Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

HBSE 12th Class Sociology भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत के बुनियादी तर्क को स्पष्ट कीजिए। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट के साथ क्यों जुड़ी है?
अथवा
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकीय विषय में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि जनसंख्या में वदधि आर्थिक विकास के सभी स्तरों के साथ जडी होती है तथा हरेक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप के अनुसार चलता है। जनसंख्या वृद्धि के तीन मुख्य स्तर होते हैं। पहले स्तर में जनसंख्या वृद्धि कम होती है क्योंकि समाज कम विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़ा होता है। वृद्धि दर के कम होने का कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर काफ़ी ऊँची होने के कारण कम अंतर होता है। तीसरे चरण में भी विकसित समाजों में भी जनसंख्या वृद्धि दर कम होती है क्योंकि जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही कम होते हैं।

इसलिए उनमें अंतर भी काफी कम होता है। इन दोनों स्तरों के बीच एक तीसरी संक्रमणकालीन अवस्था होती है जब समाज पिछड़ी अवस्था से उस अवस्था में पहुँच जाता है जब जनसंख्या वृद्धि की दर काफ़ी अधिक होती है। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट से इसलिए जुड़ी होती है क्योंकि मृत्यु दरों को रोग नियंत्रण, स्वास्थ्य सुविधाओं से तेज़ी से नीचे कर दिया जाता है। परंतु जन्म दर इतनी तेजी से कम नहीं होती तथा जिस कारण वृद्धि दर ऊँची हो जाती है। बहुत से देश जन्म दर घटाने को संघर्ष कर रहे हैं परंतु वह कम नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 2.
माल्थस का यह विश्वास क्यों था कि अकाल और महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएँ, जो बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बनती हैं, अपरिहार्य हैं?
अथवा
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकी के सबसे अधिक प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस के नाम से जुड़ा है। माल्थस का कहना था कि जनसंख्या उस दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है जिस दर पर मनुष्य के भरण पोषण के साधन बढ़ सकते हैं। इस कारण ही मनुष्य निर्धनता की स्थिति में रहने को बाध्य होता है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि की दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है। क्योंकि जनसंख्या वृद्धि दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है इसलिए समाज की समृद्धि को एक ढंग से बढ़ाया जा सकता है तथा वह है जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रण में रखा जाए।

या तो मनुष्य अपनी इच्छा से जनसंख्या को नियंत्रण में रख सकते हैं या फिर प्राकृतिक आपदाओं से। माल्थस का मानना था कि अकाल तथा महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएं जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए अपरिहार्य होती हैं। इन्हें प्राकृतिक निरोध कहा जाता है क्योंकि यह ही बढ़ती जनसंख्या तथा खाद्य आपूर्ति के बीच बढ़ते असंतुलन को रोकने का प्राकृतिक उपाय है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 3.
मृत्यु दर तथा जन्म दर का क्या अर्थ है? कारण स्पष्ट कीजिए कि जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है जबकि मृत्यु दर बहुत तेज़ी से गिरती है।
अथवा
जन्म दर तथा मृत्यु दर से क्या अभिप्राय है? जब मृत्यु दर में कमी आती है तो जन्म दर में अपेक्षाकृत गिरावट क्यों हो जाती है?
अथवा
मृत्यु दर क्या है?
उत्तर:
जन्म दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उसे जन्म दर कहते हैं। इसका अर्थ है कि किसी क्षेत्र में एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने बच्चों ने जन्म लिया है।

मृत्यु दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं अर्थात् एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने व्यक्तियों की मृत्यु हुई।

यह सच है कि जन्म दर में गिरावट मृत्यु दर की तुलना में काफ़ी धीमी गति से आती है। इसका कारण यह है कि मृत्यु दर को तो स्वास्थ्य सुविधाओं की सहायता से तथा अकाल, बीमारियों जैसी आपदाओं पर काबू करके आसानी से कम किया जा सकता है परंतु जन्म दर को उतनी तेजी से कम नहीं किया जा सकता। जन्म दर अधिक प्रजनन क्षमता, धार्मिक विचारों, सामाजिक विचारों, निर्धनता, भाग्यवाद, शारीरिक रोगों से मुक्ति इत्यादि के कारण अधिक होती है तथा लोगों के विचारों को बदलना बेहद मुश्किल होता है। वे सोचते हैं कि बच्चे तो भगवान ने दिए हैं इसलिए वह ही पाल लेगा। इसलिए जन्म दर उतनी तेज़ी से कम नहीं होती जितनी तेज़ी से मृत्यु दर कम होती है।

प्रश्न 4.
भारत में कौन-से राज्य जनसंख्या संवृद्धि के प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त कर चुके हैं अथवा प्राप्ति के बहुत नज़दीक हैं? कौन-से राज्यों में अब भी जनसंख्या संवृद्धि की दरें बहुत ऊँची हैं? आपकी राय में इन क्षेत्रीय अंतरों के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
प्रतिस्थापन स्तर का अर्थ है हरेक जोड़े अर्थात् पति पत्नी द्वारा दो बच्चों को जन्म देना। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त कर चुके हैं वे हैं तमिलनाडु, त्रिपुरा, गोवा, पंजाब, केरल, जम्मू कश्मीर, नागालैंड इत्यादि हैं। जिन राज्यों में जनसंख्या संवृद्धि की दरें अभी भी बहुत ऊँची हैं वे बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि हैं। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त करने के नज़दीक हैं वे हैं : महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, कर्नाटक, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि।

प्रतिस्थापन स्तरों तथा जनसंख्या संवदधि की दरों में अंतरों के क्षेत्रीय कारण हो सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं-
(i) अगर जनता साक्षर है तो उनकी सोच सकारात्मक होगी। परंतु अगर जनसंख्या अनपढ़ है तो उनकी सोच नकारात्मक होगी तथा उनमें अज्ञानता होगी। जो राज्य साक्षर हैं वहां संवृद्धि दर कम हैं तथा जहां अनपढ़ लोग अधिक हैं वहां संवृद्धि दर अधिक है।

(ii) हरेक राज्य की अपनी-अपनी रूढ़ियां तथा संस्कार होते हैं जो इस संवृद्धि दर तथा प्रतिस्थापन दर को प्रभावित करते हैं।

(iii) बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अधिक बच्चे पैदा करने के समर्थक हैं तथा वह किसी विशेष राज्य में पाए जाते हैं। इस कारण भी अलग-अलग क्षेत्रों की दरों में अंतर होता है।

(iv) हरेक क्षेत्र की सामाजिक सांस्कृतिक संरचना तथा साक्षरता की दर अलग-अलग होती है तथा इसका भी संवृद्धि दर पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या की आयु संरचना का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास और संवृद्धि के लिए उसकी क्या प्रासंगिकता है?
अथवा
जनसंख्या की आयु संरचना पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु संरचना का अर्थ है कि कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात क्या है। इसमें तीन आयु वर्ग लिए जाते हैं तथा वे हैं-

  • 0-14 वर्ष
  • 1 5-59 वर्ष तथा
  • 60 वर्ष से ऊपर।

पहले वर्ग में बच्चे अर्थात् आश्रित वर्ग होते हैं। दूसरे वर्ग में युवाओं को कार्यशील वर्ग कहते हैं तथा तीसरे वर्ग अर्थात् बुर्जुगों को पराश्रितता जनसंख्या कहते हैं। आगे दी गई सारणी से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष           आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
1961411006100
1971421005100
1981401006100
1991381007100
2001341007100
201129.71005.5100

इस सारणी से पता चलता है कि हमारे देश में कार्यशील वर्ग के लोग सबसे अधिक हैं। 1961-2001 तक के समय में यह अधिक ही रहे हैं। इसके बाद आश्रित वर्ग अर्थात् बच्चे आते हैं। चाहे इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। सबसे अंत में पराश्रितता वर्ग अर्थात बुजुर्ग लोग आते हैं। हमारे देश में जीवन प्रत्याशा 66 वर्ष के लगभग है जिस कारण इनकी संख्या कम है।

आर्थिक विकास तथा संवृद्धि में जनसंख्या की आयु संरचना की प्रासंगिकता (Importance of Age Structure in Economic Development and Growth) इसका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) ऊपर दी गई सारणी से हमें पता चलता है कि 0-14 वर्ष की आयु वर्ग में 1961 के बाद से लगातार कमी हो रही है। इसका कारण है कि 1976 के बाद से राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को लागू किया गया तथा जनता को कम जनसंख्या के फायदों का पता चल गया है।

(ii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि 60 वर्ष से अधिक आय के लोगों की संख्या बढ़ रही है। इससे हमें यह पता चलता है कि हमारे देश में जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि देश में प्रगति हो रही है तथा स्वास्थ्य सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं जिससे 60 वर्ष से अधिक लोग लंबा जीवन जी रहे हैं।

(iii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि कार्यशील जनसंख्या अर्थात् युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। वे तरक्की करने में लगे हुए हैं जिससे देश की प्रगति हो रही है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 6
स्त्री-पुरुष अनुपात का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों की बजाए बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी राय में इस पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
अथवा
भारत में गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के कारण दीजिए।
अथवा
स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट आने के कारण बताइए।
उत्तर:
किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों के पीछे मिलने वाली स्त्रियों की संख्या के अनुपात को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं। स्त्री-पुरुष अनुपात जनसंख्या में लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो स्त्री-पुरुष अनुपात स्त्रियों के पक्ष में रहा है परंतु पिछली एक शताब्दी में भारत में यह गिरता चला जा रहा भी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 972 था परंता 21वीं शताब्दी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 933 हो गया है। यह गिरता अनुपात समाज के लिए काफ़ी चिंता का विषय बना हुआ है।

जी हाँ, यह सच है कि आज भी माता-पिता बेटियों के स्थान पर बेटों को अधिक पसंद करते हैं। आज भी भ्रूण हत्या होती है, बेटा प्राप्त करने के लिए बलि दी जाती है, तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं ताकि बेटा प्राप्त किया जा सके। यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस बात का निर्धनता से कम संबंध होता है बल्कि इसका अधिक संबंध तो सामाजिक सांस्कृतिक कारकों के साथ होता है। लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि-
(i) सबसे पहला कारण तो धर्म ही है। धर्म यह कहता है कि व्यक्ति को मृत्यु के बाद तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि उसकी चिता को उसका बेटा अग्नि न दे। इसके साथ ही धर्म में कुछ संस्कार ऐसे दिए गए हैं जिनमें बेटे की आवश्यकता है। इन सभी के कारण लोग लड़के को अधिक पसंद करते हैं।

(ii) अकसर लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़का न हुआ तो उसके साथ ही उसके खानदान का नाम समाप्त हो जाएगा क्योंकि लड़की तो विवाह के बाद अपने पति के घर चली जाएगी। उसके खानदान को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी न होगा। इस प्रकार खानदान को आगे बढ़ाने की इच्छा लोगों को लड़का प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।

(iii) कई लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़की हुई तो उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा तथा विवाह के पश्चात् भी बहुत कुछ देना पड़ेगा। इसमें बहुत सा खर्चा होगा परंतु लड़के के साथ तो दहेज आएगा। इस प्रकार खर्चा बचाने के लिए अथवा निर्धनता के कारण भी लोग लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करते हैं।

भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना HBSE 12th Class Sociology Notes

→ अगर हम जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत की स्थिति देखें तो इसमें भारत का स्थान दूसरा है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 121 करोड़ के करीब लोग रहते हैं।

→ जनसंख्या के व्यवस्थित अध्ययन को जनसांख्यिकी कहते हैं। जनसांख्यिकी शब्द का अर्थ है लोगों का वर्णन। जनसांख्यिकी विषय के अंतर्गत जनसंख्या से संबंधित अनेक प्रवृत्तियों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे जनसंख्या के आकार में परिवर्तन, जन्म, मृत्यु तथा प्रवसन के स्वरूप, तथा जनसंख्या की संरचना और गठन अर्थात् उसमें स्त्रियों, पुरुषों और विभिन्न आयु वर्ग के लोगों का क्या अनुपात है।

→ जनसांख्यिकी कई प्रकार की होती है, जैसे आकारिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के आकार अर्थात् मात्रा का अध्ययन किया जाता है तथा सामाजिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक पक्षों पर विचार किया जाता है।

→ जनसांख्यिकी का अध्ययन समाजशास्त्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। समाजशास्त्र के उद्भव तथा एक अलग अकादमिक विषय के रूप में इसकी स्थापना का क्षेत्र काफ़ी हद तक जनसांख्यिकी को ही जाता है। वैसे भी जनसांख्यिकीय आँकड़े राज्य की नीतियों, विशेष रूप से आर्थिक विकास और सामान्य जन कल्याण संबंधी नीतियाँ बनाने और कार्यान्वित करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

→ जनसांख्यिकी के प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस रोबर्ट माल्थस ने दिया था। उनका सिद्धांत एक निराशावादी सिद्धांत था। उनके अनुसार समृद्धि को बढ़ाने का एक ढंग यह है कि जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने दो प्रकार के ढंग दिए हैं जिनसे जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। पहला है कृत्रिम निरोध जिन्हें व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण करके जनसंख्या कम कर सकता है।

→ दूसरा है प्राकृतिक निरोध अर्थात् अकालों तथा बीमारियों से जनसंख्या वृद्धि का रुकना। जनसांख्यिकीय विषय में एक अन्य उल्लेखनीय सिद्धांत है-जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत। इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के समग्र स्तरों से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है।

→ जनसांख्यिकीय में बहुत सी संकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है जैसे कि प्राकृतिक वृद्धि दर, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रजनन दर, जन्म दर, मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, स्त्री पुरुष अनुपात, आयु संरचना, पराश्रितता अनुपात जनसंख्या इत्यादि। इन सभी का वर्णन आगे अध्याय में दिया गया है।

→ भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। 2011 में इसकी आबादी 121 करोड़ के लगभग थी। भारत में जनसंख्या संवृद्धि दर हमेशा बहुत ऊँची नहीं रही है। अगर हम भारत सरकार द्वारा प्रकाशित चार्ट को देखें तो यह अधिकतम 2.22% रही है। इस चार्ट को देखने से ही स्पष्ट हो जाएगा कि संवदधि दर कितनी है।

वर्षकुल जनसंख्या (लाखों में)औसत वार्षिक संवृद्धि दर
19513611.25
19614391.96
19715482.22
19816832.20
19918462.14
200110281.93
201112101.8

इस चार्ट को देखने से पता चलता है कि 1971 के बाद से यह लगातार कम हो रही है।

→ स्वतंत्रता से पहले हमारे देश में जन्म दर तथा मृत्यु दर में कोई अधिक अंतर नहीं था क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं। अगर जन्म दर अधिक थी तो मृत्यु दर भी अधिक थी। इसलिए अधिक जनसंख्या नहीं बढ़ती थी। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने से मृत्यु दर तो अप्रत्याशित रूप से कम हो गई परंतु जन्म दर इतनी अधिक कम न हुई। इसलिए दोनों में अंतर बढ़ता जा रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ भारत की जनसंख्या बहुत जवान है अर्थात् अधिकांश भारतीय युवावस्था में हैं तथा यहां की आयु का औसत भी अधिकांश अन्य देशों की तुलना में कम है। निम्न सारणी देखने से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष                      आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
196141536100
197142535100
198140546100
199138567100
200134597100
201129.764.95.5100

→ इस प्रकार इस सारणी से यह स्पष्ट है कि भारत में 15-59 वर्ष की आयु में सबसे अधिक लोग होते हैं। उससे कम 0-14 वर्ष की आयु के लोग आते हैं तथा 60 वर्ष से अधिक लोग सबसे कम हैं। इसका कारण यह है कि भारत में आयु प्रत्याशा 63 वर्ष के करीब है।

→ स्त्री पुरुष अनुपात जनसंख्या में लैंगिक या लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। स्त्री पुरुष अनुपात का अर्थ है कि किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। सन् 2011 में स्त्री पुरुष अनुपात 1000 : 940 था। स्त्रियों की कम होती संख्या का सबसे बड़ा कारण लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा है।

→ अगर जनता शिक्षित होगी तो उन्हें जनसंख्या के अधिक होने के दुष्परिणामों के बारे में पता होगा तथा वह जनसंख्या को कम रखने का प्रयास करेंगे। इसलिए जनसंख्या कम करने में शिक्षा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सापान बन सकती है।

→ मुख्यतः भारत एक ग्रामीण देश है जहां की लगभग 72% जनसंख्या अभी भी गांवों में रहती है। केवल 28% जनसंख्या ही शहरों में रहती है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह लगभग 11% थी जोकि एक ही शताब्दी में लगभग ढाई गुना बढ़ गई है। नीचे दी गई सारणी से हमें इसका पता चल जाता है-

वर्षजनसंख्या(दस लाख में)कुल जनसंख्या का प्रतिशत
त्रामीणनगरीयग्रामीणनगरीय
19012132689.210.8
19112262689.710.3
19212232888.811.2
19312463388.012.0
19412754486.113.9
19512996282.717.3
19613607982.018.0
197143910980.119.9
198152415976.723.3
199162921874.325.7
200174328672.227.8
201183337768.8431.16

इस सारणी को देखकर पता चलता है कि स्वतंत्रता के पश्चात् नगरीय जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।

→ जनसंख्या संवृद्धि दर (Growth Rate of Population)-जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच का अंतर। जब यह अंतर शून्य होता है तब हम कह सकते हैं कि जनसंख्या स्थिर हो गई है।

→ प्रजनन दर (Fertility Rate)-बच्चे पैदा करने वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या।

→ शिश मत्य दर (Infant Mortality Rate)-यह उन बच्चों की मत्य की संख्या दर्शाती है जो जीवित पैदा हुए 1000 बच्चों में से एक वर्ष की आयु प्राप्त होने से पहले ही मौत के मुँह में चले जाते हैं।

→ स्त्री-परुष अनपात (Sex Ratio)-यह अनपात यह दर्शाता है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या क्या है।

→ जनसंख्या की आयु संरचना (Age Structure of Population)-कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात। आयु संरचना विकास के स्तरों और औसत आयु संभाविता के स्तरों में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार बदलती रहती है।

→ पराश्रितता अनुपात जनसंख्या (Dependency Ratio)-यह जनसंख्या के पराश्रित और कार्यशील हिस्सों को मापने का साधन है। पराश्रित वर्ग में बुजुर्ग लोग तथा छोटे बच्चे आते हैं। कार्यशील वर्ग में 15-64 वर्ष की आयु के लोग आते हैं।

→ जनसंख्या घनत्व (Population Density)-किसी विशेष क्षेत्र के प्रति वर्ग कि० मी० क्षेत्रफल में रहने वाले लोगों की संख्या।

→ जन्म दर (Birth Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति 1000 जनसंख्या के पीछे जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ मृत्यु दर (Death Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या।

→ जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)-जनसंख्या का लगातार बढ़ना जनसंख्या वृद्धि होता है।

→ ग्रामीण समुदाय (Rural Society)-प्रकृति से निकटता वाला समुदाय जिसमें प्राथमिक संबंधों की बहुलता होती है, कम जनसंख्या, सामाजिक एकरूपता, गतिशीलता का अभाव तथा कृषि मुख्य व्यवसाय होता है।

→ नगरीय समुदाय (Urban Society)-वह समुदाय जो प्रकृति से दूर रहता है, जहां अधिक जनसंख्या, पेशों की भरमार, अधिक गतिशीलता, द्वितीय संबंध होते हैं तथा वहां 75% से अधिक लोग गैर-कृषि कार्यों में लगे होते हैं।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Exercise 4.3

प्रश्न 1.
दो चरों वाले निम्नलिखित रैखिक समीकरणों में से प्रत्येक का आलेख खींचिए :
(i) x + y = 4
(ii) x – y = 2
(iii) y = 3k
(iv) 3 = 2x + y
हल :
(i) यहां पर,
x + y = 4
⇒ y = 4 – x

X123
y321

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 1

(ii) यहां पर,
x – y = 2
⇒ x = 2 + y

X123
y– 101

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 2

(iii) यहां पर,
y = 3x

x-1012
y-3036

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 3

(iv) यहां पर,
3 = 2x + y
y = – 2x + 3

X123
y1– 1– 3

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 4

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 2.
बिंदु (2, 14) से होकर जाने वाली दो रेखाओं के समीकरण लिखिए। इस प्रकार की और कितनी रेखाएं हो सकती हैं, और क्यों?
हल :
बिंदु (2,14) से होकर जाने वाली दो रेखाओं की समीकरणें निम्नलिखित हैं.
(i) 7x – y = 0
(ii) x + y = 16
इस प्रकार के अनंतः अनेक समीकरण लिखे जा सकते हैं क्योंकि एक बिंदु से होती हुई अनंतः अनेक रेखाएं खींची जा सकती हैं।

प्रश्न 3.
यदि बिंदु (3) समीकरण 3y = ax + 7 के आलेख पर स्थित है, तो a का मान ज्ञात कीजिए।
हल :
क्योंकि बिंदु (3, 4) समीकरण 3y = ax + 7 के आलेख पर स्थित है इसलिए यह इसका हल है।
अतः x = 3, y = 4 समीकरण में रखने पर हमें प्राप्त होता है
3(4) = a(3) + 7
या 12 = 3a + 7
या 12 – 7 = 3a
या 5 = 3a
या a = \(\frac {5}{3}\) उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 4.
एक नगर में टैक्सी वा किराया निम्नलिखित है : [B.S.E.H. March, 2017]
पहले किलोमीटर का किराया 8 रुपये है और उसके बाद की दूरी के लिए प्रति किलोमीटर का किराया 5 रुपये है। यदि तय की गई दूरी x किलोमीटर हो, और कुल किराया y रुपये हो, तो इसका एक रैखिक समीकरण लिखिए और उसका आलेख खींचिए।
हल :
यहां पर,
पहले 1 कि०मी० के लिए टैक्सी का किराया = 8 रुपये
अगले प्रति कि०मी० के लिए टैक्सी का किराया = 5 रुपये
कुल दूरी = x कि०मी०
कुल किराया = y रुपये
प्रश्नानुसार,
8 × 1 + 5 × (x – 1) = y
या 8 + 5x – 5 = y
या 5x + 3 = y
उचित रैखिक समीकरण है,
या 5x – y + 3 = 0
⇒ y = 5x + 3

X01– 1
y38– 2

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 5

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आलेखों में से प्रत्येक आलेख के लिए दिए गए विकल्पों से सही समीकरण का चयन कीजिए:
आकृति I के लिए
(i) y = x
(ii) x + y = 0
(iii) y = 2x
(iv) 2 + 3y = 7x

आकृति II के लिए
(i) y = x + 2
(ii) y = x – 2
(iii) y = -x + 2
(iv) x + 2y = 6
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 6
हल :
आकृति I की ग्राफ रेखा पर बिंदु (-1, 1), (0, 0) तथा (1, -1) दिए हुए हैं। जांच करने पर ये तीनों बिंदु समीकरण x + y = 0 को संतुष्ट करते हैं।
इसलिए इस ग्राफ का समीकरण x + y = 0 है।
जांच:
x + y = 0
(0, 0) के लिए
0 + 0 = 0
⇒ 0 = 0

x + y = 0
(-1, 1) के लिए
– 1 + 1 = 0
⇒ 0 = 0

x + y = 0
(1, -1) के लिए
-1 + 1 = 0
⇒ 0 = 0

आकृति II की ग्राफ रेखा पर बिंदु (-1, 3), (0, 2) तथा (2,0) दिए हुए हैं। जांच करने पर यह तीनों बिंदु समीकरण y = -x + 2 को संतुष्ट करते हैं।
इसलिए इस ग्राफ का समीकरण y = -x + 2 है।
जांच: y = -x + 2
(-1, 3) के लिए
3 = -(-1) + 2
या 3 = 1 + 2
या 3 = 3

y = -x + 2
(0, 2) के लिए
2 = -0 + 2
या 2 = 2

y = – x + 2
(2, 0) के लिए
0 = -2 + 2
या 0 = 0

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 6.
एक अचर बल लगाने पर एक पिंड द्वारा किया गया कार्य पिंड द्वारा तय की गई दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है। इस कवन को दो चरों वाले एक समीकरण के रूप में व्यक्त कीजिए और अचर बल 5 मात्रक लेकर इसका आलेख खींचिए। यदि पिंड द्वारा तय की गई दूरी (i) 2 मात्रक, (ii) 0 मात्रक हो, तो आलेख से किया हुआ कार्य ज्ञात कीजिए।
हल :
माना पिंड द्वारा चली गई दूरी = x मात्रक
व पिंड द्वारा किया गया कार्य = y मात्रक
प्रश्नानुसार,
y ∝ r
⇒ y = kx
(यहां पर k समानुपात को हटाने का मान है तथा इसे स्थिरांक कहा जाता है)
क्योंकि k = 5 (दिया है)
∴ y = 5x

X21-1
y105-5

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 7
(i) यदि वस्तु द्वारा चली गई दूरी (x) = 2 मात्रक
वस्तु द्वारा किया गया कार्य (y) = 10 मात्रक उत्तर
(ii) यदि वस्तु द्वारा चली गई दूरी (x) = 0 मात्रक
वस्तु द्वारा किया गया कार्य (y) = 0 मात्रक उत्तर

प्रश्न 7.
एक विद्यालय की कक्षा IX की छात्राएं यामिनी और फातिमा ने मिलकर भूकंप पीड़ित व्यक्तियों की सहायता लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में 100 रुपये अंशदान दिया। एक रैखिक समीकरण लिखिए जो इन आंकड़ों को संतुष्ट करती है। (आप उनका अंशदान x रुपये और y रुपये मान सकते हैं)। इस समीकरण का आलेख खींचिए।
हल:
माना यामिनी द्वारा दिया गया धन = x रुपये
तथा फातिमा द्वारा दिया गया धन = y रुपये
प्रश्नानुसार,
x + y = 100
⇒ y = 100 – x

X204060100
y8060400

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 8

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 8.
अमरीका और कनाडा जैसे देशों में तापमान फारेनहाइट में मापा जाता है, जबकि भारत जैसे देशों में तापमान सेल्सियस में मापा जाता है। यहां फारेनहाइट को सेल्सियस में रूपांतरित करने वाला एक रैखिक समीकरण दिया गया है।
F = (\(\frac {9}{5}\))C + 32
(i) सेल्सियस को x-अक्ष और फारेनहाइट को y-अक्ष मानकर ऊपर दिए गए रैखिक समीकरण का आलेख खींचिए।
(ii) यदि तापमान 30°C है, तो फारेनहाइट में तापमान क्या होगा?
(iii) यदि तापमान 95° F है, तो सेल्सियस में तापमान क्या होगा?
(iv) यदि तापमान 0°C है, तो फारेनहाइट में तापमान क्या होगा? और यदि तापमान 0°F है, तो सेल्सियस में तापमान क्या होगा?
(v) क्या ऐसा भी कोई तापमान है जो फारेनहाइट और सेल्सियस दोनों के लिए संख्यात्मकतः समान है? यदि हाँ, तो उसे ज्ञात कीजिए।
हल :
(i) सेल्सियस तापमान को x-अक्ष और फारेनहाइट तापमान को -अक्ष पर दर्शाने पर,
F = (\(\frac {9}{5}\))C + 32

C0– 40– 25
F32– 40– 13

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 4 दो चरों वाले रैखिक समीकरण Ex 4.3 - 9

(ii) यहां पर C = 30°C
∴ F = \(\frac {9}{5}\) × 30 + 32 = 54 +32 = 86°F उत्तर

(iii) यहां पर F = 95°F
∴ 95 = (\(\frac {9}{5}\)) × C + 32
या \(\frac {9}{5}\)C = 95 – 32
या \(\frac {9}{5}\)C = 63
या C = 63 × \(\frac {5}{9}\) = 35°C उत्तर

(iv) यहां पर C = 0°
∴ F = (\(\frac {9}{5}\))(o) + 32 = 32°F उत्तर
यदि, F = 0°
∴ 0 = (\(\frac {9}{5}\)) × C + 32
या \(\frac {9}{5}\)C = – 32
या C =
c = 63 x 2 – 35°C उत्तर c = 00 F- 2)(0) + 32 = 32°F उत्तर F = 0° 0 = ()xc+32
c = \(\frac{-32 \times 5}{9}=\frac{-160}{9}\) = – 17.8°C (लगभग) उत्तर

(v) माना
C = F = x°
∴ x = \(\frac {9}{5}\)x + 32
या 5x = 9x + 160
या 5x – 9x = 160
या – 4x = 160
या x = \(\frac {160}{-4}\) = – 40
अतः – 40° पर फारेनहाइट और सेल्सियस दोनों के मान समान होंगे।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Exercise 2.3

प्रश्न 1.
x3 + 3x2 + 3x + 1 को निम्नलिखित से भाग देने पर शेषफल ज्ञात कीजिए
(i) x + 1
(ii) x – \(\frac {1}{2}\)
(iii) x
(iv) x + π
(v) 5 + 2x
हल :
यहाँ पर
P(x) = x3 + 3x2 + 3x + 1
(i) x + 1 का शून्यक – 1 है
p(-1) = (-1)3 + 3 (-1)3 + 3 (-1) + 1
= – 1 + 3(1) + 3(-1) + 1
= – 1 + 3 – 3 + 1
= 4 – 4 = 0
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 + 3x2 + 3x + 1 को x + 1 से भाग देने पर शेषफल 0 (शून्य) प्राप्त होता है। उत्तर

(ii) x – \(\frac {1}{2}\) का शून्यक \(\frac {1}{2}\) है
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3 - 1
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 + 3x2 + 3x + 1 को x – \(\frac {1}{2}\) से भाग देने पर शेषफल \(\frac {27}{2}\) प्राप्त होता है। उत्तर

(iii) x का शून्यक 0 है
p(0) = (0)3 + 3 (0)2 + 3 (0) + 1
= 0 + 0 + 0 + 1
= 1
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 + 3x2 + 3x + 1 को x से भाग देने पर शेषफल 1 प्राप्त होता है। उत्तर

(iv) x + π का शून्यक -π है
p(-π) = (-π)3 + 3 (-π)2 + 3 (-π) + 1
= -π3 + 3 (π2) – 3π + 1
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 + 3x2 + 3x + 1 को x + π से भाग देने पर शेषफल – π3 + 3π2 – 3π + 1 प्राप्त होता है। उत्तर

(v) 5 + 2x का शून्यक \(\frac {-5}{2}\) है
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3 - 2
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 + 3x2 + 3x + 1 को 5 + 2x से भाग देने पर शेषफल \(\frac {-27}{8}\) प्राप्त होता है। उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3

प्रश्न 2.
x3 – ax2 + 6x – a को x – a से भाग देने पर शेषफल ज्ञात कीजिए। [B.S.E.H. March, 2020] हल :
माना p(x) = x3 – ax2 + 6x – a
x – a का शून्यक a है
P(a) = (a)3 – a(a)2 + 6(a) – a
= a3 – a3 + 6a – a
= 5a
अतः शेषफल प्रमेय के अनुसार x3 – ax2 + 6x – a को x – a से भाग देने पर शेषफल 5a प्राप्त होता है। उत्तर

प्रश्न 3.
जाँच कीजिए कि 7 + 3x, 3x3 + 7x का एक गुणनखंड है या नहीं।
हल:
माना p (x) = 3x3 + 7x
जब 7 + 3x = 0
या 3x = – 7
या x = \(\frac {-7}{3}\)
अतः
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.3 - 3
क्योंकि p(\(\frac {-7}{3}\)) ≠ 0
∴ 7 + 3x दिए गए बहुपद 3x3 + 7x का गुणनखंड नहीं है। उत्तर

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HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 5 जैव प्रक्रम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very ShortAnswer Type Questions)

प्रश्न 1.
किन्हीं दो एककोशिक जीवों के नाम लिखिए। (मा.शि.बोर्ड 2012)
उत्तर-अमीबा, पैरामीशियम।

प्रश्न 2. पोषण क्या है ?
उत्तर-
ऊर्जा के स्रोत को भोजन के रूप में शरीर के अन्दर लेना पोषण, कहलाता है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी पर ऊर्जा का अन्तिम स्रोत क्या है ?
उत्तर-
सूर्य।

प्रश्न 4.
कवक अपना भोजन कहाँ से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर-
सड़े-गले मृत कार्बनिक पदार्थों से।

प्रश्न 5.
श्वसन क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा किस रूप में संचित होती है ?
उत्तर-
ATP के रूप में।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 6.
अमीबा में किस प्रकार का पाचन होता है ?
उत्तर-
अमीबा में अन्त:कोशिकीय पाचन होता है।

प्रश्न 7.
मनुष्य के पाचन का प्रकार क्या है ?
उत्तर-
मनुष्य में पाचन बाह्य कोशिकीयं प्रकार का होता है।

प्रश्न 8.
प्रकाश-संश्लेषी जीवाणु में किस प्रकार का पोषण पाया जाता है?
उत्तर-
स्वपोषी।

प्रश्न 9.
परजीवी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ऐसे जीव जो भोजन दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं किन्तु उन्हें मारते नहीं है।

प्रश्न 10.
हमारे शरीर में CO2, का परिवहन किसके द्वारा होता है?
उत्तर-
रुधिर द्वारा बाइकार्बोनेट के रूप में।

प्रश्न 11.
मनुष्य के दो अन्तःपरजीवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
फीताकृमि तथा प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी)।

प्रश्न 12.
पित्त रस का निर्माण कहाँ होता है तथा यह कहाँ एकत्र होता है ?
उत्तर-
पित्त रस का निर्माण यकृत में होता है तथा यह पित्ताशय में एकत्र होता है।

प्रश्न 13.
माँ के रुधिर से भ्रूण को पोषण प्रदान करने वाली संरचना का नाम लिखिए। राज. 2015]
उत्तर-
अपरा (Placenta)।

प्रश्न 14.
रुधिर प्लाज्मा किसका वहन करता है?
उत्तर-
प्लाज्मा, भोजन, CO2, तथा नाइट्रोजनी वर्ण्य पदार्थों का विलीन रूप में वहन करता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 15.
रसारोहण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पौधों में जड़ों द्वारा अवशोषित जल व खनिजों का ऊपर की ओर चढ़ना रसारोहण कहलाता है।

प्रश्न 16.
वृक्क के अतिरिक्त मनुष्य में अन्य उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • यकृत,
  • त्वचा,
  • फेफड़े।

प्रश्न 17.
मछली, मच्छर, केंचुआ तथा कुत्ते के श्वसनांगों के नाम लिखिए।
उत्तर-
मछली-क्लोम, मच्छर-श्वास नलिका, केंचुआ-त्वचा, कुत्ता-फेफड़े।

प्रश्न 18.
वाष्पोत्सर्जन क्या है ?
उत्तर-
पौधे के वायवीय भागों से जल का जलवाष्प के रूप में उड़ना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।

प्रश्न 19.
रन्धों के दो कार्य लिखिए।
उत्तर-

  1. रन्ध्रों के द्वारा गैसों का विनिमय होता है।
  2. रन्ध्रों द्वारा वाष्पोत्सर्जन होता है।

प्रश्न 20.
मनुष्य का रुधिर लाल क्यों दिखाई देता
उत्तर-
मनुष्य का रुधिर हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण लाल दिखाई देता है।

प्रश्न 21.
पौधों की पत्तियाँ हरी क्यों दिखाई देती हैं ?
उत्तर-
पर्णहरित की उपस्थिति के कारण।

प्रश्न 22.
जठर ग्रन्थियाँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर-
आमाशय में।

प्रश्न 23.
पेसमेकर यन्त्र का कार्य लिखिए।
उत्तर-
हृदय गति के असामान्य हो जाने पर पेसमेकर हृदय स्पंदन को नियमित करता है।

प्रश्न 24.
उत्सर्जन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
उपापचय के फलस्वरूप बने नाइट्रोजनी वर्म्य पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाना उत्सर्जन कहलाता है।

प्रश्न 25.
केशिका गुच्छ कहाँ स्थित होता है ?
उत्तर-
बोमैन सम्पुट (Bowman’s capsule) में।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 26.
रन्ध्र कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर-
कोमल तनों एवं पत्तियों पर।

प्रश्न 27.
पौधे के संवहन बण्डल में कौन-से ऊतक पाए जाते हैं ?
उत्तर-
जाइलम तथा फ्लोएम।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सजीवों के चार लक्षण लिखिए।
उत्तर-

  1. सजीव गति करते हैं।
  2. इनमें श्वसन होता है।
  3. ये पोषण एवं पाचन करते हैं।
  4. इनमें वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
पोषण, गैस-विनिमय तथा उत्सर्जन के सन्दर्भ में एक कोशिकीय जीविता क्यों उत्तम है ? ..
उत्तर-
किसी भी एक कोशिकीय जीव की पूरी सतह पर्यावरण के सम्पर्क में रहती है अतः इन्हें भोजन ग्रहण करने के लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए या वयं पदार्थों के निष्कासन के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती है। अतः इनमें ऊर्जा का व्यय भी कम होता है।

प्रश्न 3.
पोषण किसे कहते हैं ? विभिन्न प्रकार की पोषण विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
पोषण-जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा के स्रोत को भोजन के रूप में शरीर के अन्दर लेना पोषण कहलाता है।
पोषण के प्रकार –
I. स्वपोषी पोषण
II. विषमपोषी पोषण
1. मृतोपजीवी पोषण
2. प्राणी समभोजी पोषण
3. परजीवी पोषण
4. सहजीवी पोषण
5. परभक्षी पोषण।

प्रश्न 4.
परपोषी जीव किस प्रकार स्वपोषी जीवों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर-
स्वपोषी (Autotrophic) जीव अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। इसका कुछ भाग तो पौधों द्वारा स्वयं उपयोग कर लिया जाता है और शेष भाग संचित कर लिया जाता है। विषमपोषी अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं करते हैं और स्वपोषियों द्वारा संचित भोजन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 5.
पोषण सभी जीवों के लिए आवश्यक है। क्यों?
अथवा
जीव को भोजन की क्यों आवश्यकता होती हैं?
उत्तर-
सभी जीवों को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। प्रोटीन शरीर की टूट-फूट की मरम्मत के लिए आवश्यक होती है। यह उचित वृद्धि और परिवर्धन के लिए भी आवश्यक है। इसीलिए सभी जीवों के लिए भोजन आवश्यक है।

प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में पित्त रस की क्या भूमिका
अथवा
पित्त रस भोजन को पचाने में किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर-
पित्त रस का स्रावण यकृत से होता है। यह निम्न प्रकार भोजन को पचाने में सहायक है-

  • यह आंत्र में भोजन की अम्लीयता को समाप्त करके माध्यम को क्षारीय बनाता है जिससे कि आंत्र में एन्जाइम भोजन का पाचन कर सके।
  • यह वसा अणुओं को छोटी-छोटी ग्लोब्यूल, में तोड़ देता है जिससे वसाओं का पाचन सुगम हो जाता है।

प्रश्न 7.
प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम में होने वाली मुख्य तीन घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (मा. शि. बोर्ड. राज. 2012)
उत्तर-
प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं-
1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना-यह प्रक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना भाग में होती है। ग्रेना में उपस्थित क्लोरोफिल अणु प्रकाश ऊर्जा अवशोषित करके इलेक्ट्रॉन निष्कासित करते हैं।

2. प्रकाश द्वारा जल के अणुओं का प्रकाशीय अपघटन होता है जिससे ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन आयन बनते हैं। ऑक्सीजन वायुमण्डल में चली जाती है।

3. उपरोक्त दोनों क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न इलेक्ट्रॉन तथा हाइड्रोजन आयनों से परिपाचन पदार्थ का निर्माण होता है जो क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा भाग में कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन कर देता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 8.
पत्ती की अनुप्रस्थ काट के आरेख में उन कोशिकाओं को प्रदर्शित कीजिए जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है ?
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 1

प्रश्न 9.
अमीबा में पोषण की विधि लिखिए। (CBSE 2016)
उत्तर-
एक कोशिकीय जीव होने के कारण अमीबा में भोजन कोशिका की सम्पूर्ण सतह से ग्रहण किया जाता है। यह सूक्ष्म कीटों तथा डायटम्स को खाता है। जल में तैरते हुए भोज्य कण जब अमीबा के सम्पर्क में आते हैं तो अमीबा में पादाभ उत्पन्न हो जाते हैं। ये पादाभ भोजन कण को चारों ओर से घेर लेते हैं और एक रिक्तिका बना लेते हैं जिसे खाद्यधानी कहते हैं। खाद्यधानी में भोजन कणों का पाचन कर लिया जाता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 2

प्रश्न 10.
यकृत के कार्य लिखिए।
उत्तर-
यकृत के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. यकृत पित्त रस का स्रावण करता है, जो आमाशय से आये भोजन को क्षारीय बनाता है, वसा के इमल्सीकरण में सहायक होता है, भोजन को सड़ने से रोकता है एवं आहार नाल में क्रमाकुंचन गति को उद्दीपित करता है।
  2. यकृत ग्लाइकोजन के रूप में भोजन का संचय करता है।
  3. यकृत में ग्लूकोजिनोलाइसिस की क्रिया होती है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन से ग्लूकोज बनता है।
  4. यकृत में ग्लाइकोनियोजेनेसिस की क्रिया होती है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर अमीनो एवं वसीय अम्लों से ग्लूकोज का निर्माण होता है।
  5. यकृत वसा एवं विटामिन्स का संचय करता है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित को किस रूप में संग्रहित किया जाता है?
(i) पौधों में अनुपयोगी कार्बोहाइड्रेट
(ii) मनुष्यों में भोजन से उत्पन्न ऊर्जा। (CBSE 2016)
उत्तर-
(i) पौधों में अनुपयोगी कार्बोहाइड्रेट मंड के रूप में संग्रहित रहता है।
(ii) मनुष्यों में भोजन से प्राप्त ऊर्जा ATP या ADP के रूप में संग्रहित रहती है।

प्रश्न 12.
तालिका के रूप में स्वपोषी पोषण और विषमपोषी पोषण के बीच तीन विभेदनकारी अभिलक्षणों की सूची बनाइए। (CBSE 2019)
उत्तर-

स्वपोषी पोषणविषमपोषी पोषण
(i) भोजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वयं बनाया जाता है।भोजन स्वयं न बनाकर दूसरे जीवों से प्राप्त किया जाता है।
(ii) प्रायः क्लोरोफिल वाले हिस्से में होता है-हरे पौधे एवं शैवाल।क्लोरोफिल का अभाव प्रायः कवक, जन्तुओं एवं कुछ जीवाणुओं में।
(iii) सौर ऊर्जा को रासा यनिक ऊर्जा (भोजन) में बदलते हैं।रासायनिक ऊजां का भोजन के रूप में उपभोग करते हैं।
(iv) भोजन स्टार्च के रूप में संचित होता है।भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है।

प्रश्न 13.
“जैव-विकास तथा जीवों का वर्गीकरण परस्पर सम्बन्धित है।” इस कथन की कारण सहित पुष्टि कीजिए। (CBSE 2017)
उत्तर-
जैव विकास से अभिप्राय, क्रमिक परिवर्तनों द्वारा प्रारम्भिक निम्न कोटि के सरल जीवों से जटिल जीवों की उत्पत्ति है। वर्गीकरण में इन्हीं जीवों को समानता तथा विभिन्नता के आधार पर समूहों और उपसमूहों में रखा जाता है। दो जीवों (प्रजातियों) में जितनी अधिक समानतायें पायी जाती हैं, वह उतनी ही एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं। अतः वर्गीकरण की सहायता से दो जीवों के बीच में सम्बन्ध पता किया जा सकता है। अतः जैव विकास और वर्गीकरण परस्पर सम्बन्धित है।

प्रश्न 14.
जैव-विकास क्या है? इसे प्रगति के समान नहीं माना जा सकता। एक उपयुक्त उदाहरण की सहायता से व्याख्या कीजिए। (CBSE 2017)
उत्तर-
प्रारम्भिक निम्न कोटि के सरल जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा उच्च कोटि एवं जटिल जीवों की उत्पत्ति को जैव-विकास कहते हैं। जैव-विकास को प्रगति के समान नहीं माना जा सकता, क्योंकि जैव-विकास से सरल जीवों से जटिल जीवों की उत्पत्ति/उद्भव होती है परन्तु सरलतम जीव भी जटिल जीवों के साथ अस्तित्व में रहते हैं। उदाहरण के लिए, मानव का विकास चिंपैंजी से नहीं हुआ है, परन्तु दोनों के ही पूर्वज समान थे।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 15.
निश्वसन तथा उच्छवसन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
निश्वसन-वह प्रक्रिया जिसमें वातावरण से वायु अन्दर खींची जाती है, निश्वसन कहलाती है। उच्छवसन-वह प्रक्रिया जिसमें फेफड़ों से वायु बाहर निकाली जाती है, उच्छवसन कहलाती है।

प्रश्न 16.
किसी कीट की प्रत्येक कोशिका में वायु कैसे प्रवेश करती है?
अथवा
कीट किस प्रकार श्वसन करते हैं?
उत्तर-
कीटों में श्वसन वायु नलिकाओं द्वारा होता है जिन्हें देकिया (Trachea) कहते हैं। ट्रेकिया वायु को सीधे ही कोशिकाओं तक पहुँचाती है। वातावरण से वायु ट्रेकिओल्स में प्रवेश करती है जहाँ से यह कोशिकाओं और ऊतकों में पहुँचती है।

प्रश्न 17.
पौधों में श्वसन क्रिया किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
पौधों में ऑक्सी तथा अनॉक्सी दोनों प्रकार का श्वसन पायो जाता है। ऑक्सी श्वसन वायु की उपस्थिति में होता है। इसमें रन्ध्रों द्वारा ऑक्सीजनयुक्त वायु उपरन्ध्रीय गुहा में प्रवेश करती है तथा CO2, युक्त वायु बाहर निकलती है। यह प्रक्रिया पौधों में लगातार होती रहती है जिसमें गैसीय विनिमय दो चरणों में होता है-

  • श्वसनी कोशिकाओं तथा अन्त:कोशिकीय वायु के बीच गैसों का विनिमय।
  • वातावरणीय वायु तथा अन्त:कोशिकीय वायु में विनिमय।

प्रश्न 18.
वातरन्ध्र क्या हैं ? चित्र बनाकर समझाइए।
उत्तर-
वातरन्ध्र (Lenticels)-वातरन्ध्र पौधों के तनों में पाये जाने वाले सूक्ष्म छिद्र हैं जो बाह्य त्वचा के फटने पर बनते हैं और गैसों का विनिमय करते हैं। वातरन्ध्रों के निर्माण के समय कॉर्क कैम्बियम बाहर की ओर कॉर्क न बनाकर पतली भित्ति वाली मृदुतकीय कोशिकाओं को बनाता है जिन्हें पूरक कोशिकाएँ कहते हैं। इन पूरक कोशिकाओं के निर्माण के कारण बाह्य त्वचा टूट जाती है, और वातरन्ध्र बन जाते हैं।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 3

प्रश्न 19.
मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि के दो आधारों को समझाइए।
उत्तर-
मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है-
1. निश्वसन (Inspiration)-वायुमण्डलीय वायु को खींचकर पंकड़ों में भरने की क्रिया निश्वसन कहलाती है। इस क्रिया के लिए मस्तिष्क के श्वसन केन्द्र से उद्दीपन प्राप्त होता है। इसके कारण बाह्य इंटरकास्टल पेशियाँ संकुचित होती हैं जिससे पसलियाँ बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायफ्राम की अरीय पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ जाता है। इसके साथ ही फेफड़े का आयतन भी बढ़ जाता है, फलस्वरूप श्वास मार्ग से होती हुई वायु फेफड़ों में भर जाती है।

2.निःश्वसन (Expiration)-फेफड़ों की वायु का बाहर निकाला जाना नि:श्वसनं कहलाता है। मस्तिष्क के श्वसन केन्द्र से उद्दीपन प्राप्त होने पर अन्तः इंटरकास्टल पेशियाँ, संकुचित डायफ्राम की पेशियाँ शिथिल तथा उदर गुहा की पेशियाँ संकुचित होती हैं, फलस्वरूप वक्षीय गुहा के साथ फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है। अतः फेफड़ों की वायु श्वसन मार्ग से होती हुई बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 20.
निश्वसन तथा निःश्वसन में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
निश्वसन एवं निःश्वसन में अन्तर-

निश्वसन (Inspiration)निःश्वसन (Expiration)
1. इसमें ऑक्सीजन युक्त वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।1. इसमें CO2 युक्त वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है।
2. इसमें बाह्य अन्तरापर्युक पेशियों तथा डायफ्राम की अरीय पेशियों में संकुचन होता है।2. इसमें अन्तः अन्तरापर्शक पेशियों तथा अरीय पेशियों में संकुचन होता है।
3. इसमें डायफ्राम चपटा तथा स्टर्नम नीचे की ओर झुक जाता है।3. इसमें डायफ्राम गुम्बद नुमा तथा स्टर्नम ऊपर खिसक जाता है।
4. इसमें पसलियाँ बाहर और आगे की ओर खिसकती है।4. इसमें पसलियाँ भीतर और पीछे की ओर खिसकती है।
5. इसमें प्लूरल गुहाओं का आयतन बढ़ जाता है।5. इसमें प्लूरल गुहाओं का आयतन कम हो जाता है।

प्रश्न 21.
कठिन व्यायाम का श्वसन दर पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?
उत्तर-
सामान्य अवस्था में मनुष्य की श्वास दर (Breathing rate) 15-18 प्रति मिनट होती है। कठिन परिश्रम या व्यायाम के बाद यह दर बढ़कर 20-25 प्रति मिनट हो जाती है। इसका कारण है कि व्यायाम के समय अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अत्यधिक ऊर्जा प्राप्ति के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसीलिए कठोर व्यायाम के बाद श्वास दर बढ़ जाती है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 22.
प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में अन्तर-

प्रकाश संश्लेषण(Photosynthesis)श्वसन  (Respiration)
1. यह एक सृजनात्मक क्रिया है।1. यह एक विघटनात्मक क्रिया है।
2. यह क्लोरोफिल युक्त पादप कोशिकाओं में होती है।2. यह सभी जीवित भागों में होती है।
3. यह क्रिया सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है।3. इसमें प्रकाश की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं होता।
4. इसमें CO2 ग्रहण की जाती है तथा O2 निकलती4. इसमें O2 ग्रहण की जाती है तथा CO2 निकलती
5. इसमें ऊर्जा अवशोषित की होती है।5. इसमें ऊर्जा उत्सर्जित जाती है।
6. इस क्रिया में शुष्क भार में वद्धि होती है।6. इस क्रिया में शुष्क भार में कमी होती है।

प्रश्न 23.
पौधों में परिसंचरण के सम्बन्ध में वहन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
पत्तियों द्वारा बनाए गए भोजन को पौधे के विभिन्न भागों में पहुँचाने की प्रक्रिया को वहन कहते हैं। यह परिसंचरण की भाँति ही आवश्यक है क्योंकि पौधे के प्रत्येक भाग को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसे पौधे इस भोजन से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 24.
मनुष्य के फेफड़ों का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
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प्रश्न 25.
धमनी एवं शिरा में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
धमनी एवं शिरा में अन्तर-

धमनी (Arteries)शिरा (Veins)
1. ये मोटी और लचीली दीवार वाली नलिकाएँ हैं।1. ये पतली और दृढ़ दीवार वाली संकरी नलिकाएँ हैं।
2. ये शुद्ध रुधिर को हृदय से शरीर में विभिन्न अंगों में पहुँचाती हैं (पल्मोनरी धमनी को छोड़कर)।2. ये अशुद्ध रुधिर को शरीर के अंगों से हृदय में लाती हैं (पल्मोनरी शिरा को छोड़कर)।
3. इनमें वाल्व अनुपस्थित होते हैं।3. वाल्व उपस्थित होते हैं।
4. इनमें रुधिर का बहाव तीव्र व झटके के साथ होता है।4. इनमें रुधिर का बहाव सामान्य व धीरे-धीरे होता है।
5. ये अधिक गहराई में उपस्थित होती हैं।5. ये माँस में कम गहराई पर स्थित होती हैं।

प्रश्न 26.
खुला परिसंचरण तथा बन्द परिसंचरण तन्त्र में अन्तर कीजिए। .
उत्तर-
खला परिसंचरण तथा बन्द परिसंचरण तन्त्र में अन्तर

खुला परिसंचरणबन्द परिसंचरण
1. इसमें रुधिर किसी प्रकार की वाहनियों में नहीं बहता है।1. इसमें रुधिर महीन, लचीली धमनियों एवं शिराओं में बहता है।
2. इसमें रुधिर आंतरांगों के आस-पास पाया जाता है।2. इसमें रुधिर हृदय से विभिन्न अंगों को पम्प किया जाता है।
3. इसमें किसी प्रकार का दाब उत्पन्न नहीं होता है।3. इसमें रुधिर दाब उत्पन्न होता है।

प्रश्न 27.
शरीर में O2 तथा CO2 के परिवहन व्यवस्था का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मनुष्य का हृदय अपने एक चक्र में रुधिर को दो बार पम्प करता है जिसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं। फेफड़ों में उपस्थित वायु कूपिकाओं से ऑक्सीजन लेकर फुफ्फुस महाशिरा हृदय में खुलती है। ऑक्सीजनयुक्त रुधिर हृदय से अब महाधमनी द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को भेजा जाता है। शरीर के ऊतकों से CO2 युक्त रुधिर शिराओं से महाशिरा में आता है जो CO2 युक्त रुधिर को पुनः हृदय में लाती है। CO2 युक्त रुधिर अब हृदय फुफ्फुस धमनी द्वारा फेफड़ों में भेज देता है। फेफड़ों में जाकर CO2 वायु कूपिकाओं में चली जाती है जहाँ से CO2 वायु के साथ बाहर निकाल दी जाती है।
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प्रश्न 28.
रुधिर एवं लसीका में भेद कीजिए।
उत्तर-
रुधिर एवं लसीका में अन्तर-

रुधिर (Blood)लसीका (Lymph)
1. यह लाल रंग का होता है।1. यह रंगहीन या हल्के पीले रंग का होता है।
2. इसमें रुधिर कणिकाएँ RBCs, WBCs तथा बिम्बाणु उपस्थित होती हैं।2. इसमें कणिकाएँ अनुप स्थित होती हैं।
3. इसमें हीमोग्लोबिन होता है।3. इसमें हीमोग्लोबिन नहीं होता है।
4. यह हृदय से अंगों तक तथा अंगों से हृदय तक बहता है।4. यह केवल एक ही दिशा में बहता है अर्थात् ऊतकों से हृदय की ओर।
5. इसमें श्वसन वर्णक, ऑक्सीजन, CO2 एवं  वर्ण्य पदार्थ होते हैं।5. इसमें अल्प मात्रा में प्रोटीन होते हैं।

प्रश्न 29.
फ्लोएम में भोजन का संवहन किस प्रकार होता है? फ्लोएम ऊतक का चित्र खींचिए। (RBSE 2015)
उत्तर-
फ्लोएम द्वारा पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थों का पौधे के विभिन्न भागों को स्थानान्तरण होता है। फ्लोएम द्वारा खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण ATP की ऊर्जा का उपयोग करके होता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 6
ऊर्जा द्वारा फ्लोएम का परासरण दाब बढ़ जाता है जिससे जल इसमें प्रवेश कर जाता है। यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहाँ दाब कम होता है। यह फ्लोएम को पादप की आवश्यकतानुसार पदार्थों का स्थानान्तरण करता है।

प्रश्न 30.
मानवों में वहन तंत्र के दो प्रकारों की सूची बनाइए तथा इनमें से किसी एक के कार्य लिखिए। (CBSE 2019)
उत्तर-
मानवों में वहन तंत्र के दो प्रकार –

  • रक्त परिवहन,
  • लसीका परिवहन तंत्र।

मनुष्य में दो वहन तंत्र के कार्य हैं-

  1. यह ऑक्सीजन, प्रोटीन्स, खनिज आदि को शरीर के – एक भाग से दूसरे भाग में पहुँचाता है।
  2. यह विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को विभिन्न अंगों से मुख्य उत्सर्जी अंगों तक पहुँचाता है।

प्रश्न 31.
डायलिसिस क्या है ? नेफ्रॉन को डायलिसिस का थैला क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
अपोहन या डायलिसिस (Dialysis)- यदि किसी लवण एवं मंड के विलयन को सैलोफेन की थैली में भरकर उसे आसवित जल में लटका दिया जाए तो लवण के आयन सैलोफेन से होते हुए आसवित जल में प्रवेश कर जाते हैं और स्टार्च थैली के अन्दर ही रह जाता है। यह प्रक्रिया डायलिसिस कहलाती है।

नेफ्रॉन को डायलिसिस का थैला इसीलिए कहा जाता है क्योंकि नेफ्रॉन की प्यालेकार संरचना बोमैन सम्पुट में उपस्थित केशिका गुच्छ की दीवारों से रुधिर छनता है।  रुधिर में उपस्थित प्रोटीन के अणु बड़े होने के कारण नहीं ) छन पाते जबकि ग्लूकोज एवं लवण अणु छोटे होने के कारण छन जाते हैं। इस प्रकार नेफ्रॉन डायलिसिस की थैली की 7 तरह कार्य करता है। वृक्कों के अनियमित कार्य करने पर डायलिसिस विधि द्वारा रोगी में वृक्क का कार्य कराया जाता है।

प्रश्न 32.
पौधों और जन्तुओं में वर्त्य पदार्थ क्या हैं?
अथवा
पौधों और जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थ बताइए।
उत्तर-
जन्तुओं में उत्सर्जी पदार्थ-CO2 पित्तवर्णक, नत्रजनी पदार्थ, अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण व जल। पौधों के उत्सर्जी पदार्थ-अमोनिया जो पत्तियों में एकत्र होती है, गोंद, रेजिन, घुलनशील वर्ण्य पदार्थ।

प्रश्न 33.
वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इसके दो कार्य लिखिए।
अथवा
(a) स्थानान्तरण किसे कहते हैं? पादपों के लिए यह क्यों आवश्यक है?
(b) स्थानान्तरण के फलस्वरूप पादपों में पदार्थ कहाँ पहुँचते हैं? (CBSE 2019)
उत्तर-
वाष्पोत्सर्जन एक जैव प्रक्रम है इसमें पानी की अत्यधिक मात्रा पौधों के वायवीय भाग (प्रायः पत्तियों की सतह पर अवस्थित रन्ध्र) द्वारा जल वाष्प में परिवर्तित होती है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं-

  • जड़ों से पानी एवं खनिज को पत्तियों तक पहुँचाना (परिवहन में सहायक)।
  • पौधों को गर्मियों में ठंडा रखना, वातावरण को ठंडा करना।
  • पत्तियों द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज को पौधों के अन्य भागों में स्थानान्तरित करना।

अथवा
(a) स्थानान्तरण से अभिप्राय है, पौधे के सभी भागों में आवश्यक पदार्थों; जैसे-जल, खनिज, भोज्य पदार्थ, पादप हॉर्मोन की पूर्ति करना एवं वर्ण्य पदार्थों को इकट्ठा कर उन्हें पौधे से अलग करने में सहायता करना ताकि पौधे स्वस्थ एवं व्यवस्थित जीवन प्राप्त कर सकें।
(b) स्थानान्तरण के फलस्वरूप जल एवं खनिज जाइलम के रास्ते पौधों के ऊपरी भाग में एवं भोज्य पदार्थ फ्लोइम के द्वारा पौधों के विशिष्ट भाग, जड़/तना/पत्ती/बीज/फल में एकत्र होते हैं।

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प्रश्न 34.
मानव में परिसंचरण तंत्र के निम्नलिखित घटकों में से प्रत्येक का एक कार्य लिखिए-(CBSE 2016)
(a) रुधिर वाहिनियाँ,
(b) लिम्फ,
(c) हृदय
उत्तर-
(a) रुधिर वाहिनियाँ-ये पूरे शरीर में रक्त को लेकर जाती हैं।
(b) लिम्फ-इसकी लिम्फोसाइड कोशिकाएँ रोगोत्पादक पदार्थों, जीवाणुओं आदि को नष्ट करती हैं।
(c) हृदय-यह पूरे शरीर में रुधिर को पम्प करता है अर्थात् रुधिर का परिसंचरण करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रकाश-संश्लेषण क्या है? प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
(नमूना प्रश्न-पत्र 2012) पौधे अपना भोजन कैसे बनाते हैं ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis)प्रकाश-संश्लेषण वह प्रक्रिया है, जिसमें हरे पौधे क्लोरोफिल की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल एवं CO2, द्वारा भोजन (ग्लूकोज) का निर्माण करते हैं।
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प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया दो प्रावस्थाओं में पूर्ण होती हैं-
प्रकाशिक अभिक्रिया (Light Dependent Reaction)-यह प्रकाश की उपस्थिति में तथा क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना में होती है। इस अभिक्रिया में-
(i) सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करके क्लोरोफिल अणु उत्तेजित होकर इलेक्ट्रॉन मुक्त करते हैं। ये इलेक्ट्रॉन विभिन्न पथों से होकर इलेक्ट्रॉनग्राही NADP तक पहुँचते हैं। इन पथों में कई स्थानों पर ATP का भी निर्माण होता है।
(ii) प्रकाश के द्वारा ही जल का प्रकाशिक अपघटन होता है जिससे यह हाइड्रोजन तथा हाइड्रॉक्सिल आयनों में टूट जाता है।
4H2O → H+ + 4OH

(iii) 4H+ तथा 4 इलेक्ट्रॉनों को NADP ग्रहण करके NADPH, बनाता है।
4H++ 4e + 2NADP → 2NADPH2

(iv) 4OH संघनित होकर पानी तथा ऑक्सीजन बनाते हैं।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 8
उपर्युक्त क्रिया में ऑक्सीजन वायु में मुक्त हो जाती है तथा इलेक्ट्रॉन क्लोरोफिल को पुनः उत्तेजित करने में काम आते हैं। इस प्रकार प्रकाशिक अभिक्रिया से ATP, NADPH2 तथा O2 बनते हैं।

B. अप्रकाशिक अभिक्रिया (Light Independent Reactions)-इस क्रिया में प्रकाश की उपस्थिति या अनुपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं होता है। यह क्रिया हरितलवक के ग्रेना में होती है। इसमें CO,, ATP तथा . NADPH, के संयोग से ग्लूकोज का निर्माण होता है।
6CO2 + 12ATP + 12NADPH2 → C6H12O6 + 12 ADP+ 12 NADP

प्रश्न 2.
(a) मानव उत्सर्जन तंत्र का निर्माण करने वाले अंगों के नाम लिखिए।
(b) मानव शरीर में मूत्र किस प्रकार बनता है, का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a) मानव उत्सर्जन तंत्र का निर्माण करने वाले अंग हैं-एक जोड़ा वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग।

(b) कार्यविधि (मूत्र बनने की क्रियाविधि)-वृक्काणु में स्थित कोशिक गुच्छ इस क्रिया का प्रारंभ करते हैं जो निम्नलिखित चरणों में होते हैं –

  • निस्यंदन या छानना-रक्त में उपस्थित नाइट्रोजनी वर्ण्य; जैसे-यूरिया और यूरिक अम्ल। कोशिका गुच्छ द्वारा छाना जाता है जो नलिका के आकार में छनकर जमा हो जातेहै।
  • चयनित पुनः अवशोषण-प्रारंभिक निस्यंदन के पश्चात् कुछ पदार्थ; जैसे-ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण तथा प्रचुर मात्रा में जल, शेष रह जाते हैं। जैसे-जैसे ये पदार्थ मूत्र के साथ इस नलिका में प्रवाहित होते हैं, इन पदार्थों का चयनित पुनः अवशोषण होता है। जल की मात्रा आवश्यकतानुसार ही अवशोषित होती है। प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र एक लंबी नलिका, मूत्रवाहिनी (Ureter) में प्रवेश करता है। जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय (Urinary Bladder) में मूत्र मूत्रवाहिनी द्वारा एकत्र होता है।

प्रश्न 3.
कारण दीजिए
(a) अलिंद की तुलना में निलय की पेशीय भित्तियाँ मोटी होती हैं।
(b) पौधों में परिवहन निकाय धीमा होता है।
(c) जलीय कशेरुकियों में रुधिर परिसंचरण स्थलीय कशेरुकियों में रुधिर परिसंचरण से भिन्न होता है।
(d) दिन में जाइलम में जल और खनिजों की गति रात्रि की तुलना में अधिक होती है।
(e) शिराओं में वाल्व होते हैं जबकि धमनियों में नहीं होते। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a) अलिंद की तुलना में निलय की पेशीय भित्तियाँ मोटी होती हैं क्योंकि निलय संपूर्ण शरीर में रुधिर भेजता है, जबकि अलिंद विभिन्न अंगों से आए रक्त को ग्रहण करता है। के कारण अलिंद में रक्त दाब कम होता है।

(b) पौधों में परिवहन वाष्पोत्सर्जन पर निर्भर करता है और वाष्पोत्सर्जन क्रिया दिन में तेजी से होती है क्योंकि जब रंध्र खुले होते हैं तब वाष्पोत्सर्जन कर्षण, जाइलम में जल की गति के लिए मुख्य प्रेरक बल होता है।

(c) स्थलीय कशेरुकियों में ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए इनमें दोहरा परिसंचरण होता है जबकि जलीय कशेरुकियों के हृदय में केवल दो चेंबर होते हैं और एक चक्र में एक बार ही रक्त हृदय में जाता है अर्थात् इकहरा परिसंचरण होता है क्योंकि इनमें उच्च ऊर्जा की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(d) दिन में जाइलम में जल और खनिजों की गति रात्रि की तुलना में अधिक होती है क्योंकि दिन में रंध्र खुले होते हैं और वाष्पोत्सर्जन कर्षण, जाइलम में जल की गति के लिए मुख्य प्रेरक बल होता है।

(e) शिराओं में वाल्व होते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि, अलिंद में संकुचन के समय रक्त उल्टी दिशा में न प्रवाहित हो जाए।

प्रश्न 4.
(a) जलीय जीवों और स्थलीय जीवों की साँस लेने की दरों में अंतर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
(b) मानव श्वसन-तंत्र का आरेख खींचिए और उस पर ग्रसनी, श्वासनली, फुफ्फुस, डायाफ्राम तथा कूपिका कोश का नामांकन कीजिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a) जलीय जीवों में श्वास दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा द्रत गति से होती है। जलीय जीव श्वसन हेतु जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा सीमित होती है। स्थलीय जीव वायु से लेते हैं, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा काफी अधिक होती है। ऑक्सीजन प्राप्त करने हेतु जलीय जीव की तुलना में स्थलीय को लाभ होता है क्योंकि वह ऑक्सीजन वायु द्वारा घिरा होता है जिससे वह किसी भी मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण कर सकता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 9

प्रश्न 5.
रन्ध्र क्या हैं ? इनके खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
रन्ध्र (Stomata)-रन्ध्र विशेष प्रकार के छिद्र हैं जो दो वृक्काकार रक्षक कोशिकाओं (guard cells) से घिरे होते हैं। रन्ध्र मुख्यतः पत्तियों पर तथा कुछ कोमल तनों पर भी उपस्थित होते हैं। रन्ध्रों से होकर जल वाष्प के रूप में उड़ता है। इस क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। प्रत्येक रक्षी कोशिका की बाह्य भित्ति पतली तथा भीतरी भित्ति मोटी होती है।

रक्षक कोशिका में हरितलवक उपस्थित होते हैं। दिन के समय सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रक्षक कोशिकाओं में ग्लूकोज का निर्माण होता है तथा CO2 की कमी से कोशिकाओं का pH बढ़ता है, फलस्वरूप कोशिका का परासरण दाब बढ़ जाता है। रक्षक कोशिकाओं में समीपवर्ती कोशिकाओं से जल प्रवेश करता है जिससे वे फूल जाती हैं। ऐसा होने से रक्षक कोशिका की भीतरी भित्ति में खिंचाव उत्पन्न होता है जिससे रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि के समय रक्षक कोशिकाओं में ग्लूकोज का निर्माण बन्द हो जाता है तथा CO2, का स्तर बढ़ जाता है जिससे कोशिका की अम्लीयता बढ़ जाती है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 10
‘कोशिका से जल समीपवर्ती कोशिकाओं में जाने लगता है जिससे वे पिचक जाती हैं और भीतरी भित्ति शिथिल हो जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। चूँकि रन्ध्र दिन में खुलते हैं अतः दिन के समय वाष्पोत्सर्जन क्रिया होती है।

प्रश्न 6.
मनुष्य की आहारनाल का सचित्र वर्णन कीजिए। (मा. शि. बोर्ड. राज. 2012)
उत्तर-
मनुष्य की आहारनाल (Elementary Canal in Human)-मनुष्य की आहार नाल 8 से 10 मीटर लम्बी होती है जो मुख से लेकर गुदा तक फैली होती है।
आहार नाल को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. मुख एवं मुखगुहा (Mouth and Buccal cavity)-मुख एक अनुप्रस्थ दरार के रूप में होता है जो दो माँसल होठों द्वारा घिरा होता है। यह अन्दर की ओर मुखगुहा में खुलता है। मुखगुहा के फर्श पर एक जिह्वा तथा दाएँबाएँ एवं सामने जबड़े उपस्थित होते हैं। जबड़ों में गर्तदन्ती, विषमंदन्ती तथा द्विवारदन्ती दाँत लगे होते हैं। मुखगुहा में लार ग्रन्थियों की नलिकाएँ खुलती हैं।

2. ग्रसनी (Pharynx)-मुखगुहा पीछे की ओर ग्रसनी में खुलती है। ग्रसनी मुखगुहा तथा ग्रासनली के बीच का छोटा-सा भाग होता है। यह घाटीद्वार (glottis) द्वारा श्वासनली में और ग्रसिका (gullet) द्वारा ग्रासनली में खुलता है।

3. ग्रासनली (Oesophagus)-यह पतली तथा लम्बी नलिका है। इसमें अनुलम्ब पेशीय वलय पाये जाते हैं। इसका पश्च भाग डायफ्राम को भेदकर उदर गुहा में प्रवेश करता है।

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4. आमाशय (Stomach)-इसे तीन भागों-कार्डियक, फण्डिक तथा पाइलोरिक आमाशय में बाँटा जाता है। ग्रासनली तथा आमाशय के जुड़ने के स्थान पर कार्डियक अवरोधनी वाल्व उपस्थित होता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 11

5. छोटी आँत (Small intestine)-यह आहार नाल का संकरा तथा लम्बा भाग होता है। इसकी लम्बाई लगभग 6.5 मीटर होती है। आहार नाल का U-आकार का भाग जो आमाशय तथा छोटी आंत के बीच स्थित होता है, ग्रहणी (duodenum) कहलाता है। जिस स्थान पर आमाशय ग्रहणी में खुलता है वहाँ पायलोरिक अवरोधनी वाल्व होता है।

6. बड़ी आँत (Large intestine)- यह आहार नाल का अन्तिम भाग है। वह स्थान जहाँ छोटी आँत, बड़ी आँत से जुड़ती है, वहाँ इलियोसीकल वाल्व पाया जाता है। बड़ी आँत के चार भाग होते हैं-आरोही कोलन, अनुप्रस्थ कोलन अवरोही कोलन तथा पेल्विक कोलन। बड़ी आँत का पश्च छोर मलाशय में खुलता है।

7. मलाशय (Rectum)-यह एक थैले के आकार की रचना है। इसका अन्तिम भाग गुदानाल कहलाता है जो गुदा (anus) द्वारा बाहर खुलता है। गुदानाल के अन्त में गुदा अवरोधनी पायी जाती है।

प्रश्न 7.
(a) रुधिर के किन्हीं अवयवों का उल्लेख कीजिए।
(b) शरीर में ऑक्सीजन-प्रचुर रुधिर के गमन का पथ लिखिए।
(c) अलिंद और निलय के बीच वाल्वों का कार्य लिखिए।
(d) धमनी और शिरा के संघटनों के बीच कोई एक संरचनात्मक अन्तर लिखिए।
अथवा
(a) उत्सर्जन की परिभाषा लिखिए।
(b) वृक्क में उपस्थित आधारी निस्यंदन एकक का नाम लिखिए।
(c) मानव के उत्सर्जन तंत्र का आरेख खींचिए और उस पर उत्सर्जन तंत्र के उस भाग का नामांकन कीजिए
(i) जो मूत्र तैयार करता है।
(ii) जो लम्बी नलिका है और वृक्क से मूत्र संचित करती है।
(iii) जिसमें मूत्र त्यागने तक मूत्र भण्डारित रहता है। (CBSE 2018)
उत्तर-
(a) रुधिर के दो अवयव लाल रक्त कोशिका और सफेद रक्त कोशिका है।
(b) शरीर में ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर सबसे पहले बायें अलिंद में एकत्र होता है। फिर रक्त बायें अलिंद से बायें निलय में प्रवेश करता है। इस दौरान बायाँ अलिंद संकुचित हो जाता है तथा बायाँ निलय शिथिल हो जाता है। बायें निलय की भित्ति मोटी होती है। जब यह संकुचित होता है तो ऑक्सीजनित रुधिर धमनियों द्वारा शरीर के सम्पूर्ण अंग तंत्रों तक पहुँच जाता है।
“बायाँ अलिंद → बायाँ निलय → महाधमनी → धमनियाँ अंग तंत्र।

(c) अलिंद और निलय के बीच वाल्व रक्त के वापस प्रवाह को रोकता है।
(d) धमनियों की भित्ति मोटी, मजबूत व लचीली होती है, क्योंकि हृदय रुधिर को अधिक दाब से प्रवाहित करता है जिससे धमनियों पर दबाव पड़ता है। शिराओं की भित्ति पतली होती है।
अथवा
(a) शरीर से हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
(b) वृक्क में आधारी निस्यंदन एकक का नाम नेफ्रॉन
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 12
(i) वृक्क
(ii) मूत्रवाहिनी
(iii) मूत्राशय।

प्रश्न 8.
मनुष्य के आमाशय में भोजन का पाचन किस प्रकार होता है ? (मा. शि. बो. राज., 2015)
उत्तर-
आमाशय में भोजन का पाचन-आमाशय में भोजन पहुँचने पर इसकी क्रमाकुंचन गति से भोजन की लुग्दी (chyme) बन जाती है। आमाशय की दीवारों में उपस्थित जठर ग्रन्थियाँ जठर रस (gastric juice) का स्रावण करती हैं। जठर रस में 97-99% जल, 0.2% श्लेष्म, 0.5% HCl तथा पेप्सिन, जठर लाइपेज एवं रेनिन एन्जाइम होते हैं। वयस्क मनुष्य में रेनिन का अभाव होता है। HCl की उपस्थिति के कारण जठर रस अम्लीय प्रकृति (ph लगभग 2-3.5) का होता है।

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निष्क्रिय पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है तथा भोजन के साथ आये जीवाणु एवं सूक्ष्म जीवों को मारता है। यह भोजन को सड़ने से रोकता है तथा भोजन के कड़े भागों को घोलता है।
1. पेप्सिन एन्जाइम प्रोटीन को प्रोटिओजेज तथा पेप्टोन्स में बदल देता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 13
2. जठर लाइपेज वसाओं का आंशिक पाचन करता है।
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3. रेनिन एन्जाइम प्रोरेनिन के रूप में स्रावित होता है। यह HCl के प्रभाव से सक्रिय रेनिन में बदल जाता है। रेनिन दूध की कैसीन प्रोटीन को अघुलनशील कैल्सियम पैरा-कैसीनेट में बदलता है। आमाशय में भोजन 3-4 घण्टे तक रुकता है। जठर निर्गमी अवरोधनी द्वारा अधपचा भोजन धीरे-धीरे ग्रहणी में धकेला जाता है।

प्रश्न 9.
मनुष्य की छोटी आँत्र में भोजन का पाचन किस प्रकार होता है? (मा. शि. बोर्ड. राज., 2012)
अथवा
मनुष्य की आहार नाल में प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट का पाचन किस प्रकार होता है?
उत्तर-
छोटी आँत्र में भोजन का पाचन- भोजन का पाचन मुख्यतः छोटी आँत्र के ग्रहणी भाग में होता है। ग्रहणी में पित्त रस तथा अग्न्याशयी रस भोजन में मिल जाते हैं। छोटी आँत्र में स्थित लिबरकुहन की दरारों से आन्त्रीय रस का स्रावण होता है।

पित्त रस वसा का इमल्सीकरण करता है। यह (लुग्दी) काइम की अम्लता को समाप्त करके इसे क्षारीय बनाता है तथा आँत्र की क्रमाकुंचन गति को बढ़ाता है। पित्त लवण कोलेस्ट्रॉल को घुलनशील बनाए रखता है। अग्न्याशयी रस का pH 7.5-8.3 होता है, जिसमें 96% जल तथा शेष पाचक एन्जाइम तथा लवण होते हैं।

इसमें निम्नलिखित एन्जाइम होते हैं-

I. प्रोटीन पाचक एन्जाइम निम्न हैं-

1. ट्रिप्सिन-इसका स्रावण निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन के – रूप में होता है। यह आन्त्रीय एन्टेरोकाइनेज की उपस्थिति में सक्रिय ट्रिप्सिन में बदल जाता है।
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2. काइमोट्रिप्सिन-यह निष्क्रिय काइमोट्रिप्सिन के रूप में स्रावित होता है और पेप्सिन के प्रभाव से सक्रिय काइमोट्रिप्सिन में बदल जाता है।
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II. कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम-अग्न्याशयी रस में अग्न्याशयी एमिलेस एन्जाइम पॉली सैकेराइड को डाइ सैकेराइड में बदलता है।
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III. वसा पाचक एन्जाइम-अग्न्याशयी लाइपेज या स्टिऐप्सिन इमल्सीकृत वसा का पाचन करता है।
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IV. न्यूक्लिएजेज-ये न्यूक्लिक अम्लों का पाचन करते-
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 20
आन्त्रीय रस का pH 7.5-8.3 तक होता है और यह क्षुद्रान्त्र की ग्रन्थियों से स्रावित होता है। इसमें निम्न एन्जाइम होते हैं
(I) प्रोटीन पाचक एन्जाइम-इन्हें सामूहिक रूप से इरैप्सिन कहते हैं। ये पॉली-पेप्टाइड्स को अमीनो अम्लों में तोड़ते हैं।
(II) कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम निम्न हैं1. माल्टेज-यह माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में तोड़ता है।
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2. लैक्टेज-यह लैक्टोज शर्करा को ग्लूकोज तथा गैलेक्टोज. में तोड़ता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 22
3. सुक्रेज-यह सुक्रोज को ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज में तोड़ता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 23
III. वसा पाचक एन्जाइम-अवशेष वसा का पाचन आन्त्रीय लाइपेज करता है।
IV. न्यूक्लिओटाइड्स का पाचन-न्यूक्लिओटाइडेज न्यूक्लिओटाइड्स को न्यूक्लिओसाइड्स तथा फॉस्फेट में तोड़ता है तथा न्यूक्लिओसाइडेज न्यूक्लिओसाइड्स को नाइट्रोजनी क्षारकों तथा शर्करा में तोड़ते हैं।

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प्रश्न 10.
मनुष्य में पायी जाने वाली पाचक ग्रन्थियों तथा उससे प्रभावित हॉर्मोन्स के नाम तथा प्रत्येक का कार्य लिखिए।
उत्तर-
मनुष्य के पाचन तन्त्र में निम्नलिखित पाचक ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं –

  1. लार ग्रन्थि-इसका स्राव मुख गुहा में खुलता है। इसमें टायलिन एन्जाइम पाया जाता है। टायलिन भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज शर्करा में परिवर्तित करता है।
  2. यकृत एवं पित्ताशय-यकृत में स्थित पित्ताशय से पित्त रस स्रावित होता है। यद्यपि इसमें कोई एन्जाइम नहीं होता है परन्तु फिर भी यह पाचन क्रिया को सुगम बनाता है।
  3. जठर ग्रन्थि-ये आमाशय की दीवार में स्थित होती है और जठर रस का स्रावण करती है। इसमें पेप्सिन, जठर लाइपेज तथा रेनिन एन्जाइम होते हैं। पेप्सिन प्रोटीन का, जठर लाइपेज वसा का तथा रेनिन, कैसीन प्रोटीन का पाचन करते हैं।
  4. अग्न्याशय-इससे ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमिलेस, लाइपेज तथा न्यूक्लिएज एन्जाइम स्रावित होते हैं।
  • ट्रिप्सिन प्रोटीन का पाचन करता है।
  • काइमोट्रिप्सिन प्रोटीन्स को पेप्टोन्स तथा पॉली पेप्टाइड में तोड़ता है।
  • एमिलेस स्टार्च को माल्टोज में परिवर्तित करता
  • लाइपेज इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्लों तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित करता है।
  • न्यूक्लिएज RNA तथा DNA को इनके घटक अणुओं में तोड़ते हैं।

प्रश्न 11.
मनुष्य के श्वसन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। (RBSE 2016)
उत्तर-
मनुष्य का श्वसन तन्त्र-मनुष्य में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। मनुष्य के श्वसन को फुफ्फुसीय श्वसन (pulmonary respiration) कहते हैं। मनुष्य के श्वसन तन्त्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. श्वसन मार्ग
2. फेफड़े।

1. श्वसन मार्ग-श्वसन मार्ग से होकर वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है तथा बाहर जाती है। साँस लेने तथा निकालने की क्रिया श्वासोच्छ्वास (breathing) कहलाती है। वायु मार्ग के निम्नलिखित भाग हैं-

  • नासा मार्ग-एक जोड़ी बाह्य नासाद्वार नासिका के अग्र छोर पर स्थित होते हैं। नासाद्वार से ग्रसनी तक के पथ को नासा मार्ग कहते हैं। यह नासा पट द्वारा दो भागों में बँटा होता है।
  • ग्रसनी-इस भाग में नासा मार्ग तथा मुख ग्रहिका दोनों खुलते हैं। ग्रसनी का नासाग्रसनी कण्ठ द्वार द्वारा वायुनाल में खुलता है।
  • स्वर यन्त्र-यह श्वासनाल का सबसे ऊपरी भाग है। स्वर यन्त्र में वाक् रज्जु उपस्थित होते हैं।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 24

 

  • ट्रेकिया-वायुनाल ग्रीवा से होकर वक्ष गुहा में प्रवेश करती है। वायुनाल की भित्ति में उपास्थि के बने C आकार के छल्ले होते हैं जो इसे पिचकने से रोकते हैं।
  • श्वसनी-वक्षगुहा में प्रवेश करने के पश्चात् वायुनाल दो श्वसनियों में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपनी ओर के फेफड़ों में प्रवेश करती है।

2. फेफड़े (Lungs)-वक्षगुहा में दो फेफड़े हृदय के पार्यों में स्थित होते हैं। प्रत्येक फेफड़ा गुलाबी, कोमल एवं स्पंजी रचना है। प्रत्येक फेफड़ा प्लूरल कला से घिरा होता है। – फेफड़ों में महीन नलिकाओं का जाल फैला रहता है। इस जाल को श्वसनी वृक्ष कहते हैं। श्वसनी की छोटी शाखाओं को श्वसनिका कहते हैं। ये श्वसनिकाएँ पुनः विभाजित होकर द्वितीयक एवं तृतीयक श्वसनिकाएँ बनाती हैं। अन्ततः ये वायु कूपिकाओं में खुलती हैं। वायु कूपिकाएँ गैस-विनिमय के लिए सतह धरातल उपलब्ध कराती हैं।

प्रश्न 12.
मनुष्य के हृदय की संरचना तथा इसकी क्रिया-विधि का वर्णन कीजिए। (नमूना प्रश्न-पत्र 2012) (RBSE 2015, 17)
उत्तर-
मनुष्य का हृदय वक्ष गुहा में बाईं ओर स्थित होता है। इसका आकार बन्द मुटठी के बराबर होता है। मनुष्य के हृदय के चार भाग होते हैं-दो अलिंद तथा दो निलय। इन्हें दायाँ अलिंद, बायाँ अलिंद, दायाँ निलय तथा बायाँ निलय में विभेदित कर सकते हैं। अलिंद ऊपर की ओर तथा निलय नीचे की ओर होता है। दायाँ अलिंद दाएँ निलय में तथा बायाँ अलिंद बाएँ निलय में खुलता है। बाएँ अलिंद तथा बाएँ निलय के बीच द्विवलनी कपाट तथा दाएँ अलिंद तथा दाएँ निलय के बीच त्रिवलनी कपाट होता है। बाएँ निलय का सम्बन्ध अर्द्धचन्द्राकार वाल्व द्वारा महाधमनी से तथा दाएँ निलय का सम्बन्ध अर्द्धचन्द्राकार वाल्व द्वारा फुफ्फुसीय महाधमनी से होता है। दाएँ अलिंद से महाशिरा आकर मिलती है तथा बाएँ अलिंद से फुफ्फुस शिरा आकर मिलती है।
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हृदय की क्रियाविधि-हृदय के अलिंद तथा निलय में संकुचन (systole) एवं शिथिलन (diastole) क्रियाएँ होती हैं। ये क्रियाएँ एक लयबद्ध तरीके से होती हैं। हृदय की एक धड़कन के साथ एक हृदय चक्र (Cardiac cycle) पूर्ण होता है।

एक चक्र पूर्ण होने में निम्न अवस्थाएँ होती-

  1. शिथिलन-इस अवस्था में दोनों अलिंद शिथिल अवस्था में रहते हैं जिससे दोनों अलिंदों में रुधिर एकत्र होता है।
  2. अलिंद संकुचन-इस अवस्था में अलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं और रुधिर निलयों में चला जाता है। दायाँ अलिंद सदैव बाएँ अलिंद से कुछ पहले संकुचित होता है।
  3. निलय संकुचन-निलयों के संकुचन के समय अलिंद-निलय कपाट बन्द हो जाते हैं एवं महाधमनियों के अर्द्धचन्द्राकार कपाट खुल जाते हैं जिससे रुधिर महाधमनियों में चला जाता है।
  4. निलय शिथिलन-संकुचन के पश्चात् निलयों में शिथिलन होता है। और अर्द्ध चन्द्राकार कपाट बन्द हो जाते हैं तथा अलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं। इससे रुधिर पुनः अलिंद से निलयों में आ जाता है

प्रश्न 13.
रक्त दाब (Blood Pressure) किसे कहते हैं ? इसे मापने के लिए किस यन्त्र का उपयोग किया जाता है तथा इसे किस प्रकार मापते हैं?
उत्तर-
रक्त दाब (Blood Pressure)-रुधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरुद्ध जो दाब उत्पन्न होता है उसे रक्त दाब कहते हैं। यह दाब शिराओं की अपेक्षा धमनियों में बहुत. अधिक होता है। धमनी के अन्दर रुधिर का दाब निलयप्रकंचन (Systole) के दौरान प्रकंचन दाब तथा निलय अनुशिथिलन (diastole) के दौरान धमनी के अन्दर का दाब अनुशिथिलन दाब कहलाता है। सामान्य प्रकुंचन दाब लगभग 120 mm (पारे के) तथा अनुशिथिलन दाब लगभग 80 mm (पारे के) होता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 26
जाती है रुधिर दाब का मापन रुधिर दाबमापी (Sphygmomanometes) – द्वारा किया जाता है। उच्च रुधिर दाब को अति तनाव भी कहते हैं और इसका कारण धमनिकाओं का सिकुड़ना है। इससे रुधिर प्रवाह में प्रतिरोध बढ़ जाता है। इससे धमनी फट सकती है तथा आन्तरिक रक्तस्त्रवण हो सकता है।

प्रश्न 14.
मनुष्य के उत्सर्जी तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। (Rbse 2017)
उत्तर-
मनुष्य के नुख्या उत्सर्जी अंग वृक्क (Kidney)
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 27
हैं। वृक्क संख्या में दो होते हैं जो रीढ़ की हड्डी के इधर-उधर देहगुहा में स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क सेम के बीज के आकार का तथा भूरे रंग की संरचना है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा तथा 2.5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएँ की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता है। सामान्यतः एक वयस्क पुरुष के वृक्क का भार 125-170 ग्राम होता है, परन्तु स्त्री के वृक्क का भार 115-155 ग्राम होता है। वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है किन्तु भीतरी किनारा फँसा हुआ होता है जिससे मूत्र नलिका निकली होती है। इस स्थान को हाइलस कहते हैं। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय में खुलती है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(i) ATP
(ii) परासरण नियमन
(iii) होमियोस्टैसिस।
उत्तर-
(i) ATP- अधिकांश कोशिकीय प्रक्रमों के लिए ए.टी.पी. (Adenosine Triphosphate) ऊर्जा मुद्रा है। श्वसन क्रिया में विमोचित ऊर्जा का उपयोग ADP तथा अकार्बनिक फॉस्फेट से ATP अणु बनाने में किया जाता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम 28
इन ATP का प्रयोग शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन में किया जाता है। ATP के एक उच्च ऊर्जा बन्ध के खण्डित होने से 30.5 kJ/mol के तुल्य ऊर्जा मुक्त होती है।

(ii) परासरण नियमन (Osmoregulation)- प्रत्येक प्राणी का उसके पयावरण के साथ जल एवं लवणों का एक निकट का सम्बन्ध रहता है। शरीर के अन्दर जल एवं लवणों का एक अनुकुलतम सान्द्रण बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। इसे परासरण नियमन कहते हैं। मानव शरीर में वृक्क परासरण नियमन का कार्य करता है। अमीबा में कुंचनशील रिक्तिका यह कार्य करती है।

(iii) होमियोस्टैसिस (Homeostasis)-वृक्क शरीर में उत्सर्जी पदार्थों के उत्सर्जन के अतिरिक्त शरीर में जल, अम्ल, क्षार तथा लवणों का सन्तुलन बनाये रखने में भी सहायक होते हैं। वृक्क शरीर में जल की अतिरिक्त मात्रा को मूत्र द्वारा बाहर निकालते हैं। अमोनिया रुधिर में H की अधिकता को कम करके रुधिर में अम्ल-क्षार सन्तुलन बनाने में सहायक है। अतः शरीर में जल, ताप, लवणों एवं अन्य क्रियाओं की समानता बने रहने को होमियोस्टैसिस कहते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)

1. पौधों में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सम्पन्न होती है-
(a) माइटोकॉण्ड्रिया में
(b) हरितलवक में
(c) केन्द्रक में
(d) जड़ में।
उत्तर-
(b) हरितलवक में।

2. निम्नलिखित में से स्वपोषी है –
(a) मनुष्य
(b) फफूंद
(c) हरा शैवाल
(d) अमरबेल।
उत्तर-
(c) हरा शैवाल।

3. लार में उपस्थित एन्जाइम है-.
(a) लाइपेज
(b) टायलिन
(c) पेप्सिन
(d) रेनिन।
उत्तर-
(b) टायलिन।

4. वायवीय श्वसन में ग्लूकोज के विखण्डन से उत्पन्न ATP की संख्या होती है –
(a) 2
(b) 8
(c) 16
(d) 38.
उत्तर-
(d) 38.

5. कोशिका की ऊर्जा मुद्रा है
(a) ATP
(b) RNA
(c) DNA
(d) ADP.
उत्तर-
(a) ATP.

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

6. मनुष्य में सामान्य प्रकुचन रुधिर दाब तथा अनुशिथिलन रुधिर दाब क्रमशः होता है –
(a) 100 एवं 60
(b) 120 एवं 80
(c) 140 एवं 100
(d) 160 एवं 120.
उत्तर-
(b) 120 एवं 80.

7. मनुष्य द्वारा निश्वसन में फेफड़ों द्वारा खींची गयी वायु में ऑक्सीजन का प्रतिशत होता है –
(a) 16%
(b) 21%
(c) 0.03%
(d) 78%
उत्तर-
(b)21%.

8. मनुष्य के रुधिर में पाया जाने वाला श्वसन वर्णक है-
(a) हीमोसायनिन
(b) क्लोरोफिल
(c) हीमोग्लोबिन
(d) जैन्थोफिल।
उत्तर-
(c) हीमोग्लोबिन।

9. उत्सर्जन की क्रिया में भाग लेने वाली वृक्क की इकाई
(a) केशिका
(b) रुधिराणु
(c) कूपिका
(d) वृक्काणु।
उत्तर-
(d) वृक्काणु।

10. प्रकाश-संश्लेषण में पौधे द्वारा निकाली गयी O2 आती
(a) CO2 से
(b) जल से
(c) ग्लूकोज से
(d) ATP से।
उत्तर-
(b) जल से।

11. रुधिर से मूत्र का पृथक्करण होता है
(a) यकृत में
(b) वृक्क में
(c) आमाशय में
(d) मूत्राशय में।
उत्तर-
(b) वृक्क में।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (Fill In the blanks)

1. सप्राण या जीवित वस्तुओं को ……………………………… कहते हैं।
उत्तर-
सजीव,

2. मनुष्य के शरीर में परिवहनं मुख्यतः ……………………………… द्वारा होता है।
उत्तर-
रूधिर,

3. शरीर में विभिन्न पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचरण ……………………………… कहलाता है।
उत्तर-
परिवहन,

4. पौधों के हरे भागों से जल का जलवाष्प के रूप में उड़ना ……………………………… कहलाता है।
उत्तर-
वाष्पोत्सर्जन,

5. मानव पाचन तंत्र ……………………………… तथा उससे सम्बन्ध ……………………………… का बना होता है।
उत्तर-
आहारनाल, ग्रंथियाँ।

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समेलन संबंधी प्रश्न (Matrix Type Questions)

निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए
(a)

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. घास(i) मृतोपजीवी
2. हिरण(ii) उत्पादक (स्वपोषी)
3. अमर बेल(iii) मांसाहारी
4. बाघ(iv) शाकाहारी
5. कवक(v) परजीवी
6. मनुष्य(vi) सर्वाहारी

उत्तर-

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. घास(ii) उत्पादक (स्वपोषी)
2. हिरण(iv) शाकाहारी
3. अमर बेल(v) परजीवी
4. बाघ(iv) शाकाहारी (iii) मांसाहारी
5. कवक(i) मृतोपजीवी
6. मनुष्य(vi) सर्वाहारी

(b)

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. पर्णहरित(i) ऊर्जा ग्रह
2. हीमोग्लोबिन(ii) ऊर्जा मृदा
3. एन्जाइम(iii) जैविक उत्प्रेरक
4. ए.टी.पी(iv) श्वसन वर्णक
5. माइटोकॉन्ड्रिया(v) प्रकाश संश्लेषी वर्णक
6. रुधिर(vi) तरल ऊतक

उत्तर-

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. पर्णहरित(v) प्रकाश संश्लेषी वर्णक
2. हीमोग्लोबिन(iv) श्वसन वर्णक
3. एन्जाइम(iii) जैविक उत्प्रेरक
4. ए.टी.पी(ii) ऊर्जा मृदा
5. माइटोकॉन्ड्रिया(i) ऊर्जा ग्रह
6. रुधिर(vi) तरल ऊतक

(c)

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. जाइलम(i) मनुष्य
2. फ्लोएम(ii) ऊतक द्रव्य
3. दोहरा परिसचरण(iii) खाद्य पदार्थ
4. एकल परिसंचरण(iv) जल व लवण
5. लसीका तंत्र(v) मछली
6. कूपिका(vi) श्व सन सतह

उत्तर-

स्तम्भ Iस्तम्भ II
1. जाइलम(iv) जल व लवण
2. फ्लोएम(iii) खाद्य पदार्थ
3. दोहरा परिसचरण(i) मनुष्य
4. एकल परिसंचरण(v) मछली
5. लसीका तंत्र(ii) ऊतक द्रव्य
6. कूपिका(vi) श्व सन सतह

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व राजनीति में उभरी नई हस्तियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1990 के दशक में विश्व राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था समाप्त हो गई तथा विश्व तेज़ी से एक ध्रुवीय होता चला गया, जिसके प्रभाव को कम करने के लिए कुछ प्रयास भी किये, यूरोपीय संघ की स्थापना इसी प्रकार का प्रयास माना जा सकता है। इसके साथ 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व राजनीति में कुछ नई हस्तियां या राज्य उभरे जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. रूस (Russia):
शीत युद्ध की समाप्ति पर रूस, सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में उभर कर सामने आया, यद्यपि रूस न तो सोवियत संघ के समान सैनिक रूप से शक्तिशाली था और न ही आर्थिक रूप से। अत: रूस को अपनी आर्थिक व्यवस्था को ठीक करके अपना विकास करना था। इसके लिए रूस ने अपने सैनिक खर्चों में कमी करना शुरू किया।

परन्तु इसका एक परिणाम यह निकला कि रूस में बेरोजगारी बढ़ने लगी तथा रूस की आर्थिक व्यवस्था संकट में पड़ गई जिसके परिणामस्वरूप 1992 में रूस में आर्थिक सुधारों को लागू करने की बात की जाने लगी। रूस में समय-समय पर कुछ ऐसी घटनाएं होती रहीं, जिससे रूस को आर्थिक एवं राजनीतिक हानि उठानी पड़ी है।

उदाहरण के लिए 1994 एवं 1999 में चेचन्या विद्रोह, 2000 में परमाणु पनडुब्बी कुर्सक् की जलसमाधि, 2002 में चेचन विद्रोहियों द्वारा मास्को की रंगशाला में लोगों को बन्दी बनाना तथा 2004 में चेचन विद्रोहियों द्वारा ही बेसलान में 1100 स्कूली बच्चों, शिक्षकों तथा अभिभावकों को बन्दी बनाना इत्यादि इसमें शामिल हैं।

इन घटनाओं से रूस की आर्थिक व्यवस्था को काफ़ी हानि पहुंची तथा विश्व स्तर पर भी रूस के महत्त्व में कमी आई। इसके साथ-साथ रूस के अमेरिका के सम्बन्ध भी उतार व चढ़ाव वाले रहे। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् रूस को विश्वास था कि वह अब अपने आर्थिक विकास पर जोर देगा, विश्व राजनीति में पुनः शक्तिशाली बन कर उभरेगा, भारत के साथ अपने सम्बन्धों को और अधिक सुदृढ़ करेगा। कुछ कठिनाइयों के बावजूद भी वर्तमान राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने इन सभी आशाओं को आगे बढ़ाया है।

2. बलकान युद्ध (Balkan States):
बलकान राज्यों में अल्बानिया, बुल्गारिया, बोसनिया तथा हरजेगोविनिया, यूनान, क्रोशिया, मान्टेनीग्रो, मेसेडोनिया तथा तुर्की शामिल हैं। बलकान को प्रायः बलकान प्रायद्वीप भी कह दिया जाता है, क्योंकि यह तीन दिशाओं से पानी से घिरा हुआ है। दक्षिण तथा पश्चिम में भूमध्य सागर की शाखाएं तथा पूर्वी भाग की ओर काला सागर स्थित है। 1980 के दशक में बलकान क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए, जिनसे निपटने के लिए इस क्षेत्र के देशों ने 1988 में बेलग्रेड में एक बैठक आयोजित की।

इस सभा में सभी देशों ने विस्तृत आर्थिक सहयोग के लिए आपस में हाथ मिलाए। 1990 में युगोस्लाविया के विखण्डन ने बलकान राज्यों की एकता को कम करने का काम किया। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् नाटो ने बलकान क्षेत्र में अपने प्रभाव को जमाने का प्रयास किया। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् बलकान क्षेत्र में भी साम्यवाद के स्थान पर राष्ट्रवाद की विचारधारा बढ़ती जा रही थी।

यद्यपि यूगोस्लाविया संकट ने बलकान क्षेत्र में अस्थिरता पैदा की, परन्तु फिर भी शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् बलकान देशों ने विश्व स्तर पर अपनी एक नई पहचान बनाई है तथा स्वयं को विश्व की लोकतान्त्रिक विचारधारा के साथ जोड़ दिया है।

3. केन्द्रीय एशियाई राज्य (Central Asian States):
शीत युद्ध एवं द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की समाप्ति का प्रभाव केन्द्रीय एशियाई राज्यों पर भी पड़ा। सोवियत संघ के विघटन से केन्द्रीय एशिया में कुछ नये राज्यों का उदय हुआ। इनमें उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किरघिस्तान तथा ताजिकिस्तान शामिल हैं।

इस क्षेत्र में शीत युद्ध के पश्चात् अमेरिका ने प्राय: सभी देशों से अपने सम्बन्धों को मधुर बनाने के प्रयास किये। अमेरिका ने इस क्षेत्र में लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण पर जोर दिया। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् इस क्षेत्र में स्थायित्व, आर्थिक विकास, परमाणु हथियारों पर रोक तथा मानवाधिकारों पर बल दिया गया। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अमेरिका ने इस क्षेत्र के देशों को अपना सहयोग दिया।

प्रश्न 2.
भारत-रूस सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। (Explain Indo-Russia relations.)
उत्तर:
सन् 1991 में भूतपूर्व सोवियत संघ का विघटन हो गया और उसके 15 गणराज्यों ने स्वयं को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया। रूस भी इन्हीं में से एक है। फरवरी, 1992 में भारतीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को विश्वास दिलाया कि भारत के साथ रूस के सम्बन्ध में कोई गिरावट नहीं आएगी और वे पहले की ही तरह मित्रवत् और सहयोग पूर्ण बने रहेंगे।

आज भारत और रूस में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तीन दिन की ऐतिहासिक यात्रा पर 27 जनवरी, 1993 को दिल्ली पहुंचे। राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव वार्ता में मुख्यत: आर्थिक एवं व्यापारिक विवादों के समाधान और द्विपक्षीय सहयोग के लिए एजेंडे पर विशेष जोर दिया गया।

दोनों देशों के बीच 10 समझौते हुए जिनमें रुपया-रूबल विनिमय दर तथा कर्जे की मात्रा व भुगतान सम्बन्धी जटिल समस्याओं पर हुआ समझौता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों देशों में 20 वर्ष के लिए मैत्री एवं सहयोग की सन्धि हुई। यह सन्धि 1971 की सन्धि से इस रूप से भिन्न है कि इसमें सामरिक सुरक्षा सम्बन्धी उपबन्ध शामिल नहीं है। लेकिन 14 उपबन्धों वाली इस नई सन्धि में यह प्रावधान अवश्य रखा गया है कि दोनों देश ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे एक-दूसरे के हितों पर आंच आती है। वाणिज्य तथा आर्थिक सम्बन्धों के संवर्धन के लिए चार समझौते सम्पन्न हुए। इन समझौतों से व्यापार में भारी वृद्धि की आशा की गई है।

भारत रूस समझौतों से रूस को निर्यात करने वाले भारतीय व्यापारियों की परेशानी भी दूर हो गई है। भारतीय सेनाओं के लिए रक्षा कलपुर्जो की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत त्रिसूत्रीय फार्मूला दोनों देशों ने स्वीकार कर लिया। इस सहमति से भारत को रूस की रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी और संयुक्त उद्यमों में भी उसकी भागीदारी होगी। राजनीतिक स्तर पर राष्ट्रपति येल्तसिन तथा प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की सहमति भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता है।

रूसी राष्ट्रपति ने कश्मीर के मामले पर भारत की नीति का पूर्ण समर्थन किया और यह वचन दिया कि रूस पाकिस्तान को किसी भी तरह की तकनीकी तथा सामरिक सहायता नहीं देगा। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत को समर्थन प्रदान करेगा। सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए भी रूस भारत के दावे का समर्थन करेगा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हा राव रूस की यात्रा पर गए। भारत और रूस के मध्य वहां आपसी सहयोग व सैनिक सहयोग के क्षेत्र में 11 समझौते हुए। प्रधानमन्त्री राव की इस यात्रा से भारत और रूस के मध्य नवीनतम तकनीक के आदान-प्रदान के क्षेत्र पर बल दिया गया। रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1994 में रूस के प्रधानमन्त्री विक्टर चेरनोमिर्दीन भारत की यात्रा पर आए। भारत और रूस के बीच आठ समझौते हुए। इन समझौतों में सैनिक और तकनीकी सहयोग भी शामिल हैं। इन समझौतों का भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।

प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा की रूस यात्रा-मार्च, 1997 में भारत के प्रधानमन्त्री एच०डी० देवगौड़ा रूस गए। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री चेरनोमिर्दिन से बातचीत कर परम्परागत मित्रता बढ़ाने के लिए कई उपायों पर द्विपक्षीय सहमति हासिल की। रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टर देने के पुराने निर्णय को पुष्ट किया।

परमाणु परीक्षण-11 मई, 1998 को भारत ने तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। अमेरिका ने भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जिसकी रूस ने कटु आलोचना की। 21 जून, 1998 को रूस के परमाणु ऊर्जा मन्त्री देवगेनी अदामोव और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ० आर० चिदम्बरम ने नई दिल्ली में तमिलनाडु के कुरनकुलम में अढाई अरब की लागत से बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयन्त्र के सम्बन्ध में समझौता किया।

रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1998 में रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव भारत की यात्रा पर आए। 21 दिसम्बर, 1998 को दोनों देशों ने आपसी सहयोग के सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों के रक्षा सहयोग की अवधि सन् 2000 से 2010 तक बढ़ाने का निर्णय किया। रूसी प्रतिरक्षा मन्त्री की भारत यात्रा-मार्च, 1999 को रूस के प्रतिरक्षा मन्त्री मार्शल इगोर दमित्रियेविच सर्गियेव (Marshall Igor Dmitrievich Suergeyev) पांच दिन के लिए भारत की यात्रा पर आए।

22 मार्च, 1999 को रूसी प्रतिरक्षा मन्त्री ने भारत के साथ एक महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौता किया जिसके अन्तर्गत भारतीय सेना अधिकारियों को रूस के सैनिक शिक्षण संस्थाओं में प्रशिक्षण दिया जाएगा। भारतीय प्रतिरक्षा मन्त्री जार्ज फर्नांडीज़ ने इस रक्षा समझौते को भारत और मास्को के बीच दीर्घकालीन समझौता बताया।

रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अक्तूबर, 2000 में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत की यात्रा पर आए। अपनी यात्रा के दौरान रूसी राष्ट्रपति ने भारत के साथ क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के अलावा के अनेक विषयों पर बातचीत की। दोनों देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, विघटनवाद, संगठित मज़हबी अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ़ सहयोग करने पर भी सहमति जताई। दोनों देशों ने आपसी हित के 17 विभिन्न विषयों पर समझौते किए। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझौता सामरिक भागीदारी का घोषणा-पत्र रहा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी रूस यात्रा पर गए। वाजपेयी एवं रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने शिखर वार्ता करके ‘मास्को घोषणा पत्र’ जारी किया जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कही गई। रूस ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भरपूर समर्थन किया। इसके अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रों में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए।

रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2004 में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारत की यात्रा की। भारत एवं रूस ने आतंकवाद से एकजुट तरीके से निपटने एवं आर्थिक व्यापारिक सहयोग बढ़ाने के सामरिक महत्त्व के एक संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये। रूस ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का वीटो सहित समर्थन किया। रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2008 में रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत यात्रा पर आए तथा भारत के साथ अपने सम्बन्धों को और प्रगाढ़ बनाया।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह दिसम्बर, 2009 में भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस यात्रा पर गये। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने असैन्य परमाणु समझौता किया। रूसी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-मार्च, 2010 में रूसी प्रधानमन्त्री श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा एवं सहयोग के पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए रूस के राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों दोनों दोनों देशों ने 30 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2011 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने रूस की यात्रा की।

इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किये। रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2012 में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा एवं सहयोग के 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-3 अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने कुडनकुलम बिजली परियोजना, राकेट, मिसाइल, नौसैना, प्रौद्योगिकी और हथियार प्रणाली के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया। दिसम्बर, 2014 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

दिसम्बर, 2015 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा, व्यापार एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे 16 महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। अक्तूबर, 2016 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। उन्होंने भारत में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लिया तथा भारत के साथ 16 समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये। – जून 2017 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 5 महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये। अक्तूबर 2018 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन वार्षिक शिखर वार्ता के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने आठ महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

सितम्बर, 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 15 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। निःसन्देह भारत और रूस में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। सभी विवाद हल हो चुके हैं, गतिरोध दूर हो चुके हैं और नए सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। दोनों देशों के बीच एक नई समझदारी हुई है जो नई विश्व-व्यवस्था में योगदान कर सकती है। रूस पुरानी मित्रता को निरन्तर निभा रहा है और यह निर्विवाद है कि भारत और रूस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने से दोनों देशों की ताकत बढ़ेगी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 3.
सोवियत संघ के विघटन के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित कारण थे

(1) सोवियत संघ राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका था।

(2) उपभोक्ता वस्तुओं की कमी ने सोवियत संघ के नागरिकों में असंतोष भर दिया।

(3) सोवियत संघ के लोग मिखाइल गोर्बाचेव के सुधारों की धीमी गति से सन्तुष्ट नहीं थे।

(4) सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन लगभग 70 सालों तक रहा है। परन्तु वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। इस कारण सोवियत संघ के नागरिक इस पार्टी से छुटकारा पाना चाहते थे।

(5) सोवियत संघ ने समय-समय पर अत्याधुनिक एवं हथियार बनाकर अमेरिका की बराबरी करने का प्रयास किया, परन्तु धीरे-धीरे उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

(6) अत्यधिक खर्चों के कारण सोवियत संघ बुनियादी ढांचे एवं तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ता गया।

(7) सोवियत संघ राजनीतिक एवं आर्थिक तौर पर अपने नागरिकों के समक्ष पूरी तरह सफल नहीं हो पाया।

(8) 1979 में अफ़गानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप के कारण सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था और भी कमज़ोर हो गई।

प्रश्न 4.
द्वि-ध्रवीयकरण के लाभ तथा हानियाँ लिखो।
अथवा
द्वि-ध्रुवीयकरण के लाभ लिखिए।
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीयकरण के लाभ

1. विचारधाराओं को प्रोत्साहन-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह है कि इस विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विचारधाराओं को बहुत महत्त्व एवं प्रोत्साहन दिया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों गुटों ने अर्थात् अमेरिका तथा सोवियत संघ ने अपनी-अपनी विचारधाराओं को प्रोत्साहित किया। जहां अमेरिका ने पूंजीवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया, वहीं सोवियत संघ ने साम्यवादी विचारधारा को प्रोत्साहन दिया।

2. शक्ति में समानता-द्वि-ध्रुवीय विश्व में दोनों गुटों की शक्ति लगभग समान होती है। दोनों गुटों में शक्ति बराबर होने से सदैव संघर्ष की शक्ति बनी रहती है।

3. शान्ति स्थापना में सहायक-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इसके द्वारा विश्व में शान्ति स्थापना में सहायता मिलती है। द्वि-ध्रुवीय विश्व में जो प्रतिस्पर्धा पैदा होती है या जो संघर्ष पैदा होता है, वह केवल दोनों गुटों तक ही सीमित रहता है। शेष विश्व इस संघर्ष से अछूता रहता है।

द्वि-धुवीयकरण की हानियाँ

1. शस्त्रीकरण को बढावा-द्वि-ध्रुवीय विश्व का सबसे पहला दोष या हानि यह है कि इस व्यवस्था के कारण शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिलता है। दोनों गुटों में एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली होने के लिए सदैव प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। इसके लिए दोनों गुट सभी तरह के हथकण्डे अपनाते हैं, जिससे शस्त्रीकरण एक महत्त्वपूर्ण साधन है। शस्त्रीकरण से विश्व में शस्त्र दौड़ को बढ़ावा मिलता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सदैव तनाव बना रहता है।

2. युद्धों को बढ़ावा-द्वि-ध्रुवीय विश्व के कारण सदैव युद्ध का खतरा मंडराता रहता है। द्वि-ध्रुवीय विश्व में दोनों गुट सदैव एक-दूसरे से आगे निकलने के प्रयास में रहते हैं। इसके लिए दोनों गुट एक-दूसरे को सदैव हानि पहुंचाने की कोशिश में लगे रहते हैं जिससे सदैव युद्ध की सम्भावना बनी रहती है।

3. अशान्त वातावरण-द्वि-ध्रुवीय में जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि सदैव शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिलता है, युद्ध की सम्भावना बनी रहती है। इन सभी स्थितियों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अशान्त वातावरण की स्थिति रहती है, लोगों में सदैव भय एवं आतंक व्याप्त रहता है।

प्रश्न 5.
उत्तर साम्यवादी राज्यों से आपका क्या अभिप्राय है ? लोकतान्त्रिक राजनीति व पूंजीवाद को अपनाने के मुख्य तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
1990 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति एवं सोवियत संघ के विघटन से कई नये राज्य विश्व राजनीति में उभर कर सामने आए, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा रहे थे। इन्हें ही उत्तर-साम्यवादी राज्य कहा जाता है। इन दोनों में तथा सोवियत गुट के कुछ अन्य साम्यवादी देशों में धीरे-धीरे लोकतांत्रिक राजनीति और पूंजीवाद का प्रवेश ने लगा। उदाहरण के लिए पूर्वी जर्मनी तथा पश्चिमी जर्मनी जब एक हए तब पूर्वी जर्मनी में जोकि शीत युद्ध के समय सोवियत संघ के साथ था, में लोकतान्त्रिक एवं पूंजीवाद की हवा चलने लगी थी। निम्नलिखित कारणों से इन देशों ने लोकतान्त्रिक राजनीति एवं पूंजीवाद को अपनाया

(1) उत्तर साम्यवादी देशों को यह लग रहा था कि उनके आर्थिक पिछड़ेपन का कारण उनकी शासन व्यवस्था थी। इसी कारण इन उत्तर साम्यवादी देशों ने अपने देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के साथ आर्थिक सुधारों को लागू किया।

(2) उत्तर-साम्यवादी राज्यों ने अपने राज्य में लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाने के लिए इसे अपनाया। (3) इन राज्यों ने अपने देशों में राजनीतिक स्थिरता के लिए इस व्यवस्था को अपनाया।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के अर्थ की व्याख्या करें।
उत्तर:
द्वितीय महायुद्ध के बाद एक महत्त्वपूर्ण घटना यह घटी कि अधिकांश महाशक्तियाँ कमज़ोर हो गईं और केवल अमेरिका और रूस ही ऐसे देश बचे जो अब भी शक्तिशाली कहला सकते थे। इस प्रकार युद्ध के उपरान्त शक्ति का एक नया ढांचा (New Power Structure) विश्व स्तर पर उभरा जिसमें केवल दो ही महाशक्तियां थीं जो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावशाली थीं। ये शक्तियां थीं-सोवियत रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका।

दो गुटों, ब्लाक या कैम्प (Block or Camp) में बंटे विश्व को द्वि-ध्रुवीय विश्व का नाम एक अंग्रेज़ी इतिहासकार टायनबी (Toynbee) ने दिया था। उन दिनों में टायनबी ने लिखा था, “विश्व के सभी देश कुछ न कुछ मात्रा में अमेरिका या रूस पर आश्रित हैं। कोई भी पूर्णत: इन दोनों से स्वतन्त्र नहीं है।” यही द्वि-ध्रुवीय विश्व है। नार्थऐज और ग्रीव के अनुसार, “द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जो प्रमुख परिवर्तन आया वह था अमेरिका और रूस का महाशक्तियों के रूप में उदय होना और साथ ही साथ यूरोप विश्व कूटनीति के केन्द्र के रूप में पतन होना।”

मॉर्गेन्थो के अनुसार, द्वितीय महायुद्ध के बाद “संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस की अन्य देशों की तुलना में शक्ति इतनी अधिक बढ़ गई थी कि वह स्वयं ही एक-दूसरे को सन्तुलित कर सकते थे। इस प्रकार शक्ति सन्तुलन बहुध्रुवीय से द्वि-ध्रुवीय में बदल गया था।” इस प्रकार द्वितीय महायद्ध के बाद कई वर्षों तक ये दो महाशक्तियाँ ही विश्व स्तर पर प्रभत्वशाली बनी रहीं और समस्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बिन्दु थीं। शक्ति संरचना का यह रूप ही द्वि-ध्रुवीय या द्वि-केन्द्रीय विश्व या व्यवस्था के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
द्वितीय विश्व के बिखराव के कोई चार कारण लिखें।
अथवा
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था की समाप्ति के लिये उत्तरदायी कोई चार कारण लिखें।
अथवा
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था की समाप्ति हेतु उत्तरदायी किन्हीं चार कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन के निम्नलिखित कारण थे

1. अमेरिकी गुट में फूट-द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का एक प्रमुख कारण अमेरिकी गुट में फूट पड़ना था। फ्रांस तथा इंग्लैंड जैसे देश अमेरिका पर अविश्वास करने लगे थे।

2. सोवियत गुट में फूट-जिस प्रकार अमेरिकी गुट में फूट द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का एक कारण बनी, वहीं सोवियत गुट में पड़ी फूट ने भी द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को पतन की ओर धकेला।

3. सोवियत संघ का पतन-द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सोवियत संघ का पतन था। एक गुट के पतन से द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्वयमेव ही समाप्त हो गई।

4. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका-द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका भी थी। गट-निरपेक्ष आन्दोलन ने अधिकांश विकासशील देशों को दोनों गटों से अलग रहने की सलाह दी।

प्रश्न 3.
उत्तर साम्यवादी शासन व्यवस्थाओं में लोकतान्त्रिक राजनीति एवं पूंजीवाद के प्रवेश का वर्णन करें।
उत्तर:
1990 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति एवं सोवियत संघ के विघटन से कई नये राज्य विश्व राजनीति में उभर कर सामने आए, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा रहे थे। इन दोनों में तथा सोवियत गुट के कुछ अन्य साम्यवादी देशों में धीरे-धीरे लोकतान्त्रिक राजनीतिक और पूंजीवाद का प्रवेश होने लगा। उदाहरण के लिए पूर्वी जर्मनी तथा पश्चिमी जर्मनी जब एक हुए तब पूर्वी जर्मनी में जोकि शीत युद्ध के समय सोवियत संघ के साथ था में लोकतान्त्रिक एवं पूंजीवाद की हवा चलने लगी थी।

उत्तर साम्यवादी देशों को यह लग रहा था कि उनके आर्थिक पिछड़ेपन का कारण उनकी शासन व्यवस्था थी। इसी कारण इन उत्तर साम्यवादी देशों ने अपने देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के साथ आर्थिक सुधारों को लागू किया। चीन जैसे साम्यवादी देश ने भी 1990 के दशक में पश्चिम आधारित आर्थिक व्यवस्था को धीरे-धीरे अपने राज्य में लागू किया। उत्तर साम्यवादी देशों में लोकतान्त्रिक राजनीति एवं पूँजीवाद को बढ़ावा देने में अमेरिका ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 4.
भारत के उत्तर साम्यवादी देशों के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत ने शीत युद्ध की समाप्ति एवं सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् उत्तर-साम्यवादी देशों से अपने सम्बन्धों को नई दिशा देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। सोवियत संघ से अलग होने वाले 15 गणराज्यों से . अपने सम्बन्ध बनाने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति एवं अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं ने इन देशों की यात्राएं की तथा कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारत ने तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान तथा किरगिस्तान से राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा कूटनीतिक सहयोग के लिए एक विशेष ढांचे का निर्माण किया। 1993 में भारतीय प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिम्हा राव ने उजबेकिस्तान तथा कजाखिस्तान की यात्रा करके उनके साथ आर्थिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों को मजबूत किया। इसी तरह भारत ने मध्य पूर्व के अन्य उत्तर साम्यवादी देशों तथा यूरोप एवं एशिया के उत्तर साम्यवादी देशों से अपने सम्बन्ध मज़बूत बनाए।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 5.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के विकास के क्या कारण थे ?
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय विश्व के विकास के निम्नलिखित कारण थे

1. शीत युद्ध का जन्म-द्वि-ध्रुवीय विश्व के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध था। शीत युद्ध के कारण ही विश्व अमेरिकन एवं सोवियत गुट के रूप में दो भागों में विभाजित हो गया था।

2. सैनिक गठबन्धन-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक कारण सैनिक गठबन्धन था। सैनिक गठबन्धन के कारण अमेरिका एवं सोवियत संघ में सदैव संघर्ष चलता रहता था।

3. पुरानी महाशक्ति का पतन-दूसरे विश्व युद्ध के बाद इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, इटली तथा जापान जैसी पुरानी महाशक्तियों का पतन हो गया तथा विश्व में अमेरिका एवं सोवियत संघ दो ही शक्तिशाली देश रह गए थे इस कारण विश्व द्वि-ध्रुवीय हो गया।

4. अमेरिका की विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक अन्य कारण अमेरिका का विश्व राजनीति में सक्रिय भाग लेना भी था।

प्रश्न 6.
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था भी अमेरिका की ही भान्ति अन्य देशों से बहुत आगे थी।
  • सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत अधिक विकसित एवं उन्नत थी।
  • सोवियत संघ के पास ऊर्जा संसाधन के विशाल भण्डार थे, जिसमें खनिज तेल, लोहा, इस्पात एवं मशीनरी शामिल हैं।
  • सरकार ने अपने नागरिकों को सभी प्रकार की बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर रखी थी, जिसमें स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, चिकित्सा सुविधा तथा यातायात सुविधा शामिल हैं।

प्रश्न 7.
सोवियत प्रणाली की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • सोवियत संघ की राजनीतिक प्रणाली समाजवादी व्यवस्था पर आधारित थी।
  • सोवियत प्रणाली आदर्शों एवं समतावादी समाज पर बल देती है।
  • सोवियत प्रणाली पूंजीवादी एवं मुक्त व्यापार के विरुद्ध थी।
  • सोवियत प्रणाली में कम्युनिस्ट पार्टी को अधिक महत्त्व दिया जाता था।

प्रश्न 8.
सोवियत संघ में पाई जाने वाली नौकरशाही की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • सोवियत संघ में नौकरशाही धीरे-धीरे तानाशाही एवं सत्तावादी होती चली गई।
  • नौकरशाही के उदासीन व्यवहार से नागरिकों की दिनचर्या मश्किल होती गई।
  • सोवियत संघ की नौकरशाही किसी के भी प्रति उत्तरदायी नहीं थी।
  • नौकरशाही में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार भी बढ़ता गया।

प्रश्न 9.
मिखाइल गोर्बाचेव के समय में सोवियत संघ में घटित होने वाली किन्हीं चार घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • गोर्बाचेव के समय कई साम्यवादी देश लोकतान्त्रिक ढांचे में ढलने लगे थे।
  • गोर्बाचेव द्वारा शुरू की गई सुधारों की प्रक्रिया से कई साम्यवादी नेता असन्तुष्ट थे।
  • गोर्बाचेव के साथ सोवियत संघ में धीरे-धीरे राजनीतिक एवं आर्थिक संकट गहराने लगा।
  • पूर्वी यूरोप की कई साम्यवादी सरकारें एक के बाद एक गिरने लगीं।

प्रश्न 10.
सोवियत संघ के विघटन के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:

  • सोवियत संघ राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुका था।
  • उपभोक्ता वस्तुओं की कमी ने सोवियत संघ के नागरिकों में असंतोष भर दिया।
  • सोवियत संघ के लोग मिखाइल गोर्बाचेव के सुधारों की धीमी गति से सन्तुष्ट नहीं थे।
  • सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन लगभग 70 सालों तक रहा है। परन्तु वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। इस कारण सोवियत संघ के नागरिक इस पार्टी से छुटकारा पाना चाहते थे।

प्रश्न 11.
सोवियत संघ के विघटन के विश्व राजनीति पर पड़ने वाले कोई चार प्रभाव लिखें।
अथवा
सोवियत संघ के विघटन के कोई चार परिणाम लिखिए।
उत्तर:
सोवियत संघ के पतन के निम्नलिखित चार परिणाम निकले

  • सोवियत संघ के पतन से द्वितीय विश्व युद्ध से जारी शीत युद्ध समाप्त हो गया।
  • सोवियत संघ के पतन से खतरनाक एवं परमाणु हथियारों की होड़ समाप्त हो गई।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के समर्थक अमेरिका का प्रभाव पहले से और अधिक बढ़ गया।
  • विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी पूंजीवादी समर्थक आर्थिक संस्थाएं विभिन्न देशों की प्रभावशाली सलाहकार बन गईं।

प्रश्न 12.
शॉक थेरेपी के अन्तर्गत किये गए किन्हीं चार कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
शॉक थेरेपी के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य किये गए

  • शॉक थेरेपी द्वारा साम्यवादी अर्थव्यवस्था को समाप्त करके सम्पत्ति का निजीकरण करना था।
  • शॉक थेरेपी के अन्तर्गत मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया गया।
  • शॉक थेरेपी के अन्तर्गत सोवियत संघ के आर्थिक गठबन्धनों को समाप्त करके इन देशों को पश्चिमी देशों से जोड़ दिया गया।
  • शॉक थेरेपी के अन्तर्गत सामूहिक खेती को निजी खेती में बदल दिया गया।

प्रश्न 13.
शॉक-थेरेपी के कोई चार परिणाम लिखिये ।
उत्तर:
शॉक थेरेपी के निम्नलिखित परिणाम निकले

  • शॉक थेरेपी के कारण नागरिकों के लिए आजीविका कमाना कठिन हो गया।
  • शॉक थेरेपी के कारण रूसी मुद्रा रूबल का काफ़ी अवमूल्यन हो गया।
  • शॉक थेरेपी के कारण मुद्रा स्फीति के बढ़ने से महंगाई कई गुना बढ़ गई।
  • शॉक थेरेपी के कारण सोवियत संघ की औद्योगिक व्यवस्था कमजोर हो गई तथा उसे औने-पौने दामों में निजी हाथों में बेच दिया गया।

प्रश्न 14.
भारत को रूस के साथ अच्छे सम्बन्ध रखकर प्राप्त होने वाले लाभ बताएं ।
उत्तर:
भारत को रूस के साथ अच्छे सम्बन्ध रखकर निम्नलिखित लाभ हुए हैं

  • रूस ने सदैव अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ दिया है।
  • भारत को रूस से सदैव अत्याधुनिक हथियार प्राप्त हुए हैं, जो भारतीय सेना को शक्तिशाली बनाने में सहायक हुए हैं।
  • भारत रूस के माध्यम से काफ़ी हद तक अपनी ऊर्जा की आवश्यकताएं पूरी करता है।
  • रूस ने भारत को परमाणु क्षेत्र में भी हर सम्भव सहयोग दिया है।

प्रश्न 15.
भारत-सोवियत संघ के आर्थिक सम्बन्धों की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत-सोवियत संघ के मध्य आर्थिक सम्बन्धों का वर्णन इस प्रकार है

  • सोवियत संघ ने विशाखापट्टनम, बोकारो तथा भिलाई के इस्पात करखानों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की है।
  • सोवियत संघ ने भारत को सदैव कम मूल्यों पर हथियार दिये हैं।
  • सोवियत संघ ने भारत की सार्वजनिक कम्पनियों को भी हर तरह की सहायता प्रदान की है।
  • सोवियत संघ ने भारत के साथ उस समय रुपये के माध्यम से भी व्यापार किया जब भारत के पास विदेशी मुद्रा की कमी थी।

प्रश्न 16.
द्वि-ध्रुवीयकरण के चार लाभ लिखें।
उत्तर:

  • विचारधाराओं को प्रोत्साहन-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह है कि इस विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विचारधाराओं को बहुत महत्त्व एवं प्रोत्साहन दिया जाता है।
  • शान्ति स्थापना में सहायक-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक महत्त्वपूर्ण लाभ है कि इसके द्वारा विश्व में शान्ति स्थापना में सहायता मिलती है।
  • शक्ति की समानता-द्वि-ध्रुवीय विश्व में दोनों गुटों की शक्ति लगभग समान होती है।
  • तनावों को कम करने में सहायक-द्वि-ध्रुवीयकरण अन्तर्राष्ट्रीय तनावों को कम करने में सहायक होती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“द्वि-ध्रुवीयता’ से क्या तात्पर्य है ?
अथवा
“द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था” से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था का अर्थ यह है कि विश्व का दो गुटों में बंटा होना। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व पूंजीवादी तथा साम्यवादी दो गुटों में बंट गया। पूंजीवादी गुट का नेता अमेरिका एवं साम्यवादी गुट का नेता सोवियत संघ था। नार्थ ऐज और ग्रीव के अनुसार, “द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जो प्रमुख परिवर्तन आया वह था, अमेरिका और रूस का महाशक्तियों के रूप में उदय होना और साथ ही यूरोप विश्व कूटनीति के केन्द्र के रूप में पतन होगा।”

प्रश्न 2.
द्वितीय महायुद्ध से निकली शक्ति संरचना की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  • द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् विभिन्न राष्ट्रों की शक्ति स्थिति में परिवर्तन आया था, जिसके कारण शक्ति की एक नई संरचना का उदय हुआ।
  • द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् लगभग सभी साम्राज्यवादी देश शक्तिहीन हो चुके थे, जिससे उनके अधीन अधिकांश देश स्वतन्त्र हो गए।

प्रश्न 3.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:

1. विचारधाराओं को प्रोत्साहन-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह है कि इस विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विचारधाराओं को बहुत महत्त्व एवं प्रोत्साहन दिया जाता है।
2. शान्ति स्थापना में सहायक-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक महत्त्वपूर्ण लाभ है कि इसके द्वारा विश्व में शान्ति स्थापना में सहायता मिलती है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 4.
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था की कोई दो हानियाँ बताइए।
उत्तर:
1. शस्त्रीकरण को बढ़ावा-द्वि-ध्रुवीय विश्व की सबसे बड़ी हानि यह है कि इसमें शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सदैव तनाव बना रहता है।
2. युद्धों को बढ़ावा-द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में दोनों गुट एक-दूसरे को सदैव हानि पहुंचाने की कोशिश में लगे रहते हैं, जिससे सदैव युद्ध की सम्भावना बनी रहती है।

प्रश्न 5.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बंटा था, एक गुट अमेरिका का था तथा दूसरा गुट सोवियत संघ का था। लगभग सम्पूर्ण विश्व इन दो गुटों में था। इसलिए विश्व को द्वि-ध्रुवीय कहा जाता था। परन्तु 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो जाने से विश्व का एक ध्रुव समाप्त हो गया। इसी को द्वि-ध्रुवीय का पतन कहा जाता है।

प्रश्न 6.
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था के पतन के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
1. सोवियत संघ का पतन-द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का एक कारण सोवियत संघ का पतन था। एक गुट के पतन से द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था अपने आप समाप्त हो गई।
2. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका-द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भी भूमिका थी। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अधिकांश विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रहने की सलाह दी।

प्रश्न 7.
मध्य एशियाई देशों के नाम लिखें।
उत्तर:
मध्य एशियाई देशों मे उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किरघिस्तान तथा ताजिकिस्तान शामिल हैं।

प्रश्न 8.
बलकान राज्यों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बलकान का अर्थ टूटन या विभाजन होता है। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में अनेकों बड़े-बड़े साम्राज्यों का विघटन हुआ, जिसके कारण कई छोटे-बड़े राज्य अस्तित्व में आए। बलकान राज्यों में अल्बानिया, बुल्गारिया, बोसनिया, हरजेगोविनिया, यूनान, क्रोशिया, मान्टेनीग्रो, मेसेडोनिया तथा तुर्की शामिल हैं। बलकान क्षेत्र को यूरोप के दंगल का अखाड़ा माना जाता रहा है।

प्रश्न 9.
बलकान को प्रायः बलकान प्रायद्वीप क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
बलकान को प्राय: बलकान प्रायद्वीप इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह तीन दिशाओं से पानी से घिरा हुआ है। इसके दक्षिण तथा पश्चिम में भूमध्य सागर की शाखाएं तथा पूर्वी भाग की ओर काला सागर स्थित है।

प्रश्न 10.
रूस में राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
सोवियत संघ के पतन के पश्चात् रूस इसके उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया तथा इसके प्रथम राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन बने। येल्तसिन ने रूस की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को ठीक करने के लिए कदम उठाए। बोरिस येल्तसिन ने भारत जैसे अपने अन्य मित्र देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखे तथा अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोप से भी अपने सम्बन्ध सुधारने के प्रयास किए।

प्रश्न 11.
रूस में ब्लादिमीर पुतिन की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
ब्लादिमीर पतिन 2000 में येल्तसिन के स्थान पर रूस के राष्टपति बने। पतिन ने चेचन विद्रोहियों के विरुद्ध कडा रुख अपनाया। उन्होंने रूस की आर्थिक व्यवस्था को ठीक किया तथा अमेरिका के साथ मिलकर हथियारों में कमी करने का प्रयास किया। ब्लादिमीर पुतिन के शासनकाल में रूस पुनः शक्ति केन्द्र के रूप में उभर रहा है।

प्रश्न 12.
विश्व राजनीति में उभरी किन्हीं दो हस्तियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. रूस-शीत युद्ध की समाप्ति पर रूस, सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में उभर कर सामने आया। कुछ कठिनाइयों के बावजूद वर्तमान राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने रूसी आशाओं को आगे बढ़ाया है।
2. केन्द्रीय एशियाई राज्य-शीत युद्ध एवं सोवियत संघ की समाप्ति से केन्द्रीय एशिया में कुछ नये राज्यों का उदय हुआ, जिसमें उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किरघिस्तान तथा ताजिकिस्तान शामिल हैं।

प्रश्न 13.
ब्लादिमीर लेनिन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
ब्लादिमीर लेनिन रूस के बोल्शेविक साम्यवादी दल का संस्थापक था। उसके नेतृत्व में 1917 में जार के विरुद्ध क्रान्ति हुई थी। लेनिन ने रूस की खराब हुई आर्थिक व्यवस्था को ठीक किया तथा रूस में साम्यवादी शासन को मज़बूत किया। लेनिन ने रूस में मार्क्सवाद के विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया।

प्रश्न 14.
द्वितीय विश्व किसे कहते हैं ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में बंट गया। एक गुट का नेतृत्व पूंजीवादी देश संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। इस गुट के देशों को पहली दुनिया भी कहा जाता है। दूसरे गुट का नेतृत्व साम्यवादी सोवियत संघ कर रहा था, इस गुट के देशों को ही दूसरी दुनिया कहा जाता है।

प्रश्न 15.
बर्लिन की दीवार के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान जर्मनी दो भागों में बंट गया था। पश्चिमी जर्मनी संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव में था जबकि पूर्वी जर्मनी साम्यवादी सोवियत संघ के प्रभाव में थे। सन् 1961 में दोनों भागों के बीच में एक दीवार बना दी गई, जिसे बर्लिन की दीवार कहते थे। यह दीवार पूर्वी जर्मनी तथा पश्चिमी जर्मनी को बांटती थी। 9 नवम्बर, 1989 को इस दीवार को तोड़कर जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।

प्रश्न 16.
सोवियत प्रणाली के कोई दो दोष लिखिए।
उत्तर:

  • सोवियत साम्यवादी व्यवस्था धीरे-धीरे सत्तावादी हो गई थी, इसमें नौकरशाही का प्रभाव बढ़ गया था।
  • सोवियत साम्यवादी व्यवस्था में केवल एक ही दल साम्यवादी दल का ही शासन था, जोकि किसी के प्रति भी उत्तरदायी नहीं था।

प्रश्न 17.
जोजेफ स्टालिन के समय में सोवियत संघ द्वारा प्राप्त कोई दो उपलब्धियां लिखें।
उत्तर:

  • जोजेफ स्टालिन के शासनकाल के समय सोवियत संघ एक महाशक्ति के रूप में स्थापित हुआ।
  • जोजेफ स्टालिन के शासनकाल में सोवियत संघ में औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 18.
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में गतिरोध क्यों आया ? कोई दो कारण दें।
उत्तर:

  • सोवियत संघ ने लगातार अपने संसाधनों को परमाणु एवं सैनिक कार्यों में खर्च किया, जिससे सोवियत संघ में आर्थिक संसाधनों की कमी हो गई।
  • सोवियत संघ के पिछलग्गू देशों का आर्थिक भार भी सोवियत संघ पर ही पड़ता था जिससे धीरे-धीरे सोवियत संघ आर्थिक तौर पर कमज़ोर होता चला गया।

प्रश्न 19.
सोवियत संघ में राजनैतिक गतिरोध पैदा करने में कम्युनिस्ट पार्टी किस प्रकार जिम्मेदार थी, कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • कम्युनिस्ट पार्टी ने सोवियत संघ में लगभग 70 साल शासन किया, परन्तु वे किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं थी।
  • कम्युनिस्ट पार्टी के गैर-ज़िम्मेदार एवं अक्षम होने के कारण धीरे-धीरे सोवियत संघ में भ्रष्टाचार फैलने लगा।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 20.
1917 की रूसी क्रान्ति के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • रूस के तत्कालीन शासक जार के उदासीन व्यवहार एवं पूंजीवादी प्रणाली का समर्थन करने के कारण क्रान्ति हुई।
  • रूस में आदर्शवादी एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिए क्रान्ति हुई।

प्रश्न 21.
सोवियत संघ के विघटन के कोई दो कारण लिखिये।
अथवा
भूतपूर्व सोवियत संघ के पतन के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • सोवियत संघ के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव द्वारा चलाये गए राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार कार्यक्रम थे।
  • सोवियत संघ के पतन का दूसरा तत्कालिक कारण सोवियत संघ के गणराज्यों में प्रजातान्त्रिक एवं उदारवादी भावनाएं पैदा होना है।

प्रश्न 22.
सोवियत संघ के पतन के कोई दो सकारात्मक परिणाम लिखिए।
उत्तर:

  • सोवियत संघ के पतन के कारण शीत युद्ध भी समाप्त हो गया।
  • सोवियत संघ के पतन के साथ ही खतरनाक अस्त्रों-शस्त्रों की होड़ भी समाप्त हो गई।

प्रश्न 23.
अमेरिका के एकमात्र महाशक्ति होने के काई दो दुष्परिणाम लिखें।
उत्तर:

  • अमेरिका के एकमात्र महाशक्ति होने के कारण वह अनावश्यक रूप से कई क्षेत्रों में राजनीतिक एवं सैनिक हस्तक्षेप करने लगा।
  • अमेरिका के एकमात्र महाशक्ति होने के कारण विश्व के अधिकांश आर्थिक संगठनों पर अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

प्रश्न 24.
‘इतिहास की सबसे बड़ी गैराज सेल’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
सोवियत संघ के पतन के पश्चात् अस्तित्व में आये गणराज्यों ने ‘शॉक थेरेपी’ की विधि द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने का प्रयास किया। परन्तु ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामस्वरूप लगभग पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को लाभ की अपेक्षा हानि हुई। रूस में राज्य नियन्त्रित औद्योगिक ढांचा ढहने लगा। लगभग 90% उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेचा गया, इसे ही इतिहास की सबसे बड़ी गैराज सेल’ कहा जाता है।

प्रश्न 25.
‘शॉक थेरेपी’ के सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर पड़ने वाले कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • ‘शॉक थेरेपी’ के प्रयोग के परिणामस्वरूप सामाजिक कल्याण की पुरानी संस्थाओं को बन्द कर दिया गया, जिससे लोगों को मदद मिलनी बन्द हो गई।
  • लोगों को दी जा रही विभिन्न सुविधाओं को बन्द कर दिया गया।

प्रश्न 26.
सोवियत संघ की भारत को कोई दो राजनीतिक देनों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • सोवियत संघ ने कश्मीर के मुद्दे पर सदैव भारत का साथ दिया है।
  • सोवियत संघ ने 1971 के युद्ध में भारत की मदद की, जिसके कारण बंगला देश नामक एक नया देश अस्तित्व में आया।

प्रश्न 27.
सोवियत संघ द्वारा भारत को दी जाने वाली सैनिक सहायता का वर्णन करें।
उत्तर:
सोवियत संघ ने सदैव ही भारत को सैनिक सहायता प्रदान की है। सोवियत संघ ने समय-समय पर भारत को लड़ाकू जहाज़, युद्धपोत, टैंक तथा अन्य प्रकार की आधुनिक तकनीक प्रदान की है। सोवियत संघ ने कई प्रकार के हथियार एवं मिसाइल संयुक्त रूप से भी तैयार किये हैं। दोनों देशों ने समय-समय पर संयुक्त सैनिक अभ्यास किए। सोवियत संघ ने भारत की सेना को आधुनिक बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रश्न 28.
सोवियत संघ एवं भारत के कोई दो सांस्कृतिक सम्बन्ध बताएं।
उत्तर:

  • सोवियत संघ तथा भारत के लेखकों एवं साहित्यकारों ने समय-समय पर एक-दूसरे की यात्रा की, जिससे दोनों देशों के सांस्कृतिक सम्बन्धों में मजबूती आई है।
  • भारतीय संस्कृति विशेषकर हिन्दी फिल्में सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय हैं।

प्रश्न 29.
सोवियत प्रणाली की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  • सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  • सोवियत राजनीतिक प्रणाली में किसी अन्य दल या विरोधी दल को जगह नहीं दी गई थी।

प्रश्न 30.
शॉक थेरेपी के कोई दो परिणाम लिखिये।
उत्तर:

  • शॉक थेरेपी के कारण सम्बन्धित देशों की अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई।
  • शॉक थेरेपी के परिणामस्वरूप रूस में लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों एवं कम्पनियों को बेच दिया गया।

प्रश्न 31.
तृतीय विश्व के देशों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
तृतीय विश्व से अभिप्राय उन देशों से है, जो लम्बी पराधीनता के पश्चात् स्वतन्त्र हुए, इन देशों में अधिकांशतः एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के देशों को शामिल किया जाता है। तृतीय विश्व के देशों में भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, ब्राजील, मैक्सिको, क्यूबा, घाना तथा नाइजीरिया इत्यादि देशों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 32.
शॉक थेरेपी किन दो मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित थी ?
अथवा
शॉक थेरेपी के कोई दो मुख्य सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  • मुक्त व्यापार
  • निजी सम्पत्ति एवं निजी स्वामित्व।

प्रश्न 33.
‘शॉक थेरेपी’ मॉडल किसके द्वारा निर्देशित था ?
उत्तर:
‘शॉक थेरेपी’ मॉडल विश्व स्तर की अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक संस्थाएं जैसे कि विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष इत्यादि द्वारा निर्देशित था।

प्रश्न 34.
बर्लिन की दीवार कब बनी और कब विध्वंस हुई ?
उत्तर:
बर्लिन की दीवार सन् 1961 में बनी और 1989 में विध्वंस हुई थी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का मुख्य कारण था
(A) शीत युद्ध की समाप्ति
(B) सोवियत संघ का पतन
(C) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।।

2. सोवियत संघ में किस दल की प्रधानता थी ?
(A) अनुदार दल की
(B) लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी
(C) साम्यवादी दल
(D) डेमोक्रेटिक पार्टी।
उत्तर:
(C) साम्यवादी दल।

3. मिखाइल गोर्बाचोव ने सोवियत संघ में लागू की
(A) पैट्राइस्का
(B) ग्लासनोस्त
(C) उपरोक्त दोनों
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
(C) उपरोक्त दोनों।

4. भारत एवं रूस के सम्बन्ध किस प्रकार के रहे हैं
(A) अच्छे रहे हैं
(B) खराब रहे हैं
(C) गतिहीन रहे हैं
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) अच्छे रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

5. रूस के वर्तमान राष्ट्रपति हैं
(A) बोरिस येल्तसिन
(B) ब्लादिमीर पुतिन
(C) प्रिमाकोव
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) ब्लादिमीर पुतिन

6. बर्लिन की दीवार कब बनाई गई थी ?
(A) 1950
(B) 1955
(C) 1961
(D) 1965.
उत्तर:
(C) 1961.

7. ‘बर्लिन की दीवार’ को कब गिराया गया?
(A) 1979 में
(B) 1961 में
(C) 1986 में
(D) 1989 में।
उत्तर:
(D) 1989 में।

8. निम्न में से कौन-सा समय लेनिन के जीवन काल से सम्बन्धित है ?
(A) 1920 से 1974 तक
(B) 1935 से 1995 तक
(C) 1930 से 1970 तक
(D) 1870 से 1924 तक।
उत्तर:
(D) 1870 से 1924 तक।

9. पूर्व सोवियत संघ का विघटन कब हुआ ?
(A) सन् 1990 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1992 में
(D) सन् 1993 में।
उत्तर:
(B) सन् 1991 में।

10. जर्मनी का एकीकरण कब हुआ ?
(A) सन् 1930 में
(B) सन् 1990 में
(C) सन् 1993 में
(D) सन् 1995 में।
उत्तर:
(B) सन् 1990 में।

11. यूरोपियन संघ ने यूरोपियन संविधान कब पारित किया ?
(A) 1994
(B) 1997
(C) 1995
(D) 2005.
उत्तर:
(A) 1994.

12. मिखाइल गोर्बाचोव ने कब अपने पद से त्याग-पत्र दिया ?
(A) 25 दिसम्बर, 1991
(B) 1 जनवरी, 1990
(C) 12 मार्च, 1990
(D) 16 जून, 1991.
उत्तर:
(A) 25 दिसम्बर, 1991.

13. वर्साय सन्धि औपचारिक रूप से कब समाप्त हुई ?
(A) जुलाई, 1991 में
(B) जुलाई, 1992 में
(C) जून, 1993 में
(D) जून, 1990 में।
उत्तर:
(A) जुलाई, 1991 में।

14. शीत युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक है
(A) बर्लिन दीवार
(B) अफगान संकट
(C) वियतनाम युद्ध
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) बर्लिन दीवार।

15. रूस में साम्यवादी क्रान्ति कब हुई ?
(A) 1907 में
(B) 1947 में
(C) 1917 में
(D) 1957 में।
उत्तर:
(C) 1917 में।

16. मिखाइल गोर्बाचोव किस वर्ष सोवियत संघ की साम्यवादी पार्टी के महासचिव चुने गए थे ?
(A) मार्च, 1985
(B) मार्च, 1980
(C) मार्च, 1979
(D) मार्च, 1977
उत्तर:
(A) मार्च, 1985.

17. भारत व सोवियत संघ में मित्रता संधि किस वर्ष में हुई ?
(A) सन् 1966 में
(B) सन् 1970 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1972 में।
उत्तर:
(C) सन् 1971 में।

18. सोवियत संघ से अलग होने वाली घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य कौन-सा था ?
(A) उक्रेन
(B) कजाखिस्तान
(C) तुर्कमेनिस्तान
(D) लिथुआनिया।
उत्तर:
(D) लिथुआनिया।

19. बोरिस येल्तसिन कब रूस के राष्ट्रपति बने थे ?
(A) 1991 में
(B) 1992 में
(C) 1993 में
(D) 1994 में।
उत्तर:
(A) 1991 में।

20. रूसी संसद् ने कब सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की ?
(A) जून, 1990
(B) जून, 1994
(C) जून, 1995
(D) जून 1993.
उत्तर:
(A) जून, 1990.

21. प्रथम विश्व किन देशों को कहा जाता है ?
(A) पूँजीवादी देशों को
(B) साम्यवादी देशों को
(C) विकासशील देशों
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) पूँजीवादी देशों को।

22. निम्न में से कौन दूसरे-विश्व के देश कहे जाते हैं ?
(A) गुलाम देश
(B) नव स्वतन्त्र देश
(C) दूसरे विश्व युद्ध के बाद के गरीब देश
(D) पूर्व सोवियत संघ और सोवियत गुट के देश।
उत्तर:
(D) पूर्व सोवियत संघ और सोवियत गुट के देश।

23. तीसरे विश्व के देशों में किसे शामिल किया जाता है ?
(A) पूँजीवादी देशों को
(B) साम्यवादी देशों को
(C) विकासशील देशों को
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) विकासशील देशों को।

24. प्रथम विश्व में किस देश को शामिल किया जाता है
(A) अमेरिका
(B) ब्रिटेन
(C) फ्रांस
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।।

25. द्वितीय विश्व में कौन-से देश शामिल थे ?
(A) सोवियत संघ
(B) पोलेण्ड
(C) हंगरी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

26. तीसरे विश्व में शामिल देश है
(A) भारत
(B) ब्राजील
(C) घाना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

27. प्रथम विश्व का नेतृत्व किसके हाथों में था ?
(A) अमेरिका
(B) सोवियत संघ
(C) भारत
(D) इंग्लैंड।
उत्तर:
(A) अमेरिका।

28. द्वितीय विश्व का नेतृत्व किसके हाथ में था ?
(A) अमेरिका
(B) सोवियत संघ
(C) भारत
(D) फ्रांस।
उत्तर:
(B) सोवियत संघ।

29. द्वितीय विश्व के बिखराव का कारण है
(A) स्टालिन की आक्रामक नीतियां
(B) चीन की आकाक्षाएं
(C) गुट निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

30. बल्कान (Balkan) का शाब्दिक अर्थ है
(A) सम्बन्ध
(B) टूटन
(C) सन्धि
(D) युद्ध।
उत्तर:
(B) टूटन।

31. कोमीकॉन (COMECON) का सम्बन्ध निम्न में से किस देश से है ?
(A) ब्रिटेन से
(B) संयुक्त राज्य अमेरिका से
(C) भूतपूर्व सोवियत संघ से
(D) जापान से।
उत्तर:
(C) भूतपूर्व सोवियत संघ से।

32. सोवियत राजनीतिक प्रणाली मुख्यतः आधारित थी।
(A) पूंजीवादी व्यवस्था पर
(B) समाजवादी व्यवस्था पर
(C) उदारवादी व्यवस्था पर
(D) लोकतांत्रिक व्यवस्था पर।
उत्तर:
(B) समाजवादी व्यवस्था पर ।

रिक्त स्थान भरें

(1) …………..ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरूआत की।
उत्तर:
गोर्बाचोव,

(2) …………… पार्टी का पूर्व सोवियत संघ की राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
उत्तर:
साम्यवादी,

(3) सोवियत संघ ने सन् …………… में अफ़गानिस्तान में हस्तक्षेप किया।
उत्तर:
1979,

(4) गोर्बाचोव ने पैट्राइस्का एवं …………… की व्यवस्था लागू की।
उत्तर:
ग्लासनोस्ट।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सोवियत संघ का विघटन कब हुआ ?
अथवा
सोवियत संघ का विघटन किस वर्ष में हुआ ?
उत्तर:
सन् 1991 में।

प्रश्न 2.
किस दल का पूर्व सोवियत संघ की राजनीतिक व्यवस्था पर नियत्रंण था ?
अथवा
द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था के दौर में सोवियत संघ में किस दल का प्रभुत्व था ?
उत्तर:
साम्यवादी दल।

प्रश्न 3. भारत-सोवियत संघ के बीच ‘मित्रता सन्धि’ किस वर्ष में हुई थी ?
अथवा
भारत-सोवियत संघ मित्रता सन्धि किस वर्ष में हुई ?
उत्तर:
सन् 1971 में।

प्रश्न 4.
‘दूसरी दुनिया के देश किन्हें कहा गया ?
उत्तर:
भूतपूर्व सोवियत संघ एवं उसके सहयोगी देशों को दूसरी दुनिया के देश कहा गया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 5.
सत्तावादी समाजवादी व्यवस्था से लोकतन्त्रीय पूंजीवादी व्यवस्था का संक्रमण विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्रभावित हुआ। इस संक्रमण को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
इस संक्रमण को शॉक थेरेपी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
रूस में साम्यवादी क्रांति किस वर्ष में हुई ?
उत्तर:
सन् 1917 में।

प्रश्न 7.
किसी एक बालकन देश का नाम बताइए।
उत्तर:
बुल्गारिया।

प्रश्न 8.
सोवियत संघ के विघटन के समय उसका राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर:
मिखाइल गोर्बाचेव।

प्रश्न 9.
बोरिस येल्तसिन कौन था ?
उत्तर:
बोरिस येल्तसिन रूस का प्रथम राष्ट्रपति था।

प्रश्न 10.
बर्लिन की दीवार कब गिरी ?
उत्तर:
सन् 1989 में।

प्रश्न 11.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का कोई एक कारण बताइए।
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय विश्व के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सोवियत संघ का पतन था।

प्रश्न 12.
बर्लिन की दीवार का गिरना किस बात का प्रतीक था ?
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति का।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

HBSE 12th Class Political Science दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ
(क) अफ़गान – संकट
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति।
(ख) अफ़गान – संकट।
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना।
(घ) सोवियत संघ का विघटन।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है ?
(क) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सी० आई० एस०) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट।
उत्तर:
(घ) मध्यपूर्व में संकट।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएं
(1) मिखाइल गोर्बाचेव – (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी – (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस – (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन – (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसा
(ङ) रूस के राष्ट्रपति।
उत्तर:
(1) मिखाइल गोर्बाचेव – (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी – (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस – (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन – (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसा – (ख) सैन्य समझौता।

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प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली …………. की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य संगठन ………… था।
(ग) ……….. पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) ……….. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) ……….. का गिरना शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली समाजवाद की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन वारसा पैक्ट था।
(ग) साम्यवादी (कम्युनिस्ट) पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) मिखाइल गोर्बाचोव ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) बर्लिन दीवार का गिरना शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का ज़िक्र करें।
उत्तर:

  • सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी।
  • सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं पर राज्य का ही स्वामित्व एवं नियन्त्रण था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए ?
अथवा
कोई चार कारण लिखिये, जिसके कारण तत्कालिक राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए।
उत्तर:
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए

  • पश्चिमी देशों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे थे, जिसके कारण गोर्बाचेव के लिए सोवियत संघ में आर्थिक सुधार करने आवश्यक हो गए।
  • गोर्बाचेव पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने एवं सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने के लिए सुधारों के लिए बाध्य हुए।
  • सोवियत संघ के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने के लिए गोर्बाचेव सुधारों के लिए बाध्य हुए।
  • उपभोक्ताओं को वस्तुओं की कमी होने लगी। 1970 के दशक के अंत तक सोवियत अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन से विश्व राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में केवल अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति रह गया। इसी कारण इसने भारत जैसे विकासशील देशों को सभी प्रकार से प्रभावित करना शुरू कर दिया। भारत जैसे अन्य विकासशील देशों की भी यह मजबूरी थी, कि वे अपने विकास के लिए अमेरिका के साथ चलें।

सोवियत संघ के विघटन से अमेरिका का विकासशील देशों जैसे अफ़गानिस्तान, ईरान एवं इराक में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ गया। विश्व के महत्त्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व कायम हो गया, जिससे भारत जैसे देशों को इनसे मदद लेने के लिए परोक्ष रूप से अमेरिकन नीतियों का ही समर्थन करना पड़ा।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी ? क्या साम्यवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था ?
अथवा
“शॉक थेरेपी’ से आपका क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य सिद्धान्त लिखें।
उत्तर:
सोवियत संघ के पतन के बाद रूस, पूर्वी यूरोप तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया, जिसे शॉक थेरेपी (आघात पहुँचाकर उपचार करना) कहा जाता है। विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा इस प्रकार के मॉडल को अपनाया गया।

‘शॉक थेरेपी’ में निजी.स्वामित्व, राज्य की सम्पदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को अपनाना, पूंजीवादी पद्धति से कृषि, करना तथा मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना शामिल है। वित्तीय खुलेपन तथा मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयतां भी.महत्त्वपूर्ण मानी गई। परन्तु साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए यह बेहतर तरीका नहीं था क्योंकि पूंजीवाद सुधार तुरन्त.किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाने चाहिए थे। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लोगों पर लादकर उन्हें आघात देना उचित नहीं था।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें-“दूसरी दुनिया के विघटन के.बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमेरिका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। भारत को अपने परम्परागत एवं विश्वसनीय मित्र रूस से सदैव अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने चाहिए, क्योंकि रूस सदैव भारत की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है, परन्तु अमेरिका के विषय में यह बात पूर्ण रूप से नहीं कही जा सकती, कि वह आगे चलकर भी भारत का साथ देगा, अतः आवश्यकता इस बात की है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार अमेरिका से सम्बन्ध बनाए तथा रूस के साथ पहले की तरह ही अच्छे सम्बन्ध बनाए रखे।

दो ध्रुवीयता का अंत HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीत युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों-अमेरिका एवं सोवियत संघ में बंटा हुआ था, इसीलिए इसे द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहा जाता है।
→ 1989 में जर्मनी की दीवार गिराकर पश्चिमी एवं पूर्वी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
→ सोवियत संघ में साम्यवादी पार्टी शासन की धुरी थी।
→ 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने।
→ मिखाइल गोर्बाचेव ने पैट्राइस्का तथा ग्लासनोस्त के नाम से सोवियत संघ में आर्थिक सुधार लागू किए।
→ गोर्बाचेव के आर्थिक सुधारों एवं विश्व में बदलती परिस्थितियों ने सोवियत संघ में असर दिखाना शुरू किया। सोवियत गणराज्य ने सोवियत संघ से अलग होने की मांग करनी शुरू कर दी।
→ 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया तथा 15 अन्य गणराज्य विश्व परिदृश्य पर उभर कर सामने आए।
→ सोवियत संघ के पतन के बाद साम्यवादी देशों में आर्थिक विकास के लिए शॉक थेरेपी को अपनाया गया, जिसके परिणाम अच्छे नहीं रहे।
→ भारत के सम्बन्ध रूस से शुरुआत से ही बहुत अच्छे रहे हैं।
→ भारत ने अन्य उत्तर-साम्यवादी देशों से भी अच्छे सम्बन्ध बनाए हुए हैं

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शीतयुद्ध क्या है ?
द्वितीय विश्व-युद्ध वह घटना थी जिसने विरोधी विचारधारा में विश्वास रखने वाले राज्यों रूस तथा अमेरिका को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने पर बाध्य कर दिया था। रूस ने अपने विरोधी राज्य अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राज्यों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध लडाई लडी।

रूस और पश्चिमी राज्यों के इस युद्धकालीन सहयोग को देखते हुए यह आशा की जाने लगी थी कि युद्ध के बाद विश्व में अवश्य ही स्थायी शान्ति की स्थापना की जाएगी। युद्ध काल के यह मित्र शान्तिकाल की समस्याओं का समाधान भी मिलजुल कर निकालेंगे तथा विश्व में शान्ति और सुरक्षा की स्थापना में भी सहयोग करेंगे। परन्तु युद्धकालीन सहयोग तथा मित्रता शान्तिकालीन बोझ सहन न कर सकी और मित्रता का यह रेत का महल एकदम ढह गया।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद इन दोनों राज्यों के सम्बन्धों में आश्चर्यजनक मोड़ आया। इनके सम्बन्ध तनावपूर्ण होते चले गए। युद्ध काल के साथी युद्ध के बाद एक-दूसरे के लिए अजनबी बन गए। इतना ही नहीं वे एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे हो गए। आज तक दोनों के सम्बन्ध उसी प्रकार शत्रुता, कटुता तथा वैमनस्य से परिपूर्ण चले आ रहे हैं। इन्हीं सम्बन्धों की व्याख्या के लिए शीत युद्ध शब्द का प्रयोग किया जाता है।

शीतयुद्ध को विभिन्न विद्वानों के द्वारा परिभाषित किया गया है। के० पी० एस० मैनन के शब्दों में, “शीत युद्ध जैसा कि विश्व ने अनुभव किया दो विचारधाराओं, दो पद्धतियों, दो गुटों, दो राज्यों और जब वह पराकाष्ठा पर था दो व्यक्तियों के मध्य दृढ़ संघर्ष था।

विचारधारा भी पूंजीवादी तथा साम्यवादी, पद्धतियां भी संसदीय जनतन्त्र तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही, गुट के नाटो तथा वार्सा पैकट, राज्य के संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ तथा व्यक्ति के जोसफ स्टालिन तथा जॉन फास्टर डलेस।” इसी प्रकार एक अन्य लेखक के शब्दों में, “शीत युद्ध ने वास्तव में 1945 के बाद के समय में एक ऐसे युग का सूत्रपात किया जो न शान्ति का था न युद्ध का, इसने पूर्व पश्चिम के विभाजन अविश्वास, शंका तथा शत्रुता को अपरत्व प्रदान कर दिया था।”

पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह दिमागों में युद्ध के विचारों को प्रश्रय देने वाला युद्ध है। नोर्थेज ग्रीब्ज के शब्दों में, “हमने देखा है कि किस प्रकार 1945 में प्रमुख धुरी राष्ट्रों जर्मनी तथा जापान की पराजय के बाद 15 वर्षों तक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर दो महाशक्तियों अमेरिका तथा रूस की निरन्तर विरोधता का प्रभुत्व रहा। इसमें उनके साथी परन्तु अधीनस्थ राज्य भी लिप्त थे। इस स्थिति को वाल्टर लिपमैन के द्वारा शीतयुद्ध कहकर पुकारा गया जिसकी विशेषता दो गुटों में उग्र शत्रुता थी।”

इसी प्रकार फ्लोरैंस एलेट तथा मिखाईल समरस्किल ने अपनी पुस्तक ‘A Dictionary of Politics’ में शीतयुद्ध को राज्यों में तनाव की वह स्थिति जिसमें प्रत्येक पक्ष स्वयं को शक्तिशाली बनाने तथा दूसरे को निर्बल बनाने की वास्तविक युद्ध के अतिरिक्त नीतियां अपनाता है, बताया है।

डॉ० एम० एस० राजन (Dr. M.S. Rajan) के अनुसार, “शीतयुद्ध शक्ति-संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है, दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है, विरोधी चिन्तन पद्धतियों और संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जिनका अनुपात समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहा है।”

पं० जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawahar Lal Nehru) के अनुसार, “शीतयुद्ध पुरातन शक्ति-सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप है, यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर, दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।”

जॉन फॉस्टर डलेस (John Foster Dales) के अनुसार, “शीतयुद्ध नैतिक दृष्टि से धर्म युद्ध था, अच्छाई का बुराई के विरुद्ध, सही का ग़लत के विरुद्ध एवं धर्म का नास्तिकों के विरुद्ध संघर्ष था।”

लुईस हाले (Louis Halle) के अनुसार, “शीतयुद्ध परमाणु युग में एक ऐसी तनावपूर्ण स्थिति है, जो शस्त्र-युद्ध से एकदम भिन्न किन्तु इससे अधिक भयानक युद्ध है। यह एक ऐसा युद्ध है, जिसने अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने की अपेक्षा उन्हें और उलझा दिया। विश्व के सभी देश और सभी समस्याएं चाहे वह वियतनाम हो, चाहे कश्मीर या कोरिया हो अथवा अरब-इज़रायल संघर्ष हो-सभी शीतयुद्ध में मोहरों की तरह प्रयोग किए गए।”

इस प्रकार शीतयुद्ध से अभिप्राय दो राज्यों अमेरिका तथा रूस अथवा दो गुटों के बीच व्याप्त उन कटु सम्बन्धों के इतिहास से है जो तनाव, भय, ईर्ष्या पर आधारित है। इसके अन्तर्गत दोनों गुट एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए प्रादेशिक संगठनों के निर्माण, सैनिक गठबन्धन, जासूसी, आर्थिक सहायता, प्रचार सैनिक हस्तक्षेप अधिकाधिक शस्त्रीकरण जैसी बातों का सहारा लेते हैं। –
शीत युद्ध की विशेषताएँ

(1) शीत युद्ध एक ऐसी स्थिति भी है जिसे मूलत: ‘गर्म शान्ति’ कहा जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में न तो पूर्ण रूप से शान्ति रहती है और न ही वास्तविक युद्ध’ होता है, बल्कि शान्ति एवं युद्ध के मध्य की अस्थिर स्थिति बनी रहती है।

(2) शीत युद्ध, युद्ध का त्याग नहीं, अपितु केवल दो महाशक्तियों के प्रत्यक्ष टकराव की अनुपस्थिति माना जाएगा।

(3) यद्यपि इसमें प्रत्यक्ष युद्ध नहीं होता है, किन्तु यह स्थिति युद्ध की प्रथम सीढ़ी है जिसमें युद्ध के वातावरण का निर्माण होता रहता है।

(4) शीत युद्ध एक वाक्युद्ध था जिसके अन्तर्गत दो पक्ष एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते थे जिसके कारण छोटे-बड़े सभी राष्ट्र आशंकित रहते हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2.
पश्चिमी गुट के अनुसार रूस किस प्रकार शीतयुद्ध के लिए ज़िम्मेदार था ?
अथवा
शीतयुद्ध उत्पन्न होने के मूलभूत कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
8 मई, 1945 को यूरोप में युद्ध का अन्त हुआ। 25 अप्रैल, 1945 को रूस तथा अमेरिका की सेनाओं का यूरोप के मध्य आमना-सामना हो गया। दोनों सेनाएं ऐलबे (Elbe) नदी के किनारों पर खड़ी हो गई थीं तथा यही समकालिक इतिहास की वह प्रमुख अवस्था थी जो कभी नहीं बदली, इस प्रमुख अवस्था का कारण कोई अणु बम्ब या साम्यवाद नहीं था।

इसका कारण था जर्मनी तथा अन्य यूरोपियन राज्यों का रूस तथा अमेरिका में बंटवारा। इस विभाजन के कारण ही शीत युद्ध का प्रारम्भ हुआ। यह तो मात्र एक ऐतिहासिक तथ्य है। इस स्थिति तक पहुंचने के पीछे वास्तव में कई मुख्य कारण थे। शीतयुद्ध के लिए पूर्व तथा पश्चिम दोनों एक-दूसरे को उत्तरदायी ठहराते हैं। दोनों ही को एक दूसरे के विरुद्ध कुछ शिकायतें हैं जिनको एक-दूसरे के अनुसार शीतयुद्ध के कारण कहा जाता है।

पश्चिमी गुट के अनुसार रूस का उत्तरदायित्व (Responsibility of Russia according to Western Block)-पश्चिमी राष्ट्र शीत युद्ध के लिए निम्न कारणों से रूस को उत्तरदायी समझते हैं–

1. विचारधारा सम्बन्धित कारण (Ideological Reason):
पश्चिमी विचारधारा के अनुसार साम्यवाद के सिद्धान्त तथा व्यवहार में इसके जन्म से ही शीत युद्ध के कीटाणु भरे हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर रूस द्वितीय विजेता के रूप में प्रकट हुआ था तथा यह द्वितीय महान् शक्ति था। अमेरिका तथा रूस वास्तव में दो ऐसी पद्धतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कभी तालमेल नहीं हो सकता तथा जो पूर्णतया एक-दूसरे की विरोधी पद्धतियां हैं।

अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देश पूंजीवादी लोकतन्त्र में विश्वास करते हैं तथा रूस साम्यवाद में, यह कहा जा सकता है कि शीतयुद्ध तो उसी समय आरम्भ हो गया था जब 1918 में रूस में क्रान्ति हुई थी तथा उसके परिणामस्वरूप वहां साम्यवादी पद्धति की स्थापना हुई थी, पश्चिमी राष्ट्रों ने तभी से रूस को सन्देह की दृष्टि से देखना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने रूस की क्रान्ति को असफल बनाने के प्रयास भी किए। इससे रूस तथा पश्चिमी राज्यों में गहरी दरार उत्पन्न हो गई यही कारण था कि एक लम्बे समय तक रूस तथा पश्चिमी राज्य फासिज्म के विरुद्ध एक न हो सके।

यहां तक कि 1914 में जब तक जर्मनी ने रूस पर आक्रमण न कर दिया वह इस युद्ध को एक साम्राज्यवादी युद्ध मानता रहा। रूस पर जर्मनी के आक्रमण के बाद पश्चिमी राज्यों ने उससे मित्रता कर ली, पर सैद्धान्तिक मतभेद यूं का यूं मौजूद रहा। इधर रूस ने भी अपने आप को विश्व साम्यवादी क्रान्ति को समर्पित कर दिया अर्थात् साम्यवादी विचारधारा में यह सिद्धान्त था कि वह बाकी के विश्व में भी साम्यवादी क्रान्ति को फैलाए।

रूस ने पहले पहल तो प्रकट तथा प्रत्यक्ष रूप से ऐसा किया कि इसका अर्थ था कि पश्चिमी राज्यों में पूंजीवादी तथा प्रजातान्त्रिक ढांचे को नष्ट करना जिसके बिना इस प्रकार की क्रान्ति सफल नहीं हो सकती थी। अतः जब तक रूस स्पष्ट रूप से विश्व साम्यवादी क्रान्ति को पाने के लक्ष्य को त्याग न दे तो पश्चिमी देशों के लिए उस पर सन्देह करना स्वाभाविक ही है क्योंकि इस प्रकार की क्रान्ति उनके लिए मृत्यु का प्रत्यक्ष सन्देश है।

2. रूस की विस्तारवादी नीति (Extentionist Policy of Russia):
शीतयुद्ध के लिए एक अन्य कारण के लिए भी पश्चिमी राज्य रूस को उत्तरदायी ठहराते हैं। उनका कहना है कि युद्ध के बाद भी रूस ने अपनी विस्तारवादी नीति को जारी रखा। जार बादशाहों के काल में भी रूस पूर्वी यूरोप पर तथा विशेषकर बल्कान प्रायद्वीप के देशों पर अपना प्रभाव जमाना चाहता था। रूस की इस साम्यवादी नीति को सिद्ध करने के लिए कुछ उदाहरण भी दिए जाते हैं।

एक तो स्टालिन याल्टा सम्मेलन में किए गए अपने वादों से मुकर गया तथा उसने पूर्वी यूरोप के देशों में निष्पक्ष चुनाव पान पर अपनी समर्थक सरकारें बना लीं। उसने ईरान से अपनी सेनाओं को न हटाया। तुर्की पर भी अनुचित दबाव डालने का प्रयास किया गया। इस प्रकार अमेरिका के मन में उसकी विस्तारवादी नीति के बारे सन्देह होता चला गया जिसको रोकने के लिए उसने भी कुछ कदम उठाए जिन्होंने शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

3. रूस द्वारा याल्टा समझौते की अवहेलना (Violation of Yalta agreement by Russia):
पश्चिमी राज्यों की रूस के विरुद्ध सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि उसने याल्टा सम्मेलन में किए गए अपने वादों का खुलेआम उल्लंघन किया। याल्टा सम्मेलन में निर्णय किया गया था कि पोलैण्ड में एक मिश्रित सरकार बनाई जाएगी तथा यह कहा गया कि उसमें फासिस्टों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा। वहां पर फासिस्ट कौन हैं इस बात का निर्णय करने का अधिकार उस शक्ति को होगा जिसका वहां पर आधिपत्य होगा। रूस ने पोलैण्ड में लुबनिन सरकार की स्थापना कर रखी थी।

उसमें कुछ परिवर्तन करके लन्दन की प्रवासी सरकार के भी कुछ प्रतिनिधि ले लिए गए। परन्तु सभी महत्त्वपूर्ण विभाग कम्युनिस्ट मन्त्रियों के हाथों में थे। इतना ही नहीं वहां पर जिसने भी रूस का इस बात पर विरोध किया रूस ने उसे फासिस्ट करार कर गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकार पोलैण्ड में कुछ समय के बाद पूर्णतया साम्यवादी सरकार की स्थापना हो गई। पश्चिमी देशों ने इनका विरोध किया क्योंकि यह उनके अनुसार याल्टा समझौते का खुला उल्लंघन था।

पोलैण्ड के साथ-साथ याल्टा सम्मेलन में अन्य पूर्वी यूरोप के देशों के बारे में भी यही निर्णय किया गया था कि वहां पर निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव करवाए जाएंगे। रूस ने यह वचन दिया था कि वह उसकी सेनाओं के द्वारा स्वतन्त्र कराए गए राज्यों में चुनाव कराएगा। रूस के द्वारा चीन में भी याल्टा समझौते की अवहेलना की गई थी। मन्चूरिया में रूस की सेनाओं ने राष्ट्रवादी सेनाओं को घुसने नहीं दिया। इसके विपरीत साम्यवादी सेनाओं को न केवल घुसने ही दिया बल्कि उनको वह युद्ध सामग्री भी सौंप दी जो जापानी सेनाएं भागते समय छोड़ गई थीं इससे भी मित्र राष्ट्रों का क्षुब्ध होना अनिवार्य था।

4. जापान के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होने में रूस की अनिच्छा (Unwillingness of Russia to enter into war against Japan):
चाहे रूस जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने को तैयार हो गया था पर वास्तव में उसने ऐसा अनिच्छापूर्वक किया था तथा वह इस युद्ध में सम्मिलित नहीं होना चाहता था। उसने इसके लिए कितनी ही शर्ते मित्र राष्ट्रों से मनवाईं, फिर भी जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा तभी की जब अमेरिका ने जापान पर अणु बम्ब का प्रहार किया तथा उसकी हार निश्चित हो गई।

5. ईरान तथा टर्की में रूसी हस्तक्षेप (Russian intervention in Iran and Turkey):
द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा रूस की सेनाएं ईरान में प्रवेश कर गई थीं। ईरान के उत्तरी भाग पर रूस की सेनाओं का अधिकार था। पश्चिमी राष्ट्रों ने उसके इस कदम को सर्वथा अनुचित बताकर अपना क्षोभ प्रकट किया तथा रूस को चेतावनी भी दी। उन्होंने इन देशों की सुरक्षा सम्बन्धित कुछ कदम भी उठाए क्योंकि यह देश नहीं चाहते थे कि रूस अपनी विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत इन देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर ले। इससे भी दोनों पक्षों में कटुता में वृद्धि हुई तथा शीत युद्ध को प्रोत्साहन मिला।

6. यूनान में रूस का हस्तक्षेप (Russian Intervention in Greece):
1944 में हुए एक समझौते के अन्तर्गत रूस ने यूनान पर इंग्लैण्ड का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था। इंग्लैण्ड ने यूनान पर अधिकार करने के बाद वहां के साम्यवादी दल का विरोध किया जिसके परिणामस्वरूप 1945 में होने वाले चुनावों में राज्यसत्तावादियों की विजय तथा साम्यवादियों की पराजय हुई। इस पर साम्यवादियों ने यूनान की सरकार के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध प्रारम्भ कर दिया। ब्रिटेन इस हाल में नहीं था, कि इस विद्रोह का मुकाबला कर पाता इसलिए उसने यूनान से अपनी सेनाएं वापस हटाने का निश्चय किया।

पश्चिमी देशों के अनुसार इस साम्यवादी विद्रोह में स्पष्ट रूप से रूस का हाथ था। उनके अनुसार यूनान के पड़ोसी साम्यवादी राज्य यूनान के विद्रोहियों की सहायता कर रहे थे। इस प्रकार पश्चिमी देशों के लिए रूस का बढ़ता प्रभाव चिन्ता का विषय था जिसको रोकने के लिए अमेरिका ने ‘ट्रमैन सिद्धान्त’ (Trueman Doctrine) के अन्तर्गत यूनानी सरकार की आर्थिक सहायता का निश्चय किया और यही सिद्धान्त शीत युद्ध की दिशा में पश्चिम की ओर से एक महत्त्वपूर्ण कदम था, इस प्रकार यूनान में रूसी हस्तक्षेप ने भी शीत युद्ध के बढ़ाने में योगदान दिया।

7. जर्मनी पर भारी क्षति तथा अन्य समस्याएं (Heavy reparation on Germany and other roblems):
इसमें कोई सन्देह नहीं कि द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे अधिक हानि रूस को उठानी पड़ी थी इसलिए उसने याल्टा सम्मेलन में जर्मनी से क्षतिपूर्ति के लिए 10 अरब डालर की मांग की, अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवैल्ट ने इस मांग को भविष्य में विचार करने के लिए मान लिया पर रूस ने इसको अन्तिम मान्यता समझा तथा उसने जर्मनी के उद्योग को नष्ट करते हुए सभी मशीनों का रूस में स्थानान्तरण करना आरम्भ कर दिया।

इससे पहले से ही अस्त-व्यस्त जर्मन अर्थव्यवस्था और भी अधिक छिन्न-भिन्न हो गई। इससे अमेरिका तथा इंग्लैण्ड काफ़ी नाराज़ हुए क्योंकि उनको ‘जर्मनी की आर्थिक सहायता करनी पड़ी यही नहीं रूस ने जर्मनी से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों का भी उल्लंघन किया।

8. रूस द्वारा अमेरिका विरोधी प्रचार तथा अमेरिका में साम्यवादी गतिविधियां (Anti-American propaganda by Russia and Communist activities in America): युद्ध समाप्त होने से पहले ही रूसी समाचार-पत्रों प्रावदा (Pravada) तथा इजवेस्तिया (Izvestia) इत्यादि ने अमेरिका विरोधी प्रचार अभियान आरम्भ कर दिया। इनमें आलोचनात्मक लेख इत्यादि प्रकाशित होने लगे जिनसे अमेरिका के सरकारी तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों में भारी क्षोभ फैला।

9. संयुक्त राष्ट्र में रूस का व्यवहार (Russian behaviour in the U.N.):
संयुक्त राष्ट्र अभी अपना कार्य ठीक ढंग से चला भी न पाया था कि रूस ने अपने निषेधाधिकार (Veto Power) का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया।1961 तक अमेरिका ने इस अधिकार का प्रयोग एक बार भी नहीं किया जबकि रूस ने इस काल में 65 बार इसका प्रयोग किया था। इस पर पश्चिमी राष्ट्रों ने यह धारणा बना ली कि रूस ने अपने निषेधाधिकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पश्चिमी देशों के प्रत्येक प्रस्ताव को ठुकराने की नीति अपना ली है तथा वह संयुक्त राष्ट्र को असफल है। इससे भी दोनों पक्षों में तनाव बढ़ा। – शीतयुद्ध के लिए पश्चिमी गुट किस प्रकार ज़िम्मेदार था ? इसके लिए प्रश्न नं0 3 देखें।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध को बढ़ावा देने में पश्चिमी गुट किस प्रकार ज़िम्मेदार था ?
उत्तर:
शीतयुद्ध को बढ़ावा देने में कुछ हाथ पश्चिमी गुट का भी था। जिस प्रकार पश्चिमी राज्यों ने अपनी शिकायतों के द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि शीतयुद्ध के कारणों के लिए रूस उत्तरदायी था उसी प्रकार रूस को पश्चिमी देशों से काफ़ी शिकायतें थीं। इसलिए रूस के अनुसार युद्ध के बाद के तनाव तथा कटुता के लिए उत्तरदायित्व पश्चिमी देशों का था। रूस की पश्चिमी देशों के विरुद्ध अग्रलिखित शिकायतें थीं

1. अमेरिका की विस्तारवादी नीति (Extentionist Policy of America):
साम्यवादी लेखकों के अनुसार शीत युद्ध का प्रमुख कारण अमेरिका की संसार पर प्रभुत्व जमाने की साम्राज्यवादी आकांक्षा में निहित है। वे कहते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध ने जर्मनी तथा इटली को धूल में मिलते हुए देखा है। चीन गृह युद्ध में उलझा हुआ था। इंग्लैण्ड प्रथम श्रेणी की शक्ति से तृतीय श्रेणी की शक्ति बन चुका था। फ्रांस की विजय मात्र औपचारिक थी। इस प्रकार जो एक मात्र पूंजीवादी देश बिना खरोंच खाए विश्व शक्ति के रूप में उभरा था वह अमेरिका था।

युद्ध के अन्त में वह एकमात्र अणु शक्ति था। उसके नियन्त्रण में दुनिया की 60% दौलत थी। उसके पास शक्तिशाली जलसेना तथा शायद सबसे शक्तिशाली वायुसेना थी क्योंकि अमेरिका का आन्तरिक ढांचा पूंजीवादी था। अतः सरकारी मशीनरी बड़े-बड़े करोड़पतियों के हाथ में थी जिनका एकमात्र उद्देश्य अधिक-से-अधिक लाभ कमाना था। अमेरिका के विश्व प्रभुत्व के स्वप्न के रास्ते में एकमात्र रुकावट रूस द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला विरोध था तथा इसी कारण अमेरिका रूस से घृणा करता था।

2. युद्ध के समय रूस के सन्देह (Doubts of Russia during the War):
1945 में जर्मनी को पता चल गया था कि वह अधिक देर तक नहीं लड़ सकेगा। जर्मनी का यह विचार था कि यदि वह पश्चिमी राष्ट्रों से कोई समझौता कर लेता है तथा उनके सामने समर्पण करता है तो पश्चिमी देश उसके साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं करेंगे। वे जो भी व्यवहार करेंगे वह अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार होगा।

परन्तु यदि वे रूस के सामने समर्पण करते हैं तो रूस निश्चय ही उनके साथ बुरा व्यवहार करेगा क्योंकि उन्होंने रूस पर बहुत अधिक अत्याचार किए थे तथा उनको डर था कि यदि वे रूस के सामने समर्पण करते हैं तो वह अवश्य ही उनसे बदला लेगा। अत: वे रूस के सामने समर्पण नहीं करना चाहते थे।

जर्मनी के साथ समर्पण की बातचीत चल रही थी। जर्मनी पूर्व में बहत ज़ोर से लड रहा था पर पश्चिम में उसने हथियार डालने आरम्भ कर दिए थे। रूस ने इस बात पर सन्देह किया कि कहीं पश्चिमी राष्ट्र नाजियों के साथ कोई समझौता न कर ले। रूज़वैल्ट की मृत्यु पर ट्रमैन अमेरिका का राष्ट्रपति बना जो और भी ज़्यादा रूस विरोधी था। इसलिए रूस को और भी अधिक सन्देह हुआ कि कहीं अमेरिका जर्मनी से कोई गुप्त सन्धि न कर ले।

रूस ने अमेरिका पर यह आरोप भी लगाया कि उसने इटली तथा फ्रांस के फासिस्ट तत्त्वों से सम्पर्क स्थापित किया था। उधर ब्रिटेन भी यूनान में साम्यवाद विरोधी लोगों का समर्थन कर रहा था। रूस को यह भी शिकायत थी कि फिनलैण्ड के साथ उसका युद्ध छिड़ने तथा उसके द्वारा लैनिनग्राड पर आक्रमण किए जाने पर भी अमेरिका ने काफी समय तक उससे अपने राजनैतिक सम्बन्ध विच्छेद नहीं किए थे। इस प्रकार युद्ध के काल में पश्चिमी राष्ट्रों की कुछ ऐसी गतिविधियां रहीं जो रूस के सन्देह का स्पष्ट कारण थीं।

3. पश्चिम द्वारा रूस के सुरक्षा हितों की अवहेलना (Western Block ignored Russian interest about its defence):
ज्यों ही द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो रूस तथा पश्चिमी राष्ट्रों के बीच अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों को स्थापित करने की एक होड़ लग गई थी। रूस ने पश्चिमी राष्ट्रों से ये कभी नहीं पूछा कि वे अपने अधिकृत प्रदेशों में किस प्रकार की शासन प्रणाली की स्थापना करने जा रहे हैं। परन्तु पश्चिमी राष्ट्रों ने इस बात पर बल दिया कि रूस अपने अधिकृत देशों में स्वतन्त्र निर्वाचनों के आधार पर प्रजातन्त्र की स्थापना करे।

परन्तु रूस ऐसा नहीं करना चाहता था। पश्चिमी राष्ट्र इन देशों में युद्ध से पहले वाली व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे पर ये पुरानी सरकारें रूस विरोधी थीं। अत: रूस अपने सुरक्षा हितों को देखते हुए इन देशों में किस प्रकार अपनी विरोधी सरकारों की स्थापना करवा सकता था जब कि पश्चिमी देश ऐसा करने पर बल दे रहे थे। अपने अधिकृत क्षेत्रों में सरकारें बनाते समय उन्होंने रूस की बात भी न पूछी थी। इस प्रकार रूस का नाराज़ होना स्वाभाविक था।

4. पश्चिमी देशों द्वारा युद्ध के समय द्वितीय मोर्चा खोलने में देरी (Delay in opening second front by Western Countries during the War):
जब फ्रांस की हार हो गई तथा जर्मनी ने रूस पर आक्रमण कर दिया तो इंग्लैण्ड तथा अमेरिका ने अपने ही हितों को ध्यान में रखते हुए रूस की सहायता करने की सोची, रूस ने इन दोनों देशों को फ्रांस की ओर से बार-बार दूसरा मोर्चा खोलने को कहा ताकि युद्ध का जो सारा दबाव इस समय रूस पर पड़ा था जर्मनी के दो स्थानों पर लड़ने के कारण कम हो जाए, परन्तु इन दोनों देशों ने यह बहाना बनाकर कि अभी हम तैयारी नहीं हुई है दूसरा मोर्चा खोलने में पर्याप्त विलम्ब किया जिसका परिणाम यह निकला कि युद्ध का सारा बोझ अकेले रूस पर पड़ा जिसके परिणामस्वरूप रूस को धन-जन की भारी हानि उठानी पड़ी।

रूस को मालूम हो गया कि यदि वह स्वयं को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसे अपने तथा जर्मनी के बीच के राज्यों पर अपना अधिकार कर लेना चाहिए। उसका यह इरादा भांप कर चर्चिल ने जब दूसरा मोर्चा खोलने की बात की तो कहा कि हमारी सेनाएं फ्रांस की ओर से नहीं बलकान प्रायद्वीप से होकर उत्तर की ओर बढ़े। इस बात ने रूस के सन्देह की और भी पुष्टि कर दी।

5. युद्ध के समय पश्चिम द्वारा रूस की अपर्याप्त सहायता (Insufficient aid by West during War):
रूस को पश्चिमी देशों से यह भी शिकायत थी कि उन्होंने युद्ध काल में रूस की अत्यन्त अल्प मात्रा में सहायता की। 1941-42 के आरम्भिक काल में जो सहायता पश्चिमी राज्यों ने रूस को दी वह रूस द्वारा उत्पन्न कुल युद्ध सामग्री का केवल 4% थी। वास्तव में पश्चिमी राष्ट्र यह चाहते थे कि रूस जर्मनी के साथ लड़कर कमजोर हो जाए।

इसलिए उन्होंने उसकी बहुत कम सहायता की वह भी तब जब उन्हें यह विश्वास हो गया कि जर्मनी द्वारा रूस को पूर्णतया नष्ट कर दिया जाना स्वयं उनके अपने हित में नहीं था। 1943 में अवश्य उन्होंने इसलिए सहायता में वृद्धि की थी। पर तब तक रूस को यह विश्वास हो चुका था कि पश्चिमी राष्ट्र वास्तव में उसकी सहायता न करके उसे निर्बल बना देना चाहते हैं।

6. लैण्डलीज कानून को समाप्त करना (End of Land Lease):
युद्ध काल में रूस को अमेरिका से लैण्डलीज कानून के अन्तर्गत सहायता मिल रही थी। रूस पहले इसी सहायता से असन्तुष्ट था क्योंकि यह सहायता अपर्याप्त थी। फिर भी रूस समझता था कि युद्ध के बाद अपने पुनर्निर्माण के लिए भी उसको अमेरिका से सहायता मिलती रहेगी। पर ब I (Trueman) राष्ट्रपति बना जो रूस विरोधी था। उसने लैण्डलीज कानून को बन्द कर दिया तथा वह थोड़ी-सी सहायता भी बन्द कर दी। उधर पश्चिमी देश रूस के क्षतिपूर्ति के दावों का भी विरोध कर रहे थे। इससे रूस को विश्वास हो गया कि पश्चिमी देश उसकी समृद्धि तथा प्रगति को नहीं देखना चाहते।

7. एटम बम्ब का रहस्य गुप्त रखना (Secret of Atom Bomb):
अमेरिका ने युद्ध की समाप्ति पर एटम बम्ब का आविष्कार कर लिया था। अमेरिका तथा रूस युद्ध में जर्मनी के विरुद्ध मित्र राष्ट्र थे। रूस ने पश्चिमी राष्ट्रों को पूर्ण सहयोग प्रदान किया था पर अमेरिका ने एटम बम्ब के रहस्य को रूस से सर्वथा गुप्त रखा जबकि इंग्लैण्ड तथा कनाडा को इसका पता था।

इस बात से स्टालिन बड़ा क्षुब्ध हुआ तथा उसने इसको एक भारी विश्वासघात माना इसका परिणाम यह निकला कि न केवल दोनों की मित्रता टूट गई बल्कि रूस ने अपनी सुरक्षा के बारे में चिन्तित होकर अस्त्र-शस्त्र बनाने में लग गया और उसने भी केवल “वर्षों में ही अणु बम्ब का आविष्कार कर लिया। इसके बाद तो दोनों में शस्त्रास्त्रों की एक होड़ लग गई जिसने शीत युद्ध को प्रोत्साहित करने में बहुत योगदान दिया।”

8. पश्चिम द्वारा रूस विरोधी प्रचार अभियान (Anti-Russian Propaganda by West):
युद्ध काल में ही पश्चिमी देशों की प्रैस रूस विरोधी प्रचार करने लगी थी। बाद में तो पश्चिमी राज्यों ने खुले आम रूस की आलोचना करनी आरम्भ कर दी। जिस रूस ने जर्मनी की पराजय को सरल बनाया उसके विरुद्ध मित्र राष्ट्रों का यह प्रचार उसको क्षुब्ध करने के लिए पर्याप्त था। मार्च, 1946 में चर्चिल ने अपने फुल्टन भाषण में स्पष्ट कहा था

“हमें तानाशाही के एक स्वरूप के स्थान पर दूसरे के संस्थापन को रोकना चाहिए।” यह दूसरा स्वरूप साम्यवाद के सिवाय और क्या हो सकता है ? राष्ट्रपति ट्रमैन ने उपराष्ट्रपति तथा तत्कालीन वाणिज्य सचिव को इस बात पर त्याग-पत्र देने के लिए कहा कि उन्होंने रूस तथा अमेरिका की मैत्री की बात कही न ने सीनेट के सामने रूस की नीति को स्पष्ट रूप से आक्रामक बताया था। इस प्रकार इस प्रचार ने एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जिसमें दोनों एक-दूसरे के प्रति घृणा, वैमनस्य की भावना में डूब गए।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 4.
द्वि-ध्रुवीयकरण के विकास के कारणों को लिखिए। (Write the causes of the development of Bi-polarisation.)
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय विश्व के विकास के निम्नलिखित कारण थे

1. शीत युद्ध का जन्म-द्वि-ध्रुवीय विश्व के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध था। शीत युद्ध के कारण ही विश्व अमेरिकन एवं सोवियत गुट के रूप में दो भागों में विभाजित हो गया था।

2. सैनिक गठबन्धन-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक कारण सैनिक गठबन्धन था। सैनिक गठबन्धन के कारण अमेरिका एवं सोवियत संघ में सदैव संघर्ष चलता रहता था।

3. पुरानी महाशक्ति का पतन-दूसरे विश्व युद्ध के बाद इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, इटली तथा जापान जैसी पुरानी महाशक्तियों का पतन हो गया तथा विश्व में अमेरिका एवं सोवियत संघ दो ही शक्तिशाली देश रह गए थे इस कारण विश्व द्वि-ध्रुवीय हो गया।

4. अमेरिका की विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक अन्य कारण अमेरिका का विश्व राजनीति में सक्रिय भाग लेना भी था।

5. कमज़ोर राष्ट्रों को आर्थिक मदद-अमेरिका एवं सोवियत संघ विश्व के निर्धन एवं कमजोर राष्ट्रों को अपनी तरफ करने के लिए उन्हें आर्थिक मदद देते थे, जिस कारण अधिकांश निर्धन एवं कमज़ोर राष्ट्र दोनों गुटों में से एक गुट के साथ ही लेते थे।

6. शस्त्रीकरण-द्वि-ध्रुवीय विश्व का एक अन्य कारण शस्त्रीकरण था। दोनों गुट एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए शस्त्रों की दौड़ में लगे रहते थे।

7. विकास की इच्छा-अमेरिका एवं सोवियत संघ की अधिक-से-अधिक विकास की इच्छा ने भी दोनों देशों को एक-दूसरे के विरुद्ध कर दिया, तथा विश्व द्वि-ध्रुवीय हो गया।

8. परस्पर प्रतियोगिता-अमेरिका एवं सोवियत संघ में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं राजनीतिक प्रतियोगिता शुरू कर दी, इस कारण भी विश्व द्वि-ध्रुवीय विश्व की ओर मुड़ने लगा।

प्रश्न 5.
द्वि-ध्रुवीय विश्व की चुनौतियों का वर्णन करें। (Discuss the challenges of Bipolarity.)
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था शीत युद्ध के दौरान स्थापित हुई थी जब विश्व दो गुटों में बंट गया था, एक गुट .. का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था, तो दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। शीत युद्ध के दौरान ही द्वि-ध्रुवीय . विश्व को चुनौतियां मिलनी शुरू हो गई थी, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order-NIEO) की थीं, जिनका वर्णन इसं प्रकार है

1. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (Non-aligned Movement-NAM):
शीत युद्ध के दौरान द्वि-ध्रुवीय विश्व को सबसे बड़ी चुनौती गट-निरपेक्ष आन्दोलन से मिली। शीत युद्ध के दौरान जब विश्व तेज़ी से दो गटों में बंटता जा रहा था, तब गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के देशों, विशेषकर विकासशील एवं नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों को एक तीसरा : विकल्प प्रदान किया, जिससे ये देश किसी गुट में शामिल होने की अपेक्षा स्वतन्त्रतापूर्वक अपनी विदेशी नीति का: संचालन कर सकें। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना 1961 में यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में की गई।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन को शुरू करने में भारत के प्रधानमन्त्री श्री पं० जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के शासक जोसेफ ब्रॉन टीटो तथा मिस्त्र के शासक गमाल अब्दुल नासिर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अब तक सम्मेलन हो चुके हैं। 1961 में इसके 25 सदस्य थे, जोकि अब बढ़कर 120 हो गए हैं। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने दोनों गुटों में पाए जाने वाले शीत युद्ध को कम करने का प्रयास किया, इसने इसे एक अव्यावहारिक तथा खतरनाक नीति माना।

इसके साथ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की नीति सदैव नाटो, वारसा पैक्ट, सीटो तथा सैन्टो जैसे सैनिक गठबन्धनों से दूर रहने की रही है, जिनका निर्माण अमेरिकी एवं सोवियत गुटों ने किया था। वास्तव में ऐसे सैनिक गठबन्धन प्रभाव क्षेत्र उत्पन्न करते हैं, और हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देकर विश्व शान्ति को खतरा उत्पन्न करते हैं। गुट-निरपेक्ष देश प्रत्येक विषय पर उसके गुण-दोष के अनुसार विचार करते हैं, न कि किसी महाशक्ति के आदेश के अनुसार । अतः स्पष्ट है कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन सदैव द्वि-ध्रुवीय विश्व के लिए चुनौती बना रहा है।

2. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order-NIEO):
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के साथ-साथ नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ने भी सदैव द्वि-ध्रुवीय विश्व को चुनौती दी है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तथा तीसरे विश्व के देशों ने पुरानी विश्व अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के जन्म तथा स्थापना को प्रोत्साहित किया। 70 के दशक में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था मुख्य विषय बन गया।

नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का उद्देश्य विकासशील देशों को खाद्य सामग्री उपलब्ध करना, साधनों को विकसित देशों से विकासशील देशों में भेजना, वस्तुओं सम्बन्धी समझौते करना, बचाववाद (Protectionism) को समाप्त करना तथा पुरानी परम्परावादी औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के स्थान पर निर्धन तथा वंचित देशों के साथ न्याय करना है। 70 के दशक में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र, गट-निरपेक्ष आन्दोलन, विकसित देशों व विकासशील देशों ने विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए गए।

राष्ट्र संघ की महासभा के छठे विशेष अधिवेशन में महासभा ने नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक-व्यवस्था की स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम बनाया, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ-साथ गुट-निरपेक्ष देशों ने भी नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के निर्माण का प्रयास किया। विकासशील देशों को गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के पश्चात् नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ने एक ऐसा संघ उपलब्ध करवाया है जहां से ये विकासशील द्वि-ध्रुवीय विश्व के ताने-बाने से बच सकें।

प्रश्न 6.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रकृति का वर्णन करें।
उत्तर:
द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद यूरोपीय उपनिवेशवादी प्रणाली के विघटन के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कई ऐसे घटक उपस्थित हुए जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की प्रकृति और रंग-रूप को बदल दिया। इन घटकों में एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका में नए राज्यों के उदय ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन उत्पन्न किया। “इन राष्ट्रों का यत्न अन्तर्राष्ट्रीय खेल को इस प्रकार परिवर्तित करना है जिससे अनेक राष्ट्रीय हितों की पर्ति हो और न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित हो और उस ऐतिहासिक प्रक्रिया की समाप्ति हो जिसने उपनिवेशवाद को जन्म दिया था।”

अधिकांश नए राज्यों ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसे आन्दोलन को चुना जिसे गुट-निरपेक्षता (Non alignment) की संज्ञा दी जाती है। Belgrade Conference (1961) से लेकर Harare Conference (1986) तक गुट-निरपेक्षता का समूचा इतिहास इन नए देशों के उपर्युक्त उद्देश्य को ही ध्वनित करता है। प्रो० के० पी० मिश्रा के शब्दों में “गुट-निरपेक्षता एक ऐसा सैद्धान्तिक योगदान है जो लोकप्रिय हो रहा है और जो अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में मूल परिवर्तन लाए जाने के लिए उचित वातावरण उत्पन्न कर रहा है।”

गुट-निरपेक्षता का जन्म (Origin of Non-alignment)-वास्तव में गुट-निरपेक्षता का जन्म भारत में हुआ। सुबीमल दत्त ने अपनी पुस्तक ‘With Nehru in the Foreign Office’ में यह लिखा है-“राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान हरिपुरा सत्र (1939) में गुट-निरपेक्षता की नीति को स्वीकार किया गया था।” हमा और दर्शन भी गुट-निरपेक्षता को स्वीकार करते हैं। गांधी जी के शब्दों में “भारत को सभी का मित्र होना चाहिए और किसी का भी शत्रु नहीं होना चाहिए।” स्वतन्त्रता से पूर्व भी जब जवाहर लाल नेहरू अन्तरिम सरकार में विदेशी मामलों का कार्यभारी था, उसने यह घोषणा की थी कि भारत गुटों से पृथक् रहेगा।

1946 में दोबारा उसने घोषणा की कि भारत अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति बनाएगा। उसके अपने शब्दों में-“यथासम्भव हम गुटों से दूर रहना चाहते हैं। इन गुटों के कारण ही युद्ध हुए हैं और इनके कारण पहले से भी अधिक भयंकर युद्ध हो सकते हैं।” बर्मा के प्रधानमन्त्री ने 1948 में यही बात कही थी “ब्रिटेन, अमेरिका और रूस इन तीनों बड़ी शक्तियों के साथ बर्मा के मित्रतापूर्ण सम्बन्ध होने चाहिएं।” 1950 में फिर यह घोषणा की गई कि बर्मा किसी एक गुट के विरुद्ध किसी दूसरे गुट के साथ सम्बद्ध नहीं होना चाहता।” स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद इंडोनेशिया ने भी इस भावना को प्रकट किया।

कई विद्वान् गुट-निरपेक्षता का जन्म शीत युद्ध में मानते हैं। गुट-निरपेक्ष देशों की 1973 की Algier’s Conference में इस बात की चर्चा की गई कि गुट-निरपेक्षता शीत युद्ध का परिणाम है अथवा उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष का परिणाम है। Fidel Castro ने यह तर्क दिया कि गुट-निरपेक्षता उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलन है।

F. N. Haskar के शब्दों में-“जहां तक भारत का सम्बन्ध है गुट-निरपेक्षता का आरम्भ बेलग्रेड में नहीं हुआ। न ही इसका आरम्भ अप्रैल, 1955 में बाण्डंग में हुए अफ्रीकन-एशियन राष्ट्रों के सम्मेलन में हुआ। इसकी जड़ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध किए गए स्वतन्त्रता संग्राम में है और नेहरू और गांधी द्वारा प्रदर्शित विचारों और विश्व दृष्टिकोण में है।”

हम यह कह सकते हैं कि चाहे यह संगठनात्मक रूप शीतयुद्ध के दौरान मिला किन्तु निश्चित रूप से यह शीतयुद्ध की उपज नहीं है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ (Meaning of Non-alignment)-जैसे कि ऊपर कहा गया है कि गुट-निरपेक्षता की जड़ें द्वितीय महायुद्ध के बाद के उपनिवेशवाद विरोधी राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक संघर्षों में है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है उस शीतयुद्ध में विचार, निर्णय तथा कार्य की स्वतन्त्रता बनाए रखना जो सैनिक तथा अन्य गठजोड़ों को प्रोत्साहन देता है।

इसका उद्देश्य शान्ति और सहयोग के क्षेत्रों को विस्तृत करना है। अतः गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी भी देश को प्रत्येक मुद्दे पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की स्वतन्त्रता; उसे राष्ट्रीय हित के आधार पर और विश्व शान्ति के आधार पर निर्णय लेने की स्वतन्त्रता न कि किसी निर्धारित दृष्टिकोण के आधार पर या किसी बड़ी शक्ति से गठजोड़ होने के आधार पर निर्णय लेना।

गुट-निरपेक्षता की प्रकृति (Nature of Non-alignment) अधिकांश पाश्चात्य विद्वान् इस शब्द में ‘Non’ लगे होने के कारण इसे नकारात्मक अवधारणा समझते हैं। वे इसे तटस्थता समझ लेते हैं क्योंकि यह शीतयुद्ध के प्रति प्रतिक्रिया है। वे इसे उभरते राष्ट्रवाद की एक आंशिक उपज समझते हैं। अफ्रीको-एशियन राष्ट्रवाद धुरी प्रणाली की एक क्रिया है। उसकी सही प्रकृति निम्नलिखित विचार बिन्दुओं में दर्शाई जा सकती है

1. गुट-निरपेक्षता तटस्थता नहीं है (Non-alignment is not Neutrality):
गुट-निरपेक्षता की अवधारणा तटस्थता की अवधारणा से बिल्कुल भिन्न है। तटस्थता का अर्थ किसी भी मुद्दे पर उसके गुण-दोषों के भिन्न उसमें भाग न लेना है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है, पहले से ही किसी मुद्दे पर उसके गुण-दोषों को दृष्टि में रखे बिना अपना दृष्टिकोण तथा पत्र बनाए रखना।

इसके विपरीत गुट-निरपेक्षता का अर्थ है अपना दृष्टिकोण पहले से ही घोषित न करना। कोई भी गुट-निरपेक्ष देश किसी भी मुद्दे के पैदा होने पर उसे अपने दृष्टिकोण से देखकर निर्णय करता था, न कि किसी बड़ी शक्ति के दृष्टिकोण से देखकर। तटस्थता की धारणा केवल युद्ध के समय संगत है और तटस्थता का अर्थ है अपने आपको युद्ध से अलग करना। परन्तु गुट-निरपेक्षता की धारणा युद्ध एवं शान्ति दोनों में प्रासंगिक है।

2. राष्ट्र हित और अन्तर्राष्ट्रवाद का समन्वय (Synthesis of National Interest and Internationalism):
विश्व में शान्ति बनाए रखने के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का अर्थ है राष्ट्र हित और अन्तर्राष्ट्रवाद का समन्वय। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नेताओं ने इस आन्दोलन को अपनी पुरातन सभ्यता की परम्पराओं पर तथा पाश्चात्य उदारवादी परम्पराओं पर आधारित किया है।

3. विश्व शान्ति की चिन्ता (Concern for World Peace):
गुट-निरपेक्षता आन्दोलन का सम्बन्ध विश्व में शान्ति स्थापना करना है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि आधुनिक युद्ध बहुत थोड़े समय में सारे विश्व को नष्ट कर सकता है। साथ ही गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में हिंसात्मक ढंग से हल करने के विरुद्ध हैं। उनके विचार में युद्ध समस्या को सुलझाने के स्थान पर उसे और जटिल बना देता है।

4. आर्थिक सहायता लेना (Seeking Economic Assistance):
गुट-निरपेक्षता आन्दोलन में सम्मिलित होने वाले सभी देश अविकसित हैं अथवा विकासोन्मुखी हैं। गुट-निरपेक्ष देशों ने आर्थिक क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने का यत्न किया है। उन्होंने अपने साधनों को इकट्ठा करके विकसित देशों पर अपनी निर्भरता को घटाने का यत्न किया है। गट-निरपेक्ष देशों में से भारत आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न करके इन देशों के लिए उदाहरण बनने जा रहा है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर निर्णय की स्वतन्त्रता (Independence of Judgement on International Issues):
गुट-निरपेक्षता आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सम्मिलित होने वाले देश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर अपना निर्णय करने में स्वतन्त्र हैं।

6. उपनिवेशवाद तथा जातिवाद का विरोध (Opposition to Colonialism and Racialism):
गुट निरपेक्ष देश उपनिवेशवाद तथा जातिवाद के विरोधी हैं। सुकार्नो तथा नेहरू विशेष तौर पर इस बात से सम्बन्धित थे कि उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष बल पकड़ जाएगा। गुट-निरपेक्ष देशों, विशेषतः भारत ने Zimbabve Rhodesia की स्वतन्त्रता के लिए विशेष समर्थन दिया था। दक्षिणी अफ्रीका में अपनाए जा रहे जातिवाद का भी गुट-निरपेक्षता आन्दोलन ने विरोध किया है।

7. शक्ति की राजनीति का विरोध (Opposition to Power Politics):
Morgenthau तथा Schwar zenberger अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को शक्ति के लिए संघर्ष मानते हैं। शक्ति का अर्थ किसी विशेष व्यक्ति का दूसरे व्यक्तियों के मस्तिष्क और कार्यों पर नियन्त्रण। गुट-निरपेक्षता कम-से-कम सिद्धान्त में शक्ति की राजनीति का एक खेल है। यह प्रभाव राजनीति (Influence Politics) में विश्वास रखती है। प्रभाव राजनीति शक्ति की राजनीति से इस दृष्टि से भिन्न है कि यह समझाने-बुझाने (Persuasion) में विश्वास रखती है जबकि शक्ति बल द्वारा दूसरों से अपनी इच्छा का काम करवाना चाहती है।

8. नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना (Establishment of New International Economic Order) :
इस तथ्य के होते हुए भी कि नये राष्ट्रों ने स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है, आर्थिक दृष्टि से अब भी विकसित देश उन पर हावी हैं। वे ऐसी आर्थिक प्रणाली में बंधे हुए हैं जो निर्धनों और अविकसित देशों का शोषण कर रखती हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 7.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन’ से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य सिद्धान्त-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  • सदस्य देशों संप्रभुता, राष्ट्रीय स्वाधीनता, क्षेत्रीय अखण्डता एवं सुरक्षा की रक्षा करना।
  • साम्राज्यवाद, रंगभेद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बनाए रखना।
  • राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलनों का समर्थन करना।
  • विकासशील एवं विकसित देशों के बीच पाई जाने वाली असमानता को दूर करना।
  • शस्त्रों की होड़ को रोककर निःशस्त्रीकरण को लागू करना।
  • एक देश के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप का विरोध करना।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ को मजबूत बनाना।
  • गट-निरपेक्ष देशों को आत्म-निर्भर बनाने का प्रयास करना।

प्रश्न 8.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में होने वाली गतिविधियों में भारत की भूमिका का परीक्षण कीजिए ।
अथवा
‘तटस्थता’ व ‘गुट-निरपेक्षता’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका बताइए।
उत्तर:
तटस्थता तथा गुट-निरपेक्षता में अन्ग-तटस्थता युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति से सम्बन्धित है, जबकि गुट-निरपेक्षता युद्ध और शान्ति दोनों से सम्बनि तटस्थता एक नकारात्मक धारणा है, जो किसी पक्ष की ओर से युद्ध में भाग लेने से रोकती है, जबकि गुट निरपेक्ष एक सकारात्मक नीति है जो विषय के महत्त्व के अनुसार उसमें किसी गुट-निरपेक्ष राष्ट्र की रुचि निर्धारित करती है।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्षता की नीति को लागू करने का श्रेय भारत के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू को है। गुट-निरपेक्षता को विचार से नीति एवं नीति से आन्दोलन बनाने में भारत की भूमिका सराहनीय रही है। एक सक्रिय सदस्य के रूप में भारत ने सदैव गुट-निरपेक्ष का सम्मान एवं समर्थन किया। भारत की भूमिका निर्गुट आन्दोलन की हर गतिविधि में अहम रही है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में होने वाली गतिविधियों में भारत ने निम्नलिखित भूमिका अभिनीत की है

(1) भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्मदाता है।

(2) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व शान्ति पर बल देता है। भारत के प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए द्वितीय शिखर सम्मेलन में विश्व शान्ति के लिए पांच सूत्री प्रस्ताव पेश किया जिसमें मुख्यतः-सीमा विवादों को विवेक एवं शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने, अणु शस्त्रों के निर्माण एवं प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने एवं संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करने पर बल दिया।

(3) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का सातवां शिखर सम्मेलन 1983 में श्रीमती इन्दिरा गांधी की अध्यक्षता में दिल्ली में हुआ।

(4) 1983 में भारत के प्रयत्नों से बहुत-सी समस्याओं-ईरान-इराक युद्ध, कम्पूचिया की समस्या, हिन्द महासागर में शान्ति बनाए रखना एवं पारस्परिक आर्थिक सहयोग आदि पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किए गए।

(5) नाम (NAM) के अध्यक्ष के रूप में भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर सर्वसम्मति प्राप्त करके एवं गुट-निरपेक्ष तथा विश्व के देशों के हितों की रक्षा करके इस आन्दोलन को ओर भी शक्ति प्रदान की।

(6) नाम के अध्यक्ष के रूप में भारत ने पूर्ण निशस्त्रीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव पेश किया।

(7) 1985 में घोषित नई दिल्ली घोषणा पत्र श्री राजीव गांधी के निशस्त्रीकरण सम्बन्धी चार सूत्रीय योजना पर आधारित था।

(8) राजीव गांधी की अध्यक्षता में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग, उत्तर-दक्षिण, उत्तर-दक्षिण वार्तालाप, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र संघ की सक्रिय भूमिका आदि विषयों पर जोर दिया।

(9) भारत की पहल पर ‘अफ्रीका कोष’ कायम किया गया।

(10) भारत ने अफ्रीका कोष को, 50 करोड़ रु० की राशि दी।

(11) भारत को 1986 एवं 1989 में अफ्रीका कोष का अध्यक्ष चुना गया। ऋण, पूंजी-निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जैसे कई आर्थिक प्रस्तावों का मूल प्रारूप भारत ने बनाया।

(12) 1989 के बेलग्रेड सम्मेलन में भारत ने पृथ्वी संरक्षण कोष कायम करने का सुझाव दिया और सदस्य राष्ट्रों ने इसका भारी समर्थन किया।

(13) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दसवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, वातावरण सुरक्षा, आतंकवाद जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। भारत का यह रुख जकार्ता घोषणा में शामिल किया गया कि आतंकवाद प्रादेशिक अखण्डता एवं राष्ट्रों की सुरक्षा को एक भयानक चुनौती है।

(14) भारत ने ही गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का ध्यान विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण की तरफ खींचा।

(15) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व एवं सदस्य राष्ट्रों की इसमें निष्ठा बनाए रखने के लिए भारत ने द्विपक्षीय मामले सम्मेलन में न खींचने की बात कही जिसे सदस्य राष्ट्रों ने स्वीकार किया।

(16) 1997 में दिल्ली में गट-निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्रियों का शिखर सम्मेलन हआ।

(17) बारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं आतंकवाद से निपटने के लिए एक विश्वव्यापी सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका सदस्य राष्ट्रों ने समर्थन किया।

(18) तेरहवें शिखर सम्मेलन में सक्रिय भूमिका अभिनीत करते हुए भारत ने आतंकवाद एवं इसके समर्थकों की कड़ी आलोचना कर विश्व शान्ति पर बल दिया।

(19) भारत ने क्यूबा में हुए 14वें, मिस्र में हुए 15वें तथा इरान में हुए 16वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए आतंकवाद को समाप्त करने का आह्वान किया।

(20) भारत ने वेनुजुएला में हुए 17वें एवं अजरबैजान में हुए 18वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए विकास के लिए वैश्विक शांति की स्थापना पर बल दिया।
अत: गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका सदैव सराहनीय रही है।

प्रश्न 9.
शीत-युद्धोपरान्त काल में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की व्याख्या करो।
उत्तर:
शीत युद्ध के पश्चात् आज की बदली हुई परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका में भी बदलाव आया है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन नए विश्व के निर्माण के लिए प्रयत्नशील है जो शान्ति, मैत्री एवं सम्पन्नता से परिपूर्ण हो। वातावरण समय में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका एवं महत्त्व दोनों ही बढ़ा रहा है या ऐसा कहा जाए कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन की बढ़ती भूमिका ने उसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन बना दिया है।

विश्वीकरण की तीव्र होती प्रक्रिया के कारण विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों ने खुला बाजार नीति को अपनाया है। विकसित देशों की बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां विकासशील देशों में पूंजी निवेश करती हैं ताकि दोनों राष्ट्रों को लाभ हो। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ऐसी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों से विकासशील देशों के हितों की रक्षा करता है। आज गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शक्ति गुटों में नहीं अपितु विकसित एवं विकासशील देशों में आर्थिक सम्बन्धों में सन्तुलन पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है।

आज गुट-निरपेक्ष आन्दोलन सदस्य राष्ट्रों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयास कर रहा है। अब यह विकसित देशों से विकासशील एवं पिछड़े देशों के लिए आर्थिक एवं तकनीकी मदद प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण के लिए समर्पित है। कार्टाजेना सम्मेलन में परमाणु हथियारों के समूल नाश के लिए धीमे एवं सीमित प्रयासों पर सदस्य राष्ट्रों ने चिंता व्यक्त की।

बारहवें शिखर सम्मेलन में परमाणु हथियारों की होड़ को रोकने एवं उन्हें नष्ट करने के लिए एक बहु-पक्षीय समझौते पर बल दिया। इस सम्मेलन में निशस्त्रीकरण एवं आतंकवाद से निपटने के लिए विश्वव्यापी सम्मेलन बुलाने का सुझाव दिया गया।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को अमीर एवं विकसित राष्ट्रों के प्रभुत्व से निकालने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तत्पर है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन यह देखता है कि कोई एक शक्ति केन्द्र सारी दुनिया पर अपना प्रभुत्व न कायम कर ले। विश्व को महायुद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन इसके सदस्य राष्ट्र अहम् भूमिका निभा रहे हैं।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्वव्यापी दरिद्रता को दूर करने की कोशिश कर रहा है। कोलंबिया सम्मेलन में विकासशील देशों में भूख, ग़रीबी, निरक्षरता तथा पेयजल की कमी से निपटने के लिए प्रयास करने पर बल दिया गया। लन अब संयक्त राष्ट्र संघ में सधार के लिए भी मांग करता है यह इसे अमेरिका की दादागिरी से बचाने के लिए प्रयासरत है। अतः गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका शीत युद्ध के बाद बढ़ गई है।

अब यह केवल नव स्वतन्त्र राष्ट्रों की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए ही नहीं प्रयासरत अपितु अपने विश्वव्यापी स्वरूप के कारण अब यह विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, विश्वशान्ति एवं सुरक्षा, सम्पन्नता, आर्थिक-सामाजिक उन्नति, सहयोग एवं मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भी प्रयासरत है। अब गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्वव्यापी समस्याओं एवं मामलों की ओर भी ध्यान दे रहा है।

प्रश्न 10.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का पतन होना आरम्भ हो गया था। साम्राज्यवादी व औपनिवेशिक शक्तियों की पकड़ अपने उपनिवेशों पर ढीली पड़ने लगी थी क्योंकि साम्राज्यवादी शक्तियां ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, बैल्जियम आदि इस स्थिति में नहीं थे कि वे अपने उपनिवेशों पर अपना कब्जा जमा सकें। अतः उन्होंने अपने अपने उपनिवेशों को आजाद करना आरम्भ कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 50 व 60 के दशक में एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के सैंकड़ों देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर उभरे।

सदियों तक यूरोपीय देशों ने इन क्षेत्रों पर अपना नियन्त्रण बनाए रखा और इन देशों का शोषण किया। इन उपनिवेशों का आर्थिक शोषण कर करके यूरोपीय देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को बहुत मज़बूत बनाया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था को बहुत धक्का लगा। इसलिए इस युद्ध के बाद यूरोपीय देशों ने अपने आर्थिक पुनरुत्थान और एकीकरण की तरफ ध्यान देना आरम्भ कर दिया ताकि अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकें।

नव-स्वतन्त्र अथवा विकासशील देशों को अपनी आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए विकसित देशों की मदद की आवश्यकता थी। राजनीतिक स्वतन्त्रता की प्राप्ति तथा नए देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त होने के कारण संयुक्त राष्ट्र की संख्या तिगुनी हो गई थी। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तथा तीसरे विश्व के देशों ने पुरानी विश्व अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था (New International Economic Order) के जन्म तथा स्थापना को प्रोत्साहित किया। 70 के दशक में इन विकासशील देशों ने राजनीतिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतन्त्रता की मांग भी आरम्भ कर दी जिसके परिणामस्वरूप एक नई अवधारणा नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का प्रचलन हुआ। यह 70 के दशक में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में मुख्य विषय बन गया।

नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था क्या है ? (What is NIEO ?)-नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को खाद्य-सामग्री उपलब्ध कराना है, साधनों को विकसित देशों में विकासशील देशों में भेजना, वस्तओं सम्बन्धी समझौते करना, बचाववाद को समाप्त करना तथा पुरानी परम्परावादी औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के स्थान पर निर्धन तथा वंचित देशों के साथ न्याय करने के उद्देश्य से नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना करना है। 70 के दशक में इन विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की मांग की क्योंकि अमेरिका व यूरोपीय देश इस बात के लिए सदैव तत्पर रहे कि विकासशील देशों की तैयार वस्तुएं अमेरिका व यूरोपीय आर्थिक बाजार में प्रवेश न कर सकें।

पुरानी व्यवस्था विकासशील अथवा कम विकसित अथवा तृतीय विश्व के हितों की अवहेलना करते हुए बनाई गई है जिसका उद्देश्य विकसित राष्ट्रों के हितों व उनकी आवश्यकताओं की रक्षा करना है जबकि विकासशील देशों का उद्देश्य यह है कि नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के तहत विकसित राष्ट्रों के लिए एक आचार संहिता बनाकर तथा कम विकसित राष्ट्रों के उचित अधिकारों को मानकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सबके लिए समान तथा न्यायपूर्ण बनाना है।’

“नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का विश्वास विकासशील देशों में सहयोग स्थापित करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को मजबूत बनाना है। इसका विश्वास विश्व में एक ऐसी लोकतन्त्रीय व्यवस्था स्थापित करना है जिससे प्रत्येक राष्ट्र को समानता का व्यवहार मिले और ऐसी आर्थिक स्थिति बने जिससे विश्व में उसका राजनीतिक स्थायित्व सुनिश्चित हो सके।” 70 के दशक के बाद इन विकासशील देशों ने आर्थिक समानता की मांग करनी आरम्भ कर दी। विकासशील राष्ट्र बिना किसी देरी के उत्तर-दक्षिणी वार्ता की मांग करते हैं। परन्तु विकसित राष्ट्र किसी भी कीमत पर इस तर्क को स्वीकार नहीं करते जिसके कारण इनके मध्य विवाद (Conflict) पैदा हो गया।

इस विवाद को उत्तर-दक्षिणी विवाद (North-South Conflict) के नाम से भी पुकारते हैं क्योंकि जितने भी विकसित देश हैं वे भू-मध्य रेखा के उत्तर में और विकासशील देश भू-मध्य रेखा के दक्षिण में स्थित हैं। उस समय की आर्थिक व्यवस्था संकटों के दौर में से गुजर रही थी। इस समय तक विकसित देशों में भी एक स्थायित्व की स्थिति आ चुकी थी अर्थात् विकसित देशों ने लगभग प्रत्येक क्षेत्र में विकास कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप उनका आर्थिक विकास थम गया था। मुद्रा स्फीति की दर बढ़ रही थी। मुद्रा स्फीति की समस्या पर रोक लगाने हेतु ही विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग जोरों से आरम्भ कर दी।

यह विश्व के आर्थिक साधनों के आदर्श विभाजन पर बल देती है तथा ऐसे साधनों को उपाय में लाना चाहती है जिससे कि ग़रीब देशों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो सके। इस व्यवस्था को जन्म देने में मुख्यतः तीन बातें सामने आती हैं-प्रथम, विकसित देशों को विकासशील देशों के साथ अपनी पूंजी में भाग देना चाहिए।

द्वितीय, मुद्रा स्फीति की बढ़ती हुई दर पर रोक लगाने के लिए यह आवश्यक है कि इस नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर बल दिया जाए। ततीय, आर्थिक साधनों के आदर्श विभाजन के लिए विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों पर दबाव डालना। वास्तव में, इस अवधारणा ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रिया के घनिष्ठ सम्बन्ध को उभार कर सामने रखा है। जब तक आर्थिक व्यवस्था परिवर्तित नहीं होती तब तक न्यायपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था भी स्थापित नहीं की जा सकती।

पुरानी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (Features of the Old Economic Order): विकसित देशों द्वारा स्थापित पुरानी अर्थव्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

(1) पुरानी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विश्व में पूर्वी व पश्चिमी गुटों में अन्तर पाया जाता था, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के मुद्दे को लेकर उत्तर-दक्षिण में भी विवाद था।

(2) पुरानी आर्थिक व्यवस्था विकसित देशों के हितों की रक्षा करती थी जिससे सारा लेन-देन विकसित देशों में ही होता था जो कि भेदभाव रहित उदारवादी व्यापार पर आधारित था जिससे विश्व में खुले व्यापार की नीति को प्रोत्साहन मिला।

(3) पुरानी अर्थव्यवस्था राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत थी। इस पर कुछेक राष्ट्रों का एकाधिकार था। यह व्यवस्था तर्कहीन, अन्यायपूर्ण और असंगत थी।

(4) पुरानी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विकसित राष्ट्रों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को इस तरह नियमित कर रखा था कि विकसित देशों को विकासशील देशों में आसान शर्तों पर माल बेचने की छूट प्राप्त थी।

80 के दशक के अन्त तक विकसित देशों को भी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। कई साम्यवादी देशों का पतन हो गया और वहां प्रजातान्त्रिक सरकारों की स्थापना हुई। इस दशक में विकासशील देशों ने भी उत्तर-दक्षिण विवाद की बजाए उत्तर-दक्षिण वार्ता (North-South Dialogue) पर बल देना आरम्भ कर दिया। 1975 तक इन विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय धन-सम्पदा आदि का पूरा उपभोग विकसित राष्ट्रों ने किया। विकसित देशों का मत था कि अगर विकासशील देश पिछड़ गए हैं तो उनके पीछे उनकी पिछड़ी तकनीक है, जिसके कारण वे अपनी प्राकृतिक सम्पदा का उपभोग नहीं कर पाए हैं।

इसीलिए विकासशील देशों ने पुरानी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को खत्म करना चाहा। पुरानी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के तीन भाग थे प्रथम-पश्चिमी देशों की आत्मनिर्भरता की व्यवस्था द्वितीय-उत्तर-दक्षिण की निर्भरता की व्यवस्था तृतीया- पूर्व-पश्चिम की स्वतन्त्रता की व्यवस्था पूर्वी देश अपनी आत्मनिर्भरता के लिए पश्चिमी देशों पर निर्भर हैं। इस व्यवस्था में विकासशील देशों की कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं थी।

विश्व अर्थव्यवस्था पर कुछेक विकसित देशों का एकाधिकार है। विश्व का मुनाफा भी इन्हीं देशों के हाथ में है। इसके अतिरिक्त एक अन्य कारण धन तथा व्यापारिक मण्डियों पर एकाधिकार था। जिसका कच्चे माल की मण्डियों पर नियन्त्रण होगा उसका तैयार माल की मण्डियों पर नियन्त्रण होना स्वाभाविक है। इस तरह इन विकसित देशों ने अविकसित तथा विकासशील देशों का दोहरा शोषण किया जिससे विकसित व विकासशील देशों में असमानता फैल गई।

उपर्युक्त आधारों पर ही 70 के दशक में विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग की ताकि ये देश अपना आर्थिक विकास कर सकें। विकासशील देशों की मांग है कि विकसित देश अपने देशों के अतिरिक्त साधनों को विकासशील देशों को दे दें ताकि आर्थिक रूप से पिछड़े हुए विकासशील देश लाभ उठा सकें। यदि इस दिशा में विकासशील राष्ट्र प्रगति करते हैं तो इससे विकसित देशों को भी फायदा होगा और नई मण्डियां प्राप्त होंगी। चूंकि अब इन देशों ने लम्बी परतन्त्रता के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है।

अतः विकसित देशों का नैतिक कर्त्तव्य बनता है कि वे इन देशों की आर्थिक मदद करें ताकि ये देश भी आत्मनिर्भर बन सकें। इसके द्वारा ऐसी व्यवस्था की जाएगी ताकि आर्थिक न्याय की प्राप्ति हो सके। नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत बहुत प्रयत्नों द्वारा विकसित देश विकासशील देशों को अपनी आय का 0.7% भाग ही देने को तैयार हुए हैं जोकि बहुत कम हैं।

नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धान्त (Basic Principles of NIEO) विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए कुछ बुनियादी सिद्धान्त निर्धारित किए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • कच्चे माल की कीमत को घटाने-बढ़ाने पर रोक लगाई जाए तथा कच्चे माल और तैयार माल की कीमतों में अन्तर न होना।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गतिविधियों पर समुचित प्रतिबन्ध,
  • विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना,
  • विश्व मौद्रिक व्यवस्था का सामान्यीकरण करना,
  • खनिज पदार्थों और सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता की स्थापना करना।
  • विकासशील देशों द्वारा तैयार माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना।
  • दोनों के मध्य तकनीकी उत्थान की खाई को समाप्त करना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 11.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों द्वारा किये गए प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर:
70 के दशक में नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना हेतु विभिन्न संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र, गुट-निरपेक्ष आन्दोलन, विकसित देशों व विकासशील देशों ने विभिन्न स्तरों पर यत्न किए। इन संगठनों द्वारा किए गए प्रयासों का वर्णन इस प्रकार है

1. संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए प्रयत्न (UN efforts at the establishment of NIEO)

(क) 1 मई, 1974 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के छठे विशेष अधिवेशन में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना में उठाए जाने वाले कुछ कार्यक्रमों को निश्चित किया जैसे कि

  • व्यापार व विकास सम्बन्धी प्रारम्भिक कच्चे माल की समस्याओं को हल किया जाए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था और विकासशील देशों की वित्तीय सहायता देने सम्बन्धी मामलों को निपटाया जा सके।
  • विकासशील देशों द्वारा अत्यधिक औद्योगिकीकरण की दिशा में प्रयास हो।
  • विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को तकनीक का हस्तान्तरण किया जाए।
  • बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों व निगमों की गतिविधियों का संचालन तथा नियन्त्रण।
  • राज्यों के आर्थिक कार्यों व कर्तव्यों का एक चार्टर बनाया जाए जिसमें प्रत्येक राज्यों के अधिकार व कर्त्तव्य का वितरण हो।
  • विकासशील देशों के मध्य पारस्परिक सहयोग पर बल।

(ख) व्यापार और विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) सितम्बर, 1975 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा का विकास तथा अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग’ पर सातवां विशेष अधिवेशन उत्तर-दक्षिण वार्ता के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ क्योंकि इसमें तृतीय विश्व तथा पश्चिमी दोनों द्वारा अपनी समझौता वार्ताओं पर यथार्थवाद का प्रदर्शन किया गया। 77 का समूह (Group of 77) तथा पश्चिम के बीच सहानुभूतिपूर्व सहयोग के फलस्वरूप समझौता पास हुआ जो तीसरे विश्व की प्रगति के मार्ग में मील का पत्थर प्रमाणित हुआ।

इन सभी सम्मेलनों का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सम्प्रभु, समानता तथा सहयोग के आधार पर स्थापित करने हेतु पुनर्गठित करना है ताकि इनमें से भेदभाव को हटाकर इसे न्याय पर आधारित किया जा सके। अंकटाड के कई सम्मेलनों ने इस दिशा में कार्य किए जैसे-प्रगतिशील सिद्धान्तों का निर्माण, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को विकसित किया जाए, पक्षपातपूर्व रवैये की समाप्ति, सांझी निधि का निर्माण किया जाए जिससे विकासशील देशों के ऋण का भार कम हो सके।

(ग) संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) के प्रयास-नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र के औद्योगिक विकास संगठन ने भी अपने स्तर पर प्रयास आरम्भ कर दिए। इस संगठन (UNIDO) का उद्देश्य तीसरे विश्व के देशों का औद्योगिक विकास करना है। इस दिशा में इसने कुछ महत्त्वपूर्ण सम्मेलन बुलाए।

2. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन द्वारा किए गए प्रयास (Efforts of NAM) एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका ने नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों ने मिलकर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आरम्भ किया था। यह नव-स्वतन्त्र राष्ट्र अपना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक कारणों से गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के रूप में एकत्र हुए। साम्राज्यवादी आर्थिक ढांचे से दबे हुए इन देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था निर्मित करने का प्रयत्न किया। गुट-निरपेक्ष देशों के लुसाका सम्मेलन (1970) में इन देशों की आर्थिक समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाया गया। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मन्त्रियों के 1975 के

लीमा सम्मेलन (LIMA Conference) में आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए एक संहति कोष (So Fund) की स्थापना की स्वीकृति दी गई। 1983 में नई दिल्ली में हुए गुट-निरपेक्ष देशों के सातवें शिखर सम्मेलन में भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता की ओर विशेष ध्यान दिलाया। इसके अतिरिक्त G-15 के विभिन्न सम्मेलनों में भी इसकी स्थापना की दिशा में मांग उठाई गई।

3. विकसित देशों के प्रयास (Efforts of Developed Countries):
80 के दशक के आरम्भ में पूर्व व बाद में विकसित देशों को भी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि तेल उत्पादक देशों ने तेल की कीमतों में भारी वृद्धि कर दी थी जिसके परिणामस्वरूप विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। अतः विकसित देशों ने भी नई व्यवस्था की ओर ध्यान देना शरू किया। विकासशील देशों की मांगों की तरफ विकसित देशों ने सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना आरम्भ कर दिया था।

विकसित देशों को आर्थिक विकास व सहयोग के संगठन (OECO) विश्व बैंक, IMF तथा GATT आदि ने बचाववाद (Protectionism) की नीति को छोड़कर उन्हें अपने हितों की रक्षा के लिए नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का सुझाव दिया। विकासशील देशों ने भी उत्तर-दक्षिण विवाद की जगह उत्तर-दक्षिण वार्ता पर बल देना आरम्भ कर दिया। काफ़ी प्रयत्नों के द्वारा विकसित देश विकासशील देशों को अपनी आय का 0.7% हिस्सा देने को तैयार हो गए।

4. विकासशील देशों के प्रयास (Efforts of Developing Countries):
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल सभी देश विकासशील देश हैं, परन्तु विकासशील देशों में सभी गुट-निरपेक्ष देश शामिल नहीं हैं। विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की दिशा में निम्नलिखित प्रयत्न किए

(1) संयुक्त राष्ट्र की महासभा के 1974 में हुए सम्मेलन में विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की मांग की।

(2) विकासशील देशों ने अंकडाट में विभिन्न सम्मेलनों में नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग को मनवाने के लिए प्रयत्न किए।

(3) विकासशील देशों ने 1977 के पेरिस में सम्पन्न Conference on Trade Co-operation में भी मांग उठाई। इस सम्मेलन में उत्तर-दक्षिण के देशों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए।

(4) 1982 में विकासशील देशों का नई दिल्ली में सम्मेलन हुआ। इसमें विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाने और पारस्परिक सहयोग के आठ बिन्दुओं पर भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बल दिया।

इस प्रकार विकासशील देशों ने संयुक्त राष्ट्र व उसके बाहर के सम्मेलनों, गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सम्मेलनों, राष्ट्र मण्डल के शिखर सम्मेलनों, G-15 एवं G-77 के सम्मेलनों में इस मांग को उठाकर लोकमत बनाने की कोशिश की। जी 15 की नौवीं बैठक जमैका (Jamaica) में फरवरी, 1999 में हुई और इसमें 17 देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में विश्व आर्थिक व्यवस्था में विकासशील देशों को अधिक भागीदारी दिए जाने की मांग की गई। यह भी सुझाव दिया गया कि WTO, WB तथा IMF जैसी आर्थिक संस्थाओं में अधिक सहयोग व तालमेल होना चाहिए।

प्रश्न 12.
शीत युद्ध में भारत की क्या प्रतिक्रिया रही ? गुट-निरपेक्षता की नीति ने किस प्रकार भारत का हित साधन किया ?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुट-निरपेक्ष नेता के रूप में उभर कर भारत ने न केवल स्वयं को अमेरिका एवं सोवियत संघ दोनों से अपने आपको अलग रखा, बल्कि नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों एवं विकासशील देशों को भी दोनों शक्ति गुटों से अलग रखने का प्रयास किया।

स्वतन्त्रता के पश्चात् पं० जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा तथा अन्य कई स्थानों पर यह स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत किसी गुट में शामिल नहीं होगा और भारत गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण करेगा। पं० जवाहरलाल नेहरू ने यह भी स्पष्ट किया था कि गुट-निरपेक्षता का अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के प्रति उदासीनता नहीं है।

सन् 1949 में प्रधानमन्त्री नेहरू ने अमरीकी कांग्रेस के समक्ष भाषण देते हुए कहा था, “जहां स्वतन्त्रता खतरे में हो न्याय खतरे में हो या यदि कहीं आक्रमण किया जा रहा हो वहां हम उदासीन नहीं रह सकते और न ही रहेंगे। हमारी नीति उदासीनता की नीति नहीं है। हमारी नीति यह है कि शान्ति स्थापना के लिए सक्रिय रूप से प्रयत्न किया जाए तथा जहां तक सम्भव हो सके शान्ति को सुदृढ़ आधार प्रदान किया जाए।”

उदाहरण के लिए 50 के दशक में हुए कोरिया युद्ध एवं स्वेज नहर के संकट को समाप्त करने के लिए भारत ने सक्रिय भूमिका निभाई। भारत ने शीत युद्ध के दौरान उन सभी अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जो दोनों शक्ति गुटों में से किसी के साथ नहीं जुड़े थे।

यद्यपि कई आलोचकों का यह कहना है कि गुट-निरपेक्षता का आदर्श भारत के राष्ट्रीय हितों एवं मूल्यों से मेल नहीं खाता, परन्तु यह तर्क उचित नहीं है, क्योंकि भारत न केवल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वतन्त्र निर्णय ले सका, बल्कि ऐसे पक्ष का साथ देता था, जिससे भारत को लाभ हो। इसके साथ-साथ दोनों महाशक्तियों ने भारत से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने का प्रयास किया, यदि एक गुट भारत के विरुद्ध होता तो दूसरा गुट भारत की मदद को आ जाता था।

यद्यपि कई आलोचक भारत की गुट-निरपेक्षता को सिद्धान्तहीन एवं विरोधाभासी बताते हैं। क्योंकि भारत ने सन् 1971 में सोवियत संघ से एक बीस वर्षीय सन्धि कर ली थी। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन परिस्थितियों में इस प्रकार की सन्धि करना भारत के लिए आवश्यक हो गया था। अधिकांश तौर पर भारत ने दोनों गुटों से अलग रहने की नीति ही अपनाई।

भारत ने निम्नलिखित ढंग से अपना हित साधन किया

1. आर्थिक पुनर्निर्माण- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर अपना आर्थिक पुनर्निर्माण किया क्योंकि किसी गुट में शामिल न होने से उसे सभी देशों से सहायता प्राप्त होती रही।

2. स्वतन्त्र नीति निर्माण- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर स्वतन्त्रतापूर्वक अपनी नीतियों का निर्माण किया।

3. भारत की प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी-गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने से भारत की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि हुई।

4. दोनों गुटों से अधिक सहायता-गुट-निरपेक्ष देश होने के कारण भारत को दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त होती रही।

प्रश्न 13.
भारतीय गुट-निरपेक्षता के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय गुट-निरपेक्षता के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है

1. भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है-भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है क्योंकि भारत ने स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय राज्य नीति से दूर नहीं रखा है, अपितु भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका अभिनीत करता है।

2. सैन्य समझौतों का विरोध-भारत सैन्य समझौतों का विरोध करता है। अतः भारत सेन्टो (CENTO), नाटो (NATO), सीटो (SEATO), वारसा सन्धि (WARSA-PACT) आदि में सम्मिलित नहीं हुआ है।

3. शक्ति राजनीति से दूर रहना-भारत शक्ति राजनीति का विरोध करता है और प्रत्येक राष्ट्र के शक्तिशाली बनने के अधिकार को स्वीकार करता है।

4. शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति-भारत का पंचशील के सिद्धान्तों पर पूर्ण विश्वास है। शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति पंचशील के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। भारत शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का समर्थन करता है।

5. स्वतन्त्र विदेश नीति-भारत अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति पर कार्यान्वयन करता है। भारत अपनी विदेश नीति का निर्माण किसी भी अन्य देश के प्रभावाधीन नहीं करता, अपितु स्वेच्छा से स्वतन्त्र रूप में करता है। भारत दोनों शक्ति गुटों में से किसी भी गुट का सदस्य नहीं है।

6. निर्गुट देशों के मध्य गुटबन्दी नहीं है-कुछ आलोचकों का मत है कि निर्गुटता की नीति गुट-निरपेक्ष देशों की गुटबन्दी है। किन्तु आलोचकों का यह विचार उचित नहीं है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ गुट-निरपेक्ष देशों का तृतीय गुट स्थापित करना नहीं है।

प्रश्न 14.
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म कैसे हुआ ? UNCTAD ने 1972 की अपनी रिपोर्ट में किन सुधारों को प्रस्तावित किया ?
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें। UNCTAD द्वारा दिये गए सुधार-UNCTAD ने 1972 में अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रस्ताव दिये

  • अल्पविकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण प्राप्त होगा, जिनका दोहन एवं दुरुपयोग विकसित कर सकते हैं।
  • अल्पविकसित देश विकसित देशों के बाज़ार में भी अपना माल बेच सकेंगे।
  • विकसित देशों से आयातित प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी।
  • अल्पविकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में भूमिका बढ़ेगी।

प्रश्न 15.
भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाने के मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति को जोश में आकर नहीं अपनाया बल्कि यह गम्भीर चिन्तन का फल था और इसको अपनाने के मुख्य कारण इस प्रकार थे थिक पुननिर्माण-प्रथम, भारत कई वर्षों के साम्राज्यवादी शोषण के बाद स्वतन्त्र हुआ था और इसके सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश के आर्थिक पुनर्निर्माण का था। यह कार्य शान्ति के वातावरण में हो सकता था न कि तनावपूर्ण स्थिति में। अतः भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था क्योंकि यदि भारत किसी गुट में सम्मिलित होता तो इससे स्थिति और भी तनावपूर्ण हो जाती जोकि भारत के लिए ठीक नहीं थी।

2. स्वतन्त्र नीति निर्धारण के लिए-द्वितीय, भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई क्योंकि भारतीय राष्ट्रीयता प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्र रहने की उत्कट अभिलाषी थी। भारत को स्वतन्त्रता हजारों देश-प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। अतः भारतीयों के लिए स्वतन्त्रता अमूल्य थी। किसी गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था। भारत यह अनुभव करता था कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उसे भाग लेने का पूर्ण अधिकार है और यदि भारत किसी गुट में शामिल हो जाता तो भारत को अपना यह अधिकार खो देना पड़ता। अत: पूर्ण स्वतन्त्रता की इच्छा के कारण भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए-तृतीय, भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए ठीक गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया गया।

4. शान्ति का समर्थक-गुट-निरपेक्षता की नीति का ऐतिहासिक आधार पर भी समर्थन किया जाता है। भारत का इतिहास यह बताता है कि भारत ने सदैव शान्ति की नीति का अनुसरण किया है। उसकी कभी भी विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षाएं नहीं रहीं। इस प्रकार गुट-निरपेक्षता की नीति भारत के परम्परागत दर्शन तथा आदर्शों की आधुनिक युग में राजनीतिक अभिव्यक्ति है।

5. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही। भारत दोनों गुटों द्वारा मिलने वाली सहायता का आनन्द उठाता रहा। यदि भारत एक ही गुट में शामिल हो जाता तो शायद वह न केवल एक ही गुट की सहायता लेता बल्कि दूसरे गुट वाले देश भारत को घृणा की दृष्टि से देखते।

6. भौगोलिक दशा-भारत की भौगोलिक दशा ऐसी थी कि यदि भारत पश्चिमी या साम्यवादी गुट में सम्मिलित हो जाता तो उसके अस्तित्व को संकट उत्पन्न हो जाता।

7. एशिया के हित के लिए-एशिया के नए स्वतन्त्र राष्ट्रों में पश्चिम के प्रति घृणा थी और भारत को सभी एशियाई देश प्रतिष्ठा से देख रहे थे। यदि भारत पश्चिमी गुट से मिल जाता तो एशिया के देशों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता। अन्य देश भी भारत के अनुसरण करते हुए पश्चिम में मिलना प्रारम्भ कर देते।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
शीत युद्ध से अभिप्राय दो राज्यों अमेरिका तथा भूतपूर्व सोवियत संघ अथवा दो गुटों के बीच व्याप्त उन बन्धों के इतिहास से है जो तनाव, भय, ईर्ष्या पर आधारित था। इसके अन्तर्गत दोनों गुट एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रादेशिक संगठनों के निर्माण, सैनिक गठबन्धन, जासूसी, आर्थिक सहायता, प्रचार, सैनिक हस्तक्षेप, अधिकाधिक शस्त्रीकरण जैसी बातों का सहारा लेते थे।

फ्लोरेंस एलेट तथा मिखाइल समरस्किल ने अपनी पुस्तक ‘A Dictionary of Politics’ में शीत युद्ध को “राज्यों में तनाव की वह स्थिति जिसमें प्रत्येक पक्ष स्वयं को शक्तिशाली बनाने तथा दूसरे को निर्बल बनाने की वास्तविक युद्ध के अतिरिक्त नीतियां अपनाता है” बताया है। – डॉ० एम० एस० राजन (Dr. M.S. Rajan) के अनुसार, “शीत युद्ध शक्ति-संघर्ष की राजनीतिक का मिला-जुला परिणाम है, दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है, दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है, विरोधी चिन्तन पद्धतियों और संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जिनका अनुपात समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहा है।”

पं० जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawahar Lal Nehru) के अनुसार, “शीत युद्ध पुरातन शक्ति-सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप है, यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।”

प्रश्न 2.
शीत युद्ध के कोई चार परिणाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के परिणामों का वर्णन इस प्रकार है

1. विश्व का दो गुटों में विभाजन-शीत युद्ध का प्रथम परिणाम यह हुआ कि विश्व का दो गुटों में विभाजन हो अमेरिका के साथ हो गया, तो दूसरा गुट सोवियत संघ के साथ हो गया।

2. सैनिक गठबन्धनों की राजनीति-शीत युद्ध का एक परिणाम यह हुआ कि इसके कारण सैनिक गठबन्धनों की उत्पत्ति हुई तथा सैनिक गठबन्धनों को शीत युद्ध के एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। अमेरिका ने जहां नाटो, सीटो तथा सैन्टो जैसे सैनिक गठबंधन बनाये, वहां सोवियत संघ ने वार्सा पैक्ट का निर्माण किया।

3. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति-शीत युद्ध के कारण गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति हुई। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य नव-स्वतन्त्रता प्राप्त राष्ट्रों को दोनों गुटों से अलग रखना था।

4. शस्त्रीकरण को बढ़ावा-शीत युद्ध का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर एक प्रभाव यह पड़ा कि इससे शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। दोनों गुट एक-दूसरे पर अधिक-से-अधिक प्रभाव जमाने के लिए खतरनाक शस्त्रों का संग्रह करने लगे थे।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 3.
शीत युद्ध को बढ़ावा देने में सोवियत संघ किस प्रकार ज़िम्मेदार था ? कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
शीत युद्ध को बढ़ावा देने में सोवियत संघ निम्नलिखित कारणों से ज़िम्मेदार था

1. विचारधारा सम्बन्धित कारण (Ideological Reason):
पश्चिमी विचारधारा के अनुसार साम्यवाद के सिद्धान्त तथा व्यवहार में इसके जन्म से ही शीत युद्ध के कीटाणु भरे हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर रूस द्वितीय विजेता के रूप में प्रकट हुआ था तथा यह द्वितीय महान् शक्ति था। अमेरिका तथा रूस वास्तव में दो ऐसी नधित्व करते हैं जिनमें कभी तालमेल नहीं हो सकता तथा जो पर्णतया एक-दसरे की विरोधी पद्धतियां हैं।

2. रूस की विस्तारवादी नीति (Extentionist Policy of Russia):
शीत युद्ध के लिए एक अन्य कारण के लिए भी पश्चिमी राज्य रूस को उत्तरदायी ठहराते हैं। उनका कहना है कि युद्ध के बाद भी रूस ने अपनी विस्तारवादी नीति को जारी रखा। इस प्रकार अमेरिका के मन में उसकी विस्तारवादी नीति के बारे में सन्देह होता चला गया, जिसको रोकने के लिए उसने भी कुछ कदम उठाए जिन्होंने शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध को बढ़ावा देने में अमेरिका किस प्रकार ज़िम्मेदार था ?
उत्तर:
शीत यद्ध को बढावा देने में अमेरिका निम्नलिखित कारणों से जिम्मेदार था

1. अमेरिका की विस्तारवादी नीति (Extentionist Policy of America):
साम्यवादी लेखकों के अनुसार शीत युद्ध का प्रमुख कारण अमेरिका की संसार पर प्रभुत्व जमाने की साम्राज्यवादी आकांक्षा में निहित है।

2. एटम बम्ब का रहस्य गुप्त रखना (Secret of Atom Bomb):
अमेरिका ने युद्ध की समाप्ति पर एटम बम्ब का आविष्कार कर लिया था।

3. पश्चिमी द्वारा रूस विरोधी प्रचार अभियान (Anti-Russian Propaganda by West):
युद्ध काल में ही पश्चिमी देशों की प्रैस रूस विरोधी प्रचार करने लगी थीं। बाद में तो पश्चिमी राज्यों ने खुले आम रूस की आलोचना करनी आरम्भ कर दी। जिस रूस ने जर्मनी की पराजय को सरल बनाया उसके विरुद्ध मित्र राष्ट्रों को यह प्रचार उसको क्षुब्ध करने के लिए पर्याप्त था।

4. अमेरिका का जापान पर अधिकार जमाने का कार्यक्रम (American Programme of Occupation of Japan):
पहले यह निर्णय किया था कि कोरिया तथा मन्चूरिया में जापानी सेनाओं का आत्मसमर्पण रूस स्वीकार करेगा। पर तब यह पता नहीं था कि जापान इतना शीघ्र आत्म-समर्पण कर देगा। इसके लिए बाद में रूस की सहायता की आवश्यकता न पड़ी।

अणु बम्ब के आविष्कार तथा प्रयोग ने जापान को शीघ्र आत्म-समर्पण करने पर बाध्य कर दिया। अमेरिका ने जापान के लिए एक कमीशन बनाने का सुझाव दिया। इस बात से रूस को शक हो गया कि अमेरिका जापान पर अपना अधिकार जमाये रखना चाहता है। इस कारणों से दोनों में तनाव पैदा हो गया।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के कोई चार लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(1) शीत युद्ध एक ऐसी स्थिति भी है जिसे मूलतः ‘गर्म शान्ति’ कहा जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में न तो पूर्ण रूप से शान्ति रहती है और न ही ‘वास्तविक युद्ध’ होता है, बल्कि शान्ति एवं युद्ध के मध्य की अस्थिर स्थिति बनी रहती है।

(2) शीत युद्ध, युद्ध का त्याग नहीं, अपितु केवल दो महाशक्तियों के प्रत्यक्ष टकराव की अनुपस्थिति माना जाएगा।

(3) यद्यपि इसमें प्रत्यक्ष युद्ध नहीं होता है, किन्तु यह स्थिति युद्ध की प्रथम सीढ़ी है। जिसमें युद्ध के वातावरण का निर्माण होता रहता है।
(4) शीत युद्ध एक वाक्युद्ध था जिसके अन्तर्गत दो पक्ष एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते थे जिसके कारण छोटे-बड़े सभी राष्ट्र आशंकित रहते हैं।

प्रश्न 6.
नये शीत युद्ध का विश्व राजनीति पर प्रभाव लिखें।
उत्तर:
नए शीत युद्ध का विश्व राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। पुराने शीत युद्ध के समय यूरोप की औपनिवेशिक शक्तियां भूतपूर्व उपनिवेशों में अपना कार्य कर रही थीं पर अब उनका स्थान अमेरिका ने ले लिया है। वह इन देशों के प्रतिक्रियावादी शासनों का पक्ष लेता है। उसकी इस बात ने इन देशों के मार्क्सवादी नेताओं रूस की तरफ अधिक-से-अधिक झुकने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस प्रकार इन देशों के प्रति अमेरिका का दृष्टिकोण विकासशील राज्यों में मार्क्सवाद के फैलने का कारण बना। दूसरे नए शीत युद्ध में असंलग्न आन्दोलन को एक नई गति प्रदान की है तथा अधिक-से-अधिक राज्यों की इसमें सम्मिलित होने की सम्भावना है। यद्यपि तीसरे विश्व के कुछ राज्यों ने दोनों महाशक्तियों को उनकी सेनाएं या शस्त्र अपनी भूमि पर रखने की सुविधाएं दी हैं पर फिर वे अपनी स्वायत्तता को बनाए रखने के इच्छुक हैं।

इस प्रकार अधिक-से-अधिक राज्यों में असंलग्न आन्दोलन में शामिल होने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इसी प्रकार नए शीत युद्ध के कारण जिसके अन्तर्गत उच्चकोटि की शस्त्र तकनीक होड़ सम्बन्धित है। दोनों महाशक्तियों प्रत्यक्ष झगड़े की अपेक्षा विकासशील राज्यों में अप्रत्यक्ष टकराव में लगी रही हैं।

प्रश्न 7.
देतान्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में देतान्त शब्द का प्रयोग प्रायः किया जाता है। यह शब्द वास्तव में फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है शिथिलता। देतान्त के आज के अर्थ में सहयोग तथा प्रतियोगिता दोनों ही बातें आती हैं। इसका अर्थ अमेरिका एवं सोवियत संघ दोनों राज्यों में तनाव शैथिल्य से है अर्थात् दोनों राज्यों में जो पहले शीत युद्ध में लगे हुए थे तनाव में शिथिलता आई तथा वे प्रतियोगी रहते हुए भी एक-दूसरे से सहयोग कर सकते हैं।

इस प्रकार यह दोनों के सम्बन्धों के सामान्यीकरण की विधि है। आपस में हानिकारक तनावयुक्त सम्बन्धों के स्थान पर मित्रतापूर्ण सहयोग की स्थापना से है। इस प्रकार 1970 के आस-पास अमेरिकन राष्ट्रपति निकसन तथा रूस के प्रधानमन्त्री खुश्चेव के प्रयत्नों से रूस तथा अमेरिका के आपसी तनाव में जो कमी आई तथा सम्बन्धों में जो कुछ समन्वय या सहयोग की भावना उत्पन्न हुई उसी के लिए शब्द देतान्त का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 8.
देतान्त के उदय के क्या कारण थे ?
उत्तर:
देतान्त के उदय के निम्नलिखित कारण थे
(1) रूस तथा अमेरिका के बीच शस्त्रों की होड़ बढ़ती जा रही थी जिनसे नए-नए अधिक-से-अधिक घातक अणु शस्त्रों का निर्माण हो रहा था। संघर्ष की नीति पर चलने का परिणाम केवल आण्विक युद्ध के रूप में निकल सकता था। इसलिए उनको एहसास हुआ कि इन दोनों के बीच तनाव तथा संघर्ष की अपेक्षा सहयोग की आवश्यकता है। इस प्रकार अणु युद्ध के भय ने दोनों को निकट आने पर बाध्य कर दिया।

(2) अणु युद्ध की सम्भावना को कई अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं ने जैसे कोरिया का युद्ध तथा विशेषकर क्यूबा के संकट ने सिद्ध कर दिया था। अत: इन घटनाओं का भी दोनों राज्यों पर प्रभाव पड़ा तथा उन्हें आपसी तनाव को कम करने की आवश्यकता का अनुभव होने लगा।

(3) इसी प्रकार देतान्त के लिए उत्तरदायी एक कारण चीन तथा रूस के बीच बढ़ने वाले मतभेद थे। प्रारम्भ में तो रूस तथा चीन मित्र थे तथा इसमें रूस की शक्ति काफ़ी बढ़ गई थी पर 1962 के रूस तथा चीन में विवाद हो गया। अब रूस के लिए यह आवश्यक हो गया था कि वह चीन के सामने अपनी स्थिति को सुदृढ रखने के लिए अमेरिका से अपने सम्बन्धों को सुधारे।

(4) कुछ विचारकों का यह भी मत है कि रूस ने अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के कारण भी अमेरिका से मित्रता स्थापित करने का प्रयास किया।

प्रश्न 9.
पुराने शीत युद्ध और नये शीत युद्ध में अन्तर बताएं।
उत्तर:
पुराने शीत युद्ध और नये शीत युद्ध में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं

1. क्षेत्र की व्यापकता के आधार पर अन्तर-पुराने शीत और नये शीत युद्ध में प्रथम अन्तर यह है कि पुराने शीत युद्ध की अपेक्षा नये शीत युद्ध का क्षेत्र अधिक व्यापक है।

2. हथियारों के आधार पर अन्तर-पुराने शीत युद्ध की अपेक्षा नये शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के पास अधिक परिष्कृत एवं घातक हथियार थे, इसमें परमाणु, जैविक व रासायनिक हथियार शामिल हैं।

3. स्वरूप के आधार पर अन्तर-पुराने शीत युद्ध के दौरान जहां अमेरिकन गुट द्वारा साम्यवाद का विरोध किया गया, वहीं नये शीत युद्ध के दौरान अमेरिकन गुट द्वारा केवल सोवियत संघ का विरोध किया गया।

4. सोवियत संघ एवं अमेरिका की मजबूरी-पुराने शीत युद्ध एवं नये शीत युद्ध में एक अन्तर यह है कि जहां पुराने शीत युद्ध को जारी रखना सोवियत संघ की मजबूरी थी, वहीं नया शीत युद्ध अमेरिकन गुट की मजबूरी था।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है ? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ है कि किसी शक्ति गुट में शामिल न होना और शक्ति गुटों के सैनिक बन्धनों व अन्य बन्धनों व अन्य सन्धियों से दूर रहना। पण्डित नेहरू ने कहा था, “जहां तक सम्भव होगा हम उन शक्ति-गुटों से अलग रहना चाहते हैं जिनके कारण पहले भी महायुद्ध हुए हैं और भविष्य में भी हो सकते हैं।” गुट-निरपेक्षता का यह भी अर्थ है कि देश अपनी नीति का निर्माण स्वतन्त्रता से करेगा न कि किसी गुट के दबाव में आकर।

गुट-निरपेक्षता का अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में तटस्थता नहीं है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के हल के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट कहा था कि गुट-निरपेक्षता का अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति शीतयुद्ध का दौर उदासीनता नहीं है। स्वर्गीय प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धी के अनुसार, “गुट-निरपेक्षता में न तो तटस्थता और न ही समस्याओं के प्रति उदासीनता है। इसमें सिद्धान्तों के आधार पर सक्रिय और स्वतन्त्र रूप में निर्णय करने की भावना निहित है।” भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति एक सकारात्मक नीति है, केवल नकारात्मक नहीं है।
गुट-निरपेक्षता के उद्देश्य-इसके लिए प्रश्न नं० 33 देखें।

प्रश्न 11.
क्या ‘गुट-निरपेक्षता’ का अभिप्राय तटस्थता है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी शक्तिशाली राष्ट्र का पिछलग्गू न बनकर अपना स्वतन्त्र मार्ग अपनाना। गुटों से अलग रहने की नीति का तात्पर्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में ‘तटस्थता’ कदापि नहीं है। कई पाश्चात्य लेखकों ने गुट निरपेक्षता के लिए तटस्थता अथवा तटस्थतावाद शब्द का प्रयोग किया है उनमें मॉर्गेन्थो, पीस्टर लायन, हेमिल्टन, फिश आर्मस्ट्रांग तथा कर्नल लेवि आदि ने इस नीति के लिए तटस्थता शब्द का प्रयोग कर भ्रम पैदा कर दिया है। वास्तव में दोनों नीतियां शान्ति व युद्ध के समय संघर्ष में नहीं उलझतीं, परन्तु तटस्थता निष्क्रियता व उदासीनता की नीति है, जबकि गुट-निरपेक्षता सक्रियता की नीति है।

तटस्थ देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों या घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्णतया निष्पक्ष रहते हैं और वे किसी अन्तर्राष्ट्रीय घटना या विषय के सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त नहीं करते हैं। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति निष्पक्ष या उदासीन नहीं होते, अपितु वे इन विषयों में पूर्ण रुचि लेते हैं और प्रत्येक विषय के गुणों को सम्मुख रखते हुए उसके सम्बन्ध में निर्णय करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी अभिनीत करते हैं। अतः गुट-निरपेक्षता की नीति का अभिप्राय निष्पक्षता या उदासीनता की नीति नहीं है।

प्रश्न 12.
भारत की गुट-निरपेक्षता नीति की पांच प्रमुख विशेषताएं बताइए।
उत्तर:

  • भारत किसी गुट का सदस्य नहीं है। भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति स्वतन्त्र है।
  • भारत की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  • भारत की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति साम्राज्यवाद के विरुद्ध है।
  • भारत की गुट-निरपेक्ष नीति रंग भेदभाव की नीति के विरुद्ध है।
  • भारत की गुट-निरपेक्ष नीति विकासशील देशों के आपसी सहयोग पर बल देती है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 13.
शीतयुद्ध में भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कोई चार कारण बताओ।
अथवा
शीत युद्ध के समय भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत के गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण हैं

1. आर्थिक पुनर्निर्माण-स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अतः भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए-भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हजारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

प्रश्न 14.
बांडुंग सम्मेलन (1955) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अप्रैल, 1955 में बांडंग स्थान में एशिया और अफ्रीकी राष्टों का एक सम्मेलन हआ जिसमें 29 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में उपस्थित सभी देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों को स्वीकार करने के साथ साथ इनका विस्तार भी किया, अर्थात् पांच सिद्धान्तों के स्थान पर दस सिद्धान्तों की स्थापना की गई। इस सम्मेलन में एशियाई तथा अफ्रीकी देशों के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया तथा महान् शक्तियों का अनावश्यक अनुसरण न करने पर बल दिया गया। इस सम्मेलन में सभी राज्यों की पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नता और राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने, किसी राज्य पर सैनिक आक्रमण न करने तथा किसी राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर बल दिया गया।

प्रश्न 15.
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन सितम्बर, 1961 में बेलग्रेड में हुआ। इस सम्मेलन में 25 एशियाई तथा अफ्रीकी व एक यूरोपीय राष्ट्र ने भाग लिया। लैटिन अमेरिका में तीन राष्ट्रों ने पर्यवेक्षकों के रूप में सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में महाशक्तियों से अपील की गई कि वे विश्व शान्ति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए कार्य करें तथा परमाणु परीक्षण न करें।

विश्व के सभी भागों तथा रूपों में उप-निवेशवाद, साम्राज्यवाद, नव उपनिवेशवाद तथा नस्लवाद की घोर निन्दा की गई। सम्मेलन में अंगोला, कांगो, अल्जीरिया तथा ट्यूनीशिया के स्वतन्त्रता संघर्षों का समर्थन किया गया। बेलग्रेड सम्मेलन में 20 सूत्रीय घोषणा-पत्र को स्वीकार किया गया। इस घोषणा-पत्र में कहा गया कि विकासशील राष्ट्र बिना किसी भय व बाँधा के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को प्रेरित करें। बेलग्रेड सम्मेलन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में बहुत महत्त्व रखता है।

प्रश्न 16.
नेहरू और गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1947 में जब भारत स्वतन्त्र हुआ तब पूंजीवाद तथा साम्यवाद में वैचारिक विभाजन, नस्लवाद, पिछड़े देशों की स्वतन्त्र नीति निर्माण की इच्छा इत्यादि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण के प्रमुख विषय थे। भारत की भी यह प्रबल इच्छा थी कि वह गुटीय राजनीति से दूर रहकर अपनी इच्छा से विदेश नीति का निर्माण करे। ऐसे में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तित्व एवं विचारधारा ने प्रमुख भूमिका निभाई। पं० नेहरू ने भारतीय विदेश नीति को गुट-निरपेक्षता की नीति पर आधारित किया।

लेकिन यह गुट-निरपेक्षता नकारात्मक तथा तटस्थवादी नहीं थी बल्कि सकारात्मक थी। पं. नेहरू के शासनकाल में गुट-निरपेक्षता की नीति को पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। जहां तक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न है तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पं० नेहरू ने गुट-निरपेक्षता की नीति के आधार पर भारत को एक अलग पहचान दिलाई।

एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतन्त्र देश गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण ही पं० नेहरू और भारत सरकर को मानवता का प्रवक्ता मानते थे। नेहरू के कट्टर आलोचक भी इस बात को स्वीकार करते थे कि उनकी नीति भारत की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई है। नेहरू के जीवित रहते गुट-निरपेक्ष आन्दोलन कई ऊंचाइयों को छूने लगा था। हम आज भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की बुनियाद और उसका अस्तित्व नेहरू के ही परिपक्व नेतृत्व की देन है।

प्रश्न 17.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किन्हीं दो संस्थापकों के नामों का उल्लेख कीजिए। पहला गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शिखर सम्मेलन किन तीन कारकों की परिणति था ?
उत्तर:
गट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो मुख्य संस्थापकों में, भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू एवं युगोस्लाविया के जोसेफ ब्राज़ टीटो शामिल हैं। पहला गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शिखर सम्मेलन निम्नलिखित तीन कारकों की परिणति था

(1) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के पाँचों संस्थापक देशों (भारत, युगोस्लाविया, मिस्र, इंडोनेशिया तथा घाना) के बीच सहयोग की इच्छा।
(2) प्रथम गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की दूसरी परिणति शीत युद्ध का प्रसार और इसका बढ़ता हुआ दायरा था।
(3) 1960 के दशक में बहुत-से नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का उदय हुआ, जिन्हें एक मंच की आवश्यकता थी और वो मंच गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने प्रदान किया।

प्रश्न 18.
क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
क्यूबा अमेरिका के तट से लगा एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। क्यूबा साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित देश है। 1960 के दशक में जब शीत युद्ध पूरे जोरों पर था, तब सोवियत संघ को इस बात की आशंका थी कि अमेरिका क्यूबा पर आक्रमण करके उसे अपने साथ मिला लेगा। यद्यपि सोवियत संघ क्यूबा को हर तरह की सहायता देता था, परन्तु फिर भी इससे वह सन्तुष्ट नहीं था। अन्ततः 1962 में सोवियत संघ ने क्यूबा में सैनिक अड्डा स्थापित करके वहां पर परमाणु प्रक्षेपास्त्र स्थापित कर दिये। इन प्रक्षेपास्त्रों के कारण अमेरिका पहली बार किसी देश के परमाणु हमले के निशाने पर आ गया।

इससे अमेरिका में हलचल मच गई। अमेरिकन राष्ट्रपति कनेडी ने अमेरिकी लड़ाकू बेड़ों को सोवियत लडाक बेडों को रोकने का आदेश दिया। इससे दोनों देशों के बीच युद्ध की सम्भावना पैदा हो गई। इसे ही क्यूबा प्रक्षेपास्त्र संकट कहा जाता है। युद्ध में अत्यधिक विनाश को देखते हुए दोनों देशों ने युद्ध न करने का निर्णय किया तथा सोवियत संघ ने भी अपने जहाजों की गति या तो धीमी कर ली या वापस हो लिए।

प्रश्न 19.
शीत युद्ध के समय कोई भयंकर एवं विनाशकारी युद्ध नहीं हुआ, कोई चार कारण बताएं।
उत्तर:

  • परमाणु युद्ध से होने वाली हानि को सहने में दोनों पक्ष सक्षम नहीं थे।
  • दोनों पक्ष एक-दूसरे की शक्ति एवं पराक्रम से डरे हुए तथा आशंकित थे।
  • युद्ध होने की स्थिति में इतना अधिक विनाश होता कि उसे किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता था।
  • परमाणु युद्ध की स्थिति में इतना अधिक विनाश होता कि विजेता का निर्णय करना मुश्किल हो जाता।

प्रश्न 20.
शीत युद्ध की कोई चार सैनिक विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • शीत युद्ध में दो शक्तिशाली गुट शामिल थे।
  • दोनों गुटों के पास परमाणु हथियार थे।
  • दोनों गुटों ने सैनिक गठबन्धन किये हुए थे।
  • शीत युद्ध के दौरान दोनों गुटों एवं उनके सहयोगियों से यह आशा की जाती थी कि वे तर्क पूर्ण एवं उत्तरदायित्व वाला व्यवहार करेंगे।

प्रश्न 21.
नाटो संगठन के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • नाटो संगठन के सदस्य देश शान्ति के समय एक-दूसरे को आर्थिक सहयोग देंगे।
  • एक देश पर आक्रमण सभी देशों पर आक्रमण समझा जाएगा तथा सभी देश उसका मिलकर मुकाबला करेंगे।
  • नाटो के सदस्य देशों के परस्पर आपसी विवाद को बातचीत द्वारा हल किया जाएगा।
  • प्रत्येक देश अपनी सैनिक शक्ति को संगठित करेगा।

प्रश्न 22.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से भारत को प्राप्त होने वाले कोई चार लाभ बताएं ।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने के कारण भारत वैश्विक मामलों में स्वतन्त्र भूमिका निभा सका है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से भारत को विभिन्न देशों से आर्थिक सहयोग बढ़ाने में मदद मिली है।
  • गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने के कारण भारत दोनों गुटों से आर्थिक लाभ प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के कारण भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है।

प्रश्न 23.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की कोई चार सीमाएं लिखें।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन देश राजनीतिक तथा आर्थिक विकसित देशों को कोई कठोर चुनौती नहीं दे पाए हैं।
  • गुट निरपेक्ष आन्दोलन को भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों ने नकारात्मक ढंग से प्रभावित किया है।
  • गुट निरपेक्ष आन्दोलन ईरान-इराक युद्ध को नहीं रोक पाया।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन इराक द्वारा कुवैत पर किये गए आक्रमण को नहीं रोक पाया।

प्रश्न 24.
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वैश्विक प्रणाली के सुधार के लिए दिए किन्हीं चार प्रस्तावों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • विकासशील देशों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण होगा।
  • विकासशील देश भी अप:’ माल पश्चिमी देशों में बेच सकते हैं।
  • विकासशील देशों को कम लागत पर पश्चिमी देशों से प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी।
  • अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों में विकासशील देशों की भूमिका को बढ़ाया जाएगा।

प्रश्न 25.
उपनिवेशवाद के अर्थ की व्याख्या करें।
उत्तर:
उपनिवेशवाद का अर्थ है कि एक शक्तिशाली देश द्वारा कमज़ोर देश को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेकर उनका आर्थिक शोषण करना। जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य भारत के विरुद्ध करता था। जे० ए० हाब्सन के अनुसार, “उपनिवेशवाद, राष्ट्रीयता का प्राकृतिक बहाव है, इस परीक्षण, प्रतिनिधि संस्कृति को नए प्राकृतिक तथा सामाजिक वातावरण में, जिनमें वे अपने आप को पाते हैं, प्रतिरोपित करने की औपनिवेशिक शक्ति से किया जा सकता है।”

प्रश्न 26.
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों को छोटे सहयोगियों की आवश्यकता क्यों थी ? कोई चार तर्क दें।
अथवा
महाशक्तियों को शीत युद्ध के युग में मित्र राष्ट्रों की आवश्यकता क्यों थी ?
उत्तर:

  • महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन इसलिए करती थीं, ताकि उन देशों से वे अपने हथियार एवं सेना का संचालन कर सकें।
  • महाशक्तियां छोटे देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर दुश्मन देश की जासूसी करते थे।
  • छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।
  • महाशक्तियां छोटे देशों पर आसानी से अपनी इच्छा थोप सकती थीं।

प्रश्न 27.
गुट-निरपेक्ष देशों में शामिल अधिकांश को”अल्प विकसित देशों” का दर्जा क्यों दिया गया ?
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष देशों में शामिल अधिकांश को अल्प विकसित देश इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनका पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाया था। द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद यूरोपीय, उपनिवेशवादी प्रणाली के विघटन के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कई ऐसे घटक उपस्थित हुए, जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की प्रकृति और रंग-रूप को बदल दिया। इन घटकों में एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका में नए राज्यों के उदय ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन कर दिया। परन्तु अधिकांश देश आर्थिक रूप से जर्जर स्थिति में थे। इसलिए इन्हें अल्प विकसित देश कहा जाता है।

प्रश्न 28.
ऐसी किन्हीं चार वास्तविकताओं का उल्लेख कीजिए जिसने विश्व राजनीति में शीत युद्ध के पश्चात् बदलाव लाया।
उत्तर:
शीत युद्ध के पश्चात् निम्नलिखित कारणों से विश्व राजनीति में बदलाव आए–

  • शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही दोनों गुटों में चलने वाला वैचारिक संघर्ष भी समाप्त हो गया और यह विवाद भी समाप्त हो गया कि क्या समाजवादी व्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था को परास्त कर सकेगी।
  • शीत युद्ध के पश्चात् विश्व में शक्ति सम्बन्ध बदल गए तथा विचारों एवं संस्थाओं के सापेक्षिक प्रभाव भी बदल गए।
  • शीत युद्ध के पश्चात् उदारीकरण एवं निजीकरण ने विश्व राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया है।
  • शीत युद्ध के पश्चात् उदारवादी लोकतान्त्रिक राज्यों का उदय हुआ, जो राजनीतिक जीवन के लिए सर्वोत्तम प्रणाली है।

प्रश्न 29.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ न तो अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से अलग-अलग रहना था और न ही तटस्थता था। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता की धारणा स्वयं को न तो अन्तर्राष्ट्रीय विषयों से अलग ही रखती है और न ही वह तटस्थ रहती है अर्थात् गुट-निरपेक्षता. की धारणा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होती प्रत्येक महत्त्वपूर्ण घटना में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाती है। गुट-निरपेक्षता की अवधारणा तटस्थता की अवधारणा से बिलकुल भिन्न है।

तटस्थता का अर्थ किसी भी मुद्दे पर उसके गुण-दोषों के भिन्न उसमें भाग न लेना है। तटस्थता का अर्थ है, पहले से ही किसी मुद्दे पर उसके गुण-दोषों को दृष्टि में रखे बिना अपना दृष्टिकोण तथा पक्ष बनाए रखना। इसके विपरीत गुट-निरपेक्षता का अर्थ शीतयुद्ध का दौर है अपना दृष्टिकोण पहले से ही घोषित न करना।

कोई भी गुट-निरपेक्ष देश किसी भी मुद्दे के पैदा होने पर उसे अपने दृष्टिकोण से देखकर निर्णय करता था, न कि किसी बड़ी शक्ति के दृष्टिकोण से देखकर। तटस्थता की धारणा केवल युद्ध के समय संगत है और तटस्थता का अर्थ है अपने आपको युद्ध से अलग करना। परन्तु गुट-निरपेक्षता की धारणा युद्ध एवं शान्ति दोनों में प्रासंगिक है।

प्रश्न 30.
शीत युद्ध के चार कारण लिखें।
अथवा
शीत युद्ध के कोई चार प्रमुख कारण लिखिये।।
उत्तर:
1. विचारधारा सम्बन्धित कारण-पश्चिमी विचारधारा के अनुसार साम्यवाद के सिद्धान्त तथा व्यवहार में इसके जन्म से ही शीत युद्ध के कीटाणु भरे हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर रूस द्वितीय विजेता के रूप में प्रकट हुआ था तथा यह द्वितीय महान् शक्ति था। अमेरिका तथा रूस वास्तव में दो ऐसी पद्धतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कभी तालमेल नहीं हो सकता तथा जो पूर्णतया एक-दूसरे की विरोधी पद्धतियां हैं।

2. रूस की विस्तारवादी नीति-शीत युद्ध के लिए एक अन्य कारण के लिए भी पश्चिमी राज्य रूस को उत्तरदायी ठहराते हैं। उनका कहना है कि युद्ध के बाद भी रूस ने अपनी विस्तारवादी नीति को जारी रखा। इस प्रकार अमेरिका के मन में उसकी विस्तारवादी नीति के बारे में सन्देह होता चला गया, जिसको रोकने के लिए उसने भी कुछ कदम उठाए जिन्होंने शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।

3. अमेरिका की विस्तारवादी नीति-साम्यवादी लेखकों के अनुसार शीत युद्ध का प्रमुख कारण अमेरिका की संसार पर प्रभुत्व जमाने की साम्राज्यवादी आकांक्षा में निहित था।

4. एटम बम का रहस्य गुप्त रखना-अमेरिका द्वारा सोवियत संघ से एटम बम का रहस्य गुप्त रखना भी शीत युद्ध का एक कारण है।

प्रश्न 31.
विकासशील देशों की मुख्य मांगें क्या हैं ? कोई चार बताएं।
अथवा
विकासशील देशों की किन्हीं चार मुख्य मांगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • विकासशील देशों की प्रथम मांग नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को लागू करना है, ताकि विकसित एवं विकासशील देशों में समानता आ सके।
  • विकासशील देश सदैव इस बात की मांग करते रहे हैं कि विकसित देश उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए धन प्रदान करें, क्योंकि विकसित देशों ने विकासशील देशों का शोषण करके ही धन कमाया है।
  • विकासशील देश संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने लिए और अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका की मांग कर रहे हैं।
  • विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।

प्रश्न 32.
कठोर द्वि-ध्रुवीयता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कठोर द्वि-ध्रुवीयता से अभिप्राय शीत युद्ध के 1945 से 1955 के समय काल से लिया जाता है जब दोनों गुटों ने अपने-अपने सदस्य राज्यों को पूर्ण रूप से नियन्त्रित कर रखा था। इस समय काल में दोनों गुटों में शामिल कोई भी सदस्य राज्य अपनी आन्तरिक एवं विदेश नीति बनाने में पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं था, बल्कि उसे अपने गुट के नेता के अनुसार ही नीतियां बनानी पड़ती थीं। इसीलिए सदस्य राज्यों की नीतियां पूर्ण रूप से वाशिंगटन एवं मास्को के आस-पास ही घूमती थीं।

प्रश्न 33.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन करो।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गुटों से अलग रखना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना है।
  • सदस्य देशों में सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  • उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद को समाप्त करना इसका एक मुख्य उद्देश्य रखा गया है।

प्रश्न 34.
क्या शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन प्रासंगिक रह गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से प्रासंगिक है

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • निशस्त्रीकरण, विश्व शांति एवं मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
  • यह आन्दोलन नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था की स्थापना के लिए आवश्यक है।
  • विकसित एवं विकासशील देशों में सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए प्रासंगिक है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध का अर्थ स्पष्ट करें।
अथवा
“शीत युद्ध” से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शीत युद्ध से अभिप्राय दो राज्यों अमेरिका तथा रूस अथवा दो गुटों के बीच व्याप्त उन कटु सम्बन्धों के इतिहास से है, जो तनाव, भय तथा ईर्ष्या पर आधारित है। इसके अन्तर्गत दोनों गुट एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए प्रादेशिक संगठनों के निर्माण, सैनिक गठबन्धन, जासूसी, आर्थिक सहायता, प्रचार, सैनिक हस्तक्षेप तथा अधिकाधिक शस्त्रीकरण जैसी बातों का सहारा लेते हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2.
शीत युद्ध की कोई दो परिभाषाएं दें।
उत्तर:
1. पं० नेहरू के अनुसार, “शीत युद्ध पुरातन सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप है। यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर, दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।”
2. जान फास्टरं डलेस के अनुसार, “शीत युद्ध नैतिक दृष्टि से धर्म युद्ध था अच्छाई का बुराई के विरुद्ध, सही का ग़लत के विरुद्ध एवं धर्म का नास्तिकों के विरुद्ध संघर्ष था।”

प्रश्न 3.
शीत युद्ध के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:

  • पश्चिमी विचारधारा के अनुसार, साम्यवाद के सिद्धान्त तथा व्यवहार में इसके जन्म से ही शीत युद्ध के कीटाणु भरे हुए थे।
  • साम्यवादी लेखकों के अनुसार शीत युद्ध का प्रमुख कारण अमेरिका की संसार पर प्रभाव जमाने की महत्त्वाकांक्षा में निहित है।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • गट-निरपेक्षता आन्दोलन का मख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गटों से अलग रखना था।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था।

प्रश्न 5.
देतान्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
देतान्त (Detente) एक फ्रांसीसी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, शिथिलता अथवा तनाव शैथिल्य। जिन राज्यों में पहले तनावयुक्त स्पर्धा, ईर्ष्या तथा विरोध के सम्बन्ध रहे हों, उनमें इस प्रकार के सम्बन्धों के स्थान पर मित्रतापूर्वक सम्बन्धों का स्थापित हो जाना। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में देतान्त शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो महान् शक्तियों अर्थात् रूस तथा अमेरिका के सन्दर्भ में किया जाता है।

प्रश्न 6.
किसी एक परमाणु युद्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विश्व में अब तक केवल एक बार परमाणु बमों का प्रयोग किया गया था। अगस्त, 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के समय जापान के दो शहरों हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम गिराये थे। इन बमों से इन दोनों शहरों को अत्यधिक हानि हुई। सैंकड़ों लोग मारे गए एवं लाखों लोग घायल एवं अपाहिज हो गए। इस परमाणु युद्ध का प्रभाव जापान के दोनों शहरों तथा लोगों पर आज भी देखा जा सकता है। इस घटना के तुरन्त बाद जापान ने अपनी हार स्वीकार कर ली और द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 7.
द्वितीय महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों के समूह में शामिल किन्हीं चार देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • इंग्लैंड,
  • फ्रांस,
  • रूस,
  • संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 8.
सोवियत संघ तथा अमेरिका के द्वारा परस्पर विरोधी दुष्प्रचार ने किस प्रकार शीत युद्ध को बढ़ावा दिया ?
उत्तर:
सोवियत संघ तथा अमेरिका के द्वारा परस्पर विरोधी दुष्प्रचार ने शीत युद्ध को बहुत अधिक बढ़ावा दिया। सभी समाचार-पत्रों प्रावदा तथा इजवेस्तिया इत्यादि ने अमेरिका विरोधी प्रचार अभियान शुरू किया। इसमें आलोचनात्मक लेख प्रकाशित किये गए। इसी तरह पश्चिमी देशों ने भी सोवियत संघ की आलोचना करते हुए सोवियत संघ को ‘गुण्डों का नीच गिरोह’ तक कहा। अमेरिकी समाचार-पत्रों ने आगे लिखा कि साम्यवाद के प्रसार से इसाई सभ्यता को डूबने का खतरा है। इस प्रकार के लेखों ने शीत युद्ध को और अधिक बढ़ावा दिया।

प्रश्न 9.
अपरोध का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
परमाणु युद्ध होने की स्थिति में विजेता का निर्णय करना असम्भव हो जाता है। यदि एक गुट दूसरे गुट पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नष्ट करने का प्रयास करता है, तब भी विरोधी गुट के पास इतने परमाणु हथियार बचे रहते हैं, जिससे वह विरोधी देश पर आक्रमण करके उसे तहस-नहस कर सकता है। इस प्रकार की स्थिति को अपरोध की स्थिति कहते हैं।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ बताएं।
अथवा
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ है, किसी शक्ति गुट में शामिल न होना और शक्ति गुटों से सैनिक बन्धनों व अन्य सन्धियों से दूर रहना। गुट-निरपेक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के हल के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ बराबर दूरी भी नहीं है, क्योंकि गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में उस देश या गुट का पक्ष लेते हैं, जो सही हो।।

प्रश्न 11.
बांडुंग सम्मेलन (1955) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अप्रैल, 1955 में बांडंग स्थान में एशिया और अफ्रीकी राष्टों का एक सम्मेलन हआ जिसमें 29 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में उपस्थित सभी देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों को स्वीकार करने के साथ साथ इनका विस्तार भी किया, अर्थात् पांच सिद्धान्तों के स्थान पर दस सिद्धान्तों की स्थापना की गई।

इस सम्मेलन में एशियाई तथा अफ्रीकी देशों के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया तथा महान् शक्तियों का अनावश्यक अनुसरण न करने पर बल दिया गया। इस सम्मेलन में सभी राज्यों की पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नता और राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने, किसी राज्य पर सैनिक आक्रमण न करने तथा किसी राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर बल दिया गया।

प्रश्न 12.
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन सितम्बर, 1961 में बेलग्रेड में हुआ। इस सम्मेलन में 25 एशियाई तथा अफ्रीकी व एक यूरोपियन राष्ट्र ने भाग लिया। लैटिन अमेरिका के तीन राष्ट्रों ने पर्यवेक्षकों के रूप में सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में महाशक्तियों से अपील की गई कि वे विश्व शान्ति तथा निशस्त्रीकरण के लिए कार्य करें।

विश्व के सभी भागों एवं रूपों में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, नव-उपनिवेशवाद तथा नस्लवाद की घोर निन्दा की गई। बेलग्रेड सम्मेलन में 20 सूत्रीय घोषणा-पत्र को स्वीकार किया गया। इस घोषणा में कहा गया कि विकासशील राष्ट्र बिना किसी भय व बाधा के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को प्रेरित करें।

प्रश्न 13.
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था (NIEO) का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अभिप्राय है विकासशील देशों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना, साधनों को विकसित देशों से विकासशील देशों में भेजना, वस्तुओं सम्बन्धी समझौते करना तथा पुरानी परम्परावादी उपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के स्थान पर निर्धन तथा वंचित देशों के साथ न्याय करना। नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत, विकसित राष्ट्रों के लिए एक आचार-संहिता बना कर तथा कम विकसित राष्ट्रों के उचित अधिकारों को मानकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सबके लिए समान तथा न्यायपूर्ण बनाना है।

प्रश्न 14.
उत्तरी एटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उत्तरी एटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) विश्व का एक महत्त्वपर्ण सैनिक संगठन है जिसका निर्माण 1949 युद्ध के दौरान किया गया था। नाटो में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, कनाडा तथा पश्चिमी जर्मनी जैसे देश शामिल हैं। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ के विस्तार को रोकना था।

प्रश्न 15.
वारसा पैक्ट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वारसा पैक्ट शीत युद्ध के दौरान नाटो के उत्तर में साम्यवादी देशों द्वारा मई, 1955 में बनाया गया क्षेत्रीय सैनिक गठबन्धन था। इस संगठन में सोवियत संघ, पोलैण्ड, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, बुल्गारिया तथा रूमानिया जैसे साम्यवादी देश शामिल थे। सोवियत संघ इस संगठन का सर्वेसर्वा था। परन्तु शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही फरवरी, 1991 में वारसा पैक्ट भी समाप्त हो गया।

प्रश्न 16.
केन्द्रीय सन्धि संगठन (सैन्टो) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
केन्द्रीय सन्धि संगठन आरम्भ में बगदाद समझौते (1955) के रूप में सामने आया जोकि तुर्की और इराक के बीच हुआ था। परन्तु 1959 में इराक इस सन्धि से अलग हो गया जिसके कारण इसका नाम बदलकर सैन्टो कर दिया गया। सैन्टो में ईरान, पाकिस्तान, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका थे। इस सन्धि का निर्माण मुख्य रूप से सोवियत संघ के विरुद्ध ही किया गया था। परन्तु 1979 में यह संगठन समाप्त हो गया।

प्रश्न 17.
दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन (सीटो) का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन (सीटो) की स्थापना 1954 में की गई। इस संगठन में ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन, न्यूज़ीलैण्ड, पाकिस्तान, फिलीपाइन्स, थाइलैण्ड तथा अमेरिका शामिल थे। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-पूर्वी एशिया में साम्यवादी प्रसार को रोकना था। परन्तु 1977 में यह संगठन समाप्त हो गया।

प्रश्न 18.
शीत युद्ध के उदाहरण सहित दो अखाड़ों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • अफ़गानिस्तान-शीत युद्ध का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अखाड़ा अफगानिस्तान रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र-शीत युद्ध का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अखाड़ा संयुक्त राष्ट्र रहा है।

प्रश्न 19.
गुट-निरपेक्ष आंदोलन को शुरू करने वाले तीन मुख्य देशों और उनके नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्म शीत युद्ध के दौरान हुआ। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भी स्वयं को शीत युद्ध से दूर रखना था। भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक देश है। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० नेहरू, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो और मिस्त्र के तत्कालिक राष्ट्रपति जमाल नासिर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक हैं।

प्रश्न 20.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के कोई चार महत्त्व लिखें।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने सदस्य देशों में सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढावा दिया है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाया है।।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने उपनिवेशवाद को समाप्त करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने सदस्य देशों को शीत युद्ध से दूर रखा।

प्रश्न 21.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक देश है।
  • भारत ने गुट-निरपेक्ष देशों को आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया है।
  • भारत की पहल पर अफ्रीका कोष कायम किया गया।
  • भारत ने गुट-निरपेक्ष देशों का ध्यान निःशस्त्रीकरण की तरफ खींचा।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 22.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को आरम्भिक दौर में एक दिशा एवं आकार प्रदान करने में भारत की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रारम्भिक दौर में एक दिशा एवं आकार प्रदान करने में भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उदय के समय इसकी संख्या केवल 25 थी, परन्तु भारत के प्रयासों से अब इसकी संख्या 120 हो गई है। इसी प्रकार 1955 में बांडुंग सम्मेलन तथा 1961 में हुए बेलग्रेड सम्मेलन में इस आन्दोलन के मुख्य सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों को निर्धारित करने में भारत ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 23.
उपनिवेशीकरण की समाप्ति एवं गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के विस्तार के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन एवं उपनिवेशीकरण की समाप्ति एक-दूसरे से सम्बन्धित है। जैसे-जैसे उपनिवेश समाप्त होते गए, वैसे-वैसे गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का विस्तार होता गया। क्योंकि अधिकांश उपनिवेशी राज्य स्वतन्त्र होकर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल होते गए। इसीलिए जहां 1961 के बेलग्रेड सम्मेलन में केवल 25 देश शामिल थे, वहीं 2019 में हुए अजरबैजान सम्मेलन में इनकी संख्या 120 थी।

प्रश्न 24.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रकृति की व्याख्या करें।
उत्तर:
गट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रकति अपने आप में अनोखी है। वास्तव में इस आन्दोलन की प्रकति विषमांग स्वरूप की रही है। उदाहरण के लिए इसमें विकासशील देशों की संख्या अधिक है, जबकि विकसित देशों की कम। गुट-निरपेक्ष देशों में वैचारिक समानता का भी अभाव है अर्थात् इस आन्दोलन में उदारवादी, साम्यवादी तथा सुधारवादी सभी प्रकार के देश शामिल हैं। इस आन्दोलन में भिन्न-भिन्न जातियों एवं क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व प्राप्त है।

प्रश्न 25.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अन्तर्गत ‘अफ्रीकी सहायता कोष’ तथा ‘पृथ्वी संरक्षण कोष’ की स्थापना कब, कहां और किस देश की पहल पर हुई ?
उत्तर:
अफ्रीकी कोष की स्थापना भारत की पहल पर सन् 1986 में जिम्बाबवे की राजधानी हरारे में हुए 8वें गुट निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन में की गई जबकि ‘पृथ्वी संरक्षण कोष’ की भी स्थापना भारत की पहल पर ही 1989 में युगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में हुए 9वें गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन में की गई।

प्रश्न 26.
‘आंशिक परमाण प्रतिबन्ध सन्धि 1963’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आंशिक परमाणु प्रतिबन्ध सन्धि 5 अगस्त, 1963 में की गई। इस सन्धि का प्रमुख उद्देश्य परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करना था। इस सन्धि पर अमेरिका, सोवियत संघ तथा ब्रिटेन ने हस्ताक्षर किये थे। यह सन्धि 10 अक्तूबर, 1963 को लागू हो गई। इस सन्धि के अन्तर्गत वायुमण्डल, पानी के अन्दर तथा बाहरी अन्तरिक्ष में परमाणु परीक्षण करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

प्रश्न 27.
स्टार्ट-II सन्धि की व्याख्या करें।
उत्तर:
स्टार्ट-II (Strategic Arms Reduction Treaty-II) अर्थात् सामाजिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि पर 3 जनवरी, 1993 को अमेरिका एवं रूस ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य खतरनाक हथियारों को नियन्त्रित करने एवं उनकी संख्या कम करने से है, ताकि जनसंहार को रोका जा सके।

प्रश्न 28.
1919 में सोवियत संघ के पतन के बाद भारत किन दो तरीकों से रूस से सम्बन्ध रखकर लाभान्वित हुआ ?
उत्तर:

  • भारत रूस से भी उसी प्रकार सम्बन्ध बनाने में सफल रहा, जिस प्रकार सोवियत संघ के साथ थे।
  • भारत को रूस के माध्यम से इससे अलग हुए गणराज्यों से भी सम्बन्ध बनाने में आसानी हुई।

प्रश्न 29.
निम्नलिखित में से गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापकों के नामों की पहचान करें
(क) यासर अराफात
(ख) नेलसन मंडेला
(ग) डॉ० सुकर्णो
(घ) मार्शल टीटो।
उत्तर:
(ग) डॉ० सुकर्णो,
(घ) मार्शल टीटो।

प्रश्न 30.
1945 से 1990 तक किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण विश्व राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व राजनीति में अमेरिका एवं सोवियत संघ और अधिक मज़बूत होकर उभरे।
  • इस समय दोनों गुटों से अलग रहने वाले देशों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की।

प्रश्न 31.
शीत युद्ध अपनी चरम सीमा पर कब पहुंचा ?
उत्तर:
शीत युद्ध अपनी चरम सीमा पर सन् 1962 में पहुंचा, जब सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु प्रक्षेपास्त्र तैनात कर दिये थे। इसमें सोवियत संघ एवं अमेरिका में युद्ध की स्थिति पैदा हो गई।

प्रश्न 32.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की विदेश नीति के कोई दो सिद्धान्त बताएं।
उत्तर:

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने विश्व में स्वतन्त्रता एवं समानता की रक्षा को उस समय उद्देश्य बनाया।
  • अमेरिका की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त विश्व में साम्यवाद के प्रसार को रोकना था।

प्रश्न 33.
शीत युद्ध के युग में एक पूर्वी गठबन्धन और तीन पश्चिमी गठबन्धनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के युग में पूर्वी गठबन्धन द्वारा वारसा पैक्ट तथा पश्चिमी गठबन्धन द्वारा नाटो, सैन्टो तथा सीटो जैसे गठबन्धन बनाए।

प्रश्न 34.
शीत युद्ध के दायरे से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
शीत युद्ध के दायरों से हमारा अभिप्राय यह है कि विश्व के किन-किन क्षेत्र विशेष या देश विशेष के कारण शीत युद्ध बढ़ा अथवा शीत युद्ध का प्रभाव किन क्षेत्रों में अधिक देखा गया। उदाहरण के लिए शीत युद्ध के दायरे में अफ़गानिस्तान को शामिल किया जा सकता है।

प्रश्न 35.
कोई दो कारण दीजिए कि छोटे देशों ने शीत युद्ध के युग की मैत्री सन्धियों में महाशक्तियों के साथ अपने-आप को क्यों जोड़ा ?
उत्तर:

  • छोटे देश महाशक्तियों के साथ अपने निजी हितों की रक्षा के लिए जुड़े।
  • छोटे देश महाशक्तियों के साथ इसलिए जुड़े क्योंकि उन्हें स्थानीय प्रतिद्वन्द्वी, देश के विरुद्ध सुरक्षा, हथियार तथा आर्थिक सहायता मिलती थी।

प्रश्न 36.
गुट-निरपेक्षता के मुख्य उद्देश्य बताएं।
अथवा
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के कोई दो उद्देश्य लिखिये।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्षता का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गुटों से अलग रखना था।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था।

प्रश्न 37.
तृतीय विश्व के देशों द्वारा नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग करने के कोई दो कारण लिखिये।
उत्तर:

  • पूर्वी एवं दक्षिणी विश्व के देश अपनी आत्मनिर्भरता के लिए पश्चिमी देशों पर निर्भर थे।
  • विश्व अर्थव्यवस्था पर विकसित देशों का एकाधिकार ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. शीत युद्ध किन दो गुटों से सम्बन्धित था ?
(A) चीन-पाकिस्तान
(B) अमेरिका गुट-सोवियत गुट
(C) फ्रांस-ब्रिटेन
(D) जर्मनी-इटली।
उत्तर:
(B) अमेरिका गुट-सोवियत गुट।

2. निम्न में से शीत युद्ध का सही अर्थ क्या है ?
(A) अमेरिकी एवं सोवियत गुट के बीच व्याप्त कटु सम्बन्ध जो तनाव, भय एवं ईर्ष्या पर आधारित थे।
(B) तानाशाही व्यवस्था
(C) लोकतान्त्रिक व्यवस्था
(D) दोनों में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) अमेरिकी एवं सोवियत गुट के बीच व्याप्त कटु सम्बन्ध जो तनाव, भय एवं ईर्ष्या पर आधारित थे।

3. अमेरिकन गुट ने किस सैनिक गठबन्धन का निर्माण किया ?
(A) नाटो
(B) सीटो
(C) सैन्टो
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

4. सोवियत गुट ने निर्माण किया
(A) नाटो
(B) सीटो
(C) वारसा पैक्ट
(D) सैन्टो।
उत्तर:
(C) वारसा पैक्ट।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

5. भारत ने शीत युद्ध से अलग रहने के लिए किस आन्दोलन की शुरुआत की ?
(A) असहयोग आन्दोलन
(B) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन
(C) सविनय अवज्ञा आन्दोलन
(D) भारत छोड़ो आन्दोलन।
उत्तर:
(B) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन।

6. नाटो (NATO) सन्धि का निर्माण कब किया गया ?
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1947 में
(C) सन् 1949 में
(D) सन् 1951 में।
उत्तर:
(C) सन् 1949 में।

7. ‘वारसा संधि’ का निर्माण कब हुआ ?
(A) सन् 1955 में
(B) सन् 1950 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1954 में।
उत्तर:
(A) सन् 1955 में।

8. पूंजीवादी देश है
(A) अमेरिका
(B) फ्रांस
(C) इंग्लैंड
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

9. सोवियत गुट (साम्यवादी गुट) में कौन-सा देश शामिल था ?
(A) पोलैण्ड
(B) पूर्वी जर्मनी
(C) बुल्गारिया
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

10. क्यूबा मिसाइल संकट कब हुआ ?
(A) सन् 1959 में
(B) सन् 1961 में
(C) सन् 1962 में
(D) सन् 1965 में।
उत्तर:
(C) सन् 1962 में।

11. शीत युद्ध का आरंभ कब हुआ ?
(A) प्रथम विश्व युद्ध के पहले
(B) प्रथम विश्व युद्ध के बाद
(C) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(D) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के बाद।
उत्तर:
(C) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद।

12. शीतयुद्ध निम्न में से किसी एक से सम्बन्धित हैं
(A) राजनीतिक अविश्वास से
(B) सैनिक प्रतिस्पर्धा से
(C) वैचारिक मतभेद से
(D) उपरोक्त तीनों से।
उत्तर:
(D) उपरोक्त तीनों से।

13. शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच कौन-सा महाद्वीप अखाड़े के रूप में सामने आया ?
(A) एशिया
(B) दक्षिण अमेरिका
(C) यूरोप
(D) अफ्रीका।
उत्तर:
(C) यूरोप।

14. महाशक्तियों के लिए छोटे देश लाभदायक थे
(A) अपने भू-क्षेत्र के कारण
(B) तेल और खनिज के कारण
(C) सैनिक ठिकाने के कारण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

15. द्वितीय विश्व युद्ध कब समाप्त हुआ?
(A) सन् 1939 ई० में
(B) सन् 1941 ई० में
(C) सन् 1943 ई० में
(D) सन् 1945 ई० में।
उत्तर:
(D) सन् 1945 ई० में।

16. वारसा पैक्ट किस वर्ष समाप्त कर दिया गया था ?
(A) 1982
(B) 1984
(C) 1991
(D) 1995.
उत्तर:
(C) 1991

17. पूंजीवादी गुट का नेता कौन था ?
(A) सोवियत संघ
(B) अमेरिका
(C) भारत
(D) चीन।
उत्तर:
(B) अमेरिका।

18. साम्यवादी गुट का नेता कौन था ?
(A) भारत
(B) अमेरिका
(C) चीन
(D) सोवियत संघ।
उत्तर:
(D) सोवियत संघ।

19. शीत युद्ध के दौरान विश्व कितने गुटों में बँटा हुआ था ?
(A) दो गुटों में
(B) तीन गुटों में
(C) चार गुटों में
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(A) दो गुटों में।

20. क्यूबा का सम्बन्ध किस महाशक्ति से था ?
(A) सोवियत संघ
(B) अमेरिका
(C) जापान
(D) भारत।
उत्तर:
(A) सोवियत संघ।

21. शीत युद्ध का प्रारम्भ कब हुआ ?
(A) प्रथम विश्व युद्ध से पहले
(B) प्रथम विश्व युद्ध के बाद
(C) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(D) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के बाद।
उत्तर:
(C) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद।

22. अगस्त, 1945 में अमेरिका ने जापान के किन दो शहरों पर परमाणु बम गिराए ?
(A) हिरोशिमा एवं नागासाकी
(B) हिरोशिमा एवं टोक्यो
(C) क्योवे एवं नागासाकी
(D) टोक्यो एवं नागासाकी।
उत्तर:
(A) हिरोशिमा एवं नागासाकी।

23. गोर्बाचोव कब सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने ?
(A) 1980
(B) 1982
(C) 1984
(D) 1985
उत्तर:
(D) 1985.

24. पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के मध्य बनी ‘बर्लिन की दीवार’ को कब गिराया गया ?
(A) सन् 1979 में
(B) सन् 1986 में
(C) सन् 1989 में
(D) सन् 1990 में।
उत्तर:
(C) सन् 1989 में।

25. जर्मनी का एकीकरण कब हुआ ?
(A) 1980 में
(B) 1990 में
(C) 1991 में
(D) 1995 में।
उत्तर:
(B) 1990 में।

26. सोवियत संघ का विघटन कब हुआ था ?
(A) 1985
(B) 1999
(C) 1995
(D) 1991.
उत्तर:
(D) 1991.

27. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक हैं ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू
(B) जोसेफ ब्रॉज टीटो
(C) गमाल अब्दुल नासिर
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

28. पहला गुट-निरपेक्ष आन्दोलन कहां हुआ था ?
(A) नई दिल्ली
(B) बेलग्रेड
(C) टोक्यो
(D) मास्को।
उत्तर:
(B) बेलग्रेड।

29. पहले गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में कितने देश शामिल हुए थे ?
(A) 20
(B) 25
(C) 30
(D) 35.
उत्तर:
(B) 25.

30. निम्नलिखित में से एक देश गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक देश है ?
(A) भारत
(B) पाकिस्तान
(C) नेपाल
(D) मालदीव।
उत्तर:
(A) भारत।

31. निम्न में से किस वर्ष बांडुंग सम्मेलन हुआ ?
(A) 1950
(B) 1952
(C) 1955
(D) 1960.
उत्तर:
(C) 1955.

32. अभी तक गुट-निरपेक्षता के कितने शिखर सम्मेलन हो चुके हैं ?
(A) 14
(B) 17
(C) 16
(D) 18.
उत्तर:
(D) 18.

33. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 18वां सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 2019
(B) 2004
(C) 2005
(D) 2006.
उत्तर:
(A) 2019.

34. पूर्वी एवं पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण किस वर्ष हुआ ?
(A) सन् 1990 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1992 में
(D) सन् 1993 में।
उत्तर:
(A) सन् 1990 में।

35. गुट निरपेक्ष देशों की वर्तमान सदस्य संख्या कितनी है?
(A) 114
(B) 116
(C) 118
(D) 120.
उत्तर:
(D) 120.

36. निम्न एक शीत युद्ध का परिणाम है
(A) एक धुव्रीय व्यवस्था
(B) द्वि-धुव्रीय व्यवस्था
(C) बहु-धुव्रीय व्यवस्था
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) द्वि-धुव्रीय व्यवस्था।

37. शीत युद्ध के अंत का सबसे बड़ा प्रतीक था
(A) नाटो का गठन
(B) वारसा पैक्ट का गठन
(C) सैन्टो का गठन
(D) बर्लिन की दीवार का गिरना।
उत्तर:
(D) बर्लिन की दीवार का गिरना।

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38. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का आरम्भ कब हुआ ?
(A) 1970 के दशक में
(B) 1980 के दशक में
(C) 1990 के दशक में
(D) 2000 के दशक में।
उत्तर:
(A) 1970 के दशक में।

39. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का सम्बन्ध किन देशों से है ?
(A) पूंजीवादी देशों से
(B) विकसित देशों से
(C) विकासशील देशों से
(D) साम्यवादी देशों से।
उत्तर:
(C) विकासशील देशों से।

40. नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का क्या उद्देश्य है ?
(A) विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना
(B) विकासशील देशों द्वारा तैयार माल के निर्णय को प्रोत्साहन देना
(C) विकसित एवं विकासशील देशों के बीच तकनीकी विकास के अन्तर को समाप्त करना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

41. विकासशील तथा विकसित देशों के बीच पाये जाने वाले विवाद को किस नाम से जाना जाता है ?
(A) उत्तर-दक्षिण विवाद
(B) पूर्व-पश्चिम विवाद
(C) उत्तर-पश्चिम विवाद
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) उत्तर-दक्षिण विवाद।

42. “शीतयुद्ध का वातावरण निलंबित मृत्युदण्ड के वातावरण के समान तनावपूर्ण होता है।” यह कथन किसका है ?
(A) स्टालिन
(B) चर्चिल
(C) पं०. जवाहर लाल नेहरू
(D) माओ-त्से तुंग।
उत्तर:
(C) पं० जवाहर लाल नेहरू।

रिक्त स्थान भरें

(1) वारसा सन्धि का निर्माण सन् ………… में हुआ।
उत्तर:
(1) 1955,

(2) अभी तक गुट-निरपेक्ष देशों के …………. शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।
उत्तर:
18,

(3) द्वितीय विश्व युद्ध सन् 1939 से सन् ………… की अवधि में हुआ।
उत्तर:
1945,

(4) सन् 1961 में गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम सम्मेलन ……………. में हुआ।
उत्तर:
बेलग्रेड,

(5) ………….. संकट के समय शीत युद्ध अपनी चरम सीमा पर था।
उत्तर:
क्यूबा प्रक्षेपास्त्र,

(6) …………… का परिणाम द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था थी।
उत्तर:
शीत युद्ध,

(7) क्यूबा मिसाइल संकट सन् ……………. में हुआ।
उत्तर:
1962

(8) …………. को शीत युद्ध की चरम परिणति माना जाता है।
उत्तर:
क्यूबा मिसाइल संकट,

(9) यू-2; विमान जासूसी कांड का सम्बन्ध …………… से माना जाता है।
उत्तर:
शीत युद्ध।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्ष देशों का 16वां शिखर सम्मेलन अगस्त 2012 में किस देश में हुआ ?
उत्तर:
तेहरान।

प्रश्न 2.
नाटो (NATO) सन्धि का निर्माण कब हुआ ?
उत्तर:
सन् 1949 में।

प्रश्न 3.
शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच कौन-सा महाद्वीप अखाड़े के रूप में सामने आया ?
उत्तर:
यूरोप

प्रश्न 4.
भारत ने शीत युद्ध से अलग रहने के लिए किस आन्दोलन की शुरुआत की ?
उत्तर:
भारत ने शीत युद्ध से अलग रहने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की।

प्रश्न 5.
गुटं-निरपेक्षता का अर्थ लिखें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना।

प्रश्न 6.
जर्मनी का एकीकरण किस वर्ष में हुआ?
उत्तर:
सन् 1990 में।

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प्रश्न 1.
शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर:
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता ?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतन्त्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इन्कार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।
उत्तर:
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

प्रश्न 3.
नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या ग़लत का चिन्ह लगाएँ।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना ज़रूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य-देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियां सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) ग़लत।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 4.
नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था ?
(क) पोलैण्ड
(ख) फ्रांस
(ग) जापान
(घ) नाइजीरिया
(ङ) उत्तरी कोरिया
(च) श्रीलंका।
उत्तर:
(क) पोलैण्ड – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया – गुटनिरपेक्ष में
(ङ) उत्तरी कोरिया – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(च) श्रीलंका – गुटनिरपेक्ष में।

प्रश्न 5.
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण-ये दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे ?
उत्तर:
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण ये दोनों प्रक्रियाएं ही पैदा हुई थीं। शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ से अभिप्राय यह है कि पूंजीवादी गुट एवं साम्यवादी गुट, दोनों ही एक-दूसरे पर अधिक प्रभाव रखने के लिए अपने-अपने हथियारों के भण्डार बढ़ाने लगे, जिससे विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई।

दूसरी तरफ हथियारों पर नियन्त्रण से अभिप्राय यह है कि दोनों गुट यह अनुभव करते थे कि यदि दोनों गुटों में आमने-सामने युद्ध होता है, तो दोनों गुटों को ही अत्यधिक हानि होगी और दोनों में से कोई भी विजेता बनकर नहीं उभर पाएगा, क्योंकि दोनों ही गुटों के पास परमाणु बम थे। इसी कारण शीतयुद्ध के दौरान हथियारों में कमी करने के लिए एवं हथियारों की मारक क्षमता कम करने के लिए हथियारों पर नियन्त्रण की प्रक्रिया भी पैदा हुई।

प्रश्न 6.
महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं ? तीन कारण बताइए।
अथवा
गठबन्धन क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर:
महाशक्तियां निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन रखती थीं

  • महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन इसलिए करती थीं, ताकि इन देशों से वे अपने हथियार और सेना का संचालन कर सकें।
  • महाशक्तियां छोटे देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर दुश्मन देश की जासूसी करते थे।
  • छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 7.
कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर:
शीतयुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि इसका विचारधारा से अधिक सम्बन्ध नहीं था, बल्कि शीतयुद्ध शक्ति के लिए संघर्ष था। परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि दोनों ही गुटों में विचारधारा का अत्यधिक प्रभाव था। पूंजीवादी विचारधारा के लगभग सभी देश अमेरिका के गुट में शामिल थे, जबकि साम्यवादी विचारधारा वाले सभी देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे। विपरीत विचारधाराओं वाले देशों में निरन्तर आशंका, संदेह एवं भय पाया जाता था। परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन से एक विचारधारा का पतन हो गया और इसके साथ ही शीत युद्ध भी समाप्त हो गया।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी ? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया ?
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अपने आपको दोनों गुटों से अलग रखा तथा द्वितीय स्तर पर भारत ने नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का किसी भी गुट में जाने का विरोध किया। भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। भारत ने सदैव दोनों गुटों में पैदा हुए मतभेदों को कम करने के लिए प्रयास किया, जिसके कारण ये मतभेद व्यापक युद्ध का रूप धारण न कर सके।

भारत की अमेरिका के प्रति विदेश नीति: भारत और अमेरिका में बहुत मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कभी नहीं रहे। अच्छे सम्बन्ध न होने का महत्त्वपूर्ण कारण अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति रवैया है। अमेरिका ने कश्मीर के मामले पर सदा पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तान को सैनिक सहायता भी दी तथा पाकिस्तान ने 1965 और 1971 के युद्ध में अमेरिकी हथियारों का प्रयोग किया। बंगला देश के मामले पर अमेरिका ने भारत के विरुद्ध सातवां समुद्री बेड़ा भेजने की कोशिश की। 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की परवाह न करते हुए पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दिए।

2 जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका गए तो सम्बन्ध में थोड़ा-थोड़ा बहुत सुधार हुआ। जनवरी 1989 में जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने, परन्तु राष्ट्रपति बुश की नीतियों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया, परन्तु आज भी परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने हुए हैं। G7 के टोकियो सम्मेलन में बिल क्लिटन ने रूस पर दबाव डाला कि वह भारत को क्रोयोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचे।

भारत की सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति-भारत के सोवियत संघ के साथ आरम्भ में अवश्य तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे हैं, परन्तु जैसे-जैसे भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति स्पष्ट होती गई, वैसे-वैसे दोनों देश एक-दूसरे के समीप आते गए। 1960 के बाद विशेषकर भारत और सोवियत संघ के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे हैं। 9 अगस्त, 1971 को भारत और सोवियत संघ के बीच शान्ति मैत्री और सहयोग की सन्धि हुई। ये सन्धि 20 वर्षीय थी। दोनों देशों के नेताओं की एक-दूसरे देश की यात्राओं से दोनों देशों के गहरे सम्बन्ध स्थापित हुए हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक व वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाने व सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाने के लिए कई समझौते हुए। 9 अगस्त, 1991 को 20 वर्षीय सन्धि 15 वर्ष के लिए और बढ़ा दी गई।

परन्तु 1991 के अन्त में सोवियत संघ का बड़ा तेजी से विघटन हो गया। सोवियत संघ के गणराज्यों ने अपनी-अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी और देखते-देखते ही सोवियत संघ का एक राष्ट्र के रूप में अन्त , हो गया। भारत ने सोवियत संघ के स्वतन्त्र गणराज्यों से सम्बन्ध स्थापित किए और रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव को विश्वास दिलाया कि रूस के भारत के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बने रहेंगे। भारत के रूस के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं।

प्रश्न 9.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुंचाई ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब शीतयुद्ध चरम सीमा पर था, तब विश्व में एक नई धारणा ने जन्म लिया, जिसे गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में अधिकांशतया विकासशील एवं नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश शामिल थे। इन देशों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का विकल्प इसलिए चुना क्योंकि वे अपने-अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना चाहते थे।

यदि वे किसी एक गुट में शामिल हो जाते तो वे अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक विकास नहीं कर सकते थे, परन्तु गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का सदस्य बन कर उन्होंने दोनों गुटों से आर्थिक मदद स्वीकार करके अपने देश के विकास को आगे बढ़ाया। यदि एक गुट किसी विकासशील या नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश को दबाने का प्रयास करता था, तो दूसरा गुट उसकी रक्षा के लिए आ जाता था तथा उसे प्रत्येक तरह की मदद प्रदान करता था, इसलिए ये देश अपना विकास बिना किसी रोक-टोक के कर सकते थे।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 10.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन 1961 में नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को महाशक्तियों के प्रभाव से बचाने के लिए आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन का उद्देश्य शक्ति गुटों से दूर रहकर अपने देश की अलग पहचान एवं अस्तित्व बनाए रखना था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ शीत-युद्ध काल में हुआ। परन्तु अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। शीत युद्ध समाप्त हो चुका है। अमेरिका-रूस अब तनाव नहीं मैत्री चाहते हैं। वर्तमान समय में शक्ति गुट समाप्त हो चुके हैं और अमेरिका ही एक महाशक्ति देश रह गया है। संसार एक-ध्रुवीय हो चुका है। ऐसे बदले परिवेश में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं।

आलोचकों का मत है कि जब विश्व में गुटबन्दियां हो रही हैं तो फिर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या औचित्य रह गया है ? जब शीत युद्ध समाप्त हो चुका है तो निर्गुट आन्दोलन की भी क्या आवश्यकता है ? कर्नल गद्दाफी ने इस आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय भ्रम का मजाकिया आन्दोलन कहा था। फ

रवरी, 1992 में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में मित्र ने कहा था कि सोवियत संघ के विघटन, सोवियत गुट तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। अतः इसे समाप्त कर देना चाहिए। परन्तु उपरोक्त विवरण के आधार पर न तो यह कहना उचित होगा कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया और न ही यह कि इसे समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है

(1) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

(2) निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है।

(3) नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था की स्थापना के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(4) संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका के प्रभुत्व से मुक्त करवाने के लिए भी इसका औचित्य है।

(5) उन्नत एवं विकासशील देशों में सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(6) अशिक्षा, बेरोज़गारी, आर्थिक समानता जैसी समस्याओं के समूल नाश के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(7) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का लोकतान्त्रिक स्वरूप इसकी सार्थकता को प्रकट करता है।

(8) गुट-निरपेक्ष देशों की एकजुटता ही इन देशों के हितों की रक्षा कर सकती है।

(9) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में लगातार बढ़ती सदस्य संख्या इसके महत्त्व एवं प्रासंगिकता को दर्शाती है। आज गुट निरपेक्ष देशों की संख्या 25 से बढ़कर 120 हो गई है अगर आज इस आन्दोलन का कोई औचित्य नहीं रह गया है या कोई देश इसे समाप्त करने की मांग कर रहा है तो फिर इसकी सदस्य संख्या बढ़ क्यों रही है। इसकी बढ़ रही सदस्य संख्या इसकी सार्थकता, महत्त्व एवं इसकी ज़रूरत को दर्शाती है।

(10) गुट-निरपेक्ष देशों का आज भी इस आन्दोलन के सिद्धान्तों में विश्वास एवं इसकी प्रतिनिष्ठा इसके महत्त्व को बनाए हुए है।
अत: यह कहना कि वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है एवं इसे समाप्त कर देना चाहिए, बिल्कुल अनुचित होगा।

शीतयुद्ध का दौर HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीतयद्ध की शरुआत दूसरे विश्व-युद्ध के बाद हई।
→ शीतयुद्ध का अर्थ है, अमेरिकी एवं सोवियत गुट के बीच व्याप्त कटु सम्बन्ध जो तनाव, भय तथा ईर्ष्या पर आधारित थे।
→ शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुट विश्व पर अपना प्रभाव जमाने के लिए प्रयत्नशील रहे।
→ अमेरिका ने 1949 में नाटो की स्थापना की।
→ सोवियत संघ ने नाटो के उत्तर में 1955 में वारसा पैक्ट की स्थापना की।
→ अमेरिका ने सीटो तथा सैन्टो जैसे संगठन भी बनाए।
→ भारत जैसे विकासशील देशों ने शीतयुद्ध से अलग रहने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की।
→ विकासशील देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने के लिए नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया।
→ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था दो ध्रुवीय विश्व के लिए चुनौती के रूप में सामने आए।
→ शीतयुद्ध के दौरान भारत ने विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

HBSE 12th Class Sociology भारतीय समाज : एक परिचय Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की लगभग कितने प्रतिशत जनसंख्या आपकी या आपसे छोटी आयु के लोगों की है?
(A) 40%
(B) 50%
(C) 55%
(D) 60%
उत्तर:
40%

प्रश्न 2.
किस प्रक्रिया के द्वारा हमें बचपन से ही अपने आसपास के संसार को समझना सिखाया जाता है?
(A) संस्कृतिकरण
(B) समाजीकरण
(C) सांस्कृतिक मिश्रण
(D) आत्मवाचक।
उत्तर:
समाजीकरण।

प्रश्न 3.
भारत किस राष्ट्र का उपनिवेश था?
(A) अमेरिका
(B) फ्रांस
(C) इंग्लैंड
(D) जर्मनी।
उत्तर:
इंग्लैंड।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 4.
अंग्रेज़ों ने भारत को अपना उपनिवेश बनाना कब शुरू किया?
(A) 1660 के बाद
(B) 1700 के बाद
(C) 1650 के बाद
(D) 1760 के बाद।
उत्तर:
1760 के बाद।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक शासन ने पहली बार भारत को ………………. किया।
(A) एकीकृत
(B) विभाजित
(C) ब्रिटिश राज में शामिल
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
एकीकृत।

प्रश्न 6.
औपनिवेशिक शासन ने भारत को कौन-सी ताकतवर प्रक्रिया से अवगत करवाया?
(A) प्रशासकीय एकीकरण
(B) पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन
(C) आधुनिकीकरण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत किस प्रकार का एकीकरण भारत को भारी कीमत चुकाकर उपलब्ध हुआ?
(A) आर्थिक
(B) राजनीतिक
(C) प्रशासनिक
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
उपनिवेशवाद ने ही अपने शत्रु …………………… को जन्म दिया।
(A) राष्ट्रवाद
(B) व्यक्तिवाद
(C) पाश्चात्यवाद
(D) पूँजीवाद।
उत्तर:
राष्ट्रवाद।

प्रश्न 9.
औपनिवेशवाद प्रभुत्व के सांझे अनुभवों ने समुदाय के विभिन्न भागों को …………………… करने में सहायता प्रदान की।
(A) विभाजित
(B) एकीकृत
(C) विकसित
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
एकीकृत।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 10.
किस प्रक्रिया ने नए वर्गों व समुदायों को जन्म दिया?
(A) राष्ट्रवाद
(B) संस्कृतिकरण
(C) उपनिवेशवाद
(D) व्यक्तिवाद।
उत्तर:
उपनिवेशवाद।

प्रश्न 11.
किस वर्ग ने स्वतंत्रता प्राप्ति के अभियान में अगवाई की?
(A) ग्रामीण मध्य वर्ग
(B) नगरीय मध्य वर्ग
(C) ग्रामीण उच्च वर्ग
(D) नगरीय उच्च वर्ग।
उत्तर:
नगरीय मध्य वर्ग।

प्रश्न 12.
‘ब्रितानी उपनिवेशवाद’ निम्न में से किस व्यवस्था पर आधारित था?
(A) पूँजीवादी
(B) व्यावसायिकता
(C) व्यावहारिकता
(D) सभी।
उत्तर:
सभी।

प्रश्न 13.
भारत में राष्ट्रवादी भावना पनपने का कारण था?
(A) जातिवाद
(B) भाषावाद
(C) क्षेत्रवाद
(D) उपनिवेशवाद।
उत्तर:
उपनिवेशवाद।

प्रश्न 14.
इनमें से किस संरचना एवं व्यवस्था में उपनिवेशवाद ने नवीन परिवर्तन उत्पन्न किये?
(A) राजनीतिक
(B) आर्थिक
(C) सामाजिक
(D) सभी में।
उत्तर:
सभी में।

अति लघू उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कितने प्रमुख धर्म पाए जाते हैं तथा यहाँ पाया जाने वाला प्रमुख धर्म कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सात प्रमुख धर्म पाए जाते हैं तथा यहाँ पर पाया जाने वाला प्रमुख धर्म हिंदू धर्म है।

प्रश्न 2.
भारत में कितनी प्रमुख भाषाएँ बोली जाती हैं तथा यहाँ कितने प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिंदी है?
उत्तर:
भारत में 22 प्रमुख भाषाएँ बोली जाती हैं तथा यहाँ पर 40% के लगभग लोगों की मातृभाषा हिंदी है।

प्रश्न 3.
भारत में कौन-से राज्यों का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक तथा सबसे कम है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व है तथा सबसे कम घनत्व अरुणाचल प्रदेश में है।

प्रश्न 4.
भारत में कितने प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों तथा नगरीय क्षेत्रों में रहती है?
उत्तर:
भारत में 68% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 32% जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में रहती है।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता प्राप्त है तथा हिंदी के बाद कौन-सी भाषा सबसे अधिक प्रयुक्त होती है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है तथा हिंदी के बाद सबसे अधिक प्रयक्त होने वाली भाषा बांग्ला है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 6.
भारत में सबसे कम प्रचलित धर्म कौन-सा है तथा किस राज्य में बौद्ध धर्म सबसे अधिक प्रचलित है?
उत्तर:
भारत में सबसे कम प्रचलित धर्म पारसी धर्म है तथा महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म सबसे अधिक प्रचलित है।

प्रश्न 7.
भारत में प्रचलित चार वेदों के नाम बताएं।
उत्तर:
भारत में प्रचलित चार वेदों के नाम हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सामवेद।

प्रश्न 8.
भारत का सबसे प्राचीन वेद कौन-सा है?
उत्तर:
ऋग्वेद भारत का सबसे प्राचीन वेद है।

प्रश्न 9.
उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में कौन-से धाम हैं?
उत्तर:
बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम उत्तर भारत में हैं तथा रामेश्वरम दक्षिणी भारत में है।

प्रश्न 10.
पूर्वी भारत तथा पश्चिमी भारत में कौन-से धाम हैं?
उत्तर:
जगन्नाथपुरी पूर्वी भारत का धाम है तथा द्वारिकापुरी पश्चिमी भारत का धाम है।

प्रश्न 11.
क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब लोग अपने क्षेत्र को प्यार करते हैं तथा दूसरे क्षेत्रों से नफ़रत करते हैं तो उसे क्षेत्रवाद कहा जाता है।

प्रश्न 12.
भारत में पुरुषों तथा महिलाओं की साक्षरता दर कितनी है?
उत्तर:
भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 75% है तथा महिलाओं की साक्षरता दर 54% है।

प्रश्न 13.
भारत में राष्ट्रीय एकता में कौन-सी रुकावटें हैं?
उत्तर:
जातिवाद, सांप्रदायिकता, आर्थिक असमानता इत्यादि ऐसे कारक हैं जो राष्ट्रीय एकता के रास्ते में रुकावटें हैं।

प्रश्न 14.
देश में राष्ट्रीय एकता को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
उत्तर:
देश में धर्म से जुड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर, सारे देश में शिक्षा का एक ही पाठ्यक्रम बनाकर तथा जातिवाद को खत्म करके देश में राष्ट्रीय एकता को स्थापित किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
मध्यकाल में पश्चिमी उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा। (उचित/अनुचित)
उत्तर:
अनुचित।

प्रश्न 16.
भारत में पूँजीवाद के कारण उपनिवेशवाद प्रबल हुआ। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 17.
उपनिवेशवाद से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
उपनिवेशवाद क्या है?
उत्तर:
यह प्रक्रिया औद्योगिक क्रांति के पश्चात् शुरू हुई जब पश्चिमी देशों के पास अधिक पैसा तथा बेचने के लिए अत्यधिक माल उत्पन्न होना शुरू हुआ। पश्चिमी अथवा शक्तिशाली देशों के द्वारा एशिया तथा अफ्रीका के देशों को जीतने की प्रक्रिया तथा जीते हुए देशों में अपना शासन स्थापित करने की प्रक्रिया को उपनिवेशवाद कहा जाता है।

प्रश्न 18.
कौन-कौन से देशों ने एशिया तथा अफ्रीका में अपने उपनिवेश स्थापित किए?
उत्तर:
उपनिवेशवाद का दौर 18वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य तक चला। इसमें मुख्य साम्राज्यवादी देश थे-इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, जर्मनी, इटली इत्यादि। बाद में इसमें रूस, अमेरिका, जापान जैसे देश भी शामिल हो गए।

प्रश्न 19.
भारत में राष्ट्रवाद कब उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
भारत में अंग्रेजों ने अपना राज्य स्थापित किया तथा यहां पश्चिमी शिक्षा देनी शुरू की। इससे 19वीं सदी के मध्य के बाद धीरे-धीरे भारत में राष्ट्रवाद उत्पन्न होना शुरू हुआ।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 20.
सांप्रदायिकता का अर्थ बताएं।
उत्तर:
सांप्रदायिकता और कुछ नहीं बल्कि एक विचारधारा है जो जनता में एक धर्म के धार्मिक विचारों का प्रचार करने का प्रयास करती है तथा यह धार्मिक विचार अन्य धार्मिक समूहों के धार्मिक विचारों के बिल्कुल ही विपरीत होते हैं।

प्रश्न 21.
जातीय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी देश, प्रजाति इत्यादि का ऐसा समूह जिसके सांस्कृतिक आदर्श समान हों। एक जातीय समूह के लोग यह विश्वास करते हैं कि वह सभी ही एक पूर्वज से संबंध रखते हैं तथा उनके शारीरिक लक्षण एक समान हैं। इस समूह के सदस्य एक-दूसरे के साथ कई लक्षणों से पहचाने जाते हैं जैसे कि भाषायी, संस्कृति, धार्मिक इत्यादि।

प्रश्न 22.
भारतीय समाज में कैसे परिवर्तन आए?
उत्तर:
उपनिवेशिक दौर में एक विशेष भारतीय चेतना ने जन्म लिया। अंग्रेज़ों ने पहली बार संपूर्ण भारत को एकीकृत किया तथा पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण की शक्तिशाली प्रक्रियाओं से भारत का परिचय कराया। इनसे भारतीय समाज में बहुत-से परिवर्तन आए।

प्रश्न 23.
भारत में राष्ट्रवाद कैसे उत्पन्न हुआ?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक एकीकरण किया। उन्होंने यहां पश्चिमी शिक्षा का प्रसार किया। भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा इससे उपनिवेशवाद के शत्रु राष्ट्रवाद का जन्म हुआ।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में कौन-कौन सी विभिन्नताएं पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत की भौगोलिक विभिन्नता के कारण भारत में कई प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. खाने-पीने की विभिन्नता-भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में खाने-पीने में बहुत विभिन्नता पाई जाती है। उत्तर भारत में लोग गेहूं का ज्यादा प्रयोग करते हैं। दक्षिण भारत तथा तटीय प्रदेशों में चावल का सेवन काफ़ी ज्यादा है। कई राज्यों में पानी की बहुतायत है तथा कहीं पानी की बहुत कमी है। कई प्रदेशों में सर्दी बहुत ज्यादा है इसलिए वहाँ गर्म कपड़े पहने जाते हैं तथा कई प्रदेश गर्म हैं या तटीय प्रदेशों में ऊनी वस्त्रों की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस तरह खाने-पीने तथा कपड़े डालने में विभिन्नता है।

2. सामाजिक विभिन्नता-भारत के अलग-अलग राज्यों के समाजों में भी विभिन्नता पाई जाती है। हर क्षेत्र में बसने वाले लोगों के रीति-रिवाज, रहने के तरीके, धर्म, धर्म के संस्कार इत्यादि सभी कुछ अलग-अलग हैं। हर जगह अलग-अलग तरह से तथा अलग-अलग भगवानों की पूजा होती है। उनके धर्म अलग होने की वजह से रीति-रिवाज भी अलग-अलग हैं।

3. शारीरिक लक्षणों की विभिन्नता-भौगोलिक विभिन्नता के कारण से यहाँ के लोगों में विभिन्नता भी पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों के लोग लंबे-चौड़े तथा रंग में साफ़ होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में लोग नाटे पर चौड़े होते हैं तथा रंग भी सफेद होता है। दक्षिण भारतीय लोग भूमध्य रेखा के निकट रहते हैं इसलिए उनका रंग काला या सांवला होता है।

4. जनसंख्या में विभिन्नता-भौगोलिक विभिन्नता के कारण यहाँ के लोगों में विभिन्नता भी पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों के लोग लंबे चौड़े तथा रंग में साफ होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में लोग नाटे पर चौड़े होते हैं तथा रंग भी सफेद होता है। दक्षिण भारतीय लोग भूमध्य रेखा के निकट रहते हैं इसलिए उनका रंग काला या सांवला होता है।

प्रश्न 2.
भारत की सांस्कृतिक विविधता के बारे में बताएं।
उत्तर:
भारत में कई प्रकार की जातियां तथा धर्मों के लोग रहते हैं जिस कारण से उनकी भाषा, खान-पान, रहन सहन, परंपराएं, रीति-रिवाज इत्यादि अलग-अलग हैं। हर किसी के विवाह के तरीके, जीवन प्रणाली इत्यादि भी अलग अलग हैं। हर धर्म के धार्मिक ग्रंथ अलग-अलग हैं तथा उनको सभी अपने माथे से लगाते हैं। जिस प्रदेश में चले जाओ वहाँ का नृत्य अलग-अलग है। वास्तुकला, चित्रकला में भी विविधता देखने को मिल जाती है। हर किसी जाति या धर्म के अलग-अलग त्योहार, मेले इत्यादि हैं। सांस्कृतिक एकता में व्यापारियों, कथाकारों, कलाकारों इत्यादि का भी योगदान रहा है। इस तरह यह सभी सांस्कृतिक चीजें अलग-अलग होते हुए भी भारत में एकता बनाए रखती हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय समाज की रूप-रेखा के बारे में बताएं।
अथवा
भारतीय समाज की संरचना का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय समाज को निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है-
1. वर्गों का विभाजन-पुराने समय में भारतीय समाज जातियों में विभाजित था पर आजकल यह जाति के स्थान पर वर्गों में बँट गया है। व्यक्ति के वर्ग की स्थिति उसकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। शिक्षा, पैसे इत्यादि के कारण अलग-अलग वर्गों का निर्माण हो रहा है।

2. धर्म निरपेक्षता-पुराने समय में राजा महाराजाओं के समय में धर्म को काफ़ी महत्त्व प्राप्त था। राजा का जो धर्म होता था उसकी ही समाज में प्रधानता होती थी पर आजकल धर्म की जगह धर्म-निरपेक्षता ने ले ली है। व्यक्ति अन्य धर्मों को मानने वालों से नफ़रत नही करता बल्कि प्यार से रहता है। हर कोई किसी भी धर्म को मानने तथा उसके रीति-रिवाजों को मानने को स्वतंत्र है। समाज या राज्य का कोई धर्म नहीं है। भारतीय समाज में धर्म-निरपेक्षता देखी जा सकती है।

3. प्रजातंत्र-आज का भारतीय समाज प्रजातंत्र पर आधारित है। पुराने समय में समाज असमानता पर आधारित था परंतु आजकल समाज में समानता का बोल-बाला है। देश की व्यवस्था चुनावों तथा प्रजातंत्र पर आधारित है। इसमें प्रजातंत्र के मल्यों को बढ़ावा मिलता है। इसमें किसी से भेदभाव नहीं होता तथा किसी को उच्च या निम्न नहीं समझा जाता है।

प्रश्न 4.
आश्रम व्यवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर:
हिंदू समाज की रीढ़ का नाम है-आश्रम व्यवस्था। आश्रम शब्द श्रम शब्द से बना है जिसका अर्थ है प्रयत्न करना। आश्रम का शाब्दिक अर्थ है जीवन यात्रा का पड़ाव। जीवन को चार भागों में बाँटा गया है। इसलिए व्यक्ति को एक पड़ाव खत्म करके दूसरे में जाने के लिए स्वयं को तैयार करना होता है। यह पड़ाव या आश्रम है। हमें चार आश्रम दिए गए हैं-
1. ब्रह्मचर्य आश्रम-मनुष्य की औसत आयु 100 वर्ष मानी गई है तथा हर आश्रम 25 वर्ष का माना गया है। पहले 25 वर्ष ब्रह्मचर्य आश्रम के माने गए हैं। इसमें व्यक्ति ब्रह्म के अनुसार जीवन व्यतीत करता है। वह विद्यार्थी बन कर अपने गुरु के आश्रम में रह कर हर प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है तथा गुरु उसे अगले जीवन के लिए तैयार करता है।

2. गृहस्थ आश्रम-पहला आश्रम तथा विद्या खत्म करने के बाद व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है। यह 26-50 वर्ष तक चलता है। इसमें व्यक्ति विवाह करवाता है, संतान उत्पन्न करता है, अपना परिवार बनाता है. जीवन यापन करता है, पैसा कमाता है तथा दान देकर लोगों की सेवा करता है। इसमें व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

3. वानप्रस्थ आश्रम-यह तीसरा आश्रम है जोकि 51-75 वर्ष तक चलता है। जब व्यक्ति इस उम्र में आ जाता है तो वह अपना सब कुछ अपने बच्चों को सौंपकर भगवान की भक्ति के लिए जंगलों में चला जाता है। इसमें व्यक्ति घर की चिंता छोड़कर मोक्ष प्राप्त करने में ध्यान लगाता है। जरूरत पड़ने पर वह अपने बच्चों को सलाह भी दे सकता है।

4. संन्यास आश्रम-75 साल से मृत्यु तक संन्यास आश्रम चलता है। इसमें व्यक्ति हर किसी चीज़ का त्याग कर देता है तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान की तरफ ध्यान लगा देता है। वह जंगलों में रहता है, कंद मूल खाता है तथा मोक्ष के लिए वहीं भक्ति करता रहता है तथा मृत्यु तक वहीं रहता है।

प्रश्न 5.
वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊंची स्थिति किस की थी?
उत्तर:
वर्ण व्यवस्था में चार प्रकार के वर्ण बताये गये हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं चौथा वर्ण। इन सभी में से सबसे ऊंची स्थिति या दर्जा ब्राह्मणों का माना गया था, बाकी तीनों वणों को ब्राह्मणों के बाद की स्थिति प्राप्त थी। सभी वर्गों से ऊपर की स्थिति के मुख्य कारण माने गये कि उस वर्ग ने समाज का धार्मिक क्षेत्र में एवं शिक्षा के क्षेत्र में मार्ग-दर्शन करना था। अर्थ यह है कि समाज को शिक्षा प्रदान करना था। इस प्रकार माना गया है कि ब्राह्मण वर्ण के व्यक्तियों को राज दरबारों में ‘राज गुरु’ का दर्जा प्राप्त होगा और राज्य प्रबंधन के विषय में राजा उनसे सलाह मशविरा करेगा एवं मार्गदर्शन लेगा। इस विषय में कोई भी व्यक्ति इस वर्ण के विरुद्ध नहीं बोल सकता था, परंतु इस बारे में राजा पुरोहित (राजगुरु) की आज्ञा मानने को बाध्य नहीं होता था। सामान्यतः उनकी राय को मान ही लिया जाता था।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 6.
आश्रम व्यवस्था के सामाजिक महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
आश्रम व्यवस्था, व्यक्ति के जीवन का सर्वपक्षीय विकास है। इस व्यवस्था में व्यक्ति के जैविक, भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास की ओर पूरा ध्यान दिया गया था। यह व्यवस्था मनुष्य को उसके सामाजिक कर्तव्यों के प्रति सचेत करती थी। व्यक्ति को उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने में भी सहायक होती थी। आश्रम व्यवस्था में अपने अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों की ओर ज्यादा ध्यान दिलाती थी। इस कारण से समाज में ज्यादा संगठन सहयोग एवं संतुलन बनाये रखा जाता था। इस व्यवस्था में व्यक्ति की सभी आवश्यकताओं का ध्यान भी रखा जाता था। भावार्थ कि आदमी का संपूर्ण विकास भी होता था। इस व्यवस्था के अनुसार वह अपनी सारी सामाजिक ज़िम्मेदारियों को सही ढंग से निभा सकता था।

प्रश्न 7.
पुरुषार्थ के भिन्न-भिन्न आधार कौन-से हैं?
अथवा
पुरुषार्थ के मुख्य उद्देश्य क्या-क्या हैं?
उत्तर:
पुरुषार्थ का अर्थ है व्यक्ति का ‘मनोरथ’ या इच्छा। इस प्रकार मनुष्य की इच्छा सुखी जीवन जीने की होती है, पुरुषार्थ प्रणाली व्यक्ति की इन्हीं इच्छाओं, ‘आवश्यकता और ज़रूरतों को, जोकि मानवीय जीवन का आधार होती हैं पूरा करती है। मनुष्य की इन्हीं सारी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पुरुषार्थ प्रणाली में ‘चार भागों’ में विभक्त कर दिया गया है और ये चारों भाग हैं ‘धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’ और ‘मोक्ष’। इन सभी भागों में व्यक्ति अलग-अलग तरह के कार्य संपन्न करता है। धर्म का कार्य है व्यक्ति को नैतिक नियमों में रहना और सही आचरण करना। ‘अर्थ’ के संबंध में व्यक्ति धन को कमाता एवं खर्च करता है और अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करता है।

‘काम’ के पुरुषार्थ में वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करता है। विवाह इत्यादि करके संतान उत्पत्ति करके अपने वंश को आगे बढ़ाता है। इसी परंपरा में वह अंतिम पुरुषार्थ जोकि ‘मोक्ष’ माना गया है को ओर अग्रसर होता है जोकि मनुष्य का अंतिम उद्देश्य जाना जाता है। इस तरह से पुरुषार्थ मनुष्य के कर्तव्यों को निश्चित करता है एवं हर समय उसका मार्गदर्शन करता है।

प्रश्न 8.
संस्कार क्या होते हैं?
अथवा
संस्कार कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
संस्कार, शरीर की शुद्धि के लिए होते हैं, इस प्रकार व्यक्ति के जन्म से ही संस्कार शुरू हो जाते हैं। कई संस्कार तो जन्म से पहले ही हो जाते हैं और सारी जिंदगी चलते रहते हैं। हमारे गृह सूत्र के अनुसार 11 संस्कार हैं। ‘गोत्र’ धर्म अनुसार इनकी संख्या चालीस है। इस तरह मनु स्मृति में नौ संस्कारों के विषय में बताया गया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण संस्कार हैं-

  • गर्भाधान संस्कार
  • जाति धर्म संस्कार
  • नामकरण संस्कार
  • निष्करण संस्कार
  • मुंडन संस्कार
  • चूड़ाधर्म संस्कार
  • कर्ण वेध संस्कार
  • सवित्री संस्कार
  • समवर्तन संस्कार
  • विवाह संस्कार
  • अंतेष्ठि संस्कार।

प्रश्न 9.
वर्ण की उत्पत्ति का परंपरागत सिद्धांत बताएं।
उत्तर:
परंपरागत पुरुष सिद्धांत-वर्ण प्रणाली की उत्पत्ति की सबसे पहली चर्चा ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ में मिलती है, ऋग्वेद के गद्यांश में इस व्यवस्था का वर्णन है, इसी को ‘पुरुष-सूक्त’ कहा गया है। ‘पुरुष-सूक्त’ में सामाजिक व्यवस्था की तुलना एक पुरुष के साथ प्रतीक के रूप में की गई है, जोकि ‘सर्वव्यापी पुरुष’ या समूची मानव जाति का प्रतीक है। इस पुरुष को विश्व पुरुष, सर्वपुरुष या परम पिता परमात्मा भी कहा गया है। इस ‘विश्व पुरुष’ के अलग-अलग अंगों को अर्थात् शारीरिक अंगों को चारों वर्गों की उत्पत्ति की तरह दर्शाया गया है। इस ‘विश्व पुरुष’ के मुंह से ‘ब्राह्मणों’ की उत्पत्ति, बांहों से ‘क्षत्रियों की उत्पत्ति जांघों से ‘वैश्यों’ की उत्पत्ति एवं पैरों से ‘चौथे वर्ण’ की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है।

यह सभी प्रतीकात्मक है। इस व्यवस्था में ‘ब्राह्मण’ का कार्य मानव जाति को ज्ञान एवं उपदेश देना है जो मुंह के द्वारा ही संभव है। मनुष्य की बाहें (बाजू) शक्ति का प्रतीक हैं, इसलिए ‘क्षत्रिय’ का मुख्य कार्य समाज या देश की रक्षा करना है, वैश्यों के बारे में कहीं कुछ मतभेद मिलते हैं पर उनकी उत्पत्ति के बारे में जंघा से जो दर्शाया गया, जिससे यह प्रतीत होता है कि इस वर्ग का काम मुख्य रूप से भोजन उपलब्ध करवाना भावार्थ खेती इत्यादि या ‘व्यापार’ करना दर्शाया गया है।

इसी प्रकार चौथे वर्ण की उत्पत्ति को पैरों से माना गया है, जो यह पूरे शारीरिक ढांचे की सेवा करता है, इस तरह चौथे वर्ण का कार्य पूरे समाज की सेवा करना था। इस तरह इस ‘विश्व पुरुष’ के विभिन्न अंगों से वर्ण निकले हैं या पैदा हुए हैं। इस प्रकार जैसी उनकी उत्पत्ति हुई, उसी अनुसार उनको कार्य दिये गये हैं। इस तरह ये सभी अलग-अलग न होकर एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

प्रश्न 10.
वर्ण की उत्पत्ति का रंग का सिद्धांत बताएं।
उत्तर:
वर्ण या रंग का सिद्धांत-वर्ण शब्द का अर्थ है रंग। महाभारत में भृगु ऋषि ने भारद्वाज मुनि को वर्ण प्रणाली की उत्पत्ति का आधार आदमी की चमड़ी के रंग अनुसार बताया है। इस सिद्धांत के अनुसार सबसे पहले ‘ब्रह्मा’ से ‘ब्राह्मणों’ की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात् क्षत्रिय, वैश्य और चौथे वर्ण की। इस उत्पत्ति का मुख्य कारण मनुष्य की चमड़ी का रंग था। इस विचारधारा के अनुसार ‘ब्राह्मणों’ का रंग ‘सफ़ेद’, क्षत्रिय का ‘लाल’, वैश्यों का ‘पीला’ एवं चौथे वर्ण को ‘काला’ रंग प्राप्त हुआ।

भृगु ऋषि के अनुसार वर्ण का सिद्धांत सिर्फ रंग केवल चमड़ी के रंग के आधार पर न होकर बल्कि ‘कर्म’ एवं ‘गुणों’ पर आधारित है। उनके अनुसार जो लोग क्रोध करते हैं, कठोरता एवं वीरता दिखाते हैं वे ‘रजोगुण’ प्रधान होते हैं वहीं ‘क्षत्रिय’ कहलवाये। इसी प्रकार जिन लोगों ने खेतीबाड़ी एवं खरीद-फरोख्त में रुचि दिखाई वे पीत गुण (पित्तगुण) ‘वैश्य’ कहलवाये। जो लोग (प्राणी) लालची, लोभी और हिंसात्मक प्रवृत्ति के थे, वे लोग ‘सामगुण’ वाले कहलवाये गये। इस तरह रंग के आधार एवं कार्य-कलापों के लक्षणों के आधार पर वर्ण व्यवस्था की नींव रखी गई।

प्रश्न 11.
वर्ण की उत्पत्ति के कर्म तथा धर्म का सिद्धांत का वर्णन करें।
उत्तर:
कर्म एवं धर्म का सिद्धांत-मनु स्मृति में वर्ण धर्म के लिए अलग-अलग तरह का महत्त्व बताया गया है, इसमें कर्मों की महत्ता का वर्णन है। मनु के अनुसार शक्ति को अपने वर्ण द्वारा निर्धारित कार्य ही करने चाहिए। उसे अपने से उच्च या निम्न वर्गों वाला कार्य नहीं करना चाहिए। यह हो सकता है कुछ लोग अपने वर्ण अनुसार कार्य ठीक ढंग से न कर पायें, पर फिर भी उन्हें अपने वर्ण धर्म का पालन ज़रूर करना चाहिए। मनु स्मृति अनुसार किसी और वर्ण के कार्य को करने की अपेक्षा अपने वर्ण कार्य को आधा कर लेना ही अच्छा होता है।

इस सिद्धांत के अनुसार ‘वर्णों’ का प्रबंध, समाज की आवश्यकतानुसार होता है और यह था भी इसी प्रकार। इस सिद्धांत के अनुसार जो कार्य थे, वे थे-धार्मिक कार्यों की पूर्ति, समाज एवं राज्य का प्रबंध, आर्थिक कार्य और सेवा करने के कार्य। इन्हीं सभी कार्यों को करने हेतु ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं चौथे वर्ण से पूर्ति हुई। इस सिद्धांत अनुसार कर्म के साथ धर्म भी जुड़ा हुआ है। हिंदुओं की मान्यतानुसार पिछले जन्मों के कर्म वर्तमान जीवन को निर्धारित करते हैं। पिछले जन्म के कर्मों के आधार पर विभिन्न तरह के लोग अलग-अलग सामाजिक ज़रूरतों की पूर्ति करते हैं। इस तरह अपने अगले जन्म के निर्धारण के लिए व्यक्ति को वर्तमान में सही कार्य करने होंगे।

प्रश्न 12.
वर्ण की उत्पत्ति का गुणों का सिद्धांत बताएं।
उत्तर:
गुणों का सिद्धांत-वर्ण प्रणाली की उत्पत्ति के संबंध में ‘गुणों’ को आधार माना गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, सभी इंसान जन्म के समय ‘निम्न’ होते हैं। ज्यों-ज्यों व्यक्ति गुणों को अपनाता जाता है त्यों-त्यों उसका समाज में वर्ण भी निश्चित होता जाता है। इस सिद्धांत अनुसार ज्यों-ज्यों व्यक्ति को संस्कार मिलते हैं और वह इन संस्कारों द्वारा, जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं में प्रवेश करता है और भिन्न-भिन्न गुणों को धारण करता जाता है।

इस तरह जीवन के तरीके एवं गुणों के आधार पर वर्ण का निर्धारण होता है। इसी के आधार पर ही वर्गों का वर्गीकरण होता है। इन्हीं ‘गुणों के सिद्धांत’ का वर्णन एवं व्याख्यान ‘गीता’ में भी किया गया है। इस सिद्धान्त को “त्रिगुण’ सिद्धांत भी कहा गया है। हिंदुओं की विचारधारा अनुसार मानवीय कार्यों में तीन प्रकार के गुणों को वर्णित किया गया है और वे गुण हैं-‘सतोगुण’, ‘रजोगुण’। ‘तमोगुण’ इस प्रकार ‘सतोगुण’ में सद्विचार, अच्छी सोच और सदाचार शामिल है।

‘रजोगुण’ में भोग-विलास, ऐश्वर्य का जीवन, अहंकार और बहादुरी का शुमार है। इन सभी गुणों में सभी से नीचे ‘तमोगुण’ आता है, जिसमें अशिष्टता, असभ्यता, अति भोग विलास इत्यादि को शामिल किया गया था। इस तरह ‘सतोगुण’ वाले व्यक्तियों को ब्राह्मणों की श्रेणी में रखा गया था। दूसरी श्रेणी में ‘रजोगुण’ वालों में क्षत्रिय एवं वैश्य वर्ग को शामिल किया गया था।

अंत में ‘तमोगुण’ वाली प्रवृत्ति के व्यक्तियों को चौथे वर्ण का दर्जा दिया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे मौके मिलते हैं, जिसमें वह अपनी प्रतिभा का विकास कर सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार हर व्यक्ति को उसके स्वभाव (प्रकृति के अनुरूप) उसकी स्थिति एवं कार्य’ दिये जाते हैं, जोकि सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप ही होते हैं।

प्रश्न 13.
वर्ण की उत्पत्ति के द्विज तथा जन्म के सिद्धांत का वर्णन करें।
उत्तर:
(i) द्विज सिद्धांत-भारद्वाज मुनि ने भृगु ऋषि के वर्ण सिद्धांत को मान्यता नहीं दी, फिर अपना ‘द्विज सिद्धांत’ पेश किया। इस अनुसार सबसे पहले ‘ब्राह्मण’ पैदा हुए, जिसे ‘द्विज’ का नाम दिया गया। द्विज लोग अपने कार्य-कलापों के आधार पर चार भिन्न-भिन्न श्रेणियों में बांटे गये, जिन्हें चार वर्ण कहा गया है। इन्हीं लोगों में से जो लोग ज्यादा ‘गुस्सैल’ एवं साहसी थे उन्हें क्षत्रिय कहा जाने लगा। इसी तरह जो व्यक्ति अपने ‘द्विज धर्म’ को छोड़कर खेतीबाड़ी एवं व्यापार करने लगे उन्हें ‘वैश्य’ की श्रेणी में माना गया और जो लोग अपना धर्म त्याग कर झूठ बोलने लग गये और अति भोगी-विलासी बन गये उन्हें ‘चौथा वर्ण’ कहा जाने लगा।

(ii) जन्म का सिदधांत-विदवान बी० के० चटोपाध्याय ने जन्म को वर्ण का कारण बताया है। इस संदर्भ में उन्होंने महाभारत की कई उदाहरणों का उल्लेख किया है। इस विषय में उन्होंने द्रोणाचार्य का वर्णन किया है जिसमें वह बताते हैं कि जन्म के आधार पर ही द्रोणाचार्य ‘क्षत्रिय’ जैसा कार्य करते हुए ब्राहमण कहलाये। इसी प्रकार पांडवों के स्वभाव में भारी अंतर होते हुए भी वे सभी क्षत्रिय कहलवाये। इसलिए यह स्पष्ट है कि परिवर्तनशील गुणों के आधार पर वर्ण को निर्धारित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 14.
व्यक्ति को जीवन में कौन-से ऋण उतारने पड़ते हैं?
उत्तर:
व्यक्ति को जीवन में तीन ऋण उतारने पड़ते हैं तथा वह हैं देव ऋण, पितृ ऋण तथा ऋषि ऋण। देव ऋण उतारने के लिए व्यक्ति को देव यज्ञ करना पड़ता है तथा पवित्र अग्नि में भेंट देनी पड़ती है। यह ऋण व्यक्ति को इसलिए अदा करना पड़ता है ताकि उसको देवी-देवताओं से पानी, हवा, भूमि इत्यादि प्राकृतिक साधन प्राप्त होते हैं। पितृ का अर्थ है हमारे पूर्वज तथा बड़े बुजुर्ग। व्यक्ति अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का ऋणि होता है क्योंकि वह उसे जन्म देकर बड़ा करते हैं।

इसलिए उसे यह ऋण उतारना पड़ता है। व्यक्ति ऋषियों का भी ऋणी होता है क्योंकि व्यक्ति को इनसे ही आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा उसे उनसे ही विद्या भी प्राप्त होती है। इसलिए व्यक्ति अपने गुरुओं का ऋणी होता है। इसलिए व्यक्ति को ब्रह्म यज्ञ करके, पढ़ाई करके तथा औरों को पढ़ाने के द्वारा गुरु के प्रति अपना ऋण चुकाना पड़ता है। इस प्रकार व्यक्ति को अपने जीवन में यह तीन ऋण उतारने पड़ते हैं।

प्रश्न 15.
वर्ण व्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भारतीय हिंदू संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद का मिश्रण। इसके अनुसार परमात्मा को मिलना सबसे बड़ा सुख है, साथ-साथ में इस दुनिया के सुखों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसलिए इन दोनों तरह के सुखों के मिश्रण के लिए, हिंदू संस्कृति में एक व्यवस्था बनाई गई है जिसे ‘वर्ण-व्यवस्था’ कहते हैं। वर्ण प्रणाली एवं वर्ण व्यवस्था, हिंदू सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होने के साथ-साथ हिंदू धर्म का एक अटूट अंग है।

इसलिए वर्ण के साथ संबंधित कर्तव्यों को ‘वर्ण धर्म’ कहा जाता है। वर्ण प्रणाली में व्यक्ति एवं समाज के बीच में जो संबंध है उन्हें क्रमानुसार पेश किया गया है, जिसकी सहायता से व्यक्ति सामाजिक संगठन को ठीक ढंग से चलाने में अपनी मदद देता है। वर्ण प्रणाली के द्वारा भारतीय समाज को चार अलग-अलग भागों में बांटा गया है ताकि सामाजिक कार्य ठीक ढंग से चल सकें।

निबंधात्मकपश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में एकता के कौन-कौन से तत्त्व थे?
उत्तर:
प्राचीन भारत में एकता के निम्नलिखित तत्त्व थे:
1. ग्रामीण समाज-प्राचीन भारत ग्रामीण समाज पर आधारित था। जीवन पद्धति ग्रामीण हुआ करती थी। लोगों का मुख्य कार्य कृषि हुआ करता था। काफ़ी ज़्यादा लोग कृषि या कृषि से संबंधित कार्यों में लगे रहते थे। जजमानी व्यवस्था प्रचलित थी। धोबी, लोहार इत्यादि लोग सेवा देने का काम करते थे। इनको सेवक कहते थे। बड़े-बड़े ज़मींदार सेवा के बदले पैसा या फसल में से हिस्सा दे देते थे। यह जजमानी व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती थी। इस सबसे ग्रामीण समाज में एकता बनी रहती थी। नगरों में बनियों का ज्यादा महत्त्व था पर साथ ही साथ ब्राह्मणों इत्यादि का भी काफ़ी महत्त्व हुआ करता था। यह सभी एक-दूसरे से जुड़े हुआ करते थे जिससे समाज में एकता रहती थी।

2. संस्थाएं-समाज की कई संस्थाओं में गतिशीलता देखने को मिल जाती थी। परंपरागत सांस्कृतिक संस्थाओं में से नियुक्तियाँ होती थीं। शिक्षा के विद्यापीठ हुआ करते थे और बहुत-सी संस्थाएं हुआ करती थीं जो कि भारत में एकता का आधार हुआ करती थीं। ये संस्थाएं भारत में एकता का कारण बनती थीं।

3. भाषा-सभी भाषाओं की जननी ब्रह्म लिपि रहती है। हमारे सारे पुराने धार्मिक ग्रंथ जैसा कि वेद, पुराण इत्यादि सभी संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। संस्कृत भाषा को पूरे भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस को देववाणी भी कहते हैं क्योंकि यह कहा जाता है कि देवताओं की भी यही भाषा है।

4. आश्रम व्यवस्था-भारतीय समाज में एकता का सबसे बड़ा आधार हमारी संस्थाएं जैसे आश्रम व्यवस्था रही है। हमारे जीवन के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गई है जैसे ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास। व्यक्ति को इन्हीं चार आश्रमों के अनुसार जीवन व्यतीत करना होता था तथा इनके नियम भी धार्मिक ग्रंथों में मिलते थे। यह आश्रम व्यवस्था पूरे भारत में प्रचलित थी क्योंकि हर व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्त करना जिसके लिए सभी इसका पालन करते थे। इस तरह यह व्यवस्था भी प्राचीन भारत में एकता का आधार हुआ करती थी।

5. पुरुषार्थ-जीवन के चार प्रमुख लक्ष्य होते हैं जिन्हें पुरुषार्थ कहते हैं। यह हैं धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष। शुरू में सिर्फ ब्राह्मण हुआ करते थे। परंतु धीरे-धीरे और वर्ण जैसे क्षत्रिय, वैश्य तथा चतुर्थ वर्ण सभी का अंतिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति या मोक्ष प्राप्त करना होता था तथा सभी को इन पुरुषार्थों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना होता था। धर्म का योग अपनाते हुए, अर्थ कमाते हुए, समाज को बढ़ाते हुए मोक्ष को प्राप्त करना ही व्यक्ति का लक्ष्य है। सभी इन की पालना करते हैं। इस तरह यह भी एकता का एक तत्त्व था।

6. कर्मफल-कर्मफल का मतलब होता है काम। कर्म का भारतीय संस्कृति में काफ़ी महत्त्व है। व्यक्ति का अगला जन्म उसके पिछले जन्म में किए गए कर्मों पर निर्भर है। अगर अच्छे कर्म किए हैं तो जन्म अच्छी जगह पर होगा नहीं तो बुरी जगह पर। यह भी हो सकता है कि अच्छे कर्मों के कारण आपको जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए। इसी को कर्म फल कहते हैं। यह भी प्राचीन भारतीय समाज में एकता का एक तत्त्व था।

7. तीर्थ स्थान-प्राचीन भारत में तीर्थ स्थान भी एकता का एक कारण हुआ करते थे। चाहे ब्राहमण हो या क्षत्रिय, या वैश्य सभी हिंदुओं के तीर्थ स्थान एक हुआ करते थे। सभी को एकता के सूत्र में बाँधने में तीर्थ स्थानों का काफ़ी महत्त्व हुआ करता था। मेलों, उत्सवों, पर्यों पर सभी इकट्ठे हुआ करते थे। तीर्थ स्थानों पर विभिन्न जातियों के लोग आया करते थे, संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ करता था। इस तरह वह एकता के सूत्र में बँध जाते थे। काशी, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, रामेश्वरम्, वाराणसी, प्रयाग तथा चारों धाम प्रमुख तीर्थ स्थान हुआ करते थे। इस तरह इन सभी कारणों को देख कर हम कह सकते हैं कि प्राचीन भारत में काफ़ी एकता हुआ करती थी तथा उस एकता के बहुत-से कारण हुआ करते थे जिनका वर्णन ऊपर किया गया है।

प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज की निम्नलिखित सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताएं थीं-
1. धर्म-हिंदू विचारधारा के अनुसार जीवन को संतुलित, संगठित तथा ठीक ढंग से चलाने के लिए कुछ नैतिक आदर्शों को बनाया गया है। ये सारे नैतिक आदर्श धर्म का रूप लेते हैं। इस तरह धर्म सिर्फ आत्मा या परमात्मा की ही व्याख्या नहीं करता बल्कि मनुष्य के संपूर्ण नैतिक जीवन की व्याख्या करता है। यह उन मानवीय संबंधों की भी व्याख्या करता है जो कि सामाजिक व्याख्या के आधार हैं। इस तरह धर्म एक अनुशासन है जो मनुष्य की आत्मा का विकास करके समाज को पूरा करता है तथा इस तरह धर्म प्राचीन भारतीय समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

2. कर्मफल तथा पुनर्जन्म-पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया है कि व्यक्ति को कर्म करने की आज़ादी है तथा इसी के अनुसार व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उसको उसी के अनुसार फल भी भोगना पड़ेगा। उसके कर्मों के आधार पर ही उसे अलग-अलग योनियों में जन्म प्राप्त होगा। व्यक्ति के जीवन का परम उद्देश्य है जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति, जिस को मोक्ष कहते हैं। इसलिए व्यक्ति को उस प्रकार के कार्य करने चाहिए जोकि उसे मोक्ष प्राप्त करने में मदद करें। इससे समाज भी अनुशासन में रहता है।

3. परिवार-परिवार भी प्राचीन भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता थी। प्राचीन भारत में संयुक्त परिवार, पितृ-सत्तात्मक, पितृस्थानी, पितृवंशी इत्यादि परिवार के प्रकार हुआ करते थे। परिवार में पिता की सत्ता चलती थी तथा उसे ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। परिवार में पुत्र का महत्त्व काफ़ी ज्यादा था क्योंकि धर्म के अनुसार कई संस्कारों तथा यज्ञों के लिए पुत्र ज़रूरी हुआ करता था। परिवार समाज की मौलिक इकाई माना जाता था तथा परिवार ही समाज का निर्माण करते थे।

4. विवाह-भारतीय समाज में चाहे प्राचीन हो या आधुनिक विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। एक विवाह के प्रकार को आदर्श विवाह माना गया है। विवाह को तोड़ा नहीं जा सकता था। किसी खास हालत में ही दूसरा विवाह करवाने की आज्ञा थी। विवाह के बाद ही परिवार बनता था इसलिए विवाह को गृहस्थ आश्रम की नींव माना जाता है। इस तरह प्राचीन भारतीय समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता विवाह प्रथा हुआ करती थी।

5. राज्य-प्राचीन भारतीय समाज में राज्य एक महत्त्वपूर्ण विशेषता हुआ करती थी। राज्य का प्रबंध राजा करता था तथा राजा और प्रजा के संबंध बहुत अच्छे हुआ करते थे। राज्य का कार्यभार सेनापति, अधिकारी, मंत्रीगण संभाला करते थे यानि कि अधिकारों का बँटवारा था। इससे यह कह सकते हैं कि प्रजा की भी सुना जाती थी। चाहे राजा किसी की बात मानने को बाध्य नहीं होता था पर फिर भी उसे प्रजा के कल्याण के कार्य करने पड़ते थे।

6. स्त्रियों की स्थिति-प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रियों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। कोई भी यज्ञ पत्नी के बिना पूरा नहीं हो सकता था। स्त्री को शिक्षा लेने का अधिकार प्राप्त था। उसे अर्धांगिनी कहते थे। चाहे बाद के समय में स्त्रियों की स्थिति में काफ़ी गिरावट आ गई थी क्योंकि कई विद्वानों ने स्त्रियों के ऊपर पुरुषों के नियंत्रण पर जोर दिया है तथा कहा है कि स्त्री हमेशा पिता, पति तथा पुत्र के नियंत्रण में रहनी चाहिए। प्राचीन काल में स्त्रियों की स्थिति फिर भी ठीक थी पर समय के साथ-साथ इनमें गिरावट आ गई थी।

7. शिक्षा-प्राचीन समय में शिक्षा को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। पहले तीन वर्गों को शिक्षा लेने का अधिकार प्राप्त था। शिक्षा गुरुकुल में ही मिलती थी। वेदों पुराणों का पाठ पढ़ाया जाता था। गुरु शिष्य के आचरण के नियम भी विकसित थे तथा शिक्षा लेने के नियम भी विकसित थे।

8. व्यक्ति और सामाजिक संस्थाएं-व्यक्ति तथा सामाजिक संस्थाएं प्राचीन समाज का महत्त्वपूर्ण आधार हुआ करती थीं। पुरुषार्थ, आश्रम व्यवस्था समाज का आधार हुआ करते थे। चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष हुआ करते थे। व्यक्ति चौथे पुरुषार्थ यानि कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए पहले तीन पुरुषार्थों के अनुसार जीवन व्यतीत करते थे। इसके साथ आश्रम व्यवस्था भी मौजूद थी।

जीवन को चार आश्रमों-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रमों में बाँटा गया था। व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति के लिए अपना जीवन इन चारों आश्रमों के अनुसार व्यतीत करते थे। यह सभी भारतीय समाज को एकता प्रदान करते थे। इसी के साथ कर्म की विचारधारा भी मौजूद थी कि व्यक्ति जिस प्रकार के कर्म करेगा उसी प्रकार से उसे योनि या मोक्ष प्राप्त होगा। मोक्ष जीवन का अंतिम लक्ष्य होता था तथा सभी उसको प्राप्त करने के प्रयास करते थे।

प्रश्न 3.
पश्चिमीकरण के भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़े हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
पश्चिमीकरण अथवा पश्चिमी संस्कृति के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
भारत में पश्चिमीकरण के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के भारतीय समाज पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े:
(i) परिवार पर प्रभाव-पश्चिमीकरण के कारण शिक्षित युवाओं तथा महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना बढ़ गई। इस कारण लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपने संयुक्त परिवारों को छोड़ दिया तथा वह शहरों में केंद्रीय परिवार बसाने लगे। परिवार के सदस्यों के संबंधों के स्वरूप, अधिकारों तथा दायित्व में परिवर्तन हुआ।

(ii) विवाह पर प्रभाव-पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के अंतर्गत लोगों में विवाह के धार्मिक संस्कार के प्रति श्रद्धा कम हो गई तथा इसे एक समझौता समझा जाने लगा। प्रेम विवाह तथा तलाकों का प्रचलन बढ़ गया, अंतर्जातीय विवाह बढ़ने लग गए। एक विवाह को ही ठीक समझा जाने लगा। विवाह को धार्मिक संस्कार न मानकर एक समझौता समझा जाने लगा जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है।

(ii) नातेदारी पर प्रभाव-भारतीय समाज में नातेदारी की मनुष्य के जीवन में अहम् भूमिका रहती है। मगर पश्चिमीकरण के कारण व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, गतिशीलता तथा समय धन है, आदि अवधारणाओं का भारतीय संस्कृति में तीव्र विकास हुआ। इससे ‘विवाह मूलक’ तथा ‘रक्त मूलक’ (Iffinal & Consaguineoun) दोनों प्रकार की नातेदारियों पर प्रभाव पड़ा। द्वितीयक एवं तृतीयक (Secondary & Tertiary) संबंध शिथिल पड़ने लगे। प्रेम विवाहों तथा कोर्ट विवाहों में विवाहमूलक नातेदारी कमज़ोर पड़ने लगी।

(iv) जाति प्रथा पर प्रभाव-सहस्रों वर्षों से भारतीय समाज की प्रमुख संस्था, जाति में पश्चिमीकरण के कारण अनेक परिवर्तन हुए। अंग्रेजों ने भारत में आने के बाद बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये और यातायात तथा संचार के साधनों जैसे-बस, रेल, रिक्शा, ट्राम इत्यादि का विकास व प्रसार किया। इसके साथ-साथ भारतीयों को डाक, तार, टेलीविज़न, अख़बारों, प्रैस, सड़कों व वायुयान आदि सविधाओं को परिचित कराया। बड़े-साथ उदयोगों की स्थापना की गई। इनके कारण विभिन्न जातियों के लोग एक स्थान पर उद्योग में कार्य करने लग पड़े।

एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए आधुनिक यातायात के साधनों का प्रयोग होने लगा। इससे उच्चता व निम्नता की भावना में भी कमी आने लगी। एक जाति के सदस्य दूसरी जाति के व्यवसाय को अपनाने लग पड़े।

(v) अस्पृश्यता-अस्पृश्यता भारतीय जाति व्यवस्था का अभिन्न अंग रही है मगर समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व पर आधारित पश्चिमी मूल्यों ने जातीय भेदभाव को कम किया। जाति तथा धर्म पर भेदभाव किये बिना सभी के लिये शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश की अनुमति, सभी के लिए एक जैसी शिक्षा व्यवस्था, समान योग्यता प्राप्त व्यक्तियों के लिये समान नौकरियों पर नियुक्ति आदि कारकों से अस्पृश्यता में कमी आई। अंग्रेजों ने औद्योगीकरण व नगरीकरण को बढ़ावा दिया। विभिन्न जातियों के लोग रेस्टोरेंट, क्लबों में एक साथ खाने-पीने एवं बैठने लग पड़े। अतः पश्चिमीकरण के कारण भारत में अस्पृश्यता में कमी आई।

(vi) स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन -अंग्रेजों के भारत में आगमन के समय भारत में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न थी। सती प्रथा, पर्दा प्रथा तथा बाल-विवाह का प्रचलन था तथा विधवा पुनर्विवाह पर रोक होने के कारण महिलाओं की स्थिति काफ़ी दयनीय थी। अंग्रेज़ों ने सती प्रथा को अवैध घोषित किया तथा विधवा विवाह को पुनः अनुमति दी। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार व प्रचार के माध्यम से बूंघट प्रथा में कमी आई।

पश्चिमीकृत महिलाओं ने पैंट-कमीज़ पहननी आरंभ की। लाखों महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना आई और उन्होंने केवल घर को संभालने की पारंपरिक भूमिका को त्यागकर पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर दफ्तरों में विभिन्न पदों पर नौकरी करनी आरंभ कर दी। इस तरह स्त्रियां अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफ़ल हुईं।

(vii) नव प्रशासनिक व्यवस्था का विकास–अंग्रेजी शासनकाल में भारत में आधुनिक नौकरशाही का विकास किया गया। असंख्य नये प्रशासनिक पदों का सृजन किया गया। भारतीय असैनिक सेवाएं (Indian Civil Services) प्रारंभ की जिनके माध्यम से प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं द्वारा उच्च अधिकारियों का चयन किया जाने लगा। नौकरशाही की बड़ी संरचना का निर्माण किया।

(viii) आर्थिक संस्थाओं का विकास-ब्रिटेन के भारत में शासनकाल के दौरान अनेक आर्थिक संस्थाओं का विकास हुआ। बैंकों की स्थापना की गई। श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण का विकास हुआ। देश में पूंजीवाद का बीजारोपण हुआ। कृषि एवं औद्योगिक श्रमिकों की समस्याएं बढ़ीं। वर्ग संघर्षों में बढ़ावा हुआ। हड़ताल, घेराव, तोड़-फोड़ तथा तालाबंदी होने लगी। आर्थिक संस्थाओं के विकास ने आज़ादी सेर आज़ादी के बाद देश में अर्थव्यवस्था को नया मोड़ दिया।

प्रश्न 4.
उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है? औपनिवेशिक काल में भारत में किस प्रकार राष्ट्रवाद का उदय हुआ?
अथवा
भारत में राष्ट्रवाद के विकास के दो कारण लिखिए।
अथवा
उपनिवेशवाद ने अपने शत्रु राष्ट्रवाद को जन्म दिया। इस कथन की पुष्टि करें।
अथवा
‘उपनिवेशवाद की समझ’ के संदर्भ में विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उपनिवेशवाद की प्रक्रिया औद्योगिक क्रांति के पश्चात् शुरू हुई जब पश्चिमी देशों के पास अधिक पैसा तथा बेचने के लिए अत्यधिक माल उत्पन्न होना शुरू हुआ होगा। पश्चिमी अथवा शक्तिशाली देशों के द्वारा एशिया तथा अफ्रीका के देशों को जीतने की प्रक्रिया तथा जीते हुए देशों में अपना शासन स्थापित करने की प्रक्रिया को उपनिवेशवाद कहा जाता है। उपनिवेशवाद का दौर 18वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य तक चला। इसमें मुख्य साम्राज्यवादी देश थे इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, जर्मनी तथा इटली इत्यादि। बाद में इसमें रूस, अमेरिका तथा जापान जैसे देश भी शामिल हो गए।

भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण :-भारत में राष्ट्रवाद के उदय के निम्नलिखित कारण थे:
(i) देश का राजनीतिक एकीकरण-ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने सभी भारतीय राज्यों को इकट्ठा करके देश का राजनीतिक एकीकरण कर दिया। इससे देश में राजनीतिक एकता स्थापित हुई तथा देश को एक ही प्रशासन तथा कानून प्राप्त हुए। लोगों में उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं के आने से एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण का उदय हुआ।

(ii) जनता का आर्थिक शोषण-ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा ब्रिटिश राज्य की सरकारों ने भारत के आर्थिक शोषण की नीति अपनाई। भारत की आर्थिक संपदा ब्रिटेन को जाने लगी तथा देश का आर्थिक विकास रुक गया। इसका परिणाम बेरोज़गारी, निर्धनता तथा सूखे के रूप में सामने आया। किसानों के ऊपर नयी भूमि व्यवस्थाएं लाद दी गईं। इस प्रकार की आर्थिक दुर्दशा से जनता में रोष उत्पन्न हो गया तथा उन्होंने उपनिवेशवाद का विरोध करना शुरू कर दिया।

(iii) पश्चिमी शिक्षा तथा विचार-भारत की ब्रिटिश विजय से भारतीयों को यूरोपियन लोगों में संपर्क आने का मौका प्राप्त हुआ। 19वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों में राष्ट्रवादी आंदोलन चल रहे थे। भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा पश्चिमी पुस्तकें पढ़नी शुरू की। समानता, स्वतंत्रता तथा भाईचारे के पश्चिमी विचारों का भारतीयों पर भी प्रभाव पड़ा। इससे भारतीयों को उपनिवेशवाद के परिणामों तथा भारत के शोषण का पता चला। इससे भारत के लोगों में जागृति उत्पन्न हो गयी।

(iv) प्रैस का योगदान-जनता को जागृत करने में प्रैस का बहुत बड़ा योगदान होता है। भारतीय तथा ब्रिटिश प्रैस ने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न की। बहुत से समाचारपत्र छपने शुरू हो गए जिन्होंने जनता को उपनिवेशवाद के विरुद्ध जागृत किया।

(v) सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का योगदान-सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीयों में चेतना जागृत की। राजा राम मोहनराय, देवेंद्र नाथ, दयानंद सरस्वती, विवेकानंद, ईश्वरचंद्र विद्यासागर इत्यादि ने देश में राष्ट्रवाद जगाने में बड़ी भूमिका अदा की, जिस कारण जनता धीरे-धीरे जागृत हो गयी।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देश में उपनिवेशवाद के विरोध में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में बहुत से कारणों का योगदान था।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

प्रश्न 5.
पुरुषार्थों के आधारों के महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
हिंदू धर्म शास्त्रों में जीवन के चार उद्देश्य दिए गए हैं तथा इन चार उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चार मुख्य पुरुषार्थ भी दिए गए हैं। इन पुरुषार्थों के आधारों का महत्त्व इस प्रकार है
1. धर्म का महत्त्व-धर्म का हमारे सामाजिक जीवन में बहुत महत्त्व है क्योंकि धर्म व्यक्ति की अलग-अलग इच्छाओं, ज़रूरतों, कर्तव्यों तथा अधिकारों में संबंध स्थापित करता है। यह इन सभी को व्यवस्थित तथा नियमित भी करता है। जब व्यक्ति तथा समाज अपने कर्तव्यों की धर्म के अनुसार पालना करते हैं तो समाज में शांति तथा व्यवस्था स्थापित हो जाती है तथा वह उन्नति की तरफ कदम बढ़ाता है।

धार्मिक शास्त्रों में लिखा गया है कि अगर व्यक्ति अर्थ तथा काम की पूर्ति धर्म के अनुसार करे तो ही वह ठीक है तथा अगर वह इन की पूर्ति धर्म के अनुसार न करे तो समाज में नफ़रत, द्वेष इत्यादि बढ़ जाते हैं। यह कहा जाता है कि धर्म ही सच है। इसके अलावा सब कुछ झूठ है। व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन धर्म के बिना संभव ही नहीं है। धर्म प्रत्येक व्यक्ति का तथा और सभी पुरुषार्थों का मार्ग दर्शन करता है। इस तरह धर्म का हमारे लिए बहुत महत्त्व है।

2. अर्थ का महत्त्व-मनष्य की आर्थिक ज़रूरतों की पर्ति अर्थ दवारा होती है। धर्म से संबंधित सभी कार्य अर्थ की मदद से ही पूर्ण होते हैं। व्यक्ति की प्रत्येक प्रकार की इच्छा अर्थ तथा धन द्वारा ही पूर्ण होती है। व्यक्ति को अपने जीवन में पाँच यज्ञ पूर्ण करने ज़रूरी होते हैं तथा यह अर्थ की मदद से ही हो सकते हैं। व्यक्ति अपने धर्म की पालना भी अर्थ की मदद से ही कर सकता है। पुरुषार्थ व्यवस्था में अर्थ को काफ़ी महत्त्व दिया गया है ताकि वह उचित तरीके से धन इकट्ठा करे तथा अपनी ज़रूरतें पूर्ण करे। व्यक्ति को अपने जीवन में कई ऋणों से मुक्त होना पड़ता है तथा यह अर्थ की मदद से ही हो सकते हैं। इस तरह अर्थ का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है।

3. काम का महत्त्व-अगर समाज तथा संसार की निरंतरता को कायम रखना है तो यह काम की मदद से ही संभव है। व्यक्ति को काम से ही मानसिक तथा शारीरिक सुख प्राप्त होते हैं। इस सुख को प्राप्त करने के बाद ही वह अंतिम उद्देश्य अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करने की तरफ बढ़ता है। काम से ही स्त्री तथा पुरुष का मिलन होता है तथा संतान उत्पन्न होती है।

काम से ही व्यक्ति में बहुत-सी इच्छाएं जागृत होती हैं जिससे मनुष्य समाज में रहते हुए अलग-अलग कार्य करता है तथा समाज का विकास करता है। धर्म तथा अर्थ के लिए काम बहुत ही आवश्यक है। काम की सहायता से व्यक्ति अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ धार्मिक ऋणों से मुक्त होता है तथा काम की मदद से पैदा इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए धन कमाता है। इस तरह काम भी हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

4. मोक्ष का महत्त्व-चार पुरुषार्थों में से अंतिम पुरुषार्थ है मोक्ष। हिंदू शास्त्रों में सभी कार्य मोक्ष को ही ध्यान में रखकर निश्चित किए गए हैं। मोक्ष की इच्छा ही व्यक्ति को बिना किसी चिंता तथा दुःख के अपने कार्य सुचारु रूप के लिए प्रेरित करती है। प्रत्येक व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य होता है मोक्ष प्राप्त करना तथा इसलिए ही वह अपना कार्य सुचारु रूप से करता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रत्येक पुरुषार्थ के आधारों का अपना-अपना महत्त्व है तथा व्यक्ति अंतिम पुरुषार्थ को प्राप्त करने के लिए पहले तीन पुरुषार्थों के अनुसार कार्य करता है।

 भारतीय समाज : एक परिचय HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हम सभी समाज में रहते हैं तथा हमें समाज के बारे में कुछ न कुछ अवश्य ही पता होता है। इस प्रकार समाजशास्त्र भी एक ऐसा विषय है जिसे कोई भी शून्य से शुरू नहीं करता। समाजशास्त्र में हम समाज का अध्ययन करते हैं तथा हमें समाज के बारे में कुछ न कुछ अवश्य ही पता होता है।

→ हमें और विषयों का ज्ञान तो विद्यालय, कॉलेज इत्यादि में जाकर प्राप्त होता है परंतु समाज के बारे में हमारा ज्ञान बिना किसी औपचारिक शिक्षा प्राप्त किए ही बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि हम समाज में रहते हैं, पलते हैं तथा इसमें ही बड़े होते हैं। हमारा इसके बारे में ज्ञान अपने आप ही बढ़ता रहता है।

→ इस पाठ्य-पुस्तक का उद्देश्य भारतीय समाज से विद्यार्थियों का परिचय कराना है परंतु इसका परिचय सहज बोध से नहीं बल्कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से करवाना है। यहां पर उन सामाजिक प्रक्रियाओं की तरफ संकेत किया जाएगा जिन्होंने भारतीय समाज को एक आकार दिया है।

→ अगर हम ध्यान से भारतीय समाज का अध्ययन करें तो हमें पता चलता है कि उपनिवेशिक दौर में एक विशेष भारतीय चेतना उत्पन्न हुई। अंग्रेजों के शासन अथवा उपनिवेशिक शासन ने न केवल संपूर्ण भारत को एकीकृत किया बल्कि पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन तथा आधुनिकीकरण जैसी शक्तिशाली प्रक्रियाओं से भारत को परिचित कराया। उस प्रकार के परिवर्तन भारतीय समाज में लाए गए जो पलटे नहीं जा सकते थे। इससे समाज भी वैसा हो गया जैसा पहले कभी भी नहीं था।

→ औपनिवेशिक शासन में भारत का आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक एकीकरण हुआ परंतु इसकी भारी कीमत चुकाई गई। उपनिवेशिक शासन द्वारा भारत का शोषण किया गया तथा यहां प्रभुत्व स्थापित किया गया। इसके घाव के निशान अभी भी भारतीय समाज में मौजूद हैं। एक सच यह भी है कि उपनिवेशवाद से ही राष्ट्रवाद की उत्पत्ति हुई।

→ ऐतिहासिक दृष्टि से ब्रिटिश उपनिवेशवाद में भारतीय राष्ट्रवाद को एक आकार प्राप्त हुआ। उपनिवेशवाद के गलत प्रभावों ने हमारे समुदाय के अलग-अलग भागों के एकीकृत करने में सहायता की। पश्चिमी शिक्षा के कारण मध्य वर्ग उभर कर सामने आया जिसने उपनिवेशवाद को उसकी अपनी ही मान्यताओं के आधार पर चुनौती दी।

→ यह एक जाना-पहचाना सत्य है कि उपनिवेशवाद तथा पश्चिमी शिक्षा ने परंपराओं को दोबारा खोजने के कार्य (Rediscovery) को प्रोत्साहित किया। इस खोज के कारण ही कई प्रकार की सांस्कृतिक तथा सामयिक गतिविधियों का विकास हुआ। इससे राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तरों पर समुदाय के नए उत्पन्न रूपों को सुदृढ़ता प्राप्त हुई।

→ उपनिवेशवाद के कारण भारत में बहुत-से नए वर्ग तथा समुदाय उत्पन्न हुए जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नगरों में विकसित हुआ मध्य वर्ग राष्ट्रवाद का प्रमुख वाहक था जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के कार्य को नेतृत्व प्रदान किया। उपनिवेशिक हस्तक्षेपों के कारण हमारे धार्मिक तथा जातीय समुदायों को एक निश्चित रूप प्राप्त हुआ। इन्होंने भी बाद के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समकालीन भारतीय समाज का भावी इतिहास जिन जटिल प्रक्रियाओं द्वारा विकसित हुआ तथा इसका अध्ययन ही हमारा उद्देश्य है।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 2 मानचित्र मापनी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी विधि मापनी की सार्वत्रिक विधि है?
(A) साधारण प्रकथन
(B) निरूपक भिन्न
(C) आलेखी विधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) निरूपक भिन्न

2. मानचित्र की दूरी को मापनी में किस रूप में जाना जाता है?
(A) अंश
(B) हर
(C) मापनी का प्रकथन
(D) निरूपक भिन्न
उत्तर:
(B) हर

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

3. मापनी में ‘अंश’ व्यक्त करता है-
(A) धरातल की दूरी
(B) मानचित्र की दूरी
(C) दोनों दूरियां
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) धरातल की दूरी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानचित्र पर प्रदर्शित किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।

प्रश्न 2.
मापक की हमें क्यों जरूरत पड़ती है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र के बराबर आकार का मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। यद्यपि क्षेत्र के अनुपात में कुछ छोटा मानचित्र बनाया जा सकता है। इसके लिए मापक जरूरी है। दूसरे मानचित्र पर दूरियों को मापने और विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति ज्ञात करने के लिए भी हमें मापक की जरूरत पड़ती है।

प्रश्न 3.
मानचित्र पर मापक को कितने तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
तीन विधियों से-

  1. कथनात्मक मापक
  2. प्रदर्शक भिन्न (R.E.) और
  3. रैखिक मापक।

प्रश्न 4.
प्रदर्शक भिन्न (R.F.) क्या होती है?
उत्तर:
यह मापक प्रदर्शित करने वाली भिन्न होती है जिसके बाईं ओर की संख्या अंश तथा दाईं ओर की संख्या हर कहलाती है। अंश (Numerator) का मान (Value) सदा 1 होता है जो मानचित्र की दूरी को दिखाता है और हर (Denominator) धरातल की दूरी को दिखाता है। इन दोनों की इकाई सदा एक-जैसी होती है।

प्रश्न 5.
R.F. को किस मापन-प्रणाली द्वारा व्यक्त किया जाता है?
उत्तर:
प्रदर्शक भिन्न या R.E. की कोई मापन-प्रणाली नहीं होती। यह तो केवल भिन्न (Fraction) के द्वारा व्यक्त होता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
प्रदर्शक भिन्न को मापक व्यक्त करने की अन्य विधियों से बेहतर क्यों माना जाता है?
अथवा
प्रदर्शक भिन्न को अंतर्राष्ट्रीय मापक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
R.F. किसी भी मापन-प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं होता। अतः हर देश में इसका प्रयोग हो सकता है, इसलिए यह एक बेहतर विधि है।

प्रश्न 7.
विकर्ण मापक का क्या लाभ है?
उत्तर:
विकर्ण मापक से मानचित्र की छोटी-से-छोटी दूरी भी सरलता से मापी जा सकती है, क्योंकि इस मापक के द्वारा 1 सें०मी० या 1 इंच का 100वां हिस्सा भी दिखाया जा सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मापक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मापक की परिभाषा एवं अर्थ (Definition and Meaning of Scale)-पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का मानचित्र बनाने से पहले हम तय करते हैं कि मानचित्र की कितनी दूरी से धरातल की कितनी दूरी दिखाई जानी है। इस प्रकार हम मानचित्र की दूरी और धरातल की दूरी के बीच एक संबंध स्थापित करते हैं। यही संबंध मापक को जन्म देता है। मापक वह अनुपात है जिसमें धरातल पर मापी गई दूरियों को छोटा करके मानचित्र में प्रदर्शित किया जाता है। सरल शब्दों में, “मानचित्र पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की सीधी दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक सीधी दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।” (Scale is the ratio between a distance measured on a map and the corresponding distance on the Earth.) इसे निम्नलिखित सूत्र में भी व्यक्त किया जा सकता है-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए एक मानचित्र पर A तथा B कोई दो बिंदु हैं, जिनके बीच की दूरी 1 सें०मी० तथा धरातल पर इन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी 5 किलोमीटर है; तो उस मानचित्र का मापक 1 सें०मी० : 5 कि०मी० होगा।

प्रश्न 2.
मापक की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की आवश्यकता (Necessity of Scale)-
(1) हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी के धरातल के आकार के बराबर मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। अगर बन भी जाए तो वह निरर्थक होगा। प्रदर्शित.किए जाने वाले क्षेत्र की तुलना में मानचित्र का काफी छोटा होना ही उसकी उपयोगिता और सार्थकता को दर्शाता है। मानचित्र आवश्यकतानुसार आकार वाला होना चाहिए। यह कार्य केवल मापक द्वारा ही हो सकता है।

(2) मापक के अभाव में मानचित्र पर विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति (Relative Position) नहीं दिखाई जा सकती। जो मानचित्र मापक के अनुसार न बना हो वह केवल एक कच्चा रेखाचित्र (Rough Sketch) होता है।

प्रश्न 3.
मापक की विभिन्न पद्धतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की पद्धतियाँ (Methods of Measurement)-मापक की दो पद्धतियाँ हैं-
1. मेट्रिक प्रणाली इस प्रणाली के अंतर्गत धरातल पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की क्षैतिज दूरी को मापने के लिए किलोमीटर, मीटर एवं सेंटीमीटर इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। मेट्रिक प्रणाली का उपयोग भारत तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में किया जाता है।

2. अंग्रेज़ी प्रणाली-इस दूसरी पद्धति में मील, फल्ग, गज व फुट आदि इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली का उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका एवं इंग्लैंड दोनों देशों में किया जाता है। रेखीय दूरियों को मापने व प्रदर्शित करने के लिए 1957 से पूर्व इस पद्धति का प्रयोग भारत में भी किया जाता था।
मापक की पद्धतियाँ:
मापक की मेट्रिक प्रणाली

  • 1 कि०मी० = 1,000 मीटर
  • 1 मीटर = 100 सें०मी०
  • 1 सें०मी० = 10 मिलीमीटर

मापक की अंग्रेज़ी प्रणाली

  • 1 मील = 8 फर्लांग
  • 1 फर्लांग = 220 यरर्ड
  • 1 यार्ड = 3 फुट
  • 1 फुट = 12 इंच

प्रश्न 4.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 5 सें०मी० : 1 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) ज्ञात करें।
क्रिया:
पग 1.
धरातल की दूरी को सें०मी० में परिवर्तित कीजिए, क्योंकि मानचित्र पर दूरी सें०मी० में है। 1 कि०मी० = 1,00,000 सें०मी०।।
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F = \(\frac{5}{1,00,000}=\frac{1}{20,000}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.F. = 1:20,000

प्रश्न 5.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 250 मीटर है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.E.) ज्ञात कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है। 250 मीटर = 100 x 250 = 25,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F. = \(\frac { 1 }{ 25,000 }\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:25,000

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 3.5 सें०मी० : 7 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) . ज्ञात करें।
क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए, क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है।
7 कि०मी० = 7 x 1,00,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.E = \(\frac{3.5}{7,00,000}=\frac{1}{2,00,000}\) (अंश सदैव 1 रहता है)
उत्तर:
R.F. = 1:2,00,000

प्रश्न 7.
1 इंच : 8 मील वाले कथनात्मक मापक को प्रदर्शक भिन्न (R.F.) में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को इंचों में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी इंचों में है।
8 मील = 8 x 63,360 = 5,06,880 इंच
(1 मील = 63,360 इंच)
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1a

R.E. = \(\frac{1}{5,06,880}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:5,06,880

प्रश्न 8.
एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न \(\frac{1}{3,00,000}\) दिया गया है। इसे कि०मी० में दिखाने के लिए कथनात्मक मापक बनाइए।
क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{3,00,000}\) ; इसे मीट्रिक प्रणाली में पढ़िए।
1 सें०मी० : 3,00,000 सें०मी०
पग 2. धरातल की दूरी को कि०मी० में बदलिए।
1 सें०मी० = \(\frac{1}{1,000}\) कि०मी०
3,00,000 सें०मी० = \(\frac{3,00,000}{1,00,000}\) = 3 कि०मी०
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 3 कि०मी०।

प्रश्न 9.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:2,53,440 हो तो मील दिखाने के लिए उसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए।
क्रिया : पग 1. R.F. = \(\frac{1}{2,53,440}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 2,53,440 इंच।
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच = \(\frac{1}{63,360}\) माल
2,53,440 इंच = \(\frac{2,53,440}{63,360}\)= 4 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 4 मील।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 10.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:10,00,000 हो तो मील दिखाने के लिए इसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{10,00,000}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 10,00,000 इंच
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच : \(\frac{1}{63,360}\) मील
10,00,000 इंच : \(\frac{10,00,000}{63,360}\) = 15.78 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 15.78 मील।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने वाली विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्र पर मापक प्रदर्शित करने वाली विधियों के गुण-दोषों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने की विधियां (Methods of Expressing Scale on a Map)-मानचित्र पर मापक को निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

  • कथनात्मक मापक (Statement of Scale)
  • प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)
  • रैखिक मापक (Linear Scale)

1. कथनात्मक मापक (Statement of Scale) इस विधि में किसी मानचित्र पर उसके मापक को शब्दों में लिख दिया जाता है; जैसे 1 सेंटीमीटर : 2 किलोमीटर। इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर 1 सेंटीमीटर की दूरी धरातल की 2 किलोमीटर की दूरी को प्रदर्शित कर रही है। कथनात्मक मापक में बाएं हाथ की ओर वाली संख्या सदैव मानचित्र पर दूरी को दिखाती है। इस विधि के अन्य नाम विवरणात्मक मापक तथा शाब्दिक विवेचन विधि भी हैं।

गुण-

  • यह एक सरल विधि है जिसे एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है।
  • मापक प्रदर्शित करने की इस विधि में कम समय लगता है और किसी विशेष कुशलता की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • इस विधि से हमें दूरियों का ठीक-ठीक ज्ञान हो जाता है।

दोष-

  • कथनात्मक मापक को पढ़कर केवल वे लोग मानचित्र पर दूरियों की गणना कर सकते हैं, जो उस माप-प्रणाली से परिचित होंगे।
  • इस विधि द्वारा सीधे मानचित्र पर दूरियां नहीं मापी जा सकतीं।
  • जिन मानचित्रों में मापक शब्दों में व्यक्त किया गया होता है, उनका मूल आकार से भिन्न आकार में मुद्रित करना संभव नहीं होता, क्योंकि इससे उनका मापक अशुद्ध हो जाएगा।

2. प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)-इस विधि में मापक को एक भिन्न द्वारा प्रदर्शित किया जाता है; जैसे \(\frac{1}{10,00,000}\)। इसका अंश (Numerator) सदा एक (1) होता है जो मानचित्र पर दूरी को दर्शाता है। इस भिन्न का हर (Denominator) धरातल पर दूरी को दर्शाता है। मानचित्र का मापक बदलने पर अंश वही रहता है, लेकिन हर बदल जाता है।
अन्य शब्दों में-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 3
इस विधि की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें अंश और हर एक ही इकाई (Unit) में व्यक्त किए जाते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में मानचित्र का मापक 1 : 1,00,000 या 1/1,00,000 है तो इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर दूरी की 1 इकाई धरातल पर 1,00,000 उन्हीं इकाइयों की दूरी को प्रदर्शित करती है। यदि मानचित्र पर यह इकाई 1 सें०मी० है तो धरातल पर यह 1,00,000 सें०मी० दूरी को प्रदर्शित करेगी।

गुण-
(1) इस विधि में किसी मापन-प्रणाली (Measurement System) का प्रयोग नहीं होता, केवल भिन्न का प्रयोग होता है। इसलिए मापक दिखाने की इस विधि का प्रयोग किसी भी देश की मापक प्रणाली के अनुसार किया जा सकता है। मान लो एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न = \(\frac{1}{10,00,000}\) लिखा हुआ है तो इसका अभिप्राय अलग-अलग मापन प्रणालियों में अलग-अलग होगा; जैसे-

देश/प्रणालीमानचित्र पर दूरीधरातल की दूरी
भारत व फ्रांस, जहां मेट्रिक प्रणाली है।1 सें०मी०1,00,000 सें०मी०
ब्रिटेन, जहां ब्रिटिश प्रणाली है।1 इंच1,00,000 इंच
रूस1 वर्स्ट1,00,000 वसर्ट्रूस
चीन1 चांग1,00,000 चांग

फर्क मामूली है, किंतु महत्त्वपूर्ण है

यह अनुपात (Ratio) हैयह भिन्न (Fraction) है
1: 50,000\(\frac { 1 }{ 50,000 }\)

संपरिवर्तनीयता (Convertibility) की इसी विशेषता के कारण ही इस R.F. विधि को अंतर्राष्ट्रीय मापक (International Scale) और प्राकृतिक मापक (Natural Scale) कहा जाता है।

(2) यह एक अत्यंत लोकप्रिय विधि है जिसका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है।

दोष-

  • इस विधि में किसी मापन-प्रणाली का प्रयोग न करके केवल भिन्न का प्रयोग किया जाता है, जिससे सीधे ही दूरियों का अनुमान नहीं लग सकता।
  • फोटोग्राफी द्वारा मानचित्र को छोटा अथवा बड़ा करने पर इसका प्रदर्शक भिन्न बदल जाता है, यद्यपि संख्या वही लिखी रहती है।
    यह विधि एक साधारण व्यक्ति की समझ से बाहर है।

3. रैखिक मापक (Linear Scale)-इस विधि में मानचित्र की दूरी को एक सरल रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसका अनुपात धरातल की दूरी से होता है। सुविधा के अनुसार इस रेखा को प्राथमिक (Primary) तथा गौण (Secondary) भागों में बांटा जाता है।

गुण-
(1) इस विधि से दूरियों को मापना सरल हो जाता है।

(2) इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि यदि मानचित्र को फोटोग्राफी द्वारा बड़ा या छोटा किया जाए तो मानचित्र पर छपा रैखिक मापक भी उसी अनुपात में बड़ा या छोटा हो जाता है। अतः मापक बड़े या छोटे किए गए मानचित्र के लिए शुद्ध रहता है। यह गुण कथनात्मक मापक और प्रदर्शक भिन्न (R.F.) विधियों में नहीं है जिस कारण मूल मानचित्र से भिन्न मापक पर बने मानचित्र में ये दो विधियां उपयुक्त नहीं होती।

दोष-

  • इस विधि का प्रयोग भी तभी हो सकता है जब हम उस मापन-प्रणाली से परिचित हों जिसका प्रयोग मापक बनाने के लिए किया गया है।
  • इस मापक को बनाने में समय भी लगता है और कुशलता की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
रैखिक मापक की रचना को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-रैखिक मापक की रचना करने से पहले हमें एक सरल रेखा को समान भागों में बांटने के तरीके आने चाहिएं क्योंकि इसके बिना शुद्ध रैखिक मापक की रचना नहीं हो सकती। इसके लिए दो विधियां हैं
प्रथम विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई सरल रेखा है जिसे 6 समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 4

  • A सिरे पर न्यूनकोण (Acute angle) बनाती हुई एक रेखा AC खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर AC रेखा में समान अंतर पर.छः बिंदु D, E, F, G H और I अंकित करो।
  • बिंदु IB को सरल रेखा द्वारा मिलाओ।
  • अब D, E, F, G और 4 बिंदुओं से IB रेखा के समानांतर रेखाएं खींचो।

इस प्रकार AB रेखा 6 समान भागों में बंट जाएगी (चित्र 2.1)।
दूसरी विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई रेखा है जिसे पाँच समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 5

  • रेखा के दोनों सिरों A और B पर विपरीत दिशाओं में दो समान न्यूनकोण (लंबकोण भी ले सकते हैं) खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर बिंदु A से पांच बिंदु C, D, E, F और G अंकित करो।
  • इसी प्रकार B बिंदु से भी उतनी ही दूरी पर पांच बिंदु C’, D’, E, F व G’ अंकित करो।
  • अब A को G’ से, C को F से, D को E’ से, E को D’ से, F को C’ से तथा G को B से मिला दीजिए।

इस प्रकार AB रेखा के पांच समान भाग बन जाएंगे।

रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-जब कथनात्मक मापक अथवा प्रदर्शक भिन्न दिया हुआ है तो हम प्लेन मापक बना सकते हैं। रैखिक मापक की रचना करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए
(1) प्रायोगिक-पुस्तिका (Practical File) में बनाई जाने वाली मापनी (Scale) की लंबाई 12 से 20 सें० मी० या 5 से 8 इंच के बीच ठीक मानी जाती है। वैसे मानचित्र के आकार के अनुसार किसी भी लंबाई की छोटी या बड़ी मापनी बनाई जा सकती है।

(2) मापक द्वारा प्रदर्शित धरातलीय दूरी सदा पूर्णांक संख्या में होनी चाहिए। पूर्णांक संख्या वह संख्या होती है जो 2, 5, 10, 15, 20, 50, 100 अथवा किसी भी अन्य संख्या से पूर्णतः विभाजित हो जाए और उसमें शेष (Remainder) न बचे।

(3) मापक को पहले सुविधानुसार मुख्य भागों (Primary Divisions) में बांटा जाता है। याद रहे प्रत्येक मुख्य भाग भी पूर्णांक संख्या को दर्शाता है।

(4) फिर बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को सुविधानुसार गौण भागों (Secondary Divisions) में बांटा जाता है। इनसे मानचित्र पर छोटी दूरियां मापी जाती हैं।

(5) शून्य सदा बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को छोड़कर अंकित किया जाता है।

(6) इस शून्य से दाईं ओर (Right Side) मुख्य भागों द्वारा दिखाई गई इकाई तथा बाईं ओर (Left side) गौण भागों द्वारा दिखाई गई इकाई अंकित की जाती है।

(7) वैसे तो विश्वविख्यात कंपनियों द्वारा बने मानचित्रों व एटलसों में मापक की तीन विधियों में से केवल एक विधि का प्रयोग होता है। विद्यार्थी क्योंकि अभी सीखने की अवस्था में हैं तो उन्हें रैखिक मापक के साथ कथनात्मक मापक या R.F. या दोनों ही लिखने चाहिएं।

प्रश्न 3.
1:2,50,000 प्रदर्शक भिन्न वाले मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जिससे एक किलोमीटर की दूरी भी मापी जा सके।
क्रिया : प्रदर्शक भिन्न 1:2,50,000
पग 1.
12 सें०मी० रेखा को मुख्य तथा गौण भागों में विभक्त कीजिए।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 6

पग 2.
फिर इस प्रकार मापक को पूरा कीजिए।
PLAIN SCALE
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 7
अर्थात् मानचित्र का 1 सें०मी० धरातल के 2,50,000 सें०मी० को प्रदर्शित करता है।
अथवा 1 सें०मी० = 2.5 कि०मी०
(क्योंकि 1,00,000 सें० मी० = 1 कि०मी०)
मान लो हम रैखिक मापक की लंबाई 12 सें० मी० रखना चाहते हैं। इस प्रकार इस लंबाई का मापक 12 x 2.5 = 30 कि०मी० की दूरी को प्रदर्शित करेगा। यह दूरी एक पूर्णांक संख्या है और मापक बनाने के लिए सुविधाजनक भी है। अब एक सरल रेखा 12 सें० मी० लंबी लो और इसे सिखलाई गई विधि से 6 समान भागों में बांटो। इसमें प्रत्येक मुख्य भाग 5 कि०मी०

दूरी को दिखाएगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को 5 गौण भागों में बांटो। प्रत्येक गौण भाग 1 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। इसकी दाईं तथा बाईं ओर कि०मी० लिखकर नीचे R.F.लिखो। इसे अंकित और सुसज्जित करके इसका शीर्षक लिखो (चित्र 2.3)।

विद्यार्थी ध्यान दें कि रैखिक मापक का डिज़ाइन जरूरी नहीं कि वैसा हो जैसा ऊपर बताया गया है। इसी R.F. से बने रैखिक मापक को नीचे दिए गए डिजाइनों से भी बनाया जा सकता है। आपने किस प्रकार का रैखिक मापक बनाना है, इसका निर्देश अपने प्राध्यापक महोदय से लें।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 8

प्रश्न 4.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600 है। इस मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाइए जिसमें दो कि०मी० तक की दूरी पढ़ी जा सके।
क्रिया : इस प्रश्न में दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शन भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600
∴ 1 सें०मी० : 6,33,600 सें०मी०
अथवा 1 सें०मी० : \(\frac { 6,33,600 }{ 1,00,000 }\) = 6.336 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 12 से 20 सें०मी० के बीच होनी चाहिए। यदि हम 12 सें०मी० लंबा मापक लेते हैं तो यह प्रदर्शित करेगा :
6.336 x 12 = 76.032 कि०मी०
परंतु 76.032 एक पूर्णांक संख्या नहीं है। इसकी निकटतम पूर्णांक संख्या 80 है। अब 80 कि०मी० को दर्शाने वाली रेखा की लंबाई ज्ञात करनी होगी।
क्योंकि 6.336 कि०मी० = 1 सें०मी०
1 कि०मी० = \(\frac { 1 }{ 6.336 }\) सेंमी०
80 कि०मी० = \(\frac { 1×80 }{ 6.336 }\) = 12.62 सें०मी०
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 9

प्रश्न 5.
किलोमीटर प्रदर्शित करने के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जबकि मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1:20,00,000 . है।
क्रिया: क्योंकि दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. = 1 : 20,00,000
∴ 1 सें०मी० : 20,00,000 से०मी०
अथवा 1 सेंमी \(\frac { 20,00,000 }{ 1,00,000 }\) = 20 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
यदि हम मापक की लंबाई 15 सेंमी० लेते हैं तो यह 15 x 20 = 300 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। अब एक सरल रेखा 15 सें०मी० लो उसके पांच बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 60 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के प्रथम मुख्य भाग को 6 गौण भागों में बांटो जिसमें प्रत्येक गौण भाग 10 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। इसके नीचे प्रदर्शक भिन्न लिख दो (चित्र 2.5)।
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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 63,360 है। इसके द्वारा एक ऐसा रैखिक मापक बनाओ जिस पर मील और फर्लाग पढ़े जा सकें।
क्रिया: इसमें दूरियां मीलों और फल्गों में पूरी की गई हैं। अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक भी ब्रिटिश प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. 1 : 63,360
∴ 1 इंच : 63,360 इंच
अथवा 1 इंच = \(\frac { 63,360 }{ 63,360 }\) = 1 मा
(क्योंकि 63,360 इंच = 1 मील)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 5 से 8 इंच के बीच होनी चाहिए। मान लीजिए हम मापक की लंबाई 6 इंच लेते हैं।
6 इंच प्रदर्शित करेंगे 1 x 6 = 6 मील को।
अब 6″ लंबी रेखा लो, उसके 6 बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 1 मील को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग के 4 बराबर गौण भाग करो। प्रत्येक गौण भाग 2 फर्लाग को दिखाएगा (क्योंकि 1 मील में 8 फलाँग होते हैं)। इसके नीचे R.F. लिख दो (चित्र 2.6)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 11

मानचित्र मापनी HBSE 11th Class Geography Notes

→ अंश (Numerator)-भिन्न में रेखा के ऊपर स्थित अंक को अंश कहते हैं। उदाहरण के लिए 1:50,000 के भिन्न में 1 अंश है।

→ निरूपक भिन्न-मानचित्र अथवा प्लान की मापनी को प्रदर्शित करने की एक ऐसी विधि, जिसमें मानचित्र या प्लान पर दिखाई गई दूरी तथा धरातल की वास्तविक दूरी के बीच के अनुपात को भिन्न के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है

→ हर (Denominator)-भिन्न में रेखा के नीचे स्थित अंक को हर कहते हैं। उदाहरण के लिए, 1:50,000 के भिन्न में 50,000 हर है।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.2

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Exercise 2.2

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर बहुपद 5x – 4x2 + 3 के मान ज्ञात कीजिए
(i) x = 0 (ii) x = – 1 (iii) x = 2
हल :
(i) यहाँ पर बहुपद = 5x – 4x2 + 3
x = 0 रखने पर
5x – 4x2 + 3 = 5(0) – 4(0)2 + 3
= 0 – 0 + 3 = 3 उत्तर

(ii) यहाँ पर x = – 1 रखने पर
बहुपद = 5x – 4x2 + 3
5x – 4x2 + 3 = 5(-1) – 4(-1)2 + 3
= – 5 – 4(1) + 3
= – 5 – 4 + 3
= – 9 + 3 = – 6 उत्तर

(iii) यहाँ पर
x = 2 रखने पर
बहुपद = 5x – 4x2 + 3
5x – 4x2 + 3 = 5 (2) – 4(2)2 +3
= 10 – 4(4) + 3
= 10 – 16 + 3
= 13 – 16 = – 3 उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.2

प्रश्न 2.
निम्नलिखित बहुपदों में से प्रत्येक बहुपद के लिएp p(0), P (1) और p (2) ज्ञात कीजिए-
(i) p(y) = y2 – y + 1
(ii) p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
(iii) p(x) = x3
(iv) P(x) = (x – 1) (x + 1)
हल :
(i) यहाँ पर
P(y) = y2 – y + 1
y = 0 रखने पर
P (0) = (0)2 – (0) + 1
= 0 – 0 + 1 = 1 उत्तर

y = 1 रखने पर
P(1) = (1)2 – (1) + 1
= 1 – 1 + 1 = 1 उत्तर

y = 2 रखने पर
p(2) = (2)2 – (2) + 1
= 4 – 2 + 1
= 5 – 2 = 3 उत्तर

(ii) यहाँ पर
p(t) = 2 + t + 2t2 – t3
= – t3 + 2t2 + t + 2
t = 0 रखने पर
p(0) = – (0)3 + 2(0)3 + (0) + 2
= – 0 + 0 + 0 + 2 = 2 उत्तर
t = 1 रखने पर
p(1) = -(1)3 + 2 (1)2 + (1) + 2
= – 1 + 2 + 1 + 2
= – 1 + 5 = 4 उत्तर

t = 2 रखने पर
p(2) = – (2)3 + 2(2)2 + (2) + 2
= – 8 + 8 + 2 + 2
= – 8 + 12 = 4 उत्तर

(iii) यहाँ पर p(x) = x3
x = 0 रखने पर
p(0) = (0)3 = 0 उत्तर
x = 1 रखने पर
p(1) = (1)3 = 1 उत्तर
x = 2 रखने पर
p(2) = (2)3 = 2 × 2 × 2 = 8 उत्तर

(iv) यहाँ पर
P(x) = (x – 1) (x + 1)
= (x)2 – (1)2 = x2 – 1
x = 0 रखने पर
p(0) = (0)2 – 1 = – 1 उत्तर
x = 1 रखने पर
p(1) = (1)2 – 1 = 1 – 1 = 0 उत्तर
x = 2 रखने पर
P (2) = (2)2 – 1 = 4 – 1 = 3 उत्तर

प्रश्न 3.
सत्यापित कीजिए कि दिखाए गए मान निम्नलिखित स्थितियों में संगत बहुपद के शून्यक हैं
(i) p(x) = 3x + 1; x = – \(\frac {1}{3}\)
(ii) p(x) = 5x – π, x = \(\frac {4}{5}\)
(iii) p(x) = x2 – 1; x = 1, – 1
(iv) p(x) = (x + 1) (x – 2), x = – 1, 2
(v) p (x) = x2, x = 0
(vi) p(x) = lx + m; x = –\(\frac {m}{l}\)
(vii) p(x) = 3x2 – 1; x = –\(\frac{1}{\sqrt{3}}, \frac{2}{\sqrt{3}}\)
(viii) p(x) = 2x + 1, x = \(\frac {1}{2}\)
हल :
(i) यहाँ पर
P(x) = 3x + 1
x = – \(\frac {1}{3}\) रखने पर
p(- \(\frac {1}{3}\)) = 3(- \(\frac {1}{3}\)) + 1
= – 1 + 1 = 0
अतः –\(\frac {1}{3}\) बहुपद 3x + 1 का शून्यक है। उत्तर

(ii) यहाँ पर
p(x) = 5x – π
x = \(\frac {4}{5}\) रखने पर
p(\(\frac {4}{5}\)) = 5(\(\frac {4}{5}\)) – π
= 4 – π ≠ 0
अतः \(\frac {4}{5}\) बहुपद 5x – π का शून्यक नहीं है। उत्तर

(iii) यहाँ पर
p(x) = x2 – 1
x = 1 रखने पर p(1) = (1)2 – 1 = 1 – 1 = 0
x = – 1 रखने पर p(-1) = (-1)2 -1 = 1 – 1 = 0
अतः 1 व – 1 बहुपद x2 – 1 के शून्यक हैं। उत्तर

(iv) यहाँ पर
p(x) = (x + 1) (x – 2)
= x2 + x – 2x – 2
= x2 – x – 2
x = – 1 रखने पर
P(-1) = (-1)2 – (-1) – 2
= 1 + 1 – 2 = 2 – 2 = 0
x = 2 रखने पर
p(2) = (2)2 – (2) – 2
= 4 – 2 – 2 = 4 – 4 = 0
अतः – 1 व 2 बहुपद (x + 1) (x – 2) के शून्यक हैं। उत्तर

(v) यहाँ पर
P(x) = x2
x = 0 रखने पर
P(0) = (0)2 = 0
अतः 0 बहुपद x2 का शून्यक है। उत्तर

(vi) यहाँ पर
p(x) = lx + m
x = – \(\frac {m}{l}\) रखने पर
p(-\(\frac {m}{l}\)) = l (-\(\frac {m}{l}\)) +m
= – m + m = 0
अतः –\(\frac {m}{l}\) बहुपद lx + m का शून्यक है। उत्तर

(vii) यहाँ पर
p(x) = 3x2 – 1
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.2 - 1

(viii) यहाँ पर
p(x) = 2x + 1
x = \(\frac {1}{2}\) रखने पर
p(\(\frac {1}{2}\)) = 2(\(\frac {1}{2}\)) + 1
= 1 + 1
= 2 ≠ 0
अतः \(\frac {1}{2}\) बहुपद 2x + 1 का शून्यक नहीं है। उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.2

प्रश्न 4.
निम्नलिखित स्थितियों में से प्रत्येक स्थिति में बहुपद का शून्यक ज्ञात कीजिए –
(i) p(x) = x + 5
(ii) P(x) = x – 5
(iii) P(x) = 2x + 5
(iv) p(x) = 3x – 2
(v) p(x) = 3x
(vi) P(x) = ax; a ≠ 0
(vii) P(x) = cx + d; c ≠ 0, c, d वास्तविक संख्याएँ हैं।
हल :
बहुपद का शून्यक ज्ञात करने के लिए आवश्यक है-
P(x) = 0
(i) x + 5 = 0
या x = 0 – 5 = – 5
अतः बहुपद x + 5 का शून्यक = – 5 उत्तर

(ii) x – 5 = 0
या x = 0 + 5 = 5
अतः बहुपद x – 5 का शून्यक = 5 उत्तर

(iii) 2x + 5 = 0
⇒ 2x = 0 – 5 = – 5
या x = – \(\frac {5}{2}\)
अतः बहुपद 2x + 5 का शून्यक = – \(\frac {5}{2}\) उत्तर

(iv) 3x – 2 = 0
⇒ 3x = 0 + 2 = 2
या x = \(\frac {2}{3}\)
अतः बहुपद 3x – 2 का शून्यक = \(\frac {2}{3}\) उत्तर

(v) 3x = 0
या x = \(\frac {0}{3}\) = 0
अतः बहुपद 3x का शून्यक = 0 उत्तर

(vi) ax = 0
या x = \(\frac {0}{a}\) = 0
अतः बहुपद ax का शून्यक = 0 उत्तर

(vii) cx + d = 0
या cx = 0 – d = – d
या x = –\(\frac {d}{c}\)
अतः बहुपद cx + d का शून्यक = – \(\frac {d}{c}\) उत्तर

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