Author name: Bhagya

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

Haryana State Board HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

HBSE 11th Class Physical Education आसन Textbook Questions and Answers

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions) |

प्रश्न 1.
अच्छे आसन की विभिन्न स्थितियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संतुलित मुद्रा के बारे में आप क्या जानते हैं? विस्तार से लिखें।
उत्तर:
आसन का मानवीय-जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आसन से अभिप्राय शरीर की स्थिति से है अर्थात् मनुष्य किस प्रकार अपने शरीर की संभाल या देखरेख करता है। आसन की अवहेलना करना मानो कई प्रकार के शारीरिक दोषों या विकारों को निमंत्रित करना है। इसलिए बचपन से ही बच्चों के आसन की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को शारीरिक विकारों से बचाया जा सके। एक अच्छा आसन ही मनुष्य की एक अच्छी शारीरिक संरचना या बनावट और विभिन्न स्थितियों में संतुलित रख सकता है। इसलिए शारीरिक संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे खड़े होना, बैठना, चलना, लेटना, पढ़ना आदि को करते हुए उचित होना चाहिए।

संतुलित आसन की अवस्थाएँ या स्थितियाँ (Positions of Correct Posture): उचित या अच्छे आसन की विभिन्न स्थितियाँ या अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं
1. खड़े रहने/होने का उचित आसन (Good Posture of Standing):
करूगर के अनुसार, “खड़े रहने का अच्छा आसन तभी कहा जा सकता है यदि खड़े रहते समय कम-से-कम शक्ति खर्च की जाए।” खड़े रहने या होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न आसनों का प्रयोग करते हैं। खड़े होने की उचित स्थिति हेतु व्यक्ति को अपने दोनों पैरों की एड़ियों को आपस में मिला लेना चाहिए। पैरों के अंगूठे आपस में 3 या 4 इंच की दूरी पर होने चाहिएँ। शरीर तना हुआ और शरीर का भार दोनों पैरों पर एक-समान या बराबर होना चाहिए। इस स्थिति में व्यक्ति का संपूर्ण शरीर पूर्ण रूप से संतुलित होना चाहिए।

2. बैठने का उचित आसन (Good Posture of Sitting):
बहुत-से ऐसे कार्य हैं जिनको करने के लिए हमें अधिक देर तक बैठना पड़ता है। अधिक देर बैठने से धड़ की माँसपेशियाँ थक जाती हैं और धड़ में कई दोष आ जाते हैं । बैठते समय रीढ़ की हड्डी सीधी, छाती आमतौर पर खुली, कंधे समतल, पेट स्वाभाविक तौर पर अंदर की ओर, सिर और धड़ सीधी स्थिति में होने चाहिएँ। बैठने वाला स्थान हमेशा खुला, समतल तथा साफ-सुथरा होना चाहिए।

देखा जाता है कि कई व्यक्ति सही ढंग से बैठकर नहीं पढ़ते। पढ़ते समय मुद्रा ऐसी होनी चाहिए जिससे आँखों व शरीर पर कम-से-कम दबाव पड़े। लिखने के लिए मेज या डैस्क का झुकाव आगे की ओर होना चाहिए। हमें कभी भी सिर झुकाकर न तो पढ़ना चाहिए और न ही लिखना चाहिए। इससे हमारी रीढ़ की हड्डी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गलत ढंग से बैठने से शरीर में कई विकार पैदा हो सकते हैं । बैठने के लिए व्यक्ति विभिन्न शारीरिक मुद्रा या आसन का प्रयोग करता है।

3. पढ़ने का उचित आसन (Good Posture of Reading):
व्यक्ति को इस प्रकार के आसन में बैठकर पढ़ना चाहिए, जिससे उसके शरीर तथा आँखों पर कम-से-कम दबाव पड़े। पढ़ते समय किताब से आँखों की दूरी उचित होनी चाहिए। जहाँ तक हो सके, छोटे बच्चों की किताबें बड़े अक्षरों वाली होनी चाहिएँ, ताकि उनकी आँखों पर कम-से-कम दबाव पड़े तथा आँखें कमजोर न हो सकें। पढ़ते समय किताब इस प्रकार पकड़नी चाहिए जिससे उस पर रोशनी ठीक पड़ सके। आँखों के बिल्कुल समीप तथा बहुत दूर रखी हुई किताब कभी नहीं पढ़नी चाहिए।

4. चलने का उचित आसन (Good Posture of Walking):
चलने का आसन व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। चलते समय पैर समानांतर रखने चाहिएँ। सिर को सीधा रखना चाहिए तथा कंधे पीछे की तरफ होने चाहिएँ। छाती तनी हुई तथा बाजुएँ बिना किसी तनाव के झूलनी चाहिएँ। चलते समय पैर आपस में टकराने नहीं चाहिएँ तथा शरीर की माँसपेशियाँ साधारण स्थिति में होनी चाहिएँ। चलते समय ठीक आसन ही अपनाया जाना चाहिए ताकि शरीर में कम-से-कम थकावट हो सके। गलत आसन में चलने से शारीरिक ढाँचा ठीक नहीं रहता, क्योंकि इससे न सिर्फ टाँगें तथा माँसपेशियाँ थकती हैं, अपितु टाँगों तथा पैरों में दर्द भी होता रहता है।

5. लेटने या सोने का उचित आसन (Good Posture of Lying):
लेटते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि श्वसन क्रिया में किसी भी प्रकार की कोई बाधा न आए। लेटते समय रीढ़ की हड्डी पर अधिक दबाव नहीं पड़ना चाहिए। पीठ के बल अधिक समय तक नहीं लेटना चाहिए और न ही टाँगों को मोड़कर लेटना चाहिए, क्योंकि इससे साँस लेने में बाधा आती है। हमें नाक से ही साँस लेनी चाहिए। अत: माता-पिता को बच्चों के लेटने के आसन की ओर विशेष रूप से ध्यान देकर उन्हें उचित आसन हेतु प्रेरित करना चाहिए।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

प्रश्न 2.
उचित आसन से आपका क्या अभिप्राय है? उचित आसन से होने वाले लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा
उचित या संतुलित मुद्रा क्या है? इससे होने वाले लाभ बताएँ।
उत्तर:
उचित या अच्छे आसन का अर्थ (Meaning of Correct or Good Posture):
आसन या मुद्रा शरीर की स्थिति को कहते हैं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लेटना आदि। अच्छे आसन से अभिप्राय व्यक्ति के शरीर का ठीक या उचित संतुलन में होना है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लिखना, पढ़ना, लेटना आदि को करते समय उचित या अच्छा होना चाहिए। वास्तव में एक खड़े हुए व्यक्ति का उचित आसन उस अवस्था में होगा, जब उसके शरीर का भार उसके दोनों पैरों पर एक-समान होगा। एवेरी (Avery) के अनुसार, “एक अच्छा आसन वह है जिसमें शरीर संतुलित हो, जिससे कम-से-कम थकावट उत्पन्न हो।” अत: शरीर के विभिन्न अंगों की ठीक स्थिति को ही उचित आसन कहते हैं।

उचित या अच्छे आसन के लाभ (Advantages of Correct or Good Posture):
शरीर की किसी एक स्थिति को मुद्रा नहीं कहा जाता बल्कि हम अपने शरीर को कई अलग-अलग ढंगों से स्थिर करते रहते हैं। शरीर को स्थिर रखने की स्थितियों को मुद्रा या आसन कहा जाता है। शरीर की प्रत्येक प्रकार की स्थिति मुद्रा ही कहलाएगी। परंतु गलत और ठीक मुद्रा में बहुत अंतर होता है। ठीक मुद्रा देखने में सुंदर लगती है।

इससे शरीर की माँसपेशियों पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता। ठीक मुद्रा वाला व्यक्ति काम करने तथा चलने-फिरने में चुस्त और फुर्तीला होता है। गलत मुद्रा व्यक्ति के शरीर के लिए अनावश्यक बोझ बन जाती है। इसलिए हमेशा शरीर की स्थिति प्रत्येक प्रकार का आसन प्राप्त करते समय ठीक रखनी चाहिए। संक्षेप में, उचित या संतुलित मुद्रा के निम्नलिखित लाभ हैं

  1. शरीर को उचित मुद्रा में रखने से शरीर को हिलाना-डुलाना आसान हो जाता है और शरीर के दूसरे भागों पर भी भार नहीं पड़ता।
  2. उचित मुद्रा मन को प्रसन्नता एवं खुशी प्रदान करती है।
  3. उचित मुद्रा वाले व्यक्ति की कार्य करने में कम शक्ति लगती है अर्थात् उसे कोई कार्य करने में कठिनाई नहीं होती।
  4. उचित मुद्रा हड्डियों और माँसपेशियों को संतुलित रखती है।
  5. उचित मुद्रा वाले व्यक्ति को बीमारियाँ कम लगती हैं।
  6. उचित आसन से व्यक्ति की शारीरिक आकृति आकर्षक एवं सुंदर दिखाई देती है अर्थात् उसका शारीरिक ढाँचा बहुत आकर्षित दिखता है।
  7. इससे स्वास्थ्य के सभी पहलुओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  8. इससे शारीरिक योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि होती है।
  9. इससे व्यक्ति की भूख में वृद्धि होती है जिससे उसके शारीरिक व मानसिक विकास में वृद्धि होती है।
  10.  यह अनेक प्रकार की शारीरिक गतिविधियों में लगने वाली क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।
  11. इससे व्यक्ति में आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है। वह अपने विचारों या भावों को विश्वास के साथ व्यक्त करता है।
  12. इससे रीढ़ की हड्डियों में लचकता आती है।
  13. इससे शरीर में स्फूर्ति एवं उमंग बढ़ती है।
  14. इससे शरीर के सभी अंगों का उचित विकास होता है, क्योंकि इससे शारीरिक विकार दूर होते हैं।
  15. इससे मन की तत्परता का पता चलता है अर्थात् यह मानसिक या बौद्धिक विकास में सहायक होता है।
  16. अच्छे आसन से व्यक्तित्व आकर्षण लगता है। यह व्यक्ति के सम्मान और नौकरी प्राप्त करने में भी सहायक होता है।
  17. अच्छी मुद्रा या आसन से माँसपेशी, श्वसन, पाचन एवं नाड़ी आदि संस्थानों की क्षमता में सुधार होता है और आपसी तालमेल भी बढ़ता है। इससे शरीर के सभी संस्थान सुचारु रूप से कार्य करते हैं।
  18. अच्छे आसन से विभिन्न प्रकार के कौशलों की संपूर्णता में सुधार होता है।
  19. अच्छे आसन से शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं में सुधार होता है और मन की तत्परता व शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है।
  20. अच्छे आसन से समाजीकरण की योग्यता का पता चलता है। यह व्यक्ति के समाज में उच्च-स्तर का द्योतक है।

प्रश्न 3.
मुद्रा की किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
उत्तर:
मुद्रा या आसन की किस्में निम्नलिखित हैं
1. स्थैतिक मुद्रा (Static Posture):
जिस मुद्रा में शरीर की स्थिति स्थिर रहती है, उसे स्थैतिक मुद्रा कहते हैं; जैसे खड़े होने की मुद्रा, बैठने की मुद्रा तथा लेटने की मुद्रा।

(i) खड़े होने की मुद्रा (Posture of Standing):
गलत ढंग से खड़े होने अथवा चलने से भी शरीर में थकावट आ जाती है। खड़े होने के दौरान शरीर का भार दोनों पैरों पर बराबर होना चाहिए। खड़े होने के दौरान पेट सीधा, छाती फैली हुई और धड़ सीधा होना चाहिए।

(ii) बैठने की मुद्रा (Posture of Sitting):
बैठते समय रीढ़ की हड्डी सीधी, छाती आमतौर पर खुली, कंधे समतल, पेट स्वाभाविक तौर पर अंदर की ओर, सिर और धड़ सीधी स्थिति में होने चाहिए। बैठने वाला स्थान हमेशा खुला और समतल होना चाहिए। देखा जाता है कि कई व्यक्ति सही ढंग से बैठकर नहीं पढ़ते । पढ़ते समय हमें ऐसी मुद्रा में बैठना चाहिए जिससे आँखों व शरीर पर कम-से-कम दबाव पड़े। हमें कभी भी सिर झुकाकर न तो पढ़ना चाहिए और न ही लिखना चाहिए। इससे हमारी रीढ़ की हड्डी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(iii) लेटने की मुद्रा (Posture of Lying):
लेटते समय हमारा शरीर विश्राम अवस्था में और शांत होना चाहिए। सोते समय शरीर प्राकृतिक तौर पर टिका होना चाहिए। हमें सोते समय कभी भी गलत तरीके से नहीं लेटना चाहिए। इससे हमारे रक्त के संचार पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास क्रिया भी रुक जाने का खतरा पैदा हो सकता है। गर्दन अथवा अन्य किसी भाग की नाड़ी आदि चढ़ जाने का खतरा रहता है।

2. गतिज मुद्रा (Kinetic Posture):
जिस मुद्रा में शरीर की स्थिति गतिशील अवस्था में होती है, उसे गतिज मुद्रा कहते हैं; जैसे चलने की मुद्रा । हमारी चाल हमेशा सही होनी चाहिए। चलते समय पंजे और एड़ियों पर ठीक भार पड़ना चाहिए। अच्छी चाल वाला व्यक्ति प्रत्येक मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करता है। चलते समय पैरों का अंतर समान रहना चाहिए। हाथ आगे-पीछे आने-जाने चाहिएँ। चलते समय पैरों की रेखाएँ चलने की दिशा की रेखा के समान होनी चाहिएँ।।

3. उचित मुद्रा (Correct Posture):
आसन या मुद्रा शरीर की स्थिति को कहते हैं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लेटना आदि। अच्छे आसन से अभिप्राय व्यक्ति के शरीर का ठीक एवं उचित संतुलन में होना है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लिखना, पढ़ना, लेटना आदि को करते हुए उचित या अच्छा होना चाहिए। वास्तव में एक खड़े हुए व्यक्ति का उचित आसन उस अवस्था में होगा, जब उसके शरीर का भार उसके दोनों पैरों पर एक-समान होगा।

4. अनुचित मुद्रा (Incorrect Posture):
भद्दी मुद्रा या अनुचित आसन मनुष्य के व्यक्तित्व में बाधा डालता है, जिसके कारण मनुष्य में आत्म-विश्वास की कमी आ जाती है। शरीर की स्थिति ठीक अवस्था में न होना अनुचित आसन कहलाता है अर्थात् चलते, बैठते, लिखते, पढ़ते व खड़े होते समय शरीर का उचित अवस्था या स्थिति में न रहना अनुचित आसन कहलाता है।

प्रश्न 4.
आसन संबंधी विकृतियों से आप क्या समझते हैं? आसन संबंधी विकृतियों के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
आसन संबंधी कुरूपताओं से आपका क्या तात्पर्य है? इनके कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आसन संबंधी कुरूपताओं का अर्थ (Meaning of Postural Deformities):
आसन संबंधी कुरूपताओं या विकृतियों से अभिप्राय शरीर की स्थिति का ठीक या संतुलन अवस्था में न होना है। ऐसी स्थिति से शरीर को अनेक विकृतियों का सामना करना पड़ता है। यदि इनको समय रहते ठीक न किया जाए तो इनका हमारे शारीरिक विकास एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

आसन संबंधी कुरूपताओं या विकृतियों के कारण (Causes of Postural Deformities): आसन संबंधी कुरूपताओं के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1.पैदा होते समय कुरूपता (Inborn Deformity):
कुछ आसन पैदा होने के समय कुरूपता वाले होते हैं । इसका मुख्य कारण संतुलित भोजन न होना अथवा पैदा होने से पहले अधिक ध्यान न देना है। इस प्रकार की कुरूपताएँ स्थायी होती हैं।

2. कमजोर हड्डियाँ तथा माँसपेशियाँ (Weak Bones and Muscles):
आसन में कुरूपता का मुख्य कारण कमजोर हड्डियाँ और माँसपेशियाँ हैं। विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण मनुष्य की हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। जिसके कारण वे मुड़ जाती हैं। मनुष्य के शरीर में माँसपेशियाँ लीवर का कार्य करती हैं, जिससे हमारा शारीरिक विकास होता है। इनमें दोष पड़ने से रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा होना, पीछे की तरफ कूब, आगे की तरफ कूब जैसी कुरूपताएँ पैदा हो जाती हैं।

3. बुरी आदतें (Bad Habits):
बैठते, उठते, लेटते समय, खड़े होते समय तथा कार्य करते समय गलत आसन शरीर में कुरूपताएँ पैदा करते हैं। उदाहरणस्वरूप पढ़ते समय हम एक तरफ झुककर अथवा कुर्सी पर बैठकर, मेज पर झुककर पढ़ते हैं, फिर यह आदत बन जाती है, जिससे आसन में कुरूपता आ जाती है।

4. अधिक दबाव (High Pressure):
अधिक दबाव के कारण भी शरीर में कुरूपताएँ आ जाती हैं। विशेषतौर पर बाल्यावस्था में माँसपेशियों तथा हड्डियों में अधिक दबाव हानिकारक होता है।

5. शरीर का अधिक भारी होना या मोटापा (Heavy Body or Obesity):
अधिक भारी शरीर हड्डियों, माँसपेशियों तथा लिगामेंट्स पर अधिक भार डालता है जिसके कारण आगे की ओर कूब (Lordosis), बाहर की तरफ मुड़ी हुई टाँगें (Bow Legs) तथा चपटे पैर (Flat Feet) जैसी कुरूपताएँ आ जाती हैं। अधिक भार से घुटने के जोड़ों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

6. व्यायाम की कमी (Lack of Exercise):
आसन संबंधी कुरूपताएँ आने का सबसे बड़ा कारण व्यायाम की कमी है, क्योंकि व्यायाम हमारी माँसपेशियों में शक्ति तथा नीरोगता लाते हैं। जो व्यक्ति रोजाना व्यायाम नहीं करते, उनकी माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, जिसके कारण उनमें कई बार स्थायी तौर पर कुरूपताएँ आ जाती हैं। बच्चे के लिए ठीक व्यायाम उसके आसन को सुंदरता प्रदान करते हैं, जिससे उसके व्यक्तित्व में वृद्धि होती है।

7. असुविधाजनक वस्त्र (Uncomfortable Clothes):
कई बार असुविधाजनक वस्त्र शरीर को गलत आसन हेतु मजबूर कर देते हैं, विशेषतौर पर तंग वस्त्र । तंग वस्त्र शरीर की हरकतों, माँसपेशियों तथा जोड़ों की गतिशीलता में बाधा पैदा करते हैं।

8. बीमारी अथवा दुर्घटना (Disease or Accident):
बीमारी अथवा दुर्घटना के कारण भी आसन में कुरूपताएँ आ जाती हैं। दुर्घटना के कारण आसन में आई कुरूपता डॉक्टर की सलाह से दूर की जा सकती है, परंतु कई बार दुर्घटना से आसन में स्थायी तौर पर कुरूपता आ जाती है। बीमारी के कारण बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने से भी माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, जिसके कारण कुरूपता आ जाती है।

9. मनोवैज्ञानिक तनाव (Psychological Tension):
मनोवैज्ञानिक तनाव या चिंता से भावनात्मक स्थिति में असंतुलन पैदा होता है जिससे हमारे आसन में कुरूपता आ जाती है।

10. असंतुलित आहार (Unbalanced Diet):
असंतुलित या पोषक तत्त्वहीन आहार से शरीर का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। इसके कारण भी आसन की अवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 5.
रीढ़ की हड्डी का पीछे की तरफ कूब या कूबड़ होने के कारणों तथा इसको ठीक करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पीछे के कूब (कूबड़) जैसी कुरूपता का मुख्य कारण रीढ़ की हड्डी का पीछे की तरफ झुक जाना है। इसमें गर्दन अगली तरफ झुक जाती है तथा पीठ वाला हिस्सा पिछली तरफ झुक जाता है। रीढ़ की हड्डी एक कमान जैसा रूप धारण कर लेती है। रीढ़ की हड्डी में कुरूपता पीठ की माँसपेशियों के सिकुड़ने से होती है।

कारण (Causes): रीढ़ की हड्डी का पीछे की तरफ कूब (काइफोसिस) होने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. आगे की ओर झुककर पढ़ने तथा काम करने से।
  2. व्यायाम की कमी के कारण।
  3. लंबा कद होने के कारण।
  4. बीमारी अथवा दुर्घटना होने के कारण।
  5. बैठने के लिए अनुचित फर्नीचर का प्रयोग करने के कारण।
  6. शारीरिक कमजोरी व विकार के कारण।
  7. लंबे समय तक अनुचित मुद्रा में बैठने के कारण आदि।

ठीक करने के उपाय (Remedial Measures):
रीढ़ की हड्डी में पीछे की तरफ कूब होने की विकृति को निम्नलिखित उपायों द्वारा ठीक किया जा सकता है

  1. पीछे की तरफ कूब को ठीक करने के लिए नियमित व्यायाम करने चाहिएँ।व्यायाम करने से इस स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगता है।
  2. पीठ की माँसपेशियों को शक्तिशाली बनाने वाले व्यायाम करने चाहिएँ।
  3. लंबे-लंबे साँस लेने वाले व्यायाम करने चाहिएँ।
  4. छाती को आगे की तरफ सीधा करके चलना-फिरना चाहिए।
  5. लटकने वाले व्यायाम करने चाहिएँ।
  6. कुर्सी पर बैठते समय आसन को आगे की तरफ खींचकर बैठना चाहिए।
  7. इसको ठीक करने के लिए योग-आसन काफी लाभदायक हैं; जैसे भुजंगासन, शलभासन, सर्वांगासन तथा चक्रासन आदि।
  8. सोते समय अपनी पीठ के नीचे तकिया अवश्य रखें। ऐसा करके भी इस स्थिति में सुधार किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब या कूबड़ होने के कारणों तथा इसको ठीक करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आगे की तरफ कूब का भी मुख्य कारण अच्छा आसन धारण न करना है। इसमें रीढ़ की हड्डी ऊपर से नहीं, बल्कि नीचे पेट के पास आगे की ओर झुकी होती है। छाती आगे की तरफ तथा गर्दन पिछली तरफ झुक जाती है। यह कुरूपता काफी दुखदायी है, क्योंकि इससे चलने-फिरने, उठने-बैठने में काफी मुश्किलें आती हैं। इससे छाती तथा गर्दन की माँसपेशियों में अकड़ाव आ जाता है और कूल्हे की माँसपेशियाँ छोटी और पेट की माँसपेशियाँ लंबी हो जाती हैं।

कारण (Causes): रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब या लॉर्डोसिस होने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. व्यायाम की कमी के कारण।
  2. छाती तथा गर्दन की कमजोर माँसपेशियों के कारण।
  3. संतुलित भोजन की कमी के कारण।
  4. गलत आसन धारण करने के कारण।

ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पीठ के बल लेटने वाले व्यायाम करना।
  2. खड़े होकर धड़ को अगली तरफ झुकाना।
  3. गर्दन तथा कंधों को आगे की ओर झुकाकर लंबे-लंबे साँस लेना।
  4. पैरों को जोड़कर हाथों से पैरों को छूना
  5. इसको ठीक करने के लिए योग-आसन काफी लाभदायक है; जैसे हलासन तथा पद्मासन।

प्रश्न 7.
रीढ़ की हड्डी के एक ओर झुकने के क्या कारण हैं? इसको दूर करने के उपाय बताएँ।
अथवा
स्कोलिओसिस (Scoliosis) क्या है? इसको ठीक करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रीढ़ की हड्डी का एक ओर झुकना (Scoliosis or Spinal Deviation): रीढ़ की हड्डी का शरीर के दाईं या बाईं ओर झुकना या मुड़ना स्कोलिओसिस (Scoliosis) कहलाता है। स्कोलिओसिस का अर्थ है-झुकना, मुड़ना, ऐंठना या घुमना। वास्तव में इसमें बराबर की ओर एक गोलाई वक्र होता है जो स्कोलिओटिक वक्र (Scoliotic Curve) कहलाता है। जब यह वक्र रीढ़ की हड्डियों के बाईं ओर हो तो यह सामान्यतया ‘C’ वक्र कहलाता है। कई बार यह वक्र दोनों ओर भी हो सकता है, तब यह ‘S’ वक्र कहलाता है, क्योंकि उस समय आकृति ‘S’ के आकार जैसी हो जाती है। ठीक से न बैठने, चलने व खड़े होने से यह विकृति हो जाती है। परन्तु रीढ़ की हड्डी के मुड़ने का मुख्य कारण रिकेट्स व पोलियो जैसी बीमारियाँ हैं।

कारण (Causes): रीढ़ की हड्डी के एक ओर झुकने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. हड्डियों के जोड़ों से संबंधित बीमारी होने के कारण।
  2. भोजन में आवश्यक तत्त्वों की कमी होने के कारण।
  3. उचित आसन धारण न करने के कारण।
  4. टाँगों के विकसित न होने के कारण।
  5. रिकेट्स व पोलियो रोग हो जाने के कारण।
  6. माँसपेशियों के कमजोर होने के कारण।

ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): स्कोलिओसिस को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. उचित आसन धारण करना।
  2. पढ़ाई करते समय झुकने वाली अवस्था से बचना।
  3. हॉरिजौंटल बार को दोनों हाथों से पकड़कर शरीर को दाईं और बाईं ओर झुकाना।
  4. तैरने की ब्रेस्ट स्ट्रोक तकनीक का प्रयोग करके तैरना।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
(क) गोल या झुके हुए कंधे (Round Shoulders)
(ख) घुटनों का आपस में टकराना या भिड़ना (Knock Knees)।
उत्तर:
(क) गोल या झुके हुए कंधे के कारण (Causes of Round Shoulders): आसन संबंधी गोल या झुके हुए कंधे की विकृति के कारण अग्रलिखित हैं

  1. आनुवांशिकता संबंधी दोष।
  2. उचित आसन धारण न करना अर्थात् झुकी हुई अवस्था में बैठना, खड़े होना आदि।
  3. व्यायाम न करना।
  4. अनुचित फर्नीचर का प्रयोग करने के कारण।

ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): गोल या झुके हुए कंधे की विकृति को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. कुछ समय तक हॉरिजौटल बार पर लटकना।
  2.  नियमित रूप से व्यायाम व आसन करना, विशेषकर धनुरासन व चक्रासन।
  3. अपनी कोहनियों को वृत्ताकार रूप से बारी-बारी से विपरीत दिशा में घुमाना।

(ख) घुटनों का आपस में टकराना या भिड़ना (Knock Knees):
इस कुरूपता में दोनों घुटने आपस में मिल जाते हैं। जब बच्चा खड़ा होता है तो पाँव समानांतर रहते हैं। टखनों के मध्य का स्थान अधिक हो जाता है। बच्चा चलने तथा दौड़ने में कठिनाई महसूस करता है। वह अपनी सामान्य प्रसन्नता खो देता है। अगर कोई व्यक्ति दोनों पाँवों को सटाकर सीधा खड़ा होता है तब एक सामान्य आसन के दौरान घुटनों में थोड़ा अंतर होना चाहिए। अगर अंतर ज्यादा है और घुटने आपस में स्पर्श करते हैं तो इस कुरूपता को घुटनों का आपस में भिड़ना कहते हैं।

कारण (Causes): छोटे बच्चों के भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण उनकी हड्डियाँ कमजोर होकर टेढ़ी हो जाती हैं । इस कारण उनके घुटने टकराने लग जाते हैं । इस स्थिति में उन बच्चों से सावधान की मुद्रा में खड़ा नहीं हुआ जाता। उनके पाँव जुड़ने से पहले ही उसके घुटने टकराने लगते हैं। ऐसे बच्चों के लिए अच्छी तरह से भागना तथा चलना मुश्किल हो जाता है।

ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): घुटनों के आपस में टकराने को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) इस कुरूपता को दूर करने के लिए टाँगों की ऐसी कसरतें करवानी चाहिएँ, जिनसे घुटनों को बाहर निकाला जा सके।
(2) इस कुरूपता को ठीक करने के लिए साइकिल चलानी चाहिए।
(3) इस कुरूपता के लिए तैराकी और घुड़सवारी लाभदायक है।
(4) नियमित रूप से पद्मासन व गोमुखासन करना चाहिए।
(5) कैल्शियम व फॉस्फोरस तथा विटामिन ‘डी’ युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए।

प्रश्न 9.
आसन संबंधी चपटे पैर की विकृति के कारणों तथा इसको ठीक करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चपटे पैरों की विकृति प्रायः बच्चों तथा वृद्धों में पाई जाती है। इसका मुख्य कारण बच्चे द्वारा गलत आसन धारण करना है। इससे पैरों की हड्डियों की बनावट में अंतर आता है तथा पैर का निचला हिस्सा नीचे की ओर झुक जाता है।

  • कारण (Causes): चपटे पैरों की विकृति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
    1. पैरों की कमजोर माँसपेशियाँ।
    2. अधिक वजन उठाना।
    3. लंबे समय तक जूतों का प्रयोग किए बिना खड़े रहना।
    4. मोटापा।
    5. पुरानी बीमारी।
  • लक्षण (Symptoms): चपटे पैरों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
    1. पैरों में कमजोरी होना।
    2. घुटने व पीठ की माँसपेशियों में दर्द होना।
    3. चलने में कठिनाई आना।
    4. पैरों में अधिक पसीने का आना।
    5. पैरों का सुन्न रहना।
    6. पैरों में भौरियों का निकलना।
  • ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): चपटे पैरों को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं
    1. पैरों में फिट आने वाले जूते पहनने चाहिएँ।
    2. चलते समय पैरों के बाहरी तरफ अधिक वजन डालना चाहिए।
    3. एक अवस्था में लंबे समय तक खड़ा नहीं रहना चाहिए।
    4. पंजों के बल दौड़ना व साइकिल चलानी चाहिए।
    5. पैरों को इकट्ठा करके पंजों के बल बैठना चाहिए।
    6. पंजों पर वजन उठाकर व्यायाम करना चाहिए।
    7. इस विकृति को ठीक करने में घुड़दौड़ काफी लाभदायक है।

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प्रश्न 10.
आसन संबंधी कुरूपताओं या विकृतियों में सुधार हेतु लाभदायक व्यायामों या शारीरिक क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्लेटो (Plato) के अनुसार, “गतिविधि या व्यायाम का अभाव प्रत्येक इंसान की अच्छी स्थिति को नष्ट कर देता है, जबकि व्यवस्थित शारीरिक व्यायाम इसे बचाए और बनाए रखते हैं।” बहुत-सी ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ या व्यायाम होते हैं जिनको आसन संबंधी विकृतियों या विकारों को सामान्य करने के लिए सुधारात्मक उपायों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है; जैसे

1. पीछे की ओर कूब या काइफोसिस (Kyphosis): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(i) पीठ के बल लेटकर घुटनों को ऊपर की ओर उठाएँ और पैरों के तलवे जमीन को स्पर्श न करें। इसके बाद हॉरिजौटल अवस्था में दोनों हाथों को बराबर खोलकर सिर के ऊपर ले जाएँ। हथेलियाँ ऊपर की ओर होनी चाहिए। इस अवस्था में कुछ देर तक रहें। इसके बाद अपने हाथों को हॉरिजौंटल अवस्था में लाएँ। इस प्रकार से यह क्रिया 7-8 बार दोहरानी चाहिए।

(ii) छाती के बल लेटकर हाथों को अपने कूल्हों पर रखें। इसके बाद अपने सिर एवं धड़ को जमीन से कुछ इंच ऊपर उठाएँ। इस अवस्था में कुछ समय तक रुककर अपनी पहले वाली अवस्था में आएँ। इस प्रकार से यह क्रिया कई बार दोहरानी चाहिए।

2. आगे की ओर कूब या लॉर्डोसिस (Lordosis): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(i) छाती के बल लेटकर अपने दोनों हाथ उदर पर रखें। इसके बाद कूल्हों एवं कंधों को नीचे रखें। फिर पीठ के निचले भाग को उठाने का प्रयास करें। इस प्रकार से यह क्रिया 5-6 बार दोहराएँ।
(ii) फर्श पर अधोमुख अवस्था में लेटकर अपने कंधों की चौड़ाई के अनुसार अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ फर्श पर रखें। श्रोणी (Pelvis) को फर्श पर रखते हुए धड़ को ऊपर की ओर ले जाएँ। इस अवस्था में कुछ देर तक रहने के बाद पहले वाली अवस्था में आ जाएँ। इस प्रकार से यह प्रक्रिया कई बार दोहराएँ।

3. रीढ़ की हड्डी का एक ओर झुकाव या स्कोलिओसिस (Scoliosis): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(i) छाती के बल लेटकर अपनी दाईं बाजू को ऊपर और बाईं बाजू को बराबर में रखें। इसके बाद दाईं बाज को सिर के ऊपर से बाईं ओर ले जाकर बाएँ हाथ से दबाएँ और कूल्हे को थोड़ा ऊपर की ओर सरकाएँ। इस प्रकार यह प्रक्रिया इस विकार में सुधार करने में सहायक होती है।

(ii) पैरों के बीच कुछ इंच की दूरी रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। इसके बाद एड़ी एवं कूल्हे को ऊपर उठाकर अपनी दाईं बाजू को चाप के रूप में सिर के ऊपर से बाईं ओर ले जाएँ। फिर बाएँ हाथ से बाईं ओर की पसलियों या रिब्स को दबाएँ।

4. चपटे पैर (Flat Foot): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं

  1. पैरों को इकट्ठा करके पंजों के बल बैठना।
  2. सीधे खड़े होकर एड़ियों को ऊपर व नीचे करना।
  3. नियमित रूप से रस्सी कूदना।
  4. नियमित रूप से पंजों पर वजन उठाकर व्यायाम करना।

5. घुटनों का आपस में टकराना (Knock-Knee): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं

  1. घुड़सवारी करना और साइकिल चलाना।
  2. नियमित रूप से पद्मासन व गोमुखासन करना।

6. गोल कंधे (Round Shoulders): इस विकृति में सुधार हेतु लाभदायक व्यायाम या क्रियाएँ निम्नलिखित हैं

  1. नियमित रूप से हॉरिजौटल बार पर कुछ समय के लिए लटकना।
  2. नियमित रूप से चक्रासन एवं धनुरासन करना।।
  3. अपनी कोहनियों को कुछ समय तक घड़ी की सूई की दिशा में और कुछ समय घड़ी की सूई की विपरीत दिशा में वृत्ताकार रूप से घूमना।

प्रश्न 11.
भद्दी मुद्रा से क्या अभिप्राय है? इसके कारणों तथा इसको दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अनुचित आसन क्या है? इसको ठीक करने के उपायों का वर्णन कीजिए। अथवा आसन की खराबी को कैसे दूर करेंगे?
उत्तर:
अनुचित आसन का अर्थ (Meaning of Incorrect Posture): भद्दी मुद्रा या अनुचित आसन मनुष्य के व्यक्तित्व में बाधा डालता है, जिसके कारण मनुष्य में आत्म-विश्वास की कमी आ जाती है। शरीर की स्थिति ठीक अवस्था में न होना अनुचित आसन कहलाता है अर्थात् चलते, बैठते, लिखते, पढ़ते व खड़े होते समय शरीर का उचित अवस्था या स्थिति में न रहना अनुचित आसन कहलाता है।

अनुचित या भद्दी मुद्रा या आसन के कारण (Causes of Incorrect or Bad Posture): इस आसन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1. संतुलित व पौष्टिक आहार (Balanced and Nutritious Food):
शरीर की बनावट के लिए संतुलित व पौष्टिक आहार का होना बहुत जरूरी है। इसकी कमी के कारण शारीरिक अंगों का विकास रुक जाता है। इसके परिणामस्वरूप शारीरिक ढाँचा कमजोर पड़ जाता है जिसके कारण आसन में कुरूपता आ जाती है।

2. व्यायामों की कमी (Lack of Exercises):
व्यायामों की कमी के कारण शरीर की माँसपेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं, जिससे आसन बेढंगा हो जाता है। व्यायाम अच्छे आसन के लिए लाभदायक होते हैं।

3. शरीर का अधिक भार (Over Weight of Body):
शरीर का अधिक भारी होना भी भद्दी मुद्रा का कारण है। मोटापे के कारण व्यक्ति को चलने-फिरने में कठिनाई महसूस होती है। इसका उसके आसन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

4. बुरी आदतें (Bad Habits):
गलत ढंग से पढ़ने, लिखने, बैठने, खड़े होने तथा चलने वाली बुरी आदतें मनुष्य के आसन में कुरूपता लाती हैं।

5. असुविधाजनक वस्त्र (Uncomfortable Clothes):
तंग वस्त्र, जूते, पैंट-कमीज आदि डालने से शरीर में तनाव बना रहता है, जिससे मनुष्य आराम महसूस नहीं करता। इससे वह बुरा आसन ग्रहण करता है।

भद्दी मुद्रा को ठीक करने के उपाय (Remedial Measures for Bad Posture): भद्दी या अनुचित आसन को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. बच्चों को ठीक मुद्रा के बारे में जानकारी देनी चाहिए। स्कूल में अध्यापकों और घर में माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों की खराब मुद्रा को ठीक करने के लिए निरंतर प्रयास करें।
  2. भोजन की कमी के कारण आई कमजोरी को ठीक करना चाहिए।
  3. बच्चों को न तो तंग कपड़े डालने चाहिएँ और न ही तंग जूते।
  4. हमें गलत ढंग से न तो चलना चाहिए और न ही पढ़ना व बैठना चाहिए।
  5. उचित और पूरी नींद लेनी चाहिए।
  6. बच्चों के स्कूल बैग का भार हल्का होना चाहिए।
  7. आवश्यकतानुसार डॉक्टरी परीक्षण करवाते रहना चाहिए ताकि मुद्रा-त्रुटि को समय पर ठीक किया जा सके।
  8. हमारे घरों, स्कूलों और कॉलेजों में ठीक मुद्रा की जानकारी देने वाले चित्र लगे होने चाहिएँ।
  9. घरों और स्कूलों में बड़ा शीशा लगा होना चाहिए, जिसके आगे खड़े होकर बच्चा अपनी मुद्रा देख सके।
  10. सोते समय शरीर को अधिक नहीं मोड़ना चाहिए।
  11. संतुलित एवं पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए।
  12. बुरी आदतों से बचना चाहिए।
  13. नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आसन की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आसन का मानवीय-जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आसन से अभिप्राय शरीर की स्थिति से है अर्थात् मनुष्य किस प्रकार अपने शरीर की संभाल या देखरेख करता है। आसन की अवहेलना करना मानो कई प्रकार के शारीरिक दोषों या विकारों को निमंत्रित करना है। इसलिए बचपन से ही बच्चों के आसन की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को शारीरिक विकारों से बचाया जा सके। एक अच्छा आसन ही मनुष्य को एक अच्छी शारीरिक संरचना या बनावट और विभिन्न स्थितियों में संतुलित रख सकता है। इसलिए शारीरिक संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे खड़े होना, बैठना, चलना, लेटना, पढ़ना आदि को करते समय उचित होना चाहिए।

प्रश्न 2.
अच्छे आसन (मुद्रा) की महत्ता पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अच्छे आसन के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शरीर की किसी एक स्थिति को मुद्रा नहीं कहा जाता बल्कि हम अपने शरीर को कई अलग-अलग ढंगों से स्थिर करते रहते हैं । शरीर को स्थिर रखने की स्थितियों को मुद्रा या आसन कहा जाता है। शरीर को बिना तकलीफ के उठाना, बैठाना, घुमाना आदि मुद्रा में ही आते हैं। शरीर की प्रत्येक प्रकार की स्थिति मुद्रा ही कहलाएगी। परंतु गलत और ठीक मुद्रा में बहुत अंतर होता है।

ठीक मुद्रा देखने में सुंदर व आकर्षक लगती है। इससे शरीर की माँसपेशियों पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता। ठीक मुद्रा वाला व्यक्ति काम करने, चलने-फिरने में चुस्त और फुर्तीला होता है। भद्दी मुद्रा व्यक्ति के शरीर के लिए अनावश्यक बोझ बन जाती है। इसलिए हमेशा शरीर की स्थिति प्रत्येक प्रकार का आसन (Posture) प्राप्त करते समय ठीक रखनी चाहिए।शरीर को अच्छी स्थिति में रखने से शरीर को हिलाना-डुलाना आसान हो जाता है और शरीर के दूसरे भागों पर भी भार नहीं पड़ता।

अच्छी मुद्रा मन को प्रसन्नता एवं खुशी प्रदान करती है। अच्छी मुद्रा वाले व्यक्ति की कार्य करने में शक्ति कम लगती है अर्थात् उसे कोई भी कार्य करने में कठिनाई नहीं होती। अच्छी मुद्रा हड्डियों और माँसपेशियों को संतुलित रखती है। अच्छी मुद्रा वाले व्यक्ति को बीमारियाँ कम लगती हैं । उचित आसन से व्यक्ति की शारीरिक आकृति आकर्षक एवं सुंदर दिखाई देती है अर्थात् उसका शारीरिक ढाँचा बहुत आकर्षित दिखता है। इससे स्वास्थ्य के सभी पहलुओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
आसन संबंधी विकृतियों या कुरूपताओं के कोई चार कारण बताएँ।
उत्तर:
आसन संबंधी विकृतियों या कुरूपताओं के कोई चार कारण निम्नलिखित हैं
1. बैठते, उठते, लेटते समय, खड़े होते समय तथा कार्य करते समय गलत आसन शरीर में कुरूपताएँ पैदा करते हैं। उदाहरणस्वरूप पढ़ते समय हम एक तरफ झुककर अथवा कुर्सी पर बैठकर, मेज पर झुककर पढ़ते हैं, फिर यह आदत बन जाती है, जिससे आसन में विकृति आ जाती है।

2. अधिक दबाव के कारण भी शरीर में विकृति आ जाती है। विशेषतौर पर बाल्यावस्था में माँसपेशियों तथा हड्डियों में अधिक दबाव हानिकारक होता है।

3. अधिक भारी शरीर हड्डियों, माँसपेशियों तथा लिगामेंट्स पर अधिक भार डालता है जिसके कारण आगे की ओर कूब (Lordosis), बाहर की तरफ मुड़ी हुई टाँगें (Bow Legs) तथा चपटे पैर (Flat Feet) जैसी कुरूपताएँ आ जाती हैं। अधिक भार से घुटनों के जोड़ों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

4. आसन में कुरूपताएँ आने का सबसे बड़ा कारण व्यायाम की कमी है, क्योंकि व्यायाम हमारी माँसपेशियों में शक्ति तथा नीरोगता लाते हैं। जो व्यक्ति रोजाना व्यायाम नहीं करते, उनकी माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, जिसके कारण उनमें कई बार स्थायी तौर पर कुरूपताएँ आ जाती हैं। व्यायाम बच्चे के आसन को सुंदरता प्रदान करते हैं, जिससे उसके व्यक्तित्व में
वृद्धि होती है।

प्रश्न 4.
घुटनों के आपस में टकराने की विकृति को ठीक करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
घुटनों के आपस में टकराने की विकृति को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. इस विकृति को दूर करने के लिए टाँगों की ऐसी कसरतें करवानी चाहिएँ, जिनसे घुटनों को बाहर निकाला जा सके।
  2. इस विकृति को दूर करने के लिए साइकिल चलाई जानी चाहिए।
  3. इस विकृति को दूर करने में तैराकी और घुड़सवारी लाभदायक होती है।
  4. नियमित रूप से पद्मासन व गोमुखासन करना चाहिए।
  5. कैल्शियम व फॉस्फोरस तथा विटामिन ‘डी’ युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

प्रश्न 5.
झुकी हुई या धनुषाकार टाँगों के क्या कारण हैं? इसके ठीक करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
झुकी हुई टाँगें एक आसन संबंधी कुरूपता है। अनुमानतः यह घुटनों के मुड़ने के बिल्कुल विपरीत है। जब व्यक्ति दोनों पाँव मिलाकर खड़ा हो और घुटनों में कोई स्पर्श न हो तो इसको झुकी हुई टाँगों की कुरूपता कहते हैं।

  • कारण (Causes): झुकी हुई टाँगों के कारण निम्नलिखित होते हैं
    1. भोजन में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की कमी के परिणामस्वरूप हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं।
    2. हड्डियों पर अत्यधिक बोझ डालने वाले कार्य करने से।
    3. रिकेट्स रोग।
    4. लंबे समय तक खड़ा रहना।
    5. चलने तथा दौड़ने का अनुचित तरीका आदि।
  • ठीक करने के उपाय (Remedial Measures): झुकी हुई टाँगों को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं
    1. कैल्शियम तथा फॉस्फोरस-युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए।
    2. सूर्य का प्रकाश तथा मछली के तेल को विटामिन ‘डी’ की पूर्ति हेतु लेना चाहिए।
    3. पाँवों की आंतरिक साइड पर दबाव डालकर चलने से झुकी हुई टाँगों की कुरूपता से बचा जा सकता है।
    4. वसा-युक्त भोजन को अत्यधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए।

प्रश्न 6.
रीढ़ की हड्डी के एक ओर झुके होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
रीढ़ की हड्डी के एक ओर झुके होने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. हड्डियों के जोड़ों से संबंधित बीमारी होना।
  2. भोजन में आवश्यक तत्त्वों की कमी होना।
  3. अनुचित आसन धारण करना।
  4. रिकेट्स व पोलियो रोग होना।
  5. माँसपेशियों का कमजोर होना।

प्रश्न 7.
हमें उचित आसन की आवश्यकता क्यों होती है?
अथवा
अच्छे आसन की आवश्यकता पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर:
हमें उचित या अच्छे आसन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है

  1. शरीर को विकृतियों से बचाने हेतु।
  2. हड्डियों एवं माँसपेशियों की कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु।
  3. शरीर में रक्त प्रवाह की गति सुचारू रूप से चलाने हेतु।
  4. व्यक्तित्व को आकर्षक व प्रभावशाली बनाने हेतु।
  5. शरीर में स्फूर्ति एवं उत्साह बनाए रखने हेतु।
  6. आत्म-विश्वास की भावना का विकास करने हेतु आदि।

प्रश्न 8.
चपटे पैरों के दोषों को किस प्रकार ठीक किया जा सकता है?
अथवा
चपटे पैरों की विकृति को ठीक करने के मुख्य उपाय बताएँ।
उत्तर:
चपटे पैरों की विकृति को ठीक करने के मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पैरों में फिट आने वाले जूते पहनने चाहिएँ।
  2. चलते समय पैरों की बाहरी तरफ अधिक बल डालना चाहिए।
  3. एक अवस्था में लंबे समय तक खड़ा नहीं रहना चाहिए।
  4. पंजों के बल दौड़ना व साइकिल चलानी चाहिए।
  5. भारी तथा असुविधाजनक जूते नहीं पहनने चाहिएँ।
  6. पैरों को इकट्ठा करके पंजों के बल बैठना चाहिए।
  7. पंजों पर वजन उठाकर व्यायाम करना चाहिए।
  8. इस विकृति को ठीक करने में घुड़दौड़ काफी लाभदायक है।

प्रश्न 9.
अनुचित आसन की प्रमुख हानियाँ संक्षेप में बताएँ।
उत्तर:
अनुचित आसन की हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. हड्डियों तथा माँसपेशियों में तालमेल नहीं हो पाता।
  2. थकान जल्दी हो जाती है।
  3. उठने, बैठने तथा चलने-फिरने में कठिनाई होती है।
  4. शारीरिक अंगों की शक्ति कम हो जाती है।
  5. जोड़ों में सहनशक्ति की कमी आ जाती है।

प्रश्न 10.
हम अपना आसन कैसे ठीक रख सकते हैं?
अथवा
आसनं ठीक रखने के महत्त्वपूर्ण उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आसन ठीक रखने के महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं

  1. बच्चों को ठीक आसन के बारे में जानकारी देनी चाहिए। स्कूल में अध्यापकों और घर में माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों के खराब आसन को ठीक करने के लिए योग्य प्रयास करें।
  2. भोजन की कमी के कारण आई कमजोरी को ठीक करना चाहिए।
  3. बच्चों को न तो तंग कपड़े पहनाने चाहिएँ और न ही तंग जूते।
  4. हमें गलत ढंग से न तो चलना चाहिए और न ही पढ़ना व बैठना चाहिए।
  5. पौष्टिक व संतुलित भोजन खाना चाहिए।
  6. बच्चों के स्कूल बैग का भार हल्का होना चाहिए।
  7. आवश्यकतानुसार डॉक्टरी परीक्षण करवाते रहना चाहिए ताकि आसन-त्रुटि को समय पर ठीक किया जा सके।
  8. घरों, स्कूलों और कॉलेजों में ठीक मुद्रा की जानकारी देने वाले चित्र लगे होने चाहिएँ।

प्रश्न 11.
बैठने का उचित आसन कैसा होना चाहिए?
अथवा
बैठने की मुद्रा (Posture) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बहुत-से ऐसे कार्य हैं जिनको करने के लिए हमें अधिक देर तक बैठना पड़ता है। अधिक देर बैठने से धड़ की माँसपेशियाँ थक जाती हैं और धड़ में कई दोष आ जाते हैं । बैठते समय रीढ़ की हड्डी सीधी, छाती आमतौर पर खुली, कंधे समतल, पेट स्वाभाविक तौर पर अंदर की ओर, सिर और धड़ सीधी स्थिति में होने चाहिएँ। बैठने वाला स्थान हमेशा खुला, समतल तथा साफ-सुथरा होना चाहिए। देखा जाता है कि कई व्यक्ति सही ढंग से बैठकर नहीं पढ़ते।

पढ़ते समय मुद्रा ऐसी होनी चाहिए जिससे आँखों व शरीर पर कम-से-कम दबाव पड़े। लिखने के लिए मेज या डैस्क का झुकाव आगे की ओर होना चाहिए। हमें कभी भी सिर झुकाकर न तो पढ़ना चाहिए और न ही लिखना चाहिए। इससे हमारी रीढ़ की हड्डी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गलत ढंग से बैठने से शरीर में कई विकार पैदा हो सकते हैं। इसलिए हमें उचित आसन में ही बैठना चाहिए।

प्रश्न 12.
चलते समय शरीर का आसन किस तरह होना चाहिए?
अथवा
चलने के उचित आसन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
चलने का आसन व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण होता है । चलते समय पैर समानांतर रखने चाहिएँ। सिर को सीधा रखना चाहिए तथा कंधे पीछे की तरफ होने चाहिएँ। छाती तनी हुई तथा बाजुएँ बिना किसी तनाव के झूलनी चाहिएँ । चलते समय पैर आपस में टकराने नहीं चाहिएँ तथा शरीर की माँसपेशियाँ साधारण स्थिति में होनी चाहिएँ । चलते समय ठीक आसन ही अपनाया जाना चाहिए ताकि शरीर में कम-से-कम थकावट हो सके । गलत आसन में चलने से शारीरिक ढाँचा ठीक नहीं रहता, क्योंकि इससे न सिर्फ टाँगें तथा माँसपेशियाँ थकती हैं, अपितु टाँगों तथा पैरों में दर्द भी होता रहता है। इसलिए हमें चलते समय अपने आसन को उचित रखना चाहिए।

प्रश्न 13.
रीढ़ की हड्डी का पीछे की तरफ कूब (Kyphosis) के प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर:
रीढ़ की हड्डी का पीछे की तरफ कूब होने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. आगे की ओर झुककर पढ़ने तथा काम करने से।
  2. व्यायाम की कमी के कारण।
  3. लंबा कद होने के कारण।
  4. बीमारी अथवा दुर्घटना होने के कारण।
  5. बैठने के लिए अनुचित फर्नीचर का प्रयोग करने के कारण।
  6. शारीरिक कमजोरी व विकार के कारण।
  7. लंबे समय तक अनुचित मुद्रा में बैठने के कारण आदि।

प्रश्न 14.
रीढ़ की हड्डी का आगे की ओर कूब (Lordosis) होने के कारण बताएँ।
उत्तर:
रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब होने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. छाती को आगे की तरफ निकालकर चलने की आदत।
  2. व्यायाम की कमी के कारण।
  3. छाती तथा गर्दन की कमजोर माँसपेशियों के कारण।
  4. संतुलित भोजन की कमी के कारण।
  5. गलत आसन धारण करने के कारण।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

प्रश्न 15.
रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब को ठीक करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
रीढ़ की हड्डी का आगे की तरफ कूब को ठीक करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पीठ के बल लेटने वाले व्यायाम करना।
  2. खड़े होकर धड़ को अगली तरफ झुकाना।
  3. गर्दन तथा कंधों को आगे की ओर झुकाकर लंबे-लंबे साँस लेना।
  4. पैरों को जोड़कर हाथों से पैरों को छूना।
  5. हलासन तथा पद्मासन इस कुरूपता के लिए लाभदायक हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very ShortAnswer Type Questions)

प्रश्न 1.
उचित आसन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आसन या मुद्रा शरीर की स्थिति को कहते हैं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लेटना आदि। अच्छे आसन से अभिप्राय व्यक्ति के शरीर का ठीक एवं उचित संतुलन में होना है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लिखना, पढ़ना, लेटना आदि को करते हुए उचित या अच्छा होना चाहिए। वास्तव में एक खड़े हुए व्यक्ति का उचित आसन उस अवस्था में होगा, जब उसके शरीर का भार उसके दोनों पैरों पर एक-समान होगा।

प्रश्न 2.
उचित आसन के कोई दो फायदे बताएँ।
उत्तर:

  1. उचित आसन से व्यक्ति की शारीरिक आकृति आकर्षक एवं सुंदर दिखाई देती है अर्थात् उसका शारीरिक ढाँचा आकर्षित दिखता है,
  2. इससे शरीर के सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हैं।

प्रश्न 3.
लेटते समय कौन-कौन-सी मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. लेटते समय शरीर विश्राम की स्थिति में होना चाहिए,
  2. लेटते समय कठोर गद्दे का प्रयोग करना चाहिए,
  3. कभी भी लेटकर नहीं पढ़ना चाहिए।

प्रश्न 4.
आगे की ओर कूब को ठीक करने की शारीरिक क्रियाएँ बताएँ।
उत्तर:
1. छाती के बल लेटकर अपने दोनों हाथ उदर पर रखें। इसके बाद कूल्हों एवं कंधों को नीचे रखें। फिर पीठ के निचले भाग को उठाने का प्रयास करें। इस प्रकार से यह क्रिया 5-6 बार दोहराएँ।

2. फर्श पर अधोमुख अवस्था में लेटकर अपने कंधों की चौड़ाई के अनुसार अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ फर्श पर रखें। श्रोणी (Pelvis) को फर्श पर रखते हुए धड़ को ऊपर की ओर ले जाएँ। इस अवस्था में कुछ देर तक रहने के बाद पहले वाली अवस्था में आ जाएँ। इस प्रकार से यह प्रक्रिया कई बार दोहराएँ।

प्रश्न 5.
चपटे पैरों की विकृति के कोई तीन लक्षण बताएँ।
उत्तर:

  1. पैरों की कमजोर माँसपेशियाँ,
  2. अधिक वजन उठाना,
  3. लंबे समय तक जूतों का प्रयोग किए बिना खड़े रहना।

प्रश्न 6.
घुटनों के आपस में टकराने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
छोटे बच्चों के भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण उनकी हड्डियाँ कमजोर होकर टेढ़ी हो जाती हैं। इस कारण उनके घुटने टकराने लग जाते हैं। इस स्थिति में उन बच्चों से सावधान की मुद्रा में खड़ा नहीं हुआ जाता। उनके पाँव टकराने लगते हैं। ऐसे बच्चों के लिए अच्छी तरह भागना तथा चलना मुश्किल होता है।

प्रश्न 7.
रीढ़ की हड्डी संबंधी विकृतियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. पीछे की तरफ कूब होना या काइफोसिस,
  2. आगे की तरफ कूब होना या लॉर्डोसिस,
  3. स्कोलिओसिस।

प्रश्न 8.
अनुचित आसन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शरीर की स्थिति ठीक अवस्था में न होना अनुचित आसन कहलाता है; जैसे चलते, बैठते, पढ़ते, लिखते व खड़े होते समय शरीर का उचित अवस्था या स्थिति में न रहना अनुचित आसन कहलाता है।

प्रश्न 9.
चपटे पैरों की विकृति को सुधारने हेतु लाभदायक व्यायाम बताएँ।
उत्तर:

  1. नियमित रूप से रस्सी कूदना,
  2. सीधा खड़े होकर एड़ियों को ऊपर-नीचे करना,
  3. पंजों पर कूदना।

प्रश्न 10.
घुटनों के टकराने की विकृति को सुधारने हेतु लाभदायक व्यायाम बताएँ।।
उत्तर:

  1. नियमित रूप से आसन करना, मुख्य रूप से पद्मासन व गोमुखासन अधिक लाभदायक हैं,
  2. घुड़सवारी करना,
  3. कुछ समय के लिए बिल्कुल सीधा खड़े होना।

प्रश्न 11.
अनुचित आसन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  1. पौष्टिक व संतुलित आहार का अभाव,
  2. आसन संबंधी बुरी आदतें।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 आसन

प्रश्न 12.
पढ़ते समय कैसा आसन रखना चाहिए?
उत्तर:
पढ़ते समय व्यक्ति का आसन इस प्रकार का होना चाहिए, जिससे उसके शरीर तथा आँखों पर कम-से-कम दबाव पड़े। पढ़ते समय किताब से आँखों की दूरी उचित होनी चाहिए। किताब इस प्रकार पकड़नी चाहिए जिससे उस पर रोशनी ठीक पड़ सके।आँखों के बिल्कुल समीप तथा बहुत दूर रखी हुई किताब कभी नहीं पढ़नी चाहिए।

प्रश्न 13.
बैठते समय कौन-कौन-सी कमियाँ शरीर के ढाँचे को खराब करती हैं?
उत्तर:

  1. ढीले शरीर से बैठना,
  2. कुर्सी पर बैठते समय बच्चे के पैर फर्श पर न लगना,
  3. कुर्सी बहुत नीचे होना,
  4. एक ओर साइड लेकर बैठना,
  5. बैठते समय टाँगों की सही चौंकड़ी न मारना।

प्रश्न 14.
क्या ठीक चाल शरीर को आकर्षक बनाती है?
उत्तर:
हाँ, ठीक चाल शरीर को आकर्षक बनाती है। चलना एक कला है। चलते समय पंजे और एड़ी पर बराबर भार पड़ना चाहिए। अच्छी चाल शरीर को प्रभावशाली और आकर्षक बनाती है।

प्रश्न 15.
झुकी हुई टाँगों की विकृति के कोई तीन कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. भोजन में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की कमी के परिणामस्वरूप हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं,
  2. रिकेट्स रोग,
  3. चलने तथा दौड़ने का अनुचित तरीका।

प्रश्न 16.
हमें किस प्रकार खड़े होना चाहिए? खड़े होने का उचित आसन क्या है?
उत्तर:
ठीक ढंग से खड़े होने की आदत डालने के लिए हमेशा दोनों पैरों पर बराबर भार डालकर खड़े होना चाहिए। खड़े होते समय पेट सीधा, छाती फैली हुई और धड़ सीधी होनी चाहिए।

प्रश्न 17.
गोल कंधों को ठीक करने के कोई दो सुधारात्मक व्यायाम बताएँ।
उत्तर:

  1. नियमित रूप से हॉरिजौटल बार पर कुछ देर तक लटके रहना,
  2. चक्रासन एवं धनुरासन करना।

प्रश्न 18.
आसन संबंधी सामान्य विकृतियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. चपटे पैर (Flat Foot),
  2. घुटनों का आपस में टकराना (Knock Knee),
  3. टाँगों का बाहरी ओर मुड़ा होना (Bow Legs),
  4. लॉर्डोसिस (Lordosis),
  5. काइफोसिस (Kyphosis),
  6. स्कोलिओसिस (Scoliosis)।

प्रश्न 19.
शरीर के आसन खराब होने के सामान्य कारण कौन-कौन-से हो सकते हैं?
उत्तर:

  1. संतुलित भोजन की कमी,
  2. व्यायाम न करना,
  3. पढ़ते समय बैठने के लिए सही कुर्सी एवं मेज का न होना,
  4. छोटे बच्चों द्वारा भारी बस्ता उठाना।

प्रश्न 20.
गोल कंधे होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. आनुवांशिकता संबंधी दोष,
  2. उचित आसन धारण न करना अर्थात् झुकी हुई अवस्था में बैठना, खड़े होना आदि,
  3. व्यायाम न करना,
  4. अनुचित फर्नीचर का प्रयोग करना।

HBSE 11th Class Physical Education आसन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

भाग-I : एक वाक्य में उत्तर देंप्रश्न

1. आसन क्या है?
उत्तर:
शरीर द्वारा कोई टिकाऊ स्थिति ग्रहण करने को आसन कहते हैं।

प्रश्न 2.
उचित आसन देखने में कैसा लगता है?
उत्तर;
उचित आसन देखने में आकर्षक और प्रभावशाली लगता है।

प्रश्न 3.
उचित आसन व्यक्ति को कैसे रखता है?
उत्तर:
उचित आसन व्यक्ति को चुस्त, तेज और बीमारियों से बचाकर रखता है।

प्रश्न 4.
“एक संतुलित आसन वह है जिसमें शरीर संतुलित हो, जिससे कम-से-कम थकावट उत्पन्न हो।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
एवेरी का।

प्रश्न 5.
पीछे की तरफ कूब वाली कुरूपता में रीढ़ की हड्डी किस प्रकार का रूप धारण कर लेती है?
उत्तर:
पीछे की तरफ कूब वाली कुरूपता में रीढ़ की हड्डी कमान के आकार का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 6.
आगे की ओर कूब वाली कुरूपता शरीर के किस अंग से संबंधित है?
उत्तर:
आगे की ओर कूब वाली कुरूपता रीढ़ की हड्डी से संबंधित है।

प्रश्न 7.
वह कौन-सी कुरूपता है जिसमें छाती अगली तरफ तथा गर्दन पिछली तरफ झुक जाती है?
उत्तर:
आगे की ओर कूब का निकलना या लॉर्डोसिस।

प्रश्न 8.
छाती को अगली तरफ सीधा करके चलना-फिरना किस कुरूपता के लिए लाभदायक है?
उत्तर;
छाती को अगली तरफ सीधा करके चलना-फिरना पीछे की तरफ निकले कूब के लिए लाभदायक है।

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प्रश्न 9.
चपटे पैरों की विकृति या कुरूपता का कोई एक लक्षण बताएँ।
उत्तर:
पैरों में भौरियाँ निकलना।

प्रश्न 10.
पैरों की माँसपेशियाँ कमजोर होने के कारण पैरों के जोड़ कैसे हो जाते हैं?
उत्तर:
पैरों की माँसपेशियाँ कमजोर होने के कारण पैरों के जोड़ सीधे हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
आसन संबंधी कुरूपताओं का कोई एक कारण बताएँ। अथवा भद्दी मुद्रा का कोई एक कारण लिखें।
उत्तर:
हड्डियाँ व माँसपेशियाँ कमजोर होना।

प्रश्न 12.
बच्चे के बैठने के लिए कुर्सी किस प्रकार की होनी चाहिए?
उत्तर:
बच्चे के बैठने के लिए कुर्सी बच्चे के कद के अनुसार होनी चाहिए।

प्रश्न 13.
बैठते समय किस प्रकार नहीं बैठना चाहिए?
उत्तर:
बैठते समय शरीर ढीला छोड़कर दाईं और बाईं ओर भार डालकर नहीं बैठना चाहिए।

प्रश्न 14.
हमें कुर्सी पर किस प्रकार बैठना चाहिए?
उत्तर:
हमें कुर्सी पर आगे की ओर झुककर नहीं, बल्कि रीढ़ की हड्डी सीधी करके बैठना चाहिए।

प्रश्न 15.
लेटकर पढ़ना हानिकारक क्यों है?
उत्तर:
लेटकर पढ़ने से आँखों की रोशनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 16.
शारीरिक आसन को ठीक रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
शारीरिक आसन को ठीक रखने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए।

प्रश्न 17.
अच्छे आसन का कोई एक सामान्य नियम बताएँ।
उत्तर:
शरीर के विभिन्न अंगों के प्रभावशाली कार्य अर्थात् क्रियाओं का प्रभावशाली होना।

प्रश्न 18.
किसकी कमी के कारण बच्चों की हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती हैं?
उत्तर:
संतुलित व पौष्टिक भोजन की कमी के कारण बच्चों की हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती हैं।

प्रश्न 19.
धनुषाकार टाँगों के विपरीत कौन-सी आसन संबंधी विकृति होती है?
उत्तर:
घुटनों का आपस में टकराना (Knock Knee)।

प्रश्न 20.
अच्छे आसन वाला व्यक्ति अपने काम कैसे कर सकता है?
उत्तर:
अच्छे आसन वाला व्यक्ति अपने काम चुस्ती और फूर्ति के साथ कर सकता है।

प्रश्न 21.
ठीक आसन का ज्ञान देने के लिए स्कूलों में कौन-सी चीज का प्रबंध करना चाहिए?
उत्तर:
ठीक आसन का ज्ञान देने के लिए स्कूलों में ठीक आसन के चित्र लगाने चाहिएँ।

प्रश्न 22.
आगे की ओर कूब में सुधार हेतु कोई दो लाभदायक आसन बताएँ।
उत्तर:
हलासन, पद्मासन।

प्रश्न 23.
विटामिन ‘डी’ की कमी से कौन-सी विकृति हो सकती है?
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ की कमी से रीढ़ की हड्डी मुड़ सकती है।

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प्रश्न 24.
आगे या पीछे की ओर कूबड़ काली विकृति किस अंग से संबंधित है?
उत्तर:
आगे या पीछे की ओर कूबड़ वाली विकृति रीढ़ की हड्डी से संबंधित है।

प्रश्न 25.
साइकिल चलाना, तैराकी और घुड़सवारी किस प्रकार की विकृति को ठीक करने में लाभदायक हैं?
उत्तर:
साइकिल चलाना, तैराकी और घुड़सवारी घुटने के आपस में टकराने की विकृति को ठीक करने में लाभदायक हैं।

प्रश्न 26.
अधोमुख अवस्था कौन-सी होती है?
उत्तर:
यह शरीर की ऐसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति की छाती नीचे और पीठ ऊपर की ओर होती है।

भाग-II : सही विकल्प का चयन करें

1. आसन का अर्थ है
(A) लेटना
(B) सोना
(C) व्यक्ति के शरीर की स्थिति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) व्यक्ति के शरीर की स्थिति

2. मनुष्य के अच्छे आसन का पता चलता है
(A) खड़े होने से
(B) चलने से
(C) बैठने से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

3. निम्नलिखित में से मुद्रा या आसन संबंधी सामान्य समस्या है
(A) स्कोलिओंसिस (Scoliosis)
(B) लॉर्डोसिस (Lordosis)
(C) काइफोसिस (Kyphosis)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. अनुचित आसन के कारण हैं
(A) शारीरिक बीमारियाँ
(B) संतुलित व पौष्टिक आहार की कमी
(C) गलत आदतें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. शरीर को सीधा खड़ा रखने में आधार प्रदान करने वाली माँसपेशियाँ होती हैं
(A) हाथों की माँसपेशियाँ
(B) पैरों की माँसपेशियाँ
(C) छाती की माँसपेशियाँ
(D) कूल्हे की माँसपेशियाँ
उत्तर:
(B) पाँवों की माँसपेशियाँ

6. अच्छे आसन के सामान्य नियम हैं
(A) प्रभावशाली क्रियाओं का होना
(B) शरीर के विभिन्न अंगों के प्रभावशाली कार्य
(C) माँसपेशी व अस्थिपिंजर संस्थानों पर असाधारण
(D) उपर्युक्त सभी दबाव का न होना
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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7. “खड़े रहने का अच्छा आसन तभी कहा जा सकता है यदि खड़े रहते समय कम-से-कम शक्ति खर्च की जाए।” यह कथन है
(A) करूगर का
(B) डॉ० थॉमस वुड का
(C) रॉस का
(D) जे० बी० नैश का
उत्तर:
(A) करूगर का

8. शरीर का संपूर्ण भार किन पर पड़ता है?
(A) माँसपेशियों पर
(B) हड्डियों पर
(C) हाथों पर
(D) नाड़ियों पर
उत्तर:
(B) हड्डियों पर

9. पढ़ते समय आँखों से किताब की दूरी कम-से-कम होनी चाहिए
(A) 30 सें०मी०
(B) 25 सें०मी०
(C) 15 सें०मी०
(D) 20 सें०मी०
उत्तर:
(A) 30 सें.मी०

10. मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण कहा जाने वाला आसन है
(A) खड़े रहने का आसन
(B) बैठने का आसन
(C) पढ़ते समय का आसन
(D) चलते समय का आसन
उत्तर:
(D) चलते समय का आसन

11. चलते समय पैर होने चाहिएँ
(A) असमानांतर
(B) 60° कोण पर
(C) समानांतर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समानांतर

12. लेटते समय पैर रखने चाहिएँ
(A) असमानांतर
(B) मुड़े हुए
(C) जुड़े हुए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जुड़े हुए

13. अच्छे आसन का लाभ है
(A) हड्डियों और माँसपेशियों में तालमेल
(B) आत्म-विश्वास में वृद्धि
(C) शारीरिक योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. अनुचित आसन के संबंध में असत्य है
(A) व्यक्तित्व में कमी
(B) कंधे ढल जाना
(C) शरीर का सीधा तथा एकरूपता में होना
(D) आत्म-विश्वास की कमी
उत्तर:
(C) शरीर का सीधा तथा एकरूपता में होना

15. ठीक आसन व्यक्ति को कैसे रखता है?
(A) चुस्त
(B) तेज
(C) नीरोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. चपटे पैरों की कुरूपता का लक्षण नहीं है
(A) पैरों का सुन्न रहना
(B) पैरों में भौरियों का निकलना
(C) शरीर में स्फूर्ति बढ़ना
(D) पैरों में अधिक पसीने का आना
उत्तर:
(C) शरीर में स्फूर्ति बढ़ना

17. उचित आसन हमारे लिए किस कारण महत्त्वपूर्ण है?
(A) इससे शरीर में स्फूर्ति एवं उमंग बढ़ती है
(B) शारीरिक संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हैं
(C) शारीरिक अंगों का उचित विकास होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. आगे की तरफ कूब को ठीक करने का उपाय है
(A) पीठ के बल लेटने वाला व्यायाम करना
(B) हलासन एवं पद्मासन करना
(C) खड़े होकर धड़ को अगली तरफ झुकाना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

19. टाँगें झुकी हुई या धनुषाकार किस बीमारी के कारण होती हैं?
(A) कैंसर
(B) रिकेट्स
(C) टी०बी०
(D) मलेरिया
उत्तर:
(B) रिकेट्स

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20. घुटनों के आपस में टकराने से संबंधित शारीरिक क्रिया है
(A) साइकिल चलाना
(B) घुड़सवारी करना
(C) पद्मासन करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. आसन संबंधी कुरूपताओं का कारण है
(A) शरीर का अधिक भारी होना
(B) कमजोर हड्डियाँ तथा माँसपेशियाँ
(C) गलत आसन तथा बुरी आदतें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है
(A) ठीक प्रकार से न बैठने पर
(B) गलत ढंग से चलने से
(C) ठीक प्रकार से न खड़े होने पर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

23. पीछे की तरफ कूब वाली कुरूपता का मुख्य कारण है
(A) आगे की ओर झुककर पढ़ना
(B) व्यायाम की कमी
(C) संतुलित आहार की कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. पीछे की तरफ कूब वाली कुरूपता के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा व्यायाम/आसन काफी लाभदायक है?
(A) भुजंगासन
(B) शलभासन
(C) सर्वांगासन व चक्रासन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

भाग-III : निम्नलिखित कथनों के उत्तर सही या गलत अथवा हाँ या नहीं में दें

1. उचित/संतुलित आसन से शारीरिक थकान बढ़ती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं,

2. उचित आसन से शारीरिक पुष्टि कम होती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं,

3. उचित आसन हेतु नियमित रूप से व्यायाम करने चाहिएँ। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

4. उचित आसन से शरीर में स्फूर्ति एवं उमंग बढ़ती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

5. आसन (मुद्रा) से अभिप्राय मन की स्थिति से है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत

6. संतुलित आसन से विभिन्न प्रकार के कौशलों की संपूर्णता में सुधार होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

7. हमें कभी भी सिर को झुकाकर नहीं पढ़ना चाहिए। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

8. चलने का आसन व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

9. तैरने से रीढ़ की हड्डी के टेढ़ेपन में लाभ होता है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

10. रीढ़ की हड्डी का शरीर के दाईं या बाईं ओर झुकना या मुड़ना स्कोलिओसिस कहलाता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

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11. चपटे पैरों की विकृति को ठीक करने के लिए साइक्लिंग और घुड़दौड़ काफी लाभदायक हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

12. आसन में विकृतियों के आने का मुख्य कारण व्यायाम करना है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत

13. अधिक देर तक बैठे रहने से धड़ की माँसपेशियाँ मजबूत होती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत

14. जल्दी सोना अच्छी आदत है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

भाग-IV : रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. व्यक्ति का शारीरिक आभास (Appearance) उसके ……………. पर निर्भर करता है।
उत्तर:
आसन,

2. घुटनों के आपस में टकराने को सुधारने के लिए नियमित रूप से पद्मासन और ………………. करना चाहिए।
उत्तर:
गोमुखासन,

3. गोल कंधों की विकृति को सुधारने के लिए …………….. बार पर कुछ देर तक लटकना चाहिए।
उत्तर:
हॉरिजौंटल

4. उचित आसन वाला व्यक्ति किसी कार्य को करने में …………….. ऊर्जा व्यय करता है।
उत्तर:
कम,

5. आसन से अभिप्राय …………….. की स्थिति से है।
उत्तर:
शरीर,

6. आसन संबंधी विकृतियों में सुधार हेतु नियमित रूप से ………… करने चाहिएँ।
उत्तर:
व्यायाम,

7. अनुचित आसन धारण करने से …………… शारीरिक विकारों को बढ़ावा मिलता है।
उत्तर:
अनुचित,

8. उचित आसन से शारीरिक पुष्टि …………….. है।
उत्तर:
बढ़ती,

9. उचित आसन से शरीर के ………….. दूर होते हैं।
उत्तर:
विकार,

10. ……………. आसन आत्म-विश्वास एवं आत्म-सम्मान को बढ़ावा देता है।
उत्तर:
उचित,

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11. …………….. मुद्रा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है।
उत्तर:
भद्दी,

12. शरार का स्थात ठाक अवस्था में न होना …………….. आसन कहलाता है।
उत्तर:
अनुचित।

आसन Summary

आसन परिचय

मुद्रा या आसन (Posture) का मानवीय-जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आसन से अभिप्राय शरीर की स्थिति से है अर्थात् मनुष्य किस प्रकार अपने शरीर की संभाल या देखरेख करता है। आसन की अवहेलना करना मानो कई प्रकार के शारीरिक दोषों या विकारों को निमंत्रित करना है। इसलिए बचपन से ही बच्चों के आसन की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को शारीरिक विकारों से बचाया जा सके। एक अच्छा आसन ही मनुष्य को एक अच्छी शारीरिक संरचना या बनावट प्रदान कर सकता है और विभिन्न स्थितियों में संतुलित रख सकता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन या व्यक्तित्व में उचित आसन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। जीवन के प्रत्येक पहलू या पक्ष में इसकी अहम् भूमिका होती है।

उचित आसन से अभिप्राय व्यक्ति के शरीर का ठीक अथवा उचित संतुलन में होना है। वास्तव में, व्यक्ति के अच्छे आसन का उसके खड़े होने, चलने तथा बैठने से पता लगता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का संतुलन विभिन्न क्रियाओं; जैसे उठना, बैठना, खड़े होना, लिखना, पढ़ना, लेटना आदि को करते समय उचित या अच्छा होना चाहिए। उचित आसन से न केवल व्यक्ति का शारीरिक ढाँचा व स्वास्थ्य ठीक रहता है, बल्कि उसमें आत्म-विश्वास की भावना भी विकसित होती है। उसका व्यक्तित्व भी आकर्षित होता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए उचित आसन बहुत आवश्यक है। उचित आसन हमारे लिए निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण है

  • इससे शरीर में स्फूर्ति एवं उमंग बढ़ती है।
  • इससे शरीर के सभी अंगों का उचित विकास होता है, क्योंकि इससे शारीरिक विकार दूर होते हैं।
  • इससे शरीर को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सकता है।
  • इससे मन की तत्परता का पता चलता है अर्थात् यह मानसिक या बौद्धिक विकास में सहायक होता है।
  • इससे शरीर के सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हैं।
  • यह व्यक्ति के सम्मान और नौकरी प्राप्त करने में भी सहायक होता है।
  • अच्छी मुद्रा या आसन से माँसपेशी, श्वसन, पाचन एवं नाड़ी आदि शारीरिक संस्थानों की क्षमता में सुधार होता है और आपसी तालमेल भी बढ़ता है।
  • अच्छे आसन से विभिन्न प्रकार के कौशलों की संपूर्णता में सुधार होता है।
  • अच्छे आसन से व्यक्तित्व सुंदर एवं आकर्षित दिखता है।
  • अच्छे आसन से शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं में सुधार होता है और मन की तत्परता व शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है।
  • अच्छे आसन से समाजीकरण की योग्यता का पता चलता है। यह व्यक्ति के समाज में उच्च-स्तर का द्योतक है।

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HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

Haryana State Board HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

HBSE 11th Class Physical Education व्यावसायिक स्वास्थ्य Textbook Questions and Answers

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न ( (Long Answer Type Questions) |

प्रश्न 1.
व्यावसायिक स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या संकटों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Occupational Health):
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। अपनी आजीविका चलाने के लिए उसे कोई-न-कोई व्यवसाय या कार्य अवश्य करना पड़ता है। कार्य करने के लिए व्यक्ति के लिए बहुत से व्यवसाय हैं; जैसे लघु उद्योग, बड़े उद्योग, कृषि व्यवसाय, पशुपालन व्यवसाय व अन्य व्यवसाय आदि। प्रत्येक प्रकार के व्यवसायों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं जिनका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी होते हैं जिनमें रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे व्यवसाय या इनकी परिस्थितियाँ किसी-न-किसी रूप में व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं।

यदि इन व्यवसायों की परिस्थितियों में सुधार तथा कार्य करने वाले लोगों को जागरूक किया जाए तो व्यावसायिक संकटों या बीमारियों से बचा जा सकता है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान व्यावसायिक स्वास्थ्य का होता है, क्योंकि यह एक ऐसी योजना है जो व्यक्ति को कार्य करने के स्थान पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानियों और हादसों से बचाव में सहायक होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सुरक्षित वातावरण उत्पन्न करना है जिसमें कार्य करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।

संक्षेप में, व्यावसायिक स्वास्थ्य व्यवसायों से संबंधित समस्याओं या संकटों की रोकथाम और प्रबंधन पर जोर देता है और कार्य करने वाले लोगों को अपने जीवन की सुरक्षा हेतु प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है। अतः व्यावसायिक स्वास्थ्य को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-“व्यावसायिक स्वास्थ्य पदोन्नति और स्वास्थ्य से प्रस्थान को रोकने, लोगों को अपनी नौकरी व काम का अनुकूलन करने और जोखिम को नियंत्रित करने से सभी व्यवसायों के श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई का सबसे उत्तम रख-रखाव है।”

व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ (Problems Related to Occupational Health):
व्यावसायिक स्वास्थ्य का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। इसे केवल हम औद्योगिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का क्षेत्र ही नहीं मान सकते। इसमें बड़े-बड़े उद्योगों के अतिरिक्त लघु उद्योग, कृषि और छोटे-छोटे व्यवसाय संबंधी समस्याओं के क्षेत्र भी सम्मिलित हैं। आज के प्रगतिशील युग में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय सामने आ रहे हैं जिनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन्हीं के साथ-साथ व्यावसायिक स्वास्थ्य जगत का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है। व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याओं को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं

1. वातावरण संबंधी समस्याएँ (Problems Related to Environment):
ये वे समस्याएँ होती हैं जो वातावरण में त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं। इनका मुख्य कारण गलत योजनाएँ तथा भवन निर्माण होता है। इनमें समुचित प्रकाश का प्रबंध न होना, तापमान की वृद्धि अथवा कमी, तीव्र आवाज की गूंज, भवन निर्माण संबंधी समस्याओं से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ आती हैं।

2. रासायनिक प्रदूषण (Chemical Pollution):
कुछ व्यावसायिक समस्याएँ रासायनिक प्रदूषण के कारण उत्पन्न होती हैं; जैसे विषैली गैसों की उत्पत्ति, विषैले रासायनिक पदार्थों का वायु में मिलना जिनमें सीसा, कोयला, पारा, लोहा आदि सम्मिलित हैं।

3. व्यावसायिक समस्याएँ (Occupational Problems):
कुछ ऐसी समस्याएँ व्यावसायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आती हैं जिनका संबंध चिकित्सा क्षेत्र से होता है। यदि चिकित्सा संबंधी सभी प्रकार के उपाय किए जाएँ तो श्रमिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा हो सकती है। चिकित्सा के साथ-साथ बीमारी, दुर्घटनाओं के शिकार व व्यक्तियों के पुनर्वास की समस्या भी जुड़ी हुई है।

4. कर्मचारियों की प्रशिक्षण संबंधी समस्याएँ (Problems Related to Training of Workers):
उन कर्मचारियों को, जिन्हें औजार तथा यंत्रों का अच्छी तरह से प्रशिक्षण न मिला हो, नौकरी पर लगाना भी दुर्घटना का कारण बनता है। कुछ व्यवसायों में विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसलिए व्यवसायों में कार्यरत कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण तथा उच्च-स्तरीय तकनीक प्रदान करके व्यावसायिक संकट कम किए जा सकते हैं।

5. अनपढ़ता (Illiteracy):
श्रमिकों का अनपढ़ होना भी एक मुख्य समस्या है। शिक्षा का प्रसार जहाँ श्रमिकों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देने में सहायता करेगा, वहीं उनकी रोकथाम के उपाय तथा स्वच्छ रहन-सहन की विधि भी बताएगा। शिक्षा से श्रमिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारणों तथा उपायों का भी ज्ञान होगा। इसके अतिरिक्त विभिन्न कारखानों में काम करने से पड़ने वाले दुष्प्रभाव तथा उपाय की जानकारी भी प्राप्त हो सकेगी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि व्यावसायिक क्षेत्र की समस्याएँ काफी जटिल हैं और इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। पूर्ण रूप से सतर्क रहकर ही श्रमिकों तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है। इसलिए हमें मिलकर सुरक्षित एवं स्वास्थ्यकारी कार्यस्थल सुनिश्चित करना चाहिए।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 2.
आधुनिक समाज में व्यावसायिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। अथवा व्यवसायों में कार्यरत व्यक्तियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों या कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यवसायों में कार्यरत व्यक्तियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारणों को हम निम्नलिखित वर्गों में विभाजित कर सकते हैं
1. पर्यावरण संबंधी कारण (Environmental Causes):
विभिन्न उद्योग-धंधों अथवा व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर उनके धंधों तथा आस-पास के पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। यदि पर्यावरण दूषित है तो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यह समय की पुकार है कि ऐसे स्थानों को स्वच्छ रखा जाए और उन्हें स्वास्थ्य संबधी नियमों के अनुकूल बनाया जाए ताकि श्रमिक व कर्मचारी अनुकूल व स्वच्छ वातावरण में काम करते हुए अधिक उत्पादन की पूर्ति का प्रयास करें। स्वच्छता की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को दृष्टि में रखते हुए फैक्टरी अधिनियम, 1948 बनाया गया जिसके अंतर्गत दिए गए नियमों का पालन करना अनिवार्य है। पर्यावरण दूषित होने से अनेक प्रकार के रोग पनपते हैं, जिनकी ओर सरकारी तथा क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवा संस्थाएँ समय-समय पर प्रबंधकों तथा श्रमिकों का ध्यान आकृष्ट करती रहती हैं।

2. यंत्र संबंधी कारण (Implement Causes):
कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जहाँ पर श्रमिकों को मशीनों पर काम करना पड़ता है। उन्हें चलाते हुए कुछ सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं। इनके कारण ही अनेक घटनाओं से बचा जा सकता है। उदाहरणतया लकड़ी चीरने वाले कारखाने में आरे के सामने लोहे की जाली होती है। इसलिए मशीनों पर काम करने वाले श्रमिकों के शारीरिक, मानसिक व सामाजिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए, क्योंकि किसी छोटे-से-छोटे विकार के कारण वे बड़ी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं। मशीनी समस्याओं के कारण कारखानों में आए दिन दुर्घटनाएँ होती हैं, इनसे बचने हेतु सभी प्रशासनिक उपाय किए जाने चाहिएँ।

3. विद्युत संबंधी कारण (Electrical Causes):
कई बार विद्युत के बारे में ज्ञान न होने के कारण तथा उचित ध्यान न दिए जाने के कारण दुर्घटनाएं हो जाती हैं, जिनमें शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगना, नंगे तार आदि के छू जाने से झटका (शॉक) लगकर मृत्यु तक हो जाना जैसी घटनाएँ आए दिन होती रहती हैं। इन्हें रोकने के लिए हर प्रकार के प्रशासनिक व दूसरे उपाय किए जाने चाहिएँ। काम करने वालों को भी सुरक्षा संबंधी उपायों का पहले ज्ञान होना चाहिए।

4. रासायनिक संबंधी कारण (Chemical Causes):
कुछ ऐसे व्यवसायं भी हैं जहाँ रासायनिक प्रदूषण अधिक मात्रा में होता है अर्थात् मशीनों से रासायनिक कण उड़कर आस-पास हवा में प्रवेश कर उसमें मिल जाते हैं और ये कण काम करने वाले श्रमिकों के शरीर में तीन प्रकार से प्रवेश करते हैं

  1. श्वास के माध्यम से फेफड़ों तक,
  2. मुख के माध्यम से पेट तक,
  3. त्वचा के माध्यम से शरीर के अंदर रक्त तक।

इस प्रकार के प्रदूषण से निमोनिया, दमा और पेट की कुछ बीमारियाँ हो सकती हैं। इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक उपाय किए जाने चाहिएँ।

5. भौतिक कारण (Physical Causes):
इसके अंतर्गत तापमान की कमी या वृद्धि, पूर्ण रूप से प्रकाश का अभाव या अधिक प्रकाश, विषैली गैस अथवा किरणों का प्रभाव आता है। इसका कारखाने में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। अत: इसके बचाव के सभी उपाय किए जाने चाहिएँ अर्थात् काम करने वाले स्थान पर अच्छा प्रकाश, उचित तापमान, विषैली गैस या किरणों से बचने के उपाय तथा अन्य सभी उचित बचाव के साधन होने चाहिएँ।

6. सामाजिक कारण (Social Causes):
कुछ व्यवसाय इस प्रकार के हैं जिनसे काम करने वालों के सामाजिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यावसायिक स्थान इस प्रकार के होते हैं जहाँ काम करने वालों का जीवन नीरस होता है और उन्हें आपसी मेल-जोल का कोई अवसर तक प्राप्त नहीं हो पाता। कार्य-क्षेत्र को आकर्षक बनाने और श्रमिकों की सामाजिक प्रगति के लिए विकासशील होना चाहिए।

7. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes):
कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें भाग लेने वाले मनोवैज्ञानिक समस्या का शिकार हो सकते हैं। इस प्रकार के व्यवसाय जिनमें मानसिक दबाव अधिक हो अथवा काम करने से व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो, विनाशकारी हो सकते हैं तथा उसका उपाय करना अत्यंत आवश्यक है।

8. औद्योगिक थकावट (Industrial Fatigue):
औद्योगिक थकावट भी कई व्यावसायिक रोगों को जन्म देती है। इस प्रकार की थकावट के मुख्य कारण हैं तापमान का अधिक होना, नमी, प्रकाश का अभाव, स्वच्छ वायु का अभाव, अनुचित समय, कार्य की तीव्रता, पदोन्नति के अवसरों का अभाव तथा कार्यकाल की अनिश्चितता आदि। इस प्रकार की समस्याओं को दूर करने के सभी उपाय करने चाहिएँ।

प्रश्न 3.
व्यावसायिक स्वास्थ्य को परिभाषित कीजिए। इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य की परिभाषा (Definition of Occupational Health):
व्यावसायिक स्वास्थ्य व्यवसायों से संबंधित समस्याओं या संकटों की रोकथाम और प्रबंधन पर जोर देता है और कार्य करने वाले लोगों को अपने जीवन की सुरक्षा हेतु प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार “व्यावसायिक स्वास्थ्य कार्यस्थल में स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के सभी पहलुओं तथा संकटों(खतरों) की प्राथमिक रोकथाम पर एक मजबूत ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया है।”

व्यावसायिक स्वास्थ्य की आवश्यकता (Need of Occupational Health):
विश्व के लगभग सभी व्यक्ति किसी-न-किसी व्यवसाय से संबंधित हैं। कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यदि उपाय न किए जाएँ तो इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इस प्रकार के व्यवसायों में उचित प्रबंध करके बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। उदाहरणत: ऐसे कारखाने जहाँ पर बफिंग, वैल्डिंग, स्प्रेयिंग और कैमिकल्ज आदि का काम होता है, वहाँ श्रमिकों का जीवन खतरे से खाली नहीं होता। ऐसे व्यवसाय में काम करने से अनेक प्रकार के व्यावसायिक रोग लग सकते हैं। व्यावसायिक स्वास्थ्य सभी व्यवसायों में श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक भलाई की प्रक्रिया है जिसमें उनको व्यवसायों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की जाती हैं।

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कार्य करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा करने में सहायक होती है। यह स्वास्थ्य व्यवसाय से संबंधित विभिन्न समस्याओं की रोकथाम एवं प्रबंधन पर जोर देता है। स्वरोजगार हेतु व्यावसायिक शिक्षा बहुत आवश्यक है। बेरोजगारी की समस्या देश में प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए हमें व्यावसायिक शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यावसायिक स्वास्थ्य एक ऐसी प्रक्रिया है जो कि हमें किसी व्यवसाय के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। एक बार जब कोई विद्यार्थी किसी व्यवसाय का चयन कर लेता है तो उसे अपना लक्ष्य ज्ञात होता है

और अपने भविष्य के बारे में संतुष्टि होती है। बहुत-से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें काम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो ऐसी परिस्थितियों में काम करके स्वास्थ्य की सुरक्षा की जा सकती है। अतः व्यावसायिक स्वास्थ्य हमें सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के अनेक नियमों से अवगत करवाती है। व्यावसायिक स्वास्थ्य आज के समय की सबसे बड़ी माँग है। इस प्रकार आज के मशीनी युग में व्यावसायिक स्वास्थ्य की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गई है।

व्यावसायिक स्वास्थ्य का महत्त्व (Importance of Occupational Health): आज के मशीनी एवं वैज्ञानिक युग में व्यावसायिक स्वास्थ्य की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण है
1. व्यावसायिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति या श्रमिक को कार्य करने के स्थान पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानियों एवं हादसों की जानकारी देकर उनसे बचने के उपाय बताता है।

2. बहुत-से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें काम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो विपरीत परिस्थितियों में काम करके स्वास्थ्य की सुरक्षा की जा सकती है। अत: व्यावसायिक स्वास्थ्य हमें सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के अनेक नियमों से अवगत करवाता है।

3. यह श्रमिकों की शारीरिक और मानसिक क्षमता के अनुकूल एक व्यावसायिक वातावरण बनाने में श्रमिकों व कर्मचारियों की सहायता करता है।

4. यह स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल कारकों के कारण उत्पन्न होने वाले जोखिमों को दूर करता है।

5. सरकार ने व्यवसाय संबंधी अनेक अधिनियम बनाए हैं। श्रमिकों व कर्मचारियों को इन अधिनियमों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे इन अधिनियमों के अनुसार कार्य करें। व्यावसायिक स्वास्थ्य के अंतर्गत श्रमिकों व कर्मचारियों को इन अधिनियमों की जानकारी दी जाती है।

6. व्यावसायिक स्वास्थ्य काम करने वाले लोगों को उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पूरी जानकारी देता है और उनके उपचार हेतु भी पूर्ण जानकारी देता है।

7. विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में काम करने वाले श्रमिकों व कर्मचारियों को अनेक जोखिमों या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि श्रमिक व कारीगर इस ओर ध्यान न दें तो कोई दुर्घटना घट सकती है। परन्तु व्यावसायिक स्वास्थ्य के अंतर्गत श्रमिकों व कर्मचारियों को अपनी सुरक्षा हेतु प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जाता है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 4.
आधुनिक समाज में व्यावसायिक संकटों के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारा देश औद्योगिक क्षेत्र की तरफ तेजी से प्रगति कर रहा है। औद्योगिकरण के कारण आज उद्योगों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके कारण व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उठना स्वाभाविक है। विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक संकटों के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं

1. भौतिक कारक (Physical Factors):
इसके अंतर्गत कम या अधिक तापमान, कम या अधिक प्रकाश, मशीनों की अधिक आवाज़ और हानिकारक किरणों तथा विषैली गैसों को सम्मिलित किया जाता है। जो व्यक्ति इन कारकों की उपस्थिति में किसी कारखाने या उद्योग में काम करता है, वह इनसे अवश्य प्रभावित होता है। अधिक तापमान काम करने वाले की कार्यक्षमता को कम कर देता है और थकावट जल्दी आती है। अतः काम करने वाले स्थान पर उचित प्रकाश, उचित तापमान, विषैली गैसों व किरणों से बचने के उपाय या बचाव के साधन होने चाहिएँ। ठंड में काम करने से फ्रॉस्ट बाइट (Frost Bite) नामक बीमारी हो जाती है और अत्यधिक शोर व्यावसायिक बहरेपन का कारण बनता है।

2. सामाजिक कारक (Social Factors):
कुछ व्यवसाय इस प्रकार के होते हैं जिनका प्रभाव काम करने वालों के सामाजिक जीवन पर पड़ता है। उनको आनंद-रहित व नीरस वातावरण मिलता है और उन्हें आपसी मेल-जोल का कोई अवसर प्राप्त नहीं हो पाता। ये कारक काम करने वालों के सामाजिक जीवन पर प्रभाव डालते हैं।

3. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors):
मनोवैज्ञानिक कारकों की मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यदि काम करने वाला श्रमिक किसी दबाव या तनाव में काम करता है तो वह मनोवैज्ञानिक रूप से उदास रहता है और कई मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इस तरह के कारक श्रमिक के सामने कई अन्य समस्याएँ भी उत्पन्न कर देते हैं जिनका समाधान करना एक जटिल कार्य है।

4. पर्यावरण संबंधी कारक (Environmental Factors):
विभिन्न प्रकार की फैक्टरियाँ तथा उद्योग पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। ये उद्योग-धंधे हमारे आस-पास के वातावरण को दूषित करते हैं जिसके कारण कर्मचारी तथा उनके परिवार के सदस्य कुछ असाध्य बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कर्मचारी के स्वास्थ्य पर बाह्य तथा आंतरिक दोनों वातावरण प्रभाव डालते हैं। अगर पर्यावरण में संतुलन कायम नहीं होगा तो कर्मचारी अपने-आपको स्वस्थ रखने के योग्य नहीं होंगे। विभिन्न प्रकार की श्वास की समस्याएँ दूषित वायु में साँस लेने से होती हैं।

5. पारिस्थितिक कारक (Ecological Factors):
जहाँ तक दूषित वातावरण का संबंध है इसका प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण विकसित तकनीक तथा मनुष्य की ऐश्वर्यपूर्ण होने की अपनी लालसा ही है। इस प्रकार वर्तमान समय में सभी जीवों के जीने के सहायक तत्त्वों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। वास्तव में इस विकास ने पारिस्थितिक असंतुलन पैदा कर दिया है। यह असंतुलन मनुष्य के स्वास्थ्य पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

6. विद्युत-संबंधी कारक (Electrical Factors):
कई फैक्टरियाँ विद्युत से चलती हैं। कई बार इसका ज्ञान न होने के कारण शार्ट सर्किट द्वारा दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इनसे श्रमिकों या कर्मियों को गहरी चोट लग जाती है और कई बार तो मृत्यु तक भी हो जाती है।

7. रासायनिक कारक (Chemical Factors):
बहुत-सी बीमारियों के उत्पन्न होने का कारण रासायनिक पदार्थ हैं। पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण अनेक जहरीली गैसें हैं; जैसे कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन-मोनोक्साइड, लैड, क्लोरो-फ्लोरोकार्बन आदि जहरीली गैसें सिर-दर्द तथा श्वास की बीमारी उत्पन्न करती हैं तथा कभी-कभी तो मृत्यु तक भी हो जाती है। ये घटनाएँ अधिकतर खदानों में होती हैं। जहरीले रसायन श्रमिकों व कर्मचारियों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

8. तकनीकी कारक (Mechanical Factors):
लगभग सभी उद्योगों में उत्पादन के लिए बड़े-बड़े तकनीकी यंत्र लगे हुए हैं। अगर कर्मचारी इन यंत्रों को लापरवाही के साथ प्रयोग कर रहा हो तो दुर्घटना होना स्वाभाविक है। यहाँ तक कि मशीन चलाने की जानकारी न होने के कारण भी कर्मचारी को मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। विभिन्न तकनीकी संकट सुरक्षात्मक यंत्र न प्रयोग करने के कारण भी हो सकते हैं। हाथों की दुर्घटनाएँ खेतों में प्रयोग होने वाले यंत्र जैसे थ्रेशर आदि के कारण हो सकती हैं।

प्रश्न 5.
व्यवसायों में सुधार हेतु सरकारी व सामाजिक संस्थाओं तथा कारखानों की तरफ से किए जाने वाले उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
व्यावसायिक जोखिमों या दुर्घटनाओं से बचने के लिए क्या-क्या उपाय किए जाने चाहिएँ?
उत्तर:
सरकारी व सामाजिक संस्थाओं की तरफ से किए जाने वाले उपाय (Remedies Adopted by Government and Social Institutions)-सरकारी एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा व्यावसायिक बीमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले उपाय निम्नलिखित हैं

1. लोगों को सुरक्षा के बारे में जानकारी देना (To Educate the People about Safety):
सरकारी व सामाजिक संस्थाओं का कर्त्तव्य बनता है कि वे विज्ञापनों, टेलीविजनों, फिल्मों, भाषणों और प्रदर्शनों द्वारा लोगों को दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए उपाय बताएँ और अपनी सुरक्षा हेतु प्रेरित करें।

2. चिकित्सा केंद्र खोलना (Opening of Medical Centres):
चिकित्सा केंद्र खोलना सरकारी व सामाजिक संस्थाओं का पहला कर्त्तव्य है। किसी समय भी आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टरी सहायता दी जा सकती है। इस काम में सामाजिक संस्थाएँ अधिक योगदान दे सकती हैं। ऐसी संस्थाएँ लोगों को नियमों का पालन करना तथा दुर्घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है, आदि बताकर लोगों और समाज की सेवा कर सकती हैं।

3. बुरी आदतों से छुटकारा पाने के उपाय (Measures of Eliminating the Bad Habits):
सरकार द्वारा नशीले पदार्थों, शराब और अन्य नशे वाली चीजें, जिनका सेवन करने से दुर्घटनाएं हो सकती हैं, को रोका जाए और इन परिस्थितियों में वाहन चलाने पर पाबंदी लगाई जाए।

कारखानों की तरफ से किए जाने वाले उपाय (Remedies adopted by Factories): कारखानों की तरफ से किए जाने वाले उपाय निम्नलिखित हैं
1. सुरक्षा के उपाय (Safety Measures):
प्रत्येक कारखाने में श्रमिकों के लिए बढ़िया और आधुनिक सुरक्षात्मक प्रबंध होने चाहिएँ ताकि दुर्घटनाओं से बचा जा सके। आग बुझाने के लिए गैस का प्रबंध, पानी का प्रबंध, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स आदि का होना अत्यंत आवश्यक है।

2. डॉक्टरी निरीक्षण (Medical Checkup):
प्रत्येक श्रमिक व कर्मचारी का डॉक्टरी निरीक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसके द्वारा श्रमिकों व कर्मियों की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। एक स्वस्थ श्रमिक ही मालिक और कारखाने के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है। बीमार श्रमिक दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं।

3. योग्य, प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारी (Efficient, Trained and Experienced Workers):
कारखानों में सदैव योग्य, अच्छे प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारियों को ही भर्ती किया जाना चाहिए। मशीनों का अच्छी तरह प्रयोग एक अच्छा प्रशिक्षित कर्मचारी ही कर सकता है। अनुभवहीन कर्मचारी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं।

4. मशीनों की समय-समय पर जाँच (Checking of Machines from Time to Time):
कारखानों में कई प्रकार की मशीनें लगी हुई होती हैं और कई बार ये मशीनें काफी पुरानी हो जाती हैं। इन मशीनों की समय-समय पर जाँच करके उनकी आवश्यकतानुसार मरम्मत करनी चाहिए। ऐसा करने से दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

प्रश्न 6.
व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न अधिनियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों, कर्मचारियों व प्रबंधकों की अपनी लापरवाही के कारण वे कई बार व्यावसायिक संबंधी खतरों के शिकार बन जाते हैं। इस वास्तविकता को ध्यान में रखकर विभिन्न स्तरों पर सरकार द्वारा कुछ अधिनियम बनाए गए हैं जिससे कर्मचारियों के स्वास्थ्य की अधिक-से-अधिक सुरक्षा की जा सके और विपत्ति पड़ने पर सहायता की जा सके। इनमें से कुछ आवश्यक अधिनियम इस प्रकार हैं

1. श्रमिक मुआवजा अधिनियम, 1923 (Workmen’s Compensation Act, 1923):
इस अधिनियम के अनुसार व्यावसायिक स्थान पर यदि किसी कर्मचारी को दुर्घटना का शिकार होना पड़ जाए और वह उस दुर्घटना-स्वरूप आजीवन कमाने में असमर्थ हो जाए तो ऐसी स्थिति में सरकार को मुआवजा देना पड़ता है। इसकी राशि दुर्घटना की गंभीरता पर निर्भर करती है। इसमें कारखानों, बागानों, मशीनों से चलने वाले वाहनों के संचालन, निर्माण कार्यों और जोखिम वाले कुछ अन्य व्यवसायों में कार्यरत श्रमिक व कर्मचारी की आयु और वेतन के हिसाब से मृत्यु होने पर मुआवजा निर्धारित किया गया है। इस अधिनियम को 23 दिसम्बर, 2009 को कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 2009 बनाया गया।

2. वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act, 1936):
वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 एक श्रमिक हितैषी अधिनियम है जिसका मुख्य उद्देश्य वेतन का समय पर भुगतान तथा वेतन से अधिकृत कटौतियों के अतिरिक्त अन्य कटौती न की जाए, यह सुनिश्चित करना है।

3. फैक्टरी अधिनियम, 1948 (Factory Act, 1948):
इस अधिनियम के अनुसार विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों की भली-भांति सफाई होनी चाहिए। गंदगी नियमित रूप से उठानी चाहिए। फर्शों को कीटाणुनाशक दवाई डालकर साफ करना चाहिए। कारखानों आदि में अधिक भीड़भाड़ नहीं होनी चाहिए ताकि किसी दुर्घटना की संभावना न रहे। काम के स्थान पर उचित हवा व प्रकाश आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। काम करने वाले कर्मचारियों के लिए पीने के पानी का भी समुचित प्रबंध होना चाहिए। यदि किसी कारखाने में 250 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं तो पानी का उचित प्रबंध होना चाहिए।

कार्यस्थल पर उचित हवा और प्रकाश आदि की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि किसी दुर्घटना की संभावना न रहे। इस अधिनियम के अनुसार किसी राज्य में उपर्युक्त नियमों का पालन करवाना मुख्य फैक्टरी निरीक्षक (Chief Inspector of Factories) के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस नियम के अनुसार फैक्टरी के प्रबंधकों को या किसी श्रमिक को कोई व्यावसायिक बीमारी हो जाने पर अनिवार्य रूप से मुख्य फैक्टरी निरीक्षक को सूचित करना पड़ता है और इन्हें निश्चित बचावात्मक कार्रवाई करनी पड़ती है।

4. राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम, 1948 (Employees State Insurance Act, 1948):
इस अधिनियम के फलस्वरूप विभिन्न व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों को बीमारी या काम करने वाले स्थान पर किसी दुर्घटना का शिकार होने पर हर प्रकार की सहायता दिलाना है। इस अधिनियम के अंतर्गत कर्मचारियों तथा मालिकों को निश्चित राशि जमा करानी पड़ती है। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकारें एवं केंद्रीय सरकार भी आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं। इससे होने वाले लाभ इस प्रकार हैं

(i) चिकित्सा संबंधी लाभ (Advantages Related to Treatment):
कर्मचारियों की चिकित्सा हेतु राज्य श्रमिक बीमा अस्पताल तथा चिकित्सालय आदि खोले गए हैं जिनमें कर्मचारियों का उपचार किया जाता है और उन्हें दवाइयाँ दी जाती हैं। उन्हें परिवार कल्याण संबंधी परामर्श व सहायता प्रदान की जाती है। स्वास्थ्य शिक्षा दी जाती है और स्वास्थ्य प्रतिरक्षा संबंधी कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

(ii) आर्थिक सहायता (Economical Help):
लंबी बीमारी अथवा किसी दुर्घटना के अवसर पर राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम के अंतर्गत श्रमिकों व कर्मचारियों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है। बीमारी पर अधिक खर्च होने पर राज्य सरकार उस व्यय को वहन करती है और श्रमिकों व कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों के लिए भी सहायता प्रदान करती है।

5. खान अधिनियम (Mines Act):
खानों में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिए कुछ अधिनियम जारी किए गए हैं, उनका खानों में पालन किया जाता है।

6. मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity BenefitAct, 1961):
इस अधिनियम के तहत प्रसव पूर्व तथा प्रसव पश्चात् महिलाओं से काम करवाने की मनाही है। कुछ शर्तों को पूरा करने पर गर्भावस्था के दौरान कार्य से अनुपस्थित रहने की दशा में मातृत्व अवकाश तथा वित्तीय लाभ देने का प्रावधान किया गया है।

7. बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 (Payment of Bonus Act, 1965):
इस अधिनियम में श्रमिकों व कर्मचारियों के किसी कारखाने व प्रतिष्ठान में बोनस की भुगतान की व्यवस्था की गई है।

8. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Payment of Gratuity Act, 1972):
यह अधिनियम कारखानों, खानों, तेल क्षेत्रों, बन्दरगाहों, रेलवे, मोटर परिवहन प्रतिष्ठानों, कम्पनियों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों एवं कर्मचारियों पर लागू होता है।

9. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (Minimum Wages Act):
सरकार की ओर से विभिन्न व्यवसायों में काम करने वाले श्रमिकों अथवा व्यक्तियों को न्यूनतम भत्ता देने का आदेश दिया हुआ है। उसकी अवहेलना करने पर अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है। श्रमिकों को किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव न हो, इसको ध्यान में रखते हुए सरकार समय-समय पर श्रमिकों व कारीगरों को दिए जाने वाले न्यूनतम वेतन में संशोधन करती रहती है।

प्रश्न 7.
व्यवसायों से लगने वाली बीमारियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए कोई-न-कोई व्यवसाय अपनाता है। कई बार ये व्यवसाय हमारे शरीर में विकार उत्पन्न करने का कारण बन जाते हैं। कई व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनके कारण अनेक प्रकार की दिव्यांगता या बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे व्यवसाय से होने वाली बीमारियाँ निम्नलिखित हैं

1. दमा और कैंसर (Asthma and Cancer):
जो मज़दूर स्प्रे (Spray) या डोप (Dope) का कार्य करते हैं उन्हें दमा, कैंसर या ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) की बीमारी हो जाती है। मजदूर व कारीगर काफी समय तक काम करते रहते हैं तथा इन बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

2. एन्थराक्रोसिस (Anthracosis):
यह बीमारी कोयले के कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को ज्यादातर होती है। कोयले के छोटे-छोटे कणों का शरीर में प्रवेश करने से यह बीमारी उत्पन्न होती है।

3. बाइसीनोसिस (Byssinosis):
यह बीमारी प्राय: उन श्रमिकों व कारीगरों को होती है जो कपड़ा उद्योगों में कार्य करते हैं। कपास और धूल के छोटे-छोटे कण सांस के द्वारा फेफड़ों में घुस जाते हैं जिनके कारण वे इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

4. सीसे का जहर (Lead Poisoning):
सीसे के जहरीले (Lead Poisoning) कण त्वचा तथा श्वास द्वारा शरीर में पहुंच जाते हैं। ये कण रक्त के ऊपर प्रभाव डालते हैं। ज्यादातर यह बीमारी उन श्रमिकों व कारीगरों को होती है जो पीतल फाउंड्री, लेड फाउंड्री, रंग-रोगन आदि के व्यवसाय में कार्य करते हैं। इससे सिर-दर्द, निद्रा का ठीक प्रकार से न आना, शारीरिक वृद्धि में विकार व अधरंग हो सकता है जिसके कारण व्यक्ति दिव्यांगता का शिकार हो जाता है।

5. सिलीकोसिस (Silicosis):
यह बीमारी सिलिका के कणों के द्वारा होती है। सिलिका के छोटे-छोटे कण सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यह फेफड़ों की बीमारी है। यह बीमारी ईंटों के भट्ठे पर, फाउंड्री में, कोयले की खानों में, चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे व्यवसायों में कार्य करने वाले मजदूरों व कारीगरों को होती है। इससे वे दिव्यांग हो जाते हैं।

6. क्षय रोग (Tuberculosis):
यह बीमारी अधिकतर उन श्रमिकों व कारीगरों को होती है जो कपड़ा उद्योगों में कार्य करते हैं। यह भी फेफड़ों की बीमारी है। रूई के छोटे-छोटे कण साँस द्वारा फेफड़ों में चले जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति धीरे-धीरे क्षय रोग से ग्रस्त हो जाता है।

7. साइड्रोसिस (Siderosis):
आयरन उद्योग साइड्रोसिस के लिए जिम्मेदार हैं। साइड्रोसिस बीमारी आयरन ऑक्साइड वाली धूल के कारण होती है। आयरन ऑक्साइड के कण शरीर में श्वास और त्वचा के द्वारा प्रवेश हो जाते हैं और रक्त को विषैला कर देते हैं।

8. अन्य व्यावसायिक रोग (Other Occupational Diseases):
जलना, बिजली का झटका लगना, खेलने वाले उपकरणों की चोट से कई प्रकार के रोग हमारे शरीर में पैदा हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप व्यक्ति दिव्यांग हो जाता है। बहुत से व्यवसाय ऐसे हैं जहाँ श्रमिकों को चर्म रोग, रीढ़ की हड्डी संबंधी विकार उत्पन्न हो जाते हैं। बहुत तेज रोशनी में काम करने वाले श्रमिक नेत्रहीनता के शिकार हो जाते हैं। तेज आवाज में काम करने वाले व्यक्तियों को बहरेपन की समस्या हो जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यावसायिक स्वास्थ्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। अपनी आजीविका चलाने के लिए उसे कोई-न-कोई व्यवसाय या कार्य अवश्य करना पड़ता है। कार्य करने के लिए व्यक्ति के लिए बहुत से व्यवसाय हैं; जैसे लघु उद्योग, बड़े उद्योग, कृषि व्यवसाय, पशुपालन व्यवसाय व अन्य व्यवसाय आदि। प्रत्येक प्रकार के व्यवसायों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं जिनका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी होते हैं जिनमें रसायनों का प्रयोग किया जाता है।

ऐसे व्यवसाय या इनकी परिस्थितियाँ किसी-न-किसी रूप में व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। यदि इन व्यवसायों की परिस्थितियों में सुधार तथा कार्य करने वाले लोगों को जागरूक किया जाए तो व्यावसायिक संकटों या बीमारियों से बचा जा सकता है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान व्यावसायिक स्वास्थ्य का होता है, क्योंकि यह एक ऐसी योजना है जो व्यक्ति को कार्य करने के स्थान पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानियों और हादसों से बचाव में सहायक होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सुरक्षित वातावरण उत्पन्न करना है।

जिसमें कार्य करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है। संक्षेप में, व्यावसायिक स्वास्थ्य व्यवसायों से संबंधित समस्याओं या संकटों की रोकथाम और प्रबंधन पर जोर देता है और कार्य करने वाले लोगों को अपने जीवन की सुरक्षा हेतु प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “व्यावसायिक स्वास्थ्य कार्यस्थल में स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के सभी पहलुओं तथा संकटों ( खतरों) की प्राथमिक रोकथाम पर एक मजबूत ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया है।”

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 2.
व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित किन्हीं तीन समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित कोई तीन समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. वातावरण संबंधी समस्याएँ-ऐसी समस्याएँ जो वातावरण में त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं। इनका मुख्य कारण गलत योजनाएँ तथा भवन निर्माण होता है। इनमें समुचित प्रकाश का प्रबंध न होना, तापमान की वृद्धि अथवा कमी, तीव्र आवाज की गूंज, भवन-निर्माण संबंधी समस्याओं से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ आती हैं।

2. रासायनिक प्रदूषण-कुछ व्यावसायिक समस्याएँ रासायनिक प्रदूषण के कारण उत्पन्न होती हैं; जैसे विषैली गैसों की उत्पत्ति, विषैले रासायनिक पदार्थों का वायु में मिलना जिनमें सीसा, कोयला, पारा, लोहा आदि सम्मिलित हैं।

3. व्यावसायिक समस्याएँ-कुछ ऐसी समस्याएँ व्यावसायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आती हैं जिनका संबंध चिकित्सा क्षेत्र से होता है। यदि चिकित्सा संबंधी सभी प्रकार के उपाय किए जाएँ तो श्रमिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा हो सकती है। चिकित्सा के साथ-साथ बीमारी, दुर्घटनाओं के शिकार व व्यक्तियों के पुनर्वास की समस्या भी जुड़ी हुई है।

प्रश्न 3.
व्यावसायिक बीमारियों या समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए कारखानों की तरफ से किए जाने वाले उपाय बताएँ।
उत्तर:
व्यावसायिक समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए कारखानों की तरफ से किए जाने वाले उपाय निम्नलिखित हैं
1. सुरक्षा के उपाय:
प्रत्येक कारखाने में श्रमिकों के लिए बढ़िया और आधुनिक सुरक्षात्मक प्रबंध होने चाहिएँ ताकि दुर्घटनाओं से बचा जा सके। आग बुझाने के लिए गैस का प्रबंध, पानी का प्रबंध, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स आदि का होना अत्यंत आवश्यक है।

2. डॉक्टरी निरीक्षण:
प्रत्येक श्रमिक व कर्मचारी का डॉक्टरी निरीक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसके द्वारा श्रमिकों व कर्मचारियों की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। एक स्वस्थ श्रमिक ही मालिक और कारखाने के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है। बीमार श्रमिक दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं।

3. योग्य, प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारी:
कारखानों में सदैव योग्य, अच्छे प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारियों को ही भर्ती किया जाना चाहिए। मशीनों का अच्छी तरह प्रयोग एक अच्छा प्रशिक्षित कर्मचारी ही कर सकता है। अनुभवहीन कर्मचारी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं।

4. मशीनों की समय-समय पर जाँच:
कारखानों में कई प्रकार की मशीनें लगी हुई होती हैं और कई बार ये मशीनें काफी पुरानी हो जाती हैं। इन मशीनों की समय-समय पर जाँच करके उनकी आवश्यकतानुसार मरम्मत करनी चाहिए। ऐसा करने से दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

प्रश्न 4.
व्यावसायिक बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले उपाय बताएँ।
उत्तर:
सरकारी एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा व्यावसायिक बीमारियों की रोकथाम के लिए अपनाए जाने वाले उपाय निम्नलिखित हैं
1. लोगों को सुरक्षा के बारे में जानकारी देना:
सरकारी व सामाजिक संस्थाओं का कर्तव्य बनता है कि वे विज्ञापनों, टेलीविजनों, फिल्मों, भाषणों और प्रदर्शनों द्वारा लोगों को दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए उपाय बताएँ और अपनी सुरक्षा हेतु प्रेरित करें।

2. चिकित्सा केंद्र खोलना:
चिकित्सा केंद्र खोलना सरकारी व सामाजिक संस्थाओं का पहला कर्त्तव्य है। किसी समय भी आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टरी सहायता दी जा सकती है। इस काम में सामाजिक संस्थाएँ अधिक योगदान दे सकती हैं। ऐसी संस्थाएँ, लोगों को नियमों का पालन करना तथा दुर्घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है आदि बताकर लोगों और समाज की सेवा कर सकती हैं।

3. बुरी आदतों से छुटकारा पाने के उपाय;
सरकार द्वारा नशीले पदार्थों, शराब और अन्य नशे वाली चीजें, जिनका सेवन करने से दुर्घटनाएं हो सकती हैं, को रोका जाए और इन परिस्थितियों में वाहन चलाने पर पाबंदी लगाई जाए।

प्रश्न 5.
व्यावसायिक स्वास्थ्य हेतु पर्यावरण संबंधी कारक के बारे में बताएँ।
उत्तर:
विभिन्न उद्योग: धंधों अथवा व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर उनके धंधों तथा आस-पास के पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। यदि पर्यावरण दूषित है तो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यह समय की पुकार है कि ऐसे स्थानों को स्वच्छ रखा जाए और उन्हें स्वास्थ्य संबधी नियमों के अनुकूल बनाया जाए ताकि श्रमिक व कर्मचारी अनुकूल व स्वच्छ वातावरण में काम करते हुए अधिक उत्पादन की पूर्ति का प्रयास करें। स्वच्छता की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को दृष्टि में रखते हुए फैक्टरी अधिनियम, 1948 बनाया गया, जिसके अंतर्गत दिए गए नियमों का पालन करना अनिवार्य है। पर्यावरण दूषित होने से अनेक प्रकार के रोग पनपते हैं, जिनकी ओर सरकारी तथा क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवा संस्थाएँ समय-समय पर प्रबंधकों तथा श्रमिकों का ध्यान आकृष्ट करती रहती हैं।

प्रश्न 6.
व्यावसायिक स्वास्थ्य हेतु रासायनिक संबंधी कारक के बारे में बताएँ।
उत्तर:
कुछ ऐसे व्यवसाय भी हैं जहाँ रासायनिक प्रदूषण अधिक मात्रा में होता है अर्थात् मशीनों से रासायनिक कण उड़कर आस-पास हवा में प्रवेश कर उसमें मिल जाते हैं और ये कण काम करने वाले श्रमिकों व कारीगरों के शरीर में तीन प्रकार से प्रवेश करते हैं

  1. श्वास के माध्यम से फेफड़ों तक।
  2. मुख के माध्यम से पेट तक।
  3. त्वचा के माध्यम से शरीर के अंदर रक्त तक।

इस प्रकार के प्रदूषण से निमोनिया, दमा और पेट की कुछ बीमारियाँ हो सकती हैं। इसकी रोकथाम के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिएँ।

प्रश्न 7.
हमें व्यावसायिक स्वास्थ्य की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
विश्व के लगभग सभी व्यक्ति किसी-न-किसी व्यवसाय से संबंधित हैं। कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यदि उपाय न किए जाएँ तो इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इस प्रकार के व्यवसायों में उचित प्रबंध करके बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है।

उदाहरणतः ऐसे कारखाने जहाँ पर बफिंग, वैल्डिंग, स्प्रेयिंग और कैमिकल्ज आदि का काम होता है, वहाँ श्रमिकों का जीवन खतरे से खाली नहीं होता। ऐसे व्यवसाय में काम करने से अनेक प्रकार के व्यावसायिक रोग लग सकते हैं। व्यावसायिक स्वास्थ्य सभी व्यवसायों में श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक भलाई की प्रक्रिया है जिसमें उनको व्यवसायों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की जाती हैं।

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कार्य करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा करने में सहायक होती है। यह स्वास्थ्य व्यवसाय से संबंधित विभिन्न समस्याओं की रोकथाम एवं प्रबंधन पर जोर देता है। स्वरोजगार हेतु व्यावसायिक शिक्षा बहुत आवश्यक है। बेरोजगारी की समस्या देश में प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए हमें व्यावसायिक शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यावसायिक स्वास्थ्य एक ऐसी

प्रक्रिया है जो कि हमें किसी व्यवसाय के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। एक बार जब कोई विद्यार्थी किसी व्यवसाय का चयन कर लेता है तो उसे अपना लक्ष्य ज्ञात होता है और अपने भविष्य के बारे में संतुष्टि होती है। बहुत-से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें काम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो ऐसी परिस्थितियों में काम करके स्वास्थ्य की सुरक्षा की जा सकती है। अत: व्यावसायिक स्वास्थ्य हमें सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के अनेक नियमों से अवगत करवाती है। व्यावसायिक स्वास्थ्य आज के समय की सबसे बड़ी माँग है। इस प्रकार आज के मशीनी युग में व्यावसायिक स्वास्थ्य की आवश्यकता बहत अधिक बढ़ गई है।।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 8.
व्यावसायिक स्वास्थ्य की महत्ता पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर:
आज के मशीनी एवं वैज्ञानिक युग में व्यावसायिक स्वास्थ्य की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण है
1. व्यावसायिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति या श्रमिक को कार्य करने के स्थान पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानियों एवं हादसों की जानकारी देकर उनसे बचने के उपाय बताता है।

2. बहुत-से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें काम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो ऐसी परिस्थितियों में काम करके स्वास्थ्य की सुरक्षा की जा सकती है। अतः व्यावसायिक स्वास्थ्य हमें सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के अनेक नियमों से अवगत करवाता है।

3. सरकार ने व्यवसाय संबंधी अनेक अधिनियम बनाए हैं। श्रमिकों व कर्मचारियों को इन अधिनियमों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे इन अधिनियमों के अनुसार कार्य करें। व्यावसायिक स्वास्थ्य के अंतर्गत श्रमिकों व कर्मचारियों को इन अधिनियमों की जानकारी दी जाती है।

4. व्यावसायिक स्वास्थ्य काम करने वाले लोगों को उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की और उनके उपचार हेतु भी पूर्ण जानकारी देता है।

5. विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में काम करने वाले श्रमिकों व कर्मचारियों को अनेक जोखिमों या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि श्रमिक इस ओर ध्यान न दें तो कोई दुर्घटना घट सकती है। परन्तु व्यावसायिक स्वास्थ्य के अंतर्गत श्रमिकों व कर्मचारियों को अपनी सुरक्षा हेतु प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जाता है।

प्रश्न 9.
व्यावसायिक स्वास्थ्य के मुख्य सिद्धांत बताएँ।
अथवा
व्यावसायिक स्वास्थ्य के किन्हीं चार सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं

1. व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी अधिनियमों की पूर्ण जानकारी:
श्रमिकों व कर्मचारियों को उन अधिनियमों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए जिनके अंतर्गत वे काम कर रहे हैं। प्रत्येक श्रमिक को व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी कानूनों के अंतर्गत काम करना चाहिए।

2. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का पूर्ण ज्ञान:
श्रमिकों व कर्मचारियों को स्वास्थ्य-संबंधी समस्याओं की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ-साथ उनके उपचार की भी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। सामान्य रूप से देखा गया है कि श्रमिकों व कर्मचारियों को ऐसी जानकारी नहीं होती और न ही वे इसकी ओर ध्यान देते हैं। अतः ऐसे श्रमिकों व कर्मचारियों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा देनी चाहिए।

3. नियुक्ति के समय चिकित्सा जाँच:
नियुक्ति के समय चिकित्सा जाँच होनी चाहिए। यदि श्रमिक का स्वास्थ्य पूर्ण रूप से ठीक है तभी उसे नौकरी देनी चाहिए।

4. मध्यांतर में चिकित्सा जाँच:
नियमित अंतराल पर श्रमिकों व कारीगरों के स्वास्थ्य की जाँच अवश्य करवानी चाहिए। इससे बीमारियों का पता चलता है और उनका उपचार भी किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक संकटों से बचाव के उपायों का वर्णन कीजिए। उत्तर-व्यावसायिक संकटों या बीमारियों से निम्नलिखित उपायों द्वारा बचाव किया जा सकता है
1. वातावरण की देखभाल:
वातावरण को नियंत्रित रखने के लिए कई उपाय करने की आवश्यकता होती है; जैसे व्यर्थ सामग्री का सुरक्षित निष्कासन, स्वच्छ पीने का पानी, उचित प्रकाश, वायु का सही आना-जाना तथा सफाई के उपाय आदि।

2. चिकित्सा उपाय:
भर्ती के समय श्रमिकों व कारीगरों का चिकित्सा परीक्षण, प्राथमिक सहायता के साधन तथा रोगियों अथवा घायलों की देखभाल कुछ आवश्यक चिकित्सा संबंधी उपाय हैं जो श्रमिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।

3. स्वास्थ्य शिक्षा:
श्रमिकों व कारीगरों तथा कर्मचारियों को सुरक्षा के उपायों की शिक्षा देने से उनके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।

4. इंजीनियरिंग एवं तकनीकी उपाय:
इन उपायों में कारखानों का सही निर्माण, जिससे इन स्थानों पर अधिक भीड़-भाड़ न हो तथा वातावरण स्वच्छ रहे, उचित मशीनों का प्रयोग, उनका समय-समय पर निरीक्षण तथा खराब होने की अवस्था में उनको बदलना, सुरक्षा के सही कदम उठाना तथा खतरनाक यंत्रों के लिए सुरक्षित स्थानों का निर्माण जैसे कार्य आते हैं।

5. अधिनियम बनाकर:
श्रमिकों व कारीगरों तथा कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु, सरकार द्वारा कई अधिनियम बनाए गए हैं। इनको नियमानुसार लागू किया जाना चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर इनमें संशोधन होने चाहिएँ। ये अधिनियम हैं:

  1. फैक्टरी अधिनियम,
  2. खान अधिनियम,
  3. राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम,
  4. श्रमिक मुआवजा अधिनियम,
  5. मातृत्व लाभ अधिनियम,
  6. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम आदि।

प्रश्न 11.
दुर्घटनाओं से बचने के मुख्य सुझाव बताएँ।
उत्तर:
दुर्घटनाओं से बचने के मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं

1. यातायात के नियमों का पालन करना:
सड़क या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर चलने, सड़क पार करने और यातायात आदि के नियमों का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से हम दुर्घटनाओं से बच सकते हैं।

2. शिक्षा की बढ़िया योजना:
दिव्यांगता को रोकने, उनसे बचाव करने और उपाय सम्बन्धी शिक्षा का समूचा प्रबन्ध करने के लिए सरकार को बढ़िया योजना बनानी चाहिए।

3. सामान की जांच:
पड़ताल करना-घर या खेल के मैदान में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान को जांच-पड़ताल के बाद ही प्रयोग में लाना चाहिए ताकि दुर्घटनाओं से बचा जा सके।

4. नियमित व्यायाम:
व्यवसायों से पैदा होने वाले रोगों से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। इससे व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहेगा और रोगों से मुक्ति मिलेगी।

5. दुर्घटनाओं को रोकना:
जहाँ तक सम्भव हो सके, व्यावसायिक क्षेत्रों में दुर्घटनाओं को रोकने के प्रयत्न करने चाहिएँ। सरकार द्वारा बनाए गए नियमों की पालना करनी चाहिए। ऐसा करने से दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। सुरक्षा सम्बन्धी कानूनों की पालना करने से केवल श्रमिकों को ही नहीं अपितु उद्योगपतियों को भी लाभ पहुँचता है। श्रमिकों को काम सम्बन्धी नियमों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए और प्रबन्धकों को भी प्रबन्ध करने में सावधानीपूर्वक काम लेना चाहिए।

6. मादक पदार्थों से परहेज़:
मादक पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इन पदार्थों का सेवन दुर्घटनाओं को बढ़ावा देता है। इसलिए मादक पदार्थों से परहेज करना चाहिए।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 12.
व्यावसायिक शिक्षा की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
व्यावसायिक शिक्षा की अवधारणा एवं आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्वरोजगार हेतु व्यावसायिक शिक्षा बहुत आवश्यक है। बेरोजगारी की समस्या देश में प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए हमें व्यावसायिक शिक्षा की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यावसायिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जोकि हमें किसी व्यवसाय के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है। एक बार जब कोई विद्यार्थी किसी व्यवसाय का चयन कर लेता है तो उसे अपना लक्ष्य ज्ञात होता है और अपने भविष्य के बारे में संतुष्टि होती है।

व्यावसायिक शिक्षा आज के समय की सबसे बड़ी माँग है। यह शिक्षा युवाओं को विशेष प्रकार से कौशल पूर्ण बनाकर उन्हें अनेक रोजगार प्राप्त करने के अवसर प्रदान करती है। ज्यादातर युवाओं को घर चलाने के लिए नौकरी की आवश्यकता होती है। व्यावसायिक शिक्षा नौकरी दिलाने में भी अहम् योगदान देती है। व्यावसायिक शिक्षा स्वयं का उद्योग स्थापित करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very ShortAnswer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यवसाय की धारणा से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अपनी जीविका चलाने के लिए व्यक्ति को रोजगार के लिए कोई-न-कोई व्यवसाय अपनाना पड़ता है। व्यक्ति के लिए कई प्रकार के व्यवसाय होते हैं । विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में काम करने वाले श्रमिक, कारीगर कर्मचारी विभिन्न प्रकार की स्थिति और विभिन्न प्रकार के वातावरण में अपना काम करते हैं। कुछ व्यवसाय इस प्रकार के हैं जिनके करने से व्यक्ति के मानसिक व
शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं जिनका संबंध विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों से या कोयला, लकड़ी, रुई, लोहा, सीसा जैसे पदार्थों से होता है। यहाँ काम करने वाले श्रमिकों व कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर इनका बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार व्यावसायिक स्वास्थ्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “व्यावसायिक स्वास्थ्य कार्यस्थल में स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के सभी पहलुओं तथा संकटों (खतरों) की प्राथमिक रोकथाम पर एक मजबूत ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया है।”

प्रश्न 3.
व्यावसायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। इसे केवल हम औद्योगिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का क्षेत्र ही नहीं मान सकते। इसमें बड़े-बड़े उद्योगों के अतिरिक्त लघु उद्योग, कृषि और छोटे-छोटे व्यवसाय, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के क्षेत्र भी सम्मिलित हैं। आज के प्रगतिशील युग में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय सामने आ रहे हैं जिनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन्हीं के साथ-साथ व्यावसायिक स्वास्थ्य जगत का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 4.
कर्मचारियों की प्रशिक्षण संबंधी समस्या बताएँ।
उत्तर:
उन कर्मचारियों को, जिन्हें औजार तथा यंत्रों का अच्छी तरह से प्रशिक्षण न मिला हो, नौकरी पर लगाना भी दुर्घटना का कारण बनता है। कुछ व्यवसायों में विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसलिए व्यावसायिक स्वास्थ्य कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण ढंग तथा उच्च-स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान करके व्यावसायिक संकट कम कर सकता है।

प्रश्न 5.
व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधी किन्हीं तीन समस्याओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. वातावरण संबंधी समस्याएँ,
  2. रासायनिक पदार्थों से प्रदूषण,
  3. व्यावसायिक समस्याएँ।

प्रश्न 6.
कारखानों की तरफ से व्यावसायिक बीमारियों या चोटों से बचने के लिए किए जाने वाले कोई तीन उपाय बताएँ।
उत्तर:

  1. सुरक्षा का प्रबंध,
  2. डॉक्टरी निरीक्षण,
  3. योग्य, प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारी।

प्रश्न 7.
व्यावसायिक स्वास्थ्य के कोई तीन सिद्धांत बताएँ।
उत्तर:

  1. व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी अधिनियम की पूर्ण जानकारी,
  2. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का पूर्ण ज्ञान,
  3. नियुक्ति के समय चिकित्सा जाँच।

प्रश्न 8.
व्यवसायों से लगने वाली किन्हीं चार बीमारियों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. कैंसर,
  2. एन्थराक्रोसिस,
  3. चमड़ी रोग,
  4. दमा।

प्रश्न 9.
आधुनिक समाज में व्यावसायिक स्वास्थ्य संकट के लिए उत्तरदायी कोई तीन कारक बताएँ।
उत्तर:

  1. पर्यावरण संबंधी कारक,
  2. भौतिक कारक,
  3. मनोवैज्ञानिक कारक।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक रोगों के मामलों का प्रबंधन कैसे होता है?
उत्तर:
व्यावसायिक रोगों के मामलों के प्रबंधन के लिए विशेष प्रकार के कौशल की जरूरत होती है। इनके निदान, उपचार के लिए उचित प्रबंध करने पड़ते हैं। इसके बाद स्थानिक एवं वातावरण संबंधी समस्याओं पर विचार करके उन्हें दूर किया जाता है।

प्रश्न 11.
काम करने वाले स्थान पर किन-किन बुराइयों से दूर रहना चाहिए?
उत्तर:
धूम्रपान, नशाखोरी, मद्यपान आदि।

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प्रश्न 12.
व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित कोई तीन अधिनियम बताएँ।
उत्तर:

  1. श्रमिक मुआवजा अधिनियम-1923,
  2. फैक्टरी अधिनियम-1948,
  3. राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम-1948।

प्रश्न 13.
सिलीकोसिस (Silicosis) क्या है?
उत्तर:
सिलीकोसिस बीमारी सिलिका के कणों के द्वारा होती है। सिलिका के छोटे-छोटे कण साँस के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यह फेफड़ों की बीमारी है। यह बीमारी ईंटों के भट्ठे पर, फाउंड्री में, कोयले की खानों में, चीनी-मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे व्यवसायों में कार्य करने वाले श्रमिकों व कारीगरों को होती है।

प्रश्न 14.
‘सीसे का विष’ क्या है?
उत्तर:
सीसे के जहरीले कण त्वचा तथा श्वास द्वारा शरीर में पहुंच जाते हैं। ये कण रक्त के ऊपर प्रभाव डालते हैं। ज्यादातर यह बीमारी उन मजदूरों को होती है जो पीतल फाउंड्री, लेड फाउंड्री, रंग-रोगन आदि के व्यवसाय में कार्य करते हैं। इससे सिर-दर्द, निद्रा का ठीक प्रकार से न आना, शारीरिक वृद्धि में विकार व अधरंग हो सकता है जिसके कारण व्यक्ति दिव्यांगता का शिकार हो जाता है।

प्रश्न 15.
‘साइड्रोसिस’ क्या है?
उत्तर:
आयरन उद्योग साइड्रोसिस के लिए ज़िम्मेदार हैं। साइड्रोसिस बीमारी आयरन ऑक्साइड वाली धूल के कारण होती है। आयरन ऑक्साइड के कण शरीर में श्वास और त्वचा के द्वारा प्रवेश हो जाते हैं और रक्त को विषैला कर देते हैं।

प्रश्न 16.
‘बाइसीनोसिस’ क्या है?
उत्तर:
यह बीमारी प्रायः उन श्रमिकों को होती है जो कपड़ा उद्योगों में कार्य करते हैं । कपास और धूल के छोटे-छोटे कण साँस के द्वारा फेफड़ों में घुस जाते हैं जिनके कारण वे इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 17.
‘एन्थराक्रोसिस’ क्या है?
उत्तर:
यह बीमारी कोयले के कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को ज्यादातर होती है। कोयले के छोटे-छोटे कणों का शरीर में प्रवेश करने से यह बीमारी उत्पन्न होती है। कोयले की खानें विशेषकर बिहार व झारखण्ड राज्यों में अधिक पाई जाती हैं।

HBSE 11th Class Physical Education व्यावसायिक स्वास्थ्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

भाग-I : एक वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
कोयले की खान में कार्य करने वाले व्यक्ति प्रायः कौन-से रोग का शिकार हो जाते हैं?
उत्तर:
न्यूमोकोनियोसिस नामक रोग।

प्रश्न 2.
व्यावसायिक स्वास्थ्य की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता क्या है?
उत्तर:
व्यावसायिक स्वास्थ्य की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता डेटाबेस और सूचना प्रणाली है।

प्रश्न 3.
तंबाकू की खेती में लगे श्रमिक किस व्यावसायिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं?
उत्तर:
तंबाकू की खेती में लगे श्रमिक ग्रीन तंबाकू बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
रेडियोधर्मी विकिरणों के संपर्क से होने वाली कोई एक बीमारी बताएँ।
उत्तर:
रेडियोधर्मी विकिरणों के संपर्क से होने वाली बीमारी कैंसर है।

प्रश्न 5.
व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कोई दो पदार्थ बताएँ।
उत्तर:
कोयला, लकड़ी।

प्रश्न 6.
वातावरण संबंधी समस्या के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाओं का आना, ज्वालामुखी विस्फोट।

प्रश्न 7.
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीविका के लिए क्या करता है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीविका के लिए कोई-न-कोई व्यवसाय या काम करता है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

प्रश्न 8.
भोपाल गैस त्रासदी कब घटित हुई?
उत्तर:
भोपाल गैस त्रासदी 3 दिसम्बर, 1984 में घटित हुई।

प्रश्न 9.
लोग कारखानों में कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के शिकार कैसे होते हैं?
उत्तर:
कारखानों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के साधन उपलब्ध न होने के कारण।

प्रश्न 10.
टी०बी० या तपेदिक रोग का सबसे अधिक प्रभाव शरीर के किस अंग पर पड़ता है?
उत्तर:
टी०बी० या तपेदिक रोग का सबसे अधिक प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है।

प्रश्न 11.
श्रमिक मुआवजा अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
श्रमिक मुआवजा अधिनियम सन् 1923 में बनाया गया।

प्रश्न 12.
राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम सन् 1948 में बनाया गया।

प्रश्न 13.
फैक्टरी अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
फैक्टरी अधिनियम सन् 1948 में बनाया गया।

प्रश्न 14.
बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में किस प्रकार की शिक्षा अधिक लाभदायक हो सकती है?
उत्तर:
बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में व्यावसायिक शिक्षा अधिक लाभदायक हो सकती है।

प्रश्न 15.
वे रोग जो किसी व्यवसाय में लगे हुए व्यक्ति को उसके व्यवसाय के कारण हो जाते हैं, कौन-से रोग कहलाते हैं?
उत्तर:
वे रोग जो किसी व्यवसाय में लगे हुए व्यक्ति को उसके व्यवसाय के कारण हो जाते हैं, व्यावसायिक रोग कहलाते हैं।

प्रश्न 16.
ऐसे कोई दो कार्य बताएँ जिनसे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
वैल्डिंग, स्प्रेयिंग।

प्रश्न 17.
मातृत्व लाभ अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
मातृत्व लाभ अधिनियम वर्ष 1961 में बनाया गया।

प्रश्न 18.
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम वर्ष 1972 में बनाया गया।

भाग-II : सही विकल्प का चयन करें

1. व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पदार्थ हैं
(A) रासायनिक पदार्थ
(B) कोयला, लकड़ी
(C) रुई, लोहा, सीसा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. किस प्रकार की शिक्षा स्वरोजगार प्रदान करने में सहायक होती है?
(A) स्वास्थ्य शिक्षा
(B) शारीरिक शिक्षा
(C) व्यावसायिक शिक्षा
(D) नैतिक शिक्षा
उत्तर:
(C) व्यावसायिक शिक्षा

3. वातावरण संबंधी समस्याओं का कारण है
(A) प्राकृतिक आपदाओं का आना
(B) ज्वालामुखी विस्फोट
(C) गलत योजनाएँ तथा भवन निर्माण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. विषैली गैसों की उत्पत्ति और विषैले रासायनिक पदार्थों का वायु में मिलना किससे संबंधित है?
(A) कृषि संबंधी समस्याओं से
(B) रासायनिक पदार्थों के प्रदूषण से
(C) कर्मचारियों के प्रशिक्षण संबंधी समस्याओं से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रासायनिक पदार्थों के प्रदूषण से

5. रेडियोधर्मी विकिरण क्षेत्रों में काम करने वाले व्यक्ति अधिकतर किस बीमारी की चपेट में आते हैं?
(A) दमा
(B) ब्लड प्रेशर
(C) कैंसर
(D) तपेदिक
उत्तर:
(C) कैंसर

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6. कोयले की खानों अथवा कोयले से चलने वाले प्लांटों में काम करने वाले श्रमिक किस बीमारी की चपेट में आते हैं?
(A) एन्थराक्रोसिस
(B) तपेदिक
(C) कैंसर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) एन्थराक्रोसिस

7. व्यावसायिक समस्याओं में शामिल है
(A) श्रमिकों की चिकित्सा
(B) श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा
(C) बीमारी या दुर्घटना के शिकार व्यक्तियों के
(D) उपर्युक्त सभी पुनर्वास की समस्या
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. व्यावसायिक संकटों से बचाव किया जा सकता है
(A) वातावरण की देखभाल से
(B) इंजीनियरिंग उपायों से
(C) अधिनियम बनाकर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. पृथ्वी का कितना प्रतिशत भाग पानी से घिरा हुआ है?
(A) लगभग 2/3 प्रतिशत भाग
(B) लगभग 1/4 प्रतिशत भाग
(C) लगभग 3/4 प्रतिशत भाग
(D) लगभग 2/4 प्रतिशत भाग
उत्तर:
(A) लगभग 2/3 प्रतिशत भाग

10. अधिक रक्त-दाब का मुख्य कारण है
(A) जल प्रदूषण
(B) ध्वनि प्रदूषण
(C) वायु प्रदूषण
(D) भूमि प्रदूषण
उत्तर:
(B) ध्वनि प्रदूषण

11. ध्वनि प्रदूषण से किसका स्राव अधिक होता है?
(A) पित्तरस का
(B) रक्त का
(C) ऐडरलीन का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर;
(C) ऐडरलीन का

12. जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित समस्या बढ़ रही है
(A) बेरोजगारी की समस्या
(B) अन्न की समस्या
(C) आवास की समस्या
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

13. वातावरण में अनुचित व अनचाही आवाज या शोर क्या कहलाता है?
(A) वायु प्रदूषण
(B) ध्वनि प्रदूषण
(C) जल प्रदूषण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ध्वनि प्रदूषण

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यावसायिक स्वास्थ्य

14. भोपाल गैस त्रासदी में किस गैस का रिसाव हुआ था?
(A) मिथाइल आइसोसाइनेट का
(B) सोडियम का
(C) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का
(D) जिंक सल्फेट का
उत्तर:
(A) मिथाइल आइसोसाइनेट का

15. औद्योगिक थकान के कारण होते हैं
(A) तापमान का अधिक होना
(B) स्वच्छ वायु का अभाव व कार्य की तीव्रता
(C) पदोन्नति के अवसरों का अभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. ठंड में काम करने से कौन-सी बीमारी हो जाती है?
(A) कैंसर
(B) फ्रॉस्ट बाइट
(C) तपेदिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) फ्रॉस्ट बाइट

17. विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक संकटों के लिए उत्तरदायी कारक हो सकते हैं
(A) भौतिक व सामाजिक कारक
(B) मनोवैज्ञानिक व पर्यावरण संबंधी कारक
(C) पारिस्थितिक व विद्युत-संबंधी कारक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारी है
(A) ब्रोनकिटिस
(B) दमा
(C) निमोनिया
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

भाग-III : निम्नलिखित कथनों के उत्तर सही या गलत अथवा हाँ या नहीं में दें

1. कर्मचारियों के लिए साफ व शुद्ध पानी का प्रबंध करना आवश्यक है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

2. कर्मचारियों को व्यावसायिक स्वास्थ्य की अवहेलना करनी चाहिए। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं,

3. वैल्डिंग करते समय तेज रोशनी निकलती है जिसका आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

4. सिलिकोसिस, बाइसिनोसिस व न्यूमोकोसिस आदि व्यावसायिक रोगों के उदाहरण हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

5. बोनस भुगतान अधिनियम वर्ष 1980 में बनाया गया। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

6. काम करने के स्थान स्वच्छ एवं हवादार होने चाहिएँ। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

7. अच्छा व्यावसायिक वातावरण किसी फैक्टरी की उत्पादन क्षमता को कम करता है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

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8. व्यावसायिक स्वास्थ्य का मुख्य उद्देश्य सुरक्षित वातावरण प्रदान करना है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

9. समय-समय पर मशीनी यंत्रों की जाँच करवाते रहना चाहिए। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

10. फैक्टरियों में काम करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य को ठीक रखने की प्रक्रिया व्यावसायिक स्वास्थ्य कहलाती है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

भाग-IV : रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीविका निर्वाह हेतु कोई-न-कोई ……….. अपनाता है।
उत्तर:
व्यवसाय,

2. तीव्र औद्योगिकरण ने पारिस्थितिक में …………. उत्पन्न कर दिया है।
उत्तर:
असन्तुलन,

3. कार्यस्थल पर हवा, पानी और रोशनी आदि का ……………. होना चाहिए।
उत्तर:
उचित प्रबंध,

4. कर्मचारियों को …………….. वातावरण में कार्य करना चाहिए।
उत्तर:
स्वच्छ व हवादार,

5. रेडियोधर्मी विकिरणों से …………….. जैसी भयानक बीमारी हो सकती है।
उत्तर:
कैंसर,

6. फैक्टरी अधिनियम वर्ष ………….. में बनाया गया।
उत्तर:
1948,

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7. रुई से संबंधी फैक्टरी में काम करने वालों को प्रायः …………….. रोग हो जाता है।
उत्तर:
बिसिनोसिस,

8. …………. शिक्षा बेरोजगारी को दूर करने में लाभदायक है।
उत्तर:
व्यावसायिक,

9. राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम वर्ष ………… में बनाया गया।
उत्तर:
1948,

10. भोपाल गैस त्रासदी …………….. में घटित हुई।
उत्तर:
3 दिसम्बर, 1984

व्यावसायिक स्वास्थ्य Summary

व्यावसायिक स्वास्थ्य परिचय

विश्व के लगभग सभी व्यक्ति किसी-न-किसी व्यवसाय से संबंधित हैं। कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यदि उपाय न किए जाएँ तो इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इस प्रकार के व्यवसायों में उचित प्रबंध करके बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। उदाहरणतः ऐसे कारखाने जहाँ पर बकिंग, वैल्डिंग, स्प्रेयिंग और कैमिकल्ज आदि का काम होता है, वहाँ श्रमिकों का जीवन खतरे से खाली नहीं होता। ऐसे व्यवसाय में काम करने से अनेक प्रकार के व्यावसायिक रोग लग सकते हैं।

व्यावसायिक स्वास्थ्य सभी व्यवसायों में श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक भलाई की प्रक्रिया है जिसमें उनको व्यवसायों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की जाती हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कार्य करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा करने में सहायक होती है। यह स्वास्थ्य व्यवसाय से संबंधित विभिन्न समस्याओं की रोकथाम एवं प्रबंधन पर जोर देता है। इस प्रकार आज के मशीनी युग में व्यावसायिक स्वास्थ्य की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गई है।

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HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

Haryana State Board HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

HBSE 11th Class Physical Education संक्रामक रोग Textbook Questions and Answers

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न ( (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक रोगों से क्या अभिप्राय है? इनके फैलने के माध्यमों का वर्णन करें।
अथवा
छूत के रोग क्या होते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? इन रोगों के फैलने के विभिन्न कारण कौन-कौन-से हैं? अथवा संक्रामक (छूत के ) रोग क्या होते हैं? इनके फैलने के कारण तथा लक्षण लिखें। अथवा संक्रामक रोगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
संक्रामक रोग का अर्थ (Meaning of Communicable Diseases):
सभी प्रकार के संक्रामक रोग किसी विशेष प्रकार के रोगाणु से पनपते हैं। ये रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। जब स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोगाणु (वायरस, बैक्टीरिया, कीटाणु, फफूंदी आदि) जल, वायु, भोजन तथा स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करके उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या रोगग्रस्त करते हैं, तो वे संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases) कहलाते हैं।

संक्रामक (छूत के) रोगों के प्रकार (Types of Communicable Diseases): विषाणु, बैक्टीरिया व कीटाणुओं के आधार पर ये रोग दो प्रकार के होते हैं
1. संसर्ग रोग (Contagious Diseases):
संसर्ग रोग रोगी के प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से लगते हैं; जैसे खसरा, काली खाँसी, जुकाम आदि।

2. संचारी रोग (Infectious Diseases):
संचारी रोग अप्रत्यक्ष रूप से फैलते हैं। इन रोगों के जीवाणु साँस, पानी एवं भोजन द्वारा शरीर में प्रवेश करके हैजा, चेचक, पेचिश, टायफाइड आदि रोगों को फैलाते हैं।

फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Transmission)-संक्रामक रोग निम्नलिखित कारणों (माध्यमों) से फैलते हैं
1. वायु द्वारा (By Air): साँस लेने से वायु द्वारा रोगाणु शरीर में प्रविष्ट होकर स्वस्थ व्यक्ति को बीमार कर देते हैं। चेचक, काली खाँसी, जुकाम आदि रोग वायु के माध्यम से ही फैलते हैं।

2. भोजन और पानी द्वारा (Through Food and Water): कई रोग दूषित भोजन और गंदे पानी द्वारा भी फैलते हैं। मक्खियाँ भोजन पर बैठकर उसको दूषित कर देती हैं और रोग के रोगाणु भोजन में छोड़ देती हैं। ऐसे भोजन को खाने से व्यक्ति बीमार हो जाता है। गंदे पानी के प्रयोग से हैजा, पेचिश, मियादी बुखार आदि रोग हो जाते हैं।

3. प्रत्यक्ष स्पर्श द्वारा (By Direct Contact): रोगी द्वारा इस्तेमाल किए हुए वस्त्रों, बर्तनों आदि का उपयोग करने या उसको स्पर्श करने से छूत की बीमारियाँ फैलती हैं; जैसे जुकाम, चेचक, खुजली आदि।

4. कीड़ों द्वारा (Through Insects): जब मच्छर या खटमल किसी रोगी को काटते हैं तो वे रोगाणु अपने अंदर ले जाते हैं। फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते समय वे रोगाणु उसके शरीर में छोड़कर उसे रोगग्रस्त कर देते हैं। मलेरिया, फाइलेरिया व खुजली आदि कीड़ों द्वारा फैलने वाले संक्रामक रोग हैं। लक्षण (Symptoms): संक्रामक रोगों के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. छूत के रोगों में मिलते-जुलते लक्षण पाए जाते हैं। इनमें बीमारी बढ़ने पर शरीर बेजान हो जाता है।
  2. पूरे शरीर में पीड़ा होने लगती है जो असहनीय होती है।
  3. सिर में दर्द रहने लगता है और बुखार तेजी से बढ़ने लगता है।
  4. शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
  5. शरीर में कंपकंपी होने लगती है और रोगी को ठंड लगने लगती है।
  6. शरीर कमजोर होने लगता है।
  7. छूत के रोगों में उल्टियाँ तथा पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने से दस्त भी लग जाते हैं।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 2.
संक्रामक रोगों का क्या अर्थ है? संक्रामक रोगों के बचावात्मक या सुरक्षात्मक उपायों का वर्णन करें। अथवा छूत के रोगों से बचने के लिए हमें किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए? अथवा छूत की बीमारियों को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर:
संक्रामक रोगों का अर्थ (Meaning of Communicable Diseases):
संक्रामक रोगों से अभिप्राय उन रोगों से है जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया, वायरस आदि के कारण फैलते हैं। ये रोग रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने अर्थात् संक्रमण से फैलते हैं।

बचावात्मक या सुरक्षात्मक उपाय (Preventive Measures): संक्रामक रोगों से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय/नियम अपनाए जा सकते हैं
1. रोगी को अलग रखना (Isolation of Patient):
जो व्यक्ति रोग का शिकार होता है उसे घर के शेष व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए जिससे कम-से-कम व्यक्तियों का उससे संपर्क हो सके। केवल एक या दो व्यक्ति ही उसकी देखभाल के लिए होने चाहिएँ। अस्पताल में भी संक्रामक रोग से प्रभावित व्यक्ति को अलग कमरे में रखना चाहिए। ऐसा करने से संक्रामक रोगों के रोगाणुओं को फैलने से रोका जा सकता है।

2. स्वास्थ्य विभाग को सूचना देना (Information to the Health Department):
यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक रोग से प्रभावित हो जाता है तो उसके आस-पड़ोस के या उसके घर के व्यक्तियों का यह नैतिक कर्त्तव्य बन जाता है कि वे इस बात की सूचना शीघ्रता से स्वास्थ्य विभाग को दें ताकि वह बीमारी और कहीं न फैल सके। इस प्रकार की सूचना हैजा, चेचक, मलेरिया, रेबीज़ और प्लेग के बारे में अवश्य देनी चाहिए।

3. व्यक्तिगत सफाई की ओर विशेष ध्यान देना (Proper Care of Personal Cleanliness):
संक्रामक रोगों की रोकथाम या बचाव में व्यक्तिगत सफाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्तिगत सफाई या स्वच्छता के लिए दैनिक कार्य ध्यान से करने पड़ते हैं; जैसे शौच आदि से निवृत्त होकर हाथ साबुन से अच्छी प्रकार साफ करना, प्रतिदिन ठीक प्रकार से नहाना, समय-समय पर नाखून काटना, घर में तौलिया, रूमाल, कंघी, बर्तन आदि साफ रखना तथा भोजन करने से पहले हाथ अच्छे से साफ करना आदि।

4. टीकाकरण (Vaccination):
टीकाकरण कराने से ये रोग कम होते हैं, क्योंकि इससे व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। पोलियो, खसरा, चेचक, टायफाइड आदि से संबंधित टीके बचपन में ही लगवा लेने चाहिएँ ताकि इन रोगों से बचा जा सके।

5. पीने के पानी का नियमित निरीक्षण (Regular Checking of Drinking Water):
समय-समय पर पीने के पानी का निरीक्षण अवश्य करते रहना चाहिए। पीने के पानी के द्वारा होने वाले संक्रामक रोगों से बचने के लिए क्लोरीन एवं लाल दवाई युक्त पानी ही पीने हेतु उपयोग में लाना चाहिए। इसके अलावा पानी को पीने योग्य बनाने के लिए आधुनिक यंत्रों या उपकरणों का प्रयोग भी किया जा सकता है। ऐसा करने से पानी के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

6. विसंक्रमण/कीटाणु-मुक्त करना (Disinfection):
जब बीमार व्यक्ति ठीक हो जाए तो उसके द्वारा प्रयोग किए गए कपड़े, बिस्तर, बर्तन आदि वस्तुओं से रोगाणुओं को नष्ट कर देना चाहिए, ताकि इन वस्तुओं से स्वस्थ व्यक्ति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क होने से उसके स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव न पड़े।

7. आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था (Arrangement of Cleanliness in Neighbourhood):
संक्रामक रोगों से बचने के लिए अपने आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यदि आस-पास गंदगी हो या गंदा पानी एकत्रित हो तो संक्रामक रोग अधिक फैलते हैं। इसीलिए आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए ताकि इस प्रकार के रोगों से स्वस्थ व्यक्ति बच सकें।

8. संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा (Proper Education Regarding Communicable Diseases):
सभी व्यक्तियों को संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। टी०वी०, रेडियो, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और शिक्षण संस्थानों आदि के माध्यम से संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा प्रदान की जा सकती है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे रोगों से बचाव किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
एड्स (AIDS) क्या है? इसके लक्षण तथा उपचार के उपाय लिखें।
अथवा
एड्स के फैलने के माध्यमों, लक्षणों तथा बचाव व नियंत्रण के उपायों का वर्णन करें। अथवा “एड्स एक जानलेवा बीमारी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एड्स का अर्थ (Meaning of AIDS)-एड्स का पूरा नाम है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome)। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर अनेक रोगों/ संक्रमण से ग्रसित हो जाता है। एड्स एक जानलेवा बीमारी है क्योंकि एच०आई०वी० (HIV) नामक वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसकी रोगों से लड़ने वाली शक्ति (प्रतिरोधक शक्ति) कम कर देता है और शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है।

कारण या माध्यम (Causes/Modes): एड्स के प्रमुख माध्यम निम्नलिखित हैं:

  • उपचार के लिए लगाए जाने वाले टीके में दूषित सिरिंजों का प्रयोग करना।
  • स्वास्थ्य संबंधी गलत आदतें व व्यक्तिगत सफाई की ओर ध्यान न देना।
  • यौन संबंधी गलत आदतें।
  • दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग करना।
  • रक्त चढ़ाने संबंधी बरती जाने वाली असावधानी आदि।

लक्षण (Symptoms): एड्स के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  • शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है।
  • रोगी लम्बे समय तक बीमार रहता है जिसका कोई कारण दिखाई नहीं देता।
  • अचानक शरीर का वजन कम हो जाता है।
  • स्मरण शक्ति समाप्त होने लगती है।
  • यदि शरीर में कोई जख्म हो जाए, वह लम्बे समय तक ठीक नहीं होता।
  • खून बहने पर जल्दी बन्द नहीं होता।
  • सिर में दर्द भी रहता है।

बचाव व उपचार के उपाय (Measures of Prevention and Treatment): एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसका सबसे अच्छा उपाय बचाव या सावधानी माना जाता है। एड्स के बचाव व उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं
1. यौन संबंधी आदतों में सुधार करना चाहिए। अपने जीवन-साथी के प्रति वफादार रहना चाहिए। यौन संबंध केवल अपने जीवन-साथी के साथ बनाएँ।

2. सुरक्षित रक्त आदान-प्रदान करें, रक्त लेने से पहले यह निश्चित कर लें कि वह रक्त एच०आई०वी० से ग्रस्त तो नहीं है अर्थात् जिन्हें एड्स की आशंका हो, उन्हें रक्तदान नहीं करना चाहिए और तुरंत अपना एच०आई०वी० परीक्षण करवाना चाहिए।

3. दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

4. इंजेक्शन के लिए हमेशा ऐसी सुइयों का प्रयोग करना चाहिए जिनका केवल एक बार ही प्रयोग किया जाता है अर्थात् इंजेक्शन लगवाते समय हमेशा यह ध्यान रखें कि डिस्पोजेबल सीरिंज या सुइयों का ही इस्तेमाल हो।

6. गर्भवती महिलाओं को अपना एच०आई०वी० परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। अगर जाँच पॉजिटिव है तो बच्चा हो जाने के बाद एच०आई०वी० से ग्रस्त माँ को स्तनपान नहीं करवाना चाहिए। ऐसी स्थिति में बच्चे को बोतल से दूध पिलाना ही बेहतर माना जाता है।

7. एच०आई०वी० पॉजिटिव व्यक्ति को इलाज के दौर एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं।

प्रश्न 4.
हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) के लक्षण और इलाज के उपाय लिखें। अथवा हेपेटाइटिस-बी के माध्यम, लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-बी एक संक्रामक रोग है जो रक्त या संक्रमित व्यक्ति के शरीर के अन्य तरल पदार्थ के साथ संपर्क के माध्यम से फैलता है। हेपेटाइटिस के विषैले तत्त्वों से जिगर की कोशिकाओं को हानि पहुँचती है जिसके कारण पीलिया हो जाता है। इसको ‘पीलिया की महामारी’ भी कहा जाता है।

लक्षण (Symptoms): हेपेटाइटिस-बी के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शरीर का पीला पड़ जाना।
  2. अधिक थकावट महसूस होना।
  3. भूख न लगना।
  4. आँखों के सफेद भाग का पीला पड़ जाना।
  5. हेपेटाइटिस के प्रभाव से रोगी को तीव्र ज्वर, सिरदर्द तथा जोड़ों में दर्द रहना।
  6. उत्तेजनशील चकते दिखाई देना।
  7. संक्रमण के कुछ दिनों बाद गहरे पीले रंग का मूत्र तथा हल्के रंग की विष्ठा (मल) आना।

बचाव व इलाज के उपाय (Measures of Prevention and Treatment) हेपेटाइटिस-बी के बचाव व इलाज के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. हेपेटाइटिस-बी से बचाव के लिए साफ-सफाई बेहद आवश्यक है। इस रोग से बचने के लिए खाने और पीने में हमेशा साफ चीजों का ही उपयोग करना चाहिए।
  2. बाहर का खाना खाने से बचना चाहिए। अगर खाना भी पड़े तो साफ-सफाई का अवश्य ध्यान रखें और हमेशा पौष्टिक व संतुलित भोजन ही खाना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  4. महामारी फैलने के दौरान उबला हुआ और क्लोरीन-युक्त पानी का प्रयोग करना चाहिए।
  5. हरी पत्तेदार सब्जियाँ खानी चाहिएँ और मौसमी एवं गन्ने का जूस पीना चाहिए।
  6. रोगी के वस्त्र, बिछौने तथा बर्तन छूने के उपरांत हाथों को भली-भांति धोना चाहिए।
  7. डॉक्टर की सलाहानुसार हेपेटाइटिस-बी के टीके बचाव हेतु अवश्य लगवाने चाहिए।
  8. रक्त चढ़ाने पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सूई नई हो और रक्त संक्रमित न हो।
  9. किसी दूसरे की सूई, रेजर, टूथब्रश आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 5.
हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C) के लक्षण, उपचार तथा बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी का अर्थ है-लीवर में सूजन। जब यह सूजन किसी विशेष प्रकार के सूक्ष्म-जीवाणु की वजह से लम्बी होती है, तो ऐसी स्थिति को हेपेटाइटिस-सी कहा जाता है। हेपेटाइटिस-सी अथवा सीरम एक घातक संक्रामक रोग है। इस रोग के सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती है। ये सूक्ष्म-जीवाणु लीवर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। यह रोग शरीर में दूषित रक्त या रक्त पदार्थों के चढ़ने से फैलता है। यह रोग शरीर के किसी अंग का प्रत्यारोपण करने से भी हो सकता है।

लक्षण (Symptoms): हेपेटाइटिस-सी के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. बुखार होना।
  2. कान महसूस होना।
  3. जिगर तेजी से क्षतिग्रस्त होना।
  4. आँखों एवं त्वचा का पीला होना।
  5. जोड़ों और माँसपेशियों में दर्द होना।
  6. मानसिक कार्य करने में परेशानी होना।
  7. पेट व शरीर में दर्द होना।
  8. भूख कम लगना।
  9. त्वचा में खुजली होना।
  10. रक्त की उल्टी आना।

उपचार (Treatment) हेपेटाइटिस-सी के उपचार की इंटरफेरोन, राइबावेरिन व अमान्टिडिन दवाइयाँ ही उपलब्ध हैं। ये इसके उपचार के लिए लाभदायक हैं। होम्योपेथिक दवाइयों से भी हम इस रोग की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इन दवाइयों से इस बीमारी के लक्षणों को कम किया जा सकता है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  1. रोगी को भरपूर आराम करना चाहिए।
  2. स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए साफ-सुथरा भोजन तथा शुद्ध पानी पीना चाहिए। भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  4. डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उचित दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. हरी पत्तेदार सब्जियाँ खाएँ, मौसमी एवं गन्ने का रस पिएँ।
  6. किसी दूसरी की सूई, रेजर और टूथब्रश इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 6.
रेबीज़ के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव व इलाज के उपाय लिखें।
उत्तर:
रेबीज़ के फैलने के कारण (Causes of Spreading Rabies):
रेबीज़ रोग बहुत संक्रामक बीमारी है क्योंकि इस बीमारी से रोगी की मृत्यु होने की संभावना रहती है। रोगी पानी से डरने लगता है इसीलिए इसे जलभीति रोग भी कहते हैं। यह रोग किसी पागल जानवर; जैसे बंदर, बिल्ली, खरगोश तथा विशेषकर कुत्ते के द्वारा काटने से होता है। यह रोग काटने वाले जंतु की लार के साथ मनुष्य के शरीर के रक्त में प्रवेश कर उसे रोगग्रस्त कर देता है।

लक्षण (Symptoms): रेबीज़ के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. रोगी को सिर-दर्द व बुखार हो जाता है।
  2. रोगी को अधिक पानी पीने का मन करता है लेकिन प्यास होने पर भी उसे पी नहीं पाता।
  3. रेबीज़ से प्रभावित व्यक्ति को तीव्र मस्तिष्क पीड़ा, तीव्र ज्वर, गले व छाती की पेशियों में तीव्र जकड़न होती है।
  4. रोगी को तरल पदार्थ या भोजन लेने में कठिनाई होती है।
  5. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अत्यधिक क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है।
  6. इस रोग का प्रकोप पशु के काटने के तीन दिन के बाद व तीन वर्ष के भीतर कभी भी हो सकता है।

बचाव व इलाज के उपाय (Measures of Prevention and Treatment): रेबीज़ से बचाव के लिए जरूरी है-इसके बारे में जानकारी होना। रेबीज़ के बचाव व इलाज के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पशुओं के काटने पर काटे गए स्थान को पानी व साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
  2. धोने के बाद काटे गए स्थान पर अच्छी तरह से टिंचर या पोवोडीन आयोडीन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य पशुओं की लार में पाए जाने वाले कीटाणु सिरोटाइपवन लायसा वायरस (Sirotypeone Laysa Virus) की ग्यालकोप्रोटिन की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मार एक हद तक कम हो जाती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है।
  3. किसी पागल जानवर के काटने पर तुरंत नजदीकी चिकित्सा केन्द्र पर ले जाना चाहिए।
  4. रोगी को टैटनस का इंजेक्शन लगवाकर चिकित्सालय ले जाना चाहिए। चिकित्सक की सलाह से काटे गए स्थान पर कार्बोलिक एसिड लगाया जाता है, जिससे अधिकतम कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  5. इसके बाद चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार इंजेक्शन लगवाए जाते हैं, जो 3 या 14 दिन की अवधि के होते हैं।
  6. इंजेक्शन लगाने की क्रमबद्धता में लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 7.
टैटनस के फैलने के कारण, लक्षण एवं बचाव व उपचार के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टैटनस (Tetanus):
टैटनस को हिन्दी में धनुस्तंभ कहा जाता है। यह एक संक्रामक रोग है जिसमें कंकाल पेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएँ प्रभावित होती हैं। यह रोग मिट्टी में विद्यमान बैक्टीरिया से घावों को प्रदूषित करने से फैलता है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी कहा जाता है। यह बैक्टीरिया सामान्यतया मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। हमारे शरीर में इस बैक्टीरिया का प्रवेश कटे या फटे घाव से होता है।1. फैलने के कारण (Causes of Transmission): टैटनस के फैलने के कारण निम्नलिखित हैं

  • इस रोग का मुख्य कारण बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया होता है।
  • यह बैक्टीरिया मिट्टी, धूल या जानवरों के मल में रहता है। मिट्टी व धूल के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार किसी खुले घाव के अंदर बैक्टीरिया के प्रवेश हो जाने के कारण यह रोग फैलता है।
  • यह रोग त्वचा पर किसी चोट या घाव के कारण अधिक फैलता है।

2. लक्षण (Symptoms): टेटनस के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  • बोलने और साँस लेने में कठिनाई होना।
  • गर्दन में दर्द एवं अकड़न होना।
  • शरीर में खुजली, माँसपेशियों में खिंचाव, सूजन एवं कमजोरी होना।
  • पीठ की माँसपेशियों में दर्द होना।
  • जबड़ा सिकुड़ना और जकड़ना।
  • घाव के आस-पास की माँसपेशियों में जकड़न पैदा होना।

3. बचावव उपचारके उपाय (Measures of Prevention and Treatment): टैटनस से बचाव व उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. कोई भी ऐसा घाव जिससे त्वचा फट गई हो, उसे तुरंत पानी और साबुन से साफ किया जाना चाहिए।
  2. घाव को कभी खुला न छोड़ें। खुले घाव में संक्रमण का अधिक खतरा रहता है। यदि घाव से खून बह रहा हो तो उस पर सूती या सुखा कपड़ा बाँधे।
  3. टीकाकरण द्वारा टैटनस से पूरी तरह बचाव संभव है। इससे बचाव के लिए बचपन और गर्भावस्था के दौरान टीकाकरण अवश्य करवा लेना चाहिए।
  4. शरीर के किसी भी हिस्से पर चोट लगने पर एंटी-टैटनस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
  5. टैटनस टॉक्सायड में निष्क्रिय टेटनस टॉक्सीन को रसायनों और ताप के प्रभाव में लाकर उसके जहरीले प्रभाव को कम किया जाना चाहिए।
  6. रोगी को स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए अर्थात् धूल, मिट्टी भरे वातावरण से दूर रहना चाहिए।
  7. हल्के हाथ से तारपीन के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए।
  8.  तेल को गर्म करके और उसमें हल्दी मिलाकर घाव पर लगाएँ। घाव पर नीम का तेल लगाने से भी टेटनस का डर नहीं रहता।

प्रश्न 8.
मलेरिया (Malaria) रोग के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय बताइए।
अथवा
मलेरिया कितने प्रकार का होता है? इसके फैलने के माध्यमों तथा उपचार व रोकथाम का वर्णन करें।
उत्तर:
मलेरिया रोग के फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Transmission of Malaria):
मलेरिया एक संक्रामक रोग है जो मादा एनाफ्लीज़ (Female Anopheles) नामक मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु छोड़ देता है, जिससे मच्छर के द्वारा काटे जाने वाले व्यक्ति को मलेरिया हो जाता है। इसे ‘मौसमी बुखार’ भी कहते हैं । यह रोग लगभग 7 से 11 दिन तक रह सकता है।

प्रकार (Types): मलेरिया मुख्यत: चार प्रकार का होता है

  • प्लाज्मोडियम विवेक्स (Plasmodium Vivax),
  • प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium Ovale),
  • प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium Malariae),
  • प्लाज्मोडियम फैल्सिपैरम (Plasmodium Falciparum)।

लक्षण (Symptoms): मलेरिया के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  • रोगी को ठंड लगने लगती है और शरीर काँपने लगता है।
  • शरीर का तापमान 103°F से 106°F तक हो जाता है।
  • कभी-कभी उल्टी भी आ जाती है।
  • बुखार उतरने पर पसीना काफी आता है।
  • शरीर बेजान और कमजोर हो जाता है और शरीर में दर्द होने लगता है।
  • शरीर में खून की कमी हो जाती है।

उपचार (Treatment): मलेरिया एक उपचार-योग्य रोग है। उपचार का प्राथमिक उद्देश्य पूर्ण इलाज सुनिश्चित करना है, जो कि रोगी के रक्त से प्लाज्मोडियम परजीवी का तेजी से और पूर्ण उन्मूलन है, ताकि गंभीर बीमारी या मलेरिया को रोका जा सके। मलेरिया होने पर तुरंत कोशिश करनी चाहिए कि रोगी को डॉक्टर के पास ले जाकर जाँच करवाएँ । जाँच में मलेरिया की पुष्टि होने पर तुरंत उपचार शुरू करवाना चाहिए।

मलेरिया में क्लोरोक्विन (Chloroquine) जैसी एंटी-मलेरियल दवा (Anti-malarial Medicine) दी जाती है। इस दवा के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए यह दवा डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेनी चाहिए। रोगी को पूरा आराम करने देना चाहिए। उसे हर 6 घंटे में पैरासिटामोल (Paracetamol) देनी चाहिए और बार-बार पानी व तरल पदार्थों का सेवन करवाना चाहिए।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention): मलेरिया की रोकथाम या बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए ताकि मच्छर न काट सकें।
  2. मच्छरों के पैदा होने वाले स्थान पर मच्छरों को मारने वाली दवाई का छिड़काव करना चाहिए ताकि मच्छर पैदा ही न हो सकें।
  3. रोगी को कुनैन की गोलियाँ खानी चाहिएँ।
  4. घरों के आसपास गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  5. नमी और गंदे स्थानों पर डी०डी०टी० (D.D.T.) का छिड़काव करना चाहिए ताकि मच्छर पैदा ही न हो सकें।
  6. रोगी के उपयोग किए हुए कपड़े व बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए अर्थात् इन्हें उपयोग करने से पहले कीटाणु-रहित कर देना चाहिए।
  7. रोगी का कमरा अलग होना चाहिए।

प्रश्न 9.
तपेदिक अथवा क्षय रोग (Tuberculosis – T.B.) के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
अथवा
तपेदिक रोग (टी०बी०) मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं? इनके लक्षण और रोकथाम के उपाय लिखें।
उत्तर:
तपेदिक रोग (Tuberculosis – T.B.)-तपेदिक या क्षय रोग वायु द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। यह रोग माइकोबैक्टीरिम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) नामक रोगाणु द्वारा फैलता है। शुरू में इस रोग का पता नहीं चल पाता परंतु इसके बढ़ जाने पर यह सेहत को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है।

प्रकार (Types)-तपेदिक रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
(i) फुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Pulmonary Tuberculosis),
(ii) अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Non-pulmonary Tuberculosis)।

(i) फुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Pulmonary Tuberculosis): फुफ्फुसीय तपेदिक रोग का प्रभाव फेफड़ों पर होता है। इस रोग के फैलने के कारण रोगी द्वारा थूकी बलगम तथा उनकी साँस होती है, जो वायु में रोगाणु छोड़ देती है और वह स्वस्थ व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देती है।
लक्षण (Symptoms):

  1. तपेदिक में थोड़ा काम करने पर रोगी की साँस फूलने लगती है।
  2. शरीर का भार कम होने लगता है।
  3. भूख कम लगती है।
  4. थूक वाली खाँसी रहती है। कभी-कभी थूक के साथ खून भी आ जाता है।
  5. बलगम पीले रंग की आती है।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  • रोगी व उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं को अलग रखना चाहिए।
  • रोगी की बलगम की जाँच करवाते रहना चाहिए।
  • तपेदिक होने पर औषधि या दवाई का, जब तक यह रोग ठीक न हो जाए, सेवन करते रहना चाहिए।
  • रोगी को पूर्ण आराम करना चाहिए। उसे किसी अच्छे सेनीटोरियम में रखा जाए।
  • रोगी को संतुलित और पौष्टिक भोजन देना चाहिए।
  • रोगी की थूक और बलगम को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए। हो सके तो उसे ज़मीन में दबा देना चाहिए।
  • रोग से बचने के लिए बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

(ii) अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Non-pulmonary Tuberculosis): अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग बच्चों में अधिक होता है। अफुफ्फुसीय तपेदिक अर्थात् लसिका ग्रंथियों, हड्डियों, जोड़ों, गले, आंतड़ियों, गुर्दे आदि के तपेदिक का मुख्य कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की कमी होता है।

लक्षण (Symptoms):

  1. पेट में कब्ज रहती है।
  2. रोगग्रस्त ग्रंथियाँ व आंतड़ियाँ आदि काम नहीं करतीं।
  3. ज्वर रहने लगता है।
  4. शरीर कमजोर होने लगता है।
  5. रोगग्रस्त व्यक्ति जल्दी थकान अनुभव करता है।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  1. रोग के लक्षण देखते ही तुरंत इलाज करवाना चाहिए।
  2. रोगी को कुछ समय के लिए सेनीटोरियम में रखना चाहिए।
  3. रोगी को पूर्ण आराम देना चाहिए।
  4. रोगी को खुली हवा में रखा जाए।
  5. रोगी को संतुलित और पौष्टिक आहार देना चाहिए।
  6. रोगी को बी०सी०जी० का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

प्रश्न 10.
डेंगू बुखार के फैलने के माध्यमों तथा इलाज व रोकथाम का वर्णन करें।
अथवा
डेंगू फीवर के फैलने के कारणों, लक्षणों तथा नियंत्रण व बचाव के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डेंगू बुखार के फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Spreading Dengue):
डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ ज्वर (Break Bone Fever) भी कहते हैं। यह एक संक्रामक रोग है जो मच्छरों के काटने से फैलता है। डेंगू बुखार हवा, पानी या साथ खाने से नहीं फैलता। यह एडिज़ इजिप्टी (Aedes Aegypti) नामक मादा प्रजाति के मच्छरों के काटने से फैलता है। जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसके शरीर में डेंगू के विषाणु छोड़ देते हैं जिससे स्वस्थ व्यक्ति भी इस बुखार से ग्रस्त हो जाता है।

लक्षण (Symptoms):

  1. अचानक तीव्र बुखार होना।
  2. सिर, बदन और आँखों में दर्द होना।
  3. माँसपेशियों व जोड़ों में दर्द होना।
  4. शरीर पर लाल चकते निकल आना।
  5. भूख कम लगना और चक्कर आना।
  6. शरीर में कमजोरी होना आदि।

इलाज (Treatment):
डेंगू बुखार की कोई विशेष दवा नहीं है, पर फिर भी इस रोग के कारण शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए रोगी को डॉक्टर की सलाहानुसार उचित समय पर दवा लेनी चाहिए और उचित आराम करना चाहिए। इस बुखार में एस्प्रीन या अन्य गैर-स्टेरोइड दवाएँ लेने से रक्त-स्राव बढ़ सकता है।

इसलिए रोगग्रस्त रोगियों को डॉक्टर की सलाहानुसार इनकी जगह पर पेरासिटामोल (Paracetamol) आदि देनी चाहिए। रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम होने या रक्त-स्राव शुरू होने पर रक्त चढ़वा लेना चाहिए। तरल पदार्थों का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी न हो सके।

नियंत्रण एवं बचाव के उपाय (Measures of Control and Prevention): डेंगू बुखार के नियंत्रण एवं बचाव के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. डेंगू बुखार से बचने का एकमात्र उपाय मच्छरों से स्वयं को बचाना है। इसलिए मच्छरों के काटने से स्वयं को बचाएँ।
  2. एडिज़ प्रजाति के मच्छर दिन में काटते हैं। इसलिए इनसे बचने के लिए अपने शरीर को कपड़ों से ढककर रखना चाहिए, ताकि ये मच्छर काट न सकें।
  3. मच्छर प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहना चाहिए और मच्छरों के पैदा होने वाली जगह को नष्ट कर देना चाहिए।
  4. घर के आस-पास गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  5. ऐसी जगह जहाँ डेंगू फैल रहा है वहाँ पानी को इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  6. बदलते मौसम में अगर आप किसी नई जगह पर जा रहे हैं तो मच्छरों से बचने के उत्पादों का प्रयोग करें।
  7. घर में और खुले बर्तनों में पानी जमा न होने दें। यदि आप ड्रम या बाल्टी में पानी जमा करना चाहें तो उन्हें ढककर रखें।
  8. घर में कीटनाशक दवाई का छिड़काव करवाएँ।
  9. यदि आपके आस-पास कोई व्यक्ति डेंगू बुखार से ग्रस्त है तो उसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग एवं नगर निगम को अवश्य दें, जिससे तुरंत मच्छर विरोधी उपाय किया जा सके।
  10. डॉक्टर की सलाहानुसार घरेलू नुस्खों को अपनाना चाहिए; जैसे पपीते के पत्तों का रस व गिलोए का पानी आदि का सेवन करना।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 11.
प्लेग (Plague) नामक महामारी के फैलने के कारण, इलाज तथा बचाव के उपाय लिखें।
अथवा
प्लेग कैसे फैलता है? इस रोग के लक्षणों तथा रोकथाम के उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्लेग के फैलने के कारण (Causes of Transmission of Plague):
प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग पास्चुरेला पेस्टिस (Pasteurella Pestis) नामक जीवाणु द्वारा फैलता है। वैसे प्लेग चूहों को होता है। इसके पिस्सू पहले चूहे में प्रवेश कर उसे मार देते हैं और फिर ये मनुष्य को काटकर उसे प्लेग-ग्रस्त कर देते हैं। इस तरह से यह रोग मनुष्यों में फैल जाता है। प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग गाँव या शहर में किसी एक को हो जाने से बड़ी तेजी से चारों तरफ फैल जाता है। इसी कारण प्लेग को महामारी कहा जाता है।

लक्षण (Symptoms): प्लेग के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. जांघ व गर्दन आदि पर गिल्टियाँ निकल आती हैं।
  2. अचानक तेज बुखार हो जाता है। यह 103°F से 106°F तक हो सकता है।
  3. आँखें लाल हो जाती हैं और इनमें से पानी बहने लगता है।
  4. प्यास अधिक लगने लगती है।
  5. शरीर कमजोर हो जाता है।

इलाज (Treatment): प्लेग एक बहुत ही गंभीर बीमारी है, लेकिन इसका इलाज संभव है। प्लेग का इलाज आम एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है। सामान्यतया इसके इलाज में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

  1. शक्तिशाली व प्रभावी एंटीबायोटिक; जैसे जेंटामाइसिन (Gentamicin) व सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin)।
  2. इंट्रावेनस फ्लूड (नसों में दिए जाने वाले द्रव्य)।
  3. ऑक्सीजन।
  4. साँस लेने में मदद करने वाले उपकरण।

प्लेग से ग्रस्त व्यक्ति का जितनी जल्दी इलाज किया जाए, उसकी उतनी ही जल्दी पूरी तरह से स्वस्थ होने की संभावना बढ़ जाती है। इसका इलाज रोग ठीक होने के कई सप्ताह तक निरंतर चलता रहता है । इलाज के दौरान रोगी को अलग रखना चाहिए, ताकि किसी अन्य व्यक्ति में यह संक्रमण फैलने से रोका जा सकें।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention): प्लेग की रोकथाम या बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पिस्सू और चूहों को मारने के लिए की मार दवाई का प्रयोग करना चाहिए।
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
  3. रोग के लक्षण देखते ही स्वास्थ्य विभाग को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  4. घर की सफाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी में कीटाणुनाशक दवाई आदि डालनी चाहिए।
  5. मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए ताकि पिस्सुओं को नष्ट किया जा सके।
  6. प्लेग का टीका लगवाना चाहिए।
  7. गर्म पानी से नहाना चाहिए।
  8. यह एक जानलेवा बीमारी है, इसलिए इसका डॉक्टरी इलाज करवाना चाहिए।
  9. रोगी को संतुलित एवं पौष्टिक आहार देना चाहिए।

प्रश्न 12.
रोग निवारक क्षमता क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन करते हुए इसको प्राप्त करने के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
रोग प्रतिरोधक शक्ति (Immunity Power) से आपका क्या अभिप्राय है? यह कितने प्रकार की होती है तथा इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
रोग प्रतिरोधक शक्ति या क्षमता का अर्थ (Meaning of Immunity Power):
हमारा वातावरण अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं से भरा हुआ है। इनमें से बहुत से जीवाणु या रोगाणु हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। लेकिन हम सभी इन रोगाणुओं से प्रभावित नहीं होते। ऐसा हमारे शरीर में उपस्थित ऐसी शक्ति या क्षमता के कारण होता है जो इन रोगाणुओं से हमारी सुरक्षा करती है। हमारे शरीर में उपस्थित इस रोग रोधक शक्ति को ही रोग प्रतिरोधक शक्ति या रोग निवारक क्षमता कहते हैं । इस शक्ति को जीवन रक्षक शक्ति’ भी कहा जाता है।

रोग प्रतिरोधक शक्ति के प्रकार (Types of Immunity Power): रोग प्रतिरोधक शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है
1. प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति (Natural Immunity Power),
2. अर्जित या कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति (Acquired or Artificial Immunity Power)।

1. प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति (Natural Immunity Power):
इस शक्ति को जन्मजात (Innate) रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कहते हैं, क्योंकि यह शक्ति हमें जन्म से प्राप्त होती है। यह शक्ति अर्जित नहीं की जाती, बल्कि जन्मजात होती है। यह हमें जाति, वंश या व्यक्तिगत प्रवृत्तियों के कारण प्राप्त होती है।

2. अर्जित या कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति (Acquired or Artificial Immunity Power):
कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति को हम अपने जीवन-काल में अर्जित करते हैं। यह शक्ति निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

(i) सक्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक क्षमता (Active Artificial Immunity Power):
इसको सक्रिय अर्जित रोग निवारक शक्ति भी कहते हैं। सक्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक रोग प्रतिरोधक क्षमता उसे कहते हैं जो व्यक्ति को उसके ही शरीर के तंतुओं के प्रयत्नों से अर्जित होती है; जैसे एक बार चेचक हो जाने पर उसके शरीर में ऐसी प्रतिविष (एंटीबॉडीज) तैयार हो जाते हैं, जिससे उस व्यक्ति को पुनः चेचक नहीं होता।

(ii) निष्क्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक क्षमता (Passive Artificial Immunity Power):
इसको अक्रिय अर्जित रोग निवारक शक्ति भी कहते हैं। इसके अंतर्गत किसी पशु में कुछ समय के अंतराल पर सूक्ष्म मात्रा में रोग के कीटाणु पहुँचाए जाते हैं। इससे उस पशु के रक्त में धीरे-धीरे उस रोग के लिए प्रतिवर्ष उत्पन्न हो जाते हैं। फिर उस पशु का रक्त-वारि (Serum) लेकर मनुष्य के शरीर में पहुँचाया जाता है। उसके शरीर में यह प्रतिवर्ष (Antibodies) रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। इस प्रकार से अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता स्थायी होती है।

रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्राप्त करने के उपाय (Achieving Measures of Immunity Power): रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्राप्त करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. संतुलित एवं पौष्टिक आहार लेने से।
  2. व्यक्तिगत स्वास्थ्य या सफाई की ओर विशेष ध्यान देने से।
  3. स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण में रहने से।
  4. नियमित व्यायाम व आसन करने से।
  5. मादक पदार्थों के सेवन निषेध से।
  6. टीकाकरण द्वारा।
  7.  नियमित दिनचर्या एवं डॉक्टरी जाँच से आदि।

उपर्युक्त उपायों द्वारा इस शक्ति को प्राप्त किया या बढ़ाया जा सकता है। प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति जन्मजात होती है अर्थात् इसे अर्जित नहीं किया जा सकता, परंतु इस शक्ति को इन उपायों द्वारा बढ़ाया अवश्य जा सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक तथा असंक्रामक रोगों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संक्रामक तथा असंक्रामक रोगों में निम्नलिखित अंतर हैंसंक्रामक रोग असंक्रामक रोग

1. संक्रामक रोग (Communicable Diseases) वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से अन्य व्यक्तियों को लग जाते हैं।1. असंक्रामक रोग (Non-communicable Diseases) वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं लगते।
2. ये रोग संक्रमण से फैलते हैं।2. ये रोग संक्रमण से नहीं फैलते।
3. रेबीज, खसरा, चेचक, काली खाँसी आदि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।3. विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग, बवासीर, मधुमेह आदि असंक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।
4. ये रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने और उसके प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल करने से फैलते हैं।4. ये रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने और उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल से फैलते हैं। करने से नहीं फैलते।
5. इन रोगों के रोगवाहक विशेष प्रकार के सूक्ष्म रोगाणु (जीवाणु, कीटाणु, विषाणु) होते हैं।5. ये रोग संतुलित व पौष्टिक आहार के अभाव के कारण फैलते हैं।

प्रश्न 2.
संक्रामक रोगों के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संक्रामक रोगों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. छूत के रोगों में मिलते-जुलते लक्षण पाए जाते हैं। इनमें बीमारी बढ़ने पर शरीर बेजान व कमजोर हो जाता है।
  2. पूरे शरीर में पीड़ा होने लगती है जो असहनीय होती है।
  3. सिर में दर्द होने लगता है।
  4. शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
  5. शरीर में कंपकंपी होने लगती है और रोगी को ठंड लगने लगती है।
  6. बुखार तेजी से बढ़ने लगता है।
  7. छूत के रोगों में उल्टियाँ तथा पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने से दस्त भी लग जाते हैं।

प्रश्न 3.
पानी से फैलने वाली छूत की बीमारियों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
पानी से फैलने वाली छूत की बीमारियाँ हैजा, पेचिश, टायफाइड या मियादी बुखार हैं।

1. हैजा-हैजा गंदे पानी एवं दूषित भोजन द्वारा फैलने वाली एक छूत की बीमारी है। इसको ‘विसूचिका’ भी कहा जाता है। इस रोग का संप्राप्ति काल कुछ घंटों से लेकर 4 या 5 दिनों तक होता है। इस रोग के जीवाणु को विब्रिओ कोलेरी (Vibrio-Cholerae) कहा जाता है। सामान्य रूप से इसे कोमा बेसिलस कहा जाता है। मक्खियाँ इस रोग को फैलाने का काम करती हैं। हैजे के रोगाणु पानी एवं भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करके हमें रोगग्रस्त कर देते हैं।

2. पेचिश-पेचिश एंट अमीबा हिस्टोलिटिका नामक जीवाणु से फैलता है। यह रोग खाद्य पदार्थों पर मक्खियों के बैठने से अधिक फैलता है। इसके अतिरिक्त गंदे पानी के कारण भी यह रोग हो जाता है। इस रोग के कीटाणु व्यक्ति की आंतड़ियों पर आक्रमण करके उनको जख्मी कर देते हैं, जिससे रोगी बहुत कमजोर हो जाता है।

3. टायफाइड या मियादी बुखार-टायफाइड को मियादी बुखार तथा आंत्रिक ज्वर आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग का कारण सालमोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) नामक दण्डाणु होते हैं। ये दण्डाणु (Bacillus) स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में वायु, पानी व भोजन के माध्यम से प्रवेश करके उसे रोगग्रस्त कर देते हैं, परन्तु इस रोग का मुख्य कारण दूषित पानी होता है। यह बुखार 7 से 14 या इससे अधिक दिन भी रह सकता है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 4.
संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं बचाव के कोई चार उपाय लिखें। अथवा संक्रामक रोगों से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तरं:
संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं बचाव के चार उपाय निम्नलिखित हैं
1. पीने का पानी साफ-सुथरा एवं कीटाणुरहित होना चाहिए, क्योंकि दूषित जल में अनेक प्रकार के संक्रामक रोगाणु उत्पन्न हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए पानी हमेशा क्लोरीन-युक्त या उबालकर पीना चाहिए।

2. परिवार के सभी सदस्यों को नियमित रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिएँ, क्योंकि इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

3. पर्यावर्णिक स्वास्थ्य या आस-पड़ोस के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। गलियों में गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु तथा मच्छर पैदा हो जाते हैं जो अनेक रोग फैलाते हैं।

4. संक्रामक रोगों को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए संक्रामक रोग से ग्रस्त व्यक्ति को उस समय तक स्वस्थ व्यक्तियों या घर के अन्य सदस्यों से अलग रखना चाहिए जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाए।

प्रश्न 5.
संक्रामक रोगों के फैलने के विभिन्न माध्यम कौन-कौन-से हैं? अथवा संक्रामक रोगों के रोगाणु किन-किन साधनों से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं? अथवा संक्रामक रोग किन-किन कारणों से फैलते हैं?
उत्तर:
संक्रामक रोगों के रोगाणु निम्नलिखित साधनों या माध्यमों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं
1. वायु द्वारा-साँस लेने से वायु द्वारा कीटाणु शरीर में प्रविष्ट होकर व्यक्ति को बीमार कर देते हैं। काली खाँसी, चेचक, जुकाम आदि रोग वायु द्वारा ही फैलते हैं।

2. जल द्वारा-हैजा, टायफाइड, पेचिश आदि रोगों के रोगाणु पीने वाले जल में मिलकर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। दूषित जल में बर्तन धोने, फल-सब्जियों को धोने से भी रोगों का संक्रमण होता है।

3. भोजन द्वारा-भोजन और अन्य दूषित खाने वाले पदार्थों के द्वारा रोगाणु शरीर में पहुँचकर स्वस्थ व्यक्ति को रोगी बना देते हैं। बासी और ठंडा भोजन अधिक नुकसानदायक होता है।

4. संपर्क द्वारा-रोगी के कपड़ों, बिस्तरों, बर्तन, तौलिए या सीधे संपर्क द्वारा संक्रामक रोगों के रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति तक पहुँच कर हानि पहुंचाते हैं।

5. जंतुओं/कीटों द्वारा-कुछ जंतु या कीट जैसे; मक्खी, मच्छर, चूहा आदि रोग फैलाने के कारण बनते हैं। भोजन को दूषित कर या सीधे शरीर में पहुँचकर रोगाणु रोग के कारण बन जाते हैं । मलेरिया मच्छर के काटने और रेबीज़ पागल कुत्ते के काटने तथा प्लेग चूहे के द्वारा फैलता है।

प्रश्न 6.
मलेरिया रोग कैसे फैलता है? इसके लक्षण लिखें।
उत्तर:
मलेरिया रोग मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मच्छर किसी को काटता है तो उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु छोड़ देता है जिससे मच्छर के द्वारा काटे जाने वाले व्यक्ति को मलेरिया हो जाता है। इसे मौसमी बुखार भी कहते हैं। लक्षण:

  1. रोगी को ठंड लगने लगती है और शरीर काँपने लगता है।
  2. शरीर का तापमान 103°F से 106°F तक हो जाता है।
  3. कभी-कभी उल्टी भी आ सकती है।
  4. बुखार उतरने पर पसीना काफी आता है।
  5. शरीर बेजान और कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 7.
हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) के लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:

  • हेपेटाइटिस-बी के लक्षण:
    1. शरीर का पीला पड़ जाना।
    2. अधिक थकावट महसूस होना।
    3. भूख न लगना।
    4. सिर-दर्द व बुखार होना।
    5. आँखों के सफेद भाग का पीला पड़ जाना।
  • बचाव के उपाय:
    • मल-मूत्र की सफाई का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
    • व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    • महामारी फैलने के दौरान उबले हुए और क्लोरीन-युक्त पानी का प्रयोग करना चाहिए।
    • हेपेटाइटिस-बी के टीके अवश्य लगवाएँ।

प्रश्न 8.
टैटनस के फैलने के कारण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
टैटनस के फैलने के कारण: टैटनस एक बहुत खतरनाक संक्रामक रोग है। यह रोग एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया से फैलता है। किसी खुले घाव के अंदर रोगाणुओं के घुस जाने के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है। बचाव के उपाय:

  1. जख्म को साफ पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए और जख्म को रोगाणुओं से मुक्त करने के लिए डिटॉल या सैवलॉन आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  2. चोट लगते ही टैटनस का टीका अवश्य लगवाएँ।
  3. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।

प्रश्न 9.
हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C) के फैलने का कारण और रोकथाम के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी के फैलने के कारण-हेपेटाइटिस-सी अथवा सीरम हेपेटाइटिस एक घातक संक्रामक रोग है। यह रोग शरीर में दूषित रक्त या रक्त-पदार्थों के चढ़ने से फैलता है। यह रोग शरीर के किसी अंग का प्रत्यारोपण करने से भी फैल सकता है। रोकथाम के उपाय:

  1. रोगी को भरपूर आराम करना चाहिए।
  2. भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  4. डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उचित दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 10.
एड्स क्या है? यह कैसे फैलता है?
अथवा एड्स (AIDS) के फैलने के माध्यमों/कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
एड्स (AIDS) का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) है। यह स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिससे शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है। अत: यह एक जानलेवा बीमारी है जिससे शरीर की प्रतिरक्षित प्रणाली बहुत प्रभावित होती है। इससे प्रभावित रोगी की मृत्यु निश्चित है। एड्स के विषाणु रक्त व वीर्य के द्वारा फैलते हैं।

इसके फैलने के माध्यम निम्नलिखित हैं:

  1. उपचार के लिए लगाए जाने वाले टीके में दूषित सिरिंजों का प्रयोग करना।
  2. स्वास्थ्य संबंधी गलत आदतें व व्यक्तिगत सफाई की ओर ध्यान न देना।
  3. यौन संबंधी गलत आदतें।
  4. दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग करना।
  5. रक्त चढ़ाने संबंधी बरती जाने वाली असावधानी आदि।

प्रश्न 11.
तपेदिक से बचाव के उपायों का उल्लेख करें।
उत्तर:
तपेदिक से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. रोगी की प्रत्येक वस्तु को अलग रखना चाहिए।
  2. रोगी की बलगम की जाँच करवाते रहना चाहिए।
  3. तपेदिक होने पर औषधि का, जब तक यह रोग ठीक न हो जाए, सेवन करते रहना चाहिए।
  4. रोगी को पूर्ण आराम करना चाहिए। उसे किसी अच्छे सेनीटोरियम में रखना चाहिए।
  5. रोगी को संतुलित और पौष्टिक भोजन देना चाहिए।
  6. रोग से बचने के लिए बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

प्रश्न 12.
प्लेग की रोकथाम के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्लेग की रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पिस्सू और चूहों को मारने के लिए कीड़े-मार दवाई का प्रयोग करना चाहिए।
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
  3. रोग के लक्षण देखते ही स्वास्थ्य विभाग को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  4. घर की सफाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी में कीटाणुनाशक दवाई आदि डालनी चाहिए।
  5. मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए ताकि पिस्सुओं को नष्ट किया जा सके।
  6. प्लेग का टीका लगवाना चाहिए।

प्रश्न 13.
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए आपके स्कूल में सावधानी हेतु कौन-कौन-से उपाय किए जाने आवश्यक हैं?
उत्तर:
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए स्कूल में सावधानी हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने आवश्यक हैं

  1. पेयजल का क्लोरीनेशन कर रोगाणुहीन किया जाना चाहिए।
  2. कैंटीन में सभी खाद्य पदार्थों को ढककर रखना चाहिए।
  3. बासी व गले-सड़े खाद्य पदार्थों व फलों के बेचने पर रोक होनी चाहिए।
  4. बच्चों को व्यक्तिगत व सामुदायिक स्वच्छता के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।
  5. सभी बच्चों का संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण किया जाना चाहिए।
  6. समय-समय पर विद्यार्थियों को इन रोगों से संबंधित जानकारी दी जानी चाहिए।

प्रश्न 14.
रेबीज़ से बचाव के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रेबीज़ से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. किसी पागल जानवर के काटने पर तुरंत नजदीकी चिकित्सा केन्द्र को सूचित करना चाहिए।
  2. सभी पालतू कुत्तों को पागलपन से बचाने के लिए टीके लगवाने चाहिएँ।
  3. किसी पागल जानवर से दूर रहना चाहिए।
  4. तुरंत एंटी-रेबीज़ टीकाकरण का पूरा कोर्स करवा लेना चाहिए।

प्रश्न 15.
छूत की बीमारियों के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर:
छूत की प्रमुख बीमारियों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है

  1. हैजा-हैजा का रोगवाहक विब्रिओ कोलेरी है। यह दूषित जल के पीने या संक्रमित खाद्य-पदार्थों के खाने से होता है।
  2. टायफाइड-यह सालमोनेला टाइफी नामक रोगवाहक द्वारा फैलता है। सिर दर्द, नाक से रक्त का बहना, त्वचा पर चकते पड़ना, छाती पर लाल दाने निकलना टायफाइड रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
  3. छोटी माता-इसका रोगवाहक वेरीसेला जोस्टर विषाणु है। इसमें रोगी के शरीर पर चकते, पीठ में दर्द, तेज बुखार तथा सिर-दर्द होता है।
  4. रेबीज़-यह रेबीज़ विषाणु द्वारा फैलता है। पागल कुत्ते, बिल्ली, बंदर, खरगोश आदि के काटने से फैलता है। रेबीज़ से प्रभावित व्यक्ति पानी से डरता है।
  5. खाँसी-जुकाम-यह राइनो विषाणु द्वारा होता है। नाक से पानी बहना, आँखों का लाल होना, जलन होना व सिर-दर्द आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
  6. एड्स- यह लैंगिक संचारी रोग की श्रेणी में आता है जो HIV-III विषाणु के द्वारा फैलता है। एड्स से प्रभावित व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ जाता है जिसके कारण उसका शरीर हल्के संक्रमण का मुकाबला करने में भी असमर्थ हो जाता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Disease) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे रोग जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से एक-दूसरे को लग जाते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं; जैसे हैजा, मियादी बुखार, तपेदिक आदि। इस प्रकार के रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने या उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का उपयोग करने से हो जाते हैं।

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प्रश्न 2.
असंक्रामक रोगों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
असंक्रामक रोगों (Non-communicable Diseases) से तात्पर्य उन रोगों से है जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं फैलते अर्थात् जो रोग संक्रमण से न फैलें; जैसे सिर-दर्द, बवासीर, मधुमेह आदि। इस प्रकार के रोग रोगी के साथ खाना-खाने या उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल करने से नहीं फैलते।

प्रश्न 3.
संसर्ग व संचारी रोग क्या होते हैं? उदाहरण दें।
अथवा
संक्रामक रोग कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
विषाणु, बैक्टीरिया, कीटाणुओं के आधार पर संक्रामक रोग दो प्रकार के होते हैं
1. संसर्ग रोग-ये रोग रोगी के प्रत्यक्ष रूप से संपर्क से लगते हैं; जैसे खसरा, काली खाँसी, जुकाम आदि।
2. संचारी रोग-ये रोग रोगी के अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क से लगते हैं; जैसे हैजा, मियादी बुखार, पेचिश आदि।

प्रश्न 4.
रोग निवारक क्षमता या प्रतिरोधक शक्ति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हमारा वातावरण अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं से भरा हुआ है। इनमें से बहुत से जीवाणु या रोगाणु हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। लेकिन हम सभी इन रोगाणुओं से प्रभावित नहीं होते। ऐसा हमारे शरीर में उपस्थित ऐसी शक्ति या क्षमता के कारण होता है जो इन रोगाणुओं से हमारी सुरक्षा करती है। हमारे शरीर में उपस्थित इस रोग रोधक शक्ति को ही रोग प्रतिरोधक शक्ति या रोग निवारक क्षमता कहते हैं। इस शक्ति को ‘जीवन रक्षक शक्ति’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
एड्स से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एड्स (AIDS) का पूरा नाम है-एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome)। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर अनेक रोगों/संक्रमण से ग्रसित हो जाता है। एड्स एक जानलेवा बीमारी है क्योंकि एच०आई०वी० (HIV) नामक वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसकी रोगों से लड़ने वाली शक्ति (प्रतिरोधक शक्ति) कम कर देता है और शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
संक्रामक रोगों के सामान्य चिह्न या लक्षण बताएँ।
उत्तर:
शरीर व सिर में दर्द होना,  प्यास लगना, बुखार होना, बेचैनी रहना।

प्रश्न 7.
संक्रामक रोगों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. सभी संक्रामक रोगों के सूक्ष्म-जीवाणु भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं,
  2. इन रोगों का संप्राप्ति काल लगभग निश्चित होता है।

प्रश्न 8.
संक्रामक रोगों की विभिन्न अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर:

  1. उद्भव अवस्था (Incubation Stage),
  2. आक्रमण अवस्था (Invasion Stage),
  3. क्षीण अवस्था (Decline Stage),
  4. स्वास्थ्य लाभ अवस्था (Convalescent Stage)।

प्रश्न 9.
हेपेटाइटिस-बी के कोई दो लक्षण बताएँ।
उत्तर:

  1. शरीर का पीला पड़ जाना,
  2. अधिक थकावट महसूस होना।

प्रश्न 10.
वायु द्वारा संक्रमण कैसे होता है?
उत्तर:
रोगी व्यक्ति जब वायु में साँस छोड़ता है, छींकता है या खाँसी करता है तो रोगाणु वायु में मिल जाते हैं। इसी वायु में अन्य व्यक्ति द्वारा श्वसन करने से ये रोगाणु उसके शरीर में पहुँच जाते हैं। खाँसी-जुकाम, निमोनिया व क्षय रोग इसी के माध्यम से फैलते हैं।

प्रश्न 11.
डी०पी०टी० (D.P.T.) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० को ट्रिपल एंटीजन भी कहा जाता है। डी०पी०टी० का अर्थ है-गलघोंटू/डिप्थीरिया (Diphtheria), काली खाँसी (Pertussis), व धनुवति/टैटनस (Tetanus)। यह टीका (वैक्सीन) इन तीनों रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षित करता है।

प्रश्न 12.
तपेदिक क्या है?
उत्तर:
तपेदिक या क्षय रोग वायु द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। यह रोग माइकोबैक्टीरिम ट्यूबरकुलोसिस नामक रोगाणु द्वारा फैलता है। शुरू में इस रोग का पता नहीं चल पाता, परंतु इसके बढ़ जाने पर यह सेहत को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है।

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प्रश्न 13.
रोग क्या है?
उत्तर:
शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या शरीर की किसी अन्य कार्य-प्रणाली में अवरोध की स्थिति को, रोग (Disease) कहा जाता है। रोगी व्यक्ति अपने-आपको आराम की स्थिति में अनुभव नहीं करता।

प्रश्न 14.
टेटनस रोग की रोकथाम के कोई दो उपाय लिखें।
उत्तर:

  1. चोट लगते ही टैंटनस का टीका अवश्य लगवाएँ,
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।

प्रश्न 15.
कीड़ों-मकौड़ों (कीटों) द्वारा फैलने वाले रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
मलेरिया,  फाइलेरिया, प्लेग, खुजली, जिगर की सड़न, पीला ज्वर, कालाजार आदि।

प्रश्न 16.
वायु या साँस के माध्यम से फैलने वाले संक्रामक रोगों के नाम बताएँ।
उत्तर:
तपेदिक, खसरा, छोटी माता, काली खाँसी, इन्फ्लूएंजा आदि।

प्रश्न 17.
मलेरिया कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
मलेरिया मुख्यतः चार प्रकार का होता है

  1. प्लाज्मोडियम विवेक्स (Plasmodium Vivax),
  2. प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium Ovale),
  3. प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium Malariae),
  4. प्लाज्मोडियम फैल्सिपैरम (Plasmodium Falciparum)।

प्रश्न 18.
प्लेग को महामारी क्यों कहते हैं?
उत्तर:
प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग गाँव या शहर में किसी एक को हो जाने से बड़ी तेजी से चारों तरफ फैल जाता है। इसी कारण प्लेग को महामारी कहते हैं।

प्रश्न 19.
मच्छरों की कितनी प्रजातियाँ होती हैं? उन्हें कितनी श्रेणियों में रखा जाता है?
उत्तर:
मच्छरों की लगभग 1500 प्रजातियाँ होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जाता है

  1. क्यूलैक्स,
  2. एनाफ्लीज,
  3. एडिज़ इजिप्टी।

प्रश्न 20.
रोगी को अलग रखने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
छूत के रोग संक्रमण से फैलते हैं। जिस संक्रमण रोग से रोगी संक्रमित है, वह घर या परिवार के अन्य सदस्यों में न फैले, उसके बचाव हेतु रोगी को अलग कमरे में रखा जाता है। इसे ही रोगी को अलग रखना कहा जाता है।

प्रश्न 21.
डेंगू कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
डेंगू मुख्यत: तीन प्रकार का होता है

  1. सामान्य डेंगू,
  2. रक्त-स्राव डेंगू,
  3. डेंगू शोक सिंड्रोम।

प्रश्न 22.
रोग कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:

  1. संचरणीय या संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases)
  2. असंचरणीय या असंक्रामक रोग (Non-communicable Diseases)।

प्रश्न 23.
हेपेटाइटिस-सी के उपचार के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी के उपचार की इंटरफेरोन, राइबावेरिन व अमान्टिडिन दवाइयाँ ही उपलब्ध हैं। ये इसके उपचार के लिए लाभदायक हैं। होम्योपेथिक दवाइयों से भी हम इस रोग की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इन दवाइयों से इस बीमारी के लक्षणों को कम किया जा सकता है।

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प्रश्न 24.
टैटनस कैसे फैलता है?
उत्तर:
टैटनस रोग का मुख्य कारण बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया होता है। यह बैक्टीरिया मिट्टी, धूल या जानवरों के मल में रहता है। मिट्टी व धूल के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार किसी खुले घाव के अंदर बैक्टीरिया के प्रवेश हो जाने के कारण यह रोग फैलता है।

प्रश्न 25.
डेंगू बुखार कैसे फैलता है?
उत्तर:
डेंगू बुखार एडिज़ इजिप्टी नामक प्रजाति के मच्छरों (Aegypti Mosquitoes) के काटने से फैलता है। जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसके शरीर में डेंगू के विषाणु छोड़ देते हैं। शरीर में विषाणु के प्रवेश के लगभग एक सप्ताह बाद डेंगू बुखार के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।

HBSE 11th Class Physical Education संक्रामक रोग Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ पश्न। (Objective Type Questions)

भाग-I : एक वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
AIDS का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Acquired Immuno-deficiency Syndrome (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम)।

प्रश्न 2.
कोई दो संचारी रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
(1) मियादी बुखार,
(2) पेचिश।

प्रश्न 3.
क्या मलेरिया का कोई वैक्सीन होता है?
उत्तर:
हाँ, मलेरिया का वैक्सीन होता है।

प्रश्न 4.
‘एड्स दिवस’ प्रतिवर्ष किस दिन मनाया जाता है?
उत्तर: एड्स दिवस’ प्रतिवर्ष 1 दिसम्बर को मनाया जाता है।

प्रश्न 5.
मलेरिया रोग का संप्राप्ति काल कितना होता है? उत्तर-मलेरिया रोग का संप्राप्ति काल 7 से 11 दिन तक होता है।

प्रश्न 6.
क्या एड्स (AIDS) स्पर्श से फैलता है?
उत्तर:
नहीं, यह रोग असुरक्षित यौन संबंधों, HIV माँ से बच्चे को तथा संदूषित खून से फैलता है।

प्रश्न 7.
चिकित्सा-शास्त्र का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
चिकित्सा-शास्त्र का जनक हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) को माना जाता है।

प्रश्न 8.
तपेदिक के दंडाणु/जीवाणु की खोज किसने की थी?
उत्तर:
तपेदिक के दंडाणु की खोज डॉ० रॉबर्ट कोच (Dr. Robert Koach) ने की थी।

प्रश्न 9.
बच्चों में फैलने वाले कोई दो संक्रामक रोगों के नाम बताएँ।
उत्तर:
खसरा, काली खाँसी।

प्रश्न 10.
डेंगू बुखार किस मच्छर के काटने से फैलता है?
उत्तर:
डेंगू बुखार एडिज़ इजिप्टी नामक मच्छर के काटने से फैलता है।

प्रश्न 11.
किस बीमारी में रोगी को पानी से डर लगता है?
उत्तर:
रेबीज़ में रोगी को पानी से डर लगता है।

प्रश्न 12.
HIV का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Human Immuno-deficiency Virus.

प्रश्न 13.
चूहे कौन-सा रोग फैलाते हैं? उत्तर-चूहे प्लेग नामक रोग फैलाते हैं।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 14.
कोई दो संसर्गी रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
जुकाम,  खसरा।

प्रश्न 15.
“रोकथाम इलाज से बेहतर है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन डेसिडेरियस इरास्मस ने कहा।

प्रश्न 16.
पागल कुत्ते के काटने से कौन-सा रोग लग जाता है?
उत्तर:
पागल कुत्ते के काटने से रेबीज़ नामक रोग लग जाता है।

प्रश्न 17.
रॉबर्ट कोच ने क्षय रोग अथवा तपेदिक रोग की खोज कब की?
उत्तर:
रॉबर्ट कोच ने क्षय रोग अथवा तपेदिक रोग की खोज वर्ष 1882 में की।

प्रश्न 18.
तपेदिक कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
तपेदिक दो प्रकार का होता है:
फुफ्फुसीय तपेदिक, अफुफ्फुसीय तपेदिक।

प्रश्न 19. श
रीर में रोगों से लड़ने वाली शक्ति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
शरीर में रोगों से लड़ने वाली शक्ति को रोग प्रतिरोधक शक्ति कहते हैं।

प्रश्न 20.
कोई दो असंक्रामक रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
मधुमेह,  बवासीर।

प्रश्न 21.
एड्स के वायरस का नाम क्या है? उत्तर-एड्स के वायरस का नाम HIV-III है।

प्रश्न 22.
डी०पी०टी० में पी० का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० में पी० का अर्थ Pertussis (काली खाँसी) है।

प्रश्न 23.
डी०पी०टी० में टी० का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० में टी० का अर्थ tanus’ (टैटनस) है।

प्रश्न 24.
किस रोग को हड्डी तोड़ ज्वर (Bone Break Fever) कहते हैं?
उत्तर:
डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ ज्वर कहते हैं।

प्रश्न 25.
टेटनस के बैक्टीरिया का नाम बताएँ।
उत्तर:
बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी।

प्रश्न 26.
बी०सी०जी० का टीका कौन-सी बीमारी से संबंधित है?
उत्तर:
बी०सी०जी० का टीका तपेदिक या क्षय रोग नामक बीमारी से संबंधित है।

भाग-II: सही विकल्प का चयन करें

1. संक्रामक रोग मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

2. संसर्ग रोग (Contagious Diseases) फैलते हैं
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर;
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से

3. संचारी रोग (Infectious Diseases) फैलते हैं
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से

4. वायु या साँस के माध्यम से फैलने वाला रोग है
(A) खसरा
(B) काली खाँसी
(C) तपेदिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. कीटों द्वारा फैलने वाला रोग है
(A) मलेरिया
(B) डेंगू
(C) फाइलेरिया
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. पानी के माध्यम से फैलने वाला रोग है
(A) हैजा
(B) पेचिश
(C) मियादी बुखार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. मलेरिया का रोगवाहक मच्छर है
(A) मादा एनाफ्लीज मच्छर
(B) क्यूलैक्स मच्छर
(C) एडिज़ इजिप्टी मच्छर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मादा एनाफ्लीज मच्छर

8. पागल कुत्ते के काटने से फैलने वाला रोग है
(A) चेचक
(B) खसरा
(C) रेबीज़
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) रेबीज़

9. तपेदिक की खोज रॉबर्ट कोच ने कब की?
(A) वर्ष 1856 में
(B) वर्ष 18270 में
(C) वर्ष 1882 में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) वर्ष 1882 में

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10. डेंगू ज्वर किस मच्छर द्वारा फैलता है?
(A) क्यूलैक्स मच्छर द्वारा
(B) एडिज़ इजिप्टी मच्छर द्वारा
(C) मादा एनाफ्लीज मच्छर द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) एडिज़ इजिप्टी मच्छर द्वारा

11. चूहों द्वारा फैलने वाला रोग है
(A) प्लेग
(B) पेचिश
(C) डिफ़्थीरिया
(D) चेचक
उत्तर:
(A) प्लेग

12. टेटनस रोग से बचाव के लिए कौन-सा टीका (वैक्सीन) लगाया जाता है?
(A) डी०पी०टी०
(B) टी०ए०बी०
(C) एम०एम०आर०
(D) बी०सी०जी०
उत्तर:
(A) डी०पी०टी०

13. डी०पी०टी० में डी० का अर्थ है
(A) Diphtheria
(B) Dengue
(C) Dysentery
(D) Diarrhoea
उत्तर:
(A) Diphtheria

14. हड्डी तोड़ बुखार (Break Bone Fever) किस रोग को कहते हैं?
(A) मलेरिया को
(B) हैजा को
(C) डेंगू को
(D) तपेदिक को
उत्तर:
(C) डेंगू को

15. निम्नलिखित में से संक्रामक/छूत का रोग नहीं है
(A) डेंगू
(B) मलेरिया
(C) कैंसर
(D) उपर्युक्त सभी उत्तर:
(C) कैंसर

16. रेबीज़ एक रोग है
(A) जीवाणु जन्य
(B) विषाणु जन्य
(C) प्रोटोजन्य
(D) कवक जन्य
उत्तर:
(B) विषाणु जन्य

17. टैटनस का लक्षण है
(A) गर्दन में अकड़न होना
(B) जबड़ा सिकुड़ना
(C) माँसपेशियों में सूजन आना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. टेटनस के जीवाणु पाए जाते हैं
(A) मिट्टी में
(B) पानी में
(C) कूड़े-कचरे में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मिट्टी में

19. मलेरिया का कारण है
(A) प्रोटोजोआ
(B) जीवाणु
(C) वायरस
(D) कवक
उत्तर:
(A) प्रोटोजोआ

20. किस रोग को मौसमी बुखार भी कहा जाता है?
(A) टायफाइड
(B) मलेरिया
(C) चेचक
(D) खसरा
उत्तर:
(B) मलेरिया

भाग-III : निम्नलिखित कथनों के उत्तर सही या गलत अथवा हाँ या नहीं में दें

1. चिकित्सा-शास्त्र का जनक रॉबर्ट कोच है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

2. बच्चों को रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण (Vaccination) आवश्यक है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

3. मलेरिया नर एनाफ्लीज मच्छर के काटने से होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

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4. छूत की बीमारियाँ पानी से भी फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

5. छूत की बीमारियाँ स्पर्श से भी फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

6. मनुष्यों में प्लेग प्रायः पागल कुत्ते के काटने से होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

7. छूत की बीमारियाँ वायु के माध्यम से फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही

8. मधुमेह एक संक्रामक रोग है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

9. एड्स एक असंक्रामक रोग है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

10. संक्रामक रोग वायु, पानी व कीड़ों से फैलते हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

11. चेचक, प्लेग व मलेरिया संक्रामक रोग हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

12. मलेरिया को मौसमी बुखार भी कहा जाता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

13. टी०बी० का इलाज संभव है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

14. सभी प्रकार के बैक्टीरिया हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं । (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

15. बच्चों को बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए। (हाँ/नहीं)
उत्तर:

16. क्या तपेदिक का इलाज संभव है? (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

भाग-IV : रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. …………….. रोग के कारण रोगी को पानी से डर लगने लगता है।
उत्तर:
रेबीज़,

2. ……………. ने निष्पादन किया था कि बीमारियाँ कीटाणुओं के कारण फैलती हैं।
उत्तर:
रॉबर्ट कोच,

3. ……………. वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं लगते।
उत्तर:
असंक्रामक रोग,

4. मानसिक रोग, रक्तचाप, रिकेट्स, मधुमेह आदि रोग …………….. रोगों के उदाहरण हैं।
उत्तर:
असंक्रामक,

5. …………….. मादा एनाफ्लीज मच्छर के काटने से होता है।
उत्तर:
मलेरिया,

6. चिकित्सा-शास्त्र का पिता (जनक) …………….. को माना जाता है।
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स,

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

7. दाद, खुजली आदि ऐसे रोग हैं जो रोगी के …………….. संपर्क के द्वारा फैलते हैं।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष,

8. रॉबर्ट कोच ने तपेदिक की खोज वर्ष ……… में की।
उत्तर:
1882,

9. पागल कुत्ते के काटने से …………….. रोग होता है।
उत्तर:
रेबीज़,

10. रोग प्रतिरोधक शक्ति को …………… शक्ति भी कहा जाता है।
उत्तर:
जीवन रक्षक।

संक्रामक रोग Summary

संक्रामक रोग परिचय

संक्रामक छूत के रोग (Communicable Diseases):
सभी प्रकार के संक्रामक रोग किसी विशेष प्रकार के रोगाणु से पनपते हैं। ये रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। जब स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोगाणु (वायरस, बैक्टीरिया, कीटाणु, फफूंदी आदि) जल, वायु, भोजन तथा स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करके उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या उसे रोगग्रस्त करते हैं, तो वे संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases) कहलाते हैं। विषाणु, बैक्टीरिया व कीटाणुओं के आधार पर ये रोग दो प्रकार के होते हैं- (1) संसर्ग रोग, (2) संचारी रोग।

संक्रामक रोगों की रोकथाम व नियंत्रण के उपाय (Measures of Prevention and Control of Communicable Diseases): संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं

  • पीने का पानी साफ-सुथरा एवं कीटाणुरहित होना चाहिए, क्योंकि दूषित जल में अनेक प्रकार के संक्रामक रोगाणु उत्पन्न हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए पानी हमेशा क्लोरीन-युक्त या उबालकर पीना चाहिए।
  • परिवार के सभी सदस्यों को नियमित रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिएँ, क्योंकि इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • पर्यावर्णिक स्वास्थ्य या आस-पड़ोस के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। गलियों में गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु तथा मच्छर पैदा हो जाते हैं जो अनेक रोग फैलाते हैं।
  • संक्रामक रोगों को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए संक्रामक रोग से ग्रस्त व्यक्ति को उस समय तक स्वस्थ व्यक्तियों या घर के अन्य सदस्यों से अलग रखना चाहिए जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाए।

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 Real Numbers Ex 1.4

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 Real Numbers Ex 1.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 1 Real Numbers Exercise 1.4

Question 1.
Without actually performing the long division, state whether the following rational numbers will have a terminating decimal expansion or non-terminating repeating decimal expansion.
(i) \(\frac{13}{3125}\)
(ii) \(\frac{17}{8}\)
(iii) \(\frac{64}{455}\)
(iv) \(\frac{15}{1600}\)
(v) \(\frac{29}{343}\)
(vi) \(\frac{23}{2^3 5^2}\)
(vii) \(\frac{129}{2^2 5^7 5^5}\)
(viii) \(\frac{6}{15}\)
(ix) \(\frac{35}{50}\)
(x) \(\frac{77}{210}\)
Solution :
(i) \(\frac{13}{3125}\)

\(\frac{13}{3125}=\frac{13}{5 \times 5 \times 5 \times 5 \times 5}\)

= \(\frac{13}{5^5}=\frac{13}{2^0 \times 5^5}\)
Since the denominator of \(\frac{13}{3125}\) is of the form 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.

(ii) \(\frac{17}{8}\)

\(\frac{17}{8}=\frac{17}{2 \times 2 \times 2}=\frac{17}{2^3}=\frac{17}{2^3 \times 5^0}\)
Since the denominator of \(\frac{17}{8}\) is of the form 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.

(iii) \(\frac{64}{455}=\frac{64}{5 \times 7 \times 13}\)

Since the denominator of \(\frac{64}{455}\) is not of the form 2m5n hence, it has non-terminating repeating decimal expansion.

Haryana Board Solutions for 10th Class Maths Chapter 1 Real Numbers Exercise 1.4

(iv) \(\frac{15}{1600}\)

\(\frac{15}{1600}=\frac{3 \times 5}{2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 5 \times 5}\)

= \(\frac{3}{2^6 \times 5^2}\)
Since the denominator of \(\frac{15}{1600}\) is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.

(v) \(\frac{29}{343}\)

\(\frac{29}{343}=\frac{29}{7 \times 7 \times 7}=\frac{29}{7^3}\)

Since the denominator of \(\frac{29}{343}\) is not of the form of 2m5n hence, it has non-terminating repeating decimal expansion.

(vi) \(\frac{23}{2^3 5^2}\)
Since the denominator of \(\frac{23}{2^3 5^2}\) is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, t has terminating decimal expansion.

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(vii) \(\frac{129}{2^2 5^7 7^5}\)
Since the denominator of \(\frac{129}{2^2 5^7 7^5}\) is not of the form of 2m5n hence, it has non-terminating repeating decimal expansion.

(viii) \(\frac{6}{15}\)

\(\frac{6}{15}=\frac{2 \times 3}{3 \times 5}=\frac{2}{5}=\frac{2}{2^0 \times 5^1}\)

Since the denominator of is of the form of 2m5n where m and n are non-negative integers hence, it has a terminating decimal expansion.

(ix) \(\frac{35}{50}\)

\(\frac{35}{50}=\frac{5 \times 7}{2 \times 5 \times 5}=\frac{7}{2^1 \times 5^2}\)

Since the denominator of \(\frac{35}{50}\) is of the form of 2m5n where m and n are non-negative integers hence, it has a terminating decimal expansion.

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(x) \(\frac{77}{210}\)

\(\frac{77}{210}=\frac{7 \times 11}{2 \times 3 \times 5 \times 7}=\frac{11}{2 \times 3 \times 5}\) is not of the form of 2m5n hence, it has a non-terminating decimal expansion.

Question 2.
Write down the decimal expansions of those rational numbers in question 1 above which have terminating decimal expansions.
Solution:
(i) \(\frac{13}{3125}\)

\(\frac{13}{3125}=\frac{13}{5 \times 5 \times 5 \times 5 \times 5}\)

= \(\frac{13}{5^5}=\frac{13}{2^0 \times 5^5}\)

Since denominator of \(\frac{13}{3125}\) is of the form of 2m5n where m and n are non-negative integers hence, it is a terminating decimal expansion.

Now, \(\frac{13}{5^5}=\frac{13 \times 2^5}{5^5 \times 2^5}\)

= \(\frac{13 \times 32}{(5 \times 2)^5}=\frac{416}{10^5}\)

= \(\frac{416}{100000}\)
= 0.00416.

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(ii) \(\frac{17}{8}\)

\(\frac{17}{8}=\frac{17}{2 \times 2 \times 2}=\frac{17}{2^3}=\frac{17}{2^3 \times 5^0}\)

Since the denominator of \(\frac{17}{8}\) is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it is terminating decimal expansion.

Now, \(\frac{17}{8}=\frac{17}{2^3}=\frac{17 \times 5^3}{2^3 \times 5^3}=\frac{2125}{(2 \times 5)^3}\)

= \(\frac{2125}{10^3}=\frac{2125}{1000}\) = 2.125

(iii) \(\frac{64}{455}\)

\(\frac{64}{455}=\frac{64}{5 \times 7 \times 13}\)

Since the denominator of \(\frac{64}{455}\) is not of the form of 2m5n so it has non-terminating repeating decimal expansion.

(iv) \(\frac{15}{1600}\)

\(\frac{15}{1600}=\frac{3 \times 5}{2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 5 \times 5}\)

= \(\frac{3}{2^6 \times 5^2}\)

Since the denominator of is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers
hence, it has terminating decimal expansion.
Now \(\frac{3}{2^6 \times 5^2}=\frac{3 \times 5^4}{2^6 \times 5^2 \times 5^4}=\frac{1875}{1000000}\) = 0.001875

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(v) \(\frac{29}{343}\)

\(\frac{29}{343}=\frac{29}{7 \times 7 \times 7}=\frac{29}{7^3}\)

Since the denominator of \(\frac{29}{343}\) is not of the form of 2m5n so, it is non-terminating repeating decimal expansion.

(vi) \(\frac{23}{2^3 5^2}\)
Since the denominator of \(\frac{23}{2^3 5^2}\), is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.

Now, \(\frac{23}{2^3 5^2}=\frac{23 \times 5}{2^3 \times 5^2 \times 5}\)

\(\frac{115}{1000}\) = 0.115

(vii) \(\frac{129}{2^2 5^7 7^5}\)

Since the denominator of \(\frac{129}{2^2 5^7 7^5}\) is not of the form of 2m5n hence, it has non-terminating repeating decimal expansion.

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(viii) \(\frac{6}{15}\)

\(\frac{6}{15}=\frac{2 \times 3}{3 \times 5}=\frac{2}{5}=\frac{2}{2^0 \times 5^1}\)

Since the denominator of is of the form 2m5n where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.

Now, \(\frac{2}{5}=\frac{2 \times 2}{2 \times 5}=\frac{4}{10}\) = 0.4

(ix) \(\frac{35}{50}\)

\(\frac{35}{50}=\frac{5 \times 7}{2 \times 5 \times 5}=\frac{7}{2 \times 5}\)

Since the denominator of \(\frac{35}{50}\) is of the form of 2m5n, where m and n are non-negative integers hence, it has terminating decimal expansion.
Now, \(\frac{7}{2 \times 5}=\frac{7}{10}\) = 0.7

(x) \(\frac{77}{210}\)

\(\frac{77}{210}=\frac{7 \times 11}{2 \times 3 \times 5 \times 7}=\frac{11}{2 \times 3 \times 5}\)
Since the denominator of \(\frac{77}{210}\) form of 2m5n hence, it has non-terminating decimal expansion.

Haryana Board Solutions for 10th Class Maths Chapter 1 Real Numbers Exercise 1.4

Question 3.
The following real numbers have decimal expansions as given below. In each case, decide whether they are rational or not. If they are rational, and the form of \(\frac{p}{q}\) the prime factors of q ?
(i) 43.123456789,
(ii) 0.120120012000120000…
(iii) \(43 . \overline{123456789}\)
Solution :
(i) 43.123456789
Since it is terminating decimal expansion so, it is a rational number.
43.123456789 = \(\frac{43123456789}{1000000000}\)
q = 1000000000= 109
= (2 × 5)9 = 29 × 59
Prime factors of q is of the form 2m × 5n where, m and n are non-negative integers.

(ii) 0.120120012000120000…..
Since it is non-terminating non-repeating decimal expansion so, it is an irrational number.

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(iii) \(43 . \overline{123456789}\)
Since it is non-terminating but repeating decimal expansion so, it is a rational number.
Let x = \(43 . \overline{123456789}\)
= 43.123456789123456789…. ……………..(i)
Multiplying both sides by 1000000000
1000000000 x = \(43123456789 . \overline{123456789}\) ……………..(ii)
Subtract (i) from (ii),
999999999 x= 43123456746
x = \(\frac{43123456746}{999999999}\)
q= 999999999
= 3 × 3 × 3 × 3 × 37 × 333667
Prime factorisation of q is not of the form 2m × 5n, where m and n are non-negative integers.

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

→ वायु, जल, मिट्टी, खनिज, जीव-जंतु प्राकृतिक संपदाएँ हैं।

→ पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को वायुमंडल कहते हैं।

→ वायु विभिन्न गैसों, जलवाष्पों, धूलकणों आदि का एक मिश्रण है।

→ चंद्रमा की सतह पर तापमान-190°C से 110°C के बीच होता है।

→ बह रही वायु को पवन या समीर कहते हैं।

→ दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है और रात के समय इसके विपरीत।

→ वर्षा वायुमंडल में स्थित जलवाष्पों का ही एक रूप होता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

→ हवा में स्थित हानिकारक पदार्थों की वृद्धि को वायु प्रदूषण कहते हैं।

→ जीवों का जीवन जल पर आधारित है।

→ जल में अवांछनीय पदार्थों का मिलना जल प्रदूषण कहलाता है।

→ मिट्टी खनिजों का एक विशाल भंडार है।

→ भूमिगत जल को खनिज जल भी कहते हैं।।

→ विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व चक्रीय तरीके से बार-बार उपयोग किए जाते हैं, जिसके कारण जैवमंडल के विभिन्न घटकों में एक निश्चित संतुलन स्थापित होता है।

→ हवा, जल और मिट्टी का प्रदूषण जीवन की गुणवत्ता और जैव विविधताओं को नुकसान पहुंचाता है।

→ हमें अपनी प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है और उन्हें संपूषणीय तरीके से इस्तेमाल करने की आवश्यकता है।

→ ग्रीन हाउस प्रभाव से वायुमंडल में ऊष्मीकरण होता है।

→ ओज़ोन परत वायुमंडल का सुरक्षा आवरण कहलाता है।

→ जीवाणु वायुमंडल की नाइट्रोजन को नाइट्रेट्स में बदलकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।

→ प्राकृतिक संपदा-प्रकृति में पाए जाने वाले उपयोगी पदार्थ प्राकृतिक संपदा कहलाते हैं।

→ वायु-पृथ्वी के चारों तरफ विद्यमान गैसीय आवरण को वायु कहते हैं।

→ जीवमंडल-पृथ्वी के चारों ओर वह घेरा जहाँ वायुमंडल, स्थलमंडल और जलमंडल एक-दूसरे से मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं। इसे जीवमंडल या जैवमंडल कहते हैं।

→ पवनें बहती हुई हवाओं को पवन या समीर कहते हैं।

→ वर्षा-बादलों से जल का बूंदों के रूप में पृथ्वी पर गिरना, वर्षा कहलाता है।

→ वायु प्रदूषण हवा में स्थित हानिकारक पदार्थों की वृद्धि को वायु प्रदूषण कहते हैं।

→ जल प्रदूषण-जल में हानिकारक पदार्थों का मिलना जल प्रदूषण कहलाता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

→ मिट्टी-पृथ्वी की ऊपरी सतह मिट्टी कहलाती है।।

→ हयूमस-मृत जीवों के गलने-सड़ने से बने पदार्थ को ह्यूमस या जीवांश कहते हैं।

→ ऊपरी मृदा-मिट्टी के कणों, ह्यूमस और सजीवों से मिलकर बनी भू-परत को ऊपरी मृदा कहते हैं।

→ भू-अपरदन-भूमि की ऊपरी परत का कट या बह जाना, भू-अपरदन कहलाता है।

→ जल-चक्र-प्रकृति में जल के विभिन्न रूपों के आदान-प्रदान से बने प्राकृतिक संतुलन को जल-चक्र कहते हैं।

→ नाइट्रोजन स्थिरीकरण-जीवाणुओं के द्वारा वायुमंडल की नाइट्रोजन का नाइट्रेट्स में बदलना नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है।

→ प्रकाशसंश्लेषण हरे पौधों के द्वारा मंड बनाने की प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं।

→ ग्रीन हाउस प्रभाव-वायुमंडल में स्थित कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा सूर्य की अवरक्त विकिरणों को सोखकर वायुमंडल को गर्म करना ग्रीन हाउस प्रभाव कहलाता है।

→ ओजोन परत वायुमंडल में स्थित ओज़ोन की सतह जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित करती है, ओजोन परत कहलाती है।

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ स्वास्थ्य किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक जीवन क्षमता की पूर्णरूपेण समन्वयित स्थिति है।

→ सभी जीवों का स्वास्थ्य उनके पर्यावरण पर आधारित होता है।

→ मानव के लिए सामाजिक पर्यावरण व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए अति महत्त्वपूर्ण है।

→ सामुदायिक स्वच्छता भी व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।

→ संतुलित आहार व उचित आदतें भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक हैं।

→ रोग या व्याधि का शाब्दिक अर्थ बाधित आराम या असुविधा है।

→ कम अवधि वाले रोगों को तीव्र रोग और लंबी अवधि वाले रोगों को दीर्घकालिक रोग कहते हैं।

→ रोग फैलाने वाले कारणों को रोग कारक कहते हैं।

→ रोग दो प्रकार के होते हैं संक्रामक और असंक्रामक।

→ संक्रामक कारक जीवों के अलग-अलग वर्ग से हो सकते हैं। ये एककोशिक सूक्ष्मजीव या बहुकोशिक हो सकते हैं।

→ रोग का उपचार उसके कारक रोगाणु के वर्ग के आधार पर किया जाता है।

→ संक्रामक कारक जल, वायु, शारीरिक संपर्क या रोगवाहकों द्वारा फैलते हैं।

→ रोगों का निवारण सफल उपचार की अपेक्षा अच्छा है।

→ संक्रामक रोगों का निवारण जन-स्वास्थ्य स्वच्छता विधियों से किया जा सकता है जिससे संक्रामक कारक कम हो जाते हैं।

→ टीकाकरण द्वारा संक्रामक रोगों का निवारण किया जा सकता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ संक्रामक रोगों के निवारण को प्रभावशाली बनाने के लिए जरूरी है कि सार्वजनिक स्वच्छता और टीकाकरण की सुविधा सभी को उपलब्ध हो।

→ टेटनस, डिप्थीरिया, कुकुर खाँसी, चेचक, पोलियो आदि के टीके उपलब्ध हैं।

→ हिपेटाइटिस ‘A’ का टीका भी उपलब्ध है।

→ चेचक के टीके का आविष्कार इंगलिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने गऊ के चेचक फफोलों से तैयार किया।

→ स्वास्थ्य स्वास्थ्य व्यक्ति की सामाजिक, मानसिक व शारीरिक जीवन की एक समग्र समन्वयित अवस्था है।

→ रोग अच्छे स्वास्थ्य में रुकावट उत्पन्न होना ही रोग है या शरीर के किसी भी अंग में किन्हीं कारणों से कुसंक्रिया का होना रोग कहलाता है।

→ लक्षण-जो हमें शरीर की खराबी या विकार के बारे में सावधान करे, उसे लक्षण कहते हैं।

→ तीव्र रोग-कम अवधि के रोगों को तीव्र रोग कहते हैं।

→ दीर्घकालिक रोग-जो रोग लंबी अवधि या जीवन पर्यंत रहें, उन्हें दीर्घकालिक रोग कहते हैं।

→ रोग का कारक-रोग का कारण, रोग का कारक कहलाता है।

→ संक्रामक रोग जो रोग किसी प्रकार के संपर्क के द्वारा फैलते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं।

→ असंक्रामक रोग जो रोग संपर्क की बजाय अन्य कारण से हो, असंक्रामक रोग कहलाते हैं।

→ एंटीबायोटिक-ऐसे पदार्थ जो एक जीवधारी से तैयार किए जाएँ और अन्य जीवधारियों के लिए हानिकारक हों, एंटीबायोटिक कहलाते हैं।

→ लैंगिक संचारी रोग-जो रोग लैंगिक संपर्क से फैलें, उन्हें लैंगिक संचारी रोग कहते हैं।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ रोगवाहक-जो जंतु रोगाणुओं को रोगी से लेकर अन्य स्वस्थ व्यक्ति तक पहुँचाएँ उन्हें रोगवाहक या वेक्टर कहते हैं।

→ जलोढ़-जल द्वारा फैलने वाले रोगों को जलोढ़ रोग कहते हैं।

→ टीकाकरण-वह प्रक्रिया जिसमें पदार्थ (टीका) को एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है जिससे उस बीमारी के प्रति हैं।

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जो हमारे कानों में श्रवण की संवेदन उत्पन्न करती है।

→ ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।

→ ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक है।

→ ध्वनि द्रव्यात्मक माध्यम में से अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में संचरित होती है।

→ ध्वनि संचरण में, माध्यम के कण आगे नहीं बढ़ते, केवल विक्षोभ ही माध्यम से संचरित होता है।

→ ध्वनि निति में संचरित नहीं हो सकती।

→ ध्वनि माध्यम में क्रमागत संपीडनों तथा विरलनों के रूप में संचरित होती है।

→ घनत्व के अधिकतम मान से न्यूनतम मान और पुनः अधिकतम मान के परिवर्तन से एक दोलन पूरा होता है।

→ वह न्यूनतम दूरी जिस पर किसी माध्यम का घनत्व या दाब आवर्ती रूप में अपने मान की पुनरावृत्ति करता है, ध्वनि की तरंगदैर्ध्य (λ) कहलाती है।

→ तरंग द्वारा माध्यम के घनत्व के एक संपूर्ण दोलन में लिए गए समय को आवर्तकाल (T) कहते हैं।

→ ध्वनि की आवृत्ति का SI मात्रक हज़ (HE) है।

→ एकांक समय में दोलनों की कुल संख्या को आवृत्ति (v) कहते हैं v = \frac{1}{T}.

→ ध्वनि का वेग (u), आवृत्ति (v) तथा तरंगदैर्ध्य (λ) में संबंध है, v = λv

→ ध्वनि की चाल मुख्यतः संचरित होने वाले माध्यम की प्रकृति तथा ताप पर निर्भर होती है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं।

→ ध्वनि के परावर्तन के नियम के अनुसार, ध्वनि के आपतन होने की दिशा तथा परावर्तन होने की दिशा, परावर्तक सतह पर खींचे गए अभिलंब से समान कोण बनाते हैं और ये तीनों एक ही तल में होते हैं।

→ स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम-से-कम 0.15 का समय अंतराल अवश्य होना चाहिए।

→ मेगाफोन, हॉर्न, सूर्य और शहनाई में ध्वनि परावर्तन का उपयोग किया जाता है।

→ ध्वनि के अभिलक्षण; जैसे तारत्व, प्रबलता तथा गुणता; संगत तरंगों के गुणों द्वारा निर्धारित होते हैं।

→ किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं।

→ मानवों में ध्वनि की श्रव्यता की आवृत्तियों का औसत परास 20Hz – 20 kHz तक है।

→ श्रव्यता के परास से कम आवृत्तियों की ध्वनि को “अवश्रव्य” ध्वनि तथा श्रव्यता के परास से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को “पराध्वनि” कहते हैं।

→ पराध्वनि के चिकित्सा तथा प्रौद्योगिक क्षेत्रों में अनेक उपयोग हैं।

→ सोनार की तकनीक का उपयोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने तथा जल के नीचे छिपी चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल, डूबे हुए जहाजों आदि का पता लगाने के लिए किया जाता है।

→ SONAR शब्द Sound Navigation And Ranging से बना है।

→ हृदय का ध्वनि तरंगों द्वारा प्रतिबिंब बनाना इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं।

→ अल्ट्रोसोनोग्राफी द्वारा गर्भ में वृद्धि कर रहे भ्रूण के दोषों का पता लगाया जाता है।

→ ध्वनि-ऊर्जा का वह रूप जो हमारे कानों में श्रवण संवेदन उत्पन्न करती है, ध्वनि कहलाती है।

→ यांत्रिक तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित तरंगों को यांत्रिक तरंगें कहते हैं।

→ संपीडन-उच्च दाब का क्षेत्र संपीडन कहलाता है।

→ विरलन-निम्न दाब का क्षेत्र विरलन कहलाता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ अनुदैर्ध्य तरंगें जब माध्यम के कणों का विस्थापन विक्षोभ के संचरण की दिशा के समानांतर होता है, उसे अनुदैर्ध्य तरंगें कहते हैं।

→ अनुप्रस्थ तरंगें-जब माध्यम के कणों का विस्थापन विक्षोभ के संचरण की दिशा में लंबवत हो, उसे अनुप्रस्थ तरंगें कहते हैं।

→ आवर्तकाल-दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों को किसी निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्तकाल कहते हैं।

→ तारत्व-किसी उत्सर्जित ध्वनि की आवृत्ति को मस्तिष्क किस प्रकार अनुभव करता है, उसे तारत्व कहते हैं।

→ आयाम किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं।

→ तरंगदैर्ध्य-दो क्रमागत संपीडनों या विरलन के बीच की दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।

→ तरंग वेग-तरंग के किसी बिंदु द्वारा एकांक समय में तय की गई दूरी, तरंग वेग कहलाती है।

→ ध्वनि की तीव्रता किसी एकांक क्षेत्रफल में से एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं।

→ ध्वनि परावर्तन-जब ध्वनि एक धरातल से टकरा कर वापिस उसी माध्यम में लौट आए, इसे ध्वनि परावर्तन कहते हैं।

→ प्रतिध्वनि-परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं।

→ अनुरणन-बारंबार परावर्तन जिसके कारण ध्वनि निर्बंध होता है, अनुरणन कहलाता है।

→ पराश्रव्य ध्वनि-20 kHz से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं।

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ सभी सजीवों को जीवन-निर्वाह के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

→ हमें हमारे द्वारा खाए गए भोजन से ऊर्जा प्राप्त होती है।

→ हरे पौधों को सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त होती है।

→ कार्य करने के लिए दो दशाओं का होना आवश्यक है

  • वस्तु पर कोई बल लगना चाहिए,
  • वस्तु विस्थापित होनी चाहिए।

→ कार्य में केवल परिमाण होता है तथा कोई दिशा नहीं होती।

→ जब बल विस्थापन की दिशा की विपरीत दिशा में लगता है तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है।

→ जब बल विस्थापन की दिशा में लगता है तो किया गया कार्य धनात्मक होता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ सूर्य हमारे लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है।

→ हम परमाणुओं के नाभिकों से, पृथ्वी के आंतरिक भागों से तथा ज्वार-भाटों से भी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

→ कार्य तथा ऊर्जा के मात्रक जूल होते हैं। (1 किलो जूल = 1000 जूल)

→ किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा उसकी चाल के साथ बढ़ती है।

→ दैनिक जीवन के शक्ति के अपवर्त्य मात्रकों; जैसे किलोवाट व मैगावाट का प्रयोग किया जाता है।
1 किलोवाट kW) = 1000 वाट (W)।

→ एक अश्व शक्ति में 746 वाट होते हैं।

→ सूर्य की ऊष्मीय ऊर्जा इसके भीतरी भाग व उसके पृष्ठ पर होने वाली नाभिकीय अभिक्रियाओं द्वारा विमोचित ऊर्जा
का परिणाम है।

→ जल विद्युत संयंत्रों द्वारा जल की गतिज ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदला जाता है।

→ जीवाश्म ईंधन पौधों तथा जंतुओं के अवशेषों से बने हैं।

→ जीवाश्मी ईंधनों में निहित ऊर्जा का उपयोग विद्युत्, ताप अथवा यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जा
सकता है।

→ जब कोई वस्तु ऊँचाई से गिरती है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है।

→ v वेग से गतिशील किसी m द्रव्यमान की गतिज ऊर्जा = my के बराबर होती है।

→ पृथ्वी के तल से h ऊँचाई तक उठाई गई किसी m द्रव्यमान की वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा mgh होती है।

→ कार्य यदि किसी वस्तु पर बल लगाया जाए और वस्तु बल की दिशा में गति करे तो कार्य हुआ माना जाता है,
अर्थात्, कार्य = बल – विस्थापन

→ ऊर्जा-कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।

→ गतिज ऊर्जा-गति के आधार पर कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते हैं।
गतिज ऊर्जा = \(\frac{1}{2}\)mv2

→ स्थितिज ऊर्जा-किसी वस्तु में उसकी स्थिति अथवा आकार में परिवर्तन के कारण जो ऊर्जा होती है, उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
स्थितिज ऊर्जा = mgh

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ यांत्रिक ऊर्जा-किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा तथा गतिज ऊर्जा के योग को ‘यांत्रिक ऊर्जा’ कहते हैं।

→ जूल-यदि एक वस्तु पर 1 न्यूटन बल लगाने पर वह बल की दिशा में एक मीटर विस्थापित हो तो वस्तु पर किया गया कार्य एक जूल होगा।

→ विस्थापन-किसी गतिमान वस्तु की दो स्थितियों के बीच निकटतम दूरी को विस्थापन कहते हैं।

→ पलायन वेग-वह न्यूनतम वेग जिससे ऊपर की दिशा में छोड़ी गई वस्तु पृथ्वी के खिंचाव बल से पलायन कर सके, ‘पलायन वेग’ कहलाता है।

→ शक्ति कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। इसकी (S.I.) इकाई वाट है।
HBSE 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा 1

→ ऊर्जा संरक्षण नियम-ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। इसे एक वस्तु से दूसरी वस्तु में रूपांतरित या स्थानांतरित किया जा सकता है।

→ गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा-गुरुत्वीय बल के विरुद्ध किए गए कार्य के कारण वस्तु में संचित ऊर्जा को गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

→ प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा-किसी वस्तु में उसकी आकृति में परिवर्तन के कारण संचित ऊर्जा प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहलाती है; जैसे खिंचे हुए रबड़ बैंड में।

→ एक किलोवाट घंटा ऊर्जा-यदि एक किलोवाट शक्ति के स्रोत का उपयोग एक घंटे के लिए किया जाए तो उसकी ऊर्जा एक किलोवाट घंटा कहलाती है।

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HBSE 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

HBSE 9th Class Science क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Intext Questions and Answers
(पृष्ठ संख्या-16)
प्रश्न 1.
पदार्थ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पदार्थ वे होते हैं जो एक ही प्रकार के कणों से मिलकर बने होते हैं तथा उस पदार्थ में विद्यमान सभी कण समान रासायनिक प्रकृति के होते हैं; जैसे सोना, ताँबा आदि।

प्रश्न 2.
समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ।
उत्तर:
समांगी मिश्रण-ऐसे मिश्रण जिनका संघटन एक समान होता है; उन्हें समांगी मिश्रण कहते हैं। विषमांगी मिश्रण-ऐसे मिश्रण जिनका संघटन असमान होता है, उन्हें विषमांगी मिश्रण कहते हैं।

(पृष्ठ संख्या – 20)

प्रश्न 1.
उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिए।
उत्तर:
समांगी मिश्रण-ऐसे मिश्रण जिनका संघटन एक समान होता है, उन्हें समांगी मिश्रण कहते हैं; जैसे जल में चीनी का मिश्रण, जल में नमक का मिश्रण, जल और ऐल्कोहॉल का मिश्रण। विषमांगी मिश्रण-ऐसे मिश्रण जिनका संघटन असमान होता है, उन्हें विषमांगी मिश्रण कहते हैं; जैसे बालू और नमक का मिश्रण, नमक और चीनी का मिश्रण।

HBSE 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

प्रश्न 2.
विलयन, निलंबन और कोलाइड एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
विलयन, निलंबन व कोलाइड में अंतर निम्नलिखित हैं

विलयननिलंबनकोलाइड
1. यह विलयन समांगी तथा पारदर्शी होता है; जैसे पानी में नमक का विलयन।1. यह विलयन विषमांगी तथा अपारदर्शी होता है; जैसे गंदला पानी, पेंट।1. यह विलयन समांगी परंतु अल्प पारदर्शी होता है; जैसे दूध, रक्त, स्याही, टूथपेस्ट।
2. इसमें विलेय के कणों का आकार मी० तक होता है।2. इसमें विलेय के कणों का आकार $10^{-7}$ मी० या इससे अधिक होता है।2. इसमें विलेय के कणों का आकार $10^{-9}$ से $10^{-7}$ मी० तक होता है अर्थात् विलयन के कणों से बड़ा आकार होता है।
3. इसमें विलेय के कणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा भी नहीं देखा जा सकता है।3. इसमें विलेय कणों को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है।3. इसमें विलेय के कण एक शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा देखे जा सकते हैं।
4. इसमें विलेय कणों को छानकर पृथक् नहीं किया जा सकता।4. इसके कणों को छानकर पृथक् किया जा सकता है।4. इसके कणों को छानकर पृथक् नहीं किया जा सकता है।
5. अपने छोटे आकार के कारण विलयन के कण गुजर रही प्रकाश किरण को फैलाते नहीं हैं। इसलिए विलयन में प्रकाश का मार्ग दिखाई नहीं देता।5. निलंबित कण प्रकाश की किरण को फैला देते हैं जिससे उसका मार्ग दृष्टिगोचर हो जाता है।5. कोलाइड कण इतने बड़े होते हैं कि प्रकाश की किरण को फैलाते हैं तथा उसके मार्ग को दृश्य बनाते हैं।

प्रश्न 3.
एक संतृप्त विलयन बनाने के लिए 36g सोडियम क्लोराइड को 100g जल में 293K पर घोला जाता है। इस तापमान पर इसकी सांद्रता प्राप्त करें।
हल-293K ताप पर..
विलेय पदार्थ का द्रव्यमान (सोडियम क्लोराइड) = 36g
विलायक का द्रव्यमान (जल) = 100g
विलयन का द्रव्यमान = विलेय पदार्थ का द्रव्यमान + विलायक का द्रव्यमान
= 36g + 100g = 136g
विलयन की सांद्रता = HBSE 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं img-1
\(\frac{36}{10}\) x 100 = 26.47%

(पृष्ठ संख्या – 26)

प्रश्न 1.
पेट्रोल और मिट्टी का तेल (Kerosene Oil) जो कि आपस में घुलनशील हैं, के मिश्रण को आप कैसे पृथक् करेंगे? पेट्रोल तथा मिट्टी के तेल के क्वथनांकों में 25°C से अधिक का अंतराल है।
उत्तर:
पेट्रोल और किरोसीन तेल जोकि आपस में घुलनशील हैं, के मिश्रण को आसवन विधि द्वारा अलग किया जाता है। यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि विभिन्न अवयवों का क्वथनांक भिन्न-भिन्न होता है क्योंकि पेट्रोल और किरोसीन तेल के क्वथनांकों में 25°C से अधिक का अन्तर है इसलिए निम्न क्वथनांक वाला द्रव पहले और उच्च क्वथनांक वाला द्रव कुछ अन्तराल बाद आसवित होकर अलग-अलग हो जाएँगे।

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प्रश्न 2.
पृथक् करने की सामान्य विधियों के नाम दें

  • दही से मक्खन,
  • समुद्री जल से नमक,
  • नमक से कपूर।

उत्तर:

  • दही से मक्खन अपकेंद्रण विधि द्वारा पृथक् किया जाता है।
  • समुद्री जल से नमक वाष्पीकरण विधि द्वारा पृथक् किया जाता है।
  • नमक से कपूर ऊर्ध्वपातन विधि द्वारा पृथक् किया जाता है।

प्रश्न 3.
क्रिस्टलीकरण विधि से किस प्रकार के मिश्रणों को पृथक् किया जा सकता है?
उत्तर:
क्रिस्टलीकरण वह विधि है जिसके द्वारा क्रिस्टल के रूप में शुद्ध ठोस को विलयन से अलग किया जा सकता है; जैसे समुद्र से नमक प्राप्त करना। + पाठ्य-पुस्तक के

(पृष्ठ संख्या-27)

प्रश्न 1.
निम्न को रासायनिक और भौतिक परिवर्तनों में वर्गीकृत करें
पेड़ों को काटना,
मक्खन का एक बर्तन में पिघलना,
अलमारी में जंग लगना,
जल का उबलकर वाष्प बनना,
विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा उसका हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना,
जल में साधारण नमक का घुलना,
फलों से सलाद बनाना तथा
लकड़ी और कागज़ का जलना।
उत्तर:
भौतिक परिवर्तन-पेड़ों को काटना, मक्खन का एक बर्तन में पिघलना, जल का उबलकर वाष्प बनना, जल में साधारण नमक का घुलना, फलों से सलाद बनाना। रासायनिक परिवर्तन-अलमारी में जंग लगना, विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा उसका हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना, लकड़ी और कागज़ का जलना।

प्रश्न 2.
अपने आस-पास की चीज़ों को शुद्ध पदार्थों या मिश्रण से अलग करने का प्रयत्न करें।
उत्तर:
शुद्ध पदार्थ-लोहा, सोना, चाँदी, ताँबा, ऐलुमिनियम, चीनी, नमक आदि। मिश्रण-समुद्र का जल, खनिज, मिट्टी, वायु, पेय पदार्थ आदि।

HBSE 9th Class Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

HBSE 9th Class Science क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को पृथक् करने के लिए आप किन विधियों को अपनाएंगे?
(a) सोडियम क्लोराइड को जल के विलयन से पृथक् करने में।
(b) अमोनियम क्लोराइड को सोडियम क्लोराइड और अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से पृथक् करने में।
(c) धातु के छोटे टुकड़े को कार के इंजन ऑयल से पृथक् करने में।
(d) दही से मक्खन निकालने के लिए।
(e) जल से तेल निकालने के लिए।
(f) चाय से चाय की पत्तियों को पृथक् करने में।
(g) बालू से लोहे की पिनों को पृथक् करने में।
(h) भूसे से गेहूँ के दानों को पृथक् करने में।
(i) पानी में तैरते हुए महीन मिट्टी के कण को पानी से अलग करने के लिए।
(j) पुष्प की पंखुड़ियों के निचोड़ से विभिन्न रंजकों को पृथक् करने में।
उत्तर:
(a) सोडियम क्लोराइड को जल के विलयन से पृथक् करने में वाष्पीकरण विधि का प्रयोग किया जाता है।

(b) अमोनियम क्लोराइड को सोडियम क्लोराइड और अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से पृथक् करने में ऊर्ध्वपातन विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि अमोनियम क्लोराइड ऊर्ध्वपातित पदार्थ है।

(c) धातु के छोटे टुकड़े को कार के इंजन ऑयल से पृथक् करने में छानना विधि का प्रयोग किया जाता है।

(d) दही से मक्खन निकालने के लिए अपकेंद्रण विधि का प्रयोग किया जाता है।

(e) जल से तेल निकालने के लिए पृथक्करण कीप का प्रयोग किया जाता है क्योंकि जल और तेल अघुलनशील द्रव हैं।

(f) चाय की पत्तियों से चाय को पृथक् करने के लिए छानना विधि का प्रयोग किया जाता है। छानने के लिए चाय-छलनी का प्रयोग किया जाता है।

(g) बालू से लोहे की पिनों को पृथक् करने में चुंबकीय पृथक्करण विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि लोहे की पिन चुंबक की ओर आकर्षित हो जाती है।

(h) भूसे से गेहूँ के दाने को पृथक करने के लिए फटकना विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि फटकना विधि से भूसा हल्का होने के कारण वायु से दूर चला जाता है और गेहूँ के दाने भारी होने के कारण सीधे जमीन पर गिरते हैं।

(i) पानी में तैरते हुए महीन मिट्टी के कणों को भारण विधि द्वारा अलग किया जा सकता है क्योंकि मिट्टी के कण फिटकरी द्वारा भारी होकर नीचे बैठ जाते हैं।

(j) पुष्प की पंखुड़ियों के निचोड़ से विभिन्न रंजकों को पृथक् करने में क्रोमैटोग्राफी विधि का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 2.
चाय तैयार करने के लिए आप किन-किन चरणों का प्रयोग करेंगे। विलयन, विलायक, विलेय, घुलना, घुलनशील, अघुलनशील, घुलेय (फिल्ट्रेट) तथा अवशेष शब्दों का प्रयोग करें।
उत्तर:
चाय तैयार करने के लिए दिए गए शब्दों के प्रयोग से हम निम्नलिखित प्रकार से चाय बनाएँगे

  1. विलायक-चाय बनाने वाले बर्तन में पानी को विलायक के रूप में लीजिए तथा बर्नर पर रखिए।
  2. विलेय-पानी में चीनी को विलेय के रूप में डालिए।
  3. विलयन-पानी व चीनी का मिश्रण विलयन बन जाएगा।
  4. घुलना-पानी में चीनी घुलकर विलयन बनाएगी।
  5. घुलनशील-पानी में चीनी घुलनशील होने के कारण घुल जाती है तथा उबालने के बाद दूध में भी घुलनशील पदार्थ है।
  6. अघुलनशील-पानी व चीनी के मिश्रण में चायपत्ती की पत्तियाँ अघुलनशील पदार्थ के रूप में डालिए तथा उबालिए।
  7. घुलेय (फिल्ट्रेट) और अवशेष-चाय की पत्तियों के उबलने के बाद चाय को छानने योग्य छलनी का प्रयोग करके छानिए। घुलेय (फिल्ट्रेट) पदार्थ चाय को पीने के लिए प्रयोग कीजिए तथा छलनी में बचे अवशेष को फेंक दीजिए।

प्रश्न 3.
प्रज्ञा ने तीन अलग-अलग पदार्थों की घुलनशीलताओं को विभिन्न तापमान पर जाँचा और नीचे दिए गए आँकड़ों को प्राप्त किया। प्राप्त हुए परिणामों को 100g जल में विलेय पदार्थ की मात्रा, जो संतृप्त विलयन बनाने हेतु पर्याप्त है, निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है

विलेय पदार्थतापमान केल्विन
283293313333353
पोटैशियम नाइट्रेट213262106167
सोडियम क्लोराइड3636363737
पोटैशियम क्लोराइड3535404654
अमोनियम क्लोराइड2437415566

(a) 50g जल में 313K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन को प्राप्त करने हेतु कितने ग्राम पोटैशियम नाइट्रेट की आवश्यकता होगी?

(b) प्रज्ञा 353K पर पोटैशियम क्लोराइड का एक संतृप्त विलयन तैयार करती है और विलयन को कमरे के तापमान पर ठंडा होने के लिए छोड़ देती है। जब विलयन ठंडा होगा तो वह क्या अवलोकित करेगी? स्पष्ट करें।

(c) 293K पर प्रत्येक लवण की घुलनशीलता का परिकलन करें। इस तापमान पर कौन-सा लवण सबसे अधिक घुलनशील होगा?

(d) तापमान में परिवर्तन से लवण की घुलनशीलता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
(a) प्रश्नानुसार
100 ग्राम जल में 313K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन के लिए आवश्यक पोटैशियम नाइट्रेट = 62 ग्राम
1 ग्राम जल में 313K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन के लिए आवश्यक पोटैशियम नाइट्रेट = \(\frac{62}{100}\) 100 ग्राम
50 ग्राम जल में 313K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन के लिए आवश्यक पोटैशियम नाइट्रेट = \(\frac{62}{100}\) x 50 ग्राम
= 31 ग्राम

(b) प्रज्ञा 353K पर पोटैशियम क्लोराइड का संतृप्त विलयन प्राप्त करती है और विलयन को कमरे के तापमान (293K) पर ठंडा होने के लिए छोड़ देती है तो जब विलयन ठंडा होगा तो वह अति संतृप्त विलयन होगा क्योंकि कमरे के तापमान पर उसमें संतृप्तता से (54-35)19 ग्राम अधिक पोटेशियम.क्लोराइड होगा।

(c) 293K तापमान पर 100 ग्राम जल में पोटैशियम नाइट्रेट, सोडियम क्लोराइड, पोटैशियम क्लोराइड व अमोनियम क्लोराइड की घुलनशीलता क्रमशः 32 ग्राम, 36 ग्राम, 35 ग्राम व 37 ग्राम है। अतः इस तापमान पर अमोनियम क्लोराइड लवण की घुलनशीलता सबसे अधिक है।

(d) तापमान में परिवर्तन से लवण की घुलनशीलता पर धनात्मक प्रभाव पड़ता है अर्थात् तापमान को बढ़ाने पर लवण की घुलनशीलता बढ़ती है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित की उदाहरण सहित व्याख्या करें
(a) संतृप्त विलयन,
(b) शुद्ध पदार्थ,
(c) कोलाइड,
(d) निलंबन।
उत्तर:
(a) संतृप्त विलयन-दिए गए निश्चित तापमान पर यदि विलयन में ओर अधिक विलेय पदार्थ नहीं घुलता तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं अर्थात् दिए गए तापमान पर किसी विलयन में जब उसकी क्षमता के अनुसार जितना अधिकतम क्लेिय घुल जाता है तब उसे संतृप्त विलयन कहते हैं। उदाहरणतया एक बीकर में 50 मि०ली० जल लें अब इसमें थोड़ा-थोड़ा करके नमक डालें और घोलें। जब नमक घुलना बंद हो जाए तो वह विलयन संतृप्त विलयन कहलाएगा।

(b) शुद्ध पदार्थ एक ही प्रकार के कणों से बने पदार्थ को शुद्ध पदार्थ कहा जाता है; जैसे लोहा, सोना, चाँदी, चीनी, जल आदि।

(c) कोलॉइड-कोलॉइड वह विषमांगी मिश्रण होता है जिसके कणों का आकार 1 mm से 100 mm के बीच होता है। ये कण आंखों से नहीं देखे जा सकते तथा प्रकाश की किरणों को फैला देते हैं; जैसे दूध, शेविंग क्रीम, टूथपेस्ट, जेली, फेस क्रीम आदि।

(d) निलंबन-निलंबन एक विषमांगी मिश्रण होता है जिसमें विलेय पदार्थ के कण घुलते नहीं हैं, बल्कि माध्यम की समष्टि में निलंबित रहते हैं। निलंबित कण 100 nm (10-‘m) से बड़े होते हैं तथा आंखों से देखे जा सकते हैं, जैसे नदी का गंदला पानी; मोटे चूने के पत्थर व जल का मिश्रण आदि।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक को समांगी और विषमांगी मिश्रणों में वर्गीकृत करेंसोडा जल, लकड़ी, बर्फ, वायु, मिट्टी, सिरका, छनी हुई चाय। उत्तर-समांगी मिश्रण-सोडा जल, बर्फ, सिरका, छनी हुई चाय। विषमांगी मिश्रण-लकड़ी, वायु, मिट्टी। प्रश्न 6. आप किस प्रकार पुष्टि करेंगे कि दिया हुआ रंगहीन द्रव शुद्ध जल है?
उत्तर:
हम दिए गए रंगहीन द्रव का क्वथनांक ज्ञात करेंगे यदि वह क्वथनांक 373K आता है तो हम पुष्टि करेंगे कि दिया गया रंगहीन द्रव शुद्ध जल है, परंतु यदि नहीं आता तो यह शुद्ध जल नहीं है।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तुएँ शुद्ध पदार्थ हैं?
(a) बर्फ,
(b) दूध,
(c) लोहा,
(d) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल,
(e) कैल्शियम ऑक्साइड, पारा,
(g) ईंट,
(h) लकड़ी,
(i) वायु
उत्तर:
दी गई वस्तुओं में से निम्नलिखित वस्तुएँ शुद्ध पदार्थ हैं-
(a) बर्फ,
(c) लोहा,
(d) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल,
(e) कैल्शियम ऑक्साइड, पारा।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित मिश्रणों में से विलयन की पहचान करें
(a) मिट्टी,
(b) समुद्री जल,
(c) वायु,
(d) कोयला,
(e) सोडा जल।
उत्तर:
(e) सोडा जल एक विलयन है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन टिनडल प्रभाव को प्रदर्शित करेगा?
(a) नमक का घोल,
(b) दूध,
(c) कॉपर सल्फेट का विलयन,
(a) स्टार्च विलयन।
उत्तर:
(b) दूध टिनडल प्रभाव को दर्शाता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित को तत्त्व, यौगिक और मिश्रण में वर्गीकृत करें
(a) सोडियम,
(b) मिट्टी,
(c) चीनी का घोल,
(d) चाँदी,
(e) कैल्शियम कार्बोनेट,
(f) टिन,
(g) सिलिकॉन,
(h) कोयला,
(i) वायु,
(j) साबुन,
(k) मिथेन,
(l) कार्बन डाइऑक्साइड,
(m) रक्त।
उत्तर:
तत्त्व-
(a) सोडियम,
(d) चाँदी,
(f) टिन,
(g) सिलिकॉन।
यौगिक-
(e) कैल्शियम कार्बोनेट,
(j) साबुन,
(k) मिथेन,
(l) कार्बन डाइऑक्साइड।
मिश्रण-(b) मिट्टी, (c) चीनी का घोल, (h) कोयला, (i) वायु, (m) रक्त।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-कौन से परिवर्तन रासायनिक हैं?
(a) पौधों की वृद्धि,
(b) लोहे में जंग लगना,
(c) लोहे के चूर्ण और बालू को मिलाना,
(d) खाना पकाना,
(e) भोजन का पाचन,
(f) जल से बर्फ बनना,
(g) मोमबत्ती का जलना।
उत्तर:
रासायनिक परिवर्तन निम्नलिखित हैं
(a) पौधों की वृद्धि,
(b) लोहे में जंग लगना,
(d) खाना पकाना,
(e) भोजन का पाचन,
(f) मोमबत्ती का जलना।

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ पेड़ से किसी सेब का गिरना व चंद्रमा की गति का कारण गुरुत्व बल है।

→ गुरुत्वाकर्षण बल की व्याख्या करने वाले नियम की खोज सर आइज़क न्यूटन ने की थी।

→ सर आइज़क न्यूटन का जन्म 1642 ई० में हुआ था।

→ किसीr त्रिज्या के वृत्ताकार पथ में v वेग से गतिशील कोई वस्तु पृथ्वी के केंद्र की ओर \(\frac{v^2}{r}\) परिमाण से त्वरित होती है।

→ गुरुत्वीय बल पृथ्वी तल से ऊँचाई बढ़ने पर कम होता जाता है। यह पृथ्वी तल के विभिन्न स्थानों पर भी परिवर्तित होता है और इसका मान ध्रुवों से विषुवत वृत्त की ओर घटता जाता है।

→ सार्वत्रिक गुरुत्वीय स्थिरांक G का मान 6.673 × 10-11 Nm2/kg2 है।

→ न्यूटन के अनुसार ग्रहों की गति का कारण गुरुत्वाकर्षण का वह बल है जो सूर्य उन पर लगाता है। 8. नियमित आकार व एक समान घनत्व वाली वस्तुओं का गुरुत्व केंद्र उनके ज्यामितीय केंद्र पर होता है।

→ किसी वस्तु पर पृथ्वी का आकर्षण बल उसके (पृथ्वी के) केंद्र की दिशा में लगता है।

→ किसी वस्तु का भार द्रव्यमान व गुरुत्वीय त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है।

→ किसी वस्तु का भार भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न हो सकता है, किंतु द्रव्यमान स्थिर रहता है।

→ सभी वस्तुएँ किसी तरल में डुबाने पर उत्प्लावन बल का अनुभव करती है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ जिस द्रव में वस्तुओं को डुबोया जाता है उसके घनत्व की वस्तुएँ द्रव की सतह पर तैरती हैं। यदि वस्तु का घनत्व, डुबोए जाने वाले द्रव से अधिक है तो वे द्रव में डूबती हैं।

→ पृथ्वी तल के पास गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान 9.8 m/s2 होता है।

→ किसी प्रक्षेप्य द्वारा तय की गई अधिकतम क्षैतिज दूरी परास कहलाती है।

→ वस्तु का भार सदैव ऊर्ध्वाधर दिशा में लगता है।

→ किसी वस्तु का चंद्रमा पर भार पृथ्वी की अपेक्षा \(\frac{1}{6}\) गुना होता है।

→ प्रणोद का SI मात्रक न्यूटन (N) होता है।

→ दाब का SI मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मीटर (N/m2) है। इसे ब्लैस पास्कल के सम्मान में पास्कल (Pa) के नाम से पुकारते हैं अर्थात दाब का मात्रक पास्कल है।

→ किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व उसके घनत्व तथा पानी के घनत्व का अनुपात है।

→ सभी वस्तुएँ किसी तरल (द्रव या गैस) में डुबाने पर उत्प्लावन बल का अनुभव करती हैं।

→ घनत्व का SI मात्रक किलोग्राम प्रति घन मीटर है।

→ किसी पदार्थ के नमूने का घनत्व उस पदार्थ की शुद्धता की जाँच में सहायता करता है।

→ सोने का आपेक्षिक घनत्व 19.3 है।

→ आपेक्षिक घनत्व का कोई मात्रक नहीं होता क्योंकि यह एक अनुपात है।

→ गुरुत्वाकर्षण बल-विश्व के कोई भी दो कण एक-दूसरे को बल लगाकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।

→ गुरुत्व बल-पृथ्वी द्वारा लगाए जाने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व बल कहते हैं।

→ अभिकेंद्र बल-वृत्तीय गति को बनाए रखने वाला त्वरण सदैव वृत्त के केंद्र के अनुदिश होता है, इसे अभिकेंद्र बल कहते हैं।

→ गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार-किन्हीं दो पिंडों अथवा कणों के बीच आकर्षण बल उन दोनों के द्रव्यमानों के गुणनफलों के समानुपाती व उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह नियम सभी पिंडों पर लागू होता है चाहे वह विश्व में कहीं भी हों। इस प्रकार के नियम को सार्वत्रिक नियम कहते हैं।

→ गुरुत्व केंद्र-किसी वस्तु पर लगे गुरुत्व बल को, उसमें स्थित एक बिंदु पर लगता हुआ मान सकते हैं। यह बिंदु वस्तु का गुरुत्व केंद्र कहलाता है।

→ भार-किसी वस्तु का भार वह बल है जिससे पृथ्वी उसे आकर्षित करती है।

→ प्रक्षेप्य-ऊर्ध्वाधर से किसी कोण पर प्रक्षेपित (या प्रमोचित) कण को प्रक्षेप्य कहते हैं। इसका पथ (माग) एक वक्र होता है जिसे परवलय कहते हैं।

→ द्रव्यमान-किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व का माप होता है।

→ प्रणोद-किसी वस्तु की सतह के लंबवत् लगने वाले बल को प्रणोद कहते हैं।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ दाब-एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रणोद को दाब कहते हैं अर्थात् दाब
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→ आर्किमिडीज के नियम के अनुसार-जब किसी वस्तु को पूर्ण या आंशिक रूप से किसी तरल में डुबोया जाता है तो उस पर ऊपर की ओर एक बल लगता है, जो वस्तु द्वारा हटाए गए तरल के भार के बराबर होता है।

→ उत्प्लावन बल-जब किसी वस्तु को किसी द्रव में डुबोया जाता है तो द्रव द्वारा उस वस्तु पर ऊपर की ओर एक बल लगाया जाता है जिसे उत्प्लावन बल कहते हैं।

→ घनत्व-किसी वस्तु का घनत्व उसके एकांक आयतन के द्रव्यमान को कहते हैं।

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HBSE 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ बल एक सदिश राशि है।

→ गैलीलियो का जन्म 15 फरवरी, 1564 में इटली के पीसा नामक शहर में हुआ।

→ गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

→ संवेग की SI इकाई किलोग्राम-मीटर प्रति सेकंड (kgm/s) होती है।

→ संवेग परिवर्तन की दर, वस्तु पर लगने वाले बल के समानुपाती होती है।

→ किसी वस्तु में उत्पन्न त्वरण, उस पर लगे बल के समानुपाती होता है।

→ संवेग एक सदिश राशि है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ गति के द्वितीय नियम से हमें किसी वस्तु पर लगने वाले बल को मापने की विधि मिलती है।

→ बल को वस्तु में उत्पन्न त्वरण तथा वस्तु के द्रव्यमान के गुणनफल से प्राप्त किया जाता है।

→ किसी विलगित निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है।

→ घर्षण बल सदैव वस्तु की गति का प्रतिरोध करता है।

→ सभी ठोस सतहें, उनके संपर्क में गतिशील वस्तुओं पर घर्षण बल आरोपित करती हैं।

→ सभी द्रव व गैसीय सतहें, उन पर या उनसे होकर जाने वाली वस्तुओं पर घर्षण बल आरोपित करती हैं।

→ जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु के ऊपर खिसकती है तो उन दोनों के बीच के घर्षण को सी घर्षण कहते हैं।

→ रोलरों पर गति करने वाली वस्तुओं की स्थिति में घर्षण को लोटनिक घर्षण कहते हैं।

→ घर्षण उन दो सतहों के चिकनेपन अथवा खुरदरेपन पर निर्भर करता है, जो परस्पर संपर्क में हैं।

→ किसी दी हुई वस्तु के लिए सी घर्षण सदैव लोटनिक घर्षण से अधिक होता है।

→ घर्षण के अवांछनीय प्रभावों को कुछ सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है।

→ जो उल्का पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाती हैं, उसे उल्का पिंड कहते हैं।

→ घर्षण कम करने के लिए मशीनों में प्रायः बॉल-बेयरिंगों का उपयोग किया जाता है।

→ बल-बल वह बाह्य कारक है, जो किसी वस्तु की स्थिति में परिवर्तन करता है या करने की चेष्टा करता है।

→ गति का प्रथम नियम-वस्तु अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा के अनुरूप एकसमान गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है, जब तक कि उस पर कोई असंतुलित बल कार्य न करे।

→ जड़त्व-वस्तुओं द्वारा अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।

→ द्रव्यमान-किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है। इसका SI मात्रक किलोग्राम (kg) है।

→ गति का द्वितीय नियम-वस्तु का संवेग उसके द्रव्यमान व वेग का गुणनफल होता है और उसकी दिशा वही होती है, जो वस्तु के वेग की है अर्थात् p = mv

→ एक न्यूटन-एक न्यूटन (N) वह बल है, जो एक किलोग्राम द्रव्यमान वाली वस्तु में एक मीटर प्रति वर्ग सेकंड का त्वरण उत्पन्न करता है।

HBSE 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ गति का तृतीय नियम प्रत्येक क्रिया के लिए उसके बराबर व विपरीत प्रतिक्रिया होती है और यह दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर कार्य करती है।

→ संतुलित बल यदि किसी वस्तु पर क्रिया कर रहे विभिन्न बलों का परिणाम शून्य हो तो ऐसे बलों को संतुलित बल कहते हैं।

→ असंतुलित बल-यदि वस्तु पर क्रिया कर रहे विभिन्न बलों का परिणामी बल शून्य न हो तो, ऐसे बलों को असंतुलित बल कहा जाता है।

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