Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें-

1. सौरमण्डल में कितने ग्रह हैं?
(A) 8
(B) 7
(C) 9
(D) 11
उत्तर:
(A) 8

2. सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह कौन-सा है?
(A) बृहस्पति
(B) शनि
(C) मंगल
(D) शुक्र
उत्तर:
(A) बृहस्पति

3. सौरमण्डल का सबसे छोटा ग्रह कौन-सा है?
(A) बुध
(B) शुक्र
(C) शनि
(D) बृहस्पति
उत्तर:
(A) बुध

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

4. निम्नलिखित में से चन्द्रमा एक है
(A) नीहारिका
(B) क्षुद्रग्रह
(C) उपग्रह
(D) ग्रह
उत्तर:
(C) उपग्रह

5. सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) मंगल
(D) पृथ्वी
उत्तर:
(B) बुध

6. निम्नलिखित में से पार्थिव ग्रह नहीं है-
(A) बुध
(B) मंगल
(C) शनि
(D) शुक्र
उत्तर:
(C) शनि

7. सूर्य से अधिकतम दूरी पर कौन-सा ग्रह है?
(A) शनि
(B) बुध
(C) नेप्च्यून
(D) यूरेनस
उत्तर:
(C) नेप्च्यून

8. चन्द्रमा किस ग्रह का प्राकृतिक उपग्रह है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) पृथ्वी
(D) मंगल
उत्तर:
(C) पृथ्वी

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

9. पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित नीहारिका परिकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) लाप्लेस ने
(B) काण्ट ने
(C) प्लूटो ने
(D) जेम्स जीन्स ने
उत्तर:
(A) लाप्लेस ने

10. सौरमण्डल का जनक माना जाता है-
(A) बोने ग्रह को
(B) प्राक्रतिक उपग्रह को
(C) तारों को
(D) नीहारिका को
उत्तर:
(D) नीहारिका को

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत का नाम क्या है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धांत।

प्रश्न 2.
बिग बैंग की घटना कब हुई?
उत्तर:
आज से 13.7 अरब वर्षों पहले।

प्रश्न 3.
प्रकाश की गति कितनी है?
उत्तर:
3 लाख कि०मी० प्रति सैकेंड।

प्रश्न 4.
‘प्रकाश वर्ष’ किस इकाई का मापक है?
उत्तर:
खगोलीय दूरी का।

प्रश्न 5.
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में प्रारंभिक मत किस दार्शनिक ने दिया?
उत्तर:
इमैनुअल कान्ट।

प्रश्न 6.
सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
उत्तर:
बुध।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी कितनी है?
उत्तर:
14 करोड़, 95 लाख, 98 हजार कि०मी०।

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प्रश्न 8.
पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ‘नीहारिका परिकल्पना’ किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने।

प्रश्न 9.
पृथ्वी की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर जीवन लगभग कितने वर्ष पूर्व विकसित हुआ?
उत्तर:
लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
श्रेष्ठ ग्रह किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
बाहरी ग्रहों को श्रेष्ठ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 12.
पहले पृथ्वी किस अवस्था में थी?
उत्तर:
तरल अवस्था में।

प्रश्न 13.
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ सन् 1796 में प्रस्तुत की।

प्रश्न 14.
ग्रहों के आकार, रचक सामग्री तथा तापमान में अन्तर क्यों पाया जाता है?
उत्तर:
सूर्य से सापेक्षिक दूरी के कारण।

प्रश्न 15.
पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
उत्तर:
5.517 ग्राम प्रति घन सें०मी०।

प्रश्न 16.
पृथ्वी के एकमात्र उपग्रह का क्या नाम है?
उत्तर:
चंद्रमा।

प्रश्न 17.
सूर्य केन्द्रित परिकल्पना को प्रस्तुत करने वाले प्राचीन भारतीय विद्वान् का नाम बताइए।
उत्तर:
आर्यभट्ट।

प्रश्न 18.
तुच्छ ग्रह (Inferior Planets) किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
आन्तरिक ग्रहों को तुच्छ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 19.
उस पौधे का नाम लिखिए जिसके जीवाश्म सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।
उत्तर:
ग्लोसोपैट्रिस।

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प्रश्न 20.
सौरमण्डल के एक बाहरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
बृहस्पति।

प्रश्न 21.
सौरमण्डल के एक आन्तरिक/भीतरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
पृथ्वी।

प्रश्न 22.
पृथ्वी के कितने उपग्रह हैं?
उत्तर:
पृथ्वी का एक ही उपग्रह है।

प्रश्न 23.
जलीय ग्रह (Watery Planet) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी को।

प्रश्न 24.
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के कौन-से चरण में हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अंतिम चरण में हुई।

प्रश्न 25.
पृथ्वी अथवा चन्द्रमा में से आयु में कौन छोटा है?
उत्तर:
दोनों की आयु बराबर है क्योंकि दोनों की रचना एक ही समय हुई थी।

प्रश्न 26.
चंद्रमा की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 4.4 अरब वर्षों पहले।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-केन्द्रित (Geo-Centric) परिकल्पना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-केन्द्रित परिकल्पना का अर्थ है कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र है और सूर्य, चन्द्रमा तथा ग्रह इत्यादि आकाशीय पिण्ड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 2.
सूर्य-केन्द्रित (Helio-Centric) सौरमण्डल का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ यह है कि सौरमण्डल का केन्द्र सूर्य है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 3.
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह कितने हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह चार हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल।

प्रश्न 4.
सौरमण्डल में कुल कितने ग्रह हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
हमारे सौरमण्डल में 8 ग्रह हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण।

प्रश्न 5.
सौरमण्डल के बाहरी या जोवियन ग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बृहस्पति, शनि, अरुण (Uranus) तथा वरुण (Neptune)।

प्रश्न 6.
मन्दाकिनी क्या होती है? हमारी मन्दाकिनी का नाम बताइए।
उत्तर:
लाखों-करोड़ों तारों के कुन्ज को मन्दाकिनी कहा जाता है। हमारी मन्दाकिनी का नाम आकाशगंगा (Milky Way) है।

प्रश्न 7.
‘पोलर वन्डरिंग’ क्या होती है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना पोलर वन्डरिंग (Polar Wandering) कहलाता है।

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प्रश्न 8.
ग्रहाणु क्या होते हैं?
उत्तर:
एक परिकल्पना (चेम्बरलिन व मोल्टन) के अनुसार सूर्य तथा निकट से गुजरते तारे के टकराव के कारण गैसीय पदार्थ एक फ़िलेमेन्ट के रूप में पूर्व स्थित सूर्य से छिटककर जिहा आकार के पदार्थ छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गए। ये टुकड़े ठण्डे पिण्डों के रूप में उड़ते हुए सूर्य के चारों ओर कक्षाओं में घूमने लगे, इन्हें ही ग्रहाण (Planetisimols) कहा जाता है।

प्रश्न 9.
आदि तारा (Protostar) क्या है?
उत्तर:
तप्त गैसों के बादल से बनी नीहारिका में जब विस्फोट हुआ तो अभिनव तारे की उत्पत्ति हुई। इस तारे के सघन भाग अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से विखण्डित हो गए। सघन क्रोड विशाल तथा अधिक गरम होता गया। इसे आदि तारा कहते हैं जो अन्त में सूर्य बन गया।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के साथ ही हुई थी।
उत्तर:
चन्द्रमा से प्राप्त शैलों के नमूनों के काल निर्धारण (Radiomatric Dating) से ज्ञात होता है कि चन्द्रमा और पृथ्वी का जन्म एक-साथ हुआ था क्योंकि दोनों की रचना एक-जैसी चट्टानों से हुई है।

प्रश्न 11.
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पार्थिव और जोवियन ग्रहों में निम्नलिखित अंतर हैं-

पार्थिव ग्रहजोवियन ग्रह
1. पार्थिव का अर्थ है-पृथ्वी की तरह। ये ग्रह पृथ्वी की तरह ही शैलों एवं धातुओं से बने हैं।1. जोवियन का अर्थ है-बृहस्पति की तरह। ये ग्रह बृहस्पति की तरह पर्थिव ग्रहों से विशाल हैं।
2. इन ग्रहों को आंतरिक ग्रह कहा जाता है।2. इन ग्रहों को बाहरी ग्रह कहा जाता है।
3. ये ग्रह अधिकतर चट्टानी हैं।3. ये ग्रह अधिकतर गैसीय हैं।

प्रश्न 12.
नेबुला या नीहारिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
धूल तथा गैसों से बने एक विशालकाय बादल को नेबुला कहते हैं।

प्रश्न 13.
पृथ्वी का निर्माण कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
आज से लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में यह विशालकाय नेबुला भंवरदार गति से घूम रहा था। यह अपनी ही गुरुत्व शक्ति के कारण धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा तथा इसकी आकृति एक चपटी डिस्क के समान हो गई। एक बहुमान्य परिकल्पना के अनुसार, इस नेबुला के ठण्डे होने तथा सिकुड़ने से ही पृथ्वी का निर्माण हुआ।

प्रश्न 14.
अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी तीव्र गति से घूमती वस्तु के केन्द्र से बाहर की ओर उड़ने था छिटक जाने की प्रवृत्ति को पैदा करने वाला बल अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) कहलाता है। इसके विपरीत अभिकेन्द्री बल (Centripetal force) होता है, जिसमें वस्तु केन्द्र की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कोणीय संवेग के संरक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक पिण्ड ग्रहों की भंवरदार गति को नापने की इकाई कोणीय संवेग कहलाती है। यह वस्तु के आकार तथा उसकी घूमने की गति पर निर्भर करती है।
कोणीय संवेग = ग्रह का द्रव्यमान x परिक्रमण गति x कक्ष की त्रिज्या।
कोणीय संवेग के संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार, किसी भी पदार्थ के विभिन्न भागों के आपस में टकराने से उसकी परिभ्रमण गति प्रभावित नहीं होती तथा न ही गतिहीन पदार्थ में गति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी क्यों हैं?
उत्तर:
जब नीहारिका चपटी तश्तरी (Flat Disc) बनकर घूम रही थी तो उसमें अपकेन्द्री शक्ति बढ़ गई। अपकेन्द्री शक्ति के कारण नीहारिका एक जुट नहीं रह पाई और छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में बँट गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग धीरे-धीरे घूमता हुआ तारा बन गया जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुआ प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा। विकिरण के कारण इन पिण्डों का ऊपरी भाग ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा लेकिन केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इन्हीं पदार्थों से 8 ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी कारण सौर-मण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं; जैसे बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण। जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं; जै तारक ग्रह चट्टाना स रानामत और भारी है; जैसे बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल। इसी कारण सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी का विकास अनेक अवस्थाओं में से गुजरने के पश्चात् हुआ है। पृथ्वी गैस और द्रव अवस्था से होती हुई वर्तमान ठोस अवस्था में परिवर्तित हो गई। इसकी ऊपरी सतह पर हल्के पदार्थ ठण्डे होकर ठोस रूप धारण करते गए तथा भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में जमा हो गए। धीरे-धीरे पृथ्वी की ऊपरी सतह ठोस चट्टानों की बन गई। पृथ्वी के आन्तरिक भाग के ठण्डा होने तथा सिकुड़ने से पृथ्वी की बाह्य भू-पर्पटी पर सिलवटें पड़ गईं। इससे पर्वत श्रेणियों तथा द्रोणियों का निर्माण हुआ। उसी समय हल्की गैसों से वायुमण्डल का निर्माण हो गया। वायुमण्डल में गरम गैसीय पदार्थों के ठण्डा होने से बादल बने। इन बादलों से हजारों वर्षों तक वर्षा हुई और द्रोणियों में जल के भर जाने से महासागरों का निर्माण हो गया।

प्रश्न 4.
भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति गैस और धूल के एक धधकते हुए गोले के रूप में हुई थी। कुछ समय पश्चात् पृथ्वी ने ठण्डी होकर तरल रूप धारण कर लिया। इस तरल रूपी पृथ्वी के पदार्थों ने अपने घनत्व (Density) के अनुसार स्थिति ग्रहण कर ली। हल्के पदार्थ ऊपर की ओर आ गए और सबसे भारी पदार्थ पृथ्वी के भीतर चले गए। इस प्रकार तरल पृथ्वी भिन्न-भिन्न घनत्व के पदार्थों से बनी कई परतों में बँट गई। पृथ्वी की सबसे ऊपरी पपड़ी ठण्डी होकर कठोर बन गई। ठोस शैलों से बनी इस ऊपरी परत को हम भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पर्वत श्रेणियाँ, कटकें व द्रोणियाँ किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
भू-पृष्ठ के निर्माण के बाद उसका नीचे वाला भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इससे पृथ्वी की ऊपरी पट्टी अर्थात भू-पृष्ठ पर बल पड़ने लगे। धरती पर जो भाग ऊपर उठ गए वे पर्वत श्रेणियाँ व कटकें कहलाईं और जो भाग द्रोणियों बन गए वे द्रोणियाँ (Basins) कहलाईं।

प्रश्न 6.
पृथ्वी पर जीवन का विकास किस प्रकार आरम्भ हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी अपने जन्म से अब तक के लम्बे इतिहास में लगभग आधी अवधि तक उजाड़ पड़ी रही। इस पर जीवन के किसी भी रूप का अस्तित्व नहीं था। फिर पता नहीं किस प्रकार महासागरों में जीवन शुरू हुआ। कहा जाता है कि जल में किसी बड़े अणु ने किसी प्रकार अपने जैसा दूसरा अणु पैदा कर लिया। इस प्रकार पृथ्वी पर पौधों और प्राणियों के आश्चर्यजनक संसार के रूप में जीवन की शुरुआत हुई। पृथ्वी पर यह जीवन कैसे शुरू हआ- आज भी अस्पष्ट है। यह माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में कितना अन्तर है?
उत्तर:
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में लगभग बीस किलोमीटर का अन्तर है। पृथ्वी पर उच्चतम भाग हिमालय पर्वत श्रृंखला में माऊंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महासागरों में निम्नतम भाग प्रशान्त महासागर में मैरियाना च में चैलेंजर गर्त है जिसकी गहराई 11,022 मीटर है। इस तरह माऊंट एवरेस्ट तथा चैलेंजर गर्त की गहराई में अन्तर 8,848 + 11,022 = 19,870 मीटर है जो लगभग बीस किलोमीटर है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर नवीनतम वलित पर्वत हिमालय पर्वत, आल्पस पर्वत श्रृंखला तथा रॉकी-एण्डीज़ पर्वत श्रृंखला का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
कार्बोनिफेरस युग (लगभग 35 करोड़ वर्ष पूर्व) के अन्त में पेन्जिया का विभंजन आरम्भ हुआ। गुरुत्वाकर्षण बल, प्लवनशीलता बल (Force of Buoyancy) तथा ज्वारीय बल के कारण पेन्जिया का कुछ भाग पश्चिम की ओर तथा कुछ भाग भूमध्य रेखा की ओर खिसकने लगा। उत्तर के लारेशिया भू-खण्ड तथा दक्षिण के गोण्डवानालैण्ड के खिसकने से वे एक-दूसरे के निकट आए और उनके बीच जो टेथीज़ सागर था, वह संकरा होता चला गया तथा उसमें जमे अवसाद में बल पड़ने से आल्पस तथा हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम की ओर खिसकने से उनके पश्चिमी किनारों पर वलन पड़ गए। उनसे रॉकीज़ तथा एण्डीज़ पर्वत-शृंखलाओं की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 9.
ग्रहों की सूर्य से दूरी, घनत्व एवं अर्धव्यास की दृष्टि से तुलना करें।
उत्तर:

ग्रहसूर्य से दूरी(gm/cm³)घनत्वअर्धव्यास
बुध0.3875.440.383
शुक्र0.7235.2450.949
पृथ्वी1.0005.5171.000
मंगल1.5243.9450.533
बृहस्पति5.2031.3311.19
शनि9.5390.709.460
अरुण19.1821.174.11
वरुण30.0581.663.88

प्रश्न 10.
चन्द्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रमा की उत्पत्ति के बारे में दो सम्भावनाएँ व्यक्त की गई हैं-
पहली-चन्द्रमा सूर्य से गैसीय रूप में बाहर आया और बहुत ही छोटा होने के कारण पृथ्वी की आकर्षण शक्ति द्वारा अपनी ओर खींच लिया गया।

दूसरी-पृथ्वी पर एक विशाल उल्कापिण्ड गिरा और टक्कर के कारण पथ्वी का पदार्थ टटकर अलग हो गर उल्कापिण्ड गिरा, एक महान गर्त बना जिसमें पानी भर जाने से प्रशान्त महासागर की रचना हुई। वह भूखण्ड जो टूटकर अन्तरिक्ष में फैल गया, चन्द्रमा बन गया।

प्रश्न 11.
सूर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सौरमण्डल का प्रमुख तथा केन्द्रीय पिण्ड, एक बृहद् दीप्त गोला, जिसका व्यास 13,92,000 किलोमीटर है जो पृथ्वी के व्यास से 109 गुना है। सूर्य में हमारी पृथ्वी जैसे 13 लाख पिण्ड समा सकते हैं। विश्वास किया जाता है कि इसका आन्तरिक भाग तरल अवस्था में एवं बाह्य भाग गैस का आवरण है। सूर्य के धरातल का तापमान 6000°C है व इसके केन्द्र पर 15,000,00°C तापमान पाया जाता है।

प्रश्न 12.
अन्तरिक्ष से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तरिक्ष का न कोई आदि है और न ही अन्त। अन्तरिक्ष में छोटे व बड़े आकार की अरबों मन्दाकिनियाँ अथवा तारकीय समूह (Galaxies) हैं। प्रत्येक तारकीय समूह में लाखों सौरमण्डल हैं। अनुमान है कि अन्तरिक्ष में 2 अरब सौरमण्डल हैं। औसतन एक मन्दाकिनी का व्यास 30,000 प्रकाश वर्षों (Light years) की दूरी जितना होता है। दो मन्दाकिनियों के बीच 10 लाख प्रकाश वर्ष जितनी औसत दूरी होती है। हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा नामक मन्दाकिनी में है, जो अन्तरिक्ष में नगण्य-सा स्थान रखती है, जबकि इसमें सूर्य जैसे तीन खरब तारे होने का अनुमान है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की उत्पत्ति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऐसी मान्यता है कि लगभग 460 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में धूलकणों और गैसों से बना एक बहुत बड़ा बादल भंवरदार गति से घूम रहा था। भँवरदार गति या घूर्णन को कोणीय संवेग (Angular Momentum) नामक भौतिक राशि द्वारा मापा जाता है। कोणीय संवेग किसी पदार्थ के घूमने की गति और उसके आकार पर निर्भर करता है। आकाश में तेजी से घूमने के कारण इस गरम धधकते वायव्य महापिण्ड या नीहारिका (Nebula) का ऊपरी भाग विकिरण से ठण्डा होने लगा, किन्तु इसका भीतरी भाग गर्मी से धधकता रहा। नीहारिका का ऊपरी ठण्डा हुआ भाग अपने ही गुरुत्व बल से धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा।

सिकुड़ने के साथ ही नीहारिका की आकृति एक चपटी तश्तरी (Flat disc) के समान होती गई। गति विज्ञान (Dynamics) के नियमानुसार, सिकुड़ती हुई वस्तु का परिभ्रमण वेग बढ़ जाता है। अतः जैसे-जैसे नीहारिका सिकुड़कर छोटी होती गई वैसे-वैसे कोणीय संवेग को बनाए रखने के लिए उसके घूर्णन की गति और तेज होती गई। घूमने की गति बढ़ जाने के कारण नीहारिका (Nebula) में अपकेन्द्री शक्ति (Centrifugal force) बढ़ गई।

अपकेन्द्री शक्ति के कारण तेज़ी से घूमते हुए पिण्ड से पदार्थ के केन्द्र से बाहर छिटक जाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। इससे नीहारिका एकजुट नहीं रह पाई, बल्कि छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में विभक्त हो गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग बहुत धीरे-धीरे घूमता हुआ एक तारे का रूप धारण कर गया, जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुए पिण्डों में मूल नीहारिका के कोणीय संवेग का 98% भाग बचा हुआ था। इन पिण्डों से आठ ग्रहों का निर्माण हुआ। प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा तथा विकिरण के कारण उनका ऊपरी भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इस प्रक्रिया में उनका केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इसी कारण सौरमण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं, जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं। जिस प्रकार नीहारिका से ग्रहों की रचना हुई, उसी प्रकार ग्रहों से उपग्रह भी बने।

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए-

1. मुग़ल शब्द की उत्पत्ति हुई है
(A) मंगोल से
(B) मोगोल से
(C) मोगिल से
(D) मोगोर से
उत्तर:
(A) मंगोल से

2. मुगलों की मातृभाषा क्या थी?
(A) तुर्की
(B) अरबी
(C) फारसी
(D) उर्दू
उत्तर:
(C) फारसी

3. बाबर ने भारत पर आक्रमण किया
(A) 1490 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1497 ई० में
(D) 1504 ई० में
उत्तर:
(B) 1526 ई० में

4. ‘तुक-ए-बाबरी’ का लेखक कौन है?
(A) बाबर
(B) जहाँगीर
(C) अबुल फज़्ल
(D) मामुरी
उत्तर:
(A) बाबर

5. बाबर का उत्तराधिकारी कौन था?
(A) हुमायूँ
(B) अकबर
(C) अस्करी
(D) हिन्दाल
उत्तर:
(A) हुमायूँ

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

6. अकबर की पहली सफलता थी
(A) पानीपत की पहली लड़ाई
(B) पानीपत की दूसरी लड़ाई
(C) पानीपत की तीसरी लड़ाई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पानीपत की दूसरी लड़ाई

7. राजकुमार सलीम ने शासक बनने के बाद अपना नाम रखा
(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) आलमगीर
उत्तर:
(B) जहाँगीर

8. जहाँगीर ने न्याय की जंजीर किस किले में लगवाई ?
(A) आगरा
(B) दिल्ली
(C) लाहौर
(D) अजमेर
उत्तर:
(A) आगरा

9. किस मुगल शासक को अपने अन्तिम दिनों में अपने पुत्र की कैद में रहना पड़ा?
(A) जहाँगीर को
(B) औरंगजेब को
(C) बहादुरशाह द्वितीय को
(D) शाहजहाँ को
उत्तर:
(D) शाहजहाँ को

10. किस मुगल शासक ने अपने पिता के रहते हुए उत्तराधिकार के युद्ध में सफलता पाई ?
(A) जहाँगीर ने
(B) शाहजहाँ ने
(C) औरंगजेब ने
(D) फरुखसियर ने
उत्तर:
(C) औरंगजेब ने

11. उत्तर मुगलकाल में सैयद बन्धुओं को लोग किस नाम से पुकारते थे ?
(A) वफादार सेवक
(B) राजा बनाने वाले
(C) मित्र मण्डली
(D) देशद्रोही
उत्तर:
(B) राजा बनाने वाले

12. इतिवृत्त किस अंग्रेजी शब्द का हिन्दी अनुवाद है ?
(A) डाक्यूमेन्ट्स
(B) क्रॉनिकल्स
(C) ऑफिशियल लेटर
(D) फरमानज
उत्तर:
(B) क्रॉनिकल्स

13. निम्नलिखित में से कौन-सी लड़ाई बाबर ने नहीं लड़ी ?
(A) कन्वाह का युद्ध
(B) चन्देरी का युद्ध
(C) घाघरा का युद्ध
(D) पानीपत का दूसरा युद्ध
उत्तर:
(A) कन्वाह का युद्ध

14. बाबरनामा किस भाषा में लिखा गया है ?
(A) अरबी
(B) फारसी
(C) उर्दू
(D) तुर्की
उत्तर:
(D) तुर्की

15. मुगलकाल में निम्नलिखित पुस्तक का अनुवाद नहीं हुआ
(A) बाबरनामा
(B) महाभारत
(C) रामायण
(D) हुमायूँनामा
उत्तर:
(D) हुमायूँनामा

16. मुगलकाल में पांडुलिपियों का रचनास्थल कहलाता था
(A) शाही दरबार
(B) कारखाना
(C) दीवान-ए-आम
(D) किताबखाना
उत्तर:
(D) किताबखाना

17. किस मुगल शासक ने गैर-मुसलमानों पर दोबारा जजिया कर लगाया?
(A) हुमायूँ
(B) अकबर
(C) शाहजहाँ
(D) औरंगजेब
उत्तर:
(D) औरंगजेब

18. फतेहपुर सीकरी किस मुगल बादशाह की नई राजधानी थी?
(A) बाबर
(B) हुमायूँ
(C) शेरशाह सूरी
(D) अकबर
उत्तर:
(D) अकबर

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

19. अकबर ने ‘जरीन कलम’ सोने की कलम का पुरस्कार किसे दिया ?
(A) अबुल फज़ल को
(B) बदायूँनी को
(C) मुहम्मद हुसैन को
(D) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(C) मुहम्मद हुसैन को

20. इतिवृत्तों की चित्रकारी का उद्देश्य था
(A) पुस्तक की सुन्दरता
(B) शासक व राज्य की पहचान प्रदर्शन
(C) जनता को सन्देश देना।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. इस्लाम की चित्रकारी के बारे में धारणा है
(A) इसका विकास होना चाहिए
(B) खुदा के सृजन के अधिकार को चुनौती है
(C) चित्रकारी करने वाला व्यक्ति अपराधी है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) खुदा के सृजन के अधिकार को चुनौती है

22. ईरान का वह दरबारी चित्रकार कौन था जिसको पूरे इस्लाम जगत से मान्यता मिली ? वह बाद में भारत आ गया।
(A) विहजाद
(B) अब्दुस समद
(C) मीर सैयद अली
(D) बसावन
उत्तर:
(A) विहजाद

23. अबुल फज़ल के बारे में सत्य है
(A) वह शेख मुबारक नागौरी का पुत्र था
(B) वह फैजी का भाई था
(C) वह अरबी, फारसी, यूनानी व तुर्की का ज्ञाता था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. अबुल फज़ल की हत्या करवाई थी
(A) अकबर ने
(B) सलीम (जहाँगीर ने)
(C) मानसिंह ने
(D) फैजी ने
उत्तर:
(B) सलीम (जहाँगीर ने)

25. अब्दुल हमीद लाहौरी की प्रमुख रचना कौन-सी थी?
(A) अकबरनामा
(B) आइन-ए-अकबरी
(C) बादशाहनामा
(D) आलमगीरनामा
उत्तर:
(C) बादशाहनामा

26. मुगलकाल का कौन-सा इतिवृत्त अभी तक भी फारसी से अनुवादित नहीं हो पाया है ?
(A) अकबरनामा
(B) जहाँगीरनामा
(C) बादशाहनामा
(D) आलमगीरनामा
उत्तर:
(C) बादशाहनामा

27. “हुमायूँनामा” का लेखक कौन था?
(A) अबुल फजल
(B) अब्दुल हमीद
(C) गुलबदन बेगम
(D) नूरजहाँ
उत्तर:
(C) गुलबदन बेगम

28. जज़िया किस मुगल शासक ने हटाया था?
(A) औरंगजेब ने
(B) अकबर ने
(C) शाहजहाँ ने
(D) बाबर ने
उत्तर:
(B) अकबर ने

29. हुमायूँ की पत्नी का नाम था
(A) सुल्तान जहाँ बेगम
(B) जहाँआरा
(C) गुलबदन बेगम
(D) नादिरा
उत्तर:
(D) नादिरा

30. गैर-इस्लामी जनता का विश्वास पाने के लिए अकबर ने कदम उठाया
(A) तीर्थयात्रा व जजिया कर की समाप्ति
(B) सम्मानपूर्वक वैवाहिक संबंध
(C) बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की मनाही
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. अकबर ने इस स्थान को राजधानी के रूप में प्रयोग नहीं किया
(A) अजमेर
(B) आगरा
(C) दिल्ली
(D) फतेहपुर सीकरी
उत्तर:
(A) अजमेर

32. अकबर ने लाल किले का निर्माण करवाया
(A) दिल्ली में
(B) लाहौर में
(C) आगरा में
(D) इलाहाबाद मे
उत्तर:
(C) आगरा में

33. अकबर के पिता का नाम था
(A) बाबर
(B) हुमायूँ
(C) औरंगजेब
(D) जहाँगीर
उत्तर:
(B) हुमायूँ

34. अकबर ने फतेहपुर सीकरी में किस विश्व-प्रसिद्ध इमारत का निर्माण करवाया ?
(A) शेख सलीम चिश्ती की दरगाह
(B) बुलन्द दरवाजा
(C) बीरबल का महल
(D) तानसेन का भवन
उत्तर:
(B) बुलन्द दरवाजा

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

35. शाहजहाँ ने दिल्ली में मुख्य रूप से बनवाया
(A) जामा मस्जिद
(B) लाल किला
(C) चाँदनी चौक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. औरंगजेब की मृत्यु हुई
(A) दिल्ली में
(B) आगरा में
(C) औरंगाबाद में
(D) लाहौर में
उत्तर:
(C) औरंगाबाद में

37. मुगल दरबार के शिष्टाचार में शामिल था
(A) किसी व्यक्ति के खड़े होने की जगह
(B) अभिवादन का तरीका
(C) शासक से मिलने के लिए नजराना भेंट करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

38. मुगलकाल में कौन-सी एकमात्र महिला झरोखा दर्शन देती थी ?
(A) गुलबदन बेगम
(B) नूरजहाँ
(C) मुमताज महल
(D) जहाँआरा
उत्तर:
(B) नूरजहाँ

39. मुगलकाल में सबसे खर्चीला दरबारी उत्सव था
(A) शब-ए-बारात
(B) नौरोज
(C) शासक का जन्म दिन
(D) ईद
उत्तर:
(C) शासक का जन्म दिन

40. सिंहासनों के निर्माण पर सबसे अधिक धन खर्च किसने किया ?
(A) बाबर ने
(B) अकबर ने
(C) जहाँगीर ने
(D) शाहजहाँ ने
उत्तर:
(D) शाहजहाँ ने

41. अकबर ने तीर्थयात्रा कर कब समाप्त किया?
(A) 1563 ई० में
(B) 1564 ई० में
(C) 1565 ई० में
(D) 1569 ई० में
उत्तर:
(A) 1563 ई० में

42. अकबर ने किस नए धर्म की स्थापना की ?
(A) दीन-ए-इलाही
(B) सूफी मत
(C) सुलह-ए-कुल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) दीन-ए-इलाही

43. हरम में सबसे उच्च स्थान प्राप्त महिला को कहा जाता था
(A) अगहा
(B) अगाचा
(C) बेगम
(D) पादशाह बेगम
उत्तर:
(D) पादशाह बेगम

44. नूरजहाँ के अतिरिक्त कौन-सी महिला ऐसी थी जिसने राजनीति में खूब हस्तक्षेप किया?
(A) गुलबदन बेगम
(B) जहाँआरा
(C) मुमताज महल
(D) रोशनआरा
उत्तर:
(B) जहाँआरा

45. मुगलकालीन नौकरशाही में शामिल नहीं थे
(A) दरबारी
(B) मनसबदार
(C) जमींदार
(D) जागीरदार
उत्तर:
(C) जमींदार

46. मुगल शासक नौकरशाहों पर नियंत्रण रखते थे
(A) सख्त व्यवहार द्वारा
(B) स्थानांतरण से
(C) मृत्यु के बाद सम्पत्ति जब्त करके
(D) उपर्युक्त सभी से
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी से

47. किस मुगल शासक के काल में प्रांतों की संख्या सबसे अधिक थी ?
(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) औरंगजेब
उत्तर:
(C) शाहजहाँ

48. ईरानी शासकों के लिए सामान्य रूप से शब्द प्रयोग किया जाता था
(A) सफावी
(B) तुरानी
(C) उजबेग
(D) मंगोलियन
उत्तर:
(A) सफावी

49. मुगलों व ईरानी शासकों के बीच टकराव का मुख्य कारण था
(A) काबुल पर कब्जा
(B) कन्धार पर कब्जा
(C) हैरात का शहर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) कन्धार पर कब्जा

50. थल मार्ग से व्यापार के लिए किस समीपवर्ती राज्य की मुग़लों को आवश्यकता थी ?
(A) चीन
(B) बर्मा
(C) ऑटोमन
(D) ईरान
उत्तर:
(C) ऑटोमन

51. मुगलों के लिए ऑटोमन (तुर्की) साम्राज्य का धार्मिक महत्त्व था
(A) मक्का व मदीना के कारण
(B) धर्म युद्धों के कारण
(C) धर्म की स्वीकृति के लिए
(D) खलीफा के कारण
उत्तर:
(A) मक्का व मदीना के कारण

52. अकबर के काल में जेसुइट मिशन आया
(A) 1580-82 ई० में
(B) 1591 ई० में
(C) 1595 ई० में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

53. जेसुइट का सबसे प्रमुख प्रतिनिधि मण्डल था
(A) एक्या वीणा का
(B) मान्सेरेट का
(C) राल्फ फिन्च का
(D) उपरोक्त सभी का
उत्तर:
(B) मान्सेरेट का

54. मुगलकाल में प्रधानमंत्री को क्या कहा जाता था ?
(A) खानखाना
(B) दीवान
(C) वकील
(D) सदर
उत्तर:
(C) वकील

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

55. मुगलकाल में झरोखा दर्शन का अधिकार किसको था ?
(A) काज़ी को
(B) वज़ीर को
(C) सम्राट को
(D) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(C) सम्राट को

56. मुगलकाल में शाही घरानों के घरेलू कार्यों का मंत्री था
(A) खान-ए-सामा
(B) मीर-ए-बहर
(C) मीरबख्शी
(D) नाज़िम
उत्तर:
(A) खान-ए-सामा

57. अकबर ने शासन प्रबन्ध में किस शासक का अनुकरण किया था ?
(A) बहलोल लोधी
(B) शेरशाह सूरी
(C) इब्राहिम लोधी
(D) सिकन्दर लोधी
उत्तर:
(B) शेरशाह सूरी

58. निम्नलिखित में से जहाँगीर के समय का नया मुगल प्रान्त था/थे
(A) उड़ीसा
(B) सिन्ध
(C) कश्मीर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

59. ‘बादशाहनामा’ का लेखक कौन था ?
(A) गुलबदन बेगम
(B) अब्दुल हमीद लाहौरी
(C) अबुल फज़ल
(D) इब्न-बतूता
उत्तर:
(B) अब्दुल हमीद लाहौरी

60. मुगलकाल में परगने का मुखिया कौन होता था ?
(A) आमिल
(B) मीर-ए-सदर
(C) दीवान-ए-आला
(D) मीर-ए-बहर
उत्तर:
(A) आमिल

61. अन्तिम मुगल बादशाह कौन था?
(A) औरंगजेब
(B) बहादुरशाह
(C) अकबर द्वितीय
(D) बहादुरशाह जफर द्वितीय
उत्तर:
(D) बहादुरशाह जफ़र द्वितीय

62. बुलंद दरवाज़ा का निर्माण फतेहपुर सीकरी में किसने कराया?
(A) अकबर ने
(B) शाहजहाँ ने
(C) औरंगजेब ने
(D) बाबर ने
उत्तर:
(A) अकबर ने

63. अकबर ने सभी धर्मों का सार ग्रहण कर किस नए मत की नींव डाली ?
(A) सूफी मत की
(B) भक्ति मत की
(C) दीन-ए-इलाही मत की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दीन-ए-इलाही मत की

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
भारत में मुग़ल साम्राजय की स्थापना 1526 ई० में बाबर ने की थी।

प्रश्न 2.
मुग़ल शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई ?
उत्तर:
मुग़ल शब्द की उत्पत्ति मंगोल शब्द से हुई।

प्रश्न 3.
मुगल शासक स्वयं को क्या कहते थे ?
उत्तर:
मुगल शासक स्वयं को तैमूरी वंशज कहते थे।

प्रश्न 4.
बाबर का जन्म स्थान कौन-सा है ?
उत्तर:
फरगाना बाबर का जन्म स्थान है।

प्रश्न 5.
हुमायूँ को भारत से बाहर किसने निकाला ?
उत्तर:
हमा को भारत से बाहर शेरशाह सरी ने निकाला।

प्रश्न 6.
अकबर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर:
अकबर का जन्म 1542 ई० में सिन्ध के पास अमरकोट नामक स्थान पर हुआ।

प्रश्न 7.
हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर कहाँ पर था ?
उत्तर:
हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर पंजाब के कलानौर नामक स्थान पर था।

प्रश्न 8.
अकबर ने तीर्थ यात्रा कर व जजिया कर कब हटाया ?
उत्तर:
अकबर ने तीर्थ यात्रा कर 1563 ई० तथा जजिया कर 1564 ई० में हटाया।

प्रश्न 9.
1611 ई० में शादी के बाद जहाँगीर ने मेहरुनिसा को क्या नाम दिया ?
उत्तर:
1611 ई० में शादी के बाद जहाँगीर ने मेहरुनिसा को ‘नूरजहाँ’ नाम दिया।

प्रश्न 10.
खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि किसने और क्यों दी ?
उत्तर:
खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि जहाँगीर ने मेवाड़-विजय के उपलक्ष्य में दी।

प्रश्न 11.
औरंगजेब का शासन काल कब-से-कब तक था ?
उत्तर:
औरंगज़ेब का शासन काल 1658 से 1707 ई० तक रहा।

प्रश्न 12.
उत्तर मुगलकाल का समय क्या था ?
उत्तर:
उत्तर मुगलकाल 1707 से 1857 ई० तक था।

प्रश्न 13.
नादिरशाह ने भारत पर कब आक्रमण किया तथा किसे पराजित किया ?
उत्तर:
नादिरशाह ने भारत पर 1739 ई० में आक्रमण कर मुहम्मदशाह को पराजित किया।

प्रश्न 14.
अन्तिम मुगल सम्राट की मृत्यु कब व कहाँ हुई ?
उत्तर:
अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की मृत्यु 1862 ई० में रंगून. में हुई।

प्रश्न 15.
मुगलकाल में इतिवृत्त कहाँ रचे गए ?
उत्तर:
मुगलकाल में इतिवृत्त शाही दरबार के संरक्षण में ‘किताबखाना’ में रचे गए।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 16.
हुमायूँनामा किसकी रचना है ?
उत्तर:
हुमायूँनामा गुलबदन बेगम की रचना है।

प्रश्न 17.
अकबरनामा का लेखक कौन था ?
उत्तर:
अबुल फज़्ल अकबरनामा का लेखक था।

प्रश्न 18.
शाहजहाँनामा किसकी रचना है ?
उत्तर:
शाहजहाँनामा अब्दुल हमीद लाहौरी की रचना है।

प्रश्न 19.
मुहम्मद काजिम की रचना का नाम लिखें।
उत्तर:
मुहम्मद काजिम की रचना ‘आलमगीरनामा’ है।

प्रश्न 20.
तुक-ए-जहाँगीरी या जहाँगीरनामा का लेखक कौन है ?
उत्तर:
जहाँगीरनामा का लेखक स्वयं जहाँगीर है।

प्रश्न 21.
मुगलकाल में दरबारी भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
मुगलकाल में दरबार की भाषा फारसी थी।

प्रश्न 22.
महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद किस नाम से हुआ ?
उत्तर:
महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद ‘रज्मनामा’ के नाम से हुआ।

प्रश्न 23.
पाण्डुलिपियों का लेखन स्थल क्या कहलाता था ?
उत्तर:
पाण्डुलिपियों का लेखन स्थल ‘किताबखाना’ कहलाता था।

प्रश्न 24.
अकबर के समय में लेखन की सर्वाधिक पसंद की जाने वाली शैली का क्या नाम था ?
उत्तर:
अकबर के समय में लेखन की सर्वाधिक पसंद की जाने वाली शैली ‘नस्तलिक’ कहलाती थी।

प्रश्न 25.
अकबर ने मुहम्मद हुसैन को क्या खिताब दिया था ?
उत्तर:
अकबर ने मुहम्मद हुसैन को ‘जरीन कलम (सोने की कलम)’ का खिताब दिया।

प्रश्न 26.
ईरानी दरबार का सबसे अधिक चर्चित चित्रकार कौन था ?
उत्तर:
ईरानी दरबार का सबसे अधिक चर्चित चित्रकार विहजाद था।

प्रश्न 27.
अकबरनामा व बादशाहनामा में लगभग कितने चित्र हैं ?
उत्तर:
इन दोनों में से प्रत्येक में लगभग 150 से अधिक चित्र हैं।

प्रश्न 28.
अबुल फज्ल ने अकबरनामा कब लिखा ?
उत्तर:
अबुल फज़्ल ने अकबरनामा 1589 से 1602 के बीच लिखा।

प्रश्न 29.
मुगलकाल के इतिवृत्तों के अनुवाद का कार्य किस संस्थान द्वारा करवाया गया ?
उत्तर:
मुगलकाल के इतिवृत्तों के अनुवाद का कार्य एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (1784) द्वारा करवाया गया।

प्रश्न 30.
अकबरनामा का सबसे अच्छा अंग्रेजी अनुवाद किसका माना जाता है ?
उत्तर:
अकबरनामा का सबसे अच्छा अंग्रेजी अनुवाद हेनरी बेवरिज का माना जाता है।

प्रश्न 31.
मुगल राज्य को दैवीय राज्य सर्वप्रथम किसने वर्णित किया ?
उत्तर:
मुग़ल राज्य को दैवीय राज्य सर्वप्रथम अबुल फज्ल ने वर्णित किया।

प्रश्न 32.
चित्रकारों ने मुग़लों के राज्य को दैवीय राज्य कैसे स्पष्ट किया ?
उत्तर:
चित्रकारों ने मुग़ल शासकों के चेहरे को विशेष प्रभामंडल में दिखाया जैसे देवताओं को दिखाते हैं।

प्रश्न 33.
अकबर ने अपनी सारी जनता को एक जैसा स्वीकार करते हुए कौन-सी नीति अपनाई ?
उत्तर:
अकबर ने सभी के साथ मतभेद न करते हुए ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनाई।

प्रश्न 34.
‘न्याय की जंजीर’ किस शासक ने लगवाई ?
उत्तर:
‘न्याय की जंजीर’ जहाँगीर ने लगवाई।

प्रश्न 35.
आगरा शहर की नींव कब व किसने रखी ?
उत्तर:
आगरा शहर की नींव सिकंदर लोधी ने 1504 ई० में रखी।

प्रश्न 36.
आगरा का लालकिला किसने बनवाया ?
उत्तर:
आगरा का लालकिला अकबर ने बनवाया।

प्रश्न 37.
फतेहपुर सीकरी मुग़लों की राजधानी कब रही ?
उत्तर:
फतेहपुर सीकरी मुग़लों की राजधानी 1570 ई० से 1585 ई० तक रही।

प्रश्न 38.
जहाँगीर की मनपसंद जगह कौन-सी थी ?
उत्तर:
जहाँगीर की मनपसंद जगह लाहौर थी।

प्रश्न 39.
शाहजहाँ की दिल्ली को क्या नाम दिया गया?
उत्तर:
शाहजहाँ की दिल्ली को शाहजहाँनाबाद का नाम दिया गया।

प्रश्न 40.
शाहजहाँ के काल में अभिवादन के कौन-से नए तरीके जुड़े ?
उत्तर:
शाहजहाँ के काल में अभिवादन के नए तरीके ‘तसलीम’ व ‘जमींबोस’ जुड़े।

प्रश्न 41.
मुगल शासकों द्वारा प्रातःकाल जनता को दर्शन देने की प्रथा क्या कहलाती थी ?
उत्तर:
मुगल शासकों द्वारा प्रातःकाल जनता को दर्शन देने की प्रथा ‘झरोखा’ कहलाती थी।

प्रश्न 42.
मुगलशाही दरबार में कौन-सा ईरानी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था ?
उत्तर:
मुगलशाही दरबार में ‘नौरोज’ नामक ईरानी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था।

प्रश्न 43.
मयूर सिंहासन को कौन लूटकर ले गया ?
उत्तर:
मयूर सिंहासन को नादिरशाह लूटकर ले गया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 44.
शाही परिवार के अतिरिक्त अन्य लोगों के लिए मुग़ल दरबार की सर्वोच्च पदवी कौन-सी थी ?
उत्तर:
शाही परिवार के अतिरिक्त मुग़ल दरबार की सर्वोच्च पदवी ‘आसफखां’ की थी।

प्रश्न 45.
मुगल शासकों से मिलने के लिए दी जाने वाली भेंट क्या कहलाती थी ?
उत्तर:
मुग़ल शासकों से मिलने के लिए दी जाने वाली भेंट ‘नज़राना’ कहलाती थी।

प्रश्न 46.
‘हरम’ का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
हरम का शाब्दिक अर्थ है ‘पवित्र स्थान’

प्रश्न 47.
मुगलकाल में राजनीति में महिलाओं की शुरुआत किससे हुई ?
उत्तर:
मुगलकाल में राजनीति में महिलाओं की शुरुआत नूरजहाँ से हुई।

प्रश्न 48.
किस राजपूत शासक ने मुगलों से वैवाहिक संबंधों की शुरुआत की ?
उत्तर:
आमेर के राजा बिहारी मल (भारमल) ने मुग़लों से वैवाहिक संबंधों की शुरुआत की।

प्रश्न 49.
मुगलकाल में दरबार की कार्रवाई को किस नाम से दर्ज किया जाता था ?
उत्तर:
मुगलकाल में दरबारी कार्रवाई ‘अखबारात-ए-दरबार-ए-मुअल्ला’ के नाम से दर्ज की जाती थी।

प्रश्न 50.
मुगलकाल में प्रांत को क्या कहते थे ? इसका मुखिया कौन होता था ?
उत्तर:
मुगलकाल में प्रांत को सूबा कहते थे। सूबे का मुखिया सूबेदार कहलाता था।

प्रश्न 51.
‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर:
‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना 1582 ई० में की गई थी।

प्रश्न 52.
मुगलों व ईरान के बीच झगड़े की जड़ कौन-सा शहर था ?
उत्तर:
मुगलों व ईरान के बीच झगड़े की जड़ कन्धार शहर था।

प्रश्न 53.
कन्धार मुगलों के हाथ से अन्तिम बार कब निकल गया ?
उत्तर:
कन्धार अन्तिम बार मुगलों के हाथ से 1649 ई० में निकल गया।

प्रश्न 54.
मुगलकाल में ‘मक्का व मदीना’ किस साम्राज्य का हिस्सा थे ?
उत्तर:
मुगलकाल में मक्का व मदीना तुर्की साम्राज्य ‘ऑटोमन साम्राज्य’ का हिस्सा थे।

प्रश्न 55.
अकबर के दरबार में पहला जेसुइट मिशन कब आया ?
उत्तर:
अकबर के दरबार में पहला जेसुइट मिशन 1580-82 ई० में आया।

प्रश्न 56.
अकबर ने अपने बेटे मुराद का शिक्षक किसे नियुक्त किया ?
उत्तर:
अकबर ने अपने बेटे मुराद का शिक्षक फादर मान्सेरेट को नियुक्त किया।

प्रश्न 57.
अकबर ने इबादतखाना की स्थापना कब व कहाँ की ?
उत्तर:
अकबर ने इबादतखाना की स्थापना 1575 ई० में फतेहपुर सीकरी में की।

प्रश्न 58.
मनसबदारों की भर्ती कौन करता था ?
उत्तर:
मनसबदारों की भर्ती स्वयं सम्राट करता था।

प्रश्न 59.
मनसबदार की भर्ती सम्बन्धी रिकॉर्ड को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
उसे हकीकत कहा जाता था।

प्रश्न 60.
मनसबदारों की कितनी श्रेणियाँ थीं ?
उत्तर:
अबुल फल के अनुसार मनसबदारों की 60 श्रेणियाँ थीं, परन्तु वास्तविक श्रेणियाँ 33-34 से ऊपर नहीं थीं।

प्रश्न 61.
अकबर के समय में भूमि को मापने के लिए किस उपकरण का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
अकबर के समय में भूमि को मापने के लिए 33 इंच का गज प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 62.
मनसबदारी प्रणाली किसने शुरू की थी ?
उत्तर:
मनसबदारी प्रणाली अकबर ने आरम्भ की थी।

प्रश्न 63. सबसे बड़ा मनसबदार पद कितने सैनिकों पर था ?
उत्तर:
सबसे बड़ा मनसबदार पद 10000 सैनिकों पर था।

प्रश्न 64.
किन सम्राटों की चित्रकला में रुचि थी ?
उत्तर:
अकबर तथा जहाँगीर की चित्रकला में रुचि थी।

प्रश्न 65.
बाबर ने हैरात में क्या देखा था ?
उत्तर:
बाबर ने हैरात में ईरानी चित्रकला के नमूने देखे थे।

प्रश्न 66.
हमजानामा को चित्रित करने का काम कब पूरा हुआ था ?
उत्तर:
हमजानामा को चित्रित करने का काम अकबर के समय में पूरा हुआ था।

प्रश्न 67.
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था किसने नियन्त्रित की?
उत्तर:
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था राजा टोडरमल ने नियन्त्रित की।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जहाँगीर कौन था?
उत्तर:
अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम जहाँगीर के नाम से शासक बना । उसने अकबर की नीतियों को आगे बढ़ाया। उसने अपने जीवन का अधिकतर समय लाहौर में बिताया। 1611 ई० में उसने मेहरूनिसा (बाद में नूरजहाँ) से शादी की। नूरजहाँ शासन में इतनी शक्तिशाली हो गई कि उसने शासन व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। विजयों की दृष्टि से जहाँगीर मेवाड़ व कांगड़ा जैसे क्षेत्रों को जीत पाया, जिनको प्राप्त करने में अकबर को सफलता नहीं मिली थी परन्तु 1622 ई० में वह कन्धार को खो बैठा।

उसके काल में उसके बेटे खुर्रम ने विद्रोह कर दिया जिससे वह काफी कमजोर हुआ। 1627 ई० में लाहौर में उसकी मृत्यु हो गई। जहाँगीर अपनी न्याय की जंजीर के कारण काफी विख्यात हुआ जो उसने आगरे के किले में लगवाई थी जिसको कोई भी फरियादी खींचकर न्याय की माँग कर सकता था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 2.
शाहजहाँ कौन था?
उत्तर:
जहाँगीर के बाद उसका पुत्र खुर्रम, शाहजहाँ के नाम से गद्दी पर बैठा। खुर्रम ने अपने पूर्वजों की नीति का अनुसरण किया। अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने ताजमहल का निर्माण प्रारंभ करवाया। दक्षिण के बारे में उसने बीजापुर, गोलकुण्डा व अहमदनगर के सन्दर्भ में सन्तुलित नीति अपनाई। ईरान के शासक से वह 1638 ई० में कैन्धार जीतने में सफल रहा। 1640-45 ई० तक उसने मध्य एशिया की विजय का अभियान चलाया जिसको वह जीत तो पाया परन्तु यह विजय अस्थायी रही।

इसके बाद ईरानी शासक ने 1649 ई० में कन्धार पर फिर कब्जा कर लिया जिसको औरंगजेब के दो तथा दारा शिकोह के एक अभियान द्वारा जीता नहीं जा सका। उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध था जो 1657-58 ई० में लड़ा गया। इसमें उसके तीन पुत्र दारा शिकोह, मुराद व शुजा मारे गए तथा औरंगजेब सफल रहा। उसने 1658 ई० में शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर जेल में डाल दिया। इस तरह शाहजहाँ की मृत्यु 7 वर्ष जेल में रहने के बाद हुई।

प्रश्न 3.
मुगलों की हरम व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
शाही परिवार के हरम में महिलाओं की प्रमुखता थी। इसमें सभी महिलाएँ बराबर की तथा एक-जैसी हैसियत वाली नहीं थीं। हरम में प्रमुख महिलाओं को मोटे तौर पर तीन नामों से जाना जाता था।

  • बेगम-शाही परिवार में सबसे ऊँचा स्थान बेगमों का था। बेगम प्रायः कुलीन परिवार से संबंधित होती थी।
  • अगहा-ये सामान्य कुलीन परिवारों से थीं। ये भी शादी की परंपरा के बाद ही हरम में आती थीं।
  • अगाचा-हरम में इनका दर्जा तीसरा था। इन्हें उपपत्नियों का दर्जा प्राप्त था। इन्हें इनके खर्चे के अनुरूप मासिक भत्ता व दर्जे के अनुरूप उपहार इत्यादि मिलते थे।

प्रश्न 4.
इतिवृत्त के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
मुगलकाल में रचे गए इतिवृत्त बहुत सोची-समझी नीति का उद्देश्य थे। विभिन्न इतिहासकारों व विद्वानों ने इस बारे में अपने-अपने मतों की अभिव्यक्ति की है जिनमें से ये पक्ष उभरकर सामने आते हैं

  • इतिवृत्तों के माध्यम से मुग़ल शासक अपनी प्रजा के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि बनाना चाहते थे।
  • इतिवृत्तों के वृत्तांत के माध्यम से शासक उन लोगों को संदेश देना चाहते थे जिन्होंने राज्य का विरोध किया था तथा भविष्य में भी कर सकते थे। उन्हें यह बताना चाहते थे कि यह राज्य बहुत शक्तिशाली है तथा उनका विद्रोह कभी सफल नहीं होगा।
  • इतिवृत्तों के माध्यम से शासक अपने राज्य के विवरणों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते थे।

प्रश्न 5.
अकबरनामा की विषयवस्तु पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
अकबरनामा में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया है। लेखक ने किसी घटना का पूरा विवरण प्राप्त करने के लिए संबंधित पक्षों की जानकारी भी दी है। उसने अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक व सांस्कृतिक पक्षों को स्पष्ट रूप से लिखा है। उसने अपने वर्णन में समय व तिथियों के अनुरूप परिवर्तन को अधिक महत्त्व नहीं दिया।

उसने अकबर के साम्राज्य में रहने वाले मुस्लिमों, हिंदुओं, जैनों व बौद्धों की जीवन-शैली, परम्पराओं तथा आपसी तालमेल को काफी महत्त्व दिया है। उसने अकबर के साम्राज्य को मिश्रित संस्कृति के केन्द्र के रूप में प्रस्तुत किया है।

अबुल फल का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उसे अपना साप्ताहिक लेखन दरबार में पढ़ना होता था। इसलिए उसने अलंकृत भाषा को महत्त्व दिया। इस भाषा में लय व कथन शैली विशेष रूप से उभरकर सामने आई है। क्षेत्र-विशेष का वर्णन करते हुए उसने उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया है। उसके इस प्रयास से भारतीय फारसी शैली का विकास हुआ।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुलह-ए-कुल की नीति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अकबर ने सुलह-ए-कुल (Absolute peace) की नीति अर्थात् सभी के साथ सुलह (किसी से मतभेद नहीं) की नीति अपनाई। यह अकबर की सोची-समझी नीति थी। इसे बाद के शासकों ने भी इसे अपनाया। औरंगज़ेब ने इस नीति में बदलाव करने के प्रयास किए तो परिणाम घातक रहे। …

(i) नीति का अर्थ-मुगल कालीन इतिवृत्तों ने इस नीति को अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त किया है। हाँ, इतना सभी मानते हैं कि मुगल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न जातियों व समुदायों के लोग रहते थे। शासक इस साम्राज्य में शान्ति व स्थायित्व का स्रोत था। इसलिए वह सभी नृजातीय समूहों व समुदायों से ऊपर था तथा वह इन सभी वर्गों के बीच मध्यस्थता करता था। क्योंकि न्याय व शान्ति का मार्ग तालमेल से निकलता था। अतः यह नीति मुगल शासकों व साम्राज्य के लिए आदर्श बनी। अबुल फज़्ल, सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। उसके अनुसार सुलह-ए-कुल इस सिद्धांत पर आधारित था कि राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुंचे तथा प्रजा शांति से रहे।

(ii) नीति को व्यवहार में लाना-मुग़ल शासक विशेषकर अकबर ने धर्म व राजनीति दोनों के संबंधों को समझने का प्रयास किया। उसने इनकी सीमा व महत्त्व को समझा। इस समझ के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरी तरह धर्म का त्याग संभव नहीं है लेकिन धर्म की कट्टरता को त्यागकर अवश्य चला जाए। उसने धर्म को राजनीति से भी थोड़ा दूर करने का प्रयास किया।

इस कड़ी में उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर, यह सन्देश दिया कि गैर इस्लामी प्रजा से कोई भेद-भाव नहीं किया जाएगा। उसने युद्ध में पराजित सैनिकों को दास बनाने पर रोक लगाई तथा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गैर-कानूनी घोषित किया। अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ -वध को देश द्रोह घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी।

अकबर ने इन फैसलों के माध्यम से धार्मिक पक्षपात को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया तो साथ ही बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का सम्मान भी किया। उसने राज्य के सभी अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियमों के पालन करने के निर्देश दिए। इस तरह अकबर अपनी इस नीति के द्वारा राज्य में शांति व स्थायित्व का आधार बनाने में सफल रहा।

प्रश्न 2.
मनसबदारी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मुग़ल नौकरशाही में मनसबदारी प्रमुख थी। यह सैनिक व असैनिक दोनों के लिए थी। मनसब शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-पद। इस शब्द की व्याख्या के अनुसार जो भी व्यक्ति मुगलों की सेवा में आता था तो उसे एक मनसब दिया जाता था। वह मनसब उसकी दरबार में पहचान, जिम्मेदारी व हैसियत तीनों बातों का अहसास कराता था। मनसब में जात व सवार दो शब्दों . का प्रयोग होता था।

जात शब्द व्यक्ति के पद (status) को स्पष्ट करता था जबकि सवार उसके पास ऊँट, घोड़े, बैल इत्यादि सैनिक क्षमता का बोध कराता था। इससे यदि किसी व्यक्ति की 1000 की जात मनसब व 1000 की सवार मनसब है तो वह मनसबदार प्रथम श्रेणी में होता था, यदि जात की तुलना में सवार 500 या इसके आस-पास थे तो वह द्वितीय श्रेणी में आता था तथा यदि उसके सवार नाममात्र थे या थे ही नहीं वह तृतीय श्रेणी में आता था।

इसी श्रेणी के आधार पर उसका वेतन निर्धारित होता था जबकि इसी आधार पर उसे दरबार में जगह मिलती थी। यहाँ तक कि शासक के शिविर में भी उसी अनुरूप उसका तंबूकक्ष (Tent Room) बनता था। मनसबदारी व्यवस्था की खास बात यह थी कि मनसबदार चाहे 20 के रैंक का हो या 5,000 का वह सीधे शासक से जुड़ा होता था। वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिम्मेदार नहीं होता था। मुगलकाल में सामान्य रूप से 1000 से बड़े पद के मनसबदार को उमरा (अमीर वर्ग का बहुवचन) कहा जाता था। मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति व पद मुक्ति की शक्तियाँ स्वयं शासक के पास होती थीं।

प्रश्न 3.
अकबर के धर्म संबंधी विचारों का वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर ने धर्म संबंधी उदारता की धारणा शासन के प्रारंभिक दिनों में ही अपना ली थी। इसके व्यवहार और उदार विचारों से ईसाई पादरियों को तो यहाँ तक लगा कि शासक ने इस्लाम त्याग दिया है तथा वह ईसाई धर्म का सदस्य बन गया है। वास्तव में उनकी यह समझ तत्कालीन यूरोप की धार्मिक असहिष्णुता की नीति को स्पष्ट करती है क्योंकि इस काल में वहाँ धर्म संबंधी तालमेल का अभाव था।

अकबर ने इस तरह का व्यवहार केवल जेसुइट (ईसाई प्रचारकों) के प्रति नहीं किया बल्कि हिंदू, जैन, फारसी, बौद्ध धर्म में विश्वास. करने वाले सभी धर्मों के साथ किया। वह सभी के साथ तालमेल अपनी सुलह-ए-कुल की नीति के तहत करना चाहता रस्कार नहीं बल्कि सभी का एक-दूसरे के साथ मिलकर चलने का भाव था। अकबर की समझ यहाँ हमें और स्पष्ट होती है कि उसने फतेहपुर सीकरी में स्थापित इबादत खाना में मुसलमानों, हिंदुओं, जैन, फारसियों व ईसाइयों सभी की बातें सुनीं।

उनके वाद-विवाद व विचार अभिव्यक्ति पर अपने तर्क दिए। इस विचार-विमर्श से उसे सभी धर्मों की अच्छी बातें जानने का मौका मिला। इस्लाम के कुछ लोगों की कट्टरपंथी सोच भी वह समझ पाया।

(i) सूर्य व अग्नि का उपासक (Devotee of Fire and the Sun)-विभिन्न धर्मों के बारे में अपनी समझ विकसित हो के बाद अकबर सूर्य पर केंद्रित स्व-कल्पित दैवीय उपासना के सिद्धांत की ओर बढ़ा जिसे अबुल फज्ल ने अकबरनामा में दैवीय सिद्धांत के साथ जोड़ दिया। अकबर इस सिद्धांत के माध्यम से विभिन्न धर्म व दर्शन के ग्राही (स्वीकारने) वाले रूप की ओर बढ़ा। इस दैवीय सिद्धांत के पीछे प्रेरक शक्ति यह थी कि इस नीति से शत्रुओं पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है। वास्तव में यह सिद्धांत शासक को सबका शासक बनाता है, न कि किसी वर्ग विशेष का।

(ii) दीन-ए-इलाही (Din-I-Ilahi)-अकबर उदारवादी रास्तों पर चलकर इस रास्ते पर पहुँचा कि सभी धर्मों की अच्छी बातों को मिलाकर एक धर्म बनाया जा सकता है जो सभी को स्वीकार हो सकता है। अपने अनुभव के आधार पर उसने 1582 ई० में ‘दीन-ए-इलाही’ (‘तोहिद-ए-इहाली’) की स्थापना की जिसमें सभी धर्मों की अच्छी बातें थीं। अकबर ने इसे अपनाने पर भी किसी को बाध्य नहीं दिया। इसलिए इस नए मत को मानने वालों की संख्या सैकड़ों में रही। इसकी भी अकबर ने परवाह नहीं की।

कुल मिलाकर स्पष्ट है कि अकबर ने औपचारिक धर्म को महत्त्व न देकर साम्राज्य की जरूरत के रूप में धर्म को देखा। इसने अकबर की छवि तो उच्च बनाई साथ ही अन्य लोगों को भी मार्ग दिया कि भारत में धर्म संबंधी कौन-सी नीति कारगर है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुगल वंश का परिचय देते हुए मुख्य मुग़ल शासकों के बारे में जानकारी दें।
उत्तर:
मुगल शब्द की उत्पत्ति मंगोल से हुई है। मंगोल से यह शब्द बदलकर मोगोल व मौगिल्ज बना तथा अन्ततः मुगल रूप में स्थापित हो गया। मुगल शासक स्वयं को तैमूरी कहते थे। मुगल तैमूरी इसलिए कहलाते थे क्योंकि वे पितृपक्ष से तैमूर के वंशज थे। बाबर (प्रथम मुगल शासक) मातृपक्ष से चंगेज का वंशज था लेकिन वह चंगेज के साथ अपना नाम जोड़ना उचित नहीं समझता था। वह चंगेज व अन्य मंगोलों को बर्बर (बद्द या यायावर) कहता था।

1. बाबर (Babur)-मुगल वंश के संस्थापक बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 को मध्य-एशिया के फरगाना (वर्तमान में उजबेगिस्तान) में हुआ। 1494 ई० में बाबर अपने पिता उमर शेख मिर्जा की मृत्यु के बाद फरगाना का शासक बना। आपसी पारिवारिक लड़ाई के कारण उसने 1497 ई० में यह राज्य खो दिया तथा इधर-उधर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो गया। उसने 1504 ई० में काबुल तथा 1507 ई० में कन्धार को जीता। बाबर ने 1519 से 1526 ई० तक उसने भारत पर पाँच आक्रमण किए तथा वह सभी में सफल रहा। 1526 ई० में उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी। उसने 1527 ई० में खानवा, 1528 ई० में चन्देरी तथा 1529 ई० में घाघरा की लड़ाइयाँ जीतकर अपने राज्य को सुदृढ़ आधार दिया। 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

2. हुमायूँ (Humayun)-बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ शासक बना। उसे गुजरात के शासक बहादुर शाह तथा बिहार क्षेत्र के मुखिया शेरशाह से निरन्तर युद्ध करने पड़े। शेरशाह ने उसे 1540 ई० में बेलग्राम (कन्नौज) के युद्ध में पराजित कर दिया तथा उसे भारत से निर्वासित होना पड़ा। उसने निर्वासन का कुछ समय काबुल, सिन्ध व अमरकोट में बिताया तथा अन्त में ईरान के शासक तहमास्म के पास शरण ली। ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल, कन्धार व मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। उसने 1555 ई० में शेरशाह के कमजोर उत्तराधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर लिया। 1556 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
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3. अकबर (Akbar)-हुमायूँ की मृत्यु के समय उसका पुत्र अकबर पंजाब के कलानौर में था। उसे वहीं पर शासक घोषित कर दिया गया। इस बीच रेवाड़ी के हेमू ने दिल्ली में अव्यवस्था का लाभ उठाकर कब्जा कर लिया। इस तरह अकबर व हेमू के बीच 1556 ई० में पानीपत के मैदान में दूसरा युद्ध हुआ तथा अकबर को विजय मिली। अकबर ने अपनी प्रारंभिक सफलताएँ अपने शिक्षक व संरक्षक बैहराम खाँ के नेतृत्व में पाईं।

तत्पश्चात् उसने प्रत्येक क्षेत्र में साम्राज्य का विस्तार किया। उसने आन्तरिक दृष्टि से अपने राज्य का विस्तार कर इसे विशाल, सुदृढ़ तथा समृद्ध बनाया। उसने राजपूतों व स्थानीय प्रमुखों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर हटाकर गैर-इस्लामी जनता को यह एहसास करवाने का प्रयास किया कि वह उनका भी शासक है। वह अपने राजनीतिक, प्रशासनिक व उदारवादी व्यवहार के कारण मुगल शासकों में महानतम स्थान प्राप्त करने में सफल रहा। 1605 ई० में उसकी मृत्यु के समय उसका साम्राज्य राजनीतिक दृष्टि से विशाल व शान्त, अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से बहुत शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था।

4. जहाँगीर (Jahangir)-अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम जहाँगीर के नाम से शासक बना। 1611 ई० में उसने मेहरूनिसा (बाद में नूरजहाँ) से शादी की। नूरजहाँ शासन में इतनी शक्तिशाली हो गई कि उसने शासन-व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। 1627 ई० में लाहौर में उसकी मृत्यु हो गई। जहाँगीर अपनी न्याय की जंजीर के कारण काफी विख्यात हुआ जो उसने आगरे के किले में लगवाई थी।

5. शाहजहाँ (Shahajahan)-जहाँगीर के बाद उसका पुत्र खुर्रम, शाहजहाँ के नाम से गद्दी पर बैठा। अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने ताजमहल का निर्माण प्रारंभ करवाया। ईरान के शासक से वह 1638 ई० में कन्धार जीतने में सफल रहा। ईरानी शासक ने 1649 ई० में कन्धार पर फिर कब्जा कर लिया। उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध था जो 1657-58 ई० में लड़ा गया। इसमें उसके तीन पुत्र दारा शिकोह, मुराद व शुजा मारे गए तथा औरंगजेब सफल रहा। उसने 1658 ई० में शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर जेल में डाल दिया। इस तरह शाहजहाँ की मृत्यु 7 वर्ष जेल में रहने के बाद हुई।

6. औरंगजेब (Aurangzeb)-1658 ई० में अपने भाइयों को हराकर व पिता को बन्दी बनाकर औरंगजेब सत्ता प्राप्त करने में सफल रहा। वह व्यक्तिगत जीवन में सादगी को पसन्द करता था, लेकिन धार्मिक दृष्टि से संकीर्ण था। उसकी संकीर्णता के चलते हुए गैर-मुस्लिम प्रजा तथा मुस्लिमों में शिया उसके विरोधी हो गए। उसे जाटों, सतनामियों, राजपूतों, सिक्खों व मराठों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 2.
इतिवृत्त क्या हैं? ये क्यों लिखे गए? मुगलकाल के प्रमुख इतिवृत्त कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
मुग़ल शासकों के दरबार में स्वयं शासकों या दरबारियों द्वारा जिन पुस्तकों की रचना की गई उन्हें इतिवृत्त कहा जाता है। इतिवृत्त (क्रॉनिकल्स) मुगलकालीन इतिहास की जानकारी का बहुत महत्त्वपूर्ण स्रोत है। सभी मुग़ल शासकों ने इतिवृत्तों के लेखन की ओर विशेष ध्यान दिया जिसके कारण हमें घटनाओं व शासन संबंधी विभिन्न पक्षों की व्यवस्थित

1. रचना के उद्देश्य (Purpose of the Writings)-मुगलकाल में रचे गए इतिवृत्त बहुत सोची-समझी नीति का उद्देश्य थे। विभिन्न इतिहासकारों व विद्वानों ने इस बारे में अपने-अपने मतों की अभिव्यक्ति की है जिनमें से ये पक्ष उभरकर सामने आते हैं

  • इतिवृत्तों के माध्यम से मुगल शासक अपनी प्रजा के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि बनाना चाहते थे।
  • इतिवृत्तों के वृत्तांत के माध्यम से शासक उन लोगों को संदेश देना चाहते थे जिन्होंने राज्य का विरोध किया था तथा भविष्य में भी कर सकते थे। उन्हें यह बताना चाहते थे कि यह राज्य बहुत शक्तिशाली है तथा उनका विद्रोह कभी सफल नहीं होगा।
  • इतिवृत्तों के माध्यम से शासक अपने राज्य के विवरणों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते थे।

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2. इतिवृत्तों की विषय-वस्तु (Subjects of Chronicles)-मुग़ल शासकों ने इतिवृत्त लेखन का कार्य दरबारियों को दिया। अधिकतर इतिवृत्त शासक की देख-रेख में लिखे जाते थे या उसे पढ़कर सुनाए जाते थे। कुछ शासकों ने आत्मकथा लेखन का कार्य स्वयं किया। इस माध्यम से ये शासक स्वयं को प्रबुद्ध वर्ग में स्थापित करना चाहते थे, साथ ही अन्य लेखकों का मार्गदर्शन भी करना चाहते थे। इन सभी पक्षों से यह स्पष्ट होता है कि इन इतिवृत्तों के केन्द्र में स्वयं शासक व उसका परिवार रहता था।

इस कारण इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासक, शाही परिवार, दरबार, अभिजात वर्ग, युद्ध व प्रशासनिक संस्थाएँ रहीं। इन इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासकों के नाम अथवा उनके द्वारा धारण उपाधियों की पुष्टि भी करना था। इसलिए इनके नाम सीधे तौर पर इतिवृत्त शासकों के नाम से जुड़े थे।

मुगलकाल के प्रमुख इतिवृत्तों में हैं-बाबरनामा या तुक-ए-बाबरी लेखक बाबर, हुमायूँनामा लेखिका हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम, अकबरनामा-लेखक अबुल फज़्ल, तुज्क-ए-जहाँगीरी लेखक जहाँगीर, शाहजहाँनामा लेखक मामुरी, बादशाहनामा (शाहजहाँ पर आधारित) लेखक-अब्दुल हमीद लाहौरी, आलमगीरनामा लेखक मुहम्मद काजिम इत्यादि हैं। विभिन्न इतिवृत्तों के नामों व लेखकों के नामों से यह स्पष्ट होता है कि मुग़ल शासक स्वयं के इतिहास-लेखन में पूरी रुचि लेते थे। इसके लिए वे इनके लेखकों को प्रत्येक तरह का संरक्षण भी देते थे तथा दरबार में उचित सम्मान भी। अधिकतर स्थितियों में इन इतिवृत्तों के लेखक शासक के अति नजदीकी मित्र होते थे।

प्रश्न 3.
मुगलों की मौलिक भाषा कौन-सी थी? उनके इतिवृत्त किस भाषा में मिलते हैं? इस काल में फारसी कैसे तथा किस-किस रूप में प्रचलन में आई?
उत्तर:
मुग़ल मूलतः मध्य एशिया से थे तथा इनकी मौलिक भाषा तुर्की थी। तुर्की भाषा में भी बाबर चगताई मूल का था, अतः उसकी भाषा ‘चगताई तुर्की’ थी। उसने अपनी आत्मकथा इसी भाषा में लिखी।

अकबर ने फारसी भाषा को दरबार की भाषा घोषित किया। उसने अपने दरबार में उन लोगों को स्थान व सम्मान दिया जो इस भाषा के ज्ञाता थे। शाही परिवार के सदस्यों को इस भाषा को सीखने का वातावरण दिया। फारसी को अपनाने के मुख्य कारण ईरान व मुगलों के संबंध कहे जा सकते हैं। हुमायूँ ने 15 वर्ष ईरान में निर्वासन में बिताए व उन लोगों के संपर्क में आया। उसने सत्ता मिलने के बाद उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप पद दिए। ईरानी दरबार इस काल में सांस्कृतिक विकास व बौद्धिकता का केन्द्र माना जाता था। अकबर उससे भी प्रभावित हुआ।

अकबर की मिलनसार छवि के कारण भी ईरान से विद्वानों का एक दल मुगल दरबार में पद पाने के लिए आया। अकबर ने उन्हें समुचित स्थान दिया। इस तरह यह भाषा दरबार में अलग से अपनी पहचान बनाने में सफल रही। इसके बाद प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में इसके ज्ञाता हो गए। इस तरह बहुत कम समय में लेखाकारों, प्रशासनिक अधिकारियों व अभिजात वर्ग के लोगों ने इसे सीख लिया।

(i) फारसी का भारतीयकरण-फारसी मुगल दरबार व प्रशासन तंत्र की भाषा तो बन गई, लेकिन इसका स्वरूप ईरान वाला नहीं था। मुगल साम्राज्य काफी विस्तृत था। इस साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों में राजस्थानी, मराठी, बंगाली व तमिल भाषाएँ बोली जाती थीं। इन क्षेत्रों में जंब फारसी गई तो स्थानीय विद्वानों ने अपने-अपने क्षेत्रों की शब्दावली व मुहावरों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया। फारसी पर सर्वाधिक प्रभाव हिंदवी (उत्तर भारत की जन सामान्य की भाषा) का पड़ा। इन दोनों भाषाओं के संपर्क के कारण एक नई भाषा ‘उर्दू अस्तित्व में आई। यह भाषा हिंदवी में बोली जाती थी तथा फारसी लिपि में लिखी जाती थी।

(ii) अनुवाद कार्य-मुग़लकाल में अकबर के शासन व उसके बाद मौलिक लेखन कार्य फारसी में हुआ। इसके साथ बहुत-सी पुस्तकों का अनुवाद भी फारसी में किया गया। प्रारंभ में बाबरनामा का तुर्की से अनुवाद किया गया। इसके बाद अकबर ने महाभारत व रामायण नामक संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद का आदेश दिया। महाभारत का अनुवाद ‘रज्मनामा’ (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ। यह पुस्तक फारसी के विद्वानों में बहुत लोकप्रिय हुई। अनुवादित रूप में यह पुस्तक ईरान व मध्य एशिया भी गई।

प्रश्न 4.
पांडुलिपियों में चित्रकारी की क्या भूमिका थी? जानकारी दें।
उत्तर:
मुग़ल शासकों ने जहाँ इतिवृत्त लिखने की दिशा में बहुत ध्यान दिया, वहीं उन्होंने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि इतिवृत्त सामान्य-से-सामान्य व्यक्ति को समझ में आ सके। सामान्य रूप से पुस्तक या किसी रचना में किसी भाव या विषय की अभिव्यक्ति शब्दों से नहीं हो पाती, बल्कि दृश्य उसको स्पष्ट कर देते हैं। यह बात पांडुलिपियों पर भी लागू होती है। मुग़ल शासकों व पांडुलिपि के लेखकों को इस बात का ज्ञान था। इसलिए हमने किताबखाना में काम करने वाले व्यक्तियों में चित्रकार का वर्णन भी किया है।

जब कोई भी इतिवृत्त लेखक लेखन कार्य करता था एवं यह महसूस करता था कि उक्त स्थान पर दृश्य की आवश्यकता है तो वह उस पृष्ठ पर उतनी जगह खाली छोड़ देता था। यदि बड़े चित्र की आवश्यकता होती तो आस-पास के पृष्ठों को छोड़ दिया जाता था। फिर चित्रकार लेखक से बातचीत कर किसी अन्य कागज पर विषय संबंधी चित्र बनाता था। फिर उसे उस पृष्ठ पर चिपका दिया जाता था या फिर पांडुलिपि के साथ संलग्न कर दिया जाता था। .

1. चित्रकारी का उद्देश्य (Aims of Paintings)-इतिवृत्त पर चित्रकारी मात्र भावों की अभिव्यक्ति नहीं थी बल्कि कई और पक्षों को भी स्पष्ट करती थी; जैसे

• चित्रकारी पांडुलिपि के सौन्दर्य का अभिन्न अंग थी। किसी भी पांडुलिपि को उस समय तक पढ़ने के योग्य नहीं माना जाता था जब तक वह चित्रित न हो।

• राजा व राज्य की शक्ति के बारे में जो बात शब्दों में न कही जा सके उसे चित्र के माध्यम से दिखाया जाता था। उदाहरण के लिए शाही दरबार की अधिकतर चित्रकारी में शासक के साथ शेर व गाय अथवा शेर व बकरी के चित्र मिलते हैं। इसका अर्थ साफ है कि शासक शक्तिशाली व निर्बल सभी को संरक्षण देता था।

• जनता तक विभिन्न संदेश भेजने के लिए भी शासक इस कला का प्रयोग करते थे; जैसे कि उनके लिए साम्राज्य में रहने वाले सभी बराबर हैं। वे किसी भी तरह से उनमें अन्तर नहीं देखते।
अकबर के दरबारी लेखक अबुल फज्ल ने चित्रकारी को ‘जादुई कला’ कहा है। वह कहता है कि चित्रकारी निर्जीव को सजीव की भाँति प्रस्तुत करने की क्षमता रखती है।

2. पांडुलिपियों पर चित्रण (Paintings on Manuscripts)-मुग़ल शासकों ने पांडुलिपि चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया। अकबर के काल में चित्रित होने वाली मुख्य पांडुलिपियों में बाबरनामा, हुमायूनामा, अकबरनामा, (महाभारत का अनुवाद), तारीख-ए-अल्फी व तैमूरनामा थीं। बाद के शासकों ने अपने इतिवृत्तों विशेषकर तज्क-ए-जहाँगीरी व शाहजहाँनामा को चित्रित करवाया। इसके साथ ही उन्होंने पहले लिखे गए इतिवृत्तों की और पांडुलिपियों को तैयार करवाकर उन्हें चित्रित करवाया। ये पांडुलिपियाँ सैकड़ों की संख्या में किताबखाना में रखी गई थीं। मुगल शासकों द्वारा जिस तरह से पांडुलिपियों को चित्रित करवाया, उसकी नकल यूरोप के शासकों ने भी की। इस काल में चित्रित पुस्तकों को उपहार में देना एक प्रकार की परंपरा बन गई थी।

प्रश्न 5.
इतिवृत्त अकबरनामा पर संक्षिप्त निबंध लिखें।।
उत्तर:
मुगल वंश की जानकारी देने वाले इतिवृत्तों की संख्या बहुत अधिक है। इनमें जो सर्वाधिक चर्चित तथा सूचनाओं से परिपूर्ण है, वह है अकबरनामा। यह इतिवृत्त बहुत विस्तृत है तथा इसमें 150 से अधिक चित्रों को चित्रित किया गया है। इन चित्रों में दरबार, विभिन्न युद्धों, मोर्चाबन्दी का विवरण, शिकार, विवाह तथा भवन निर्माण के दृश्य हैं।

अकबरनामा का लेखन अबुल फज़्ल द्वारा किया गया। वह शेख नागौरी का पुत्र तथा फैजी का भाई था। वह अरबी, फारसी, तुर्की व यूनानी का ज्ञाता था। वह उदारवादी चिन्तक तथा सूफीवादी विचारधारा से प्रभावित था। अकबर से उसकी भेंट उसके बड़े भाई फैजी ने करवाई तथा वह उन्नति करता हुआ फैजी से काफी आगे निकल गया। अकबर उसके तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता से बहुत प्रभावित हुआ। उसने अकबर की विचारधारा को उदारवादी बनाने में बहुत योगदान दिया। वह अकबर के अति नजदीकी मित्रों में से एक रहा।

(1) अकबरनामा का लेखन (Writing of Akbarnama) अकबर ने अबुल फज्ल को अकबरनामा को लिखने का आदेश 1589 ई० में दिया। उसने इसके लिखने में कुल 13 वर्ष का समय लगाया। इस काल में उसने कई बार इस पुस्तक के कई प्रारूप तैयार किए। अन्ततः इसे अन्तिम रूप दिया। इस पुस्तक में घटनाओं का क्रमानुसार विवरण है। लेखक ने इसे अधिक-से-अधिक मौलिक दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौलिक प्रमाण लेकर लिखा है।

अकबरनामा तीन खण्डों में विभाजित है। इसके प्रथम दो भाग ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी देते हैं जबकि तीसरा भाग आइन-ए-अकबरी है। . अबुल फज्ल ने पहले खण्ड में पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का आधार आदम को मानकर वहीं से लेखन प्रारंभ किया। उसने इस कड़ी में पैगम्बर मोहम्मद, भारत में दिल्ली सल्तनत का संक्षिप्त परिचय देते हुए अकबर के शासन काल के प्रारंभिक 30 वर्षों का वर्णन किया है।

अकबरनामा के दूसरे खण्ड में अकबर के 30वें वर्ष से लेकर 46वें वर्ष तक के शासन का वर्णन है। इसके बाद वह अपना लेखन जारी रखना चाहता था लेकिन 1602 ई० में अकबर के पुत्र सलीम (बाद में जहाँगीर) ने विद्रोह कर दिया। इसी दौरान सलीम ने एक षड्यंत्र द्वारा वीर सिंह बुंदेला के हाथों अबुल फज्ल की हत्या करवा दी।

(i) अकबरनामा की विषय-वस्तु (Subject-Matter of Akbarnama)-अकबरनामा में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया है। लेखक ने किसी घटना का पूरा विवरण प्राप्त करने के लिए संबंधित पक्षों की जानकारी भी दी है। उसने अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक व सांस्कृतिक पक्षों को स्पष्ट रूप से लिखा है। उसने अपने वर्णन में समय व तिथियों के अनुरूप परिवर्तन को अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसने अकबर के साम्राज्य में रहने वाले मुस्लिमों, हिंदुओं, जैनों व बौद्धों की जीवन-शैली, परम्पराओं तथा आपसी तालमेल को काफी महत्त्व दिया है। उसने अकबर के साम्राज्य को मिश्रित संस्कृति के केन्द्र के रूप में प्रस्तुत किया है।

अबुल फज़्ल का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उसे अपना साप्ताहिक लेखन दरबार में पढ़ना होता था। इसलिए उसने अलंकृत भाषा को महत्त्व दिया। इस भाषा में लय व कथन शैली विशेष रूप से उभरकर सामने आई है। क्षेत्र-विशेष का वर्णन करते हुए उसने उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया है। उसके इस प्रयास से भारतीय फारसी शैली का विकास हुआ।

(ii) अकबरनामा का अनुवाद (Translation of Akbarmama)-अकबरनामा के अनुवाद का कार्य बंगाल सिविल सर्विसज़ के अधिकारी हेनरी बेवरिज (Henry Beveridge) ने अपने हाथ में लिया। उसने कड़ी मेहनत के बाद इस पुस्तक का अनुवाद किया।

प्रश्न 6.
मुगलों के राजत्व सिद्धांत के आदर्श क्या थे ? उनकी व्याख्या करें।
उत्तर:
मुगलों ने भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक शासन किया। उन्होंने अपने शासन में कुछ सिद्धान्तों को महत्त्व दिया। ये सिद्धांत भारत की परंपरागत शासन-व्यवस्था से भी जुड़े तथा दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों से भी। इनके राजत्व के सिद्धांत में मध्य-एशियाई तत्त्व भी थे तो ईरान का प्रभाव भी साफ दिखाई देता है। मुग़ल इतिवृत्तों में मुग़ल राज्य को आदर्श राज्य वर्णित किया है जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रस्तुत की गई हैं

1. मुग़ल राज्य : एक दैवीय राज्य (Mughal State :ADivine State)-मुगलकाल के सभी इतिवृत्त इस बात की जानकारी देते हैं कि मुगल शासक राजत्व के दैवीय सिद्धान्त में विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि उन्हें शासन करने की शक्ति स्वयं ईश्वर ने प्रदान की है। ईश्वर की इस तरह की कृपा सभी व्यक्तियों पर नहीं होती, बल्कि व्यक्ति-विशेष पर ही होती है।

मुगल शासकों के दैवीय राजत्व के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्त्व अबुल फज़्ल ने दिया। वह इसे फर-ए-इज इज़ादी (ईश्वर से प्राप्त) बताता है। वह इस विचार के लिए प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सहरावर्दी (1191 में मृत्यु) से प्रभावित था। उसने इस तरह के विचार ईरान के शासकों के लिए प्रस्तुत किए थे। भारत में अबुल फल के पिता शेख मुबारक नागौरी ने इसे समझा तथा अपने बेटे फज्ल व फैजी को बताया।

अबुल फज्ल ने यह सिद्धांत अकबर के लिए प्रस्तुत किया। अबुल फज्ल का यह मत इतिवृत्तों में विचार बना तथा फिर चित्रकारों ने उन्हें चित्रित किया। चित्रकारों ने मुगल शासकों के चित्रों के चारों ओर प्रभा मण्डल बना दिया। यह प्रभा मण्डल सामान्य रूप से हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की तस्वीरों में होता है जबकि यूरोप में ईसा व वर्जिन मेरी के चित्रों में देखने को मिलता है।

2. सुलह-ए-कुल की नीति (Policy of Sulh-i-Kul)-अकबर की सुलह-ए-कुल (Absolute peace) की नीति अर्थात् सभी के साथ सुलह (किसी से मतभेद नहीं) की थी।

(i) नीति का अर्थ-मुगलकालीन इतिवृत्तों ने इस नीति को अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त किया है। हाँ, इतना सभी मानते हैं कि मुग़ल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न जातियों व समुदायों के लोग रहते थे। शासक इस साम्राज्य में शान्ति व स्थायित्व का स्रोत था। इसलिए वह सभी नृजातीय समूहों व समुदायों से ऊपर था तथा वह इन सभी वर्गों के बीच मध्यस्थता करता था। क्योंकि न्याय व शान्ति का मार्ग तालमेल से निकलता था, अतः यह नीति मुग़ल शासकों व साम्राज्य के लिए आदर्श बनी। अबुल फज़्ल, सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। उसके अनुसार सुलह-ए-कुल इस सिद्धांत पर आधारित था कि राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुंचे तथा प्रजा शांति से रहे।

(ii) नीति को व्यवहार में लाना-मुगल शासक विशेषकर अकबर ने धर्म व राजनीति दोनों के संबंधों को समझने का प्रयास किया। उसने इनकी सीमा व महत्त्व को समझा। इस समझ के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरी तरह धर्म का त्याग संभव नहीं है लेकिन धर्म की कट्टरता को त्यागकर अवश्य चला जाए। उसने धर्म को राजनीति से भी थोड़ा दूर करने का प्रयास किया।

इस कड़ी में उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर, यह सन्देश दिया कि गैर-इस्लामी प्रजा से कोई भेद-भाव नहीं किया जाएगा। उसने युद्ध में पराजित सैनिकों को दास बनाने पर रोक लगाई तथा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गैर-कानूनी घोषित किया। अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ-वध को देशद्रोह घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी।

अकबर ने इन फैसलों के माध्यम से धार्मिक पक्षपात को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया तो साथ ही बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का सम्मान भी किया। उसने राज्य के सभी अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियमों के पालन करने के निर्देश दिए। इस तरह अकबर अपनी इस नीति के द्वारा राज्य में शांति व स्थायित्व का आधार बनाने में सफल रहा।

3. सामाजिक अनुबंध पर आधारित न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता (Just Sovereignty Based on Social Contract)-मुगल शासकों ने न्याय को विशेष महत्त्व दिया। वे यह मानते थे कि न्याय व्यवस्था ही उनसे सही अर्थों में प्रजा के साथ संबंधों की व्याख्या है। अबुल फज़्ल ने अकबर के प्रभुसत्ता के सिद्धांत को स्पष्ट किया है। उसके अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के चार तत्त्वों-जीवन (जन), धन (माल), सम्मान और विश्वास (दीन) की रक्षा करता है।

इसके बदले में जनता से आशा करता है कि वह राजाज्ञा का पालन करे तथा अपनी आमदनी (संसाधनों) में से कुछ हिस्सा राज्य को दे। अबुल फज़्ल स्पष्ट करता है कि इस तरह का चिन्तन किसी न्यायपूर्ण संप्रभु का ही हो सकता है जिसे दैवीय मार्गदर्शन प्राप्त हो।

मगल शासकों ने सामाजिक अनबंध पर आधारित न्याय को अपनाया तथा जनता में प्रचारित भी किया। इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रतीकों को प्रयोग में लाया गया। इसमें सर्वाधिक कार्य चित्रकारों के माध्यम से करवाया गया। मुगल शासकों ने दरबार तथा सिंहासन के आस-पास विभिन्न स्थानों पर जो चित्रकारी करवाई उसमें वो शेर तथा बकरी या शेर तथा गाय साथ-साथ बैठे दिखाई देते हैं।

उनकी चित्रकारी जनता को यह सन्देश देने का साधन था कि इस राज्य में सबल या दुर्बल दोनों परस्पर मिलकर रह सकते हैं। इनमें भी कुछ चित्रों में शासक को शेर पर सवार दिखाया गया है जो इस बात का संदेश है कि उसके साम्राज्य में उनसे शक्तिशाली कोई नहीं था। कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि मुगलों ने विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से न्याय को प्रदर्शित करने का प्रयास किया तथा स्पष्ट किया कि इसका आधार सामाजिक अनुबंध है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 7.
मुग़लों की राजधानियाँ कौन-कौन सी थीं ? इन राजधानी नगरों का वर्णन करें।
उत्तर:
राजधानी नगर मुगलों की सभी गतिविधियों का केन्द्र थे। मुगलों के राजधानी नगर को राज्य का हृदय-स्थल कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुगलों का राजधानी नगर कभी एक नहीं रहा बल्कि समय व स्थिति के अनुरूप उसमें बदलाव आते रहे। मुगलों के आने से पूर्व भारत में दिल्ली सल्तनत थी। स्वाभाविक है कि दिल्ली ही इस काल में राजधानी रहा। 1504 ई० में सिकन्दर लोदी ने आगरा शहर की नींव रखी। इससे सत्ता का एक और केन्द्र बन गया तथा गतिविधियों का संचालन दोनों नगरों से होने लगा। बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में विजय के बाद पहले दिल्ली पर फिर आगरा पर कब्जा किया।

(i) मुग़ल साम्राज्य का प्रारंभिक काल-बाबर ने अपनी राजधानी आगरा को रखा। वहाँ पर उसने अपनी आवश्यकता के अनुरूप कुछ भवन बनवाए तथा अधिकतर की मुरम्मत करवाई। उसकी मृत्यु के बाद हुमायूँ ने भी आगरा को ही राजधानी बनाया। जिस समय वह शेरशाह से पराजित हुआ तो उसने कुछ समय के लिए दिल्ली को राजधानी बनाया। वहाँ पर उसने ‘दीन-पनाह’ नामक भवन का निर्माण भी करवाया।

(ii) अकबर के काल में राजधानी-पानीपत के दूसरे युद्ध (1556) के बाद अकबर ने दिल्ली व आगरा पर नियंत्रण किया। 1556-60 ई० तक अकबर ने अपने संरक्षक बैहराम खाँ के नेतृत्व में शासन किया। उस समय राजधानी आगरा थी लेकिन शाही वंश के अधिकतर सदस्य दिल्ली में रहते थे।
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1560 ई० के बाद अकबर ने आगरा में लाल किले का निर्माण प्रारंभ करवाया। उसने इसे सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत तथा आवश्यकता की दृष्टि से काफी विशाल बनवाया। उसने इसके लिए आस-पास के क्षेत्रों से लाल-बलुआ पत्थर मंगवाया तथा 1568 ई० तक इस किले का अधिकतर हिस्सा बनकर तैयार हो गया। जिस समय आगरा में किले का निर्माण हो रहा था, उस समय अकबर सूफी मत के प्रभाव में आ गया।

इसी कड़ी में उसे आगरा के पास सीकरी नामक स्थान पर एक सूफी सन्त सलीम चिश्ती की जानकारी मिली। उसके बाद वह उसका अनुयायी बन गया। सलीम चिश्ती के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए अकबर ने 1570 ई० में सीकरी का नाम बदलकर फतेहपुर सीकरी किया तथा इस स्थल को राजधानी घोषित कर दिया। यह स्थान आगरा-अजमेर मार्ग पर था तथा लोगों की पसंदीदा जगह थी। इस तरह फतेहपुर सीकरी राजधानी व तीर्थ स्थल दोनों रूपों में उभरकर सामने आया।

(iii) जहाँगीर व शाहजहाँ के काल में राजधानियाँ-जहाँगीर का राज्यारोहण आगरा में हुआ था तो यही स्थल राजधानी था। 1611 ई० में नूरजहाँ के साथ विवाह के उपरांत वह लाहौर चला गया। उसने वहाँ रावी नदी के तट पर एक लाल किले का निर्माण करवाया। जहाँगीर की मनपसंद जगह लाहौर थी। अतः यह उसकी राजधानी भी रहा तथा उसने अधिकतर समय वहाँ गुजारा। जहाँगीर गर्मियों के दिनों में अपना समय श्रीनगर में बिताया करता था। इस हेतु उसने शालीमार व निशात बागों का निर्माण भी करवाया। इस तरह यह स्थल भी उसकी अस्थायी राजधानी रहे।

जहाँगीर के बाद शाहजहाँ ने प्रारंभ में एक दशक तक अपनी राजधानी आगरा रखी। वहाँ ताजमहल का निर्माण करवाया। 1640 ई० में उसने अपना ध्यान दिल्ली की ओर दिया। उसने दिल्ली के प्राचीन आबादी क्षेत्र के पास नया शहर बसाया जिसे शाहजहानाबाद का नाम दिया। इस क्षेत्र में उसने लालकिला, जामा मस्जिद, चाँदनी-चौक बाजार का निर्माण करवाया। 1648 ई० में शाहजहाँ ने आगरा की बजाय यहाँ अधिक समय बिताना प्रारंभ कर दिया। शाहजहाँ का नया नगर विशाल व भव्य था।

(iv) औरंगजेब काल में राजधानी-औरंगज़ेब ने अपनी राजधानी की गतिविधियाँ दिल्ली से चलाईं, परन्तु उसने आगरा के महत्त्व को कम नहीं होने दिया। प्रारंभ में वह आगरा के किले से इसलिए कटा रहा क्योंकि वहाँ शाहजहाँ बन्दी था। अपने जीवन के अन्तिम 25 वर्ष उसने दक्षिण में बिताए। वहाँ मराठवाड़ा क्षेत्र में वह शिविर से प्रशासन चलाता रहा। अन्ततः औरंगाबाद नामक स्थान पर उसने दम तोड़ दिया।

प्रश्न 8.
मुगलों के शाही दरबार के बारे में आप क्या जानते हो? इस बारे में जानकारी दें।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य का हृदय दरबार था जिसे शाही दरबार कहा गया है। शाही दरबार में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल राजसिंहासन अथवा तख्त होता था। इस पर बैठकर शासक शासन के कार्यों को संचालित करता था। राजसिंहासन एक ऐसे स्तंभ का प्रतीक माना जाता था मानो इस पर पृथ्वी टिकी हो। राजसिंहासन के ऊपर बनी छतरी, शासक की कांति (चमक) सूर्य की कांति से अलग करने वाली मानी जाती थी। राजसिंहासन को ईश्वर के प्रतीक व उपहार के रूप में देखा जाता था। राजसिंहासन के सामने बहुत बड़ा आँगन होता था, जिसकी भव्यता, सजावट, कालीन व पर्दे शासक व साम्राज्य की पहचान माने जाते थे।
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(i) दरबारी शिष्टाचार-मुगलों का दरबार चाहे काफी बड़ा हो, लेकिन वहाँ भीड़-भाड़ की स्थिति कभी नहीं होती थी। दरबार में कौन कहाँ होगा, किस स्थिति में होगा, कौन प्रवेश करेगा तथा कौन जाएगा सब कुछ एक निश्चित नियम के अनुरूप होता था। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि दरबार में शासक की आज्ञा के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।

(ii) दरबार में अभिवादन-दरबार में अभिवादन के तरीके भी व्यक्ति की हैसियत तथा पहुँच को स्पष्ट करते थे। अभिवादन में सामने जितना बड़ा व्यक्ति होता था, उतना ही झुकना दरबारी परंपरा थी। अभिवादन का सबसे उच्चतम रूप ‘सिजदा’ अर्थात् दंडवत लेटना था। यह केवल शासक के समक्ष ही होता था। शाहजहाँ के काल में चार तसलीम (झुककर चार बार हाथ को जमीन से माथे की ओर लाना) तथा जमींबोसी (झुककर जमीन चूमना) भी अपनाए जाने लगे थे।

अभिवादन का एक सामान्य तरीका कोर्निश भी था। इसके अनुसार दरबारी अपने दाएँ हाथ की हथेली को अपनी छाती पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाता था। यह इस बात का प्रतीक था कि अभिवादन करने वाला व्यक्ति इंद्रिय व मन स्थल को हाथ लगाते हुए झुककर विनम्रता से अपने को प्रस्तुत कर रहा है।

(iii) झरोखा-झरोखा मुग़ल दरबारी व्यवस्था की अकबर द्वारा जोड़ी गई परंपरा थी। यह प्राचीन भारतीय शासकों से ली गई थी। इसमें शासक प्रातः उठते ही सामान्य प्रार्थना इत्यादि के बाद अपने महल के एक विशेष हिस्से में बनी खिड़की (झरोखे) पर सूर्य की ओर मुँह करके बैठ जाता था। इस जगह के ठीक नीचे काफी खुली जगह होती थी जिसमें सैनिक, व्यापारी, कृषक, शिल्पकार यहाँ तक की बीमार बच्चों के साथ औरतें होती थीं।

वे सूर्योदय से पहले वहाँ एकत्रित हो जाते थे तथा शासक की झलक पाते ही ऊँची आवाज में बोलते थे ‘बादशाह सलामत’ । अकबर द्वारा प्रारंभ की गई यह परंपरा अटूट चलती रही तथा उसका यह विश्वास था कि इससे जनता का सत्ता में विश्वास बनता था। औरंगज़ेब ने बाद में इसे गैर-इस्लामी घोषित करते हुए बन्द कर दिया था।

(iv) शाही उत्सव व समारोह-मुगल दरबार में सामान्य प्रशासनिक गतिविधियों के अतिरिक्त कुछ विशेष उत्सव व समारोह होते थे। उस दिन दरबार को विशिष्ट ढंग से सजाया जाता था। सजाने के लिए रंग-बिरंगे ढंग से सजे डिब्बों में रखी मोमबत्तियाँ, महल की दीवारों पर विभिन्न तरह के बंदनवार (सज्जा के लिए विशेष रूप से तैयार चीजें) तथा विभिन्न तरह की सुगंधित चीजों का प्रयोग किया जाता था। शाही उत्सव व समारोह तीन तरह के होते थे।

a. सामूहिक सामाजिक समारोहों में ईद, शब-ए-बारात तथा (हिजरी कैलेंडर के 8वें महीने की 14वीं तारीख या सावन की रात्रि का त्योहार) होली व दीवाली प्रमुख होते थे। इनमें जनता के विभिन्न वर्गों के लोग दरबार में शाही परिवार के सदस्यों के साथ भाग लेते थे।

b. शाही विशिष्ट समारोह में सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, सूर्यवर्ष व चंद्रवर्ष के अनुरूप शासक के जन्म का कार्यक्रम तथा वसंतागमन पर फारसी त्योहार नौरोज मुख्य थे। इनमें शासक का जन्मदिन अन्यों की तुलना में अधिक शोभायमान तथा खर्चीला होता था।

c. शाही दरबार का तीसरा समारोह व उत्सव शहजादों की शादियों का होता था। यह इतना मंहगा, मनमोहक व आकर्षक होता था कि सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता था।

प्रश्न 9.
मुग़ल शासकों के परिवार का वर्णन करते हुए शाही परिवार की महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगल शासन-व्यवस्था में शासक प्रमुख होता था। परंतु यह ध्यान रहना चाहिए कि उसका अकेले तौर पर कोई अस्तित्व नहीं था। प्रशासन की प्रत्येक गतिविधि में उसके परिवार के सदस्यों की भूमिका अहम् होती थी। शासक के परिवार को शाही परिवार कहा जाता था। शाही परिवार के सदस्यों को दरबार से अलग वर्णित करते हुए इतिवृत्तों में सर्वाधिक प्रचलित शब्द ‘हरम’ मिलता है। हरम शब्द शासक के निवास की ओर संकेत करता है।

शाब्दिक रूप से हरम का अर्थ ‘पवित्र स्थान’ होता है। इतिवृत्तों में हरम के वर्णन में शासक, उसकी पत्नी, उपपत्नी, उसके नजदीक व दूर के रिश्तेदार, वास्तविक माता, धाय माता, सौतेली माता, उपमाता, बहन, पुत्री, चाची, मौसी उनके बच्चे व पुत्रों की पत्नियाँ व उनके सहयोगी होते थे। इसके अतिरिक्त महिला परिचारिकाएँ, गुलाम व दास-दासी भी इस परिवार का अंग होते थे।

अकबर के शासन काल से पहले मुग़लों के शाही परिवार में एक वर्ग विशेष के लोग थे। परन्तु अकबर ने जब राजपूतों के साथ वैवाहिक, राजनीतिक व मैत्री संबंध स्थापित किए तो पारिवारिक संरचना में बदलाव आया। इसमें सबसे बड़ा बदलाव तो यह था कि अब पादशाह बेगम (मुख्य पत्नी) अर्थात् हरम की राजपूत पत्नियाँ बनीं।
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1. हरम की व्यवस्था (System of Haram)-शाही परिवार के हरम में महिलाओं की प्रमुखता थी। इसमें सभी महिलाएँ बराबर की तथा एक जैसी हैसियत वाली नहीं थीं। हरम में प्रमुख महिलाओं को मोटे तौर पर तीन नामों से जाना जाता था।

बेगम-शाही परिवार में सबसे ऊँचा स्थान बेगमों का था। बेगम प्रायः कुलीन परिवार से संबंधित होती थी। उनके साथ विवाह एक निश्चित परंपरा के अनुरूप होता था। वे मेहर (दहेज) के रूप में काफी धन इत्यादि लाती थी। पहले ही दिन से इनका सम्मान होता था। शासक जिस बेगम को सर्वाधिक चाहता था उसे पादशाह

बेगम (मुख्य पत्नी) का खिताब दिया जाता था। उसकी स्थिति अन्य बेगमों की तुलना में अच्छी होती थी।
अगहा-हरम में इनका स्थान दूसरे नंबर पर था। ये सामान्य कुलीन परिवारों से थीं। ये भी शादी की परंपरा के बाद ही हरम में आती थीं।
अगाचा-हरम में इनका दर्जा तीसरा था। इन्हें उपपत्नियों का दर्जा प्राप्त था। इन्हें इनके खर्चे के अनुरूप मासिक भत्ता व दर्जे के अनुरूप उपहार इत्यादि मिलते थे।

2. शाही परिवार की महिलाओं का राजनीति में हस्तक्षेप (Interferance in Politics by the Women of Royal Family)-कई बार शाही परिवार की महिलाएँ भी राजनीति में सक्रिय रहती थीं। उदाहरण के लिए नूरजहाँ के राजनीति में आने के बाद हरम की स्थिति व पहचान दोनों बदल गई। 1611 ई० से 1626 ई० तक जहाँगीर के शासन काल में नूरजहाँ ने प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लिया। वह झरोखे पर बैठती थी तथा सिक्कों पर उसका नाम आता था।

‘नूरजहाँ गुट’ सही अर्थों में जहाँगीर के शासन में सारे फैसले करता था। जहाँगीर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मैंने बादशाहत नूरजहाँ को दे दी है, मुझे कुछ प्याले शराब तथा आधा सेर माँस के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। शाहजहाँ के शासन काल में उसकी पुत्री जहाँआरा तथा रोशनआरा लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक फैसलों में शामिल होती थीं। वे उच्च पदों पर आसीन मनसबदारों की भाँति वार्षिक वेतन लेती थीं। जहाँआरा (शाहजहाँ की बड़ी बेटी) तो सूरत की बंदरगाह (भारत की विदेशी व्यापार की उस समय सबसे बड़ी बंदरगाह) से निरंतर राजस्व की वसूली करती थी।

हरम की प्रमुख महिलाओं ने इमारतों व बागों का निर्माण कार्य करवाया। नूरजहाँ ने आगरा में एतमादुद्दौला (अपने पिता) के मकबरे का निर्माण करवाया। शालीमार व निशात बागों को बनवाने में भी उसकी मुख्य भूमिका थी। इसी प्रकार दिल्ली में शाहजहाँनाबाद की कई कलात्मक योजनाओं में जहाँआरा की भूमिका थी। उसने शाहजहाँनाबाद में आँगन, बाग व एक दोमंजिला कारवाँ-सराय का निर्माण करवाया। दिल्ली के चाँदनी चौक की रूप-रेखा भी उसके द्वारा ही तैयार की गई थी।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में नौकरशाही पर निबंध लिखें।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य एक संतुलित तथा व्यवस्थित राज्य था। इसे यह रूप देने वाला वर्ग नौकरशाहों का था। इन नौकरशाहों पर मुगलों ने विश्वास भी किया तथा इन पर नियंत्रण भी रखा, जिसके कारण मुग़ल प्रशासन संगठित व उच्च आदर्शों वाला बन पाया। मुगलों के प्रशासन में भारतीय व विदेशी तत्त्वों का मिश्रण था। इसमें केंद्रीय व प्रांतीय शासन में ईरानी व मध्य एशियाई तत्त्व .
अधिक थे जबकि स्थानीय प्रशासन के अधिकतर तत्त्व भारतीय थे।

1. नौकरशाहों की नियुक्ति प्रक्रिया-मुग़ल शासन में शासक सबसे ऊपर थे। उनकी शक्तियाँ असीम थीं। अबुल फज्ल स्पष्ट करता है कि मुग़ल साम्राज्य में सत्ता की संपूर्ण क्रिया एकमात्र बादशाह में निहित थी। साम्राज्य के बाकी सभी लोग उसके आदेशों की पालना करते थे। वह व्यवस्था को चलाने के लिए योग्यता के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति करता था। इन्हीं लोगों के सहारे मुगल शासक एक प्रभावशाली तंत्र खड़ा कर सके।

नियुक्ति के संदर्भ में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यहाँ किसी व्यक्ति के दरबार में आने तथा सेवा से निवृत्त होने की कोई आयु नहीं थी। जिस भी व्यक्ति को सेवा में लेना होता था, शासक उससे बातचीत कर संबंधित विभाग के वरिष्ठ व्यक्ति को कहता था कि उसे दरबार में प्रस्तुत करे। इस तरह आदेश का पालन करते हुए संबंधित व्यक्ति की विस्तृत जाँच-पड़ताल करके सेवा में लेने का फैसला किया जाता था।

2. मनसबदारी प्रथा-मुग़ल नौकरशाही में मनसबदारी प्रमुख थी। यह सैनिक व असैनिक दोनों के लिए थी। मनसब शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-पद। इस शब्द की व्याख्या के अनुसार जो भी व्यक्ति मुग़लों की सेवा में आता था तो उसे एक मनसब दिया जाता था। वह मनसब उसकी दरबार में पहचान, जिम्मेदारी व हैसियत तीनों बातों का अहसास कराता था। मनसब में जात व सवार दो शब्दों का प्रयोग होता था।

जात शब्द व्यक्ति के पद (status) को स्पष्ट करता था जबकि सवार उसके पास ऊँट, घोड़े, बैल इत्यादि सैनिक क्षमता का बोध कराता था। इससे यदि किसी व्यक्ति की 1000 की जात मनसब व 1000 की सवार मनसब है तो वह मनसबदार प्रथम श्रेणी में होता था, यदि जात की तुलना में सवार 500 या इसके आस-पास थे तो वह द्वितीय श्रेणी में आता था तथा यदि उसके सवार नाममात्र थे या थे ही नहीं वह तृतीय श्रेणी में आता था।

इसी श्रेणी के आधार पर उसका वेतन निर्धारित होता था जबकि इसी आधार पर उसे दरबार में जगह मिलती थी। यहाँ तक कि शासक के शिविर में भी उसी अनुरूप उसका तंबूकक्ष (Tent-Room) बनता था। मनसबदारी व्यवस्था की खास बात यह थी कि मनसबदार चाहे 20 के रैंक का हो या 5,000 का वह सीधे शासक से जुड़ा होता था। वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिम्मेदार नहीं होता था। मुगलकाल में सामान्य रूप से 1000 से बड़े पद के मनसबदार को उमरा (अमीर वर्ग का बहुवचन) कहा जाता था। मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति व पद मुक्ति की शक्तियाँ स्वयं शासक के पास होती थीं।

3. नौकरशाहों के प्रति दरबार का व्यवहार-मुगल दरबार में नौकरी पाना बेहद कठिन कार्य था। दूसरी ओर अभिजात व सामान्य वर्ग के लोग शाही सेवा को शक्ति, धन व उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा का एक साधन मानते थे। नौकरी में आने वाले व्यक्ति से आवेदन लिया जाता था, फिर मीरबख्शी की जाँच-पड़ताल के बाद उसे दरबार में प्रस्तुत होना होता था। मीर बख्शी के साथ-साथ दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) तथा सद्र-उस-सुदुर (जन कल्याण, न्याय व अनुदान का मंत्री) भी उस व्यक्ति को कागज तैयार करवाकर अपने-अपने कार्यालयों की मोहर लगाते थे।

फिर वे शाही मोहर के लिए मीरबख्शी के द्वारा ले जाए जाते थे। ये तीनों मंत्री दरबार में दाएँ खड़े होते थे, बाईं ओर नियुक्ति व पदोन्नति पाने वाला व्यक्ति खड़ा होता था। शासक उससे कुछ औपचारिक बात करके उसे दरबार के प्रति वफादार रहने की बात कहता था तथा संकेत करता था कि वह किस स्थान पर खड़ा हो। इस तरह उस व्यक्ति की नियुक्ति तथा पदोन्नति मानी जाती थी।

4. नौकरशाहों पर नियंत्रण-शासक द्वारा नौकरशाहों पर नियंत्रण के लिए कुछ नियम बनाए गए थे। उनके अनुसार शासक सामान्य रूप से इनके प्रति कठोर व्यवहार रखता था। नियमित निरीक्षण में इन्हें किसी तरह की छूट नहीं थी। थोड़ा-सा भी शक होने या अनुशासन की उल्लंघना करने पर इन्हें दण्ड दिया जाता था। इनकी कभी भी कहीं भी बदली की जा सकती थी। कोई भी अधिकारी किसी भी कार्य को करने की मनाही नहीं कर सकता था।

इन सबके अतिरिक्त यह कि इनका पद पैतृक नहीं होता था अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को नए सिरे से जीवन की शुरुआत करनी होती थी। किसी भी अभिजात वर्ग के व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति, उसकी सन्तान को नहीं दी जाती थी बल्कि यह स्वतः ही बादशाह या दरबार की सम्पत्ति बन जाती थी।

प्रश्न 11.
मुगलों की विदेश नीति का परिचय देते हुए उनकी ईरान व तुर्की साम्राज्य के प्रति नीति का वर्णन करें।
उत्तर:
मुगल शासकों की विदेश नीति काफी परिपक्व थी। शासक जिस तरह की उपाधियों या पदवियों को धारण करते थे उनका असर पड़ोसी राज्यों पर अवश्य होता था। जहाँगीर (विश्व पर कब्जा करने वाला), शाहजहाँ (विश्व का शासक) तथा आलमगीर (विश्व का स्वामी) द्वारा धारण की गई उपाधियाँ खास थीं। इतिवृत्तों के लेखकों ने इन उपाधियों की व्याख्या व अर्थों का हवाला बार-बार दिया ताकि मुगल अविजित क्षेत्रों पर भी राजनीतिक नियंत्रण बना सकें तथा एक बार विजित करने के उपरांत उनका उस पर हमेशा के लिए हक बना रहे।

इस तरह से स्पष्ट होता है कि मुग़ल अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे। उनकी इस नीति के आधार पर ही उनके पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का निर्धारण होता था। इन रिश्तों में कूटनीतिक चाल व संघर्ष साथ-साथ चलता था। इस कड़ी में पड़ोसी राज्यों के साथ क्षेत्रीय हितों के तनाव व राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। इसके साथ-साथ दूतों का . आदान-प्रदान भी होता रहता था।

1. ईरान के प्रति नीति (Policy Towards Perssia)-भौगोलिक दृष्टि से मुगल साम्राज्य की स्थिति वर्तमान भारत से थोड़ी भिन्न थी। उस समय पड़ोसी देशों में सबसे बड़ी सीमा ईरान में लगती थी। ऐसे में स्वाभाविक है कि दोनों के बीच कूटनीतिक संबंध भी रहे, तनाव की स्थितियाँ भी रहीं तथा संघर्ष भी हुआ। भारत व ईरान के बीच सामरिक व व्यापारिक महत्त्व का शहर कन्धार था। यही स्थल मुगलों व सफावियों के बीच झगड़े की जड़ रहा।

झगड़े की शुरुआत 1507 ई० में बाबर द्वारा कन्धार पर कब्जा करने से प्रारंभ हुई थी तथा उसके बाद यह इन दोनों वंशों के बीच प्रतिष्ठा का प्रतीक भी बन गया जिसके कारण दोनों के बीच लंबे समय तक कंधार पर अधिकार के लिए संघर्ष चला तथा 1649 में ईरान ने अन्ततः इस पर कब्जा कर लिया। शाहजहाँ ने तीन अभियान भेजे, परंतु वे सफल नहीं हो सके। इसके बाद कन्धार कभी भी मुग़ल साम्राज्य व भारत का हिस्सा नहीं रह सका। औरंगज़ेब ने कन्धार को प्राप्त करने की बजाय क्षेत्र में शान्ति को महत्त्व दिया।

2. तुर्की साम्राज्य से संबंध (Relation with Ottomans Empire)-ईरान से आगे तुर्की साम्राज्य था जिसे सामान्य भाषा में ऑटोमन साम्राज्य के नाम से जाना जाता है। इस साम्राज्य में वर्तमान सऊदी अरब, कुवैत, सीरिया, जॉर्डन, ईरान व पश्चिमी एशिया के कई और देश थे। मुगलकाल में ऑटोमन (तुर्की) साम्राज्य धार्मिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। धार्मिक दृष्टि से इसलिए क्योंकि मक्का व मदीना जैसे ऐतिहासिक शहर इस क्षेत्र में थे जिनके प्रति लोगों में श्रद्धा थी। दूसरा यह कि व्यापार का अन्तर्राष्ट्रीय मार्ग रेशम मार्ग इस क्षेत्र से गुजरता था। भारत का थल मार्ग से होने वाला 80% व्यापार इस क्षेत्र से होता था।

मुगल शासकों ने ऑटोमन साम्राज्य के बारे में यह नीति अपनाई कि उन्हें इस क्षेत्र के विदेशी व्यापार से जो लाभ होता था, उसका काफी हिस्सा वे इस क्षेत्र के धर्म स्थलों के विकास पर लगाते थे तथा कुछ पैसा फकीरों इत्यादि में बाँट देते थे। इसके कारण मुगलों की छवि भी बहुत उच्च बनी। मक्का व मदीना की देख-रेख करने वाले व्यक्तियों को मुगलों से आने वाले धन की प्रतीक्षा रहती थी।

औरंगजेब ने धन भेजने के कारणों व उद्देश्यों के बारे में विस्तृत जाँच करवाई। उसे पता चला कि इसके कारण मुगलों की अन्तर्राष्ट्रीय छवि तो जरूर अच्छी बनती है लेकिन धन का दुरुपयोग भी हो रहा है। इसलिए उसने इस धन को नियंत्रित किया तथा स्पष्ट किया कि इस धन का वितरण भारत में हो। औरंगजेब के इस कदम की प्रतिक्रिया भारत व मक्का-मदीना दोनों जगह हुई। यहाँ के कट्टरपंथियों ने इसे अनुचित करार दिया जबकि उदार लोगों ने सही व संतुलित कार्य कहा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऑटोमन साम्राज्य धार्मिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। मुगलों ने इसे उचित महत्त्व देकर कार्रवाई की।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
(A) 46 लाख वर्ष
(B) 460 करोड़ वर्ष
(C) 13.7 अरब वर्ष
(D) 13.7 खरब वर्ष
उत्तर:
(B) 460 करोड़ वर्ष

2. निम्न में से कौन-सी अवधि सबसे लम्बी है?
(A) इओन (Eons)
(B) महाकल्प (Era)
(C) कल्प (Period)
(D) युग (Epoch)
उत्तर:
(A) इओन (Eons)

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3. निम्न में से कौन-सा तत्त्व वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
(A) सौर पवन
(B) गैस उत्सर्जन
(C) विभेदन
(D) प्रकाश संश्लेषण
उत्तर:
(C) विभेदन

4. निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन से हैं?
(A) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(B) सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह
(C) वे ग्रह जो गैसीय हैं
(D) बिना उपग्रह वाले ग्रह
उत्तर:
(B) सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह

5. पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरम्भ हुआ?
(A) 1 अरब, 37 करोड़ वर्ष पहले
(B) 460 करोड़ वर्ष पहले
(C) 38 लाख वर्ष पहले।
(D) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले
उत्तर:
(D) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं?
उत्तर:
पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बने जहाँ अत्यधिक तापमान होने के कारण गैसें संघनित व घनीभूत न हो सकीं। गुरुत्वाकर्षण शक्ति की कमी के कारण ये चट्टानी रूप में हैं। पार्थिव ग्रह पृथ्वी की भाँति ही चट्टानों/शैलों और धातुओं से बने हैं, इसलिए ये चट्टानी हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधित दिए गए तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अंतर बताएँ (क) कान्ट व लाप्लेस (ख) चैम्बरलेन व मोल्टन
उत्तर:
(क) कान्ट व लाप्लेस इन वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ जोकि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे। कान्ट व लाप्लेस ने इसको नीहारिका परिकल्पना का नाम दिया।

(ख) चैम्बरलेन व मोल्टन-इन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड में एक अन्य भ्रमणशील तारे के सूर्य के नजदीक से गुजरने के कारण उसके गुरुत्वाकर्षण शक्ति के फलस्वरूप सूर्य की सतह से कुछ पदार्थ निकलकर अलग हुए और सूर्य के चारों ओर घूमने लगे। यही पदार्थ बाद में धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहों का रूप धारण करने लगा।

प्रश्न 3.
विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान व उत्पत्ति के तुरंत बाद अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी के कुछ भाग पिघल गए और तापमान की अधिकता के कारण हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थ अलग होने शुरू हो गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के अलग होने की इस प्रक्रिया को विभेदन प्रक्रिया कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन का विकास होने से पहले गर्म चट्टानें तथा असमतल धरातल पाया जाता था। पृथ्वी के वायुमण्डल में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसें अधिक मात्रा में विद्यमान थीं। परन्तु पृथ्वी की विभेदन प्रक्रिया के कारण बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले जिस कारण पृथ्वी का तापमान ठण्डा हुआ और आज से 380 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसें कौन-सी थीं?
उत्तर:
पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसें हाइड्रोजन और हीलियम थीं, जो काफी गर्म थीं। इन गैसों की उपलब्धता के कारण ही पृथ्वी तरल अवस्था में थी। प्रारंभिक दौर में पृथ्वी भी सूर्य की तरह काफी गर्म थी। पृथ्वी का यह वातावरण सौर पवनों के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। इन्हीं पवनों के प्रभाव के कारण सभी पार्थिव ग्रहों से आदिकालिक वायुमण्डल या तो दूर हो गया या समाप्त हो गया। यह वायुमंडल के विकास की प्रथम अवस्था थी।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
बिग बैंग सिद्धांत का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
कई प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं ने पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न परिकल्पनाएँ दीं। उन्होंने केवल पृथ्वी की ही नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति की गुथी को सुलझाने का प्रयास किया। 1920 ई० में प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता एडविन हब्बल ने ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में बताया। आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धान्त “बिग बैंग सिद्धान्त” है, जिसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहा जाता है। ब्रह्मांड के विस्तृत होने का कारण भी इसी परिकल्पना से पता चला। आकाशगंगाओं (Galaxies) के बीच बढ़ती दूरी के कारण ही ब्रह्मांड का विस्तार होने लगा।
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बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्नलिखित अवस्थाओं में हुआ-
(i) जिन पदार्थों से ब्रह्मांड बना है वे अति सूक्ष्म गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। इन पदार्थों का तापमान तथा घनत्व अनंत था।

(ii) वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग की घटना आज से लगभग 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग की प्रक्रिया में अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ, इस विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई, जिस कारण विस्तार की गति धीमी पड़ गई।

(iii) बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थों का निर्माण होने लगा तथा ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

निष्कर्ष-ब्रह्मांड के विकास का अर्थ है-आकाशगंगाओं के बीच दूरी में विस्तार होना। ब्रह्मांड के विस्तार का चरण आज भी जारी है परन्तु कई वैज्ञानिक इस पक्ष में नहीं हैं। जैसे कि वैज्ञानिक हॉयल ने इसका विकल्प ‘स्थित अवस्था संकल्पना’ के नाम से प्रस्तुत किया। परन्तु ब्रह्मांड के विकास और विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक वर्ग अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धान्त के पक्षधर हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था/चरण को संक्षेप में वर्णित करें।
उत्तर:
पृथ्वी का विकास विभिन्न अवस्थाओं में हुआ है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 460 करोड़ वर्ष पहले हुआ। पृथ्वी के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं
1. ब्रह्मांड की उत्पत्ति-आकाशगंगाओं के एक-दूसरे से दूर हो जाने के कारण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर अनेक वैज्ञानिकों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से बिग बैंग सिद्धान्त को सर्वसहमति से विश्वसनीय सिद्धान्त माना गया है।

2. पृथ्वी का तापमान आरंभ में पृथ्वी तरल अवस्था में थी क्योंकि पृथ्वी पर हाइड्रोजन और हीलियम गैस की अधिकता थी, जोकि काफी गर्म होती हैं। इसी गर्म अवस्था के कारण अधिक घनत्व वाले पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र पर आ गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की ऊपरी सतह पर आ गए।

3. तारों का निर्माण-

  • तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
  • एक आकाशगंगा अंसख्य तारों का समूह है। इनका विस्तार इतना अधिक होता है कि इनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापी जाती है।
  • एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है, जिसे निहारिका कहते हैं। निहारिका के झुंड बढ़ते-बढ़ते गैसीय पिंड में बदल गए जिनसे तारों का निर्माण हुआ।

4. वायुमंडल का विकास-आरंभ में वायुमंडल में नाइट्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प व अमोनिया अधिक मात्रा में और ऑक्सीजन बहुम कम थी। परन्तु वर्तमान वायुमंडल की तीन अवस्थाएँ हैं-

पहली अवस्था-प्रारंभिक वायुमंडल, जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, जो सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया।
दूसरी अवस्था-पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत-सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले, जिन्होंने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया।

तीसरी अवस्था-अंत में वायुमंडल की संरचना को जैव मंडल की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया ने संशोधित किया।

5. जीवन की उत्पत्ति-पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है।
निष्कर्ष-ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। एक कोशीय जीवाणु से आज के मनुष्य तक जीवन के विकास का सार भूवैज्ञानिक काल मापक्रम से प्राप्त किया जा सकता है।

पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास HBSE 11th Class Geography Notes

→ अन्तरिक्ष (Universe)-अन्तरिक्ष का न कोई आदि है और न ही अन्त। अन्तरिक्ष में छोटे व बड़े आकार की अरबों मन्दाकिनियाँ अथवा तारकीय समूह (Galaxies) हैं। प्रत्येक तारकीय समूह में लाखों सौरमण्डल हैं। अनुमान है कि अन्तरिक्ष में 2 अरब सौरमण्डल हैं। औसतन एक मन्दाकिनी का व्यास 30,000 प्रकाश वर्षों (Light years) की दूरी जितना होता है। दो मंदाकिनियों के बीच 10 लाख प्रकाश वर्ष जितनी औसत दूरी होती है। हमारा सौरमण्डल आकाश गंगा नामक मन्दाकिनी में है, जो अन्तरिक्ष में नगण्य-सा स्थान रखती है, जबकि इसमें सूर्य जैसे तीन खरब तारे होने का अनुमान है।

→ ग्रह (Planet)-ग्रह प्रकाशहीन व अपारदर्शी वे आठ आकाशीय पिण्ड हैं जो अपनी कीली पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) पथ पर चक्कर लगाते हैं। ग्रह सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं।

→ अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force)-किसी तीव्र गति से घूमती वस्तु के केन्द्र से बाहर की ओर उड़ने या छिटक जाने की प्रवृत्ति को पैदा करने वाला बल। इसके विपरीत अभिकेन्द्री बल (Centripetal Force) होता है, जिसमें वस्तु केन्द्र की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 1

→ धूमकेतु या पुच्छल तारे (Comets) शैलकणों, धूल, गैसों से विरचित सौर परिवार के इस विलक्षण सदस्य का सिर प्रायः ठोस होता है जिसके पीछे पारदर्शी, चमकीली लम्बी पूँछ होती है। ये दीर्घ कक्षाओं में सूर्य का परिक्रमण करते हैं और उसके काफी निकट आने पर दृष्टिगोचर होते हैं। उदाहरणतः 76 वर्षों बाद दिखने वाला हेली धूमकेतु पिछली बार सन् 1986 में दिखाई दिया था।

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→ गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)-ब्रह्माण्ड में हर पिण्ड अन्य पिण्डों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। इसका परिमाण पिण्ड के द्रव्यमान (mass) का समानुपाती है अर्थात् जो पिण्ड जितना अधिक भारी होता है, उसका गुरुत्वाकर्षण उतना ही अधिक होता है तथा पिंडों के बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् पिण्डों के बीच की दूरी बढ़ने के साथ गुरुत्वाकर्षण घटता है; यदि दूरी दुगुनी हो जाए तो गुरुत्वाकर्षण \(\frac { 1 }{ 4 }\) रह जाएगा, यदि दूरी तिगुनी हो जाए तो गुरुत्वाकर्षण \(\frac { 1 }{ 9 }\) रह जाएगा आदि।

→ कैल्विन पैमाना (Kelvin Scale)-उष्मागतिक (Thermodynamic) तापमान की इकाई जिसका नाम ब्रिटिश भौतिकशास्त्री लॉर्ड कैल्विन (1824-1907) के नाम पर रखा गया है। इस पैमाने में हिमांक को 273k तथा भाप बिन्दु को 373k अंकित किया जाता है और बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक भाग 1k कहलाता है।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

HBSE 12th Class History राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुग़लकालीन भारत में मुद्रण कला का विकास नहीं हुआ था। इसलिए सभी इतिवृत्तों की रचना पांडुलिपियों (हस्तलिखित ग्रंथ) के रूप में हुई। पांडुलिपियों की रचना का मुख्य केन्द्र ‘शाही किताबखाना’ कहलाता था। फारसी भाषा में किताबखाना का आम अर्थ पुस्तकालय से लिया जाता है। मुगलकाल में किताबखाना पुस्तकालय से भिन्न था। किताबखाना सही अर्थों में लिपिघर था जहाँ बादशाह के आदेशानुसार लेखक व उनके सहयोगी सुबह से शाम तक पांडुलिपियों की रचना में व्यस्त रहते थे।

इसी स्थान पर लिखी गई पांडुलिपियों को संग्रह करके रखा भी जाता था। किताबखाना काफी बड़ा तथा सुनियोजित स्थल था। वहाँ मात्र लेखक ही नहीं होते थे, बल्कि विविध प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्ति होते थे।

ये सभी किताबखाना के नेतृत्व में कार्य करते थे। पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया में सबसे पहले कागज व उसके पन्ने बनाने वाले कारीगर कार्य करते थे। इसी तरह स्याही बनाने वालों का वर्ग था। कागज व स्याही के तैयार होने पर लेखक लिखता था। फिर उन पृष्ठों पर चित्रकार लेखक की सलाह के अनुरूप चित्र बनाता था। लेखन व चित्र कार्य होने के बाद जिल्दसाज जिल्द चढ़ाता था। इस तरह पांडुलिपि एक. पूरी प्रक्रिया के तहत तैयार होती थी।

प्रश्न 2.
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?
उत्तर:
मुग़ल शासकों ने भारत में सत्ता स्थापित करने के बाद मध्य-एशिया, ईरान व प्राचीन भारतीय शासन-व्यवस्था को अपनाकर इस तरह की परम्पराएँ अपनाईं जिससे राज्य मजबूत हुआ। इसके साथ ही शासक की सत्ता भी जनता के मन में बैठी। इसके लिए दरबार के अग्रलिखित प्रतीकों को लिया गया है

1. राज सिंहासन-सम्राट का केंद्र बिंदु राज सिंहासन था जिसने संप्रभु के कार्यों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया था। इसे ऐसे आधार के रूप में स्वीकार किया जाता था जिस पर पृथ्वी टिकी हुई है।

2. अधिकारियों के बैठने के स्थान प्रत्येक अधिकारी (दरबारी) की हैसियत का पता उसके बैठने के स्थान से लगता था। जो दरबारी जितना सम्राट के निकट बैठता था उसे उतना ही सम्राट् के निकट समझा जाता था।

3. सम्मान प्रकट करने का तरीका-शासक को किये गये अभिवादन के तरीके से भी अभिवादनकर्ता की हैसियत का पता चलता था।

4. दिन की शुरुआत-बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था।

5. सार्वजनिक सभा (दीवान-ए-आम)-बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों को पूरा करने के लिए दीवान-ए-आम में आता था। वहाँ राज्य के अधिकारी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे।

6. खास उत्सवों के अवसर-अनके धार्मिक त्योहार; जैसे होली, ईद, शब-ए-बारात आदि त्योहारों का आयोजन खूब ठाट-बाट से किया जाता था।

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प्रश्न 3.
मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल में शाही परिवार की महिलाएँ मुख्य रूप से हरम में रहती थीं। हरम की सारी व्यवस्था का संचालन वे स्वयं करती थीं। हरम में सभी महिलाओं की स्थिति एक जैसी नहीं थी। इसके अतिरिक्त कई बार शाही परिवार की महिलाएँ भी राजनीति में सक्रिय रहती थीं। उदाहरण के लिए नूरजहाँ के राजनीति में आने के बाद हरम की स्थिति व पहचान दोनों बदल गईं। 1611 ई० से 1626 ई० तक जहाँगीर के शासन काल में नूरजहाँ ने प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लिया।

वह झरोखे पर बैठती थी तथा सिक्कों पर उसका नाम आता था। ‘नूरजहाँ गुट’ सही अर्थों में जहाँगीर के शासन में सारे फैसले करता था। जहाँगीर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मैंने बादशाहत नूरजहाँ को दे दी है, मुझे कुछ प्याले शराब तथा आधा सेर माँस के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। शाहजहाँ के शासन काल में उसकी पुत्री जहाँआरा तथा रोशनआरा लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक फैसलों में शामिल होती थीं। वे उच्च पदों पर आसीन मनसबदारों की भाँति वार्षिक वेतन लेती थीं।

आर्थिक तौर पर सम्पन्न होने पर हरम की प्रमख महिलाओं ने इमारतों व बागों का निर्माण कार्य कराया। नरजहाँ ने आगरा में एतमादुद्दौला (अपने पिता) के मकबरे का निर्माण करवाया। शालीमार व निशात बागों को बनवाने में भी उसकी मुख्य भूमिका थी। इसी प्रकार दिल्ली में शाहजहाँनाबाद की कई कलात्मक योजनाओं में जहाँआरा की भूमिका थी। उसने शाहजहाँनाबाद में आँगन, बाग व चाँदनी चौक की रूप रेखा तैयार की। शाही परिवार की महिलाएँ प्रायः शिक्षित भी होती थीं। इसलिए साहित्य लेखन में भी अपनी भूमिका अदा करती थीं। गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामा नामक पुस्तक लिखी। अतः स्पष्ट है कि शाही परिवार की महिलाएँ हरम व राजनीतिक मामलों में सक्रिय रहती थीं।

प्रश्न 4.
वे कौन-से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?
उत्तर:
मुग़ल जिस तरह आन्तरिक व्यवस्था पर ध्यान देते थे उसी तरह उनकी विदेश नीति भी काफी परिपक्व थी। शासक जिस तरह की उपाधियों या पदवियों को धारण करते थे उनका असर पड़ोसी राज्यों पर अवश्य होता था। जहाँगीर (विश्व पर कब्जा करने वाला), शाहजहाँ (विजय का शासक) तथा आलमगीर (विजय का स्वामी) द्वारा धारण की गई उपाधियाँ खास थीं।

मुग़ल अविजित क्षेत्रों पर भी राजनीतिक नियंत्रण बनाने के लिए कदम उठाते रहते थे तथा एक बार विजित करने के उपरांत उस पर हमेशा के लिए अधिकार के लिए कार्य करते थे। इससे स्पष्ट होता है कि मुगल अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे, उनकी इस नीति के आधार पर ही उनके पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का निर्धारण होता था।

इन रिश्तों में कूटनीतिक चाल व संघर्ष साथ-साथ चलता था। इस कड़ी में पड़ोसी राज्यों के साथ क्षेत्रीय हितों के तनाव व राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। इसके साथ-साथ दूतों का आदान-प्रदान भी होता रहता था। उनकी विभिन्न देशों तथा धर्मों के प्रति नीति ने उनके प्रभाव को स्थापित किया। इनके निम्नलिखित मुख्य पक्ष थे

1. ईरानियों एवं तूरानियों से संबंध-मुग़ल बादशाहों के ईरान व मध्य एशिया के पड़ोसी देशों से राजनीतिक रिश्ते हिंदूकुश पर्वतों द्वारा निर्धारित सीमा पर निर्भर करते थे।

2. कंधार का किला-नगर-यह किला मुगलों तथा सफावियों के बीच झगड़े का मुख्य कारण था। आरंभ में यह किला नगर हुमायूँ के अधिकार में था। सन् 1595 में अकबर ने इस पर दोबारा कब्जा कर लिया। जहाँगीर ने शाह अब्बास के दरबार में कंधार को मुग़ल अधिकार स्वीकारने को कहा परंतु सफलता नहीं मिली। क्योंकि शाह ने 1621 ई० में इस पर कब्जा कर लिया। शाहजहाँ ने 1638 ई० में इसे फिर जीत लिया। 1649 ई० में सफावी शासकों ने इस पर फिर अधिकार कर लिया। अतः यह मुगलों व ईरान के बीच झगड़े की जड़ रहा।

3. ऑटोमन साम्राज्य : तीर्थयात्रा और व्यापार-ऑटोमन राज्य के साथ अपने संबंधों में मुगल बादशाह धर्म और व्यापार को मिलाने की कोशिश करते थे। वे बिक्री से अर्जित आय को धर्मस्थलों व फकीरों में दान में बाँट देते थे। औरंगजेब को अरब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग का पता चला तो उसने भारत में उसके वितरण का समर्थन किया।

4. ईसाई धर्म-मुग़ल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृत्तांत सबसे पुराना है। पन्द्रहवीं शताब्दी के अंत में भारत तक सीधे समुद्र की खोज का अनुसरण करते हुए पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय नगरों में व्यापारिक केंद्रों का जाल स्थापित किया। इस प्रकार ईसाई धर्म भारत में आया। इन बातों से स्पष्ट है कि मुगल अपनी स्थिति के प्रति सचेत थे। इसलिए बाह्य शक्तियों पर अपना दबाव बनाने के लिए कार्य करते रहते थे।

प्रश्न 5.
मुग़ल प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केंद्र किस तरह से प्रांतों पर नियंत्रण रखता था ?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य काफी विस्तृत था। एक जगह से उसकी व्यवस्था संचालित नहीं हो सकती थी। मुगलों ने इसे आगे विभिन्न इकाइयों में विभाजित किया था। इन्हें प्रांत या सूबा कहा जाता था। इन इकाइयों में भी केन्द्रीय व्यवस्था की तरह हर स्तर (छोटे-बड़े) के अधिकारी व नौकरशाह होते थे। उनके संबंध शाही दरबार से निरंतर रहते थे।

प्रांतों का आकार एक-जैसा नहीं था लेकिन इनके नाम भौगोलिकता के अनुरूप थे। सूबे का मुखिया सबेदार होता था जिसकी नियुक्ति शासक द्वारा की जाती थी। वह उसी के प्रति जिम्मेदार होता था। सूबेदार की सहायता के लिए दीवान, बख्शी तथा सद्र के नाम से सहायक वजीर (मंत्री) होते थे। वे सूबेदार के सहयोगी अवश्य थे लेकिन इनकी नियुक्ति भी प्रत्यक्षतः शासक द्वारा की जाती थी। इस तरह सूबेदार स्वतंत्र होते हुए भी नियंत्रण में था। अकबर के काल में सूबों की संख्या 15, जहाँगीर के काल में 17, शाहजहाँ के काल में 22 तथा औरंगजेब के काल में 21 थी।

जैसे संपूर्ण राज्य सूबों में विभाजित था, उसी तरह सूबे सरकारों में विभाजित थे। सरकार में सबसे बड़ा अधिकारी फौजदार था। किसी सूबे में सरकारों की संख्या कितनी होगी यह निश्चित नहीं था। सरकार को आगे परगनों में विभाजित किया गया था। परगना का स्तर वर्तमान जिले का रहा होगा। परगना स्तर पर कानूनगो, चौधरी व काजी नामक अधिकारी थे। कानूनगो, राजस्व का रिकॉर्ड रखने वाला अधिकारी था जबकि चौधरी का मुख्य कार्य राजस्व संग्रह करना था।

ये दोनों अधिकारी वंशानुगत थे। प्रशासन में सबसे छोटी इकाई गाँव थी। इसकी व्यवस्था ग्राम पंचायत देखती थी। मुग़लों का प्रांतीय शासन केंद्र से अलग-थलग नहीं था बल्कि तंत्र का एक हिस्सा था। विभिन्न प्रांतों व उसकी इकाइयों के अधिकारियों का तबादला प्रति वर्ष या दो वर्ष में किया जाता था। मगलों के प्रशासन की पकड गाँव तक थी। मगल अपने अधिकारियों को स देते थे। इस तरह प्रान्त के अनियन्त्रित होने की गुंजाइश नहीं थी।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
उदाहरण सहित मुग़ल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
अथवा
इतिवृत्त की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
इतिवृत्त (क्रॉनिकल्स) मुगलकालीन इतिहास की जानकारी का बहुत महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। सभी मुग़ल शासकों ने इतिवृत्तों के लेखन की ओर विशेष ध्यान दिया। इतिवृत्त के विभिन्न आयामों व पक्षों का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है-

1. रचना के उद्देश्य-मुगलकाल में रचे गए इतिवृत्त बहुत सोची-समझी नीति का उद्देश्य थे। विभिन्न इतिहासकारों व विद्वानों ने इस बारे में अपने-अपने मतों की अभिव्यक्ति की है जिनमें से ये पक्ष उभरकर सामने आते हैं

  • इतिवृत्तों के माध्यम से मुगल शासक अपनी प्रजा के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि बनाना चाहते थे।
  • इतिवृत्तों के वृत्तांत के माध्यम से शासक उन लोगों को संदेश देना चाहते थे जिन्होंने राज्य का विरोध किया था तथा भविष्य में भी कर सकते थे। उन्हें यह बताना चाहते थे कि यह राज्य बहुत शक्तिशाली है तथा उनका विद्रोह कभी सफल नहीं होगा।
  • इतिवृत्तों के माध्यम से शासक अपने राज्य के विवरणों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते थे।

2. इतिवृत्तों की विषय-वस्तु-मुग़ल शासकों ने इतिवृत्त लेखन का कार्य दरबारियों को दिया। अधिकतर इतिवृत्त शासक की देख-रेख में लिखे जाते थे या उसे पढ़कर सुनाए जाते थे। कुछ शासकों ने आत्मकथा लेखन का कार्य स्वयं किया। इस माध्यम से ये शासक स्वयं को प्रबुद्ध वर्ग में स्थापित करना चाहते थे, साथ ही अन्य लेखकों का मार्गदर्शन भी करना चाहते थे। इन सभी पक्षों से यह स्पष्ट होता है कि इन इतिवृत्तों के केन्द्र में स्वयं शासक व उसका परिवार रहता था। इस कारण इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासक, शाही परिवार, दरबार, अभिजात वर्ग, युद्ध व प्रशासनिक संस्थाएँ रहीं। इन इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासकों के नाम अथवा उनके द्वारा धारण उपाधियों की पुष्टि भी करना था।

3. भाषा-मुग़ल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गये थे। क्योंकि मुगलों की मातृभाषा तुर्की थी। इनके पहले शासक बाबर ने कविताएँ और संस्मरण तुर्की में लिखे थे।

4. अनुवाद-बाबर के संस्मरणों का बाबरनामा के नाम से तुर्की से फारसी भाषा में अनुवाद किया गया था। महाभारत और रामायण का अनुवाद भी फारसी भाषा में हुआ।

5. शिल्पकारों का योगदान-पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले लोग शामिल होते थे; जैसे चित्रकार, जिल्दसाज तथा आवरणों को अलंकृत करने वाले लोग।

6. मुगल काल के प्रमुख इतिवृत्त-मुगलकाल के प्रमुख इतिवृत्त यह है

बाबरनामा या तुक-ए-बाबरी लेखक बाबर, हुमायूँनामा लेखिका हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम, अकबरनामा-लेखक अबुल फज्ल, तुक-ए-जहाँगीरी लेखक जहाँगीर, शाहजहाँनामा लेखक मामुरी, बादशाहनामा (शाहजहाँ पर आधारित) लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी, आलमगीरनामा लेखक मुहम्मद काजिम । इन इतिवृत्तों के नामों से स्पष्ट होता है कि ये इतिवृत्त शासक-विशेष के साथ जुड़े हैं तथा या तो स्वयं का वृत्तांत हैं या दरबारी द्वारा अपने संरक्षण का विवरण है।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 7.
इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री किस हद तक अबल फज्ल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से मेल खाती है?
उत्तर:
अकबर के दरबारी लेखक अबुल फज़्ल ने चित्रकारी को ‘जादुई कला’ कहा है। वह कहता है कि चित्रकारी निर्जीव को सजीव की भाँति प्रस्तुत करने की क्षमता रखती है। इसलिए वह तसवीर के वर्णन में चित्रकारों की प्रशंसा करता है। अबुल फज्ल ने अपने वृत्तांत में अकबर के विचारों को उद्धत किया है कि बादशाह कहते हैं, “कई लोग ऐसे हैं जो चित्रकला से घृणा करते हैं पर मैं ऐसे व्यक्तियों को नापसंद करता हूँ।

मुझे लगता है कि कलाकार के पास खुदा को समझने का बेजोड़ तरीका है। चूंकि कहीं-न-कहीं उसे यह महसूस होता है कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता।”

इस्लाम सामान्य रूप से प्राकृतिक चित्रों की चित्रकारी का समर्थन नहीं करता। ऐसी धारणा है कि चित्रकारी एक सृजन है जबकि सृजन का अधिकार केवल खुदा के पास है। इसलिए कुरान और हदीस में मानव रूपों के चित्रण पर प्रतिबंध का वर्णन है। उसी वर्णन के अनुरूप उलेमा (धर्मशास्त्री) चित्रकारी को गैर-इस्लामी घोषित करते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि कलाकार अपने इस कार्य से खुदा की रचना करने की शक्ति को अपने हाथ में लेने का प्रयास करता है।

हमें मुगलकाल में शासकों तथा कट्टरपंथी धर्मशास्त्रियों के बीच निरंतर तनाव दिखाई देता है। उलेमा शासक की गतिविधियों को धर्म-विरोधी बताते हैं जबकि शासक इसे मानव भावों की अभिव्यक्ति तथा खुदा को समझने का मार्ग बताते हैं।

अबुल फज़्ल के वर्णन के आधार पर शासकों ने धर्म की कट्टरता को महत्त्व न देते हुए चित्रकला को महत्त्व दिया। इससे चित्रकला की व्याख्या ही बदल गई। जैसा कि स्पष्ट किया गया है कि इस्लाम प्राकृतिक चीजों व रूपों के चित्रण की आज्ञा नहीं देता, इसके बाद भी मुगलकाल में चित्रकारी खूब फली-फूली। समय के साथ इस्लाम में विश्वास करने वाले विद्वानों व धर्मशास्त्रियों ने चित्रकारी के बारे में नई व्याख्याएँ की, जिसके कारण मोटे तौर पर धारणा में बदलाव आया। मात्र कुछ रूढ़िवादी चिन्तक ऐसे थे जो बाद तक भी विरोध करते रहे।

नए व्याख्याकारों ने राज्य की राजनीतिक आवश्यकता के अनुरूप इसे उचित बताया। इस व्याख्या के अनुसार स्पष्ट किया गया कि इससे शासक व जनता के बीच की दूरी में कमी आती है तथा राजा व प्रजा एक-दूसरे के भाव समझ पाते हैं। शासक केवल किसी एक धर्म विशेष का नहीं है। ईरान के मुस्लिम शासकों (सफावी) ने भी चित्रकारी को संरक्षण दिया। इसके लिए कार्यशालाएँ आयोजित कीं। इन सबका प्रभाव भी मुगल शासकों पर पड़ा। अतः चित्रकारी संबंधी नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसमें चित्रकारी को धर्म विरोधी घोषित न कर, सांस्कृतिक विकास का पहलू घोषित किया।

नई व्याख्याओं के चलते हुए मुगल दरबार चित्रकारों के लिए संरक्षण क्षेत्र बन गया। कुछ कलाकार; जैसे मीर सैय्यद अली, अब्दुस समद व विहजाद ईरान से भारत आए। अकबर के समय केसू, जसवन्त, बसावन जैसे हिन्दू कलाकार भी दरबार में पहुंचे। अकबर सप्ताह में एक दिन चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन करवाता था। उसी परंपरा को जहाँगीर ने आगे बढ़ाया। उसका काल चित्रकला की दृष्टि से स्वर्ण काल माना जाता था।

मुगल शासकों ने पांडुलिपि चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया। अकबर के काल में चित्रित होने वाली मुख्य पांडुलिपियों में बाबरनामा, हुमायूँनामा, अकबरनामा, हम्जनामा, रज्मनामा (महाभारत का अनुवाद), तारीख-ए-अल्फी व तैमूरनामा थीं। बाद के शासकों ने अपने इतिवृत्तों विशेषकर तुक-ए-जहाँगीरी व शाहजहाँनामा को चित्रित करवाया। इसके साथ ही उन्होंने पहले लिखे गए इतिवृत्तों की और पांडुलिपियों को तैयार करवाकर उन्हें चित्रित करवाया।

ये पांडुलिपियाँ सैकड़ों की संख्या में किताबखाना में रखी गई थीं। मुग़ल शासकों द्वारा जिस तरह से पांडुलिपियों को चित्रित करवाया गया, उसकी नकल यूरोप के शासकों ने भी की। इस काल में चित्रित पुस्तकों को उपहार में देना एक प्रकार की परंपरा बन गई थी।

प्रश्न 8.
मुगल.अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके संबंध किस तरह बने?
उत्तर:
मुगलकाल के नौकरशाहों यानी अधिकारियों के समूह को अभिजात वर्ग का नाम दिया गया है। इस समूह में विभिन्न क्षेत्रों व धार्मिक समूहों के लोग थे। मुगल शासक इस बात का ध्यान रखते थे कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह संगठित होकर राज्य के लिए चुनौती बन जाए। यह नौकरशाहों का समूह उस गुलदस्ते जैसा था जिसमें अलग-अलग रंग तथा अलग-अलग किस्म के फूल हैं, लेकिन वे एक मुट्ठी में बंधकर शोभा प्रदान करने की स्थिति में हों। ये चाहे किसी धर्म या क्षेत्र से हों, इनकी खास बात यह थी कि ये शासक के प्रति वफादार थे।

अकबर के शासन काल के प्रारंभिक दौर में इस अभिजात वर्ग में तुरानी (मध्य-एशिया) तथा ईरानी मुख्य थे। 1560 ई० के। बाद अभिजात वर्ग में बदलाव आया। इसमें दो वर्ग और जुड़े। ये राजपूत तथा भारतीय मुसलमान थे। राजपूत परिवारों से सर्वप्रथम आमेर (अंबर) का राजा भारमल (बिहारीमल) था जिसने वैवाहिक राजनीतिक संबंधों द्वारा अकबर के अभिजात वर्ग में प्रवेश किया।

जहाँगीर के काल में अभिजात वर्ग की मौलिक संरचना वही बनी रही, परंतु अधिक ऊँचे पदों पर ईरानी पहुँचने में सफल रहे। इसका मुख्य कारण नूरजहाँ थी क्योंकि वह स्वयं ईरान से आई थी। उसके पिता ग्यास बेग, भाई आसफ खाँ इत्यादि बहुत ऊँचे पदों तक पहुँचे। उनके साथ संबंधों का फायदा उठाकर अन्य ईरानी भी आगे बढ़ गए। शाहजहाँ के काल में अभिजात वर्ग सन्तुलित था। उसमें भारतीय व विदेशी सभी शामिल थे। औरंगजेब के समय भी स्थिति लगभग इसी तरह की रही।

सामान्यतः यह कहा जाता है कि उसने यह पद केवल सुन्नीओं के लिए रखे थे। परंतु आंकड़े बताते हैं कि उसके दरबार में राजपूत व मराठे काफी अच्छी संख्या में थे। सिंहासन ग्रहण करने के समय तथा मृत्यु तक संख्या में कमी नहीं आई बल्कि आंकड़े वृद्धि दर्ज कराते थे।

मुग़ल साम्राज्य सैन्य प्रधान राज्य था। इसलिए अभिजात वर्ग की सेना संबंधित गतिविधियों को बहुत महत्त्व दिया जाता था। अभिजात वर्ग के सदस्य सैन्य अभियानों का नेतृत्व भी करते थे साथ ही केन्द्र व प्रान्त स्तर पर अधिकारी के रूप में कार्य भी करते थे। वे अपनी टुकड़ी के सैनिक प्रमुख होते थे। उन्हें अपने सैनिकों व घुड़सवारों को भर्ती करना होता था। इन सैनिक व घुड़सवारों के लिए हथियार, रसद व प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी मनसबदार की होती थी।

उसके घोड़ों की पीठ के दोनों ओर मुगलों का शाही निशान बना होता था। उसके मुखिया तथा घोड़े का नम्बर भी दर्ज होता था। शासक विभिन्न अवसरों पर नियमित रूप से इन अधिकारियों की सेना का निरीक्षण करता था। समय के साथ बदलाव के चलते हुए शासक व अभिजात वर्ग के बीच रिश्ते मुरीद व मुर्शीद जैसे बन गए थे। कुछ के साथ रिश्ते बहुत अधिक अपनेपन के भी थे।

मुगल दरबार में नौकरी पाना बेहद कठिन कार्य था। दूसरी ओर अभिजात व सामान्य वर्ग के लोग शाही सेवा को शक्ति, धन व उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा का एक साधन मानते थे। नौकरी में आने वाले व्यक्ति से आवेदन लिया जाता था, फिर मीरबख्शी की जाँच-पड़ताल के बाद उसे दरबार में प्रस्तुत होना होता था। मीरबख्शी के साथ-साथ दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) तथा सद्र-उस-सद्धर (जन कल्याण, न्याय व अनुदान का मंत्री) भी उस व्यक्ति को कागज तैयार करवाकर अपने-अपने कार्यालयों की मोहर लगाते थे।

फिर वे शाही मोहर के लिए मीरबख्शी के द्वारा ले जाए जाते थे। ये तीनों मंत्री दरबार में दाएँ खड़े होते थे, बाईं ओर नियुक्ति व पदोन्नति पाने वाला व्यक्ति खड़ा होता था। शासक उससे कुछ औपचारिक बात करके उसे दरबार के प्रति वफादार रहने की बात कहता था तथा संकेत करता था कि वह किस स्थान पर खड़ा हो। इस तरह उस व्यक्ति की नियुक्ति तथा पदोन्नति मानी जाती थी।

शासक द्वारा नौकरशाहों पर नियंत्रण के लिए कुछ नियम बनाए गए थे। उनके अनुसार शासक सामान्य रूप से इनके प्रति कठोर व्यवहार रखता था। नियमित निरीक्षण में इन्हें किसी तरह की छूट नहीं थी। थोड़ा-सा भी शक होने या अनुशासन की उल्लंघना करने पर इन्हें दण्ड दिया जाता था। इनकी कभी भी कहीं भी बदली की जा सकती थी। कोई भी अधिकारी किसी भी कार्य को करने की मनाही नहीं कर सकता था। इन सबके अतिरिक्त यह कि इनका पद पैतृक नहीं होता था अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को नए सिरे से जीवन की शुरुआत करनी होती थी। किसी भी अभिजात वर्ग के व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति, उसकी सन्तान को नहीं दी जाती थी बल्कि यह स्वतः ही बादशाह या दरबार की सम्पत्ति बन जाती थी।

प्रश्न 9.
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
मुग़लों ने भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक शासन किया। उन्होंने अपने शासन में कुछ सिद्धान्तों को महत्त्व दिया। ये सिद्धांत भारत की परंपरागत शासन-व्यवस्था से भी जुड़े तथा दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों से भी। इनके राजत्व के सिद्धांत में मध्य-एशियाई तत्त्व भी थे तो ईरान का प्रभाव भी साफ दिखाई देता है। इनके राजत्व के आदर्शों को विभिन्न इतिवृत्तों में विशेष जगह मिली है। कई स्थानों पर तो इतिवृत्त मुगल राजत्व सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या भी करते हैं। मुग़ल इतिवृत्तों में मुग़ल राज्य को आदर्श राज्य वर्णित किया है जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रस्तुत की हैं

1. मुगल राज्य : एक दैवीय राज्य-मुगलकाल के सभी इतिवृत्त इस बात की जानकारी देते हैं कि मुगल शासक राजत्व के दैवीय सिद्धान्त में विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि उन्हें शासन करने की शक्ति स्वयं ईश्वर ने प्रदान की है। ईश्वर की इस तरह की कृपा सभी व्यक्तियों पर नहीं होती, बल्कि व्यक्ति-विशेष पर ही होती है।
मुगल शासकों के दैवीय राजत्व के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्त्व अबुल फज़्ल ने दिया। वह इसे फर-ए-इज़ादी (ईश्वर से प्राप्त) बताता है। वह इस विचार के लिए प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1191 में मृत्यु) से प्रभावित था। उसने इस तरह के विचार ईरान के शासकों के लिए प्रस्तुत किए थे।

2. सुलह-ए-कुल : एकीकरण का एक स्रोत-मुग़ल इतिवृत्त साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनों, ज़रतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किए हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं। सभी तरह की शांति और स्थायित्व के स्रोत रूप में बादशाह सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों से ऊपर होता था, इनके बीच मध्यस्थता करता था तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे। अबुल फज्ल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।

मुगल शासक विशेषकर अकबर ने धर्म व राजनीति दोनों के संबंधों को समझने का प्रयास किया। उसने इनकी सीमा व महत्त्व को समझा। इस समझ के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरी तरह धर्म का त्याग संभव नहीं है लेकिन धर्म की कट्टरता को त्यागकर अवश्य चला जाए। उसने धर्म को राजनीति से भी थोड़ा दूर करने का प्रयास किया। इस कड़ी में उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर, यह सन्देश दिया कि गैर-इस्लामी प्रजा से कोई भेद-भाव नहीं किया जाएगा। उसने युद्ध में पराजित सैनिकों को दास बनाने पर रोक लगाई तथा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गैर-कानूनी घोषित किया। अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ-वध को देशद्रोह घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी।

3. सामाजिक अनुबंध पर आधारित न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता-मुग़ल शासकों ने न्याय को विशेष महत्त्व दिया। वे यह मानते थे कि न्याय व्यवस्था ही उनसे सही अर्थों में प्रजा के साथ संबंधों की व्याख्या है। अबुल फज्ल ने अकबर के प्रभुसत्ता के सिद्धांत को स्पष्ट किया है। उसके अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के चार तत्त्वों-जीवन (जन), धन (माल), सम्मान और विश्वास (दीन) की रक्षा करता है। इसके बदले में जनता से आशा करता है कि वह राजाज्ञा का पालन करे तथा अपनी आमदनी (संसाधनों) में से कुछ हिस्सा राज्य को दे। अबुल फज़्ल स्पष्ट करता है कि इस तरह का चिन्तन किसी न्यायपूर्ण संप्रभु का ही हो सकता है जिसे दैवीय मार्गदर्शन प्राप्त हो।

मुग़ल शासकों ने सामाजिक अनुबंध पर आधारित न्याय को अपनाया तथा जनता में प्रचारित भी किया। इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रतीकों को प्रयोग में लाया गया। इसमें सर्वाधिक कार्य चित्रकारों के माध्यम से करवाया गया। मुगल शासकों ने दरबार तथा सिंहासन के आस-पास विभिन्न स्थानों पर जो चित्रकारी करवाई उसमें वो शेर तथा बकरी या शेर तथा गाय साथ-साथ बैठे दिखाई देते हैं। उनकी चित्रकारी जनता को यह सन्देश देने का साधन था कि इस राज्य में सबल या दुर्बल दोनों परस्पर मिलकर रह सकते हैं। इनमें भी कुछ चित्रों में शासक को शेर पर सवार दिखाया गया है जो इस बात का संदेश है कि उसके साम्राज्य में उनसे शक्तिशाली कोई नहीं था।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
विश्व मानचित्र के एक रेखाचित्र पर उन क्षेत्रों को अंकित कीजिए जिनसे मुगलों के राजनीतिक व सांस्कृतिक संबंध थे।
उत्तर:
इसके लिए विद्यार्थी विश्व के मानचित्र में वर्तमान अफगानिस्तान, ईरान, अरब क्षेत्र के देश, तुर्की, उजबेगिस्तान व मध्य एशिया के देशों को दिखाएँ।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

परियोजना कार्य

प्रश्न 11.
किसी मुग़ल इतिवृत्त के विषय में और जानकारी ढूंढिए। इसके लेखक, भाषा, शैली और विषयवस्तु का वर्णन करते हुए एक वृत्तांत तैयार कीजिए। आपके द्वारा चयनित इतिहास की व्याख्या में प्रयुक्त कम-से-कम दो चित्रों का, बादशाह की शक्ति को इंगित करने वाले संकेतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल के इतिवृत्त या वृत्तांत में से किसी एक का चयन करते हुए हम अकबरनामा को चुन सकते हैं तथा यह जानकारी ले सकते हैं।

  • वृत्तांत (इतिवृत्त का नाम)-अकबरनामा
  • लेखक – अबुल फल
  • शैली – दरबारी लेखन
  • भाषा – फारसी
  • विषय-वस्तु – अकबर के काल की घटनाओं का विवरण

इस बारे में विस्तृत जानकारी आप जे०बी०डी० पुस्तक में मुख्य इतिवृत्त के रूप में वर्णित अकबरनामा के संदर्भ में जानकारी से ले सकते हैं।

मौलिक रूप में इस पुस्तक में 150 से अधिक चित्र दिए गए हैं। इन चित्रों को पुस्तक की मूल प्रति, इंटरनेट तथा राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में रखी चित्रकारियों में देख सकते हैं। इन चित्रों में दरबार से संबंधित किन्हीं भी दो चित्रों को देख सकते हैं, इन चित्रों में आप पाएँगे कि शासक के बैठने की जगह अन्यों से ऊँची है तथा अन्य दरबारी भी एक निश्चित क्रम में बैठे हैं। इस तरह शासक के बैठने के स्थान पर आप प्रायः शेर तथा बकरी या शेर तथा गाय के चित्र पाएंगे।

इसका अर्थ स्पष्ट है कि शासक शक्तिशाली-से-शक्तिशाली व सामान्य-से-सामान्य दोनों का रक्षक है। शासक अपनी परंपरा व बादशाह की शक्ति को इन संकेतों से प्रदर्शित कर रहा है।

प्रश्न 12.
राज्यपद के आदर्शों, दरबारी रिवाजों और शाही सेवा में भर्ती की विधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए व समानताओं और विभिन्नताओं पर प्रकाश डालते हुए मुगल दरबार और प्रशासन की वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था से तुलना कर एक वृत्तांत तैयार कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल में नौकरशाही शासन-व्यवस्था का केंद्र थी, परंतु इस नौकरशाही की शक्ति का स्रोत मुगल शासक थे। इसलिए वे नौकरशाहों को नियुक्त करते समय दरबारी प्रतिष्ठा, व्यक्ति की सामाजिक, धार्मिक हैसियत का ध्यान रखते थे। शासक के विचार तथा कार्य-प्रणाली पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता था। शासक का अपने बड़े-से-बड़े तथा छोटे-से-छोटे अधिकारी के प्रति व्यवहार प्रायः कठोर होता था।

इस काल में कार्य की विशेषज्ञता को महत्त्व नहीं दिया जाता था बल्कि सेवा में आया हुआ व्यक्ति सैनिक, असैनिक, दरबार संबंधी व राजस्व संबंधी सभी कार्य करने के लिए बाध्य होता था। उदाहरण के लिए अकबरनामा का लेखक अबुल फज्ल दरबारी लेखक था परंतु उसने 15 से अधिक सैन्य अभियानों में सेना का नेतृत्व किया। वह शासक का सलाहकार भी था। शासक ने उसे कई बार सेना निरीक्षण का कार्य भी दिया।

इसकी तुलना जब हम भारतीय शासन-व्यवस्था से करते हैं तो स्पष्ट होता है कि यह व्यवस्था एक संविधान के तहत चलती है जिसको राष्ट्र द्वारा 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इस संविधान व सरकार में शक्ति का स्रोत जनता है। वह हर तरह के परिवर्तन की शक्ति रखती है। शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए विशाल नौकरशाही, केंद्र तथा राज्य स्तर पर है। इनको एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा नियुक्त किया जाता है।

इस बारे में यह ध्यान भी रखा जाता है कि व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ हो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मुगलकालीन शासन-व्यवस्था आज की शासन-व्यवस्था से काफी भिन्न थी।

राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार HBSE 12th Class History Notes

→ तैमूरी वंशज तैमूर के वंश से संबंध रखने वाले मुग़ल स्वयं को तैमूरी वंशज कहते थे।

→ बहु या यायावर-वह समुदाय जो एक स्थान पर न बसा हो बल्कि विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए जीवन जीता हो।

→ पादशाह या बादशाह-शाहों का शाह अर्थात् शासकों का शासक बाबर द्वारा यह उपाधि काबुल व कंधार जीतने के बाद ली गई थी।

→ न्याय की जंजीर-जहाँगीर द्वारा स्वयं को न्यायप्रिय घोषित करने के लिए आगरा के किले में सोने की जंजीर लगवाई जिसे कोई भी फरियादी खींच सकता था।

→ इतिवृत्त-मुगल शासकों के दरबार में दरबारियों द्वारा लिखे गए वृत्तांत।

→ चगताई तुर्की-बाबर की आत्मकथा की भाषा। मूलतः यह तुर्की थी लेकिन इस पर बाबर के कबीले के बोली चगताई का प्रभाव था।

→ हिंदवी-मुगलकाल में उत्तर-भारत में जन साधारण द्वारा बोली जाने वाली भाषा।

→ रज्मनामा मुगलकाल में महाभारत नामक पुस्तक का अनुवाद करके उसे रज्मनामा का नाम दिया गया।

→ शाही किताबखाना-मुग़ल शासकों के महल में स्थित वह जगह जहाँ पर पुस्तकें लिखी जाती थीं।

→ नस्तलिक-मुगलकाल में कागज पर कलम से लिखने की एक शैली।

→ फर-ए-इज़ादी ईश्वर से प्राप्त राज्य, अबुल फज्ल ने मुगलों के राज्य को फर-ए-इज़ादी का नाम दिया।

→ सुलह-ए-कुल-अकबर की सबके साथ मिलकर चलने की नीति सुलह-ए-कुल कहलाई। शाब्दिक अर्थ के रूप में इसे ‘पूर्ण शांति’ कहा जाता है।

→ जियारत-किसी सूफी फकीर की दरगाह पर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना के लिए जाना।

→ दीन-पनाह मुग़ल शासक हुमायूँ द्वारा दिल्ली में बनाया गया भवन।

→ बुलंद दरवाजा-अकबर द्वारा फतेहपुर सीकरी में बनाई गई दरवाजा रूपी इमारत।

→ शाहजहाँबाद-मुग़ल शासक शाहजहाँ द्वारा दिल्ली में ही बसाया गया एक नया शहर जिसमें लाल किला, जामा मस्जिद व चाँदनी चौक शामिल थे।

→ जमींबोसी-अपने से बड़े के प्रति झुककर जमीन चूमकर अभिवादन की प्रा।।

→ चार तसलीम-चार बार झुककर अभिवादन करना।

→ झरोखा-मुग़ल शासकों की सूर्योदय के समय जनता को महल की विशेष जगह से दर्शन देने की प्रथा।

→ नौरोज-ईरानी परंपरा के अनुसार नववर्ष का उत्सव, इसे मुग़ल दरबार में उत्सव के रूप में मनाया जाता था।

→ हिजरी कैलेंडर-इस्लामी परम्परा के अनुरूप समय गणना बताने वाला कैलेंडर।

→ तख्त-ए-मुरस्सा-शाहजहाँ द्वारा बनाया गया हीरे-जवाहरातों से जड़ा सिंहासन । इसे सामान्यतः मयूर सिंहासन कहा जाता था।

→ नकीब-दरबार में किसी भी विशेष व्यक्ति या शासक के आने की घोषणा करने वाला व्यक्ति।

→ नजराना मगल शासक, शहजादे का राज परिवार के किसी सदस्य को भेंटस्वरूप दिया जाने वाला उपहार।

→ पादशाह बेगम-मुगल बादशाह की वह पत्नी जो शाही आवास की देख-रेख करती थी।

→ हरम-शाब्दिक अर्थ पवित्र यह वह स्थान था जहाँ मगल शासकों का परिवार रहता था।

मनसबदार-मुगलों की सेवा में सैनिक या असैनिक सेवा करने वाला उच्च पद का व्यक्ति।

→ सूबा मुगलकाल में प्रांत के लिए प्रयुक्त शब्द।

→ जेसुइट-ईसाई धर्म प्रचारकों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द।

→ दीन-ए-इलाही-सभी धर्मों के बारे में सुनने के बाद अकबर द्वारा 1582 ई० में स्थापित नया मत।

→ 15वीं तथा 16वीं शताब्दी में विश्व भर में अनेक युग प्रवर्तक घटनाएं घटीं। नए-नए राजवंशों की स्थापना हुई, यूरोप में पुनर्जागरण (Renaissance) तथा धर्म सुधार (Reformation) आंदोलन चले। उसी प्रकार भारत में भी दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ तथा उसके खण्डहरों पर मुगल साम्राज्य का उदय हुआ। यह परिवर्तन भारतीय इतिहास में एक ऐसा परिवर्तन था जिसने न केवल देश के इतिहास की धारा को ही नया मोड़ दिया, अपितु एक नए क्षितिज एवं नव-प्रभात का भी सूत्रपात किया। यह एक महान् राजनीतिक परिवर्तन था। इस परिवर्तन का सूत्रधार तैमूर का वंशज बाबर था।।

→ मुगल वंश के संस्थापक बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 को मध्य-एशिया के फरगाना (वर्तमान में उजबेगिस्तान) में हुआ। 1494 ई० में बाबर अपने पिता उमर शेख मिर्जा की मृत्यु के बाद फरगाना का शासक बना। उसने 1504 ई० में काबुल तथा 1507 ई० में कन्धार को जीता। 1519 से 1526 ई० तक उसने भारत पर पाँच आक्रमण किए तथा वह सभी में सफल रहा। 1526 ई० में उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी।

→ उसने अपने राज्य को सुदृढ़ आधार दिया। 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। .. बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ शासक बना। शेरशाह ने उसे 1540 ई० में बेलग्राम (कन्नौज) के युद्ध में पराजित कर दिया तथा उसे भारत से निर्वासित होना पड़ा। उसने 1555 ई० में शेरशाह के कमजोर उत्तराधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर लिया। इसके बाद 1556 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

→ हुमायूँ की मृत्यु के समय उसका पुत्र अकबर शासक बना। अकबर ने अपनी प्रारंभिक सफलताएँ अपने शिक्षक व संरक्षक बैहराम खाँ के नेतृत्व में पाईं। तत्पश्चात् उसने प्रत्येक क्षेत्र में साम्राज्य का विस्तार किया। उसने आन्तरिक दृष्टि से अपने राज्य का विस्तार कर इसे विशाल, सुदृढ़ तथा समृद्ध बनाया। उसने राजपूतों व स्थानीय प्रमुखों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर हटाकर गैर-इस्लामी जनता को यह एहसास करवाने का प्रयास किया कि वह उनका भी शासक है। इस तरह अकबर अपने राजनीतिक, प्रशासनिक व उदारवादी व्यवहार के कारण मुग़ल शासकों में महानतम स्थान प्राप्त करने में सफल रहा। 1605 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

→ अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम जहाँगीर के नाम से शासक बना। उसने अकबर की नीतियों को आगे बढ़ाया। उसने अपने जीवन का अधिकतर समय लाहौर में बिताया। 1611 ई० में उसने मेहरूनिसा (बाद में नूरजहाँ) से शादी की। नूरजहाँ शासन में इतनी शक्तिशाली हो गई कि उसने शासन व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। 1627 ई० में लाहौर में उसकी मृत्यु हो गई।

→ जहाँगीर के बाद उसका पुत्र खुर्रम, शाहजहाँ के नाम से गद्दी पर बैठा। खुर्रम ने अपने पूर्वजों की नीति का अनुसरण किया। अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने ताजमहल का निर्माण प्रारंभ करवाया। दक्षिण के बारे में उसने बीजापुर, गोलकुण्डा व अहमदनगर के सन्दर्भ में सन्तुलित नीति अपनाई। उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध था जो 1657-58 ई० में लड़ा गया। इसमें उसके तीन पुत्र दारा शिकोह, मुराद व शुजा मारे गए तथा औरंगज़ेब सफल रहा। उसने 1658 ई० में शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर जेल में डाल दिया।

→ 1658 ई० में अपने भाइयों को हराकर व पिता को बन्दी बनाकर औरंगज़ेब सत्ता प्राप्त करने में सफल रहा। वह व्यक्तिगत जीवन में सादगी को पसन्द करता था, लेकिन धार्मिक दृष्टि से संकीर्ण था। प्रशासनिक व्यवस्था में उसने कोई बदलाव नहीं किया। उसके काल में मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, जिससे सैन्य तंत्र भी कमजोर हुआ। इस तरह 1707 ई० में उसकी मृत्यु के समय मुगल साम्राज्य चारों ओर से संकटों से घिरा हुआ था।

→ 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल वंश में एक के बाद एक कमजोर शासक आए। इन शासकों के काल में शासन, दरबार व अभिजात वर्ग पर शासकों की पकड़ कमजोर हुई, जिसके कारण सत्ता का केन्द्र दिल्ली, आगरा व लाहौर न होकर विभिन्न क्षेत्रीय नगर हो गए। इन क्षेत्रीय नगरों में क्षेत्रीय सत्ता की स्थापना हुई। 1739 ई० में ईरान के शासक नादिरशाह ने मुग़ल शासक मुहम्मद शाह को बुरी तरह से पराजित कर दिल्ली में लूटमार की। इससे मुगल साम्राज्य का वैभव, सम्मान व पहचान मिट्टी में मिल गई।

→ 1857 ई० केजन-विद्रोह में एक बार फिर जन-विद्रोहियों ने मुग़ल राज्य व वंश के नाम का प्रयोग किया तथा अन्तिम मुगल शासक . बहादुरशाह जफर को इसका नेतृत्व दे दिया। अन्ततः वह हार गया तथा उसके पुत्रों व परिवार के अधिकतर सदस्यों का कत्ल कर दिया । गया। उसे बन्दी बनाकर रंगून भेज दिया गया, जहाँ 1862 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद मुगल वंश समाप्त हो गया।

→ मुग़ल शासकों ने शासन के लिए जिस तरह की व्यवस्था अपनाई, उसके द्वारा वे विशाल विजातीय जनता तथा बहु-सांस्कृतिक जीवन के बीच तालमेल बना सके। शासन-व्यवस्था की इस कड़ी में इस वंश के शासकों ने अपने वंश के इतिहास-लेखन की ओर विशेष ध्यान दिया। यह इतिहास-लेखन दरबारी संरक्षण में दरबारियों एवं विद्वानों के द्वारा लिखा गया। इन दरबारी लेखकों द्वारा जहाँ शासक की इच्छा व भावना का ध्यान रखा गया, वहीं उन्होंने इस महाद्वीप से संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ भी उपलब्ध कराई हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

→ आधुनिक इतिहासकारों विशेषतः अंग्रेज़ी में लिखने वालों ने मुगलों की इस लेखन शैली को ‘क्रॉनिकल्स’ का नाम दिया है, जिसको अनुवादित रूप में इतिवृत्त या इतिहास कहा जा सकता है। ये इतिवृत्त (वृत्तांत) मुगलकाल की घटनाओं का कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत करते हैं। इन इतिवृत्तों की सामग्री दरबारी लेखकों द्वारा कड़ी मेहनत से एकत्रित की गई। फिर इन्होंने इसे व्यवस्थित ढंग से वर्गीकृत किया। मुगलकालीन इतिहास-लेखन के लिए यह इतिवृत्त सबसे प्रमुख स्रोत है, क्योंकि इनमें तथ्यात्मक जानकारी प्रचुर मात्रा में है।

→ इन इतिवृत्तों में मुगल शासकों की विजयों, राजधानियों, दरबार, केंद्रीय व प्रांतीय शासन व विदेश नीति पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ-साथ मुगल शासकों की धार्मिक नीति तथा प्रजा के साथ व्यवहार का विस्तृत वर्णन भी है। निःसंदेह ये इतिवृत्त या वृत्तांत मुगलकालीन इतिहास के लेखन का महत्त्वपूर्ण आधार हैं।

काल-रेखा

कालघटना का विवरण
1483 ईoबाबर का फरगाना में जन्म
1494 ई०बाबर का फरगाना का शासक बनना
1497 ईoबाबर के हाथ से राज्य का निकलना व निर्वासन जीवन की शुरुआत
1504 ई०बाबर की काबुल विजय, सिकंदर लोधी द्वारा आगरा की स्थापना
1526 ईoपानीपत की पहली लड़ाई व बाबर की जीत
1530 ईoबाबर की मृत्यु तथा बाबरनामा की पाण्डुलिपि को संगृहीत करना।
1540 ई०हुमायूँ की शेरशाह के हाथों हार व भारत से बाहर जाना
1555 ईoहुमायूँ की पुनः भारत विजय
1556 ई०हुमायूँ की मृत्यु, पानीपत की दूसरी लड़ाई व अकबर का शासक बनना
1562 झoअकबर द्वारा किसी राजपूत परिवार से वैवाहिक संबंधों की शुरुआत
1563 ई०अकबर द्वारा तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति
1564 ई०अकबर द्वारा जजिया कर को हटाना
1570-85 ई०अकबर द्वारा फतेहपुर सीकरी में भवन निर्माण व उसे राजधानी बनाना
1587 ई०गुलबदन बेगम द्वारा हुमायूँनामा के लेखन की शुरुआत
1589 ई०बाबरनामा का तुर्की से फारसी में अनुवाद
1589-1602 ईoअबुल फण्ल द्वारा अकबरनामा का लेखन
1596-98 ई०अबुल फण्ल्ल द्वारा आइन-ए-अकबरी का लेखन
1605 ई०अकबर की मृत्यु व सलीम का जहाँगीर के नाम से शासक बनना
1611 ई०जहाँगीर की नूरजहाँ से शादी
1605-22 ई०जहाँगीर द्वारा आत्मकथा तुज़्क-ए-जहाँगीरी (जहाँगीरनामा) का लेखन
1627 ई०जहाँगीर की मृत्यु
1631 ई०मुमताज महल की मृत्यु
1639-47 ई०अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा बादशाहनामा के दो खण्डों का लेखन
1657-58 ई०शाहजहाँ के काल में उत्तराधिकार का युद्ध
1658 ई०औरंगज़ेब का शासक बनना
1668 ई०मुहम्मद काजिम द्वारा औरंगज़ेब के काल के पहले 10 वर्षों का इतिवृत्त आलमगीरनामा के नाम से संकलन
1669 ई०औरंगज़ेब के काल में जाटों का विद्रोह
1679 ई०औरंगज़ेब द्वारा जजिया कर फिर से लगाना औरंगज़ेब की मृत्यु
1707 ई०से संकलन

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. नदी द्वारा बहाकर लाए गए असंगठित पदार्थों के आपस में टकराने व टूटने की क्रिया को क्या कहते हैं?
(A) अपघर्षण
(B) सन्निघर्षण
(C) जलयोजन
(D) रासायनिक अपरदन
उत्तर:
(B) सन्निघर्षण

2. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक नदी अपरदन की क्षमता को निर्धारित नहीं करता?
(A) जल की मात्रा
(B) नद-भार की मात्रा
(C) चट्टान का भार
(D) जल का वेग
उत्तर:
(C) चट्टान का भार

3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलरूप नदी की प्रौढ़ावस्था की विशेषता नहीं है?
(A) मृत झील
(B) नदी विसर्प
(C) जलोढ़ पंख
(D) अंतर्ग्रथित पर्वत प्रक्षेप
उत्तर:
(D) अंतर्ग्रथित पर्वत प्रक्षेप

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

4. अधःकर्तित विसर्प निम्नलिखित में से किसके परिणाम होते हैं?
(A) निक्षेपण
(B) भ्रंशन
(C) पुनर्योवन
(D) अधोगमन
उत्तर:
(C) पुनर्योवन

5. तटीय भागों में जान-माल के लिए सबसे खतरनाक समुद्री तरंग कौन-सी है?
(A) अधःप्रवाह
(B) सुनामी
(C) स्थानांतरणी तरंग
(D) भग्नोर्मि
उत्तर:
(B) सुनामी

6. अवसादों का तटों के साथ-साथ उनके समानांतर एक पतले, लंबे बांध के रूप में निक्षेपण क्या कहलाता है?
(A) तटबंध
(B) समुद्री कटक
(C) भू-जिह्वा
(D) रोधिका और रोध
उत्तर:
(D) रोधिका और रोध

7. स्टैक स्थलरूप का निर्माण निम्नलिखित में से कौन-सा अभिकर्ता करता है?
(A) प्रवाहित जल
(B) पवन
(C) सागरीय लहरें
(D) भूमिगत जल
उत्तर:
(C) सागरीय लहरें

8. कार्ट प्रदेश में भूमिगत कंदराओं की छत से नीचे फर्श की ओर लटकता हुआ भू-आकार क्या कहलाता है?
(A) कंदरा स्तंभ
(B) स्टैलेक्टाइट
(C) स्टैलेग्माइट
(D) चूर्णकूट
उत्तर:
(B) स्टैलेक्टाइट

9. बालू से बना अर्धचंद्राकार टीला क्या कहलाता है?
(A) बालुका स्तूप
(B) बारखन
(C) सीफ़
(D) लोएस
उत्तर:
(B) बारखन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

10. मशरुम चट्टान निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(A) कार्ट स्थलाकृति
(B) मरुस्थलीय स्थलाकृति
(C) हिमानी स्थलाकृति
(D) समुद्री लहर स्थलाकृति
उत्तर:
(B) मरुस्थलीय स्थलाकृति

11. निम्नलिखित में से कौन-सी भू-आकृति हिमनदी के कार्य से संबंधित?
(A) जल-प्रपात
(B) सर्क
(C) रोधिका
(D) टिब्बा
उत्तर:
(B) सर्क

12. निम्नलिखित में से अपरदन के लिए कौन-सा तरीका हिमनदी द्वारा अपनाया जाता है?
(A) सन्निघर्षण
(B) जल की दाब क्रिया
(C) उत्पाटन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) उत्पाटन

13. हिमनद की निक्षेप क्रिया से बनी ‘अंडों की टोकरी जैसी स्थलाकृति’ का अन्य नाम कौन-सा है?
(A) एस्कर
(B) ड्रमलिन
(C) रॉश मूटोने
(D) बॅग एंड टेल
उत्तर:
(B) ड्रमलिन

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
तल सन्तुलन के कारकों में सर्वाधिक शक्तिशाली कारक कौन-सा है?
उत्तर:
नदी।

प्रश्न 2.
नदी अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
जल प्रवाह का वेग, जल की मात्रा, चट्टानों की प्रकृति, नद-भार आदि।

प्रश्न 3.
विश्व के सबसे बड़े कैनियन का नाम क्या है?
उत्तर:
ग्रैण्ड कैनियन (कोलोरेडो)।

प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े डेल्टा का नाम बताइए।
उत्तर:
सुन्दरवन डेल्टा।

प्रश्न 5.
‘अपरदन चक्र’ की संकल्पना किस भूगोलवेत्ता ने प्रस्तुत की?
उत्तर:
विलियम मौरिस डेविस ने।

प्रश्न 6.
नदी अपहरण (River Capture) की घटना नदी की कौन-सी अवस्था में घटती है?
उत्तर:
युवावस्था में।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए उपयुक्त पारिभाषिक शब्द लिखिए-

  1. वे प्रक्रियाएँ जो स्थलीय धरातल को एक-समान स्तर पर लाने की चेष्टा करती हैं।
  2. एक नदी जो शाखाओं में विभक्त होकर परस्पर जुड़े जलमार्गों की एक जाल-सी आकृति बनाती है।
  3. दी के किनारे मोटे अवसादों के निक्षेपण से बने प्राकृतिक तटबन्ध।
  4. नदी का घुमावदार मार्ग तथा उससे बने फंदे।
  5. आसपास के दो भिन्न अपवाह क्षेत्रों को अलग करने वाली उच्च भूमि।
  6. पेड़ के तने और डालियों के समान दिखने वाला अपवाह तन्त्र।
  7. किसी खनिज पर होने वाली जल की रासायनिक क्रिया।
  8. वे चट्टानी पदार्थ जिनकी मदद से नदी, हिमानी और पवन अपरदन कार्य करते हैं।

उत्तर:

  1. प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ
  2. जालीनुमा अपवाह तन्त्र
  3. प्राकृतिक तटबन्ध
  4. गुंफित नदी
  5. जल विभाजक
  6. द्रुमाकृतिक प्रवाह प्रणाली
  7. जलयोजन
  8. शैल-मलबा।

प्रश्न 8.
भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में हिमरेखा की ऊँचाई कितनी होती है?
उत्तर:
लगभग 5000 मीटर।

प्रश्न 9.
किस महाद्वीप पर हिमानियाँ नहीं पाई जाती?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया में।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत में कितनी हिमानियाँ हैं?
उत्तर:
15,000 हिमानियाँ।

प्रश्न 11.
पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
पवन की गति, धूलकणों का आकार और ऊँचाई, चट्टानों की संरचना तथा जलवायु।

प्रश्न 12.
केरल तट पर स्थित सबसे बड़ी लैगून का नाम बताएँ।
उत्तर:
वेंबनाद।

प्रश्न 13.
विश्व में सबसे अधिक उत्सुत कूप (Artesian Wells) कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के आर्टीज़ियन बेसिन में।

प्रश्न 14.
शैलों के गुण तथा रचना के आधार पर बनने वाले दो प्रकार के झरनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भ्रंश झरना तथा
  2. डाइक झरना।

प्रश्न 15.
घोल रंध्र सबसे ज्यादा कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी राज्य में।

प्रश्न 16.
गुफ़ाओं में भूमिगत जल की निक्षेपण क्रिया द्वारा बनने वाले स्तम्भों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
कन्दरा स्तम्भ।

प्रश्न 17.
नदी रासायनिक अपरदन किन क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. संक्षारण द्वारा
  2. घोलीकरण द्वारा।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित के लिए उपयुक्त पारिभाषिक शब्द लिखिए

  1. दो अपवाह बेसिनों के बीच ऊपर उठा हुआ भू-भाग।
  2. वह समस्त क्षेत्र जहाँ से एक बड़ी नदी जल-ग्रहण करती है।
  3. वह सम्पूर्ण क्षेत्र जिस पर पृष्ठीय जल के निकास मार्ग एक ही दिशा में हों।
  4. जिस स्थान पर कोई नदी किसी खाड़ी, झील या समुद्र में गिरती है।
  5. नदी का जन्म स्थान।
  6. पत्थरों और शिलाखण्डों का भार के कारण नदी तल पर घिसटते चलना।
  7. संकरी तथा अत्यधिक गहरी V-आकार की घाटी।
  8. गॉर्ज की अपेक्षा संकरी, गहरी और बड़ी V-आकार की घाटी।
  9. पुरानी नदी का पुनः युवावस्था में आ जाना।
  10. अधिक गहरी जलज गर्तिका।
  11. चट्टानों की असमान प्रतिरोधिता के कारण बहते जल का थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कूदना।
  12. वह स्थान जहाँ पुराना और नया बाढ़ का मैदान मिलता है।

उत्तर:

  1. जल-विभाजक
  2. अपवाह क्षेत्र
  3. अपवाह बेसिन
  4. नदमुख
  5. उद्गम क्षेत्र
  6. कर्षण
  7. गॉर्ज
  8. केनियन
  9. पुनर्योवन
  10. अवनमन कुण्ड
  11. क्षिप्रिका
  12. निकप्वाइंट।

प्रश्न 19.
V-आकार की घाटी किन क्षेत्रों में विकसित होती है?
उत्तर:
जहाँ वर्षा सामान्य से अधिक होती है तथा चट्टानें अति कठोर नहीं होती।

प्रश्न 20.
गॉर्ज या महाखण्ड बनाने वाली भारत की कुछ नदियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, कोसी व गण्डक इत्यादि।

प्रश्न 21.
केनियन सामान्यतः किन दशाओं में बनते हैं?
उत्तर:
शुष्क व अर्ध-शुष्क जलवायु वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 22.
विश्व की सबसे बड़ी केनियन कौन-सी और कहाँ है?
उत्तर:
ग्रैण्ड केनियन, कोलोरेडो नदी पर, संयुक्त राज्य अमेरिका में।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 23.
सामान्यतः जलज गर्तिकाएँ कहाँ पर स्थित पाई जाती हैं?
उत्तर:
क्षिप्रिकाओं के ऊपर और जल-प्रपात के नीचे।

प्रश्न 24.
भारत में सबसे ऊँचा जल-प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
कर्नाटक में शरबती नदी द्वारा बनाया गया 260 मीटर ऊँचा जोग प्रपात या गरसोप्पा प्रपात।

प्रश्न 25.
आकार की दृष्टि से जलोढ़ पंख और जलोढ़ शंकु में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जलोढ़ पंख जलोढ़ शंकु की अपेक्षा अधिक चौड़े किन्तु कम ऊँचे होते हैं।

प्रश्न 26.
नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाले भू-आकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जलोढ़ पखं, विसर्प, गोखुर झीलें इत्यादि।

प्रश्न 27.
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रसिद्ध प्रपात का नाम और विशेषता बताएँ।
उत्तर:
नियाग्रा जल-प्रपात; 120 मीटर ऊँचा व अस्थायी प्रकृति का है।

प्रश्न 28.
जलोढ़ शंकुओं की रचना प्रायः किस प्रकार के जलवायु प्रदेशों में होती है?
उत्तर:
अर्ध-शुष्क प्रदेशों में।

प्रश्न 29.
गोखुर झील को मृत झील (Mort Lake) क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि समय के अनुसार गोखुर झील अवसादों से भरकर सूख जाती है।

प्रश्न 30.
वृद्धावस्था में नदी कौन से भू-आकारों की रचना करती है?
उत्तर:
नदी गुंफ, प्राकृतिक तटबन्ध, बाढ़ के मैदान व डेल्टा इत्यादि।

प्रश्न 31.
उन असामान्य कारकों के नाम लिखें जिनसे जल-प्रपातों की रचना होती है?
उत्तर:

  1. भूकम्प
  2. ज्वालामुखी व
  3. भूसंचरण।

प्रश्न 32.
कोई नदी प्रवणित अवस्था में कब मानी जाती है?
उत्तर:
जब वह आधार तल पर बह रही होती है।

प्रश्न 33.
किस विद्वान् ने कब सिद्ध किया था कि हिमनदियाँ गतिशील होती हैं?
उत्तर:
लुई अगासिस ने सन् 1834 में।

प्रश्न 34.
महाद्वीपीय हिमनदियों के दो क्षेत्र बताएँ।
उत्तर:

  1. अंटार्कटिका महाद्वीप
  2. ग्रीनलैण्ड।

प्रश्न 35.
भारत में सबसे बड़ी हिमनदी कौन-सी है?
उत्तर:
सियाचिन हिमनदी, 72 कि०मी० लम्बी।

प्रश्न 36.
शृंग के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. आल्पस पर्वत श्रेणी में मैटर्नहार्न
  2. हिमालय में त्रिशूल पर्वत।

प्रश्न 37.
लोएस प्रदेश कहाँ स्थित है?
उत्तर:
उत्तर:पश्चिमी चीन में।

प्रश्न 38.
भारत के पूर्वी तट पर लैगून झीलों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चिल्का झील
  2. पुलिकट झील।

प्रश्न 39.
हिमनदी से बनने वाले प्रमुख भू-आकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सर्क, शृंग, लटकती घाटी, U-आकार की घाटी, टार्न, कॉल ड्रमलिन, हिमोढ़ इत्यादि।

प्रश्न 40.
वायु अपरदन से बनने वाले प्रमुख भू-आकारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. छत्रक
  2. ज्यूज़न
  3. यारडांग
  4. इन्सेलबर्ग।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदी अपरदित पदार्थों का परिवहन किन तीन रूपों में करती है?
उत्तर:

  1. घुलाकर
  2. निलम्बित अवस्था में तथा
  3. लुढ़काकर।

प्रश्न 2.
अपरदन चक्र की तीन अवस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. युवावस्था
  2. प्रौढ़ावस्था तथा
  3. वृद्धावस्था।

प्रश्न 3.
कर्णहिम (Neve) की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
यह-

  1. वायुरहित
  2. ठोस तथा
  3. संगठित होती है।

प्रश्न 4.
माल्सपाइना क्या है और यह कहाँ है?
उत्तर:
माल्सपाइना एक पर्वतपादीय हिमानी है जो अलास्का में है।

प्रश्न 5.
पवन किन तीन तरीकों से अपरदन करती है?
उत्तर:

  1. अपवहन द्वारा
  2. अपघर्षण द्वारा तथा
  3. सन्निघर्षण द्वारा।

प्रश्न 6.
भारत के चार प्रमुख लैगून कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. वेंबनाद
  2. अष्टमुदी (केरल)
  3. पुलिकट (तमिलनाडु-आन्ध्र प्रदेश सीमा) तथा
  4. चिल्का (ओडिशा तट)।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 7.
निमग्न उच्च भूमि तट के तीन प्रसिद्ध प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. रिया तट
  2. फियोर्ड तट
  3. डालमेशियन तट।

प्रश्न 8.
प्रवणता संतुलन के कारकों के तीन प्रमुख कार्य बताएँ।
अथवा
भू-आकृतिक कारकों के प्रमुख कार्य कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:

  1. अपरदन
  2. परिवहन
  3. निक्षेपण।

प्रश्न 9.
प्रमुख प्रवाह प्रणालियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. द्रुमाकृतिक अपवाह तन्त्र
  2. समानान्तर अपवाह तन्त्र
  3. जालीनुमा अपवाह तन्त्र
  4. अरीय अपवाह तन्त्र
  5. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र
  6. आन्तरिक अपवाह।

प्रश्न 10.
नदी अपनी युवावस्था में किन-किन भू-आकारों की रचना करती है?
उत्तर:
इस अवस्था में नदी V-आकार घाटी, गॉर्ज, केनियन, जलज गर्तिका, जल-प्रपात, क्षिप्रिका व अवनमनकुण्ड इत्यादि भू-आकार बनाती है।

प्रश्न 11.
नदी द्वारा भौतिक अपरदन किन तीन रूपों में सम्पन्न होता है?
उत्तर:

  1. अपघर्षण
  2. सन्निघर्षण
  3. जल की दाब क्रिया।

प्रश्न 12.
भू-आकृतिक परिवर्तन के पाँच कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी
  3. पवन
  4. समुद्री तरंगें तथा
  5. भूमिगत जल।

प्रश्न 13.
जल-प्रपात क्या होता है?
उत्तर:
चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से नदी का सीधे नीचे गिरना जल-प्रपात कहलाता है।

प्रश्न 14.
भारत के उल्लेखनीय जल-प्रपातों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जोग प्रपात
  2. शिवसमुद्रय प्रपात
  3. येना प्रपात तथा
  4. धुआँधार प्रपात।

प्रश्न 15.
आधार तल किसे कहते हैं?
उत्तर:
झील या समुद्र के तल को, जिसमें नदी गिरती है, नदी अपरदन का आधार तल कहते हैं।

प्रश्न 16.
अपरदन चक्र किन तीन कारकों का प्रतिफल है?
उत्तर:

  1. संरचना (Structure)
  2. प्रक्रिया (Process)
  3. अवस्था (Stage)।

प्रश्न 17.
किन्हीं तीन विश्व प्रसिद्ध डेल्टाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. नील डेल्टा
  2. गंगा डेल्टा
  3. मिसीसिपी डेल्टा।

प्रश्न 18.
हिमविदर क्या होते हैं?
उत्तर:
विभंजन के कारण हिमनदी में पड़ी दरारों को हिमविदर कहा जाता है।

प्रश्न 19.
ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन कहाँ स्थित है?
उत्तर:
ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन ऑस्ट्रेलिया के मध्य-पूर्वी भाग में क्वींसलैण्ड में स्थित है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग पन्द्रह लाख वर्ग कि०मी० है। यह उत्सुत कुओं वाला विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्र है। यह क्षेत्र ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन कहलाता है।

प्रश्न 20.
‘मियाण्डर’ (विसप) शब्द कहाँ से और किस कारण लिया गया है?
उत्तर:
यह शब्द टर्की की नदी ‘मियाण्डर’ से लिया गया है क्योंकि समुद्र में गिरने से पहले यह नदी बहुत ज्यादा बल खाती और इठलाती चलती है।

प्रश्न 21.
चट्टानों की पारगम्यता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों के अन्दर से होकर भूमि-जल का बहाव पारगम्यता कहलाता है। ये चट्टानें दरारों द्वारा एक-दूसरे से मिली होती हैं। ये चट्टानें पारगम्य चट्टानें कहलाती हैं।

प्रश्न 22.
हिमनदी की गति किन कारणों पर निर्भर करती है?
उत्तर:

  1. धरातल का ढाल
  2. हिमनदी की मोटाई
  3. तापमान
  4. ऋतु।

प्रश्न 23.
प्रवणता संतुलन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बाह्य शक्तियाँ; जैसे नदी, हिमनदी, वायु तथा समुद्री लहरें ऊँची-नीची भूमि को अपरदन तथा निक्षेपण क्रिया द्वारा समतल करने का प्रयास करती हैं। ये शक्तियाँ ऊँचे भागों का अपरदन कर उन्हें निम्न भागों में जमा करती रहती हैं और समतल भूमि का निर्माण करती हैं। इस प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 24.
स्टैलेक्टाइट का निर्माण किस भू-आकृतिक कारक द्वारा होता है?
उत्तर:
गुफा की छत से चूना पत्थर की चट्टान से टपके हुए कैल्शियम बाइकार्बोनेट युक्त पानी से स्टैलेक्टाइट का निर्माण होता है।

प्रश्न 25.
जल-चक्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल हमेशा गतिशील होता है। सागरों तथा महासागरों का जल सूर्यातप के कारण जलवाष्प बनकर वायुमण्डल में चला जाता है, जिससे वर्षा होती है। वर्षा के जल का कुछ अंश बहकर नदियों द्वारा सागरों तथा महासागरों में मिल जाता है तथा कुछ अंश वाष्पीकरण द्वारा वायुमण्डल में मिल जाता है तथा शेष भाग भूमिगत हो जाता है। इस प्रकार जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल तथा जलमण्डल पर स्थानान्तरित होता रहता है, जिसे जल-चक्र कहते हैं। इस चक्र द्वारा तीनों मण्डलों में जल का सम्बन्ध जुड़ा रहता है।

प्रश्न 26.
भूमिगत जल किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा के जल का कुछ अंश पारगम्य चट्टानों द्वारा भूमि के नीचे चला जाता है, जिसे ‘भूमिगत जल’ कहते हैं। यही भूमिगत जल हमें कुओं, नलकूपों आदि द्वारा प्राप्त होता है। ऐसा अनुमान है कि यदि समस्त भूमिगत जल को धरातल की सतह पर लाया जाए तो सतह पर 170 मीटर की ऊँचाई तक जल का विस्तार हो जाएगा।

प्रश्न 27.
नदी को अपने उद्गम क्षेत्र से मुहाने तक कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
उद्गम क्षेत्र से मुहाने तक नदी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. पर्वतीय या ऊपरी भाग (युवावस्था)
  2. मध्य भाग (प्रौढ़ावस्था)
  3. डेल्टा या निचला भाग (वृद्धावस्था)।

प्रश्न 28.
नदी V-आकार की घाटी की रचना कैसे करती है?
उत्तर:
उद्गम स्थान से निकलते ही नदी अपने मार्ग के ढाल और गति के कारण अपनी तली को काटकर गहरा करने का कार्य करती है। इससे घाटी का आकार V-अक्षर जैसा हो जाता है। घाटी का निरन्तर विकास होता रहता है जिसमें क्षैतिज अपरदन (Lateral Erosion) कम तथा लम्बवत् अपरदन (Vertical Erosion) अधिक होता है।

प्रश्न 29.
स्थायी हिमक्षेत्र कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
स्थायी हिमक्षेत्र ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों जैसे हिमालय तथा आल्पस इत्यादि तथा ध्रुवीय प्रदेशों में मिलते हैं। ग्रीनलैण्ड तथा अंटार्कटिका विशाल हिमक्षेत्र हैं। इन प्रदेशों में हिमांक से नीचे तापमान व लगातार भारी तुषार के कारण हिमतूल जमते रहते हैं। कम वाष्पीकरण व भयंकर ठण्ड के कारण हिम ग्रीष्मकाल में भी नहीं पिघलती।

प्रश्न 30.
हिमनदी U-आकार की घाटी क्यों बनाती है?
उत्तर:
हिमनदियों में अपने लिए स्वयं घाटी बनाने की शक्ति नहीं होती, बल्कि वे हिमावरण से पहले नदियों द्वारा निर्मित घाटियों में होकर बहती हैं। नदी घाटी में बहती हिम घाटी की तली व पावों का अपरदन करके उसे अधिक गहरा और चौड़ा कर देती है। इससे नदी की घाटी की मूल V-आकृति के स्थान पर U-आकार की घाटी विकसित होती है।

प्रश्न 31.
हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न गति से क्यों बहते हैं? अथवा हिमनदी का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक तेज़ी से क्यों चलता है?
उत्तर:
हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न दर से बहते हैं। हिम की गति किनारों की अपेक्षा मध्य भाग में तथा तलहटी की अपेक्षा सतह पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि तली और किनारों पर आधारी चट्टान (Base rock) के घर्षण के फलस्वरूप हिम के प्रवाह की गति कम हो जाती है। मध्य भाग में ऐसी कोई रुकावट न होने के कारण हिमनदी की गति अधिक हो जाती है।

प्रश्न 32.
चूना पत्थर के क्षेत्रों में नदियों के अचानक लुप्त हो जाने की घटना की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भूमिगत जल की घुलन क्रिया द्वारा बड़े-बड़े घोल रन्ध्रों का निर्माण होता है। इन घोल रन्ध्रों में भूतल का जल-प्रवाह लुप्त हो जाता है तथा भूतल पर बहने वाली नदियाँ भूमिगत बहने लगती हैं। परिणामस्वरूप भूतल पर शुष्क घाटियों का निर्माण होता है तथा भूमिगत क्षेत्र में अन्धी घाटियाँ बन जाती हैं। निचले ढलानों वाले क्षेत्रों में ये घाटियाँ नदियों द्वारा भूतल पर प्रगट हो जाती हैं तथा नदियाँ भूतल पर बहने लगती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदियाँ भूतल पर समतल स्थापना का कार्य किन-किन रूपों में करती हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नदियाँ भूतल पर समतल स्थापना का कार्य तीन रूपों में करती हैं-

  1. अपरदन-नदी के द्वारा अपने तटों और तलहटी की चट्टानों को काटने, खुरचने, तराशने या घुलाने की क्रिया को अपरदन (Erosion) कहते हैं।
  2. परिवहन-नदी के द्वारा अपरदित शैल चूर्ण को अपने जल के वेग के साथ बहाकर या घुलाकर ले जाने की क्रिया को परिवहन (Transportation) कहते हैं।
  3. निक्षेपण-नदी के द्वारा बहाकर लाए गए तलछट को किसी निम्न प्रदेश, घाटी, झील अथवा समुद्र की तली में जमा कर देने की क्रिया को निक्षेपण (Deposition) कहा जाता है।

प्रश्न 2.
नदी किन-किन रूपों में भौतिक अपरदन करती है?
उत्तर:
नदी द्वारा भौतिक अपरदन तीन रूपों में सम्पन्न होता है-
1. अपघर्षण नदी अपने प्रवाह वेग से शैल मलबे को तलहटी के साथ घसीटते हुए या स्वतन्त्र रूप से बहा ले जाती है। ये चट्टानी टुकड़े औज़ार (Tools) का कार्य करते हैं और अपने मार्ग में आने वाली धरातलीय चट्टानों को खुरचते हुए चलते हैं। इससे अपरदन और बढ़ता है। अपरदन का यह रूप अपघर्षण (Abrasion or Corrasion) कहलाता है।

2. सन्निघर्षण नदी द्वारा बहाकर लाए गए असंगठित पदार्थ आपस में टकराते व रगड़ खाते चलते हैं जिससे उनका और घाटी दोनों का अपरदन होता है। बड़े-बड़े शिलाखण्ड घिसकर गोल व नुकीली गुटिकाओं में बदल जाते हैं और अन्ततः ये टुकड़े बजरी और फिर बालू (रत) में बदल जाते हैं। अपरदन का यह रूप सन्निघर्षण (Attrition) कहलाता है।

3. जल की दाब क्रिया-चट्टानों के अपरदन की इस विधि में नदी अपने वेग और दबाव के कारण मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के कणों को ढीला करके बहा ले जाती है।

प्रश्न 3.
नदी की अपरदन क्षमता को निर्धारित करने वाले कारक कौन से हैं?
अथवा
“नदी द्वारा अपरदन पानी की मात्रा और भूमि के ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर:
नदी की अपरदन क्षमता को मुख्यतः निम्नलिखित चार कारक निर्धारित करते हैं-
1. जल का वेग तेज़ गति से बहता जल अपने साथ अधिक नद-भार को बहा ले जाता है। यही शैल चूर्ण चट्टानों की तली और किनारों पर प्रहार करके उनका तेज़ी से अपरदन करता है।

2. जल की मात्रा-जल की अधिक मात्रा होने पर नदी मार्ग की चट्टानों का अधिक बलपूर्वक अपरदन कर सकती है। अधिक जल से रासायनिक अपरदन की मात्रा भी बढ़ जाती है।

3. चट्टानों की प्रकृति ग्रेनाइट अथवा बेसाल्ट जैसी कठोर चट्टानों के क्षेत्र से गुज़रते हुए नदी की अपरदन क्रिया सीमित हो जाती है जबकि बलुआ पत्थर या चूने के प्रदेशों में जल की अपरदन क्रिया सर्वाधिक होती है। इसका कारण यह है कि कोमल चट्टानें कठोर चट्टानों की अपेक्षा शीघ्र अपरदित होती हैं।

4. नद-भार की मात्रा और प्रकृति-बहते हुए जल में महीन पदार्थ प्रभावी अपरदन नहीं कर पाते जबकि नदी की तली के साथ रगड़ खाते हुए बड़े शैल-खण्ड अत्यन्त कारगर ढंग से घाटी की तली और किनारों को तोड़ते-फोड़ते चलते हैं। यदि नदी में जल की मात्रा और गति बढ़ जाए तो नद-भार की अपरदन क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है।

प्रश्न 4.
नद-बोझ क्या होता है? नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नद-बोझ का अर्थ नदी द्वारा ढोए जाने वाले अवसाद को नद-भार या नद-बोझ (River Load) कहा जाता है। नद-भार में बड़े-बड़े शिलाखण्डों से लेकर महीन चीका तक सम्मिलित होते हैं।

नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले कारक-नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. जल का वेग-जल का वेग (Velocity of Water) घाटी के ढाल तथा जल के आयतन पर निर्भर करता है। जब कभी नदी में बहते हुए जल की गति किन्हीं कारणों से बढ़ जाती है तो जल की परिवहन क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है।

2. नद-भार का आकार महीन शैल-कणों को नदी काफ़ी दूर तक बहा ले जाती है। कुछ खनिज जल में घुलकर और अधिक दूरी तक पहुँच जाते हैं, लेकिन बड़े और भारी शिलाखण्ड कुछ ही दूरी तक बहाए जा सकते हैं।

3. जल की मात्रा यदि अन्य हालात सामान्य रहें तो नदी में जल की मात्रा (Volume of Water) दुगुनी होने पर उसके परिवहन की शक्ति भी दुगुनी से ज्यादा हो जाती है।

प्रश्न 5.
नदी अपना बोझ किन विधियों से ढोती है?
उत्तर:
नद-बोझ का परिवहन तीन प्रकार से होता है-

  • घुलकर-जैसे थोड़ी-बहुत मात्रा में चूने की चट्टानों के अंश घुलकर चलते हैं।
  • निलम्बन अवस्था में जैसे चीका और गाद के कण पानी में चढ़ते-उतरते, लटककर झूले खाते हुए चलते हैं।
  • लुढ़ककर-जैसे भारी शैल पदार्थ लुढ़कते और घिसटते हुए आगे बढ़ते हैं।

इसके भी दो तरीके हैं-

  • वल्गन (Saltation) में बजरी और रोड़ी जैसे कण कभी थोड़ा ऊपर उठते हैं और कभी तली पर आ टिकते हैं।
  • कर्षण (Traction) में पत्थर और शिलाखण्ड भार के कारण तल पर घिसटते चलते हैं।

प्रश्न 6.
पुनर्योवन (Rejuvination ) क्या होता है? इसके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्योवन का अर्थ-यदि नदी के अपरदन-चक्र के पूरा हुए बिना ही किसी भूगर्भिक हलचल के कारण प्रौढ़ावस्था वाला क्षेत्र युवावस्था को प्राप्त हो जाता है, तो उसे पुनर्योवन कहते हैं।

पुनर्योवन के प्रभाव-पुनर्योवन के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • नदी की अपरदन शक्ति में वृद्धि होती है।
  • गहरे विसों का निर्माण होता है।
  • पुरानी घाटियों में नई घाटियों का निर्माण आरम्भ हो जाता है।
  • नदी-वेदिकाओं का जन्म होता है।

प्रश्न 7.
जल-प्रपात क्या है? महाखड्ड जल-प्रपात के नीचे क्यों स्थित रहता है?
उत्तर:
जल प्रभाव का अर्थ-जब नदी ऊँचे स्थान से नीचे की ओर गिरती है तो उससे जल-प्रपात का निर्माण होता है। जब नदी के मार्ग में कठोर तथा कोमल चट्टानें क्रमबद्ध रूप से स्थित होती हैं तो नदी कोमल चट्टान को आसानी से काट देती है तथा कठोर चट्टान का कटाव कम होता है जिससे नदी की तलहटी निरन्तर नीची हो जाती है तथा नदी का जल ऊपर से नीचे गिरने लगता है जिसे जल-प्रपात कहते हैं।

जल के तीव्र वेग से नीचे गिरने के कारण नीचे कोमल चट्टानों का अपरदन होता है जिससे वहाँ एक कुण्ड का निर्माण होता है। धीरे-धीरे जल-प्रपात पीछे हटता रहता है जिससे वह कुण्ड, महाकुण्ड या महाखड्ड में बदल जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 8.
नदी घाटी का विकास किन-किन रूपों में होता है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नदी घाटी का विकास तीन भिन्न रूपों में होता है-
1. घाटी का गहरा होना घाटी का प्रारम्भिक विकास तीव्र ढाल वाले पर्वतीय प्रदेशों में होता है। लाम्बिक अपरदन (Lateral Erosion) अधिक होने के कारण घाटी गहरी व संकीर्ण बनती है। यह नदी की युवावस्था होती है।

2. घाटी का चौड़ा होना-मैदानी भाग में कम ढाल के कारण नदी लाम्बिक अपरदन कम और पार्श्विक अपरदन (Horizontal Erosion) अधिक करने लगती है। इस भाग में नदी चौड़ाई में विकसित होती है।

3. घाटी का लम्बा होना-नदी घाटी की लम्बाई (Lengthening) कई प्रकार से बढ़ती है। प्रमुख रूप से नदी अपने शीर्ष का अपरदन करके अपने उद्गम स्थल की ओर बढ़ती है। इसमें घाटी लम्बी होती है। शीर्ष अपरदन करते-करते नदी अपनी सहायक नदियों को भी खा जाती है, जिसे सरिता-अपहरण कहते हैं। इससे भी घाटी की लम्बाई बढ़ती है। विसों का आकार बढ़ने से भी घाटी लम्बी होती है। डेल्टा सदा समुद्र की ओर बढ़कर नदी घाटी की लम्बाई में वृद्धि करता रहता है।

प्रश्न 9.
डेल्टा बनने की आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डेल्टा बनने की आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नदी के ऊपरी भाग में जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए ताकि अधिक अपरदन द्वारा नद-भार की अधिक मात्रा प्राप्त हो सके।

(2) मुख्य नदी में अनेक सहायक नदियाँ (Tributaries) मिलनी चाहिएँ ताकि तलछट की अतिरिक्त राशि उपलब्ध हो सके। महीन तलछट जितना अधिक होगा, डेल्टा निर्माण की प्रक्रिया उतनी ही सरल होगी।

(3) नदी का प्रवाह मार्ग लम्बा हो ताकि समुद्र तक पहुँचते-पहुँचते घाटी प्रवणित (Graded) हो सके और नदी की गति मन्द हो जाए। नदी का कम वेग निक्षेपण में सहायता करता है। समुद्र तट के निकट स्थित पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ डेल्टा की अपेक्षा ज्वार-नदमुख (Estuaries) बनाती हैं।

(4) नदी के मार्ग में कोई झील न हो ताकि नदी द्वारा ढोया गया अवसाद उसमें निक्षेपित न होने लगे।

(5) नदी के मुहाने पर शक्तिशाली समुद्री तरंगें, धाराएँ तथा ज्वार-भाटा न आते हों, अन्यथा निक्षेप इनके साथ बहकर समुद्र में चला जाएगा और डेल्टा की रचना कभी नहीं हो पाएगी।

भारत के पश्चिमी तट पर इन दशाओं के न होने के कारण नदियाँ डेल्टा की अपेक्षा ज्वार-नदमुख (Estuaries) बनाती हैं, जबकि पूर्वी तट पर अनेक नदियाँ बड़े-बड़े डेल्टाओं की रचना करती हैं।

प्रश्न 10.
अपवाह तन्त्र किसे कहते हैं? अपवाह तन्त्रों के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
अपवाह तन्त्र-किसी क्षेत्र में बहने वाली नदियों तथा उनकी सहायक नदियों के क्रम को अपवाह तन्त्र कहते हैं। अपवाह तन्त्र के प्रकार-अपवाह तन्त्र के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. समानान्तर प्रारूप इसमें नदियाँ लगभग एक-दूसरे के समानान्तर बहती हैं। लघु हिमालय क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

2. जालीनुमा अपवाह तन्त्र-इस प्रणाली में जलधाराएँ पूर्ण रूप से ढाल का अनुसरण करती हैं तथा प्रवाह मार्ग में परिवर्तन ढाल के अनुसार होता है। सहायक नदियाँ मुख्य नदियों के समकोण पर मिलती हैं। उदाहरण के लिए, पेरिस बेसिन में इस प्रकार का अपवाह तन्त्र देखने को मिलता है।

3. द्रुमाकृतिक अपवाह तन्त्र इसमें मुख्य नदी वृक्ष के तने के समान होती है तथा उसकी सहायक नदियाँ वृक्ष की शाखाओं की भाँति फैली होती हैं। भारत में गंगा तथा गोदावरी नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

4. अरीय अपवाह तन्त्र-इसमें धरातल के मध्यवर्ती भाग में कोई ऊँची पर्वत श्रेणी या पठारी भाग स्थित होता है तथा चारों ओर निम्न भू-भाग होता है। नदियाँ चारों ओर से बहना आरम्भ करती हैं। भारत में पारसनाथ से निकलने वाली नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

5. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र-इसमें नदियों की धारा का जन्म स्थलखण्ड के उत्थान से पूर्व हो जाता है। सिन्धु तथा सतलुज नदियाँ इसी प्रकार के तन्त्र का निर्माण करती हैं।

6. आन्तरिक अपवाह तन्त्र-यह तन्त्र अर्द्ध शुष्क तथा मरुस्थलीय भागों में मिलता है। इसमें नदियाँ कुछ दूर बहने के पश्चात् मरुस्थल में लुप्त हो जाती हैं। ये नदियाँ झील या समुद्र तक नहीं पहुँचतीं।।

प्रश्न 11.
भौम-जलस्तर को निर्धारित करने वाले कारक कौन-से हैं? उनकी संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ऊपरी तल के रन्ध्रों से जल रिसकर भू-गर्भ की चट्टानों में एकत्रित होता रहता है और कुछ गहराई के पश्चात चट्टानें जल से संतृप्त होती हैं, इन्हें जल-संतृप्त चट्टानें कहते हैं। जल संतृप्त चट्टान पर जल की ऊपरी सतह को भूमिगत जल का तल (Underground.Water Level) कहते हैं। इसे भौम-जलस्तर भी कहते हैं। अन्य शब्दों में, किसी क्षेत्र में भूतल के नीचे का वह तल जिसके नीचे शैलें जल से भरपूर होती हैं, तो उसे भौम-जलस्तर कहते हैं।

भौम-जलस्तर परिवर्तनशील है। कुछ क्षेत्रों में यह केवल 2-3 मीटर की गहराई पर मिलता है तथा कई क्षेत्रों में सैकड़ों मीटर गहरा होता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में जलस्तर ऊँचा तथा शुष्क ऋतु में जलस्तर नीचा होता है। भौम-जलस्तर को निम्नलिखित घटक नियन्त्रित करते हैं-

  • शैलों की पारगम्यता
  • वर्षा की मात्रा
  • शैलों की सरंध्रता
  • शैलों की संरचना।

प्रश्न 12.
भूमिगत जल के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वर्षा और बर्फ के पिघलने से प्राप्त जल, जिसे उल्कापात जल (Meteoric Water) कहते हैं, के अतिरिक्त भूमिगत जल में वृद्धि करने वाले और भी स्रोत हैं। समुद्रों और झीलों की तली में स्थित परतदार चट्टानों के छिद्रों और सुराखों में इकट्ठा हुआ जल सहजात जल या तलछट जल (Connate Water) कहलाता है। जब कभी भू-गर्भिक उत्थान के कारण-समुद्र का कोई भाग ऊपर उठता है तो उस भाग से संचित जल भूमिगत जल बन जाता है।

जलज चट्टानों के नीचे दब जाने से मुक्त हुआ जल भी भूमिगत जल में वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त जब कभी तप्त मैग्मा चट्टानों में प्रवेश कर जाता है तो चट्टानों में स्थित वाष्पीय पदार्थ घनीभूत होकर भूमिगत जल में मिल जाते हैं। ऐसा जल मैग्मज जल (Magmatic Water) या तरुण जल (Juvenile Water) कहलाता है। पृष्ठीय जल (Surface water) का कितना हिस्सा भूमिगत जल बनेगा यह वहाँ की जलवायु पर निर्भर करता है।

प्रश्न 13.
गुफाओं का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
चूने के प्रदेश में धरातल की ऊपरी सतह पर कठोर चट्टानें होती हैं तथा भू-पृष्ठ के नीचे चूने की चट्टानें। ऐसी स्थिति में यहाँ नदियों या भूमिगत जल द्वारा अन्दर की चूने की चट्टानों का घुलना आरम्भ हो जाता है जिससे धरातल के नीचे खोखला भाग बन जाता है तथा ऊपर कठोर चट्टान छत की तरह स्थित रहती है। इस प्रकार गुफा का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में केंटुकी राज्य में 50 कि०मी० लम्बी गुफा है। देहरादून के निकट ‘रोबर्स’ कन्दरा, बिहार में सासाराम के निकट ‘गुप्तेश्वर’ गुफा प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। विश्व की सबसे बड़ी कन्दरा स्विट्ज़रलैण्ड में ‘हलौच’ कन्दरा है। यह 85 कि०मी० लम्बी है।

प्रश्न 14.
झरनों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
भूमिगत जल प्राकृतिक रूप से स्वयं एक धारा के रूप में बाहर निकलने लगता है, जिसे झरना कहते हैं। मोकहाउस के शब्दों में, “झरना धरातल पर जल का प्राकृतिक प्रवाह है। यह बहुत तेजी से पर्याप्त शक्ति से बाहर आता है और धीरे-धीरे कम दबाव से बहता है।” झरने जल से भरे हुए धरातल के उन स्थानों पर मिलते हैं जहाँ पारगम्य चट्टानें स्थित होती हैं। भूमिगत जल-भूतल की ढलान के साथ बहता हुआ प्राकृतिक छिद्र या सन्धि स्थल से बाहर आ जाता है जिससे झरने का निर्माण होता है। ये झरने पर्वतीय गिरीपद के निकट पाए जाते हैं।

प्रश्न 15.
झरने कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
झरनों से विभिन्न प्रकार का जल निकलता है। विभिन्न भू-गर्भिक और स्थल रूपों के आधार पर झरने निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. दुःस्थित झरना-इस प्रकार के झरनों में पारगम्य चट्टानें भूतल पर जलस्तर के ऊपर स्थित होती हैं।
  2. परिरुद्ध झरना इसमें जल से संतृप्त धरातल के ऊपर या नीचे मित् जल भृत की परतें होती हैं।
  3. भ्रंश झरना-ये झरने भू-तल पर विभ्रंश रेखा के निकट से निकलते हैं। इनका निर्माण भ्रंशन के कारण जल से भरपूर चट्टानों का अपारगम्य चट्टानों के सामने आने से होता है।
  4. विभेदित झरना-ग्रेनाइट की चट्टानें सभेदित होती हैं तथा इनमें सन्धियाँ पाई जाती हैं। इन झरनों का निर्माण इन सन्धियों में से झुके हुए भू-तल पर बाहर निकलने से होता है।
  5. डाइक झरना-जब पारगम्य चट्टानों के मध्य डाइक स्थित होती है तथा उनके सन्धि स्थल से जल बाहर निकलने लगता है तो डाइक झरने का निर्माण होता है।
  6. कार्ट झरना-कार्ट क्षेत्रों में घुलन क्रिया द्वारा जल नीचे चला जाता है। जब यह जल स्तर धरातल से मिलता है तो झरने के रूप में बाहर आ जाता है।
  7. अन्य झरने कई क्षेत्रों में भू-स्खलन अथवा मलबा शंकु के साथ-साथ झरनों का जन्म होता है।

प्रश्न 16.
उत्सुत कूप की रचना किन दशाओं में होती है? ये किन प्रदेशों में मिलते हैं?
उत्तर:
उत्सुत कूप-ये वे प्राकृतिक कुएँ हैं जो आन्तरिक भाग से धरातल पर स्वतः ही जल का निष्कासन करते रहते हैं। उत्स्रुत कूप अथवा पाताल तोड़ कुएँ सर्वप्रथम फ्राँस प्रान्त के अर्टवायज़ (Artois) क्षेत्र में खोदे गए, इसलिए इन्हें आर्टीजियन कुँओं के नाम से पुकारा जाता है।

उत्स्त्रुत कूप रचना की दशाएँ-उत्स्त्रुत कूप रचना की दशाएँ निम्नलिखित हैं-

  • दो अपारगम्य शैलों के मध्य एक पारगम्य शैल होती है।
  • पारगम्य चट्टान जल से भरपूर होती है तथा उसके दोनों सिरे ऊँचे तथा खुले होते हैं। इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है।
  • इन शैलों की आकृति प्लेट के आकार की होती है तथा अभिनति का वलन होता है।
  • ढलान वाले क्षेत्र के ऊपरी सिरों से जल निचले क्षेत्र में इकट्ठा होता रहता है।
  • अपारगम्य शैल में छिद्र करके कूप खोदा जाता है।
  • जल दबाव शक्ति-क्रिया द्वारा जल स्वतः तेज़ गति से बाहर आता है।

उत्त कूप सबसे अधिक ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं जो यहाँ 15 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ नौ हजार से भी अधिक ऐसे कुएँ हैं। भारत में तराई क्षेत्र, गुजरात में जलोढ़ क्षेत्र तथा तमिलनाडु के अर्काट जिले में ऐसे कूप पाए जाते हैं।

प्रश्न 17.
गीजर क्या है? गीज़र की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
गीजर का अर्थ भू-गर्भ से गरम (तप्त) जल रुक-रुक कर झटकों के साथ कई मीटर की ऊँचाई तक धरातल पर निकलता है तो उसे गीज़र कहते हैं। यह जल धरातल पर 50 से 60 मीटर की ऊँचाई तक जाता है। ‘गीजर’ शब्द आईसलैण्ड के ‘गेसिर’ शब्द से बना है। गेसिर इस द्वीप का महान् गीज़र है। इसमें गरम जल लगभग 60 मीटर की ऊँचाई तक ऊपर उठता है।

गीजर की रचना के आधार-गीजर ‘गशर’ का पर्यायवाची लगता है। इसकी रचना निम्नलिखित आधार पर होती है-

  • भू-तल के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक भाग में अधिक तापमान के कारण गरम जल के भण्डार स्थित हैं।
  • अधिक तापमान के कारण आन्तरिक जल भाप में बदल जाता है।
  • भूमिगत गरम जल तथा भाप संकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी नली द्वारा फुहारे के रूप में बाहर निकलते हैं।
  • भूमि के नीचे जल को उबलने में कुछ समय लगता है इसलिए संकरी नली से जल रुक-रुक कर बाहर आता है।
  • ये मुख्य रूप से सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • गीजर के जल के साथ कई खनिज पदार्थ तथा सिलिक मिश्रित होती हैं, जो गीजर के मुख के आसपास जमा हो जाते हैं।

प्रश्न 18.
हिमनदी किन दो प्रकारों से अपरदन क्रिया करती है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमोढ़ की सहायता से हिमनदी निम्नलिखित दो प्रकारों से अपरदन क्रिया करती है-
1. अपघर्षण-इस प्रक्रिया में हिमनद अपने मलबे की सहायता से यांत्रिक विधि द्वारा अपनी घाटी और किनारों को रेगमार की तरह घिसता, खरोंचता और चिकनाता हुआ आगे बढ़ता है। इससे घाटी की तली में बारीक धारियों के रूप में खरोंच के निशान भी पड़ जाते हैं।

2. उत्पाटन-इस क्रिया में हिमनदी अपने मार्ग में पड़ने वाली अनावृत्त शैलों के अदृढ़खण्डों को अपनी ताकत से उखाड़ कर अलग कर देती है।

प्रश्न 19.
हिमनदी क्या होती है? यह कैसे बनती है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
हिमनदी का अर्थ कर्णहिम (Neve) के पुनस्र्फटन (Recrystallisation) से बनी हिमकी विशाल संहत राशि जो धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन बहती है, हिमनदी या हिमानी कहलाती है।

कैसे बनती है हिमनदी?-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों और ध्रुवीय प्रदेशों में जहाँ तापमान हिमांक बिन्दु (Freezing Point) से कम होता है, वर्षण (Precipitation) जल की बूँदों के रूप में न होकर हिमतूलों (Snow flakes) के रूप में होता है।

लगातार अनेक वर्षों तक हिमपात होते रहने से हिम की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछती रहती हैं। ऊपरी परतों के दबाव के कारण हिम की निचली परतों से वायु निकल जाती है और हिम ठोस व संहत रूप धारण करने लगती है। ऐसी हिम को कर्णहिम या नेवे (Neve) कहा जाता है। जब हिमराशि की ऊँचाई 70-80 मीटर तक पहुँच जाती है तो वह अपने भार तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ढाल पर नीचे की ओर खिसकने लगती है। इस धीमी गति से बहती हुई बर्फ को हिमनदी कहा जाता है।

प्रश्न 20.
हिमनदियाँ क्यों बहती हैं? अथवा हिमनदियों के संचलन का कारण बताइए।
उत्तर:
स्विट्ज़रलैण्ड के प्रकृति-विज्ञानी (Naturalist) लुई अगासिज़ (Louis Aggasiz) ने सर्वप्रथम सन् 1834 में इस सत्य को उजागर किया था कि हिमनदियाँ गतिशील होती हैं। ये 2.5 सेण्टीमीटर प्रतिदिन से 30 मीटर प्रतिदिन की दर से बहती हैं। हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न दर से बहते हैं। हिम की गति किनारों की अपेक्षा मध्य भाग में तथा तलहटी की अपेक्षा सतह पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि तली और किनारों पर आधारी चट्टान (Base Rock) के घर्षण के फलस्वरूप हिम के प्रवाह की गति कम हो जाती है।

प्रश्न 21.
हिमक्षेत्र और हिमरेखा के अन्तर को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?
उत्तर:
हिमनदी अपने अस्तित्व और पोषण (Nourishment) के लिए अप्रत्यक्ष रूप से समुद्रों पर निर्भर करते हैं। जिन ठण्डे प्रदेशों में वार्षिक हिमपात की दर उसके पिघलने और वाष्पित होने की दर से अधिक होती है, वे सदा बर्फ से ढके रहते हैं, ऐसे क्षेत्र जहाँ बर्फ पड़ी रहती है, हिमक्षेत्र कहलाते हैं। हिमक्षेत्र की निचली सीमा को हिमरेखा कहा जाता है। हिमरेखा वह सीमा होती है जहाँ से ऊपर बर्फ कभी नहीं पिघलती। हिमरेखा कभी भी स्पष्ट और निश्चित नहीं होती। भूमध्य-रेखीय प्रदेशों में अधिक गर्मी के कारण हिमरेखा 6,000 मीटर की ऊँचाई पर मिलती है जबकि ध्रुवीय प्रदेशों में हिमरेखा समुद्र तल तक पहुँची हुई होती है। विश्व में सबसे ऊँची हिम रेखाएँ 20° से 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों (Latitudes) के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं। हिमालय में हिमरेखा 4,250 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।

प्रश्न 22.
हिमरेखा क्या होता है? हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिमरेखा का अर्थ-हिमरेखा हिमक्षेत्र की निचली सीमा को हिमरेखा कहते हैं। यह वह ऊँचाई होती है जिससे ऊपर बर्फ कभी भी नहीं पिघलती तथा बर्फ पूरे वर्ष जमी रहती है। हिमरेखा की ऊँचाई ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्र तल के पास भी हो सकती है, परन्तु भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में इसकी ऊँचाई 6,000 मी० तक होती है।

हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले कारक-हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-

  • अक्षांश ध्रुवीय प्रदेशों में कम तापमान के कारण हिमरेखा की ऊँचाई कम होती है तथा भूमध्य-रेखीय प्रदेशों में अधिक तापमान के कारण इसकी ऊँचाई अधिक होती है।
  • हिम की मात्रा-जिन क्षेत्रों में हिमपात अधिक होता है, वहाँ यह नीची तथा कम हिमपात वाले क्षेत्रों में ऊँची होती है।
  • ढलान तथा आर्द्रता तीव्र ढलान तथा शुष्क प्रदेशों में हिमरेखा ऊँची व सरल ढलान तथा आर्द्र क्षेत्रों में इसकी ऊँचाई कम होती है।
  • ऋतु का प्रभाव-शीत ऋतु में हिमरेखा नीची तथा ग्रीष्म ऋतु में हिमरेखा ऊँची होती है।

प्रश्न 23.
पवन चट्टानों का अपरदन कितने प्रकार से करती है? पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारकों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पवन जिन ढीले चट्टानी कणों को ढोती है, उन्हीं को औज़ार (Tool) बनाकर अपने मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों का यान्त्रिक अपरदन करती है। पवन चट्टानों का अपरदन तीन प्रकार से करती है-

  • अपवहन (Deflation)-इस क्रिया द्वारा भौतिक अपक्षय से टूटी हुई चट्टानों के कणों को अपने साथ उड़ा ले जाती है।
  • सन्निघर्षण (Attrition)-इस क्रिया में पवनों के साथ उड़ते हुए कण आपस में टकराकर सूक्ष्म होते रहते हैं।
  • अपघर्षण (Abrasion) इसमें रेत के कण चट्टान पर प्रहार करके रेगमार की भांति उसे खुरच देते हैं।

पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक-पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

  • पवन बालू के कणों को अधिक ऊँचाई तक नहीं उठा पाती, इसलिए पवन का अपरदन कार्य धरातल से थोड़ी-सी ऊँचाई तक ही प्रभावी होता है।
  • पवन का अपरदन उन कणों के आकार पर भी निर्भर करता है जिन्हें वह उड़ाकर या घसीटकर अपने साथ ढोती है।
  • पवन की गति और उसके बहने की अवधि भी पवन के अपरदन कार्य को प्रभावित करते हैं।
  • वातीय अपरदन की मात्रा चट्टानों की प्रकृति (कोमल या कठोर), सन्धियों (Joints) और उनके कणों के संघटन से भी प्रभावित होती है।

प्रश्न 24.
समुद्री अपरदन (Marine Erosion) किस प्रकार होता है? यह किन-किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
समुद्री अपरदन की प्रक्रिया-जब समुद्री तरंगें तटों पर जाकर टूटती हैं तो वे वहाँ स्थित चट्टानों पर तेज़ प्रहार करती हैं। ऐसा अनुमान है कि फेनिल तरंगें तट के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र पर 3,000 से 30,000 किलोग्राम जितना दबाव डाल सकती हैं। तूफ़ानी तरंगों का दबाव और अधिक होता है। जब समुद्री तरंगें तटों से टकराती हैं तो चट्टानों के छिद्रों और दरारों में छिपी वायु भिंच (Compress) जाती है।

तरंग के वापस लौटते ही यह दबी हुई वायु झटके से बाहर निकलती है। हवा के इस आकस्मिक फैलाव का विस्फोटक प्रभाव पड़ता है और चट्टानी कण ढीले पड़ने लगते हैं। इस क्रिया की लम्बी अवधि तक पुनरावृत्ति तटीय चट्टानों को तोड़ देती है। यदि तरंगें बजरी और बालू रूपी यन्त्रों से लैस हों तो सागरीय अपरदन और तेज़ हो जाता है। समुद्री तरंगें अपरदन क्रिया द्रव-प्रेरित बल, अपघर्षण, विलयन तथा सन्निघर्षण द्वारा करती हैं।

समुद्री अपरदन के कारक-समुद्र का अपरदन कार्य अनेक कारकों पर निर्भर करता है; जैसे-

  • समुद्री तरंगों के आकार और उनकी शक्ति
  • तट की ऊँचाई
  • तट का ढाल
  • तटीय चट्टानों की बनावट और संगठन
  • समुद्री तल की गहराई
  • तरंग के टूटने का बिन्दु इत्यादि।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
1. अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण
2. ‘I’ आकार की घाटी
3. ‘V’ आकार की घाटी
4. ‘U’ आकार की घाटी
5. जैव अपक्षय
6. कार्बोनेटीकरण
7. लटकती घाटी
8. गॉर्ज
9. जल-प्रपात
10. गुंफित नदी
11. डेल्टा
12. प्राकृतिक तटबन्ध तथा बाढ़ का मैदान
13. पुनर्योवन
14. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र
15. सर्क
16. हिमोढ़
17. ड्रमलिन
18. छत्रक
19. इन्सेलबर्ग
20. बारखन
21. बालुका स्तूपों का खिसकना
22. समुद्री भृगु
23. तरंग-यर्षित वेदी
24. अपक्षेप मैदान
25. रिया तट
26. भौम-जलस्तर
27. झरना।
उत्तर:
1. अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण-कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 1

2. I’ आकार की घाटी-इसे केनियन भी कहते हैं। केनियन की रचना ऐसे क्षेत्रों में होती है जहाँ नदी, ऊँचे पहाड़ी, पठारी भाग तथा कठोर चट्टानों से निर्मित भू-भाग से होकर गुजरती है। नदी की घाटी कम चौड़ी, अधिक गहरी एवं सँकरी होती है। इसकी आकृति ‘आई’ (I) के आकार की होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोरेडो नदी पर विश्व-प्रसिद्ध केनियन की लम्बाई 480 कि०मी० तथा गहराई 1,828 मीटर है।

3. ‘V’ आकार की घाटी-पर्वतीय क्षेत्रों में नदी लम्बवत् कटाव के साथ-साथ पाश्विक कटाव भी करती है जिसके कारण ‘V’ आकार की घाटी का निर्माण होता है। हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ V-आकार की घाटी में प्रवाहित होती हैं।

4. ‘U’ आकार की घाटी-ये घाटियाँ हिमानियों द्वारा निर्मित हैं। इनके ढाल खड़े तथा तली चौरस और सपाट होती है। इन घाटियों का निर्माण नदियों की V-आकार की घाटी के विकास में हिमनद के अपघर्षण तथा उत्पादन क्रिया के द्वारा इन घाटियों को पूर्णतया चौरस तथा सपाट बनाती है। मुख्य हिमानी की घाटी गहरी तथा विस्तृत होती है।

5.जैव अपक्षय-चट्टानों की वह टूट-फूट जिसमें जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य उत्तरदायी हों जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। जैविक अपक्षय के मुख्य कारक बिलकारी जीव-जन्तु, वनस्पति की जड़ें तथा मनुष्य द्वारा खनन हैं।

6. कार्बोनेटीकरण-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

7. लटकती घाटी-नदियों की तरह हिमनदियों की भी सहायक लटकती हिमनदियाँ होती हैं। पर्वतीय ढालों पर बहती हुई अधिकांश हिम की मुख्य घाटी में बहने की प्रवृत्ति होती है। बर्फ की मोटाई और उसके द्वारा तली पर डाले गए दबाव में अन्तर के कारण सहायक हिमनदी अपनी घाटी को उस गहराई और चौड़ाई में नहीं काट पाती, जिस गहराई तक मुख्य हिमनदी काट पाती है। इससे सहायक और मुख्य हिमनदी के संगम-स्थल पर तीव्र ढाल विकसित हो जाता है। जब बर्फ घाटी की ओर पिघल जाती है तो सहायक हिमनदी का जल मुख्य घाटी में जल-प्रपात वाले जलप्रपात अथवा क्षिप्रिका बनाते हुए गिरने लगता है। सहायक हिमनदी का मुख और घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी से काफी ऊपर अधर में लटकते दिखाई पड़ते हैं। लटकती घाटियों के सर्वोत्तम उदाहरण कैलिफोर्निया के सियरा नेवादा पर्वत की योसेमाइट घाटी (Yosemite Valley) में देखे जा सकते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 2

8. गॉर्ज-सँकरी और अत्यधिक गहरी V-आकार घाटी को गॉर्ज कहा जाता है। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जब नदी प्रतिरोधी चट्टानों के ऊपर बहती है तो वह तीव्र वेग के कारण तली को काटकर अपनी घाटी को गहरा करती रहती है जबकि पाश्विक अपरदन का कार्य कम होता है। चट्टानों की कठोरता के कारण घाटी के किनारों के ऊपरी भाग ऋतु-अपक्षय के कारण कट-कट कर नीचे घाटी में गिरते रहते हैं, किन्तु निचले भाग अपक्षय के प्रभाव से मुक्त रहते हैं। इसलिए गॉर्ज ऊपर से अपेक्षाकृत चौड़े होते हैं।

9. जल-प्रपात जब नदी चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। नदी की घाटी में कहीं कोमल तो कहीं कठोर चट्टानें बिछी हुई होती हैं। नदी की अपरदन क्रिया से कोमल चट्टानें तो शीघ्र कट जाती हैं जबकि कठोर चट्टानें कम गति से घिसती हैं। अतः नदी द्वारा चट्टानों की भिन्न अपरदन दर ही सामान्य जल प्रपातों के निर्माण का मुख्य कारण है। भूकम्प, ज्वालामुखी तथा भू-संचरण के कारण भी जल-प्रपातों की रचना होती है। सामान्यतः जल-प्रपात निम्नलिखित दो दशाओं में बनते हैं

  • जब चट्टानों की परतें क्षैतिज अवस्था में हों।
  • जब चट्टानों की परतें लम्बवत् अवस्था में हों।

10. गुंफित नदी-निचले भाग में नदी नद-भार को ढो पाने में असमर्थ होती है अतः वह अपने ही तल पर साथ बह रहे अवसाद का निक्षेपण करने लगती है। इससे नदी की धारा अवरुद्ध होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अनेक धाराओं में बँटकर बहने लगती है। ये धाराएँ बालू से बनी अवरोधिकाओं द्वारा एक-दूसरे से अलग हुई होती हैं। अनेक जलधाराओं से फंदे बनाती हुई ऐसी नदी को गुंफित नदी कहते हैं।

11. डेल्टा-किसी समुद्र या झील में गिरने से पहले नदी अपने आधार तल (Base Level) को प्राप्त कर चुकी होती है। इस समय उसकी शक्ति अत्यन्त क्षीण और वेग अत्यन्त मन्द होता है। नदी अपना बचा हुआ समस्त नद-भार मुहाने पर जमा कर देती है। इस अवसाद के अवरोध के कारण नदी एक मुख्य धारा के रूप में नहीं बह पाती, बल्कि छोटी-छोटी अनेक शाखाओं (Distributaries) में बँटकर बहने लगती है।

ये शाखाएँ भी अपने-अपने मुहाने पर नद-भार का निक्षेप करने लगती हैं। इस प्रकार मुहाने के पास विशाल क्षेत्र में एक त्रिभुजाकार स्थलाकृति का निर्माण हो जाता है, जिसे डेल्टा कहते हैं। इस त्रिभुजाकार स्थलरूप को डेल्टा इसलिए कहते हैं क्योंकि नील नदी के डेल्टा की आकृति यूनानी भाषा के डेल्टा (∆) अक्षर से मिलती है। विश्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा (1,25,000 वर्ग कि०मी०) सबसे बड़ा डेल्टा है। विश्व की सभी नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं।
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12. प्राकृतिक तटबन्ध तथा बाढ़ का मैदान वर्षा ऋतु में बाढ़ आने पर नदी का जल उसके किनारों से बाहर निकलकर बहने लगता है। बाढ़ के समय नदी में जल की मात्रा और नद-भार ढोने की शक्ति दोनों ही बढ़ जाते हैं। बाढ़ उतरने पर नदी इतने अधिक जलोढ़ का परिवहन करने में असमर्थ हो जाती है और नद-भार का निक्षेप करना आरम्भ कर देती है। अवसाद की एक मोटी परत नदी के किनारों पर जमने लगती है क्योंकि तटों के पास घर्षण (Friction) के कारण जल की गति सबसे कम होती है।

अनेक वर्षों तक इस क्रम के बार-बार दोहराए जाने पर नदी के तटों पर लम्बे ऊँचे टीले बने दिखाई देते हैं जिन्हें प्राकृतिक तटबन्ध कहा जाता है। प्रायः ये तटबन्ध नदी के जल-तल से एक या दो मीटर ऊँचे होते हैं, लेकिन कई बार इनकी ऊँचाई आस-पास के मकानों की छतों से भी ऊँची होती है। प्राकृतिक तटबन्धों को कई बार कृत्रिम रूप से ऊँचा और पक्का भी कर दिया जाता है।

कई बार तटबन्धों के टूट जाने पर नदी का जल आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाता है। बाढ़ की समाप्ति पर जल अपने साथ बहाकर लाए गए महीन नद-भार की एक परत वहाँ बिछा देता है, जिसे बाढ़ का मैदान कहते हैं।

13. पुनर्योवन-प्रवणित अवस्था में बहती नदी यदि आधार तल को प्राप्त कर भी ले तो यह स्थिति अस्थाई होती है। इसका कारण यह है कि कभी नदी घाटी का तल ऊपर उठ जाता है या स्थाई माना जाने वाला समुद्र का तल ही किन्हीं कारणों से नीचा हो सकता है। ऐसे में प्रवणित घाटी के तल में व्यवधान पैदा हो सकता है। व्यवधान की अवस्था में नदी अपने तल का अधिकतर ऊपर की ओर अपरदन करके सुधार करती है। प्रवणित घाटी में नदी द्वारा पुनः अपरदन की क्रिया पुनर्योवन कहलाती है। पुनर्योवन . की अवस्था में पुरानी घाटी के नीचे नई घाटी का निर्माण होने लगता है।

14. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र-पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र उसे कहते हैं जिसका आविर्भाव स्थलखण्ड में उत्थान से पहले हो चुका होता है। मार्ग में स्थलखण्ड का उत्थान हो जाने के बाद भी ये नदियाँ अपने पहले वाले मार्ग को अपनाए रहती हैं। अपरदन के द्वारा ये अपने मार्ग के अवरोध को लगातार काटती रहती हैं। ज्यों-ज्यों भूखण्ड का उत्थान होता है, त्यों-त्यों ये नदियाँ अपनी उसी घाटी को गहरा करती रहती हैं। ये धाराएँ स्थानीय ढाल का अनुसरण नहीं करती, इसलिए उन्हें अक्रमवर्ती जलधारा (Insequent Streams) भी कहा जाता है। सिन्धु और सतलुज नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। तिब्बत के पठार से निकलने वाली ये नदियाँ हिमालय पर्वत से भी पुरानी हैं। इनके मार्ग में हिमालय के उत्थान के बावजूद इन नदियों ने अपने मार्ग को अक्षुण बनाए रखा है।

15. सर्क-जब ऊँचे पर्वतीय भागों से फिसलकर हिम नीचे आती है, तो वह ढाल पर गड्ढे बना देती है। इसमें तुषार अपक्षय (FrostAction) का भी हाथ होता है। समय के साथ ये गड्ढे हिमखोदाव (Nivation) की क्रिया से चौड़े और गहरे होते रहते हैं। पर्वतीय ढालों पर बने ऐसे विशाल गर्त हिम गह्वर कहलाते हैं। दूर से यह भू-आकृति अर्ध-गोलीय रंगमंच (Amphi-Theatre) अथवा गहरी सीट वाली आराम कुर्सी जैसी प्रतीत होती है।

16. हिमोद-जब हिमनदी पिघलती है तो हिम की विभिन्न परतों में जकड़कर साथ-साथ चल रहे शैल मलबे का घाटी में यथास्थान निक्षेपण होने लगता है। प्रत्यक्ष रूप से बिछाए गए रेत के महीन कणों से लेकर बड़े-बड़े शिलाखण्डों के अस्तरित (Unstratified) मिश्रण को टिल (Till) कहा जाता है। टिल से निर्मित स्थलाकृतियों को हिमोढ़ कहा जाता है। हिमोढ़ निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

  • पाश्विक हिमोढ़
  • मध्यवर्ती हिमोढ़
  • अन्तिम हिमोढ़
  • तलस्थ अथवा भूमि हिमोढ़।

17. ड्रमलिन-हिमनदी की घाटी में हिम के प्रवाह की दिशा में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उल्टी नौका जैसी आकृति के महीन मृत्तिका (Till) से बने अनेक टिब्बे पाए जाते हैं, जिन्हें ड्रमलिन कहा जाता है। ये 30 मीटर तक ऊँचे और एक किलोमीटर तक लम्बे होते हैं। इन टिब्बों के विस्तृत क्षेत्र को दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे एक विशाल टोकरी में आधे कटे अण्डे उल्टे रखे हुए हों। इसलिए इसे अण्डों की टोकरी जैसी स्थलाकृति (Basket of Eggs Topography) भी कहा जाता है। ड्रमलिन हिमनदों के पीछे हटने और फिर आगे बढ़ने की पुनरावृत्ति से बनते हैं। ड्रमलिन हिमनद की निक्षेप क्रिया का परिणाम हैं। ये सैकड़ों की तादाद में इकडे पाए जाते हैं।

18. छत्रक-मरुस्थलों में पवन के मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के आधार तल पर अपरदन सबसे अधिक होता है, क्योंकि पवन में बड़े व भारी कण धरातल के समीप बह रहे होते हैं। बड़े कण ऊपर के सूक्ष्म कणों की अपेक्षा चट्टान के निचले भाग में तेजी से अपरदन करते हैं। इस अघोरदन (Undercutting) के कारण चट्टान का निचला भाग सँकरा और ऊपरी भाग चौड़ा बना रहता है। ऐसा भू-आकार दूर से छतरी जैसा दिखाई पड़ता है।

19. इन्सेलबर्ग-शुष्क मरुस्थलों में यदि कहीं कठोर चट्टान बिछी होती है तो पवन द्वारा उस चट्टान के आस-पास तो अपरदन होता रहता है, किन्तु उसके नीचे की भूमि अपरदन से बची रह जाती है। काफ़ी मात्रा में अपरदन हो चुकने के बाद यह भूमि एक ऊँचे स्तम्भ के रूप में उभरी रह जाती है, जिसे भू-स्तम्भ या डिमोइसल कहते हैं।

20. बारखन-बारखन तुर्की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-खिरघिज़ स्टेपी में बालू की पहाड़ी। बारखन विशेष आकृति वाले बालू के टीले या पहाड़ियाँ होती हैं जो वायु की दिशा में आड़ी बनती हैं। इनका अग्रभाग चन्द्राकार होता है और इनके दोनों छोरों पर पवन की दिशा में एक-एक सींग जैसी आकृति निकली रहती है। बारखन का पवनाभिमुख ढाल उत्तम और मन्द होता है, जबकि पवनविमुख ढाल तीव्र और अवतल होता है। इस तीव्र ढाल से उतरती हुई पवन भूमि पर घिसटती हुई बहती है जिससे उसमें भँवर गति (Eddies) पैदा हो जाती है। इससे टिब्बे के किनारे भीतर की ओर दबते हैं और बारखन अर्ध-चन्द्राकार जैसा विचित्र भू-आकार बन जाता है। बारखन सामान्यतः समूहों में पाए जाते हैं। बालू के सामान्य टिब्बों की भाँति बारखन भी आगे खिसकते हैं। इनकी औसत ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

21. बालुका स्तूपों का खिसकना-यदि लम्बे समय तक पवन एक ही दिशा में बहती रहे और विस्तृत क्षेत्र में वनस्पति आवरण का अभाव हो तो बालू के टीले पवन की प्रवाह दिशा में खिसकते रहते हैं। पवनमुखी मंद ढाल (Windward Slope) से पवन बालू को उड़ाकर पवनविमुखी तीव्र ढाल (Leeward Slope) पर जमा करती रहती है। इस प्रकार रेत टिब्बे के पिछले भाग से अगले भाग में पहुँचती रहती है और बालू का टिब्बा आगे की ओर सरकता रहता है। इनके खिसकाव की सामान्य गति 5 से 20 मीटर प्रति वर्ष होती है।

22. समुद्री भृगु-एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है। जिन तटों पर तीव्र ढाल वाली चट्टानें तट से समुद्र के नीचे चली जाती हैं, वहाँ शुरू में फेनिल तरंगें समुद्र के जल-स्तर पर अपरदन के द्वारा एक खाँच (Notch) का निर्माण करती हैं। यह खाँच अपरदन के द्वारा अन्दर-ही-अन्दर बढ़ती जाती है और आधार को तब तक खोखला करती रहती है, जब तक चट्टान का खाँचे के ऊपर लटकता हुआ भाग समुद्र में गिर नहीं जाता। इस प्रकार बची हुई चट्टान का दीवार की तरह खड़ा सीधा भाग भूगु कहलाता है।

23. तरंग-घर्षित वेदी-भृगु के बार-बार पीछे हटने से उत्पन्न शैल मलबे को ज्वारीय तरंगें भृगु के सामने ज़मा करती रहती हैं। इससे जल के अन्दर एक अपेक्षाकृत समतल मैदान का निर्माण हो जाता है, जिसे तरंग-घर्षित वेदी कहते हैं।

24. अपक्षेप मैदान-हिमनदी के पिघलने से उत्पन्न जल अपने शैल मलबे के साथ अन्तिम हिमोढ़ के पीछे इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। जब जल की मात्रा बढ़ जाती है तो वह अन्तिम हिमोढ़ के ऊपर से होकर बहने लगता है। इससे अन्तिम हिमोढ़ का भी थोड़ा-बहुत अपरदन हो जाता है। यह सामग्री अन्तिम हिमोढ़ से आगे एक विस्तृत क्षेत्र में अपने भारीपन के क्रम में बिछ जाती है। इसे हिमप्रवाह मैदान या अपक्षेप मैदान कहा जाता है।

25. रिया तट-हिम युग के बाद समुद्र का जल-स्तर बढ़ने से समुद्र के साथ समकोण बनाती हुई उच्च भूमियों की नदी घाटियों और नद-मुख (River Mouths) जल में डूब गए। इस प्रकार बना तट रिया तट कहलाता है। ये तट फियोर्ड तट से इस कारण भिन्न होते हैं कि ये हिमनदित नहीं होते और समुद्र की ओर इनकी गहराई बढ़ती जाती है। एड्रियाटिक सागर व जापान की तट-रेखा रिया तट के उदाहरण हैं।

26. भौम-जलस्तर-गुरुत्व बल के प्रभाव से जल रिस-रिस कर चट्टान की किसी अपारगम्य परत तक जा पहुँचता है। यदि इस जल को झरना बनकर बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता तो यह चट्टान के छिद्रों और दरारों में एकत्रित होकर उसे जल से परिपूर्ण या संतृप्त (Saturated) कर देता है। इस जलयुक्त चट्टान को जलभृत (Acquifer) या संतृप्त चट्टान कहा जाता है। जल-संतृप्त शैलों का ऊपरी तल भौम-जलस्तर कहलाता है।

भौम-जलस्तर एक सरल रेखा की भाँति सदा समतल नहीं पाया जाता। सामान्यतः भौम-जलस्तर धरातलीय बनावट (Relief) और चट्टान की प्रकृति (Rock Type) का अनुसरण करता है। पहाड़ियों के धरातल से यह काफी नीचे किन्तु मेहराबनुमा होती है, किन्तु घाटियों के नीचे यह V-आकार की तथा निम्न मैदानों के नीचे समतल होती है।

27. झरना-जलीय दबाव के कारण जब भूमिगत जल चट्टानी दरारों व जोड़ों (Joints) से अपने आप धरातल पर निकल आता है, तो उसे झरना कहते हैं।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(1) जलोढ़ पंख तथा डेल्टा
(2) जल-प्रपात तथा क्षिप्रिकाएँ
(3) स्टैलेक्टाइट तथा स्टैलेग्माइट
(4) U आकार की घाटी तथा V आकार की घाटी।
उत्तर:
(1) जलोढ़ तथा डेल्टा में अंतर निम्नलिखित है-

जलोढ़ पंख (Alluvial Fan)डेल्टा (Delta)
1. जलोढ़ पंख मध्यवर्ती भाग में बनी स्थलाकृति होती है।1. डेल्टा नदी के निचले भाग में बनी स्थलाकृति होती है।
2. ऊपर से देखने पर यह एक पंख के समान विस्तृत होता है।2. ऊपर से देखने पर यह यूनानी भाषा के डेल्टा (∆) अक्षर के समान प्रतीत होता है।
3. यह पर्वतीय कंदरा के बाहर मैदान की तरफ फैला होता है।3. यह नदी के समुद्र में गिरने से पहले बनता है।

(2) जल प्रपात तथा क्षिप्रिकाओं में अंतर निम्नलिखित हैं-

जल-प्रपात (Water Falls)क्षिप्रिकाएँ (Rapids)
1. जल-प्रपात में जल काफी ऊँचाई से गिरता है।1. क्षिप्रिका में जल छोटी-छोटी ऊँचाइयों से गिरता है।
2. यह चट्टानों की क्षैतिज व अनुप्रस्थ दोनों अवस्थाओं में बन सकता है।2. यह तब बनती है, जब चट्टानें अनुप्रस्थ दिशा में स्थित हों।
3. इसमें ढाल खड़ा होता है।3. इसमें ढाल खड़ा नहीं होता, लेकिन ढाल प्रवणता अधिक होती है।
4. इसका आर्थिक महत्त्व अधिक है।4. इसका आर्थिक महत्त्व कम है।

(3) स्टैलेक्टाइट तथा स्टैलेग्माइट में अंतर निम्नलिखित है-

स्टैलेक्टाइट (Stalactite)स्टैलेगमाइट (Stalagmite)
1. ये कार्स्ट प्रदेशों में गुफाओं की छत से नीचे की ओर लटके हुए स्तंभ होते हैं।1. ये कार्स्ट प्रदेशों में गुफाओं के फर्श पर ऊपर की और उठे हुए स्तंभ होते हैं।
2. ये पतले और नुकीले होते हैं।2. ये अपेक्षाकृत मोटे किन्तु छोटे होते हैं।
3. ये चूनायुक्त जल की गुफा की छत पर लटकी बूँदों के वाष्पीकृत हो जाने से बनते हैं।3. ये चूनायुक्त जल की गुफा के धरातल पर गिरी बूँदों के सूखने से बनते हैं।

(4) U आकार की घाटी तथा V आकार की घाटी में अंतर निम्नलिखित हैं-

U आकार की घाटी (U-Shaped Valley)V आकार की घटी (V-Shaped Valley)
1. यह घाटी हिमनदी के अपरदन से बनती है।1. यह घाटी नदी के अपरदन से बनती है।
2. इस घाटी के किनारे एकदम खड़े होते हैं।2. इस घाटी के किनारे ढालू होते हैं।
3. यह घाटी अधिक गहरी होने पर भी U-आकार की ही रहती है।3. यह घाटी अधिक गहरी होने पर ‘I’ आकार की कैनियन बन जाती है।
4. U-आकार की घाटी ऊँचे पर्वतों और उच्च अक्षांशों में पाई जाती है।4. V-आकार की घाटी मध्य व निम्न अक्षांशों में पाई जाती है।

प्रश्न 27.
नदी के मध्य भाग में मोड़ या घुमाव (विसप) क्यों बनते हैं?
उत्तर:
मन्द गति के कारण मैदानी भाग में नदी की परिवहन शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने मार्ग में आने वाली रुकावटों को अपरदन द्वारा दूर करने की अपेक्षा अपनी धारा का रुख मोड़ लेती है। नदी का अपना अवसाद ही उसके मार्ग की रुकावट बनने लगता है। यदि एक बार नदी के मार्ग में मोड़ आ जाए तो फिर यह प्रक्रिया रुक नहीं पाती। इसका कारण यह है कि घुमाव में बहता हुआ जल अपने बाहरी या अवतल (Concave) किनारों पर अपरदन और घुमाव के अन्दर वाले या उत्तल (Convex) किनारों पर निक्षेपण अधिक करता है। इससे अवतल किनारों पर जल गहरा तथा धारा तेज़ और उत्तल किनारों पर जल कम गहरा तथा धारा मन्द होती है। परिणामस्वरूप अपरदित किनारा पीछे हटता जाता है और निक्षेप वाला किनारा घाटी तल पर आगे बढ़ता जाता है। इस क्रिया से नदी के घुमाव बढ़ते जाते हैं, जिन्हें नदी विसर्प कहा जाता है।

प्रश्न 28.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा व ताप्ती नदियाँ डेल्टा नहीं बना पातीं। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  • पश्चिमी तट पर बहने वाली नदियों के निचले भाग तीव्र ढाल वाले होते हैं।
  • नदियाँ तीव्र गति से अरब सागर में गिरती हैं जिसमें मिट्टी का निक्षेप नहीं हो पाता।
  • पश्चिमी तटीय मैदान कम चौड़ा होने के कारण वहाँ समतल भूमि की कमी होती है।

प्रश्न 29.
छत्रक या गारा कैसे बनता है? ऐसे भू-आकार कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलों में पवन के मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के आधार तल पर अपरदन सबसे अधिक होता है, क्योंकि पवन में बड़े व भारी कण धरातल के समीप उड़ रहे होते हैं। बड़े कण ऊपर के सूक्ष्म कणों की अपेक्षा चट्टान के निचले भाग में तेजी से अपरदन करते हैं। इस अधोरदन (Undercutting) के कारण चट्टान का निचला भाग सँकरा और ऊपरी भाग चौड़ा बना रहता है। ऐसा भू-आकार दूर से छतरी जैसा दिखाई पड़ता है। सहारा मरुस्थल में ऐसी स्थलाकृतियों को ‘गारा’ कहा जाता है। राजस्थान में जोधपुर के निकट ग्रेनाइट की चट्टानों से बने ऐसे अनेक छत्रक देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 30.
मरुस्थलों में पवन अनाच्छादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों माना जाता है?
उत्तर:
अनाच्छादन के साधन के रूप में पवन का कार्य केवल शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में ही सीमित रहता है। इन मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण मिट्टी के कण परस्पर बँधे हुए नहीं होते, बल्कि ढीले होते हैं। वनस्पति के आवरण के न होने से ऐसे क्षेत्रों में पवन रेत के इन असंगठित कणों को बड़ी आसानी से उड़ा ले जाती है। जहाँ कहीं भी पवन की गति में कमी आती है, वह इन रेत के कणों को निक्षेपित करने लगती है।

प्रश्न 31.
लैगून क्या होती है? यह कैसे बनती है? भारत में लैगूनों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कई बार एक बालू-भित्ति (Sand bar) समुद्र के एक छोटे से भाग को मुख्य समुद्र से अलग कर देती है। ऐसी आंशिक रूप से रोधिका द्वारा घिरी हुई खारे पानी की झील को लैगून कहा जाता है। लैगून का सम्बन्ध एक संकीर्ण मार्ग द्वारा समुद्र से बना रहता है। भारत के पूर्व में ओडिशा तट पर चिल्का (Chilka) झील तथा दक्षिण में तमिलनाडू तट पर पुलिकट (Pulicut) झील तथा केरल तट पर वेंबानाद (Vembanad) झील लैगून झीलों के ही उदाहरण हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदी की अपरदन अथवा निक्षेपण क्रिया से बनने वाली स्थलाकृतियों (भू-आकृतियों) का वर्णन कीजिए।
अथवा
नदी घाटी के तीन मुख्य भागों में प्रवणता सन्तुलन के कारक के रूप में, नदी के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अपरदित स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपरदन, परिवहन और निक्षेपण क्रियाओं के माध्यम से नदी अपने मार्ग के विभिन्न भागों में अनेक प्रकार के स्थलरूपों की रचना करती है।
(क) नदी घाटी के ऊपरी भाग में बनी स्थलाकृतियाँ-नदी घाटी का ऊपरी भाग पर्वतीय क्षेत्र में स्थित उसके उद्गम स्थान (Source) से आरम्भ होता है। इस भाग में नदी तीव्र ढाल पर बहती है जिस कारण उसका वेग और अवसाद ढोने की शक्ति अधिक होती है। इस अवस्था में नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है जिसके द्वारा नदी निम्नलिखित आकृतियों का निर्माण करती है
1. V-आकार घाटी (V-shaped Valley)-उद्गम स्थान से निकलते ही नदी अपने मार्ग के ढाल और गति के कारण अपनी तली को काटकर गहरा करने का कार्य करती है। इससे घाटी का आकार V-अक्षर जैसा हो जाता है। घाटी का निरन्तर विकास होता रहता है जिसमें क्षैतिज अपरदन (Lateral Erosion) कम तथा लम्बवत् अपरदन (Vertical Erosion) अधिक होता है। प्रायः V-आकार की घाटी उन क्षेत्रों में विकसित होती है, जहाँ वर्षा सामान्य से अधिक होती है तथा चट्टानें अति कठोर नहीं होती।

2. महाखड्ड अथवा गॉर्ज (Gorge)-संकरी और अत्यधिक गहरी V-आकार घाटी को गॉर्ज कहा जाता है। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जब नदी प्रतिरोधी चट्टानों के ऊपर बहती है तो वह तीव्र वेग के कारण तली को काटकर अपनी घाटी को गहरा करती रहती है जबकि पाश्विक अपरदन का कार्य कम होता है। चट्टानों की कठोरता के कारण घाटी के किनारों के ऊपरी भाग ऋतु-अपक्षय के कारण कट-कट कर नीचे घाटी में गिरते रहते हैं, किन्तु निचले भाग अपक्षय के प्रभाव से मुक्त रहते हैं। इसलिए गॉर्ज ऊपर से अपेक्षाकृत चौड़े होते हैं। हिमालय में सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र दर्शनीय और भयावह महाखड्डों का निर्माण करती हैं।

3. कैनियन (Canyon) कैनियन गॉर्ज की अपेक्षा बड़ी, गहरी और संकरी होती है। यह घाटी अंग्रेज़ी के I (आई) अक्षर जैसी होती है जिसके दोनों किनारे एकदम तीक्ष्ण ढाल वाले होते हैं। कैनियन सामान्यतः शुष्क व अर्ध-शुष्क जलवायु वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण घाटी तो चौड़ी नहीं हो पाती, किन्तु बारहमासी नदी अपने तल को लम्बवत् काटकर गहरा अवश्य बनाती रहती है। अमेरिका में कोलोरेडो नदी द्वारा निर्मित ग्रैण्ड कैनियन (Grand Canyon) 483 कि०मी० लम्बा, 2088 मीटर गहरा तथा 6 से 16 कि०मी० चौड़ा है।

4. जलज गर्तिका (Pot Holes) नदी के मार्ग में पड़ने वाले ठोस चट्टानी तल पर लुढ़कते हुए शिलाखण्ड गड्ढे बना देते हैं। इन गड्ढों में नदी का जल जब भँवर के रूप में घूमता है तो गड्ढों में पड़े कंकड़-पत्थर जल के साथ तेज़ी से घूमते हुए छेदक (Drill) का काम करते हैं। नदी तल में बने ऐसे गर्मों को जलज गर्तिका कहते हैं। अधिक गहरी जलज गर्तिका को अवनमन कुण्ड (Plung Pool) कहा जाता है।
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5. जल-प्रपात (Waterfall)-जब नदी चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। नदी की घाटी में कहीं कोमल तो कहीं कठोर चट्टानें बिछी हुई होती हैं। नदी की अपरदन क्रिया से कोमल चट्टानें तो शीघ्र कट जाती हैं जबकि कठोर चट्टानें कम गति से घिसती हैं। अतः नदी द्वारा चट्टानों की भिन्न अपरदन दर ही सामान्य जल प्रपातों के निर्माण का मुख्य कारण है। भूकम्प, ज्वालामुखी तथा भू-संचरण के कारण भी जल-प्रपातों की रचना होती है।
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6. क्षिप्रिकाएँ (Rapids)-जब नदी के मार्ग में कठोर तथा कोमल चट्टानें अनुप्रस्थ (Transverse) दिशा में स्थित होती हैं तो असमान प्रतिरोधिता के कारण नदी का मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो जाता है। परिणामस्वरूप ऊपर से बहता हुआ जल थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ‘कूदता’ हुआ प्रतीत होता है, इसे क्षिप्रिका कहते हैं। क्षिप्रिकाओं के कोमल समूह को सोपानी जल-प्रपात (Cascade) कहते हैं। अफ्रीका में आसवान तथा खारतूम के बीच नील नदी कई क्षिप्रिकाएँ और सोपानी जल-प्रपात बनाती है।
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(ख) नदी घाटी के मध्यवर्ती भाग में निर्मित स्थलाकृतियाँ-
पर्वतीय क्षेत्र से नीचे उतरकर नदी जब मैदानी भाग में प्रवेश करती है तो उसमें जल की मात्रा बढ़ चुकी होती है। नदी घाटी का ढाल एकाएक कम होने से नदी का वेग भी कम हो जाता है। ऐसी दशा में नदी तल की अपेक्षा किनारों का अपरदन अधिक करने लगती है। अपरदन की अपेक्षा अधिक निक्षेपण नदी के मध्यवर्ती भाग में पाई जाने वाली प्रमुख विशेषता है। नदी के इस भाग में अनलिखित भू-आकृतियों की रचना होती है-
1. जलोढ़ पंख एवं जलोढ़ शंकु (Alluvial Fan and Alluvial Cone)-जब कोई पर्वतीय नदी मैदान में प्रवेश करती है तो ढाल के एकदम कम होते ही नदी अवसाद को बहा ले जाने में असमर्थ होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अपने नद-भार को पर्वतीय कन्दरा के बाहर एक अर्धवृत्ताकार रूप में फैला देती है जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं। रॉकीज़ तथा इण्डीज़ पर्वतों से निकलने वाली
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लगभग सभी नदियों ने जलोढ़ पंखों की रचना की है। हिमालय की तलहटी में अनेक जलोढ़ पंखों ने मिलकर गंगा के मैदान के उत्तरी भाग में भाबर क्षेत्र का निर्माण किया है। कई बार अधिक नद-भार के जमा हो जाने के कारण जलोढ़ पंख काफी ऊँचे और तीव्र ढाल वाले हो जाते हैं, जिन्हें जलोढ़ शंकु कहा जाता है। जलोढ़ शंकुओं की रचना प्रायः अर्ध-शुष्क प्रदेशों में होती है। अमेरिका के सेन जुआन (San Juan) पर्वत की तलहटी में अनेक उन्नत जलोढ़ शंकु देखे जा सकते हैं।

2. नदी विसर्प (River Meanders)-प्रौढ़ावस्था में नदी सीधी न बहकर साँप की तरह बल खाती बहती है जिसे विसर्पण (Meandering) कहा जाता है। मन्द गति के कारण मैदानी भाग में नदी की परिवहन शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने मार्ग में आने वाली रुकावटों को अपरदन द्वारा दूर करने की अपेक्षा अपनी धारा का रुख मोड़ लेती है। नदी का अपना अवसाद ही उसके मार्ग की रुकावट बनने लगता है। यदि एक बार नदी के मार्ग में मोड़ आ जाए तो फिर यह प्रक्रिया रुक नहीं पाती।

इसका कारण यह है कि घुमाव में बहता हुआ जल अपने बाहरी या अवतल (Concave) किनारों पर अपरदन और घुमाव के अन्दर वाले या उत्तल (Convex) किनारों पर निक्षेपण अधिक करता है। इससे अवतल किनारों पर जल गहरा तथा धारा तेज़ और उत्तल किनारों पर जल कम गहरा तथा धारा मन्द होती है। परिणामस्वरूप अपरदित किनारा पीछे हटता जाता है और निक्षेप वाला किनारा घाटी तल पर आगे बढ़ता जाता है। इस क्रिया से नदी के घुमाव बढ़ते जाते हैं, जिन्हें नदी विसर्प कहा जाता है।

3. गोखुर झील (Oxbow Lake)-नदी के विसर्प ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यो-त्यों विसरों के स्कन्ध ढाल एक-दूसरे के निकट आने लगते हैं। नदी थोड़ी-सी दूरी तय करने के लिए कई गुना लम्बा मार्ग तय करती है। बाढ़ आने पर नदी अपनी संकीर्ण निक्षेपण ग्रीवा को काटकर सीधी हो लेती है। विसर्पाकार मोड़ अलग छूट जाता है। कटे हुए विसर्प के सिरे बालू, मिट्टी और गाद से भर जाते हैं जिन्हें गोखुर झील या छाड़न झील कहा जाता है। इस गोखुर झील झील की आकृति गाय के खुर जैसी होती है। इसे मृत झील विसों की ग्रीवा का तंग होना (Mort Lake) भी कहते हैं, क्योंकि समय के साथ वह अवसादों से भरकर सूख जाती है।
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(ग) नदी घाटी के निचले भाग में निर्मित स्थलाकृतियाँ-नगण्य ढाल और कम गति के कारण इस अन्तिम भाग में नदी की भार वहन करने की क्षमता अत्यन्त कम हो जाती है। इस भाग में नदी सर्वाधिक निक्षेपण करती है तथा अपरदन न के बराबर होता है। घाटी के निचले भाग में बनने वाली भू-आकृतियाँ निम्नलिखित हैं-
1. गुंफित नदी (Braided River) निचले भाग में नदी नद-भार को ढो पाने में असमर्थ होती है अतः वह अपने ही तल पर साथ बह रहे अवसाद का निक्षेपण करने लगती है। इससे नदी की धारा अवरुद्ध होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अनेक धाराओं में बँटकर बहने लगती है। ये धाराएँ बालू से बनी अवरोधिकाओं द्वारा एक-दूसरे से अलग हुई होती हैं। अनेक जलधाराओं से फंदे बनाती हुई ऐसी नदी को गुंफित नदी कहते हैं।
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2. प्राकृतिक तटबन्ध और बाढ़ का मैदान (Natural Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में बाढ़ आने पर नदी का जल उसके किनारों कसे बाहर निकलकर बहने लगता है। बाढ़ के समय नदी में जल की मात्रा और नद-भार ढोने की शक्ति दोनों ही बढ़ जाते हैं। बाढ़ उतरने पर नदी इतने अधिक जलोढ़ का परिवहन करने में असमर्थ हो जाती है और नद-भार का निक्षेप करना आरम्भ कर देती है। अवसाद की एक मोटी परत नदी के किनारों पर जमने लगती है क्योंकि तटों के पास घर्षण (Friction) के कारण जल की गति सबसे कम होती है। अनेक वर्षों तक इस क्रम के बार-बार दोहराए जाने पर नदी के तटों पर लम्बे ऊँचे टीले बने दिखाई देते हैं जिन्हें प्राकृतिक तटबन्ध कहा जाता है। प्रायः ये तटबन्ध नदी के जल-तल से एक या दो मीटर ऊँचे होते हैं, लेकिन कई बार इनकी ऊँचाई आस-पास के मकानों की छतों से भी ऊँची होती है। प्राकृतिक तटबन्धों को कई बार कृत्रिम रूप से ऊँचा और पक्का भी कर दिया जाता है।
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कई बार तटबन्धों के टूट जाने पर नदी का जल आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाता है। बाढ़ की समाप्ति पर जल अपने साथ बहाकर लाए गए महीन नद-भार की एक परत वहाँ बिछा देता है, जिसे बाढ़ का मैदान कहते हैं। प्रतिवर्ष बाढ़ का जल इन मैदानों में नई उपजाऊ मिट्टी का निक्षेप कर देता है। गंगा, सिन्धु, ह्वांग्हो व मिसीसिपी इत्यादि नदियों ने ऐसे ही विशाल मैदानों की रचना की है।

3. डेल्टा (Delta) किसी समुद्र या झील में गिरने से पहले। नदी अपने आधार तल (Base Level) को प्राप्त कर चुकी होती है। इस समय उसकी शक्ति अत्यन्त क्षीण और वेग अत्यन्त मन्द होता है। नदी अपना बचा हुआ समस्त नद-भार मुहाने पर जमा कर देती है। इस अवसाद के अवरोध के कारण नदी एक मुख्य धारा के रूप में नहीं बह पाती, बल्कि छोटी-छोटी अनेक शाखाओं (Distributaries) में बँटकर बहने लगती है। ये शाखाएँ भी अपने-अपने मुहाने पर नद-भार का निक्षेप करने लगती हैं। इस प्रकार मुहाने के पास विशाल क्षेत्र में एक त्रिभुजाकार स्थलाकृति का निर्माण हो जाता है, जिसे डेल्टा कहते हैं। इस त्रिभुजाकार स्थलरूप को डेल्टा इसलिए कहते हैं क्योंकि नील नदी के डेल्टा की आकृति यूनानी भाषा के डेल्टा (A) अक्षर से मिलती है। विश्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा (1,25,000 वर्ग कि०मी०) सबसे बड़ा डेल्टा है। विश्व की सभी नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं।

प्रश्न 2.
डेविस का भौगोलिक चक्र क्या है? इसकी प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
अपरदन चक्र का अर्थ समझाते हुए इसे नियन्त्रित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए तथा यह भी बताइए कि नदी घाटी के विकास के साथ अपरदन चक्र का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
अपरदन चक्र का अर्थ (Meaning of Erosion Cycle)-अपरदन चक्र की संकल्पना को सबसे पहले व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का श्रेय अमेरिकी विद्वान् विलियम मॉरिस डेविस को जाता है। उन्होंने सन् 1889 में विचार प्रस्तुत किया कि किसी भी भूदृश्य (Landscape) का निर्माण और विकास इतिहास के एक लम्बे दौर में होता है, जिसके अन्तर्गत उस भूखण्ड को कई क्रमिक अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। स्थलाकृतियों के इसी क्रमिक विकास को ही डेविस ने अपरदन चक्र या भौगोलिक चक्र कहा है। उनके अनुसार, “भौगोलिक चक्र समय की वह अवधि है जिसके अन्तर्गत एक उत्थित भूखण्ड अपरदन के प्रक्रम द्वारा प्रभावित होकर एक आकृतिविहीन समतल मैदान में बदल जाता है।”

अपरदन चक्र को नियन्त्रित करने वाले कारक (Controlling Factors of Erosion Cycle) भूदृश्य का विकास कुछ कारकों द्वारा निर्धारित होता है; जैसे-

  • स्थलरूप की संरचना (Structure) तथा चट्टानों के गुण व स्वभाव
  • उस स्थलमण्डल पर परिवर्तन लाने वाली प्रक्रियाएँ (Processes) तथा
  • अपरदन की अवस्था (Stage)। इसी आधार पर डेविस ने कहा था कि, “भूदृश्य संरचना, प्रक्रिया एवं अवस्था का परिणाम होता है।”

यद्यपि स्थलाकृतियों के विकास में नदी, हिमनदी, समुद्री लहरों और पवन व भूमिगत जल की भागीदारी होती है किन्तु बहते हुए जल का कार्य अपरदन के अन्य कारकों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण एवं व्यापक होता है। इसलिए नदी के अपरदन-चक्र को डेविस ने सामान्य अपरदन-चक्र (Normal Cycle of Erosion) की संज्ञा दी है।

अपरदन-चक्र की विभिन्न अवस्थाएँ (Different Stages of Erosion Cycle)-अपरदन-चक्र को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है जिनके निर्धारण में कोई समय-सीमा तय नहीं है।
1. युवावस्था (Youthful Stage)-ऐसी कल्पना की जाती है कि समुद्र तल से जैसे ही किसी समतलीय भूखण्ड का उत्थान होता है, उस पर ढाल के अनुरूप अनुवर्ती (Consequent steams) का उदय हो जाता है। इस अवस्था में नदियाँ क्षैतिज कटाव (Lateral Cutting) कम और लम्बवत् कटाव (Down Cutting) ज्यादा करती हैं, जिससे घाटी गहरी होती जाती है। इस अवस्था में नदी अपने आधार तल को प्राप्त करने की भरसक कोशिश करती है। सरिताएँ अपनी घाटी का विस्तार शीर्ष अपरदन द्वारा करती हैं।

शीर्ष अपरदन (Headward Erosion) द्वारा ही एक नदी दूसरी नदी के जल का अपहरण करती है, जिसे सरिता-हरण (River Capture or River Piracy) कहा जाता है। सहायक नदियों का विकास होने पर वृक्षाकार जलप्रवाह प्रणाली (Dendritic Drainage Pattern) का विकास हो जाता है। युवावस्था के अन्तिम चरण में नदियों के मध्य के जल-विभाजक संकुचित होने लगते हैं और अनेक उप-खण्डों में विभाजित हो जाते हैं। इस अवस्था की महत्त्वपूर्ण आकृतियाँ गॉर्ज, कैनियन, V-आकार घाटी, जल-प्रपात व क्षिप्रिका इत्यादि हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-प्रौढ़ावस्था में नदी का मुख्य कार्य पार्श्ववर्ती अपरदन (Lateral Erosion) हो जाता है जिससे नदी अपनी घाटी को निरन्तर चौड़ा करती रहती है। इस अवस्था में नदी की अपरदन तथा निक्षेपण क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित हो जाता है। नदियों के बीच के जल-विभाजक और भी संकीर्ण होने लगते हैं। इस अवस्था से जुड़ी महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ नदी विसर्प, गोखुर झील, प्राकृतिक तटबन्ध, बाढ़ का मैदान व गुंफित नदी इत्यादि हैं।

3. वृद्धावस्था (Old Stage)-प्रौढ़ावस्था में नदियों का लम्बवत् अपरदन एकदम बन्द हो जाता है तथा निक्षेप ही नदी का मुख्य कार्य रह जाता है। सहायक नदियों की संख्या कम या समाप्त हो जाती है। नदी की घाटी सर्वाधिक चौड़ी होती है। क्षैतिज अपरदन और अपक्षय मिलकर स्थलखण्ड को निरन्तर नीचा करने में जुटे रहते हैं। सम्पूर्ण नदी आधार तल को प्राप्त हो जाती है व केवल कहीं-कहीं प्रतिरोधी चट्टानों के कुछ भाग उठे हुए दिखाई पड़ते हैं। सारा प्रदेश एक समप्रायः मैदान (Peneplain) के रूप में दिखाई पड़ता है। डेल्टा अपरदन-चक्र की अन्तिम अवस्था में बनने वाली सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आकृति है।

अपरदन-चक्र एक सिद्धान्त तो है मगर सच्चाई नहीं अपरदन-चक्र कभी भी अपनी अन्तिम परिणति समप्रायः मैदान तक नहीं पहुँच पाता, क्योंकि इस चक्र के पूरा होने में बहुत लम्बा समय चाहिए। इतने लम्बे समय तक पृथ्वी कभी शान्त नहीं रह पाती। इस दौरान ज्वालामुखी उद्भेदन, भू-संचलन व जलवायु में परिवर्तन के कारण अपरदन-चक्र के मार्ग में अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। बाधित होने पर अपरदन-चक्र नए सिरे से आरम्भ होता है। प्रौढ़ावस्था वाले अपरदन-चक्र का इस प्रकार पुनः युवावस्था को प्राप्त करना पुनर्योवन (Rejuvination) कहलाता है।

प्रश्न 3.
हिमानी निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
हिमानी के अपरदन, परिवहन व निक्षेपण कार्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमनदी अपरदन, परिवहन, निक्षेपण व जलोढ़ निक्षेप से निर्मित स्थलाकृतियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमनदी अपरदन व निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
अथवा
हिमानी के अपरदन व निक्षेपित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अनाच्छादन के अन्य साधनों की भाँति हिमनदी भी शैलों का अपरदन तथा अपरदित सामग्री का परिवहन और निक्षेपण करती है। इस प्रक्रिया में अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का जन्म होता है।
(क) हिमनदी के अपरदन कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Erosional Work of Glacier)जिस आधारी चट्टान पर हिम की विशाल राशि पड़ी होती है, वहाँ हिम के भारी दबाव के कारण हिम पिघलती है तथा बर्फ और तली के बीच जल की पतली परत उत्पन्न हो जाती है। जल की यह परत (Film of Water) हिम को खिसकाने में ग्रीस का काम करती है।

बहती हिमनदी की खालिस बर्फ प्रभावी ढंग से अपरदन नहीं कर पाती। वे चट्टानी टुकड़े जो हिमनदी में ऊपर से नीचे भरे रहते हैं, हिम द्वारा अपरदन कार्य में मदद करते हैं। इनमें अपोढ़ (Drift), गोलाश्म (Boulder), गोलाश्म मृत्तिका (Boulder Clay) इत्यादि होते हैं जिन्हें संयुक्त रूप से हिमोढ़ सामग्री (Morainic Material) कहा जाता है। हिमोढ़ की सहायता से हिमनदी निम्नलिखित दो प्रकार से अपरदन कार्य करती है

1. अपघर्षण (Abrasion) इस प्रक्रिया में हिमनद अपने मलबे की सहायता से यांत्रिक विधि द्वारा अपनी घाटी और किनारों को रेगमार की तरह घिसता, खरोंचता और चिकनाता हुआ आगे बढ़ता है। इससे घाटी की तली में बारीक धारियों के रूप में खरोंच के निशान भी पड़ जाते हैं।

2. उत्पाटन (Plucking) इस क्रिया में हिमनदी अपने मार्ग में पड़ने वाली अनावृत्त शैलों के अदृढ़खण्डों को अपनी ताकत से उखाड़कर अलग कर देती है।

हिमनदी के अपरदन से बने भू-आकार (Features of Glacial Erosion)-हिमनदी के अपरदन से बने भू-आकार नीचे दिए गए हैं-
1. हिम गहर या सर्क (Cirque)-जब ऊँचे पर्वतीय भागों से फिसलकर हिम नीचे आती है, तो वह ढाल पर गड्ढे बना देती है। इसमें तुषार अपक्षय (FrostAction) का भी हाथ होता है। समय के साथ ये गड्ढे हिमखोदाव (Nivation) की क्रिया से चौड़े और गहरे होते रहते हैं। पर्वतीय ढालों पर बने ऐसे विशाल गर्त हिम गह्वर कहलाते हैं। दूर से यह भू-आकृति अर्ध-गोलीय रंगमंच (Amphi Theatre) अथवा गहरी सीट वाली आराम कुर्सी जैसी प्रतीत होती है। सर्क का तल सपाट होता है। यह एक ओर से खुला तथा तीन ओर से अति तीव्र चट्टानी ढालों से घिरा होता है। इन्हीं तीव्र ढालों से ही बर्फ गिर-गिरकर इस कटोरे नुमा आकृति में जमा होती रहती है। फ्रांस में पिरेनीज़ पर्वत पर बना गेवर्नी का सर्क विश्व का सबसे प्रसिद्ध सर्क है जिसके नाम पर ऐसी सभी स्थलाकृतियों को सर्क कहा जाता है।
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2. टार्न (Tarn) सर्क में हिम के पूर्णतः पिघल जाने के बाद जल एकत्रित होकर एक झील का निर्माण करता है, जिसे टार्न या गिरिताल कहा जाता है।

3. शृंग (Horn) जब किसी पर्वत की विभिन्न ढालों पर समान ऊँचाई पर अनेक सर्क बन जाते हैं, तो वे अपने शीर्ष की दीवार को तेजी से काटने लगते हैं। इसके फलस्वरूप सर्कों के बीच में पिरामिड के आकार की एक नुकीली चोटी बन जाती है, जिसे शृंग कहते हैं। स्विट्ज़रलैण्ड में आलप्स पर्वत श्रेणी का मैटरहॉर्न (Matterhorn) शृंग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। हिमालय
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4. कॉल (Col)-जब किसी पर्वत की विपरीत ढालों पर एक ही ऊँचाई पर स्थित दो विशाल सर्क अभिशीर्ष अपरदन (Headward Erosion) करते हैं तो उनके पिछले भाग आपस में मिल जाते हैं। इससे पर्वत के आर-पार एक दर्रा बन जाता है, जिसे कॉल कहते हैं। इन दरों के प्रयोग से पर्वतीय मार्गों की दूरियाँ कम हो जाती हैं। कनाडियन पैसेफिक रेलमार्ग ऐसे ही एक कॉल से गुज़रता है।

5. कंघीनुमा कटक (Comb Ridge)-जब किसी पर्वत श्रेणी पर पास-पास अनेक सर्क बन जाते हैं और तीव्र अपरदन के फलस्वरूप पहाड़ी कटक पर अनेक शृंगों का निर्माण हो जाता है तो उसकी आकृति कंघी के दाँतों के समान नुकीली किन्तु असमान हो जाती है। इन्हें अरेत (Arete) भी कहते हैं।
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6. U-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-हिमनदियों में | अपने लिए स्वयं घाटी बनाने की शक्ति नहीं होती, बल्कि वे हिमावरण से पहले नदियों द्वारा निर्मित घाटियों में होकर बहती हैं। नदी घाटी में बहती हिम घाटी की तली व पाश्र्थों का अपरदन करके उसे अधिक गहरा और चौड़ा कर देती है। इससे नदी की घाटी की मूल V-आकृति के स्थान पर Uआकार की घाटी विकसित होती है।
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7. लटकती घाटी (Hanging Valley)-नदियों की तरह हिमनदियों की भी सहायक हिमनदियाँ होती हैं। पर्वतीय ढालों पर बहती हुई अधिकांश हिम की मुख्य घाटी में बहने की प्रवृत्ति होती है। बर्फ की मोटाई और उसके द्वारा तली पर डाले गए दबाव में अन्तर के कारण सहायक हिमनदी अपनी घाटी को उस गहराई और चौड़ाई में नहीं काट पाती, जिस गहराई तक मुख्य हिमनदी काट पाती है। इससे सहायक और मुख्य हिमनदी के संगम-स्थल पर तीव्र ढाल विकसित हो जाता है। जब बर्फ पिघल जाती है तो सहायक हिमनदी का जल मुख्य घाटी में जल-प्रपात अथवा क्षिप्रिका बनाते हुए गिरने लगता है। सहायक हिमनदी का मुख और घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी से काफ़ी ऊपर अधर में लटकते दिखाई पड़ते हैं। लटकती घाटियों के सर्वोत्तम उदाहरण कैलिफोर्निया के सियरा नेवादा पर्वत की योसेमाइट घाटी (Yosemite Valley) में देखे जा सकते हैं।

8. भेड़ पीठ शैल अथवा रॉश मूटोने (Sheep Rock or Roche Mountonnee) हिमनदित क्षेत्र में पाया जाने वाला ऐसा भू-आकार जिसके एक ओर ढाल मन्द व चिकना तथा दूसरी ओर ढाल तीव्र व ऊबड़-खाबड़ हो, भेड़ शिला या रॉश मूटोने कहलाता है। दूर से ऐसी आकृति बैठी हुई भेड़ की पीठ जैसी दिखाई पड़ती है।
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हिमनदी के मार्ग में जब कभी ऊबड़-खाबड़ घाटी कड़ी, ऊँची चट्टान का अवरोध पैदा करती है, तो हिमनदी इन अवरोधों खरोंचें के ऊपर से बहना शुरू कर देती है। जिस ढाल पर हिमानी चढ़ती है, उसे वह अपने मलबे के घर्षण (Abrasion) द्वारा घिस-घिसकर भेड़ शिला मन्द और चिकना कर देती है किन्तु इन अवरोधों का प्रवाह विमुख ढाल जिस पर हिमानी उतरती है, उत्पाटन (Plucking) क्रिया द्वारा टूटा-फूटा और ऊबड़-खाबड़ बना रहता है। इसका कारण यह है कि विमुख ढाल पर हिमनदी का घाटी की तली से पूर्ण सम्पर्क नहीं रह पाता।

9. शृंग एवं पूँछ स्थलाकृति (Creg and Tail Topography)-कई बार हिमनदी के मार्ग में बेसाल्ट या ज्वालामुखी प्लग (Volcanic Plug) जैसी दृढ़ और कठोर चट्टान आ जाती है, इससे हिमनदी के प्रवाह की दिशा की ओर कठोर चट्टान पर फैली मिट्टी का अपरदन हो जाता है। प्लग की तीव्र ढाल पर चढ़ने के बाद हिमनदी जब दूसरी ओर नीचे उतरती है, तो दूसरी ओर की मिट्टी का ग्रीवा (Crag) अपेक्षाकृत कम अपरदन होता है क्योंकि यहाँ पर शैल को हिमनद का | हिमनदी की दिशा पंछ (Tail) संरक्षण प्राप्त होता है। इस कारण दूसरी ओर चट्टान का ढाल मन्द व | हल्का हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे कठोर चट्टानी प्लग को पीछे से असंगठित अपोढ़ की एक लम्बी पूँछ लग गई हो।
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इंग्लैण्ड की एडिनबर्ग (Edinburgh) की केसिल रॉक (Castle Rock) शृंग एवं पूँछ स्थलाकृति का उत्कृष्ट उदाहरण है।

10. फियॉर्ड (Fiord) ऊँचे अक्षांशों में हिमनदियाँ न केवल समुद्र तटों तक पहुँच जाती हैं, बल्कि समुद्र में पहुँचकर अपनी घाटी को समुद्र तल से भी गहरा काट देती हैं। समुद्र में घुसी इन लम्बी, चौड़ी और गहरी U-आकार घाटियों को फियॉर्ड कहा जाता है। कहीं-कहीं फियॉर्ड 1800 मीटर तक गहरी पाई जाती है। नार्वे, ग्रीनलैण्ड, अलास्का व न्यूज़ीलैण्ड के समुद्री तटों पर अनेक फियॉर्ड पाए जाते हैं।

11. हिमज झीलें (Glaciated Lakes)-ठण्डे प्रदेशों में हिमनदियों की विस्तृत अपरदन क्रिया के फलस्वरूप चट्टानी धरातल पर हाथ की उंगलियों के समान पतली व लम्बी झीलों की एक श्रृंखला-सी बन जाती है। इन्हें हिमज झीलें कहते हैं। उत्तरी अमेरिका की महान् झीलों (Great Lakes) का निर्माण भी हिमानियों के अपरदन व अपरदित सामग्री से जल के अवरुद्ध होने से हुआ है।

(ख) हिमनदी का परिवहन कार्य (Glacial Transportation)-हिमनदियाँ शैल मलबे के एक ऐसे बेमेल मिश्रण का परिवहन करती हैं जिसमें सूक्ष्मता और स्थूलता के सभी क्रमों के पदार्थ शामिल होते हैं। प्रायः गतिहीन-सी लगने वाली ये हिमनदियाँ 15 मीटर व्यास तथा सैकड़ों टन भारी शिलाखण्डों को अपने मूल स्थान से कई सौ किलोमीटर दूर ढकेलकर ले जाती हैं। शैल मलबे का कुछ अंश हिम की ऊपरी परतों में, कुछ अंश निचली परतों में और कुछ अंश पार्यों पर हिमीभूत होकर हिमनदी के साथ-साथ खिसकता है। भारी शिलाखण्डों को हिमनदी अपने अगले भाग द्वारा ठेल-ठेल कर ले जाती है।

(ग) हिमनदी के निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Glacial Deposition)-हिमनदियों के निक्षेपण कार्य से बनने वाली प्रमुख स्थलाकृतियाँ नीचे दी गई हैं
1. हिमोढ़ (Moraines)-जब हिमनदी पिघलती है, तो हिम की विभिन्न परतों में जकड़कर साथ-साथ चल रहे शैल मलबे का घाटी में यथा-स्थान निक्षेपण होने लगता है। प्रत्यक्ष रूप से बिछाए मध्यवर्ती हिमोढ़ गए रेत के महीन कणों से लेकर बड़े-बड़े शिलाखण्डों के अस्तरित (Unstratified) मिश्रण को टिल (Till) कहा जाता है। टिल से निर्मित स्थलाकृतियों को हिमोढ़ कहा जाता है। हिमोढ़ निम्नलिखित पाश्विक हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं
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(1) पाश्विक हिमोढ़ (Lateral Moraines)-हिमानी घाटी के किनारों पर लम्बी-लम्बी कटकों के रूप में निक्षेपित हुआ हिमोढ़ों के प्रकार शैल-मलबा पाश्विक हिमोढ़ कहलाता है। इन हिमोढ़ों की सामान्य ऊँचाई 100 फुट
से अधिक होती है।

(2) मध्यवर्ती हिमोढ़ (Medial Moraines)-दो हिमनदियों के मिलने पर उनके पाश्विक हिमोढ़ भी मिल जाते हैं। हिमनदी के पिघलने पर घाटी के बीचों-बीच शैल सामग्री का एक कटक अथवा टीलों के रूप में निक्षेपण हो जाता है। इसे मध्यवर्ती हिमोढ़ कहते हैं।

(3) अन्तिम हिमोढ़ (Terminal Moraines)-अन्तिम हिमोढ़ टिल से बनी हुई एक ऐसी कटक होती है जो हिमनदी के प्रवाह (Advance) की अन्तिम सीमा तय करती है। अन्तिम पड़ाव पर हिमनदी के पिघलने या पीछे हटने पर हर बार एक नया हिमोढ़ बनता है जो पहले से बने हिमोढ़ से पीछे की ओर होता है। घाटी हिमनदियों के अन्तिम हिमोढ़ प्रायः अर्ध-चन्द्राकार श्रेणियों के रूप में मिलते हैं।

(4) तलस्थ अथवा भूमि हिमोढ़ (Grained Moraines)-हिमनदी के तेज़ी से पीछे हटने पर उसके मलबे का घाटी तल पर ऊबड़-खाबड़ ढंग से निक्षेपण हो जाता है। इसे तलस्थ हिमोढ़ कहते हैं। तलस्थ हिमोढ़ के यत्र-तत्र फैले टीलों के बीच छोटे-छोटे अवनमन व गड्ढे (Knolls and Depressions) बन जाते हैं जो बाद में झीलों और दलदलों में बदल जाते हैं।

2. हिमनदोढ़ टीले अथवा ड्रमलिन (Drumlin) हिमनदी की घाटी में हिम के प्रवाह की दिशा में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उल्टी नौका जैसी आकृति के महीन मृत्तिका (Till) से बने अनेक टिब्बे पाए जाते हैं, जिन्हें ड्रमलिन कहा जाता है। ये 30 मीटर तक ऊँचे, और एक किलोमीटर तक लम्बे होते हैं। इन टिब्बों के विस्तृत क्षेत्र | को दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे एक विशाल टोकरी में आधे कटे अण्डे उल्टे रखे हुए हों। इसलिए इसे अण्डों की टोकरी जैसी स्थलाकृति (Basket of Eggs Topography) भी कहा जाता है। ड्रमलिन हिमनदों के पीछे हटने और फिर आगे बढ़ने की पुनरावृत्ति से बनते हैं। ड्रमलिन हिमनद की निक्षेप क्रिया का परिणाम हैं। ये सैकड़ों की तादाद में इकट्ठे पाए जाते हैं।
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(घ) हिमानी-जलोढ़ निक्षेप से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landform Produced by Glacio-Fluvial Deposits)-हिमानी-जलोढ़ निक्षेप से बनने वाली स्थलाकृतियाँ नीचे दी गई हैं
1. केटिल या केतली (Kettles)-हिम विनाश के दौरान पीछे हटती हिमानी से हिम का एक विशाल खण्ड अलग-थलग (Isolated) होकर घाटी में कहीं आंशिक या पूर्ण रूप से धंसा रह जाता है। इस हिमखण्ड के पूरी तरह पिघल जाने के बाद हिमोढ़ में एक गर्त बचा रह जाता है। इसे केटिल या केतली कहते हैं।

2. एस्कर या हिमनदीय कटक (Esker)-घाटी हिमनदों के क्षेत्र में रेत-बजरी से बने लम्बे, कम ऊँचे, टेढ़े-मेढ़े या कुण्डलाकार कुछ कटक मिलते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं। अन्वेषकों का मत है कि एस्कर का निर्माण स्थिर हिमनद के नीचे बहने वाली जलधाराओं की निक्षेप क्रिया से होता है, इन्हें अधो-हिमानी सरिताएँ (Sub-glacial Streams) कहा जाता है। ये सरिताएँ घाटी की तली में लम्बी-खोखली सुरंगें बना देती हैं। जब हिमनद के मार्ग में कोई टीला आ जाता है, तो इन अधो-हिमानी सरिताओं को निकास (Exit) नहीं मिल पाता। इससे उनके द्वारा अपरदित मलबे का उन्हीं सुरंगों में निक्षेप हो जाता है। यद्यपि एस्कर 160 किलोमीटर लम्बे भी पाए गए हैं, किन्तु इनकी चौड़ाई कुछ मीटर ही होती है।

3. केम (Kame) हिमानी के अग्रभाग से निकलने वाली जलधाराएँ बजरी और बालू को ऊँचे-नीचे टीलों के रूप में जमा कर देती हैं। महीन सामग्री से बने इन टीलों को केम कहा जाता है। कई बार घाटी और उसके पार्यों के बीच रेत-बजरी की चौड़ी पट्टी बन जाती है, जिसे केम चबूतरा (Kame Terrace) कहा जाता है।
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4. हिम प्रवाह मैदान (Outwash Plain)-हिमनदी के पिघलने से उत्पन्न जल अपने शैल मलबे के साथ अन्तिम हिमोढ़ के पीछे इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। जब जल की मात्रा बढ़ जाती है तो वह अन्तिम हिमोढ़ के ऊपर से होकर बहने लगता है। इससे अन्तिम हिमोढ़ का भी थोड़ा-बहुत अपरदन हो जाता है। यह सामग्री अन्तिम हिमोढ़ से आगे एक विस्तृत क्षेत्र में अपने भारीपन के क्रम में बिछ जाती है। इसे हिम प्रवाह मैदान कहा जाता है।

प्रश्न 4.
समुद्री तरंगों के अपरदन व निक्षेपण कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
समुद्री तरंगों के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
समुद्री तरंगों के अपरदन व निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियों की विवेचना कीजिए।
अथवा
सागरीय तरंगों द्वारा सागरीय तट पर लाए गए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अनाच्छादन के साधन के रूप में सागरीय तरंगों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तटीय भागों में समुद्र अनाच्छादन का एक अत्यन्त शक्तिशाली कारक है। भारत के पश्चिमी तट को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि समुद्री लहरों की चट्टानों पर मारक शक्ति इतनी प्रचण्ड भी हो सकती है। वायुजनित लहरों (Waves), धाराओं (Currents) और ज्वार-भाटा (Tides) के माध्यम से समुद्री जल अपने तटों को निरन्तर काटता और बनाता रहता है। समुद्री तटों के इस कटाव और जमाव के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का जन्म होता है।
(क) समुद्री तरंगों के अपरदन कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Erosional Work of Marine Waves) समुद्री अपरदन का सामान्य रूप फेनिल तरंगों (Surf) द्वारा घटित होता है। तूफानी तरंगें (Stormy Waves) तटों का सबसे भीषण अपरदन करती हैं, यद्यपि ये हमेशा उत्पन्न नहीं होतीं। तूफानी तरंगें थोड़े समय में ही तटों का इतना अधिक अपरदन कर देती हैं जितना सामान्य तरंगें लम्बे समय तक भी नहीं कर पातीं। धाराएँ और ज्वार-भाटा तट-रेखा पर बहुत थोड़ी मात्रा में प्रत्यक्ष प्रहार कर पाते हैं। धाराएँ अपरदित शैल मलबे का परिवहन करके उसे तटों के साथ निक्षेपित कर देती हैं जबकि ज्वार-भाटा समुद्र के निम्न व उच्च जल-स्तरों के बीच अपरदन की सीमा रेखा तय करता है।

समुद्री अपरदन के कारक (Factors of Marine Erosion)-समुद्र का अपरदन कार्य अनेक कारकों पर निर्भर करता है-

  • समुद्री तरंगों के आकार और उनकी शक्ति
  • तट की ऊँचाई
  • तट का ढाल
  • तटीय चट्टानों की बनावट और संगठन
  • समुद्री तल की गहराई
  • तरंग के टूटने का बिन्दु इत्यादि।

समुद्री अपरदन की प्रक्रिया (Process of Marine Erosion)-जब समुद्री तरंगें तटों पर जाकर टूटती हैं, तो वे वहाँ स्थित चट्टानों पर तेज़ प्रहार करती हैं। ऐसा अनुमान है कि फेनिल तरंगें तट के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र पर 3,000 से 30,000 किलोग्राम जितना दबाव डाल सकती हैं। तूफानी तरंगों का दबाव और अधिक होता है। जब समुद्री तरंगें तटों से टकराती हैं तो चट्टानों के छिद्रों और दरारों में छिपी वायु भिंच (Compress) जाती है। तरंग के वापस लौटते ही यह दबी हुई वायु झटके से बाहर निकलती है। हवा के इस आकस्मिक फैलाव का विस्फोटक प्रभाव पड़ता है और चट्टानी कण ढीले पड़ने लगते हैं। इस क्रिया की लम्बी अवधि तक पुनरावृत्ति तटीय चट्टानों को तोड़ देती है। यदि तरंगें बजरी और बालू रूपी यन्त्रों से लैस हों तो सागरीय अपरदन और तेज हो जाता है। समुद्री तरंगें अपरदन क्रिया द्रव-प्रेरित बल, अपघर्षण, विलयन तथा सन्निघर्षण द्वारा करती हैं।

समुद्री तरंगों के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Coastal Features of Marine Erosion)-समुद्री तरंगों की अपरदन क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकारों का निर्माण होता है-
1. समुद्री भृगु (Sea Cliff) एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है। जिन तटों पर तीव्र ढाल वाली चट्टानें तट से समुद्र के नीचे चली जाती हैं, वहाँ शुरू में फेनिल तरंगें समुद्र के जल-स्तर पर अपरदन के द्वारा एक खाँच (Notch) का निर्माण करती हैं। यह खाँच अपरदन के द्वारा अन्दर-ही-अन्दर बढ़ती जाती है और आधार को तब तक खोखला करती रहती है, जब तक चट्टान का खाँचे के ऊपर लटकता हुआ भाग समुद्र में गिर नहीं जाता। इस प्रकार बची हुई चट्टान का दीवार की तरह खड़ा सीधा भाग भृगु कहलाता है। समुद्री तरंगों के लगातार प्रहार से भृगु स्थल की ओर पीछे हटते रहते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की ओर मुँह किए खड़े अनेक विशालकाय भृगु देखने को मिलते हैं।
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2. तरंग-घर्षित वेदी (Wave-cut Platform) भृगु के बार-बार पीछे हटने से उत्पन्न शैल मलबे को ज्वारीय तरंगें भृगु के सामने जमा करती रहती हैं। इससे जल के अन्दर एक अपेक्षाकृत समतल मैदान का निर्माण हो जाता है, जिसे तरंग-घर्षित वेदी कहते हैं।।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 21

3. समुद्री गुफ़ाएँ (Sea Caves)-जिन तटीय चट्टानों में जोड़, दरारें और कोमल चट्टानों के संस्तर मौजूद रहते हैं, वहाँ तरंगों द्वारा विभेदी अपरदन (Differential Erosion) के कारण समुद्री गुफ़ाओं का निर्माण होता है।

4. समुद्री मेहराब या प्राकृतिक पुल (Sea Arch or Natural Bridge)-तट से समुद्र की ओर काफी आगे तक बढ़ी हुई चट्टान पर जब दो विपरीत दिशाओं से गुफ़ाएँ बनने लगती हैं तो एक समय पर ये गुफ़ाएँ पीछे से आपस में मिल जाती हैं। इससे चट्टान के आर-पार एक विशाल छिद्र बनता है, जिसे समुद्री मेहराब या प्राकृतिक पुल कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 22

5. स्टैक या स्तम्भ (Stack or Pillar) जब समुद्री मेहराब की छत गिर पड़ती है, तो चट्टान का अगला भाग समुद्र में एक स्तम्भ के रूप में खड़ा दिखाई पड़ता है। इसे स्टैक कहते हैं।

6. वात छिद्र (Blow Holes)-तरंगों द्वारा गुफ़ाओं पर प्रहार करने से उनका मुँह जल द्वारा बन्द हो जाता है। इन द्वारों के बन्द होने से कन्दराओं के अन्दर भरी हुई वायु बाहर निकलने के लिए कन्दराओं की छतों पर छिद्र कर देती है। इस तरह से बने छिद्र को वात छिद्र या प्राकृतिक चिमनी या ग्लाउप कहा जाता है। इन्हें उगलने वाले छिद्र भी कहा जाता है। लहरों द्वारा धकेली हुई हवा इस छिद्र से फुहार को बाहर फेंकती हुई सीटी की-सी आवाज़ के साथ बाहर निकलती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 22a

(ख) समुद्री तरंगों के निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Marine Deposition) समुद्री तरंगों की निक्षेपण क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकारों का निर्माण होता है
1. पुलिन (Beach)-निम्न ज्वार और तट रेखा के बीच बालू, बजरी तथा गोलाश्म के अस्थायी निक्षेप को पुलिन कहा जाता है। कमज़ोर समुद्री तरंगें तट पर निक्षेपण करती हैं जिससे पुलिन का आकार बढ़ने लगता है लेकिन तूफ़ानी तरंगें पुलिन का अपरदन करके उसे नष्ट कर देती हैं।

2. भू-जिह्वा (Spit)-तट के सहारे मलबे का निक्षेप एक ऐसी कटक के रूप में होता है जिसका एक सिरा तट से जुड़ा होता है व दूसरा सिरा रोधिका के रूप में समुद्र की ओर निकला रहता है।
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3. लैगून (Lagoon) कई बार एक बालू-भित्ति (Sand bar) समुद्र के एक छोटे-से भाग को मुख्य समुद्र से अलग कर देती है। ऐसी आंशिक रूप से रोधिका द्वारा घिरी हुई खारे पानी की झील को लैगून कहा जाता है। लैगून का सम्बन्ध एक संकीर्ण मार्ग द्वारा समुद्र से बना रहता है। भारत के पूर्व में ओडिशा तट पर चिल्का झील तथा तमिलनाडु तट पर पुलिकट झील तथा पश्चिम में केरल तट पर वेंबानद झील लैगून झीलों के ही उदाहरण हैं। जर्मनी भाषा में खाड़ी के आर-पार भू-जिह्वा के विकास से बनी उथली तटीय लैगूनों को हैफ़ कहा जाता है।

4. रोधिका (Bar)-जब समुद्री तरंगें अवसादों को तट के समानान्तर कुछ दूरी पर समुद्री तली पर निक्षेप कर देती हैं, तो इस प्रकार बने पतले व लम्बे बाँधों को रोधिका कहते हैं। जब ये रोधिकाएँ जल से ऊपर दिखने लगती हैं, तो इन्हें समुद्री रोधिका कहा जाता है। रोधिका के दोनों छोरों का स्थल भाग से जुड़ा होना जरूरी नहीं है।

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प्रश्न 5.
भौम जल क्या है? इसके स्थल-स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भौम जल-जहाँ चट्टानें पारगम्य, पतली परतों, अत्याधिक संधियों या दरारों वाली होती हैं तो वहाँ धरातलीय जल का कुछ भाग रिसकर और टपककर भूमिगत हो जाता है, इसे भौम जल कहते हैं। यह अपरदनात्मक और निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थल-रूप बनाता है।

भौम जल के स्थल-स्वरूप भौम जल के स्थल-स्वरूप इस प्रकार हैं-

  • अपरदनात्मक स्थल-स्वरूप
  • निक्षेपणात्मक स्थल-स्वरूप

I. अपरदनात्मक भौम जल के प्रमुख अपरदनात्मक स्थल-स्वरूप निम्नलिखित हैं-
1. विलय रंध्र-ये चूना-पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के तल पर जल की घुलन-क्रिया द्वारा बने छोटे व मध्यम आकार के लगभग गोल व उथले गर्त होते हैं जिन्हें विलय रंध्र कहते हैं।

2. घोल रंध्र-डोलोमाइट, जिप्सम और चूने की चट्टानों में खड़ी संधियाँ होती हैं। इनमें CO2 से युक्त जल अपनी घुलन- शक्ति द्वारा अनेक छोटे-छोटे छिद्र बना देता है जिन्हें घोल रंध्र कहते हैं।

3. डोलाइन घोल व विलय रंध्रों के आपस में मिल जाने से छिद्र बड़े बन जाते हैं, इन्हें डोलाइन कहा जाता है।
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II. निक्षेपणात्मक भौम जल के प्रमुख निक्षेपणात्मक स्थल-स्वरूप निम्नलिखित हैं
1. स्टैलेक्टाइट-चूने के प्रदेशों में भूमिगत कंदराओं में जल छत से बूंद-बूंद टपकता है। कई बार बूंदें टपकने से पहले ही वाष्पीकरण द्वारा सूख जाती हैं। इस प्रकार चूने के अंश पृथ्वी पर चिपके रह जाते हैं। लंबे समय तक इस क्रिया की पुनरावृत्ति होने पर चूने के निक्षेप से बना एक स्तम्भ छत से लटका हुआ दिखाई देने लगता है। यह छत की ओर मोटा व नीचे की ओर पतला व नुकीला होता है, जिसे स्टैलेक्टाइट कहते हैं।
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2. स्टैलेग्माइट-कंदराओं की तली पर छत से गिरने वाली चूना-युक्त जल की बूंदों का भी वाष्पीकरण होता है। इससे चूने का कंदरा की तली पर जमाव होने लगता है। समय बीतने के साथ तल पर मोटे बेलनाकार स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं, इन्हें स्टैलेग्माइट कहते हैं।

प्रश्न 6.
उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पवन किस प्रकार अपघर्षण तथा अपवहन कार्य करती है? इन कार्यों के परिणामों का अलग-अलग उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नदी तथा हिमानी की तरह पवन भी अपरदन एवं निक्षेपण का कार्य करके विभिन्न प्रकार के भू-दृश्यों का निर्माण करती है। पवन का कार्य मरुस्थली तथा अर्द्ध-मरुस्थली क्षेत्रों में सक्रिय होता है। वर्षा के अभाव में वनस्पति की कमी तथा मिट्टी के असंगठित कणों के कारण पवन द्वारा रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़ाने में आसानी रहती है। पवन तीन प्रकार से अपरदन का कार्य करती है
1. अपघर्षण (Abrasion)-पवन में धूलकण, कंकड़-पत्थर के बारीक टुकड़े तथा रेत अपरदन के रूप में कार्य करते हैं। चट्टानों से टकराकर ये कण एक रेगमार की भाँति कटाव करते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियों का निर्माण होता है।

2. सन्निघर्षण (Attrition)-पवन के साथ प्रवाहित होने वाले रेत एवं धूलकण एक-दूसरे से टकराकर चूर-चूर हो जाते हैं, जिसे सन्निघर्षण कहते हैं।

3. अपवाहन (Deflation) धरातल पर असंगठित रूप से बिखरे धूलकण एवं रेत को हवा एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान पर ले जाती है जिससे असंगठित चट्टानों का अपरदन हो जाता है, इसे अपवाहन कहते हैं।

अपरदन क्रिया से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Wind Erosion Process)-पवन अपरदन क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकृतियों का निर्माण करती है-
1. छत्रक शैल या गारा (Mushroom or Gara)इनकी आकृति कुकुरमुत्ता के पौधे के समान या छतरी के समान होती है, इसलिए इन्हें छत्रक कहते हैं। हवा के साथ उड़ने वाले दिशा रेत के कण चट्टानों पर बार-बार प्रहार करते रहते हैं जिससे चट्टानों के निचले असंगठित एवं ढीले भाग कट जाते हैं जबकि रेत का घातक प्रहार चट्टान के ऊपरी भाग, जहाँ चट्टानें कठोर हों, अपेक्षाकृत कम अपरदित आधार पर होता है क्योंकि इस होते हैं जिनके फलस्वरूप ऊपरी छतरीनुमा चट्टानी भाग अप्रभावित ऊंचाई पर पवन में सर्वाधिक भार रहता है, जिसे छत्रक शैल कहते हैं।
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2. ज्यूजन (Zeugen) मरुस्थली भागों में परतदार चट्टानों में इस प्रकार की आकृति देखने को मिलती है। जब कोमल चट्टानों के ऊपर कठोर चट्टानी भाग क्षैतिज दिशा में बिछा होता है तो ऐसी दशा में नीचे की कोमल चट्टान कट जाती है तथा ऊपरी कठोर चट्टान मेज की भाँति अप्रभावित रहती है, जिसे ज्यूजन कहते हैं।

3. इन्सेलबर्ग (Inselberg)-मरुस्थलीय क्षेत्रों में एक द्वीप के आकार की उठी हुई आकृति को इन्सेलबर्ग कहते हैं। जब कठोर एवं कोमल चट्टानें लम्बवत् रूप में खड़ी होती हैं और कोमल चट्टानें हवा द्वारा अपरदित हो जाती हैं तब ऐसी स्थिति में दो लम्बवत् कठोर चट्टानों के मध्य निम्न भूमि या अपरदित भाग होता है। दूर से देखने पर ये खड़ी चट्टानें द्वीप की तरह लगती हैं। ऐसी आकृतियाँ कालाहारी मरुस्थल में दिखाई देती हैं।

4. यारडांग (Yardang) मरुस्थलीय क्षेत्रों में जब कोमल तथा कठोर चट्टानें एक-दूसरे के समानान्तर खड़ी होती हैं तो कोमल तथा असंगठित चट्टानें शीघ्र कट जाती हैं तथा कठोर चट्टानें नुकीली एवं खड़ी रहती हैं। दोनों नुकीली मापक) चट्टानों के मध्य में नालियाँ-सी बन जाती हैं, जिन्हें यारडंग कहते हैं।
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5. वातगर्त (Deflation Basin)-भू-तल पर कोमल चट्टानों के असंगठित रेत के कणों को हवा उड़ाकर ले जाती है। बार-बार हवा के प्रहार से रेत वहाँ से खाली होती रहती है तथा एक गर्त-सा बन जाता है, जिसे वातगर्त या वातबेसिन कहते हैं।

6. भू-स्तम्भ (Demoisella)-कोमल या असंगठित चट्टान के ऊपर कठोर चट्टान होती है। कोमल चट्टानी भाग अपरदित हो जाता है जबकि कठोर चट्टान का अपरदन नहीं होता। कठोर चट्टान कोमल चट्टान के ऊपर एक दुकान की तरह खड़ी रहती है, जिन्हें भू-स्तम्भ कहते हैं।
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पवन का निक्षेप कार्य तथा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Wind Deposition Work and Produced Land Forms)मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन की गति जब मन्द हो जाती है या उसके मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है तो उसमें सम्मिलित रेत तथा मिट्टी के कणों का जमाव आरम्भ हो जाता है तथा निम्नलिखित भू-आकृतियों का निर्माण होता है
1. बालू के टीले (Sand Dunes)-पवन की गति कम होने से रेत तथा मिट्टी के मोटे कणों के जमाव से बालू के स्तूपों का निर्माण होता है। ये तीन प्रकार के होते हैं-
(1) लम्बे बालू का स्तूप (Longitudinal Sand Dunes) इनका निर्माण प्रचलित पवन की दिशा के समानान्तर होता है। ये लम्बी पहाड़ी की आकृति में बनते हैं।

(2) आड़े बालू का स्तूप (Transverse Sand Dunes) इनका निर्माण प्रचलित पवन की दिशा के समकोण पर होता है। इनकी आकृति अर्द्ध-चन्द्राकार होती है।

(3) बारखन (Barkhan) इनका आकार अर्द्ध-चन्द्राकार होता है। इनकी पवनमुखी ढाल उत्तल तथा पवनविमुखी ढाल अवतल होती है। इनका आकार दूज के चाँद की तरह होता है। इनके शिखर नुकीले सींग की तरह होते हैं। इनकी लम्बाई 150 कि०मी० तक तथा ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।
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2. लोएस (Loess)-पवन द्वारा लाई गई बारीक मिट्टी के निक्षेप को लोएस कहते हैं। लोएस के कणों को पवन बहुत दूर तक मरुस्थलीय क्षेत्रों में उड़ा ले जाती है। लोएस की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। उदाहरण के लिए, चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पीली मिट्टी का लोएस प्रदेश है। यह लगभग तीन लाख वर्ग मील बारखन क्षेत्र में फैला हुआ है।

प्रश्न 7.
विभिन्न प्रकार की सागरीय तट-रेखाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समुद्र तट और समुद्री किनारे के बीच स्थित सीमा रेखा को तट-रेखा कहते हैं। समुद्र तट दो प्रकार के होते हैं-

  • निमग्न समुद्र तट (Coastline of Submergence)
  • निर्गत समुद्र तट (Coastline of Emergence)

(क) निमग्न समुद्र तट (Coastline of Submergence)- निमग्न समुद्र तट के भी दो प्रकार होते हैं-

  • निमग्न उच्च भूमि का समुद्र तट (Submerged Upland Coast)
  • निमग्न निम्न भूमि का समुद्र तट (Submerged Lowland Coast)

1. निमग्न उच्च भूमि का समुद्र तट (Submerged Upland Coast)-ऐसे तटों का निर्माण स्थलखण्ड के नीचे धंसने या समुद्र के जलस्तर के ऊपर उठने से होता है। ये तट निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
(a) फियोर्ड तट (Fiord Coast) इन तटों का निर्माण हिमनदी द्वारा अपरदित U-आकार घाटियों के आंशिक रूप से समुद्र में डूबने से होता है। हिम युग के बाद हिम के पिघलने से समुद्र का जल-स्तर बढ़ा और तटों पर स्थित लम्बी, सँकरी और गहरी घाटियों में समुद्र का जल घुस गया। इन घाटियों के तीव्र ढाल वाले पार्श्व समुद्र से नीचे बाहर निकले हुए होते हैं। फियोर्ड स्थल पर बहुत लम्बी दूरी तक गहरे होते हैं, किन्तु समुद्र में ये घाटियाँ उथली पाई जाती हैं। नार्वे का सोग्ने फियोर्ड (Sogne Fiord) 175 कि०मी० लम्बा, 6 कि०मी० चौड़ा व मध्य घाटी में 4000 फुट गहरा है। नार्वे के अतिरिक्त फियोर्ड तट के अच्छे उदाहरण दक्षिणी-चिली, ग्रीनलैण्ड, अलास्का तथा न्यूजीलैण्ड में मिलते हैं। फियोर्ड गहरे व संरक्षित बन्दरगाहों के लिए आदर्श माने जाते हैं। कई गहरे फियो? से होकर जलयान देश के भीतर तक पहुँच सकते हैं।

(b) रिया तट (Ria Coast)-हिम युग के बाद समुद्र का जल-स्तर बढ़ने से समुद्र के साथ समकोण बनाती हुई उच्च भूमियों की नदी घाटियों और नद-मुख (River Mouths) जल में डूब गए। इस प्रकार बना तट रिया तट कहलाता है। ये तट फियोर्ड तट से इस कारण भिन्न होते हैं कि ये हिमनदित नहीं होते और समुद्र की ओर इनकी गहराई बढ़ती जाती है। एड्रियाटिक सागर व जापान की तट-रेखा रिया तट के उदाहरण हैं।

(c) डाल्मेशियन तट (Dalmatian Coast) तट के समानान्तर स्थित लम्बी पर्वतीय कटकों के समुद्र में डूबने से डाल्मेशियन तट की रचना होती है। इन जलमग्न कटकों के ऊपरी भाग लम्बे द्वीपों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। युगोस्लाविया के डाल्मेशियन तट के नाम पर ही ऐसे तटों को डाल्मेशियन तट कहा जाता है।

2. निमग्न भूमि का समुद्र तट (Submerged Lowland Coastline)-इस प्रकार के तट किसी मैदानी भाग के जलमग्न होने से बनते हैं। ये तट कटे-फटे नहीं होते। इन तटों पर रोधिकाएँ और लैगून पाए जाते हैं। यूरोप का बाल्टिक तट इस प्रकार के तटों का श्रेष्ठ उदाहरण है।

(ख) निर्गत समुद्र तट (Coastline of Emergence) इस प्रकार के तटों का निर्माण स्थलखण्ड के ऊपर उठने या समुद्र के जल-स्तर के नीचे होने से होता है। इन तटों पर पुलिन, भू-जिह्वा, रोधिकाएँ, लैगून, भृगु व मेहराबें पाई जाती हैं। भारत का दक्षिण-पूर्वी तट निर्गत समुद्र तट का उदाहरण है।

धीरे-धीरे ज़मीन के अन्दर रिसकर (Seepage) व टपक-टपक कर (Percolation) भूमिगत हो जाता है। अतः पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे भूमिगत चट्टानों के छिद्रों एवं दरारों में एकत्रित हुए जल को भूमिगत जल कहा जाता है। झरनों (Springs) के माध्यम से भूमिगत जल धरातल पर निकलकर जलीय चक्र (Hydrological Cycle) का हिस्सा बन जाता है।

प्रश्न 8.
भूमिगत जल किस प्रकार प्रवणता सन्तुलन का कारक बनता है? इसके अपरदन और निक्षेपण कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कार्ट स्थलाकृतियों के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं? इस तरह के भू-दृश्यों की निर्माण विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रवणता सन्तुलन के अन्य साधनों की भाँति भूमिगत जल भी अपरदन, परिवहन और निक्षेपण कार्य करता है। लेकिन भूमिगत जल का कार्य चूने की चट्टानों से बने प्रदेशों में अधिक प्रभावी होता है। ऐसे प्रदेशों को कार्ट प्रदेश (Karst Region) कहते हैं। ‘कार्ट’ शब्द युगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट (Adriatic Coast) पर स्थित इसी नाम के एक क्षेत्र से लिया गया है जहाँ चूनायुक्त चट्टानों पर वर्षा के जल का भारी प्रभाव देखा जा सकता है।
(क) भूमिगत जल का अपरदन कार्य (Erosional Work of Underground Water) -चूने के प्रदेशों में भूमिगत जल की घोलक क्रिया द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भू-आकारों की रचना होती है-
1. अवकूट (Lapies)-जब हल्की ढाल वाली चूनायुक्त चट्टानों की सन्धियों में कार्बनयुक्त भूमिगत जल भर जाता है, तो वह सन्धियों में स्थित कैल्शियम कार्बोनेट के कणों को घोल देता है। परिणामस्वरूप चूने की चट्टानों की सन्धियाँ चौड़ी हो जाती हैं और कालान्तर में सीधी दीवारों में गहरे गड्ढों वाला भू-रूप उत्पन्न होता है जिसे फ्रांसीसी भाषा में लेपीज़ कहते हैं। ऐसी स्थलाकृति को जर्मनी में कारेन (Karren) तथा अंग्रेज़ी में क्लिण्ट (Clint) कहते हैं।

2. घोल रंध्र (Sink Holes) डोलोमाइट, जिप्सम और चूने की चट्टानों में खड़ी सन्धियाँ (Vertical Joints) होती हैं। इन संधियों में कार्बन-डाइऑक्साइड जल अपनी घुलन शक्ति द्वारा अनेक छोटे-बड़े छिद्र बना देता है, जिन्हें घोल रंध्र कहते हैं। ये कीपाकार (Funnel shaped) अथवा बेलनाकार (Cylindrical) होते हैं। सामान्यतः ये 3 से 9 मीटर गहरे गड्ढे होते हैं तथा इनके मुख का क्षेत्रफल 1 मीटर से अधिक होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी राज्य में चूने से बने पठारी क्षेत्र पर 60,000 से अधिक घोल रंध्र पाए जाते हैं। भारत में ऐसे घोल रंध्र मेघालय की चूना संस्तरों के दक्षिणी हिस्से में पाए जाते हैं।

3. विलय रंध्र (Swallow Holes) भूमिगत जल की घोल क्रिया द्वारा घोल रंध्रों का आकार उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है और वे बेलनाकार नलिकाओं के रूप में विकसित होने लगते हैं, इन्हें विलय रंध्र कहते हैं। धरातलीय नदियाँ घोल रंध्रों में घुसकर इन विलय रंध्रों के रास्ते से ही लुप्त हो जाती हैं। ये रंध्र भूमिगत मार्गों द्वारा कन्दराओं से जुड़े होते हैं।

4. शुष्क व अन्धी घाटियाँ (Dry and Blind Valleys) धरातलीय नदियाँ जब घोल रंध्रों और विलय रंध्रों के रास्ते भूमिगत हो जाती हैं, तो धरातल पर स्थित मूल घाटियों में जल बहना बन्द हो जाता है। इन सूखी तली वाली घाटियों को अन्धी घाटियाँ कहा जाता है।

5. कुण्ड या डोलाइन (Dolines)-अनेक घोल रंध्रों और विलय रंध्रों के परस्पर मिल जाने से बने विशाल गर्तों को डोलाइन कहते हैं। ये धरातल पर कीप जैसे व नीचे खोखले बेलन जैसे होते हैं। यूरोप के पिरेनीज़ क्षेत्र में अनेक डोलाइन देखने को मिलते हैं।

6. सकुण्ड या युवाला (Uvalas) भूमिगत जल के पाश्विक अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा अनेक डोलाइनों के बीच की दीवारें घुलकर गिर जाती हैं जिससे वे आपस में मिल जाते हैं। इससे एक विशाल गर्त का निर्माण होता है, जिसे युवाला कहते हैं। युवाला डोलाइन से बड़ा होता है।

7. पोनोर (Ponors)-जब युवालाओं में पर्याप्त भूमिगत जल इकट्ठा हो जाता है, तो उसके अपरदन कार्य में तेजी आ जाती है। फलस्वरूप अनेक युवाला परस्पर मिलकर सुरंगनुमा भू-आकार का निर्माण करते हैं, जिसे पोनोर कहते हैं।

8. कन्दरा (Cavern) कई बार धरातल पर कठोर चट्टानों के नीचे चूनायुक्त चट्टानें बिछी होती हैं। इन चूने की चट्टानों को भूमिगत जल घुलाकर खोखला करता रहता है। किन्तु ऊपर की कठोर चट्टान छत की तरह टिकी रहती है। इस प्रकार चूने के प्रदेश में भीतर-ही-भीतर मीलों लम्बी-चौड़ी गुफाएँ बन जाती हैं, जिन्हें कन्दरा कहा जाता है। मूल रूप से कन्दरा का निर्माण चूने की चट्टानों के संस्तर तल (Bedding Plane) और विभंजन द्वारा नियंत्रित होता है।

9. प्राकृतिक पुल (Natural Bridge) भूमिगत जल द्वारा होने वाले लगातार अपरदन से कई बार कन्दराओं की छत का कुछ भाग नीचे गिर जाता है और कुछ भाग पहले की तरह अटका रहता है। यह बचा हुआ भाग आने-जाने का मार्ग प्रदान करता है, इसलिए इसे प्राकृतिक पुल कहा जाता है।

(ख) भूमिगत जल का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of Underground Water)-जब भूमिगत जल में घुली हुई कार्बन-डाइऑक्साइड निकल जाती है तो उसमें घुला हुआ चूने का अंश (कैल्शियम बाइकार्बोनेट) पुनः जमने लगता है और कन्दराओं में विविध प्रकार के भू-आकारों की रचना होने लगती है-
1. स्टैलेक्टाइट (Stalactite) चूने के प्रदेशों में भूमिगत कन्दराओं में जल छत से बूंद-बूंद करके टपकता रहता है। इन बूंदों में घुला हुआ चूना होता है। कई बार छत से चिपकी बूंद जब तक इतनी बड़ी होती है कि वह नीचे गिरे, उससे पहले वाष्पीकरण द्वारा उसका कुछ अंश सूख जाता है। फलस्वरूप चूने का अंश छत से चिपका रह जाता है। लम्बे समय तक इस क्रिया की पुनरावृत्ति होने पर चूने के निक्षेप से बना एक स्तम्भ छत से लटका दिखाई पड़ने लगता है। यह स्तम्भ छत की ओर मोटा व नीचे की ओर पतला व नुकीला होता है। इसे स्टैलेक्टाइट कहते हैं।

2. स्टैलेग्माइट (Stalagmite) कन्दराओं की तली पर छत से गिरने वाली चूना-युक्त जल की बूंदों का भी वाष्पीकरण होता है। इससे चूने का कन्दरा की तली पर जमाव होने लगता है। कालान्तर में कन्दरा के तल पर मोटे, बेलनाकार स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं। इन्हें स्टैलेग्माइट कहते हैं। स्टैलेग्माइट स्टैलेक्टाइट की अपेक्षा मोटे किन्तु छोटे होते हैं।

3. कन्दरा स्तम्भ (Cave Pillars) कई बार ऊपर से नीचे की ओर लटकते हुए स्टैलेक्टाइट और नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्टैलेग्माइट आपस में मिल जाते हैं और कन्दरा स्तम्भ का निर्माण करते हैं। ऐसे कन्दरा-स्तम्भ उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले व आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में देखने को मिलते हैं।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Exercise 7.6

प्रश्न 1.
हल कीजिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 1
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 2
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 3
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 4
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 5

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6

प्रश्न 2.
सरिता ने \(\frac {2}{5}\) मीटर रिबन खरीदा और ललिता ने \(\frac {3}{4}\) मीटर रिबन खरीदा। दोनों ने कुल कितना रिबन खरीदा ?
हल :
सरिता ने रिबन खरीदा = \(\frac {2}{5}\) मीटर
और ललिता ने रिबन खरीदा = \(\frac {3}{4}\) मीटर
दोनों ने कुल रिबन खरीदा = मीटर + मीटर
= (\(\frac{2}{5}+\frac{3}{4}\)) मीटर = (\(\frac{2 \times 4}{3 \times 4}+\frac{3 \times 5}{4 \times 5}\)) मीटर
5 और 4 का ल.स. = 5 × 4 = 20
= \(\frac{8}{20}+\frac{15}{20}=\frac{8+15}{20}=\frac{23}{20}\) मीटर उत्तर

प्रश्न 3.
नैना को केक का \(\frac {1}{2}\) भाग मिला और नजमा को 1\(\frac {1}{3}\) भाग। दोनों को केक का कितना भाग मिला ?
हल :
नैना को केक मिला = 1\(\frac {1}{2}\) भाग
और नजमा को केक मिला = 1\(\frac {1}{3}\) भाग
दोनों को कुल केक मिला = 1\(\frac {1}{2}\) + 1\(\frac {1}{3}\)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 6

प्रश्न 4.
रिक्त स्थान भरिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 7
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 8
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 9

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6

प्रश्न 5.
योग-व्यवकलन तालिका को पूरा कीजिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 10
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 11
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 12

प्रश्न 6.
\(\frac {7}{8}\) मीटर तार के दो टुकड़े हो जाते हैं। इनमें से एक टुकड़ा \(\frac {1}{4}\) मीटर है। दूसरे टुकड़े की लम्बाई क्या है ?
हल :
तार की कुल लम्बाई = \(\frac {7}{8}\) मीटर
और तार के एक टुकड़े की लम्बाई = \(\frac {1}{4}\) मीटर
∴ दूसरे टुकड़े की लम्बाई = \(\frac {7}{8}\) मीटर – \(\frac {1}{4}\) मीटर
= \(\frac{7}{8}-\frac{1}{4}=\frac{7}{8}-\frac{1 \times 2}{4 \times 2}\)
= \(\frac{7}{8}-\frac{2}{8}=\frac{5}{8}\) मीटर।
अतः दूसरे टुकड़े की लम्बाई – मीटर है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6

प्रश्न 7.
नंदिनी का घर उसके स्कूल से \(\frac {9}{10}\) किमी दूर है। वह कुछ दूरी पैदल चलती है और फिर \(\frac {1}{2}\) किमी की दूरी बस द्वारा तय करके स्कूल पहुंचती है। वह कितनी दूरी पैदल चलती है ?
हल :
नंदिनी के घर से उसके स्कूल की दूरी = \(\frac {9}{10}\) किमी
बस द्वारा तय की गई दूरी = \(\frac {1}{2}\) किमी
∴ पैदल चलने में तय की गई दूरी
= \(\frac {9}{10}\) किमी – \(\frac {1}{2}\) किमी
= (\(\frac{9}{10}-\frac{1}{2}\)) किमी
= (\(\frac{9}{10}-\frac{1 \times 5}{2 \times 5}\)) किमी = (\(\frac{9}{10}-\frac{5}{10}\)) किमी
अत: वह \(\frac {2}{5}\) किमी पैदल चलती है। उत्तर

प्रश्न 8.
आशा और सेमुअल के पास एक ही माप की पुस्तक रखने वाली दो अलमारियाँ हैं। आशा की अलमारी पुस्तकों से \(\frac {5}{6}\) भाग भरी है और सेमुअल की अलमारी पुस्तकों से \(\frac {2}{5}\) भाग भरी है। किसकी आलमारी अधिक भरी हुई है और कितनी अधिक?
हल :
आशा की अलमारी में पुस्तकों की संख्या = \(\frac {5}{6}\) भाग और सेमुअल की अलमारी में पुस्तकों की संख्या = \(\frac {2}{5}\) भाग
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 13
अत: आशा की आलमारी अधिक भरी हुई है।
अलमारी का अधिक भाग = \(\frac{5}{6}-\frac{2}{5}\)
= \(\frac{25}{30}-\frac{12}{30}=\frac{25-12}{30}=\frac{13}{30}\) भाग। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6

प्रश्न 9.
जयदेव स्कूल के मैदान का 2\(\frac {1}{5}\) मिनट में चक्कर लगा लेता है। राहुल इसी कार्य को करने में \(\frac {7}{4}\) मिनट का समय लेता है। इसमें कौन कम समय लेता है और कितना कम ?
हल :
जयदेव स्कूल के मैदान का 1 चक्कर लगाता है
= 2\(\frac {1}{5}\) मिनट में
और राहुल स्कूल के मैदान का 1 चक्कर लगाता है
= \(\frac {7}{4}\) मिनट में
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 14
अतः राहुल स्कूल के मैदान का चक्कर लगाने में कम समय लगाता है। उत्तर
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.6 - 15

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

HBSE 10th Class Science अम्ल, क्षारक एवं लवण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कोई विलयन लाल लिटमस को नीला कर देता है, इसका pH सम्भवतः क्या होगा ?
(a) 1
(b) 4
(c) 5
(d)10.
उत्तर-
(d) 10.

प्रश्न 2.
कोई विलयन अण्डे के पिसे हुए कवच से अभिक्रिया कर एक गैस उत्पन्न कर जो चूने के पानी को दूधिया कर देती है। इस विलय क्या होगा ?
(a) NaCl
(b) HCl
(c) LiCl
(d) KCl.
उत्तर-
(b) HCl.

प्रश्न 3.
NaOH का 10 mL विलयन HCI के 8 mL विलयन से पूर्णतः उदासीन हो जाता है। यदि हम NaOH के उसी विलयन का 20 mL लें तो इसे उदासीन करने के लिए HCI के उसी विलयन की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी ?
(a) 4 mL
(b) 8 mL
(c) 12 mL
(d) 16 mL.
उत्तर-
(d) 16 mL.

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

प्रश्न 4.
अपच का उपचार करने के लिए निम्न में से किस औषधि का उपयोग होता है ?
(a) एण्टीबायोटिक (प्रतिजैविक)
(b) ऐनालजेसिक (पीड़ाहारी)
(c) ऐन्टैसिड
(d) एण्टीसेप्टिक (प्रतिरोधी)।
उत्तर-
(c) ऐन्टैसिड। 2015

प्रश्न 5.
निम्न अभिक्रिया के लिए पहले शब्द समीकरण लिखिए तथा उसके बाद सन्तुलित समीकरण लिखिए –
(a) तनु सल्फ्यूरिक अम्ल दानेदार जिंक के साथ अभिक्रिया करता है।
(b) तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मैग्नीशियम पट्टी के साथ अभिक्रिया करता है।
(c) तनु सल्फ्यूरिक अम्ल ऐलुमिनियम चूर्ण के साथ अभिक्रिया करता है।
(d) तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल लौह के रेतन के साथ अभिक्रिया करता है।
उत्तर –
(a) जिंक + सल्फ्यूरिक अम्ल → जिंक सल्फेट + हाइड्रोजन गैस
Zn (s) + H2SO4 (aq) →ZnSO4+H2
(b) मैग्नीशियम + तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल → मैग्नीशियम क्लोराइड + हाइड्रोजन गैस
Mg (s) + 2HCl (aq) → MgCl2(aq) + H2
(c) ऐलुमिनियम + तनु सल्फ्यूरिक अम्ल → ऐलुमिनियम सल्फेट + हाइड्रोजन गैस
2AI (s) +3H2SO4 (aq) →Al2(SO4)3(aq) +3H2
(d) आयरन + तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल → आयरन क्लोराइड + हाइड्रोजन गैस
Fe (s) + 2HCl (aq) → FeCl2(aq) + H2

प्रश्न 6.
ऐल्कोहॉल एवं ग्लुकोज जैसे यौगिकों में भी हाइड्रोजन होती है लेकिन इनका वर्गीकरण अम्ल की तरह नहीं होता है। एक क्रियाकलाप द्वारा इसे सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
ऐल्कोहॉल एवं ग्लूकोज जैसे यौगिकों में हाइड्रोजन होती है पर वे विलयन में आयनीकृत नहीं होते और H+ आयन उत्पन्न नहीं करते। यह निम्नलिखित क्रियाकलाप से प्रदर्शित होता है –
क्रियाकलाप

  • एक कॉर्क में दो कीलें लगाकर कॉर्क को 100 mL के एक बीकर में रख देते हैं।
  • दोनों कीलों को 6 वोल्ट की एक बैटरी से जोड़ देते हैं जो एक बल्ब तथा स्विच से भी सम्बद्ध हैं। यह समायोजन निम्न चित्र में दर्शाया गया है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 1

अब हम ऐल्कोहॉल तथा ग्लूकोज के विलयनों को बारी-बारी से बीकर में डालते हैं तथा विद्युत प्रवाह हेतु स्विच चालू करते हैं।

प्रेक्षण व परिणाम (Observation and Result) हम यह पाते हैं कि बल्ब नहीं जलता अत: ग्लूकोज तथा ऐल्कोहॉल विलयनों में विद्युत चालन नहीं होता परन्तु अम्लों में विद्युत चालन सम्भव है। अत: ग्लूकोज एवं ऐल्कोहॉल को अम्लों में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
आसवित जल विद्युत का चालक क्यों नहीं होता, जबकि वर्षा का जल होता है ?
उत्तर-
आसवित जल हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न नहीं करता है तथा यह उदासीन होता है। वर्षा जल अम्लीय होता है तथा हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न करता है। इस कारण से वर्षा जल विद्युत का चालन करता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

प्रश्न 8.
जल की अनुपस्थिति में अम्ल का व्यवहार अम्लीय क्यों नहीं होता है ?
उत्तर-
जल की अनुपस्थिति में अम्लों से हाइड्रोजन आयनों (H+) का विलगन नहीं हो सकता है चूँकि हाइड्रोजन आयन ही अम्लों के अम्लीय व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। अतः इसकी अनुपस्थिति में अम्ल, अम्लीय व्यवहार प्रदर्शित नहीं कर सकते।

प्रश्न 9.
पाँच विलयनों A, B, C, D व E की जब सार्वत्रिक सूचक से जाँच की जाती है तो pH के मान क्रमशः 4,1, 11, 7 एवं 9 प्राप्त होते हैं। कौन-सा विलयन
(a) उदासीन है?
(b) प्रबल क्षारीय है?
(c) प्रबल अम्लीय है?
(d) दुर्बल अम्लीय है?
(e) दुर्बल क्षारीय है?
pH के मानों को हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता के आरोही क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर –
(a) उदासीन – pH 7 वाला विलयन D
(b) प्रबल क्षारीय – pH 11 वाला विलयन C
(c) प्रबल अम्लीय – pH 1 वाला विलयन B
(d) दुर्बल अम्लीय – pH 4 वाला विलयन A
(e) दुर्बल क्षारीय – pH 9 वाला विलयन E :
हाइड्रोजन आयन सान्द्रता के बढ़ते क्रम में pH मान इस प्रकार व्यवस्थित होंगे
11<9<7<4<1
अर्थात् विलयन C < विलयन E < विलयन D < विलयन A< विलयन B

प्रश्न 10.
परखनली ‘A’ एवं ‘B’ में समान लम्बाई की मैग्नीशियम की पट्टी लीजिए। परखनली ‘A’ में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) तथा परखनली ‘B’ में ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH) डालिए। दोनों अम्लों की मात्रा तथा सान्द्रता समान है। किस परखनली में अधिक तेजी से बुदबुदाहट होगी तथा क्यों?
उत्तर-
HCl युक्त परखनली A में सनसनाहट अधिक तेज होगी क्योंकि HCl ऐसीटिक अम्ल की तुलना में अधिक प्रबल अम्ल है, अर्थात् HCl अम्ल में हाइड्रोजन आयन सान्द्रता अधिक होती है।

प्रश्न 11.
ताजे दूध के pH का मान 6 होता है। दही बन जाने पर इसके pH के मान में क्या परिवर्तन होगा? अपना उत्तर समझाइए।
उत्तर-
दूध के दही में परिवर्तित होने पर pH का मान 6 से कम हो जाएगा क्योंकि दूध की तुलना में दही अधिक अम्लीय होता है।

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प्रश्न 12.
एक ग्वाला ताजे दूध में थोड़ा बेकिंग सोडा मिलाता है।
(a) ताजे दूध के pH के मान को 6 से बदलकर थोड़ा क्षारीय क्यों बना देता है?
(b) इस दूध को दही बनने में अधिक समय क्यों लगता है?
उत्तर-
(a) दूध बेचने वाला ताजे दूध के pH को 6 से थोड़ा क्षारीय तक स्थानान्तरित कर देता है क्योंकि ऐसा करने से दूध अधिक समय तक खराब नहीं होगा।
(b) यह दूध दही बनने में अत्यधिक समय लेता है क्योंकि दूध को क्षारीय से अम्लीय होने में अधिक समय लगेगा जबकि यदि दूध का pH 6 ही होता तो यह अपेक्षाकृत कम समय में ही दही में परिवर्तित हो जाता।

प्रश्न 13.
प्लास्टर ऑफ पेरिस को आर्द्र-रोधी बर्तन में क्यों रखा जाना चाहिए? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्लास्टर ऑफ पेरिस नमी (जल) के सम्पर्क में आने पर लेई जैसा पदार्थ बन जाता है तथा शीघ्रता से कठोर क्रिस्टलीय ठोस (जिप्सम) में परिवर्तित हो जाता है अतः प्लास्टर ऑफ पेरिस को आर्द्र-रोधी बर्तन में रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 14.
उदासीनीकरण अभिक्रिया क्या है? दो उदाहरण दीजिए।”
उत्तर-
अम्ल एवं क्षार के मध्य अभिक्रिया होने पर लवण व जल प्राप्त होता है, इसे उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं।
क्षार + अम्ल → लवण + जल उदाहरण
2KOH (aq) + H2SO4 (aq) →K2SO4 (aq) +2H2O(l)
NaOH (aq) + HCl (aq) →NaCl (aq) +H2O(l)

प्रश्न 15.
धोने का सोडा एवं बेकिंग सोडा के दो-दो प्रमुख उपयोग बताइए।
उत्तर-
धोने के सोडे के उपयोग-
1. जल की स्थायी कठोरता दूर करने में,
2. काँच, कागज व साबुन के निर्माण में। .
खाने के सोडे के उपयोग-1, प्रतिअम्ल (antacid) औषधि के घटक के रूप में, 2. भोज्य तथा पेय पदार्थों में योगात्मक के रूप में।

HBSE 10th Class Science अम्ल, क्षारक एवं लवण InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 20)

प्रश्न 1.
आपको तीन परखनलियाँ दी गयी हैं। इनमें से एक में आसवित जल एवं शेष दो में से एक में अम्लीय विलयन तथा दूसरे में क्षारीय विलयन है। यदि आपको केवल लाल लिटमस पत्र दिया जाता है तो आप प्रत्येक परखनली में पदार्थ की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर-
जिस परखनली में क्षारीय विलयन है वह लाल रंग के लिटमस पत्र को नीले रंग में परिवर्तित कर देता है। अब इस नीले लिटमस पत्र को बची हुई दोनों परखनलियों में डालते हैं। यदि नीला लिटमस पत्र पुनः लाल हो रहा है तो उस परखनली में अम्ल है तथा जिस परखनली में नीले लिटमस का रंग परिवर्तित नहीं हो रहा है वह आसवित जल है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 24) .

प्रश्न 1.
पीतल एवं ताँबे के बर्तनों में दही एवं खट्टे पदार्थ क्यों नहीं रखने चाहिए?
उत्तर-
दही एवं खट्टे पदार्थ अम्लीय होते हैं जोकि पीतल एवं ताँबे के बर्तनों के साथ अम्ल अभिक्रिया करके लवण बनाते हैं, जो विषैले होते हैं। इस कारण दही तथा अन्य खट्टे पदार्थों को पीतल तथा ताँबे के बर्तनों में नहीं रखना चाहिए।

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प्रश्न 2.
धातु के साथ अम्ल की अभिक्रिया होने पर सामान्यतः कौन- गैस निकलती है ? एक उदाहरण के द्वारा समझाइए। : गैस की उपस्थिति की जाँच आप कैसे करेंगे?
उत्तर-
जब एक अम्ल किसी धातु के साथ अभिक्रिया करता है तो सामान्यतः हाइड्रोजन गैस विमुक्त होती है। उदाहरण के लिए, जिंक पर सल्फ्यूरिक अम्ल की अभिक्रिया से जिंक सल्फेट तथा हाइड्रोजन गैस उत्पन्न होती है।
Zn (s) + H2SO4 (aq) →ZnSO4 + H2T.
हाइड्रोजन गैस की उपस्थिति की जाँच के लिए गैस के समीप एक जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर यदि गैस धमाके की आवाज के साथ जलती है तो यह हाइड्रोजन गैस है।

प्रश्न 3.
कोई धातु यौगिक ‘A’ तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करता है तो बुदबुदाहट उत्पन्न होती है। इससे उत्पन्न गैस एक जलती हुई मोमबत्ती को बुझा देती है। यदि उत्पन्न यौगिकों में एक कैल्सियम क्लोराइड है तो इस अभिक्रिया के लिए एक सन्तुलित रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर-
धातु यौगिक ‘A’ कैल्सियम कार्बोनेट होगा। उत्पन्न गैस कार्बन डाइऑक्साइड है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 2

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 27)

प्रश्न 1.
HCl, HNO3, आदि जलीय विलयन में अम्लीय अभिलक्षण क्यों प्रदर्शित करते हैं, जबकि ऐल्कोहॉल तथा ग्लूकोज जैसे यौगिकों के विलयनों में अम्लीयता के अभिलक्षण नहीं प्रदर्शित होते हैं ?
उत्तर-
HCl, HNO3, आदि जलीय विलयनों में अम्लीय गुण प्रदर्शित करते हैं क्योंकि ये विलयन में केवल हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न करते हैं। अम्लीय गुण के लिए हाइड्रोजन आयन ही कारण हैं। ऐल्कोहॉल तथा ग्लूकोज जलीय विलयनों में हाइड्रोजन आयन उत्पन्न नहीं करते, अतः इनके विलयन अम्लीय गुण प्रदर्शित नहीं करते।

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प्रश्न 2.
अम्ल का जलीय विलयन क्यों विद्युत का चालन करता है ?
उत्तर-
अम्ल के जलीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न होते हैं जो कि विद्युत धारा के प्रवाह के लिए उत्तरदायी होते हैं।

प्रश्न 3.
शुष्क हाइड्रोक्लोरिक गैस शुष्क लिटमस पत्र के रंग को क्यों नहीं बदलती है ? –
उत्तर-
शुष्क HCl गैस H+ आयन उत्पन्न नहीं करती, क्योंकि HCl अणु से H+ आयनों का निष्कासन जल की अनुपस्थिति में नहीं हो पाता है। इस कारण से H+ आयनों की अनुपस्थिति अर्थात् अम्लीय गुण की अनुपस्थिति के कारण शुष्क लिटमस पत्र का रंग परिवर्तित नहीं होता है।

प्रश्न 4.
अम्ल को तनुकृत करते समय यह क्यों अनुशंसित करते हैं कि अम्ल को जल में मिलाना चाहिए, न कि जल को अम्ल में ?.
उत्तर-
अम्ल को तनुकृत करने के दौरान इसमें जल कभी भी नहीं मिलाना चाहिए क्योंकि अम्ल को जल में मिलाने पर उत्पन्न ऊष्मा बहुत अधिक होती है जिसके कारण मिश्रण पात्र से बाहर भी आ सकता है तथा समीप खड़े व्यक्ति को हानि पहुँच सकती है।

प्रश्न 5.
अम्ल के विलयन को तनुकृत करते समय हाइड्रोनियम आयन (H3O+) की सान्द्रता कैसे प्रभावित हो जाती है ?
उत्तर-
अम्ल को तनुकृत करने पर उसमें उपस्थित अनआयनित जल की मात्रा तो बढ़ती है परंतु H3O+ की मात्रा वही रहती है, परिणामस्वरूप H3O+ की सान्द्रता लगातार घटती जाती है।

प्रश्न 6.
जब सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन में अधिक क्षारक मिलाते हैं तो हाइड्रॉक्साइड आयन (OH) की सान्द्रता कैसे प्रभावित होती है ?
उत्तर-
हाइड्रॉक्साइड आयनों (OH) की सान्द्रता बढ़ जाती है।

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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं.31)

प्रश्न 1.
आपके पास दो विलयन ‘A’ तथा ‘B’ हैं। विलयन A के pH का मान 6 है एवं विलयन B के pH का मान 8 है। किस विलयन में हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता अधिक है ? इनमें से कौन अम्लीय है तथा कौन क्षारकीय?
उत्तर-
विलयनं ‘A’ में हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता अधिक है।
विलयन ‘A’ (pH = 6) अम्लीय है। विलयन ‘B’ (pH = 8) क्षारीय है।

प्रश्न 2.
H+ (aq) आयन की सान्द्रता का विलयन की प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
H+ (aq) आयनों की सान्द्रता जितनी अधिक होती है, अम्ल उतना ही प्रबल होता है।

प्रश्न 3.
क्या क्षारकीय विलयन में H+ (aq) आयन होते हैं? यदि हाँ, तो यह क्षारकीय क्यों होते हैं ?
उत्तर-
हाँ, क्षारकीय विलयनों में भी H+ (aq) आयन होते हैं फिर भी ये क्षारकीय होते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रॉक्साइड आयनों (OH ) की सान्द्रता H+ (aq) आयनों से बहुत अधिक होती है।

प्रश्न 4.
कोई किसान खेत की मृदा की किस परिस्थिति में बिना बुझा हुआ चूना (कैल्सियम ऑक्साइड) बुझा हुआ चूना (कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड) या चॉक (कैल्सियम कार्बोनेट) का उपयोग करेगा?
उत्तर-
किसान अपने खेत की मिट्टी को बिना बुझा हुआ चूना (कैल्सियम ऑक्साइड) या बुझे हुए चूने (कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड) या चॉक (कैल्सियम कार्बोनेट) के साथ तब उपचारित करेगा जब मिट्टी में अम्लों की मात्रा आवश्यक मात्रा से अधिक होगी।

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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 36)

प्रश्न 1.
CaOCl2 यौगिक का प्रचलित नाम क्या है ?
उत्तर-
ब्लीचिंग पॉउडर।

प्रश्न 2.
उस पदार्थ का नाम बताइए जो क्लोरीन से क्रिया करके विरंजक चूर्ण बनाता है।
उत्तर-
शुष्क बुझा हुआ चूना।

प्रश्न 3.
कठोर जल को मृदु करने के लिए किस सोडियम यौगिक का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
धावन सोडा (सोडियम कार्बोनेट डेकाहाइड्रेट) NaCO3.10H2O.

प्रश्न 4.
सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट के विलयन को गर्म करने पर क्या होगा ? इस अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए।
उत्तर-
सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट के विलयन को गर्म करने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्राप्त होती है।
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प्रश्न 5.
प्लास्टर ऑफ पेरिस की जल के साथ अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए।
उत्तर-
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HBSE 10th Class Scienceअम्ल, क्षारक एवं लवण InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 2.1.  (पा. पु. पृ. सं. 20)

प्रश्न 1.
प्रयोगशाला में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4), नाइट्रिक अम्ल (HNO3), ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH), सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH), कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड [Ca(OH)2], पोटैशियम हाइड्रोक्साइड [Mg(OH)2], एवं अमोनियम हाइड्रॉक्साइड (NH4OH) के नमूने एकत्र करके उनकी अम्लीय व क्षारीय स्थिति की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर-
अम्लीय व क्षारीय स्थिति की पहचान-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 5
अतः कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनकी गंध अम्लीय या क्षारकीय माध्यम में बदल जाती है, इन्हें गंधीय सूचक कहते

क्रियाकलाप 2.2 (पा. पु. पृ. सं. 20)

प्रश्न 1.
इनमें से दो टुकड़े लीजिए एवं उनकी गंध की जाँच कीजिए।
उत्तर-
कपड़े के टुकड़ों से प्याज की गंध नहीं आ रही

प्रश्न 2. दोनों टुकड़ों को जल से धोकर उनकी गंध की पुनः जाँच कीजिए।
उत्तर-
(i) कपड़े के टुकड़े + तनु HCI का घोल → प्याज की गंध मौजूद है तथा इसका लाल रंग हल्का लाल हो गया।
(ii) कपड़े के टुकड़े + तनु NaOH का घोल → प्याज की गंध खत्म हो जाती है तथा इसका लाल रंग बदलकर हरा हो गया।

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प्रश्न 3.
कपड़े के दोनों टुकड़ों को धोकर इसमें से एक में तनु वैनिला एवं दूसरे में लौंग का तेल की कुछ बूंदें डालकर इनकी गंधों की जाँच करने पर क्या ज्ञात होता है?
उत्तर-
गंध की जाँच (i) तनु वैनिला + तनु NaOH → कोई गंध नहीं है। तनु वैनिला + तनु HCl → वैनिला की गंध मौजूद है।
(ii) लौंग का तेल + HCl → गंध में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
लौंग का तेल + NaOH → गंध में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

क्रियाकलाप 2.3 (पा. पु. पृ. सं. 21)

प्रश्न 1.
दानेदार जिंक के टुकड़ों की सतह पर आप क्या देखते हैं?
उत्तर-
दानेदार जिंक के टुकड़ों की सतह से हाइड्रोजन गैस के बुलबुले निकलते हुए दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
साबुन के विलयन में बुलबुले क्यों बनते हैं?
उत्तर-
साबुन के विलयन में हाइड्रोजन गैस के प्रवाहित होने के कारण ही बुलबुले बनते हैं।

प्रश्न 3.
जलती हुई मोमबत्ती को गैस वाले बुलबुले के पास ले जाने पर आप क्या प्रेक्षण करते हैं?
उत्तर-
जलती हुई मोमबत्ती को गैस वाले बुलबुले के पास ले जाने पर यह फट-फट (Pop-sound) की ध्वनि के साथ जलने लगती है।

प्रश्न 4.
कुछ अन्य अम्ल, जैसे- HCI, HNO3, एवं CH3COOH के साथ यदि Zn की क्रिया करायें तो क्या होगा?
उत्तर-
HCl, HNO3, व CH3COOH के साथ भी Zn क्रिया करके H2 गैस उत्पन्न करती है।

क्रियाकलाप 2.4 (पा. पु. पृ. सं. 22)

प्रश्न 1.
क्या जिंक NaOH के घोल से अभिक्रिया करती है?
उत्तर-
हाँ, दानेदार जिंक में 2mL, NaOH मिलाकर गर्म करने पर क्रियाकलाप 2.3 की तरह H2 गैस उत्सर्जित होती है।

प्रश्न 2.
जिंक तथा NaOH के बीच होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
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क्रियाकलाप 2. 5 (पा.पु. पृ.सं. 22)

प्रश्न 1.
चित्र के अनुसार प्रत्येक स्थिति में उत्पादित गैस को चूने के पानी (कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड का विलयन) से प्रवाहित कीजिए एवं अपने निरीक्षणों को अभिलिखित कीजिए। .
उत्तर-
चूने का पानी दूधिया हो जाता है। उपर्युक्त क्रियाकलाप में होने वाली अभिक्रियाओं को इस प्रकार लिखा जा सकता है
परखनली ‘A’-NaCO3 (s) + 2HCl (aq) → 2NaCl (aq) + H2O (l) + H2O (l) + CO2 (g)
परखनली ‘B’-NaHCO3 (s) + HCl (aq) → NaCl (aq) + H2O (l) + CO2 (g) उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड गैस को चूने के पानी में प्रवाहित करने पर,
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अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड प्रवाहित करने पर निम्न अभिक्रिया होती है
CaCO3 (s)+ H2O(l) + CO2(g) → Ca(HCO3)2(aq) (जल में विलेयशील)|

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

प्रश्न 2.
Na2CO3 व NaHCO3, में तनु HCl मिलाने पर क्या होता है?
उत्तर-
Na2CO3, व NaHCO3, में तनु HCI मिलाने पर CO2, गैस मुक्त होती है।

प्रश्न 3.
CaCO3 के विविध रूप कौन से हैं?
उत्तर-
CaCO3, के चूना पत्थर (Limestone), खड़िया (Chalk) एवं संगमरमर (marble) आदि विविध रूप हैं।

क्रियाकलाप 2.6 (पा. पु. पृ. सं. 23)

प्रश्न 1.
क्या अभिक्रिया मिश्रण के रंग में कोई परिवर्तन आया?
उत्तर-
अम्ल में फिनॉल्पथेलीन मिलाने पर कोई रंग नहीं आया जबकि क्षार में फिनॉल्पथेलीन मिलाने पर गुलाबी – रंग आता है।

प्रश्न 2.
अम्ल मिलाने पर क्षार में मिले फिनॉल्पथेलीन का रंग क्यों बदल गया?
उत्तर-
क्षार में अम्ल मिलाने पर क्षार का प्रभाव खत्म हो गया। यही कारण है कि फिनॉल्पथेलीन का रंग बदल गया।

प्रश्न 3.
उपरोक्त मिश्रण में दोबारा NaOH की बूंद मिलाने पर क्या फिनॉल्फ्थेलीन का रंग पुनः गुलाबी हो गया?
उत्तर-
हाँ, क्योंकि अब विलयन पुनः क्षारीय हो गया।

प्रश्न 4.
आपके विचार में ऐसा क्यों होता है?
उत्तर-
ऐसा इसलिये होता है क्योंकि अम्ल द्वारा क्षार का प्रभाव व क्षार द्वारा अम्ल का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

क्रियाकलाप 2.7 (पा. पु. पृ. सं. 23)

प्रश्न 1.
कॉपर ऑक्साइड का अभिक्रिया के दौरान क्या होता है?
उत्तर-
कॉपर ऑक्साइड का नीला रंग समाप्त होने लगेगा व विलयन का रंग नील-हरित होने लगेगा। ऐसा कॉपर (II) क्लोराइड के बनने के कारण होता है।

प्रश्न 2.
अभिक्रिया का सन्तुलित समीकरण लिखें।
उत्तर-
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क्रियाकलाप 2. 8 (पा. पु. पृ. सं. 24)

प्रश्न 1.
आपने क्या प्रेक्षण किया ?
उत्तर-
बीकर में अम्ल का विलयन लेने पर विद्युत का चालन होता है और बल्ब जलने लगता है।

प्रश्न 2.
ग्लूकोज व ऐल्कोहॉल के विलयन को लेने पर क्या विद्युत का चालन होता है?
उत्तर-
नहीं, ग्लूकोज एवं ऐल्कोहॉल का विलयन विद्युत का चालन नहीं करता है।

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प्रश्न 3.
अम्ल में विद्युत का चालन किस कारण से होता है?
उत्तर-
अम्ल में विद्युत का चालन धनायन H+ की उपस्थिति के कारण होता है।

प्रश्न 4.
बल्ब क्या प्रत्येक स्थिति में जलता है।
उत्तर-
बल्ब प्रत्येक स्थिति में नहीं जलता है।

क्रियाकलाप 2.9 (पा. पु. पृ. सं. 25)

प्रश्न 1.
NaCI व सान्द्र H2SO4 के मध्य क्रिया कराने पर क्या कोई गैस बाहर निकलती है?
उत्तर-
हाँ।

प्रश्न 2.
उत्सर्जित गैस को सूखे व नम नीले लिटमस पत्र से जाँचने पर क्या ज्ञात होता है?
उत्तर-
उत्सर्जित गैस नम नीले लिटमस पत्र को लाल कर देती है परन्तु सूखे नीले लिटमस पत्र पर कोई प्रभाव नहीं डालती है।

प्रश्न 3.
कौन अम्लीय गुण प्रदर्शित करता है?
(i) शुष्क HCl गैस या
(ii) HCl विलयन।
उत्तर-
HCl विलयन।

प्रश्न 4.
HCl विलयन अम्लीय गुण प्रदर्शित क्यों । करता है?
उत्तर-
क्योंकि विलयन में H+ आयन मुक्त हो जाते हैं इस कारण HCl विलयन अम्लीय गुण प्रदर्शित करता है।

क्रियाकलाप 2.10 (पा. पु. पृ. सं. 26)

प्रश्न 1.
जल व सल्फ्यूरिक अम्ल के मध्य क्रिया करने पर क्या तापमान में कोई परिवर्तन आता है?
उत्तर-
हाँ, जल व H2SO4 के मध्य क्रिया कराने पर तापमान बढ़ने लगता है।

प्रश्न 2.
अभिक्रिया ऊष्माशोषी है या ऊष्माक्षेपी?
उत्तर-
अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है।

क्रियाकलाप 2.11 (पा. पु. पृ. सं. 28)

प्रश्न-
सारणी 2.2 में विलयन की pH की जाँच कीजिए। अपने प्रेक्षणों को सारणी में लिखिए।
उत्तर –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 9

क्रियाकलाप 2.12 (पा. पु. पृ. सं. 29).

प्रश्न 1.
अपने क्षेत्र में पौधों के उपयुक्त विकास के लिए आदर्श मिट्टी के pH के सम्बन्ध में आपने क्या उत्कर्ष निकाला?
उत्तर-
आदर्श मिट्टी के लिए आदर्श pH परास 7 से 7.6

क्रियाकलाप 2.13 (पा. पु. पृ. सं. 31)

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए लवण के सूत्र लिखिए. पौटेशियम सल्फेट, सोडियम सल्फेट, कैल्सियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट, कॉपर सल्फेट, सोडियम क्लोराइड, सोडियम नाइट्रेट, सोडियम कार्बोनेट एवं अमोनियम क्लोराइड।
उत्तर –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 10

प्रश्न 2.
उन अम्ल एवं क्षारक की पहचान कीजिए जिससे उपर्युक्त (क्रियाकलाप-2.13 के प्रश्न 1) लवण प्राप्त किए जा सकते हैं।
उत्तर –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 11

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

प्रश्न 3.
समान धन या ऋण मूलक वाले लवणों को एक ही परिवार का कहा जाता है। जैसे-NaCl एवं Na2SO4 , सोडियम लवण के परिवार का है। इसी प्रकार NaCl एवं KCI क्लोराइड लवण के परिवार के हैं। इस क्रियाकलाप में दिए गए लवणों में आप कितने परिवारों की पहचान कर सकते हैं?
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 12

क्रियाकलाप 2.14 (पा. पु. पृ. सं. 32)

प्रश्न 1.
कौन से लवण अम्लीय, क्षारकीय एवं उदासीन हैं।
उत्तर-
अम्लीय लवण : ऐलुमिनियम क्लोराइड, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट।

क्षारकीय लवण : सोडियम ऐसीटेट, सोडियम कार्बोनेट, सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट।
उदासीन लवण : सोडियम क्लोराइड, पोटैशियम नाइट्रेट।

प्रश्न 2.
अपने प्रेक्षणों को सारणी 2.4 में लिखिए।
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण 13

क्रियाकलाप 2.15 (पा. पु. पृ. सं. 35)

प्रश्न 1.
गर्म करने के बाद कॉपर सल्फेट का रंग क्या है?
उत्तर-
गर्म करने के बाद कॉपर सल्फेट का नीला रंग सफेद रंग में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 2.
क्वथन नली में क्या जल की बूंदें नजर आती हैं? ये कहाँ से आती हैं?
उत्तर-
क्वथन नली में जल की बूंदें नजर आती हैं। ये कॉपर सल्फेट के क्रिस्टल में उपस्थित जल को गर्म किये जाने पर वाष्प निकलने के कारण प्राप्त होती हैं अर्थात् ये कॉपर सल्फेट के क्रिस्टल में से आती हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण

प्रश्न 3.
गर्म करने के बाद प्राप्त कॉपर सल्फेट के नमूने में दोबारा जल की 2-3 बूंदें डालने पर क्या प्राप्त होता है ? क्या नीला रंग वापस आता है?
उत्तर-
कॉपर सल्फेट के नमूने में दोबारा जल की बूंदें डालने पर नीला रंग वापस आ जाता है क्योंकि CuSO4 दोबारा जल से क्रिया करके नीले रंग का CuSO4, 5 H2O बना लेता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 10th Class Home Science Solutions

HBSE 10th Class Home Science Solutions in Hindi Medium

HBSE 10th Class Home Science Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Principles of Growth and Development
  • Chapter 2 Role of Books, Music, Rhymes, Games, Radio etc.
  • Chapter 3 Play
  • Chapter 4 Resources Available in Family
  • Chapter 5 Money Management
  • Chapter 6 Consumer Education
  • Chapter 7 Nutrients
  • Chapter 8 Meal Planning
  • Chapter 9 Food Hygiene and Methods of Storage of Food
  • Chapter 10 Care of Clothes
  • Chapter 11 Quality Check of Apparel

HBSE 10th Class Home Science Question Paper Design

Class: 10th
Subject: Home Science
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 60
Time: 3 Hrs

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUATotal
Percentage of Marks404218100
Marks24251160

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions3591229
Marks Allotted1515181260
Estimated Time60404436180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. Principles of Growth and Development8
2. Role of Books, Music, Rhymes, Games, Radio etc.2
3. Play5
4. Resources Available in Family5
5. Money Management4
6. Consumer Education4
7. Nutrients7
8. Meal Planning6
9. Food Hygiene and Methods of Storage of Food8
10. Care of Clothes8
11. Quality Check of Apparel3
Total60

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice of 1 Essay Type Question

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge), U (Understanding), A (Application), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Exercise 8.5

प्रश्न 1.
निम्न में से प्रत्येक का जोड़ ज्ञात करें :
(a) 0.007 + 8.5+ 30.08
(b) 15 + 0.632 + 13.8
(c) 27.076 + 0.55 + 0.004
(d) 25.65 + 9.005 + 3.7
(e) 0.75 + 10.425 + 2
(f) 280.69 + 25.2 + 38
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 1

प्रश्न 2.
रशीद ने 35.75 रुपये में गणित की और 32.60 रुपये में विज्ञान की पुस्तक खरीदीं। रशीद द्वारा खर्च किया गया कुल धन ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 2
अतः रशीद ने 68.35 रूपये खर्च किए।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5

प्रश्न 3.
राधिका की माँ ने उसे 10.50 रुपये दिये और पिता ने 15.80 रुपये दिये। उसके माता-पिता द्वारा दिया गया कुल धन ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 3
अत: माता-पिता द्वारा दिया गया कुल धन ₹ 26.30 है। उत्तर

प्रश्न 4.
नसरीन ने अपनी कमीज के लिए 3 मीटर 20 सेमी कपड़ा खरीदा और 2 मीटर 5 सेमी पैंट के लिए खरीदा। उसके द्वारा खरीदे गए कपड़े की कुल लम्बाई निकालिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 4
अतः नसरीन ने कुल 5 मीटर 25 सेमी कपड़ा खरीदा। उत्तर

प्रश्न 5.
नरेश प्रातःकाल में 2 किमी 35 मीटर चला और सायंकाल में 1 किमी 7 मीटर चला। वह कुल कितनी दूरी चला?
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 5
अतः वह कुल = 3 किमी 42 मीटर चला। उत्तर

प्रश्न 6.
सुनीता अपने स्कूल पहुँचने के लिए 15 किमी 268 मीटर की दूरी बस से, 7 किमी 7 मीटर की दूरी कार से और 500 मीटर की दूरी पैदल तय करती है। उसका स्कूल उसके घर से कितनी दूर है ?
हल :
बस द्वारा तय की गई दूरी = 15 किमी 268 मीटर
= 15.268 किमी
कार द्वारा तय की गई दूरी = 7 किमी 7 मीटर
= 7.007 किमी
पैदल तय की गई दूरी = 500 मीटर
= \(\frac{500}{1000}\) = 0.500 किमी
कुल तय की गई दूरी = 15.268 किमी + 7.007 किमी + 0.500 किमी
अब,
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 6
अतः सुनीता का स्थल उसके घर से 22.775 किमी दूर है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5

प्रश्न 7.
रवि ने 5 किग्रा 400 ग्राम चावल,2 किग्रा 20 ग्राम चीनी और 100 किग्रा 850 ग्राम आटा खरीदा। उसके द्वारा की गई खरीदारी का कुल भार (या वजन) ज्ञात कीजिए।
हल :
चावल का वजन = 5 किग्रा 400 ग्राम
= 5.400 किग्रा
चीनी का वजन = 2 किग्रा 20 ग्राम = 2.020 किग्रा
आटे का वजन = 100 किग्रा 850 ग्राम = 100.850 किग्रा
खरीदे गए सामान का कुल भार = 5.400 किग्रा + 2.020 किग्रा + 100.850 किग्रा
अब,
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.5 7
अतः रवि द्वारा की गई खरीददारी का कुल भार 108.270 किग्रा है।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

पृष्ट सं. 147 से

प्रश्न 1.
भिन्न \(\frac {3}{7}\) का अंश बताइए। \(\frac {4}{15}\) का हर क्या है?
हल :
भिन्न 2 का अंश 3 है। तथा भिन्न है, का हर 15 है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

पृष्ठ सं. 150 से

प्रश्न 1.
संख्या रेखा पर \(\frac {3}{5}\) को दर्शाइए।
हल :
हम जानते हैं कि \(\frac {3}{5}\) शून्य से बड़ा है और 1 से कम है।
∴ भिन्न \(\frac {3}{5}\), 0 और के बीच में होगी।
अब हमें \(\frac {3}{5}\) को दर्शाना है, इसलिए हम 0 और 1 के बीच की दूरी को पाँच बराबर भागों में बाँटते हैं। इसके तीसरे भाग पर बिन्दु P अंकित करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 1
इस प्रकार, संख्या रेखा पर बिन्दु P, \(\frac {3}{5}\) को दर्शाता है।

प्रश्न 2.
संख्या रेखा पर \(\frac{1}{10}, \frac{0}{10}, \frac{5}{10}\) और \(\frac {10}{10}\) दर्शाइए।
हल :
हम जानते हैं कि भिन्न \(\frac{1}{10}, \frac{0}{10}, \frac{5}{10}\) और \(\frac {10}{10}\) इस प्रकार हैं :
0 ≤ \(\frac{1}{10}, \frac{0}{10}, \frac{5}{10}\) और \(\frac {10}{10}\) ≤ 1
अब हमें \(\frac{1}{10}, \frac{0}{10}, \frac{5}{10}\) और \(\frac {10}{10}\) को संख्या रेखा पर दर्शाना है। इसलिए हम 0 और 1 के बीच की दूरी को 10 बराबर भागों में बाँटते हैं। इसके पहले भाग पर बिन्दु P, पाँचवें भाग पर बिन्दु Q तथा दसवें भाग पर बिन्दु A अंकित करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 2
इस प्रकार बिन्दु \(\frac {1}{10}\) बिन्दु P पर, \(\frac {0}{10}\) = 0 बिन्दु O पर, \(\frac {5}{10}\) बिन्दु Q पर और \(\frac {10}{10}\) = 1 बिन्दु A पर अंकित किया। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 3.
क्या आप 0 और 1 के बीच कोई अन्य भिन्न को दर्शा सकते हैं? ऐसी पाँच भिन्न और लिखिए जिन्हें आप दर्शा सकते हैं और उन्हें संख्या रेखा पर दर्शाइए।
हल :
हाँ, हम 0 और 1 के बीच अन्य भिन्न दर्शा सकते हैं। जैसे : \(\frac{1}{7}, \frac{2}{7}, \frac{3}{7}, \frac{4}{7}, \frac{5}{7}\) इस प्रकार ये 5 भिन्न हैं जिन्हें संख्या रेखा पर बिन्दु A, B, C, D और E द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 3

प्रश्न 4.
0 और 1 के बीच में कितनी भिन्न स्थित हैं? सोचिए, चर्चा कीजिए और अपने उत्तर को लिखिए।
हल :
0 और 1 के बीच संख्या रेखा पर अंसख्य भिन्न स्थित हैं।

पृष्ठ सं. 151 से

प्रश्न 1.
एक उचित भिन्न लिखिए :
(a) जिसका अंश 5 और हर 7 है।
(b) जिसका हर 9 और अंश 5 है।
(c) जिसके अंश और हर का योग 10 है। आप इस प्रकार की कितनी भिन्न लिख सकते हैं ?
(d) जिसका हर उसके अंश से 4 अधिक है।
(कोई पाँच भिन्न बनाइए। आप और कितनी भिन्न बना सकते हैं?)
हल :
(a) अभीष्ट भिन्न = \(\frac {5}{7}\)
(b) अभीष्ट भिन्न = \(\frac {5}{9}\)
(c) जिनके अंश और हर का योग 10 है ऐसे सम्भवतः युग्म (0, 10); (1, 9); (2, 8); (3, 7); (4, 6) हैं।
इनकी उचित भिन्न \(\frac{0}{10}, \frac{1}{9}, \frac{2}{8}, \frac{3}{7}\) और \(\frac {4}{6}\) हैं, जो कि संख्या में 5 हैं।
(d) ऐसी 5 भिन्न जिनके हर, अंश से 4 अधिक हैं :
\(\frac{0}{4}, \frac{1}{5}, \frac{2}{6}, \frac{3}{7}, \frac{4}{9}\)
अत: हम दी गई परिस्थितियों के अनुसार असंख्य भिन्न बना सकते हैं।

प्रश्न 2.
एक भिन्न दी हुई है। इसे देखकर आप कैसे बता सकते हैं कि यह भिन्न :
(a) 1 से छोटी है
(b) 1 के बराबर है ?
हल :
(a) यदि किसी भिन्न में अंश उसके हर से छोटा है, तो भिन्न 1 से छोटी है।
(b) यदि किसी भिन्न में अंश और हर बराबर हैं, तो वह भिन्न 1 के बराबर होती है।

प्रश्न 3.
संकेत ‘>’, ‘<‘ या ‘=’ का प्रयोग करके रिक्त स्थानों को भरिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 4

पृष्ठ सं. 152 से (विषम भिन्न)

प्रश्न 1.
हर 7 वाली पाँच विषम भिन्न लिखिए।
हल :
पाँच विषम भिन्न जिनका हर 7 है :
\(\frac{8}{7}, \frac{9}{7}, \frac{10}{7}, \frac{11}{7}\) और \(\frac {12}{7}\) उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
अंश 11 वाली पाँच विषम भिन्न लिखिए।
हल :
पाँच विषम भिन्न जिनका अंश 11 है :
\(\frac{11}{10}, \frac{11}{9}, \frac{11}{8}, \frac{11}{7}\) और \(\frac {11}{6}\) उत्तर

पृष्ठ सं. 155 से

प्रश्न 1.
क्या \(\frac {1}{3}\) और \(\frac {2}{7}\) तुल्य भिन्न हैं? कारण दीजिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 5
स्पष्ट रूप से, आकृतियाँ समान आकार की हैं तथा छायांकित भाग आकृति का बराबर हिस्सा नहीं दिखाता है।
इसलिए \(\frac {1}{3}\) और \(\frac {2}{7}\) तुल्य भिन्न नहीं हैं। उत्तर

प्रश्न 2.
क्या और \(\frac {2}{5}\) और \(\frac {2}{7}\) तुल्य भिन्न हैं? कारण दीजिए।
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 6
स्पष्ट रूप से, आकृतियाँ समान आकार की हैं तथा छायांकित भाग आकृति का बराबर हिस्सा नहीं है।
∴ \(\frac {2}{5}\) और \(\frac {2}{7}\) तुल्य भिन्न नहीं हैं। उत्तर

प्रश्न 3.
क्या \(\frac {2}{9}\) और \(\frac {6}{27}\) तुल्य भिन्न हैं ? कारण दीजिए।
हल:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 7
स्पष्ट रूप से, आकृतियाँ समान आकार की हैं तथा छायांकित भाग आकृति का बराबर हिस्सा दिखाता है।
∴ \(\frac {2}{9}\) और \(\frac {6}{27}\) तुल्य भिन्न हैं। उत्तर

प्रश्न 4.
चार तुल्य भिन्नों का एक अन्य उदाहरण दीजिए।
हल:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 8
स्पष्ट रूप से, इन आकृतियों का आकार समान है और छायांकित भाग आकृतियों का बराबर हिस्सा दिखाता है।
∴ \(\frac{1}{5},\frac{2}{10}, \frac{3}{15}\) और में चारों तुल्य भिन्न हैं। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 5.
प्रत्येक भिन्न को पहचानिए। क्या ये भिन्न तुल्य हैं ?
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 9
हल :
इन भिन्नों को पहचानने पर हम पाते हैं कि ये भिन्न \(\frac{6}{8}, \frac{9}{12}, \frac{12}{16}\) और \(\frac {15}{20}\) है।
स्पष्ट रूप से, इन आकृतियों का आकार समान है और छायांकित भाग आकृतियों का बराबर हिस्सा दिखाता है।
∴ \(\frac{6}{8}, \frac{9}{12}, \frac{12}{16}\) और \(\frac {15}{20}\) तुल्य भिन्न हैं। उत्तर

पृष्ठ सं. 155 से (सोचिए, चर्चा कीजिए और लिखिए)

प्रश्न 1.
तुल्य भिन्न एक पूर्ण का संमान भाग क्यों निरूपित करती है? हम इनमें से एक भिन्न को अन्य भिन्न से किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं?
हल :
तुल्य भिन्न एक पूर्ण के समान भाग को निरूपित करती हैं, क्योंकि इन भिन्नों के चित्रीय निरूपणों को एकदूसरे के ऊपर रखें, तो वे बराबर होंगे।
एक भिन्न से अन्य भिन्न प्राप्त करना :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 10

प्रश्न 2.
रजनी कहती है कि \(\frac {1}{3}\) की समतुल्य भिन्न हैं :
\(\frac{1 \times 2}{3 \times 2}=\frac{2}{6}, \frac{1 \times 3}{3 \times 3}=\frac{3}{9}, \frac{1 \times 4}{3 \times 4}=\frac{4}{12}\) और अन्य कई।
क्या आप इससे सहमत हैं? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
हल :
हाँ, तुल्य भिन्नों की संख्या बहुत अधिक है, क्योंकि ये दी गई भिन्न के अंश और हर को समान संख्या से गुणा करके प्राप्त की जा सकती हैं। प्राकृत संख्याएँ असीमित होती हैं। इसलिए असीमित तुल्य भिन्न बना सकते हैं। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

पृष्ठ सं. 156 से

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से प्रत्येक की पाँच तुल्य भिन्न ज्ञात कीजिए:
(i) \(\frac {2}{3}\)
(ii) \(\frac {1}{5}\)
(iii) \(\frac {3}{5}\)
(iv) \(\frac {5}{9}\)
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 11
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 12

पृष्ठ सं. 159 से

प्रश्न 1.
क्या आप \(\frac {9}{15}\) के तुल्य एक ऐसी भिन्न ज्ञात कर सकते हैं जिसका हर 5 हो?
हल :
हाँ, हम जानते हैं कि 15 ÷ 3 = 5 है। इसका अर्थ है कि तुल्य भिन्न प्राप्त करने के लिए, हमें दी हुई भिन्न के अंश व हर में 3 से भाग देना होगा।
इस प्रकार, \(\frac{9}{15}=\frac{9 \div 3}{15 \div 3}=\frac{3}{5}\)
अतः वांछित तुल्य भिन्न \(\frac {3}{5}\) है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
निम्न को सरलतम रूप में लिखिए :
(i) \(\frac {15}{75}\)
(ii) \(\frac {16}{72}\)
(iii) \(\frac {17}{51}\)
(iv) \(\frac {42}{28}\)
(v) \(\frac {80}{24}\)
हल :
(i) \(\frac {15}{75}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए, 15 और 75 का महत्तम समापवर्तक निकालते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 13

(ii) \(\frac {16}{72}\) का सरलतम रूप लिखने के लिए, 16 और 72 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 14

(iii) \(\frac {17}{51}\) का सरलतम रूप लिखने के लिए, 17 और 51 का म.स. निकालते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 15

(iv) \(\frac {42}{28}\) का सरलतम रूप लिखने के लिए, 42 और 28 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 16

(v) \(\frac {80}{24}\) का सरलतम रूप लिखने के लिए, 80 और 24 का म.स. निकालते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 17

प्रश्न 2.
क्या \(\frac {169}{289}\) अपने सरलतम रूप में है ?
हल :
169 और 289 का म.स. निकालने पर,
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 18
169 = 13 × 13
∴ 289 = 17 × 17
और म.स. = 1
अतः \(\frac {169}{289}\) अपने सरलतम रूप में है। उत्तर

पृष्ठ स. 161 से (समान भिन्न)

प्रश्न समान भिन्नों के पाँच युग्म और असमान भिन्नों के पाँच युग्म लिखिए।
हल :
समान भिन्नों के पाँच युग्म \(\frac{2}{37}, \frac{5}{37}, \frac{7}{37}, \frac{9}{37}, \frac{11}{37}\) है।
असमान भिलों के पाँच युग्म \(\frac{2}{9}, \frac{2}{11}, \frac{2}{17}, \frac{2}{19}, \frac{2}{23}\) है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

पृष्ठ सं. 161 से

प्रश्न 1.
आप जूस की बोतल का \(\frac {1}{5}\) वाँ भाग प्राप्त करते हैं और आपकी बहिन को उस बोतल का एक-तिहाई भाग मिलता है। किसको अधिक जूस मिलता है ?
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 19
अतः \(\frac {1}{5}\) और \(\frac {1}{3}\) के अंश समान हैं। इसलिए भिन्न जिसका हर छोटा हो, वह बड़ी भिन्न होगी। इस प्रकार बहिन को ज्यादा जूस मिलता है। उत्तर

पृष्ठ सं. 162 से

प्रश्न 1.
कौन-सी भिन्न बड़ी है ?
(i) \(\frac {7}{10}\) या \(\frac {8}{10}\)
(ii) \(\frac {11}{24}\) या \(\frac {13}{24}\)
(iii) \(\frac {17}{102}\) या \(\frac {12}{102}\)
ऐसी भिन्नों की तुलना करना क्यों सरल है ?
हल :
हम जानते हैं कि समान हरों वाली दो भिन्नों में, बड़े अंश वाली भिन्न बड़ी होती है।
दी गई भिन्न हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 20
ऐसी भिन्नों की तुलना करना सरल है, क्योंकि इन स्थितियों में केवल अशों की तुलना की गई है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
निम्न को आरोही क्रम में लिखिए और साथ ही अवरोही क्रम में भी लिखिए :
(a) \(\frac{1}{8}, \frac{5}{8}, \frac{3}{8}\)
(b) \(\frac{1}{5}, \frac{11}{5}, \frac{4}{5}, \frac{3}{5}, \frac{7}{5}\)
(c) \(\frac{1}{7}, \frac{3}{7}, \frac{13}{7}, \frac{11}{7}, \frac{7}{7}\)
हल :
हम जानते हैं कि वे भिन्न जिनके हर समान हों तथा अंश का मान जितना बड़ा होगा, उस भिन्न का मान उतना ही बड़ा होगा।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 21
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 22

पृष्ठ सं. 164 से

प्रश्न 1.
निम्नलिखित भिन्नों को आरोही और अवरोही क्रमों में व्यवस्थित कीजिए :
(a) \(\frac{1}{12}, \frac{1}{23}, \frac{1}{5}, \frac{1}{7}, \frac{1}{50}, \frac{1}{9}, \frac{1}{17}\)
(b) \(\frac{3}{7}, \frac{3}{11}, \frac{3}{5}, \frac{3}{2}, \frac{3}{13}, \frac{3}{4}, \frac{3}{17}\)
(c) उपर्युक्त प्रकार के तीन और उदाहरण लिखिए तथा उन्हें आरोही और अवरोही क्रमों में व्यवस्थित कीजिए।
हल :
हम जानते हैं कि वे भिन्न जिनका अंश समान हो, परन्तु हर जितना बड़ा होगा, वह भिन्न उतनी ही छोटी होगी।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 23
अब इन्हें आरोही तथा अवरोही क्रम में निम्न प्रकार लिख सकते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 24

पृष्ठ सं. 168 से

प्रश्न 1.
मेरी माँ ने एक सेब को चार बराबर भागों में बाँटा। उन्होंने मुझे 2 भाग और मेरे भाई को एक भाग दिया। उन्होंने हम दोनों को कुल सेब का कितना भाग दिया?
हल :
उक्त प्रश्न को सेब की आकृति बनाकर स्पष्ट रूप से समझा सकते हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 25
अर्थात् \(\frac{2}{4}+\frac{1}{4}=\frac{3}{4}\)
अतः उन्होंने हम दोनों को कुल सेब का \(\frac {3}{4}\) भाग दिया।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
माँ ने नीलू और उसके भाई से गेहूँ में से कंकड़ बीनने के लिए कहा। नीलू ने कुल कंकड़ों के \(\frac {1}{4}\) कंकड़ बीने और उसके भाई ने भी कुल कंकड़ों के \(\frac {1}{4}\) कंकड़ बीने। दोनों ने मिलकर कुल कंकड़ों की कितनी भिन्न बीनी ?
हल :
नीलू ने गेहूँ में से कुल कंकड़ों के \(\frac {1}{4}\) भाग बीने और उसके भाई ने भी \(\frac {1}{4}\) भाग बीने।
दोनों ने मिलकर कुल कंकड़ बीने
= \(\frac{1}{4}+\frac{1}{4}=\frac{2}{4}\) भाग। उत्तर

प्रश्न 3.
सोहन अपनी अभ्यास पुस्तिका पर कवर चढ़ा रहा था। उसने सोमवार को \(\frac {1}{4}\) भाग पर कवर चढ्न लिया। मंगलवार को उसने अन्य \(\frac {1}{4}\) भाग पर कवर चढ़ा लिया और शेष बुधवार को। बुधवार को उसने कवर का कौन सा भाग चढ़ाया ?
हल :
सोहन ने सोमवार को कवर चढ़ाया = \(\frac {1}{4}\) भाग
और मंगलवार को कवर चढ़ाया = \(\frac {1}{4}\) भाग
शेष भाग जिस पर बुधवार को कवर चढ़ाना है :
= 1 – (\(\frac{1}{4}+\frac{1}{4}\)) = 1 – (\(\frac{1+1}{4}\))
= 1 – \(\frac{2}{4}=\frac{4-2}{4}=\frac{2}{4}=\frac{1}{2}\) भाग पर। उत्तर

पृष्ठ सं. 170 से

प्रश्न 1.
आकृतियों की सहायता से जोड़िए :
(i) \(\frac{1}{8}+\frac{1}{8}\)
(ii) \(\frac{2}{5}+\frac{3}{5}\)
(iii) \(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}+\frac{1}{12}\)
हल :
(i) एक 2 × 4 विमाओं वाला कागज लेते हैं। इसमें लम्बाई के अनुदिश 2 खाने तथा चौड़ाई के अनुदिश 4 खाने बनाते हैं जिसमें एक खाने को क्षैतिज तथा दूसरे खाने को ऊर्ध्वाधर रूप में छायांकित करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 26
आकृति को देखने पर, \(\frac{1}{8}+\frac{1}{8}=\frac{2}{8}=\frac{1}{4}\) उत्तर

(ii) एक कागज लेते हैं जिसमें लम्बाई के अनुदिश बराबर-बराबर के पाँच खाने बनाते हैं। इनमें से दो खानों को छायांकित करके 3 खानों को ऊर्ध्वाधर छायांकित करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 27
आकृति को देखने पर, \(\frac{2}{5}+\frac{3}{5}=\frac{5}{5}\) = 1 उत्तर

(iii) 4 × 3 का एक कागज लेकर उसमें 12 खाने बनाते हैं जिसमें से एक खाने को दो बार, एक खाने को क्षैतिज रूप में और एक खाने को ऊध्याधर छायांकित करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 28
आकृति को देखने पर, \(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}+\frac{1}{12}=\frac{3}{12}=\frac{1}{4}\) उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
\(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}\) को जोड़ने पर हम क्या प्राप्त करते हैं?
आप चित्र रूप में इसे कैसे दर्शा सकते हो? कागज मोड़ने की क्रिया द्वारा कैसे दर्शाया जा सकता है?
हल:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 29
\(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}=\frac{1+1}{12}=\frac{2}{12}=\frac{2}{6}\) उत्तर
चित्र द्वारा दर्शाना –
4 × 3 विमाओं वाला एक कागज लेकर उसमें 12 खाने बनाते हैं जिसमें से एक खाने को क्षैतिज रूप में और एक खाने को ऊर्ध्वाधर रूप में छायांकित करते हैं। आकृति को देखने पर
\(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}=\frac{2}{12}=\frac{1}{6}\) उत्तर

कागज मोड़ने की क्रिया द्वारा दर्शाना –
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions 30
एक आयताकार कागज लेकर उसे लम्बाई के अनुदिश तीन बार मोड़ते हैं तथा चौड़ाई के अनुदिश चार बार मोड़ते हैं। अब कागज को खोलते है इस प्रकार कागज में 12 खाने बन जाते है (चित्र के अनुसार)। अब एक खाने को क्षैतिक रूप में और एक खाने को ऊर्ध्वाधर रूप में छायांकित करते हैं। कागज को देखने पर,
\(\frac{1}{12}+\frac{1}{12}=\frac{2}{12}=\frac{1}{6}\) उत्तर

प्रश्न 3.
\(\frac {7}{8}\) और \(\frac {3}{8}\) का अन्तर ज्ञात कीजिए।
हल :
\(\frac{7}{8}-\frac{3}{8}=\frac{7-3}{8}=\frac{4}{8}=\frac{1}{2}\) उत्तर

प्रश्न 4.
माँ ने एक गुड़ की पट्टी गोल आकृति में बनाई। उसने उसे बराबर भागों में विभाजित किया। सीमा ने उसमें से एक टुकड़ा खा लिया। यदि मैं एक अन्य टुकड़ा खा लूँ, तो कितनी गुड़ की पट्टी शेष रहेगी ?
हल :
माँ द्वारा गोल आकार में गुड़ की पट्टी को 5 बराबर भागों में विभाजित करने पर प्रत्येक भाग = \(\frac {1}{5}\)
सीमा ने खाया = \(\frac {1}{5}\) भाग
मेरे द्वारा खाया गया = \(\frac {1}{5}\) भाग
गुड़ की पट्टी का शेष भाग = \(\frac{1}{1}-\left(\frac{1}{5}+\frac{1}{5}\right)\)
\(\frac{5-1-1}{5}=\frac{5-2}{5}=\frac{3}{5}\) भाग उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 5.
मेरी बड़ी बहिन ने एक तरबूज को 16 बराबर भागों में विभाजित किया। मैंने इसके 7 टुकड़े खा लिए। मेरे मित्र ने 4 टुकड़े खाए। हमने मिलकर कुल कितना तरबूज खाया? मैंने अपने मित्र से कितना अधिक तरबूज खाया? कितना तरबूज शेष रह गया ?
हल :
एक तरबूज को मेरी बहिन ने 16 भागों में विभाजित किया।
∴ प्रत्येक भाग = \(\frac {1}{16}\)
मेरे द्वारा तरबूज खाया गया = \(\frac {7}{16}\) भाग
मेरे मित्र द्वारा खाया गया = \(\frac {4}{16}\) भाग
हम दोनों द्वारा खाया गया तरबूज का भाग
= \(\frac{7}{16}+\frac{4}{16}=\frac{7+4}{16}=\frac{11}{16}\) उत्तर
मेरे द्वारा खाया गया अधिक भाग
= \(\frac{7}{16}-\frac{4}{16}=\frac{7-4}{16}=\frac{3}{16}\) उत्तर
बचा हुआ तरबूज = 1 – (\(\frac{7}{16}+\frac{4}{16}\))
= \(\frac{16-(7+4)}{16}=\frac{16-11}{16}=\frac{5}{16}\) भाग। उत्तर

पृष्ठ सं. 173 से

प्रश्न 1.
\(\frac {2}{5}\) और \(\frac {3}{7}\) को जोड़िए।
हल :
पहला तरीका : \(\frac{2}{5}+\frac{3}{7}\)
5 और 7 का लघुतम समापवर्त्य = 5 × 7 = 35
अब, हर 5 और 7 को 35 में बदलते हैं :
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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न InText Questions

प्रश्न 2.
\(\frac {5}{7}\) में से \(\frac {2}{5}\) को घटाइए।
हल :
पहला तरीका : \(\frac {5}{7}\) – \(\frac {2}{5}\)
7 और 5 का ल.स. = 7 × 5 = 35.
अब, हर 7 और 5 को 35 में बदलते हैं :
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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

HBSE 10th Class Science रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
नीचे दी गई अभिक्रिया के सम्बन्ध में कौन-सा कथन असत्य है
2 Pbo(s) +C(s) →2Pb (s)+CO2(g)
(a) सीसा अपचयित हो रहा है।
(b) कार्बन डाइऑक्साइड उपचयित हो रही है।
(c) कार्बन उपचयित हो रहा है।
(d) लैड ऑक्साइड अपचयित हो रहा है।
(i) (a) एवं (b)
(ii) (a) एवं (c)
(iii) (a), (b) एवं
(c) (iv) सभी।
उत्तर-
(i) (a) एवं (b).

कारण- उपरोक्त अभिक्रिया की विपरीत अभिक्रिया में अर्थात्
2Pb(s) + CO2(g) →2PbO(s) + C(s)
मे Pb का ऑक्सीकरण PbO में तथा CO2, का अपचयन C में हो रहा है।

प्रश्न 2.
Fe2O3+2Al → Al2O3, +2Fe
ऊपर दी गई अभिक्रिया निम्न में से किस प्रकार की है –
(a) संयोजन अभिक्रिया
(b) द्वि-विस्थापन अभिक्रिया
(c) वियोजन अभिक्रिया
(d) विस्थापन अभिक्रिया।
उत्तर-
(d) विस्थापन अभिक्रिया।

कारण- इस अभिक्रिया में एलुमीनियम (Al), Fe2O3, से Fe को विस्थापित करके AI2O3 बना रहा है अत: यह एक विस्थापन अभिक्रिया है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

प्रश्न 3.
लौह-चूर्ण पर तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल डालने से निम्न में से क्या होता है?
(a) हाइड्रोजन गैस तथा आयरन क्लोराइड बनता है
(b) क्लोरीन गैस एवं आयरन हाइड्रॉक्साइड बनता है
(c) कोई अभिक्रिया नहीं होती है
(d) आयरन लवण तथा जल बनता है।
उत्तर-
(a) हाइड्रोजन गैस तथा आयरन क्लोराइड बनता है। ये अभिक्रिया निम्न प्रकार है
Fe(s) + 2HCl(dil) → FeCl2 (aq) + H2 (g)

प्रश्न 4.
सन्तुलित रासायनिक समीकरण क्या है ? रासायनिक समीकरण को सन्तुलित करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
वह रासायनिक समीकरण जिसके दोनों पक्षों में प्रत्येक तत्व के परमाणुओं की संख्या बराबर होती है, सन्तुलित रासायनिक समीकरण (Balanced Chemical Equation) कहलाता है, जैसे
निम्नलिखित अभिक्रिया में अभिकारकों तथा उत्पादों में अलग-अलग सभी तत्वों के परमाणुओं की गणना करते हैं
Zn+H2SO4 →ZnSO4 + H2

तत्व के परमाणुओं की संख्याअभिकारकों मेंउत्पादों में
Zn11
H22
S11
O44

रासायनिक अभिक्रिया में पदार्थ न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। इस द्रव्यमान संरक्षण के नियम को सन्तुष्ट करने के लिए रासायनिक समीकरणों को सन्तुलित किया जाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित कथनों को रासायनिक समीकरण के रूप में परिवर्तित कर उन्हें सन्तुलित कीजिए –
(a) नाइट्रोजन गैस हाइड्रोजन गैस से संयोग करके अमोनिया बनाती है।
(b) हाइड्रोजन सल्फाइड गैस का वायु में दहन होने पर जल एवं सल्फर डाइऑक्साइड बनता है।
(c) ऐल्युमिनियम सल्फेट के साथ अभिक्रिया कर बेरियम क्लोराइड, ऐलुमिनियम क्लोराइड एवं बेरियम सल्फेट का अवक्षेप देता है।
(d) पोटैशियम धातु जल के साथ अभिक्रिया करके पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड एवं हाइड्रोजन गैस देती
उत्तर-
(a) प्रश्नानुसार, नाइट्रोजन + हाइड्रोजन → अमोनिया

चरण 1.
सर्वप्रथम इसका प्रतीकात्मक समीकरण लिखकर उसके चारों ओर बॉक्स खींचते हैं
H2 (g) + N2 (g) → NH3 (g)

चरण 2.
इस असन्तुलित समीकरण में उपस्थित विभिन्न तत्त्वों के परमाणुओं की संख्या की सूची बनाते हैं –

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
N21
H23

चरण 3.
इस चरण में हाइड्रोजन के परमाणुओं की संख्या अधिक होने के कारण इनका सर्वप्रथम सन्तुलन करते

 

हाइड्रोजन परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में2 (H2 में)3 (NH3 में)
सन्तुलन हेतु2×33×2

अ तः दिया गया समीकरण सन्तुलित होकर निम्नवत् होगा
3H2(g) + N2(g) → 2NH3 (g)

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

चरण 4.
चरण 3 में प्राप्त समीकरण में हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के परमाणुओं की संख्या दोनों ओर समान है, अतः दिया गया समीकरण पूर्ण रूप से सन्तुलित है।
3H2(g) + N2(g) → 2NH3(g)

(b) कथन के अनुसार रासायनिक समीकरण निम्नवत् है –
H2S (g) + O2 (g) → SO2(g) + H2O (l)

इसे सन्तुलित करने के लिए निम्नलिखित चरणों को अपनाते हैं-
चरण 1. सर्वप्रथम प्रत्येक सूत्र के चारों ओर बॉक्स बनाते हैं –
H2S (g) + O2 (g) → SO2 (g) + H2O (l)

चरण 2. इस समीकरण में उपस्थित विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की सूची बनाते हैं-

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
H22
S11
O23

चरण 3.
सर्वप्रथम हम ऑक्सीजन के परमाणुओं का सन्तुलन करते हैं –

ऑक्सीजन के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में2 (O2 में)3 (SO2 तथा H2O में)
सन्तुलन के लिए2×33×2

अत: इस गणना के उपरान्त समीकरण निम्नवत् होगा –
H2S (g) + 3O2 (g) → 2SO2 (g) +2H2O (l)

चरण 4.
चरण 3 में ऑक्सीजन परमाणुओं को सन्तुलित करने के कारण हाइड्रोजन के परमाणु असन्तुलित हो जाते हैं। अतः अब हाइड्रोजन के परमाणुओं को सन्तुलित करते हैं –

हाइड्रोजन के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में2 (H2S में)4(H2O में)
सन्तुलन के लिए2×24

पुनः आंशिक रूप से सन्तुलित समीकरण निम्नवत् त् होगा-.
2H2S (g) + 3O2 (g) →2SO2 (g) + 2H2O (l)

चरण 5. अब सल्फर के परमाणुओं की संख्या देखने पर ज्ञात होता है कि सल्फर के परमाणुओं की संख्या बाएँ व दाएँ पक्षों में बराबर है।
चरण 6. अतः अन्त में उपर्युक्त सन्तुलित समीकरण को – लिख देते हैं
2H2S (g) +3O2 (g) →2SO2 (g) + 2H2O(l)

(c) कथन के अनुसार असन्तुलित रासायनिक समीकरण निम्नवत् है –
BaCl2 (aq) +Al2(SO4)3 (aq) →AICl3 (aq) +BaSO4
इस समीकरण के सन्तुलन के लिए निम्नलिखित चरण अपनाए जाते हैं-

चरण 1.
सर्वप्रथम अभिक्रिया में प्रत्येक सूत्र को बॉक्स में लिख लेते हैं
BaCl2 (aq) + Al2 (SO4)3 (aq) →
AlCl3 (aq) + BaSO4]

चरण 2. विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या के लिए सारणी –

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
Ba11
Cl23
Al21
S31
O124

चरण 3.
इस चरण में हम ऑक्सीजन परमाणुओं को सन्तुलित करेंगे –

ऑक्सीजन के परमाणु ।अभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में12 [AI2(SO4)3, में]4 (BaSO4, में)
सन्तुलन के लिए123×4

उपर्युक्त गणना के उपरान्त आंशिक सन्तुलित समीकरण इस प्रकार होगा-
BaCl2 (aq) + Al2(SO4)3 (aq) → AlCl3 (aq) + 3BaSO4

चरण 4.
अब बेरियम के परमाणुओं की संख्या को सन्तुलन में लाते हैं –

बेरियम के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में1(BaCl2 में)3(BaSO4, में)
सन्तुलन के लिए3 ×13

पुनः आंशिक सन्तुलित समीकरण निम्नवत् होगा
3BaCl2 (aq) + Al2 (SO4)3 (aq) → AlCl3 (aq) + 3BaSO4

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

चरण 5.
इस चरण में हम क्लोरीन परमाणुओं की संख्या को सन्तुलित करेंगे –

क्लोरीन के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में6 (3 BaCl2, में)3(AlCl3, में)
सन्तुलन के लिए63×2

पुनः आंशिक सन्तुलित समीकरण निम्नवत् होगा –
3BaCl2 (aq) + Al2 (SO4)3 (aq) → 2AlCl3 (aq) + 3BaSO4

चरण 6.
दोनों पक्षों में सल्फर व ऐल्युमिनियम की संख्या समान है। अन्ततः दोनों पक्षों में सभी परमाणुओं की संख्या गिनकर हमें ज्ञात होता है कि यह समीकरण पूर्ण रूप से सन्तुलित है। इसे निम्न प्रकार लिखा जा सकता है –
3BaCl2 (aq) + Al2(SO4)3 (aq) → 2AlCl3 (aq) +3BaSO4

(d) कथन के अनुसार रासायनिक समीकरण इस प्रकार है-
K(s) + H2O(l) →KOH(aq) + H2↑ (g)
इस समीकरण के सन्तुलन के लिये निम्नलिखित चरण अपनाये जाते हैं-

चरण 1. सर्वप्रथम अभिक्रिया में प्रत्येक सूत्र को बॉक्स में लिख लेते हैं
K(s) + H2O(l) → KOH(aq) + H2↑(g)

चरण 2.
विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या के लिये सारणी

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं  की संख्या
K11
H23
O11

चरण 3.
इस चरण में हम हाइड्रोजन परमाणुओं को सन्तुलित करेंगे –

हाइड्रोजन के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में2(H2O)3 (KOH) तथा H2
सन्तुलन के लिये2×33×2

अतः इस गणना के उपरान्त समीकरण निम्नवत् होगा –
K(s) + 3H2O → 2KOH(aq) + 2H2(g)

चरण 4.
चरण 3 में हाइड्रोजन परमाणु को सन्तुलित करने के कारण ऑक्सीजन परमाणु असन्तुलित हो जाते हैं। अतः अब ऑक्सीजन परमाणु को सन्तुलित करते हैं –

ऑक्सीजन के परमाणुअभिकारकों मेंउत्पादों में
प्रारम्भ में3(H2O)2(KOH)
सन्तुलन के लिये3×22×3

अतः इस गणना के उपरान्त आंशिक सन्तुलित समीकरण इस प्रकार होगा-.
K(s) + 6H2O(l) → 6KOH(aq) + 3H2(g)

चरण 5.
अब K को सन्तुलित करने पर –
6K(s) + 6HH2O(l)→ 6KOH(aq) + 3HH2(g) ↑

चरण 6.
समीकरण को सरल बनाने के लिये अभिकारक व उत्पाद में 3 से भाग देने पर
2K(s) + 2H2O(l) → 2KOH(aq) + H2(g)↑.
उपरोक्त अभिक्रिया पूर्णतः सन्तुलित है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को सन्तुलित कीजिए
(a) HNO3 +Ca(OH)2 →Ca(NO3)2 +H2O
(b) NaOH + H2SO4 →Na2SO4 +H2O
(c) NaCl+AgNO3 →AgCl+NaNO3
(d) BaCl + H2SO4 → BaSO4 + HCl
उत्तर-
(a)

चरण 1.
सर्वप्रथम प्रत्येक सूत्र के चारों ओर बॉक्स बनाते हैं –
HNO3 + Ca(OH)2 → Ca(NO3)2] + H2O

चरण 2.
समीकरण के तत्वों के परमाणुओं की सूची बनाते हैं –

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
H32
N12
O57
Ca11

चरण 3. नाइट्रोजन तत्व के परमाणुओं को सन्तुलित करने के लिये HNO3 के पूर्व 2 लिखने पर
2HNO3 + Ca(OH)2 →Ca(NO3)2 + H2O

चरण 4. हाइड्रोजन के परमाणुओं को सन्तुलित करने के लिये HO अणुओं का गुणाः 2 से करने पर
2HNO3 + Ca(OH)2 →Ca(NO3)2 + 2H2O.

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चरण 5.
चूँकि अभिकारक एवं उत्पादों में ऑक्सीजन परमाणुओं की संख्या समान अर्थात् 8 है, अतः अभिक्रिया अब पूर्ण रूप से सन्तुलित है।
2HNO3 + Ca(OH)2 →Ca(NO3)2 + 2H2O

(b) सर्वप्रथम अभिक्रिया में प्रत्येक सूत्र को बॉक्स में लिख लेते हैं
NaOH+ H2SO4→Na2SO4 + H2O

चरण 1.
विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या के लिये सारणी –

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
Na12
O55
H32
S11

चरण 2.
उपरोक्त प्रेक्षण से ज्ञात हो रहा है कि अभिक्रिया में ऑक्सीजन तथा सल्फर परमाणुओं की संख्या अभिकारक , व उत्पाद में समान है।
अत: Na के परमाणुओं की संख्या समान करने के लिये NaOH में 2 का गुणा करने पर-
2NaOH + H2SO4 → Na2SO4+ H2O

चरण 3.
हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या को समान करने के लिये H,0 में 2 का गुणा करने पर
2NaOH + H2SO4 →Na2SO4+ 2H2O

चरण 4.
अब अं सीजन परमाणुओं की संख्या दोनों तरफ देखने पर ज्ञात होता है कि यह दाँयी तरफ व बाँयी तरफ समान है। अतः यह अभिक्रिया एक सन्तुलित अभिक्रिया है।
2NaOH + H2 → Na2SO4+ 2H2O

(c) कथन के अनुसार असन्तुलित रासायनिक समीकरण निम्न है
NaCl + AgNO3 →AgCl + NaNO3
यह समीकरण पहले से ही सन्तुलित है, इसे सन्तुलित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

(d) कथन के अनुसार असन्तुलित रासायनिक समीकरण निम्न है –
BaCl2 (aq) + H2SO4 (aq) → BaSO4 (aq) + HCl(aq)

चरण 1.
सर्वप्रथम अभिक्रिया में प्रत्येक सूत्र को बॉक्स में लिख लेते हैं –
BaCl2 (aq) + H2SO4 (aq) → BaSO4 (aq) + HCl(aq)

चरण 2.
विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या के लिये सारणी-

तत्वअभिकारकों में परमाणुओं की संख्याउत्पादों में परमाणुओं की संख्या
Ba11
Cl21
H21
S11
O44

देखने पर विदित होता है कि अभिकारकों व उत्पादों में Ba, S व O की संख्या समान है।

चरण 3.
Cl परमाणुओं की संख्या समान करने के लिये HCI में 2 का गुणा करने पर
BaCl2 + H2SO4 →BaSO4 + 2HCl

चरण 4.
देखने पर ज्ञात होता है कि अभिकारकों व उत्पादों में परमाणुओं की संख्या समान है अतः यह अभिक्रिया सन्तुलित है।
BaCl2 + H2SO4→BaSO4 + 2HCl

प्रश्न 7.
निम्न अभिक्रियाओं के लिए सन्तुलित रासायनिक समीकरण लिखिए –
(a) कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड + कार्बन डाइऑक्साइड → कैल्सियम कार्बोनेट + जल
(b) जिंक + सिल्वर नाइट्रेट→ जिंक नाइट्रेट + सिल्वर
(c) ऐलुमिनियम + कॉपर क्लोराइड → ऐलुमिनियम क्लोराइड + कॉपर
(d) बेरियम क्लोराइड + पोटैशियम सल्फेट → बेरियम सल्फेट + पोटैशियम क्लोराइड
उत्तर –
(a) Ca(OH)2+CO2 →CaCO3 + H2O
(b) Zn + 2AgNO3 → Zn(NO3)2 + 2Ag
(c) 2Al+3 CuCl2 → 2AlCl3 +3Cu
(d) BaCl +K2SO4 → BaSO4+2KCl

प्रश्न 8.
निम्न अभिक्रियाओं के लिए सन्तुलित रासायनिक समीकरण लिखिए एवं प्रत्येक अभिक्रिया का प्रकार बताइए-
(a) पोटैशियम ब्रोमाइड (aq) + बेरियम आयोडाइड (aq) → पोटैशियम आयोडाइड (aq) + बेरियम ब्रोमाइड (s)
(b) जिंक कार्बोनेट (s) → जिंक ऑक्साइड (s) + कार्बन डाइऑक्साइड (g)
(c) हाइड्रोजन (g) + क्लोरीन (g) → हाइड्रोजन क्लोराइड (g)
(d) मैग्नीशियम (s) + हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (aq) → मैग्नीशियम क्लोराइड (aq) + हाइड्रोजन (g)
उत्तर –
(a) 2KBr(aq) +BaI2 (aq) →2KI (aq) +BaBr2 (s) (द्विविस्थापन अभिक्रिया)
(b) ZnCO3 (s)→ZnO (s) + CO2 (g) (वियोजन अभिक्रिया)
(c) H2(g) + Cl2 (g) → 2HCl(g) (संयोजन अभिक्रिया)
(d) Mg (s) + 2HCl (aq) → MgCl2 (aq) + H2(g) (विस्थापन अभिक्रिया)

प्रश्न 9.
ऊष्माक्षेपी तथा ऊष्माशोषी अभिक्रियाओं का क्या अर्थ है ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया-वे अभिक्रियाएँ जिनमें ऊष्मा उत्पन्न होती है, ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाएँ कहलाती हैं। उदाहरण के लिए-मेथेन गैस वायु की ऑक्सीजन में जलकर कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प बनाती है। इसमें ऊष्मा भी उत्पन्न होती है।
CH4(g) + 2O2(g) → CO2(g)+22O (g) +ऊष्मीय ऊर्जा
ऊष्माशोषी अभिक्रिया-वे अभिक्रियाएँ जिनमें ऊष्मा का अवशोषण होता है, ऊष्माशोषी अभिक्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण के लिए-हाइड्रोजन तथा आयोडीन के संयोग से हाइड्रोजन आयोडाइड का बनना ऊष्माशोषी अभिक्रिया है।
H2 +I2 → 2 HI – ऊष्मा

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प्रश्न 10.
श्वसन को ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया क्यों कहते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
श्वसन की प्रक्रिया में ऊर्जा निर्मुक्त होती है। श्वसन के दौरान, हमारे शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज (भोजन के पाचन से प्राप्त) वायु की ऑक्सीजन से संयुक्त होकर कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनाने के साथ-साथ ऊर्जा को उत्सर्जित करता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 1

प्रश्न 11.
वियोजन अभिक्रिया को संयोजन अभिक्रियाओं के विपरीत क्यों कहा जाता है? इन अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए।
उत्तर-
संयोजन अभिक्रिया में दो या दो से अधिक पदार्थ परस्पर संयोग करके एक नया पदार्थ बनाते हैं, जैसे
C(s)+O2 (g) → CO2(g)
तथा वियोजन अभिक्रिया में एक ही यौगिक विखण्डित होकर दो या दो से अधिक सरल पदार्थ बनाता है, जैसे कैल्सियम कार्बोनेट को गर्म करने पर वह वियोजित होकर कैल्सियम ऑक्साइड तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनाता है।
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इस प्रकार वियोजन अभिक्रिया, संयोजन अभिक्रिया के विपरीत है।

प्रश्न 12.
उन वियोजन अभिक्रियाओं के एक-एक समीकरण लिखिए जिनमें ऊष्मा, प्रकाश एवं विद्युत के रूप में ऊर्जा प्रदान की जाती है।
उत्तर-
(i) ऊष्मा के रूप में-कैल्सियम कार्बोनेट को गर्म करने पर यह अपघटित होकर कैल्सियम ऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड देता है।
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(ii) प्रकाश के रूप में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सिल्वर क्लोराइड का सिल्वर तथा क्लोरीन में वियोजन हो जाता है।
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(iii) विद्युत के रूप में-जब अम्लीकृत जल का वैद्युत अपघटन किया जाता है, वह अपघटित होकर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बनाता है।
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प्रश्न 13.
विस्थापन एवं द्विविस्थापन अभिक्रियाओं में क्या अन्तर है ? इन अभिक्रियाओं के समीकरण लिखिए।
उत्तर-
(i) विस्थापन अभिक्रिया-ऐसी अभिक्रिया जिसमें किसी यौगिक के अणु के किसी एक परमाणु अथवा समूह (मूलक) के स्थान पर कोई दूसरा परमाणु अथवा समूह (मूलक) आ जाता है।
उदाहरण –
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(ii) द्विविस्थापन अभिक्रिया-वह अभिक्रिया जिसमें आयनों का परस्पर विस्थापन होता है, द्विविस्थापन अभिक्रिया कहलाती है।
उदाहरण –
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प्रश्न 14.
सिल्वर के शोधन में, सिल्वर नाइट्रेट के विलयन से सिल्वर प्राप्त करने के लिए कॉपर धातु द्वारा विस्थापन किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर –
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प्रश्न 15.
अवक्षेपण अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
अवक्षेपण अभिक्रिया-ऐसी अभिक्रियाएँ जिनमें उत्पाद अविलेय अवस्था में प्राप्त होकर विलयन में नीचे स्थिर हो जाता है, अवक्षेप कहलाता है, तथा यह क्रिया अवक्षेपण अभिक्रिया कहलाती है।
उदाहरण –
Na2SO4 (aq) + BaCl2 (aq) → BaSO4(↓) +2NaCl (aq)

प्रश्न 16.
ऑक्सीजन के योग या ह्रास के आधार पर निम्न पदों की व्याख्या कीजिए। प्रत्येक के लिए दो उदाहरण दीजिए
(a) उपचयन
(b) अपचयन।
उत्तर-
(a) उपचयन-वे अभिक्रियाएँ जिनमें ऑक्सीजन की वृद्धि (योग) होती है, उपचयन अभिक्रियाएँ कहलाती
उदाहरण –
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(b) अपचयन।
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प्रश्न 17.
एक भूरे रंग के चमकदार तत्व ‘X’ को वायु की उपस्थिति में गर्म करने पर वह काले रंग का हो जाता है। इस तत्व ‘X’ एवं उस काले रंग के यौगिक का नाम बताइए।
उत्तर-
तत्व ‘X’ कॉपर (Cu) है। काले रंग का यौगिक कॉपर (II) ऑक्साइड (CuO) है।

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प्रश्न 18.
लोहे की वस्तुओं को हम पेण्ट क्यों करते
उत्तर-
लोहे की वस्तुओं पर जंग उनकी खुली सतह पर ऑक्सीजन एवं नमी के कारण लगती है। लोहे की वस्तुओं की सतह पर पेण्ट लगने से सतह खुली नहीं रहती तथा ऑक्सीजन वस्तु की सतह के सम्पर्क में नहीं आ पाती और वस्तु पर जंग नहीं लगती।

प्रश्न 19.
तेल एवं वसायुक्त खाद्य पदार्थों को नाइट्रोजन से प्रभावित क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
तेल एवं वसायुक्त भोज्य पदार्थों के उपचयन से बचाव हेतु हम इनमें नाइट्रोजन प्रवाहित कर देते हैं। तेल तथा वसा का उपचयन होने पर ये विकृतगन्धी हो जाते हैं तथा इनकी गन्ध एवं स्वाद परिवर्तित हो जाता है। नाइट्रोजन प्रवाहित करने से इस प्रक्रिया को रोका जा सकता है।

प्रश्न 20.
निम्न पदों का वर्णन कीजिए तथा प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए –
(a) संक्षारण,
(b) विकृतगन्धिता।
उत्तर-
(a) संक्षारण-जब किसी धातु की सतह वायु, जल अथवा अपने चारों ओर उपस्थित किसी अन्य पदार्थ द्वारा अभिक्रमित हो जाती है, अथवा इस पर जंग लग जाती है तब इसे संक्षारित वस्तु कहते हैं। यह प्रभाव संक्षारण कहलाता है। उदाहरण के लिए, लोहे पर जंग का लगना।

(b) विकृतगन्धिता-तेल व वसा के उपचयित हो जाने पर ये विकृतगन्धी हो जाते हैं तथा इनकी गन्ध व स्वाद में परिवर्तन हो जाता है। इनमें प्रतिऑक्सीकारक मिलाकर अथवा भोज्य पदार्थों को निर्वातित पात्रों में रखकर अथवा इनमें नाइट्रोजन प्रवाहित करके इस प्रक्रिया को रोका जा सकता है। उदाहरण-आलू की चिप्स की थैलियों में नाइट्रोजन प्रवाहित करके इन्हें उपचयित होने से बचाया जा सकता है।

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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 6)

प्रश्न 1.
वायु में जलाने से पहले मैग्नीशियम रिबन को साफ क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
मैग्नीशियम वायु में उपस्थित ऑक्सीजन से संयोग करके मैग्नीशियम ऑक्साइड बना लेता है। मैग्नीशियम ऑक्साइड व अन्य अशुद्धियों-धूल कण व नमी आदि को हटाकर शुद्ध मैग्नीशियम प्राप्त करने के लिए इसे वायु में जलाने से पहले साफ करना आवश्यक है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए सन्तुलित समीकरण लिखिए
(i) हाइड्रोजन + क्लोरीन → हाइड्रोजन क्लोराइड
(ii) बेरियम क्लोराइड + ऐलुमिनियम सल्फेट बेरियम सल्फेट + ऐलुमिनियम क्लोराइड
(iii) सोडियम + जल → सोडियम हाइड्रॉक्साइड + हाइड्रोजन
उत्तर-
(i) H2+ Cl2 → 2HCl
(ii) 3BaCl2+Al2 (SO4)3 → 3BaSO4 +2AlCl 3
(iii) 2Na + 2H2O → 2NaOH + H2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए उनकी अवस्था के संकेतों के साथ सन्तुलित रासायनिक समीकरण लिखिए-
(i) जल में बेरियम क्लोराइड तथा सोडियम सल्फेट के विलयन अभिक्रिया करके सोडियम क्लोराइड का विलयन तथा अघुलनशील बेरियम सल्फेट का अवक्षेप बनाते हैं।
(ii) सोडियम हाइड्रॉक्साइड का विलयन (जल में) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन (जल में) से अभिक्रिया करके सोडियम क्लोराइड का विलयन तथा जल बनाते
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 21

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 11)

प्रश्न 1.
किसी पदार्थ ‘X’ के विलयन का उपयोग सफेदी करने के लिए होता है।
(i) पदार्थ ‘X’ का नाम तथा इसका सूत्र लिखिए।
(ii) ऊपर (i) में लिखे पदार्थ ‘X’ की जल के साथ अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
(i) पदार्थ ‘X’ का नाम कैल्सियम ऑक्साइड (शुष्क चूना) है, तथा इसका रासायनिक सूत्र Cao है।
(ii) CaO की जल के साथ अभिक्रिया निम्नलिखित
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 22

प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 1.7 में एक परखनली में एकत्रित गैस की मात्रा दूसरी से दोगुनी क्यों है? उस गैस का नाम बताइए।
उत्तर-
क्रियाकलाप 1.7 में जल के विद्युत्-अपघटन की अभिक्रिया निम्नलिखित प्रकार होती है
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 23
इस अभिक्रिया में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन गैस 2 : 1 की मात्रा में प्राप्त होती है। द्रव्यमान संरक्षण के नियमानुसार जब जल के दो अणु अपघटित होते हैं तब उत्पन्न हुई हाइड्रोजन की मात्रा ऑक्सीजन की मात्रा से दोगुनी होती है। अतः एक परखनली में हाइड्रोजन गैस की मात्रा दोगुनी है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 15)

प्रश्न 1.
जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो विलयन का रंग क्यों बदल जाता है ?
उत्तर-
जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो लोहे की कील कॉपर सल्फेट के विलयन में से कॉपर को विस्थापित कर देती है तथा आयरन सल्फेट बनता है। अतः आयरन सल्फेट के विलयन के बनने के कारण विलयन का रंग बदल जाता है तथा लोहे की कील पर भूरे रंग की परत जम जाती है, एवं विलयन का रंग हल्का हरा हो जाता है।
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प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 1.10 से भिन्न द्विविस्थापन अभिक्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
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प्रश्न 3.
निम्न अभिक्रियाओं में उपचयित तथा अपचयित पदार्थों की पहचान कीजिये
(i) 4Na (s) + O2 (g) →2Na2O(s)
(ii) CuO (s) + H2 (g) → Cu(s) + H2 O(l) [राज. 2015]
उत्तर-
(i) 4Na (s) + O2 (g) →2Na2O(s)
इस अभिक्रिया में सोडियम (Na) सोडियम ऑक्साइड (Na2O) में उपचयित या ऑक्सीकृत हो रहा है। इसका अर्थ यह है कि ऑक्सीजन का अपचयन हो रहा है।

(ii) CuO (s) + H2 (g) →Cu (s) + H2O(l)
इस अभिक्रिया में हाइड्रोजन गैस (H2) जल (H2O) में ऑक्सीकृत या उपचयित हो रही है जबकि कॉपर (ii) ऑक्साइड (CuO) का अपचयन कॉपर में हो रहा है|

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क्रियाकलाप 1.1. (पा. पु. पृ. सं. 1)

प्रश्न 1.
आपने क्या प्रेक्षण किया?
उत्तर-
हमने देखा कि मैग्नीशियम रिबन चमकदार श्वेत लौ के साथ जलकर श्वेत चूर्ण में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 2.
यह श्वेत चूर्ण किस यौगिक का है?
उत्तर-
यह श्वेत चूर्ण मैग्नीशियम ऑक्साइड का है। यह वायु में उपस्थित ऑक्सीजन तथा मैग्नीशियम के बीच होने वाली अभिक्रिया के कारण बनता है।

क्रियाकलाप 1.2 (पा. पु. पृ. सं. 2)

प्रश्न 1.
आपको कैसे ज्ञात हुआ कि रासायनिक परिवर्तन हुआ है?
उत्तर-
क्योंकि अभिक्रिया के दौरान अभिकारकों की अवस्था व रंग परिवर्तित हुआ है।

प्रश्न 2.
इस क्रियाकलाप का रासायनिक समीकरण लिखें।
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 11

क्रियाकलाप 1.3 (पा. पु. पृ. सं. 2)

प्रश्न 1.
क्या जस्ते के दानों के आसपास कुछ होता दिखायी दे रहा है?
उत्तर-
हाँ, वहाँ से गैस के बुलबुले उत्पन्न होते दिखाई दे रहे हैं एवं जस्ते के दानों का आकार धीरे-धीरे घटता जा रहा है।

प्रश्न 2.
ये बुलबुले किस गैस के हैं?
उत्तर-
ये बुलबुले हाइड्रोजन गैस के हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

प्रश्न 3.
शंक्वाकार फ्लास्क या परखनली को स्पर्श कीजिए। क्या इसके तापमान में कोई परिवर्तन हो रहा है?
उत्तर-
शंक्वाकार फ्लास्क गर्म हो रहा है। इसका तापमान बढ़ रहा है।

प्रश्न 4.
क्रियाकलापका रासायनिक समीकरण लिखें।
उत्तर-
शब्द समीकरणजस्ता + सल्फ्यूरिक अम्ल → जिंक सल्फेट + हाइड्रोजन रासायनिक समीकरण
Zn(s) + H2SO4 (aq) → ZnSO4(aq) + H2(g)

क्रियाकलाप 1.4 (पा. पु. पृ. सं. 7)

प्रश्न 1.
क्या बीकर के ताप में कोई परिवर्तन हुआ?
उत्तर-
हाँ, बीकर अत्यन्त गर्म हो गया।

प्रश्न 2.
अभिक्रिया का समीकरण लिखें।
उत्तर-
कैल्सियम ऑक्साइड जल के साथ तीव्रता से । अभिक्रिया करके बुझे हुए चूने (कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड) का निर्माण करके अधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न करता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 12

क्रियाकलाप 1.5 (पा. पु. पृ. सं. 8) .

प्रश्न 1.
गर्म करने के पश्चात् क्रिस्टल के रंग में क्या है परिवर्तन होता है?
उत्तर-
गर्म करने से पहले क्रिस्टल का रंग हरा था जो कि गर्म करने के पश्चात् भूरा हो गया ।
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प्रश्न 2.
यह किस प्रकार की वियोजन अभिक्रिया है?
उत्तर-
यह ऊष्मीय वियोजन अभिक्रिया है। ‘

क्रियाकलाप 1.7 (पा. पु. पृ. सं. 9)

प्रश्न 1.
लेड नाइट्रेट को गर्म करने पर क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर-
लेड नाइट्रेट को गर्म करने पर भूरे रंग का धुआँ उत्सर्जित होता है। यह भूरे रंग का धुआँ, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस में बनने के कारण होता है।
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प्रश्न 2.
यह भूरे रंग का धुआँ किस पदार्थ का है?
उत्तर-
यह भूरे रंग का धुआँ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के (NO2) का है।

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क्रियाकलाप 1. 8 (पा. पु. पृ. सं. 10)

प्रश्न 1.
एक जलती हुई मोमबत्ती को परखनलियों के मुख पर ले जाने से क्या होता है?
उत्तर-

  • जिस परखनली में ऑक्सीजन गैस भरी है, उसके मुख पर जलती हुई मोमबत्ती को ले जाने पर यह तेजी से जलने लगती है।
  • जिस परखनली में हाइड्रोजन गैस भरी है, उसके मुख पर जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर यह पॉप-आवाज (POP-SOUND) के साथ जलती है।

प्रश्न 2.
दोनों परखनलियों में कौन सी गैस उपस्थित है?
उत्तर-
एक परखनली में हाइड्रोजन गैस व दूसरी परखनली में ऑक्सीजन गैस भरी हुई है।

प्रश्न 3.
इस प्रकार के अपघटन को क्या कहते हैं?
उत्तर-
इस अपघटन को विद्युत-अपघटन कहते हैं|

प्रश्न 4.
क्या दोनों परखनलियों में एकत्रित गैस का आयतन समान है?
उत्तर-
नहीं, दोनों परखनलियों में एकत्रित गैस का आयतन समान नहीं है।

प्रश्न 5.
किस गैस का आयतन ज्यादा है?
उत्तर-
हाइड्रोजन गैस का आयतन ज्यादा है।

प्रश्न 6.
किस गैस का आयतन कम है?
उत्तर-
ऑक्सीजन गैस का आयतन कम है।

क्रियाकलाप 1.8 (पा. पु. पृ. सं. 10)

प्रश्न 1.
धूसर रंग किस धातु के कारण हो जाता है?
उत्तर-
धूसर रंग सिल्वर धातु के कारण हो जाता है।

प्रश्न 2.
थोड़ी देर पश्चात् सिल्वर क्लोराइड के रंग को देखिए क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर-
सूर्य के प्रकाश में श्वेत रंग का सिल्वर क्लोराइड धूसर रंग का हो जाता है। प्रकाश की उपस्थिति में सिल्वर क्लोराइड का सिल्वर तथा क्लोरीन में वियोजन के कारण से ऐसा होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 15

प्रश्न 3.
यदि सिल्वर ब्रोमाइड को भी कुछ समय के लिये प्रकाश में रखें तो क्या यह भी इसी प्रकार अभिक्रिया करेगा?
उत्तर-
हाँ, यदि सिल्वर ब्रोमाइड को कुछ समय के लिए प्रकाश में रखें तो यह भी धूसर रंग में परिवर्तित हो जाता है जो कि सिल्वर ब्रोमाइड के सिल्वर तथा ब्रोमाइड में वियोजन के कारण होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 16

प्रश्न 4.
सिल्वर ब्रोमाइड के वियोजन की यह अभिक्रिया कहाँ प्रयुक्त होती है?
उत्तर-
सिल्वर ब्रोमाइड के वियोजन की इस अभिक्रिया का प्रयोग श्वेत-श्याम फोटोग्राफी में किया जाता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण

प्रश्न 5.
किस प्रकार की ऊर्जा के कारण यह वियोजन अभिक्रिया होती है?
उत्तर-
प्रकाशीय ऊर्जा के कारण यह वियोजन अभिक्रिया होती है।
यह भी करके देखिये –
एक परखनली में लगभग 2 ग्राम बेरियम हाइड्रॉक्साइड लीजिए अब इसमें लगभग 1 ग्राम अमोनियम क्लोराइड डालकर काँच की छड़ से मिलाइये। अपनी हथेली से परखनली के निचले सिरे को स्पर्श कीजिये। आप क्या अनुभव करते हैं? यह कौन सी अभिक्रिया है?
उत्तर-
बेरियम हाइड्रॉक्साइड एवं अमोनियम क्लोराइड को मिलाने में निम्न अभिक्रिया होती है –
Ba (OH)2(s) + 2NH4Cl(aq) → BaCl2(aq) + 2NH4OH(aq) परखनली को छूने पर हमें ठंड का अनुभव होता है अर्थात् परखनली ठंडी हो जाती है। यह एक द्विविस्थापन एवं ऊष्माशोषी अभिक्रिया है।

क्रियाकलाप 1.9 (पा. पु. पृ. सं. 11)

प्रश्न 1.
परखनली (A) में रखे कॉपर सल्फेट विलयन का रंग क्या है?
उत्तर-
परखनली (A) में रखे कॉपर सल्फेट विलयन का रंग नीला हो जाता है।

प्रश्न 2.
परखनली (B) में रखे कॉपर सल्फेट विलयन का रंग क्या है?
उत्तर-
परखनली (B) में रखे कॉपर सल्फेट विलयन का नीला रंग बहुत हल्का हो जाता है।

प्रश्न 3.
लोहे की कील का रंग भूरा क्यों हो गया?
उत्तर-
लोहे की कील का रंग कॉपर के अवक्षेपण के कारण भूरा हो जाता है।
CuSO4 +Fe → FeSO4 +Cu

प्रश्न 4.
कॉपर सल्फेट के विलयन का नीला रंग मलीन क्यों पड़ गया?
उत्तर-
कॉपर सल्फेट के विलयन का नीला रंग आयरन सल्फेट के बन जाने के कारण मलीन हो गया।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 17

प्रश्न 5.
यह अभिक्रिया किस प्रकार की अभिक्रिया
उत्तर-
यह अभिक्रिया विस्थापन अभिक्रिया है।

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प्रश्न 6.
विस्थापन अभिक्रिया के कुछ अन्य उदाहरण क्या हैं?
उत्तर-
कुछ अन्य उदाहरण
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क्रियाकलाप 1.10 (पा. पु. पृ. सं. 12)

प्रश्न 1.
सफेद अवक्षेप किस पदार्थ का है?
उत्तर-
सफेद अवक्षेप बेरियम सल्फेट (BaSO4) का है।

प्रश्न 2.
अभिक्रिया के लिये सन्तुलित रासायनिक समीकरण दीजिए।
उत्तर-
सन्तुलित रासायनिक समीकरण निम्न है –
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प्रश्न 3.
क्या यह भी एक द्विविस्थापन अभिक्रिया
उत्तर-
हाँ, यह एक द्विविस्थापन अभिक्रिया है।

प्रश्न 4.
अभिक्रिया के दौरान बने सह-उत्पाद सोडियम क्लोराइड का क्या होता है?
उत्तर-
अभिक्रिया के दौरान बना सह-उत्पाद सोडियम क्लोराइड विलयन में ही रहता है।

प्रश्न 5.
द्विविस्थापन अभिक्रियाएँ किन्हें कहते हैं?
उत्तर-
वे अभिक्रियाएँ जिनमें अभिकारकों के आयनों का आदान-प्रदान होता है, द्विविस्थापन अभिक्रियाएँ कहलाती हैं।

क्रियाकलाप 1.11  (पा. पु. पृ. सं. 13)

प्रश्न 1.
कॉपर चूर्ण को गर्म करने पर आपने क्या देखा?
उत्तर-
कॉपर चूर्ण काला पड़ जाता है।

प्रश्न 2.
कॉपर चूर्ण काला क्यों पड़ जाता है?
उत्तर-
क्योंकि कॉपर चूर्ण की सतह पर कॉपर ऑक्साइड (II) की काली पर्त चढ़ जाती है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण 20

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