HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

Haryana State Board HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

HBSE 11th Class Physical Education संक्रामक रोग Textbook Questions and Answers

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न ( (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक रोगों से क्या अभिप्राय है? इनके फैलने के माध्यमों का वर्णन करें।
अथवा
छूत के रोग क्या होते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? इन रोगों के फैलने के विभिन्न कारण कौन-कौन-से हैं? अथवा संक्रामक (छूत के ) रोग क्या होते हैं? इनके फैलने के कारण तथा लक्षण लिखें। अथवा संक्रामक रोगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
संक्रामक रोग का अर्थ (Meaning of Communicable Diseases):
सभी प्रकार के संक्रामक रोग किसी विशेष प्रकार के रोगाणु से पनपते हैं। ये रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। जब स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोगाणु (वायरस, बैक्टीरिया, कीटाणु, फफूंदी आदि) जल, वायु, भोजन तथा स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करके उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या रोगग्रस्त करते हैं, तो वे संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases) कहलाते हैं।

संक्रामक (छूत के) रोगों के प्रकार (Types of Communicable Diseases): विषाणु, बैक्टीरिया व कीटाणुओं के आधार पर ये रोग दो प्रकार के होते हैं
1. संसर्ग रोग (Contagious Diseases):
संसर्ग रोग रोगी के प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से लगते हैं; जैसे खसरा, काली खाँसी, जुकाम आदि।

2. संचारी रोग (Infectious Diseases):
संचारी रोग अप्रत्यक्ष रूप से फैलते हैं। इन रोगों के जीवाणु साँस, पानी एवं भोजन द्वारा शरीर में प्रवेश करके हैजा, चेचक, पेचिश, टायफाइड आदि रोगों को फैलाते हैं।

फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Transmission)-संक्रामक रोग निम्नलिखित कारणों (माध्यमों) से फैलते हैं
1. वायु द्वारा (By Air): साँस लेने से वायु द्वारा रोगाणु शरीर में प्रविष्ट होकर स्वस्थ व्यक्ति को बीमार कर देते हैं। चेचक, काली खाँसी, जुकाम आदि रोग वायु के माध्यम से ही फैलते हैं।

2. भोजन और पानी द्वारा (Through Food and Water): कई रोग दूषित भोजन और गंदे पानी द्वारा भी फैलते हैं। मक्खियाँ भोजन पर बैठकर उसको दूषित कर देती हैं और रोग के रोगाणु भोजन में छोड़ देती हैं। ऐसे भोजन को खाने से व्यक्ति बीमार हो जाता है। गंदे पानी के प्रयोग से हैजा, पेचिश, मियादी बुखार आदि रोग हो जाते हैं।

3. प्रत्यक्ष स्पर्श द्वारा (By Direct Contact): रोगी द्वारा इस्तेमाल किए हुए वस्त्रों, बर्तनों आदि का उपयोग करने या उसको स्पर्श करने से छूत की बीमारियाँ फैलती हैं; जैसे जुकाम, चेचक, खुजली आदि।

4. कीड़ों द्वारा (Through Insects): जब मच्छर या खटमल किसी रोगी को काटते हैं तो वे रोगाणु अपने अंदर ले जाते हैं। फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते समय वे रोगाणु उसके शरीर में छोड़कर उसे रोगग्रस्त कर देते हैं। मलेरिया, फाइलेरिया व खुजली आदि कीड़ों द्वारा फैलने वाले संक्रामक रोग हैं। लक्षण (Symptoms): संक्रामक रोगों के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. छूत के रोगों में मिलते-जुलते लक्षण पाए जाते हैं। इनमें बीमारी बढ़ने पर शरीर बेजान हो जाता है।
  2. पूरे शरीर में पीड़ा होने लगती है जो असहनीय होती है।
  3. सिर में दर्द रहने लगता है और बुखार तेजी से बढ़ने लगता है।
  4. शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
  5. शरीर में कंपकंपी होने लगती है और रोगी को ठंड लगने लगती है।
  6. शरीर कमजोर होने लगता है।
  7. छूत के रोगों में उल्टियाँ तथा पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने से दस्त भी लग जाते हैं।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 2.
संक्रामक रोगों का क्या अर्थ है? संक्रामक रोगों के बचावात्मक या सुरक्षात्मक उपायों का वर्णन करें। अथवा छूत के रोगों से बचने के लिए हमें किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए? अथवा छूत की बीमारियों को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर:
संक्रामक रोगों का अर्थ (Meaning of Communicable Diseases):
संक्रामक रोगों से अभिप्राय उन रोगों से है जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया, वायरस आदि के कारण फैलते हैं। ये रोग रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने अर्थात् संक्रमण से फैलते हैं।

बचावात्मक या सुरक्षात्मक उपाय (Preventive Measures): संक्रामक रोगों से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय/नियम अपनाए जा सकते हैं
1. रोगी को अलग रखना (Isolation of Patient):
जो व्यक्ति रोग का शिकार होता है उसे घर के शेष व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए जिससे कम-से-कम व्यक्तियों का उससे संपर्क हो सके। केवल एक या दो व्यक्ति ही उसकी देखभाल के लिए होने चाहिएँ। अस्पताल में भी संक्रामक रोग से प्रभावित व्यक्ति को अलग कमरे में रखना चाहिए। ऐसा करने से संक्रामक रोगों के रोगाणुओं को फैलने से रोका जा सकता है।

2. स्वास्थ्य विभाग को सूचना देना (Information to the Health Department):
यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक रोग से प्रभावित हो जाता है तो उसके आस-पड़ोस के या उसके घर के व्यक्तियों का यह नैतिक कर्त्तव्य बन जाता है कि वे इस बात की सूचना शीघ्रता से स्वास्थ्य विभाग को दें ताकि वह बीमारी और कहीं न फैल सके। इस प्रकार की सूचना हैजा, चेचक, मलेरिया, रेबीज़ और प्लेग के बारे में अवश्य देनी चाहिए।

3. व्यक्तिगत सफाई की ओर विशेष ध्यान देना (Proper Care of Personal Cleanliness):
संक्रामक रोगों की रोकथाम या बचाव में व्यक्तिगत सफाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्तिगत सफाई या स्वच्छता के लिए दैनिक कार्य ध्यान से करने पड़ते हैं; जैसे शौच आदि से निवृत्त होकर हाथ साबुन से अच्छी प्रकार साफ करना, प्रतिदिन ठीक प्रकार से नहाना, समय-समय पर नाखून काटना, घर में तौलिया, रूमाल, कंघी, बर्तन आदि साफ रखना तथा भोजन करने से पहले हाथ अच्छे से साफ करना आदि।

4. टीकाकरण (Vaccination):
टीकाकरण कराने से ये रोग कम होते हैं, क्योंकि इससे व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। पोलियो, खसरा, चेचक, टायफाइड आदि से संबंधित टीके बचपन में ही लगवा लेने चाहिएँ ताकि इन रोगों से बचा जा सके।

5. पीने के पानी का नियमित निरीक्षण (Regular Checking of Drinking Water):
समय-समय पर पीने के पानी का निरीक्षण अवश्य करते रहना चाहिए। पीने के पानी के द्वारा होने वाले संक्रामक रोगों से बचने के लिए क्लोरीन एवं लाल दवाई युक्त पानी ही पीने हेतु उपयोग में लाना चाहिए। इसके अलावा पानी को पीने योग्य बनाने के लिए आधुनिक यंत्रों या उपकरणों का प्रयोग भी किया जा सकता है। ऐसा करने से पानी के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

6. विसंक्रमण/कीटाणु-मुक्त करना (Disinfection):
जब बीमार व्यक्ति ठीक हो जाए तो उसके द्वारा प्रयोग किए गए कपड़े, बिस्तर, बर्तन आदि वस्तुओं से रोगाणुओं को नष्ट कर देना चाहिए, ताकि इन वस्तुओं से स्वस्थ व्यक्ति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क होने से उसके स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव न पड़े।

7. आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था (Arrangement of Cleanliness in Neighbourhood):
संक्रामक रोगों से बचने के लिए अपने आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यदि आस-पास गंदगी हो या गंदा पानी एकत्रित हो तो संक्रामक रोग अधिक फैलते हैं। इसीलिए आस-पड़ोस में सफाई की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए ताकि इस प्रकार के रोगों से स्वस्थ व्यक्ति बच सकें।

8. संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा (Proper Education Regarding Communicable Diseases):
सभी व्यक्तियों को संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। टी०वी०, रेडियो, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और शिक्षण संस्थानों आदि के माध्यम से संक्रामक रोगों के बारे में उचित शिक्षा प्रदान की जा सकती है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे रोगों से बचाव किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
एड्स (AIDS) क्या है? इसके लक्षण तथा उपचार के उपाय लिखें।
अथवा
एड्स के फैलने के माध्यमों, लक्षणों तथा बचाव व नियंत्रण के उपायों का वर्णन करें। अथवा “एड्स एक जानलेवा बीमारी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एड्स का अर्थ (Meaning of AIDS)-एड्स का पूरा नाम है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome)। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर अनेक रोगों/ संक्रमण से ग्रसित हो जाता है। एड्स एक जानलेवा बीमारी है क्योंकि एच०आई०वी० (HIV) नामक वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसकी रोगों से लड़ने वाली शक्ति (प्रतिरोधक शक्ति) कम कर देता है और शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है।

कारण या माध्यम (Causes/Modes): एड्स के प्रमुख माध्यम निम्नलिखित हैं:

  • उपचार के लिए लगाए जाने वाले टीके में दूषित सिरिंजों का प्रयोग करना।
  • स्वास्थ्य संबंधी गलत आदतें व व्यक्तिगत सफाई की ओर ध्यान न देना।
  • यौन संबंधी गलत आदतें।
  • दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग करना।
  • रक्त चढ़ाने संबंधी बरती जाने वाली असावधानी आदि।

लक्षण (Symptoms): एड्स के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  • शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है।
  • रोगी लम्बे समय तक बीमार रहता है जिसका कोई कारण दिखाई नहीं देता।
  • अचानक शरीर का वजन कम हो जाता है।
  • स्मरण शक्ति समाप्त होने लगती है।
  • यदि शरीर में कोई जख्म हो जाए, वह लम्बे समय तक ठीक नहीं होता।
  • खून बहने पर जल्दी बन्द नहीं होता।
  • सिर में दर्द भी रहता है।

बचाव व उपचार के उपाय (Measures of Prevention and Treatment): एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसका सबसे अच्छा उपाय बचाव या सावधानी माना जाता है। एड्स के बचाव व उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं
1. यौन संबंधी आदतों में सुधार करना चाहिए। अपने जीवन-साथी के प्रति वफादार रहना चाहिए। यौन संबंध केवल अपने जीवन-साथी के साथ बनाएँ।

2. सुरक्षित रक्त आदान-प्रदान करें, रक्त लेने से पहले यह निश्चित कर लें कि वह रक्त एच०आई०वी० से ग्रस्त तो नहीं है अर्थात् जिन्हें एड्स की आशंका हो, उन्हें रक्तदान नहीं करना चाहिए और तुरंत अपना एच०आई०वी० परीक्षण करवाना चाहिए।

3. दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

4. इंजेक्शन के लिए हमेशा ऐसी सुइयों का प्रयोग करना चाहिए जिनका केवल एक बार ही प्रयोग किया जाता है अर्थात् इंजेक्शन लगवाते समय हमेशा यह ध्यान रखें कि डिस्पोजेबल सीरिंज या सुइयों का ही इस्तेमाल हो।

6. गर्भवती महिलाओं को अपना एच०आई०वी० परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। अगर जाँच पॉजिटिव है तो बच्चा हो जाने के बाद एच०आई०वी० से ग्रस्त माँ को स्तनपान नहीं करवाना चाहिए। ऐसी स्थिति में बच्चे को बोतल से दूध पिलाना ही बेहतर माना जाता है।

7. एच०आई०वी० पॉजिटिव व्यक्ति को इलाज के दौर एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं।

प्रश्न 4.
हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) के लक्षण और इलाज के उपाय लिखें। अथवा हेपेटाइटिस-बी के माध्यम, लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-बी एक संक्रामक रोग है जो रक्त या संक्रमित व्यक्ति के शरीर के अन्य तरल पदार्थ के साथ संपर्क के माध्यम से फैलता है। हेपेटाइटिस के विषैले तत्त्वों से जिगर की कोशिकाओं को हानि पहुँचती है जिसके कारण पीलिया हो जाता है। इसको ‘पीलिया की महामारी’ भी कहा जाता है।

लक्षण (Symptoms): हेपेटाइटिस-बी के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शरीर का पीला पड़ जाना।
  2. अधिक थकावट महसूस होना।
  3. भूख न लगना।
  4. आँखों के सफेद भाग का पीला पड़ जाना।
  5. हेपेटाइटिस के प्रभाव से रोगी को तीव्र ज्वर, सिरदर्द तथा जोड़ों में दर्द रहना।
  6. उत्तेजनशील चकते दिखाई देना।
  7. संक्रमण के कुछ दिनों बाद गहरे पीले रंग का मूत्र तथा हल्के रंग की विष्ठा (मल) आना।

बचाव व इलाज के उपाय (Measures of Prevention and Treatment) हेपेटाइटिस-बी के बचाव व इलाज के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. हेपेटाइटिस-बी से बचाव के लिए साफ-सफाई बेहद आवश्यक है। इस रोग से बचने के लिए खाने और पीने में हमेशा साफ चीजों का ही उपयोग करना चाहिए।
  2. बाहर का खाना खाने से बचना चाहिए। अगर खाना भी पड़े तो साफ-सफाई का अवश्य ध्यान रखें और हमेशा पौष्टिक व संतुलित भोजन ही खाना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  4. महामारी फैलने के दौरान उबला हुआ और क्लोरीन-युक्त पानी का प्रयोग करना चाहिए।
  5. हरी पत्तेदार सब्जियाँ खानी चाहिएँ और मौसमी एवं गन्ने का जूस पीना चाहिए।
  6. रोगी के वस्त्र, बिछौने तथा बर्तन छूने के उपरांत हाथों को भली-भांति धोना चाहिए।
  7. डॉक्टर की सलाहानुसार हेपेटाइटिस-बी के टीके बचाव हेतु अवश्य लगवाने चाहिए।
  8. रक्त चढ़ाने पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सूई नई हो और रक्त संक्रमित न हो।
  9. किसी दूसरे की सूई, रेजर, टूथब्रश आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 5.
हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C) के लक्षण, उपचार तथा बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी का अर्थ है-लीवर में सूजन। जब यह सूजन किसी विशेष प्रकार के सूक्ष्म-जीवाणु की वजह से लम्बी होती है, तो ऐसी स्थिति को हेपेटाइटिस-सी कहा जाता है। हेपेटाइटिस-सी अथवा सीरम एक घातक संक्रामक रोग है। इस रोग के सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती है। ये सूक्ष्म-जीवाणु लीवर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। यह रोग शरीर में दूषित रक्त या रक्त पदार्थों के चढ़ने से फैलता है। यह रोग शरीर के किसी अंग का प्रत्यारोपण करने से भी हो सकता है।

लक्षण (Symptoms): हेपेटाइटिस-सी के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. बुखार होना।
  2. कान महसूस होना।
  3. जिगर तेजी से क्षतिग्रस्त होना।
  4. आँखों एवं त्वचा का पीला होना।
  5. जोड़ों और माँसपेशियों में दर्द होना।
  6. मानसिक कार्य करने में परेशानी होना।
  7. पेट व शरीर में दर्द होना।
  8. भूख कम लगना।
  9. त्वचा में खुजली होना।
  10. रक्त की उल्टी आना।

उपचार (Treatment) हेपेटाइटिस-सी के उपचार की इंटरफेरोन, राइबावेरिन व अमान्टिडिन दवाइयाँ ही उपलब्ध हैं। ये इसके उपचार के लिए लाभदायक हैं। होम्योपेथिक दवाइयों से भी हम इस रोग की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इन दवाइयों से इस बीमारी के लक्षणों को कम किया जा सकता है।

बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  1. रोगी को भरपूर आराम करना चाहिए।
  2. स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए साफ-सुथरा भोजन तथा शुद्ध पानी पीना चाहिए। भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  4. डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उचित दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. हरी पत्तेदार सब्जियाँ खाएँ, मौसमी एवं गन्ने का रस पिएँ।
  6. किसी दूसरी की सूई, रेजर और टूथब्रश इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 6.
रेबीज़ के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव व इलाज के उपाय लिखें।
उत्तर:
रेबीज़ के फैलने के कारण (Causes of Spreading Rabies):
रेबीज़ रोग बहुत संक्रामक बीमारी है क्योंकि इस बीमारी से रोगी की मृत्यु होने की संभावना रहती है। रोगी पानी से डरने लगता है इसीलिए इसे जलभीति रोग भी कहते हैं। यह रोग किसी पागल जानवर; जैसे बंदर, बिल्ली, खरगोश तथा विशेषकर कुत्ते के द्वारा काटने से होता है। यह रोग काटने वाले जंतु की लार के साथ मनुष्य के शरीर के रक्त में प्रवेश कर उसे रोगग्रस्त कर देता है।

लक्षण (Symptoms): रेबीज़ के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. रोगी को सिर-दर्द व बुखार हो जाता है।
  2. रोगी को अधिक पानी पीने का मन करता है लेकिन प्यास होने पर भी उसे पी नहीं पाता।
  3. रेबीज़ से प्रभावित व्यक्ति को तीव्र मस्तिष्क पीड़ा, तीव्र ज्वर, गले व छाती की पेशियों में तीव्र जकड़न होती है।
  4. रोगी को तरल पदार्थ या भोजन लेने में कठिनाई होती है।
  5. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अत्यधिक क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है।
  6. इस रोग का प्रकोप पशु के काटने के तीन दिन के बाद व तीन वर्ष के भीतर कभी भी हो सकता है।

बचाव व इलाज के उपाय (Measures of Prevention and Treatment): रेबीज़ से बचाव के लिए जरूरी है-इसके बारे में जानकारी होना। रेबीज़ के बचाव व इलाज के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पशुओं के काटने पर काटे गए स्थान को पानी व साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
  2. धोने के बाद काटे गए स्थान पर अच्छी तरह से टिंचर या पोवोडीन आयोडीन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य पशुओं की लार में पाए जाने वाले कीटाणु सिरोटाइपवन लायसा वायरस (Sirotypeone Laysa Virus) की ग्यालकोप्रोटिन की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मार एक हद तक कम हो जाती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है।
  3. किसी पागल जानवर के काटने पर तुरंत नजदीकी चिकित्सा केन्द्र पर ले जाना चाहिए।
  4. रोगी को टैटनस का इंजेक्शन लगवाकर चिकित्सालय ले जाना चाहिए। चिकित्सक की सलाह से काटे गए स्थान पर कार्बोलिक एसिड लगाया जाता है, जिससे अधिकतम कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  5. इसके बाद चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार इंजेक्शन लगवाए जाते हैं, जो 3 या 14 दिन की अवधि के होते हैं।
  6. इंजेक्शन लगाने की क्रमबद्धता में लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 7.
टैटनस के फैलने के कारण, लक्षण एवं बचाव व उपचार के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टैटनस (Tetanus):
टैटनस को हिन्दी में धनुस्तंभ कहा जाता है। यह एक संक्रामक रोग है जिसमें कंकाल पेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएँ प्रभावित होती हैं। यह रोग मिट्टी में विद्यमान बैक्टीरिया से घावों को प्रदूषित करने से फैलता है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी कहा जाता है। यह बैक्टीरिया सामान्यतया मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। हमारे शरीर में इस बैक्टीरिया का प्रवेश कटे या फटे घाव से होता है।1. फैलने के कारण (Causes of Transmission): टैटनस के फैलने के कारण निम्नलिखित हैं

  • इस रोग का मुख्य कारण बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया होता है।
  • यह बैक्टीरिया मिट्टी, धूल या जानवरों के मल में रहता है। मिट्टी व धूल के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार किसी खुले घाव के अंदर बैक्टीरिया के प्रवेश हो जाने के कारण यह रोग फैलता है।
  • यह रोग त्वचा पर किसी चोट या घाव के कारण अधिक फैलता है।

2. लक्षण (Symptoms): टेटनस के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  • बोलने और साँस लेने में कठिनाई होना।
  • गर्दन में दर्द एवं अकड़न होना।
  • शरीर में खुजली, माँसपेशियों में खिंचाव, सूजन एवं कमजोरी होना।
  • पीठ की माँसपेशियों में दर्द होना।
  • जबड़ा सिकुड़ना और जकड़ना।
  • घाव के आस-पास की माँसपेशियों में जकड़न पैदा होना।

3. बचावव उपचारके उपाय (Measures of Prevention and Treatment): टैटनस से बचाव व उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. कोई भी ऐसा घाव जिससे त्वचा फट गई हो, उसे तुरंत पानी और साबुन से साफ किया जाना चाहिए।
  2. घाव को कभी खुला न छोड़ें। खुले घाव में संक्रमण का अधिक खतरा रहता है। यदि घाव से खून बह रहा हो तो उस पर सूती या सुखा कपड़ा बाँधे।
  3. टीकाकरण द्वारा टैटनस से पूरी तरह बचाव संभव है। इससे बचाव के लिए बचपन और गर्भावस्था के दौरान टीकाकरण अवश्य करवा लेना चाहिए।
  4. शरीर के किसी भी हिस्से पर चोट लगने पर एंटी-टैटनस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
  5. टैटनस टॉक्सायड में निष्क्रिय टेटनस टॉक्सीन को रसायनों और ताप के प्रभाव में लाकर उसके जहरीले प्रभाव को कम किया जाना चाहिए।
  6. रोगी को स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए अर्थात् धूल, मिट्टी भरे वातावरण से दूर रहना चाहिए।
  7. हल्के हाथ से तारपीन के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए।
  8.  तेल को गर्म करके और उसमें हल्दी मिलाकर घाव पर लगाएँ। घाव पर नीम का तेल लगाने से भी टेटनस का डर नहीं रहता।

प्रश्न 8.
मलेरिया (Malaria) रोग के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय बताइए।
अथवा
मलेरिया कितने प्रकार का होता है? इसके फैलने के माध्यमों तथा उपचार व रोकथाम का वर्णन करें।
उत्तर:
मलेरिया रोग के फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Transmission of Malaria):
मलेरिया एक संक्रामक रोग है जो मादा एनाफ्लीज़ (Female Anopheles) नामक मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु छोड़ देता है, जिससे मच्छर के द्वारा काटे जाने वाले व्यक्ति को मलेरिया हो जाता है। इसे ‘मौसमी बुखार’ भी कहते हैं । यह रोग लगभग 7 से 11 दिन तक रह सकता है।

प्रकार (Types): मलेरिया मुख्यत: चार प्रकार का होता है

  • प्लाज्मोडियम विवेक्स (Plasmodium Vivax),
  • प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium Ovale),
  • प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium Malariae),
  • प्लाज्मोडियम फैल्सिपैरम (Plasmodium Falciparum)।

लक्षण (Symptoms): मलेरिया के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  • रोगी को ठंड लगने लगती है और शरीर काँपने लगता है।
  • शरीर का तापमान 103°F से 106°F तक हो जाता है।
  • कभी-कभी उल्टी भी आ जाती है।
  • बुखार उतरने पर पसीना काफी आता है।
  • शरीर बेजान और कमजोर हो जाता है और शरीर में दर्द होने लगता है।
  • शरीर में खून की कमी हो जाती है।

उपचार (Treatment): मलेरिया एक उपचार-योग्य रोग है। उपचार का प्राथमिक उद्देश्य पूर्ण इलाज सुनिश्चित करना है, जो कि रोगी के रक्त से प्लाज्मोडियम परजीवी का तेजी से और पूर्ण उन्मूलन है, ताकि गंभीर बीमारी या मलेरिया को रोका जा सके। मलेरिया होने पर तुरंत कोशिश करनी चाहिए कि रोगी को डॉक्टर के पास ले जाकर जाँच करवाएँ । जाँच में मलेरिया की पुष्टि होने पर तुरंत उपचार शुरू करवाना चाहिए।

मलेरिया में क्लोरोक्विन (Chloroquine) जैसी एंटी-मलेरियल दवा (Anti-malarial Medicine) दी जाती है। इस दवा के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए यह दवा डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेनी चाहिए। रोगी को पूरा आराम करने देना चाहिए। उसे हर 6 घंटे में पैरासिटामोल (Paracetamol) देनी चाहिए और बार-बार पानी व तरल पदार्थों का सेवन करवाना चाहिए।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention): मलेरिया की रोकथाम या बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. सोते समय मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए ताकि मच्छर न काट सकें।
  2. मच्छरों के पैदा होने वाले स्थान पर मच्छरों को मारने वाली दवाई का छिड़काव करना चाहिए ताकि मच्छर पैदा ही न हो सकें।
  3. रोगी को कुनैन की गोलियाँ खानी चाहिएँ।
  4. घरों के आसपास गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  5. नमी और गंदे स्थानों पर डी०डी०टी० (D.D.T.) का छिड़काव करना चाहिए ताकि मच्छर पैदा ही न हो सकें।
  6. रोगी के उपयोग किए हुए कपड़े व बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए अर्थात् इन्हें उपयोग करने से पहले कीटाणु-रहित कर देना चाहिए।
  7. रोगी का कमरा अलग होना चाहिए।

प्रश्न 9.
तपेदिक अथवा क्षय रोग (Tuberculosis – T.B.) के फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
अथवा
तपेदिक रोग (टी०बी०) मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं? इनके लक्षण और रोकथाम के उपाय लिखें।
उत्तर:
तपेदिक रोग (Tuberculosis – T.B.)-तपेदिक या क्षय रोग वायु द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। यह रोग माइकोबैक्टीरिम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) नामक रोगाणु द्वारा फैलता है। शुरू में इस रोग का पता नहीं चल पाता परंतु इसके बढ़ जाने पर यह सेहत को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है।

प्रकार (Types)-तपेदिक रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
(i) फुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Pulmonary Tuberculosis),
(ii) अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Non-pulmonary Tuberculosis)।

(i) फुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Pulmonary Tuberculosis): फुफ्फुसीय तपेदिक रोग का प्रभाव फेफड़ों पर होता है। इस रोग के फैलने के कारण रोगी द्वारा थूकी बलगम तथा उनकी साँस होती है, जो वायु में रोगाणु छोड़ देती है और वह स्वस्थ व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देती है।
लक्षण (Symptoms):

  1. तपेदिक में थोड़ा काम करने पर रोगी की साँस फूलने लगती है।
  2. शरीर का भार कम होने लगता है।
  3. भूख कम लगती है।
  4. थूक वाली खाँसी रहती है। कभी-कभी थूक के साथ खून भी आ जाता है।
  5. बलगम पीले रंग की आती है।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  • रोगी व उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं को अलग रखना चाहिए।
  • रोगी की बलगम की जाँच करवाते रहना चाहिए।
  • तपेदिक होने पर औषधि या दवाई का, जब तक यह रोग ठीक न हो जाए, सेवन करते रहना चाहिए।
  • रोगी को पूर्ण आराम करना चाहिए। उसे किसी अच्छे सेनीटोरियम में रखा जाए।
  • रोगी को संतुलित और पौष्टिक भोजन देना चाहिए।
  • रोगी की थूक और बलगम को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए। हो सके तो उसे ज़मीन में दबा देना चाहिए।
  • रोग से बचने के लिए बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

(ii) अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग (Non-pulmonary Tuberculosis): अफुफ्फुसीय तपेदिक रोग बच्चों में अधिक होता है। अफुफ्फुसीय तपेदिक अर्थात् लसिका ग्रंथियों, हड्डियों, जोड़ों, गले, आंतड़ियों, गुर्दे आदि के तपेदिक का मुख्य कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की कमी होता है।

लक्षण (Symptoms):

  1. पेट में कब्ज रहती है।
  2. रोगग्रस्त ग्रंथियाँ व आंतड़ियाँ आदि काम नहीं करतीं।
  3. ज्वर रहने लगता है।
  4. शरीर कमजोर होने लगता है।
  5. रोगग्रस्त व्यक्ति जल्दी थकान अनुभव करता है।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention):

  1. रोग के लक्षण देखते ही तुरंत इलाज करवाना चाहिए।
  2. रोगी को कुछ समय के लिए सेनीटोरियम में रखना चाहिए।
  3. रोगी को पूर्ण आराम देना चाहिए।
  4. रोगी को खुली हवा में रखा जाए।
  5. रोगी को संतुलित और पौष्टिक आहार देना चाहिए।
  6. रोगी को बी०सी०जी० का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

प्रश्न 10.
डेंगू बुखार के फैलने के माध्यमों तथा इलाज व रोकथाम का वर्णन करें।
अथवा
डेंगू फीवर के फैलने के कारणों, लक्षणों तथा नियंत्रण व बचाव के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डेंगू बुखार के फैलने के कारण/माध्यम (Causes/Modes of Spreading Dengue):
डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ ज्वर (Break Bone Fever) भी कहते हैं। यह एक संक्रामक रोग है जो मच्छरों के काटने से फैलता है। डेंगू बुखार हवा, पानी या साथ खाने से नहीं फैलता। यह एडिज़ इजिप्टी (Aedes Aegypti) नामक मादा प्रजाति के मच्छरों के काटने से फैलता है। जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसके शरीर में डेंगू के विषाणु छोड़ देते हैं जिससे स्वस्थ व्यक्ति भी इस बुखार से ग्रस्त हो जाता है।

लक्षण (Symptoms):

  1. अचानक तीव्र बुखार होना।
  2. सिर, बदन और आँखों में दर्द होना।
  3. माँसपेशियों व जोड़ों में दर्द होना।
  4. शरीर पर लाल चकते निकल आना।
  5. भूख कम लगना और चक्कर आना।
  6. शरीर में कमजोरी होना आदि।

इलाज (Treatment):
डेंगू बुखार की कोई विशेष दवा नहीं है, पर फिर भी इस रोग के कारण शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए रोगी को डॉक्टर की सलाहानुसार उचित समय पर दवा लेनी चाहिए और उचित आराम करना चाहिए। इस बुखार में एस्प्रीन या अन्य गैर-स्टेरोइड दवाएँ लेने से रक्त-स्राव बढ़ सकता है।

इसलिए रोगग्रस्त रोगियों को डॉक्टर की सलाहानुसार इनकी जगह पर पेरासिटामोल (Paracetamol) आदि देनी चाहिए। रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम होने या रक्त-स्राव शुरू होने पर रक्त चढ़वा लेना चाहिए। तरल पदार्थों का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी न हो सके।

नियंत्रण एवं बचाव के उपाय (Measures of Control and Prevention): डेंगू बुखार के नियंत्रण एवं बचाव के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. डेंगू बुखार से बचने का एकमात्र उपाय मच्छरों से स्वयं को बचाना है। इसलिए मच्छरों के काटने से स्वयं को बचाएँ।
  2. एडिज़ प्रजाति के मच्छर दिन में काटते हैं। इसलिए इनसे बचने के लिए अपने शरीर को कपड़ों से ढककर रखना चाहिए, ताकि ये मच्छर काट न सकें।
  3. मच्छर प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहना चाहिए और मच्छरों के पैदा होने वाली जगह को नष्ट कर देना चाहिए।
  4. घर के आस-पास गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  5. ऐसी जगह जहाँ डेंगू फैल रहा है वहाँ पानी को इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  6. बदलते मौसम में अगर आप किसी नई जगह पर जा रहे हैं तो मच्छरों से बचने के उत्पादों का प्रयोग करें।
  7. घर में और खुले बर्तनों में पानी जमा न होने दें। यदि आप ड्रम या बाल्टी में पानी जमा करना चाहें तो उन्हें ढककर रखें।
  8. घर में कीटनाशक दवाई का छिड़काव करवाएँ।
  9. यदि आपके आस-पास कोई व्यक्ति डेंगू बुखार से ग्रस्त है तो उसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग एवं नगर निगम को अवश्य दें, जिससे तुरंत मच्छर विरोधी उपाय किया जा सके।
  10. डॉक्टर की सलाहानुसार घरेलू नुस्खों को अपनाना चाहिए; जैसे पपीते के पत्तों का रस व गिलोए का पानी आदि का सेवन करना।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 11.
प्लेग (Plague) नामक महामारी के फैलने के कारण, इलाज तथा बचाव के उपाय लिखें।
अथवा
प्लेग कैसे फैलता है? इस रोग के लक्षणों तथा रोकथाम के उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्लेग के फैलने के कारण (Causes of Transmission of Plague):
प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग पास्चुरेला पेस्टिस (Pasteurella Pestis) नामक जीवाणु द्वारा फैलता है। वैसे प्लेग चूहों को होता है। इसके पिस्सू पहले चूहे में प्रवेश कर उसे मार देते हैं और फिर ये मनुष्य को काटकर उसे प्लेग-ग्रस्त कर देते हैं। इस तरह से यह रोग मनुष्यों में फैल जाता है। प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग गाँव या शहर में किसी एक को हो जाने से बड़ी तेजी से चारों तरफ फैल जाता है। इसी कारण प्लेग को महामारी कहा जाता है।

लक्षण (Symptoms): प्लेग के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. जांघ व गर्दन आदि पर गिल्टियाँ निकल आती हैं।
  2. अचानक तेज बुखार हो जाता है। यह 103°F से 106°F तक हो सकता है।
  3. आँखें लाल हो जाती हैं और इनमें से पानी बहने लगता है।
  4. प्यास अधिक लगने लगती है।
  5. शरीर कमजोर हो जाता है।

इलाज (Treatment): प्लेग एक बहुत ही गंभीर बीमारी है, लेकिन इसका इलाज संभव है। प्लेग का इलाज आम एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है। सामान्यतया इसके इलाज में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

  1. शक्तिशाली व प्रभावी एंटीबायोटिक; जैसे जेंटामाइसिन (Gentamicin) व सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin)।
  2. इंट्रावेनस फ्लूड (नसों में दिए जाने वाले द्रव्य)।
  3. ऑक्सीजन।
  4. साँस लेने में मदद करने वाले उपकरण।

प्लेग से ग्रस्त व्यक्ति का जितनी जल्दी इलाज किया जाए, उसकी उतनी ही जल्दी पूरी तरह से स्वस्थ होने की संभावना बढ़ जाती है। इसका इलाज रोग ठीक होने के कई सप्ताह तक निरंतर चलता रहता है । इलाज के दौरान रोगी को अलग रखना चाहिए, ताकि किसी अन्य व्यक्ति में यह संक्रमण फैलने से रोका जा सकें।

रोकथाम या बचाव के उपाय (Measures of Prevention): प्लेग की रोकथाम या बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पिस्सू और चूहों को मारने के लिए की मार दवाई का प्रयोग करना चाहिए।
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
  3. रोग के लक्षण देखते ही स्वास्थ्य विभाग को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  4. घर की सफाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी में कीटाणुनाशक दवाई आदि डालनी चाहिए।
  5. मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए ताकि पिस्सुओं को नष्ट किया जा सके।
  6. प्लेग का टीका लगवाना चाहिए।
  7. गर्म पानी से नहाना चाहिए।
  8. यह एक जानलेवा बीमारी है, इसलिए इसका डॉक्टरी इलाज करवाना चाहिए।
  9. रोगी को संतुलित एवं पौष्टिक आहार देना चाहिए।

प्रश्न 12.
रोग निवारक क्षमता क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन करते हुए इसको प्राप्त करने के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
रोग प्रतिरोधक शक्ति (Immunity Power) से आपका क्या अभिप्राय है? यह कितने प्रकार की होती है तथा इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
रोग प्रतिरोधक शक्ति या क्षमता का अर्थ (Meaning of Immunity Power):
हमारा वातावरण अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं से भरा हुआ है। इनमें से बहुत से जीवाणु या रोगाणु हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। लेकिन हम सभी इन रोगाणुओं से प्रभावित नहीं होते। ऐसा हमारे शरीर में उपस्थित ऐसी शक्ति या क्षमता के कारण होता है जो इन रोगाणुओं से हमारी सुरक्षा करती है। हमारे शरीर में उपस्थित इस रोग रोधक शक्ति को ही रोग प्रतिरोधक शक्ति या रोग निवारक क्षमता कहते हैं । इस शक्ति को जीवन रक्षक शक्ति’ भी कहा जाता है।

रोग प्रतिरोधक शक्ति के प्रकार (Types of Immunity Power): रोग प्रतिरोधक शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है
1. प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति (Natural Immunity Power),
2. अर्जित या कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति (Acquired or Artificial Immunity Power)।

1. प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति (Natural Immunity Power):
इस शक्ति को जन्मजात (Innate) रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कहते हैं, क्योंकि यह शक्ति हमें जन्म से प्राप्त होती है। यह शक्ति अर्जित नहीं की जाती, बल्कि जन्मजात होती है। यह हमें जाति, वंश या व्यक्तिगत प्रवृत्तियों के कारण प्राप्त होती है।

2. अर्जित या कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति (Acquired or Artificial Immunity Power):
कृत्रिम रोग प्रतिरोधक शक्ति को हम अपने जीवन-काल में अर्जित करते हैं। यह शक्ति निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

(i) सक्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक क्षमता (Active Artificial Immunity Power):
इसको सक्रिय अर्जित रोग निवारक शक्ति भी कहते हैं। सक्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक रोग प्रतिरोधक क्षमता उसे कहते हैं जो व्यक्ति को उसके ही शरीर के तंतुओं के प्रयत्नों से अर्जित होती है; जैसे एक बार चेचक हो जाने पर उसके शरीर में ऐसी प्रतिविष (एंटीबॉडीज) तैयार हो जाते हैं, जिससे उस व्यक्ति को पुनः चेचक नहीं होता।

(ii) निष्क्रिय कृत्रिम रोग प्रतिरोधक क्षमता (Passive Artificial Immunity Power):
इसको अक्रिय अर्जित रोग निवारक शक्ति भी कहते हैं। इसके अंतर्गत किसी पशु में कुछ समय के अंतराल पर सूक्ष्म मात्रा में रोग के कीटाणु पहुँचाए जाते हैं। इससे उस पशु के रक्त में धीरे-धीरे उस रोग के लिए प्रतिवर्ष उत्पन्न हो जाते हैं। फिर उस पशु का रक्त-वारि (Serum) लेकर मनुष्य के शरीर में पहुँचाया जाता है। उसके शरीर में यह प्रतिवर्ष (Antibodies) रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। इस प्रकार से अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता स्थायी होती है।

रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्राप्त करने के उपाय (Achieving Measures of Immunity Power): रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्राप्त करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. संतुलित एवं पौष्टिक आहार लेने से।
  2. व्यक्तिगत स्वास्थ्य या सफाई की ओर विशेष ध्यान देने से।
  3. स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण में रहने से।
  4. नियमित व्यायाम व आसन करने से।
  5. मादक पदार्थों के सेवन निषेध से।
  6. टीकाकरण द्वारा।
  7.  नियमित दिनचर्या एवं डॉक्टरी जाँच से आदि।

उपर्युक्त उपायों द्वारा इस शक्ति को प्राप्त किया या बढ़ाया जा सकता है। प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति जन्मजात होती है अर्थात् इसे अर्जित नहीं किया जा सकता, परंतु इस शक्ति को इन उपायों द्वारा बढ़ाया अवश्य जा सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक तथा असंक्रामक रोगों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संक्रामक तथा असंक्रामक रोगों में निम्नलिखित अंतर हैंसंक्रामक रोग असंक्रामक रोग

1. संक्रामक रोग (Communicable Diseases) वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से अन्य व्यक्तियों को लग जाते हैं। 1. असंक्रामक रोग (Non-communicable Diseases) वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं लगते।
2. ये रोग संक्रमण से फैलते हैं। 2. ये रोग संक्रमण से नहीं फैलते।
3. रेबीज, खसरा, चेचक, काली खाँसी आदि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं। 3. विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग, बवासीर, मधुमेह आदि असंक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।
4. ये रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने और उसके प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल करने से फैलते हैं। 4. ये रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने और उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल से फैलते हैं। करने से नहीं फैलते।
5. इन रोगों के रोगवाहक विशेष प्रकार के सूक्ष्म रोगाणु (जीवाणु, कीटाणु, विषाणु) होते हैं। 5. ये रोग संतुलित व पौष्टिक आहार के अभाव के कारण फैलते हैं।

प्रश्न 2.
संक्रामक रोगों के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संक्रामक रोगों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. छूत के रोगों में मिलते-जुलते लक्षण पाए जाते हैं। इनमें बीमारी बढ़ने पर शरीर बेजान व कमजोर हो जाता है।
  2. पूरे शरीर में पीड़ा होने लगती है जो असहनीय होती है।
  3. सिर में दर्द होने लगता है।
  4. शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
  5. शरीर में कंपकंपी होने लगती है और रोगी को ठंड लगने लगती है।
  6. बुखार तेजी से बढ़ने लगता है।
  7. छूत के रोगों में उल्टियाँ तथा पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने से दस्त भी लग जाते हैं।

प्रश्न 3.
पानी से फैलने वाली छूत की बीमारियों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
पानी से फैलने वाली छूत की बीमारियाँ हैजा, पेचिश, टायफाइड या मियादी बुखार हैं।

1. हैजा-हैजा गंदे पानी एवं दूषित भोजन द्वारा फैलने वाली एक छूत की बीमारी है। इसको ‘विसूचिका’ भी कहा जाता है। इस रोग का संप्राप्ति काल कुछ घंटों से लेकर 4 या 5 दिनों तक होता है। इस रोग के जीवाणु को विब्रिओ कोलेरी (Vibrio-Cholerae) कहा जाता है। सामान्य रूप से इसे कोमा बेसिलस कहा जाता है। मक्खियाँ इस रोग को फैलाने का काम करती हैं। हैजे के रोगाणु पानी एवं भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करके हमें रोगग्रस्त कर देते हैं।

2. पेचिश-पेचिश एंट अमीबा हिस्टोलिटिका नामक जीवाणु से फैलता है। यह रोग खाद्य पदार्थों पर मक्खियों के बैठने से अधिक फैलता है। इसके अतिरिक्त गंदे पानी के कारण भी यह रोग हो जाता है। इस रोग के कीटाणु व्यक्ति की आंतड़ियों पर आक्रमण करके उनको जख्मी कर देते हैं, जिससे रोगी बहुत कमजोर हो जाता है।

3. टायफाइड या मियादी बुखार-टायफाइड को मियादी बुखार तथा आंत्रिक ज्वर आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग का कारण सालमोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) नामक दण्डाणु होते हैं। ये दण्डाणु (Bacillus) स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में वायु, पानी व भोजन के माध्यम से प्रवेश करके उसे रोगग्रस्त कर देते हैं, परन्तु इस रोग का मुख्य कारण दूषित पानी होता है। यह बुखार 7 से 14 या इससे अधिक दिन भी रह सकता है।

HBSE 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 संक्रामक रोग

प्रश्न 4.
संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं बचाव के कोई चार उपाय लिखें। अथवा संक्रामक रोगों से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तरं:
संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं बचाव के चार उपाय निम्नलिखित हैं
1. पीने का पानी साफ-सुथरा एवं कीटाणुरहित होना चाहिए, क्योंकि दूषित जल में अनेक प्रकार के संक्रामक रोगाणु उत्पन्न हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए पानी हमेशा क्लोरीन-युक्त या उबालकर पीना चाहिए।

2. परिवार के सभी सदस्यों को नियमित रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिएँ, क्योंकि इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

3. पर्यावर्णिक स्वास्थ्य या आस-पड़ोस के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। गलियों में गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु तथा मच्छर पैदा हो जाते हैं जो अनेक रोग फैलाते हैं।

4. संक्रामक रोगों को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए संक्रामक रोग से ग्रस्त व्यक्ति को उस समय तक स्वस्थ व्यक्तियों या घर के अन्य सदस्यों से अलग रखना चाहिए जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाए।

प्रश्न 5.
संक्रामक रोगों के फैलने के विभिन्न माध्यम कौन-कौन-से हैं? अथवा संक्रामक रोगों के रोगाणु किन-किन साधनों से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं? अथवा संक्रामक रोग किन-किन कारणों से फैलते हैं?
उत्तर:
संक्रामक रोगों के रोगाणु निम्नलिखित साधनों या माध्यमों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं
1. वायु द्वारा-साँस लेने से वायु द्वारा कीटाणु शरीर में प्रविष्ट होकर व्यक्ति को बीमार कर देते हैं। काली खाँसी, चेचक, जुकाम आदि रोग वायु द्वारा ही फैलते हैं।

2. जल द्वारा-हैजा, टायफाइड, पेचिश आदि रोगों के रोगाणु पीने वाले जल में मिलकर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। दूषित जल में बर्तन धोने, फल-सब्जियों को धोने से भी रोगों का संक्रमण होता है।

3. भोजन द्वारा-भोजन और अन्य दूषित खाने वाले पदार्थों के द्वारा रोगाणु शरीर में पहुँचकर स्वस्थ व्यक्ति को रोगी बना देते हैं। बासी और ठंडा भोजन अधिक नुकसानदायक होता है।

4. संपर्क द्वारा-रोगी के कपड़ों, बिस्तरों, बर्तन, तौलिए या सीधे संपर्क द्वारा संक्रामक रोगों के रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति तक पहुँच कर हानि पहुंचाते हैं।

5. जंतुओं/कीटों द्वारा-कुछ जंतु या कीट जैसे; मक्खी, मच्छर, चूहा आदि रोग फैलाने के कारण बनते हैं। भोजन को दूषित कर या सीधे शरीर में पहुँचकर रोगाणु रोग के कारण बन जाते हैं । मलेरिया मच्छर के काटने और रेबीज़ पागल कुत्ते के काटने तथा प्लेग चूहे के द्वारा फैलता है।

प्रश्न 6.
मलेरिया रोग कैसे फैलता है? इसके लक्षण लिखें।
उत्तर:
मलेरिया रोग मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मच्छर किसी को काटता है तो उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु छोड़ देता है जिससे मच्छर के द्वारा काटे जाने वाले व्यक्ति को मलेरिया हो जाता है। इसे मौसमी बुखार भी कहते हैं। लक्षण:

  1. रोगी को ठंड लगने लगती है और शरीर काँपने लगता है।
  2. शरीर का तापमान 103°F से 106°F तक हो जाता है।
  3. कभी-कभी उल्टी भी आ सकती है।
  4. बुखार उतरने पर पसीना काफी आता है।
  5. शरीर बेजान और कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 7.
हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) के लक्षण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:

  • हेपेटाइटिस-बी के लक्षण:
    1. शरीर का पीला पड़ जाना।
    2. अधिक थकावट महसूस होना।
    3. भूख न लगना।
    4. सिर-दर्द व बुखार होना।
    5. आँखों के सफेद भाग का पीला पड़ जाना।
  • बचाव के उपाय:
    • मल-मूत्र की सफाई का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
    • व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    • महामारी फैलने के दौरान उबले हुए और क्लोरीन-युक्त पानी का प्रयोग करना चाहिए।
    • हेपेटाइटिस-बी के टीके अवश्य लगवाएँ।

प्रश्न 8.
टैटनस के फैलने के कारण और बचाव के उपाय लिखें।
उत्तर:
टैटनस के फैलने के कारण: टैटनस एक बहुत खतरनाक संक्रामक रोग है। यह रोग एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया से फैलता है। किसी खुले घाव के अंदर रोगाणुओं के घुस जाने के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है। बचाव के उपाय:

  1. जख्म को साफ पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए और जख्म को रोगाणुओं से मुक्त करने के लिए डिटॉल या सैवलॉन आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  2. चोट लगते ही टैटनस का टीका अवश्य लगवाएँ।
  3. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।

प्रश्न 9.
हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C) के फैलने का कारण और रोकथाम के उपाय लिखें।
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी के फैलने के कारण-हेपेटाइटिस-सी अथवा सीरम हेपेटाइटिस एक घातक संक्रामक रोग है। यह रोग शरीर में दूषित रक्त या रक्त-पदार्थों के चढ़ने से फैलता है। यह रोग शरीर के किसी अंग का प्रत्यारोपण करने से भी फैल सकता है। रोकथाम के उपाय:

  1. रोगी को भरपूर आराम करना चाहिए।
  2. भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  4. डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उचित दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 10.
एड्स क्या है? यह कैसे फैलता है?
अथवा एड्स (AIDS) के फैलने के माध्यमों/कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
एड्स (AIDS) का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) है। यह स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिससे शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है। अत: यह एक जानलेवा बीमारी है जिससे शरीर की प्रतिरक्षित प्रणाली बहुत प्रभावित होती है। इससे प्रभावित रोगी की मृत्यु निश्चित है। एड्स के विषाणु रक्त व वीर्य के द्वारा फैलते हैं।

इसके फैलने के माध्यम निम्नलिखित हैं:

  1. उपचार के लिए लगाए जाने वाले टीके में दूषित सिरिंजों का प्रयोग करना।
  2. स्वास्थ्य संबंधी गलत आदतें व व्यक्तिगत सफाई की ओर ध्यान न देना।
  3. यौन संबंधी गलत आदतें।
  4. दूसरे के उपयोग किए टूथ-ब्रश व रेजर या ब्लेड आदि का प्रयोग करना।
  5. रक्त चढ़ाने संबंधी बरती जाने वाली असावधानी आदि।

प्रश्न 11.
तपेदिक से बचाव के उपायों का उल्लेख करें।
उत्तर:
तपेदिक से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. रोगी की प्रत्येक वस्तु को अलग रखना चाहिए।
  2. रोगी की बलगम की जाँच करवाते रहना चाहिए।
  3. तपेदिक होने पर औषधि का, जब तक यह रोग ठीक न हो जाए, सेवन करते रहना चाहिए।
  4. रोगी को पूर्ण आराम करना चाहिए। उसे किसी अच्छे सेनीटोरियम में रखना चाहिए।
  5. रोगी को संतुलित और पौष्टिक भोजन देना चाहिए।
  6. रोग से बचने के लिए बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।

प्रश्न 12.
प्लेग की रोकथाम के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्लेग की रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पिस्सू और चूहों को मारने के लिए कीड़े-मार दवाई का प्रयोग करना चाहिए।
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
  3. रोग के लक्षण देखते ही स्वास्थ्य विभाग को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  4. घर की सफाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी में कीटाणुनाशक दवाई आदि डालनी चाहिए।
  5. मरे हुए चूहों को दबा देना चाहिए ताकि पिस्सुओं को नष्ट किया जा सके।
  6. प्लेग का टीका लगवाना चाहिए।

प्रश्न 13.
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए आपके स्कूल में सावधानी हेतु कौन-कौन-से उपाय किए जाने आवश्यक हैं?
उत्तर:
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए स्कूल में सावधानी हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने आवश्यक हैं

  1. पेयजल का क्लोरीनेशन कर रोगाणुहीन किया जाना चाहिए।
  2. कैंटीन में सभी खाद्य पदार्थों को ढककर रखना चाहिए।
  3. बासी व गले-सड़े खाद्य पदार्थों व फलों के बेचने पर रोक होनी चाहिए।
  4. बच्चों को व्यक्तिगत व सामुदायिक स्वच्छता के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।
  5. सभी बच्चों का संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण किया जाना चाहिए।
  6. समय-समय पर विद्यार्थियों को इन रोगों से संबंधित जानकारी दी जानी चाहिए।

प्रश्न 14.
रेबीज़ से बचाव के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रेबीज़ से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. किसी पागल जानवर के काटने पर तुरंत नजदीकी चिकित्सा केन्द्र को सूचित करना चाहिए।
  2. सभी पालतू कुत्तों को पागलपन से बचाने के लिए टीके लगवाने चाहिएँ।
  3. किसी पागल जानवर से दूर रहना चाहिए।
  4. तुरंत एंटी-रेबीज़ टीकाकरण का पूरा कोर्स करवा लेना चाहिए।

प्रश्न 15.
छूत की बीमारियों के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर:
छूत की प्रमुख बीमारियों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है

  1. हैजा-हैजा का रोगवाहक विब्रिओ कोलेरी है। यह दूषित जल के पीने या संक्रमित खाद्य-पदार्थों के खाने से होता है।
  2. टायफाइड-यह सालमोनेला टाइफी नामक रोगवाहक द्वारा फैलता है। सिर दर्द, नाक से रक्त का बहना, त्वचा पर चकते पड़ना, छाती पर लाल दाने निकलना टायफाइड रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
  3. छोटी माता-इसका रोगवाहक वेरीसेला जोस्टर विषाणु है। इसमें रोगी के शरीर पर चकते, पीठ में दर्द, तेज बुखार तथा सिर-दर्द होता है।
  4. रेबीज़-यह रेबीज़ विषाणु द्वारा फैलता है। पागल कुत्ते, बिल्ली, बंदर, खरगोश आदि के काटने से फैलता है। रेबीज़ से प्रभावित व्यक्ति पानी से डरता है।
  5. खाँसी-जुकाम-यह राइनो विषाणु द्वारा होता है। नाक से पानी बहना, आँखों का लाल होना, जलन होना व सिर-दर्द आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
  6. एड्स- यह लैंगिक संचारी रोग की श्रेणी में आता है जो HIV-III विषाणु के द्वारा फैलता है। एड्स से प्रभावित व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ जाता है जिसके कारण उसका शरीर हल्के संक्रमण का मुकाबला करने में भी असमर्थ हो जाता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Disease) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे रोग जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से एक-दूसरे को लग जाते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं; जैसे हैजा, मियादी बुखार, तपेदिक आदि। इस प्रकार के रोग रोगी के पास उठने-बैठने, उसके साथ खाना खाने या उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का उपयोग करने से हो जाते हैं।

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प्रश्न 2.
असंक्रामक रोगों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
असंक्रामक रोगों (Non-communicable Diseases) से तात्पर्य उन रोगों से है जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं फैलते अर्थात् जो रोग संक्रमण से न फैलें; जैसे सिर-दर्द, बवासीर, मधुमेह आदि। इस प्रकार के रोग रोगी के साथ खाना-खाने या उसके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं का इस्तेमाल करने से नहीं फैलते।

प्रश्न 3.
संसर्ग व संचारी रोग क्या होते हैं? उदाहरण दें।
अथवा
संक्रामक रोग कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
विषाणु, बैक्टीरिया, कीटाणुओं के आधार पर संक्रामक रोग दो प्रकार के होते हैं
1. संसर्ग रोग-ये रोग रोगी के प्रत्यक्ष रूप से संपर्क से लगते हैं; जैसे खसरा, काली खाँसी, जुकाम आदि।
2. संचारी रोग-ये रोग रोगी के अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क से लगते हैं; जैसे हैजा, मियादी बुखार, पेचिश आदि।

प्रश्न 4.
रोग निवारक क्षमता या प्रतिरोधक शक्ति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हमारा वातावरण अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं से भरा हुआ है। इनमें से बहुत से जीवाणु या रोगाणु हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। लेकिन हम सभी इन रोगाणुओं से प्रभावित नहीं होते। ऐसा हमारे शरीर में उपस्थित ऐसी शक्ति या क्षमता के कारण होता है जो इन रोगाणुओं से हमारी सुरक्षा करती है। हमारे शरीर में उपस्थित इस रोग रोधक शक्ति को ही रोग प्रतिरोधक शक्ति या रोग निवारक क्षमता कहते हैं। इस शक्ति को ‘जीवन रक्षक शक्ति’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
एड्स से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एड्स (AIDS) का पूरा नाम है-एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome)। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर शरीर अनेक रोगों/संक्रमण से ग्रसित हो जाता है। एड्स एक जानलेवा बीमारी है क्योंकि एच०आई०वी० (HIV) नामक वायरस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसकी रोगों से लड़ने वाली शक्ति (प्रतिरोधक शक्ति) कम कर देता है और शरीर अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
संक्रामक रोगों के सामान्य चिह्न या लक्षण बताएँ।
उत्तर:
शरीर व सिर में दर्द होना,  प्यास लगना, बुखार होना, बेचैनी रहना।

प्रश्न 7.
संक्रामक रोगों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. सभी संक्रामक रोगों के सूक्ष्म-जीवाणु भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं,
  2. इन रोगों का संप्राप्ति काल लगभग निश्चित होता है।

प्रश्न 8.
संक्रामक रोगों की विभिन्न अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर:

  1. उद्भव अवस्था (Incubation Stage),
  2. आक्रमण अवस्था (Invasion Stage),
  3. क्षीण अवस्था (Decline Stage),
  4. स्वास्थ्य लाभ अवस्था (Convalescent Stage)।

प्रश्न 9.
हेपेटाइटिस-बी के कोई दो लक्षण बताएँ।
उत्तर:

  1. शरीर का पीला पड़ जाना,
  2. अधिक थकावट महसूस होना।

प्रश्न 10.
वायु द्वारा संक्रमण कैसे होता है?
उत्तर:
रोगी व्यक्ति जब वायु में साँस छोड़ता है, छींकता है या खाँसी करता है तो रोगाणु वायु में मिल जाते हैं। इसी वायु में अन्य व्यक्ति द्वारा श्वसन करने से ये रोगाणु उसके शरीर में पहुँच जाते हैं। खाँसी-जुकाम, निमोनिया व क्षय रोग इसी के माध्यम से फैलते हैं।

प्रश्न 11.
डी०पी०टी० (D.P.T.) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० को ट्रिपल एंटीजन भी कहा जाता है। डी०पी०टी० का अर्थ है-गलघोंटू/डिप्थीरिया (Diphtheria), काली खाँसी (Pertussis), व धनुवति/टैटनस (Tetanus)। यह टीका (वैक्सीन) इन तीनों रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षित करता है।

प्रश्न 12.
तपेदिक क्या है?
उत्तर:
तपेदिक या क्षय रोग वायु द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। यह रोग माइकोबैक्टीरिम ट्यूबरकुलोसिस नामक रोगाणु द्वारा फैलता है। शुरू में इस रोग का पता नहीं चल पाता, परंतु इसके बढ़ जाने पर यह सेहत को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है।

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प्रश्न 13.
रोग क्या है?
उत्तर:
शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या शरीर की किसी अन्य कार्य-प्रणाली में अवरोध की स्थिति को, रोग (Disease) कहा जाता है। रोगी व्यक्ति अपने-आपको आराम की स्थिति में अनुभव नहीं करता।

प्रश्न 14.
टेटनस रोग की रोकथाम के कोई दो उपाय लिखें।
उत्तर:

  1. चोट लगते ही टैंटनस का टीका अवश्य लगवाएँ,
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।

प्रश्न 15.
कीड़ों-मकौड़ों (कीटों) द्वारा फैलने वाले रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
मलेरिया,  फाइलेरिया, प्लेग, खुजली, जिगर की सड़न, पीला ज्वर, कालाजार आदि।

प्रश्न 16.
वायु या साँस के माध्यम से फैलने वाले संक्रामक रोगों के नाम बताएँ।
उत्तर:
तपेदिक, खसरा, छोटी माता, काली खाँसी, इन्फ्लूएंजा आदि।

प्रश्न 17.
मलेरिया कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
मलेरिया मुख्यतः चार प्रकार का होता है

  1. प्लाज्मोडियम विवेक्स (Plasmodium Vivax),
  2. प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium Ovale),
  3. प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium Malariae),
  4. प्लाज्मोडियम फैल्सिपैरम (Plasmodium Falciparum)।

प्रश्न 18.
प्लेग को महामारी क्यों कहते हैं?
उत्तर:
प्लेग एक ऐसा संक्रामक रोग है जो भयानक महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह रोग गाँव या शहर में किसी एक को हो जाने से बड़ी तेजी से चारों तरफ फैल जाता है। इसी कारण प्लेग को महामारी कहते हैं।

प्रश्न 19.
मच्छरों की कितनी प्रजातियाँ होती हैं? उन्हें कितनी श्रेणियों में रखा जाता है?
उत्तर:
मच्छरों की लगभग 1500 प्रजातियाँ होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जाता है

  1. क्यूलैक्स,
  2. एनाफ्लीज,
  3. एडिज़ इजिप्टी।

प्रश्न 20.
रोगी को अलग रखने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
छूत के रोग संक्रमण से फैलते हैं। जिस संक्रमण रोग से रोगी संक्रमित है, वह घर या परिवार के अन्य सदस्यों में न फैले, उसके बचाव हेतु रोगी को अलग कमरे में रखा जाता है। इसे ही रोगी को अलग रखना कहा जाता है।

प्रश्न 21.
डेंगू कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
डेंगू मुख्यत: तीन प्रकार का होता है

  1. सामान्य डेंगू,
  2. रक्त-स्राव डेंगू,
  3. डेंगू शोक सिंड्रोम।

प्रश्न 22.
रोग कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:

  1. संचरणीय या संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases)
  2. असंचरणीय या असंक्रामक रोग (Non-communicable Diseases)।

प्रश्न 23.
हेपेटाइटिस-सी के उपचार के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हेपेटाइटिस-सी के उपचार की इंटरफेरोन, राइबावेरिन व अमान्टिडिन दवाइयाँ ही उपलब्ध हैं। ये इसके उपचार के लिए लाभदायक हैं। होम्योपेथिक दवाइयों से भी हम इस रोग की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इन दवाइयों से इस बीमारी के लक्षणों को कम किया जा सकता है।

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प्रश्न 24.
टैटनस कैसे फैलता है?
उत्तर:
टैटनस रोग का मुख्य कारण बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया होता है। यह बैक्टीरिया मिट्टी, धूल या जानवरों के मल में रहता है। मिट्टी व धूल के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार किसी खुले घाव के अंदर बैक्टीरिया के प्रवेश हो जाने के कारण यह रोग फैलता है।

प्रश्न 25.
डेंगू बुखार कैसे फैलता है?
उत्तर:
डेंगू बुखार एडिज़ इजिप्टी नामक प्रजाति के मच्छरों (Aegypti Mosquitoes) के काटने से फैलता है। जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसके शरीर में डेंगू के विषाणु छोड़ देते हैं। शरीर में विषाणु के प्रवेश के लगभग एक सप्ताह बाद डेंगू बुखार के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।

HBSE 11th Class Physical Education संक्रामक रोग Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ पश्न। (Objective Type Questions)

भाग-I : एक वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
AIDS का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Acquired Immuno-deficiency Syndrome (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेंसी सिंड्रोम)।

प्रश्न 2.
कोई दो संचारी रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
(1) मियादी बुखार,
(2) पेचिश।

प्रश्न 3.
क्या मलेरिया का कोई वैक्सीन होता है?
उत्तर:
हाँ, मलेरिया का वैक्सीन होता है।

प्रश्न 4.
‘एड्स दिवस’ प्रतिवर्ष किस दिन मनाया जाता है?
उत्तर: एड्स दिवस’ प्रतिवर्ष 1 दिसम्बर को मनाया जाता है।

प्रश्न 5.
मलेरिया रोग का संप्राप्ति काल कितना होता है? उत्तर-मलेरिया रोग का संप्राप्ति काल 7 से 11 दिन तक होता है।

प्रश्न 6.
क्या एड्स (AIDS) स्पर्श से फैलता है?
उत्तर:
नहीं, यह रोग असुरक्षित यौन संबंधों, HIV माँ से बच्चे को तथा संदूषित खून से फैलता है।

प्रश्न 7.
चिकित्सा-शास्त्र का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
चिकित्सा-शास्त्र का जनक हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) को माना जाता है।

प्रश्न 8.
तपेदिक के दंडाणु/जीवाणु की खोज किसने की थी?
उत्तर:
तपेदिक के दंडाणु की खोज डॉ० रॉबर्ट कोच (Dr. Robert Koach) ने की थी।

प्रश्न 9.
बच्चों में फैलने वाले कोई दो संक्रामक रोगों के नाम बताएँ।
उत्तर:
खसरा, काली खाँसी।

प्रश्न 10.
डेंगू बुखार किस मच्छर के काटने से फैलता है?
उत्तर:
डेंगू बुखार एडिज़ इजिप्टी नामक मच्छर के काटने से फैलता है।

प्रश्न 11.
किस बीमारी में रोगी को पानी से डर लगता है?
उत्तर:
रेबीज़ में रोगी को पानी से डर लगता है।

प्रश्न 12.
HIV का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Human Immuno-deficiency Virus.

प्रश्न 13.
चूहे कौन-सा रोग फैलाते हैं? उत्तर-चूहे प्लेग नामक रोग फैलाते हैं।

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प्रश्न 14.
कोई दो संसर्गी रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
जुकाम,  खसरा।

प्रश्न 15.
“रोकथाम इलाज से बेहतर है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन डेसिडेरियस इरास्मस ने कहा।

प्रश्न 16.
पागल कुत्ते के काटने से कौन-सा रोग लग जाता है?
उत्तर:
पागल कुत्ते के काटने से रेबीज़ नामक रोग लग जाता है।

प्रश्न 17.
रॉबर्ट कोच ने क्षय रोग अथवा तपेदिक रोग की खोज कब की?
उत्तर:
रॉबर्ट कोच ने क्षय रोग अथवा तपेदिक रोग की खोज वर्ष 1882 में की।

प्रश्न 18.
तपेदिक कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
तपेदिक दो प्रकार का होता है:
फुफ्फुसीय तपेदिक, अफुफ्फुसीय तपेदिक।

प्रश्न 19. श
रीर में रोगों से लड़ने वाली शक्ति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
शरीर में रोगों से लड़ने वाली शक्ति को रोग प्रतिरोधक शक्ति कहते हैं।

प्रश्न 20.
कोई दो असंक्रामक रोगों के नाम लिखें।
उत्तर:
मधुमेह,  बवासीर।

प्रश्न 21.
एड्स के वायरस का नाम क्या है? उत्तर-एड्स के वायरस का नाम HIV-III है।

प्रश्न 22.
डी०पी०टी० में पी० का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० में पी० का अर्थ Pertussis (काली खाँसी) है।

प्रश्न 23.
डी०पी०टी० में टी० का क्या अर्थ है?
उत्तर:
डी०पी०टी० में टी० का अर्थ tanus’ (टैटनस) है।

प्रश्न 24.
किस रोग को हड्डी तोड़ ज्वर (Bone Break Fever) कहते हैं?
उत्तर:
डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ ज्वर कहते हैं।

प्रश्न 25.
टेटनस के बैक्टीरिया का नाम बताएँ।
उत्तर:
बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम टेटानी।

प्रश्न 26.
बी०सी०जी० का टीका कौन-सी बीमारी से संबंधित है?
उत्तर:
बी०सी०जी० का टीका तपेदिक या क्षय रोग नामक बीमारी से संबंधित है।

भाग-II: सही विकल्प का चयन करें

1. संक्रामक रोग मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

2. संसर्ग रोग (Contagious Diseases) फैलते हैं
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर;
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से

3. संचारी रोग (Infectious Diseases) फैलते हैं
(A) रोगी के प्रत्यक्ष संपर्क से
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रोगी के अप्रत्यक्ष संपर्क से

4. वायु या साँस के माध्यम से फैलने वाला रोग है
(A) खसरा
(B) काली खाँसी
(C) तपेदिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. कीटों द्वारा फैलने वाला रोग है
(A) मलेरिया
(B) डेंगू
(C) फाइलेरिया
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. पानी के माध्यम से फैलने वाला रोग है
(A) हैजा
(B) पेचिश
(C) मियादी बुखार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. मलेरिया का रोगवाहक मच्छर है
(A) मादा एनाफ्लीज मच्छर
(B) क्यूलैक्स मच्छर
(C) एडिज़ इजिप्टी मच्छर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मादा एनाफ्लीज मच्छर

8. पागल कुत्ते के काटने से फैलने वाला रोग है
(A) चेचक
(B) खसरा
(C) रेबीज़
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) रेबीज़

9. तपेदिक की खोज रॉबर्ट कोच ने कब की?
(A) वर्ष 1856 में
(B) वर्ष 18270 में
(C) वर्ष 1882 में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) वर्ष 1882 में

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10. डेंगू ज्वर किस मच्छर द्वारा फैलता है?
(A) क्यूलैक्स मच्छर द्वारा
(B) एडिज़ इजिप्टी मच्छर द्वारा
(C) मादा एनाफ्लीज मच्छर द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) एडिज़ इजिप्टी मच्छर द्वारा

11. चूहों द्वारा फैलने वाला रोग है
(A) प्लेग
(B) पेचिश
(C) डिफ़्थीरिया
(D) चेचक
उत्तर:
(A) प्लेग

12. टेटनस रोग से बचाव के लिए कौन-सा टीका (वैक्सीन) लगाया जाता है?
(A) डी०पी०टी०
(B) टी०ए०बी०
(C) एम०एम०आर०
(D) बी०सी०जी०
उत्तर:
(A) डी०पी०टी०

13. डी०पी०टी० में डी० का अर्थ है
(A) Diphtheria
(B) Dengue
(C) Dysentery
(D) Diarrhoea
उत्तर:
(A) Diphtheria

14. हड्डी तोड़ बुखार (Break Bone Fever) किस रोग को कहते हैं?
(A) मलेरिया को
(B) हैजा को
(C) डेंगू को
(D) तपेदिक को
उत्तर:
(C) डेंगू को

15. निम्नलिखित में से संक्रामक/छूत का रोग नहीं है
(A) डेंगू
(B) मलेरिया
(C) कैंसर
(D) उपर्युक्त सभी उत्तर:
(C) कैंसर

16. रेबीज़ एक रोग है
(A) जीवाणु जन्य
(B) विषाणु जन्य
(C) प्रोटोजन्य
(D) कवक जन्य
उत्तर:
(B) विषाणु जन्य

17. टैटनस का लक्षण है
(A) गर्दन में अकड़न होना
(B) जबड़ा सिकुड़ना
(C) माँसपेशियों में सूजन आना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. टेटनस के जीवाणु पाए जाते हैं
(A) मिट्टी में
(B) पानी में
(C) कूड़े-कचरे में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मिट्टी में

19. मलेरिया का कारण है
(A) प्रोटोजोआ
(B) जीवाणु
(C) वायरस
(D) कवक
उत्तर:
(A) प्रोटोजोआ

20. किस रोग को मौसमी बुखार भी कहा जाता है?
(A) टायफाइड
(B) मलेरिया
(C) चेचक
(D) खसरा
उत्तर:
(B) मलेरिया

भाग-III : निम्नलिखित कथनों के उत्तर सही या गलत अथवा हाँ या नहीं में दें

1. चिकित्सा-शास्त्र का जनक रॉबर्ट कोच है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

2. बच्चों को रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण (Vaccination) आवश्यक है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

3. मलेरिया नर एनाफ्लीज मच्छर के काटने से होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

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4. छूत की बीमारियाँ पानी से भी फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

5. छूत की बीमारियाँ स्पर्श से भी फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

6. मनुष्यों में प्लेग प्रायः पागल कुत्ते के काटने से होता है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

7. छूत की बीमारियाँ वायु के माध्यम से फैलती हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही

8. मधुमेह एक संक्रामक रोग है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

9. एड्स एक असंक्रामक रोग है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

10. संक्रामक रोग वायु, पानी व कीड़ों से फैलते हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

11. चेचक, प्लेग व मलेरिया संक्रामक रोग हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

12. मलेरिया को मौसमी बुखार भी कहा जाता है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

13. टी०बी० का इलाज संभव है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ,

14. सभी प्रकार के बैक्टीरिया हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं । (सही/गलत)
उत्तर:
गलत,

15. बच्चों को बी०सी०जी० (B.C.G.) का टीका अवश्य लगवाना चाहिए। (हाँ/नहीं)
उत्तर:

16. क्या तपेदिक का इलाज संभव है? (सही/गलत)
उत्तर:
सही,

भाग-IV : रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. …………….. रोग के कारण रोगी को पानी से डर लगने लगता है।
उत्तर:
रेबीज़,

2. ……………. ने निष्पादन किया था कि बीमारियाँ कीटाणुओं के कारण फैलती हैं।
उत्तर:
रॉबर्ट कोच,

3. ……………. वे रोग हैं जो रोगी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से नहीं लगते।
उत्तर:
असंक्रामक रोग,

4. मानसिक रोग, रक्तचाप, रिकेट्स, मधुमेह आदि रोग …………….. रोगों के उदाहरण हैं।
उत्तर:
असंक्रामक,

5. …………….. मादा एनाफ्लीज मच्छर के काटने से होता है।
उत्तर:
मलेरिया,

6. चिकित्सा-शास्त्र का पिता (जनक) …………….. को माना जाता है।
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स,

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7. दाद, खुजली आदि ऐसे रोग हैं जो रोगी के …………….. संपर्क के द्वारा फैलते हैं।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष,

8. रॉबर्ट कोच ने तपेदिक की खोज वर्ष ……… में की।
उत्तर:
1882,

9. पागल कुत्ते के काटने से …………….. रोग होता है।
उत्तर:
रेबीज़,

10. रोग प्रतिरोधक शक्ति को …………… शक्ति भी कहा जाता है।
उत्तर:
जीवन रक्षक।

संक्रामक रोग Summary

संक्रामक रोग परिचय

संक्रामक छूत के रोग (Communicable Diseases):
सभी प्रकार के संक्रामक रोग किसी विशेष प्रकार के रोगाणु से पनपते हैं। ये रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें रोगग्रस्त कर देते हैं। जब स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोगाणु (वायरस, बैक्टीरिया, कीटाणु, फफूंदी आदि) जल, वायु, भोजन तथा स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करके उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या उसे रोगग्रस्त करते हैं, तो वे संक्रामक या छूत के रोग (Communicable Diseases) कहलाते हैं। विषाणु, बैक्टीरिया व कीटाणुओं के आधार पर ये रोग दो प्रकार के होते हैं- (1) संसर्ग रोग, (2) संचारी रोग।

संक्रामक रोगों की रोकथाम व नियंत्रण के उपाय (Measures of Prevention and Control of Communicable Diseases): संक्रामक या छूत के रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं

  • पीने का पानी साफ-सुथरा एवं कीटाणुरहित होना चाहिए, क्योंकि दूषित जल में अनेक प्रकार के संक्रामक रोगाणु उत्पन्न हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए पानी हमेशा क्लोरीन-युक्त या उबालकर पीना चाहिए।
  • परिवार के सभी सदस्यों को नियमित रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिएँ, क्योंकि इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • पर्यावर्णिक स्वास्थ्य या आस-पड़ोस के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। गलियों में गंदा पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु तथा मच्छर पैदा हो जाते हैं जो अनेक रोग फैलाते हैं।
  • संक्रामक रोगों को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए संक्रामक रोग से ग्रस्त व्यक्ति को उस समय तक स्वस्थ व्यक्तियों या घर के अन्य सदस्यों से अलग रखना चाहिए जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाए।

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