंथियाँ आकार में छोटी एवं ठोस होती हैं। लिम्फ ग्रंथियाँ जो सूक्ष्म जीव या दूसरे प्रतिजन लसीका एवं ऊतक तरल में आ जाते हैं, उन्हें फाँस लेती हैं। लसीका ग्रंथियों में फंसे प्रतिजन वहाँ उपस्थित लसीकाणुओं के सक्रियण और प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी हैं।

श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊतक – प्रमुख पथों जैसे श्वसन, पाचन और जननमूत्र पथ आदि के आस्तरों के भीतर लसीकाभ ऊतक स्थित होते हैं जिन्हें श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊतक (Mucosal Associated Lymphoid Tissue) कहते हैं। यह मानव शरीर के लसीकाभ ऊतक का लगभग पचास प्रतिशत है।

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प्रश्न 12.
डिफ्थीरिया रोग का कारक, रोग लक्षण एवं बचाव के उपाय लिखिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया (Diphtheria)-इस रोग का रोगजनक कॉर्निबैक्टीरियम डिफ्थेरी (Cornybacterium diphtherea) है।
यह रोग प्राय: 1 से 5 वर्ष के बच्चों से होता है। संक्रमण अथवा संचरण वायु द्वारा होता है। इसकी उद्भवन अवधि 2-4 दिन की है।

रोग के लक्षण-

  1. हल्का ज्वर
  2. गले में दर्द
  3. गले में अर्ध ठोस पदार्थ का निकलना जो एक कठोर झिल्ली के रूप में बदल जाता है।
  4. इस झिल्ली से वायु पथ अवरुद्ध हो जाने से मृत्यु हो जाती है।

रोकथाम एवं उपचार-

  1. शिशुओं को डीपीटी का टीका लगाना चाहिये
  2. संक्रमित शिशु के थूक (कफ), मुख व नासिका स्रावों का निस्तारण किया जाना चाहिये।
  3. संक्रमित शिशु को अलग रखना चाहिये।
  4. चिकित्सक की देखरेख में एंटीबायोटिक औषधियाँ दी जा सकती हैं।

प्रश्न 13.
एड्स के HIV वायरस की संरचना बनाते हुए इसके संचरण, लक्षण व उपचार दीजिए।
अथवा
HIV का नामांकित चित्र बनाइए। इसकी संरचना का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
एड्स का पूरा नाम उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) इसका अर्थ है प्रतिरक्षातंत्र की न्यूनता, जो व्यक्ति के जीवन काल में उपार्जित होती है। 1981 में सबसे पहले एड्स का पता चला और पिछले 25 वर्षो में सारे संसार में फैल गया। इस रोग के कारण 2 करोड़ पचास लाख व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। एड्स एक विषाणु (Virus) जनित रोग है जो मनुष्य में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Human Immuno- deficiency Virus, HIV) के कारण होता है। एचआईवी RNA से निर्मित रिट्रोवायरस (Retrovirus) श्रेणी का वायरस है।

एच.आई.वी. की संरचना (Structure of HIV)-वायरस की सतह चारों ओर से फॉस्फोलिपिड (Phospholipid) की दो परतों से बनी होती है। जिसमें दो प्रकार की ग्लाइकोप्रोटीन्स, जी पी- 120 एवं जीपी -41 धँसी रहती हैं। विषाणु के मध्य में एक सूत्रीय आर एन ए के दो अणु पाये जाते हैं जिनसे रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) अणु जुड़े होते हैं।

आर एन ए अणु दो प्रोटीन आवरणों से घिरे होते हैं। जिनमें अंत आवरण (Inner coat) P-24 प्रोटीन्स से तथा बाह्य आवरण (Outer coat) P-17 प्रोटीन्स से निर्मित होता है। देखिए आगे चित्र में। रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की सहायता से एच आई वी RNA से DNA का निर्माण कर सकता है। एच आई वी दो प्रकार के होते हैं-

  1. एच आई वी-1
  2. एच आई वी-2

एच आई वी-1 (HIV-1) को एड्स रोग के लिए वर्तमान में जिम्मेदार मानते हैं।
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रोग का संचरण एच आई बी संचरण (Transmission of HIV)-एच आई वी सामान्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, बीर्य एवं योनि स्रावों में उपस्थित रहते हैं। अतः इनका संचरण ऐसी क्रियाओं के माध्यम से होता है जिनसे ये द्रव स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आते हैं सामान्यतः रोग का संचरण लैंगिक तथा रक्त संपर्क से होता है।

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एच आई वी का संचरण निम्न माध्यमों द्वारा होता है –

  1. समलैंगिक व्यक्तियों के बीच गुदा मैथुन क्रिया द्वारा
  2. संक्रमित व्यक्ति के रक्त आधान
  3. एक ही सुई द्वारा नशीले पदार्थों का उपयोग
  4. माता से शिशु में प्लेसेन्टा द्वारा
  5. संक्रमित व्यक्ति का किस (Kiss) लेने से HIV का संचरण हो जाता है जिसके मुंह में घाव होता है
  6. संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क

एड्स एक संक्रामक रोग है लेकिन यह छूत का रोग नहीं है। एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसके कपड़े उपयोग में लाने, शुष्क चुम्बन, बर्तनों के प्रयोग से, टॉयलेट सीट के माध्यम से, पूर्ण निर्जर्मीकृत सूइयों का प्रयोग कर रक्ताधान तथा रोगी की देखभाल से एड्स का संक्रमण नहीं होता है।

रोगजनकता एवं लक्षण-एड्स विषाणु अर्थात् एच आई वी शरीर में प्रवेश करने पर मुख्यतः सहायक टी लसीका कोशिकाओं को संक्रमित करता है। इन लसीका कोशिकाओं पर सी डी -4 ग्राही अणु उपस्थित होते हैं जिनसे विषाणु जुड़ जाते हैं। अब ये विषाणु इन कोशिकाओं (T4 Cells) को नष्ट करने लगते हैं।

चूंकि T- सहायक कोशिकाओं का कार्य अन्य लसीका कोशिकाओं को प्रतिरक्षा क्रिया के लिए सक्रिय करने का होता है, अतः T- सहायक कोशिकाओं की निरंतर कमी के कारण संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पूर्णतः शिथिल हो जाती है व रोगी कई प्रकार के गंभीर संक्रमणों का शिकार होकर अंततः मृत्यु को प्राप्त होता है।

संक्रमण होने और एड्स के लक्षण प्रकट होने की अवधि कुछ महीनों से लेकर कई वर्षों (प्राय: 5-10 वर्ष) की हो सकती है। अतः संभव है कि संक्रमित व्यक्ति कई वर्षों तक स्वयं रोगग्रस्त न हो किंतु वह एच आई वी के संचरण का माध्यम बना रह सकता है जबकि कुछ अन्य अपेक्षाकृत कम अवधि में ही रोगग्रस्त हो जाएँ व कुछ वर्षो बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। एड्स दरअसल में कोई एक रोग नहीं है किंतु एक ऐसी दशा है जिसमें एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को समाप्त कर देता है। जिससे वह कई रोगों से ग्रसित हो जाता है।

जिसके फलस्ववरूप निम्न लक्षण प्रकट होते हैं –

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना
  • लसीका गांठों का फूलना
  • लंबे समय तक लगातार खाँसी होना
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना
  • त्वचा पर कैंसर के लक्षण।

एड्स वास्तव में रोग की अंतिम अवस्था है जिसमें सर्वाधिक प्रमुख लक्षणों में न्यूमोसिस्टिस कैरीनाई न्यूमोनिया तथा कैपोसी का सार्कोमा (Kaposi’s Sarcoma) शामिल है। निदान-संक्रमण के पश्चात् छः से आठ सप्ताह के अंदर शरीर में प्रतिरक्षी अनुक्रिया प्रकट होना प्रारंभ हो जाती है।

इसके परीक्षण हेतु निम्नलिखित तीन परीक्षण किये जाते हैं –

  • एलाइजा परीक्षण (Enzyme Linked Immunosorbent Assay)-इसमें AIDS-KIT का प्रयोग करते हैं जो कि HIV प्रतिंजन से युक्त होती है।
  • वेस्टर्न ब्लाड परीक्षण (Western Blod Test)-यह परीक्षण महंगा नहीं होता है। इसके साथ ही यह विश्वसनीय व सटीक परीक्षण है। इस परीक्षण में समय भी कम लगता है।
  • लार परीक्षण (Saliva Test)-यह परीक्षण लार (Saliva) का परीक्षण है व ऐसी मान्यता पर आधारित है कि एड्स का संचरण लार द्वारा होता है।

उपचार (Treatment)-एड्स के उपचार की कोई निश्चित रूपरेखा नहीं है। संक्रमण जो बढ़ते हैं या हो गये हैं, का उपचार संभव है। सामान्य प्रबंध, जाँच व विशिष्ट एंटी HIV एजेंट का उपयोग किया जाता है। मौकापरस्त संक्रमणों व अर्बुदों का उपचार प्राथमिक अवस्था में लाभदायक होता है एवं रोगी सामान्य जीवन लंबे समय तक व्यतीत करने योग्य बना रहता है। विषाणुओं को नष्ट करने योग्य औष्षधियां जैसे इंटरफेरॉन, रोबाविरीन, सूरामिन, फासकारनेट आदि उपयोग में लायी जा रही हैं।

जीडोव्यूडीन AZT विशेष तौर पर उपयोगी पाई गयी है। दो न्यूक्लिओक्साइड एनालोग AZT अर्थात् जीडोब्यूडीन (3 azido-3′ deoxy thymidine) तथा लेमीब्यूडीन (3 TC) एवं एक प्रभावी प्रोटीएज अवरोधक (Inhibitor) इन्डिनेविर (Indinavir) द्वारा रक्त में विषाणु की मात्रा 20,000 से 10 Lac RNA की प्रतियां प्रति 1 मिलि प्लाज्मा में घटने के प्रमाण मिले हैं। यह कमी 90% रोगियों में लगभग एक वर्ग तक बनी रहती है।

इसके अतिरिक्त एड्स के उपचार के लिए प्रभावी टीके (Vaccines) के निर्माण में वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। कुछ टीके जैसे HIV-HiG बायोसिन आदि का विकास संभव हो पाया है। किंतु व्यावहारिक तौर पर अभी तक कोई भी टीका एड्स से पूर्ण बचाव करने में सक्षम नहीं है।

ऐसी स्थिति में जबकि एड्स का कोई संपूर्ण व प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है. व इसके कारकों से बचाव ही रोग से बचने के उपाय हैं तो सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा व्यापक स्तर पर जनसाधारण को इसकी समुचित जानकारी देना व संक्रमण से बचने के उपायों के अनुरूप जीवन पद्धति अपनाने को प्रेरित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण व आवश्यक है।

निम्नलिखित उपाय एड्स से बचाव करने में उपयोगी हैं-

  1. सदैव निर्जर्मीकृत सुई का प्रयोग करना चाहिये।
  2. रक्त आधान में एच.आई.वी. मुक्त रक्त ही स्थानान्तरित करना चाहिये।
  3. वेश्यावृत्ति को नकारा जाना चाहिये।
  4. समलैंगिकता को नकारा जाना चाहिये।
  5. एक से अधिक स्त्री या पुरुष से शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करने चाहिए।
  6. नशीली दवाओं के रुधिर के माध्यम से प्रयोग पर रोक लगानी चाहिये।
  7. आम जनता को इस रोग के बारे में शिक्षित कर उससे बचाव हेतु जागरूक बनाना चाहिये।

हमारे देश में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संघटन (National AIDS Control Organisation) और अन् गैर सरकारी संगठन (NGO) लोगों को एड्स के बारे में शिक्षित करने के लिए बहुत कार्य कर रहे हैं। एच आई वी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अनेक कार्यक्रम प्रारंभ किये।

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इन कार्यक्रमों में निम्नलिखित पर ध्यान दिया जा रहा है-

  • निरोधों (कण्डोम) का निःशुल्क वितरण।
  • सुरक्षित यौन संबंधों पर जोर।
  • सार्वजनिक एवं निजी अस्पतालों में केवल डिस्पोजेबल सुइयाँ या सीरिज का ही उपयोग हो।
  • रुधिर एवं रुधि उत्पादों का अनिवार्य रूप से एच आई वी मुक्त होना।
  • एच आई वी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना।
  • ड्रग के कुप्रयोगों को नियंत्रित करना।

प्रश्न 14.
व्यसन एवं निर्भरता से आप क्या समझते हैं? व्यसनी बनाने वाली किसी एक ड्रग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
व्यसन और निर्भरता (Addiction and Dependence):
व्यक्ति की किसी भी पदार्थ पर जैसे कि तम्बाकू, ऐल्कोहॉल तथा ड्रग्स पर शारीरिक तथा मानसिक निर्भरता व्यसन (Addiction) कहलाती है। ड्रग्स का उपयोग करने वाले व्यक्ति की मानसिक तथा शारीरिक दशा बदल जाती है। इसके लगातार ग्रहण करने से व्यक्ति ड्रग्स के लिए व्यसनी (लती) हो जाता है क्योंकि ड्रगों के वार-बार उपयोग से हमारे शरीर में उपस्थित ग्राहियों का सह़्ा स्वर बढ़ जाता है।

इसके फलस्वलूप ग्राही, ड्रगों या ऐल्कोहॉल की केवल उच्चतम मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है अर्थात् निर्भर हो जाता है एवं इनके बिना उसका जीना कठिन हो जाता है। जब किसी आदतन ड्रग/ऐल्कोहॉल लेने वाले व्यक्ति की नियमित माश्रा को अचानक बंद कर दिया जाता है तो उसे कई प्रकार के सम्मिलित जटिल प्रभावों युक्त लक्षणों का आभास होता है। ये लक्षण विनिवर्तन संलक्षण (Withdrawal Syndrome) कहलाते हैं। ऐसे लक्षण निम्न हैं-

  • ड्रत्स के बार-बार उपयोग करने की मानसिक इच्छा
  • हल्के कंपन
  • प्रबल दौरे
  • उद्वेग
  • त्वरित बेहोशी
  • पसीना आना
  • घिंता
  • मिचली आना
  • हुदय की गति बढ़ जाना
  • सहनता (शरीर में ड्रग्स की बढ़ती जाती सहनता के कारण व्यसनी को उसकी और ज्यादा मात्रा का घाहना)
  • ड्रग्ल से कुछ समय दूर रहने के बाद भी डूग का व्यसन।  सकारात्मक सहयोग होना चाहिये।

कई बार यह स्थिति काफी गंभीर हो सकती है व पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। अतः वापसी अवधि चिक्रिसकीय देख-रेख में होनी चाहिए। प्रयोग की जा रही ड्रग को अचानक बंद करने या परिवर्जन (Abstinence) के कारण वह व्यक्ति याचना करने लगता है। ऐसे व्यक्ति को मानसिक सहारा (Psychological Support) की अत्यन्त आवश्यकता होती है तथा ऐसे समय में परिवार के सदस्यों एवं मित्रों का।

प्रश्न 15.
उपार्जित असंक्राम्यता की परिभाषा दीजिए तथा इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity):
यह एक प्रतिरोध है जो व्यक्ति विशेष को जीवन के दौरान प्राप्त होता है। यह सूक्ष्म जीवों के संपर्क के प्रभाव से उत्पन्न होता है। इस प्रकार की प्रतिरक्षा केवल कशेरुकों में पायी जाती है। इसे विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहते हैं। यह प्रतिरक्षा जन्म के पश्चात् व्यक्ति द्वारा अर्जित की जाती है तथा इसके द्वारा किसी भी जीवाणु के शरीर में प्रवेश करने पर पहचान कर विशिष्ट क्रिया द्वारा नष्ट किया जाता है।

उपार्जित प्रतिरक्षा के विशिष्ट लक्षण –

  1. प्रतिजनी विशिष्टता (Antigenic Specificity)-यह प्रत्येक रोगकारक जीवाणु, विषाणु तथा रोग के लिए विशिष्ट होती है तथा अलग-अलग रोगकारक पर अलग-अलग प्रकार से प्रक्रिया कर उन्हें विशिष्ट रूप से नष्ट करती है।
  2. विविधता (Diversity)-इनमें अनेक प्रकार के रोगकारकों को पहचानने की आश्चर्यजनक विविधता पाई जाती है।
  3. प्रतिरक्षात्मक स्मृति (Immunological Memory)प्रतिरक्षित तंत्र द्वारा एक बार किसी प्रतिजन का अभिज्ञान होने व उसके प्रति प्रतिरक्षी अनुक्रिया दर्शाने के बाद जीव में उस विशिष्ट प्रतिजन के लिए स्मृति स्थापित हो जाती है। यदि इस विशिष्ट प्रतिजन का भविष्य में पुनः संक्रमण होता है तो प्रतिरक्षात्मक स्मृति के कारण प्रतिरक्षित तंत्र अनुक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया की तुलना में अधिक तीव्र होती है ।
  4. दीर्घकालिकता (Longevity)-किसी विशेष रोग की विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ उत्पादित होने के बाद व्यक्ति विशेष को उस खास रोग से दीर्घकालीन सुरक्षा प्रदान करती है। क्योंकि ये प्रतिरक्षियाँ लंबी अवधि तक शरीर में बनी रहती हैं।
  5. अपने एवं पराये (Self & Non-self)-यह सिद्धांत फ्रेंक मैकफारलेन बर्नेट ने प्रतिपादित किया। उपार्जित प्रतिरक्षा प्रणाली विजातीय या पराये अणुओं की पहचान कर उनके विरुद्ध प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया दर्शाने में समर्थ होती है।

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दूसरी तरफ स्वयं के शरीर में उपस्थित अणुओं के प्रति अनुक्रिया नहीं प्रदर्शित करती है प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं (Cells of Immunne System) –
(1) लसीका कोशिकाएं (Lymphocytes)-ये सभी आरंभ में अस्थिमज्ञा की रुधिर उत्पन्न करने वाली, स्टेम सेल अथवा वृंत कोशिकाओं से व्युत्पन्न होती हैं। वृन्त कोशिकाओं का अर्थ अविभेदित कोशिकाओं से है जिनमें असीमित विखंडन हो सकता है और जो एक या अनेक प्रकार की कोशिकाओं को उत्पन्न कर सकती हैं।

अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएं बंट कर लाल रुधिर कणिकाएँ (erythrocytes), रक्त बिम्बाणु (blood platelets), एककणिकीय श्वेत रुधि कोशिकाएं (Granulocytes) व श्वेत रक्त कोशिकाएं (Monocytes) बनाती हैं। ये श्वेत रुधिर कोशिकाओं से व्युत्पन्न होती हैं। प्रतिरक्षण कार्य करने के लिए उत्तरदायी मुख्य कोशिकीय प्रकार लसीका कोशिकाएं हैं। लगभग 1012 लसीका कोशिकाएं परिपक्व लसीका प्रणाली का निर्माण करती हैं।

कार्य के अनुसार इन्हें दो भागों में बांटा गया है-
(क) B कोशिकाएं या B लसीका कोशिकाएं
(ख) T कोशिकाएं या T लसीका कोशिकाएं
आकृति के आधार पर इन कोशिकाओं में भेद नहीं किया जा सकता है लेकिन क्रियात्मक रूप से ये भिन्न होती हैं। प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाओं में विशिष्ट कोशिका सतही संकेतक की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर भेद किया जा सकता है ।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 18

(क) B कोशिकाएं (B-लसीका कोशिकाएं एवं इनकी उत्पत्ति)
‘B’ Bursa बर्सा (श्लेषपुटी) के लिए प्रयुक्त होता है। पक्षियों पर किये गये अध्ययन से पता चलता है कि पक्षियों में पाया जाने वाला फेब्रिसियस की श्लेषपुटी पश्च आहार नली का लसीका अंग एंटीबॉडी कोशिकाओं के आरंभिक विकास का स्थान था। इन कोशिकाओं को B-कोशिकाएं कहा जाता है। (B की व्युत्पत्ति Bursa of Fabricius से हुई है)।

B- कोशिकाएं अस्थिमज्जा में परिपक्व होती हैं और तत्पश्चात् रक्त द्वारा परिधीय लसीका अंगों को ले जायी जाती हैं। स्तनधारियों में B-कोशिका वंश आरंभ में भ्रूणीय यकृत में उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया मानव गर्भावस्था के आठवें सप्ताह में प्रारंभ होती है। भ्रूणीय यकृत B- कोशिकाओं के उत्पादन का प्रमुख स्थान है और गर्भावस्था के 4 से 6 माह तक बना रहता है। स्टेम कोशिकाएं फिर अस्थि मज्ञा में बस जाती हैं। इसके बाद उम्र भर B- कोशिकाएं अनवरत रूप से अस्थि मज्ञा में उत्पन्न होती रहती हैं।

B कोशिकाओं के प्रमुख कार्य –

  • एन्टीबॉडी माध्यमित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रारंभ करना
  • एन्टीबॉडी बनाने वाली प्लाज्मा कोशिकाओं में रूपान्तरित होना।

कोशिकाओं के विशिष्ट लक्षण :

  1. B कोशिकाएं इम्यूनोग्लोब्यूलिन को अपनी कोशिका झिल्ली के एकीकृत प्रोटीन के रूप में दर्शाती हैं।
  2. यह सतही इम्यूनोग्लोब्यूलिन (एंटीबॉडी) इसके विशिष्ट (ऐन्टीजन) प्रतिजन के लिए अभिग्राहक का काम करती है।
  3. B कोशिकाएं एंटीबॉडी के निर्माण के लिए उत्तरदायी हैं। सक्रियत B कोशिकाएं प्लाज्मा कोशिकाओं में परिवर्तित होती हैं।
  4. B-कोशिकाओं की कुछ संततियां प्लाज्मा-कोशिकाओं में विभेदित नहीं होती हैं, वरन् स्मृति कोशिकाएं (Memory Cells) बन जाती हैं जो प्रतिजन के भविष्य में पुनः प्रकट होने की स्थिति में ऐंटीबॉडी बनाती हैं।
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(ख) T-कोशिकाएँ (T-लसीका-कोशिकाएँ )-Bकोशिकाओं के विपरीत दूसरी लसीका कोशिकाएं भूणीय अवस्था या जीवन की आरंभिक अवस्था में अस्थि मज्ञा छोड़ देती हैं। ये थाइमस में ले जायी जाती हैं। इस अंग में परिपक्व होती हैं तदुपरांत परिधीय लसीका (लिम्फ) अंगों की ओर गमन करती हैं। ये कोशिकाएं द्वितीय लसीका कोशिकीय वर्ग का निर्माण करती हैं जिन्हें T- लसीका कोशिकाएँ या T-कोशिकाएँ कहते हैं। T की व्युत्पत्ति थाइमस (Thymus) से हुई है। लेकिन B-कोशिकाओं की भाँति इनका भी परिधीय लसीका-अंगों में सूत्री विभाजन होता है और संतति कोशिकाएँ मूल T कोशिकाओं के समरूप होती हैं।

T-कोशिकाओं के कार्य –

  1. प्रतिरक्षण प्रतिक्रिया का नियमन
  2. कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा-अनुक्रिया की मध्यस्थता।
  3. प्रतिरक्षा बनाने के लिए B कोशिकाओं को प्रेरित करना।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

T कोशिकाओं को उनकी क्रियाशीलता के अनुसार तीन वर्गों में विभाजित किया गया है –

  1. सहायक T कोशिकाएँ (TH) -B कोशिकाओं की अनुक्रिया को बढ़ाती हैं जिससे ऐंटीबॉडी का निर्माण होता है। अन्य T कोशिकाओं को क्रियाशील बनाती हैं।
  2. कोशिका विष T कोशिकाएं (TC) – ये विषाणुओं से संक्रमित व अबुर्द कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
  3. संदमक T कोशिकाएं (TS) – ये सहायक T कोशिकाओं और संभवतः B कोशिकाओं का दमन करती हैं और B कोशिकाओं की क्रियाशीलता का नियमन करती हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि T कोशिकाएँ दो सामान्य प्रकार के प्रतिरक्षी कार्य करती हैं –

  • प्रभावकारक
  • नियामक

संरचनात्मक रूप से, T कोशिकाओं को कुछ विशिष्ट सतही अणुओं (T कोशिका अभिग्राहकों) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर विभेदित किया जाता है। B कोशिकाएं व T कोशिकाएं एकदूसरे के लिए सहयोगी हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है –
(1) कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा-कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा के लिए T कोशिकाओं का एक उपसमूह T मारक कोशिकाएं अथवा कोशिका विष T कोशिकाएं जिम्मेदार हैं। T- मारक कोशिकाएं एक ऐसे पदार्थ का निर्माण करती हैं जो पर्फोरिन्स प्रोटीन से निर्मित होता है। इसकी सहायता से लक्ष्य कोशिकाओं की कोशिका कला को घोल कर उसमें छिद्र उत्पन्न करके नष्ट कर दिया जाता है ।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 20
किसी रोगजनक परजीवी या प्रतिजन के किसी जंतु की कोशिका को संक्रमित करने पर विशिष्ट प्रकार की T संवेदी कोशिका उस प्रतिजन के प्रतिजनी निर्धारक स्थलों के संपर्क में आती है। यह कोशिका अब क्लोन बनाने का कार्य प्रारंभ कर देती है। सक्रिय लसीका कोशिकाओं द्वारा लिम्फोकाइन्स पदार्थ मुंक्त किये जाते हैं।

इन लिम्फोकाइन्स को इन्टरल्यूकिन्स भी कहते हैं। ये लिम्फोकाइन्स नियमनकारी प्रोटीन्स होते हैं जो वृहत् भक्षकाणुओं की कोशिका भक्षण क्रिया, इनकी संख्या एवं समूहन क्षमता में वृद्धि करते हैं जिसके फलस्वरूप संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रतिरक्षा की सहायता से धीरे-धीरे बढ़ने वाले रोगों से सुरक्षा की जाती है जैसे कैंसर, तपेदिक, कुष्ठ, ब्रुसैलोसिर्स, कैन्डीडियासिस, रिकैटशिया आदि।

(2) तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा-इस प्रकार की प्रतिरक्षा में शरीर में प्रवेश होने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं तथा विषैले पदार्थों के प्रभाव को नष्ट करने हेतु अलग-अलग प्रकार की B-लसीका कोशिका निर्धारित होती हैं। किसी विशिष्ट प्रकार के आक्रमणकारी जीव या विष पदार्थ को नष्ट करने के लिए विशेष प्रकार की लसिकाणु विशिष्ट ग्लोब्यूलिन प्रोटीन उत्पन्न करती है।

ये प्रोटीन रुधि, लसीका तथा ऊतक द्रव्य में से होकर रोगकारी जीवों या विष पदार्थों का नाश करती हैं। ऐसी प्रोटीन्स प्रतिरक्षी ग्लोब्यूलिन्स प्रकृति की होती हैं व प्रतिरक्षी या प्रतिपिंड कहलाती हैं।

चूंकि इन प्रतिपिंडों एवं प्रतिजनों के मध्य विशिष्ट अंतक्रिया सामान्यतः रक्त या लसीका जैसे तरल माध्यम से होती है इसलिए इसे तरल या संचारी माध्यित प्रतिरक्षा कहते हैं। प्रतिरक्षी अणु ( एंटीबॉडी) की संरचना (Structure of Antibody)-यह जटिल ग्लाइको प्रोटीन से मिलकर बना अणु होता है जिसमें चार पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ दो भारी ( 440 अमीनो अम्ल) तथा दो हल्की श्रृंखला ( 220 अमीनो अम्ल) आपस में डी-सल्फाइड बंध द्वारा मुड़कर Y आकृति बनाती हैं, देखिए नीचे चित्र में। एंटीबॉडी को H2 L2 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
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यह अणु शीर्ष पर उपस्थित दो बिंदुओं पर एंटीजन (बड़ा और जटिल बाह्य अणु, मुख्य रूप से प्रोटीन जो विशिष्ट प्रतिरक्षा को सक्रिय करता है) से ताला-कुंजी (Lock \& Key) के सिद्धांत के अनुसार जुड़कर एंटीजन एंटीबॉडी कॉम्पलेक्स बनाता है। एंटीबॉडी का पुच्छीय भाग (Tail portion) भारी श्रृंखला से बना होता है, यह स्थिर खण्ड कहलाता है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी उत्पन्न किये जाते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं- IgA IgM}, IgE एवं lg।

अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplanation)-जब शरीर के किसी अंग का संतोषजनक रूप से काम करना बंद कर दे अथवा दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण, एकमात्र उपचार प्रत्यारोपण होता है। इन अंगों के स्थान पर किसी उपयुक्त दाता से प्राप्त स्वस्थ अंग को आरोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया को अंग प्रत्यारोपण कहते हैं।

हृदय, नेत्र, वृक्क, यकृत, अग्नाशय, फेफड़े आदि अंगों का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया जाता है। अंग प्रत्यारोपण की सफलता शरीर कोशिकाओं पर उपस्थित मुख्य ऊतक संयोज्यता प्रतिजनों के मध्य उचित मिलान (Proper matching) होने पर निर्भर करती है।

मानव में ये प्रतिजनी पदार्थ मानव श्वेताणु प्रतिजन कहलाते हैं। मानव श्वेताणु प्रतिजन जीन के युग्मविकल्पी सहप्रभावी होते हैं। इन जीन्स के उत्पाद दाता व ग्राही के ऊतकों के मध्य ऊतक संयोज्यता का निर्धारण करते हैं। अंग प्रत्यारोपण को कई बार ग्राही द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है क्योंकि ग्राही के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा प्रत्यारोपित अंग को प्रोटीन्स की पराये या विजातीय की तरह पहचान की जाती है व

ग्राही का प्रतिरक्षा तंत्र उसके विरुद्ध प्रतिपिंड (Antibodies) उत्पन्न करने लगता है और कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा द्वारा प्रत्यारोपित अंग को अस्वीकार कर दिया जाता है। ऊतक अस्वीकार्यता को रोकने हेतु ग्राही को प्रतिरक्षी क्रिया दमनक औषधियाँ (Immuno Suppressive drugs) दी जाती हैं। वृक्क, हदय एवं यकृत प्रत्यारोपण के समय साइक्लोस्पोरीन नामक औषधि दी जाती है जो कि T कोशिकाओं की क्रियाशीलता को रोकती है।

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प्रश्न 16.
‘टाइफॉयड’ रोग का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए-
(i) रोगजनक का नाम
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम
(iii) संक्रमण का तरीका
(iv) रोग के चार प्रमुख लक्षण
(v) प्रतिरक्षी अणु की संरचना का चित्र ।
उत्तर:
(i) साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi)
(ii) विडाल परीक्षण ( Widal test)
(iii) यह रोगजनक आमतौर से संदूषित (contaminated) भोजन और पानी द्वारा छोटी आंत में प्रवेश कर जाता है और वहाँ से रुधिर द्वारा शरीर के अंगों में पहुँच जाता है।
(iv) रोग होने पर निरन्तर उच्च ज्वर (39 से 40 सेंटी.) आना, कमजोरी, आमाशय में पीड़ा, कब्ज, सिरदर्द, भूख न लगना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। गंभीर अवस्था में आंत्र में छेद और मृत्यु भी हो सकती है ।
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प्रश्न 17.
‘एड्स’ रोग का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए-
(i) रोगजनक का नाम
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम
(iii) रोग के चार प्रमुख लक्षण
(iv) रोकथाम के चार उपाय
(v) पश्च विषाणु की प्रतिकृति का चित्र |
उत्तर:
(i) यह रोग HIV के कारण होता है। HIV का पूरा नाम Human immuno deficiency Virus विषाणु है।
(ii) एड्स परीक्षण हेतु एलीसा टेस्ट (Elisa test) किया जाता मानव प्रतिरक्षा न्यूनता हैं।
(iii) (क) शरीर में प्रतिरक्षा क्षमता कम हो जाती है।
(ख) संक्रमित व्यक्ति में थकावट, ज्वर, सिरदर्द, खांसी आदि प्रारम्भिक लक्षण होते हैं।
(ग) लिम्फ ग्रन्थियों (Lymph glands) में सूजन आ जाती है।
(घ) सामान्य उपचार के बाद ठीक न होना।

(iv) (क) रुधिर आधान के समय यह जाँच कर लेनी चाहिए कि रुधिर HIV मुक्त हो ।
(ख) लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने में सावधानी रखनी चाहिए, कण्डोम का उपयोग करना चाहिए।
(ग) दाढ़ी बनाने के लिए सदैव अपना ही ब्लैड प्रयुक्त करना चाहिए।
(घ) इंजेक्शन की सुई का प्रयोग एक बार ही करना चाहिए।
(v) पश्चविषाणु की प्रतिकृति का चित्र [नोट- यह चित्र निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 6 के उत्तर में देखें ।]

प्रश्न 18.
प्रतिरक्षा ( इम्यूनिटी) से क्या तात्पर्य है ? सहज प्रतिरक्षा के चार रोध कौन-कौन से हैं? समझाइए । प्रतिरक्षी अणु की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
प्रतिरक्षा (Immunity) – शरीर में रोग या रोगाणुओं से लड़कर स्वयं को रोग से सुरक्षित बनाये रखने की क्षमता को प्रतिरक्षा (Immunity) कहते हैं। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं। जैसे-
(1) कार्यिकीय रोध (फीजियोलॉजिकल बैरियर) – आमाशय में अम्ल, मुँह में लार, आँखों में आँसू, ये सभी रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं।

(2) शारीरिक रोध (फिजिकल बैरियर) – हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है। श्वसन, जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेटाइनल) और जननमूत्र पथ को आस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा आलेप (म्यूकस कोटिंग) भी शरीर में घुसने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है।

(3) कोशिकीय रोध (सेल्युलर बैरियर) – हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केंद्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पी एम एन एल- न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेंद्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊतकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।

(4) साइटोकाइन रोध-विषाणु संक्रमित कोशिकाएँ इंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्रवण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु संक्रमण से बचाती हैं।

प्रश्न 19.
एड्स शब्द का पूरा नाम लिखिए। इस रोग के कारक वाइरस को किस नाम से जाना जाता है? एड्स रोग के लक्षण व रोकथाम के उपाय बताइये। एड्स वाइरस की प्रतिकृति का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
एड्स शब्द का पूरा नाम उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिन्ड्रोम) है। इस रोग के कारक वाइरस को एच आई वी (ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के नाम से जाना जाता है। एड्स रोग में व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है जिससे वह कई गम्भीर रोगों से ग्रसित हो जाता है।

जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं –

  • रोगी को लगातार बुखार आना ।
  • लम्बे समय तक लगातार खाँसी आना ।
  • शरीर का भार कम होना ।
  • लसीका गांठों में सूजन आना।
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना ।

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एड्स रोग के रोकथाम के उपाय –

  • एच आई वी संक्रमण से युक्त व्यक्ति के साथ कोई भी यौन सम्पर्क नहीं होना चाहिए।
  • डिस्पोजल ( एक बार प्रयोगी) सूइयों का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • जरूरतमंद व्यक्ति के लिए चढ़ाया जाने वाला रक्त, HIV रोगाणु मुक्त होना चाहिए।
  • वेश्यागमन तथा समलैंगिकता से बचना चाहिए।
  • कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए ।
  • एड्स पीड़ित स्त्री को माँ नहीं बनने देना चाहिए।
  • समष्टि में एच आई वी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना ।
  • इस रोग के फैलाव को समाज और चिकित्सक वर्ग के सम्मिलित प्रयास से रोका जा सकता है।

पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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प्रश्न 20.
(i) प्रतिरक्षा किसे कहते हैं?
(ii) सक्रिय प्रतिरक्षा एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर लिखिए ।
(iii) निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण को समझाइए ।
(iv) मच्छर परपोषी में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की अवस्थाओं का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
(i) प्रतिरक्षा (Immunity ) – शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरक्षा कहलाती है।
(ii) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर (Difference between Active and Passive Immunity)-

सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity)निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity)
1. जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणुओं या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है।1. जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है।
2. सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है।2. जबकि निष्क्रिय प्रतिरक्षा तेज होती है।
3. यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है।3. यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय नहीं लेती है।
4. यह पूरे जीवन कार्य करती है। उदाहरण-मानव में चेचक रोग के प्रति प्रतिरक्षा।4. इसका प्रभाव कुछ समय के लिए होता है। उदाहरण-मानव में सांप के जहर (वेनम), टिटेनस, रैबीज रोग के टीकाकरण द्वारा प्रतिरक्षा।

(iii) निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण (Passive Immunity) – कुछ रोगों से बचाव के लिए प्रयोगशाला में उपयुक्त एण्टीबॉडीज तैयार करके, रोग की सम्भावना से पहले ही शरीर में इंजैक्ट कर दिये जाते हैं। ये कुछ समय के लिए शरीर में सक्रिय बने रहते हैं। यदि इस बीच सम्बन्धित रोगाणु या एण्टीजेन्स शरीर में पहुंच जाते हैं तो ये एण्टीबॉडीज इन्हें नष्ट कर देते हैं। इसे शरीर की निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहते हैं ।

यह विधि टिटेनस, पोलियो, हिपैटाइटिस से प्रतिरक्षा में काम आती है। माता के रुधिर परिसंचरण से एण्टीबॉडीज ऑवल या अपरा (placenta ) द्वारा गर्भस्थ शिशु को प्राप्त होती है। नवजात शिशु को माता के दुग्धपान द्वारा निष्क्रिय प्रतिरक्षा मिलती है। इसमें IgA एण्टीबॉडीज होती है।

शिशु जन्म के पश्चात् पहली बार बच्चे को दूध जैसा पदार्थ कोलस्ट्रम (colstrum) इसीलिए दिया जाता है कि उसमें IgA एण्टीबॉडीज प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है। ये शिशु की किसी भी रोग के रोगाणुओं के संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा सुरक्षा प्रदान करती है। इस प्रकार निष्क्रिय प्रतिरक्षा उपार्जित प्रतिरक्षा होती है।

(iv) मच्छर परपोषी में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र की अवस्थाओं का नामांकित चित्र-
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(i) कैंसर रोग के कारण लिखिए।
(ii) कैंसर अभिज्ञान को समझाइए ।
(iii) लसीका तंत्र का आरेखीय चित्र बनाइए ।
उत्तर:
(i) कैंसर रोग के कारण (Causes of Cancer) – इस रोग में कोशिका विभाजन अनियन्त्रित, अनियमित तथा तीव्र गति से होता है। ये कोशिकाएँ न तो क्रियाकारी (functional) होती हैं और न इनका विभेदीकरण (differentiation) होता है। ये कोशिकाएँ अन्य कोशिकाओं को पोषक पदार्थों को ग्रहण नहीं करने देतीं, जिससे उनकी मृत्यु होने लगती है। इस प्रकार के तीव्र कोशिका विभाजन से उस स्थान विशेष पर गाँठ या अर्बुद (tumour) बन जाती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

शरीर में कोशिका वृद्धि तथा विभेदन अत्यन्त नियमित एवं नियन्त्रित क्रिया विधि के द्वारा होता है। प्रसामान्य कोशिकाओं में यह गुण जिसे संस्पर्श संदमन (contact inhibition) कहते हैं, दूसरी कोशिकाओं की अनियन्त्रित वृद्धि को संदमित करता है। कैंसर कोशिकाओं में इस प्रकार का संदमन समाप्त हो जाता है।

कैंसर का कारण कोशिकाओं में उपस्थित ऑन्कोजीन्स (onchogenes) का सक्रिय होना माना जाता है। यद्यपि ऑन्कोजीन्स सभी कोशिकाओं में होती हैं, किन्तु सामान्यतः ये निष्क्रिय होती हैं। किसी विशेष कारण से वे सक्रिय हो सकती हैं। इन कारणों में क्रोमियम, निकिल, एस्बेस्टॉस, धुआँ, कोलतार, तम्बाकू अथवा कुछ विषाणु आदि कारक हो सकते हैं।

(ii) कैंसर का अभिज्ञान (Cancer detection) – कैंसर का अभिज्ञान ऊतकों का जीवतिपरीक्षा (Biopsy) और ऊतक विकृति (Histopathological) अध्ययनों तथा बढ़ती कोशिका गणना के लिए रुधिर (Blood) तथा अस्थिमज्जा (Bonemarro) पर आधारित है। जैसाकि अधिश्वेतरक्तता (Lukemias) के मामले में होता है जीवूतिपरीक्षा (biopsy) में जिस ऊतक पर शंका होती है, उसका एक टुकड़ा लेकर पतले अनुच्छेदों (Sections) में काटकर अभिरंजित करके रोगविज्ञानी (Pathologist) परीक्षण किया जाता है।

आन्तरिक अंगों (Internal organs) के कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण चित्रण (Radiography), अभिकलित टोमोग्राफी (Computed Tomography) एवं चुम्बकीय अनुनादी इमेजिंग (MRI- Magnetic resonance imaging) तकनीकें बहुत उपयोगी हैं। अभिकलित टोमोग्राफी एक्स किरणों का उपयोग करके किसी अंग के भीतरी भागों की त्रिविम प्रतिबिंब (Three-dimensional image) बनाती है।

जीवित ऊतक में वैकृतिक (Pathological) और कार्यिकीय (Physiological) परिवर्तनों का सही पता लगाने के लिए एम.आर.आई. में तेज चुम्बकीय क्षेत्रों और अनायनकारी विकिरणों का उपयोग किया जाता है। कुछ कैंसरों का पता लगाने के लिए कैंसर विशिष्ट प्रतिजनों के विरुद्ध प्रतिरक्षियों (Antibodies) का भी उपयोग किया जाता है।

कुछ कैंसरों के प्रति वंशागत सुग्राहिता वाले व्यक्तियों में जीनों का पता लगाने के लिए आण्विक (Molecular) जैविकी की तकनीकों को काम में लाया जाता है। ऐसे जीनों की पहचान, जो किसी व्यक्ति को विशेष कैंसरों के प्रति प्रवृत्त (Predispose) करते हैं, कैंसर की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कुछ ऐसे विशेष कैंसरजनों से, जिनके प्रति वे सुग्राही हैं, जैसे फुफ्फुस कैंसर में तंबाकू के धुएँ से बचने की सलाह देनी चाहिये।

(iii) लसीका तंत्र का आरेखीय चित्र-
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प्रश्न 21.
पश्च विषाणु की प्रतिकृति का चित्र बनाइए। एड्स रोगजनक का पूरा नाम लिखिए। इसका संकरण कैसे होता है? मानव शरीर में एड्स के लक्षणों को समझाइए।
उत्तर:
पश्चविषाणु (रेट्रोवायरस ) – एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी. ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) के कारण होता है। एच. आई. वी. विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु रेट्रोवायरस कहते हैं, जिनमें आर.एन.ए. जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है। देखिए आगे चित्र में।
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एड्स रोगजनक का नाम-
HIV =  Human Immuno Deficiency Virus प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु
रोग का संचरण – एचआईवी सामान्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य एवं योनि स्त्रावों में उपस्थित रहते हैं। अतः इनका संचरण ऐसी क्रियाओं के माध्यम से होता है जिनसे ये द्रव स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। सामान्यतः रोग का संचरण लैंगिक तथा रक्त संपर्क से होता है। एचआईवी का संचरण निम्न माध्यमों द्वारा होता है –

  • समलैंगिक व्यक्तियों के बीच गुदा मैथुन क्रिया द्वारा।
  • संक्रमित व्यक्ति के रक्त आधान।
  • एक ही सुई द्वारा नशीले पदार्थों का उपयोग।
  • माता से शिशु में प्लेसेन्टा द्वारा।
  • संक्रमित व्यक्ति के मुँह में घाव होता है अतः ऐसे व्यक्ति का किस (Kiss ) लेने से HIV का संचरण हो जाता है।
  • संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क।

एड्स एक संक्रामक रोग है परन्तु यह छूत का रोग नहीं है। एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसके कपड़े उपयोग में लाने, शुष्क चुम्बन, बर्तनों के उपयोग से, टॉयलेट सीट के माध्यम से, पूर्ण निर्जर्मीकृत सूइयों का प्रयोग कर रक्ताधान तथा रोगी की देखभाल से एड्स का संक्रमण नहीं होता है।

मानव शरीर में एड्स के लक्षण- एड्स वास्तव में कोई एक रोग नहीं है किंतु एक ऐसी दशा है जिसमें एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को समाप्त कर देता है। जिससे वह कई रोगों से ग्रसित हो जाता है जिसके फलस्वरूप अग्र लक्षण प्रकट होते हैं –

  • बार-बार बुखार आना
  • वजन में कमी आना
  • लसीका गांठों का फूलना
  • लंबे समय तक लगातार खाँसी होना
  • अतिसार के लक्षण उत्पन्न होना
  • त्वचा पर कैंसर के लक्षण।

अथवा
टाइफाइड के रोगजनक का नाम दीजिए। मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइए । उत्तर- टाइफाइड ज्वर का रोगजनक साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) नामक जीवाणु है। मलेरिया परजीवी या प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र – जब संक्रमित मादा एनोफेलीज मनुष्य को काटती है तो प्लाज्मोडियम जीवाणुज अथवा स्पोरोजॉइट्स (Sporozoites) के रूप में मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। स्पोरोजॉइट्स संक्रामक रूप है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रारंभ में परजीवी यकृत में अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं और फिर लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) पर आक्रमण करते हैं जिसके फलस्वरूप लाल रुधिर कणिकाएँ फट जाती हैं। RBC के फटने के साथ ही एक विषैला पदार्थ भी निकलता है जिसे हीमोजोइन (Haemozoin) कहते हैं। इस पदार्थ के रुधिर से मुक्त होते ही यह मनुष्य के रुधिर के प्लाज्मा में घुल जाता है तथा इसकी वजह से ही मनुष्य को जाड़ा व कंपकंपी देकर मलेरिया बुखार चढ़ने लगता है।

जब मादा एनोफेलीज मच्छर किसी संक्रमित मनुष्य को काटती है। तब परजीवी उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उनका आगे का परिवर्धन मादा एनोफेलीज में होता है। ये परजीवी मादा एनोफेलीज में बहु संख्यात्मक रूप से बढ़ते रहते हैं और स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) बन जाते हैं जो मादा एनोफेलीज की लार ग्रंथियों (Salivary glands) में जमा हो जाते हैं।

अब यह मादा एनोफेलीज किसी स्वस्थ मनुष्य को काटती है तो स्पोरोजोइट्स उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं मनुष्य को संक्रमित कर देते हैं। इस प्रकार मलेरिया परजीवी अर्थात् प्लाज्मोडियम अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इस प्रकार प्लाज्मोडियम को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए दो परपोषियों की आवश्यकता होती है जिन्हें मनुष्य एवं मादा एनोफेलीज कहते हैं। मनुष्य प्राथमिक एवं मादा एनोफेलीज द्वितीयक परपोषी होते हैं। मादा एनोफेलीज रोगवाहक ( Transmitting agent ) का कार्य करती है।
(चित्र के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 10 को देखिए।)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. प्लाज्मोडियम की संक्रामक अवस्था जो मानव शरीर में प्रवेश करती है- (NEET-2020)
(अ) जीवाणुज (स्पोरोजॉइट)
(स) नर युग्मकजनक
(ब) मादा युग्मकजनक
(द) पोषाणु
उत्तर:
(अ) जीवाणुज (स्पोरोजॉइट)

2. निम्न रोगों को उनके पैदा करने वाले जीवों के साथ मिलान कर सही विकल्प का चयन करो। (NEET-2020)

स्तम्भ-Iस्तम्भ-II
(1) टाइफाइड(i) वुचैरिया
(2) न्यूमोनिया(ii) प्लाज्मोडियम
(3) फाइलेरिएसिस(iii) साल्मोनेला
(4) मलेरिया(iv) हीमोफिलस
कूट :(1)(2)(3)(4)
(अ)(iii)(iv)(i)(ii)
(ब)(ii)(i)(iii)(iv)
(स)(iv)(i)(ii)(iii)
(द)(i)(iii)(ii)(iv)

उत्तर:

(ब)(ii)(i)(iii)(iv)

3. प्रतिरक्षा के संदर्भ में गलत कथन को पहचानिये- (NEET-2020)
(अ) जब बने बनाये प्रतिरक्षी प्रत्यक्ष रूप से दिए जाते हैं, इसे ‘निष्क्रिय प्रतिरक्षा’ कहते हैं।
(ब) सक्रिय प्रतिरक्षा जल्दी होती है और पूर्ण प्रतिक्रिया देती है।
(स) श्रूण माता से कुछ प्रतिरक्षी प्राप्त करता है यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा का उदाहरण है
(द) जब परपोषी का शरीर (जीवित अथवा मृत) प्रतिजन के सम्पर्क में आता है और उसके शरीर में प्रतिरक्षी उत्पन्न होते हैं। इसे सक्रिय प्रतिरक्षा कहते हैं।
उत्तर:
(ब) सक्रिय प्रतिरक्षा जल्दी होती है और पूर्ण प्रतिक्रिया देती है।

4. दुग्ध स्रावण के आरम्भिक दिनों में माता द्वारा स्रावित पीला तरल कोलोस्ट्रेम नवजात में प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसमें होती है- (NEET-2019)
(अ) इम्युनोग्लोबुलिन A
(ब) प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ
(स) एक केन्द्रकाणु
(द) भक्षाणु
उत्तर:
(अ) इम्युनोग्लोबुलिन A

5. ‘हेरोइन’ नामक ड्रग कैसे संश्लेषित की जाती है? (Kerala PMT-2009, NEET-2019)
(अ) मार्फिन के नाइट्रीकरण से
(ब) मार्फिन के मिथाइलीकरण से
(स) मार्फिन के एसीटाइलीकरण से
(द) मार्फिन के ग्लाइकोसीकरण से
उत्तर:
(स) मार्फिन के एसीटाइलीकरण से

6. निम्नलिखित में से कौनसा स्वप्रतिरक्षा रोग नहीं है- (NEET-2018)
(अ) एल्जाइमर
(ब) रूमेटी संधिशोथ
(स) सोरिऐसिस
(द) विटिलिगो
उत्तर:
(अ) एल्जाइमर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

7. “स्मैक” नामक ड्रगग पोस्त पौधे के किस भाग से प्रास होती है- (NEET-2018)
(अ) जड़ों से
(ब) लैटेक्स से
(स) फूलों से
(द) पत्तियों से
उत्तर:
(ब) लैटेक्स से

8. ऊतकों/अंगों का प्रतिरोपण अधिकतर रोगी के शरीर द्वारा अस्वीकृति के कारण असफल हो जाता है। इस प्रकार के निराकरण के लिए कौनसी प्रतिरक्षी अनुक्रिया उत्तरदायी है? (NEET-2017)
(अ) स्व-प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(ब) कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(स) हॉर्मोनल प्रतिरक्षा अनुक्रिया
(द) कार्यिकीय प्रतिरक्षा अनुक्रिया
उत्तर:
(ब) कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा अनुक्रिया

9. रोगों का निम्नलिखित में से कौनसा समूह जीवाणुओं द्वारा संक्रमित होता है? (NEET II-2016)
(अ) टिटेनस और गलसुआ
(ब) हर्पीज और इन्फ्लुएंजा
(स) हैजा और टिटेनस
(द) टाइफाइड और चेचक (स्मॉलॉॉक्स)
उत्तर:
(स) हैजा और टिटेनस

10. यदि आप किसी व्यक्ति में प्रतिरक्षियों की गंभीर कमी का अनुमान लगा रहे हैं तो आप पुष्टि के निम्नलिखित में से किससे प्रमाण प्रात्त करेंगे? (NEET-2015)
(अ) सीरम एल्ब्यूमिन
(ब) हीमोसाइट
(स) सीरम ग्लोब्यूलिन
(द) प्लाज्मा में फाइब्रोनोजन
उत्तर:
(स) सीरम ग्लोब्यूलिन

11. निम्नलिखित में से कौनसा रोग प्रोटोजोआ के कारण होता है? (NEET-2015)
(अ) इन्फ्लूएंजा
(ब) बैबसिओसिस
(स) ब्लास्टोमाइकोसिस
(द) सिफलिस
उत्तर:
(ब) बैबसिओसिस

12. वह कौनसा विशेष प्रकार का मादक द्रव्य है जो उस पौधे से प्रास होता है जिसकी एक पुष्पित शाखा नीचे दिखाई गई है? (NEET-2014)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 11
(अ) हेलुसिनोजन
(ब) अवनमक
(स) उद्दीपक
(द) दर्द-निवारक
उत्तर:
(अ) हेलुसिनोजन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

13. एस्केरिस का संक्रमण सामान्यतः किसके कारण होता है? (NEET-2013)
(अ) एस्केरिस के अण्डों से युक्त जल के पीने के कारण
(ब) अपूर्ण रूप से पकाए गये सूअर के मांस को खाने के कारण
(स) सेट्सी मक्खी द्वारा
(द) मच्छर के काटने से
उत्तर:
(अ) एस्केरिस के अण्डों से युक्त जल के पीने के कारण

14. मानव शरीर में कोशिका-मध्यित प्रतिरक्षा किसके द्वारा कार्यान्वित होती है? (NEET-2013)
(अ) T – लिम्फोसाइट्स द्वारा
(ब) B – लिम्फोसाइट्स द्वारा
(स) श्रोम्बोसाइट्स द्वारा
(द) रक्ताणुओं द्वारा
उत्तर:
(अ) T – लिम्फोसाइट्स द्वारा

15. यकृत (जिगर) का सिरोसिस रोग किसके लगातार सेवन से होता है? (NEET-2012)
(अ) अफीम
(ब) एल्कोहॉल
(स) तम्बाकू (चबाना)
(द) कोकीन
उत्तर:
(ब) एल्कोहॉल

16. नीचे दिखाये जा रहे अणुओं (A) तथा (B) को पहचानिये तथा उनके स्रोत एवं उपयोग के विषय में सही विकल्प चुनिये- (Mains-2012)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग - 12

विकल्प :आद्नस्रोतउपयोग
(अ)(A) कोकीनएरिथ्रोजायलम कोकाडोपैमीन के परिवहन को तीव्रतर बना देती है।
(ब)(B) हेरोइनकैनेबिस सैटाइवाशामक तथा देह कार्यों को धीमा करती है।
(स)(C) कैनेबिनॉइडऐट्रेपा बेलाडोनाविभ्रम पैदा करता है।
(द)(D) मॉर्फीनपैपेवर सोम्नीफेरमशामक तथा पीड़ानाशक

उत्तर:

(द)(D) मॉर्फीनपैपेवर सोम्नीफेरमशामक तथा पीड़ानाशक

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

17. विडाल टेस्ट द्वारा किसकी पहचान की जाती है- (NEET-2012)
(अ) मलेरिया
(ब) मधुमेह
(स) HIV/AIDS
(द) टाइफाइड ज्वर
उत्तर:
(द) टाइफाइड ज्वर

18. सामान्य जुकाम प्रतिजैविकों द्वारा सही नहीं होती है क्योंकि यह- (NEET-2011)
(अ) संक्रमण रोग नहीं है
(ब) विषाणु द्वारा होती है
(स) ग्राम – धनात्मक जीवाणु द्वारा होता है
(द) ग्राम – ऋणात्मक जीवाणुओं द्वारा होता है
उत्तर:
(ब) विषाणु द्वारा होती है

19. एक रोगी के एक्वायर्ड इम्यूनो डेफीशिएन्सी सिण्डूरम से पीड़ित होने का संदेह है। इसकी पुष्टि हेतु आप किस नैदानिक तकनीक का सुझाव देंगे? CBSE, 2011)
(अ) MRI
(ब) अल्ट्रासाठण्ड
(स) विडाल
(द) ELISA
उत्तर:
(द) ELISA

20. मलेरिया परजीवी के स्पोरोजॉएट (Sporozoites) हेतु आप कहाँ देखेंगे? (CBSE, 2011)
(अ) मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति की लाल रुधिर कणिकाओं में
(ब) संक्रमित मनुष्य की प्लीहा में
(स) ताजे निर्मोचित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार ग्रंथियों में
(द) संक्रमित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार में
उत्तर:
(द) संक्रमित मादा एनॉफिलीज मच्छर की लार में

21. निम्नलिखित में से किसके निदान हेतु विडाल परीक्षण का प्रयोग किया जाता है? (CBSE, 2010)
(अ) मलेरिया
(ब) न्यूमोनिया
(स) ट्यूबरकुलोसिस
(द) टायफॉइड
उत्तर:
(द) टायफॉइड

22. एड्स के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है? (CBSE, 2010)
(अ) एच आई वी किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ भोजन करने से संचारित हो सकता है।
(ब) ड्राग्स के आदी व्यक्ति एच आई वी संक्रमण के प्रति सबसे कम सुग्राह्य होते हैं।
(स) उचित देखभाल तथा पोषण के द्वारा एड्स के रोगियों का पूर्ण रूप से शत प्रतिशत उपचार किया जा सकता है।
(द) रोगकारी एच आई वी रिट्रोविषाणु सहायक टीलिम्फोसाइटस में प्रवेश कर जाता है तथा उनकी संख्या को घटा देता है।
उत्तर:
(द) रोगकारी एच आई वी रिट्रोविषाणु सहायक टीलिम्फोसाइटस में प्रवेश कर जाता है तथा उनकी संख्या को घटा देता है।

23. निम्नलिखित कथनों में से सही कथन का चयन कीजिए- (CBSE, 2010)
(अ) जब अपराधियों को शमनकारक औषधियाँ दी जाती हैं तो वे सत्य बोलने लगते हैं।
(ब) ऐसे व्यक्ति जिनकी शल्य-चिकित्सा की गई हो, उन्हें दर्द-निवारक के रूप में प्रायः मॉर्फीन दी जाती है।
(स) तम्बाकू चबाने से रक्त दाब तथा हुदय दर कम हो जाते हैं।
(द) शल्य चिकित्सा के उपरांत रोगी को कोकेन दिया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य की पुनः प्राप्ति (Recovery) को प्रेरित करता है।
उत्तर:
(ब) ऐसे व्यक्ति जिनकी शल्य-चिकित्सा की गई हो, उन्हें दर्द-निवारक के रूप में प्रायः मॉर्फीन दी जाती है।

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24. ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) के लिए कौनसा टीका प्रयुक्त किया जाता है? (AFMC, 2010)
(अ) BCG
(ब) DPT
(स) TT
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) BCG

25. मनुष्य में दाद (Ringworm) नामक रोग उत्पन्न होता है- (CBSE, 2010)
(अ) जीवाणु द्वारा
(ब) कवक द्वारा
(स) निमेटोड द्वारा
(द) विषाणु द्वारा
उत्तर:
(ब) कवक द्वारा

26. निम्नलिखित में से किसमें प्रति हिस्टेमाइन तथा स्टीरॉएड का प्रयोग तुरन्त आराम देता है? (CBSE, 2009)
(अ) एलर्जी
(ब) मतली
(स) खाँसी
(द) सिरदर्द
उत्तर:
(अ) एलर्जी

27. एण्ट अमीबा हिस्टोलाइटिका की संक्रामक अवस्था होती है- (RPMT, 2009)
(अ) ट्राफोज्वॉइट अवस्था
(ब) द्विकेन्द्रकीय पुटी अवस्था
(स) चतुष्केन्द्रकीय पुटी अवस्था
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) चतुष्केन्द्रकीय पुटी अवस्था

28. निम्नलिखित में से कौनसा युग्म विषाणु जनित रोगों को प्रदर्शित करता है? (CBSE, 2009)
(अ) दाद एड्स
(ब) सामान्य शीत, एड्स
(स) अतिसार, सामान्य शीत
(द) टायफॉइड ट्यूबरकुलोसिस
उत्तर:
(ब) सामान्य शीत, एड्स

29. शिशु को कोलोस्ट्रम (colostrum) देने पर कौनसी प्रतिरक्षा प्रणाली उत्पन्न होगी- (AMU, 2009)
(अ) ऑटो प्रतिरक्षा
(ब) अक्रिय प्रतिरक्षा
(स) सक्रिय प्रतिरक्षा
(द) स्वाभाविक प्रतिरक्षा
उत्तर:
(ब) अक्रिय प्रतिरक्षा

30. निम्नलिखित में से कौनसा कथन सत्य है? (CBSE, 2009)
(अ) शल्य चिकित्सा वाले रोगियों को दर्द निवारण हेतु कैनेबिनाएँड दिये जाते हैं।
(ब) बेनाइन ट्यूमर, मेटास्टेसिस दर्शाते हैं।
(स) हेरोइन शरीर क्रियाओं में वृद्धि करती है।
(द) मैलिग्नेण्ट ट्यूमर मेटास्टेसिस प्रदर्शित करते हैं।
उत्तर:
(द) मैलिग्नेण्ट ट्यूमर मेटास्टेसिस प्रदर्शित करते हैं।

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31. एच.आई ,वी. घटाता है- (BHU 2000, 2008)
(अ) केवल T- सहायक कोशिकाओं को
(ब) सभी T- कोशिकाओं को
(स) केवल B-कोशिकाओं को
(द) दोनों B एवं T- कोशिकाओं को
उत्तर:
(अ) केवल T- सहायक कोशिकाओं को

32. मनुष्य में कार्डियोवेस्कुलर प्रभाव को बढ़ाने में उपयोगी ड्रग है- (J\&KCET, 2008)
(अ) कोकीन
(ब) बार्बीट्यूरेट
(स) बेजोडायजेपिन
(द) इन्सुलिन
उत्तर:
(अ) कोकीन

33. मुँह की लार तथा आँखों से निकले आँसू, सहज प्रतिरक्षा के अन्तर्गत किस रोधी प्रारूप के वर्ग में आते हैं? (NEET-2008)
(अ) कार्यिकी रोधी
(ब) भौतिक रोधी
(स) साइटोकाइनिन रोधी
(द) कोशिकीय रोधी
उत्तर:
(अ) कार्यिकी रोधी

34. किसी विशिष्ट मनोवृत्ति औषधि के विषय में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन सही है? (NEET-2008)
(अ) मार्फीन से भ्रांतियाँ पैदा होती हैं एवं गलत भावनाएँ आने लगती हैं
(ब) बार्बिट्यूरेटा से विश्रांति तथा अस्थाई सुख-बोध पैदा होता है
(स) भांग से अनुबोध अवगम तथा विभ्रम पैदा होता है
(द) अफीम से तंत्रिका तंत्र उत्तेजित होता है तथा विभ्रम पैदा होता है
उत्तर:
(स) भांग से अनुबोध अवगम तथा विभ्रम पैदा होता है

35. कैंसर की कोशिकाएं आसानी से विकिरणों द्वारा नष्ट की जा सकती हैं, इसका कारण है- (RPMT, 2007)
(अ) तीव्र कोशिका विभाजन
(ब) पोषण की कमी
(स) तेज परिवर्तन
(द) ऑक्सीजन की कमी
उत्तर:
(स) तेज परिवर्तन

36. यदि आपको किसी व्यक्ति में प्रतिपिण्डों (एण्टीबॉडीज) के बड़े अभाव का शक है तो आप निम्नलिखित में से किसका पुष्टीकरण प्रमाण जानना चाहेंगे? (CBSE, 2007)
(अ) सीरम एल्बुमिनो का
(ब) सीरम ग्लोब्यूलिनो का
(स) प्लाज्मा में फाइब्रिनोजेन का
(द) रुधिराणुओं का
उत्तर:
(ब) सीरम ग्लोब्यूलिनो का

37. उपार्जित प्रतिरक्षा की विशेषता है- (DPMT, 2007)
(अ) एण्टीजन की विशेषता
(ब) विभेदन करना (सेल्फ तथा नॉन-सेल्फ एण्टीजन)
(स) स्मृति को बनाये रखना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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38. कुछ खास ऋतुओं में बढ़ते जाते दमा रोग का सम्बन्ध किससे होता है? (NEET-2007)
(अ) घटता तापमान
(ब) गर्म एवं नमी वाला पर्यावरण
(स) टिन के डिब्बों में परिलक्षित फलों का खाना
(द) ऋतुपरक पराग का सांस द्वारा भीतर जाना
उत्तर:
(द) ऋतुपरक पराग का सांस द्वारा भीतर जाना

39. हमारे शरीर में एंटीबॉडीज (प्रतिपिण्ड) किसके सम्मिश्र होते हैं? (NEET-2006)
(अ) लाइपोप्रोटीन्स
(ब) स्टेरॉयड्स
(स) प्रोस्टेलैडिन्स
(द) ग्लाइकोप्रोटीन्स
उत्तर:
(द) ग्लाइकोप्रोटीन्स

40. एस्केरिस पाया जाता है- (RPMT, 2004)
(अ) देहगुहा में
(ब) लिम्फनोड में
(स) ऊतक में
(द) आहार नाल में
उत्तर:
(द) आहार नाल में

41. ह्यूमोरल प्रतिरक्षा का कारण होता है। (Orrisa PMT, 2004)
(अ) B – लिम्फोसाइट्स
(ब) T- लिम्फोसाइट्स
(स) L – {लिम्फोसाइट्स}
(द) P-लिम्फोसाइट्स
उत्तर:
(अ) B – लिम्फोसाइट्स

42. प्लाज्मोडियम की मानव को संक्रमित करने वाली अवस्था है- (RPMT, 2004)
(अ) स्पोरोज्वॉइट
(ब) ट्रोफोज्वॉइट
(स) गैमीटोसाइट्स
(द) मीरोज्वाइट
उत्तर:
(अ) स्पोरोज्वॉइट

43. T – कोशिकायें एक प्रकार की लिम्फोसाइट्स होती हैं जो कि कोशिकीय प्रतिरक्षा उत्पन्न करती हैं। ये कोशिकाएँ किससे उत्पन्न होती हैं- (MP PMT, 2003)
(अ) थाइमस
(ब) यकृत
(स) प्लीहा
(द) रक्त वाहिनियों की एण्डोथीलियम
उत्तर:
(अ) थाइमस

44. निम्न में से कौन एस्केरिस संक्रमण हेतु प्रभावी है- (RPMT, 2003)
(अ) क्लोरोक्वीन
(ब) सिनकोना
(स) कोल्चीकम
(द) चीनोपोडियम का तेल
उत्तर:
(द) चीनोपोडियम का तेल

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

45. एड्स दिवस कब होता है- (RPMT, 2003)
(अ) 1 जून
(ब) 1 मई
(स) 1 दिसम्बर
(द) 20 दिसम्बर
उत्तर:
(स) 1 दिसम्बर

46. हीमोज्वॉइन क्या है? (RPMT, 2002)
(अ) प्लाज्मोडियम की ट्राफोज्वाइट द्वारा रुधिर का अपचयित भाग
(ब) एनोफिलीज का रुधिर वर्णक
(स) मीरोज्वाइट में विखण्डित रुधिर
(द) संक्रमित मनुष्य के रुधिर में अणु
उत्तर:
(अ) प्लाज्मोडियम की ट्राफोज्वाइट द्वारा रुधिर का अपचयित भाग

47. एल.एस.डी. है- (NEET-2001)
(अ) विभ्रामक
(ब) सेडेटिव
(स) उत्तेजनात्मक
(द) ट्रांसक्वेलाइजर
उत्तर:
(अ) विभ्रामक

48. कौनसा सबसे अधिक संक्रमणकारी रोग है? (NEET-2001)
(अ) हीपेटाइटिस-B
(ब) एड्स
(स) खाँसी तथा जुकाम
(द) मलेरिया
उत्तर:
(अ) हीपेटाइटिस-B

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

49. ‘सक्रिय इम्यूनिटी’ का अर्थ है- (CBSE PMT, 1999)
(अ) रोग के पश्चात् उत्पन्न प्रतिरोध
(ब) रोग के पूर्व उत्पन्न प्रतिरोध
(स) हृदय गति दर में प्रतिरोध
(द) रक्त मात्रा में वृद्धि
उत्तर:
(अ) रोग के पश्चात् उत्पन्न प्रतिरोध

50. कैंसर सम्बन्धित है-
(अ) ऊतकों की अनियंत्रित वृद्धि से
(ब) नॉन-मेलिगनेन्ट ट्यूमर से
(स) ऊतकों के नियंत्रित विभाजन से
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) ऊतकों की अनियंत्रित वृद्धि से

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जीवन की उत्पत्ति की सबसे तर्कसंगत जैव रासायनिक मत का प्रतिपादन किया-
(अ) मूरे
(ब) वीजमान
(स) स्टैनले मिलर
(द) ओपेरिन
उत्तर:
(द) ओपेरिन

2. किस जहाज पर डार्विन को प्रकृति- वैज्ञानिक के पद पर रखा गया था ?
(अ) सेन्चुरी
(स) बिगुल
(ब) सीगल
(द) बीगल
उत्तर:
(द) बीगल

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

3. डी व्रिज ने किसका प्रतिपादन किया था ?
(अ) प्रबलता का नियम
(स) पृथक्करण का नियम
(ब) प्राकृतिक चयनवाद
(द) उत्परिवर्तनवाद
उत्तर:
(द) उत्परिवर्तनवाद

4. आस्ट्रेलोपिथेकस नामक आदि मानव का चेहरा था-
(अ) हाइपेग्निथस प्रकार का
(स) हाइपरथेस प्रकार का
(ब) प्रोग्रेस प्रकार का
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) प्रोग्रेस प्रकार का

5. अग्नि का प्रथम प्रयोग करने वाला प्रगैतिहासिक मानव सम्भवतः था-
(अ) पेकिंग मानव
(ब) निएन्डरथल
(स) क्रो-मैगनॉन
(द) जावा कपि मानव
उत्तर:
(अ) पेकिंग मानव

6. मानव का कपियों से भिन्न, एक प्रमुख लक्षण है-
(अ) पैर हाथों से लम्बे
(ब) वस्तुओं को पकड़ने योग्य हाथ
(स) आगे निकले हुए जबड़े
(द) सिर कम विकसित
उत्तर:
(अ) पैर हाथों से लम्बे

7. पृथ्वी पर “जीवन की उत्पत्ति” की दिशा में इनमें से कौनसे यौगिकों का उद्विकास हुआ-
(अ) प्रोटीन्स एवं अमीनो अम्ल
(ब) प्रोटीन्स एवं न्यूक्लिक अम्ल
(स) यूरिया एवं अमीनो अम्ल
(द) यूरिया एवं न्यूक्लिक अम्ल
उत्तर:
(ब) प्रोटीन्स एवं न्यूक्लिक अम्ल

8. संरचनाओं में कौनसे समुच्चय में केवल समवृति अंग है-
(अ) कॉकरोच, मच्छर व मधुमक्खी के मैण्डिबल्स
(ब) मानव, बंदर व कंगारू के हाथ
(स) चमगादड़, पक्षी तथा मधुमक्खी के पंख
(द) घोड़े, टिड्डी व चमगादड़ के पश्चपाद ।
उत्तर:
(स) चमगादड़, पक्षी तथा मधुमक्खी के पंख

9. प्राकृतिक चयन के विषय में हमारी आधुनिक समझ के अनुसार, योग्यतम सदस्य हैं-
(अ) जिनमें वातावरण के अनुसार अनुकूलन की सबसे अधिक क्षमता होती है।
(ब) जिनके वंशजों की संख्या अधिकतम होती है
(स) जो बहुत सी संतानें उत्पन्न करते हैं, परन्तु कुछ ही संतानें लैंगिक परिपक्वता तक जीवित रहती हैं
(द) जिनमें विशिष्ट वातावरणीय दशाओं का सामना करने की अधिकतम क्षमता होती है।
उत्तर:
(द) जिनमें विशिष्ट वातावरणीय दशाओं का सामना करने की अधिकतम क्षमता होती है।

10. डार्विन ने किस स्थान को उद्विकास की जीवित प्रयोगशाला माना-
(अ) गेल्पेगोस द्वीप
(ब) लक्ष्य द्वीप
(स) मेडागास्कर
(द) माल द्वीप
उत्तर:
(अ) गेल्पेगोस द्वीप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

11. जावा मानव का वैज्ञानिक नाम है-
(अ) पिथेकैन्थ्रोपस इरेक्टस
(ब) होमो इरेक्टस इरेक्टस
(स) होमो हैबिलिस
(द) अ व ब दोनों
उत्तर:
(द) अ व ब दोनों

12. निएन्डरथल मानव-
(अ) वर्तमान मानव से कम विकसित था
(ब) वर्तमान मानव से मिलता-जुलता था
(स) वर्तमान मानव से इसका मस्तिष्क बहुत बड़ा था
(द) इसका मस्तिष्क वर्तमान मानव के मस्तिष्क से छोटा था
उत्तर:
(अ) वर्तमान मानव से कम विकसित था

13. वीजमान अपने प्रयोग में पीढ़ी दर पीढ़ी नवजात चूहों की पूँछ को कर पृथक करते हरे । फिर भी पूँछ न तो गायब हुई और न ही छोटी हुई, उक्त प्रयोग से ज्ञात होता है-
(अ) लैमार्क के अर्जित लक्षणों की वंशागति का खण्डन
(ब) डार्विन के प्राकृतिक वरण मत का समर्थन
(स) डी – ब्रिज के उत्परिवर्तन मत का समर्थन
(द) सिद्ध होता है कि कशेरुकियों की पूँछ एक अनिवार्य लक्षण है
उत्तर:
(अ) लैमार्क के अर्जित लक्षणों की वंशागति का खण्डन

14. विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है-
(अ) इथोलॉजी
(ब) इरोलॉजी
(स) आर्निथोलॉजी
(द) पेलिओन्टोलॉजी
उत्तर:
(द) पेलिओन्टोलॉजी

15. जीनकोश (Gene pool) सदैव अपरिवर्तित रहते हैं, इसे कहते हैं-
(अ) आनुवंशिक संतुलन
(ब) रासायनिक संतुलन
(स) भौतिक संतुलन
(द) रासायनिक साम्य
उत्तर:
(अ) आनुवंशिक संतुलन

16. होमो सैपियंस (मानव) सर्वप्रथम विकसित हुआ-
(अ) ऑस्ट्रेलिया में
(ब) अफ्रीका में
(स) अमेरिका में
(द) रूस में
उत्तर:
(ब) अफ्रीका में

17. अमेरिकी वैज्ञानिक एच.एल. शैपिरो ने भावी मानव का नाम रखा है-
(अ) होमो फ्यूचेरिस
(ब) होमो यूचेरिस
(स) होमो ट्यूरेसिस
(द) होमो पीटूचेरिस
उत्तर:
(अ) होमो फ्यूचेरिस

18. जीव संख्या में सहसा आने वाले बड़े-बड़े परिवर्तन कहलाते हैं-
(अ) म्यूटेशन
(ब) आनुवंशिक संतुलन
(स) संस्थापक प्रवाह
(द) अभिसारी विकास
उत्तर:
(अ) म्यूटेशन

19. निम्न में औद्योगिक प्रदूषण का सूचक है-
(अ) पैन- स्पर्मिया
(ब) मृत यीस्ट
(स) बोगनविलिया
(द) लाइकेन
उत्तर:
(द) लाइकेन

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20. मलयआर्क पेलौगो पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक का नाम है-
(अ) डार्विन
(ब) एल्फ्रेड वॉलेस
(स) मेंडल
(द) लैमार्क
उत्तर:
(अ) डार्विन

21. 1938 में दक्षिण अफ्रीका में एक मछली पकड़ी गई जो …………….. थी।
(अ) सीलाकेंथि
(ब) पीलाकेंथि
(स) टीलाकेंथि
(द) मीलाकेंथि
उत्तर:
(अ) सीलाकेंथि

22. डी – व्रिज ने जैविक क्रम विकास से सम्बन्धित अपना उत्परिवर्तन मत किस जीव पर शोध करते हुए प्रस्तुत किया था ?
(अ) इवनिंग प्रिमरोज
(ब) ड्रोसोफिला
(स) पाइसम सेटाइवम
(द) ऐल्थीयारोजिया
उत्तर:
(अ) इवनिंग प्रिमरोज

23. एक पृथक्कृत जनसंख्या में जीन की आवृति में परिवर्तन क्या कहलाता है?
(अ) जेनेटिक ड्रिफ्ट
(ब) जीन प्रवाह
(स) उत्परिवर्तन
(द) प्राकृतिक वरण
उत्तर:
(अ) जेनेटिक ड्रिफ्ट

24. निम्न में से कौन मानव का सर्वाधिक निकट सम्बन्धी है ?
(अ) चिम्पैंजी
(ब) गोरिल्ला
(स) औरगउटान
(द) गिब्बन
उत्तर:
(अ) चिम्पैंजी

25. जीवों में विविधता का कारण है-
(अ) उत्परिवर्तन
(ब) दीर्घकालिक उद्विकासीय परिवर्तन
(स) क्रमिक परिवर्तन
(द) अल्पकालिक उद्विकासीय परिवर्तन
उत्तर:
(ब) दीर्घकालिक उद्विकासीय परिवर्तन

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26. वर्तमान फसली पादपों में तीव्र जाति उद्भवन का कारण है-
(अ) उत्परिवर्तन
(ब) पृथक्करण
(स) बहुगुणिता
(द) लैंगिक जनन
उत्तर:
(अ) उत्परिवर्तन

27. हार्डी – वेनवर्ग साम्यता को प्रभावित करने वाला घटक है-
(अ) जीन प्रवाह
(ब) आनुवंशिक विचलन
(स) उत्परिवर्तन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. ट्राइरेनोसोरस रेक्स की लगभग ऊँचाई कितनी थी ?
(अ) 20 फुट
(ब) 10 फुट
(स) 15 फुट
(द) 5 फुट
उत्तर:
(अ) 20 फुट

29. विशाल डरावने कटार जैसे दाँत वाला था-
(अ) डायनोसौर
(ब) ट्राइरेनोसोरस रेक्स
(स) इक्थियोसाएस
(द) ड्रायोपिथिकस
उत्तर:
(ब) ट्राइरेनोसोरस रेक्स

30. स्तनधारी प्राणी पूरी तरह से जल में रहते हैं-
(अ) समुद्री गायें
(ब) सील
(स) डॉल्फिन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

31. दिशात्मक परिवर्तन या विदारण (डिसरप्शन ) किसके दोनों सिरों पर होता है-
(अ) संग्रह चक्र
(ब) वृद्धि वक्र
(स) वितरण वक्र
(द) तिरछा वक्र
उत्तर:

32. शारवनी अवरोहण और प्राकृतिक वरण विकास, ये संरचनाएँ किस वैज्ञानिक की हैं—
(अ) मिलर
(ब) आपेरिन
(स) एल्फ्रेड वालेस
(द) डार्विन
उत्तर:
(अ) मिलर

33. एक तलछट पर दूसरे तलछट की परत पृथ्वी के लम्बे इतिहास की गवाह है। यह संकेत देता है-
(अ) अर्थक्रस्ट (भूपर्थरी) का अनुप्रस्थ काट
(ब) अर्थक्रस्ट का लम्बवत् काट
(स) अर्थक्रस्ट का तिरछा काट
(द) अर्थक्रस्ट का अनुदैर्घ्य काट
उत्तर:
(द) अर्थक्रस्ट का अनुदैर्घ्य काट

34. “बिग बैंग” नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त किससे सम्बन्धित है-
(अ) सूर्य की उत्पत्ति
(ब) मंगल ग्रह की उत्पत्ति
(स) ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
(द) चन्द्रमा की उत्पत्ति
उत्तर:
(अ) सूर्य की उत्पत्ति

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35. खगोल वैज्ञानिक अभी भी अपना मन पसंदीदा सिद्धान्त मानते
(अ) बिग बैंग महाविस्फोट सिद्धान्त को
(ब) स्वतः जनन के सिद्धान्त को
(स) पेन- स्पर्मिया ( सर्वबीजाणु) सिद्धान्त को
(द) आपेरेन के सिद्धान्त को
उत्तर:
(स) पेन- स्पर्मिया ( सर्वबीजाणु) सिद्धान्त को

36. “मिल्की वे” क्या है?
(अ) आकाश गंगा
(ब) प्रकाश वर्ष
(स) महासागर
(द) पेन- स्पर्मिया
उत्तर:
(अ) आकाश गंगा

37. तारकीय दूरियों को मापा जाता है-
(अ) किलोमीटर में
(स) प्रकाश वर्ष में
(ब) मीलों में
(द) किलो वाट में
उत्तर:
(स) प्रकाश वर्ष में

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
किस वैज्ञानिक ने साल्टेशन को प्रजाति की उत्पत्ति का मुख्य कारण बताया?
उत्तर:
ह्यूगो डी ब्रिज वैज्ञानिक ने साल्टेशन को प्रजाति की उत्पत्ति का मुख्य कारण बताया।

प्रश्न 2.
जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त किसने दिया था?
उत्तर:
जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त हार्वे तथा हक्सले ने दिया था।

प्रश्न 3.
आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर:
आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सैपियन्स है।

प्रश्न 4.
वर्तमान मानव के सबसे निकट सम्बन्धी मानव का नाम बताइये।
उत्तर:
क्रोमैगनॉन मानव वर्तमान मानव का सबसे निकटतम सम्बन्धी है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी का उद्भव किस आकाश गंगा से हुआ ?
उत्तर:
पृथ्वी का उद्भव मिल्की आकाश गंगा से हुआ।

प्रश्न 6.
अध: मानव ( Subhuman) व आदि मानव किसे माना गया?
उत्तर:
रामापिथिकस को अधः मानव तथा आस्ट्रैलोपिथेकस को आदिमानव माना गया है।

प्रश्न 7.
तारकीय दूरियों को किसमें मापा जाता है ?
उत्तर:
तारकीय दूरियों को प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापा जाता है।

प्रश्न 8.
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति में कौनसा महाविस्फोटक का सिद्धान्त बताने का प्रयास करता है?
उत्तर:
बिग बैंग (Big Bang ) नामक महाविस्फोट ।

प्रश्न 9.
अनुरूपता ( Analogy) का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऑक्टोपस (Octopus) तथा स्तनधारियों की आँखें अनुरूपता का उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
औद्योगिक प्रदूषण के सूचक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लाइकेन (Lichen ) औद्योगिक प्रदूषण के सूचक होते हैं।

प्रश्न 11.
योजक कड़ी (Connecting Link) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जन्तुओं में कुछ जीव ऐसे होते हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण एक साथ पाये जाते हैं। ऐसे जन्तुओं को योजक कड़ी (Connecting Link) कहते हैं। उदाहरण- आर्किओप्टेरिस में रेप्टाइल्स व पक्षियों दोनों के लक्षण मिलते हैं ।

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प्रश्न 12.
योग्यतम की उत्तरजीविता से क्या समझते हो ?
उत्तर:
जीवन संघर्ष में केवल वे ही जीव जीवित रह पाते हैं. जिनमें वातावरण के अनुरूप अनुकूलन की क्षमता होती है। इसे ही योग्यतम की उत्तरजीविता कहते हैं।

प्रश्न 13.
जीवाश्म की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
चार्ल्स लायल के अनुसार – “पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं।”

प्रश्न 14.
अनुहरण (Mimicry) किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी जीव का दूसरों को धोखा देने के लिए, अपनी सुरक्षा या किसी अन्य लाभ (आक्रमण) के लिए दूसरे जीवों के या किसी अन्य प्राकृतिक वस्तु के समान दिखाई देना या नकल करना अनुहरण कहलाता है।

प्रश्न 15.
उत्परिवर्तन को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
जीवों के आनुवंशिक संगठन में अचानक वंशागत होने वाले परिवर्तन उत्परिवर्तन (Mutation) कहलाते हैं।

प्रश्न 16.
उस वैज्ञानिक का नाम बताइए जिसने स्वतः जननवाद (Spontaneous generations theory) को गलत सिद्ध किया ।
उत्तर:
लुईस पाश्चर (Louis Pasteur ) ने स्वतः जननवाद को गलत सिद्ध किया ।

प्रश्न 17.
डार्विनवाद की दो मुख्य संकल्पनाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:

  • शाखनी अवरोहण (Branching Descent )
  • प्राकृतिक वरण विकास (Natural Selection ) ।

प्रश्न 18.
होमोसेपियन्स के प्रवसन का कारण कौन-सी भौगोलिक प्रजातियाँ हैं ?
उत्तर:
चार प्रजातियाँ है- नीग्रॉयड (Negroid), ऑस्ट्रेलॉयड (Australoid), कॉकेसायड्स (Caucasoids) तथा मंगोलायड्स (Mongoloids)।

प्रश्न 19.
कौन से युग (काल) को डायनोसौर का स्वर्णिम युग कहते हैं?
उत्तर:
मीसोजोइक युग (काल) को डायनोसौर का स्वर्णिम युग कहते हैं।

प्रश्न 20.
किस समुद्री जहाज पर डार्विन ने प्रकृति का अध्ययन किया?
उत्तर:
बीगल नामक समुद्री जहाज पर डार्विन ने प्रकृति का अध्ययन किया।

प्रश्न 21.
मानव के किस पूर्वज ने सर्वप्रथम दो पैरों पर चलना आरम्भ किया?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस ने सर्वप्रथम दो पैरों पर चलना आरम्भ किया।

प्रश्न 22.
एक बच्चा पैदा हुआ जिसमें एक छोटी-सी पूँछ है, बताइए यह किसका उदाहरण है?
उत्तर:
पूर्वजानुरूपता का उदाहरण है।

प्रश्न 23.
क्रोमेग्नॉन मानव भोजन ग्रहण करने के आधार पर किस प्रकार का प्राणी था ?
उत्तर:
क्रोमेग्नॉन मानव भोजन ग्रहण करने के आधार पर मांसाहारी प्रकार का प्राणी था।

प्रश्न 24.
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
जीवाश्म विज्ञान (पेलियोन्टोलॉजी) शाखा जिसमें जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 25
उस वैज्ञानिक का नाम बताइए जिसने स्वतः उत्पत्तिवाद सिद्धान्त का विरोध किया?
उत्तर:
वैज्ञानिक लुई पाश्चर (Louis Pasteur ) ने स्वत: उत्पत्तिवाद सिद्धान्त का विरोध किया।

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प्रश्न 26.
दो कशेरूकी शरीर के अंगों के नाम लिखिए जो मनुष्य की अग्रपाद के समजात अंग होते हैं।
उत्तर:

  • व्हेल के फ्लिपर
  • पक्षी का पंख ।

प्रश्न 27.
बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा का प्रतान किस प्रकार के अंग हैं समजात अथवा समवृत्ति ? उनमें इस प्रकार की समानता किस प्रकार के विकास से आयी है ?
उत्तर:
बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा का प्रतान समजात अंग हैं। यह समानता अपसारी विकास से आयी है।

प्रश्न 28.
मानव विकास के क्रम में कौनसे मानव के मस्तिष्क का आकार 1400 सी. सी. था?
उत्तर:
निएंडरथल (Neanderthal) मानव के मस्तिष्क का आकार 1400 सी. सी था

प्रश्न 29.
‘ड्रायोपिथिकस’ तथा ‘रामापिथिकस’ नामक नर वानर में दो समानताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके शरीर बालों से भरपूर थे।
  • दोनों गोरिल्ला एवं चिंपैंजी जैसे चलते थे ।

प्रश्न 30.
महाकपियों तथा मानव के पूर्वज के नाम लिखिए।
उत्तर:
महाकपियों तथा मानव के पूर्वज का नाम ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus) है।

प्रश्न 31.
किस वैज्ञानिक ने प्रयोग करते हुए यह प्रदर्शित किया कि “जीवन पहले से विद्यमान जीवन से ही निकलकर आता है “?
उत्तर:
लुई पाश्चर ।

प्रश्न 32.
ड्रायोपिथिकस तथा रामापिथिकस नरवानरों में अन्तर बताइए ।
उत्तर:
ड्रायोपिथिकस वनमानुष (ऐप) जैसे थे जबकि रामापिथिकस अधिक मनुष्यों जैसे थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पूर्वजता या प्रत्यावर्तन (Atavism or Reversion) किसे कहते हैं? इसके कोई दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
जीव जातियों में कभी-कभी अचानक ऐसे लक्षण आ जाते हैं जो उनकी स्वयं की जाति में नहीं पाये जाते किन्तु बहुत समय पूर्व पुराने पूर्वजों में ये लक्षण पाये जाते थे। इसे पूर्वजता या प्रत्यावर्तन कहते हैं।
इन संरचनाओं द्वारा यह सिद्ध होता है कि जो इन संरचनाओं को रखते हैं उनका विकास उन पूर्वजों से हुआ है जिनमें ये संरचनाएँ पूर्ण विकसित रही होंगी।
उदाहरण-

  • मानव शिशु में पूँछ की उपस्थिति
  • लम्बे तथा शरीर पर घने बाल हमारा आदि कपियों से संबध दर्शाता है।

प्रश्न 2.
स्वतः जननवाद (Spontaneous Creation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वतः जननवाद (Spontaneous Creation) – इसके अनुसार जीवों की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों द्वारा स्वत: हुई है। इस सिद्धान्त
का प्रतिपादन वान हैलमाण्ट ने किया था। इन्होंने बताया कि पसीने से भीगे कपड़े तथा गेहूं के भूसे को एक साथ रखने से 21 दिन में चूहे उत्पन्न हो जाते हैं। नील नदी पर जब सूर्य की किरणें गिरती हैं तो जीवों का निर्माण होता है। नम मिट्टी में मेंढक बनते हैं। भारत में आज भी कई लोग विश्वास करते हैं कि गधे के मूत्र और गाय के गोबर से बिच्छू उत्पन्न हो जाते हैं। इस विचार को वैज्ञानिकों ने अस्वीकार कर दिया है।

प्रश्न 3.
जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के संबंध में प्रमाणित हुए कोई चार तथ्य लिखिए।
उत्तर:
जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के संबंध में निम्न चार तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एककोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की योजक कड़ियों को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (Mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली (Pedigree) का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
जैव विकांस से क्या अभिप्राय है? समझाइये |
उत्तर:
ओपेरिन वैज्ञानिक के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद इसके जल भण्डार में रासायनिक पदार्थों के संयोजन से जीव की उत्पत्ति हुई। ये एक सरल कोशिका के बने जीव थे, इन्हीं से जैव विकास की क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई। उद्विकास या जैव विकास का शाब्दिक अर्थ है, “सिमटी वस्तु का खुलकर या फैलकर समय-समय पर हुए परिवर्तनों को प्रदर्शित करना, सरल जीवों से जटिल जीवों के उत्पत्ति क्रम को जैव विकास कहते हैं।

” अन्य शब्दों में प्रारम्भिक निम्न कोटि के जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा जटिल जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास कहते हैं। ‘परिवर्तन के साथ अवतरण’ जैव विकास की मौलिक कल्पना है। पृथ्वी पर आवास करने वाले जीवधारी एक-दूसरे से भिन्न हैं परन्तु इन सभी का संरचनात्मक संगठन एक ही है, अर्थात् प्रत्येक का शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। सभी जीवों में जैविक क्रियायें समान रूप से होती हैं। सभी जीव अपना जीवन एक कोशिका समान संरचना युग्मनज से प्रारम्भ करते हैं जो इन विविध जीवधारियों के एक पूर्वजता को दर्शाता है।

प्रश्न 5.
डार्विनवाद को समझाने के लिए वैज्ञानिक वालेस ने कौन-सा चार्ट प्रस्तुत किया? समझाइए ।
उत्तर:
डार्विनवाद को समझाने के लिए वालेस ने एक चार्ट प्रस्तुत किया जिसे वालेस चार्ट कहते हैं-
यह सिद्धान्त बाद में डार्विन की पुस्तक, प्राकृतिक वरण द्वारा जाति उत्पत्ति में समझाया गया।

प्रमाणित तथ्य (Facts)परिणाम (Consequences)
(अ) जीव-जन्तुओं में सन्तानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता

(ब) एक जाति के प्राणियों की संख्या स्थिर

जीवन संघर्ष
(अ) जीवन संघर्ष

(ब) विभिन्नताएँ तथा आनुवंशिकता

योग्यतम की उत्तरजीविता या प्राकृतिक वरण
(अ) योग्यतम की उत्तरजीविता

(ब) वातावरण में सतत् परिवर्तन

निर्तर प्राकृतिक वरण द्वारा नयी जाति की उत्पत्ति

प्रश्न 6.
जीवन की उत्पत्ति व विकास के सम्बन्ध में मिलर द्वारा किये गये प्रयोग को समझाइये |
अथवा
स्टैनले मिलर के प्रयोग का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइये ।
उत्तर:
मिलर ने एक तर्कपूर्ण प्रयोग किया। इस प्रयोग का उद्देश्य उस परिकल्पना का परीक्षण करना था जिसके अनुसार यह माना जाता है। कि अमीनो अम्ल सदृश पदार्थ अमोनिया, जल एवं मीथेन जैसे प्रथम यौगिकों से बने होंगे। मिलर ने एक विशिष्ट वायुरोधक उपकरण जिसे चिन्गारी विमुक्त उपकरण (Spark Discharge Apparatus) कहते हैं।

इस उपकरण में मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन (2:1:2) एवं जल का उच्च ऊर्जा ले विद्युत स्फुलिंग (High Energy Electrical Spark) में से परिवहन किया। जलवाष्प एवं उष्णता की पूत उबलते हुए जल के पात्र द्वारा की गई। परिवहन करती हुई जलवाष्प ठण्डी व संघनित होकर जल में परिवर्तित हो गई।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास 1

इस प्रयोग का उद्देश्य उन परिस्थितियों का निर्माण करना था जो कि जीव की उत्पत्ति के समय पृथ्वी पर रही होंगी। मिलर ने दो सप्ताह तक इस उपकरण में गैसों का परिवहन होने दिया । इसके बाद उसने उपकरण की ‘U’ नली में जमे द्रव को निकाल कर निरीक्षण किया तो इसमें अमीनो अम्ल एवं कार्बनिक अम्लों के साथ-साथ राइबोस, शर्करा, प्यूरीन्स, पिरामिडिन्स आदि पाये गए।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

प्रश्न 7.
निएण्डरथल मानव के जीवाश्म कहाँ पाये गये? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इसके जीवाश्म सी. फूहलरोट (C. Fullhrott) द्वारा 1956 में जर्मनी की निएण्डर घाटी से प्राप्त हुए या पाये गये । विशेषताएँ निम्न हैं-

  • इनकी उत्पत्ति और विकास 40,000 से 1 लाख वर्ष पहले हुआ।
  • ये खुले मैदानों में झोंपड़ियाँ बनाकर रहते थे।
  • कपाल गुहा का आयतन 1300-1600 सी.सी. (आज के मानव के समान) औसतन (1400 सी. सी.) ।
  • पूर्व ऊर्ध्व शरीर था।
  • शरीर पर बाल पूर्व मानव की तुलना में संख्या में कम थे ।
  • अल्पविकसित ठोड़ी (Chin) उपस्थित थी (आर्थीग्नेथस चेहरा) ।
  • बोलने का केन्द्र (Speech Centre) का प्रारम्भ इसी मानव से हुआ।
  • ये जानवरों की खाल के कपड़े पहनते थे ।
  • ये अपने मृतकों को क्रियाकर्म के साथ दफनाते थे।
  • स्वभाव में सर्वाहारी ।

प्रश्न 8.
जीवन की उत्पत्ति अंतरिक्ष से होने पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जीवन अंतरिक्ष से आया है। पूर्व ग्रीक विचारकों का मानना है कि जीवन की ‘स्पोर’ नामक इकाई विभिन्न या अनेक ग्रहों में स्थानान्तरित हुई, पृथ्वी जिसमें एक थी। कुछ खगोल वैज्ञानिक ‘पैन स्पर्मिया’ (सर्वबीजाणु) को अभी भी मान्यता देते हैं।

प्रश्न 9.
औद्योगिक अतिकृष्णता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक वरण के सिद्धान्त के अध्ययन के लिये इंग्लैण्ड में पाये जाने वाले विशेष शलभ (Moth Bistoy Betularia) का परीक्षण किया। इस प्रयोग के अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट हुआ कि इंग्लैण्ड में औद्योगिक विकास से पूर्व की वनस्पतियों के तने भूरे रंग के थे क्योंकि उन पर भूरी लाइकेन परत के रूप में जमा थी।

उस समय वहाँ भूरे रंग के शलभ की संख्या बहुत अधिक थी तथा काले रंग के शलभ कार्बोनेरिया संख्या में कम एवं दुर्लभ थे। इसका सम्भावित कारण तनों का भूरा रंग भूरे शलभों की मांसाहारी पक्षियों से सुरक्षा प्रदान कर रहा था क्योंकि तनों पर शलभ के समान पृष्ठभूमि के कारण पहचान में नहीं आते। औद्योगिक विकास होने पर कोयले का अत्यधिक उपयोग किया जाने लगा।

इससे वातावरण में कालिख की मात्रा बढ़ गई। जिसके फलस्वरूप तनों पर कालिख के जमने के कारण उनका रंग काला हो गया। इस समय भूरे शलभ पक्षियों की पहचान में आसानी से आने लगे। उन्होंने इन्हें मारकर नष्ट कर दिया। कुछ समय बाद देखा कि भूरे रंग की शलभों की संख्या तो कम हो गई परन्तु काले रंग के शलभों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई क्योंकि इस समय तनों का रंग काला उनको सुरक्षा प्रदान कर रहा है।

वर्तमान में उद्योगों में कोयले के स्थान पर बिजली का उपयोग किया जाने लगा जिससे वातावरण में कालिख एवं धुआँ लगभग समाप्त हो गया जिसके कारण वनस्पतियों के तने वापस अपने पूर्व रंग अर्थात् भूरे हो गये। इस रंग परिवर्तन का प्रभाव काले रंग के शलभों की संख्या पर भी पड़ा।

अब पक्षियों द्वारा काले शलभों को पहचान लिए जाने के कारण इनका भक्षण अधिक संख्या में होने लगा परन्तु भूरे रंग के शलभों को पक्षी द्वारा नहीं पहचान पाने के कारण शिकार होने से बच गये। इससे इनकी संख्या में पुनः पूर्ववत् वृद्धि हो गई। इस तरह प्रकृति जीवों के चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 10.
कृत्रिम चयन ( Artificial Selection) किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइये |
उत्तर:
कृत्रिम चयन ( Artificial Selection ) – मानव द्वारा जननिक विभिन्नताओं का उपयोग जन्तुओं तथा पौधों की उत्तम क्वालिटी नस्ल सुधार के लिए किया जाता है मानव वांछनीय लक्षणों वाले सदस्यों का आबादी से चयन कर उन्हें उन सदस्यों से पृथक् कर लेता है जिनमें ये लक्षण नहीं पाये जाते। अब चयनित सदस्यों के बीच अंत:प्रजनन (Interbreeding) कराई जाती है।

इस प्रक्रिया को ही कृत्रिम वरण चयन ( Artificial Selection) कहते हैं। यदि यह प्रक्रिया कई पीढ़ियों तक जारी रहे तो अंततः एक नई वांछनीय लक्षणों वाली प्रजाति की उत्पत्ति हो जाती है। जन्तु प्रजनकों (Animal Breeders) द्वारा कृत्रिम चयन के माध्यम से अनेक पालतू जानवरों की वांछनीय लक्षणों युक्त जातियों का उनके सामान्य पूर्वजों से विकास किया गया है जैसे कुत्ता, घोड़ा, कबूतर, मुर्गी, गाय, बकरी, भेड़ और सुअर आदि।

इसी प्रकार पादप प्रजनकों (Plant breeders) द्वारा उपयोगी पौधों की उत्तम किस्मों को प्राप्त किया गया है जैसे गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, दाल, सब्जियाँ और फल आदि। कृत्रिम चयन प्राकृतिक वरण के ही समान हैं केवल इसमें प्रकृति का स्थान मानव द्वारा मानव उपयोगी लक्षणों के विकास के लिये ले लिया जाता है। चयनित लक्षण मानव उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 11.
जन्तु वर्गीकरण किस प्रकार से जैव विकास को प्रमाणित करता है?
उत्तर:
प्रकृति में पाये जाने वाले विविध जाति के जन्तुओं को समानताओं (similarities) एवं विभिन्नताओं (dissimilarities) के आधार पर छोटे या बड़े समहों में वर्गीकृत (classify) किया गया है। जैव विकास का यह महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। सभी जन्तुओं को सर्वप्रथम लीनियस ने द्विनाम पद्धति के आधार पर विभिन्न समुदायों में बाँटा था।

पृष्ठवंशी उपसमुदाय (Subphylum vertebrata) को कई वर्गों (classes) में बाँटा गया जो कि क्रमिक विकास के अनुसार चतुर्मुखीय (cyclostomes), मत्स उभयचरों (Amphibians), सरीसृपों (Reptiles), पक्षियों (Aves) तथा स्तनियों (Mammals) में श्रेणीबद्ध किया गया है।

इस क्रम से स्पष्ट है कि आदिकाल में किसी अपृष्ठवंशी (non-chordates) मछली सदृश जन्तु से परिवर्तित होकर मछली बनी, मछली से विकसित होकर उभयचर, उभयचर से सरीसृप, सरीसृप से पक्षी तथा बाद में स्तनी बने। इन सब वर्गों में क्रमिक विकास का प्रमाण इनमें पायी जाने वाली समानताओं के द्वारा मिलता है। वर्गीकरण की इस विधि से समस्त जन्तुओं व पेड़-पौधों का वंश वृक्ष (Family tree) तैयार किया जा सकता है जिससे समुदाय प्रोटोजोआ से लेकर पृष्ठवंशी (Chordata) तक विभिन्न समुदायों के जन्तुओं में क्रमिक विकास का प्रमाण मिलता है।

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प्रश्न 12.
संयोजक कड़ियों से आप क्या समझते हैं? उचित उदाहरण देकर इनका जैव विकास में महत्व को समझाइए ।
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connecting links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx ) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर के शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अत: इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं।

इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles ) से हुआ है। जैव विकास में संयोजक कड़ियों का महत्त्व-संयोजक कड़ियाँ जैव विकास को प्रमाणित करने के लिए महत्त्वपूर्ण आधार हैं। इनके माध्यम से विभिन्न जातियों एवं वर्गों की निश्चित वंशावली एवं पूर्वजों का ज्ञान उपलब्ध होता है। इनमें जैव विकास का क्रम और दिशा भी निर्धारित होती है।

प्रश्न 13.
उत्परिवर्तन किसे कहते हैं? उत्परिवर्तन सिद्धान्त के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिये ।
उत्तर:
डी – ब्रीज (1901) ने इवनिंग प्रिमरोज जाति के पौधों पर परीक्षणों के पश्चात् ज्ञात किया कि कुछ पौधे अकस्मात् अपनी जाति से बिल्कुल भिन्न हो जाते हैं। यही नहीं, विभिन्न लक्षण वंशागत होकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते रहते हैं और नयी जाति का निर्माण करते हैं। जातीय लक्षणों में अकस्मात् वंशागत परिवर्तनों की क्रिया को डी- ब्रीज ने उत्परिवर्तन की संज्ञा दी एवं उत्परिवर्तनवाद का सिद्धान्त दिया। आधुनिक अनुसंधानों से यह भी पता चल चुका है कि जीवों में उत्परिवर्तन उनकी जनन कोशिकाओं में स्थित गुणसूत्रों एवं जीन्स की व्यवस्था में परिवर्तन के कारण होता है।

डी- ब्रीज के उत्परिवर्तन सिद्धान्त के तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. प्राकृतिक रूप से जनन करने वाली जातियों या समष्टियों में समय-समय पर उत्परिवर्तन विकसित होते हैं। उत्परिवर्ती जीव (mutant organisms) जनक जीवों से भिन्न होते हैं।
  2. उत्परिवर्तन वंशागत होते हैं तथा इनसे नयी जातियों का विकास होता है।
  3. उत्परिवर्तन दीर्घ एवं आकस्मिक होते हैं।
  4. ये किसी भी दिशा में हो सकते हैं। अतः लाभप्रद भी हो सकते हैं और हानिकारक भी।
  5. उत्परिवर्तनों पर प्राकृतिक वरण का प्रभाव पड़ता है। लाभप्रद उत्परिवर्तन जीवों के अन्दर संचित कर लिये जाते हैं और हानिकारक उत्परिवर्तन वाले जीव प्राकृतिक वरण द्वारा नष्ट हो जाते हैं।
  6. डार्विन ने इन आकस्मिक परिवर्तनों को स्पोर्ट्स (Sports) का नाम दिया। अंगों का अत्यधिक विशेषीकरण (Specialization) की व्याख्या इन्हीं स्पोर्ट्स (Sports) या आकस्मिक उत्परिवर्तन द्वारा की जा सकती है।
  7. अंगों के विकास की प्रारम्भिक अवस्था को उत्परिवर्तन सिद्धान्त के द्वारा समझाया जा सकता है, क्योंकि उत्परिवर्तन प्रारम्भ से ही पूर्ण होते हैं।

उत्परिवर्तनवाद का महत्त्व – इसमें किंचित् मात्र भी सन्देह नहीं है कि उत्परिवर्तन प्रकृति में होते हैं तथा विकास में इनका योगदान होता है। प्राकृतिक वरण एवं उत्परिवर्तनों के फलस्वरूप ही जीवों में विकास होता है।

प्रश्न 14.
डार्विन के संदर्भ में जीवन-संघर्ष को समझाइए ।
अथवा
डार्विन के अनुसार प्रकृति में जीवन संघर्ष कितने प्रकार का होता है? समझाइए ।
उत्तर:
जीवन संघर्ष तीन प्रकार का होता है-
(i) अन्त: जातीय संघर्ष यह एक ही जाति के सदस्यों के मध्य होता है, जैसे-दो कुत्तों के मध्य रोटी का टुकड़ा फेंक दिया जाये तो वे आपस में लड़ने लगते हैं। उनमें से जो अधिक शक्तिशाली होता है वही रोटी ग्रहण कर लेता है। अन्त: जातीय संघर्ष भोजन, स्थान व जनन के लिये होता है।

(ii) अन्तर्जातीय संघर्ष – यह संघर्ष दो विभिन्न जातियों में होता है। प्राय: देखा जाता है कि चूहे को देखते ही बिल्ली उसे खाने को दौड़ती है। चूहा अपनी रक्षा का प्रयास करता है। यह संघर्ष प्रायः भोजन के लिये होता है।

(iii) वातावरण संघर्ष – पृथ्वी के वातावरण में कई परिवर्तन होते रहते हैं। जैसे अधिक सर्दी, अधिक गर्मी, भूचाल, वर्षा आदि। जीवों को ऐसे परिवर्तनों से संघर्ष करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
कपि एवं मानव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कपि (Apes) एवं मानव ( Human) में अन्तर –

कपि (Apes)मानव (Human)
1. अर्द्ध ऊर्ध्व स्थितिपूर्ण ऊर्ध्व स्थिति
2. गर्दन छोटी व धंसी हुईलम्बी तथा ऊर्ध्व गर्दन
3. पूर्ण शरीर पर बालों की घनी वृद्धिमानव में घनी वृद्धि केवल कुछ स्थानों पर होती है।
4. कपाल गुहा का आयतन (cranial capacity) कम होता है। (450-500 सी.सी.)कपाल गुहा का आयतन (cranial capacity) अधिक होता है (1300-1600 सी.सी.)
5. कम बुद्धिमान होते हैंअधिक बुद्धिमान होते हैं
6. अग्र पाद पश्च पादों से लम्बेअग्र पाद पश्च पादों से छोटे
7. जबड़े ‘U’ आकृति के होते हैंमानव में अर्द्धवृत्ताकार जबड़े होते हैं
8. ठोड़ी (Chin) अनुपस्थित होती हैठोड़ी (Chin) उपस्थित होती है
9. अंगूठा हथेली के समानान्तर होता हैसम्मुख अंगूठा (हथेली के समकोण पर स्थित)
10. श्रोणि मेखला दीर्घीतचौड़ी श्रोणि मेखला
11. प्रमुख रूप से वृक्षाश्रयी वासस्थलीय वास
12. ऊपरी होंठ पर खाँच नहीं होतीऊपरी होंठ पर मध्यवर्ती खाँच (Furrow) उपस्थित
13. शिशु एवं बाल्यावस्था अपेक्षाकृत छोटीशिशु एवं बाल्यावस्था लम्बी
14. मादा में उभरे हुए स्तन नहींमादा में स्तन उभरे हुए
15. प्रीमैक्सिली हड्डियाँ मैक्सिली से पृथक्प्रीमैक्सिली हड्डियाँ मैक्सिली से समेकित

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प्रश्न 16.
डी – ब्रीज और लेमार्क के सिद्धान्त में क्या अन्तर है? समझाइए ।
उत्तर:
डी ब्रीज और लेमार्क के सिद्धान्त में अन्तर-

डी-व्रीज के सिद्धान्तलेमार्क के सिद्धान्त
1. डी-व्रीज ने जैव विकास के उत्परिवर्तन के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।जबकि लैमार्क ने उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
2. डी-व्रीज के मतानुसार नई जातियों की उत्पत्ति छोटी-छोटी विभिन्नताओं के वंशागत होने से नहीं बल्कि उत्परिवर्तन के कारण आकस्मिक बड़ी विभिन्नताओं के वंशागत होने से होती है ।लैमार्क के मतानुसार जीवों की वृद्धि एवं उनकी आकृति पर वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है जिससे उनके अंगों की संरचना में धीरेधीरे परिवर्तन होने लगता है। यह उपार्जित परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पैतृक गुणों में वंशागत रहते हैं।
3. उदाहरण-इवनिंग प्रिमरोजउदाहरण-जिराफ की गर्दन का लम्बा होना।

प्रश्न 17.
पादप या उसके भागों में पायी जाने वाली समजातता एवं तुल्यरूपता उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
समजातता व्हेल, चमगादड़ों, चीता और मानव (सभी स्तनधारी) अग्रपाद की अस्थियों में समानता दर्शाते हैं। ये यद्यपि भिन्न-भिन्न क्रियाकलाप करते हैं परन्तु इनकी शारीरिक संरचना समान होती है। ये सभी संरचनाएँ समजातीय होती हैं, जिनमें समान पूर्वज परम्पराएँ होती हैं; इसे समजातता कहते हैं। तुल्यरूपता- पक्षी एवं तितलियों के पंख लगभग एक समान दिखते हैं; लेकिन इनमें पूर्वज परम्परा सामान्य नहीं है और न ही शरीर की रचना में समानता है। भले ही वे समान क्रिया को सम्पन्न करते हैं।

प्रश्न 18.
पृथ्वी पर जीवन के विकास की प्रक्रिया में डार्विन तथा डी- ब्रीज के मतों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
डार्विन तथा डी ब्रीज के मतों में अन्तर-

डार्विन का मतडी व्रीज का मत
1. डार्विन के परिवर्तन छोटे तथा दिशात्मक हैं।जबकि डी-व्रीज के उत्परिवर्तन (Mutation) आकस्मिक तथा दिशाहीन हैं।
2. डार्विन के अनुसार परिवर्तन तथा प्राकृतिक वरण अनेक पीढ़ियों के पश्चात् उत्पन्न होता है जो कि नई जाति के लिए उत्तरदायी होता है।जबकि डी-व्रीज के अनुसार आकस्मिक उत्परिवर्तन के द्वारा नयी जाति उत्पन्न होती है।
3. डार्विन के अनुस्रार विकास धीरे-धीरे अर्थात् चरणों में हुआ है।जबकि डी-व्रीज के अनुसार विकांस एक चरण में हुआ है।

प्रश्न 19.
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ऊपर दिखाये गए डार्विन के फिंच पक्षियों में आप क्या भिन्नताएँ देख रहे हैं? लिखिए।
अथवा
गैलेपेगॉस द्वीपों पर फिंचों की विभिन्न किस्मों के अस्तित्व को डार्विन ने किस प्रकार समझाया ?
उत्तर:
डार्विन ने दक्षिण अमेरिका के समीप स्थित गेलेपेगोस द्वीप (Galapogos Island) की भिन्न वातावरणीय परिस्थितियों के कारण उपस्थित भिन्न प्रकार के जन्तु और पादप समष्टि (Fauna \& Flora) अध्ययन किया। उन्होंने एक प्रकार की चिड़िया जिसे डार्विन की फिंच (Darwin’s Finch) के नाम से जाना जाता है, उसका अध्ययन किया।

उन्होंने लगभग 20 प्रकार की चिड़ियाँ (Finches) देखीं, जो विश्व के किसी क्षेत्र में नहीं मिलती हैं। इन सभी फिंच की चोंच की आकृति अलग-अलग प्रकार की थी। इसकी एक जाति की फिंच अपनी चोंच से पेड़ की छाल को भेद तो देती थी पर भेदे हुए छिद्र के अन्दर से कीटों (Insects) को निकालने में असमर्थ थी अत: यह फिंच चोंच से एक कांटे की सहायता से कीटों को निकाल कर भक्षण करती थी।

ये सभी चिड़ियाँ (फिंच) देखने पर भिन्न-भिन्न प्रकार की थीं लेकिन ये सभी फिंच जाती की थीं जिनका मूल निवास दक्षिणी अमेरिका था। इनमें से कुछ सम्भवतया इन द्वीपों पर पहुँच गयीं और धीरे-धीरे इनमें भिन्न वातावरण में अनुकूलन स्थापित होने के फलस्वरूप चिड़ियों के खाने में अर्थात् उपलब्ध भोजन के आधार पर परिवर्तन आया।

प्रारम्भ में ये बीजभक्षी थीं, फिर शाकाहारी और अन्त में कीटभक्षी हो गई। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन पक्षियों की चोंच में भिन्नता स्थानीय वातावरण एवं उसमें उपलब्ध भोजन से अनुकूलनता का परिणाम है। इस तरह मूल रूप से एक जाति के पक्षी में जो भिन्न-भिन्न वातावरण में अभिगमन कर गये उनसे अनेक जातियों एवं उपजातियों का विकास हुआ।

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प्रश्न 20.
(i) वह कौनसा विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है जहाँ ये जीव पाये जाते हैं?
(ii) उस परिघटना का नाम लिखिए एवं समझाइए जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में इतनी विविध जातियों का विकास हुआ है।
(iii) अपरा (प्लेसेन्टल) भेडिया और तस्मानियाई भेड़िया का साथ-साथ एक ही पर्यावरण में रहते रहना किस प्रकार सम्भव हुआ, कारण प्रस्तुत करते हुए समझाइए।
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उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम

निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है।

कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं । तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं।

कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
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बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2. गाजर व मूली ।

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1. अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं। जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं । जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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2. समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं। वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन ( Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. (ATP) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • साइटोक्रोम – सी (Cytochrome – C) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

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संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं।
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अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।

(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

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अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें, प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है।

इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों (Splint Bones)

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के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ।

बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी। यह एक विकासीय परिवर्तन था। इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं। इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं।

ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है। ”
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प्रश्न 21.
हार्डी-वेनबर्ग का नियम लिखिए।
उत्तर:
इसके अनुसार किसी समुदाय में यदि प्रजनन बेतरतीब (Random) होता है, यदि उत्परिवर्तन नहीं होते हैं तथा यदि समुदाय में सदस्यों की संख्या विशाल होती है तब इस समुदाय की जीन की जीन आवृत्ति (Gen Frequency) एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में स्थिर रहेगी अर्थात् यह समुदाय आनुवंशिक संतुलन (Genetic Equilibrium) स्थिति में होगा।

इस हार्डी – वेनबर्ग ने निम्न समीकरण द्वारा समझाया-
सभी अलील आवृत्तियों का योग 1 (एक) होता है तथा व्यष्टिगत आवृत्तियों को pq कहा गया । द्विगुणित में p तथा q अलील A तथा अलील a की आवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक जीव संख्या में AA की आवृत्ति साधारणतया P2 होती है। ठीक इस प्रकार से aa की आवृत्ति q2 होती है और Aa की 2pg होती है अत: P2 + 2pg + q2=1 हुआ। यह (p+q)2 की द्विपदी अभिव्यक्ति है।

इस प्रकार हार्डी – वेनबर्ग सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि यदि जीन आवृत्तियाँ परिवर्तित नहीं होती हैं अर्थात् वह समुदाय आनुवंशिक ‘संतुलन की दशा में होता है तब इसमें विकास की दर भी शून्य होती है । इस सिद्धान्त को दिये गये उदाहरण से समझाया जा सकता है। मान लीजिए किसी विशाल समुदाय में दी गई आवृत्ति में दो अलील (Allel) A व a उपस्थित हैं। मेन्डल के वंशागति नियमानुसार इस समुदाय में तीन प्रकार के सदस्य उपस्थित होंगे जिनका अनुपात निम्न होगा –

AAAaaa
36%48%16%

यदि यह माना जाये कि समुदाय के सदस्यों के बीच प्रजनन अव्यवस्थित (Random) ढंग से हो रहा तब ऐसी स्थिति में सभी सदस्य संख्या में लगभग एक सामान युग्मक उत्पादित करेंगे । यहाँ यह भी मान लें कि जीन A व a में उत्परिवर्तन नहीं होता है तब इस समुदाय के कुल उत्पादित युग्मकों ‘उत्पादित युग्मकों का प्रतिशत निम्न प्रकार का होगा-
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लैंगिक प्रजनन में इन युग्मकों में परस्पर निषेचन निम्नलिखित चार प्रकार से सम्भव होगा-
शुक्राणु A का संयुग्मन अण्ड A से
शुक्राणु a का संयुग्मन अण्ड a से
शुक्राणु A का संयुग्मन अण्ड a से तथा
शुक्राणु a का संयुग्मन अण्ड A से
उपर्युक्त उदाहरणानुसार युग्मकों के परस्पर संयुग्मन की आवृत्ति प्रतिशत निम्नलिखित प्रकार की होगी-
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अतः इस नयी अगली पीढ़ी में सदस्यों का वही अनुपात उपलब्ध होगा जो मूल जनक समुदाय में था । स्पष्ट है कि यहाँ जीन आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है अर्थात् यह समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवंशिक सन्तुलन की दशा में रहता है व ऐसे समुदाय में विकास की दर शून्य होगी। इस वर्णन से स्पष्ट है कि विकास परिवर्तन उसी दशा में सम्भव है जब हार्डी-वेनबर्ग नियम की एक या अधिक शर्तें भंग होती हैं तथा इसके फलस्वरूप जब समुदाय का आनुवंशिक सन्तुलन बिगड़ता है । पाँच घटक हार्डी-वेनबर्ग साम्यता को प्रभावति करते हैं जो निम्न हैं-

  • जीन पलायन (Gene Migration) या जीन प्रवाह (Gene flow),
  • आनुवंशिक विचलन (Genetic Drift),
  • उत्परिवर्तन (Mutation),
  • आनुवंशिक पुनर्योग (Genetic Recombination) और
  • प्राकृतिक वरण (Natural Selection )

इस प्रकार किसी समुदाय में प्राकृतिक चयन प्रक्रिया तभी होती है जब उस समुदाय में प्रजनन अव्यवस्थित प्रकार से नहीं होता है, जब उसमें आनुवंशिक उत्परिवर्तन होते या जब समुदाय में सदस्यों की संख्या कम होती है, तभी विकास सम्भव होता है। जब जीन संख्या का स्थान परिवर्तन होता है तो जीन आवृत्तियाँ भी बदल जाती हैं। यह दोनों मौलिक (पुरानी) तथा नई जीव संख्या में होता है।

नयी समष्टि में नई जीनें और अलील जोड़ दी जाती हैं व पुरानी समष्टि में ये घट जाती हैं।. यदि यही प्रक्रिया बार- बार होगी तो जीन प्रवाह सम्भव होगा। यदि यह परिवर्तन संयोगवश होता है तो आनुवंशिक अपवाह (Genetic Drift) कहलाता है । कभी-कभी अलील आवृत्ति का यह परिवर्तन समष्टि के नये नमूने में इतना भिन्न हो जाता है तो वह नूतन प्रजाति (Species) ही हो जाती है।

मौलिक अपवाहित (Original Drifted Population) संस्थापक बन जाती है व इस प्रभाव को संस्थापक प्रवाह कहा जाता है। सूक्ष्म जीवों पर किये गये प्रयोग यह दर्शाते हैं कि पूर्व विद्यमान लाभकारी उत्परिवर्तन का वरण होता है व नये फीनोटाइप (Phenotype) दिखाई देते हैं तथा कुछ पीढ़ियों के बाद यही नयी जाति हो जाती है। प्राकृतिक वरण में इन्हें जनन के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।

वास्तव में उत्परिवर्तन व युग्मों के निर्माण समय में पुनर्योजन या जीन अपवाह का परिणाम होता है, इससे आगामी पीढ़ी में जीन आवृत्ति में परिवर्तन आता है। धीरे-धीरे जनन की सफलता के सहारे से प्राकृतिक वरण इसे अलग समष्टि का रूप दे देता है। फिर प्राकृतिक वरण स्थायित्व प्रदान कर देता है। (व्यष्टियों को लक्षण प्राप्त होना) दिशात्मक परिवर्तन ( Directional) या विदारण (डिसरप्शन ) जो वितरण वक्र के दोनों सिरों में होता है।
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प्रश्न 22.
अपसारी विकास (Divergent Evolution) क्या है ? पौधों का उदाहरण लेते हुए समझाइये।
उत्तर:
अपसारी विकास (Divergent Evolution) – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं जिसे ही अपसारी विकास कहते हैं।

इन जातियों में समजात पाये जाते हैं- जैसे बोगनविलिया का कांटा तथा कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) समजात होते हैं। ये दोनों ही तने के रूपान्तरण हैं जो कार्य तथा भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार ( आकारिकी) रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्रश्न 23.
मानव के अवशेषी अंगों की सूची बनाइए ।
उत्तर:
मानव के शरीर में लगभग 180 अवशेषी अंग हैं जिनमें से सामान्य निम्नलिखित हैं-

  1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix )
  2. कर्ण पल्लव (Ear pinna)
  3. पुच्छ कशेरूकाएँ (Caudal Vertebrae)
  4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane)
  5. त्वचा के बाल (Hair )
  6. अक्कल दाढ़ (Wisdom Teeth)
  7. सरवाइकल फिस्टुला (Cervical Fistula)
  8. केनाइन दाँत (Canine teeth)
  9. अतिरिक्त चूचुक (Extra nipple )
  10. रूडीमेन्टरी गिल स्लिटस (Rudimentary gill slits)
  11. मानव शिशु में पूँछ (Human Body with Tail)

प्रश्न 24.
विकास के आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्त का वर्णन करें।
उत्तर:
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में हमें ‘बिग बैंग’ नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त यह कहता है कि एक महा विस्फोट के फलस्वरूप ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और तापमान में कमी आई। कुछ समय बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसें बनीं। ये गैसें गुरुत्वाकर्षण के कारण संघनीभूत हुईं और वर्तमान ब्रह्माण्ड की आकाश गंगाओं का गठन हुआ। आकाश गंगा के सौर मण्डल में पृथ्वी की रचना 4.5 बिलियन वर्ष (450 करोड़) पूर्व मानी जाती है। प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं था।

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जल, वाष्य, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया आदि धरातल को ढकने वाले गलित पदार्थों से निर्मुक्त हुई। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों ने पानी को (H2) तथा (O2) में विखण्डित कर दिया तथा हल्की (H2) मुक्त हो गई। ऑक्सीजन ने अमोनिया (NH2) एवं मीथेन (CH2) के साथ मिलकर पानी, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा अन्य गैसों आदि की रचना की।

पृथ्वी के चारों तरफ ओजोन परत का गठन हुआ। जब यह ठण्डा हुआ, तो जल-वाष्प बरसात के रूप में बरसी और गहरे स्थान भर गए, जिससे महासागरों की रचना हुई। पृथ्वी की उत्पत्ति के लगभग 50 करोड़ वर्ष बाद अर्थात् 400 करोड़ वर्ष पहले जीवन प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने समय-समय पर अपनी-अपनी परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कीं। इनमें प्रमुख

परिकल्पनाएँ निम्न हैं-
1. विशिष्ट सृष्टि का सिद्धान्त (Theory of Special Creation)-यह सिद्धान्त धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक फादर सुआरेझ (Father Suarez) थे, बाइबिल के अनुसार जीवन तथा सभी वस्तुओं की रचना भगवान द्वारा 6 दिनों में की गई।

प्रथम दिनस्वर्ग तथा नरक
द्वितीय दिनआकाश तथा जल
तीसरे दिनसूखी धरती और वनस्पति
चौथे दिनसूर्य, चन्द्रमा और तारे
पाँचवें दिनमछलियाँ और पक्षी
छठे दिनस्थलीय जन्तु और मनुष्य बने।

प्रथम मनुष्य (Adam) आदम बना और इसकी बारहवीं पसली से (Five) हौवा प्रथम नारी बनी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विश्व और सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा की गई। (प्रथम मानव मनु और प्रथम नारी श्रद्धा थे ) । इसके अनुसार जीवन अपरिवर्तनशील है तथा उत्पत्ति के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विशिष्ट सृष्टिवाद का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया।

2. स्वतः जनन का सिद्धान्त (अजीवात जीवोत्पत्ति) (Theory of Spontaneous Generation Abiogenesis or Autogenesis)-इस परिकल्पना का प्रतिपादन पुराने यूनानी दार्शानिक जैसे थेल्स, एनेक्सिमेन्डर, जेनोफेन्स, प्लेटो, एम्पीडोकल्स, अरस्तू द्वारा किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से अपने आप अचानक हुई। इनका विश्वास था कि नील नदी के कीचड़ पर प्रकाश की किरणें गिरने पर उससे मेंढ़क, सर्प, मगरमच्छ आदि उत्पन्न हो गये।

अजैविक उत्पत्ति का प्रायोगिक समर्थन वाल हेल्मोन्ट (Val Helmont 1642) द्वारा किया गया। इनके द्वारा अन्धेरे स्थल पर गेहूँ के चौकर (Barn) में पसीने से भीगी गन्दी कमीज (Shirt) को रखने पर 21 दिन में चूहों की उत्पत्ति को स्वतः जनन के द्वारा होना बताया।

3. ब्रह्माण्डवाद का सिद्धान्त (Cosmologic Theory)-यह सिद्धान्त रिचर (Richter) द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन पृथ्वी पर सर्वप्रथम किसी अन्य ग्रह या नक्षत्र से जीवद्रव्य (Protoplasm), बीजाणु (Spores) या अन्य कणों के रूप में कॉस्मिक धूल के साथ पहुँचा जिसने जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

4. कॉस्मिक पेनस्पर्मिया सिद्धान्त (Cosmic Panspermia Theory)-यह सिद्धान्त आरीनियस (Arrhenius) द्वारा प्रतिपाद्ति किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवों के बीजाणु (Spores) ब्रह्माण्ड में एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर स्वतन्त्र रूप से आ जा सकते हैं। इन्होंने ही पृध्व्वी पर पहुँचकर जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

5. जीवन की अनन्तकालता का सिद्धान्त (Theory of Eternity of Life)-हेल्महॉट्ज (Helmhotz) ने जीवन की अनन्तकालिता (Eternity of Life) में विश्वास किया। इनके अनुसार जीवन की उत्पत्ति या सृष्टि का प्रश्न उठता ही नहीं, क्योंकि ‘जीवन अमर है; ब्रह्माप्ड की उत्पत्ति के समय ही अजीव और सजीव पदार्थों की एक साथ उत्पत्ति हुई ।

6. जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त (Theory of Biogenesis)-यह सिद्धान्त हार्वे (Harvey, 1951) और हक्सले (T.H. Huxley, 1870) नामक वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपाद्त किया। इनके अनुसार पृथ्वी पर नये जीवन की उत्पत्ति या निर्माण पूर्व जीवों से होता है न कि निर्जीव पदार्थों से। यह सिद्धान्त स्वतः जनन (Spontaneous Generation) का तो खण्डन करता है किन्तु पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है। जीवात् जीवोत्पत्ति का प्रायोगिक सत्यापन और स्वतः जनन का प्रायोगिक खण्डन करने के लिए प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोग अग्र हैं।

7. फ्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi, 1668-इटालियन ) का प्रयोग-इन्होंने मरे हुए सांपों, मछलियों और माँस के टुकड़ों को जारों में रखकर कुछ जार खुुले छोड़े तथा कुछ को सील किया या जालीदार कपड़े में बंद किया। खुले जारों में मक्खियों ने माँस पर अण्डे दिये जिनसे डिम्भक (Larvae of maggots) निकले बंद जारों में मक्खियाँ नहीं घुस पायीं।

अतः इनके माँस में डिम्भक (Larvae or maggots) नहीं दिखाई दिये। इस प्रयोग द्वारा सिद्ध होता है कि डिम्भक का विकास मक्खियों द्वारा दिये गये अण्डों से हुआ जबकि बंद जार में मक्खियों के नहीं घुस पाने के कारण उनमें किसी प्रकार के डिम्भक (Larvae) का विकास नहीं हुआ। अतः जीव का जन्म पहले से उपस्थित जीव द्वारा संभव है न कि स्वतः जनन द्वारा।
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8. लैजेरो स्पैलैन्जनी (Lazzaro Spallanzani 1767 इटालियन) का प्रयोग-इन्होंने बंद फ्लास्कों में सब्जियों और माँस को उबालकर जीवाणु रहित (Sterilized) पोषक शोरबा (Broth) तैयार किया। खुले या ढीले कार्क से बन्द्र जारों में रखने पर इस शोरबे में अनेक जीवाणु पनप जाते थे, परन्तु सीलबन्द करके रखने पर इसमें जीवाणु उत्पन्न नहीं होते थे।

नीधम (Needham) ने इस प्रयोग के विरोध में कहा कि अधिक उबालने से यह शोरबा जीवों के स्वतः उत्पादन के योग्य नहीं रहा। इस पर स्पैलैन्जनी (Spallanzani) ने सीलबंद फ्लास्कों की नलियों को तोड़ दिया। कुछ दिन बाद हवा के भीतर पहुँचने के कारण, इन जारों के शोरबे में भी जीवाणु हो गये। इससे सिद्ध हुआ कि सूक्ष्म जीवाणु भी स्वतः उत्पादन द्वारा नहीं, वरन् हवा में उपस्थित जीवाणु से ही बनते हैं।

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9. लुईस पाश्चर (Louis Pasteur, 1860-1862-फ्रांसीसी) का प्रयोग-लुईस पाश्चर ने रोगों का रोगाणु सिद्धान्त (Germ Theory of Diseases or Germ Theory) प्रतिपादित के साथ अजैव उत्पत्ति को गलत सिद्ध किया।
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इन्होंने शक्कर और यीस्ट (Yeast) का घोल उबाल कर उसे जीवाणु रहित कर दिया। अब इस घोल को दो प्रकार के फ्लास्क में रखा एक जार (फ्लास्क) की गर्दन को गरम करके खींच कर ‘S’ आकार (हंस की गर्दन के समान) का बना दिया तथा दूसरे की गर्दन को तोड़ दिया  ‘S’ आकृति की गर्दन वाले फ्लास्क में कोई जीवाणु दिखाई नहीं दिये क्योंकि मुड़ी गर्दन पर धूल कण और सूक्ष्म जीव चिपक गए और विलयन तक नहीं पहुँच सके। जबकि टूटी ग्रीवा वाले फ्लांस्क में वायु और सूक्ष्म जीव आसानी से पहुँच जाने के कारण उसमें सूक्ष्म जीवों की कॉलोनी का विकास हो गया। लुईस पाश्चर के प्रयोगों से अजीवात् जीवोत्पत्ति की धारणा समाप्त हो गई और सजीवों से ही जीवन की उत्पत्ति सिद्ध हो गई।

10. ओपेरिन-हेल्डेन सिद्धान्त (Oparin-Haldane Theory of Origin of Life)-वैज्ञानिक ए.आई. ओपेरियन और जे.बी.एस. हेल्डेन (इंग्लैण्ड में जन्मे भारतीय वैज्ञानिक) ने प्रकृतिवाद् या रासायनिक विकास का सिद्धान्त (Naturalistic Theory or Theory of Chemical Evolution) प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Origin of Life) है। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया है-
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(i) परमाणु अवस्था (The Atomic Stage)-पृथ्व्वी की उत्पत्ति लगभग 4-6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) Molecular Stage (Origin of Molecules and Simple Inorganic Compounds)-पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं में संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्मूर्ण ऑक्सीजन से संबोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन नहीं रही।

इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचायी (Oxidising) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया (NH3) का निम्माण किया। जल तथा अमोनिया सम्भवतः प्रथम अकार्घनिक (Inorganic) यौगिक थे। इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2,CO N2,H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक याँगिकों की उत्पत्ति (Origin of Early Organic Compounds)-वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्चिक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जल वाष्प और धात्चिक कार्बाइड के क्रिया द्वारा प्रथम काबंनिक यौगिक मेथेन CH4 का निर्माण हुआ। इसके बाद HCN हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत हो जाता जिससे बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बंदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Simple Organic Compounds)-आदि सागर के जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड्स उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोग द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ जैसे अमीनो अम्ल, गिलसरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरीमिडीन आद्व। क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्बालामुखी आदि से प्राप्त हई ।

(v) जटिल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Complex Organic Compounds)-समुद्री जल में छोटे सरल कार्बनिक यौगिकों के संयोग से बड़े जटिल कार्बनिक यौगिक बनने लगे जैसे-एमीनो अम्लों के संयोग से बड़ी शृंखलाएँ पॉलीपेप्टाइड्स (Polypeptides) और प्रोटीन बने। वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के संयोग से वसा (Fat) और लिपिड (Lipid) बने।

सरल शर्कराओं के संयोग से डाइसैकेराइड और पॉलीसेकेराइड बने। शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक और फास्फेट्स के संयोग से न्यूक्लिओटाइड बने जिनकें बहुलीकरण से न्यूक्लिक अम्ल बने। इस प्रकार समुद्री जल में ऐसे दीर्घ अणुओं (Macro molecules) का निर्माण हो गया जो जीवद्रव्य के मुख्य घटकों का निर्माण करते हैं। अतः आदि सागर में जीवन की उत्पत्ति की संम्भावनाएँ स्थापित हो गईं।
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लम्बे समय के बाद रासायनिक विकास के परिणामस्वरूप आदि सागरों का जल इन कार्बनिक यौगिकों से पूर्णतया संतृप्त हो गया। कोसरवेट व न्यूक्लिओ प्रोटीन का निर्माण-बड़े कार्बनिक अणु जो कि सागर में अजैव संश्लेषण द्वारा बने थे, एक-दूसरे के समीप आने लगे जिससे बड़ी कोलाइडी बूँदों के समान संरचनाओं का निर्माण हुआ। इन्हीं कोलाइडी बूँदों का ऑपेरिन द्वारा कोसरवेट नाम दिया गया।

कोसरवेट (संराशयक) वृहद् अणुओं का झुण्ड था जिसमें प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, लिपिड्स और पॉलीसेकेराइड्स आदि थे। इनमें वातावरण से कार्बनिक अणुओं के अवशोषण की क्षमता थी, ये जीवाणुओं के समान मुकुलन द्वारा विभाजित हो सकते थे, इनमें ग्लूकोज के अपघटन जैसी क्रियाएँ होती थीं। रासायनिक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती थी।

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ओपैरिन के अनुसार कोसरवेट सर्वप्रथम बने सरलजीवीय अणु थे जिन्होंने बाद में कोशिका को जन्म दिया। स्टैनले मिलर का प्रयोग (Experiment of S. Miller)ओपैरिन की परिकल्पना के अनुसार, प्रबल ऊर्जा की उपस्थिति में, मीथेन, हाइड्रोजन, जलवाष्प एवं अमोनिया के संयोजन से अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण की सम्भावना को, अमेरिकी वैज्ञानिक स्टैनले मिलर (Stanley Miller 1953,1957)

ने अपने आचार्य-हेरोल्ड यूरे (Harold Urey) की देखरेख में एक साधारण से प्रयोग द्वारा सिद्ध किया। उन्होंने 5 लीटर के एक फ्लास्क में 2: 1: 2 के अनुपात में, मीथेन, अमोनिया एवं हाइड्रोजन का गैसीय मिश्रण भरा। एक आधा लीटर के फ्लास्क को काँच की नली द्वारा बड़े फ्लास्क से जोड़ा। इस छोटे फ्लास्क में जल भरकर इसे उबालने का प्रंबध किया जिससे जलवाष्प पूरे उपकरण में घूमती है।

बड़े फ्लास्क में टंग्टन (Tungsten) के दो इलेक्ट्रोड (Electrodes) फिट करके, आदिवायुमण्डल की बिजली जैसे प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए एक सप्ताह तक तीव्र विद्युत की चिन्गारियाँ मुक्त कीं। इसलिए इस उपकरण को चिन्गारी-विमुक्ति उपकरण (Spark-Discharge Apparatus) कहते हैं। बड़े फ्लास्क को उन्होंने दूसरी ओर एक U नली द्वारा भी छोटे फ्लास्क से जोड़ा।

इस नली को एक स्थान पर एक कन्डेंसर (Condenser) में से निकाला। प्रयोग के अन्त में बनी गैस वाष्प के साथ जब कन्डेंसर के कारण ठण्डी हुई तो U नली में एक गहरा लाल-सा ग़द्दला तरल भर गया। विश्लेषण से पता लगा कि यह तरल ग्लाइसीन एवं एलैनीन नामक सरलतम अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं, कार्बनिक अम्लों तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों का मिश्रण था।
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अन्य वैज्ञानिकों ने भी इसी प्रकार आदि पृथ्वी पर उपस्थित दशाओं को प्रयोगशाला में उत्पन्न करके सरल अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण को सिद्ध किया। उल्का पिण्डों सें प्राप्त रासायनिक विश्लेषण द्वारा भी पता चलता है कि अंतरिक्ष में भी यह घटना क्रम चलता होगा। इन कार्बनिक अणुओं से जीवन प्रारम्भ हुआ।

यह अणु अपने समान अणु बनाने में भी सक्षम थे। उसके पश्चात् एक कोशिकीय जीव जल में उत्पन्न हुए एवं उसके बाद धीरे-धीरे विकास की ओर लगातार बढ़ते हुए जैवविविधता बढ़ती गई व जो पृथ्वी पर आज हमें पादप व जीव-जन्तु देखने को मिलते हैं वह सभी एक कोशिकीय जलीय जीवों से विकसित हुये हैं।

प्रश्न 25.
समजात एवं तुल्यरूप अंगों में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
समजातता और समवृत्तता में अन्तर- समजात अंग (Homologous Organs) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हों समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं। इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं।

इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फिल्पर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं, जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।

इन अंगों की समजातता यह सिद्ध करती है कि इन सभी जन्तुओं के पूर्वज समान रहे होंगे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ हुआ है। अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवनभर पूर्ण विकास नहीं होता है ये जन्तु जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते हैं अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं ऐसे अंगों

को अवशेषी अंग कहते हैं। मनुष्य के शरीर में अनेक रचनाएँ होती हैं जो निम्न हैं-
1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरगोश जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं क्रियाशील होती है।

2. कर्ण पल्लव (Ear Pinna ) घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे प्राणियों के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है।

3. पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है। फिर भी कशेरुकदण्ड के अन्त में 3 से 5 तक (प्राय: अर्धविकसित) पुच्छ कशेरुकाएँ होती हैं। भ्रूणीय परिवर्धन पूरा होते-होते, ये समेकित (Fused) होकर हड्डी का एक ही टुकड़ा, कोक्सिस (Coccyx ) बना लेती हैं।

4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane) – मेंढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है। इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।

5. शरीर पर बाल (Hair on the Body ) – गाय, घोड़े, गधे, बन्दर आदि का पूर्ण शरीर वालों से ढका रहता है, जो शरीर के ताप आदि के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण सहायता देते हैं। मनुष्य अपने शरीर को तापक्रम के अनुकूल कपड़ों से ढक लेता है, अर्थात् बालों की आवश्यकता नहीं होती है, अतः ये बहुत सूक्ष्म होते हैं।

अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे। किन्तु इनके महत्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 26.
एक भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिन्दु से शुरू होकर अन्य भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होता है। उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
डार्विन जब अपनी यात्रा के दौरान गैलापैगो द्वीप गए तो उन्होंने प्राणियों में यह घटना देखी डार्विन को एक काली छोटी चिड़िया (डार्विन फिंच) ने आश्चर्यचकित किया। उन्होंने महसूस किया कि उसी द्वीप के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की फिंच भी पाई जाती हैं। जितनी भी किस्मों को उन्होंने परिकल्पित किया था, वे सभी उसी द्वीप में ही विकसित हुई थीं।

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ये पक्षी मूलतः बीजभक्षी विशिष्टताओं के साथ-साथ अन्य स्वरूप में बदलावों के साथ अनुकूलित हुई और चोंच के ऊपर उठने जैसे परिवर्तनों ने इसे कीट भक्षी एवं शाकाहारी फिंच बना दिया। एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से शुरू होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूल विकिरण (Adaptive radiation) कहा जाता है। डार्विन की फिंच इस प्रकार की घटना का एक सबसे अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 27.
आनुवंशिक संतुलन क्या है? हार्डी वेनबर्ग साम्यता को प्रभावित करने वाले कोई चार घटक लिखिए।
उत्तर:
हार्डी – वेनबर्ग के सिद्धान्तानुसार एक जीव संख्या में अलील (युग्मविकल्पी) आवृत्तियाँ और उनके लोकस (विस्थल) सुस्थिर होती हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक निरन्तर रहते हैं। जीन कोश सदा अपरिवर्तनीय रहते हैं। इसे आनुवंशिक संतुलन कहते हैं। इसे प्रभावित करने वाले चार घटक निम्न प्रकार से हैं-

  • जीन पलायन या जीन प्रवाह
  • उत्परिवर्तन |
  • आनुवंशिक विचलन ।
  • आनुवंशिक पुनर्योग।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वरण कितने प्रकार का होता है? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक वरण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है-

  1. स्थायीकारी वरण
  2. दिशात्मक वरण
  3. विचलित वरण

1. स्थायीकारी वरण (Stabilizing Selection ) – स्थायीकारी वरण तब कार्य करता है जब जीवों के लक्षण वातावरण के अनुकूल होते हैं। यह किसी भी पराकाष्ठा को रोक कर औसत या मध्यमान समलक्षणी समष्टि को प्रेरित करता है व घंटीनुमा आरेख (Bell-shaped Curve) के दोनों सिरों पर उपस्थित जीव धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं। स्थायीकारी चयन विभिन्नताओं को कम करता जाता है पर मध्यमान को नहीं बदलता है। इस प्रकार के वरण में उद्विकास की दर प्रारूपिक रूप से धीमी होती है।

स्थायीकारी वरण हमेशा अपरिवर्तित वातावरण में ही कार्य करता है। उदाहरण- शिशुओं में मृत्युदर मानव शिशुओं में जन्म के समय वजन (Birth weight) भी स्थायीकारी वरण का उदाहरण है। नये-नये जन्मे शिशुओं का उपयुक्ततम (Birth weight-7.3 पाउण्ड) होता है। जिनका वजन 55 पाउण्ड से कम या 10 पाउण्ड से ज्यादा होता है उनकी मृत्युदर ज्यादा होती है।

2.  दिशात्मक वरण (Directional) – इस प्रकार का वरण वातावरण संबंधी परिवर्तनों से संबद्ध होता है। यह पराकाष्ठा वाले जीवों का वरण करके समष्टि की जीनी संरचना को उसी दिशा की ओर प्रेरित करता है। इस प्रकार का वरण सामान्य या औसत के एक ओर स्थित जीवों की एक बड़ी संख्या को लुप्त करता है और इसकी ओर स्थित जीवों की संख्या में वृद्धि करता है।

यह ऐसे जीवों का वरण करता है जो परिवर्तित वातावरण के अनुसार सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रकार या समष्टि के मध्यमान को एक निश्चित दिशा में परिवर्तित कर देता है अर्थात् यह जीन- आवृति परिवर्तन उत्पन्न कर देता है। दिशात्मक वरण वातावरण संबंधी परिवर्तन के साथ-साथ उसके बाद होता है।

उदाहरण-

  • DDT के प्रति कीटों की प्रतिरोधकता ।
  • विस्टन बीटेलेरीया।

3.  विचलित वरण-यह एक दुर्लभ प्रकार का वरण होता है लेकिन उद्विकास के संदर्भ में काफी महत्त्वपूर्ण है। वातावरण की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार उस समष्टि में एक से ज्यादा समलक्षणी जीव उपयुक्ततम हो सकते हैं। जब यह वरण काम करता है। तो दोनों छोरों पर स्थित सजीव केन्द्र पर स्थित औरों की तुलना में अधिक संतानें उत्पन्न करते हैं व समष्टि में दो चोटियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार एक समष्टि दो उप समष्टि में विभक्त हो जाती है।

अगर इन दोनों उप समष्टि (Sub population) के बीच में जीन विनिमय (Gene flow) नहीं हो पाये तो प्रत्येक उपसष्टि (Sub population) से एक नयी जाति की उत्पत्ति हो जाती है। उदाहरण – समुद्री मॉलस्का (Limpets) में दो प्रकार के कवच पाये जाते हैं सफेद या भूरा सफेद रंग वाले मॉलस्का सफेद रंग के बार्नेकल जीव पर रहते हैं व भूरे वाले मॉलस्का भूरे रंग की चट्टानों पर रहते हैं। दोनों अपने-अपने वातावरण के सर्वाधिक अनुकूल होने के कारण बचे रहते हैं व समष्टि में दोनों की संख्या बनी रहती है।

प्रश्न 2.
भौगोलिक वितरण किस प्रकार जैव विकास में सहायक रहा? उपयुक्त उदाहरण द्वारा समझाइये।
उत्तर:
जीव-जन्तुओं के भौगोलिक वितरण से जैव-विकास के प्रमाण मिलते हैं। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे मिलते हैं। यद्यपि कुछ देश भौगोलिक दृष्टि से भिन्न होते हुए भी वहां समान प्रकार के जीव पाये जाते हैं जबकि समान जलवायु वाले ‘कुछ’ देशों में विभिन्न प्रकार के प्राणी व पौधे मिलते हैं।

उदाहरण के लिये हाथी तथा सिंह अफ्रीका में पाये जाते हैं परन्तु आस्ट्रेलिया व अमेरिका में नहीं। बाघ भारत में पाये जाते हैं परन्तु अमेरिका व आस्ट्रेलिया में नहीं। इसी प्रकार आस्ट्रेलिया में मार्सुपियोलिया गण के जन्तुओं जैसे कंगारू, तस्मानियन भेड़िया, अफ्रीका में दरियाई घोड़ा, जिराफ, गोरिल्ला आदि पाये जाते हैं, अन्यत्र नहीं मिलते।

डार्विन ने द. अमेरिका के पश्चिमी तट पर प्रशान्त महासागर में स्थित गेलेपगॉस द्वीप पर पायी जाने वाली फिन्चेज (काली चिड़िया) के अध्ययन में पाया कि ये पक्षी अमेरिका में पाये जाने वाले पक्षियों के समान हैं परन्तु इनके चोंच के आकार व संरचना में भिन्नता है।

उन्होंने बताया कि इन पक्षियों की चोंच में भिन्नता स्थानीय वातावरण एवं उसमें उपलब्ध भोजन से अनुकूलता का परिणाम है (चित्र पाठ्यपुस्तक के प्रश्न 8 में देखिये) । इस प्रकार मूल रूप से एक जाति के पक्षी में जो भिन्न- भिन्न वातावरण में अभिगमन कर गये उनसे अनेक जातियों एवं उप- जातियों का विकास हुआ। इस प्रकार जन्तुओं का भौगोलिक वितरण जैव-विकास में सहायक रहा।

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अतः एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से प्रारम्भ होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूली विकिरण (Adaptive Radiation) कहा गया। एक अन्य उदाहरण आस्ट्रेलियाई मासुंपियल (शिशुधानी प्राणियों) का है।

अधिकांश मार्सुपियल जो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे; एक पूर्वज प्रभाव से विकसित हुए, और वे सभी आस्ट्रेलियाई महाद्वीप के अंतर्गत हुए हैं। जब एक से अधिक अनुकूली विकिरण एक अलग- थलग भौगोलिक क्षेत्र में (भिन्न आवासों का प्रतिनिधित्व करते हुए) प्रकट होते हैं तो इसे अभिसारी विकास कहा जा सकता है।

आस्ट्रेलिया के अपरास्तनी जंतु भी इस प्रकार के स्तनधारियों की किस्मों के विकास में अनुकूली विकिरण प्रदर्शित करते हैं, जिनमें से प्रत्येक मेल खाते मासुंपियल (उदाहरणार्थ- अपरास्तनी भेड़िया तथा तस्मानियाई वूल्फ मासुपियल) के समान दिखते हैं।

प्रश्न 3.
जीवाश्मिकी (पुराजीवी विज्ञान) तथा श्रोणिकी से जैव विकास की पुष्टि के प्रमाण दीजिए।
उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं। इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं।

इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है।

कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं । तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं।

कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
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बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2. गाजर व मूली ।

1. अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं।

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जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं। जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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(ii) समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं।

वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm ) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन ( Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material ) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. ( ATP ) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • (vii) साइटोक्रोम – सी ( Cytochrome – C ) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।
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(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

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संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं

जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

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(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें, प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है।

इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं ।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

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ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों

(Splint Bones) के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ। बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी। यह एक विकासीय परिवर्तन था ।

इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं। इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं।

ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है।”
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प्रश्न 4.
समजातता और समवृत्तता का अन्तर बताइये समजात और अवशेषी अंगों को उदाहारण सहित समझाइये। इन सबसे किस प्रकार जैव विकास प्रमाणित होता है?
उत्तर:
समजातता और समवृत्तता में अन्तर- समजात अंग (Homologous Organs) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हों समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फिल्पर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं, जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं। इन अंगों की समजातता यह सिद्ध करती है कि इन सभी जन्तुओं के पूर्वज समान रहे होंगे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ हुआ है।

अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवनभर पूर्ण विकास नहीं होता है ये जन्तु जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते हैं अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं ऐसे अंगों को अवशेषी अंग कहते हैं। मनुष्य के शरीर में अनेक रचनाएँ होती हैं जो निम्न हैं-

1. कृमिरूपी परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरगोश जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं क्रियाशील होती है।

2. कर्ण पल्लव (Ear Pinna ) घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे प्राणियों के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है।

3. पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है। फिर भी कशेरुकदण्ड के अन्त में 3 से 5 तक (प्राय: अर्धविकसित) पुच्छ कशेरुकाएँ होती हैं। भ्रूणीय परिवर्धन पूरा होते-होते, ये समेकित (Fused) होकर हड्डी का एक ही टुकड़ा, कोक्सिस (Coccyx ) बना लेती हैं।

4. निमेषक पटल (Nictitating Membrane) – मेंढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है। इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।

5. शरीर पर बाल (Hair on the Body ) – गाय, घोड़े, गधे, बन्दर आदि का पूर्ण शरीर वालों से ढका रहता है, जो शरीर के ताप आदि के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण सहायता देते हैं। मनुष्य अपने शरीर को तापक्रम के अनुकूल कपड़ों से ढक लेता है, अर्थात् बालों की आवश्यकता नहीं होती है, अतः ये बहुत सूक्ष्म होते हैं।

अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे। किन्तु इनके महत्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

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प्रश्न 5.
डार्विनिज्म पर एक निबंध लिखिये।
अथवा
डार्विनवाद क्या है? सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक वरण ( चयन) के सिद्धान्त के क्रियान्वयन के पदक्रमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवों के क्रमिक परिवर्तन से नई जाति का बनना जैव विकास कहलाता है। यह आज सर्वमान्य है परन्तु जैव विकास की क्रियाविधि क्या रही है? इस समस्या के समाधान हेतु 19 वीं शताब्दी के आरम्भ में ही लेमार्क (Lamarck) द्वारा, बाद में डार्विन (Darwin) एवं ह्यूगो डी व्रिज (Hugo de Vries) द्वारा प्रयास किया गया।

(1) लामार्कवाद (Lamarckism)-फ्रांस के वैज्ञानिक जीन बेपटिस्ट डी लामार्क (1744-1829) ने अपनी संकल्पना प्रस्तुत की जिसे लामार्कवाद कहते हैं। इन्होंने उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
लामार्कवाद की मुख्य चार अवधारणायें निम्न हैं-
(i) आंतरिक जैव बल (Internal vital force)-लामार्क के अनुसार सभी जीवों में कुछ आन्तरिक जैव बल उपस्थित हैं, इन बलों के कारण ही जीवों में अपने अंगों तथा पूर्ण शरीर के आकार में वृद्धि करने की प्रवृत्ति बनी रहती है।

(ii) वातावरण का प्रभाव और नई आवश्यकताएँ (Effect of environment and new needs)-वातावरण सभी प्रकार के जीवों को प्रभावित करता है। परिवर्तित वातावरण ही जीवों में नई आवश्यकताओं को उत्पन्न करता है। इन नई आवश्यकताओं के कारण जीव नई संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं जिससे उनके स्वभाव और संरचनाओं में परिवर्तन आ जाते हैं।

(iii) अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग (Use and disuse of organs)-यदि अंग लगातार उपयोग में आता है तो यह अधिक विकसित और शक्तिशाली हो जाता है तथा अनुपयोगी अंग धीरे-धीरे अपह्गासित होने लगते हैं।

(iv) उपार्जित लक्षणों की वंशागति (Inheritance of acquired character)-इस प्रकार जीव के जीवन काल में आंतरिक जैव बलों, वातावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव, नई आवश्यकता और अंगों के उपयोग तथा अनुपयोग के द्वारा नए लक्षणों का विकास हो जाता है। इन लक्षणों को उपार्जित लक्षण कहते हैं।

ये लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से वंशागत होते हैं, कई पीढ़ियों तक इन लक्षणों की वंशागति से एक नई जाति का विकास हो जाता है जो अपने पूर्वज से भिन्न होती है उदाहरण-जिराफ, अफ्रीका में पाया जाने वाला जन्तु है। इसके पूर्वजों की आकृति काफी छोटी थी और उस समय उनके निवास स्थान में घास-फूस अधिक थी अतः पूर्वज घास पर निर्वाह करते थे।

धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन हुआ जिसके कारण यह क्षेत्र रेगिस्तान बनने लगा। अतः जिराफ को भोजन के लिए ऊँचे पेड़-पौधों की पत्तियों पर निर्भर होना पड़ा। पेड़ों की पत्तियों तक पहुँचने के लिए छोटे जन्तु को अपनी गर्दन लगातार ऊपर करनी पड़ती तथा अग्र टाँगों द्वारा कूदकर पत्तियों तक पहुँचना पड़ता।

लामार्क ने बताया कि जिराफ की अगली टाँगों तथा गर्दन का अधिक उपयोग होने से ये अंग लम्बे होते गये। इन लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण हुआ। जिराफ के अंगों का लम्बा होना उपार्जित लक्षण तथा इसका हस्तानान्तरण वंशागति कहलाते हैं जिसके फलस्वरूप आधुनिक जिराफ का विकास हुआ।
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(2) माल्थस (Malthus, 1838), चार्ल्स लाइल (Charles Lyell)- हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer), वैलेस (Wallace 1823-1913) आदि के विचारों से प्रभावित होकर वैज्ञानिक वैलेस के साथ सन् 1858 में चार्स्स डार्विन ने जीवों में जीवन के लिए संघर्ष तथा प्रकृति द्वारा योग्य जातियों के चयन के विचार संयुक्त रूप से छपवाये। सन् 1959 में अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों की उत्पत्ति’ (Origin of Species by Natural Selection) का प्रकाशन कर प्राकृतिक वरण का सिद्धान्त के रूप में किया। इसे ही आज डार्विनवाद कहा जाता है।

प्राकृतिक वरणवाद के मुख्य बिन्दु निम्न हैं-
(1) अत्यधिक प्रजनन (Over Production)-सभी जीव जातियों में संतानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता होती हैं और जीव गुणात्मक रूप में अपनी जाति की संख्या में वृद्धि करते हैं। जैसे-

  • पादप हजारों की संख्या में बीज पैदा करते हैं।
  • कीट सैकड़ों अण्डे एक बार में देते हैं।
  • एक जोड़ा हाथी सम्पूर्ण जीवन में लगभग 6 संतान पैदा करता है।

यदि सभी संतानें जीवित रहें और इसी प्रकार प्रजनन करें तो लगभग 750 वर्ष में एक जोड़े हाथी से 19 मिलियन हाथी पैदा हो जायेंगे। कुछ जीव अधिक संतान पैदा करते हैं, जबकि कुछ जीव कम संख्या में संतानोत्पत्ति करते हैं, इसे विभेदात्मक जनन कहते हैं।

(2) उत्तरजीविता के लिए संघर्ष (Struggle of Existence)- प्रत्येक जीव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे स्थान, आवास और भोजन आदि के लिए अपनी ही जाति अथवा अन्य जाति के सदस्यों के साथ प्रतियोर्गिता करते हैं। इसे उत्तरजीविता के लिए संघर्ष कहते हैं। यह संघर्ष जीव के सम्पूर्ण जीवन में जारी रहता है, युग्मनज (Zygote) बनने से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक।

उत्तरजीविता के लिए संघर्ष तीन प्रकार से होता है-

  • सजातीय संघर्ष (Intraspecific Struggle)-यह संघर्ष एक ही जाति के सदस्यों के बीच उनकी समान आवश्यकताओं के लिए होता है जैसे भोजन, आवास और जनन (यह सबसे तीव्रतम संघर्ष होता है)।
  • अन्तरजातीय संधर्ष (Interspecific Struggle)-यह
    भिन्न जाति के सदस्यों के बीच होता है। भोजन तथा आवास के लिए।
  • वातावरणीय संघर्ष (Environmental Struggle)-यह जीवों के उनके वातावरण की भिन्न परिस्थितियों के बीच होने वाले संघर्ष हैं, जैसे-जीव वर्षा, बाढ़-सूखा, भूकम्प, सर्दी-गर्मी आदि से सुरक्षित रहने के लिए संघर्ष करते हैं।

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(3) विभिन्नताएँ एवं वंशागति (Variations \& Heredity)-केवल समान जुड़वाँ संतानों (Identical Twins) को छोड़कर कोई भी दो जीव तथा उनकी आवश्यकताएँ समान नहीं होतीं। इसका अर्थ है जीवों के मध्य अन्तर होते हैं, यही अन्तर विभिन्नताएँ कहलाती हैं। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण कुछ जीव दूसरों की अपेक्षा अपने वातावरण के प्रति अधिक अनुकूलित होते हैं।

डार्विन के अनुसार विभिन्नताएँ सतत होती हैं और ऐसी विभिन्नताएँ जो जीव को अपने वातावरण के प्रति अनुकूल बनाने या अनुकूलन स्थापित करने में सहायक होती हैं, अगली पीढ़ी में वंशागत हो जाती हैं जबकि अन्य विलुप्त हो जाती हैं।

(4) योग्यतम की उत्तरजीविता या प्राकृतिक वरण (Survival of Fittest or Natural Selection)-डार्विन के अनुसार उत्तरजीविता के लिए संघर्ष में केवल अधिक सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने वाले सदस्य ही योग्यतम सिद्ध होते हैं। संघर्ष में जो भी अधिक सक्षम होते हैं वही विजयी होकर योग्यतम सिद्ध होते हैं।

योग्यतम प्राणी ही अपने विशिष्ट लक्षणों के कारण लैंगिक प्रजनन के लिए संगम साथी (Mating Partner) को पाने में सफल होते हैं। इसे लैंगिक वरण (Sexual Selection) कहते हैं। उत्तरजीविता के लिए संघर्ष में केवल वही जीव जीवित रहते हैं जो लाभदायक विभिन्नताएँ रखते हैं अर्थात् प्रकृति केवल योग्यतम जीवों का ही चयन करती है, इसे प्राकृतिक वरण (Natural Selection) कहते हैं अर्थात् योग्यता अनुकूलन क्षमता का अन्तिम परिणाम होती है और प्रकृति द्वारा चयनित हो जाती है।

(5) नई जाति की उत्पत्ति (Origin of New Species)डार्विन ने स्पष्ट किया कि ऐसी विभिन्नताएँ जो वातावरणीय परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती हैं अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित हो जाती हैं जिससे नई संतान अपने पूर्वजों से भिन्नता प्रदर्शित करती है। अगली पीढ़ी में प्राकृतिक वरण का यही प्रक्रम पुनः दोहराया जाता है और कई पीढ़ियों के बाद अतंतः एक नई जाति का निर्माण हो जाता है।

प्राकृ तिक वरण के उदाहरण (Examples of Natural Selection)-
(i) औद्योगिक अतिकृष्णता (Industrial Melanism)-इस घटना का अध्ययन बेनार्ड केटलवेल द्वारा किया गया। औद्योगिक क्रान्ति के पहले श्लभ (मोथ विस्टन बेटेलेरिया) का स्लेटी रूप प्रभावी था, कारबोनेरिया रूप काला कम ही मिलता था क्योंकि यह पक्षी द्वारा परभक्षण के प्रति अनुकूलित (Susceptible) था। यह तभी दिखाई देता था जब पेड़ के तने पर विश्राम अवस्था में होता था।

औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में धुआँ (Somke) होता है जो पेड़ के तने पर जमा होता जाता है और उसे काला कर देता है। अब ग्रे रूप (स्लेटी) अनुकूलित (Susceptible) हो जाता है और काला रूप पनप जाता है। कोयले का तेल और बिजली द्वारा प्रतिस्थापित काले रूप के उत्पादन को कम करता है जिससे स्लेटी मॉथथ की आकृति पुन: बढ़ जाती है।

(ii) औषधि प्रतिरोधिता (Drug Resistance)-औषधियाँ जो रोगजनक (Pathogens) को नष्ट करती हैं समय के साथ अप्रभावी होती जा रही हैं क्योंकि रोगजनक जाति के सदस्य इनको झेल लेते हैं और जीवित रहते हैं, पनपते हैं और प्रतिरोधी समष्टि का उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 6.
‘जीवन की उत्पत्ति’ में केवल रासायनिक विकास ही हुआ। विस्तारपूर्वक लिखिये ।
उत्तर:
रासायनिक विकास का सिद्धान्त यह सिद्धान्त रूसी वैज्ञानिक ओपेरिन और हेल्डेन ने दिया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई, जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया-
(i) परमाणु अवस्था – पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी ।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) – पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं के संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्पूर्ण ऑक्सीजन से संयोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त O2 नहीं रही।

आरम्भिक जीव- कोशिका का निर्माण इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing ) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचाय (Oxidising ) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया का निर्माण किया । जल तथा अमोनिया संभवतः प्रथम अकार्बनिक यौगिक थे । इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2, CO, N2, H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति – वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्विक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जलवाष्प और धात्विक कार्बाइड की क्रिया द्वारा प्रथम कार्बनिक यौगिक मेथेन (CH4) का निर्माण हुआ। इसके बाद (HCN) हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता वह उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत होकर बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बूँदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे ।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति- आदि सागर में जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोगों द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ, जैसे- अमीनो अम्ल, ग्सिलरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरामिडिन आदि।

क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्वालामुखी आदि से प्राप्त हुई। लेडरबर्ग ने प्रतिकृति प्लेटिंग प्रयोग द्वारा जीवाणुओं को उनके वातावरण के प्रति अनुकूलता की आनुवंशिकता का प्रदर्शन किया।

प्रश्न 18.
जीवन की उत्पत्ति के सम्बंध में ऑपेरिन मत पर निबंध लिखिए ।
उत्तर:
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में हमें ‘बिग बैंग’ नामक महाविस्फोट का सिद्धान्त यह कहता है कि एक महा विस्फोट के फलस्वरूप ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और तापमान में कमी आई। कुछ समय बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसें बनीं। ये गैसें गुरुत्वाकर्षण के कारण संघनीभूत हुईं और वर्तमान ब्रह्माण्ड की आकाश गंगाओं का गठन हुआ।

आकाश गंगा के सौर मण्डल में पृथ्वी की रचना 4.5 बिलियन वर्ष (450 करोड़) पूर्व मानी जाती है। प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं था। जल, वाष्य, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया आदि धरातल को ढकने वाले गलित पदार्थों से निर्मुक्त हुई। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों ने पानी को (H2) तथा (O2) में विखण्डित कर दिया तथा हल्की (H2) मुक्त हो गई।

ऑक्सीजन ने अमोनिया (NH2) एवं मीथेन (CH2) के साथ मिलकर पानी, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा अन्य गैसों आदि की रचना की। पृथ्वी के चारों तरफ ओजोन परत का गठन हुआ। जब यह ठण्डा हुआ, तो जल-वाष्प बरसात के रूप में बरसी और गहरे स्थान भर गए, जिससे महासागरों की रचना हुई। पृथ्वी की उत्पत्ति के लगभग 50 करोड़ वर्ष बाद अर्थात् 400 करोड़ वर्ष पहले जीवन प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने समय-समय पर अपनी-अपनी परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कीं। इनमें प्रमुख परिकल्पनाएँ निम्न हैं-

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1. विशिष्ट सृष्टि का सिद्धान्त (Theory of Special Creation)-यह सिद्धान्त धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक फादर सुआरेझ (Father Suarez) थे, बाइबिल के अनुसार जीवन तथा सभी वस्तुओं की रचना भगवान द्वारा 6 दिनों में की गई।

प्रथम दिनस्वर्ग तथा नरक
द्वितीय दिनआकाश तथा जल
तीसरे दिनसूखी धरती और वनस्पति
चौथे दिनसूर्य, चन्द्रमा और तारे
पाँचवें दिनमछलियाँ और पक्षी
छठे दिनस्थलीय जन्तु और मनुष्य बने।

प्रथम मनुष्य (Adam) आदम बना और इसकी बारहवीं पसली से (Five) हौवा प्रथम नारी बनी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विश्व और सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा की गई। (प्रथम मानव मनु और प्रथम नारी श्रद्धा थे ) । इसके अनुसार जीवन अपरिवर्तनशील है तथा उत्पत्ति के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विशिष्ट सृष्टिवाद का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया।

2. स्वतः जनन का सिद्धान्त (अजीवात जीवोत्पत्ति) (Theory of Spontaneous Generation Abiogenesis or Autogenesis)-इस परिकल्पना का प्रतिपादन पुराने यूनानी दार्शानिक जैसे थेल्स, एनेक्सिमेन्डर, जेनोफेन्स, प्लेटो, एम्पीडोकल्स, अरस्तू द्वारा किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से अपने आप अचानक हुई।

इनका विश्वास था कि नील नदी के कीचड़ पर प्रकाश की किरणें गिरने पर उससे मेंढ़क, सर्प, मगरमच्छ आदि उत्पन्न हो गये। अजैविक उत्पत्ति का प्रायोगिक समर्थन वाल हेल्मोन्ट (Val Helmont 1642) द्वारा किया गया। इनके द्वारा अन्धेरे स्थल पर गेहूँ के चौकर (Barn) में पसीने से भीगी गन्दी कमीज (Shirt) को रखने पर 21 दिन में चूहों की उत्पत्ति को स्वतः जनन के द्वारा होना बताया।

3. ब्रह्माण्डवाद का सिद्धान्त (Cosmologic Theory)-यह सिद्धान्त रिचर (Richter) द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन पृथ्वी पर सर्वप्रथम किसी अन्य ग्रह या नक्षत्र से जीवद्रव्य (Protoplasm), बीजाणु (Spores) या अन्य कणों के रूप में कॉस्मिक धूल के साथ पहुँचा जिसने जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

4. कॉस्मिक पेनस्पर्मिया सिद्धान्त (Cosmic Panspermia Theory)-यह सिद्धान्त आरीनियस (Arrhenius) द्वारा प्रतिपाद्ति किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवों के बीजाणु (Spores) ब्रह्माण्ड में एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर स्वतन्त्र रूप से आ जा सकते हैं। इन्होंने ही पृध्व्वी पर पहुँचकर जीवन के विभिन्न रूपों को जन्म दिया।

5. जीवन की अनन्तकालता का सिद्धान्त (Theory of Eternity of Life)-हेल्महॉट्ज (Helmhotz) ने जीवन की अनन्तकालिता (Eternity of Life) में विश्वास किया। इनके अनुसार जीवन की उत्पत्ति या सृष्टि का प्रश्न उठता ही नहीं, क्योंकि ‘जीवन अमर है; ब्रह्माप्ड की उत्पत्ति के समय ही अजीव और सजीव पदार्थों की एक साथ उत्पत्ति हुई ।

6. जीवात् जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त (Theory of Biogenesis)-यह सिद्धान्त हार्वे (Harvey, 1951) और हक्सले (T.H. Huxley, 1870) नामक वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपाद्त किया। इनके अनुसार पृथ्वी पर नये जीवन की उत्पत्ति या निर्माण पूर्व जीवों से होता है न कि निर्जीव पदार्थों से।

यह सिद्धान्त स्वतः जनन (Spontaneous Generation) का तो खण्डन करता है किन्तु पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है। जीवात् जीवोत्पत्ति का प्रायोगिक सत्यापन और स्वतः जनन का प्रायोगिक खण्डन करने के लिए प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोग अग्र हैं।

7. फ्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi, 1668-इटालियन ) का प्रयोग-इन्होंने मरे हुए सांपों, मछलियों और माँस के टुकड़ों को जारों में रखकर कुछ जार खुुले छोड़े तथा कुछ को सील किया या जालीदार कपड़े में बंद किया। देखिए सामने। खुले जारों में मक्खियों ने माँस पर अण्डे दिये जिनसे डिम्भक (Larvae of maggots) निकले बंद जारों में मक्खियाँ नहीं घुस पायीं।

अतः इनके माँस में डिम्भक (Larvae or maggots) नहीं दिखाई दिये। इस प्रयोग द्वारा सिद्ध होता है कि डिम्भक का विकास मक्खियों द्वारा दिये गये अण्डों से हुआ जबकि बंद जार में मक्खियों के नहीं घुस पाने के कारण उनमें किसी प्रकार के डिम्भक (Larvae) का विकास नहीं हुआ। अतः जीव का जन्म पहले से उपस्थित जीव द्वारा संभव है न कि स्वतः जनन द्वारा।
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8. लैजेरो स्पैलैन्जनी (Lazzaro Spallanzani 1767 इटालियन) का प्रयोग-इन्होंने बंद फ्लास्कों में सब्जियों और माँस को उबालकर जीवाणु रहित (Sterilized) पोषक शोरबा (Broth) तैयार किया। खुले या ढीले कार्क से बन्द्र जारों में रखने पर इस शोरबे में अनेक जीवाणु पनप जाते थे, परन्तु सीलबन्द करके रखने पर इसमें जीवाणु उत्पन्न नहीं होते थे।

नीधम (Needham) ने इस प्रयोग के विरोध में कहा कि अधिक उबालने से यह शोरबा जीवों के स्वतः उत्पादन के योग्य नहीं रहा। इस पर स्पैलैन्जनी (Spallanzani) ने सीलबंद फ्लास्कों की नलियों को तोड़ दिया। कुछ दिन बाद हवा के भीतर पहुँचने के कारण, इन जारों के शोरबे में भी जीवाणु हो गये। इससे सिद्ध हुआ कि सूक्ष्म जीवाणु भी स्वतः उत्पादन द्वारा नहीं, वरन् हवा में उपस्थित जीवाणु से ही बनते हैं।

9. लुईस पाश्चर (Louis Pasteur, 1860-1862-फ्रांसीसी) का प्रयोग-लुईस पाश्चर ने रोगों का रोगाणु सिद्धान्त (Germ Theory of Diseases or Germ Theory) प्रतिपादित के साथ अजैव उत्पत्ति को गलत सिद्ध किया।
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इन्होंने शक्कर और यीस्ट (Yeast) का घोल उबाल कर उसे जीवाणु रहित कर दिया। अब इस घोल को दो प्रकार के फ्लास्क में रखा एक जार (फ्लास्क) की गर्दन को गरम करके खींच कर ‘S’ आकार (हंस की गर्दन के समान) का बना दिया तथा दूसरे की गर्दन को तोड़ दिया देखिए सामने ‘S’ आकृति की गर्दन वाले फ्लास्क में कोई जीवाणु दिखाई नहीं दिये क्योंकि मुड़ी गर्दन पर धूल कण और सूक्ष्म जीव चिपक गए और विलयन तक नहीं पहुँच सके।

जबकि टूटी ग्रीवा वाले फ्लांस्क में वायु और सूक्ष्म जीव आसानी से पहुँच जाने के कारण उसमें सूक्ष्म जीवों की कॉलोनी का विकास हो गया। लुईस पाश्चर के प्रयोगों से अजीवात् जीवोत्पत्ति की धारणा समाप्त हो गई और सजीवों से ही जीवन की उत्पत्ति सिद्ध हो गई।

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10. ओपेरिन-हेल्डेन सिद्धान्त (Oparin-Haldane Theory of Origin of Life)-वैज्ञानिक ए.आई. ओपेरियन और जे.बी.एस. हेल्डेन (इंग्लैण्ड में जन्मे भारतीय वैज्ञानिक) ने प्रकृतिवाद् या रासायनिक विकास का सिद्धान्त (Naturalistic Theory or Theory of Chemical Evolution) प्रतिपादित किया। यह सिद्धान्त जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Origin of Life) है। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन की उत्पत्ति रसायनों के संयोग से हुई जिसे निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया गया है-
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(i) परमाणु अवस्था (The Atomic Stage)-पृथ्व्वी की उत्पत्ति लगभग 4-6 अरब वर्ष पूर्व हुई। ऐसे तत्व जो जीवद्रव्य बनाने में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं केवल परमाण्वीय अवस्था में पाये जाते थे। केवल हल्के तत्वों ने मिलकर पृथ्वी का आद्य वातावरण निर्मित किया जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। इनमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन उपस्थित थी।

(ii) आण्विक अवस्था (अणुओं और सरल अकार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति) Molecular Stage (Origin of Molecules and Simple Inorganic Compounds)-पृथ्वी के ताप में कमी होने के साथ हल्के स्वतन्त्र परमाणुओं में संयोग से अणु और सरल अकार्बनिक यौगिक बनने लगे। अति उच्च ताप के कारण सक्रिय हाइड्रोजन परमाणुओं ने सम्मूर्ण ऑक्सीजन से संबोग कर जल बनाया और वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन नहीं रही।

इसलिए आद्य वातावरण अपचायी (Reducing) था जबकि वर्तमान वातावरण स्वतन्त्र ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण उपचायी (Oxidising) है। हाइड्रोजन परमाणुओं ने नाइट्रोजन से संयोग कर अमोनिया (NH3) का निम्माण किया। जल तथा अमोनिया सम्भवतः प्रथम अकार्घनिक (Inorganic) यौगिक थे। इन हल्के तत्वों में क्रियाओं द्वारा CO2,CO N2,H2 आदि का भी निर्माण हो गया।

(iii) प्रारम्भिक कार्बनिक याँगिकों की उत्पत्ति (Origin of Early Organic Compounds)-वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन और कार्बन के धात्चिक परमाणुओं के साथ संयोग से नाइट्राइड और कार्बाइड का निर्माण हुआ। जल वाष्प और धात्चिक कार्बाइड के क्रिया द्वारा प्रथम काबंनिक यौगिक मेथेन CH4 का निर्माण हुआ। इसके बाद HCN हाइड्रोजन सायनाइड बना।

उस समय जो जल पृथ्वी पर बनता उच्च ताप के कारण वाष्पीकृत हो जाता जिससे बादल बन जाते तथा जलवाष्प वर्षा बंदों के रूप में पुनः भूमि पर आ जाती जिससे लम्बे समय तक इस प्रक्रम के चलते रहने से पृथ्वी का ताप कम होने लगा और इस पर समुद्र बनने लगे।

(iv) सरल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Simple Organic Compounds)-आदि सागर के जल में बड़ी मात्रा में मेथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सायनाइड्स, कार्बाइड और नाइट्राइड्स उपस्थित थे। इन प्रारम्भिक यौगिकों में संयोग द्वारा सरल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण हुआ जैसे अमीनो अम्ल, गिलसरॉल, वसा अम्ल, प्यूरीन, पिरीमिडीन आद्व। क्रियाओं के लिए ऊर्जा सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणों, कॉस्मिक किरणों और ज्बालामुखी आदि से प्राप्त हई ।

(v) जटिल कार्बनिक यौगिकों की उत्पत्ति (Origin of Complex Organic Compounds)-समुद्री जल में छोटे सरल कार्बनिक यौगिकों के संयोग से बड़े जटिल कार्बनिक यौगिक बनने लगे जैसे-एमीनो अम्लों के संयोग से बड़ी शृंखलाएँ पॉलीपेप्टाइड्स (Polypeptides) और प्रोटीन बने। वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के संयोग से वसा (Fat) और लिपिड (Lipid) बने।

सरल शर्कराओं के संयोग से डाइसैकेराइड और पॉलीसेकेराइड बने। शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक और फास्फेट्स के संयोग से न्यूक्लिओटाइड बने जिनकें बहुलीकरण से न्यूक्लिक अम्ल बने। इस प्रकार समुद्री जल में ऐसे दीर्घ अणुओं (Macro molecules) का निर्माण हो गया जो जीवद्रव्य के मुख्य घटकों का निर्माण करते हैं। अतः आदि सागर में जीवन की उत्पत्ति की संम्भावनाएँ स्थापित हो गईं।
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लम्बे समय के बाद रासायनिक विकास के परिणामस्वरूप आदि सागरों का जल इन कार्बनिक यौगिकों से पूर्णतया संतृप्त हो गया। कोसरवेट व न्यूक्लिओ प्रोटीन का निर्माण-बड़े कार्बनिक अणु जो कि सागर में अजैव संश्लेषण द्वारा बने थे, एक-दूसरे के समीप आने लगे जिससे बड़ी कोलाइडी बूँदों के समान संरचनाओं का निर्माण हुआ।

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इन्हीं कोलाइडी बूँदों का ऑपेरिन द्वारा कोसरवेट नाम दिया गया। कोसरवेट (संराशयक) वृहद् अणुओं का झुण्ड था जिसमें प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, लिपिड्स और पॉलीसेकेराइड्स आदि थे। इनमें वातावरण से कार्बनिक अणुओं के अवशोषण की क्षमता थी, ये जीवाणुओं के समान मुकुलन द्वारा विभाजित हो सकते थे, इनमें ग्लूकोज के अपघटन जैसी क्रियाएँ होती थीं।

रासायनिक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती थी। ओपैरिन के अनुसार कोसरवेट सर्वप्रथम बने सरलजीवीय अणु थे जिन्होंने बाद में कोशिका को जन्म दिया। स्टैनले मिलर का प्रयोग (Experiment of S. Miller)ओपैरिन की परिकल्पना के अनुसार, प्रबल ऊर्जा की उपस्थिति में, मीथेन, हाइड्रोजन, जलवाष्प एवं अमोनिया के संयोजन से अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण की सम्भावना को, अमेरिकी वैज्ञानिक स्टैनले मिलर (Stanley Miller 1953,1957) ने अपने आचार्य-हेरोल्ड यूरे (Harold Urey) की देखरेख में एक साधारण से प्रयोग द्वारा सिद्ध किया।

उन्होंने 5 लीटर के एक फ्लास्क में 2: 1: 2 के अनुपात में, मीथेन, अमोनिया एवं हाइड्रोजन का गैसीय मिश्रण भरा। देखिए चित्र 7.5 में। एक आधा लीटर के फ्लास्क को काँच की नली द्वारा बड़े फ्लास्क से जोड़ा। इस छोटे फ्लास्क में जल भरकर इसे उबालने का प्रंबध किया जिससे जलवाष्प पूरे उपकरण में घूमती है।

बड़े फ्लास्क में टंग्टन (Tungsten) के दो इलेक्ट्रोड (Electrodes) फिट करके, आदिवायुमण्डल की बिजली जैसे प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए एक सप्ताह तक तीव्र विद्युत की चिन्गारियाँ मुक्त कीं। इसलिए इस उपकरण को चिन्गारी-विमुक्ति उपकरण (Spark-Discharge Apparatus) कहते हैं। बड़े फ्लास्क को उन्होंने दूसरी ओर एक U नली द्वारा भी छोटे फ्लास्क से जोड़ा।

इस नली को एक स्थान पर एक कन्डेंसर (Condenser) में से निकाला। प्रयोग के अन्त में बनी गैस वाष्प के साथ जब कन्डेंसर के कारण ठण्डी हुई तो U नली में एक गहरा लाल-सा ग़द्दला तरल भर गया। विश्लेषण से पता लगा कि यह तरल ग्लाइसीन एवं एलैनीन नामक सरलतम अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं, कार्बनिक अम्लों तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों का मिश्रण था।
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अन्य वैज्ञानिकों ने भी इसी प्रकार आदि पृथ्वी पर उपस्थित दशाओं को प्रयोगशाला में उत्पन्न करके सरल अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण को सिद्ध किया। उल्का पिण्डों सें प्राप्त रासायनिक विश्लेषण द्वारा भी पता चलता है कि अंतरिक्ष में भी यह घटना क्रम चलता होगा। इन कार्बनिक अणुओं से जीवन प्रारम्भ हुआ।

यह अणु अपने समान अणु बनाने में भी सक्षम थे। उसके पश्चात् एक कोशिकीय जीव जल में उत्पन्न हुए एवं उसके बाद धीरे-धीरे विकास की ओर लगातार बढ़ते हुए जैवविविधता बढ़ती गई व जो पृथ्वी पर आज हमें पादप व जीव-जन्तु देखने को मिलते हैं वह सभी एक कोशिकीय जलीय जीवों से विकसित हुये हैं।

प्रश्न 19.
तुलनात्मक शरीर रचना से जैव विकास के लिए क्या प्रमाण प्राप्त होते हैं? विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यदि जैव विकास (Organic Evolution) हुआ है तो प्रारम्भ से लेकर आज तक की जीव-जातियों की रचना, कार्यिकी एवं रसायनी, भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में कुछ न कुछ सम्बन्ध एवं क्रम होना आवश्यक है। लैमार्क, डार्विन वैलेस, डी व्रिज आदि ने जैव विकास के बारे में अपनी-अपनी परिकल्पनाओं को सिद्ध करने के लिए इन्हीं – सम्बन्धों एवं क्रम को दिखाने वाले प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिन्हें हम

निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  1. जीवों की तुलनात्मक संरचना
  2. शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण
  3. संयोजक कड़ियों के प्रमाण
  4. अवशेषी अंग
  5. भ्रोणिकी से प्रमाण
  6. जीवाश्मीय प्रमाण
  7. जीवों के घरेलू पालन से प्रमाण
  8. रक्षात्मक समरूपता

(1) जीवों की तुलनात्मक संरचना ( Comparative Anatomy) से प्रमाण – जन्तुओं में शारीरिक संरचनाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) समजात अंग (Homologous organ ) – वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग अर्थात् होमोलोगस अंग हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने से भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं।

इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल (ह्यूमरस, रेडियस अल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स व अंगुलास्थियाँ ) की मूल संरचना तथा उद्भव (Origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous Organ) कहते हैं।
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कीटों के मुखांग (Mouth Parts of Insects ) – कीटों के मुखांग क्रमशः लेब्रम ( Labrum), मेण्डिबल (Mandibles), मैक्सिला (Maxilla), लेबियम (Labium) एवं हाइपोफे रिंक्स (hypopharynx) से मिलकर बने होते हैं। प्रत्येक कीट में इनकी संरचना एवं परिवर्धन समान होता है लेकिन इनके कार्यों में भिन्नता पाई जाती है। कॉकरोच के मुखांग भोजन को काटने व चबाने (Biting and Chewing) का कार्य करते हैं ।

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तितली एवं मक्खी में भोजन चूसने का एवं मच्छर में मुखांग भेदन एवं चूषण (Piercing and Sucking) दोनों का कार्य करते हैं। अकशेरुकियों के पैर (Legs of Invertibrates) – इसी प्रकार कॉकरोच एवं मधुमक्खी ( Honeybee) के टांगों के कार्य भिन्न- भिन्न हैं। कॉकरोच अपनी टांगों का उपयोग चलने (Walking) में करता है जबकि मधुमक्खी अपनी टांगों का उपयोग परागकण को एकत्रित (Collecting of Pollens) करने में करती है। जबकि दोनों की टांगों में खण्ड पाये जाते हैं तथा सभी खण्ड समान होते हैं जैसे कॉक्सा (Coxa), ट्रोकेन्टर (Trochanter ), फीमर (Femur), टिबिया (Tibia), 1 से 5 युग्मित टारसस (1-5 Jointed Tarsus)।
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बोगेनविलिया का काँटा और कुकुरबिटा के प्रतान (Tendril) में समानता होती है। इसी प्रकार और भी उदाहरण जैसे

  1. आलू व अदरक,
  2.  गाजर व मूली ।

(i)अपसारित विकास ( अनुकूली अपसारिता / अनुकूली विकिरण ) [Divergent Evolution (adaptive divergence / adaptive radiation)] – विभिन्न जन्तुओं में पायी जाने वाली समजातता यह प्रदर्शित करती है कि इन सबकी उत्पत्ति किसी समान पूर्वज से हुई है। किसी एक पूर्वज से उत्पन्न होने के बाद जातियाँ अपने-अपने आवासों के अनुसार अनुकूलित हो जाती हैं। जिसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारित विकास कहते हैं। इन जातियों में समजात अंग (Homologous Organs) पाये जाते हैं । जैसे आस्ट्रेलिया में अनुकूली विकिरण के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के मासूपिल्स (Marsupials) की उत्पत्ति हुई ।
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(ii) समवृत्ति अंग (Analogous Organs) – वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर होता है । इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं।

वातावरण एवं स्वभाव के कारण कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्गों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्गों के रूप में नहीं होती है । अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है।
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इसी तरह मधुमक्खी के डंक एवं बिच्छू के डंक दोनों ही समान कार्य करते हैं परन्तु इनकी संरचना एवं परिवर्धन भिन्न होता है । मधुमक्खी एक कीट है, इसके बाह्य जननांग मिलकर अण्ड निक्षेपक (Ovipositor) नाल बनाते हैं। यही अण्ड निक्षेपक नाल रूपान्तरित होकर डंक बनाती है जबकि बिच्छू में शरीर का अन्तिम खण्ड रूपान्तरित होकर डंक बनाता है।

इसके अतिरिक्त समवृत्ति के उदाहरण निम्न हैं-

  • ऑक्टोपस (अष्ट भुज) तथा स्तनधारियों की आँखें (दोनों में रेटिना की स्थिति में भिन्नता है) या पेंग्विन और डॉल्फिन मछलियों के फिलपर्स ।
  • रस्कस का पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) और सामान्य पर्ण।
  • आलू (तना) और शकरकंद (जड़)।

समवृत्ति अंगों में कार्य की समानता एवं विशिष्ट वातावरण की आवश्यकता के अनुरूप विकास, अभिसरण जैव विकास (Convergent Evolution) को प्रकट करता है।

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(2) शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन से प्रमाण (Evidence from Physiology and Biochemistry)-fafum. जीव शरीर क्रिया और जैव रसायन में समानता प्रदर्शित करते हैं, कुछ स्पष्ट उदाहरण निम्न हैं-

  • जीवद्रव्य (Protoplasm) – जीवद्रव्य की संरचना और संगठन सभी जन्तुओं में (प्रोटोजोआ से स्तनधारियों तक) लगभग समान होती है।
  • एन्जाइम (Enzyme) – सभी जीवों में एन्जाइम समान कार्य करते हैं। जैसे ट्रिप्सिन (Trypsin) । अमीबा से लेकर मानव तक प्रोटीन पाचन और एमाइलेज (Amylase) पॉरीफेरा से स्तनधारियों तक स्टार्च पाचन करता है।
  • रुधिर (Blood) – रुधिर की रचना सभी कशेरुकियों में लगभग समान होती है।
  • हार्मोन (Hormones) – सभी कशेरुकियों में समान प्रकार के हार्मोन बनते हैं, जिनकी रचना व कार्य समान होते हैं।
  • अनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Material) – सभी जीवों में आनुवांशिक पदार्थ DNA होता है जिसकी मूल संरचना सभी जीवों में समान होती है।
  • ए.टी.पी. ( ATP) – सभी जीवों में जैविक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा संचित होती है।
  • साइटोक्रोम – सी ( Cytochrome – C) – यह श्वसन वर्णक है जो सभी जीवों के माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित होता है। इस प्रोटीन में 78-88 तक अमीनो अम्ल एक समान होते हैं जो समपूर्वजता को प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जीवों का विकास एक ही मूल पूर्वज (Common Ancestor) से हुआ है।

(3) संयोजक कड़ियों के प्रमाण (Evidence of Connective Links) – जीवों के वर्गीकरण में समान गुणों वाले जीवों को एक ही वर्ग में रखा गया है। कुछ जन्तु ऐसे भी हैं जिनमें दो वर्गों के गुण पाये जाते हैं। इन जन्तुओं को योजक कड़ियाँ (Connective Links) कहते हैं।

संयोजक कड़ियों के उदाहरण-
(i) आर्किओप्टेरिक्स (Archeopteryx) – जर्मनी के बवेरिया प्रदेश में आर्किओप्टेरिक्स नामक जन्तु के जीवाश्म मिले हैं। इस जन्तु के कुछ लक्षण जैसे चोंच, पंख, पैरों की आकृति, एवीज वर्ग (पक्षी वर्ग) के तो कुछ लक्षण जैसे दाँत, पूँछ तथा शरीर पर शल्कों का होना रेप्टीलिया वर्ग के हैं। अतः इस जन्तु को एवीज तथा रेप्टीलिया वर्ग के मध्य योजक कड़ी कहते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों (Reptiles) से हुआ है।
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(ii) प्लेटीपस और एकिडना (Platypus and Echidna ) – प्लेटीपस और एकिडना दोनों ही मैमेलिया वर्ग के जन्तु हैं। इनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं तथा बच्चों को दूध पिलाने के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary Glands) होती हैं जो मैमेलिया वर्ग के लक्षण हैं। ये दोनों ही जन्तु रेप्टीलिया वर्ग के जन्तुओं की भाँति कवचदार पीतकयुक्त अण्डे देते हैं। इस प्रकार प्लेटीपस और एकिडना रेप्टीलिया और मैमेलिया वर्ग के मध्य एक योजक कड़ी हैं। ये जन्तु भी सिद्ध करते हैं कि स्तनधारियों का विकास सरीसृपों ( Reptiles ) से हुआ है।

(iii) पेरीपेटस (Peripatus ) – यह एनेलिडा तथा आर्थोपोडा संघ के बीच की संयोजी कड़ी है। पेरीपेटस में एनेलिडा संघ के निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • बेलनाकार आकृति
  • देहभित्ति की आकृति व चर्म का पेशीय होना
  • क्यूटिकल द्वारा निर्मित बाह्य कंकाल अनुपस्थित एवं पार्श्व पादों के समान उभारों का उपस्थित होना।

संघ आर्थ्रोपोडा के समान पेरीपेटस में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

  • तीन खण्डों के समेकन से सिर भाग का बनना
  • ऐंटिनी (Antennae ) का होना
  • एक जोड़ी सरल नेत्रों तथा एक जोड़ी मुख पैपिली का उपस्थित होना ।

अतः पेरिपेटस को एनीलीडा तथा आर्थ्रोपोडा संघ को जोड़ने वाली संयोजी कड़ी कहते हैं। यह प्रमाणित करता है कि आर्थोपोडा का विकास एनिलिडा से हुआ है ।

(iv) फुफ्फुस मछली (Lungfish ) प्रोटोप्टेरस (Portopterus) – प्रोटोप्टेरस में कुछ लक्षण मछलियों के (जैसे क्लोम तथा शल्कों की उपस्थिति) और कुछ लक्षण उभयचरों के (जैसे फुफ्फुस की उपस्थिति) पाये जाते हैं। अत: प्रोटोप्टेरस पिसीज तथा उभयचर संघ के बीच संयोजी कड़ी है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न संयोजी कड़ियों के उदाहरण हैं-

  • वायरस (Virus) – संजीव और निर्जीव के मध्य
  • यूग्लीना (Euglena) – पादप और जन्तु के मध्य
  • प्रोटेरोस्पॉन्जिया (Proterospongia ) – प्रोटोजोआ और पॉरीफेरा के मध्य
  • नियोपाइलीना (Neopilina) – मोलस्का और एनेलिडा के मध्य उक्त कार्बनिक विकास और समपूर्वजता के अच्छे उदाहरण प्रदर्शित करते हैं।

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(4) अवशेषी अंगों के प्रमाण (Evidences from Vestigeal Organs) – अधिकांश जन्तुओं में कुछ ऐसे अंग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं परन्तु इन अंगों का जीवन भर पूर्ण विकास नहीं होता है। ये जन्तु की जीवन क्रिया में कोई योगदान नहीं देते है। अर्थात् ये निरर्थक एवं अनावश्यक होते हैं। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal Organs) कहते हैं। मनुष्य के शरीर में लगभग 180 ऐसी रचनायें होती हैं जिनमें सामान्य निम्न हैं-

  • कृमिरूपी – परिशेषिका (Vermiform Appendix ) – यह भोजन नाल का भाग होता है, जिसका कोई कार्य नहीं होता है परन्तु खरहे जैसे शाकाहारी जन्तुओं में यह सीकम के रूप में विकसित एवं . क्रियाशील होती है।
  • कर्ण पल्लव (Earpinna ) – घोड़े, गधे, कुत्ते व हाथी जैसे जन्तुओं के बाहरी कान से लगी कुछ पेशियाँ होती हैं जो कान को हिलाने का कार्य करती हैं परन्तु मनुष्य में ये पेशियाँ अविकसित रूप में पाई जाती हैं तथा कर्ण पल्लव अचल होता है ।
  • पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal Vertebrae) – मनुष्य में पूँछ नहीं पायी जाती है किन्तु फिर भी पुच्छ कशेरुकाएँ अत्यधिक हासित दुम के रूप में अवशेषी अंग के रूप में पायी जाती हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज में पूँछ थी ।

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  • निमेषक पटला (Nictitating Membrane)-मेढक, पक्षियों तथा खरगोश में यह झिल्ली कई रूप में उपयोगी होती है, परन्तु मनुष्य में होते हुए भी इसका कोई कार्य नहीं होता है। यह लाल अर्द्धचन्द्राकार झिल्ली होती है जो आँख के एक ओर स्थित होती है । इसको प्लिका सेमील्यूनेरिस (Plica Semilunaris) कहते हैं।
  • त्वचा के बाल (Hair ) – बन्दरों, घोड़ों, सूअरों, कपियों आदि स्तनियों के शरीर पर घने बाल होते हैं। ये ताप नियन्त्रण में सहायता करते हैं। मानव में बालों का यह कार्य नहीं रहा, फिर भी शरीर पर कुछ बाल होते हैं।
  • अक्कल दाढ़ ( Wisdom Teeth) – तीसरा मोलर दन्त अन्य प्राइमेट (Primate) स्तनियों में सामान्य होता है । मानव में इसका उपयोग नहीं होता है। अतः यह देर से निकलता है और अर्ध विकसित रहता है। यह दंतरोगों के प्रति संवेदनशील होता है।

अन्य जन्तुओं में अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in other Animals)

  • अजगर (Python) के पश्च पाद और श्रोणि मेखला
  • बिना उड़ने वाले ( Flightless) पक्षियों के पंख जैसे शुतुरमुर्ग, ईमू कीवी आदि ।
  • घोड़े के पैरों की स्पिलिंट अस्थियाँ (Splint Bones ) 2 और 4 अगुंली।
  • व्हेल के पश्चपाद और श्रोणि मेखला

पादपों के अवशेषी अंग (Vestigeal Organs in Plants) – रस्कस और अनेक भूमिगत तनों की शल्की पत्तियाँ ।
अनावश्यक अंगों के अवशेषों का जन्तु के शरीर पर पाया जाना यह सिद्ध करता है कि ये अंग इनके पूर्वजों में क्रियाशील एवं विकसित रहे होंगे किन्तु इनके महत्त्व की समाप्ति पर उद्विकास के द्वारा क्रमशः विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया में वर्तमान जन्तुओं में उपस्थित होते हैं।

(5) श्रोणिकी से प्रमाण (Evidences from Embryology) – श्रोणिकी तुलनात्मक भ्रोणिकी तथा प्रायोगिक श्रोणिकी से विकास के पक्ष में निर्णायक प्रमाण मिलते हैं। सभी मेटोजोअन प्राणी एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से विकसित होते हैं और सभी प्राणियों के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में अत्यधिक समानता होती है।

मनुष्य सहित सभी मेटाजोअन वर्गों के प्राणियों के अण्डों के परिवर्धन के समय विदलन, ब्लास्टूला एवं गेस्टुला में वही मूलभूत समानताएँ पायी जाती हैं। प्रौढ़ जन्तुओं में जितने निकट का सम्बन्ध होता है उनके परिवर्धन में उतनी अधिक समानता देखने को मिलती है। विभिन्न वर्गों में परिवर्धन के बाद की अवस्थाएँ अपसरित हो जाती हैं व यह अपसरण एक विशाखित वृक्ष के समान होता हैं।
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इसी प्रकार विभिन्न कशेरुकियों के भ्रूणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उच्च वर्ग के जन्तुओं के भ्रूण निम्न वर्गों के प्रौढ़ जन्तुओं के समान होते हैं, जैसे मेढ़क का टेडपोल लारवा मछली के समान होता है। इसी आधार पर हेकल ने पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Recapitulation Theory ) प्रतिपादित किया।

इसके अनुसार प्रत्येक जीव भ्रूणीय परिवर्धन में अपनी जाति के जातीय विकास की कथा को दोहराता है। पुनरावर्तन सिद्धान्त के आधार पर निषेचित अण्डे की तुलना समस्त जन्तुओं के एककोशिकीय पूर्वज से ब्लास्टुला की प्रोटोजोआ मण्डल या कॉलोनी से की जा सकती है। मेढ़क के ही नहीं वरन् रेप्टाइल, पक्षी और यहाँ तक कि मनुष्य के भ्रूण में भी क्लोम दरारें, क्लोम, नोटोकॉर्ड, युग्मित आयोटिक चॉपें,

प्रोनेफ्रोस, पुच्छ तथा पेशियाँ आदि मछली के समान होती हैं और आरम्भ में सभी का हृदय मछली के समान द्विकक्षीय होता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि प्रारम्भ मे समस्त वर्टिब्रेट्स का विकास मछली के समान पूर्वजों से हुआ है। मनुष्य के भ्रूणीय परिवर्धन में देखा गया है कि उसका भ्रूण प्रारम्भ में मछली से, बाद में एम्फिबियन से और फिर रेप्टाइल से मिलता-जुलता होता है और सातवें मास में यह शिशु कपि से मिलता- जुलता होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक जीव अपने भ्रूण परिवर्धन में उन समस्त अवस्थाओं से गुजरता है जिनसे कभी उसके पूर्वज धीरे-धीरे विकसित होकर बने होंगे।

(6) जीवाश्मीय प्रमाण (Palaeontological Evidences) – वैज्ञानिक चार्ल्स लायल के अनुसार पूर्व जीवों के चट्टानों से प्राप्त अवशेष जीवाश्म ( Fossils) कहलाते हैं। जीवाश्म का अध्ययन पेलियो-ओन्टोलॉजी (Palacontology) कहलाता है। जीवाश्म कार्बनिक विकास के पक्ष में सर्वाधिक मान्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि जीवाश्म द्वारा जीवों के सम्पूर्ण विकासीय इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।

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जीवाश्म के अध्ययन से जीवों के विकास के सम्बन्ध में निम्न तथ्य प्रमाणित हुए-

  • जीवाश्म जो कि पुरानी चट्टानों से प्राप्त हुए सरल प्रकार के तथा जो नई चट्टानों से प्राप्त हुए जटिल प्रकार के थे।
  • विकास के प्रारम्भ में एक कोशिकी प्रोटोजोआ जन्तु बने जिनसे बहुकोशिकी जन्तुओं का विकास हुआ।
  • कुछ जीवाश्म विभिन्न वर्ग के जीवों के बीच की संयोजक कड़ियाँ (Connecting-links) को प्रदर्शित करती हैं।
  • पौधों में एन्जिओस्पर्म (Angiosperm) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे अधिक विकसित और आधुनिक हैं।
  • जीवाश्म के अध्ययन से किसी भी जन्तु को जीवाश्म कथा ( विकासीय इतिहास) या वंशावली का क्रमवार अध्ययन किया जा सकता है।

घोड़े की वंशावली ( जीवाश्मीय इतिहास ) [Evolution (Pedigree) of Horse] वैज्ञानिक सी. मार्श (C. Marsh) के अनुसार घोड़े का प्रारम्भिक जीवाश्म उत्तरी अमेरिका में पाया गया जिसका नाम इओहिप्पस (Eohippus) था। इसका विकास इओसीन काल में हुआ। इओहिप्पस लोमड़ी के समान तथा लगभग एक फुट ऊँचे थे। इनके अग्रपादों में चार तथा पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं ।
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ओलिगोसीन काल में इन पूर्वजों से भेड़ के आकार के मीसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़ों का विकास हुआ। इनके अग्र व पश्च पादों में केवल तीन-तीन अंगुलियाँ थीं। बीच की अंगुलियाँ इधर- उधर की दोनों अंगुलियों से बड़ी थीं और शरीर का अधिकांश भाग इन्हीं पर रहता था। इनसे मायोसीन काल के मेरीचिप्पस (Merychippus) घोड़ों का विकास हुआ।

ये टट्ट के आकार के थे। इनके अग्र व पश्च पादों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं जिनमें से बीच वाली सबसे लम्बी थी और केवल यही भूमि तक पहुँचती थी । प्लायोसीन काल में प्लीओहिप्पस (Pliohippus) घोड़ों का विकास हुआ। ये आकार में टट्ट से ऊँचे थे। इनके अग्र व पश्चपादों में केवल एक-एक अंगुली विकसित थी और इधर-उधर की अंगुलियाँ अत्यधिक हासित होकर स्प्लिट अस्थियों (Splint Bones) के रूप में त्वचा में दबी हुई थीं। केवल एक ही अंगुली की उपस्थिति के कारण ये तेजी से दौड़ सकते थे । प्लीस्टोसीन युग में इन्हीं घोड़ों से आधुनिक घोड़े इक्वस (Equus) का विकास हुआ। इक्वस की ऊँचाई लगभग 5 फीट है और यह उसी रूप में आज भी चला आ रहा है।

(7) जीवों के घरेलू पालन ( Domestication) से प्रमाण- मनुष्य अपने लिए उपयोगी जन्तुओं (घोड़े, गाय, कुत्ता, बकरी, भेड़, भैंस, कबूतर, मुर्गा आदि) तथा खेतिहर वनस्पतियों (गोभी, आलू, कपास, गेहूँ, चावल, मक्का, गुलाब आदि) की इनके जंगली पूर्वजों से नस्लें सुधार कर उत्पत्ति की है।

यद्यपि नस्लें सुधार कर नयी जातियों की उत्पत्ति वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं, फिर भी इस प्रक्रिया में बदले हुए लक्षण विकसीय ही माने जायेंगे हजारों-लाखों वर्षों का समय मिले तो सम्भवतः मानव इस विधि से नयी जीव जातियों की उत्पत्ति कर लेगा। अतः इतने पुराने इतिहास की प्रकृति में अनुमानत: इसी प्रकार नस्लों में सुधार के फलस्वरूप नयी-नयी जातियों की उत्पत्ति हुई होगी।

(8) रक्षात्मक समरूपता (Protective Resemblance) से प्रमाण – इंगलिस्तान (Britain) के औद्योगिक नगरों के आस-पास के पेड़ चिमनियों के धुएँ से काले पड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के कीटों, विशेष तौर से पतंगों (moths) की विभिन्न जातियों में, गत सदी में, औद्योगिक साँवलेपन (Industrial melanism) का रोग हो गया।

उदाहरणार्थ, पंतगों की बिस्टन बिटूलैरिया (Biston betularia) नामक जाति में शरीर व पंख हल्के रंग के काले धब्बेदार होते थे । सन् 1884 में इनकी आबादी में पहली बार एक बिल्कुल काला पतंगा देखा गया। यह परिवर्तन रंग के जीन में अचानक जीन – उत्परिवर्तन (gene- mutation) के कारण हुआ। बाद में काले पतंगों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 90% हो गयी।

यह एक विकासीय परिवर्तन था । इससे पतंगों का रंग पेड़ों के रंग से मिलता-जुलता हो गया ताकि ये शत्रुओं (पक्षियों) और शिकार की निगाहों से बच सकें । जीन – उत्परिवर्तन के कारण वातावरण से रक्षात्मक समरूपता के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं।

इसे सादृश्यता (Mimicry) कहते हैं। ऐसी तितलियाँ होती हैं जो उन्हीं सूखी पत्तियों जैसी दिखायी देती हैं जिन पर ये आराम के समय बैठती हैं शाखाओं से मिलती-जुलती आकृति की कई कीट जातियाँ पायी जाती हैं। ये सब दृष्टान्त ‘जैव – विकास’ को प्रमाणित करते हैं । इंगलिस्तान के पतंगों के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कहा – गया है कि इनमें “वैज्ञानिकों ने विकास प्रक्रिया को होते हुए स्वयं देखा है। ”
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प्रश्न 20.
(a) 15 मिलियन साल पहले रहने वाले प्राइमेट्स का नाम दीजिए तथा उनके लक्षण दीजिए।
(b) (i) पहले मानव समान जन्तु कहाँ मिले?
(ii) निएण्डरथल, होमोबिलिस तथा होमोइरेक्टस इस पृथ्वी पर किस क्रम में विकसित हुए?
(iii) आधुनिक मानव इस गृह पर कब उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
(a) 15 मिलियन साल पहले रहने वाले प्राइमेट्स का नाम ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus) है।

ड्रायोपिथेकस के लक्षण निम्न हैं-

  • माथा गोल,
  • आधुनिक मानव के समान,
  • किन्तु इसके लम्बे कैनाइन दाँत कपि की भाँति थे,
  • यह कुछ झुक कर चारों पादों पर चलता था,
  • मानव तथा कपियों दोनों का ही पूर्वज रहा है।

(b) (i) प्रथम स्तनधारी श्रूज ( Shrews ) ईस्ट अफ्रीका,
(ii) होमो हे बिलस (Homohabilis), होमो इरेक्टस (Homoerectus), निएण्डरथल (Neanderthal),
(iii) 10,000 से 11,000 वर्ष पूर्व आधुनिक मानव उत्पन्न हुआ ।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. पेंग्विन एवं डॉल्फिन के पक्ष के उदाहरण हैं- (NEET-2020)
(अ) अभिसारी विकास का
(ब) औद्योगिक मैलेनिज्म का
(स) प्राकृतिक वरण का
(द) अनुकूली विकिरण का
उत्तर:
(अ) अभिसारी विकास का

2. एस. एल. मिलर ने अपने प्रयोग में एक बंद फ्लास्क में किसका मिश्रण कर ऐमिनो अम्ल उत्पन्न किये- (NEET-2020)
(अ) 800°C पर CH3 H2, NH3 और जल वाष्प
(ब) 600°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प
(स) 600°C पर CH3, H2, NH2 और जल वाष्प
(द) 800°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प
उत्तर:
(द) 800°C पर CH4, H2, NH2 और जल वाष्प

3. अनेक कशेरूकों के अग्रपाद की अस्थि संरचना में समानता किसका उदाहरण है? (NEET-2019)
(अ) अभिसारी विकास
(ब) तुल्यरूपता
(द) अनुकूली विकिरण
(स) समजातता
उत्तर:
(स) समजातता

4. निम्नलिखित अपसारी विकास के उदाहरण में से गलत विकल्प का चयन कीजिए-
(अ) चमगादड़, मनुष्य एवं चीता का मस्तिष्क
(ब) चमगादड़, मानव एवं चीता का हृदय
(स) मानव, चमगादड़ एवं चीता के अग्रपाद
(द) ऑक्टोपस, चमगादड़ एवं मानव की आँखें
उत्तर:
(द) ऑक्टोपस, चमगादड़ एवं मानव की आँखें

5. ह्यूगो डी ब्रिज के अनुसार विकास की क्रियाविधि किस प्रकार होती है- (NEET-2018)
(अ) लैंगिक दृश्य प्ररूप परिवर्तन (लक्षणप्ररूपी विभिन्नता)
(ब) साल्टेशन
(स) बहुवरण उत्परिर्वन
(द) लघु उत्परिवर्तन
उत्तर:
(ब) साल्टेशन

6. आदिमानव से अभिनव मानव तक मानव विकास का कालानुक्रमिक क्रम है- (NEET II-2016 )
(अ) रामपिथेकस → होमो हैविलिस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो इरेक्टस
(ब) आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → रामपिथेकस होमो → इरेक्टस
(स) आस्ट्रेलोपिथेकस → रामपिथेकस → होमो हैबिलिस → होमो इरेक्टस
(द) रामपिथेकस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → होमो इरेक्टस
उत्तर:
(द) रामपिथेकस → आस्ट्रेलोपिथेकस → होमो हैविलिस → होमो इरेक्टस

7. निम्नलिखित संरचनाओं में से कौनसी संरचना पक्षी के पंख के समजात है- (NEET-2016)
(अ) खरगोश का पश्च पाद
(ब) व्हेल का फ्लीपर
(स) शार्क का पृष्ठ पंख
(द) शलभ का पंख
उत्तर:
(ब) व्हेल का फ्लीपर

8. पक्षी के पंख और कीट के पंख- (NEET-2015)
(अ) अनुरूप संरचनाएँ और अभिसारी विकास को दर्शाती हैं।
(ब) वंशावली संरचनाएँ और अपसारी विकास को दर्शाती हैं।
(स) समजातीय संरचनाएँ हैं और अभिसारी विकास को दर्शाती हैं।
(द) समजातीय संरचनाएँ अपसारी विकास को दर्शाती हैं।
उत्तर:
(द) समजातीय संरचनाएँ अपसारी विकास को दर्शाती हैं।

9. बिल्ली और छिपकली के अग्रपाद चलने; व्हेल के अग्रपाद तैरने और चमगादड़ के अग्रवाद उड़ने के लिए होते हैं, ये किसके उदाहरण हैं- (NEET-2014)
(अ) समवृति अंग
(ब) अनुकूली विकिरण
(स) समजात अंग
(द) अभिसारी विकास
उत्तर:
(स) समजात अंग

10. अपने पूर्वजों से विकसित होने के दौरान, आधुनिक मानव (होमोसेपिएस) की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति क्या रही थी- (NEET-2012)
(अ) जबड़ों का छोटा होते जाना
(ब) द्विनेत्रीय दृष्टि
(स) बढ़ती जाति कपाल धारिता
(द) सीधी खड़ी देह भंगिमा
उत्तर:
(अ) जबड़ों का छोटा होते जाना

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11. पूर्वजों से आधुनिक मनुष्य (होमो सैपियन्स) के उद्विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति थी- (CBSE, 2011 )
(अ) जबड़ों का छोटा होना
(ब) द्विनेत्री बाइनोकुलर दृष्टि
(स) मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि
(द) सीधी मुद्रा
उत्तर:
(स) मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि

12. जब कभी विभिन्न वंशवृत्तों की दो स्पेशीज अनुकूलनों के कारण एक-दूसरे के समान दिखने लगती हैं, तब इस परिघटना को क्या कहा जाता है? (CBSE-2007, RPMT-2010).
(अ) अपसारी विकास
(ब) अभिसारी विकास
(स) सूक्ष्म विकास
(द) सह विकास
उत्तर:
(ब) अभिसारी विकास

13. मिलर के प्रयोग में निम्नलिखित में से कौन अनुपस्थित था ? (CPMT, 2010)
(अ) CH4
(ब) H2
(स) NH3
(द) O2
उत्तर:
(द) O2

14. डार्विन की फिन्च एक अच्छा उदाहरण है- (CBSE PMT-2008, CBSE, 2010)
(अ) औद्योगिक मीलेनीकरण का
(ब) संयोजी कड़ी का
(स) अनुकूली विकिरण का
(द) अभिसारी जैव – विकास का
उत्तर:
(स) अनुकूली विकिरण का

15. मानव के पूर्वजों में से मस्तिष्क का आकार 1000 सी.सी. से अधिक था- (RPMT-2010)
(अ) होमो निएण्डरथेलेन्सिस
(ब) होमो इरेक्टस
(स) रामापिथेकस
(द) होमो हैबिलिस
उत्तर:
(अ) होमो निएण्डरथेलेन्सिस

16. आधुनिक मानव का नवीनतम एवं सीधा प्रागैतिहासिक पूर्वज है- (RPMT-2009)
(अ) क्रोमैगनॉन मानव
(ब) प्री-निएण्डरस्थल मानव
(स) निएण्डरथल मानव
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) क्रोमैगनॉन मानव

17. एक सबसे पुराना सर्वश्रेष्ठतः संरक्षित तथा सर्वाधिक पूर्ण होमिनिड जीवाश्म, जिसे लूसी नाम से जाना जाता है, किस वंश का प्रतिनिधित्व करता है- [AMU (Med)-2009]
(अ) आरियोबाइथेकस
(ब) ड्रायोपाइथेकस
(स) पाइथेकेन्थ्रोपस
(द) आस्ट्रेलोपाइथेकस
उत्तर:
(द) आस्ट्रेलोपाइथेकस

18. इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के दौरान पैपर्ड मॉथ अथवा विस्टन बेटुलेरिया की काले रंग की प्रजाति, इसके हल्के रंग वाली प्रजातियों पर अधिक प्रभावी हो गयी। यह एक उदाहरण है- (RPMT 2006, CBSE, 2009)
(अ) प्राकृतिक चयन का, जिसमें गहरे रंग वाली प्रजातियों का चयन हुआ
(ब) सूर्य के प्रकाश की बहुत कम मात्रा के कारण गहरे रंग वाले जीवों की उत्पत्ति का
(स) सुरक्षात्मक मिमिक्री का
(द) अंधेरे वातावरण के कारण गहरे रंग के गुण की आनुवंशिकता का
उत्तर:
(अ) प्राकृतिक चयन का, जिसमें गहरे रंग वाली प्रजातियों का चयन हुआ

19. विकास का महत्त्वपूर्ण प्रमाण प्रदान करता है- (RPMT 2008)
(अ) जीवाश्म
(ब) आकारिकी
(स) भ्रूण
(द) अवशेषी अंग
उत्तर:
(अ) जीवाश्म

20. रासायनिक विकास की संकल्पना किस पर आधारित है- (CBSE-2007)
(अ) रसायनों का क्रिस्टलीकरण
(ब) तीव्र गर्मी में जल, वायु तथा मृत्तिका की परस्पर क्रिया
(स) रसायनों पर सौर विकिरण का प्रभाव
(द) उपयुक्त पर्यावरण परिस्थितियों में रसायनों के संयोजन द्वारा जीवन का संभावित उद्भव
उत्तर:
(द) उपयुक्त पर्यावरण परिस्थितियों में रसायनों के संयोजन द्वारा जीवन का संभावित उद्भव

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21. अनुकूली विकिरण का क्या अर्थ है ? (CBSE, 2007)
(अ) भौगोलिक पृथक्करण के कारण होने वाले अनुकूलन
(ब) एक समान पूर्वज से विभिन्न स्पीशीज का विकास
(स) किसी स्पीशीज के सदस्यों का विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में प्रवास
(द) किसी एक व्यष्टि की, विभिन्न पर्यावरणों के लिए अनुकूलन क्षमता
उत्तर:
(ब) एक समान पूर्वज से विभिन्न स्पीशीज का विकास

22. गेलोपेगॉस द्वीप समूह के फिंच पक्षी किस एक के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करते हैं? (CBSE, 2007)
(अ) विशिष्ट सृजन
(ब) उत्परिवर्तनों के कारण हुआ विकास
(स) प्रतिगामी विकास
(द) जैव भौगोलिक विकास
उत्तर:
(द) जैव भौगोलिक विकास

23. मानव पूर्वजों में मस्तिष्क का आकार 1000 C. C. से ज्यादा किसका था? (CBSE, 2007)
(अ) होमो निएंडरथैलेसिस
(ब) होमो इरेक्टस
(स) रामापिथेकस
(द) होमो हैबिलिस
उत्तर:
(अ) होमो निएंडरथैलेसिस

24. प्राकृतिक वरण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया- (CPMT, 2006)
(अ) लैमार्क ने
(स) वैलेस ने
(ब) डार्विन ने
(द) वीजमान ने
उत्तर:
(द) वीजमान ने

25. जैव विकास के समर्थन में पाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण किसका पाया जाता है? (CBSE, 2006)
(अ) समजात तथा अवशेषी अंग
(ब) समवृत्ति तथा अवशेषी अंग
(स) केवल समजात अंग
(द) समजात एवं समवृत्ति अंग
उत्तर:
(अ) समजात तथा अवशेषी अंग

26. डी ब्रीज ने जैविक क्रमविकास से सम्बन्धित अपना उत्परिवर्तन मत किस जीव पर शोध करते हुए प्रस्तुत किया था- (CBSE, 2005)
(अ) इनोथेरा लैमार्कियाना ( सन्ध्या प्रिमरोज )
(ब) ड्रोसोफिलामेलोनोगेस्टर
(स) पाइसम सैटाइवम
(द) एल्थीया रोजिया
उत्तर:
(अ) इनोथेरा लैमार्कियाना ( सन्ध्या प्रिमरोज )

27. मुर्दे को दफन करने एवं धर्म के प्रमाण सर्वप्रथम किस जीवाश्म से मिलते हैं ? (RPMT, 2005 )
(अ) निएण्डरथल
(स) होमो इरेक्टस
(ब) क्रो-मैग्नॉन
(द) होमो हेबिलिस
उत्तर:
(अ) निएण्डरथल

28. निम्नलिखित में से किए गए प्रयोगों से ज्ञात होता है कि सरलतम सजीव जीवधारी निर्जीव पदार्थ से स्वतः जात उत्पन्न नहीं हो सकते थे- (NEET-2005)
(अ) सड़ते – गलते जैविक पदार्थों में लार्वा प्रकट हुए
(ब) मांस को यदि गर्म करके किसी पात्र में सील बंद करके रखा। गया तो मांस खराब नहीं हुआ
(स) भण्डारित मांस में सूक्ष्म जीव प्रकट नहीं हुए
(द) अनिजर्मीकृत जैव पदार्थ से सूक्ष्म जीव प्रकट हुए।
उत्तर:
(ब) मांस को यदि गर्म करके किसी पात्र में सील बंद करके रखा। गया तो मांस खराब नहीं हुआ

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 7 विकास

29. निम्न में से कौनसा गलत है- (Orissa JEE-2004)
(अ) कीटों एवं पक्षियों के पंख समरूप हैं।
(ब) कीटों एवं चमगादड़ के पंख समरूप हैं।
(स) कीटों एवं पक्षियों के पंख समजात अंग हैं
(द) चिड़ियों एवं चमगादड़ के पंख समजात अंग हैं।
उत्तर:
(स) कीटों एवं पक्षियों के पंख समजात अंग हैं

30. आलू और शकरकंद- (AIMS-2004)
(अ) में खांचशील भाग होते हैं जो समजात अंग होते हैं।
(ब) में खांचशील भाग होते हैं जो समवृद्धि अंग होते हैं।
(स) किसी एक बाहरी स्थान से भारत में प्रविष्ट कराए गए हैं।
(द) एक ही जीन के दो स्पीशीज ।
उत्तर:
(ब) में खांचशील भाग होते हैं जो समवृद्धि अंग होते हैं।

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. मनुष्य के अगुणित डी.एन.ए. में कितने क्षार युग्म होते हैं?
(अ) 5.5 × 107
(ब) 4.6 × 106
(स) 3.3 × 109
(द) 6.3 × 108
उत्तर:
(स) 3.3 × 109

2. केन्द्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ डी.एन.ए. की खोज किसने की थी?
(अ) फ्रेडरीच मेस्वर
(ब) राबर्ट हुक
(स) वाटसन क्रिक
(द) राबर्ट ब्राउन
उत्तर:
(अ) फ्रेडरीच मेस्वर

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3. डी.एन.ए. का वह खण्ड जो आर. एन. ए. का कूटलेखन करता है, उसे कहते हैं-
(अ) रज्जुक
(ब) क्रोमोसोम
(स) जीन
(द) इंट्रान
उत्तर:
(स) जीन

4. फिंगर प्रिंट के लिए निम्न में से किसका DNA का सैम्पल लिया जाता है-
(अ) कपड़ों पर लगे वीर्य
(ब) योनि स्राव
(स) बाल या मृत व्यक्ति के बाल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. मानव में लगभग 1.4 करोड़ जगहों पर अलग इकहरा क्षार पाया जाता है जिसे कहते हैं-
(अ) स्निप्स
(ब) पिनिप्स
(स) जिनीप्स
(द) टिनिप्स
उत्तर:
(अ) स्निप्स

6. मानव में ज्ञात सबसे बड़ी जीन डिसट्राफिन (Distraphin) में कितने करोड़ क्षार पाए जाते हैं-
(अ) 2.4 करोड़
(ब) 3.4 करोड़
(स) 4.4 करोड़
(द) 5.4 करोड़
उत्तर:
(अ) 2.4 करोड़

7. गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चयी (Haploid set ) को क्या कहते हैं?
(अ) अनुलेखन
(ब) आनुवंशिक कूट
(स) लैक ओपेरॉन
(द) जीनोम
उत्तर:
(द) जीनोम

8. डी.एन.ए. में अनुलेखन इकाई का भाग नहीं है-
(अ) उन्नायक (प्रमोटर )
(ब) संरचनात्मक जीन
(स) समापक
(द) लैक ओपेरॉन ।
उत्तर:
(द) लैक ओपेरॉन ।

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9. पहला आनुवांशिक पदार्थ था-
(अ) DNA
(ब) RNA
(स) प्रोटीन
(द) CSC
उत्तर:
(ब) RNA

10. आर.एन.ए. के रासायनिक रूपांतरण से किसका विकास हुआ-
(अ) tRNA
(ब) mRNA
(स) rRNA
(द) DNA
उत्तर:
(द) DNA

11. फ्रेडेरिक ग्रिफीथ (1928) ने स्ट्रेप्टोकोकस नीमोनी किस रोग के लिए जिम्मेदार माना-
(अ) हैजा
(ब) निमोनिया
(स) टीबी
(द) टॉयफाइड
उत्तर:
(ब) निमोनिया

12. ‘न्यूक्लिन’ नाम किस वैज्ञानिक ने दिया?
(अ) मेण्डल ने
(ब) हर्ष ने
(स) ओसवाल्ड एवेरी ने
(द) फ्रेडरीच मेस्चर ने।
उत्तर:
(द) फ्रेडरीच मेस्चर ने।

13. निम्न में से किसे पालिन्यूक्लिओटाइड एंजाइम कहते हैं?
(अ) पॉलीमरेज- I
(ब) पॉलीमरेज- II
(स) लाइगेज
(द) राइबोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(स) लाइगेज

14. न्यूक्लिओसाइड न्यूक्लिोटाइड से भिन्न होता है, क्योंकि इसमें नहीं होता-
(अ) फास्फेट
(ब) शर्करा
(स) नाइट्रोजन क्षारक
(द) फास्फेट व शर्करा
उत्तर:
(अ) फास्फेट

15. 64 कोडोन्स में से 61 कोडोन्स 20 अमीनो अम्ल को कोड करते हैं, यह कहलाता है-
(अ) कोडोन की वॉवलिंग
(ब) जीन का अतिव्यापन
(स) कोडोन की सार्वभिकता
(द) जेनिटिक कोड का ह्रास
उत्तर:
(द) जेनिटिक कोड का ह्रास

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16. संरचनात्मक जीन्स की क्रिया किसके द्वारा नियंत्रित होती है –
(अ) आपरेटर
(ब) प्रमोटर
(स) लाइगेज
(द) रेग्यूलेटरी जीन ।
उत्तर:
(अ) आपरेटर

17. DNA का अनुलेखन (Transcription ) किसके द्वारा सहायक होता है?
(अ) RNA पॉलीमरेज
(ब) DNA पॉलीमरेज
(स) एक्सोन्यूक्लिएज
(द) रीकाम्बीनेज
उत्तर:
(अ) RNA पॉलीमरेज

18. ओकाजाकी खण्ड किस समय दिखाई देते हैं-
(अ) प्रतिलिपिकरण (Replication)
(ब) पारक्रमण (Transduction )
(स) ट्रांसक्रिप्शन (Transcription)
(द) अनुलिपिकरण (Translation)
उत्तर:
(अ) प्रतिलिपिकरण (Replication)

19. DNA का एक्सरे क्रिस्टलोग्राफी द्वारा अध्ययन करने वाले थे-
(अ) गिफिथ
(ब) वाटसन एवं क्रिक
(स) विलकिन्स
(द) मैकलिन्टॉक
उत्तर:
(स) विलकिन्स

20. आनुवंशिक कूट होते हैं-
(अ) एकक
(ब) द्विक
(स) त्रिक
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) त्रिक

21. आनुवंशिक कूट का वहन करने वाले हैं-
(अ) इन्ट्रॉन
(ब) एम्सॉन
(स) स्पलाइसोम
(द) SRNA
उत्तर:
(ब) एम्सॉन

22. कोशिका जैविकी का केन्द्रीय सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया?
(अ) वाटसन
(ब) विलिकिन्स
(स) ग्रिफिथ
(द) क्रिक
उत्तर:
(द) क्रिक

23. प्रोटीन संश्लेषण स्थान पर अमीनो अम्लों को कौन ले जाता है?
(अ) m.RNA
(स) t.RNA
(ब) r.RNA
(द) DNA
उत्तर:
(स) t.RNA

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24. न्यूक्लिक अम्ल के खोजकर्ता थे-
(अ) मीशर
(स) खुराना
(ब) वानमोल
(द) वाटसन क्रिक
उत्तर:
(अ) मीशर

25. यूकैरियोटोप में DNA के अनुलेखन के पश्चात् बनने वाले RNA को कहते हैं-
(अ) rRNA
(स) RNA
(ब) mRNA
(द) H RNA
उत्तर:
(द) H RNA

26. DNA में क्षारक युग्मों की परस्पर दूरी होती है-
(अ) 20A°
(स) 344°
(ब) 3.4A°
(द) 10A°
उत्तर:
(ब) 3.4A°

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
DNA आनुवंशिक पदार्थ है। इसके बारे में सुस्पष्ट प्रमाण किसने दिये ?
उत्तर:
अल्फ्रेड हर्षे व मार्था चेस ने।

प्रश्न 2.
DNA में शर्करा एवं फॉस्फोरिक अम्ल के मिलने से कौनसा बन्ध बनता है?
उत्तर:
फॉस्फो डाइएस्टर बन्ध ।

प्रश्न 3.
ऐसे खण्डों का नाम बताइये जो hnRNA में से RNA स्प्लाइसिंग के द्वारा काटकर अलग कर दिये जाते हैं।
उत्तर:
इन्ट्रॉन (Intron ) ।

प्रश्न 4.
उस एन्जाइम का नाम लिखिये जो अनुलेखन में सहायता करता है।
उत्तर:
RNA पॉलीमरेज विकर।

प्रश्न 5.
जीन अभिव्यक्ति के नियमन की ऑपेरॉन अवधारणा किन वैज्ञानिकों ने दी ?
उत्तर:
जैकब एवं मोनाड ।

प्रश्न 6.
hnRNA में पाये जाने वाले वे खण्ड जो प्रोटीन संश्लेषण में भाग नहीं लेते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
इन्ट्रॉन (Intron ) ।

प्रश्न 7.
ऋणात्मक नियमन क्या है ?
उत्तर:
इस नियमन में नियामक जीन का उत्पाद जीन की अभिव्यक्ति को रोक देता है। उदाहरण- लेक ऑपेरॉन ।

प्रश्न 8.
आनुवंशिक कूट में कोमारहित का क्या तात्पर्य है? उत्तर- दो कोडोन के बीच विराम नहीं होता है। एक के बाद दूसरा कोडोन तुरन्त प्रारम्भ हो जाता है।

प्रश्न 9.
snRNP का पूर्ण नाम बताइये ।
उत्तर:
लघुकेन्द्रकीय राइबोन्यूक्लियोप्रोटीन ( Small nuclear ribonucleoprotein) |

प्रश्न 10
सबसे छोटा RNA कौनसा होता है व इसमें कितने न्यूक्लियोटाइड होते हैं?
उत्तर:
t.RNA सबसे छोटे होते हैं। इसमें 75-80 न्यूक्लियोटाइड होते हैं।

प्रश्न 11.
सिस्ट्रॉन की संख्या के आधार पर m. RNA कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के मोनोसिस्ट्रानिक ( Monocistronic) तथा पॉलीसिस्ट्रॉनिक (Polycistronic)।

प्रश्न 12.
मोनोसिस्ट्रॉनिक किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह m. RNA जिसमें केवल एक सिस्ट्रॉन अर्थात् प्रोटीन के एक अणु के संकेत अनुलेखित होते हैं। उदाहरण-यूकैरियोटिक कोशिकाओं में।

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प्रश्न 13.
रेप्लीसोम ( Replisome) किसे कहते हैं?
उत्तर:
DNA प्रतिकृति विधि में एन्जाइमों की एक श्रृंखला भाग लेती है जिसे रेप्लीसोम कहते हैं।

प्रश्न 14.
DNA के एक कुण्डल की लम्बाई तथा एक कुण्डल में नाइट्रोजनी क्षारकों की संख्या बताइये।
उत्तर:
लम्बाई 34A° तथा क्षारकों की संख्या 11) होती है।

प्रश्न 15.
RNA कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
तीन प्रकार के r. RNA. t.RNA m. RNA तथा इनके अतिरिक्त विषमांगी केन्द्रकी RNA (hnRNA) तथा लघु केन्द्रकीय RNA भी होते हैं।

प्रश्न 16.
कोशिका में कितने प्रकार के r.RNA अणु पाये जाते हैं?
उत्तर:
लगभग 60 विभिन्न प्रकार के ।

प्रश्न 17.
ओकाजाकी खंड किस घटना से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
प्रतिकरण से ।

प्रश्न 18.
BAC व YAC का पूर्ण नाम लिखिए।
उत्तर:
BAC = Bacterial Artificial Chromosome YAC = Yeast Artificial Chromosome.

प्रश्न 19
प्रोटीन में अमीनो अम्लों के अनुक्रमों को निर्धारित करने वाली विधि के विकास का श्रेय किसे जाता है ?
उत्तर:
फ्रेडिरक सेंगर ।

प्रश्न 20.
DNA अंगुलिछापी में किन DNA का महत्त्व है?
उत्तर:
पुनरावृत्ति DNA ( Repetitive DNA ) व अनुषंगी DNA (Satellite DNA) का।

प्रश्न 21.
आनुवंशिक पदार्थ के अणु हेतु आवश्यक चार मानदण्डों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक पदार्थ के अणु हेतु आवश्यक चार मानदण्ड निम्न हैं-

  • यह अपनी प्रतिकृति बनाने में सक्षम है। (प्रतिकृति)
  • इसे रचना व रासायनिक संगठन के आधार पर स्थित होना चाहिये।
  • इसमें धीमे परिवर्तनों (उत्परिवर्तन) की सम्भावना होती है जो विकास के लिये आवश्यक है।
  • इसे स्वयं ‘मेंडल के लक्षण’ के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए।

प्रश्न 22.
आनुवंशिक कूट की चार विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर:

  • प्रकूट त्रिक होता है।
  • एक प्रकूट केवल एक अमीनो अम्ल का कूट लेखन होता है अतः यह असंदिग्ध व विशिष्ट होता है।
  • कुछ अमीनो अम्ल का कूट लेखन एक से अधिक प्रकूटों द्वारा होता है, इस कारण इन्हें अपहासित कूट कहते हैं।
  • कूट लगभग सार्वभौमिक होते हैं।

प्रश्न 23.
यदि DNA के एक रज्जुक का अनुक्रम निम्नानुसार है-
5′ – AAGTTACTAGAC – 3′
तो इसके आधार पर बनने वाले m RNA के अनुक्रम लिखिए।
उत्तर:
5′- AAGUUACUAGAC – 3′

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पॉलीन्यूक्लियोटाइड से क्या तात्पर्य है? इनके घटकों को बताइये ।
उत्तर:
अनेक न्यूक्लियोटाइड्स आपस में जुड़कर पॉलीन्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला बनाकर DNA व RNA की संरचना बनाते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड के तीन घटक होते हैं – नाइट्रोजनी क्षार, पेंटोस शर्करा (RNA में रिबोस तथा DNA में डीऑक्सीरिबोज) और एक फॉस्फेट समूह । नाइट्रोजनी क्षार दो प्रकार के होते हैं प्यूरीन्स (एडेनीन व ग्वानीन) व पायरिमिडीन (साइटोसीन, यूरेसिल व थाइमीन) । साइटोसीन DNA व RNA दोनों में मिलता है जबकि थाइमीन DNA में मिलता है ।

थाइमीन के स्थान पर यूरेसील RNA में मिलता है । नाइट्रोजनी क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा पेंटोस शर्करा से जुड़कर न्यूक्लियोटाइड बनाता है जैसे एडीनोसीन या डीऑक्सी एडीनोसीन, ग्वानोसीन या डीऑक्सी ग्वानोसीन, साइटीडीन या डीऑक्सी साइटीडीन व यूरीडीन या डीऑक्सी थाइमीडिन ।

जब फॉस्फेट समूह फॉस्फोएस्टर बंध द्वारा न्यूक्लियोसाइड 5′ हाइड्रॉक्सिल समूह से जुड़ जाता है तब संबंधित न्यूक्लियोटाइड्स का निर्माण होता है। दो न्यूक्लियोटाइड्स 3-5 फॉस्फोडाइस्टर बंध द्वारा जुड़कर डाइन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। इस तरह से अनेक न्यूक्लियोटाइड्स जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 2.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये-
(i) चारगाफ का तुल्यता नियम
(ii) अर्द्ध-संरक्षणीय प्रतिकृतिकरण
(iii) क्लोवर पत्ती प्रतिरूप
(iv) स्प्लाइसियोसोम
(v) समापन कोडोन
(vi) विपरीत अनुलेखन
(vii) बहुराइबोसोम
(viii) hnRNA
उत्तर:
(i) चारगाफ का तुल्यता नियम- चारगाफ ने 1949 में विभिन्न स्रोतों से DNA प्राप्त कर व अध्ययन कर नियम बनाये, जिन्हें चारगाफ का नियम कहते हैं-

  • प्यूरीन की कुल मात्रा पिरिमिडीन की कुल मात्रा के बराबर होती है (A + G = T + C) ।
  • A वT तथा G और C का अनुपात बराबर होता है परन्तु A + T व G+ C का समान होना आवश्यक नहीं है अतः A = T,

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(ii) अर्द्ध संरक्षणीय प्रतिकृतिकरण – DNA के प्रतिकृतिकरण सम्बन्ध में मेसलसन एवं स्टाइल (1958) के द्वारा प्रस्तुत अर्द्ध संरक्षणीय प्रतिकृत मत सर्वमान्य है । इसके अनुसार DNA अणु के दोनों सूत्र एक- दूसरे से अलग होकर अपने-अपने अस्तित्व को बनाये रखते हैं और प्रत्येक सूत्र, कोशिका में उपलब्ध न्यूक्लिओटाइडों के कुण्ड (pool) से अपने सम्पूरक सूत्र का संश्लेषण करते हैं।

इस प्रकार नये बने DNA अणु में एक सूत्र पूर्ववर्ती DNA अणु का एवं एक सूत्र नया संश्लेषित होता है अर्थात् आधा पूर्व जैसा तथा आधा नया, इसे अर्ध संरक्षणीय प्रतिकृति कहते हैं। मेसलसन एवं स्टाइल ने इसकी पुष्टि ई कोलाई जीवाणु पर भारी समस्थानिक N15 का उपयोग करके की थी ।

(iii) क्लोवर पत्ती प्रतिरूप – 1- RNA की संरचना का राबर्ट होले ने प्रतिरूप प्रस्तुत किया जिसे क्लोवर पत्ती प्रतिरूप कहते हैं। क्लोवर पत्ती प्रतिरूप के अनुसार RNA की एक पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला मुड़कर के पांच भुजाएँ बनाती है। मुड़ने के कारण 5 व 3 सिरे पास-पास आ जाते हैं। प्रत्येक tRNA अणु के 3 छोर पर CCA अनुक्रम होता है, इस पर अमीनो अम्ल सिन्थेटेज एन्जाइम की सहायता से एक विशिष्ट अमीनो अम्ल जुड़ जाता है। 5′ छोर पर ‘G’ होता है। दो भुजाएँ –

  • TψC भुजा – इसकी सहायता से 1-RNA राइबोसोम्स से बन्धन करता है तथा
  • D भुजा या DHU भुजा – यह अमीनो अम्ल सिन्थेटेज से बन्धन में भाग लेती है। 1-RNA के नीचे लूप वाले भाग पर तीन क्षारों का अनुक्रम एन्टीकोडन वाले होते हैं। यह m RNA के विशिष्ट कोडोन से क्षार युग्मन करती है।

(iv) स्प्लाइसियोसोम – यूकैरियोटों में अनुलेखन के बाद बनने वाले RNA को hnRNA कहते हैं। RNA दो प्रकार के भागों का बना होता है। इसमें एक को इन्ट्रॉन ( Intron ) कहते हैं, इसमें कोड नहीं होता है। दूसरे भाग को एक्सॉन (Exon) कहते हैं जो आनुवंशिक कूट का वाहन करता है। इनमें से इन्ट्रॉन को RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा निकाल दिया जाता है। स्प्लाइसियोसोम नामक केन्द्रकीय अवयव इस प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

(v) समापन कोडोन – ये कोड प्रोटीन श्रृंखला के निर्माण को रोकने या समापन के लिए होते हैं अर्थात् ये किसी भी अमीनो अम्ल को कोड नहीं करते हैं। ये UAA, UAG व UGA हैं। इन्हें स्टोप सिग्नल (Stop Signal) कहते हैं अर्थात् अनर्थक कोडोन (Nonsense Codon) होते हैं। ऐसे कुल 03 कोडोन होते हैं।

(vi) विपरीत अनुलेखन (Reverse transcription)-1970 में टेमिन एवं बाल्टीमोर (Temin and Baltimore) ने इसकी खोज की। अनेक ट्यूमर जनक विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ के रूप में RNA होता है जिससे पूरक DNA बनता है। यह विपरीत अनुलेखन ट्रान्सक्रिप्टेज द्वारा किया जाता है। ऐसे विषाणुओं को रेट्रो वाइरस (Retro Virus) कहते हैं। इसके अन्तर्गत एड्स रोग HIV विषाणु भी आते हैं।

(vii) बहुराइबोसोम (Polyribosome ) – कभी प्रोटीन संश्लेषण के दौरान m – RNA पर अनेक राइबोसोम का समूह एकत्रित हो जाता है, इसे बहुराइबोसोम कहते हैं। ये राइबोसोम m. RNA के ऊपर 5′ सिरे से 3 सिरे की ओर गति करते हैं । m RNA की लम्बाई के अनुसार 5 से 20 तक राइबोसोम एक के बाद एक क्रम में जुड़ते जाते हैं। वह राइबोसोम जो 5′ सिरे के निकट होता है वह सबसे छोटी तथा जो 3 सिरे के पास होता है सबसे बड़ी पैप्टाइड श्रृंखलायुक्त होता है।

(viii) hnRNA – इसे विषमांगी केन्द्रकी RNA (Heterogenous nuclear RNA) कहते हैं। यूकैरियोटों में DNA के अनुलेखन पश्चात् बनने वाले RNA को ही hnRNA कहते हैं। इसे उच्च आणविक भार RNA या पूर्व केन्द्रकीय RNA या DNA जैसा RNA भी कहते हैं। यह प्राथमिक दूत RNA दो प्रकार के भागों का बना होता है।

इसमें एक को इन्ट्रॉन (Intron ) कहते हैं, इसमें कोड नहीं होता है। दूसरे भाग को एक्सॉन (Exon) कहते हैं जो आनुवंशिक कूट को वहन करता है। इनमें से इन्ट्रॉन को RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा निकल दिया जाता है। स्प्लाइसिओसोम (Spliceosome) नामक केन्द्रकीय अवयव इस प्रक्रिया में सहायता करता है। इसके बाद m – RNA का निर्माण होता है, जो अनुवादन की क्रिया में भाग लेता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 2

प्रश्न 3.
निम्न में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(i) न्यूक्लिओसाइड एवं न्यूक्लिओटाइड
(ii) DNA एवं RNA
(iii) इन्ट्रॉन एवं एक्सॉन
(iv) कोडोन एवं एन्टीकोडोन
(v) अनुलेखन एवं अनुवादन
(vi) प्रेरणीय एवं निरोधक नियमन
(vii) RNA स्प्लाइसिंग एवं RNA सम्पादन ।
उत्तर:
(i) न्यूक्लिओसाइड एवं न्यूक्लिओटाइड (Nucleoside and Nucleotide ) – एक अणु नाइट्रोजन क्षारक के साथ एक अणु शर्करा, के जुड़ने से जो संरचना बनती है, उसे न्यूक्लियोसाइड कहते हैं। इसी प्रकार एक अणु न्यूक्लियोसाइड के साथ फॉस्फोरिक अम्ल का एक अणु जुड़कर न्यूक्लियोटाइड बनता है।

  • नाइट्रोजन क्षारक + शर्करा = न्यूक्लियोसाइड
  • नाइट्रोजन क्षारक + शर्करा + फॉस्फोरिक अम्ल = न्यूक्लियोटाइड ।

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(ii) DNA u RNA

लक्षणDNARNA
1. प्राप्ति स्थानपादप विषाणुओं के अतिरिक्त अन्य विषाणुओं एवं सभी जीवों में पाया जाता है।जन्तु विषाणु, जीवाणुभोजियों (Bacterio-phages) के अतिरिक्त अन्य विषाणुओं में तथा सभी जीवों में पाया जाता है।
2. कोशिका में स्थितिप्रायः केन्द्रक में पाया जाता है।प्रायः कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।
3. रज्जुकों की संख्याद्विरज्जुकीयएकरज्जुकीय
4. पैन्टोस शर्कराडीऑक्सीराइबोस (C5H10O4)राइबोज (C5H10O4)
5. पिरमिडीन क्षारकथायमीन एवं साइटोसिनयूरेसिल एवं साइटोसिन
6. प्यूरीन एवं पिरिमिडीन की मात्राबराबर होती है।नहीं होती।
7. असामान्य क्षारकये बहुत ही कम अथवा अनुपस्थित होते हैं।इसमें अधिक संख्या में पाये जाते हैं।
8. क्षारकों का युग्मनपूरी लम्बाई में होता है।केवल मुड़े हुए भाग में होता है।
9. संश्लेषण के लिए एन्जाइमडी एन ए पॉलीमरेज।आर एन ए पॉलीमरेज।
10. कार्ययह प्राणियों में आनुवंशिक पदार्थ का कार्य करता है।इसका मुख्य कार्य प्रोटीन संश्लेषण होता है। पादप विषाणुओं एवं कुछ अन्य विषाणुओं में यह आनुवंशिक पदार्थ का कार्य करता है।

(iii) इन्ट्रॉन एवं एक्सॉन

इन्ट्रॉन (Intron)एक्सॉन (Exon)
इसमें कोड नहीं होता है अतः ये आनुवंशिक कूट को वहन नहीं करते।यह आनुवंशिक कूट को वहन करता है।
RNA Splicing की प्रक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिये जाते हैं।बाहर नहीं निकाले जाते हैं।
अनुवादन की क्रिया में भाग नहीं लेता है।भाग लेता है।

(iv) कोडोन एवं एन्टीकोडोन

कोडोन (Codon)एन्टीकोडोन (Anticodon)
m-RNA पर तीन अक्षरों के कोडोन होते हैं।t-RNA पर तीन अक्षरों का एन्टीकोडोन होता है।
इसमें अनर्थक कोडोन (nonsense codons) होते हैं जो संख्या में तीन होते हैं।अनर्थक एन्टीकोडोन नहीं होते हैं।
m-RNA जिस पर कोडोन होते हैं वह m-RNA स्थिर होता है।t-RNA कोशिकाद्रव्य से अमीनो अम्ल को पकड़कर t-RNA उस स्थल पर लगते हैं जहाँ उपयुक्त कोडोन होता है।

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(v) अनुलेखन एवं अनुवाद

अनुलेखन (Transcription)अनुवादन (Translation)
इसमें आनुवंशिक सूचना का स्थानांतरण DNA से RNA में होता है ।m-RNA में न्यूक्लिओटाइडों की शृंखला का अमीनो अम्लों की पॉलिपेप्टाइड शृंखला में परिवर्तन होता है।
यह क्रिया केन्द्रक में होती है तथा वहां से m-RNA कोशिकाद्रव्य में आता है।यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम की सतह पर होती है।
इसमें कोडोन होते हैं, राइबोसोम पर m-RNA के 5 सिरे पर जुड़ता है।राइबोसोम की m-RNA की 3 सिरे की तरफ गति के होने से m = RNA के कोडोन अनुवादित होते हैं।
इस क्रिया के लिए DNA टेम्पलेट, RNA पॉलीमरेज विकर, सक्रिय अग्रदूत तथा द्विसंयोजक धातु आयन की आवश्यकता होती है।इसके लिये m-RNA, t-RNA राइबोसोम, अमीनो अम्ल विभिन्न अनुवादन कारक आवश्यक होते हैं।

(vi) प्रेरणीय नियमन एवं निरोधक नियमन

प्रेरणीय नियमन (Inducible Regulation)निरोधक नियमन (Repressible Regulation)
इस नियमन के द्वारा जीन को प्रोटीन उत्पन्न करने के लिए प्रेरित किया जाता है।इसमें जीन की सक्रियता निरुद्ध हो जाती है, जिसके कारण प्रोटीन संश्लेषण रुक जाता है।
इन पदार्थों को प्रेरक (Inducer) कहते हैं।इन्हें दमनकर (Repressor) कहते हैं।
उदा.-ई. कोलाई में लेक्टोज के अपचय का नियमन।उदा.-ई.कोलाई के ट्रप्टीफान ऑपेरॉन, हिस्टीडीन ऑपेरॉन।

(vii) RNA स्प्लाइसिंग एवं RNA सम्पादन

RNA स्प्लाइसिंग (RNA Splicing)RNA सम्पादन (RNA Processing)
RNA में से इन्ट्रॉन निकालने की क्रिया है।विभिन्न प्रकार के RNA जैसे m-RNA, t-RNA तथा r-R N A इत्यादि।
प्रोटीन संश्लेषण से पूर्व यह क्रिया होती है।प्रोटीन संश्लेषण के दौरान आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
DNA की आणविक संरचना का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
DNA एक दीर्घ अणु है। इसकी इकाइयों को न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में तीन यौगिक- पेन्टोज शर्करा, फॉस्फोरिक अम्ल तथा नाइट्रोजनी क्षारक होते हैं।
I. पेन्टोज शर्करा (Pentose Sugar) – यह पाँच कार्बन युक्त शर्करा होती है जिसे डीआक्सीराइबोज कहते हैं। इसमें राइबोज शर्करा की तुलना में दूसरे कार्बन पर एक ऑक्सीजन का अणु कम होता है।
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II. फॉस्फोरिक अम्ल (Phosphoric Acid ) – यह आर्थोफॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) होता है। न्यूक्लिक अम्लों में फॉस्फोरिक अम्ल एवं पैन्टोज शर्करा एकान्तर क्रम में पाये जाते हैं अर्थात् दो शर्करा के अणुओं के बीच फॉस्फोरिक अम्ल का एक अणु पाया जाता है। प्रत्येक फॉस्फेट समूह एक शर्करा के 3°C तथा दूसरी शर्करा के 5°C से जुड़कर फॉस्फो डाइएस्टर बन्ध (Phospho diester bond) बनाता है। न्यूक्लिक अम्ल की श्रृंखला 5°C से प्रारम्भ होकर 3°C पर समाप्त होती है अथवा 3°C शुरू होकर 5°C पर समाप्त होती है।

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III. नाइट्रोजनी क्षारक (Nitrogenous bases) – ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) पिरिमिडीन (Pyrimidine ) – इनमें एक विषमचक्रीय षट्भुजी वलय होती है जिसमें चार कार्बन एवं दो नाइट्रोजन होते हैं। DNA में दो प्रकार के पिरिमिडीन थाइमीन (Thymine = T) एवं साइटोसीन (Cystosine = C ) पाये जाते हैं। RNA में थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल (Uracil = U) होता है।

(ii) प्यूरीन (Purine ) – इसमें पिरिमिडीन वलय के चौथे एवं पाँचवें कार्बन से एक इमिडेजोल वलय (imidazole ring) संयुक्त होती है। DNA तथा RNA दोनों में ही एडीनीन (Adenine = A) एवं गुआनीन (Guanine = G) नामक प्यूरीन पाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
DNA प्रतिकृतिकरण में भाग लेने वाले प्रमुख एन्जाइमों के नाम लिखिये।
उत्तर:
DNA प्रतिकृतिकरण में भाग लेने वाले एन्जाइम निम्न प्रकार से हैं-

  • हेलिकेज एन्जाइम – DNA की द्विकुण्डली खोलते हैं।
  • एस. एस. बी. प्रोटीन्स एकल लड़ी बंधन प्रोटीन्स सम्बद्ध होकर स्थिति को स्थिर रखते हैं।
  • टोपोआइसोमेरेज एन्जाइम कुण्डलीकरण तनाव को कम करते हैं।
  • R.N.A. पॉलिमेरेज या प्राइमेज एन्जाइम (R.N.A. प्राइमर) – DNA संश्लेषण की प्रक्रिया करने के लिए RNA का छोटा हिस्सा बनाते हैं।
  • DNA पॉलीमेरेज III एन्जाइम प्राइमर को 5-3 दिशा में आगे बढ़ाने का कार्य करने हैं।
  • DNA पॉलीमेरेज I-DNA के खण्डों के मध्य पाये जाने वाले रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हैं।
  • लाइगेज एन्जाइम – DNA के खण्डों को जोड़ते हैं।
  • एण्डोन्यूक्लिएज एवं एक्सोन्यूक्लिएज एन्जाइम सही न्यूक्लियोटाइड को जोड़ने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
tRNA के क्लोवर पत्ती प्रतिरूप का नामंकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राबर्ट होले (Robert Holley) तथा उनके साथियों ने यीस्ट के एलीनीन T- RNA की संरचना का अध्ययन कर बताया कि 1- RNA की संरचना क्लोवर की पत्ती की भांति होती है, इसे क्लोवर पत्ती प्रतिरूप (Model) कहते हैं। इसके अनुसार RNA की एक पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला मुड़कर के पाँच भुजायें बनाती है। मुड़ने के कारण इसके 5 व 3 सिरे पास-पास आ जाते हैं। 5 सीमान्त छोर पर गुआनीन अवशेष ‘G’ तथा 3 सिरे पर ‘CCA अयुग्मित अनुक्रम होता है। अमीनो अम्ल को केवल 3’ छोर पर स्वीकार किया जाता है

क्लोवर पत्ती प्रतिरूप के अनुसार 1-RNA में निम्न भुजायें होती हैं-

  1. ग्राही भुजा (Acceptor arm ) – इसके 3 सिरे पर अमीनो अम्ल जुड़ता है।
  2. डाइहाइड्रो यूरीडीन भुजा (DHU भुजा अथवा D भुजा) – यह अमीनो अम्ल सिन्थेटेज नामक एन्जाइम को बाँधती है।
  3. एन्टीकोडोन (Anticodon arm ) – इसकी लूप में तीन न्यूक्लिओटाइडों का विशिष्ट क्रम प्रतिकूट (anticodon) होता है जो mRNA के कूट (Codon) से क्षार युग्मन करता है।
  4. अतिरिक्त भुजा – यह एन्टीकोडोन भुजा एवं TC भुजा के मध्य पाई जाती है। इसकी लम्बाई अनिश्चित होती है।
  5. TyC भुजा – इसकी भुजा से प्रोटीन संश्लेषण के समय राइबोसोम जुड़ता है।

t.RNA का कार्य – इसकी मुख्य भूमिका प्रोटीन संश्लेषण में त्रिक् आनुवंशिक कूट को पहचान कर अनुरूप अमीनो अम्लों को राइबोसोम तक पहुँचाना है।

प्रश्न 7.
विषमांगी केन्द्रकी RNA व लघुकेन्द्रकीय RNA पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विषमांगी केन्द्रकी RNA (Heterogenous nuclear RNA = hnRNA)- यूकैरियोटों में DNA में अनुलेखन के पश्चात् बनने वाले RNA को ही hnRNA कहते हैं। इसे उच्च आणविक भार या पूर्व केन्द्रीय RNA या DNA जैसा RNA कहते हैं। यह प्राथमिक m. RNA दो प्रकार के भागों इन्ट्रॉन (intron ) एवं एक्सॉन (exon) से बना होता है। एक्सॉन आनुवंशिक कूट वहन करता ।

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परन्तु इन्ट्रॉन वहन नहीं करता । इन्ट्रॉन को RNA Splicing विधि द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है, इसके लिए केन्द्रकीय अवयव स्प्लाइसिओसोम (Spliceosome) सहायता करते हैं। इसके बाद m- RNA का निर्माण होकर अनुवादन क्रिया में भाग लेता है। लघुकेन्द्रकीय RNA ( Small nuclear RNA = snRNA)- यह यूकैरियोटों के केन्द्रक में मिलता है।

यह केन्द्रक में प्रोटीनों के साथ मिलकर लघुकेन्द्रकीय राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन (snRNP) का निर्माण करता है। इसे प्राय: स्नर्प (Snurps ) भी कहते हैं । इनसे स्प्लाइसिओसोम बनता है जो RNA Splicing में सहायता करता है।

प्रश्न 8.
अनुवादन के प्रमुख चरणों के नाम लिखिये ।
उत्तर:
m – RNA में न्यूक्लिओटाइडों की श्रृंखला का अमीनो अम्लों की पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में परिवर्तन को ही अनुवादन (Translation) कहते हैं । यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम की सतह पर होती है। राइबोसोम – RNA के 5 ́ सिरे पर जुड़ता है तथा इसकी 3 ́ सिरे की ओर गति होने से m-RNA के कोडोन अनुवादित हो जाते हैं। अनुवादन हेतु m-RNA, t-RNA राइबोसोम, अमीनो अम्ल व विभिन्न अनुवादन कारक आवश्यक होते हैं। प्रोकैरियोटों में यह क्रिया निम्न चरणों में पूर्ण होती है-

  1. अमीनो अम्ल का सक्रियण ।
  2. सक्रिय अमीनो अम्ल का t-RNA से जुड़ना ।
  3. पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का समारम्भ।

समारम्भ की प्रक्रिया में समारम्भ कारक (Initiation Factors) आवश्यक होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ये IFs होते हैं ।

प्रश्न 9.
सेंट्रल डोमा सिद्धान्त किसने बताया व उससे क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आण्विक जीव विज्ञान में फ्रांसिस क्रिक ने सेंट्रल डोमा (Central dogma) का विचार प्रस्तुत किया । सिद्धान्त के अनुसार आनुवंशिक सूचनाओं का बहाव DNA से RNA व इससे प्रोटीन की ओर होता है (DNA → RNA → प्रोटीन) । यद्यपि कुछ विषाणुओं में यह बहाव विपरीत दिशा अर्थात् RNA से DNA की ओर होता है।
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प्रश्न 10.
RNA प्रथम आनुवंशिक पदार्थ है, व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
RNA पहला आनुवंशिक पदार्थ था । अब बहुत पर्याप्त प्रमाण हैं कि जीवन के आवश्यक प्रक्रमों (जैसे- उपापचयी, स्थानांतरण, संबंधन आदि) का विकास RNA से हुआ। RNA आनुवंशिक पदार्थ के साथ एक उत्प्रेरक (जैविक तंत्र में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ हैं जो RNA उत्प्रेरक द्वारा उत्प्रेरित की जाती हैं, प्रोटीन एंजाइम का इसमें कोई योगदान नहीं है )

RNA उत्प्रेरक के रूप में क्रियाशील लेकिन अस्थायी है। इस कारण से RNA के रासायनिक रूपांतरण से DNA का विकास हुआ, जिससे यह अधिक स्थायी है। DNA के द्विरज्जुकों व पूरक रज्जुकों के कारण तथा इनमें मरम्मत प्रक्रियाओं के विकास से अपने में होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधी है।

प्रश्न 11.
अनुलेखन की इकाई व जीन को समझाइये |
उत्तर:
जीन वंशागति ( inheritance) की क्रियात्मक इकाई है। जीन DNA पर स्थित होती हैं। DNA अनुक्रम जो 1. RNA व r. RNA को कोडित (Coding) करते हैं उसे भी जीन परिभाषित करते हैं। परिभाषा के अनुसार समपार (Cistron) DNA का वह खंड है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन (Coding) करता है, अनुलेखन (transcription ) इकाई में संरचनात्मक जीन मोनोसिस्ट्रानिक (Monocistronic ) या पॉलीसिस्ट्रानिक (Polycistronic) हो सकती है।

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प्रायः सुकेन्द्रकी (cukaryotic) में मोनोसिस्ट्रानिक तथा पॉलीसिस्ट्रानिक जीवाणु या असीमकेन्द्री (Prokaryotic) में होती है। सुकेन्द्रकी में मोनोसिस्ट्रानिक संरचनात्मक जीन मिलती है जिसमें अंतरापित कूटलेखन (Interrupted Coding) अनुक्रम पाये जाते हैं। सुकेन्द्रकी में जीन विखंडित (Split) होते हैं। कूटलेखन अनुक्रम या अभिव्यक्त अनुक्रमों को व्यक्तेक (exon) कहते हैं।

व्यक्तेक वे अनुक्रम हैं जो परिपक्व या संसाधित (Processed) RNA में मिलते हैं। व्यक्तेक, अव्यक्तेक (intron ) द्वारा अंतरापित (interrupted) होते हैं। अव्यक्तेक या मध्यवर्ती ( intervening) अनुक्रम परिपक्व या संसाधित RNA में नहीं मिलते हैं। लक्षण की वंशागति संरचनात्मक जीन के उन्नायक व नियामक (Promotor and Regulatory) अनुक्रमों द्वारा प्रभावित होती है. क्योंकि कभी-कभी नियामक अनुक्रम अस्पष्ट रूप से नियामक जीन कहलाते हैं। इसके बावजूद भी ये अनुक्रम किसी RNA या प्रोटीन का कूटलेखन नहीं करते हैं ।

प्रश्न 12.
DNA के अग्रक रज्जुक एवं पश्चगामी रज्जुक में अन्तर बताइये ।
उत्तर:

अग्रक रज्जुक (Leading strand)पश्चगामी रज्जुक (Lagging strand)
1. अग्रक सूत्र या रज्जुक DNA के 3→5 सूत्र पर संश्लेषित होता है ।पश्चगामी सूत्र जनक DNA के 5→3 सूत्र पर संश्लेषित होता है ।
2. इसके संश्लेषण की दिशा 5→3 व द्विगुणन शाख की तरफ होती है।यह पूर्ण सूत्र 3→5 दिशा में तथा द्विगुणन शाख के विपरीत दिशा में संश्लेषित होता है परन्तु इनके खण्डों का संश्लेषण 5→3 दिशा में ही होता है।
3. इसका संश्लेषण एक शृंखला के रूप में होता है।पश्चगामी रज्जुक का संश्लेषण छोटे -छोटे पॉलीन्यूक्लियोटाइड खण्डों में होता है जिन्हें ओकाजॉकी खण्ड कहते हैं।
4. इसके संश्लेषण हेतु केवल एक RNA प्राइमर होता है।इसमें ओकाजॉकी खण्ड के संश्लेषण हेतु अलग-अलग RNA प्राइमर चाहिए।
5. इसमें संश्लेषण के लिये DNA लाइगेज एन्जाइम की आवश्यकता नहीं होती है।इनमें ओकाजॉकी खण्डों को जोड़ने के लिये DNA लाइगेज एन्जाइम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 13.
रो – कारक (Rho – factor ) क्या होते हैं?
उत्तर:
ई. कोलाई ( E. coli ) जीवाणु में वह प्रोटीन जो RNA पॉलीमरेज द्वारा एक प्रकार के अनुलेखन (transcription ) समापन स्थलों (terminating sites) पर अनुलेखन समाप्त करने में सहायक होता है, ऐसे स्थलों को रो – निर्भर समापन स्थल कहते हैं। प्रोकैरियोट्स के समापन स्थलों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है-

  • रो – स्वतन्त्र समापन स्थल ( rho independent terminator)
  • रो- आश्रित समापन स्थल (rho-dependent terminator)

प्रश्न 14.
यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले RNA पॉलीमरेज एन्जाइम की स्थिति, कार्य व प्रतिशत को – बताइये ।
उत्तर:

एन्जाइम (Enzyme)स्थिति (Position)कार्य (Functions)प्रतिशतता (Percentage)
1. RNA पॉलीमेरेज-Iकेन्द्रक मेंr.RNA का संश्लेषण50-70%
2. RNA पॉलीमेरेज-IIकेन्द्रक द्रव्य मेंm.RNA का संश्लेषण20-40%
3. RNAपॉलीमेरेज-IIIकेन्द्रक द्रव्य मेंt.RNA व 5 S RNA का संश्लेषण10%

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प्रश्न 15.
प्रेरण व दमन में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:

प्रेरण (Induction)दमन (Repression)
1. यह ऑपेरॉन को प्रारम्भ करता है।यह समाप्त करता है।
2. यह अनुलेखन व अनुवादन को प्रारम्भ करता है।यह अनुलेखन व अनुवादन को रोकता है।
3. यह उपचयी पथ (metabolic path) को सुचारु व व्यवस्थित करता है ।यह उपचयी पथ को संचालित करता है।
4. ऑपेरॉन जीन से जुड़ने से प्रेरण द्वारा दमन को रोका जाता है।ऑपरेटर जीन से सह-दमनकर के जुड़ने से एपोरिप्रेसर उत्पन्न होता है।

प्रश्न 16.
प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक कोशिकाओं में होने वाले अनुलेखन में क्या अन्तर होता है? तुलना कीजिए।
उत्तर:

लक्षणप्रोकैरियोटिक अनुलेखनयूकैरियोटिक अनुलेखन
1. स्थानकोशिक द्रव्य में सम्पन्न होता है।केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) में होता है।
2. समयइसके लिये कोशिका चक्र की कोई निश्चित अवस्था नहीं होती है।कोशिका चक्र की G1 व G2 अवस्थाओं में अनुलेखन होता है।
3. RNA संसाधनविभिन्न प्रकार के RNAs का संसाधन या परिपक्वन कोशिका द्रव्य में होता है।RNAS का संसाधन केन्द्रक द्रव्य में होता है।
4. अनुलेखन इकाईएक इकाई में एक से अधिक जीन हो सकते हैं।इसमें केवल एक जीन होती है।
5. एन्जाइमतीनों प्रकार के RNA के संश्लेषण हेतु केवल एक एन्जाइम, RNA पॉलीमेरे ज-I की आवश्यकता होती है।तीनों प्रकार के RNA संश्लेषण हेतु अलग-अलग प्रकार के एन्जाइम की आवश्यकता होती है। इसमें पॉलीमेरेज-I, II व III की आवश्यकता होती है।
6. RNA पॉलीमरेज की संरचनाRNA पॉलीमरेज, 5-पॉलीपेप्टाइड शृंखला की जटिल संरचना है।RNA पॉलीमरे ज में 10-15 पॉलीपे प्टाइ ड शृंखलायें होती हैं।
7. अनुलेखन व अनुवादनm.RNA का अनुलेखन तथा पॉलीपेप्टाइड श्वृंखला का अनुवादन साथ होते हैं।ऐसा नहीं होता है।
8. राइबोसोमी RNAतीन प्रकार के राइबोसोमी RANs (23S, 16S, 5S) के लिये केवल एक प्राथमिक ट्रान्सक्रिप्ट RNA अणु बनता है।चार प्रकार के राइबोसोमी RNA के लिये दो प्राथमिक प्रतिलिपि RNA बनते हैं। एक अनुलेखन से 28S, 18S व 5.8S r.RNA बनते हैं तथा दूसरे से केवल 5S r.RNA बनता है।
9. प्रमोटरसरल व छोटा होता है।तुलनात्मक जटिल, बड़ा व विविधापूर्ण होता है।
10 अनुलेखन संकुलक्रोड एन्जाइम + σ  कारकRNA पॉलीमरेज व अनुलेखन कारक।

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प्रश्न 17.
प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक DNA में अन्तर बताइये ।
उत्तर:

प्रोकैरियोटिक DNAयूकैरियोटिक DNA
1. DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन्स नहीं पाये जाते हैं।हिस्टोन प्रोटीन्स पाये जाते हैं।
2. निष्क्रिय (non-coding) DNA की बहुत कम मात्रा होती है।बहुत अधिक होती है।
3. कोडिंग खण्डों में नॉन-कोडिंग अनुक्रम (introns) नहीं होते हैं।नॉन-कोडिंग खण्ड पाये जाते हैं।
4. DNA अणु वृत्ताकार होता है।केन्द्रकीय DNA अणु रैखिक (linear) होता है।
5. DNA एक अति कुण्डलित गुणसूत्र बनाता है।गुणसूत्रों की संख्या सदैव एक से अधिक होती है।

प्रश्न 18.
लैक ओपेरॉन क्या है? लैक ओपेरॉन की संरचना तथा इसकी कार्यविधि समझाइये। लेक ओपेरॉन प्रक्रिया का नामांकित चित्र बनाइये ।
उत्तर:
लैक-प्रचालेक (Lac-Operon)-
1. लैक ऑपेरॉन के विषय में स्पष्ट जानकारी जैकब व मोनाड (Jacob \& Monod) ने दी।

2. लैक ऑपेरॉन (यहाँ लैक से तात्पर्य लैक्टोज से है) में पॉलीसिस्ट्रोनिक संरचनात्मक जीन का नियमन एक सामान्य प्रमोटर व नियामक (regulatory) जीन द्वारा होता है। इस प्रकार की व्यवस्था जीवाणु में बहुत सामान्य रूप से देखने को मिलती है व इसे ऑपेरॉन कहा जाता है। उदाहरणार्थ val ऑपेरॉन, his ऑपेरॉन, trp ऑपेरॉन, lac ऑपेरॉन आदि।

3. मानव की आंत में पाये जाने वाले जीवाणु ई-कोलाई सामान्यतया लैक्टोज के अपचय से ऊर्जा को प्राप्त करते हैं। जैकब व मोनाड ने ज्ञात किया कि इसके DNA में तीन जीन का एक समूह लैक्टोज का अपचय करने वाले तीन एन्जाइम के संश्लेषण से सम्बन्धित होता है।
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4. जब पोषण माध्यम में लैक्टोज उपस्थित होता है तो ये जीन सक्रिय होते हैं किन्तु लैक्टोज की अनुपस्थिति होने पर ये निष्क्रिय होते हैं। जैकब व मोनाड ने इन जीन की सक्रियता के नियमन के लिये ऑपेरॉन संकल्पना (operon concept) दी।

5. उक्त संकल्पना के अनुसार जीन की सक्रियता का नियमन अनुलेखन (transcription) स्तर पर प्रेरण या दमन (induction or repression) द्वारा होता है।

6. लैक्टोज के अपघटन और उससे ऊर्जा उत्पादन हेतु तीन एन्जाइम्स की आवश्यकता होती है-

  • बीटा गैलेक्टोसाइडेज (beta-galactosidase),
  • परमिएज (permease) तथा
  • ट्रान्सएसीटिलेज (transacetylase)।

7. इन एन्जाइ म्स का संश्लेषण एक बहु सिस्ट्र भॅनिक (polycistronic) m.RNA अणु के अनुवादकरंण (translation) से होता है। इस बहुसिस्ट्रॉनिक m.RNA का संश्लेषण लैक ऑपेरॉन में स्थित तीन संरचनात्मक जीन्स या सिस्ट्रॉन्स (structural genes or cistrons) की शृंखला के अनुलेखन (transcription) के द्वारा होता है।

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8. इन तीन संरचनात्मक जीन या सिस्ट्रॉन में-

  • सिस्ट्रॉन-Z,
  • सिस्ट्रॉन-Y तथा सिस्ट्रॉन- a होती है। ये एक-दूसरे के समीप होती हैं व इनमें परस्पर समन्वय होता है। ये तीनों जीन इनको कन्ट्रोल करते हैं। इन्हें रेगुलेटर जीन (Regulator gene), प्रोमोटर जीन (Promotor gene) तथा ओपरेटर जीन (Operator gene) कहते हैं।

9. सिस्ट्रॉन- Z जीन बींटा गैलेक्टोसाइडेज के लिये कोड करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज का जल अपघटन करके उन्हें गैलेक्टोज व ग्लूकोज में विभक्त कर देता है। सिस्ट्रॉन-Y जीन परमीएज के लिये कोड करता है जो beta-गैलेक्टोसाइडेज के लिये कोशिका की पारगम्यता को बढ़ा देते हैं। सिस्ट्रॉन-a जीन ट्रान्सएसीटिलेज के लिये कोड करता है। अतः लैक्टोज के उपापचय के लिये तीनों जीन के उत्पाद लैक ऑप्रॉन में आवश्यक हैं।

लैक ऑपेरॉन का प्रकार्य (Functioning of Lac Operon)-
ई.कोलाई जीवाणु में लैक ऑपेरॉन की कार्यविधि को दो प्रकार से स्पष्ट किया गया है-
(i) लैक्टोज की उपस्थिति में-माध्यम में लैक्टोज-प्रेरक (inducer) के उपस्थित होने पर प्रेरक कोशिका में प्रवेश करके नियामक जीन (regulator gene) से उत्पन्न दमनकारी (repressor) के साथ जुड़ जाता है। परिणामस्वरूप दमनकारी प्रचालक (operator) जीन से नहीं जुड़ने पाता और प्रचालक जीन स्वतन्त्र रहती है।

यह RNA पॉलीमरेज को प्रमोटर जीन (promotor gene) के समारम्भन स्थल से जुड़ने के लिये प्रेरित करता है। फलस्वरूप संरचनात्मक जीन या सिस्ट्रॉन से बहुसिस्ट्रॉनिक m.RNA का अनुलेखन होता है जो लैक्टोज उपयोग के लिये आवश्यक तीनों एन्जाइम्स को कोडित करता है अर्थात् यह लेक्टोज उत्प्रेरक का कार्य करता है। अतः सम्पूर्ण क्रिया एन्जाइम प्रेरण है या यह उत्प्रेरण या प्रेरण (induction or inducer) का उदाहरण है।

(ii) लैक्टोज की अनुपस्थिति में-लैक्टोज प्रेरक की अनुपस्थिति में नियामक जीन एक दमनकारी प्रोटीन उत्पन्न करता है (यह i जीन द्वारा संश्लेषित होता है) जो ओपरेटर स्थल से जुड़कर इसके अनुलेखन को रोक देती है। अतः संरचनात्मक जीन m.RNA का संश्लेषण नहीं कर पाते और प्रोटीन का निर्माण रुक जाता है।

यह संदमन या दमनकारी (repression) का उदाहरण है। कभी-कभी लैक्टोज उत्प्रेरक से जुड़कर दमनकारी में संरचनात्मक परिवर्तन करता है और ओपरेटर से जुड़कर इसके अनुलेखन को रोक देता है। इस प्रकार के उत्प्रेरक को सहदमनकारी (co-repressor) कहते हैं। क्योंकि यह प्रचालक स्थल (operator side) को निष्क्रिय करने के लिये दमनकारी (repressor) को सक्रिय करता है।

प्रश्न 19.
अनुलेखन ( ट्रांसक्रिप्सन) से क्या तात्पर्य है? अनुलेखन क्रिया को चित्र सहित समझाइए ।
अथवा
अनुलेखन किसे कहते है ? जीवाणु में अनुलेखन प्रक्रिया को नामांकित चित्र बनाकर समझाइए ।
उत्तर:

  1. आनुवंशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण, DNA से RNA में होता है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा DNA से RNA का निर्माण होता है, अनुलेखन या ट्रांसक्रिप्सन (Transcription) कहलाती है।
  2. हम जानते हैं कि DNA विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन्स का संश्लेषण करता है। प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं के केन्द्रकाय ( Nucleoid) तथा यूकेरियोटिक कोशिकाओं के केन्द्रक में DNA पाये जाते हैं परन्तु प्रोटीन संश्लेषण कोशिका द्रव्य में होता है।
  3. DNA अणु केन्द्रक से कोशिका द्रव्य में नहीं जाते और सीधे ही प्रोटीन संश्लेषण को निर्देशित नहीं करते हैं।
  4. DNA अणु प्रोटीन संश्लेषण की सूचनाओं को सन्देशवाहक RNA (m.RNA) पर अंकित करते हैं और कोशिका द्रव्य में जाकर राइबोसोम से जुड़ते हैं। अत: DNA फर्मे (DNA Template) पर RNA के निर्माण को अनुलेखन कहते हैं।
  5. DNA पर जब m. RNA का निर्माण होता है तो इसमें नाइट्रोजन बेस थायमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है।
  6. यह प्रक्रिया विशेष प्रकार के एन्जाइम RNA पॉलीमरेज (RNA Polymerase) की उपस्थिति में होती है।

अनुलेखन इकाई (Transcription Unit) –
1. एक DNA खण्ड, जो RNA के अणु का अनुलेखन करता है, उसे अनुलेखन इकाई कहते हैं। अनुलेखन इकाई एक जीन के समान या इसमें अनेक सतत जीन हो सकते हैं।

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2. DNA में अनुलेखन इकाई के मुख्यतः तीन भाग होते हैं-

  • उन्नायक ( Promoter )
  • संरचनात्मक जीन (Structural gene)
  • समापक (Treminator)

3. DNA निर्भर RNA पॉलीमरेज बहुलकीकरण केवल एक दिशा 5→3′ की ओर उत्प्रेरित होते हैं।

4. रज्जुक जिसमें ध्रुवत्व 3→5 की ओर होता है वह टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है। इस कारण इसे टेम्पलेट रज्जुक (Template Strand) कहते हैं।

5. दूसरा रज्जुक जिसमें ध्रुवत्व 5→3′ होता है व अनुक्रम (Sequences) RNA के समान होते हैं (थायमीन के स्थान पर यूरेसिल) वह अनुलेखन प्रक्रिया के दौरान विस्थापित (displaced ) या स्थानांतरित हो जाता है। वह रज्जुक जो किसी के लिये कूटलेखन नहीं करता है उसे कूटलेखन रज्जुक (Coding Strand) कहते हैं।

सभी उपर्युक्त बिन्दु या संदर्भ बिन्दु (reference point) जो अनुलेखन इकाई के भाग होते हैं। वे कूटलेखन रज्जुक से बने होते हैं। उदाहरण के रूप में एक परिकल्पित अनुलेखन इकाई के अनुक्रम निम्न प्रकार के होंगे- 3′-AT GC AT GC AT GC AT GC AT GC AT GC 5′ टेम्पलेट रज्जुक 5′-TA CG TA CG TA CG TA CG TA CG TA CG-3′ कूटलेखन रज्जुक

6. अनुलेखन इकाई में संरचनात्मक जीन के दोनों सिरों पर प्रमोटर (उन्नायक ) व टर्मिनेटर ( समापक) जीन उपस्थित होती हैं। संरचनात्मक जीन के 5 (प्रतिप्रवाह upstream) सिरे पर प्रमोटर जीन तथा 3′ ( अनुप्रवाह; down stream) सिरे पर समापन जीन होती है और इससे अनुलेखन प्रक्रम की समाप्ति का निर्धारण होता है। इसके अतिरिक्त उन्नायक (Promoter) के प्रतिप्रवाह ( upstream) व अनुप्रवाह (downstream) की तरफ नियामक अनुक्रम (regulatory sequences) उपस्थित होते हैं।
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6.5.2 अनुलेखन इकाइ व जान (Transcription unit and Gene) –
1. जीन वंशागति ( inheritance) की क्रियात्मक इकाई है। यह t.DNA पर स्थित होते हैं। वह DNA अनुक्रम जो T. RNA अथवा r. RNA अणु के लिये कूटलेखन (Code) करता है, वह भी जीन कहलाता है।

2. समपार या सिस्ट्रॉन (Cistron) DNA का वह खण्ड है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन करता है या जिसमें एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण की सूचना कोडित होती है। अतः यह एक जीन के समतुल्य है तथा सिस्ट्रॉन शब्द का प्रयोग एक जीन के लिये ही किया जाता है।

3. प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में एक ही m. RNA अणु में प्राय: एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बहुलकीकरण (Polymerization) की सूचना निहित होती है। अतः इन m. RNA अणुओं को पॉलीसिस्ट्रॉनिक (Polycistronic ) कहते हैं।

4. यूकेरियोटिक कोशिकाओं के m. RNA अणु में केवल एक ही पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के बहुलकीकरण की सूचना निहित होती है। इसलिये इन्हें मोनोसिस्ट्रॉनिक (Monocistronic ) कहते हैं।

5. जैसा कि यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अधिकांश जीनों में एक ही प्रोटीन के संश्लेषण की संकेत सूचना DNA के कई छोटे-छोटे खण्डों में होती है। इस कारण इन्हें विपटित जीन (Split genes) कहते हैं। ये DNA खण्ड व्यक्तेक या एक्सॉन ( exon) कहलाते हैं। एक्सॉन्स के बीच-बीच में अक्रिय DNA खण्ड पाये जाते हैं जिनमें प्रोटीन संश्लेषण की सूचना नहीं होती है।

DNA के ये निष्क्रिय खण्ड अव्यक्तेक या इन्ट्रॉन्स (introns) कहलाते हैं। अतः RNA की प्राथमिक प्रतिलिपियों में एक्सॉन्स व इन्ट्रॉन्स दोनों प्रकार के खण्ड होते हैं। RNA की ऐसी प्राथमिक प्रतिलिपि को विषमांगी केन्द्रकीय RNA (heterogenous nuclear RNA or hn RNA) भी कहते हैं।

RNA के प्रकार व अनुलेखन का प्रक्रम (Types of RNA and Process of Transcription)-
1. अनुलेखन में आनुवंशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण DNA से RNA में होता है। इस क्रिया में DNA कुण्डली की एक श्रृंखला पर RNA के न्यूक्लियोटाइड्स ( राइबोन्यूक्लियोटाइड्स) आकर जुड़ जाते हैं जिससे एक अस्थायी DNA-RNA संकर का निर्माण हो जाता है। कुछ समय पश्चात् RNA की समजात (complementary) श्रृंखला अलग हो जाती है। इसमें नाइट्रोजन बेस थायमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है। इस क्रिया को अनुलेखन कहते हैं। यह क्रिया एन्जाइम RNA पॉलीमरेज (RNA polymerase) द्वारा होती है।

प्रोकेरियोट्स में अनुलेखन (Transcription in Prokaryotes) –
1. प्रोकेरियोट्स में पॉलिसिस्ट्रानिक व सतत संरचनात्मक जीन पाये जाते हैं।

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2. जीवाणुओं में RNA पॉलिमरेज की एक ही जाति से m. RNA, t.RNA तथा r. RNA का संश्लेषण होता है ये तीनों प्रकार के RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये आवश्यक होते हैं। m. RNA टेम्पलेट प्रदान करता है, t.RNA अमीनो अम्लों के लाने व आनुवंशिक कूट को पढ़ने का काम व r.RNA स्थानान्तरण के दौरान संरचनात्मक व उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है।

3. RNA पॉलीमरेज एन्जाइम अनुलेखन के प्रारम्भ होने वाले DNA का वर्धक व प्रमोटर स्थल को पहचानने में सहायता करता है। इस एन्जाइम के दो भाग होते हैं-क्रोड एन्जाइम (Core enzyme) तथा क्रोड एन्जाइम के साथ जुड़ने वाला सिग्मा (०) कारक, जो कि RNA का संवर्धन का प्रारम्भन ( initiation) करता है।

4. क्रोड एन्जाइम चार प्रकार के पॉलीपेप्टाइडों से बना होता है-

  • दो a श्रृंखलायें ये पॉलीपेप्टाइड वर्धक (Promotor) DNA के साथ बंध बनाते हैं।

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  • पहली B श्रृंखला – RNA संवर्धन हेतु प्रयुक्त . न्यूक्लियोटाइड को बाँधने का काम यह श्रृंखला करती है।
    दूसरी श्रृंखला – यह टेम्पलेट DNA के बंध स्थापित कर अनुलेखन क्रिया में सहायता करती है।.

5. सिग्मा (σ) कारक क्रोड एन्जाइम के साथ सम्बद्ध होकर इसे सक्रिय बनाने का काम करता है। यह DNA के वर्धक या प्रमोटर स्थल को पहचान करके क्रोड RNA पॉलीमरेज को इसके साथ जोड़ता है एवं अनुलेखन का समारंभ ( initiation) करने में सक्रिय भाग लेता है ।

6. RNA के संवर्धन में (DNA से अनुलेखन की क्रिया में), क्रोड RNA पॉलीमरेज का सिग्मा कारक से सम्बद्ध (bind) होकर सक्रिय हो जाता है । वर्धक स्थल (promotor site ) पर सिग्मा युक्त RNA पॉलीमरेज का बन्धन हो जाता है। इस स्थान से DNA रज्जुक खुल जाता है। दोनों रज्जुकों की पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलायें खुलकर अलग हो जाती हैं। दोनों रज्जुकों में से केवल एक रज्जुक (प्रधान रज्जुक) पर ही संदेशवाहक RNA अणु का निर्माण होता है।
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7. प्रधान रज्जुक फर्मों की भांति काम करता है। प्रधान रज्जुक के क्षारक क्रमों के अनुसार RNA रज्जुक पर क्षारक आते जाते हैं। इस प्रकार RNA श्रृंखला का निर्माण होता जाता है व RNA पॉलीमरेज आगे बढ़ता चला जाता है और अन्त में एक विशेष कारक (रो-p-कारक ) की उपस्थिति में समापन (termination) हो जाता है तथा पॉलीमरेज अलग हो जाता है। इस प्रकार RNA रज्जुक का निर्माण पूरा हो जाता है।

यूकेरियोट्स में अनुलेखन (Transcription in Eukaryotes)-
1. यूकेरियोट्स में तीन प्रकार के पॉलीमरेज होते हैं। इनमें से एक केन्द्रक में होता है तथा इसे RNA पॉलीमरेज – I या RNA पॉलीमरेज (A) कहते हैं। यह राइबोसोमल RNA (285, 18S व 5.8S) को अनुलेखित करता है ।

2. दूसरा RNA पॉलीमरेज केन्द्रकद्रव्य ( Nucleoplasm ) में पाया जाता है। इसे RNA पॉलीमरेज- II या RNA पॉलीमेरज B कहा जाता है। यह hn RNA ( heterogenous nuclear RNA ) के संश्लेषण हेतु उत्तरदायी होता है।

3. तीसरा RNA पॉलीमरेज भी केन्द्रकद्रव्य में ही पाया जाता है। इसे RNA पॉलीमरेज -III कहते हैं जो 5sr RNA व छोटे केन्द्रकीय RNA (snRNA) तथा t. RNA के संश्लेषण के लिये उत्तरदायी होता है।
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4. यूकेरियोट्स में अधिकतर जीन्स विभक्त या स्पिलिट जीन (Split gene) होते हैं। इन खण्डों में संबंधित प्रोटीन अणुओं के संश्लेषण की संकेत सूचना होती है। इन खण्डों को एक्सॉन्स ( exons) कहते हैं। एक्सॉन्स के बीच-बीच में निष्क्रिय DNA के खण्ड होते हैं, जिनमें प्रोटीन अणुओं को संश्लेषण की संकेत सूचना नहीं होती है। DNA के इन निष्क्रिय खण्डों को इन्ट्रॉन्स ( introns) कहते हैं। अनुलेखन क्रिया दोनों ही प्रकार के खण्डों की होती है। अतः इस प्रकार के RNA अणु को प्राथमिक प्रतिलिपि या विषमांगी केन्द्रकीय RNA ( heterogenous nuclear RNA=hnRNA ) कहते हैं।

5. hnRNA अणु को एन्जाइम्स द्वारा पहले एक्सॉन्स तथा इन्ट्रान्स की प्रतिलिपियों में तोड़ा जाता है और इसके बाद केवल एक्सॉन्स की प्रतिलिपियों को संयोजित करके वास्तविक और परिपक्व RNA अणु का निर्माण किया जाता है। इस प्रक्रिया को RNA अणुओं का संसाधन (Processing) या समबंधन ( Splicing) कहते हैं ।

hnRNA में आच्छादन (Capping) व पुच्छन (Tailing) की. अतिरिक्त क्रियाएँ भी होती हैं। आच्छादन के दौरान एक असाधारण न्यूक्लियोटाइड मीथाइल ग्वानोसीन ट्राइफास्फेट hnRNA के 5′ सिरे से जुड़ जाता है व पुच्छन में 200-300 एडीनायलेट अवशेष ( Adenylate residue) hnRNA टेम्पलेट के 3′ सिरे पर स्वतन्त्र रूप से जुड़ जाते हैं।

अब यह पूर्णरूप से संसाधित (Processed) hnRNA या m. RNA कहलाता है व ट्रांसलेशन की क्रिया के लिये केन्द्रक से बाहर स्थानान्तरित हो जाता है। यूकेरियोट्स में अनुलेखन प्रक्रिया में व्याप्त जटिलतायें व विभक्त जीन व्यवस्था (Split gene arrangement) जीनोम के आद्य लक्षण (Primitive character) को दर्शाते हैं।

प्रश्न 20
अर्थ- संरक्षी प्रतिकृति से आपका क्या तात्पर्य है? DNA में अर्ध-संरक्षी प्रतिकृतियन की क्रिया होती है, को प्रमाणित करने के लिए मैथ्यू मेसेल्सन तथा फ्रैंकलिन स्टाल द्वारा किये गये प्रयोग का वर्णन कीजिए। अर्थ- संरक्षी DNA प्रकृतियन प्रतिरूप का चित्र बनाइए।
उत्तर:
जब कोई कोशिका वृद्धि की अधिकतम सीमा तक पहुँच जाती है तो उसके बाद विभाजन के लिये तैयार होती है, इसमें DNA का द्विगुणन भी होता है। सभी जीवों के सम्पूर्ण जीवन चक्र में आनुवंशिक पदार्थ अर्थात् DNA-की बारंबार प्रतिकृति होती है। प्रतिकृति के फलस्वरूप संतति कोशिकाओं में DNA की हूबहू प्रतिलिपियाँ प्राप्त होती हैं।

यद्यपि प्रतिकृति क्रिया के दौरान किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होती है परन्तु थोड़ी बहुत ज्रुटि होनी भी चाहिये जिससे उत्परिवर्तन होते रहें। इन उत्परिवर्तनों के फलस्वरूप आनुवंशिक विविधता होती रहती है जो कि जैविक विकास हेतु आवश्यक है।
1. सभी जैविक अणुओं में केवल DNA अणु ही स्वद्विगुणन (Self-duplication) करने में सक्षम होते हैं। DNA स्वद्विगुणन की प्रक्रिया को प्रतिकृतिकरण या रेप्लिकेशन (replication) कहते हैं।

2. सुकेन्द्रीय कोशिकाओं (Eucaryotic cells) में यह प्रतिकृतिकरण कोशिका चक्र की अन्तरालवस्था (interphase) की S-प्रावस्था (synthesis phase) में होती है । प्रतिकृतिकरण की क्रिया केन्द्रक के अन्दर होती है।

3. DNA का प्रतिकृतिकरण तीन प्रकार से हो सकता है-परिक्षेपी (Dispersive), संरक्षी (Conservative) तथा अर्ध-संरक्षी (Semi-conservative) । परन्तु DNA का प्रतिकृतिकरण अर्ध-संरक्षी विधि से ही होता है, इसके अनेक साक्ष्य प्राप्त किये जा चुके हैं।

4. अर्ध-संरक्षी विधि में DNA के दोनों रज्जुक अलग होकर सांचे (Templete) के रूप में कार्यकर नये पूरक रज्जुकों का निर्माण करते हैं। प्रतिकृति के पूर्ण होने पर जो DNA अणु बनता है उसमें एक पैतृक व एक नई निर्मित लड़ी रज्जुक होती है।

प्रायोगिक प्रमाण (Experimental evidence)-
1. यह सिद्ध हो चुका है कि DNA का अर्ध-संरक्षी विधि से प्रतिकृति होती है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम जानकारी इस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) से प्राप्त हुई।

2. मैथ्यू मेसेल्सन व फ्रेंकलिन स्टाल (Mathew Meselson and Franklin Stahl) ने 1958 में जीवाणु ई.कोलाई (E.coli) में DNA द्विगुणन की पुष्टि की थी। जबकि टेलर (Taylor) ने 1957 में यूकेरियोटिक DNA के अर्ध-संरक्षी द्विगुणन को सर्वप्रथम बताया था।
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वाटसन तथा क्रिक (Watson and Crick) ने DNA के द्विरज्जुक (Double helix ) का मॉडल प्रस्तुत करते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि DNA का द्विगुणन या प्रतिकृतिकरण अर्द्ध संरक्षी होगा।

मेसेल्सन व स्टाल का प्रयोग (Experiments of Meselson and Stahl) –
1. इन्होंने मानव की आन्त्र में पाये जाने वाले ई-कोलाई को ऐसे संवर्धन माध्यम में विकसित किया जिसमें 15NH4 CI (15N नाइट्रोजन का भारी समस्थानिक है, यह सामान्य 14N नाइट्रोजन अणु से भारी होता है। नाइट्रोजन का स्रोत होता है। इसी संवर्धन माध्यम में इन जीवाणुओं को कई पीढ़ियों तक पुनरुत्पादन करने दिया गया।

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2. जब इन जीवाणुओं के DNA का अध्ययन किया गया तो यह पाया गया कि इनके प्यूरीन्स तथा पिरीमिडिन्स ( Purine and Pyrimidines) में 14N के स्थान पर 15N नाइट्रोजन के आइसोटोप या समस्थानिक थे।

3. इस भारी DNA (15N युक्त) अणु को सामान्य DNA (14N) से सोडियम क्लोराइड के घनत्व प्रवणता में अपकेंद्रीकरण (Cen trifugation) करने से अलग कर सकते हैं। इसके बाद तत्कालीन जीवाणु संतति (15N) को उस माध्यम में स्थानान्तरित कर दिया गया जिसमें नाइट्रोजन स्रोत में नाइट्रोजन का
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सामान्य आइसोटोप 14N उपस्थित था। इस आइसोटोप का घनत्व 15N से कम होता है। तदुपरान्त DNA को विलगित करके आल्ट्रासेन्ट्रीफ्यूगेशन द्वारा (सीजियम क्लोराइड घनत्व प्रवणता पर) उसका घनत्व ज्ञात किया तो यह पाया गया कि प्रथम विभाजन चक्र के बाद संकर DNA अणु को व्यक्त करने वाली केवल एक ही घनत्व की पट्टी प्राप्त हुई थी जिसमें एक श्रृंखला 14N नाइट्रोजन द्वारा तथा दूसरी 15N नाइट्रोजन द्वारा अंकित थी ।

4. इसी प्रकार दूसरे विभाजन चक्र के बाद (ई. कोलाई 20 मिनट में विभाजित होता है, प्रत्येक 20 मिनट बाद नई पीढ़ी बनती है DNA को व्यक्त करने के लिये दो घनत्व पट्टियाँ दिखाई दीं। पहली में दो DNA द्विक कुण्डलों में 15N नाइट्रोजन तथा दूसरी दो में संकर DNA अणु के लिये थी ।

5. संकर DNA अणु में उन्होंने पाया कि दोनों श्रृंखलाओं में परिणामस्वरूप इस अणु का घनत्व 15N वाले DNA तथा 14N वाले DNA अणु के घनत्व के बीच का था। इस प्रयोग द्वारा उन्होंने सिद्ध किया कि DNA की प्रतिकृति अर्ध-संरक्षी विधि से होती है।
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6. इसी प्रकार का प्रयोग टेलर (Taylor) व उनके सहयोगियों ने 1958 में विसिया फाबा (Vicia faba) की मूलाग्र कोशिकाओं पर रेडियोएक्टिव थाइमीडिन का प्रयोग करके किया था । इन्होंने सिद्ध किया कि DNA अर्ध-संरक्षी विधि द्वारा प्रतिकृत होता है।

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DNA द्विगुणन की कार्य प्रणाली व एंजाइम (Mechanism of DNA duplication and Enzymes)-
द्विगुणन प्रक्रिया में प्रत्येक रज्जुक (Strand) का निर्माण 53′ दिशा में बढ़ता है। अतः अलग होने वाले दोनों रज्जुओं पर विपरीत दिशा में नये रज्जुओं के बनने की विधि भिन्न-भिन्न होती है-
(i) 3→5′ दिशा वाले रज्जुक पर श्रृंखला का सतत निर्माण (continuous synthesis) होता है।

(ii) 5’→3′ दिशा वाले रज्जुक पर यह निर्माण असतत तथा छोटे-छोटे भागों में होता है।

इन छोटे-छोटे टुकड़ों को ओकाजाकी खण्ड (Okazaki segments) कहते हैं। बाद में ये खण्ड फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध ( Phosphodiester bond) बनाकर DNA लाइगेज (DNA ligase) एन्जाइम की उपस्थिति में आपस में मिलकर सूत्र बनाते हैं। उपरोक्त क्रियाओं के प्रत्येक चरण को चलाने के लिये निश्चित प्रोटीन्स तथा एन्जाइम होते हैं। सभी एन्जाइम एक एन्जाइम तन्त्र के रूप में होते हैं। इसे रेप्लीसोम ( Replisome) कहते हैं। DNA द्विगुणन अग्र चरणों में होता है-

(i) समारम्भन बिन्दु का अभिज्ञान ( Recognition of initiation point)-जिस स्थान से DNA द्विगुणन का प्रारम्भ होता है, उस स्थान को प्रारम्भन का स्थान (Initiation site) कहते हैं। प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में द्विगुणन प्रारम्भ होने का केवल एक ही बिन्दु होता है, जबकि यूकेरियोटिक कोशिकाओं में DNA अणु में अनेक स्थानों पर एक साथ द्विगुणन प्रारम्भ होता है।

(ii) दोहरे हेलिक्स का खुलना (Unwinding of double helix)-एन्जाइम हेलीकेज (Helicase) DNA के रज्जुकों को खोलने का कार्य करता है। जब रज्जुक खुल जाते हैं, तब एन्जाइम 5 टोपो आइसोमरेज (Topoisomerase) या DNA गाइरेज की सहायता से रज्जुक कट जाता है जिससे कुण्डलित DNA का तनाव समाप्त हो जाता है।

हेलिक्स डीस्टैबिलाइजिंग प्रोटीन (Helix destabilizing protein) अलग हुए रज्जुकों को अलग ही बनाए रखने में सहायक होता है। दोहरे हेलिक्स के खुलने के कारण एक Y के आकार की प्रतिकृति द्विशाख (Replication fork) जैसी रचना बन जाती है।

(iii) न्यूक्लियोसाइड्स का सक्रियकरण (Activation of nucleosides)-केन्द्रकद्रव्य में उपस्थित न्यूक्लियोसाइड फॉस्फोरिलेज (Phosphorylase) एन्जाइम तथा ATP की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को फॉस्फोरिलेशन ( Phosphorylation) कहते हैं।

(iv) R.N.A. प्राइमर का निर्माण (Formation of RNA Primer) – DNA टेम्पलेट ( DNA Template) पर पहले RNA का एक छोटा टुकड़ा स्थित होता है। इसे RNA प्राइमर कहते हैं। RNA प्राइमर का निर्माण प्राइमेज (Primase) एन्जाइम या RNA पॉलीमरेज (RNA Polymerase) की सहायता से होता है।

(v) DNA श्रृंखला का निर्माण तथा लम्बा होना (Formation of DNA Chain and elongation of Chain)- DNA पॉलीमरेज III (DNA Polymerase III) या रेप्लिकेज ( Replicase) एन्जाइम R. N.A. प्राइमर में 5→3′ दिशा में नए क्षारकों को जोड़ता है। इन क्षारकों का क्रम DNA टेम्प्लेट के अनुसार होता है। DNA के दोनों रज्जुक प्रति समानान्तर होते हैं अर्थात् एक रज्जुक की दिशा 5→3′ होती है और दूसरे रज्जुक की दिशा 3’5′ होती है।
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एन्जाइम DNA पॉलीमरेज III क्षारकों को केवल 5→3′ दिशा में ही जोड़ सकता है; अतः 3→5 दिशा वाले रज्जुक (टेम्पलेट) पर DNA श्रृंखला का सतत् निर्माण होता है। जिस रज्जुक का निर्माण सतत् होता है, उसे अग्रक रज्जुक (Leading Strand) कहते हैं। जिस रज्जुक का निर्माण 3’5′ दिशा में होता है अर्थात् 5’3′ दिशा वाले पितृ रज्जुक (टेम्पलेट) पर होता है, यह लगातार नहीं होता।

छोटे-छोटे टुकड़ों का निर्माण होता है जिन्हें ओकाजाकी खण्ड (Okazaki segments) कहते हैं। इन टुकड़ों को एन्जाइम DNA लाइगेज (Ligase) की सहायता से जोड़ा जाता है। इस प्रकार 35′ दिशा वाले रज्जुक का निर्माण असतत् (Discontinuous ) होता है। इस रज्जुक को पश्चगामी पुत्री रज्जुक (Lagging daughter strand) कहते हैं। DNA द्विगुणन के साथ ही DNA अणु का दोहरा कुण्डल आगे की ओर खुलता चला जाता है।

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(vi) RNA प्राइमर का हटना ( Removal of RNA Primer)-DNA श्रृंखला की लम्बाई बढ़ जाने के बाद RNA प्राइमर श्रृंखला से हट जाता है। एन्जाइम आर. एन. ऐज एच (R.N. Aas H) की सहायता से RNA प्राइमर को DNA श्रृंखला से हटाया जाता है। RNA प्राइमर के हटने से उत्पन्न रिक्त स्थान को भरने में एन्जाइम DNA पॉलीमरेज I सहायता करता है।

(vii) DNA द्विगुणन का अन्त (Termination of DNA Replication)-जब DNA निर्माण पूर्ण हो जाता है, तब एक टर्मिनेशन बाइंडिंग प्रोटीन (Termination binding protein) एन्जाइम DNA हेलीकेज (DNA Helicase) की क्रिया को रोक देता है। DNA द्विगुणन का अन्त टर्मिनेशन जोन (Termination Zone) में पहुँचने पर या दूसरी ओर के द्विगुणन बिन्दु से मिलने पर होता है ।

प्रश्न 21.
पुनरावृत्ति DNA किसे कहते हैं ? अल्फ्रेड हर्षे तथा मार्थांचेज के प्रयोग को सचित्र समझाइये कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है’।
उत्तर:
DNA फिंगरप्रिन्ट के लिये DNA अनुक्रम में कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विभिन्नता का पता लगाते हैं। इन स्थानों पर DNA का छोटा भाग कई बार पुनरावृत्त (repeated) होता है। उसे पुनरावृत्ति DNA कहते हैं।
आनुवंशिक पदार्थ DNA है (DNA is Genetic material)-
ए.डी. हर्षे (A.D. Hershey) तथा एम.जे. चेज (M.J. Chase) ने सन् 1952 में विषाणु T2 भोजी (बेक्टिरियोफेज; Bacteriophage) पर प्रयोग करके यह परिणाम निकाला कि DNA आनुवंशिक पदार्थ है, क्योंकि इस क्रिया में संक्रमण करने वाले भोजी का केवल DNA अंश ही परपोषी जीवाणु कोशिका में प्रवेश करता है। वही आनुवंशिक सूचनाओं का वहन करता है जिससे नई भोजी सन्तानें बनती हैं।
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– इन वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में रेडियोएविटव सल्फर S35 तथा रेडियोएक्टिव फॉस्फोरस P32 बुक्त माध्यम पर उगाकर जीवाणुभोजी DNA को रेडियोएक्टिव बना दिया, क्योंकि जीवाणुभोजी कणों के प्रोटीन में फॉस्फोरस नहीं होता है, किन्तु DNA में फॉस्फोरस होता है इसलिए केवल DNA ही रेडियोएक्टिव फॉस्फोरस द्वारा अंकित होता है।

इसी प्रकार जीवाणुभोजी प्रोटीन में ही सल्फर पाया जाता है। जिसे उन्होंने रेडियोएक्टिव सल्फर (S35) द्वारा अंकित कर दिया। इस प्रकार के विभेदी अंकन द्वारा जीवाणुभोजी के DNA व प्रोटीन घटकों को बिना किसी रासायनिक परीक्षण के सरलता से अलग-अलग पहचानना सम्भव हो पाया।

हर्षे व चेज ने इन अंकित जीवाणुभोजी कणों से अलग-अलग जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित कराया तो, उन्ह्रोंने पाया कि केवल रेडियोएक्टिव (P32) ही जीवाणवीय कोशिकाओं के साथ सम्बद्ध था, किन्तु रेंयोएक्टिव S35 का नहीं था, इन प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हुआ कि जीवाणवीय कोशिका में केवल DNA ही प्रवेश करता है न कि प्रोटीन।

प्रोटीन आवरण परपोषी के बाहर ही रह जाता है तथा DNA ही प्रवेश करने के बाद अपने समान नये जीवाणुभोजी कणों का संश्लेषण करता है। हर्षें तथा चेज के इस प्रयोग द्वारा और अधिक स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो गया कि DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है।

आनुवंशिक पदार्थ के गुण (Characteristics of Genetic material)-
(i) उपरोक्त प्रयोगों से यह स्पष्ट है कि DNA आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है परन्तु कुछ विषाणुओं में RNA आनुवंशिक पदार्थ होता है, उदाहरण-टोबैको मोजेक वाइरस (TMV), क्यूबीटा बैक्टिरियोफेज आदि।

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(ii) वह अणु जो आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है वह निम्न मापदंडों को निश्चित रूप से पूरा करता है-
(क) यह अपनी प्रतिकृति बनाने में सक्षम होता है।
(ख) इसे संरचना व रासायनिक संगठन के आधार पर स्थिर होना चाहिए।
(ग) इसमें धीमी गति से उत्परिवर्तन होते हैं, यह विकास हेतु आवश्यक है।
(घ) इसे स्वयं ‘मेंडल के लक्षण’ के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए।

(iii) सजीव तंत्र में जितने अणु पाये जाते हैं उनमें प्रतिकृति की क्षमता नर्हीं होती है परन्तु दोनों न्यूक्लिक अम्लों (DNA \& RNA) में यह क्षमता होती है।

(iv) आनुवंशिक पदार्थ स्थायी होता है, जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में आने वाले परिवर्तनों का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता है जैसे प्रिफिथ के ‘रूपान्तरित कारक’ से स्पष्ट है कि ताप से जीवाणु की मृत्यु हो जाती है परन्तु आनुर्वंशिक पदार्थ की कुछ विशेष्ताएँ नष्ट नहीं हो पाती हैं।

(v) DNA के दोनों रू्जुक एक-दूसरे के पूरक होते हैं जो गर्म करने पर एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं परन्तु पुन: उचित परिस्थिति के आने पर एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। RNA के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड पर 2 -हाइड्राक्सिल समूह मिलता है। यह एक क्रियाशील समूह है जिसके कारण RNA अस्थिर व आसानी से विखंडित हो जाता है। इस कारण DNA रासायनिक संगठन की दृष्टि से कम सक्रिय व संरचनात्मक दृष्टि से अधिक स्थायी होता है। अतः दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्लों में से DNA एक अच्च्छा आनुर्वंशिक पदार्थ है।

(vi) DNA में यूरेसील के स्थान पर थाइमीन होने से उसमें. अधिक स्थायित्व होता है।

(vii) दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल उत्परिवर्तित हो सकते हैं। RNA अस्थायी व तीव्र गति से उत्परिवर्तित होता है। यही कारण है कि विषाणुओं में RNA होने से इनकी जीवन अवधि छोटी व तेजी से उत्परिवर्तित होने वाली होती है।

(viii) RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये सीधे कूटलेखन करते हैं, इसी कारण वे आसानी से लक्षण व्यक्त करते हैं। जबकि DNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये RNA पर निर्भर है।

(ix) अत: DNA व RNA दोनों अनुर्वंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं। DNA के अधिक स्थायी होने से वह आनुर्वंशिक सूचनाओं के संचय हेतु अधिक उपयोगी है तथा RNA आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानान्तरण हेतु डपयुक्त है।

प्रश्न 22.
द्विकुंडली DNA की संरचना की कोई चार मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(i) यह दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है जिसका आधार शर्करा- फॉस्फेट का बना होता है व क्षार भीतर की ओर प्रक्षेपी होते हैं।

(ii) दोनों श्रृंखलाएँ प्रति समानांतर ध्रुवणता रखती हैं। इसका मतलब एक श्रृंखला की ध्रुवणता 5 से 3′ की ओर हो तो दूसरी की ध्रुवणता 3′ से 5′ की तरह होगी।

(iii) दोनों रज्जुकों के क्षार आपस में हाइड्रोजन बंध द्वारा युग्मित होकर क्षार युग्मक बनाते हैं। एडेनिन व थाइमिन जो विपरीत रज्जुकों में होते हैं, आपस में दो हाइड्रोजन बंध बनाते हैं। ठीक इसी तरह से ग्वानीन, साइटोसीन से तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा बंधा रहता है जिसके फलस्वरूप सदैव प्यूरीन के विपरीत दिशा में पिरिमीडीन होता है। इससे कुंडली के दोनों रज्जुकों के बीच लगभग समान दूरी बनी रहती है ।

(iv) दोनों श्रृंखलाएँ दक्षिणवर्ती कुंडलित होती हैं। कुंडली का पिच 3.4 नैनोमीटर व प्रत्येक घुमाव में लगभग 10 क्षार युग्मक मिलते हैं। परिणामस्वरूप एक कुंडली में एक क्षार युग्मक के बीच लगभग 0.34 नैनोमीटर की दूरी होती है ।

प्रश्न 23.
न्यूक्लियोसोम किसे कहते हैं? डीएनए कुंडली का पैकेजिंग समझाइए। न्यूक्लियोसोम का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
यदि DNA द्विकुंडली की लम्बाई की गणना की जाए तो यह लम्बाई काफी अधिक होती है परन्तु जीवों में DNA कुंडली का विशेष पैकेजिंग होता है जो न्यूक्लियोसोम के रूप में होता है। यूकैरियोटिक गुणसूत्रों में 50% अधिक प्रोटीन होती है जो DNA तथा RNA के संश्लेषण से सम्बन्धित होती है परन्तु इनमें से एक बड़ा भाग हिस्टोन का होता है।

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हिस्टोन्स धनात्मक आवेशित क्षारीय प्रोटीन का समूह होता है। हिस्टोन्स में क्षारीय एमीनो अम्लीय लाइसीन व आरजीनीन अधिक मात्रा में मिलते हैं। दोनों एमीनो अम्ल की पार्श्व श्रृंखलाओं पर धनात्मक आवेश होता है। हिस्टोन व्यवस्थित होकर आठ हिस्टोन अणुओं की एक इकाई बनाता है जिसे हिस्टोन अष्टक कहते हैं।

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धनात्मक आवेशित हिस्टोन अष्टक चारों तरफ से ऋणात्मक आवेशित DNA से सटा होता है जिसे न्यूक्लियोसोम कहते हैं। एक प्रारूपी न्यूक्लियोसोम 200 क्षार युग्म की DNA कुंडली होती है । प्रत्येक हिस्टोन अष्टक में H2A, H2B, H3 तथा H के दो-दो अणु होते हैं। न्यूक्लियोसोम संयोजक DNA (linker DNA)

द्वारा एक- दूसरे से जुड़े होते हैं तथा क्रोमेटीन डोरी पर लगभग छ: न्यूक्लियोसोम मिलकर सोलेनायड का निर्माण करते हैं। केन्द्रक में मिलने वाला क्रोमेटीन एक धागे के जैसा होता है तथा इस डोरी पर धूक्लियोसोम गोल मणियों के जैसे दिखाई देते हैं ।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
आनुवंशिक कूट क्या हैं? इनकी चार विशेषताएँ लिखिए। tRNA का चित्र बनाइए ।
उत्तर:
सजीवों की कोशिकाओं में विभिन्न 20 प्रकार के अमीनो अम्ल होते हैं। प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में अमीनो अम्लों का निश्चित क्रम m. RNA पर उपस्थित चार नाइट्रोजनी क्षारकों (A, G, C, U) के क्रम पर निर्भर रहता है। अतः m. RNA के चार क्षारकों के क्रम व 20 अमीनो अम्लों के बीच आनुवंशिक सूचना के संचरण को ही आनुवंशिक कूट कहते हैं। आनुवंशिक कूट के विषय में जानकारी देने का श्रेय

नीरेनबर्ग (Nirenberg, 1961 ) व उनके सहयोगियों को है। आनुवंशिक कूट की विशेषताएँ-

1. कोड के अक्षर ( Code letters) – m. RNA पर चार क्षार होते हैं अतः ये अक्षर A, G, U, C हैं।

2. कोड शब्द (Code words ) – A, G, U, C चार अक्षरों से त्रिक कोड अनुसार 64 शब्द बनते हैं, इन्हें कोडोन (Codon) कहते हैं। गैमो (Gammow, 1959 ) के अनुसार आनुवंशिक कोड तीन अक्षरों का होता है। कुल 64 कोडोनों में 61 कोड तो 20 अमीनो अम्लों को कोडित करने तथा शेष 03 किसी भी अमीनो अम्ल को कोडित नहीं करते। अतः ये निरर्थक कोडोन (nonsense codon) होते हैं।

3. पठन दिशा (Reading Direction ) – m. RNA के ऊपर आनुवंशिक कोड का पठन 5 से 3′ दिशा की ओर होता है।

4. प्रारम्भी कोडोन (Initiation Codon ) – प्राय m. RNA के प्रारम्भ में 5′ सिरे पर AUG कोडोन पाया जाता है, इसे प्रारम्भी कोडोन कहते हैं। यह कोड मेथियोनीन अमीनो अम्ल को कोडित करता है।

प्रश्न 2.
मानव जीनोम परियोजना क्या है? मानव जीनोम परियोजना की विशेषताएँ लिखिए। मानव जीनोम परियोजना का निरूपक आरेख दीजिए।
उत्तर:
मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project HGP) को जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि जीनोम क्या है। किसी भी जीव की जीनी संरचना उसका जीनोम कहलाता है और क्योंकि जीन गुणसूत्रों पर पाये जाते हैं इसलिये गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चयी (Haploid set ) को जीनोम कहते हैं।

सन्तान को अपने जनकों (Parents) से जो गुणसूत्र प्राप्त होते हैं उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंश DNA है। इस DNA के एक खण्ड को जिसमें आनुवंशिक कूट निहित होता है, उसे वैज्ञानिक ‘जीन’ कहते हैं। अतः किसी भी जीव की आनुवंशिक व्यवस्था उसके DNA में मिलने वाले अनुक्रम से निर्धारित होती है।

दो विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाला DNA अनुक्रम कुछ जगहों पर भिन्न-भिन्न होता है। सन् 1990 में मानव जीनोम के अनुक्रमों को ज्ञात करने के लिए यह योजना प्रारम्भ की गई। – मानव जीनोम परियोजना मानव जीनोम की मुख्य विशेषताएँ-
में निम्न मुख्य विशेषताएँ हैं-

  • मानव जीनोम में 3164.7 करोड़ न्यूक्लियोटाइड क्षार हैं।
  • औसतन जीन में 3000 क्षार होते हैं परन्तु इनके आकार में विभिन्नताएँ मिलती हैं। मानव में ज्ञात सबसे बड़ी जीन डिस्ट्रॉफिन (Dystrophin) में 24 करोड़ क्षार होते हैं।
  • कुछ जीनों की संख्या 30,000 होती है तथा लगभग सभी व्यक्तियों में मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड क्षार एकसमान होते हैं।
  • दो प्रतिशत से कम जीनोम प्रोटीन का कूटलेखन करते हैं।
  • मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्ति अनुक्रम द्वारा होता है।
  • पुनरावृत्ति अनुक्रम डीएनए के फैले हुए भाग हैं जिनकी कभी-कभी सौ से हजार बार पुनरावृत्ति होती है। जिनके बारे में यह विचार है कि इनका सीधा कूटलेखन में कोई कार्य नहीं है लेकिन इनसे गुणसूत्र की संरचना, गतिकीय व विकास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
  • गुणसूत्र | में सर्वाधिक जीन (2968) व Y गुणसूत्र में सबसे कम जीन (231) मिलते हैं।
  • वैज्ञानिकों ने मानव में लगभग 14 करोड़ जगहों पर अलग इकहरा क्षार (SNPs – एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता; सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमारफीजम; जिसे ‘स्निप्स’ कहा जाता है) का पता लगाया । उपरोक्त जानकारी से गुणसूत्रों में उन जगहों जो रोग आधारित अनुक्रम मानव इतिहास का पता लगाने में सहायक हैं, के विषय में जानकारी एकत्र करने में अधिक सहयोग प्रदान किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

1. ट्रांसलेशन (अनुवादन/ स्थानान्तरण) की प्रथम अवस्था कौनसी होती है ? (NEET-2020)
(अ) डी. एन. ए. अणु की पहचान
(ब) tRNA का एमीनोएसीलेशन
(स) एक एन्टी-कोडॉन की पहचान
(द) राइबोसोम से mRNA का बंधन
उत्तर:
(ब) tRNA का एमीनोएसीलेशन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

2. निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है (NEET 2020 )
(अ) एडीनीन एक H-बंध के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।
(ब) एडीनीन तीन H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है
(स) एडीनीन थायमीन के साथ युग्म नहीं बनाता है
(द) एडीनीन दो H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।
उत्तर:
(द) एडीनीन दो H-बंधों के द्वारा थायमीन के साथ युग्म बनाता है।

3. यदि दो लगातार क्षार युग्मों के बीच की दूरी 0.34 nm है और एक स्तनपायी कोशिका की DNA द्विकुण्डली में क्षार युग्मों की कुल संख्या 6.6 x 10 bp है। (NEET-2020)
(अ) 2.5 मीटर
(ब) 2.2 मीटर
(स) 2.7 मीटर
(द) 2.0 मीटर
उत्तर:
(ब) 2.2 मीटर

4. अनुलेखन के समय डी.एन.ए. की कुण्डली को खोलने में कौनसा एंजाइम मदद करता है? (NEET-2020)
(अ) डी.एन.ए. . हैलीकेज
(ब) डी. एन. ए. पॉलिमरेज
(स) आर. एन. ए. पॉलिमरेज
(द) डी.एन.ए. लाइगेज
उत्तर:
(स) आर. एन. ए. पॉलिमरेज

5. डी.एन.ए. एवं आर. एन. ए. दोनों में पाये जाने वाले प्यूरीन कौनसे हैं ? (NEET-2019)
(अ) साइटोसिन और थाईमीन
(ब) एडेनीन और थाईमीन
(स) ऐडेनीन और ग्वानीन
(द) ग्वानीन और साइटोसीन
उत्तर:
(स) ऐडेनीन और ग्वानीन

6. व्यक्त अनुक्रम घुंडी (ई.एस.टी.) का क्या तात्पर्य है? (NEET-2019)
(अ) नूतन डी.एन.ए. अनुक्रम
(ब) आर. एन. ए. रूप में जीनों का अभिव्यक्त होना
(स) पॉलिपेप्टाइड अभिव्यक्ति
(द) डी. एन. ए. बहुरूपता ।
उत्तर:
(ब) आर. एन. ए. रूप में जीनों का अभिव्यक्त होना

7. बहुत से राइबोसोम एक mRNA से संबद्ध होकर एक साथ पॉलिपेप्टाइड की प्रतियाँ बनाते हैं। राइबोसोम की ऐसी श्रृंखलाओं को क्या कहते हैं?(NEET-2018)
(अ) प्लस्टिडोम
(स) बहुसूत्र
(ब) बहुतलीय पिण्ड
(द) केन्द्रिकाय
उत्तर:
(स) बहुसूत्र

8. डी.एन.ए. एक आनुवंशिक पदार्थ है? इसका अंतिम प्रमाण किसके प्रयोग से आया ? (NEET-2017)
(अ) ग्रिफिथ
(ब) हर्शे और चेस
(स) अवरी मैकलॉड और मैककार्टी
(द) हरगोविन्द खुराना
उत्तर:
(ब) हर्शे और चेस

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

9. निम्नलिखित में से कौन संरचनात्मक जीन के समान है ? (NEET-2016)
(अ) ओपेरॉन
(ब) रिकॉन
(स) म्यूटान
(द) सिस्टॉन
उत्तर:
(द) सिस्टॉन

10. निम्नलिखित में से कौनसा RNA पर लागू नहीं होता ? (NEET-2015)
(अ) 5 फास्फोरिल और 3 हाइड्रोक्सिल सिरे
(ब) विषम चक्रीय नाइट्रोजीनी बेस
(स) चारगॉफ नियम
(द) सम्पूरक बेस युग्मन
उत्तर:
(स) चारगॉफ नियम

11. दिया गया आलेख DNA के आनुवांशिक विचार को महत्त्वपूर्ण संकल्पना दर्शाता है। रिक्त स्थानों (A से लेकर C तक) की पूर्ति कीजिए- (NEET-2013)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 17
(अ) A – अनुलेखन B – प्रतिकृतिय C – इरविन चारगॉफ
(ब) A – ट्रांसलेशन B – अनुलेखन C – इरविन चारगॉफ
(स) A – अनुलेखन B – ट्रांसलेशन C – फ्रांसिस क्रिक
(द) A – ट्रांसलेशन B – विस्तार C – रोजेलिन फ्रैंकलिन
उत्तर:
(ब) A – ट्रांसलेशन B – अनुलेखन C – इरविन चारगॉफ

12. यदि DNA के एक रज्जुक के नाइट्रोजनी क्षारकों का अनुक्रम ATCTG है तो उसके पूरक RNA रज्जुक में क्या अनुक्रम होगा? (NEET-2012)
(अ) TTAGU
(ब) UAGAC
(स) AACTG
(द) ATCGU
उत्तर:
(स) AACTG

13. जीव विज्ञान के इतिहास में मानव जीनोम प्रोजेक्ट के अधीन किसका विकास किया गया ? (Mains-2011)
(अ) बायोस्टिमेटिक
(ब) जैव प्रौद्योगिक
(स) बायोमॉनिटरिंग
(द) जैव सूचनिकी
उत्तर:
(द) जैव सूचनिकी

14. निम्नलिखित में से कौनसा एक है जिसमें आण्विक जीवविज्ञान के सेन्ट्रल-डोरमा का अनुसरण नहीं होता? (NEET-2010)
(अ) म्यूकर
(ब) स्लेमाइडोमोनास
(स) HIV
(द) मटर
उत्तर:
(अ) म्यूकर

15. DNA की अर्धसंरक्षी प्रतिकृति सर्वप्रथम किसमें प्रदर्शित की गयी थी? (NEET-2009)
(अ) साल्मोनेला टाइफीमुरिम
(ब) ड्रोसोफिला मैलेनोगेस्टर
(स) एशरिशिचया कोलाई
(द) स्ट्रेप्टोकॉकस न्यूमोनी
उत्तर:
(स) एशरिशिचया कोलाई

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

16. DNA अणु के भीतर- (NEET-2008)
(अ) थाइमीन के प्रति ऐडेनीन का अनुपात अलग-अलग जीव में अलग-अलग होता है।
(ब) दो रज्जुक होते हैं जो एक-दूसरे के प्रति समान्तर चलते हैं। एक 53 दिशा में तथा दूसरा 35 दिशा में ।
(स) प्यूरीन न्यूक्लियोटाइडों तथा पाइरिमिडिन न्यूक्लियोटाइडों की सकल मात्रा सदैव बराबर नहीं होती ।
(द) दो रज्जुक होते हैं जो 53 दिशा में समानान्तर चलते हैं।
उत्तर:
(ब) दो रज्जुक होते हैं जो एक-दूसरे के प्रति समान्तर चलते हैं। एक 53 दिशा में तथा दूसरा 35 दिशा में ।

17. DNA के खंडों को जोड़ने का कार्य करने वाला एंजाइम है- (Kerala PMT-2005, 09)
(अ) DNA पॉलीमरेज- I
(स) DNA लाइगेज
(ब) DNA पॉलीमरेज – III
(द) एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर:
(स) DNA लाइगेज

18. लैक ऑपेरॉन परिकल्पना में संरचनात्मक जीन का अनुक्रम होता है- (Karnataka CET-2007)
(अ) Lac-a, Lac-Z, Lac – Y
(ब) Lac-Y, Lac-Z, Lac-a
(स) Lac-a, Lac -Y, Lac Z
(द) Lac Z, Lac -Y, Lac-a
उत्तर:
(द) Lac Z, Lac -Y, Lac-a

19. लैक- ऑपेरॉन मॉडल में रिप्रेशर प्रोटीन किस स्थान से जुड़ता है-
(अ) आपरेटर
(ब) प्रमोटर
(स) रेग्यूलेटर
(द) संरचनात्मक जीन
उत्तर:
(अ) आपरेटर

20. श्रृंखला समापन कोडॉन (Stop Codons) हैं- (Bihar CECE -2006; DPMT-2006)
(अ) AGT, TAG UGA
(ब) GAT, AAT, AGT
(स) TAG TAA, TGA
(द) UAG, UGA, UAA
उत्तर:
(द) UAG, UGA, UAA

21. DNA की प्रतिकृति (replication) होता है- (Haryana PMT-2005)
(अ) 25 दिशा में
(ब) 35 दिशा में
(स) 35 व 53 दोनों दिशाओं में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) 35 व 53 दोनों दिशाओं में

22. RNA में अनुपस्थित तत्व है- (AMU-2005)
(अ) नाइट्रोजन
(ब) सल्फर
(स) ऑक्सीजन
(द) हाइड्रोजन
उत्तर:
(ब) सल्फर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

23. RNA का कौन-सा सर्वाधिक हेटरोजीनस होता है? (Haryana PMT-2005)
(अ) t.RNA
(स) r.RNA
(ब) m. RNA
(द) hn. RNA
उत्तर:
(द) hn. RNA

24. यदि एडिनिन का प्रतिशत 30 है तो ग्वानिन का क्या प्रतिशत होगा- (Haryana PMT-2005)
(अ) 10%
(स) 30%
(ब) 20%
(द) 40%
उत्तर:
(ब) 20%
नोट- क्योंकि A+ G का प्रतिशत 50% के बराबर होता है, प्रकार ग्वानिन का प्रतिशत 20% होता है।

25. ओकाजाकी खण्ड का एक सही क्रम में जुड़ते हैं- (Kerala PMT-2005)
(अ) DNA पॉलीमरेज द्वारा
(ब) DNA लाइगेज द्वारा
(स) RNA पॉलीमरेज द्वारा
(द) प्राइमेज द्वारा
उत्तर:
(द) प्राइमेज द्वारा

नोट- अन्तिम चरण में फास्फोडाईएस्टर बंध के द्वारा ओकाजाकी खण्ड को जोड़ने के लिए लेगिंग स्ट्रेन्ड (lagging strand) के पूर्ण संश्लेषण की आवश्यकता होती है जो DNA लाइगेज के द्वारा पूर्ण होती है।

26. ई. कोलाई DNA के रेप्लीकेशन की विधि होती है- (CPMT-2005)
(अ) संरक्षी और एकदिशीय
(ब) अर्द्धसंरक्षी और एकदिशीय
(स) संरक्षी और द्विदिशीय
(द) अर्द्धसंरक्षी और द्विदिशीय
उत्तर:
(द) अर्द्धसंरक्षी और द्विदिशीय

27. निम्न में से कौन-सा सही नहीं है? (DPMT-2003; Haryana PMT 2005 )
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 21
(ब) A+ T = G+ C
(स) A+G = C + T
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) A+ T = G+ C

28. निम्न में से कौन DNA संश्लेषण हेतु RNA का टेम्पलेट के रूप में प्रयोग होता है- (CBSE PMT-2005)
(अ) रिवर्स ट्रॉन्सक्रिप्टेज
(ब) DNA डिपेन्डेन्ट RNA पॉलीमरेज
(स) DNA पॉलीमरेज
(द) RNA पॉलीमरेज
उत्तर:
(अ) रिवर्स ट्रॉन्सक्रिप्टेज
नोट- टेमिन ओर बाल्टीमोर द्वारा यह ज्ञात किया गया कि RNA टेम्पलेट पर DNA का निर्माण या RNA से भी DNA का निर्माण होता है, इसे रिवर्स ट्रान्सक्रिप्सन या टेमिनिज्म कहते हैं। यह रिवर्स ट्रान्सक्रिप्सन, रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज एन्जाइम के प्रभाव से होता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

29. सुपर कोइल्ड ( Super coiled) DNA पाया जाता है- (Wardha-2005)
(अ) प्रोकैरियोट्स व यूकैरियोट्स में
(ब) केवल यूकैरियोट्स में
(स) केवल प्रोकैरियोट्स में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोकैरियोट्स व यूकैरियोट्स में

30. गर्म करने के बाद DNA के विघटन ( Degeneration) का अध्ययन निम्न में से किसकी तुलना करके किया जा सकता है- (Wardha-2005)
(अ) AT अनुपात
(ब) G C अनुपात
(स) शर्करा : फॉस्फेट
(द) न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या
उत्तर:
(द) न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या

31. जीन का वह भाग जो अनुलेखित (transcript) होता है परन्तु उसका अनुलिपिकरण ( translation) नहीं होता, वह है- (CPMT-2005)
(अ) एक्सॉन
(ब) इन्ट्रॉन
(स) सिस्ट्रॉन
(द) कोडोन
उत्तर:
(ब) इन्ट्रॉन

32. किस RNA का क्लोवर लीफ मॉडल होता है? (CBSE, PMT-2004)
(अ) t.RNA
(ब) r.RNA
(स) hn. RNA
(द) m. RNA
उत्तर:
(अ) t.RNA

33. अनुलेखन के दौरान, यदि DNA में न्यूक्लियोटाइडों का क्रम ATACG है तब m.RNA में न्यूक्लियोटाइडों का क्रम होगा- (CBSE PMT-2004)
(अ) UAUGC
(स) TATGC
(ब) UATGC
(द) TCTGG
उत्तर:
(अ) UAUGC

34. DNA रिपेयरिंग (Repairing) किसके द्वारा की जाती है- (Kerala CET-2002; AFMC-2004; Orissa JEE-2004)
(अ) लाइगेज
(स) DNA पालिमरेज
(ब) DNA पालिमरेज III
(द) DNA पालिमरेज I
उत्तर:
(अ) लाइगेज

35. DNA स्ट्रैण्ड की दिशा से सम्बन्धित सही कथन चुनिए- (MHCET-2004; BVP-2004)
(अ) टेम्पलेट स्ट्रेण्ड पर 5→3
(ब) नए स्ट्रेण्ड पर 3→5
(स) लीडिंग स्ट्रेण्ड पर 5→3
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) लीडिंग स्ट्रेण्ड पर 5→3

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

36. वाटसन और क्रिक के डबल हैलिक्स मॉडल को किसके द्वारा जाना जाता है- (CPMT-2004)
(अ) C-DNA
(ब) B-DNA
(स) Z-DNA
(द) D-DNA
उत्तर:
(ब) B-DNA

37. ऑपेरॉन अवधारणा में रेग्यूलेटर जीन किस तरह कार्य करता है- (KCET-2004)
(अ) रिप्रेसर (Represser )
(ब) रेग्यूलेटर ( Regulator)
(स) इनहीबीटर (Inhibitor)
(द) सभी
उत्तर:
(अ) रिप्रेसर (Represser )

38. वह एन्जाइम जो DNA के अणु को खण्डों में काटता है, उसे कहते हैं- (Orissa PMT-2002; Kerala CET-2003)
(अ) DNA पॉलीमरेज
(ब) DNA लाइगेज
(स) रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम
(द) DNA जाइरेज
उत्तर:
(स) रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम

39. निम्न में से कौन-सा चित्र DNA रेप्लीकेशन की सही विधि को दर्शाता है- (AIIMS 2003)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 18
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 22

40. DNA पॉलीमरेज एन्जाइम के खोजकर्त्ता थे- (Kerala CET 2003; Kerala PMT 2003)
(अ) ओकाजाकी
(ब) कॉर्नबर्ग
(स) वाट्सन-क्रिक
(द) जैकब-मोनॉड
उत्तर:
(ब) कॉर्नबर्ग

41. यूकैरियोटिक RNA पॉलीमरेज III किसके संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है- (Kerala CET 2003)
(अ) m.RNA
(ब) t.RNA
(स) 18.5 r.RNA
(द) इन्ट्रॉन्स
उत्तर:
(ब) t.RNA

42. निम्न में से कौन-सा कोडोन UGC के समान सूचना को कोड करता है- (AIIMS 2003)
(अ) UGU
(ब) UGA
(स) UAG
(द) UGG
उत्तर:
(अ) UGU

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

45 RNA पॉलीमरेज का सम्बन्ध किससे है- (CPMT 2003)
(अ) ट्रांसलेशन
(ब) ट्रांसक्रिप्सन
(स) ट्रांसलोकेशन
(द) रेप्लीकेशन
उत्तर:
(ब) ट्रांसक्रिप्सन

44. निम्न में से किस RNA की आयु न्यूनतम होती है- (MP PMT 2002)
(अ) m. RNA
(ब) r.RNA
(स) r.RNA
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) m. RNA

45. प्रोटीन संश्लेषण का सेन्ट्रल डोग्मा होता है- (MHCET 2002)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 19
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 20

46. DNA टेम्पलेट पर नये स्ट्रेण्ड का प्रारम्भन किया जाता है- (MHCET 2002)
(अ) RNA पॉलीमरेज
(ब) DNA पॉलीमरेज
(स) DNA लाइगेज
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं

47. यदि दिये गये DNA खण्ड में ग्वानिन के न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या 75 और थाइमिन के 75 हैं तो उस खण्ड में कुल उपस्थित न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या होगी -(MHCET 2002)
(अ) 75
(ब) 750
(स) 225
(द) 300
उत्तर:
(द) 300

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. बहुजीनी वंशागति में पर्यावरण के प्रभाव का उदाहरण है-
(अ) मानव त्वचा का रंग
(ब) डाउन सिन्ड्रोम
(स) फेनिल कीटोमेह रोग
(द) क्लाईनफेल्टर – सिन्ड्रोम
उत्तर:
(अ) मानव त्वचा का रंग

2. मेंडल के अध्ययन में मुख्यतः किन लक्षणों का वर्णन किया गया-
(अ) स्पष्ट विकल्पी रूप
(ब) अस्पष्ट विकल्पी रूप
(स) 50% स्पष्ट विकल्पी तथा 50% अस्पष्ट विकल्पी रूप
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) स्पष्ट विकल्पी रूप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

3. लक्षण सामान्यत: तीन अथवा अधिक जीनों द्वारा नियंत्रित करते हैं उन्हें कहते हैं-
(अ) बहुप्रभाविता के लक्षण
(ब) बहुजीनी लक्षण
(स) एकजीनी लक्षण
(द) न्यूनजीनी लक्षण
उत्तर:
(ब) बहुजीनी लक्षण

4. तीन प्रभावी अलील तथा तीन अप्रभावी अलील वाले जीनोटाइप की त्वचा का रंग होगा-
(अ) अग्रवर्ती
(ब) मध्यवर्ती
(स) पश्चवर्ती
(द) कोई अन्तर नहीं आयेगा
उत्तर:
(ब) मध्यवर्ती

5. एक एकल जीन अनेक फीनोटाइप लक्षणों को प्रकट करता है, ऐसे जीन को कहते हैं-
(अ) बहुप्रभावी जीन
(ब) लीथल जीनं
(स) लिंग जीन
(द) सहलग्न जीन
उत्तर:
(अ) बहुप्रभावी जीन

6. फेनिल कीटोमेह व्याधि किसका उदाहरण है ?
(अ) सहप्रभाविता का
(ब) बहुप्रभाविता का
(स) अपूर्ण प्रभाविता का
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(ब) बहुप्रभाविता का

7. फेनिल कीटोमेह व्याधि का लक्षण है-
(अ) मानसिक मंदन
(ब) बालों का कम होना
(स) त्वचीय रंजन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. फेनिल कीटोमेह व्याधि किस एन्जाइम के लिए उत्तरदायी जीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है ?
(अ) फेनिल हाइड्रोक्सीलेज
(ब) एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज
(स) फेनिल कीटो हाइड्रोक्सीलेज
(द) फेनिल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज ।
उत्तर:
(द) फेनिल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज ।

9. अगुणित – द्विगुणित लिंग निर्धारण प्रणाली पायी जाती है-
(अ) मानव में
(ब) मधुमक्खी में
(स) कबूतर में
(द) बंदर में
उत्तर:
(ब) मधुमक्खी में

10. मधुमक्खी के एक शुक्राणु एवं अण्डे के युग्मन से उत्पन्न संतति होगी-
(अ) रानी तथा श्रमिक
(ब) ड्रोन व रानी
(स) श्रमिक तथा नर
(द) रानी तथा नर
उत्तर:
(अ) रानी तथा श्रमिक

11. अनिषेचित अण्ड अनिषेकजनन (Parthenogenesis ) द्वारा विकसित होते हैं-
(अ) श्रमिक
(ब) रानी
(स) नर
(द) नर एवं रानी
उत्तर:
(स) नर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

12. मादा मधुमक्खी में क्रोमोसोम की संख्या होती है-
(अ) 32
(ब) 16
(स) 30
(द) 34
उत्तर:
(अ) 32

13. किस रोग में व्यक्ति लाल एवं हरे वर्ण (रंग) में विभेद नहीं कर पाता-
(अ) वर्णांधता
(स) दात्रकोशिका अरक्तता
(ब) फीनाइल कीटोनूरिया
(द) थैलीसिमिया
उत्तर:
(अ) वर्णांधता

14. HBA1 एवं HBA2 किस रोग से सम्बन्धित हैं-
(अ) वर्णांधता
(ब) थैलेसीमिया
(स) दात्रकोशिका अरक्तता
(द) डाउन सिन्ड्रोम
उत्तर:
(ब) थैलेसीमिया

15. नर (ड्रोन) किस विभाजन द्वारा शुक्राणु उत्पादित करते हैं-
(अ) अर्धसूत्री विभाजन
(स) समसूत्री विभाजन
(ब) असूत्री विभाजन
(द) कोशिकाद्रव्य विभाजन
उत्तर:
(स) समसूत्री विभाजन

16. अगुणित 16 क्रोमोसोम निम्न में से किसमें होता है-
(अ) नर में
(स) श्रमिक में
(ब) मादा में
(द) नर व मादा दोनों में
उत्तर:
(अ) नर में

17. विकृत हीमोग्लोबिन का संश्लेषण किस रोग में होता है ?
(अ) वर्णांधता
(स) थैलेसीमिया
(ब) दात्रकोशिका अरक्तता
(द) फीनाइलकीटोन्यूरिया
उत्तर:
(स) थैलेसीमिया

18. थैलेसीमिया रोग का नियंत्रण किस जीन द्वारा किया जाता है-
(अ) HBA1 एवं HBA2
(ब) HBA3 एवं HBA4
(स) HBA1 एवं HBA5
(द) HBA6 एवं HBA7
उत्तर:
(अ) HBA1 एवं HBA2

19. मेंडल की सफलता का मुख्य कारण था-
(अ) मटर के पौधे का चयन किया था
(ब) अपने संकरण में केवल एक लक्षण को एक बार में लिया
(स) वंशावली अभिलेख रखे थे
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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20. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम सिद्ध किया जाता है-
(अ) F1 पीढ़ी की समस्त संतति लम्बी होती है
(ब) लम्बे तथा बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में प्रकटन द्वारा
(स) F2 पीढ़ी में चिकने तथा झुर्रीदार बीजों वाले पौधों के प्रकटनद्वारा
(द) F2 पीढ़ी में लम्बे तथा बौने पौधों के प्रकटन द्वारा
उत्तर:
(स) F2 पीढ़ी में चिकने तथा झुर्रीदार बीजों वाले पौधों के प्रकटनद्वारा

21. एक संकर संकरण की F2 पीढ़ी का लक्षण प्ररूप अनुपात होता है-
(अ) 9 : 33 : 1
(ब) 3 : 1
(स) 1 : 1
(द) 2 : 1
उत्तर:
(ब) 3 : 1

22. लाल तथा सफेद के संकरण से उत्पन्न संतति गुलाबी है। इसमें R जीन किस प्रकार का होना सिद्ध करता है-
(अ) संकर
(ब) अप्रभावी
(स) अपूर्ण प्रभावी
(द) उत्परिवर्ती
उत्तर:
(स) अपूर्ण प्रभावी

23. रुधि वर्ग AB समूह वाले मनुष्य का जीनोटाइप प्रभाव दिखाई
(अ) प्रभावी अप्रभावी देती है, जो कहलाता है-
(ब) अपूर्ण प्रभाविता
(स) सहप्रभाविता
(द) संपूरक
उत्तर:
(स) सहप्रभाविता

24. निम्न में से मंडलीय विकार है-
(अ) सिस्टिक फाइब्रोसिस
(ब) वर्णांधता
(स) थैलेसीमिया
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

25. एक X क्रोमोसोम का अभाव अर्थात 45 क्रोमोसोम की (XO) स्थिति, किस रोग में होती है-
(अ) टर्नर सिन्ड्रोम
(ब) क्लाइनफेल्टर
(स) डाउन सिन्ड्रोम
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) टर्नर सिन्ड्रोम

26. ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर पर आनुवंशिक अध्ययन करने वाले थे-
(अ) सटन
(ब) बोवेरी
(स) मोरगन
(द) मेंडल
उत्तर:
(स) मोरगन

27. मेंडल के आनुवंशिकी नियमों का अपवाद है-
(अ) सहलग्नता
(ब) पूर्ण प्रभाविता
(स) समयुग्मता
(द) विपर्यासी लक्षण
उत्तर:
(अ) सहलग्नता

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28. इनमें कौनसा परीक्षण क्रॉस है-
(अ) F1 × कोई सा जनक
(ब) F1 × F1
(स) F1 × अप्रभावी जनक
(द) F2 × प्रभावी जनक
उत्तर:
(स) F1 × अप्रभावी जनक

29. मेंडल के वंशागति नियमों की पुनः खोज करने वाले थे-
(अ) डीब्रिज, सटन
(ब) डीब्रिज, कॉरेन्स, बोवेरी
(स) सटन, बोवेरी, बान शेरमाक
(द) डीब्रिज, कॉरेन्स, वान शेरमाक
उत्तर:
(द) डीब्रिज, कॉरेन्स, वान शेरमाक

30. HBAI एवं HBA2 जीन जनक के कौनसे क्रोमोसोम पर स्थित होती है-
(अ) क्रोमोसोम 15
(ब) क्रोमोसोम 16
(स) क्रोमोसोम 17
(द) क्रोमोसोम -18
उत्तर:
(ब) क्रोमोसोम 16

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
आनुवंशिक विज्ञान में किसका अध्ययन होता है ?
उत्तर:
इस शाखा में वंशागति व विविधता दोनों का अध्ययन होता है।

प्रश्न 2.
मेंडल ने मटर के पौधे के किन लक्षणों पर विचार किया ?
उत्तर:
मेंडल ने विपरीतार्थ लक्षणों पर विचार किया, इन्हें विपर्यासी लक्षण (Contrasting Character) भी कहते हैं। उदाहरण – लंबे या बौने पौधे, पीले या हरे बीज ।

प्रश्न 3.
तद्रूप प्रजनन – सम (True Breeding) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वह लक्षण जो अनेक पीढ़ियों तक स्व-परागण के फलस्वरूप वही लक्षण प्रकट करता हो ।

प्रश्न 4.
मेंडल ने मटर की कितनी तद्रूप प्रजननी किस्मों को चुना ?
उत्तर:
14 तद्रूप प्रजननी मटर किस्मों को चुना।

प्रश्न 5.
मेंडल के प्रयोगों में F1 से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रथम संतति पीढ़ी (Filial Progeny)।

प्रश्न 6.
समयुग्मजी व विषमयुग्मजी को समझाइये
उत्तर:
यदि पौधे की आनुवंशिक संरचना में किसी युग्म के दोनों विकल्प (alleles) गुण एकसमान हों जैसे (RR), तो पौधों को समयुग्मजी (homozygous) पादप कहते हैं। जब युग्म (gene pair) के दोनों विकल्प भिन्न हों, जैसे Rr, तो पादप को विषमयुग्मजी ( heterozygous) कहते हैं।

प्रश्न 7.
जीन प्ररूप (genotype ) व लक्षण प्ररूप ( phenotype ) को समझाइये।
उत्तर:
पौधे के बाहरी दिखने वाले लक्षण जैसे लाल, लम्बा आदि को लक्षण प्ररूप कहते हैं तथा उसमें स्थित जीनी संरचना को जीन प्ररूप कहते हैं; जैसे -RR, Rr आदि।

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प्रश्न 8.
द्विसंकर संकरण का लक्षण व जीन प्ररूप बताइये।
उत्तर:
लक्षण प्ररूप 9 : 3 : 3 : 1
जीन प्ररूप 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 2 : 1

प्रश्न 9.
द्विसंकर परीक्षण संकरण में लक्षण प्ररूप व जीन प्ररूप का अनुपात बताइये।
उत्तर:
लक्षण प्ररूप व जीन प्ररूप दोनों 1 : 1 : 1 : 1 अनुपात में होते हैं।

प्रश्न 10.
सह-प्रभाविता से क्या समझते हैं ? उदाहरण बताइये।
उत्तर:
इसमें F1 पीढ़ी दोनों जनकों से मिलती-जुलती है। इसका अच्छा उदाहरण मानव ABO रुधिर वर्ग है।

प्रश्न 11.
वाल्टर सटन और थियोडोर बोवेरी का क्या कार्य था ?
उत्तर:
इन्होंने बताया कि गुणसूत्रों का व्यवहार जीन जैसा होता है। इन्होंने मेंडल के नियमों को गुणसूत्रों की गतिविधि द्वारा समझाया। इन्होंने गुणसूत्रों के विसंयोजन के ज्ञान को मेंडल के सिद्धान्तों के साथ जोड़कर ‘वंशागति का क्रोमोसोमवाद या सिद्धान्त’ प्रस्तुत किया।

प्रश्न 12.
व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal Cross) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्रयोग में मुख्य जनक का उपयोग दो अलग-अलग प्रयोगों में विपरीत तरीके से किया जावे, जैसे पहले प्रयोग में यदि ‘A’ नर तथा ‘B’ मादा होगा तो दूसरे प्रयोग में ‘B’ को नर तथा ‘A’ को मादा के रूप में प्रयोग में लाते हैं। इस प्रकार के संकरण को व्युत्क्रम संकरण कहते हैं।

प्रश्न 13.
सहलग्नता, पुनर्योजन (Recombination) शब्द किसने दिया तथा रीकोम्बीनेशन मैप बनाने वाले कौन थे ?
उत्तर:
मोरगन ने सहलग्नता व पुनर्योजन शब्द दिया तथा इनके शिष्य एल्फ्रेड स्टर्टीवेंट ने रीकोम्बीनेशन मैप बनाया।

प्रश्न 14.
‘X काय’ नाम किसने दिया व मानव में लिंग निर्धारण किससे होता है?
उत्तर:
हेंकिंग ने ‘X काय’ नाम दिया। मानव में XX व XY से लिंग निर्धारण होता है।

प्रश्न 15.
फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन किससे होता है ?
उत्तर:
DNA के क्षार युग्मों के घटने-बढ़ने से फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन होता है।

प्रश्न 16.
मानव में वंशागत ऐसे दो लक्षण दीजिए जिनके जीन्स लिंग गुणसूत्र पर स्थित हों।
उत्तर:
सिकिल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) तथा गंजापन (Boldness) मानव में वंशागत होने वाले लक्षण हैं। इनके जीन्स लिंग गुणसूत्र पर स्थित नहीं होते हैं।

प्रश्न 17.
यदि किसी बच्चे में 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र हों तो उस बच्चे में किस प्रकार के विकार की सम्भावना है?
उत्तर:
उस बच्चे में ‘मंगोलिक विकार’ नामक विकार होने की सम्भावना होगी।

प्रश्न 18.
विषमयुग्मकता (Heterogamety) क्या है? एक जीव का उदाहरण दीजिए, जो इसे प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
जिन जीवों में लिंग गुणसूत्र भिन्न प्रकार के होते हैं वे दो प्रकार के युग्मक उत्पन्न करते हैं, अतः ये विषमयुग्मकता प्रदर्शित करते हैं। उदा. ड्रॉसोफिला नर।

प्रश्न 19
सहप्रभाविता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
‘A’, ‘B’ तथा ‘O’ रुधिर वर्गों के जीन्स सहप्रभावी ( Codominant) होते हैं।

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प्रश्न 20.
सामान्य जनकों के यहाँ हीमोफीलिया युक्त पुत्र का जन्म हुआ। उनके जनकों का जीनोटाइप बताइये।
उत्तर:
एक हीमोफिलिक पुत्र का जन्म एक सामान्य जनकों के यहाँ माता के वाहक होने पर हो सकता है-
अतः पिता सामान्य = XY
माता वाहक = XXh

प्रश्न 21.
बिन्दु उत्परिवर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर:
डीएनए के एकल क्षार युग्म ( बेस पेयर) के परिवर्तन को बिन्दु उत्परिवर्तन (Point mutation) कहते हैं।

प्रश्न 22.
मेण्डल के द्विसंकरण प्रयोग का समलक्षणी (फीनोटाइप) अनुपात लिखिए।
उत्तर:
मेण्डल के द्विसंकरण प्रयोग का समलक्षणी (फीनोटाइप) अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 है।

प्रश्न 23.
वंशागति के ‘गुणसूत्र सिद्धान्त’ को प्रतिपादित करने वाले वैज्ञानिकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सटन और बोवेरी।

प्रश्न 24.
मानव में पाये जाने वाले अलिंग सूत्री प्रभावी तथा अलिंग सूत्री अप्रभावी मेण्डलीय दोष से प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
मायोटोनिक दुष्पोषण (डिस्ट्रोफी), दात्र कोशिका अरक्तता ( सिकल सेल एनीमिया ) ।

प्रश्न 25
बिंदु उत्परिवर्तन के कारण कौन-सा रोग होता है ?
उत्तर:
दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia)।

प्रश्न 26.
मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन के कोई दो उपयोग लिखिये।
उत्तर:
इसका उपयोग विशेष लक्षण, अपसामान्यता या रोग का पता लगाने में किया जाता है।

प्रश्न 27.
वाल्टर सटन द्वारा प्रस्तुत वंशागति के सिद्धांत का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘ वंशागति का क्रोमोसोमवाद या सिद्धान्त’।

प्रश्न 28.
उत्परिवर्तजन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन रासायनिक और भौतिक कारकों द्वारा उत्परिवर्तन होता है, उन्हें उत्परिवर्तजन (म्यूटाजन) कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
दो माता-पिता श्री X व श्रीमती X तथा श्री Y व श्रीमती Y एक ही बच्चे को अपनी-अपनी सन्तान बताते हैं। श्री व श्रीमती X दोनों का ही रुधिर वर्ग A तथा श्री Y का रुधिर वर्ग O व श्रीमती Y का रुधिर वर्ग AB है। परन्तु बच्चे का रुधिर वर्ग O है । बताइए कि वह बच्चा किसका हो सकता है और क्यों?
उत्तर:
श्री व श्रीमती X का रुधिर वर्ग A होने पर उनकी सन्तान का रुधिर वर्ग A या O हो सकता है। इसी प्रकार श्री Y का रुधिर वर्ग O तथा श्रीमती Y का रुधिर वर्ग AB होने पर उनकी सन्तान का रुधिर वर्ग A या B होगा ।

माता-पिता का रुधिर वर्ग

 

सन्तान का रुधिर वर्ग
हो सकता हैनहीं हो सकता
1. श्री व श्रीमती X A×AA या OB, AB
2. श्री व श्रीमती O×ABA या BAB या O

क्योंकि बच्चे का रुधिर वर्ग O है अतः उपरोक्त परिणामानुसार बच्चा श्री व श्रीमती X का है।

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प्रश्न 2.
सामान्य पुरुष तथा हीमोफीलिया से ग्रस्त स्त्री द्वारा हीमोफीलिया की वंशागति को बताइये ।
उत्तर:
जब एक सामान्य पुरुष किसी हीमोफिलिक स्त्री से विवाह करता है तो उसके सभी पुत्र हीमोफिलिक रोग से ग्रस्त होंगे तथा पुत्रियाँ हीमोफीलिया जीन की वाहक होंगी।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 1

प्रश्न 3.
एक पुरुष का रुधिर वर्ग ‘A’ है तथा उसकी स्त्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। इनके बच्चे किस रुधिर वर्ग के नहीं होंगे? कारण सहित बताइये।
उत्तर:
पुरुष का रुधिर वर्ग ‘A’ है अतः जीनी संरचना = IAIA/IAIO स्त्री का रुधिर वर्ग -‘O’ है अतः जीनी संरचना = IoIo रुधिर वर्ग प्रदर्शित करने वाली तीन जीन Ia , Ib तथा Io होती हैं। इनमें से  Ia  व  Ib  सहप्रभावी (Co-dominant ), परन्तु Io दोनों का अप्रभावी होता है। इस प्रकार इनके दो क्रॉस सम्भव हैं-

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इस प्रकार शिशु का रुधिर वर्ग ‘A’ या ‘O’ सम्भव है। ‘A’ रुधिर वर्ग होने पर यह ‘B’ तथा ‘O’ वर्ग वाले व्यक्तियों के लिये हानिकारक होगा, परन्तु ‘O’ होने पर यह सार्विक दाता होगा। अतः यह किसी भी व्यक्ति को हानिकारक नहीं होगा।

प्रश्न 4.
दात्र कोशिका अरक्तता या सिकेल सेल रक्ताल्पता (Sickle Cell Anaemia) की वंशागति को समझाइये
उत्तर:
इस रोग की प्रकृति आनुवंशिक है जो एक अप्रभावी जीन (HbS) के कारण होती है। यह जीन आटोसोमल होती है तथा अपूर्ण प्रभावी जीन (HbA) के साथ होने पर अर्थात् विषमयुग्मजी (HbA HbS ) अवस्था में कम या आंशिक रूप से परन्तु समयुग्मजी ( HbSHbS) होने पर पूर्ण रोग उत्पन्न करती है। विषमयुग्मजी अवस्था वाला व्यक्ति कम थकान का कार्य करके सामान्य व्यक्ति के जैसे जीता है। किन्तु समयुग्मजी अप्रभावी (HbS HbS) जीन वाले व्यक्ति में सभी RBC पिचककर हंसिये की जैसे हो जाती हैं और वे व्यर्थ की हो जाती हैं, अन्ततः ऐसे रोगी की मृत्यु हो जाती है।

वंशागति को निम्न चित्र से समझाया गया है –
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प्रश्न 5
हीमोफीलिया की वंशागति को समझाइये
उत्तर:
प्रायः पुरुष ही हीमोफीलिया रोग से ग्रसित होते हैं, स्त्रियाँ इस रोग की वाहक होती हैं। इस रोग से ग्रसित पुरुष भी प्राय: बाल्यावस्था या यौवन से पूर्व ही मर जाते हैं। वाहक स्त्रियों के द्वारा ही सामान्यतः इस रोग की वंशानुगति होती है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 4

प्रश्न 6.
सहलग्नता किसे कहते हैं? पक्षियों में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर:
गुणसूत्र पर दो जीनों का भौतिक संयोग या जुड़े होने को मोरगन ने सहलग्नता बताया था। पक्षियों में लिंग गुणसूत्रों को Z व W गुणसूत्र कहा जाता है। इनमें मादा के अन्दर एक Z तथा एक W गुणसूत्र होता है जबकि नर में अलिंग गुणसूत्रों के अलावा Z-गुणसूत्र का एक जोड़ा होता है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 5

प्रश्न 7.
सहप्रभाविता से क्या अभिप्राय है? मानव में रुधिर वर्ग का उदाहरण देकर सहप्रभाविता को समझाइए।
उत्तर:
जब प्रभावी व अप्रभावी दोनों एलील स्वतन्त्र रूप से अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं तो उसे सहप्रभाविता (codominance) कहते हैं अर्थात् इसमें F1 पीढ़ी दोनों जनकों से मिलती-जुलती है। इसका एक अच्छा उदाहरण मानवों में ABO रुधिर वर्गों का निर्धारण करने वाली विभिन्न प्रकार की लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC) हैं। ABO रुधिर वर्गों का नियंत्रण जीन ‘I’ करती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

RBC की प्लाज्मा झिल्ली में सतह से बाहर निकलते हुए शर्करा बहुलक होते हैं। इस बहुलक का प्रकार क्या होगा यहाँ इस बात का नियंत्रण जीन ‘I’ से होता है। इस जीन ‘I’ के तीन अलील IA IB और i होते हैं। अलील IA और अलील IB कुछ भिन्न प्रकार की शर्करा का उत्पादन करते हैं और अलील i किसी भी प्रकार की शर्करा का उत्पादन नहीं करती। मानव जीन (2n) द्विगुणित होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में इन तीन में से दो प्रकार के जीन अलील होते हैं।

और IA तो के ऊपर पूर्णरूप से प्रभावी होते हैं अर्थात् जब IA और तो केवल IB अभिव्यक्त होता है और जब IB और विद्यमान हों तो केवल ” अभिव्यक्त होता है, तो शर्करा बनाता ही नहीं है। विद्यमान हों जब IA और IB दोनों उपस्थित हों तो ये दोनों अपने-अपने प्रकार की शर्करा की अभिव्यक्ति कर देते हैं। यह घटना ही सह प्रभाविता है। इसी कारण RBC में A और B दोनों प्रकारों की शर्करा होती है।

प्रश्न 8.
मानव में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
मानव में लिंग निर्धारण XY प्रकार का होता है। मानव में कुल 23 जोड़े अर्थात् 46 गुणसूत्र होते हैं। नर में 44 गुणसूत्र अलिंग गुणसूत्र (Autosomes ) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome ) ‘X’ तथा ‘Y’ होते हैं। स्त्री या मादा में भी 44 गुणसूत्र ऑटोसोम (Autosomes) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र ‘X’ व ‘Y’ होते हैं। जब शुक्राणु बनते हैं तो 50% शुक्राणु 22+X गुणसूत्र वाले तथा शेष 50% शुक्राणु 22+Y गुणसूत्र वाले होते हैं।

जबकि स्त्री या मादा के सभी अण्डों में 22+X गुणसूत्र होते हैं। सन्तान मैं कितनो लड़कियाँ ताकि लड़के यह इस पर निर्भर करता है कि कौनसा शुक्राणु अण्ड से निषेचित करता है। मानव में नर बच्चे का होना ‘Y’ गुणसूत्र की उपस्थिति पर निर्भर करता है। एक शुक्राणु में केवल ‘X’ या ‘Y’ लिंग गुणसूत्र ही हो सकता है, अतः पिता का ‘X’ गुणसूत्र लड़कियों में तथा ‘Y गुणसूत्र लड़कों में मिलता है।
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निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बहुविकल्पता या बहुगुण ऐलीलवाद ( Multiple Allelism) को मानव रुधिर वर्ग की सहायता से बताइये ।
उत्तर:
मेंडल के नियमों के अनुसार, परन्तु उसके आधारभूत कारक युग्म (Factor Pairs) के सिद्धान्त से हटकर बहुगुण ऐलीलंवाद पाया जाता है। इस प्रकार की वंशागति दो या दो से अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स या एलील्स (Alleles) पर निर्भर करती है। मानव में रुधिर वर्गों की वंशागति बहु-विकल्पता का उदाहरण है।

मानव की आबादी में चार प्रकार के रुधिर वर्ग A, B, AB तथा 0 पाये जाते हैं। रुधिर वर्ग का वर्गीकरण इनमें पाये जाने वाले एन्टीजन (Antigen ) के आधार पर होता है। मानव के रुधिर प्लाजमा में इन प्रतिजनों के प्रति विशिष्ट प्रोटीन्स पाये जाते हैं, जिन्हें प्रतिरक्षी (Antibodies) कहते हैं।

रुधिर वर्ग (Blood Group)प्रतिजन (Antigen)प्रतिरक्षी (Antibodies)
AAAnti-B or ‘b’
BBAnti-A or ‘A’
ABA,Bअनुपस्थित
Oनहीं‘a’ और ‘b’

मानव में रुधिर वर्ग वंशानुगत लक्षण है एवं जनकों से संततियों में मेंडल के नियम के आधार पर वंशानुगत होते हैं। रुधिर वर्ग की वंशागति जनकों से प्राप्त होने वाले जीन्स पर निर्भर करती है। जीन्स जो मनुष्य में रुधिर वर्गों को नियंत्रित करते हैं उनकी संख्या दो के स्थान पर तीन होती है एवं मल्टीपल एलील्स (बहुविकल्पी) कहलाते हैं। अर्थात् दो से अधिक यानी तीन अलील एक ही लक्षण को नियंत्रित करते हैं।

ये सभी तीनों जीन या एलील्स समजात गुणसूत्र में एक ही लोकस (स्थान) पर पाये जाते हैं। एक व्यक्ति में इन तीनों जीनों में से एक साथ केवल दो जीन ही पाये जा सकते हैं, जो प्रकृति में दोनों समान या असमान हो सकते हैं। ये जीन्स ही संतति में रुधिर वर्ग / एन्टीजन्स के उत्पादन को नियंत्रित करते हैं।

जीन जो कि एन्टीजन A उत्पन्न करता है उसे IA से चिन्हित करते हैं, एन्टीजन B के लिये IB जीन एवं दोनों एन्टीजन की अनुपस्थिति के लिये I° जीन होती है। अक्षर I का प्रचलन एक लोकस पर जीन की उपस्थिति दिखाने के लिये आधारीय प्रतीक के रूप में किया जाता है (I = आइसोहीमएग्लूटीनोजन)। इस प्रकार मानव जनसंख्या में चार रुधिर वर्गों के लिये छः प्रकार के जीनोटाइप सम्भव हैं।

संतति का जीनोटाइपसंतति का रुधिर वर्ग
Ia IaA
Ia IoA
IbIbB
IbIoB
IaIbAB
IoIoO

इस आधार पर ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का चित्रात्मक प्रदर्शन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(i) रुधिर वर्ग A के लिये समयुग्मजी पुरुष (IaIa) द्वारा O रुधिर वर्ग वाली स्त्री (या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सन्तानों का रुधिर वर्ग A होगा ।
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सभी सन्तानें A रुधिर वर्ग के लिये विषमयुग्मजी हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

(ii) रुधिर वर्ग B के लिये समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग की स्त्री ( या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सन्तानों में रुधिर वर्ग B होगा ।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 8

सभी सन्तानें रुधिर वर्ग B के लिये विषमयुग्मजी होंगी।

(iii) A रुधिर वर्ग के लिये समयुग्मजी पुरुष द्वारा B रुधिर वर्ग की समयुग्मजी स्त्री से विवाह करने पर सन्तानें AB रुधिर वर्ग की होंगी ।
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सभी सन्तानें AB रुधिर वर्ग की होंगी।

(iv) AB रुधिर वर्ग वाले पुरुष द्वारा AB रुधिर वर्ग वाली स्त्री से विवाह करने पर 25% सन्तानें A रुधिर वर्ग की, 50% AB रुधिर वर्ग की तथा 25% सन्तानें B रुधिर वर्ग की होंगी।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 10

(v) विषमयुग्मजी A तथा B रुधिर वर्ग वाले स्त्री-पुरुषों से उत्पन्न सन्तानों में चारों प्रकार की सन्तानें 1:1:1:1 के अनुपात में उत्पन्न होने की सम्भावना है।
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(vi) यदि स्त्री व पुरुष के रुधिर वर्ग क्रमशः AB तथा O हैं तो उनकी सन्तानों में केवल A अथवा B रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
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प्रश्न 2.
अपूर्ण प्रभाविता क्या है? श्वान पुष्प नामक पौधे में अपूर्ण प्रभाविता को चैकर बोर्ड द्वारा समझाइए । फीनोटाइप व जीनोटाइप अनुपात भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance)-
मेंडल ने मटर पर प्रयोग कर प्रभावी व अप्रभावी लक्षणों के विषय में बताकर प्रभाविता का नियम भी दिया। किन्तु इसी प्रकार के प्रयोग कुछ अन्य पादपों में करने पर यह देखा कि F1 में जो लक्षण उत्पन्न होता है वह किसी भी जनक से नहीं मिलता है, वस्तुतः प्रकट होने वाला लक्षण दोनों जनकों के मध्य का होता है। अतः यहाँ प्रभावित का नियम लागू नहीं होता, वरन् यह मेंडल के नियमों का अपवाद है। इसे अपूर्ण प्रभावित कहते हैं।

श्वान पुष्प या एंटीराइनम (Snap dragon or antirrhinum majus) में जब शुद्ध लाल पुष्प वाली (RR) और शुद्ध सफेद पुष्य (rr) वाली प्रजाति के बीच क्रॉस करवाया गया तो F1 में गुलाबी पुष्पों (Rr) वाली संतति प्राप्त हुई। जब F1 संतति को स्व-परागित किया गया तो परिणामों का अनुपात 1(RR) लाल : 2(Rr) गुलाबी (rr) सफेद था।

यहाँ जीनोटाइप अनुपात तो मेंडलीय एकसंकरण की (1 : 2 : 1) जैसे ही है परन्तु फीनोटाइप अनुपात 3: 1 के स्थान पर 1: 2: 1 हो जाता है। यहाँ R कारक पूर्ण रूप से r पर प्रभावी न होकर अपूर्ण प्रभावी होता है (चित्र 5.5)। गुलावास पादप (Mirabillus jalapa or 4 ‘o’ clock plant) में भी अपूर्ण प्रभाविता पाई जाती है।

प्रभाविता नामक संकल्पना का स्पष्टीकरण-जैसा ज्ञात है कि प्रत्येक जीन में विषेष लक्षण को अभिव्यक्त (Experss) करने की क्षमता होती है। द्विगुणित जीव में प्रत्येक लक्षण को नियंत्रित करने वाली जीन के दो प्रारूप विद्यमान होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि जीन के दोनों प्रारूप सदैव एक जैसे हों। इनमें से कभी-कभी भिन्नता के कारण परिवर्तन आ जाता है।

उदाहरण के लिये एक ऐसी जीन जिसमें एक विशेष एन्जाइम को उत्पन्न करने की सूचना है। इस जीन के दोनों प्रतिरूप इसके दो अलील रूप हैं। मान लेते हैं कि सामान्य अलील ऐसा एन्जाइम उत्पन्न करता है जो एक सबस्ट्रेट ‘S’ के रूपान्तरण के लिये जरूरी है। रूपान्तरित अलील निम्न में से किसी एक परिवर्तन हेतु उत्तरदायी हो सकता है-

  • सामान्य एन्जाइम या
  • कार्य अक्षम एंजाइम निर्मित करना या
  • एन्जाइम अनुपस्थित होना।

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प्रथम परिवर्तन में रूपान्तरित अलील ठीक अरूपांतरित अलील की जैसे कार्य कर रहा है अर्थात् यह सबस्ट्रेट ‘S’ को बदलकर वही फीनोटाइप (जो होना चाहिए) का उत्पादन करेगा। परन्तु जब अलील किसी भी प्रकार के एन्जाइम का उत्पादन नहीं करता या अक्षम एन्जाइम का उत्पादन करता है तो फीनोटाइप प्रभावित हो सकता है।

वस्तुत: फीनोटाइप अरूपान्तरित अलील के कार्य पर निर्भर होता है। सामान्यत: अरूपान्तरित अलील प्रभावी व रूपान्तरित अलील अप्रभावी होता है। अतः इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि अप्रभावी अलील के उपस्थित होने पर या तो एन्जाइम बनता ही नहीं है या फिर कार्य अक्षम होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. मेंडल ने स्वतंत्र रूप से प्रजनन करने वाली मटर के पौधे की कितनी किस्मों को युग्मों के रूप में चुना जो विपरीत विशेषकों वाले एक लक्षण के अलावा एक समान थीं? (NEET-2020)
(अ) 2
(ब) 14
(स) 8
(द) 4
उत्तर:
(ब) 14

2. सही मिलान का चयन करो- (NEET-2020)
(अ) फेनिलकीटोन्यूरिया – अलिग क्रोमोसोम प्रभावी लक्षण
(ब) दात्र कोशिका अरक्तता – अलिग क्रोमोसोम अप्रभावी लक्षण, क्रोमोसोम- 11
(स) थैलेसीमिया – X संलग्न
(द) हीमोफीलिया – Y संलग्न
उत्तर:
(ब) दात्र कोशिका अरक्तता – अलिग क्रोमोसोम अप्रभावी लक्षण, क्रोमोसोम – 11

3. वंशागति के गुणसूत्र सिद्धान्त का प्रायोगिक प्रमाण किसने किया था? (NEET-2020)
(अ) सटन
(ब) बोवेरी
(स) मार्गन
(द) मेंडल
उत्तर:
(स) मार्गन

4. वह आनुवंशिक विकार कौन है, जिसमें एक व्यक्ति में मुख्यतः पौरुष विकास होता है, मादा लक्षण होते हैं और बांझ होता है – (NEET-2019)
(अ) डाउन सिन्ड्रोम
(ब) टर्नर सिन्ड्रोम
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(द) एडवर्ड सिन्ड्रोम
उत्तर:
(स) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम

5. जीनों के बीच की दूरी के मापन के रूप में ही गुणसूत्र पर जीन युग्मों के बीच पुनर्योगजन की आवृति की व्याख्या किसके द्वारा की गई थी? (NEET-2019)
(अ) सटन बोवेरी
(ब) टी.एच. मार्गन
(स) ग्रेगर जे मेण्डल
(द) अलफ्रेड स्टुअर्टवेन्ट
उत्तर:
(द) अलफ्रेड स्टुअर्टवेन्ट

6. एंटीराइनम (स्नैपड्रेगन) में एक लाल पुष्प को श्वेत पुष्प के साथ प्रजनन किया तब F1 में गुलाबी पुष्प प्राप्त हुए। जब गुलाबी पुष्पों को स्वपरागित किया गया तब F2 में श्वेत, लाल और गुलाबी पुष्प प्रास हुए। निम्नलिखित में से गलत कथन का चयन कीजिए- (NEET-2019)
(अ) इस प्रयोग में पृथक्करण का नियम लागू नहीं होता
(ब) यह प्रयोग प्रभाविता के सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता
(स) F1 में गुलाबी रंग, अपूर्ण प्रभाविता के कारण आया।
(द) F2 का अनुपात 14 (लाल), 24 (गुलाबी), 14 (श्वेत) है।
उत्तर:
(स) F1 में गुलाबी रंग, अपूर्ण प्रभाविता के कारण आया।

7. निम्नलिखित में से कौनसा युग्म गलत रूप में सुमेलित किया गया है- (NEET-2018)
(अ) XO प्रकार लिंग निर्धारण : टिड्डा
(ब) ABO रक्त समूहन : सहप्रभाविता
(स) मटर में मंड संश्लेषण : बहुविकल्पी
(द) टी.एच. मार्गन : सहलग्नता
उत्तर:
(स) मटर में मंड संश्लेषण : बहुविकल्पी

8. एक स्त्री के एक X- गुणसूत्र में X- संलग्न अवस्था है। यह गुणसूत्र किनमें वंशागत होगा? (NEET-2018)
(अ) केवल पोता-पोतियों/नाती-नातियों में
(ब) केवल पुत्रों में
(स) केवल पुत्रियों में
(द) पुत्रों व पुत्रियों दोनों में
उत्तर:
(द) पुत्रों व पुत्रियों दोनों में

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9. निम्नलिखित अभिलक्षणों में से कौनसे मनुष्य में रुधिर वर्गों की वंशागति को दर्शाते हैं- (NEET-2018)
(i) प्रभाविता
(ii) सहप्रभाविता
(iii) बहु अलील
(iv) अपूर्ण प्रभाविता
(v) बहुजीनी वंशागति

(अ) (ii), (iv) एवं (v)
(ब) (i), (ii) एवं (iii)
(स) (ii), (ii) एवं (v)
(द) (i), (iii) एवं (v)
उत्तर:
(ब) (i), (ii) एवं (iii)

10. यदि पति एवं पति का जीनोटाइप IAIB एवं IAi है। इनके बच्चों का रुधिर वर्गों में कितने जीनोटाइप एवं फीनोटाइप संभव है-
(NEET-2017)
(अ) 3 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप
(ब) 3 जीनोटाइप, 4 फीनोटाइप
(स) 4 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप
(द) 4 जीनोटाइप, 4 फीनोटाइप
उत्तर:
(स) 4 जीनोटाइप, 3 फीनोटाइप

11. एक रोग, जो अलिंगसूत्र प्राथमिक अवियोजन के कारण होता है, कौनसा है? (NEET-2017)
(अ) डाठन सिन्ड्रोम
(ब) क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम
(स) टर्नर सिन्ड्रोम
(द) दात्र कोशिका अरक्तता
उत्तर:
(अ) डाठन सिन्ड्रोम

12. निम्नलिखित में से मटर के कौनसे लक्षण पर मेंडल द्वारा अपने प्रयोगों में विचार नहीं गया था? (NEET-2017)
(अ) तना – लम्बा या बौना
(ब) त्वचारोम – ग्रंथिल या ग्रंधिल रहित
(स) बीज – हरा या पीला
(द) फली – फूली हुई या संकुचित
उत्तर:
(ब) त्वचारोम – ग्रंथिल या ग्रंधिल रहित

13. एक वर्णांध पुरुष एक ऐसी स्त्री से विवाह करता है जो सामान्य रंग दृष्टि के लिए समयुग्मजी है। उनके पुत्र के वर्णांध होने की संभावना क्या होगी? (NEET II-2016)
(अ) 0.75
(ब) 1
(स) 0
(द) 0.5
उत्तर:
(स) 0

14. कॉलम-I के शब्दों को कॉलम-II में दिए गए उनके वर्णन से मिलान कीजिए तथा सही विकल्प चुनिए- (NEET-2016)

कॉलम-Iकॉलम-II
1. प्रभाविता(i) अनेक जीन एकल लक्षण का नियंत्रण करते हैं।
2. सहप्रभाविता(ii) विषमयुग्मजी जीव में केवल एक ही अलील स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
3. बहुप्रभाविता(iii) विषमयुग्मजी जीव में दोनों ही अलील स्वयं को पूरी तरह अभिव्यक्त करते हैं।
4. बहुजीनी वंशागति(iv) एकल जीन अनेक लक्षणों को प्रभावित करता है।
विकल्प :1234
(अ)(iv)(i)(ii)(iii)
(ब)(iv)(iii)(i)(ii)
(स)(ii)(i)(iv)(iii)
(द)(ii)(iii)(iv)(i)

उत्तर:

(द)(ii)(iii)(iv)(i)

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15. यदि दोनों ही जनक थैलेसीमिया, जो एक अलिंगसूत्री अप्रभावी विकार हैं, के लिए वाहक हैं तो गर्भधारण करने की क्या संभावनाएँ हैं जिसके फलस्वरूप प्रभावित बच्वा पैदा होगा- (NEET-2013)
(अ) कोई संभावना नहीं
(ब) 50%
(स) 25%
(द) 100%
उत्तर:
(स) 25%

16. ऐसे प्रसंकरण के द्वारा कौनसे मेंडलीय विचार प्रदर्शित होता है है जिसमें F1 पीढ़ी दोनों ही जनकों में मिलती है? (NEET-2013)
(अ) अपूर्ण प्रभाविता
(ब) प्रभाविता का नियम
(स) एक जीन की वंशागति
(द) सहप्रभाविता
उत्तर:
(द) सहप्रभाविता

17. एक मेंडलीय संकरण में, F2 पीढ़ी में पाया गया कि जीनी प्रारूपी तथा लक्षण प्रारूपी दोनों अनुपात एक समान 1: 2: 1 है, यह मामला क्या दर्शाता है ? (NEET-2012)
(अ) सह प्रभाविकता
(ब) द्विसंकर संकरण
(स) सम्पूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण
(द) अपूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण।
उत्तर:
(द) अपूर्ण प्रभाविकता वाला एक संकर संकरण।

18. मानव वंशावली विश्लेषण में निम्नलिखित में से कौनसा प्रतीक एवं जिस सूचना को प्रदर्शित करता है, सही मिलाया गया है- (NEET-2010)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 13
उत्तर:
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19. निम्नलिखित में से कौनसा एक लक्षण बहुजीनीय वंशागति का उदाहरण है- (NEET-2006)
(अ) मिरैविलिस जलापा में फूल का रंग
(ब) नर मधुमक्खी का उत्पादन
(स) उद्यान मटर में फलों की आकृति
(द) मानवों में त्वचा का रंग
उत्तर:
(द) मानवों में त्वचा का रंग

20. क्लाइनेफेल्टर्स सिन्ड्रोम में लिंग गुणसूत्र संघटक होते हैं- (BHU-2006)
(अ) 22 A+XXY
(ब) 22 A+XO
(स) 22 A+XY
(द) 22 A+XX
उत्तर:
(अ) 22 A+XXY

21. एक परिवार में पाँच पुत्रियाँ हैं तथा पुत्र नहीं हैं। छ्ठे बच्चे के लिए पुत्र की क्या सम्भावना होगी- (AFMC, 2000; CPMT-2005)
(अ) 50%
(ब) 75%
(स) पूर्ण
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) 50%

22. नीचे दिए जा रहे एक वंशावली चार्ट में एक खास लिंग-सहलग विशेषक (Trait) की वंशावली दर्शायी गयी है- (AIIMS-2005)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 14

ऊपर दिए गए वंशावली चार्ट के अध्ययन पश्चात् विशेषक कैसा है-
(अ) प्रभावी X- सहलग्न
(ब) अप्रभावी X- सहलग्न
(स) प्रभावी Y – सहलग्न
(द) अप्रभाव Y- सहलग्न
उत्तर:
(अ) प्रभावी X- सहलग्न

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

[हल-पुरुषों में अप्रभावी जीन एकल X – सहलग्न प्रभावी जीन को फीनोटिपिकिली प्रदर्शित करती है जबकि महिला में लिंग से सम्बन्धित एकल क्रीनोटिपिकिल लक्षणों को निर्धारित करने के लिए दो X- सहलग्न जीनों की आवश्यकता होती है। अप्रभावी X – सहलग्न जीन्स में विशिष्ट क्रिस क्रॉस वंशागति पायी जाती है ।

23. एलील्स का निर्माण होता है- (MP. PMT-2005; Haryana PMT-2005)
(अ) जीन
(ब) गुणसूत्र
(स) DNA
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) जीन

24. मेंडल के नियम निम्न में से किसके लिए मान्य हैं- (MP PMT-2005)
(अ) अलैंगिक प्रजनन
(ब) लैंगिक प्रजनन
(स) कायिक प्रजनन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) लैंगिक प्रजनन

25. मेंडल का पृथक्करण का नियम लागू होता है- (Wardha-2005)
(अ) केवल द्विसंकर क्रॉस के लिए
(ब) केवल एकसंकर क्रॉस के लिए
(स) दोनों द्विसंकर और एकसंकर क्रॉस के लिए
(द) द्विसंकर के लिए परन्तु एकसंकर के लिए नहीं।
उत्तर:
(स) दोनों द्विसंकर और एकसंकर क्रॉस के लिए

26. वंशानुगति की कार्यिकी इकाई होती है- (Haryana PMT-2005)
(अ) सिस्ट्रॉन
(ब) जीन
(स) इन्ट्रॉन
(द) गुणसूत्र
उत्तर:
(ब) जीन

27. निम्न में से कौन-सा रक्त समूह $\mathrm{A}$ रक्त समूह वालों को स्थानान्तरित किया जा सकता है? (MP PMT-2005)
(अ) A तथा O
(ब) AB तथा O
(स) AB
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) A तथा O

28. ABO रक्त समूह का प्रतिपादक है- (BCECE-2005)
(अ) वीनर
(ब) लेविन
(स) फिशर
(द) लैण्डस्टीनर
उत्तर:
(द) लैण्डस्टीनर

29. गुणसत्र की 2 n-1 अवस्था होती है- (BHU-2005)
(अ) मोनोसोमी (Monosomy)
(ब) नलीसोमी (Nullisomy)
(स) ट्राइसोमी (Trisomy)
(द) टेट्रासोमी (Tetrasomy)
उत्तर:
(अ) मोनोसोमी (Monosomy)

30. वह अमीनो अम्ल जो कि सिकल सेल एनीमिया में प्रतिस्थापित हो जाता है- (Kerala CET-2004, 05)
(अ) वेलीन के लिए ग्लूटामिक अम्ल, α शृंखला में
(ब) वेलीन के लिए ग्लूटामिक अम्ल, β श्रृंखला में
(स) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, α श्रृंखला में
(द) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, β शृंखला में
उत्तर:
(द) ग्लूटेमिक अम्ल के लिए वेलीन, β शृंखला में

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31. मेंडल के मोनोहाइब्रिड (Monohybrid) क्रॉस का जीनोटिपिक अनुपात होता है- (MP PMT, 2005)
(अ) 1: 3
(ब) 3: 1
(स) 1: 2: 1
(द) 1: 1: 1: 1
उत्तर:
(स) 1: 2: 1

32. नर में लिंग सहलग्न लक्षण किसके द्वारा स्थानान्तरित होते हैं? (MP PMT-2004)
(अ) Y-गुणसूत्र
(ब) ऑटोसोम्स
(स) X- गुणसूत्र
(द) X व Y तथा ऑटोसोम्स
उत्तर:
(स) X- गुणसूत्र

[नोट-क्योंकि नर में केवल एक X गुणसूत्र होता है तथा Y गुणसूत्र बिना एलील के होता है। इसलिए नर में एकल अप्रभावी एलील अपना प्रभाव दिखाते हैं ]

33. यदि AA और aa के बीच क्रॉस कराया जाए तो F1 संतति का स्वभाव होगा (CPMT-2004)
(अ) जीनोटिपिकली AA, फीनोटिपिकली a
(ब) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली a
(स) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली A
(द) जीनोटिपिकली aa, फीनोटिपिकली A
उत्तर:
(ब) जीनोटिपिकली Aa, फीनोटिपिकली a

34. टर्नर सिन्ड्रोम किसका उदाहरण है- (Kerala PMT 2004)
(अ) मोनोसोमी
(स) ट्राईसोमी
(ब) बाई सोमी
(द) पोलीयनाइडी
उत्तर:
(अ) मोनोसोमी

35. ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर में लिंग निर्धारण आधारित होता है- (AIEEE-2004)
(अ) XY गुणसूत्र की क्रियाविधि
(ब) ऑटोसोम्स और X गुणसूत्र के बीच आनुवंशिक संतुलन
(स) गुणसूत्र वातावरण की पारस्परिक क्रिया
(द) स्यूडोएलील्स
उत्तर:
(ब) ऑटोसोम्स और X गुणसूत्र के बीच आनुवंशिक संतुलन

36. डाउन सिन्ड्रोम की आवृत्ति में वृद्धि होती है, जब माता की आयु (Orissa JEE-2004)
(अ) 35 वर्ष से अधिक होती है।
(ब) 35 वर्ष से कम होती है
(स) प्रथम गर्भावस्था के समय
(द) तीन बच्चों की माता में
उत्तर:
(अ) 35 वर्ष से अधिक होती है।

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[ नोट- यह 1/700 जन्म लेने वाले बच्चों में पाया जाता है। इसमें महिला की उम्र 25 वर्ष या इससे कम होती है। इसकी आवृति उम्र के समय बढ़ती है। यह 40 वर्ष की महिला के लिए 1/100 तथा 45 वर्ष की महिला के लिए 1/10 होती है।]

37. गायनेकोमेस्टिया (Gynacomastia) लक्षण है- (KCET-2004)
(अ) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम का
(ब) टर्नर्स सिन्ड्रोम का
(स) सार्स का
(द) डाउन्स सिन्ड्रोम का
उत्तर:
(अ) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम का

38. मनुष्य के लिए X गुणसूत्र पर स्थित अप्रभावी जीन सदैव- (CBSE PMT 2004 )
(अ) नर में अभिव्यक्त होते हैं
(ब) मादा में अभिव्यक्त होते हैं।
(स) घातक होते हैं
(द) अर्ध घातक होते हैं
उत्तर:
(अ) नर में अभिव्यक्त होते हैं

39. पाइसम सटाइवम में सहलग्न समूहों की संख्या क्या है- (BVP-2004)
(अ) 2
(ब) 5
(स) 7
(द) 9
उत्तर:
(स) 7

[ नोट उद्यान मटर के पौधों में गुणसूत्र के 7 जोड़े होते हैं और समान संख्या में सहलग्न समूह होते हैं ।

40. एक पुरुष जिसका रक्त समूह B है A रक्त समूह वाली महिला से विवाह करता है और उसकी पहली संतान का रक्त समूह B है तो उसकी संतान का जीनोटाइप क्या होगा- (CPMT 2004)
(अ) IaIb
(ब) IaIo
(स) IbIo
(द) IbIb
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत 15

उत्तर:
(स) IbIo

41. एक पौधे में लाल रंग का फल (R) पीले रंग के फल (r) पर प्रभावी है तथा लम्बापन (T) बौनेपन (t) पर प्रभावी है। यदि RRTt जीनोटाइप के पौधे का क्रॉस rrtt वाले पौधे से कराते हैं, तब- (CBSE PMT 2004)
(अ) 75% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
(ब) सभी सन्तति पौधे लाल फल वाले एवं लम्बे होंगे।
(स) 25% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
(द) 50% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।
उत्तर:
(द) 50% लाल फल वाले लम्बे पौधे होंगे।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत

42. सर्वत्र आदाता (Recipient ) का रक्त वर्ग कौन-सा है- (MP. PMT 2003)
(अ) AB
(स) B
(ब) A
(द) O
उत्तर:
(अ) AB

43. एक समयुग्मज अप्रभावी एवं विषमयुग्मज पौधों के बीच संकरण कहलाता है- (MHCET 2003)
(अ) एकसंकर संकरण
(ब) द्विसंकर संकरण
(स) परीक्षण क्रॉस
(द) पश्च क्रॉस
उत्तर:
(स) परीक्षण क्रॉस

44. एक टेस्ट क्रॉस में 1 : 1 फीनोटाइपिक अनुपात क्या प्रदर्शित करता है- (AIEEE 2003)
(अ) एलील्स सहप्रभावी हैं
(ब) जनक के प्रभावी फीनोटाइप हेटेरोजायगस थे
(स) एलील्स का स्वतन्त्र पृथक्करण होता है।
(द) एलील्स प्रभावी हैं।
उत्तर:
(ब) जनक के प्रभावी फीनोटाइप हेटेरोजायगस थे

45. मेंडल का प्रथम नियम है- (CPMT 2003)
(अ) वंशागति का नियम
(ब) विभिन्नता का नियम
(स) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम
(द) पृथक्करण का नियम
उत्तर:
(द) पृथक्करण का नियम

46. मेंडल ने मटर के पौधे का चयन किया क्योंकि- (BVP 2003)
(अ) ये सस्ते थे
(ब) उनमें सात जोड़े विपरीत प्रकार के लक्षण उपस्थित थे
(स) वे आसानी से मिल जाते थे
(द) वे अधिक आर्थिक महत्त्व के थे।
उत्तर:
(ब) उनमें सात जोड़े विपरीत प्रकार के लक्षण उपस्थित थे

47. मेंडल के नियम का अपवाद है – (PB PMT 2000; RPMT 2002)
(अ) स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम
(ब) पृथक्करण का नियम
(स) प्रभाविता का नियम
(द) सहलग्नता का नियम
उत्तर:
(द) सहलग्नता का नियम

48. यदि एक लाल पुष्प वाले समयुग्मजी पौधे का क्रॉस एक सफेद पुष्प वाले समयुग्मजी पौधे से कराया जाये तो संतति उत्पन्न होगी – ( AIIMS, 2002)
(अ) आधी लाल पुष्प वाली
(ब) आधी सफेद पुष्प वाली
(स) पूरी लाल पुष्प वाली
(द) आधी गुलाबी पुष्प वाली
उत्तर:
(स) पूरी लाल पुष्प वाली

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49. मेंडल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम किस पर लागू होता है- (Orissa PMT 2002)
(अ) सभी जीवों में सभी जीन्स पर
(ब) केवल मटर के सभी जीन्स पर
(स) सभी सहलग्न जीन्स पर
(द) केवल सभी असहलग्न जीन्स पर
उत्तर:
(द) केवल सभी असहलग्न जीन्स पर

[नोट- जो स्वतन्त्र रूप से संचरण करते हैं, जीन्स से सहलग्न नहीं होते।]

50. लैंगिक जनन बढ़ाता है- (CPMT 2002)
(अ) आनुवंशिक पुनसंयोजन
(ब) बहुगुणिता
(स) एन्यूप्लॉइडी (Anueploidy)
(द) यूप्लॉइडी (Euploidy)
उत्तर:
(अ) आनुवंशिक पुनसंयोजन

51. जब कोई जीन एक से अधिक रूपों में उपस्थित रहता है तो विभिन्न रूपों को कहते हैं- (CPMT 2002)
(अ) विषमयुग्मजी
(ब) पूरक जीन
(स) समजीनी ( Genotype)
(द) युग्मविकल्पी (Alleles)
उत्तर:
(द) युग्मविकल्पी (Alleles)

52. मेंडल के अनुसार निम्न में से कौन-सा प्रभावी लक्षण है- (AFMC 2000)
(अ) बौना पौधा व पीला फल
(ब) शीर्षस्थ फल व झुर्रीदार बीज
(स) सफेद बीजचोल व पीला पेरीकार्य
(द) हरा फल व गोल बीज
उत्तर:
(द) हरा फल व गोल बीज

[हल मेंडल के अनुसार फली का पीला रंग और झुर्रीदार बीज अप्रभावी लक्षण होते हैं।]

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53. पुरुषों में गुणसूत्र की स्थिति होती है- (JIPMER 2000)
(अ) 44 AA+XO
(स) 44 AA+XY
(ब) 44 AA+XX
(द) 44 AA+XXY
उत्तर:
(द) 44 AA+XXY

54. सहलग्नता का सर्वप्रथम अवलोकन किस पौधे में किया गया है- (AFMC 2000)
(अ) फील्ड मटर
(ब) घास मटर
(स) मीठी मटर
(द) मटर
उत्तर:
(स) मीठी मटर

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HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

बहुविकल्पीय प्रश्न:

1. प्रथम संक्रमण श्रेणी का कौनसा तत्व उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है?
(अ) Ni
(ब) Fe
(स) Mn
(द) Cr
उत्तर:
(स) Mn

2. निम्नलिखित में से कौनसे आयन का जलीय विलयन रंगीन नहीं होगा?
(अ) Mn2+
(ब) Fe2+
(स) Zn2+
(द) Cr2+
उत्तर:
(स) Zn2+

3. निम्नलिखित में से किस आयन का चुम्बकीय आघूर्ण अधिकतम होता है?
(अ) V3+
(ब) Fe3+
(स) Co3+
(द) Cr3+
उत्तर:
(ब) Fe3+

4. संक्रमण धातुओं का युग्म है-
(अ) Lu, Cu
(ब) Lu, Zn
(स) Cu, Zn
(द) Au, Cu
उत्तर:
(द) Au, Cu

5. निम्नलिखित में से कौनसा तत्व +8 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है?
(अ) Pt
(ब) Mn
(स) Os
(द) Cu
उत्तर:
(स) Os

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

6. किसी संक्रमण तत्व की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था किसके बराबर हो सकती है?
(अ) ns इलेक्ट्रॉन
(ब) (n-1)d इलेक्ट्रॉन
(स) (n-1)d + ns इलेक्ट्रॉन
(द) (n+1) d इलेक्ट्रॉन
उत्तर:
(स) (n-1)d + ns इलेक्ट्रॉन

7. निम्नलिखित में से कौनसे आयन में अनुचुम्बकीय गुण सर्वाधिक होगा?
(अ) Cu2+
(ब) Mn2+
(स) Zn2+
(द) Ti+2
उत्तर:
(ब) Mn2+

8. d खण्ड के अन्य तत्वों की भाँति Zn परिवर्तनशील संयोजकता नहीं दर्शाता, क्योंकि-
(अ) यह नर्म धातु है।
(ब) इसमें d कक्षक पूर्ण भरा है।
(स) इसका गलनांक कम है।
(द) इसके बाह्यतम कक्षक में दो इलेक्ट्रॉन हैं।
उत्तर:
(ब) इसमें d कक्षक पूर्ण भरा है।

9. निम्नलिखित में से कौनसा तत्व केवल एक ही प्रकार की ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है-
(अ) Mn
(ब) Zn
(स) Cr
(द) Ni
उत्तर:
(ब) Zn

10. संक्रमण धातुओ के लवण सामान्यतः रंगीन होते हैं, क्योंकि-
(अ) इनमें पूर्ण भरे d कक्षक होते हैं।
(ब) ये पराबेंगनी प्रकाश को अवशोष्तित करते हैं।
(स) इनमें d-d संक्रमण होता है।
(द) ये विद्युत चुम्बक्जीय विकिएगों से ऊर्जा का अवशोषण करते हैं।
उत्तर:
(स) इनमें d-d संक्रमण होता है।

11. कौनसे युग्म की धातुओं का आकार लगभग समान है?
(अ) Cd, Hg
(ब) Cu, Zn
(स) Sc, Ti
(द) Cr, Mo
उत्तर:
(अ) Cd, Hg

12. लैन्थेनॉयड श्रेणी के तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था कौनसी है?
(अ) +1
(ब) +3
(स) +2
(द) +5
उत्तर:
(ब) +3

13. K2Cr2O7 के जलीय विलयन में SO2 गैस प्रवाहित करने पर Cr की ऑक्सीकरण अवस्था में क्या परिवर्तन होगा?
(अ) +3 से +1
(ब) +6 से +3
(स) +3 से +6
(द) +6 से +4
उत्तर:
(ब) +6 से +3

14. निम्नलिखित में से किस धातु का घनत्व अधिकतम होता है?
(अ) Pd
(ब) Hg
(स) Os
(द) Pt
उत्तर:
(स) Os

15. निम्नलिखित में से कौनसा ऑक्साइड उभयधर्मी है?
(अ) CoO
(ब) ZnO
(स) FeO
(द) CrO2
उत्तर:
(ब) ZnO

16. निम्नलिखित में से कौनसे आयन प्रतिचुंककीय हैं?
(अ) Cu2+
(ब) Ti3+, Co2+
(स) Ni2+, Mn2+
(द) Sc3+
उत्तर:
(द) Sc3+

17. निम्नलिखित में से आयनों के किस युग्म में निम्न (Lower) ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी है?
(अ) Tl+2 , Tl3+
(ब) Cu+1, Cu2+
(स) Cr2+, Cr3+
(द) Mn+2, Mn+4
उत्तर:
(द) Mn+2, Mn+4

18. लैन्थेनॉयड संकुचन के कारण होने वाला प्रभाव है-
(अ) Zr तथा Nb की समान ऑक्सीकरण अवस्था
(ब) Zr तथा Hf का लगभग समान परमाणु आकार
(स) Zr तथा Y का लगभग समान परमाणु आकार
(द) Zr तथा Zn की समान ऑक्सीकरण अवस्था
उत्तर:
(ब) Zr तथा Hf का लगभग समान परमाणु आकार

19. La3+ (परमाणु क्रमांक = 57) की त्रिज्या 1.06 Å है तो Lu3+ (परमाणु क्रमांक =Lu) की त्रिज्या का मान (लगभग) होगा-
(अ) 1.40 Å
(ब) 1.06 Å
(स) 0.85 Å
(द) 1.60 Å
उत्तर:
(स) 0.85 Å

20. Ce+4 के स्थायित्व का कारण है-
(अ) 4f7 विन्यास
(ब) 4f0 विन्यास
(स) 4f14
(द) 4f76s2
उत्तर:
(ब) 4f0 विन्यास

21. f-ब्लॉक के तत्वों के लिए कौनसा कथन सत्य नहीं है?
(अ) ये आन्तरिक संक्रमण तत्व कहलाते हैं।
(ब) ये सभी तत्व रेडियोधर्मी होते हैं।
(स) इनमें इलेक्ट्रॉन सामान्यतः 4f तथा 5f में भरे जाते हैं।
(द) लैन्थेनॉयडों की तुलना में ऐक्टिनॉयडों में परिवर्तनशील ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अधिक होती हैं।
उत्तर:
(ब) ये सभी तत्व रेडियोधर्मी होते हैं।

22. प्रथम संक्रमण श्रेणी में किस धातु का गलनांक उच्चतम होता है?
(अ) Mn
(ब) Cr
(स) Fe
(द) Cu
उत्तर:
(ब) Cr

23. \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}\) क्षारीय माध्यम में बनाता है-
(अ) CrO3
(ब) \(\mathrm{CrO}_4^{2-}\)
(स) CrO2
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) \(\mathrm{CrO}_4^{2-}\)

24. अम्लीय पोटेशियम परमैंगनेट विलयन की ऑक्सेलेट आयन से क्रिया कराने पर प्राप्त उत्पाद है-
(अ) \(\mathrm{CO}_3^{2-}\)
(ब) CO2
(स) KHCO3
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) CO2

25. क्षारीय माध्यम में पोटैशियम परमैंगनेट कितने इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है?
(अ) 5
(ब) 4
(स) 3
(द) 2
उत्तर:
(स) 3

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

26. निम्नलिखित में से किस तत्व की तृतीय आयनन एन्थैल्पी सर्वाधिक होती है?
(अ) Mn
(ब) Cr
(स) Fe
(द) V
उत्तर:
(अ) Mn

27. निम्नलिखित में से अम्लीय ऑक्साइड कौनसा है?
(अ) MnO
(ब) Mn2O3
(स) MnO2
(द) Mn2O7
उत्तर:
(द) Mn2O7

28. K2Cr2O7 का तुल्यांकी भार क्या होगा यदि अणुभार = M हो?
(अ) M
(ब) M/3
(स) M/6
(द) M/2
उत्तर:
(स) M/6

29. लोहचुम्बकीय धातुओं का समूह है-
(अ) Cu, Ag, Au
(ब) Cr, Mo, W
(स) Fe, CO, Ni
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) Fe, CO, Ni

30. रंगहीन आयनों का युग्म है-
(अ) Cu+, Zn2+
(ब) Cu2+, Zn2+
(स) V3+, Cr3+
(द) Mn3+, Fe3+
उत्तर:
(अ) Cu+, Zn2+

31. Cr, Mn, Fe तथा Co के लिए \(\mathrm{E}_{\mathrm{M}^{3+} / \mathrm{M}^{2+}}\) मान क्रमशः -0.41, + 1.57, 0.77 तथा +1.97V हैं। इनमें से किस धातु की ऑक्सीकरण अवस्था सुगमतापूर्वक +2 से +3 हो जायेगी?
(अ) Cr
(ब) Mn
(स) Fe
(द) Co
उत्तर:
(अ) Cr

32. निम्नलिखित बाह्यतम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले परमाणुओं में से सर्वाधिक ऑक्सीकरण संख्या किस परमाणु द्वारा प्रदर्शित होती है?
(अ) (n – 1) d8ns2
(ब) (n – 1) d5ns1
(स) (n – 1) d3ns2
(द) (n – 1) d5ns2
उत्तर:
(द) (n – 1) d5ns2

33. Ti3+ आयन का प्रभावी चुम्बकीय आघूर्ण है-
(अ) 1.73 BM
(ब) 270 BM
(स) 5.92 BM
(द) 2.83 BM
उत्तर:
(अ) 1.73 BM

34. Ti(22), V(23), Cr(24) तथा Mn(25) की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के घटते मानों का सही क्रम है-
(अ) Cr > MN > V > Ti
(ब) V > Mn > Cr > Ti
(स) Mn > Cr > Ti > V
(द) Ti > V > Cr > Mn
उत्तर:
(अ) Cr > MN > V > Ti

35. निम्नलिखित में से कौनसा यौगिक रंगीन नहीं है?
(अ) TiCl3
(ब) TiCl4
(स) K2Cr2O7
(द) KMnO4
उत्तर:
(ब) TiCl4

36. K2Cr2O7 का जलीय विलयन H2S के साथ अम्लीय परिस्थिति में क्रिया करके हरा उत्पाद (A) देता है। (A) है-
(अ) Cr2(SO4)3
(ब) CrSO4
(स) K2CrO4
(द) CrO3
उत्तर:
(अ) Cr2(SO4)3

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
Ni2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:
Ni2+ = 1s2 2s2 2p6 3s6 3p6 3d8 4s0

प्रश्न 2.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के उन तत्वों के नाम बताइए जो केवल एक ही प्रकार की ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं।
उत्तर:
Sc तथा Zn

प्रश्न 3.
MnO की प्रकृति बताइए।
उत्तर:
MnO क्षारीय प्रकृति का होता है।

प्रश्न 4.
संक्रमण हत्वों की 3d श्रेणी की सामान्य औक्सीकरण अवस्था कौनसी होती है?
उत्तर:
संकमण तत्चों की 3d क्रेणी की सामान्य औंकसीकरण अवस्थ +2 होती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस औँक्साह्ड में सक्तंयोजी गुण अभिकतम होगा? Sc2O3, TiO2, Mn2O7 तथा V2O5
उत्तर:
Mn2O7

प्रश्न 6.
Cu+ तथा Cu+2 में कौनसी अवस्था अधिक स्थायी होती है?
उत्तर:
Cu2+ अवस्था अधिक स्थ्युी होती है।

प्रश्न 7.
d-ब्लॉक में वाध्यशील धातुएं कौनसी होती हैं तथा क्यों?
उत्तर:
d-क्लांक में Zn. Cd तथा Hg वाप्मशौल धातुएँ होती हैं क्योंकि इनके गलनांक तथा क्वथनांक कम क्षोते हैं।

प्रश्न 8.
CrO, Cr2O3, CrO2 तध CrO3 को अम्लीय गुण के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
CrO < Cr2O3 < CrO2 < CrO3

प्रश्न 9.
Cu, Ag तथा Au में d10 विन्यास है फित्र भी ये संक्रमण तथव हैं। क्यों?
उत्तर:
Cu, Ag तथा Au के धनायनों में d10 विन्यास नरी रहत़ा है अतः ये संक्रमण तत्व है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 10.
संक्रमण कत्वों में किसका गलनांक न्यूनतम होता है?
उत्तर:
संक्रमण तत्बों में मकंरी (Hg) का गलनांक न्यूनतम होत है।

प्रश्न 11.
संक्रमण हत्वों में अधिकत गलनांक वाला धातु कौनसा है?
उत्तर:
टंस्ट्टन (W)

प्रश्न 12.
CuSO4.5 H2O तथा ZnSO4 में से कौनसा यौगिक रेगहीन है?
उत्तर:
ZnSO4

प्रश्न 13.
संक्रमण धातुएं, मित्र धातु बनाती हैं, क्यों?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की त्रिज्या में समानता तथा इ्नके अभिलाषणिक गुणों के कारण ये मिक्ष धातु आसानी से बना लेती हैं।

प्रश्न 14.
मिश्र धातु, पीतल किन धातुओ से बनती है?
उत्तर:
कॉपर तथा जिक।

प्रश्न 15.
कोंपर की दो मिश्र धातुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
काँस तथा पीतल।

प्रश्न 16.
Zn2+ प्रतिचुम्बकीय होता है जबकि Cu2+ अनुचुम्बकीय, क्यों?
उत्तर:
Zn+2(3d10) में एक भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है जबकि Cu2+ (3d9) में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है अतः Zn2+ प्रतिचुम्बकीय होता है लेकिन Cu2+ अनुचुम्बकीय होता है।

प्रश्न 17.
MnVI के असमानुपातन का समीकरण लिखिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 1

प्रश्न 18.
\(\mathrm{CrO}_4^{2-}\) आयन की संरचना कैसी होती है?
उत्तर:
\(\mathrm{CrO}_4^{2-}\) की संरचना चतुष्फलकीय होती है।

प्रश्न 19.
K2Cr2O2 के नारंगी क्लियन में प्रबल क्षार (NaOH या KOH) मिलाने पर विलयन पीला हो जाता है। क्यों?
उत्तर:
K2Cr2O7 के नारंगी विलयन में प्रब्ल क्षार मिलाने पर क्रोमेट बन जाता है अतः विलयन पीला हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 2

प्रश्न 20.
KI विलयन की क्रिया अम्लीय तथा क्षारीय KMnO4 से कराने पर बने उत्पाद्ध बताइए।
उत्तर:
KI विलयन की क्रिया अम्लीय KMnO4 के साथ कराने पर आयोडीन (I2) तथा क्षारीय KMnO4 से कराने पर पोटैशेशिय आयोडेट (KIO3) प्राप्त होता है।

प्रश्न 21.
बेयर अभिकर्मक का उपयोग बताइए।
उत्तर:
बेयर अभिकमंक (1% क्षारीय KMnO4) से असंतृप्तत का परीक्षण किया जाता है।

प्रश्न 22.
डाइक्रोमेट आयन की हाइड्रोजन परॉक्साइड से अभिक्रिया कराने पर बने उत्पादों को दर्शाने वाले समीकरण लिखिए।
उत्तर:
\(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+4 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}_2+2 \stackrel{+}{\mathrm{H}} \rightarrow 2 \mathrm{CrO}_5+5 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}\)

प्रश्न 23.
लेन्थेनॉयडों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सैन्थेनॉयडों को दुर्लभ मृदा धातु के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 24.
लैन्थेनोंयड संकुचन किसे कहते हैं?
उत्तर:
La से Lu तक परमाणु क्रमांक बढने पर परमाणु कथा आयनिक त्रिज्याओ में कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 25.
Lu(OH)3 की तुलना में La(OH)3 अधिक क्षारीय होता है, क्यों?
उत्तर:
La से Lu तक हाइ्ड्रोंक्साइडों की धारीय प्रकृति कम होती है क्यांकि इनकी आयनिक त्रिज्या में कमी होती है अतः Lu(OH)3 की तुलना में La(OH)3 अधिक क्षारीय होता है।

प्रश्न 26.
ऐक्टनोंयडों द्वारा प्रदर्शित अधिकतम औक्सीकरण अवस्था बताइए।
उत्तर:
ऐक्टनॉयड अधिकतम +7 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदार्शित करते हैं।

प्रश्न 27.
परायूरेनियम तत्व किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
\(\begin{aligned}
& U \\
& 92
\end{aligned}\) के बाद के रैडियोसक्रिय तथा कूत्रिम तत्वों को परायूरोनियम तत्व कहते हैं।

प्रश्न 28.
d-ब्लॉक के तत्वों में किसका गलनांक न्यूनतम होता है?
उत्तर:
मर्करी (Hg)

प्रश्न 29.
शल्य चिकित्सा में उपयोग में आने वाले उपकरणों को KMnO4 द्वारा साफ किया जाता है, क्यों?
उत्तर:
KMnO4 के जर्मनाशी गुण के कारण इसे शल्य चिकित्सा में उपयोग में आने वाले उपकरणों को साफ करने में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 30.
ऐक्टिनॉयड संकुचन, लैन्थेनॉयड संकुचन की तुलना में अधिक होता है, क्यों?
उत्तर:
5f इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण ऐक्टिनॉयड संकुचन, लैन्थेनॉयड संकुचन की अपेक्षा अधिक होता है।

प्रश्न 31.
सिक्का धातु कौनसे होते हैं?
उत्तर:
कॉपर, सिल्वर तथा गोल्ड।

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
(a) CuI2 अस्थायी होता है। क्यों?
(b) मैंग्नीज, फ्लुओरीन के साथ उच्चतम +4 ऑक्सीकरण अवस्था (MnF4) दर्शाता है जबकि ऑक्सीजन के साथ + (Mn2O7) क्यों?
उत्तर:
(a) CuI2 में आयोडीन के बड़े आकार के कारण बन्ध दुर्बल होता है तथा Cu2+, I को I2 में ऑक्सीकृत कर देता है अतः CuI2 अस्थायी होता है।
2Cu2+ + 4I → Cu2I2(s) + I2

(b) मैंगनीज (Mn), फ्लुओरोन के साथ अच्वतम ऑक्सीकरण अवस्था + 4(MnF4) ही दर्शाता है जबकि ऑक्सीजन के साथ यह उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था + 7(Mn2O7) दर्शाता है, क्योंकि फ्लुओरीन की अपेक्षा ऑक्सीजन की उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाओं को स्थायित्व प्रदान करने की क्षमता अधिक होती है जिसका कारण ऑक्सीजन की धातुओं के साथ बहबन्ध बनाने की क्षमता है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 2.
(a) \(\stackrel{+}{\mathbf{C}} \mathbf{u} \overline{\mathbf{X}}\) अस्थायो होता है, क्या?
अथवा
जलीय विलयन में Cu+ की तुलना में Cu2+ अधिक स्थायी होता है, क्यों?
(b) Mn2O7 तथा \(\mathrm{MnO}_4^{-}\) की संरचना बताइए।
उत्तर:
(a) \(\mathrm{Cu}^{+} \mathrm{X}^{-}\) अस्थायी होता है क्योंक जलीय विलयन में Cu+ का असमानुपातन हो जाता है-
\(2 \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+} \longrightarrow \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{2+}+\mathrm{Cu}_{(\mathrm{s})}\)

अतः जलीय विलयन में Cu+ की तुलना में Cu2+ अधिक स्थायी होता है क्योंकि Cu2+ की जलयोजन एन्थैल्पी का मान Cu+ की तुलना में बहुत अधिक ऋणात्मक होता है जो कि Cu+ से Cu2+ बनाने के लिए आवश्यक ऊर्जा (द्वितीय आयनन एन्थैल्पी) को आसानी से संतुलित कर देती है।

(b) Mn2O7 में प्रत्येक Mn परमाणु चतुष्फलकीय रूप से ऑक्सीजन परमाणुओं से घिरा होता है तथा इसमें एक Mn-O-Mn सेतुबन्ध भी पाया जाता है तथा \(\mathrm{MnO}_4\) की संरचना भी चतुष्फलकीय होती है।

प्रश्न 3.
चुम्बकीय गुण कितने प्रकार के होते हैं? पदार्थों में चुम्बकीय गुण उत्पन्न होने का कारण भी बताइए।
उत्तर:
पदार्थों में चुम्बकीय गुण मुख्यतः इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है तथा इलेक्ट्रॉन स्वयं एक बहुत छोटे चुम्बक के समान कार्य करता है। किसी पदार्थ पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर कई प्रकार के चुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित होते हैं लेकिन इनमें से निम्नलिखित तीन गुण मुख्य होते हैं-
(i) प्रतिचुम्बकत्व
(ii) अनुचुम्बकत्व तथा
(iii) लोहचुम्बकत्व।
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ वे होते हैं जो प्रयुक्त चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं लेकिन अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं। वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं, उन्हें लोहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। वास्तव में लोहचुम्बकत्व, अनुचुम्बकत्व का ही अधिकतम रूप है।
पदार्थों में चुम्बकीय गुणों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों की दो प्रकार की गति है-

(i) कक्षीय गति (Orbital motion) तथा (ii) चक्रण गति (Spin motion)
अतः किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic moment) कक्षीय कोणीय संवेग (orbital angular momentum) तथा चक्रण कोणीय संवेग (spin angular momentum) के सम्मिलित प्रभाव के कारण होता है। संक्रमण तत्वों में (n – 1)d उपकोश के इलेक्ट्रॉन सतह पर ही स्थित होते हैं अतः ये बाहरी वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं।

इस कारण इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति बहुत सीमित हो जाती है तथा कक्षीय कोणीय संवेग का योगदान अधिक प्रभावी नहीं रहता इसलिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है अतः चुम्बकीय आघूर्ण का मान केवल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है। चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया गया है तथा इसे चक्रण मात्र (spin only) सूत्र कहते हैं-

चुम्बकीय आघूर्ण (µ)= \(\sqrt{n(n+2)}\), n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
चुम्बकीय आघूर्ण का मात्रक बोर मैग्नेटॉन (BM) होता है।
1 BM = \(\frac { eh }{ 4πmc }\)

यहाँ e = इलेक्ट्रॉन का आवेश, h = प्लांक स्थिरांक, m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान तथा c = प्रकाश का वेग है।
अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर चुम्बकीय आघूर्ण का मान भी बढ़ता है। अतः प्रेक्षित (observed) चुम्बकीय आघूर्ण मानों से परमाणुओं, अणुओं या आयनों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का संकेत प्राप्त हो जाता है। विभिन्न चुम्बकीय गुणों का विस्तृत विवरण अग्र प्रकार है-

(i) प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 3
प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

(ii) अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 4
(iii) लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं। चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।

Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 5

प्रश्न 4.
चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए तथा बताइए कि इसे ज्ञात करने के लिए चक्रण मात्र सूत्र ही क्यों प्रयुक्त किया जाता है?
उत्तर:
पदार्थों में चुम्बकीय गुण मुख्यतः इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है तथा इलेक्ट्रॉन स्वयं एक बहुत छोटे चुम्बक के समान कार्य करता है। किसी पदार्थ पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर कई प्रकार के चुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित होते हैं लेकिन इनमें से निम्नलिखित तीन गुण मुख्य होते हैं-
(i) प्रतिचुम्बकत्व
(ii) अनुचुम्बकत्व तथा
(iii) लोहचुम्बकत्व।
प्रतिचुम्बकीय पदार्थ वे होते हैं जो प्रयुक्त चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं लेकिन अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं। वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं, उन्हें लोहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। वास्तव में लोहचुम्बकत्व, अनुचुम्बकत्व का ही अधिकतम रूप है।
पदार्थों में चुम्बकीय गुणों के उत्पन्न होने का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों की दो प्रकार की गति है-

(i) कक्षीय गति (Orbital motion) तथा (ii) चक्रण गति (Spin motion)
अतः किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic moment) कक्षीय कोणीय संवेग (orbital angular momentum) तथा चक्रण कोणीय संवेग (spin angular momentum) के सम्मिलित प्रभाव के कारण होता है। संक्रमण तत्वों में (n – 1)d उपकोश के इलेक्ट्रॉन सतह पर ही स्थित होते हैं अतः ये बाहरी वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं। इस कारण इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति बहुत सीमित हो जाती है तथा कक्षीय कोणीय संवेग का योगदान अधिक प्रभावी नहीं रहता इसलिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है अतः चुम्बकीय आघूर्ण का मान केवल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है। चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया गया है तथा इसे चक्रण मात्र (spin only) सूत्र कहते हैं-

चुम्बकीय आघूर्ण (µ)= \(\sqrt{n(n+2)}\), n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
चुम्बकीय आघूर्ण का मात्रक बोर मैग्नेटॉन (BM) होता है।
1 BM = \(\frac { eh }{ 4πmc }\)

यहाँ e = इलेक्ट्रॉन का आवेश, h = प्लांक स्थिरांक, m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान तथा c = प्रकाश का वेग है।
अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर चुम्बकीय आघूर्ण का मान भी बढ़ता है। अतः प्रेक्षित (observed) चुम्बकीय आघूर्ण मानों से परमाणुओं, अणुओं या आयनों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का संकेत प्राप्त हो जाता है। विभिन्न चुम्बकीय गुणों का विस्तृत विवरण अग्र प्रकार है-

(i) प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 6
प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

(ii) अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
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(iii) लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं। चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।

Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
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प्रश्न 5.
प्रतिचुम्बकत्व क्या होता है? समझाइए।
उत्तर:
प्रतिचुम्बकत्व (Diamagnetism) – वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, उनमें प्रतिचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। ये इलेक्ट्रॉन एक-दूसर के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं, जिससे पदार्थ का कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इन पर चुम्बकीय क्षेत्र लगाने पर, कक्षीय आघूर्ण लगाए गए क्षेत्र की विपरीत दिशा में प्रेरित हो जाता है अतः ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं।
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प्रतिचुम्बकत्व का गुण लगभग सभी पदार्थों द्वारा दर्शाया जाता है लेकिन अनुचुम्बकत्व की तुलना में इसका प्रभाव बहुत कम होता है, अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त पदार्थों में इसका अनुभव नहीं होता इसलिए उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है। प्रतिचुम्बकत्व ताप पर निर्भर नहीं करता। उदाहरण- Sc3+, Ti+4 तथा Zn2+ इत्यादि।

प्रश्न 6.
अनुचुम्बकत्च की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) -वे परमाणु, अणु या आयन जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, उनमें अनुचुम्बकत्व का गुण पाया जाता है तथा इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर ये चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन चुम्बकीय श्वेत्र हटा लेने पर इनका चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाता है। अनुचुम्बकत्व, ताप के व्युक्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् ताप बढ़ाने पर यह गुण कम हो जाता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने पर पदार्थ का अनुचुम्बकीय गुण बढ़ता है। इन पदार्थों का चुम्बकीय आघूर्ण कभी शून्य नहीं होता। उदाहरण- Ti3+, Co2+, Cu2+ इत्यादि।
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प्रश्न 7.
लोहचुम्बकत्व का गुण क्या होता है ? समझाइए।
उत्तर:
लोहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – यह उच्चतम कोटि का अनुच्बकत्व होता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं तथा इनके छोटे-छोटे आण्विक चुम्बक एक ही दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे इनका चुम्बकीय ग्रुण बढ़ जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी ये स्थायी चुम्बक की तरह व्यवहार करते हैं।

चोट मारने पर या ताप में परिवर्तन से इनके आण्विक चुम्बकों की व्यवस्था परिवर्तित हो जाती है, जिससे इनका चुम्बकीय गुण भी नष्ट हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है। Fe, Co तथा Ni लोहचुम्बकीय तत्वों के उदाहरण हैं। चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सामान्यतः विलयन में उपस्थित. जलयोजित आयनों अथवा ठोस अवस्था के लिए ज्ञात किए जाते हैं। प्रथम संक्रमण श्रेणी के आयनों के परिकलित तथा प्रेक्षित चुम्बकीय आघूर्णों के मान निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
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प्रश्न 8.
निर्जल CuSO4 श्वेत होता है लेकिन जलयोजित CuSO4 नील्ना होता है जबकि दोनों में ही Cu2+ आयन होते हैं। क्यों?
उत्तर:
निर्जल CuSO4 तथा CuSO4 . 5H2O (जलयोजित कपर सल्फेट) दोनों में ही Cu+2 है जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रांन (3d9) है लेकिन निजल CuSO4 में H2O (लिगन्ड) के बिना d-कक्षकों का विपाटन t2g तथा eg कक्षकों में विपाटन नहीं हो पाता अतः d-d संक्रमण नहीं होता है इसलिए यह रंगहीन होता है। जबकि जलयोजित CuSO4 में d-d संक्रमण हो जाता है, अतः यह नीला होता है।

प्रश्न 9.
(a) Mn का वह लवण कौनसा है जो KClO4 के समसंरचनात्मक होता है?
(b) मैंगनेट तथा परमेंगनेट आयनों की संरचना तथा चुम्बकीय गुण बताइए।
उत्तर:
(a) KMnO4 (पोटैशियम परमें गनेट) KClO4 (पोंटेशियम क्लोरेद) के समसंरचनात्मक होता है अर्थात् दोनों की संरचना समान होती है।

(b) मैंगनेट तथा परमैंगनेट आयन चतुष्फलकीय ह्रोते हैं जिनमें आवसीजन के p-कथक तथा Mn के d कथकों के मध्य अंत्यापन, से π-बन्ध बनता है तथा इनमें Mn पर sp3 संकरण होता है। इनकी संरचना निम्न प्रकार होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 12
परमैंगनेट आयन प्रतिचुम्बकीय होता है जिसे 513 K पर गर्म करने पर यह मैंगनेट आयन में परिवर्तित हो जाता है जो कि अनुचुंबकीय होता है क्योंकि इसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉंन होता है।

प्रश्न 10.
परमैंगनेट आयन \(\left(\mathrm{MnO}_4^{-}\right)\) हाइड्रोजन आयनों की भिन्न-भिन्न सान्द्रताओं प्रर भिन्न-भिन्न अपचयन उत्पाद् देता है, इनके समीकरण लिखिए।
उत्तर:
परमैंगनेट आयन की अपचयन अभिक्रिया से बने उत्पाद हाइ्ड्रोजन आयन की संद्रता पर निभर करते हैं। H+ की विभिन्न सान्द्रताओं पर होने वाली अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार हैं-
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[H+] = 1 पर परमैंगनेट आयन द्वारा जल का आंक्सीकरण होना चाहिए लेकिन यह अभिक्रिया बहुत धीमी गति से होती है लोकिन इसमें Mn2+ आयन उत्त्रेसक के रूप में प्रयुक्त करने पर या ताप बन्ढ़ने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 11.
क्रोमिल क्नोराइड परीक्षणा को समझाइए।
उत्तर:
(vi) क्रोमिल क्लोराइड परीक्षण-यह क्लोराइड आयन का निश्चयात्मक परीक्षण है। जब किसी क्लोराइड लवण को प्रबल अम्लीय माध्यम (सान्द्र H2SO4) में K2Cr2O7 के साथ गर्म किया जाता है तो क्रोमिल क्लोराइड (CrO2Cl2) की नारंगी धूम बनती है।
K2Cr2O7 + 6H2SO4 + 4KCl → 2CrO2Cl2 + 6KHSO4 + 3H2O

प्रश्न 12.
एथीलीन की बेयर अभिकर्मक से क्रिया को समझाइए।
उत्तर:
एथिलीन की क्रिया 1% क्षारीय KMnO4 (बेयर अभिकर्मक) से करवाने पर एथिलीन ग्लाइकॉल बनता है जिसके कारण विलयन गुलाबी से रंगहीन हो जाता है। इस अभिक्रिया की सहायता से असंतृप्तता C = C या (C ≡ C) का परीक्षण किया जाता है तथा इसे बेयर परीक्षण कहते हैं।
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प्रश्न 13.
(i) Ce+4 प्रबल ऑक्सीकारक होता है, क्यों?
(ii) Eu2+ प्रबल अपचायक होता है, क्यों?
उत्तर:
(i) Ce+4 में उंत्कृष्ट गैस विन्यास होते हुए भी यह प्रचल ऑक्स्रीकारक होता है क्योंक Ce+4/Ce+3 के लिए मानक इलेबट्रॉड विभव का मान उच्च होता है अतः यह आसानी से इलेक्ट्रॉन ग्रहृण करके Ce+3 (सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था) बना लेता है। अतः यह जल को भौ ऑंक्सीकृत कर द्तेता है।

(ii) Eu2+ प्रबल अपचायक होता है क्योंक यह इलेक्ट्रॉन त्यागकर लैन्थेनॉयडों की सामान्य औक्सीकरण अवस्था +3 में परिवर्तित हो ज्ञात है।

प्रश्न 14.
लैन्थेनॉयडों के रंग तथा चुम्बकीय गुणों को समझाइए।
उत्तर:
रंग तथा चुम्बकीय गुण (Colour and Magnetic Property)一लैन्थेनॉयडों में कुछ त्रिसंयोजी आयन ठोस अवस्था तथा विलयन में रंगीन होते हैं। इन आयनों का रंग f इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण होता है। La3+ तथा Lu3+ आयन रंगहीन हैं परन्तु शेष लैन्थेनॉयड आयन रंगीन होते हैं। लेकिन f स्तर पर (f-f संक्रमण) ही उत्तेजना के कारण अवशोषण बैंड संकीर्ण (narrow) होते हैं। कुछ आयनों का रंग समान होता है। जैसे- Pr3+ व Tm+3 हरे रंग के तथा Nd3+ व Er3+ गुलाबी होते हैं। 4f0 (La3+ तथा Ce4+) एवं 4f14(Yb2+ तथा Lu3+) विन्यास के अतिरिक्त अन्य सभी विन्यासयुक्त लैन्थेनॉयड आयन अनुचुंबकीय होते हैं तथा नियोडिमियम का अनुचुंबकीय गुण अधिकतम होता है।

प्रश्न 15.
लैन्थेनॉयडों के अपचायक गुण का कारण तथा क्रम बताइए।
उत्तर:
अपचायक गुण (Reducing Property) – अर्धअभिक्रिया \(\operatorname{Ln}_{(a q)}^{3+}+3 \mathrm{e}^{-} \rightarrow \operatorname{Ln}_{(s)}\) के लिए E0 के मान लगभग – 2.2 से – 2.4 V तक होते हैं। E0 के इन उच्च ऋणात्मक मानों से ज्ञात होता है कि लैन्थेनॉयड प्रबल अपचायक होते हैं तथा आसानी से Ln3+ बना देते हैं। La से Lu तक E0 के मान कम ऋणात्मक होते जाते हैं अतः इनका अपचायक गुण कम होता जाता है। अपचायक गुण के कारण ही ये धातुएँ विद्युत धनी होती हैं।

प्रश्न 16.
ऐक्टिनॉयडों के परमाणु तथा आयनिक आकार को समझाइए।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयडों में परमाणु तथा आयनिक आकार की सामान्य प्रवृत्ति लैन्थेनॉयडों के समान ही होती है। श्रेणी में बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु आकार तथा आयनिक आकार (M+3) में क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयड संकुचन कहते हैं। आकार में यह कमी एक तत्व से दूसरे तत्व में उत्तरोत्तर बढ़ती है, जिसका कारण 5f इलेक्ट्रॉनों का दुर्बल परिरक्षण प्रभाव है।

बोर्ड परीक्षा के दुष्टिकोण से सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रिया समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+\mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
उत्तर:
(i) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq})+16 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}(\mathrm{aq})+8 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(\mathrm{l})+10 \mathrm{CO}_2(\mathrm{~g})\)

(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+14 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{3+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{3+}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)\)

प्रश्न 2.
आप निम्नलिखित के क्या कारण समझते हैं-
(i) बहुत से संक्रमण तत्व और उनके यौगिक अच्छे उत्प्रेरकों का कार्य करते हैं।
(ii) संक्रमण तत्वों की तीसरी (5d) श्रेणी के तत्चों की धात्विक त्रिज्याएँ लगभग वही होती हैं जो दूसरी श्रेणी के तत्सम्बन्धी तत्वों की होती हैं।
(iii) ऐक्टिनॉयडों में उपचयन अवस्थाओं (ऑक्सीकरण अवस्थाओं) का परास लैन्थेनॉयडों की अपेक्षा अधिक होता है।
उत्तर:
(i) संक्रमण तत्य और उनके यौगिक अच्छे उत्त्रेरक होते हैं क्योंकि इनमें परिवर्तनशील औंक्सीकरण अवस्था, अयुग्मित इ्लेक्ट्रॉन एवं रिक्त $d$ कक्षक पाए जाते हैं अतः ये आसानी से मध्यवर्तो यौगिक बना लेते हैं।

(ii) संक्रमण तात्वों की तीसरी श्रेणी (5d) के तत्वों की धात्थिक त्रिज्याएँ लगभग वही होती हैं जो दूसरी श्रेणी के संग्त तत्वों की होती है क्योंकि इल्लेक्ट्रॉन, 5d से पहले 4f कक्षकों में भर जाते हैं जिनके कारण परमाणु आकार में होने वाली वृद्धि का प्रभाव 4f के 14 तत्वों के नाभिकीय आवेश द्वारा संतुलित हो जाता है।

(iii) ऐक्टिनायडों में उपचयन अवस्थाओं का परास लैन्थेनोंयडों की अपेक्षा अधिक होता है क्यांकि इनमें 5f, 6d तथा 7s उपकोशों की ऊर्जा लमभग समान होती है। अतः इनके इलेकर्रोन बन्ध बनाने में भाग लेते हैं।

प्रश्न 3.
(a) निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{~S}(\mathrm{~g})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cu}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathbf{I}^{-}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)

(b) निम्नलिखित को कारण लिखकर स्पष्ट कीजिए-
(i) ऑक्सोत्रुणायनों की ऑक्सीकरण क्षमता \(\mathrm{VO}_2^{+}<\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}<\mathrm{MnO}_4^{-}\) के क्रम में होती है।
(ii) मैंगनीज (Z = 25) की तृतीय आयनन एन्थैल्पी अनअपेक्षित: उच्च्च होती है।
(iii) Cr2+ अपेक्षाकृत Fe2+ के अधिक प्रबल अपचायक है।
अथवा
(a) निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+\mathrm{S}_2 \mathrm{O}_3^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow\)

(b) निम्नलिखित अवलोकनों की व्याख्या कीजिए-
(i) La3+ (Z = 57) और Lu3+ (Z = 71) विलयनों में कोई रंग नहीं दर्शांते।
(ii) प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के द्विसंयोजन धनायनों में मैंगनीज सर्वाधिक अनुचुम्बकत्व प्रदर्शित करता है।
(iii) जलीय विलयनों में Cu+ आयन का अस्तित्व नहीं जाना जाता।
उत्तर:
(a) (i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{~S}(\mathrm{~g})+8 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{+3}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(\mathrm{l})+3 \mathrm{~S}(\mathrm{~s})\)
(ii) \(2 \mathrm{Cu}^{2+}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{I}^{-}(\mathrm{aq}) \rightarrow \mathrm{Cu}_2^{+2}(\mathrm{aq})+\mathrm{I}_2\)

(b) (i) ऑक्सोत्रशणायनों की ऑँक्सीकरण क्षमता \(\mathrm{VO}_2^{+}<\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}<\mathrm{MnO}_4^{-}\) के क्रम में होने का कारण धातु की ऑक्सीकरण अवस्था बट़ना है। इनमें V, Cr तथा Mn की आंक्सीकरण अवस्थाएँ क्रमशः + 5, + 6 तथा +7 है जिससे इलेक्ट्रॉंनों को आकर्षित करने की प्रवृत्ति बढ़ती है तथा इनके अपचयन के बाद प्राप्त उत्पादों का स्थायित्व बढ़ता है।

(ii) मैंगनीज की तृतीय आयनन एन्थैल्पी अनअपेक्षितः उच्च होती है क्योंकि दो इलेक्ट्रॉन निकलने के पश्चात् स्थायी अर्धपूरित (3d5) विन्यास प्राप्त हो जाता है जिसमें से तीसरा इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(iii) पाड्यानिहित प्रश्न 8.7 का उत्तर देखें।
अथवा
(a) (i) \(8 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{~S}_2 \mathrm{O}_3^{2-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow 8 \mathrm{MnO}_2(\mathrm{~s})+6 \mathrm{SO}_4^{2-}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{OH}^{-}(\mathrm{aq})\)

(ii) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}(\mathrm{aq})+14 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{2+}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{+3}(\mathrm{aq})+6 \mathrm{Fe}^{3+}(\mathrm{aq})+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)\)

(b) (i) La3+ तथा Lu3+ विलयनों में कोई रंग नहीं दर्शाते क्योंकि इन आयनों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्रमशः 4f0 तथा 4f14 है जिनमें कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है अतः इनमें इलेक्ट्रॉनों का संक्रमण (f–f संक्रमण) नहीं हो सकता।

(ii) प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के द्विसंयोजक धनायनों में मैंगनीज (Mn2+) सर्वीधिक अनुचुम्बकत्व दर्शाता है क्योंकि इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन (5) पाए जाते हैं।

(iii) Fe2+ की तुलना में Cr2+ एक प्रबल अपचायक पदार्थ है, क्योंकि Cr2+ से Cr3+ बनने में d4 का d3 में परिवर्तन होता है किन्तु Fe2+ से Fe3+ बनने में d6 का d5 में परिवर्तन होता है तथा जल जैसे माध्यम में d5 की तुलना में d3 अधिक स्थायी है। इसका कारण \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}{ }^3\) विन्यास का अधिक स्थायी होना है तथा इनके E0 मानों से भी यह स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित को कारण सहित स्पष्ट कीजिए-
(i) Cr2+ एक अपचायक है जबकि समान d-ऑर्बिटल विन्यास (d4) के साथ Mn3+ एक उपचायक (ऑक्सीकारक) होता है।
(ii) संक्रमण धातुओं की किसी श्रेणी में, जो तत्व सर्वाधिक संख्या में उपचयन अवस्थाएँ (ऑक्सीकरण अवस्थाएँ) प्रदर्शित करने वाला है, वह श्रेणी के मध्य में पाया जाता है।
उत्तर:
(i) Cr2+ एक अपचायक है; क्योंकि इसका विन्यास d4 से d3 में परिवर्तित होता है जिसमें अर्ध-पूरित t2g स्तर (\(\left(t_{2 g}^3\right)\)) होता है। दूसरी ओर Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जो इसे अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करता है जिसके कारण यह ऑक्सीकारक होता है।

(ii) संक्रमण धातुओं की किसी श्रेणी में मध्य में पाए जाने वाला तत्व सर्वाधिक संख्या में उपचयन अवस्थाएँ दर्शाता है क्योंक इसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है अतः इसमें साझेदारी या त्यागने के लिए अधिक इलेक्ट्रॉन उपलब्ध हैं तथा साझेदारी के लिए d कक्षक भी अधिक संख्या में पाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
तत्वों की 3d श्रेणी में Cr3+, Mn2+, Fe3+ और बाद में M2+ आयनों के विपरीत 4d और 5d श्रेणियों के धातु सामान्यतः ऐसे स्थायी धनायनी स्पीशीज नहीं बनाते।
उत्तर:
4d तथा 5d श्रेणियों के धातु 3d श्रेणी के तत्वों के समान निम्न ऑक्सीकरण अवस्था नहीं दर्शाते क्योंकि इनमें उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अधिक स्थायी होती हैं जबकि 3d श्रेणी के तत्वों के उच्च ऑक्सीकरण अवस्था के यौगिक अपचयित हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रिया समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+\mathrm{I}^{-}+\mathrm{H}^{+} \rightarrow\)
(ii) \(\mathrm{MnO}_4^{-}+\mathrm{NO}_2^{-}+\mathrm{H}^{+} \rightarrow\)
उत्तर-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+6 \mathrm{I}^{-}+14 \mathrm{H}^{+} \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{3+}+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}+3 \mathrm{I}_2\)
(ii) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}+5 \mathrm{NO}_2^{-}+6 \mathrm{H}^{+} \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}+5 \mathrm{NO}_3^{-}+3 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}\)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित को आप कारण सहित कैसे स्पष्ट करेंगे-
(i) लैन्थेनॉयडों में Ln(III) यौगिक प्रमुख होते हैं। परन्तु कभी-कभी विलयनों अथवा ठोस यौगिकों में, +2 और +4 आयन भी पाए जाते हैं।
(ii) \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+} / \mathbf{M}}^{\circ}\) का मान कॉपर के लिए धनात्मक (0.34 V) है। संक्रमण तत्वों के प्रथम श्रेणी में ऐसा व्यवहार दिखाने वाली कॉपर अकेली धातु है।
उत्तर:
(i) लैन्थेनॉयडों की मुख्य ऑक्सीकरण अवस्था +3(Ln3+) होती है। इसके अतिरिक्त ठोस अवस्था में या विलयन में कुछ यौगिकों में + 2 तथा + 4 अवस्था भी पाई जाती है। इसका कारण इनमें उपस्थित रिक्त (f0), अर्धपूरित (f7) तथा पूर्ण पूरित (f14) f-कक्षकों का अधिक स्थायित्व है।

(ii) कॉपर के लिए \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+} / \mathbf{M}}^{\circ}\) का मान धनात्मक होता है क्योंकि कॉपर की क्रियाशीलता कम होती है तथा Cu2+ बनने के लिए 3d10 पूर्णपूरित स्थायी विन्यास में से इलेक्ट्रॉन निकलता है जिसके लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.
(i) लैन्थेनॉयड संकुचन किसे कहते हैं?
(ii) क्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट प्राप्त करने की रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर:
(i) लैन्थेनॉयड संकुचन (Lanthanoid Contraction)लैन्थेनॉयडों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम) तक परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में समग्र (over all) कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं।

परमाणु त्रिज्याओं के मानों में यह कमी नियमित नहीं होती है जैसा कि M+3 आयनो में नियमित रूप से कमी होती है। यह संकुचन भी सामान्य संक्रमण श्रेणियों के समान ही है तथा इसका कारण भी समान है अर्थात् एक ही उपकोश में एक इलेक्ट्रॉन का दूसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा परिरक्षण प्रभाव अपूर्ण होता है। फिर भी श्रेणी में नाभिकीय आवेश बढ़ने पर एक d-इलेक्ट्रॉन पर दूसरे d-इलेक्ट्रॉन के परिशक्षण प्रभाव की तुलना में, एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव कम होता है तथा f-कक्षकों की आकृति भी इसके लिए अनुकूल नहीं है।

अतः श्रेणी में बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ परमाणु आकार में एक नियमित कमी पायी जाती है, लेकिन Eu की परमाणु त्रिज्या अधिक होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 15
(ii) पोटैशियम डाइक्रोमेट (Potassium dichromate) (K2Cr2O7)
बनाने की विधि- K2Cr2O7 को क्रोमाइट अयस्क (FeCr2O4) से बनाया जाता है।
क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाने में निम्नलिखित पद प्रयुक्त होते हैं-(i) पहले क्रोमाइट अयस्क को वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित किया जाता है, तो क्रोमेट प्राप्त होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 16

प्रश्न 9.
Ni2+ आयन का चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
Ni2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d8
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 17
अतः अयुग्मित इलेक्ट्रोंनों की संख्या, n = 2
चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
µ = \(\sqrt{2(2+2)}\) =
√8 = 2.82 BM

प्रश्न 10.
कारण दीजिए-
(अ) संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है।
(ब) Cr2+ तथा Mn3+ दोनों का d4 विन्यास है, परन्तु Cr2+ अपचायक और MnCr3+ ऑक्सीकारक है।
उत्तर:
(अ) संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn सबसे अधिक संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+2 से +7) दर्शाता है क्योंकि इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।

(ब) Cr2+ एक अपचायक है; क्योंकि इसका विन्यास d4 से d3 में परिवर्तित होता है जिसमें अर्ध-पूरित t2g स्तर (\(t_{2 \mathrm{~g}}^3\)) होता है। दूसरी और Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जो इसे अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करता है जिसके कारण यह ऑक्सीकारक होता है।

प्रश्न 11.
Zn, Cd एवं Hg को संक्रमण तत्व नहीं माना जाता है। कारण दीजिए।
उत्तर:
Zn, Cd एवं Hg की मूल अवस्थाओं तथा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं में d-कक्षक पूर्ण भरे होते हैं अतः इन्हें संक्रमण तत्व नहीं माना जाता है। संक्रमण तत्वों में मूल अवस्था अथवा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था में d-कक्षक अपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 12.
क्रोमेट आयन की आकृति केसी होती है? इसकी संरचना बनाइए।
उत्तर:
क्रोमेट आयन \(\left(\mathrm{CrO}_4^{2-}\right)\) कौ अकृति चतुण्फलकीय होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 18

प्रश्न 13.
Ti4+ आयन संगहीन होता है। कारण बताइए।
उत्तर:
Ti4+ आयन का बहातम इलेक्ट्रानिक विन्यास 3d0 है जिसमें कोई अयुग्मित इ्लेक्टान नहीं है अत्ता इसमें इलेक्टौन का उत्तेजन सम्भग नहीं है। इसकिए Ti4+ आयन रेगहीन होता है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित के कारण दीजिए-
(1) (a) Mn3+ एक अच्छा अंबसीकास्क है।
(b) संक्रमण तत्वो की प्रथम श्रेणी में \(\mathbf{E}_{\mathbf{M}^{2+}, \mathbf{M}}^{\circ}\) के मान नियमित नहीं हैं।
(c) यद्वापि फ्लुओरीन की विद्युतक्रणता औंक्सीजन से अधिक होती है फिर भी Mn का उच्चतम फ्लुओराइड MnF4 है जबकि इसका उच्चतम ऑक्साइड Mn2O7 है।

(ii) निम्नलिखित समीकरणों को पूर्ण कीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 19
उत्तर:
(i) (a) Mn3+/Mn2+ के लिए E° का मन उच्च धनात्मक है अन्तः Mn3+ आसानी से Mn2+ सें अपचयित हो सकता है तथा Mn2+ में अर्धपरित (3d5) स्थायी विन्बास है इसलिए वह Mn+3 से अंक र्थ्यायी है। इसी कारण Mn3+ एक अच्छ कौनसीकारक है।

(b) प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं के लिए E0(Mn2+/M) के मान नियमित नहीं हैं। E0 मान आयनन एन्थैल्पी में अनियमित परिवर्तन (△iH1+△iH2) तथा ऊर्ध्वपातन एन्थैल्पी पर निर्भर करता है। V तथा Mn के लिए आयनन एन्थैल्पी तथा ऊर्ध्वपातन एन्थैल्पी अपेक्षाकृत कम होती है, अतः E0 के मान अनियमित हो जाते हैं।

(c) अन्य मकत्वपूर्ण प्रश्न (लमूतरत्मक) संख्या lb का उतर देखें।
(ii) HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 20

प्रश्न 15.
(i) निम्नलिखित को कैसे बनाएंगे? केवल समीकरण बीजिए।
(a) MnO2 से K2MnO4
(b) Na2CrO4 से Na2Cr2O7
(ii) +3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के सन्दर्ध गें Mn2+, Fe+2 की तुलना में अधिक स्थायी होता है, क्यों ?
(iii) ऐकिटनॉयडों में ऑवसीकरण अवस्थाओं की परास अधिक होती है, क्यों?
उत्तर:
(i) (a) 2MnO2 + 4KOH + O2 → 2K2MNO4 + 2H2O
(b) 2Na2CrO4 + \(2 \stackrel{+}{\mathrm{H}}\) → Na2Cr2O7 + \(2 \mathrm{Na}^{+}\)

(ii) जिंक में 3d कक्षकों के इलेक्ट्रॉन धात्विक बन्ध बनाने में प्रयुक्त नहीं होते हैं क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d104s2 होता है जबकि 3d श्रेणी के अन्य सभी धातुओं के d कक्षक अपूर्ण भरे होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन धात्विक बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः Zn में धात्विक बन्ध दुर्बल होता है इसलिए इसकी कणन एन्थैल्पी (परमाणुकरण की एन्थैल्पी) सबसे कम होती है।

(iii) ऐक्टिनायडों में उपचयन अवस्थाओं का परास लैन्थेनोंयडों की अपेक्षा अधिक होता है क्यांकि इनमें 5f, 6d तथा 7s उपकोशों की ऊर्जा लमभग समान होती है। अतः इनके इलेकर्रोन बन्ध बनाने में भाग लेते हैं।

प्रश्न 16.
कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही क्यों प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
ऑक्सीजन तथा फ्लुओरोन की उच्च विद्युत्तरणता तथा इनके छोटे आकार के कारण ये धातुओं को उचतम ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देते हैं अतः कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही प्रद्रार्शित करती है।

प्रश्न 17.
(अ) सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d-कक्षक (4 d10) हैं, फिर भी यह एक संक्रमण तत्व है। कैसे?
(ब) ऐक्टिनॉयड आकुंचन समझाइए।
उत्तर:
(अ) सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d कक्षक (4 d10) होते हुए भी यह एक संक्रमण तत्व है क्योंकि इसकी ऑक्सीकरण अवस्था (Ag2+) में d-कक्षक अपूर्ण हो जाते हैं।

(ब) ऐक्टिनॉयड श्रेणी में बाएं से दाएं जाने पर परमाणु आकार तथा आयनिक आकार (M+3) में धीरे-धीरे क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयंयड आकुंचन कहते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 18.
(अ) लैन्थेनॉयड आकुंचन किसे कहते हैं?
(ब) अंतराकाशी यौगिक किसे कहते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
(स) M2+ (जलीय) आयन (Z = 29) के लिए ‘प्रचक्रण मात्र’ चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
उत्तर:
(अ) लैन्थेनॉयडों में La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम ) तक परमाणु क्रमांक बढ़ने पर परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड आकुंचन (संकुचन ) कहते हैं।

(ब) संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल में परमाणुओं के निबिड़ संकुलित होने के बाद भी उनके मध्य छोटे-छोटे रिक्त स्थान बच जाते हैं, जिन्हें अन्तराकाश कहते हैं। इन रिक्त स्थानों में छोटे अधातु परमाणु जैसे H. B, C तथा N आदि आ जाते हैं तो इस प्रकार बने यौगिकों को अन्तराकाशी यौगिक कहते हैं। उदाहरण- Fe3H

(स) परमाणु क्रमांक (Z) = 29 के M2+ आयन (Cu2+) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न है-
Cu2+ = [Ar] 3d9
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 8 Img 21
यहाँ अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या n = 1, अतः प्रचक्रण मात्र चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
µ = \(\sqrt{1(1+2)}\) BM
µ = √3 BM
µ = 1.732 BM

प्रश्न 19.
संक्रमण तत्त्व परिवर्तनशील उपचयन अवस्थाएँ क्यों दिखलाते हैं? d-ब्लॉक की उपचयन अवस्थाएँ p-ब्लॉक के तत्त्वों की उपचयन अवस्थाओं से कैसे भिन्न होती हैं?
उत्तर:
संक्रमण तत्त्व परिवर्तनशील उपचयन (ऑक्सीकरण) अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं क्योंकि इनके (n – 1) d तथा ns कक्षकों की ऊर्जा में अन्तर बहुत कम होता है तथा इनके d-कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन भी पाए जाते हैं। अतः इनमें ns इलेक्ट्रॉनों के साथ (n – 1)d इलेक्ट्रॉन भी बन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं।

d-ब्लॉक की उपचयन अवस्थाओं में एक का अन्तर होता है। जैसे Mn,+ 2,+ 3,+ 4,+ 5,+ 6 तथा +7 अवस्था दर्शाता है जबकि p-ब्लॉक के तत्त्वों में उपचयन अवस्थाओं में सदैव दो का अन्तर होता है। जैसें- Sn,+2 तथा + 4 अवस्था दर्शाता है।

प्रश्न 20.
(i) Mn3+/Mn2+ युग्म के लिए E0 का मान धनात्मक (+1.5 V) है जबकि Cr3+/Cr2+ के लिए यह ऋणात्मक (- 0.4 V) है। क्यों?
(ii) संक्रमण धातुएँ यौगिक बनाती हैं। क्यों?
(iii) निम्नलिखित समीकरण को पूर्ण कीजिए-
\(2 \mathrm{MnO}_4^{-}+16 \mathrm{H}^{+}+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-} \rightarrow\)
उत्तर:
(i) Mn3+/Mn2+ युग्म के लिए E0 का मान धनात्मक है जबकि Cr3+/Cr2+ के लिए यह ऋणात्मक है क्योंकि Mn3+ से Mn2+ में परिवर्तन से अर्धपूरित (d5) स्थायी विन्यास प्राप्त होता है जबकि Cr+3 से Cr+2 में परिवर्तन से अधिक स्थायी अर्धपूरित t2g स्तर (\(\left(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3\right)\)) कम स्थायी \(\left(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^2\right)\) विन्यास में परिवर्तित होता है।

(ii) संक्रमण धातुओं के यौगिक सामान्यतः रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे दृश्य प्रकाश द्वारा d-d संक्रमण (t2g से eg) आसानी से हो जाता है। लिगन्ड (जल इत्यादि) की उपस्थिति में d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं- t2g तथा eg । इसी कारण इनका रंग जलीय विलयन या जलयोजित अवस्था में ही प्रेक्षित होता है।

(iii) \(2 \mathrm{MnO}_4^{-}(\mathrm{aq})+16 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+5 \mathrm{C}_2 \mathrm{O}_4^{2-}(\mathrm{aq}) \rightarrow 2 \mathrm{Mn}^{2+}(\mathrm{aq})+8 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l)+10 \mathrm{CO}_2(\mathrm{~g})\)

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. आपातकालिक गर्भनिरोधक मैथुन के कितने घण्टे के भीतर लेनी चाहिए-
(अ) 72 घण्टे
(ब) 82 घण्टे
(स) 92 घण्टे
(द) 100 घण्टे
उत्तर:
(अ) 72 घण्टे

2. जनसंख्या दिवस मनाया जाता है-
(अ) 11 जुलाई
(ब) 21 जुलाई
(स) 31 जुलाई
(द) 11 अगस्त
उत्तर:
(ब) 21 जुलाई

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

3. जो दम्पति बच्चे के इच्छुक हैं उनके लिए संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है-
(अ) टेस्ट ट्यूब बेबी
(ब) गोद लेकर
(स) पात्रे निषेचन
(द) कृत्रिम गर्भाशय वीर्य सेचन
उत्तर:
(ब) गोद लेकर

4. जनन स्वास्थ्य शब्द से क्या तात्पर्य है-
(अ) शारीरिक स्वास्थ्य
(ब) व्यवहारात्मक स्वास्थ्य
(स) भावात्मक स्वास्थ्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. रोध (बैरियर) विधि कौन-सी है?
(अ) निरोध
(ब) गर्भाशय ग्रीवा टोपी
(स) डायफ्राम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

6. कौनसी तकनीकी पुरुषों से सम्बन्धित है?
(अ) मुखीय गोली
(ब) वैसक्टोमी
(स) ट्यूबेक्टोमी
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वैसक्टोमी

7. सिफलिस (Syphillis) रोग का रोगजनक है-
(अ) ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस
(ब) मानव पैपिलोमा वायरस
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम
(द) निसेरिया गोनोही
उत्तर:
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम

8. निम्न में से ऐसा कौनसा रोग है जो उपचार योग्य नहीं है-
(अ) यकृत शोध (बी)
(ब) जननिक परिसर्प
(स) एच.आई.वी. संक्रमण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

9. विद्यालयों में यौन शिक्षा की पढ़ाई क्यों जरूरी है?
(अ) सुरक्षित और स्वच्छ यौन क्रियाओं के लिए
(ब) यौन संचारित रोगों एवं एड्स की जानकारी के लिए
(स) यौन सम्बन्धी गलत धारणाओं से छुटकारा पाने के लिए
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

10. परखनली के सम्बन्ध में सत्य है-
(अ) मादा के जननांग में निषेचन तथा परखनली में वृद्धि
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन
(स) निषेचन तथा परिवर्धन गर्भाशय के बाहर
(द) जन्मपूर्व शिशु को इन्क्यूबेटर में रखना
उत्तर:
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन

11. औषधि रहित आई यू डी निम्न में से कौन-सी है?
(अ) लिप्पेस लूप
(ब) कॉपर-टी
(स) सी यू
(द) प्रोजेस्टासर्ट
उत्तर:
(अ) लिप्पेस लूप

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

12. उल्बवेधन (ऐमीनोसेंटेसिस) जाँच क्या है?
(अ) गर्भनिरोधक परीक्षण
(ब) बंध्यता परीक्षण
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण
(द) यौन संचारित रोग परीक्षण
उत्तर:
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण

13. जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम किस नाम से प्रसिद्ध है?
(अ) एस.सी.एच.
(ब) एच.सी.एच.
(स) आर.सी.एच.
(द) एफ.सी.एच.
उत्तर:
(स) आर.सी.एच.

14. ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अण्डाणु उत्पत्न नहीं कर सकतीं, लेकिन उनके लिए एक विधि अपनाई जाती है, जिसमें दाता से अंडाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस तकनीक को क्या कहते हैं?
(अ) जी.आई.एफ.टी.
(ब) ए.आर.टी.
(स) ई.टी.
(द) उत्तर:जेड.आई .एफ.टी.
उत्तर:
(अ) जी.आई.एफ.टी.

15. मानव जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि का कारण है-
(अ) औसत आयुकाल में वृद्धि
(ब) अच्छी चिकित्सीय सुविधाएँ
(स) मृत्युदर में कमी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

16. परिवार नियोजन की शुरुआत भारत में कब हुई?
(अ) सन् 1951
(ब) सन् 1961
(स) सन् 1941
(द) सन् 197
उत्तर:
(अ) सन् 1951

17. दम्पति के बंध्य होने का कारण हो सकता है-
(अ) शारीरिक
(ब) जन्मजात
(स) रोगजन्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

18. निम्न में से यौन संचारित रोग है-
(अ) तपेदिक
(ब) पीलिया
(स) सुजाक
(द) जुकाम
उत्तर:
(स) सुजाक

19. जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्य योजना बनाने वाला विश्व का पहला देश कौनसा था?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) भारत
(स) रूस
(द) अमेरिका
उत्तर:
(ब) भारत

20. स्तनपान अनार्तव विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा कितने माह की अवधि तक कारगर मानी गई है?
(अ) 6 माह
(ब) 8 माह
(स) 10 माह
(द) 12 माह
उत्तर:
(अ) 6 माह

21. प्रति हजार व्यक्तियों में जन्म लेने वाली संख्या को क्या कहते हैं?
(अ) वृद्धि दर
(ब) लगभग (crude) जन्म दर
(स) गर्भधारण दर
(द) प्रजनन दर
उत्तर:
(ब) लगभग (crude) जन्म दर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

22. मुखीय गर्भनिरोधक निम्न में से किसके विभित्न संयोग से बनता है?
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन
(ब) ऑक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सीन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन

23. सासाहिक रूप से खाने वाली गर्भ निरोधक गोली का व्यापारिक नाम है-
(अ) माला
(ब) सहेली
(स) माला ए
(द) माला डी
उत्तर:
(ब) सहेली

24. दैनिक रूप से खाने वाल गर्भ निरोधक गोली कौनसी है?
(अ) माला C
(ब) माला N तथा माला D
(स) माला A
(द) माला D
उत्तर:
(ब) माला N तथा माला D

25. महिलाओं के लिए एक नया ओरल गर्भ ‘सहेली’ वैज्ञानिकों ने किस संस्थान पर विकसित किया?
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ
(ब) आई.आई .एससी.-बैंगलोर
(स) सी.एस.आई.आर.-नई दिल्ली
(द) आई.सी.एम.आर.-नई दिल्ली
उत्तर:
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ

26. निम्न में से लोगों की जनन सम्बन्धी समस्या है-
(अ) सगर्भता
(ब) गर्भपात
(स) प्रसव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

27. यौन संचारित रोग का लक्षण है-
(अ) गुसांग में खुजली
(ब) तरल स्राव आना
(स) हल्का दर्द तथा सूजन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. यौन संचारित रोगों का समय पर उपचार न होने पर निम्न में से कौनसी जटिलता पैदा हो सकती है-
(अ) श्रोणि-शोथज रोग (पी.आई.डी.)
(ब) अस्थानिक सगर्भता
(स) जनन मार्ग का केंसर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

29. गर्भनिरोधक विधियों के सम्भावित दुष्प्रभाव हैं-
(अ) मतली
(ब) उदरीय पीड़ा
(स) अनियमित आर्तव रक्तस्राव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

30. महिलाओं द्वारा मुँह से लेने वाली गोलियाँ 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं। इन्हें क्या कहते हैं?
(अ) पिल्स
(ब) विल्स
(स) किल्स
(द) मिल्स
उत्तर:
(अ) पिल्स

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

31. नीचे एक स्तम्भ में गर्भनिरोध प्राप्त करने की चार रीतियाँ (1-4) और दूसरे स्तम्भ में उनके कार्य करने की चार विधियाँ (i-iv) दी गई हैं। इन रीतियों और उनकी कार्य विधियों के सही मिलान को चुनिये-

स्तम्भ-I ( रीतियाँ )स्तम्भ-II ( कार्य विधियाँ)
1. गोली(i) शुक्रणुओं को सर्विक्स में पहुँचने से रोकना
2. कंडोम(ii) अंतर्रोपण को न होने देना
3. शुक्रवाहिका छेदन(iii) अण्डोत्सर्ग न होने देना
4. कॉपर-T(iv) वीर्य में शुक्राणुओं का न होना।

मिलान

(अ)1-(iii)2-(iv)3-(i)4-(ii)
(ब)1-(ii)2-(iii)3-(i)4-(iv)
(स)1-(iii)2-(i)3-(iv)4-(ii)
(द)1-(iv)2-(i)3-(ii)4-(iii)

उत्तर:

(स)1-(iii)2-(i)3-(iv)4-(ii)

32. प्रतिनिधि माँ (सरोगेट मदर) का उपयोग के लिए होता है।
(अ) दुगध स्त्रावण के प्रेरण
(ब) कृत्रिम वीर्यसेचित मादा
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ
(द) कृत्रिम वीर्यसेचन।
उत्तर:
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ

33. एम्नियोसेन्टेसिस विधि में द्रव कहाँ से निकाला जाता है?
(अ) भूण के रक्त से
(ब) माता के रक्त से
(स) माता के शरीर के द्रव से
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।
उत्तर:
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर:
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में अवस्थित है ।

प्रश्न 2.
परिवार नियोजन को अब किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
परिवार नियोजन को अब परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 3.
कंडोम के उपयोग से कोई एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
गर्भधारण के अलावा यौन संचारित रोगों से बचाव जैसा लाभ है।

प्रश्न 4.
उल्बभेदन (Amniocentesis) का एक धनात्मक तथा एक ऋणात्मक अनुप्रयोग बताइये ।
उत्तर:

  • धनात्मक अनुप्रयोग – यह भ्रूणावस्था में आनुवंशिक रोग की जाँच में प्रयुक्त किया जाता है।
  • ऋणात्मक अनुप्रयोग – यह मादा भ्रूण हत्या को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 5.
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम लिखिए।
उत्तर:
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम सहेली है।

प्रश्न 6.
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनके निषेचन की क्षमता को कम करती है।

प्रश्न 7.
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में कौनसा हार्मोन पाया जाता है ?
उत्तर:
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन नामक हार्मोन पाया जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

प्रश्न 8.
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए कौनसी युक्ति आदर्श गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक युक्ति है।

प्रश्न 9.
चिकित्सीय सगर्भता समापन किसे कहते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम.टी.पी.) कहते हैं।

प्रश्न 10.
IUCD का पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
इन्ट्रा यूटेराइन कान्ट्रासेप्टिव डिवाइस |

प्रश्न 11.
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता ( Infertility) कहते हैं।

प्रश्न 12.
महिला नसबंदी से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर;
महिला के उदर में छोटा-सा चीरा लगाकर अथवा योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या धागे से बाँधने की क्रिया को महिला नसबंदी अथवा नलिका उच्छेदन (टूबैक्टोमी) कहते हैं।

प्रश्न 13.
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति कब प्रदान की गई ?
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति सन् 1971 ई. में प्रदान की गई।

प्रश्न 14.
STD का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) |

प्रश्न 15.
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान गर्भधारण शून्य होता है, क्यों?
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान अण्डोत्सर्ग और आर्तव चक्र शुरू नहीं होता है। इसलिए गर्भधारण शून्य होता है।

प्रश्न 16.
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम क्या है जो काफी लोकप्रिय है ?
उत्तर:
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है 1

प्रश्न 17.
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री तथा पुरुष के लिए क्या सुनिश्चित है ?
उत्तर:
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री के लिए 18 वर्ष तथा पुरुष के लिए 21 वर्ष सुनिश्चित है।

प्रश्न 18.
दो STD के नाम लिखिए जो संदूषित रक्त से संचारित होते हैं।
उत्तर:

  • एड्स
  • हिपेटाइटिस – B

प्रश्न 19.
गर्भाशय वीर्य सेचन ( Intrauterine insemination) किसे कहते हैं?
उत्तर:
पति या स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा गर्भाशय ( Uterus) में प्रविष्ट कराना गर्भाशय वीर्य सेचन कहलाता है ।

प्रश्न 20.
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को क्या कहते हैं एवं क्यों?
उत्तर:
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile period) कहते हैं। क्योंकि इस अवधि में निषेचन एवं गर्भधारण के अवसर अधिक होते हैं।

प्रश्न 21.
पुरुष साथी स्त्री को वीर्यसेचित कर सकने योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण किस तकनीक से किया जा सकता है?
उत्तर:
कृत्रिम वीर्य सेचन ( Artificial Insemination)।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

प्रश्न 22.
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत के किस संस्थान में की गई?
उत्तर:
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत में लखनऊ स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (CDRI) में की गई।

प्रश्न 23.
लैंगिक सम्पर्क से होने वाले कोई दो रोग बताइए ।
उत्तर:

  • सूजाक (Gonorrhoea)
  • सिफिलिस (Syphilis)

प्रश्न 24.
छोटे परिवार को प्रोत्साहन देने हेतु गर्भ निरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित नारा ‘हम दो हमारा एक’ गाँव में ज्यादा लोकप्रिय है या शहर में ?
उत्तर:
शहरों में कामकाजी युवा दम्पतियों ने ‘हम दो हमारा एक’ का नारा अपनाया है।

प्रश्न 25.
HIV एवं AIDS का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
HIV- ह्यूमन इम्यूनो डेफीसिएन्सी वाइरस । AIDS – एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम ।

प्रश्न 26.
दो घटनाओं के नाम लिखिए जो मनुष्य में गर्भधारण से रोकथाम के लिए मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करने से होती हैं ?
उत्तर:
मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों से अण्डोत्सर्ग की क्रिया परिवर्तित होती है तथा रोपण की क्रिया नहीं होती है। इसके अलावा सर्वाइकल म्यूकस की गुणवत्ता को रूपान्तरित करती है जिससे शुक्राणुओं का प्रवेश बाधित हो जाता है।

प्रश्न 27.
डायफ्राम एवं वाल्ट क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
डायफ्राम एवं वाल्ट रबर से बने रोधक उपाय हैं। इनका उपयोग स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने में किया जाता है।

प्रश्न 28.
ZI FT का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
युग्मनज अन्तः डिम्बवाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer)

प्रश्न 29.
लिंग अनुपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समष्टि में प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या लिंग अनुपात कहलाता है।

प्रश्न 30.
जनसंख्या की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक विशिष्ट स्थान पर एक समय में पाये जाने वाले एक जाति के सदस्यों के समूह को जनसंख्या कहते हैं ।

प्रश्न 31.
STD क्या है? इसके दो रोगों को बताइए ।
उत्तर:
वे रोग जो मैथुन (Sexual Inter Course) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases, STD ) कहते हैं। इन्हें रति रोग अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive Tract Infection) भी कहते हैं।
दो रोग –

  • सुजाक (Gonorrhoea)
  • सिफलिस (Syphilis ) ।

प्रश्न 32.
परखनली शिशु क्या है?
उत्तर:
परखनली शिशु ( Test Tube baby) – कुछ महिलाएँ गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। इन महिलाओं के अण्डाणु को कृत्रिम माध्यम पर शुक्राणु द्वारा निषेचित कराकर पुनः भ्रूण को गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है जहाँ भ्रूण का सामान्य विकास होता है। सामान्य प्रसव के बाद जो शिशु जन्म लेता है इसे परखनली शिशु कहते हैं ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
एक वर्ष की पुत्री की माता अपने दूसरे बच्चे में अन्तर रखना चाहती है। उसकी डाक्टर ने उसे Cu – T की सलाह दी। इसके गर्भनिरोधक प्रभाव को समझाइए ।
अथवा
Cu-T किस प्रकार महिलाओं के लिए एक असरकारक गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
कॉपर-टी एक कॉपर आयन मुक्त करने वाली अन्तः गर्भाशयी युक्ति है। इससे निकलने वाले कॉपर आयन शुक्राणुओं ( Sperms) के लिए भक्षाणुओं की तरह कार्य कर उन्हें समाप्त कर देते हैं इससे शुक्राणुओं की गतिशीलता व निषेचन की क्षमता समाप्त हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन (Fertilization ) एवं. गर्भधारण की क्रिया नहीं होती है।

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प्रश्न 2.
आदर्श गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? गर्भनिरोधक उपायों के संभावित कोई पाँच दुष्प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला, आसानी से उपलब्ध, प्रभावी तथा जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो बहुत ही कम । इसके साथ ही यह उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक न हो उसे एक आदर्श गर्भनिरोधक ( Ideal Contraceptive ) कहते हैं।
गर्भनिरोधक उपायों के संभावित पाँच दुष्प्रभाव निम्न हैं-

  • मतली (Nausea)
  • उदरीय पीड़ा (Abdominal pain)
  • बीच-बीच में रक्तस्राव ( Breakthrough bleeding).
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव (Irregular menstrual bleeding)
  • स्तन कैंसर (Breast Cancer) ।

प्रश्न 3.
भारत में गर्भनिरोधक दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि कौनसी है? इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि अंतः गर्भाशयी युक्ति (Intra Uterine Device) है ये युक्तियाँ डाक्टरों एवं अनुभवी नसों द्वारा योनि मार्ग से गर्भाशय ( Uterus) में लगाई जाती हैं। आजकल विभिन्न प्रकार की अंत: गर्भाशयी युक्तियाँ उपलब्ध हैं; जैसे कि औषधिरहित आई यू डी (उदाहरण- लिप्पेस लूप), तांबा मोचक आई यू डी (कॉपर-टी, कॉपर-7 मल्टी लोड 375 कॉपर टी) तथा हार्मोन मोचक आई यू डी (प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी -20) आदि।

आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सीयू) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन क्षमता को कम करती है। इसके अलावा आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाते तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक (Ideal Contraceptives) है।

प्रश्न 4.
कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है। समझाइए ।
उत्तर:
वैज्ञानिकों द्वारा मनुष्य के लाभ के लिए अनेक युक्तियों की खोज की जाती है। विभिन्न बीमारियों के इलाज की विधियाँ खोजी जाती हैं परन्तु मनुष्य अपने स्वार्थवश उनका दुरुपयोग करने लगता है जिसका परिणाम अति भयंकर होता है। उदाहरण के लिए उल्चवेधन ऐसी युक्ति है जिसमें माँ के गर्भ में पल रहे शिशु या गर्भ में उत्पन्न आनुवंशिक कमियों तथा उसकी स्थिति का पता लगाया जा सकता है परन्तु लालची मनुष्य ने इस युक्ति का प्रयोग लिंग की पहचान करने में प्रारम्भ कर दिया है।

लिंग का पता करके मनुष्य अवांछित भ्रूण को गर्भपात द्वारा नष्ट करा देता है। खासकर मानव समाज में लड़की के जन्म को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनकी इस युक्ति से पहचान कर गर्भ में हत्या कर दी जाती है। इसे भ्रूण हत्या कहते हैं। यह एक अमानवीय व्यवहार है। इससे यह सिद्ध होता है कि कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है।

प्रश्न 5.
पिल्स क्या है? यह गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करती है? समझाइए ।
उत्तर:
महिलाओं के द्वारा खाया जाने वाला गर्भनिरोधक प्रोजेस्टोजन अथवा प्रोजेस्टोजन और एस्ट्रोजन का संयोजन है जिसे थोड़ी मात्रा में मुँह द्वारा लिया जाता है। यह मुँह से टिकिया (Tablets) के रूप में ली जाती है और यह पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय है। ये गोलियाँ ( Pills ) 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं और इन्हें आर्तव चक्र (Menstrual cycle) के प्रथम पाँच दिनों, मुख्यत: पहले दिन से ही शुरू करना चाहिये। गोलियाँ (Pills)

समाप्त होने के सात दिनों के अंतर के बाद जब पुन: आर्तव चक्र शुरू होता है, फिर से वैसे ही लिया जाता है और यह क्रम तब तक जारी रहता है जब तक गर्भनिरोधक की आवश्यकता होती है । ये अण्डोत्सर्जन (Ovulation) और रोपण (Implantation ) को रोकने के साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा गुणता को बदल देती हैं, जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है, या उनकी गति धीरे अथवा मंद हो जाती है।

ये गोलियाँ ( Pills) बहुत ही प्रभावशाली तथा बहुत कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। महिलाओं द्वारा ये खूब स्वीकार्य हैं । सहेली (Saheli) नामक नयी गर्भनिरोधक गोली है । यह हफ्ते में एक बार ली जाने वाली गोली है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा यह उच्च निरोधक क्षमता वाली होती है।

प्रश्न 6.
जन्मदर व मृत्युदर में कोई चार अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
जन्मदर तथा मृत्युदर में कोई चार अन्तर-

जन्मद्रमृत्युदर
1.प्रति हजार जनसंख्या में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले प्राणियों की संख्या को जन्मदर कहते हैं।प्रति ह जार जनसंख्या में प्रतिवर्ष मरने वाले प्राणियों की संख्या को मृत्युदर कहते हैं।
2. जन्मदर को नियंत्रित करने वाले कारक निम्न हैं-आर्थिक विकास एवं मानव महत्वाकांक्षाएँ।जबकि मृत्युदर को निम्न कारकों से कम किया जा सकता है -प्राकृ तिक आपदाओं से रक्षा, भण्डारण की सुविधा, कृषि का विकास आदि।
3. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व का मान भी बढ़ जाता है ।मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व के मान में कमी आती है ।
4. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या में वृद्धि होती है।मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या में कमी आती है।

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प्रश्न 7.
गर्भनिरोध की शल्यक्रिया विधि को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइए ।
उत्तर:
शल्यक्रिया विधियाँ (Surgical methods ) – इन्हें बंध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं । प्रायः यह उन लोगों को सुझाई जाती है, जिन्हें बच्चा नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष / स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक ( Gametes) के परिवहन को रोक दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है । बंध्यकरण (Sterilisation) प्रक्रिया को पुरुषों के लिए शुक्रवाहक – उच्छेदन (Vasectomy) तथा महिलाओं के लिए डिंबवाहिनी नलिका उच्छेदन ( Tubectomy) कहा जाता है।

जनसाधारण इन क्रियाओं को पुरुष नसबंदी या महिला नसबंदी के नाम से जानते हैं। शुक्रवाहक- उच्छेदन में अंडकोष (Scrotum) शुक्रवाहक में चीरा मार कर छोटा-सा भाग काटकर निकाल या बाँध दिया जाता है।  (अ) को। जबकि स्त्री के उदर में छोटा- सा चीरा मारकर या योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली (Fallopian Tube) का छोटा-सा भाग निकाल या बाँध दिया जाता है। देखिए चित्र (ब) को । ये तकनीकें बहुत ही प्रभावशाली होती हैं पर इनमें पूर्व स्थिति लाने की गुंजाइश बहुत ही कम होती है।
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प्रश्न 8.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन स्वास्थ्य का अर्थ क्या है? जनन स्वास्थ्य कार्य योजनाओं के उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनन स्वास्थ्य का अर्थ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य अर्थात् शारीरिक, भावनात्मक, व्यवहारात्मक तथा सामाजिक स्वास्थ्य है । इसलिए ऐसे समाज को जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज कहा जा सकता है, जिसमें लोगों के जनन अंग शारीरिक रूप से प्रकार्यात्मक रूप से सामान्य हों, यौन संबंधी सभी पहलुओं में जिनकी भावनात्मक और व्यावहारिक पारस्परिक क्रियाएँ सामान्य हों।

जनन स्वास्थ्य कार्ययोजनाओं के उद्देश्य – राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई गई हैं। ये सारी कार्ययोजनाएँ वर्तमान में जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के अन्तर्गत आगे बढ़ाई जा रही हैं। जनन स्वास्थ्य हासिल करने की दिशा में लोगों के बीच जनन अंगों, किशोरावस्था एवं उससे जुड़े बदलावों, सुरक्षित एवं स्वच्छतापूर्ण यौन प्रक्रियाओं, एच.आई.वी.एड्स सहित यौन संचारित रोगों के बारे में परामर्श देना एवं जागरूकता पैदा करना इस दिशा में पहला कदम है।

चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराना तथा आर्तव (ऋतुस्राव) में अनियमितताएँ, सगर्भता संबंधी पहलुओं, प्रसव चिकित्सीय सगर्भता समापन आदि से जुड़ी समस्याओं की देखभाल, इनके लिए चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना और जन्म नियन्त्रण, प्रसवोत्तर शिश् एवं माता की देखभाल एवं प्रबंधन आदि आर. सी. एच. कार्यक्रम से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं ।

प्रश्न 9.
गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? महिलाओं द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले किन्हीं दो गर्भनिरोधक का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
प्राकृतिक तथा यांत्रिक विधियों द्वारा निषेचन को रोकना तथा गर्भनिरोधक विधियों द्वारा अण्डे और शुक्राणुओं के संलयन को रोका जाता है।
महिलाओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले दो गर्भनिरोधक निम्न हैं-

  1. गर्भनिरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills ) – गर्भनिरोधक गोलियों को रोज खाना पड़ता है, जिनसे महिला में अण्डोत्सर्ग नहीं होता है। इन गोलियों से केवल अण्डोत्सर्ग नहीं हो सकता है और रजचक्र की रक्तस्राव एवं गर्भाशय की दीवार के अस्तर का उतरना सामान्य रूप से होता रहता है।
  2. डायाफ्राम ( Diaphragm ) – इसे चिकित्सक द्वारा गर्भाशय के मुख (Cervix) पर फिट किया जाता है जिससे शुक्राणु सर्विक्स नलिका में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 10.
चिकित्सीय सगर्भता समापन से क्या तात्पर्य है? इसका क्यों एवं कब उपयोग करना चाहिए? समझाइए ।
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन (Medical Termination of Pregnancy ) – गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जान- बूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन ( abortion ) को चिकित्सीय सगर्भता समापन कहते हैं। इसे प्रेरित गर्भपात (Induced abortion) भी कहते हैं। हमारे देश में चिकित्सीय सगर्भता समापन को वैधानिक मान्यता प्राप्त है।

सामान्य रूप से चिकित्सीय सगर्भता का उपयोग बलात्कार जैसे मामलों से हुई अनचाही सगर्भता तथा सामान्य या कभी-कभार के यौन संबंधों आदि से पैदा हुई सगर्भता को समाप्त कराने हेतु किया जाता है ऐसे मामलों में भी चिकित्सीय सगर्भता समापन (medical termination of pregnancy) किया जाता है जहाँ बार – बार की सगर्भता माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।

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सगर्भता 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही घातक होता है। अधिकतर चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम टी पी) गैर-कानूनी रूप से अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं जो कि न केवल असुरिक्षत होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं । आजकल शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्बवेधन (Amniocentesis) का दुरुपयोग उच्च स्तर पर हो रहा है।

यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है। दम्पति को मादा भ्रूण का पता लगने पर शीघ्र ही एम.टी.पी. करा लिया जाता है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस प्रकार की प्रवृत्ति से बचना चाहिये क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। इसके साथ ही जनसंख्या में लिंग अनुपात ( Sex Ratio in Population) में अन्तर आ जायेगा जो सामाजिक दृष्टि में अच्छा नहीं रहेगा एवं इससे भविष्य में कई प्रकार की विषमताएँ उत्पन्न हो जायेंगी ।

प्रश्न 11.
सहेली क्या है? सहेली एवं मल्टी लोड 375 में कोई तीन विभेद लिखिए।
उत्तर:
सहेली – यह एक गर्भनिरोधक गोली एक गैर-स्टेराइड (Non-steroid) पदार्थ वाली होती है। इसे हफ्ते में एक बार लिया जाता है। इसकी निरोधक क्षमता उच्च तथा दुष्प्रभाव कम होता है।

सहेलीमल्टी लोड 375
1. यह प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन हार्मोन युक्त होती है।इसमें उक्त हार्मोन का अभाव होता है।
2. यह मुख द्वारा खायी जाती है।जबकि इसे स्त्री की योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाया जाता है।
3. इसके द्वारा अण्डोत्सर्ग व रोपण कार्य को रोका जाता है।इसके द्वारा मोचित कॉपर आयन शुक्राणुओं की गतिशीलता को कम कर निषेचन क्रिया को रोकती है।

प्रश्न 12.
IUD क्या है? ये कितनी प्रकार की होती है? औषधि रहित IUD का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
IUD का पूरा नाम अन्तः गर्भाशयी युक्ति ( Intra Uterine Device) है। इसे अनुभवी चिकित्सकों द्वारा स्त्री के योनि मार्ग में गर्भाशय में लगाया जाता है। जब तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं होता है। इस प्रकार की युक्तियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं।
IUD (अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ) तीन प्रकार की होती हैं-

  1. औषधि रहित IUD
  2. ताँबा मोचक IUD
  3. हार्मोन मोचक IUD

औषधिरहित IUD (Non-medicated IUDs) – इसमें कोई किसी प्रकार की औषधि नहीं होती है इसलिए इसे औषधिरहित IUD कहते हैं। केवल अण्डवाहिनी (Oviduct ) में लिप्पेस लूप (Lippes Loops) बनाकर अण्डाणु व शुक्राणु के संयोजन (Fertilization) को रोका जाता है। उदाहरण- लिप्पेस लूप ।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों में से बताइए कि कौन-सा वाक्य सत्य है और कौन-सा गलत है?
1. पात्रे – निषेचन के बाद भ्रूण स्थानान्तरण के द्वारा महिला के जनन मार्ग में भ्रूण को स्थापित करके संतान प्राप्त की जाती है। यह एक सामान्य विधि है जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम कहा जाता है।
उत्तर:
सत्य ।

2. माला-डी गर्भनिरोधक गोली स्टीरॉएड युक्त होती है ।
उत्तर:
सत्य ।

3. एल एन जी -20 एक औषधि रहित IUD है।
उत्तर:
गलत ।

4. मैथुन के समय कंडोम का प्रयोग नहीं करने से यौन संचारित रोग नहीं होते हैं।
उत्तर:
गलत ।

5. जब किसी जनसंख्या में जन्मदर तथा मृत्युदर समान होती है।
और जनसंख्या में कोई भी वृद्धि नहीं होती तो इसे शून्य जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।

6. विश्व में हमारा देश चौथा ऐसा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई हैं ।
उत्तर:
गलत ।

7. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तथा जीवन के रहन-सहन की बेहतर परिस्थितियाँ होने के कारण जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई हैं।
उत्तर:
सत्य ।

8. दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के ‘बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।

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प्रश्न 14.
सुजाक रोग क्या है? इसके लक्षण व उपचार लिखिए ।
उत्तर:
सुजाक रोग – इसे गोनोरिया (Gonorrhoea) भी कहते हैं। यह रोग निसेरिया गोनोरिया (Neisseria gonorrhoea) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है। यह रोग लैंगिक सम्पर्क के माध्यम से फैलता है।
सुजाक रोग के लक्षण-

  • मूत्र विसर्जन के समय तेज दर्द ।
  • शुक्राणु प्रवाह रुक जाता है।
  • संक्रमित नर मनुष्य के मूत्र मार्ग द्वारा श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव होता है एवं रोग की अधिकता के कारण अधिवृषण भी संक्रमित हो जाती है।
  • महिलाओं में मासिक चक्र में व्यवधान के कारण बाँझपन आ जाता है।
  • महिलाओं में बार्थोलिन ग्रन्थि (Bartholian gland) एवं

मूत्र जनन मार्ग के संक्रमण के फलस्वरूप मूत्र त्याग में तेज दर्द होना आदि सुजाक रोग का लक्षण है।
उपचार-

  • इस रोग के उपचार में सल्फोनेमाइड तथा स्पेक्टिनोमाइसिम टेट्रासाइक्लिन आदि औषधियाँ दी जाती हैं।
  • सुरक्षित यौन सम्बन्ध व रोगी के सम्पर्क में न आवें ।
  • वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।

प्रश्न 15
परखनली शिशु पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर:
परखनली शिशु (Test Tube Babies) – कुछ महिलाओं में अण्डावाहिनी अवरुद्ध हो जाती है जिसके कारण अण्डे का निषेचन नहीं हो पाता। इस समस्या का निदान परखनली शिशु तकनीक की सहायता से किया जा सकता है। इस तकनीक में स्त्री अण्डाशय से एक या अधिक परिपक्व अण्डे एक विशेष पिचकारी ( Syringe ) द्वारा खींचे जाते हैं।

इन अण्डों को स्त्री के पुरुष साथी के शुक्राणुओं के साथ एक डिश में अनुकूलतम परिस्थितियों में कुछ घण्टों के लिए रखा जाता है। शुक्राणु अण्डों को निषेचित करते हैं और इससे एक भ्रूण निर्मित होता है। तब इस भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। जहाँ पर यह एक शिशु के रूप में परिवर्धित होता है।

प्रश्न 16.
कॉलम – I के पदों को कॉलम-II के साथ सही-सही क्रम में मिलाइए-

कॉलम-Iकॉलम-II
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन
(b) पहला उल्बवेधन जाँच2. एल एन जी-20
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि3. भ्रूणलिंग निर्धारण
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी)
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए5. भारत
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन6. स्तनपान अनार्तव

उत्तर:

कॉलम-Iकॉलम-II
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में5. भारत
(b) पहला उल्बवेधन जाँच3. भ्रूणलिंग निर्धारण
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि6. स्तनपान अनार्तव
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी2. एल एन जी-20
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी)
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन

प्रश्न 17.
सिफलिस रोग के रोग जनक, संक्रमण विधि, उद्भवन अवधि, लक्षण, रोकथाम एवं उपचार लिखिए।
उत्तर:
रोगजनक – ट्रोपोनेमा पैलीडम ।
संक्रमण की विधि-संक्रमित व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क | उद्भवन अवधि – सम्पर्क के 10-90 दिन के बाद लक्षण स्पष्ट होते हैं लेकिन सामान्यतया जीवाणु द्वारा संक्रमित होने के 3-4 सप्ताह में लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
लक्षण – लक्षण कई चरणों में प्रकट होते हैं। सिलफिस के सामान्य लक्षण निम्न हैं-

  • ज्वर, त्वचा में गले में, मूत्र प्रजनन क्षेत्र विशेषकर योनि या लिंग, गुदा, मलाशय व मुँह में अल्सर होते हैं। अल्सर (व्रण) गोल व दृढ़ व बहुधा पीड़ारहित होते हैं
  • हाथों, पाँवों व हथेली में दाने ।
  • मुँह में सफेद धब्बे ।
  • जाँघ में मुँहासे के समान मस्से ।
  • संक्रमित क्षेत्र से बालों का झड़ना ।
  • अन्तिम तीन लक्षण काफी हो सकते हैं।

ये बहुधा अंदरूनी हो जाते हैं और मस्तिष्क, तन्त्रिका, नेत्रों, रक्त वाहिनियों, अस्थियों व जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जो संक्रमण के 10 वर्ष बाद प्रकट होते हैं। इससे पक्षाघात, अंधापन, मनोभ्रम (Dementia) व बंध्यता (Sterility) हो सकती है।

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रोकथाम व उपचार-

  • केवल एक ही व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क
  • वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।
  • संयम बरतना व कंडोम का प्रयोग करना ।
  • व्यक्तिगत स्वच्छता रखनी चाहिए व उचित औषधीय उपचार लेना चाहिये ।

प्रश्न 18.
जीव विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते बंध्य दम्पतियों को संतान प्राप्ति हेतु आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
उत्तर:
स्त्री व पुरुष दोनों की बंध्यता क्लीनिक में जाँच करवानी चाहिए तथा सहायक जनन प्रौद्योगिकियों ( ए आर टी) की मदद लेनी चाहिए। इन्हें टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम का लाभ उठना चाहिये ।

प्रश्न 19.
(i) IUD का पूर्ण नाम लिखिए।
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs को, बच्चों के बीच में अन्तर रखने के लिए उत्तम गर्भनिरोधक माना जाता है। क्यों ?
उत्तर:
(i) IUD का पूर्ण नाम- इन्द्रा यूटेराइन डिवाइस (Intra Uterine Devices)
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs उत्तम गर्भनिरोधक हैं क्योंकि
(a) शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phogocytosis) को बढ़ा देती है।
(b) जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है।
(c) गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं।

प्रश्न 20.
जन्म नियन्त्रण की स्तनपान अनार्तव (लैक्टेशनल एमेनोरिया) विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)- यह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णत: स्तनपान कराना जारी रखती है, गर्भधारण का अवसर शून्य होता है।

इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए। इस दौरान मैथुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना नहीं होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है।

प्रश्न 21.
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण (ZIFT) तकनीक की व्याख्या करें। यह अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण तकनीक में 8 ब्लास्टोमियर तक के भ्रूण को स्त्री फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरण किया जाता है। जबकि अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक में 32 ब्लास्टोमीयर के भ्रूण को गर्भाशय में स्थानान्तरण किया जाता है।

प्रश्न 22.
आपके विचार से यौन संचारित रोगों से बचने का सर्वाधिक उपयुक्त उपाय क्या है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए ।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – यौन संबंधों द्वारा संचारित होने वाले रोगों या संक्रमणों को यौन संचारित रोग (STD) कहा जाता है। इन्हें रतिज रोग (Veneral Diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहा जाता है। ये रोग निम्न हैं- सुजाक (Gonorrhoea), सिफिलिस (Syphilis), हर्पीस (Herpes), जननिक हर्पिस (Genital herpes), क्लेमिडियता (Chlamydiasis), ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis), यकृत शोध-बी (Hepatitis B ), लैंगिक मस्से ( Genital warts), एड्स (AIDS) आदि। इनसे बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिये-

  • मैथुन के समय हमेशा कंडोम (Condoms ) का उपयोग करना चाहिये ।
  • किसी अनजान व्यक्ति अथवा बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।
  • यदि कोई आशंका है तो तत्काल ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराना चाहिए।

प्रश्न 23.
मानव स्त्री द्वारा प्रयोग की जाने वाली किसी एक गर्भ निरोधक गोली का नाम लिखिए। मुखीया गोलियाँ कैसे जन्म नियन्त्रण में सहायता करती हैं?
अथवा
मानव मादाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मुख से सेवन किये जाने वाले गर्भनिरोधक का हार्मोनी संघटन बताइए। यह एक गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर:
गर्भनिरोधक गोली का नाम पिल्स (Pills) है। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है। अगली माहवारी के बाद पुनः शुरू कर दिया जाता है।

ये गोलियाँ ( Pills) अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और रोपण (Implentation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती है। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।
हैं?

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्यb

प्रश्न 24.
कुछ स्त्रियाँ ‘सहेली’ गोलियों का सेवन क्यों करती
अथवा
स्त्री के लिए ‘सहेली’ गर्भनिरोधक को उत्तम माना जाता है। क्यों?
उत्तर:
सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्च निरोधक क्षमता वाली है।

प्रश्न 25.
यदि पुरुष नसबंदी करते समय चिकित्सक दायीं तरफ की शुक्रवाहक को बाँधना भूल जाता है, तो बन्ध्यकरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुरुष नसबंदी में दोनों बायें व दायें शुक्रवाहक को बाँधा जाता है। यदि दायीं तरफ की शुक्रवाहक को नहीं बाँधता है तो युग्मक परिवहन निरन्तर होगा व नसबंदी अपूर्ण होगी।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
गर्भनिरोधक साधनों को कौनसी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है ? किन्हीं तीन श्रेणियों (विधियों) का वर्णन कीजिए। उत्तर- गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्राकृतिक / परम्परागत (Natural / Traditional)
  2. रोध (Barrier)
  3. आईयूडीज (IUDS)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. टीका ( Injectables)
  6. अंतरोंप (Implants )
  7. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods )

1. प्राकृतिक / परम्परागत विधियाँ (Natural / Traditional Methods)- ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु ( Sperm) के मिलने (संयोजन) को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न हैं-
(i) आवधिक संयम (Periodic abstinence ) – इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र ( menstrual cycle) के 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अंडोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अवधि मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर (गर्भधारण) के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं अतः उक्त अवधि में सहवास / संभोग न करके गर्भाधान से बचा जा सकता है।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or coitus interruptus) – इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री की योनि से अपना लिंग (penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea) – यह विधि भी इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भधारण के अवसर लगभग शून्य होते हैं। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक ही कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

2. रोध (Barrier) – इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अंडाणु (Ovum) और शुक्राणु ( Sperm) को भौतिक रूप से मिलने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष व स्त्री दोनों के लिए उपलब्ध हैं। निरोध (Condoms) एक रोधक उपाय है जिसे पतली रबर या लेटेक्स से बनाया जाता है ताकि इसके उपयोग से पुरुष के लिंग (Penis) या स्त्री की योनि (Vagina) एवं गर्भाशय (Uterus) ग्रीवा को संभोग से ठीक पहले, ढक दिया जाए और स्खलित शुक्राणु स्त्री के जननमार्ग में प्रवेश न कर सकें।

यह गर्भाधान से बचा सकता है। पुरुषों के लिए कंडोम (Condoms) का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए नीचे चित्र में पुरुष व स्त्री के कंडोम । हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में तेजी से वृद्धि हुई है। क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एड्स से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं।

इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है। डायफ्राम (Diaphragms), गर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vaults) आदि भी रबर से बने रोधक उपाय हैं जो स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने के लिए लगाए जाते हैं।

ये गर्भाशय ग्रीवा को ढक कर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोककर गर्भाधान से छुटकारा दिलाते हैं। इन्हें पुनः उपयोग में लिया जा सकता है। इसके साथ ही इन रोधक साधनों के साथ-साथ शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Creams), जेली (Jelly ) एवं फोम (Foams) का प्रायः उपयोग किया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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3. अंतर्रोप (Implants) – स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप ( Implant) के रूप में किया जाता है । (देखिए चित्र में )
डालिए ।
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प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य समस्याएँ एवं कार्यनीतियों पर प्रकाश
उत्तर:
[ संकेत – बिन्दु 4.1 का अवलोकन करें ।]
जनन स्वास्थ्य-समस्याएँ एवं कार्यनीतियाँ (Reproductive Health-Problems and Strategies)
मानव समुदाय में जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक प्रत्येक सदस्य को आयु स्तर के सोपानों से होकर गुजरना पड़ता है। इन अवस्थाओं में बाल्यावस्था (Childhood), किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था शामिल हैं। इन सभी अवस्थाओं में किशोरावस्था एक महत्त्वपूर्ण  अवस्था होती है क्योंकि किसी भी समष्टि के भविष्य की समृद्धि एवं उसका आकार इसके द्वारा निर्धारित होता है।

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किशोरावस्था में त्वरित वृद्धि तथा अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकासात्मक परिवर्तन आते हैं। इस अर्वधि में किशोरों में लैंगिक परिपक्वन हेतु परिवर्तन उत्पन्न होते हैं जो कि लैंगिक परिपव्वता तक जारी रहते हैं। लड़कों में यह अवधि 719 वर्ष तक और लड़कियों में 8-18 वर्ष की आयु मानी जाती है। इस कालावधि में दोनों ही विशिष्ट हार्मोन्स का उत्पादन व स्रावण होता है जो कि उनमें शारीरिक, क्रियात्मक एवं व्यवहारात्मक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।

ऐसे युवाओं को आगे चलकर वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर सन्तानोत्पत्ति व उनके उचित पालन-पोषण की जिम्मेदारी हेतु शारीरिक व मानसिक रूप से अपने आपको योग्य बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त कारणों से यह अव्वधि अत्यधिक संवेदनशील पायी जाती है।

चूँकि जनन स्वास्थ्य, जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य है अतः जनन सम्बन्धी अनेक समस्याओं जैसे जनन अंगों का सामान्य रूप से कार्य न करना, प्रजनन के समय विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न होना, विभिन्न प्रकार के जननिक रोगों की उत्पत्ति, शिशु मृत्युदर में वृद्धि, स्त्री एवं पुरुषों में जननिक दशाओं में अनियमितता आदि को जनन स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में जाना जाता है।

जिनमें कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं-

  • लोगों में जनन स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता की कमी।
  • तेजी से बढ़ती हुई मानव जनसंख्या अर्थात् जनसंख्या विस्फोट।
  • गर्भावस्था की जटिलताएँ, शिशु जन्म एवं असुरक्षित गर्भपात।
  • प्रसव के समय वांछित सुविधाओं व देखरेख का अभाव।
  • जन्मजात एवं उपार्जित बन्ध्यता।
  • सन्तानों के बीच का कम अन्तराल व अधिक सन्तानों की उत्पत्ति।
  • युवक-युवतियों में लैंगिक संचारित रोगों (Sexually transmitted diseases) का उच्च संक्रमण। एड्स (AIDS) जैसे भयावह व लाइलाज रोग।
  • किशोरियों में मासिक चक्र की अनियमितता व उसका रुकना जैसी कार्यियकीय असमानताएँ।
  • यौन रोगों को छिपाना।
  • विद्यालयों में यौन शिक्षा की कमी।
  • समय पर टीकाकरण न कराना। जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों एवं स्तनपान के महत्त्व का अभाव।
  • पुत्र को कन्या के मुकाबले अत्यधिक महत्च एवं मादा भुण हत्या।
  • कम उम्र में विवाह, प्रजनन, गर्भधारण की अनिवार्यता, गर्भपात आदि 15-19 वर्ष की महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।

उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने समय-समय पर कुछ कार्ययोजना एवं कार्यक्रमों की शुरुआत की। वास्तव में भारत ही विश्व का पहला ऐससा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना और कार्यक्रमों की शुरुआत की।

इन कार्यक्रमों को परिवार नियोजन और आधुनिक समय में परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है। इन कार्यक्रमों की शुरुआत 1951 में हुई। पिछले दशकों में समय-समय पर इनका स्थिर मूल्यांकन भी किया गया है। जनन संबंधित और आवधिक क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित करते हुए बहुत उन्नत व व्यापक कार्यक्रम फिलहाल ‘जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम’ (Reproductive and Child Health Care RCH Programme)

के नाम से प्रसिद्ध है। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत जनन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं के बारे में जन सामान्य में जागरूकता पैदा करते हुए और जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने के लिए अनेक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। दुश्य एवं श्रव्य (Audio-Visual) और मुद्रित सामग्री की सहायता से सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन के माध्यम से जनता के बीच जनन सम्बन्धी सभी पहलुओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए विभिन्न उपाय सुझा रहे हैं।

उपरोक्त सूचनाओं को प्रसारित करने में माता-पिता, अन्य निकट सम्बन्धी, शिक्षक एख्वं मित्रों की प्रमुख भूमिका है। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में यौन शिक्षा (Sex Education) को बढ़ावा देकर युवाओं को सही जानकारी उपलव्य कराना लाकि बच्चों को यौन संबंधी फैली भान्तियों पर विश्वास न हो एवं उन्हें यौन संबंधी गलत धारणाओं से निजात मिल सके।

लोगों को जनन अंगों, किशोराबस्था एवं उससे सम्बन्धित परिवर्तनों, सुरक्षेत और स्वच्छ यौन क्रियाओं, यौन संचारित रोगों एवं एड्स के बारे में जानकारियां उपल्नव्य कराना। विशेष रुप से इस प्रकार की जानकारियां किशोर आयु वर्ग के लोगों के लिए जनन सम्बन्धी र्वस्थ जीवन बिताने में सहायक होती है।

लोगों को शिक्षित करना, विशेष रूप से जननक्षम जोड़ी तथा वे लोग जिनकी आयु विवाह योग्य हैं, उन्हें उपलब्ब जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों तथा गर्भवती माताओं की देखभाल, माँ और बच्चे की प्रसवोत्तर (Postnatal) देखभाल आदि के बारे में तथा स्तनपान के महत्व, लड़का या लड़की को समान महत्व एवं समान अवसर देने की जानकारियों आदि से जागरूक स्वस्थ परिवर्तनों का निर्माण होगा।

लोगों को जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों, जनन अपराधों, यौन दुरुपयोग, सामाजिक उत्पीड़नों आदि के प्रति जागरूक करना जिससे वे इन बुराइयों से बचकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें। जनन स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए विभिन्न कार्यदोजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्बयन के लिए मजबूत संरचनात्मक सुविधाओं, व्यावसायिक विशेषजता तथा भरपूर भौतिक सहारों की आवश्यकता होती है।

लोगों को जनन सम्बन्धी समस्याओं जैसे कि सगर्भता (Pragnancy), प्रसव (Parturition), यौन संचारित रोगों, गर्भपात (Abortion), गर्भनिरोधकों (Anti-pregnancy agents), आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सम्बन्धी समस्याओं, बांपन (Infertility) आदि के बारे में चिकित्सा सहायता एवं देखभाल उपलब्ध करवाना समय-समय पर बेहतर तकनीकों और नई कार्यनीतियों को क्रियान्वित करने की भी आवश्यकता है, ताकि लोगों की अधिक सुचारु रूप से देखभाल और सहायता की जा सके ।

बढ़ती मादा भूरण हत्या की कानूनी रोक के लिए उल्बवेधन (Aminiocentesis) जाँच (भूणीय लिंग के निर्धारण की जाँच), लिंग परीक्षण पर वैधानिक प्रतिबंध तथा व्यापक बाल प्रतिरक्ष्कीकरण (टीका) आदि कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को शामिल किया गया है। जनन सम्बन्धी बिभिन्न अनुसंधानों को बढ़ावा देने के लिए हमारे देश की सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां नयी विधियाँ तलाशने तथा कार्येशील प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने का काम कर रही हैं।

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लखनक स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute, CDRI) ने ‘सहेली’ नामक गर्भनिरोधक गोली का निर्माण किया। यौन सम्बन्धी मामलों के बारे में बेहतर जागरूकता अधिकाधिक रूप से चिकिल्सा सहायता प्राप्त प्रसव तथा बेहतर प्रसवोत्तर देखभाल से मातृ एवं शिशु मृत्युदर में कमी आई है। छोटे परिवार वाले जोड़ों की संख्या बढ़ी है। यौन संचारित रोगों की सही जाँच तथा देखभाल और लगभग सभी जनन स्वास्थ्य समस्याओं हेतु विकसित चिकित्सा सुविधाओं के होने से बेहतर समाज बेहतर जनन स्वास्थ्य के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं? जनसंख्या विस्फोट के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।

हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।

]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।

जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-

  • कृषि प्रधानता
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता।

(ख) सामाजिक कारक-

  • अशिक्षा
  • धार्मिक मान्यताएँ
  • बाल विवाह
  • अन्धविश्वास
  • विवाह की अनिवार्यता
  • संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।

(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-

  • प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
  • कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
  • भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  • उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
  • रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।

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(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-

  • विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
  • पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
  • मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
  • जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।

जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।

शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।

एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-

  • एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
  • गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।

गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
  2. रोध (Barrier)
  3. अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
  6. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)

(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )

के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।

इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।

आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।

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हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
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स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।

(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-

  • औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
  • तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
  • हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।

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आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।

(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।

अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।

ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।

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इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
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(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।

(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।

बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।

निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
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(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
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चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।

इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-

  • मतली आना
  • उदरीय पीड़ा
  • बीच-बीच में रक्तस्राव
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव
  • स्तन कैंसर।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
बंध्यता से क्या तात्पर्य है? इसके निवारण से सम्बन्धित तकनीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सहायक जनन प्रौद्योगिकी किसे कहते हैं ? विभिन्न तकनीकों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बन्ध्यता (Sterility) कहते हैं।
बन्ध्यता के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें मुख्य निम्न हैं-

  • शारीरिक
  • जन्मजात
  • औषधिक
  • प्रतिरक्षात्मक
  • मनोवैज्ञानिक आदि।

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ये समस्याएँ पुरुष अथवा स्त्री किसी में भी हो सकती हैं। हमारे देश में बच्चा न होने की स्थिति में प्रायः सिर्फ स्त्री को ही दोष दिया जाता है जबकि हमेशा ऐसा नहीं होता है। यह समस्या पुरुष में भी हो सकती है। इसके लिए अर्थात् सामान्य विकारों को बन्ध्यता क्लीनिक के योग्य चिकित्सकों की सेवायें लेकर दोषों की जाँच एवं उपचार के माध्यम से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिल सकती है।

फिर भी जहाँ ऐसे विकार या दोषों को ठीक करना सम्भव नहीं है वहाँ कुछ विशेष तकनीकों की सहायता द्वारा संतान पैदा करने में सहायता की जा सकती है। ऐसी तकनीकों को सहायक जनन प्रौद्योगिकी (Addid Reproductive Technique) कहते हैं। इनमें कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं-

(1) पात्रे निषेचन (In vitro fertilization)-पात्रे निषेचन से तात्पर्य है कि शरीर के बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियाँ निर्मित करना व निषेचन कराना अर्थात् निषेचन की क्रिया पात्र (Test Tube) में की जाती है इसलिए इसे पात्रे निषेचन कहते हैं। यह विधि टेस्ट ट्यूब बेबी (Test Tube Baby) कार्यक्रम के नाम से लोकप्रिय है।

इस तकनीक में पत्नी या दाता स्त्री के अण्डे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं (Sperms) को प्रयोगशाला में एकत्रित किया जाता है। इसके बाद अनुकूल परिस्थितियों में निषेचन कराकर युग्मनज (Zygote) बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। अब इस युग्मनज (Zygote) को स्त्री के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। स्थानान्तरण दो विधियों द्वारा किया जा सकता है-

(i) अन्तः डिम्ब वाहिनी (फैलोपी) स्थानान्तरण (Intra Fallopian Tube Transfer)-इसे युग्मनज अन्त: डिम्ब वाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत युग्मनज या 8 ब्लास्टोमियर तक के भूरण को स्त्री की फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरित किया जाता है।

(ii) इन्द्रा यूटेराइन ट्रांसफर (Intra Uterine Transfer)-इस तकनीक के अन्तर्गत 8 ब्लास्टोमीयर से अधिक के भ्रूण को गर्भाशय (Uterus) में स्थानान्तरित किया जाता है। इसलिए इसे इन्ट्रा यूटेराइन ट्रांसफर कहते हैं। अब निषेचित भ्रूण का स्त्री में स्थानान्तरण के बाद परिवर्धन शरीर के भीतर होता है।

(2) जीवे निषेचन (In vitro Fertilization)-ऐसी स्त्रियाँ जिनको गर्भधारण करने में समस्या आती है उनके लिए यह तकनीक सर्वोत्तम है। इसके अन्तर्गत युग्मकों का निषेचन स्त्री के भीतर ही होता है।

(3) युग्मक फैलोपी नलिका में स्थानान्तरण (Gamete Intra Fallopian Transfer)-ऐसी स्त्रियाँ जिनमें अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते हैं परन्तु निषेचन और भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं। ऐसी स्त्रियों के लिए GIFT तकनीक अपनाई जाती है।
इसके अन्तर्गत दाता के अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन क्रिया प्राकृतिक होती है।

(4) अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (Intracytoplasm Sperm Injection)-इस तकनीक द्वारा प्रयोगशाला में शुक्राणु (Sperm) को सीधे ही अण्डाणु में अंतःक्षेपित (Injected) किया जाता है।

(5) कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination)-ऐसे पुरुष जो स्त्री को वीर्य सेचित करने में सक्षम नहीं हैं अथवा उनके वीर्य में शुक्राणुओं (Sperms) की संख्या बहुत ही कम होती है, उन पुरुषों के दोष के निवारण हेतु कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्राणु (Sperm) लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा उसके गर्भांशय (Uterus) में प्रविष्ट कराया जाता है। इसे गभराशय वीर्य सेचन (Intra Uterine Insemination) कहते हैं।

इस प्रकार हमारे पास बहुत सारी तकनीकें हैं लेकिन इनका उपयोग करने हेतु विशेषीकृत व्यावसायिक विशेषजों की आवश्यकता होती है। ये तकनीकें मंहगी होती हैं। इसलिए ये सुविधाएँ भारत के कुछ शहरों में ही उपलब्थ हैं। अतः इनका लाभ कुछ ही लोगों को मिल पाता है। इन विधियों को अपनाने में धार्मिक, सामाजिक व भावात्मक घटक बाधक होते हैं।

इन सभी विधियों का लक्ष्य मात्र केवल संतान प्राप्ति का है। भारत में अनेक अनाथ और दीनहीन बच्चे हैं जिनकी देखभाल नहीं की जावे तो वे जीवित नहीं रहेंगे। ऐसे निःसंतान दम्पतियों को यदि संतान चाहिए तो इन्हें गोद् लेकर माता-पिता बन सकते हैं। यह संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। हमारे देश में कानून शिशु को गोद लेने की इजाजत भी देता है।

प्रश्न 5.
गर्भनिरोधक साधन कौन-सी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।

हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।

]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।

जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-

  • कृषि प्रधानता
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  • निर्धनता।

(ख) सामाजिक कारक-

  • अशिक्षा
  • धार्मिक मान्यताएँ
  • बाल विवाह
  • अन्धविश्वास
  • विवाह की अनिवार्यता
  • संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।

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(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-

  • प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
  • कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
  • भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  • उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
  • रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।

(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-

  • विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
  • पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
  • मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
  • जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।

जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।

शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।

एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-

  • एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
  • गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
  • गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।

गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
  2. रोध (Barrier)
  3. अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
  4. मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
  5. अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
  6. शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)

(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )

के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।

(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।

(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।

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इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।

(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।

आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।

हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
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स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।

(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
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(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-

  • औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
  • तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
  • हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।

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आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।

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(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।

अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।

ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।

इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
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(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।

(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।

बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।

निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। देखिए चित्र 4.5 में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
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(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
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चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।

इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-

  • मतली आना
  • उदरीय पीड़ा
  • बीच-बीच में रक्तस्राव
  • अनियमित आर्तव रक्तस्राव
  • स्तन कैंसर।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न लैंगिक संचारित रोग के रोगजनक एवं लक्षण लिखिए-

  1. सिफिलस
  2. सुजाक
  3. हर्पीज जेनाइटेलिस
  4. ट्राइकोमोनियासिस
  5. क्लेमाइडियेसिस
  6. एड्स
  7. जेनाइटल मस्सा
  8. वेजाइनिटिस (Vaginitis ) I

उत्तर:
लैंगिक संचारित रोग, उनके रोगजनक एवं लक्षण

रोग का नाम (Diseases)रोग जनक (Pathogens)लक्षण (Symptoms)
1. सिफिलस (Syphilis)नि पोनिमा पैलिडम Pallidum)जनन अंगों पर उभरते हुए गोलाकार घाव
2. सुजाक या गोनोरिया (Gonorrhea)निसेरिया गोनोही (Neisseria Gonorrhoeae)नर में-मूत्रमार्ग का संक्रमण, मूत्र मार्ग से श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव व मूत्र विसर्जन में पीड़ा। मादा में-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) में संक्रमण तथा मूत्र त्यागने में जलन व दर्द।
3. हर्पीज जेनाइटेलिस (Herpes genealis)एच एस वी-2 (डी एन ए) वाइरस (HSV-2, DNA Virus)नर में शिश्नमुंडछद (Prepuce), शिश्नमुंड (Glans) व शिश्न पर पीड़ा युक्त फफोले मादा में-भग द्वार (Vulva) एवं योनि (Vagina) के ऊपरी भाग में फफोले
4. ट्राइकोमोनियासिस (Trichomoniasis)ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस (Trichomonas Vaginalis)योनि से हरित-पीत स्राव (Greenish-Yellow Vaginal discharge)
5. क्लेमाइडियेसिस (Chlamydiasis)क्लेमाइडिया ट्रेकोमैटिस (ChlamydiaTrachomatis)मूत्र मार्ग में पुनरावर्ती पीड़ा व संक्रमण
6. एड्स (AIDS)ह्यूमन इम्यूनोडेफीशियेन्सी विषाणु (HIV)प्रतिरक्षित तन्त्र का पूर्णतः निष्क्रिय होना, ज्वर, अतिसार इत्यादि।
7. जेनाइटल मस्सा (Genital Warts)मानव पैपिलोमा वायरस (Human Papilloma Virus)गुदा के आसपास, शिश्न, लेबिया एवं योनि के पास मस्से बनना।
8. वेजाइनिटिस (Vaginitis)गार्नेरेला वैजाइनैलिस (Gardnerella Vaginalis)मादा में योनि से श्वेत-धूसर स्राव

प्रश्न 7.
यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? इनके नाम लिखिए। इनमें से किन्हीं दो रोगों के संचरण के माध्यम, रोग के लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – वे रोग जो मैथुन (Sexual intercourse) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually transmitted diseases) कहते हैं । इन्हें रतिरोग (Veneral diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहते हैं।
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases)- निम्न हैं-

  1. सुजाक (Gonorrhoea)
  2. सिफिलिस (Syphilis)
  3. हर्पीस (Herpes)
  4. जननिक परिसर्प ( Genital Herpes)
  5. क्लेमिडियता (Chlamydiasis)
  6. ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis)
  7. लैगिंक मस्से (Genital Warts)
  8. यकृतशोथ – बी (Hepatitis-B)
  9. एड्स (AIDS)

यकृतशोथ-बी (Hepatitis B ) तथा एच. आई. वी. के संचरण के माध्यम

  1. संक्रमित व्यक्ति के साझे प्रयोग वाली सूई (टीका)
  2. शल्य क्रिया के औजार
  3. संदूषित रक्ताधान (Blood Transfusion)
  4. संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु ( नर से मादा, मादा से नर, माता से शिशु में जरायु के माध्यम से आदि)
  5. समलैंगिकता ।

रोग के लक्षण (Symptoms of Diseases) – इन सभी रोगों के शुरुआती लक्षण बहुत ही हल्के-फुल्के होते हैं जो कि जननिक क्षेत्र (Genital region) गुप्तांगों में खुजली, तरल स्राव (Fluid discharge) आना, हल्का दर्द तथा सूजन आदि होते हैं । संक्रमित महिलाओं में लक्षण कभी-कभी प्रकट भी नहीं होते हैं । इसलिए लम्बे समय तक उनका पता ही नहीं चल पाता। इसके साथ ही संक्रमित व्यक्ति समाज के भय से जाँच एवं उपचार भी नहीं करा पाता है ।

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इसके कारण आगे चलकर जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं । जैसे- श्रोणि-शोथज रोग (Pelvic inflammatory diseases), • गर्भपात (Abortions), मृतशिशु जन्म ( Still-births), अस्थानिक सगर्भता (Ectopic pregnancies ), बंध्यता ( Infertility) अथवा जनन मार्ग (Reproductive tract) का कैंसर (Cancer) हो सकता है । यौन संचारित रोग स्वस्थ समाज के लिए खतरा हैं। यद्यपि सभी लोग इन संक्रमणों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं लेकिन 15 से 24 वर्ष की आयु के लोग इन रोगों से ज्यादा ग्रसित हैं ।

निम्न नियमों का पालन करने पर इन रोगों के संक्रमण से बचा जा सकता है-

  1. किसी अनजान व्यक्ति या बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध न रखें।
  2. मैथुन (Sexual intercourse) के समय सदैव निरोध (Condom) का इस्तेमाल करें।
  3. समलैंगिकता को नकारा जाना चाहिए ।
  4. सदैव निर्जर्मीकृत सूई का प्रयोग करना चाहिए।
  5. रक्त आधान में एच. आई. वी. मुक्त रक्त ही स्थानान्तरित करना चाहिए ।
  6. नशीली दवाओं के रक्त के माध्यम से प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. यदि कोई आशंका है तो तुरन्त ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराएँ।

प्रश्न 8.
एक गर्भवती महिला को सगर्भता का चिकित्सीय समापन (MTP) कराने की सलाह दी गयी। उसके डॉक्टर ने जाँच में पाया था कि उस महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण एक ऐसे युग्मनज से परिवर्धित हुआ जो Y-धारक शुक्राणु द्वारा निषेचित हुए X X – अण्डे से बना है। उस महिला को M. T. P. कराने की सलाह क्यों दी गई ?
उत्तर:
इस गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण का चिकित्सीय समापन (MTP) करने की सलाह दी क्योंकि भ्रूण में लिंग गुणसूत्र दो के बजाय तीन और प्राय: XXY होगा। अर्थात् 44 + XXX होगा। क्योंकि अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया में अवियोजन के कारण होता है। यदि अण्डा Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु के साथ मिलता है तो भ्रूण में गुणसूत्र की संख्या 47 (44+XXY) हो जायेगी ।

अर्थात् भ्रूण क्लाईनफेल्टर सिण्ड्रोम (Klinefelter’s Syndrome) से ग्रसित होगा । Y गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण, भ्रूण का शरीर लगभग सामान्य पुरुषों जैसा होगा, लेकिन एक अतिरिक्त X गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण छोटे होंगे और इनमें शुक्राणु नहीं बनेंगे। अतः यह नपुंसक होंगे। प्रायः इनमें स्त्रियों जैसे स्तनों का विकास हो जाता है। गाइनीकोमास्टि (Gynaecomastia) औसतन 500 पुरुषों में एक क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम होता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा महिला को M. T. P. कराने की सलाह दी गई।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. निम्न में से किस तकानीक की सहायता से ऐसी स्वियाँ जो गर्भधारण नहीं कर सकर्तीं, में भूण को स्थानान्तरित किया जाता है? (NEET-2020)
(अ) GIFT एवं ZIFT
(ब) ICSI एवं ZIFT
(स) GIFT एवं ICSI
(द) ZIFT एवं IUT
उत्तर:
(द) ZIFT एवं IUT

2. यौन संचारित रोगों के सही विकल्प का चयन करो। (NEET-2020)
(अ) सुजाक, मलेरिया, जननिक परिसर्प
(ब) AIDS, मलेरिया, फाइलेरिया
(स) कैंसर, AIDS, सिफिलिस
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प
उत्तर:
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प

3. निम्न में से किन गर्भनिरोधक तरीकों में हॉमोंन भूमिका अदा करता है? (NEET-2019)
(अ) गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक, रोध विधियाँ
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक
(स) रोध विधियाँ, स्तनपान, अनार्तब, गोलियाँ
(द) CuT गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक।
उत्तर:
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक

4. हॉर्मोन मोचक अंतःगर्भाशयी युकियों का चयन करो- (NEET-2019)
(अ) लिप्पेस लूप, मल्टीलोड 375
(ब) बाल्टस, LNG-20
(स) मल्टीलोड 375 , प्रोजेस्टासर्ट
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20
उत्तर:
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20

5. निम्न में कौनसा यौन संचारित रोग पूर्णतः साध्य नहीं है- (NEET-2019)
(अ) क्लेमिडियता
(ब) सुजाक
(स) लैंगिक मस्से
(द) जननिक परिसमें
उत्तर:
(द) जननिक परिसमें

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6. गर्भ निरोधक ‘सहेली’- (NEET-2018)
(अ) एक IUD है।
(ब) मादाओं में एस्ट्रोजन की सान्द्रता को बड़ाती है एवं अण्डोत्सर्ग को रोकती है।
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।
(द) एक पश्च-मैधुन गर्भनिरोधक है।
उत्तर:
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।

7. स्वस्भ I में दिए गए, यौन संचारित रोगों को उनके रोग कारकों (स्तम्भ II) के साथ सुमेलित कीजिए और सही़ी विकल्प का चयन कीजिए- (NEET-2017)

स्तम्भ-Iस्तम्भ-II
1. सुजाक(i) HIV
2. सिफिलिस(ii) नाइडिरिया (Neisseria)
3. जनन मस्से(iii) ट्रेखोनिया
4. AIDS(iv) ह्यामन पैपिलोमा।
कूट :1234
(अ)(ii)(iii)(iv)(i)
(ब)(iii)(iv)(i)(ii)
(स)(iv)(ii)(iii)(i)
(द)(iv)(iii)(ii)(i)

उत्तर:

(अ)(ii)(iii)(iv)(i)

8. एक दंपति जिसके पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम है, उनके लिए निषेचन की कौन-सी तकनीक उचित रहेगी? (NEET-2017)
(अ) अंतः गभाशय स्थानान्तरण
(ब) गैमीट इन्ट्रा फैल्लोपियन ट्रांसफर
(स) कृत्रिम बीर्य सेचन
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण
उत्तर:
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण

9. कॉपर मोचित ‘IUD’ कोंपर आयनों का क्या कार्य होता है? (NEET-2017)
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।
(ब) ये युग्मक जनन को रोकते हैं।
(स) बे गभाशशय को रोपण के लिए अनुपयुक बना देते है।
(द) ये अण्डोत्सर्ग को संदमित करते है।
उत्तर:
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।

10. शुक्रवाहक-उच्छेदन के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा गलत है? (NEET II-2016)
(अ) शुक्रवाहक को काटकर बांध दिया जाता है
(य) अनुक्फ्रमणीय बंध्यता
(स) बीर्य में शुक्राणु नहीं होते है
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।
उत्तर:
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।

11. एम्नीओसेटेसिस के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है? (NEET 1-2016)
(अ) इसे छडन सिन्ड्रेम का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।
(स) यह आमतौर पर तब किया जाता है जब स्त्री को 14-16 सताह के बीच का गर्भ होता है।
(द) इसे प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण के लिए प्रबुक्त किया जाता है।
उत्तर:
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।

12. निम्नलिखित उपागमों में से कौनसा उपागम किसी गर्भनिरोधक को परिभाषित क्रिया नहीं बताता- (NEET II-2016)

(अ) हॉर्मोनी गर्भनिरोधकशुक्राणुओं के प्रवेश को रोकते हैं। उसकी दर को धीमा कर देते हैं, अण्डोत्सर्ग और निषेचन नहीं होने देते।
(ब) शुक्रवाहक उच्छेदनशुकाणुजनन नहीं होने देते।
(स) रोध (बैरियर विधियाँ)निषेचन रोकती है।
(द) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँशुक्राणुओं की भक्ष कोशिकता बढ़ा देती हैं, शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता का मंदन करती हैं।

उत्तर:

(ब) शुक्रवाहक उच्छेदनशुकाणुजनन नहीं होने देते।

13. पात्रे निषेचन द्वारा निमिंत 16 से अधिक कोरकखण्ड्डों (Blasomeres) वाले भ्रूण को स्थानान्तरित कर दिया जाता है- (NEET-2016)
(अ) झालर में
(ब) ग्रीवा में
(स) गर्भाशय में
(द) फैलोपियन नली
उत्तर:
(स) गर्भाशय में

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14. एक निःसंत्रान दम्यति को GIFT नामक तकनीक के जरिये बच्चा प्रास करने में मदद की जा सकती है। इस तकनीक का पूरा नाम है- (NEET-2015)
(अ) युग्मक आंतरिक निषेचन और स्थानान्तरण
(ब) जनन कोशिका का आंतरिक फैलोपियन नलिका स्थानान्तरण
(स) युग्मक वीर्य सेचित का फैलोपियन स्थानान्तरण
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।
उत्तर:
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।

15. निम्नलिखित में से कौन एक होंमोन मोचित करने वाली इंट्रायूटेराइन युकि (आई.यू.डी.) है? (NEET-2014)
(अ) मल्टीलोड-375
(ब) एल.एन.जी-20
(स) ग्रीवा टोपी
(द) वाल्ट।
उत्तर:
(ब) एल.एन.जी-20

16. ट्यूबेक्टोमी बंध्यकरण की एक विधि है जिसमें- (NEET-2014)
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।
(ब) अण्डाशय को शस्य क्रिया विधि से निकाल दिया जाता है।
(स) वास डेफरेन्स का छोटा भाग निकाल दिया जाता है या बांध दिया जाता है।
(द) गर्भांशय शल्य क्रिया विधि द्वारा निकाल दिया जाता है।
उत्तर:
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।

17. सहायक जनन प्रौद्योगिकी आई,वी,एक. के अन्तर्गत किसका स्थानान्तरण होता है ? (NEET-2014)
(अ) अण्डाणु का फैलोपियन नलिका में
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में
(स) युग्मनज का गर्भाशय में
(द) 16 ब्लास्टोमीयर्स वाले श्रूण का फैलोपियन नलिका में
उत्तर:
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में

18. कृत्रिम वीर्य सेचन से आपका क्या वात्पर्य है? (NEET-2013)
(अ) किसी स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्षानान्तरित का देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(ब) पति के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्थानान्तरित कर देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।
(द) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को सीधे ही अण्छाशय के भीतर डाल देना।
उत्तर:
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।

19. जन्म नियंग्नण (बर्थ कंट्रोल) के लिए एक वैध विधि है- (NEET-2013)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य 17

(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना
(ब) आर्तव-चक्र के 10 वें दिन से लेकर 17 वे दिन तक मैधुन से बचन
(स) प्रातःकाल मैथुन करना
(द) मैध्युन के दौरान कालपूर्व स्ललन करना।
उत्तर:
(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना

20. नीचे दिए जा रहे चित्र में विशिएथत क्या दर्शाया गया है? (CBSE PMT-2012, NEET-2012)
(अ) अण्डाशबी कैंसर
(ब) गभाशायी कैंसर
(स) ट्युबेक्टोमी
(द) बासेक्टोमी
उत्तर:
(स) ट्युबेक्टोमी

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21. परखनली शिशु (टेस्टट्यूब्ब बेबी) कार्यक्रम में निम्नलिखित में से किस एक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है- (NEET-2012, CBSE PMT (Pre)-2012)
(अ) अंतःकोशिकीय द्रव्यी शुक्राणु इन्जेषशन (ICSI)
(ब) अंतःगभांशयी वीर्य सेचन (IUI)
(स) युग्मक अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (GIFT)
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)
उत्तर:
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)

22. चिकित्सीय सगर्धता समापन (MTP) को कितने ससाह की गर्भावस्था तक सुरक्षिता माना जाता है? (NEET-2011)
(अ) आठ ससाह
(ब) बारह सताह
(स) अट्ठारह ससाह
(द) हैः सताह
उत्तर:
(ब) बारह सताह

23. वर्तमान समय में भारत में गर्भनिरोध की सर्वाधिक मान्य विधि है- (NEET-2011)
(अ) ट्यूबेक्टॉमी
(ब) डायफ्राम
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ
(द) सर्वाइकल कैप
उत्तर:
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ

24. सहेली है- (Kerala PMT-2011)
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक
(ब) महिलाओं के लिए बंध्यकरण की शल्य विधि
(स) महिलाखं के लिए डायफ्राम
(द) नरों में बंध्यकरण की शल्य विधि
उत्तर:
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक

25. कॅपर मोचक अन्तरा-गर्भाशायी युक्तिर्यों (Intra Uterine Device, IUD) से निर्मुक्त होने वाले कॉपर आयन- (NEET-2010)
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं
(ब) शुक्रापुओं के भक्षकाणु क्रिया में वृद्धि करते है
(स) शुक्राणुओं की गति का संदमन करते हैं
(द) अण्डोत्सर्ग को रोकते हैं।
उत्तर:
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं

26. गैमीट इन्ट्रफेलोंपियन ट्रंस्रफर (GIFT) अर्थात् युग्मक अन्तःफैलोपी स्थानान्तरण तक्नीक की सलाह उन महिलाओं के लिए दी जाती है- [NEET-2011, CBSE PMT (Main) 2011]
(अ) जिनकी गर्भारय ग्रीवा नाल इतनी संकीर्ण होती है कि उसमें से शुक्राणु प्रवेश नहीं कर सकते
(ब) जिनमें निषेचन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध? नहीं हों सकता
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता
(द) जो भ्राण को गर्भाशय के मीतर बनाए नहीं रख सकती।
उत्तर:
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता

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27. जीवे (In vitro) निषेचन की तकनीक के अन्तर्गत निम्नलिखित में से किसका स्थानान्तरण फैल्लोपियन नलिका में किया जाता है? (NEET-2010)
(अ) केवल भूरण का आठ-कोशिकीय अवस्था तक
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का
(स) बत्तीस-कोशिकीय अवस्था के भ्र्ण का
(द) केवल युग्मनज का
उत्तर:
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का

28. एम्नियोसेण्टेसिस की तकनीक का अनुमोदित डपयोग है- (NEET-2010)
(अ) अजन्मे गभं के लिए लिंग की जाँच
(ब) कृत्रिम बीर्य सेचन
(स) सरोगेट माता के गर्भाशय कें भ्रृण का स्थानान्तरण
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच
उत्तर:
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच

29. निम्न में ओरल पिलों का अवयख है- (AFMC-2009)
(अ) प्रोजेस्टेरोन
(ब) अंक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सिन
(द) उपयुंक से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्टेरोन

30. परखनली शिशु को उत्पग्न करने के लिए भ्रृण को कौनसी अवस्था में स्त्री के इरीर में रोषित किया जाता है ? (CPMT-2009)
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में
(ब) 64 कोशिकीय अवस्था में
(स) 100 कोशिकीय अवस्था में
(द) 164 कोशिकीय अवस्था में
उत्तर:
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में

31. गर्भनिरोधक के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और उनके आगे पूछे जा रहे प्रश्न का उत्तर दीजिए- (CBSE-2008)
(1) प्रथम त्रिमास में चिकित्सीय गर्भ समापन (MTP) सामान्यत: निरापद (खतरे से बाहर) होता है
(2) जब तक माँ अपने शिशु को दो वर्ष तक स्तनपान कराती रहती है तब तक गर्भाधान की सम्भावनाएँ नहीं होती हैं
(3) कॉपर-T जैसी आंतर गर्भाशय युक्तियाँ कारगर गर्भनिरोधक होती हैं
(4) संभोग के बाद गर्भनिरोधक गोलियों का एक सताह तक सेवन करने से गर्भाधान रुक जाता है।

(अ) 2,3
(ब) 3,4
(स) 1,3
(द) 1,2
उत्तर:
(स) 1,3

32. अंडवाहिनी में सीधे ही युग्मक प्रवेश करने की तकनीक है- (Manipal-2004)
(अ) MTS
(ब) IVF
(स) POST
(द) ET
उत्तर:
(ब) IVF

33. मादा में मुखीय गर्भनिरोधक किसे रोकती है- (JK. CMEE-2004)
(अ) अण्डोत्सर्ग
(ब) निषेचन
(स) रोपण
(द) योनि में शुक्राणु का प्रवेश
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग

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34. कॉपर-T का कार्य क्या है- (AFMC-2010, BHU-2002)
(अ) विद्लन रोकना
(ब) निषेचन रोकना
(स) उत्परिवर्तन रोकना
(द) गेस्ट्रुलेशन रोकना
उत्तर:
(ब) निषेचन रोकना

35. गर्भनिरोधक गोलियों में प्रोजेस्ट्रोन- (AIPMT-2000)
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है
(ब) एस्ट्रेजन को बाधित करता है
(स) एन्ड्रोमेट्रियम से युग्मनज के जुड़ाव को रोकता है
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है

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HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. क्लोरोफिल में उपस्थित धातु आयन है-
(अ) Fe3+
(ब) Co2+
(स) Mg 2+
(द) Zn 2+
उत्तर:
(स) Mg 2+

2. संकुल [Co(en)2(NH3)2] Br3 में Co की समन्वयी संख्या (CN) है-
(अ) 3
(ब) 4
(स) 7
(द) 6
उत्तर:
(द) 6

3. संकुल [Pt(NH3)3Cl2Br]Cl2 के जलीय विलयन में उपस्थित हैलाइड आयनों की संख्या कितनी होगी?
(अ) 4
(ब) 3
(स) 1
(द) 2
उत्तर:
(स) 1

4. लिगेन्ड सामान्यतः होते हैं-
(अ) लुईस अम्ल
(ब) लुईस क्षार
(स) ऋणायन
(द) उदासीन अणु
(स) ऋणायन
उत्तर:
(ब) लुईस क्षार

5. K4[Fe(CN)6] में Fe की प्राथमिक संयोजकता कितनी है ?
(अ) -4
(ब) +2
(स) +6
(द) +4
उत्तर:
(ब) +2

6. संकुल [Co(NH3) )5Br] SO4 तथा [Co (NH3)5SO4]Br में आपस में कौनसी समावयवता है?
(अ) बंधनी
(ब) ज्यामितीय
(स) आयनन
(द) उपसहसंयोजन
उत्तर:
(स) आयनन

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7. संकुल में कौनसा लिगेन्ड होने पर बंधनी समावयवता होगी ?
(अ) NH3
(ब) en
(स) NC\(\overline{\mathbf{S}}\)
(द) H2O
उत्तर:
(स) NC\(\overline{\mathbf{S}}\)

8. निम्नलिखित में से कौनसा कीलेट लिगेन्ड है?
(अ) \(\overline{\mathrm{C}}\)N
(ब) C2O4-2
(स) NH3
(द) NO2
उत्तर:
(ब) C2O4-2

9. निम्नलिखित में से किस संकुल आयन में अनुचुंबकीय गुण अधिकतम होगा?
(अ) [Cr(H2O)6]3+
(ब) [Fe(CN)6]4-
(स) [Fe(H2O)6]2+
(द) [Zn(H2O)6]2+
उत्तर:
(स) [Fe(H2O)6]2+

10. निम्नलिखित में से कौनसा द्विक लवण (double salt) नहीं है?
(अ) KCl.MgC2.6H2O
(ब) FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O
(स) K4[Fe (CN)6]
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) K4[Fe (CN)6]

11. संकुल (Co(H2O)6] [CrCl3] तथा [Cr(H2O)6] [CoCl6] दर्शाते हैं-
(अ) बन्धनी समावयवता
(ब) उपसहसंयोजन समावयवेता
(स) आयनन समावयवता
(द) विलायकयोजन समावयवता
उत्तर:
(ब) उपसहसंयोजन समावयवेता

12. निम्नलिखित से कौनसा संकुल ज्यामितीय समावयवता नहीं दर्शाता ?
(अ) [MX2L2]
(ब) [MX2AB]
(स) [ML4]
(द) [MABXY]
उत्तर:
(स) [ML4]

13. [Fe (CN)6)]4- में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या कितनी है?
(अ) 3
(ब) 4
(स) शून्य
(द) 2
उत्तर:
(स) शून्य

14. निम्नलिखित में से कौनसा धातु आयन, NH3 के साथ रंगीन विलयन देता है?
(अ) Cu2+
(ब) Zn2+
(स) Mg2+
(द) Ag+
उत्तर:
(अ) Cu2+

15. निम्नलिखित में से किसके जलीय विलयन में स्वतंत्र Fe3+ आयन उपस्थित होगा?
(अ) K3Fe (CN)6
(ब) Fe2 (SO4)3
(स) K4Fe(CN)6
(द) (NH4)2SO4 . FeSO4.6H2O
उत्तर:
(ब) Fe2 (SO4)3

16. संकुल (Cr(H2O)6]Cl3 तथा (Cr(H2O)5Cl]Cl2. H2O
(अ) बन्धनी समावयवी
(ब) आयनन समावयवी
(स) हाइड्रेट समावयवी
(द) उपसहसंयोजन समावयवी
उत्तर:
(स) हाइड्रेट समावयवी

17. [Fe(CO)5] का IUPAC नाम है-
(अ) आयरन पेन्टा कार्बोनिल
(ब) पेन्टा कार्बोनिल आयरन (O)
(स) आयरन पेन्टा कार्बनमोनोऑक्साइड
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) पेन्टा कार्बोनिल आयरन (O)

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

18. निम्नलिखित में से कौनसा द्विदन्तुर लिगेन्ड है?
(अ) अमोनिया
(ब) जल
(स) एथिलीनडाइऐमीन
(द) पिरीडीन
उत्तर:
(स) एथिलीनडाइऐमीन

19. संकुल Na2[Ni ( EDTA)) में Ni की समन्वयी संख्या (CN) कितनी है?
(अ) 1
(ब) 2
(स) 4
(द) 6
उत्तर:
(द) 6

20. निम्नलिखित में से कौनसा बाह्य कक्षक संकुल है?
(अ) [Co(NH3)6]3+
(ब) [CoF6]3-
(स) [Co(CN)6]3-
(द) [Fe(CN)6]3-
उत्तर:
(ब) [CoF6]3-

21. [Fe(CN)6]4- में Fe पर कौनसा संकरण होता है?
(अ) dsp³
(ब) sp³d²
(स) d²sp³
(द) sp³d³
उत्तर:
(स) d²sp³

22. निम्नलिखित में से कौनसा संकुल आयन प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है?
(अ) [ZnCl4]2-
(ब) [Co(CN)6)3-
(स) [Cu(NH3)4]2+
(द) [Cr(C2O4)3]3-
उत्तर:
(द) [Cr(C2O4)3]3-

23. संकुल यौगिक [Cr(H2O)6]Cl3 के लिए चुम्बकीय आघूर्ण का मान 3.83 BM है तो इस संकुल में Cr परमाणु में 3d इलेक्ट्रॉनों का वितरण होगा-
(अ) \(3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xy}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{yz}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xz}}^1\)
(ब) \(3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xy}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{x}^2-\mathrm{y}^2}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{z}}^1\)
(स) \(3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xy}}^{\mathrm{l}}, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{yz}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{z}^2}^1\)
(द) \(3 \mathrm{~d}_{\mathrm{x}^2-\mathrm{y}^2}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{z}^2}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xy}}^1\)
उत्तर:
(अ) \(3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xy}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{yz}}^1, 3 \mathrm{~d}_{\mathrm{xz}}^1\)

24. निम्नलिखित में से प्रतिचुम्बकीय संकुल आयन कौनसा है ?
(अ) [CoCl4]2-
(ब) (CoF6]2-
(स) [Ni (CN)4]2-
(द) [NiCl4]2-
उत्तर:
(स) [Ni (CN)4]2-

25. निम्नलिखित में से किस संकुल आयन की ज्यामिति वर्गाकार समतलीय है?
(अ) [NiCl4]2-
(ब) [FeCl4]2-
(स) [PtCl4]2-
(द) [CoCl4]2-
उत्तर:
(स) [PtCl4]2-

26. किसी संक्रमण धातु के संकुल का विन्यास (t2g)4 (eg)² है। धातु आयन से जुड़े लिगेण्ड की प्रकृति है-
(अ) प्रबल क्षेत्र
(ब) दुर्बल क्षेत्र
(स) उदासीन
(द) धनात्मक क्षेत्र
उत्तर:
(ब) दुर्बल क्षेत्र

27. [Co(NH3)4(NO2)2]Cl प्रदर्शित करता है-
(अ) बन्धन, आयनन समावयवता तथा प्रकाशिक समावयवता
(ब) बन्धन, आयनन तथा ज्यामितीय समावयवता
(स) आयनन ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता
(द) बन्धन, ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता
उत्तर:
(ब) बन्धन, आयनन तथा ज्यामितीय समावयवता

28. चतुष्फलकीय ज्यामिति निम्नलिखित में से किसकी है?
(अ) [Ni(NH3)6]2+
(ब) Ni (CO)4
(स) [Ni (CN)4]2-
(द) [Pt(CN)4]2-
उत्तर:
(ब) Ni (CO)4

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

29. निम्नलिखित में से कौन अनुचुम्बकीय लक्षण प्रदर्शित नहीं करता है?
(परमाणु क्रमांक Ti = 22; Fe = 26; Cr = 24; Cu = 29 )
(अ) [Ti(H2O)6]3+
(ब) [Fe(CN)6]3+
(स) [Cr(NH3)6]3+
(द) [Co(NH3)6]3+
उत्तर:
(द) [Co(NH3)6]3+

30. निम्नलिखित में से कौनसा संकुल दृश्य प्रकाश अवशोषण के लिए प्रत्याशित (Expected) नहीं है?
(अ) [Cr(NH3)6]2+
(ब) [Fe (H2O)6]2+
(स) [Ni(CN)4]2-
(द) [Ni(H2O)6]2+
उत्तर:
(स) [Ni(CN)4]2-

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
\(\overline{\mathrm{N}}\)H2 लिगेन्ड का IUPAC नाम बताइए।
उत्तर:
\(\overline{\mathrm{N}}\)H2 का नाम ऐमीडो है।

प्रश्न 2.
[NiCl4]2- में Ni का प्रभावी परमाणु क्रमांक कितना है?
उत्तर:
[NiCl4]2- में Ni का प्रभावी परमाणु क्रमांक 26 + 8 = 34 है।

प्रश्न 3.
कार्नेलाइट का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कार्नेलाइट का सूत्र KCl . MgCl2 . 6H2O होता है।

प्रश्न 4.
[Cr(EDTA)]-1 में Cr की समन्वयी संख्या कितनी है?
उत्तर:
इस संकुल आयन में Cr की समन्वयी संख्या 6 है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित संकुलों के जलीय विलयन की चालकता का आरोही क्रम बताइए।
(i) K4[Fe(CN)
(ii) [Pt(NH3)4] [PtCl4]
(iii) [Ni (CO)4]
उत्तर:
(iii) < (ii) < (i) क्योंकि (iii) के विलयन में कोई आयन नहीं है लेकिन (ii) व (i) के जलीय विलयन में क्रमशः 2 तथा 5 आयन होंगे।

प्रश्न 6.
(i) [Pt(NH3)4Cl2]Br2 तथा
(ii) [Pt(NH3)4Br2]Cl2 में किस प्रकार विभेद किया जा सकता है?
उत्तर:
दोनों संकुलों के जलीय विलयन में AgNO3 का विलयन डालने पर (i) में AgBr का पीला अवक्षेप बनेगा जबकि (ii) में AgCl का श्वेत अवक्षेप प्राप्त होगा।

प्रश्न 7.
संकुल (Fe (C5H5)2] का IUPAC नाम बताइए।
उत्तर:
बिस (साइक्लोपेन्टा डाइइनिल) आयरन (II)

प्रश्न 8.
किस प्रकार के वर्गाकार समतलीय संकुल ज्यामितीय समावयवता दर्शाते हैं?
उत्तर:
[MX2L2], [ML2X4], [M(AB)2] प्रकार के वर्गाकार समतलीय संकुल ज्यामितीय समावयवता दर्शाते हैं।

प्रश्न 9.
[M ABXY] प्रकार के संकुल के कितने ज्यामितीय समावयवी सम्भव हैं?
उत्तर:
तीन (दो समपक्ष तथा एक विपक्ष)।

प्रश्न 10.
[Fe(CO)5] में Fe पर dsp³ कौनसा संकरण होता है तथा इसका चुम्बकीय गुण भी बताइए।
उत्तर:
[Fe(CO)5] में Fe पर dsp³ संकरण होता है तथा यह प्रतिचुम्बकीय होता है।

प्रश्न 11.
[Pt (NH3)4Cl2]2+ के समपक्ष तथा विपक्ष समावयवी बनाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 1

प्रश्न 12.
समपक्ष [PtCl2(en)2] के प्रकाशिक समावयवी बनाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 2

प्रश्न 13.
Pt(NH3)2Cl2 के ज्यामितीय समावयवी बनाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 3

प्रश्न 14.
[Co(en)3]3+ के ध्रुवण समावयवियों की संरचना बनाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 4

प्रश्न 15.
जल की कठोरता के निर्धारण के लिए आवश्यक लिगेन्ड का नाम बताइए।
उत्तर:
जल की कठोरता का निर्धारण EDTA ( एथिलीनडाई एमीनटेट्रासीटेट) द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 16.
[Cu (NH3)4]2+ संकुल आयन की अपेक्षा [Cu(CN)4]2- संकुल आयन अधिक स्थायी होता है, क्यों?
उत्तर:
NH3 की अपेक्षा \(\overline{\mathrm{C}}\)N अधिक प्रबल लिगेन्ड होता है अतः [Cu(NH3)4]2+ संकुल की अपेक्षा [Cu (CN)4]2- संकुल अधिक स्थायी होता है।

प्रश्न 17.
युग्मन ऊर्जा क्या होती है?
उत्तर:
किसी कक्षक में दो इलेक्ट्रॉनों के युग्मन के लिए आवश्यक ऊर्जा को युग्मन ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 18.
I, S2-, H2O, NC\(\overline{\mathrm{S}}\) तथा CO में से प्रबल क्षेत्र लिगन्ड कौनसे हैं ?
उत्तर:
NC\(\overline{\mathrm{S}}\) तथा CO प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
(a) विशेष नाम युक्त उदासीन लिगेन्डों के उदाहरण बताइए।
(b) धनात्मक लिगेन्डों का नाम किस प्रकार दिया जाता है ? समझाइए।
उत्तर:
(a) विशेष नाम युक्त उदासीन लिगेन्ड निम्नलिखित हैं-
H2O = एक्वा
CS = थायोकार्बोनिल
NH3 = एम्मीन
NO = नाइट्रोसिल
CO = कार्बोनिल
NS थायोनाइट्रोसिल

(b) धनात्मक लिगेन्डों के नाम के अन्त में अनुलग्न इयम (ium) प्रयुक्त किया जाता है।
उदाहरण- \(\stackrel{+}{N}\)O नाइट्रोसिलियम, NH2 – \(\stackrel{+}{N}\)H, हाइड्रेजिनियम तथा \(\stackrel{+}{N}\)O2 नाइट्रोनियम।

प्रश्न 2.
संकुल यौगिकों में उपस्थित केन्द्रीय धातु परमाणु का ऑक्सीकरण अंक तथा संकुल आयन पर आवेश किस प्रकार ज्ञात किया जाता है?
उत्तर:
(i) संकुल में केन्द्रीय धातु परमाणु पर उपस्थित आवेश को उसका ऑक्सीकरण अंक कहते हैं जब वह लिगन्डों से नहीं जुड़ा हो।

(ii) किसी संकुल स्पीशीज पर उपस्थित आवेश उसके केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन तथा उससे जुड़े हुए लिगन्डों के आवेश के योग के बराबर होता है तथा यह प्रति आयनों द्वारा उदासीन होता है।

(iii) किसी उदासीन संकुल में केन्द्रीय धातु परमाणु तथा उससे जुड़े लिगन्डों के आवेश का योग शून्य होता है। कभी-कभी धातु तथा लिगन्ड दोनों ही उदासीन होते हैं, जैसे-[Ni(CO)4]

(iv) उदाहरण –
(a) संकुल K4[Fe(CN)6] में Fe का ऑक्सीकरण अंक ज्ञात करना-
यहाँ K तथा CN पर आवेश ज्ञात है जो कि क्रमशः + 1 तथा – 1 है। अतः
K4[Fe(CN)6]
+ 4 + x – 1 ( 6 ) = 0
+ 4 + x – 6 = 0
x = + 2
अतः इसमें Fe का ऑक्सीकरण अंक, + 2 है।

(b) [Co(NH3)5Cl] Cl2 में Co का ऑक्सीकरण अंक भी इसी प्रकार ज्ञात किया जाता है।
यहाँ NH3 उदासीन है तथा Cl पर आवेश – 1 है अतः
[Co(NH3)5Cl] Cl2
x + 0 – 1 – 2 = 0
x = + 3

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रकार के संकुलों के उदाहरण तथा IUPAC नाम बताइए –
(i) उदासीन संकुल
(ii) ऋणायनिक संकुल
(iii) धनायनिक संकुल
उत्तर:
(i) Fe(CO)5 पेन्टाकार्बोनिल आयरन (O)
(ii) [Co(NO3)6]3- हेक्सानाइट्रेटोकोबाल्टेट (IH) आयन
(iii) [Pt(NH3)4Cl2]2+ टेट्राऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लेटिनम (IV) आयन

प्रश्न 4.
Pt (IV), NH3, Cl तथा Na+ आपस में मिलकर सात प्रकार के संकुल यौगिक बनाते हैं। इनमें से एक संकुल यौगिक निम्नलिखित है-
[Pt(NH3)6]Cl4
(i) अन्य छः संकुल यौगिकों के सूत्र लिखिए।
(ii) इन संकुल यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए।
(iii) इनमें से किस संकुल जलीय विलयन की चालकता सर्वाधिक होगी?
(iv) इनमें से कौनसा संकुल अनआयनिक है?
(v) इन संकुलों में Pt का ऑक्सीकरण अंक व उपसहसयोजन संख्या भी बताइए।
उत्तर:
(i) (a) [Pt (NH3)5Cl]Cl3
(b) [Pt (NH3)4Cl2]Cl2
(c) [Pt(NH3)3Cl3]Cl
(d) [Pt(NH3)2Cl4]
(e) Na[Pt(NH3)Cl5]
(f) Na2[PtCl6]

(ii) (a) पेन्टाऐम्मीन प्लेटिनम (IV) क्लोराइड
(b) टेट्राऐम्मीन डाइक्लोरिडो प्लेटिनम (IV) क्लोराइड
(c) ट्राइऐम्मीन ट्राइक्लोरिडो प्लेटिनम (IV) क्लोराइड
(d) डाइऐम्मीन टेट्राक्लोरिडो प्लेटिनम (IV)
(e) सोडियम ऐम्मीन पेन्टाक्लोरिडो प्लेटिनेट (IV)
(f) सोडियम हेक्साक्लोरिडो प्लेटिनेट (IV)

(iii) संकुल [Pt(NH3)6]Cl4 की चालकता सर्वाधिक होगी क्योंकि यह विलयन में अधिकतम (पाँच आयन) देता है।

(iv) [Pt(NH3)2Cl4] अनआयनिक है।

(v) इन सभी संकुलों में Pt का ऑक्सीकरण अंक + 4 तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।

प्रश्न 5.
समावयवता को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रकार बताइए।
उत्तर:
समावयवता (Isomerism) – ऐसे दो या दो से अधिक यौगिक जिनके रासायनिक सूत्र (अणु सूत्र ) समान होते हैं परन्तु उनमें परमाणुओं की व्यवस्था भिन्न होती है, उन्हें एक-दूसरे के समावयवी कहते हैं तथा इस गुण को समावयवता कहते हैं। परमाणुओं की भिन्न व्यवस्थाओं के कारण इनके एक या अधिक भौतिक या रासायनिक गुणों में भिन्नता होती है। उपसहसंयोजन यौगिकों में दो प्रमुख प्रकार की समावयवताएँ होती हैं जिनको पुनः कई भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
(a) त्रिविम समावयवता-

  • ज्यामितीय समावयवता
  • ध्रुवण समावयवता

(b) संरचनात्मक समावयवता-

  • बंधनी समावयवता
  • उपसहसंयोजन समावयवता या समन्वयी समावयवता
  • आयनन समावयवता
  • विलायकयोजन समावयवता या हाइड्रेट समावयवता
  • लिगन्ड समावयवता
  • बहुलकीकरण समावयवता
  • उपसहसंयोजन स्थिति समावयवता

प्रश्न 6.
आयनन समावयवता की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
आयनन समावयवता – जब किसी संकुल में उपस्थित प्रतिआयन स्वयं एक संभावित लिगेन्ड हो तथा यह किसी लिगेन्ड को प्रतिस्थापित करके दूसरा संकुल बनाता है तो प्राप्त संकुल को आयनन समावयवी तथा इस गुण को आयनन समावयवता कहते हैं।
उदाहरण-
(i) [Co (NH3)5 SO4] Br तथा

(ii) [Co(NH3)5Br]SO4
(i) के आयनन से Br प्राप्त होता है जबकि
(ii) के आयनन से SO2-4 प्राप्त होगा।

प्रश्न 7.
उपसहसंयोजन समावयवता क्या होती है? समझाइए।
उत्तर:
उपसहसंयोजन समावयवता – जब किसी संकुल में उपस्थित भिन्न-भिन्न धातुओं की धनायनिक एवं ऋणायनिक उपसहसंयोजन सत्ता के मध्य लिगेन्डों का अंतरपरिवर्तन (Interchange) होता है तो यह समावयवता उत्पन्न होती है। संकुल [Co (NH3)6] [Cr(CN)6] जिसमें NH3, CO3+ से बंधित हैं तथा CN, Cr3+ से जबकि इसके उपसहसंयोजन समावयवी [Cr(NH3)6] [Co(CN6)] में, NH3, Cr3+ से तथा CN, Co3+ से बंधित है।

प्रश्न 8.
प्रकाशिक या ध्रुवण समावयवता किसे कहते हैं? संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह समावयवता असममित अणुओं या संकुलों में पाई जाती है जिनमें सममिति नहीं होती। ये संकुल ध्रुवित प्रकाश के तल को घुमा देते हैं, अतः इन्हें प्रकाशिक या ध्रुवण समावयवी कहते हैं। ध्रुवण समावयवी एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं तथा इन्हें एक-दूसरे पर अध्यारोपित नहीं किया जा सकता। इन्हें प्रतिबिम्ब रूप या एनैन्टिओमर (enantiomers) भी कहते हैं।

अणु या आयन जो एक-दूसरे पर अध्यारोपित नहीं किए जा सकते, उन्हें काइरल (chiral) कहते हैं । काइरल अणु दो प्रकाशिक समावयवियों के रूप में पाया जाता है दक्षिण-ध्रुवण घूर्णक (d) तथा वाम ध्रुवण घूर्णक (l)। ये ध्रुव प्रकाश को अलग-अलग दिशा में घुमाते हैं (d दाईं तरफ तथा / बाईं तरफ)। प्रकाशिक समावयवता सामान्यतः द्विदंतुर लिगेन्ड युक्त. अष्टफलकीय संकुलों में पाई जाती है, जिनका सामान्य सूत्र

  • [M(AA)2X2]
  • M (AA )3]
  • [M (AA ) X2 Y2] तथा
  • [MX2Y2Z2] होता है।

लेकिन जिन संकुलों में ज्यामितीय समावयवता होती है, उनका समपक्ष रूप ही प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है क्योंकि विपक्ष रूप तो सममित होता है।

उदाहरण-
(i) [PtCl2(en)2]2+ या [Rh (en)2Cl2]+ या [Co(en)2 Cl2]+
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 21

(ii) [Co(en)3]3+ या [Cr(OX)3]5- [OX = ऑक्सेलेट (C2O2-4)]
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 22

(iii) [Co(en)(NH3)2Cl2]+
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 23

(iv) [Pt(NH3)2(Py)2Cl2]2+
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 24
उपसहसंयोजन संख्या 4 वाले संकुलों में वर्गाकार समतलीय ज्यामिति होने पर प्रकाशिक समावयवता नहीं होती क्योंकि इन संकुलों में सममिति तल पाया जाता है लेकिन असममित द्विदंतुर लिगेन्ड युक्त चतुष्फलकीय संकुलों में प्रकाशिक समावयवता होती है।

उदाहरण – बिस (ग्लाइसिनेटो) निकल (II)
[Ni(NH2-CH2-COO)2] (gly = O-N) या [Ni (Gly)2]
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 25

इसी प्रकार बस (बेन्जॉयल ऐसीटोनेटो) बेरिलियम (II) भी प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है।
[Be(C6H5COCHCOCH3)2]
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 26

प्रश्न 9.
[Co(NH3)6]3+ की ज्यामिति तथा चुम्बकीय गुण की व्याख्या VBT की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
[Co(NH3)6]3+ संकुल आयन-संकुल आयन [Co(NH3)6]3+ में, कोबाल्ट आयन +3 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 36 है। अतः इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 5
छः अमोनिया अणुओं से प्रत्येक का एक इलेक्ट्रॉन युग्म छः d²sp³ संकरित कक्षकों में स्थान ग्रहण करता है। इस प्रकार संकुल की ज्यामिति अष्टफलकीय है तथा अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण यह संकुल आयन प्रतिचुंबकीय होता है। यह एक आन्तरिक कक्षक संकुल या निम्न चक्रण संकुल है।

प्रश्न 10.
[CoFo6]3- के अनुचुम्बकीय गुण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
[CoFo6]3- संकुल आयन-इस संकुल में भी कोबाल्ट की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है लेकिन F(WFL) की उपस्थिति में धातु आयन के इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता अतः इसमें sp³d² संकरण होता है तथा अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह अनुचुम्बकीय होता है तथा इसे बाह्य कक्षक संकुल या उच्च चक्रण संकुल कहते हैं। इसकी ज्यामिति भी अष्टफलकीय होती है। इस संकुल में संकरण को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 6

प्रश्न 11.
[Fe(CO)5] की ज्यामिति तथा प्रतिचुम्बकीय गुण की व्याख्या VBT की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
त्रिकोणीय द्विपिरेमिडी संकुल-उदाहरण [Fe(CO)5] इस संकुल में Fe परमाणु अवस्था में है, जिसका इलेक्ट्रॉंनिक विन्यास 3d64s² होता है। CO(SFL) की उपस्थिति में Fe के 3d तथा 4s कक्षकों के सभी इलेक्ट्रॉन 3d में युग्मित हो जाते हैं तथा एक d कक्षक रिक्त होकर dsp³ संकरण होता है। इसमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह संकुल प्रतिचुम्बकीय होता है तथा इसकी ज्यामिति त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 7

प्रश्न 12.
[Cu(NH3)4]2+ की वर्गाकार समतलीय ज्यामिति को समझाइए।
उत्तर:
[Cu(NH3)4]2+ – इस संकुल में भी dsp² संकरण होता है क्योंकि X-किरण विवर्तन से ज्ञात हुआ है कि इसमें लिगेन्ड समतलीय अवस्था में पाए जाते हैं। इसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाने के कारण यह अनुचुम्बकीय होता है तथा इसकी ज्यामिति भी वर्गाकार समतलीय होती है। इसमें संकरण को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 8

बोर्ड परीक्षा के दृष्टिकोण से सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के कारण स्पष्ट कीजिए-
(i) निकल के अल्प स्पिन (Low spin) के अष्टफलकीय कॉम्पलेक्स (संकुल) ज्ञात नहीं हैं।
(ii) केवल संक्रमण तत्वों के लिए ही π-कॉम्पलेक्स जाने जाते हैं।
(iii) बहुत-सी धातुओं के लिए CO लिगेण्ड NH3 की अपेक्षा अधिक प्रबल है।
अथवा
निम्नलिखित संकुलों (कॉम्पलेक्सों) की तुलना, उनकी इकाइयों की आकृतियों, चुम्बकीय व्यवहार और इकाइयों में उपस्थित संकर ऑर्बिटलों के सन्दर्भ में कीजिए-
(i) [Ni(CN)4]2-
(ii) [NiCl4]2-
(iii) [CoF6]3- [परमाणु क्रमांक : Ni = 28; Co = 27]
उत्तर:
(i) निकल (Ni) सामान्यतः +2 अवस्था में संकुल बनाता है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d84s0 होता है जिसमें प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में भी इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से दो d कक्षक रिक्त नहीं हो सकते अतः इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता एवं इसमें sp³d² संकरण होता है अतः यह उच्च चक्रण संकुल ही बनाता है अर्थात् निम्न चक्रण संकुल नहीं बनते।

(ii) केवल संक्रमण तत्व ही π कॉम्पलेक्स बनाते हैं क्योंकि इस प्रकार के संकुल बनाने के लिए आवश्यक लिगेन्ड (जैसे बेन्जीन, साइक्लोपेन्टा डाइइनिल ऋणायन) संक्रमण तत्वों के रिक्त कक्षकों के साथ π बन्ध बना लेते हैं। π संकुलों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
फेरोसीन Fe (η5 – C5H5)2
तथा डाइबेन्जीन क्रोमियम Cr (η56 -C6H6)2
(यहाँ η6 का अर्थ है C6H6 के 6C क्रोमियम से जुड़े हैं।)
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(iii) स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी से ज्ञात होता है कि CO लिगेन्ड, NH3 की अपेक्षा अधिक प्रबल है क्योंकि CO की इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति, NH3 की अपेक्षा अधिक होती है। क्योंकि कार्बन की विद्युतॠणता का मान नाइट्रोजन से कम होता है।
अथवा
उत्तर:

सकुलसंकरणआकृति (ज्यामिति)चुम्बकीय गुण
(i) [Ni(CN)4]2-dsp²वर्गाकार समतलीयप्रतिचुम्बकीय
(ii) [NiCl4]2-sp³चतुष्फलकीयअनुचुम्बकीय
(iii) [CoF6]3-sp³d²अष्टफलकीयअनुचुम्बकीय

(i) [Ni(CN)4]2- – [Pt(CN)4]2- – वर्ग समतलीय आयन [Ni(CN)4]2- में Ni पर dsp² संकरण होता है। इसमें Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
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प्रत्येक संकरित कक्षक एक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण यह संकुल प्रतिचुंबकीय होते हैं।

(ii) [NiCl4]2--[NiCl4]2- आयन में Ni पर sp³ संकरण होता है तथा इसकी ज्यामिति चतुष्फलकीय होती है। यहाँ एक s तथा तीन p कक्षकों के संकरण से चार समान sp³ संकर कक्षक बनते हैं। इस संकुल में निकल +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 11
संकरण के पश्चात् भी 3d कक्षकों में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं जिनके कारण यह संकुल आयन अनुचुम्बकीय होता है।

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(iii) [CoF6]3- [परमाणु क्रमांक : Ni = 28; Co = 27] संकुल आयन-इस संकुल में भी कोबाल्ट की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है लेकिन F(WFL) की उपस्थिति में धातु आयन के इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता अतः इसमें sp³d² संकरण होता है तथा अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह अनुचुम्बकीय होता है तथा इसे बाह्य कक्षक संकुल या उच्च चक्रण संकुल कहते हैं। इसकी ज्यामिति भी अष्टफलकीय होती है। इस संकुल में संकरण को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-
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प्रश्न 2.
उपयुक्त कारण देते हुए निम्नलिखित की व्याख्या कीजिए-
(i) निकल न्यून-चक्रण अष्टफलकीय संकुल नहीं बनाता है।
(ii) π-कॉम्प्लेक्स केवल संक्रमण तत्वों के ही ज्ञात हैं।
उत्तर:
(i) निकल (Ni) सामान्यतः +2 अवस्था में संकुल बनाता है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d84s0 होता है जिसमें प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में भी इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से दो d कक्षक रिक्त नहीं हो सकते अतः इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता एवं इसमें sp³d² संकरण होता है अतः यह उच्च चक्रण संकुल ही बनाता है अर्थात् निम्न चक्रण संकुल नहीं बनते।

(ii) केवल संक्रमण तत्व ही π कॉम्पलेक्स बनाते हैं क्योंकि इस प्रकार के संकुल बनाने के लिए आवश्यक लिगेन्ड (जैसे बेन्जीन, साइक्लोपेन्टा डाइइनिल ऋणायन) संक्रमण तत्वों के रिक्त कक्षकों के साथ π बन्ध बना लेते हैं। π संकुलों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
फेरोसीन Fe (η5 – C5H5)2
तथा डाइबेन्जीन क्रोमियम Cr (η56 -C6H6)2
(यहाँ η6 का अर्थ है C6H6 के 6C क्रोमियम से जुड़े हैं।)
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प्रश्न 3.
उपयुक्त उदाहरण देते हुए निम्नलिखित प्रत्येक पद की व्याख्या कीजिए-
(i) उभयदन्ती लिगेन्ड ( Ambidentate ligand)
(ii) लिगण्ड की दंतिता (Denticity)
(iii) अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन।
उत्तर:
(i) उभयदन्ती या उभयदंतुर लिगन्ड वह लिगेन्ड होता है जो दो भिन्न-भिन्न परमाणुओं द्वारा धातु से जुड़ सकता है लेकिन एक समय में केवल एक दाता परमाणु ही बन्ध बनाता है।
उदाहरण – \(\overline{\mathrm{C}}\)N व \(\overline{\mathrm{N}}\)C

(ii) किसी संकुल में उपस्थित लिगेन्ड के उन परमाणओं की संख्या जो धातु के साथ बन्ध बनाते हैं, उसे लिगेन्ड की दंतिता या दन्तुरता कहते हैं।

(iii) अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन- एक अष्टफलकीय संकुल में धातु परमाणु छः लिगेन्डों द्वारा घिरा होता है। इसमें धातु के d कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों तथा लिगेन्डों के इलेक्ट्रॉनों के मध्य प्रतिकर्षण होता है। जब धातु ad कक्षक लिगेन्ड की ओर सीधे निर्दिष्ट (directed) होते हैं तो प्रतिकर्षण अधिक होता है। dx² – y² तथा dz² कक्षक, लिगेन्ड की दिशा वाले अक्षों पर होते हैं, अतः इन पर प्रतिकर्षण अधिक होता है जिससे इनकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है जबकि dxy, dyz और dxz कक्षक, अक्षों के बीच में स्थित होते हैं, अतः इनकी ऊर्जा गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की औसत ऊर्जा की तुलना में कम हो जाती है।

इस प्रकार अष्टफलकीय संकुल लगन्ड इलेक्ट्रॉन धातु इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण d कक्षकों की समभ्रंशता समाप्त हो जाती है तथा ये तीन निम्न ऊर्जा वाले, t2g कक्षकों तथा दो उच्च ऊर्जा वाले, eg कक्षकों में विभाजित हो जाते हैं। इस प्रकार समान eg ऊर्जा वाले कक्षकों का, लिगेन्डों की निश्चित ज्यामिति में उपस्थिति से दो भागों में विपाटन क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है तथा इस ऊर्जा अंतर को ∆0 [ यहाँ O = अष्टफलकीय (octahedral)] से दर्शाते हैं । eg कक्षकों की ऊर्जा में (3/5) ∆0 के बराबर वृद्धि होती है तथा t2g कक्षकों की ऊर्जा में (2/5) ∆0 के बराबर कमी होती है। प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में ∆0 का मान अधिक होता है जबकि दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में यह मान कम होता है।
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∆ को प्रभावित करने वाले कारक – क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (∆) निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

  • धातु की प्रकृति
  • धातु आयन पर आवेश
  • लिगेन्ड की प्रकृति
  • संकुल की ज्यामिति
  • d- इलेक्ट्रॉनों की संख्या

ये कारक संकुल आयन के रंग को भी प्रभावित करते हैं। धातु आयन पर आवेश बढ़ने से तथा प्रबल क्षेत्र लिगेन्डों की उपस्थिति में विपाटन अधिक होता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन अवस्थाओं ( एन्टीटियों) के नाम और उनके त्रिविम- समावयवियों की संरचनाएँ दीजिए-
(i) [ Co(en)2Cl2]+ (en = एथेन – 1, 2 – डाइऐमीन )
(ii) [Cr(C2O4)3]3-
(iii) [Co(NH3)3Cl3]
(परमाणु क्रमांक Cr = 24, Co = 27)
उत्तर:
(i) [Co(en)2 Cl2]+ का नाम बिस (एथेन – 1,2- डाइऐमीन) डाइक्लोरिडोकोबाल्ट (III) आयन है।
(ii) [Cr(C2O4)3]3- ट्राइऑक्सेलेटो क्रोमेट (III) आयन
(iii) ट्राइऐम्मीनट्राइक्लोरिडो कोबाल्ट (III)

प्रश्न 5.
अणुसूत्र Co (NH3)5SO4 Br वाले दो संकुलों को बोतल A व B में अलग-अलग भरा गया है। इनमें से एक संकुल BaCl2 के साथ श्वेत अवक्षेप जबकि दूसरा सिल्वर नाइट्रेट के साथ हल्का पीला अवक्षेप देता है तो बोतल A व B में उपस्थित संकुलों के सूत्र लिखिए तथा अलग-अलग अभिक्रिया प्रदर्शित करने का कारण समझाइये।
उत्तर:
अणु सूत्र Co ( NH3)5 SO4 Br वाले दो संकुलों में से बोतल A में [Co ( NH3 )5 Br] SO4 तथा बोतल B में [Co(NH3)5SO4]Br संकुल का विलयन है।

संकुल A के आयनन से SO2-2 आयन प्राप्त होगा जो BaCl2 के साथ क्रिया करके BaSO4 का श्वेत अवक्षेप देता है जबकि संकुल B आयनन से प्राप्त Br आयन AgNO3के साथ AgBr का हल्का पीला अवक्षेप देता है। अतः संकुल A तथा B एक-दूसरे के आयनन समावयवी हैं।

प्रश्न 6.
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन सिद्धान्त के आधार पर चतुष्फलकीय उपसहसंयोजन यौगिकों के बनने में d-कक्षकों के विपाटन को समझाते हुए बताइये कि ये संकुल हमेशा उच्च चक्रण वाले ही क्यों बनते हैं?
उत्तर:
चतुष्फलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन- चतुष्फलकीय संकुलों में d कक्षकों का विपाटन अष्टफलकीय संकुलों से विपरीत तथा कम होता है। अर्थात् eg कक्षकों की ऊर्जा t2g कक्षकों से कम होती है। समान धातु, समान लिगन्डों तथा धातु तथा लिगेन्ड के बीच की दूरी समान होने पर ∆t = 4 / 9 ∆0, ∆t = चतुष्फलकीय कक्षकों की क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, अतः कक्षकों की विपाटन ऊर्जा इतनी कम होती है कि इलेक्ट्रॉनों का युग्मन कक्षकों में नहीं होता अतः चतुष्फलकीय संकुल सामान्यतः उच्च चक्रण युक्त ही होते हैं।
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प्रश्न 7.
निम्नलिखित संकुल यौगिकों के आई.यू.पी.ए.सी. नाम लिखिए-
(अ) [CoCl2 (en)2 ]Cl
(ब) K3[Fe (CN)6]
उत्तर:
(अ) डाइक्लोरिडोबिस (एथेन-1, 2- डाइऐमीन) कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ब) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)

प्रश्न 8.
[NiCl4]2- आयन अनुचुम्बकीय है जबकि [Ni(CN)4]2- आयन प्रतिचुम्बकीय है। संयोजकता बंध सिद्धान्त की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
वर्ग समतलीय आयन [Ni (CN)4]2- में Ni पर dsp² संकरण पाया जाता है। इसमें Ni की ऑक्सीकरण अवस्था + 2 है अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
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प्रत्येक संकरित कक्षक एक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म प्राप्त करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अनुपस्थित होने के कारण यह संकुल प्रतिचुंबकीय है।

[NiCl4]2-आयन में Ni पर sp³ संकरण पाया जाता है तथा इसकी ज्यामिति चतुष्फलकीय होती है।

इसमें एक s तथा तीन कक्षकों के संकरण से चार समान sp³ संकर कक्षक बनते हैं। यहाँ निकल + 2 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा इस आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है अतः इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
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संकरण के पश्चात् भी 3d कक्षकों में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं जिनके कारण यह संकुल आयन अनुचुंबकीय होता है।

प्रश्न 9.
उभयदंती लिगन्ड का एक उदाहरण लेकर बताइए कि यह क्यों उभयदन्ती लिगेन्ड कहलाता है?
उत्तर:
वह लिगेन्ड जो दो भिन्न परमाणुओं द्वारा धातु आयन के साथ जुड़ सकता है, उसे उभयदंती लिगेन्ड कहते हैं। उदाहरण – NO2, यह नाइट्रोजन (NO2) अथवा ऑक्सीजन (\(\overline{\mathrm{O}}\)NO) द्वारा धातु आयन से जुड़ सकता है।

प्रश्न 10.
संकुल यौगिक K3[ Fe(C2O4)3] में केन्द्रीय धातु परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या तथा उपसहसंयोजन संख्या बताइए।
उत्तर:
संकुल यौगिक K3[Fe (C2O4)3] में केन्द्रीय धातु परमाणु (Fe) की ऑक्सीकरण संख्या + 3 तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
ऑक्सीकरण संख्या की गणना निम्न प्रकार की जाती है-
K3[Fe (C2O4)3]
+ 3 + x – 2 ( 3 ) = 0
+ 3 + x – 6 = 0
x = + 3
Fe से तीन द्विदंतुर लिगेन्ड (C2O42-) जुड़े हैं अतः इसकी उपसहसंयोजन संख्या 6 है।

प्रश्न 11.
समपक्ष [CoCl2 (en)2 ] तथा फलकीय [Co(NH3)3(NO2)3] समावयवियों की संरचना दीजिए।
उत्तर:
(i) समपक्ष [CoCl2 (en)2] की संरचना
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(ii) फलकीय [Co(NH3)3(NO2)3] की संरचना
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प्रश्न 12.
संकुल [NiCL]2- के लिए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) IUPAC नाम
(ii) संकरण का प्रकार
(iii) संकुल की ज्यामिति।
उत्तर:
(i) टेट्राक्लोरिडोनिकलेट (II) आयन
(ii) sp³ संकरण
(iii) चतुष्फलकीय ज्यामिति।

प्रश्न 13.
संकुल [Cr (NH3)4 Cl2]Cl का IUPAC नाम लिखिए तथा इसमें किस प्रकार की समावयवता पाई जाती है?
उत्तर:
संकुल [Cr(NH3)4 Cl2] Cl का IUPAC नाम- टेट्राएम्मीन डाइक्लोरिडो क्रोमियम (III ) क्लोराइड है तथा इसमें ज्यामितीय समावयवता पाई जाती है, अर्थात् इसके दो रूप होते हैं – समपक्ष एवं विपक्ष।

प्रश्न 14.
(अ) धातुओं के शुद्धिकरण के क्षेत्र में उपसहसंयोजन यौगिकों का अनुप्रयोग एक उदाहरण के साथ समझाइए
(ब) उपसहसंयोजन यौगिक [Ag (NH3)2] [Ag(CN)2] का IUPAC नाम लिखिए।
उत्तर:
(अ) धातुओं का शुद्धिकरण उनके संकुल बनाकर तथा उसे पुनः अपघटित करके किया जाता है। उदाहरण- अशुद्ध निकल को पहले [Ni(CO)4] में परिवर्तित किया जाता है तथा फिर इसे अपघटित करके शुद्ध निकल प्राप्त कर लिया जाता है।

(ब) [Ag (NH3)2] [Ag (CN)2] का IUPAC नाम डाइएम्मीनसिल्वर (I) डाइसायनो अर्जेन्टेट (I) है।

प्रश्न 15.
द्विक लवण तथा संकुल में अन्तर समझाते हुए प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
द्विक लवण तथा संकुल दोनों ही दो या दो से अधिक स्थायी यौगिकों के रससमीकरणमितीय अनुपात में मिलाने से बनते हैं। फिर भी दोनों में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-
(i) द्विक लवण, जल में पूर्ण रूप से साधारण आयनों में वियोजित हो जाते हैं जबकि संकुल, जल में वियोजित होकर संकुल आयन तथा प्रति आयन देते हैं।

(ii) द्विक लवण का विलयन सभी आयनों का परीक्षण देता है जबकि संकुल का विलयन संकुल आयन तथा प्रतिआयन का ही परीक्षण देता है।

(iii) द्विक लवण में आयनिक बन्ध पाया जाता है जबकि संकुल में उपसहसंयोजी बन्ध भी पाया जाता है। मोहर लवण (FeSO4 . (NH4)2SO4 . 6H2O) ( फेरस अमोनियम सल्फेट) द्विक लवण का उदाहरण है जबकि पोटैशियम फेरो सायनाइड K4[Fe(CN)6] संकुल का उदाहरण है।

प्रश्न 16.
[Cr (H2O) Br2]Cl के आयनन समावयवी का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
[Cr(H2O)4 Br2] Cl का आयनन समावयवी [Cr(H2O)4BrCl] Br होता है।

प्रश्न 17.
मर्क्युरी टेट्राथायोसायनेटो – कोबाल्टेट (III) उपसहसंयोजक यौगिक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
Hg [Co(SCN)4]

प्रश्न 18.
संयोजकता बंध सिद्धान्त के आधार पर समझाइए कि [Ni(CN)4]2- एक निम्न प्रचक्रण संकुल आयन है।
उत्तर:
वर्ग समतलीय आयन [Ni(CN)4]2- में Ni पर dsp² संकरण पाया जाता है। इसमें Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होगा-
Ni2+ आयन के कक्षक
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 19
\(\overline{\mathrm{C}}\)N (प्रबल क्षेत्र लिगन्ड) की उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
Ni2+ के dsp² संकरित कक्षक
HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 20
प्रत्येक संकरित कक्षक एक \(\overline{\mathrm{C}}\)N से एक इलेक्ट्रॉन युग्म प्राप्त करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण यह एक निम्न प्रचक्रण संकुल आयन है।

HBSE 12th Class Chemistry Important Questions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 19.
[Co(NH3)5ONO]Cl2 किस प्रकार की समावयवता प्रदर्शित करता है?
(ii) क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के आधार पर यदि ∆0 < P है, तो d+ आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
(iii) [Fe(CN)′′]’ में संकरण अवस्था और इसका आकार लिखिए।
(Fe का परमाणु क्रमांक = 26)
उत्तर:
(i) [Co(NH3)5ONO]Cl2 बन्धनी तथा आयनन समावयवता दर्शाता है क्योंकि इसमें ONO में दाता परमाणु O है जबकि NO2 में दाता परमाणु N है। इसके साथ ही ŌNO व \(\overline{\mathrm{C}}\)l के विनिमय से आयनन समावयवता होती है।

(ii) जब ∆0 < P, तो क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के अनुसार + आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t2g³eg1 होगा।

(iii) [Fe(CN)6]3- में d²sp³ संकरण होता है क्योंकि इसमें \(\overline{\mathrm{C}}\)l प्रबल श्क्षेत्र लिगेन्ड है जिसकी उपस्थिति में Fe+3 आयन में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है और इस आयन का आकार अष्टफलकीय है।

प्रश्न 20.
(i) निम्नलिखित कॉम्प्लेक्स का आई.यू.पी.ए.सी. नाम लिखिए-
[Pt(NH3)(H2O)Cl2]
(ii) निम्नलिखित कॉम्प्लेक्स का सूत्र लिखिए- ट्रिस (एथेन – 1, 2 – डाइऐमीन) क्रोमियम (III ) क्लोराइड
उत्तर:
(i) इस कॉम्प्लेक्स (संकुल) का आई. यू. पी. ए. सी. नाम ऐम्मीन एक्वा डाइक्लोरिडो प्लेटिनम (II) है।
(ii) इस कॉम्प्लेक्स का सूत्र [Cr(en)3]Cl3 है।

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