Author name: Prasanna

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

Haryana State Board HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

HBSE 7th Class Geography हमारी बदलती पृथ्वी Textbook Questions and Answers

हमारी बदलती पृथ्वी प्रश्न उत्तर HBSE 7th Class Geography प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(क) प्लेटें क्यों घूमती हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मैग्मा है जिसमें गति होती रहती है। यह एक वृत्तीय रूप में घूमता है। इस कारण से प्लेटें घूमती हैं।

(ख) बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बल क्या हैं?
उत्तर:
जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं उन्हें अंतर्जनित बल कहते हैं तथा जो बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं उन्हें बहिर्जनिक बल कहते हैं।

(ग) अपरदन क्या है?
उत्तर:
भूपृष्ठ पर जल, पवन एवं हिम जैसे विभिन्न घटकों द्वारा होने वाले क्षय को अपरदन कहते हैं।

(घ) बाढकृत मैदान का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
बाढ़ के कारण नदी के तटों के निकटवर्ती क्षेत्रों में महीन मिट्टी एवं अन्य पदार्थ जमा हो जाते हैं। इससे समतल उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है जिनको समतल बाळकृत मैदान कहते हैं।

(ङ) बालू टिब्बा क्या है?
उत्तर:
पवन चलने पर वह अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और गति कम होने पर यह एक स्थान पर जमा होने लगता है। इससे एक छोटी-सी पहाड़ी बन जाती है जिसे बालू टिब्बा कहते हैं।

(च) समुद्री पुलिन का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
समुद्री तरंगें किनारों पर अवसाद जमा कर देती हैं जिससे समुद्री पुलिन का निर्माण होता है।

(छ) चापझील क्या है?
उत्तर:
विसर्प लूप के सिरे निकट आते जाते हैं। कुछ समय बाद विसर्प लूप नदी से कट जाते हैं और एक अलग झील बन जाती है जिसे चाप झील कहते हैं।

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

हमारी बदलती पृथ्वी Class 7 HBSE Geography प्रश्न 2.
सही उत्तर चिह्नित (√) कीजिए:
(क) इनमें से कौन-सी समुद्री तरंग की विशेषता नहीं है?
(i) शैल
(ii) किनारा
(iii) समुद्री गुफा।
उत्तर:
(i) शैल

(ख) हिमनद की निक्षेपण विशेषता है:
(i) बाड़कृत मैदान
(ii) पुलिन
(iii) हिमोढ़।
उत्तर:
(iii) हिमोढ़।

(ग) पृथ्वी की आकस्मिक गतियों के कारण कौन-सी घटना होती है?
(i) ज्वालामुखी
(ii) वलन
(iii) बाढ़कृत मैदान।
उत्तर:
(ii) वलन

(घ) छत्रक शैलें पाई जाती हैं:
(i) रेगिस्तान में
(ii) नदी घाटी में
(iii) हिमनद में।
उत्तर:
(i) रेगिस्तान में

(ङ) चापझील यहाँ पाई जाती है :
(i) हिमनद
(ii) नदी घाटी
(iii) रेगिस्तान।
उत्तर:
(ii) नदी घाटी

3 हमारी बदलती पृथ्वी Class 7 HBSE Geography प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्तंभों को मिलाकर सही जोड़े बनाएँ:
(क) पहाड़ी झील – (i) समुद्री तट
(ख) विसर्प – (ii) हिमनद
(ग) पुलिन – (iii) नदियाँ
(घ) बालू टिब्बा – (iv) पृथ्वी का कंपन
(ङ) जल प्रपात – (v) कठोर संस्तर शैल
(च) भूकंप – (vi) रेगिस्तान
उत्तर:
(क) (ii)
(ख) (iii)
(ग) (i)
(घ) (vi)
(ङ) (v)
(च) (iv)

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

प्रश्न 4.
कारण बताएँ:
(क) कुछ शैल छत्रक के आकार में होते हैं।
उत्तर:
पवन शैल के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भाग को आसानी से काटती है। इसलिए ऐसे शैल के आधार संकीर्ण एवं शीर्ष विस्तृत होते हैं। ये छत्रक के आकार के होते हैं।

(ख) बाढ़कत मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं।
उत्तर:
बाड़ के समय नदी अपने साथ अवसाद बहाकर लाती है जो महीन मिट्टी तथा अन्य पदार्थ के रूप में होते हैं। इन्हें तटवर्ती क्षेत्रों में बिछा देती है। ये अवसाद उपजाऊ होते हैं। इसलिए बादकृत मैदान उपजाऊ होते हैं।

(ग) समुद्री गुफा स्टैक के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
उत्तर:
समुद्री गुफाएँ बड़ी होती जाती हैं इनमें केवल छत ही बचती है। अपरदन इन छतों को भी तोड़ देता है जिससे दीवारें खड़ी रह जाती हैं। दीवार जैसी इन आकृतियों को स्टैक कहते हैं।

(घ) भूकंप के दौरान इमारतें गिरती हैं।
उत्तर:
भूकंप के समय पृथ्वी की सतह पर कंपन होने से इमारतों में भी कंपन होता है। कंपन के कारण इमारतें गिर जाती हैं।

प्रश्न 5.
क्रियाकलाप (Activities)
नीचे दिए गए चित्रों को देखें। ये नदी द्वारा निर्मित स्थल आकृतियाँ हैं। इन्हें पहचानिए और बताइए कि ये नदी के अपरदन अथवा निक्षेपण अथवा दोनों का परिणाम हैं।
उत्तर:
HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी 1

बहुविकल्पी प्रश्न 

प्रश्न 1.
सही उत्तर चुनें:
(i) भूकंप के झटकों को कहते हैं:
(क) भ्रश
(ख) मैग्मा
(ग) लावा
(घ) भूकंपित तरंगें
उत्तर:
(घ) भूकपित तरंगें।

(ii) पृथ्वी की सतह के अंदर चट्टानी पदार्थ कहलाता है:
(क) मैग्मा
(ख) लावा
(ग) राख
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) लावा।

(iii) वे ज्वालामुखी जिनमें प्रायः उद्गार होता रहता है, कहलाते हैं :
(क) मृत
(ख) सक्रिय
(ग) प्रसुप्त
(घ) शील्ड
उत्तर:
(ख) सक्रिय।

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

(iv) भूकंप का परिमाण जो विनाशकारी होता है:
(क) 4 से ऊपर
(ख) 6 से ऊपर
(ग) 10 से ऊपर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) 6 से ऊपर।

(v) समुद्री तरंग का प्रमुख कार्य नहीं है।
(क) समुद्री गुफा
(ख) तटीय मेहराब
(ग) चाप झील
(घ) स्टैक
उत्तर:
(ग) चाप झील

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान भरो :
1. शैल ………………… का मिश्रण होता है।
2 मैग्मा जब भूतल से बाहर आ जाता है तो वह ……………. कहलाता है।
3. हिम का किसी घाटी में से खिसकता हुआ भाग …………… होता है। इसे ……………. भी कहते हैं।
4. नदी विसर्प की गर्दन कट जाती है तो ………………… का निर्माण होता है।
5. आरटायज प्रान्त ……………….. देश में है।
6. विसर्प का आकार ………………… अक्षर की भांति होता है।
7. भूकंपलेखी यंत्र को अंग्रेजी में ………………… कहते हैं।
8. महाद्वीपीय हिमानी का दूसरा नाम ………………… है।
9. ज्वालामुखी के मुख को ………………… कहते हैं।
10. गैस के द्वारा हुआ अपक्षय ………………. अपक्षय होता
11. ………………. से अधिक परिमाण वाला भूकंप विनाशकारी हो सकता है।
12. ……………… ने रिक्टर स्के ल की खोज की।
13. ………………… भूकंप का उद्गम केंद्र है।
14. अधिकतर ज्वालामुखी संकेंद्रण एक वृत्ताकर पेटी में पाया जाता है जिसे कहते हैं।
15. ………………… पिपली चट्टानों के रूप में तरल पदार्थ
उत्तर:
1. खनिजों
2. लावा
3. हिमानी, हिमनदी
4. धनुषाकार झील
5. एस (S)
6. पवन
7. सीस्मोग्राफ
8. हिम चादर
9. क्रेटर
10. रासायनिक
11. छ:
12. चार्ल्स रिक्टर
13. फोकस
14. अग्निवलय
15. लावा।

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

प्रश्न 3.
निम्न के लिए सत्य और असत्य लिखिए:
(i) डेल्टा की आकृति त्रिभुजाकार होती है।
(ii) अजैविक पदार्थ मृदा को उपजाऊ बनाते हैं।
(iii) समुद्र लहरें डेल्टा का निर्माण करती हैं।
(iv) हिम से ढका क्षेत्र महाद्वीपीय हिमानी कहलाता है।
(v) मरुस्थलों में पवन का कार्य अधिक गहरा होता है।
(vi) विश्व में छः प्रकार के ज्वालामुखी पाए जाते हैं।
(vii) भूपृष्ठ कई प्रकार की प्लेटों से बना है।
(viii) प्रशांत अग्नि वलय क्षेत्र ज्वालामुखी तथा भूकंप प्रवण क्षेत्र है।
(ix) कश्मीर घाटी में आए भूकंप का भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
(x) प्रसुप्त ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जिनमें लंबे समय से विस्फोट नहीं हुआ।
उत्तर:
(i) सत्य
(ii) असत्य
(iii) असत्य
(iv) सत्य
(v) सत्य
(vi) असत्य
(vii) सत्य
(vii) सत्य
(ix) असत्य
(x) सत्य।

प्रश्न 4.
नीचे दो स्तंभ दिये हैं। उनके सही जोड़े बनाइये:
1. एक प्रकार की शैल – (क) गंगोत्री
2. गंगा नदी जिस ग्लेशियर से निकलती है। – (ख) मौरेन
3. जल-प्रपातों से पैदा होने वाली शक्ति – (ग) छत्रक शैल
4. हिमानी पिघलने पर शेष पत्थरी कचरा – (घ) भूपृष्ठ
5. हिम-गहर की शक्ल – (ङ) डेल्टा
6. ऊँचाई घटाने की प्रक्रिया – (च) चूना-पत्थर
7. पवन के आक्रमण से बनी शैल – (छ) आइसबर्ग
8 पृथ्वी का ऊपरी आवरण – (ज) जल शक्ति
9. हिमानी से टूटा हिमखंड – (झ) आरामकुर्सी
10. नदी की अन्तिम अवस्था – (ज) निम्नीकरण
उत्तरः
1. (च)
2. (क)
3. (ज)
4.(ख)
5. (झ)
6. (अ)
7. (ग)
8. (घ)
9. (छ)
10. (ङ)

HBSE 7th Class Geography हमारी बदलती पृथ्वी Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आंतरिक गतियाँ किस प्रकार होती है?
उत्तर:
पृथ्वी का स्थलमंडल अनेक प्लेटों में विभाजित है। ये प्लेटें सदैव धीमी गति से घूमती रहती हैं। पृथ्वी के अंदर उपस्थित मैग्मा के कारण ऐसा होता है। प्लेटों की गति के कारण पृथ्वी की आंतरिक गतियाँ होती हैं तथा सतह पर परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
भूकंप की माप के लिए किस उपकरण का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
सिस्मोग्राफ या भूकंपलेखी यंत्र।

प्रश्न 3.
अपक्षय से क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत शैल टूट-टूटकर छोटे-छोटे कणों में विलुप्त हो जाती है, अपक्षय कहलाती है। उदाहरण के लिए दीवार की बाहरी परत अपने आप टूट कर गिरती रहती है। यह दीवार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 4.
तीन प्रकार के अपक्षय का नाम बताइए।
उत्तर:
तीन प्रकार का अपक्षय है –

  • भौतिक अपक्षय
  • रासायनिक अपक्षय
  • जैविक अपक्षय।

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प्रश्न 5.
अपरदन क्या है?
उत्तर:
जब शैल अपक्षय द्वारा एक बार टूट जाते हैं तो बाह्य साधन, जैसे जल, पवन, हिम आदि उसे उठाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देते हैं। इस प्रक्रिया को अपरदन कहते हैं। अपरदन सदैव ही होता रहता है।

प्रश्न 6.
पृथ्वी का भूपृष्ठ किस प्रकार का दिखाई देता है?
उत्तर:
पृथ्वी का भूपृष्ठ कठोर दिखाई देता है। यह पृथ्वी की बाहरी परत है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी उद्गार की प्रकृति तथा लक्षण क्या है?
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार से तरल, ठोस और गैसीय पदार्थ निकलते हैं। ज्वालामुखी से निरतर विस्फोट होते रहते हैं। ज्वालामुखी उद्गार से राख तथा छोटे-छोटे चट्टानों के टुकड़े निकलते रहते हैं। भाप तथा दूसरी गैस निकलती रहती है। बहुत ऊँचाई तक धुआँ निकलता रहता है।

प्रश्न 2.
मैग्मा और लावा क्या है ?
उत्तर:
मैग्मा भूपृष्ठ में वह तरल पदार्थ है जो गैसों पर दबाव डालकर उनके साथ बाहर आता है। लावा ज्वालामुखीय तरल पदार्थ है जो पिघली चट्टानों के रूप में बाहर आता है।

प्रश्न 3.
शील्ड ज्वालामुखी क्या है?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र के आसपास विस्फोटित पदार्थ जमा होने लगते हैं और एक शंकवाकार पहाड़ी बन आती है। इसे शील्ड ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 4.
सक्रिय ज्वालामुखी क्या हैं? व्याख्या करें।
उत्तर:
सक्रिय ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जिनका विस्फोट कुछ समय पहले हुआ है और उनमें अभी भी लावा तथा राख निकल रही है। जैसे- सिसली का माउंट एटना।

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दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूकंप क्या है? भूकंप के कारण बताएँ।
उत्तर:
पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने की क्रिया को भूकंप कहते हैं। भूकंप के निम्नलिखित कारण हैं :

  • भूकंप का कारण पृथ्वी के अंदर कार्यरत शक्तियाँ हैं।
  • विवर्तनिक प्लेटों का गतिमान तथा उनमें संचरण होना।
  • ज्वालामुखी उद्गार।
  • मनुष्य की क्रियाओं के कारण भी भूकंप आ जाते हैं जैसे, बांध का निर्माण आदि।

प्रश्न 2.
ज्वालामुखी क्या है? ज्वालामुखी का कारण बताएँ।
उत्तर:
ज्वालामुखी भूपृष्ठ में एक छिद्र होता है जिसके द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग से पिघला पदार्थ बाहर आता रहता है। ज्वालामुखी के कारण अग्रलिखित हैं:

  • कमजोर चट्टानें : कमजोर चट्टानें होने के कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग का पिघला हुआ पदार्थ बाहर निकलता है।
  • जल : भूपृष्ठ का जल रिसकर आंतरिक भाग में पहुँच जाता है जहाँ वह गर्म चट्टानों के संपर्क में आकर भाप बन जाता है। वह भाप ऊपर आती है।
  • भूकंप : भूकंप के कारण भी ज्वालामुखी विस्फोट हो जाते हैं।
  • भूगर्भ में अत्यधिक ताप होने के कारण रेडियोधर्मी पदार्थों में विघटन उत्पन्न हो जाता है जिससे ज्वालामुखी विस्फोट हो जाते हैं।
  • लावा का संगठन : उद्गार की प्रक्रिया केंद्रीय ज्वालामुखी के लावा की रचना से संबंधित है।

हमारी बदलती पृथ्वी Class 7 HBSE Notes in Hindi

1. भूकंप (Earthquakes) : शक्तिशाली झटकों से पृथ्वी के धरातल में कंपन उत्पन्न हो जाता है, जिसे भूकंप कहते हैं।

2. भूकंप के कारण (Causes of Earthquakes) : भूकंप का प्रमुख कारण है- विवर्तनिक प्लेटों का गति करना

3. भूकंप का वितरण (Distribution of Earthquakes) : भूकंप के विश्व में दो प्रमुख क्षेत्र हैं:

  • प्रांत परिधि भूकंप पेटी जो प्रशांत अग्निवलय के साथ फैली है।
  • मध्यवर्ती पर्वतीय पेटी जिसमें हिमालय सम्मिलित है।

4. कश्मीर का भूकंप (Kashmir Earthquake) : कश्मीर घाटी में भूकंप की घटना सबसे नवीन है। यह 8 अक्टूबर, 2005 को प्रात: 9.30 आया। इसका केंद्र मुजफ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) से 19 कि.मी. दूर पूर्व में था। इसका परिमाण रिक्टर पैमाने पर 7.6 था। इसका प्रभाव क्षेत्र जम्मू-कश्मीर, उत्तरी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और उत्तरी भारत का कुछ भाग था। इसमें लगभग 84,000 लोगों की मृत्यु हुई।

5. ज्वालामुखी (Volcano) : भूपृष्ठ में एक छेद जिसके द्वारा लावा तथा अन्य पदार्थ बाहर आकर एकत्र हो जाते हैं, ज्वालामुखी कहलाता है।

HBSE 7th Class Social Science Solutions Geography Chapter 3 हमारी बदलती पृथ्वी

6. ज्वालामुखी का वितरण (Distribution of Volcano) : पृथ्वी पर लगभग 500 सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। अधिकतर ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के चारों ओर पाए जाते हैं, जिसे प्रशांत अग्निवलय कहते हैं।

7. स्थलाकृतियाँ (Landforms) : अपक्षय और अपरदन द्वारा स्थल आकृतियाँ विघटित होती रहती हैं। भूपृष्ठ पर जल, पवन एवं हिम जैसे विभिन्न घटकों के द्वारा होने वाले क्षय को अपरदन कहते हैं।

8. नदी के कार्य (Functions of River) : नदी द्वारा अपरदन से निम्नलिखित आकृतियाँ बनती हैं:

  • ल प्रपात (Waterfalls) : जब नदी किसी खड़े ढाल वाले स्थान से खड़े ढाल वाली घाटी में गिरती है तो यह जल प्रपात बनाती है।
  • विसर्प (Meanders) : नदी मैदानों में मोड़दार मार्ग बनाती है। नदी के इन्हीं मोड़ों को विसर्प कहते हैं।
  • चाप झील (Oxbow lake) : नदी के मोड़ अधिक बड़े हो जाने पर ये मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं और इनमें पानी भरा रहता है। इसे चाप झील कहते हैं।
  • डेल्टा (Delta) : नदी समुद्र तक पहुंचते-पहुंचते बहुत धीमी गति से बहने लगती है और वह अपने साथ लाए अवसाद को जमा करने लगती है। नदी के मुहाने पर जमे अवसाद को डेल्टा कहते हैं।

9. तरंगों के कार्य (Functions of the Waves) : समुद्री तरंगें अपरदन और निक्षेपण से तटीय स्थलाकृतियाँ बनाती हैं। इनमें समुद्री गुफा, तटीय मेहराब, समुद्री भृगु आदि प्रमुख हैं।

10. हिमनद के कार्य (Functions of Glacier) : हिमनद अथवा हिमानी बर्फ की नदियाँ होती हैं। यह गहरे गर्त का निर्माण करती हैं।

11. पवन के कार्य (Functions of the Winds) : पवनों का कार्य मरुस्थलीय भागों तक सीमित होता है। पवनों से बालू के टिब्बे-छत्रक शैल, लोयस मैदान आदि का निर्माण होता है।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Exercise 4.3

Question 1.
Draw the graph of each of the following linear equations in two variables :
(i) x + y = 4
(ii) x – y = 2
(iii) y = 3x
(iv) 3 = 2x + y
Solution:
(i) We have,
x + y = 4
⇒ y = 4 – x
When x = 0, then y = 4 – 0 = 4
When x = 1, then y = 4 – 1 = 3
When x = 2, then y = 4 – 2 = 2
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x012
y432

Plotting the points A(0, 4), B(1, 3) and C(2, 2) on the graph paper and joining these points, we get a straight line AC. It is the required graph of x + y = 4.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 1

(ii) We have,
x – y = 2
⇒ – y = – x + 2
⇒ y = x – 2
When x = 0, then y = 0 – 2 = – 2
When x = 2, then y = 2 – 2 = 0
When x = 4, then y = 4 – 2 = 2
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x024
y– 202

Plotting the points A(0, – 2), B(2, 0) and C(4, 2) on the graph paper and joining these points, we get a straight line AC. It is the required graph of x – y = 2.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 2

(iii) We have, y = 3x
When x = 0, then y = 0
When x = 1, then y = 3 × 1 = 3
When x = 2, then y = 3 × 2 = 6
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x012
y036

Plotting the points A(0, 0), B(1, 3) and C(2, 6) on the graph paper and joining these points, we get a straight line AC. It is the required graph of y = 3x.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 3

(iv) We have,
3 = 2x + y
⇒ y = 3 – 2x
When x = 0, then y = 3 – 2 × 0 = 3 – 0 = 3
When x = 1, then y = 3 – 2 × 1 = 3 – 2 = 1
When x = 2, then y = 3 – 2 × 2 = 3 – 4 = – 1
Now, we prepare the table of values of (x, y)

x012
y31– 1

Plotting the points A(0, 3), B(1, 1) and C(2, – 1) on the paper and joining these points, we get a straight line AC. It is the required graph of 3 = 2x + y.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 4

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3

Question 2.
Give the equations of two lines passing through (2, 14). How many more such lines are there, and why?
Solution:
Equations of two lines passing through (2, 14) are x + y = 16, 2x + y = 18. But note that, 8x – y = 2, 3x + y = 20 and 6x – y = – 2 are also satisfied by the co-ordinates of the point (2, 14). So, infinitely many number of lines can be pass through the point (2, 14).

Question 3.
If the point (3, 4) lies on the graph of the equation 3y = ax + 7, find the value of a.
Solution:
Since the point (3, 4) lies on the graph of the equation 3y = ax + 7. Therefore, the point (3, 4) satisfies the given equation.
⇒ 3 × 4 = a × 3 + 7
⇒ 12 = 3a + 7
⇒ 12 – 7 = 3a
⇒ 5 = 3a
⇒ a = \(\frac {5}{3}\)
Hence, a = \(\frac {5}{3}\)

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3

Question 4.
The taxi fare in a city is as follows: For the first kilometre, the fare is ₹ 8 and for the subsequent distance it is ₹ 5 per km. Taking the distance covered as x km and total fare as ₹ y, write a linear equation for this information, and draw its graph.
Solution:
Taking the distance covered as x km and total fare as ₹ y.
Fare for first km = ₹ 8
Remaining distance = (x – 1) km
Fare for remaining distance = (x – 1) × 5
Total fare (y) for x km = 8 + (x – 1) × 5
⇒ y = 8 + (x – 1) × 5
⇒ y = 8 + 5x – 5
⇒ y = 5x + 3
When x = 1, then y = 5 × 1 + 3 = 5 + 3 = 8
When x = 2, then y = 5 × 2 + 3 = 10 + 3 = 13
When x = 3, then y = 5 × 3+ 3 = 15 + 3 = 18
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x123
y81318

Plotting the points A(1, 8), B(2, 13) and C(3, 18) on the graph paper and joining these points, we get a straight line AC. It is the required graph of y = 5x + 3.
Hence, linear equation is 5x – y + 3 = 0.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 5

Question 5.
From the choices given below, choose the equation whose graphs are given in figure 4.15 and 4.16:
For figure 4.15
(i) y = x
(ii) x + y = 0
(iii) y = 2
(iv) 2 + 3y = 7x
(v) x + 2y = 6

For figure 4.16
(i) y = x + 2
(ii) y = x – 2
(iii) y = -x + 2
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 6
Solution:
For figure 4:15, the points on the line are (1, – 1), (0, 0) and (-1, 1). We observe that co-ordinates of the point of the graph satisfy the equation x + y = 0. So, x + y = 0 is the equation corresponding to the graph in figure 4:15.
So, the correct option is (ii) x + y = 0.

For figure 4:16, the points on the line are (2, 0), (0, 2) and (-1, 3). We observe that coordinates of the points of the graph satisfy the equation y = – x + 2. So, y = – x + 2 is the equation corresponding to the graph in figure 4.16.
So, the correct option is (iii) y = – x + 2.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3

Question 6.
If the work done by a body on application of a constant force is directly proportional to the distance travelled by the body, express this in the form of an equation in two variables and draw the graph of the same by taking the constant force as 5 units. Also read from the graph the work done when the distance travelled by the body is : (i) 2 units (ii) 0 unit.
Solution :
Let the work done by the body be y units and distance travelled by x units. According to question, work done by the body on application of a constant force is directly proportional to the distance travelled by the body. From ratio and proportion we can express this fact as:
y = 5x[∵ work done = force × distance]
Taking distance x along x-axis and work done along y-axis.
When x = 0, then y = 5 × 0 = 0
When x = 1, then y = 5 × 1= 5
When x = 2, then y = 5 × 2 = 10
When x = 3, then y = 5 × 3 = 15
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x0123
y051015

Plotting the points A(0, 0), B(1, 5), C(2, 10) and D(3, 15) on the graph paper and joining these points, we get a straight line AD. It is the required graph of y = 5x.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 7
From the graph we observe that:
(i) When distance (x) = 2 units, then work done (y) = 10 units.
(ii) When distance (x) = 0 unit, then work done (y) = 0 unit.

Question 7.
Yamini and Fatima, two students of class IX of a school, together contributed ₹ 100 towards the Prime Minister’s Relief Fund to help the earthquake victims. Write a linear equation which satisfies this data. (You may take their contributions as ₹ x and ₹ y). Draw the graph of the same.
Solution:
Let the contribution of Yamini be ₹ x and contribution of Fatima be ₹ y.
According to question, x + y = 100
⇒ y = 100 – x
When x = 10, then y = 100 – 10 = 90
When x = 20, then y = 100 – 20 = 80
When x = 30, then y = 100 – 30 = 70
When x = 40, then y = 100 – 40 = 60
Now, we prepare the table of values of (x, y).

x10203040
y90807060

Plotting the points A(10, 90), B(20, 80), C(30, 70) and D(40, 60) on the graph paper. Joining these points we get a straight line AD. It is the required graph of x + y = 100.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 8
Hence, required linear equation is x + y = 100.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3

Question 8.
In countries like USA and Canada, temperature is measured in Fahrenheit, whereas in countries like India, it is measured in Celsius. Here is a linear equation that converts Fahrenheit to Celsius :
F = (\(\frac {9}{5}\)) C + 32
(i) Draw the graph of the linear equation above using Celsius for x-axis and Fahrenheit for y-axis.
(ii) If the temperature is 30°C, what is the temperature in Fahrenheit?
(iii) If the temperature is 95°F, what is the temperature in Celsius?
(iv) If the temperature is 0°C, what is the temperature in Fahrenheit and if the temperature is O’F, what is the temperature in Celsius?
(v) Is there a temperature which is numerically the same in both Fahrenheit and Celsius? If yes, find it.
Solution:
We have,
F = \(\frac {9}{5}\)C + 32
Taking the temperature in Celsius along x-axis and temperature in Fahrenheit along y-axis.
When C = 20, then
F = \(\frac {9}{5}\) × 20 + 32
= 36 + 32 = 68
When C = 40, then
F = \(\frac {9}{5}\) × 40+32
= 72 + 32 = 104
When C = 60, then
F = \(\frac {9}{5}\) × 60 + 32
= 108 + 32 = 140
When C = – 40, then
F = \(\frac {9}{5}\) × (-40) + 32
= – 72 + 32 = – 40
Now, we prepare the table of values of (C, F).

°C204060– 40
°F68104140– 40

Plotting the points A(20, 68), B(40, 104), C(60, 140) and D(-40, – 40) on the graph paper and joining these points, we get a straight line CD. It is the required graph of F = \(\frac {9}{5}\)C + 32.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.3 - 9
(i) The graph is shown in the above figure.
(ii) If the temperature is 30°C, then temperature in Fahrenheit is 86°F.
(iii) If the temperature is 95°F, then temperature in Celsius is 35°C.
(iv) If the temperature is 0°C, then temperature in Fahrenheit is 32°F and if temperature is 0°F, then temperature in Celsius is – 17.8°C (approx.).
(v) Let 0°C = 0°F = x
Substituting the 0°C = 0°F = x in the equation, we get
x = \(\frac {9}{5}\)x + 32
x – \(\frac {9}{5}\)x = 32
\(\frac{5 x-9 x}{5}\) = 32
\(\frac{-4 x}{5}\) = 32
x = \(\frac{32 \times 5}{-4}\) = – 40
Yes, a temperature which is numerically the same in both Fahrenheit and Celsius is – 40, which is shown in the figure 4.19 at point D.

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.2

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Exercise 4.2

Question 1.
Which one of the following options is true, and why?
y = 3x + 5 has :
(i) a unique solution
(ii) only two solutions
(iii) infinitely many solutions.
Solution:
(iii) is true, because y = 3x + 5 is a linear equation in two variables. We know that a linear equation in two variables has infinitely many solutions.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.2

Question 2.
Write four solutions for each of the following equations:
(i) 2x + y = 7
(ii) πx + y = 9
(iii) x = 4y.
Solution:
(i) We have,
2x + y = 7 …(i)
Substituting x = 0 in the equation (i), we get
2 × 0 + y = 7
⇒ 0 + y = 7
⇒ y = 7
∴ (0, 7) is a solution of the given equation.
Substituting x = 1 in the equation (i), we get
2 × 1 + y = 7
⇒ 2 + y = 7
⇒ y = 7 – 2 = 5
∴ (1, 5) is a solution of the given equation.
Substituting x = 2 in equation (i), we get
2 × 2 + y = 7
⇒ 4 + y = 7
⇒ y = 7 -4 = 3
∴ (2, 3) is a solution of the given equation.
Substituting x = 3 in the equation (i), we get
2 × 3 + y = 7
⇒ 6 + y = 7
⇒ y = 7 – 6 = 1
∴ (3, 1) is a solution of the given equation.
Hence, four solutions of the given equation are (0, 7), (1, 5), (2, 3) and (3, 1).

(ii) We have πx + y = 9 ……..(i)
Substituting x = 0 in the equation (i), we get
π × 0 + y = 9
⇒ 0 + y = 9
⇒ y = 9 .
∴ (0, 9) is a solution of the given equation.
Substituting x = 1 in the equation (i), we get
π × 1 + y = 9
⇒ π + y = 9
⇒ y = 9 – π
∴ (1, 9 – π) is a solution of the given equation.
Substituting x = \(\frac {9}{π}\) in the equation (i), we get
π × \(\frac {9}{π}\) + y = 9
⇒ 9 + y = 9
⇒ y = 9 – 9 = 0
∴ (\(\frac {9}{π}\), 0) is a solution of the given equation.
Substituting x = – 1 in the equation (i), we get
π × (-1) + y = 9
⇒ – π + y = 9
⇒ y = 9 + π
∴ (-1, 9 + π) is a solution of the given equation
Hence, four solutions of the given equation are (0, 9), (1, 9 – π), (\(\frac {9}{π}\), 0) and (- 1, 9 + π).

(iii) We have, x = 4y …(i)
Substituting x = 0 in the equation (i), we get
0 = 4y
⇒ \(\frac {0}{4}\) = y
⇒ y = 0
∴ (0, 0) is a solution of the given equation.
Substituting x = 4 in the equation (i), we get
4 = 4y
⇒ \(\frac {4}{4}\) = y
⇒ y = 1
∴ (4, 1) is a solution of the given equation.
Substituting x = – 4 in the equation (i), we get
– 4 = 4y
⇒ \(\frac {-4}{4}\) = y
⇒ – 1 = y
⇒ y = – 1
∴ (-4, -1) is a solution of the given equation.
Substituting x = 2 in the equation (i), we get
2 = 4y
⇒ \(\frac {2}{4}\) = y
⇒ y = \(\frac {1}{2}\)
∴ (2, \(\frac {1}{2}\)) is a solution of the given equation.
Hence, four solutions of the given equation are (0, 0), (4, 1) (-4, -1) and (2, \(\frac {1}{2}\))

Question 3.
Check which of the following are solutions of the equation 1 – 2y = 4 and which are not :
(i) (0, 2)
(ii) (2, 0)
(iii) (4, 0)
(iv) (\(\sqrt{2}\), 4\(\sqrt{2}\))
(v) (1, 1).
Solution:
We have, x – 2y = 4 …(i)
(i) Substituting x = 0, y = 2 in the L.H.S. of the equation (i), we get
L.H.S. = 0 – 2 × 2 = – 4
≠ R.H.S.
∵ L.H.S. ≠ R.H.S.
∴ (0, 2) is not a solution of the given equation.

(ii) Substituting x = 2, y = 0 in the L.H.S. of the equation (i), we get
L.H.S. = 2 – 2 × 0
= 2 – 0 = 2
≠ R.H.S.
∵ L.H.S. ≠ R.H.S.
∴ (2, 0) is not a solution of the given equation.

(iii) Substituting x = 4, y = 0 in the L.H.S. of equation (i), we get
L.H.S. = 4 – 2 × 0
= 4 – 0 = 4
= R.H.S.
∵ L.H.S. = R.H.S.
∴ (4, 0) is a solution of the given equation.

(iv) Substituting x = \(\sqrt{2}\), y = 4\(\sqrt{2}\) in the L.H.S. of equation (i), we get
L.H.S. = 1\(\sqrt{2}\) – 2 × 4\(\sqrt{2}\)
= \(\sqrt{2}\) – 8\(\sqrt{2}\) = – 7\(\sqrt{2}\)
≠ R.H.S.
∵ L.H.S. ≠ R.H.S.
∴ (\(\sqrt{2}\), 4\(\sqrt{2}\)) is not a solution of the given equation.

(v) Substituting x = 1, y = 1 in the L.H.S. of equation (i), we get
L.H.S. = 1 – 2 × 1
= 1 – 2 = – 1
≠ R.H.S.
∵ L.H.S. ≠ R.H.S.
∴ (1, 1) is not a solution of the given equation.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.2

Question 4.
Find the value of k, if x = 2, y = 1 is a solution of the equation 2x + 3y = k.
Solution:
Since x = 2, y = 1 is a solution of the equation
2x + 3y = k
Therefore, x = 2, y = 1 will satisfy the given equation.
⇒ 2 × 2 + 3 × 1 = k
⇒ 4 + 3 = k
⇒ 7 = k
Hence, k = 7

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.1

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Exercise 4.1

Question 1.
The cost of a note-book is twice the cost of a pen. Write a linear equation in two variables to represent this statement.
[Hint : Take the cost of a note-book to be ₹ x and that of a pen to be ₹ y.]
Solution:
Let the cost of a note-book be. ₹x and cost of a pen be ₹ y.
According to statement, the cost of a notebook is twice the cost of a pen.
So, the required linear equation in two variables to represent above statement is
x = 2y or x – 2y = 0

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 Linear Equations in Two Variables Ex 4.1

Question 2.
Express the following linear equations in the form ax + by + c = 0 and indicate the values of a, b and c in each case :
(i) 2x + 3y = \(9 \cdot 3 \overline{5}\)
(ii) x – \(\frac {y}{5}\) – 10 = 0
(iii) – 2x + 3y = 6
(iv) x = 3y
(v) 2x = – 5y
(vi) 3x + 2 = 0
(vii) y – 2 = 0
(viii) 5 = 2x.
Solution :
(i) Writing the given equation 2x + 3y = \(9 \cdot 3 \overline{5}\) in the form ax + by + c = 0, we get
2x + 3y – \(9 \cdot 3 \overline{5}\) = 0 …(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 2, b = 3 and c= – \(9 \cdot 3 \overline{5}\).

(ii) Writing the given equation x – \(\frac {y}{5}\) – 10 = 0 in the form ax + by + c = 0, we get
1.x – \(\frac {1}{5}\)y – 10 = 0 ……..(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 1, b = – \(\frac {1}{5}\) and c = – 10.

(iii) Writing the given equation – 2x + 3y = 6 in the form ax + by + c = 0, we get
– 2x + 3y – 6 = 0 …(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = – 2, b = 3 and c =- 6.

(iv) Writing the given equation x = 3y in the form ax + by + c = 0, we get
1.x – 3y + 0 = 0 …….(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 1, b = -3 and c = 0.

(v) Writing the given equation 2x = – 5y in the form ax + by + c = 0, we get
2x + 5y + 0 = 0 …….(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 2, b = 5 and c = 0.

(vi) Writing the given equation 3x + 2 = 0 in the form ax + by + c = 0, we get
3x + 0.y + 2 = 0 ……..(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 3, b = 0 and c = 2.

(vii) Writing the given equation y – 2 = 0 in the form ax + by + c = 0, we get
0.x + 1.y – 2 = 0 …(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = 0, b = 1 and c = -2.

(viii) Writing the given equation 5 = 2x in the form ax + by + c = 0, we get
– 2x + 0.y + 5 = 0 …..(i)
Comparing the equation (i) with the standard form of the linear equation ax + by + c = 0, we get
a = – 2, b = 0 and c = 5.

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HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

HBSE 12th Class English On the Face of it Textbook Questions and Answers

Question 1.
What is it that draws Derry towards Mr Lamb in spite of himself? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-B, C)] (क्या कारण है कि न चाहते हुए भी डैरी श्री लैंब की तरफ आकर्षित हो जाता है ?)
Answer:
Derry’s face got burned with acid. It looks ugly. People dislike him and avoid him. So Derry also avoids people and like to remain lonely. He goes to Mr Lamb’s garden hoping that it would be empty But there he comes across Mr Lamb. He wants to avoid him. But Mr Lamb talks to him in a kind manner. He does not even mention his face. He welcomes Derry to his garden. He tells Derry that outer appearance is not of much importance. The real beauty is within man’s spirit. This pleases Derry. So he is drawn towards Mr Lamb.

(डैरी का चेहरा तेज़ाब से जल गया था। यह भद्दा लगता है। लोग उससे नफरत करते हैं और उससे बचते हैं। इसलिए डैरी भी लोगों से बचता है और अकेला रहना पसन्द करता है। वह श्री लैंब के बाग में यह सोचकर जाता है कि यह खाली होगा। मगर वहाँ पर उसकी मुलाकात श्री लैंब से होती है। वह उससे बचना चाहता है। मगर श्री लैंब उससे दयालुता से बात करते हैं। वे तो उसके चेहरे का जिक्र भी नहीं करते। वे डैरी का अपने बाग में स्वागत करते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि बाहरी रूप का अधिक महत्त्व नहीं होता। वास्तविक सुन्दरता मनुष्य की आत्मा में होती है। इससे डैरी खुश हो जाता है। इसलिए वह श्री लैंब की तरफ आकर्षित हो जाता है।)

Question 2.
In which section of the play does Mr Lamb display signs of loneliness and disappointment? What are the ways in which Mr Lamb tries to overcome these feelings? (नाटक के कौन-से भाग में श्री लैंब अकेलेपन व निराशा के लक्षण प्रकट करता है ? वे कौन-से ढंग हैं जिनके द्वारा श्री लैंब इन भावनाओं पर नियन्त्रण पाने का प्रयास करता है ?)
Answer:
It is towards the end of the play that Mr Lamb displays signs of loneliness and disappointment. When Derry goes away saying that he will come back, Mr Lamb says to himself : “Everyone says, I’ll come back’. But they never do. None of them ever comes back.” These words show Mr Lamb’s loneliness and disappointment. But he tries to overcome these feelings by watching, listening and thinking. He has no curtains on his windows. He loves to see the natural light and darkness. He loves to hear the winds blowing. People say bees buzz, but when he listens to them he feels that they are humming. He finds no difference between flowers, trees, herbs and weeds. To him, they are all growing living things. It is by such positive thinking that he tries to overcome his loneliness and disappointment.

(ऐसा नाटक के अन्त में होता है कि श्री लैंब को अकेलेपन और निराशा के लक्षण दिखते हैं। जब हैरी यह कहकर चला जाता है कि वह वापिस आएगा, तो श्री लैंब अपने आपसे कहते हैं, “हर व्यक्ति कहता है, “मैं वापिस आऊँगा”। मगर वे कभी वापिस नहीं आते। आज तक उनमें से कोई भी वापिस नहीं आया है।” ये शब्द श्री लैंब के अकेलेपन और निराशा को दर्शाते हैं। मगर वह इन भावनाओं का अवलोकन करके, सुनकर और सोचकर दूर करने का प्रयत्न करता है। उसकी खिड़कियों पर पर्दे नहीं हैं। वह प्राकृतिक रोशनी और अंधेरे को देखना चाहता है। वह हवा के चलने की आवाज़ सुनना पसन्द करता है। लोग कहते हैं कि मधुमक्खियाँ भिनभिनाती हैं, मगर जब वह उन्हें सुनता है तो उसे लगता है कि वे गुनगुना रही हैं। उसे फूलों, वृक्षों, जड़ी-बूटियों और खरपतवार में कोई अन्तर नज़र नहीं आता। उसके लिए वे सब जीवित वस्तुएँ हैं। इस प्रकार के सकारात्मक विचारों से वह अपने अकेलेपन और निराशा को दूर करने की कोशिश करता है।)

Question 3.
The actual pain or inconvenience caused by a physical impairment is often much less than the sense of alienation felt by the person with disabilities. What is the kind of behaviour that the person expects from others? (प्रायः शारीरिक क्षति से होने वाली वास्तविक पीड़ा दिव्यांग लोगों द्वारा अकेलेपन को अनुभव करने की भावना की अपेक्षा कम होती है। उस प्रकार का व्यक्ति अन्य लोगों से किस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा करता है ?)
OR
The lesson, ‘On the Face of It’, is an apt depiction of the loneliness and sense of alienation experienced by people on account of a dissability. Explain. [H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)] (अध्याय, ‘On the Face of It’ अकेलेपन की भावना का एक उपयुक्त चित्रण है, जो दिव्यांगता के कारण लोगों द्वारा अनुभव की गई अलगाव की भावना है। व्याख्या करें।)
Answer:
When a person is disabled, the physical pain goes away with the passage of time. Even the inconvenience is reduced as the person because is used to his handicap. However, the real pain is caused by the attitude of the society towards the disabled person. Often people dislike a physically impaired person. They do not allow him to mix with them. They avoid him. Often they are afraid of him as in this play, people are afraid of Derry because of his burned face. As a result, the handicapped person feels a sense of alienation. He thinks that he is not a part of the normal society. A handicapped person expects others to treat him as a normal human being. He does not want to be treated as different. He does not like others to remind him of his physical deformity or handicap. He does not want that others should pity him.

(जब कोई व्यक्ति दिव्यांग होता है तो शारीरिक दर्द समय के बीतने के साथ समाप्त हो जाता है। यहाँ तक कि असुविधा भी कम हो जाती है क्योंकि व्यक्ति अपने दिव्यांगता का आदी हो जाता है। लेकिन वास्तविक दर्द समाज के दिव्यांग व्यक्ति के प्रति दृष्टिकोण से होता है। अकसर लोग शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति को पसन्द नहीं करते। वे उसे अपने साथ मिलने-जुलने की अनुमति नहीं देते। वे उससे बचते हैं। अकसर वे उससे डरते हैं जैसे कि इस नाटक में लोग डैरी से उसके जले हुए चेहरे के कारण डरते हैं। परिणामस्वरूप, दिव्यांग व्यक्ति को अकेलेपन की भावना महसूस होती है। वह सोचता है कि वह सामान्य समाज का भाग नहीं है। दिव्यांग व्यक्ति अन्य लोगों से यह उम्मीद करता है कि वे उसे एक सामान्य इन्सान की तरह समझें। वह अलग प्रकार के व्यवहार को पसन्द नहीं करता। वह नहीं चाहता कि लोग उसे उसकी शारीरिक दिव्यांगता या कुरूपता की याद दिलाएँ। वह नहीं चाहता कि अन्य लोग उस पर तरस खाएँ।)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

Question 4.
Will Derry get back to his old seclusion or will Mr Lamb’s brief association effect a change in the kind of life he will lead in the future?
(क्या डैरी फिर से पुराने ढंग से अलग-थलग रहेगा या श्री लैंब के साथ उसकी संक्षिप्त संगति के कारण उसके भविष्य के रहने के ढंग में परिवर्तन आ जाएगा ?)
Answer:
When Derry comes to Mr Lamb’s garden, he is afraid. He avoids people and wants to spend some time in a lonely place. He has face burned with acid and people are afraid of him. So he also hates them. But his meeting with Mr Lamb changes his outlook. Mr Lamb tells him not to avoid people or to hate them. He is deeply influenced by Mr Lamb. So, it is expected that his brief association with Lamb will bring a change in the kind of life that he will lead in the future.

(जब डैरी श्री लैंब के बाग में आता है तो वह भयभीत है। वह लोगों से बचता है और कुछ समय अकेले स्थान पर बिताना चाहता है। उसका चेहरा तेज़ाब से जला हुआ है और लोग उससे डरते हैं। इसलिए वह भी उनसे नफरत करता है। मगर श्री लैंब से उसकी मुलाकात उसके दृष्टिकोण को बदल देती है। श्री लैंब उसे बताते हैं कि वह लोगों से दूर न जाए और न ही उनसे नफरत करे। वह श्री लैंब से बहुत प्रभावित होता है। इसलिए यह आशा की जाती है कि श्री लैंब से उसकी संक्षिप्त मुलाकात उसके भविष्य के जीवन में परिवर्तन ला देगी।)

Read And Find Out

Question 1.
Who is Mr Lamb? How does Derry get into his garden? [H.B.S.E. March, 2020 (Set-B)] ( श्री लैंब कौन है? डैरी उसके बाग में किस प्रकार घुसता है ?)
Answer:
Mr Lamb is an old man. He is the owner of a garden. Derry is a young boy. One day he goes to a garden. He enters Mr Lamb’s garden by scaling a wall.
(श्री लैंब एक बूढ़ा आदमी है। वह एक बाग का मालिक है। डैरी एक युवा लड़का है। एक दिन वह बाग में जाता है। वह श्री लैंब के बाग में एक दीवार फांदकर प्रवेश करता है।)

Question 2.
Do you think all this will change Derry’s attitude towards Mr Lamb? (क्या आपके विचार में यह सब हैरी के श्री लैंब के प्रति दृष्टिकोण को बदल देगा ?)
Answer:
Yes, Mr Lamb’s kind behavior will change Derry’s attitude towards Mr Lamb. Derry’s face got burned with acid. It looks ugly. People dislike him and avoid him. So Derry also avoids people and likes to remain lonely. But Lamb talks to him a kind manner. He tells Derry that outer appearance is of not much importance. The real beauty is within man’s spirit. This pleases Derry. So he is drawn towards Mr Lamb.

(हाँ, श्री लैंब का दयालुता वाला व्यवहार, डैरी के उनके प्रति दृष्टिकोण को बदल देगा। डैरी का चेहरा तेज़ाब से जल गया था। यह भद्दा लगता है। लोग उससे नफरत करते हैं और उससे बचते हैं। इसलिए डैरी भी लोगों से बचता है और अकेला रहना चाहता है। परन्तु श्री लैंब उससे दयालुता से बात करते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि बाहरी रूप का अधिक महत्त्व नहीं होता । वास्तविक सुन्दरता मनुष्य की आत्मा में होती है। यह बात डैरी को प्रसन्न कर देती है। इसलिए वह श्री लैंब की तरफ आकर्षित होता है।)

HBSE Class 12 English On the Face of it Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions
Select the correct option for each of the following questions :
1. Who is the writer of the play ‘On the Face of it?
(A) Susan Hill
(B) Lusan Sill
(C) Nusan Lill
(D) Susan Nill
Answer:
(A) Susan Hill

2. Who is Derry?
(A) an old farmer
(B) a carpenter
(C) a teacher
(D) a young boy
Answer:
(D) a young boy

3. What is wrong with Derry’s face?
(A) it has a big nose
(B) it is very handsome
(C) one side of it is burnt
(D) it has no ears
Answer:
(C) one side of it is burnt

4. How was one side of Derry’s face burnt?
(A) he fell into fire
(B) by acid
(C) by a fire-cracker
(D) by a gunshot
Answer:
(B) by acid

5. One day Derry goes to a garden. To whom does the garden belong?
(A) Mr Lamb
(B) Mr Lamba
(C) Mr Samb
(D) Mr Samba
Answer:
(A) Mr Lamb

6. How does Derry enter the garden?
(A) through the gate
(B) through a hole
(C) from the roof
(D) he scales a wall
Answer:
(D) he scales a wall

7. How does Mr Lamb talk to Derry?
(A) in an angry tone
(B) in a kind tone
(C) in a weeping tone
(D) in a sad tone
Answer:
(B) in a kind tone

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

8. Why do people avoid Derry?
(A) his face is burnt and looks ugly
(B) they don’t like his name
(C) they love him
(D) they respect him
Answer:
(A) his face is burnt and looks ugly

9. Where does the real worth of man life, according to Mr Lamb?
(A) his looks
(B) his outer appearance
(C) in his money
(D) in himself
Answer:
(D) in himself

10. What does Mr Lamb ask Derry to do?
(A) to weed out the garden
(B) to plant trees
(C) to pick apples
(D) to pick brinjals
Answer:
(C) to pick apples

11. What is Mr Lamb’s deformity?
(A) he has an artificial leg
(B) an artificial arm
(C) his ears are missing
(D) he has only one eye
Answer:
(A) he has an artificial leg

12. What do children call Mr Lamb?
(A) handsome Lamb
(B) beautiful Lamb
(C) tall Lamb
(D) lamely Lamb
Answer:
(D) lamely Lamb

13. Which fairy tale does Mr Lamb remind Derry of?
(A) the beauty and the beast
(B) the picnic and the feast
(C) the dinner at least
(D) the beast and the beauty
Answer:
(A) the beautiful and the beast

Short Answer Type Questions
Question 1.
Who is Derry? Why does he go to Mr Lamb’s garden? [H.B.S.E. 2017 (Set-B), 2020 (Set-A)] (डरी कौन है ? वह श्री लैंब के बाग में क्यों जाता है ?)
Answer:
Derry is a young boy. One day he goes to a garden. This garden belongs to an old man named Mr Lamb. Derry thinks that there is nobody in the garden. He goes to that garden as he wants to spend time in a lonely place.

(डैरी एक युवा लड़का है। एक दिन वह एक बाग में जाता है। यह बाग एक बूढ़े व्यक्ति श्री लैंब का है। हैरी सोचता है कि बाग में कोई नहीं है। वह किसी एकांत स्थान पर समय व्यतीत करना चाहता है इसलिए वह बाग में जाता है।)

Question 2.
Why is Derry startled? Whom does he see in the garden? (डरी भौंचक्का क्यों हो जाता है ? वह बाग में किसे देखता है ?)
Answer:
Suddenly Derry sees Mr Lamb sitting in the garden. Derry is startled. He wants to go back, but Mr Lamb speaks to him in a kind tone. He tells Derry that he is welcome there. He tells him not to be afraid of him.

(अचानक डैरी श्री लैंब को बाग में बैठे हुए देखता है। डैरी डर जाता है। वह वापिस जाना चाहता है, मगर श्री लैंब उससे प्यार के लहजे में बात करते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि उसका वहाँ पर स्वागत है। वे उससे कहते हैं कि वह उनसे न डरे।)

Question 3.
Why do people avoid Derry? [H.B.S.E. 2017 (Set-A)] (लोग हैरी की उपेक्षा क्यों करते हैं ?)
Answer:
People are afraid of him. One side of his face is burnt. It got burnt by acid. His face looks ugly and so people avoid him and hate him. Some people show as if they do not mind his burned face. Yet Derry knows that they try to avoid him.

(लोग उससे डरते हैं। उसके चेहरे का एक भाग जला हुआ है। यह तेज़ाब से जल गया था। उसका चेहरा भद्दा लगता है और इसलिए लोग उससे बचते हैं और उससे नफरत करते हैं। कुछ लोग यह दिखावा करते हैं कि वे उसके जले हुए चेहरे को बुरा नहीं समझते। मगर डैरी जानता है कि वे उससे बचने की कोशिश करते हैं।)

Question 4.
Why does Mr. Lamb leave his gate always open ? (श्री लैंब हमेशा अपना दरवाजा खुला क्यों छोड़ता है?) [H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)]
Answer:
My Lamb was a kind hearted person. He lost one of his legs in war. He had love and affection for those who suffered from physical deformity. He welcomed everyone to his garden. He wanted anyone to come to his garden and talk to him. That’s why he keeps the gate of his garden always open.

(श्री लैंब एक दयालु व्यक्ति थे। उन्होंने युद्ध में अपना एक पैर खो दिया था। उनमे शरीरिक दिव्यांगता से पीड़ित लोगों के लिए प्रेम ओर स्नेह था। वह सभी को अपने बगीचे में स्वागत करते थे। वह चाहते थे कि कोई भी उनके बगीचे में आए और उनसे बाते करें। यही कारण है कि वह अपने बगीचे के दरवाजे को हमेशा खुला रखते थे।)।

Question 5.
What does Mr Lamb tell Derry about the real worth of a person? (श्री लैंब डैरी को व्यक्ति की वास्तविक कीमत के बारे में क्या बताता है ?)
Answer:
The real worth of a person is not in his looks or outer appearance. His real worth is in him. Mr Lamb says that there are weeds in his garden. Other people look down upon weeds. But he looks upon weeds as living, growing plants like any other plant. He means to say that he does not hate Derry. He looks upon Derry as any other boys.

(एक व्यक्ति के वास्तविक गुण उसकी शक्ल या बाहरी रूप में नहीं होते। उसकी वास्तविक कीमत उसके अन्दर होती है। श्री लैंब कहते हैं कि उनके बाग में खरपतवार हैं। अन्य लोग इस खरपतवार से नफरत करते हैं। मगर वे इन खरपतवारों को अन्य पौधों की तरह जीवित, उगते हुए पौधे मानते हैं। उनके कहने का अर्थ है कि वे डैरी से नफरत नहीं करते। वे हैरी को अन्य लड़कों की तरह ही समझते हैं।)

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Question 6.
What does Mr Lamb tell Derry about his own physical deformity? (श्री लैंब डैरी को स्वयं के शारीरिक दिव्यांगता के बारे में क्या बताते हैं ?)
Answer:
Mr Lamb tells Derry that he too has a physical deformity. He has an artificial leg. His real leg was blown off in the war. Children call him Lamely-Mr Lamb. But he does not mind it. He is not afraid of the children and children are not afraid of him. They come to him often and he gives them toffees.

(श्री लैंब डैरी को बताते हैं कि उनमें भी एक शारीरिक दिव्यांगता है। उनकी एक टाँग नकली है। उनकी असली टाँग युद्ध में कट गई थी। बच्चे उन्हें लंगड़ा-श्री लैंब कहते हैं। मगर वे इस बात का बुरा नहीं मानते। वे बच्चों से नहीं डरते और बच्चे उनसे नहीं डरते। वे अकसर उनके पास आते हैं और वे उन्हें टॉफियाँ देते हैं।)

Question 7.
What advice does Mr Lamb give Derry about the real beauty? (श्री लैंब डैरी को वास्तविक सुन्दरता के बारे में क्या सलाह देते हैं ?) OR How does Mr Lamb try to remove the baseless fears of Derry? (श्री लैंब हैरी के बेबुनियाद डर को दूर करने की कोशिश कैसे करते हैं?) [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A)]
Answer:
Mr Lamb advises Derry that he should also not mind what others say about his face. Mr Lamb tells Derry that beauty is not merely in the physical body. Real beauty lies within our spirits. Handsome is he who handsome does.

(श्री लैंब डैरी को सलाह देते हैं कि वह भी इस बात का बुरा न माने कि लोग उसके चेहरे के बारे में क्या कहते हैं। श्री लैंब डैरी को बताते हैं कि सुन्दरता केवल शरीर में नहीं होती। वास्तविक सुन्दरता हमारी आत्मा में होती है। सुन्दर वह व्यक्ति होता है जो सुन्दर काम करता है।)

Question 8.
What story does Mr Lamb remind Derry of? (श्री लैंब डैरी को किस कहानी की याद दिलाते हैं ?)
Answer:
Mr Lamb reminds Derry of the fairy tale about the beauty and the beast. Derry already knows the tale. A beautiful princess kisses a beast. The beast then transforms into a handsome prince. This is because of the power of love. The beautiful princess loved the monster because she could see the goodness in him.

(श्री लैंब डैरी को सुन्दर लड़की और जानवर की परी-कथा की याद दिलाते हैं। डैरी पहले ही उस कहानी को जानता है। एक सुन्दर राजकुमारी एक जानवर को चूमती है। वह जानवर तब एक सुन्दर राजकुमार में परिवर्तित हो जाता है। ऐसा प्यार की शक्ति के कारण हुआ। सुन्दर राजकुमारी उस जानवर से प्यार करती थी क्योंकि वह उसकी अन्दर की अच्छाई को देख सकती थी।)

Question 9.
How does Mr Lamb console Derry? How have other people consoled him? (श्री लैंब डैरी को किस प्रकार सांत्वना देते हैं ? अन्य लोगों ने उसे किस प्रकार सांत्वना दी है ?)
Answer:
Mr Lamb consoles Derry. He tells Derry that worse things could have happened to him. He could have been blind or born deaf. Derry says that other people have consoled him by telling him that many people bear their sufferings without any complaint.

(श्री लैंब डैरी को सांत्वना देते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि जो कुछ उसके साथ हुआ, उससे भी बुरा हो सकता था। वह अन्धा या बहरा पैदा हो सकता था। डैरी कहता है कि अन्य लोगों ने उसे यह कहकर सांत्वना दी है कि बहुत-से लोग अपनी तकलीफों को बिना शिकायत के सहन करते हैं।)

Question 10.
How has Mr Lamb learned so much? (श्री लैंब ने इतना कुछ किस प्रकार सीखा है ?)
Answer:
Derry thinks that Mr Lamb is peculiar. He wants to know how he has learned so much. Mr Lamb tells him that he has learnt all by watching, listening and thinking. He has a number of books. He listens to the humming music of the bees. He watches plants and trees. He thinks deeply over all these things.

(डैरी सोचता है कि श्री लैंब विचित्र है। वह जानना चाहता है कि उन्होंने इतना ज्ञान किस प्रकार प्राप्त किया है। श्री लैंब उसे बताते है कि उन्होंने वह सब कुछ देखने, सुनने और सोचने से सीखा है। उनके पास बहुत-सी किताबें हैं। वे मधुमक्खियों के भिनभिनाते संगीत को सुनते हैं। वे पौधों और वृक्षों को देखते हैं। वे इन सब चीजों के बारे में गहराई से सोचते हैं।)

Question 11.
What does Mr Lamb tell Derry about hatred? (श्री लैंब डैरी को नफरत के बारे में क्या बताते हैं ?)
Answer:
Mr Lamb advises Derry not to hate anybody. Hatred is worse than the acid that burnt his face, because hatred burns the inside of man. Mr Lamb tells him that keeping aloof will not help him.

(श्री लैंब डैरी को सलाह देते हैं कि वह किसी से नफरत न करे। नफरत उस तेज़ाब से भी बुरी है जिससे उसका चेहरा जल गया था क्योंकि नफरत व्यक्ति के अन्दर को जला देती है। श्री लैंब उसे बताते हैं कि अकेले रहने से बात नहीं बनेगी।)

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Question 12.
Why does Derry’s mother warn him not to go to see Mr Lamb? (डरी की माँ उसको मि० लैंब से मिलने न जाने की चेतावनी क्यों देती है?) OR What did Derry’s mother think of Mr. Lamb? [H.B.S.E. 2020 (Set-C)] (डरी की माँ श्री लैंब के बारे में क्या सोचती थी?)
Answer:
Derry tells his mother the experience of his meeting with Mr Lamb. Derry’s mother is worried. She has some doubts in her mind because they have not been known to those people for a long time. So she warns him not to go to see Mr Lamb.

(डैरी अपनी माँ को मि० लैंब के साथ अपनी मुलाकात का अनुभव बताता है। डैरी की माँ चिन्तित है। उसके मन में कुछ शंकाएँ हैं क्योंकि वे उन लोगों को ज्यादा समय से नहीं जानते थे। इसलिए वह उसे चेतावनी देती है कि वह मि० लैंब से मिलने न जाए।)

Question 13.
What realisation comes to Derry about his face at the end of the play? (नाटक के अंत में डैरी को अपने चेहरे के बारे में किस ज्ञान का अहसास होता है?)
Answer:
Derry considered himself unlucky because of his burnt face. He avoided meeting people as well as people hated his burnt face. But Mr Lamb does not agree with this point of view. He tells Derry that he is a healthy boy. He had limbs, eyes, tongue, brain and everything else. He can get on with the world like others. He can even get better than most of the people.

(डैरी अपने जले हुए चेहरे के कारण स्वयं को दुर्भाग्यशाली समझता था। वह लोगों से मिलने से बचता था और साथ-ही-साथ लोग भी उसके जले हुए चेहरे से घृणा करते थे। लेकिन श्री लैंब इस बात से सहमति नहीं रखता है। वह डैरी को कहता है कि वह एक स्वस्थ लड़का है। उसके सभी अंग, आँखें, जीभ, दिमाग सब कुछ सही है। वह अन्य लोगों की तरह संसार के साथ चल सकता है। वह तो अधिकतर लोगों से आगे भी निकल सकता है।)

Question 14.
How did Derry get his face burnt? (डरी का चेहरा कैसे जल गया था?)
Answer:
Derry is a young man. One side of his face is burnt. It got burnt by acid. His face looks ugly and so people avoid him and hate him. Some people show as if they do not mind his burned face. Yet Derry knows that they try to avoid him.)

(डैरी एक नवयुवक है। उसके चेहरे की एक साइड जली हुई है। वह तेजाब के कारण जल गई थी। उसका चेहरा भद्दा दिखाई देता है। इसलिए लोग उससे मिलने से कतराते हैं और घृणा करते हैं। कुछ लोग प्रदर्शित करते हैं कि उन्हें उसका जला हुआ चेहरा बुरा नहीं लगता। जबकि डैरी जानता है कि वे उससे बचने का प्रयास करते हैं।)

Question 15.
Why does Derry go back to Mr Lamb? (डेरी श्री लैंब के पास वापस क्यों जाता है?)
Answer:
Derry rushes home because he thinks his mother would be worried. He tells his mother about his meeting with Mr Lamb. His mother does not want that he should go back to him. But Derry tells her that Mr Lamb is a different man. He thinks that it is an opportunity that he should not miss. So he goes back to Mr Lamb.

(डैरी शीघ्र घर जाता है क्योंकि वह सोचता है कि उसकी माता चिंतित होगी। वह अपनी माता को श्री लैंब के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बताता है। उसकी माता यह नहीं चाहती कि वह वापिस उसके पास जाए। मगर डैरी उसे बताता है कि श्री लैंब एक अलग इन्सान है। वह सोचता है कि यह एक ऐसा अवसर है जो उसे गंवाना नहीं चाहिए। इसलिए वह श्री लैंब के पास वापस जाता है।)

Question 16.
What happens to Mr Lamb in the end? (अंत में श्री लैंब के साथ क्या होता है?)
Answer:
Derry hurries back to Mr Lamb’s garden. When he reaches the garden, he finds that Mr Lamb has fallen on the ground. He has fallen off a ladder. He was trying to reach apples. Unluckily he fell off. Derry finds that Lamb is already dead. This is a great shock to him. He weeps because he has lost a true friend.

(डैरी भागकर वापिस श्री लैंब के बाग में आता है। जब वह बाग में पहुँचता है तो वह देखता है कि श्री लैंब जमीन पर गिर गए हैं। वे एक सीढ़ी से गिर गए हैं। वे सेबों तक पहुँचने का प्रयत्न कर रहे थे। दुर्भाग्यवश वे गिर गए। डैरी देखता है कि श्री लैंब मर चुके हैं। यह उसके लिए बहुत बड़ा सदमा है। वह रोता है क्योंकि उसने एक सच्चा मित्र खो दिया है।)

Long Answer Type Questions
Question 1.
Derry goes to Mr Lamb’s garden. How does Mr Lamb treat him? (डेरी श्री लैंब के बाग में जाता है। श्री लैंब उससे कैसा व्यवहार करते हैं ?) OR What change took place in Derry when he met Mr Lamb? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-B)] (डैरी में क्या परिवर्तन होता है जब वह श्री लैंब से मिलता है?)
Answer:
Derry is a young boy. One day he goes to a garden. This garden belongs to an old man named Mr Lamb. Derry thinks that there is nobody in the garden. He wants to spend his time in a lonely place. Though the gate is open, Derry does not know it. He scales a wall to enter the garden. Suddenly Derry sees Mr Lamb sitting in the garden. Derry is startled. He wants to go back, but Mr Lamb speaks to him in a kind tone. He tells Derry that he is welcome there. He tells him not to be afraid of him. Derry says that he is not afraid of anybody. On the other hand, people are afraid of him. One side of his face is burnt. It got burnt by acid. His face looks ugly and so people avoid him and hate him. Some people show as if they do not mind his burned face.

Yet Derry knows that they try to avoid him. Mr Lamb tells him that he does not hate him. He says that soon he will get ripe crab apples to make them into jelly. He asks Derry if he would help him to pick apples. Derry thinks that like most other people, Mr Lamb is also trying to change the topic. But Mr Lamb assures Derry that he really does not dislike him. The real worth of a person is not in his looks or outer appearance. His real worth is in him. Mr Lamb says that there are weeds in his garden. Other people look down upon weeds. But he looks upon weeds as living, growing plants like any other plant. He means to say that he does not hate Derry. He looks upon Derry as any other boys.

(डैरी एक युवा लड़का है। एक दिन वह बाग में जाता है। यह बाग एक बूढ़े व्यक्ति श्री लैंब का है। डैरी सोचता है कि बाग में कोई नहीं है। वह किसी एकान्त स्थान पर समय व्यतीत करना चाहता है। यद्यपि गेट खुला है मगर डैरी को इस बात का पता नहीं है। वह दीवार पार करके बाग में जाता है। अचानक डैरी श्री लैंब को बाग में बैठे हुए देखता है। डैरी डर जाता है। वह वापिस जाना चाहता है। मगर श्री लैंब उससे प्यार के लहजे में बात करते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि उसका वहाँ पर स्वागत है। वे उससे कहते हैं कि वह उससे न डरे। डैरी कहता है कि वह किसी से नहीं डरता। इसके विपरीत लोग उससे डरते हैं। उसके चेहरे का एक भाग जला हुआ है। यह तेज़ाब से जल गया था। उसका चेहरा भद्दा लगता है और इसलिए लोग उससे बचते हैं और उससे नफरत करते हैं। कुछ लोग यह दिखावा करते हैं कि वे उसके जले हुए चेहरे को बुरा नहीं समझते। मगर डैरी जानता है कि वे उससे बचने की कोशिश करते हैं। श्री लैंब उसे बताते हैं कि वे उससे नफरत नहीं करते। वे कहते हैं कि शीघ्र ही उसकी पके हुए सेबों की फसल तैयार हो जाएगी जिनसे वह जैली बनाएगा।

वह डैरी से पूछता है कि क्या वह उनकी सेब चुनने में सहायता करेगा। डैरी सोचता है कि अन्य लोगों की तरह श्री लैंब भी विषय को बदलना चाहते हैं। मगर श्री लैंब डैरी को विश्वास दिलाते हैं कि वे सचमुच उससे नफरत नहीं करते। एक व्यक्ति के वास्तविक गुण उसकी शक्ल या बाहरी रूप में नहीं होते। उसकी वास्तविक कीमत उसके अन्दर होती है। श्री लैंब कहते हैं कि उनके बाग में खरपतवार हैं। अन्य लोग इस खरपतवार से नफरत करते हैं। मगर वे इन खरपतवार को अन्य पौधों की तरह जीवित, उगते हुए पौधे मानते हैं। उनके कहने का अर्थ है कि वे डैरी से नफरत नहीं करते। वे डैरी को अन्य लड़कों की तरह ही समझते हैं।)

Question 2.
What does Mr Lamb tell Derry about his own physical deformity? [H.B.S.E. 2017 (Set-C)] (श्री लैंब डैरी को अपने स्वयं के शारीरिक दिव्यांगता के बारे में क्या बताते हैं ?)
Answer:
Mr Lamb tells Derry that he too has a physical deformity. He has an artificial leg. His real leg was blown off in the war. Children call him Lamely-Mr Lamb. But he does not mind it. He is not afraid of the children and children are not afraid of him. They come to him often and he gives them toffees. Mr Lamb advises Derry that he should also not mind what others say about his face. Mr Lamb tells Derry that beauty is not merely in the physical body. Real beauty lies within our spirits.

Handsome is he who handsome does. He reminds Derry of the fairy tale about the beauty and the beast. Derry already knows the tale. A beautiful princess kisses a beast. The beast then transforms into a handsome prince. This is because of the power of love. Derry knows the moral of the story also: “It is not what you look like. It is what you are inside.” The beautiful princess loved the monster because she could see the goodness in him.

(श्री लैंब डैरी को बताते हैं कि उनमें भी एक शारीरिक दिव्यांगता है। उनकी एक टाँग नकली है। उनकी असली टाँग युद्ध में कट गई थी। बच्चे उन्हें लंगड़ा श्री लैंब कहते हैं। मगर वे इस बात का बुरा नहीं मानते। वे बच्चों से नहीं डरते और बच्चे उनसे नहीं डरते। वे अकसर उनके पास आते हैं और वे उन्हें टॉफियाँ देते हैं। श्री लैंब डैरी को सलाह देते हैं कि वह भी इस बात का बुरा न माने कि लोग उसके चेहरे के बारे में क्या कहते हैं। श्री लैंब डैरी को बताते हैं कि सुन्दरता केवल शरीर में नहीं होती। वास्तविक सुन्दरता हमारी आत्मा में होती है। सुन्दर वह होता है जो सुन्दर काम करता है। वे डैरी को सुन्दर लड़की और जानवर की परी-कथा की याद दिलाते हैं। डैरी पहले से ही उस कहानी को जानता है।

एक सुन्दर राजकुमारी एक जानवर को चूमती है। वह जानवर तब एक सुन्दर राजकुमार में परिवर्तित हो जाता है। ऐसा प्यार की शक्ति के कारण हुआ। डैरी को भी इस कहानी की शिक्षा के बारे में पता है : “सत्य यह नहीं, जैसे तुम दिखाई देते हो। सत्य यह है कि तुम अन्दर से कैसे हो।” सुन्दर राजकुमारी उस जानवर से प्यार करती थी क्योंकि वह उसकी अन्दर की अच्छाई को देख सकती थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

Question 3.
How does Mr Lamb console Derry? (श्री लैंब डैरी को किस प्रकार सांत्वना देते हैं ?)
Answer:
Mr Lamb consoles Derry. He tells Derry that worse things could have happened to him. He could have been blind or born deaf. Derry says that other people have consoled him by telling him that many people bear their sufferings without any complaint. Derry has heard a woman say that the disabled people like Derry should live with the other handicapped people only.

But Mr Lamb does not agree to this. He says that physical deformity does not make people similar. Everyone is unique because people have different ideas and thoughts. Derry thinks that Mr Lamb is peculiar. He wants to know how he has learned so much. Mr Lamb tells him that he has learnt all by watching, listening and thinking. He has a number of books. He listens to the humming music of the bees. He watches plants and trees. He thinks deeply over all these things.

(श्री लैंब डैरी को सांत्वना देते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि जो कुछ उसके साथ हुआ, उससे भी बुरा हो सकता था। वह अन्धा या बहरा पैदा हो सकता था। डैरी कहता है कि अन्य लोगों ने उसे यह कहकर सांत्वना दी है कि बहुत-से लोग अपनी तकलीफों को बिना शिकायत के सहन करते हैं। डैरी ने एक औरत को यह कहते भी सुना कि एक-जैसे दिव्यांग लड़कों को केवल अन्य दिव्यांग लोगों के साथ ही रहना चाहिए। मगर श्री लैंब इस बात से सहमत नहीं होते।

वे कहते हैं कि शारीरिक दिव्यांग लोगों को एक-जैसा नहीं बनाती। हर व्यक्ति अनूठा है क्योंकि लोगों के अलग-अलग विचार होते हैं। डैरी सोचता है कि श्री लैंब विचित्र हैं। वह जानना चाहता है कि उन्होंने इतना ज्ञान किस प्रकार प्राप्त किया है। श्री लैंब उसे बताते हैं कि उन्होंने वह सब कुछ देखने, सुनने और सोचने से सीखा है। उनके पास बहुत-सी किताबें हैं। वे मधुमक्खिओं के भिनभिनाते संगीत को सुनते हैं। वे पौधों और वृक्षों को देखते हैं। वे इन सब चीज़ों के बारे में गहराई से सोचते हैं।)

Question 4.
Derry is a victim of his own complex. Do you find some change in him in the end? (डरी अपने ही अहम् का शिकार है। क्या कहानी के अंत में आप उसमें कोई परिवर्तन देखते हैं?)
Answer:
Derry is a victim of his own complex. He thinks that people are not friendly. So he hates most people. He avoids them and likes to remain aloof. But Mr Lamb tells him that if men are not friends, it does not mean that they are enemies. He advises him not to hate anybody. Hatred is worse than the acid that burnt his face, because hatred burns the inside of man.

Mr Lamb tells him that keeping aloof will not help him. Mr Lamb tells him the story of a man who was always afraid of meeting an accident or catching an infectious disease. He shut himself up in a room. He thought that by always remaining in a room he could avoid meeting an accident. But it was not so. He had an accident even in the room. A picture hanging on the wall fell on his head and he died.

Derry tells Mr Lamb that his parents are worried about him. They fear that because of his burnt face, Derry would not be able to get on with the world. When they are dead, nobody would take care of Derry. But Mr Lamb does not agree with this point of view. He tells Derry that he is a healthy boy. He had limbs, eyes, tongue, brain and everything else. He can get on with the world like others. He can even get better than most of the people. This bring a big change in him in the end.

(डैरी अपने ही अहम् का शिकार है। वह सोचता है कि लोग दोस्ताना नहीं हैं। इसलिए वह अधिकतर लोगों से नफरत करता है। वह उनसे बचता है और अलग रहना चाहता है। मगर श्री लैंब उसे बताते हैं कि अगर लोग मित्र नहीं हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे शत्रु हैं। वे उसे सलाह देते हैं कि वह किसी से नफरत न करे। नफरत उस तेज़ाब से बुरी है जिससे उसका चेहरा जल गया था क्योंकि नफरत व्यक्ति के अन्दर को जला देती है। श्री लैंब उसे बताते हैं कि अकेले रहने से बात नहीं बनेगी। श्री लैंब उसे उस आदमी की कहानी बताते हैं जिसे सदा इस बारे का डर लगा रहता था कि उसकी दुर्घटना हो जाएगी या उसे कोई गम्भीर बीमारी लग जाएगी। उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। उसने सोचा कि सदा एक कमरे में रहने के कारण वह दुर्घटना होने से बच जाएगा। मगर ऐसा नहीं हुआ। उसके साथ कमरे में भी दुर्घटना हो गई। दीवार पर टंगी एक तस्वीर उसके सिर पर गिर गई और वह मर गया।

हैरी श्री लैंब को बताता है कि उसके माता-पिता उसके लिए चिंतित हैं। उन्हें डर है कि अपने जले हुए चेहरे के कारण डैरी संसार में अपना स्थान नहीं बना पाएगा। जब वे मर जाएँगे तो हैरी की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा। मगर श्री लैंब इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। वे डैरी को बताते हैं कि वह एक स्वस्थ लड़का है। उसके सभी अंग, आँखें, जीभ, दिमाग और सब कुछ है। वह अन्य लोगों की तरह संसार के साथ चल सकता है। वह तो अधिकतर लोगों से आगे भी निकल सकता है। इसके अंत में उसके जीवन में बहुत बड़ा अंतर आता है।)

Question 5.
Describe Mr Lamb’s death. (श्री लैंब की मौत का वर्णन करें।)
Answer:
Derry is impressed by the encouragement given to him by Mr Lamb. He tells him that he is going home to tell his parents that he will spend sometime with Mr Lamb. He tells Mr Lamb that it is risky for him to climb the ladder to get crab apples. He can fall and get himself killed. Mr Lamb tells him that he has learned the art of climbing the ladder in spite of being lame. Derry promises him that he will come back soon. Mr Lamb does not hope that he will come back.

Derry rushes home because he things his mother would be worried. He tells his mother about his meeting with Lamb. His mother does not want that he should go back to him. But Derry tells her that Mr Lamb is a different man. He thinks that it is an opportunity that he should not miss. So he hurries back to Mr Lamb’s garden. When he reaches the garden, he finds that Mr Lamb has fallen on the ground. He has fallen off a ladder. He was trying to reach apples. Unluckily he fell off. Derry finds that Mr Lamb is already dead. This is a great shock to him. He weeps because he has lost a true friend.

(डैरी श्री लैंब द्वारा दिए गए प्रोत्साहन से प्रभावित हो जाता है। वह उन्हें बताता है कि वह अपने माता-पिता को यह बताने के लिए अपने घर जा रहा है कि वह श्री लैंब के साथ कुछ समय बिताएगा। वह श्री लैंब को बताता है कि सेब तोड़ने के लिए सीढ़ी पर चढ़ना खतरनाक है। वे गिर सकते हैं और उनकी मृत्यु हो सकती है। श्री लैंब उसे बताते हैं कि लंगड़ा होने के बावजूद उन्होंने सीढ़ी पर चढ़ने की कला सीख ली है। डैरी उन्हें वायदा करता है कि वह शीघ्र ही वापिस आएगा। श्री लैंब को यह आशा नहीं है कि वह वापिस आएगा। डैरी शीघ्र घर जाता है क्योंकि वह सोचता है कि उसकी माता चिंतित होगी।

वह अपनी माता को श्री लैंब के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बताता है। उसकी माता यह नहीं चाहती कि वह वापिस उसके पास जाए। मगर डैरी उसे बताता है कि श्री लैंब एक अलग इन्सान हैं। वह सोचता है कि यह एक ऐसा अवसर है जो उसे गँवाना नहीं चाहिए। इसलिए वह भागकर वापिस श्री लैंब के बाग में आता है। जब वह बाग में पहुँचता है तो वह देखता है कि श्री लैंब जमीन पर गिर गए हैं। वे सीढ़ी से गिरे हैं। वे सेबों तक पहुँचने का प्रयत्न कर रहे थे। दुर्भाग्यवश वे गिर गए। डैरी देखता है कि श्री लैंब मर चुके हैं। यह उसके लिए बहुत बड़ा सदमा है। वह रोता है क्योंकि उसने एक सच्चा मित्र खो दिया है।)

Question 6.
Write a brief summary of the play. (नाटक का संक्षिप्त सार लिखें।)
Answer:
This is a play about a young boy Derry and an old man, Mr Lamb. One side of Derry’s face got burned by acid when he was a child. He appears ugly. When people look at him, they have mixed reactions. Some hate him and some think that it is terrible. But most people avoid him. This attitude of people towards him has made Derry bitter. He thinks that people are afraid of him as if he were a ghost.

In turn, he also hates people and avoids them. He wants to spend time in lonely places where people would not stare at him. One day, he reaches the garden of Mr Lamb. He goes there thinking that there would be no one there. But he is surprised to see Mr Lamb. Derry wants to run away. But Mr Lamb is a friendly person. He welcomes Derry. He speaks words of love and hope. Derry is impressed. He goes to tell his mother about Mr Lamb. But when he comes back, he finds that Mr Lamb has fallen off a ladder while trying to reach apples. Derry finds that Mr Lamb is dead. His death makes Derry very sad.

(यह नाटक एक युवा लड़के डैरी और एक बूढ़े आदमी श्री लैंब के बारे में है। जब डैरी एक बच्चा था तो उसके चेहरे का एक भाग तेज़ाब से जल गया था। वह देखने में भद्दा लगता है। जब लोग उसे देखते हैं तो उनकी मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ होती हैं। कुछ लोग उससे नफरत करते हैं और कुछ सोचते हैं कि यह बात भयानक है। लेकिन अधिकतर लोग उससे बचते हैं। उसके प्रति लोगों के दृष्टिकोण ने डैरी को कटु बना दिया है। वह सोचता है कि लोग उससे इस प्रकार डरते हैं जैसे कि वह कोई भूत है।

इसके बदले में वह भी लोगों से नफरत करता है और उनसे बचता है। वह अपना समय एकान्त स्थानों पर बिताना चाहता है जहाँ लोग उसे न घुरें। एक दिन वह श्री लैंब के बाग में पहुँच जाता है। वह वहाँ पर यह सोचकर जाता है कि वहाँ पर कोई नहीं होगा। मगर वह श्री लैंब को देखकर हैरान हो जाता है। डैरी वहाँ से भागना चाहता है। मगर श्री लैंब एक दोस्ताना व्यक्ति हैं। वे डैरी का स्वागत करते हैं। वे प्यार और आशा के शब्द बोलते हैं। हैरी प्रभावित हो जाता है। वह अपनी माता को श्री लैंब के बारे में बताने जाता है। मगर जब लौटकर आता है तो देखता है कि सेबों तक पहुँचने के प्रयास में श्री लैंब सीढ़ी से गिर गए हैं। डैरी देखता है कि श्री लैंब मर गए हैं। उनकी मौत डैरी को बहुत उदास बना देती है।)

Question 7.
Mr. Lamb has a different perspective of life ? How does he explain that there are other important things to stare at ? (जीवन के बारे में श्री लैंब का एक अलग ही दृष्टिकोण है? वह कैसे इस बात को समझाता है कि जीवन में ध्यान देने के लिए और भी बहुत-सी महत्त्वपूर्ण चीजें हैं?)
Answer:
Mr. Lamb is an old man. He is a man of wisdom. He has many practical experiences of life. He always sees the life in a positive view. He has a different perspective of life. One day a young man named Derry enters his garden. Derry has an ugly face and people avoid meeting him. Derry thinks that people hate him. But People are afraid of him. One side of his face is burnt. It got burnt by acid. His face looks ugly and so people avoid him and hate him. Some people show as if they do not mind his burned face. Yet Derry knows that they try to avoid him. Mr Lamb tells Derry that he does not hate him.

He says that soon he will get ripe crab apples to make them into jelly. He asks Derry if he would help him to pick apples. Derry thinks that like most other people, Mr Lamb is also trying to change the topic. But Mr Lamb assures Derry that he really does not dislike him. The real worth of a person is not in his looks or outer appearance. His real worth is in him. Mr Lamb says that there are weeds in his garden. Other people look down upon weeds. But he looks upon weeds as living, growing plants like any other plant. He means to say that he does not hate Derry. He looks upon Derry as any other boys.

(मि० लैंब एक बूढ़ा आदमी है। वह एक बुद्धिमान् आदमी है। वह हमेशा जीवन के सकारात्मक रूप को देखता है। जीवन के बारे में उसका भिन्न दृष्टिकोण है। एक दिन डैरी नाम का एक नवयुवक उसके बाग में प्रवेश करता है। उसका चेहरा भद्दा है और लोग उससे मिलने से कतराते हैं। डैरी सोचता है कि लोग उससे घृणा करते हैं लेकिन लोग उससे डरते हैं। उसके चेहरे का एक भाग जला हुआ है। यह तेज़ाब से जल गया था। उसका चेहरा भद्दा लगता है और इसलिए लोग उससे बचते हैं और उससे नफरत करते हैं। कुछ लोग यह दिखावा करते हैं कि वे उसके जले हुए चेहरे को बुरा नहीं समझते।

मगर डैरी जानता है कि वे उससे बचने की कोशिश करते हैं। श्री लैंब डैरी को बताते हैं कि वे उससे नफरत नहीं करते। वे कहते हैं कि शीघ्र ही उसकी पके हुए सेबों की फसल तैयार हो जाएगी जिनसे वह जैली बनाएगा। वे डैरी से पूछते हैं कि क्या वह उनकी सेब चुनने में सहायता करेगा। डैरी सोचता है कि अन्य लोगों की तरह श्री लैंब भी विषय को बदलना चाहते हैं। मगर श्री लैंब डैरी को विश्वास दिलाते हैं कि वे सचमुच उससे नफरत नहीं करते। एक व्यक्ति के वास्तविक गुण उसकी शक्ल या बाहरी रूप में नहीं होते। उसकी वास्तविक कीमत उसके अन्दर होती है। श्री लैंब कहते हैं कि उनके बाग में खरपतवार हैं। अन्य लोग इस खरपतवार से नफरत करते हैं। मगर वे इन खरपतवारों को अन्य पौधों की तरह जीवित, उगते हुए पौधे मानते हैं। उनके कहने का अर्थ है कि वे डैरी से नफरत नहीं करते। वे डैरी को अन्य लड़कों की तरह ही समझते हैं।)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

On the Face of it Summary in English and Hindi

On the Face of it Introduction to the Chapter
This is a play about a young boy Derry and an old man, Mr Lamb. One side of Derry’s face got burned by acid when he was a child. He appears ugly. When people look at him, they have mixed reactions. Some hate him and some think that it is terrible. But most people avoid him. This attitude of people towards him has made Derry bitter. He thinks that people are afraid of him as if he is a ghost. In turn, he also hates people and avoids them. He wants to spend his time in lonely places where people would not stare at him.

One day, he reaches the garden of Mr Lamb. He goes there thinking that there would be no one there. But he is surprised to see Mr Lamb. Derry wants to run away. But Mr Lamb is a friendly person. He welcomes Derry. He speaks words of love and hope. Derry is impressed. He goes to tell his mother about Mr Lamb. But when he comes back, he finds that Mr Lamb has fallen off a ladder while trying to reach apples. Derry finds that Mr Lamb is dead. His death makes Derry very sad.

(यह नाटक एक युवा लड़के डैरी और एक बूढ़े आदमी, श्री लैंब के बारे में है। जब डैरी एक बच्चा था तो उसका चेहरा एक तरफ से तेजाब के कारण जल गया था। वह देखने में कुरूप लगता है। जब लोग उसे देखते हैं तो उनकी मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ होती हैं। कुछ लोग उससे नफरत करते हैं और कुछ सोचते हैं कि यह बात भयानक है। लेकिन अधिकतर लोग उससे बचते हैं। उसके प्रति लोगों के इस दृष्टिकोण ने डैरी को कटु बना दिया है। वह सोचता है कि लोग उससे इस प्रकार डरते हैं जैसे कि वह कोई भूत है। इसके बदले में वह भी लोगों से नफरत करता है और उनसे बचता है।

वह अपना समय एकांत स्थानों पर बिताना चाहता है, जहाँ लोग उसे न घुरें। एक दिन वह श्री लैंब के बाग में पहुँच जाता है। वह वहाँ पर यह सोचकर जाता है कि वहाँ पर कोई नहीं होगा। मगर वह श्री लैंब को देखकर हैरान हो जाता है। डैरी वहाँ से भागना चाहता है। मगर श्री लैंब एक दोस्ताना व्यक्ति हैं। वह डैरी का स्वागत करता है। वह प्यार और आशा के शब्द बोलता है। डैरी प्रभावित हो जाता है। वह अपनी माता को श्री लैंब के बारे में बताने जाता है। मगर जब वह लौटकर आता है तो देखता है कि सेबों तक पहुँचने के प्रयास में श्री लैंब एक सीढ़ी से गिर गए हैं। डैरी देखता है कि श्री लैंब मर गए हैं। उनकी मौत डैरी को बहुत उदास बना देती है।)

On the Face of it Summary
Derry is a young boy. One day he goes to a garden. This garden belongs to an old man named Mr Lamb. Derry thinks that there is nobody in the garden. He wants to spend time in a lonely place. Though the gate is open, but Derry does not know it. He scales a wall to enter the garden. Suddenly Derry sees Mr Lamb sitting in the garden. Derry is startled. He wants to go back, but Mr Lamb speaks to him in a kind tone. He tells Derry that he is welcome there. He tells him not to be afraid of him.

Derry says that he is not afraid of anybody. On the other hand, people are afraid of him. One side of his face is burnt. It got burnt by acid. His face looks ugly and so people avoid him and hate him. Some people show as if they do not mind his burned face. Yet Derry knows that they try to avoid him.

Mr Lamb tells him that he does not hate him. He says that soon he will get ripe crab apples to make them into jelly. He asks Derry if he would help him to pick apples. Derry thinks that like most other people, Mr Lamb is also trying to change the topic. But Mr Lamb assures Derry that he really does not dislike him. The real worth of a person is not in his looks or outer appearance. His real worth in him. Mr Lamb says that there are weeds in his garden. Other people look down upon weeds. But he looks upon weeds as living, growing plants like any other plant. He means to say that he does not hate Derry. He looks upon Derry as any other boys.

Mr Lamb tells Derry that he too has a physical deformity. He has an artificial leg. His real leg was blown off in the war. Children call him Lamely-Mr Lamb. But he does not mind it. He is not afraid of the children and children are not afraid of him. They come to him often and he gives them toffees. Mr Lamb advises Derry that he should also not mind what others say about his face. Mr Lamb tells Derry that beauty is not merely in the physical body. Real beauty lies within our spirits.

Handsome is he who handsome does. He reminds Derry of the fairy tale about the beauty and the beast. Derry already knows the tale. A beautiful princess kisses a beast. The beast then transforms into a handsome prince. This is because of the power of love. Derry knows the moral of the story also: “It is not what you look like. It is what you are inside.” The beautiful princess loved the monster because she could see the goodness in him.

Mr Lamb consoles Derry. He tells Derry that worse things could have happened to him. He could have been blind or born deaf. Derry says that other people have consoled him by telling him that many people bear their sufferings without any complaint. Derry has heard a woman say that the handicapped people like Derry should live with the other handicapped people only. But Mr Lamb does not agree to this. He says that physical deformity does not make people similar.

Everyone is unique because people have different ideas and thoughts. Derry thinks that Mr Lamb is peculiar. He wants to know how he has learned so much. Mr Lamb tells him that he has learnt all by watching, listening and thinking. He has a number of books. He listens to the humming music of the bees. He watches plants and trees. He thinks deeply over all these things.

Derry thinks that people are not friendly. So he hates most people. He avoids them and likes to remain aloof. But Mr Lamb tells him that if people are not friends, it does not mean that they are enemies. He advises him not to hate anybody. Hatred is worse than the acid that burnt his face, because hatred burns the inside of man. Mr Lamb tells him that keeping aloof will not help him.

Mr Lamb tells him the story of a man who was always afraid of meeting an accident or catching an infectious disease. He shut himself up in a room. He thought that by always remaining in a room he could avoid meeting an accident. But it was not so. He had an accident even in the room. A picture hanging on the wall fell on his head and he died.

Derry tells Mr Lamb that his parents are worried about him. They fear that because of his burnt face, Derry would not be able to get on with the world. When they are dead, nobody would take care of Derry. But Mr Lamb does not agree with this point of view. He tells Derry that he is a healthy boy. He had limbs, eyes, tongue, brain and everything else. He can get on with the world like others. He can even get better than most of the people.

Derry is impressed by the encouragement given to him by Mr Lamb. He tells him that he is going home to tell his parents that he will spend sometime with Mr Lamb. He tells Mr Lamb that it is risky for him to climb the lad mself killed. Mr Lamb tells him that he has learned the art of climbing the ladder in spite of being lame. Derry promises him that he will come back soon. Mr Lamb does not hope that he will come back. Derry rushes home because he thinks his mother would be worried.

He tells his mother about his meeting with Mr Lamb. His mother does not want that he should go back to him. But Derry tells her that Mr Lamb is a different man. He thinks that it is an opportunity that he should not miss. So he hurries back to Mr Lamb’s garden. When he reaches the garden, he finds that Mr Lamb has fallen on the ground. He has fallen off a ladder. He was trying to reach apples. Unluckily he fell off. Derry finds that Mr Lamb is already dead. This is a great shock to him. He weeps because he has lost a true friend.

(डैरी एक युवा लड़का है। एक दिन वह एक बाग में जाता है। यह बाग एक बूढ़े व्यक्ति श्री लैंब का है। डैरी सोचता है कि बाग में कोई नहीं है। वह किसी एकांत स्थान पर समय व्यतीत करना चाहता है। यद्यपि गेट खुला है, मगर डैरी को इस बात का पता नहीं है। वह दीवार फांदकर बाग में जाता है। अचानक डैरी श्री लैंब को बाग में बैठे हुए देखता है। डैरी डर जाता है। वह वापिस जाना चाहता है, मगर श्री लैंब उससे प्यार के लहजे में बात करते हैं। वे डैरी को बताते हैं कि उसका वहाँ पर स्वागत है। वे उससे कहते हैं कि वह उनसे न डरे। उन्होंने सीढ़ी पर चढ़ने की कला सीख ली है। डैरी उन्हें वायदा करता है कि वह शीघ्र ही वापिस आएगा। श्री लैंब को यह आशा नहीं है कि वह वापिस आएगा। डैरी शीघ्र घर जाता है, क्योंकि वह सोचता है कि उसकी माता चिन्तित होगी।

वह अपनी माता को श्री लैंब के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बताता है। उसकी माता यह नहीं चाहती कि वह वापिस उसके पास जाए। मगर डैरी उसे बताता है कि श्री लैंब एक अलग इन्सान हैं। वह सोचता है कि यह एक ऐसा अवसर है जो उसे गंवाना नहीं चाहिए। इसलिए वह भागकर वापिस श्री लैंब के बाग में आता है। जब वह बाग में पहुँचता है तो वह देखता है कि श्री लैंब जमीन पर गिर गए हैं। वे सीढ़ी से नीचे गिर गए हैं। वे सेबों तक पहुँचने का प्रयत्न कर रहे थे। दुर्भाग्यवश वे गिर गए। डैरी देखता है कि श्री लैंब मर चुके हैं। यह उसके लिए बहुत बड़ा सदमा है। वह रोता है, क्योंकि उसने एक सच्चा मित्र खो दिया है।)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

On the Face of it Meanings

[Page 56-57] :
Strikes (starts) = आरम्भ करता है;
withdrawn (lonely) = अकेला/अंतर्मुखी;
occasional (sporadic) = कभी-कभी होने वाला;
rustling (soft sound) = सरसराहट की आवाज़;
tentatively (cautiously) = सावधानी से, अलग तरीके से;
startled (surprised) = हैरान;
mind (take care)= ध्यान देना;
windfalls (unforseen gain) = भाग्यवश लाभ;
afraid (fearing)= डरना;
panic (fear)= डर;
on account (because of) के कारण;
steal (pilfer)= चुराना;
scrump (steal) = चुराना;
pause (stop) = रुकना;
pretend (show) = ढोंग करना;
underneath (under) = नीचे।

[Page 58-59] :
Pick (pluck) = तोड़ना;
give me a hand (help me)= मेरी सहायता करो;
rubbish (worthless things) = बेकार की चीजें;
blown off (torm away in an explosion) = विस्फोट में अलग होना;
lamey (lame) = लंगड़ा;
beast (wild animal) = जंगली जानवर।

[Page 60-62] :
Worse off (in a worse condition) = बुरी हालत में;
monstrous (huge)= विशाल;
daft (mad) = पागल;
dribble (fall in drops/slaver)= लार टपकना;
cruel (unkind) = दयाहीन;
peculiar (strange)= अजीब;
hive (beehive) = मधुमक्खियों का छत्ता;
buzz (sound made by bees) = मधुमक्खियों की भिनभिनाहट;
trespassing (illegal entry) = गैर-कानूनी प्रवेश;
lost (gone forever) = सदा के लिए गया;
altogether (completely) = पूरी तरह।

[Page 68] :
Bound to (sure to happen) = आवश्यक होने वाला;
shifting (moving) बदलना हिलना;
thomping (beating) थपथपाना;
steady (firm) = मजबूत;
swishes (loud hissing sound) = सर्र-सर्र की आवाज़;
stops dead (stops suddenly) = अचानक रुक जाना।

On the Face of it Translation in Hindi

This is a play featuring an old man and a small boy meeting in the former’s garden. The old man strikes up a friendship with the boy who is very withdrawn and defiant. What is the bond that unites the two?
(यह नाटक एक बूढ़े व्यक्ति और एक लड़के के बारे में है जो पहले वाले व्यक्ति अर्थात् बूढ़े व्यक्ति के बगीचे में मिलते हैं। बूढ़ा व्यक्ति उस अंतर्मुखी और तिरस्कारपूर्ण लड़के से दोस्ती कर लेता है। वह कौन-सा बंधन है जो इन दोनों को जोड़ता है ?)

Scene One
Mr Lamb’s garden [There is the occasional sound of birdsong and of tree leaves rustling. Derry’s footsteps are heard as he walks slowly and tentatively through the long grass. He pauses, then walks on again. He comes round a screen of bushes so that when Mr Lamb speaks to him he is close at hand and Derry is startled]

दृश्य एक
(श्री लैंब का बगीचा [कभी-कभी पक्षियों की आवाज़ और वृक्ष के पत्तों की सरसराहट सुनाई देती है। डैरी के कदमों की आहट सुनाई देती है जब वह धीरे-धीरे और सावधानी से लम्बी घास में चलता है। वह रुकता है, फिर आगे बढ़ जाता है। वह घूमता हुआ झाड़ियों की एक बाड़ के सामने आ जाता है, अतः जब श्री लैंब उसे सम्बोधित करते हैं तो वह पास ही होता है और डैरी चौंक जाता है।)
MR LAMB : Mind the apples!
DERRY : What ? Who’s that ? Who’s there ?
MR LAMB : Lamb’s my name. Mind the apples. Crab apples those are. Windfalls in the long grass. You could trip.
DERRY : I……there…….I thought this was an empty place. I didn’t know there was anybody here ……….
MR LAMB : That’s all right. I am here. What are you afraid of boy? That’s all right.
DERRY : I thought it was empty ……….an empty house.
MR LAMB : So it is. Since I’m out here in the garden. It is empty. Until I go back inside. In the
meantime, I’m out here and likely to stop. A day like this. Beautiful day. Not a day to
be indoors.
(श्री लैंब : सेबों का ध्यान रखो!
डैरी : क्या ? यह कौन है ? कौन है वहाँ ?
श्री लैंब : मेरा नाम लैंब है। सेबों का ध्यान रखो। वे कैब सेब हैं। हवा से लम्बी घास में गिर गए हैं। तुम्हारे पैर उन पर पड़ सकते हैं।
डैरी: मैं……वहाँ….मैंने तो सोचा था कि यह जगह खाली है। मुझे नहीं पता था कि यहाँ कोई है………।
श्री लैंब : कोई बात नहीं। मैं यहाँ हूँ। लड़के, तुम क्यों डर रहे हो ? कोई बात नहीं। डैरी : मैंने सोचा था कि यह खाली है…..एक खाली घर। श्री लैंब
डैरी : ऐसा ही है। क्योंकि आज मैं बगीचे में हूँ। यह खाली है। जब तक कि मैं वापस अन्दर न जाऊँ। इस बीच मैं यहाँ बाहर हूँ और सम्भावना है कि ठहर जाऊँ। ऐसा खूबसूरत दिन। सुन्दर दिन। घर के अन्दर बैठने का दिन नहीं।)
DERRY : [Panic] I’ve got to go.
MR LAMB: Not on my account. I don’t mind who comes into the garden. The gate’s always open. Only you climbed the garden wall.
DERRY : [Angry] You were watching me.
MR LAMB : I saw you. But the gate’s open. All welcome. You’re welcome. I sit here. I like sitting.
(डैरी : [डर से] मुझे जाना है।
श्री लैंब : मेरे कारण नहीं। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बगीचे में कौन आता है। दरवाजा हमेशा खुला
रहता है। बस तुमने ही बगीचे की दीवार फाँदी।
डैरी: [क्रुद्ध] तुम मुझे देख रहे थे।
श्री लैंब : मैंने तुम्हें देखा था। पर दरवाजा खुला है। सबका स्वागत है। तुम्हारा स्वागत है। मैं यहाँ बैठता हूँ। मुझे बैठना पसंद है।)
DERRY : I’d not come to steal anything.
MR LAMB: No, no. The young lads steal…..scrump the apples. You’re not so young.
DERRY: I just…..wanted to come in. Into the garden.
MR LAMB: So you did. Here we are, then.
DERRY: You don’t know who I am.
MR LAMB: A boy thirteen or so.
DERRY: Fourteen. [Pause] But I’ve got to go now. Good-bye.
MR LAMB: Nothing to be afraid of. Just a garden. Just me.
DERRY: But I’m not…..I’m not afraid. [Pause] People are afraid of me.
MR LAMB: Why should that be?
(डैरी : मैं कुछ चुराने नहीं आया था। श्री लैंब : नहीं, नहीं। छोटे लड़के चुराते हैं………सेब खाते हैं। तुम इतने छोटे नहीं हो।
डैरी : मैं केवल……….अंदर आना चाहता था। बगीचे में। श्री लैंब : तुम यही चाहते थे। फिर, हम दोनों यहाँ हैं।
डैरी : तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूँ।
श्री लैंब : एक लड़का। तेरह या उसके आस-पास।
डैरी : चौदह। [विराम] पर अब मुझे जाना है। अलविदा।
श्री लैंब : डरने का कोई कारण नहीं। बस एक बगीचा। बस मैं।
डैरी : पर मैं नहीं…… मैं डरता नहीं हूँ। [विराम] लोग मुझसे डरते हैं।
श्री लैंब : ऐसा क्यों ?)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it
DERRY: Everyone is. It doesn’t matter who they are, or what they say, or how they look. How they pretend. I know. I can see.
MR LAMB: See what?
DERRY: What they think.
MR LAMB: What do they think, then?
DERRY: You think…..’ Here’s a boy.’You look at me……and then you see my face and you think. ‘That’s bad. That’saterrible thing. That’s the ugliest thing Jever saw.’You think, ‘Poor boy.’ But I’m not. Not poor. Underneath, you are afraid. Anybody would be. I am.
When I look in the mirror, and see it, I’m afraid of me.
MR LAMB : No, Not the whole of you. Not of you. DERRY : Yes! [Pause]
(डैरी : हर आदमी डरता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन हैं, या क्या कहते हैं, या कैसे दिखाई देते हैं। वे कैसा दिखावा करते हैं। मैं जानता हूँ। मैं समझ सकता हूँ।
श्री लैंब : क्या समझ सकते हो ? डैरी : वे क्या सोच रहे हैं।
श्री लैंब : तब, वे क्या सोचते हैं ?
डैरी : आप सोचते हो……. ‘यह एक लड़का है। तुम मेरी ओर देखते हो….. और तब तुम मेरा चेहरा देखते हो और तुम सोचते हो। ‘बहुत बुरा है। यह एक बहुत भयानक चीज़ है। इससे अधिक बदसूरत चीज़ मैंने आज तक नहीं देखी।’ तुम सोचते हो, ‘बेचारा लड़का। परन्तु मैं नहीं हूँ। बेचारा नहीं। मन-ही-मन में तुम डरते हो। कोई भी डरेगा। मैं डर जाता हूँ। जब मैं दर्पण देखता हूँ और इसे देखता हूँ, मैं स्वयं से डर जाता हूँ।
श्री लैंब : नहीं, तुम्हारा पूर्णरूप नहीं। तुम्हारा नहीं।
डैरी : हाँ। [विराम]
MR LAMB: Later on, when it’s a bit cooler, I’ll get the ladder and a stick, and pull down those crab apples. They’re ripe for it. I make jelly. It’s a good time of year, September. Look at them…..orange and golden. That’s magic fruit. I often say. But it’s best picked and
made into jelly. You could give me a hand.
DERRY: What have you changed the subject for? People always do that. Why don’t you ask me? Why do you do what they all do and pretend it isn’t true and isn’t there? In case I see you looking and mind and get upset? I’ll tell……you don’t ask me because you’re afraid to.
(श्री लैंब : बाद में, जब मौसम थोड़ा ठंडा हो जाए, मैं एक सीढ़ी और एक डंडा ले आऊँगा और उन क्रैब सेबों को तोगा। वे पूरी तरह पक चुके हैं। मैं जैली बनाऊँगा। सितम्बर, वर्ष का अच्छा समय होता है। उन्हें देखो. …..सन्तरी और सुनहरे। यह जादू फल है। मैं अकसर कहता हूँ। पर सर्वोत्तम यही है कि इसे तोड़कर जैली बनाई जाए।

तुम मेरी सहायता कर सकते हो। डैरी तुमने विषय क्यों बदल दिया? लोग सदा ऐसा ही करते हैं। तुम मुझसे पूछते क्यों नहीं ? तुम क्यों वही कर रहे हो जो सारे लोग करते हैं और दिखावा करते हो कि यह सच नहीं है और ऐसा है ही नहीं ? अगर मैं तुम्हें घूरता देखू और बुरा मानूँ और परेशान होऊँ ? मैं बताता हूँ……तुम पूछते नहीं क्योंकि तुम डरते हो।)
MR LAMB: You want me to ask…..say so, then.
DERRY: I don’t like being with people. Any people.
MR LAMB: I should say…..to look at it…..I should say, you got burned in a fire.
DERRY: Not in a fire. I got acid all down that side of my face and it burned it all away. It ate my face up. It ate me up. And now it’s like this and it won’t ever be any different.
MR LAMB: No.
(श्री लैंब : तुम चाहते हो कि मैं पूछू……तो ऐसा कहो। डैरी : मैं लोगों का साथ पसन्द नहीं करता। किसी भी तरह के लोगों का।
श्री लैंब : मैं कहूँगा…..ऊपर से देखने पर…..मैं कहूँगा, तुम आग से जले हो।
डैरी : आग से नहीं। मेरे चेहरे की उस पूरी तरफ तेज़ाब गिरा था और उसने इसे जला दिया। यह मेरे चेहरे को खा गया। यह मुझे खा गया। और अब ऐसा ही है जिसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा। श्री लैब : नहीं।)
DERRY : Aren’t you interested ? ।
MR LAMB: You’re a boy who came into the garden. Plenty do. I’m interested in anybody. Anything. There’s nothing God made that doesn’t interest me. Look over there…..over beside the far wall. What can you see?
डैरी : क्या तुम्हें कोई रुचि नहीं ?
श्री लैंब : तुम एक लड़के हो जो इस बगीचे में आए। बहुत-से आते हैं। मैं किसी भी व्यक्ति में रुचि रखता हूँ। हर वस्तु में। भगवान की बनाई कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसमें मेरी रुचि न हो। उधर देखो वहाँ…..दूर वाली दीवार के पास। तुम्हें क्या नज़र आता है ?)

DERRY: Rubbish.
MR LAMB: Rubbish? Look, boy, look…..what do you see?
DERRY: Just….grass and stuff. Weeds.
MR LAMB: Some call them weeds. If you like, then……a weed garden, that. There’s fruit and there are flowers, and trees and herbs. All sorts. But over there…..weeds. I grow weeds there. Why is one green, growing plant called a weed and another ‘flower’? Where’s
the difference. It’s all life….growing. Same as you and me.
DERRY : We’re not the same.
डैरी : बेकार की बात।
श्री लैंब : बेकार की बात ? देखो, लड़के, जरा ध्यान से देखो….तुम क्या देखते हो?
डैरी : बस……. घास और वैसी ही चीजें । जंगली पौधे। श्री लैंब : कुछ लोग उन्हें जंगली पौधे कहते हैं। अगर तुम चाहो तो…..एक जंगली पौधे का बगीचा है, वह । वहाँ हर प्रकार के फल, फूल, वृक्ष और बूटियाँ हैं। सभी प्रकार के। परन्तु वहाँ…..जंगली पौधे । मैं वहाँ जंगली पौधे उगाता हूँ। क्यों किसी हरे-भरे, बढ़ते पौधे को जंगली पौधा और किसी को ‘फूल’ कहते हैं? अन्तर कहाँ है ? यह सब जीवन है…..उगता हुआ। बिल्कुल तुम्हारी और मेरी तरह।
डैरी : हम एक-जैसे नहीं हैं।)
MR LAMB: I’m old. You’re young. You’ve got a burned face, I’ve got a tin leg. Not important. You’re standing there…I’m sitting here. Where’s the difference?
DERRY: Why have you got a tin leg?
MR LAMB: Real one got blown off, years back. Lamey-Mr Lamb, some kids say. Haven’t you heard them? You will. Lamey-Mr Lamb. It fits. Doesn’t trouble me.
(श्री लैंब : मैं बूढ़ा हूँ। तुम जवान हो। तुम्हारा चेहरा जला हुआ है, मेरी एक टाँग टीन की है। महत्त्वहीन बात । तुम वहाँ खड़े हो…. मैं यहाँ बैठा हूँ। अन्तर कहाँ है ?
डैरी : तुम्हारी टाँग टीन की क्यों है ?
श्री लैंब : कई साल पहले, असली टाँग एक विस्फोट में चली गई। कुछ बच्चे लेमी-श्री लैंब कहते हैं। क्या तुमने कभी उन्हें सुना नहीं है? तुम सुनोगे। लेमी-श्री लैंब। यह ठीक है। मुझे बुरा नहीं लगता।)
DERRY : But you can put on trousers and cover it up and no one sees, they don’t have to notice and stare.
MR LÁMB: Some do. Some don’t. They get tired of it, in the end. There are plenty of other things to stare at.
DERRY : Like my face. (डैरी : पर तुम पैन्ट पहन सकते हो और इसे ढक सकते हो और यह किसी को नहीं दिखेगा, उन्हें उस पर ध्यान देने या घूरने की आवश्यकता नहीं है। श्री लैंब : कुछ लोग ऐसा करते हैं। कुछ नहीं करते हैं। अंत में वे इससे थक जाते हैं। घूरने के लिए और बहुत-सी चीजें हैं। डैरी जैसे मेरा चेहरा।)
MR LAMB: Like crab apples or the weeds or a spider climbing up a silken ladder or my tall sunflowers.
DERRY: Things.
MR LAMB: It’s all relative. Beauty and the beast.
DERRY: What’s that supposed to mean?
MR LAMB : You tell me. (श्री लैंब : जैसे कि कैब सेब या जंगली पौधे या रेशमी सीढ़ियाँ चढ़ती हुई मकड़ी, या मेरे ऊँचे सूरजमुखी के फूल।
डैरी : वस्तुएँ।
श्री लैंब : यह सब तुलनात्मक है। सौन्दर्य और पशु।
डैरी : इसका क्या अर्थ होता है ?
श्री लैंब : मुझे तुम बताओ।)
DERRY: You needn’t think they haven’t all told me that fairy story before. ‘It’s not what you look like, it’s what you are inside. Handsome is as handsome does. Beauty loved the monstrous beast for himself and when she kissed him he changed into a handsome prince.’ Only he wouldn’t, he’d have stayed a monstrous beast. I won’t change.

तुम यह मत सोचना कि मुझे लोगों ने वह परियों की कहानी पहले नहीं सुनाई। ‘तुम जो दिखते हो, वह नहीं हो, तुम वह हो जो तुम अंदर से हो। सुन्दर वह होता है जो सुन्दर काम करता है। सुन्दर लड़की ने दैत्याकार पशु को प्यार किया और जब उसने उसे चूमा तो वह सुन्दर राजकुमार बन गया। पर वह ऐसा चाहता नहीं था, वह तो दैत्याकार पशु बने रहना अधिक पसन्द करता था। मैं बदलूँगा नहीं।)

MR LAMB: In that way? No, you won’t.
DERRY: And no one’ll kiss me, ever. Only my mother and she kisses me on the other side of my face, and I don’t like my mother to kiss me, she does it because she has to. Why should I like that? I don’t care if nobody ever kisses me.
(श्री लैंब : तुम किस तरीके से नहीं बदलोगे ? । डैरी : और मुझे कभी कोई नहीं चूमेगा। मेरी माँ के सिवाय, और उसने मुझे मेरे चेहरे के दूसरी तरफ चूमा और मुझे मेरी माँ का मुझे चूमना पसंद नहीं, वह चूमती है, क्योंकि उसे ऐसा करना पड़ता है। मैं इसे क्यों पसंद करूँ ? परवाह नहीं अगर मुझे कोई कभी नहीं चूमें।)
MR LAMB: Ah, but do you care if you never kiss them.
DERRY: What?
MR LAMB: Girls. Pretty girls. Long hair and large eyes. People you love.
DERRY: Who’d let me? Not one.
MR LAMB: Who can tell ?
(श्री लैंब : आह, पर अगर तुम उन्हें कभी न चूम सके तो क्या तुम इस बात की परवाह करोगे ?
डैरी : क्या ?
श्री लैंब : लड़कियाँ । सुन्दर लड़कियाँ । लम्बे-लम्बे बाल और बड़ी-बड़ी आँखें। वे लोग जिनसे तुम प्यार करते हो।
डैरी : मुझे चूमने कौन देगा ? एक भी नहीं। श्री लैंब : कौन जाने ?)
DERRY : I won’t ever look different. When I’m as old as you, I’ll look the same. I’ll still only have half a face.
MR LAMB : So you will. But the world won’t. The world’s got a whole face, and the world’s there to be looked at.
DERRY : Do you think this is the world ? This old garden ?
MR LAMB : When I’m here. Not the only one. But the world, as much as anywhere.
DERRY : Does your leg hurt you?
MR LAMB: Tin doesn’t hurt, boy!
(डैरी : मैं कभी भी अलग नज़र नहीं आऊँगा। जब मैं आपकी उम्र का हो जाऊँगा तो भी ऐसा ही लगूंगा। तब भी चेहरा आधा ही होगा। श्री लैंब : तुम ऐसे ही रहोगे। पर संसार नहीं। संसार का चेहरा पूरा है और यह संसार देखने के लिए है।
डैरी : क्या आपके विचार में संसार यही है ? यह पुराना बगीचा ?
श्री लैंब : जब मैं यहाँ हूँ। एकमात्र नहीं। पर वैसे ही जैसे संसार किसी अन्य स्थान पर है।
डैरी : क्या आपकी टाँग आपको दर्द करती है ?
श्री लैंब : टीन कष्ट नहीं देता, बेटे!)
DERRY: When it came off, did it?
MR LAMB: Certainly.
DERRY: And now? I mean, where the tin stops, at the top?
MR LAMB: Now and then. In wet weather. It doesn’t signify.
DERRY: Oh, that’s something else they all say. ‘Look at all those people who are in pain and brave and never cry and never complain and don’t feel sorry for themselves.’
MR LAMB: I haven’t said it.
(डैरी : जब यह कटी थी तो क्या इसने दर्द किया था ? श्री लैंब : अवश्य। डैरी : और अब? मेरा मतलब, जहाँ ऊपरी किनारे पर टीन की टाँग टकराती है ?
लैंब : अब और तब बरसात के मौसम में। यह कुछ खास नहीं है।
डैरी : ओह, लोग एक और बात भी कहते हैं। ‘उन लोगों की तरफ देखो जो कष्ट में हैं, बहादुरी से सामना करते हैं और न कभी रोते हैं, न शिकायत करते हैं और अपने ऊपर तरस नहीं खाते।’
श्री लैंब : मैंने ऐसा नहीं कहा है।)
DERRY: And think of all those people worse off than you. Think, you might have been blinded, or born deaf, or have to live in a wheelchair or be daft in your head and dribble.
MR LAMB: And that’s all true, and you know it.
(डैरी और उन सारे लोगों के बारे में सोचो जो तुम्हारी अपेक्षा अधिक बुरी हालत में हैं। सोचो, तुम अन्धे हो सकते थे, या बहरे पैदा हो सकते थे या तुम्हें व्हील चेयर में रहना पड़ सकता था, अथवा तुम ऐसे हो सकते थे जिनकी मन्दबुद्धि होती है और लार टपकती है। श्री लैंब : और यह सच है, और तुम यह जानते हो।)
DERRY : It won’t make my face change. Do you know, one day, a woman went by me in the street-I was at a bus-stop-and she was with another woman, and she looked at me, and she said….whispered….only I heard her…..she said, “Look at that, that’s a terrible
thing. That’s a face only a mother could love.”
MR LAMB: So you believe everything you hear, then?
DERRY: It was cruel.
MR LAMB: Maybe not meant as such. Just something said between them.
DERRY: Only I heard it. I heard.
MR LAMB: And is that the only thing you ever heard anyone say, in your life?
DERRY: Oh no! I’ve heard a lot of things.
MR LAMB: So now you keep your ears shut.
DERRY: You’re…………..peculiar. You say peculiar things. You ask questions. I don’t understand.
MR LAMB: I like to talk. Have company. You don’t have to answer questions. You dont have to
stop here at all. The gate’s open.
DERRY : Yes, but….
इससे मेरा चेहरा नहीं बदल जाएगा। आपको पता है, एक दिन, एक औरत गली में मेरे पास से गुजरीमैं एक बस-स्टॉप पर था और वह किसी अन्य औरत के साथ थी, और उसने मेरी ओर देखा, और वह बोली….बुड़बुड़ायी….केवल मैंने उसे सुना….वह बोली, “उसको देखो, कैसी भयानक चीज़ है। वह ऐसा चेहरा है जिसे कोई माँ ही प्यार कर सकती है।”
श्री लैंब : तो इसका अर्थ है तुम हर सुनी हुई बात पर विश्वास कर लेते हो ?
डैरी : यह क्रूर बात थी।
श्री लैंब : शायद इसका ऐसा अभिप्राय नहीं था। केवल आपस में कही गई कोई बात थी।
डैरी : केवल मैंने इसे सुना। मैंने सुना।
श्री लैंब : और क्या तुमने अपने जीवन में किसी द्वारा कही गई केवल यही बात सुनी है ?
डैरी : अरे नहीं! मैंने बहुत-सी बातें सुनी हैं।
श्री लैंब : तो अब तुम्हें अपने कान बन्द कर लेने चाहिएँ।
डैरी : तुम…………..अजीब हो। तुम अजीब बातें करते हो। तुम जो प्रश्न करते हो, मेरी समझ में नहीं आते हैं।
श्री लैंब : मुझे बात करना अच्छा लगता है। साथ रहना अच्छा लगता है। तुम्हें प्रश्नों के उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें यहाँ रुकने की भी आवश्यकता नहीं है। गेट खुला है।
डैरी : हाँ, लेकिन…..)
MR LAMB: I’ve a hive of bees behind those trees over there. Some hear bees and they say, bees buzz. But when you listen to bees for a long while, they humm….and hum means ‘sing’.I hear them singing, my bees.
(श्री लैंब : उन सामने वाले पेड़ों के पीछे, मेरे पास मधुमक्खियों का छत्ता है। कुछ लोग उन मधुमक्खियों की आवाज़ सुनकर कहते हैं वे भिनभिना रही हैं। पर जब आप काफी देर तक मधुमक्खियों की आवाज़ सुनते रहें, तो वे गुनगुनाने लगती हैं …….और गुनगुनाने का अर्थ है ‘गाना’। मैं उन्हें गाता हुआ सुनता हूँ, मेरी मधुमक्खियाँ।)
DERRY : But….I like it here. I came in because I liked it….when I looked over the wall.
MR LAMB : If you’d seen me, you’d not have come in.
DERRY : No.
MR LAMB : No.
DERRY : It’d have been tress
MR LAMB : Ah. That’s not why.
DERRY : I don’t like being near people. When they stare…. when I see them being afraid of me.
(डैरी : पर……यह जगह मुझे पसन्द है। मैं इसलिए अन्दर आया, क्योंकि यह मुझे पसन्द है……..जब मैंने दीवार के ऊपर से देखा।
श्री लैंब : अगर तुमने मुझे देख लिया होता, तो तुम न आते।
डैरी: नहीं। श्री लैंब : नहीं।
डैरी: यह अनाधिकृत प्रवेश होता। श्री लैंब : आह । यही कारण नहीं है।
डैरी : मैं लोगों के पास होना पसन्द नहीं करता। जब वे घूरते हैं….जब मैं उन्हें स्वयं से डरते देखता हूँ।)

MR LAMB: You could lock yourself up in a room and never leave it. There was a man who did that. He was afraid, you see. Of everything. Everything in this world. A bus might run him over, or a man might breathe deadly germs onto him, or a donkey might kick him to death, or lightning might strike him down, or he might love a girl and the girl would leave him, and he might slip on a banana skin and fall and people who saw him would laugh their heads off. So he went into this room, and locked the door, and got into his bed, and stayed there.

(श्री लैंब : तुम चाहो तो स्वयं को सदा के लिए एक कमरे में बंद कर सकते हो। एक आदमी था जिसने ऐसा किया। देखो, वह डरता था। हर चीज़ से। इस संसार की प्रत्येक वस्तु से। क्या पता कोई बस उसे कुचल दे, या कोई व्यक्ति सांस से उसके ऊपर घातक कीटाणु फेंक दे, या कोई गधा उसे दुलत्ती मारकर उसकी जान ले ले, या फिर बिजली उस पर पड़कर उसे गिरा दे, या फिर वह किसी लड़की से प्यार कर बैठे और वह लड़की उसे छोड़ दे, और हो सकता था कि वह किसी केले के छिलके पर फिसलकर गिर जाए और उसे देखने वाले हँस-हँसकर पागल हो जाएँ। इसलिए वह अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर लिया, और अपने बिस्तर में लेट गया और वहीं रहा।)
DERRY : Forever?
MR LAMB: For a while.
DERRY : Then what?
MR LAMB: A picture fell off the wall on to his head and killed him.[Derry laughs a lot]
MR LAMB: You see?
DERRY: But…..you still say peculiar things.
MR LAMB: Peculiar to some.
DERRY: What do you do all day?
MR LAMB: Sit in the sun. Read books. Ah, you thought it was an empty house, but inside, it’s full. Books and other things. Full.
(डैरी : सदा के लिए ?
श्री लैंब : कुछ समय के लिए। डैरी : फिर क्या हुआ ?
श्री लैंब : दीवार से एक तस्वीर उसके सिर पर गिरी और वह मर गया। [डैरी बहुत हँसता है]
श्री लैंब : तुम समझे ?
डैरी: परन्तु….अब भी आपकी बातें अजीब लगती हैं।
श्री लैंब : कुछ लोगों को अजीब लगती हैं।
डैरी: तुम सारा दिन क्या करते हो ?
श्री लैंब : धूप में बैठता हूँ। किताबें पढ़ता हूँ। आह, तुम्हें लगा था कि यह घर खाली है, पर अन्दर से यह भरा पड़ा है। यह किताबों व अन्य वस्तुओं से भरा है। पूरा भरा है।)
DERRY : But there aren’t any curtains at the windows.
MR LAMB: I’m not fond of curtains. Shutting things out, shutting things in. I like the light and the darkness, and the windows open, to hear the wind.
DERRY : Yes. I like that. When it’s raining, I like to hear it on the roof.
MR LAMB : So you’re not lost, are you? Not altogether ? You do hear things. You listen.
(डैरी : मगर वहाँ खिड़कियों पर परदे नहीं हैं। श्री लैंब : मुझे परदों का शौक नहीं है। बाहर की चीज़ों को बन्द करना या छुपाना; अन्दर की चीज़ों को बन्द करना या छुपाना। मुझे प्रकाश और अंधकार पसन्द है, और खुली खिड़कियाँ, ताकि हवा सुनाई देती रहे।
श्री लैंब : हाँ। मुझे वह पसन्द है। जब वर्षा होती है तब छत पर इसकी आवाज़ सुनना मुझे पसन्द है।
डैरी : तो अभी तक तुमने स्वयं को नहीं खोया है, नहीं न ? पूरी तरह तो नहीं ? तुम चीजें सुनते हो। तुम सुनते हो।)
DERRY : They talk about me. Downstairs, when I’m not there. What’ll he ever do ? What’s going to happen to him when we’ve gone? How ever will he get on in this world ? Looking like that ? With that on his face ?’ That’s what they say.
MR LAMB: Lord, boy, you’ve got two arms, two legs and eyes and ears, you’ve got a tongue and a brain. You’ll get on the way you want, like all the rest. And if you chose, and set your mind to it, you could get on better than all the rest.
(डेरी : वे (मेरे माता-पिता) मेरे बारे में बातें करते हैं। नीचे, जब मैं वहाँ नहीं होता हूँ। ‘यह करेगा क्या ? हमारे मरने के बाद इसका क्या होगा ? इस संसार में यह कैसे रह पाएगा ? इस शक्ल के साथ ? चेहरे पर इन निशानों के साथ?’ वे ऐसी बातें करते हैं।
श्री लैंब : हे भगवान, लड़के, तुम्हारे दो बाजू हैं, दो टाँगें हैं और आँखें और कान हैं, तुम्हारे पास जीभ और दिमाग है। बाकी सभी लोगों की तरह तुम भी मनचाहे रास्ते पर चलोगे। और अगर तुमने चाहा और इस पर अपना दिमाग केंद्रित किया, तो तुम बाकी सब लोगों से अधिक अच्छा काम कर सकोगे।)
DERRY : How ?
MR LAMB : Same way as I do.
DERRY: Do you have any friends?
MR LAMB: Hundreds.
DERRY: But you live by yourself in that house. It’s a big house, too.
श्री लैंब : जैसे मैं करता हूँ।
डैरी : क्या तुम्हारा कोई मित्र है ?
श्री लैंब: सैकड़ों।
डैरी : पर आप इस घर में अकेले रहते हैं। यह घर बड़ा भी है।)
MR LAMB: Friends everywhere. People come in…. everybody knows me. The gate’s always open. They come and sit here. And in front of the fire in winter. Kids come for the apples and pears. And for toffee. I make toffee with honey. Anybody comes. So have you.
DERRY: But I’m not a friend.
MR LAMB : Certainly you are. So far as I’m concerned.What have you done to make me think you’re not?
DERRY : You don’t know me. You don’t know where I come from or even what my name is.
(श्री लैंब : हर स्थान पर मेरे मित्र हैं। लोग अन्दर आते हैं…..हर आदमी मुझे जानता है। गेट सदा खुला रहता है। लोग आते हैं और यहाँ बैठते हैं। और सर्दी में आग के सामने । बच्चे सेब और नाशपाती के लिए आते हैं। और टॉफी के लिए। मैं शहद की टॉफी बनाता हूँ। कोई भी आ जाता है। ऐसे ही तुम आए।
डैरी : पर मैं कोई मित्र नहीं हूँ।
श्री लैंब : निःसन्देह तुम मित्र हो। जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है। तुमने ऐसा क्या किया है कि मैं समझू कि तुम मित्र नहीं हो।
हैरी : तुम मुझे जानते नहीं। तुम्हें यह भी नहीं मालूम कि मैं कहाँ से आया हूँ और मेरा क्या नाम है।)
MR LAMB : Why should that signify? Do I have to write all your particulars down and put them in a filing box, before you can be a friend ?
DERRY: I suppose….not. No.
MR LAMB: You could tell me your name. If you chose. And not, if you didn’t.
DERRY: Derry. Only it’s Derek…..but I hate that. Derry. If I’m your friend, you don’t have to be mine. I choose that.
MR LAMB: Certainly.
DERRY: I might never come here again, you might never see me again and then I couldn’t still be a friend.
MR LAMB: Why not?
(श्री लैंब : इसका अर्थ क्या है ? क्या मुझे तुम्हें मित्र बनाने से पहले तुम्हारे बारे में सारे तथ्यों को लिखकर एक बक्से में भरना होगा, इससे पहले कि मैं तुम्हें मित्र कह सकूँ?
डैरी: मेरा ख्याल है……नहीं। नहीं।
डैरी : तुम मुझे अपना नाम बता सकते हो। चाहो तो। और न चाहो तो नहीं।
डैरी : डैरी। वैसे यह डैरेक है…..पर मुझे उससे घृणा है।
डैरी : अगर मैं तुम्हारा मित्र हूँ, तुम्हें मेरा मित्र होने की आवश्यकता नहीं है। इस बात का चुनाव मैं करूँगा।
डैरी: निःसन्देह।
डैरी : मैं शायद यहाँ फिर कभी न आऊँ, तुम शायद मुझे फिर कभी न मिलो और तब मैं तुम्हारा मित्र नहीं रहूँगा।
श्री लैंब : क्यों नहीं?)
DERRY: How could I? You pass people in the street and you might even speak to them, but you never see them again. It doesn’t mean they’re friends.
MR LAMB: Doesn’t mean they’re enemies, either, does it?
DERRY: No they’re just….nothing. People. That’s all.
MR LAMB: People are never just nothing. Never.
DERRY: There are some people I hate.
MR LAMB That’d do you more harm than any bottle of acid. Acid only burns your face.

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it
DERRY: Only…
(डैरी : मैं मित्र कैसे हो सकता हूँ ? तुम सड़क पर चलते हुए लोगों के पास से गुजरते हो और शायद तुम उनसे बोलो भी, पर आप फिर उनसे मिलते नहीं हो। इसका अर्थ यह नहीं कि वे मित्र हो गए। श्री लैंब : इसका अर्थ यह भी नहीं कि वे शत्रु हो गए, है न?
डैरी: नहीं, बस वे हैं…..कुछ नहीं। लोग। और कुछ नहीं।
श्री लैंब : लोग कभी भी केवल कुछ नहीं होते। कभी नहीं।
डैरी: कुछ लोग हैं जिनसे मैं नफरत करता हूँ।
श्री लैंब : किसी तेज़ाब की बोतल की अपेक्षा इससे तुम्हें अधिक नुकसान होगा। तेज़ाब तो केवल चेहरा जलाता है।
डैरी: केवल……)
MR LAMB: Like a bomb only blew up my leg. There’s worse things can happen. You can burn yourself away inside.
DERRY: After I’d come home, one person said, “He’d have been better off stopping in there. In the hospital. He’d be better off with others like himself.” She thinks blind people only ought to be with other blind people and idiot boys with idiot boys.
MR LAMB: And people with no legs altogether?
DERRY: That’s right.
MR LAMB: What kind of a world would that be?
DERRY : At least there’d be nobody to stare at you because you weren’t like them.
(श्री लैंब : जैसे कि एक बम ने केवल मेरी टाँग उड़ा दी। इससे बुरी बहुत-सी बातें हो सकती हैं। तुम अपने-आपको अन्दर से जला सकते हो।
डैरी : मेरे घर आने के बाद एक व्यक्ति ने कहा, “अगर यह वहीं रहता तो इसके लिए बेहतर रहता। अस्पताल में। अपने जैसे अन्य लोगों के साथ वह अधिक अच्छा महसूस करता।” वह सोचती है कि अंधों को केवल दूसरे अंधों के साथ रहना चाहिए और बुद्धिहीन लड़कों को बुद्धिहीन लड़कों के साथ।
श्री लैंब : और वे लोग जिनकी कोई टाँग न हो सारे एक-साथ।
डैरी : बिल्कुल सही। श्री लैंब : वह संसार कैसा होगा ?
डैरी : कम-से-कम कोई ऐसा आदमी तो न होगा जो आपको केवल इसलिए घूरे कि आप उस जैसे नहीं हैं।)
MR LAMB : So you think you’re just the same as all the other people with burned faces ? Just by what you look like ? Ah…..everything’s different. Everything’s the same, but everything is different. Itself.
DERRY: How do you make all that out?
MR LAMB: Watching. Listening. Thinking.
DERRY: I’d like a place like this. A garden. I’d like a house with no curtains.
MR LAMB: The gate’s always open.
(श्री लैंब : तो तुम्हारा ख्याल है कि तुम बिल्कुल वैसे ही हो जैसे दूसरे जले हुए चेहरे वाले लोग हैं ? केवल इस कारण से कि तुम दिखाई कैसे देते हो ? आह…..हर बात अलग है। हर बात समान है, पर हर बात अलग है। अपने-आप। डैरी : आप इतना कुछ कैसे समझते हैं ?
श्री लैंब : देखकर। सुनकर। सोचकर।
डैरी: मैं इस तरह की जगह चाहता हूँ। एक बगीचा। मैं बिना परदों वाला घर चाहता हूँ। श्री लैंब दरवाजा सदा खुला रहता है।)
DERRY : But this isn’t mine.
MR LAMB: Everything’s yours if you want it. What’s mine is anybodys?
DERRY: So I could come here again? Even if you were out…I could come here.
MR LAMB: Certainly. You might find others here, of course.
DERRY: Oh…
MR LAMB: Well, that needn’t stop you, you needn’t mind.
DERRY: It’d stop them. They’d mind me. When they saw me here. They look at my face and run.
MR LAMB: They might. They might not. You’d have to take the risk. So would they.
DERRY: No, you would. You might have me and lose all your other friends because nobody wants to stay near me if they can help it.
MR LAMB: I’ve not moved.
DERRY: No…..
(डैरी : पर यह मेरा नहीं है। श्री लैंब : हर वस्तु जो तुम चाहो, वह तुम्हारी है। जो मेरा है वह हर किसी का है।
डैरी : तो मैं यहाँ फिर आ सकता हूँ ? चाहे तुम न भी हो…..मैं अंदर आ सकता हूँ।
श्री लैंब : जरूर। हाँ तुम्हें यहाँ दूसरे लोग भी मिल सकते हैं।
डैरी: ओह….. श्री लैंब : देखो, इस कारण तुम्हें आना बन्द करने की जरूरत नहीं है, न तुम्हें बुरा मानने की जरूरत है।
डैरी: इस कारण वे रुक जाएंगे। उन्हें मेरी उपस्थिति बुरी लगेगी। वे मेरे चेहरे को देखते ही भाग जाएँगे।
श्री लैंब : शायद । शायद नहीं भी। तुम्हें यह खतरा तो मोल लेना ही होगा। इसी प्रकार उन्हें भी।
डैरी : नहीं, खतरा मोल आपको लेना होगा। शायद आप मुझे तो बुला लें और अपने अन्य सारे मित्रों से हाथ धो बैठें, क्योंकि कोई मेरे पास ठहरना नहीं चाहता है, अगर वे लाचार न हों।
श्री लैंब : मैं तो नहीं भागा। डैरी
डैरी: नहीं…..)
MR LAMB: When I go down the street, the kids shout ‘Lamey-Lamb’. But they still come into the garden, into my house; it’s a game. They’re not afraid of me. Why should they be ?, Because I’m not afraid of them, that’s why not.
DERRY: Did you get your leg blown off in the war?
MR LAMB: Certainly.
DERRY: How will you climb on a ladder and get the crab apples down, then?
MR LAMB: Oh, there’s a lot of things I’ve learned to do, and plenty of time for it. Years. I take it steady.
DERRY: If you fell and broke your neck, you could lie on the grass and die. If you were on your own.
MR LAMB: I could.
(श्री लैंब : जब मैं गली में से गुजरता हूँ, बच्चे चिल्लाते हैं ‘लेमी-श्री लैंब’। पर वे फिर भी बगीचे में आते हैं, मेरे घर में आते हैं; यह एक खेल है। वे मुझसे डरते नहीं हैं। क्यों डरें? , क्योंकि मैं उनसे नहीं डरता हूँ, यही कारण है कि वे नहीं डरते हैं।
डैरी : क्या आपकी टाँग युद्ध में उड़ गई थी।
श्री लैंब : हाँ। डैरी : तो आप सीढ़ी पर कैसे चढ़ेंगे और कैब सेब को कैसे तोड़ेंगे।
श्री लैंब : ओह, मैंने बहुत-सी बातें करनी सीख ली हैं, और मेरे पास इसके लिए बहुत समय है। कितने ही वर्ष मैं इसे कसकर पकड़ता हूँ।
डैरी: अगर तुम गिरे और गर्दन टूट गई, तब तुम घास पर गिरकर मर सकते हो। अगर आप अकेले हो तो।
श्री लैंब : हो सकता है।)
DERRY : You said I could help you.
MR LAMB: If you want to.
DERRY: But my mother wants to know where I am. It’s three miles home, across the fields. I’m fourteen. But they still want to know where I am.
MR LAMB: People worry.
DERRY: People fuss.
MR LAMB: Go back and tell them.
(डैरी : आपने कहा कि मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ।
श्री लैंब : अगर तुम चाहो तो। डैरी : पर मेरी माँ जानना चाहेगी कि मैं कहाँ हूँ। घर यहाँ से तीन मील दूर है, खेतों के पार । मैं चौदह का हूँ। पर फिर भी वे जानना चाहते हैं कि मैं कहाँ हूँ।
श्री लैंब : लोग चिन्ता करते हैं।
डैरी: लोग नाराज़ होते हैं।
श्री लैंब : वापिस जाओ और उन्हें बता दो।)
DERRY : It’s a three miles.
MR LAMB: It’s a fine evening. You’ve got legs.
DERRY: Once I got home, they’d never let me come back.
MR LAMB: Once you got home, you’d never let yourself come back.
DERRY: You don’t know……you don’t know what I could do.
MR LAMB: No. Only you know that.
DERRY: If I chose.
MR LAMB : Ah….if you chose. I don’t know everything, boy. I can’t tell you what to do.
(डैरी : तीन मील का रास्ता है। श्री लैंब : आज शाम मौसम अच्छा है। तुम्हारे पास टाँगें हैं।
डैरी : एक बार मैं घर पहुँच गया तो वे मुझे कभी वापिस नहीं आने देंगे।
श्री लैंब : अगर तुम एक बार घर पहुंच गए तो तुम खुद वापिस नहीं आओगे।
डैरी : तुम्हें नहीं पता…..तुम्हें नहीं पता कि मैं क्या कर सकता हूँ।
श्री लैंब : नहीं। यह तो केवल तुम जानते हो।
डैरी: अगर मैं चाहूँ….
श्री लैंब : आह……अगर तुम चाहो।
लड़के, मैं हर बात नहीं जानता। मैं तुम्हें नहीं बता सकता कि तुम्हें क्या करना चाहिए।)
DERRY : They tell me.
MR LAMB: Do you have to agree?
DERRY: I don’t know what I want. I want….something no one else has got or ever will have. Something just mine. Like this garden. I don’t know what it is.
MR LAMB: You could find out.
DERRY : How ? MR LAMB : Waiting. Watching. Listening. Sitting here or going there. I’ll have to see to the bees.
(डैरी : वे बताते हैं। श्री लैंब : क्या तुम्हें सहमत होना पड़ता है ?
डैरी : मुझे नहीं पता कि मैं क्या चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ….कुछ ऐसा जो किसी के पास नहीं है और न कभी होगा। जैसे कि यह बगीचा। मुझे नहीं पता कि वह वस्तु क्या है।
श्री लैंब : तुम पता लगा सकते हो।
हैरी : कैसे ? श्री लैंब : प्रतीक्षा करके। देखकर। सुनकर। यहाँ बैठकर या वहाँ जाकर। मुझे मधुमक्खियों को देखना होगा।)
DERRY : Those other people who come here…..do they talk to you ? Ask you things ?
MR LAMB : Some do, some don’t. I ask them. I like to learn.
DERRY : I don’t believe in them. I don’t think anybody ever comes. You’re here all by yourself and miserable and no one would know if you were alive or dead and nobody cares.
डैरी : क्या अन्य लोग जो यहाँ पर आते हैं……क्या वे तुमसे बात करते हैं ? तुमसे कुछ पूछते हैं ?
श्री लैंब : कुछ करते हैं, कुछ नहीं करते हैं। मैं उनसे पूछता हूँ। मैं सीखना चाहता हूँ।
डैरी: मुझे उन पर विश्वास नहीं है। मेरे ख्याल से कभी कोई नहीं आता। तुम यहाँ बिल्कुल अकेले हो और दुःखी हो और कभी कोई भी नहीं जान पाएगा कि तुम जीवित हो या मृत और किसी को परवाह नहीं है।)

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it
MR LAMB: You think what you please.
DERRY: All right then, tell me some of their names.
MR LAMB: What are names? Tom, Dick or Harry. [Getting up I’m off down to the bees].
DERRY: I think you’re daft…..crazy…..
MR LAMB: That’s a good excuse.
DERRY: What for? You don’t talk sense.
MR LAMB : Good excuse not to come back. And you’ve got a burned-up face, and that’s other people’s excuse.
DERRY : You’re like the others, you like to say things like that. If you don’t feel sorry for my face, you’re frightened of it, and if you’re not frightened, you think I’m ugly as a devil. I am a devil. Don’t you ? [Shouts]
(श्री लैंब : तुम जैसा चाहो सोचो।।
डैरी : अच्छा फिर ठीक है, मुझे उनमें से कुछ के नाम बताओ।
श्री लैंब : नाम में क्या है ? टॉम, डिक और हैरी। [(उठते हुए)] मैं चला मधुमक्खियों की ओर । डैरी
डैरी: मेरा ख्याल है तुम मूर्ख हो ……. पागल …….
श्रीलैंब : यह अच्छा बहाना है।
हैरी : किस लिए ? तुम बुद्धिमत्तापूर्ण की बात नहीं करते।
श्री लैंब : वापिस न आने का अच्छा बहाना। और तुम्हारा चेहरा जला हुआ है, और यह दूसरे लोगों का बहाना है (तुम्हारे पास न आने का)। : तुम दूसरों की तरह हो, तुम इस तरह की बातें कहना पसंद करते हो। अगर तुम मेरे चेहरे पर तरस नहीं खाते, तो तुम इससे डरते हो, और अगर तुम डरते नहीं हो तो तुम सोचते हो कि मैं बहुत बदसूरत हूँ। मैं कोई शैतान हूँ। क्या तुम ऐसा नहीं सोचते ? [चीखता है] [Mr Lamb does not reply. He has gone to his bees.]
DERRY : [Quietly] No. You don’t. I like it here. [Pause. Derry gets up and shouts.] I’m going. But I’ll come back. You see. You wait. ‘I can run. I haven’t got a tin leg. I’ll be back. [Derry runs off. Silence. The sounds of the garden again.] ([श्री लैंब कोई उत्तर नहीं देते हैं। वह अपनी मधुमक्खियों के पास चला गया है।]
हैरी : [शांति से] नहीं। तुम नहीं। मुझे यह स्थान पसन्द है। [विराम]
डैरी: खड़ा होता है और चीखता है। मैं जा रहा हूँ। परन्तु मैं वापिस आऊँगा। देख लेना। तुम प्रतीक्षा करना। मैं दौड़ सकता हूँ। मेरी टाँग टीन की नहीं है। मैं वापिस आऊँगा। [डैरी दौड़ जाता है। चुप्पी। फिर बगीचे की आवाज़ आती है।)
MR LAMB : [To himself] There my dears. That’s you seen to. Ah……you know. We all know. “I’ll come back”. They never do, though. Not them. Never do come back. [The garden noises fade.]
(श्री लैंब : [अपने-आप से] ये मेरे प्यारे हैं। यह तो तुम देख चुके हो। आह…….तुम जानते हो। हम सब जानते हैं। “मैं वापिस आऊँगा।” परन्तु वे कभी नहीं आते हैं। वे नहीं। कभी वापिस नहीं आते। [बगीचे का शोर धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है)

Scene Two
Derry’s house.
MOTHER: You think I don’t know about him, you think. I haven’t heard things.
DERRY: You shouldn’t believe all you hear.
MOTHER: Been told. Warned. We’ve not lived here three months, but I know what there is to know and you’re not to go back there.
DERRY: What are you afraid of? What do you think he is? An old man with a tin leg and he lives in a huge house without curtains and has a garden. And I want to be there, and sit and…..listen to things. Listen and look.

दृश्य दो
(डैरी का घर। : क्या तुम सोचते हो मैं उसके बारे में नहीं जानती, तुम सोचते हो मैंने कोई चीज़ नहीं सुनी।
माँ : तुमने जो सुना तुम्हें उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
हैरी : मुझे बताया गया है। चेतावनी दी गई है। हम यहाँ तीन महीने से नहीं रह रहे थे, परन्तु मैं यह जानती हूँ अब तुम वहाँ दोबारा नहीं जाओगे।
माँ : आप किस बात से डरती हैं ? तुम्हारे अनुसार वह कौन है ? वह बूढ़ा आदमी जिसकी टीन की टाँग है जो बगैर पर्दे के एक बहुत बड़े घर में रहता है वहाँ एक बाग है। मैं वहाँ पर गया और बैठा…..
बहुत- सी चीजें सुनीं। सुनीं और देखीं।)
MOTHER : Listen to what ?
DERRY: Bees singing. Him talking.
MOTHER: And what’s he got to say to you?
DERRY: Things that matter. Things nobody else has ever said. Things I want to think about.
MOTHER: Then you stay here and do your thinking. You’re best off here.
DERRY: I hate it here.
MOTHER: You can’t help the things you say. I forgive you. It’s bound to make you feel bad things….and say them. I don’t blame you.
(माँ : क्या सुना ?
डैरी: मधुमक्खियों का गुनगुनाना। उसका बोलना।
माँ: और उसके पास तुम्हें कहने के लिए क्या है ?
डैरी: महत्त्वपूर्ण बातें। वे बातें जो आज तक किसी और ने मुझे नहीं बताईं। वे बातें जिनके बारे में सोचना चाहता हूँ।
माँ : तो तुम यहीं ठहरो और सोचो। तुम यहीं पर ठीक हो।
डैरी : मुझे इस स्थान से घृणा है।
माँ : जो कुछ तुम कह रहे हो उस पर तुम्हारा बस नहीं है। मैं तुम्हें माफ करती हूँ। तुम्हारा बुरा मानना अवश्यम्भावी है…और तुम कह लो। मैं तुम्हें दोष नहीं देती।)
DERRY : It’s got nothing to do with my face and what I look like. I don’t care about that and it isn’t important. It’s what I think and feel and what I want to see and find out and hear. And I’m going back there. Only to help him with the crab apples. Only to look at things and listen. But I’m going.
(डैरी : इसका मेरे चेहरे या मैं कैसा दिखता हूँ से कोई संबंध नहीं है। मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है और न ही उसका कोई महत्त्व है। महत्त्व इस बात का है कि मैं क्या सोचता हूँ और क्या अनुभव करता हूँ और इसका कि मैं क्या देखना चाहता हूँ और पता लगाता और सुनता हूँ। और मैं वहाँ वापिस जा रहा हूँ। केवल कैब सेबों में उसकी सहायता के लिए। केवल चीज़ों को देखने और सुनने के लिए। लेकिन मैं जा रहा हूँ।)।
MOTHER: You’ll stop here.
DERRY : Oh no, oh no. Because if I don’t go back there, I’ll never go anywhere in this world again. [The door slams. Derry runs, panting.] And I want the world…..I want it……I want it…… [The sound of his panting fades.]
माँ : तुम यहीं रुकोगे।
डैरी: ओ नहीं, ओ नहीं। क्योंकि अगर मैं वापिस न गया तो फिर मैं इस संसार से कभी कहीं नहीं जा पाऊँगा। [दरवाज़ा बंद होता है। डैरी हाँफता हुआ दौड़ता है। और मुझे संसार चाहिए……मुझे चाहिए……मुझे चाहिए…… [हाँफने की आवाज़ समाप्त हो जाती है।])

Scene Three

Mr Lamb’s garden [Garden sounds: the noise of a branch shifting; apples thumping down; the branch shifting again.]
MR LAMB: Steady……that’s…….got it. That’s it…..[More apples fall] And again. That’s it…..and…. [A creak. A crash. The ladder falls back, Mr Lamb with it. A thump. The branch swishes back. Creaks. Then silence. Derry opens the garden gate, still panting.]

दृश्य तीन
(श्री लैंब का बगीचा। [बगीचे की आवाजें : किसी डाल के हिलने की आवाज़; सेबों का धम्म से गिरना; डाल का फिर से हिलना ।
श्री लैंब : रुको…..हाँ ठीक है…..पकड़ लिया। यही है……[और सेब गिरते हैं। और दोबारा। वह यह है….. और…….. [चटखने की आवाज़। गिरने की आवाज़। सीढ़ी और उसके साथ श्री लैंब गिरते हैं। एक धम्म की आवाज। डाली वापस उठ जाती है। आवाज़। फिर सन्नाटा। डैरी बगीचे का दरवाजा खोलता है, अभी भी हाँफ रहा है।)
Derry : You see, you see! I came back. You said I wouldn’t and they said…..but I came back, I wanted…. [He stops dead. Silence.] Mr Lamb, Mr …..You’ve…. [He runs through the grass. Stops. Kneels]
Mr Lamb, It’s all right….You fell…..I’m here, Mr Lamb, It’s all right. [Silence] I came back. Lamey-Lamb. I did…..come back. [Derry begins to weep.]

HBSE 12th Class English Solutions Vistas Chapter 6 On the Face of it

The End
(डैरी : तुम देखो, तुम देखो! मैं वापिस आ गया हूँ। तुम कहते थे मैं नहीं आऊँगा और वे कहते थे…..पर मैं आ गया, मैं चाहता था….. [वह एकदम रुक जाता है। सन्नाटा।]
श्री लैंब, श्री……..आप…….. [वह घास पर दौड़ता है। रुकता है। घुटनों पर झुकता है।]
श्री लैंब, कोई बात नहीं…….आप गिर गए……मैं यहाँ हूँ, श्री लैंब, कोई बात नहीं। [सन्नाटा]
मैं वापिस आ गया। लेमी-लैंब। सचमुच…..वापिस आ गया। [डैरी रोने लगता है।] समाप्त।

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता को परिभाषित करें।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के विद्वान मैक्नी के अनुसार, “स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि युक्ति-रहित प्रतिबंधों के स्थान पर युक्ति-युक्त प्रतिबंधों को लगाना है।”

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के नकारात्मक रूप का वर्णन करें।
उत्तर:
नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होना और उसकी स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध न होना, परंतु स्वतंत्रता का यह अर्थ सही नहीं है। यदि स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध न हो तो समाज में अराजकता फैल जाएगी और समाज में एक ही कानून होगा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस ।’

प्रश्न 3.
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि लोगों को अपनी जीविका कमाने की स्वतंत्रता हो तथा इसके लिए उन्हें उचित साधन व सुविधाएं प्राप्त हों। नागरिकों की बेरोज़गारी और भूख से मुक्ति हो तथा प्रत्येक को काम करने के समान अवसर प्राप्त होने चाहिएँ।

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तात्पर्य है कि व्यक्ति को ऐसे कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करना जो केवल उस तक ही सीमित हों और उनके करने से दूसरों पर किसी प्रकार का प्रभाव न पड़ता हो।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है? उत्तर प्राकृतिक स्वतंत्रता से तात्पर्य है कि मनुष्य को वह सभी कुछ करने की स्वतंत्रता दी जाए जो कुछ वह करना चाहता है। प्रश्न 6. स्वतंत्रता की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव नहीं है,
  • स्वतंत्रता केवल समाज में ही प्राप्त हो सकती है,
  • स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को समान रूप से मिलती है।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपयोग की आवश्यक दो दशाएँ बताइए।
अथवा
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक किन्हीं दो शर्तों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता के उपयोग के लिए आवश्यक है कि स्वतंत्रता सबके लिए एक समान हो तथा सबको स्वतंत्रता एक समान मिलनी चाहिए।
  • शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध स्वतंत्रता का होना अनिवार्य है। स्वतंत्रता के उपयोग के लिए लोकतंत्र तथा प्रेस की स्वतंत्रता का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 8.
क्या स्वतंत्रता असीम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता व्यक्ति के विकास के लिए अति आवश्यक है। स्वतंत्रता का सही अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उन कार्यों को करने का अधिकार हो जिससे दूसरे व्यक्तियों को हानि न पहुंचे। स्वतंत्रता पर अनैतिक तथा निरंकुश बंधन नहीं होने चाहिएँ, परंतु स्वतंत्रता असीम नहीं है। सभ्य समाज में स्वतंत्रता बिना बंधनों व कानूनों के दायरे में होती है, परंतु स्वतंत्रता पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित बंधन नहीं होने चाहिएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 9.
स्वतंत्रता के किन्हीं चार प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के चार प्रकार निम्नलिखित हैं

  • प्राकृतिक स्वतंत्रता,
  • नागरिक स्वतंत्रता,
  • आर्थिक स्वतंत्रता तथा
  • राजनीतिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 10.
स्वतंत्रता के किन्हीं तीन संरक्षकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के तीन संरक्षक निम्नलिखित हैं

  • मौलिक अधिकारों की घोषणा,
  • प्रजातंत्र व्यवस्था का होना,
  • कानून का शासन।

प्रश्न 11.
सकारात्मक स्वतंत्रता की किन्हीं तीन विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है।
  • सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ विशेषाधिकारों का अभाव है।
  • राज्य स्वतंत्रताओं का रक्षक है।

प्रश्न 12.
स्वतंत्रता के मार्क्सवादी सिद्धांत की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • पूंजीवादी व्यवस्था में स्वतंत्रता संभव नहीं है।
  • हिंसात्मक क्रांति द्वारा परिवर्तन।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका का अभाव।

प्रश्न 13.
स्वतंत्रता के मार्क्सवादी सिद्धांत की आलोचना के दो शीर्षकों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • व्यक्तिगत संपत्ति का विरोध गलत है।
  • पूंजीवादी समाज की आलोचना अनुचित।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता शब्द को अंग्रेज़ी भाषा में ‘Liberty’ कहते हैं। ‘लिबर्टी’ शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से निकला है, जिसका अर्थ है-‘पूर्ण स्वतंत्रता’ अथवा किसी प्रकार के बंधनों का न होना। इस प्रकार स्वतंत्रता का अर्थ है-व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बंधन नहीं होना चाहिए, परंतु स्वतंत्रता का यह अर्थ गलत है। स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबंध नहीं होने चाहिएं, वरन उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जिनसे उसे अपना विकास करने में सहायता मिलती हो।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की कोई तीन परिभाषाएँ लिखिए।
उत्तर:
1. गैटेल के अनुसार, “स्वतंत्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनंद प्राप्त होता है जो कि करने योग्य हैं।”

2. कोल के अनुसार, “बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने का नाम स्वतंत्रता है।”

3. प्रो० लास्की के अनुसार, “स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण की उत्साहपूर्ण रक्षा करना है जिससे मनुष्य को अपना उज्ज्वलतम स्वरूप प्रकट करने का अवसर प्राप्त होता है।” अतः स्वतंत्रता अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों का होना है। स्वतंत्रता उस वातावरण को कहा जा सकता है, जिसका लाभ उठाकर व्यक्ति अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास कर सके।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता की कोई पाँच विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • सभी तरह की पाबंदियों का अभाव स्वतंत्रता नहीं है।
  • निरंकुश, अनैतिक, अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
  • स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होती है।
  • व्यक्ति को वह सब कार्य करने की स्वतंत्रता है जो करने योग्य हैं।
  • स्वतंत्रता का प्रयोग समाज के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
नागरिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नागरिक स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है जो व्यक्ति को एक संगठित समाज का सदस्य होने के रूप में मिलती है। जीवन के विकास के लिए व्यक्ति को अनेक प्रकार की सुविधाओं की आवश्यकता होती है। ऐसी सुविधाएं केवल संगठित समाज में ही संभव हो सकती हैं। समाज में रह रहे व्यक्ति को राज्य के कानूनों के प्रतिबंधों के प्रसंग में जो सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उन सुविधाओं को सामूहिक रूप से नागरिक स्वतंत्रता का नाम दिया जाता है।

नागरिक स्वतंत्रता प्राकृतिक स्वतंत्रता के बिल्कुल विपरीत है। प्राकृतिक स्वतंत्रता संगठित समाज में प्रदान नहीं की जा सकती, जबकि नागरिक स्वतंत्रता केवल संगठित समाज में ही संभव हो सकती है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय राजनीतिक अधिकारों का प्राप्त होना है। ऐसे अधिकार केवल प्रजातांत्रिक समाज में ही प्राप्त हो सकते हैं। जिन राज्यों में राजनीतिक अधिकार प्रदान नहीं किए जाते, वहां राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व नहीं हो सकता। राजनीतिक स्वतंत्रता का अभिप्राय राज्य के कार्यों में भाग लेने के सामर्थ्य से है। मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने का अधिकार, याचिका देने का अधिकार आदि कुछ ऐसे राजनीतिक अधिकार हैं जिनकी प्राप्ति पर ही राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व निर्भर करता है।

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता के दो संरक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के दो संरक्षण निम्नलिखित हैं

1. लोकतंत्र की व्यवस्था लोकतंत्रीय व्यवस्था में ही लोगों को स्वतंत्रता अधिक समय तक और अधिक-से-अधिक मात्रा में मिल सकती है। स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक आधार है और शासक जनता के प्रतिनिधि होने के कारण आसानी से स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते।

2. मौलिक अधिकारों की घोषणा अधिकारों का अतिक्रमण होने की संभावना राज्य की ओर से अधिक होती है। मौलिक अधिकार संविधान में लिखे होते हैं। ऐसा होने से अधिकारों का हनन राज्य द्वारा या व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता। मौलिक अधिकारों की घोषणा से स्वतंत्रता की रक्षा होती है।

प्रश्न 7.
स्वतंत्रता के सकारात्मक दृष्टिकोण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष से अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को वह सब कुछ करने की स्वतंत्रता है जो सभ्य समाज में करने के योग्य होता है। स्वतंत्रता के इस पक्ष का अर्थ प्रत्येक प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनैतिक, निरंकुश तथा अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों का अभाव है। स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष का अभिप्राय एक ऐसा वातावरण स्थापित करना है, जिसमें मनुष्य को अपना सर्वोत्तम विकास करने के लिए उपयुक्त अवसर प्राप्त हों। स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप का साधारण अर्थ है करने योग्य कार्यों को करने तथा उपभोग योग्य वस्तुओं का उपभोग करने की स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
आर्थिक स्वतंत्रता तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के संबंधों का वर्णन करें।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है-भूख और अभाव से मुक्ति। जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अवसर, काम की उचित मजदूरी की व्यवस्था तथा आर्थिक अभाव से छुटकारा । राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है-मत डालने, चुनाव लड़ने, सार्वजनिक पद प्राप्त करने और सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता। राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता में घनिष्ठ संबंध है।

जहाँ आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है, वहां राजनीतिक स्वतंत्रता कोई अर्थ नहीं है और यह वास्तविक नहीं है। एक भूखे व्यक्ति के लिए मताधिकार का भी कोई मूल्य नहीं, यदि वह अपनी रोजी-रोटी के लिए दूसरे की दया पर निर्भर है। एक मजदूर को यदि उसका मालिक बिना कारण तुरंत नौकरी से निकाल सकता है और उसे भूखा मरने पर मजबूर कर सकता है तो क्या वह मजदूर अपने मत का प्रयोग अपने मालिक की इच्छा के विरुद्ध नहीं कर सकता।

एक भूखे व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ने के अधिकार का तो कोई अर्थ ही नहीं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए धन चाहिए। गरीबी के कारण वोट बेचे जाते हैं और धनवान व्यक्ति उन्हें खरीदते हैं। यह भी सत्य है कि जिस व्यक्ति का धन पर नियंत्रण है, उसका प्रशासन पर भी प्रभाव जम जाता है। एक दिन की मजदूरी खोकर कोई भी मजदूर अपनी आत्मा की आवाज़ के अनुरूप वोट डालने नहीं जा सकता। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता में गहरा संबंध है तथा दोनों साथ-साथ ही रह सकती हैं।

प्रश्न 9.
आधुनिक राज्य में स्वतंत्रता किस प्रकार सुरक्षित रखी जा सकती है? अथवा स्वतंत्रता की सुरक्षा के कोई पांच उपाय बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्रता मनुष्य के विकास व उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वतंत्रता की सुरक्षा के विभिन्न उपायों में से पांच उपाय अग्रलिखित हैं

1. प्रजातंत्र-स्वतंत्रता व प्रजातंत्र में गहरा संबंध है। स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रजातंत्र में ही की जा सकती है क्योंकि इस प्रकार की प्रणाली में जनता की सरकार होती है और लोगों के अधिकारों को छीना नहीं जा सकता। इसके विपरीत राजतंत्र प्रणाली में स्वतंत्रता की सुरक्षा नहीं हो सकती।

2. मौलिक अधिकारों की घोषणा जनता को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए लोगों के मौलिक अधिकारों की घोषणा कर उन्हें संविधान में लिख दिया जाता है, ताकि संविधान द्वारा लोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा हो सके।

3. स्वतंत्र प्रेस स्वतंत्र प्रेस भी लोगों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने में सहायता करती है। यदि प्रेस पर अनुचित दबाव हो तो कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक प्रकट नहीं कर सकता। स्वतंत्र प्रेस ही सरकार की सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखती है।

4. कानून का शासन-कानून का शासन स्वतंत्रता की सुरक्षा करता है। कानून के सामने सभी समान होने चाहिएं और सभी लोगों के लिए एक-सा कानून होना चाहिए। इससे शासन वर्ग की स्वेच्छाचारिता पर रोक लगती है।

5. स्वतंत्र न्यायपालिका स्वतंत्र न्यायपालिका लोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा करती है। कानून कितने ही अच्छे क्यों न हों, जब तक न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होती, कानूनों को सही ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। अतः कानूनों को लागू करने के लिए न्यायाधीश स्वतंत्र, निडर व ईमानदार होने चाहिएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 10.
क्या स्वतंत्रता पूर्ण होती है?
उत्तर:
स्वतंत्रता वास्तविक रूप में पूर्ण नहीं हो सकती। किसी भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से वह सब कुछ करने का अवसर या आजादी नहीं दी जा सकती जो वह करना चाहता है। समाज में रहते हुए व्यक्ति सामाजिक नियमों व कर्तव्यों से बंधा हुआ होता है और उसे अपने सभी कार्य दूसरों के सुख-दुःख, सुविधा-असुविधा को ध्यान में रखकर करने पड़ते हैं। पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ है स्वेच्छाचारिता, जो सामाजिक जीवन में संभव नहीं है।

समाज लोगों के आपसी सहयोग पर खड़ा है और कार्य कर रहा है। यदि प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए मनमानी करेगा तो समाज की शांति समाप्त हो जाएगी तथा जंगल जैसा वातावरण पैदा हो जाएगा। एक सभ्य समाज में हम पूर्ण स्वतंत्रता की कल्पना भी नहीं कर सकते। इस प्रकार स्वतंत्रता पूर्ण नहीं होती, बल्कि उचित प्रतिबंधों के अस्तित्व में ही कायम रहती है।

प्रश्न 11.
“शाश्वत जागरूकता ही स्वतंत्रता की कीमत है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
प्रो० लास्की ने ठीक ही कहा है, “शाश्वत जागरुकता ही स्वतंत्रता की कीमत है।” स्वतंत्रता की सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय स्वतंत्रता के प्रति जागरुक रहना है। नागरिकों में सरकार के उन कार्यों के विरुद्ध आंदोलन करने की हिम्मत व हौंसला होना चाहिए जो उनकी स्वतंत्रता को नष्ट करते हों। सरकार को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि यदि उसने नागरिकों की स्वतंत्रता को कुचला तो नागरिक उसके विरुद्ध पहाड़ की तरह खड़े हो जाएंगे। लास्की के शब्दों में, “नागरिकों की महान भावना, न कि कानूनी शब्दावली स्वतंत्रता की वास्तविक संरक्षक है।”

प्रश्न 12.
कानून तथा स्वतंत्रता में क्या संबंध है? अथवा ‘कानून स्वतंत्रता का विरोधी नहीं है।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिवादियों के मतानुसार, राज्य जितने अधिक कानून बनाता है, व्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही कम होती है। अतः उनका कहना है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कम-से-कम करे। परंतु आधुनिक लेखकों के मतानुसार स्वतंत्रता तथा कानून परस्पर विरोधी न होकर परस्पर सहायक तथा सहयोगी हैं।

राज्य ही ऐसी संस्था है जो कानूनों द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का आनंद उठा सकता है। राज्य कानून बनाकर एक नागरिक को दूसरे नागरिक के कार्यों में हस्तक्षेप करने से रोकता है। राज्य कानूनों द्वारा सभी व्यक्तियों को समान सुविधाएं प्रदान करता है, ताकि मनुष्य अपना विकास कर सके। स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। लॉक ने ठीक ही कहा है, “जहाँ कानून नहीं, वहां पर स्वतंत्रता भी नहीं।”

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? स्वतंत्रता के नकारात्मक तथा सकारात्मक सिद्धांतों का वर्णन करें।
अथवा
नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर बतलाइए। अथवा सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता का मानव समाज में बड़ा महत्त्व है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा उसकी प्रसन्नता के लिए इसका होना बहुत ही आवश्यक है। स्वतंत्र व्यक्ति ही अपने जीवन को अपनी इच्छा के अनुसार ढालकर उसे प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत कर सकता है। एक व्यक्ति को दूसरे के आदेश से किसी कार्य को करने में उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी कि उसे उसी कार्य को अपनी इच्छा के अनुसार करने से होती है।

इसके अतिरिक्त अपने व्यक्तिगत मामलों को जितनी अच्छी तरह से एक व्यक्ति स्वयं समझ सकता है और उनकी गुत्थियों को सुलझा सकता है, उतनी अच्छी तरह से दूसरा व्यक्ति न तो उन मामलों को समझ सकता है और न ही उनकी गुत्थियों को सुलझा सकता है। स्वतंत्रता से व्यक्ति का नैतिक स्तर भी ऊंचा होता है। उसमें आत्म-विश्वास, स्वावलंबिता तथा कार्य को प्रारंभ करने की शक्ति आदि गुण उत्पन्न होते हैं।

इस दृष्टिकोण से यह प्रजातंत्र के लिए भी आवश्यक है। वास्तव में, स्वतंत्रता प्रजातंत्र का आधार है। इंग्लैंड में तो स्वतंत्रता, जिसका अर्थ उस समय जनता के स्वार्थों की रक्षा करना ही समझा जाता था, की भावना तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ही दिखाई दी थी, जब मैग्ना कार्टा (MagnaCarta) नामक नागरिक स्वतंत्रता के अधिकार-पत्र की राजा जॉन के द्वारा घोषणा करवाई गई, परंतु इसका विस्तार से प्रचार व प्रसार सत्रहवीं शताब्दी में ही हुआ।

इंग्लैंड की महान क्रांति तथा फ्रांस की क्रांति ने यूरोप के सभी देशों में स्वतंत्रता की भावना फैला दी। फ्रांस की क्रांति के बाद लोकतंत्र के सिद्धांतों (Liberty, Equality, Fraternity) का झंडा सर्वत्र फहराया जाने लगा। बीसवीं शताब्दी तक यह झंडा एशिया व अफ्रीका के देशों में भी फहराया जाने लगा। व्यक्तिगत व राष्ट्रीय स्वतंत्रता अब भी सभी लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता है। स्वतंत्रता अर्थात Liberty शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से बना है, जिसका अर्थ है ‘कोई भी कार्य अपनी इच्छा के अनुसार करने की स्वतंत्रता’

साधारण व्यक्ति इस शब्द का अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता से लेता है जो बिल्कुल प्रतिबंध-रहित हो, परंतु राजनीति शास्त्र में प्रतिबंध-रहित स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता (Licence) है, स्वतंत्रता नहीं। राजनीति शास्त्र में स्वतंत्रता का अर्थ उस हद तक स्वतंत्रता है, जिस हद तक वह दूसरों के रास्ते में बाधा नहीं बनती। इसलिए स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं, ताकि प्रत्येक व्यक्ति की समान स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।

इसी कारण से मैक्नी ने कहा है, “स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि युक्तिरहित प्रतिबंधों के स्थान पर युक्तियुक्त प्रतिबंधों को लगाना है।” इसकी पुष्टि करते हुए जे०एस० मिल ने कहा है, “स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि हम अपने हित के अनुसार अपने ढंग से उस समय तक चल सकें जब तक कि हम दूसरों को उनके हिस्से से वंचित न करें और उनके प्रयत्नों को न रोकें।”

मानव अधिकारों की घोषणा (1789) में भी स्वतंत्रता का अर्थ इसी प्रकार से दिया है। इस घोषणा के अनुसार स्वतंत्रता व्यक्ति की वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति वे सभी कार्य कर सकता है जो दूसरों के उसी प्रकार के अधिकारों पर कोई दुष्प्रभाव न डालें।

राजनीति विज्ञान के आधुनिक विद्वान स्वतंत्रता को केवल बंधनों का अभाव नहीं मानते, बल्कि उनके अनुसार स्वतंत्रता सामाजिक बंधनों में जकड़ा हुआ अधिकार है।

(क) स्वतंत्रता के दो रूप (Two Aspects of Liberty) स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप के समर्थक लॉक, एडम स्मिथ, हरबर्ट स्पैंसर, जे०एस०मिल आदि हैं। प्रारंभिक उदारवादियों ने नकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया। इस प्रकार एडम स्मिथ व रिकार्डो आदि अर्थशास्त्रियों ने खुली प्रतियोगिता का समर्थन किया और कहा कि राज्य को व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) ने अपनी पुस्तक ‘On Liberty’ में व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में विभाजित किया है-स्व-संबंधी कार्य व पर-संबंधी कार्य। मिल व्यक्ति के स्व-संबंधी कार्यों में राज्य के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करता। यहां तक कि व्यक्ति के गलत कार्यों में राज्य को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इनका संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से होता है,

परंतु यदि व्यक्ति के कार्यों का प्रभाव दूसरे व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है तो राज्य या समाज उसमें हस्तक्षेप कर सकता है। इसलिए जे०एस० मिल व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्र छोड़ देने के पक्ष में है। व्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए।

1. स्वतंत्रता का नकारात्मक स्वरूप (Negative Aspect of Liberty):
स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी में ‘लिबर्टी’ (Liberty) शब्द का प्रयोग किया जाता है। लिबर्टी शब्द लेटिन भाषा के Liber शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है-स्वतंत्र। इसका प्रायः यही अर्थ लिया जाता है कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की छूट हो। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति जैसा चाहे करे, उस पर कोई नियंत्रण या बंधन न हो, उसके काम का दूसरों पर चाहे जो भी प्रभाव पड़े।

इस प्रकार इसका अर्थ है-‘सभी प्रतिबंधों का अभाव’, परंतु सभ्य समाज में रहकर इस प्रकार की अनियंत्रित स्वतंत्रता मिलनी असंभव है। समाज में रहकर व्यक्ति अपनी इच्छा से जो चाहें, नहीं कर सकते। किसी भी व्यक्ति को चोरी करने या दूसरों को मारने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। यह स्वतंत्रता का निषेधात्मक या नकारात्मक अर्थ है। समाज व्यक्ति को स्वेच्छा-अधिकार नहीं दे सकता, क्योंकि वह तो स्वतंत्रता न होकर उच्छृखलता हो जाती है। इससे ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। ऐसी स्वतंत्रता केवल सबल व्यक्ति ही उपयोग में ला सकेंगे, निर्बलों के लिए उसका कोई अर्थ नहीं होगा।

स्वतंत्रता के नकारात्मक स्वरूप के विश्लेषण के पश्चात इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्टं होती हैं

  • कानून एक बुराई है, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है।
  • व्यक्ति को विकास के लिए विभिन्न राजनीतिक व नागरिक स्वतंत्रताएं मिलनी चाहिएं।
  • व्यक्ति को स्व-कार्यों में पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • आर्थिक गतिविधियों और विचार व भाषण पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
  • पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थन करते हैं।
  • मताधिकार को व्यापक बनाना चाहिए।
  • सरकार का कार्यक्षेत्र सीमित होना चाहिए। वह सरकार सबसे अच्छी सरकार है जो सबसे कम काम करती है।

2. स्वतंत्रता का सकारात्मक स्वरूप (Positive Aspect of Liberty):
नकारात्मक स्वतंत्रता, स्वतंत्रता न होकर लाइसैंस बन जाती है। इससे व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से बिना किसी प्रतिबन्ध के कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इससे किसी को स्वतंत्रता नहीं मिलती। स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है, “प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा काम करने की छूट, जिससे दूसरों को हानि न पहुंचे।” समाज में रहते हुए मनुष्य सीमित और नियंत्रित स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकता है।

सभी पर न्यायोचित और समान प्रतिबंध होना चाहिए, जिससे स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं होता, बल्कि ऐसे प्रतिबंधों का अभाव होता है जो अन्यायपूर्ण, असमान तथा अनुचित हों। परंतु स्वतंत्रता केवल नकारात्मक अर्थ ही नहीं रखती, वरन उसका एक सकारात्मक अर्थ भी है। इसका अर्थ केवल अन्यायपूर्ण, अनुचित तथा असमान प्रतिबंधों का अभाव ही नहीं है,

बल्कि उन अवसरों की उपस्थिति भी है जो व्यक्ति को करने योग्य कामों को करने के और भोगने योग्य वस्तुओं को भोगने के योग्य बनाती है। इस प्रकार सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है “वे परिस्थितियां, जिसमें मनुष्यों को अपने व्यक्तित्व के विकास का और अपने आपको अच्छा बनाने का पर्याप्त अवसर मिलता है।”

(ख) सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क (Arguments in Favour of Positive Liberty):
सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थकों का कहना है कि राज्य के कानून तथा नियम मनुष्यों की स्वतंत्रता का विनाश नहीं करते, बल्कि उसकी स्वतंत्रता में वृद्धि करते हैं। लेकिन जो प्रतिबंध राज्य द्वारा लगाए जाएं, वे जनता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए लगाए जाने चाहिएं। यदि वे प्रतिबंध व्यक्ति के कार्यों में किसी प्रकार भी बाधक होंगे तो यह स्वतंत्रता के लिए हानिकारक है।

स्वतंत्रता का सकारात्मक सिद्धांत मनुष्य को उस स्तर तक उठाने से संबंधित है जिस स्तर तक वह अपने मानसिक और नैतिक गुणों का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग कर सके। यह सरकार का दायित्व है कि वह नागरिकों को इसके लिए शिक्षित करे और उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाए। इस सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि व्यक्ति क्योंकि स्वयं विचारशील है, उसे स्वयं सोचना चाहिए कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति अपने हित के अनुसार ही कार्य करता है।

लास्की, लॉक, टी०एच० ग्रीन, मैक्नी, मैकाइवर और गैटेल आदि स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव नहीं है। मनुष्य समाज में रहता है और समाज का हित ही उसका हित है। समाज-हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के अवसर की प्राप्ति ही ब्दों में, “स्वतंत्रता एक सकारात्मक चीज है। इसका मतलब केवल बंधनों का अभाव नहीं है।” लास्की के अनुसार, “स्वतंत्रता से मेरा अभिप्राय उस वातावरण की स्थापना से है, जिसमें मनुष्यों को अपना सर्वोत्तम विकास करने का अवसर मिलता है।”

टी०एच० ग्रीन के अनुसार, “स्वतंत्रता से अभिप्राय प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। स्वतंत्रता का सही अर्थ है उन कार्यों को करने या उन सुखों को भोग सकने की क्षमता जो वास्तव में भोगने योग्य हों।” संक्षेप में, सकारात्मक स्वतंत्रता का क्षेत्र नकारात्मक स्वतंत्रता के क्षेत्र से कहीं अधिक विस्तृत तथा व्यापक है। सकारात्मक स्वतंत्रता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक उचित प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं, परंतु वे अनुचित प्रतिबंधों के विरुद्ध हैं। सामाजिक हित के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

(2) स्वतंत्रता का अर्थ केवल नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी है। आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है आर्थिक सुरक्षा की भावना जिसे राज्य अपने अनेक कानूनों द्वारा उपलब्ध कराएगा।

(3) राज्य का कार्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।

(4) राज्य का कार्य ऐसी परिस्थितियां पैदा करना है जो व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।

(5) स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं हैं। कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।

(6) स्वतंत्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान होना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।

(7) स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है। जितनी अधिक स्वतंत्रता होगी, उतने ही अधिक अधिकार होंगे। अधिकारों के बिना व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार कौन-कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए। अथवा स्वतंत्रता का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता को अंग्रेजी में ‘Liberty’ कहते हैं, जो लैटिन भाषा के शब्द ‘Liber’ से निकला है, जिसका अर्थ है “सब प्रतिबंधों का अभाव अर्थात प्रत्येक मनुष्य पर से सब प्रकार के प्रतिबंध हटा दिए जाएं और उसे अपनी इच्छानुसार कार्य करने का अधिकार दे दिया जाए।” परंतु राजनीति विज्ञान में स्वतंत्रता का अर्थ उस हद तक स्वतंत्रता है जिस हद तक वह दूसरों की स्वतंत्रता के मार्ग में बाधा नहीं बनती। यदि व्यक्ति को सभी प्रकार के कार्य करने की स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में अराजकता उत्पन्न हो जाएगी।

इसका अर्थ यह होगा कि केवल शक्तिशाली ही अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकेंगे और समाज में एक ही कानून होगा-“जिसकी लाठी उसकी भैंस”। किसी भी व्यक्ति को चोरी करने या दूसरों की हत्या करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। अतः स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है-“प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा कार्य करने की छूट जिससे दूसरों को हानि न पहुंचे।”

परंतु स्वतंत्रता केवल नकारात्मक अर्थ ही नहीं रखती, बल्कि उसका सकारात्मक अर्थ भी है। इस रूप में स्वतंत्रता का अर्थ केवल अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबंधों का अभाव ही नहीं, बल्कि उन अवसरों की उपस्थिति भी है, जो व्यक्ति को करने योग्य कार्यों को करने और भोगने योग्य वस्तुओं को भोगने का अवसर भी प्रदान करती है। विभिन्न विद्वानों द्वारा स्वतंत्रता की विभिन्न परिभाषाएं और विभिन्न अर्थ बताए गए हैं तथा परिभाषाओं के आधार पर ही स्वतंत्रता के विभिन्न तत्त्वों का उल्लेख किया गया है। अतः उन तत्त्वों के आधार पर स्वतंत्रता के निम्नलिखित विभिन्न रूपों का वर्णन किया जा सकता है

1. प्राकृतिक स्वतंत्रता (Natural Liberty):
प्राकृतिक स्वतंत्रता की कल्पना समझौतावादी विचारकों ने विशेष रूप से की है। प्राकृतिक स्वतंत्रता का ठीक-ठीक अर्थ क्या है, यह कहना कठिन है। रूसो के कथनानुसार, “मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न होता है, किंतु प्रत्येक स्थान पर वह बंधन से बंधा हुआ है।” इसका अर्थ है कि प्रकृति ने व्यक्ति को स्वतंत्र पैदा किया है और यदि उसमें कोई दासता की भावना है, तो वह समाज द्वारा दी गई स्वतंत्रता का परिणाम है।

समाज बनने से पहले व्यक्ति जंगल में रहने वाले पशु-पक्षियों की तरह स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करता था। प्राकृतिक स्वतंत्रता के होने से सब व्यक्ति इच्छानुसार जीवन व्यतीत करते थे और वे किसी कानून या नियम से नहीं बंधे हुए थे। उस समय तेरे-मेरे की भावना नहीं थी, आवश्यकता की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में लोगों को मिल जाया करती थीं, इसलिए मनुष्य प्राकृतिक स्वतंत्रता का उपभोग करता था।

परंतु इस मत से अधिकांश विचारक सहमत नहीं हैं, क्योंकि निरंकुश स्वतंत्रता का अर्थ है कि कोई भी स्वतंत्र नहीं है। प्राकृतिक स्वतंत्रता केवल जंगल की स्वतंत्रता है जो वास्तव में स्वतंत्रता है ही नहीं। सच्चे अर्थ में तो स्वतंत्रता केवल राजनीतिक दृष्टि से संगठित समाज में ही पाई जा सकती है। प्राकृतिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता के बीच मौलिक अंतर यह है कि प्राकृतिक स्वतंत्रता व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति के आधार पर ही प्राप्त करता है, जबकि नागरिक स्वतंत्रता का संरक्षण राज्य करता है। प्राकृतिक स्वतंत्रता बलवानों की वस्तु है, किंतु नागरिक स्वतंत्रता सभी की वस्तु है।

2. नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberty) नागरिक स्वतंत्रता प्राकृतिक स्वतंत्रता से उलट है। जहाँ प्राकृतिक स्वतंत्रता राज्य की स्थापना से पहले मानी जाती है, वहां नागरिक स्वतंत्रता राज्य के द्वारा सुरक्षित मानी जाती है। गैटेल के अनुसार, “नागरिक स्वतंत्रता में वे अधिकार और विशेषाधिकार शामिल हैं जिन्हें राज्य अपनी प्रजा के लिए बनाता और सुरक्षित रखता है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक (व्यक्ति) को कानून की सीमा के अंदर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने का अधिकार है। इसमें दूसरे लोगों के हस्तक्षेप से रक्षा करना या सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा करना शामिल हो सकते हैं।”

इस प्रकार नागरिक स्वतंत्रता उन अधिकारों के समूह का नाम है जो कानून के द्वारा मान लिए गए हों और राज्य जिनको सुरक्षित रखता हो। दूसरे शब्दों में, इसी बात को गिलक्राइस्ट इस प्रकार कहते हैं कि कानून दो प्रकार के होते हैं सार्वजनिक (Public) तथा व्यक्तिगत (Private)। सार्वजनिक कानून स्वतंत्रता की सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा करता है। बार्कर के अनुसार, “नागरिक स्वतंत्रता तीन प्रकार की है-

  • शारीरिक स्वतंत्रता,
  • मानसिक स्वतंत्रता और
  • व्यावहारिक स्वतंत्रता।

वह शारीरिक स्वतंत्रता में जीवन, स्वास्थ्य और घूमना-फिरना, मानसिक स्वतंत्रता में विचारों और विश्वासों का प्रकट करना तथा व्यावहारिक स्वतंत्रता में दूसरे व्यक्तियों के साथ संबंधों और समझौतों से संबंधित कार्यों में अपनी इच्छा और छांट आदि को शामिल करता है।”

अमेरिका के संविधान में भी नागरिक स्वतंत्रताओं का उल्लेख मिलता है। संविधान में कहा गया है कि कानून की उचित प्रक्रिया के बिना किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की हद तथा तरीके का आधार सरकार का रूप है। प्रजातंत्र में नागरिक स्वतंत्रता अधिक सुरक्षित होती है, जबकि स्वेच्छाचारी सरकार में इसकी अधिक सुरक्षा नहीं होती।

इससे यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए । नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन नहीं होता। लोकतंत्र में भी व्यक्तियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं, जिनसे नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लग जाती है, जैसे भारत के संविधान में विभिन्न स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं। इसके साथ संविधान में ही निवारक नजरबंदी कानून, भारत सुरक्षा अधिनियम, आंतरिक सुरक्षा कानून आदि के द्वारा समाज व राष्ट्र की सुरक्षा का बहाना लेकर नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा दी गई है।

अतः नागरिक स्वतंत्रता का बहुत अधिक महत्त्व है। इस स्वतंत्रता के आधार पर ही देश की उन्नति व विकास का अनुमान लगाया जा सकता है। जिस देश में नागरिक स्वतंत्रता जितनी अधिक होगी, वह देश उतना ही विकासशील होगा।

3. आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Liberty):
प्रजातंत्र तभी वास्तविक हो सकता है जब राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता भी हो। लेनिन के शब्दों में, “नागरिक स्वतंत्रता आर्थिक स्वतंत्रता के बिना निरर्थक है।” आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ वह नहीं, जिसे पूंजीवादी मुक्त प्रतिद्वंद्विता (Free Competition) कहते हैं वरन इसका अर्थ शोषण का अभाव और मालिक के अत्याचार से मुक्ति है।

प्रो० लास्की के अनुसार, “आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ मनुष्य को अपना दैनिक भोजन कमाते हुए युक्तियुक्त रूप में सुरक्षा व अवसर प्राप्त होना है।” प्रत्येक नागरिक को बेकारी और अभाव के भय से स्वतंत्र बनाया जाना ही सच्ची स्वतंत्रता है। आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कराने के लिए ऐसी आर्थिक व्यवस्था स्थापित की जाए जिसमें व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से अन्य व्यक्तियों के अधीन न रहे।

सब व्यक्तियों को अपनी आर्थिक उन्नति करने का समान अवसर प्राप्त हो। यदि इसके लिए राज्य को व्यक्ति के आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप भी करना पड़े तो उसे करना चाहिए। आर्थिक स्वतंत्रता का यह विचार उस आर्थिक व्यवस्था की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ है, जिसमें पूंजीपति श्रमिकों का मनमाना शोषण करते थे और उनकी मजदूरी का एक बड़ा भाग स्वयं हड़प करके धनी बन जाते थे।

इसलिए जिस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक शक्ति को कुछ लोगों के हाथों से निकालकर जनता के हाथों में सौंपा गया, उसी प्रकार आर्थिक शक्ति भी थोड़े-से पूंजीपतियों के हाथों से निकालकर जन-साधारण को दी जानी चाहिए। इसके लिए एक ओर मजदूरों के कुछ आर्थिक अधिकार हों; जैसे काम पाने,

उचित घंटे काम करने, उचित मजदूरी पाने, अवकाश पाने, बेकारी, बीमारी, बुढ़ापे और दुर्घटना की अवस्था में सहायता व सुरक्षा पाने तथा मजदूर संघ बनाकर अपने हितों की रक्षा करने के अधिकार तो दूसरी ओर मजदूरों को उद्योग-धंधों के प्रबंध में भागीदार बनाया जाना चाहिए। समाजवादी विचारक भी इसी बात पर बल देते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता व्यर्थ है।

4. राष्ट्रीय स्वतंत्रता (National Liberty):
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है-विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्रता। जनता की राजनीतिक तथा नागरिक स्वतंत्रता तभी संभव है जब राष्ट्र स्वयं पूर्ण रूप से प्रभुसत्ता-संपन्न राज्य हो। साम्राज्यवादी देश के अधीन रहने पर विदेशी सत्ता जनता को अपनी सरकार बनाने या शासन में हिस्सा लेने का मौका नहीं देती तथा शासन के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को भाषण, संगठन, प्रकाशन आदि तक नहीं करने देती।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता साम्राज्यवाद को नष्ट करना चाहती है। व्यक्ति का पूर्ण विकास एक स्वतंत्र राष्ट्र में ही हो सकता है। इसलिए व्यक्ति की उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्वतंत्रता आवश्यक है। भारत ने 15 अगस्त, 1947 को राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त की। तभी से जनता को वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव होने लगा।

5. व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty):
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अभिप्राय उन कार्यों को करने की स्वतंत्रता है जो व्यक्ति के अपने निजी जीवन से संबंधित हों। कुछ मामले ऐसे हैं जो व्यक्ति के निजी जीवन से संबंधित होते हैं। ऐसे कार्यों में कोई भी व्यक्ति दूसरे का हस्तक्षेप सहन नहीं करता, यहाँ तक कि निजी संबंधियों का भी हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाता।

अपने निजी मामलों में प्राप्त स्वतंत्रता को व्यक्तिगत स्वतंत्रता कहते हैं, जैसे वस्त्र, रहन-सहन, पारिवारिक जीवन, विवाह-संबंध आदि। मिल का कहना है, “प्रत्येक व्यक्ति के कुछ कार्य ऐसे हैं जिनका दूसरों पर प्रभाव नहीं पड़ता और इन मामलों में उसे पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी आवश्यक है, परंतु वास्तव में व्यक्ति का ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसका प्रभाव केवल उसी तक सीमित हो, दूसरों पर भी उसका कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है।

व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में भी सामाजिक हित, कानून और व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्र की सुरक्षा आदि के आधार पर कुछ अंकुश लगाए जाते हैं। निरंकुशता या पूर्ण स्वतंत्रता जैसी कोई बात समाज में नहीं हो सकती।”

6. राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty):
राजनीतिक स्वतंत्रता व्यक्ति के राजनीतिक जीवन को उन्नत और विकसित करने के लिए आवश्यक है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को जो राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं, उनका यह स्वतंत्रतापूर्वक प्रयोग करे, वह कानून-निर्माण तथा प्रशासन में भाग ले। लास्की ने कहा है, “राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति से है।

यह स्वतंत्रता केवल लोकतंत्र में ही संभव है, राजतंत्र और तानाशाही में नहीं। प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मतदान की स्वतंत्रता, चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता, सार्वजनिक पद प्राप्त करने की स्वतंत्रता, सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता केवल लोकतंत्र में ही मिलती है। अधिनायकतंत्र में यह स्वतंत्रता लोगों को प्राप्त नहीं होती।

लीकॉक महोदय ने राजनीतिक स्वतंत्रता को संवैधानिक स्वतंत्रता का नाम दिया है और कहा है कि जनता को अपनी सरकार स्वयं चुनने का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता के अंतर्गत केवल सरकार के कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं है, बल्कि सरकार का विरोध करना भी इसके अंतर्गत आता है।

राजनीतिक दलों का निर्माण करना व उनकी सदस्यता ग्रहण करना इस स्वतंत्रता में आते हैं। इस प्रकार की स्वतंत्रता साम्यवादी राज्यों में प्रदान नहीं की जाती है। अंत में इस प्रकार की स्वतंत्रता को सीमित तो किया जा सकता है, लेकिन पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए राजनीतिक क्षेत्र में उसे अधिकार देना अत्यंत आवश्यक है।

7. धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Liberty):
धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके विश्वास के अनुसार किसी धर्म को मानने, पूजा-पाठ करने व धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है, इसलिए व्यक्ति अपने धर्म में किसी दूसरे व्यक्ति या राज्य के हस्तक्षेप को सहन नहीं करता। आधुनिक युग में अधिकांश देशों ने अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है।

जिन देशों में विभिन्न संप्रदायों के लोग निवास करते हैं, वहां धार्मिक स्वतंत्रता का महत्त्व और भी अधिक होता है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने से अल्पसंख्यकों में देश के शासन के प्रति विश्वास बना रहता है और राज्य में स्थिरता आती है। भारत ने इसी भावना के अनुसार धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया है। भारतीय संविधान में धारा 25 से 28 तक प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में कोई मतभेद नहीं करेगा। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है।

8. नैतिक स्वतंत्रता (Moral Liberty):
स्वतंत्रता केवल बाह्य परिस्थितियों द्वारा ही प्रदान नहीं की जा सकती। यह एक मनोवैज्ञानिक भावना है जिसे मनुष्य अनुभव करता है। व्यक्ति केवल तभी पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो सकता है, जब वह नैतिक रूप से भी स्वतंत्र हो। नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि व विवेक के अनुसार तथा अन्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व को सम्मान प्रदान करते हुए निर्णय ले सके तथा कार्य कर सके।

आदर्शवादी राजनीतिक विचारकों ने नैतिक स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया है। हीगल (Hegel), ग्रीन (Green) व बोसांके (Bosanquet) के अनुसार, “नैतिक स्वतंत्रता केवल राज्य में ही प्राप्त की जा सकती है। राज्य उन परिस्थितियों का निर्माण करता है, जिनमें रहकर मनुष्य नैतिक उन्नति कर सकता है और नैतिक रूप से स्वतंत्र हो सकता है।”

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मुख्य उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग की आवश्यक दो दशाएं बताइए। अथवा स्वतंत्रता के मुख्य सरंक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अति आवश्यक है। स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं वरन व्यक्ति के विकास के लिए उचित परिस्थितियों का रहना है, इसलिए स्वतंत्रता में वे अधिकार तथा परिस्थितियां शामिल हैं, जिनसे मनुष्य को अपने व्यक्तित्व के विकास में सहायता मिलती है। राज्य उन अधिकारों को सुरक्षित रखता है।

इसके लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे न तो सरकार और न ही लोग किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को नष्ट कर सकें। इसलिए निम्नलिखित साधन स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए अपनाए जाते हैं स्वतंत्रता के संरक्षण (Safeguard of Liberty) स्वतंत्रता के संरक्षण निम्नलिखित हैं

1. प्रजातंत्र की स्थापना (Establishment of Democracy):
लोगों की स्वतंत्रता पर सरकार के रूप का भी प्रभाव पड़ता है। जहाँ राजतंत्र या कुलीनतंत्र होता है, वहां स्वेच्छाचारिता की अधिक संभावना होती है। प्रजातंत्र में सभी लोगों का प्रतिनिधित्व होता है, इसलिए जिन लोगों के अधिकारों पर आक्षेप होता है, उनके प्रतिनिधि विशेष रूप से और सांसद आम तौर से उनके लिए लड़ते हैं।

आम लोग भी ऐसे अवसरों पर भाषण और प्रैस आदि की स्वतंत्रताओं का लाभ उठा सकते हैं तथा स्वतंत्र न्यायालय फैसले में उनकी सहायता कर सकता है। वास्तव में, स्वतंत्रता के दूसरे रक्षा कवच; जैसे प्रैस, पक्षपात रहित न्यायालय, अधिकारों का संवैधानीकरण, मजबूत विरोधी दल, कानून का शासन आदि प्रजातंत्र में ही जीवित रह सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए प्रजातांत्रिक सरकार होनी चाहिए।

2. जागरूकता तथा शिक्षा (Vigilance and Education):
स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए लोगों का जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए कहा जाता है, “शाश्वत-जागरूकता स्वतंत्रता की कीमत है।” (Eternal vigilance is the price of Liberty.) स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को हमेशा देखते रहना चाहिए कि सरकार, कोई संघ या कोई व्यक्ति उनकी स्वतंत्रता पर आक्षेप तो नहीं कर रहा है।

यदि आक्षेप होता है तो तुरंत उसका विरोध करना चाहिए। जागरूकता के लिए और अधिकारों के ज्ञान की प्राप्ति के लिए तथा उन्हें सुरक्षित रखने के ढंग को जानने के लिए शिक्षा अनिवार्य है, क्योंकि अशिक्षित आदमी , अपने अधिकारों को और उन्हें सुरक्षित रखने के ढंग को नहीं समझ सकता है।

3. मौलिक अधिकारों की घोषणा (Declaration of Fundamental Rights):
जनता को स्वतंत्रता प्रदान करने वाले नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों को संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में घोषित कर दिया जाना चाहिए। इससे उनकी स्थायी सुरक्षा हो जाती है और उनका उल्लंघन सुगमता से नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार स्वतंत्रता देश के संविधान द्वारा सुरक्षित कर दी जाती है। वह सरकार द्वारा छीनी भी नहीं जा सकती, क्योंकि वह उनकी पहुंच से बाहर हो जाती है।

4. न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary):
किसी भी देश के लोगों की स्वतंत्रता तब तक सुरक्षित नहीं रह सकती, जब तक कि न्यायालय स्वतंत्र न हों। कानून चाहे कितने ही अच्छे हों, परंतु उनसे स्वतंत्रता की रक्षा तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उन कानूनों को लागू करने वाले न्यायधीश स्वतंत्र, ईमानदार, निडर तथा निष्पक्ष न हों।

न्यायधीशों पर न तो कार्यपालिका का और न ही विधानमंडल का दबाव होना चाहिए, तब ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता व अधिकारों को अधिकारियों के दबाव से या लोगों से सुरक्षित रख सकते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि वैयक्तिक स्वतंत्रता बहुत कुछ उस पद्धति पर निर्भर है, जिसके द्वारा न्याय किया जाता है।

5. शक्ति का पृथक्करण (Separation of Powers):
न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए शक्ति का पृथक्करण (Separation of Power) आवश्यक है। शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का प्रतिपादन माण्टेस्क्यू ने किया। उसने सरकार के तीनों अंगों के अलग होने पर बल डाला है। न्यायालय तभी स्वतंत्र रह सकते हैं जबकि राज्य में शासन-सत्ता को अलग-अलग अंगों में विभाजित कर दिया जाए अर्थात कानून बनाने वाली, शासन करने वाली तथा न्याय करने वाली संस्थाएं अलग-अलग संगठित हों तथा उनका एक-दूसरे पर कोई दबाव या प्रभाव न हो। इससे जनता की स्वतंत्रता की गारंटी मिल जाती है।

6. शक्ति का विकेंद्रीयकरण (Decentralization of Authority):
स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक अन्य उपाय सत्ता का विकेंद्रीयकरण है। जहाँ भी शासन-सत्ता केंद्रित की जाती है, वहां तानाशाही व अनुत्तरदायी शासन स्थापित हो जाता है। अतः राज्य में स्वायत्त-शासन संस्थाओं को अधिक-से-अधिक सत्ताएं सौंपी जाएं। इससे जनता भी राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करती है। स्थानीय संस्थाएं राष्ट्रीय-स्वशासन की पाठशालाएं कहलाती हैं।

इस संदर्भ में लास्की ने विचार व्यक्त किया हैं, “राज्य में शक्तियों का जितना अधिक वितरण होगा, उसकी प्रकृति उतनी अधिक विकेंद्रित होगी और व्यक्तियों में अपनी स्वतंत्रता के लिए उतना ही अधिक उत्साह होगा।” इसी प्रकार डॉ० टॉक्विल ने भी कहा है, “किसी भी राष्ट्र में स्वतंत्र सरकार स्थापित की जा सकती है, लेकिन स्वशासन की संस्थाओं के बिना लोगों में स्वतंत्रता की भावना विकसित नहीं हो सकती है।”

7. आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय (Economic Equality and Social Justice):
यह बिल्कुल उचित कहा गया है कि स्वतंत्रता आर्थिक समानता के बिना बिल्कुल व्यर्थ है (Liberty without Economic Equality is a farce)। स्वतंत्रता, वास्तविकता में साधन है, साध्य नहीं। स्वतंत्रता की आवश्यकता व्यक्तित्व के विकास और समान अवसरों के उपभोग के लिए पड़ती है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत कर सके और अपने विचारानुसार जीवन के ध्येय की प्राप्ति कर सके।

परंतु यह सब आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय के बिना संभव नहीं, क्योंकि सभी अधिकारों से पूरा लाभ उठाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है और समाज के भेदभाव भी उसमें बाधक सिद्ध हो सकते हैं। इस तरह के तत्त्व एक देश में होने से वहां के लोगों की स्वतंत्रता पूरी तरह से सुरक्षित रह सकती है। प्रत्येक देश में इन सारे तत्त्वों का होना आवश्यक नहीं है। सरकार के रूप के अनुसार इनमें थोड़ा-बहुत भेद हो सकता है, परंतु इनमें से अधिकतर प्रत्येक देश में होने चाहिएं।

8. कानून (Law) कानून भी स्वतंत्रता की सुरक्षा में बहुत अधिक सहायता करता है हालांकि कभी-कभी कानून स्वतंत्रता का विरोध भी करता है परंतु साधारणतः यह स्वतंत्रता को सुरक्षित ही रखता है। समान स्वतंत्रता कानून के बिना असंभव है। कानून अधिकारों को सरकार तथा दूसरे लोगों के आक्षेप से बचाता है। जो लोग दूसरे लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए कानून को तोड़ते हैं, उन पर मुकद्दमे चलाए जाते हैं और न्यायपालिका उन्हें दंड देती है। जो कानून स्वतंत्रता को सुरक्षित नहीं रखता और असमानता फैलाता है, वह अच्छा नहीं समझा जाता और कई बार ऐसे कानूनों का विरोध किया जाता है।

आधुनिककाल में ‘कानून का शासन’ (Rule of Law) सबसे अच्छा समझा जाता है। कानून के सामने सब समान होने चाहिएँ और सब लोगों पर, साधारण व्यक्ति से लेकर प्रधानमंत्री तक एक ही कानून लागू होना चाहिए। किसी व्यक्ति या वर्ग को कोई विशेषाधिकार (Privileges) नहीं दिए जाने चाहिएं। कानून के शासन का यह भी अर्थ है कि किसी व्यक्ति को बिना कानून तोड़े हुए दंड नहीं दिया जाना चाहिए।

9. सशक्त विरोधी दल (Strong Opposition Party):
स्वतंत्रता की सुरक्षा में विरोधी दल का भी बड़ा भारी हाथ होता है। जब कभी भी शासक दल लोगों के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है, उसी समय विरोधी दल संसद में तथा संसद से बाहर उसकी आलोचना करता है। आलोचना से सरकार को भी जनमत के खिलाफ होने का भय रहता है। यदि विरोधी दल मज़बूत है तो शासक दल को आने वाले निर्वाचनों में हार जाने का भय हो सकता है। इस प्रकार मज़बूत विरोधी दल स्वतंत्रता की सुरक्षा में सहायक सिद्ध होता है।

10. स्वतंत्र प्रैस (Free Press):
स्वतंत्र प्रैस भी लोगों की स्वतंत्रताओं को सुरक्षित रखने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यदि प्रैस के ऊपर कोई दबाव और अनुचित नियंत्रण नहीं है तो प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों को स्वतंत्रता-पूर्वक प्रकट कर सकता है। यदि कभी किसी व्यक्ति या संघ के अधिकारों पर कोई आक्षेप होता है तो प्रैस उस मामले के सत्य को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचा सकता है।

जनमत बनाने में भी स्वतन्त्र प्रैस की अहम भूमिका होती है। स्वतंत्र प्रेस से सरकार भी डरती है जिसके कारण वह कोई ऐसा कार्य नहीं करती जिससे लोगों के अधिकारों को कोई ठेस पहुंचे। प्रैस की स्वतंत्रता में प्रेस सरकार के तथा धनी लोगों के अनुचित प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए तथा प्रैस को भी रंग, जाति, धर्म तथा भाषा आदि के आधार पर कोई पक्षपात नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)-दी गई चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए रक्षा कवचों का होना अनिवार्य है। स्वतंत्रता की रक्षा पर लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करता है। लोकतंत्र ऐसी शासन व्यवस्था है जो लोगों को जागरूक व कर्त्तव्यपरायण बनाती है। लोगों की कर्त्तव्यपरायणता और जागरूकता पर स्वतंत्रता की सुरक्षा हो सकती है। ऐसा होने से शासक वर्ग व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अपहरण करने का दुःसाहस नहीं कर सकेंगे।

प्रश्न 4.
कानून व स्वतंत्रता के आपसी संबंधों की विवेचना कीजिए। अथवा कानून और स्वतंत्रता में क्या संबंध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता और कानून के संबंधों का विषय इतना महत्त्वपूर्ण है कि अनेक विद्वानों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है। विद्वानों ने स्वतंत्रता और कानून के संबंध के विषय में दो दृष्टिकोण व्यक्त किए हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है

(क) स्वतंत्रता और कानून परस्पर विरोधी हैं (Liberty and Law opposed to each other):
पहले दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति कानून व स्वतंत्रता को एक-दूसरे का विरोधी मानती है। 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में अधिकांश राजनीतिक विचारक यह मत रखते हैं कि स्वतंत्रता और कानून में परस्पर विरोध है। अराजकतावादियों तथा व्यक्तिवादियों का यह भी मत रहा है कि स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी हैं।

जितने अधिक कानून होंगे, उतनी कम स्वतंत्रता होगी। राज्य का कार्य-क्षेत्र इतना व्यापक है कि मनुष्य को हर कदम पर कानून रोकता है। इससे व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है और उसका काम करने का उत्साह मारा जाता है। इसलिए इनका मत है कि कानून स्वतंत्रता का विरोधी है। इस संबंध में विलियम गोडविन (Villiam Godwin) ने कहा है, “कानून स्वतंत्रता के लिए सबसे अधिक हानिकारक संस्था है।” इसी प्रकार कोकर (Coker) का भी यही विचार है, “राजनीतिक सत्ता अनावश्यक तथा अवांछनीय है।” इन विचारकों के मत निम्नलिखित हैं

1. व्यक्तिवादियों का मत (View of Individualists):
18वीं शताब्दी में व्यक्तिवादियों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर कि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक प्रतिबंध है, इसलिए व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है, जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कम-से-कम करे, अर्थात उनके मतानुसार, “वह सरकार अच्छी है जो कम-से-कम शासन या कार्य करती है।” इसी प्रकार जे०एस० मिल (J.S. Mill) ने भी कहा है, “सरकार का हस्तक्षेप व्यक्ति के शारीरिक अथवा मानसिक विकास के कुछ-न-कुछ भाग को अवरुद्ध कर देता है।”

2. अराजकतावादियों का मत (View of Anarchists):
अराजकतावादियों के अनुसार राज्य प्रभुसत्ता का प्रयोग करके नागरिकों की स्वतंत्रता को नष्ट करता है, अतः अराजकतावादियों ने राज्य को समाप्त करने पर जोर दिया ताकि राज्य-विहीन समाज की स्थापना की जा सके। इसी संदर्भ में अराजकतावादी प्रोधा (Prondha) ने विचार व्यक्त किया है, “मनुष्य पर मनुष्य का किसी भी रूप में शासन अत्याचार है।”

3. सिंडीकलिस्ट का मत (View of Syndicalists):
सिंडीकलिस्ट अराजकतावादियों की तरह राज्य को पूर्णतः समाप्त करना चाहते हैं, क्योंकि उनके मतानुसार राज्य सदैव पूंजीपतियों का समर्थन करता है जिससे व्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। इस प्रकार सिंडीकलिस्ट राज्य और सरकार को समाप्त करके उसके स्थान पर श्रमिक संघों का शासन स्थापित करने के पक्ष में हैं। श्रमिक संघों की व्यवस्था में व्यक्तियों की स्वतंत्रता अधिक सुरक्षित रहती है।

4. बहुत्ववादियों का मत (View of Pluralists):
बहुत्ववादियों का विचार है कि राज्य के पास जितनी अधिक सत्ता होती है, उससे व्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही कम होती है, इसलिए वे राज्य सत्ता को विभिन्न समुदायों में बांटने के पक्ष में हैं। इस प्रकार बहुत्ववादी राज्य को भी एक संस्था मानते हैं और उसे अन्य संस्थाओं से अधिक शक्ति देने के पक्ष में नहीं हैं। अगर राज्य को अधिक शक्ति दी गई तो उससे व्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट हो जाएगी। इस विचार का समर्थन करते हुए लास्की (Laski) महोदय ने कहा है, “असीमित और अनत्तरदायी राज्य मानवता के हितों के विरुद्ध है।”

(ख) स्वतंत्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं (Liberty and Law are not opposed to Each Other) स्वतंत्रता और कानून को एक-दूसरे का विरोधी होने का विचार ऐसे लेखकों ने दिया जो स्वतंत्रता के नकारात्मक पक्ष में विश्वास रखते थे। यह विचार उस समय व्यक्त किया गया जिस समय तानाशाही प्रवृत्तियां पूरे जोर पर थीं, परंतु जैसे-जैसे लोकतंत्रात्मक प्रवृत्तियां सामने आईं तो राजनीतिक विचारकों ने यह स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया कि कानून और स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।

अतः स्वतंत्रता और कानून के संबंध के विषय में दूसरा दृष्टिकोण यह है कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का अस्तित्व दूसरे के बिना खतरे में पड़ जाएगा। इस दृष्टिकोण के समर्थक समाजवादी और आदर्शवादी हैं। इन विचारकों का कहना है कि कानून स्वतंत्रता का हनन नहीं करता, बल्कि उसकी रक्षा करता है।

इसलिए लॉक (Locke) महोदय ने ठीक ही कहा है, “जहाँ कानून नहीं है, वहां स्वतंत्रता नहीं है।” हॉकिंस (Hockins) ने भी लिखा है, “व्यक्ति जितनी अधिक स्वतंत्रता चाहता है, उतना ही उसे सत्ता के आगे झुकना पड़ता है।” इस दृष्टिकोण का विस्तारपूर्वक वर्णन निम्नलिखित है

1. कानून स्वतंत्रता का रक्षक है (Law safeguards Liberty):
अराजकतावादियों तथा अन्य विचारकों का मत सही नहीं है। कानून स्वतंत्रता का विरोधी तभी दिखाई देता है, जब स्वतंत्रता का अर्थ ही स्वेच्छाचारिता लगाया जाता है। स्वतंत्रता को जब मनमाना काम करने की छूट समझ लिया जाता है, तब बुरे कामों की रुकावट के लिए जो कानून नज़र आते हैं, वे विरोधी ही कहलाएंगे।

व्यक्ति को जब कानून चोरी-डकैती, लूटमार, जुआ, शराबखोरी नहीं करने देता तो ऐसे व्यक्ति कानून को उनकी स्वतंत्रता का बाधक समझेंगे ही, परंतु भले-मानसों की सुरक्षा तथा उनकी सुविधा के लिए ऐसे कानून बनाना राज्य के लिए जरूरी है। यह व्यक्ति के हित में होता है कि मनमाने काम करने की स्वतंत्रता पर सीमाएं लगाई जाएं, नहीं तो व्यक्ति एक-दूसरे के दायरे में कदम आघात करेंगे। इसलिए स्वतंत्रता का अर्थ सभी के लिए सीमित स्वाधीनता है।

अपने दायरे में रहकर अपना विकास करना ही स्वतंत्रता है, जिसका अभिप्राय है कि सब पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं, जिससे वे एक-दूसरे की स्वतंत्रता न छीन सकें। ऐसे प्रतिबंध किसी व्यक्ति या संस्था के निजी प्रतिबंध नहीं हो सकते। यह कार्य तो राज्य ही अपनी शक्ति द्वारा कर सकता है। राज्य अपनी सत्ता कानून द्वारा प्रदर्शित करता है, इसलिए कानून सबकी स्वतंत्रता के लिए आवश्यक होते हैं। कानून स्वतंत्रता के विरोधी नहीं, बल्कि उसकी पहली शर्त होते हैं। वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं।

इसलिए लॉक (Locke) ने कहा था, “जहाँ कानून नहीं होते, वहां स्वतंत्रता नहीं होती।” जब तक हम कानून को बाहरी बंधन के रूप में मानते हैं तब तक उसके प्रति विरोध और असंतोष रहता उसे उचित समझकर अपनी अंतरात्मा से उसे स्वीकार कर लें तो वह स्वतंत्रता का सहायक नज़र आता है। जैसे रूसो ने कहा है, “उस कानून का पालन, जिसे हम अपने लिए बनाते हैं, स्वतंत्रता कहलाता है।”

2. कानून स्वतंत्रता की पहली शर्त है (Law is the first condition of Liberty):
जो विचारक स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ स्वीकार करते हैं और स्वतंत्रता पर उचित बंधनों को आवश्यक मानते हैं, वे कानून को स्वतंत्रता की सुरक्षा की पहली शर्त समझते हैं और सत्ता को आवश्यक मानते हैं। हॉब्स, जो निरंकुशतावादी (Absolutist) माना जाता है, स्वीकार करता है कि कानून के अभाव में व्यक्ति हिंसक पशु बन जाता है।

अतः सत्ता व कानून का होना आवश्यक है, ताकि व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक जीवन बिता सके। मॉण्टेस्क्यू (Montesquieu) ने स्वतंत्रता की परिभाषा करते हुए कहा है, “स्वतंत्रता वे सभी कार्य करने का अधिकार है, जिनको करने की अनुमति कानून देता है।” रूसो (Rousseau) ने सामान्य इच्छा (General Will) को मानने को ही वास्तविक स्वतंत्रता कहा है। विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “स्वतंत्रता केवल वहीं सुरक्षित है, जहाँ बंधन हैं।”

रिचि (Ritchie) के स-विकास के सुअवसर के रूप में स्वतंत्रता को संभव बनाते हैं और सत्ता के अभाव में इस प्रकार की स्वतंत्रता संभव नहीं हो सकती।” स्वतंत्रता की प्रकृति में ही प्रतिबंध हैं और प्रतिबंध इसलिए आवश्यक हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर व सुविधाएं प्राप्त हो सकें और एक व्यक्ति की स्वतंत्रता किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता या सामाजिक हित में बाधक न बन सके।

स्वतंत्रता को वास्तविक रूप देने के लिए आवश्यक है कि उसे सीमित किया जाए। समाज में रहते हुए शांतिमय जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के व्यवहार पर कुछ नियंत्रण लगाए जाएं। नियंत्रणों से मर्यादित व्यक्ति ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है और समाज की एक लाभदायक इकाई सिद्ध हो सकता है। अरस्तू (Aristotle) ने ठीक ही कहा है, “मनुष्य अपनी पूर्णता में सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है, लेकिन जब वह कानून व न्याय से पृथक हो जाता है तब वह सबसे निकृष्ट प्राणी बन जाता है।”

3. आदर्शवादियों के विचार (View of Idealist) आदर्शवादी (Idealist) विचारकों ने कानून व स्वतंत्रता में घनिष्ठ संबंध स्वीकार किया है और इनके अनुसार स्वतंत्रता न केवल कानून द्वारा सुरक्षित है, अपितु कानून की देन है। हीगल (Hegel) के अनुसार, “राज्य में रहते हुए कानून के पालन में ही स्वतंत्रता निहित है।” हीगल ने राज्य को सामाजिक नैतिकता की साक्षात मूर्ति कहा है और कानून चूंकि राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति है। अतः नैतिक रूप से भी व्यक्ति की स्वतंत्रता कानून के पालन में ही निहित है।

टी०एच० ग्रीन (T.H. Green) के अनुसार, “हमारे अधिकांश कानून हमारी सामाजिक स्वतंत्रता को कम करते हैं, परंतु इनका उद्देश्य ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करना है जिनके अंतर्गत व्यक्ति अपने गुणों का पूर्ण विकास कर सकता है।” स्पष्ट है कि स्वतंत्रता व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है और व्यक्तित्व का विकास कानून के पालन द्वारा ही हो सकता है। रूसो ने भी कहा है, “ऐसे कानून का पालन, जो हम स्वयं अपने लिए निश्चित करते हैं, वही स्वतंत्रता है।”

4. क्या प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का रक्षक है? (Does every law protect the Liberty?)-प्रत्येक कानून स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करता। कई बार ऐसे कानूनों का निर्माण किया जाता है जो शासकों के हित में होते हैं, न कि समस्त जनता के हित में। ब्रिटिश साम्राज्य के समय भारत में कई बार ऐसे कानूनों का निर्माण किया गया था, जिनका उद्देश्य भारतीयों की स्वतंत्रता को नष्ट करना होता था।

तानाशाही राज्य में ऐसे कानूनों का निर्माण किया जाता है। नागरिकों को उन कानूनों का पालन करना चाहिए जो नैतिकता पर आधारित हों तथा समाज के हित में हों। परंतु नागरिकों को शांतिपूर्वक उन कानूनों का विरोध करना चाहिए जो उनकी स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए पास किए गए हों।

निष्कर्ष (Conclusion) दिए गए विवरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि कानून स्वतंत्रता का विरोधी है या सहयोगी, यह परिस्थितियों पर निर्भर है। यदि कानून जनता के हित को ध्यान में रखकर बनाया जाता है तो वह स्वतंत्रता का सहयोगी होता है और स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है परंतु जब कानून थोड़े-से लोगों के हित को ध्यान में रखकर बनाए जाएं अथवा शासकों के हित में बनाए जाएं तो ऐसे कानून स्वतंत्रता के विरोधी होते हैं। स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रजातंत्र की स्थापना सर्वोत्तम साधन है, क्योंकि प्रजातंत्र में जनता स्वयं ही शासक और शासित होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. लेटिन भाषा के लिबर (Liber) शब्द का शाब्दिक अर्थ निम्नलिखित में से है
(A) बंधनों का अंकुश
(B) बंधनों से मुक्ति
(C) प्रतिबंधों की उपस्थिति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बंधनों से मुक्ति

2. “जिस तरह बदसूरती का न होना स्वतंत्रता नहीं है, उसी तरह बंधनों का होना स्वतंत्रता नहीं है।” यह कथन किस विद्वान का है?
(A) बार्कर
(B) लास्की
(C) हरबर्ट स्पेंसर
(D) ग्रीन
उत्तर:
(A) बार्कर

3. नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ निम्नलिखित में से है
(A) स्व-कार्यों में पूर्ण स्वतंत्रता
(B) व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के कारण कानून एक बुराई है
(C) सरकार का सीमित कार्यक्षेत्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. सकारात्मक स्वतंत्रता की विशेषता निम्नलिखित में से है
(A) अनुचित प्रतिबंधों के विरुद्ध जबकि उचित प्रतिबंधों का समर्थन
(B) कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं बल्कि रक्षा करते हैं
(C) स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, परंतु प्रत्येक स्थान पर वह बंधन में बंधा हुआ है।” यह कथन निम्न में से है
(A) रूसो
(B) हॉब्स
(C) लॉक
(D) मिल
उत्तर:
(A) रूसो

6. राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ निम्न में से है
(A) एक राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से पूर्णतः स्वतंत्रता का प्राप्त होना
(B) एक राष्ट्र की विदेश नीति पर अन्य राष्ट्र का नियंत्रण होना
(C) एक राष्ट्र के आंतरिक मामलों में अन्य राष्ट्रों का हस्तक्षेप न होना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) एक राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से पूर्णतः स्वतंत्रता का प्राप्त होना

7. निम्नलिखित में से स्वतंत्रता का संरक्षण माना जाता है
(A) कानून का शासन
(B) मौलिक अधिकारों की संवैधानिक व्यवस्था
(C) स्वतंत्र प्रेस
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. स्वतंत्रता की सुरक्षा हेतु निम्नलिखित उपाय उपयुक्त नहीं है
(A) निरंकुशतंत्र की स्थापना
(B) सशक्त विरोधी सत्तापक्ष
(C) न्यायपालिका एवं विधानपालिका में पृथक्करण
(D) प्रजातंत्र की स्थापना
उत्तर:
(A) निरंकुशतंत्र की स्थापना

9. “स्वतंत्रता अति शासन का उल्टा रूप है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है
(A) मिल
(B) गैटेल
(C) लास्की
(D) रूसो
उत्तर:
(C) लास्की

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता

10. “व्यक्ति जितनी अधिक स्वतंत्रता चाहता है, उतना ही उसे सत्ता के आगे झुकना पड़ता है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है?
(A) हॉकिन्स
(B) लास्की
(C) प्रोंधा
(D) मिल
उत्तर:
(A) हॉकिन्स

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. अंग्रेजी भाषा के लिबर्टी (Liberty) शब्द की उत्पत्ति लिबर (Liber) शब्द से हुई है। यह शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर:
लेटिन भाषा से।

2. “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
बाल गंगाधर तिलक का।

3. सामाजिक समझौता (Social Contract) नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
रूसो।

4. “जहाँ कानून नही होते, वहाँ स्वतंत्रता नहीं होती।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
जॉन लॉक।

रिक्त स्थान भरें

1. अंग्रेजी भाषा के ‘लिबर्टी’ शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के …………. शब्द से हुई है।
उत्तर:
लिबर

2. …………… विचारधारा के विद्वान कानून को स्वतंत्रता का शत्रु नहीं मानते।
उत्तर:
समाजवादी

3. “पूँजीवाद के उदय से मजदूर लगातार जंजीरों में जकड़ा हुआ है।” यह कथन ……………. का है।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई और यह किस भाषा का है?
उत्तर:
राजनीति शब्द की उत्पत्ति ‘पोलिस’ (Polis) शब्द से हुई है और यह यूनानी भाषा का शब्द है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान का पितामह किसको माना जाता है और उसका संबंध किस देश से था?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का पितामह अरस्तू को माना जाता है। अरस्तू का संबंध यूनान देश से था।

प्रश्न 3.
राजनीति को ‘सर्वोच्च विज्ञान’ (Master Science) की संज्ञा किसने दी थी?
उत्तर:
राजनीति को सर्वोच्च विज्ञान की संज्ञा अरस्तू ने दी थी।

प्रश्न 4.
राजनीति से संबंधित विभिन्न दृष्टिकोणों के नाम लिखिए।
उत्तर:
राजनीति से संबंधित मुख्यतः तीन दृष्टिकोण हैं-

  • प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण,
  • परंपरागत दृष्टिकोण,
  • आधुनिक दृष्टिकोण।

प्रश्न 5.
प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण के किन्हीं दो मुख्य समर्थकों का नाम लिखिए।
उत्तर:
अरस्तू और प्लेटो को प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण का समर्थक माना जाता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

प्रश्न 6.
प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण की तीन मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण की तीन मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • नगर राज्यों से संबंधित है,
  • राज्य और समाज में भेद नहीं करता,
  • आदर्श राज्य की परिकल्पना करता है।

प्रश्न 7.
राजनीति की कोई एक परंपरागत परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
लॉर्ड एक्टन के अनुसार, “राजनीति शास्त्र राज्य व उसके विकास के लिए अनिवार्य दशाओं से संबंधित है।”

प्रश्न 8.
किन्हीं दो विद्वानों के नाम लिखें जो राजनीति को राज्य का अध्ययन मानते हैं।
उत्तर:
गार्नर व लॉर्ड एक्टन राजनीति को केवल राज्य का अध्ययन मानते हैं।

प्रश्न 9.
राजनीतिक सिद्धांत के आधुनिक दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर:
आधुनिक दृष्टिकोण में औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं के स्थान पर अनौपचारिक राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति के क्षेत्र के मूल में क्या आता है?
उत्तर:
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति के क्षेत्र में शक्ति का अध्ययन आता है। यह मानव व्यवहार का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 11.
पोलिटिक्स (Politics) नामक पुस्तक किस विद्वान ने लिखी थी और किस देश का निवासी था?
उत्तर:
पोलिटिक्स नामक पुस्तक अरस्तू ने लिखी थी और वह यूनान देश का निवासी था।

प्रश्न 12.
गैर-राजनीतिक क्षेत्र में राजनीति के हस्तक्षेप के दो शीर्षकों के नाम लिखें।
उत्तर:
गैर-राजनीतिक क्षेत्र में राजनीति के हस्तक्षेप के मुख्य दो उदाहरण हैं-(1) घरेलू मामलों में राजनीति का हस्तक्षेप, (2) महिलाओं को संपत्ति के अधिकार की प्राप्ति।

प्रश्न 13.
सिद्धांत से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सिद्धांत से अभिप्राय एक ऐसी मानसिक दृष्टि से है जो कि एक वस्तु के अस्तित्व एवं उसके कारणों को प्रकट करती है।

प्रश्न 14.
‘सिद्धांत’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई और यह किस भाषा का है?
उत्तर:
‘सिद्धांत’ शब्द की उत्पत्ति ‘थ्योरिया’ शब्द से हुई और यह ग्रीक भाषा का है।

प्रश्न 15.
सिद्धांत की कोई एक परिभाषा दें।।
उत्तर:
गिब्सन के अनुसार, “सिद्धांत ऐसे व्यक्तियों का जो विभिन्न जटिल तरीकों के द्वारा आपस में एक दूसरे से संबंधित हो एक समूह का संग्रह है।”

प्रश्न 16.
राजनीतिक सिद्धांत के मुख्य तीन तत्त्वों के नाम लिखें।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत के मख्य तीन तत्त्व-(1) अवलोकन. (2) व्याख्या और (3) मल्यांकन हैं।

प्रश्न 17.
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत की मुख्य दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • यह मुख्यतः वर्णनात्मक अध्ययन है,
  • यह समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 18.
राजनीतिक सिद्धांत के परंपरागत तथा आधुनिक विचारों में दो मुख्य अंतर लिखें।[
उत्तर:

  • परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत संस्थाओं से जबकि आधुनिक राजनीति सिद्धांत एक प्रयोग सिद्ध अध्ययन है।
  • परंपरावादी आदर्शवादी है जबकि आधुनिक यथार्थवादी है।

प्रश्न 19.
राजनीतिक सिद्धांत का आधुनिक दृष्टिकोण किस बात पर अधिक बल देता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत का आधुनिक दृष्टिकोण विस्तृत है। यह यथार्थवाद एवं व्यावहारिक अध्ययन पर भी बल देता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

प्रश्न 20.
राजनीतिक सिद्धांत की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपयोगिताएं लिखें।
उत्तर:

  • यह भविष्य की योजना संभव बनाता है,
  • यह राजनीतिक वास्तविकताओं को समझाने में सहायक है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘राजनीति’ आधुनिक युग में सबसे अधिक प्रयोग होने वाला शब्द है। इसलिए भिन्न-भिन्न लोगों ने इस शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में किया है। साधारण अर्थों में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक अर्थ में किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग उन क्रियाओं और प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है जिन्हें अच्छा नहीं समझा जाता है; जैसे विद्यार्थियों को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए या फिर अपने मित्रों के साथ राजनीति नहीं खेलनी चाहिए अर्थात् राजनीति शब्द का प्रयोग विकृत अर्थ में किया जाता है।

वर्तमान लोक जीवन में यह शब्द बड़ा अप्रतिष्ठित हो गया है और इससे छल, कपट, बेईमानी आदि का बोध होता है। राजनीति का उपरोक्त अर्थ संकुचित व विकृत है, परंतु राजनीति शब्द का अर्थ संकुचित न होकर व्यापक है। राजनीति एक ऐसी क्रिया है जिसमें हम सभी किसी-न-किसी रूप में अवश्य भाग लेते हैं। लोकतंत्र में रहते हुए राजनीति से अलग नहीं रहा जा सकता।

राजनीति अरस्तू के समय से ही समाज में है। अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में अनेक प्रकार के संघ, दल और समुदायों का निर्माण करता है। इन संस्थाओं या संगठनों के संघर्ष से समाज में मतभेद पैदा हो जाते हैं, मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के नाते क्रांति या शक्ति का सहारा न लेकर शांतिपूर्ण संघर्ष द्वारा अपने मतभेदों को दूर करने का प्रयत्न करते हैं। समाज के इस संघर्ष से उत्पन्न क्रिया को राजनीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
राजनीति की कोई दो परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि ‘राजनीति’ शब्द को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है फिर भी सुविधा की दृष्टि से राजनीति की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

  • हरबर्ट जे० स्पाइरो (Herbert J. Spiro) के अनुसार, “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान करता है।”
  • डेविड ईस्टन (David Easton) के अनुसार, “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव आवश्यकताओं तथा इच्छाओं की पूर्ति सीमित (मानवीय, भौतिक और आध्यात्मिक) साधनों का सामाजिक इकाई में (चाहे नगर हो, राज्य हो या संगठन) बंटवारा करता है।”

प्रश्न 3.
राजनीति के प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
यूनानी दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. नगर-राज्यों से संबंधित-प्राचीन यूनानी दृष्टिकोण नगर-राज्य को राजनीति के अध्ययन का प्रमुख विषय मानता है। नगर-राज्यों का आकार बहुत छोटा होता था। जनसंख्या भी सीमित होती थी, परंतु नगर-राज्य अपने-आप में निर्भर और स्वतंत्र होते थे। नगर-राज्य का उद्देश्य लोगों को अच्छा जीवन प्रदान करना था।

2. सामुदायिक जीवन में भाग लेना जरूरी-यूनानी विचारकों के अनुसार प्रत्येक नागरिक के लिए राजनीति में भाग लेना आवश्यक है। इसलिए अरस्तू ने नागरिक का अर्थ बताते हुए कहा था कि वह व्यक्ति नागरिक है जो राज्य के कानूनी और न्यायिक कार्यों में भाग लेता है, लेकिन अरस्तू ने नागरिकों को राजनीतिक जीवन में भाग लेने तक सीमित रखा अर्थात् समाज के कुछ ऐसे वर्ग थे जिन्हें राजनीति में या राज्य के कार्यों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं था; जैसे श्रमिकों, गुलामों और स्त्रियों को राज्य . के कार्यों में भाग लेने के अधिकार से वंचित रखा गया था।

3. राज्य और समाज में भेद नहीं यूनानी दार्शनिकों ने राज्य और समाज में कोई अंतर नहीं किया। दोनों शब्दों का प्रयोग उन्होंने एक-दूसरे के लिए किया है। उनके अनुसार, राज्य व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष; सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक से संबंधित है।

4. आदर्श राज्य यूनानी विचारकों के लिए राज्य एक नैतिक संस्था है। मनुष्य केवल राज्य में रहकर ही नैतिक जीवन व्यतीत करता है। राज्य द्वारा ही नागरिकों में नैतिक गुणों का विकास किया जाता है। इसलिए यूनानी एक आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहते थे।

प्रश्न 4.
राजनीति के परंपरागत दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजनीति के परंपरागत दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • प्राचीन लेखक संस्थाओं की संरचनाओं और सरकार के गठन पर विचार करते हैं। वे यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि संस्थाओं का उदय कैसे हुआ।
  • परंपरागत विचारक आदर्शवादी हैं। वे देखते हैं कि क्या होना चाहिए? उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि क्या है? अर्थात् वह राजनीतिक मूल्यों, नैतिकता व सात्विक विचारों पर अधिक बल देते हैं। इसमें कल्पना अधिक है।
  • परंपरावादियों का दृष्टिकोण व्यक्तिगत अधिक है। उसमें चिंतन और कल्पना है। ये दार्शनिक व विचारात्मक पद्धति में विश्वास करते हैं।
  • परंपरावादी विचारक राजनीति शास्त्र को विज्ञान मानते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीति के आधुनिक दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजनीति के आधुनिक दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. सीमित साधनों का आबंटन राजनीति है समाज में मूल्य-भौतिक साधन; जैसे सुख-सुविधाएँ, लाभकारी पद, राजनीतिक पद आदि सीमित हैं। इन सीमित साधनों को समाज में बांटना है। अतः सीमित साधनों को पाने के लिए संघर्ष होता है तथा एक होड़-सी लग जाती है। प्रत्येक व्यक्ति या व्यक्ति-समूह द्वारा साधनों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। साधनों के बंटवारे की इसी प्रक्रिया को राजनीति कहा जाता है।

2. समूची राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण ही राजनीति है-परंपरावादियों ने राजनीति को राज्य व शासन का अध्ययन मात्र माना है। लेकिन आधुनिक विचारक न केवल राज्य व शासन का अध्ययन करते हैं, बल्कि उन सभी पहलुओं का भी अध्ययन करते हैं जिनका संबंध प्रत्यक्ष या अप्रयत्क्ष रूप से राज्य व शासन से होता है अर्थात वह समुदाय, समाज, श्रमिक संगठन, दबाव-समूह व हित-समूह आदि का अध्ययन करते हैं।

3. राजनीति शक्ति का अध्ययन है-आधुनिक लेखकों ने राजनीति की शक्ति के अध्ययन में अधिक रुचि प्रकट की है। उन्होंने राजनीति को शक्ति के लिए संघर्ष कहा है। इन लेखकों में से केटलिन, लासवैल, वाइज़मैन, मैक्स वेबर और राबर्ट डहल उल्लेखनीय हैं।

4. राजनीति एक वर्ग-संघर्ष है-आधुनिक लेखक राजनीति को एक वर्ग-संघर्ष के अतिरिक्त कुछ और नहीं मानते।जैसे कार्ल मार्क्स ने राजनीति को वर्ग-संघर्ष माना है। उसके अनुसार समाज सदा ही दो वर्गों में विभाजित रहा है शासक वर्ग व शासित वर्ग।

प्रश्न 6.
क्या गैर-राजनीति क्षेत्र में राजनीति का हस्तक्षेप है? व्याख्या करें।
उत्तर:
साधारणतः यह धारणा बन चुकी है कि राजनीति आम जीवन को प्रभावित नहीं करती, लेकिन आधुनिक समय में इस धारणा में परिवर्तन हुआ है और यह सोचा जाने लगा है कि राजनीति सामान्य जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती है। 19वीं शताब्दी के आधुनिकीकरण ने तथा जन-आंदोलनों ने राजनीति के क्षेत्र का विस्तार किया है। अब राजनीति लगभग प्रत्येक घर में प्रवेश कर चुकी है। अब हम कुछ ऐसे क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे जो कभी राजनीति की परिधि से बाहर माने जाते थे, लेकिन अब के राजनीति से अछूते नहीं हैं।

1. घरेलू मामलों में राजनीति का हस्तक्षेप-पारिवारिक मामलों को कभी राजनीति से पूर्ण रूप से स्वतंत्र माना जाता और घरेलू मामलों में राजनीति का हस्तक्षेप न के बराबर था। लेकिन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में घरेलू मामलों में राजनीति के हस्तक्षेप का आरंभ हुआ।

2. महिलाओं को संपत्ति में अधिकार की प्राप्ति-भारतीय संसद ने संविधान में संशोधन कर हिंदू संपत्ति उत्तराधिकार अधिनियम में सन् 2005 में संशोधन किया। अब महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में बराबर का अधिकार प्राप्त हो गया है।

3. विभिन्न अधिकारों के क्षेत्र में बढ़ोतरी-प्रारंभ में व्यक्ति को केवल कर्त्तव्य-पालन की ही शिक्षा मिलती थी। उसके अधिकार बड़े सीमित थे। लेकिन राजनीति के हस्तक्षेप से व्यक्तियों के अधिकारों में बढ़ोतरी हुई है। जैसे उसे अब दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। उसे विदेश भ्रमण का भी अधिकार प्राप्त हो चुका है।

4. शिक्षा का अधिकार-किसी भी समाज की उन्नति व विकास शिक्षा पर निर्भर करता है। यदि नागरिक शिक्षित है तो निश्चित रूप से समाज अनेक प्रकार के कष्टों से मुक्त होता है। इसलिए निरक्षरता को दूर करने के लिए संविधान में संशोधन कर शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी रख दिया है।

प्रश्न 7.
पर्यावरण के संरक्षण में राजनीति का हस्तक्षेप कैसे है? व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीति पर्यावरण के संरक्षण को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। विकास और पर्यावरण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। यदि पर्यावरण विकास के लिए आधार प्रदान करता है तो विकास पर्यावरण के रख-रखाव, इसके पोषण और समृद्धि में सहायता देता है। पर्यावरण विकास की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण सहायक तत्व है।

यही नहीं मानव जीवन के लिए पर्यावरण अति-आवश्यक है और पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए भारतीय संसद ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक अधिनियमों वायु प्रदूषण अधिनियम, जल प्रदूषण अधिनियम, पर्यावरण प्रदूषण अधिनियम आदि का निर्माण किया है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक सिद्धांत की कोई चार परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत की चार परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

1. डेविड हैल्ड (David Held):
के अनुसार, “राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से संबंधित अवधारणाओं और व्यापक अनुमानों का एक ऐसा ताना-बाना है जिसमें शासन, राज्य और समाज की प्रकृति व लक्ष्यों और मनुष्यों की राजनीतिक क्षमताओं का विवरण शामिल है।”

2. जॉन प्लेमैंनेज़ (John Plamentaz):
के अनुसार, “एक सिद्धांतशास्त्री राजनीति की. शब्दावली का विश्लेषण और स्पष्टीकरण करता है। वह उन सभी अवधारणाओं की समीक्षा करता है जो कि राजनीतिक बहस के दौरान प्रयोग में आती हैं। सीमाओं के उपरान्त अवधारणाओं के औचित्य पर भी प्रकाश डाला जाता है।”

3. कोकर (Coker):
के अनुसार, “जब राजनीतिक शासन, उसके रूप एवं उसकी गतिविधियों का अध्ययन केवल अध्ययन या तुलना मात्र के लिए नहीं किया जाता अथवा उनको उस समय के और अस्थायी प्रभावों के संदर्भ में नहीं आंका जाता, बल्कि उनको लोगों की आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं उनके मतों के संदर्भ में घटनाओं को समझा व इनका मूल्य आंका जाता है, तब हम इसे राजनीतिक सिद्धांत कहते हैं।” ।

4. एण्ड्रयु हैकर (Andrew Hecker):
के शब्दों में, “राजनीतिक सिद्धांत एक ओर बिना किसी पक्षपात के अच्छे राज्य तथा समाज की तलाश है तो दूसरी ओर राजनीतिक एवं सामाजिक वास्तविकताओं की पक्षपात रहित जानकारी का मिश्रण है।”

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

प्रश्न 9.
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की कोई तीन विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. विश्लेषणात्मक अध्ययन आधुनिक विद्वानों ने विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। वे संस्थाओं के सामान्य वर्णन से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझना चाहते थे। इस कारण से उन्होंने व्यक्ति व संस्थाओं के वास्तविक व्यवहार को समझने के लिए अनौपचारिक संरचनाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं व व्यवहार के विश्लेषण पर बल दिया।

2. अध्ययन की अन्तर्शास्त्रीय पद्धति-आधुनिक विद्वानों की यह मान्यता है कि राजनीतिक व्यवस्था समाज व्यवस्था की अनेक उपव्यवस्थाओं (Multi-Systems) में से एक है और इन सभी व्यवस्थाओं का अध्ययन अलग-अलग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक उपव्यवस्था अन्य उप-व्यवस्थाओं के व्यवहार को प्रभावित करती है।

इसीलिए किसी एक उपव्यवस्था का अध्ययन अन्य उपव्यवस्थाओं के संदर्भ में ही किया जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था पर समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक आदि व्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। अतः हमें किसी समाज की राजनीतिक व्यवस्था को ठीक ढंग से समझने के लिए उस समाज की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।

3. आनुभाविक अध्ययन-राजनीति के आधुनिक विद्वानों ने राजनीति को शुद्ध विज्ञान बनाने के लिए राजनीतिक तथ्यों के माप-तोल पर बल दिया है। यह तथ्य-प्रधान अध्ययन है जिसमें वास्तविकताओं का अध्ययन होता है। इससे उन्होंने नए-नए तरीके अपनाए, जैसे जनगणना तथा आंकड़ों का अध्ययन करना तथा जनमत जानने की विधियां और साक्षात्कार के द्वारा कुछ परिणाम निकालना आदि।

प्रश्न 10.
राजनीतिक सिद्धांत के कार्यक्षेत्र के किन्हीं तीन शीर्षकों की व्याख्या करें।
उत्तर:”
राजनीतिक सिद्धांत के तीन कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं

1. राज्य का अध्ययन-प्राचीनकाल से ही राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र के बारे में विचार होता रहा है कि राज्य का विकास कैसे हुआ तथा नगर-राज्य के समय से लेकर वर्तमान राष्ट्रीय राज्य के रूप में पहुंचने तक इसके स्वरूप का कैसा विकास हुआ आदि।

2. सरकार का अध्ययन सरकार ही राज्य का वह तत्व है जिसके द्वारा राज्य की अभिव्यक्ति होती है। अतः सरकार भी राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। सरकार के तीन अंग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका-माने गए हैं। इन तीनों अंगों का संगठन, इनके अधिकार, इनके आपस में संबंध तथा इन तीनों से संबंधित भिन्न-भिन्न सिद्धांतों का अध्ययन भी हम करते हैं।

3. शक्ति का अध्ययन वर्तमान समय में शक्ति के अध्ययन को भी राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में शामिल किया जाता है। शक्ति के कई स्वरूप हैं, जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक शक्ति, व्यक्तिगत शक्ति, राष्ट्रीय शक्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति इत्यादि।

प्रश्न 11.
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के लाभों को निम्नलिखित तथ्यों से प्रकट किया जा सकता है

1. भविष्य की योजना संभव बनाता है नई परिस्थितियों में समस्याओं के निदान के लिए नए-नए सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है। ये सिद्धांत न केवल तत्कालीन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं बल्कि भविष्य की परिस्थितियों का भी आंकलन करते हैं। वे कुछ सीमा तक भविष्यवाणी भी कर सकते हैं। इस प्रकार देश व समाज के हितों को ध्यान में रखकर भविष्य की योजना बनाना संभव होता है।

2. वास्तविकता को समझने का साधन-राजनीतिक सिद्धांत हमें राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने में सहायता प्रदान करता है। सिद्धांतशास्त्री सिद्धांत का निर्माण करने से पहले समाज में विद्यमान सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों का तथा समाज की इच्छाओं, आकांक्षाओं व प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है तथा उन्हें उजागर करता है।।

3. अवधारणा के निर्माण की प्रक्रिया संभव-राजनीतिक सिद्धांत विभिन्न विचारों का संग्रह है। यह किसी राजनीतिक घटना को लेकर उस पर विभिन्न विचारों को इकट्ठा करता है तथा उनका विश्लेषण करता है। जब कोई निष्कर्ष निकल आता है तो उसकी तुलना की जाती है। उन विचारों की परख की जाती है तथा अंत में एक धारणा बना ली जाती है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो नए संकलित तथ्यों को पुनः नए सिद्धांत में बदल देती है।।

4. समस्याओं के समाधान में सहायक-राजनीतिक सिद्धांत का प्रयोग शांति, विकास, अभाव तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक . व राजनीतिक समस्याओं के लिए भी किया जाता है। राष्ट्रवाद, प्रभुसत्ता, जातिवाद तथा युद्ध जैसी गंभीर समस्याओं को सिद्धांत के माध्यम से ही नियंत्रित किया जा सकता है। सिद्धांत समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त करते हैं और निदानों (Solutions) को बल प्रदान करते हैं। बिना सिद्धांत के जटिल समस्याओं को सुलझाना संभव नहीं होता।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति से आप क्या समझते हैं? इसकी परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजनीति क्या है, यह एक विवादास्पद व रोचक प्रश्न है। इस प्रश्न का सही उत्तर देना बड़ा कठिन है। साधारण व्यक्ति से लेकर विद्वानों तक ने इस प्रश्न का अपने-अपने ढंग से उत्तर देने का प्रयत्न किया है, लेकिन कोई भी इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया है। राजनीति का अध्ययन प्राचीन समय से चला आ रहा है। अरस्तू ने राजनीति को सामान्य जीवन से संबंधित माना और राजनीति को ‘सर्वोच्च विज्ञान’ (Master Science) की संज्ञा दी। उनके अनुसार मनुष्य के चारों ओर के वातावरण को समझने के लिए राजनीति-शास्त्र का ज्ञान अति आवश्यक है।

अरस्तू के विचार में मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं में से उसका राजनीतिक पहलू अधिक महत्त्वपूर्ण है। यही पहलू जीवन के अन्य पहलुओं को प्रभावित करता है। उसका कहना था कि राजनीति वैज्ञानिक रूप से यह निश्चित करती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

वर्तमान काल में राजनीति की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि अब राज्य एक पुलिस राज्य न होकर एक कल्याणकारी राज्य बन गया है, जो व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष में हस्तक्षेप करता है अर्थात राज्य व्यक्ति की हर छोटी व बड़ी आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास करता है। इस प्रकार शासक व शासितों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं। एक ओर शासक अपने-आपको सत्ता में रखने का प्रयत्न करते हैं तो दूसरी ओर शासित उन पर अंकुश लगाना चाहते हैं। इससे राजनीति का जन्म होता है।

अतः राजनीति का मनुष्य जीवन पर इतना प्रभाव होने से यह अनिवार्य हो जाता है कि इस शब्द की उत्पत्ति और अर्थ को समझा जाए। राजनीति शब्द की उत्पत्ति और अर्थ (Origin and Meaning of Politics)-प्राचीन काल से ही राजनीति विज्ञान के लिए ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोग होता आ रहा है। अरस्तू ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘पॉलिटिक्स’ (Politics) रखा था।

पॉलिटिक्स शब्द ग्रीक भाषा के पॉलिस (Polis) शब्द से बना है। पॉलिस शब्द का संबंध नगर-राज्यों (City States) से है। प्राचीन यूनान में छोटे-छोटे नगर-राज्य होते थे। प्रत्येक नगर एक प्रभुसत्ता संपन्न राज्य था। इसलिए यूनानियों के दृष्टिकोण से पॉलिटिक्स का अर्थ उस विज्ञान से हुआ जो राज्य की समस्याओं से संबंधित हो, परंतु आधुनिक समय में बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना होने के कारण पॉलिटिक्स का अर्थ उन राजनीतिक समस्याओं से है जो किसी ग्राम, नगर, प्रांत, देश और विश्व के सामने हैं।

‘राजनीति’ आधुनिक युग में सबसे अधिक प्रयोग होने वाला शब्द है। इसलिए भिन्न-भिन्न लोगों ने इस शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में किया है। साधारण अर्थों में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक अर्थ में किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग उन क्रियाओं और प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है जिन्हें अच्छा नहीं समझा जाता है; जैसे विद्यार्थियों को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए या फिर अपने मित्रों के साथ राजनीति नहीं खेलनी चाहिए अर्थात् राजनीति शब्द का प्रयोग विकृत अर्थ में किया जाता है। वर्तमान लोक जीवन में यह शब्द बड़ा अप्रतिष्ठित हो गया है और इससे छल, कपट, बेईमानी आदि का बोध होता है।

राजनीति का उपर्युक्त अर्थ संकुचित व विकृत है, परंतु राजनीति शब्द का अर्थ संकुचित न होकर व्यापक है। राजनीति एक ऐसी क्रिया है जिसमें हम सभी किसी-न-किसी रूप में अवश्य भाग लेते हैं। लोकतंत्र में रहते हुए राजनीति से अलग नहीं रहा जा सकता। राजनीति अरस्तू के समय से ही समाज में है। अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है।

वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में अनेक प्रकार के संघ, दल और समुदायों का निर्माण करता है। इन संस्थाओं या संगठनों के संघर्ष से समाज में मतभेद पैदा हो जाते हैं, मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के नाते क्रांति या शक्ति का सहारा न लेकर शांतिपूर्ण संघर्ष द्वारा अपने मतभेदों को दूर करने का प्रयत्न करते हैं। समाज के इस संघर्ष से उत्पन्न क्रिया को राजनीति कहा जाता है।

गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राजनीति से अभिप्राय आजकल सरकार की वर्तमान समस्याओं से होता है जो अक्सर वैज्ञानिक दृष्टि से राजनीति के ढंग की होने की बजाय आर्थिक ढंग की होती हैं। जब हम किसी मनुष्य के बारे में यह कहते हैं कि वह राजनीति में रुचि रखता है तो हमारा आशय यह होता है कि वह वर्तमान समस्याओं, आयात-निर्यात, श्रम समस्याओं, कार्यकारिणी का विधानपालिका से संबद्ध और वास्तव में किसी अन्य ऐसे प्रश्नों में रुचि रखता है, जिनकी ओर देश के कानून निर्माताओं को ध्यान देना आवश्यक है या ध्यान देना चाहिए।”

इस प्रकार राजनीति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। वह केवल व्यावहारिक बातों तक ही सीमित नहीं होती। राजनीति में हम राजनीतिक क्रियाओं तथा संबंधों को शामिल करते हैं। राजनीति प्रत्येक समाज में पाई जाती है। राजनीति में सर्वव्यापकता है। राजनीति व्यक्ति की हर गतिविधि में विद्यमान है।

1. राजनीति की परिभाषाएँ (Definitions of Politics):
यद्यपि ‘राजनीति’ शब्द को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है फिर भी सुविधा की दृष्टि से राजनीति की कुछ मुख्य परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं हरबर्ट जे० स्पाइरो (Herbert J. Spiro) के अनुसार, “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान करता है।”

2. डेविड ईस्टन (David Easton):
के अनुसार, “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव आवश्यकताओं तथा इच्छाओं की पूर्ति सीमित (मानवीय, भौतिक और आध्यात्मिक) साधनों का सामाजिक इकाई में (चाहे नगर हो, राज्य हो या संगठन) बंटवारा करता है।”

3. हेनरी बी० मेयो (Henri B. Meyo):
के शब्दों में, “राजनीति केवल विवाद ही नहीं है, बल्कि एक ऐसी विधि भी है जिसके द्वारा झगड़ों को सुलझाकर और संघर्ष का निपटारा करके ऐसी नीतियां बनाई जाती हैं जो शासन से संबंधित और बाध्यकारी होती हैं।”

प्रश्न 2.
परंपरागत तथा आधुनिक दृष्टिकोणों में राजनीति के अर्थ बताएँ।
उत्तर:
परंपरागत दृष्टिकोण (Traditional View)-परंपरागत दृष्टिकोण से तात्पर्य है कि राजनीति का संबंध जीवन की ओं से है। इसलिए परंपरावादियों का दृष्टिकोण औपचारिक व संस्थात्मक (Formal and Institutional) है। उन्होंने अपने अध्ययन के क्षेत्र को संस्थाओं के अध्ययन तक ही सीमित रखा है और उन्होंने राजनीति को राजनीति शास्त्र कहना उचित समझा। इस दृष्टिकोण के मुख्य समर्थक प्लेटो, हॉब्स व रूसो हैं। इस दृष्टिकोणं का अध्ययन निम्नलिखित है

1. राजनीति विज्ञान राज्य से संबंधित (Political Science deals with State):
इस क्षेत्र में ऐसे लेखक आते हैं, जिन्होंने राजनीति विज्ञान को केवल राज्य से संबंधित माना है। उनके अध्ययन का आधार राज्य है और राज्य राजनीति विज्ञान का केंद्र-बिंदु है। ब्लंशली (Bluntschli) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र वह विज्ञान है जिसका संबंध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधार का मूल तत्व क्या है, उसका आवश्यक रूप क्या है, उसकी किन विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है तथा उसका विकास कैसे हुआ।”

इसी तरह लार्ड एक्टन (Lord Acton) ने कहा है, “राजनीति शास्त्र राज्य व उसके विकास के लिए अनिवार्य दशाओं से संबंधित है।” गार्नर (Garner) द्वारा भी इसी प्रकार का मत व्यक्त किया गया है, “राजनीति शास्त्र का प्रारंभ तथा अंत राज्य के साथ होता है।” उपर्युक्त परिभाषाएं राजनीति शास्त्र में राज्य के महत्त्व को समझने का प्रयत्न करती हैं।

2. राजनीति विज्ञान सरकार से संबंधित है (Political Science is related to Government):
राजनीति शास्त्र में राज्य के अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, परंतु राज्य के अतिरिक्त राजनीति शास्त्र में सरकार, मानव तथा राज्य के बाहरी संबंधों का भी अध्ययन किया जाता है। इसलिए राजनीति शास्त्र को सरकार व शासन से संबंधित संस्थाओं का अध्ययन भी माना जाता है। कुछ परंपरावादी लेखक इसी दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं।

लीकॉक (Leacock) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र सरकार से संबंधित है।” इसी तरह सीले (Seeley) का भी मत है, “राजनीति शास्त्र शासन के तत्वों का अनुसंधान उसी प्रकार करता है; जैसे अर्थशास्त्र संपत्ति का, जीवशास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का तथा ज्यामिति-शास्त्र स्थान तथा ऊंचाई का करता है।”

इन लेखकों ने सरकार को राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय माना है। इसका कारण यह है कि राज्य अपने कार्य स्वयं नहीं कर सकता, इसलिए सरकार की इस उद्देश्य के लिए आवश्यकता पड़ती है। राजनीति शास्त्र में सरकार की रचना, उसके उद्देश्य व उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

3. राजनीति विज्ञान में राज्य व सरकार का अध्ययन (Study of State and Government in Political Science):
राजनीति विचारकों का एक समूह राज्य के अध्ययन पर बल देता है तो दूसरा सरकार व शासन के अध्ययन को अपना विषय बनाता है। वस्तुतः यह दोनों ही धारणाएँ महत्त्वपूर्ण तो हैं, लेकिन दोनों ही अधूरी हैं। ये दोनों धारणाएं एक-दूसरे की पूरक हैं। क्योंकि राज्य का सरकार के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सरकार राज्य का न केवल अंग है, बल्कि वह उसके स्वरूप की व्याख्या भी करता है।

इस तरह राजनीतिक वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी परिभाषाएं दी हैं जो राज्य तथा सरकार दोनों के अध्ययन पर प्रकाश डालती हैं। इसी संदर्भ में गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने कहा है, “राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार से संबंधित है।” इसी तरह पाल जैनेट (Paul Janet) द्वारा भी विचार व्यक्त किया गया है, “यह समाज शास्त्र का वह भाग है जो राज्य के मूल आधारों तथा शासन के सिद्धांत की विवेचना करता है।”

गैटेल (Gettel) भी राजनीति शास्त्र में सरकार व राज्य दोनों का अध्ययन करता है। गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य के राजनीतिक संगठन तथा राजनीतिक कार्यों का, राजनीतिक समस्याओं तथा राजनीति सिद्धांतों का अध्ययन करता है।”

परंपरावादी दृष्टिकोण की विशेषताएँ (Characteristics of the Traditional View)-दी गई विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर परंपरावादी दृष्टिकोण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) प्राचीन लेखक संस्थाओं की संरचनाओं और सरकार के गठन पर विचार करते हैं। वे यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि संस्थाओं का उदय कैसे हुआ।
परंपरागत विचारक आदर्शवादी हैं।

(2) वे देखते हैं कि क्या होना चाहिए? उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि क्या है? अर्थात् वह राजनीतिक मूल्यों, नैतिकता व सात्विक विचारों पर अधिक बल देते हैं। इसमें कल्पना अधिक है।

(3) परंपरावादियों का दृष्टिकोण व्यक्तिगत अधिक है। उसमें चिंतन और कल्पना है। ये दार्शनिक व विचारात्मक पद्धति में विश्वास करते हैं।

(4) परंपरावादी विचारक राजनीति शास्त्र को विज्ञान मानते हैं।

(5) परंपरावादी केवल राजनीति से संबंधित नहीं हैं। उनका संबंध अनेक समाजशास्त्रों से है। परंपरावादी नैतिकवाद व अध्यात्मवाद में विश्वास रखते हैं। उन्होंने राज्य को एक नैतिक संस्था माना है। उनका झुकाव उदारवाद की ओर था। इसलिए उन्होंने राज्य को कल्याणकारी कहा था। वे व्यक्ति को अधिक स्वतंत्रता देने के पक्ष में हैं।

आधुनिक द्र ष्टिकोण (Modern View)-परंपरावादियों और उदारवादियों ने राजनीति के अध्ययन के विषय को केवल राज्य, सरकार व कानून तक ही सीमित रखा। उन्होंने राजनीति को केवल औपचारिक माना अर्थात उन्होंने राजनीति में औपचारिक दिया, लेकिन इसके विपरीत आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीति को औपचारिक संस्थाओं के अध्ययन के बंधन से मुक्त करने का प्रयत्न किया गया है।

आधुनिक विचारधारा के अनुसार राजनीति में औपचारिक संस्थाओं की अपेक्षा अनौपचारिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। उनका कहना है कि संस्थाएं विधानमंडल, कार्यपालिका व न्यायालय तथा अन्य संस्थाएं स्वयं कोई कार्य नहीं कर सकतीं। ये संस्थाएं किस प्रकार से कार्य करती हैं, इन्हें कौन-से लोग चलाते हैं तथा देश की सामाजिक व आर्थिक स्थिति कैसी है, इन सब बातों का अध्ययन राजनीति में किया जाता है।

अतः आधुनिक विचारक राजनीतिक गतिविधियों पर अधिक जोर देते हैं। वे औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं के स्थान पर अनौपचारिक राजनीतिक संस्थाओं; जैसे राजनीतिक दल, दबाव-समूह, लोकमत, चुनाव, मतदान व आचरण आदि पर अधिक ध्यान देते हैं। कछ आधनिक लेखक राजनीति को संघर्ष के रूप में देखते हैं। इस प्रकार आधनिक राजनीति दृष्टिकोण से अधिक विस्तृत है। राजनीति के आधुनिक दृष्टिकोण का संक्षेप में इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है

1. सीमित साधनों का आबंटन राजनीति है (Allocation of Scarce Resources is Politics):
डेविड ईस्टन (David Easton) ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा है, “राजनीति का संबंध मूल्यों के अधिकारिक आबंटन से है।” इसका अर्थ यह है कि समाज में मूल्य–भौतिक साधन; जैसे सुख-सुविधाएं, लाभकारी पद, राजनीतिक पद आदि सीमित हैं। इन सीमित साधनों को समाज में बांटना है। इनका वितरण करने के लिए एक ऐसी शक्ति की आवश्यकता है जिसकी बात सभी मानें।

इसलिए ईस्टन ने ‘अधिकारिक’ शब्द का प्रयोग किया है। इस प्रकार की बाध्यकारी शक्ति प्रत्येक समाज में होती है। अतः सीमित साधनों को पाने के लिए संघर्ष होता है तथा एक होड़-सी लग जाती है। प्रत्येक व्यक्ति या व्यक्ति-समूह द्वारा साधनों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। साधनों के बंटवारे की इसी प्रक्रिया को राजनीति कहा जाता है। एक अन्य आधुनिक लेखक लासवैल (Lasswell) ने इसे दूसरे शब्दों में लिखा है, “राजनीति की विषय-वस्तु है कौन प्राप्त करता है, क्या प्राप्त करता है, कब प्राप्त करता है और कैसे प्राप्त करता है।”

2. समूची राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण ही राजनीति है (Politics is an Analysis of the whole Political System):
परंपरावादियों ने राजनीति को राज्य व शासन का अध्ययन मात्र माना है। लेकिन आधुनिक विचारक न केवल राज्य व शासन का अध्ययन करते हैं, बल्कि उन सभी पहलुओं का भी अध्ययन करते हैं जिनका संबंध प्रत्यक्ष या अप्रयत्क्ष रूप से राज्य व शासन से होता है अर्थात वह समुदाय, समाज, श्रमिक संगठन, दबाव-समूह व हित-समूह आदि का अध्ययन करते हैं।

इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि आधुनिक लेखक राजनीति में समूची राजनीतिक व्यवस्था को सम्मिलित करते हैं; जैसे कि ऐलन बाल (Alan Ball) ने कहा है, “राजनीतिक व्यवस्था में केवल औपचारिक संस्थाओं (विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका) का ही समावेश नहीं है, बल्कि उसमें समाज की हर प्रकार की राजनीतिक गतिविधि समाहित है।”

इस तरह राजनीतिक व्यवस्था विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों का एक समूह है जिसमें प्रत्येक गतिविधि का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। जैसे चुनाव-प्रणाली के दोषों का प्रभाव सभी गतिविधियों पर पड़ता है। अतः राजनीति में सामाजिक जीवन के उन सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है जिनका प्रभाव राजनीतिक संस्थाओं, गतिविधियों व प्रक्रियाओं पर पड़ता है।

राजनीति शक्ति का अध्ययन है (Politics is the study of Power)-आधुनिक लेखकों ने राजनीति की शक्ति के अध्ययन में अधिक रुचि प्रकट की है। उन्होंने राजनीति को शक्ति के लिए संघर्ष कहा है। इन लेखकों में से केटलिन, लासवैल, वाइज़मैन, मैक्स वेबर और राबर्ट डहल उल्लेखनीय हैं। केटलिन (Catlin) ने कहा है, “समस्त राजनीति स्वभाव से शक्ति-संघर्ष है।”

मैक्स वेबर (Max Weber) ने इसी संदर्भ में व्यक्त किया है, “राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है अथवा जिन लोगों के हाथ में सत्ता है उन्हें प्रभावित करने की क्रिया है। यह संघर्ष राज्यों के मध्य तथा राज्य के भीतर संगठित समुदायों के बीच चलता है और यह दोनों संघर्ष राजनीति के अंतर्गत आ जाते हैं।” इस तरह इस परिभाषा से यह निश्चित हो जाता है कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाला शक्ति के लिए संघर्ष राजनीति के अध्ययन का विषय बन गया है। लासवैल (Lasswell) ने राजनीति को इस प्रकार से परिभाषित किया है, “राजनीति शक्ति को बनाने व उसमें भाग लेने का यन है।”

वाइज़मैन (Wiseman) ने शक्ति की व्याख्या करते हुए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं “विरोध के होते हुए किसी व्यक्ति की इच्छाओं का पालन करवाने की योग्यता को शक्ति कहते हैं।” अर्थात आधुनिक लेखकों के अनुसार राजनीति में, शक्ति क्या है? कैसे प्राप्त की जाती है? कैसे खोई जाती है? इसके क्या आधार हैं; इत्यादि आते हैं।

4. राजनीति एक वर्ग-संघर्ष है (Politics is a Class Struggle):
आधुनिक लेखक राजनीति को एक वर्ग-संघर्ष के अतिरिक्त कुछ और नहीं मानते। जैसे कार्ल मार्क्स ने राजनीति को वर्ग-संघर्ष माना है। उसके अनुसार समाज सदा ही दो वर्गों में विभाजित रहा है-शासक वर्ग व शासित वर्ग। शासक वर्ग हमेशा शासित वर्ग का शोषण करता रहा है क्योंकि उसके पास शक्ति है और वह राज्य के यंत्र का प्रयोग शासितों का शोषण करने के लिए करता है।

इसी शोषण प्रक्रिया को राजनीति कहा जाता है। यह शोषण या वर्ग-संघर्ष तब तक चलता रहता है जब तक समाज में वर्ग-भेद समाप्त नहीं हो जाता। इसलिए मार्क्स एक वर्ग-विहीन समाज की स्थापना करना चाहता था। न वर्ग होंगे, न संघर्ष होगा और न राजनीति होगी।

5. राजनीति सामान्य हित स्थापित करने का साधन है (Politics as a mean to bring Common Good):
साधारणतः राजनीति को संघर्ष माना जाता है जिसमें समाज में रहने वाला एक वर्ग दूसरे वर्ग पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है या शक्ति-विहीन लोग शासन पर अधिकार प्राप्त करके शक्ति प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं।

लेकिन यह राजनीति का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष है कि राजनीति वर्ग-संघर्ष नहीं है, बल्कि समाज के विभिन्न समुदायों अथवा वर्गों के बीच संघर्षों को दूर करके शांति स्थापित करने का साधन है। राजनीति समाज में शांति व्यवस्था व न्याय की स्थापना का प्रयास है जिसमें समाज हित व व्यक्तिगत हित में सामंजस्य स्थापित किया जाता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

प्रश्न 3.
राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषा दीजिए। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएँ लिखिए। शांत क्या है? लंबे समय से विद्वानों के बीच यह विवाद का विषय रहा है। विभिन्न अवधारणाएं इसे विभिन्न तरह से परिभाषित करती हैं। इसके लिए विभिन्न शब्दावली; जैसे राजनीति शास्त्र (Political Science), राजनीति (Politics), राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy) आदि का प्रयोग किया जाता है।

परंतु इन सभी के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। राजनीतिक सिद्धांत को अंग्रेजी में पॉलिटिकल थ्योरी (Political Theory) कहा जाता है। राजनीतिक सिद्धांत ‘राजनीति एवं सिद्धांत’ दो शब्दों से मिलकर बना है। राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ जानने से पूर्व ‘सिद्धांत’ का अर्थ समझना अति आवश्यक है।

सिद्धांत का अर्थ (Meaning of Theory)-सिद्धांत को अंग्रेजी में थ्योरी (Theory) कहा जाता है। ‘थ्योरी’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द थ्योरिया (Theoria) से हुई है, जिसका अर्थ होता है “एक ऐसी मानसिक दृष्टि जो कि एक वस्तु के अस्तित्व एवं उसके कारणों को प्रकट करती है।” ‘विवरण’ (Description) या किसी लक्ष्य के बारे में कोई विचार या सुझाव देने (Proposals of Goals) को ही सिद्धांत नहीं कहा जाता है।

प्रत्येक व्यक्ति संसार में घटने वाली घटनाओं, वस्तुओं, प्राणियों एवं समूहों को अपने दृष्टिकोण से देखता है तथा उस पर अपनी टिप्पणियां करते हैं। प्रत्येक मानव आवश्यकता पड़ने पर उस पर कुछ प्रयोग भी करते हैं तथा आवश्यकता एवं समय के अनुसार उसमें कुछ परिवर्तन भी करते हैं, जिसे सिद्धांत (Theory) कहा जाता है। आर्नोल्ड ब्रेट (Armold Breht) के शब्दों में, “सिद्धांत के अंतर्गत तथ्यों का वर्णन, उनकी व्याख्या, लेखक का इतिहास बोध, उनकी मान्यताएं एवं लक्ष्य शामिल हैं जिनके लिए किसी सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है।”

आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएँ (Characteristics of Modern Political Theory)-आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. विश्लेषणात्मक अध्ययन (Analytical Study)-आधुनिक विद्वानों ने विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। वे संस्थाओं के सामान्य वर्णन से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझना चाहते थे। इस व्यक्ति व संस्थाओं के वास्तविक व्यवहार को समझने के लिए अनौपचारिक संरचनाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं व व्यवहार के विश्लेषण पर बल दिया। ईस्टन, डहल, वेबर तथा आमंड इत्यादि अनेक विद्वानों ने व्यक्ति के कार्यों व उसके व्यवहार पर अधिक बल दिया क्योंकि इनके विश्लेषण से राजनीतिक व्यवस्था को समझना आसान था।

2. अध्ययन की अन्तर्शास्त्रीय पद्धति (Inter-Disciplinary Approach to the Study of Politics)-आधुनिक विद्वानों की यह मान्यता है कि राजनीतिक व्यवस्था समाज व्यवस्था की अनेक उपव्यवस्थाओं (Multi-Systems) में से एक है और इन सभी व्यवस्थाओं का अध्ययन अलग-अलग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक उपव्यवस्था अन्य उप-व्यवस्थाओं के व्यवहार को प्रभावित करती है।

इसीलिए किसी एक उपव्यवस्था का अध्ययन अन्य उपव्यवस्थाओं के संदर्भ में ही किया जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था पर समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक आदि व्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। अतः हमें किसी समाज की राजनीतिक व्यवस्था को ठीक ढंग से समझने के लिए उस समाज की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।

वर्तमान समय में यह धारणा ज़ोर पकड़ रही है कि अंतर्राष्ट्रीयकरण (Globalization) की प्रक्रिया को समझे बिना राज्य के बारे में कोई चिंतन नहीं किया जा सकता। राजनीतिक सिद्धांत में विश्व अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन अलग-अलग नहीं बल्कि एक साथ करने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि ये सभी तत्व राज्य के कार्यक्षेत्र और इसकी प्रभुसत्ता को प्रभावित करते हैं।

3. आनुभाविक अध्ययन (Empirical Study or Approach) राजनीति के आधुनिक विद्वानों ने राजनीति को शुद्ध विज्ञान बनाने के लिए राजनीतिक तथ्यों के माप-तोल पर बल दिया है। यह तथ्य-प्रधान अध्ययन है जिसमें वास्तविकताओं का अध्ययन होता है। इससे उन्होंने नए-नए तरीके अपनाए, जैसे जनगणना (Census Records) तथा आंकड़ों (Datas) का अध्ययन करना तथा जनमत जानने की विधियां (Opinion Polls) और साक्षात्कार (Interviews) के द्वारा कुछ परिणाम निकालना आदि।

डेविड ईस्टन (David Easton) ने कहा है, “खोज सुव्यवस्थित रूप से की जानी चाहिए। यदि कोई सिद्धांत आंकड़ों पर आधारित नहीं है तो वह निरर्थक साबित होगा।” आधुनिक विद्वान् वर्तमान काल के लोकतंत्रात्मक शासन के आदर्श स्वरूप के अध्ययन में रुचि न रखकर लोकतंत्र के वास्तविक व्यावहारिक रूप का आनुभाविक अध्ययन करते हैं और इस धारणा से उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि अन्य शासन-प्रणालियों की भांति लोकतंत्र में भी एक ही वर्ग-छोटा-सा विशिष्ट वर्ग (Elite)-शासन करता है। यह दृष्टिकोण लोकतंत्र के आनुभाविक अध्ययन का ही परिणाम है।

4. अनौपचारिक कारकों का अध्ययन (Study of Informal Factors) आधुनिक विद्वानों के अनुसार परंपरागत अध्ययन की औपचारिक संस्थाओं; जैसे राज्य, सरकार व दल आदि का अध्ययन काफी नहीं है। वे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने के लिए उन सभी अनौपचारिक कारकों का अध्ययन करना आवश्यक समझते हैं जो राजनीतिक संगठन के व्यवहार को प्रभावित करता है।

वह जनमत, मतदान आचरण (Voting Behaviour), विधानमंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, दबाव-समूहों तथा जनसेवकों (Public Servants) के अध्ययन पर भी बल देते हैं। इस श्रेणी में व्यवहारवादी विचारक-डहल, डेविस ईस्टन, आमंड तथा पॉवेल शामिल हैं।

5. मूल्यविहीन अध्ययन (Value-free Study)-आधुनिक लेखक, विशेष रूप से व्यवहारवादी (Behaviouralists), नीति के मूल्यविहीन अध्ययन पर बल देते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक विचारकों को ‘मूल्यनिरपेक्ष’ अर्थात तटस्थ (Neutral) रहना चाहिए। उन्हें ‘क्या होना चाहिए’ (What ought to be) के स्थान पर ‘क्या है’ (What exists) का उत्तर खोजना चाहिए। उन्हें ठीक तथा गलत के प्रश्नों से मुक्त रहना चाहिए।

लेखक को चाहिए कि वह तथ्यों तथा आंकड़ों के स्थान पर मात्र वर्गीकरण तथा विश्लेषण करे। उसे यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि कौन-सी शासन-प्रणाली अच्छी है और कौन-सी बुरी है। इस प्रकार व्यवहारवादी विचारक मूल्यविहीन अध्ययन पर बल देते हैं जिससे उपयुक्त वातावरण में वास्तविकताओं का अध्ययन किया जा सके।

6. उत्तर व्यवहारवाद-मूल्यों को पुनः स्वीकार करने की पद्धति (Post-Behaviouralism : Acceptance of Values in the Study of Politics)-व्यवहारवादी क्रांति ने आदर्शों तथा मूल्यों को पूर्णतः अस्वीकार कर दिया था। राजनीति को पूर्ण विज्ञान बनाने की चाह में व्यवहारवादी लेखक आंकड़ों तथा तथ्यों में ही उलझकर रह गए थे।

उन्होंने किसी लक्ष्य व आदर्श के साथ जुड़ने से साफ इन्कार कर दिया। परंतु शीघ्र ही एक नई क्रांति का उदय हुआ जिसे उत्तर व्यवहारवाद (Post Behaviouralism) के नाम से पुकारा जाता है। इस युग के सिद्धांतशास्त्रियों को यह अनुभव हो गया कि राजनीति प्राकृतिक विज्ञानों की भांति पूर्ण विज्ञान का रूप नहीं ले सकती। अतः उन्होंने मानवीय उद्गम (Normative Approach) और आनुभाविक उद्गम (Empirical Approach) दोनों को स्वीकार कर लिया।

डेविड ईस्टन की ही भांति कोबन (Cobban) तथा ‘लियो स्ट्रास’ (Leo Starauss) ने भी मूल्यों के पुनर्निर्माण (Reconstruction of Values) पर बल दिया है। जॉन रॉल्स (John Rawls) ने उन सिद्धांतों तथा प्रक्रियाओं का पता लगाने का प्रयत्न किया है जिन पर चलकर हम न्यायोचित समाज की स्थापना कर सकते हैं।

7. समस्या समाधान का प्रयास (Problem Solving Efforts) सिद्धांतशास्त्रियों द्वारा मूल्यों को स्वीकार कर लेने का यह परिणाम निकला है कि अब वे समस्याओं के समाधान में जुट गए हैं। आधुनिक सिद्धांतशास्त्री जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं वे हैं युद्ध तथा शांति, बेरोज़गारी, पर्यावरण, असमानता तथा सामाजिक हलचल। राजसत्ता, प्रभुसत्ता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा न्याय आदि तो पहले से ही राजनीतिक विज्ञान के अंग हैं।

प्रश्न 4.
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मुख्यतः वर्णनात्मक अध्ययन (Mainly Descriptive Studies):
परंपरागत सिद्धांत की मुख्य विशेषता यह है कि यह मुख्यतः वर्णनात्मक है। इसका अर्थ यह है कि इसमें केवल राजनीतिक संस्थाओं का वर्णन किया गया है। अतः यह न तो व्याख्यात्मक है, न विश्लेषणात्मक और न ही इसके माध्यम से राजनीतिक समस्या का समाधान हो पाया है। इन विद्वानों के अनुसार राजनीतिक संस्थाओं का वर्णन मात्र पर्याप्त है और उनके द्वारा इस बात पर विचार नहीं किया गया कि इन संस्थाओं की समानताओं तथा भिन्नताओं के मूल में कौन-सी ऐसी परिस्थितियां हैं, जो इन्हें प्रभावित करती हैं।

2. समस्याओं का समाधान करने का प्रयास (Study for Solving Problems):
परंपरागत लेखकों की रचनाओं पर अपने युग की घटनाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है और वे अपने-अपने ढंग से इन समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए प्रयत्नशील थे। उदाहरणस्वरूप, प्लेटो (Plato) के सामने यूनान के नगर-राज्यों के आपसी ईर्ष्या-द्वेष तथा कलह का जो वातावरण मौजूद था उससे छुटकारा पाने के लिए उसने दार्शनिक राजा (Philosopher King) के सिद्धांत की रचना की। उस व्यवस्था का उद्देश्य शासक वर्ग को निजी स्वार्थ से ऊपर रखना था।

दार्शनिक राजा का अपना कोई निजी परिवार नहीं होगा और शासक वर्ग में शामिल अन्य व्यक्तियों को भी अपना निजी परिवार बसाने का अधिकार नहीं होगा। उन्हें तो समस्त समाज को ही अपना परिवार समझना होगा। इटली की तत्कालीन स्थिति को देखकर मैक्यावली (Machiavelli) इस परिणाम पर पहुंचा कि शासक के लिए अपने राज्य को विस्तृत तथा मज़बूत बनाने के लिए झूठ, कपट, हत्या और अन्य सभी साधन उचित हैं।

इस प्रकार इंग्लैंड में अशांति तथा अराजकता की स्थिति को देखते हुए हॉब्स (1588-1679) ने निरंकुश राजतंत्र (Absolute Monarchy) का समर्थन किया। हॉब्स के चिंतन का मुख्य उद्देश्य किसी ऐसी व्यवस्था की खोज करना था जिससे गृह-युद्ध तथा अशांति के वातावरण को समाप्त किया जा सके।

3. परंपरागत चिंतन पर दर्शन, धर्म तथा नीतिशास्त्र का प्रभाव (Influence of Philosophy, Religion and Ethics on Classical Studies):
परंपरागत चिंतन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे दर्शन तथा धर्म से प्रभावित रहा है तथा उसमें नैतिक मूल्य विद्यमान रहे हैं। यद्यपि प्लेटो तथा अरस्तू के चिंतन में ये कुछ हद तक दिखाई देते हैं परंतु इनका स्पष्ट उदाहरण मध्ययुग में ईसाई धर्म द्वारा राज्य के प्रभावित हो जाने पर प्राप्त हुआ।

इस समय राज्य तथा चर्च (Church) के आपसी संबंध को लेकर एक भीषण विवाद उठ खड़ा हुआ जो उस काल की विचारधारा का मुख्य विषय बन गया। यूरोप के कई विद्वानों ने यह विचार व्यक्त किया कि धर्म राज्य से श्रेष्ठ है और धर्माधिकारी भी राज्य के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

सेंट थॉमस एक्वीनास (Saint Thomas Acquinas) इसी मत के समर्थक थे। दूसरी ओर, यह विचार निरंतर महत्त्वपूर्ण बना रहा कि राजसत्ता, धर्मसत्ता से श्रेष्ठ है और उसे चर्च को विनियमित करने का अधिकार है। इस विचार का समर्थन मुख्य रूप से विलियम ऑकम (William Occam) द्वारा किया गया।

4. मुख्यतः आदर्शात्मक अध्ययन (Mainly Normative Studies):
परंपरागत चिंतनों के ग्रंथों को पढ़ने से यह पता चलता है कि इनमें कुछ आदर्शों को न केवल पहले से ही स्वीकार कर लिया गया है, बल्कि इन्हीं मान्यताओं की कसौटी पर अन्य देशों की राजनीतिक संस्थाओं व शासन को परखा जाता है। इस प्रकार उन लेखकों ने मानवीय उद्गम (Normative Approach) का सहारा लिया।

मानवीय उद्गम का अर्थ यह है कि पहले मस्तिष्क में किसी विशेष आदर्श की कल्पना कर ली जाती है और फिर उस कल्पना को व्यावहारिक रूप देने के लिए सिद्धांत का निर्माण किया जाता है। इस अध्ययन पद्धति को अपनाने वाले लेखकों में प्लेटो, हॉब्स, रूसो, थाटे तथा हीगल आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन विद्वानों ने मनघड़त अथवा काल्पनिक आदर्शों के आधार पर आदर्श राज्य की रचना का प्रयास किया।

प्लेटो ने दार्शनिक राजा (Philosopher King) तथा रूसो ने सामान्य इच्छा (General Will) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा कभी असत्य व भ्रांत नहीं हो सकती और वही शासन अच्छा होगा जो सामान्य इच्छा के अनुसार चलाया जाएगा। हीगल (Hegal) ने लिखा है कि पूर्ण विकसित राज्य राजतंत्र हो सकता है। सम्राट राज्य की एकता का प्रतीक है।

परंतु कुछ परंपरागत लेखक ऐसे भी हैं जिन्होंने मानवीय उद्गम के साथ-साथ आनुभाविक उद्गम (Empirical Approach) को भी अपनाया। उन्होंने तथ्यों तथा आंकड़ों का संकलन करके उनका विधिवत् विश्लेषण किया। उदाहरणस्वरूप अरस्तू ने अपने काल के 158 नगर-राज्यों के संविधानों का अध्ययन किया और फिर उसने अपने आदर्श राज्य की कल्पना की। इसी प्रकार मार्क्स के विचारों में भी मानवीय तथा आनुभाविक, दोनों पद्धतियों का मिला-जुला रूप मिलता है।

5. मुख्यतः कानूनी, औपचारिक तथा संस्थागत अध्ययन (Primarily Legal, Formal and Institutional Studies) परंपरागत अध्ययन मुख्यतः विधि तथा संविधान द्वारा निर्मित औपचारिक संस्थाओं से संबंधित था। उस काल के लेखकों ने इस बात का प्रयास नहीं किया कि संस्था के औपचारिक रूप से बाहर जाकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाए, जिससे उसके विशिष्ट व्यवहार का परीक्षण किया जा सके।

उदाहरणस्वरूप डायसी (Diecy), जेनिंग्स (Jennings), लास्की (Laski) तथा मुनरो (Munro) आदि विद्वानों ने अपने अध्ययनों में संस्थाओं के कानूनी व औपचारिक रूप का ही अध्ययन किया। इस प्रकार परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत दार्शनिक, आदर्शवादी तथा इतिहासवादी था। प्रश्न 5. राजनीति सिद्धांत के कार्यक्षेत्र या विषय-वस्तु का वर्णन करो।
उत्तर:
आज के युग में मनुष्य के जीवन का कोई भी भाग ऐसा नहीं है जो राजनीति से अछूता रह सके। उदारवादियों ने राज्य तथा राजनीति का संबंध केवल सरकार तथा नागरिकों तक ही सीमित रखा जबकि मार्क्सवादियों ने उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का स्वामित्व माना है। आज के नारीवादी लेखक (Feminist Writers) पारिवारिक तथा घरेलू मामलों में भी राज्य के हस्तक्षेप का समर्थन करते हैं।

इस प्रकार अब राजनीति विज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो गया है। राजनीतिक सिद्धांतशास्त्रियों को अब बहुत से विषयों के बारे में सिद्धांतों का निर्माण करना पड़ता है। आजकल मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों को राजनीतिक सिद्धांत के कार्यक्षेत्र में शामिल किया जाता है

1. राज्य का अध्ययन (Study of State):
प्राचीनकाल से ही राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र के बारे में विचार होता रहा है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, उसका विकास कैसे हुआ तथा नगर-राज्य के समय से लेकर वर्तमान राष्ट्रीय राज्य के रूप में पहुंचने तक इसके स्वरूप का कैसा विकास हुआ आदि। इसके अतिरिक्त मनुष्य के राज्य संबंधी विचारों में भी लगातार परिवर्तन होता आया है।

प्राचीनकाल में लोग राजा की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा मानते थे और उसका विरोध करना पाप समझा जाता था। परंतु वर्तमान काल में राजनीति शास्त्रियों के अनुसार राज्य की सत्ता का अंतिम स्रोत जनता है और राज्य को जनता की भलाई के लिए ही कार्य करना होता है। इस प्रकार हम राज्य के स्वरूप, उद्देश्यों तथा कार्यक्षेत्र के बारे में अध्ययन करते हैं।

2. सरकार का अध्ययन (Study of the Government):
सरकार ही राज्य का वह तत्त्व है जिसके द्वारा राज्य की अभिव्यक्ति होती है। अतः सरकार भी राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। सरकार के तीन अंग-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका-माने गए हैं। इन तीनों अंगों का संगठन, इनके अधिकार, इनके आपस में संबंध तथा इन तीनों से संबंधित भिन्न-भिन्न सिद्धांतों का अध्ययन भी हम करते हैं।

जिस प्रकार राज्य के ऐतिहासिक स्वरूप का हमें अध्ययन करना होता है, ठीक उसी प्रकार हमें सरकार के स्वरूप का भी अध्ययन करना होता है जैसे एक समय था, जब दरबारियों की सरकारें हुआ करती थीं, अब वह समय है, जब सरकारें जनता के प्रतिनिधियों की होती हैं। अतः राजनीतिशास्त्र में सरकार के अंग, उसके प्रकार तथा उसके संगठन आदि का भी अध्ययन किया जाता है।

3. नीति-निर्माण प्रक्रिया (Policy-making Process):
आधुनिक विद्वानों के अनुसार नीति-निर्माण प्रक्रिया भी राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में अध्ययन की जानी चाहिए। इस विषय में उन सब साधनों का अध्ययन होना चाहिए जो कि शासकीय नीति निश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। इस दृष्टि से राजनीतिशास्त्र में विधानपालिका तथा कार्यपालिका के शासन-संबंधी कार्यों, मतदाताओं, राजनीतिक दलों, उनके संगठनों तथा उनको प्रभावित करने वाले ढंगों का अध्ययन किया जाता है।

राज्य की अनेक संस्थाएं क्या नीतियां अपनाएं, उन नीतियों को किस प्रकार लागू किया जाए, यह भी राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का एक मुख्य विषय है। सिद्धांतशास्त्रियों ने राजनीतिक दलों की न केवल परिभाषाएं दी हैं, बल्कि उनकी संरचना, कार्यों तथा उनके रूपों के बारे में भी लिखा है।

प्रायः तीन प्रकार की दल-प्रणालियों की चर्चा की जाती है-एकदलीय पद्धति, द्विदलीय पद्धति तथा बहुदलीय पद्धति। इसी प्रकार मतदान तथा प्रतिनिधित्व के विषय में भी कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। कुछ वर्ष पहले तक महिलाओं को मताधिकार से वंचित रखा गया था और इसके पक्ष में अनेक दलीलें दी जाती थीं परंतु अंत में व्यस्क मताधिकार के सिद्धांत की विजय हुई। इस प्रणाली के अंतर्गत केवल कुछ लोगों (पागल, दिवालिये तथा अपराधियों) को छोड़कर अन्य सभी नागरिकों को एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर मतदान का अधिकार दे दिया जाता है।

4. शक्ति का अध्ययन (Study of Power):
वर्तमान समय में शक्ति के अध्ययन को भी राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में शामिल किया जाता है। शक्ति के कई स्वरूप हैं, जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक शक्ति, व्यक्तिगत शक्ति, राष्ट्रीय शक्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति इत्यादि। राजनीतिक सिद्धांतकार शक्ति के इन विभिन्न रूपों के पारस्परिक संबंधों को देखता है और यह जानना चाहता है कि मानव समाज में किसको क्या मिलता है, कैसे मिलता है और क्यों मिलता है। परंतु शक्ति के अध्ययन में प्रमुख स्थान राजनीतिक शक्ति को दिया जाता है और राजनीतिक सिद्धांतकार इसी को महत्त्व देते हैं।

5. व्यक्ति तथा राज्य के संबंधों का अध्ययन (Study of Individual’s Relations with State):
व्यक्ति और राज्य का क्या संबंध हो, इस विषय पर राजनीतिक सिद्धांत के विद्वानों ने अपने-अपने मत दिए। प्राचीनकाल से लेकर अब तक इस विषय पर अनेक विरोधी विचार आए हैं। 18वीं सदी में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अत्यधिक बल दिया गया तथा राज्य के अधिकारों को सीमित करने का समर्थन किया गया। आदर्शवादियों के विचारों में काफी मतभेद रहा है।

वर्तमान लोकतंत्रीय व्यवस्था ने मौलिक अधिकारों पर बहुत जोर दिया है, ताकि व्यक्ति का पूर्ण विकास हो सके। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से आरंभ होकर अब तक जितने भी संविधान बने हैं उनमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। यहाँ तक कि साम्यवादी राज्यों में भी नागरिकों को मौलिक अधिकर दिए गए हैं भले ही उनकी रक्षा की उचित व्यवस्था न की गई हो।

आज जबकि भिन्न-भिन्न विचारधाराओं को अपनाने वाले देश अपने राज्यों में ‘कल्याणकारी राज्य’ के सिद्धांतों को अपना रहे हैं जिनके अनुसार राज्य नागरिकों के जीवन के सभी क्षेत्रों-राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक आदि में हस्तक्षेप कर सकता है। यह प्रश्न बहुत ही महत्त्वपूर्ण बना हुआ है कि इस परिस्थिति में नागरिकों के अधिकारों को किस हद तक सुरक्षित किया जाए।

भारत में जहाँ आर्थिक व्यवस्था एक निश्चित योजना के अनुसार चलाई जा रही है, वहाँ भी यह प्रश्न गंभीर है कि कहीं इससे राज्य नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण न कर दे। अतः यह स्पष्ट है कि व्यक्ति तथा राज्य के आपसी संबंध राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण विषय हैं।

6. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन (Study of International Relations):
आवागमन के विकास के कारण आज का संसार एक लघु संसार बन गया है जिसके कारण भिन्न-भिन्न राज्यों में आपसी संबंध होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि आज हमें राजनीतिक सिद्धांत में अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा भिन्न-भिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organization) आदि का अध्ययन भी राजनीतिक क्षेत्र में आता है।

7. शक्ति सिद्धांत तथा क्षेत्रीय संगठन जैसे यूरोपियन समुदाय तथा दक्षेस का अध्ययन (Study of the concept of Power and Regional Organization like SAARC and European Community):
राजनीतिशास्त्र के आधुनिक विद्वानों ने शक्ति को इस शास्त्र का मुख्य विषय माना है। उनके अनुसार राजनीति में जो कुछ होता है वह सब इसी शक्ति-संघर्ष के कारण होता है। कैटलीन ने भी राजनीति को संघर्ष पर आधारित माना है। उसके अनुसार जहाँ कहीं भी राजनीति है, वहाँ शक्ति का होना स्वाभाविक है। इसी विचारधारा का समर्थन लासवैल ने भी किया है।

इन विद्वानों के अनुसार शक्ति के कई रूप; जैसे सत्ता, प्रभाव, बल, अनुनय, दमन या दबाव भी हो सकते हैं जो परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं। राज्य और राजनीतिक संस्थाओं द्वारा शक्ति और उसके विभिन्न रूपों का प्रयोग किया जाता है परंतु इसके साथ-साथ राजनीति में सहयोग का भी प्रमुख स्थान है।

8. स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के आदर्शों की समीक्षा (Review of the ideals of Liberty, Equality and Justice):
प्राचीनकाल से लेकर अब तक ऐसे अनेक राजनीतिक विचारक हुए हैं जो बहुत-सी विचारधाराओं–व्यक्तिवाद, आदर्शवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद, उपयोगितावाद तथा गांधीवाद आदि के साथ जुड़े हुए हैं। इन सभी विचारधाराओं का लक्ष्य एक ऐसे समाज की स्थापना करना था जिसमें स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के सिद्धांत को समर्थन प्राप्त हो।

उदारवादियों ने राजनीतिक स्वतंत्रता तथा नागरिकों के अधिकारों के लिए जो संघर्ष किया उसका समर्थन कार्ल मार्क्स द्वारा भी किया गया। यद्यपि उन्होंने इस बात पर बल दिया कि वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना तभी होगी जब समाज से वर्ग-भेद दूर हो जाएंगे। महात्मा गांधी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें सत्ता का अधिक से अधिक विकेंद्रीकरण होगा। यह विकेंद्रीकरण न केवल राजनीतिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में बल्कि आर्थिक क्षेत्रों में भी होगा। ऐसी व्यवस्था में प्रशासन, उत्पादन तथा वितरण की मूल इकाई ‘ग्राम’ (Village) होगा। इसे उन्होंने ग्राम स्वराज्य का नाम दिया।

9. नारीवाद (Feminism):
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पारिवारिक मामलों में केवल एक सीमा तक ही सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया जा सकता है परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकार इस ओर कोई भी ध्यान न दे। अनेक देशों में स्त्रियों की दशा को लए आंदोलन हो रहे हैं परंतु व्यक्तिवादी तथा मार्क्सवादी विचारकों ने एक लंबे अर्से तक नारी-उत्पीड़न के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठाई।

सन् 1970 के दशक में स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए बहुत गंभीर प्रयत्न किए गए और अनेक लेखकों ने इस बात पर विचार प्रकट किया है कि सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक सभी क्षेत्रों में उनकी स्थिति कैसे सुनिश्चित की जाए।

भारत में सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा देवदासी प्रथा के विरुद्ध लड़ाई लड़ी गई और राज्य द्वारा इनके विरुद्ध कानून पास करके ही इन्हें समाप्त किया गया। अब भारत में सभी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान सुरक्षित करने की व्यवस्था की गई है और संसद तथा राज्य विधानमंडलों में भी उनके लिए स्थान सुरक्षित रखने से संबंधित बिल विचाराधीन है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

10. मानव व्यवहार का अध्ययन (Study of Human Behaviour):
राजनीति के आधुनिक विद्वानों ने राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिशास्त्र का मुख्य विषय माना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि राजनीतिक क्षेत्र में व्यक्ति जो कुछ करता है उसके पीछे जो प्रेरणाएं कार्य करती हैं उनका अध्ययन राजनीतिक सिद्धांत में होना चाहिए। इस प्रकार राजनीति मनुष्य व्यवहार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

मनुष्य समाज में रहते हुए जो कुछ क्रिया-कलाप करता है वे सभी क्रिया-कलाप राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत आने चाहिएं। इन आधुनिक विद्वानों, जो व्यवहारवादी दृष्टिकोण से राजनीतिक सिद्धांत के विषय का अध्ययन करते हैं, की मान्यताएं हैं कि मनुष्य भावनाओं का समूह होता है, उसकी अपनी प्रवृत्तियां और इच्छाएँ होती हैं जिनके अनुसार उसका राजनीतिक व्यवहार नियंत्रित होता है।

इसलिए ये आधुनिक विद्वान् व्यक्ति या व्यक्ति-समूहों के राजनीतिक व्यवहार को बहुत महत्व देते हैं और राजनीतिक संस्थाओं को बहुत कम। मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन करके उसकी कमियों को दूर करने के उपाय बतलाए जा सकते हैं जिससे कि भविष्य में ऐसी गलतियां न हों।

11. विकास, आधुनिकीकरण और पर्यावरण की समस्याएँ (Problems of Development, Modernization and Environment):
समाजशास्त्र के बढ़ते प्रभाव के कारण राजनीतिक सिद्धांत में कुछ नवीन अवधारणाओं को भी अपनाया गया है जिसमें समाजीकरण, विकास, गरीबी, असमानता तथा आधुनिकीकरण आदि शामिल हैं। विकासशील देशों के राजनीतिक विकास के संबंध में लिखने वाले लेखकों में जी० आमण्ड (G. Almond) तथा डेविड एप्टर (David Apter) हैं।

माईरन वीनर (Myren Wenir) तथा रजनी कोठारी (Rajni Kothari) ने भारत के सामाजिक एवं राजनीतिक विकास का क्रमबद्ध अध्ययन किया जिससे जातिवाद, संप्रदायवाद तथा दलित राजनीति अब भारतीय राजनीति के मुख्य केंद्र-बिंदु बन गए हैं।

पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी मनुष्य जाति के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आई हैं। पर्यावरण संरक्षण के अनेक उपाय सुझाए जाते हैं; जैसे जनसंख्या नियंत्रण, वन सर्वेक्षण तथा औद्योगिक विकास के लिए साफ-सुथरे वातावरण की आवश्यकता आदि।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है।

प्रश्न 6.
राजनीति सिद्धांत के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य मनुष्य के समक्ष आने वाली सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समस्याओं का समाधान ढूंढना है। यह मनुष्य के सामने आई कठिनाइयों की व्याख्या करता है तथा सुझाव देता है ताकि मनुष्य अपना जीवन अच्छी प्रकार व्यतीत कर सके। राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के महत्त्व (उद्देश्य) को निम्नलिखित तथ्यों से प्रकट किया जा सकता है

1. भविष्य की योजना संभव बनाता है (Makes Future Planning Possible):
राजनीतिक सिद्धांत सामान्यीकरण (Generalization) पर आधारित है, अतः यह वैज्ञानिक होता है। इसी सामान्यीकरण के आधार पर वह राजनीति विज्ञान को तथा राजनीतिक व्यवहार को भी एक विज्ञान बनाने का प्रयास करता है। वह उसके लिए नए-नए क्षेत्र ढूंढता है और नई परिस्थितियों में समस्याओं के निदान के लिए नए-नए सिद्धांतों का निर्माण करता है।

ये सिद्धांत न केवल तत्कालीन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं बल्कि भविष्य की परिस्थितियों का भी आंकलन करते हैं। वे कुछ सीमा तक भविष्यवाणी भी कर सकते हैं। इस प्रकार देश व समाज के हितों को ध्यान में रखकर भविष्य की योजना बनाना संभव होता है।

2. वास्तविकता को समझने का साधन (Source to Know the Truth):
राजनीतिक सिद्धांत हमें राजनीतिक वास्तविकताओं मझने में सहायता प्रदान करता है। सिद्धांतशास्त्री सिद्धांत का निर्माण करने से पहले समाज में विद्यमान सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों का तथा समाज की इच्छाओं, आकांक्षाओं व प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है तथा उन्हें उजागर करता है।

वह अध्ययन तथ्यों तथा घटनाओं का विश्लेषण करके समाज में प्रचलित कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों को उजागर करता है। वास्तविकता को जानने के पश्चात ही हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। अतः यह हमें शक की स्थिति से बाहर निकाल देता है।

3. अवधारणा के निर्माण की प्रक्रिया संभव (Process of the Concept of Construction Possible):
राजनीतिक सिद्धांत विभिन्न विचारों का संग्रह है। यह किसी राजनीतिक घटना को लेकर उस पर विभिन्न विचारों को इकट्ठा करता है तथा उनका विश्लेषण करता है। जब कोई निष्कर्ष निकल आता है तो उसकी तुलना की जाती है। उन विचारों की परख की जाती है तथा अंत में एक धारणा बना ली जाती है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो नए संकलित तथ्यों को पुनः नए सिद्धांत में बदल देती है।

4. समस्याओं के समाधान में सहायक (Useful in Solving Problems):
राजनीतिक सिद्धांत का प्रयोग शांति, विकास, अभाव तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समस्याओं के लिए भी किया जाता है। राष्ट्रवाद, प्रभुसत्ता, जातिवाद तथा युद्ध जैसी गंभीर समस्याओं को सिद्धांत के माध्यम से ही नियंत्रित किया जा सकता है। सिद्धांत समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त करते हैं और निदानों (Solutions) को बल प्रदान करते हैं। बिना सिद्धांत के जटिल समस्याओं को सुलझाना संभव नहीं होता।

5. सरकार (शासन) को औचित्य प्रदान करता है (Provides legitimacy to the Government):
कोई भी सरकार (शासन) केवल दमन तथा आतंक के आधार पर अधिक समय तक नहीं चल सकती। उसका ‘वैधीकरण’ आवश्यक होता है। जनता के मन में यह विश्वास बिठाना आवश्यक होता है कि अमुक व्यक्ति अथवा दल को देश पर शासन करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है। जब भी कोई शासक शासन पर अधिकार करता है और शासन के स्वरूप को बदलता है तब वह उसके औचित्य को सिद्ध करने के लिए किसी सिद्धांत का सहारा लेता है।

हिटलर तथा मुसोलिनी जैसे व्यक्तियों ने भी अपनी तानाशाही स्थापित करने के लिए क्रमशः नाजीवाद (Nazism) तथा फासीवाद (Fascism) जैसी विचारधाराओं का सहारा लिया। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद तथा विशिष्ट वर्गीय शासन की स्थापना के लिए भी सिद्धांत ही औचित्य प्रदान करते हैं। अपनी विचारधाराओं का जनता में प्रचार करके वे जनता का समर्थन प्राप्त करने तथा लोगों का विश्वास जीतने में सफल होते हैं। इससे उनका वैधीकरण हो जाता है।

6. अनुगामियों का मार्गदर्शन (Guidance to Followers):
सिद्धांतशास्त्री विभिन्न सिद्धांतों का निर्माण करके अपने अनुगामियों तथा समर्थकों व शिष्यों का मार्गदर्शन करते हैं तथा उनमें आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करते हैं। हिन्दू चिंतन की लंबी परंपरा में अनेक ऋषियों ने अपने संपूर्ण जीवन को लगाकर विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे सार्वकालिक सिद्धांतों की रचना की जो हजारों वर्षों के पश्चात भी उनके अनुयायियों तथा समर्थकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं और वे बड़े आत्मविश्वास के साथ इन सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं।

मार्क्स (Marx) तथा एंगेल्स (Engles) ने जिस साम्यवादी विचारधारा का प्रतिपादन किया और जिस सिद्धांत की रचना की उसने उनके समर्थकों में बहुत विश्वास उत्पन्न किया था।

7. सिद्धांत राजनीतिक आंदोलन के प्रेरणा स्रोत बनते हैं (Theories become inspiration behind many Political Movements):
सिद्धांत राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित करते हैं। लेनिन (Lenin) जो राजनीतिक आंदोलन के लिए सिद्धांत के महत्व को समझते थे, ने सन् 1902 में कहा था, “एक विकसित या प्रगतिशील सिद्धांत के बिना कोई दल किसी संघर्ष का नेतृत्व नहीं कर सकता।” लेनिन (Lenin) ने यह बात बार-बार कही, “क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना क्रांतिकारी आंदोलन संभव नहीं है।”

भारत में गांधी जी द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय आंदोलन के पीछे देशवासियों का समर्थन उस विचारधारा के कारण था जो .. सत्य तथा अहिंसा के आधार पर आधारित था। इस प्रकार प्लेटो, अरस्तू, चाणक्य, लॉक, माण्टेस्क्यू, गांधी, मार्क्स तथा एगेल्स जैसे . विचारकों की कृतियों में उस समय की परिस्थितियों के संबंध में जो प्रश्न उन्होंने उठाए, उनका आज भी महत्व है। 20वीं शताब्दी में इस कार्य के लिए ग्राहम वालास, लास्की, मैकाइवर, चार्ल्स मैरियम, रॉबर्ट डहल, डेविड ईस्टन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

8. सामाजिक परिवर्तन को समझने में सहायक (Helpful in understanding the Social Change):
मानव समाज एक गतिशील संस्था है जिसमें दिन-प्रतिदिन परिवर्तन होते रहते हैं। ये परिवर्तन समाज के राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन पर कुछ न कुछ प्रभाव डालते हैं। ऐसे परिवर्तनों के विभिन्न पक्षों तथा उनके द्वारा उत्पन्न हुए प्रभावों को समझने के लिए राजनीतिक सिद्धांत सहायक सिद्ध होता है।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिन देशों में स्थापित सामाजिक व्यवस्थाओं के विरुद्ध क्रांतियां हुईं अथवा विद्रोह हुए उनका मुख्य कारण यह था कि स्थापित सामाजिक व्यवस्थाएं (Established Social Order) नई उत्पन्न परिस्थितियों के अनुकूल नहीं थीं। फ्रांस की सन् 1789 की क्रांति का उदाहरण हमारे सामने है।

कार्ल मार्क्स ने राजनीतिक सिद्धांत को एक विचारधारा (Ideology) का ही रूप माना है और उसका विचार था कि जब नई सामाजिक व्यवस्था (वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाज) की स्थापना हो जाएगी तो फिर सिद्धांतीकरण की आवश्यकता नहीं रहेगी। मार्क्स ने एक विशेष विचारधारा और कार्यक्रम के आधार पर वर्गविहीन और राज्यविहीन समाज की कल्पना की थी।

उसका यह विचार ठीक नहीं है कि ऐसा समाज स्थापित हो जाने के पश्चात सिद्धांतीकरण (Theorising) की आवश्यकता नहीं रहेगी। वास्तव में, सभ्यता के निरंतर हो रहे विकास के कारण जैसे-जैसे मानव-समाज का अधिक विकास होगा वैसे-वैसे सामाजिक परिवर्तन को समझने तथा उसकी व्याख्या करने के लिए राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता महसूस होगी।

9. स्पष्टता प्राप्त करना (Acquiring Clarity):
राजनीतिक सिद्धांत वैचारिक तथा विश्लेषणात्मक स्पष्टता (Conceptual and Analytical) प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण सहायता करते हैं। राजनीतिक विचारों का यह कर्त्तव्य है कि लोकतंत्र, कानून, स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय आदि मूल्यों की रक्षा करें। इसके लिए राजनीतिक सिद्धांत का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि इससे हमें इन राजनीतिक अवधारणाओं का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। ये स्पष्टतया विश्लेषणात्मक अध्ययन से प्राप्त होती हैं।

10. राजनीतिक सिद्धांत की राजनीतिज्ञों, नागरिकों तथा प्रशासकों के लिए उपयोगिता (Utility of Political Theory for Politicians, Citizens and Administrators) राजनीतिक सिद्धांत के द्वारा वास्तविक राजनीति के अनेक स्वरूपों का शीघ्र ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिस कारण वे अपने सही निर्णय ले सकते हैं।

डॉ० श्यामलाल वर्मा ने लिखा है, “उनका यह कहना केवल ढोंग या अहंकार है कि उन्हें राज सिद्धांत की कोई आवश्यकता नहीं है या उसके बिना ही अपना कार्य कुशलतापूर्वक कर रहे हैं अथवा कर सकते हैं। वास्तविक बात यह है कि ऐसा करते हुए भी वे किसी न किसी प्रकार के राज-सिद्धांत को काम में लेते हैं।” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान के सम्पूर्ण ढांचे का भविष्य राजनीतिक सिद्धांत के निर्माण पर ही निर्भर करता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. निम्नलिखित में से किस विद्वान को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक कहा जाता है ?
(A) प्लेटो
(B) सुकरात
(C) अरस्तू
(D) कार्ल मार्क्स
उत्तर:
(C) अरस्तू

2. राजनीति की प्रकृति संबंधी यूनानी दृष्टिकोण की विशेषता निम्न में से नहीं है
(A) राज्य एक नैतिक संस्था है
(B) राज्य एवं समाज में अंतर नहीं
(C) राजनीति एक वर्ग-संघर्ष है।
(D) नगर-राज्यों से संबंधित अध्ययन पर बल
उत्तर:
(C) राजनीति एक वर्ग-संघर्ष है

3. निम्नलिखित में से राजनीति संबंधी परंपरागत दृष्टिकोण के समर्थक हैं
(A) प्लेटो
(B) हॉब्स
(C) रूसो
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

4. राजनीति संबंधी परंपरावादी दृष्टिकोण की विशेषता निम्नलिखित में से है
(A) दार्शनिक एवं विचारात्मक पद्धति में विश्वास
(B) नैतिकवाद एवं अध्यात्मवाद में विश्वास
(C) राजनीति शास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. राजनीति संबंधी आधुनिक दृष्टिकोण की विशेषता निम्नलिखित में से नहीं है
(A) राजनीति शक्ति का अध्ययन है
(B) राजनीति एक वर्ग-संघर्ष है
(C) राजनीति केवल राज्य एवं सरकार का अध्ययन
(D) राजनीति समूची राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण है मात्र है
उत्तर:
(C) राजनीति केवल राज्य एवं सरकार का अध्ययन

6. मात्र है “राजनीति शास्त्र शासन के तत्त्वों का अनुसंधान उसी प्रकार करता है जैसे अर्थशास्त्र संपत्ति का जीवशास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का तथा ज्यामिति-शास्त्र स्थान तथा ऊंचाई का करता है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है?
(A) गार्नर
(B) लाई एक्टन
(C) गैटेल
(D) सीले
उत्तर:
(D) सीले

7. निम्नलिखित में से परम्परागत राजनीतिक सिद्धांत का लक्षण है
(A) यह मुख्यतः वर्णनात्मक अध्ययन है
(B) यह मुख्यतः आदर्शात्मक अध्ययन है
(C) यह मुख्यतः कानूनी, औपचारिक एवं संस्थागत अध्ययन है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. निम्नलिखित में से आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का लक्षण नहीं है
(A) विश्लेषणात्मक अध्ययन
(B) आनुभाविक अध्ययन
(C) अनौपचारिक कारकों का अध्ययन
(D) वर्णनात्मक अध्ययन पर बल
उत्तर:
(D) वर्णनात्मक अध्ययन पर बल

9. राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में निम्नलिखित में से सम्मिलित है
(A) शक्ति का अध्ययन
(B) राज्य एवं सरकार का अध्ययन
(C) मानव व्यवहार का अध्ययन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में निम्नलिखित में से सम्मिलित नहीं है
(A) राज्य एवं व्यक्तियों के संबंधों का अध्ययन
(B) नारीवाद का अध्ययन
(C) विदेशी संविधानों का अध्ययन
(D) अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं संगठनों का अध्ययन
उत्तर:
(C) विदेशी संविधानों का अध्ययन

11. राजनीतिक सिद्धांत का महत्त्व निम्न में से है
(A) यह राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने में सहायक है
(B) यह सामाजिक परिवर्तन को समझने में सहायक है
(C) यह सरकार को औचित्यपूर्णता प्रदान करने में सहायक है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. ‘पॉलिटिक्स’ नामक ग्रंथ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
अरस्तू।

2. “राजनीति शास्त्र का प्रारंभ तथा अंत राज्य के साथ होता है।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
गार्नर का।

3. राजनीति शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के किस शब्द से हुई है?
उत्तर:
पोलिस (Polis) शब्द से।

4. थ्योरी (Theory) शब्द की उत्पत्ति थ्योरिया (Theoria) शब्द से हुई है। यह शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर:
ग्रीक भाषा से।

5. “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान करता है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
हरबर्ट जे० स्पाइरो ने।

रिक्त स्थान भरें

1. “राजनीतिक सिद्धांत एक प्रकार का जाल है जिससे संसार को पकड़ा जा सकता है, ताकि उसे समझा जा सके। यह एक अनुभवपूरक व्यवस्था के प्रारूप की अपने मन की आँख पर बताई गई रचना है।” यह कथन ………… विद्वान का है।
उत्तर:
कार्ल पॉपर

2. “समस्त राजनीति स्वभाव से शक्ति-संघर्ष है।” यह कथन ……………. ने कहा।
उत्तर:
केटलिन

3. “राजनीति का संबंध मूल्यों के अधिकारिक आबंटन से है।” यह कथन ……………. ने कहा।
उत्तर:
डेविड ईस्टन।

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HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

Haryana State Board HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

HBSE 7th Class English The Rebel Textbook Questions and Answers

The Rebel Poem Class 7 HBSE Question 1.
Answer the following questions.
(i) If someone doesn’t wear a uniform to school, what do you think the teacher will say?
Answer:
When some one doesn’t wear a uniform, teacher will say that next time we should not do so and regularity is a must.

(ii) When everyone wants a clear sky, what does the rebel want most?
Answer:
Rebels want rain when there is clear sky.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

(iii) If the rebel has a dog for a pet, what is everyone else likely to have?
Answer:
If the rebel has a dog for a pet, what is every one else likely to have? Everyone is likely to have a cat when rebels have a dog.

(iv) Why is it good to have rebels?
Answer:
Rebels act as critics who always keep things under control.

(v) Why is it not good to have rebels?
Answer:
If one is a rebel then one will always be tensed.

(vi) Would you like to be a rebel? If yes, why? If not, why not?
Answer:
No, I world not like to be a rebel. As rebals do not get respect but a point of criticism.

The Rebel Poem Class 7th HBSE Question 2.
Find in the poem an antonym (a word opposite in meaning) for each of the following words.
(i) long
(ii) grow
(iii) quietness
(iv) sober
(v) lost
Answer:
(i) Short
(ii) Die
(iii) Noisy
(iv) fantastic
(v) found

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

The Rebel Poem Class 7 Question Answer HBSE Question 3.
Find the given lines that match the following. Read both one after the other.
(i) The rebel refuses to cut his hair.
(ii) He says cats are better.
(iii) He recommends dogs.
(iv) He is unhappy because there is no sun.
(v) He is noisy on purpose.
Answer:
(i) The rebel refuses to cut his hair when every one has short hair.
(ii) He says cats are better when everyone loves dog.
(iii) He recommends dogs when every one loves cats.
(iv) He is unhappy because there is no sun when he wishes for sun.
(v) He is noisy on purpose when everyone wishes to be quiet.

HBSE 7th Class English The Rebel Important Questions and Answers

The Rebel Poem Question Answer HBSE Question 1.
What is the rebel likely to do if others wear a uniform?
Answer:
The rebel will wear fantastic clothes.

The Rebel Question Answer HBSE Class 7 Question 2.
Pick out words from the poem which is synonymous to the given words or phrases.
(a) to choose something over other
(b) to make comment
(c) appreciating and applauding
Answer:
(a) preference
(b) remarks
(c) praising

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

The Rebel Poem Stanzas for Comprehension

STANZA – 1

When everybody has a short hair,
The rebel lets his hair grow long.
When everybody has long hair,
The rebel cuts his hair short.
When everybody talks during the lesson,
The rebel doesn’t say a words.
Questions:
(i) Who are rebels?
(ii) What do rebels do when every body has short hair?
(iii) What do rebels do when every boy talks during the lesson?
(iv) Choose the word which is opposite of Retain.
Answer:
(i) Rebels are those who try to do everything is opposite direction.
(ii) When everybody has short hair, rebels wish to have long hair.
(iii) When everybody talks during the lesson rebels don’t say a word.
(iv) Cuts

STANZA – 2 

In the company of dog lovers,
The rebel expresses a preference for cats. In the company of cat lovers,
The rebel puts in a good word for dogs. When everybody is praising the sun,
The rebel remarks on the need for rain.
Questions :
(i) How do rebels react to cat lovers?
(ii) What do rebels wish for when there is sunlight?
(iii) What do rebels wish for when there is rain?
(iv) Choose the word which is opposite of presence?
Answer:
(i) Rebels wish to have company of dog-lovers.
(ii) Rebels wish to have rainfall.
(iii) Rebels wish for sunlight
(iv) Absence.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 2 The Rebel

The Rebel Poem Translation in Hindi

1. When everybody …………….. hair short.
हिन्दी अनुवाद – जब सब के छोटे बाल होते हैं विरोधी चाहता है कि उसके बाल लम्बे हो जाए।

2. When every……………….adisturbance.
हिन्दी अनुवाद- जब सब पाठ के समय सब बात करतें हैं विरोधी एक भी शब्द नहीं कहते जो पाठ के समय कोई भी बात नहीं करता विरोधी परेशानी उत्पन्न करते हैं।

3. Whenevery body……..dresses soberly.
हिन्दी अनुवाद – जब सब यूनीफार्म पहनते हैं विरोधी रंग-बिरगें कपड़े पहनते हैं। जब सब रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं विरोधी सादे कपड़े पहनते हैं।

4. In the ………………………………. for dogs.
हिन्दी अनुवाद- कुत्ते को प्यार करने वालो के बीच विरोधी बिल्ली के लिए झुकाव दर्शाते हैं। बिल्ली से प्यार करने वालों के बीच विरोधी कुत्तों के लिए अच्छा शब्द कहते हैं।

5. When everybody ………. absence of sun.
हिन्दी अनुवाद- जब सब सूर्य की तारीफ करते हैं विरोधी वर्षा की जरूरत पर टिप्पणी करते हैं। जब वर्षा का अभिनन्दन करता है। विरोधी वर्षा की अनुपस्थिति पर पछतावा करते हैं।

6. When every body ………………….. a book.
The rebel goes to the meeting.
हिन्दी अनुवाद- जब सब सभा में जाते हैं विरोधी घर रहकर किताब पढ़ते हैं जब सब घर पर रहते हैं और किताब पढ़ते हैं विरोधी सभा में जाते हैं।

7. When every body ………………… be one.
हिन्दी अनुवाद- जब सब कहते हैं, ‘हाँ कृपा’ विरोधी कहते हैं, ‘नहीं धन्यवाद’ सब कहते हैं ‘नहीं धन्यवाद’ विरोधी कहते है, हाँ कृपा कीजिए। – यह बहुत अच्छा है कि हमारे पास विरोधी हैं तो तुम इन में से एक होकर अच्छा महसूस नहीं करोगे।

The Rebel Poem Summary in English

In this poem rebel protests against everything. If one has short hair, he wishes to have long hair. If every body talks during a lesson, rebel keeps quiet. When every body wears a uniform, rebel dresses in fantastic clothes. In the company of dog lovers, rebel prefers cats. When everybody greets the rain rebel wishes for sun. when every body stayes at home, rebel goes to the meeting. So infact rebels keep everything in level.

The Rebel Poem Summary in Hindi

इस कविता में विद्रोही हर कविता के विरुद्ध आवाज उठाता है। अगर किसी के छोटे बाल हैं, तो वह लम्बे बाल की कामना करता है। जब सब लोग यूनीफार्म पहनते हैं तो विरोधी रंग बिरंगे कपड़े पहनना चाहते हैं। कुत्तों को प्यार करने वाला हो तो विरोधी बिल्लियों की परवाह करते हैं। जब सब लोग वर्षा का आगमन करते हैं तो विरोधी सूर्य की आशा करते हैं। जब सब लोग घर पर रहते हैं तो विरोधी मीटिंग पर जाते है। इसलिए विरोधी हर बात को संयम में रखते हैं।

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HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan

Haryana State Board HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan

HBSE 7th Class English Mystery of the Talking Fan Textbook Questions and Answers

Mystery of the Talking Fan Question Answer HBSE 7th Class Question 1.
Fans don’t talk, but it is possible to imagine that they do. What is it, then, that sounds like the fan’s chatter?
Answer:
The talking of fans refer to the sound made by the rotating of the blades. When the motor is not oiled, it creates a sound.

Summary Of The Poem Mystery of the Talking Fan HBSE 7th Class Question 2.
Complete the following sentenses.
(i) The chatter is electrical because _____________.
(ii) It is mysterous because ______________.
Answer:
(i) The chatter is electrical because the fan works with the passage of electricity.
(ii) It is mysterous because where the sound comes.

Mystery of the Talking Fan Summary HBSE 7th Class Question 3.
What do you think the talking fan was demanding?
Answer:
The talking fan was demanding.oil as it had got tired of overworking.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan

Mystery of the Talking Fan Poem Solutions HBSE 7th Class Question 4.
How does an electric fan manage to throw so much air when it is switched on?
Answer:
When electric fan is switched on, it throws so much air because the blades rotate very fast and strike against the passing air.

Question Answers Of Mystery of the Talking Fan HBSE 7th Class Question 5.
Is there a ‘talking fan’ in your house? Create a dialogue between the fan and a machanic.
Answer:

  • Fan : It is very hot.
  • Mechanic : Your blades are sticky
  • Fan : I am made to work like a slave
  • Mechanic : I shall oil you
  • Fan : Thank you very much?

HBSE 7th Class English Mystery of the Talking Fan Important Questions and Answers

Make Sentences:
Use the following words in sentences of your own :
(1) chatter
(2) oiled
(3) motor
(4) spoiled
(5) water
Answer:
1. Chatter: The monkeys chatter while the horses neigh.
2. Oiled : My servant oiled the hings of all the doors of the house.
3. Motor : The motor of the new machine is made from Japanese technology.
4. Spoiled : The negligence in work and bad company spoiled Rahul’s career.
5. Water : Every drop of water is precious.

Mystery of the Talking Fan Poem Stanzas for Comprehension

STANZA – 1

Once there was a taking fan
Electrical his chatter.
I couldn’t quite hear what he said
And I hope it doesn’t matter.
Questions:
(i) What does ‘talking fan’ indicate?
(ii) How does fan work?
(iii) Why couldn’t T hear?
(iv) Is the poet optimistic or pessimistic?
Answer:
(i) Talking fan indicates the sound made by the fan.
(ii) The fan workes with electricity.
(iii) T couldn’t hear because of the sound made by the blades of the fan.
(iv) The poet is optimistic.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan

STANZA – 2

Because one day someday oiled
His little whriling motor
And all the mystry was spoiled
He ran as still as water.
Questions:
(i) What does words ‘because’ stand for?
(ii) What does whirling motor indicate?
(iii) Which mystery is talked about?
(iv) Name the figure of speech in “He ran as still as water”.
Answer:
(i) The world ‘because’ shows regret of the poet for having oiled the fan.
(ii) Whirling motor indicates rotating of the fan with help of the motor.
(iii) The mystery of the talking fan is indicated here.
(iv) The fan has been personified.

Mystery of the Talking Fan Poem Translation in Hindi

1. Once there ………… ……… matter.
हिन्दी अनुवाद- एक बार एक बोलने वाला पंखा था। बिजली का पंखा आवाज करता था। मुझे सुनाई नहीं दे रहा था कि वह क्या कह रहा है और मैं आशा करता हूँ कि कोई फर्क नहीं पड़ता

Word Meaning : Chatter–to talk meaninglessly = बोलना, Hope-wish = आशा।

2. Because one ……………………. as water.
हिन्दी अनुवाद-क्योंकि एक दिन किसी ने तेल डाला उसकी छोटी घूमती हुई मोटर और सारा रहस्य खराब हो गया वह पानी की तरह शान्त चलने लगा

Word Meaning : Whirling – to go round = गोल घूमना, Mystery-something which can’t be solved = रहस्य।

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 6 Mystery of the Talking Fan

Mystery of the Talking Fan Poem Summary in English

The poem talks about a taking fan and in the chattering of the fan voices could not be heard. One day the panes of the fan were oiled. Oiling led to lesseningt of the sound and make things turn smooth.

Mystery of the Talking Fan Poem Summary in Hindi

यह कविता बोलने वाले पंखे के बारे में बात करती है और पंखे की आवाज में और आवाजे सुनी नहीं जा सकती। एक दिन तेल डालने से आवाज कम हो गई और चीजें आराम से चलने लगी।

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HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 4 Chivvy

Haryana State Board HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 4 Chivvy Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 4 Chivvy

HBSE 7th Class English Chivvy Textbook Questions and Answers

Chivvy Question Answer HBSE 7th Class Question 1.
Discuss these questions in small groups before you answer them.
(i) When is a grown-up likely to say this?
Don’t talk with your mouth full.
Answer:
Grown-up is likely to say when child is around three to four years.

(ii) When are you likely to be hold this?
Say thank you.
Answer:
You are likely to be told to say think you when you are around five to six years.

(iii) When do you think an adult would say this?
No one thinks you are funny.
Answer:
This is told when one learns to understand things.

Summary Of The Poem Chivvy HBSE 7th Class Question 2.
The last two lines of the poem are not probhibitions or instructions. What is the adult now asking the child to do? Do you think the poet is suggesting that this is unreasonable? Why?
Answer:
Now the adult is in a confused state if the child is now grown-up and is about to enter his teens. In this stage he is on the verge of mak-ing out choices and taking his own decision.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 4 Chivvy

Chivvy Summary HBSE 7th Class Question 3.
Why do you think grown-ups say the kind of things mentioned in the poem? Is it important that they teach children good manners, and how to behave in public?
Answer:
Grown-ups have the habit of giving such instructions infact they feel they are very sensible and want the best out of children. It is must to teach children good manners so that they can set an example before others.

Chivvy Poem Solutions HBSE 7th Class Question 4.
If you had to make some miles for grown-ups to follow, what would you say? Make at least live such rules. Arrange the lines as in a poem.
Answer:
Leave us free, let us breathe Air, we are the future of tomorrow, can’t we take our deci-sion, we shall not let you down.

HBSE 7th Class English Chivvy Important Questions and Answers

Make Sentences:
stare, noise, straight, interrupt
Answer:

  • Stare : Why does he always stare at you?
  • Noise : Don’t make so much noise.
  • Straight : Stand and sit straight if you want to correct your posture.
  • Interrupt : We should not interrupt when two people are talking.

Chivvy Poem Stanzas for Comprehension

STANZA – 1

Grown-ups says things like :
Speak up
Don’t talk with your mouth full
Don’t point
Don’t pick you nose
Questions:
(i) Who are Grown-ups?
(ii) To whom are the words being spoken?
(iii) Which word is repeated again and why? Are these instructions very sensible?
Answer:
(i) Grown-ups are elders and parents.
(ii) The words are being spoken to the children.
(iii) The word‘Don’t’ is being repeated again and again to give effect of negativism.
(iv) No, they are not very sensible.

STANZA – 2

Sit up
Say please
Less noise
Shut the door behind you
Don’t drag your feet
Haven’t you got a hankie?
Take your hands out of
your pockets
Questions:
(i) Do you think that these instructions are necessary?
(ii) What does these instructions show about the speaker?
(iii) Write any two more imsperative verbs as used by the speakers?
(iv) What must be the age of the listener?
Answer:
(i) No, these instructions are just ridiculous.
(ii) These instructions show that speaker must be a kind of dominant person.
(iii) Keep Get
(iv) The listeners must be around four to five years.

STANZA – 3

Pull your socks up
Stand up straight
Say thank you
Don’t interrupt
No one thinks you’re funny
Take your elbows off the table
Can’t you make your own
mind up about anything
Questions:
(i) Now the instructions have been turned harsh. What does this indicate
(ii) In these lines, in which stage is the listener?
(iii) Write the opposite of straight?
(iv) Which is the word rhyning with ‘Up’?
Answer:
(i) This indicates that the listener has turned around eight to nine years old.
(ii) The listener in these lines is in school goingt stage.
(iii) Opposite of straight is curved.
(iv) The word rhyming with up is interrupt.

HBSE 7th Class English Solutions Honeycomb Poem 4 Chivvy

Chivvy Poem Translation in Hindi

1. Grown-ups …………………….. you nose.
हिन्दी अनुवाद- बड़े लोग ऐसी बातें कहते हैं बोलो अपना मुँह रख कर मत बोलो, धूरो मत, इशारा मत करो, नाक में अंगुली न डालो

Word Meaning : Stare-to look continously = घूरना, Pick your nose-move your finger in the nose = नाक में अंगुली डालना।

2. Sit up………………………… your pockets.
हिन्दी अनुवाद- बैठ जाओ नम्रता, से बोलो कम शोर करो, अपने पीछे दरवाजा बंद करो, अपने पैर मत घसीटो, क्या तुम्हारे पास रुमाल नहीं है? अपनी जेब से हाथ बाहर निकालो।

3. Pull your …………….. about anything?
हिन्दी अनुवाद- अपनी जुर्राब ऊपर करो, सीधे खड़े हो धन्यवाद करो, बीच ने हस्तक्षेप मत करो, कोई नहीं सोचता कि तुम मजाकिया, अपनी कोहनी मेज से हटाओ। क्या तुम खुद नहीं कर सकते? हर बात पर खुद ध्यान दो।

Chivvy Poem Summary in English

In this poem the poet wishes to highlight the tact that how children get fed up about the instructions given regularly. Grown-ups keep on starting each sentence with the word ‘Don’t’. Infact all the talks are negative or imperative. These instructions make the child feel very fed up.

Chivvy Poem Summary in Hindi

इस कविता में कवि इस बात पर जोर देना चाहता है कि किस तरह से बच्चे दिए गए निर्देशों से परेशान हो जाते हैं। बड़े लोग हर वाक्य का ‘ऐसा न करो से आरंभ करते हैं। बल्कि सारे वाक्य नकारात्मक व आदेशात्मक रूप में होते हैं। इन निर्देशों से बच्चे बहुत तंग हो जाते हैं।

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघात्मक सरकार किसे कहा जाता है?
उत्तर:
संघात्मक सरकार उसे कहा जाता है, जिसमें शासन की शक्तियाँ संविधान द्वारा केंद्र तथा राज्यों में बंटी हुई हों तथा प्रत्येक इकाई अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतन्त्र हो।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान में संघ के स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
भारत के संविधान में भारत के लिए ‘संघ’ के स्थान पर ‘राज्यों का संघ’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के कोई दो संघात्मक लक्षण बताएँ।
उत्तर:

  • भारतीय संविधान लिखित तथा कठोर है,
  • संविधान द्वारा केंद्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किया गया है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान के कोई दो एकात्मक लक्षण बताइए।
उत्तर:

  • संकटकालीन स्थिति की घोषणा होने पर हमारा संघीय ढाँचा एकात्मक में बदल जाता है।
  • भारतीय संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक के लिए इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

प्रश्न 5.
भारत में केंद्रीय सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • समस्त देश के आर्थिक विकास के लिए,
  • स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय देशी रियासतों की समस्या तथा भारत की एकता व अखण्डता को बनाए रखना।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान द्वारा शासन की शक्तियों को कितनी तथा कौन-सी सूचियों में बाँटा गया है? प्रत्येक सूची में दिए गए तीन-तीन विषय लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा शासन की शक्तियों को तीन सूचियों में बाँटा गया है। ये हैं-

  • संघीय सूची,
  • राज्य सूची तथा
  • समवर्ती सूची।

संघीय सूची में विदेशी मामले, प्रतिरक्षा व रेलवे, राज्य सूची में कृषि, पुलिस व जेलें तथा समवर्ती सूची में शिक्षा, विवाह व तलाक आदि विषय शामिल हैं।

प्रश्न 7.
समवर्ती सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में कानून बनाने की शक्ति किसके पास है ?
उत्तर:
समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर संसद तथा राज्य विधानमण्डल दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। दोनों द्वारा परस्पर विरोधी कानून बनाने की स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून लागू होगा।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 8.
अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers) किसे कहते हैं? भारतीय संविधान द्वारा ये शक्तियाँ किसे दी गई हैं?
उत्तर:
अवशिष्ट शक्तियाँ वे विषय हैं जिनका वर्णन तीनों सूचियों संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में से किसी में भी नहीं किया गया है। इन पर कानून बनाने की शक्ति संसद को दी गई है।

प्रश्न 9.
अन्तर्राज्यीय परिषद् (Inter-State Council) की स्थापना क्यों तथा किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना राज्यों के आपसी झगड़ों का निपटारा करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 10.
पॉल एपलबी (Paul Appleby) ने भारतीय संघात्मक व्यवस्था को कैसी संघात्मक व्यवस्था का नाम दिया है?
उत्तर:
पॉल एपलबी (Paul Appleby) ने भारतीय संघवाद व्यवस्था को अत्यन्त संघात्मक (Extremely Federal) व्यवस्था का नाम दिया है।

प्रश्न 11.
सातवीं अनुसूची में कितनी सूचियाँ दी गई हैं और प्रत्येक में कितने विषय शामिल हैं?
उत्तर:
सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ-संघ सूची, समवर्ती सूची व राज्य सूची हैं। संघ सूची में मूलतः 97 विषय (वर्तमान में 100 विषय), समवर्ती सूची में मूलतः 47 (वर्तमान में 52 विषय) विषय तथा राज्य सूची में मूलतः 66 विषय (वर्तमान में 61 विषय) शामिल हैं।

प्रश्न 12.
समवर्ती सूची में मूल रूप से कितने विषय थे और वर्तमान में कितने विषय हैं?
उत्तर:
समवर्ती सूची में मूल रूप से 47 विषय थे और वर्तमान में 52 विषय हैं।

प्रश्न 13.
संघ सूची में मूल रूप से कितने विषय थे और वर्तमान में कितने विषय हैं ?
उत्तर:
संघ सूची में मूल रूप से 97 विषय थे और वर्तमान में भी 100 विषय ही हैं।

प्रश्न 14.
राज्य सूची में मूल रूप से कितने विषय थे और अब कितने विषय हैं?
उत्तर:
राज्य सूची में मूल रूप से 66 विषय थे और वर्तमान में 61 विषय हैं।

प्रश्न 15.
राज्य सूची में दिए गए किन्हीं दो विषयों के नाम बताइए।
उत्तर:
राज्य सूची में निम्नलिखित दो विषय हैं-

  • कानून व शान्ति-व्यवस्था,
  • कृषि।

प्रश्न 16.
समवर्ती सूची में दिए गए दो विषयों के नाम बताइए।
उत्तर:
समवर्ती सूची में निम्नलिखित दो विषय हैं-

  • दण्ड विधान,
  • विवाह।

प्रश्न 17.
केंद्र की आय के दो साधन बताइए।
उत्तर:
केंद्र की आय के दो साधन हैं-

  • सीमा-शुल्क,
  • आय-कर।

प्रश्न 18.
राज्यों की आय के दो साधन बताइए।
उत्तर:
राज्यों की आय के दो साधन हैं

  • बिक्री-कर
  • कषि भूमि के उत्तराधिकार के विषय में शल्क।

प्रश्न 19.
केंद्र व राज्यों के बीच तनाव के दो कारण बताइए।
उत्तर:
केंद्र व राज्यों के बीच तनाव के दो प्रमुख कारण हैं-

  • राज्यपालों की भेदभावपूर्ण तथा विवादास्पद भूमिका,
  • केंद्र द्वारा उन राज्यों के साथ भेदभाव किया जाना, जिनमें विपक्षी दलों की सरकारें होती हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 20.
वित्त आयोग की नियुक्ति कौन करता है और उसके क्या कार्य हैं?
अथवा
वित्त आयोग की स्थापना क्यों की जाती है? इसके सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर:
वित्त आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वित्त आयोग देश की वित्तीय व्यवस्था का परीक्षण करता है और केंद्र व राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्धों के बारे में भी सिफारिश करता है।

प्रश्न 21.
केंद्र-राज्य सम्बन्धों पर पुनः विचार करने के लिए कब और किस आयोग की स्थापना की गई थी? अथवा सरकारिया आयोग की स्थापना कब और किस उद्देश्य के लिए की गई थी?
उत्तर:
9 जून, 1983 को केंद्र-राज्य सम्बन्धों पर पुनः विचार करने के लिए केंद्रीय सरकार ने सरकारिया आयोग की स्थापना की थी, जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश श्री आर०एस० सरकारिया थे।

प्रश्न 22.
सरकारिया आयोग की कोई दो सिफारिशें बताइए।
उत्तर:
सरकारिया आयोग की दो प्रमुख सिफारिशें थीं-

  • केंद्र को राज्यों में केंद्रीय पुलिस बल नियुक्त करने का अधिकार बना रहे,
  • अन्तर्राज्यीय परिषदों की स्थापना की जाए।

प्रश्न 23.
उन दो परिस्थितियों को बताएँ जिनमें कि संसद राज्य सूची पर कानून बना सकती है।
उत्तर:
संसद राज्य सूची पर दी गई दो परिस्थितियों में कानून बना सकती है-

  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि व समझौते लागू करने पर,
  • जब राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को 2/3 बहुमत से राष्ट्रीय महत्त्व को घोषित कर दे।

प्रश्न 24.
केंद्र व राज्यों के बीच दो विधायी सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
केंद्र व राज्यों के बीच दो विधायी सम्बन्ध इस प्रकार हैं-(1) समवर्ती सूची के विषय पर केंद्र व राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं, (2) राज्यपाल विधान सभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।

प्रश्न 25.
केंद्र व राज्यों के बीच दो वित्तीय सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
केंद्र व राज्यों के बीच दो वित्तीय सम्बन्ध इस प्रकार हैं-

  • केंद्र राज्यों को अनुदान देता है,
  • वित्तीय संकट की स्थिति में केंद्र राज्यों की आय के साधनों में परिवर्तन कर सकता है।

प्रश्न 26.
केंद्र व राज्यों के बीच दो प्रशासनिक सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
केंद्र व राज्यों के बीच दो प्रशासनिक सम्बन्ध इस प्रकार हैं-

  • केंद्र राज्यों में केंद्रीय पुलिस बल भेज सकता है,
  • राज्य के उच्च प्रशासनिक अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य होते हैं।

प्रश्न 27.
केंद्र कब और किस आधार पर राज्य में आपात स्थिति लागू कर सकता है?
उत्तर:
केंद्र राज्य में संवैधानिक तन्त्र विफल हो जाने पर आपात स्थिति लागू कर सकता है। ऐसा केंद्र राज्यपाल की रिपोर्ट पर अथवा बिना रिपोर्ट के भी कर सकता है।

प्रश्न 28.
केंद्र-राज्य सम्बन्धों पर विचार-विमर्श हेतु गठित सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
केंद्र-राज्य सम्बन्धों पर विचार-विमर्श हेतु गठित सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट 27 अक्तूबर, 1987 को प्रस्तुत की।

प्रश्न 29.
राज्य की स्वायत्तता की मांग के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
राज्यों की स्वायत्तता की माँग के दो कारण इस प्रकार हैं-

  • संसद की व्यापक विधि निर्माण शक्तियाँ,
  • वित्तीय दृष्टि से राज्यों की केंद्र पर निर्भरता।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 30.
राज्य स्वायत्तता के कोई दो साधन लिखें।
उत्तर:
राज्यों की स्वायत्तता के लिए विभिन्न सुझाए गए साधनों में दो निम्नलिखित हैं-

  • संविधान में संघात्मक शासन का स्थापित किया जाना,
  • राष्ट्रपति के परामर्श हेतु एक समिति का गठन हो जो उसे निष्पक्ष परामर्श प्राप्त करा सके।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघात्मक सरकार से क्या अभिप्राय है? संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
संघ जिसे अंग्रेजी में (Federation) अथवा (Federal) कहा जाता है, वास्तव में लैटिन भाषा के एक शब्द (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। इस प्रकार संघ सरकार कुछ राज्यों का एक ऐसा स्थायी संगठन है, जिसकी स्थापना एक समझौते के आधार पर की जाती है। जब दो या अधिक स्वतन्त्र राज्य कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक केंद्रीय सरकार संगठित करते हैं तथा शेष उद्देश्यों की पूर्ति वे स्वयं करते हैं तो एक संघात्मक शासन की स्थापना हो जाती है।

प्रश्न 2.
संघात्मक सरकार के चार लक्षण बताएँ।।
उत्तर:
संघात्मक सरकार के चार लक्षण निम्नलिखित हैं
1. शक्तियों का बँटवारा संघात्मक सरकार में शक्तियों का बँटवारा होता है। महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ केंद्र के पास तथा स्थानीय महत्त्व की शक्तियाँ राज्य सरकारों को दी जाती हैं। दोनों इकाइयाँ अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं।

2. लिखित तथा कठोर संविधान संघ राज्य कई राज्यों के बीच एक समझौते का परिणाम होता है, इसलिए समझौते की सभी शर्ते लिखित रूप में होनी चाहिएँ। साथ ही ये शर्ते स्थायी हों, अतः संविधान लिखित तथा कठोर होता है।

3. स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च न्यायालय केंद्र तथा राज्यों के आपसी विवादों को निपटाने के लिए तथा कोई भी इकाई संविधान के विरुद्ध कानून न बना सके, इसके लिए एक स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की जाती है।

4. दो-सदनीय विधानपालिका-संघात्मक सरकार में दो-सदनीय विधानमण्डल की आवश्यकता होती है। विधानमण्डल का निम्न सदन राष्ट्र की जनता का प्रतिनिधित्व करता है तथा ऊपरी सदन संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 3.
संघात्मक सरकार के चार लाभ बताएँ।
उत्तर:
संघात्मक सरकार के चार मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
1. शक्तिशाली राज्य की स्थापना-संघ सरकार स्थापित होने से छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक शक्तिशाली संघ राज्य कायम हो जाता है।

2. सरकार में अधिक कार्यकुशलता-संघ सरकार में केंद्र तथा राज्यों में शक्तियों तथा कार्य-क्षेत्रों का बँटवारा हो जाने से सरकारों की प्रशासनिक दक्षता बढ़ जाती है।

3. बड़े राज्यों के लिए उपयोगी-संघ सरकार अधिक जनसंख्या तथा भिन्नता वाले राज्यों के लिए उपयुक्त है।

4. अधिक लोकतन्त्रीय संघ सरकार में लोकतन्त्र की संस्थाएँ अधिक तथा प्रत्येक स्तर पर संगठित की जाती हैं। इसमें स्थानीय स्वशासन संस्थाएँ लोगों को लोकतन्त्र का प्रशिक्षण देती हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान संघात्मक है, स्पष्ट करो।
अथवा
भारतीय संविधान के उन प्रावधानों का उल्लेख करें जो इसे संघीय स्वरूप प्रदान करते हैं।
अथवा
भारतीय संविधान की कोई पाँच संघीय विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ (लक्षण) इस प्रकार हैं-
(1) भारतीय संविधान द्वारा शासन की शक्तियों का तीन सूचियों में विभाजन किया गया है-

1. संघीय सूची (Union List), इस सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के मूलतः 97 विषय (वर्तमान में 100 विषय) हैं जिन पर कानून बनाने की शक्ति संघीय संसद के पास है।

2. राज्य सूची (State List) में मूलतः 66 विषय (वर्तमान में 61 विषय) हैं। ये विषय स्थानीय महत्त्व के हैं और उन पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के विधानमण्डलों को दिया गया है।

3. समवर्ती सूची (Concurrent List), इस सूची में दिए गए मूल 47 विषयों (वर्तमान में 52 विषय) पर संसद तथा राज्य विधानमण्डल दोनों ही कानून बना सकते हैं,
(2) संविधान देश का सर्वोच्च कानून (Supremacy of the Constitution) है,
(3) भारतीय संविधान लिखित तथा कठोर है,
(4) संविधान की रक्षा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई है,
(5) संघीय विधानमण्डल (संसद) का गठन द्वि-सदनीय प्रणाली के आधार पर किया गया है। लोकसभा देश की जनता का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधि बैठते हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 5.
भारत में शक्तिशाली केंद्र की स्थापना के पाँच कारण बताएँ।
उत्तर:
भारत में शक्तिशाली केंद्र की स्थापना के कारण इस प्रकार हैं-

  • ऐतिहासिक अनुभव के कारण संविधान के निर्माताओं ने शक्तिशाली केंद्रीय सरकार की स्थापना की,
  • तत्कालीन परिस्थितियों भारत का विभाजन, साम्प्रदायिक दंगों, तेलंगाना में सशस्त्र किसान आन्दोलन, भारतीय देशी रियासतों की समस्या इत्यादि ने भी संविधान निर्माताओं को प्रभावित किया,
  • भारतीय आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु भी केंद्रीय शासन का शक्तिशाली होना अनिवार्य था,
  • समस्त संसार में केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति विद्यमान है, भारत इसका कोई अपवाद नहीं है,
  • स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में 562 देशी रियासतें मौजूद थीं। संविधान निर्माताओं ने देशी रियासतों की समस्या से निपटने के लिए शक्तिशाली केंद्रीय सरकार की स्थापना करने का निर्णय दिया।

प्रश्न 6.
केंद्र तथा राज्यों में कोई छह प्रशासनिक सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर:
केंद्र तथा राज्यों में प्रशासनिक सम्बन्ध इस प्रकार हैं-

  • केंद्रीय सरकार को राज्य सरकारों को निर्देश तथा आदेश देने का अधिकार है,
  • राज्यपाल केंद्रीय सरकार के एजेण्ट के रूप में कार्य करता है,
  • बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में केंद्रीय सरकार द्वारा प्रान्तीय सरकारों को निर्देश दिया जाता है,
  • राष्ट्रपति को प्रान्तीय संकट की घोषणा (अनुच्छेद 356) करने का अधिकार है,
  • राज्यों के आपसी झगड़ों का निपटारा करने के लिए राष्ट्रपति अन्तर्राज्यीय परिषद् (Inter-State Council) की स्थापना कर सकता है,
  • राष्ट्रपति अनुसूचित जातियों, जन-जातियों तथा अन्य पिछड़ी हुई जातियों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए राज्यों को निर्देश दे सकता है।

प्रश्न 7.
अर्द्ध-संघात्मक (Quasi-Federal) से क्या अभिप्राय है? संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गई है, परन्तु पूर्ण संघात्मक नहीं, अर्द्ध-संघात्मक। अर्द्ध-संघात्मक से अभिप्राय है कि केंद्र तथा राज्यों में शक्तियों का बँटवारा तो किया गया है, परन्तु शक्ति सन्तुलन केंद्र के पक्ष में है। संघ के अधिक शक्तिशाली होने के कारण भारतीय संघीय व्यवस्था को अर्द्ध-संघात्मक कहा जाता है। प्रो० के०सी० व्हीयर के शब्दों में, “भारत का नया संविधान ऐसी शासन-व्यवस्था को जन्म देता है जो अधिक-से-अधिक अर्द्ध-संघीय है।”

प्रश्न 8.
राज्यों की स्वायत्तता पर संक्षेप में एक लेख लिखिए। .
उत्तर:
संविधान के लागू होने से लेकर अब तक केंद्र-राज्यों के सम्बन्धों में तनाव है। राज्य अधिक-से-अधिक स्वायत्तता की माँग करते रहे हैं तथा केंद्र के नियन्त्रण को कम करने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ है कि राज्यों को अपने आन्तरिक क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता हो। संविधान द्वारा जो शक्तियाँ राज्यों को दी गई हैं, उनमें केंद्र हस्तक्षेप न करे।

प्रश्न 9.
संसद किन परिस्थितियों में राज्य सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में कानून बना सकती है?
उत्तर:
ये परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं-

  • देश में संकटकालीन स्थिति की घोषणा होने पर,
  • यदि राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य सूची में दिया गया कोई विषय राष्ट्रीय महत्त्व का बन गया है और उस पर संसद को कानून बनाना चाहिए,
  • किसी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि अथवा समझौते को लागू करने के लिए,
  • यदि दो अथवा दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पास करके संसद को ऐसा करने की प्रार्थना करें,
  • किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में उस राज्य के लिए।

प्रश्न 10.
वित्त आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान की धारा 280 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि देश की आर्थिक परिस्थिति का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर एक वित्त आयोग की नियुक्ति की जाएगी। वित्त आयोग की स्थापना प्रायः 5 वर्ष के लिए की जाती है। इस आयोग के सदस्यों की योग्यताएँ तथा नियुक्ति का तरीका निश्चित करने का अधिकार संसद को प्राप्त है। वित्त आयोग सरकार को दी गई कुछ बातों के बारे में परामर्श देता है

  • संघ तथा राज्यों में राजस्व का विभाजन,
  • केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान की मात्रा के बारे में,
  • अन्य कोई भी मामला जो राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपा गया है। अब तक पन्द्रह (11 अप्रैल 2020 से) वित्त आयोग नियुक्त किए जा चुके हैं।

प्रश्न 11.
‘अवशिष्ट शक्तियाँ’ (Residuary Powers) पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 248 के अनुसार उन सब विषयों को, जिनका वर्णन किसी भी सूची अर्थात् संघीय सूची, राज्य सूची, अथवा समवर्ती सूची में नहीं किया गया है, उन्हें अवशिष्ट शक्तियों का नाम दिया गया है। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। अमेरिका में अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र को नहीं, बल्कि राज्य सरकारों को सौंपी गई हैं।

प्रश्न 12.
सरकारिया आयोग पर संक्षेप में लेख लिखिए।
उत्तर:
सन् 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने केंद्र व राज्यों के सम्बन्धों पर विचार करके रिपोर्ट देने के । लिए न्यायमूर्ति श्री आर०एस० सरकारिया के नेतृत्व में तीन-सदस्यीय आयोग का गठन किया। इस आयोग ने भारतीय संविधान के अन्तर्गत केंद्र तथा राज्यों के सम्बन्धों को ठोस बताया और अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसमें किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। केवल कार्य-प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता है और उन्हें ईमानदारी से लागू करना है। केंद्र सरकार ने इन सुझावों के आधार पर कोई ठोस कार्य नहीं किया।

प्रश्न 13.
योजना आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
योजना आयोग एक संविधानोत्तर संस्था है, क्योंकि संविधान में इसकी स्थापना की कोई व्यवस्था नहीं है। भारत में योजना आयोग की स्थापना भारत सरकार द्वारा 15 मार्च, 1950 को एक प्रस्ताव पारित करके की गई थी और 28 मार्च, 1950 से योजना आयोग ने अपना कार्य प्रारंभ कर दिया था परन्तु 16वीं लोकसभा चुनाव के बाद नवगठित भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने 65 वर्ष पुराने योजना आयोग के स्थान पर नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इण्डिया (NITI) आयोग का गठन करने का निर्णय लिया जिसके परिणामस्वरूप एक नई संस्था नीति (NITI-National Institute for Transforming India) का मार्ग प्रशस्त किया तथा 5 जनवरी, 2015 को इसकी नियुक्ति कर दी गई।

यद्यपि यहाँ हम सर्वप्रथम पाठ्यक्रम के अनुसार योजना आयोग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अनुसार योजना आयोग के स्वरूप, इसके कार्यों एवं भारत के विकास में योजना आयोग द्वारा निभाई गई भूमिका का भी संक्षेप में उल्लेख करेंगे एवं तत्पश्चात् नवगठित नीति आयोग की संरचना, उद्देश्यों एवं कार्यों पर भी संक्षेप में प्रकाश डालेंगे।

भारत में 1950 में कार्यरत योजना आयोग में प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष (Ex-officio Chairman) होता था और वही इसकी बैठकों की अध्यक्षता करता था। इसके अतिरिक्त आयोग का एक उपाध्यक्ष होता था जिसकी नियुक्ति मंत्रिमंडल के द्वारा की जाती थी। उपाध्यक्ष पद पर देश के विख्यात अर्थशास्त्री या प्रसिद्धि प्राप्त वित्त विशेषज्ञ विराजमान रहे हैं।

यद्यपि उपाध्यक्ष मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता था परंतु उसका स्तर कैबिनेट मंत्री के समान होता था। उपाध्यक्ष वास्तव में योजना आयोग का सबसे प्रभावकारी अधिकारी होता था। इसके अतिरिक्त उपाध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री के समान वेतन एवं भत्ते मिलते थे। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा योजना आयोग में 14-15 व्यक्ति और होते थे।

इनमें सात-आठ तो मंत्री शामिल थे; जैसे मानव संसाधन और विकास मंत्री, वित्त मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री और योजना-राज्य मंत्री तथा पांच-छः अन्य सदस्य होते थे। सदस्यों में से कोई एक सदस्य आयोग के सचिव (Member Secretary) के रूप में कार्य करता था। आयोग के विशेषज्ञ सदस्यों को केंद्रीय राज्य मंत्री का दर्जा दिया जाता था।

प्रश्न 14.
समवर्ती सूची पर एक नोट लिखिए।
उत्तर:
इस सूची में साधारणतः वे विषय रखे गए हैं, जिनका महत्त्व क्षेत्रीय व संघीय दोनों ही दृष्टियों से है। इस सूची के विषयों पर संघ तथा राज्य, दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। यदि इस सूची के किसी विषय पर संघीय तथा राज्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हों, तो सामान्यतः संघ का कानून मान्य होगा।

इस सूची में वर्तमान समय में कुल 52 विषय हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं फौजदारी विषय, विवाह और विवाह-विच्छेद, दत्तक और उत्तराधिकार, कारखाने, श्रमिक-संघ, औद्योगिक विवाद, आर्थिक और सामाजिक योजना, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा, पुनर्वास और पुरातत्व आदि। 42वें संवैधानिक संशोधन में 4 विषय शिक्षा, वन, जंगली जानवरों और पक्षियों की रक्षा और नाप-तोल राज्य सूची में से समवर्ती सूची में परिवर्तित कर दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त समवर्ती सूची में एक नवीन विषय-‘जनसंख्या नियन्त्रण’ और ‘परिवार नियोजन’ रखा गया है।

प्रश्न 15.
केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव के पाँच कारण लिखें।
उत्तर:
केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव के पाँच कारण निम्नलिखित हैं-
(1) केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव का मुख्य कारण वित्त रहा है। राज्यों को हमेशा केंद्र से यह शिकायत रहती है कि वह सहायता देते समय भेदभावपूर्ण नीति अपनाता है,

(2) केंद्र व राज्यों के बीच तनाव का कारण राज्यपाल की भूमिका भी है। राज्यपाल राष्ट्रपति के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। विशेष रूप से ऐसे राज्यों में जहाँ विरोधी दलों की सरकारें होती हैं, वहाँ राज्यपाल की भूमिका विवा का विषय बनी रहती है,

(3) नौकरशाही की भूमिका भी तनाव का अन्य कारण है, क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति केंद्र द्वारा किए जाने के कारण राज्य सरकारों का उन पर नियन्त्रण नहीं होता,

(4) कानून तथा व्यवस्था की समस्याएँ भी तनाव का कारण हैं, क्योंकि केंद्र शान्ति व व्यवस्था का बहाना लेकर राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है,

(5) दलीय भावना के कारण भी केंद्र राज्यों तथा राज्य केंद्र पर दोषारोपण करते रहते हैं, विशेष रूप से उस समय जब केंद्र में एक दल की सरकार हो तथा राज्य में किसी दूसरे दल की।

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प्रश्न 16.
राज्य की स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं? .
उत्तर:
राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ स्वतन्त्रता नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है कि राज्यों को उनके मामलों में केंद्रीय सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाना। राज्यों को जो शक्तियाँ संविधान द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं उन्हें उनका प्रयोग बिना किसी रोक-टोक के करने की आज्ञा होनी चाहिए। इस प्रकार राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ न तो राज्यों की स्वतन्त्रता से है और न ही प्रभुसत्ता से। यह एक ऐसा वैधानिक दर्जा है जिसमें राज्यों को कुछ क्षेत्रों में पूर्ण स्वतन्त्रता तथा कम-से-कम केंद्रीय हस्तक्षेप का आश्वासन प्राप्त होता है। राज्यों को अपने एक निश्चित क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य के अधिकार का नाम ही राज्यों की स्वायत्तता है।

प्रश्न 17.
राज्य की स्वायत्तता की माँग के मुख्य कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर:
राज्य की स्वायत्तता की माँग के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • संसद की व्यापक विधि निर्वाण शक्तियाँ,
  • वित्तीय दृष्टि से राज्यों की केंद्र पर निर्भरता,
  • अखिल भारतीय सेवाएँ तथा राज्यपाल,
  • राज्यों के बीच भाषायी एवं सांस्कृतिक विभिन्नता,
  • राज्यपाल की भूमिका एवं राष्ट्रपति शासन,
  • अन्तर्राष्ट्रीय झगड़े,
  • राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व ।

प्रश्न 18.
भारतीय संविधान की कोई तीन एकात्मक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की तीन एकात्मक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. शक्तिशाली केंद्रीय सरकार-वैसे तो संविधान ने केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया है, परंतु इस विभाजन में केंद्र को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं। संघीय सूची में 97 विषय हैं, जबकि राज्य सूची में केवल 66 विषय हैं। राज्य विषयों की संख्या ही कम नहीं, इनका महत्त्व भी कम है। जेलें, पुलिस तथा अन्य स्थानीय विषयों पर ही राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है।

समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर राज्य सरकारें तथा केंद्रीय सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं, परंतु मतभेद या विरोध की स्थिति में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बनाया गया कानून ही माना जाएगा और राज्य विधानमंडल के कानून को रद्द कर दिया जाएगा। अवशिष्ट शक्तियों (Residuary Powers) के विषय भी केंद्रीय सरकार को ही सौंपे गए हैं।

2. राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह से करता है। वह जिस राज्यपाल को जब चाहे, उसके पद से हटा सकता है। इस प्रकार गवर्नरों द्वारा भी केंद्र सरकार राज्य सरकारों के शासन-प्रबंध में हस्तक्षेप कर सकती है।

3. राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन-संसद कानून पास कर किसी भी राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने का अधिकार रखती है। वह दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर एक राज्य बना सकती है या एक राज्य को दो भागों में बाँट सकती है; जैसे पंजाब का विभाजन करके (पंजाब व हरियाणा) दो राज्य बनाए गए थे। यह अधिकार केंद्र को बहुत अधिक शक्ति देता है। इससे वह चाहे तो राज्यों पर निरंकुश होकर नियंत्रण कर सकता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय सरकार की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
संघ किसे कहते हैं? इसके आवश्यक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संघात्मक सरकार की परिभाषा दीजिए तथा उसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
अथवा
संघ क्या है? संघ की सफलता में सहायक अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संघात्मक सरकार की परिभाषा दें। एकात्मक तथा संघात्मक सरकार में भेद बतलाइए। अथवा संघ क्या होता है? एक अच्छे संघ के निर्माण के लिए कौन-से तथ्य सहायक होते हैं? अथवा संघ क्या होता है? भारत में कौन-सी सरकार उपयुक्त है?
उत्तर:
संघात्मक सरकार ऐसी शासन-व्यवस्था है, जिसमें शासन-सत्ता का विकेंद्रीयकरण किया जाता है तथा जिसमें दोहरी सरकारें स्थापित की जाती हैं और उनकी शक्तियों का बँटवारा कर दिया जाता है।

संघ जिसे अंग्रेज़ी में ‘Federation’ अथवा ‘Federal’ कहा जाता है, वास्तव में लैटिन भाषा के एक शब्द ‘फोडस’ (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है ‘सन्धि अथवा समझौता’ । इस प्रकार संघ सरकार कुछ राज्यों का एक ऐसा स्थायी संगठन है, जिसकी स्थापना एक समझौते के आधार पर की जाती है। जब दो अथवा दो से अधिक स्वतन्त्र राज्य कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक केंद्रीय सरकार संगठित करते हैं तथा शेष उद्देश्यों की पूर्ति वे स्वयं करते हैं तो एक संघात्मक शासन की स्थापना हो जाती है। विभिन्न विद्वानों ने संघ सरकार की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं

1. मॉण्टेस्क्यू (Montesquieu):
के शब्दों में, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जहाँ बहुत-से एक जैसे राज्य बड़े राज्य के सदस्य बनने के लिए सहमत हों।”

2. हेमिल्टन (Hemilton):
का कथन है, “संघ राज्य, राज्यों का एक ऐसा समुदाय है जो एक नवीन राज्य की स्थापना करता है।”

3. गार्नर (Garner):
का कथन है, “संघ सरकार एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केंद्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक ही प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें संविधान द्वारा अथवा संसदीय कानून द्वारा निर्धारित अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वोच्च होती हैं।”

4. जेलीनेक (Jelineck):
के अनुसार, “संघात्मक राज्य कई राज्यों के मेल से बना हुआ एक प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य है।”

5. फाइनर (Finer):
के शब्दों में, “संघात्मक राज्य वह राज्य है जिसमें अधिकार और शक्ति का कुछ भाग स्थानीय राज्यों को दिया जाए, दूसरा भाग संघात्मक सरकार को दिया जाए जो कि अपने स्थानीय राज्यों की इच्छा से बनी होती है।”

इन परिभाषाओं के आधार पर संघात्मक सरकार वह शासन-प्रणाली है, जिसमें कई स्वतन्त्र राज्य मिलकर समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक संघ स्थापित कर लेते हैं। इस संघ में प्रत्येक सदस्य-राज्य कुछ विशेष क्षेत्रों में अपनी स्वतन्त्रता बनाए रखता है तथा सामान्य हित के विषयों को एक केंद्रीय सत्ता के सुपुर्द कर देता है। संघात्मक सरकार के लक्षण (Features of Federal Government)-संघात्मक सरकार के आवश्यक लक्षण अथवा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. लिखित, कठोर तथा सर्वोच्च संविधान संघ राज्य कई राज्यों के बीच एक समझौते का परिणाम होता है, इसलिए समझौते की सभी शर्ते लिखित रूप में होनी चाहिएँ। साथ ही ये शर्ते स्थायी भी हों। इसलिए संघ सरकार का संविधान केवल लिखित ही नहीं, कठोर भी होता है, जिससे कोई भी इकाई मनमाने ढंग से इसमें परिवर्तन न कर सके। संविधान सर्वोच्च भी होता है ताकि कोई भी सरकार उस संविधान के विरुद्ध कानून बनाकर दूसरी इकाई के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप न कर सके।

2. शक्तियों का बँटवारा-संघात्मक सरकार में केंद्रीय महत्त्व के विषय केंद्रीय सरकार को तथा प्रान्तीय और स्थानीय महत्त्व के विषय राज्य सरकारों को सौंप दिए जाते हैं। दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में कानून बनाती तथा प्रशासन चलाती हैं। वे एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप नहीं करतीं। भारत में शक्तियों के विभाजन के अधीन तीन सूचियाँ केंद्रीय सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची बनाई गई हैं।

3. स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च न्यायपालिका-संघात्मक शासन में एक निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र संघीय न्यायालय का होना भी जरूरी है। संघ सरकार में यद्यपि केंद्र व राज्यों में अधिकारों का स्पष्ट विभाजन किया जाता है, फिर भी उनमें कई बातों में विवाद होना स्वाभाविक है। संघ न्यायालय उनके विवादों को हल करता है। यह न्यायालय संविधान के संरक्षण का भी कार्य करता है। केंद्रीय तथा प्रान्तीय सरकारें संविधान के विरुद्ध कानून न बना सकें, इसके लिए एक स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च न्यायपालिका का होना बहुत आवश्यक है।

4. द्वि-सदनीय विधानपालिका-संघात्मक सरकार में द्वि-सदनीय विधानमण्डल की आवश्यकता पड़ती है। विधानमण्डल का निम्न सदन सारे राष्ट्र की जनता का तथा उच्च सदन संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है। ऊपरी सदन राज्यों के हितों की रक्षा करने के लिए गठित किया जाता है। इसमें संघ की इकाइयों को बराबर सीट देने की व्यवस्था की जाती है, जिससे उनकी संवैधानिक समानता स्थापित हो सके।

5. दोहरा शासन-संघात्मक सरकार में दोहरा शासन-प्रबन्ध होता है। एक केंद्रीय शासन तथा दूसरा स्थानीय अथवा प्रान्तीय शासन। संघ तथा प्रान्तों के अधिकार संविधान द्वारा निश्चित होते हैं। दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं।

6. दोहरी नागरिकता-संघ सरकार में नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। एक उस राज्य की नागरिकता जहाँ वह निवास करता है, तथा दूसरी संघ की नागरिकता। ऊपर वर्णित तत्त्व संघीय सरकार के निर्माण में आवश्यक हैं। इन तत्त्वों के आधार पर ही संघात्मक सरकार की स्थापना होती है।

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प्रश्न 2.
“भारतीय संविधान का स्वरूप या ढाँचा संघात्मक है, लेकिन उसकी आत्मा एकात्मक है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ बताएँ। भारतीय संविधान में दिए गए एकात्मक तत्त्वों का विवरण दो।
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने पर अधिकांश विद्वानों तथा राजनेताओं ने इसे एक आवाज में संघात्मक संविधान माना। फिर भी संविधान का संघात्मक ढाँचा विद्वानों में हमेशा विवाद का विषय रहा है। एक ओर प्रो० अलैक्जेण्ड्रोविक्स, के० संथानम, मोरिस जोन्स, एम०वी० पायली, डॉ० अम्बेडकर, पाल एपेल्बी आदि विद्वान् और राजनेता .. भारतीय संविधान को संघात्मक मानते थे तो दूसरी ओर कुछ विचारक इस बात से सहमत नहीं थे।

प्रो० अलेक्जेण्ड्रोविक्स के शब्दों में, “भारत निस्सन्देह एक संघ है जिसमें प्रभुसत्ता के तत्त्वों को केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया गया है।” डॉ० के०सी० व्हीयर, जेनिंग्ज, डी०डी० बसु, डी०एन० बैनर्जी, के०पी० मुखर्जी, के०वी० राव आदि भारत के संविधान को संघात्मक मानने के लिए तैयार नहीं हैं। के०पी० मुखर्जी के अनुसार,

“भारतीय संविधान निश्चय ही गैर-संघात्मक या एकात्मक संविधान है।” इसी तरह के०सी० व्हीयर का कहना है, “भारतीय संविधान अर्द्ध-संघात्मक है। वह नाममात्र की एकात्मक विशेषताओं के साथ संघात्मक राज्य होने के बजाय गौण संघीय विशेषताओं के साथ एकात्मक राज्य है।” कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय संविधान में संघात्मक एवं एकात्मक दोनों तरह के तत्त्व पाए जाते हैं।

इस तरह भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी उसका झुकाव एकात्मकता की ओर है। भारतीय संविधान के संघात्मक तत्त्व (Federal Elements of Indian Constitution)-भारतीय संविधान में निम्नलिखित संघात्मक तत्त्व मौजूद हैं

1. लिखित संविधान भारत का संविधान एक लिखित संविधान है। 9 दिसम्बर, 1946 में संविधान का कार्य आरम्भ हुआ तथा 26 नवम्बर, 1949 में संविधान पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ। वर्तमान में संविधान में 395 अनुच्छेद हैं जिन्हें 12 अनुसूचियों और 22 अध्यायों में बाँटा गया है। भारतीय संविधान में अब तक 104 संशोधन हो चुके हैं।

2. संविधान की कठोरता भारत का संविधान एक कठोर संविधान है। यद्यपि भारत का संविधान अमेरिका के संविधान की तरह कठोर तो नहीं है, परन्तु फिर भी इसमें संशोधन करने की प्रक्रिया इतनी सरल नहीं रखी गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 ने भी इसीलिए संविधान में संशोधन करने के लिए संसद का 2/3 बहुमत तथा केंद्र-राज्यों के सम्बन्धों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाली व्यवस्थाओं पर आधे राज्यों के अनुमोदन के साथ संसद के दो-तिहाई बहुमत का जटिल तरीका अपनाया गया है।

3. संविधान की सर्वोच्चता भारत में संविधान को सर्वोच्च बनाया गया है। यदि किसी समय केंद्र तथा राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र के किसी मामले पर विवाद हो तो उसका हल संविधान में दी गई व्यवस्थाओं के अन्तर्गत ही निकाला जाएगा। अमेरिका आदि संघीय संविधानों की तरह भारत में भी यही तरीका अपनाया गया है।

4. शक्तियों का विभाजन-भारत में संघीय शासन के अन्तर्गत शक्तियों को केंद्र तथा राज्यों में बाँटा गया है। इस उद्देश्य के लिए तीन सूचियाँ (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची) बनाई गई हैं। संघ सूची में 97 विषय (वर्तमान में 100 विषय), राज्य सूची में 66 विषय (वर्तमान में 61 विषय) तथा समवर्ती सूची में 47 विषय (वर्तमान में 52 विषय) रखे गए हैं। अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र सरकार को दी गई हैं।

राष्ट्रीय महत्त्व के विषय, यथा-देश की सुरक्षा, संचार साधन, विदेश-नीति, मुद्रा, बैंकिंग आदि महत्त्वपूर्ण विषय संघ सूची में रखे गए हैं। पुलिस, जेल, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन आदि विषय राज्य सूची में रखे गए हैं। दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले विषय समवर्ती सूची में रखे गए हैं, परन्तु इस सूची पर सर्वोच्चता केंद्र सरकार को दी गई है।

5. दोहरी शासन-प्रणाली-भारत में दोहरी शासन-प्रणाली अपनाई गई है। केंद्र तथा राज्यों की अलग-अलग सरकारें हैं। दोनों को शासन की शक्तियाँ संविधान ने दी हैं। यद्यपि सहकारी संघवाद के कारण दोनों सरकारें आपस में सहयोग करके अपने-अपने दायरे में शासन चलाती हैं, फिर भी दोनों में से कोई किसी के अधीन नहीं हैं।

6. न्यायपालिका की विशेष स्थिति-संघ-शासन में केंद्र तथा राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र के विवाद को संविधान में की गई. व्यवस्थाओं के आधार पर निपटाने की शक्ति न्यायपालिका को दी जाती है। इस आधार पर भारत में भी न्यायपालिका को सर्वोच्च शक्ति प्रदान की गई है। उच्चतम न्यायालय केंद्र तथा राज्यों के आपसी विवादों का निपटारा करता है। इसके निर्णय अन्तिम होते हैं।

7. दो-सदनीय विधानमण्डल-संघ शासन में दो-सदनीय विधानमण्डल होता है। एक सदन सारे देश का तथा दूसरा सदन उन इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है जो मिलकर संघीय सरकार का निर्माण करती हैं। भारत में लोकसभा सारे देश का तथा राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। यह व्यवस्था इसलिए की जाती है, जिससे केंद्र सरकार राज्यों के हितों को नुकसान न पहुँचा सके।

संविधान में एकात्मक तत्त्व (Unitary Elements of Indian Constitution)-भारतीय संविधान में संघ शासन की इन आधारभूत विशेषताओं के होते हुए भी एकात्मक तत्त्वों की कमी नहीं है। भारत के संविधान में निम्नति

1. इकहरी नागरिकता भारत में अमेरिका के विरुद्ध इकहरी नागरिकता प्रदान की गई है। कोई भी व्यक्ति किसी भी राज्य में रहे (जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर) वह राज्य का नहीं, भारत का नागरिक है। इकहरी नागरिकता की यह व्यवस्था संघ शासन के विरुद्ध है।

2. केंद्र तथा राज्यों के लिए एक संविधान-संघ शासन वाले राज्यों में संघ की इकाइयों को अलग-अलग संविधान बनाने का अधिकार होता है। अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड तथा अन्य संघीय देशों में यही तरीका अपनाया गया है। लेकिन भारत में जम्मू-कश्मीर को छोड़कर अन्य राज्यों का अपना अलग संविधान नहीं है। पूरे देश पर एक ही संविधान लागू होता है।

3. शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में शक्तियों का विभाजन भी केंद्र के पक्ष में है। संघ सूची में 97 विषय हैं जिन पर कानून बनाने का अधिकार संघ सरकार को है। राज्य सूची में दिए गए विषयों पर भी केंद्र कानून बना सकता है, यदि राज्यसभा ऐसा प्रस्ताव पास कर दे, राज्य स्वयं कानून बनाने की प्रार्थना करे अथवा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो। समवर्ती सूची पर केंद्र तथा राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है, परन्तु विवाद की दशा में केंद्र का कानून लागू होगा। ऐसी दशा में केंद्र सरकार राज्यों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

4. अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र के पास आमतौर पर संघ शासन में अवशिष्ट शक्तियाँ राज्यों के पास होती हैं, लेकिन भारतीय संविधान में साफ तौर पर यह व्यवस्था की गई है कि जो विषय तीनों सूचियों में नहीं हैं ऐसे सभी अवशिष्ट विषयों पर संसद कानून बनाएगी, राज्यों के विधानमण्डल नहीं।

5. राज्यपालों की नियुक्ति-भारतीय संघ के राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। राष्ट्रपति ही राज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजता है तथा किसी भी राज्यपाल का कार्यकाल बढ़ाता है अथवा पाँच वर्ष की अवधि से पहले हटाता भी है। राज्यपाल की नियुक्ति करते समय उस राज्य के मुख्यमन्त्री से परामर्श लिया जाता है, परन्तु उस परामर्श को मानना आवश्यक नहीं है। राज्यपाल अपने कार्यों के लिए राज्य के प्रति नहीं, वरन् राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है, यह संघात्मक गुणों के विपरीत है।

6. राज्यों में राष्ट्रपति शासन-राष्ट्रपति राज्यपाल के सुझाव अथवा स्वयं निर्णय करके किसी भी राज्य में वहाँ की विधिवत निर्वाचित सरकार को भंग करके राष्ट्रपति शासन लाग कर सकता है। ऐसी दशा में शासन की सारी शक्तियाँ केंद्र के पास आ जाती हैं।

7. राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्व-अमेरिकी सीनेट की तरह संघ शासन वाले देशों में केंद्रीय विधानमण्डल के ऊपरी सदन में सभी राज्यों के बराबर संख्या में प्रतिनिधि होते हैं, परन्तु भारत में इस सिद्धान्त को नहीं अपनाया गया है। राज्यसभा में राज्यों को उनकी आबादी के अनुसार स्थान दिए गए हैं। जिस कारण राज्यसभा अधिक प्रभावशाली बनकर राज्यों के हितों की पूरी तरह रक्षा नहीं कर सकती।

8. संसद को राज्यों के पुनर्गठन का अधिकार संघ शासन में केंद्रीय विधानमण्डल सम्बन्धित राज्य की इच्छा के बिना उसकी सीमाओं तथा नामों आदि में परिवर्तन नहीं कर सकता। लेकिन भारत में संसद को यह अधिकार दिया गया है।

सन् 1956 में केंद्र ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास किया, जिसके अधीन कितने ही नए राज्य बनाए गए हैं, उनकी सीमाओं में परिवर्तन किए गए हैं तथा उनके नामों में भी परिवर्तन किए गए हैं। इसी आधार पर के०पी० मुखर्जी ने लिखा है, “अगर एकात्मक सरकार की परिभाषा यह नहीं है तो मैं नहीं जानता कि वह क्या है।”

9. इकहरी न्याय पद्धति संघ शासन में न्याय व्यवस्था दोहरी होती हैं, परन्तु भारत में नीचे से ऊपर तक न्यायपालिका का ढाँचा एकीकृत है। उच्चतम न्यायालय न्यायपालिका के शिखर पर है। इसके साथ ही पूरे देश के लिए एक जैसी दीवानी तथा फौजदारी व्यवस्था है।

में राज्य केंद्र पर आश्रित केंद्र की अपेक्षा राज्य सरकारों की आय के साधन बहुत कम हैं। इसलिए राज्यों को अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। अनेक केंद्रीय करों से प्राप्त राजस्व का राज्यों में वितरण किया जाता है। इन सभी व्यवस्थाओं और नीति आयोग के निर्देशन में पूरे राष्ट्र के सुनियोजित विकास की व्यवस्था ने राज्यों को केंद्र पर निर्भर बना दिया है।

11. नीति आयोग पर केंद्र का प्रभुत्व (Dominance of Centre on NITI Commission)-1 जनवरी, 2015 को 65 वर्ष पुराने योजना आयोग के स्थान पर अस्तित्व में आए नीति आयोग पर भी केंद्र का ही प्रभुत्व है। नीति आयोग का अध्यक्ष भी योजना आयोग की तरह प्रधानमन्त्री होगा तथा उपाध्यक्ष की नियुक्ति भी प्रधानमन्त्री करता है। इसके अतिरिक्त दो पूर्वकालिक सदस्यों की नियुक्ति भी प्रधानमन्त्री द्वारा की जाती है। इसके साथ-साथ समय-समय पर विशिष्ट सदस्यों को भी प्रधानमन्त्री द्वारा ही आमन्त्रित किया जाता है।

पदेन सदस्यों में भी केंद्रीय मन्त्री ही सम्मिलित होते हैं। नीति आयोग में उल्लेखित प्रशासनिक परिषद् में यद्यपि राज्यों के मुख्यमन्त्री सदस्य होंगे परन्तु इसकी अध्यक्षता प्रधानमन्त्री द्वारा की जाएगी। इसके अतिरिक्त विशिष्ट क्षेत्रीय परिषदों का गठन भी प्रधानमन्त्री द्वारा ही किया जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि नवगठित नीति आयोग में केंद्र का ही प्रभुत्व बना हुआ है जो भारतीय शासन को एकात्मकता की ओर झुकाता है।

निष्कर्ष-उपरोक्त संघात्मक एवं एकात्मक तत्त्वों का अध्ययन करने के पश्चात् इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि भारतीय संविधान न तो पूर्णतः एकात्मक है और न ही संघात्मक। डॉ० जैनिंग्ज के अनुसार, यह कहना उचित होगा कि, “भारत सशक्त केंद्रीयकरण वाली विशेषताओं से युक्त संघ है।”

प्रश्न 3.
केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी सम्बन्धों का वर्णन करें। अथवा केंद्र राज्यों की वित्तीय जरूरतों को कैसे पूरा करता है? स्पष्ट करें। अथवा केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्धों का विवरण दो।
अथवा
भारत में संघ तथा राज्यों के आपसी सम्बन्धों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गई है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत शासन की शक्तियों को तीन सूचियों में बाँटा गया है और अवशेष शक्तियाँ केंद्र सरकार को सौंपी गई हैं। भारत में पूर्णतः संघात्मक सरकार नहीं है और जिन देशों में पूर्ण संघात्मक सरकार की स्थापना की गई है, उन देशों में भी केंद्र का राज्यों पर प्रभुत्व बढ़ता ही जा रहा है तथा राज्यों की भी केंद्र पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। भारत में केंद्र अथवा संघ सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के आपसी सम्बन्धों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है

  • विधायी सम्बन्ध,
  • प्रशासनिक सम्बन्ध,
  • वित्तीय सम्बन्ध ।

1. केंद्र तथा राज्यों के विधायी सम्बन्ध (Legislative Relation between Centre and States) भारतीय संविधान ने केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच विधायी सम्बन्धों का विवरण संविधान के ग्यारहवें भाग के अध्याय एक में अनुच्छेद .245 से 254 तक में दिया है।

(1) संघ सूची इस सूची में संविधान लागू होते समय मूलतः 97 विषय (वर्तमान में 100 विषय) रखे गए है। इनमें प्रतिरक्षा, अणुशक्ति, विदेशी मामले, युद्ध और सन्धि, रेलवे, मुद्रा, बैंकिंग, डाक- तार आदि विषय शामिल हैं। संघ सूची में इन सभी मामलों पर कानून बनाने की शक्ति संसद को प्राप्त है और उन पर केंद्र सरकार का ही प्रशासनिक नियन्त्रण कायम है।

(2) राज्य सूची इस सूची में मूल रूप से 66 विषय (वर्तमान में 61 विषय) रखे गए हैं। राज्य सूची में पुलिस, जेल, न्याय . प्रबन्ध, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा स्थानीय स्वशासन आदि शामिल हैं। समय-समय पर संविधान संशोधनों द्वारा इस सूची में विषयों को निकाला तथा जोड़ा जाता रहा है, परन्तु मूल रूप में इनकी संख्या 66 ही रही है। इस सूची में शामिल विषयों पर राज्य सरकार कानून बनाती है तथा उन पर उनका ही प्रशासनिक नियन्त्रण कायम रहता है।

(3) समवर्ती सूची-इस सूची में मूल 47 विषय (वर्तमान में 52 विषय) रखे गए हैं। इनमें फौजदारी कानून, निवारक नजरबंदी कानून, विवाह, तलाक, ट्रेड यूनियन, श्रम, कल्याण, खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि विषय शामिल हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र तथा राज्यों को प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त जिन विषयों का उल्लेख तीनों सूचियों में से किसी में भी नहीं है, ऐसे सभी मामलों पर अवशिष्ट अधिकार के रूप में कानून बनाने की शक्ति संसद को दी गई है।

संसद द्वारा राज्य-सूची पर कानून निर्माण-यद्यपि राज्य सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का – है, परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी संसद कानून बना सकती है-

(1) यदि राज्यसभा अपने उपस्थित स्यों के बहमत और कल सदस्य संख्या के 2/3 बहमत से प्रस्ताव पास करके राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर दे,

(2) राष्ट्रपति देश में संकटकाल की घोषणा कर दे,

(3) अगर दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल एक प्रस्ताव पारित करके राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने की अपील करें,

(4) अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों तथा समझौतों को लागू कराने के लिए संसद राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है,

(5) राज्य में संवैधानिक व्यवस्था के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है। तब उस राज्य के लिए राज्य सूची में दिए गए सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद को मिल जाता है,

(6) राज्यपाल राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए उसके पास भेज सकता है। राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर अपनी स्वीकृति दे सकता है अथवा उसे रोक सकता है,

(7) राज्य सरकारों को एक राज्य से दूसरे राज्यों अथवा संघ प्रशासित क्षेत्रों से आने वाली वस्तुओं या उनके व्यापार और वाणिज्य से सम्बन्धित मामलों पर युक्तिसंगत प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार दिया गया है। लेकिन ऐसा विधेयक विधानमण्डल में पेश करने से पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्य है।

इस विवरण से स्पष्ट है कि विधायी क्षेत्र में राज्य सूची में दिए गए मामलों पर भी केंद्र सरकार को बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। इसके अतिरिक्त समवर्ती सूची पर केंद्र तथा राज्य दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार है, परन्तु विवाद की दशा में राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाया गया कानून लागू नहीं होगा, वरन् केंद्रीय संसद द्वारा बनाया गया कानून लागू होगा।

2. केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्ध (Administrative Relation of Centre and State) भारतीय संविधान ने केंद्र तथा राज्य सरकारों को जिन मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया है, उन्हीं मामलों पर उसने उन्हें अपना प्रशासनिक नियन्त्रण कायम करने की शक्ति भी दी है। संविधान में केंद्र और राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्धों का विवरण दिया गया है, जो इस प्रकार है

(1) संविधान के अनुच्छेद 256 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य सरकारें अपनी प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग इस तरह करेंगी जिससे संसद के कानूनों का पालन होता रहे,

(2) केंद्र सरकार राज्य सरकारों को अपनी प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग करने के बारे में जरूरी निर्देश दे सकती है। केंद्र सरकार नदियों, जलाशयों और महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक मार्गों को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है तथा रेलवे सम्पत्ति के संरक्षण के बारे में निर्देश दे सकती है,

(3) राष्ट्रपति ऐसे किसी भी कार्य को केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार या उसके किसी अधिकारी को सौंप सकता है जो केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है,

(4) केंद्र तथा राज्य सरकारें न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों को लागू करेगी और इस बारे में आवश्यक कानून संसद द्वारा बनाए जाएँगे,

(5) नदियों के पानी के प्रयोग, वितरण और नियन्त्रण के मामलों पर संसद कानून बना सकती है तथा उस बारे में राज्यों के बीच विवाद होने पर मामले को मध्यस्थ या पंच के द्वारा हल करने के निर्देश केंद्र सरकार सम्बन्धित राज्य सरकारों को दे सकती है,

(6) भारतीय संघ के राज्यों के बीच होने वाले आपसी विवादों का निपटारा करने के लिए संविधान ने केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रपति को अन्तराज्यीय-परिषद् (Inter-state Council) कायम करने की शक्ति दे रखी है,

(7) राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल राज्य सरकार का संवैधानिक मुखिया होने के साथ सम्बन्धित राज्य में राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। अतः उसके द्वारा केंद्र सरकार राज्य के प्रशासन को प्रभावित करती है,

(8) केंद्र सरकार को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए आयोग नियुक्त करने की शक्ति दी गई है। ऐसे आयोगों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर या अपनी ओर से भी इन वर्गों के कल्याण के लिए निर्देश देने का अधिकार राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार को प्राप्त है। ऊपर वर्णित विवरण से स्पष्ट है कि प्रशासनिक सम्बन्धों के मामलों में राज्यों की तुलना में केंद्र सरकार की स्थिति बहुत अधिक प्रभावशाली है।

3. केंद्र तथा राज्यों के वित्तीय सम्बन्ध (Financial Relations between Centre and State Relation)-संविधान में केंद्र तथा राज्यों के मध्य वित्तीय सम्बन्धों की भी व्यवस्था की गई है जिसके अन्तर्गत वित्तीय मामलों में केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है। केंद्र तथा राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है

(1) संघ तथा राज्यों की आय के साधन-संविधान के अनुसार संघ तथा केंद्र सरकार की आय के मुख्य साधनों में आय-कर, आयात व निर्यात-कर, सीमा शुल्क, समाचार-पत्रों की बिक्री तथा विज्ञापन पर कर, शराब तथा अन्य वस्तुओं पर उत्पादन कर, सम्पत्ति शुल्क, डाक, टेलीफोन से प्राप्त आय आदि शामिल हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार की आय के प्रमुख साधनों में कृषि से होने वाली आय पर कर, शराब तथा ऐसी अन्य वस्तुओं पर उत्पादन कर, कृषि पर सम्पदा शुल्क, बिक्री-कर, बिजली के उपभोग पर कर, आमोद-प्रमोद के साधनों पर कर, वाहनों पर कर आदि शामिल किए गए हैं।

(2) करों के वितरण की व्यवस्था केंद्र की तुलना में राज्यों की आय के स्रोत बहुत कम हैं। राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा आदि सुविधाओं के लिए धन की बहुत जरूरत पड़ती है। इसीलिए संविधान में व्यवस्था की गई है कि कुछ कर ऐसे होंगे जिन्हें लगाने का अधिकार तो केंद्र सरकार को होगा, लेकिन इन करों से होने वाली आय को केंद्र प्रशासित क्षेत्रों को छोड़कर राज्य : सरकारें अपने-अपने राज्यों में इकट्ठा करेंगी और वे ही उसे खर्च करेंगी।

इन करों में स्टाम्प शुल्क, दवाइयों और शृंगार की वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क आदि शामिल हैं। संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि कुछ वस्तुओं पर केंद्र सरकार कर लगाएगी और वसूली करेगी, परन्तु आय का कुछ भाग राज्यों को दिया जाएगा। उदाहरणस्वरूप, कृषि-भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्तियों पर उत्तराधिकार कर, रेल-भाड़े और माल-भाड़े पर लगने वाला कर, समाचार-पत्रों पर बिक्री तथा विज्ञापन कर, आय-कर, पटसन तथा जूट के निर्यात पर कर आदि शामिल हैं।

(3) राज्यों को अनुदान-ऊपर वर्णित वित्तीय व्यवस्था के अतिरिक्त संविधान में व्यवस्था की गई है कि केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय अनुदान या आर्थिक सहायता देगी। इनके अन्तर्गत राज्य सरकारें केंद्र से विकास की नई परियोजनाओं और दूसरे विकास कार्यों के लिए अनुदान प्राप्त कर सकती हैं। इसी तरह बाढ़, भूकम्प, अकाल तथा अन्य प्राकृतिक विपदाओं की हालत में पीड़ित जनता की सहायता के लिए केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय सहायता देती है। आदिम जातियों और कबीलों की उन्नति के लिए भी केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान देती है। पूर्वोत्तर भारत में अनुसूचित क्षेत्रों की उन्नति तथा विकास के लिए केंद्र सरकार उन्हें वित्तीय सहायता देती है।

(4) ऋण-संविधान ने केंद्र तथा राज्य सरकारों को ऋण लेने का अधिकार भी दे रखा है। केंद्र सरकार अपनी संचित निधि की जमानत पर संसद की अनुमति से देशवासियों तथा विदेशी सरकारों अथवा अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय इकाइयों से ऋण ले सकती है। राज्य सरकारें देशवासियों तथा केंद्र सरकार से ही ऋण प्राप्त कर सकती हैं।

(5) वित्तीय संकटकाल में केंद्र तथा राज्यों के सम्बन्ध-संविधान के अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत राष्ट्र की वित्तीय साख अथवा वित्तीय स्थिरता को खतरा पैदा हो जाने की दशा में राष्ट्रपति आर्थिक संकट की घोषणा कर सकता है। इस घोषणा के परिणामस्वरूप राज्यों के आर्थिक मामलों में केंद्र सरकार को निर्देश देने का अधिकार मिल जाता है। राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा पास किए गए धन सम्बन्धी विधेयकों और प्रस्तावों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी जरूरी हो जाती है।

(6) वित्त आयोग-संविधान के अनुसार संविधान के लागू होने के दो साल के अन्दर राष्ट्रपति एक वित्त आयोग (Finance Commission) गठित करेगा और फिर हर पाँच वर्ष बाद एक नया वित्त आयोग कायम किया जाएगा। आयोग में अध्यक्ष समेत पाँच सदस्य होंगे। यह आयोग केंद्र तथा राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे के बारे में निर्णय करके अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को पेश करता है।

(7) भारत का नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक-संविधान ने पूरे देश के लिए एक नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक नियुक्त करने की व्यवस्था की है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। यह महालेखा परीक्षक केंद्र तथा राज्य सरकारों के लेखा-जोखा की निष्पक्ष तरीके से जाँच करके अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है, जिसे राष्ट्रपति संसद में प्रति वर्ष पेश करता है।

(8) योजना आयोग-योजना आयोग का उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है, फिर भी संसद के 15 मार्च, 1950 को पास किए गए एक कानून के अनुसार उसे कायम किया गया था। देश के सम्पूर्ण सुनियोजित विकास की जिम्मेदारी योजना आयोग की थी और वही उस सम्बन्ध में योजना का प्रारूप तैयार करता था। इस आयोग की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करता है। वर्तमान में योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन किया गया है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 4.
संघ (केंद्र) तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
संविधान द्वारा केंद्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का जो विभाजन किया गया है, वह संघ के पक्ष में है अर्थात् संघीय सरकार को राज्य सरकारों के मुकाबले में बहुत ही अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। ऐसा होने पर भी सन् 1967 तक केंद्र तथा राज्यों के सम्बन्ध अच्छे रहे और उनमें किसी प्रकार का संघर्ष अथवा तनाव (Tension) उत्पन्न नहीं हुआ।

इसका मुख्य कारण था केंद्र तथा राज्यों में एक ही राजनीतिक दल अर्थात् काँग्रेस दल की सरकारों का होना। सन् 1967 के चुनावों के पश्चात् केंद्र में तो पुनः काँग्रेस दल की सरकार की स्थापना हुई, परन्तु कई राज्यों-बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु आदि में गैर-काँग्रेसी सरकारों की स्थापना हुई। इन सरकारों ने राज्यों को और अधिक शक्तियाँ देने की माँग की, जिससे केंद्र तथा राज्यों में संघर्ष आरम्भ हो गया। संघ तथा राज्यों के बीच संघर्ष अथवा तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित रहे हैं और आज भी हैं

1. वित्तीय समस्या केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव का एक मुख्य कारण वित्त रहा है। राज्य सरकारों को सदा यह शिकायत रहती है कि उन्हें जन-कल्याण के अनेक कार्य करने पड़ते हैं और उनकी आय के साधन बहुत कम हैं, इस कारण से उन्हें केंद्र द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। केंद्र राज्यों को सहायता देते समय राज्यों में विरोधी दलों की सरकारों के साथ पक्षपात करता है। अतः अधिकतर राज्यों की यह माँग रहती है कि उनकी आय के साधनों में वृद्धि की जाए, ताकि वित्त के मामले में उनकी केंद्र पर निर्भरता कुछ कम हो।

2. राज्यपाल की भूमिका केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वह अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है। राष्ट्रपति राज्यपाल को पद से हटाने की भी शक्ति रखता है, राज्यपाल राष्ट्रपति के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। पिछले कुछ समय से राज्यपाल की भूमिका के बारे में देश में काफी विवाद रहा है। विशेष रूप से ऐसे राज्यों में जहाँ विरोधी दलों की सरकारें बनी हैं। इस विवाद का एक मुख्य प्रश्न यह रहा है कि राज्यपाल को किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करनी चाहिए।

3. नौकरशाही की भूमिका भारत में राज्यों के उच्च अधिकारी अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (I.A.S.) के सदस्यों में से नियुक्त किए जाते हैं, जिन पर राज्य सरकारों का पूरा नियन्त्रण नहीं होता। उनकी नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा की जाती है। इसलिए राज्य सरकारों की यह माँग रही है कि उन सभी कर्मचारियों पर, जो राज्य में काम कर रहे हैं, राज्य सरकार का ही नियन्त्रण होना चाहिए। परन्तु अभी स्थिति पहले जैसी ही बनी हुई है।

4. कानून तथा व्यवस्था की समस्याएँ-संविधान के अनुसार कानून तथा व्यवस्था को बनाए रखना राज्य सरकार का दायित्व है, परन्तु केंद्रीय सरकार किसी भी राज्य में शान्ति तथा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए केंद्रीय सुरक्षा पुलिस बल भेज सकती है। राज्य सरकारों का यह विचार रहा है कि केंद्र द्वारा राज्यों में सशस्त्र सेनाएँ तभी भेजनी चाहिएँ जब राज्य द्वारा ऐसी माँग की जाए, परन्तु व्यवहार में केंद्र ने कई बार अपनी इस शक्ति का प्रयोग राज्य की इच्छा के विरुद्ध किया है।

5. संकटकालीन प्रावधान-संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार केंद्रीय सरकार राज्य की विधायी एवं प्रशासनिक सत्ता अपने हाथों में ले सकता है। इस प्रावधान का प्रयोग राज्य में “सवैधानिक तन्त्र की विफलता” (Failure of Constitutional Machinery in the State) की स्थिति में होता है। यह कदम राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर सर्वप्रथम सन् 1959 में केरल में ई०एम०एस० नम्बूदरिपाद की सरकार को निलम्बित करके राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।

उसके बाद लगभग सभी राज्यों को किसी-न-किसी कारण से राष्ट्रपति शासन के अन्तर्गत रहना पड़ा है। जिन राज्यों में विरोधी दल की सरकार को बर्खास्त किया जाता है, उनके द्वारा केंद्र पर सदा ही पक्षपात का आरोप लगाया जाता है। इसी प्रकार सन् 1989 में कर्नाटक में जनता दल की सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन का लागू किया जाना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है।

सन् 1997 में उत्तर प्रदेश में राज्यपाल रोमेश भण्डारी द्वारा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को बर्खास्त करना भी एक ऐसा ही उदाहरण है। इस कारण से राज्य सरकारों ने प्रायः यह कहा है कि संवैधानिक तन्त्र की विफलता के प्रावधान की व्याख्या केंद्र ने समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार से की है।

6. दलीय कारण-दलीय भावना के कारण भी केंद्र राज्यों पर तथा राज्य केंद्र पर दोषारोपण करते रहते हैं, विशेष रूप से उस समय जब केंद्र में एक दल की सरकार हो तथा राज्य में किसी दूसरे दल की।

7. केंद्रीय कानूनों का कार्यान्वन-संविधान के अनुच्छेद 256 तथा 257 केंद्र को यह अधिकार देते हैं कि वह राज्य सरकारों को संसद के कानून के अनुसार कार्य करने तथा राज्य के कार्यकारी अधिकारों के प्रयोग के बारे में आदेश दे। अनुसूचित जातियों के कल्याण के बारे में भी उन्हें आदेश दिए जा सकते हैं। ऐसे कई आदेश राज्य सरकारों द्वारा अस्वीकार भी कर दिए जाते हैं, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।

8. अन्य फुटकर कारण-इस श्रेणी में राज्यों की सीमाओं अथवा नाम में परिवर्तन, नए राज्यों का निर्माण, भाषा का विवाद तथा नदियों के जल के बँटवारे से सम्बन्धित प्रश्न शामिल हैं। कई बार केंद्र द्वारा बनाई गई औद्योगिक नीति भी केंद्र तथा राज्यों के बीच तनाव का कारण बन जाती है।

प्रश्न 5.
सरकारिया आयोग पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
सन् 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने केंद्र-राज्यों के सम्बन्धों पर विचार करने के लिए एक तीन-सदस्यीय आयोग का गठन किया। न्यायमूर्ति आर०एस० सरकारिया को इस आयोग का अध्यक्ष तथा पी० शिवरामन और एस०आर० सेन को इस आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया था। इस आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट 27 अक्तूबर, 1987 को पेश की। इस आयोग की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं

(1) आयोग ने राज्य सरकारों के वित्तीय साधन बढ़ाने के उपायों पर जोर दिया है,

(2) आयोग ने राज्यों के अधिकार बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन के सुझाव दिए हैं। एक सुझाव यह है कि संविधान में संशोधन करके राज्यों को अनुच्छेद 242 के अन्तर्गत राज्य सूची के कानूनों में संशोधन करने का अधिकार दिया जाए,

(3) आयोग ने केंद्र व राज्य के विवादों को सुलझाने के लिए स्थायी अन्तर्राज्यीय परिषद् गठित किए जाने की सिफारिश की है। प्रधानमन्त्री, केंद्रीय मन्त्रियों और सभी मुख्यमन्त्रियों को इस परिषद् में रखा जाए,

(4) आयोग के अनुसार राज्यपालों की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित मुख्यमन्त्री से परामर्श किया जाना चाहिए,

(5) राज्यों के विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति में विलम्ब रोका जाना चाहिए,

(6) उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में विलम्ब रोका जाना चाहिए,

(7) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का स्थानान्तरण उनकी स्वीकृति से किया जाना चाहिए,

(8) आयोग ने संविधान की समवर्ती सूची के अन्तर्गत विषयों पर कानून बनाने के सम्बन्ध में संयम बरतने की सलाह दी है,

(9) आयोग ने राज्य सूची के विषयों पर केंद्रीय योजनाएँ बनाने पर रोक लगाने का सुझाव दिया है,

(10) आयोग ने सुझाव दिया है कि स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव कराने और इनके समुचित कामकाज का संसद द्वारा कानून बनाना चाहिए,

(11) समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले केंद्र द्वारा राज्यों से परामर्श अनिवार्य होना चाहिए। इसके लिए दृढ़ परम्परा का पालन किया जाए,

(12) आयोग ने कहा है कि सामान्य तौर पर केंद्र को केवल उन क्षेत्रों में कार्रवाई करनी चाहिए जिनमें राष्ट्र के व्यापक हित में एक-सी नीति और कार्रवाई जरूरी है,

(13) आयोग ने राष्ट्रीय विकास परिषद्, नीति आयोग जैसे संगठनों तथा अखिल भारतीय सेवाओं को मजबूत बनाने के भी सुझाव दिए हैं,

(14) आयोग की राय में राज्यों की क्षेत्रीय परिषदों की व्यवस्था असफल रही है और इसे फिर सक्रिय किया जाना चाहिए,

(15) आयोग ने देश की एकता और अखण्डता के हित में सभी राज्यों में समान रूप से त्रि-भाषा फार्मूले को इसकी सही भावना से लागू करने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने की सिफारिश की है,

(16) राजभाषा के रूप में हिन्दी को सरल बनाने पर जोर देते हुए आयोग ने कहा है कि आसानी से समझे जाने वाले शब्दों के स्थान पर कठिन सांस्कृतिक शब्दों का उपयोग उचित नहीं है,

(17) आयोग ने कहा है कि राजभाषा के विकास के लिए यदि अंग्रेज़ी सहित विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के उन प्रचलित शब्दों और रूप को, जो अब हिन्दुस्तान के हिस्से बन चुके हैं, निकाला गया तो वह संविधान के अनुच्छेद की भावना के विरुद्ध होगा।

आयोग के अनुसार संविधान के अन्तर्गत केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों के वितरण में राज्यों की स्वतन्त्रता की आवश्यकताओं के साथ एक मजबूत केंद्र की जरूरत को महत्त्व दिया गया है। सरकारिया आयोग की सभी सिफारिशें केंद्रीय सरकार के विचाराधीन हैं और अभी तक इन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

प्रश्न 6.
राज्य की स्वायत्तता का क्या अर्थ है? इसकी माँग के मुख्य कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में केंद्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन प्रारम्भ से ही विवादपूर्ण रहा है। संविधान सभा में भी अनेक सदस्यों ने यह आपत्ति उठाई थी कि शक्ति विभाजन की यह योजना भारत संघ के घटक राज्यों को ‘नगरपालिकाओं’ का रूप देती है। वास्तविकता भी यही है कि भारत के संविधान में केंद्र सरकार को विस्तृत शक्तियाँ दी गई हैं और राज्य नामक इकाइयों को निश्चित रूप से कमजोर रखा गया है।

सन् 1967 तक राज्यों में तथा केंद्र में एक ही दल काँग्रेस की सरकार सत्ता में रहने से केंद्र राज्यों के बीच विवाद नहीं उठे, किन्तु सन् 1967 के बाद जब देश के 8 राज्यों में दूसरे दलों की गैर-काँग्रेसी सरकारें बनी तो केंद्र-राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण और सामंजस्य की समस्या पैदा हो गई। राज्यों की ओर से स्वायत्तता की माँग उठी।

राज्यों की स्वायत्तता की माँग के समर्थक यह मानते हैं कि संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो राज्यों की स्वायत्तता को सीमित करते हैं। यहाँ हम राज्यों की स्वायत्तता से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्नों; जैसे राज्य की स्वायत्तता की माँग के कारण एवं स्वायत्तता के पक्ष एवं विपक्ष में विभिन्न तर्कों का उल्लेख करेंगे।

राज्य की स्वायत्तता का अर्थ साधारण शब्दों में स्वायत्तता का अर्थ है कि किसी को भी अपने क्षेत्र में निर्बाध कार्य करने की स्वतन्त्रता अर्थात् आन्तरिक व बाह्य कार्य-क्षेत्र में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न होना। राज्यों के मामले में स्वायत्तता का अर्थ थोड़ा-सा भिन्न है। राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ स्वतन्त्रता नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है कि राज्यों को उनके मामलों में केंद्रीय सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

राज्यों को शक्तियाँ संविधान द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं और उन्हें उनका प्रयोग करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। राज्यों को जन-कल्याण की योजनाएँ बनाने एवं उन्हें लागू करने की शक्तियाँ बिना किसी रोक-टोक के प्राप्त होनी चाहिएँ। यही नहीं वित्तीय क्षेत्र में भी राज्य स्वतन्त्र होने चाहिएँ। तभी राज्य की स्वायत्तता को लागू किया जा सकता है।

दूसरे शब्दों में, केंद्र का राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों में न्यूनतम हस्ताक्षेप होना चाहिए। केंद्र का कार्य-क्षेत्र सीमित होना चाहिए। उसे केवल विदेश सम्बन्ध, रक्षा, मुद्रा और जन-संचार के विषयों के मामलों में शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिएँ। कराधान के क्षेत्र में भी उनकी शक्तियाँ सीमित होनी चाहिएँ। उन्हें केवल उतने ही कर लगाने का अधिकार दिया ।

जाना चाहिए, जितने उन्हें उपरोक्त कार्य सम्पन्न करने के लिए आवश्यक हों। राज्यों को कराधान के इतने अधिकार प्रदान किए जाने चाहिएँ, जिससे कि वे साधनों का अभाव महसूस न करें। अतः राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ न तो राज्यों की स्वतन्त्रता से है और न ही प्रभुसत्ता से। यह एक ऐसा वैधानिक दर्जा है जिसमें राज्यों को कुछ क्षेत्रों में पूर्ण स्वतन्त्रता तथा कम-से-कम केंद्रीय हस्तक्षेप का आश्वासन प्राप्त हो एक निश्चित क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य के अधिकार का नाम ही राज्यों की स्वायत्तता है।

राज्य की स्वायत्तता की मांग के कारण (Causes of demand for State Autonomy) भारत में राज्यों पर केंद्र के नियन्त्रण के अनेक साधन हैं। इन साधनों के कारण ही राज्यों की स्वायत्तता की माँग ने जन्म लिया। उन कारणों का विवरण निम्नलिखित है

1. संसद की व्यापक विधि निर्माण शक्तियाँ संविधान द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा अवश्य किया गया है, परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद उन विषयों पर भी कानून बना सकती है जो राज्य सूची में दिए गए हैं (1) यदि राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राष्ट्रीय हित के लिए यह आवश्यक है।

संसद राज्य सूची के किसी विषय पर भी कानून बनाए तो संसद उस पर कानून बना सकती है, (2) राष्ट्रपति द्वारा आपात्काल की घोषणा हो जाने पर संसद राज्य सूची में सम्मिलित विषयों पर भी कानून बना सकती है। केंद्रीय संसद की शक्ति की व्यापकता का तीन बातों से पता चलता है-प्रथम, यदि समवर्ती सूची में तथा उन दोनों में कोई विरोध हो तो संसद द्वारा निर्मित कानून मान्य होगा। द्वितीय, अवशिष्ट

शक्तियाँ केंद्र को प्राप्त हैं। तृतीय, यदि राज्य विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत किसी विधेयक का सम्बन्ध किसी निजी सम्पत्ति पर कब्जा करने अथवा उच्च न्यायालयों की शक्तियों को कम करने से हो तो राज्यपाल के लिए यह जरूरी है कि उस विधेयक को वह राष्ट्रपति के पास उनकी स्वीकृति के लिए भेजे। अतः राज्य प्रशासन में केंद्र के अत्यधिक हस्तक्षेप के कारण ही राज्यों के द्वारा स्वायत्तता की माँग जोर पकड़ रही है।

2. वित्तीय दृष्टि से राज्यों की केंद्र पर निर्भरता वित्तीय दृष्टि से भी राज्यों को केंद्र का मुँह ताकना पड़ता है। केंद्र पर राज्यों की आर्थिक निर्भरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

3. अखिल भारतीय सेवाएँ तथा राज्यपाल अखिल भारतीय सेवाएँ जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) तथा भारतीय . पुलिस सेवा (I.P.S.) पर भारत की संघीय सरकार का नियन्त्रण है। इन सेवाओं से सम्बन्धित उच्च अधिकारी राज्यों में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त होते हैं। अतएव इन अधिकारियों के माध्यम से ही केंद्रीय सरकार राज्यों की सरकारों पर नियन्त्रण रखती है। जहाँ तक राज्यपाल का प्रश्न है, उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह राज्य में केंद्र के एजेण्ट के रूप में कार्य करता है। .

4. राज्यों के बीच भाषायी एवं सांस्कृतिक विभिन्नता भारत में राज्यों की भाषायी एवं सांस्कृतिक विभिन्नता भी राज्यों की स्वायत्तता की माँग को बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है। इसी आधार पर कुछ राज्य यह महसूस करते हैं कि हिन्दी भाषी राज्य गैर-हिन्दी भाषी राज्यों पर अपना आधिपत्य एवं प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी भावना से ग्रस्त होकर सन् 1960 के दशक में हिन्दी भाषा के विरोध में गैर-हिन्दी भाषायी राज्यों के द्वारा आन्दोलन चलाए गए। अतः ऐसी माँग एवं भावनाएँ ही भारतीय संघवाद के स्वरूप को चुनौती देने के साथ-साथ राज्यों की स्वायत्तता की माँग के रूप में आगे बढ़ती जा रही हैं।

5. राज्यपाल की भूमिका एवं राष्ट्रपति शासन-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड जैसे संघों में केंद्र को यह शक्ति प्रदान नहीं है कि राज्यों की स्वायत्तता (Autonomy) समाप्त कर सके, किंतु भारत में आपात्काल की घोषणा किए जाने पर संविधान एकात्मक रूप धारण कर लेता है। आपात्काल में केंद्रीय संसद उन विषयों पर कानून बना सकती है जो राज्य सूची में सम्मिलित हैं।

जब राष्ट्रपति यह घोषणा कर देता है कि किसी राज्य की सरकार संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं चलाई जा रही, तो राज्य की विधानसभा भंग कर दी जाती है और राष्ट्रपति के माध्यम से राज्यपाल को राज्य की सभी प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। राज्य का राज्यपाल जनता के द्वारा निर्वाचित नहीं होता। राज्यपाल केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है।

इसलिए राज्यपाल केवल मात्र राज्यों में केंद्र सरकार का एजेण्ट बनकर कार्य करता है। केंद्र सरकार अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए राज्यों में अनुच्छेद 356 का प्रयोग कर विशेषतः विपक्षी दलों की सरकार को भंग करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार केंद्र सरकार राज्यपाल के पद के माध्यम से राज्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करती है।

इसी कारण आज राज्यपाल का पद सबसे अधिक विवादित पद बना हुआ है। राज्यों में राज्यपाल के निर्णयों एवं केंद्र द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू करने की शक्ति के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में विभिन्न राज्यों द्वारा दायर याचिकाओं पर, न्यायपालिका ने निर्णय दिया कि केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 356 का प्रयोग गलत ढंग से किया जाता रहा है।

इसीलिए केंद्र राज्य सम्बन्धों सम्बन्धी गठित सरकारिया आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में यह संस्तुति दी थी कि राज्यपाल के पद पर गैर-राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति की जाए ताकि यह संविधान के अनुसार बिना केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के निष्पक्ष होकर अपना कार्य कर सके, परन्तु अभी तक इस समस्या का कोई हल नहीं हो पाया है। इसीलिए राज्यों के द्वारा निरन्तर स्वायत्तता की माँग जोर पकड़ती जा रही है।

6. अन्तर्राज्यीय झगड़े-राज्यों के बीच भाषायी एवं सांस्कृतिक विभिन्नता के साथ-साथ राज्यों के बीच सीमा सम्बन्धी एवं नदी जल सम्बन्धी विवादों का केंद्र सरकार द्वारा समुचित समाधान न करवाने के कारण भी राज्यों की स्वायत्तता की माँग को बल दिया है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक, मणिपुर और नागालैंड एवं पंजाब व हरियाणा के बीच राजधानी चण्डीगढ़ को लेकर आज भी विवाद कायम है।

इसी तरह से तमिलनाडु एवं कर्नाटक के बीच कावेरी नदी जल विवाद एवं गुजरात, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के बीच नर्मदा नदी जल-विवाद आदि ने राज्यों के बीच संघात्मक भावना को जहाँ ठेस पहुंचाई है, वहीं केंद्र के प्रभावी नियन्त्रण के अभाव ने भी राज्यों की स्वायत्तता की माँग को बल देने का कार्य किया है।

7. संसद किसी नवीन राज्य का निर्माण कर सकती है और किसी भी राज्य की सीमा घटा या बढ़ा सकती है –अमेरिका . या ऑस्ट्रेलियाई संघ व्यवस्था में केंद्र राज्यों की इच्छा के विरुद्ध उनकी सीमाओं में हेर-फेर नहीं कर सकता, परन्तु भारत में केंद्रीय संसद नवीन राज्यों का निर्माण कर सकती है और राज्यों के आकार को घटा या बढ़ा सकती है। ऐसा करने के लिए संसद को राज्यों की अनुमति नहीं लेनी पड़ती।

8. राज्यसभा में सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व नहीं विश्व की अधिकांश संघ व्यवस्थाओं में संसद के उच्च सदन का संगठन राज्यों की समानता के सिद्धान्त के आधार पर किया गया है। समानता का सिद्धान्त इसलिए अपनाया गया है जिससे केंद्रीय संसद पर बड़े राज्य का आधिपत्य कायम न हो सके, परन्तु भारत के उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा में सभी राज्यों का बराबर संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं होता।

9. राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं-अमेरिका और स्विट्जरलैंड के राज्यों के अपने पृथक् संविधान हैं और उनमें संशोधन करने की शक्तियाँ भी राज्यों के विधानमण्डलों को ही प्राप्त हैं, परन्तु भारत में एक ही संविधान है जो केंद्र और राज्यों दोनों की संरचना और शक्तियों का उल्लेख करता है। राज्यों को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वे भारतीय संविधान की उन धाराओं में संशोधन कर सकें जिनका उनकी संरचना और प्रकार्यों से सम्बन्ध है। भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया की शुरुआत केवल संसद ही कर सकती है।

निष्कर्ष दिए गए कारणों की वजह से विभिन्न राज्यों में राज्य की स्वायत्तता की माँग ने जोर पकड़ा। डी०एम०के० तथा : अन्ना डी०एम०के० ने अपने राज्य के लिए स्वायत्तता की माँग की। मार्क्सवादी दल ने संविधान की प्रस्तावना से ‘यूनियन’ शब्द को हटाकर ‘फेडरल’ शब्द का उल्लेख करने की माँग की। इसी प्रकार अकाली दल ने पंजाब में राज्य की स्वायत्तता के लिए उग्र आन्दोलन चलाया। जम्मू और कश्मीर में भी इसी प्रकार की माँग को लेकर कई सम्मेलनों का आयोजन किया गया।

प्रश्न 7.
राज्यों की स्वायत्तता के विभिन्न प्रश्नों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राज्यों की स्वायत्तता के विभिन्न प्रश्न (Various Issues of State Autonomy)-राज्यों की स्वायत्तता का मामला एक अहम् एवं कठिन विषय है जिसके चलते देश की एकता पर संकट आ सकता है। समय-समय पर राज्यों की स्वायत्तता से सम्बन्धित जिन मामलों पर आवाज उठाई गई वे विषय इस प्रकार हैं

1. राज्यपाल की नियुक्ति राज्यपाल की नियुक्ति का अधिकार भारत के राष्ट्रपति का है। वह राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमन्त्री के परामर्श से करता है। साधारणतया राज्यपाल की नियुक्ति में अमुक राज्य के मुख्यमन्त्री की सलाह नहीं ली जाती। विपक्षी दलों की यह माँग रही है कि राज्यपाल की नियुक्ति के समय राज्य के मुख्यमन्त्री की सलाह ली जानी चाहिए।

केंद्र द्वारा अनेकों बार राज्य की सलाह लिए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की है जिसका राज्य सरकार द्वारा विरोध किया जाता है। इस प्रकार राज्य सरकार और राज्यपाल के सम्बन्धों में खटास पैदा हो जाती है। यही नहीं जब केंद्र में सत्ता परिवर्तन होता है तो जिन राज्यों में विपक्ष सत्ता में होता है तो राज्यपालों के इस्तीफे माँग लिए जाते हैं।

जैसा 2004 में काँग्रेस के सत्ता में आने के बाद, एन०डी०ए० (N.D.A.) द्वारा नियुक्त राज्यपालों के इस्तीफे माँग लिए गए। इस विवाद को लेकर अन्तर्राज्यीय परिषद् में कई बार चर्चा हुई और यह सुझाव दिया गया कि राज्यपाल की नियुक्ति में सम्बन्धित राज्य से सलाह लेने की प्रक्रिया को संवैधानिक दर्जा दिया जाए, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।

2. राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन-राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाती है और वह केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल कई बार केंद्र में सत्तारूढ़ दल के दबाव में आकर ऐसे कार्य कर देता है जो उसे नहीं वह राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल होने की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज देता है जिसके स्वीकार होते ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है।

इस मामले में राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद रही है। राज्यपाल निष्पक्ष तरीके से काम नहीं करता। अभी तक अनेकों उदाहरण हैं जबकि राज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद राष्ट्रपति ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। सन् 1952 से अब तक लगभग 130 बार से भी अधिक राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है। इन मामलों में राज्यपाल की भूमिका निन्दा का पात्र बनी। सन् 2005 में बिहार में राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया जिसकी विपक्ष ने जमकर आलोचना की। ऐसे में राज्यों की स्वायत्तता माँगना स्वाभाविक है।

3. राज्यों के विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में देरी-राज्यों को यह शिकायत रहती है कि जिन विधेयकों को विधानमण्डल पारित कर देती है, उन पर स्वीकृति देने में केंद्र अनावश्यक देरी करता है। कुछ पर स्वीकृति नहीं दी जाती और इसकी सूचना तक भी राज्य सरकार को नहीं दी जाती। कुछ पर भेदभाव की नीति अपनाई जाती है। माँग होने पर भी राष्ट्रपति की स्वीकृति की अवधि निश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन नहीं किया जाता। इस प्रकार राज्यों के विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने में देरी होना भी राज्यों की स्वायत्तता की माँग बढ़ाता है।

4. अखिल भारतीय सेवाओं का पक्षपातपूर्ण प्रयोग-अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र द्वारा नियन्त्रित और अनुशासित हैं। इन सेवाओं के किसी सदस्य का व्यवहार सेवा की शर्तों, आचार संहिता आदि के कितना ही विरुद्ध, आपत्तिजनक एवं पक्षपातपूर्ण क्यों न हो राज्य सरकारें केंद्र की अनुमति के बिना इन सेवाओं के सदस्यों के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर सकती।

इससे राज्य सरकारें शिथिल होती हैं। कई बार तो केंद्र से प्रोत्साहन पाकर इन सेवाओं के सदस्य राज्य सरकारों की योग्यता, कुशलता पर ही प्रश्न-चिह्न लगा देते हैं। केंद्र में जब सत्ताधारी पार्टी इन सेवाओं का प्रयोग विपक्षी राज्य सरकारों को बदनाम करने के लिए करती है और सेवा के उन सदस्यों को पदोन्नत कर पुरस्कृत करती है जो राज्य सरकारों की उपेक्षा कर केंद्र के आदेशों का सीधे पालन करते हैं तो राज्यों में बेचैनी पैदा होती है।

इस प्रकार अखिल भारतीय सेवाओं का पक्षपातपूर्ण प्रयोग, केंद्र एवं राज्यों के सम्बन्धों में दरार पैदा करता है। अतः स्पष्ट है कि अखिल भारतीय सेवाओं के पक्षपातपूर्ण ढंग के प्रयोग ने राज्यों की स्वायत्तता की माँग को बढ़ावा दिया है।

5. केंद्र का राज्यों की विपक्षी सरकारों एवं उनकी समस्याओं के प्रति असवेदनशील एवं उदासीन व्यवहार केंद्र का दृष्टिकोण राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारों के प्रति असंवेदनशील और उदासीन रहा है। केंद्र एक लम्बे समय तक समस्याओं पर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है, जो अन्ततः केंद्र और राज्यों में टकराव पैदा करती हैं।

विपक्षी दल की राज्य सरकारों के प्रति असंवेदनशीलता का एक अन्य पहलू दो राज्य सरकारों के परस्पर विवाद में उस राज्य सरकार की समस्या के प्रति उदासीन हो जाना भी देखने में आया, जो दूसरे दल की थी। जनवरी, 1994 में पानी को लेकर हरियाणा और दिल्ली की सरकार के विवाद को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके अन्तर्गत हरियाणा के मुख्यमन्त्री ने दिल्ली को होने वाली पानी की सप्लाई को कम कर दिया, चूंकि दिल्ली में भाजपा की सरकार थी।

इस पर केंद्र सरकार चुप बनी रही और उस पर भी तभी जूं रेंगी जब दिल्ली सरकार ने केंद्रीय मन्त्रियों की पानी की सप्लाई को रोकने की चेतावनी दी। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि केंद्र-राज्य, सम्बन्ध में केंद्र सरकार की नीति प्रारम्भ से ही राज्यों को अपने ऊपर आश्रित बनाए रखने की रही है। सन् 1967 से राज्यों में केंद्र के हस्तक्षेप की यह नीति खुलकर सामने आई जो कि सन् 1995 तक जारी रही।

सन् 1996 से केंद्र में मिली-जुली सरकारों में क्षेत्रीय दलों के प्रभावी होने के कारण यह प्रवृत्ति कमजोर हो रही है और आम-सहमति की नीति का विकास हो रहा है। अतः कहा जा सकता है कि केंद्र के राज्यों के प्रति असंवेदनशील व्यवहार ने राज्यों की स्वायत्तता की माँग को न केवल जन्म दिया, बल्कि उसे बढ़ावा भी दिया है।

6. राज्यों की वित्तीय दुर्दशा-राज्यों की वित्तीय स्थिति में निरन्तर गिरावट ने नीति निर्धारकों के सामने जटिल समस्याएँ खड़ी कर दी हैं जिनके कारण राज्यों में न तो विकास गति पकड़ रहा है और न ही पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। राजस्व में निरन्तर कमी, वित्तीय और प्राथमिक घाटे, कों के बढ़ते बोझ और अन्य देनदारियाँ, पूँजीगत खाते और रख-रखाव के खर्चों में कमी इत्यादि राज्यों की वित्तीय दुर्दशा के संकेत हैं।

साथ ही राज्यों को मिलने वाली केंद्रीय सहायता की वृद्धि का संकुचन और केंद्रीय वेतन पुनः निरीक्षण के प्रभाव ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर घातक प्रभाव डाला है। ऐसी स्थिति के लिए केंद्र की अपेक्षा राज्य सरकारें स्वयं ही अधिक जिम्मेदार हैं। अतः राज्यों की स्वायत्तता के लिए राज्यों की वित्तीय दुर्दशा भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।

7. दूरदर्शन और आकाशवाणी का पक्षपातपूर्ण इस्तेमाल केंद्र का दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे महत्त्वपूर्ण जन-संचार साधनों पर पूर्ण नियन्त्रण और एकाधिकार है। सन् 1966 में चन्दा समिति ने इन्हें स्वायत्तशासी बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन इसे नामंजूर कर दिया। दूरदर्शन और आकाशवाणी एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा बन गया है जिसने केंद्र और राज्यों के बीच उत्तेजना पैदा की है।

राज्यों की जन-संचार के इन साधनों के विरुद्ध ये शिकायतें रहीं-

(1) खबरें निष्पक्ष भाव से एवं पक्षपातरहित होकर प्रसारित नहीं की जातीं। यह स्थिति अत्यधिक उत्तेजना उस समय पैदा करती है जब किसी महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्र और विपक्षी राज्य सरकारों में नीति सम्बन्धी कोई महत्त्वपूर्ण मतभेद होता है और दूरदर्शन एवं आकाशवाणी राज्यों के दृष्टिकोण की उपेक्षा करके केवल केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं।

(2) राज्यों को विशेषकर चुनाव के समय प्रचार सुविधाएँ नहीं दी जातीं।

(3) देश के विविध जातीय एवं सांस्कृतिक समूहों को समुचित प्रतिनिधित्व न देना। इस प्रकार केंद्र द्वारा दूरदर्शन और आकाशवाणी को पक्षपातपूर्ण इस्तेमाल करना, राज्यों के लिए द्वितीय या अतिरिक्त चैनल खोलने की माँग को जन्म देती है। अतः इस प्रकार दूरदर्शन और आकाशवाणी का पक्षपातपूर्ण तरीके से प्रयोग राज्यों की स्वायत्तता के लिए एक मुद्दा है।

8. समवर्ती सूची-राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के विभाजन के लिए संविधान में तीन सूचियों की व्यवस्था है। केंद्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। समवर्ती सूची में ऐसे विषय रखे गए हैं जिन पर केंद्र और राज्यों दोनों को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। संसद के द्वारा कानून बनाने की स्थिति में राज्यों द्वारा बनाया गया कानून मान्य नहीं होता। इसलिए विपक्षी दल समवर्ती सूची को पूर्णरूपेण राज्यों के अधीन करने के पक्ष में हैं।

9. अवशिष्ट शक्तियाँ अवशिष्ट शक्तियों को लेकर भी केंद्र व राज्यों में तनाव है। यह भी राज्यों की स्वायत्तता की माँग को बढ़ावा देने का कारण है। राज्य सभी अवशिष्ट शक्तियों को राज्यों के देने के पक्ष में है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. संविधान द्वारा भारत को कहा गया है
(A) संघीय राज्य
(B) एकात्मक राज्य
(C) राज्यों का संघ
(D) बनावट में संघात्मक, परंतु भाव में एकात्मक
उत्तर:
(C) राज्यों का संघ

2. संविधान में संघीय सूची में मूलतः विषयों की संख्या कितनी है?
(A) 97
(B) 99
(C) 100
(D) 102
उत्तर:
(A)97

3. संघीय सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार है
(A) संसद के पास
(B) राज्यसभा के पास
(C) लोकसभा के पास
(D) राज्य विधानमंडल के पास
उत्तर:
(A) संसद के पास

4. संविधान में राज्य-सूची में मूलतः कुल विषय कितने दिए गए हैं?
(A) 97
(B) 61
(C) 66
(D) 47
उत्तर:
(C) 66

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 संघवाद

5. संविधान में समवर्ती सूची में मूलतः कुल विषय कितने दिए गए हैं?
(A) 61
(B) 47
(C) 52
(D) 66
उत्तर:
(B) 47

6. समवर्ती सूची में दिए गए विषयों के संबंध में कानून पास करने का अधिकार है
(A) संसद के पास
(B) राज्य विधानमंडलों के पास
(C) संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों के पास
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों के पास

7. समवर्ती सूची में दिए गए किसी विषय के संबंध में संसद तथा राज्य विधानमंडल द्वारा परस्पर विरोधी कानून बनाने की स्थिति में
(A) दोनों कानून रद्द हो जाएँगे
(B) संसद द्वारा पास किया गया कानन लाग होगा
(C) राज्य विधानमंडल द्वारा पास किया गया कानून लागू होगा
(D) दोनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाएगा
उत्तर:
(B) संसद द्वारा पास किया गया कानून लागू होगा

8. भारतीय संघ में कुल कितने राज्य हैं?
(A) 26
(B) 21
(C) 28
(D) 29
उत्तर:
(C) 28

9. निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद राज्य-सूची में दिए गए विषयों के संबंध में भी कानून बना सकती है
(A) संकटकालीन स्थिति की घोषणा होने पर
(B) दो अथवा दो से अधिक राज्यों द्वारा ऐसी प्रार्थना करने पर
(C) किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि अथवा समझौते की शर्तों को लागू करने के लिए
(D) उपर्युक्त सभी परिस्थितियों में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी परिस्थितियों में

10. वित्त आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करने का अधिकार निम्नलिखित को है
(A) राष्ट्रपति
(B) उप-राष्ट्रपति
(C) संसद
(D) प्रधानमंत्री
उत्तर:
(A) राष्ट्रपति

11. अंतर्राज्यीय परिषद् (Inter-State Council) की स्थापना करने का अधिकार निम्नलिखित को प्राप्त है
(A) राज्यपाल
(B) राष्ट्रपति
(C) प्रधानमंत्री
(D) मुख्य न्यायाधीश
उत्तर:
(B) राष्ट्रपति

12. भारत की संघीय व्यवस्था का संरक्षक है
(A) राष्ट्रपति
(B) संसद
(C) प्रधानमंत्री
(D) सर्वोच्च न्यायालय
उत्तर:
(D) सर्वोच्च न्यायालय

13. भारतीय संघ में नए राज्यों को शामिल तथा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने का अधिकार किसके पास है?
(A) राष्ट्रपति
(B) संसद
(C) प्रधानमंत्री
(D) सर्वोच्च न्यायालय
उत्तर:
(B) संसद

14. शिक्षा निम्नलिखित सूची का विषय है
(A) संघ सूची
(B) राज्य-सूची
(C) समवर्ती सूची
(D) अवशिष्ट शक्तियाँ
उत्तर:
(C) समवर्ती सूची

15. भारतीय संघ में कुल कितने संघीय क्षेत्र हैं?
(A) 7
(B) 10
(C) 9
(D) 8
उत्तर:
(D) 8

16. शेष शक्तियों (Residuary Powers) के संबंध में कानून बनाने का अधिकार निम्नलिखित को है
(A) राष्ट्रपति
(B) संसद
(C) राज्य विधानमंडल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संसद

17. निम्नलिखित में से कौन-सा विषय संघीय सूची में है?
(A) विदेशी मामले
(B) विवाह और तलाक
(C) शिक्षा
(D) स्थानीय सरकार
उत्तर:
(A) विदेशी मामले

18. निम्नलिखित विषय राज्य-सूची में शामिल है
(A) प्रतिरक्षा
(B) डाक
(C) कृषि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कृषि

19. निम्नलिखित विषय समवर्ती-सूची में शामिल हैं
(A) विदेशी मामले
(B) शिक्षा
(C) कृषि
(D) पुलिस एवं जेलें
उत्तर:
(B) शिक्षा

20. वित्त आयोग (Finance Commission) नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त है
(A) प्रधानमंत्री को
(B) राष्ट्रपति को
(C) संसद को
(D) लोकसभा को
उत्तर:
(B) राष्ट्रपति को

21. “भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है पर भावना में एकात्मक है।” यह किसने कहा?
(A) डी०एन० बनर्जी ने
(B) दुर्गादास बसु ने
(C) डॉ० अम्बेडकर ने
(D) के०सी० बीयर ने
उत्तर:
(A) डी०एन० बनर्जी ने

22. “भारतीय संविधान न तो पूर्ण रूप से संघात्मक है और न ही एकात्मक, बल्कि दोनों का मिश्रण है।” यह कथन किसका है?
(A) डी०डी० बसु का
(B) के०सी० बीयर का
(C) जी०एन० जोशी का
(D) जी०एन० सिंह का
उत्तर:
(A) डी०डी० बसु का

23. 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा समवर्ती सूची में जोड़े गए विषयों से समवर्ती सूची के विषयों की कुल संख्या कितनी हो गई?
(A) 47
(B) 49
(C) 52
(D) 66
उत्तर:
(C) 52

24. वर्तमान में राज्यसूची में कितने विषय हैं?
(A) 47
(B) 52
(C) 66
(D) 61
उत्तर:
(D) 61

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. भारतीय संविधान में संघ के स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
राज्यों का संघ (Union of States)।

2. शक्तियों के विभाजन की तीन सूचियों में मूलतः कितने-कितने विषय शामिल हैं?
उत्तर:
संघीय सूची में 97, राज्य-सूची में 66 तथा समवर्ती सूची में 47 विषय शामिल हैं।

3. भारतीय संघ में कुल कितने राज्य एवं संघीय क्षेत्र हैं?
उत्तर:
भारतीय संघ में कुल 28 राज्य एवं 8 संघीय क्षेत्र हैं।

4. भारतीय संविधान का स्वरूप कैसा है?
उत्तर:
भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है।

5. भारत में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारत में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना 28 मई, 1990 को हुई।

6. संविधान में शक्तियों के विभाजन के आधार पर कौन-सी शासन-प्रणाली अपनाई गई है?
उत्तर:
संविधान में शक्तियों के विभाजन के आधार पर संघात्मक शासन-प्रणाली अपनाई गई है।

7. भारतीय संविधान द्वारा अवशिष्ट शक्तियाँ किसे प्रदान की गई हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा अवशिष्ट शक्तियाँ संघीय संसद को प्रदान की गई हैं।

8. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक राष्ट्रपति द्वारा कब पारित किया गया?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक राष्ट्रपति द्वारा 9 अगस्त, 2019 को पारित हुआ।

9. नीति आयोग कब अस्तित्व में आया?
उत्तर:
1 जनवरी, 2015 को।

10. जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा कब पारित किया गया?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक लोकसभा एवं राज्यसभा में क्रमशः 5 एवं 6 अगस्त, 2019 को पारित हुआ।

रिक्त स्थान भरें

1. “भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है, परन्तु भाव में एकात्मक है।” यह कथन ……………. ने कहा।
उत्तर:
डी०एन० बनर्जी

2. अवशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार ………….. को प्राप्त है।
उत्तर:
संसद

3. भारतीय संघ में …………… केंद्र शासित प्रदेश हैं।
उत्तर:
8

4. संघीय सूची में ……………. विषय हैं।
उत्तर:
97

5. राज्य सूची में …………… विषय हैं।
उत्तर:
61

6. शिक्षा ……………. सूची का विषय है।
उत्तर:
समवर्ती

7. भारत में वित्त आयोग नियुक्त करने का अधिकार को है।
उत्तर:
राष्ट्रपति

8. नीति आयोग के उपाध्यक्ष ………………….हैं।
उत्तर:
राजीव कुमार

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