HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

HBSE 9th Class Sanskrit प्रत्यभिज्ञानम् Textbook Questions and

प्रत्यभिज्ञानम् के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भाव हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः ।
(ख) तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः।
(ग) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
(घ) नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। दुर्योधनादि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु भी युद्ध के मैदान में जाता है। अभिमन्यु बृहन्नला (अर्जुन) के मुखमण्डल की आभा को देखकर कहता है कि यह दूसरा कौन है जिसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे महादेव भगवान् शिव ने उमा का वेश धारण किया हो। अर्जुन के मुखमण्डल का तेज भगवान् शिव के मुखमण्डल से मिल रहा था। परन्तु उनकी वेशभूषा पार्वती से मिलती थी। इसी कारण अभिमन्यु को शिव एवं पार्वती की आभा दिखाई पड़ रही थी।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। युद्ध के मैदान में बृहन्नला के रूप में अर्जुन को बहुत समय बाद पुत्र-मिलन का अवसर प्राप्त हुआ। वे अपने पुत्र अभिमन्यु से बात करना चाहते हैं। परन्तु अपने अपहरण से क्षुब्ध अभिमन्यु उनके साथ बात करना नहीं चाहता। तब अर्जुन उसे उत्तेजित करने की भावना से इस प्रकार व्यंग्यात्मक वचन कहते हैं – तुम्हारे पिता अर्जुन हैं, मामा श्रीकृष्ण हैं तथा तुम शस्त्रविद्या से सम्पन्न होने के साथ-ही-साथ तरुण भी हो, ऐसे तुम्हारे लिए युद्ध में परास्त होना क्या उचित है? अर्थात् ऐसे गुणों वाले तुम्हें युद्ध में बन्दी बनाया जाना उचित नहीं है।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। अभिमन्यु क्षुब्ध है कि उसे धोखे से शस्त्रविहीन भीम ने पकड़ लिया है। भीम इसका स्पष्टीकरण करते हैं कि अस्त्र-शस्त्र तो दुर्बल व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं-“मेरी तो भुजा ही मेरा शस्त्र है।” अर्थात् मेरी भुजाओं में ही इतनी ताकत है कि उसके सामने सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बेकार हैं। अतः मुझे किसी अन्य आयुध को धारण करने की आवश्यकता नहीं है।

(घ) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। श्रीकृष्ण ने जरासंध के जामाता (दामाद) कंस का वध किया था। इससे क्रुद्ध जरासन्ध ने यदुवंशियों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए उसने बार-बार मथुरा पर आक्रमण भी किया था। उसने श्रीकृष्ण को कई बार पकड़ा भी परन्तु किसी-न-किसी प्रकार श्रीकृष्ण वहाँ से निकल गए। वस्तुतः उचित अवसर पाकर ही श्रीकृष्ण जरासन्ध को मारना चाहते थे, परन्तु भीम ने जरासन्ध का वध करके उसकी पात्रता स्वयं ले ली। जो कार्य श्रीकृष्ण द्वारा करणीय था उसे भीमसेन ने कर दिया और श्रीकृष्ण को जरासन्ध के वध का अवसर ही नहीं दिया।

प्रत्यभिज्ञानम् HBSE 9th Class

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

II. अधोलिखितान् नाट्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित नाट्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः। (प्रकाशम्) इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।।
(क) रथम् आसाद्य काभ्याम् अवतारितः?
(ख) निश्शङ्कः कस्मात् अवतारितः?
(ग) अत्र ‘महादेवः’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) अयम् अपरः कः विभाति?
(ङ) भुजैकनियन्त्रितः बलाधिकेनापि कः पीडितः अस्ति?
उत्तराणि:
(क) रथम् आसाद्य बाहुभ्यामवतारितः।
(ख) निश्शङ्कः रथात् अवतारितः।
(ग) अत्र ‘महादेवः’ इति पदस्य ‘हरः’ पर्यायपदं प्रयुक्तम्।
(घ) अयम् अपरः उमावेषमिवाश्रितः हरः विभाति।
(ङ) भुजैकनियन्त्रितः बलाधिकेन अपि अभिमन्युः पीडितः अस्ति।

(2) अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।
बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम् । किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
(क) अस्माकं कुले किम् अनुचितम्?
(ख) रणभूमौ कान् पश्य?
(ग) अत्र ‘मातरम्’ इति पदस्य किं विलोमपदं प्रयुक्तम्?
(घ) अशस्त्रोऽयं कथं गृहीतवान्?
(ङ) मादृशाः किं न कुर्वन्ति?
उत्तराणि:
(क) अस्माकं कुले आत्मस्तवं अनुचितम्।
(ख) रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य।
(ग) अत्र ‘मातरम्’ इति पदस्य ‘पितरम्’ विलोमपदं प्रयुक्तम्।
(घ) अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
(ङ) मादृशाः अशस्त्रेषु प्रहारं न कुर्वन्ति।

3. उत्तरः – अथ किम् श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके। नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः॥
राजा – एवमेतत्।
उत्तरः – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम् । अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
(क) के भग्नाः ?
(ख) श्मशानात् किं आदाय वयं परिरक्षिताः?
(ग) अत्र ‘अर्जुन’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) यदि अहं अर्जुनः तर्हि अयं कः अस्ति?
(ङ) अयम् एव कः अस्ति?
उत्तराणि:
(क) भीष्मादयो नृपाः भग्नाः।
(ख) श्मशानात् तूणीराक्षयसायके धनुः आदाय वयं परिरक्षिताः।
(ग) अत्र ‘अर्जुन’ इति पदस्य ‘बृहन्नला’ पर्यायपदं प्रयुक्तम्।
(घ) यदि अहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः अस्ति।
(ङ) अयम् एव धनुर्धरः धनञ्जयः अस्ति।

Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 7 Solutions HBSE

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III. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायता रिक्तस्थानानि पूरयत
(निम्नलिखित अव्ययों की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
तर्हि, अलं, एव, खलु, अपि।
(क) धनुस्तु दुर्बलैः …………….. गृह्यते।
(ख) यदि अहम् अर्जुनः …………… अयं भीमसेनः।
(ग) …………….. कुशली देवकीपुत्रः केशवः?
(घ) भोः को न …………….. एषः?
(ङ) …………….. स्वच्छन्द प्रलापेन?
उत्तराणि:
(क) एव,
(ख) तर्हि,
(ग) अपि,
(घ) खलु,
(ङ) अलं।

IV. स्थूलपदमावृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) भटः सौभद्रस्य ग्रहणम् अकरोत् ।
(ख) अयम् उमावेषमिव आश्रितः हरः विभाति।
(ग) उत्सिक्तः खलु अयं क्षत्रियकुमारः।
(घ) अहं अस्य दर्पप्रशमनम् करोमि।
(ङ) धनुः तु दुर्बलैः एव गृह्यते।
उत्तराणि:
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?
(ख) अयम् उमावेषमिव आश्रितः कः विभाति?
(ग) उसिक्तः खलु अयं कः?
(घ) अहं अस्य किं करोमि?
(ङ) धनुः तु कैः एव गृह्यते?

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v. अपोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुसरं वित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. सौभद्रस्य ग्रहणं कः अकरोत्?
(i) अर्जुनः
(ii) भीमः
(iii) भटः
(iv) उत्तरः
उत्तरम्:
(iii) भटः

2. भुजी एवं कस्य प्रहरणम् ?
(i) अर्जुनस्य
(ii) भीमस्य
(iii) वीरस्य
(iv) भटस्य
उत्तरम्:
(ii) भीमस्य

3. जरासन्यस्य वध केन कृतम्?
(i) अर्जुनेन
(ii) श्रीकृष्णेन
(iii) भीमेन
(iv) उत्तरेण
उत्तरम्:
(iii) भीमेन

4. पदातिना कः गृहीतः?
(i) अभिमन्युः
(ii) बृहन्नला
(iii) उत्तरः
(iv) भीमसेनः
उत्तरम्:
(i) अभिमन्युः

5. दिष्ट्रया किं स्वन्तम् अस्ति?
(i) युद्धः
(ii) पराजयः
(iii) गोग्रहणम्
(iv) अभिमन्यु ग्रहणम्
उत्तरम:
(iii) गोग्रहणम्

6. ‘यदि + अहम्’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) यदिअहम्
(ii) अदीहम्
(iii) यदिऽहम्
(iv) यद्यहम्
उत्तरम्:
(iv) यद्यहम्

7. ‘खल्वयं इति पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) खल् + अयं
(ii) खलु + अयं
(iii) खल्व + यं
(iv) खलौ + अयं
उत्तरम्:
(ii) खलु + अयं

8. ‘बञ्चयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) ल्यप्
(ii) शत्र
(iii) क्त
(iv) क्त्वा
उत्तरम्:
(iv) क्त्वा

9. ‘अभिमन्युः’ इति पदस्य किं पर्यायपदम्?
(i) धनुर्धरः
(ii) केशवः
(iii) धनञ्जयः
(iv) सौभद्रः
उत्तरम्:
(iv) सौभद्रः

10. ‘अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः।’ इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) अपि
(ii) केशवः
(iii) कुशली
(iv) देवकीपुत्रः
उत्तरम्
(i) अपि

योग्यताविस्तारः

प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित कर, लिया गया है। दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वहीं भगवान राम से कहे जाने वाले पाण्डवाग्रज युधिष्ठिर भी उपस्थित है। अभिमन्यु उन्हें प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का उद्घाटन हो जाता है।

कवि परिचय-संस्कृत नाटककारों में “महाकवि भास” का नाम अग्रगण्य है। भास रचित तेरह रूपक निम्नलिखित हैंदूतवाक्यम्, कर्णभारम्, उरुभङ्गम्, दूतघटोत्कचम्, मध्यमव्यायोगः, पञ्चरात्रम्, अभिषेकनाटकम्, बालचरितम्, अविमारकम्, प्रतिमानाटकम्, प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, स्वप्नवासवदत्तम् तथा चारुदत्तम्।

ग्रन्थ परिचय–पञ्चरात्रम् की कथावस्तु महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। पाण्डवों के अज्ञातवास के समय दुर्योधन एक यज्ञ करता है और यज्ञ की समाप्ति पर आचार्य द्रोण को गुरुदक्षिणा देना चाहता है। द्रोण गुरुदक्षिणा के रूप में पाण्डवों का राज्याधिकार चाहते हैं। दुर्योधन कहता है कि यदि गुरु द्रोणाचार्य पाँच रातों में पाण्डवों का पता लगा दें तो उनकी पैतृक सम्पत्ति का भाग उन्हें दिया जा सकता है। इसी आधार पर इस नाटक का नाम ‘पञ्चरात्रम्’ है।

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भावविस्तारः

तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः-अज्ञातवास में बृहन्नला के रूप में अर्जुन को बहुत समय के बाद पुत्र-मिलन का अवसर प्राप्त हुआ। वह अपने पुत्र से बात करना चाहता है, परन्तु (अपने अपहरण से) क्षुब्ध अभिमन्यु उनके साथ बात करना ही नहीं चाहता। तब अर्जुन उसे उत्तेजित करने की भावना से इस प्रकार के व्यंग्यात्मक वचन कहते हैं

तुम्हारे पिता अर्जुन हैं, मामा श्रीकृष्ण हैं तथा तुम शस्त्रविद्या से सम्पन्न होने के साथ ही साथ तरुण भी हो, तुम्हारे लिए युद्ध में परास्त होना क्या उचित है। अर्थात् उपरोक्त विशेषताओं वाले तुम्हें युद्ध में कदापि पराजित नहीं होना चाहिए।

मम तु भुजौ एव प्रहरणम्-अभिमन्यु क्षुब्ध है कि उसे धोखे से शस्त्रविहीन भीम ने निगृहीत किया है। भीम इसका स्पष्टीकरण करता है कि अस्त्र-शस्त्र तो दुर्बल व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं। मेरी तो भुजा ही मेरा शस्त्र है। अतः मुझे किसी अन्य आयुध की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार का भाव अन्य नाटकों में भी उपलब्ध है; जैसे
(क) अयं तु दक्षिणो बाहुरायुधं सदृशं मम। (मध्यमव्यायोगः)
(ख) भीमस्यानुकरिष्यामि शस्त्रं बाहुभविष्यति। (मृच्छकटिकम्)
(ग) वयमपि च भुजायुद्धप्रधानाः। (अविमारकम्)

नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्-श्रीकृष्ण ने जरासन्ध के जामाता (दामाद) कंस का वध किया था। इससे क्रुद्ध जरासन्ध ने यदुवंशियों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। इसीलिए उसने बार-बार मथुरा पर आक्रमण भी किया था। उसने श्रीकृष्ण को कई बार पकड़ा भी परन्तु किसी-न-किसी प्रकार श्रीकृष्ण वहाँ से निकल गए। वस्तुतः उचित अवसर पाकर श्रीकृष्ण जरासन्ध को मारना चाहते थे, परन्तु भीम ने जरासन्ध का वध करके उनकी पात्रता स्वयं ले ली। जो कार्य श्रीकृष्ण द्वारा करणीय था उसे भीमसेन ने कर दिया और श्रीकृष्ण को जरासन्ध के वध का अवसर ही नहीं दिया।

प्रत्यय से बने शब्द विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-1
‘क्तवतु’ भी भूतकालिक प्रत्यय है। इसका प्रयोग सदैव कर्तृवाच्य में होता है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द भी तीनों लिङ्गों में होते हैं।
यथा-पठ् + क्तवतु = पठितवत्
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वाच्यपरिवर्तनम्
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HBSE 9th Class Sanskrit प्रत्यभिज्ञानम् Important Questions and Answers

प्रत्यभिज्ञानम् नाट्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ 
1.
भटः – जयतु महाराजः।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केनासि विस्मितः?
भटः – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः ॥
राजा – कथमिदानीं गृहीतः?
भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः।
राजा – केन?
भट – यः किल एष नरेन्द्रेण विनियुक्तो महानसे। (अभिमन्युमुद्दिश्य) इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।
बृहन्नला – आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत् । वाचालयत्वेनमार्यः।
वल्लभः – (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो !
अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम?
वल्लभः – रुष्यत्येष मया, त्वमेवैनमभिभाषय।
बृहन्नला – अभिमन्यो!
अभिमन्युः – कथं कथम्। अभिमन्यु माहम्। भोः! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोभूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गतः। अतएव तिरस्क्रियते।

शब्दार्थ-अपूर्व = अद्भुत । ब्रूहि = बताइए। अश्रद्धेयं = अविश्वसनीय। सौभद्रः = सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु। ग्रहणं गतः = बन्दी बना लिया गया है, पकड़ लिया गया है। कथम् = कैसे। आसाद्य = पास पहुँचकर। बाहुभ्यामवतारितः (बाहुभ्याम् + अवतारितः) = भुजाओं द्वारा उतार लिया गया है। निःशङ्कं = बिना किसी संकोच के। भुजैकनियन्त्रितः = एक भुजा से पकड़ा हुआ। बलाधिकेन = अधिक बलशाली होकर। न पीडितः अस्मि = मुझे पीड़ित नहीं किया। विभाति = ऐसा प्रतीत होता है। हरः = भगवान् शिव ने। अपवार्य = एक ओर को। अभिभाषण = बात करने की। कौतूहलम् = उत्सुकता। बाढम् = ठीक है। रुष्यति = क्रुद्ध होता है। अभिभाषय = बात करने के लिए प्रेरित करो। नामभिः = नाम लेकर। अभिभाष्यन्ते = पुकारे जाते हैं। शत्रुवशं = शत्रुओं के वश में। तिरस्क्रियते = अपमान किया जाता है, उपेक्षा की जाती है।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस नाट्यांश में बताया गया है कि छद्मवेषधारी भीम युद्ध के मैदान से अभिमन्यु को पकड़कर विराट के महल में लाता है।
सरलार्थ
भटः – महाराज की जय हो।
राजा – तुम्हारी प्रसन्नता अद्भुत-सी प्रतीत हो रही है, अतः बताओ किस कारण से प्रसन्न हो?
भट – अविश्वसनीय प्रिय (समाचार) प्राप्त हो गया है, सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु पकड़ लिया गया है।
राजा – किस प्रकार से पकड़ लिया गया है?
भट – रथ के पास पहुँचकर बिना किसी संकोच के भुजाओं के द्वारा रथ से उतार लिया गया है। राजा
राजा – किसके द्वारा?
भट – जो इस राजा के द्वारा रसोईघर में नियुक्त किया गया है (अभिमन्यु की तरफ इशारा करके) कुमार इधर से, इधर से
अभिमन्यु – अरे! यह कौन है? जिसने एक हाथ से पकड़कर अधिक बलशाली होकर भी मुझे पीड़ित नहीं किया।
बृहन्नला – कुमार इधर से, इधर से।
अभिमन्यु – अरे! यह दूसरा कौन है, ऐसा लग रहा है जैसे भगवान् शिव ने उमा (पार्वती) का वेश ग्रहण किया हो।
बृहन्नला – आर्य! मुझे इससे बात करने की बहुत उत्सुकता हो रही है। आप इसे बोलने के लिए प्रेरित कीजिए।
वल्लभ – (एक ओर मुँह करके) अच्छा (प्रकट रूप से) अभिमन्यु!
अभिमन्यु – अभिमन्यु नाम?
वल्लभ – यह मुझसे चिढ़ता है, आप ही इसे बात करने के लिए प्रेरित कीजिए।
बृहन्नला – अभिमन्यु!
अभिमन्यु – क्यों, क्यों मेरा नाम अभिमन्यु है। अरे! क्या यहाँ विराटनगर में क्षत्रियकुल में उत्पन्न होने वाले कुमारों को नीच लोगों द्वारा (नौकर-चाकरों के द्वारा) भी नाम के द्वारा अर्थात् नाम लेकर बुलाया जाता है अथवा मैं शत्रुओं के अधीन हो गया हूँ, इसलिए मुझे अपमानित किया जा रहा है।

भावार्थ-भीमसेन युद्ध के मैदान से अभिमन्यु को पकड़कर महाराज विराट के महल में लाते हैं। भीम तथा अर्जुन दोनों अज्ञातवास के कारण अपने वास्तविक रूप में नहीं हैं। इसलिए अभिमन्यु उन्हें नीच शब्द से सम्बोधित करता है। अर्जुन की अभिमन्यु के प्रति पुत्र-प्रेम की भावना को भी दिखाया गया है।

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2.
बृहन्नला – अभिमन्यो! सुखमास्ते ते जननी?
अभिमन्युः – कथं कथम्? जननी नाम? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्यः? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति?
बृहन्नला – अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः?
अभिमन्युः – कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना। अथ किम् अथ किम्? (बृहन्नलावल्लभौ परस्परमवलोकयतः)
अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते?
बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम् ।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः॥
अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम् । रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।
बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम् । किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः। एष महाराजः। उपसर्पतु कुमारः।
अभिमन्युः – आः| कस्य महाराजः?
राजा – एह्येहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि? (आत्मगतम्) अहो! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीतः?

अन्वय-पितरम् पार्थं मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।

शब्दार्थ-सुखमास्ते (सुखम् + आस्ते) = सुख से हैं। पितृव्यः = चाचा। पितृवद् = पिता की तरह। आक्रम्य = अधिकार, दिखाकर। स्त्रीगतां कथां = माता के विषय में प्रश्न । कुशली = सकुशल । तत्रभवन्तम् = आदरणीय को भी। अथ किम् अथ किम् = और क्या और क्या अर्थात् निश्चित रूप से। परस्परमवलोकयतः = एक-दूसरे को देखते हुए। मातुलं = मामा। जनार्दनम् = श्रीकृष्ण को। उद्दिश्य = याद करके। तरुणस्य = युवक के। कृतास्त्रस्य = धनुर्विद्या में निपुण। आत्मस्तवं = अपनी प्रशंसा। मद्रते (मद् + ऋते) = मेरे सिवाय। वाक्यशौण्डीर्यम् = वाणी की वीरता। पदातिना = पैदल । त्वर्यताम् = शीघ्र बुलाइए। उपसर्पतु = समीप आएँ। एह्येहि (एहि + एहि) = आओ, आओ। न अभिवादयसि = प्रणाम नहीं करते। उत्सिक्तः = घमंडी। दर्पप्रशमनं = घमंड का नाश।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस नाट्यांश में बताया गया है कि बृहन्नला (वेशधारी अर्जुन) अभिमन्यु से उसके माता-पिता तथा श्रीकृष्ण का समाचार पूछ रहे हैं।

सरलार्थ:
बृहन्नला – हे अभिमन्यु! क्या तुम्हारी माता कुशलपूर्वक हैं?
अभिमन्यु – क्या, क्या? माता? क्या आप मेरे पिता या चाचा हैं? आप क्यों मुझ पर पिता की तरह अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में पूछ रहे हैं?
बृहन्नला – हे अभिमन्यु ! क्या देवकी-पुत्र केशव सकुशल हैं?
अभिमन्यु – क्या आदरणीय कृष्ण को भी नाम से…..? और क्या और क्या (कुशल हैं) (बृहन्नला और वल्लभ दोनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं)
अभिमन्य – ये मेरे ऊपर तिरस्कार की भाँति क्यों हँस रहे हैं? बृहन्नला क्या कुछ ऐसा ही नहीं है। पिता अर्जुन तथा मामा श्रीकृष्ण वाला युवक धनुर्विद्या में निपुण होकर भी युद्ध में परास्त कैसे हो जाता है।

भावार्थ भाव यह है कि हे अभिमन्यु! तुम्हारे पिता अर्जुन हैं तथा मामा श्रीकृष्ण हैं। तुम धनुर्विद्या में निपुण भी हो फिर तुम युद्ध में कैसे पराजित हो गए, जिसके कारण बन्दी बनाकर तुम्हें यहाँ लाया गया है।

अभिमन्यु – स्वच्छन्द बकवास करना बन्द करो। हमारे कुल में अपनी प्रशंसा करना अनुचित है। युद्धभूमि में मेरे बाणों से मारे हुए सैनिकों के शरीरों को देखिए (बाणों पर) मेरे अतिरिक्त दूसरा नाम नहीं होगा।
बृहन्नला – अरे बाणों की ऐसी वीरता! फिर उन्होंने तुम्हें पैदल ही क्यों पकड़ लिया?
अभिमन्यु – वे मेरे सामने बिना शस्त्र के आए। पिता अर्जुन को याद करके मैं उन्हें कैसे मारता। शस्त्रहीनों पर मुझ जैसे लोग प्रहार नहीं करते। अतः इस शस्त्रहीन ने मुझे धोखा देकर पकड़ लिया।
राजा – तुम अभिमन्यु को शीघ्र बुला लाओ।
बृहन्नला – कुमार इधर आइए। ये महाराज (विराट) हैं। राजकुमार इनके पास जाइए।
अभिमन्यु – आह! किसके महाराज? ।
राजा – आओ, आओ पुत्र! मेरा अभिवादन क्यों नहीं करते हो? (मन में)
अरे! यह क्षत्रिय कुमार बहुत घमण्डी है। मैं इसका घमण्ड शान्त करता हूँ। (प्रकट रूप से) तो इसे किसने पकड़ा?

भावार्थ-अभिमन्यु क्षत्रिय कुमार है। क्षत्रियों की मर्यादा रही है कि वे शस्त्रहीनों पर प्रहार नहीं करते। इसी कारण युद्ध के मैदान में उसने शस्त्रों से रहित छद्मवेषधारी भीम पर बाण नहीं चलाया। भीम ने उसे अपनी भुजाओं से पकड़ लिया।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

3. भीमसेनः – महाराज! मया।
अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।
भीमसेनः – शान्तं पापम् । धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
अभिमन्युः – मा तावद् भोः! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति।
भगवान् – पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम?
अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतः कृष्णोऽतदर्हताम् ॥
राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति ॥
अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्यः
पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः।
बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति ॥
(ततः प्रविशत्युत्तरः)
उत्तरः – तात! अभिवादये!
राजा – आयुष्मान् भव पुत्र। पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषाः।
उत्तरः – पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।
राजा – पुत्र! कस्मै?
उत्तरः – इहात्रभक्ते धनञ्जयाय।
राजा – कथं धनञ्जयायेति?
उत्तरः – अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके।
नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः॥ _
राजा – एवमेतत्।
उत्तरः . – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः। तेन खलु …..
न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम् ।
दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः॥
(इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति।)

अन्वय–(1) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यम् कर्म कृत्वा (भीमसेनः) कृष्णः अदर्हतां नीतः।
(2) पादयोः निग्रहः उचितः समुदाचारः क्रियताम्, बाहुभ्याम् आहृतं भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
(3) मया क्षिप्ता न रुष्यन्ति, हसन्तः च माम् क्षिपन्ति। दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तम् येन पितरः दर्शिताः।

शब्दार्थ-इत्यभिधीयताम् (इति + अभिधीयताम्) = ऐसा कहिए। भुजौ = दोनों भुजाएँ। प्रहरणम् = शस्त्र। योक्त्रयित्वा = बाँधकर । क्षेपेण = अपमान के द्वारा। रमे = मैं आनन्दित होता हूँ। अपराद्धः = अपराधी। अनुग्राह्यः = कृपा करने योग्य। निग्रहः = बंधन। योधपुरुषाः = योद्धा। पूज्यतमस्य = सबसे अधिक पूज्य । तूणीर = तरकश। भग्नाः = परास्त किए गए। व्यपनयतु = दूर करें। क्षिप्ता = आक्षेपयुक्त होने पर। दिष्ट्या = सौभाग्य से। गोग्रहणम् = गायों का अपहरण । स्वन्तं = सुखान्त। आलिङ्गन्ति = आलिंगन करते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत,नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस नाट्यांश में बताया गया है कि विराट नगर में पाण्डवों का अज्ञातवास पूरा होता है और सभी पाण्डव अपने पूर्व रूप में आ जाते हैं, जिन्हें अभिमन्यु तथा महाराज विराट आदि सभी पहचान लेते हैं।

सरलार्थ
भीमसेन – महाराज! मैंने।
अभिमन्यु – ‘शस्त्रहीन होकर पकड़ा’ ऐसा कहना चाहिए।
भीमसेन – शान्त हो जाइए। धनुष तो दुर्बलों के द्वारा उठाया जाता है। भुजाएँ ही मेरा शस्त्र हैं।
अभिमन्यु – नहीं, तो अरे! क्या आप हमारे मध्यम (मझले) तात (भीम) हैं, जो उनके समान वचन बोल रहे हैं।
भगवान् – पुत्र! यह मध्यम तात कौन हैं?
अभिमन्यु – (जिसने) अपनी भुजाओं से जरासंध को गले से पकड़कर बाँध करके जोकि कृष्ण के लिए भी उचित अवसर न आने के कारण असम्भव कर्म था, उसे करके लाए थे।
भावार्थ – जरासंध को मारने का कार्य श्रीकृष्ण को करना था, परन्तु उनके द्वारा करणीय कार्य को भीमसेन ने अपनी भुजाओं से पकड़कर पूरा किया।
राजा – तुम्हारे निन्दापूर्ण वचनों से मैं कुपित नहीं हूँ। तुम्हारे कुपित होने से मुझे आनन्द प्राप्त होता है। तुम यहाँ क्यों खड़े हो। जाओ यहाँ से अगर मैं ऐसा कहूँ तो क्या मैं अपराधी नहीं होऊँगा?
अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हैं तो मेरे पैर बाँधकर मुझे उचित दण्ड दीजिए। मैं हाथों से पकड़कर लाया गया हूँ। मेरे मध्यम तात भीम मुझे हाथों से ही छुड़ाकर ले जाएँगे। (इसके बाद ‘उत्तर’ का प्रवेश)
उत्तर – तात! मैं प्रणाम करता हूँ।
राजा – दीर्घायु हो पुत्र! युद्ध में वीरता दिखाने वाले वीरों का सत्कार कर दिया गया है।
उत्तर – अब सबसे अधिक पूज्य की पूजा कीजिए। राजा
राजा – किसकी पूजा पुत्र?
उत्तर – यहाँ उपस्थित अर्जुन की।
राजा – क्या अर्जुन यहाँ आए हैं?
उत्तर – और क्या? पूज्य अर्जुन नेश्मशान से अपना धनुष तथा अक्षय तरकश लेकर भीष्म आदि राजाओं को पराजित कर दिया तथा हम लोगों की रक्षा की।
राजा – ऐसी बात है?
उत्तर – आप अपना सन्देह दूर करें। धनुर्विद्या में प्रवीण अर्जुन यही हैं।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ तो यह भीमसेन हैं और यह राजा युधिष्ठिर हैं।
अभिमन्यु – आप मेरे पिता हैं, इसीलिए-
मेरे निन्दापूर्ण वचनों से ये क्रोधित नहीं होते और हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं। गौ-अपहरण की यह घटना सौभाग्य से सुखांत हुई है। इसी के कारण मुझे अपने सभी पिताओं के दर्शन हो गए। (ऐसा कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन करते हैं।)

भावार्थ-कौरवों द्वारा विराट की गौओं के अपहरण का एक विशेष प्रयोजन था। इसके माध्यम से दुर्योधन पाण्डवों के अज्ञातवास का पता लगाना चाहता था। इसी कारण इस घटना को अभिमन्यु अपने लिए सौभाग्यकारक मानता है क्योंकि इसी घटना के माध्यम से उसे अपने पिताओं (अर्जुन, भीम आदि) के दर्शन होते हैं।

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अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) कः उमावेषमिवाश्रितः भवति?
(ख) कस्याः अभिभाषणकौतूहलं महत् भवति?
(ग) अस्माकं कुले किमनुचितम्?
(घ) कः दर्पप्रशमनं कर्तुमिच्छति?
(ङ) कः अशस्त्रः आसीत्?
(च) कया गोग्रहणम् अभवत् ?
(छ) कः ग्रहणं गतः आसीत्?
उत्तराणि:
(क) बृहन्नला/अर्जुनः,
(ख) बृहन्नलायाः,
(ग) आत्मस्तवं,
(घ) अभिमन्युः,
(ङ) अभिमन्युः,
(च) दिष्ट्या,
(छ) सौभद्रः

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2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत्?
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत्?
(ग) कः वल्लभ-बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति?
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् आत्मानं वञ्चितम् अनुभवति?
(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते?
उत्तराणि:
(क) भटः सौभद्रस्य ग्रहणम् अकरोत्।
(ख) अभिमन्युः अशस्त्रः वञ्चयित्वा गृहीतः।
(ग) , अभिमन्युः वल्लभ-बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति।
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे आत्मानं वञ्चितम् इव अनुभवति यतः सः अशस्त्रः वञ्चयित्वां गृहीतः।
(ङ) अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते यतः अनेनैव तस्य पितरः दर्शिताः ।

3. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत
(निम्नलिखित वाक्यों में से प्रकटितभाव चुनिए)
(क) भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि। (विस्मयः, भयम्, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं! अभिमन्यु माहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः, प्रसन्नता)
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्। (अन्धविश्वासः, शौर्यम्, उत्साहः)
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्संयमः)
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः। (क्षमा, हर्षः, धैर्यम्) ।
उत्तराणि:
(क) विस्मयः
(ख) स्वाभिमानः
(ग) क्रोधः,
(घ) शौर्यम्,
(ङ) आत्मविश्वासः,
(च) हर्षः।

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4. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत
(यथास्थान रिक्तस्थान की पूर्ति कीजिए)
(क) खलु + एषः = …………………..
(ख) बल + ……….. + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् + इव + आश्रितः = बिभात्युमावेषम्
(घ) …………. + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = …………………..
(छ) यातु + …………. = यात्विति
(ज) …………. + इति = धनञ्जयायेति।
उत्तराणि:
(क) खलु + एषः = खल्वेषः
(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् = भात्युमावेषम्
(घ) वाचालयत् + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम्
(छ) यातु + इति = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति

5. अधोलिखितानि वचनानि कः कं प्रति कथयति
(निम्नलिखित वाक्यों में कौन किसे कह रहा है)
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-4
उत्तराणि:
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-5

6. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि
(निम्नलिखित स्थूल सर्वनाम शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं)
(क) वाचालयतु एनम् आर्यः।
(ख) किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
(ङ) अपूर्व इव अत्र ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मितः असि?
उत्तराणि:
(क) अभिमन्यवे,
(ख) भीमाय,
(ग) राजे,
(घ) भीमसेनाय,
(ङ) भटाय।

7. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः। पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(श्लोकों का अपूर्ण अन्वय नीचे दिया गया है। पाठ के आधार पर रिक्त स्थान पूरे कीजिए)
(क) पार्थं पितरं मातुलं ………… च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य ……….. युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन …………. जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं …………. कृत्वा। (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता …………. रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं …………. अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः …………. । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) ………….. बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
उत्तराणि:
(क) पार्थं पितरम् मातुले जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा। (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं उक्त्वा अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम्। बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति।

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(अ) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत
(नीचे लिखे पदों से उपसर्ग चुनकर लिखिए)
पदानि यथा- आसाद्य
(क) अवतारितः – ………………….
(ख) विभाति – ………………….
(ग) अभिभाषय – ………………….
(घ) उद्भूताः – ………………….
(ङ) उसिक्तः – ………………….
(च) प्रहरन्ति – ………………….
(छ) उपसर्पतु – ………………….
(ज) परिरक्षिताः – ………………….
(झ) प्रणमति – ………………….
उत्तराणि:
पदानि – उपसर्गः
(क) अवतारितः – अव
(ख) विभाति – वि
(ग) अभिभाषय – अभि
(घ) उद्भूताः – उत्
(ङ) उत्सिक्तः – उत्
(च) प्रहरन्ति – प्र
(छ) उपसर्पतु – उप
(त) परिरक्षिताः – परि
(झ) प्रणमति – प्र

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प्रत्यभिज्ञानम् (पहचान) Summary in Hindi

प्रत्यभिज्ञानम् पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित किया गया है। संस्कृत के नाटककारों में महाकवि ‘भास’ का नाम अग्रगण्य है। ‘पञ्चरात्रम्’ की कथावस्तु महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। पाण्डवों के अज्ञातवास के समय दुर्योधन एक यज्ञ करता है और यज्ञ की समाप्ति पर आचार्य द्रोण को गुरु-दक्षिणा देना चाहता है। द्रोणाचार्य गुरु-दक्षिणा के रूप में पाण्डवों का राज्याधिकार चाहते हैं। इसके लिए दुर्योधन पाँच रातों में पाण्डवों को ढूँढने की शर्त रखता है। इसी कारण इस नाटक का नाम ‘पञ्चरात्रम्’ रखा गया है।

पाठ में वर्णित कथा के अनुसार दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने युद्धभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। अभिमन्यु महाराज विराट को भी प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का पता चल जाता है।

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