Class 11

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रेडेशनल प्रक्रिया का उदाहरण है?
(A) अपरदन
(B) निक्षेप
(C) ज्वालामुखीयता
(D) संतुलन
उत्तर:
(A) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करती है?
(A) क्ले (चीका मिट्टी)
(B) लवण
(C) क्वार्टज़
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(A) क्ले (चीका मिट्टी)

3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) मंद संचलन
(C) द्रुत संचलन
(D) अवतलन
उत्तर:
(C) द्रुत संचलन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

4. अधिवद्धि अथवा तलोच्चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य शामिल नहीं होता?
(A) अपरदन
(B) अपक्षय
(C) अपरदित पदार्थों का परिवहन
(D) निक्षेपण
उत्तर:
(B) अपक्षय

5. चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
(A) आर्द्र प्रदेशों में
(B) हिमाच्छादित प्रदेशों में
(C) ठंडे मरुस्थलों में
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में
उत्तर:
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में

6. चट्टानों के अपशल्कन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से उत्तरदायी है?
(A) चट्टानों का परतों में होना
(B) हिमांक से नीचे तापमान
(C) अत्यधिक उच्च ताप
(D) ताप-विभेदन
उत्तर:
(D) ताप-विभेदन

7. चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को कहा जाता है-
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) अनाच्छादन
(D) अनावृतिकरण
उत्तर:
(A) अपक्षय

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8. लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को कहा जाता है-
(A) कार्बोनेटीकरण
(B) ऑक्सीकरण
(C) जलयोजन
(D) वियोजन
उत्तर:
(B) ऑक्सीकरण

9. ग्रेनाइट चट्टानों में होने वाली अपशल्कन क्रिया के पीछे किस कारक का योगदान होता है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जलयोजन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) जलयोजन

10. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) गुरुत्वाकर्षण
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) विवर्तन
(D) जलवायु
उत्तर:
(B) चट्टानों का प्रकार

11. बृहत क्षरण का निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकार मंद संचलन का उदाहरण नहीं है?
(A) मृदा विसर्पण
(B) मृदा प्रवाह
(C) मृदा सर्पण
(D) शैल विसर्पण
उत्तर:
(B) मृदा प्रवाह

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भूस्खलन को परिभाषित करता है?
(A) विखंडित शैल पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे सरकना।
(B) स्थायी हिम के ऊपर जल से लबालब मलबे का ढाल के अनुरूप खिसकना
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण
(D) वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी के बहुत बड़े क्षेत्र का स्थानांतरित होना
उत्तर:
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण

13. वक्राकार तल पर घूर्णी गति के फलस्वरूप ढाल के सहारे चट्टान का रुक-रुक कर स्खलन होना कहलाता है-
(A) भूमि सर्पण
(B) मलबा स्खलन
(C) शैल पात
(D) अवसर्पण
उत्तर:
(D) अवसर्पण

14. मृदा परिच्छेदिका का वह कौन-सा संस्तर है जिसके ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में खनिज व जैव पदार्थों की अधिकता होती है?
(A) क संस्तर
(B) ख संस्तर
(C) ग संस्तर
(D) घ संस्तर
उत्तर:
(A) क संस्तर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
उत्तर:
शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में।

प्रश्न 2.
चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपक्षय।

प्रश्न 3.
लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ऑक्सीकरण।

प्रश्न 4.
तल सन्तुलन लाने वाले दो कारकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय किन दो क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. कार्बोनेटीकरण।

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प्रश्न 6.
सूर्यातप अपक्षय में प्याज के छिलके की तरह चट्टानी परतों के उतरने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपशल्कन।

प्रश्न 7.
तुषार अथवा पाला द्वारा चट्टानें किस प्रकार की जलवायु में टूटती हैं?
उत्तर:
शीत जलवायु में।

प्रश्न 8.
कार्बनीकरण का प्रमाण किस प्रकार की चट्टानों पर पड़ता है?
उत्तर:
चूना-युक्त चट्टानों पर।

प्रश्न 9.
लवण क्रिस्टलन अपक्षय किन क्षेत्रों में होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय और तटीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 10.
बृहत् संचलन का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
अनुढाल संचलन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहिर्जात प्रक्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे प्रक्रियाएँ जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाती हैं, बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
पिण्ड-विच्छेदन क्यों होता है?
उत्तर:
पिण्ड-विच्छेदन लम्बे समय तक तापमान के घटने-बढ़ने से चट्टानों के बार-बार फैलने-सिकुड़ने के कारण चट्टानों के तल पर पैदा हुए तनाव के कारण होता है।

प्रश्न 3.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत का ढाल के अनुरूप नीचे खिसकना बृहत् . क्षरण कहलाता है।

प्रश्न 4.
अपक्षय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

प्रश्न 5.
अपघटन (Decomposition) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का कमज़ोर पड़कर टूट जाना अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 6.
विघटन (Disintegration) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों, खण्डों या कणों में टूटकर बिखरना विघटन कहलाता है।

प्रश्न 7.
मृदा विसर्पण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना।
  2. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा करना।

प्रश्न 8.
प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भू-तल पर कार्यरत वे सभी प्रक्रियाएँ अथवा शक्तियाँ जो धरातल की ऊँची-नीची भूमि को एक सामान्य तल पर लाने की कोशिश करती हैं, प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

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प्रश्न 9.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाली बहिर्जात प्रक्रियाओं से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अंतर्जात प्रक्रियाएँ पर्वत, पठार, घाटी और मैदान जैसे भू-आकारों का निर्माण कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करती हैं। इनके विपरीत भू-तल पर कुछ ताकतें ऐसी भी होती हैं, जो इन विषमताओं को निरन्तर दूर करने में लगी रहती हैं, इन्हें बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहते हैं। बहिर्जात प्रक्रियाएँ वे प्रक्रियाएँ हैं जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रवणता सन्तुलन अथवा तल सन्तुलन की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि निम्नीकरण और अधिवृद्धि का तल सन्तुलन से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर उठे भागों के कट-छटकर समतल हो जाने की प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं। वास्तव में, सन्तुलित धरातल एक ऐसी अवस्था है जिसमें बहिर्जात प्रक्रियाएँ न तो तल को ऊपर उठा रही होती हैं और न ही उसे नीचे कर रही होती हैं। इसमें अपरदन और निक्षेप का हिसाब बराबर बना रहता है। प्रवणता सन्तुलन कभी भी स्थाई नहीं रह पाता, क्योंकि पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ कभी भी भू-तल को चैन से नहीं बैठने देतीं।

प्रवणता सन्तुलन निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के एक-साथ कार्यरत रहने से प्राप्त होता है-

  • निम्नीकरण अथवा तलावचन (Degradation)
  • अधिवृद्धि अथवा तल्लोचन (Aggradation)

बाहरी कारकों द्वारा धरातल के ऊँचे उठे हुए भागों को अपक्षय, अपरदन तथा परिवहन द्वारा नीचे करने की प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। भूगोल में इस प्रक्रिया को अनाच्छादन भी कहा जाता है। निम्नीकरण की प्रक्रिया द्वारा ऊँचे भू-भागों से प्राप्त अपरदित पदार्थों का जब गर्मों व निचले प्रदेशों में निक्षेपण हो जाता है, तो इसे अधिवृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहिर्जनिक बल तथा अंतर्जनित बल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ-पर्पटी सदैव परिवर्तित होती रहती है। ये सभी परिवर्तन कछ बलों के प्रभाव से होते हैं। भ-तल के ऊपर कार्य करने वाले बलों को बहिर्जनिक बल तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में कार्य करने वाले बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों के प्रभाव से भू-आकृतियों का निम्नीकरण/तलावचन तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव होता है। अंतर्जनित बलों से भू-तल के उच्चावच में विषमताएँ आती हैं अर्थात् अंतर्जनित बल पर्वत, पठार, मैदान और घाटी जैसे आकारों की रचना कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करते हैं। बहिर्जनिक बल इन विषमताओं को दूर करने में लगा रहता है।

प्रश्न 4.
भौतिक अपक्षय के विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चट्टानों का विघटन या भौतिक अपक्षय निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
1. सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती है। बार-बार चट्टानों के इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में तनाव पैदा होता है और वे टूट जाती हैं। चट्टानों के टूटने के इस ढंग को पिण्ड विच्छेदन (Block Disintegration) कहते हैं।

अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी चट्टानों के खनिज भिन्न-भिन्न दर से फैलते और सिकुड़ते हैं। ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन कहलाती है। जब प्रचण्ड ताप के कारण चट्टानों की ऊपरी पपड़ी प्याज के छिलकों के रूप में उतरने लगती है तो इस विघटन को पल्लवीकरण या अपशल्कन कहा जाता है।

2. पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Altermate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

3. दाब-मुक्ति (Pressure Release) कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टाने दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

4. लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering) चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय के कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय के कारक निम्नलिखित हैं
1. ऑक्सीकरण (Oxidation) -जल तथा आई वाय में मिली हई ऑक्सीजन का. जब लौहयक्त चट्टानों से संयोजन होता है. तो चट्टान में स्थित लौह अंश ऑक्साइडों में बदल जाते हैं अर्थात् लोहे में जंग (Rust) लग जाता है। इससे चट्टानों का रंग लाल, पीला या बादामी हो जाता है। इस क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण में लौहयुक्त चट्टानें भुरभुरी होकर गलने लगती हैं।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

3. जलयोजन (Hydration) चट्टानों में कुछ खनिज ऐसे भी होते हैं, जो हाइड्रोजन युक्त जल को रासायनिक विधि द्वारा अवशोषित (Absorb) कर लेते हैं, जिससे उनका आयतन लगभग दुगुना हो जाता है। खनिजों का बढ़ा हुआ आयतन चट्टानों के कणों और खनिजों में तनाव, खिंचाव तथा दबाव पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें फूलकर यान्त्रिक विधि द्वारा मूल चट्टान से उखड़ जाती हैं।

4. विलयन (Solution) वर्षा के जल के सम्पर्क में आने पर सभी चट्टानें भिन्न-भिन्न दर से घुलती हैं, लेकिन कुछ खनिज जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं, जैसे सेंधा नमक (Rock Salt) और चूना-पत्थर आदि। चट्टानों का यह रासायनिक अपक्षय विलयन कहलाता है।

प्रश्न 6.
बृहत् क्षरण (बृहत् संचलन) की परिभाषा देते हुए मृदा विसर्पण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा (Definition)-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को हम मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ (Fence) तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन क्या है? भू-स्खलन कितने प्रकार का होता है? किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भू-स्खलन (Land Slide)-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

2. शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।

प्रश्न 8.
अपक्षय तथा अपरदन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

अपक्षय (Weathering) अपरदन (Erosion)
1. अपक्षय की प्रक्रिया स्थैतिक साधनों द्वारा सम्पन्न होती है। 1. अपरदन की प्रक्रिया धरातल पर कार्यरत गतिशील साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।
2. अपक्षय में चट्टानें टूटकर अपने मूल स्थान या उसके आस-पास पड़ी रहती हैं। 2. अपरदन में अपक्षयित पदार्थों का अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
3. अपक्षय में चट्टानों की केवल टूट-फूट होती है। 3. अपरदन में चट्टानों की टूट-फूट व स्थानान्तरण दोनों होते हैं।
4. सूर्यातप, पाला, दाबमुक्ति, ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, विलयन, जीव, वनस्पति तथा मनुष्य अपक्षय के प्रमुख कारक हैं। 4. अपरदन के मुख्य कारक हिमनदी, नदी, पवन, समुद्री तरंगें इत्यादि हैं।
5. अपक्षय मृदा-निर्माण का आधार है। 5. अपरदन विभिन्न स्थलाकृतियों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
1. भौतिक अपक्षय में चट्टानें भौतिक बलों के प्रभाव से टूटती हैं। 1. इसमें चट्टानें रासायनिक अपघटन द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं।
2. भौतिक अपक्षय में विधटित चट्टानों के खनिज मूल चट्टानों जैसे ही रहते हैं। 2. रासायनिक अपक्षय में अपघटित चट्टानों के रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है।
3. चट्टानों का भौतिक अपक्षय शीत एवं शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है। 3. रासायनिक अपक्षय उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में अधिक कारगर होता है।
4. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब-मुक्ति हैं। 4. रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन तथा विलयन हैं।
5. बलकृत अपक्षय में चट्टानें पर्याप्त गहराई तक प्रभावित होती हैं। 5. रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का केवल तल ही प्रभावित होता है।

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प्रश्न 10.
ढाल मलबा तथा पाद मलबा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका. आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 350 से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है। । कुछ विद्वान् ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है। अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
जैविक अपक्षय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ऐसा अपक्षय जिसमें चट्टानों की टूट-फूट के लिए मुख्य रूप से जीव-जन्तु, मनुष्य और वनस्पति उत्तरदायी हों, ‘जैविक अपक्षय’ कहलाता है। कीड़े-मकौड़े और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ ऐसी हैं जो चट्टानों में बिल बनाकर रहती हैं। बिल बनाने से असंगठित मलबा बाहर आता है और चट्टानें कमज़ोर होकर टूटती हैं। वनस्पति की जड़ें चट्टानों की दरारों में प्रवेश करके उन्हें चौड़ा करती हैं। जड़ों की माध्यम से हवा और पानी का भी चट्टानों में घुसने का राह बन जाता है। इसमें रासायनिक अपक्षय को बल मिलता है। मनुष्य भी कुएँ, झील, नहरें, बाँध, भटे, सुरंगें, तालाब, खाने, नगर, कारखाने व सड़के इत्यादि बनाकर चट्टानों को तोड़ने का काम करता रहता है। ये सभी जैविक अपक्षय के रूप हैं।

प्रश्न 12.
मृदा विसर्पण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मृदा विसर्पण निम्नलिखित कारणों से होता है-

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना
  2. हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  3. शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  4. मृदा का जल में भीगना व सूखना
  5. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना
  6. बिलकारी जीवों द्वारा भूमि का अपक्षय तथा मनुष्य द्वारा ढाल की ‘रोक’ (Barrier) को हटाना इत्यादि।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपक्षय की परिभाषा दीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय की परिभाषा-मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के कार्यों द्वारा चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है। चट्टानों में टूट-फूट विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) क्रियाओं से होती है। विघटन में चट्टानें भौतिक बलों द्वारा चटक कर टूटती हैं, जबकि अपघटन में चट्टानें रासायनिक क्रियाओं द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं। स्पार्क्स के शब्दों में, “प्राकृतिक कारकों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा होने वाले विघटन और अपघटन को अपक्षय कहते हैं।”

अपक्षय के प्रकार- मौसमी तत्त्वों के अतिरिक्त जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य भी चट्टानों की टूट-फूट के लिए उत्तरदायी होते हैं, ऐसा अपक्षय जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। इस प्रकार अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं

  • भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering)।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तीनों प्रकार के.अपक्षय कम या अधिक मात्रा में एक साथ घटित हो रहे होते हैं। अपक्षय में उत्पन्न चट्टान चूर्ण का बड़े पैमाने पर परिवहन नहीं होता। यह तल सन्तुलन के कारकों के रंगमंच जरूर तैयार कर देता है।

भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय – [Physical or Mechanical Weathering]:
चट्टानों का विघटन निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
(1) सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में जहाँ दैनिक तापान्तर अधिक होता है, सूर्यातप चट्टानों के विघटन का सबसे कारगर साधन सिद्ध होता है। ऐसे प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के असाधारण रूप से गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार लम्बे समय तक बार-बार फैलते और सिकुड़ते रहने से उनके तल पर तनाव उत्पन्न हो जाता है। तनाव चट्टानों में दरारें पैदा करता है जिसके फलस्वरूप चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटित होने लगती हैं। चट्टानों की इस प्रकार टूट पिंड विच्छेदन (Block Disintegration) कहलाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 1
कई चट्टानें जो अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी होती हैं, उनके खनिज ताप के प्रभाव से भिन्न-भिन्न दरों से फैलते और सिकुड़ते हैं, ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती रहती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन (Granular Disintegration) कहलाती है। मरुस्थलों में सूर्यास्त के बाद चट्टानों के इस प्रकार टूटने से बन्दूक से गोली छूटने जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
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कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे अपशल्कन या पल्लवीकरण प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2a

(2) पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 9 घन सेंटीमीटर जल जमने के बाद 10 घन सेंटीमीटर जगह घेरता है, जिससे चट्टानों पर प्रति वर्ग सेंटीमीटर 15 किलोग्राम का प्रतिबल पड़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Alternate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

(3) दाब-मुक्ति (Pressure Release)कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टानें दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

(4) लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering)-चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

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प्रश्न 2.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं? मंद संचलन के अन्तर्गत होने वाले बृहत् क्षरण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बृहत् क्षरण का अर्थ-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

बृहत् क्षरण के प्रकार – बृहत् क्षरण की गति में बड़ी भारी भिन्नता पाई जाती है। यह गति एक वर्ष में कुछ मिलीमीटर (जो दिखाई भी न दे) से लेकर 100 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है। गति के आधार पर बृहत क्षरण के विभिन्न रूपों को दो मोटे वर्गों में बाँटा जा सकता है-
मन्द संचलन (Slow Movement)-

  1. मृदा विसर्पण (Soil Creep)
  2. शैल विसर्पण (Rock Creep)
  3. ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus)
  4. मृदा सर्पण (Solifluction)।

द्रुत संचलन (Rapid Movement)-

  1. मृदा प्रवाह (Soil Flow)
  2. भू-स्खलन (Land Slide)
    • शैल स्खलन (Rock Slide)
    • अवसर्पण (Slumping)
    • शैल पात (Rock Fall)
    • मलबा स्खलन (Debris Slide)
  3. भूमि सर्पण (Earth Slide)
  4. पंक प्रवाह (Mud Flow)।

1. मन्द संचलन (Slow Movement)-अदृश्य होने के बावजूद मन्द संचलन धरातल को तराशने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भू-गर्भवेताओं के अनुसार, लम्बे समय तक जारी रहने वाले मन्द संचलन विस्फोटक और द्रुत संचलन की अपेक्षा मलबे की अधिक मात्रा को लुढ़का ले जाते हैं।

(i) मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
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मृदा विसर्पण के कारण (Causes of Soil Creep)-

  • शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में तुषार (Frost) तथा हिम का पिघलना
  • हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  • शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  • मृदा का जल में भीगना व सूखना
  • भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना

(2) शैल विसर्पण (Rock Creep)-वर्षा ऋतु में चट्टानों के ऊपर स्थित शैल चूर्ण और मिट्टी की कमज़ोर परत का आवरण हट जाने के बाद मौसम के कारक आधार शैल (Bed Rock) का विखण्डन करना आरम्भ कर देते है। विखण्डित शैल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे की ओर सरकते है, जिसे शैल विसर्पण कहा जाता है।

(3) ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus) पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 35° से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है।

कुछ विद्वान ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है।

अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।
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(4) मृदा सर्पण (Solifluction)-Solifluction लातीनी भाषा के दो पदों ‘Solum Soil’ (मृदा) तथा ‘Fluere flow’ (बहना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ जल से संतृप्त मिट्टी का ढाल के नीचे की ओर प्रवाह है। मृदा सर्पण ऊँचे अंक्षाशों तथा निम्न अंक्षाशों के उच्च पर्वतीय भागों में घटित होता है। आर्कटिक वृत के टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थाई हिम (Permafrost) (जहाँ सारा वर्ष तापमान 0° सेल्सियस व उससे भी कम रहता है) के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में ऊपर की हिम पिघलने लगती है, जबकि नीचे की भूमि अभी हिम से जमी हुई (Frozen) होती है। स्थाई हिम पिघले हुए जल के अन्तःस्राव अर्थात् रिसाव में बाधा डालती है। परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के ऊपर जल से लबालब मलबा ढाल के अनुरूप खिसकने लगता है। मृदा सर्पण की गति इतनी मन्द होती है कि वह दिखाई ही नहीं देती। पर्वतीय ढालों पर मृदा सर्पण से सोपानों एवं वेदिकाओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन का अर्थ-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

भू-स्खलन के प्रकार भू-स्खलन चार प्रकार का होता है। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
(1) शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।
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(2) अवसर्पण (Slumping)-अवसर्पण की क्रिया वक्राकार तल पर घूर्णन गति (Rotating) के फलस्वरूप घटित होती है। इसमें चट्टान का स्खलन ढाल के सहारे रुक-रुक कर होता है और कम दूरी तक होता है। जिस ढाल पर चट्टान का अवसर्पण होता है उस पर सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी वेदिकाएँ बन जाती हैं। भारत में अवसर्पण के उदाहरण, पश्चिमी तट पर चेन्नई और विशाखापट्टनम के बीच तथा पूर्वी तट पर केरल में कौनिक के निकट मिलते है।
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(3) शैल पात (Rock Fall)-शैल पात की क्रिया शैल स्खलन से मिलती-जुलती अवसर्पण है। अन्तर केवल यह है कि शैल पात में किसी खड़े ढाल वाले क्लिफ से विशाल शैल खण्ड अकेले ब्लॉक के रूप में गिरता है। गिरने वाले खण्ड का आकार एक गोलाश्म (Boulder) जितना छोटा भी हो सकता है और गाँव के आकार जितना विशाल भी। गिरने वाले खण्ड का आकार क्लिफ की भौमकीय रचना पर निर्भर करता है। गिरने के बाद वह विशाल खण्ड अनेक प्रकार के बड़े-बड़े और छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट सकता है। हिमालय तथा आल्पस पर्वत क्षेत्रों में शैल पात की घटनाएँ प्रायः होती रहती है।

(4) मलबा स्खलन (Debris Slide) मलबा स्खलन वह शैल चूर्ण होता है जो अपने मूल स्थान से हट कर ढाल के नीचे की ओर खिसकता हुआ किसी अन्य स्थान पर दोबारा एकत्र हो जाता है। यदि मलबा समूह तीव्र ढाल पर नीचे की ओर तेजी से विसर्पण करता है तो इस क्रिया को मलबा स्खलन कहते हैं और यदि मलबे का समूह तीव्र गति के साथ ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है तो उसे मलबा पात (Debris Fall) कहते हैं। हिमालय की घाटियों में मलबा स्खलन और मलबा पात की अनेकों घटनाएँ देखने को मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
बृहत संचलन के प्रकार बताते हुए किसी एक का संक्षेप में वर्णन करें। द्रूत संचलन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बृहत संचलन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-

  • मंद संचलन (Slow Movement)
  • दूत संचलन (Rapid Movement)
  • भू-स्खलन (Land Slide)

गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा अथवा चट्टान का अचानक एवं तीव्र गति से संचलन बहुत हानिकारक होता है। मलबे के द्रुत संचलन के लिए वर्षा के जल या हिम के पिघले जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें से द्रुत संचलन का वर्णन निम्नलिखित है
1. भूमि सर्पण (Earth Slide) इसमें भूमि का एक पूरा-का-पूरा विशाल ब्लॉक पर्वत या पहाड़ी के नीचे की ओर खिसकता है। यह टूटकर खण्डित नहीं होता, बल्कि पूरा ब्लॉक ही ज्यों-का-त्यों रहता है। यह खिसकी हुई भूमि मार्ग में कितने ही लम्बे अथवा थोड़े समय तक रुकी रह सकती है।

2. मृदा प्रवाह (Soil Flow)-आर्द्र जलवायु के क्षेत्रों में जल के संतृप्त मिट्टी, ऊपरी भाग का चट्टान चूर्ण, चिकनी मिट्टी तथा शैल मृत्तिका आदि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा तीव्र गति से कुछ ही घंटों में ढाल के नीचे की ओर खिसक आते हैं, इसे मृदा प्रवाह कहते हैं। मृदा प्रवाह में जल अथवा हिमजल स्नेहक (Lubricant) का काम करते हैं।

3. पंक प्रवाह (Mud Flow)-अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में जल से संतृप्त होकर शैल पदार्थ अपने मूल स्थान की ढाल से अलग होकर प्लास्टिक पदार्थ की भाँति नीचे की ओर निकली हुई जिह्वाओं की आवृति में बहने लगते हैं।

ज्वालामुखी उद्गार के बाद होने वाली वर्षा में ज्वालामुखी राख और धूलकण गीले होकर पंक का रूप धारण कर लेते है आर ढाल के साथ नीचे की ओर खिसकते हैं।

4. मलबा अवधाव (Debris Avalanche) मलबा अवधाव द्रुत संचलन आर्द्र प्रदेशों में, जिनमें वनस्पति का आवरण हो या न हो, पाया जाता है। यह मलबा तीव्र ढालों पर संकरे मार्गों से बहता है। मलबा अवधाव हिम अवधाव जैसा होता है और पंक प्रवाह की अपेक्षा बहुत तेज बहता है।

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HBSE 11th Class Geography भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(A) निक्षेप
(B) ज्वालामुखीयता
(C) पटल-विरूपण
(D) अपरदन
उत्तर:
(D) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(A) ग्रेनाइट
(B) क्वार्ट्ज़
(C) चीका (क्ले) मिट्टी
(D) लवण
उत्तर:
(D) लवण

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3. मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन
(C) मंद प्रवाही बृहत् संचलन
(D) अवतलन/धसकन
उत्तर:
(B) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
उत्तर:
अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने एवं मृदा-निर्माण में सहायक हैं। जैव मात्रा एवं जैव विविधता दोनों ही मुख्यतः वनों पर निर्भर करते हैं तथा वन अपक्षयी प्रवाल की गहराई अर्थात् न केवल आवरण प्रस्तर एवं मिट्टी अपरदन बृहत् अपरदन पर निर्भर करता है। यह कुछ खनिजों; जैसे लोहा, मैंगनीज, एल्यूमिनियम आदि के संकेंद्रण में भी सहायक होता है।

प्रश्न 2.
बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। भू-स्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। तीव्र ढाल के कारण शिखरों से पत्थर, मलबा, मिट्टी आदि घाटी की ओर गिरने लगते हैं। असंबद्ध कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली शैलें, भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा तथा वनस्पति का अभाव बृहत् संचलन में सहायक होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भ-आकतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन (निरावृत्त करना या आवरण हटाना) के अंतर्गत रखा जा सकता है। अपक्षय, बृहत क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि अनाच्छादन प्रक्रिया में सम्मिलित होते हैं। बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होती हैं जैसे कि पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेश स्थित हैं जो कि अक्षांशीय, मौसमी एवं जल-थल विस्तार में भिन्नता के द्वारा उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 4.
क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर:
मृदा निर्माण सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधों द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं। मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। अपक्षय मूल शैल को छोटे-छोटे कणों में परिवर्तित करता है, जो धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए कीजिए।

प्रश्न 1.
“हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है,” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है। धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है। बाह्य बलों को बहिर्जनिक तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं।

अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं। यह भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृतिक निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं। इस प्रकार बाह्य बलों के संतुलन के कारकों के लगातार क्रियाशील रहने के कारण विविध प्रकार के स्थलरूप बनते रहते है। धरातल पर पाए जाने वाले प्रमुख स्थल रूप पर्वत, पठार और मैदान हैं। अंतर्जनित शक्तियाँ मूल रूप से आकृति निर्मात्री शक्तियाँ होती हैं। धरातल का निर्माण एवं विघटन क्रमशः अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक शक्तियों का परिणाम हैं।

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प्रश्न 2.
“बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक – कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। गर्मी के कारण शैलें फैलती हैं और सर्दी के कारण सिकुड़ जाती हैं। दैनिक ताप के अधिक होने के कारण शैलें फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। इस कारणवश शैलों में दरारें आ जाती हैं तथा दरारों के कारण शैलें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।

अधिक गर्मी के कारण शैलों की बाहरी परतें जल्दी फैल जाती हैं, लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। क्रमिक रूप से फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से अलग हो जाती हैं। विभिन्न प्रकार की शैलें अपनी संरचना में भिन्नता के कारण भू-आकृतिक प्रतिक्रियाओं के प्रति विभिन्न प्रतिरोध क्षमता प्रस्तुत करती हैं। एक विशेष शैल एक प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोधपूर्ण तथा वही दूसरी प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोध रहित हो सकती है। विभिन्न जलवायवी दशाओं में एक विशेष प्रकार की शैलें भू-आकृतिक प्रतिक्रियाओं के प्रति भिन्न-भिन्न दरों पर कार्यरत रहती हैं तथा स्थलाकृति में भिन्नता का कारण बन जाती है।

प्रश्न 3.
क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएँ-भौतिक प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं। ये बल निम्नलिखित हैं-

  • गुरुत्वाकर्षक बल
  • तापक्रम में परिवर्तन
  • शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव।

भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने के कारण होता है। ये प्रक्रियाएँ लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रांति (फैटीग्यू) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुँचा सकती हैं।

रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ-अपक्षय प्रक्रियाओं का एक समूह जैसे कि विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, आक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जोकि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा-जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है।

लेकिन कई क्षेत्रों में भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ अंतर्संबंधित हैं। ये साथ-साथ चलती हैं तथा अपक्षय प्रक्रिया को त्वरित बना देती हैं। ये दोनों प्रक्रियाएँ ही चट्टानों का विखंडन करती हैं। दोनों मूल पदार्थों में अपघर्षण करती हैं।

प्रश्न 4.
आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर:
मृदा-निर्माण या मृदा जनन सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है। यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा अवशोषित किए जाते हैं।

मृदा निर्माण के कारक-मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है जो निम्नलिखित अनुसार हैं-

  • मूल पदार्थ (शैलें)
  • स्थलाकृति
  • जलवायु
  • जैविक क्रियाएँ
  • मय।

उपर्युक्त कारक संयुक्त रूप से कार्य करते हैं एवं एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। जलवायु कारक की मृदा-निर्माण में निम्नलिखित भूमिका है-

  • प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व आर्द्रता।
  • तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता।

जैविक क्रियाओं की मदा निर्माण में निम्नलिखित भूमिका है

  • मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं।
  • ठंडी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है, क्योंकि यहाँ बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होती है।
  • आई, उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टीरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं तथा मृत वनस्पति शीघ्रता से ऑक्सीकृत हो जाती है जिससे मृदा में ह्यूमस की मात्रा बहत कम रह जाती है।
  • बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप से परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहते हैं।

भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ समंककता (Cohesion)-पदार्थों का आपस में जुड़े रहने का गुण और शक्ति समंककता कहलाती है।

→ निक्षालन या प्रक्षालन (Leaching)-आर्द्र जलवायु के प्रदेशों का वह प्रक्रम जिसके द्वारा जैव तथा खनिज लवण जैसे घुलनशील पदार्थ मिट्टी की ऊपरी परत से वर्षा जल के रिसाव के साथ निचली परत में पहुंच जाते हैं।

→ केशिका क्रिया (Capillary Action)-वर्षण से ज्यादा वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों में मिट्टी में उपलब्ध जल का कोशिका के समान पतली नलिकाओं द्वारा नीचे से ऊपर की ओर उठना, केशिका क्रिया कहलाता है। जल के ऊपर की ओर स्थित संचरण का क्षेत्र Capillary.Fringe कहलाता है। बालू मिट्टी की बजाय चीका मिट्टी में नमी केशिका क्रिया अधिक प्रभावी होती है। मोमबत्ती के धागे में पिघले मोम का पहुंचना, जल-स्तर स्याही चूस (Blotting Paper) द्वारा स्याही का चूसना व दीए में रखी कपास की बाट में तेल या घी का पहुंचना, केशिका क्रिया द्वारा ही होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ मृदा वातन (Aeration of Soil)-वह प्रक्रिया जिसमें वायुमंडलीय हवा मिट्टी की हवा को प्रतिस्थापित (Replace) करती है। एक भली-भांति वातित मिट्टी में बाहर और अंदर की हवा एक-जैसी होती है, किंतु अल्पवातित मिट्टियों में वायुमंडल की अपेक्षा ऑक्सीजन का प्रतिशत कम और कार्बन डाईऑक्साइड का प्रतिशत अधिक होता है।

→ pH मूल्य (pH Value)-मिट्टी में अम्ल या क्षार का सांद्रण व्यक्त करने वाला एक अंक। इस विधि का आविष्कार S.P. Sorensen ने सन् 1909 में किया था। इस मापक में 0 से 14 अंक होते हैं तथा तटस्थ घोल की pH Value 7 होती है। क्षारीय घोल 7 से 14 तक के अंकों द्वारा व्यक्त होता है, जबकि अम्लीय घोल 0 से 7 तक के अंकों द्वारा व्यक्त किया जाता है।

→ पॉडजोलाइज़ेशन (Podzolization)-अत्यंत ठंडी जलवायु में जीवाणुओं की कमी के कारण जैव तत्त्वों के धीरे-धीरे सड़ने-गलने से मिट्टी का धीमा विकास।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

HBSE 11th Class Geography खनिज एवं शैल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह एवं निकेल
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम
(C) लौह एवं चाँदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटैशियम
उत्तर:
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम

2. निम्न में से कौन-सा कायांतरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शांत
(D) पत्रण
उत्तर:
(A) परिवर्तनीय

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चाँदी
(D) ग्रेफाइट
उत्तर:
(B) माइका

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पर
उत्तर:
(C) हीरा

5. निम्न में से कौन सा शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर
उत्तर:
(D) संगमरमर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएँ।
उत्तर:
शैल-पृथ्वी की पर्पटी शैलों से बनी है। शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है। शैलों में खनिज घंटकों का कोई निश्चित संघटक नहीं है। शैल को चट्टान भी कहा जाता है। शैलों को निर्माण पद्धति के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय शैल
  • अवसादी शैल
  • कायांतरित शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण की पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।
उत्तर:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ienis)शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

आग्नेय शैलों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है। इनकी बनावट इनके कणों के आकार एवं व्यवस्था अथवा पदार्थ की भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं, तो खनिज के कण पर्याप्त बड़े-बड़े हो सकते हैं। सतह पर हुई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं। शीतलता की मध्यम परिस्थितियाँ होने पर आग्नेय शैल को बनाने वाले कण मध्यम आकार के होते हैं।

प्रश्न 3.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताएँ।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग.75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

निर्माण की पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण-

  • यांत्रिकी रूप से निर्मित-बालुकाशम, पिंडशिला, चूना प्रस्तर, विमृदा आदि।
  • कार्बनिक रूप से निर्मित-गीज़राइट, चूना-पत्थर, कोयला आदि।
  • रासायनिक रूप से निर्मित-शृंग, प्रस्तर, चूना-पत्थर, हेलाइट आदि।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 4.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या संबंध होता है?
उत्तर:
शैली चक्र एक सतत् प्रक्रिया होती है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय व अन्य शैलें प्राथमिक शैलों से निर्मित होती हैं। आग्नेय एवं कायांतरित शैलों से प्राप्त अंशों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है। निर्मित, भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो आग्नेय शैलों के मूल स्रोत हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
खनिज शब्द को परिभाषित कीजिए और प्रमुख खनिज बताइए।
उत्तर:
खनिज की परिभाषा-‘खनिज’ वे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जिनकी अपनी भौतिक विशेषताएँ तथा एक निश्चित रासायनिक बनावट होती है। अधिकांश खनिज ठोस, जड़ व अकार्बनिक अथवा अजैव पदार्थ होते हैं। चट्टानों की रचना विभिन्न खनिजों के संयोग से होती है। वॉरसेस्टर के अनुसार, “लगभग सभी चट्टानों में दो या दो से अधिक खनिज होते हैं।” कई बार चट्टान केवल एक खनिज से भी बनती है। जैसे चूना, पहाड़ी नमक, बालू-पत्थर इत्यादि।

इसी आधार पर फिन्च व ट्रिवार्था ने कहा है, “एक या एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से चट्टानों का निर्माण होता है।” प्रमुख खनिज-प्रमुख खनिज निम्नलिखित हैं-
1. फेल्सपार-सिलिका और ऑक्सीजन सभी फेल्सपारों में उपस्थित होते हैं जबकि सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम व एल्यूमीनियम इत्यादि फेल्सपार के विशिष्ट प्रकार में पाए जाते हैं। इसका उपयोग चीनी मिट्टी व काँच के बर्तन बनाने में होता है।

2. क्वार्टज़-इसका रचनाकारी तत्त्व सिलिका है। यह रेत व ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है। यह कठोर होने के कारण पानी में नहीं घुलता। यह सफेद व रंगहीन होता है। इसका उपयोग रेडियो एवं राडार निर्माण में होता है।

3. पाइरॉक्सीन इसमें कैल्शियम, एल्यूमीनियम शामिल हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 10% हिस्सा इससे बना है। इसका रंग हरा अथवा काला होता है। सामान्यतः यह उल्का पिंड में पाया जाता है।

4. एम्फीबोल-इसके प्रमुख तत्त्व एल्यूमीनियम, कैल्शियम, सिलिका, लोहा और मैग्नीशियम हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 7% भाग इससे बना है। यह हरे और चमकीले काले रंग का होता है। इसका उपयोग एस्बेस्ट्स की तरह होता है। यह विद्युत यंत्र के निर्माण में काम आता है।

5. अभ्रक-इसके प्रमुख तत्त्व पोटैशियम, लौह, सिलिका आदि हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 4% भाग इससे बना है। ये मुख्यतः आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में पाए जाते हैं। विद्युत उपकरणों में इसका उपयोग होता है।

6. ऑलिवीन इसमें मैग्नीशियम, लौह आदि शामिल होते हैं। इसका उपयोग आभूषण बनाने में होता है। ये हरे रंग के क्रिस्टल होते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अंतर स्थापित कैसे करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार होते हैं-
1. आग्नेय चट्टानें/शैल-आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज . थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

2. अवसादी चट्टानें/शैल-अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग 75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

3. कायांतरित चट्टानें/शैल-कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।
अंतर:

आग्नेय शैल अवसादी शैल कायांतरित शैल
यह मैरमा व लावा के जमने से बनती है। उदाहरण-ग्रेनाइट, बेसाल्ट, ग्रेबो, पेग्मैटाइट आदि। यह परतदार होती है। इसमें वनस्पति व जीव-जंतुओं का जीवाश्म पाया जाता है। इसका निर्माण अवसाद की परतों में जमने के कारण होता है। यह दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन के द्वारा निर्मित होती हैं।
उदाहरण-चूना पत्थर, चूना प्रस्तर कोयला, विमृदा आदि। उदाहरण-संगमरमर, स्लेट, ग्रेनाइट आदि।

प्रश्न 3.
कायांतरित शैल क्या है? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
कायांतरित शैल-कायांतरित या रूपान्तरित शब्द अंग्रेज़ी के शब्द ‘Metamorphic’ से बना है। इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Meta = Change तथा Morphe = Form अर्थात् जो मूल रूप में परिवर्तित हो चुकी है, अतः कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।

पी०जी० वॉरसेस्टर के अनुसार, “रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो बिना विघटित हुए रूप तथा संरचना में परिवर्तित हो जाती हैं।”

रूपान्तरित या कायान्तरित शैलों/चट्टानों के प्रकार एवं निर्माण प्रक्रिया रूपान्तरित चट्टानों का कायान्तरण दो प्रकारों के अंतर्गत होता है
1. भौतिक कायान्तरण (Physical Metamorphism)-इसे यांत्रिक कायान्तरण भी कहते हैं। धरातल के नीचे अत्यधिक गहराई में दबाव के कारण चट्टानों की संरचना में परिवर्तन आ जाता है; जैसे शैल (Shale) का स्लेट में परिवर्तन। दूसरा रूपान्तरण तापमान के कारण होता है। अत्यधिक ताप के कारण भू-गर्भ की चट्टानें परिवर्तित हो जाती हैं; जैसे चूने के पत्थर का संगमरमर में बदलना।

2. रासायनिक कायान्तरण (Chemical Metamorphism)-जब एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से बनी चट्टान मूल खनिजों के पुनर्मिश्रण के कारण दूसरी चट्टान में बदल जाती है या किसी विशेष चट्टान में दूसरी चट्टान का कोई तत्त्व मिश्रित हो जाता है और उसका रूप बदल जाता है उसे रासायनिक कायान्तरण कहते हैं। कार्बन-डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन जैसी गैसें जल में मिल जाने पर घुलनशीलता में वृद्धि कर देती हैं और विभिन्न घुलनशील खनिज आपस में क्रिया करके एक नई चट्टानी संरचना को जन्म देते हैं।

प्रभाव क्षेत्र के आधार पर रूपान्तरण (Metamorphism on the basis of Effective Areas)-चट्टानों का रूपान्तरण उनके प्रभाव क्षेत्र के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से होता है-
1. प्रादेशिक रूपान्तरण (Regional Metamorphism)-जब भू-गर्भ में अधिक तापमान तथा दबाव के कारण एक बहुत बड़े क्षेत्र में चट्टानों का रूपान्तरण होता है तो उसे प्रादेशिक रूपान्तरण कहते हैं। जैसे-जैसे रूपान्तरण की तीव्रता बढ़ती है तो शैल (Shale) स्लेट में, स्लेट शिस्ट में और शिस्ट नाइस में परिवर्तित हो जाती है। यह गतिक रूपान्तरण भी कहलाता है।

2. स्पर्श रूपान्तरण (Contact Metamorphism)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय जब मैग्मा का प्रवाह धरातल की ओर होता है तो मैग्मा के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों में तापक्रम के कारण परिवर्तन आ जाता है, उसे स्पर्श रूपान्तरण कहते हैं।

खनिज एवं शैल HBSE 11th Class Geography Notes

→ जीवाश्म (Fossil)-परतदार शैलों के बीच जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अवशेष या उनके छापों का मिलना।

→ प्रवाल (Coral)-एक सूक्ष्म समुद्री जीव जो अपने शरीर से चूना (कैल्शियम कार्बोनेट) निकालकर उससे अपना कवच या खोल तैयार कर लेता है। ये उष्ण कटिबंध के स्वच्छ या सुऑक्सीजनित जल में उत्पन्न होते हैं जहाँ इन्हें सूक्ष्म जीव खाद्य पदार्थ के रूप में मिलते हैं।

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़कर आई हुई सूक्ष्म कणों वाली धूलि का निक्षेप।

→ घड़िया (Crucible)-एक बर्तन जिसमें धातुओं को गलाया जाता है। ऐसा बर्तन ग्रेफाइट से बनता है, क्योंकि ग्रेफाइट का गलनांक 3500° सेल्सियस होता है।

→ गलनांक (Melting Point)-वह तापमान जिस पर कोई ठोस वस्तु तरल बनने लगती है।

→ गठन (Texture)-शैलों की रचना करने वाले कणों का आकार, आकृति और एक-दूसरे से जुड़ने की व्यवस्था अर्थात् कणों का ज्यामितीय स्वरूप।

→ क्वाटर्ज़ (Quartz)-यह प्राकृतिक रवेदार सिलिका (बालू) है। यह कभी-कभी शुद्ध, स्वच्छ और रंगहीन कणों में मिलता है। इसके ऊँचे गलनांक के कारण उद्योगों में इसका बहुत उपयोग होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ घात्विक खनिज (Metallic Minerals)-धात्विक खनिज वे होते हैं, जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है। ये धातुवर्य (Malleable) होते हैं अर्थात् इनसे धातुओं को पीटकर चादर, तार इत्यादि विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है।

→ आग्नेय शैलें (Igneous Rocks)-ऐसी शैलें जिनका निर्माण पृथ्वी के भीतर उपस्थित तरल एवं तप्त द्रव्य के ठण्डा होकर ठोस हो जाने से हुआ हो, आग्नेय शैलें कहलाती हैं।

→ प्राथमिक शैलें (Primary Rocks)-पृथ्वी पर सबसे पहले जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति से भी पहले आग्नेय शैलों का निर्माण हुआ। इसी आधार पर इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहा जाता है।

→ रूपान्तरित शैलें (Metamorphic Rocks)-ऐसी शैलें जो अन्य शैलों के रूप परिवर्तन के द्वारा बनती हैं, रूपान्तरित शैलें कहलाती हैं।

→ तापीय रूपान्तरण (Thermal Metamorphism)-ऊँचे ताप के प्रभाव से शैलों के खनिजों का रासायनिक परिवर्तन और पुनः क्रिस्टलीकरण हो जाता है। इसे तापीय रूपान्तरण कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. महाद्वीपों की स्थिरता की विचारधारा को खारिज कर प्रतिस्थापना परिकल्पना प्रस्तुत करने वाले विद्वान् का क्या नाम था?
(A) फ्रांसिस बेकन
(B) एफ०बी० टेलर
(C) अल्फ्रेड वेगनर
(D) ओंटानियो पैलीग्रिनी
उत्तर:
(C) अल्फ्रेड वेगनर

2. पेंजिया का अर्थ है-
(A) संपूर्ण जल
(B) संपूर्ण भूमि
(C) संपूर्ण वायुमण्डल
(D) संपूर्ण जैवमण्डल
उत्तर:
(B) संपूर्ण भूमि

3. टेथिस से अभिप्राय है-
(A) पैंथालसा से बाहर निकली कटक
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति
(C) अटलांटिक महासागर में स्थित अंतःसमुद्री कटक
(D) कार्बोनिफेरस युग की खारे पानी की झील
उत्तर:
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति

4. किस बल के प्रभावाधीन उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका यूरोप और अफ्रीका से अलग हो गए?
(A) द्रव के उछाल से
(B) ज्वारीय बल से
(C) अपकेंद्री बल से
(D) अभिकेंद्री बल से
उत्तर:
(B) ज्वारीय बल से

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

5. निम्नलिखित में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिक
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन
उत्तर:
(D) अरेबियन

6. टेथिस के उत्तर में स्थित लारेशिया भू-खंड में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रदेश शामिल नहीं था?
(A) यूरेशिया
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) ग्रीनलैंड
(D) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(B) ऑस्ट्रेलिया

7. वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहां स्थित था?
(A) टेरा डेल फ्यूगो में
(B) सान साल्वेडोर में
(C) नेटाल (डरबन) में
(D) मेलबोर्न में
उत्तर:
(C) नेटाल (डरबन) में

8. पर्वतों और महाद्वीपीय चापों की उत्पत्ति के संबंध में निम्नलिखित में कौन-सा कथन वेगनर का नहीं है?
(A) पश्चिमी द्वीप समूह की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका व दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी प्रवाह के कारण हुई
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ
(C) एशिया महाद्वीप के पश्चिम की ओर प्रवाह के कारण क्यूराइल, जापान व फिलीपींस द्वीपों की उत्पत्ति हुई
(D) हिमालय पर्वत टेथिस भू-सन्नति में जमा जलोढ़ से बना है।
उत्तर:
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ

9. वेगनर ने अपनी प्रतिस्थापना परिकल्पना में ब्राजील के उभार को किस भू-खंड के साथ मिलाने की बात की है?
(A) बंगाल की खाड़ी से
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से
(C) अरब प्रायद्वीप से
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से

10. वेगनर ने अंटार्कटिका में कोयले के भंडारों की उपस्थिति के लिए कौन-सा साक्ष्य प्रस्तुत किया है?
(A) प्राचीनकाल में कोयले का निर्माण ठंडे प्रदेशों में भी संभव था
(B) कभी सूर्य अंटार्कटिका पर सीधा चमकता था, इसलिए वह उष्ण कटिबंध था
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया
(D) कोयला विस्थापित होकर उष्ण कटिबंध से कटिबंध से अंटार्कटिका की ओर चला गया
उत्तर:
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया

11. वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन जिस दिशा में हुआ, वह है
(A) भूमध्य रेखा व उत्तरी ध्रुव
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव
(C) भूमध्य रेखा व दक्षिणी ध्रुव
(D) भूमध्य रेखा व पूर्व ध्रुव
उत्तर:
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव

12. यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
(A) भू-आकार
(B) दरार का बनना
(C) निर्माण या रचना
(D) विनाश या विध्वंस
उत्तर:
(C) निर्माण या रचना

13. निम्नलिखित में से किस विषय का अध्ययन प्लेट विवर्तनिकी में नहीं किया जाता?
(A) बाढ़ का मैदान
(B) ज्वालामुखी क्रिया
(C) वलन
(D) विभंजन
उत्तर:
(A) बाढ़ का मैदान

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

14. पुराचुंबकत्व के बारे में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) पृथ्वी एक छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करती है; यह बात विलियम गिलबर्ट ने बताई थी
(B) उत्तर-दक्षिण रेखा तथा चुंबकीय उत्तर-दक्षिण रेखा के बीच विद्यमान दिशाकोणीय अंतर चुंबकीय दिकपात कहलाता है
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है
(D) वर्तमान में भू-चुंबकीय अक्ष पृथ्वी के परिभ्रमण अक्ष के साथ 11/2° का कोण बनाता है
उत्तर:
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है

15. महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
(A) वाहन एव मैथ्यूज़ ने
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने
(C) कॉक्स व डोयल ने
(D) मैसन ने
उत्तर:
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने

16. ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
(A) पी० मककैनी
(B) आर०एल० पार्कर
(C) जे० टूजो विल्सन
(D) डीज़
उत्तर:
(C) जे० टूजो विल्सन

17. निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलमण्डल का भाग नहीं है?
(A) सियाल
(B) साइमा
(C) निचला मेंटल स्तर
(D) ऊपरी मेंटल स्तर
उत्तर:
(C) निचला मेंटल स्तर

18. प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
(A) महाद्वीपीय पटल को
(B) महासागरीय बेसाल्ट पटल को
(C) निचले मेंटल को
(D) भू-क्रोड को
उत्तर:
(C) निचले मेंटल को

19. एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को कहा जाता है-
(A) अभिसारी प्लेटें
(B) अपसारी प्लेटें
(C) संरक्षी प्लेटें
(D) विस्थापित प्लेटें
उत्तर:
(B) अपसारी प्लेटें

20. मृत सागर की निम्न भूमि किन सीमाओं द्वारा बनी दरार घाटी है?
(A) अपसारी सीमाओं द्वारा
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा
(C) अभिसारी सीमाओं द्वारा
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा

21. रॉकीज व एंडीज़ पर्वतों का निर्माण किस प्रकार के अभिसरण से हुआ था?
(A) महासागर →← महासागर
(B) महाद्वीप → ← महासागर
(C) महाद्वीप → ← महाद्वीप
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) महाद्वीप → ← महासागर

22. प्लूम अथवा तप्त स्थल के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) प्लूम संक्रमण क्षेत्र से 670 कि०मी० नीचे उत्पन्न होते हैं
(B) प्लूम के ऊपर प्लेट का जो भाग आता है, गर्म होने लगता है
(C) एक प्लूम 10 करोड़ वर्ष तक सक्रिय रहता है
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है
उत्तर:
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पैंजिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संपूर्ण भूमि।

प्रश्न 2.
वेगनर के अनुसार सारा विस्थापन किस महाद्वीप के संदर्भ में हुआ?
उत्तर:
अफ्रीका।

प्रश्न 3.
1912 ई० में ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर ने।

प्रश्न 4.
‘पैंथालासा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जल ही जल या संपूर्ण जल।

प्रश्न 5.
‘रिंग ऑफ फायर’ किस महासागर को कहा जाता है?
उत्तर:
प्रशांत महासागर को।

प्रश्न 6.
वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहाँ स्थित था?
उत्तर:
नेटाल (डरबन) में।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 7.
यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
निर्माण या रचना।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने।

प्रश्न 9.
‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
उत्तर:
जे० टूजो विल्सन।

प्रश्न 10.
प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
उत्तर:
निचले मेंटल को।

प्रश्न 11.
एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपसारी प्लेटें।

प्रश्न 12.
प्लेटों में गति क्यों होती है?
उत्तर:
प्लेटों का संचलन तापीय संवहन क्रिया द्वारा होता है।

प्रश्न 13.
संवहन धारा सिद्धान्त किस पर आधारित था?
उत्तर:
शैलों की रेडियोधर्मिता पर।

प्रश्न 14.
वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त कब प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1912 में।

प्रश्न 15.
पैंजिया के भू-खण्डों का विस्थापन कब शुरू हुआ?
उत्तर:
15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसिन युग में।

प्रश्न 16.
प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त किस बारे में है?
उत्तर:
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति के बारे में है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाद्वीप किसे कहते हैं?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊपर उठे पृथ्वी के विशाल भू-खंड महाद्वीप कहलाते हैं। विश्व में सात महाद्वीप हैं।

प्रश्न 2.
महासागर किसे कहते हैं?
उत्तर:
सीमांत सागरों; जैसे भूमध्य सागर व कैरेबियन सागर, बाल्टिक सागर इत्यादि को छोड़कर महासागरीय द्रोणियों में एकत्रित जल के विस्तार को महासागर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपसारी प्लेटें क्या हैं?
उत्तर:
जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेटें कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अभिसरण क्या है?
उत्तर:
जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की तरफ बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं तो इसे अभिसरण कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्री नितल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना या चौड़ा होना समुद्री नितल का प्रसरण कहलाता है।

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प्रश्न 6.
प्लेट सीमान्त कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
प्लेट सीमान्त तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपसरण सीमान्त
  2. अभिसरण सीमान्त तथा
  3. पारवर्ती सीमान्त।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की प्रमुख प्लेटों का नाम बताइए।
उत्तर:

  1. प्रशान्तीय प्लेट
  2. यूरेशियाई प्लेट
  3. इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट
  4. अफ्रीकन प्लेट
  5. उत्तरी अमेरिकन प्लेट
  6. दक्षिण अमेरिकन प्लेट
  7. अंटार्कटिक प्लेट।

प्रश्न 8.
पैंथालासा क्या था?
उत्तर:
पैंजिया के चारों तरफ एक महासागर फैला हुआ था जिसका नाम थालासा’ था। पैथालासा का अर्थ है-‘सम्पूर्ण जल’।

प्रश्न 9.
अभिसारी (अभिसरण) तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण प्लेट-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण प्लेट-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

प्रश्न 10.
पारवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है।

प्रश्न 11.
हिमयुग (हिमकाल) किसे कहते हैं?
उत्तर:
लाखों वर्षों तक ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका की तरह महाद्वीपों के अधिकतर क्षेत्र बर्फ की मोटी चादर से ढके हुए थे। पृथ्वी पर इस अवधि को हिमकाल कहते हैं। बर्फ की ये मोटी-मोटी चादरें कुछ ही हज़ार वर्ष पहले पिघल गईं तथा महासागरों के जल स्तर में वृद्धि हो गई।

प्रश्न 12.
प्लेट गति के तीन कारण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. संवहन धाराएँ
  2. गुरुत्व बल
  3. चट्टानों का भार।

प्रश्न 13.
प्लेटों की प्रमुख गतियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. अभिसरण
  2. अपसरण
  3. परावर्तन।

प्रश्न 14.
मल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
मूल महाद्वीप का नाम पैंजिया था। इसका निर्माण कार्बनिक कल्प में आज से 280 मिलियन वर्ष पहले हुआ था।

प्रश्न 15.
पैंजिया से पृथक होने वाले उत्तरी तथा दक्षिणी महाद्वीपों का नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्तरी महाद्वीप का नाम लारेशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप का नाम गोण्डवानालैण्ड था।

प्रश्न 16.
गोण्डवानालैण्ड में कौन-कौन-से भू-खण्ड शामिल थे?
उत्तर:
गोण्डवानालैण्ड में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका नामक भू-खण्ड शामिल थे।

प्रश्न 17.
महासागरीय तल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच अन्तर आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस अन्तर में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय तल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

प्रश्न 18.
महासागरों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
जब पृथ्वी अपने निर्माण की आरम्भिक अवस्था में थी तब वायुमण्डल की गरम गैसों के ठण्डा होने पर उनसे घने और विशाल बादल बने। इन बादलों ने हजारों वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा की। वर्षा का यह जल बहकर द्रोणियों में चला गया। इस प्रकार पृथ्वी पर महासागरों की उत्पत्ति हुई।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लेट विवर्तन सिद्धान्त (Theory of Plate Tectonics) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूज़ो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन मोरगन ने सन् 1967 में किया था। महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी सात मुख्य प्लेटों में बँटी हुई है। ये प्लेटें अर्द्ध-तरल (Semi-liquid) अधःस्तर पर तैर रही हैं, जिसके कारण इन प्लेटों में आन्तरिक गतियाँ होती हैं और प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हीं प्लेटों द्वारा भू-आकृतियों का निर्माण होता है। संवहन क्रिया द्वारा ये भू-प्लेटें खिसकती हैं तथा इनके साथ-साथ महाद्वीप भी गति करते हैं।

प्रश्न 2.
प्लेटों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्लेटों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  2. प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  3. प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  4. विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

प्रश्न 3.
प्लेटों की गति के मुख्य कारण कौन-से हैं?
उत्तर:
सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्रश्न 4.
अभिसरण (Convergence) और अपसरण (Divergence) में क्या अन्तर होता है?
अथवा
अभिसारी तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण-जब कुछ प्लेटे एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आता ह आर आपस मट की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पारवर्तन क्या होता है और इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्रश्न 6.
“साम्य स्थापना” पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जलवायु, वनस्पति और चट्टानों के वितरण के आधार पर वेगनर ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि महाद्वीप पैंजिया से टूटकर विस्थापित हुए हैं। वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य-स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच चट्टानों की संरचना में अद्भुत एवं त्रुटि-रहित साम्य दिखाई देता है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

प्रश्न 7.
भौतिक परिवेश भूमण्डलीय तन्त्र के रूप में संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए
उत्तर:
पृथ्वी पर स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल से ही भौतिक परिवेश का निर्माण होता है। पर्यावरण के सभी अंग ऊर्जा (Energy) तथा पदार्थ (Matter) के प्रवाह द्वारा एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। अतः किसी भी भौतिक तथ्य को अन्य तथ्यों से अलग करके नहीं समझा जा सकता। उदाहरणतया जल एक भौतिक तथ्य है, जो भौतिक परिवेश के सभी अंगों स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल में संचरित (Circulate) होता रहता है, अतः जल का अध्ययन सम्पूर्ण प्राकृतिक परिवेश से अलग नहीं किया जा सकता। एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में प्रकृति अत्यन्त जटिल है। सुविधा के लिए इसका खण्डों में अध्ययन हो सकता है, परन्तु ऐसा करते समय प्राकृतिक वातावरण के रूप में पृथ्वी की अखण्डता की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
पैंजिया की उत्पत्ति कब हुई? इसमें कौन-कौन से भू-खण्ड शामिल थे? पैंजिया में ‘टूट’ की क्रिया कैसे आरम्भ हुई?
अथवा
पैंजिया का क्या अर्थ है? इसके विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैंजिया का अर्थ है संपूर्ण पृथ्वी। लगभग 35 करोड़ साल पहले अन्तिम कार्बोनिफ़रस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया रखा। मध्य जुरैसिक कल्प अर्थात् अब से लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया दो भागों में बँट गया। इसका उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोण्डवानालैण्ड कहलाया। लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गोण्डवानालैण्ड फिर से खण्डित हुआ और इससे कई महाद्वीपों; जैसे दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिका की रचना हुई। भारत इस गोण्डवानालैण्ड से टूटकर स्वतन्त्र रूप से एक अलग पथ पर उत्तर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ।

प्रश्न 9.
प्रवालों (Corals) की उपस्थिति किस प्रकार सिद्ध करती है कि भू-खण्ड उत्तर की ओर विस्थापित हुए थे?
उत्तर:
प्रवाल एक चूना-स्रावी समुद्री पॉलिप होता है जो छिछले उष्ण कटिबन्धीय सागरों में पाया जाता है। इस लघु समुद्री जीव का कंकाल कठोर होता है जिसकी रचना समुद्र के पानी से प्राप्त कैल्शियम कार्बोनेट से होती है। उष्ण कटिबन्ध के बाहर प्रवालों का पाया जाना इस बात का सबल प्रमाण है कि प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में ये महाद्वीप भूमध्य रेखा के निकट स्थित थे। महाद्वीप उत्तर की ओर खिसके हैं और वे आज भिन्न जलवायु का अनुभव कर रहे हैं।

प्रश्न 10.
ध्रुवों के घूमने अथवा ‘पोलर वान्डरिंग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-वैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बार-बार बदलती हुई स्थिति को ध्रुवों का घूमना (Polar Wandering) कहा जाता है। लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले सभी महाद्वीप पैंजिया के रूप में आपस में जुड़े हुए थे। पुरा चुम्बकत्व के प्रमाण बताते हैं कि मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसादों में उपस्थित चुम्बकीय गुणों वाले खनिज; जैसे मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट आदि इसी गुण के कारण उस समय के चुम्बकीय क्षेत्र के समानान्तर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थायी गुण के रूप में रह जाता है। चुम्बकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक (Temporal) परिवर्तन होता रहा है, जो शैलों में स्थायी चुम्बकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है। आज ऐसी अनेक वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं जो पुरानी शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को उजागर कर सकती है तथा प्राचीनकाल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी दे सकती हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. हिन्द महासागर के नितल पर ऊँचे पठारों और कटकों सहित नाना प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं।
  2. 90 ईस्ट कटक तथा चैगोस-मालदीव-लक्षद्वीप द्वीपीय कटक ज्वालामुखी क्रिया के केन्द्र हैं।
  3. 90 ईस्ट का उत्तरी विस्तार एक महासागरीय खाई में समाप्त हो जाता है।
  4. चैगोस-लक्षद्वीप कटक 5 करोड़ साल पहले आदि नूतन कल्प में कार्ल्सबर्ग कटक को दक्षिण-पूर्वी इण्डियन कटक से जोड़ती थी।
    मध्य हिन्द महासागर कटक का विस्तार तेजी से अर्थात 14 से 20 सें०मी० प्रतिवर्ष हो रहा है।
  5. कार्ल्सबर्ग तथा दक्षिण-पूर्व हिन्द महासागर कटक के जुड़ने के बाद यूरेशियम प्लेट व भारतीय प्लेट का उत्तर में टकराव हुआ जिससे हिमालय पर्वत श्रेणी का जन्म हुआ।

प्रश्न 12.
पैंजिया, पैन्थालसा और टेथीज़ के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रो० अलफ्रेड वेगनर ने अपने विस्थापन सिद्धान्त में यह स्पष्ट किया है कि पृथ्वी पर महाद्वीपों की जो स्थिति आज है, वह पहले ऐसी नहीं थी। इस सिद्धान्त के अनुसार, आज से लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप एक स्थल खण्ड के रूप में मिले हुए थे जिसे पैंजिया कहते थे। यह पैंजिया चारों ओर से ‘पैन्थालसा’ नामक सागर से घिरा हुआ था। पैंजिया के उत्तरी भाग में उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया थे जिन्हें संयुक्त रूप से लारेशिया कहा जाता था। पैंजिया के दक्षिणी भाग में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारतीय प्रायद्वीप, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका महाद्वीप थे, जिन्हें गोण्डवानालैण्ड कहा जाता था। इन दोनों विशाल भू-खण्डों के मध्य एक संकरा महासागर था, जिसे टेथीज़ सागर कहा जाता था।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिका महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन जर्मनी के विद्वान् अल्फ्रेड वेगनर ने सर्वप्रथम सन् 1912 में किया था, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद सन् 1924 में विश्व के सामने आया। उनका विचार था कि महाद्वीप एक-दूसरे से दूर खिसक रहे हैं।

सिद्धान्त की रूपरेखा-लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले अन्तिम कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया (Pangaea) रखा। पैंजिया के चारों ओर एक महासागर फैला हुआ था, जिसका नाम पैन्थालासा (Panthalasa) रखा गया। पैंजिया नामक यह विशाल स्थलखण्ड कई छोटे खण्डों में बँट गया, जो एक-दूसरे से अलग हो गए। परिणामस्वरूप महाद्वीपों और महासागरों को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ।

लगभग 15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसीन युग में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और यूरेशिया से अलग होकर पश्चिम की ओर खिसक गए। इन दोनों महाद्वीपों के पश्चिम की ओर खिसकने के कारण इन महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर नीचे की तली से रगड़ के कारण रॉकी व एण्डीज़ पर्वत-श्रेणियों का निर्माण हो गया अर्थात् साइमा (Sima) द्वारा सियाल (Sial) परत पर रुकावट पैदा होने से इन मोड़दार पर्वतों का जन्म हुआ। उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका एवं यूरेशिया के बीच पैदा हो गए गर्त में अटलांटिक महासागर प्रकट हो गया।

अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, मेडागास्कर तथा प्रायद्वीपीय भारत भी आपस में जुड़े हुए थे और एक खण्ड के रूप में अफ्रीका के दक्षिणी छोर के पास स्थित थे। लगभग 5-6 करोड़ साल पहले पूर्व प्लीस्टोसिन युग में, ये चारों भू-भाग भी आपस में अलग-थलग होकर अपनी वर्तमान स्थिति में पहुंच गए और इनके बीच हिन्द महासागर का अवतरण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर सरकने में टेथीज़ सागर में पड़े अवसाद में वलन पड़ गए। इससे हिमालय और आल्पस पर्वतों का निर्माण हुआ।

सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण-वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के आकार में आश्चर्यजनक समानता पाई जाती है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

(3) अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों की संरचना, उनकी आयु तथा चट्टानों के बीच पाए जाने वाले जीवावशेषों (Fossils) में समानता पाई जाती है जो इंगित करती है कि कभी ये दोनों तट मिले हुए थे।

प्रवाहित करने वाले बल-वेगनर के अनुसार, महाद्वीपों का प्रवाह दो बलों द्वारा सम्भव हुआ-

  • भू-खण्डों का भूमध्य रेखा की ओर प्रवाह गुरुत्व बल और प्लवनशीलता के बल (Force of buoyancy) के कारण हुआ।
  • महाद्वीपों का पश्चिम की ओर प्रवाह सूर्य व चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ।

सिद्धान्त की पुष्टि आरम्भ में, अनेक वैज्ञानिक वेगनर के इस सिद्धान्त से असहमत थे, क्योंकि भू-भौतिकी के उस समय उपलब्ध ज्ञान के आधार पर उन्हें महाद्वीपों का विस्थापन असम्भव लगता था, लेकिन विगत कुछ वर्षों में पृथ्वी के पुरा-चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय नितल की नई खोजों ने वेगनर की इस प्रवाह संकल्पना को बल दिया है।

आलोचना-वेगनर के सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है-

  • अफ्रीका तथा गिन्नी तट का पूर्ण रूप से न सटना अर्थात् (Jig-saw-fit) पूर्ण रूप से ठीक न होना।
  • ज्वारीय शक्ति का कम होना।
  • बहाव दिशा का सही न होना।
  • मध्यवर्ती अन्धमहासागर में कटक (Ridge) की उत्पत्ति।

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प्रश्न 2.
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते है? इसके महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
विवर्तनिकी का अभिप्राय पृथ्वी के आन्तरिक बलों के फलस्वरूप हुए पटल विरूपण से है, जो स्थलमण्डल पर अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देता है। प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन डब्ल्यूजे० मोरगन (W.J. Morgan) ने सन् 1967 में किया था।
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है।

सिद्धान्त की रूपरेखा पृथ्वी का बाह्य भाग जो हमें ऊपर से एक दिखाई देता है, वास्तव में कई दृढ़ खण्डों के संयोजन से बना है। इन दृढ़ खण्डों को प्लेट कहते हैं। अन्य शब्दों में, पृथ्वी का स्थलमण्डल अनेक प्लेटों में बँटा हुआ है।

प्लेटों की विशेषताएँ-

  • किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  • प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  • प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  • विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि, इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

स्थलमण्डल की प्लेटे-ला पिचोन (La Pichon) ने सन् 1968 में पृथ्वी को 6 बड़ी और 9 छोटी प्लेटों में बाँटा था बड़ी प्लेटें (Major Plates)-

  • अफ्रीकी प्लेट
  • अमेरिकी प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट
  • ऑस्ट्रेलियाई प्लेट
  • यूरेशियाई प्लेट
  • प्रशान्तीय प्लेट।

छोटी प्लेटें (Minor Plates)-

  • अरेबियन प्लेट
  • बिस्मार्क प्लेट
  • कैरीबियन प्लेट
  • कैरोलीना प्लेट
  • कोकोस प्लेट
  • जुआन डी प्यूका प्लेट
  • नाज़का या पूर्वी प्रशांत प्लेट
  • फ़िलीपीन्स प्लेट
  • स्कोशिया प्लेट।।

प्लेट गति के कारण-सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्लेट गति के प्रकार-प्लेटें तीन प्रकार से गति करती हैं-
(1) अभिसरण-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Converging Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है। प्लेटों के टकराने पर दो दशाएँ उत्पन्न होती हैं

  • किसी एक प्लेट का दूसरी प्लेट के नीचे धंसना।
  • किसी भी प्लेट का नीचे न धंसना।

(a) जब एक महासागरीय (Oceanic) प्लेट किसी महाद्वीपीय (Continental) प्लेट से टकराती है, तो महाद्वीपीय प्लेट भारी घनत्व की चट्टानों से बनी होने के कारण हल्की चट्टानों से बनी महाद्वीपीय प्लेट के नीचे धंस जाती है। अधिक गहराई में जाने पर इस धंसती हुई प्लेट का कुछ भाग पिघलकर मैग्मा बन जाता है। ऊपर की चट्टानों का दबाव भी भीतरी ऊष्मा को बढ़ाता है। पिघला हुआ मैग्मा महाद्वीपीय प्लेट के किनारे के निकट ऊपर उमड़कर ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण करता है। अगर ज्वालामुखी पर्वत न बने तो विकल्प के रूप में एक गहरी खाई बन जाती है। पेरू की खाई नाजका महासागरीय प्लेट तथा दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपीय प्लेट के टकराव का परिणाम है। इसी कारण अभिसरण प्लेटों के सीमान्तों (Margins) को विनाशात्मक सीमान्त (Destructive Margins) कहा जाता है।

(b) जब दो प्लेटें एक-दूसरे के निकट आती हैं और उनके टकराने पर कोई भी प्लेट नीचे नहीं धंसती, तो उनके बीच स्थित अवसाद में वलन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। इससे मोड़दार (Fold) पर्वतों का निर्माण होता है। हिमालय तथा आल्पस जैसे वलित पर्वतों का निर्माण प्लेटों के अभिसरण का परिणाम है।

(2) अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं। विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच गैप आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस गैप में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय नितल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

(3) पारवर्तन-जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचलित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का महत्त्व – जो स्थान जीव विज्ञान में उविकास सिद्धान्त (Theory of Evolution) का है, वही स्थान भू-गर्भ विज्ञान में प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का है। इस क्रान्तिकारी सिद्धान्त ने 20वीं सदी के भू-विज्ञानों (Earth Sciences) के उस हर प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है, जो सदियों से आज तक दुनिया के सामने पहेली (Puzzle) बने खड़े थे।

  • महासागरों की चौड़ाई कहीं बढ़ रही है तो कहीं घट रही है। प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का यह तथ्य महाद्वीपीय विस्थापन की पुष्टि करता है।
  • यह सिद्धान्त मोड़दार पर्वतों की रचना की व्याख्या करता है।
  • प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त ही अच्छी तरह से स्पष्ट करता है कि विश्व में द्वीपीय पर्वतों (Island Mountains) तथा द्वीप तोरणों (Island Festoons) की रचना कैसे हुई?
  • ज्वालामुखी क्यों फूटते हैं? भूकम्प क्यों आते हैं? कहाँ आते हैं? इन प्रश्नों की वैज्ञानिक और तार्किक व्याख्या प्लेट विवर्तनिकी से ही सम्भव हो पाई है।
  • प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त ने ही यह रहस्योदघाटन किया है कि पैंजिया टूटकर बिखरते और बिखरकर फिर जुड़ते रहे हैं। जिस पैंजिया के बिखरे भू-खण्डों पर आज हम बैठे हैं, उससे पहले भी एक पैंजिया था।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

HBSE 11th Class Geography महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(A) अल्फ्रेड वेगनर
(B) अब्राहम ऑरटेलियस
(C) एनटोनियो पेलेग्रिनी
(D) एडमंड हैस
उत्तर:
(B) अब्राहम ऑरटेलियस

2. पोलर फ्लीइंग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(A) पृथ्वी का परिक्रमण
(B) पृथ्वी का घूर्णन
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) ज्वारीय बल
उत्तर:
(B) पृथ्वी का घूर्णन

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

3. इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(A) नजका
(B) फिलीपीन
(C) अरब
(D) अंटार्कटिक
उत्तर:
(D) अंटार्कटिक

4. सागरीय अधस्तल विस्तार सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?
(A) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(B) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुंबकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(D) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु
उत्तर:
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण

5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(A) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(B) अपसारी सीमा
(C) रूपांतर सीमा
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
उत्तर:
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर:
अल्फ्रेड वेगनर जर्मन के प्रसिद्ध मौसमविद थे, जिन्होंने सन् 1912 में “महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत” प्रस्तावित किया। महाद्वीपीय प्रवाह के लिए वेगनर ने दो बलों का उपयोग किया। पहला ध्रुवीय बल, दूसरा ज्वारीय बल।

ध्रुवीय बल-यह बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है।

  • ज्वारीय बल-यह बल सूर्य एवं चंद्रमा के आकर्षण से संबंधित है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।
  • वेगनर के अनुसार करोड़ों वर्षों से ये दो बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हैं।

प्रश्न 2.
मैंटल में संवहन धाराओं के आरंभ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
आर्थर होम्स ने मैंटल भाग में संवहन-धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। आर्थर होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है।

प्रश्न 3.
प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:

  1. रूपांतर सीमा-जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।
  2. अभिसरण सीमा-जब एक प्लेट, दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है और भूपर्पटी नष्ट होती है तो वह अभिसरण सीमा कहलाती है। यह सीमा तीन प्रकार की होती है।
  3. अपसारी सीमा-जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है तो वह अभिसरण सीमा कहलाती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रेप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखंड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह होने के दौरान लावा उत्पन्न हुआ और इसी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ। इसका निर्माण लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ। उस समय भारतीय स्थलखंड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
उत्तर:
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाण निम्नलिखित हैं-
1. महाद्वीपों में साम्य-दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटि-रहित साम्य दिखाती हैं। 1964 ई० में बुलर्ड ने अपने प्रोग्राम में अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया। तटों का यह साम्य बिल्कुल सही सिद्ध हुआ।

2. महासागरीय चट्टानों की आयु में समानता-रेडियोमिट्रिक विधि से महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय का पता लगाया जा सकता है। उदाहरणतः 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक पट्टी ब्राजील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती है जो आपस में मेल खाती है।

3. टिलाइट-टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं, जो हिमानी निक्षेपण से निर्मित होती हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिण गोलार्ध के छः विभिन्न स्थलखंडों से मिलते हैं। हिमानी निर्मित टिलाइड चट्टानें पुरातन जलवायु और महाद्वीपों के विस्थापन के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

4. प्लेसर निक्षेप सोना-युक्त शिराएँ ब्राजील में पाई जाती हैं। अतः घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

5. जीवाश्मों का वितरण यदि समुद्री अवरोधक के दोनों विपरीत किनारों पर जल एवं स्थल में पाए जाने वाले पौधों व जंतुओं की समान प्रजातियाँ पाई जाएँ तो उनके वितरण के विवरण में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

इस प्रेक्षण से “लैमूर” भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक स्थलखंड “लेमूरिया” की उपस्थिति को माना।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर बताइए।
उत्तर:
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर निम्नलिखित हैं-

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत
(1) यह सिद्धान्त महाद्वीपों के विस्थापन के अध्ययन पर बल देता है। यह सिद्धांत महासागरों और महाद्वीपों के वितरण का अध्ययन करता है। (1) यह सिद्धान्त महाद्वीपों व महासागरों की उत्पत्ति पर आधारित है।
(2) इस सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना यह थी कि एक बड़ा भू-भाग था, जिसकी “पैंजिया” कहा गया, जो कुछ समय के बाद अन्य भू-खंडों में विभाजित हुआ। (2) प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है।
(3) यह सिद्धांत महाद्वीपों में साम्य, प्लेसर निक्षेप तथा जीवाश्मों के वितरण पर बल देता है। (3) यह सिद्धांत धरातल के अंदर की प्रक्रियाओं का विश्लेषण करता है।
(4) यह सिद्धांत भविष्य की घटनाओं पर व्याख्या नहीं करता। (4) इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्लेटें भविष्य में गतिमान रहेंगी।
(5) यह सिद्धांत अल्फ्रेड वेगनर ने सन् 1912 में प्रस्तुत किया। (5) यह सिद्धांत मोरगन ने सन् 1967 में प्रस्तुत किया।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के उपरांत की प्रमुख खोज क्या है, जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:

  1. विशेष रूप से, समुद्र तल मानचित्रण से एकत्रित जानकारी महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन के लिए नए आयाम प्रदान करती है।
  2. महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
  3. महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुम्बकीय गुणों में समानता पाई जाती हैं।
  4. महासागरीय कटकों के समीप की चट्टानें नवीनतम तथा कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
  5. गहरी खाइयों में भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर स्थित हैं, जबकि मध्य-सागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर स्थित हैं।

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण HBSE 11th Class Geography Notes

→ महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory)-सन् 1912 में प्रसिद्ध जर्मन मौसमविद अलफ्रेड वेगनर ने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत महाद्वीपों और महासागरों के वितरण से संबंधित था।

→ महाद्वीप (Continent) समुद्र तल से ऊपर उठे. पृथ्वी के विशाल भू-खंड महाद्वीप कहलाते हैं। विश्व में सात महाद्वीप हैं।

→ महासागर (Ocean)-सीमांत सागरों; जैसे भूमध्य सागर व कैरेबियन सागर, बाल्टिक सागर इत्यादि को छोड़कर महासागरीय द्रोणियों में एकत्रित जल के विस्तार को महासागर कहते हैं। वर्तमान में विश्व को पाँच महासागरों में बाँटा गया है-प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अध या अटलांटिक महासागर, आकटिक महासागर एवं अण्टाकटिक महासागर।

→ प्रतिस्थापना परिकल्पना (Displacement Hypothesis)-वह सिद्धांत जिसके अनुसार भू-मण्डल के सभी महाद्वीप किसी समय उपस्थित एक बड़ी भू-संहति के रूप में थे। इस भू-संहति के खंडित हो जाने पर इसके अलग-अलग भाग महाद्वीपों के रूप में विस्थापित हो गए।

→ जीवाश्म (Fossil)-कुछ अवशेष अथवा पादप या जंतुओं के प्रतिरूप, जो भू-पर्पटी (Earth Crust) में पाए जाने वाली विभिन्न शैलों में एक लंबी अवधि तक दबे अथवा आरक्षित रहे हों।

→ हिमयुग (IceAge)-नवीनतम हिमयुग चतुर्थ महाकल्प के आदि से आरंभ होता है, उस समय यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग पर बर्फ जम गई थी। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की वर्तमान बर्फ चादरें इस हिमयुग की अवशेष हैं।

→ प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics)-यूनानी भाषा में टेक्टोनिक्स का अर्थ है-Builder अर्थात् निर्माता। प्लेट टेक्टोनिक्स 60 के दशक में विकसित एक ऐसी वैज्ञानिक संकल्पना है जिसके अनुसार पृथ्वी का बाहरी, ठोस स्थलमण्डल 7 बडी और कछ छोटी प्लेटों से बना हआ है। कछ वैज्ञानिक इन प्लेटों की संख्या अब लगभग 20 मानते हैं।

→ अपसारी प्लेटें (Divergent Plates)-जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेटें कहा जाता है।

→ अभिसरण (Covergence)-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की तरफ बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं तो इसे अभिसरण कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. पृथ्वी की आंतरिक परत निफे के निर्माण में किन तत्त्वों की प्रधानता है?
(A) सिलिका व एल्यूमीनियम
(B) सिलिका व मैग्नीशियम
(C) बेसाल्ट व सिलिका
(D) निकिल व फेरस
उत्तर:
(D) निकिल व फेरस

2. पृथ्वी की किस गहराई पर तापमान बढ़ने से ठोस पदार्थ तरलावस्था में आ जाते हैं?
(A) 32 कि०मी०
(B) 50 कि०मी०
(C) 96 कि०मी०
(D) 100 कि०मी०
उत्तर:
(B) 50 कि०मी०

3. पृथ्वी की किस परत में बेसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं?
(A) सियाल
(B) साइमा
(C) निफे
(D) किसी में भी नहीं
उत्तर:
(B) साइमा

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

4. पृथ्वी की संरचना की परत है-
(A) भू-पर्पटी
(B) मैंटल
(C) क्रोड
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. सीस्मोग्राफ यंत्र किस चीज का अंकन करता है?
(A) वायुदाब का
(B) तापमान का
(C) भूकंपीय तरंगों का
(D) पवनों की गति का
उत्तर:
(C) भूकंपीय तरंगों का

6. भूकंप मूल या भूकंप केंद्र वह होता है-
(A) जहां भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं
(B) जहां भूकंपीय तरंगों का उद्गम होता है
(C) जहां भूकंपीय तरंगें धरातल से टकराकर लौटती हैं
(D) जहां भूकंपीय तरंगें समाप्त होती हैं
उत्तर:
(B) जहां भूकंपीय तरंगों का उद्गम होता है

7. P अथवा प्राथमिक तरंगों की कौन-सी विशेषता सही नहीं है?
(A) ये तरंगें किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
(B) ये ठोस, तरल तथा गैसीय तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
(C) शैलों का घनत्व बदलने पर भी P तरंगों का वेग नहीं बदलता।
(D) ये सबसे तेज चलती हैं।
उत्तर:
(C) शैलों का घनत्व बदलने पर भी P तरंगों का वेग नहीं बदलता।

8. मोहोरोविसिस असंतति किसे कहा जाता है?
(A) धरातल पर बिछी तलछटी चट्टान की परत को
(B) अवसादी चट्टानों के नीचे बिछी ग्रेनाइट की परत को
(C) ग्रेनाइट की परत तथा मिश्रित मंडल के बीच स्थित कम सिलिका वाली परत को
(D) पृथ्वी के केंद्रीय मंडल को
उत्तर:
(C) ग्रेनाइट की परत तथा मिश्रित मंडल के बीच स्थित कम सिलिका वाली परत को

9. ‘मोहो’ के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) जिस कोल्पा घाटी में आए भूकंप के अध्ययन से ‘मोहो’ का पता चला, वह कुल्लू में है
(B) यह परत भू-पर्पटी तथा मैंटल के बीच सीमा रेखा है
(C) महाद्वीपों के नीचे यह 30 से 70 फुट की गहराई में मिलती है
(D) महासागरों के नीचे यह 5 से 7 कि०मी० की गहराई पर मिलती है
उत्तर:
(A) जिस कोल्पा घाटी में आए भूकंप के अध्ययन से ‘मोहो’ का पता चला, वह कुल्लू में है

10. दुर्बलतामण्डल का विस्तार कहाँ तक आँका गया है?
(A) 200 कि०मी० तक
(B) 300 कि०मी० तक
(C) 400 कि०मी० तक
(D) 600 कि०मी० तक
उत्तर:
(C) 400 कि०मी० तक

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

11. पृथ्वी के अंदर वह स्थान जहां भूकंप उत्पन्न होते हैं, क्या कहलाता है?
(A) अपकेंद्र
(B) अधिकेंद्र
(C) उद्गम केंद्र
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उद्गम केंद्र

12. पृथ्वी के क्रोड से निम्नलिखित में से कौन-सी तरंगें निकल सकती हैं?
(A) लंबी तरंगें
(B) गौण तरंगें
(C) प्राथमिक तरंगें
(D) आड़ी तरंगें
उत्तर:
(C) प्राथमिक तरंगें

13. भूकंप की तीव्रता को मापने के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) रिक्टर पैमाने में कोई न्यनतम व अधिकतम सीमा ही नहीं होती
(B) मरकेली पैमाना लोगों के अनुभवों के आधार पर भूकंप की तीव्रता बताता था
(C) रिक्टर पैमाने पर तीन परिमाण वाले भूकंप का कंपन दो परिमाण वाले भूकंप की अपेक्षा 10 गुना होगा
(D) रिक्टर पैमाने से भूकंप की तीव्रता का तो मापन होता है मगर मुक्त हुई ऊर्जा का नहीं
उत्तर:
(D) रिक्टर पैमाने से भूकंप की तीव्रता का तो मापन होता है मगर मुक्त हुई ऊर्जा का नहीं

14. भूकंप की तीव्रता को मापने का सबसे पहला पैमाना कौन-सा था?
(A) वुड और फ्रैंक न्यूमान का
(B) गाइसेप मरकेली का
(C) रौसी-फोरेल का
(D) चार्ल्स रिक्टर का
उत्तर:
(C) रौसी-फोरेल का

15. निम्नलिखित में से कौन-सा एक भूकंप उत्पन्न करने का कारण नहीं है?
(A) रिसे हुए समुद्री जल के उबलने से बनी
(B) मैग्मा के प्रचंड वेग से धरातल पर आने से गैसों के फैलने से
(C) सूर्य एवं चंद्रमा के ज्वारीय बल में वृद्धि होने से
(D) भू-प्लेटों के आपस में टकराने से
उत्तर:
(C) सूर्य एवं चंद्रमा के ज्वारीय बल में वृद्धि होने से

16. सन 1833 में इंडोनेशिया के क्राकाटोआ में आए भूकंप के पीछे क्या कारण था?
(A) जलीय भार से
(B) सिकुड़ती हुई चट्टानों के समायोजन से
(C) ज्वालामुखी उद्भेदन से
(D) भू-प्लेटों के टकराने से
उत्तर:
(C) ज्वालामुखी उद्भेदन से

17. उन भूकंपों को क्या कहते हैं जो दरार घाटियों, अंशों व ब्लॉक पर्वतों की रचना के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं?
(A) विवर्तनिक भूकंप
(B) ज्वालामुखी भूकंप
(C) वितलीय भूकंप
(D) समस्थितिक भूकंप
उत्तर:
(A) विवर्तनिक भूकंप

18. विनाशकारी सुनामी लहरों की उत्पत्ति का क्या कारण है?
(A) समुद्री तटों पर भूकंप आना
(B) समुद्र में ज्वालामुखी फूटना
(C) समुद्री तली में भूकंप आना
(D) महासागरीय नितल का प्रसारण
उत्तर:
(C) समुद्री तली में भूकंप आना

19. 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज में आया भूकंप रिक्टर स्केल पर कितना था?
(A) 8.4
(B) 7.9
(C) 6.8
(D) 7.0
उत्तर:
(B) 7.9

20. विश्व के अधिकतर भूकंप कहाँ आते हैं?
(A) मध्य अटलांटिक पेटी
(B) पामीर की गांठ
(C) प्रशांत महासागरीय पेटी
(D) तिब्बत का पठार
उत्तर:
(C) प्रशांत महासागरीय पेटी

21. भारत में सबसे कम भूकंप किस क्षेत्र में आते हैं?
(A) दक्कन पठार
(B) जलोढ़ मैदान
(C) हिमालय पर्वत
(D) मरुस्थल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार

22. भू-तल पर जिस मुंह से मैग्मा, गैसें तथा विखंडित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे कहा जाता है
(A) ज्वालामुखी शंकु
(B) ज्वालामुखी छिद्र
(C) नली
(D) चिमनी
उत्तर:
(B) ज्वालामुखी छिद्र

23. निम्नलिखित में से कौन-सा सक्रिय ज्वालामुखी है?
(A) स्ट्रॉमबोली
(B) विसूवियस
(C) बैरनआईलैंड
(D) पोपा
उत्तर:
(A) स्ट्रॉमबोली

24. ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में 80 से 90% अंश किस गैस का होता है?
(A) हाइड्रोजन सल्फाइड
(B) सल्फर डाइऑक्साइड
(C) अमोनिया क्लोराइड
(D) भाप
उत्तर:
(D) भाप

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

25. ज्वालामुखी से निःसत तरल पदार्थों के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) ताजे लावे का तापमान 600° से 1200° सेल्सियस होता है
(B) ज्वालामुखी पर्वत को ऊंचाई, अधिसिलिक लावा प्रदान करता है
(C) पैठिक लावा पतला होता है जो पठारों का
(D) अम्लिक लावा में सिलिका का अंश नगण्य निर्माण करता है होता है
उत्तर:
(D) अम्लिक लावा में सिलिका का अंश नगण्य निर्माण करता है होता है

26. पर्वत निर्माणकारी हलचलों में निम्नलिखित में से कौन सम्मिलित नहीं है?
(A) संवलन
(B) वलन
(C) अवतलन
(D) भ्रंशन
उत्तर:
(C) अवतलन

27. किलिमंजारो नामक मृत ज्वालामुखी किस देश में है?
(A) सिसली
(B) जापान
(C) तंजानिया
(D) मैक्सिको
उत्तर:
(C) तंजानिया

28. विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी कौन-सा है?
(A) एटना
(B) फ़्यूजीयामा
(C) क्राकाटोआ
(D) अंटोफ़ाला
उत्तर:
(D) अंटोफ़ाला

29. अग्निवृत किसे कहा जाता है?
(A) परिप्रशांत महासागरीय पेटी
(B) हिंद महासागरीय पेटी
(C) मध्य महाद्वीपीय पेटी
(D) अटलांटिक महाद्वीपीय पेटी
उत्तर:
(A) परिप्रशांत महासागरीय पेटी

30. वह कौन-सा महाद्वीप है जिसमें एक भी ज्वालामुखी नहीं है?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) अफ्रीका
(C) यूरोप
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) ऑस्ट्रेलिया

31. भूकंप किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौतिकी
(C) जलीय
(D) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(B) भौतिकी

32. ज्वालामुखी उद्भेदन से निकले निम्नलिखित ठोस पदार्थों में से कौन-सा एक स्पंज की भांति हल्का है और जल में नहीं डूबता?
(A) लैपिली
(B) स्कोरिया
(C) टफ़
(D) झामक
उत्तर:
(D) झामक

33. वह किस प्रकार का ज्वालामुखी है जिसकी गैसों से प्रकाशमान मेघों को हवाई द्वीप के लोग अग्नि की रेफी की केशराशि समझते हैं?
(A) प्लिनी तुल्य
(B) पीलियन तुल्य
(C) हवाई तुल्य
(D) वलकैनो तुल्य
उत्तर:
(B) पीलियन तुल्य

34. किस ज्वालामुखी को ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ’ कहा जाता है?
(A) मोनालोआ
(B) क्राकाटोआ
(C) स्ट्रॉम्बोली
(D) विसुवियस
उत्तर:
(C) स्ट्रॉम्बोली

35. निम्नलिखित में से कौन-सा ज्वालामुखी मृत या विलुप्त हो चुका है?
(A) इटली का एटना
(B) ईरान का कोह-सुलतान
(C) लिपारी का स्ट्रॉम्बोली
(D) इटली का विसुवियस
उत्तर:
(B) ईरान का कोह-सुलतान

36. निम्नलिखित में से कौन-सा सक्रिय ज्वालामुखी भारत में है?
(A) बैरन द्वीप
(B) इरेबस
(C) टैरर
(D) एटना
उत्तर:
(A) बैरन द्वीप

37. क्रेटर और काल्डेरा स्थलाकृतियां निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं?
(A) उल्कापात
(B) ज्वालामुखी क्रिया
(C) पवन क्रिया
(D) हिमानी क्रिया
उत्तर:
(B) ज्वालामुखी क्रिया

38. लंबे समय तक शांत रहने के पश्चात् विस्फोट होने वाला ज्वालामुखी क्या कहलाता है?
(A) मृत
(B) प्रसुप्त
(C) सक्रिय
(D) निष्क्रिय
उत्तर:
(B) प्रसुप्त

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी का व्यास कितना है?
उत्तर:
12,742 कि०मी०।

प्रश्न 2.
भू-गर्भ की जानकारी प्राप्त करने के दो परोक्ष स्रोत बताएँ।
उत्तर:

  1. पृथ्वी के भीतर का तापमान
  2. उल्कापिण्ड।

प्रश्न 3.
भूकंपीय तरंगों द्वारा वक्राकार मार्ग अपनाया जाना क्या इंगित करता है?
उत्तर:
वक्राकार मार्ग यह सिद्ध करता है कि पृथ्वी के भीतर घनत्व परिवर्तित हो रहा है।

प्रश्न 4.
क्रोड किन दो प्रमुख धातुओं से बना है?
उत्तर:
लोहा और निकिल।

प्रश्न 5.
भूकंप से पैदा होने वाली समुद्री तरंगों को जापान में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सुनामी (Tsunami)

प्रश्न 6.
सबसे मन्द गति से चलने वाली भूकंपीय तरंगें कौन-सी हैं?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें (L-Waves)

प्रश्न 7.
सियाल व साइमा का घनत्व बताएँ।
उत्तर:
सियाल 2.75 से 2.90 व साइमा 2.90 से 3.4।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 8.
‘पी’, ‘एस’ व ‘एल’ तरंगों के अन्य नाम बताइए।
उत्तर:
पी = अनुदैर्ध्य तरंगें; एस = अनुप्रस्थ तरंगें तथा एल = धरातलीय या लम्बी तरंगें।

प्रश्न 9.
धरातल पर परिवर्तन लाने वाले बलों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. आन्तरिक बल
  2. बाह्य बल।

प्रश्न 10.
भारत की किसी एक क्रेटर झील का उदाहरण दें।
उत्तर:
लोनार झील।

प्रश्न 11.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी देने वाले दो प्रत्यक्ष साधन या स्रोत बताएँ।
उत्तर:

  1. खाने
  2. छिद्र।

प्रश्न 12.
पृथ्वी के भीतर तापमान बढ़ने की औसत दर क्या है?
उत्तर:
प्रति 32 मीटर पर 1° सेल्सियस।

प्रश्न 13.
भू-पृष्ठ किन दो प्रमुख पदार्थों से बना हुआ है?
उत्तर:

  1. सिलिका
  2. एल्यूमीनियम।

प्रश्न 14.
भूकंपीय तरंगों का अध्ययन करने वाले यन्त्र का नाम बताइए।
उत्तर:
सीस्मोग्राफ (Seismograph)।

प्रश्न 15.
पृथ्वी के भीतर ‘S’ तरंगें कितनी गहराई के बाद लुप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
2900 किलोमीटर की गहराई के बाद।

प्रश्न 16.
वे कौन सी भूकंपीय तरंगें हैं जो केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं?
उत्तर:
S-तरंगें अथवा गौण तरंगें अथवा अनुप्रस्थ तरंगें।

प्रश्न 17.
पृथ्वी का औसत अर्धव्यास कितना है?
उत्तर:
6371 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
सियाल (Sial) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
सियाल शब्द सिलिका (Si) तथा एल्यूमीनियम (al) के संयोग (Si + al = Sial) से बना है।

प्रश्न 19.
साइमा (Sima) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
साइमा शब्द सिलिका (Si) तथा मैग्नीशियम (ma) के संयोग (Si+ma = Sima) से बना है।

प्रश्न 20.
निफे (Nife) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
निफे शब्द निकिल (Ni) तथा फैरस (Fe) के संयोग (Ni + fe = Nife) से बना है।

प्रश्न 21.
पृथ्वी की केन्द्रीय परत का क्या नाम है?
उत्तर:
अभ्यान्तर या क्रोड (Core)।

प्रश्न 22.
क्रोड का घनत्व इतना अधिक क्यों है?
उत्तर:
पृथ्वी के क्रोड का अधिक घनत्व लोहे तथा निकिल की उपस्थिति के कारण है।

प्रश्न 23.
भूकंपीय तीव्रता की मापनी किस नाम से जानी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर स्केल।

प्रश्न 24.
भूकंप की उत्पत्ति के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. विवर्तनिक हलचल और
  2. ज्वालामुखी विस्फोट।

प्रश्न 25.
माउण्ट फ्यूज़ीयामा किस श्रेणी का ज्वालामुखी है?
उत्तर:
मिश्रित शंकु प्रकार का।।

प्रश्न 26.
माउण्ट विसुवियस किस श्रेणी का ज्वालामुखी है और कहाँ है?
उत्तर:
माउण्ट विसुवियस प्रसुप्त श्रेणी का ज्वालामुखी है जो इटली में है।

प्रश्न 27.
कौन-सा ज्वालामुखी ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ’ कहलाता है? यह किस द्वीप पर स्थित है?
उत्तर:
स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी, लिपारी द्वीप पर।

प्रश्न 28.
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गैस, तरल व ठोस।

प्रश्न 29.
भारत के दो ज्वालामुखियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. बैरन द्वीप व
  2. नारकोण्डम द्वीप (बंगाल की खाड़ी में)।

प्रश्न 30.
पृथ्वी के धरातल पर अकस्मात् होने वाली दो हलचलों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. भूकंप
  2. ज्वालामुखी।

प्रश्न 31.
ज्वालामुखी विस्फोट से भू-गर्भ से निकले खनिज किस रूप में होते हैं?
उत्तर:
पिघली हुई अवस्था में।

प्रश्न 32.
मैग्मा और लावा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
पिघला हुआ पदार्थ पृथ्वी के अन्दर मैग्मा और बाहर लावा कहलाता है।

प्रश्न 33.
विस्फोटक प्रकार के ज्वालामुखियों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इटली का एटना तथा जापान का फ्यूज़ीयामा।

प्रश्न 34.
दरारी उद्भेदन से बने दो प्रदेशों का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. दक्षिणी भारत का लावा पठार
  2. अमेरिका का स्नेक नदी का पठार।

प्रश्न 35.
शान्त उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्ट्रॉम्बोली व हवाई।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 36.
ज्वालामुखी से निकले ठोस पदार्थों को किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी राख, लैपिली, स्कोरिया, ब्रेसिया या संकोणाश्म ज्वालामुखी बम तथा झामक।

प्रश्न 37.
अधिक गाढ़ा और चिपचिपा लावा, जिसमें सिलिका का अंश ज्यादा होता है, कौन-सा ज्वालामुखी भू-आकार बनाता है?
उत्तर:
अम्लीय लावा शंकु अथवा गुम्बद।

प्रश्न 38.
भूकंप मूल (Seismic Focus) या भूकंप का उद्गम केन्द्र क्या होता है?
उत्तर:
भू-गर्भ में जिस स्थान पर भूकंप उत्पन्न होता है, उसे भूकंप मूल या भूकंप का उद्गम केन्द्र कहा जाता है।

प्रश्न 39.
अधिकेन्द्र (Epicentre) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उद्गम केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर स्थित उस बिन्दु को जहाँ भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहते हैं।

प्रश्न 40.
अति गरम, तरल, हल्का लावा जिसमें सिलिका का अंश कम होता है, कौन-सा ज्वालामुखी भू-आकार बनाता है?
उत्तर:
पैठिक लावा शंकु अथवा लावा शील्ड।

प्रश्न 41.
दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय ज्वालामुखी कौन-सा है?
उत्तर:
हवाई द्वीप समूह का मोनालोआ (Mouna Loa) ज्वालामुखी।

प्रश्न 42.
विलुप्त या मृत ज्वालामुखियों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ईरान का कोह-सुल्तान, म्यांमार का पोपा।

प्रश्न 43.
किन अंकों के माध्यम से भूकंप की ऊर्जा को इंगित किया जाता है?
उत्तर:
1 से 9 अंकों के माध्यम से।

प्रश्न 44.
ज्वालामुखी शंकु की कौन-सी तीन किस्में होती हैं?
उत्तर:

  1. राख शंकु
  2. सिंडर शंकु
  3. मिश्रित शंकु।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘एल’ तरंगों की खोज किसने की? इसका अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
इन तरंगों की खोज H.D. Love ने की थी, इसलिए इन्हें Love Waves भी कहा जाता है। इनका एक और नाम R-Waves (Raylight Waves) भी है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में ऊँचे ताप के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
  2. आन्तरिक शक्तियाँ
  3. रेडियोधर्मी पदार्थों का स्वतः विखण्डन तथा
  4. उच्च मूल तापमान।

प्रश्न 3.
भू-पर्पटी क्या होती है?
उत्तर:
अवसादी शैलों से बने धरातलीय आवरण के नीचे पृथ्वी की सबसे बाहरी परत जो लगभग 5 से 50 किलोमीटर चौड़ी है, भू-पर्पटी कहलाती है।

प्रश्न 4.
श्यानता (Viscosity) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
श्यानता किसी तरल पदार्थ का वह गुण है जो इसके तत्त्वों के आन्तरिक घर्षण के कारण इसे धीरे बहने देता है। एस्फाल्ट, शहद, लावा तथा लाख ऐसे ही विस्कासी पदार्थ हैं।

प्रश्न 5.
स्थलमण्डल क्या होता है?
उत्तर:
भू-पर्पटी का वह भाग जो सियाल, साइमा तथा ऊपरी मैण्टल के कुछ भाग से मिलकर बना हुआ है, स्थलमण्डल कहलाता है।

प्रश्न 6.
तरंग दैर्ध्य (Wave Length) क्या होती है?
उत्तर:
किसी एकान्तर तरंग के क्रमिक समान बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग-दैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी उद्भेदन के समय कौन-कौन-सी गैसें पृथ्वी से बाहर निकलती हैं?
उत्तर:
हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन-डाइ-सल्फाइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाइ-ऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड व अमोनियम क्लोराइड इत्यादि।

प्रश्न 8.
प्रशान्त महासागरीय ज्वालावृत्त (Fiery Ring of the Pacific)
उत्तर:
विश्व के सक्रिय ज्वालामुखियों का 88 प्रतिशत प्रशान्त महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर पाए जाने के कारण प्रशान्त महासागरीय परिमेखला को ज्वालावृत्त कहा जाता है।

प्रश्न 9.
ज्वालामुखी से होने वाले तीन लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. उपजाऊ मिट्टी का निर्माण
  2. बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति
  3. पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का ज्ञान।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी से होने वाली तीन हानियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. जन-धन की हानि
  2. वायुमण्डलीय प्रदूषण
  3. जीव-जगत की मृत्यु से पारिस्थितिकी (Ecology) असन्तुलन।

प्रश्न 11.
ज्वालामुखी छिद्र क्या होता है?
उत्तर:
भूतल पर जिस मुँह से मैग्मा, गैसें तथा विखण्डित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं।

प्रश्न 12.
ज्वालामुखी शंकु क्या होता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र से निकली हुई सामग्री के जमा होने से ज्वालामुखी शंकु बनता है।

प्रश्न 13.
ज्वालामुखी चिमनी क्या होती है?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र से जुड़ी जिस प्राकृतिक नली से मैग्मा इत्यादि का निकास होता है, उसे ज्वालामुखी नली या चिमनी कहते हैं।

प्रश्न 14.
काल्डेरा क्या होता है?
उत्तर:
क्रेटर का विस्तृत रूप काल्डेरा कहलाता है।

प्रश्न 15.
ज्वालामुखी क्या होता है?
उत्तर:
भू-पर्पटी के ऐसे निकास द्वार, जिनसे गरम पिघली चट्टानें (लावा), धुआँ, गरम गैसें, गरम वाष्प (Steam) आदि निकलकर धरातल पर और वायुमण्डल में फैल जाते हैं, को ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 16.
पटलविरूपणी बल क्या होते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर होने वाली वे धीमी, किन्तु दीर्घकालीन हलचलें जो भू-पटल में विक्षोभ, मुड़ाव, झुकाव व टूटन (Fracture) लाकर धरातल पर विषमताएँ लाती हैं, उन्हें पटलविरूपणी बल कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भूकंप के कोई चार प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  1. हिमस्खलन
  2. सुनामी
  3. भूमि का हिलना
  4. इमारतों का टूटना व ढाँचों का ध्वस्त होना।

प्रश्न 18.
तरंग दैर्घ्य (Wave Length) क्या होती है?
उत्तर:
किसी एकान्तर तरंग के क्रमिक समान बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 19.
उल्कापिण्ड क्या है?
उत्तर:
उल्का का वह हिस्सा, जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमण्डल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह जल नहीं पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले ऐसे पिण्डों को उल्कापिण्ड कहते हैं। वायुमण्डल में पहुँचने से पहले उल्का को उल्काभ कहते हैं।

प्रश्न 20.
सुनामी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूकंप-जनित समुद्री लहरों के लिए सारे संसार में प्रयुक्त किया जाने वाला सुनामी एक जापानी, शब्द है, जिसका अर्थ है-Great Harbour Wave. भूकंप, विशेष रूप से समुद्री तली पर पैदा होने वाले भूकंप, 15 मीटर या इससे ऊँची लहरों को जन्म देते हैं, जिसकी गति 640 से 960 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। सुनामी बहुत दूर तक जा सकती हैं और तटों पर विनाशलीला करती हैं। सुनामी भूकंपों के साथ-साथ विस्फोटक ज्वालामुखी से भी पैदा होती हैं; जैसे क्राकाटोआ (1883) ज्वालामुखी से सुनामी उत्पन्न हुई थी।

प्रश्न 21.
तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्राथमिक अनुदैर्ध्य तरंगें
  2. गौण या अनुप्रस्थ तरंगें
  3. धरातलीय या लम्बी तरंगें।

प्रश्न 22.
भूकंपीय तरंगों का मार्ग वक्राकार क्यों हो जाता है? इसका महत्त्व भी स्पष्ट करें।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगें भूकंप केन्द्र से सीधी दिशा में न चलकर टेढ़े मार्ग को अपनाती हैं। इसका कारण यह है कि घनत्व में आने वाली भिन्नता के कारण तरंगें परावर्तित होकर वक्राकार हो जाती हैं। तरंगों के मार्ग के वक्राकार होने का महत्त्व यह है कि इससे हमें पृथ्वी के अन्दर विभिन्न घनत्व वाली अनेक परतों के होने का प्रमाण मिलता है।

प्रश्न 23.
छायामण्डल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूकंप केन्द्र से 11,000 कि०मी० के बाद लगभग 5,000 कि०मी० का क्षेत्र ऐसा है जहाँ कोई भी तरंग नहीं पहुँचती, इस क्षेत्र को छायामण्डल कहते हैं। छायामण्डल का होना साबित करता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भारी धातुओं से बना हुआ है. इसे धात्विक क्रोड (Metallic core) भी कहते हैं।

प्रश्न 24.
रिक्टर स्केल क्या होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी भूकंप वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर (Charles Francis Richter) के नाम से प्रसिद्ध इस माप के द्वारा उद्गम केन्द्र पर भूकंप द्वारा निर्मुक्त ऊर्जा को मापा जाता है। इसमें 1 से 9 अंकों के माध्यम से भूकंप की ऊर्जा को इंगित किया जाता है। उदाहरणतः 7 परिमाण वाला भूकंप, 6 परिमाण वाले भूकंप से 10 गुना, 5 परिमाण वाले भूकंप से 100 गुना तथा 4 परिमाण वाले भूकंप की अपेक्षा 1000 गुना शक्तिशाली होता है। आगे भी इसका माप इसी अनुरूप होता है।

प्रश्न 25.
भूकंप क्या है? अथवा भूकंप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात् काँप उठता है तो उसे भूकंप कहते हैं। चट्टानों की तीव्र गति के कारण हुआ यह कम्पन अस्थाई होता है। जे.बी. मेसिलवाने के अनुसार, “भूकंप धरातल के ऊपरी भाग की वह कम्पन विधि है जो धरातल के ऊपर या नीचे चट्टानों के लचीले गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षणिक अव्यवस्था द्वारा पैदा होती है।” सेलिसबरी के अनुसार, “भूकंप वे धरातलीय कम्पन हैं जो मनुष्य से असम्बन्धित क्रियाओं के परिणामस्वरूप होते हैं।”

प्रश्न 26.
ज्वालामुखी उद्गारों को प्रायः पर्वत निर्माण क्रिया से क्यों जोड़ा जाता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी आकस्मिक बल है। पृथ्वी के भीतर पैदा होने वाला यह बल भू-तल के ऊपर तथा नीचे अचानक परिवर्तन ला देता है। इस आकस्मिक बल के कारण भू-पटल पर देखते-ही-देखते पर्वत, पठार, मैदान, झील, दरारें आदि बन जाती हैं। इसलिए ज्वालामुखी उद्गारों को पर्वत निर्माण क्रिया से जोड़ा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 27.
प्रशान्त महासागर के तटीय भागों को अग्नि वलय क्यों कहा जाता है?
अथवा
प्रशान्त महासागरीय परिमेखला को ज्वालावृत क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर के तटीय क्षेत्रों के चारों ओर सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से 403 सक्रिय ज्वालामुखी इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन ज्वालामुखियों ने प्रशान्त महासागर को एक वृत्त की तरह घेर रखा है। इन सक्रिय ज्वालामुखियों में से समय-समय पर लावा का उद्गार होता रहता है इसलिए प्रशान्त महासागर को अग्नि वलय कहते हैं।

प्रश्न 28.
भूकंप विज्ञान (Seismology) क्या होता है?
उत्तर:
वह विज्ञान जो भूकंपों की उत्पत्ति, उनकी तीव्रता का अध्ययन करता है, भूकंप विज्ञान कहलाता है। इसमें भूकंपीय तरंगों का अध्ययन भूकंपमापी यन्त्र (Seismograph) की सहायता से किया जाता है।

प्रश्न 29.
पृथ्वी का निर्माण करने वाली तीन परतों के नाम बताइए।
उत्तर:
भू-पर्पटी, मैण्टल तथा क्रोड।

प्रश्न 30.
पृथ्वी की सबसे भारी तथा सबसे हल्की परत का नाम बताइए।
उत्तर:
सबसे भारी परत-क्रोड तथा सबसे हल्की परत-भू-पर्पटी है।

प्रश्न 31.
भू-पर्पटी, मैण्टल तथा क्रोड का आयतन कितना है?
उत्तर:
भू-पर्पटी 1%, मैण्टल 83% तथा क्रोड 16%।

प्रश्न 32.
किन प्रमाणों से ज्ञात होता है कि पृथ्वी के भीतर भारी गर्मी है?
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी
  2. गरम जल के झरने
  3. गहरी खानें।

प्रश्न 33.
विवर (Crator) क्या होता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी शंकु के शिखर पर स्थित कीपनुमा खड्डे को विवर कहते हैं।

प्रश्न 34.
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखियों के प्रकार बताइए।
उत्तर:

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी तथा
  3. विलुप्त ज्वालामुखी।

प्रश्न 35.
ज्वालामुखी के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र, ज्वालामुखी नली या चिमनी, क्रेटर, ज्वालामुखी शंकु इत्यादि।

प्रश्न 36.
ज्वालामुखी उद्भेदन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
तीन प्रकार का-

  1. केन्द्रीय उद्भेदन
  2. शान्त उद्भेदन व
  3. दरारी उद्भेदन।

प्रश्न 37.
ज्वालामुखी विस्फोट किन कारणों से होता है?
उत्तर:

  1. भू-गर्भ का उच्च ताप
  2. भाप तथा गैसें
  3. दुर्बल भू-भाग
  4. भूकंप।

प्रश्न 38.
विश्व की प्रमुख ज्वालामुखी पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रशान्त महासागरीय परिमेखला
  2. मध्य महाद्वीपीय पेटी
  3. अन्ध महासागरीय पेटी।

प्रश्न 39.
गुरुमण्डल (Barysphere) क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के अभ्यन्तर का वह सारा भाग, जो स्थलमण्डल के नीचे है, गुरुमण्डल कहलाता है। इसमें क्रोड, मैण्टल तथा दुर्बलतामण्डल (Asthenosphere) तीनों शामिल होते हैं। केवल क्रोड या मैण्टल को गुरुमण्डल नहीं कहना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन क्यों आवश्यक है?
अथवा
भू-गर्भ की जानकारी हमारे लिए किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भू-गर्भ का अध्ययन भू-गर्भ विज्ञान करता है, परन्तु भू-गर्भ का ज्ञान कई भौगोलिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए सहायक है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. भू-गर्भ के अध्ययन से पर्वतों के उत्थान, निर्माण तथा धंसाव का ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. इससे भू-तल पर होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. भू-गर्भ से हमें पथ्वी की आन्तरिक शक्तियों तथा हलचलों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. इसके अध्ययन से हमें विभिन्न क्रियाओं; जैसे तनाव और खिंचाव आदि का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. भू-गर्भ की जानकारी से विभिन्न खनिज-पदार्थों की स्थिति तथा संरचना की जानकारी प्राप्त होती है।
  6. भूकंपों और ज्वालामुखियों के कारणों की व्याख्या पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के ज्ञान से ही हो सकती है।
  7. पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों से बने पर्वत, पठार और मैदान मानव बसाव व आर्थिक क्रियाओं का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है, क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी का आन्तरिक भाग दृश्य (Visible) न होने के कारण भू-गर्भ के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। पृथ्वी के भीतर की अधिकतर जानकारी हमें परोक्ष (Indirect) रूप से प्राप्त हुई है। भू-गर्भ के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान हमें खानों और सछिद्रों (Bore-holes) से मिलता है। विश्व की सबसे गहरी खान दक्षिण अफ्रीका में रॉबिन्सन गर्त है। सोने की यह खान 4 कि०मी० से कुछ कम गहरी है। तेल की खोज में खोदे गए कुओं की गहराई भी 8 कि०मी० से अधिक नहीं हो पाई है। ये दोनों गहराइयाँ पृथ्वी के केन्द्र की दूरी की तुलना में नगण्य हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि प्रत्यक्ष रूप से तो केवल भू-पर्पटी के ऊपरी भाग की, जो धरातल के एकदम नीचे स्थित है, जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह ऊपरी भाग तो पृथ्वी पर खरोंच जैसा है। इससे निचले भाग की जानकारी के लिए परोक्ष वैज्ञानिक प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 3.
उल्कापिण्ड पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के विषय में जानकारी देने में किस प्रकार सहायता करती हैं?
उत्तर:
उल्कापिण्ड उल्का (Meteor) का वह हिस्सा होता है जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमण्डल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह नहीं जल पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। सौरमण्डल का सदस्य होने के कारण उल्कापिण्डों और पृथ्वी की रचना में समानता पाई जाती है, इनके अध्ययन से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है-प्रथम, पृथ्वी में भी उल्कापिण्डों के समान प्याज के छिलकों जैसी संकेन्द्रीय (Concentric) परतें पाई जाती हैं। द्वितीय, उल्कापिण्डों के निर्माण में लोहा तथा निकिल की प्रधानता इंगित करती है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग भी ऐसी भारी धातुओं से बना हुआ होगा।

प्रश्न 4.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापमान की क्या दशा होती है?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। इस बात की पुष्टि ज्वालामुखी विस्फोटों तथा गरम जल के झरनों से होती है। गहरी खानों और गहरे कुओं से भी यही साबित होता है कि धरती में नीचे जाने पर गर्मी बढ़ती जाती है। सामान्यतः की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। इस दर से 50 कि०मी० की गहराई पर तापमान 1,200 डिग्री सेल्सियस से 1800 डिग्री सेल्सियस के बीच तथा पृथ्वी के धात्विक क्रोड पर 2 लाख डिग्री सेल्सियस होना चाहिए परन्तु वास्तव में यह सत्य नहीं है। अब वैज्ञानिकों का विचार है कि गहराई के साथ तापमान की वृद्धि की दर भी कम होती जाती है जो इस प्रकार है

  • धरातल से 100 कि०मी० की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०
  • 100 कि०मी० से 300 कि०मी० तक 2 डिग्री सेल्सियस/प्रति कि०मी० और
  • 300 कि०मी० से नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०।

इस गणना के अनुसार धात्विक क्रोड का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस है, परन्तु अनेक विद्वानों का मत है कि पृथ्वी के क्रोड में 6,000 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए।

प्रश्न 5.
सीस्मोग्राफ क्या है? सीस्मोग्राफ के प्रयोग के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सीस्मोग्राफ वह यन्त्र है जो भूकंपीय तरंगों तथा उनकी तीव्रता को मापता है। इस यन्त्र में एक सुई लगी होती है जो ग्राफ पेपर पर भूकंपीय तरंगों को रेखांकित करती है। सीस्मोग्राफ द्वारा रेखांकित भूकंपीय तरंगों के अध्ययन द्वारा विभिन्न चट्टानों के प्रकारों तथा संरचना का ज्ञान प्राप्त होता है। सीस्मोग्राफ भूकंप के उद्गम, भूकंपीय तरंगों की गति, मार्ग और तीव्रता का ज्ञान प्रदान करता है। सीस्मोग्राफ का प्रयोग पृथ्वी की आन्तरिक जानकारी, विभिन्न खनिज-पदार्थों तथा उनकी संरचना आदि की जानकारी के लिए किया जाता है। यदि पृथ्वी का आन्तरिक भाग कठोर है तो भूकंपीय तरंगों का व्यवहार तरल भाग की तुलना में भिन्न होगा।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए.
(1) सियाल
(2) साइमा
(3) निफे
(4) मैण्टल
(5) भू-पर्पटी।
उत्तर:
(1) सियाल (Sial) यह भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है। इस परत में Silica (SI) और Aluminium (AI) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे इसका नाम Sial (SI+AL) पड़ गया। इसका औसत घनत्व 2.75 से 2.90 है। इस परत की मोटाई 8 कि०मी० से 100 कि०मी० तक है। इस परत में अम्लीय पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं। महाद्वीपों की रचना सियाल से हुई मानी जाती है।

(2) साइमा (Sima) सियाल के नीचे स्थित यह परत अपेक्षाकृत भारी शैलों से बनी है। इस परत में Silica (S1) तथा Magnesium (MA) की प्रधानता है। इसी कारण इसका नाम Sima (SI + MA) पड़ा। इस परत का औसत घनत्व 2.90 से 3.4 है। इस परत की मोटाई 100 कि०मी० से 2,900 कि०मी० तक है। महासागरों की तली भी इसी साइमा से बनी है।

(3) निफे (Nife)-साइमा परत के नीचे अन्तिम परत कठोर धातुओं से बनी है इसे निफे (Nife) परत कहते हैं। इसमें Fe = Ferrus (फेरस) की मात्रा अधिक है। लौह पदार्थों की अधिकता के कारण इसमें चुम्बकीय गुण है जिससे यह प्रत्येक वस्तु को पृथ्वी की ओर आकर्षित करती है। इस परत की मोटाई 2,900 से 4980 कि०मी० है।

(4) मैण्टल (Mantle)-यह परत भू-पर्पटी के नीचे स्थित है। इसकी मोटाई 2,900 कि०मी० है। भारी चट्टानों से बनी इस परत के ऊपरी भाग में तापमान 870° सेल्सियस व निचले भाग में 2,200° सेल्सियस रहता है। ऊपरी मैण्टल अपेक्षाकृत कम तप्त होने के कारण ठोस चट्टानों का बना है। यहाँ निचले मैण्टल की अपेक्षा दबाव भी कम है। अतः यहाँ पृथ्वी के भू-गर्भ से उठती हुई तप्त चट्टानें प्रायः पिघलकर मैग्मा बनाती हैं।

(5) भू-पर्पटी (Crust) यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है, जो एक पतले आवरण की तरह पृथ्वी के आन्तरिक भाग को घेरे हुए है। भू-पर्पटी स्थलमण्डल (Lithosphere) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी मोटाई हर जगह एक जैसी नहीं है। भू-पर्पटी की औसत मोटाई 60 कि०मी० है। यद्यपि इस बारे में विद्वानों की राय अलग-अलग है लेकिन यह सत्य है कि यदि पृथ्वी को एक अण्डा मान लिया जाए, तो भू-पर्पटी की तुलना उसके छिलके से की जा सकती है। भू-पर्पटी के दो भाग हैं सियाल तथा साइमा।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(1) P-तरंगें तथा S-तरंगें
(2) सियाल तथा निफे
(3) भू-पर्पटी तथा क्रोड
(4) गुटेनबर्ग असंतति तथा मोहोरोविसिक असंतति
(5) मैग्मा तथा लावा
उत्तर:
(1) P-तरंगों तथा S-तरंगों में अंतर निम्नलिखित हैं-

P-तरंगें S-तारों
1. इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थ आगे-पीछे हिलते हैं। 1. इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थों के कण गति की दिशा के लम्बवत् दाएँ-बाएँ या ऊपर-नीचे दोलन करते हैं।
2. P-तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। इनके कणों की गति तरंग की रेखा के सीध में होती है। 2. S-तरंगें प्रकाश अथवा जल तरंगों के समान होती हैं जिनमें कणों की गति तरंग की दिशा के समकोण पर होती है।
3. ये तरंगें ठोस, तरल और गैसीय तीनों ही माध्यमों से गुज़र सकती हैं। 3. ये तरंगें तरल भाग में प्राय: लुप्त हो जाती हैं।
4. इनका वेग 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है। 4. इनका वेग अपेक्षाकृत कम अर्थात् 4 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है।

(2) सियाल तथा निफे में अंतर निम्नलिखित हैं-

सियाल निफ़े
1. सियाल भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है। 1. निफे साइमा परत के नीचे अन्तिम परत है।
2. इस परत में सिलिका और एल्यूमीनियम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। 2. यह भाग कठोर धातुओं निकिल तथा फेरस (लोहा) आदि से निर्मित है।
3. इस परत की मोटाई 8 से 100 कि०मी० तक है। 3. यंह 2,900 कि०मी० से पृथ्वी के केन्द्र तक (6,371 कि०मी०) विस्तृत है।

(3) भू-पर्पटी तथा क्रोड में अंतर निम्नलिखित हैं-

भू-पर्पटी क्रोड
1. यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जिसकी औसत मोटाई 60 कि०मी० है। 1. यह पृथ्वी का केन्द्रीय भाग है जिसका विस्तार पृथ्वी की 2,900 कि०मी० की गहराई से पृथ्वी के केन्द्र $(6,371$ कि०मी०) तक है।
2. भू-पर्पटी के दो भाग हैं-सियाल और साइमा। 2. क्रोड के भी दो भाग हैं-बाह्य क्रोड, आन्तरिक क्रोड।
3. भू-पर्पटी सिलिका, एल्यूमीनियम तथा मैग्नीशियम से बनी है। 3. क्रोड की रचना निकिल तथा फेरस से हुई है।

(4) गुटेनबर्ग असंतति तथा मोहोरोविसिक असंतति में अंतर निम्नलिखित हैं-

गुट़नबर्ग असंतति मोहोरोविडिक असंतति
1. यह असंतति मैण्टल और क्रोड के बीच सीमा का कार्य करती है। 1. यह असंतति भू-पर्पटी और मैण्टल के बीच सीमा का कार्य करती है।
2. इसका पता भूकंप वैज्ञानिक गुटेनबर्ग ने सन् 1926 में लगाया था। 2. इसका पता यूगोस्लाविया के भूकंप वैज्ञानिक मोहोरोविसिक ने सन् 1909 में लगाया था।

(5) मैग्मा तथा लावा में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मैग्मा लावा
1. पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघले हुए गर्म घोल को मैग्मा कहा जाता है। 1. जब उद्भेदन के कारण मैग्मा धरती के बाहर आकर ठण्डा तथा ठोस रूप धारण कर लेता है, तो उसे लावा कहा जाता है।
2. यह पृथ्वी के भीतरी भागों में ऊपरी मैंटल में उत्पन्न होता है। 2. यह पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल के सम्पर्क से ठण्डा एवं ठोस होता है।
3. इसमें जल एवं अन्य गैसें भी मिली होती हैं। 3. इसमें जल एवं गैसों के अंश नहीं होते।

प्रश्न 8.
भूकंप आने के कारणों को संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकंप निम्नलिखित कारणों से आते हैं-

  1. भू-प्लेटों का खिसकना-स्थलमण्डल भू-प्लेटों से बना है। इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप पैदा होते हैं।
  2. ज्वालामुखी क्रिया-पृथ्वी के अन्दर स्थित मैग्मा व गैसें जब प्रचण्ड वेग से भू-पटल पर आने का प्रयास करती हैं या बाहर आ जाती हैं तो चट्टानों में कम्पन आता है।
  3. भू-पटल का संकुचन-पृथ्वी के ऊपर की चट्टानें जब नीचे की ओर सिकुड़ती हुई चट्टानों से समायोजन करती हैं तो शैलों में आई अव्यवस्था के कारण भूकंप आते हैं।
  4. भू-सन्तुलन-ऊँचे उठे भू-भागों के अपरदन से उत्पन्न तलछट धीरे-धीरे समुद्री तली में निक्षेपित होने लगता है। इससे पृथ्वी का सन्तुलन भंग हो जाता है। अतः पुनः सन्तुलन प्राप्त करने की प्रक्रिया भूकंप को जन्म देती है।
  5. जलीय भार-बड़े-बड़े जलाशयों में जल एकत्रित करने से चट्टानों पर दबाव बढ़ता है। इसमें भू-सन्तुलन अस्थिर हो जाता है जिससे भूकंप आते हैं।
  6. गैसों का फैलाव पृथ्वी के भीतर की गर्मी से गैसें गरम होकर फैलती हैं जिससे चट्टानों पर दबाव बढ़ता है और उनमें कम्पन पैदा होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 9.
क्या भूकंपों से किसी प्रकार का लाभ भी होता है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंपों से कुछ लाभ भी हुआ करते हैं-

  1. भूकंपों के माध्यम से हमें पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  2. भूकंपीय बल से उत्पन्न भ्रंश और वलन अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देते हैं; जैसे पर्वत, पठार, मैदान और घाटियाँ आदि।
    भूकंप के समय भूमि के धंसने से झरनों और झीलों जैसे नए जलीय स्रोतों की रचना होती है।
  3. समुद्र तटीय भागों में आए भूकंपों के कारण कम गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है जहाँ सुरक्षित पोताश्रय बनाए जा सकते हैं।
  4. भूकंपों का आर्थिक महत्त्व भी कम नहीं है। वर्तमान में भूकंपीय तरंगें परतदार चट्टानों की अपनतियों (Anticlines) में गैस व तेल
  5. भण्डार (Oil Traps) ज्ञात करने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त भूकंप से हुई चट्टानों की उथल-पुथल में अनेक प्रकार के अन्य खनिज भी प्राप्त होते हैं।
  6. भूकंप से भू-स्खलन क्रिया होती है। इससे मृदा के निर्माण में सहायता मिलती है और कृषि को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 10.
भूकंपों से बचने के प्रमुख उपाय सुझाइए।
उत्तर:
भूकंप कुदरत का एक ऐसा कहर है जिसे रोकना तो सम्भव नहीं, किन्तु संगठित प्रयासों से उसके विनाश को कम किया जा सकता है। भूकंप सैकड़ों वर्षों के विकास को क्षण भर में मिटा सकता है। अतः भूकंप के विरुद्ध एक नीतिगत रक्षा कवच बनाया जाना जरूरी है। इसके तहत न केवल भूकंपमापी केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए, बल्कि भूकंप की सूचना को कारगर तरीके से आखिरी आदमी तक फैलाया जाए। संवेदनशील भूकंप क्षेत्रों में लोगों को भूकंप से पहले, उसके दौरान व बाद में उठाए जाने वाले कदमों का अभ्यास करवाते रहना चाहिए। वहाँ तरंगरोधी मकानों की योजना लागू करना जरूरी है। जापान ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। भूकंप के विरुद्ध उपायों द्वारा इच्छारहित जन-धन की अपार हानि को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
किसी ज्वालामुखी घटना और भूकंप में आप क्या सम्बन्ध पाते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी विस्फोटों और भूकंपों में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। भूकंप-क्षेत्र तथा ज्वालामुखी क्षेत्र लगभग एक ही हैं। मुख्यतः भूकंप ज्वालामुखी क्षेत्रों में ही आते हैं। ज्वालामुखी उद्गार के समय भू-पटल पर अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। विस्फोट के समय भू-भाग झटके तथा धमाके के साथ नीचे गिरता है तथा भू-पटल पर झटके लगने लगते हैं। उदाहरण के लिए, सन् 1883 में जावा तथा सुमात्रा के मध्य क्राकाटोआ द्वीप पर भयंकर भूकंप ज्वालामुखी उद्गार के कारण आया जिसका प्रभाव 8,000 कि०मी० की दूरी तक था। इसके झटके दक्षिणी अमेरिका के केपहार्न तक महसूस किए गए।

प्रश्न 12.
ज्वालामुखी की परिभाषा दीजिए तथा चित्र की सहायता से इसके विभिन्न अंगों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी एक आकस्मिक प्रक्रिया है जिसमें भू-गर्भ से मैग्मा, गैसें तथा चट्टानी चूर्ण विस्फोट के रूप में धरातल पर आता है। वारसेस्टर के अनुसार, “ज्वालामुखी वह क्रिया है जिसमें गरम पदार्थ की धरातल की तरफ या धरातल पर आने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं।” ज्वालामुखी के अंग-भू-तल पर जिस मुँह से मैग्मा, गैसें तथा विखण्डित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे ज्वालामुखी छिद्र राख, गैसें, वाष्प, शिलाखंड (Volcanic Hole) कहते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1
इस छिद्र के चारों ओर निकली हुई ज्वालामुखी विवर सामग्री के जमा होने से ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। इस जमाव के बड़ा और ऊँचा होने पर शंकु पर्वत शिलाखंड गौण ज्वालामुखी लावा प्रवाह सामग्री का रूप धारण कर लेता है जिसे ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic की परतें Mountain) कहते हैं। छिद्र से जुड़ी जिस प्राकृतिक नली से मैग्मा इत्यादि का निकास होता है, उसे ज्वालामुखी नली या चिमनी (Volcanic Chimney) कहा जाता है। चिमनी के ऊपर कटोरे मैग्मा चैंबर जैसी आकृति का एक घेरा बनता है जिसे क्रेटर या विवर (Crator) ज्वालामुखी की संरचना कहा जाता है। क्रेटर के अत्यधिक विस्तृत हो जाने पर उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। कई बार मैग्मा मुख्य नली के दोनों या एक ओर रन्ध्रों से होकर बाहर निकलता है और छोटे-छोटे शंकुओं का निर्माण करता है, इन्हें गौण शंकु (Secondary Cones) कहा जाता है।

प्रश्न 13.
भूमण्डलीय उष्मन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय उष्मन (Global Warming) का अर्थ है-पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होना। जीवाश्म ईंधनों के . चलने (कोयला, तेल, गैस) के कारण, तीव्र शहरीकरण व औद्योगीकरण के कारण, अधिक परिवहन साधनों के प्रयोग, कृषि में अधिक पैदावार हेतु रासायनिक पदार्थों के अधिक प्रयोग तथा वनों की निरंतर कटाई से वायुमंडल के संघटन में एक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। इन क्रियाओं के कारण हमारे वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा निरंतर बढ़ रही है। इससे पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ रहा है। भूमण्डलीय उष्मन या ग्रीन हाउस प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान 0.5°C बढ़ गया है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2040 तक पृथ्वी के तापमान में 2°C की वृद्धि हो जाएगी। भूमण्डलीय उष्मन/ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख दुष्परिणाम इस प्रकार हैं

  • विश्व में औसत तापमान बढ़ने से हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानियाँ पिघलेंगी।
  • समुद्र का जल-स्तर ऊँचा उठेगा जिससे तटवर्ती प्रदेश व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। करोड़ों लोग शरणार्थी बन जाएंगे।
  • वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। पृथ्वी का समस्त पारिस्थितिक तन्त्र प्रभावित होगा। शीतोष्ण कटिबन्धों में वर्षा बढ़ेगी और समुद्र से दूर उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा घटेगी।
  • आज के ध्रुवीय क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक गर्म हो जाएँगे।
  • जलवायु के दो तत्त्वों तापमान और वर्षा में जब परिवर्तन होगा तो निश्चित रूप से धरातल की वनस्पति का प्रारूप बदलेगा।
  • हरित गृह प्रभाव के कारण कृषि क्षेत्रों, फसल प्रारूप तथा कृषि प्राकारिकी (Topology) में परिवर्तन होने की संभावना निश्चित है।

प्रश्न 14.
ज्वालामुखी उद्भेदन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्भेदन तीन प्रकार के होते हैं-
1. विस्फोटक अथवा केन्द्रीय उद्भेदन ज्वालामुखी का यह उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख से प्रचण्ड विस्फोटक ध्वनि, कम्पन और गड़गड़ाहट के साथ होता है। इसमें नुकीले शैलखण्डों की बारिश के साथ लावा निकलना आरम्भ होता है। इटली का एटना तथा विसुवियस और जापान का फ्यूज़ीयामा केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं।

2. शान्त उदभेदन जब मैग्मा भू-पटल की मोटी परत को नहीं तोड़ पाता तो वह अन्य निर्बल एवं दरार वाले क्षेत्रों से बाहर निकलता है। इस प्रकार के उद्भेदन में भीषणता नहीं होती, इसी कारण इसे शान्त उद्भेदन कहते हैं। स्ट्रॉम्बोली, हवाई, आईसलैण्ड व समोआ के ज्वालामुखी शान्त उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं।

3. दरारी उद्भेदन इस प्रकार के उद्भेदन में बेसाल्टी लावा किसी एक मुख से न निकलकर सैंकड़ों लम्बी-लम्बी दरारों से उबल-उबलकर निकल रहा होता है। दरारी उद्भेदन में न तो भीषणता होती है और न ही गैसें और चट्टानी पदार्थ निकलते हैं। इसमें अत्यन्त तरल लावा बाहर आकर एक मोटी परत के रूप में भूमि को ढक लेता है। दक्षिणी भारत का लावा पठार और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्नेक नदी (Snake River) का प्रदेश दरारी उद्भेदन से बने हुए हैं।

प्रश्न 15.
ज्वालामुखी विस्फोट के आधार पर इसके प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी पाए जाते हैं, परन्तु ज्वालामुखी विस्फोट के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सक्रिय ज्वालामुखी-इस प्रकार के ज्वालामुखी से जलवाष्प, गैसें, विखण्डित पदार्थ तथा लावा उद्गार के पश्चात् हमेशा प्रवाहित होता रहता है। विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इटली का ‘एटना’ ज्वालामुखी तथा सिसली द्वीप का ‘स्ट्रॉम्बोली’ सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण हैं।।

2. प्रसुप्त ज्वालामुखी-ऐसे ज्वालामुखी जिनमें एक बार उद्गार के पश्चात् वे कुछ समय या वर्षों के लिए शान्त हो जाते हैं, परन्तु इनसे पुनः विस्फोट होते हैं, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं। ये ज्वालामुखी अधिक भयानक तथा हानिकारक होते हैं। इनसे . जन तथा धन की अपार हानि होती है। इसका मुख्य उदाहरण इटली का विसुवियस ज्वालामुखी है।

3. विलुप्त या शान्त ज्वालामुखी विलुप्त ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जो पूर्ण रूप से ठण्डे हो चुके हैं। इनके द्वारा अभी तक विस्फोट नहीं हुआ। जर्मनी का ऐफिल पर्वत तथा म्यांमार (बर्मा) का पोपा ज्वालामुखी इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 16.
भूकंप क्षेत्रों के विश्व वितरण के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अधिकांश भूकंप नवीन वलितदार पर्वतों के सहारे एवं समुद्र तटों पर पाए जाते हैं। भूकंपों और ज्वालामुखियों का वितरण मिलता-जुलता है।
1. प्रशान्त महासागरीय परिमेखला-विश्व के लगभग 68 प्रतिशत भूकंप प्रशान्त महासागर के तटीय भागों में आते हैं। इस पेटी को ‘अग्नि वलय’ (Ring of Fire) कहते हैं। यहाँ ज्वालामुखी के उद्भेदन तथा स्तर अंश की संयुक्त प्रक्रिया के फलस्वरूप भीषण भूकंप आते हैं। इस पेटी में चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फ़िलीपीन्स तथा मध्य महासागरीय भाग आते हैं।

2. मध्य महाद्वीपीय पेटी विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकंप इसी पेटी में आते हैं। मैक्सिको से आरम्भ होकर यह पेटी अन्धमहासागर, भूमध्य सागर, आल्पस तथा काकेशस से होती हुई हिमालय क्षेत्र तथा उसके निकटवर्ती भागों में फैली हुई है।

3. अन्य क्षेत्र-शेष 11 प्रतिशत भूकंप उपर्युक्त दो पेटियों से बाहर यहाँ-वहाँ पाए जाते हैं। कुछ भूकंप पूर्वी अफ्रीका की महान् भ्रंश घाटी क्षेत्र, लाल सागर तथा मृत सागर वाली भ्रंश पेटी में आते हैं।

प्रश्न 17.
उद्गम-केन्द्र और अधिकेन्द्र से क्या अभिप्राय है?
अथवा
उद्गम केन्द्र या भूकंप केन्द्र और अधिकेन्द्र के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जो भूपटल में हलचल उत्पन्न कर देती है। जिस बिन्दु या केन्द्र पर भूकंप उत्पन्न होता है, उसके चारों ओर भूकंप की लहरें फैलती हैं। अधिकांश भूकंप भू-गर्भ में उत्पन्न होते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 3
जिस केन्द्र या बिन्दु से भूकंप की लहरें उत्पन्न होती हैं, उसे उद्गम-केन्द्र या भूकंप-केन्द्र कहते हैं। इसको अवकेंद्र भी कहते हैं। अधिकांश भूकंपों की गहराई 50 कि०मी० से 100 कि०मी० तक होती है तथा पातालीय भूकंप की गहराई लगभग 700 कि०मी० तक उद्गम केंद्र होती है। उद्गम-केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर जो बिन्दु या स्थान स्थित होता है, उसे अधिकेन्द्र (Epicentre) कहते हैं। धरातल पर भूकंप मूल (उद्गम केंद्र) और अधिकेंद्र सर्वप्रथम इसी केन्द्र पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं तथा सबसे अधिक कम्पन इसी केन्द्र पर अनुभव किया जाता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक परतों या भागों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पृथ्वी की संरचना का वर्णन करें।
अथवा
पृथ्वी की भूपर्पटी, मैंटल व क्रोड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगों का आचरण बताता है कि हमारी पृथ्वी एक गठा हुआ पिण्ड (Solid Mass) नहीं है। इसके आन्तरिक भाग की रचना प्याज जैसी है, जिसमें पहली परत के नीचे दूसरी परत व दूसरी के नीचे तीसरी परत अथवा केन्द्र में धात्विक क्रोड है। भूकंपीय तरंगों की सहायता से इन परतों की सही स्थिति, मोटाई, गहराई तथा भौतिक व रासायनिक संरचना की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ये परतें हैं
1. भू-पर्पटी (Crust) यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है, जो एक पतले आवरण की तरह पृथ्वी के आन्तरिक भाग को घेरे हुए है। भू-पर्पटी स्थलमण्डल (Lithosphere) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी मोटाई हर जगह एक-जैसी नहीं है। भू-पर्पटी की औसत मोटाई 60 कि०मी० है, यद्यपि इस बारे में विद्वानों की राय अलग-अलग है लेकिन यह सत्य है कि यदि पृथ्वी को एक अण्डा मान लिया जाए, तो भू-पर्पटी की तुलना उसके छिलके से की जा सकती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 2
भू-पर्पटी के दो भाग हैं
(i) सियाल (Sial)-यह भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है। इस परत में Silica (SI) और Aluminium (AL) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे इसका नाम Sial (SI + AL) पड़ गया। इसका औसत घनत्व 2.75 से 2.90 है। महाद्वीपों की रचना सियाल से हुई मानी जाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 4

(ii) साइमा (Sima)-सियाल के नीचे स्थित यह परत अपेक्षाकृत भारी शैलों से बनी है। इस परत में Silica (SI) तथा Magnesium (MA) की प्रधानता है। इसी कारण इसका नाम Sima (SI + MA) पड़ा। इस परत का औसत घनत्व 2.90-3.4 है। महासागरों की तली भी इसी साइमा से बनी है। यद्यपि सियाल और साइमा दोनों का आयतन पृथ्वी के कुल आयतन का लगभग 0.5 प्रतिशत है। फिर भी यह हमारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यही प्रकृति और मनुष्य दोनों का कर्मक्षेत्र है।

(2) मैण्टल (Mantle) यह परत भू-पर्पटी के नीचे स्थित है। इसकी मोटाई 2,900 कि०मी० है। भारी चट्टानों से बनी इस परत के ऊपरी भाग में तापमान 870° सेल्सियस व निचले भाग में 2,200° सेल्सियस रहता है। ऊपरी मैण्टल अपेक्षाकृत कम तप्त होने के कारण ठोस चट्टानों का बना है। यहाँ निचले मैण्टल की अपेक्षा दबाव भी कम है। अतः यहाँ पृथ्वी के भू-गर्भ से उठती हुई तप्त चट्टानें प्रायः पिघलकर मैग्मा बनाती हैं।

भू-पर्पटी और मैण्टल के बीच मोहो अथवा मोहोरोविसिक असंतति (Mohorovicic Discontinuity) पाई जाती है। मोहो भू-पर्पटी को मैण्टल से अलग करने वाले स्पष्ट आकार को कहते हैं। भूकंपीय तरंगों के वेग के आधार पर मैण्टल को तीन भागों में बाँटा जाता है-

  • मोहो असंतति से 200 कि०मी० की गहराई तक
  • 200 कि०मी० से 700 कि०मी० की गहराई तक तथा
  • 700 कि०मी० से क्रोड की साइमा तक।

पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाली अदृश्य घटनाओं में मैण्टल की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसी से संवहन धाराएँ (Convectional Currents) निकलती हैं, जो महाद्वीपीय विस्थापन, भूकंप तथा ज्वालामुखी आदि के लिए ऊर्जा प्रदान करती हैं।

(3) क्रोड (Core) यह पृथ्वी का केन्द्रीय भाग है, जिसका विस्तार 2,900 कि०मी० की गहराई से पृथ्वी के केन्द्र (6,371 कि०मी०) तक है। क्रोड का आरम्भ गुटेनबर्ग असंतति (Gutenberg Discontinuity) से होता है। यह असंतति मैण्टल और क्रोड के बीच का कार्य करती है। क्रोड के दो भाग माने जाते हैं-

  • बाह्य क्रोड
  • आन्तरिक क्रोड।

बाह्य क्रोड सम्भवतः द्रव अथवा अर्ध-द्रव अवस्था में है। यह 2,900 कि०मी० से 5,150 कि०मी० की गहराई तक विस्तृत है। इसका घनत्व 5 है। आन्तरिक क्रोड ठोसावस्था में है। यह 5,150 कि०मी० से केन्द्र तक (6,371 कि०मी०) विस्तृत है।

क्रोड का आयतन पृथ्वी के आयतन का 16 प्रतिशत है। इसकी रचना भारी खनिज पदार्थों Nickel (Ni) तथा Ferrus (Fe) से होने के कारण इसे निफे (Nife) कहा जाता है। इसका कुल द्रव्यमान (Mass) 32 प्रतिशत है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की आन्तरिक बनावट की जानकारी किन-किन स्रोतों से प्राप्त होती है? इस सम्बन्ध में विभिन्न प्रमाणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक बनावट की जानकारी देने वाले प्रमुख स्रोत व उनके प्रमाण निम्नलिखित हैं
1. घनत्व पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी का औसत घनत्व 5.517 (ग्राम घन सेंटीमीटर) है। इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी का भार अपने समान आकार वाले जलपिण्ड (Water body) से 5.5 गुना अधिक है। पृथ्वी के ऊपरी भाग में बिछी परतदार चट्टानों का घनत्व केवल 2.7 (ग्राम घन सेंटीमीटर) है जबकि इससे नीचे स्थित आग्नेय शैलों से बनी परत का घनत्व 3.0 से 3.5 (ग्राम घन सेंटीमीटर) तक ही है। इस आधार पर पृथ्वी के भीतरी भागों का घनत्व ऊपरी भागों की अपेक्षा अधिक होना चाहिए। इससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के अंतरतम का घनत्व सर्वाधिक है।

2. दबाव पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी में गहराई के साथ बढ़ते घनत्व के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों के दो मत हैं। एक मत के अनसार पृथ्वी के आन्तरिक भाग का अधिक घनत्व इसकी बाहरी परतों के भार अथवा दबाव के कारण है। इससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के क्रोड का अत्यधिक घनत्व वहाँ स्थित दबाव के कारण है। किन्तु आधुनिक प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि हर शैल में एक साइभा के बाद घनत्व बढ़ना बन्द हो जाता है, दबाव चाहे कितना ही बढ़ जाए। अतः बढ़ा हुआ दबाव चट्टानों को ठोसावस्था में नहीं रख पाता। इस आधार पर दूसरे मत के अनुसार पृथ्वी का क्रोड धातु से बना है, जिसके भार के कारण यहाँ घनत्व अधिक है।

3. तापमान पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी के भीतर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। इस बात की पुष्टि ज्वालामुखी विस्फोटों तथा गरम जल के झरनों से होती है। गहरी खानों और गहरे कुओं से भी यही साबित होता है कि धरती में नीचे जाने पर गर्मी बढ़ती जाती है। इस गर्मी व तापमान में वृद्धि के कई कारण हैं; जैसे

  • रासायनिक प्रतिक्रियाएँ (Chemical Reactions)
  • आन्तरिक शक्तियाँ (Internal Forces)
  • रेडियोधर्मी पदार्थों का स्वतः विखण्डन (Self Disintegration of Radioactive Minerals)

सामान्यतः प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। अब वैज्ञानिकों का विचार है कि गहराई के साथ तापमान की वृद्धि की दर भी कम होती जाती है जो इस प्रकार है

  • धरातल से 100 कि०मी० की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०
  • 100 कि०मी० से 300 कि०मी० तक 2 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी० और
  • 300 कि०मी० से नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०।

इस गणना के अनुसार धात्विक क्रोड का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस है परन्तु अनेक विद्वानों का मत है कि पृथ्वी के क्रोड में 6,000 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। इतने अधिक तापमान में क्रोड के पदार्थ ठोसावस्था में नहीं रह सकते। अतः वे तरल या गैसीय अवस्था में होंगे।

पृथ्वी के तरल अथवा गैसीय होने की भी सम्भावना प्रतीत नहीं होती क्योंकि इससे अनेक भू-गर्भिक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि घनत्व, दबाव और तापमान के आधार पर पृथ्वी की बनावट के बारे में कोई निश्चित प्रमाण एकत्रित नहीं किए जा सके हैं। वूलरिज़ तथा मॉर्गन ने पृथ्वी की आन्तरिक भौतिक अवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन निष्कर्ष निकाले हैं

  • अत्यधिक तापमान के बावजूद धात्विक क्रोड की तरल चट्टानें भारी दबाव के कारण ठोस पदार्थों जैसा आचरण करती हैं।
  • ये चट्टानें प्लास्टिक अवस्था में हैं, जिनमें लचीलापन है। अतः दबाव के कारण 2,900 कि०मी० की गहराई तक ठोस प्रतीत होती हैं।
  • आन्तरिक सतह का कुछ भाग दबाव के घटने या तापमान के बढ़ने से तरल हो सकता है, जिससे ज्वालामुखी क्रिया का आविर्भाव हो सकता है।

4. उल्कापिण्डों पर आधारित प्रमाण-अन्तरिक्ष से भू-तल पर गिरने वाले उल्कापिण्डों से भी हमें भू-गर्भ को जानने में सहायता मिलती है। सौरमण्डल का सदस्य होने के कारण उल्कापिण्डों और पृथ्वी की रचना में समानता पाई जाती है। इनके अध्ययन से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है-प्रथम, पृथ्वी में भी उल्कापिण्डों के समान प्याज की परतों जैसी संकेन्द्रीय (Concentric) परतें पाई जाती हैं। द्वितीय, उल्कापिण्डों के निर्माण में लोहा तथा निकिल की प्रधानता इंगित करती है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग भी ऐसी भारी धातुओं से बना हुआ होगा।

5. भूकंपीय तरंगों पर आधारित प्रमाण-
(1) ये तरंगें भूकंप केन्द्र से सीधी दिशा में न चलकर टेढ़े मार्ग को अपनाती हैं। इसका कारण यह है कि घनत्व में आने वाली भिन्नता के कारण तरंगें परावर्तित होकर वक्राकार हो जाती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के भीतर घनत्व में भिन्नता है।

(2) पृथ्वी के क्रोड में S-तरंगों का पूर्णतया अभाव है। इससे यह प्रमाणित होता है कि भू-गर्भ का आन्तरिक भाग तरलावस्था में है क्योंकि S-तरंगें तरल भाग में लुप्त हो जाती हैं, यह क्रोड 2,900 कि०मी० की गहराई में केन्द्र के चारों ओर विस्तृत है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के क्रोड का लोहा तथा अन्य धातु तरलावस्था में तो हैं किन्तु उनका व्यवहार ठोस जैसा है।

(3) भूकंप केन्द्र से 11,000 कि०मी० के बाद लगभग 5,000 कि०मी० का क्षेत्र ऐसा है जहाँ कोई भी तरंग नहीं पहुँचती, इस क्षेत्र को छायामण्डल कहते हैं। छायामण्डल का होना साबित करता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भारी धातुओं से बना हुआ है, इसे धात्विक क्रोड (Metallic core) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगें पृथ्वी की आन्तरिक परतों के स्वभाव की भिन्नता की जानकारी किस प्रकार देती हैं?
अथवा
भूकंपीय तरंगों के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगों को सीस्मोग्राफ यन्त्र द्वारा रेखांकित किया जाता है। इन तरंगों से पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। भूकंप के दौरान अग्रलिखित तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगें पैदा होती हैं
(1) P-तरंगें इन्हें प्राथमिक (Primary) अथवा अनुदैर्ध्य तरंगें भी कहते हैं। विशेषताएँ-

  • इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थ आगे-पीछे हिलते हैं।
  • P-तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। इनके कणों की गति तरंग की रेखा की सीध में होती है।
  • ये तरंगें किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
  • ये ठोस, तरल और गैसीय तीनों ही माध्यमों से गजर सकती हैं।
  • पृथ्वी के क्रोड से केवल यही तरंगें ही निकल सकती हैं, बाकी नहीं। इनका वेग 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है। ये सबसे तेज चलती हैं।
  • शैलों का घनत्व बदलने पर P-तरंगों का वेग भी बदल जाता है।
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(2) S-तरंगें इन्हें गौण (Secondary) अथवा अनुप्रस्थ तरंगें भी कहते हैं। विशेषताएँ-

  • इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थों के कण गति की दिशा के लम्बवत् दाएँ-बाएँ या ऊपर-नीचे दोलन करते हैं।
  • S-तरंगें-प्रकाश अथवा जल तरंगों के समान होती हैं, जिनमें कणों की गति तरंग की दिशा के समकोण पर होती है, इसलिए इन्हें आड़ी तरंगें भी कहते हैं।
  • ये तरंगें तरल भाग में प्रायः लुप्त हो जाती हैं।
  • इनका वेग प्राथमिक तरंगों के वेग से कम अर्थात् 4 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है।
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(3) L-तरंगें इन्हें धरातलीय या लम्बी तरंगें (Long waves) भी कहा जाता है। विशेषताएँ-

  • ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगें होती हैं।
  • इनकी गति यद्यपि कम (3.5 कि०मी० प्रति सैकिण्ड) होती है, फिर भी ये सबसे लम्बा मार्ग तय करती हैं।
  • ये तरंगें भयंकर होती हैं जो ठोस, तरल और गैस-तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं।
  • ये तरंगें मुख्यतः धरातल तक ही सीमित रहती हैं।
  • भूकंपों में होने वाली जन व धन की सबसे ज्यादा बर्बादी इन्हीं तरंगों से होती है।

भूकंपीय तरंगों का स्वभाव/व्यवहार-

  • सभी भूकंपीय तरंगों की गति अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में तेज और कम घनत्व वाले क्षेत्र में कम हो जाती है।
  • भ्रमण पथ पर घनत्व में अन्तर आते ही ये तरंगें सीधी रेखा में न चलकर टेढ़े रूप में चलने लगती हैं। इसे तरंगों का परावर्तन (Reflection) और आवर्तन (Refraction) कहते हैं।।
  • केवल प्राथमिक तरंगें (P-Waves) ही पृथ्वी के केन्द्रीय भाग से गुज़र सकती हैं।
  • गौण तरंगें (S-Waves) द्रव (Liquid) पदार्थों में से नहीं गुज़र सकतीं।
  • धरातलीय तरंगें (L-Waves) केवल धरातल के पास ही चलती हैं, यद्यपि वे ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं।

प्रश्न 4.
भूकंप की परिभाषा देते हुए इसके कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भूकंप किसे कहते हैं? यह कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:
भूकंप का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Earthquake)-भूकंप का तात्पर्य पृथ्वी का काँपना अथवा हिलना है। जब किसी भू-गर्भिक हलचलों के कारण पृथ्वी अचानक काँप उठती है तो उसे भूकंप कहते हैं। .. सेलिसबरी के अनुसार, “भूकंप वे धरातलीय कम्पन हैं जो व्यक्ति से असम्बन्धित क्रियाओं के परिणामस्वरूप होते हैं।”

भूकंप के कारण (Cause of Earthquake)-भूकंप सम्बन्धी जानकारी के बारे में हमारा ज्ञान अभी तक अपूर्ण है, परन्तु वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप आने के कारण निम्नलिखित हैं
1. ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic Process)-ज्वालामुखी उद्गार का भूकंप से गहरा सम्बन्ध है। जब ज्वालामुखी विस्फोट में लावा तथा अन्य पदार्थ बड़ी तीव्र गति से धरातल पर आते हैं तो आस-पास की चट्टानों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए, जावा तथा सुमात्रा के मध्य क्राकोटोआ द्वीप पर भयंकर भूकंप ज्वालामुखी उद्गार के कारण आया।

2. वलन तथा भ्रंश (Folding and Faulting)-भू-पटल पर दबाव तथा तनाव के कारण चट्टानों में वलन तथा भ्रंश पड़ जाते हैं जिससे आस-पास का क्षेत्र काँप उठता है। उदाहरण के लिए, सन् 1950 में असम राज्य में वलन तथा भ्रंश के कारण ही भूकंप उत्पन्न हुआ जिसमें 1,500 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अक्तूबर, 1991 में उत्तरकाशी में आने वाला भूकंप वलन तथा भ्रंशन का ही परिणाम था।

3. पृथ्वी का सिकुड़ना (Contraction of Earth)-पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय से निरन्तर ठण्डी हो रही है। धरातलीय भागों के सिकुड़ने से धरातल की चट्टानों में अव्यवस्था के कारण कम्पन उत्पन्न हो जाता है तथा भूकंप आते हैं।

4. भू-सन्तुलन में अव्यवस्था (Imbalancing of Earth)-पृथ्वी में कहीं-न-कहीं चट्टानों में अव्यवस्था आती रहती है तथा सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे भूकंप की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए 4 मार्च, 1949 को हिन्दूकुश पर्वत पर सन्तुलन अव्यवस्था के कारण भूकंप आया।

5. जलीय भार (Water Weight)-भूगोल-वेत्ताओं के अनुसार धरातल पर झीलों तथा तालाबों में पानी के भार के कारण भूकंप की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए 11 दिसम्बर, 1967 में महाराष्ट्र में कोयना में आने वाला भूकंप कोयना बाँध के निर्माण के कारण आया।

6. अन्य कारण (Other Reasons) भूकंप के कुछ कारण ऐसे भी हैं जो मानव-निर्मित या कृत्रिम हैं और जिनका प्रभाव-क्षेत्र सीमित होता है। इनमें परमाणु परीक्षण, रेलों के चलने तथा पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले विस्फोटकों के कारण भी आस-पास का क्षेत्र काँप उठता है।

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प्रश्न 5.
भूकंप के विनाशकारी एवं लाभकारी प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंप के विनाशकारी प्रभाव भूकंप के विनाशकारी प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. भूकंप से अपार जन तथा धन की हानि होती है। 11 दिसम्बर, 1967 में कोयना भूकंप द्वारा सड़कें तथा बाजार वीरान हो गए, हरे-भरे खेत ऊबड़-खाबड़ हो गए तथा हजारों व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अक्तूबर, 1991 में उत्तर काशी तथा सन् 1992 में उस्मानाबाद और लाटूर के भूकंपों में हज़ारों व्यक्तियों की मृत्यु हो गई तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो गई।

2. भूकंप के कारण कई बार नदियाँ अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा उनमें बाढ़ आ जाती है। सन् 1950 में असम में ब्रह्मपुत्र में भूकंप के कारण ही बाढ़ आई थी।

3. भूकंप के द्वारा भू-स्खलन (Landslides) के कारण बड़े-बड़े शिलाखण्ड टूटकर नदियों के मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं और बाढ़ आने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

4. भूकंप के कारण धरातल पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ जाती हैं। सन् 1966 में कैलिफोर्निया में सैंकड़ों कि०मी० विशाल भ्रंश का निर्माण हुआ।

5. भूकंप के कारण समुद्रों में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं जिससे जलयानों तथा तटीय क्षेत्रों की अपार हानि होती है।

6. भूकंप के कारण चट्टानों की रगड़ से जंगलों में आग लग जाती है जिससे प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं की अपार हानि होती है।

भूकंप के लाभकारी प्रभाव-भूकंप के कारण धरातल पर कुछ लाभकारी प्रभाव भी पड़ते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  • भूकंप से भू-स्खलन की प्रक्रिया होती है जिससे कई बार धरातल पर ऊपजाऊ मिट्टी ऊपर आ जाती है।
  • भूकंप से धरातल पर जो वलन तथा भ्रंश होते हैं उनसे कई नए जल-स्रोतों का जन्म होता है।
  • भूकंप के द्वारा कई बार जलमग्न भाग समतल धरातल में परिवर्तित हो जाते हैं जो कृषि के लिए लाभदायक होते हैं।
  • भूकंप से जो दरारें तथा भ्रंश पड़ते हैं, उनसे कई खनिजों को ढूँढने में की जाने वाली खुदाई आसानी से हो जाती है।
  • भूकंपीय तरंगों से भू-गर्भ की आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
  • भूकंपों के कारण तटीय क्षेत्रों में गहरी खाड़ियाँ बन जाती हैं जहाँ सुरक्षित प्राकृतिक जलपोत बनते हैं।
  • भूकंप से कई स्रोतों (Springs) की उत्पत्ति होती है जिनमें स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  • भूकंप से नए पठारों, द्वीपों तथा झीलों का निर्माण होता है।

प्रश्न 6.
ज्वालामुखी का अर्थ बताते हुए इसके कारणों की व्याख्या कीजिए तथा इनके विश्व-वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी का अर्थ (Meaning of Volcano)-ज्वालामुखी भू-तल पर घटने वाली आकस्मिक और भयानक घटना है। मोंकहाऊस के शब्दों में, “ज्वालामुखी धरातल के वे छिद्र हैं जिनसे भू-गर्भ का मैग्मा आदि पदार्थ उद्गार के रूप में बाहर निकलता है।” ट्रिवार्था के अनुसार, “वे सभी प्रक्रियाएँ जिनसे द्रवित चट्टानें पृथ्वी की गहराई से भू-पटल के बाहर निकलती हैं, ज्वालामुखी क्रिया (Volcanicity) कहलाती हैं।”

ज्वालामुखी उद्गार के कारण (Causes of Volcano Origin) ज्वालामुखी उद्गार के निम्नलिखित कारण होते हैं
1. भू-गर्भ में तापमान की वृद्धि-पृथ्वी के भू-गर्भ में अत्यधिक तापमान है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में 32 मीटर की गहराई में जाने पर 1 सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है तथा भू-गर्भ में रेडियो-एक्टिव खनिजों से तापमान में वृद्धि होती है। धरातल की चट्टानों का बढ़ता हुआ दबाव भी तापक्रम में वृद्धि करता है इसलिए भू-गर्भ अत्यन्त तप्त तथा गरम है। इसलिए भू-गर्भ में चट्टानें पिघल जाती हैं जिससे आयतन में वृद्धि हो जाती है और वह तरल पदार्थ पृथ्वी की कमजोर पपड़ी को तोड़कर धरातल पर विस्फोट के रूप में आता है।

2. गैसों की उत्पत्ति धरातल का पानी छिद्रों तथा प्लेटों के किनारे से रिसकर भू-गर्भ में जाता है जिससे गैसों की उत्पत्ति होती है, क्योंकि भू-गर्भ के अत्यन्त गरम होने के कारण जब उसमें पानी पहुँचता है तो वह जलवाष्प में बदल जाता है जिससे आयतन तथा दबाव में वृद्धि हो जाती है और वह जलवाष्प गैसों के रूप में कमजोर धरातल को तोड़कर विस्फोट उत्पन्न करता है।

3. दुर्बल भू-भागों का होना दुर्बल भू-भागों में किसी आन्तरिक हलचल के कारण शैलें आसानी से टूट जाती हैं और दरारों की रचना होती है जिनसे ज्वालामुखी उद्गार होता है।

4. भूकंप-भूकंप भू-पटल की चट्टानों में उपस्थित सन्तुलन में विकार आने से आते हैं। इससे चट्टानों में भ्रंश या दरारें प हैं। इन दुर्बल क्षेत्रों से गैसें व वाष्प मैग्मा के लिए बाहर आने का रास्ता बनाती हैं। अतः भूकंप और ज्वालामुखी में चोली-दामन का साथ होता है।

ज्वालामुखियों का विश्व वितरण-विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। अधिकांश ज्वालामुखी तटीय या महासागरीय क्षेत्रों तथा द्वीपों पर स्थित हैं। अधिकतर ज्वालामुखी भूकंप पेटियों के आस-पास मिलते हैं। कुछ ज्वालामुखी नवीन वलित पर्वतों के निकट भी स्थित हैं। ज्वालामुखी अग्रलिखित पेटियों में पाए जाते हैं-
1. परिप्रशान्त महासागरीय पेटी-विश्व के अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी इसी पेटी में स्थित हैं। यह पेटी इण्डोनेशिया के जावा, सुमात्रा से आरम्भ होकर उत्तर:पूर्व में फिलीपाइन, फारमोसा, जापान तथा कमचटका से होती हुई अलास्का से दक्षिणी अमेरिका तक चली जाती है। यहाँ प्रत्येक प्रकार के ज्वालामुखी स्थित हैं। विश्व के दो-तिहाई ज्वालामुखी इसी पेटी में स्थित हैं।

2. मध्य महाद्वीपीय पेटी-यह पेटी यूरोप तथा एशिया के मध्य पश्चिम से पूर्व में फैली हुई है। पश्चिम में यह पेटी कनारी द्वीप से आरम्भ होकर भूमध्य सागर, काकेशस, आरमीनिया, ईरान, इराक, अफ़गानिस्तान, ब्लूचिस्तान, भारत में हिमालय, म्यांमार (बा) में अराकानयोमा से होती हुई दक्षिण में इण्डोनेशिया तक फैली हुई है। इटली तथा सिसली द्वीप समूह के ज्वालामुखी भी इसी पेटी में स्थित हैं।

3. अन्ध महासागरीय पेटी-इस महासागर में मध्य अटलांटिक कटक के साथ-साथ ज्वालामुखियों का विस्तार है। यहाँ सबसे अधिक ज्वालामुखी आयरलैण्ड में हैं। एजोर तथा सेण्ट हेलना द्वीपों के ज्वालामुखी भी इसी पेटी में सम्मिलित हैं।

4. अन्य क्षेत्र-उपरोक्त तीन पेटियों के अतिरिक्त महासागरों, महाद्वीपों तथा द्वीपों में भी छुटपुट ज्वालामुखी पाए जाते हैं जो अण्टार्कटिक महाद्वीप में रास सागर, हिन्द महासागर में मैडागास्कर के आस-पास कमोटो, मॉरीशस तथा रीयूनियन द्वीपों पर स्थित हैं।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी से आप क्या समझते हैं? ज्वालामुखी द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
अथवा
ज्वालामुखी से निर्मित भू-आकारों/स्थलाकृतियों का सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी एक आकस्मिक प्रक्रिया है जिसमें भू-गर्भ से मैग्मा, गैसें तथा चट्टानी चूर्ण विस्फोट के रूप में धरातल पर आता है। वारसेस्टर के अनुसार, “ज्वालामुखी वह क्रिया है जिसमें गरम पदार्थ की धरातल की तरफ या धरातल पर आने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं।” ज्वालामुखी से निःसृत पदार्थ निम्नलिखित भू-आकृतियों की रचना करते हैं-
I. ऊँचे उठे भाग (Elevated Landscape)-
1. सिडर अथवा राख शंकु (Cinder or Ash Cone)-सिंडर शंकु का निर्माण प्रायः विस्फोटीय ज्वालामखी से होता है। इन शंकुओं की रचना असंगठित पदार्थों; जैसे धूल, राख तथा हवा में उड़े हुए लावा के छोटे टुकड़ों के ठोस होकर गिरने से होता है। विशेष बात यह है कि सिंडर शंकु के निर्माण में तरल लावे का अवतल ढाल योगदान नहीं होता। आरम्भ में राख शंकु चींटी के ढेर के समान छोटे से बनते हैं, धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता जाता है। ये अपनी रचना में पूर्ण शंकु होते हैं और इनकी ऊँचाई 300 मीटर से अधिक धरातल नहीं होती। इन शंकुओं के किनारे अवतल (Concave) ढाल वाले सिंडर अथवा राख शंकु होते हैं। सिंडर शंकु की ढाल 30 से 40 डिग्री होती है। मैक्सिको तथा हवाई द्वीप समूह में ऐसे अनेक शंकु पाए जाते हैं।
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2. अम्लीय लावा शंकु अथवा गुम्बद (Acid Lava Cone or Dome) ये शंकु अम्ल लावा से बनते हैं जिसका उद्भेदन गाढ़ा, चिपचिपा लावा अत्यधिक विस्फोटक ढंग से होता है। इस लावा में सिलिका का अंश अधिक होता है। अधिक गाढ़ा और चिपचिपा होने के कारण यह लावा अधिक दूर तक नहीं बह पाता। अतः यह लावा भू-गर्भ से निकलते ही ज्वालामुखी के आस-पास जम जाता है। इससे संकीर्ण धरातल और उत्तल ढाल वाले शंकुनुमा गुम्बद की रचना होती है। सिसली का अम्लीय लावा शंकु अथवा गुंबद स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी गुम्बद शंकु का प्रमुख उदाहरण है।
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3. पैठिक लावा शंकु अथवा लावा शील्ड (Basic Lava Cone or Lava Shield)-पैठिक लावा में सिलिका का अंश कम होता है। यह लावा अति गरम, तरल और हल्का होता है जिस कारण यह अधिक दूरी तक फैल जाता है। शान्त उभेदन (Effusive Eruption) से निकला यह लावा विस्तृत क्षेत्रों पर कम ऊँचे और मन्द ढाल वाले शंकु का निर्माण करता है। इसका आधार शील्ड की तरह होने के कारण इसे शील्ड शंकु भी कहा जाता है। हवाई अति तरल लावा से बनी द्वीप समूह का मोनालोआ (Mauna Loa) ज्वालामुखी पैठिक लावा विवर विस्तृत शीट. शंकु का मुख्य उदाहरण है। भारत का दक्षिणी पठार और संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पठार लावा शील्डों के उदाहरण हैं।
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4. मिश्रित शंकु (Composite Cone)-मिश्रित शंकुओं का निर्माण तरल लावा और राख आदि अन्य ज्वालामुखी पदार्थों के बारी-बारी परतों में जमने से होता है। अपनी सुन्दर और स्पष्ट परतों के कारण इन्हें परतदार शंकु (Strato-Cones) भी कहा जाता है। विश्व के सबसे ऊँचे और विशाल ज्वालामुखी पर्वत मिश्रित शंकुओं का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं; जैसे जापान का फ्यूज़ीयामा, संयुक्त राज्य अमेरिका के माऊण्ट शस्ता, रेनियर तथा हुड, फिलीपाइन्स का मेयॉन और सिसली का स्ट्रॉम्बोली आदि। मिश्रित शंकुओं के अत्यधिक विस्तृत हो जाने पर इनकी ढलानों पर कई छोटी उपनलियों द्वारा उपशंकु बन जाते हैं, जिन्हें परजीवी शंकु (Parasite Cones) कहा जाता है।
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5. घोंसलादार शंकु (Nested Cone) कई बार पहले से बने हुए ज्वालामुखी शंकु के अन्दर एक या कई और शंकुओं का निर्माण हो जाता है। इन्हें शंकुस्थ शंकु (Cone in Cone) भी कहते हैं। इटली का विसुवियस ज्वालामुखी घोंसलादार शंकु का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
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6. ज्वालामुखी डाट या प्लग (Volcanic Plug)-मिश्रित शंकु वाले ज्वालामुखी के शान्त होने पर उनकी नली में रुका हुआ न हो चुका भाग लावा जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है। शंकु का निर्माण करने अपरदित भाग वाले अन्य ज्वालामुखी पदार्थों की अपेक्षा यह लावा अधिक कठोर और प्रतिरोधी (Resistant) होता है। अनाच्छादन के द्वारा शंकु के अधिकांश भाग का अपरदन हो जाने के बाद भी नली की ठोस चट्टान ज्वालामुखी डाट बची रहती है, जिसे डाट कहा जाता है। इसे ज्वालामुखी ग्रीवा अपरदन से अब तक बचा हुआ भाग (Volcanic Neck) भी कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर और व्यास 300 से 600 मीटर तक पाया जाता है। अमेरिका का डेविल टावर (Devil Tower) व ब्लैक हिल्स तथा फ्राँस का पाई द डोम (Puy de Dome) ज्वालामुखी डाट के उत्तम उदाहरण हैं।
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II. नीचे फँसे भाग (Depressed Landscape)-
1. क्रेटर झील (Crater Lake)-ज्वालामुखी छिद्र के चारों ओर बनी कीप जैसी आकृति वाला गर्त क्रेटर कहलाता है। ज्वालामुखी के शान्त होने जल – पर यह क्रेटर वर्षा के जल से भर जाता है। इस प्रकार बनी झील को क्रेटर झील कहा जाता है। भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील, उत्तरी सुमात्रा की टोबा झील (Toba Lake) व अमेरिका में ओरेगान (Oregan) की झील क्रेटर झील क्रेटर झीलों के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
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2. काल्डेरा (Caldera) स्पेनिश भाषा में काल्डेरा ‘कड़ाहा’ को कहते हैं। अत्यन्त तीव्र और भयंकर विस्फोट के परिणामस्वरूप ज्वालामुखी की संरचना कमजोर पड़ जाती है जिससे शंकु का ऊपरी भाग धमाके से हवा में उड़ जाता है। उद्भेदन के समाप्त होने पर ज्वालामुखी का बहुत-सा भाग नीचे के मैग्मा कुण्ड में भर-भरा कर गिर जाता है। इस प्रकार बना गर्त काल्डेरा कहलाता है। यह क्रेटर से बहुत बड़ा होता है। काल्डेरा का मुँह कई किलोमीटर चौड़ा होता है। विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो (Aso) है जिसकी अधिकतम चौड़ाई 27 किलोमीटर व घेरा 112 किलोमीटर है।

प्रश्न 8.
ज्वालामुखियों के लाभ तथा हानियों का वर्णन करें।
अथवा
ज्वालामुखी मानव-जीवन पर अपना प्रभाव कैसे दर्शाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भ-गर्भ से उत्पन्न होने वाली इस विस्मयकारी प्रक्रिया ने मानव-जीवन को बहत प्रभावित किया है। ज्वालामुखी के लाभ-ज्वालामुखी से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) लावा चट्टानों के अपक्षय से उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है जो कपास, गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ जैसी अनेक फसलों के लिए लाभदायक होती है। दक्षिणी भारत का काली मिट्टी का प्रदेश तथा अमेरिका के वाशिंगटन प्रदेश की मिट्टियाँ लावा से बनी होने के कारण उपजाऊ हैं।

(2) ज्वालामुखी उद्भेदन से निकली उपजाऊ राख का विस्तृत क्षेत्रों पर निक्षेपण खेतों और बगीचों के लिए उपयोगी होता है।

(3) लावा और मैग्मा के जमाव से अनेक भू-आकारों की रचना होती है।

(4) ज्वालामुखी उद्भेदन से बनी आग्नेय चट्टानों में अनेक प्रकार के बहुमूल्य खनिज संचित होते हैं। लावा से बना होने के कारण भारत का दक्षिणी पठार खनिजों का भण्डार कहलाता है। इसी प्रकार स्वीडन के किसना (Kiruna) क्षेत्र में लोहे की खानें पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी से गन्धक, बोरिक एसिड व प्यूमिस (Pumice) जैसे पदार्थ भी यहाँ से प्राप्त होते हैं।

(5) ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाए जाने वाले धुआरों (Fumaroles) से अनेक प्रकार की गैसें और वाष्य प्राप्त किए जाते हैं। अलास्का के कटमई ज्वालामुखी क्षेत्र में विशाल मात्रा में निकली गैसों से बने दृश्य को ‘Valley of Ten Thousand Smokes’ कहा जाता है।

(6) ज्वालामुखी पर्वतों के पास गरम जल के चश्मे (Hot Springs) पाए जाते हैं। इन चश्मों के जल में गन्धक का अंश होता है जिसमें नहाने से गठिया और चर्म रोगों का इलाज होता है। आईसलैण्ड में ऐसे सैकड़ों चश्में हैं जिनका प्रयोग खाना पकाने, घर व दफ्तर गरम रखने, वस्त्र धोने आदि में होता है।

(7) ज्वालामुखी प्रदेशों से निकलने वाली ऊँचे तापमान की भाप को संचित करके उससे भूतापीय विद्युत् का निर्माण किया जाता है। न्यूज़ीलैण्ड, इटली व आईसलैण्ड जैसे कई देश इस ऊर्जा का निर्माण और उपयोग कर रहे हैं।

(8) बेसाल्ट और ग्रेनाइट जैसी आग्नेय चट्टानों का भवन निर्माण में प्रयोग बढ़ रहा है।

(9) क्रेटर और काल्डेरा झीलों से खेतों की सिंचाई की जाती है। ये झीलें कई बार नदियों का उद्गम स्रोत बनती हैं। उदाहरणतः, मिस्र की नील नदी ऐसी ही एक झील विक्टोरिया से निकली है।

(10) ज्वालामुखी झीलें, शंकु, गीज़र, गरम जल के चश्मे आदि सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों की रचना करते हैं। इन्हें देखने पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। इन पर्यटकों को ज्वालामुखी बम व सिंडर आदि अद्भुत पदार्थ बेचे जाते हैं। इससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। एटना, माउण्ट रेनियर, विसुवियस, फ्यूज़ीयामा, माउण्ट लैसेन पर्यटन की महत्त्वपूर्ण मंजिलें मानी जाती हैं।

(11) ज्वालामुखी क्रिया पृथ्वी के इतिहास व उसकी बनावट को समझने में मदद करती है।

(12) ज्वालामुखी प्राकृतिक सुरक्षा वाल्व (Safety Valves) का कार्य करते हैं जिनके माध्यम से खौलता हुआ मैग्मा व भारी दबाव वाली गैसें निकलती रहती हैं।

ज्वालामुखी की हानियाँ-ज्वालामुखी से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) ज्वालामुखी विस्फोट प्रायः विनाशकारी होते हैं। 600 से 1200 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला दहकता हुआ लावा जिस ओर बह निकलता है, सब कुछ भस्म करता चलता है।

(2) ज्वालामुखी पदार्थ न केवल सैकड़ों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को उजाड़ बना देते हैं, अपितु भारी जन-धन का भी विनाश करते हैं। आज तक लाखों लोग और जीव-जन्तु ज्वालामुखियों की भेंट चढ़ चुके हैं।

(3) विस्फोटक ज्वालामुखी अनेक गाँवों, नगरों व सभ्यताओं को मिटाकर राख कर देते हैं। उदाहरणतः इटली के विसुवियस ज्वालामुखी के उद्भेदन से पोम्पियाई (Pompeii) व हरकुलेनियस नगर देखते-ही-देखते 20 से 50 फुट मोटी लावा परत के नीचे दबकर समाप्त हो गए।

(4) ज्वालामुखी से निकली जहरीली गैसों व विखण्डित पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। सन् 1982 में अलास्का के एल चिचोन (El Chichon) ज्वालामुखी से निकली सल्फरयुक्त गैसों ने सारे विश्व की जलवायु को प्रभावित किया था।

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HBSE 11th Class Geography पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकंपीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुंबकत्व
उत्तर:
(C) ज्वालामुखी

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुंड
उत्तर:
(C) प्रवाह

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचला मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड
उत्तर:
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल

4. निम्न में भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) धरातलीय तरंगें
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ‘P’ तरंगें

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूगर्भीय तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं की तरफ आगे बढ़ती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें और ‘S’ तरंगें भी कहा जाता है।

  • ‘P’ तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें होती हैं जो धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
  • ‘S’ तरंगें इन्हें द्वितीयक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय के अंतराल के बाद पहुँचती हैं।

प्रश्न 2.
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) भूगर्भ की जानकारी का सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं। ये चट्टानें हमें खनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त होती हैं। खनन प्रक्रिया द्वारा हम भूगर्भ में स्थित जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

(2) खनन के अलावा भू-वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर भी काम कर रहे हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  • गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना
  • समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना

(3) ज्वालामुखी उद्गार भी प्रत्यक्ष जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

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प्रश्न 3.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें अभिलेखित नहीं होती। वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों (S या P) तरंगों का छाया क्षेत्र होगा।

105° के परे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं। ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ फैला है, ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र विस्तार में बड़ा अर्थात् पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
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प्रश्न 4.
भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है। पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के अप्रत्यक्ष साधन उल्काएँ हैं, जो कभी-कभी धरती पर पहुँच जाती हैं। इन्हीं ठोस उल्काओं से हमारी पृथ्वी का गठन हुआ है। गुरुत्वाकर्षण तथा चुबकीय स्रोतों का अध्ययन करना भी अप्रत्यक्ष साधनों के अंतर्गत आता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर ये तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-भूगर्भिक तरंगें व धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगों और धरातलीय शैलों के मध्य अन्योय क्रिया के कारण कई तरंगें उत्पन्न होती हैं। अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने के कारण इन तरंगों के वेग में परिवर्तन आता रहता है। इन परिवर्तनों के कारण परावर्तन (Reflection) एवं आवर्तन (Refraction) होता है, जिस कारण तरंगों की दिशा में बदलाव आता रहता है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भी भिन्न-भिन्न होती है, जैसे ही ये संचरित होती हैं, तो शैलों में कंपन पैदा होती है। ‘P’ तरंगें-‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती है। ये तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इसके फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।

‘S’ तरंगें-ये तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। ये तरंगें जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। ये तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।

प्रश्न 2.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृति (Intrusive Landform)-ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती है और जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं इन्हें ही अंतर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं।

विभिन्न अंतर्वेधी आकृति (Various Intrusive Landform)-विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियाँ इस प्रकार हैं-
1. बैथोलिथ (Batholiths) यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है, इसे ही बैथोलिथ कहते हैं। ये अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हटने पर धरातल पर उभर आते हैं। ये ग्रेनाइट के बने पिंड होते हैं।

2. लैकोलिथ (Lacoliths)-ये गंबदनुमा विशाल चट्टानें हैं, जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक-नली से नीचे से जडा होता है और गहराई में पाया जाता है। इनक कृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मिलती है।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapoliths, Phacoliths and sills) ऊपर उठते लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है और यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए तो लैपोलिथ कहलाता है। यदि यह लहरदार आकृति में जम जाए तो फैकोलिथ कहलाता है।

अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है। कम मोटाई वाली जमाव को “शीट” व घने मोटाई वाले जमाव को “सिल” कहा जाता है।

4. डाइक (Dyke)-जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और यदि इसी अवस्था में ठण्डा हो जाए तो दीवार की भाँति संरचना बनती है। यही संरचना डाइक कहलाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप इसी प्रकार की स्थलाकृति के उदाहरण हैं।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना HBSE 11th Class Geography Notes

→ भू-पर्पटी (Crust of the Earth) यह अवसादी शैलों से बने धरातलीय आवरण के नीचे पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जो लगभग 5 से 50 किलोमीटर चौड़ी है। इस पतली परत की तुलना अण्डे के छिलके से की जा सकती है।

→ श्यानता (Viscosity)-किसी तरल पदार्थ का वह गुण जो इसके तत्त्वों के आन्तरिक घर्षण के कारण इसे धीरे बहने देता है। एस्फाल्ट, लाख, शहद, लावा इत्यादि ऐसे ही विस्कासी पदार्थ हैं।

→ उल्कापिण्ड (Meteorites)-उल्का का वह हिस्सा जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमंडल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह जल नहीं पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले ऐसे पिण्डों को उल्कापिण्ड कहते हैं। वायुमंडल में पहुंचने से पहले उल्का को उल्काभ कहते हैं।

→ स्थलमंडल (Lithosphere)-वायुमण्डल और जलमंडल से भिन्न भू-पर्पटी का वह भाग, जो सियाल, साइमा तथा ऊपरी मैंटल के कुछ भाग से मिलकर बना है, उसे स्थलमंडल कहते हैं।

→ तरंगदैर्ध्य (Wave Length)-किसी एकांतर तरंग (Alternating wave) के क्रमिक समान बिंदुओं के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। उदाहरणतः दो समुद्री तरंगों के शीर्षों के बीच की दूरी।

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→ गुरुमंडल (Barysphere)-पृथ्वी के अभ्यंतर का वह सारा भाग, जो स्थलमंडल के नीचे है। इसमें क्रोड, मैंटल तथा दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) तीनों शामिल होते हैं। केवल क्रोड या मैंटल को गुरुमंडल नहीं कहना चाहिए।

→ पटलविरूपणी बल (Diastrophic Forces)-पृथ्वी के भीतर होने वाली वे धीमी, किंतु दीर्घकालीन हलचलें जो भू-पटल में विक्षोभ, मुड़ाव, झुकाव व टूटन (Fracture) लाकर धरातल पर विषमताएं लाती हैं, उन्हें पटलविरूपणी बल कहा जाता है। इन बलों से महाद्वीप बनते हैं।

→ सुनामी (Tsunamis) भूकंप-जनित समुद्री लहरों के लिए सारे संसार में प्रयुक्त किया जाने वाला सुनामी एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है-Great Harbour Wave भूकंप, विशेष रूप से समुद्री तली पर पैदा होने वाले भूकंप, 15 मीटर या इससे ऊंची लहरों को जन्म देते हैं, जिसकी गति 640 से 960 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। सुनामी बहुत दूर तक जा सकती हैं और तटों पर विनाशलीला करती हैं। सुनामी भूकंपों के साथ-साथ विस्फोटक ज्वालामुखी से भी पैदा होती हैं; जैसे क्राकाटोआ (1883) ज्वालामुखी से सुनामी उत्पन्न हुई थी। ऐसी तरंगों को ज्वारीय तरंगें कहना सर्वथा गलत है।

→ प्रशांत अग्नि वलन (Pacific Ring of Fire)-प्रशांत महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर दुर्बल भू-पटल के कारण वहां अधिकतर होने वाली ज्वालामुखी क्रिया और भूकंपों के आगमन के कारण इस क्षेत्र को प्रशांत अग्नि वलय कहा जाता है।

→ भूकंप मूल (Seismic Focus) पृथ्वी के अन्दर वह स्थान जहाँ भूकंप उत्पन्न होता है अर्थात् जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्गम केन्द्र या भूकंप मूल कहलाता है।

→ अधिकेन्द्र (Epicentre)-धरातल का वह बिन्दु जो उद्गम केन्द्र के सबसे निकट होता है अर्थात् जहाँ भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहलाता है।

→ भूकंपलेखी (Seismograph or Seismometre)-भूकंपीय तरंगों को दर्ज (Record) करने वाला स्वचालित यंत्र भूकंपलेखी कहलाता है।

→ समभूकंप रेखाएँ (Iso-seismal lines) समान तीव्रता अथवा आघात वाली भूकंप-रेखाओं को समभूकंप रेखाएँ कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें-

1. सौरमण्डल में कितने ग्रह हैं?
(A) 8
(B) 7
(C) 9
(D) 11
उत्तर:
(A) 8

2. सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह कौन-सा है?
(A) बृहस्पति
(B) शनि
(C) मंगल
(D) शुक्र
उत्तर:
(A) बृहस्पति

3. सौरमण्डल का सबसे छोटा ग्रह कौन-सा है?
(A) बुध
(B) शुक्र
(C) शनि
(D) बृहस्पति
उत्तर:
(A) बुध

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

4. निम्नलिखित में से चन्द्रमा एक है
(A) नीहारिका
(B) क्षुद्रग्रह
(C) उपग्रह
(D) ग्रह
उत्तर:
(C) उपग्रह

5. सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) मंगल
(D) पृथ्वी
उत्तर:
(B) बुध

6. निम्नलिखित में से पार्थिव ग्रह नहीं है-
(A) बुध
(B) मंगल
(C) शनि
(D) शुक्र
उत्तर:
(C) शनि

7. सूर्य से अधिकतम दूरी पर कौन-सा ग्रह है?
(A) शनि
(B) बुध
(C) नेप्च्यून
(D) यूरेनस
उत्तर:
(C) नेप्च्यून

8. चन्द्रमा किस ग्रह का प्राकृतिक उपग्रह है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) पृथ्वी
(D) मंगल
उत्तर:
(C) पृथ्वी

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

9. पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित नीहारिका परिकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) लाप्लेस ने
(B) काण्ट ने
(C) प्लूटो ने
(D) जेम्स जीन्स ने
उत्तर:
(A) लाप्लेस ने

10. सौरमण्डल का जनक माना जाता है-
(A) बोने ग्रह को
(B) प्राक्रतिक उपग्रह को
(C) तारों को
(D) नीहारिका को
उत्तर:
(D) नीहारिका को

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत का नाम क्या है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धांत।

प्रश्न 2.
बिग बैंग की घटना कब हुई?
उत्तर:
आज से 13.7 अरब वर्षों पहले।

प्रश्न 3.
प्रकाश की गति कितनी है?
उत्तर:
3 लाख कि०मी० प्रति सैकेंड।

प्रश्न 4.
‘प्रकाश वर्ष’ किस इकाई का मापक है?
उत्तर:
खगोलीय दूरी का।

प्रश्न 5.
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में प्रारंभिक मत किस दार्शनिक ने दिया?
उत्तर:
इमैनुअल कान्ट।

प्रश्न 6.
सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
उत्तर:
बुध।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी कितनी है?
उत्तर:
14 करोड़, 95 लाख, 98 हजार कि०मी०।

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प्रश्न 8.
पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ‘नीहारिका परिकल्पना’ किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने।

प्रश्न 9.
पृथ्वी की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर जीवन लगभग कितने वर्ष पूर्व विकसित हुआ?
उत्तर:
लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
श्रेष्ठ ग्रह किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
बाहरी ग्रहों को श्रेष्ठ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 12.
पहले पृथ्वी किस अवस्था में थी?
उत्तर:
तरल अवस्था में।

प्रश्न 13.
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ सन् 1796 में प्रस्तुत की।

प्रश्न 14.
ग्रहों के आकार, रचक सामग्री तथा तापमान में अन्तर क्यों पाया जाता है?
उत्तर:
सूर्य से सापेक्षिक दूरी के कारण।

प्रश्न 15.
पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
उत्तर:
5.517 ग्राम प्रति घन सें०मी०।

प्रश्न 16.
पृथ्वी के एकमात्र उपग्रह का क्या नाम है?
उत्तर:
चंद्रमा।

प्रश्न 17.
सूर्य केन्द्रित परिकल्पना को प्रस्तुत करने वाले प्राचीन भारतीय विद्वान् का नाम बताइए।
उत्तर:
आर्यभट्ट।

प्रश्न 18.
तुच्छ ग्रह (Inferior Planets) किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
आन्तरिक ग्रहों को तुच्छ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 19.
उस पौधे का नाम लिखिए जिसके जीवाश्म सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।
उत्तर:
ग्लोसोपैट्रिस।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 20.
सौरमण्डल के एक बाहरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
बृहस्पति।

प्रश्न 21.
सौरमण्डल के एक आन्तरिक/भीतरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
पृथ्वी।

प्रश्न 22.
पृथ्वी के कितने उपग्रह हैं?
उत्तर:
पृथ्वी का एक ही उपग्रह है।

प्रश्न 23.
जलीय ग्रह (Watery Planet) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी को।

प्रश्न 24.
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के कौन-से चरण में हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अंतिम चरण में हुई।

प्रश्न 25.
पृथ्वी अथवा चन्द्रमा में से आयु में कौन छोटा है?
उत्तर:
दोनों की आयु बराबर है क्योंकि दोनों की रचना एक ही समय हुई थी।

प्रश्न 26.
चंद्रमा की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 4.4 अरब वर्षों पहले।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-केन्द्रित (Geo-Centric) परिकल्पना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-केन्द्रित परिकल्पना का अर्थ है कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र है और सूर्य, चन्द्रमा तथा ग्रह इत्यादि आकाशीय पिण्ड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 2.
सूर्य-केन्द्रित (Helio-Centric) सौरमण्डल का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ यह है कि सौरमण्डल का केन्द्र सूर्य है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 3.
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह कितने हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह चार हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल।

प्रश्न 4.
सौरमण्डल में कुल कितने ग्रह हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
हमारे सौरमण्डल में 8 ग्रह हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण।

प्रश्न 5.
सौरमण्डल के बाहरी या जोवियन ग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बृहस्पति, शनि, अरुण (Uranus) तथा वरुण (Neptune)।

प्रश्न 6.
मन्दाकिनी क्या होती है? हमारी मन्दाकिनी का नाम बताइए।
उत्तर:
लाखों-करोड़ों तारों के कुन्ज को मन्दाकिनी कहा जाता है। हमारी मन्दाकिनी का नाम आकाशगंगा (Milky Way) है।

प्रश्न 7.
‘पोलर वन्डरिंग’ क्या होती है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना पोलर वन्डरिंग (Polar Wandering) कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 8.
ग्रहाणु क्या होते हैं?
उत्तर:
एक परिकल्पना (चेम्बरलिन व मोल्टन) के अनुसार सूर्य तथा निकट से गुजरते तारे के टकराव के कारण गैसीय पदार्थ एक फ़िलेमेन्ट के रूप में पूर्व स्थित सूर्य से छिटककर जिहा आकार के पदार्थ छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गए। ये टुकड़े ठण्डे पिण्डों के रूप में उड़ते हुए सूर्य के चारों ओर कक्षाओं में घूमने लगे, इन्हें ही ग्रहाण (Planetisimols) कहा जाता है।

प्रश्न 9.
आदि तारा (Protostar) क्या है?
उत्तर:
तप्त गैसों के बादल से बनी नीहारिका में जब विस्फोट हुआ तो अभिनव तारे की उत्पत्ति हुई। इस तारे के सघन भाग अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से विखण्डित हो गए। सघन क्रोड विशाल तथा अधिक गरम होता गया। इसे आदि तारा कहते हैं जो अन्त में सूर्य बन गया।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के साथ ही हुई थी।
उत्तर:
चन्द्रमा से प्राप्त शैलों के नमूनों के काल निर्धारण (Radiomatric Dating) से ज्ञात होता है कि चन्द्रमा और पृथ्वी का जन्म एक-साथ हुआ था क्योंकि दोनों की रचना एक-जैसी चट्टानों से हुई है।

प्रश्न 11.
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पार्थिव और जोवियन ग्रहों में निम्नलिखित अंतर हैं-

पार्थिव ग्रह जोवियन ग्रह
1. पार्थिव का अर्थ है-पृथ्वी की तरह। ये ग्रह पृथ्वी की तरह ही शैलों एवं धातुओं से बने हैं। 1. जोवियन का अर्थ है-बृहस्पति की तरह। ये ग्रह बृहस्पति की तरह पर्थिव ग्रहों से विशाल हैं।
2. इन ग्रहों को आंतरिक ग्रह कहा जाता है। 2. इन ग्रहों को बाहरी ग्रह कहा जाता है।
3. ये ग्रह अधिकतर चट्टानी हैं। 3. ये ग्रह अधिकतर गैसीय हैं।

प्रश्न 12.
नेबुला या नीहारिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
धूल तथा गैसों से बने एक विशालकाय बादल को नेबुला कहते हैं।

प्रश्न 13.
पृथ्वी का निर्माण कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
आज से लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में यह विशालकाय नेबुला भंवरदार गति से घूम रहा था। यह अपनी ही गुरुत्व शक्ति के कारण धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा तथा इसकी आकृति एक चपटी डिस्क के समान हो गई। एक बहुमान्य परिकल्पना के अनुसार, इस नेबुला के ठण्डे होने तथा सिकुड़ने से ही पृथ्वी का निर्माण हुआ।

प्रश्न 14.
अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी तीव्र गति से घूमती वस्तु के केन्द्र से बाहर की ओर उड़ने था छिटक जाने की प्रवृत्ति को पैदा करने वाला बल अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) कहलाता है। इसके विपरीत अभिकेन्द्री बल (Centripetal force) होता है, जिसमें वस्तु केन्द्र की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कोणीय संवेग के संरक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक पिण्ड ग्रहों की भंवरदार गति को नापने की इकाई कोणीय संवेग कहलाती है। यह वस्तु के आकार तथा उसकी घूमने की गति पर निर्भर करती है।
कोणीय संवेग = ग्रह का द्रव्यमान x परिक्रमण गति x कक्ष की त्रिज्या।
कोणीय संवेग के संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार, किसी भी पदार्थ के विभिन्न भागों के आपस में टकराने से उसकी परिभ्रमण गति प्रभावित नहीं होती तथा न ही गतिहीन पदार्थ में गति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी क्यों हैं?
उत्तर:
जब नीहारिका चपटी तश्तरी (Flat Disc) बनकर घूम रही थी तो उसमें अपकेन्द्री शक्ति बढ़ गई। अपकेन्द्री शक्ति के कारण नीहारिका एक जुट नहीं रह पाई और छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में बँट गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग धीरे-धीरे घूमता हुआ तारा बन गया जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुआ प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा। विकिरण के कारण इन पिण्डों का ऊपरी भाग ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा लेकिन केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इन्हीं पदार्थों से 8 ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी कारण सौर-मण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं; जैसे बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण। जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं; जै तारक ग्रह चट्टाना स रानामत और भारी है; जैसे बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल। इसी कारण सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी का विकास अनेक अवस्थाओं में से गुजरने के पश्चात् हुआ है। पृथ्वी गैस और द्रव अवस्था से होती हुई वर्तमान ठोस अवस्था में परिवर्तित हो गई। इसकी ऊपरी सतह पर हल्के पदार्थ ठण्डे होकर ठोस रूप धारण करते गए तथा भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में जमा हो गए। धीरे-धीरे पृथ्वी की ऊपरी सतह ठोस चट्टानों की बन गई। पृथ्वी के आन्तरिक भाग के ठण्डा होने तथा सिकुड़ने से पृथ्वी की बाह्य भू-पर्पटी पर सिलवटें पड़ गईं। इससे पर्वत श्रेणियों तथा द्रोणियों का निर्माण हुआ। उसी समय हल्की गैसों से वायुमण्डल का निर्माण हो गया। वायुमण्डल में गरम गैसीय पदार्थों के ठण्डा होने से बादल बने। इन बादलों से हजारों वर्षों तक वर्षा हुई और द्रोणियों में जल के भर जाने से महासागरों का निर्माण हो गया।

प्रश्न 4.
भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति गैस और धूल के एक धधकते हुए गोले के रूप में हुई थी। कुछ समय पश्चात् पृथ्वी ने ठण्डी होकर तरल रूप धारण कर लिया। इस तरल रूपी पृथ्वी के पदार्थों ने अपने घनत्व (Density) के अनुसार स्थिति ग्रहण कर ली। हल्के पदार्थ ऊपर की ओर आ गए और सबसे भारी पदार्थ पृथ्वी के भीतर चले गए। इस प्रकार तरल पृथ्वी भिन्न-भिन्न घनत्व के पदार्थों से बनी कई परतों में बँट गई। पृथ्वी की सबसे ऊपरी पपड़ी ठण्डी होकर कठोर बन गई। ठोस शैलों से बनी इस ऊपरी परत को हम भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 5.
पर्वत श्रेणियाँ, कटकें व द्रोणियाँ किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
भू-पृष्ठ के निर्माण के बाद उसका नीचे वाला भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इससे पृथ्वी की ऊपरी पट्टी अर्थात भू-पृष्ठ पर बल पड़ने लगे। धरती पर जो भाग ऊपर उठ गए वे पर्वत श्रेणियाँ व कटकें कहलाईं और जो भाग द्रोणियों बन गए वे द्रोणियाँ (Basins) कहलाईं।

प्रश्न 6.
पृथ्वी पर जीवन का विकास किस प्रकार आरम्भ हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी अपने जन्म से अब तक के लम्बे इतिहास में लगभग आधी अवधि तक उजाड़ पड़ी रही। इस पर जीवन के किसी भी रूप का अस्तित्व नहीं था। फिर पता नहीं किस प्रकार महासागरों में जीवन शुरू हुआ। कहा जाता है कि जल में किसी बड़े अणु ने किसी प्रकार अपने जैसा दूसरा अणु पैदा कर लिया। इस प्रकार पृथ्वी पर पौधों और प्राणियों के आश्चर्यजनक संसार के रूप में जीवन की शुरुआत हुई। पृथ्वी पर यह जीवन कैसे शुरू हआ- आज भी अस्पष्ट है। यह माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में कितना अन्तर है?
उत्तर:
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में लगभग बीस किलोमीटर का अन्तर है। पृथ्वी पर उच्चतम भाग हिमालय पर्वत श्रृंखला में माऊंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महासागरों में निम्नतम भाग प्रशान्त महासागर में मैरियाना च में चैलेंजर गर्त है जिसकी गहराई 11,022 मीटर है। इस तरह माऊंट एवरेस्ट तथा चैलेंजर गर्त की गहराई में अन्तर 8,848 + 11,022 = 19,870 मीटर है जो लगभग बीस किलोमीटर है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर नवीनतम वलित पर्वत हिमालय पर्वत, आल्पस पर्वत श्रृंखला तथा रॉकी-एण्डीज़ पर्वत श्रृंखला का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
कार्बोनिफेरस युग (लगभग 35 करोड़ वर्ष पूर्व) के अन्त में पेन्जिया का विभंजन आरम्भ हुआ। गुरुत्वाकर्षण बल, प्लवनशीलता बल (Force of Buoyancy) तथा ज्वारीय बल के कारण पेन्जिया का कुछ भाग पश्चिम की ओर तथा कुछ भाग भूमध्य रेखा की ओर खिसकने लगा। उत्तर के लारेशिया भू-खण्ड तथा दक्षिण के गोण्डवानालैण्ड के खिसकने से वे एक-दूसरे के निकट आए और उनके बीच जो टेथीज़ सागर था, वह संकरा होता चला गया तथा उसमें जमे अवसाद में बल पड़ने से आल्पस तथा हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम की ओर खिसकने से उनके पश्चिमी किनारों पर वलन पड़ गए। उनसे रॉकीज़ तथा एण्डीज़ पर्वत-शृंखलाओं की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 9.
ग्रहों की सूर्य से दूरी, घनत्व एवं अर्धव्यास की दृष्टि से तुलना करें।
उत्तर:

ग्रह सूर्य से दूरी(gm/cm³) घनत्व अर्धव्यास
बुध 0.387 5.44 0.383
शुक्र 0.723 5.245 0.949
पृथ्वी 1.000 5.517 1.000
मंगल 1.524 3.945 0.533
बृहस्पति 5.203 1.33 11.19
शनि 9.539 0.70 9.460
अरुण 19.182 1.17 4.11
वरुण 30.058 1.66 3.88

प्रश्न 10.
चन्द्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रमा की उत्पत्ति के बारे में दो सम्भावनाएँ व्यक्त की गई हैं-
पहली-चन्द्रमा सूर्य से गैसीय रूप में बाहर आया और बहुत ही छोटा होने के कारण पृथ्वी की आकर्षण शक्ति द्वारा अपनी ओर खींच लिया गया।

दूसरी-पृथ्वी पर एक विशाल उल्कापिण्ड गिरा और टक्कर के कारण पथ्वी का पदार्थ टटकर अलग हो गर उल्कापिण्ड गिरा, एक महान गर्त बना जिसमें पानी भर जाने से प्रशान्त महासागर की रचना हुई। वह भूखण्ड जो टूटकर अन्तरिक्ष में फैल गया, चन्द्रमा बन गया।

प्रश्न 11.
सूर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सौरमण्डल का प्रमुख तथा केन्द्रीय पिण्ड, एक बृहद् दीप्त गोला, जिसका व्यास 13,92,000 किलोमीटर है जो पृथ्वी के व्यास से 109 गुना है। सूर्य में हमारी पृथ्वी जैसे 13 लाख पिण्ड समा सकते हैं। विश्वास किया जाता है कि इसका आन्तरिक भाग तरल अवस्था में एवं बाह्य भाग गैस का आवरण है। सूर्य के धरातल का तापमान 6000°C है व इसके केन्द्र पर 15,000,00°C तापमान पाया जाता है।

प्रश्न 12.
अन्तरिक्ष से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तरिक्ष का न कोई आदि है और न ही अन्त। अन्तरिक्ष में छोटे व बड़े आकार की अरबों मन्दाकिनियाँ अथवा तारकीय समूह (Galaxies) हैं। प्रत्येक तारकीय समूह में लाखों सौरमण्डल हैं। अनुमान है कि अन्तरिक्ष में 2 अरब सौरमण्डल हैं। औसतन एक मन्दाकिनी का व्यास 30,000 प्रकाश वर्षों (Light years) की दूरी जितना होता है। दो मन्दाकिनियों के बीच 10 लाख प्रकाश वर्ष जितनी औसत दूरी होती है। हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा नामक मन्दाकिनी में है, जो अन्तरिक्ष में नगण्य-सा स्थान रखती है, जबकि इसमें सूर्य जैसे तीन खरब तारे होने का अनुमान है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की उत्पत्ति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऐसी मान्यता है कि लगभग 460 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में धूलकणों और गैसों से बना एक बहुत बड़ा बादल भंवरदार गति से घूम रहा था। भँवरदार गति या घूर्णन को कोणीय संवेग (Angular Momentum) नामक भौतिक राशि द्वारा मापा जाता है। कोणीय संवेग किसी पदार्थ के घूमने की गति और उसके आकार पर निर्भर करता है। आकाश में तेजी से घूमने के कारण इस गरम धधकते वायव्य महापिण्ड या नीहारिका (Nebula) का ऊपरी भाग विकिरण से ठण्डा होने लगा, किन्तु इसका भीतरी भाग गर्मी से धधकता रहा। नीहारिका का ऊपरी ठण्डा हुआ भाग अपने ही गुरुत्व बल से धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा।

सिकुड़ने के साथ ही नीहारिका की आकृति एक चपटी तश्तरी (Flat disc) के समान होती गई। गति विज्ञान (Dynamics) के नियमानुसार, सिकुड़ती हुई वस्तु का परिभ्रमण वेग बढ़ जाता है। अतः जैसे-जैसे नीहारिका सिकुड़कर छोटी होती गई वैसे-वैसे कोणीय संवेग को बनाए रखने के लिए उसके घूर्णन की गति और तेज होती गई। घूमने की गति बढ़ जाने के कारण नीहारिका (Nebula) में अपकेन्द्री शक्ति (Centrifugal force) बढ़ गई।

अपकेन्द्री शक्ति के कारण तेज़ी से घूमते हुए पिण्ड से पदार्थ के केन्द्र से बाहर छिटक जाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। इससे नीहारिका एकजुट नहीं रह पाई, बल्कि छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में विभक्त हो गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग बहुत धीरे-धीरे घूमता हुआ एक तारे का रूप धारण कर गया, जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुए पिण्डों में मूल नीहारिका के कोणीय संवेग का 98% भाग बचा हुआ था। इन पिण्डों से आठ ग्रहों का निर्माण हुआ। प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा तथा विकिरण के कारण उनका ऊपरी भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इस प्रक्रिया में उनका केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इसी कारण सौरमण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं, जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं। जिस प्रकार नीहारिका से ग्रहों की रचना हुई, उसी प्रकार ग्रहों से उपग्रह भी बने।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
(A) 46 लाख वर्ष
(B) 460 करोड़ वर्ष
(C) 13.7 अरब वर्ष
(D) 13.7 खरब वर्ष
उत्तर:
(B) 460 करोड़ वर्ष

2. निम्न में से कौन-सी अवधि सबसे लम्बी है?
(A) इओन (Eons)
(B) महाकल्प (Era)
(C) कल्प (Period)
(D) युग (Epoch)
उत्तर:
(A) इओन (Eons)

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3. निम्न में से कौन-सा तत्त्व वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
(A) सौर पवन
(B) गैस उत्सर्जन
(C) विभेदन
(D) प्रकाश संश्लेषण
उत्तर:
(C) विभेदन

4. निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन से हैं?
(A) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(B) सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(C) वे ग्रह जो गैसीय हैं
(D) बिना उपग्रह वाले ग्रह
उत्तर:
(B) सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह

5. पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरम्भ हुआ?
(A) 1 अरब, 37 करोड़ वर्ष पहले
(B) 460 करोड़ वर्ष पहले
(C) 38 लाख वर्ष पहले।
(D) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले
उत्तर:
(D) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं?
उत्तर:
पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बने जहाँ अत्यधिक तापमान होने के कारण गैसें संघनित व घनीभूत न हो सकीं। गुरुत्वाकर्षण शक्ति की कमी के कारण ये चट्टानी रूप में हैं। पार्थिव ग्रह पृथ्वी की भाँति ही चट्टानों/शैलों और धातुओं से बने हैं, इसलिए ये चट्टानी हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधित दिए गए तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अंतर बताएँ (क) कान्ट व लाप्लेस (ख) चैम्बरलेन व मोल्टन
उत्तर:
(क) कान्ट व लाप्लेस इन वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ जोकि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे। कान्ट व लाप्लेस ने इसको नीहारिका परिकल्पना का नाम दिया।

(ख) चैम्बरलेन व मोल्टन-इन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड में एक अन्य भ्रमणशील तारे के सूर्य के नजदीक से गुजरने के कारण उसके गुरुत्वाकर्षण शक्ति के फलस्वरूप सूर्य की सतह से कुछ पदार्थ निकलकर अलग हुए और सूर्य के चारों ओर घूमने लगे। यही पदार्थ बाद में धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहों का रूप धारण करने लगा।

प्रश्न 3.
विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान व उत्पत्ति के तुरंत बाद अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी के कुछ भाग पिघल गए और तापमान की अधिकता के कारण हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थ अलग होने शुरू हो गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के अलग होने की इस प्रक्रिया को विभेदन प्रक्रिया कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन का विकास होने से पहले गर्म चट्टानें तथा असमतल धरातल पाया जाता था। पृथ्वी के वायुमण्डल में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसें अधिक मात्रा में विद्यमान थीं। परन्तु पृथ्वी की विभेदन प्रक्रिया के कारण बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले जिस कारण पृथ्वी का तापमान ठण्डा हुआ और आज से 380 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसें कौन-सी थीं?
उत्तर:
पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसें हाइड्रोजन और हीलियम थीं, जो काफी गर्म थीं। इन गैसों की उपलब्धता के कारण ही पृथ्वी तरल अवस्था में थी। प्रारंभिक दौर में पृथ्वी भी सूर्य की तरह काफी गर्म थी। पृथ्वी का यह वातावरण सौर पवनों के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। इन्हीं पवनों के प्रभाव के कारण सभी पार्थिव ग्रहों से आदिकालिक वायुमण्डल या तो दूर हो गया या समाप्त हो गया। यह वायुमंडल के विकास की प्रथम अवस्था थी।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
बिग बैंग सिद्धांत का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
कई प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं ने पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न परिकल्पनाएँ दीं। उन्होंने केवल पृथ्वी की ही नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति की गुथी को सुलझाने का प्रयास किया। 1920 ई० में प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता एडविन हब्बल ने ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में बताया। आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धान्त “बिग बैंग सिद्धान्त” है, जिसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहा जाता है। ब्रह्मांड के विस्तृत होने का कारण भी इसी परिकल्पना से पता चला। आकाशगंगाओं (Galaxies) के बीच बढ़ती दूरी के कारण ही ब्रह्मांड का विस्तार होने लगा।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 2
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्नलिखित अवस्थाओं में हुआ-
(i) जिन पदार्थों से ब्रह्मांड बना है वे अति सूक्ष्म गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। इन पदार्थों का तापमान तथा घनत्व अनंत था।

(ii) वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग की घटना आज से लगभग 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग की प्रक्रिया में अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ, इस विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई, जिस कारण विस्तार की गति धीमी पड़ गई।

(iii) बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थों का निर्माण होने लगा तथा ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

निष्कर्ष-ब्रह्मांड के विकास का अर्थ है-आकाशगंगाओं के बीच दूरी में विस्तार होना। ब्रह्मांड के विस्तार का चरण आज भी जारी है परन्तु कई वैज्ञानिक इस पक्ष में नहीं हैं। जैसे कि वैज्ञानिक हॉयल ने इसका विकल्प ‘स्थित अवस्था संकल्पना’ के नाम से प्रस्तुत किया। परन्तु ब्रह्मांड के विकास और विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक वर्ग अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धान्त के पक्षधर हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था/चरण को संक्षेप में वर्णित करें।
उत्तर:
पृथ्वी का विकास विभिन्न अवस्थाओं में हुआ है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 460 करोड़ वर्ष पहले हुआ। पृथ्वी के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं
1. ब्रह्मांड की उत्पत्ति-आकाशगंगाओं के एक-दूसरे से दूर हो जाने के कारण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर अनेक वैज्ञानिकों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से बिग बैंग सिद्धान्त को सर्वसहमति से विश्वसनीय सिद्धान्त माना गया है।

2. पृथ्वी का तापमान आरंभ में पृथ्वी तरल अवस्था में थी क्योंकि पृथ्वी पर हाइड्रोजन और हीलियम गैस की अधिकता थी, जोकि काफी गर्म होती हैं। इसी गर्म अवस्था के कारण अधिक घनत्व वाले पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र पर आ गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की ऊपरी सतह पर आ गए।

3. तारों का निर्माण-

  • तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
  • एक आकाशगंगा अंसख्य तारों का समूह है। इनका विस्तार इतना अधिक होता है कि इनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापी जाती है।
  • एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है, जिसे निहारिका कहते हैं। निहारिका के झुंड बढ़ते-बढ़ते गैसीय पिंड में बदल गए जिनसे तारों का निर्माण हुआ।

4. वायुमंडल का विकास-आरंभ में वायुमंडल में नाइट्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प व अमोनिया अधिक मात्रा में और ऑक्सीजन बहुम कम थी। परन्तु वर्तमान वायुमंडल की तीन अवस्थाएँ हैं-

पहली अवस्था-प्रारंभिक वायुमंडल, जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, जो सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया।
दूसरी अवस्था-पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले, जिन्होंने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया।

तीसरी अवस्था-अंत में वायुमंडल की संरचना को जैव मंडल की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया ने संशोधित किया।

5. जीवन की उत्पत्ति-पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है।
निष्कर्ष-ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। एक कोशीय जीवाणु से आज के मनुष्य तक जीवन के विकास का सार भूवैज्ञानिक काल मापक्रम से प्राप्त किया जा सकता है।

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास HBSE 11th Class Geography Notes

→ अन्तरिक्ष (Universe)-अन्तरिक्ष का न कोई आदि है और न ही अन्त। अन्तरिक्ष में छोटे व बड़े आकार की अरबों मन्दाकिनियाँ अथवा तारकीय समूह (Galaxies) हैं। प्रत्येक तारकीय समूह में लाखों सौरमण्डल हैं। अनुमान है कि अन्तरिक्ष में 2 अरब सौरमण्डल हैं। औसतन एक मन्दाकिनी का व्यास 30,000 प्रकाश वर्षों (Light years) की दूरी जितना होता है। दो मंदाकिनियों के बीच 10 लाख प्रकाश वर्ष जितनी औसत दूरी होती है। हमारा सौरमण्डल आकाश गंगा नामक मन्दाकिनी में है, जो अन्तरिक्ष में नगण्य-सा स्थान रखती है, जबकि इसमें सूर्य जैसे तीन खरब तारे होने का अनुमान है।

→ ग्रह (Planet)-ग्रह प्रकाशहीन व अपारदर्शी वे आठ आकाशीय पिण्ड हैं जो अपनी कीली पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) पथ पर चक्कर लगाते हैं। ग्रह सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं।

→ अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force)-किसी तीव्र गति से घूमती वस्तु के केन्द्र से बाहर की ओर उड़ने या छिटक जाने की प्रवृत्ति को पैदा करने वाला बल। इसके विपरीत अभिकेन्द्री बल (Centripetal Force) होता है, जिसमें वस्तु केन्द्र की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 1

→ धूमकेतु या पुच्छल तारे (Comets) शैलकणों, धूल, गैसों से विरचित सौर परिवार के इस विलक्षण सदस्य का सिर प्रायः ठोस होता है जिसके पीछे पारदर्शी, चमकीली लम्बी पूँछ होती है। ये दीर्घ कक्षाओं में सूर्य का परिक्रमण करते हैं और उसके काफी निकट आने पर दृष्टिगोचर होते हैं। उदाहरणतः 76 वर्षों बाद दिखने वाला हेली धूमकेतु पिछली बार सन् 1986 में दिखाई दिया था।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

→ गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)-ब्रह्माण्ड में हर पिण्ड अन्य पिण्डों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। इसका परिमाण पिण्ड के द्रव्यमान (mass) का समानुपाती है अर्थात् जो पिण्ड जितना अधिक भारी होता है, उसका गुरुत्वाकर्षण उतना ही अधिक होता है तथा पिंडों के बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् पिण्डों के बीच की दूरी बढ़ने के साथ गुरुत्वाकर्षण घटता है; यदि दूरी दुगुनी हो जाए तो गुरुत्वाकर्षण \(\frac { 1 }{ 4 }\) रह जाएगा, यदि दूरी तिगुनी हो जाए तो गुरुत्वाकर्षण \(\frac { 1 }{ 9 }\) रह जाएगा आदि।

→ कैल्विन पैमाना (Kelvin Scale)-उष्मागतिक (Thermodynamic) तापमान की इकाई जिसका नाम ब्रिटिश भौतिकशास्त्री लॉर्ड कैल्विन (1824-1907) के नाम पर रखा गया है। इस पैमाने में हिमांक को 273k तथा भाप बिन्दु को 373k अंकित किया जाता है और बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक भाग 1k कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. निम्नलिखित में से किसका संबंध जीव-भूगोल से है?
(A) भू-विज्ञान
(B) समाजशास्त्र
(C) जीव-विज्ञान
(D) जलवायु, विज्ञान
उत्तर:
(C) जीव-विज्ञान

2. “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भू-गर्भ विज्ञान है” यह कथन किस विद्वान् का दिया हुआ है?
(A) रिटर
(B) डेविस
(C) हार्टशोर्न
(D) वेगनर
उत्तर:
(B) डेविस

3. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) का प्रवर्तन किस भूगोलवेत्ता ने किया?
(A) हेट्टनर ने
(B) कार्ल रिटर ने
(C) हार्टशॉर्न ने
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने
उत्तर:
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने

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4. लंबाई, चौड़ाई और गोलाई भूगोल के तीन आयाम हैं। भूगोल का चौथा आयाम कौन-सा है?
(A) मोटाई
(B) गहराई
(C) ऊँचाई
(D) समय
उत्तर:
(D) समय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
क्रमबद्ध भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने।

प्रश्न 2.
उस विद्वान का नाम बताएँ जिसने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सर्वप्रथम कारण-सहित वर्णन किया था।
उत्तर:
हेरोडोटस (485-425 ई०पू०)।

प्रश्न 3.
प्राचीनकाल के किस विद्वान् ने मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभावों का उल्लेख किया था?
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स (460-377 ई०पू०)।

प्रश्न 4.
सबसे पहले किस विद्वान् ने सूर्य की किरणों के कोण मापकर पृथ्वी की परिधि का आकलन कर लिया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ई०पू०)।

प्रश्न 5.
वह कौन-सा भूगोलवेत्ता था जिसने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में संश्लेषण (Synthesis) का समर्थन किया?
उत्तर:
एच० जे० मैकिण्डर।

प्रश्न 6.
20वीं सदी के आरम्भ में मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर कौन-सी दो विचारधाराएँ विकसित हुई थी?
उत्तर:
नियतिवाद और सम्भववाद।

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प्रश्न 7.
भूगोल के कौन-से दो दृष्टिकोण हैं?
उत्तर:

  1. प्राचीन दृष्टिकोण
  2. आधुनिक दृष्टिकोण।

प्रश्न 8.
भूगोल में अध्ययन की दो तकनीकें कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. मानचित्रण विधि
  2. मात्रात्मक विधि।

प्रश्न 9.
सर्वप्रथम ‘भूगोल’ शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ ने।

प्रश्न 10.
भूगोल के अध्ययन की दो विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध विधि
  2. प्रादेशिक विधि।

प्रश्न 11.
भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

भौतिक भूगोल
मानव भूगोल।

प्रश्न 12.
प्रादेशिक भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
कार्ल रिटर ने।

प्रश्न 13.
प्रादेशिक भूगोल की कोई दो उपशाखाएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. प्रादेशिक अध्ययन
  2. प्रादेशिक विश्लेषण।

प्रश्न 14.
“मनुष्य के कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित होते हैं।” यह कथन किस विद्वान् का है?
उत्तर:
रेटजेल का।

प्रश्न 15.
सम्भववाद के प्रमुख समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
विडाल डी ला ब्लाश तथा एस० फैरो।

प्रश्न 16.
नियतिवाद के दो समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रेटज़ेल व हंटिंगटन।

प्रश्न 17.
वातावरण या पर्यावरण को किन दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वातावरण
  2. मानवीय अथवा सांस्कृतिक वातावरण।

प्रश्न 18.
किन दो भारतीय वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम पृथ्वी के आकार का वर्णन किया था?
उत्तर:

  1. आर्यभट्ट
  2. भास्कराचार्य।

प्रश्न 19.
234 ई० पू० यूनान के किस विद्वान ने पृथ्वी की परिभाषा देने के लिए ‘Geography’ शब्द का प्रयोग किया?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
‘सम्भववाद’ क्या होता है?
उत्तर:
फ्रांस से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति अथवा पर्यावरण द्वारा ही निर्धारित नहीं होते, बल्कि मनुष्य अपनी बुद्धि व श्रम से सम्भावनाओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।

प्रश्न 3.
‘नियतिवाद’ क्या होता है?
उत्तर:
जर्मनी से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति निर्धारित करती है। अतः मनुष्य स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता। वह केवल प्रकृति का दास है।

प्रश्न 4.
भूगोल में किन-किन परिमण्डलों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:

  1. स्थलमण्डल
  2. जलमण्डल
  3. वायुमण्डल
  4. जैवमण्डल।

प्रश्न 5.
एक विषय के रूप में भूगोल किन तीन कार्यों का अध्ययन करता है?
उत्तर:

  1. भूगोल की प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र
  2. समय के साथ भूगोल का विकास
  3. भूगोल की मुख्य शाखाओं का अध्ययन।

प्रश्न 6.
भौतिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भौतिक वातावरण-मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण। सांस्कृतिक वातावरण मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

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प्रश्न 7.
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मात्रात्मक विधि मानचित्रण विधि
1. इस विधि में तथ्यों और आँकड़ों को एकत्रित करके वर्गीकृत किया जाता है। 1. इस विधि में आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाए जाते हैं।
2. इस विधि में आँकड़ों के विश्लेषण से कुछ अर्थपूर्ण अनुमान लगाए जाते हैं। 2. इस विधि में मानचित्रों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 8.
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

भौतिक भूगोल मानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है। 1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल व जैव मण्डल का अध्ययन किया जाता है। 2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
क्रमबद्ध भूगोल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। क्रमबद्ध भूगोल में हम भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँट लेते हैं। फिर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘धरातल’ प्रकरण को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या विश्व का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मृदा, वनस्पति, खनिज, फसलें, परिवहन, जनसंख्या आदि तत्त्वों का क्षेत्र विशेष पर पृथक-पृथक अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रादेशिक भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल में हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Region) में बाँट लेते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित अध्ययन करते हैं; जैसे भूमध्य-रेखीय प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा का मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 11.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लगभग अठारहवीं शताब्दी तक भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करने वाला एक विवरणात्मक शास्त्र माना जाता था, तब भूगोल का मानवीय क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस प्रकार भौगोलिक अध्ययन का प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी (Isolated) था।

प्रश्न 12.
भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिक भूगोल पृथ्वी तल पर मनुष्य और उसके भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देता है। भूगोल अब वर्णनात्मक शास्त्र नहीं रहा बल्कि जीन बूंश के शब्दों में, “भूगोल में अब घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसी जिज्ञासाओं के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है।” भगोल के आधनिक दृष्टिकोण में कार effect) सम्बन्धों की विवेचना का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण काल कौन-सा था और उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर:
13वीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल कहलाता है। इस काल में अनेक भौगोलिक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए।

प्रश्न 14.
क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
1. क्रमबद्ध भूगोल की कुछ प्रमख उपशाखाएँ हैं-

  • भू-आकृतिक भूगोल
  • मानव भूगोल
  • जैव भूगोल
  • भौगोलिक विधियाँ एवं तकनीकें।

2. प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाएँ हैं-

  • प्रादेशिक अध्ययन
  • प्रादेशिक विश्लेषण
  • प्रादेशिक विकास तथा
  • प्रादेशिक आयोजन।

प्रश्न 15.
पारिस्थितिकी (Ecology) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह विज्ञान जिसके अन्तर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 16.
मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) क्या होती है?
उत्तर:
मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी कहलाता है।

प्रश्न 17.
परिघटना (Phenomena) क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी वस्तु जिसे इन्द्रियाँ; जैसे आँख, कान, नाक आदि से देख, सुन और सूंघ व स्पर्श कर सकें। उदाहरण-पर्वत, पठार, मैदान, मन्दिर, सड़क इत्यादि।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद तथा संभववाद में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
निश्चयवाद तथा संभववाद में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निश्चयवाद (Determinism) संभववाद (Possibilism)
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं। 1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल व हंटिंगटन थे। 2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल डी ला ब्लाश व फैव्रे थे।
3. यह जर्मन विचारधारा (School of thought) है। 3. यह फ्रांसीसी विचारधारा (School of thought) है।

प्रश्न 19.
भूगोल में आधुनिकतम अथवा नवीनतम विकास कौन-सा हुआ है? नवीनतम विधियों का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाले प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
भूगोल में नवीनतम विकास मात्राकरण (Quantification) तथा सांख्यिकीय विश्लेषणों के रूप में हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भूगोल में गणितीय विधियों, मॉडल निर्माण तथा कम्प्यूटर का प्रयोग बढ़ने लगा है। भूगोल में मात्रात्मक विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग निम्नलिखित भूगोलवेत्ताओं ने किया

  1. एसडब्ल्यू० वूलरिज़ (S.W. Wooldridge)
  2. आरजे० शोरले (R.J. Chorley)
  3. पीव्हैगेट (P. Hagget)

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प्रश्न 20.
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल क्या भूमिका निभाता है?
अथवा
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल पृथ्वी के किन पहलुओं का अध्ययन करता है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल एक सशक्त विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। इसमें पृथ्वी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

  • पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों एवं घटनाओं का अध्ययन मानव के सन्दर्भ में करना।
  • स्थानीय, क्षेत्रीय तथा भू-मण्डलीय स्तर पर उभरती मानव-पर्यावरण अन्तःक्रियाओं (Interactions) का अध्ययन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक विषय के रूप में भूगोल का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी प्रमुख परिभाषाएँ बताइए। अथवा भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
‘भूगोल’ हिन्दी के दो शब्दों भू + गोल की सन्धि से बना है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी गोल है। भूगोल विषय के लिए अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘ज्योग्राफी’ (Geography) को सबसे पहले यूनानी विद्वान् इरेटॉस्थेनीज़ (Eratosthenes) ने 234 ई० पू० अपनाया था। Geography शब्द मूलतः यूनानी भाषा के दो पदों Ge अर्थात् पृथ्वी और Graphien अर्थात् लिखना से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य है-“पृथ्वी तथा इसके ऊपर जो कुछ भी पाया जाता है, उसके बारे में लिखना या वर्णन करना।”

डडले स्टाम्प के अनुसार, “भूगोल वह विज्ञान है जो पृथ्वी तल और उसके निवासियों का वर्णन करता है।” मोंकहाउस के अनुसार, “भूगोल मानव के आवास के रूप में पृथ्वी का विज्ञान है।” फिन्च व ट्रिवार्था की दृष्टि में, “भूगोल भू-पृष्ठ का विज्ञान है। इसमें भूतल पर विभिन्न वस्तुओं के वितरण प्रतिमानों तथा प्रादेशिक सम्बन्धों के वर्णन एवं व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है।”

अतः इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एक विषय के रूप में भूगोल मानव तथा पृथ्वी के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। प्रश्न 2. भूगोल के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर:भूगोल एक प्रगतिशील और सक्रिय क्षेत्रीय विज्ञान है जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि-भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित घटनाओं, प्रदेशों की विशेषताओं और विविधताओं की जानकारी देकर मानव की स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि करता है तथा उसकी सोच व कल्पना को नए आयाम देता है।

2. समग्रता का अध्ययन-भूगोल पृथ्वी के किसी भी भू-भाग का उसकी समग्रता (Totality) मैं सृष्टि के एक जीवन्त पहलू के रूप में अध्ययन करता है।

3. मानवीय संसार का अध्ययन हार्टशॉर्न के अनुसार, “पृथ्वी का मानवीय संसार के रूप में वैज्ञानिक ढंग से वर्णन तथा विकास में योगदान करना ही भूगोल का उद्देश्य है।”

4. संसाधन संरक्षण-भूगोल का उद्देश्य है कि किसी प्रदेश के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों को इस प्रकार विकसित किया जाए कि उनके अनुकूलतम (Optimum) प्रयोग से मानव का कल्याण हो सके।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-भूगोल का उद्देश्य भौतिक संसाधनों के विश्वव्यापी वितरण तथा लोगों के उपभोग प्रारूपों का अध्ययन करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और पारस्परिक निर्भरताओं को सार्थक बनाना है।

6. स्वस्थ तथा सन्तुलित दृष्टिकोण का विकास-जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार, “भूगोल का उद्देश्य भावी नागरिकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करना है कि वे विश्व रूपी महान् रंगमंच पर पाई जाने वाली परिस्थितियों का सही आकलन कर सकें और आस-पड़ोस में पाई जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखने में समर्थ हो जाएँ।”

प्रश्न 3.
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान-इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान-भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान-इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean Deposits) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल को लोकप्रियता क्यों मिली?
अथवा
पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance) में भूगोल के लोकप्रिय होने के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल इसलिए पुनर्जागरण काल कहलाता है क्योंकि इसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में और विशेष रूप से 18वीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल के लोकप्रिय होने के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारणों का हाथ था
(1) इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया।

(2) इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं, जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

(3) अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों हम्बोल्ट तथा रिटर ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ।

(4) उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दूर-दराज़ के भू-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

प्रश्न 5.
भूगोल में समाकलन या संश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है? उन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए जिन्होंने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन किया है।
उत्तर:
समाकलन व संश्लेषण भूगोल के अध्ययन की ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न विज्ञानों, जिनकी अपनी अलग पहचान है, की सहायता से भूगोल में विकसित हुए उपक्षेत्रों या घटकों का आपस में संयुक्त रूप से अध्ययन किया जाता है। इससे भौगोलिक अध्ययन न केवल सरल हो जाता है बल्कि किसी प्रदेश के भौतिक व मानवीय तत्त्वों के अन्तर्सम्बन्धों का भी ज्ञान हो जाता है। इसीलिए भूगोल को समाकलन या संश्लेषण का विज्ञान (A science of Integration or Synthesis) भी कहा जाता है। भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन एच०जे० मैकिण्डर ने किया था। उनके अनुसार भौतिक भूगोल के बिना मानव भूगोल का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 6.
भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर अवतरित होने पर आदि मानव का वास्ता सबसे पहले सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी प्रकृति से पड़ा था। प्रकृति उसके लिए अनेक प्रकार के कौतुहलों का पिटारा था। तार्किक ज्ञान और तकनीकी शक्ति के अभाव के कारण आदि मानव जल-थल और नभ के रहस्यों से भयभीत रहता था। प्रकृति के इन्हीं रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या का प्रयास करने के कारण भूगोल ज्ञान के प्राचीनतम विषय के रूप में जाना जाता है।

सांस्कृतिक विकास के साथ वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना बलवती होने लगी और विश्व के बारे में अधिकाधिक सूचनाओं के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगी। सूचनाओं के अम्बार ने विशिष्टीकरण को अनिवार्य बना दिया। इससे भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र जैसे विषय उभरकर सामने आए जो कभी भूगोल नामक एकीकृत विषय के अंग हुआ करते थे। इसी आधार पर भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
विशिष्टीकरण, जिसने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया, की जरूरत क्यों महसूस हुई थी?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में अनेक यात्राएँ, खोजें तथा आविष्कार हुए। इससे देशों और लोगों के बारे में जानकारी कई गुना बढ़ गई। साथ ही वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना भी बलवती होने लगी थी। पृथ्वी तल पर पाई जाने वाली मानवीय व प्राकृतिक परिघटनाओं की व्याख्या वैज्ञानिक आधार पर होने लगी। इन दशाओं ने ज्ञान के अम्बार का विशिष्टीकरण अनिवार्य बना दिया ताकि प्रकृति के हर छोटे-बड़े पक्ष की बारीकी से व्याख्या की जा सके। इस विशिष्टीकरण ने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया।

प्रश्न 8.
भूगोल में ऐसे कौन-से दो प्रमुख क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल को सर्वाधिक प्रभावित किया?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल में जो पहली क्रान्ति आई उसका नाम मात्रात्मक क्रान्ति था। 1960 और 1970 कों में आई मात्रात्मक विधियों और तकनीकों की इस क्रान्ति ने मानव व प्राकृतिक परिघटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। भूगोलवेत्ताओं में मात्रात्मक विधियों का प्रयोग उस समय जनन (C कारण यह था कि इन प्रविधियों के सहारे भूगोलवेत्ताओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में कारकों और प्रक्रियाओं को साथ लेकर सार्थक परिणाम निकालना आसान हो गया था।

भूगोल में दूसरी क्रान्ति 1990 के दशक में आई। इसे हम सूचना क्रान्ति के नाम से जानते हैं। सूचना क्रान्ति का आधार वास्तव में सुदूर संवेदन (Remote Sensing) है जिसमें अन्तरिक्ष में हज़ारों मीटर की ऊँचाई पर स्थापित कृत्रिम उपग्रह से अथवा वायुयान से फोटोग्राफ लिए जाते हैं जिनके आधार पर अनेक विषयों से जुड़े आँकड़ों व सूचनाओं की रचना की जाती है। भूगोल में आई इन दोनों क्रान्तियों ने भूगोल के स्वरूप को ही बदल दिया है।

प्रश्न 9.
भूगोल में आई नूतन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से भूगोल के दृष्टिकोण में आई परिपक्वता के कारण भूगोल में कुछ नई प्रवृत्तियाँ उभरी हैं जो अग्रलिखित हैं
उत्तर:

  1. भूगोल का विकास एक ऐसे अन्तर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) विषय के रूप में हो रहा है जो भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
  2. प्रदेशों के समाकलित अध्ययन और संसाधन मूल्यांकन के लिए भूगोल की भूमिका बढ़ रही है।
  3. मानवीय समृद्धि के लिए बनी आर्थिक विकास योजनाओं में भूगोल का अधिकाधिक प्रयोग बढ़ रहा है।
  4. मॉडल निर्माण (Model Building) से प्रस्तावित योजनाओं के परिणामों व स्वरूप का पूर्वानुमान लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  5. कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग से मानचित्र विज्ञान की तकनीकें प्रखर हुई हैं।
  6. भू-क्षेत्रों के अध्ययन में उपग्रह-फोटोग्रामेटरी का प्रयोग बढ़ रहा है।

प्रश्न 10.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
नियतिवाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
अथवा
“मानव प्रकृति का दास है।” नियतिवाद के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटज़ेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटजेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटजेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों . में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव-उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।।

प्रश्न 11.
सम्भावनावाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सम्भावनावाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर:
फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है, परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज़ तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे। इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

प्रश्न 12.
“भूगोल, प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान दोनों ही है” इस कथन की व्याख्या संक्षेप में करें।
उत्तर:
भूगोल एक समाकलन का विषय है। भूगोल अपनी विषय-सामग्री प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से प्राप्त करता है। इसका अपना एक अलग दृष्टिकोण है, इसलिए यह अन्य विज्ञानों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र का भौगोलिक चित्र प्रस्तुत करने के लिए भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र के भौतिक वातावरण के अध्ययन के लिए भौतिकी तथा रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञानों का सहारा लेना पड़ता है।

मानवीय-क्रियाओं का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान सहायक है। सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन से भौतिक तत्त्वों के कृषि और मानव बस्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूगोल, प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान दोनों में ही कड़ी का कार्य करता है, इसलिए भूगोल को दोनों वर्गों के विज्ञानों में माना जाता है।

प्रश्न 13.
भूगोल मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
भूगोल अन्य सामाजिक-विज्ञानों; जैसे इतिहास, नागरिक-शास्त्र तथा समाजशास्त्र की तरह मनुष्य को एक अच्छा नागरिक बनाने में निम्नलिखित आधारों पर सहायक है

  • भूगोल से मनुष्य को भौतिक पर्यावरण और मानवीय क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
  • इस विषय के अध्ययन से अन्तर्राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • भूगोल का मूल-मन्त्र स्थान है। इसके अन्तर्गत पृथ्वी का मानव के निवास स्थान के रूप में अध्ययन किया जाता है इसलिए यह विश्व की विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएँ दूर करने में सहायक है।
  • मानव का आदर्श जीवन प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रयोग पर निर्भर करता है। इसलिए यह मानव के कल्याण हेतु विश्व के संसाधनों का उचित प्रयोग करने में सहायक है।
  • भूगोल के अध्ययन से हमें विश्व के विभिन्न देशों के विकास स्तर में अन्तर होने की जानकारी प्राप्त होती है तथा भूगोल विकास स्तर में अन्तर कम करने में सहायक है।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भूगोल भी अन्य विषयों की तरह मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 14.
भूगोल में प्रादेशीकरण (Regionalization) के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल उन कारकों की पहचान करता है जो संयुक्त रूप से किसी प्रदेश को विशिष्ट स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘प्रदेश’ भमि का वह विशिष्ट भाग होता है जो किसी एक से अधिक विशेषताओं के आधार पर अपने निकटवर्ती भू-भागों से भिन्न होता है। ये विशेषताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती हैं; जैसे भौतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य। यदि किसी प्रदेश को परिभाषित करने का आधार उच्चावच है तो उसे भौतिक प्रदेश और यदि आधार आर्थिक है (जैसे-औद्योगिक संकुल) तो उसे आर्थिक प्रदेश कहा जाएगा।

अतः किसी भू-भाग में भौगोलिक परिघटना की एकरूपता (Uniformity) अथवा समांगता (Homogeneity) के आधार पर प्रदेशों व उप-प्रदेशों के निर्धारण को प्रादेशीकरण कहते हैं। ये प्रदेश संस्पर्शी (Contiguous) भी हो सकते हैं और दूर-दूर स्थित भी हो सकते हैं। विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों के विकास-स्तर का तुलनात्मक अध्ययन प्रादेशिक विधि द्वारा ही सम्भव है। इससे क्षेत्रीय आर्थिक विषमताओं के कारणों का पता लगाकर उनके निराकरण की राह निकाली जा सकती है।

प्रश्न 15.
“भूगोल भू-पृष्ठ पर बदलते हुए लक्षणों का अध्ययन है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निरन्तर बदल रहा है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन कहीं मन्द है तो कहीं तीव्र है, कहीं दृश्य है तो कहीं अदृश्य । सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण जैसे स्थलाकृतियाँ; जैसे पर्वत, पठार, मैदान इत्यादि धीरे-धीरे परिवर्तित होते हैं जबकि सांस्कृतिक लक्षण; जैसे भवन, सड़कें, फसलें इत्यादि शीघ्रता से बदलते रहते हैं। भूगोल इन बदलते हुए लक्षणों की उत्पत्ति तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। वह इन लक्षणों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
भौतिक भूगोल के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल अपने आप में एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं है, बल्कि यह अनेक विज्ञानों से ली हुई ऐसी जानकारी का संकलन है जिसकी सहायता से भू-पृष्ठ पर भिन्न-भिन्न स्थानों में भौतिक परिवेश की भिन्नता तथा इस भिन्न जाता है। मानव द्वारा किया गया सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास प्राकृतिक पर्यावरण की पृष्ठभूमि में ही संभव हो पाता है। प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें हम स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल तथा जैवमण्डल का अध्ययन करते हैं ही मनुष्य के सामने प्राकृतिक संसाधनों तथा संभावनाओं का चित्र प्रस्तुत करता है। इन्हीं संसाधनों का उपयोग मनुष्य अपने तकनीकी विकास के स्तर के अनुसार कर पाता है।

भौतिक भूगोल न केवल पेड़-पौधों, पशुओं, सूक्ष्म-जीवों, मनुष्यों, खनिजों, ईंधन के स्रोतों, मृदा, जलवायु, जलीय विस्तारों तथा भू-आकारों का अध्ययन करता है बल्कि अन्तर्जात बलों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है। भौतिक भूगोल वास्तव में वह आधारी चट्टान है जिस पर मनुष्य विकास की मूर्ति को स्थापित करता है। भौतिक भूगोल के ज्ञान के बिना विश्व रंगमंच पर मनुष्य कोई भूमिका नहीं निभा सकता।

प्रश्न 17.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण तथा आधुनिक दृष्टिकोण में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भूगोल के प्राचीन तथा आधुनिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भूगोल का प्राचीन दृष्टिकोण (Classical Approach) भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)
1. 18 वीं शताब्दी तक भूगोल द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को प्राचीन दृष्टिकोण कहा जाता है। 1. भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ।
2. इस दृष्टिकोण के अनुसार भूगोल मात्र आँकड़ों को एकत्रित करने वाला विवरणात्मक शास्त्र है। 2. भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण पृथ्वी की घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसे प्रश्नों के उत्तर देता है।
3. प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी था। 3. आधुनिक दृष्टिकोण समाकलित है।

प्रश्न 18.
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

आगमन पद्धति (Inductive Method) निगमन पद्धति (Deductive Method)
1. आगमन पद्धति में एकत्रित तथ्यों तथा उनकी समानता के आधार पर नियम बनाए जाते हैं। 1. निगमनं पद्धति में बनाए गए नियमों या कहे गए आधार वाक्य से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
2. यह विधि विशेष से सामान्य (From Specific to General) के सिद्धान्त पर आधारित है। 2. यह विधि सामान्य से विशेष (From General To Specific) के सिद्धान्त पर आधारित है।
3. आगमन पद्धति में निष्कर्षों और नियमों का अनुभवों पर परीक्षण किया जाता है। 3. निगमन पद्धति में कुछ अनुभवों फ्के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 19.
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अन्तर हैं-

क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है। 1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्तों के सन्दर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है। 2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है। 3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्त्व विशेष के क्षेत्रीय वितरण, 4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभी भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है। 5. प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूगोल के वैज्ञानिक तथा मानवीय आधार की रचना किस प्रकार हुई? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूगोल में प्राचीन यूनानी तथा भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
एक विषय के रूप में भूगोल के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोल के वैज्ञानिक आधार की रचना-भूगोल को एक ‘विज्ञान’ के रूप में स्थापित करने का श्रेय मुख्यतः यूनान, भारत और अरब के विद्वानों को जाता है। इन्होंने खगोल स्थित पिण्डों का वेध (Astronomical Observations) करके ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति को जानने का प्रयत्न किया और साथ ही मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले धरती और आकाश के अनेक रहस्यों को भेदने का प्रयास किया।

यूनानी विद्वान् पाइथागोरस (Pythagoras) ने ईसा से कई शताब्दी पहले पृथ्वी को गोलाकार समझते हुए इसे अन्य ग्रहों के साथ एक केन्द्रीय आग’ (यहाँ केन्द्रीय आग से मतलब सूर्य से रहा होगा।) के चारों ओर घूमता हुआ बताया।

हेरोडोटस (484-425 ईसा पूर्व) ने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सकारण वर्णन किया। उन्होंने ही सबसे पहले ‘मिस्र को नील नदी का उपहार’ (Egypt is the Gift of Nile) बताया था।

हिप्पोक्रेट्स (460-377 ईसा पूर्व) नामक यूनानी भूगोलशास्त्री ने सर्वप्रथम वातावरण का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया। अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी के कटिबन्धों, उसकी गोलीय (Spherical) आकृति के वर्णन तथा ग्रहण लगने की दशाओं (Eclipses) की व्याख्या करके गणितीय भूगोल को संवर्धित किया।

इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ईसा पूर्व) ने मिस्र में साईने व अलेग्जेन्द्रिया नामक स्थानों पर 21 जून को दोपहर में सूर्य की किरणों का कोण मापकर पृथ्वी की परिधि (Circumference) का लगभग सही आकलन कर लिया था।

ईसा की दूसरी शती में टॉल्मी ने अक्षांश-देशान्तरों पर आधारित विश्व का पहला मानचित्र तैयार किया जिससे सैकड़ों वर्षों तक मानचित्र कला प्रभावित रही।

भारत में ईसा की पाँचवीं शताब्दी के आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, आठवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त तथा बारहवीं शताब्दी के भास्कराचार्य जैसे विद्वानों ने न्यूटन से कई शताब्दी पहले ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त, सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी के अक्ष-भ्रमण (Rotation) तथा कक्ष-भ्रमण (Revolution) से जुड़े सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर लिया था।

ईसा की तीसरी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के बीच के पूर्व-मध्यकाल में अरब के विद्वान् प्राचीन भौगोलिक ज्ञान का संरक्षण तो करते रहे किन्तु इस दौरान ईसाई विश्व (Christian world) में भूगोल का कोई विशेष विकास नहीं हो पाया। तेरहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance or Fact Finding Age) कहलाया, जिसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया। इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था, क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों एलेक्जैण्डर वान हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) तथा कार्ल रिटर (Karl Ritter) ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ। उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दर-दराज के भ-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

भूगोल के मानवीय आधार की रचना (Human Basis of Geography) सन् 1870 में जर्मनी के भूगोलवेत्ता रेटज़ेल (Ratzel) का ग्रन्थ एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी (Anthro-pogeographie) प्रकाशित हुआ। इसमें मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को भूगोल से जोड़कर इस विषय को मानवीय आधार प्रदान किया गया। इस प्रकार भूगोल केवल स्थानों का वर्णन मात्र नहीं रहा बल्कि विभिन्न प्राकृतिक परिस्थितियों में मानव के प्रत्युत्तरों (Responses) की भी व्याख्या करने लगा।

प्रश्न 2.
भूगोल के अध्ययन की पद्धतियों एवं तकनीकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूगोल की पद्धतियाँ (Methods of Geography)-भूगोल अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित पद्धतियों को अपनाता है
1. वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)-एक क्रमबद्ध ढंग से प्रासंगिक तथ्यों व आँकड़ों को इकट्ठा करना, समानता के आधार पर उनका वर्गीकरण करना तथा तर्क (Logic) के आधार पर कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालना ही वैज्ञानिक पद्धति है। अन्य विज्ञानों की भांति भूगोल भी तर्क और वैज्ञानिक पद्धति पर आश्रित है। इस पद्धति में निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं
(1) परिकल्पना (Hypothesis) सर्वप्रथम अध्ययन की जाने वाली समस्या या परिस्थिति के बारे में आरम्भिक विचारों का एक ताना-बाना बुना जाता है।

(2) अवलोकन (Observation)-परिकल्पना के बाद चुने हुए क्षेत्र में घटनाओं का निरपेक्ष अवलोकन किया जाता है, ताकि भौगोलिक अध्ययन सही व सच्चा हो सके। इन घटनाओं में पाई जाने वाली समानताओं अथवा ऐक्य (Universality) का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(3) सत्यापन (Verification) तत्पश्चात् किए गए अवलोकनों व पाई गई घटनाओं की सत्यता को परखा जाता है। भौतिक विज्ञानों में तो यह सत्यापन प्रयोगशालाओं में होता है, जबकि सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला स्वयं समाज होता है।

(4) परिणामों का वर्गीकरण (Classification of Results) ऐसे परिणाम जो किसी भी देश और काल में सत्य सिद्ध होते रहें, नियम (Rule) कहलाते हैं। जो परिणाम सत्य के आस-पास तो हों परन्तु सभी परिस्थितियों में पूर्ण सत्य सिद्ध न हो सकें, उन्हें सिद्धान्त (Principle) कहा जाता है।

2. आगमन तथा निगमन पद्धतियाँ (Inductive and Deductive Methods)-आगमन पद्धति के अन्तर्गत तथ्यों का एक समुच्चय (Set of facts) इकट्ठा कर लिया जाता है और इन तथ्यों में पाई जाने वाली समानताओं के आधार पर नियम और सिद्धान्त बनाए जाते हैं। इस प्रकार आगमन विधि तथ्यों से सिद्धान्त या विशेष से सामान्य (From specific to general) की विधि है।

निगमन पद्धति में किसी सिद्धान्त या नियम अर्थात् ‘कहे गए आधार वाक्य’ को ध्यान में रखकर तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है। यह विधि सामान्य से विशेष (From general to specific) पर आधारित है।।

भूगोल की तकनीकें (Techniques of Geography) तथ्यों के विश्लेषण (Analysis), प्रक्रम (Processing) और व्याख्या (Interpret) करने के तरीकों को तकनीक कहा जाता है। किसी भी तकनीक का चुनाव और उसका प्रभाव भूगोलवेत्ता के ज्ञान और कुशलता पर निर्भर करता है। भौगोलिक तथ्यों को आसानी से समझाने के लिए भूगोलवेत्ता निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करता है
(1) मानचित्रण विधि (Cartographic Method) इस विधि में मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है। सूचनाओं व आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाकर सार्थक निष्कर्ष निकाले जाते हैं और उन निष्कर्षों की व्याख्या भी की जाती है।

(2) मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) इस विधि में सांख्यिकी के प्रयोग और गणितीय मॉडल निर्माण (Mathematical Model Building) पर बल दिया जाता है। इसमें आँकड़ों का संकलन, उनका वर्गीकरण, विश्लेषण तथा उनसे महत्त्वपूर्ण सार्थक निष्कर्ष निकालना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 3.
भूगोल के अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भौगोलिक समस्या के अध्ययन की कौन-सी दो विधियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश के भूगोल का अध्ययन निम्नलिखित दो विधियों से किया जा सकता है-

  • क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach)
  • प्रादेशिक विधि (Regional Approach)

1. क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach) इस विधि के अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँटकर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, ‘धरातल’ प्रकरण (Topic) को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या सारे संसार का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मिट्टी, खनिज, कृषि, उद्योग, परिवहन, जनसंख्या, व्यापार, ज्वार-भाटा महासागरीय धाराएँ इत्यादि तत्त्वों का क्षेत्र-विशेष पर पृथक्-पृथक् अध्ययन किया जाता है।

अतः क्रमबद्ध विधि में हमारा ध्यान प्रदेश के किसी एक तत्त्व या तत्त्व सम्मिश्रण (Element Complex) के अध्ययन पर रहता है, उस क्षेत्र की अन्य चीज़ों पर नहीं; इसी कारण इस विधि को प्रकरण विधि (Topical Method) भी कहते हैं। क्रमबद्ध विधि की उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा हम समस्त यथार्थता (Total reality) में से कुछ चुनिन्दा (Selective) तत्त्वों के वितरण और विश्लेषण पर ध्यान दे सकते हैं।

2. प्रादेशिक विधि (Regional Approach) भू-तल पर भौगोलिक दशाएँ सर्वत्र एक-जैसी नहीं पाई जातीं। अतः इस विधि के द्वारा भूगोल का अध्ययन करने के लिए हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Regions) में बाँटते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित (Integrated) अध्ययन करते हैं। भू-पृष्ठ पर पाई जाने वाली स्थानिक विभिन्नताओं (Areal differentiations) के कारण कोई भी दो क्षेत्र एक-जैसे नहीं होते परन्तु कई बार हम देखते हैं कि पृथ्वी तल पर आपस में बहुत दूर स्थित कुछ प्रदेशों के भौगोलिक परिवेश में काफ़ी समांगता (Homogeneity) पाई जाती है जिससे इन सभी प्रदेशों में रहने वाले लोगों का जीवन-यापन, रहन-सहन व आर्थिक क्रियाएँ लगभग एक-जैसी होती हैं।

उदाहरणतः, दक्षिणी अमेरिका के ब्राज़ील देश में स्थित अमेजन बेसिन जैसा भौगोलिक वातावरण वहाँ से हज़ारों किलोमीटर दूर अफ्रीका के कांगो और जायरे बेसिन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मलेशिया, इण्डोनेशिया और फिलीपीन्स द्वीप-समूह में भी पाया जाता है। इन सभी भू-भागों को एक प्राकृतिक प्रदेश (Natural region) में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस खण्ड को हम भूमध्य रेखीय प्रदेश कहते हैं। इस एक प्राकृतिक खण्ड के दूर-दूर स्थित सभी भू-भागों में पाई जाने वाली लगभग एक जैसी भौगोलिक और मानवीय दशाओं के अध्ययन को ही प्रादेशिक विधि कहते हैं।

इसी प्रकार भारत को प्राकृतिक खण्डों में बाँट कर किए गए अध्ययन को भारत का प्रादेशिक भूगोल कहा जाएगा। प्रादेशिक भूगोल में समस्त भारत का अध्ययन करना आवश्यक नहीं है। हम गंगा का निम्न मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश, असम घाटी, मालाबार तट व छोटा नागपुर पठार जैसे कुछ या इनमें से एक प्रदेश को लेकर भी वहाँ के धरातल, जलवायु, कृषि, खनिज, व्यापार, उद्योग, जनसंख्या आदि का अध्ययन करें तो यह प्रादेशिक विधि कहलाएगी। अतः स्पष्ट है कि प्रादेशिक विधि में हम विश्व या किसी बड़े भू-भाग को भौगोलिक प्रदेशों में बाँटकर उनका अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 4.
“भूगोल का सम्बन्ध क्रमबद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों से है।” उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
भूगोल का अन्य विषयों के साथ क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“भौतिक भूगोल अथवा मानव भूगोल के अतिरिक्त कोई भूगोल नहीं हो सकता।” उचित उदाहरण देकर इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
भूगोल भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाले एक पुल (Bridge) का कार्य करता है। इसका कारण यह है कि भूगोल अपनी अन्तर्वस्तु (Contents) या विषय-सामग्री के लिए काफी हद तक अन्य विज्ञानों पर निर्भर करता है और बदले में अपने ज्ञान के द्वारा अनेक विद्वानों के विकास में योगदान देता है। इस प्रकार वर्तमान में भूगोल एक अन्तअनुशासनिक (Interdisciplinary) विषय बनकर उभरा है। भूगोल का जिन विषयों के साथ निकट का सम्बन्ध है, उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • भूगोल तथा भौतिक अथवा प्राकृतिक विज्ञान (Geography and Physical or Natural Science)
  • भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)

(क) भूगोल तथा भौतिक विज्ञान (Geography and Physical Science) भौतिक या प्राकृतिक विज्ञानों को क्रमबद्ध विज्ञान (Systematic Science) भी कहा जाता है। इन विज्ञानों के नियमों को प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर दोनों जगह सिद्ध किया जा सकता है। भूगोल का सम्बन्ध भौतिक विज्ञानों की निम्नलिखित प्रमुख शाखाओं से है-
1. भूगोल तथा खगोल विज्ञान (Geography and Astronomy) ब्रह्माण्ड (Universe) की उत्पत्ति, इसमें व्याप्त अनेक सौर-मण्डल (Solar System), प्रत्येक सौर-मण्डल में उपस्थित अनेक तारे व अन्य आकाशीय पिण्ड, उनकी गतियाँ, सूर्य की किरणों का उत्तरायण व दक्षिणायन होना, ऋतु परिवर्तन, दिन-रात का होना जैसी अनेक प्राकृतिक घटनाओं के समुचित उत्तर के लिए भूगोल खगोल विज्ञान का सहारा लेता है। खगोल विज्ञान स्वयं गणित और भौतिकी के नियमों का अनुसरण करता है।

2. भूगोल तथा गणित (Geography and Mathematics)-विभिन्न स्थानों पर समय और समय-अन्तराल की गणना, अक्षांश-देशान्तर के निर्धारण, सांख्यिकीय आरेखों, प्रक्षेपों व ग्राफ़ इत्यादि की रचना के लिए गणित का आधारभूत ज्ञान अनिवार्य है। भू-तल पर होने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं व जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन गणित के बिना सम्भव नहीं है।

3. भूगोल तथा भौतिकी (Geography and Physics)-भौतिकी के नियमों का ज्ञान पृथ्वी की गतियों, ज्वालामुखी, भूकम्प, ज्वार-भाटा, अपक्षय और अपरदन जैसी अनेक प्रक्रियाओं को समझने में भूगोल की सहायता करता है।

4. भूगोल तथा भू-गर्भ विज्ञान (Geography and Geology)-भू-गर्भ विज्ञान पृथ्वी की उत्पत्ति, भू-आकृतियों का निर्माण, खनिजों व चट्टानों की उत्पत्ति, भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल इन तत्त्वों के वितरण और मानव पर इनके प्रभावों का अध्ययन करता है। भूगोल और भू-गर्भ विज्ञान के गहरे सम्बन्धों के बारे में भूगोलवेत्ता डब्ल्यू०एम० डेविस (W.M. Davis) ने कहा था, “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भूगर्भ विज्ञान।”

5. भूगोल तथा रसायन विज्ञान (Geography and Chemistry) वायुमण्डल की विभिन्न गैसों, विभिन्न खनिजों, ऊर्जा के संसाधनों, मृदा व चट्टानों के गुणों के बारे में जानकारी हेतु भूगोल रसायन विज्ञान पर निर्भर रहता है।

6. भूगोल तथा वनस्पति विज्ञान (Geography and Botany)-भूगोल वनस्पति के प्रकार और उसके आर्थिक महत्त्व का अध्ययन करता है। वनस्पति विज्ञान में वृक्षों व पादप-समूह की जीवनी (Plant life) का अध्ययन होता है। वनस्पति जगत (Flora) के आधारभूत ज्ञान के लिए भूगोल वनस्पति विज्ञान से सम्बन्ध रखता है।

7. भूगोल तथा प्राणी विज्ञान (Geography and Zoology)-प्राणी विज्ञान जन्तुओं (Fauna) की विभिन्न प्रजातियों (Species) व उनके जीवन के बारे में अध्ययन करता है। भूगोल स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं पर भौगोलिक तत्त्वों के प्रभाव और पर्यावरण के साथ उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। पारिस्थितिकी (Ecology) का अध्ययन करते समय हम जन्तुओं के विश्व-वितरण का भी अध्ययन करते हैं। इस प्रकार भूगोल और प्राणी विज्ञान में सम्बन्ध है।

इसके अतिरिक्त भूगोल का सम्बन्ध मृदा विज्ञान व जल विज्ञान जैसे क्रमबद्ध विज्ञानों से भी है।

(ख) भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)
1. भूगोल तथा अर्थशास्त्र (Geography and Economics) भूगोल के उपविषय आर्थिक भूगोल में हम विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में मानव की आर्थिक क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करते हैं, जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के साधनों की व्याख्या करता है। आर्थिक भूगोल और अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु बहुत कुछ मिलती है, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है।

2. भूगोल तथा इतिहास (Geography and History)-भूगोल स्थान का और इतिहास समय का ज्ञान है तथा कोई भी सामाजिक विज्ञान देश और काल के सन्दर्भ के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसी कारण वूलरिज़ तथा ईस्ट (Wooldridge and East) ने कहा था, “वास्तव में भूगोल, इतिहास से, जिसने इसे बनाया है, अलग नहीं हो सकता।” भूगोल और इतिहास न केवल एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं। किसी भी प्रदेश की वर्तमान दशा वहाँ पर अतीत में हो चुके घटना-क्रम की उपज होती है क्योंकि भूगोल वह मंच प्रदान करता है, जिस पर इतिहास का नाटक खेला जाता है।

3. भूगोल तथा समाजशास्त्र (Geography and Sociology)-मानव भूगोल और समाजशास्त्र दोनों विषयों में साम व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक अवस्थाओं का अध्ययन होता है। दोनों ही विषय भू-तल पर पाए जाने वाले मानव समु सामाजिक संगठन, परिवार-प्रणाली, श्रम-विभाजन, रीति-रिवाज, लोकनीति व प्रथाओं का अध्ययन करते हैं।

4. भूगोल तथा सैन्य विज्ञान (Geography and Military Science) युद्ध भूमि की भौगोलिक स्थिति; जैसे पहाड़, दलदल, मरुस्थल, जंगल, समुद्र इत्यादि तथा वहाँ की जलवायु की जानकारी सेना के लिए अनिवार्य है। सैन्य विज्ञान में हम युद्ध क्षेत्रों, युद्ध कलाओं, युद्धों के कारणों व प्रभावों की व्याख्या करते हैं। इस आधार पर भूगोल का सैन्य विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है। दोनों ही विषयों में राष्ट्रों की जनशक्ति, आर्थिक शक्ति, औद्योगिक विकास का अध्ययन किया जाता है। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर बने सीमावर्ती क्षेत्रों के मानचित्र देश की सुरक्षा व युद्ध की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं।

5. भूगोल तथा राजनीतिक विज्ञान (Geography and Political Science) राजनीतिक विज्ञान भिन्न-भिन्न राज्य-व्यवस्थाओं व संगठनों का अध्ययन करता है। प्रत्येक राज्य-व्यवस्था अपनी राजनीतिक सोच के अनुसार ही संसाधनों का विकास करती है। भूगोल संसाधन, उपयोग और संरक्षण से जुड़ा होने के कारण विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था से निरपेक्ष नहीं हो सकता। राज्यों व राष्ट्रों की सीमाओं में होने वाले परिवर्तन से उत्पन्न परिणामों का अध्ययन भी दोनों विषय अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं। दोनों ही विषय भू-राजनीति (Geo-politics) व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 5.
“वास्तव में न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूर्ण नियन्त्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है।” नियतिवाद और सम्भववाद के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मनुष्य और प्रकृति के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आधुनिक भूगोल का आधार बना। मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर दो पृथक् विचारधाराएँ विकसित हुईं

  • नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism)
  • सम्भववाद (Possibilism)

1. जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटजेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटज़ेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटज़ेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया है। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।

2. फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे।

इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति, अध्यवसाय तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं। फैक्रे के अनुसार, “मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उसके प्रयोग का निर्णायक होता है।” मानव की सूझ-बूझ के द्वारा विपरीत परिस्थितियों में किए गए परिवर्तनों के अनेक उदाहरण प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान हैं।

थार मरुस्थल में नहर पहुँचाना, नीदरलैण्ड्स में समुद्र को पीछे धकेलक करना, तिब्बत-लेह मार्ग के रूप में विश्व की सबसे ऊँची सड़क का निर्माण, उफनती नदियों पर विशालकाय पुल, बाढ़ को रोकने वाले हजारों बाँध, पहाड़ों की तीव्र ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती तथा वायुमण्डल से नाइट्रोजन खींचने के संयन्त्र और ध्वनि से तेज चलने वाले यान सिद्ध करते हैं कि मनुष्य विकसित तकनीक के सहारे भौतिक वातावरण या नियति को बदलने वाला सर्वश्रेष्ठ कारक है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियन्त्रण है और न ही मनुष्य ही प्रकृति का विजेता है; दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। प्रकृति का सहयोग और मनुष्य की संकल्प शक्ति दोनों ही उन्नति का आधार हैं। बीच के मार्ग की इस विचारधारा को नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उप-विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल (Physical Geography) भूगोल की वह शाखा जिसमें पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक यन किया जाता है, ‘भौतिक भूगोल’ कहलाती है। भौतिक पर्यावरण के तत्त्व भू-आकार, नदियाँ, जलवाय, प्राकृतिक वनस्पति, मृदा, जीव-जन्तु व खनिज इत्यादि होते हैं। इन प्राकृतिक तत्त्वों का निर्माण प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण सभी महत्त्वपूर्ण अंगों-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल का अध्ययन होता है। इसी आधार पर होम्स ने कहा था, “स्वयं भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।”

भौतिक भूगोल के उप-विषय (Sub-Subjects of Physical Geography)-भौतिक भूगोल के उप-विषय इस प्रकार हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) – इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान (Climatology) – जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान (Hydrology) भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान (Oceanography) इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean deposits) का अध्ययन किया जाता है।

5. मृदा भूगोल (Soil Geography or Pedology) इसमें हम मिट्टी का निर्माण, उसके प्रकार, गुण, मिट्टियों का वितरण, उर्वरता (Fertility) तथा उपयोग इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

6. जैव भूगोल (Bio-Geography) यह उप-शाखा पृथ्वी तल पर जीवों और वनस्पति (Fauna and Flora) के विकास, वर्गीकरण और वितरण का मानव के सन्दर्भ में अध्ययन करती है।

प्रश्न 7.
मानव भूगोल क्या होता है? मानव भूगोल के उप-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल (Human Geography) भूगोल की वह शाखा, जो भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों या लक्षणों का अध्ययन करती है, उसे ‘मानव भूगोल’ कहा जाता है। इन मानवीय लक्षणों की रचना मनुष्य अपनी सुख-सुविधा और विकास के लिए करता है। गाँव, नगर, कृषि, कारखाने, बाँध, सड़कें, पुल, रेलें, नहरें व संस्थाएँ आदि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं। मानव-निर्मित परिस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है।

मानव की सभी विकास क्रियात्मक गतिविधियों पर भौतिक वातावरण का भारी असर पड़ता है। इसीलिए मानव भौतिक परिवेश से व्यापक अनुकूलन करके ही सांस्कृतिक परिवेश की रचना करता है। विडाल डी ला ब्लाश के अनुसार, “मानव भूगोल में पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का संयुक्त ज्ञान शामिल होता है।” एलन चर्चिल सेम्पल (Ellen Churchill Sample) के अनुसार, “मानव भूगोल क्रियाशील मानव और अस्थायी पृथ्वी के आपसी बदलते हुए सम्बन्धों का अध्ययन है।”

मानव भूगोल के उप-क्षेत्र (Sub-Fields of Human Geography) मानव भूगोल के उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) एन०जी० पाउण्ड्स के अनुसार, “आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करता है।” आर्थिक क्रियाएँ मुख्यतः उत्पादन, वितरण, उपभोग और विनिमय से सम्बन्धित होती हैं।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) मानव भूगोल की इस उप-शाखा में समय और स्थान के सन्दर्भ में मनुष्य के सांस्कृतिक पक्षों-आवास, भोजन, जीने का ढंग, आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा, शिक्षा, सुरक्षा, धर्म, सामाजिक संस्थाओं और दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है।

3. सामाजिक भूगोल (Social Geography)-सामाजिक भूगोल में मानव का एकाकी रूप से अध्ययन न करते हुए विभिन्न मानव समूहों और उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों की समीक्षा की जाती है।

4. जनसंख्या भूगोल (Population Geography) इस उप-शाखा में कुल जनसंख्या, जनसंख्या का वितरण, घनत्व, जन्म एवं मृत्यु-दर, साक्षरता, । अनुपात इत्यादि जनांकिकीय विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

5. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)-इसके अन्तर्गत हम विभिन्न प्रदेशों में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों का समय के संदर्भ में अध्ययन करते हैं। हार्टशॉर्न के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।” ऐतिहासिक भूगोल किसी प्रदेश के वर्तमान स्वरूप को समझने में हमारी सहायता करता है।

6. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) इस उप-शाखा के अन्तर्गत भू-राजनीति, राजनीतिक व्यवस्था, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का संसाधनों के उपयोग पर पड़ने वाले प्रभावों, राज्य और राष्ट्रीय सीमाओं, स्थानीय स्वशासन, प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है।

इनके अतिरिक्त मानव भूगोल के अन्य उप-क्षेत्र आवासीय भूगोल, नगरीय भूगोल, चिकित्सा भूगोल, संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल व परिवहन भूगोल इत्यादि हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

HBSE 11th Class Geography भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने भूगोल (Geography) शब्द (Term) का प्रयोग किया?
(A) हेरोडोट्स
(B) गैलीलियो
(C) इरेटॉस्थेनीज़
(D) अरस्तु
उत्तर:
(C) इरेटॉस्थेनीज़

2. निम्नलिखित में से किस लक्षण को भौतिक लक्षण कहा जा सकता है?
(A) पत्तन
(B) मैदान
(C) सड़क
(D) जल उद्यान
उत्तर:
(B) मैदान

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3. स्तंभ I एवं II के अंतर्गत लिखे गए विषयों को पढ़िए।

स्तंभ-क स्तंभ-ख
प्राकृतिक/सामाजिक विज्ञान भूगोल की शाखाएँ
1. मौसम विज्ञान अ. जनसंख्या भूगोल
2. जनांकिकी ब. मृदा भूगोल
3. समाजशास्त्र स. जलवायु विज्ञान
4. मृदा विज्ञान द. सामाजिक भूगोल

सही मेल को चिहांकित कीजिए।
(A) 1.ब. 2.स. 3.अ. 4.द.
(B) 1.द. 2.ब. 3.स. 4.अ.
(C) 1.अ. 2.द. 3.ब. 4.स.
(D) 1.स. 2.अ. 3.द. 4.ब.
उत्तर:
(D) 1.स. 2.अ. 3.द. 4.ब.

4. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रश्न कार्य-कारण संबंध से जड़ा हआ है?
(A) क्यों
(B) क्या
(C) कहाँ
(D) कब
उत्तर:
(A) क्यों

5. निम्नलिखित में से कौन-सा विषय कालिक संश्लेषण करता है?
(A) समाजशास्त्र
(B) मानवशास्त्र
(C) इतिहास
(D) भूगोल
उत्तर:
(C) इतिहास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आप विद्यालय जाते समय किन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं? क्या वे सभी समान हैं अथवा असमान? उन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए अथवा नहीं? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर:
जब हम विद्यालय जाते हैं तो रास्ते में दुकान, सड़क, घर, मंदिर, चर्च आदि सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं। ये सभी असमान हैं। इन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए, क्योंकि ये सभी सांस्कृतिक लक्षण सांस्कृतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 2.
आपने एक टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, संतरा एवं लौकी देखा होगा। इनमें से कौन-सी वस्तु की आकृति पृथ्वी की आकृति से मिलती-जुलती है? आपने इस विशेष वस्तु को पृथ्वी की आकृति को वर्णित करने के लिए क्यों चुना है?
उत्तर:
संतरे की आकृति पृथ्वी से मिलती-जुलती है इसलिए हमने संतरे को पृथ्वी की आकृति से जोड़ा है, क्योंकि पृथ्वी भी ध्रुवों से चपटी है। जबकि अन्य कोई भी वस्तु पृथ्वी की आकृति से मेल नहीं खाती।

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प्रश्न 3.
क्या आप अपने विद्यालय में वन-महोत्सव समारोह का आयोजन करते हैं? हम इतने पौधारोपण क्यों करते हैं? वृक्ष किस प्रकार पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं?
उत्तर:
हमने अपने विद्यालय में अनेक बार वन-महोत्सव का आयोजन किया है। इनमें हम अपने विद्यालय में पेड़-पौधे लगाते हैं। पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं तथा हमारे द्वारा छोड़ी गई कार्बन-डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं, जोकि पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन के लिए बहुत सहायक है। इस प्रकार पेड़-पौधे अथवा वृक्ष पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं।

प्रश्न 4.
आपने हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास देखा है। वे कहाँ रहते एवं बढ़ते हैं? उस मंडल को क्या नाम दिया गया है? क्या आप इस मंडल के कुछ लक्षणों का वर्णन कर सकते हैं?
उत्तर:
जिस स्थान पर हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास बढ़ते हैं, उस स्थान को जैवमंडल कहा जाता है। पृथ्वी का वह घेरा जहाँ स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं, उसे जीवमंडल कहते हैं। जीवमंडल में गतिशील और स्थिर भूगोल एक विषय के रूप में दोनों तरह के जीव पाए जाते हैं। गतिशील जीवों में वन्य-प्राणी, जल जीव, मानव आदि आते हैं और स्थिर जीवों में वनस्पति, पेड़-पौधे इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 5.
आपको अपने निवास से विद्यालय जाने में कितना समय लगता है? यदि विद्यालय आपके घर की सड़क के उस पार होता तो आप विद्यालय पहुंचने में कितना समय लेते? आने-जाने के समय पर आपके घर एवं विद्यालय के बीच की दूरी का क्या प्रभाव पड़ता है? क्या आप समय को स्थान या इसके विपरीत स्थान को समय में परिवर्तित कर सकते हैं?
उत्तर:
हमें अपने घर से विद्यालय जाते हुए आधा घण्टा लगता है। यदि विद्यालय घर की सड़क के उस पार होता तो हमें सिर्फ पाँच मिनट विद्यालय जाने में लगते। आने-जाने के समय में पढ़ाई का नुकसान होता है। हाँ, स्थान को आने-जाने के आधार पर परिवर्तित किया जा सकता है; जैसे हम कहते हैं कि इस स्थान पर हम 30 मिनट में पहुँच जाएँगे। परन्तु समय को स्थान में परिवर्तित नहीं कर सकते।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आप अपने परिस्थान (Surrounding) का अवलोकन करने पर पाते हैं कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। सभी वृक्ष एक ही प्रकार के नहीं होते। सभी पशु एवं पक्षी जिसे आप देखते हैं भिन्न-भिन्न होते हैं। ये सभी भिन्न तत्त्व धरातल पर पाए जाते हैं। क्या अब आप यह तर्क दे सकते हैं कि भूगोल प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन है?
उत्तर:
पृथ्वी तल पर प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। ये भिन्नताएँ भौतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण में पाई जाने वाली भिन्नताओं से उपजती हैं। इसी क्षेत्रीय भिन्नता (Areal Differentiation) का अध्ययन करना भूगोल के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। भूगोल पृथ्वी पर केवल क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन ही नहीं करता बल्कि उन कारकों का भी अध्ययन करता है जो इन भिन्नताओं को जन्म देते हैं या प्रभावित करते हैं।

उदाहरणतः फसल प्रारूप (Cropping Pattern) में भिन्नता पाई जाती है जो मिट्टी के प्रकार, जलवायु, उत्पाद की माँग, किसानों की कम क्षमता, तकनीकी निवेश की उपलब्धता आदि की भिन्नता पर निर्भर करती है। इसी प्रकार किसी क्षेत्र में औद्योगिक विकास का स्तर अनेक तत्त्वों से प्रभावित होता है। भूगोल कारण संबंध (Cause-effect relationship) भी ज्ञात करता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हेट्टनर ने कहा था, “भूगोल पृथ्वी के विभिन्न भागों में कार्य-कारण संबंध का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
आप पहले ही भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का सामाजिक विज्ञान के घटक के रूप में अध्ययन कर चुके हैं। इन विषयों के समाकलन का प्रयास उनके अंतरापृष्ठ (Interface) पर प्रकाश डालते हुए कीजिए।
यन सामाजिक विज्ञान के एक घटक के रूप में किया है। सामाजिक विज्ञान का भूगोल की एक शाखा से अंतरापृष्ठ संबंध है।

  1. भूगोल और इतिहास में अंतर्संबंध है। प्रत्येक विषय का एक दर्शन होता है, जो उस विषय के लिए मूल-आधार होता है।
  2. सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, जनांकिकी सामाजिक यथार्थता का अध्ययन करते हैं।
  3. भूगोल की सभी शाखाएँ-सामाजिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, अधिवास भूगोल विषयों को घनिष्ठता से जोड़ती हैं।
  4. राजनीतिक भूगोल एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में राज्य तथा उसकी जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है।
  5. अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था की मूल विशेषताओं; जैसे उत्पादन, विवरण, विनिमय एवं उपभोग का विवेचन करता है।
  6. उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग के स्थानिक पक्ष का अध्ययन आर्थिक भूगोल के अंतर्गत आता है।

समाकलन विषय होने के कारण भूगोल अनेक सामाजिक विज्ञानों से जुड़ा है। इन विज्ञानों का भूगोल से संबंध होने का मुख्य कारण यह है कि इन विषयों के कई कारकों में भी क्षेत्रीय भिन्नताएँ पाई जाती हैं।

अतः विवेचन से स्पष्ट है कि भूगोल प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है।

भूगोल एक विषय के रूप में HBSE 11th Class Geography Notes

→ भूगोल (Geography)-पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले इन्हीं भौतिक एवं मानवीय सांस्कृतिक तत्त्वों की भिन्नता का वर्णन ही भूगोल कहलाता है।

→ पारिस्थितिकी (Ecology)-वह विज्ञान जिसके अंतर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अंतर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) के संदर्भ में इसका अर्थ मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अंतर्संबंध के अध्ययन से है।

→ भौतिक पर्यावरण/वातावरण (Physical Environment) मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण।

→ सांस्कृतिक पर्यावरण/वातावरण (Cultural Environment) मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

→ कार्य-कारण संबंध (Cause and Effect Relationship) मानव द्वारा किया गया कोई उद्यम और उसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव व परिणाम के बीच संबंधों का होना। उदाहरणतः, अर्जित शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार, सामाजिक व आर्थिक स्तर में होने वाले परिवर्तन में शिक्षा कारण है और बदलाव कार्य है। इसी प्रकार सिंचाई व्यवस्था होने से कृषि क्षेत्र में होने वाले सकारात्मक आर्थिक बदलाव कार्य-कारण संबंध का उदाहरण है।

→ क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) भूगोल की वह शाखा, जिसके अंतर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय-विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

→ प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)-भू-पृष्ठ पर विभिन्न प्राकृतिक प्रदेशों; जैसे मानसून प्रदेश, टुण्ड्रा प्रदेश आदि का भौगोलिक अध्ययन।

→ परिघटना (Phenomena)-ऐसी वस्तु जिसे इंद्रियों; जैसे आंख, कान , नाक आदि से देखा, सुना, सूंघा व स्पर्श किया जा सकता है। उदाहरणतः पर्वत या पठार प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं, जबकि सड़क, मंदिर, खेत सांस्कृतिक परिघटनाएँ हैं।

→ अंतरापृष्ठ (Interface)-वह जगह या धरातल जहां दो विषय आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।