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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

HBSE 12th Class Hindi आत्म-परिचय, एक गीत Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर:
सर्वप्रथम कवि जग-जीवन का भार ढोने की बात कहता है। इसका भाव यह है कि कवि संसार से पूर्णतया अलग नहीं हुआ। संसार की समस्याओं के प्रति वह भी सचेत है। परंतु वह अपनी कविता द्वारा संसार के कष्टों तथा दुखों को दूर करना चाहता है। वह संसार को सुखद बनाना चाहता है।

इस रास्ते पर चलते-चलते कवि को यह अनुभव होता है कि संसार उसकी उपेक्षा कर रहा है। वह संसार के व्यवहार से दुखी है। संसार की जड़-परंपराएँ तथा रूढ़ियाँ कवि के मार्ग को रोकना चाहती हैं, परंतु कवि इन बाधाओं की परवाह नहीं करता। वह अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ता है।

प्रश्न 2.
जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
कवि समझता है कि जो लोग सांसारिक सुख-सुविधाओं का संग्रह करने में सक्रिय हैं, उनको ‘दाना’ अर्थात् बुद्धिमान कहा जाता है। परंतु कवि का अपना दृष्टिकोण अलग है। वह ऐसे लोगों को मूर्ख समझता है। कवि सांसारिक सफलताओं को व्यर्थ समझता है। वह ऐसे लोगों को नादान कहता है जो धन-संपत्ति के पीछे भाग रहे हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

प्रश्न 3.
मैं और, और जग और कहाँ का नाता-पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर:
इस पद्य पंक्ति में प्रयुक्त ‘और’ शब्द में यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है। प्रथम एवं तृतीय ‘और’ का अर्थ ‘अन्य’ है अर्थात् भिन्न या अलग। कवि स्वयं के साथ जोड़कर भावनाओं से जुड़े हुए व्यक्ति को संकेतित करता है। तीसरा ‘और’ सांसारिक मोह-माया से लिप्त आम व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है। दूसरे ‘और’ का प्रयोग ‘तथा’ के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 4.
शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘शीतल वाणी में आग’ से कवि का अभिप्राय यह है कि उसका अपना स्वभाव और स्वर कोमल एवं शांत है। परंतु उसके मन में विद्रोह की भावना विद्यमान है। कवि प्रेमहीन तथा स्वार्थी संसार से घृणा करता है। वह तो प्रेममय संसार से ही प्यार करता है।

प्रश्न 5.
बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर:
बच्चे इस आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता उनके लिए चुग्गा (भोजन सामग्री) लेकर आ रहे होंगे। वे शीघ्र घर पहुँचकर उन्हें भोजन देंगे और साथ ही प्यार भी करेंगे।

प्रश्न 6.
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर:
यह पद्य पंक्ति गीत का मुखड़ा है। इसकी आवृत्ति से प्रेमजन्य व्याकुलता का पता चलता है। प्रेम के क्षण बड़े प्रिय लगते हैं। अतः प्रेम के क्षणों के बीतने का पता ही नहीं चल पाता।

कविता के आसपास

प्रश्न.
संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
उत्तर:
यह संसार निश्चय से काँटों की बाड़ है। यहाँ सुख और दुख दोनों साथ-साथ चलते हैं। कष्टों को सहकर भी हम खुशी से जीवन व्यतीत कर सकते हैं। यदि हमारे मन में सच्चे प्रेम की मस्ती है तो नित-नवीन कल्पनाओं को साकार करके हम सुखद जीवन जी सकते हैं। हमें यह स्वीकार करके कर्म करना चाहिए कि सांसारिक धन-वैभव क्षण-भंगुर हैं। प्रेम ही जीवन को खशी देता है।

आपसदारी
जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करो।
आत्मकथ्य
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
आरोह (भाग 2) हरिवंश राय बच्चन]
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मै मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
-जयशंकर प्रसाद

‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद द्वारा छायावाद के परिपेक्ष्य में रचित कविता है। परंतु बच्चन जी की ‘आत्मपरिचय’ कविता छायावाद से हटकर व्यक्तिगत प्रेम को आधार बनाकर रची गई कविता है। जहाँ प्रसाद जी अपने प्रेम को छिपाकर रखते हैं, वहाँ बच्चन जी सहज, सरल भाषा में बड़ी ईमानदारी के साथ प्रेमाभिव्यक्ति करते हैं। भले ही इन दोनों कविताओं के भाव लगभग समान हो, परंतु इनकी अभिव्यंजना शैली अलग-अलग है। बच्चन द्वारा यह कहना कि ‘मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ’ में प्रेम की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। परंतु प्रसाद जी द्वारा यह कहना –
“यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास ।
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।”
यहाँ प्रसाद जी ने छायावादी अभिव्यंजना शैली द्वारा अपनी प्रेमाभिव्यक्ति का संदेश दिया है।

HBSE 12th Class Hindi आत्म-परिचय, एक गीत Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!
उत्तर:
इन पद्य-पंक्तियों में कवि ने निजी प्रेम की अभिव्यक्ति की है। कवि का हृदय प्रिया के स्नेह से सराबोर है। वह हमेशा अपने मन में प्रिया के स्नेह को अनुभव किया करता है। इसीलिए वह संसार की परवाह नहीं करता।

  1. कवि ने सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
  2. ‘किया करता’ में अनुप्रास अलंकार है तथा ‘स्नेह-सुरा’ में रूपक अलंकार है।
  3. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव दिखाई देता है।
  4. किया करता हूँ की आवृत्ति के कारण गीत में मधुर संगीत की उत्पत्ति हुई है।
  5. माधुर्य गुण है तथा शृंगार रस का परिपाक हुआ है।
  6. आत्मकथात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
उत्तर:
इसमें कवि निजी प्रेम को स्वीकार करता हुआ कहता है कि कवि के हृदय में नवीन मनोभाव हैं जिन्हें वह संसार को उपहार के रूप में भेंट करना चाहता है। कवि को यह अधूरा संसार अच्छा नहीं लगता। इसलिए वह सपनों के संसार में खोया रहता है।

  1. प्रस्तुत गीत में विषयानुकूल, सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  2. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावभिव्यक्ति में सहायक है।
  3. कोमलकांत पदावली का प्रयोग है।
  4. ‘लिए फिरता हूँ की आवृत्ति के कारण इस पद्य में संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
  5. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव है।
  6. माधुर्य गुण है तथा श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
उत्तर:
यहाँ कवि स्वीकार करता है कि उसका संसार के साथ निर्वाह नहीं हो सकता। कवि प्रतिदिन नए संसार की रचना करता है, परंतु अगले क्षण ही वह उसे नष्ट कर देता है। यह संसार धन-वैभव के पीछे पागल बना हुआ है परंतु कवि को इस धन-वैभव की कोई इच्छा नहीं है।

  1. कवि सांसारिक जीवन से अलग-थलग आदर्श लोक में विचरण करना चाहता है।
  2. ‘जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव’ में विशेषण-विपर्यय अलंकार है।
  3. ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार है तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘और’ शब्द की आवृत्ति चमत्कार उत्पन्न करती है। इस शब्द में यमक अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है तथा कोमलकांत पदावली का प्रयोग है।
  6. शब्द-योजना सार्थक तथा सटीक बन पड़ी है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
उत्तर:
यहाँ कवि स्वीकार करता है कि उसके रुदन से भी प्रेम झलकता है, परंतु उसकी वाणी में एक कोमल ऊर्जा है। कवि का जीवन निराशा के कारण खंडहर बन चुका है, परंतु कवि अपने जीवन में उस प्रेम को महत्त्व देता है जिस पर बड़े-बड़े राजा महल को भी न्योछावर कर देते हैं।

  1. इसमें कवि ने सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
  2. शब्द-योजना सार्थक एवं सटीक बन पड़ी है।
  3. ‘मैं’ शब्द के प्रयोग के कारण आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
  4. ‘रोदन में आग’ तथा ‘शीतल वाणी में आग’ दोनों में विरोधाभास अलंकार का सफल प्रयोग है।
  5. माधुर्य गुण है तथा वियोग शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।
  6. लिए फिरता हूँ की आवृत्ति के कारण मधुरता की मस्ती उत्पन्न हो गई है।
  7. इस पद्यांश में उमर खय्याम की रुबाइयों का स्पष्ट प्रभाव है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
उत्तर:
यहाँ कवि स्वीकार करता है कि दुनिया में उसका कोई नहीं है और न ही उसकी कोई प्रतीक्षा कर रहा है। प्रेम के अभाव के कारण कवि के कदम शिथिल पड़ जाते हैं और उसके मन में उदासी छा जाती है।

  1. इसमें कवि ने खड़ी बोली के साहित्यिक रूप का वर्णन किया है।
  2. ‘मझसे मिलने को कौन विकल’ और ‘किसके हित चंचल’ दोनों में प्रश्न अलंकार है।
  3. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4.  प्रसाद गुण है तथा वियोग शृंगार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव है।
  6. आत्मकथात्मक तथा भावात्मक शैलियों का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न (आत्मपरिचय)

प्रश्न 1.
‘आत्मपरिचय’ कविता के आधार पर कवि के व्यक्तित्व का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
कवि प्रेम और मस्ती का जीवन जीना चाहता है। वह हमेशा प्रेम तथा स्नेह के काल्पनिक संसार में खोया रहता है। प्रेम ही उसके जीवन का प्राण है। इसलिए वह हमेशा स्नेह की सुरा का पान करता रहता है। परंतु प्रिया ने उसके प्रेम का अनुकूल उत्तर नहीं दिया। इसीलिए उसके हृदय में विरह-जन्य पीड़ा व अवसाद है। इसके साथ-साथ कवि सांसारिक मोह-माया से अलग-थलग प्रेममय संसार की रचना करना चाहता है। वह इस संपूर्ण संसार को मस्ती में डुबा देना चाहता है।

प्रश्न 2.
कवि को यह संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
उत्तर:
कवि इस संसार को अपूर्ण मानता है। कवि का विचार है कि संसार एक भार है। लोग व्यर्थ ही दुनियादारी में उलझे हैं। कवि सांसारिक मोह-माया से अलग-थलग आदर्श समाज की स्थापना करना चाहता है। वह स्वयं को संसार से अलग मानता है। इसीलिए वह कहता भी है
“जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता।”

प्रश्न 3.
‘जग पूछा रहा उनको, जो जग की गाते’-इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि स्पष्ट करता है कि संसार केवल उन लोगों का सम्मान करता है जो लोग धन-वैभव के संग्रह में संलग्न हैं और संपन्न हैं। धनवान व्यक्ति का सभी आदर करते हैं, निर्धन को कोई नहीं पूछता। विशेषकर कवि जैसे सत्यनिष्ठ व्यक्ति की कोई परवाह भी नहीं करता। परन्तु कवि तो अपने मन में प्रेम के गीत लिए फिरता है।

प्रश्न 4.
कवि ने जग को मूढ क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि की दृष्टि में संसार के सभी लोग धन-वैभव के संग्रह में अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। वे सांसारिक विषय-वासनाओं में लीन हैं। अज्ञानता के कारण उनके जीवन से सच्चा प्रेम लुप्त हो चुका है। इसलिए यह संसार तथा इसके लोग मूढ़ हैं।

प्रश्न 5.
‘जग भक्-सागर तरने को नाव बनाए’ कथन का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि की दृष्टि में संसार रूपी सागर महाभयंकर है। इसे पार करने के लिए मनुष्य को कोई-न-कोई नौका अवश्य चाहिए। संसार समझता है कि वह धन-संपत्ति द्वारा इस सागर को पार कर जाएगा, परंतु ऐसा संभव नहीं है। कवि अपने प्रिय के प्रेम को नाव बनाकर यह संसार पार करना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘आत्मपरिचय’ गीत के आधार पर कवि के मन की दशा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि मौज और मस्ती का कवि है। वह प्रेम पाने और देने में विश्वास रखता है और एक प्यार भरी जिंदगी जीना चाहता है इसलिए वह अपने हार्दिक प्रेम को प्रिया के समक्ष प्रकट करना चाहता है। कवि प्रेम के बिना इस संसार को अधूरा मानता है और अपने मन में प्रेममय संसार की कल्पना करता है।

प्रश्न 7.
कवि अपने हृदय में अग्नि जलाकर क्यों जलता रहता है?
उत्तर:
कवि के मन में अपने प्रिय के लिए अत्यधिक प्रेम है। प्रिय की मधुर यादें उसे सुखानुभूति प्रदान करती हैं। अतः वह संयोग की दशा में भी प्रिय के वियोग की अग्नि जलाकर उसमें जलता रहता है। इससे कवि को आनंद मिलता रहता है।

प्रश्न 8.
कवि के अन्दर और बाहर कौन-सी असंगति है और यह असंगति क्यों है?
उत्तर:
कवि संसार के लोगों के सामने हँसता और खेलता दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि मानों वह अपने प्रेम की असफलता पर हँस रहा है, परंतु वह अपनी विरह-व्यथा के कारण मन-ही-मन रोता रहता है। बाहर से कवि प्रसन्न नज़र आता है, लेकिन मन-ही-मन वह विरह-जनित पीड़ा को अनुभव करता रहता है। इसलिए कवि का जीवन अन्दर और बाहर से असंगत हो जाता है।

प्रश्न 9.
कवि कौन-कौन से संसार बनाकर रोज़ मिटाता रहता है?
उत्तर:
कवि मन-ही-मन प्रेममय संसार की कल्पना करता है। परन्तु कवि का यह प्रेममय संसार प्रेम की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसलिए कवि उसे मिटा देता है। वह फिर से प्रेममय संसार की रचना में लीन हो जाता है। परंतु संसार के लोग इससे बेखबर होकर धन-संपदा के संग्रह में लगे रहते हैं।

प्रश्न 10.
कवि की शीतल वाणी में आग क्यों है?
उत्तर:
कवि के मन में विरह-वेदना की आग जलती रहती है, लेकिन उसकी वाणी बड़ी कोमल, मधुर और शीतल है। वह अपनी विरह-जनित पीड़ा को कोमलकांत पदावली द्वारा व्यक्त करता है। परंतु प्रिय के वियोग की आग उसके मन में हमेशा जलती रहती है। अतः शीतलता और वियोग बड़ा विचित्र बन पड़ा है।

प्रश्न 11.
‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
इस पद्य पंक्ति द्वारा कवि संसार और अपने स्वभाव के अंतर को स्पष्ट करता है। कवि स्वयं तो प्रेम भावना के लोक में विचरण करता रहता है, परंतु संसार के लोग स्वार्थ को पूरा करने में संलग्न हैं। इसलिए कवि का मेल नहीं खाता।

प्रश्न 12.
कवि दीवानों का वेश क्यों लिए फिरता है?
उत्तर:
कवि को प्रेम के क्षेत्र में असफलता मिली है। इसलिए वह प्रेम-दीवानों के समान अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। कवि का एकमात्र लक्ष्य अपने प्रिय को पाना है, परंतु वह उसे मिल नहीं पा रहा। इसलिए वह दीवानों का वेश धारण करके घूमता रहता है।

एक गीत

प्रश्न 1.
‘एक गीत’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव क्या है?
उत्तर:
यह गीत प्रेम के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। कवि कहता है कि प्रेम मानव जीवन को उत्साह, उमंग और उल्लास प्रदान करता है। प्रेम के कारण मनुष्य को लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल रहा है। इसलिए प्रेमी अपनी प्रिय से मिलने के लिए तेज कदमों से चल पड़ता है। यही नहीं, पक्षियों के पंखों में गतिशीलता आ जाती है। जिस किसी व्यक्ति का प्रिय उसकी प्रतीक्षा नहीं करता, उसका जीवन निष्क्रिय और शिथिल हो जाता है। इसलिए प्रेम ही जीवन का मूल आधार है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

प्रश्न 2.
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’, के आधार पर आशा और निराशा के क्रम को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निश्चय ही यह गीत आशा और निराशा के भावों को क्रम से अभिव्यक्त करता है। प्रथम दो काव्यांशों में कवि ने आशा के भावों को जागृत किया है जिससे प्रेरित होकर दिन का पंथी अपने प्रियजनों से मिलने की आशा में शीघ्रता से चलना आरम्भ कर देता है। जब चिड़िया को यह ध्यान आया कि उसके बच्चे उसकी प्रतीक्षा में होंगे तो वह भी तेज गति से उड़ने लगती है। किन्तु जब कवि यह सोचता है कि उसका चाहने वाला कोई नहीं है और कोई उसकी प्रतीक्षा करने वाला नहीं है तो उसके मन का उत्साह नष्ट हो जाता है और उसके मन में निराशा का भाव समा जाता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत गीत में कवि ने आशा और निराशा के भावों को क्रमशः अभिव्यक्ति किया है।

प्रश्न 3.
कवि के मन में शिथिलता उत्पन्न क्यों हो जाती है?
उत्तर:
कवि जानता है कि इस दुनिया में उसका कोई अपना नहीं है। कोई प्रियजन उसकी प्रतीक्षा नहीं करता है। इसलिए वह सोचता है कि मैं किसके लिए अपने को चंचल करूँ। उसका सारा उत्साह तथा उमंग नष्ट हो जाती है। इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं। परंतु यह स्थिति कवि के मन में आतुरता का भाव भी उत्पन्न करती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. हरिवंश राय बच्चन का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1909 में
(B) सन् 1908 में
(C) सन् 1907 में
(D) सन् 1912 में
उत्तर:
(C) सन् 1907 में

2. ‘आत्मपरिचय’ कविता के रचयिता हैं _________.
(A) माखनलाल चतुर्वेदी
(B) रघुवीर सहाय
(C) कुँवर नारायण
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(D) हरिवंश राय बच्चन

3. हरिवंश राय बच्चन का जन्म किस नगर में हुआ?
(A) प्रयाग में
(B) बनारस में
(C) लखनऊ में
(D) कानपुर में
उत्तर:
(A) प्रयाग में

4. हरिवंश राय बच्चन का जन्म किस परिवार में हुआ?
(A) ब्राह्मण परिवार में
(B) कायस्थ परिवार में
(C) क्षत्रिय परिवार में
(D) राजपूत परिवार में
उत्तर:
(B) कायस्थ परिवार में

5. बच्चन जी की आरंभिक शिक्षा कहाँ पर हुई?
(A) काशी में
(B) लखनऊ में
(C) प्रयाग में
(D) मुम्बई में
उत्तर:
(A) काशी में

6. बच्चन जी ने स्नातकोत्तर परीक्षा कहाँ से उत्तीर्ण की?
(A) दिल्ली विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) कलकत्ता विश्वविद्यालय
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर:
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय

7. बच्चन जी ने पी० एचण्डी की उपाधि कहाँ प्राप्त की?
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(B) कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय
(C) मुम्बई विश्वविद्यालय
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय

8. बच्चन जी की पहली पत्नी का नाम क्या था?
(A) श्यामा।
(B) तेजी
(C) मनोरमा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) श्यामा

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9. 1942 में बच्चन जी ने दूसरा विवाह किससे किया?
(A) मनोरमा से
(B) कमला देवी से
(C) तेजी से
(D) राधा से
उत्तर:
(C) तेजी से

10. बच्चन जी को किस मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया गया?
(A) वित्त मंत्रालय
(B) शिक्षा मंत्रालय
(C) कृषि मंत्रालय
(D) विदेश मंत्रालय
उत्तर:
(D) विदेश मंत्रालय

11. किस वर्ष बच्चन जी को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया?
(A) 1969 में
(B) 1965 में
(C) 1966 में
(D) 1970 में
उत्तर:
(C) 1966 में

12. भारत सरकार ने बच्चन जी को किस उपाधि से विभूषित किया?
(A) पद्म श्री
(B) पद्म विभूषण
(C) ज्ञान पीठ पुरस्कार
(D) व्यास सम्मान
उत्तर:
(B) पद्म विभूषण

13. ‘मधुशाला’ का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1935
(B) सन् 1936
(C) सन् 1938
(D) सन् 1937
उत्तर:
(A) सन् 1935

14. ये रचनाएँ हरिवंश राय बच्चन की हैं-
(A) मधुशाला, मधुबाला और अपरा
(B) मधुशाला, कामायनी, मधुबाला
(C) मधुकलश, मधुबाला, मधुशाला
(D) मधुकुशल, मधु, मधुबाला
उत्तर:
(C) मधुकलश, मधुबाला, मधुशाला

15. ‘मधुबाला’ का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1938 में
(B) सन् 1935 में
(C) सन् 1939 में
(D) सन् 1940 में
उत्तर:
(A) सन् 1938 में

16. ‘मधुकलश’ का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1935 में
(B) सन् 1936 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1938 में
उत्तर:
(D) सन् 1938 में

17. हरिवंश राय बच्चन किस भावना के कवि हैं?
(A) रहस्यवाद भावना के
(B) छायावादी भावना के
(C) प्रेम और मस्ती के
(D) प्रगतिवादी भावना के
उत्तर:
(C) प्रेम और मस्ती के

18. ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, किस विधा की रचना है?
(A) प्रबंध काव्य
(B) गीति काव्य
(C) जीवनी
(D) निबंध
उत्तर:
(C) जीवनी

19. हरिवंश राय बच्चन की आधुनिक काव्य रचनाओं पर किसका प्रभाव पड़ा?
(A) स्वच्छंदतावाद का
(B) उमर खय्याम का
(C) रहस्यवाद का
(D) प्रगतिवाद का
उत्तर:
(B) उमर खय्याम का

20. बच्चन जी द्वारा रचित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ उनके किस काव्य-संग्रह से संकलित है?
(A) निशा निमंत्रण
(B) मधुशाला
(C) सतरंगिणी
(D) मिलनयामिनी
उत्तर:
(A) निशा निमंत्रण

21. ‘भव-सागर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उत्प्रेक्षा
(B) उपमा
(C) रूपक
(D) अनुप्रास
उत्तर:
(C) रूपक

22. ‘सीखा ज्ञान भुलाना’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) विरोधाभास
(B) असंगति
(C) अनुप्रास
(D) रूपक
उत्तर:
(A) विरोधाभास

23: ‘साँसों के तार में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) उत्प्रेक्षा
(C) अनुप्रास
(D) रूपक
उत्तर:
(A) उपमा

24. ‘स्नेह-सुरा’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) यमक
(C) उपमा
(D) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(A) रूपक

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25. ‘एक गीत’ नामक कविता में दिन का पंथी किसे माना गया है?
(A) ‘चिड़िया को
(B) कवि को
(C) सूर्य को
(D) प्रत्याशा को
उत्तर:
(B) कवि को

26. अपने बच्चों के विषय में सोचकर पक्षियों की चंचलता किन अंगों में सबसे अधिक व्यक्त होती है?
(A) आँखों में
(B) हृदय में
(C) पैरों में
(D) पंखों में
उत्तर:
(D) पंखों में 27.

27. मुझसे मिलने को कौन विकल? पंक्ति में कौन-सा भाव है?
(A) शिथिलता
(B) चंचलता
(C) विह्वलता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) विह्वलता

28. ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत में नीड़ों से झांक रहे बच्चों का ध्यान चिड़िया के परों में क्या भरता है?
(A) शिथिलता
(B) चंचलता
(C) विकलता
(D) विह्वलता
उत्तर:
(B) चंचलता

29. ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता में कवि हताश और दुखी क्यों है?
(A) पत्नी से तलाक होने के कारण
(B) प्रियतमा की निष्ठुरता के कारण
(C) संतान-सुख से वंचित होने के कारण
(D) परिवार से पिछड़ने के कारण
उत्तर:
(B) प्रियतमा की निष्ठुरता के कारण

30. किसके बच्चे प्रत्याशा में हैं?
(A) गाय के
(B) कवि के
(C) पंथी के
(D) चिड़िया के
उत्तर:
(D) चिड़िया के

31. ‘एक गीत’ नामक कविता में कवि की पंक्ति ‘मुझसे मिलने को कौन विकल’? किस भाव को व्यक्त करती है?
(A) प्रश्न
(B) प्रसन्नता
(C) आश्चर्य
(D) हताशा
उत्तर:
(D) हताशा

32. ‘हो जाए न पथ में रात कहीं’ सोचकर कौन जल्दी-जल्दी चलता है?
(A) चिड़िया के बच्चे
(B) पंथी
(C) चिड़िया
(D) तोता
उत्तर:
(B) पंथी

33. दिन ढलने के साथ ही बच्चे कहाँ से झाँकने लगे होंगे?
(A) दरवाजे से
(B) छत से
(C) नीड़ों से
(D) खिड़की से
उत्तर:
(C) नीड़ों से

34. मैं होऊँ किसके हित चंचल?- यह प्रश्न पैरों को कैसा कर देता है?
(A) शिथिल
(B) चंचल
(C) विह्वल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) शिथिल

35. ‘एक गीत’ कविता में किस भाव की प्रधानता है?
(A) रतिभाव
(B) उत्साह भाव
(C) हास्य भाव
(D) वात्सल्य भाव
उत्तर:
(D) वात्सल्य भाव

आत्म-परिचय पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ! [पृष्ठ-5]

शब्दार्थ-जग-जीवन = सांसारिक गतिविधियाँ। भार = बोझ। झंकृत = तारों को बजाकर स्वर निकालना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने अपने प्रेममय जीवन पर प्रकाश डाला है। इसमें कवि निजी प्रेम को खुले शब्दों में स्वीकार करता हुआ कहता है

व्याख्या-यद्यपि मेरा जीवन सांसारिक बाधाओं और कष्टों के बोझ से दबा हुआ है, लेकिन फिर भी मैं अपने जीवन से प्रेम करता हूँ। मुझे अपने सामाजिक कर्तव्यों का बोध है। मेरा हृदय प्रेम से लबालब भरा है। किसी प्रिया ने मेरे हृदय के तारों को छूकर झंकृत कर दिया था, जिससे मेरी साँसों में संगीत के तार बजने लगे। फलस्वरूप मैं आज भी उसी प्रेम की झंकार में लीन रहता हूँ। भाव यह है कि भले ही मेरे सामने कुछ बाधाएँ और रुकावटें हैं, लेकिन मैं उनकी परवाह न करके प्रेम के सहारे अपना जीवन सुखपूर्वक जी रहा हूँ।

विशेष-

  1. कवि ने खुले शब्दों में अपने प्रेम को स्वीकार किया है। उसके मन में किसी प्रकार की कुंठा नहीं है।
  2. सहज, सरल, प्रवाहमयी तथा संगीतात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘साँसों के तार’ में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है, फिर भी’ के प्रयोग से पता चलता है कि कवि सांसारिक बाधाओं से ग्रस्त है।
  4. इसी में ‘रहस्यात्मकता’ देखी जा सकती है। यह कवि की प्रेमिका भी हो सकती है या कोई प्रियजन अथवा कोई दैवीय शक्ति।
  5. संपूर्ण पद्य में श्रृंगार रस का सुन्दर परिपाक हुआ है।
  6. प्रस्तुत गीत पर उमर खय्याम् की रुबाइयों का स्पष्ट प्रभाव है।
  7. गीत की भाषा में विषय के अनुसार मस्ती, कोमलता, मादकता और मधुरता विद्यमान है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर:

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘जग-जीवन के भार’ से कवि का क्या आशय है?
(ग) ‘फिर भी’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
(घ) यहाँ कवि ने ‘किसी ने के द्वारा किस ओर संकेत किया है?
(ङ) इस पद्यांश का प्रमुख भाव क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-हरिवंश राय बच्चन कविता-आत्मपरिचय

(ख) ‘जग-जीवन के भार’ से कवि का आशय है कि सांसारिक दायित्व और जीवन की जिम्मेदारियाँ, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को निभाना पड़ता है।

(ग) ‘फिर भी’ द्वारा कवि यह बताना चाहता है कि सामाजिक कर्तव्यों तथा दायित्वों के बोझ से उसका जीवन दब गया है। प्रायः संसार के प्राणी इन दायित्वों को निभाते-निभाते प्रेमशून्य हो जाते हैं, परंतु कवि फिर भी अपने जीवन में प्रेम को अत्यधिक महत्त्व देता है और उसी के सहारे जिंदा है।

(घ) यहाँ ‘किसी ने’ शब्द कवि के प्रिय का प्रतीक है। यह प्रिय कवि की प्रेमिका भी हो सकती है या कोई प्रियजन भी हो सकता है। यही नहीं, ‘किसी ने’ के द्वारा कवि परमात्मा की ओर भी संकेत कर सकता है।

(ङ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जीवन के दायित्वों और कर्तव्यों को निभाते हुए भी वह प्रेम के सहारे जीवनयापन कर रहा है। कवि खुले शब्दों में अपने प्रिय के प्रेम की घोषणा करता है।

[2] मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ! [पृष्ठ-5]

शब्दार्थ-सुरा = मदिरा, शराब । पान करना = पीना। जग = संसार । ध्यान करना = परवाह करना । जग की गाते = संसार की स्तुति करते।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने अपने प्रेममय जीवन पर प्रकाश डाला है। इस पद्यांश में कवि स्वीकार करता है कि वह हमेशा अपने प्रेम की मस्ती में डूबा रहता है।

व्याख्या कवि कहता है कि मैं हमेशा प्रेम रूपी मदिरा का पान करता रहा हूँ। भाव यह है कि मैं हमेशा प्रेम के भावों में डूबा रहा हूँ। इसलिए मुझे सांसारिक बाधाओं की कोई चिंता नहीं है। मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं कि संसार के लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? संसार हमेशा उन लोगों की स्तुति करता है जो सदैव सामाजिक दायित्वों में उलझे रहते हैं तथा निजी सुख-दुख की परवाह नहीं करते, परंतु मैं तो अपने गीतों द्वारा अपने मन के भावों को व्यक्त करता हूँ। आशय यह है कि मेरी कविताओं में मेरे प्रेममय व्यक्तित्व की ही अभिव्यक्ति हुई है।

विशेष-

  1. कवि ने खुले शब्दों में अपने प्रेम की अभिव्यक्ति की है और सांसारिक बाधाओं की परवाह न करने का वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  5. प्रवाहमयी भाषा के कारण गीत में विषयानुकूल मस्ती, मादकता, कोमलता तथा मधुरता देखी जा सकती है।
  6. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव देखा जा सकता है।
  7. संपूर्ण पद्य में संगीतात्मकता है तथा शृंगार रस का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर:
प्रश्न-
(क) कवि जग का ध्यान क्यों नहीं करता?
(ख) ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय है?
(ग) जग किसको पूछता है?
(घ) कवि ने अपने गीतों में किस प्रकार के भावों को व्यक्त किया है?
(ङ) इस पद्यांश में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है?
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रिय के प्रेम में रम गया है। वह हमेशा अपने प्रिय को पाना चाहता है। इसलिए वह संसार के झंझटों की परवाह नहीं करता और उससे दूर रहना चाहता है।

(ख) ‘स्नेह-सुरा’ का अर्थ है प्रेम की मस्ती अथवा प्यार का दीवानापन। कवि हमेशा प्रेम की मस्ती का पान करता रहता है। इसलिए उसे संसार की कोई चिंता नहीं है।

(ग) यह संसार केवल उसी को पूछता है जो उसकी चिंता करता है। यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि सांसारिक प्राणी केवल उसी व्यक्ति को महत्त्व देते हैं जो अपनी कविताओं में सांसारिक बातों का वर्णन करते हैं।

(घ) कवि अपने गीतों में स्वच्छंद प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करता है। कवि हमेशा प्रेम की मस्ती में डूबा रहता है।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने सहज, सरल, तत्समनिष्ठ तथा संगीतात्मक भाषा का प्रयोग किया है।

[3] मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ! [पृष्ठ-5]

शब्दार्थ-निज = अपने। उर = हृदय। उद्गार = भाव। उपहार = भेंट। अपूर्ण = अधूरा। भाना = अच्छा लगना। स्वप्नों का संसार = नवीन इच्छाओं का संसार।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने अपने प्रेममय जीवन का वर्णन किया है। इसमें कवि निजी प्रेम को खुले शब्दों में स्वीकार करता हुआ कहता है

याख्या-मेरे निजी हृदय में नए-नए मनोभाव हैं। हमेशा वे मनोभाव मेरे हृदय में उमडते-घमडते रहते हैं। इसलिए मैं इस संसार को अपने हृदय के कोमल भाव देना चाहता हूँ। यह बाह्य संसार अधूरा है, क्योंकि इसमें प्रेम का अभाव है। इस अधूरे संसार को मैं पसंद नहीं करता। मेरे मन में प्रेममय संसार का सपना निवास करता है, मैं उसी सपने को साकार करने के लिए भटकता रहता हूँ। भाव यह है कि मैं प्रेममय संसार में ही लीन रहना चाहता हूँ।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

विशेष-

  1. इसमें कवि ने प्रेममय संसार को अधिक महत्त्व प्रदान किया है तथा खुले शब्दों में अपने प्रेम को स्वीकार किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. इस पद्यांश में उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव देखा जा सकता है।
  5. प्रवाहमयी भाषा होने के कारण गीत में विषयानुकूल मस्ती, मादकता, मधुरता तथा कोमलता विद्यमान है।
  6. संपूर्ण पद्य में संगीतात्मकता है तथा शृंगार रस का परिपाक हुआ है।
  7. लिए फिरता हूँ के प्रयोग से काव्य में मस्ती का वातावरण उत्पन्न हो गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर:
प्रश्न-
(क) कवि के हृदय में किस प्रकार के उद्गार हैं?
(ख) कवि संसार को अपूर्ण क्यों कहता है?
(ग) “स्वप्नों के संसार’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
(घ) कवि के मन की दशा कैसी है?
(ङ) इस पयांश का प्रमुख भाव क्या है?
उत्तर:
(क) कवि के हृदय में प्रेममय उद्गार हैं। वह अपने प्रिय को भरपूर प्रेम देना चाहता है और प्रेममय जीवन-यापन करना चाहता है।

(ख) कवि के अनुसार प्रेमशून्य संसार अपूर्ण और अधूरा है। परन्तु यदि जीवन में प्रेम की प्राप्ति हो जाती है तो जीवन मधुर लगने लगता है।

(ग) स्वप्नों के संसार’ से कवि का तात्पर्य है-प्रेममय जीवन। जो लोग प्रेम की भावना से परिपूर्ण होकर जीते हैं, वे ही जीवन का आनंद उठाना जानते हैं।

(घ) कवि अपने हृदयगत प्रेम को अपने प्रिय के समक्ष प्रकट करना चाहता है। कवि को यह संसार प्रेम के बिना अपूर्ण लगता है। इसलिए वह प्रेममय जीवन जीना चाहता है।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने खुले शब्दों में अपने प्रेम को स्वीकार किया है और प्रेम को मानव-जीवन की मूल भावना माना है।

[4] मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ! [पृष्ठ-5]

शब्दार्थ-हृदय = मन। अग्नि = आग (भावों का आवेग)। दहा = जला। मग्न रहना = मस्त रहना। भव-सागर = संसार रूपी सागर। मौजों = किनारा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने प्रेममय संसार को अधिक महत्त्व प्रदान किया है। कवि प्रेम की दीवानगी को ही अपना जीवन मानता है और प्रेम की मस्ती में जीना चाहता है।

व्याख्या कवि कहता है कि मैं स्वयं अपने हृदय में प्रेम की आग जलाता हूँ और उसी में जलता रहता हूँ। आशय यह है कि कवि को प्रेममय जीवन ही सुखद लगता है। वह प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के सुख-दुख को निरंतर भोगता रहता है। लोग इस संसार को मुसीबतों का सागर कहते हैं और उस पार उतरने के लिए कोई-न-कोई माध्यम अपनाते हैं। परंतु कवि प्रेम रूपी नाव के द्वारा ही सांसारिक बाधाओं को पार कर लेता है। इस प्रकार कवि संसार रूपी सागर के किनारे पर पहुँच जाता है। कवि यह सारा कार्य मौज और मस्ती के साथ करता है। प्रेम के कारण उसके मन में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं है।

विशेष-

  1. इसमें कवि ने प्रेम को जीवन का आधार स्वीकार किया है। वह प्रेम की मस्ती को ही अपना जीवन मानता है।
  2. ‘अग्नि’, ‘नाव’ में रूपकातिशयोक्ति एवं भवसागर’ और ‘भव मौजों में रूपक तथा ‘सुख-दुख’ में अनुप्रास अलंकारों का सहज और स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रवाहमयी भाषा होने के कारण गीत में विषयानुकूल मस्ती, मादकता, मधुरता तथा कोमलता विद्यमान है।
  6. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव देखा जा सकता है।
  7. संपूर्ण पद्य में संगीतात्मकता है तथा शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न-
(क) कवि अपने हृदय में अग्नि जलाकर उसमें क्यों जला करता है?
(ख) कवि सुख-दुख में कैसे मग्न रहता है?
(ग) भव-सागर से पार उतरने के लिए नाव बनाने का क्या अर्थ है?
(घ) ‘भव मौजों से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रिय से अत्यधिक प्रेम करता है। प्रिय की यादें कवि को आनंद प्रदान करती हैं। इसलिए वियोगावस्था में भी कवि अपने प्रिय की विरहाग्नि में जलकर आनंद प्राप्त करता है।

(ख) अपने प्रिय की मधुर यादों में लीन रहने के कारण कवि सुख-दुख में भी मस्त रहता है, उसे सांसारिक चिंताएँ नहीं सतातीं।

(ग) इस संसार को भयंकर सागर कहा गया है। इसे पार करने के लिए कोई-न-कोई नौका अवश्य चाहिए। कवि अपने प्रिय के प्रेम को नौका बनाकर इस भव-सागर को पार करना चाहता है।

(घ) ‘भव मौजों से कवि का अभिप्राय है संसार रूपी सागर का किनारा। कवि का आशय यह है कि संसार के आकर्षणों में उसकी कोई रुचि नहीं है। वह संसार में प्रवेश ही नहीं करना चाहता। सांसारिक विषय-वासनाओं को त्यागकर ही वह प्रेम का सच्चा आनंद प्राप्त करना चाहता है।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि वह प्रेम की उन्मत्तता में मस्त होकर जीवन के सुख-दुख को भोगना चाहता है। वह अपनी प्रेम रूपी नौका द्वारा ही इस संसार रूपी सागर को पार करना चाहता है।

[5] मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ! [पृष्ठ-5]

शब्दार्थ-यौवन = जवानी। उन्माद = मस्ती, पागलपन। अवसाद = दुख तथा निराशा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने प्रेममय संसार को ही श्रेष्ठ माना है। इसमें कवि प्रेम के वियोग पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति करता है तथा प्रेम की दीवानगी तथा निराशा का वर्णन करता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि मेरे जीवन में यौवन की एक मस्ती है। मैं अपनी प्रिया को मिलने के लिए हमेशा व्याकुल रहता हूँ। मैं प्रिया के प्रेम का दीवाना हूँ। यद्यपि वियोगावस्था के कारण मेरे अंदर निराशा तथा दुख के भाव उत्पन्न हो गए हैं, लेकिन मैं लोगों के सामने हमेशा हँसता रहता हूँ। वियोग की पीड़ा मेरे हृदय को परेशान कर देती है। मेरे मन में प्रिया की याद ऐसे समा चुकी है कि मैं उसे याद करके मन ही मन रोता रहता हूँ, परंतु लोगों के सामने हँसने का अभिनय करता हूँ। भाव यह है कि प्रिया का वियोग हमेशा मुझे अन्दर-ही-अन्दर कचोटता रहता है।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने श्रृंगार के वियोग पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। कवि ने वियोगावस्था से उत्पन्न अपनी दीवानगी, निराशा तथा बेचैनी का स्वाभाविक वर्णन किया है।।
  2. कवि ने सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
  3. शब्द-चयन सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. यह पद्यांश विषयानकल मस्ती, मादकता, मधुरता, कोमलता से परिपूर्ण है।
  5. इस पद्यांश में उमर खय्याम की रुबाइयों का स्पष्ट प्रभाव है।
  6. संपूर्ण पद्यांश में संगीतात्मकता है तथा वियोग शृंगार का सफल वर्णन हुआ है।
  7. ‘हाय’ शब्द से कवि की विरह वेदना साकार हो उठी है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर:

प्रश्न-
(क) ‘यौवन के उन्माद’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
(ख) कवि अवसाद से ग्रस्त क्यों है?
(ग) कवि के भीतर तथा बाहर कैसी असंगति है?
(घ) इस पद्यांश में किस प्रकार के श्रृंगार रस का चित्रण हुआ है और क्यों?
(ङ) इस पयांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
(क) ‘यौवन के उन्माद’ से कवि का अभिप्राय है-यौवनकालीन अल्हड़ जवानी में मन में प्रेम का जोश। लगता है कि कवि नए-नए प्रेम के कारण अत्यधिक व्याकुल है, प्रिया का वियोग उसे व्यथित कर देता है।

(ख) कवि की प्रिया उसे छोड़कर चली गई है। अतः कवि प्रेमजन्य निराशा के कारण अत्यधिक व्यथित है। इसलिए वह अवसाद से ग्रस्त है।

(ग) भले ही कवि विरह-व्यथा के कारण अन्दर-ही-अन्दर कसमसाता रहता है, परन्तु वह संसार के सामने हमेशा हँसता तथा मुस्कुराता रहता है। वह नहीं चाहता कि लोग उसकी विरह-व्यथा का मज़ाक बनाए। इसलिए कवि का मन अन्दर से सुंदर तथा बाहर से अंसगत दिखाई देता है।

(घ) इस पद्यांश में शृंगार रस के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण हुआ है। कवि अपनी प्रिया के प्रेम से वंचित है इसलिए वह निराशा और अवसाद से ग्रस्त है।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने अपनी विरह-व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। कवि सहज, सरल शब्दावली में अपनी वियोग जनित अभिलाषा और पीड़ा को व्यक्त करता है।

[6] कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना! [पृष्ठ-6]

शब्दार्थ-यत्न = कोशिश। नादान = भोला-भाला। दाना = लाभ। मूढ = मूर्ख। जग = संसार।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि ने प्रेम की दीवानगी तथा मस्ती का संवेदनशील वर्णन किया है। इस पद्यांश में कवि सांसारिक दौड़-धूप को व्यर्थ बताता हुआ यही सलाह देता है कि मनुष्य को मस्ती के साथ जीना चाहिए।

व्याख्या कवि कहता है कि संसार के सभी लोग अनेक प्रयास करके थक चुके हैं। सभी ने सत्य को जानने की बड़ी कोशिश की, परंतु कोई सत्य को नहीं जान सका। इसका प्रमुख कारण यह है कि जो लोग संसार के धन-वैभव अथवा भोग-विलास की सामग्री एकत्रित करने में लगे हैं, वे सभी मूर्ख हैं। वे इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि संसार के जाल में उलझकर कोई सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर सकता। कवि सोचता है कि मैं ऐसे लोगों को मूर्ख क्यों न कहूँ जो सांसारिक लाभ तथा लोभ में उलझे हुए हैं। मैं तो इस मूर्खता को समझ चुका हूँ। इसलिए मैं तो इस सांसारिक ज्ञान को भुलाकर प्रेम की मस्ती में जीना चाहता हूँ।

विशेष-
(1) इस पद्यांश में कवि ने सांसारिक सुख-वैभव की व्यर्थता को सिद्ध करने का प्रयास किया है।

(2) ‘कर यत्न मिटे सब सत्य’ में अनुप्रास अलंकार ‘सत्य किसी ने जाना’ में प्रश्नालंकार तथा “सीखा ज्ञान भुलाना’ में विरोधाभास अलंकारों का संदर व स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। इस संदर्भ में ‘कबीरदास’ ने भी कहा है
‘पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय’।

(3) कवि ने संसार को मूर्ख सिद्ध करने के लिए अनेक तर्क दिए हैं।

(4) सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।

(5) शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

(6) इस पद्यांश में आत्मकथात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है तथा मुक्त छंद है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि किसे नादान कहता है और क्यों?
(ख) ‘दाना’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) कवि ‘जग को मूढ़’ क्यों कहता है?
(घ) कवि किस प्रकार के ज्ञान को भलाना चाहता है?
(ङ) इस पद्यांश का प्रमुख भाव क्या है?
उत्तर:
(क) कवि उन लोगों को नादान कहता है जो सांसारिक धन-वैभव को प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन भाग-दौड़ करते रहते हैं। कवि का विचार है कि अज्ञानता के कारण लोग प्रेम मार्ग को त्यागकर धन-वैभव तथा भोग-विलास में अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं।

(ख) ‘दाना’ से कवि का अभिप्राय है सांसारिक धन-वैभव और भोग-विलास जो मनुष्य को सच्चा सुख प्रदान नहीं करते।

(ग) जो लोग सांसारिक सुख भोग की संपत्ति का संग्रह करने में लगे हुए हैं, कवि उन्हें मूढ़ कहता है क्योंकि ऐसे लोग ही अज्ञान के कारण प्रेम को प्राप्त नहीं कर पाते।

(घ) कवि सांसारिक विषय-वासनाओं के ज्ञान को भुलाना चाहता है, क्योंकि यह ज्ञान कवि को सच्चा सुख प्रदान नहीं करता।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने सत्य पर प्रकाश डाला है कि संसार में जीवन के सत्य को कोई नहीं पहचान सका। जो लोग सांसारिक मोह-माया के शिकार बने हुए हैं, वह निश्चित ही मूर्ख हैं। कवि ने इस प्रकार के ज्ञान को भुलाने की कामना की है।

[7] मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग में उस पृथ्वी को ठुकराता! [पृष्ठ-6]

शब्दार्थ-जग = संसार। नाता = संबंध। रोज़ = प्रतिदिन। वैभव = धन-संपत्ति। प्रतिपग = हर कदम।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस गीत में कवि ने निजी प्रेम का खुले शब्दों में वर्णन किया है। इस पद्यांश में कवि ने स्वयं को सांसारिक मोह-माया से भिन्न बताया है।

व्याख्या कवि कहता है कि मेरा इस संसार में कोई लंबा-चौड़ा संबंध नहीं है। मैं भावनाओं का कवि हूँ और संसार की रीति-नीति से सर्वथा भिन्न हूँ। संसार के लोग दुनियादारी निभाने में लगे रहते हैं, लेकिन मैं अपने जीवन में भावनाओं को महत्त्व देता हूँ। इसलिए मेरा संसार से कोई मेल नहीं है। मैं प्रतिदिन न जाने कितने संसार बनाता हूँ और न जाने कितने मिटा डालता हूँ। भाव यह है कि मैं प्रतिदिन एक आदर्श समाज बनाने की कल्पना करता हूँ। परंतु जब मेरी कल्पना साकार नहीं होती तो मैं नई कल्पना करने लगता हूँ। इस संसार के लोग धन-संपत्ति का संग्रह करने में लगे हैं, लेकिन मेरे मन में धन-वैभव के लिए कोई लालसा नहीं है। मैं हर कदम पर धन-वैभव में लगे हुए इस संसार को ठुकराता हुआ चलता हूँ। मेरे मन में सुख-समृद्धि की कोई इच्छा नहीं है।

विशेष-

  1. कवि ने सांसारिक धन-वैभव को त्यागकर भावनाओं के प्रति अपनी आसक्ति को व्यक्त किया है।
  2. कवि का यह चिंतन पूर्णतया मौलिक और दार्शनिक है।
  3. ‘जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव’ में विशेषण विपर्यय अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘कहाँ का माता’ में प्रश्नालंकार, ‘जग जिस पृथ्वी पर’, ‘प्रति पग में अनुप्रास, ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति अलंकार, ‘और’ में यमक (भिन्न तथा ‘व’ के अर्थ में) इन अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. इस पद्यांश में प्रसाद गुण है तथा संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि स्वयं को संसार से अलग क्यों समझता है?
(ख) ‘और जग और’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि किस प्रकार के संसार को मिटाता रहता है?
(घ) कवि स्वयं को संसार से क्यों नहीं जोड़ पाता?
(ङ) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि संसार के अन्य लोगों के समान धन-संपत्ति के संग्रह में विश्वास नहीं करता। वह तो निजी भावनाओं में ही खोया रहता है। इसलिए वह स्वयं को संसार से अलग समझता है।

(ख) ‘और जग और’ का भावार्थ यह है कि संसार के लोग कवि की भावनाओं को समझ नहीं पाते। सांसारिक प्राणी धन-संपत्ति के पीछे भागते रहते हैं, लेकिन कवि प्रेम और प्यार के संसार में खोया रहता है।

(ग) कवि तो प्रेम और प्यार में विश्वास करने वाला व्यक्ति है। इसलिए वह कल्पना द्वारा एक आदर्श समाज बनाने का प्रयास करता है परंतु जब वह प्रेम की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो वह उसे नष्ट कर देता है। इस प्रकार वह फिर से प्रेममय संसार की कल्पना करने लगता है।

(घ) कवि प्रेम और प्यार में विश्वास करने वाला व्यक्ति है, परंतु संसार के लोग धन-वैभव के संग्रह में लगे हुए हैं। इसलिए कवि और संसार के लक्ष्य अलग-अलग हैं। इसी कारण कवि स्वयं को संसार से जोड़ नहीं पाता।

(ङ) इस पद्यांश में कवि स्वयं को संसार से अलग समझता है। वह प्रेम और प्यार की भावनाओं को अलग महत्त्व देता है। इसलिए वह एक ऐसा संसार बनाना चाहता है जो प्रेम और प्यार पर आधारित हो। इसलिए कवि सांसारिक धन-वैभव को ठोकर मारकर प्रेममय संसार बनाने की कामना करता है।

[8] मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ। [पृष्ठ-6]

शब्दार्थ-निज = अपना। रोदन = रोना। राग = प्रेम। आग = जोश, आवेश। भूप = राजा। प्रासाद = महल। खंडहर = टूटा-फूटा भवन। निछावर = कुर्बान करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस पद्यांश में कवि ने अपनी विरह-वेदना को मुखरित किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि मेरे रोने में प्रेम छिपा हुआ है अर्थात् मैं अपने गीत में प्रेम के आँसू बहाता रहता हूँ। भले ही मेरी वाणी कोमल तथा शीतल है फिर भी उसमें प्रेम-विरह की आग है। मेरे गीतों में एक ऐसा जोश है जो मुझे कविता लिखने की प्रेरणा देता है। प्रेम पर तो बड़े-बड़े राजा-महाराजा अपने महलों को न्योछावर कर देते हैं, परंतु मेरा प्रेम निराशा के कारण टूटे-फूटे भवन जैसा हो गया है। फिर भी मैं अपने मन में उस मल्यवान प्रेम को लिए फिरता हूँ। मैं अपनी इस विरह-भावना से अत्यधिक प्रेम करता

विशेष-

  1. इसमें कवि ने अपनी विरह-वेदना को मुखरित किया है तथा साथ ही स्पष्ट किया है कि उसकी वाणी कोमल तथा शीतल है, परंतु उसमें विरहाग्नि छिपी हुई है। कवि ने अपने विरह जनित प्रेम को खंडहर बताकर अपनी निराशा को व्यक्त किया
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव है।
  5. माधुर्य गुण है तथा वियोग-शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।
  6. संपूर्ण पद्यांश में संगीतात्मकता का समावेश है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि अपने ‘रोदन में राग को क्यों लिए फिरता है?
(ख) ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) राजाओं के प्रासाद किस पर न्यौछावर होते हैं?
(घ) कवि के अनुसार खंडहर का भाव क्या है?
(ङ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि के स्वर में निराशा और व्यथा है। लेकिन कवि के इस रुदन में सच्चे प्रेम की भावना है। वह वियोग जनित वेदना को इसलिए अपने हृदय में लिए हुए है, क्योंकि वह अपने प्रेम को भुला नहीं सकता।

(ख) विरह-वेदना के कारण कवि का स्वर कोमल तथा शीतल है, परंतु उसमें अपने प्रिय को न पा सकने की बेचैनी भी प्रबल है। यहाँ शीतलता और अग्नि का संयोग अद्भुत है। कवि अपनी विरहाग्नि को अपने गीतों में छिपाए हुए है। बडे राजा भी प्रेम के लिए अपना सब कछ त्याग देते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी प्रिया को पाने के लिए राजगद्दी भी छोड़ देते हैं और एक सामान्य व्यक्ति के समान जीवन व्यतीत करने लगते हैं।

(घ) जिस प्रकार महल टूटकर खंडहर हो जाता है, उसी प्रकार कवि के प्रेम का महल भी टूट चुका है, अब उसके हृदय में केवल उसकी प्रिया की यादें ही बसी हैं जिसकी तुलना कवि खंडहर के साथ करता है।

(ङ) कवि ने अपने कोमल गीतों द्वारा अपनी विरह वेदना को व्यक्त किया है। यह वेदना अग्नि के समान कवि को गीत लिखने की प्रेरणा देती है।

[9] मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना! [पृष्ठ-6]

शब्दार्थ-फूट पड़ा = अत्यधिक आवेग से रोना। छंद बनाना = कविता लिखना। दीवाना = पागल।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस पद्यांश में कवि ने सरल शब्दों में यह समझाने का प्रयास किया है कि उसके प्रत्येक गीत में विरह-वेदना की अभिव्यक्ति हुई है।

व्याख्या कवि कहता है कि तुम मेरी कविता को गीत कहते हो। यह कोई गाना नहीं है, बल्कि मेरे हृदय का रुदन है, मेरी विरह-वेदना है। प्रेम की निराशा के कारण ही मेरी भावनाएँ अत्यधिक आवेग के साथ व्यक्त हुई हैं, परंतु तुम इसे कविता की संज्ञा देते हो। सच्चाई तो यह है कि मेरे गीतों के माध्यम से मेरा क्रंदन फूट पड़ा है। संसार मुझे कवि समझकर क्यों अपनाना चाहता है? सच्चाई तो यह है कि मैं कवि नहीं हूँ, मैं तो प्रेम का दीवाना हूँ। मेरे हृदय में प्रेम की मस्ती भरी हुई है। मैं गीतों के माध्यम से प्रेम-विरह की भावनाओं को प्रकट करता हूँ।

विशेष-

  1. इसमें कवि ने स्वीकार किया है कि उसके प्रत्येक गीत में विरह-व्यथा का रुदन है। यह कोई गीत नहीं है।
  2. कवि स्पष्ट करता है कि उसकी आवेगपूर्ण भावनाओं के कारण ही गीत की उत्पत्ति होती है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘क्यों कवि कहकर’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. इस पद्यांश पर उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव है।
  6. संबोधन शैली के प्रयोग के कारण इस पद्य में नाटकीयता तथा सजीवता उत्पन्न हो गई है।
  7. माधुर्य गुण है तथा वियोग-शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) लोग कवि के रुदन को गाना क्यों कहते हैं?
(ख) छंद बनाना और फूट पड़ना में क्या संबंध है?
(ग) कवि स्वयं को एक नया दीवाना क्यों कहता है?
(घ) संसार कवि को कवि कहकर क्यों अपनाना चाहता है?
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) भले ही कवि अपनी कविताओं के द्वारा अपनी विरह-व्यथा को व्यक्त करता है, लेकिन लोग उसकी कविता से प्यार करते हैं। इसीलिए उसे गाना कहते हैं।

(ख) जब कवि अपनी तीव्र विरह-व्यथा को काव्य में शब्दों द्वारा व्यक्त करता है तो उसे छंद बनाना कहते हैं। वस्तुतः एक उत्कृष्ट कविता में भावनाओं का आवेग अवश्य होना चाहिए तभी वह कविता पाठक को भाव-विभोर करती है।

(ग) कवि स्वयं को नया दीवाना इसलिए कहता है क्योंकि उसके हृदय में प्रेम की मस्ती है और अपने गीतों द्वारा प्रेममयी भावनाओं को व्यक्त करता है।

(घ) संसार कवि को कवि कहकर इसलिए अपनाना चाहता है क्योंकि कवि की भावनाएँ छंदोबद्ध रचना के माध्यम से व्यक्त हुई है। संसार के लोग कवि को मात्र कवि समझते हैं, परंतु कोई भी उसकी प्रेम भावनाओं को नहीं समझ पाता।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने सहज तथा स्पष्ट शब्दावली में यह स्पष्ट कर दिया है कि उसके प्रत्येक गीत के पीछे उसकी विरह-वेदना छिपी हुई है। इस विरह-वेदना के कारण ही कवि के गीत उत्पन्न हुए हैं।

[10] मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ! [पृष्ठ-6]

शब्दार्थ-मादकता = मस्ती। निःशेष = पूर्ण। जग = संसार।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस पद्यांश में कवि ने अपनी प्रेम भावना को मुखरित किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि मैं इस संसार में प्रेम के दीवानों की वेशभूषा धारण करके विचरण कर रहा हूँ। इसलिए लोग मुझे दीवाना समझते हैं। परंतु मैं अपनी दीवानगी से सबको मस्त बना देता हूँ। मेरे संपूर्ण काव्य में एक मस्ती और उल्लास है। इसीलिए मैं प्रेम और यौवन के गीत गाता हूँ। यही कारण है कि लोग मेरे गीतों को सुनकर झूम उठते हैं। प्रेम से झुक जाते हैं और मस्ती से लहराने लगते हैं। मैं अपने पाठकों को मौज और मस्ती का संदेश देना चाहता हूँ। मेरी कविता में केवल प्रेममयी भावनाओं का ही वर्णन अभिव्यक्त हुआ है।

विशेष-

  1. इसमें कवि ने स्पष्ट किया है कि वह प्रेम के कारण दीवाना हो चुका है और सभी को प्रेम की मस्ती का संदेश देना चाहता है।
  2. ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. इस पद्यांश में उमर खय्याम की रुबाइयों का प्रभाव है।
  6. ‘लिए फिरता हूँ शब्दों के प्रयोग के कारण इस पद्यांश में संगीत और मस्ती समाहित हो गई है।
  7. प्रसाद गुण है तथा शृंगार रस का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि संसार को क्या संदेश देना चाहता है?
(ख) कवि की किस बात को सुनकर संसार के लोग झूमते, झुकते और लहराने लगते हैं?
(ग) ‘मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) कवि के गीतों में मादकता क्यों है?
(ङ) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि संसार के लोगों को यह संदेश देना चाहता है कि वे सांसारिक झंझटों को त्यागकर प्रेम और मस्ती के साथ जीवन-यापन करें। इसी से उन्हें सच्चे आनंद की प्राप्ति होगी।

(ख) कवि के गीतों में प्रेम की मस्ती और मादकता है जिसे सुनकर संसार के लोग झूम उठते हैं, प्रेम से झुक जाते हैं और मस्ती में लहराने लगते हैं।

(ग) यहाँ कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह प्रेम के दीवानों के समान अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य अपनी प्रिया के प्रेम को प्राप्त करना है।

(घ) कवि प्रेम की मस्ती में आकंठ डूबा हुआ है। वह हमेशा प्रेम और यौवन के गीत गाता है। इसलिए हमेशा प्रेम और मस्ती में ही डूबा रहता है। उसे सांसारिक मोह-माया से कोई लगाव नहीं है।

(ङ) इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की मस्ती के कारण वह दीवाना बन चुका है। उसकी इसी मादकता पर संसार के लोग झूम उठते हैं और वह लोगों को इसी मस्ती का संदेश देना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

एक गीत पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! [पृष्ठ-7]

शब्दार्थ-पथ = रास्ता। मंजिल = लक्ष्य। पंथी = मुसाफिर । ढलना = समाप्त होना।

प्रसंग प्रस्तत पद्यांश हिंदी की पाठयपस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘एक गीत’ से अवतरित है। यह गीत कवि के काव्य-संग्रह ‘निशा निमंत्रण’ में संकलित है। इसके कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस पद्यांश में कवि ने प्रेम की बेचैनी का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि मुसाफिर बार-बार यह सोचता है कि कहीं उसे रास्ते में रात न हो जाए। मंजिल अब उस नहीं है। वह पास ही आने वाली है। भाव यह है कि वह अपने प्रिय को प्राप्त करने वाला है। बार-बार अपने प्रिय के बारे में सोचकर वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता है, ताकि वह अपने प्रिय से मिल सके। प्रिय-मिलन की बेचैनी के कारण उसे लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल रहा है और कभी भी छिप सकता है।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने प्रेम की बेचैनी का बड़ा ही सजीव, सूक्ष्म वर्णन किया है।
  2. प्रेमी को दिन के छिपने का डर लगा रहता है इसलिए वह जल्दी-जल्दी चलता है। इस प्रकार प्रेमी की व्यग्रता को व्यक्त किया गया है।
  3. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल, साहित्यिक और प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. कोमलकांत पदावली के कारण इस गीत में संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘थका हुआ पंथी’ किस कारण जल्दी-जल्दी चलता है?
(ग) ‘पंथी’ किस आशा से प्रेरित होकर जल्दी-जल्दी चलता है?
(घ) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। कवि को यह कथन बेचैन क्यों करता है?
(ङ) इस,पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि का नाम हरिवंशराय बच्चन कविता का नाम एक गीत

(ख) थका हुआ मुसाफिर अपने लक्ष्य को पास देखकर उसे जल्दी से प्राप्त करना चाहता है, इसीलिए वह जल्दी-जल्दी चलता है।

(ग) पंथी के मन में यह आशा उत्पन्न हो चुकी है कि उसकी मंजिल पास आ चुकी है इसलिए अब जल्दी से उसका प्रिय से मिलन होगा। इसलिए वह जल्दी-जल्दी चलता है।

(घ) कवि अपनी मंजिल को पाने के लिए बेचैन है। वह चाहता है कि दिन छिपने से पहले अपने प्रिय को प्राप्त कर ले, लेकिन दिन जल्दी-जल्दी अस्त होने जा रहा है इसलिए वह बेचैन हो उठता है।

(ङ) कवि ने यह स्पष्ट किया है कि लक्ष्य को पाने वाला व्यक्ति हमेशा व्यग्र रहता है। उसे लगता है कि समय जल्दी से बीतता जा रहा है। इसलिए वह बड़ी तीव्र गति से अपने काम को पूरा करना चाहता है। इस प्रकार के व्यक्ति का मन बड़ा बेचैन हो उठता है।

[2] बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! [पृष्ठ-7]

शब्दार्थ-प्रत्याशा = आशा। नीड़ = घोंसला। झाँकना = बाहर देखना। पर = पंख। चंचलता = तीव्रता। .

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘एक गीत’ से अवतरित है। यह गीत कवि के काव्य-संग्रह ‘निशा निमंत्रण’ में संकलित है। इसके कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इसमें कवि ने चिड़िया के बिंब द्वारा अपनी मन की व्याकुलता को व्यक्त किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि जब चिड़ियाँ आकाश में उड़ती हुई अपने घोंसलों में लौटती हैं तो उनके मन में बार-बार यह विचार उठता है कि उनके बच्चे बेचैन होकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। वह बार-बार घोंसलों से मुँह बाहर निकालकर झाँक रहे होंगे। चिड़ियों को अपने बच्चों की चिंता सताने लगती है। इसलिए वे तीव्र गति से अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए घोंसलों की तरफ बढ़ने लगती हैं। उनके मन में यह भय सताता रहता है कि कहीं दिन न छिप जाए। इसलिए वह तीव्र गति से उड़ने लगती है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने चिड़िया के बिंब द्वारा प्रेमी के हृदय की बेचैनी को व्यक्त किया है।
  2. जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल, साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. इस पद्यांश का बिंब-विधान तथा चित्र-विधान दोनों ही आकर्षक बन पड़े हैं।
  6. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य भाव का सुन्दर परिपाक हुआ है।
  7. संपूर्ण पद्य में संगीतात्मकता है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) बच्चे किस आशा से नीड़ों से बाहर झाँक रहे होंगे?
(ख) चिड़ियों के घोंसलों द्वारा किस दृश्य की कल्पना की गई है?
(ग) चिड़ियों के पंखों में चंचलता क्यों उत्पन्न हो जाती है?
(घ) चिड़ियों को क्यों लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल रहा है?
(ङ) इस कविता द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
(क) चिड़ियों के बच्चे इसलिए घोंसलों से बाहर झांक रहे हैं, क्योंकि वे माँ के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि माँ लौटकर उन्हें चुग्गा देगी। इसलिए वे माँ की ममता के लिए बेचैन हैं।

(ख) चिड़ियों के घोंसलों द्वारा उस दृश्य की कल्पना की है जब चिड़ियों के बच्चे अपने माँ के आने की प्रतीक्षा के कारण घोंसलों से बाहर झाँकने लगते हैं। एक ओर उनके मन में माँ की ममता होती है और दूसरी ओर वे भूखे होते हैं।

(ग) चिड़िया अपने बच्चों से शीघ्र मिलना चाहती है। बच्चों की ममता उन्हें पुकारती है। वे शीघ्र ही बच्चों को भोजन व सुरक्षा देना चाहती है। इसीलिए उनके पंखों में चंचलता उत्पन्न हो गई है।

(घ) चिड़ियों के मन में बेचैनी है। वे जल्दी-जल्दी अपने शावकों के पास पहुँच जाना चाहती हैं। परंतु उनकी मंजिल दूर है। इसी बेचैनी के कारण उन्हें लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल रहा है।

(ङ) कवि ने माँ की ममता का सजीव चित्रण किया है। वात्सल्य और प्रेम के कारण ही शावकों का मन बेचैन हो उठता है। चिड़ियों के माध्यम से कवि ने मानवीय ममता तथा वात्सल्य का सजीव वर्णन किया है।

[3] मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

शब्दार्थ-विकल = व्याकुल। हित = के लिए। चंचल = बेचैन, क्रियाशील। शिथिल = ढीला करना। पद = पाँव। उर = हृदय। विह्वलता = आतुरता का भाव।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘एक गीत’ से अवतरित है। यह गीत कवि के काव्य-संग्रह ‘निशा निमंत्रण’ में संकलित है। इसके कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस पद्यांश में कवि ने अपनी हृदयगत निराशा, उदासी तथा प्रेम की असफलता का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो मुझसे मिलने के लिए बेचैन हो। इसलिए मेरा मन किसी के लिए भी चंचल नहीं होता। आशय यह है कि मेरे मन में किसी के प्रति प्रेम की भावना नहीं है। यह स्थिति मेरे कदमों को शिथिल कर देती है। प्रेम के अभाव के कारण मैं ढीला पड़ जाता हूँ और मेरे हृदय में निराशा तथा उदासी की भावना उत्पन्न होकर मुझे व्याकुल कर देती है। फिर भी मैं प्रेम की तरंग में खो जाता हूँ और दिन जल्दी-जल्दी ढल जाता है।

विशेष-

  1. इसमें कवि ने प्रेम के क्षेत्र में असफल होने के कारण अपने हृदयगत निराशा और उदासी का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है तथा प्रथम दो पंक्तियों में प्रश्नालंकार है।
  3. सहज, सरल, साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित व सटीक है।
  5. प्रसाद गुण है तथा वियोग-शृंगार का परिपाक हुआ है।
  6. संपूर्ण पद्य में संगीतात्मकता का समावेश है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि के मन में यह प्रश्न क्यों उठता है कि उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल है?
(ख) कवि किसके लिए चंचलता को त्याग देता है?
(ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
(घ) कवि के मन में कैसी विह्वलता उत्पन्न होती है?
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
(क) कवि अब अकेला रह गया है, क्योंकि उसका प्रिय उसे छोड़कर चला गया है। इसीलिए वह सोचता है कि उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं है।

(ख) कवि के मन में अब अपने प्रिय को मिलने की बेचैनी नहीं है। इसलिए वह चंचलता को त्याग देता है।

(ग) कवि अब समझ चुका है कि जिसे वह प्रेम करता था, अब वह उसे मिलने वाला नहीं है। इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं और वह तटस्थ भाव से चलने लगता है।

(घ) कवि के मन में यह विह्वलता उत्पन्न होती है कि वह इस प्रेममय संसार में अकेला रह गया है। कोई भी व्यक्ति अब उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा, इसलिए कवि निराश व उदास है।

(ङ) कवि ने यह स्वीकार किया है कि उसकी प्रिया उसे छोड़कर चली गई है। अतः वह अब अकेला रह गया है। इसलिए इस पद्यांश में कवि की वियोगजन्य पीड़ा का मार्मिक वर्णन हुआ है।

आत्म-परिचय, एक गीत Summary in Hindi

आत्म-परिचय, एक गीत कवि-परिचय

प्रश्न-
श्री हरिवंश राय बच्चन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री हरिवंश राय बच्चन का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री हरिवंश राय बच्चन का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1907 में इलाहाबाद (प्रयाग) के कटरा मुहल्ले के एक कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम प्रताप नारायण था जो अपने मधुर स्वभाव के कारण सभी लोगों में प्रिय थे। बच्चन जी की आरंभिक शिक्षा काशी में हुई। सन् 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य करने लगे। वे आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से भी संबद्ध रहे। भारत सरकार ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनको विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया। सन् 1966 में बच्चन जी राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

बच्चन जी को अपने आरंभिक जीवन में अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा। उनकी आर्थिक स्थिति सुखद नहीं थी। वे अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। तभी उनकी पत्नी श्यामा असाध्य रोग से ग्रस्त होकर मृत्यु का शिकार हो गई। पत्नी की मृत्यु से कवि को गहरा आघात लगा। जिससे उनके जीवन में केवल निराशा एवं दुख छा गया। सन् 1942 में कवि ने तेजी बच्चन से दूसरा विवाह किया। तेजी बच्चन के आने से उनके जीवन का भाग्योदय हुआ और वे निरंतर प्रगति करते चले गए। भारत सरकार ने बच्चन जी को ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया।

2. प्रमुख रचनाएँ बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-‘मधुशाला’ (सन् 1935), ‘मधुबाला’ (सन् 1938), ‘मधुकलश’ (सन् 1938), ‘निशा निमंत्रण’, ‘आकुल-अंतर’, ‘एकांत संगीत’, ‘प्रणय पत्रिका’, ‘सतरंगिणी’, ‘दो चट्टानें’, ‘मिलनयामिनी’, ‘आरती’ और ‘अंगारे’, ‘नये पुराने झरोखे’, ‘टूटी-फूटी कड़ियाँ’ आदि। उनकी कुछ आत्मकथामूलक रचनाओं से उनके संपूर्ण जीवन का विशद वर्णन मिलता है। ये रचनाएँ हैं-‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’, ‘दशद्वार से सोपान तक।
सन् 2003, में मुंबई में इस महान् साहित्यकार का निधन हो गया।

3. काव्यगत विशेषताएँ उत्तर छायावादी कवियों में बच्चन जी को विशेष प्रसिद्धि मिली। वे हिंदी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने उमर खय्याम की रुबाइयों का अत्यंत सुन्दर अनुवाद किया था। ‘मधुशाला’ बच्चन जी की एक उल्लेखनीय रचना है, जिसमें प्रेम की मस्ती देखी जा सकती है। ‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’ तथा ‘मधुकलश’ उनकी कीर्ति की आधार-स्तंभ काव्य-रचनाएँ हैं। उनके काव्य में प्रेम भावना, मदमस्त जीवन तथा भाग्यवाद का समर्थन देखने को मिलता है। उनके काव्य की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) व्यक्तिनिष्ठता श्री हरिवंश राय बच्चन आधुनिक हिंदी काव्य की वैयक्तिक काव्यधारा के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनकी विचारधारा व्यक्तिनिष्ठ है। उन्होंने वैयक्तिक यथार्थ की भूमिका पर ही जीवन एवं जगत को देखने व समझने का प्रयास किया है। वे समाज-हित के साथ-साथ व्यक्ति-हित को भूलने के पक्ष में नहीं हैं। कहीं-कहीं उनके साहित्य में वैयक्तिकता के नाम पर पलायनवादिता का स्वर भी सुनाई पड़ता है।

(ii) प्रेम,और सौंदर्य-वस्तुतः हरिवंश राय बच्चन प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं। उनके अन्य साहित्य में भी उनकी यह भावना देखी जा सकती है। उनके साहित्य में प्रेम और सौंदर्य के साथ जीवन के प्रति पूर्ण आस्था अभिव्यक्त हुई है। उनकी रचनाओं में गहन अनुभूतियों को भी सर्वत्र देखा जा सकता है
“इस पार प्रिये, तुम हो, मधु है,
उस पार न जाने क्या होगा।”

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत

(iii) मानवतावाद-बच्चन जी की रचनाओं में मानवतावादी भावना भी मुखरित हुई है। उनकी रचनाओं में मानव मात्र के प्रति प्रेम का भाव सर्वत्र व्याप्त है। वे मानव की करता को देखकर व्यथित हो उठते हैं।

(iv) सामाजिक यथार्थ बच्चन जी की गद्य रचनाओं में सामाजिक यथार्थ का चित्रण अत्यंत सजीवता से हुआ है। सामाजिक यथार्थ के साथ-साथ उनकी रचनाओं की प्रक्रिया भी अनायास ही मुखरित हो उठी है। उनकी आत्मकथात्मक रचनाओं में उनके संघर्षशील जीवन के दर्शन होते हैं।

(v) आशा और सूजन का स्वर-बच्चन जी की कविताओं में केवल प्रणय और निराशा ही नहीं, बल्कि आशा और सृजन का स्वर भी सुनाई पड़ता है। ‘पथ की पहचान’ नामक कविता में कवि ने मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। वे पाठकों को सृजन की कल्पना करने तथा यथार्थ को स्वीकार करने का संदेश भी देते हैं। ‘बंगाल का अकाल’ शीर्षक कविता तथा ‘परवर्ती’ काव्य में कवि ने जन-जीवन को प्रतिस्थापित किया है और नए संदर्भो को प्रस्तुत किया है। एक स्थल पर कवि कहता है
“किंतु जग के पथ पर यदि
स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो,
सत्य का भी ज्ञान कर लो।”

4. भाषा, छंद एवं अलंकार-बच्चन जी ने अपनी काव्य रचनाओं में आडंबरहीन भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में यदि प्रवाह है, तो चित्र विधान की शक्ति तथा प्रतीक शब्द योजना भी है। वे हमेशा सीधे ढंग से अपनी बात कहते हैं। वे भाषा में अभिधा-शक्ति का प्रयोग करते हुए अपने मन के भाव पाठकों तक पहुँचाते हैं। गेय होने के कारण उनकी रचनाओं को गीत के रूप में मान्यता प्राप्त है। यही कारण है कि आधुनिक गीतकारों में उनका प्रमुख स्थान है।
बच्चन जी की कविताओं में अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप में हुआ है। अनुप्रास, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि उनके प्रिय अलंकार हैं। उदाहरण के लिए
अनुप्रास-“है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे।”
रूपक-“ये उदय होते, लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में।”
उपमा-“घूमती नूरमहल थी एक दिवस बन जिन महलों की नूर।
खड़े हैं खंडहर से वे आज किसी दिन हो जाएँगे धूर।”
मानवीकरण-“रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता।”
बच्चन जी के कवि-रूप पर विचार करते हुए डॉ० मत्येंद्र नाथ शुक्ल ने अपनी पुस्तक ‘कविता का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में लिखा है
“छायावादी संस्कारों से अलग हटकर बच्चन ने कविता को नितांत नवीन संदर्भ प्रदान किया है। इनकी रचना-यात्रा में व्यष्टि-समष्टि, सूक्ष्म-स्थूल, सामान्य-विशेष तथा विभिन्न सामाजिक रूपों का सफल चित्रण हुआ है।”

आत्म-परिचय कविता का सार

प्रश्न-
श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्मपरिचय’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘आत्मपरिचय’ श्री हरिवंश राय बच्चन की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें कवि ने अपने प्रेममय व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। कवि अपने कर्त्तव्यों के प्रति सदा सजग है। वह जीवन के कष्टों तथा बाधाओं चाहता है। प्रेम से उसका हृदय झंकृत है। वह हमेशा अपनी प्रिया के स्नेह में लीन रहता है। संसार के अन्य लोग हमेशा अपनी समस्याओं में उलझे रहते हैं, परंतु कवि का हृदय प्रेम से सदा सराबोर रहता है। वह संसार की कभी चिंता नहीं करता। सांसारिक जीवन के बोझ को ढोता हुआ भी वह जीवन में प्यार को अधिक महत्त्व प्रदान करता है। कवि के हृदय में नए-नए मनोभाव हैं। ये मनोभाव उसके लिए उपहारस्वरूप हैं। यह अधूरा संसार कवि को अच्छा नहीं लगता। इसलिए वह सपनों के संसार मे डूबा रहता है। सुख-दुख दोनों कवि के लिए एक समान हैं। वह अपने प्रेम की मस्ती और उमंग से जीवनयापन करना ही ठीक समझता है और इस प्रकार प्रेम रूपी नाव के द्वारा संसार की मुसीबतों को पार करता है। कवि के मन में सदा यौवन का पागलपन सवार रहता है। इसीलिए वह अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए बेचैन रहता है। प्रिया का वियोग कवि को पीड़ित करता है, लेकिन वह संसार के सामने हँसता रहता है। संसार के अनेक लोगों ने सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य को जान नहीं पाया। लोग संसार के भौतिक साधनों का संग्रह करने के चक्कर में उलझकर रह गए हैं। परंतु कवि जान चुका है कि इससे दूर रहने में ही भलाई है।

संसार जिसे हर रोज़ जोड़ने का प्रयास करता है, कवि उसे हर कदम पर ठुकराता हुआ चलता है। वह तो हमेशा भावनाओं के संसार में जीना चाहता है। कवि को अपने रोने में भी संगीत सुनाई देता है, उसकी शीतल वाणी में विद्रोह की आग है। उसका प्रेम भले ही खंडहर के समान टूटा-फूटा है, पर वह उस प्रेम पर राजाओं के महलों को भी न्योछावर करना चाहता है। अंत में कवि कहता है कि उसका रुदन ही गीत बन गया है। कवि ने खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त की, पर लोग उसे छंद की संज्ञा देते हैं। सचमुच कवि एक दीवाना है, उसके गीतों में एक मस्ती है, उसके गीतों को सुनकर संसार के लोग झूम उठते हैं। इसलिए कवि सबके लिए प्रेम की मस्ती का संदेश लिए गीत लिखता है।

एक गीत कविता का सार

प्रश्न-
‘एक गीत’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत गीत ‘एक गीत’ ‘बच्चन जी’ का एक प्रसिद्ध प्रेमगीत है जो कि ‘निशा निमंत्रण’ में संकलित है। इसमें कवि ने अपने प्रेम की व्याकुलता का वर्णन किया है। कवि अपने प्रियजन से मिलने के लिए अत्यधिक बेचैन है। वह तीव्र गति से चलकर अपने प्रियजन तक पहुँच जाना चाहता है। उसे लगता है कि अब उसका लक्ष्य दूर नहीं है। कवि चिड़ियों का रूपक बाँधते हुए कहता है कि चिड़ियों के बच्चे अपने माता-पिता की प्रतीक्षा कर रहे होंगे और वह अपने घोंसलों से बाहर झांककर देख रहे होंगे। यह सोच चिड़िया के पंखों में चंचलता उत्पन्न कर देती है। परन्तु कवि सोचता है कि इस संसार में कोई भी उसका अपना नहीं है जो उसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहा है। इसलिए उसके कदम शिथिल पड़ जाते हैं। अंत में कवि स्पष्ट करता है कि प्रेम के कारण मनुष्य के जीवन में गतिशीलता का संचरण होता है।

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HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

Haryana State Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

HBSE 12th Class Physical Education शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक पुष्टि के घटक (अंग) कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
शारीरिक पुष्टि (Physical Fitness) के प्रमुख घटकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि के विभिन्न घटक या अंग निम्नलिखित हैं
1. गति (Speed):
गति से अभिप्राय मनुष्य की उस योग्यता से है जो किसी भी स्थिति में कम-से-कम समय लेकर अपने कार्य को पूरा करती है। गति दूसरे शारीरिक योग्यता के अंगों; जैसे शक्ति तथा सहनशीलता से भिन्न है। यह नाड़ी प्रणाली पर आधारित है। गति को साधारणतया लगभग 20 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता, क्योंकि गति बहुत सारी बातों पर आधारित होती है। भिन्न-भिन्न खेलों में गति भिन्न-भिन्न देखने को मिलती है। सभी खेल तेज तथा विस्फोटक मूवमैंट पर आधारित होते हैं।

2. शक्ति (Strength):
शक्ति शारीरिक पुष्टि का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। शक्ति हमारे शरीर की माँसपेशियों द्वारा उत्पन्न की गई वह ऊर्जा है जिसके द्वारा हम कुछ कार्य कर सकते हैं। शक्ति को मापने के लिए पौंड या डाइन का प्रयोग किया जाता है। शक्ति को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जाता है-(1) स्थिर शक्ति, (2) गतिशील शक्ति। स्थिर शक्ति को ‘आइसोमीट्रिक शक्ति’ के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर यह शक्ति खेलकूद में प्रयोग नहीं की जाती, परन्तु वजन उठाने में इसका प्रयोग थोड़ी मात्रा में किया जाता है। गतिशील शक्ति को ‘आइसोटोनिक शक्ति’ के नाम से भी जाना जाता है। खींचने वाली क्रियाओं में इसका अधिक प्रयोग किया जाता है।

3. सहनशीलता (Endurance):
सहनशीलता शक्ति की तरह शारीरिक पुष्टि का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। सहनशीलता एक प्रतिरोध योग्यता है जो थकावट के विरुद्ध होती है। सामान्य शब्दों में, यह खिलाड़ी की वह योग्यता है, जिसके कारण खिलाड़ी बिना किसी थकावट के क्रिया करता है। सहनशीलता प्रत्येक खेल में अच्छी कुशलता के लिए एक महत्त्वपूर्ण योग्यता है। एक अच्छी सहनशीलता वाला खिलाड़ी अधिक प्रशिक्षण का भार सहन करके अपनी कुशलता बढ़ा सकता है। कूपर और पीटर जैसे विद्वानों का विचार है कि सहनशीलता हृदय की बीमारियों और सामान्य स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है।

4. लचीलापन/लचक (Flexibility):
व्यक्ति के शरीर के जोड़ों की गतिक्षमता को लचक कहते हैं। अधिक लचक वाला व्यक्ति बिना किसी कष्ट के अधिक देर तक कार्य कर सकता है। अधिक लचक वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व भी अच्छा होता है। लचकदार शरीर वाले व्यक्ति जब कोई गतिविधि करते हैं तो उनकी मांसपेशियों में कम तनाव उत्पन्न होता है जिस कारण ऊर्जा या शक्ति का बचाव होता है।

5. स्फूर्ति/चुस्ती (Agility):
खिलाड़ी जब अपने शरीर अथवा शरीर के किसी हिस्से को हवा में तेजी के साथ और सही ढंग से उसकी दिशा को बदलता है, तो उसको स्फूर्ति कहा जाता है। इसमें शरीर की बड़ी माँसपेशियाँ भाग लेती हैं और बड़ी तेजी व ठीक ढंग से तालमेल करती हैं। इसको पूरा करने के लिए अनुभव, तकनीक और कौशल की बहुत आवश्यकता होती है। यह विशेषतौर पर हर्डल्ज, कुश्ती, ऊँची छलाँग, फुटबॉल और बास्केटबॉल जैसी खेलों में बहुत महत्त्वपूर्ण है।

6. तालमेल (Co-ordination):
शारीरिक अंगों के आपस में मिलकर कार्य करने की शक्ति को तालमेल कहते हैं। मानवीय विकास शक्ति और वृद्धि के तालमेल के बिना नहीं हो सकता। तालमेल से शरीर का प्रत्येक अंग मिल-जुलकर कार्य करता है। यदि मनुष्य के सारे अंग ठीक ढंग से कार्य करते हों परंतु दिमाग कार्य न करता हो तो शरीर के बाकी सारे अंग बेकार हो जाते हैं। इसलिए दिमाग, शरीर और स्थिति तालमेल की माँग करते हैं। तालमेल के बिना शारीरिक पुष्टि विकसित नहीं हो सकती।

7. संतुलन (Balance):
एक ही स्थिति में अधिक समय तक रहने की शक्ति को संतुलन कहते हैं। यह शारीरिक पुष्टि के लिए बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए, जब मनुष्य एक टाँग के बल पर कुछ समय के लिए खड़ा होने में सक्षम हो तो इसको उसका संतुलन कहेंगे। हैंड-स्टैंड और शीर्षासन भी ऐसी क्रियाएँ हैं जो संतुलन की उदाहरण हैं। शारीरिक शिक्षा में ऐसी बहुत सारी क्रियाएँ हैं जो संतुलन के लिए काफी लाभकारी होती हैं। शारीरिक पुष्टि के लिए संतुलन का होना बहुत आवश्यक है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

प्रश्न 2.
शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता को परिभाषित कीजिए। शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
अथवा
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता से क्या अभिप्राय है? इनके महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
अथवा
शारीरिक पुष्टि से क्या तात्पर्य है? दैनिक जीवन में शारीरिक पुष्टि के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि का अर्थ (Meaning of Physical Fitness):
आज के यांत्रिक युग में प्रत्येक मनुष्य अपनी शारीरिक पुष्टि बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है। यह मनुष्य की वह शक्ति तथा कार्य करने की योग्यता है, जिसको वह बिना किसी बाधा के आसानी से थोड़ी-सी शक्ति का प्रयोग करके पूरा कर लेता है। शारीरिक पुष्टि या योग्यता का अर्थ बहुत व्यापक है, इसलिए इसे परिभाषित करना बहुत कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह हमें अपने शरीर को सही ढंग से रखने और अधिक देर तक मेहनत करने की क्षमता प्रदान करती है।

1..डॉ०ए०के० उप्पल (Dr.A.K. Uppal) के अनुसार, “शारीरिक पुष्टि वह क्षमता है जिसके द्वारा शारीरिक क्रियाओं के विभिन्न रूपों को बिना थकावट के तर्कपूर्ण ढंग से किया जा सके। इसके अंतर्गत व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा नीरोगता के महत्त्वपूर्ण गुण सम्मिलित होते हैं।”

2. डेविड लैम्ब (David Lamb) के अनुसार, “शारीरिक पुष्टि को उस कुशलता के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके द्वारा जीवन की वर्तमान तथा सशक्त शारीरिक चुनौतियों का सफलता के साथ मुकाबला किया जा सके।”

3. क्यूरेटन (Cureton) के अनुसार, “शारीरिक पुष्टि से अभिप्राय व्यक्ति को अपने शरीर का ठीक ढंग से प्रयोग करने और अधिक देर तक परिश्रम करने की क्षमता से है।”

सुयोग्यता का अर्थ (Meaning of Wellness):
सुयोग्यता एक ऐसी अवस्था है, जो हमारे दैनिक जीवन में प्रत्येक कार्य को प्रभावकारी ढंग से करने में सहायक होती है तथा शेष बची हुई शक्ति से हम खाली समय में मनोरंजन कर सकते हैं। सुयोग्यता क्रोध को सहन करने और तनाव को दूर करने में सहायक होती है। यह एक अच्छे स्वास्थ्य का चिह्न है। यह प्रत्येक मनुष्य में भिन्न-भिन्न होती है, क्योंकि इस पर पैतृक आदतों, व्यायाम, आयु तथा लिंग का प्रभाव पड़ता है। अतः सुयोग्यता व्यक्ति की वह क्षमता या योग्यता है जिसके द्वारा वह एक उत्तम एवं संतुलित जीवन व्यतीत करता है। इसमें मन, शरीर एवं आत्मा का संतुलन शामिल होता है। इसलिए । यह शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की दशा या विशेषता होती है।

शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता का महत्त्व (Importance of Physical Fitness and Wellness):
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता का महत्त्व निम्नलिखित है-
(1) शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता शरीर की विभिन्न प्रणालियों की कार्यक्षमता में सुधार करती हैं। इनसे व्यक्ति कीकार्यकुशलता एवं क्षमता में वृद्धि होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति पहले की अपेक्षा अधिक कार्य करने में सक्षम हो जाता है।
(2) ये वृद्ध होने की प्रक्रिया को धीमा करती हैं और मनुष्य को दीर्घायु बनाती हैं।
(3) ये रोग निवारक क्षमता को बढ़ाती हैं और शरीर के सुचारु विकास में मदद करती हैं।
(4) ये व्यक्ति का आसन (Posture) ठीक करती हैं।
(5) ये मानसिक स्वास्थ्य तथा चेतना में सुधार करती हैं और मानसिक क्षमता में वृद्धि करती हैं।
(6) ये तनाव व दबाव को दूर करने में सहायक होती हैं।
(7) ये हृदय और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों को दूर करती हैं।
(8) ये कार्य की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में वृद्धि करती हैं।
(9) ये व्यक्ति को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने हेतु प्रेरित करती हैं।
(10) ये शरीर के आकार एवं बनावट में सुधार करती हैं तथा शरीर को मोटापे या स्थूलता से बचाती हैं।

प्रश्न 3.
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न तत्त्वों या कारकों का वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक सुयोग्यता व पुष्टि को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ। शारीरिक सुयोग्यता व पुष्टि में इनका क्या योगदान है?
अथवा
शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता को प्रभावित करने वाले कारक या तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. आयु (Age):
आयु शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता पर सबसे अधिक प्रभाव डालती है। जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है वैसे-वैसे उसकी शारीरिक क्रियाएँ कम हो जाती हैं जिसके कारण उसको कई प्रकार की बीमारियाँ घेर लेती हैं। शारीरिक क्रियाएँ कम होने से व्यक्ति की शारीरिक योग्यता प्रभावित होती है। जो व्यक्ति अपनी शारीरिक क्रियाओं को जारी रखते हैं वे स्वस्थ रहते हैं और उन पर बुढ़ापे के चिह्न कम नजर आते हैं। बच्चों की शारीरिक योग्यता पर कभी भी बड़ी आयु की शारीरिक योग्यताओं के व्यायाम नहीं थोपने चाहिएँ। प्रशिक्षण कार्यक्रम आयु-वर्गों के अनुसार ही तैयार करना चाहिए।

2.शारीरिक बनावट (Body Structure):
खिलाड़ियों का खेल के लिए चुनाव उनकी शारीरिक बनावट से किया जा सकता है। दौड़ों के लिए पतले शरीर का होना जरूरी है और फील्ड इवेंट्स में शरीर शक्तिशाली होना चाहिए। आजकल शारीरिक बनावट शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

3. लिंग-भेद (Gender Difference):
लिंग-भेद भी शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता को प्रभावित करता है। किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों में शारीरिक विभिन्नताएँ आ जाती हैं; जैसे लड़कियों को माहवारी का आना, आवाज का मधुर होना आदि तथा लड़कों में दाड़ी-मूंछ आना, आवाज का भारी होना आदि। ये विभिन्नताएँ लड़के और लड़कियों की शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता को प्रभावित करती हैं। इन विभिन्नताओं के आधार पर ही दोनों वर्गों के लिए शारीरिक योग्यता के कार्यक्रम तैयार करने चाहिएँ।

4. अच्छा आसन (Good Posture):
अच्छे आसन वाला व्यक्ति जीवन में हर प्रकार से प्रशंसा का पात्र होता है। अच्छा आसन शारीरिक योग्यता को बढ़ाता है और व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारता है।

5. वातावरण (Environment):
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता पर वातावरण का काफी प्रभाव पड़ता है। गर्मियों में शारीरिक योग्यता का कार्यक्रम सर्दियों के कार्यक्रम से अलग होना चाहिए। गर्मियों के मौसम में व्यायाम प्रात:काल अथवा सायंकाल करने चाहिएँ। गर्मियों में व्यायाम करते समय कपड़े खुले और हल्के पहनने चाहिएँ। सर्दियों के मौसम में शरीर को सर्दी से बचाकर रखना चाहिए।

6. उचित अनुकूलन (Proper Conditioning):
उचित अनुकूलन से शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता में वृद्धि होती है। अनुकूलन का शारीरिक योग्यता के साथ सीधा सम्पर्क है। यदि अनुकूलन बढ़ता है तो खेलकूद में भी कार्यकुशलता बढ़ती है। इसलिए खेलों में अनुकूलन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

7. संतुलित एवं पौष्टिक आहार (Balanced and Nutritive Food):
संतुलित एवं पौष्टिक आहार से हमारी शारीरिक संरचना अच्छी रहती है। इससे न केवल खेलकूद के क्षेत्र में, बल्कि आम दैनिक जीवन में भी हमारी कार्यकुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। संतुलित व पौष्टिक आहार से हमारा तात्पर्य उन पोषक तत्त्वों; जैसे वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज-लवणों, विटामिनों एवं जल आदि से है जो आहार में उचित मात्रा में उपस्थित होते हैं तथा शरीर का संतुलित विकास करते हैं। मोटापे के कारण व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है। आजकल मोटापा एक गंभीर समस्या की भाँति फैल रहा है जिसको संतुलित आहार लेने से तथा उचित व्यायाम व आसन करने से नियंत्रित किया जा सकता है।

8. खेलकूद (Sports & Games):
खेलकूद शारीरिक पुष्टि के अंगों; जैसे शक्ति, गति, सहनशीलता, लचक और तालमेल संबंधी योग्यताओं को विकसित करके स्वस्थता की वृद्धि में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं । जब शारीरिक योग्यता से अंगों का विकास होता है तो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ जाती है।

9. धूम्रपान न करना (No Smoking);
धूम्रपान फेफड़ों के लिए हानिकारक है। इससे हृदय की बीमारियाँ भी हो जाती हैं। उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) भी रहने लगता है। व्यक्ति की कार्यक्षमता धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है। धूम्रपान करने से मुँह, गले व आहारनली में कैंसर हो जाता है। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति कार्य को लंबी अवधि तक नहीं कर सकते। इसलिए शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता को बनाए रखने के लिए धूम्रपान नहीं करना चाहिए।

10. व्यायाम और प्रशिक्षण (Exercise and Training):
प्रात:काल और सायंकाल का समय व्यायाम और प्रशिक्षण के लिए बहुत लाभदायक होता है। प्रात:काल के व्यायाम शरीर को चुस्त और लचकदार बनाते हैं । सायंकाल के व्यायाम व्यक्ति को पूरे दिन के मानसिक तनाव और शारीरिक थकावट से छुटकारा दिलाते हैं। व्यायाम और प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाते समय अभ्यास सुविधाओं और गर्मी व सर्दी जैसे मौसम का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

11. जिंदादिली व मनोरंजन (Joyfulness and Recreation):
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता को बढ़ाने के लिए व्यक्ति को जिंदादिली व मनोरंजन के साथ जीना चाहिए। खेलकूद के द्वारा मनोरंजन व आमोद-प्रमोद भी होता है तथा व्यक्ति में जिंदादिली रहती है।

12. तनाव एवं दबाव (Tension and Stress):
अधिक तनाव व दबाव व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इस कारण उसे अनेक मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं। तनाव एवं दबाव के कारण व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता भी कम होती है। खेलकूद से तनाव व दबाव को कम किया जा सकता है।

13. अन्य कारक (Other Factors):
शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता को अन्य कारक; जैसे नशीले पदार्थ, रहन-सहन का स्तर, वंशानुक्रम तथा आराम आदि भी प्रभावित करते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

प्रश्न 4.
शारीरिक पुष्टि को बढ़ाने के लिए किन सिद्धांतों को अपनाना चाहिए?
अथवा
शारीरिक पुष्टि के विकास के प्रमुख सिद्धांत कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
शारीरिक पुष्टि के विकास की मुख्य विधियों या सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
आप शारीरिक पुष्टि का विकास कैसे करेंगे?
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि के विकास के प्रमुख सिद्धांत या विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. गर्माना (Warming up):
शरीर के लिए गर्माना आवश्यक है क्योंकि गर्माना खिलाड़ी को प्रशिक्षण के लिए तैयार करता है। गर्माने से काफी हद तक खेल चोटों से बचा जा सकता है। इसलिए प्रशिक्षण व खेल प्रतियोगिताओं से पहले गर्माने की प्रक्रिया की जाती है। गर्माना के आरंभ में धीमी गति से दौड़ना चाहिए। उसके बाद खिंचाव वाले व्यायाम करने चाहिएँ। गर्माना से नाड़ी की गति तथा शरीर का तापमान बढ़ जाता है।

2. नियमितता का सिद्धांत (Principle of Regularity):
शारीरिक पुष्टि के विकास हेतु पूरा कार्यक्रम नियमित रूप से करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन अभ्यास नहीं करता तो उसके शरीर का आकार ठीक नहीं होगा और उसकी शारीरिक पुष्टि में भी धीरे-धीरे कमी हो जाएगी। इसलिए शारीरिक पुष्टि के लिए व्यायाम नियमित रूप से करना अति आवश्यक है।

3. अतिभार का सिद्धांत (Principle of Overload):
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए अतिभार के सिद्धांत को अपनाना अति आवश्यक है। अतिभार के सिद्धांत को अपनाने के लिए लंबी दूरी के धावक धीरे-धीरे दूरी में बढ़ोतरी करते रहते हैं। अतिभार के लिए यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक अनुकूलन (Adaptation) न हो जाए, तब तक अतिभार नहीं करना चाहिए।

4. लिम्बरिंग या कूलिंग डाउन (Limbering or Cooling Down):
लिम्बरिंग या कूलिंग डाउन भी गर्माना की तरह ही शरीर के लिए आवश्यक क्रिया है। किसी भी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण के बाद यह क्रिया करनी चाहिए।

5. उचित आराम (Proper Rest):
शारीरिक पुष्टि के कार्यक्रम के दौरान तथा बाद में उचित आराम लेना चाहिए। यदि ऐसा न किया जाए तो व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी हो सकती है। इसके साथ-साथ उसकी गति में भी कमी आना स्वाभाविक है। उचित आराम न लेने की अवस्था में व्यक्ति की योग्यता के कार्यक्रम में रुचि कम होने लगती है।

6. सामान्य से जटिल का सिद्धांत (Principle of Simple to Complex):
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए जो भी व्यायाम या क्रियाएँ करें वे सभी सामान्य से जटिल सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिएँ अर्थात् सबसे पहले सामान्य व्यायाम और बाद में कठिन या जटिल व्यायाम करने चाहिएँ।

7. प्रगतिशीलता का सिद्धांत (Principle of Progression):
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए प्रशिक्षण में प्रगतिशील सिद्धांत का पालन करना चाहिए। जब भार को जल्दी-जल्दी बढ़ाया जाता है तो इससे प्रगति की बजाय अवनति होने लगती है। इसलिए प्रगति करने हेतु भार को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए, तभी शारीरिक पुष्टि का संतुलित विकास होगा।

8. विभिन्नता का सिद्धांत (Principle of Variety):
शारीरिक पुष्टि के विकास हेतु विभिन्नता के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। व्यायाम में विभिन्नता होने से रुचि को अधिक बढ़ावा मिलता है और रुचि से किया गया कार्य शारीरिक पुष्टि में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 5.
शारीरिक पुष्टि के विकास के साधन कौन-कौन से हैं? वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक योग्यता या पुष्टि के विकास की विभिन्न एरोबिक या वायवीय क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
शारीरिक पुष्टि में एरोबिक गतिविधियाँ कैसे सहायक होती हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि को विकसित करने वाले साधन निम्नलिखित हैं- .
1.खेलकूद में भागीदारी (Participation in Games & Sports):
खेलों में भाग लेने का सबसे मुख्य लाभ शारीरिक पुष्टि को विकसित करना है। वास्तव में, शारीरिक पुष्टि के अनेक अंग होते हैं और प्रत्येक खेल में इनका अलग-अलग मात्रा में विकास होता है; जैसे ऐसे खेल, जिनमें निरंतर गतियाँ होती हैं; जैसे तैरना और दौड़ना। इनसे फेफड़ों और हृदय की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। दूसरे खेल; जैसे जिम्नास्टिक से लचक (Flexibility) में वृद्धि होती है। खेलकूद के क्षेत्र में शारीरिक पुष्टि को विकसित करने के लिए अनेक कारक होते हैं।

2. वजन/भार प्रशिक्षण (Weight Training):
वजन/भार प्रशिक्षण शारीरिक पुष्टि का महत्त्वपूर्ण साधन है। वजन या भार प्रशिक्षण से अभिप्राय उन व्यायामों या कसरतों से है जो हमारे शरीर की विशेष माँसपेशियों को मज़बूत एवं शक्तिशाली बनाती हैं। यह प्रशिक्षण BAR-BELLS की सहायता से किया जाता है। इससे शरीर के विभिन्न भागों का अनुकूलन होता है।

3. सर्किट या परिधि प्रशिक्षण (Circuit Training):
सर्किट प्रशिक्षण बहुत प्रभावशाली और लोकप्रिय व्यायाम है। यह प्राय: शक्ति तथा सहनशीलता बढ़ाने के लिए किए जाता है। सन् 1957 में मॉर्गन तथा एडम्सन ने सर्किट प्रशिक्षण का प्रारंभिक रूप से विकास किया। मॉर्गन व एडम्सन के अनुसार, “सर्किट प्रशिक्षण एक ऐसी विधि है जिसमें विभिन्न व्यायामों को यन्त्रों तथा बिना यन्त्रों के निश्चित मात्रा में किया जाता है।” सर्किट प्रशिक्षण एक प्रभावकारी ढंग से किया जाने वाला व्यायाम है, जो शक्ति तथा सहनशीलता जैसी योग्यताओं में वृद्धि करता है।

4. वायवीय/एरोबिक क्रियाएँ या गतिविधियाँ (Aerobic Activities):
शारीरिक पुष्टि के साधन के रूप में एरोबिक क्रियाएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। शारीरिक पुष्टि के विकास की विभिन्न एरोबिक या वायवीय क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(1) जॉगिंग (Jogging):
जॉगिंग एक वायवीय क्रिया है। जॉगिंग से तात्पर्य है कि धीरे-धीरे या आराम से दौड़कर शरीर को गर्माना। जॉगिंग गर्माने का सबसे बढ़िया ढंग है। इससे शरीर की सभी प्रणालियाँ अच्छे ढंग से काम करना शुरू कर देती हैं।

(2) साइकलिंग (Cycling):
साइकलिंग वायवीय तथा अवायवीय क्रिया है। इससे हृदय और फेफड़ों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। शक्ति, सहनशीलता के लिए भी साइकलिंग करना महत्त्वपूर्ण है। इसका अभ्यास यदि प्रतिदिन नियमित रूप से किया जाए तो शारीरिक पुष्टि का विकास भली-भाँति किया जा सकता है।

(3) कैलिसथैनिक्स (Calisthanics):
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए कैलिसथैनिक्स का प्रयोग भी किया जाता है। हालांकि कैलिसथैनिक्स के द्वारा केवल सामान्य योग्यता का विकास ही संभव है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी के लिए कैलिसथैनिक्स सामान्य आधारशिला का कार्य करती है। इससे माँसपेशियों का व्यायाम होता है जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य, शक्ति, सौंदर्य में वृद्धि करना होता है। वास्तव में, कैलिसथैनिक्स एक प्रकार का स्वतंत्र व्यायाम है; जैसे Pull-ups, Push-ups और Chin-ups आदि। कैलिसथैनिक व्यायाम माँसपेशियों के तापमान और रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है। यह शरीर में लचक को विकसित करता है।

(4)लयबद्ध व्यायाम (Rhythmic Exercises):
इस प्रकार के व्यायाम लय के साथ किए जाते हैं; जैसे लेजियम, डम्बल, जिम्नास्टिक में ग्राउंड फ्लोर व्यायाम और लोकनृत्य आदि। इस प्रकार के लयबद्ध व्यायामों से भी शारीरिक पुष्टि का विकास होता है। ऐसे व्यायामों से थोड़ी-बहुत सहनशीलता का विकास भी होता है। इसके अतिरिक्त लचक तथा तालमेल संबंधी योग्यताओं का विकास भी होता है। लयबद्ध या तालबद्ध व्यायाम के कुछ उदाहरण हैं-आगे मुड़ना, पीछे मुड़ना, एक ही स्थान पर दौड़ना, चिट-अप, स्टेप-अप, बराबर में मुड़ना आदि।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

प्रश्न 6.
परिधि या सर्किट प्रशिक्षण विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
परिधि प्रशिक्षण विधि क्या है? इसके लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सर्किट प्रशिक्षण क्या है? इसकी विशेषताओं तथा लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सर्किट प्रशिक्षण विधि का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए। इसके क्या लाभ हैं?
अथवा
शारीरिक योग्यता के विकास के लिए सर्किट प्रशिक्षण का ब्योरा दीजिए। इसके लाभों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सर्किट या परिधि प्रशिक्षण विधि का अर्थ (Meaning of Circuit Training Method):
सन् 1957 में मॉर्गन तथा एडम्सन ने सर्किट (परिधि) प्रशिक्षण का प्रारंभिक रूप से विकास किया। मॉर्गन तथा एडम्सन (Morgan and Adamson) के अनुसार, “सर्किट प्रशिक्षण विधि एक ऐसी विधि है जिसमें विभिन्न व्यायामों को यन्त्रों तथा बिना यन्त्रों के निश्चित मात्रा में किया जाता है।” सन् 1979 में स्कोलिक ने सर्किट प्रशिक्षण के लिए नए-नए व्यायामों की जानकारी दी। सर्किट प्रशिक्षण में लगभग 10 से 15 तक व्यायाम चुने जाते हैं। इन व्यायामों को इस ढंग से चुना जाता है ताकि इनका प्रभाव प्रदर्शन पर प्रभावशाली ढंग से पड़े। प्रायः व्यायामों को एक क्रम में रखा जाता है ताकि भिन्न-भिन्न मांसपेशियों के समूह को चक्र में पूरा व्यायाम मिल सके। सर्किट प्रशिक्षण नई तकनीक सिखाने में बहुत सहायक होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सर्किट प्रशिक्षण एक प्रभावकारी ढंग से किए जाने वाला व्यायाम है, जो शक्ति तथा सहनशीलता जैसी योग्यताओं में वृद्धि करता है।

सर्किट या परिधि प्रशिक्षण की विशेषताएँ या लक्षण (Features of Circuit Training):
सर्किट प्रशिक्षण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) इस विधि में व्यायाम सीखना आसान होता है तथा उसको लागू करना भी आसान होता है।
(2) इसमें व्यायाम मध्यम अवरोध तथा मध्यम भार के साथ किए जाते हैं।
(3) इसमें संख्या की अधिक पुनरावृत्ति होती है।
(4) इसका लक्ष्य सहनशीलता व शक्ति को बढ़ावा देना है।
(5) इसमें शरीर के सभी अंगों के व्यायाम शामिल होते हैं।
(6) इसमें खिलाड़ियों को तैयारी के समय मूल सहनशीलता व शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है।
(7) इसमें व्यायाम का दबाव धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है।

सर्किट प्रशिक्षण के लाभ (Advantages of Circuit Training):
सर्किट प्रशिक्षण के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) इस विधि से एक ही समय में बहुत से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
(2) यह विधि सीखने में बहुत सरल एवं रुचिकर है। कोई भी खिलाड़ी अपने-आप प्रशिक्षण ले सकता है।
(3) इस विधि को खिलाड़ी की योग्यता के अनुसार आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है।
(4) इस विधि द्वारा शक्ति, क्षमता एवं सहनशीलता का विकास होता है।
(5) इस विधि द्वारा समय की बचत होती है, क्योंकि इसमें विभिन्न व्यायामों को करने के लिए अधिक समय नहीं लगता।
(6) इस विधि से शरीर के सभी अंगों या भागों का व्यायाम हो सकता है।

प्रश्न 7.
भार प्रशिक्षण विधि (Weight Training Method) का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
वज़न प्रशिक्षण से क्या अभिप्राय है? इससे होने वाले लाभों का वर्णन करें।
अथवा
भार प्रशिक्षण विधि क्या है? खिलाड़ियों के लिए इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भार प्रशिक्षण विधि का अर्थ (Meaning of Weight Training Method):
भार प्रशिक्षण विधि से हमारा अभिप्राय उन व्यायामों या कसरतों से है जो हमारे शरीर की विशेष माँसपेशियों को मज़बूत एवं शक्तिशाली बनाती हैं। यह प्रशिक्षण BAR-BELLS की सहायता से किया जाता है। इससे शरीर के विभिन्न भागों के आकार में परिवर्तन होता है और विभिन्न भागों का अनुकूलन भी होता है। इसके माध्यम से शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति सामान्य होने की कोशिश करता है। इससे माँसपेशियाँ मजबूत बनती हैं, उनके आकार तथा शरीर के भार में भी परिवर्तन होता है। यह प्रशिक्षण शारीरिक पुष्टि को विकसित करता है।

भार प्रशिक्षण विधि में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) भार प्रशिक्षण के समय श्वास क्रिया साधारण रूप से कार्य करती हुई होनी चाहिए।
(2) भार प्रशिक्षण सप्ताह में दो या चार दिन से अधिक न करें।
(3) प्रशिक्षण के कार्यक्रम को पहले साधारण शारीरिक विकास से शुरू करें। फिर इवेंट प्रशिक्षण के अनुसार व्यायाम करें।
(4) भार प्रशिक्षण के पश्चात् कुछ देर आराम करना जरूरी है।
(5) भार प्रशिक्षण इस प्रकार किया जाए कि शरीर के प्रत्येक अंग की कसरत हो, विशेषतौर पर बाजुओं, टाँगों तथा कमर आदि की।

भार प्रशिक्षण विधि का महत्त्व अथवा लाभ (Advantages or Importance of Weight Training Method):
खिलाड़ियों के लिए भार प्रशिक्षण विधि का महत्त्व अथवा लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) भार प्रशिक्षण से शक्ति तथा लचक में वृद्धि होती है।
(2) भार प्रशिक्षण से माँसपेशियों के सिकुड़ने तथा फैलने में वृद्धि होती है।
(3) शरीर के सभी अंगों को शक्ति मिलने से शारीरिक शक्ति का विकास होता है।
(4) भार प्रशिक्षण द्वारा नाड़ी-माँसपेशियों के आपसी तालमेल में वृद्धि होती है।
(5) भार प्रशिक्षण से माँसपेशियाँ तथा हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
(6) यह प्रशिक्षण न केवल शारीरिक कार्यक्षमता में वृद्धि करता है, बल्कि दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने की क्षमता में भी सुधार करता है।
(7) यह वसा मुक्त शरीर द्रव्यमान को कम करता है। अगर हम अपनी दिनचर्या में भार प्रशिक्षण को नहीं जोड़ते हैं तो यह वसा में बदल जाएगा।
(8) यह संयोजी ऊतकों व मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाता है। इससे गामक प्रदर्शन में सुधार होता है और चोट का जोखिम कम हो जाता है।

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प्रश्न 8.
लचीलापन क्या है? इसकी विभिन्न किस्में कौन-कौन-सी हैं? इसको कैसे बढ़ाया जा सकता है? अथवा लचक से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
लचीलापन/लचक का अर्थ (Meaning of Flexibility):
व्यक्ति के शरीर के जोड़ों की गति-क्षमता को लचक कहते हैं। अधिक लचक वाला व्यक्ति बिना किसी कष्ट के अधिक देर तक कार्य कर सकता है तथा उसका व्यक्तित्व भी अच्छा होता है। लचकदार शरीर वाले व्यक्ति जब कोई गतिविधि करते हैं तो उनकी माँसपेशियों में कम तनाव उत्पन्न होता है जिस कारण ऊर्जा या शक्ति की बचत होती है। आमतौर पर लचीलापन, कोमलता और गतिशीलता को एक-दूसरे के लिए प्रयोग किया जाता है, परंतु इनमें बहुत अंतर है। अतः लचीलापन वह योग्यता है, जिसमें प्रत्येक क्रिया अधिक विस्तार से बिना किसी रोक-टोक के की जाती है।

लचक/लचीलेपन की किस्में अथवा प्रकार (Types of Flexibility):
लचीलेपन की किस्में (प्रकार) निम्नलिखित हैं
1. सक्रिय लचीलापन (Active Flexibility):
सक्रिय लचीलेपन को खिलाड़ी बिना किसी बाहरी सहायता के स्वतंत्र रूप से माँसपेशियों की क्रियाशीलता द्वारा प्राप्त करता है। सक्रिय लचीलापन न केवल माँसपेशियों के सिकुड़ने, बल्कि जोड़ों की मांसपेशियों पर भी निर्भर करता है। अतः बिना किसी बाहरी सहायता से शरीर के जोड़ों का अधिक देर तक गति करना सक्रिय लचीलापन कहलाता है; जैसे खिंचाव वाला व्यायाम बिना किसी की सहायता से करना आदि। यह दो प्रकार का होता है
(1) गतिशील लचीलापन (Dynamic Flexibility): शरीर गति में होने के कारण जब अधिक विस्तार से क्रिया करता है, तो उसको गतिशील लचीलापन कहते हैं।
(2) स्थिर लचीलापन (Static Flexibility): जब कोई खिलाड़ी लेटा, बैठा या खड़ा हुआ किसी प्रकार की गतिविधि करता है, तो उसे स्थिर लचीलापन कहते हैं।

2. निष्क्रिय लचीलापन (Passive Flexibility):
निष्क्रिय लचीलेपन से तात्पर्य बाहरी सहायता द्वारा अधिक-से-अधिक विस्तार से क्रिया करने वाली योग्यता से है। निष्क्रिय लचीलापन अन्य सभी किस्मों का आधार है। यह बहुत अधिक माँसपेशियों के सिकुड़ने, जोड़ों (लिगामेंट्स) और हड्डियों की बनावट पर निर्भर करता है।

लचक बढ़ाने के ढंग/तरीके (Methods of Increasing Flexibility):
लचक बढ़ाने के बहुत-से ढंग है, जिनमें सक्रिय, निष्क्रिय स्टैटिक और कनट्रैक्ट-रिलैक्स व्यायाम आते हैं। अतः लचक को बढ़ाने के तरीके निम्नलिखित हैं-
(1) सक्रिय ढंग में तेज और धीमी किस्म की मूवमैंट करनी चाहिएँ।
(2) निष्क्रिय ढंग में माँसपेशियों को ठीक स्थिति में रखने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा व्यायाम करवाए जाते हैं। ये क्रियाएँ अपने-आप भी की जा सकती हैं अथवा किसी की सहायता से भी की जा सकती हैं।
(3) स्टैटिक व्यायाम में माँसपेशियों को धीमे स्तर पर मोड़ना होता है ताकि बिना किसी तकलीफ के इसको 10 से 60 सेकिण्ड तक बढ़ाया जा सके।
(4) कनट्रैक्ट-रिलैक्स किस्म के व्यायाम नाड़ी तथा माँसपेशियों के तालमेल पर आधारित होते हैं । जब माँसपेशियाँ खिंचाव की स्थिति में होती हैं तो वे फिर 5 से 10 सेकिण्ड तक अपनी पहली स्थिति में आ जाती हैं।
(5) विभिन्न प्रकार के आसनों; जैसे चक्रासन, धनुरासन, हलासन आदि द्वारा लचक को बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
सहनशीलता से क्या अभिप्राय है? इसकी किस्मों तथा उपयोगिता या महत्ता का वर्णन करें।
अथवा
सहनक्षमता या सहनशीलता क्या है? इसके प्रकारों या भेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सहनशीलता या सहनक्षमता का अर्थ (Meaning of Endurance):
सहनशीलता या सहनक्षमता शक्ति की तरह एक महत्त्वपूर्ण योग्यता है। यह एक प्रतिरोध योग्यता है जो थकावट के विरुद्ध होती है। सामान्य शब्दों में, यह खिलाड़ी की वह योग्यता है, जिसके साथ खिलाड़ी बिना किसी थकावट के क्रिया करता है। वास्तव में, किसी गति या भार को अधिक समय तक अपने ऊपर स्थिर रखने की व्यक्ति के शरीर की संरचनात्मक क्षमता को उसकी सहनक्षमता कहा जाता है।

सहनशीलता की किस्में या भेद (Types of Endurance):
सहनशीलता की किस्में (भेद) निम्नलिखित हैं-
1. बुनियादी या मौलिक सहनशीलता (Basic Endurance):
बुनियादी सहनशीलता को एरोबिक सहनशीलता भी कहते हैं। यह वह क्षमता है, जो धीरे से मध्यम गति के साथ क्रिया करने से होने वाली थकावट पर नियंत्रण रखती है। इसके अंतर्गत जॉगिंग एवं साइकलिंग आदि,क्रियाएँ आती हैं।

2. साधारण सहनशीलता (General Endurance):
भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाएँ चाहे वे वायवीय (एरोबिक) अथवा अवायवीय (अनएरोबिक) हों, इसके दौरान आई थकावट पर नियंत्रण करने वाली क्षमता को साधारण सहनशीलता कहते हैं । साधारण सहनशीलता और बुनियादी सहनशीलता में अंतर है। बुनियादी सहनशीलता एरोबिक व्यायामों पर आधारित होती है जबकि साधारण सहनशीलता एरोबिक और अनएरोबिक व्यायामों को बिना किसी थकावट के लंबे समय तक करने वाली योग्यता है।

3. विशेष सहनशीलता (Special Endurance):
विशेष खेलों में थकावट का प्रतिरोध करने वाली योग्यता को विशेष सहनशीलता कहते हैं। जिस तरह स्वाभाविक रूप से थकावट भिन्न-भिन्न खेलों में भिन्न-भिन्न होती है, उसी तरह सहनशीलता भी भिन्न-भिन्न खेलों में भिन्न-भिन्न होती है। इसको शक्ति सहनशीलता भी कहते हैं। इसका प्रयोग लम्बी दूरी की दौड़ों, तैराकी, मैराथन दौड़ तथा पोल वॉल्ट में काफी हद तक किया जाता है।

सहनशीलता की महत्ता या उपयोगिता (Importance or Utility of Endurance):
सहनशीलता प्रत्येक खेल में अच्छी कुशलता के लिए एक महत्त्वपूर्ण योग्यता है। हमारे लिए इसकी महत्ता निम्नलिखित प्रकार से है
(1) एक अच्छी सहनशीलता वाला खिलाड़ी अधिक प्रशिक्षण का भार सहन करके अपनी कुशलता बढ़ा सकता है।
(2) अच्छी सहनशीलता वाला खिलाड़ी प्रतियोगिता के समय चौकन्ना रहता है और पूरा ध्यान रखता है ताकि चोट से बचा जा सके।
(3) लंबे समय वाली खेलों में तकनीकी कार्यकुशलता सहनशीलता पर आधारित होती है।
(4) सहनशीलता खिलाड़ी को मुकाबले के दौरान सामान्य बनाए रखती है। सहनशीलता केवल खिलाड़ियों के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह सामान्य पुरुषों, स्त्रियों और नौजवानों के लिए भी आवश्यक है। कूपर और पीटर जैसे विद्वानों का विचार है कि सहनशीलता हृदय की बीमारियों और सामान्य स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है।
(5) सहनशीलता का सीधा संबंध व्यक्ति के शारीरिक संस्थानों से है। यदि सहनशीलता बढ़ती है तो विशेष रूप से श्वसन वरक्त प्रवाह संस्थानों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 10.
गति से आप क्या समझते हैं? इसको कैसे सुधारा जाए?
उत्तर:
गति का अर्थ (Meaning of Speed):
गति या रफ्तार से अभिप्राय मनुष्य की उस योग्यता से है जो किसी भी स्थिति में कम-से-कम समय लेकर अपने कार्य को पूरा करती है। गति दूसरे शारीरिक योग्यता अंगों; जैसे शक्ति तथा सहनशीलता से भिन्न है। यह नाड़ी प्रणाली पर आधारित है। गति को साधारणतया लगभग 20 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता, क्योंकि गति बहुत सारी बातों पर आधारित होती है। भिन्न-भिन्न खेलों में गति भिन्न-भिन्न किस्मों में देखने को मिलती है।

गति को कैसे सुधारा जाए? (How can speed be improved?):
गति को अग्रलिखित तरीकों से सुधारा जा सकता है-
1. अच्छी तकनीक (Good Technique):
गति को सुधारने के लिए अच्छी तथा बढ़िया तकनीक की आवश्यकता होती है। जिम्नास्टिक तथा मुक्केबाज़ से अपनी खेल का प्रदर्शन बढ़िया कर सकते हैं।

2. विस्फोटक ताकत (Explosive Strength):
प्रत्येक विस्फोटक गति के लिए विस्फोटक शक्ति का होना अति आवश्यक है। एक अच्छे बॉक्सर तथा जिम्नास्ट की गति को तभी सुधारा जा सकता है जब उसमें विस्फोटक शक्ति होगी।

3. मांसपेशियों की बनावट (Structure of Muscles):
शरीर की भिन्न-भिन्न माँसपेशियों में भिन्न-भिन्न फास्ट ट्विच फाइबर (Fast Twitch Fiber) तथा स्लो ट्विच फाइबर (Slow Twitch Fiber) होते हैं। ये फाइबर जन्मजात होते हैं जो गति की कुशलता को दर्शाते हैं।

4. तालमेल या समन्वय की योग्यता (Co-ordination Ability):
लगभग सभी खेलों; जैसे फुटबॉल, हॉकी, बॉक्सिंग, बास्केटबॉल आदि में शारीरिक अंगों के तालमेल की आवश्यकता होती है।

5. लचीलापन (Flexibility):
जब खिलाड़ी के प्रत्येक जोड़ पर अधिक गतिविधि हो तथा उसके जोड़ प्रत्येक दिशा की ओर अत्यधिक झुक जाए अथवा मुड़ जाए तो गति-प्रदर्शन बढ़िया होगा। अल्पायु की लड़कियों में बड़ी आयु के व्यक्तियों से अधिक लचीलापन होता है।

6. प्रतिक्रिया की योग्यता (Metalogic Power):
गति सुधारने में ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्रतिक्रियाएँ भी पर्याप्त तीव्रतापूर्वक होनी चाहिए। प्रतिक्रिया की योग्यता, स्पीड मूवमैंट आदि में सुधार करके गति बढ़ाई जा सकती है।

7. अन्य तरीके (Other Methods):
(1) गति को बढ़ाने के लिए शक्ति व सहनशीलता दोनों का तालमेल जरूरी है।
(2) गति को बढ़ाने के लिए लचक व विस्फोटक शक्ति को बढ़ाना चाहिए।
(3) अच्छी तरह से गर्म होना गति को बढ़ाने में सहायक होता है।

प्रश्न 11.
शक्ति से आपका क्या अभिप्राय है? शक्ति को विकसित करने या सुधारने वाली विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शक्ति के विकास की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शक्ति से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार क्या हैं?
उत्तर:
शक्ति का अर्थ (Meaning of Strength):
शक्ति या ताकत शारीरिक योग्यता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। साधारण शक्ति से अभिप्राय उस शक्ति से है, जो भिन्न-भिन्न स्थितियों में प्रत्येक किस्म का प्रतिरोध करती है। यह कोई क्रिया अथवा मूवमैंट नहीं है। विशेष शक्ति वह क्षमता है, जो विशेष खेलों में आवश्यक है। यह एक ऐसी क्रिया और मूवमैंट है जो हमेशा तकनीकी कौशल और तालमेल वाले सामर्थ्य के साथ जुड़ी हुई है। अतः शक्ति हमारे शरीर की माँसपेशियों द्वारा उत्पन्न की गई वह ऊर्जा है जिसके द्वारा हम कुछ कार्य कर सकते हैं। इसको मापने के लिए पौंड या डाइन (Dynes) का प्रयोग किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में साधारण शक्ति व एक खिलाड़ी लिए विशेष शक्ति आवश्यक होती है। प्रत्येक खेल में मूवमैंट अवश्य होते हैं और इनमें अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्रयोग की जाती हैं।

शक्ति के प्रकार (Types of Strength):
शक्ति के दो प्रकार होते हैं-
(1) स्थिर शक्ति
(2) गतिशील शक्ति।

शक्ति को विकसित करने की विधियाँ (Methods of Improving Strength):
शक्ति को विकसित करने या बढ़ाने के लिए बहुत सारे तरीके हैं लेकिन शक्ति को बढ़ाने के लिए भार प्रशिक्षण (Weight Training) सबसे अच्छा तथा कारगर तरीका है। इसमें खिलाड़ी की माँसपेशियाँ प्रतिरोध के विरुद्ध कार्य करती हैं और ऐसा करने से माँसपेशियों की शक्ति में वृद्धि होती है। शक्ति को ।
सुधारने या बढ़ाने की विधियाँ या तरीके निम्नलिखित हैं
1. अधिकतम उत्सुकता विधि (High Intensity Method):
यह विधि अक्सर वजन उठाने तथा थ्रो करते समय प्रयोग में लाई जाती है। इस तरीके में शक्ति तथा प्रतिरोध वाले व्यायाम अधिक लाभप्रद होते हैं।

2. विस्फोटक विधि (Explosive Method):
इस विधि को जिम्नास्ट तथा जम्प करने वाले ज्यादा प्रयोग में लाते हैं। जब कोई खिलाड़ी तीव्र गति से किसी प्रतिरोध को रोकने का प्रयास करता है तो उसकी इस क्षमता को विस्फोटक शक्ति कहते हैं।

3. प्रतिक्रिया विधि (Reaction Method):
इस विधि के द्वारा अधिकतम शक्ति तथा विस्फोटक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। इसमें पुली द्वारा व्यायाम, रेत के थैलों के साथ व्यायाम तथा विशेष प्रकार से बने औजार (Equipment) के साथ व्यायाम करवाए जाते हैं।

4. आइसोकाइनेटिक व्यायाम (Isokinetic Exercise):
इस प्रकार के व्यायाम तैराकी के द्वारा करवाए जाते हैं क्योंकि तैराकी द्वारा माँसपेशियों की सिकुड़न अधिक तेजी के साथ होती है। इस विधि में चोट आदि लगने का खतरा कम रहता है।

5. आइसोमीट्रिक व्यायाम (Isometric Exercise):
शक्ति को बढ़ाने का यह तरीका गतिशील ताकत की जगह स्थिर – ताकत को ज़्यादा बढ़ाता है। इस प्रकार के व्यायाम में कम समय तथा कम उपकरणों की आवश्यकता होती है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

प्रश्न 12.
खेलकूद में भागीदारी की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
खेलों में भागीदारी (Participation in Games & Sports) का क्या महत्त्व है? वर्णन करें।
उत्तर:
खेलों में भागीदारी का महत्त्व निम्नलिखित है
1. सामाजिक अनुभव (Social Experience):
खेलों में भागीदारी व्यक्तिगत तौर पर अकेले खेल खेलकर संभव नहीं है। किसी खेल को संभव बनाने के लिए एक से अधिक खिलाड़ियों का होना जरूरी है। जैसे कि फुटबॉल की टीम जब कभी किसी मुकाबले या प्रशिक्षण में भाग लेती है तो इसमें अधिकतम 25 (11+11+1+ 2) व्यक्ति शामिल होते हैं। वे खेल के नियमों तथा कोच या रैफरी द्वारा निर्देशित आदेशों की पालना करते हैं। इससे हमें समाज के नियमों को सीखने का अनुभव प्राप्त होता है।

2. सामाजिक मूल्य (Social Values):
सामाजिक मूल्य मनुष्य की अंतर-प्रतिक्रियाओं के वे पक्ष हैं, जिनको समाज में प्रत्येक स्थिति में सुरक्षित और उत्साहित रखना चाहिए। प्रत्येक समाज के कुछ ऐसे मूल्य हैं, जो उसकी परंपरा की देन हैं। जीवन के यही गुण हमें उन्नति की सीमा तक पहुँचाने के लिए सहायक होते हैं। सामाजिक गुण जीवन के आदर्श और वास्तविक का मेल हैं। शिक्षा के उद्देश्य ही व्यक्ति में इन मूल्यों और गुणों की उत्पत्ति के कारण हैं। इसलिए वही अध्यापक बच्चों में सामाजिक गुण पैदा कर सकता है, जिसके अंदर सामाजिक गुण मौजूद हों। एक अच्छी खेल-भावना (Sportmanship) रखने वाला शारीरिक शिक्षा का अध्यापक ही बच्चों में खिलाड़ीपन के गुणों का विकास कर सकता है।

3. प्रतिस्पर्धा (Competition):
सभ्यता की उन्नति का दूसरा तथ्य प्रतिस्पर्धा (Competition) है। प्रतिस्पर्धा वह चैलेंज है जिसमें व्यक्ति अथवा समूह दूसरे व्यक्ति अथवा समूह से आगे निकलने का प्रयत्न करता है। प्रतिस्पर्धा की भावना से जीवन-स्तर ऊँचा होता है, व्यक्ति और समूह कार्यशील रहते हैं और समाज उन्नति के रास्ते पर चलता रहता है। प्रतिस्पर्धा सामाजिक जीवन का एक स्वाभाविक क्रम है। बर–ड रसल (Bertrand Russel) का विचार है, “प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों व्यक्ति की प्राकृतिक क्रियाएँ हैं और व्यक्ति को पछाड़े बिना मुकाबले को समाप्त नहीं किया जा सकता।”

4. सहयोग (Co-operation):
समाज में रहकर हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि कोई भी सामाजिक जीव अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह बहुत सारी चीजें समाज को देता है और बहुत सारी चीजें अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए समाज से लेता है। परिवार, देश, समाज और सारा विश्व व्यक्तियों, समूहों, दलों, की आपसी सहयोग के कारण ही सुरक्षित है। आपसी सहयोग तभी संभव है जब व्यक्ति और समूह अपने आपको उसके लिए पेश करे। हमदर्दी, मित्रता, प्रेम, त्याग आदि ऐसे गुण हैं, जिन पर सहयोग की नींव रखी जाती है। शारीरिक शिक्षा क्षेत्र में सहयोग की भावना बहुत ही आवश्यक है। सामूहिक खेलों में तो सहयोग की भावना की ओर भी अधिक जरूरत है। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल आदि खेल खिलाड़ियों के आपसी सहयोग के साथ ही खेली और जीती जा सकती हैं। सहयोग तभी लाभदायक सिद्ध हो सकता है जब उसके पीछे कार्य की इच्छा और भावना अच्छी हो। खेल के मैदान में सहयोग की भावना तभी शक्तिशाली हो सकती है जब खिलाड़ियों को खेलों का उद्देश्य अच्छी तरह बताया जाए और उनको पूरे अनुशासन में रहकर उस उद्देश्य की पूर्ति करनी सिखाई जाए। इस तरह सहयोग की. भावना दृढ़ होगी और समूह और समाज अच्छी तरह कार्य करेंगे।

5. सामाजिक पहचान (Social Recognition):
पहचान प्राप्त करने की प्रवृत्ति बच्चे में जन्मजात होती है और वह इसी स्वार्थ के लिए बचपन में ही अन्य व्यक्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करता है। यह कई प्रकार की योग्यताओं और विशेष कारनामों का दिखावा करता है। यह प्रवृत्ति जीवन के अंतिम समय तक बनी रहती है। प्रतिस्पर्धा और सहयोग की भावना की नींव इसी मूल-प्रवृत्ति पर रखी जाती है। व्यक्ति अपनी पहचान और मान प्राप्त करने के लिए ही प्रतिस्पर्धा करता है। वह चाहता है कि समाज के अन्य सदस्य उसकी योग्यताओं और गुणों का लोहा मानें। प्रशंसा द्वारा उसमें प्रतिस्पर्धा शक्ति और सहयोग प्रवृत्ति और भी तेज होती है।

प्रश्न 13.
सुयोग्यता (Wellness) के प्रमुख अंगों या घटकों का वर्णन करें।
अथवा
सुयोग्यता के अवयव कौन-कौन से हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
सुयोग्यता के प्रमुख अंग या घटक अग्रलिखित हैं
1. सामाजिक सुयोग्यता (Social Wellness):
सामाजिक सुयोग्यता व्यक्ति के सामाजिक एवं नैतिक विचारों के आदान-प्रदान से संबंधित कौशलों को बढ़ाने पर बल देती है। इसको बढ़ाने व विकसित करने के लिए व्यक्ति को सकारात्मक या रचनात्मक क्रियाएँ करते रहना चाहिए। उसे अपने पड़ोसियों व मित्रों से मिलते-जुलते रहना चाहिए।

2. शारीरिक सुयोग्यता (Physical Wellness):
शारीरिक सुयोग्यता की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को विभिन्न शारीरिक क्रियाओं; जैसे जॉगिंग, तैराकी व खेलों में भाग लेना चाहिए। उसे स्वयं को स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण में रहने का प्रयास करना चाहिए और संतुलित एवं पौष्टिक भोजन करना चाहिए।

3. भावनात्मक सुयोग्यता (Emotional Wellness):
भावनात्मक या संवेगात्मक सुयोग्यता भी शारीरिक सुयोग्यता के प्रमुख अंगों में से एक है। इसको बढ़ाने के लिए व्यक्ति को अतिभार से दूर रहने, हास्य फ़िल्में देखने व मनोरंजनदायक क्रियाओं में व्यस्त रहने पर ध्यान देना चाहिए।

4. बौद्धिक सुयोग्यता (Intellectual Wellness):
बौद्धिक या मानसिक सुयोग्यता व्यक्ति की तर्कसंगत निर्णय करने की योग्यता होती है जो मानसिक सजगता, नए विचारों का खुलापन, अभिप्रेरणा, सृजनता व जिज्ञासा पर बल देती है। इसको विकसित करने के लिए व्यक्ति को अपने ज्ञान को विस्तृत करने व कौशल को बढ़ाने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

5. आध्यात्मिक सुयोग्यता (Spiritual Wellness):
आध्यात्मिक सुयोग्यता आध्यात्मिक नवीनीकरण व आत्मिक शान्ति पर बल देती है। इसको विकसित करने के लिए व्यक्ति को स्वयं के प्रति सच्चा रहना चाहिए, अच्छे चरित्र का निर्माण करना चाहिए तथा सद्गुणों को विकसित करना चाहिए।

6. पोषण-संबंधी सुयोग्यता (Nutritional Wellness):
पोषण संबंधी सुयोग्यता संतुलित व स्वास्थ्यवर्द्धक आहार के माध्यम से अधिकतम ऊर्जा के स्तरों की प्राप्ति पर बल देती है। पोषण-संबंधी सुयोग्यता बढ़ाने के लिए व्यक्ति को भोजन में वसा कम लेनी चाहिए तथा ताजे फल तथा सब्जियों का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए।

7. पर्यावरणीय सुयोग्यता (Environmental Wellness):\
पर्यावरणीय सुयोग्यता भी शारीरिक सुयोग्यता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। पर्यावरणीय सुयोग्यता, पृथ्वी की दशा व इसके भौतिक पर्यावरण पर हमारी आदतों के प्रभावों के प्रति सजगता होती है। इसको बढ़ाने के लिए व्यक्ति को प्रदूषण की मात्रा को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक पुष्टि की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि की महत्ता को निम्नलिखित तथ्यों से समझा जा सकता है-
(1) शारीरिक पुष्टि शरीर की विभिन्न प्रणालियों के कार्य करने की गति में सुधार करती है।
(2) यह शरीर के संस्थानों को सुचारु रूप से कार्य करने में सहायता करती है।
(3) यह मनुष्य को दीर्घायु बनाती है।
(4) यह रोग निवारक क्षमता को बढ़ाती है।
(5) यह शरीर के सुचारु विकास में सहायक होती है।
(6) यह मानसिक स्वास्थ्य तथा चेतना में सुधार लाती है।

प्रश्न 2.
जीवन में शारीरिक सुयोग्यता के लाभ बताएँ।
अथवा
शारीरिक सुयोग्यता का महत्त्व लिखें।
उत्तर:
शारीरिक सुयोग्यता के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) खुशहाल जीवन जीने के लिए शारीरिक सुयोग्यता बहुत महत्त्वपूर्ण है।
(2) शारीरिक सुयोग्यता मानसिक क्षमता में वृद्धि करती है।
(3) शारीरिक सुयोग्यता से कार्य की गुणवत्ता एवं क्षमता में भी वृद्धि होती है।
(4) शारीरिक सुयोग्यता से तनाव एवं दबाव को दूर रखने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 3.
शारीरिक सुयोग्यता व खेलों में भार प्रशिक्षण कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
शारीरिक सुयोग्यता व खेलों में भार प्रशिक्षण का बहुत महत्त्व है। भार प्रशिक्षण में खेल संबंधी उपकरण आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं। इस प्रशिक्षण द्वारा खिलाड़ी बहुत कम समय में अच्छे परिणाम दे सकते हैं। खिलाड़ियों के लिए सीखने हेतु यह विधि बहुत आसान है। खिलाड़ी स्वयं भी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रशिक्षण के द्वारा शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम हो जाता है। इससे माँसपेशियाँ और हड्डियाँ मजबूत होती हैं। शरीर के सभी अंगों को शक्ति मिलने से शारीरिक सुयोग्यता का विकास होता है। इस प्रकार भार प्रशिक्षण शारीरिक सुयोग्यता व खेलों में बहुत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 4.
सहनशीलता या सहनक्षमता के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रत्येक खेल में अच्छी कुशलता के लिए सहनशीलता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। हमारे लिए इसका महत्त्व निम्नलिखित है-
(1) एक अच्छी सहनशीलता वाला खिलाड़ी अधिक प्रशिक्षण का भार सहन करके अपनी कुशलता बढ़ा सकता है।
(2) अच्छी सहनशीलता वाला खिलाड़ी प्रतियोगिता के समय सतर्क रहता है, ताकि चोट से बचा जा सके।
(3) लंबे समय वाली खेलों में तकनीकी कार्यकुशलता सहनशीलता पर आधारित होती है।
(4) यह खिलाड़ी की मुकाबले के दौरान संयम बनाए रखने में सहायक होती है।
(5) यह थकावट को रोकने में सहायक होती है। इसकी सहायता से खिलाड़ी अपनी थकान को दूर कर सकता है।

प्रश्न 5.
एरोबिक गतिविधियों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एरोबिक गतिविधियाँ वे गतिविधियाँ हैं जिनको करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इन गतिविधियों में कम तीव्रता तथा लंबी अवधि वाली गतिविधियाँ शामिल होती हैं जो लयात्मक होती हैं और शरीर को गति में लाती हैं। जॉगिंग, साइकलिंग, लयबद्ध व्यायाम एरोबिक गतिविधियों के उदाहरण हैं । एरोबिक गतिविधियाँ करने से शारीरिक फिटनेस बनी रहती है। इनसे हृदय और फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इनसे रक्त धमनियों में सुधार होता है। एरोबिक गतिविधियाँ करने से पेट ठीक रहता है और पाचन शक्ति बढ़ती है। इनसे भूख में वृद्धि होती है और शरीर में लचकता बढ़ती है। इन गतिविधियों के मनोवैज्ञानिक फायदे भी हैं। इस प्रकार एरोबिक गतिविधियों का बहुत महत्त्व है।

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प्रश्न 6.
अनएरोबिक गतिविधियों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनएरोबिक गतिविधियाँ एरोबिक गतिविधियों के विपरीत होती हैं। अनएरोबिक गतिविधियों में हमारा शरीर कसरत के दौरान ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए ऑक्सीजन का उपयोग नहीं करता। इन क्रियाओं में ऊर्जा का स्रोत एडिनोसिन ट्राईफास्फेट होता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनएरोबिक गतिविधियाँ बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। ये गतिविधियाँ शारीरिक पुष्टि के विकास एवं इसे बनाए रखने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण साधन हैं। संक्षेप में, अनएरोबिक गतिविधियों का महत्त्व निम्नलिखित है
(1) अनएरोबिक गतिविधियों के माध्यम से माँसपेश्यिाँ मजबूत बनती हैं और माँसपेशियाँ की कमजोरियाँ दूर होती हैं।
(2) ये गतिविधियाँ मोटापे को कम करती हैं।
(3) ये गतिविधियाँ अन्य गतिविधियों के लिए सहनशक्ति में सुधार करती हैं।
(4) ये हड्डी के नुकसान के प्रभावों को दूर करने में सहायक होती हैं और टूटी हुई हड्डियों या ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को कम करती हैं।
(5) ये गतिविधियाँ मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होती हैं।

प्रश्न 7.
शारीरिक पुष्टि के विकास में जॉगिंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि के विकास में जॉगिंग या धीमी गति की दौड़ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जॉगिंग दौड़ का एक ऐसा रूप है जिसमें व्यक्ति लगातार धीमी गति से दौड़ता है। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक पुष्टि को बढ़ाना है। इससे शरीर पर वह तनाव उत्पन्न नहीं होता, जो तेज गति की दौड़ के कारण होता है।

जॉगिंग वार्मिंग-अप का सबसे बढ़िया तरीका हैं। इसके लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसे प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। पहले की अपेक्षा पिछले कुछ वर्षों में यह एरोबिक क्रिया काफी लोकप्रिय हुई है। यह उन व्यक्तियों के लिए भी सबसे अच्छी क्रिया है जो अपने शरीर के भार को कम करना चाहते हैं। इसके द्वारा शरीर की सभी प्रमुख माँसपेशियों का व्यायाम हो जाता है। इसको हृदय वाहिका प्रणाली (Cardio-Vascular System) विशेषकर हृदय की कोरोनरी धमनियों (CoronaryArteries) के रोगों से बचाव के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यह हृदय व फेफड़ों की कार्य-कुशलता को बढ़ाने के लिए अत्यन्त लाभदायक है। समूह में जॉगिंग करने से उत्साह व मनोरंजन प्राप्त होता है। इससे तनाव व थकान महसूस भी नहीं होती। जॉगिंग लम्बी अवधि के लिए की जाती है। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि कपड़े कुछ ढीले पहनने चाहिएँ और जूते हल्के व सॉफ्ट होने चाहिएँ। जॉगिंग क्रिया न केवल शारीरिक पुष्टि को बढ़ाती, बल्कि सुयोग्यता में भी वृद्धि करने में सहायक होती है।

प्रश्न 8.
जॉगिंग करने के चार लाभ बताइए।
अथवा
जॉगिंग के लाभदायक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर:
जॉगिंग करने के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) जॉगिंग शरीर की साँस लेने वाली क्रिया में सुधार करती है।
(2) जॉगिंग से शरीर के सभी अंगों का अभ्यास होता है।
(3) जॉगिंग करने से समय से पहले बुढ़ापा नहीं आता।
(4) जॉगिंग मोटापे को कम करती है।
(5) जॉगिंग से उच्च रक्तचाप की समस्या दूर होती है।

प्रश्न 9.
कैलिसथैनिक्स पर एक संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए।
अथवा
कैलिस्थैनिक्स का शारीरिक पुष्टि के विकास के साधन के रूप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि के विकास के लिए कैलिसथैनिक्स का प्रयोग भी किया जाता है। हालांकि कैलिसथैनिक्स के द्वारा केवल सामान्य योग्यता का विकास ही संभव है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी के लिए कैलिसथैनिक्स सामान्य आधारशिला का कार्य करती है। सैंचुरी शब्दकोश के अनुसार, “कैलिसथैनिक्स हल्की जिम्नास्टिक की तरह का व्यायाम होता है।” इससे मांसपेशियों का व्यायाम होता है जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य, शक्ति, सौंदर्य में वृद्धि करना होता है। वास्तव में, कैलिसथैनिक्स एक प्रकार का स्वतंत्र व्यायाम है; जैसे Pull-ups, Push-ups और Chin-ups आदि। कैलिसथैनिक व्यायाम माँसपेशियों के तापमान और रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है। यह शरीर में लचक को विकसित करता है। कैलिसथैनिक व्यायाम में विभिन्न प्रकार के हल्के उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है, जिन्हें करने में कम शक्ति की आवश्यकता पड़ती है।

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प्रश्न 10.
शारीरिक पुष्टि के विकास में खेलकूद की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
खेलों में भाग लेने का सबसे मुख्य लाभ शारीरिक पुष्टि को प्राप्त करना है। वास्तव में, शारीरिक पुष्टि के अनेक अंग होते हैं और खेलों में इनका अलग-अलग मात्रा में विकास होता है; जैसे ऐसे खेल, जिनमें निरंतर गतियाँ होती हैं; जैसे तैरना और दौड़ना। इनसे फेफड़ों और हृदय की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। दूसरे खेल; जैसे जिम्नास्टिक से लचक (Flexibility) में वृद्धि होती है। खेलकूद के क्षेत्र में शारीरिक पुष्टि को विकसित करने के लिए अनेक कारक होते हैं। प्रशिक्षण और अभ्यास की सघनता, नियमितता और कौन-सा खेल है जिसके लिए प्रशिक्षण लिया जा रहा है, ये सभी कारक महत्त्वपूर्ण हैं। खिलाड़ी के किसी खेल में खेलने की दिशा और उसकी निपुणता (Skill) का स्तर भी उसकी योग्यता पर प्रभाव डालता है। यदि वह आईस हॉकी में गोल-कीपर के रूप में खेलता है तो उसकी एरोबिक योग्यता विकसित नहीं होगी। दूसरी ओर बास्केटबॉल, फुटबॉल तथा वाटर-पोलो में एरोबिक योग्यता का विकास होता है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि खेलों में भाग लेने से शारीरिक पुष्टि विकसित होती है।

प्रश्न 11.
शारीरिक सुयोग्यता में साइकलिंग के कोई चार योगदान बताइए।
अथवा
साइकिल चलाने (Cycling) के चार लाभ बताइए।
उत्तर:
साइकलिंग एक अनएरोबिक व्यायाम है। इसका शारीरिक सुयोग्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसके लाभ अथवा शारीरिक सुयोग्यता में योगदान निम्नलिखित हैं
(1) साइकिल चलाने से शरीर की माँसपेशियों में सुधार होता है।
(2) इससे श्वास संस्थान की निपुणता में सुधार होता है।
(3) इससे सहनशीलता का विकास होता है।
(4) इससे हृदय व फेफड़ों की कार्यकुशलता में बढ़ोतरी होती है।
(5) इससे शरीर से वसा कम होती है और दिल के दौरे को सामान्य बनाती है।

प्रश्न 12.
भार प्रशिक्षण के महत्त्व का वर्णन कीजिए। अथवा
भार प्रशिक्षण के मुख्य लाभ बताएँ। उत्तर-भार प्रशिक्षण के लाभ अथवा महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हैं-
(1) भार प्रशिक्षण के द्वारा शरीर के वजन को घटाया व बढ़ाया जा सकता है।
(2) भार प्रशिक्षण से शक्ति तथा लचक में वृद्धि होती है।
(3) भार प्रशिक्षण के द्वारा माँसपेशियों के सिकुड़ने तथा फैलने में वृद्धि होती है।
(4) शरीर के सभी अंगों को शक्ति मिलने से शारीरिक शक्ति का विकास होता है।
(5) भार प्रशिक्षण द्वारा नाड़ी-संस्थान के आपसी तालमेल में वृद्धि होती है।
(6) भार प्रशिक्षण से माँसपेशियाँ तथा हडियाँ मजबूत होती हैं।

प्रश्न 13.
भार प्रशिक्षण के प्रमुख सिद्धांत लिखें।
अथवा
आप भार प्रशिक्षण किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भार प्रशिक्षण में अधिक भार सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है अर्थात् व्यायाम धीरे-धीरे अधिक भार बढ़ाकर किए जाते हैं। इसके प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(1) व्यायाम सरल से कठिन की ओर होने चाहिएँ।
(2) भार प्रशिक्षण से पहले झुकने तथा मुड़ने वाले व्यायाम करने चाहिएँ, ताकि शरीर में गर्मी आ जाए।
(3) भार प्रशिक्षण के समय श्वसन क्रिया सामान्य रहनी चाहिए।
(4) व्यायाम करते हुए बीच-बीच में आराम करना चाहिए।
(5) शरीर को शक्तिशाली बनाने के लिए अधिक भार उठाना चाहिए तथा क्षमता बढ़ाने के लिए हल्के भार का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 14.
सर्किट (परिधि) प्रशिक्षण का संक्षिप्त ब्यौरा दें।
उत्तर:
सर्किट/परिधि प्रशिक्षण बहुत प्रभावशाली और लोकप्रिय व्यायाम है। यह प्रायः शक्ति तथा सहनशीलता बढ़ाने के लिए किए जाता है। सन् 1957 में मॉर्गन तथा एडम्सन ने सर्किट प्रशिक्षण का प्रारंभिक रूप से विकास किया। मॉर्गन तथा एडम्सन के अनुसार, “सर्किट प्रशिक्षण एक ऐसी विधि है जिसमें विभिन्न व्यायामों को यन्त्रों तथा बिना यन्त्रों के निश्चित मात्रा में किया जाता है।” इसके पश्चात् इस प्रशिक्षण में बहुत अधिक परिवर्तन आए। सन् 1979 में स्कोलिक ने सर्किट प्रशिक्षण के लिए नए-नए व्यायामों की जानकारी दी। सर्किट प्रशिक्षण में लगभग 10 से 15 तक व्यायाम चुने जाते हैं। इन व्यायामों को इस ढंग से चुना जाता है ताकि इनका प्रभाव प्रदर्शन पर प्रभावशाली ढंग से पड़े। प्रायः व्यायामों को एक क्रम में रखा जाता है ताकि भिन्न-भिन्न मांसपेशियों के समूह को चक्र में पूरा व्यायाम मिल सके। सर्किट प्रशिक्षण नई तकनीक सिखाने में बहुत सहायक होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सर्किट प्रशिक्षण एक प्रभावकारी ढंग से किया जाने वाला व्यायाम है, जो शक्ति तथा सहनशीलता जैसी योग्यताओं में वृद्धि करता है।

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प्रश्न 15.
सर्किट प्रशिक्षण खेलों व शारीरिक सुयोग्यता में कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण का खेलों व शारीरिक सुयोग्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यह निम्नलिखित बातों/तथ्यों से स्पष्ट है
(1) सर्किट प्रशिक्षण से थोड़े स्थान पर ही अधिक व्यायाम संभव हैं।
(2) इस प्रशिक्षण से खिलाड़ी के प्रत्येक अंग की तैयारी हो जाती है।
(3) इस प्रशिक्षण द्वारा बहुत-से खिलाड़ी एक-साथ अभ्यास कर सकते हैं।
(4) इस प्रशिक्षण द्वारा शक्ति, क्षमता एवं सहनशीलता का विकास होता है अर्थात् यह शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता के सभी घटकों के विकास में सहायक होती है।
(5) यह प्रशिक्षण आसान एवं रुचिकर होता है और इसमें विभिन्न आसन होते हैं, जिस कारण खिलाड़ी उबता नहीं है।

प्रश्न 16.
सर्किट प्रशिक्षण की प्रमुख विधियों का वर्णन करें।
अथवा
आप सर्किट प्रशिक्षण किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. लगातार विधि: सर्किट प्रशिक्षण विधि में अन्य विधियों से अधिक व्यायाम होते हैं। इसमें बिना किसी रुकावट के व्यायाम करने होते हैं, जब तक एक चक्र पूरा नहीं हो जाता। दो चक्रों के मध्य 3 से 5 मिनट की रुकावट की जा सकती है। इसमें यह बताना कि कितनी बार दोहराई होनी है, बहुत कठिन है, परंतु कोच अपने निर्णय के अनुसार व्यायामों की दोहराई की संख्या निश्चित कर सकता है।

2. अंतराल विधि: इसमें लगातार विधि से कम व्यायाम होते हैं। इसमें तीव्रता अधिक होती है तथा आयतन कम होता है। इस विधि में खिलाड़ी निश्चित समय में ही निश्चित व्यायाम करता है तथा फिर थोड़ा आराम करता है।

3. दोहराई विधि: यह विधि सर्किट प्रशिक्षण में कम प्रयोग की जाती है। इसमें पहली दोनों विधियों से कम संख्या में व्यायाम होते हैं।

प्रश्न 17.
सर्किट प्रशिक्षण की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण की मुख्य विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
(1) इस विधि में व्यायाम सीखना आसान होता है तथा उसको लागू करना भी आसान होता है।
(2) इसमें व्यायाम मध्यम अवरोध तथा मध्यम भार के साथ किए जाते हैं।
(3) इसमें संख्या की अधिक पुनरावृत्ति होती है।
(4) इसका लक्ष्य सहनशीलता व शक्ति को बढ़ावा देना है।
(5) इसमें शरीर के सभी अंगों के व्यायाम शामिल होते हैं।
(6) इसमें खिलाड़ियों को तैयारी के समय मूल सहनशीलता व शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है।
(7) इसमें व्यायाम का दबाव धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 18.
परिधि प्रशिक्षण के लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सर्किट प्रशिक्षण के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
परिधि/परिधि प्रशिक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) परिधि प्रशिक्षण में खेल संबंधी उपकरण आसानी से प्राप्त किए जाते हैं।
(2) यह प्रशिक्षण रुचिकर है और सीखने में बहुत आसान है।
(3) इसमें विभिन्न अभ्यासों या व्यायामों को करने के लिए अधिक समय की जरूरत नहीं पड़ती।
(4) इनमें एक ही समय में बहुत-से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
(5) इसमें सीखने वालों की योग्यता के अनुसार प्रशिक्षण को घटाया-बढ़ाया जा सकता है।
(6) यह प्रशिक्षण पुष्टि व सुयोग्यता के सभी घटकों के विकास में सहायक होता है।

प्रश्न 19.
तालमेल संबंधी योग्यता का वर्णन कीजिए।
अथवा
तालबद्ध व्यायाम क्या होते हैं? उदाहरण दें।
अथवा
तालबद्ध व्यायामों का शारीरिक पुष्टि के विकास के साधन के रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक अंगों के आपस में मिलकर कार्य करने की शक्ति को तालमेल कहते हैं। मानवीय विकास शक्ति और वृद्धि के तालमेल के बिना नहीं हो सकता। तालमेल से शरीर का प्रत्येक अंग मिल-जुलकर कार्य करता है। जब मानवीय शरीर तालमेल से कार्य करता है तो मनुष्य के व्यक्तित्व में वृद्धि होती है। यदि मनुष्य के सारे अंग ठीक ढंग से कार्य करते हों, परंतु दिमाग कार्य न करता हो तो शरीर के बाकी सारे अंग बेकार हो जाते हैं। इसलिए दिमाग, शरीर और स्थिति तालमेल की माँग करते हैं। तालमेल के बिना शारीरिक पुष्टि विकसित नहीं हो सकती। लेजियम, लोक-नृत्य, जम्पिंग, पी०टी० कसरतें आदि तालबद्ध व्यायाम हैं। इनमें शरीर की तालबद्ध गतिविधियाँ होती हैं जो समूह में की जाती हैं। ये गतिविधियाँ हृदय की माँसपेशियों के लिए जरूरी होती हैं। इन व्यायामों से लचक एवं लय संबंधी योग्यताओं का विकास होता है।

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अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक पुष्टि से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि/योग्यता का अर्थ बहुत व्यापक है, इसलिए इसे परिभाषित करना बहुत कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह हमें अपने शरीर को सही ढंग से रखने और अधिक देर तक मेहनत करने की क्षमता प्रदान करती है। डॉ० ए० के० उप्पल के अनुसार, “शारीरिक पुष्टि वह क्षमता है जिसके द्वारा शारीरिक क्रियाओं के विभिन्न रूपों को बिना थकावट के तर्कपूर्ण ढंग से किया जा सके। इसके अंतर्गत व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा नीरोगता के महत्त्वपूर्ण गुण सम्मिलित होते हैं।”

प्रश्न 2.
सुयोग्यता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सुयोग्यता एक ऐसी अवस्था है, जो हमारे दैनिक जीवन में प्रत्येक कार्य को प्रभावकारी ढंग से करने में सहायक होती है तथा शेष बची हुई शक्ति से हम खाली समय में मनोरंजन कर सकते हैं। सुयोग्यता व्यक्ति की वह क्षमता या योग्यता है जिसके द्वारा वह एक उत्तम एवं संतुलित जीवन व्यतीत करता है। इसमें मन, शरीर एवं आत्मा का संतुलन शामिल होता है। इसलिए यह शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की दशा या विशेषता होती है।

प्रश्न 3. शारीरिक योग्यता के क्या अवयव हैं?
उत्तर:
(1) गति, (2) शक्ति, (3) लचक, (4) सहनशीलता, (5) स्फूर्ति, (6) तालमेल, (7) समन्वय आदि।

प्रश्न 4.
शक्ति या ताकत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शक्ति हमारे शरीर की माँसपेशियों द्वारा उत्पन्न की गई वह ऊर्जा है जिसके द्वारा हम कुछ कार्य कर सकते हैं। शक्ति को मापने के लिए पौंड या डाइन का प्रयोग किया जाता है। यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है:

स्थिर शक्ति
गतिशील शक्ति।

प्रश्न 5.
स्थिर शक्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थिर शक्ति को ‘आइसोमीट्रिक शक्ति’ भी कहा जाता है। कुछ समय के लिए मनुष्य लगातार अपनी माँसपेशियों की अधिक-से-अधिक जितनी शक्ति लगा सकता है, वह उसकी स्थिर शक्ति कहलाती है। इस शक्ति को डायनेमोमीटर (Dynamometer) द्वारा मापा जाता है। प्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार की शक्ति में कार्य होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता।

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प्रश्न 6.
लचक का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यक्ति के शरीर के जोड़ों की गतिक्षमता को लचक कहते हैं। अधिक लचक वाला व्यक्ति बिना किसी कष्ट के अधिक देर तक कार्य कर सकता है तथा उसका व्यक्तित्व भी अच्छा होता है। आमतौर पर लचीलापन, कोमलता और गतिशीलता को एक-दूसरे के लिए प्रयोग किया जाता है, परंतु इनमें बहुत अंतर है। अतः लचक वह योग्यता है, जिसमें प्रत्येक क्रिया अधिक विस्तार से बिना किसी रोक-टोक के की जाती है।

प्रश्न 7.
सक्रिय लचक क्या है?
उत्तर:
सक्रिय लचक को खिलाड़ी बिना किसी बाहरी सहायता के स्वतंत्र रूप से माँसपेशियों की क्रियाशीलता द्वारा प्राप्त करता है। सक्रिय लचक न केवल माँसपेशियों के सिकुड़ने, बल्कि जोड़ों की मांसपेशियों पर भी निर्भर करती है। अतः बिना किसी बाहरी सहायता से शरीर के जोड़ों का अधिक देर तक गति करना सक्रिय लचक कहलाता है; जैसे खिंचाव वाला व्यायाम बिना किसी की सहायता से करना आदि।

प्रश्न 8.
गतिशील लचक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब शरीर गति में होने के कारण अधिक विस्तार से क्रिया करता है, तो उसको गतिशील लचक कहते हैं। लचक का यह रूप शरीर को अधिक श्रम और खेल प्रदर्शन के लिए तैयार करता है। इस प्रकार की लचक चोट के जोखिम को कम करती है।

प्रश्न 9.
निष्क्रिय लचक क्या है?
उत्तर:
निष्क्रिय लचक से तात्पर्य बाहरी सहायता से अधिक-से-अधिक विस्तार से क्रिया करने वाली योग्यता से है। निष्क्रिय लचक अन्य सभी किस्मों का आधार है। यह बहुत अधिक माँसपेशियों के सिकुड़ने, जोड़ों (लिगामेंट्स) और हड्डियों की बनावट पर निर्भर करती है।

प्रश्न 10.
सहनक्षमता/सहनशीलता का क्या अर्थ है?
अथवा
सहनशीलता के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सहनशीलता या सहनक्षमता एक प्रतिरोध योग्यता है जो थकावट के विरुद्ध होती है। सामान्य शब्दों में, यह खिलाड़ी की वह योग्यता है, जिसके साथ खिलाड़ी बिना किसी थकावट के क्रिया करता है। वास्तव में, किसी गति या भार को अधिक समय तक अपने ऊपर स्थिर रखने की व्यक्ति के शरीर की संरचनात्मक क्षमता को उसकी सहनक्षमता या सहनशीलता कहा जाता है।

प्रश्न 11.
अनएरोबिक क्रियाएँ क्या होती हैं? उदाहरण दें।
उत्तर:
अनएरोबिक क्रियाएँ वे होती हैं जो ऑक्सीजन के बिना की जाती हैं। इन क्रियाओं से एडिनोसिन ट्राइफास्फेट जोकि माँसपेशियों के लिए ऊर्जा या शक्ति का साधन होता है ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बन-डाइऑक्साइड के प्रयोग द्वारा तैयार होता है। थ्रोइंग व जम्पिंग क्रियाएँ, वेट लिफ्टिंग, तैराकी आदि अनएरोबिक क्रियाओं के उदाहरण हैं।

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प्रश्न 12.
एरोबिक क्रियाएँ क्या होती हैं? उदाहरण दें।
उत्तर:
एरोबिक क्रियाएँ वे होती हैं जिनको करने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। जॉगिंग, साइकलिंग आदि एरोबिक क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 13.
प्रतिक्रिया योग्यता क्या है?
उत्तर:
प्रतिक्रिया योग्यता द्वारा खिलाड़ी किसी संकेत को देखकर अथवा सुनकर पूर्ण तीव्रता से प्रक्रिया प्रारम्भ करता है। जैसे दौड़ के प्रारम्भ होने के समय बंदूक की आवाज़ से पूर्व केवल संकेत का आभास करके खिलाड़ी ब्लॉक में से बाहर आकर दौड़ता है।

प्रश्न 14.
अधिकतम शक्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अधिकतम शक्ति, शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। अधिकतम अवरोध के विरूद्ध कार्य करने की योग्यता अधिकतम शक्ति (Maximum Strength) कहलाती है।

प्रश्न 15.
आहार शारीरिक योग्यता को कैसे प्रभावित करता है? अथवा संतुलित आहार शारीरिक योग्यता को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
संतुलित आहार से हमारी शारीरिक संरचना अच्छी रहती है। इससे न केवल खेलकूद के क्षेत्र में, बल्कि आम दैनिक जीवन में भी हमारी कार्यकुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। संतुलित व पौष्टिक आहार से हमारा तात्पर्य उन पोषक तत्त्वों; जैसे वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज-लवणों, विटामिनों एवं जल आदि से है जो आहार में उचित मात्रा में उपस्थित होते हैं तथा शरीर का संतुलित विकास करते हैं। मोटापे के कारण व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है। आजकल मोटापा एक महामारी की भाँति फैल रहा है जिसको संतुलित आहार लेने से तथा उचित व्यायाम करने से नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
शारीरिक पुष्टि (Physical Fitness) के विकास के सिद्धांतों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक पुष्टि के विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(1) निरंतरता का सिद्धांत
(2) नियमितता का सिद्धांत
(3) अतिभार का सिद्धांत
(4) विभिन्नता का सिद्धांत
(5) प्रगतिशीलता का सिद्धांत
(6) गर्माना
(7) लिम्बरिंग डाउन आदि।

प्रश्न 17.
विस्फोटक शक्ति क्या है?
उत्तर:
विस्फोटक शक्ति खिलाड़ी का वह सामर्थ्य है जब वह तेज गति से प्रतिरोध पर काबू पाता है। यह शक्ति हमेशा डायनैमिक होती है तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। यह गति तथा शक्ति का सुमेल है। यह भिन्न-भिन्न खेलों में भिन्न-भिन्न किस्मों में पाई जाती है।

प्रश्न 18.
गति क्या है?
उत्तर:
गति व्यक्ति की वह योग्यता या क्षमता है जिसके द्वारा वह एक ही प्रकार की हलचल या हरकत को पुनः तेज गति से करता है अर्थात् शरीर के अंगों या संपूर्ण शरीर को अधिकतम वेग से घुमाने की क्षमता को गति कहते हैं।

प्रश्न 19.
व्यायाम शारीरिक योग्यता को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
व्यायाम शारीरिक योग्यता को बहुत प्रभावित करता है। प्रात:काल और सायंकाल का समय व्यायाम और प्रशिक्षण के लिए अति लाभदायक है। प्रात:काल के व्यायाम शरीर को चुस्त और लचकदार: बनाते हैं । सायंकाल के व्यायाम व्यक्ति को पूरे दिन के मानसिक तनाव और शारीरिक थकावट से छुटकारा दिलाते हैं। व्यायाम और प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाते समय अभ्यास सुविधाओं और गर्मी व सर्दी जैसे मौसम का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

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प्रश्न 20.
जॉगिंग (Jogging) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जॉगिंग से तात्पर्य है कि धीरे-धीरे या आराम से दौड़कर शरीर को गर्माना। जॉगिंग गर्माने का सबसे बढ़िया ढंग है। इससे शरीर की सभी प्रणालियाँ अच्छे ढंग से काम करना शुरू कर देती हैं।

प्रश्न 21.
साइकलिंग (Cycling) से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
साइकलिंग वायवीय तथा अवायवीय क्रिया है। इससे हृदय और फेफड़ों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। साइकलिंग का अभ्यास यदि प्रतिदिन नियमित रूप से किया जाए तो शारीरिक पुष्टि आसानी से विकसित की जा सकती है।

प्रश्न 22.
भार प्रशिक्षण क्या है?
उत्तर:
भार प्रशिक्षण विधि से हमारा अभिप्राय उन व्यायामों या कसरतों से है जो हमारे शरीर की विशेष माँसपेशियों को मज़बूत एवं शक्तिशाली बनाती हैं। यह प्रशिक्षण BAR-BELLS की सहायता से किया जाता है। इससे शरीर के विभिन्न भागों के आकार में परिवर्तन होता है और विभिन्न भागों का अनुकूलन भी होता है। इसके माध्यम से शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति सामान्य होने की कोशिश करता है। इससे माँसपेशियाँ मजबूत बनती हैं, उनके आकार तथा शरीर के भार में भी परिवर्तन होता है। यह प्रशिक्षण शारीरिक पुष्टि को विकसित करता है।

प्रश्न 23.
वज़न (भार) प्रशिक्षण के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) वज़न प्रशिक्षण से शक्ति तथा लचक में वृद्धि होती है।
(2) वज़न प्रशिक्षण से माँसपेशियों के सिकुड़ने तथा फैलने में वृद्धि होती है।

प्रश्न 24.
स्फूर्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब खिलाड़ी अपने शरीर या शरीर के किसी हिस्से को हवा में तेजी के साथ और सही ढंग से उसकी दिशा को बदलता है तो उसको स्फूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 25.
सुयोग्यता कार्यक्रम क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
सुयोग्यता कार्यक्रम व्यक्ति के आकार एवं आकृति में सुधार करने में सहायता करते हैं। ये व्यक्ति की कार्यक्षमता, उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार करने में सहायक होते हैं। इसलिए सुयोग्यता कार्यक्रम हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 26.
वंशानुक्रम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वंशानुक्रम से अभिप्राय है-अपने पूर्वजों से प्राप्त होने वाले शारीरिक गुण। यह व्यक्ति की शारीरिक योग्यता को प्रभावित करता है। इसका मुख्य कारण व्यक्ति की शारीरिक संरचना होती है जोकि व्यक्ति के वंश से मिले गुणों द्वारा निर्धारित होती है।

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प्रश्न 27.
तालबद्ध व्यायाम क्या होते हैं?
उत्तर:
तालबद्ध व्यायाम में शरीर की तालबद्ध गतिविधियाँ होती हैं जो समूह में की जाती हैं। ये गतिविधियाँ हृदय की मांसपेशियों के लिए अच्छी होती हैं। इन व्यायामों से लचक एवं लय संबंधी योग्यताओं का विकास होता है। लेजियम, समूह नृत्य, पी०टी० कसरतें आदि तालबद्ध व्यायाम हैं।

प्रश्न 28.
शारीरिक योग्यता के विकास में अतिभार का सिद्धांत कैसे सहायक है?
उत्तर:
शारीरिक योग्यता के विकास के लिए अतिभार के सिद्धांत को अपनाना अति आवश्यक है। अतिभार के सिद्धांत को अपनाने के लिए लंबी दूरी के धावक धीरे-धीरे दूरी में बढ़ोतरी करते रहते हैं। अतिभार सघनता के द्वारा भी बढ़ाया जा सकता है। अतिभार के लिए यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब तक अनुकूलन न हो जाए तब तक अतिभार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 29.
मनोरंजनात्मक क्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
मनोरंजनात्मक क्रियाएँ, वे क्रियाएँ होती हैं जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक ऊर्जा का पुनरुद्धार (Restoring) करने में सहायक होती है। इस पुनरुद्धार से व्यक्ति अपना दैनिक कार्य अधिक कुशलतापूर्वक करने के योग्य हो जाता है।

प्रश्न 30.
सर्किट प्रशिक्षण विधि को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मॉर्गन तथा एडम्सन के अनुसार, “सर्किट प्रशिक्षण विधि एक ऐसी विधि है जिसमें विभिन्न व्यायामों को यन्त्रों तथा यन्त्रों के बिना निश्चित मात्रा में किया जाता है।”

प्रश्न 31.
सर्किट प्रशिक्षण विधि के मुख्य व्यायामों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) स्टैपिंग-अप ऑन ए बॉक्स
(2) पुश-अप
(3) सिट-अप
(4) जंपिंग ओवर द हर्डल्स
(5) गुड मॉर्निंग व्यायाम
(6) पुल-अप।

प्रश्न 32.
सर्किट प्रशिक्षण विधि के प्रमुख सिद्धांत बताएँ।
उत्तर:
(1) प्रशिक्षण स्टेशनों की संख्या बढ़ाना
(2) सर्किट दोहराई
(3) भार में वृद्धि करना
(4) आराम की अवधि को घटाना
(5) व्यायाम के समय को बढ़ाना।

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प्रश्न 33.
बुनियादी या मौलिक सहनशीलता क्या है?
उत्तर:
बुनियादी सहनशीलता को एरोबिक सहनशीलता भी कहते हैं। यह वह योग्यता है, जो धीरे से मध्यम गति के साथ क्रिया करने से होने वाली थकावट पर नियंत्रण रखती है। इसके अंतर्गत जॉगिंग एवं साइकलिंग आदि क्रियाएँ आती हैं।

प्रश्न 34.
सामान्य सहनशीलता क्या है?
उत्तर:
भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाएँ चाहे वे वायवीय (एरोबिक) अथवा अवायवीय (अनएरोबिक) हों, इसके दौरान आई थकावट पर नियंत्रण करने वाली क्षमता को सामान्य सहनशीलता कहते हैं। यह एरोबिक और अनएरोबिक व्यायामों को बिना किसी थकावट के लंबे समय तक करने वाली योग्यता है।

प्रश्न 35.
विशेष सहनशीलता क्या है?
उत्तर:
विशेष खेलों में थकावट का प्रतिरोध करने वाली योग्यता को विशेष सहनशीलता कहते हैं। जिस तरह स्वाभाविक रूप से थकावट भिन्न-भिन्न खेलों में भिन्न-भिन्न होती है, उसी तरह सहनशीलता भी भिन्न-भिन्न खेलों में भिन्न-भिन्न होती है। इसको शक्ति सहनशीलता भी कहते हैं। इसका प्रयोग लम्बी दूरी की दौड़ों, तैराकी, मैराथन दौड़ तथा पोल वॉल्ट में काफी हद तक किया जाता है।

प्रश्न 36.
संतुलन योग्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
शारीरिक प्रक्रियाओं के दौरान खिलाड़ी को अपना संतुलन बनाए रखना पड़ता है। ऐसा करते समय वह अपनी क्रिया प्रारम्भ रखता है। कई खेल-क्रियाएँ ऐसी होती हैं जोकि खिलाड़ी का संतुलन बिगाड़ने में भूमिका निभाती है लेकिन खिलाड़ी तत्काल ही स्वयं संतुलन उत्पन्न कर लेता है। यथा-जिम्नास्टिक की प्रक्रियाओं के समय खिलाड़ी का संतुलन बिगड़ जाता है लेकिन पाँवों पर खड़ा होने के समय वह स्वयं ही संतुलित हो जाता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

HBSE 12th Class Physical Education शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न [Objective Type Questions]

भाग-I : एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
शक्ति कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
शक्ति दो प्रकार की होती है।

प्रश्न 2.
लचक कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
लचक दो प्रकार की होती है।

प्रश्न 3.
वाटरलू की प्रसिद्ध लड़ाई कहाँ जीती गई?
उत्तर:
वाटरलू की प्रसिद्ध लड़ाई ऐटन के खेल के मैदानों पर जीती गई।

प्रश्न 4.
अत्यधिक गर्मी में अभ्यास करने से क्या हो सकता है?
उत्तर:
अत्यधिक गर्मी में अभ्यास करने से हीटस्ट्रोक हो सकता है।

प्रश्न 5.
अत्यधिक सर्दी में अभ्यास करने से क्या हो सकता है?
उत्तर:
अत्यधिक सर्दी में अभ्यास करने से फ्रास्ट बाइट हो सकता है।

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प्रश्न 6.
किस विधि में शरीर के सभी अंगों का अभ्यास हो सकता है?
उत्तर:
सर्किट या परिधि प्रशिक्षण विधि में शरीर के सभी अंगों का अभ्यास हो सकता है।

प्रश्न 7.
सहनशीलता कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
सहनशीलता तीन प्रकार की होती है।

प्रश्न 8.
भार प्रशिक्षण को सर्वप्रथम किस राष्ट्र ने अपनाया था?
उत्तर:
भार प्रशिक्षण को सर्वप्रथम जर्मनी ने अपनाया था।

प्रश्न 9.
जिम्नास्टिक द्वारा किस शारीरिक पुष्टि के घटक में वृद्धि होती है?
उत्तर:
जिम्नास्टिक द्वारा लचक में वृद्धि होती है।

प्रश्न 10.
किस योग्यता में प्रत्येक क्रिया अधिक विस्तार से बिना रोक-टोक के की जाती है?
उत्तर:
लचक में प्रत्येक क्रिया अधिक विस्तार से बिना रोक-टोक के की जाती है।

प्रश्न 11.
स्थिर शक्ति का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
स्थिर शक्ति का दूसरा नाम आइसोमीट्रिक (Isometric) शक्ति या क्षमता है।

प्रश्न 12.
1980 के दशक से पूर्व शारीरिक पुष्टि के कितने तत्त्व या घटक समझे जाते थे?
उत्तर:
1980 के दशक से पूर्व शारीरिक पुष्टि के पाँच तत्त्व या घटक समझे जाते थे।

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प्रश्न 13.
1980 के बाद शारीरिक पुष्टि का कौन-सा घटक नहीं माना जाता?
उत्तर:
1980 के बाद शारीरिक पुष्टि का फूर्तीलापन या स्फूर्ति घटक नहीं माना जाता।

प्रश्न 14.
गति सर्वाधिक किस प्रणाली पर निर्भर करती है?
उत्तर:
गति सर्वाधिक माँसपेशी प्रणाली पर निर्भर करती है।

प्रश्न 15.
सहनशीलता को कैसे मापा जा सकता है?
उत्तर:
सहनशीलता को पुनरावृत्ति की संख्या द्वारा मापा जा सकता है।

प्रश्न 16.
अतिभार किसके द्वारा बढ़ाया जा सकता है?
उत्तर:
अतिभार सघनता द्वारा बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 17.
वायवीय क्रियाओं में किस गैस का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
वायवीय क्रियाओं में ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 18.
साइकलिंग कैसी क्रिया है?
उत्तर:
साइकलिंग एक वायवीय एवं अवायवीय क्रिया है।

प्रश्न 19.
किसी खिलाड़ी की स्फूर्ति को कैसे परखा जा सकता है?
उत्तर:
साइड स्टैप परीक्षण से खिलाड़ी की स्फूर्ति को परखा जा सकता है।

प्रश्न 20.
शारीरिक पुष्टि का कोई एक घटक बताएँ।
उत्तर:
सहनशीलता।

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प्रश्न 21.
थो करने के लिए किस प्रकार की शक्ति आवश्यक होती है?
उत्तर:
थ्रो करने के लिए विस्फोटक शक्ति आवश्यक होती है।

प्रश्न 22.
पेशीय रेशे कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
पेशीय रेशे दो प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 23.
स्थिर शक्ति को किस प्रकार नापा जाता है?
उत्तर:
स्थिर शक्ति को डायनेमोमीटर द्वारा नापा जाता है।

प्रश्न 24.
कैलिसथैनिक्स में किस प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
कैलिसथैनिक्स में हल्के उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 25.
जिम्नास्टिक में ग्राउंड फ्लोर व्यायाम और लोकनृत्य किस प्रकार के व्यायाम हैं?
उत्तर:
जिम्नास्टिक में ग्राउंड फ्लोर व्यायाम और लोकनृत्य लयबद्ध या तालबद्ध व्यायाम हैं।

प्रश्न 26.
जॉगिंग करते समय किस तरह के कपड़े पहनने चाहिएँ?
उत्तर:
जॉगिंग करते समय ढीले कपड़े (Loose Clothes) पहनने चाहिएँ।

प्रश्न 27.
जॉगिंग के लिए सतह कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
जॉगिंग के लिए सतह समतल होनी चाहिए।

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प्रश्न 28.
शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करने वाले कोई दो कारक बताएँ।
उत्तर:
1. पौष्टिक आहार
2. नियमित व्यायाम।

प्रश्न 29.
शारीरिक अंगों का विकास किससे होता है?
उत्तर:
नियमित व्यायाम गतिविधियों एवं संतुलित व पौष्टिक आहार से शारीरिक अंगों का विकास होता है।

प्रश्न 30.
क्या शारीरिक योग्यता से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है?
उत्तर:
हाँ, शारीरिक योग्यता से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है।

प्रश्न 31.
क्या जिम्नास्टिक से शारीरिक योग्यता में वृद्धि होती है?
उत्तर:
हाँ, जिम्नास्टिक से शारीरिक योग्यता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 32.
हमारे शरीर में शक्ति किससे पैदा होती है?
उत्तर:
हमारे शरीर में शक्ति माँसपेशियों से पैदा होती है।

प्रश्न 33.
एरोबिक क्रियाओं के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
1. जॉगिंग
2. साइकलिंग।

प्रश्न 34.
अनएरोबिक क्रियाओं के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
1. वेट-लिफ्टिग
2. थ्रोइंग इवेंट्स।

प्रश्न 35.
कैलिसथैनिक्स कैसी क्रिया है?
उत्तर:
कैलिसथैनिक्स एक स्वतंत्र वायवीय क्रिया है।

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प्रश्न 36.
शक्ति को किस इकाई से मापा जाता है?
उत्तर:
शक्ति को पौंड या डाइन इकाई से मापा जाता है।

प्रश्न 37.
भार प्रशिक्षण के प्रयोग का सुझाव कब और किसने दिया था?
उत्तर:
भार प्रशिक्षण के प्रयोग का सुझाव सन् 1812 में कैड्रिक बान ने दिया था।

प्रश्न 38.
जॉगिंग किस प्रकार की क्रिया है?
उत्तर:
जॉगिंग एक वायवीय क्रिया है।

प्रश्न 39.
कौन-सी शक्ति, गति एवं शक्ति की योग्यताओं का संयोग होती है?
उत्तर:
विस्फोटक शक्ति, गति एवं शक्ति की योग्यताओं का संयोग होती है।

प्रश्न 40.
सर्किट प्रशिक्षण विधि किस प्रणाली पर आधारित है?
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण विधि जिम्नास्टिक प्रणाली पर आधारित है।

प्रश्न 41.
सर्किट प्रशिक्षण पर अनुसंधान सर्वप्रथम कहाँ किया गया?
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण पर अनुसंधान सर्वप्रथम यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, इंग्लैंड में किया गया।

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प्रश्न 42.
जोड़ों की गति-क्षमता को क्या कहते हैं?
उत्तर:
जोड़ों की गति-क्षमता को लचक कहते हैं।

प्रश्न 43.
शीर्षासन से कौन-सी योग्यता मिलती है?
उत्तर:
शीर्षासन से शारीरिक योग्यता मिलती है।

प्रश्न 44.
भार प्रशिक्षण कितनी उम्र में शुरू करना चाहिए?
उत्तर:
भार प्रशिक्षण लगभग 12 वर्ष की उम्र में शुरू करना चाहिए।

प्रश्न 45.
सर्किट/परिधि प्रशिक्षण विधि का प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
परिधि प्रशिक्षण विधि का प्रतिपादन मॉर्गन व एडम्सन ने किया था।

प्रश्न 46.
परिधि प्रशिक्षण विधि का प्रतिपादन किस सन में किया गया था?
उत्तर:
परिधि प्रशिक्षण विधि का प्रतिपादन मॉर्गन व एडम्सन द्वारा सन् 1957 में किया गया था।

प्रश्न 47.
गतिशील शक्ति किस प्रकार की शक्ति है?
उत्तर:
गतिशील शक्ति एक आइसोटोनिक शक्ति है।

प्रश्न 48.
खींचने (Pull-up) तथा धक्का लगाने (Push-up) में कौन-सी शक्ति का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
खींचने (Pull-up) तथा धक्का लगाने (Push-up) में गतिशील शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 49.
तालमेल क्या है?
उत्तर:
शारीरिक अंगों के आपस में मिलकर कार्य करने की शक्ति को तालमेल कहते हैं।

प्रश्न 50.
शो/फेंकने के लिए कौन-सी गति की आवश्यकता होती है?
अथवा
गोला फेंकने में किस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
गोला फेंकने में गतिशील शक्ति (Dynamic Strength) की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 51.
ऊँची कूद, ट्रिपल जम्प तथा पोल वॉल्ट में उतरते समय कौन-सी शक्ति प्रयोग होती है?
उत्तर:
ऊँची कूद, ट्रिपल जम्प तथा पोल वॉल्ट में उतरते समय अधिकतम शक्ति प्रयोग होती है।

प्रश्न 52.
“सहनशीलता थकावट को रोकने या विरोध करने की योग्यता है।” ये शब्द किसने कहे?
उत्तर:
ये शब्द हर्रे ने कहे।

प्रश्न 53.
वह कौन-सी शक्ति है जो हमेशा तकनीकी कौशल और तालमेल व सामर्थ्य के साथ जुड़ी है?
उत्तर:
साधारण शक्ति हमेशा तकनीकी कौशल और तालमेल व सामर्थ्य के साथ जुड़ी है।

प्रश्न 54.
शारीरिक पुष्टि का कौन-सा घटक एक प्रतिरोध योग्यता है जो थकावट के विरुद्ध होता है?
उत्तर:
सहनशीलता।

प्रश्न 55.
तैराकी में बैक स्ट्रोक सीखने के लिए शरीर में कौन-सा शारीरिक पुष्टि का घटक होना चाहिए?
उत्तर:
तैराकी में बैक स्ट्रोक सीखने के लिए शरीर में लचक होनी चाहिए।

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प्रश्न 56.
शारीरिक योग्यता के कौन-से अंग को आंतरिक बल (Stamina) भी कहा जाता है?
उत्तर:
सहनशीलता को।

प्रश्न 57.
साइकलिंग शारीरिक पुष्टि के किस अवयव के लिए महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
साइकलिंग शक्ति व सहनशीलता के लिए महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 58.
तैराकी तथा दौड़ों के द्वारा शरीर के किस अंग की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है?
उत्तर:
तैराकी तथा दौड़ों के द्वारा फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 59.
ऑक्सीजन की उपस्थिति में किया गया शारीरिक अभ्यास क्या कहलाता है?
उत्तर:
ऑक्सीजन की उपस्थिति में किया गया शारीरिक अभ्यास एरोबिक अभ्यास कहलाता है।

प्रश्न 60.
एक ही स्थिति में अधिक समय तक रहने की शक्ति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
एक ही स्थिति में अधिक समय तक रहने की शक्ति को संतुलन कहते हैं।

प्रश्न 61.
जॉगिंग करने से शरीर के किस अंग की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है?
उत्तर:
जॉगिंग करने से हृदय और फेफड़ों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 62.
वजन प्रशिक्षण को सप्ताह में कितने दिन करना चाहिए?
उत्तर:
वजन प्रशिक्षण को सप्ताह में दो से चार दिन करना चाहिए।

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प्रश्न 63.
सर्किट प्रशिक्षण में कितने व्यायाम होते हैं?
उत्तर:
सर्किट प्रशिक्षण में 10 से 15 व्यायाम होते हैं।

प्रश्न 64.
परिधि प्रशिक्षण विधि में लगभग कितने स्टेशन होते हैं ?
उत्तर:
परिधि प्रशिक्षण विधि में लगभग 8 से 12 स्टेशन होते हैं।

प्रश्न 65.
खिलाड़ियों को जॉगिंग कैसी सतह पर करनी चाहिए?
उत्तर:
खिलाड़ियों को जॉगिंग समतल सतह वाले मैदान पर करनी चाहिए।

प्रश्न 66.
अत्यधिक गर्मी व आर्द्रता वाले मौसम में खिलाड़ी को अभ्यास करते हुए कैसे कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर:
अत्यधिक गर्मी व आर्द्रता वाले मौसम में खिलाड़ी को अभ्यास करते हुए सूती के हल्के कपड़े पहनने चाहिए।

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भाग-II: सही विकल्प का चयन करें

1. अनएरोबिक योग्यता सहायक है
(A) क्षमता के विकास में
(B) शक्ति के विकास में
(C) दिमाग एवं माँसपेशीय विकास में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दिमाग एवं माँसपेशीय विकास में

2. “शारीरिक पुष्टि किसी के जीने के ढंग के दबावों का सफल अनुकूलन है।” ये शब्द किसने कहे?
(A) मॉर्गन ने
(B) एडम्सन ने
(C) डॉ० क्रोल्स ने
(D) डॉ०ए०के० उप्पल ने
उत्तर:
(C) डॉ० क्रोल्स ने

3. व्यक्ति की ऐसी दक्षता या कुशलता जिसके द्वारा व्यक्ति संतुलित जीवन व्यतीत करता है, को क्या कहते हैं?
(A) कुशलता
(B) सामर्थ्य
(C) सुयोग्यता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सुयोग्यता

4. निम्नलिखित में से कौन-सी शारीरिक गतिविधि मानसिक लाभ का वर्णन करती है?
(A) शारीरिक गतिविधि शारीरिक बनावट को बढ़ाती है
(B) शारीरिक गतिविधि नियम की समझ का विकास करती है
(C) शारीरिक गतिविधि स्ट्रेस व तनाव को दूर करने में सहायक है
(D) शारीरिक गतिविधि दोस्ती का विकास करती है
उत्तर:
(C) शारीरिक गतिविधि स्ट्रेस व तनाव को दूर करने में सहायक है

5. निम्नलिखित में से शारीरिक पुष्टि के अंग हैं
(A) गति
(B) सहनशीलता
(C) शक्ति
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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6. गति का सीधा संबंध व्यक्ति के किस संस्थान से होता है?
(A) नाड़ी प्रणाली
(B) माँसपेशी प्रणाली
(C) पाचन प्रणाली
(D) श्वसन प्रणाली
उत्तर:
(B) माँसपेशी प्रणाली

7. नियमित व्यायाम करने से क्या किया जा सकता है?
(A) नियमितता बनाए रखी जा सकती है
(B) शरीर को स्थूल बनाया जा सकता है
(C) शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता बढ़ाई जा सकती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता बढ़ाई जा सकती है

8. सुयोग्यता के आवश्यक अंग हैं
(A) सामाजिक सुयोग्यता
(B) शारीरिक सुयोग्यता
(C) बौद्धिक सुयोग्यता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. स्वास्थ्य संबंधित सुयोग्यता का उद्देश्य है
(A) शारीरिक सुयोग्यता का विकास करना
(B) पोषण संबंधी सुयोग्यता बढ़ाना
(C) सक्रिय व स्वस्थ जीवन-शैली का विकास करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. एरोबिक योग्यता का विकास होता है
(A) बास्केटबॉल खेलने से
(B) फुटबॉल खेलने से
(C) वाटर-पोलो खेलने से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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11. शारीरिक पुष्टि को संतुलित बनाए रखने में सहायक है
(A) नियमित व्यायाम
(B) स्वच्छ वातावरण
(C) संतुलित व पौष्टिक भोजन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

12. शारीरिक पुष्टि का अर्थ है
(A) अच्छे शरीर का होना
(B) शरीर के सभी संस्थानों का सुचारु रूप से कार्य करना
(C) दैनिक कार्य करने की क्षमता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

13. शारीरिक पुष्टि का एक पहलू है
(A) शारीरिक सुयोग्यता
(B) शारीरिक शिक्षा
(C) शारीरिक क्रिया
(D) शारीरिक ढाँचा
उत्तर:
(A) शारीरिक सुयोग्यता

14. शारीरिक पुष्टि का एक घटक है
(A) माँसपेशीय शक्ति
(B) पोषण
(C) नींद
(D) दिखना
उत्तर:
(A) माँसपेशीय शक्ति

15. शारीरिक पुष्टि व्यक्ति की उम्र को ………..
(A) रोकती
(B) कम करती
(C) बढ़ाती
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) बढ़ाती

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16. शक्ति हमारे शरीर के किस अंग द्वारा पैदा होती है?
(A) फेफड़ों द्वारा
(B) माँसपेशियों द्वारा
(C) नाड़ियों द्वारा
(D) मस्तिष्क द्वारा
उत्तर:
(B) माँसपेशियों द्वारा

17. मनुष्य की वह योग्यता जो किसी भी स्थिति में कम-से-कम समय लेकर अपने कार्य को पूरा करती है, वह कहलाती है
(A) शक्ति
(B) स्फूर्ति
(C) गति
(D) सहनशीलता
उत्तर:
(C) गति

18. गति के विकास की विधियाँ हैं
(A) त्वरण दौड़ें
(B) पेस दौड़ें
(C) लिम्बरिंग डाउन
(D) (A) व (B) दोनों
उत्तर:
(D) (A) व (B) दोनों

19. गतिशील शक्ति किस प्रकार की शक्ति है?
(A) आइसोटोनिक
(B) आइसोकाइनेटिक
(C) आइसोमीट्रिक
(D) एरोबिक
उत्तर:
(A) आइसोटोनिक

20. खींचना (Pull-up) तथा धक्का लगाने (Push-up) में कौन-सी शक्ति का प्रयोग किया गया है?
(A) गतिशील शक्ति का
(B) स्थिर शक्ति का
(C) अधिकतम शक्ति का
(D) शक्ति सहनशीलता का
उत्तर:
(A) गतिशील शक्ति का

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21. सर्किट प्रशिक्षण विधि किस प्रणाली पर आधारित है?
(A) जिम्नास्टिक पर
(B) एथलेटिक्स पर
(C) स्पिंटस पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) जिम्नास्टिक पर

22. शीर्षासन से कौन-सी योग्यता मिलती है?
(A) मानसिक योग्यता
(B) शारीरिक योग्यता
(C) सामाजिक योग्यता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) शारीरिक योग्यता

23. शक्ति के कितने प्रकार होते हैं?
(A) चार
(B) दो
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर:
(B) दो

24. स्थिर शक्ति को किस यन्त्र से मापा जाता है?
(A) थर्मामीटर
(B) लैक्टोमीटर
(C) डायनेमोमीटर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) डायनेमोमीटर

25. शरीर की शक्ति को नापा जा सकता है
(A) किलोग्राम में
(B) डाइन में
(C) मीटर में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) डाइन में

26. निम्नलिखित में से कौन-सा एक गतिशील शक्ति का भाग नहीं है?
(A) अधिकतम शक्ति
(B) शक्ति सहनक्षमता
(C) विस्फोटक शक्ति
(D) स्थिर शक्ति
उत्तर:
(D) स्थिर शक्ति

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

27. लचक को बढ़ाने वाले आसन हैं
(A) चक्रासन व हलासन
(B) धनुरासन व भुजंगासन
(C) शलभासन व पश्चिमोत्तानासन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

28. ऊँची कूद, ट्रिपल जम्प तथा पोल वॉल्ट में उतरते समय कौन-सी शक्ति प्रयोग होती है?
(A) स्थिर शक्ति
(B) अधिकतम शक्ति
(C) विस्फोटक शक्ति
(D) शक्ति सहनशीलता
उत्तर:
(B) अधिकतम शक्ति

29. जैवलिन थ्रो तथा डिस्कस थ्रो में कौन-सी शक्ति प्रयोग होती है?
(A) विस्फोटक शक्ति
(B) अधिकतम शक्ति
(C) स्थिर शक्ति
(D) गतिशील शक्ति
उत्तर:
(A) विस्फोटक शक्ति

30. वह शक्ति जो भिन्न-भिन्न स्थितियों में तेज गति के साथ अवरोध पर काबू पाती है, कौन-सी शक्ति कहलाती है?
(A) साधारण शक्ति
(B) विस्फोटक शक्ति
(C) गतिशील शक्ति
(D) स्थिर शक्ति
उत्तर:
(B) विस्फोटक शक्ति

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

31. वह कौन-सी शक्ति है जो हमेशा तकनीकी कौशल और तालमेल व सामर्थ्य के साथ जुड़ी है?
(A) साधारण शक्ति
(B) गतिशील शक्ति
(C) विशेष शक्ति
(D) विस्फोटक शक्ति
उत्तर:
(A) साधारण शक्ति

32. थकावट के विरुद्ध अवरोधक योग्यता कहलाती है
(A) गति
(B) शक्ति
(C) लचीलापन
(D) सहनशीलता
उत्तर:
(D) सहनशीलता

33. माँसपेशीय सहनशीलता विशेषतः एक
(A) शारीरिक थकावट को रोकने की क्षमता है
(B) सभी प्रकार के खिलाड़ियों की अर्जित विशेषता है
(C) जिम्नास्ट की मूलभूत सुयोग्यता का घटक है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) शारीरिक थकावट को रोकने की क्षमता है

34. जिम्नास्टिक द्वारा शारीरिक पुष्टि के किस घटक में वृद्धि होती है?
(A) लचक में
(B) गति में
(C) शक्ति में
(D) सहनशीलता में
उत्तर:
(A) लचक में

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

35. स्वास्थ्य संबंधित सुयोग्यता के घटकों में से मुख्य घटक है
(A) गति
(B) शक्ति
(C) लचीलापन
(D) शारीरिक बनावट
उत्तर:
(D) शारीरिक बनावट

36. सर्किट प्रशिक्षण सर्वप्रथम किसके द्वारा शुरुआत, व्याख्यायित व अध्ययन किया गया?
(A) मॉर्गन व एडम्सन
(B) एच०क्लार्क व डी० क्लार्क
(C) स्कोलिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मॉर्गन व एडम्सन

37. सहनशीलता को कैसे मापा जा सकता है?
(A) अवधि द्वारा
(B) पुनरावृत्ति की संख्या द्वारा
(C) थर्मामीटर द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पुनरावृत्ति की संख्या द्वारा

38. सहनशीलता की कितनी किस्में हैं?
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर:
(C) तीन

39. किस सहनशीलता के लिए जॉगिंग और साइकलिंग जैसी क्रियाएँ आवश्यक हैं?
(A) साधारण सहनशीलता
(B) विशेष सहनशीलता
(C) मौलिक सहनशीलता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) मौलिक सहनशीलता

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

40. एरोबिक अथवा अनएरोबिक व्यायामों के दौरान आई थकावट पर नियंत्रण करने वाली क्षमता को क्या कहते हैं?
(A) मौलिक सहनशीलता
(B) साधारण सहनशीलता
(C) विशेष सहनशीलता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साधारण सहनशीलता

41. तैराकी में बैक स्ट्रोक सीखने के लिए शरीर में कौन-सा शारीरिक पुष्टि का घटक होना चाहिए?
(A) स्फूर्ति
(B) लचक
(C) गति
(D) शक्ति
उत्तर:
(B) लचक

42. शारीरिक योग्यता के कौन-से अंग को आंतरिक बल (Stamina) भी कहा जाता है?
(A) सहनशीलता
(B) गति
(C) संतुलन
(D) तालमेल
उत्तर:
(A) सहनशीलता

43. पुनः दोहराना विधि सुधार में सहायक है
(A) तेजी योग्यता
(B) अधिकतम शक्ति
(C) विस्फोटक शक्ति
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

44. कैलिसथैनिक्स में किस प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाता है?
(A) भारी
(B) हल्के
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) हल्के

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

45. साधारण शक्ति को बढ़ाया जा सकता है
(A) अंतराल प्रशिक्षण द्वारा
(B) फार्टलेक सिद्धांत द्वारा
(C) निरंतर प्रशिक्षण द्वारा
(D) सर्किट प्रशिक्षण द्वारा
उत्तर:
(D) सर्किट प्रशिक्षण द्वारा

46. स्फूर्ति में शरीर का कौन-सा अंग हिस्सा लेता है?
(A) माँसपेशियाँ
(B) त्वचा
(C) टाँगें
(D) पाँव
उत्तर:
(A) माँसपेशियाँ

47. प्रतिक्रिया व बढ़ना किस योग्यता के प्रकार हैं?
(A) लचीलापन
(B) फुर्ति
(C) सहनशीलता
(D) तेजी
उत्तर:
(D) तेजी

48. साइकलिंग शारीरिक पुष्टि के किस अवयव के लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) शक्ति
(B) गति
(C) लचक
(D) शक्ति व सहनशीलता
उत्तर:
(D) शक्ति व सहनशीलता

49. कौन-सा व्यायाम कार्बनिक शक्ति, शरीर के नियंत्रण तथा लचक को विकसित करता है?
(A) जॉगिंग
(B) साइकलिंग
(C) कैलिसथैनिक्स
(D) लयबद्ध व्यायाम
उत्तर:
(C) कैलिसथैनिक्स

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

50. लेजियम, डम्बल, जिम्नास्टिक में ग्राउंड फ्लोर व्यायाम और लोक-नृत्य किस प्रकार के व्यायाम हैं?
(A) वायवीय
(B) अवायवीय
(C) लयबद्ध
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) लयबद्ध

51. तैराकी तथा दौड़ों के द्वारा शरीर के किस अंग की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है?
(A) दिमाग की
(B) जिगर की
(C) फेफड़ों की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) फेफड़ों की

52. ऑक्सीजन की उपस्थिति में किया गया शारीरिक अभ्यास कहलाता है
(A) एरोबिक
(B) अनएरोबिक
(C) आइसोमीट्रिक
(D) आइसोकाइनेटिक
उत्तर:
(A) एरोबिक

53. शारीरिक अंगों के आपस में मिलकर कार्य करने की शक्ति को कहते हैं
(A) शक्ति
(B) लचीलापन
(C) तालमेल
(D) सहनशीलता
उत्तर:
(C) तालमेल

54. लय योग्यता, समायोजन की योग्यता, प्रतिक्रिया योग्यता और संतुलन की योग्यता किस प्रकार की क्रियाएँ हैं?
(A) शारीरिक क्रियाएँ
(B) मानसिक क्रियाएँ
(C) तालमेल संबंधी क्रियाएँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) तालमेल संबंधी क्रियाएँ

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

55. एक ही स्थिति में अधिक समय तक रहने की शक्ति को क्या कहते हैं?
(A) संतुलन
(B) तालमेल
(C) स्फूर्ति
(D) सहनशीलता
उत्तर:
(A) संतुलन

56. सर्किट प्रशिक्षण का अनुसंधान कहाँ किया गया?
(A) कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र में
(B) ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, लंदन में
(C) कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड में
(D) यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, इंग्लैंड में
उत्तर:
(D) यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, इंग्लैंड में

57. ऐसी एक्टिविटी जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में की जाती है, कहलाती है-
(A) अनएरोबिक
(B) एरोबिक
(C) एरोबिक व अनएरोबिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) एरोबिक

58. वैज्ञानिक विधि से प्रशिक्षण प्राप्त करने की विधि है
(A) निरंतर प्रशिक्षण विधि
(B) सर्किट प्रशिक्षण विधि
(C) अंतराल प्रशिक्षण विधि
(D) वज़न प्रशिक्षण विधि
उत्तर:
(B) सर्किट प्रशिक्षण विधि

59. हमारी मांसपेशियाँ …………………… ऊतकों से बनी होती हैं।
(A) संयोजी
(B) धारीदार
(C) पेशीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पेशीय

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

60. एरोबिक अभ्यास है
(A) कम अवधि का
(B) लम्बी अवधि का
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

61. अतिभार (Overload) किसके द्वारा बढ़ाया जा सकता है?
(A) अधिक वजन उठाकर
(B) भरपेट भोजन खाकर
(C) सघनता द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सघनता द्वास

62. धीरे-धीरे या आराम से दौड़कर शरीर को गर्म करना क्या कहलाता है?
(A) जॉगिंग
(B) गर्माना
(C) अतिभार
(D) लिम्बरिंग डाउन
उत्तर:
(A) जॉगिंग

63. वायवीय प्रक्रिया में किस गैस का प्रयोग किया जाता है?
(A) नाइट्रोजन
(B) ऑक्सीजन
(C) कार्बन-डाइऑक्साइड
(D) ऑर्गन
उत्तर:
(B) ऑक्सीजन

64. जॉगिंग करने से शरीर के किस अंग की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है?
(A) हृदय की
(B) फेफड़ों की
(C) हृदय और फेफड़ों की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) हृदय और फेफड़ों की

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

65. सर्किट ट्रेनिंग निम्नलिखित के विकास में एक प्रभावशाली विधि है
(A) गति
(B) लचीलापन
(C) ताकत क्षमता
(D) चपलता
उत्तर:
(C) ताकत क्षमता

66. भार प्रशिक्षण किस आयु-वर्ग में आरम्भ करना चाहिए?
(A) 11 वर्ष
(B) 12 वर्ष
(C) 13 वर्ष
(D) 14 वर्ष
उत्तर:
(B) 12 वर्ष

67. वजन प्रशिक्षण से सहज क्रियाएँ; जैसे माँसपेशियों के ……………… तथा ……………… में वृद्धि होती है।
(A) सिकुड़ने, फैलने
(B) फैलने, सिकुड़ने
(C) तीव्र, मंद
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सिकुड़ने, फैलने

68. निम्नलिखित में से पुष्टि के विकास का साधन कौन-सा है?
(A) खेलकूद
(B) जॉगिंग
(C) तालबद्ध व्यायाम
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

69. परिधि प्रशिक्षण विधि का प्रतिपादन किसने किया था?
(A) मॉर्गन व स्टेनले
(B) मॉर्गन व एडम्सन
(C) हिल
(D) थॉम्पसन व डेवरिस
उत्तर:
(A) मॉर्गन व स्टेनले

भाग-III: रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. सर्किट प्रशिक्षण विधि ………………… पर आधारित है।
2. गति को साधारणतया लगभग ………………… तक बढ़ाया जा सकता है।
3. थ्रो फेंकने के लिए ………………… की आवश्यकता होती है।
4. शक्ति ………………… द्वारा पैदा होती है।
5. शरीर की शक्ति को ………………… में मापा जा सकता है।
6. व्यक्ति के शरीर के जोड़ों में गति-क्षमता को ……………….. कहते हैं।
7. ………………. प्रशिक्षण विधि में स्टेशन रखे जाते हैं।
8. एरोबिक्स ………………… वर्ष की उम्र के बाद नहीं करनी चाहिए।
9. विस्फोटक शक्ति गति और ……………… की योग्यताओं का मिश्रण है।
10. एक ही स्थिति में अधिक समय तक रहने की शक्ति को ………………… कहा जाता है।
11. अतिभार के सिद्धांत को निभाने के लिए लंबी दूरी के दौड़ाक धीरे-धीरे दूरी में ………………. करते हैं।
12. भार प्रशिक्षण को सर्वप्रथम ………………… ने अपनाया था।
13. एरोबिक्स में समय की अवधि ………………… होती है।
14. सभी तरह की खेलें ………………… पर आधारित होती हैं।
15. सक्रिय लचक ……………….. प्रकार की होती है।
उत्तर:
1. जिम्नास्टिक
2. 20 प्रतिशत
3. परिवर्तनशील गति
4. माँसपेशियों
5. पौंड या डाइन
6. लचक
7. सर्किट
8. 60
9. शक्ति
10. संतुलन
11. बढ़ोतरी
12. जर्मनी
13. लम्बी
14. विस्फोटक गति
15. दो।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता

शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता Summary

शारीरिक पुष्टि एवं सुयोग्यता परिचय
शारीरिक पुष्ट्रि(Physical Fitness):
आधुनिक युग में प्रत्येक मनुष्य अपनी शारीरिक पुष्टि बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है। यह मनुष्य की वह शक्ति तथा कार्य करने की योग्यता है, जिसको वह बिना किसी बाधा के आसानी से थोड़ी-सी शक्ति का प्रयोग करके पूरा कर लेता है। शारीरिक पुष्टि का अर्थ बहुत व्यापक है, इसलिए इसे परिभाषित करना बहुत कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह हमें अपने शरीर को सही ढंग से रखने और अधिक देर तक मेहनत करने की क्षमता प्रदान करती है।

सुयोग्यता (Wellness):
सुयोग्यता एक ऐसी अवस्था है, जो हमारे दैनिक जीवन में प्रत्येक कार्य को प्रभावकारी ढंग से करने में सहायक होती है तथा शेष बची हुई शक्ति से हम खाली समय में मनोरंजन कर सकते हैं। यह क्रोध को सहन करने और तनाव को दूर करने में सहायक होती है। यह एक अच्छे स्वास्थ्य का चिह्न है। यह प्रत्येक मनुष्य में भिन्न-भिन्न होती है, क्योंकि इस पर पैतृक आदतों, व्यायाम, आयु तथा लिंग का प्रभाव पड़ता है। अतः सुयोग्यता व्यक्ति की वह क्षमता या योग्यता है जिसके द्वारा वह एक उत्तम एवं संतुलित जीवन व्यतीत करता है। इसमें मन, शरीर एवं आत्मा का संतुलन शामिल होता है। इसलिए यह शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की दशा या विशेषता होती है।

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HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

Haryana State Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

HBSE 12th Class Physical Education स्वास्थ्य शिक्षा Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य क्या है? इसके महत्त्व या उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वास्थ्य से क्या अभिप्राय है? हमारे जीवन में अच्छे स्वास्थ्य की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Health):
स्वास्थ्य से सभी परिचित हैं । सामान्यतया पारस्परिक व रूढ़िगत संदर्भ में स्वास्थ्य से अभिप्राय बीमारी की अनुपस्थिति से लगाया जाता है, परंतु यह स्वास्थ्य का विस्तृत अर्थ नहीं है। स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारू होते हैं। इसका अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित्त और शरीर रोग-मुक्त रहता है।

स्वास्थ्य का महत्त्व या उपयोगिता (Importance or Utility of Health):
अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर सकता। अस्वस्थ व्यक्ति समाज की एक लाभदायक इकाई होते हुए भी बोझ-सा बन जाता है। एक प्रसिद्ध कहावत है-“स्वास्थ्य ही धन है।” यदि हम संपूर्ण रूप से स्वस्थ हैं तो हम जिंदगी में बहुत-सा धन कमा सकते हैं। अच्छे स्वास्थ्य का न केवल व्यक्ति को लाभ होता है, बल्कि जिस समाज या देश में वह रहता है, उस पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। साइरस (Syrus) के अनुसार, “अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ-दोनों जीवन के सबसे बड़े आशीर्वाद हैं।” इसलिए स्वास्थ्य का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है; जैसे
(1) स्वास्थ्य मानव व समाज का आधार स्तंभ है। यह वास्तव में खुशी, सफलता और आनंदमयी जीवन की कुंजी है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं।
(3) स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अरस्तू ने कहा-“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” इस कथन से भी हमारे जीवन में स्वास्थ्य की उपयोगिता व्यक्त हो जाती है।
(4) स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने व निखारने में सहायक होता है।
(5) स्वास्थ्य से हमारा जीवन संतुलित, आनंदमय एवं सुखमय रहता है।
(6) स्वास्थ्य हमारी जीवन-शैली को बदलने में हमारी सहायता करता है।
(7) किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य व आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। यदि किसी देश के नागरिक शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे तो उस देश का आर्थिक विकास भी उचित दिशा में होगा।
(8) स्वास्थ्य से हमारी कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(9) अच्छे स्वास्थ्य से हमारे शारीरिक अंगों की कार्य-प्रणाली सुचारू रूप से चलती है।

निष्कर्ष (Conclusion):
स्वास्थ्य एक गतिशील प्रक्रिया है जो हमारे शारीरिक संस्थानों को प्रभावित करती है और हमारी जीवन-शैली में आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण बदलाव करती है। अच्छा स्वास्थ्य रोगों से मुक्त होने के अतिरिक्त किसी व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक खुशहाली एवं प्रसन्नता को व्यक्त करता है। यह हमेशा अच्छा महसूस करवाता है। वर्जिल के अनुसार, “सबसे बड़ाधन स्वास्थ्य है।” इस तरह हमारे जीवन में स्वास्थ्य बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। स्वास्थ्य की महत्ता बताते हुए महात्मा गाँधी ने कहा”स्वास्थ्य ही असली धन है न कि सोने एवं चाँदी के टुकड़े।” स्वास्थ्य ही हमारा असली धन है। जब हम इसे खो देते हैं तभी हमें इसका असली मूल्य पता चलता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य का क्या अर्थ है? इसके पहलुओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? इसके आयामों का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा लिखें। इसके रूपों का भी वर्णन करें।
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Health):
स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिससे वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारू होते हैं। इसका अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित्त और शरीर रोग-मुक्त रहता है। विभिन्न विद्वानों ने स्वास्थ्य को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
1. जे०एफ० विलियम्स (J.F. Williams) के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएं प्रदान करता है।”
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”
3. वैबस्टर्स विश्वकोष (Webster’s Encyclopedia) के कथनानुसार, “उच्चतम जीवनयापन के लिए व्यक्तिगत, भावनात्मक और शारीरिक स्रोतों को संगठित करने की व्यक्ति की अवस्था को स्वास्थ्य कहते हैं।”
4. रोजर बेकन (Roger Bacon) के अनुसार, “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।”
5. इमर्जन (Emerson) के अनुसार, “स्वास्थ्य प्रथम पूँजी है।”
संक्षेप में, स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है जिसमें वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसमें उसके शारीरिक अंग, आंतरिक तथा बाहरी रूप से अपने पर्यावरण से व्यवस्थित होते हैं।

स्वास्थ्य के विभिन्न पहलू या आयाम (Aspects or Dimensions of Health):
स्वास्थ्य एक गतिशील प्रक्रिया है जो हमारी जीवन-शैली को प्रभावित करता है। इसके विभिन्न आयाम या पहलू निम्नलिखित हैं-
1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health):
शारीरिक स्वास्थ्य संपूर्ण स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसके अंतर्गत हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि उसके सभी शारीरिक संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हों। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को न केवल शरीर के विभिन्न अंगों की रचना एवं उनके कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, अपितु उनको स्वस्थ रखने की भी जानकारी होनी चाहिए। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समाज व देश के विकास एवं प्रगति में भी सहायक होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने शारीरिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने हेतु संतुलित एवं पौष्टिक भोजन, व्यक्तिगत सफाई, नियमित व्यायाम व चिकित्सा जाँच और नशीले पदार्थों के निषेध आदि की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health):
मानसिक या बौद्धिक स्वास्थ्य के बिना सभी स्वास्थ्य अधूरे हैं, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य का संबंध मन की प्रसन्नता व शांति से है अर्थात् इसका संबंध तनाव व दबाव मुक्ति से है। यदि व्यक्ति का मन चिंतित एवं अशांत रहेगा तो उसका कोई भी विकास पूर्ण नहीं होगा। आधुनिक युग में मानव जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि उसका जीवन निरंतर तनाव, दबाव व चिंताओं से घिरा रहता है। परन्तु जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है वे आधुनिक संदर्भ में भी स्वयं को चिंतामुक्त अनुभव करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य से व्यक्ति के बौद्धिक विकास और जीवन के अनुभवों को सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है। लेकिन मानसिक अस्वस्थता के कारण न केवल मानसिक रोग हो जाते हैं, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी गिर जाता है और शारीरिक कार्य-कुशलता में भी कमी आ जाती है। इसलिए व्यक्ति को अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तनाव व दबाव से दूर रहना चाहिए, उचित विश्राम करना चाहिए और सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।

3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health):
सामाजिक स्वास्थ्य भी स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है । यह व्यक्ति की सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर करता है । यह व्यक्ति में संतोषजनक व्यक्तिगत संबंधों की क्षमता में वृद्धि करता है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के नियमों, मान-मर्यादाओं आदि का पालन करता है । यदि एक व्यक्ति अपने परिवार व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत है तो उसे सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति कहा जाता है। सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सैद्धांतिक, वैचारिक, आत्मनिर्भर व जागरूक होता है। वह अनेक सामाजिक गुणों; जैसे आत्म-संयम, धैर्य, बंधुत्व, आत्म-विश्वास आदि से पूर्ण होता है। समाज, देश, परिवार व जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण रचनात्मक व सकारात्मक होता है।

4. संवेगात्मक या भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional Health):
संवेगात्मक स्वास्थ्य में व्यक्ति के अपने संवेग; जैसे डर, गुस्सा, सुख, क्रोध, दुःख, प्यार आदि शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत स्वस्थ व्यक्ति का अपने संवेगों पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह प्रत्येक परिस्थिति में नियंत्रित व्यवहार करता है। हार-जीत पर वह अपने संवेगों को नियंत्रित रखता है और अपने परिवार, मित्रों व अन्य व्यक्तियों से मिल-जुलकर रहता है। जिस व्यक्ति को अपने संवेगों पर नियंत्रण होता है वह बड़ी-से-बड़ी परिस्थितियों में भी स्वयं को संभाल सकता है और निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।

5. आध्यात्मिक स्वास्थ्य (Spiritual Health):
आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति उसे कहा जाता है जो नैतिक नियमों का पालन करता हो, दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता हो, सत्य व न्याय में विश्वास रखने वाला हो और जो दूसरों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न पहुँचाता हो आदि। ऐसा व्यक्ति व्यक्तिगत मूल्यों से संबंधित होता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति एवं सहयोग की भावना रखना, सहायता करने की इच्छा आदि आध्यात्मिक स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं । आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु मुख्यत: योग व ध्यान सबसे उत्तम माध्यम हैं। इनके द्वारा आत्मिक शांति व आंतरिक प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 3.
स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए?
अथवा
अच्छे स्वास्थ्य हेतु हमें किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए?
उत्तर:
स्वस्थ रहने के लिए हमें निम्नलिखित आवश्यक नियम या सिद्धांत ध्यान में रखने चाहिएँ
1. शारीरिक संस्थानों या अगों का ज्ञान (Knowledge of Body System or Organs): हमें अपने शरीर के संस्थानों या अंगों; जैसे दिल, आमाशय, फेफड़े, तिल्ली, गुर्दे, कंकाल संस्थान, माँसपेशी संस्थान, उत्सर्जन संस्थान आदि का ज्ञान होना चाहिए।

2. डॉक्टरी जाँच (Medical Checkup): समय-समय पर अपने शरीर की डॉक्टरी जाँच करवानी चाहिए। इससे हम अपने स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं। डॉक्टरी जाँच या चिकित्सा जाँच से हम समय पर अपने शारीरिक विकारों या बीमारियों को दूर कर सकते हैं।

3. निद्रा व विश्राम (Sleep and Rest): रात को समय पर सोना चाहिए और शरीर को पूरा विश्राम देना आवश्यक है।

4. व्यायाम (Exercises): प्रतिदिन व्यायाम या सैर आदि करनी आवश्यक है। हमें नियमित योग एवं आसन आदि भी करने चाहिएँ।

5. नाक द्वारा साँस लेना (Breathing by Nose): हमें हमेशा नाक द्वारा साँस लेनी चाहिए। नाक से साँस लेने से हमारे शरीर को शुद्ध हवा प्राप्त होती है, क्योंकि नाक के बाल हवा में उपस्थित धुल-कणों को शरीर के अंदर जाने से रोक लेते हैं।

6. साफ वस्त्र (Clean Cloth): हमें हमेशा साफ-सुथरे और ऋतु के अनुसार कपड़े पहनने चाहिएँ।

7. शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण (Pure and Clean Environment): हमें हमेशा शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए।

8. संतुलित भोजन (Balanced Diet): हमें ताजा, पौष्टिक और संतुलित आहार खाना चाहिए।

9. शुद्ध आचरण (Good Conduct): हमेशा अपना आचरण व विचार शुद्ध व सकारात्मक रखने चाहिएँ और हमेशा खुश एवं संतुष्ट रहना चाहिए। कभी भी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए। हमेशा बड़ों का आदर करना चाहिए।

10. मादक वस्तुओं से परहेज (Away from Intoxicants): मादक वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए हमें नशीली वस्तुओं से स्वयं को बचाना चाहिए। दूसरों को भी नशीली वस्तुओं के दुष्प्रभावों से अवगत करवाना चाहिए।

11. उचित मनोरंजन (Proper Recreation): आज के इस दबाव एवं तनाव-युक्त युग में स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु मनोरंजनात्मक क्रियाओं का होना अति आवश्यक है। हमें मनोरंजनात्मक क्रियाओं में अवश्य भाग लेना चाहिए। इनसे हमें आनंद एवं संतुष्टि की प्राप्ति होती है।

12. नियमित दिनचर्या (Daily Routine): समय पर उठना, समय पर सोना, समय पर खाना, ठीक ढंग से खड़े होना, बैठना, चलना, दौड़ना आदि क्रियाओं से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। व्यक्तिगत स्वच्छता, कपड़ों की सफाई व आस-पास की सफाई दिनचर्या के आवश्यक अंग होने चाहिएँ।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 4.
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों या तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं
1. वंशानुक्रमण (Heredity):
व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक गुण जीन (Genes) द्वारा निर्धारित होते हैं । जीन या गुणसूत्र को ही वंशानुक्रमण की इकाई माना जाता है। इसी कारण वंशानुक्रमण द्वारा व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। वंशानुक्रमण संबंधी गुण; जैसे ऊँचाई, चेहरा, रक्त समूह, रंग आदि माता-पिता के गुणसूत्रों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। बहुत-सी ऐसी बीमारियाँ हैं जो वंशानुक्रमण द्वारा आगामी पीढ़ी को भी हस्तान्तरित हो जाती हैं।

2. वातावरण (Environment):
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वातावरण का होना बहुत आवश्यक होता है। यदि वातावरण प्रदूषित है तो ऐसे वातावरण में व्यक्ति अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

3. संतुलित व पौष्टिक भोजन (Balanced and Nutritive Diet): भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और शरीर को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाता है। यदि हमारा भोजन संतुलित एवं पौष्टिक है तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा और यदि भोजन में पौष्टिक तत्त्वों का अभाव है तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

4. सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण (Social and Cultural Conditions):
वातावरण के अतिरिक्त व्यक्ति का अपना सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण भी उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यदि व्यक्ति और उसके सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण के बीच असामंजस्य है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए व्यक्ति को अपने अच्छे स्वास्थ्य हेतु सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। इसमें न केवल उसका हित है बल्कि समाज व देश का भी हित है।

5. आर्थिक दशाएँ (Economic Conditions):
स्वास्थ्य आर्थिक दशाओं से भी प्रभावित होता है। यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है अर्थात् गरीब है तो वह अपने परिवार के सदस्यों के लिए न तो संतुलित आहार की व्यवस्था कर पाएगा और न ही उन्हें चिकित्सा सुविधाएँ दे पाएगा। इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो वह अपने परिवार के सदस्यों की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण कर पाएगा।

6. अन्य कारक (Other Factors):
स्वास्थ्य को जीवन-शैली भौतिक व जैविक वातावरण, स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर, मनोवैज्ञानिक कारक और पारिवारिक कल्याण सेवाएँ भी प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 5.
स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए। इसके मुख्य उद्देश्यों पर प्रकाश डालें।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा से क्या अभिप्राय है? इसके लक्ष्य तथा उद्देश्यों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है। यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों या पहलुओं के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किए हैं

1.डॉ० थॉमस वुड (Dr. Thomas Wood) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”
2. सोफी (Sophie) के कथनानुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से संबंधित है।”
3. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रहने की स्थिति को कहते हैं न कि केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होने को।”
इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन सभी बातों और आदतों से है जो व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं।

स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य (Aim of Physical Education):
स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य न केवल शारीरिक विकास या वृद्धि तक सीमित है बल्कि इसका महत्त्वपूर्ण लक्ष्य व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक आदि पक्षों को भी विकसित करना है। इसका लक्ष्य शरीर को हानि पहुँचाने वाली बुरी आदतों से अवगत करवाना और स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों हेतु अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण में सहायता करना है।

स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities):
स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति में अच्छे सामाजिक गुणों का विकास करके अच्छा नागरिक बनाना है। स्वास्थ्य शिक्षा जहाँ सर्वपक्षीय विकास करके अच्छे व्यक्तित्व को निखारती है, वहीं कई प्रकार के सामाजिक गुणों; जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, संवेगों पर नियंत्रण एवं सहनशीलता आदि का भी विकास करती है।

2. सर्वपक्षीय विकास (All Round Development):
सर्वपक्षीय विकास से अभिप्राय व्यक्ति के सभी पक्षों का विकास करना है। वह शारीरिक पक्ष से बलवान, मानसिक पक्ष से तेज़, भावात्मक पक्ष से संतुलित, बौद्धिक पक्ष से समझदार और सामाजिक पक्ष से निपुण हो। सर्वपक्षीय विकास से व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोतरी होती है। वह परिवार, समाज और राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है।

3. उचित मनोवृत्ति का विकास (Development of RightAttitude):
स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल निर्देश देकर ही पूरा नहीं किया जा सकता बल्कि इसे पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच की अति-आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य संबंधी उचित मनोवृत्ति का विकास तभी अस्तित्व में आ सकता है, यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी आदतें और व्यवहार इस प्रकार परिवर्तित करे कि वे उसकी आवश्यकताओं का अंग बन जाएँ, तो इससे एक अच्छे समाज और राष्ट्र की नींव रखी जा सकती है।

4. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge about Health):
पुराने समय में स्वास्थ्य संबंधी बहुत अज्ञानता थी, परन्तु समय बदलने से रेडियो, टी०वी०, अखबारों और पत्रिकाओं ने संक्रामक बीमारियों और उनकी रोकथाम, मानसिक चिंताओं और उन पर नियंत्रण और संतुलित भोजन के गुणों के बारे में वैज्ञानिक ढंग से जानकारी साधारण लोगों तक पहुँचाई है। यह ज्ञान उन्हें अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित करता है।

5. स्वास्थ्य संबंधी नागरिक जिम्मेदारी का विकास (To Develop Civic Sense about Health):
स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों या व्यक्तियों में स्वास्थ्य संबंधी नागरिक जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना है। उन्हें नशीली वस्तुओं का सेवन करना, जगह-जगह पर थूकना, खुली जगह पर मल-मूत्र करना और सामाजिक अपराध आदि जैसी बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए।

6. आर्थिक कुशलता का विकास (Development of Economic Efficiency):
आर्थिक कुशलता का विकास तभी हो सकता है अगर स्वस्थ व्यक्ति अपने कामों को सही ढंग से करें। अस्वस्थ मनुष्य अपनी आर्थिक कुशलता में बढ़ोतरी नहीं कर सकता। स्वस्थ व्यक्ति जहाँ अपनी आर्थिक कुशलता में बढ़ोतरी करता है, वहीं उससे देश की आर्थिक कुशलता में भी बढ़ोतरी होती है। इसीलिए स्वस्थ नागरिक समाज व देश के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। उनको देश की बहुमूल्य संपत्ति कहना गलत नहीं होगा।

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प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा से क्या अभिप्राय है? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा क्या है? इसकी हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है? वर्णन करें।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ (Meaning of Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ उन सभी आदतों से है जो किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं। इसका संबंध मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है। यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्म-निर्भर बनने में सहायता करते हैं। यह एक ऐसी शिक्षा है जिसके बिना मनुष्य की सारी शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन सभी बातों और आदतों से है जो व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं।

स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता या उपयोगिता (Importance orUtility of Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने कहा था-“एक व्यक्ति जिसका शरीर या मन कमजोर है वह कभी भी मजबूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” इसलिए स्वास्थ्य की हमारे जीवन में विशेष उपयोगिता है। स्वस्थ व्यक्ति ही समाज, देश आदि के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अरस्तू ने कहा था कि “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है।” इसलिए हमें अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति को स्वास्थ्य से संबंधित विशेष जानकारियाँ प्रदान करती है, जिनकी पालना करके व्यक्ति संतुष्ट एवं सुखदायी जीवन व्यतीत कर सकता है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है

1.स्वास्थ्यप्रद आदतों का विकास (Development of Healthy Habits):
बचपन में बालक जैसी आदतों का शिकार हो जाता है वो आदत बालक के साथ जीवनपर्यन्त चलती है। अतः बालक को स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर साफ-सफाई का ध्यान, सुबह जल्दी उठना, रात को जल्दी सोना, खाने-पीने तथा शौच का समय निश्चित होना ऐसी स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने से व्यक्ति स्वस्थ तथा दीर्घायु रह सकता है। यह स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है।

2. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities):
स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास करके उसे अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होती है। स्वास्थ्य शिक्षा जहाँ सर्वपक्षीय विकास करके अच्छा व्यक्तित्व निखारती है, वहीं इसके साथ-साथ यह और कई प्रकार के गुणों; जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, संवेगों पर नियंत्रण एवं सहनशीलता आदि का भी विकास करती है।

3. प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना (To Provide FirstAid Information):
स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान की जा सकती है जिसके अन्तर्गत व्यक्तियों को प्राथमिक चिकित्सा के सामान्य सिद्धान्तों की तथा विभिन्न परिस्थितियों में जैसे-साँप के काटने पर, डूबने पर, जलने पर, अस्थि टूटने आदि पर प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान की जाती है क्योंकि इस प्रकार की दुर्घटनाएँ कहीं भी, कभी भी तथा किसी के भी साथ घट सकती है तथा व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ सकता है। ऐसी जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही दी जा सकती है।

4. स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक आदतों को बढ़ाने में सहायक (Helpful in increase the Desirable Health Habits):
स्वास्थ्य शिक्षा जीवन के सिद्धांतों एवं स्वास्थ्य की अच्छी आदतों का विकास करती है; जैसे स्वच्छ वातावरण में रहना, पौष्टिक व संतुलित भोजन करना आदि।

5. जागरूकता एवं सजगता का विकास (Development of Awareness and Alertness):
स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा एक स्वस्थ व्यक्ति सजग एवं जागरूक रह सकता है। उसके चारों तरफ क्या घटित हो रहा है उसके प्रति वह हमेशा सचेत रहता है। ऐसा व्यक्ति अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति सजग एवं जागरूक रहता है।

6.बीमारियों से बचाव में सहायक (Helpful to Prevention of Diseases):
स्वास्थ्य शिक्षा संक्रामक-असंक्रामक बीमारियों से बचाव व उनकी रोकथाम के विषय में हमारी सहायता करती है। इन बीमारियों के फैलने के कारण, लक्षण तथा उनसे बचाव व इलाज के विषय में जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा से ही मिलती है।

7. शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक (Helpful in Discovering Physical Deformities):
स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक होती है। यह विभिन्न प्रकार की शारीरिक विकृतियों के समाधान में सहायक होती है।

8. मानवीय संबंधों को सुधारना (Improvement in Human Relations):
स्वास्थ्य शिक्षा अच्छे मानवीय संबंधों का निर्माण करती है। स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को यह ज्ञान देती है कि किस प्रकार वे अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों व समुदाय के स्वास्थ्य के लिए कार्य कर सकते हैं।

9.सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive View):
स्वास्थ्य शिक्षा से व्यक्ति की सोच काफी विस्तृत होती है। वह दूसरे व्यक्तियों के दृष्टिकोण को भली भाँति समझता है। उसकी सोच संकीर्ण न होकर व्यापक दृष्टिकोण वाली होती है।

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आज का बालक कल का भविष्य है। उसको इस बात का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है कि वह अपने तन व मन को किस प्रकार से स्वस्थ रख सकता है। एक पुरानी कहावत है-“स्वास्थ्य ही जीवन है।” अगर धन खो दिया तो कुछ खास नहीं खोया, लेकिन यदि स्वास्थ्य खो दिया तो सब कुछ खो दिया। अतः सुखी व प्रसन्नमय जीवन व्यतीत करने के लिए उत्तम स्वास्थ्य का होना बहुत आवश्यक है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, समाज तथा देश के लिए हर प्रकर से सेवा प्रदान कर सकता है, जबकि अस्वस्थ या बीमार व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। तन व मन को स्वस्थ व प्रसन्न रखने में स्वास्थ्य शिक्षा महत्त्वपूर्ण योगदान देती है, क्योंकि स्वास्थ्य शिक्षा में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनसे व्यक्ति में स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ती है, और इनके परिणामस्वरूप उसका स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहता है।
स्वास्थ्य शिक्षा को बहुत-से कारक प्रभावित करते हैं जिनमें से प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
1.संतुलित भोजन (Balance Diet):
संसार में प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ जीवन व्यतीत करना चाहता है और स्वस्थ जीवन हेतु भोजन ही मुख्य आधार है। वास्तव में हमें भोजन की जरूरत न केवल ऊर्जा या शक्ति की पूर्ति हेतु होती है बल्कि शरीर की वृद्धि, उसकी क्षतिपूर्ति और उचित शिक्षा प्राप्त करने हेतु भी होती है। अतः स्पष्ट है कि संतुलित भोजन स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करता है।

2.शारीरिक व्यायाम (Physical Exercise):
स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति अपने शरीर को शारीरिक व्यायामों द्वारा लचीला एवं सुदृढ़ बनाता है। शारीरिक व्यायाम की क्रियाओं द्वारा पूरे शरीर को तंदुरुस्त बनाया जा सकता है। कौन-से व्यायाम कब करने चाहिएँ और कब नहीं करने चाहिएँ, का ज्ञान स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा प्राप्त होता है।

3. आदतें (Habits):
आदतें भी स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव व आदतें अलग-अलग होती हैं। बालक की स्वास्थ्य शिक्षा उसके स्वभाव एवं आदत पर निर्भर करती है। बच्चों में अच्छी आदतों का विकास किया जाए, ताकि वह एक सफल नागरिक बन सके। अच्छी आदतों वाला व्यक्ति उचित मार्ग पर अग्रसर होकर तरक्की करता है। स्वास्थ्य शिक्षा अच्छी आदतों का विकास करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

4. बीमारी (Disease):
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है कि “एक व्यक्ति जिसका शरीर या मन कमजोर है वह कभी भी मज़बूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” अतः बीमारी भी स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती है। एक बीमार बालक कोई भी शिक्षा प्राप्त करने में पूर्ण रूप से समर्थ नहीं होता। स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से एक स्वस्थ व्यक्ति या बालक प्रायः बीमारियों से मुक्त रहता है।

5. जीवन-शैली (Lifestyle):
जीवन-शैली जीवन जीने का एक ऐसा तरीका है जो व्यक्ति के नैतिक गुणों या मूल्यों और दृष्टिकोणों को प्रतिबिम्बित करता है। यह किसी व्यक्ति विशेष या समूह के दृष्टिकोणों, व्यवहारों या जीवन मार्ग का प्रतिमान है। स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने हेतु एक स्वस्थ जीवन-शैली बहुत आवश्यक होती है। एक स्वस्थ जीवन-शैली व्यक्तिगत रूप से पुष्टि के स्तर को बढ़ाती है। यह हमें बीमारियों से बचाती है और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। इसके माध्यम से आसन संबंधी विकृतियों में सुधार होता है। इसके माध्यम से मनोवैज्ञानिक शक्ति या क्षमता में वृद्धि होती है जिससे तनाव, दबाव व चिंता को कम किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक स्वस्थ जीवन-शैली स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती है।

6. वातावरण (Environment):
स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने हेतु स्वच्छ वातावरण का होना बहुत आवश्यक है। वातावरण दो प्रकार के होते हैं-(1) आन्तरिक वातावरण, (2) बाह्य वातावरण। दोनों प्रकार के वातावरण बालक को प्रभावित करते हैं। शिक्षा प्राप्त करने हेतु स्कूली वातावरण विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। बिना वातावरण के कोई भी विद्यार्थी किसी प्रकार का ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता। इसलिए स्कूल प्रबन्धों को स्कूली वातावरण की ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए, ताकि विद्यार्थी बिना किसी बाधा के ज्ञान अर्जित कर सकें।

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प्रश्न 8.
‘विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम’ क्या है? विद्यार्थियों के लिए इसके महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
अथवा
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता या महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम का अर्थ (Meaning of School Health Programme):
बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं। स्कूल में जाने वाले बच्चे किसी राष्ट्र को सशक्त व मजबूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समस्त राष्ट्र का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर टिका होता है । इसलिए स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य ही स्कूल प्रणाली का महत्त्वपूर्ण तथा प्राथमिक मुद्दा है।
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तीन चरण होते हैं-
(1) स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services)
(2) स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन या वातावरण (Healthful School Living or Environment) तथा
(3) स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन (Health Instructions)।
अतः स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-“स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम वह ग्रहणित प्रक्रिया है जिसको स्कूल स्वास्थ्य सेवाएँ, स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन और स्वास्थ्य अनुदेशन के रूप में बच्चों के स्वास्थ्य के विकास के लिए अपनाया जाता है।”

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम का महत्त्व (Importance of School Health Programme):
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महत्त्व के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) इससे स्कूल में जाने वाले बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों को आसानी से विकसित किया जा सकता है।
(2) इससे बच्चे अनेक बीमारियों की रोकथाम तथा उपचार के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
(3) स्वास्थ्य तथा स्वच्छता की जानकारी स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक है।
(4) स्कूली दिनों में बच्चों में जिज्ञासा की प्रवृत्ति अति तीव्र होती है। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ये कार्यक्रम अति-आवश्यक होते हैं।
(5) सभी स्कूली छात्र कक्षा के अनुसार लगभग समान आयु के होते हैं, इसलिए उनकी समस्याएँ भी लगभग एक-जैसी होती हैं और उनके निदान के प्रति दृष्टिकोण भी एक-जैसा ही होता है। इसलिए स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम सभी छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी होते हैं।
(6) स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चों को पोषक तत्त्वों एवं खनिज-लवणों की जानकारी की महत्ता बताई जाती है जो उनकी संपूर्ण जिंदगी में सहायक होती है।
(7) स्कूल के दिनों के दौरान विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम अनेक अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक हैं जो समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं।
(8) ये कार्यक्रम स्कूल के वातावरण को स्वास्थ्यप्रद रखने में स्कूल के अधिकारियों व कर्मचारियों की सहायता करते हैं।

प्रश्न 9.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के विभिन्न तत्त्व या घटक कौन-कौन-से हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंगों के आपसी संबंधों का वर्णन करें।
अथवा
विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के तीनों अंगों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के मुख्य क्षेत्रों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। यह केवल स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है। इसमें स्वास्थ्य ज्ञान के अतिरिक्त और बहुत-से घटक शामिल हैं, जिनका आपस में गहरा संबंध होता है। ये सभी घटक या तत्त्व बच्चों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के विभिन्न घटक या क्षेत्र निम्नलिखित हैं
1. स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services):
छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना भी विद्यालय का मुख्य उत्तरदायित्व माना जाता है। स्वास्थ्य सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है और उनमें पाए जाने वाले दोषों से माता-पिता को अवगत करवाया जाता है ताकि समय रहते उन दोषों का उपचार किया जा सके। इन सेवाओं के अंतर्गत स्कूल के अन्य कर्मचारियों एवं अध्यापकों के स्वास्थ्य की भी जाँच की जाती है।

आधुनिक युग में स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत महत्ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता से बच्चे और वयस्क अपने स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा उठा सकते हैं । साधारण जनता को ये सेवाएँ सरकार की ओर से मिलनी चाहिएँ। जबकि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल की ओर से ये सुविधाएँ मिलनी चाहिएँ। स्वास्थ्य सेवाओं का कार्य बच्चों में संक्रामक रोगों को ढूँढकर उनके माता-पिता की सहायता से ठीक करना है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए डॉक्टर, नर्स, मनोरोग चिकित्सक और स्कूलों के अध्यापक विशेष योगदान दे सकते हैं।

2. स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन या वातावरण (Healthful School Living or Environment):
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

बच्चे के स्कूल का वातावरण, रहने का स्थान और काम करने का स्थान स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । जिस देश के बच्चे और नवयुवक स्वस्थ होते हैं वह देश हमेशा प्रगति के रास्ते पर चलता रहता है, क्योंकि आने वाला भविष्य उनसे बंधा होता है। बच्चा अपना अधिकांश समय स्कूल में गुजारता है। बच्चे का उचित विकास स्कूल के वातावरण पर निर्भर करता है। यह तभी संभव हो सकता है, अगर साफ़-सुथरा एवं स्वच्छ स्कूल हो।स्वच्छ वातावरण बच्चे और वयस्क दोनों को प्रभावित करता है। स्वच्छ वातावरण केवल छात्रों के ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक और नैतिक विकास में भी सहायक होता है।

3. स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन (Health Instructions):
स्वास्थ्य निर्देशन का आशय है-स्कूल के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना। बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी जानकारी देना कि वे स्वयं को स्वस्थ एवं नीरोग बना सकें। स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास करते हैं। ये बच्चों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं से अवगत करवाना है ताकि वे स्वयं को स्वस्थ रख सकें। स्वास्थ्य संबंधी निर्देशन में वे सभी बातें आ जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती हैं; जैसे अच्छी आदतें, स्वास्थ्य को ठीक रखने के तरीके और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आदि। शरीर की बनावट या संरचना, संक्रामक रोगों के लक्षण एवं कारण, इनकी रोकथाम या बचाव के उपायों के लिए बच्चों को फिल्मों या तस्वीरों आदि के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। स्वास्थ्य निर्देशन की जानकारी प्राप्त कर बच्चे अनावश्यक विकृतियों या कमजोरियों का शिकार होने से बच सकते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 10.
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन से आप क्या समझते हैं? इसके क्षेत्र एवं प्रभाव पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन का अर्थ (Meaning of Healthful School Living):
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वस्थ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वस्थ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक व भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन का क्षेत्र (Scope of Healthful School Living):
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन के क्षेत्र में निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाता है-

1. स्कूल अध्यापक का अनुभव (Experience of School Teacher): अध्यापकों को अपना पाठ्यक्रम बच्चों की इच्छाओं, आवश्यकताओं, रुचियों के अनुसार बनाना चाहिए। इसके लिए अध्यापक को अपने अनुभव का प्रयोग करना चाहिए।

2. विद्यालय की स्थिति (Situation of School): बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विद्यालय का भवन रेलवे स्टेशनों, सिनेमाघरों, कारखानों, यातायात सड़कों आदि से दूर होना चाहिए।

3. छात्र एवं अध्यापक में संबंध (Relationship between Student & Teacher): बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु अध्यापकों एवं छात्रों में सहसंबंध होना चाहिए।

4. समय-सारणी (Time-Table): विद्यालय की समय-सारणी का विभाजन छात्रों के स्तर के अनुसार होना चाहिए।

स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन का प्रभाव (Effect of Healthful School Living):
व्यक्ति या बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा-बुरा वातावरण बहुत अधिक प्रभाव डालता है। बच्चे के स्कूल का माहौल, रहने का स्थान और काम करने का स्थान स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जिस देश के बच्चे और नवयुवक स्वस्थ होते हैं, वह देश हमेशा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है। बच्चा अपना बहुत ज्यादा समय स्कूल में गुजारता है। बच्चे का उचित विकास स्कूल के वातावरण पर निर्भर करता है। यह तभी हो सकता है, अगर साफ-सुथरा स्कूल हो अर्थात् साफ व आकर्षक बगीचे, साफ-सुथरे व हवादार कमरे, कुर्सियाँ, डैस्क और अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे लगाकर स्वच्छ वातावरण बनाया जाए। स्वच्छ वातावरण छात्रों को बहुत प्रभावित करता है। स्वच्छ वातावरण केवल छात्रों की ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक, नैतिक और बौद्धिक क्षमता व योग्यता को भी प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
विद्यालयी स्वास्थ्य अनुदेशन या शिक्षण पर विस्तृत नोट लिखें।
अथवा
स्वास्थ्य निर्देशन या अनुदेशन क्या है? इसके उद्देश्य एवं आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वास्थ्य अनुदेशन क्या है? विद्यालय में इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन या अनुदेशन का अर्थ (Meaning of School Health Instruction):
विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन का आशय है-स्कूल के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी जानकारी देना कि वे स्वयं को स्वस्थ एवं नीरोग बना सकें। स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास करते हैं। ये हमें स्वास्थ्य से संबंधित बाधाओं या समस्याओं के बुरे प्रभावों से बचाव के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन के उद्देश्य (Objectives of School Health Instruction):
विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी देना।
(2) बच्चों को स्वास्थ्य के विषय में पर्याप्त ज्ञान देना।
(3) स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण नियमों या सिद्धांतों की जानकारी देना।
(4) संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपायों की जानकारी देना।
(5) बच्चों को अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने हेतु प्रेरित करना।
(6) स्वास्थ्य को ठीक रखने के उपाय बताना।

faculteit Farren faldera ant rape cont a Hera (Need and Importance of School Health Instruction):
स्वास्थ्य के बिना मानव जीवन अधूरा है। वह अपने जीवन के उद्देश्य को तभी प्राप्त कर सकता है यदि वह शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ हो। अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाने के लिए हमें स्वास्थ्य निर्देशन का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य के सभी पहलुओं की जानकारी प्रदान करते हैं। इसलिए विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन की हमें बहुत आवश्यकता है। अत: इनका हमारे लिए निम्नलिखित प्रकार से विशेष महत्त्व है-
(1) विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन बच्चों को संक्रामक रोगों के लक्षणों एवं कारणों की उचित जानकारी प्रदान करते हैं।
(2) ये बच्चों को संक्रामक रोगों से बचाव या रोकथाम के उपायों की जानकारी देते हैं।
(3) ये बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की उपयोगिता से अवगत करवाते हैं।
(4) इनकी सहायता से बच्चे स्वयं को स्वस्थ रखने हेतु प्रेरित होते हैं।
(5) ये व्यक्तिगत स्वास्थ्य या स्वच्छता के साथ-साथ सार्वजनिक व पर्यावरण स्वच्छता की जानकारी भी देते हैं।
(6) ये बच्चों को अनावश्यक विकृतियों या कमजोरियों का शिकार होने से बचाने में सहायक होते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 12.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व या उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं का अर्थ (Meaning of School Health Services):
छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना भी विद्यालय का मुख्य उत्तरदायित्व माना जाता है। स्वास्थ्य सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है और उनमें पाए जाने वाले दोषों से माता-पिता को अवगत करवाया जाता है ताकि समय रहते उन दोषों का उपचार किया जा सके। इन सेवाओं के अंतर्गत स्कूल के अन्य कर्मचारियों एवं अध्यापकों के स्वास्थ्य की भी जाँच की जाती है। इनके अंतर्गत छात्रों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा प्रदान की जाती है और उन्हें सभी प्रकार की बीमारियों के लक्षणों, कारणों, रोकथाम या बचाव के उपायों की जानकारी दी जाती है। विद्यालय में ऐसी सुविधाओं को विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ (School Health Services) कहा जाता है।

विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of School Health Services):
आधुनिक युग में स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत महत्ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता से बच्चे और वयस्क अपने स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा उठा सकते हैं। आम जनता को ये सेवाएँ सरकार की ओर से मिलनी चाहिएँ, जबकि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल की ओर से ये सुविधाएँ मिलनी चाहिएँ। स्वास्थ्य सेवाओं का कार्य बच्चों में संक्रामक रोगों, कुपोषण जैसी बीमारियों को ढूँढकर उनके माता-पिता की सहायता से ठीक करना है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए डॉक्टर, नर्स, मनोवैज्ञानिक और स्कूलों के अध्यापक विशेष योगदान दे सकते हैं। ये सेवाएँ न केवल छात्रों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होती हैं, बल्कि स्कूल के अन्य कर्मचारियों व शिक्षकों के लिए भी उपयोगी हैं। विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ निम्नलिखित प्रकार से आवश्यक व महत्त्वपूर्ण हैं-
(1) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ छात्रों के रोगों का पता लगाने और उनकी रोकथाम व बचाव में सहायक होती हैं।
(2) ये संक्रामक व असंक्रामक रोगों के लक्षणों एवं कारणों की जानकारी देती हैं।
(3) इनसे इन रोगों की रोकथाम व बचाव के उपाय करने में सहायता मिलती है।
(4) इन,सेवाओं से छात्रों, अध्यापकों व अन्य स्कूल कर्मचारियों के स्वास्थ्य के निरीक्षण में सहायता मिलती है।
(5) इनके माध्यम से रोगी बच्चों के उपचार में मदद मिलती है।
(6) ये अकस्मात् दुर्घटना या रोगों के दौरान छात्रों को आपातकालीन सुविधाएँ प्रदान करती हैं।

प्रश्न 13.
स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रमों के विभिन्न सिद्धांतों या नियमों का ब्योरा दें।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों के लिए किन-किन बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए?
अथवा
आप अपने स्कूल में स्वास्थ्य शिक्षण कार्यक्रम को कैसे अधिक प्रभावशाली बनाएँगे?
अथवा
उन विभिन्न माध्यमों का वर्णन कीजिए, जिनका प्रयोग आप अपने स्कूल में वस्तुतः प्रभावशाली स्वास्थ्य शिक्षण कार्यक्रम के लिए करेंगे।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक बातें या सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(1) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों की आयु और लिंग के अनुसार होना चाहिए।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देने का तरीका साधारण और जानकारी से भरपूर होना चाहिए।
(3) स्वास्थ्य शिक्षा पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए अपितु उसकी प्राप्तियों के बारे में कार्यक्रम बनाने चाहिएँ।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम लोगों या छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों और पर्यावरण के अनुसार होना चाहिए।
(5) मनुष्य का व्यवहार ही उसका सबसे बड़ा गुण है, जिसमें उसकी रुचि ज्यादा है वह उसे सीखने और करने के लिए तैयार रहता है। इसलिए कार्यक्रम बनाते समय बच्चों की उत्सुकता, रुचियों और इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए।
(6) स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देते समय जीवन से संबंधित मुश्किलों पर भी वार्तालाप होनी चाहिए।
(7) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्तर के अनुसार बनाना चाहिए।
(8) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम ऐसे होने चाहिएँ जो बच्चों की अच्छी आदतों को उत्साहित कर सकें, ताकि वे अपने सोचने के तरीके को बदल सकें।
(9) स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रमों में बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छी आदतों को ग्रहण करने हेतु फिल्में, चार्ट, टी०वी०, रेडियो आदि माध्यमों के प्रयोग द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जाना चाहिए।
(10) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम केवल स्कूलों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अंग होना चाहिए।
(11) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम रुचिपूर्ण, शिक्षा से भरपूर और मनोरंजनदायक होना चाहिए।
(12) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम प्रस्तुत करते समय लोगों में प्रचलित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह भाषा उनकी आयु और समझने की क्षमता के अनुसार होनी चाहिए।
(13) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बनाते समय संक्रामक-असंक्रामक बीमारियों के बारे में तथा उनकी रोकथाम के उपायों के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
(14) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम केवल एक व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसका क्षेत्र विशाल होना चाहिए।
(15) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम लोगों की आंतरिक भावनाओं को जानकर ही बनाना चाहिए।
(16) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम में पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर के विषय शामिल होने चाहिएँ।

प्रश्न 14.
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण/जीवन से आपका क्या अभिप्राय है? स्कूल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण उत्पन्न करने के लिए स्कूल अध्यापक को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण/जीवन का अर्थ (Meaning of Healthful School Environment/Living):
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण या जीवन का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

स्कूल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण उत्पन्न करने में स्कूल अध्यापक की भूमिका (Role of School Teacher in Creating Healthful Environment in School):
स्कूल अध्यापक को छात्रों को पढ़ाते समय कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे अध्यापक द्वारा पढ़ाया जाने वाला कोई विषय या पाठ छात्रों की समझ में न आना, बच्चों द्वारा शरारतें करना, बच्चों द्वारा अध्ययन कार्य में रुचि न लेना आदि। यदि स्कूल अध्यापक छात्रों की रुचि, इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अपना पाठ्यक्रम बनाए तभी वह अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है अर्थात् वह छात्रों को पढ़ाए गए विषय को अच्छे से समझा सकता है।

कोई भी स्कूल अध्यापक तब तक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता, जब तक वह छात्रों को पढ़ने या अध्ययन करने हेतु प्रेरित न करे। यदि छात्रों की पढ़ने में रुचि है तो अध्यापक अपने उद्देश्य में सफल होगा और यदि छात्रों की रुचि नहीं है तो अध्यापक पढ़ाकर भी छात्रों को पढ़ाए गए विषय का ज्ञान नहीं करा पाएगा। इसलिए स्कूल अध्यापक को अपना पाठ्यक्रम छात्रों की रुचि एवं आवश्यकतानुसार बनाना चाहिए। तभी वह स्कूल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण उत्पन्न करने में सफल होगा और उसे पढ़ाने के दौरान किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। स्कूल अध्यापक को अपने अनुभवों का भी प्रयोग करना चाहिए। उसको समय-सारणी का विभाजन भी छात्रों के स्तर के अनुसार निश्चित करना चाहिए।

बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु छात्रों और स्कूल अध्यापक में परस्पर सहसंबंध अवश्य होना चाहिए, तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव होगा। इसलिए अध्यापक को कक्षा का वातावरण एवं पाठ्यक्रम रुचिकर बनाना चाहिए और उनके स्वास्थ्य के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। इसके साथ-साथ उसे छात्रों की इच्छाओं, आवश्यकताओं, आदतों तथा समस्याओं आदि का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए। अध्यापक को छात्रों को सभी सामाजिक गुणों के प्रति प्रेरित करना चाहिए, ताकि ये गुण उनके सामाजिक जीवन में उनकी सहायता कर सकें और उन्हें समाज का एक अच्छा नागरिक बना सकें। इस प्रकार स्कूल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण उत्पन्न करने के लिए स्कूल अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका अंदा कर सकता है।

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प्रश्न 15.
आधुनिक समय में जन स्वास्थ्य कल्याण हेतु कौन-कौन-सी मुख्य संस्थाएँ कार्य कर रही हैं?
अथवा
भारत में स्वास्थ्य कल्याण हेतु कार्यरत प्रमुख संस्थानों या संघों का वर्णन करें।
उत्तर:
आधुनिक युग में किसी देश की शक्ति का अनुमान वहाँ के स्वस्थ नागरिकों से लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य की पूर्ण व्याख्या किसी व्यक्ति के सही शारीरिक पक्ष से की जा सकती है। स्वास्थ्य की पूर्ण व्याख्या से अभिप्राय व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक पक्ष के पूर्ण होने से है। प्रत्येक पक्ष से स्वस्थ व्यक्ति अच्छे समाज का निर्माण करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य का ज्ञान अति-आवश्यक है। विकासशील देशों में सरकार और अन्य संगठन लोगों के स्वास्थ्य के लिए भरपूर सेवाएँ उपलब्ध करवाते हैं। भारत में निम्नलिखित प्रमुख संघ या संस्थान स्वास्थ्य कल्याण हेतु कार्यरत हैं-
1. भारतीय तपेदिक रोग संगठन (Tuberculosis Association of India):
भारतीय तपेदिक रोग संगठन वर्ष 1939 में अस्तित्व में आया। इसका मुख्य कार्य टी०बी० से पीड़ित लोगों को इससे राहत देना है। भारत की बहुत-सी जनसंख्या इस रोग से पीड़ित है। भारत सरकार ने इस रोग पर नियंत्रण पाने के लिए कई बड़े-बड़े अस्पताल और अन्वेषण केंद्र स्थापित किए हैं, ताकि इस घातक बीमारी से लोगों को निजात दिलाई जा सके। यह संगठन डॉक्टरों, नौं और अन्य संगठन जो इस रोग के निवारण हेतु योगदान दे रहे हैं, उन्हें प्रशिक्षण की सुविधाएँ प्रदान करता है।

2. भारत सेवक समाज (Bharat Sewak Samaj):
भारत सेवक समाज संस्था वर्ष 1952 में अस्तित्व में आई। यह एक गैर-सरकारी संस्था है। इसका मुख्य कार्य लोगों को स्वस्थ रहने के तौर-तरीके बताना है। यह संस्था समय-समय पर शहरों और गाँवों में शिविर लगाकर लोगों को स्वास्थ्य चेतना या जागरूकता के बारे में जानकारी देती है।

3. अखिल भारतीय नेत्रहीन सहायक सोसायटी (All India Blind Relief Society):
यह सोसायटी वर्ष 1945 में स्थापित की गई। यह नेत्रहीन लोगों की सहायता के लिए कार्य कर रही है। यह अन्य कई संस्थाओं जोकि नेत्रहीनता को दूर करने के लिए कार्य कर रही हैं, उनकी सहायता करती है। इसका अस्तित्व सरकार की आर्थिक सहायता पर अधिक निर्भर करता है। यह समय-समय पर आँखों के शिविर लगाकर लोगों को आँखों की गंभीर बीमारियों से अवगत करवाती है और उन्हें इनके प्रति सुविधाएँ प्रदान करती है। यह लोगों को आँखें दान हेतु प्रेरित करती है, ताकि नेत्रहीनता के शिकार लोगों को रोशनी दी जा सके।

4. हिंद कुष्ठ निवारण संघ (Hind Kusht Niwaran Sangh):
हिंद कुष्ठ निवारण संघ वर्ष 1947 में स्थापित की गई। कुष्ठ रोग जैसी घातक बीमारी को रोकने के लिए यह संघ दिन-रात प्रयासरत है। यह संघ वैज्ञानिक खोजों से इस बीमारी के कारण और उपयुक्त इलाज संबंधी जानकारी लोगों को प्रदान कर रहा है।

5.भारतीय परिवार नियोजन संघ (Family Planning Association of India):
भारतीय परिवार नियोजन संघ की स्थापना वर्ष 1949 में हुई। भारत में बढ़ रही जनसंख्या पर रोक लगाने हेतु यह संघ प्रयासरत है। थोड़े ही समय में इसकी शाखाएँ पूरे भारत में खुल गई हैं। इस संघ ने अनेक डॉक्टरों और समाज-सुधारकों को प्रशिक्षण देकर लोगों को परिवार नियोजन के बारे में जागरूक किया है।

6. भारतीय बाल कल्याण परिषद् (Indian Council for Child Welfare):
भारतीय बाल कल्याण परिषद् की स्थापना वर्ष 1952 में हुई। इसका मुख्य कार्य बच्चों संबंधी समस्याओं का हल और उनके कल्याण संबंधी योजनाएं बनाना है। इस परिषद् ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस 14 नवंबर को बच्चों का दिन (बाल-दिवस) मनाने का निर्णय लिया। अब भारत में प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को यह दिन मनाया जाता है। यह परिषद् अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से जुड़ी हुई है। यह प्रत्येक वर्ष बच्चों के कल्याण के लिए नई-नई योजनाएँ बनाती है।

7. भारतीय चिकित्सा संघ (Indian Medical Association):
इस संघ का मुख्य कार्य सरकार का ध्यान राष्ट्रीय स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की ओर दिलाना और उन्हें हल करने के लिए सहयोग देना है। यह संघ समय-समय पर सरकार से अपने वार्षिक बजट में आर्थिक सहायता की वृद्धि के लिए माँग करता है। भारतीय चिकित्सा संघ वैज्ञानिक अन्वेषण करके सरकार को घातक बीमारियों के फैलने और बचाव के बारे में सिफारिश करता रहता है। इस संघ की सिफारिश पर ही सरकार लोगों के स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार, अच्छी दवाइयाँ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए नई-नई योजनाएँ बनाती रहती है।

8. भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी (Indian Redcross Society):
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी एक राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय सोसायटी का सदस्य है। भारत में यह वर्ष 1920 में अस्तित्व में आई। यह सोसायटी मानवता की सेवा में संलग्न है। यह लोगों को स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान, बीमारियों के बचाव और उपाय, युद्ध के दौरान घायलों की सहायता, प्राकृतिक आपदाओं के समय दवाइयाँ और आवश्यकतानुसार सुविधाएँ उपलब्ध करवाती है। भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी जन-कल्याण के लिए निम्नलिखित कार्य करती है-
(1) रक्त बैंक की स्थापना करना और आवश्यकता पड़ने पर रक्त की सुविधाएँ उपलब्ध करना।
(2) युद्ध के दौरान घायल हुए और रोगी सैनिकों की देखभाल करना।
(3) यह भूकंप, बाढ़, प्लेग और सूखा पड़ने से पीड़ित लोगों की सहायता करती है।
(4) यह बाल कल्याण और उनकी भलाई के लिए विशेष योगदान देती है।
(5) यह तपेदिक, कुष्ठ, एड्स और अन्य कई बीमारियों की रोकथाम के लिए मुफ्त दवाइयाँ प्रदान करती है।
(6) यह उन अन्य संगठनों, जो मानवता की सेवा में संलग्न हैं, की आर्थिक सहायता करती है।
(7) यह असमर्थ लोगों को नकली अंग देकर उनकी मदद करती है।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? अथवा ‘स्वास्थ्य’ से आप क्या समझते हैं?
अथवा
स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर:
स्वास्थ्य से सभी परिचित हैं। स्वास्थ्य से अभिप्राय बीमारी की अनुपस्थिति से लगाया जाता है, परंतु यह स्वास्थ्य का विस्तृत अर्थ नहीं है। स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिससे वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारू होते हैं। इसका अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित्त और शरीर रोग-मुक्त रहता है। जे०एफ० विलियम्स के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएं प्रदान करता है।” रोजर बेकन के अनुसार, “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।”

प्रश्न 2.
विद्यालय में विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में चिकित्सा परीक्षण की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्यालय में विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में चिकित्सा परीक्षण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जैसे-
(1) चिकित्सा परीक्षण से विद्यार्थियों को अपने शारीरिक स्वास्थ्य और विकारों की जानकारी प्राप्त होती है। अतः समय रहते वे अपने विकारों को दूर कर सकते हैं।
(2) चिकित्सा परीक्षण से बच्चों के अभिभावकों को अपने बच्चों के स्वास्थ्य की पूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। वे उनके स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत हो जाते हैं।
(3) चिकित्सा परीक्षण से विद्यार्थियों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की प्रेरणा मिलती है और वे अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य व स्वच्छता की ओर ध्यान देने लगते हैं।
(4) चिकित्सा परीक्षण विद्यार्थियों के लिए भविष्य के संदर्भ में आधार देता है, क्योंकि स्वस्थ बालक ही कल के राष्ट्र-निर्माण में सहयोग दे सकता है।
(5) चिकित्सा परीक्षण विद्यार्थियों को नीरोग जीवन जीने हेतु प्रोत्साहित करता है।
(6) चिकित्सा परीक्षण से विद्यार्थियों को अपने सभी अंगों की पूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि चिकित्सा परीक्षण सभी विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। वर्ष में कम-से-कम एक बार विद्यार्थियों का चिकित्सा परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए, ताकि उन्हें अपने स्वास्थ्य की पूर्ण जानकारी मिलती रहे।

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) विद्यालय में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण बनाए रखना।
(2) बच्चों में ऐसी आदतों का विकास करना जो स्वास्थ्यप्रद हों।
(3) रोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना तथा प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी देना।
(4) सभी विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का निरीक्षण करना व निर्देश देना।
(5) सभी विद्यार्थियों में स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान तथा अभिव्यक्ति का विकास करना।
(6) व्यक्तिगत सफाई तथा स्वच्छता के बारे में जानकारी देना।
(7) स्वास्थ्य संबंधी आदतों का विकास करना।
(8) रोगों से बचने का उपाय करना और शारीरिक रोगों की जाँच करना।

प्रश्न 4.
स्वस्थ व्यक्ति किसे कहते हैं? अच्छे स्वास्थ्य के कोई तीन लाभ बताएँ।
उत्तर:
स्वस्थ व्यक्ति-स्वस्थ व्यक्ति वह होता है जिसकी सभी शारीरिक प्रणाली सुचारू रूप से कार्य करती हैं। अतः स्वस्थ व्यक्ति के शरीर के सभी अंगों की बनावट और उसके शारीरिक संस्थानों की क्रिया सुचारू रूप से चलती है। वह हर प्रकार के मनोवैज्ञानिक, मानसिक व सामाजिक तनावों से मुक्त होता है। केवल शारीरिक रोगों से मुक्त व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ नहीं होता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को रोग घटकों से भी मुक्त होना चाहिए।
अच्छे स्वास्थ्य के लाभ-
(1) अच्छे स्वास्थ्य से व्यक्ति का जीवन सुखमय व आनंदमय होता है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य का न केवल व्यक्तिगत लाभ होता है, बल्कि इसका सामूहिक लाभ होता है। इसका समाज व देश पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(3) अच्छे स्वास्थ्य से व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। स्वस्थ व्यक्ति कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 5.
अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में शिक्षा किस प्रकार सहायक होती है?
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक तौर पर विकारों तथा तनावों को दूर करने की आवश्यकता है, परंतु भारतवर्ष में बहुत-से लोग इस बात से भी अनभिज्ञ हैं कि कौन-कौन-से रोग किस-किस कारण से होते हैं? उनकी रोकथाम कैसे की जा सकती है तथा उनके बचाव के क्या उपाय हैं? केवल रोगों के निदान से ही स्वास्थ्य कायम नहीं होता। इसके लिए बाह्य कारक; जैसे प्रदूषण तथा सूक्ष्म-जीवों के संक्रमण से भी बचाव अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा संतुलित आहार और उनमें पौष्टिक तत्त्व की कितनी-कितनी मात्रा होनी चाहिए आदि की जानकारी देने में हमारी सहायता करती है। शिक्षा के द्वारा ही हमें किसी रोग के कारण, लक्षण और उनकी रोकथाम के उपायों का पता चलता है। शिक्षा ही हमें पर्यावरण से संबंधित आवश्यक जानकारी देती है। इन सब बातों को जानने के लिए उचित शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(1) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम व पाठ्यक्रम बच्चों की आयु और रुचि के अनुसार होना चाहिए।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देने का तरीका साधारण और जानकारी से भरपूर होना चाहिए।
(3) स्वास्थ्य शिक्षा पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं रखनी चाहिए अपितु उसकी प्राप्तियों के बारे में कार्यक्रम बनाने चाहिएँ।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम छात्रों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और पर्यावरण के अनुसार होना चाहिए।
(5) स्वास्थ्य शिक्षा में स्वास्थ्य के सभी पक्षों की विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए।

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य शिक्षा में सुधार के प्रमुख उपाय बताएँ।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा में सुधार के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) स्वास्थ्य शिक्षा का पाठ्यक्रम बच्चों की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुसार होना चाहिए।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रम व्यावहारिक जीवन से संबंधित होने चाहिएँ।
(3) स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य संबंधी आदतें, पर्यावरण प्रदूषण, प्राथमिक उपचार, बीमारियों की रोकथाम आदि को चित्रों या फिल्मों की सहायता से समझाया या दिखाया जाना चाहिए।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा में वाद-विवाद और भाषण आदि को अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
(5) स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्यपूर्ण कार्यक्रमों को अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को नियमित डॉक्टरी जाँच और अन्य सुविधाओं से लाभ हो सके।
(6) स्वास्थ्य शिक्षा में उन सभी पक्षों को शामिल करना चाहिए, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हों।

प्रश्न 8.
शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा में क्या संबंध है?
उत्तर:
शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा में परस्पर गहरा संबंध पाया जाता है। हमारा शरीर मन और आत्मा का संगठित रूप है और शिक्षा इसको सुदृढ़ करने में सहायक होती है। आज प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि उसकी वृद्धि एवं विकास शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। स्वास्थ्य शिक्षा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होती है, क्योंकि कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है। स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में स्वास्थ्य के प्रति चेतना जागृत करना है तथा उनमें स्वास्थ्य संबंधी विचारधाराओं में रुचि विकसित करना है। शिक्षा का उद्देश्य भी छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है और स्वास्थ्य शिक्षा के सभी उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों में ही निहित हैं क्योंकि शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। शिक्षा की तरह ही स्वास्थ्य शिक्षा भी लोगों या छात्रों के ज्ञान, भावनाओं व व्यवहार में परिवर्तन करने से संबंधित है। यह स्वास्थ्य संबंधी ऐसी आदतों को विकसित करने की ओर ध्यान देती है जो उनमें (छात्रों) तंदुरुस्त होने का अहसास उत्पन्न कर सके।

शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा में परस्पर संबंध इस तथ्य से भी स्पष्ट होता है कि आज खेल के मैदान को एक छोटा कक्षा-कक्ष’ माना जाता है, जिससे सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होते हैं। खेल के मैदान में बच्चों को अनेक सामाजिक-नैतिक गुण सीखने को मिलते हैं; जैसे सहयोग की भावना, सहानुभूति, नेतृत्व, मानवतावाद, देशभक्ति, भाईचारा, मित्रता, अनुशासन की भावना आदि। सामान्यतया शिक्षा नागरिक दायित्व का प्रशिक्षण देकर लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास करती है। अतःस्वास्थ्य शिक्षा को शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग कहा जाता है जो व्यक्ति के सभी पक्षों; जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक आदि पक्षों में योगदान प्रदान करती है।

प्रश्न 9.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं। स्कूल में जाने वाले बच्चे किसी राष्ट्र को सशक्त व मजबूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समस्त राष्ट्र का उत्तरदायित्व उनके कोमल कंधों पर टिका होता है। इसलिए स्कूल के बच्चों का स्वास्थ्य ही स्कूल प्रणाली का महत्त्वपूर्ण तथा प्राथमिक मुद्दा है। अत: स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम वह ग्रहणित प्रक्रिया है जिसको स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं, स्वास्थ्यप्रद स्कूल जीवन और स्वास्थ्य निर्देश में बच्चों के स्वास्थ्य के विकास के लिए अपनाया जाता है। इस प्रकार स्कूल स्वास्थ्य कर्यक्रम के तीन चरण होते हैं-
(1) स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services),
(2) स्वास्थ्यप्रद स्कूली जीवन या वातावरण (Healthful School Living or Environment) तथा
(3) स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन (Health Instructions)।

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प्रश्न 10.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महत्त्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम का महत्त्व निम्नलिखित है
(1) स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से बच्चे अनेक बीमारियों की रोकथाम तथा उपचार के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
(2) स्कूल के दिनों में बच्चों में जिज्ञासा की प्रवृत्ति अति तीव्र होती है। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ये कार्यक्रम अति-आवश्यक होते हैं।
(3) सभी स्कूली छात्र कक्षा के अनुसार लगभग समान आयु के होते हैं, इसलिए उनकी समस्याएँ भी लगभग एक-जैसी होती हैं और उनके निदान के प्रति दृष्टिकोण भी एक-जैसा ही होता है। इसलिए स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम सभी छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी होते हैं।
(4) स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चों को पोषक तत्त्वों एवं खनिज लवणों की जानकारी की महत्ता बताई जाती है जो उनकी संपूर्ण जिंदगी में सहायक होती है।
(5) स्कूल के दिनों के दौरान विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम अनेक अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक हैं जो समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 11.
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी वातावरण हेतु किन-किन मुख्य बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए?
अथवा
स्कूल में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण उत्पन्न करने के लिए स्कूल अध्यापक को क्या करना चाहिए?
अथवा
विद्यालय के वातावरण को स्वास्थप्रद बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाने चाहिएँ?
उत्तर:
स्कूल/विद्यालय छात्रों का सर्वांगीण विकास करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए स्कूल का वातावरण स्वास्थ्यपूर्ण होना चाहिए। अत: स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी वातावरण हेतु निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए-
(1) अध्यापकों को अपना पाठ्यक्रम बच्चों की इच्छाओं, आवश्यकताओं, रुचियों के अनुसार बनाना चाहिए। इसके लिए अध्यापक को अपने अनुभव का प्रयोग करना चाहिए।
(2) बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विद्यालय का भवन रेलवे स्टेशनों, सिनेमाघरों, कारखानों, यातायात सड़कों आदि से दूर होना चाहिए।
(3) बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु अध्यापकों को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु अध्यापकों एवं छात्रों में सहसंबंध होना चाहिए।
(4) अध्यापक को विद्यालय की समय-सारणी का विभाजन छात्रों के स्तर के अनुसार करना चाहिए।
(5) स्कूल में नियमित खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करना चाहिए और छात्रों को इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।

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प्रश्न 12.
स्कूल के स्वास्थ्य कार्यक्रम में शिक्षक/अध्यापक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्कूल के स्वास्थ्य कार्यक्रम में शिक्षक/अध्यापक निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है-
(1) शिक्षक छात्रों को स्वास्थ्य कार्यक्रम की उपयोगिता बताकर उन्हें अपने स्वास्थ्य हेतु प्रेरित कर सकता है।
(2) वह छात्रों को व्यक्तिगत सफाई के लिए प्रेरित कर सकता है, ताकि छात्र स्वयं को नीरोग एवं स्वस्थ रख सकें।
(3) शिक्षक छात्रों को संक्रामक रोगों के कारणों एवं रोकथाम के उपायों की जानकारी दे सकता है।
(4) शिक्षक को चाहिए कि वह स्वास्थ्य शिक्षा की विषय-वस्तु से संबंधित विभिन्न सेमिनारों का आयोजन करे।
(5) वह छात्रों को अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करे।

प्रश्न 13.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
अथवा
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना भी विद्यालय का मुख्य उत्तरदायित्व माना जाता है। विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ, वे सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है और उनमें पाए जाने वाले दोषों से माता-पिता को अवगत करवाया जाता है ताकि समय रहते उन दोषों का उपचार किया जा सके। इन सेवाओं के अंतर्गत स्कूल के अन्य कर्मचारियों एवं अध्यापकों के स्वास्थ्य की भी जाँच की जाती है। इनके अंतर्गत छात्रों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा प्रदान की जाती है और उन्हें सभी प्रकार की बीमारियों के लक्षणों, कारणों, रोकथाम या बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान की जाती है। स्कूल/विद्यालय में ऐसी सुविधाओं को विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ (School Health Services) कहा जाता है। आधुनिक युग में इन सेवाओं की बहुत आवश्यकता है।

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प्रश्न 14.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ निम्नलिखित प्रकार से आवश्यक हैं
(1) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ छात्रों के रोगों का पता लगाने और उनकी रोकथाम व बचाव में सहायक होती हैं।
(2) ये संक्रामक व असंक्रामक रोगों के लक्षणों एवं कारणों की जानकारी देती हैं।
(3) इनसे इन रोगों की रोकथाम व बचाव के उपाय करने में सहायता मिलती है।
(4) इन सेवाओं से छात्रों, अध्यापकों व अन्य स्कूल कर्मचारियों के स्वास्थ्य के निरीक्षण में सहायता मिलती है।
(5) इनके माध्यम से रोगी बच्चों के उपचार में मदद मिलती है। (6) ये अकस्मात् दुर्घटना या रोगों के दौरान छात्रों को आपातकालीन सुविधाएँ प्रदान करती हैं।

प्रश्न 15.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं के विभिन्न कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ विद्यार्थियों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
(2) ये विद्यार्थियों के स्वास्थ्य हेतु उचित वातावरण प्रदान करती हैं और स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों का विकास करती है।
(3) ये विद्यार्थियों के स्वास्थ्य हेतु उचित अभिवृत्तियों को विकसित करने का कार्य करती हैं।
(4) ये विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के संक्रामक व असंक्रामक रोगों की जानकारी प्रदान करती हैं और उनसे बचने के उपायों की जानकारी प्रदान करती हैं।।
(5) ये अभिभावकों को बच्चों के स्वास्थ्य की जानकारी प्रदान करती हैं।
(6) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ रोगों का पता लगाने और उनके उपचार व इलाज में सहायता करती हैं।

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प्रश्न 16.
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन या वातावरण का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

व्यक्ति या बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा-बुरा माहौल बहुत अधिक प्रभाव डालता है। बच्चे के स्कूल का माहौल, रहने का स्थान और काम करने का स्थान स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जिस देश के बच्चे और नवयुवक स्वस्थ होते हैं वह देश हमेशा प्रगति के रास्ते पर चलता रहता है, क्योंकि आने वाला भविष्य उनसे बंधा होता है। बच्चा अपना बहुत ज्यादा समय स्कूल में गुजारता है। बच्चे का उचित विकास स्कूल के माहौल पर निर्भर करता है। यह तभी संभव हो सकता है, अगर साफ़-सुथरा एवं स्वच्छ स्कूल हो। स्वस्थ माहौल बच्चे और वयस्क दोनों को प्रभावित करता है। स्वस्थ माहौल केवल छात्रों का ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक, नैतिक और बौद्धिक विकास में भी सहायक होता है।

प्रश्न 17.
स्कूल में स्वास्थ्य निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्कूल में स्वास्थ्य निर्देशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी देना।
(2) बच्चों को स्वास्थ्य के विषय में पर्याप्त ज्ञान देना।
(3) स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण नियमों या सिद्धांतों की जानकारी देना।
(4) संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपायों की जानकारी देना।
(5) बच्चों को अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने हेतु प्रेरित करना।
(6) अच्छी आदतें एवं सेहत को ठीक रखने के उपाय बताना।

प्रश्न 18.
स्वास्थ्य निर्देशन के क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य निर्देशन के क्षेत्र निम्नलिखित हैं
1. वाद-विवाद-वाद-विवाद, स्वास्थ्य निर्देशन प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण तरीका है। इसके अंतर्गत बच्चों को कोई विषय देकर वाद-विवाद करवाया जाता है।
2. भाषण-भाषण द्वारा भी बच्चों को निर्देशन प्रदान किए जाते हैं। बच्चों को एक विषय देकर अपने विचार व्यक्त करने को कहा जाता है, ताकि सुनने वाले बच्चों को भी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त हो सके।
3. रेडियो, सिनेमा, टी०वी०-बच्चों को रेडियो, सिनेमा, टी०वी० के माध्यम से भी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान की जा सकती है।
4. प्रदर्शन व प्रदर्शनी-प्रदर्शन व प्रदर्शनी द्वारा भी स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। प्रदर्शनी में अनेक प्रकार की हृदय-श्रव्य सामग्री का प्रदर्शन किया जा सकता है।
5. स्वास्थ्य संबंधी भ्रमण एवं साहित्य-समय-समय पर छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य हेतु शैक्षणिक भ्रमणों की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसे भ्रमणों से उन्हें प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। इसके साथ ही हमें स्वास्थ्य संबंधी साहित्य की व्यवस्था स्कूल पुस्तकालय में करवानी चाहिए।

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प्रश्न 19.
स्वास्थ्य का महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
स्वास्थ्य का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है; जैसे-
(1) स्वास्थ्य मानव व समाज का आधार स्तंभ है। यह वास्तव में खुशी, सफलता और आनंदमयी जीवन की कुंजी है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं।
(3) स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने व निखारने में सहायक होता है।
(4) स्वास्थ्य से हमारा जीवन संतुलित, आनंदमय एवं सुखमय रहता है।
(5) स्वास्थ्य हमारी जीवन-शैली को बदलने में हमारी सहायता करता है।
(6) किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य व आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। यदि किसी देश के नागरिक शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे तो उस देश का आर्थिक विकास भी उचित दिशा में होगा।
(7) स्वास्थ्य से हमारी कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 20.
स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं के अभिकरण बताएँ।
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य सेवा का उद्देश्य स्वास्थ्य विकास और कल्याण को बढ़ावा देना है, ताकि छात्र अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच सकें। स्वास्थ्य सेवाएँ संयुक्त रूप से स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा विभाग द्वारा प्रदान की जाती हैं। स्कूल स्वास्थ्य सेवा टीम में सामुदायिक स्वास्थ्य नर्स और अन्य स्वास्थ्य पेशेवर शामिल होते हैं । एक सामुदायिक स्वास्थ्य नर्स आमतौर पर स्कूल की यात्रा करती है और छात्रों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करती है। सामुदायिक स्वास्थ्य टीम में सहयोगी स्वास्थ्य पेशेवर भी स्कूल में चल रहे कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ लिखते हुए कोई एक परिभाषा लिखें। अथवा स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है। यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों या पहलुओं के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करते हैं। डॉ० थॉमस वुड के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य शिक्षा का क्या लक्ष्य है?
उत्तर:स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य न केवल शारीरिक विकास या वृद्धि तक सीमित है बल्कि इसका महत्त्वपूर्ण लक्ष्य व्यक्ति के मानसिक, भावात्मक, सामाजिक आदि पक्षों को भी विकसित करना है। इसका लक्ष्य शरीर को हानि पहुँचाने वाली बुरी आदतों से अवगत करवाना और स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों हेतु अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण में सहायता करना है।

प्रश्न 3.
विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के विभिन्न अंग या तत्त्व कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
(1) स्वास्थ्य सेवाएँ,
(2) स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण,
(3) स्वास्थ्य निर्देश ।

प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा में क्या अंतर है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा में परस्पर अटूट संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं, क्योंकि आज एक ओर जहाँ स्वास्थ्य शिक्षा को शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत पढ़ाया जाता है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य शिक्षा के अध्ययन में भी शारीरिक शिक्षा के पक्षों पर जोर दिया जाता है। फिर भी इनमें कुछ अंतर है। शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत शारीरिक गतिविधियों या क्रियाओं पर विशेष बल दिया जाता है, जबकि स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

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प्रश्न 5.
विभिन्न स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) चिकित्सा परीक्षण,
(2) प्राथमिक चिकित्सा/सहायता सेवाएँ,
(3) आहार-पोषण पर विशेष ध्यान,
(4) माता-पिता को छात्रों की स्वास्थ्य रिपोर्ट की जानकारी देना,
(5) बीमार छात्रों का उपचार आदि।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम मुख्यतः कैसे होने चाहिएँ?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम रुचिकर, मनोरंजक तथा शिक्षाप्रद होने चाहिएँ, ताकि इनमें सभी बढ़-चढ़कर भाग ले सकें। ये बच्चों की रुचि, स्वास्थ्य के स्तर तथा वातावरण की आवश्यकता के अनुसार तथा व्यावहारिक भी होने चाहिएँ, ताकि इनसे स्वास्थ्य संबंधी सभी पहलुओं की उचित जानकारी प्राप्त हो सके।

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य के विभिन्न पहलू या मापक बताइए।
उत्तर:
(1) शारीरिक स्वास्थ्य
(2) मानसिक स्वास्थ्य,
(3) सामाजिक स्वास्थ्य,
(4) आध्यात्मिक स्वास्थ्य,
(5) संवेगात्मक स्वास्थ्य।

प्रश्न 8.
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण की परिभाषा दीजिए।
अथवा
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन या वातावरण का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

प्रश्न 9.
स्कूल में स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
अथवा
विद्यालयी छात्रों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को बताइए।
अथवा
अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक कारक बताएँ।
उत्तर:
(1) वातावरण
(2) संतुलित व पौष्टिक आहार
(3) व्यक्तिगत स्वच्छता
(4) सामाजिक व आर्थिक कारक ।

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प्रश्न 10.
स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन क्या है?
उत्तर:
स्वास्थ्य निर्देशन का आशय है-स्कूल के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी जानकारी देना कि वे स्वयं को स्वस्थ एवं नीरोग बना सकें। स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास करते हैं। स्वास्थ्य से संबंधित बाधाओं या समस्याओं के बुरे प्रभावों से बचाव के लिए ये हमारा मार्गदर्शन करते हैं।

प्रश्न 11.
विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की महत्ता की जानकारी देना।
(2) बच्चों को स्वास्थ्य के विषय में पर्याप्त ज्ञान देना।

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प्रश्न 12.
स्वास्थ्य अनुदेशन के कोई दो मार्गदर्शक सिद्धांत बताइए।
उत्तर:
(1) स्वास्थ्य संबंधी किसी विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता करवाना।
(2) स्वास्थ्य के सभी पहलुओं से संबंधित साहित्य स्कूल पुस्तकालय में उपलब्ध करवाना।

प्रश्न 13.
शारीरिक स्वास्थ्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शारीरिक स्वास्थ्य वह स्वास्थ्य है जिसमें शारीरिक पक्ष संबंधी विशेष जानकारी दी जाती है। शारीरिक स्वास्थ्य में शारीरिक संस्थान व उनके अंगों या भागों को शामिल किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को न केवल शरीर के विभिन्न अंगों या भागों की बनावट एवं उनके कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, बल्कि शारीरिक अंगों या भागों को उत्तम स्वास्थ्य की स्थिति में रखने का भी ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय स्वास्थ्य से अभिप्राय है कि हम अपने आस-पास के वातावरण को ऐसा बनाएँ, जिससे हम उसका अधिक-से-अधिक लाभ समाज व देश को दे सकें, ताकि हमारा समाज व देश स्वच्छ एवं नीरोग हो सके। अत: यह ऐसा स्वास्थ्य है जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी पक्षों पर बल दिया जाता है। अतः हम सभी को स्वास्थ्य संबंधी पक्षों में विशेष रुचि लेनी चाहिए, ताकि देश का स्वास्थ्य उचित बना रहे।

प्रश्न 15.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) छात्रों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना अर्थात् उन्हें स्वास्थ्य के नियमों से अवगत कराना। (2) उन्हें संक्रामक-असंक्रामक रोगों के कारणों और उनकी रोकथाम या बचाव के उपायों की जानकारी देना।

प्रश्न 16.
स्कूल में स्वास्थ्य शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
(1) बच्चों में ऐसी स्वाभाविक आदतों का विकास करना जो स्वास्थ्यप्रद हो
(2) छात्रों के स्वास्थ्य का निरीक्षण करना
(3) छात्रों को रोगों के बारे में विस्तृत जानकारी देना
(4) छात्रों को रोगों से बचने के उपायों की जानकारी देना।

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प्रश्न 17.
स्वास्थ्य शिक्षा के कोई दो आधारभूत नियम बताएँ।
उत्तर:
(1) स्वास्थ्य शिक्षा छात्रों में अच्छी आदतों का विकास करती है।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम व्यावहारिक, स्वास्थ्य के स्तर एवं वातावरण की आवश्यकतानुसार होने चाहिएँ।

प्रश्न 18.
जन-साधारण को स्वास्थ्य-संबंधी उपयोगी जानकारी देने वाले माध्यम या साधन बताएँ।
उत्तर:
(1) टेलीविजन,
(2) रेडियो,
(3) वार्तालाप,
(4)भाषण,
(5) अखबार,
(6) पत्रिकाएँ एवं विज्ञापन आदि।

प्रश्न 19.
स्वस्थ व्यक्ति की क्या पहचान है? अथवा स्वस्थ व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
(1) स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी कार्य अच्छे से एवं तीव्रता से करने में समर्थ होता है,
(2) उसके शरीर में फूर्ति एवं लचकता होती है,
(3) उसके शारीरिक संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हैं और उनकी कार्यक्षमता अधिक होती है,
(4) उसका मन शांत और शरीर स्वस्थ होता है।

प्रश्न 20.
विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ रहना क्यों अधिक महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विद्यार्थी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है। शिक्षा प्राप्त करने हेतु विद्यार्थी का स्वास्थ्य बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, इसलिए विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ रहना अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अस्वस्थ विद्यार्थी के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन होता है। किसी ने ठीक ही लिखा है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है। अच्छे स्वास्थ्य के द्वारा ही विद्यार्थी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अच्छी शिक्षा प्राप्त करके वह देश के विकास में अपना योगदान देता है।

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HBSE 12th Class Physical Education स्वास्थ्य शिक्षा Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न [Objective Type Questions]

भाग-I : एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
किस शिक्षा में स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा में स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है।

प्रश्न 2.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने स्वास्थ्य को कैसे परिभाषित किया है?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”

प्रश्न 3.
“स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएं प्रदान करता है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन जे०एफ० विलियम्स ने कहा।

प्रश्न 4.
“स्वास्थ्यप्रद शरीर आत्मा के लिए आरामगृह, परन्तु कमजोर व बीमार व्यक्ति के लिए कारागृह है।” यह किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन रोजर बेकन ने कहा।

प्रश्न 5.
“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कंथन अरस्तू ने कहा।

प्रश्न 6.
किसी देश का कल्याण किसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी देश का कल्याण उस देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत आने वाले कोई दो कार्यक्रमों के नाम बताएँ।
उत्तर:
(1) एड्स जागरूकता संबंधी कार्यक्रम
(2) मेडिकल निरीक्षण कार्यक्रम।

प्रश्न 8.
प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध किससे था?
उत्तर:
प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध स्वास्थ्य निर्देशन से था।

प्रश्न 9.
आनन्दमय जीवन की कुँजी क्या है?
उत्तर:
आनन्दमय जीवन की कुँजी स्वस्थ शरीर है।

प्रश्न 10.
भारतीय बाल कल्याण परिषद् की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारतीय बाल कल्याण परिषद् की स्थापना वर्ष 1952 में हुई।

प्रश्न 11.
विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को मनाया जाता है।

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प्रश्न 12.
भारत सेवक समाज संस्था कब अस्तित्व में आई?
उत्तर:
भारत सेवक समाज संस्था वर्ष 1952 में अस्तित्व में आई।

प्रश्न 13.
प्रारंभ में स्वास्थ्य निर्देशन के अन्तर्गत किस विषय पर बल दिया जाता था?
उत्तर:
प्रारंभ में स्वास्थ्य निर्देशन के अन्तर्गत स्वास्थ्य शिक्षा पर बल दिया जाता था।

प्रश्न 14.
स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख उद्देश्य स्वास्थ्य विकास कल्याण को बढ़ावा देना है ताकि छात्र अपनी संपूर्ण क्षमता तक पहुँच सकें।

प्रश्न 15.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की स्थापना अप्रैल, 1948 में हुई।

प्रश्न 16.
स्कूली बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा देने की कोई दो विधियाँ बताएँ।
उत्तर:
(1) भ्रमण द्वारा
(2) स्वास्थ्य संबंधी भाषण।

प्रश्न 17.
W.H.0. का क्या अर्थ है?
उत्तर:
World Health Organisation.

प्रश्न 18.
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम मुख्यतः कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों की आवश्यकताओं, रुचियों और पर्यावरण के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 19.
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम किसको ध्यान में रखकर तय करना चाहिए?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों की आवश्यकताओं, रुचियों और पर्यावरण को ध्यान में रखकर तय करना चाहिए।

प्रश्न 20.
“स्वास्थ्य प्रथम पूँजी है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन इमर्जन ने कहा।

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प्रश्न 21.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 22.
क्या स्वास्थ्य निर्देशन के अन्तर्गत शरीर के संस्थानों की जानकारी प्रदान की जाती है?
उत्तर:
हाँ, स्वास्थ्य निर्देशन के अन्तर्गत शरीर के संस्थानों की जानकारी प्रदान की जाती है।

प्रश्न 23.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
रोगों का पता लगाना और उनके उपचार में सहायता करना।

प्रश्न 24.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं का कोई एक उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
छात्र-छात्राओं को स्वास्थ्य से संबंधी नियमों से अवगत करवाना।

प्रश्न 25.
अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन कैसा होता है?
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन शांत एवं सुखमय होता है।

प्रश्न 26.
मानसिक स्वास्थ्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दबाव व तनाव से मुक्ति।

प्रश्न 27.
शहरों में स्वास्थ्य संबंधी एक प्रमुख समस्या क्या है?
उत्तर:
यातायात वाहनों की अधिकता के कारण बढ़ता प्रदूषण।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 3 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 28.
‘प्रोटीन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर:
‘प्रोटीन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बरजेलियास ने किया।

प्रश्न 29.
भारतीय परिवार नियोजन संघ की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारतीय परिवार नियोजन संघ की स्थापना वर्ष 1949 में हुई।

प्रश्न 30.
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी की स्थापना वर्ष 1920 में हुई।

भाग-II: सही विकल्प का चयन करें

1. स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ है
(A) स्वस्थ शरीर
(B) स्वस्थ दिमाग
(C) स्वस्थ आत्मा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. “स्वास्थ्य हृष्ट-पुष्ट होने की एक दशा है।” यह कथन किसके अनुसार है?
(A) डॉ० थॉमस वुड के ।
(B) विश्व स्वास्थ्य संगठन के
(C) अंग्रेज़ी पद के
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अंग्रेज़ी पद के

3. स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम किसको ध्यान में रखकर तय करना चाहिए?
(A) बच्चों की आयु और लिंग को
(B) बच्चे के स्वास्थ्य को
(C) केवल आयु को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बच्चों की आयु और लिंग को

4. “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।” यह कथन है
(A) रोजर बेकन का
(B) डॉ० थॉमस वुड का
(C) हरबर्ट स्पेंसर का
(D) जे०एफ०विलियम्स का
उत्तर:
(A) रोजर बेकन का

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5. निम्नलिखित में से कौन-सा विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम का अंग (चरण) है?
(A) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ
(B) स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण
(C) स्वास्थ्य निर्देश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. स्वास्थ्य का आयाम है
(A) शारीरिक स्वास्थ्य
(B) मानसिक स्वास्थ्य
(C) सामाजिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. किसने स्वास्थ्य को ‘प्रथम पूँजी’ कहा?
(A) स्वामी विवेकानंद ने
(B) इमर्जन ने

(D) डॉ० थॉमस वुड ने
उत्तर:
(B) इमर्जन ने

8. स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य है
(A) स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान देना
(B) उचित मार्गदर्शन करना
(C) स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों का विकास करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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9. प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध किससे था?
(A) स्वास्थ्य सेवाओं से
(B) स्वास्थ्य अनुदेशन से
(C) स्वास्थ्य निरीक्षण से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्वास्थ्य अनुदेशन से

10. भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति कब बनाई गई?
(A) वर्ष 1983 में
(B) वर्ष 1988 में
(C) वर्ष 1992 में
(D) वर्ष 1999 में
उत्तर:
(A) वर्ष 1983 में

11. भारतीय बाल कल्याण परिषद् की स्थापना हुई
(A) वर्ष 1950 में
(B) वर्ष 1951 में
(C) वर्ष 1952 में
(D) वर्ष 1955 में
उत्तर:
(C) वर्ष 1952 में

12. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
(A) न्यूयॉर्क में
(B) पेरिस में
(C) जेनेवा में
(D) लंदन में
उत्तर:
(C) जेनेवा में

13. साधारण जनता को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जाती है
(A) रेडियो द्वारा
(B) टेलीविजन द्वारा
(C) अखबार द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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14. स्कूल स्वास्थ्य प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्राथमिक मुद्दा है
(A) स्कूल का प्रबंधन
(B) बच्चों का स्वास्थ्य
(C) बच्चों की पढ़ाई
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बच्चों का स्वास्थ्य

15. अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का जीवन कैसा होता है?
(A) सुखमय
(B) आरामदायक
(C) दुखदायी
(D) (A) व (B) दोनों
उत्तर:
(D) (A) व (B) दोनों

16. स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम कितने चरणों में पूरा होता है?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
(C)3

17. विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
(A) 7 अप्रैल को
(B) 8 मार्च को
(C) 14 अप्रैल को
(D) 15 मार्च को
उत्तर:
(A)7 अप्रैल को

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18. पोषण से होता है
(A) वृद्धि एवं विकास
(B) सहनशीलता
(C) रफ्तार
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) वृद्धि एवं विकास

19. स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम मुख्यतः किसको ध्यान में रखकर तय करना चाहिए?
(A) शिक्षकों को
(B) स्कूल के अन्य कर्मचारियों को
(C) छात्रों को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) छात्रों को

20. स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम होना चाहिए
(A) रुचिपूर्ण
(B) शिक्षा से भरपूर
(C) मनोरंजनात्मक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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भाग-III : रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. स्वास्थ्य एक ………………. उत्तरदायित्व है।
2. स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम ……………….. की आवश्यकता के अनुसार होने चाहिएँ।
….. के बिना हमारा शारीरिक स्वास्थ्य अधूरा है।
4. स्वास्थ्य शिक्षा छात्रों को ……………….. संबंधी जानकारी देने वाला विषय है।
5. “स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से संबंधित है।” यह कथन ……………. ने कहा।
6. स्वास्थ्य शिक्षा ……………….. प्रक्रिया है।
7. विद्यालय स्वास्थ्य कार्यक्रम . ……………… चरणों में पूरा होता है।
……… के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर सकता।
9. ………………….. शिक्षा से अभिप्राय उन सभी साधनों से है जो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान प्रदान करते हैं।
10. अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन ……………….. होता है।
उत्तर:
1. व्यक्तिगत
2. बच्चों
3. मानसिक स्वास्थ्य
4. स्वास्थ्य
5. सोफी
6. जन स्वास्थ्य संबंधी
7. तीन
8. अच्छे स्वास्थ्य
9. स्वास्थ्य
10. आनंदमय एवं सुखमय।

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स्वास्थ्य शिक्षा Summary

स्वास्थ्य शिक्षा परिचय

स्वास्थ्य (Health):
अच्छा स्वास्थ्य होना जीवन की सफलता के लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य से कोई व्यक्ति किसी निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है। आरोग्य व्यक्ति को स्वस्थ कहना बहुत बड़ी भूल है। स्वस्थ व्यक्ति उसे कहा जाता है जिसकी सभी शारीरिक प्रणालियाँ ठीक ढंग से कार्य करती हों और वह स्वयं को वातावरण के अनुसार ढालने में सक्षम हो। अलग-अलग लोगों के लिए स्वास्थ्य का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। कुछ लोगों के लिए यह बीमारी से छुटकारा है तो कुछ के लिए शरीर और दिमाग का सुचारू रूप से कार्य करना। स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ-स्वस्थ शरीर, दिमाग तथा आत्मा से चुस्त-दुरुस्त होने की अवस्था है, विशेष रूप से किसी बीमारी या पीड़ा से मुक्त रहना। अत: स्वास्थ्य कोई लक्ष्य नहीं, बल्कि जीवन में उपलब्धि प्राप्त करने का साधन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”

स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ उन सभी आदतों से है जो किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं। इसका संबंध मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है। यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्म-निर्भर बनाने में सहायता करते हैं। अतः यह एक ऐसी शिक्षा है जिसके बिना मनुष्य की सारी शिक्षा अधूरी रह जाती है। डॉ० थॉमस वुड (Dr Thomas Wood) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

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HBSE 12th Class Physical Education Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions

HBSE 12th Class Physical Education Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Physical Education Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Physical Fitness and Wellness
  • Chapter 2 Training Methods
  • Chapter 3 Health Education
  • Chapter 4 Athletic Care
  • Chapter 5 Sociological Aspects of Physical Education
  • Chapter 6 Family Life Education
  • Chapter 7 Yoga Education
  • Chapter 8 Olympic Movement
  • Chapter 9 National Sports Awards

HBSE 12th Class Physical Education Syllabus

Class: XII
Subject: Physical Education

1. Unit I: Physical Fitness & Wellness
Part-A: Meaning & Definition of Physical Fitness, Method of Fitness development, Components of Physical Fitness, Factor affecting Physical Fitness, Means of Fitness development
Part-B: Practical – Athletics
History of Athletics, Track & Field (Sector) Measurements, Rules & Regulations of different Track & Field Events

2. Unit II: Training Method
Part-A: Meaning & Concept of Training, Different training methods, Methods of strength development: isometric, isotonic, isokinetic exercise, Methods of endurance development: Continuous training, Fartlek training & Interval training method, Methods of speed development: Acceleration & Pace Running, Meaning of Warming-up & Limbering down, Importance of Warming-up & Limbering down, Types & Methods of Warming-up
Part-B: Practical – Foot Ball & KHO-KHO
History of Foot Ball & KHO-KHO, Ground Measurements of Foot Ball & KHO-KHO, Rules & Regulations of Foot Ball & KHO-KHO

3. Unit III: Health Education
Part-A: Meaning & Definition of Health Education, Objectives of Health Education, Meaning of School Health Programme, Importance of School Health Programme, Components of School Health Programme – Healthful School Living – Health Services – Health Instruction, Role of teacher in School Health Programme
Part-B: Practical – Hockey & Kabaddi
Ground Measurements of Hockey & Kabaddi, Rules & Regulations of Hockey & Kabaddi

4. Unit IV: Athletic Care
Part-A: Meaning of Athletic Care, Meaning & Definition of first aid, Qualities & duties of a first aider, Common sports injuries: Causes, Symptoms & their treatment – sprain, strain, fracture, dislocation, confusion, abrasion
Part-B: Practical – Cricket & Judo
History of Cricket & Judo, Ground Measurements of Cricket & Judo, Rules & Regulations of Cricket & Judo

5. Unit V: Sociological Aspects of Physical Education
Part-A: Meaning & Definition of Sociology, Importance of Sociology in Physical Education, Meaning of Socialization, Role of Physical Education in Socialization, Effects of Social Institution on individual behaviour, Game & sports as men Cultural Heritage
Part-B: Practical – Hand Ball, Basket Ball
History of Hand Ball & Basket Ball, Ground Measurements of Hand Ball & Basket Ball, Rules & Regulations of Hand Ball & Basket Ball

6. Unit VI: Family Life Education
Part-A: Meaning of Family, Types of Family, Importance of Family as a social institution, Role of parents in child care, Preparation of Marriage, Meaning of Adolescence, Problem & Management of adolescence Problem
Part-B: Practical – VolleyBall & Wrestling
History of Volley Ball & Wrestling, Ground Measurements of Volley Ball & Wrestling, Rules & Regulations of Volley Ball &
Wrestling

7. Unit VII: Yoga Education
Part-A: Meaning & Definition of Yoga, Importance of Yoga, Elements of Yoga (Ashtanga Yog), Meaning & Types of Pranayam
Part-B: Practical – Yogic Exercise
History of Yoga, Different Asanas

8. Unit VIII: Olympic Movements
Part-A: History of Ancient & Modern Olympic Games, Rules of Participations in Modern Olympic Games, Objectives of Modern Olympic Games, Short Notes on – Olympic oath, Olympic flag, Olympic Motto, Olympic Prize, Meaning of Olympic movement
Part-B: Practical – Badminton & Table Tennis
History of Badminton & Table Tennis, Ground Measurements of Badminton & Table Tennis, Rules & Regulations of Badminton & Table Tennis

9. Unit IX: National Sports Awards
Part-A: Meaning of National sports awards, Explain the following in detail – Rajiv Gandhi Khel Ratna award – Arjuna award, Dronacharya award, Bhim award
Part-B: Practical – Boxing, Judo
History of Boxing & Judo, Ground Measurements of Boxing & Judo, Rules & Regulations of Boxing & Judo

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. सबसे कम परिवर्तनशील अनुपात किस जनसंख्या वर्ग का होता है?
(A) बाल वर्ग का
(B) प्रौढ़ वर्ग का
(C) वृद्ध वर्ग का
(D) युवा वर्ग का
उत्तर:
(C) वृद्ध वर्ग का

2. आयु और लिंग पिरामिड से क्या प्रदर्शित किया जाता है?
(A) आयु संरचना
(B) लिंग संरचना
(C) आयु और लिंग संरचना
(D) लिंग अनुपात
उत्तर:
(C) आयु और लिंग संरचना

3. आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक उत्पादक आयु वर्ग कौन-सा है?
(A) बाल वर्ग
(B) प्रौढ़ वर्ग
(C) वृद्ध वर्ग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) वृद्ध वर्ग

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

4. बौद्धिकतापूर्ण व्यवसाय किस वर्ग में आते हैं?
(A) प्राथमिक व्यवसाय
(B) द्वितीयक व्यवसाय
(C) तृतीयक व्यवसाय
(D) चतुर्थक व्यवसाय
उत्तर:
(C) तृतीयक व्यवसाय

5. विश्व का सर्वाधिक नगरीकृत महाद्वीप कौन-सा है?
(A) यूरोप
(B) एशिया
(C) ऑस्ट्रेलिया
(D) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(C) ऑस्ट्रेलिया

6. लिंगानुपात = HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन 2
(A) कुल जनसंख्या
(B) मृत्यु-दर
(C) जन्म-दर
(D) स्त्रियों की जनसंख्या
उत्तर:
(D) स्त्रियों की जनसंख्या

7. चौड़ा आधार तथा पतला होता शीर्ष आकृति वाला पिरामिड क्या दर्शाता है?
(A) स्थिर जनसंख्या
(B) विकासशील जनसंख्या
(C) घटती जनसंख्या
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(D) कोई नहीं

8. बच्चे, वृद्ध, सेवानिवृत्त व्यक्ति, गृहणियां तथा विद्यार्थियों को जनसंख्या के किस वर्ग में रखा गया है?
(A) सक्रिय जनसंख्या
(B) नगरीय जनसंख्या
(C) पराश्रित जनसंख्या
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(C) पराश्रित जनसंख्या

9. निम्नलिखित में कौन-सा घटक जनसंख्या के संघटन को प्रदर्शित नहीं करता-
(A) आयु
(B) लिंग
(C) साक्षरता
(D) प्रजननशीलता
उत्तर:
(D) प्रजननशीलता

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

10. एशिया का कौन-सा देश उच्च मानव विकास की श्रेणी में है?
(A) जापान
(B) भारत
(C) श्रीलंका
(D) चीन
उत्तर:
(A) जापान

11. 1951 में भारत की साक्षरता दर कितनी थी?
(A) 16%
(B) 17%
(C) 18%
(D) 19%
उत्तर:
(C) 18%

12. जनसंख्या की आयु संरचना का अर्थ है-
(A) विभिन्न आयु वर्ग के लिंग अनुपात की जनसंख्या
(B) आयु और लिंग अनुपात का विवरण
(C) विभिन्न आयु वर्ग के लोगों की संख्या
(D) 60 वर्ष से ऊपर की आयु के लोगों की संख्या
उत्तर:
(C) विभिन्न आयु वर्ग के लोगों की संख्या

13. ऋणात्मक वार्षिक जनसंख्या वृद्धि-दर दिखलाने वाला देश कौन-सा है?
(A) बेल्जियम
(B) इंग्लैंड
(C) रूस
(D) अमेरिका
उत्तर:
(C) रूस

14. जनसंख्या की आयु-लिंग संरचना सबसे अच्छी प्रदर्शित होती है-
(A) सममान रेखा द्वारा
(B) वृत्त आरेख द्वारा
(C) छाया आरेख द्वारा
(D) पिरामिड आरेख द्वारा
उत्तर:
(D) पिरामिड आरेख द्वारा

15. जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में कौन-सा देश है?
(A) चिली
(B) कनाडा
(C) फ्रांस
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(D) अफ्रीका

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

16. जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में कौन-सा देश है?
(A) चिली
(B) कनाडा
(C) फ्रांस
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(A) चिली

17. जनांकिकीय संक्रमण की चौथी अवस्था में कौन-सा देश है?
(A) चिली
(B) कनाडा
(C) फ्रांस
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(B) कनाडा

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
कृषि अथवा प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न जनसंख्या को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या।

प्रश्न 2.
चौड़ा आधार तथा पतला होता शीर्ष आकृति वाला पिरामिड क्या दर्शाता है?
उत्तर:
विकासशील जनसंख्या को।

प्रश्न 3.
गैर-कृषि कार्यों में संलग्न जनसंख्या को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नगरीय जनसंख्या।

प्रश्न 4.
वर्ष 1951 में भारत की साक्षरता दर कितने प्रतिशत थी?
उत्तर:
18 प्रतिशत।

प्रश्न 5.
ऋणात्मक वार्षिक जनसंख्या वृद्धि-दर दिखलाने वाला देश कौन-सा है?
उत्तर:
रूस।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 6.
सबसे कम परिवर्तनशील अनुपात किस जनसंख्या वर्ग का होता है?
उत्तर:
वृद्ध वर्ग।

प्रश्न 7.
बच्चे, वृद्ध, सेवानिवृत्त व्यक्ति, गृहणियाँ तथा विद्यार्थियों को जनसंख्या के किस वर्ग में रखा गया है?
उत्तर:
पराश्रित जनसंख्या वर्ग।

प्रश्न 8.
किसी जनसंख्या के आयु-लिंग पिरामिड का आधार संकीर्ण है, तो उस जनसंख्या की वृद्धि-दर कितनी होगी?
उत्तर:
कम जनसंख्या वृद्धि-दर।

प्रश्न 9.
किसी जनसंख्या में उच्च जन्म-दर होने पर आयु-लिंग पिरामिड का आकार कैसा होगा?
उत्तर:
त्रिभुज के आकार का।

प्रश्न 10.
किसी जनसंख्या में जन्म-दर व मृत्यु-दर समान होने पर आयु-लिंग पिरामिड का आकार कैसा होगा?
उत्तर:
घण्टी के आकार का।

प्रश्न 11.
जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में शामिल कोई एक देश बताएँ।
उत्तर:
चिली।

प्रश्न 12.
प्रति सौ व्यक्तियों के अनुपात में साक्षर व्यक्तियों की संख्या क्या कहलाती है?
उत्तर:
साक्षरता दर।

प्रश्न 13.
विस्तृत जनसंख्या पिरामिड किस आकार का होता है?
उत्तर:
चौड़े आकार का।

प्रश्न 14.
ऑस्ट्रेलिया का जनसंख्या पिरामिड किस प्रकार का है?
उत्तर:
विस्तृत प्रकार का।

प्रश्न 15.
कार्यशील जनसंख्या का आयु वर्ग कौन-सा है?
उत्तर:
15 से 59 वर्ष।

प्रश्न 16.
किसी जनसंख्या के आयु लिंग पिरामिड का आधार संकीर्ण है, तो उस जनसंख्या की वृद्धि दर कितनी होगी?
उत्तर:
ह्रासमान जनसंख्या।

प्रश्न 17.
किसी जनसंख्या में उच्च जन्म-दर होने पर आयु लिंग पिरामिड का आकार कैसा होगा?
उत्तर:
विस्तारित होती जनसंख्या।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 18.
किसी जनसंख्या में जन्म-दर व मृत्यु-दर समान होने पर आयु लिंग पिरामिड का आकार कैसा होगा?
उत्तर:
स्थिर जनसंख्या।

प्रश्न 19.
आयु और लिंग पिरामिड से क्या प्रदर्शित किया जाता है?
उत्तर:
आयु और लिंग संरचना।

प्रश्न 20.
आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक उत्पादक आयु वर्ग कौन-सा है?
उत्तर:
प्रौढ़ वर्ग।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आयु संरचना को प्रभावित करने वाले तीन कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर:
आयु संरचना को प्रभावित करने वाले तीन कारक निम्नलिखित हैं-

  1. जन्म-दर या प्रजननशीलता
  2. मृत्यु-दर या मर्त्यता
  3. प्रवास।

प्रश्न 2.
जनसंख्या के तीन बड़े आयु वर्ग कौन से हैं?
उत्तर:

  1. बाल तरुण आयु वर्ग (0 से 14 वर्ष)
  2. प्रौढ़ आयु वर्ग (15 से 59 वर्ष)
  3. वृद्ध आयु वर्ग (60 वर्ष व इससे ऊपर)।

प्रश्न 3.
नगरीय जनसंख्या की वृद्धि किन तीन तरीकों से होती है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वृद्धि द्वारा
  2. गाँव से नगर की ओर प्रवास द्वारा तथा
  3. किसी ग्रामीण क्षेत्र के नगरीय घोषित हो जाने से।

प्रश्न 4.
जनसंख्या पिरामिड (Population Pyraimid) क्या होता है?
उत्तर:
जनसंख्या पिरामिड विभिन्न आयु वर्ग की जनसंख्या का एक त्रिकोणात्मक प्रदर्शन है। इसका प्रतिपादन डब्ल्यू एम० थॉमसन तथा ऑर्थर लेविस ने किया था। इस पिरामिड में सबसे नीचे के आधार पर निम्नतम आयु वर्ग की जनसंख्या (पुरुष एवं महिला) को प्रदर्शित करते हैं, जो सबसे बड़ी संख्या होती है। क्रमशः घटते हुए आयु वर्ग पर चलते हैं। उच्चतम आयु वर्ग की जनसंख्या जो आकार में सबसे कम होगी, सबसे ऊपर प्रदर्शित होती है। इस प्रकार बनी आकृति पिरामिड की तरह होगी। यही जनसंख्या पिरामिड कहलाता है।

प्रश्न 5.
लिंगानुपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रति हजार पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या के अनुपात को लिंगानुपात कहा जाता है। यह भारत के संदर्भ में है क्योंकि विभिन्न देशों में लिंगानुपात की परिभाषा अलग-अलग है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 6.
ह्रासमान जनसंख्या को प्रदर्शित करने वाले आयु-लिंग पिरामिड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ह्रासमान या घटती हुई जनसंख्या के पिरामिड का आधार संकीर्ण और शीर्ष शुण्डाकार होता है। यह निम्न जन्म-दर तथा मृत्यु-दर को दर्शाता है। इसमें जनसंख्या वृद्धि दर शून्य अथवा ऋणात्मक होती है। जापान, ऑस्ट्रेलिया के जनसंख्या पिरामिड इसी प्रकार के हैं।

प्रश्न 7.
विस्तारित होती या विकासशील जनसंख्या को प्रदर्शित करने वाले आयु-लिंग पिरामिड का उल्लेख कीजिए।
अथवा
किसी क्षेत्र का विस्तारित होती जनसंख्या को प्रदर्शित करने वाले आयु लिंग पिरामिड की व्याख्या करें।
उत्तर:
अल्पविकसित या विकासशील देशों में आयु-लिंग पिरामिड का आधार चौड़ा और शीर्ष तेजी से पतला होता जाता है। यह उच्च जन्म दर तथा मृत्यु दर को दर्शाता है। इसमें जनसंख्या वृद्धि दर धनात्मक होती है। अल्पविकसित या विकासशील देशों में वृद्धों की जनसंख्या कम और बच्चों की जनसंख्या बढ़ती जाती है। नाइजीरिया, बांग्लादेश के जनसंख्या पिरामिड इसी प्रकार के हैं।

प्रश्न 8.
उत्पादक और आश्रित जनसंख्या में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्पादक और आश्रित जनसंख्या में निम्नलिखित अंतर हैं-

उत्पादक जनसंख्याआश्रित जनसंख्या
1. उत्पादक जनसंख्या लाभदायक आर्थिक क्रियाओं में काम करती है।1. आश्रित जनसंख्या आर्थिक क्रियाओं में विशेष योगदान नहीं देती।
2. ऐसे लोगों के समुदाय को श्रमिक बल कहा जाता है।2. ऐसे लोगों के समुदाय को अश्रमिक बल कहा जाता है।
3. ये लोग स्वयं परिश्रम करके अपना जीवन-निवर्वाह करते हैं।3. ये लोग बेरोज़गार होते हैं तथा श्रमिक लोगों पर आश्रित रहते हैं।

प्रश्न 9.
विकासशील और हासशील जनसंख्या में क्या अंतर है?
उत्तर:
विकासशील और ह्रासशील जनसंख्या में निम्नलिखित अंतर हैं-

विकासशील जनसंख्याहासशील जनसंख्या
1. विकासशील जनसंख्या में जन्म-दर तथा मृत्यु-दर दोनों उच्च होती हैं।1. ह्रसशील जनसंख्या में जन्म-दर तथा मृत्यु-दर दोनों निम्न होती हैं।
2. जनसंख्या पिरामिड का आधार चौड़ा तथा शीर्ष पतला होता जाता है।2. जनसंख्या पिरामिड का आधार पतला तथा शीर्ष संकीर्ण होता जाता है।

प्रश्न 10.
जनसंख्या के घटते लिंगानुपात के कारण क्या हैं?
उत्तर:

  1. पुरुष और स्त्री मृत्यु-दर में अंतर होने के कारण लिंगानुपात कम हो रहा है।
  2. स्त्री-पुरुष के जन्म-दर में अंतर होने के कारण भी लिंगानुपात कम हो रहा है।
  3. प्रवास भी लिंगानुपात को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकासशील देशों में नगरीकरण की दर तेजी से क्यों बढ़ रही है?
उत्तर:
विकासशील देशो में तेजी से बढ़ते नगरीकरण के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. इन देशों में भारी मात्रा में औद्योगीकरण हुआ है जिससे रोजगार के अवसर अधिक उपलब्ध हैं। फलस्वरूप इन देशों के गांवों से लोग नगरों की ओर स्थानांतरित हुए।
  2. इन देशों के गांवों में जीवन की आवश्यक सुविधाएँ; जैसे-चिकित्सा तथा शिक्षा आदि का अभाव पाया जाता है। इसलिए अधिक-से-अधिक लोग नगरो की ओर प्रवास करते हैं जिससे इन देशों के नगरों के आकार में भारी वृद्धि हो गई।

प्रश्न 2.
आयु संरचना पर मृत्यु-दर के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आयु संरचना पर मृत्यु-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी देश में निम्न शिशु मृत्यु-दर होने पर वहाँ बच्चों की संख्या का अनुपात घट जाता है।
  2. वृद्ध मृत्यु-दर निम्न होने पर उनकी संख्या बढ़ जाती है और बच्चों की संख्या कम हो जाती है।
  3. युवा व वृद्ध आयु वर्ग में मृत्यु-दर कम होने पर उच्च आयु वर्ग की जनसंख्या का अनुपात बढ़ जाता है। विकसित देशों में ऐसा ही हो रहा है।।

प्रश्न 3.
आयु-संरचना पर जन्म-दर के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जन्म-दर किसी देश की जनसंख्या के विभिन्न आयु वर्गों में लोगों के अनुपात को प्रभावित करती है। आयु-संरचना पर जन्म-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिकी अल्पविकसित देशों में उच्च जन्म-दर पाई जाती है इसलिए वहाँ निम्न आयु वर्ग तथा युवा वर्ग की प्रधानता होती है।
  2. जब निम्न आयु वर्ग संतान पैदा करने की उम्र में शामिल होते हैं तो जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है।
  3. निम्न आयु वर्ग (0-14 वर्ष) और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की अधिक संख्या आश्रित जनसंख्या को प्रदर्शित करती है।
  4. जिन देशों में जन्म-दर कम तथा जीवन प्रत्याशा अधिक होती है, वहाँ बच्चों की संख्या कम और वृद्धों की संख्या अधिक होती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 4.
स्त्री-पुरुष की भिन्न मृत्यु-दर लिंगानुपात को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
विकासशील और अल्प-विकसित देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की मृत्यु-दर अधिक होती है। इन देशों में स्त्रियों का सामाजिक और आर्थिक रूप से निम्न स्तर तथा स्त्रियों के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण के कारण स्त्री मृत्यु-दर अधिक पाई जाती है।

विकसित देशों में जीवन के सभी आयु वर्गों में पुरुष मृत्यु-दर, स्त्री मृत्यु-दर से अधिक होती है। फलस्वरूप पुरुषों की संख्या उत्तरोतर समाप्त होती जाती है। इसका एक कारण और भी हो सकता है कि जैविक दृष्टि से स्त्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों से अधिक होती है।

प्रश्न 5.
ग्रामीण जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. गाँवों में रहने वाली जनसंख्या को ग्रामीण जनसंख्या कहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है।
  2. ये लोग अपनी आजीविका के लिए प्राथमिक व्यवसाय; जैसे-कृषि, पशुपालन, खनन, मत्स्यपालन, संग्रहण व कुटीर उद्योग पर निर्भर करते हैं।
  3. गाँव के लोग सरल, धर्मनिष्ठ व सामुदायिक भावना से ओत-प्रोत होते हैं।
  4. ग्रामीण जनसंख्या भावनात्मक होती है।

प्रश्न 6.
नगरीय जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नगरीय जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. नगरों में रहने वाली जनसंख्या को नगरीय जनसंख्या कहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय उद्योग एवं व्यापार होता है।
  2. ये लोग अपनी आजीविका के लिए द्वितीयक, तृतीयक व चतुर्थक व्यवसाय; जैसे विनिर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, सेवाओं आदि पर निर्भर करते हैं।
  3. नगरीय लोगों के जीवन की तीव्र गति व सम्बन्ध बनावटी होते हैं।
  4. नगरीय जनसंख्या व्यावसायिक होती है।

प्रश्न 7.
किसी देश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से उस देश के आर्थिक विकास के स्तर का पता कैसे लगता है?
उत्तर:
किसी भी देश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना को चार भागों में बाँटा जा सकता है प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक। किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास का स्तर उसकी कार्यशील जनसंख्या के आधार पर होता है। जिस देश की जनसंख्या द्वितीयक, तृतीयक, चतुर्थक क्रियाकलापों में लगी होती है, वह देश विकसित अवस्था में होता है।

प्रश्न 8.
आयु-लिंग पिरामिड से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आयु-लिंग पिरामिड का अर्थ-जनसंख्या की आयु लिंग संरचना का अभिप्राय विभिन्न आयु वर्गों में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या से है। आयु लिंग संरचना को दर्शाने के लिए एक विशेष प्रकार का रेखाचित्र बनाया जाता है, जिस कारण इसे आयु-लिंग अथवा जनसंख्या पिरामिड कहा जाता है।

आयु-लिंग पिरामिड के प्रकार-आयु-लिंग पिरामिड के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. विस्तारित होती जनसंख्या-यह विस्तृत आकार वाला त्रिभुजाकार पिरामिड है जो कम विकसित देशों का प्रतिरूपी है। इस पिरामिड में उच्च जन्म-दर के कारण निम्न आयु वर्गों में विशाल जनसंख्या पाई जाती है। उदाहरणतया-नाइजीरिया, बांग्लादेश, मैक्सिको के लिए ऐसे पिरामिड की रचना होगी।

2. स्थिर जनसंख्या इस आयु-लिंग पिरामिड का आकार घंटी के आकार का है जो शीर्ष की ओर शुंडाकार होता जाता है। यह दर्शाता है कि जन्म-दर और मृत्यु-दर लगभग समान है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर हो जाती है। उदाहरणतया ऑस्ट्रेलिया का आयु-लिंग पिरामिड।

3. हासमान जनसंख्या-इस पिरामिड का संकीर्ण आधार और शुंडाकार शीर्ष निम्न जन्म-दर और मृत्यु-दर को दर्शाता है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक या शून्य होती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या तथा नगरीय जनसंख्या में निम्नलिखित अंतर हैं-

ग्रामीण जनसंख्यानगरीय जनसंख्या
1. ग्रामीण लोग अपनी व्यवसाय-संरचना, जीवन-पद्धति, विचारों तथा दृष्टिकोणों से नगरों की जनसंख्या से भिन्न होते हैं। ये लोग छोटी बस्तियों तथा छोटे मकानों में रहते हैं। इनके आपसी संबंध घनिष्ठ होते हैं।1. ये लोग बड़े मकानों में रहते हैं तथा इनके आपसी संबंध औपचारिक ही होते हैं।
2. इन लोगों का मुख्य धंधा ‘कृषि’ है।2. ये लोग अधिकतर उद्योगों तथा व्यापार में काम करते हैं।
3. गाँवों में यातायात, स्वास्थ्य तथा शैक्षणिक सुविधाएँ अच्छी नहीं हैं।3. शहरों में ये सभी सुविधाएँ पर्याप्त हैं।
4. ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या 5,000 से कम होती है।4. नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या 5,000 से अधिक होती है।

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प्रश्न 10.
विश्व के विभिन्न भागों में आयु-लिंग में असंतुलन के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आयु-लिंग में असंतुलन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
1. स्त्री-पुरुष के जन्म-दर में अंतर-प्रत्येक समाज में जन्म के समय नर बच्चे, मादा बच्चों से अधिक पैदा होते हैं। साधारणतया इनका अनुपात क्रमशः 107 से 100 का है किंतु जन्म के पहले और बाद की दशाएँ कभी-कभी इस स्थिति को परिवर्तित कर देती हैं।

2. स्त्री-पुरुष की मृत्यु-दर में अंतर-स्त्री-पुरुष की मृत्यु-दर में अंतर होने के कारण भी लिंगानुपात में अंतर आ जाता है। विकसित देशों में जीवन की सभी अवस्थाओं में पुरुष मृत्यु-दर, स्त्री मृत्यु-दर से अधिक होती है जबकि विकासशील देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में मृत्यु-दर अधिक होती है। ऐसे समाज में स्त्री भ्रूण हत्या, स्त्री शिशु हत्या और स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा की प्रथा प्रचलित होती है। इन देशों में न केवल स्त्रियों की मृत्यु-दर ऊँची होती है बल्कि उनकी जीवन प्रत्याशा भी कम हो जाती है।

3. प्रवास-स्त्रियों और पुरुषों का प्रवास भी लिंगानुपात को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। अधिकांश विकासशील देशों में विशेषतया एशियाई और अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में पुरुष ग्रामीण इलाकों से नगरों की ओर आजीविका की तलाश में प्रवास करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकासशील देशों में नगरीकरण की दर तेजी से क्यों बढ़ रही है?
उत्तर:
विकासशील देशो में तेजी से बढ़ते नगरीकरण के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. इन देशों में भारी मात्रा में औद्योगीकरण हुआ है जिससे रोजगार के अवसर अधिक उपलब्ध हैं। फलस्वरूप इन देशों के गांवों से लोग नगरों की ओर स्थानांतरित हुए।
  2. इन देशों के गांवों में जीवन की आवश्यक सुविधाएँ; जैसे-चिकित्सा तथा शिक्षा आदि का अभाव पाया जाता है। इसलिए अधिक-से-अधिक लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं जिससे इन देशों के नगरों के आकार में भारी वृद्धि हो गई।

प्रश्न 2.
आयु संरचना पर मृत्यु-दर के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आयु संरचना पर मृत्यु-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी देश में निम्न शिशु मृत्यु-दर होने पर वहाँ बच्चों की संख्या का अनुपात घट जाता है।
  2. वृद्ध मृत्यु-दर निम्न होने पर उनकी संख्या बढ़ जाती है और बच्चों की संख्या कम हो जाती है।
  3. युवा व वृद्ध आयु वर्ग में मृत्यु-दर कम होने पर उच्च आयु वर्ग की जनसंख्या का अनुपात बढ़ जाता है। विकसित देशों में ऐसा ही हो रहा है।

प्रश्न 3.
आयु-संरचना पर जन्म-दर के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जन्म-दर किसी देश की जनसंख्या के विभिन्न आयु वर्गों में लोगों के अनुपात को प्रभावित करती है। आयु-संरचना पर जन्म-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिकी अल्पविकसित देशों में उच्च जन्म-दर पाई जाती है इसलिए वहाँ निम्न आयु वर्ग तथा युवा वर्ग की प्रधानता होती है।
  2. जब निम्न आयु वर्ग संतान पैदा करने की उम्र में शामिल होते हैं तो जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है।
  3. निम्न आयु वर्ग (0-14 वर्ष) और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की अधिक संख्या आश्रित जनसंख्या को प्रदर्शित करती है।
  4. जिन देशों में जन्म-दर कम तथा जीवन प्रत्याशा अधिक होती है, वहाँ बच्चों की संख्या कम और वृद्धों की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 4.
स्त्री-पुरुष की भिन्न मृत्यु-दर लिंगानुपात को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
विकासशील और अल्प-विकसित देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की मृत्यु-दर अधिक होती है। इन देशों में स्त्रियों का सामाजिक और आर्थिक रूप से निम्न स्तर तथा स्त्रियों के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण के कारण स्त्री मृत्यु-दर अधिक पाई जाती है।

विकसित देशों में जीवन के सभी आयु वर्गों में पुरुष मृत्यु-दर, स्त्री मृत्यु-दर से अधिक होती है। फलस्वरूप पुरुषों की संख्या उत्तरोतर समाप्त होती जाती है। इसका एक कारण और भी हो सकता है कि जैविक दृष्टि से स्त्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों से अधिक होती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 5.
ग्रामीण जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. गाँवों में रहने वाली जनसंख्या को ग्रामीण जनसंख्या कहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है।
  2. ये लोग अपनी आजीविका के लिए प्राथमिक व्यवसाय; जैसे-कृषि, पशुपालन, खनन, मत्स्यपालन, संग्रहण व कुटीर उद्योग पर निर्भर करते हैं।
  3. गाँव के लोग सरल, धर्मनिष्ठ व सामुदायिक भावना से ओत-प्रोत होते हैं।
  4. ग्रामीण जनसंख्या भावनात्मक होती है।

प्रश्न 6.
नगरीय जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नगरीय जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. नगरों में रहने वाली जनसंख्या को नगरीय जनसंख्या कहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय उद्योग एवं व्यापार होता है।
  2. ये लोग अपनी आजीविका के लिए द्वितीयक, तृतीयक व चतुर्थक व्यवसाय; जैसे विनिर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, सेवाओं आदि पर निर्भर करते हैं।
  3. नगरीय लोगों के जीवन की तीव्र गति व सम्बन्ध बनावटी होते हैं।
  4. नगरीय जनसंख्या व्यावसायिक होती है।

प्रश्न 7.
किसी देश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से उस देश के आर्थिक विकास के स्तर का पता कैसे लगता है?
उत्तर:
किसी भी देश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना को चार भागों में बाँटा जा सकता है प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक। किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास का स्तर उसकी कार्यशील जनसंख्या के आधार पर होता है। जिस देश की जनसंख्या द्वितीयक, तृतीयक, चतुर्थक क्रियाकलापों में लगी होती है, वह देश विकसित अवस्था में होता है।

प्रश्न 8.
आयु-लिंग पिरामिड से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आयु-लिंग पिरामिड का अर्थ-जनसंख्या की आयु लिंग संरचना का अभिप्राय विभिन्न आयु वर्गों में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या से है। आयु लिंग संरचना को दर्शाने के लिए एक विशेष प्रकार का रेखाचित्र बनाया जाता है, जिस कारण इसे आयु-लिंग अथवा जनसंख्या पिरामिड कहा जाता है।

आयु-लिंग पिरामिड के प्रकार-आयु-लिंग पिरामिड के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. विस्तारित होती जनसंख्या-यह विस्तृत आकार वाला त्रिभुजाकार पिरामिड है जो कम विकसित देशों का प्रतिरूपी है। इस पिरामिड में उच्च जन्म-दर के कारण निम्न आयु वर्गों में विशाल जनसंख्या पाई जाती है। उदाहरणतया नाइजीरिया, बांग्लादेश, मैक्सिको के लिए ऐसे पिरामिड की रचना होगी।

2. स्थिर जनसंख्या इस आयु-लिंग पिरामिड का आकार घंटी के आकार का है जो शीर्ष की ओर शुंडाकार होता जाता है। यह दर्शाता है कि जन्म-दर और मृत्यु-दर लगभग समान है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर हो जाती है। उदाहरणतया ऑस्ट्रेलिया का आयु-लिंग पिरामिड।

3. हासमान जनसंख्या-इस पिरामिड का संकीर्ण आधार और शुंडाकार शीर्ष निम्न जन्म-दर और मृत्यु-दर को दर्शाता है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक या शून्य होती है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या तथा नगरीय जनसंख्या में निम्नलिखित अंतर हैं-

ग्रामीण जनसंख्यानगरीय जनसंख्या
1. ग्रामीण लोग अपनी व्यवसाय-संरचना, जीवन-पद्धति, विचारों तथा दृष्टिकोणों से नगरों की जनसंख्या से भिन्न होते हैं। ये लोग छोटी बस्तियों तथा छोटे मकानों में रहते हैं। इनके आपसी संबंध घनिष्ठ होते हैं।1. ये लोग बड़े मकानों में रहते हैं तथा इनके आपसी संबंध औपचारिक ही होते हैं।
2. इन लोगों का मुख्य धंधा ‘कृषि’ है।2. ये लोग अधिकतर उद्योगों तथा व्यापार में काम करते हैं।
3. गाँवों में यातायात, स्वास्थ्य तथा शैक्षणिक सुविधाएँ अच्छी नहीं हैं।3. शहरों में ये सभी सुविधाएँ पर्याप्त हैं।
4. ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या 5,000 से कम होती है।4. नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या 5,000 से अधिक होती है।

प्रश्न 10.
विश्व के विभिन्न भागों में आयु-लिंग में असंतुलन के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आयु-लिंग में असंतुलन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
1. स्त्री-पुरुष के जन्म-दर में अंतर प्रत्येक समाज में जन्म के समय नर बच्चे, मादा बच्चों से अधिक पैदा होते हैं। साधारणतया इनका अनुपात क्रमशः 107 से 100 का है किंतु जन्म के पहले और बाद की दशाएँ कभी-कभी इस स्थिति को परिवर्तित कर देती हैं।

2. स्त्री-पुरुष की मृत्यु-दर में अंतर-स्त्री-पुरुष की मृत्यु-दर में अंतर होने के कारण भी लिंगानुपात में अंतर आ जाता है। विकसित देशों में जीवन की सभी अवस्थाओं में पुरुष मृत्यु-दर, स्त्री मृत्यु-दर से अधिक होती है जबकि विकासशील देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में मृत्यु-दर अधिक होती है। ऐसे समाज में स्त्री भ्रूण हत्या, स्त्री शिशु हत्या और स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा की प्रथा प्रचलित होती है। इन देशों में न केवल स्त्रियों की मृत्यु-दर ऊँची होती है बल्कि उनकी जीवन प्रत्याशा भी कम हो जाती है।

3. प्रवास स्त्रियों और पुरुषों का प्रवास भी लिंगानुपात को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। अधिकांश विकासशील देशों में विशेषतया एशियाई और अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में पुरुष ग्रामीण इलाकों से नगरों की ओर आजीविका की तलाश में प्रवास करते हैं।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या की आयु लिंग संरचना पर एक भौगोलिक निबंध लिखिए।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु लिंग संरचना (Age composition of Population) इसे आयु एवं लिंग पिरामिड द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह वास्तव में एक विशेष वर्ष का दंड ग्राफ होता है जिसमें प्रत्येक अनुप्रस्थ पट्टी जनसंख्या के एक विशेष आयु वर्ग को दर्शाती है। बाईं ओर के दंड की लंबाई पुरुषों की संख्या के प्रतिशत को दर्शाती है तथा दाईं ओर यह स्त्रियों के लिए दर्शाई गई है।
(क) विकासशील देशों के आयु एवं लिंग पिरामिड का आधार व्यापक होता है। इसका अर्थ है प्रति 5 वर्ष पहले 5 वर्ष के मुकाबले जनसंख्या में और अधिक बच्चे शामिल हो रहे हैं। इस प्रकार पिरामिड का आधार विस्तृत हो रहा है और उच्च आयु वर्ग के लोगों की संख्या में कम वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही जब अधिक बच्चे संतान पैदा करने की आयु में आते हैं, तब पैदा होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ जाती है।

(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका के आयु लिंग पिरामिड का आधार छोटा पाया जाता है अर्थात् यहाँ प्रत्येक अगले 5 वर्षों में कम बच्चे पैदा होते रहे हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि यहाँ की जनसंख्या में वृद्धि नहीं हो रही है; जैसे ही बच्चों की संख्या उच्च आयु समूह में शामिल होती है वैसे ही पूरी जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन 1

(ग) तीसरी प्रकार के पिरामिड का आधार पतला तथा शीर्ष संकीर्ण होता जाता है। ऐसी जनसंख्या में बिल्कुल वृद्धि नहीं होती। ऐसी स्थिति स्वीडन में पाई जाती है।

प्रश्न 2.
आयु-संरचना क्या है? आयु-संरचना पर जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आयु-संरचना किसी भी जनसंख्या की एक आधारभूत विशेषता होती है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या में विभिन्न आयु के लोग रहते हैं। किसी भी व्यक्ति की आयु उसकी जन्म-तिथि तथा वर्तमान तिथि के बीच का समय होता है। किसी क्षेत्र की आयु-संरचना में समस्त मनुष्यों की आयु को पूर्ण वर्षों में ज्ञात किया जा सकता है, न कि महीनों अथवा दिनों में।

आयु-संरचना पर जन्म-दर का प्रभाव (Effect of Birth Rate on Age Composition) – जन्म-दर किसी देश की जनसंख्या के विभिन्न आयु वर्गों में लोगों के अनुपात को प्रभावित करती है। आयु-संरचना पर जन्म-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं

  • एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिकी अल्प विकसित देशों में उच्च जन्म-दर पाई जाती है इसलिए वहाँ निम्न आयु वर्ग तथा युवा वर्ग की प्रधानता होती है।
  • जब निम्न आयु वर्ग संतान पैदा करने की उम्र में शामिल होते हैं तो जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है।
  • युवा वर्ग का जनसंख्या में अधिक पाए जाने का अर्थ है कि वहाँ श्रम की उपलब्धता अधिक है।
  • निम्न आयु वर्ग (0-14 वर्ष) और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की अधिक संख्या आश्रित जनसंख्या को प्रदर्शित करती है।
  • जिन देशों में जन्म-दर कम तथा जीवन प्रत्याशा अधिक होती है, वहाँ बच्चों की संख्या कम और वृद्धों की संख्या अधिक होती है।

आयु-संरचना पर मृत्यु-दर का प्रभाव (Effect of Death Rate on Age Composition)-आयु संरचना पर मृत्यु-दर के प्रभाव निम्नलिखित हैं

  • शिशु मृत्यु-दर में सुधार होने पर जनसंख्या में बच्चों का अनुपात बढ़ जाता है तथा बड़ी आयु वाले लोगों का अनुपात घट जाता है।
  • यदि वृद्धों की मृत्यु-दर में सुधार होता है तो उनकी संख्या बढ़ जाती है और बच्चों की संख्या कम हो जाती है।
  • इसी प्रकार यदि युवा व वृद्ध आयु-वर्गों में मृत्यु-दर कम हो जाती है तो उच्च आयु वर्ग की जनसंख्या का अनुपात बढ़ जाता है जैसा कि विकसित देशों में होता है।
  • यदि निम्न आयु वर्गों में मृत्यु-दर में तेज़ गिरावट उच्च आयु वर्गों की अपेक्षा अधिक है तो युवा वर्ग की जनसंख्या बढ़ जाती है जैसा कि विकासशील देशों में होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 3.
साक्षरता से क्या तात्पर्य है? साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साक्षरता (Literacy) यद्यपि साक्षरता (Literacy) जनसंख्या का एक सामाजिक पक्ष है तथापि यह जनसंख्या की गुणवत्ता का बोध कराती है। व्यापक रूप से साक्षरता वह ज्ञान है जो लोगों में जागृति लाए। साधारणतया साक्षरता लोगों को किसी भाषा में समझ के साथ लिखने या पढ़ने की योग्यता को कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ जनसंख्या आयोग के अनुसार, “साक्षर वह व्यक्ति है जो किसी भाषा में साधारण संदेश को पढ़, लिख और समझ सकता है।”

विश्व स्तर पर अधिकांश देशों में साक्षरता की गणना की जाती हैं। प्रति सौ व्यक्तियों के अनुपात में साक्षर व्यक्तियों की संख्या को साक्षरता दर कहा जाता है।
साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारक (Factory affecting Literacy) साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. अर्थव्यवस्था (Economy)-विश्व के विभिन्न भागों में साक्षरता की दरों में विभिन्नता पाई जाती है। किसी भी देश के आर्थिक विकास के स्तर और साक्षरता दर में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है। ऊंची अर्थव्यवस्था वाले देशों में उच्च साक्षरता दर पाई जाती है जबकि कम विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में निम्न साक्षरता दर पाई जाती है।

2. नगरीकरण (Urbanization) साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारकों में किसी देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उस देश के नगरीकरण का स्तर भी प्रमुख है। उच्च नगरीकृत देशों में साक्षरता भी अधिक है। क्योंकि नगरीय क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था उपयुक्त होती है। इसके अतिरिक्त नगरों में विभिन्न स्तर की शिक्षा सुविधाओं के अवसर भी उपलब्ध होते हैं।

3. समाज में स्त्रियों का स्तर (Level of Female in Society)-विभिन्न समाजों में साक्षरता उनकी अपनी विशेषताओं द्वारा भी निर्धारित होती है। समाज में स्त्रियों का स्तर और उनकी जनसंख्या भी साक्षरता दर को प्रभावित करती है। विकासशील तथा पिछड़े राष्ट्रों में स्त्रियों के निम्न सामाजिक स्तर के कारण स्त्रियों में साक्षरता दर कम पाई जाती है जबकि ईसाई समुदाय की स्त्रियों
के उच्च सामाजिक स्तर के कारण उनमें साक्षरता दर उच्च पाई जाती है।

4. यातायात एवं संचार के साधन (Source of Transport and Communication) यातायात एवं संचार के साधनों का अल्प विस्तार भी विकासशील समाज में ग्रामीण समाज को अलग-थलग कर देता है और ग्रामीण समाज ज्ञान से वंचित रह जाता है।

5. प्रशासकीय नीतियाँ (Administrial Policies)-सरकारी नीतियाँ भी साक्षरता दर की वृद्धि में सहायक सिद्ध होती हैं। विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा की मुफ्त व्यवस्था और उसका प्रसार सरकारी नीति पर ही निर्भर करता है।

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Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 3 जनसंख्या संघटन Textbook Exercise Questions and Answers.

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अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से किसने संयुक्त अरब अमीरात के लिंग-अनुपात को निम्न किया है?
(A) पुरुष कार्यशील जनसंख्या का चयनित प्रवास
(B) पुरुषों की उच्च जन्म-दर
(C) स्त्रियों की निम्न जन्म-दर
(D) स्त्रियों का उच्च उत्प्रवास
उत्तर:
(C) स्त्रियों की निम्न जन्म-दर

2. निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या जनसंख्या के कार्यशील आयु-वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है?
(A) 15 से 65 वर्ष
(B) 15 से 66 वर्ष
(C) 15 से 64 वर्ष
(D) 15 से 59 वर्ष
उत्तर:
(D) 15 से 59 वर्ष

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3. निम्नलिखित में से किस देश का लिंग-अनुपात विश्व में सर्वाधिक है?
(A) लैटविया
(B) जापान
(C) संयुक्त अरब अमीरात
(D) फ्रांस
उत्तर:
(A) लैटविया

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जनसंख्या संघटन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जनसंख्या संघटन जनसंख्या के उस पक्ष को प्रदर्शित करता है जिसको मापा जा सकता है। जनसंख्या के मात्रात्मक पक्ष; जैसे-लिंग, आयु, श्रम शक्ति, आवास, कार्यशील और आश्रित जनसंख्या तथा साक्षरता आदि तथ्यों का वर्गीकरण और अध्ययन जनसंख्या संघटन कहलाता है।

प्रश्न 2.
आयु-संरचना का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आयु संरचना जनसंख्या संघटन का महत्त्वपूर्ण सूचक है। यह विभिन्न आयु वर्गों में लोगों की संख्या को प्रदर्शित करती है। इसके अंतर्गत किसी देश की जनसंख्या को तीन आयु वर्गों में बाँटा जाता है- 0-14 आयु वर्ग, 15-59 आयु वर्ग और 60 से ऊपर का आयु वर्ग। इसके द्वारा ही देश की जनसंख्या की जन्म-दर, उत्पादकता, मानव क्षमता, रोजगार की स्थिति तथा आश्रित जनसंख्या आदि का पता चलता है। इससे ही भविष्य में जनसंख्या वृद्धि का अनुमान होता है।

प्रश्न 3.
लिंग-अनुपात कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
जनसंख्या में पुरुषों और स्त्रियों की संख्या के बीच के अनुपात को लिंग-अनुपात कहा जाता है। भारत में यह अनुपात प्रति हजार पुरुषों और स्त्रियों की संख्या के रूप में दर्शाया जाता है।
HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 3 जनसंख्या संघटन 1

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जनसंख्या के ग्रामीण-नगरीय संघटन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आवास के आधार पर जनसंख्या को दो वर्गों में बाँटा गया है-(i) ग्रामीण जनसंख्या तथा (ii) नगरीय जनसंख्या।
ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं तथा इनको अपने अलग-अलग व्यवसाय, संरचना, जीवन-पद्धति आदि के आधार पर पहचाना जा सकता है। गांव के लोग साधारण, सामाजिक संबंधों से ओत-प्रोत तथा अधिकतर कृषि-कार्यों में संलग्न रहते हैं। उनके आचार-विचार तथा सांसारिक दृष्टिकोण नगर में रहने वाले लोगों से भिन्न होते हैं। इसके विपरीत, नगरों में रहने वाले लोग उद्योग तथा व्यापार में संलग्न रहते हैं। इनके आपसी सामाजिक संबंध औपचारिक होते हैं तथा इनका दृष्टिकोण अपेक्षतया भिन्न होता है।

विश्व में ग्रामीण जनसंख्या सबसे अधिक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में पाई जाती है जबकि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में नगरीय जनसंख्या अधिक पाई जाती है। सामान्यतया औद्योगिक दृष्टि से विकसित राष्ट्रों में नगरीय जनसंख्या का अनुपात अधिक पाया जाता है जबकि कृषि प्रधान देशों में ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात अधिक पाया जाता है। कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत किसी देश के आर्थिक विकास का सूचक होता है। इसका कारण है नगरों में उपलब्ध सुविधाएँ और रोजगार की संभावनाएँ। यही कारण है कि विकसित राष्ट्रों में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत अधिक होता है। विश्व में प्रतिवर्ष नगरीय जनसंख्या में लगभग 6 करोड़ की वृद्धि हो रही है।

विश्व में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि के प्रमुख कारण हैं-

  • नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की संख्या अधिक होने का कारण ग्रामीण क्षेत्रों से स्त्रियों का नौकरियों हेतु शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास करना है।
  • विकासशील देशों में कृषि संबंधी कार्यों में स्त्रियों की सहभागिता दर काफी ऊँची है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों का कृषि पर प्रभुत्व है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 3 जनसंख्या संघटन

प्रश्न 2.
विश्व के विभिन्न भागों में आयु-लिंग में असंतुलन के लिए उत्तरदायी कारकों तथा व्यावसायिक संरचना की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु-लिंग संरचना से अभिप्राय विभिन्न आयु-वर्गों में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या से है। इसे एक विशेष प्रकार के रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जाता है जिसकी आकृति पिरामिड से मिलती है। इस कारण इसे आयु-लिंग अथवा जनसंख्या पिरामिड कहा जाता है। विश्व के विभिन्न भागों में आयु-लिंग में असंतुलन के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं-
1. स्त्री-पुरुष के जन्म-दर में अंतर प्रत्येक समाज में जन्म के समय नर बच्चे, मादा बच्चों से अधिक पैदा होते हैं। सामान्यतया जन्म के समय प्रत्येक 104 से 107 नर बच्चों के अनुपात में 100 मादा बच्चे होते हैं।

2. स्त्री-पुरुष की मृत्यु-दर में अंतर-विकसित देशों में जीवन की सभी अवस्थाओं में पुरुष मृत्यु-दर, स्त्री मृत्यु-दर से अधिक होती है इसके विपरीत विकासशील देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में मृत्यु-दर अधिक होती है।

3. प्रवास-अधिकांश विकासशील देशों, विशेषतया एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में पुरुष ग्रामीण इलाकों से नगरों की ओर आजीविका की तलाश में प्रवास करते हैं। विकसित देशों में नगरीय लिंगानुपात स्त्रियों के पक्ष में अधिक होता है क्योंकि वहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के काम में पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है स्त्रियाँ नगरों में नौकरी की तलाश में प्रवास करती है।

व्यावसायिक संरचना किसी क्षेत्र की विशिष्ट आर्थिक क्रियाओं में लगे जनसंख्या के अनुपात को व्यावसायिक संरचना कहते हैं। व्यावसायिक संरचना को चार मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. प्राथमिक व्यवसाय इन व्यवसायों में आखेट, मत्स्यपालन, फल संग्रहण, कृषि संग्रहण, कृषि तथा वानिकी इत्यादि आते हैं।
  2. द्वितीयक व्यवसाय-इन व्यवसायों में विनिर्माण उद्योग तथा शक्ति उत्पादन इत्यादि आते हैं।
  3. तृतीयक व्यवसाय-इन व्यवसायों के अंतर्गत परिवहन, संचार, व्यापार, सेवाएँ आदि शामिल किए जाते हैं।
  4. चतुर्थक व्यवसाय-इनके अंतर्गत चिंतन, शोध योजना तथा विचारों के विकास से जुड़े अत्याधिक बौद्धिकतापूर्ण व्यवसायों को रखा जाता है।

जनसंख्या संघटन HBSE 12th Class Geography Notes

→ नगरीकरण (Urbanisation) : वे प्रक्रियाएँ जिनसे नगर की जनसंख्या बढ़ती है; जैसे-प्राकृतिक वृद्धि, प्रवास व निकटवर्ती गाँवों के शहर में सम्मिलित होने पर।

→ लिंगानुपात (Sex Ratio) : प्रति हज़ार पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या (भारत के संदर्भ में)।

→ आयु संरचना (Age Composition) : विभिन्न आयु वर्गों में जनसंख्या का वर्गीकरण।

→ श्रमजीवी (कार्यरत) जनसंख्या (Working Population) : जनसंख्या में वे लोग जो किसी आर्थिक लाभ के कार्यों में संलग्न हैं।

→ सहभागिता दर (Participation Rate) : कुल जनसंख्या में कार्यरत जनसंख्या का प्रतिशत अनुपात।

→ आश्रित जनसंख्या (Dependent Population) : देश की कुल जनसंख्या का वह भाग जिसमें 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चे तथा 60 वर्ष व इससे ऊपर की आयु के वृद्ध आते हैं।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. ईसा के जन्म के समय विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 20 करोड़
(B) 30 करोड़
(C) 40 करोड़
(D) 80 लाख
उत्तर:
(B) 30 करोड़

2. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 1 अरब
(B) 1.4 अरब
(C) 1.6 अरब
(D) 2 अरब
उत्तर:
(C) 3.

3. इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 5 अरब
(B) 6. अरब
(C) 7 अरब
(D) 5.5 अरब
उत्तर:
(B) 6. अरब

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

4. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक विश्व की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी?
(A) दो गुना
(B) तीन गुना
(C) चार गुना
(D) पांच गुना
उत्तर:
(C) चार गुना

5. विश्व के दस सर्वाधिक आबाद देशों में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) लगभग 20 प्रतिशत
(B) लगभग 50 प्रतिशत
(C) लगभग 60 प्रतिशत
(D) लगभग 90 प्रतिशत
उत्तर:
(C) लगभग 60 प्रतिशत

6. मानव बसाव के लिए अनुपयुक्त स्थान कौन-सा है?
(A) आर्द्र जलवायु प्रदेश
(B) लंबे वर्धनकाल वाले प्रदेश
(C) पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश
(D) मैदानी प्रदेश
उत्तर:
(C) पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश

7. प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाने वाली जनसंख्या को कहा जाता है-
(A) जनसंख्या वितरण
(B) जनगणना
(C) जनसंख्या घनत्व
(D) जनसंख्या विस्फोट
उत्तर:
(C) जनसंख्या घनत्व

8. निम्नलिखित में से उच्च जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र कौन-सा है?
(A) सहारा मरुस्थल
(B) अमेजन तथा जायरे बेसिन
(C) पूर्व एशिया
(D) पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया
उत्तर:
(C) पूर्व एशिया

9. अशोधित जन्म दर से तात्पर्य है-
(A) एक वर्ष में 1000 जनसंख्या के अनुपात में पैदा होने वाले व्यक्तियों की संख्या
(B) एक वर्ष में 1000 जनसंख्या के अनुपात में मरने वालों की संख्या
(C) एक वर्ष में एक स्थान पर आने वाले व्यक्तियों की संख्या
(D) एक वर्ष में बाहर जाने वाले व्यक्तियों की संख्या
उत्तर:
(C) एक वर्ष में एक स्थान पर आने वाले व्यक्तियों की संख्या

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

10. कुल जनसंख्या और कुल कृषि क्षेत्र के अनुपात को कहा जाता है
(A) अंकगणितीय घनत्व
(B) कायिक घनत्व
(C) जन घनत्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कायिक घनत्व

11. विश्व जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान दर क्या है?
(A) 1 प्रतिशत
(B) 1.8 प्रतिशत
(C) 1.2 प्रतिशत
(D) 2.1 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 1.2 प्रतिशत

12. विश्व का हर पाँचवां व्यक्ति है
(A) भारतीय
(B) चीनी
(C) रूसी
(D) अमेरिकी
उत्तर:
(B) चीनी

13. विश्व का हर छठा व्यक्ति है
(A) भारतीय
(B) चीनी
(C) रूसी
(D) अमेरिकी
उत्तर:
(A) भारतीय

14. किस महाद्वीप में ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि-दर पाई जाती है?
(A) अफ्रीका
(B) उत्तर अमेरिका
(C) यूरोप
(D) एशिया
उत्तर:
(C) यूरोप

15. निम्न जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र हैं-
(A) उष्ण आर्द्र अक्षांश
(B) शुष्क भूमि
(C) ठंडी भूमि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) ठंडी भूमि

16. पहली शताब्दी में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 20 करोड़
(B) 25 करोड़
(C) 15 करोड़
(D) 40 करोड़
उत्तर:
(B) 25 करोड़

17. विश्व में सबसे कम जनसंख्या वृद्धि-दर किस महाद्वीप में पाई जाती है?
(A) एशिया
(B) यूरोप
(C) उत्तरी अमेरिका
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(B) यूरोप

18. विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि-दर किस देश में है?
(A) भारत में
(B) चीन में
(C) नाइजीरिया में
(D) बांग्लादेश में
उत्तर:
(C) नाइजीरिया में

19. श्रीलंका की जनसंख्या को दो गुनी होने में कितना समय लगेगा?
(A) 25 वर्ष
(B) 36 वर्ष
(C) 46 वर्ष
(D) 58 वर्ष
उत्तर:
(C) 46 वर्ष

20. भारत में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) 16.87 प्रतिशत
(B) 18.01 प्रतिशत
(C) 19.20 प्रतिशत
(D) 17.5 प्रतिशत
उत्तर:
(D) 17.5 प्रतिशत

21. नाइजीरिया में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) 1.84 प्रतिशत
(B) 2.09 प्रतिशत
(C) 2.13 प्रतिशत
(D) 2.43 प्रतिशत
उत्तर:
(D) 2.43 प्रतिशत

22. भारत की जनसंख्या को दो गुनी होने में कितने वर्ष लगेंगे?
(A) 25 वर्ष
(B) 30 वर्ष
(C) 36 वर्ष
(D) 46 वर्ष
उत्तर:
(C) 36 वर्ष

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
ईसा के जन्म के समय विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
30 करोड़।

प्रश्न 2.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
1.6 अरब।

प्रश्न 3.
इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 6 अरब से अधिक।

प्रश्न 4.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ से इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक विश्व की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी?
उत्तर:
चार गुना।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 5.
मानव बसाव के लिए अनुपयुक्त स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश।

प्रश्न 6.
प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाने वाली जनसंख्या को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 7.
कुल जनसंख्या और कुल कृषि क्षेत्र के अनुपात को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
कायिक घनत्व।

प्रश्न 8.
विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत कितना है? (वर्ष, 2001)
उत्तर:
48 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
विश्व में उच्चतम जनसंख्या वृद्धि दर (2%+) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
अफ्रीका।

प्रश्न 10.
विश्व में मध्यम जनसंख्या वृद्धि दर (1.1-1.9%) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण अमेरिका।

प्रश्न 11.
विश्व में न्यूनतम जनसंख्या वृद्धि दर (0-1%) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
यूरोप।

प्रश्न 12.
पहली शताब्दी में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 25 करोड़।

प्रश्न 13.
विश्व की जनसंख्या में प्रति वर्ष कितने लोग जुड़ रहे हैं?
उत्तर:
लगभग 8.2 करोड़।

प्रश्न 14.
विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या का संकेंद्रण कहाँ पर होता है?
उत्तर:
मैदानी क्षेत्रों पर।

प्रश्न 15.
विश्व में जनसंख्या वितरण का प्रारूप कैसा है?
उत्तर:
असमान।

प्रश्न 16.
किन्हीं दो प्रतिकर्ष कारकों के नाम लिखिए जो लोगों को उनके रहने के मूल स्थान से प्रवास करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदा
  2. सामाजिक तनाव।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या घनत्व क्या है?
उत्तर:
किसी स्थान में प्रति वर्ग कि०मी० में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या जनसंख्या घनत्व कहलाती है।

प्रश्न 2.
अशोधित जन्म-दर क्या हैं?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को अशोधित जन्म-दर कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अशोधित मृत्यु-दर क्या हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 4.
प्रजननशीलता के चार निर्धारक तत्त्व कौन-से है?
उत्तर:

  1. जैव कारक
  2. जनांकिकीय कारक
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक
  4. आर्थिक कारक।

प्रश्न 5.
उद्गम स्थान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब लोग एक-स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो वह स्थान जहाँ से लोग गमन करते हैं, उद्गम स्थान कहलाता है।

प्रश्न 6.
गंतव्य स्थान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस स्थान पर लोग आगमन करते हैं वह गंतव्य स्थान कहलाता है।

प्रश्न 7.
विश्व के उच्च जनसंख्या घनत्व वाले दो क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. पश्चिमी यूरोप
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पूर्वी भाग।

प्रश्न 8.
जनसंख्या वृद्धि किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष में लोगों की संख्या में, एक निश्चित समय के भीतर होने वाले परिवर्तन वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 9.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारक बताएँ।
उत्तर:
धरातलीय स्वरूप, जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 10.
जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि कब होती है?
उत्तर:
जब जन्म-दर, मृत्यु-दर से कम हो या लोग विदेशों में जाकर बस जाते हैं तो जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि होती है।

प्रश्न 11.
अशोधित मृत्यु-दर की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 1

प्रश्न 12.
जनसंख्या स्थानान्तरण क्या है?
उत्तर:
जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवसन होने को स्थानान्तरण कहते हैं। जन्म-दर तथा मृत्यु-दर की भाँति स्थानान्तरण भी जनसंख्या परिवर्तनशीलता का मुख्य निर्धारक है। स्थानान्तरण से किसी क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ती या कम होती है।

प्रश्न 13.
जनांकिकीय संक्रमण क्या है?
उत्तर:
मनुष्य के साथ जनसंख्या से होने वाले कृत्रिम परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं। यह जनसंख्या के विकास की अवस्था है। जनसंख्या के इस विकास चक्र में सामान्यतया पाँच अवस्थाएँ होती हैं। इन अवस्थाओं को जनसंख्या चक्र भी कहते हैं।

प्रश्न 14.
मानसून एशिया में सघन जनसंख्या पाए जाने के कारण बताइए।
उत्तर:
मानसून एशिया में नदी-घाटियों, उपजाऊ मैदानों, अनुकूल जलवायु व लम्बे वर्धनकाल के कारण कृषि अधिक होती है; जैसे यहाँ पर चावल की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं। नगरीकरण तथा औद्योगिकीकरण से यहाँ पर सघन जनसंख्या पाई जाती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 15.
विश्व में उच्च अथवा सघन जनसंख्या वाले मुख्य क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है, वे क्षेत्र उच्च घनत्व वाले क्षेत्र अथवा प्रदेश कहलाते हैं; जैसे-

  1. मानसून एशिया
  2. पश्चिमी यूरोप
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पूर्वी भाग।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 16.
उत्प्रवास किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्प्रवास के द्वारा मनुष्य अपने प्रदेश से दूसरे स्थान को जाते हैं; जैसे यूरोप के मनुष्य उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया आदि गए। जिन प्रदेशों में कोई भौतिक प्रकार का कष्ट; जैसे जलवायु, बाढ़, सूखा अथवा जीवन निर्वाह की अन्य कठिनाइयाँ अथवा सामाजिक या आर्थिक कठिनाई उत्पन्न होती हों, उन स्थानों से मनुष्य बाहर की ओर स्थानान्तरण करने लगते हैं।

प्रश्न 17.
जन्म-दर और जनसंख्या की वृद्धि दर में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
जन्म-दर और जनसंख्या की वृद्धि दर में निम्नलिखित अंतर हैं-

जन्म-दरजनसंख्या वृद्धि दर
1. किसी देश में एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या जन्म-दर कहलाती है।1. दो समयावधियों के बीच होने वाले जनसंख्या परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि दर कहा जाता है।
2. यह दर प्रति हजार व्यक्ति होती है।2. यह दर प्रतिशत में होती है।

प्रश्न 18.
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि तथा वास्तविक वृद्धि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि तथा वास्तविक वृद्धि में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्राकृतिक वृद्धिवास्तबिक वृद्धि
दो समय बिंदुओं के बीच प्राकृतिक तौर पर होने वाले जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।वास्तविक वृद्धि में जन्म-दर व मृत्यु-दर के साथ-साथ प्रवास व आप्रवास की भी गणना की जाती है।

प्रश्न 19.
जनसंख्या की प्राकृतिक तथा प्रवासी वृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर:
जनसंख्या की प्राकृतिक तथा प्रवासी वृद्धि में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्राकृतिक वृद्धिप्रवासी वृद्धि
1. जन्म-दर में से मृत्यु-दर घटाने से प्राकृतिक वृद्धि प्राप्त होती है।1. जब किसी देश से लोग आकर बस जाएँ तो यह प्रवासी वृद्धि होती है.।
2. इसका देश की कुल जनसंख्या पर प्रभाव पड़ता है।2. इसका देश की कुल जनसंख्या पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 20.
प्रवास एवं दिक् परिवर्तन में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रवास एवं दिक् परिवर्तन में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्रवासदिक् परिवर्तन
1. जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर बसने को प्रवास कहते हैं।1. किसी नगर तथा उसके पृष्ठ प्रदेश में स्थित गांवों के लोगों का स्थानांतरण दिक परिवर्तन कहलाता है।
2. यह स्थायी होता है।2. यह अस्थायी होता है।

प्रश्न 21.
अंतःराज्यीय प्रवास तथा अंतर्राज्यीय प्रवास में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
अंतःराज्यीय प्रवास तथा अंतर्राज्यीय प्रवास में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतःराज्यीय प्रवासअंतर्राज्यीय प्रवास
1. अपने ही राज्य में व्यक्तियों के स्थानांतरण को अंतःराज्यीय प्रवास कहते हैं।1. एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यक्तियों के स्थानांतरण को अंतर्राज्यीय प्रवास कहते हैं।
2. यह स्थानांतरण अधिक होता है।2. यह अपेक्षाकृत कम होता है।

प्रश्न 22.
उत्प्रवास तथा आप्रवास में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्प्रवास तथा आप्रवास में निम्नलिखित अंतर हैं-

उत्प्रवासआप्रवास
1. जब किसी प्रदेश के निवासी दूसरे प्रदेश में जाते हैं तो उसे उत्प्रवास कहते हैं।1. जब दूसरे प्रदेशों के निवासी किसी प्रदेश में आकर निवास करते हैं तो उसे आप्रवास कहते हैं।
2. इससे मूल प्रदेश की जनसंख्या घटती है।2. इससे किसी प्रदेश की जनसंख्या में वृद्धि होती है।
3. अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों से उत्प्रवास होता है।3. कम जनसंख्या के क्षेत्रों की ओर आप्रवास होता है।

प्रश्न 23.
विश्व के विरल जनसंख्या वाले तथा जन विहीन प्रदेशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. उष्ण मरुस्थल-सहारा, कालाहारी, अटाकामा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, अरब तथा थार।
  2. अति शीत क्षेत्र-कनाडा, साइबेरिया का उत्तरी भाग, ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिक महाद्वीप।
  3. ठंडे मरुस्थल व उच्च पर्वतीय प्रदेश मध्य एशिया, गोबी मरुस्थल, राकीज, एंडीज व हिमालय पर्वत।
  4. विषुवत् रेखीय क्षेत्र-अमेजन तथा जायरे बेसिन।

प्रश्न 24.
प्रवास को प्रभावित करने वाले अपकर्ष व प्रतिकर्ष कारक क्या हैं?
उत्तर:
अपकर्ष कारक-नगरीय सुविधाओं तथा आर्थिक परिस्थितियों के कारण जब. लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे अपकर्ष कारक (Pull Factors) कहा जाता है। अपकर्ष कारक के कारण लोग गन्तव्य स्थान को आकर्षक बनाते हैं।

प्रतिकर्ष कारक-जब लोग जीविका के साधन उपलब्ध न होने के कारण गरीबी तथा बेरोज़गारी के कारण नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे प्रतिकर्ष कारक (Push Factors) कहा जाता है। प्रतिकर्ष कारक के कारण लोग अपने उद्गम स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रवास क्या होता है? अस्थायी प्रवास के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या का एक निवास स्थल से दूसरे निवास स्थल तक किसी भी कारणवश संचलन या गतिशीलता प्रवास कहलाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के अनुसार, “प्रवास आवास परिवर्तन युक्त जनसंख्या की गतिशीलता को इंगित करता है।”

स्थानांतरण विभिन्न प्रकार का होता है। प्रवास को दूरी, अवधि, मात्रा, दिशा आदि के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रवास स्थायी और अस्थायी भी हो सकता है।
अस्थायी प्रवास के विभिन्न रूप-अस्थायी प्रवास को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। कुछ महत्त्वपूर्ण अस्थायी प्रवास निम्नलिखित हैं-
1. दैनिक प्रवास-नगरों में विविध प्रकार की सुविधाओं के उपलब्ध होने के कारण लोग प्रायः प्रतिदिन गांवों से नगरों में आते हैं और सायंकाल लौट जाते हैं। यदि व्यक्ति एक सप्ताह तक नगर में रुककर वापस लौट आता है तो इसे दैनिक या साप्ताहिक प्रवास कहते हैं।

2. मौसमी प्रवास-शीत ऋतु में पर्वतीय लोग सर्दी से बचने के लिए घाटियों में आ जाते हैं। इसी प्रकार गन्ने की पेराई के काल में मजदूर चीनी मिलों में काम करते हैं और पेराई बंद होने पर घरों में वापस चले जाते हैं। यह प्रवास मौसमी होता है। टुंड्रा, टैगा व स्टैप्स प्रदेश के निवासी मौसमी प्रवास करते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए (क) विश्व जनसंख्या की दुगुना होने की अवधि, (ख) जनांकिकीय संक्रमण।।
उत्तर:
(क) विश्व जनसंख्या की दुगुना होने की अवधि किसी भी देश की जनसंख्या के दुगुना होने की अवधि का संबंध जनसंख्या की प्रति वर्ष प्रतिशत वृद्धि दर से है। वृद्धि दर जितनी कम होगी जनसंख्या के दुगुना होने का समय उतना ही अधिक होगा। इसके विपरीत यदि वृद्धि दर अधिक है तो जनसंख्या के दुगुना होने में कम समय लगेगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 2
विकसित देशों में जनसंख्या के दुगुना होने का समय अधिक है जबकि विकासशील देशों की जनसंख्या के दुगुना होने का समय अपेक्षाकृत बहुत कम है।

(ख) जनांकिकीय संक्रमण जनसंख्या का विकास कुछ क्रमिक अवस्थाओं में होता है। जैसे-जैसे किसी देश का आर्थिक विकास होता जाता है उसमें जनसंख्या परिवर्तन भी होते रहते हैं। आर्थिक विकास की अवस्था में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार से पहले मृत्यु-दर में कमी आती है। तत्पश्चात् जन्म-दर भी घटनी प्रारंभ हो जाती है जिसके फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर कम हो जाती है। इस प्रकार की कमी पहले मृत्यु-दर में जिसके कारण वृद्धि दरें बढ़ीं। फिर जन्म-दरों में जिससे जन्म-दरें और मृत्यु-दरें लगभग बराबर हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत कम या शून्य वृद्धि दर हुई। इस स्थिति को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या परिवर्तन तथा आर्थिक विकास में क्या सम्बन्ध है? व्याख्या कीजिए। अथवा “विकास सबसे उत्तम गर्भ निरोधक है।” वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व जनसंख्या का विकास बढ़ती हुई जनसंख्या के विकास दर का प्रतिपादक है। विकसित देशों में पहले मृत्यु-दर में कमी हुई। फिर जन्म-दर में भी कमी हुई जिससे जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई। यह प्रक्रिया जनसंख्या परिवर्तन कहलाती है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ उनकी माँगें और आवश्यकताएँ भी बढ़ जाती हैं। जनसंख्या बढ़ने से राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है। राष्ट्रीय आय के घटने-बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय और उसी के अनुरूप जीवन स्तर घटता-बढ़ता है।

कम आय से वस्तुओं की माँग पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है। यदि जनसंख्या इष्टतम (Optimum) है तो संसाधनों का उचित उपयोग होगा और जीवन स्तर बढ़ेगा। विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या के कारण आज वे गरीबी, कुपोषण और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। आर्थिक विकास के साथ जनसंख्या की वृद्धि कम होती चली जाती है। इसलिए कहा गया है कि विकास सबसे उत्तम गर्भ निरोधक है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 4.
जनसंख्या के अंकगणितीय घनत्व और कायिक घनत्व में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या के अंकगणितीय घनत्व और कायिक घनत्व में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंकगणितीय घनत्वकायिक घनत्व
1. किसी देश की कुल जनसंख्या तथा कुल क्षेत्रफल के अनुपात को अंकगणितीय घनत्व कहते हैं।1. किसी देश की कुल जनसंख्या तथा कुल कृषि-भूमि के अनुपात को कायिक घनत्व कहते हैं।
2. बेशक भूगोलवेत्ता इसका प्रयोग करते हैं, फिर भी इस ढंग की अपनी त्रुटि है- ऋणात्मक क्षेत्र भी इस ढंग में धनात्मक दर्शाए जाते हैं।2. इस ढंग में कृषि अयोग्य भूमि को कुल भूमि में से घटा देते हैं। अतः इस ढंग द्वारा कृषि भूमि पर जन-दबाव का ठीक अनुमान लगता है।
3. इस ढंग से लोगों की संपन्नता का कोई पता नहीं लगता।3. इस ढंग से लोगों क् संपन्नता का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रश्न 5.
ईसा से 8000 वर्ष पूर्व से वर्तमान तक विश्व की जनसंख्या किस प्रकार बढ़ी है?
उत्तर:
ईसा से 8000 वर्ष पूर्व विश्व की जनसंख्या लगभग 0.8 करोड़ थी। लगभग 2000 वर्ष पूर्व ईसा मसीह के समय में जनसंख्या 30 करोड़ के लगभग थी। वर्ष 1830 तक यह 100 करोड़ तक पहुँच गई और तब से यह बहुत तेजी से बढ़ती आ रही है जो लगभग 160 वर्षों में 700 करोड़ से भी अधिक हो गई है। निम्नलिखित तालिका में विश्व की जनसंख्या वृद्धि को दर्शाया गया है
तालिका : विश्व की जनसंख्या में वृद्धि

इन वर्षों के दौरानविश्व जनसंख्याइस संख्या तक पहुँचने के लिए लिया गया समय
आदिमानव से ईसा30 करोड़संपूर्ण मानव इतिहास के दौरान
0-1500 ई०50 करोड़1500 वर्ष
1500-1850 ई०100 करोड़350 वर्ष
1850-1930 ई०200 करोड़100 वर्ष
1930-1960 ईం300 करोड़30 वर्ष
1960-1974 ई400 करोड़14 वर्ष
1974-1987 ई०500 करोड़13 वर्ष
1987-1999 ई०600 करोड़ से अधिक12 वर्ष
1999-2011 ई०लगभग 700 करोड़12. वर्ष

प्रश्न 6.
विश्व के अधिक घनत्व वाले प्रदेश कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्षेत्र जहाँ जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है। इनके प्रमुख क्षेत्र हैं-

  • पूर्वी एशिया तथा दक्षिणी एशिया।
  • पश्चिमी यूरोप तथा उत्तर पूर्वी अमेरिका।

कारण-

  • ऊष्ण आर्द्र व समशीतोष्ण जलवायु जनसंख्या को आकर्षित करती है।
  • नदी घाटियों की उपजाऊ मिट्टी, जल-सिंचाई, समतल भूमि और चावल का अधिक उत्पादन, अधिक घनत्व में सहायक हैं।
  • निर्माण उद्योगों का अधिक होना तथा समुद्री मार्गों के कारण व्यापार का अधिक उन्नत होना भी जनसंख्या के उच्च घनत्व का कारण है।
  • मिश्रित कृषि का विकास, नगरीकरण के कारण बड़े-बड़े नगरों का विकास जनसंख्या को आकर्षित करता है।
  • वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान में अधिक वृद्धि जनसंख्या के उच्च घनत्व का प्रमुख कारक है।

प्रश्न 7.
विश्व के मध्यम घनत्व वाले प्रदेश कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्षेत्र जहाँ 25 से 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० तक घनत्व मिलता है। इसमें निम्नलिखित क्षेत्र हैं

  • उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज का मध्य मैदान
  • अफ्रीका का पश्चिमी भाग
  • पूर्वी यूरोप और पूर्वी रूस
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया
  • दक्षिणी अमेरिका में उत्तर:पूर्वी ब्राजील, मध्य चिली, मैक्सिको का पठार।

कारण –

  • विस्तृत खेती-बाड़ी में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
  • पर्वतीय व पठारी क्षेत्र के कारण जनसंख्या कम है।

प्रश्न 8.
विश्व में जनसंख्या का घनत्व असमान क्यों है?
उत्तर:
विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देशों में विश्व की 60% से अधिक जनसंख्या रहती है और यह जनसंख्या विश्व के कुल क्षेत्रफल के लगभग 20% भाग पर रहती है। विश्व की 40% से भी कम जनसंख्या विश्व के लगभग 80% क्षेत्रफल पर निवास करती है। इस कारण विश्व में जनसंख्या का घनत्व असमान है। जनसंख्या की विशालता और इसके अत्याधिक ग्रामीण स्वरूप के अतिरिक्त नृ-जातीय विविधता, तीव्र वृद्धि दर और जनसंख्या का असमान वितरण अन्य पक्ष हैं जो देश की सामाजिक, आर्थिक विकास की प्रक्रिया और गति को धीमा कर रहे हैं।

प्रश्न 9.
विश्व में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले राजनीतिक कारक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक कारक भी कुछ सीमा तक जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। सरकार की जनसंख्या नीति मानव के बसाव को अनुकूल तथा प्रतिकूल बना सकती है। रूस सरकार साइबेरिया में जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करके उनको पारितोषिक देती है। फ्रांस में जनसंख्या वृद्धि के लिए करों में रियायतें दी जाती हैं, जबकि चीन व भारत में जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति है। चीन में एक बच्चा होने के बाद सरकार ने दूसरे बच्चे के जन्म देने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। भारत में भी जनसंख्या को नियन्त्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पिछले एक दशक से चीन की जनसंख्या में वृद्धि-दर निरन्तर अधिक है। वह दिन निकट ही है जब भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक हो जाएगी।

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प्रश्न 10.
प्रवास कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
प्रवास मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

  • उत्प्रवास
  • अप्रवास।

1. उत्प्रवास (Emigration) – उत्प्रवास के द्वारा मनुष्य अपने प्रदेश से दूसरे स्थान को जाते हैं। जैसे यूरोप के मनुष्य उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया आदि गए। जिन प्रदेशों में कोई भौतिक प्रकार का कष्ट; जैसे जलवायु, बाढ़, सूखा अथवा जीवन निर्वाह की अन्य कठिनाइयाँ अथवा सामाजिक या आर्थिक कठिनाई उत्पन्न होती हों, उन स्थानों से मनुष्य बाहर की ओर स्थानान्तरण करने लगते हैं।

2. अप्रवास (Immigration)-अप्रवास के द्वारा बाहरी स्थानों से मनुष्य किसी प्रदेश या स्थान के अन्दर आते हैं। उदाहरण उत्तरी अमेरिका में ब्रिटेन, इटली, फ्रांस आदि देशों से मनुष्यों का प्रवास होता है। जिन देशों में जीविका निर्वाह की सुविधाएँ प्रचुर मात्रा में होती हैं, वे बाहर से मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कभी-कभी आर्थिक या सामाजिक आवश्यकताओं के कारण भी बाहरी क्षेत्रों से प्रवास होता है।

प्रश्न 11.
जनसंख्या की वृद्धि-दर की प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
विश्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या की वृद्धि-दर की प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक वृद्धि-दर (Natural Growth Rate) – दो समय बिन्दुओं में जन्म-दर और मृत्यु-दर में अन्तर से बढ़ने वाली जनसंख्या को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वृद्धि-दर कहते हैं अर्थात् प्राकृतिक वृद्धि-दर = जन्म-दर – मृत्यु-दर।

2. वास्तविक वृद्धि-दर (Real Growth Rate) – इसमें जनसंख्या की जन्म-दर व मृत्यु-दर के साथ-साथ आप्रवास व अप्रवास की भी गणना की जाती है अर्थात् वास्तविक वृद्धि-दर = जन्म-दर – मृत्यु-दर + आप्रवासी – उत्प्रवासी।

3. धनात्मक वृद्धि-दर (Positive Growth Rate) – धनात्मक वृद्धि-दर तब होती है जब दो समय बिन्दुओं के बीच जन्म-दर, मृत्यु-दर से अधिक हो या अन्य देशों के लोग स्थायी रूप से उस देश में प्रवास कर जाएँ।

4. ऋणात्मक वृद्धि-दर (Negative Growth Rate) – यदि दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या कम हो जाए तो उसे ऋणात्मक वृद्धि-दर कहते हैं। यह तब होती है जब जन्म-दर मृत्यु-दर से कम हो जाए या लोग अन्य देशों में प्रवास कर जाएँ।

प्रश्न 12.
विश्व में न्यून (विरल) जनसंख्या वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर रहते हैं, उन्हें विरल जनसंख्या वाले प्रदेश कहते हैं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित प्रदेश सम्मिलित हैं-
1. उष्ण मरुस्थल-सहारा, कालाहारी, अटाकामा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, अरब, थार तथा सोनोरैन मरुस्थल । इन क्षेत्रों में न्यून . वर्षा के कारण जल की कमी है और जनसंख्या विरल है।

2. अति-शीत क्षेत्र-ये ध्रुवीय क्षेत्र हैं, जिनमें कनाडा का उत्तरी भाग, ग्रीनलैंड, साइबेरिया का उत्तरी भाग तथा दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर फैला हुआ अंटार्कटिक महाद्वीप सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में तापमान कम है तथा फसलों के लिए वर्धनकाल छोटा है। अंटार्कटिक महाद्वीप तो बिल्कुल ही जनविहीन है।

3. विषुवत् रेखीय क्षेत्र इसमें दक्षिणी अमेरिका का अमेजन बेसिन तथा अफ्रीका का जायरे बेसिन सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा तथा तापमान दोनों ही अधिक हैं, जिससे घने वन उगते हैं, जिन्हें पार करना कठिन है। यह जलवायु मरुस्थल के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

प्रश्न 13.
विकसित तथा विकासशील देशों की जनांकिकीय प्रवृत्तियों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकसित और विकासशील देशों की जनांकिकीय प्रवृत्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अभिलक्षणविकसित देशविकासशील देश
(1) वृद्धि दरनिम्न (0.6 प्रतिशत)उच्च (2.1 प्रतिशत)
(2) द्विगुणन अवधिउच्च (116 वर्ष)निम्न (35 वर्ष)
(3) शिशु मृत्यु-दरनिम्न (5-25)उच्च (50 – 100)
(4) साक्षरताउच्च 95 प्रतिशतनिम्न 35-75 प्रतिशत
(5) औद्योगीकरणउच्चनिम्न
(6) मुख्य जनसंख्यानगरीय 75 प्रतिशतग्रामीण 54 प्रतिशत
(7) जीवन स्तरउच्चनिम्न

प्रश्न 14.
जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या वितरण में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या वितरण में निम्नलिखित अंतर हैं-

जनसंख्या घनत्वजनसंख्या वितरण
1. किसी स्थान में प्रति वर्ग कि०मी० में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या है।1. किसी स्थान की कुल जनसंख्या ही वहाँ का वितरण है।
2. जनसंख्या घनत्व एक अनुपात है।2. जनसंख्या वितरण की प्रकृति स्थितिगत है।
3. जनसंख्या वितरण को उसके घनत्व द्वारा अधिक सुचारु ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।3. जनसंख्या वितरण का प्रारूप क्षेत्रीय होता है।
4. घनत्व को प्रति वर्ग कि०मी० में व्यक्त करते हैं; जैसे भारत की जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है।4. वितरण को व्यक्त करने के लिए कोई इकाई नहीं है।

प्रश्न 15.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक कारक-किसी भी देश अथवा प्रदेश की जनसंख्या के वितरण को निम्नलिखित भौतिक कारक प्रभावित करते हैं-
1. धरातल-जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने में धरातल की विभिन्नता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊबड़-खाबड़ तथा ऊँचे पर्वतीय प्रदेशों में जनसंख्या कम आकर्षित होती है। इन प्रदेशों में जनसंख्या विरल पाई जाती है, क्योंकि यहाँ पर मानव निवास की अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध नहीं होती, कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का अभाव होता है, यातायात के साधनों का विकास आसानी से नहीं हो पाता, कृषि फसलों के लिए वर्धनकाल (Growing Period) छोटा होता है तथा जलवायु कठोर होती है।

2. जलवायु अनुकूल तथा आरामदेय जलवायु में कृषि, उद्योग तथा परिवहन एवं व्यापार का विकास अधिक आसानी से होता है। विश्व में मध्य अक्षांश का क्षेत्र (शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र) जलवायु की दृष्टि से अनुकूल है। इसलिए विश्व की अधिकांश जनसंख्या इन्हीं प्रदेशों में निवास करती है। इसके विपरीत अत्यधिक शीत प्रदेशों में जनसंख्या विरल पाई जाती है। इसी प्रकार शुष्क मरुस्थली प्रदेशों की जलवायु ग्रीष्म ऋतु में झुलसाने वाली तथा शीत ऋतु में ठिठुराने वाली होती है। यही कारण है कि विश्व के मरुस्थलों; जैसे सहारा, थार, कालाहारी, अटाकामा तथा अरब के मरुस्थलों में जनसंख्या विरल है।

3. मृदा मनुष्य की पहली आवश्यकता है भोजन। भोजन हमें मिट्टी से मिलता है। मिट्टी में ही विभिन्न कृषि उपजें पैदा होती विश्व के जिन क्षेत्रों में उपजाऊ मिट्टी है, वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। भारत में गंगा-सतलुज के मैदान, संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी के मैदान, पाकिस्तान में सिन्धु के मैदान, मिस्र में नील नदी के मैदान आदि में उपजाऊ मिट्टी की परतें हैं, जिससे अधिक लोग वहाँ आकर बस गए हैं।

4. वनस्पति-वनस्पति भी जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है। उदाहरणार्थ, भूमध्य-रेखीय क्षेत्रों में सघन वनस्पति (सदाबहारी वनों) के कारण यातायात के साधनों का विकास कम हुआ है। आर्द्र जलवायु के कारण मानव-जीवन अनेक रोगों से ग्रसित रहता है, इसलिए यहाँ की जनसंख्या विरल है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वनस्पति आर्थिक उपयोग वाली होती है, वहाँ मानव लकड़ी से सम्बन्धित अनेक व्यवसाय आरम्भ हो जाते हैं; जैसे टैगा के वनों का आर्थिक महत्त्व है इसलिए वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। वनस्पति विहीन क्षेत्रों (मरुस्थलों) में भी जनसंख्या विरल है।

5. खनिज सम्पदा-जिन क्षेत्रों में खनिज पदार्थों के भण्डार मिलते हैं, वहाँ खनन व्यवसाय तथा उद्योगों की स्थापना के कारण बेत होती है। ब्रिटेन में पेनाइन क्षेत्र, जर्मनी में रूर क्षेत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में आप्लेशियन क्षेत्र, रूस के डोलेत्स बेसिन तथा भारत के छोटा नागपुर के पठार में जनसंख्या का केन्द्रीयकरण वहाँ की खनिज सम्पदा की ही देन है।

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प्रश्न 16.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले मानवीय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले मानवीय कारक निम्नलिखित हैं-
1. कृषि विश्व में जो क्षेत्र कृषि की दृष्टि से अनुकूल हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। वहाँ लोग प्राचीन समय से ही अधिक संख्या में निवास करते आ रहे हैं। प्रेयरीज तथा स्टेपीज प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त हैं, इसलिए वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

2. नगरीकरण-बीसवीं शताब्दी में नगरीकरण की प्रवृत्ति के कारण नगरों की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। नगरों में रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, व्यापार आदि की अधिक सुविधाएँ सुलभ हैं इसलिए जनसंख्या का जमघट नगरों में अधिक देखने को मिलता है। न्यूयॉर्क, लन्दन, मास्को, बीजिंग, शंघाई, सिडनी, दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई आदि नगरों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है।

3. औद्योगिकीकरण-जिन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास तीव्र हुआ है, वहाँ जनसंख्या का आकर्षण बढ़ा है। जापान, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका का उत्तर:पूर्वी भाग, जर्मनी का रूर क्षेत्र, यूरोपीय देशों तथा भारत में पिछले दो दशकों से दिल्ली, मुम्बई तथा हुगली क्षेत्र में औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है।

4. परिवहन-परिवहन की सुविधाओं का भी जनसंख्या के वितरण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में यातायात की अधिक सुविधाएँ हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। महासागरीय यातायात के विकास के कारण कई बन्दरगाह विश्व के बड़े नगर बन चुके हैं। सिंगापुर, शंघाई, सिडनी, न्यूयॉर्क आदि नगर बन्दरगाहों के रूप में विकसित हुए थे, लेकिन आज इन नगरों में रेल, सड़क तथा वायु यातायात की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या घनत्व क्या है? विश्व में जनसंख्या घनत्व के वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व में न्यून या विरल जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व में सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संसार के सघन और विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश की जनसंख्या और उस प्रदेश की भूमि के क्षेत्रफल के पारस्परिक अनुपात को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं। इससे किसी प्रदेश के लोगों की सघनता का पता चलता है। यह जनसंख्या के विश्लेषणात्मक अध्ययन करने का महत्त्वपूर्ण माप है। इसे प्रति इकाई क्षेत्रफल पर व्यक्तियों की संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। घनत्व इस प्रदेश की उन्नति और भावी विकास का अनुमान लगाने का मुख्य आधार होता है। इसका मुख्य लक्ष्य किसी क्षेत्र के संसाधनों पर जनसंख्या दबाव ज्ञात करना होता है। इसे निम्नलिखित रूपों में परिभाषित किया जाता है
1. गणितीय घनत्व (Arithmetic Density) किसी देश अथवा प्रदेश की कुल जनसंख्या तथा उसके कुल क्षेत्रफल के अनुपात को वहाँ की जनसंख्या का गणितीय घनत्व कहा जाता है। यह जनसंख्या तथा क्षेत्रफल के बीच एक साधारण अनुपात है। इसे निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 3
उदाहरण के लिए, जनसंख्या 376.80 करोड़ व क्षेत्रफल 440 लाख वर्ग कि०मी० है, तो जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है
गणितीय घनत्व = \(\frac { 37680 }{ 440 }\)
= 85.64 या 86 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
यह जनसंख्या घनत्व का सबसे सरल रूप है, परन्तु इसमें कई त्रुटियाँ हैं। जैसे इससे जनसंख्या निवास तथा जीवन-स्तर का सही अनुमान नहीं लग पाता। लेकिन उपरोक्त त्रुटियों के बावजूद यह विभिन्न देशों की जनसंख्या विशेषताओं की तुलना करने की एक अच्छी विधि है।

2. कायिक घनत्व (Physiological Density)-इसे प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि भूमि (Cultivated Land) पर कुल निवास करने वाली जनसंख्या के अनुपात में व्यक्त किया जाता है। किसी देश या प्रदेश की कुल जनसंख्या वहाँ की कुल कृषि भूमि (Cultivated Land) के अनुपात को कायिक घनत्व कहते हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है-
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उदाहरण के लिए, यदि कुल कृषि भूमि 14.26 लाख वर्ग कि०मी० व जनसंख्या 10270 लाख है तो जनसंख्या का कायिक घनत्व निम्नलिखित प्रकार से होगा
कायिक घनत्व = \(\frac { 10270 }{ 14.26 }\) = 720 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
कायिक घनत्व द्वारा यह पता चलता है कि कृषि भूमि के प्रति वर्ग कि०मी० पर कितने व्यक्ति निर्भर हैं। कृषि प्रधान विकासशील देशों के लिए इस घनत्व का विशेष महत्त्व है।

3. आर्थिक घनत्व (Economic Density) इससे उस देश या प्रदेश के साधनों की उत्पादन क्षमता (Productive Capacity) तथा उस प्रदेश में निवास करने वाली जनसंख्या के अनुपात को लिया जाता है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 5

4. कृषि घनत्व (Agriculture Density) इसमें उस देश या प्रदेश की कृषि की जाने वाली भूमि के क्षेत्रफल (Cultivated Area) तथा उसमें निवास करने वाली कृषक जनसंख्या (Agricultural Population) के अनुपात को लिया जाता है।
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5. पोषण घनत्व (Nutrition Density)-इसमें खेती की भोज्य फसलों (Food Crops) का क्षेत्रफल तथा उस प्रदेश की कुल जनसंख्या (Total Population) को लिया जाता है।
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जनसंख्या का विश्व वितरण-विश्व की जनसंख्या के वितरण पर यदि नजर डालें तो इसके आँकड़े चौंकाने वाले हैं। जनसंख्या का वितरण अत्यधिक असमान एवं विषम है। विश्व की लगभग 90 प्रतिशत आबादी केवल एक चौथाई भू-भाग पर निवास करती है और शेष 10 प्रतिशत जनसंख्या तीन-चौथाई क्षेत्रफल घेरे हुए है। सन् 2001 में विश्व की अनुमानित जनसंख्या 605 करोड़ थी, जोकि सन् 2011 में बढ़कर 693 करोड़ से अधिक हो चुकी है। उत्तरी गोलार्द्ध में विश्व की 90% जनसंख्या रहती है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 10% से भी कम जनसंख्या रहती है। विश्व का लगभग 33% भाग जनविहीन है।

जनसंख्या के वितरण के आधार पर विश्व को तीन प्रदेशों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. विरल जनसंख्या अथवा निम्न घनत्व वाले क्षेत्र-विश्व में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। ऐसे क्षेत्रों को विरल जनसंख्या के क्षेत्र कहते हैं। विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कुल विश्व के क्षेत्रफल का तीन-चौथाई भाग आता है। इस प्रकार के प्रदेश निम्नलिखित हैं-
(1) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र-उष्ण मरुस्थलीय भू-भाग अधिकांश महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 1 व्यक्ति से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। ऐसे क्षेत्रों में वर्षा की न्यूनता तथा जल का अभाव है। यहाँ वर्षा के अभाव में केवल काँटेदार झाड़ियाँ ही उगती हैं। इन क्षेत्रों में कृषि बहुत कम होती है। यहाँ निवास करने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय भेड़-बकरी तथा ऊँट पालना है। इस प्रकार के मरुस्थलों में सहारा, कालाहारी, अटाकामा, थार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा अरब का मरुस्थल प्रमुख हैं।

(2) अति-शीत प्रदेश-इन प्रदेशों में ध्रुवीय प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शीतल होती है और हर समय अधिकतर बर्फ जमी रहती है। यहाँ वर्धनकाल इतना छोटा होता है कि कोई भी फसल उगाना कठिन है। इस प्रकार के प्रदेशों में लोगों का मुख्य व्यवसाय आखेट करना तथा मछली पकड़ना है। इनमें ग्रीनलैण्ड, साइबेरिया का उत्तरी भाग, कनाडा का उत्तरी भाग, अलास्का तथा दक्षिणी ध्रुव का अंटार्कटिक महाद्वीप निर्जन हैं। ऐसे क्षेत्रों में 10 महीने तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे ही रहता है। अधिकांश चलवासी चरवाहे हैं जो रेडियर पालते हैं और सील तथा व्हेल का शिकार करते हैं।

(3) उच्च पर्वतीय प्रदेश मध्य एशिया चारों ओर से सागरीय प्रभाव से वंचित शुष्क तथा अनाकर्षक प्रदेश हैं। पर्वतीय एवं पठारी होने के कारण मिट्टी की गहराई कम है तथा कृषि फसलें न के बराबर हैं या कहीं-कहीं साल-भर में केवल एक ही फसल उगाई जाती है। 4000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पवर्तीय भागों में तो वायु का दबाव कम हो जाता है, जिससे साँस लेना भी कठिन हो जाता है। उत्तरी अमेरिका में रॉकीज पर्वत, दक्षिणी अमेरिका में एण्डीज़ तथा भारत में महान हिमालय तथा चीन के दक्षिण-पश्चिमी भाग में इस प्रकार के उच्च पर्वतीय प्रदेश हैं।

(4) विषुवत रेखीय क्षेत्र-यह प्रदेश अत्यधिक वर्षा तथा साल-भर ऊँचा तापक्रम होने के कारण मानवं बसाव की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। यहाँ जनसंख्या विरल है। चारों ओर घने जंगल तथा वन्य प्राणियों का साम्राज्य है। यहाँ जलवायु उमस वाली है तथा विभिन्न प्रकार के कीटाणु तथा जहरीले कीड़े-मकौड़े यहाँ देखने को मिलते हैं। इनमें दक्षिणी अमेरिका का अमेज़न बेसिन, अफ्रीका का जायरे बेसिन आदि सम्मिलित हैं।

2. मध्यम जनसंख्या और घनत्व वाले क्षेत्र-विश्व के जिन भागों में जनसंख्या का घनत्व 11 से 50 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है, उन्हें मध्यम या साधारण जनसंख्या वाले क्षेत्र में रखा जा सकता है। ये प्रदेश सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं।

  • एशिया-म्यांमार, दक्षिणी भारत, पश्चिमी चीन, थाईलैण्ड, कम्बोडिया आदि हैं।
  • यूरोप डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, लिथुआनिया, बाल्टिक गणराज्य तथा रूस के उत्तर-पश्चिमी भाग।
  • अमेरिका-संयुक्त राज्य अमेरिका का पश्चिमी तथा मध्यवर्ती भाग, कनाडा का दक्षिण-पश्चिमी भाग।
  • अफ्रीका-अफ्रीका के तटीय भाग, नील नदी का डेल्टा, नाइजीरिया तथा दक्षिणी अफ्रीका के कुछ क्षेत्र।
  • दक्षिण अमेरिका-वेनेजुएला, उत्तरी-पूर्वी ब्राजील, मध्यवर्ती चिली आदि।
  • ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया का तटवर्ती भाग तथा मरे-डार्लिंग, नदियों का बेसिन।

3. सघन जनसंख्या अथवा उच्च घनत्व के क्षेत्र-जिन प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है, उन्हें सघन जनसंख्या वाले प्रदेश कहते हैं। उच्च घनत्व वाले प्रदेश विश्व में निम्नलिखित हैं
(1) मानसून एशिया – इस प्रदेश की जलवायु मानव तथा कृषि दोनों के लिए अनुकूल है। कृषि फसलों के लिए वर्धनकाल लम्बा है। जलवायु विभिन्नता के कारण अनेक ऋतुएँ तथा उनमें विभिन्न प्रकार की कृषि फसलें उगाई जाती हैं। वर्ष में 2 से 3 फसलें उगाई जाती हैं। यहाँ की जनसंख्या अधिकांशतः कृषि पर निर्भर करती है। इन क्षेत्रों में समतल मैदानी भू-भाग हैं, जिनमें कहीं-कहीं जनसंख्या का घनत्व 700 से 1000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० तक है। इस क्षेत्र में चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया, जापान, सिंगापुर आदि आते हैं। नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण के कारण कई क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 2000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से भी अधिक है। सिंगापुर में जनसंख्या का घनत्व 5000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है।

(2) पश्चिमी यूरोप – पश्चिमी यूरोप में औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी से ही चल रही है। लोग उद्योग, व्यापार तथा वाणिज्य को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। यहाँ सघन जनसंख्या दक्षिणी तथा पश्चिमी भाग में है। उत्तर में जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है। सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र इंग्लिश चैनल से पूर्व में नीपर नदी तक है। इसमें स्पेन, पुर्तगाल, दक्षिणी फ्राँस, ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैण्ड और बेल्जियम आदि सम्मिलित हैं।

(3) संयुक्त राज्य अमेरिका का मध्य – पूर्वी भाग संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य-पूर्वी भाग में यूरोपीय लोग आकर बसे और उसके बाद इस क्षेत्र में औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण की गति भी तीव्र रही, जिसके कारण जनसंख्या का घनत्व वर्तमान समय में अधिक हो गया है। जीवन की सभी सुविधाएँ सुलभ हैं। कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य आदि सभी व्यवसायों का विकास द्रुतगति से हुआ है। दक्षिणी-पूर्वी कनाडा भी जनसंख्या की दृष्टि से सघन क्षेत्र हैं। देश की राजधानी तथा अन्य व्यापारिक नगर इसी क्षेत्र में हैं।
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प्रश्न 2.
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
अथवा जनांकिकीय
संक्रमण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संसार में जनसंख्या की वृद्धि के इतिहास पर दृष्टिपात करने से जनसंख्या के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ (Stages) दिखाई देती हैं। समय के साथ-साथ जनसंख्या में होने वाले क्रमिक परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं। जैसे-जैसे कोई देश विकास करता है, उसकी जन्म-दर और मृत्यु-दर में परिवर्तन होने लगता है। उस देश की जनसंख्या का विकास होने लगता है, जो कुछ क्रमिक अवस्थाओं में होता है। जनसंख्या के विकास चक्र में सामान्यतः पाँच अवस्थाएँ होती हैं। इन अवस्थाओं को जनसंख्या चक्र (Population Cycle) कहते हैं। बर्गडौरफर (Burgdorfer), ब्लेकर (Blaker), साइमन (Simon), संयुक्त राष्ट्र (United Nations) आदि ने जनसंख्या चक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर अपने विचार दिए हैं। जनांकिकीय संक्रमण की प्रायः पाँच अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं
1. प्रथम अवस्था (First Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की यह पहली अवस्था होती है। इसमें उच्च जन्म-दर और उच्च मृत्यु-दर दोनों होते हैं। अतः जनसंख्या धीमी गति से बढ़ती है। यह 40 से 50 तक जन्म तथा मृत्यु प्रति हजार होती है। जन्म-दर तथा मृत्यु-दर बराबर होने के कारण इन देशों में जनसंख्या वृद्धि-दर बहुत मन्द होती है। यहाँ लोगों की मान्यता होती है कि “बहुत सारे बच्चों में से कुछ तो जिएँगे।” इसमें जनसंख्या की शुद्ध वृद्धि-दर लगभग 1 प्रतिशत होती है। इसे उच्च स्थिरता की अवस्था भी कहा जाता है।

2. द्वितीय अवस्था (Second Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में आर्थिक विकास होते हैं। अकाल तथा सूखे पर नियंत्रण, खान-पान में सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं के विकास की प्रक्रिया के आरम्भ होने से मृत्यु-दर कम हो जाती है। परन्तु जन्म-दर ऊँची बनी रहती है। अतः इस अवस्था में जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। विकासशील देश इसी अवस्था से गुजर रहे हैं। एशिया में पूर्वी दक्षिणी और मध्य एशिया के देश इसी अवस्था में हैं।

3. तृतीय अवस्था (Third Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जन्म-दर में कमी आने से जनसंख्या वृद्धि-दर कम हो जाती है। यह अवस्था उच्च जन्म-दर (High Fertility) तथा मध्यम मृत्यु-दर (Moderate Mortality) वाली होती है। अमेरिका, ब्राजील, इक्वाडोर तथा पेरू इसी अवस्था में है। आधुनिक खेती, नगरीकरण, औद्योगिकीकरण इस अवस्था की पहचान हैं। इस अवस्था को विलम्ब से वृद्धि वाली अवस्था कहा जाता है।

4. चौथी अवस्था (Fourth Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जन्म-दर एवं मृत्यु-दर दोनों ही कम हो जाती है। यह अवस्था मध्यम जन्म-दर (Moderate Fertility) तथा निम्न मृत्यु-दर (Low Mortality) वाली होती है। फलस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि-दर बहुत ही कम हो जाती है। कुछ देशों में तो वृद्धि-दर शून्य हो जाती है। इसे न्यून स्थिरता की अवस्था कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड आज इसी अवस्था में हैं।
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5. पाँचवीं अवस्था (Fifth Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की यह अन्तिम अवस्था मानी जाती है। इस अवस्था में जन्म-दर कम होकर प्रायः शून्य त है। मृत्यु-दर जन्म-दर से अधिक हो जाती है, जिससे जनसंख्या घटने लगती है। इस अवस्था में आर्थिक विकास अपने उच्चतम स्तर पर होता है। लोगों में बच्चे पैदा करने की चाहत नहीं रहती है और न ही उनके पास समय होता है। इस अवस्था को जनांकिकीय संक्रमण की ह्रासमान अवस्था कहा जाता है। पश्चिमी यूरोप के प्रायः सभी देश और जापान इसी अवस्था में हैं। रूस, यूक्रेन, फ्रांस व इटली में भी लगभग यही अवस्था है। यहाँ जनसंख्या बढ़ने की बजाय कम हो रही है।

प्रश्न 3.
प्रवास से आपका क्या अभिप्राय है? इसे निर्धारित करने वाले कारकों का विस्तृत वर्णन करें। अथवा प्रवास को प्रभावित करने वाले कारकों/तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवास का अर्थ एवं परिभाषाएँ-युगों से ही मानव वर्गों (Human Groups) का प्रवास होता रहा है। मानव जातियाँ (Human Races) आदिकाल से ही अपने उद्गम प्रदेश के बाहर प्रवास करती रही हैं। ऐतिहासिक काल में भी, पृथ्वी के विभिन्न भागों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर, मानव वर्गों का प्रवसन होता रहा है, इसे जनसंख्या का स्थानान्तरण या प्रवास कहते हैं। स्थानान्तरण या प्रवास मात्र स्थान परिवर्तन ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय तत्त्वों को समझने का आधार भी है। यह सामाजिक और आर्थिक पक्षों से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण घटना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के जनांकिकीय शब्दकोष के अनुसार, “प्रवास/प्रवसन एक प्रकार की भौगोलिक अथवा स्थानिक प्रवासिता है जो एक भौगोलिक इकाई के बीच देखने को मिलती है, जिनमें रहने का मूल स्थान अथवा पहुँचने का स्थान दोनों भिन्न होते हैं। यह प्रवास स्थायी होता है, क्योंकि इसमें मानव का निवास स्थान स्थायी रूप से परिवर्तित हो जाता है।” इसी प्रकार डेविड हीर के अनुसार, “अपने सामान्य निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना स्थानान्तरण (प्रवसन) कहलाता है।”

स्थानान्तरण या प्रवास को निर्धारित करने वाले कारक-प्रवास को निर्धारित करने वाले अनेक कारक हैं। प्रवास के कारणों का कोई सामान्य नियम नहीं है, क्योंकि प्रवास की प्रक्रिया व्यक्ति के अपने निर्णय से जुड़ी होती है। बड़े पैमाने पर प्रवास के कई कारण हैं, जिन्हें मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है आर्थिक कारक, भौतिक कारक, धार्मिक या सांस्कृतिक कारक, राजनीतिक कारक और जनसांख्यिकीय कारक आदि। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
1. आजीविका (Earning) – सीमित संसाधन तथा बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में एक निश्चित जनसंख्या को ही रोजगार मिलता है। इस कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग आजीविका की खोज में गाँवों से नगरों की ओर प्रवास होता है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव बढ़ने से जनसंख्या-संसाधन सन्तुलन बिगड़ने के कारण लोग आजीविका के लिए विकसित और सिंचाई समृद्ध कृषि क्षेत्रों में जाना पसन्द करते हैं। उत्तरी अमेरिका, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी अफ्रीका में उपलब्ध विस्तृत कृषि योग्य भूमि ने यूरोप, चीन और जापान में लोगों को आकर्षित किया है।

2. विवाह (Marriage) – सामाजिक रीति के अनुसार लड़कियों को विवाह के पश्चात् ससुराल में रहना पड़ता है। यही कारण है कि भारत में स्त्रियों की प्रवास दर काफी ऊँची है। यह प्रवास गाँव या नगरों से नगरों की ओर होता है। नगरों से गाँव की ओर प्रवास कम होता है।

3. शिक्षा (Education) – प्रायः गाँवों में उच्च शिक्षा की सुविधाएँ नहीं होतीं। उच्च शिक्षा व योग्यता में वृद्धि हेतु लोग शहरों में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की उच्च तथा तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहरों में प्रवास करते हैं। सुशिक्षित, निपुण, कलाकार, वैज्ञानिक तथा अन्य क्षेत्रों में योग्य लोग शहरों में अपनी उन्नति के अवसरों की तलाश में प्रवास करते हैं। इसके अतिरिक्त आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार अपने बच्चों की शिक्षा के लिए गाँवों से शहरों व छोटे शहरों से बड़े शहरों में, जहाँ शिक्षा की अच्छी सुविधाएँ होती हैं, प्रवास करते हैं।

4. सामाजिक असुरक्षा (Social Unsecurity) – जिस किसी देश या प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता एवं गड़बड़ी, जातीय दंगे, वर्ग-संघर्ष आदि की सम्भावनाएँ अधिक होती हैं तो ऐसे क्षेत्रों की जनसंख्या क्षेत्र को छोड़कर अन्य शांत क्षेत्रों को प्रवास कर जाते हैं। उदाहरण के लिए, कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता व अशान्ति के कारण कश्मीरी पंडित कश्मीर प्रवास कर गए। इसी प्रकार सन् 1947 के देश विभाजन में भारत व पाकिस्तान से लोगों का प्रवास हुआ।

5. प्राकृतिक प्रकोप (Natural Destroy) – प्राकृतिक प्रकोप भी जनसंख्या को प्रवास करने पर मजबूर करते हैं। भयंकर बाढ़ें, सूखा, बीमारियाँ आदि प्राकृतिक प्रकोपों से लोग भयभीत व मजबूर होकर प्रवास करते हैं। ज्वालामुखी के आकस्मिक विस्फोट के कारण भी मानव को अपने निवास स्थान को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ता है। सिसली, फिलीपीन और हवाई द्वीपों से इसी कारण लोग अन्य देशों में जाकर बस गए हैं। भूकम्प भी प्रवास का एक मुख्य कारण है। सन् 1934 में बिहार के भूकम्प के समय हजारों लोग पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में जाकर स्थाई रूप से बस गए थे।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 4.
मर्त्यता से क्या तात्पर्य है? इसे निर्धारित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मर्त्यता का अर्थ (Meaning of Mortality) जन्म की तरह मृत्यु भी एक निश्चित घटित होने वाली महत्त्वपूर्ण जैविक घटना है। सन् 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा मर्त्यता की दी गई परिभाषा के अनुसार “जन्म के बाद जीवन के सभी लक्षणों का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना मर्त्यता कहलाता है।”

मर्त्यता की माप (Measures of Mortality)-जनसंख्या वृद्धि के निर्धारण में मर्त्यता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मर्त्यता में कमी आने के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो जाती है। मर्त्यता को मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों द्वारा मापा जाता है

  1. अशोधित मृत्यु-दर
  2. शिशु मृत्यु-दर
  3. मातृ मृत्यु-दर
  4. आयु विशिष्ट मृत्यु-दर।

इन विधियों में अशोधित मृत्यु-दर अधिक सर्वमान्य है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
अशोधित मृत्यु-दर (Crude Death Rate)-एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है-
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मर्त्यता के निर्धारक कारक (Determinants of Mortality)-अधिक जन्म-दर और अधिक मृत्यु-दर किसी देश के पिछड़ेपन का सूचक है जबकि कम जन्म-दर और कम मृत्यु-दर किसी देश की आर्थिक उन्नति के सूचक हैं। मृत्यु-दर किसी देश की जनसांख्यिकी संरचना सामाजिक प्रगति तथा आर्थिक विकास की सूचक है। मर्त्यता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. आयु संरचना (Age Structure) युवाओं की अपेक्षा प्रौढ़ों में मृत्यु की संभावना अधिक होती है। अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के कारण मृत्यु को कुछ समय के लिए रोका जा सकता है तथा जीवन प्रत्याशा को बढ़ाया जा सकता है। इसी कारण विकसित देशों में प्रौढ़ों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी प्रतीत हो रही है।

2. लिंग संरचना (Sex Structure) स्त्रियों और पुरुषों की मृत्यु-दर भी अलग-अलग होती है। स्त्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। इसलिए प्रत्येक आयु वर्ग में स्त्रियों की मर्त्यता भी कम है और उनकी जीवन प्रत्याशा भी पुरुषों की अपेक्षा अधिक है, परंतु विकासशील और पिछड़े देशों में स्थिति बिल्कुल विपरीत है। इन देशों में स्त्रियों की मृत्यु-दर पुरुषों से अधिक है। इसका प्रमुख कारण इन देशों में लड़कियों और स्त्रियों के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण का होना है।

3. नगरीकरण (Urbanization)-नगर में होने वाली दुर्घटनाएँ, प्रदूषित वातावरण तथा वहाँ की तनावपूर्ण जिंदगी भी उच्च मृत्यु-दर के लिए उत्तरदायी है।

4. सामाजिक कारक (Social Factors)-भ्रूण हत्या, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, साक्षरता दर तथा धार्मिक विश्वास आदि सामाजिक कारक भी मर्त्यता को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजननशीलता क्या है? प्रजननशीलता को निर्धारित या प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रजननशीलता का अर्थ (Meaning of Fertility)-प्रजननशीलता से तात्पर्य स्त्री द्वारा पूरे समय बाद किसी समय विशेष में जीवित जन्म देने वाले बच्चों की संख्या से है। कुछ स्त्रियों में गर्भ धारण करने की क्षमता तो होती है परंतु प्रजननशीलता नहीं होती। किसी देश की जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करने में प्रजननशीलता महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि प्रजननशीलता मृत्यु-दर से अधिक है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी। इसके विपरीत प्रजननशीलता से मृत्यु-दर अधिक होने पर जनसंख्या में कमी होगी।

प्रजनन दर मापने की विधियाँ (Methods of Measuring Fertile Rate)-प्रजनन दर को निम्नलिखित दो विधियों द्वारा व्यक्त किया जाता है-
1. अशोधित जन्म-दर (Crude Birth Rate)-किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को जन्म-दर कहा जाता है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या में जन्म-दर को निम्नांकित प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
B = \(\frac{\mathbf{N}_{\mathbf{n}}}{\mathbf{P}}\) x 100
B = जन्म-दर, Nn = एक वर्ष में जन्मे नवजात शिशुओं की संख्या।
P = उस वर्ष के मध्य की जनसंख्या
यद्यपि इस विधि का प्रचलन अधिक है, फिर भी यह दोषयुक्त है, क्योंकि इसमें संपूर्ण जनसंख्या से भाग दिया जाता है कि संपूर्ण जनसंख्या कभी भी प्रजनन क्षमता की परिधि में नहीं आती।

2. सामान्य प्रजनन दर (General Fertile Rate)-प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की 1000 स्त्रियों के पीछे जन्मे जीवित बच्चों की संख्या को सामान्य प्रजनन दर कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से निकाला जा सकता है-
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प्रजननशीलता/प्रजननता को निर्धारित या प्रभावित करने वाले कारक (Factor-Effecting of Fertility)-प्रजननशीलता को निर्धारित करने वाले कारकों को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा गया है-
(क) जैव कारक (Biological Factors) – जैव कारकों में लोगों की प्रजातियाँ, प्रजनन क्षमता तथा उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव आता है। विश्व में विभिन्न प्रजातियों के लोगों का जनसंख्या स्तर एक जैसा नहीं पाया जाता जबकि वे एक समान पर्यावरण में रहते हैं। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रजननशीलता को प्रभावित करता है। अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दशा में प्रजनन दर ऊँची पाई जाती है जबकि अस्वस्थ शारीरिक और मानसिक वातावरण में मर्त्यता (Mortality) ऊँची पाई जाती है। स्त्रियों की प्रजनन क्षमता भी प्रजननशीलता को प्रभावित करती है। प्रजनन क्षमता या संतानोत्पादकता स्त्रियों में सामान्यतया 14 से 44 वर्ष की आयु तक पाई जाती है, लेकिन यह अवधि विभिन्न स्त्रियों में अलग-अलग पाई जाती है। भारत में यह आयु 15 से 49 वर्ष की है जबकि ठंडे देशों में यह आयु वर्ग कुछ भिन्न होती है।

(ख) प्रजननता को प्रभावित करने वाले अन्य कारक (Other factor-Effecting of Fertility) प्रजननता को अन्य निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
1. शिक्षा का स्तर (Stage of Education) – शिक्षा का उच्च स्तर प्रजननता को निश्चित रूप से प्रभावित करता है। शिक्षित पति-पत्नी की अपेक्षा अशिक्षित पति-पत्नियों में प्रजननता अधिक पाई जाती है। अतः शिक्षा का प्रजननता से सीधा संबंध है।

2. विवाह की आयु (Age of Marriage) – 15 से 49 वर्ष के वर्ग की स्त्रियाँ सामान्य रूप से बच्चे पैदा करने में सक्षम होती हैं। यदि 15 वर्ष की आयु में विवाह किया जाए तो 34 वर्ष बच्चे पैदा करने के लिए मिलते हैं। इस अवधि में नारी लगभग 14-15 बच्चे पैदा कर सकती है। यदि 21 वर्ष की आयु के बाद कन्या का विवाह किया जाए तो अपेक्षाकृत कम बच्चे पैदा करने का अवसर मिलता है। अतः विवाह की आयु प्रजननता को प्रभावित करती है। इसलिए सरकार ने जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए लड़कियों की विवाह आयु 18 वर्ष तथा लड़कों की 21 वर्ष निर्धारित की है।

3. आर्थिक स्तर (Economic Stage) – गरीबी और जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध है। यहाँ विभिन्न आय वर्ग के लोगों में प्रजननता दर में भिन्नता पाई जाती है। सामान्यतया निम्न आय वर्ग या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों में उच्च प्रजननता दर मिलती है, जबकि उच्च आय वर्ग के लोगों में कम प्रजननता मिलती है।

4. व्यवसाय (Business) – प्रत्येक व्यवसाय के लोगों में प्रजननता दर समान नहीं पाई जाती। किसान और मजदूरों में प्रजनन दर सामान्य से अधिक होती है, जबकि अन्य सेवाओं में लगे लोगों की प्रजननता दर कुछ कम होती है।

5. धार्मिक मान्यताएँ (Realistic Assumptions) – धर्म के अनुसार भी प्रजननता की दर में भिन्नता पाई जाती है। प्रायः सभी धर्म जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करते हैं, फिर भी यह नियंत्रण भिन्न-भिन्न धर्मों में भिन्न-भिन्न है। जिन धर्मों में परिवार कल्याण के साधनों का उपयोग नहीं किया जा रहा है, उस धर्म के लोगों की प्रजनन दर अधिक है। हिंदुओं की प्रजननता दर मुसलमानों की प्रजननता दर से कम है।

प्रश्न 6.
विश्व में जनसंख्या वृद्धि के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं-
1. उच्च जन्म-दर तथा निम्न मृत्यु-दर (High Birth Rates and Low Death Rates)-जनसंख्या की वृद्धि-दर जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अन्तर से ज्ञात की जाती है। जब मृत्यु-दर कम तथा जन्म-दर अधिक होती है, तब जनसंख्या में वृद्धि होती है। प्राकृतिक तौर पर होने वाले जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अन्तर को प्राकृतिक वृद्धि-दर कहते हैं तथा दो समयावधियों के बीच होने वाले जनसंख्या सम्बन्धी परिवर्तन को वृद्धि-दर कहते हैं। जब जन्म-दर अधिक तथा मृत्यु-दर कम हो या किसी अन्य देश से आकर जनंसख्या में बढ़ोत्तरी हो जाए तो इसे धनात्मक वृद्धि कहते हैं। जब दो समयावधियों के बीच जनसंख्या में कमी आए तो इसे ऋणात्मक वृद्धि कहते हैं। ऐसा तब होता है, जब मृत्यु-दर अधिक तथा जन्म-दर कम हो या जनसंख्या बाहर प्रवास कर जाए।

2. प्रवास (Migration)-किसी स्थान पर धनात्मक कारकों के कारण दूसरे स्थान से लोग प्रवासित होते हैं तो भी जनसंख्या में वृद्धि होगी। शहरों तथा कस्बों में उच्च शिक्षा, रोजगार की सुविधा, सुरक्षा, यातायात के साधन, चिकित्सा सुविधाएँ आदि विकसित अवस्था में होते हैं तो आस-पास के क्षेत्र से लोग यहाँ पर आकर रहने लगते हैं। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जर्मनी में जनसंख्या वृद्धि इसी कारण से हुई है।

3. खनिज संसाधनों का आकर्षण (Attraction of Minerals)-संसार में जिन भागों में खनिज संसाधन अधिक हैं, वे क्षेत्र मानव को बसाव के लिए आकर्षित करते हैं। मानव उन क्षेत्रों में श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं। चाहे वहाँ की जलवायु सम हो या विषम। स्वीडन में लौह-अयस्क के कारण गेलिवारे नगर में जनसंख्या बढ़ी है। कनाडा की यक्रेन में केपर बैंक नगर, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में कालगुर्ली, भारत में दामोदर घाटी, जर्मनी में रूस घाटी, रूस का डोनेट्स बेसिन, अल्लेशिन क्षेत्र आदि कई उदाहरण हैं, जहाँ खनिजों के कारण ही उन क्षेत्रों में जनसंख्या आकर्षित हुई।

4. उद्योगों का प्रभाव (Effect of Industries)-किसी भी क्षेत्र में यदि उद्योग विकसित होते हैं, तब वहाँ पर जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है, क्योंकि उद्योगों में काम करने के लिए उन क्षेत्रों में अन्य देशों से श्रमिक आते हैं और वहाँ बसते हैं। आबादी श्रम के रूप में आती है और उस क्षेत्र में इस प्रकार उद्योगों के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ती जाती है; जैसे पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तट, पश्चिमी यूरोप का तटीय भाग, भारत में छोटा नागपुर पठार आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ उद्योगों के विकास के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ती गई।

5. निम्न जीवन-स्तर (Low Life Standard)-जिन क्षेत्रों में लोगों का जीवन-स्तर निम्न होगा, वहाँ अज्ञानता की बढ़ोतरी होगी, इसलिए वहाँ पर जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होगी, क्योंकि वहाँ के लोगों को वहाँ के संसाधनों को प्रयोग करने का पूर्ण ज्ञान नहीं होता। वहाँ प्रति व्यक्ति आय कम होने से जनसंख्या में बढ़ोतरी होती है।

6. आर्थिक विकास (Economic Development)-जनसंख्या वृद्धि का मुख्य प्रभाव क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। प्राथमिक अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों में वृद्धि-दर दो प्रतिशत से चार प्रतिशत के बीच होती है; जैसे एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका आदि। विकसित अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि-दर 1.7% से भी कम पाई जाती है। इस प्रकार आर्थिक विकास तथा जनसंख्या वृद्धि-दर व सह-सम्बन्ध स्पष्ट देखने को मिलता है। आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में जन्म-दर अधिक पाई जाती है। आर्थिक पिछड़ेपन के कारण मृत्यु-दर भी अधिक होती है; जैसे कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन।

7. स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services)-विकसित देशों में स्वास्थ्य सेवाओं के कारण मृत्यु-दर पर अंकुश लग जाता है, लेकिन जन्म-दर बढ़ती जाती है, जिससे जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगती है; जैसे दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में ऐसी स्थिति बनी हुई है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 7.
जनसंख्या परिवर्तन के घटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक होते हैं-

  • प्रजननशीलता या जन्म दर
  • मृत्यु दर या मर्त्यता
  • प्रवास।

1. प्रजननशीलता-प्रजननशीलता से तात्पर्य स्त्री द्वारा पूरे समय बाद किसी समय विशेष में जीवित जन्म देने वाले बच्चों की संख्या से है। कुछ स्त्रियों में गर्भ धारण करने की क्षमता तो होती है परंतु प्रजननशीलता नहीं होती। किसी देश की जनसंख्या वृद्धि ननशीलता महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि प्रजननशीलता मृत्यु-दर से अधिक है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी। इसके विपरीत प्रजननशीलता से मृत्यु-दर अधिक होने पर जनसंख्या में कमी होगी।

प्रजनन दर मापने की विधियाँ – प्रजनन दर को निम्नलिखित दो विधियों द्वारा व्यक्त किया जाता है-
(1) अशोधित जन्म-दर-किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को जन्म-दर कहा जाता है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या में जन्म-दर को निम्नांकित प्रकार से दर्शाया जा सकता है
B = \(\frac{\mathbf{N}_{\mathbf{n}}}{\mathbf{P}}\) x 100
B = जन्म-दर, Nn = एक वर्ष में जन्मे नवजात शिशुओं की संख्या।
P = उस वर्ष के मध्य की जनसंख्या
यद्यपि इस विधि का प्रचलन अधिक है, फिर भी यह दोषयुक्त है, क्योंकि इसमें संपूर्ण जनसंख्या से भाग दिया जाता है कि संपूर्ण जनसंख्या कभी भी प्रजनन क्षमता की परिधि में नहीं आती।

(2) सामान्य प्रजनन दर-प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की 1000 स्त्रियों के पीछे जन्मे जीवित बच्चों की संख्या को सामान्य प्रजनन दर कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से निकाला जा सकता है-
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 12

2. मर्त्यता-जन्म की तरह मृत्यु भी एक निश्चित घटित होने वाली महत्त्वपूर्ण जैविक घटना है। सन् 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा मर्त्यता की दी गई परिभाषा के अनुसार “जन्म के बाद जीवन के सभी लक्षणों का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना मयंता कहलाता है।”

मर्त्यता की माप – जनसंख्या वृद्धि के निर्धारण में मर्त्यता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मर्त्यता में कमी आने के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो जाती है। मर्त्यता को मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों द्वारा मापा जाता है

  • अशोधित मृत्यु-दर
  • शिशु मृत्यु-दर
  • मातृ मृत्यु-दर
  • आयु विशिष्ट मृत्यु-दर।

इन विधियों में अशोधित मृत्यु-दर अधिक सर्वमान्य है जिसका उल्लेख निम्नलिखित है

अशोधित मृत्यु-दर – एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 13

3. प्रवास-युगों से ही मानव वर्गों (Human Groups) का प्रवास होता रहा है। मानव जातियाँ (Human Races) आदिकाल से ही अपने उद्गम प्रदेश के बाहर प्रवास करती रही हैं। ऐतिहासिक काल में भी, पृथ्वी के विभिन्न भागों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर, मानव वर्गों का प्रवसन होता रहा है, इसे जनसंख्या का स्थानान्तरण या प्रवास कहते हैं। स्थानान्तरण या प्रवास मात्र स्थान परिवर्तन ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय तत्त्वों को समझने का आधार भी है। यह सामाजिक और आर्थिक पक्षों से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. देश के किस शहर में वायु प्रदूषण स्तर सबसे अधिक है?
(अ) दिल्ली
(ब) अहमदाबाद
(स) जयपुर
(द) बॉम्बे
उत्तर:
(अ) दिल्ली

2. कितने डेसिबल स्तर की ध्वानि को सुनने से कर्ण-पट्ट (eardrum) क्षतिग्रस्त हो सकता है?
(अ) 50 डेसिबल
(ब) 100 डेसिबल
(स) 150 डेसिबल या इससे अधिक
(द) 30 डेसिबल
उत्तर:
(स) 150 डेसिबल या इससे अधिक

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

3. जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम कब पारित किया गया?
(अ) 1971 में
(ब) 1972 में
(स) 1973 में
(द) 1974 में
उत्तर:
(द) 1974 में

4. जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है। इसे कहा जाता है-
(अ) शैवाल प्रस्फुटन
(ब) कवक प्रस्फुटन
(स) ऐस्चुएरी
(द) बी.ओ.डी.
उत्तर:
(अ) शैवाल प्रस्फुटन

5. बंगाल का आतंक किसे कहा जाता है?
(अ) आइकोर्निया केसिपीज
(ब) वेलसनेरीया
(स) नीलाशोण
(द) क्लेमाइडोमोनास
उत्तर:
(अ) आइकोर्निया केसिपीज

6. अस्पतालों के वाहित मल में पाये जाने वाले अबंधित रोगजनक सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले रोग हैं-
(अ) पेचिश
(ब) पीलिया
(स) हैजा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

7. ‘इकौसेन’ किसे कहते हैं?
(अ) शौचालय
(ब) पालनाघर
(स) विश्वविद्यालय
(द) अभ्यारण्य
उत्तर:
(अ) शौचालय

8. बंगलोर में प्लास्टिक की बोरी के उत्पादनकर्ता हैं-
(अ) ओम बिड़ला
(ब) मुकेश अम्बानी
(स) राम जी दास मोदानी
(द) अहमद् खान
उत्तर:
(द) अहमद् खान

9. ऐसे कम्म्यूटर और इलेक्टॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं। वे कहलाते हैं-
(अ) ई-वेस्ट्स
(ब) वी-वेस्ट्स
(स) यू-वेस्ट्स
(द) सी-वेस्ट्स
उत्तर:
(अ) ई-वेस्ट्स

10. हरियाणा किसान कल्याण क्लब का निर्माता है-
(अ) रमेश चंद्र डागर
(ब) सुरेश चंद्र नागर
(स) रमेश चंद्र डांगी
(द) दिनेश चंद्र मोगर
उत्तर:
(अ) रमेश चंद्र डागर

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11. ग्रीन हाउस प्रभाव यदि नहीं होता तो आज पृथ्वी की सतह का औसतन तापमान 15 डिग्री सेन्टीग्रेड रहने के बजाय कितना रहता है?
(अ) -18 (शून्य से नीचे) डिग्री सेंटीग्रेड
(ब) 12 डिग्री सेंटीग्रेड
(स) 8 डिग्री सेंटीग्रेड
(द) कोई परिवर्तन नहीं होता
उत्तर:
(अ) -18 (शून्य से नीचे) डिग्री सेंटीग्रेड

12. विश्वव्यापी उष्यता को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं?
(अ) जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना
(ब) ऊर्जा दक्षता में सुधार करना
(स) वनोन्मूलन को कम करना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

13. ओजोन की मोटाई किसमें नापी जाती है?
(अ) डॉबसन यूनिट में
(ब) डी.बी. यूनिट में
(स) डॉयसन यूनिट में
(द) डी.सी. यूनिट में
उत्तर:
(अ) डॉबसन यूनिट में

14. बड़े क्षेत्र में ओजोन की परत काफी पतली हो गई है जिसे सामान्यतः कहा जाता है-
(अ) नाइट्रोजन छिद्र
(ब) हिम अंधता
(स) ऑक्सीज छिद्र
(द) ओजोन छिद्र
उत्तर:
(द) ओजोन छिद्र

15. एक ऐसे क्षेत्र में जिसमें DDT को बड़े व्यापक रूप में इस्तेमाल किया गया था, जहाँ के पक्षियों की आबादी बहुत ज्यादा गिर गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि-
(अ) पक्षियों ने अण्डे देना बंद कर दिया
(ब) उस क्षेत्र में केंचुओं की समाति हो गई
(स) नाग-सांप सिर्फ पक्षियों का ही भोजन करते थे
(द) पक्षियों द्वारा दिये गये बहुत से अण्डों से बच्चे बाहर नहीं निकले।
उत्तर:
(द) पक्षियों द्वारा दिये गये बहुत से अण्डों से बच्चे बाहर नहीं निकले।

16. जलीय निकायों की यूट्रोफिकेशन जिसके कारण मछलियाँ मरने लगती हैं, किसकी उपलब्धता न होने के कारण होता है-
(अ) प्रकाश
(ब) आवश्यक खनिज
(स) ऑक्सीजन
(द) भोजन
उत्तर:
(स) ऑक्सीजन

17. किसी स्थान पर वृक्षों पर लाइकेनों की प्रचुर मात्रा में वृद्धि क्या संकेत देती है?
(अ) वृक्ष अत्यधिक स्वस्थ हैं
(ब) वृक्ष भारी पीड़ा से ग्रस्त हैं
(स) वह स्थान अत्यधिक प्रदूषित है
(द) वह स्थान प्रदूषित नहीं है
उत्तर:
(द) वह स्थान प्रदूषित नहीं है

18. चिपको आंदोलन किससे सम्बन्धित है?
(अ) वृक्षों की रक्षा के लिए
(ब) बाघों की रक्षा के लिए
(स) नील गाय की रक्षा के लिए
(द) मोर की रक्षा के लिए
उत्तर:
(अ) वृक्षों की रक्षा के लिए

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19. वन्यजीवों की रक्षा के लिए अद्भुत साहस और समर्पण दिखाने वाले ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्ति को कौनसा पुरस्कार दिया जाता है?
(अ) अमृता देवी विश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार
(ब) सीता देवी विश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार
(स) गीता देवी विश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार
(द) नम्रता देवी विश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार
उत्तर:
(अ) अमृता देवी विश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार

20. आनुवंशिक दुष्प्रभाव उत्पन्न होते हैं-
(अ) वायु प्रदूषण से
(ब) मृदा प्रदूषण से
(स) ध्वनि प्रदूषण से
(द) रेडियोएक्टिव प्रदूषण से
उत्तर:
(द) रेडियोएक्टिव प्रदूषण से

21. ठोस अपशिष्ट है-
(अ) खनन अपशिष्ट
(ब) प्लास्टिक
(स) उपरोक्त दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उपरोक्त दोनों

22. ओजोन परत कौनसी हानिकारक विकिरणों को अवशोषित कर लेती है?
(अ) एक्स-किरणें
(ब) गामा-किरणें
(स) अल्ट्रा वॉयलेट विकिरण
(द) अल्ट्रा विकिरण
उत्तर:
(स) अल्ट्रा वॉयलेट विकिरण

23. पुनःचक्रण (Recycle) में किया जाता है-
(अ) अनुपयोगी से उपयोगी
(ब) उपयोगी से अनुपयोगी
(स) उपरोक्त दोनों
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अनुपयोगी से उपयोगी

24. जैवचिकित्सकीय अवशिष्ट है-
(अ) प्रयोगशाला अवशिष्ट
(ब) फार्मास्यूटीकल अवशिष्ट
(स) सुईयां व सीरिंज
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

25. विषाक (Toxic) अवशिष्ट होते हैं-
(अ) Pb
(ब) Hg
(स) Cd
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

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26. किस देश में मिनीमाटा रोग के कारण सैकड़ों जानें गई थी-
(अ) भारत में
(ब) चीन में
(स) जापान में
(द) अफगानिस्तान में
उत्तर:
(स) जापान में

27. मिनीमाटा रोग किस प्रदूषक के कारण होता है-
(अ) लेड के संक्रमण से
(ब) मर्करी के संक्रमण से
(स) ताम्बे के संक्रमण से
(द) लोहे के संक्रमण से
उत्तर:
(ब) मर्करी के संक्रमण से

28. भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाये गये सभी कानूनों की छतरी कानून (Umbrella Act) कौनसा है-
(अ) भारतीय वन कानून, 19327
(ब) जल प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) कानून, 1974
(स) कीटनाशक कानून, 1968
(द) पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986
उत्तर:
(द) पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ओजोन परत को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
इसे ‘सुरक्षा छतरी’ (Umbrella Layer) भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
कौनसे विकसित देश CFCs का सर्वाधिक उपयोग करते हैं?
उत्तर:
अमेरिका तथा यूरोपीय देश।

प्रश्न 3.
ग्लोबल वार्मिंग हेतु कौनसी गैसें उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
CO2, CH4, CFCs, N2O इत्यादि।

प्रश्न 4.
ताप के बढ़ने से पृथ्वी पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
र्ध्रुवीय बर्फ पिघलेगी, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा।

प्रश्न 5.
पृथ्वी का तापमान बढ़ने से जैव विविधता पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
र्जैव विविधता में तेजी से कमी आयेगी।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन को समझाइये।
उत्तर:
पारा (मर्करी) एक संचयी विष है, शरीर इसका उत्सर्जन करने में असमर्थ होता है तथा उच्च पोष स्तर पर इसका सर्वाधिक सांद्रण होता है। ऐसी परिघटना को जैविक-आवर्धन कहते हैं।

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प्रश्न 7.
ध्वनि प्रदूषण से होने वाले दो दुष्प्रभाव बताइये।
उत्तर:
इससे श्रवण शक्ति कमजोर तथा आंखों की पुतली फैल जाती है जिससे दृष्टि कमजोर हो जाती है।

प्रश्न 8.
प्रदूषण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रदूषण वायु, भूमि, जल तथा मृदा के भौतिक, रासायनिक या जैवीय अभिलक्षणों का एक अवांछनीय परिवर्तन है।

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण में कणिकीय पदार्थों को निकालने हेतु व्यापक रूप से किसका प्रयोग होता है?
उत्तर:
स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (Electrostatic Precipitator)।

प्रश्न 10.
भारत में वायु प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम कब बना?
उत्तर:
1981 में लागू हुआ, परंतु 1987 में संशोधन कर शोर को भी वायु प्रदूषण के रूप में सम्मिलित किया गया।

प्रश्न 11.
अनिद्रा व हार्ट बीटिंग किससे बढ़ती है?
उत्तर:
शोर प्रदूषण से।

प्रश्न 12.
जल प्रदूषण निरेध एवं नियंत्रण अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
सन् 1974 में।

प्रश्न 13.
घरेलू मल में मुख्यतः क्या होता है?
उत्तर:
घरेलू मल में मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं।

प्रश्न 14.
कोई जलीय पादप का उदाहरण दो जो सुपोषी जलाशयों में अधिक वृद्धि कर पारितंत्र गति को असंतुलित करता है।
उत्तर:
जल कुम्भी (Eichhornia crassipes), इसे बंगाल का आतंक भी कहते हैं।

प्रश्न 15.
प्रदूषित जल से होने वाले रोग बताइये।
उत्तर:
पेचिश (अतिसार), टाइफाइड, पीलिया (जांडिस), हैजा (कोलेरा) आदि।

प्रश्न 16.
बिना व्यवस्थित अनुमोदन व क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग करना क्या कहलाता है?
उत्तर:
बिना व्यवस्थित अनुमोदन व क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग करना बायोपाइरेसी (Biopiracy) कहलाता है।

प्रश्न 17.
सी.एन.जी. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
सी.एन.जी. का पूरा नाम संपीडित प्राकृतिक गैस (कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस) है।

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प्रश्न 18.
शैवाल प्रस्फुटन क्या है?
उत्तर:
जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय (मुक्त-प्लावी) शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है, इसे शैवाल प्रस्फुटन (अल्गल ब्लूम) कहा जाता है।

प्रश्न 19.
वायुमण्डल के किस भाग में ‘अच्छा’ ओजोन पाया जाता है? वायुस्तम्भ में ओजोन की मोटाई मापन की इकाई का नाम लिखिए।
उत्तर:
समताप मण्डल, डॉबसन यूनिट (DU)।

प्रश्न 20.
वाहनों में डीजल के स्थान पर संपीडित प्राकृतिक गैस (सी एन जी) का उपयोग बेहतर क्यों है? कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:

  • सी एन जी सबसे अच्छी तरह जलती है और बहुत ही कम मात्रा में जलने से बच जाती है।
  • यह पेट्रोल या डीजल से सस्ती है, इसकी चोरी नहीं हो सकती व इसे अपमिश्रित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 21.
स्वचालित वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का उपयोग क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का प्रयोग होने से उत्सर्जित प्रदूषकों की मात्रा कम होती है।

प्रश्न 22.
जल के उचित निकास के बिना सिंचाई, फसल की वृद्धि के लिए नुकसानदेह है। क्यों?
उत्तर:
जल के उचित निकास के बिना सिंचाई के कारण मृदा में जलाक्रांति (water logging) होती है। फसल को प्रभावित करने के साथ-साथ इससे मृदा की सतह पर लवण आ जाता है। तब यह लवण भूमि की सतह पर एक पर्पटी (crust) के रूप में जमा हो जाता है। या पौधों की जड़ों पर एकत्रित होने लगता है। लवण की बढ़ी हुई मात्रा फसल की वृद्धि के लिये नुकसानदेह है और कृषि के लिये बेहद हानिकर है। जलाक्रांति और लवणता कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो हरित क्रान्ति के कारण आई हैं।

प्रश्न 23.
पर्यावरण पर वनोन्मूलन से पड़ने वाला एक कुप्रभाव बताइए।
उत्तर:
वायुमण्डल में CO2 की सान्द्रता बढ़ जाती है। मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण होता है।

प्रश्न 24.
स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
ये परिवर्तक स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैले गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉनिक एवं ताप प्रदूषण पर टिप्पणी लिखिए। उत्तर- इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण (Electronic Pollution ) – इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों जैसे टेलीविजन, कंप्यूटर व वीडियो गेम्स तथा मोबाइल, टेलीफोन से निकलने वाली अदृश्य विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रदूषण को इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण कहते हैं।

इलेक्ट्रॉन उपकरणों से निकलने वाली अदृश्य किरणों से आँख पर ही नहीं वरन् संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन विकिरणों से नेत्र पटल के साथ-साथ मस्तिष्क तंतुओं की भी क्षति होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार कंप्यूटर पर काम करने वाली महिलाओं में गर्भपात की घटनाएँ कंप्यूटर पर कार्य न करने वाली महिलाओं की तुलना में अधिक होती हैं।

ताप प्रदूषण (Thermal Pollution ) – ताप विद्युत गृहों के यंत्रों को ठंडा करने के लिए नदी, तालाबों के जल का प्रयोग किया जाता है। शीतलन की इस प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त जल अपने में बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा एकत्र करके नदियों के जल क्षेत्र में जल के तापक्रम को बढ़ाता है जिससे जलीय प्राणियों एवं वनस्पतियों के प्रजनन एवं वृद्धि पर सीधा प्रभाव पड़ता है ।

प्रश्न 2.
‘इकोसैन’ (Ecosan) शौचालयों के विषय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रायः यह धारणा है कि शौचालयों में मानव अपशिष्ट, उत्सर्ग (Excreta) यानी मलमूत्र के निपटान हेतु जल जरूरी है। इसमें अधिक मात्रा में जल खर्च होता है। अतः मलमूत्र के निपटान हेतु शुष्क टॉयलेट कम्पोस्टिंग का प्रयोग प्रारंभ किया गया है। मानव अपशिष्ट निपटान के लिए यह व्यावहारिक, स्वास्थ्यकर व कम लागत की विधि है।

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कम्पोस्ट की इस विधि से मानव मलमूत्र (उत्सर्ग = Excreta) का पुनश्चक्रण कर संसाधन (प्राकृतिक उर्वरक ) के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इससे रासायनिक खाद की आवश्यकता कम हो जाती है। केरल के कई भागों और श्रीलंका में ‘इकोसैन’ (Ecosan) शौचालयों (Toilets) का प्रयोग किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
रासायनिक उर्वरकों के अधिक उपयोग से कई पर्यावरणीय समस्याएँ जुड़ी हैं, इनके रोकथाम हेतु एक किसान को आप क्या सुझाव देंगे? तर्क सहित समझाइये।
उत्तर:
रासायनिक उर्वरकों का अधिक उपयोग भूमि को हानि पहुँचा रहा है। भूमि प्रदूषित हो रही है क्योंकि अधिकतर रसायन बिना नष्ट हुए बहुत लम्बे समय तक मिट्टी में रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौधों के द्वारा और जल के द्वारा हमारी खाद्य श्रृंखला (food chain) में प्रवेश कर पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं। इससे बचने के लिए किसानों. को रासायनिक उर्वरकों का कम उपयोग करना चाहिये।

रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरक का उपयोग करना चाहिये । जैव उर्वरक पर्यावरण के किसी भाग को प्रदूषित नहीं करते हैं। ये रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न पार्श्व प्रभावों को भी उत्पन्न नहीं होने देते हैं। इनके लिए किसानों को अधिक व्यय भी नहीं करना पड़ता, इसलिये ये रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अधिक उपयोगी व प्रभावशाली होते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण के स्रोत, प्रकार एवं प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु गुणवत्ता का अपघटन एवं प्राकृतिक वायुमण्डलीय
परिस्थिति से मिलकर वायु प्रदूषण होता है। वायु प्रदूषक गैस या कणिकीय पदार्थ हो सकते हैं (जैसे हवा में तैरता हुआ ऐरोसोल जो कि ठोस तथा तरल से बना होता है) । वायुमंडलीय प्रदूषकों की सांद्रता वायुमंडल में उत्सर्जित कुल द्रव्यमान पर निर्भर करती है। हवा जिसमें हम सांस लेते हैं, उसमें अधिक मात्रा में O2 व N2 गैस होती है। इसमें लगभग 1 प्रतिशत में CO2 व जल वाष्प होती है।

इस 1 प्रतिशत भाग में कणिकीय पदार्थ व गैसों सहित वायु प्रदूषक हो सकते हैं। वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोतों में परागकण, धूल तथा धुआँ होते हैं, जो कि वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं। मानवोद्भवी वायु प्रदूषक वायुमंडल में अचल तथा सक्रिय स्रोतों से प्रवेश करते हैं। अचल स्रोतों में बड़ी फैक्ट्रियाँ, विद्युत शक्ति संयंत्र, खनिज प्रगालक तथा अन्य प्रकार के लघु उद्योग होते हैं तथा सक्रिय स्रोतों में यातायात वाहनों का सड़क पर घूमना, रेल व हवा इत्यादि होते हैं।

वायु प्रदूषक दो श्रेणियों के होते हैं- प्राथमिक तथा द्वितीयक प्राथमिक प्रदूषक वायुमंडल में विविध स्रोतों के द्वारा सीधे प्रवेश करते हैं जबकि द्वितीयक प्रदूषक प्राथमिक वायु प्रदूषकों तथा अन्य वायुमंडलीय अवयवों, जैसे जल वाष्प के आपस में रासायनिक प्रतिक्रिया होने के उपरांत उत्पन्न होते हैं। प्रायः यह प्रतिक्रिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होती है।

I. प्राथमिक वायु प्रदूषक तथा उनके प्रभाव (Primary Air Pollutants and their Effects)-
प्राथमिक वायु प्रदूषकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कणकीय पदार्थ, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)2 हाइड्रोकार्बन (HCs)2 सल्फर डाइऑक्साइड (SO2 +) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) होते हैं। कणकीय पदार्थ ठोस कणों या तरल बूंदों (एरोसोल) के बने होते हैं, ये आकार में बहुत ही छोटे होते हैं तथा सदैव वायु में तैरते रहते हैं, जैसे- कालिख, धुआँ, धूल, ऐस्बेस्टस तंतु, कीटनाशक, कुछ धातु (Hg, Pb, Cu तथा Fe), परागकण इत्यादि ।

ये मानव के श्वसन तंत्र को उत्तेजित कर देते हैं जिससे दमा, श्वसनी शोथ आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) जीवाश्मी ईंधन के पूर्ण रूप से नहीं जलने पर बनता है। 50 प्रतिशत CO का उत्सर्जन ऑटोमोबाइल से होता है। वैसे CO वायुमंडल में कम समय रहती है तथा इसका ऑक्सीकरण होकर CO2 बन जाती है।

CO हानिकर होती है, श्वसन के साथ अंदर जाकर यह रक्त की ऑक्सीजन ढोने की क्षमता को घटाती है। हाइड्रोकार्बन (HCs) या वाष्पशील जैविक कार्बन (VOCs ) संयुक्त हाइड्रोजन तथा कार्बन के बने होते हैं। HCs प्राकृतिक रूप से कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के समय एवं खास प्रकार के पौधे से उत्पन्न होते हैं (जैसे चीड़ के वृक्ष )।

मिथेन (CH4) वायुमंडल में प्रचुर मात्रा में भूमि से निकला हाइड्रोकार्बन है। यह बाढ़ वाले धान के खेतों तथा दलदल से उत्पन्न होता है। हाइड्रोकार्बन जीवाश्मी ईंधन के जलने (पेट्रोलियम तथा कोयला) से भी उत्पन्न होता है। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) सल्फर युक्त कोयला जलाने पर, अयस्क प्रगालक तथा तेल शोधकों से उत्सर्जित होते हैं। SO2 की वायुमंडल में उच्च सांद्रता गंभीर श्वसन समस्या पैदा करती है तथा पौधों के लिए भी अधिक हानिकर होती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) मुख्यत: जीवाश्मी ईंधन के उच्च ताप पर ऑटोमोबाइल इंजन में जलने पर N2 व O2 से बनता है। NO तथा NO2 के अनिश्चित मिश्रण का नाम NOx है। NOx लाल भूरे रंग की धुंध (भूरी हवा) भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्र के यातायात की वायु में रहती है जो हृदय तथा फेफड़े की समस्या को बढ़ाती है। यह कारसिनोजनिक भी हो सकती है। NOx अम्ल वर्षा को बढ़ाती है।

II. द्वितीयक वायु प्रदूषक तथा उनके प्रभाव (Secondary Air Pollutants and their Effects)- प्रकाशरासायनिक धूम कोहरा – जहाँ अधिक यातायात रहता है। वहाँ गर्म परिस्थितियों तथा तेज सूर्य विकिरण से प्रकाश रासायनिक धूम कोहरा का निर्माण होता है। इसका निर्माण ओजोन (O3), पेरोक्सिएसिटाइल नाइट्रेट (PAN) तथा NOx से होता है। ओटोमोबाइल निर्वातक में HC तथा NO रहता है एवं ये शहरी पर्यावरण में O3 तथा PAN के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। धूम कोहरे के निर्माण को निम्न क्रियाओं द्वारा बताया जा रहा है-
इंजन के अंदर की प्रतिक्रियाएं-
N2 + O → 2NO2
वायुमंडल में होने वाली प्रतिक्रियाएं-
2NO + O2 → 2NO2
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 1

धूम कुहरा ओजोन पौधों व जंतु जीवन को हानि पहुँचाता है। पौधों की पत्तियों को हानि पहुँचाता है। ओजोन मनुष्यों में फेफड़े के रोग उत्पन्न करती है। O3 एक प्रभावकारी ऑक्सीकारक है। यह पुरानी इमारतों-स्मारकों, संगमरमर की मूर्तियों को संक्षारित कर सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुँचाता है। PAN के प्रभाव से क्लोरोप्लास्ट नष्ट हो जाता है जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्षमता कम होकर पौधों का विकास बाधित होता है। PAN से मानव नेत्र में उत्तेजना पैदा हो जाती है।

अम्ल वर्षा (Acid Rains) नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), VOCS तथा SO2 का उत्पादन कोयला (उद्योगों में) तथा पेट्रोलियम (ऑटोमोबाइल में) के जलने से होता है। आसमान में प्रकाश होने से NO2 का प्राकृतिक रूप से उत्पादन होता है। ये गैसें हवा में अतिप्रतिक्रियात्मक होती हैं व शीघ्र ही अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाती हैं (सल्फ्यूरिक अम्ल व नाइट्रिक अम्ल) ।

ये आसानी से जल में घुलनशील होते हैं तथा पृथ्वी पर घुलकर अम्ल वर्षा के रूप में आ जाते हैं। साधारणतः वर्षा का जल थोड़ा अम्लीय होता है ( pH 5.6-6.5), क्योंकि जल तथा CO2 वायु में मिलकर कमजोर अम्ल का निर्माण करते हैं। अम्ल वर्षा का pH 5.6 से भी कम हो सकता है। अम्ल वर्षा ऐतिहासिक इमारतों, धरोहर स्मारकों (आगरा का ताजमहल) का संरक्षण कर हानि पहुँचाती है।

अम्ल वर्षा का ‘उष्णकटिबंधीय तथा जलीय वनस्पतियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अधिकतर मोलस्का तथा मछलियाँ 50 pH से कम वाले जल को सहन नहीं कर सकतीं। कम pH मृदा के जीवाणु समुदाय को नष्ट कर देती है।

प्रश्न 2.
मृदा तथा ध्वनि प्रदूषण के प्रकार एवं नियंत्रण के उपाय बताइये ।
उत्तर:
(1) मृदा प्रदूषण (Soil Pollution ) – वस्तुतः मृदा या भूमि प्रदूषण मनुष्यों की विभिन्न क्रियाओं जैसे अपशिष्टों का जमाव, कृषि रसायनों का उपयोग, खनन कार्य तथा शहरीकरण का परिणाम है। इसे निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझाया जा रहा है-

(i) अपशिष्ट (Waste Dumps ) – औद्योगिक अपशिष्ट जल, नगरीय, मेडिकल एवं अस्पतालों के अपशिष्टों को फेंकने से भूमि प्रदूषित हो जाती है। इन अपशिष्टों में विद्यमान कार्बनिक, अकार्बनिक रासायनिक मिश्रण एवं भारी धातु मृदा प्रदूषण करती हैं। औद्योगिक उत्सर्जन के गिरने से तथा ताप ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाला फ्लाई ऐश (राख) आस-पास के पर्यावरण को दूषित करता है। औद्योगिक उत्सर्जन के लिए लगाए गए ऊँची चिमनी से निकले कणकीय पदार्थ जल्दी से पृथ्वी की सतह पर आकर बैठ जाते हैं।

नाभिकीय परीक्षण प्रयोगशालाओं, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र तथा नाभिकीय विस्फोट से निकले अपशिष्ट विकिरण मृदा को संक्रमित करते हैं। रेडियो विकिरण पदार्थ भूमि में लंबे अंतराल तक रह सकते हैं, क्योंकि उनका आधा जीवन साधारणतः लंबा होता है। उदाहरणार्थ स्ट्रान्शयम – 90 का आधा जीवन 28 वर्ष का तथा केसियम 137 ( Cacsium) का 30 वर्षों का होता है।

(ii) नगरीय अपशिष्ट (Municipal Wastes ) – इसके अंतर्गत घरेलू तथा रसोई, बाजार के अस्पताल के, पशुओं व पोल्ट्री के एवं कसाईखानों के अपशिष्ट आते हैं। इनमें से कुछ अपशिष्टों का जैविक अपघटन नहीं होता है जैसे पोलिथीन बैग, अपशिष्ट प्लास्टिक शीट, बोतलें आदि । अस्पताल के अपशिष्टों में कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक पदार्थ, धातु की सुइयाँ, प्लास्टिक तथा शीशे की बोतलें आदि होते हैं। घरेलू सीवेज तथा अस्पताल के कार्बनिक अपशिष्टों के गिराने से पर्यावरण संक्रमित हो जाता है तथा रोगाणु मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।

(iii) कृषि रसायन (Agro-chemicals) – वर्तमान में कृषि प्रणाली में कीट एवं खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिये अत्यधिक कीटनाशक व खरपतवार नाशक रसायनों का उपयोग किया जाता है। अत्यधिक अकार्बनिक उर्वरकों तथा जैवनाशकों के अवशेष, भूमि एवं भूमिगत जल संसाधनों को संक्रमित कर देते हैं।

अकार्बनिक पोषकों, जैसे-फॉस्फेट तथा नाइट्रेट घुलकर जलीय पारिस्थितिक तंत्र में आ जाते हैं तथा सुपोषण को बढ़ाते हैं। नाइट्रेट पेयजल को भी प्रदूषित करता है। अकार्बनिक उर्वरक तथा कीटनाशक अवशेष मृदा के रासायनिक गुणों को बदल देते हैं तथा मृदा जीवों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

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(iv) खनन ऑपरेशन (Mining Operations ) – विवृत खनन (एक प्रक्रिया जहां धरती की सतह का खनन कर भूमिगत जमा पदार्थ को निकाला जाता है) से ऊपरी भूमि का पूरी तरह नुकसान होता है। तथा संपूर्ण क्षेत्र जहरीली धातु एवं रसायन से संक्रमित हो जाता है।

मृदा प्रदूषण का नियंत्रण (Control of soil pollution) – मृदा या भूमि प्रदूषण के नियंत्रण के अंतर्गत सुरक्षित भूमि उपयोग, योजनाबद्ध, शहरीकरण, नियंत्रित विकास कार्यक्रम, सुरक्षित डिस्पोजल (disposal) तथा मानव आवास स्थल एवं उद्योगों के ठोस अपशिष्टों का प्रबंधन किया जाता है। ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन के अंतर्गत निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं-

  • अपशिष्टों को एकत्र करना तथा उनका वर्गीकरण करना।
  • खराब धातुओं तथा प्लास्टिकों जैसे संसाधनों को एकत्र कर उसे पुनः चक्रण के पश्चात् फिर से उपयोग करना तथा
  • पर्यावरण को कम से कम हानि पहुँचाते हुए उसे फेंकना।

मल जल तथा औद्योगिक ठोस अपशिष्ट का उपयोग भूमिभरण के लिए किया जाता है। विषैले रसायन तथा हानिकारक धातु जिसमें अपशिष्ट रहते हैं, सड़क बनाने में बिछाने वाली सामग्री के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। फ्लाई राख का उपयोग भी इसी उद्देश्य हेतु किया जाता है।

फ्लाई राख से ईंट बनाकर भवन निर्माण में उपयोग करते हैं। ठोस अपशिष्टों से छुटकारा पाने का अन्य महत्वपूर्ण तरीका भस्मीकरण (O2, की उपस्थिति में दहन ) एवं ताप अपघटन (O2) की अनुपस्थिति में दहन) है। नगरीय ठोस अपशिष्ट को कृषि के कार्बनिक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।

(2) ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution ) – तेज विक्षोभी ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि तरंगों में चलती है तथा हमारे कर्ण पटल को प्रभावित करती है। ध्वनि तरंग की तीव्रता औसत दर प्रति इकाई क्षेत्र, जिस पर ऊर्जा तरंगें स्थानान्तरित होकर सतह पर आती हैं, पर निर्भर करती है। ध्वनि की मापन इकाई डेसीबल (Decibel = dB) होती है, इसे यह नाम एलेक्जेंडर ग्राहम बेल के कार्य की सराहना पर दिया गया।

मानव द्वारा उत्पन्न शोर, औद्योगिक मशीनों, यातायात वाहनों, ध्वनि प्रवर्धक पटाखों को जलाने, औद्योगिक तथा लघु स्थानों पर अधिस्फोटन से होता है। जेट एयरक्राफ्ट के उतरने या उड़ान भरने के समय बहुत अधिक ध्वनि प्रदूषण हवाई अड्डे के आस-पास होती है। शोर के अनेक दुष्प्रभाव मानव की शरीर क्रिया पर पड़ते हैं।

शोर दिल की धड़कन, पेरीफरल संवहन तथा श्वसन तरीकों पर गहन प्रभाव डालते हैं। निरंतर शोरगुल वाले पर्यावरण से गुस्सा, उत्तेजनशीलता, सिरदर्द एवं अनिद्रा तथा मनुष्य की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा क्षेत्र के अनुसार परिवेशीय शोर का स्तर निम्न सारणी में दिया गया जा रहा है-

सारणी- क्षेत्रानुसार परिवेश शोर स्तर की अनुमति

क्षेत्रदिन (6.00-21.00 hr.)रात्रि (21.00-6.00hr.)
उद्योग70 bB70 bB
व्यापारिक65 bB55 bB
आवास स्थल55 bB45 bB
शांत क्षेत्र00 bB40 bB

ध्वनि प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Noise Pollution ) – ध्वनिरोधी इंसुलेटिंग जैकेट या छन्ना का उपयोग मशीन से होने वाली ध्वनि को कम कर सकता है। औद्योगिक कर्मचारियों एवं रनवे ट्रैफिक कर्मचारियों को कर्णमफ (Ear Muff) का उपयोग करना चाहिए। अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों, लाउडस्पीकर तथा विवाह पर डी. जे. पार्टी पर उचित ध्वनि तक के उपयोग हेतु कानूनी सहायता से नियंत्रण करना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
ओजोन छिद्र व ओजोन ह्रास के प्रभाव को समझाइये ।
उत्तर:
सन् 1956-1970 के दौरान अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत की मोटाई 280 से 325 डोबसन इकाई थी। [1 डोबसन इकाई (DU) = 1 ppb]। 1979 में यह 136 DU थी व 1994 में 94 DU रह गई।
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इस ह्रास को ओजोन छिद्र कहा गया, इसकी खोज 1985 में अंटार्कटिका के ऊपर की गई थी। CFCs, N2O व CH2 का बिखरना O3 को नष्ट करता है। ध्रुवीय समतापमंडल बादल कम तापमान पर क्लोरीन को स्वतंत्र क्रिया करने के लिए सतह प्रदान करते हैं। ओजोन ह्रास क्रियाएं बहुत तेज होती हैं।

सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में तथा अंटार्कटिक में बसंत की शुरुआत में बर्फ जमने के समय क्लोरीन ओजोन अणुओं पर आक्रमण करती है। फलस्वरूप अंटार्कटिका में O3 घटना शुरू हो जाता है। आर्कटिक समतापमंडल बसंत में जल्दी गर्म तथा ठंडा होता है तथा सूर्य प्रकाश के क्रांतिक अति व्याप्ति का समय कम हो जाता है जो कि O3 ह्रास हेतु आवश्यक है।

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ओजोन ह्रास का प्रभाव- समतापमंडलीय O3 परत पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर लेती है, इससे इन विकिरणों की मात्रा पृथ्वी सतह पर आने से कम हो जाती है। मनुष्यों में पराबैंगनी के बढ़ने से मोतियाबिंद, त्वचा कैंसर, मेलानोमा आदि की घटना बढ़ जाती है। पराबैंगनी – बी (UV-B) विकिरणों के संपर्क में ज्यादा आने से मानव के भीतर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

UV- B की मात्रा बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। व सजीवों में न्यूक्लियक अम्ल नष्ट हो जाते हैं। UV-B विकिरणों से पादप प्लवकों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अवरोधित होती है, जिससे उत्पादकता घट जाती है अर्थात् पूरी जैव आहार श्रृंखला प्रभावित होती है, उदाहरण जूप्लैंकटोन, क्रील, ऐस्क्पीड, मछली तथा व्हेल इत्यादि।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. अंटर्कटिक क्षेत्र में हिम-अंधता किस कारण होती है? (NEET-2020)
(अ) UV-B विकिरण की उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोध
(ब) हिम से प्रकाश का उच्च परावर्तन
(स) अवरक्त किरणों द्वारा रेटीना में क्षति
(द) निम्न ताप द्वारा आँख में द्रव के जमने के कारण
उत्तर:
(अ) UV-B विकिरण की उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोध

2. सन् 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल किस पर नियंत्रण के लिए हस्ताक्षरित किया गया था? (NEET-2020)
(अ) ओजोन को क्षति पहुँचाने वाले पदार्थों का उत्सर्जन
(ब) हरित गृह गैसों का छेड़ना
(स) e-वेस्ट (c कृड़ा करकट) का निययन
(द) एक देश से दूसरे देश में आनुव्वंशिकतः रूपान्तरित जीवों के परिवहन के लिए
उत्तर:
(अ) ओजोन को क्षति पहुँचाने वाले पदार्थों का उत्सर्जन

3. पॉलिब्लेंड पुनश्चक्रित रूपान्तरित प्लास्टिक का महीन पाठडर है जो निम्नलिखित में से किसके लिए एक सुयोग्य पदार्थ के रूप में पुष्टिकृत हुई है- (NEET-2019)
(अ) नलियाँ और पाइप बनाने में
(ब) प्लास्टिक की थैलियाँ बनाने में
(स) उर्वरक के रूप में
(द) सड़क के निमांण में
उत्तर:
(द) सड़क के निमांण में

4. निम्नलिखित में से गैसों का कौनसा युग्म हरित गृह प्रभाव के लिए मुख्य रूप में उत्तरदायी है- (NEET-2019)
(अ) कार्बन डाइऑक्साइड और मिथेन
(ब) ओजोन और अमोनिया
(स) ऑक्सीजन और नाइट्रोजन
(द) नाइट्रोजन और सल्फरडाइऑक्साइड
उत्तर:
(अ) कार्बन डाइऑक्साइड और मिथेन

5. निम्न में से कौनसी विधि नाभिकीय अपरिश्षों के निपटान के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है ? (NEET-2019)
(अ) अपशिष्ट को पृथ्वी की सतह के नीचे गहरी चट्ट्यनों में दबा कर
(ब) अपशिष्ट को अंतरिक्ष में दाग देना
(स) अपशिष्ट को अंटार्काटिक में हिम आच्छादन में दबा देना
(द) अपशिष्ट को गहरे महासागर के नीचे चट्टानों में डाल देना
उत्तर:
(अ) अपशिष्ट को पृथ्वी की सतह के नीचे गहरी चट्ट्यनों में दबा कर

6. निम्नलिखित में से कौनसा एक द्वितीयक प्रदूपक है? (DUMET-2009, NEET-2018)
(अ) SO2
(ब) CO2
(स) CO
(द) O3
उत्तर:
(द) O3

7. समताप मंडल में, ओजोन के विकृतिकरण और आप्किक ऑक्सीजन की विमुक्ति में निम्नलिखित में से कौनसा तत्व उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है? (NEET-2018)
(अ) Fe
(ब) Cl
(स) कार्बन
(द) ऑक्सीजन
उत्तर:
(ब) Cl

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8. विश्व ओजोन दिवस कब मनाया जाता है? (NEET-2018)
(अ) 16 सितम्बर
(ब) 21 अप्रैल
(स) 5 जून
(द) 22 अप्रैल
उत्तर:
(अ) 16 सितम्बर

9. निम्नलिखित में से किसमें बहिः इसावों के कारण प्रदुषित होने वाले जल निकायों में जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) प्रदूषण के लिए एक अच्छा सूचक नहीं है? (NEET-2016)
(अ) पेट्रोलियम उद्योग
(ब) शर्करा उद्योग
(स) घरेलू वाहित मल
(द) दुग्ध उद्योग
उत्तर:
(अ) पेट्रोलियम उद्योग

10. एक नदी में जब कार्बनिक अपशिष्ट से भरपूर घरेलू वाहित मल बह्कर गिरता हो, ते उसका परिणाम क्या होगा? (NEET I-2016)
(अ) बायोडिग्रेडेबल पोषण के कारण मछली का उत्पादन बढ़ जएगा
(ब) ऑक्सीजन की कमी के कारण मह्हलियाँ मर जाएंगी
(स) शैवाल प्रस्कुटन के कारण नदी जल्दी ही सूख जाएगी
(द) जलीख भोजन की समम्टि में वृद्धि हो जाएगी
उत्तर:
(ब) ऑक्सीजन की कमी के कारण मह्हलियाँ मर जाएंगी

11. अम्लीय वर्षा वात्तावरण में किसकी सान्द्रता की अधिकता के कारण होती है? (Orissa JEE-2011, WB JEE-2011, NEET-2015)
(अ) SO3 और CO
(ब) CO2 और CO
(स) O3 और धूल
(द) SO2 और NO2
उत्तर:
(द) SO2 और NO2

12. निम्नलिखित में से कौन एक पर्यावरण में SO2 प्रदूषण का योग्य संकेतक है ? (NEET-2015)
(अ) शंकुधारी
(ब) शैवाल
(स) कवक
(द) लाइकेन
उत्तर:
(द) लाइकेन

13. वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें ओजोन परत उपस्थित है, उसे क्या कहा जाता है? [CBSE PMT (Mains)-2011, NEET-2014]
(अ) आयनमंडल
(ब) मध्यमंडल
(स) समतापमंडल
(द) क्षोभमंडल
उत्तर:
(स) समतापमंडल

14. एक रासायनिक प्रौद्योगिक संस्थान के निकास में लगा हुआ स्क्रबर क्या हटाता है? (NEET-2014)
(अ) सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैस
(ब) 5 माइक्रोमीटर के या इससे बड़े कणिकीय पदार्थ
(स) ओजोन और मीथेन जैसी गैस
(द) 2.5 माइक्रोमीटर के या इससे छोटे कणिकीय पदार्थ
उत्तर:
(अ) सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैस

15. वैस्किक उष्प का नियंत्रण किया जा सकता है- (NEET-2013)
(अ) वनोन्मूलन को कम करके, जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करके
(ब) पेड़ें को लगाना कम करके, जीवाश्म ईंचन का उपयोग बढ़ करके
(स) वनोन्मूलन में वृद्धि करके, जनसंख्या वृद्धि की दर को कम करके
(द) वनोन्मूलन में वृद्धि करके, ऊर्जा के उपयोग की कारगरता को कम करके
उत्तर:
(अ) वनोन्मूलन को कम करके, जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करके

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16. जल सुपोषण होना प्रायः किसमें देखा जाता है? [PMT-2005, NEET-2011, CBSE PMT (Pre)-2011]
(अ) मरुस्थलों में
(ब) अलवणीय झीलों में
(स) महासागर में
(द) पहाड़ों में
उत्तर:
(ब) अलवणीय झीलों में

17. भोपाल ग्रासदी के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन गलत है? [CBSE PMT (Pre)-2011, NEET-2011]
(अ) मेथिल आइसो सायनेट गैस का रिसाव हुआ था
(ब) हजारों लोग मर गए थे
(स) पूरे भोपाल पर रेंडियोएक्टिव अवपात छा गया था
(द) यह दिसम्बर 2/3/1984 की रात हुआ था
उत्तर:
(स) पूरे भोपाल पर रेंडियोएक्टिव अवपात छा गया था

18. dB एक मानक संकेताक्षर है जिसका उपयोग निम्नलिखित में से किस एक का मात्रात्मक अभिव्यकि के लिए किया जाता है? [NEET-2010, CBSE PMT (Pre)-2010]
(अ) एक विशिष्ट पीड़काशी की
(ब) किसी माध्यम में बैक्टीरिया के घनत्व की
(स) एक विशिष्ट प्रदूषक की
(द) किसी संवर्धन में प्रभावी बेसिलस की
उत्तर:
(स) एक विशिष्ट प्रदूषक की

19. द्वितीयक प्रदूषक जो हिल अभिक्रिया को रोकता है, वह है- (Kerala CET-2002, CPMT-2010)
(अ) गंधक का अम्ल
(ब) नाइट्रिक अम्ल
(स) परऑॅक्सीऐसेटाइल नाइट्रेट (PAN)
(द) एल्डिहाइडस
उत्तर:
(स) परऑॅक्सीऐसेटाइल नाइट्रेट (PAN)

20. किसी नदी के जल की BOD के संबंध में क्या सही है- (AIIMS-2008; CBSE PMT-2009)
(अ) इसके जल के अंदर साल्मोनेला के माप का पता चलता है
(ब) यह तब एक समान बनी रहती है जब ऐल्गाल ब्लूम (शैवाल प्रस्फुटन) होता है
(स) यह तब बढ़ जाती है जब नदी के जल में मल-जल मिल जाता है
(द) इसके जल के अंदर की ऑक्सीजन-सांद्रता से कोई संबंध नहीं है
उत्तर:
(स) यह तब बढ़ जाती है जब नदी के जल में मल-जल मिल जाता है

21. अधिक समता मुक्त उपकरण जो कि औचोगिक उत्सर्जित पदार्थों (Emission) से पार्टोकुलेर मैटर को हटाता है- (Kerala PMT-2009)
(अ) साइक्लोनिंग सेप्रेटर
(ब) ट्रेजेक्टरी सेप्रेटर
(स) पाइरोलिसिस
(द) इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर
उत्तर:
(द) इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर

22. वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदमों में सम्मिलित है- (NEET-2009, CBSE PMT-2009)
(अ) पेट्रोल में 20% इथाइल एल्कोहॉल और डीजल में 20% बायोडीजल अनिवार्य रूप से मिलाया जाना।
(ब) पेट्रोल चलित वाहनों का अनिवार्य PUC (Pollution Under Control) प्रमाण पत्र दिया जाना जिसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा हाइड्रो कार्बनों का परीक्षण होता है।
(स) वाहनों के लिए ईंधन के रूप में केवल ऐसे शुद्ध डीजल के उपयोग की अनुमति देना जिसमें अधिकतम सल्फर 500 PPM तक हो।
(द) समस्त बसों और ट्रकों द्वारा केवल अप्रदूषणकारी सम्पीडित प्राकृतिक गैसों (CNG) का उपयोग किया जाना।
उत्तर:
(द) समस्त बसों और ट्रकों द्वारा केवल अप्रदूषणकारी सम्पीडित प्राकृतिक गैसों (CNG) का उपयोग किया जाना।

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23. आटोमोबाइल निष्कासन में सबसे हानिकारक धात्विक प्रदूषक है- (Pb PMT-2000; MP PMT-2002; BHU-2008)
(अ) पारा (Hg)
(ब) लैड (Pb)
(स) कैडमियम (Cd)
(द) कॉपर (Cu)
उत्तर:
(ब) लैड (Pb)

24. ऊर्जा के विकिरण से तापक्रम का बढ़ना जिसे ओजोन CO2 एवं जलवाष्प से निर्धाति किया जाता है, कहलाता है- (J\&K CET-2008)
(अ) रेडियो सक्रियता
(ब) ओजोन प्रभाव
(स) सौर अभिक्रिया
(द) ग्रीन हाउस प्रभाव
उत्तर:
(द) ग्रीन हाउस प्रभाव

25. कोयला ईंधन वाले बिजली संयंत्र में विद्युत स्थैतिक प्रेसिपिटेटर्स किसके निष्कासन को रोकने के लिए लगाए जाते हैं? (CBSE PMT-2007, NEET-2007)
(अ) CO
(ब) SO2
(स) NOx
(द) SPM
उत्तर:
(द) SPM

26. वायुमण्डल में O3 की परत किससे नष्ट होती है या कौनसा रासायनिक पदार्थ वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा को कम करने के लिये उत्तरदायी है- (CPMT-2009; MP PMT-2006: DPMT-2006)
(अ) HCl अम्ल
(ब) फोटोकेमिकल स्रोत
(स) क्लोरोफ्लोरो कार्बन
(द) SO2
उत्तर:
(स) क्लोरोफ्लोरो कार्बन

27. गैसें जिन्हें ग्रीन हाउस गैसें कहते हैं, वे हैं- (BHU-2003; CPMT-2003; RPMT-2006)
(अ) CO2, O2, NO2, NH2
(ब) CFC, CO2, NH3, N2
(स) CH4, N2, CO2, NH3
(द) CFC, CO2, CH4, NO2
उत्तर:
(द) CFC, CO2, CH4, NO2

28. माँट्रियल प्रोटेकॉल जिसमें ओजोन परत को मानव क्रियाक्लापों से सुरक्षित बचाए रखने के लिये कार्यवाही करने को कहा गया है, किस वर्ष में पारित किया गया था- (NEET-2006; CBSE PMT-2006)
(अ) 1985
(ब) 1986
(स) 1987
(द) 1988
उत्तर:
(स) 1987

29. निम्न में से कौनसी रणनीति ग्लोबल वार्मिंग के लिये उपयोगी नहीं है- (AMU-2005)
(अ) जीवाश्म ईंधनों का सीमित मात्रा में उपयोग करना
(ब) वनों में वृद्धि
(स) नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि
(द) CFC के स्थान पर अन्य विकल्पों का उपयोग करना
उत्तर:
(स) नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि

30. वह प्रक्रम जिसमें जल के पोषण की प्रचुरता के कारण एक या कुछ जीवों में अत्यधिक वृद्धि का होना तथा साथ ही जाति विविधता में कमी कहलाती है- (AMU-2005)
(अ) जैवीय आवर्धन (Biological magnification)
(ब) जाति प्रमोशन (Species promotion)
(स) सुपोषण (Eutrophication)
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) सुपोषण (Eutrophication)

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31. DDT होता है- (MP PMT-2004; AIIMS-2005)
(अ) विघटित न होने वाला प्रदूषक
(ब) विघटित होने वाला प्रदूषक
(स) एन्टीबायोटिक
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) विघटित न होने वाला प्रदूषक

32. CFC फ्रीजों में उपयोग हेतु अनुमोदित नहीं किये जाते हैं क्योंकि वे- (DPMT-2003; BVP-2004)
(अ) तापक्रम बढ़ाते हैं
(ब) ओजोन को कम करते हैं
(स) पर्यावरण प्रभावित करते हैं
(द) मानव शरीर को प्रभावित करते हैं
उत्तर:
(ब) ओजोन को कम करते हैं

33. ग्रीन हाउस प्रभाव संबंधित है- (CPMT-2004)
(अ) पृथ्वी के शीतलन से
(ब) पृथ्वी के गरम होने से
(स) UV को ग्रहण करने से
(द) अनाज उत्पादन से
उत्तर:
(ब) पृथ्वी के गरम होने से

34. सुपोषण निम्न के कारण होता है- (MHCET-2004)
(अ) अम्ल वर्षा
(ब) नाइट्रेट्स और फॉस्फेट्स
(स) सल्फेट्स और कार्बोनेट्स
(द) CO2 और CO
उत्तर:
(ब) नाइट्रेट्स और फॉस्फेट्स

35. ‘जैविक आवर्धन’ प्रदर्शित करता है- (Kerala PMT-2004)
(अ) भोजन के उपयोग के कारण जीवों में वृद्धि
(ब) समष्टि के परिणाम में वृद्धि
(स) मनुष्य द्वारा वायुमण्डलीय मुद्दों को बढ़ाना
(द) अनिम्नीकरणीय प्रदूषक की बढ़ती हुई मात्रा खाद्य शृंखला द्वारा स्थानान्तरित होती है।
उत्तर:
(द) अनिम्नीकरणीय प्रदूषक की बढ़ती हुई मात्रा खाद्य शृंखला द्वारा स्थानान्तरित होती है।

36. पैट्रोल एवं डीजल से चलने वाले स्वचालित वाहनों के रेचन (exhaust) से युक्त किस प्रदूषक की मात्रा अधिक होती है- (BVP-2004)
(अ) CO
(ब) CO2
(स) NO2, SO2 एवं Pb
(द) हाइड्रोकार्बन
उत्तर:
(अ) CO

37. दफ्तरों में उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण का स्तर सामान्यतः होता है- (AIIMS-2004)
(अ) 20 dB
(ब) 30 dB
(स) 40 dB
(द) 60 dB
उत्तर:
(स) 40 dB

38. यह कहा जाता है कि ताज नष्ट हो रहा है- (CPMT-2004)
(अ) यमुना नदी की बाढ़ के कारण
(ब) उच्च ताफ्क्रम के कारण संगमरमर के विघटन के कारण
(स) मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकले वायु प्रदूषकों के कारण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकले वायु प्रदूषकों के कारण

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39. SO2 एवं इसके रूपातंरित उत्पादों के कुछ प्रभाव पौधों में होते हैं, जैसे- (BHU-2004)
(अ) क्लोरोफिल का अपघटन
(ब) प्लाज्मोलाइसिस (Plasmolysis)
(स) गॉल्जी काय का विनिष्ट होना
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) क्लोरोफिल का अपघटन

40. BOD का क्या अर्थ है- (Kerala PMT-2004)
(अ) बायोलोजिक आर्गेनिज्म डेथ
(ब) बायोकेमिकल आर्गोनिक मेटर डिके
(स) बायोटिक ऑक्सीजन डिमांड
(द) बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमान्ड
उत्तर:
(द) बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमान्ड

41. लाइकेन सामान्यतः शहरों में नहीं उगते- (AFMC-2004)
(अ) सही प्रकार के शैवाल व कवकों की अनुपस्थिति के कारण
(ब) नमी की कमी के कारण
(स) SO2 प्रदूषण के कारण
(द) प्राकृतिक आवास न मिलने के कारण
उत्तर:
(स) SO2 प्रदूषण के कारण

42. कभी-कभी झील में वाटर ब्लूम्स (Water blooms) का पाया जाना प्रदर्शित करता है- (AIEEE-2003)
(अ) पोषण की कमी
(ब) ऑक्सीजन की कमी
(स) अत्यधिक पोषण की उपलब्धता
(द) झील में शाकाहारियों की अनुपस्थिति
उत्तर:
(ब) ऑक्सीजन की कमी

43. 70 से 90 डेसीबल प्रबलता की औसत ध्वनि होती है- (AIEEE-2003)
(अ) अधिक प्रबल
(ब) असहज
(स) कष्टदायक
(द) शांत
उत्तर:
(अ) अधिक प्रबल

44. घने शहरों में पाया जाने वाला प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे में मुख्यतः सम्मिलित होता है-(AIIMS-2003)
(अ) ओजोन, परऑक्सीएसीटायल नाइट्रेट और NOx
(ब) धुआँ, पसऑक्सीएसीटायल नाइट्रेट और SO2
(स) हाइड्रोकार्बन्स, SO2 और CO2
(द) हाइड्रोकार्बन्स, O3 और SO2
उत्तर:
(ब) धुआँ, पसऑक्सीएसीटायल नाइट्रेट और SO2

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

45. डीफोरेस्टेशन प्रदर्शित करता है- (MHCET-2003)
(अ) मृदा क्षरण
(ब) ग्लोबल वार्मिंग
(स) मृदा संरक्षण
(द) दोनों ‘अ’ व ‘ब’
उत्तर:
(द) दोनों ‘अ’ व ‘ब’

46. वनों द्वारा भूमि का आच्छादित भाग है अथवा भारतीय वन नीति के अनुसार वनाच्छादित भूमि क्षेत्र का प्रतिशत है- (AIEEE-2003)
(अ) 11%
(ब) 22%
(स) 33%
(द) 60%
उत्तर:
(स) 33

47. किससे प्रदूषण नहीं होता- (CPMT-2002)
(अ) हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्कीम
(ब) ऑटोमोबाइल
(स) न्यूक्लियर ऊर्जा प्रोजेक्ट
(द) थर्मल पावर प्रोजेक्ट
उत्तर:
(अ) हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्कीम

48. निम्न में से कौनसा देश वायुमण्डल में सर्वाधिक ग्रीन हाउस गैसें मुक्त करने के लिये उत्तरदायी है- (CBSE PMT-2002; BVP-2002)
(अ) रूस
(ब) जर्मनी
(स) ब्राजील
(द) अमेरिका (USA)
उत्तर:
(द) अमेरिका (USA)

49. जल प्रदूषण से- (BHU-2002)
(अ) ऑक्सीजन में वृद्धि होती है
(ब) गंदलेपन में कमी होती है
(स) गंदलेपन और विऑक्सीजनीकरण में वृद्धि होती है
(द) प्रकाश-संश्लेषण में वृद्धि होती है
उत्तर:
(स) गंदलेपन और विऑक्सीजनीकरण में वृद्धि होती है

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

50. जैविक अपघटन वाले प्रदूषक हैं- (Pb. PMT-2000)
(अ) प्लास्टिक
(ब) जल प्रदूषण
(स) भूमि प्रदूषण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) जल प्रदूषण

51. जल प्रदूषण कारक कौन है- (MP PMT-2000)
(अ) धुआँ
(ब) औद्योगिक वर्ज्य पदार्थ
(स) डिटरजेन्ट
(द) अमोनिया
उत्तर:
(ब) औद्योगिक वर्ज्य पदार्थ

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जैव विविधता शब्द किस जीव वैज्ञानिक द्वारा प्रचलित किया गया?
(अ) एडवर्ड विलसन
(ब) रॉबर्ट मेह
(स) टिल मैन
(द) पाल एहरालिक
उत्तर:
(अ) एडवर्ड विलसन

2. राइवोल्फीया वोमिटोरिया द्वारा प्रतिपादित रसायन का नाम है-
(अ) केसरपिन
(ब) रेसरपिन
(स) मेसरपिन
(द) जेसरपिन
उत्तर:
(ब) रेसरपिन
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

3. भारत का भूमि क्षेत्र विश्व का केवल कितने प्रतिशत है?
(अ) 1.8 प्रतिशत
(ब) 2 प्रतिशत
(स) 2.2 प्रतिशत
(द) 2.4 प्रतिशत
उत्तर:
(द) 2.4 प्रतिशत

4. जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध होता है।
(अ) वर्गाकार अतिपरवलय
(ब) आयताकार अतिपरवलय
(स) त्रिकोणाकार अतिपरवलय
(द) चतुर्भुजाकार अतिपरवलय
उत्तर:
(ब) आयताकार अतिपरवलय

5. विभिन्न महाद्वीपों के उष्ण बटिबंध वनों के फलाहारी पक्षी तथा स्तनधारियों की रेखा की ढलान है ?
(अ) 1.15
(ब) 2.15
(स) 3.15
(द) 4.15
उत्तर:
(अ) 1.15

6. “विविधता में वृद्धि उत्पादकता बढ़ती है” यह किस वैज्ञानिक का कथन है?
(अ) डेविड टिलमैन
(ब) रॉबर्ट मेह
(स) रॉबर्ट हुक
(द) डेविड मिडिलमेन
उत्तर:
(अ) डेविड टिलमैन

7. पॉल एहरलिक द्वारा उपयोग की गई परिकल्पना है-
(अ) पोपर परिकल्पना
(ब) सोपर परिकल्पना
(स) सिवेट पोपर परिकल्पना
(द) रिबेट पोपर परिकल्पना
उत्तर:
(द) रिबेट पोपर परिकल्पना

8. निम्न में से वर्तमान में कितने प्रतिशत जातियाँ विलुसि के कगार पर हैं?
(अ) 12 प्रतिशत पक्षी
(ब) 23 प्रतिशत स्तनधारी
(स) 31 प्रतिशत आवृतबीजी की जातियाँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

9. किसी क्षेत्र की जैव विविधता की हानि से होने वाला प्रभाव है-
(अ) पादप उत्पादकता घटती है
(ब) पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे सूखा आदि के प्रति प्रतिरोध में कमी आती है
(स) कुछ पारितंत्र की प्रक्रियाओं जैसे पादप उत्पादकता, जल उपयोग, पीडक और रोग चक्रों की परिवर्तनशीलता बढ़ जाती है
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

10. पृथ्वी का फेफड़ा किसे कहा जाता है?
(अ) विशाल अमेजन वर्षा वन
(ब) सुन्दर वन
(स) काजीरंगा वन
(द) नागार्जुन उद्यान
उत्तर:
(अ) विशाल अमेजन वर्षा वन

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

11. किस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चारागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया-
(अ) सुन्दर वन
(ब) अमेजन वन
(स) नागार्जुन वन
(द) काजीरंगा वन
उत्तर:
(ब) अमेजन वन

12. बिहार राज्य में किस वृक्ष की पूजा की जाती है?
(अ) इमली
(ब) महुआ
(स) कदम्ब
(द) ढाक
उत्तर:
(ब) महुआ

13. वनों की सघनता जैव विविधता में करती है-
(अ) कमी
(ब) वृद्धि
(स) स्थिरता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) वृद्धि

14. 2002 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वितीय कहाँ हुआ?
(अ) रियो-दि-जेनेरो
(ब) ब्राजील
(स) जोहान्सबर्ग
(द) दक्षिण अमेरिका
उत्तर:
(स) जोहान्सबर्ग

15. मानव द्वारा अति दोहन से पिछले 500 वर्षों निम्न में से कौनसी जातियाँ विलुप्त हुई हैं-
(अ) स्टीलर समुद्री गाय
(ब) पैसेंजर कबूतर
(स) मोर
(द) (अ) एवं (ब)
उत्तर:
(द) (अ) एवं (ब)

16. सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियों के विलुप्त होने का कारण है-
(अ) नाईल पर्च
(ब) समुद्री गाय
(स) लेटाना
(द) हायसिंथ
उत्तर:
(अ) नाईल पर्च

17. कैट फिश जाति की मछलियों को विदेशी कौनसी मछली से खतरा है-
(अ) अफ्रीकन कलैरियस गैरीपाइनस
(ब) ऑस्ट्रेलियन स्कोलिओडोन
(स) अमरीकन एनाबास
(द) जापानी एक्सोसीटस
उत्तर:
(अ) अफ्रीकन कलैरियस गैरीपाइनस

18. अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग कितने प्रतिशत ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है-
(अ) 5 प्रतिशत
(ब) 10 प्रतिशत
(स) 15 प्रतिशत
(द) 20 प्रतिशत
उत्तर:
(द) 20 प्रतिशत

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

19. भारत का कौनसा भाग जैव विविधता की दृष्टि से अधिक समृद्ध है?
(अ) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
(ब) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
(स) दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र
(द) दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र
उत्तर:
(अ) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र

20. वृहद् वनस्पति विविधता के साथ-साथ वृहद् प्राणी विविधता वाला राष्ट्र कौनसा है?
(अ) चीन
(ब) नेपाल
(स) भारत
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) भारत

21. सार्वभौमिक विविधता किसे कहा जाता है?
(अ) जातीय विविधता
(ब) आनुवंशिक विविधता
(स) गामा विविधता
(द) जैव विविधता
उत्तर:
(ब) आनुवंशिक विविधता

22. प्रकृति में सन्तुलन की प्रक्रिया होती है।
(अ) नियंत्रित
(ब) स्वतः नियंत्रित
(स) अनियंत्रित
(द) नष्ट
उत्तर:
(ब) स्वतः नियंत्रित

23. एक बाघ को सुरक्षित रखने के लिए सारे जंगल को सुरक्षित रखना होता है। इसे कहते हैं-
(अ) स्वस्थाने (इन सिटू) संरक्षण
(ब) बाह्यस्थाने (एम्स सिटू) संरक्षण
(स) हॉट-स्पॉट
(द) स्थानिकता एडेमिज्म
उत्तर:
(अ) स्वस्थाने (इन सिटू) संरक्षण

24. जैव विविधता को जीवधारियों के पारिस्थितकीय संबंधों के आधार पर कितने भागों में वगीकृत किया जाता है?
(अ) पाँच
(ब) दो
(स) तीन
(द) सात
उत्तर:
(स) तीन

25. संसार में पायी जाने वाली सम्पूर्ण जैव विविधता का लगभग कितना प्रतिशत भाग भारत में विद्यमान है?
(अ) 12
(ब) 15
(स) 7
(द) 8
उत्तर:
(द) 8

26. निम्न में सर्वाधिक जैव विविधता किस देश में पायी जाती है?
(अ) ब्राजील
(ब) भारत
(स) दक्षिण अफ्रीका
(द) जर्मनी
उत्तर:
(अ) ब्राजील

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

27. जैव विविधता की संकल्पना में मुख्यतः किसकी निर्णायक भूमिका होती है?
(अ) वंश
(ब) गण
(स) जाति
(द) कुल
उत्तर:
(स) जाति

28. किसमें अधिकतम जैव विविधता मिलती है?
(अ) बन प्रदेश
(ब) प्रवाल भित्तियाँ
(स) मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र
(द) उष्ण कटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(ब) प्रवाल भित्तियाँ

29. संसार में कुल जैव विविधता हॉट-स्पॉट हैं-
(अ) 25
(ब) 9
(स) 34
(द) 33
उत्तर:
(स) 34

30. हॉट-स्पॉट को विशेष सुरक्षा द्वारा विलोपन की दर को कितने प्रतिशत कम किया जा सकता है?
(अ) 10 प्रतिशत
(ब) 20 प्रतिशत
(स) 30 प्रतिशत
(द) 40 प्रतिशत
उत्तर:
(स) 30 प्रतिशत

31. मेघालय के कौनसे उपवन बहुत-सी दुर्लभ व संकटोत्पन्न पादपों की अन्तिम शरणास्थली है-
(अ) पवित्र उपवन
(ब) अपवित्र उपवन
(स) सुन्दर उपवन
(द) नागार्जुन उपवन
उत्तर:
(अ) पवित्र उपवन

32. 1992 में जैव विविधता का ऐतिहासिक सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(अ) जोहान्सबर्ग में
(ब) रियोडिजिनरियो में
(स) जकार्ता में
(द) इण्डोनेशिया में
उत्तर:
(ब) रियोडिजिनरियो में

33. लघुगणक पैमाने पर संबंध एक सीधी रेखा दर्शाता है देखिए चित्र में जो निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
(अ) logS = log C + ZlogA
(ब) logS = log A + ZlogA
(स) S = CAZ + Zlog A
(द) logS =Zlog C + log C
उत्तर:
(अ) logS = log C + ZlogA

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव विविधता को परिभाषित कीजिये ।
उत्तर:
किसी प्राकृतिक प्रदेश में पाये जाने वाले जीवधारियों (पादप, जीव-जन्तु) में उपस्थित विभिन्नता, विषमता तथा पारिस्थितिक जटिलता ही जैव विविधता कहलाती है।

प्रश्न 2.
जैव विविधता की संकल्पना विकसित होने का क्या आधार है?
उत्तर:
पर्यावरण ह्रास के कारण ही जैव विविधता की संकल्पना विकसित हुई है।

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प्रश्न 3.
जैव विविधता का अन्य नाम लिखिए।
उत्तर:
जैव विविधता का अन्य नाम जैविक विविधता है।

प्रश्न 4.
विश्व में न्यूनतम जैव विविधता कहाँ पर पायी जाती है?
उत्तर:
ध्रुवों पर न्यूनतम जैव विविधता होती है।

प्रश्न 5.
जैव मण्डल की जैव विविधता का मूलभूत आधार क्या है?
उत्तर:
जीन ।

प्रश्न 6.
मेडागास्कर पेरिविंकल पौधे से प्राप्त दो कैंसर रोधी औषधियों के नाम लिखो ।
उत्तर:
विनब्लास्टीन तथा विन्क्रिस्टीन ।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो प्रान्तों में पूजे जाने वाले पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • राजस्थान में कदम्ब,
  • उड़ीसा में आम ।

प्रश्न 8.
विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता कहाँ होती है?
उत्तर:
ब्राजील में ।

प्रश्न 9.
वनों की सघनता किसमें वृद्धि करती है?
उत्तर:
जैव विविधता में।

प्रश्न 10.
भारत के दो सघन जैव विविधता वाले क्षेत्रों के नाम लिखिये ।
उत्तर:

  • मेघालय,
  • अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह ।

प्रश्न 11.
एक ही जाति विशेष में मिलने वाली जीनों की विभिन्नता क्या कहलाती है?
उत्तर:
आनुवंशिक विविधता ।

प्रश्न 12.
आनुवंशिक विविधता का मापन किस स्तर पर होता है?
उत्तर:
जीन स्तर पर ।

प्रश्न 13.
प्रकृति संतुलन में महत्त्वपूर्ण योगदान कौन करते हैं?
उत्तर:
वन्य जीव ।

प्रश्न 14.
हमारे देश में अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में पाई जाती हैं।

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प्रश्न 15.
विश्व की आशंकित जातियों का विवरण किस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है?
उत्तर:
Red Data Book या लाल आंकड़ों की पुस्तक में ।

प्रश्न 16.
IUCN का पूर्ण शब्द विस्तार लिखिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ।

प्रश्न 17.
उत्स्थाने संरक्षण विधि का मुख्य प्रयोजन क्या है ?
उत्तर:
उत्स्थाने संरक्षण विधि का मुख्य प्रयोजन प्राणी एवं पादप जाति का विकास करके उन्हें पुनः उनके मूल वासस्थान में स्थापित करना है ।

प्रश्न 18.
‘ग्रीन बुक’ में किसका समावेश किया जाता है?
उत्तर:
संकटग्रस्त पादप जातियों, जिनका अस्तित्व वानस्पतिक उद्यानों में पाया जाता है, उसका लेखा-जोखा ‘ग्रीन बुक’ में समावेशित किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
विशेषक (Traits) तथा जीन कोश (Gene pool) को समझाइए ।
उत्तर:
विशेषक- विशेषक, जाति विशेष को जीवित रखने हेतु उत्तरदायी होते हैं। ये किसी भी समष्टि में जीन कोश संबंधित जाति के प्रतिनिधि होते हैं। जीन कोश- ” किसी भी समष्टि के जीवधारियों के जीनों का साथ- साथ जुड़ना जीन कोश कहलाता है” ताकि उनको संरक्षित कर इनका भविष्य में उपयोग कर सकें।

प्रश्न 2.
विश्व में जैव विविधता कहाँ कम एवं कहाँ अधिक है? बताइए ।
उत्तर:
विश्व में ब्राजील देश के भूमध्यरेखीय वनों में जीव-जन्तुओं व पशु-पक्षियों की सर्वाधिक जातियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार ब्राजील के पश्चात् विश्व में हमारा देश भारत ही ऐसा भाग्यशाली देश है, जहाँ पर सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है। विश्व में सबसे अधिक जैव विविधता अक्षांश के दोनों ओर तथा ध्रुवों पर सबसे कम जैव विविधता होती है।

प्रश्न 3.
जैव विविधता के औषधीय मूल्य पर टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर:
मेडागास्कर पेरेविंकल या सदाबहार के पौधे से विनब्लास्टीन एवं विन्क्रिस्टीन नामक कैंसर रोधी औषधियाँ निर्मित की जाती हैं। इन औषधियों से बाल्यकाल में होने वाले रक्त कैंसर ‘ल्यूकेमिया’ (Leukemia) पर 99 प्रतिशत नियंत्रण कर लेने में सफलता अर्जित हुई है। कवक द्वारा पैनीसिलीन, सिनकोना, पेड़ की छाल से कुनैन, बैक्टीरिया से एरिथ्रोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन नामक प्रतिजैविक औषधियाँ निर्मित की जाती हैं।

प्रश्न 4.
वनस्पतियों के सामाजिक मूल्य को सोदाहरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
वनस्पति का सामाजिक मूल्य प्राचीन काल से ही मनुष्य के जीवन का अंग रहा है। वनस्पति मानव के जीवन में आने वाले सभी शुभ-अशुभ अवसर पर मानव के साथ रहती है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा जीवन की विविधता विभिन्न रूपों में सामाजिक मान को प्रतिबिम्बित करती है।

उदाहरण- केला, तुलसी, पीपल, आम आदि ऐसे पौधे हैं जो हमारे घरों में आयोजित प्रत्येक धार्मिक समारोह का अविभाज्य अंग होते हैं। आम, अशोक ऐसे वृक्ष हैं, जिनकी पत्तियों की ‘बन्दनवार’ यज्ञ, विवाह, धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान अनिवार्य रूप से लगाई जाती है। नि:संदेह मनुष्य की इस प्रकार की मनोवृत्ति प्रकृति की वानस्पतिक सम्पदा को सुरक्षित रखती है।

प्रश्न 5
पारितंत्र में जैव विविधता का क्या महत्त्व है? समझाइए ।
उत्तर:
पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र अजैविक एवं जैविक घटक की वह व्यवस्था है, जिसमें ये दोनों एक-दूसरे से अन्योन्यक्रिया करते हैं। अलग-अलग पारिस्थितिक तन्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जीवनयापन करते हैं। उदाहरणार्थ – अलवणीय जल (मीठे पानी ) के जीवधारी लवणीय जल (खारे पानी) के जीवधारियों से सर्वथा भिन्न होते हैं।

किसी भी स्थान विशेष के जीवधारियों के वासस्थान तथा निकेत में जितनी ज्यादा विविधता विद्यमान होगी, उसकी पारिस्थितिकी तंत्र में विविधता भी उसी के अनुरूप निश्चित तौर पर ज्यादा होगी। उदाहरणार्थ- उष्णकटिबंधीय द्वीप के व्यापक क्षेत्र में व्यापक वर्षा होती है, फलस्वरूप वहां पर पारिस्थितिक तंत्र का फैलाव भी ज्यादा होता है। तट पर दलदली (मैंग्रोव ) पारितंत्र का तथा तट के निकट जलमग्न प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में जितनी ज्यादा जैव विविधता होती है, वह उतना ही ज्यादा स्थिर होता है।

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प्रश्न 6.
आनुवंशिक विविधता प्रधानतः कितने रूपों में दृष्टिगोचर हो सकती है ? उदाहरण सहित अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक विविधता दो रूपों में दृष्टिगोचर हो सकती है-

  • एक ही जाति की अलग-अलग समष्टियों में। उदाहरणार्थ- धान की विभिन्न किस्मों की उत्पत्ति ।
  • एक ही समष्टि की आनुवंशिक विभिन्नताओं के अन्तर्गत ।

उदाहरणार्थ- दो बच्चों के रंग, गुण, कद, बाल आदि कभी एक जैसे नहीं होते हैं। प्रत्येक जीवधारी के विशिष्ट गुणों हेतु उसकी कोशिका में उपस्थित विशिष्ट जीन प्रमुख तौर पर उत्तरदायी होते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस जीवधारी में जीनों की विभिन्नता जितनी ज्यादा व्यापक होगी, उसमें तथा उसकी आने वाली संतान में विशिष्ट गुणों की संख्या भी उसी के अनुरूप अधिकतम होगी। इस प्रकार जातीय विविधता में आनुवंशिक विविधता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 7.
आधुनिक काल में जैव विविधता का महत्त्व बताइये ।
उत्तर:
आधुनिक काल में जैव विविधता शब्द का प्रयोग विस्तृत हो गया है तथा इसका अनुप्रयोग जीन, जाति, समुदाय, पारिस्थितिक विविधता इत्यादि के लिए किया जाने लगा है। आनुवंशिक विविधता में उत्पत्ति पर्यावरण से जीवधारियों को अनुकूलित करने तथा जीवनयापन हेतु जरूरी है।

यदि किसी भी कारणवश जीवधारियों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो जाएं तो उनके जीनों का अभाव जैव विविधता को कम करेगा, उनके अनुकूलन में रिक्तता पैदा होगी; फलस्वरूप संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन अस्थिर हो जाएगा अर्थात् दूसरे शब्दों में पारिस्थितिक तंत्र में अस्थिरता उत्पन्न हो जाएगी।

जिन जीवों में आनुवंशिक विभिन्नता जितनी अल्प होगी, उनके विलुप्त (Extinct ) होने का खतरा उसी के अनुरूप उतना ही समग्र रूप से ज्यादा होगा क्योंकि वे ऐसी परिस्थिति में अपने आपको वातावरण के अनुसार अनुकूलित करने में सर्वथा असमर्थ रहेंगे।

प्रश्न 8.
प्रवाल भित्तियों पर टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर:
प्रवाल भित्तियाँ वृहद् आकार की चूनायुक्त संरचनाएँ हैं, जिनकी ऊपरी सतह, समुद्र की सतह के पास स्थित होती है। ये कैल्सियम कार्बोनेट की बनी होती हैं तथा ये अकशेरुकी प्राणियों के संघ सीलेनट्रेटा के वर्ग एन्थोजोआ के प्राणियों के पॉलिप द्वारा उत्पन्न होती हैं । प्रवाल भित्तियाँ, विश्व में पाए जाने वाले पारितंत्रों के अन्तर्गत सर्वाधिक उपजाऊ पारितंत्र हैं।

ये गर्म, छिछले पर्यावरण में विकसित होती हैं तथा ये जीवधारियों की काल्पनिक विविधता को समर्थन प्रदान करती हैं। इसके अलावा ये अनेक मत्स्यकी की नर्सरी (जीवशाला ) भी हैं, जिन पर कि मनुष्य खाद्य हेतु निर्भर है। हमारे देश में प्रवाल भित्तियाँ पूर्वी-पश्चिमी समुद्री तटीय क्षेत्रों में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में पायी जाती हैं। अवरोधक प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ केन्द्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में पाई जाती हैं।

प्रश्न 9.
विलुप्त जातियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस श्रेणी के अन्तर्गत ऐसी जैविक जातियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो निकट अतीत में जीवित थीं, किन्तु अब अपने वासस्थानों में नहीं हैं तथा अन्य दूसरे वासस्थानों में भी इनका अस्तित्व शेष नहीं रहा है अर्थात् ये जैवमण्डल से विलुप्त हो चुकी हैं। एक बार विलुप्त होने पर किसी जाति के विशिष्ट जीन कभी प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

मनुष्य बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थलीय जलीय तथा वायव प्राणियों का शिकार करता रहा है, जिसके फलस्वरूप अनेक जीव जातियाँ मानवीय गतिविधियों के कारण सदा-सदा के लिए जैवमण्डल से विलुप्त हो गई हैं। IUCN की लाल सूची (2004) के अनुसार पिछले 500 वर्षों में 784 जातियाँ (338 कशेरुकी, 359 अकशेरुकी तथा 87 पादप) लुप्त हो गयी हैं।

नयी विलुप्त जातियों में मॉरीशस की डोडो, अफ्रीका की क्वैगा, आस्ट्रेलिया की थाइलेसिन, रूस की स्टेलर समुद्री गाय एवं बाली, जावा तथा केस्पियन के बाघ की तीन उपजातियाँ शामिल हैं। भारत में भी भारतीय मगर, गोडावन, भारतीय सारस, हार्न बिल्स, महान भारतीय गैंडा, स्लोथ भालू व सोन कुत्ता विलुप्तप्रायः जातियाँ हैं । पूर्वी हिमालय क्षेत्र में विरल वनस्पति Sapria himaliyana पाई जाती है जो भी विलुप्तप्राय है।

प्रश्न 10.
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संसाधन संरक्षण संगठन की भूमिका को विवेचित कीजिए ।
उत्तर:
विश्व में तीव्र गति से घटती जा रही जैव विविधता की दर को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन का गठन 1948 में किया गया। इस संगठन के निर्देशानुसार उसके उत्तरजीविता आयोग ने विश्व की आशंकित जातियों को खोज करके उन्हें एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है, जिसे लाल आंकड़ों की पुस्तक कहते हैं।

इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन 1 जनवरी, 1972 को हुआ था। इस पुस्तक के अब तक कुल पाँच संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इस पुस्तक में अलग-अलग प्रकार के रंगीन पृष्ठों के माध्यम से जानकारी प्रदान की जाती है।

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प्रश्न 11.
लाल आंकड़ों की पुस्तक के बारे में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
लाल आंकड़ों की पुस्तक वह पुस्तक है जिसमें विश्व की विलुप्तप्रायः हो रही जातियाँ, जिनके बचाव का समग्र रूप से ध्यान रखना आवश्यक है, की जानकारी लाल पृष्ठों पर मुद्रित होती है। इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन 1 जनवरी, 1972 को हुआ था। लाल आंकड़ों की पुस्तक के अनुसार पूरे विश्व में लगभग 25,000 जैविक जातियाँ संकटग्रस्त हैं। इस पुस्तक के अनुसार मछलियों की 193, उभयचरों तथा सरीसृपों की 138, पक्षियों की 400 तथा स्तनधारी प्राणियों की 305 जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

प्रश्न 12.
संकटाधीन दृष्टिकोण के आधार पर आशंकित जैविक जातियों को कितनी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर- संकटाधीन दृष्टिकोण के आधार पर आशंकित जैविक जातियों को पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया है-

  1. विलुप्तप्रायः जातियाँ (Threatened Species = T) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनके सदस्यों की संख्या कम होने की आशंका
    है।
  2. संकटग्रस्त जातियाँ (Endangered Species = E) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनकी आबादी बहुत कम है एवं निकट भविष्य में इनके विलुप्त होने का खतरा है।
  3. सुमेघ जातियाँ (Vulnerable Species = V) – ऐसी जैविक जातियाँ जिनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है तथा जिनके अतिशीघ्र ही संकटग्रस्त श्रेणी में आने की संभावना है।
  4. विरल जातियाँ (Rare Species =R) – ऐसी जैविक जातियाँ जो सीमित भौगोलिक क्षेत्रों में आबाद हैं या बहुत कम जनसंख्या में होने के कारण अकेले सदस्यों के रूप में रह गई हैं। इनके और भी विरल होने का डर है तथा ऐसी स्थिति में ये सुमेघ श्रेणी में आ सकती हैं।
  5. विलुप्त जातियाँ (Extinct Species = E) – ऐसी जातियाँ जिनका निकट अतीत में अस्तित्व था लेकिन अब ये अपने वासस्थानों के साथ-साथ अन्य वासस्थानों में भी पूर्णरूपेण समाप्त हो गई हैं।

प्रश्न 13.
जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
मानव वैदिककाल से ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रकृति से कुछ न कुछ प्राप्त करता ही रहा है। परन्तु विगत कुछ वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है जिससे पर्यावरणीय संतुलन असंतुलित हो गया है, जिसके फलस्वरूप अनेक जातियाँ विलुप्त हो गई हैं तथा अनेक विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। यही स्थिति यदि भविष्य में जारी रहती है तो मनुष्य जाति का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, अतः वर्तमान में जैव विविधता के संरक्षण की ओर ध्यान केन्द्रित किया जाना परम आवश्यक है।

प्रश्न 14.
स्वस्थाने संरक्षण तथा उत्स्थाने संरक्षण में क्या मूलभूत अन्तर है?
अथवा
स्वस्थाने संरक्षण और बाह्य संरक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
‘स्वस्थाने संरक्षण’, जैव विविधता, विशिष्ट तौर पर ‘आनुवंशिक विविधता’ के संरक्षण की आदर्श विधि है। इस विधि में प्राणियों अथवा पादपों का संरक्षण मुख्यतः उनके प्राकृतिक वासस्थान में ही किया जाता है, जहाँ पर कि प्रचुर जैव विविधता का वास होता है। जबकि उत्स्थाने संरक्षण विधि के अन्तर्गत वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाकर, कृत्रिम आवास में जैसे – आनुवंशिक संसाधन केन्द्रों पर, मानव निर्मित स्थलों अथवा आवासों में संरक्षण प्रदान किया जाता है। यह जीन विविधता को संरक्षित करने का सबसे अधिक सुरक्षित तरीका है।

प्रश्न 15
जैव विविधता के विभिन्न प्रकारों का सारगर्भित शब्दों में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
जैव विविधता को जीवधारियों के पारिस्थितिकीय संबंधों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) जातीय विविधता ( Species Diversity) – एक वंश की विभिन्न जातियों के बीच उपस्थित विविधता को जाति स्तर की जैव विविधता कहते हैं तथा एक समान जातियों का समूह वंश कहलाता है। उदाहरण – सिट्श वंश। इस वंश के अन्तर्गत नींबू, संतरा, भौसमी आदि की विभिन्न जातियाँ सम्मिलित की जाती हैं। जातीय विविधता को विवेचित रूप में निम्नलिखित तीन स्तरों में परिभाषित किया जा सकता है-

  • अल्फा विविधता (Alpha Diversity) – यह किसी भी स्थान में जाति समानता एवं जाति सम्पन्नता पर निर्भर करती है।
  • बीटा विविधता (Bita Diversity) इकाई आवास में हुए परिवर्तन के कारण जाति की संख्या में होने वाले बदलाव की दर को बीटा विविधता कहते हैं।
  • गामा विविधता (Gamma Diversity) – इसे सार्वभौमिक (Universal) विविधता कहा जाता है।

(2) पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity) – जैविक समुदायों की जटिलता एवं विविधता ही पारिस्थितिक तंत्र की विविधता होती है। अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जीवन यापन करते हैं।

(3) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) एक ही जाति विशेष में मिलने वाली जीनों की विभिन्नता आनुवंशिक विविधता कहलाती है। यह दो रूपों में दृष्टिगोचर होती है-

  • एक ही जाति की अलग-अलग समष्टियों में। उदाहरण-धान की विभिन्न किस्मों की उत्पत्ति ।
  • एक ही समष्टि की आनुवंशिक विभिन्नताओं के अंतर्गत । उदाहरण- दो बच्चों के रंग, गुण, कद, बाल इत्यादि कभी भी एक जैसे नहीं होते हैं।

प्रश्न 16.
सन् 1992 एवं 2002 में हुए चिन्तन के विषय में लिखिये ।
उत्तर:
जैव विविधता के लिए कोई राजनैतिक परिसीमा नहीं है। इसलिए इसका संरक्षण सभी राष्ट्रों का सामूहिक उत्तरदायित्व है। वर्ष 1992 में ब्राजील के रियोडिजिनरियो में हुई ‘जैवविविधता’ पर ऐतिहासिक सम्मेलन (पृथ्वी) में सभी राष्ट्रों का आवाहन किया गया कि वे जैव विविधता संरक्षण के लिए उचित उपाय करें, उनसे मिलने वाले लाभों का इस प्रकार उपयोग करें कि वे लाभ दीर्घकाल तक मिलते रहें । इसी क्रम में सन् 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सतत विश्वशिखर- सम्मेलन हुआ, जिसमें विश्व के 190 देशों ने शपथ ली कि वे सन् 2010 तक जैवविविधता की जारी क्षति दर में वैश्विक, प्रादेशिक व स्थानीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण कमी लायेंगे।

प्रश्न 17.
जैव विविधता के तप्त स्थल (Hot Spot of Biodiversity) पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में जैव विविधता समान रूप से वितरित नहीं होती। विश्व के कुछ निश्चित क्षेत्र, महाविविधता (Megadiversity) वाले होते हैं। हाल के उष्णकटिबंधीय वनों ने अपनी अधिक जैव विविधता आवासों के द्रुत विनाश के कारण सम्पूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। पृथ्वी के मात्र 7 प्रतिशत भू-भाग में फैले इन वनों में विश्व के कुल जीवों की 70 प्रतिशत से अधिक जातियाँ हैं।

ब्रिटेन के पारिस्थितिक विज्ञानी नार्मन मायर्स ने 1988 में स्वस्थाने संरक्षण हेतु क्षेत्रों की प्राथमिकता नामित करने हेतु तप्त स्थल (Hot Spot) की संकल्पना विकसित की। विश्वभर में जैव विविधता के संरक्षण हेतु स्थलीय तप्त स्थलों की पहचान की गई। अब तक पृथ्वी के 1.4 प्रतिशत भू-क्षेत्र को ये तप्त स्थल घेरे हुए हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

इनमें से उष्ण कटिबंधी वन 15 तप्त स्थलों में, भूमध्य सागरीय प्रकार के क्षेत्र 5 क्षेत्रों में और 9 तप्त स्थल द्वीपों में हैं। विश्व के इन 25 तप्त स्थलों में से दो (पश्चिमी घाट एवं पूर्वी हिमालय) भारत में पाये जाते हैं। अब इस सूची में 9 तप्त स्थल और सम्मिलित किये गये हैं, अतः संसार में अब कुल 34 जैव विविधता के हॉट स्पॉट हैं। ये हॉट स्पॉट त्वरित आवासीय क्षति के क्षेत्र भी हैं। इसमें से 3 हॉट स्पॉट पश्चिमी घाट और श्रीलंका, इंडो- बर्मा व हिमालय हैं जो हमारे देश की उच्च जैवविविधता को दर्शाते हैं।

प्रश्न 18.
यदि पृथ्वी पर 20 हजार चींटी जातियों के स्थान पर केवल 10 हजार चींटी जातियाँ ही रहें, तब हमारा जीवन किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर:
चींटियां सर्वाहारी (Omnivorous) प्राणी होती हैं। चींटियाँ खाद्य पदार्थ, मृत जीव-जन्तुओं आदि का भक्षण कर सफाईकर्मी की तरह कार्य करती हैं। यदि चींटियों की जातियाँ 20000 से 10000 रह जायेंगी तो उन पदार्थों की मात्रा अधिक हो जायेगी जो वे खाती हैं। साथ ही चींटियों को खाने वाले प्राणी भूखे रह जायेंगे, चूँकि उनको पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिलेगा और वे मृत्यु को प्राप्त होंगे। अर्थात् खाद्य श्रृंखला में बाधा उत्पन्न हो जायेगी। पारितन्त्र असंतुलित हो जायेगा जिससे हमारा जीवन प्रभावित होगा।

प्रश्न 19.
यदि उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का विस्तार पृथ्वी के वर्तमान के 6% क्षेत्र के स्थान पर 12% कर दिया जाये तो जैव विविधता किस प्रकार प्रभावित होगी? सकारण समझाइए ।
उत्तर:
जब वर्षा वनों का पृथ्वी पर विस्तार होगा तो इससे जैव- विविधता में बढ़ोतरी होगी। वर्षा वनों में करोड़ों जातियाँ निवास करती हैं। जीव-जन्तुओं को अच्छा आश्रय व भोजन प्राप्त होगा तथा पर्याप्त सुरक्षा रहेगी। स्तनधारियों व पक्षियों की संख्या तथा समस्त प्रकार के जंगली जीवों की संख्या बढ़ेगी।

प्रश्न 20.
” जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर मानव क्रियाकलापों के कारण है।” कथन को कारण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
मानव ने अपनी आवश्यकता के लिये जन्तु व पौधों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट किया है। बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया है। मानव भोजन तथा आवास के लिये प्रकृति पर निर्भर रहा है। उसने प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन किया है। उसने खाने के लिये जीव-जन्तुओं का अधिक शिकार किया है। अतः मानव क्रियाकलापों के कारण ही अनेक जातियों का विलोपन हुआ है।

प्रश्न 21.
जैवविविधता की क्षति के कोई दो कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
वर्तमान में जातीय विलोपन की दर बढ़ती जा रही है। यह विलोपन मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। जाति क्षति के मुख्य दो कारण निम्न प्रकार से हैं-
(1) आवास विनाश (Habitat Destruction) – यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षावनों में होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा- वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे, परन्तु अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं। ये अधिक तेजी से नष्ट होते जा रहे हैं।

विशाल अमेजन वर्षा – वन (जिसे विशाल होने के कारण ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है) उसमें सम्भवत: करोड़ों जातियाँ निवास करती हैं। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिये काटकर साफ कर दिया गया है। अनेक घटनाओं में आवास विनाश करने वाले कारक बड़ी औद्योगिक और व्यावसायिक क्रियाएँ, भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था जैसे खनन (Mining), पशु रैंचन (Cattle Ranching), व्यावसायिक मत्स्यन (Commercial Fishing), वानिकी (Forestry), रोपण (Plantation), कृषि, निर्माण कार्य व बाँध निर्माण, जो लाभ के उद्देश्य से शुरू हुए हैं। आवास की बड़ी मात्रा प्रतिवर्ष लुप्त हो रही है क्योंकि विश्व के वन कट रहे हैं। वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय शुष्क वन, आर्द्रभूमियाँ (Wetlands), मैन्यूव (Mangrooves) और घास भूमियाँ ऐसे आवास हैं जिनका विलोपन हो रहा है और इनमें मरुस्थलीकरण हो रहा है।

(2) आवास खण्डन (Habitat Fragmentation) – आवास जो पूर्व में बड़े क्षेत्र घेरते थे ये प्रायः सड़कों, खेतों, कस्बों, नालों, पावर लाइन आदि द्वारा अब खंडों में विभाजित हो गए हैं। आवास खंडन वह प्रक्रम है जहाँ आवास के बड़े, सतत क्षेत्र, क्षेत्रफल में कम हो गए हैं और दो या अधिक खंडों में विभाजित हो गए हैं।

जब आवास क्षतिग्रस्त होते हैं वहाँ प्रायः आवास खंड छोटा भाग (Patch Work) शेष रह जाता है। ये खंड प्रायः एक-दूसरे से अधिक रूपांतरित या निम्नीकृत दृश्य भूमि (Degraded Landscape) द्वारा विलग होते हैं। आवास खंडन स्पीशीज के सामर्थ्य को परिक्षेपण (Dispersal) और उपनिवेशन (Colonisation) के लिए सीमित करता है।

प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन हुआ है, जिससे अनेक जातियों के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए, वे प्रभावित हो रहे हैं तथा प्रवासी (Migratory) स्वभाव वाले कुछ प्राणी भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (Population) में कमी होती है।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैव विविधता के विभिन्न स्तरों को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर:
प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव होते हैं। इन जीवों में आपसी एक जटिल पारिस्थितिक संबंध होता है, जातियों में आनुवंशिक विविधता होती है व पारिस्थितिक प्रणालियों में भी विविधता मिलती है। जैव विविधता के संरक्षण की विधियों को विकसित करने से पूर्व हमें जैव विविधता की धारणा को समझना अतिआवश्यक है। जैविक विविधता के तीन स्तर होते हैं जैव विविधता के ये तीनों स्तर आपस में सम्बन्धित हैं, फिर भी ये इतने अस्पष्ट हैं। पृथ्वी पर जीवन यापन करते हुए इनके आपसी सम्बन्धों को समझने के लिए इन सबका अलग से अध्ययन करना जरूरी है।

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(1) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) – हम जानते हैं कि प्रत्येक जाति, जीवाणु से लेकर उच्च श्रेणी पादपों में प्रचुर मात्रा के अन्दर आनुवंशिक सूचनाएँ भरी होती हैं। उदाहणार्थ माइकोप्लाज्मा में 450-700 जीन संख्या, ई. कोलाई में 4000, ड्रोसोफिला में 13000, चावल में 32000-50000 व मानव में 35000 से 45000 तक जीन होती हैं।

आनुवंशिक विविधता जाति में जीनों की विभिन्नता को दर्शाती है। यह भिन्नता एलील (Allcles एक ही जीन के भिन्न प्ररूप) की या गुणसूत्रों की संरचना की हो सकती है। आनुवंशिक विविधता किसी समष्टि को इसके पर्यावरण के अनुकूल होने और प्राकृतिक चयन के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है।

आनुवंशिक विविधता जाति में जीनों की विभिन्नता को दर्शाती है । यह भिन्नता एलील (Alleles = एक ही जीन के भिन्न प्ररूप) की या गुणसूत्रों की संरचना की हो सकती है। आनुवंशिक विविधता किसी समष्टि को इसके पर्यावरण के अनुकूल होने और प्राकृतिक चयन के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है ।

आनुवंशिक भिन्नता की माप जाति उद्भवन (Speciation) अर्थात् नवीन जाति के विकास का आधार है। उच्च स्तर पर विविधता बनाए रखने में इसकी प्रमुख भूमिका है। किसी समुदाय की आनुवंशिक विविधता मात्र कुछ जातियां होने की तुलना में अधिक जातियाँ होने पर अधिक होगी। जाति में पर्यावरणीय भिन्नता के साथ आनुवंशिक विविधता प्रायः बढ़ जाती है, इससे विविधता समुदायों में जातियों की भिन्नता के साथ बढ़ती है। एक जाति या इसकी एक समष्टि में कुल आनुवंशिक विविधता को जीन कोश (Gene Pool) कहते हैं। यदि किसी जाति में आनुवंशिक

विविधता अधिक है तो यह बदली हुई पर्यावरणीय दशाओं में अपेक्षाकृत सभी प्रकार से अनुकूलन कर सकती है। किसी जाति में अपेक्षाकृत कम विविधता से एकरूपता उत्पन्न होती है। जैसा कि आनुवंशिक रूप से समान फसली पौधों के एकधान्य कृषि की स्थिति में होता है। इसका लाभ तब है, जब फसल उत्पादन में वृद्धि का विचार हो । लेकिन यह एक समस्या बन जाती है। जब कीट अथवा फफूंदी रोग खेत को संक्रमित करता है और इसकी सभी फसल को संकट उत्पन्न करता है।

(2) जाति विविधता (Species Diversity) – जातियाँ विविधता की स्पष्ट इकाई हैं, प्रत्येक की एक विशिष्ट भूमिका होती है। अतः जातियों का ह्रास संपूर्ण पारितंत्र के लिए होता है। जाति विविधता का आशय एक क्षेत्र में जातियों की किस्म से होता है। जातियों की संख्या में परिवर्तन पारितंत्र के स्वास्थ्य का एक अच्छा सूचक हो सकता है। किसी स्थान या समुदाय विशेष में जातियों की संख्या स्थान के क्षेत्रफल के साथ बहुत बढ़ती है।

सामान्यतः जातियों की संख्या अधिक होने पर जाति विविधता भी अधिक होती है। फिर भी, जातियों के मध्य प्रत्येक की संख्या में भिन्नता हो सकती है, जिसके कारण समरूपता (Evenness) या समतुल्यता (Equitability) में अंतर होता है। कल्पना कीजिए कि हमारे पास तीन क्षेत्र हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपने अनुसार विविधता है। प्रारूप क्षेत्र एक में पक्षियों की तीन जातियाँ हैं। दो जातियों का प्रतिनिधित्व प्रत्येक के एक पृथक् जन्तु द्वारा है, जबकि तीसरी जाति के चार अलग हैं।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण 1

दूसरे प्रारूप क्षेत्र में भी ये ही तीन जातियाँ हैं, प्रत्येक जाति का प्रतिनिधित्व प्रत्येक के एक पृथक् जंतु करते हैं । यह प्रारूप क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक सम या एकरूपता प्रदर्शित करता है। इस प्रारूप क्षेत्र को पहले की तुलना में अधिक विविध माना जाएगा। तीसरे प्रारूप क्षेत्र में जातियों का प्रतिनिधित्व एक कीट, एक स्तनधारी एवं एक पक्षी द्वारा किया जा रहा है। यह प्रारूप क्षेत्र सबसे अधिक विविध है। क्योंकि इसमें वर्गों की दृष्टि से असंबंधित जातियाँ हैं। इस उदाहरण में जातियों की प्रकृति में, जातियों की संख्या एवं प्रति जाति व्यक्ति की संख्या दोनों भिन्न होती हैं जिसमें परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत अधिक विविधता होती है।

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(3) समुदाय एवं पारितंत्र विविधता (Community and Ecosystem Diversity) – एक समुदाय की जैविक अधिकता इसकी जाति विविधता द्वारा बताई जाती है। जाति अधिकता एवं समरूपता के संयोग का उपयोग समुदाय आवास में विविधता या अल्फा विविधता को समान हिस्सों में करने वाले जीवों की विविधता से है।

जब आवास या समुदाय में परिवर्तन होता है तो जातियाँ भी बहुधा परिवर्तित हो जाती हैं। आवासों या समुदायों के एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापित होने की दर बीटा विविधता (समुदाय विविधता के बीच) कहलाती है। समुदायों के जाति संघटन में पर्यावरणीय अनुपात के साथ अंतर होते हैं, उदाहरणार्थ – अक्षांश, ढाल, आर्द्रता आदि। किसी क्षेत्र में आवासों में विषमांगता अधिक होने या समुदायों के आवासों या भौगोलिक क्षेत्र की विविधता को गामा विविधता कहते हैं।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण 2

पारितंत्र की विविधता निकेतों (Niche), पोषज स्तरों एवं विभिन्न पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की संख्या बताती है जो ऊर्जा प्रवाह, आहार जाल. एवं पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण को संभालते हैं। इसका केन्द्र विभिन्न जीवीय पारस्परिक क्रियाओं तथा कुंजीशिला जातियों (Keystone Species) की भूमिका एवं अर्थ पर होता है । शीतोष्ण घासस्थलों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि विविध समुदाय, पर्यावरणीय तनाव जैसी दीर्घ स्थितियों में भी कार्य की दृष्टि से अधिक उत्पादक एवं स्थिर होते हैं।

जैसाकि हम जानते हैं कि एक क्षेत्र में कई आवास या पारिस्थितिक तंत्र हो सकते हैं। सवाना, वर्षा जल, मरुस्थल, गीले एवं नम भूमि और महासागर बड़े पारितंत्र हैं जहाँ जातियाँ निवास करती हैं और विकास करती हैं। एक क्षेत्र में उपस्थित आवासों व पारितंत्रों की संख्या भी जैव विविधता का एक भाग है। भारतीय जैव विविधता की स्थानिकता बहुत अधिक है, हमारे देश में मुख्यत: उत्तर-पूर्व, पश्चिमी घाट, उत्तर-पश्चिम हिमालय एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूहों में स्थानिक है।

अत्यधिक संख्या में उभयचर जातियाँ पश्चिमी घाट में स्थानिक हैं। भारत में अनेक पारितंत्रों की जैविक विविधता अभी भी अल्प आवेशित है। इन पारितंत्रों के गहरे महासागर, नमभूमि एवं झीलें तथा उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के वृक्ष एवं मृदा सम्मिलित हैं। अनुमानित कशेरुकी जन्तुओं का 33 प्रतिशत मृदुल मछली, 60 प्रतिशत उभयचरी, 36 प्रतिशत सरीसृप एवं 10 प्रतिशत स्तनधारी जन्तु स्थानिक हैं। इनमें से अधिकतर उत्तर-पूर्व, पश्चिमी घाट, उत्तर-पश्चिम हिमालय एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूहों में पाए गए हैं।

प्रश्न 2.
जातियों के विलोपन का इसकी सुग्रहिता एवं IUCN की लाल सूची के अनुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विलोपन एक प्राकृतिक प्रकिया है। पृथ्वी के दीर्घ भौगोलिक इतिहास में अनेक जातियाँ विलुप्त व अनेक नई जातियाँ विकसित हुई हैं। विलोपन प्रक्रिया तीन प्रकार से होती है-
(1) प्राकृतिक विलोपन (Natural Extinction) – पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन के साथ कुछ जातियाँ अदृश्य हो जाती हैं व अन्य, जो परिवर्तित हुई दशाओं हेतु अधिक अनुकूलित होती हैं, वे उनका स्थान ले लेती हैं। जातियों का इस प्रकार का विलोपन जो भूगर्भी अतीत में अत्यधिक धीमी दर से हुआ, इसे प्राकृतिक विलोपन कहते हैं।

(2) समूह विलोपन (Mass Extinction) – पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास में ऐसे अनेक समय आये हैं, जब जातियों की एक बड़ी संख्या प्राकृतिक विपदाओं के कारण विलुप्त हो गई । यद्यपि समूह विलोपन की घटनाएँ करोड़ों वर्षों में होती हैं।

(3) मानवोद्भवी विलोपन (Anthropogenic Extinction) – मानव क्रियाकलापों द्वारा पृथ्वी की सतह से अधिक जातियाँ विलोपित हो रही हैं। ऊपर दी गई प्रक्रियाओं की तुलना में मानवोद्भवी प्रक्रियाएँ अधिक खतरनाक हैं। यह विलोपन अल्प समय में ही हो रहा है। विश्व संरक्षण मॉनीटरिंग केन्द्र के अनुसार 533 जन्तु जातियों (अधिकांश कशेरुक) एवं 384 पादप जातियों (अधिकांश पुष्पी पादप) का पिछले 400 वर्षों में विलोपन हुआ है। द्वीप समूहों पर विलोपन दर अधिक है। पूर्व विलोपन की दर की तुलना में विलोपन की वर्तमान दर 1,000 से 10,000 गुना अधिक है। उष्णकटिबंध में और संपूर्ण पृथ्वी पर जातियों के वर्तमान ह्रास के बारे में कुछ रोचक तथ्य निम्न प्रकार से हैं-

  • उष्णकटिबंधीय वनों में दस उच्च विविधता वाले स्थानों से भविष्य में लगभग 17,000 स्थानिक विशेष क्षेत्रीय पादप जातियाँ एवं 3,50,000 स्थानिक जन्तु जातियों का ह्रास हो सकता है।
  • उष्णकटिबंधीय वनों से 14,000 40,000 जातियाँ प्रतिवर्ष की दर से अदृश्य हो रही हैं।
  • यदि विलोपन की वर्तमान दर चलती रहे तो आगामी 100 वर्षो में पृथ्वी से 50 प्रतिशत जातियाँ कम हो सकती हैं।

विलोपन के प्रति सुग्रहिता (Susceptibility to Extinction)-
विलोपन के प्रति विशेषतः सुग्रह जातियों के लक्षण निम्न प्रकार से होते हैं-

  • विशालकाय शरीर रचना जैसे-बंगाल बाघ, सिंह एवं हाथी ।
  • छोटा समष्टि आमाप एवं कम प्रजनन दर जैसे- नीली व्हेल एवं विशाल पांडा ।
  • खाद्य कड़ी में उच्च पोषण स्तर पर भोजन, जैसे- बंगाल बाघ एवं गंजी चील (Eagle)।
  • निश्चित प्रवास मार्ग (Migratory Route) व आवास, जैसे- नीली व्हेल एवं हूपिंग सारस (Crane) ।
  • सानिगत (Localised) एवं संकीर्ण परिसर वितरण (Narrow Range of Distribution), जैसे- वुडलैंड केरिबा (Caribou) एवं अनेक द्वीपीय जातियाँ ।

आई.यू.सी.एन. की लाल सूची (I.U.C.N. Red List) – लाल सूची ऐसी जातियों की सूची है जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। इस सूची से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  • सकंटग्रस्त जैव विविधता के महत्त्व के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना ।
  • संकटापन्न प्रजातियों की पहचान करना व उनका अभिलेखन करना ।
  • जैव विविधता के ह्रास की लिखित सूची तैयार करना ।
  • स्थानीय स्तर पर संरक्षण की प्राथमिकताओं को परिभाषित करना तथा संरक्षण कार्यों को निर्देशित करना ।

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आई.यू.सी.एन. जिसे अब विश्व संरक्षण संघ के नाम से जाना जाता है, की लाल सूची के अनुसार जातियों की आठ श्रेणियाँ हैं- विलुप्त, वन्य रूप में विलुप्त, गंभीर रूप से संकटापन्न, नष्ट होने योग्य, नाजुक, कम जोखिम, अपूर्ण आंकड़े एवं मूल्यांकित नहीं विलोपन के लिए संकटग्रस्त जातियों की श्रेणियों में सुभेद्य संकटान्नुपादन एवं गंभीर रूप से संकटग्रस्त सम्मिलित हैं।

सारणी : आई.यू.सी.एन. की संकटग्रस्त श्रेणियाँ

विलुप्त (Extinct)जाति के अंतिम सदस्य की समाप्ति (मृत्यु) पर जब कोई शंका न रहे।
वन्यरूप में विलुप्त (Extinct in the wild)जाति के सभी सदस्यों का किसी निश्चित आवास से पूर्ण रूप से समाप्ति।
गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically endangered)जब जाति के सभी सदस्य किसी उच्च जोखिम की वजह से एक आवास में शीघ्र ही लुप्त होने के कगार पर।
नष्ट होने योग्य (Endangered)जाति के सदस्य किसी जोखिम की वजह से भविष्य में लुप्त होने के कगार पर।
नाजुक (Vulnerable)जाति के आने वाले समय में समाप्त होने की आशा।
कम जोखिम (Lower risk)जाति जो समाप्त होने जैसी प्रतीत होती हो।
अपूर्ण सामग्री (Deficient data)जाति लुप्त होने के बारे में अपूर्ण अध्ययन एवं सामग्री।
मूल्यांकित नहीं (Not evaluated)जाति एवं उसके लुप्त होने के बारे में कोई भी अध्ययन या सामग्री न होना।

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वर्ग जिनकी विश्व में समष्टि कम है और जो वर्तमान में संकटापन्न या संकटग्रस्त नहीं हैं लेकिन उनके ऐसा होने का खतरा विरल कहलाता है। ये स्पीशीज सामान्यतः सीमित भौगोलिक क्षेत्रों या आवासों में स्थापित होती हैं या एक अधिक विस्तृत विस्तार में यहाँ-वहाँ बिखरी होती हैं। आई.यू.सी.एन. की लाल सूची प्रणाली 1963 में शुरू की गई थी तब से सभी जातियों एवं प्रजातियों का संरक्षण स्तर विश्व स्तर पर जारी है।

संकटग्रस्त जातियों का स्थान-वर्ष 2000 की लाल सूची में 11,096 जातियाँ (5485 जंतु एवं 5611 पादप) संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उनमें से 1939 क्रांतिक संकटग्रस्त (925 जंतु एवं 1014 पादप) के रूप में सूचीबद्ध हैं। लाल सूची अनुसार, भारत में 44 पादप जातियाँ क्रांतिक संकटापन्न हैं, 113 संकटापन्न एवं 87 सुमेघ (Vulnerable) अर्थात् नाजुक हैं। जन्तुओं में 18 क्रांतिक संकटापन्न एवं 143 नाजुक हैं।

श्रेणीपादपजन्तु
1. क्रांतिक संकटापन्न (Critical endangered)बारबेरिस निलघिरेंसिस (Barberis nilghiriensis)पिग्मी हाग (Sus salvanius)
2. संकटग्रस्त (Endangered)बेंटिंकिया निकोबारिका (Bentinckia nicobarica)लाल पांडा (Ailurus fulgeus)
3. नाजुक (Vulnerable)क्यूप्रेसस कासमेरीआना (Cupressus cashmeriana)कृष्ण मृग (Antilope cervicapre)

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प्रश्न 3.
जैव विविधता के संरक्षण के उपायों पर विस्तृत लेख लिखिये ।
उत्तर:
हम जानते हैं कि प्रदूषण, आक्रमणकारी जातियाँ, मानव द्वारा अधिशोषण एवं जलवायु परिवर्तन के कारण पारितंत्रों में बदलाव हो रहा है। प्रायः अब सभी व्यक्ति यह भी जानने लगे हैं कि जीन कोश, जाति एवं जैव समुदाय सभी स्तरों पर विविधता महत्त्वपूर्ण है, जिसका संरक्षण आवश्यक है। इस ग्रह पर मानव ही इसका प्रबंधन व संरक्षण करने वाला है।

अतः यह नैतिक कर्तव्य है कि हमारे पारितंत्र को सुव्यवस्थित व जाति विविधता को संरक्षित करें जिससे आने वाली पीढ़ी को आर्थिक व सौंदर्य लाभ मिल सके। हमें आवासों के विनाश एवं निम्नीकरण को रोकना होगा। जैव विविधता संरक्षण के लिए स्वस्थाने (In-Situ) व परस्थाने या बाह्यस्थाने (Ex-situ) दोनों विधियाँ जरूरी हैं।

स्व-स्थाने संरक्षण (In-situ Conservation) – इस विधि में जीवों का संरक्षण मुख्यतः उनके प्राकृतिक वासस्थान में ही किया जाता है। जहाँ प्रचुर जैव विविधता का वास होता है। संरक्षण की दृष्टि से इन वासस्थानों को सुरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया जाता है। जैसे प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण, जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र आदि।

रक्षित क्षेत्र (Protected Areas) – ये स्थल एवं समुद्र के ऐसे क्षेत्र हैं जो जैविक विविधता की तथा प्राकृतिक एवं संबद्ध सांस्कृतिक स्रोतों की सुरक्षा एवं निर्वहन के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं और जिनका प्रबंधन कानूनी या अन्य प्रभावी माध्यमों से किया जाता है। सुरक्षित क्षेत्रों में उदाहरण राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीवाश्रम स्थल (Sanctuaries) हैं।

सबसे पहले राष्ट्रीय उद्यान अमेरिका में यैलोस्टोन एवं सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) के समीप रॉयल हैं जिन्हें इनके दृश्य सौन्दर्य एवं मनोरंजन मूल्य के लिए चुना गया। भारत में 581 रक्षित क्षेत्र (89 उद्यान एवं 492 वन्य आश्रय स्थल) हैं। उत्तराखण्ड स्थित जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत में स्थापित प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है।

सुरक्षित क्षेत्रों के कुछ मुख्य लाभ हैं-

  • सभी मूल निवासी जातियों एवं उपजातियों की जीवन क्षय समष्टियों को संभालना।
  • समुदायों एवं आवासों की संख्या एवं वितरण को संभालना एवं सभी वर्तमान जातियों की आनुवंशिक विविधता को रक्षित रखना।
  • विदेशी जातियों की मानव जनित पुनःस्थापना को रोकना।

जैवमण्डल निचय (Biosphere Reserves) – मानव एवं जैव मण्डल (Man and Biosphere) कार्यक्रम के अन्तर्गत जैव मण्डल रिजर्व की संकल्पना यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 1975 में प्रारम्भ की गई। जैविक विविधता के संरक्षण के आर्टिकल 08 के अनुसार स्वस्थाने संरक्षण के माध्यम से इस प्रकार के सुरक्षित क्षेत्र अनिवार्यतः बनाये जाने चाहिए, जहाँ पर कि उनमें उपस्थित प्रत्येक प्रकार की जैव सम्पदा जैव

विविधता पूर्णतः सुरक्षित रूप में, भयमुक्त जीवनयापन कर सके। इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय उद्यानों व वन्यजीव अभयारण्यों की नींव रखी गई। आरक्षित जैवमंडल क्षेत्रों में विभिन्न अनुक्षेत्रों का सीमांकन करके, उनमें कई प्रकार के भूमि उपयोग की अनुमति दी जाती है।

इस आरक्षित भाग में मुख्यतः तीन अनुक्षेत्र बनाये जाते हैं-

  • कोर अनुक्षेत्र (Core Zone) – इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मानव क्रियाओं की अनुमति नहीं दी जाती है,
  • बफर अनुक्षेत्र (Buffer Zone)-इसमें सीमित मानव क्रिया की अनुमति दे दी जाती है तथा
  • कुशल योजना अनुक्षेत्र (Manipulation Zone) – इसमें पारितंत्र हेतु लाभकारी अनेक मानव क्रियाओं हेतु अनुमति दे दी जाती है।

ऐसे आरक्षित जैवमंडलीय भागों में वन्य आबादी, उस क्षेत्र की मूल मानव जातियाँ और विभिन्न घरेलू पशु व पादप एक साथ रहते हैं। मई, 2000 तक 94 देशों में 408 जैवमंडल रिजर्व थे। भारत में 13 जैवमंडल निचय हैं।

जैवमंडल निचय के निम्न मुख्य कार्य हैं-

  • संरक्षण – पारितंत्रों, जातियों एवं आनुवंशिक स्रोतों के संरक्षण को सुनिश्चित करना। यह संसाधनों के पारंपरिक उपयोग को भी प्रोत्साहित करता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण 4

  • विकास आर्थिक विकास जो सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिस्थितिकीय दृष्टि से निर्वहनीय हो, का उन्नयन करना ।
  • वैज्ञानिक शोधक मॉनीटरिंग एवं शिक्षा – इसका उद्देश्य शोध, बोधन शिक्षा एवं संरक्षण तथा विकास के स्थानीय राष्ट्रीय एवं वैश्विक मुद्दों से संबंधित सूचना का आदान-प्रदान है।

पवित्र झीलें व वन (Sacred Lakes and Forests) – भारत तथा कुछ अन्य एशियाई देशों में जैव विविधता के संरक्षण की सुरक्षा के लिए एक पारंपरिक नीति अपनाई जाती रही है। ये विभिन्न आमापों के वन खंड हैं जो जनजातीय समुदायों द्वारा धार्मिक पवित्रता प्रदान किए जाने से सुरक्षित हैं। पवित्र वन सबसे अधिक निर्विघ्न वन हैं जहाँ मानव का कोई प्रभाव नहीं है।

ये द्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं और सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्त हैं। यद्यपि ये बहुधा अत्यधिक निम्नीकृत भू- दृश्य द्वारा घिरे होते हैं। भारत में पवित्र वन कई भागों में स्थित हैं, उदाहरणार्थ- कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, मेघालय आदि और कई भाग दुर्लभ, संकटापन्न एवं स्थानिक वर्गकों की शरणस्थली के रूप में कार्यरत हैं। इसी प्रकार सिक्किम की केचियोपालरी झील पवित्र मानी जाती है। एवं उसका संरक्षण जनता द्वारा किया जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

पर-स्थाने संरक्षण (Ex-situ Conservation) – इसमें वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, संरक्षण स्थल एवं जीन, परागकण, बीज, पौधे ऊतक संवर्धन एवं डी. एन. ए. बैंक सम्मिलित हैं। बीज, जीन बैंक, वन्य एवं खेतीय पौधों के जर्मप्लाज्म को कम तापमान तथा शीत प्रकोष्ठों में संग्रहित करने का सरलतम उपाय हैं। आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण सामान्य वृद्धि दशाओं में क्षेत्रीय जीन बैंकों में किया जाता है।

अलैंगिक प्रजनन से उत्पन्न की गई जातियाँ एवं वृक्षों के लिए क्षेत्रीय जीन बैंक विशेष रूप से प्रयोग किए जाते हैं। प्रयोगशाला में संरक्षण, विशेष रूप से द्रवीय नाइट्रोजन में 196°C तापमान पर हिमांकमितीय संरक्षण (Cryopreservation) कायिक जनन द्वारा उगाई गई फसलों, जैसे आलू के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।

हिमांकमितीय संरक्षण पदार्थ का अत्यंत कम तापमान पर या तो अति तीव्र शीतीकरण (बीजों के संग्रह के लिए प्रयुक्त) या शनै: शनैः शीतीकरण एवं साथ ही कम तापमान पर शुष्कन (ऊतक संवर्धन में प्रयुक्त) है। अनेक अलिंगी प्रजनित फसलों जैसे आलू, केसावा, शकरकंद, गन्ना, वनीला एवं केला के प्रयोगशालाओं में जर्मप्लाज्म बैंक हैं। इनकी सामग्री को कम निर्वहन शीतकरण इकाइयों में लम्बे समय के लिए संग्रहित रखा जा सकता है।

जैविक विविधता का वानस्पतिक उद्यानों में संरक्षण पहले से प्रचलन में है। विश्व में 1500 से अधिक वानस्पतिक उद्यान एवं वृक्ष उद्यान (Arboreta) हैं, जिनमें 80,000 से अधिक जातियाँ हैं। इनमें से अनेक में अब बीज बैंक, ऊतक संवर्धन सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसी प्रकार पूरे विश्व में 800 से अधिक व्यावसायिक रूप से प्रबंधित चिड़ियाघर हैं जिनमें स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं उभयचरों की लगभग 3000 जातियाँ उपलब्ध हैं।

इनमें से अधिकांश चिडियाघर में अति संरक्षित प्रजनन सुविधाएं हैं। शस्यपादपों के संबंधित वनीय पादप के संरक्षण और शस्य उपजातियों तथा सूक्ष्मजीवों के संवर्धन, प्रजनन विज्ञानी एवं आनुवंशिक इंजीनियरों को आनुवंशिक पदार्थ का त्वरित स्रोत प्रदान करते हैं । स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों एवं उभयचरों की 3,000 से अधिक जातियाँ हैं।

इनमें से अनेक के लिए चिड़ियाघरों में सुविकसित प्रजनन कार्यक्रम हैं। फसली पौधों के वन्य संबंधियों के संरक्षण एवं फसल की किस्मों या सूक्ष्मजीवों के संवर्धन का संरक्षण प्रजनकों एवं आनुवंशिक इंजीनियरों को आनुवंशिक पदार्थ का एक सहज प्राप्य स्रोत प्रदान करता है। वानस्पतिक उद्यानों, वृक्षोद्यानों एवं चिड़ियाघरों में संरक्षित पादपों एवं जंतुओं का उपयोग निम्नीकृत भू-भाग को सुधारने, पूर्व स्थिति में लाने, जाति को वन्य अवस्था में पुनः स्थापित करने एवं कम हो गई समष्टियों को पुनः संचित करने में किया जा सकता है।

जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। जैसे IBP (International Biological Programme), MAB (Man and Biosphere) आदि। इन कार्यक्रमों के लिये आर्थिक सहायता विश्व वन्य जीव कोष (World Wild Life Fund = WWF) द्वारा प्रदत्त की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. विश्व के निम्नलिखित में से कौनसा क्षेत्र अधिकतम जाति विविधता दर्शाता है- (NEET-2020)
(अ) मेडागास्कूर
(ब) हिमालय
(स) एमेजॉन के जंगल
(द) भारत का पश्चिमी घाट
उत्तर:
(स) एमेजॉन के जंगल

2. रॉबर्ट मेए के अनुसार विश्व में जाति विविधता लगभग कितनी है? (NEET-2020)
(अ) 20 मिलियन
(ब) 50 मिलियन
(स) 7 मिलियन
(द) 15 मिलियन
उत्तर:
(स) 7 मिलियन

3. पादपों और जन्तुओं को विलोपन के कगार पर लाने के लिए निम्नलिखित में से कौनसा सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है? (KCET-2009, NEET I-2016, 2019)
(अ) विदेशी जातियों का आक्रमण
(ब) आवासीय क्षति व विखण्डन
(स) सूखा और बाढ़
(द) आर्थिक दोहन
उत्तर:
(ब) आवासीय क्षति व विखण्डन

4. निम्नलिखित में से कौन एक जैव विविधता के स्वस्थाने संरक्षण की विधि नहीं है- (NEET-2019)
(अ) पवित्र वन
(ब) जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र
(स) वन्यजीव अभ्यारण्य
(द) वानस्पतिक उद्यान
उत्तर:
(द) वानस्पतिक उद्यान

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण

5. निम्नलिखित में से कौनसा ‘बाह्यस्थाने संरक्षण’ में नहीं आता? (NEET-2018)
(अ) वानस्पतिक उद्यान
(ब) पवित्र उपवन
(स) वन्य जीव सफारी पार्क
(द) बीज बैंक
उत्तर:
(ब) पवित्र उपवन

6. एलैक्जैंडर वॉन हमबोल्ट ने सर्वप्रथम क्या वर्णित किया? (NEET-2017)
(अ) पारिस्थितिक जैव विविधता
(ब) सीमाकारी कारकों के नियम
(स) जाति क्षेत्र संबंध
(द) समष्टि वृद्धि समीकरण
उत्तर:
(स) जाति क्षेत्र संबंध

7. जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र का वह भाग, जो कानूनी रूप से सुरक्षित है और जहाँ मानव की किसी भी गतिविधि की आज्ञा नहीं होती, वह क्या कहलाता है- (NEET-2017)
(अ) क्रोड क्षेत्र
(ब) बफर क्षेत्र
(स) पारगमन क्षेत्र
(द) पुनः स्थापना क्षेत्र
उत्तर:
(अ) क्रोड क्षेत्र

8. लाल सूची किसके आंकड़े या सूचना उपलब्ध कराती है? (Kerala CET-2006, BHU-2008, NEET-2016)
(अ) संकटापन्न जातियाँ
(ब) केवल समुद्री कशेरुकी प्राणि
(स) आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण सभी पादप
(द) वे पादप जिनके उत्पाद अन्तर्रोष्ट्रीय व्यापार में हैं
उत्तर:
(अ) संकटापन्न जातियाँ

9. भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणि कौनसा है? (NEET I-2016)
(अ) ब्लू ह्रेल
(ब) समुद्री घोड़ा
(स) गंगा की शार्क
(द) नदी की डॉल्फिन
उत्तर:
(द) नदी की डॉल्फिन

10. बाह्यस्थाने संरक्षण का एक उदाहरण कौनसा है? (NEET-2014)
(अ) राष्ट्रीय उद्यान
(ब) बीज बैंक
(स) वन्य प्राणि अभ्यारण्य
(द) पवित्र उपवन
उत्तर:
(ब) बीज बैंक

11. एक जाति जो निकट भविष्य में विलोपन के उच्च जोखिम की चरमता का सामना कर रही है, उसे क्या कहा जाता है? (NEET-2014)
(अ) सुमेघ
(ब) स्थानिक
(स) क्रान्तिक संकटापन्न
(द) विलोप
उत्तर:
(स) क्रान्तिक संकटापन्न

12. कौनसा संगठन जातियों की रेड सूची प्रकाशित करता है- (NEET-2014)
(अ) आई.सी.एफ.आर.आई.
(स) यू.एन.ई.पी.
(ब) आई.यू.सी.एन.
(द) डब्न्यू.डब्ल्यू.एफ
उत्तर:
(ब) आई.यू.सी.एन.

13. वैश्विक जैव विविधता में किसकी जातियों की अधिकतम संख्या है? (NEET-2011, 12, 13)
(अ) शैवाल
(ब) लाइकेन
(स) कवक
(द) मॉस एवं फर्न
उत्तर:
(स) कवक

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14. भारत में निम्नलिखित में कौनसा एक क्षेत्र जैव विविधता का ‘हॉट-स्पॉट’ है ? (Mains NEET-2012)
(अ) पूर्वी घाट
(ब) गंगा का मैदान
(स) सुन्दर वन
(द) पश्चिमी घाट
उत्तर:
(द) पश्चिमी घाट

15. प्रकृति में सबसे अधिक संख्या में प्रजातियाँ किसकी होती हैं? (NEET-2011)
(अ) कवकों की
(ब) कीटों की
(स) पक्षियों की
(द) आवृतबीजियों की
उत्तर:
(ब) कीटों की

16. भारतवर्ष में सबसे अधिक आनुवंशिक विविधता निम्नलिखित में से किस एक में होती है? (CBSE PMT (Pre)-2011, NEET-2011)
(अ) मूँगफली
(ब) चावल
(स) मक्का
(द) आम
उत्तर:
(ब) चावल

17. जैव विविधता के हॉट-स्पॉट का अर्थ है-(DUMET-2010)
(अ) पृथ्वी का ऐसा क्षेत्र जिसमें बहुत-सी एडेमिक जातियाँ पाई जाती हैं
(ब) विशिष्ट क्षेत्र में सम्मूर्ण समुदाय के लिए जातियाँ प्रतिनिधि का कार्य करती हैं
(स) विशेष क्षेत्र/निकेत में जातियाँ
(द) विशेष क्षेत्र में जातिय विभित्रता
उत्तर:
(अ) पृथ्वी का ऐसा क्षेत्र जिसमें बहुत-सी एडेमिक जातियाँ पाई जाती हैं

18. पृथ्वी पर पौधों की जातीय विविधता है- (Kerala PMT-2010)
(अ) 24%
(ब) 22%
(स) 31%
(द) 85%
उत्तर:
(ब) 22%

19. कौनसा जन्तु भारत में अभी हाल में ही विलुस हुआ है? (Orissa JEE-2010)
(अ) भेड़िया
(ब) गैंडा
(स) दरयाई घोड़ा
(द) चीता
उत्तर:
(द) चीता

20. भारत में निम्न में से किसमें अत्यधिक जेनेटिक विविधता पायी जाती है- (CBSE AIPMT-2009)
(अ) टीक
(ब) आम
(स) गेहूँ
(द) चाय
उत्तर:
(ब) आम

21. निम्नलिखित में से किस एक राष्ट्रीय उपवन में बाघ एक निवासी नहीं है- (CBSE PMT-2009)
(अ) रणथम्भौर
(ब) सुंदरवन
(स) गिर
(द) जिम कार्बेट
उत्तर:
(स) गिर

22. निम्न में से किस एक को स्व-स्थाने संरक्षण में सम्मिलित नहीं किया गया है- (CBSE PMT-2006; KCET-2009)
(अ) बायोस्फीयर
(ब) राष्ट्रीय उद्यान
(स) अभयारण्य
(द) वनस्पति उद्यान
उत्तर:
(द) वनस्पति उद्यान

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23. निम्नलिखित में से कौनसी संरक्षण की स्व-स्थाने (in-situ) विधि है- (Kerala CET-2008)
(अ) वानस्पतिक उद्यान
(ब) राष्ट्रीय उद्यान
(स) ऊतक संवर्धन
(द) क्रायो-परिरक्षण
उत्तर:
(ब) राष्ट्रीय उद्यान

24. किसी भौगोलिक क्षेत्र की जैव विविधता से क्या निरूपित होता है? (CBSE PMT Mains-2008)
(अ) उस क्षेत्र की प्रभावी प्रजातियों में मौजूद आनुवंशिक विविधता
(ब) उस क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियाँ
(स) उस क्षेत्र में पायी जाने वाली संकटापन्न प्रजातियाँ
(द) उस क्षेत्र में रह रहे जीवों की विविधता
उत्तर:
(द) उस क्षेत्र में रह रहे जीवों की विविधता

25. रेड डाटा बुक किसके आंकड़े उपलब्ध करती है- (Kerala CET-2006; BHU-2008)
(अ) लाल पुष्पीय पौधों के
(ब) लाल रंग की मछलियों के
(स) विलुसप्राय पौधों व जंतुओं के
(द) लाल आँख के पक्षियों के
उत्तर:
(स) विलुसप्राय पौधों व जंतुओं के

26. भारत के दो हॉट स्पॉट उत्तर-पूर्व हिमालय तथा पश्चिम घाट पाये जाते हैं। इनमें अधिकता होती है- (AMU-2006)
(अ) उभयचर (Amphibians)
(ब) सरीसृप (Reptiles)
(स) तितली
(द) उभयचर, सरीसृप, कुछ स्तनधारी, तितली तथा पुष्पीय पादप
उत्तर:
(द) उभयचर, सरीसृप, कुछ स्तनधारी, तितली तथा पुष्पीय पादप

27. वन्य जीव अभयारण्य में निम्न में से क्या नहीं होता है- (BHU-2005)
(अ) फोना का संरक्षण
(ब) फ्लोरा का संरक्षण
(स) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग
(द) अन्वेषण (hunting) का निषेध
उत्तर:
(स) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग

28. वानस्पतिक उद्यानों का प्रमुख कार्य है- (CBSE PMT-2005)
(अ) ये पुनर्निर्माण हेतु सुंदर क्षेत्र उपलब्ध कराते हैं
(ब) यहाँ उष्णकटिबंधीय (tropical) पौधे पाये जा सकते हैं
(स) ये जर्मप्लाज्म का बाह्य-स्थाने (ex-situ) संरक्षण करते हैं
(द) ये वन्य जीव के लिये प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराते हैं
उत्तर:
(स) ये जर्मप्लाज्म का बाह्य-स्थाने (ex-situ) संरक्षण करते हैं

29. भारत में अत्यधिक जैव विविधता का धनी क्षेत्र है- (MP PMT-2005)
(अ) गंगा के क्षेत्र
(ब) ट्रांस हिमालय
(स) पश्चिमी घाट
(द) मध्य भारत
उत्तर:
(स) पश्चिमी घाट

30. संकटग्रस्त प्रजातियों (स्पीशीज) के बाह्य स्थाने (ex-situ) संरक्षण विधियों में से एक विधि है- (AIIMS-2005)
(अ) वन्य जीव अभयारण्य
(ब) जैव मण्डल आरक्षक (reserve)
(स) निम्नतापी परिरक्षण (Cryopreservation)
(द) राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर:
(स) निम्नतापी परिरक्षण (Cryopreservation)

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31. कृषि फसलों में आनुवंशिक विविधता को किससे खतरा है- (AIIMS-2005)
(अ) उच्च उत्पादन किस्मों का प्रवेश
(ब) उर्वरकों का गहन उपयोग
(स) व्यापक अंतरासस्यन
(द) जैवपीड़कनाशियों का गहन उपयोग
उत्तर:
(अ) उच्च उत्पादन किस्मों का प्रवेश

32. वन्य जीवन है- (Orissa JEE-2005)
(अ) मनुष्य, पालतू जानवर तथा फसलों के अतिरिक्त संपूर्ण बायोटा
(ब) संरक्षित वनों के सभी कशेरुकी (Vertebrates)
(स) संरक्षित वनों के सभी जंतु
(द) संरक्षित वनों के सभी जंतु तथा पादप
उत्तर:
(अ) मनुष्य, पालतू जानवर तथा फसलों के अतिरिक्त संपूर्ण बायोटा

33. रेड डाटा बुक की सूची में जातियां होती हैं- (Orissa-2004)
(अ) सुमेघ
(ब) संकटापत्र
(स) विलुसप्राय
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

34. क्षेत्र की पादप विविधता के संरक्षण की अत्यधिक प्रभावशाली पद्धति क्या होती है- (CBSE PMT-2004)
(अ) ऊतक संवर्धन
(ब) वानस्पतिक उद्यान
(स) जैव मण्डल आरक्षण
(द) बीज बैंक
उत्तर:
(द) बीज बैंक

35. यदि अत्यधिक ऊँचाई पर पक्षी दुर्लभ हो तो कौनसे पौधे अदृश्य हो जायेंगे- (AIIMS-2004)
(अ) पाइन
(ब) ऑर्किड्स
(स) ऑक
(द) रोडोडेन्ड्रोन
उत्तर:
(द) रोडोडेन्ड्रोन

36. वन्य संरक्षण में निम्न में से किसकी सुरक्षा एवं संरक्षण किया जाता है- (BHU-2004)
(अ) केवल डरावने जंतुओं का
(ब) केवल वन्य पौधों का
(स) अपरिष्कृत पौधों एवं अपालतूकृत जंतुओं का
(द) सभी जीवों का जो कि अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैं
उत्तर:
(द) सभी जीवों का जो कि अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैं

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37. राष्ट्रीय उद्यान हेतु क्या सत्य है- (Orissa JEE-2004)
(अ) पर्यटकों की तटस्थ क्षेत्रों (Buffer Zone) में स्वीकृति
(ब) मानव क्रियाकलाप की अस्वीकृति
(स) शिकार की केन्द्रीय क्षेत्र में स्वीकृति
(द) चरने वाले मवेशियों की तटस्थ क्षेत्र में स्वीकृति
उत्तर:
(ब) मानव क्रियाकलाप की अस्वीकृति

38. वह टैक्सॉन जो कि भविष्य में विलुप्तायः श्रेणी में सम्मिलित होंगे, वह है- (Kerala-2003)
(अ) लुस
(ब) दुर्लभ
(स) सुमेघ (Vulnerable)
(द) जीवित जीवाश्म
उत्तर:
(स) सुमेघ (Vulnerable)

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. जड़ी बूटियाँ एवं घास कौनसे स्तर पर निवास करते हैं-
(अ) उर्ध्वाधर स्तर
(ब) तिरछा स्तर
(स) धरातलीय स्तर
(द) ऊपरी स्तर
उत्तर:
(स) धरातलीय स्तर

2. जैव मात्रा के उत्पादन की दर को कहते हैं-
(अ) उत्पादकता
(ब) पोषण चक्र
(स) ऊर्जा प्रवाह
(द) अपघटन
उत्तर:
(अ) उत्पादकता

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

3. सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटाने पर प्रास्त होती है-
(अ) द्वितीयक उत्प्पादकता
(ब) प्राथमिक उत्पादकता
(स) तृतीयक उत्पादकता
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता

4. अपरद (डेट्राइटस) किससे मिलकर बने होते हैं?
(अ) फूल तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष
(ब) पत्तियाँ
(स) छाल एवं मलादि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

5. बैक्टीरिया एवं कवकीय एंजाइम्स अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को कहते हैं-
(अ) अपचय
(ब) खनिजीकरण
(स) ह्यूमीफिकेशन
(द) निक्षालन
उत्तर:
(अ) अपचय

6. ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्व का निर्माण होता है, जिसे कहते हैं-
(अ) अपरद
(ब) ह्यूमस
(स) खनिज भवन
(द) निक्षालन
उत्तर:
(ब) ह्यूमस

7. अपघटन की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण चरण है-
(अ) खंडन
(ब) निक्षालन
(स) ह्यूस भवन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

8. एक विशिष्ट समय पर प्रत्येक पोषण स्तर का जीवित पदार्थ की कुछ खास मात्रा होती है, जिसे कहा जाता है-
(अ) खड़ी फसल
(ब) आहार जाल
(स) जैव मात्रा
(द) पूर्तिजीवी
उत्तर:
(अ) खड़ी फसल

9. पारिस्थितिक पिरैमिड जिसका आमतौर पर अध्ययन किया जाता है, वह है-
(अ) संख्या का पिरैमिड
(ब) जैवमात्रा का पिरैमिड
(स) ऊर्जा का पिरेमिड
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:

10. एक गैरैया जब बीज, फल व मटर खाती है तो वह कहलाती है-
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) प्राथमिक उत्पादक
उत्तर:
(अ) प्राथमिक उपभोक्ता

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

11. पारिस्थितिक तंत्र में किसी निश्चित समय में, तंत्र में उपस्थित, अजैव पदार्थों की मात्रा को कहते हैं-
(अ) म्लानी अवस्था
(ब) स्थायी उपभोक्ता
(स) पोष रीति
(द) समस्थापन
उत्तर:
(ब) स्थायी उपभोक्ता

12. पारिस्थितिक तंत्र में अजैविक व जैविक घटकों के मध्य की योजक कड़ी है-
(अ) अकार्बनिक पदार्थ
(ब) खाद्य जाल
(स) कार्बनिक पदार्थ
(द) पोष रीति
उत्तर:
(स) कार्बनिक पदार्थ

13. जीवों या सफल पादप समुदायों द्वारा पर्यावरण और परिवर्तित करने की क्रिया को कहते हैं-
(अ) प्रतिस्पर्धा
(ब) समुच्चयन
(स) प्रतिक्रिया
(द) चरम समुदाय
उत्तर:
(स) प्रतिक्रिया

14. निम्न में से शुष्कतारम्भी (Xerarch) है-
(अ) शैल अनुक्रमक
(ब) बालुकानुक्रमक
(स) लवणक्रमक
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

15. एक सुनिश्चित क्षेत्र की प्रजाति संरचना में उचित रूप से आकलित परिवर्तन को कहते हैं-
(अ) पारिस्थितिक अनुक्रमण
(ब) शुष्कतारंभी अनुक्रमण
(स) जलारंभी अनुक्रमण
(द) चरम सीमा अनुक्रमण
उत्तर:
(अ) पारिस्थितिक अनुक्रमण

16. एक पारितंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्वों की गतिशीलता को कहते हैं-
(अ) पोषक चक्र
(ब) परपोषी चक्र
(स) स्वयं पोषक चक्र
(द) परजीवी पोषक चक्र
उत्तर:
(अ) पोषक चक्र

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

17. जैवमण्डल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष कितने कार्बन का स्थिरीकरण होता है?
(अ) 3 × 1013 किग्रा.
(ब) 4 × 1013 किग्रा.
(स) 5 × 1013 किग्रा.
(द) 6 × 1012 किग्रा.
उत्तर:
(ब) 4 × 1013 किग्रा.

18. ऊर्जा के प्रवाह के वैकल्पिक परिपथ किनमें पाये जाते हैं?
(अ) खाद्य जाल
(ब) खाद्य भृंखला
(स) पारिस्थितिक स्तूप
(द) जैव-भू-रासायनिक चक्र
उत्तर:
(अ) खाद्य जाल

19. मांसाहारियों द्वारा स्वांगीकृत ऊर्जा का लगभग कितना भाग श्वसन में उपयोग होता है?
(अ) 10%
(ब) 20%
(स) 90%
(द) 60%
उत्तर:
(स) 90%

20. मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र है-
(अ) वन पारिस्थितिक तंत्र
(ब) फसल पारिस्थितिक तंत्र
(स) घास स्थल पारिस्थितिक तंत्र
(द) अलवणीय जल पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(ब) फसल पारिस्थितिक तंत्र

21. मृत पाद्प व जन्तु अंशों से अपना भोजन प्रास करते हैं-
(अ) परजीवी
(ब) सहजीवी
(स) मृतोपजीवी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) मृतोपजीवी

22. खाद्य-जाल में ऊर्जा का प्रवाह होता है-
(अ) एक-दिशीय
(ब) द्वि-दिशीय
(स) चतुर्दिशीय
(द) त्रि-दिशीय
उत्तर:
(अ) एक-दिशीय

23. पोषक चक्र को और किस नाम से जाना जाता है?
(अ) अजैव भू रसायन चक्र
(ब) जैव भू रसायन चक्र
(स) जैव भू कार्बन चक्र
(द) जैव भू फास्फोरस चक्र
उत्तर:
(ब) जैव भू रसायन चक्र

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

24. उत्पादकता को निम्न में से किस रूप में व्यक्त किया जा सकता है?
(अ) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1
(ब) g3yr2 या (Kcal m3) yr-1
(स) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1
(द) g2yr-1 या (Kcal m3) yr+1
उत्तर:
(अ) g2yr1 या (Kcal m2) yr-1

25. जी.पी.पी. – आर = एन.पी.पी. यह किसको प्रदर्शित करती है-
(अ) प्राथमिक उत्पादकता
(ब) सरल प्राथमिक उत्पादकता
(स) द्वितीयक उत्पादकता
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) नेट प्राथमिक उत्पादकता

26. परितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) पारितंत्र सेवाएँ
(ब) जैव भू रसायन चक्र
(स) अवसादी सेवाएँ
(द) पोषक चक्र
उत्तर:
(अ) पारितंत्र सेवाएँ

27. निम्न में से पारितंत्र सेवाएँ हैं-
(अ) सूखा एवं बाढ़ को घटाना
(ब) वायु एवं जल को शुद्ध बनाना
(स) भूमि को उर्वर बनाना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

28. प्रकृति के जीवन समर्थक (आधारीय) सेवाओं की एक कीमत निर्धारित करने का प्रयास किसने किया?
(अ) रॉबर्ट कोसटैजा एवं उनके साथी
(ब) रॉबर्ट ब्राउन एवं उनके साथी
(स) रॉबर्ट हुक एवं उनके साथी
(द) रॉबर्ट डिसोजा एवं उनके साथी
उत्तर:
(अ) रॉबर्ट कोसटैजा एवं उनके साथी

29. वह प्रजाति, जो खाली एवं नग्न क्षेत्र पर आक्रमण करती है, उसे कहते हैं-
(अ) मूल अन्वेषक जाति
(ब) परमूल अन्वेष जाति
(स) अन्वेषक जाति
(द) जलारंभी
उत्तर:
(अ) मूल अन्वेषक जाति

30. चट्टानों को पिघलाने के लिए निम्न में किसके द्वारा अम्ल का स्राव किया जाता है-
(अ) वैलिसेनरिया
(ब) जलकुम्भी
(स) लाइकेन
(द) माइकोराइजा
उत्तर:
(स) लाइकेन

31. जल में प्राथमिक अनुक्रमण में मूल अन्वेषक होते हैं-
(अ) लघु पादपप्लवक
(ब) जड़ वाले प्लावी पादप
(स) दलदली घास
(द) दलदली नरकुल
उत्तर:
(अ) लघु पादपप्लवक

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32. द्वितीयक अनुक्रमण में प्रजाति का आक्रमण निम्न में से किस पर निर्भर करती है-
(अ) मृदा की स्थिति
(ब) जल की स्थिति
(स) पर्यावरण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

33. निम्न में से कौनसा अनुक्रमण है जिसे चरमावस्था तक पहुँचने में शायद हजारों वर्ष लगते हैं-
(अ) प्राथमिक अनुक्रमण
(ब) द्वितीयक अनुक्रमण
(स) तृतीयक अनुक्रमण
(द) चतुर्थक अनुक्रमण
उत्तर:
(अ) प्राथमिक अनुक्रमण

34. सभी अनुक्रमण चाहे पानी में हों या भूमि पर एक ही प्रकार से चरम समुदाय किस की ओर अग्रसर होते हैं-
(अ) सीजिक
(ब) मीजिक
(स) पीजिक
(द) धीजिक
उत्तर:
(ब) मीजिक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
खाद्य स्तर तथा खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रकृति में प्रत्येक जीव खाद्य प्राप्ति हेतु एक-दूसरे से संबंधित रहते हैं। एक जीव दूसरे जीव पर निर्भर करता है। सभी जीव खाद्य के स्रोत हैं। जिस स्तर या जीव में खाद्य है, वह खाद्य स्तर है। एक जीव दूसरे जीव को खाता है अर्थात् एक श्रृंखला होती है, इसे खाद्य श्रृंखला तथा इसके प्रत्येक स्तर को खाद्य स्तर कहते हैं ।

प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तंत्र के कार्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कार्य से अभिप्राय पारिस्थितिक तंत्र में जैव ऊर्जा का प्रवाह तथा पोषक खनिज पदार्थों के परिसंचरण से है ।

प्रश्न 3.
पादप अनुक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी एक ही स्थान पर होने वाले दीर्घकालीन, एकदिशीय क्रमिक समुदाय परिवर्तनों को पादप अनुक्रमण कहते हैं।

प्रश्न 4.
पादप अनुक्रमण में कौनसी अवस्थायें आती हैं?
उत्तर:
अनाच्छादान, आक्रमण, आस्थापन, उपनिवेशन, समूहन, प्रतिस्पर्धा ।

प्रश्न 5.
भू – रासायनिक चक्र क्या है?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में आवश्यक खनिजों एवं पोषक पदार्थों की पूर्ति हेतु जो चक्र चलते हैं, उन्हें भू-रासायनिक चक्र कहते हैं।

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तक किसे व क्यों कहते हैं?
उत्तर:
स्वपोषी या उत्पादक को कोरोमेन्डी ने परिवर्तक या पारक्रमी कहा है क्योंकि ये सौर ऊर्जा को रासायनिक स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित कर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं।

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प्रश्न 7.
परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं ? इसका एक उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला हरे पादपों से आरंभ होकर अनुक्रम में मांसाहारी जंतुओं से होती हुई चरम मांसाहारी जंतुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है अर्थात् छोटे जीवों से प्रारंभ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उपयुक्त उदाहरण घास स्थलीय खाद्य श्रृंखला का है-
घास → टिड्डा → मेंढक → साँप → मोर

प्रश्न 8.
अपरद खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह आहार श्रृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारंभ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण- अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील

प्रश्न 9.
खाद्य जाल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में पायी जाने वाली खाद्य श्रृंखलाएं संबद्ध होकर अन्तर्ग्रथित प्रतिरूप बनाती हैं जिसे खाद्य जाल कहते हैं।

प्रश्न 10.
सबसे स्थिर पारिस्थितिक तंत्र कौनसा है ?
उत्तर:
महासागर ( Ocean )

प्रश्न 11.
अपरद खाद्य श्रृंखला का आरंभक बिंदु क्या होता है?
उत्तर:
पादपों के मृत अवशेष जैसे-पत्तियाँ, छाल, फूल तथा प्राणियों के मृत अवशेष, मलादि सहित अपरद

प्रश्न 12.
द्वितीयक उत्पादकता क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता के द्वारा निर्मित नवीन कार्बनिक पदार्थों तथा उनके स्वांगीकरण की दर द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है।

प्रश्न 13.
तालाब पारिस्थितिक तंत्र की खाद्य श्रृंखला को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 1

प्रश्न 14.
कौनसा स्थलीय जीवोम वानस्पतिक विकास व जैव समुदाय के दृष्टिकोण से सबसे अधिक उन्नत है?
उत्तर:
उष्ण सदाबहार कटिबंधीय वन क्षेत्र वानस्पतिक विकास की दृष्टि में सबसे अधिक उन्नत है।

प्रश्न 15
पारितंत्र सेवाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
पारितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को पारितंत्र सेवाओं के नाम से जाना जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
गैसीय चक्र तथा अवसादी चक्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गैसीय चक्र व अवसादी चक्र में अंतर-

गैसीय चक्रअवसादी चक्र
1. इनका निचय कुण्ड (Reservoir pool) वायु- मण्डल या जल-मण्डल होता है।इनका निचय कुण्ड स्थलमण्डल होता है।
2. इनके चक्र पूर्ण होते हैं।इनके चक्र अपूर्ण होते हैं।
3. बार-बार चक्रीय प्रवाह के दौरान इनकी मात्रा कम नहीं होती है।मात्रा कम होती है क्योंकि कुछ मात्रा समुद्र, भूमि या अन्य जलाशयों की तलहटी में समाहित हो जाती है।
4. उदाहरण-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन चक्र।उ दाह र ण-सल्फ र, फॉस्फोरस चक्र।

प्रश्न 2.
फसल पारिस्थितिक तन्त्र को समझाइये |
उत्तर:
फसल पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक हरे पौधे (फसल) होते हैं। टिड्डियाँ, तितलियाँ, चींटे, बकरी, गाय, खरगोश, हिरण, गिलहरी, तोते, मानव सभी प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं। लोमड़ी व अन्य मांसाहारी द्वितीयक उपभोक्ता तथा बाज, चीता, शेर व यहाँ तक कि मानव तृतीयक उपभोक्ता होते हैं। अजैविक घटक में मृदा व वायुमण्डल के अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ होते हैं इस तंत्र में जीव संख्या का तथा जीव भार का स्तूप सीधा होता है तथा ऊर्जा का स्तूप भी सीधा होता है।

प्रश्न 3.
पारिस्थितिक तंत्रों के प्रकार बताइये ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र दो प्रकार के होते हैं –
I. प्राकृतिक तथा
II. कृत्रिम ।
I. प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक रूप से जो पृथ्वी पर पाये जाते हैं, वे निम्न प्रकार के होते हैं-
1. स्थलीय भूमि पर विद्यमान पारिस्थितिक तंत्र, जैसे – वन, घास स्थल, मरुस्थल आदि ।

2. जलीय- यह दो प्रकार के होते हैं-
(क) अलवण जलीय (Fresh Water) – जिसमें

  • सरित (Lotic, बहता पानी) जैसे झरना, नदी, सरिता आदि तथा
  • स्थिर जलीय (Lentic, रुका हुआ जल) जैसे- झील, तालाब, पोखर, अनूप आदि ।

(ख) समुद्रीय या लवण जलीय (Marine Water ) – जैसे- समुद्र, ज्वारनद्मुख, लवण झीलें आदि।

II. कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र- यह मानव द्वारा सुनियोजित ढंग से बनाये जाते हैं, जैसे-फसलों के खेत, उद्यान, सामाजिक वन ।

प्रश्न 4.
खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं को बताइये ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादकों से खाद्य ऊर्जा का स्थानान्तरण जीवों के द्वारा होता है जिसमें बार-बार खाते हैं व बार-बार खाये जाते हैं। इस श्रृंखला में शाकाहारी, मांसाहारी व अपघटक होते हैं। ऐसी श्रृंखला को खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य श्रृंखलायें होती हैं –
1. परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला (Predator or Grazing Food Chain) – इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला प्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा पर आधारित होती है, जो हरे पादपों से आरम्भ होकर अनुक्रम में मांसाहारी जन्तुओं से होती हुई चरम मांसाहारी जन्तुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है। सामान्यतः यह छोटे जीवों से प्रारम्भ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उदाहरण- घास स्थलीय खाद्य श्रृंखला ।

2. परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic Food Chain) – यह बड़े जन्तुओं से प्रारम्भ होकर छोटे जीवों (परजीवी) पर समाप्त होती है। बड़े शाकाहारी जीवों को पोषिता (Host) या परपोषी (Heterotrophs) या आतिथेय कहते हैं।
उदाहरण-
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 2

3. अपरदी या मृतोपजीवी खाद्य श्रृंखला (Detritus or Saprophytic Food Chain) – यह आहार श्रृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारम्भ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण-
अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 5.
पारिस्थितिक दक्षता किसे कहते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में जीव अपना भोजन प्राप्त करते हैं तथा आहार को जैवभार में परिवर्तित कर दूसरे उच्च पोषण स्तर को उपलब्ध कराते हैं। खाद्य शृंखला के विभिन्न पोष स्तरों के मध्य प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की मात्रा के अनुपात को यदि प्रतिशत में व्यक्त किया जावे तो इसे पारिस्थितिक दक्षता (Ecological Efficiency) कहते हैं।

ऊर्जा की मात्रा को किलो कैलोरी प्रतिवर्ग मीटर प्रतिवर्ष (Kcal/m2/yr) इकाई में नापा जाता है। उत्पादक स्तर पर प्रकाश संश्लेषी दक्षता तथा वास्तविक उत्पादन दक्षता महत्त्वपूर्ण होती है। उत्पादक द्वारा सौर विकिरण ऊर्जा को उपयोग करने की दक्षता का मापन प्रकाश- संश्लेषी दक्षता द्वारा किया जाता है।
प्रकाश-संश्लेषी दक्षता (उत्पादक स्तर)
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 3

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा के पिरामिड समझाइये ।
अथवा
पारिस्थितिक पिरामिड से क्या तात्पर्य है? ऊर्जा के एक आदर्श पिरामिड का चित्र सहित वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
पारिस्थितिक पिरामिड चार्ल्स एल्टन ने 1927 में पारिस्थितिक पिरामिड की अवधारणा दी। प्रत्येक पारितन्त्र में पाये जाने वाले सभी पोषक स्तर एक के बाद एक सोपानों में व्यवस्थित रहते हैं। प्रथम पोषक स्तर को आधार मानकर उत्तरोत्तर पोषक स्तरों को चित्र द्वारा निरूपित किया जाये तो पिरामिड बनता है, जिसे पारिस्थितिक पिरामिड कहते हैं।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 4

ऊर्जा के पिरामिड पूर्ण रूप से पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति का स्पष्ट चित्रण करते हैं। भोजन श्रृंखला में भोजन उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक जाता है अर्थात् भोजन एक स्तर से दूसरे स्तर में जाता रहता है या यों कहा जा सकता है कि ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर प्रवाहित होती है। यह सुनिश्चित है कि ऊर्जा एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर पर जाने पर कम होती जाती है।

यह देखा गया है कि एक पोष स्तर से संचित ऊर्जा जब दूसरे पोष स्तर में जाती है तो कुल ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत ही जीवभार के रूप में रूपान्तरित होता है। अतः उत्पादकों में ऊर्जा सर्वाधिक तथा प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक और उच्चतम उपभोक्ता में ऊर्जा धीरे- धीरे कम होती जाती है इसलिए ऊर्जा के आधार पर चित्रण किये जाने से पिरामिड सदैव सीधे बनते हैं।

ऊर्जा के आधार पर बनने वाले पिरामिड का आधार सदैव बड़ा तथा शीर्ष छोटा होता है। यद्यपि इस पर जीवों के आकार और उपापचय दर का प्रभाव नहीं होता परन्तु इस प्रकार के पिरामिड बनाने में समय तथा क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऊर्जा के आधार पर जीवों का अध्ययन एक इकाई क्षेत्र तथा समय के आधार पर किया जाता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 7.
पुरोगामी समुदाय तथा चरम समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर:
पुरोगामी समुदाय तथा चरम समुदाय में अन्तर-

पुरोगामी समुदाय (Pioneer Community)चरम समुदाय (Climax Community)
1. यह अनुक्रम की प्रथम अवस्था है।यह अन्तिम अवस्था होती है।
2. पुरोगामी अन्य स्थानों से आकर नये आवास में उगते हैं।ये उसी स्थान पर उगते हैं।
3. पुरोगामी नये आवास के कारकों को सहन करते हैं। वहाँ का पर्यावरण उनके अधिक अनुकूल नहीं होता है।समस्त कारक उनके अनुकूल होते हैं।
4. पुरोगामी पादप छोटे होते हैं।चरम अवस्था में पादप बहुत बड़े होते हैं।
5. इनमें स्थायित्व नहीं होता, जैवभार कम होता है तथा सहजीवन क्रियायें नहीं पाई जाती हैं।इनमें सर्वाधिक स्थायित्व, अधिक जैवभार तथा सहजीवन क्रियायें मिलती हैं।

प्रश्न 8.
प्राथमिक अनुक्रमण तथा द्वितीयक अनुक्रमण में विभेद कीजिए ।
उत्तर:
प्राथमिक अनुक्रमण वनस्पतिरहित स्थलों पर होने वाला अनुक्रमण होता है। भू-स्खलन, ज्वालामुखी के फटने, कोरल शैलों के निर्माण, रेतीले टीले, नग्न चट्टानें आदि इसकी श्रेणी में आते हैं। द्वितीयक अनुक्रमण को गौण अनुक्रमण भी कहते हैं। वे स्थान जहाँ पूर्व में वनस्पति थी परन्तु किन्हीं कारणों से वह वनस्पति नष्ट हो गई, ऐसे स्थलों पर होने वाला अनुक्रमण द्वितीयक होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र में विद्यमान खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल पर विस्तार से लिखिये ।
उत्तर:
खाद्य शृंखला व खाद्य जाल (Food Chain and Food Web) प्रकृति में पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न जीव जैसे उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिये एकदूसरे पर निर्भर होते हैं। हरे पौधे क्लोरोफिल, सौर विकिरण ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड आदि की सहायता से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं (स्वपोषी या प्राथमिक उत्पादक), जिसका उपयोग प्राथमिक उपभोक्ता (मांसाहारी) करते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ताओं को द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी) एवं द्वितीयक उपभोक्ता को तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक से उपभोक्ता श्रेणी के सभी जीव एक क्रम या शृंखला में व्यवस्थित रहते हैं। इस शृंखला में प्रत्येक स्तर या कड़ी या जीव को पोषण स्तर (trophic level) या ऊर्जा स्तर (energy level) कहते हैं। अन्योन्याश्रित (interdependent) जीवों की एक श्रृंखला को जिसमें खाने और खाये जाने की पुनरावृत्ति द्वारा ऊर्जा का प्रवाह होता है, खाद्य शृंखला (Food chain) कहलाती है। जैसे –

(i) घास स्थल में खाद्य शृंखला
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 5

(ii) जलीय पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला
पादप प्लवक → जन्तु प्लवक → छोटी मछली → बड़ी मछली → मनुष्य

(iii) वन पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य शृंखला
पादप → हिरन → भेड़िया → शेर
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 6

प्रकृति में सामान्यतः एक खाद्य शृंखला में पांच-छः से अधिक कड़ियाँ (links) या जीव नहीं होते हैं क्योंकि खाद्य ऊर्जा के एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में जाने पर 90% ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में अपव्यय (श्वसन क्रिया में) हो जाता है तथा सबसे ऊँचे पोष स्तर को बहुत कम ऊर्जा उपलब्ध होती है। प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य शृंखलाएं होती हैं-

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

(i) परभक्षी या शाकवर्ती खाद्य शृंखला (Predator or grazing food chain) – इस प्रकार की खाद्य शृंखला सौर ऊर्जा पर आधारित होती है जो हरे पौधों से प्रारंभ होकर मांसाहारी जंतुओं से होती हुई सर्वोच्च मांसाहारी जंतुओं या उपभोक्ताओं पर समाप्त होती है। अतः यह छोटे जीवों से प्रारंभ होकर बड़े जीवों पर समाप्त होती है। उदा. घास स्थलीय खाद्य शृंखला।

(ii) परजीवी खाद्य शृंखला (Parasitic food chain)-यह बड़े जंतुओं (शाकाहारी) से प्रारंभ होकर छोटे जीवों (परजीवी) पर समाप्त होती है अर्थात् परपोषी से परजीवी की ओर अग्रसर होती है। उदाहरण-
जड़ें → निमेटोड → जीवाणु

(iii) अपरदी या मृतोपजीवी खाद्य शृंखला (Detritus or Saprophytic food chain)-यह आहार शृंखला मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्रारंभ होती है और मृदा में स्थित अपरदभक्षी जीवों से होकर उन जीवों तक जाती है, जो अपरदहारी जीवों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण-
अपरद → केंचुआ → मेंढक → साँप → चील
इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला वनों व घास स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों में बहुत महत्व की है।

खाद्य जाल (Food web)
उपरोक्त खाद्य श्रृंखलाओं में एक स्तर से अन्य स्तर पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। जलीय पारिस्थितिक तंत्र में चारण खाद्य शृंखला (Grazing food chain = GFC) ऊर्जा प्रवाह का महत्वपूर्ण साधन है परंतु स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में चारण खाद्य शृंखला की तुलना में अपरद खाद्य शृंखला (Detritus food chain = DFC) द्वारा अधिक ऊर्जा प्रवाहित होती है।

पारिस्थितिक तंत्र में सभी जीव एक समुदाय में अन्य जीवों के साथ रहते हैं। सभी जीव अपने पोषण या आहार के स्रोत के आधार पर खाद्य श्रृंखला में एक विशेष स्थान ग्रहण करते हैं, जिसे पोषण स्तर (trophic level) कहा जाता है (चित्र 14.3)। एक विशिष्ट समय पर प्रत्येक पोषण स्तर के जीवित पदार्थ की कुछ खास मात्रा होती है, जिसे स्थित शस्य या खड़ी फसल (Standing crop) कहते हैं।

इसे इकाई क्षेत्र में उपस्थित जीवों की संख्या या जैवभार (biomass) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। वस्तुतः प्रकृति में उपरोक्त वर्णित सरल खाद्य शृंखलायें नहीं पायी जाती हैं अपितु विभिन्न खाद्य शृंखलाएँ आपस में किसी न किसी पोष स्तर से जुड़कर एक अत्यन्त जटिल खाद्य जाल (food web) का निर्माण करती हैं। इसका कारण यह है कि एक ही प्राणी कई प्रकार के प्राणियों को अपना भोजन बना सकता है।

उदाहरणार्थ, एक घास स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्राथमिक उत्पादकों को टिड्डी एवं चूहों के अतिरिक्त खरगोश, गाय, बकरी या अन्य शाकाहारी द्वारा भी खाया जा सकता है। इसी प्रकार चूहों को सर्प तथा सर्पों को गिद्ध खाते हैं परंतु इन्हें सर्पों व गिद्ध के अतिरिक्त अन्य जंतुओं द्वारा भी खाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र 7

किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य जाल जितना जटिल और विशाल होगा उतना ही वह पारिस्थितिक तंत्र स्थिरता व संतुलन लिये होगा क्योंकि इसमें उपभोक्ता के लिये अनेक प्रकार के जीव उपयोग हेतु उपलब्ध रहेंगे। किसी जीव के किसी कारणवश नष्ट हो जाने पर खाद्य जाल के स्थायित्व (stability) पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि खाद्य जाल में वैकल्पिक व्यवस्था (alternative arrangement) होती है, जिससे उस जीव के स्थान की पूर्ति अन्य किसी जीव द्वारा हो जाती है तथा ऊर्जा का प्रवाह वैकल्पिक परिपथों से होने लगता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

इस प्रकार की व्यवस्था खाद्य शृंखलाओं में नहीं होती है। खाद्य जाल, समुदाय में जीवों के बहुदिशीय संबंधों को प्रकट करता है। खाद्य जाल में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होते हुए भी अनेक वैकल्पिक परिपथों से होकर होता है। खाद्य शृंखला में एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में केवल 10% ऊर्जा प्रवाहित होती है।

प्रश्न 2.
पारितन्त्र क्या है? इसके जैविक घटकों का उल्लेख कीजिए। एक घास वन पारितन्त्र की चार पोष स्तर वाली खाद्य श्रृंखला का आरेख बनाइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द का प्रयोग ए.जी. टैन्सले (A.G. Tansley, 1935) ने किया था। ‘Eco’ शब्द का तात्पर्य पर्यावरण से है तथा ‘system’ का बोध अन्योन्य क्रियाओं (Interactions) से है। टेन्सले ने इकोसिस्टम को परिभाषित करते हुए कहा कि “इकोसिस्टम वह तंत्र है जो पर्यावरण के सम्पूर्ण सजीव व निर्जीव कारकों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा प्रक्रियाओं द्वारा प्रकट होता है ” या इकोसिस्टम प्रकृति का वह तंत्र है जिसमें जीवीय व अजीवीय घटकों की संरचना व कार्यों का पारिस्थितिक सम्बन्ध निश्चित नियमों के अुनसार गतिज संतुलन में रहता है तथा ऊर्जा व पदार्थों का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता रहता है।

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना (Structure of Ecosystem)पारिस्थितिक तंत्र की संरचना के दो मुख्य घटक होते हैं-
I. जीवीय घटक (Biotic Component) तथा
II. अजीवीय घटक (Abiotic Component)

I. जीवीय घटक (Biotic Component)-पारिस्थितिक तंत्र में जीवीय घटक का प्रथम स्थान होता है। इस तंत्र में नाना प्रकार के प्राणियों व वनस्पति की समष्टि (Population) के समुदाय होते हैं तथा ये सभी जीव आपस में किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित होते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्य या इन विभिन्न जीवों के भोजन प्राप्त करने के प्रकार के अनुसार इस जीवीय घटक को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है-

(क) स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophs or Producers)-पारिस्थितिक तंत्र के वे सजीव सदस्य, जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों को प्राप्त कर, सूर्य प्रकाशीय ऊर्जा को ग्रहण कर जटिल पदार्थों अर्थात् प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया कर भोजन का संश्लेषण करते हैं। अपने पोषण हेतु स्वयं भोजन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं। ऐसे सजीव सदस्य स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) कहलाते हैं।

यह अद्भुत क्षमता प्राय: क्लोरोफिल युक्त हरे पौधों में तथा विशेष प्रकार के रसायन संश्लेषी जीवाणुओं में होती है। स्वपोषी घटक को प्राथमिक उत्पादक भी कहते हैं, क्योंकि हरे पौधे भोजन का निर्माण कर उन्हें संचित करते हैं तथा यह संचित खाद्य पदार्थ ही अन्य समस्त प्रकार के जीवों हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के रूप में प्रयुक्त होता है।

स्थल पर उगने वाले समस्त पौधे तथा जलीय माध्यम (तालाब, झील व समुद्र) में विद्यमान जलोद्भिद पादप शैवाल व सूक्ष्मदर्शी पौधे उत्पादक की श्रेणी में आते हैं। समस्त पौधे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं न कि ऊर्जा का। वास्तविक रूप से उत्पादक पौधे प्रकाशीय ऊर्जा को जटिल कार्बनिक पदार्थ की रासायनिक स्थितिज ऊर्जा (Potential Chemical Energy) में परिवर्तित करते हैं। इसी कारण कोरोमेन्डी (Koromondy) ने इन्हें उत्पादक के स्थान पर परिवर्तक या पारक्रमी (Converter or Transducer) कहा है।

(ख) विषमपोषी या उपभोक्ता (Heterotrophs or Consumers) – पारिस्थितिक तंत्र के वे जीव जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन पर निर्भर रहते हैं। इन सजीव सदस्यों में भोजन सृजन की क्षमता नहीं होती है। इस प्रकार के जीवों को विषमपोषी कहते हैं। वस्तुतः ये उत्पादकों द्वारा संश्लेषित भोजन का उपयोग करते. हैं। इसलिए इन्हें उपभोक्ता (Consumers) भी कहते हैं। इन परपोषित या उपभोक्ता जीवों को पुनः दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है-

1. वृहद् या गुरु उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Macroconsumers or Phagotrophs) – वे जीव उपभोक्ता जो अपना भोजन जीवित पौधों या जन्तुओं से प्राप्त करते हैं उन्हें वृहद् उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Phagotroph, Phago = to eat) कहते हैं। इस प्रकार के उपभोक्ता भोजन को ग्रहण कर अपने शरीर के अन्दर उसका पाचन करते हैं। शाक या पादप भक्षी शाकाहारी (Herbivores), जन्तुभक्षी मांसाहारी (Carnivores) तथा शाक व मांस दोनों को खाने वाले को सर्वाहारी (Omnivores) कह सकते हैं।

उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में विभेदित किया गया है –
(i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers)-वे जीव जो भोजन की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। ऐसे प्राथमिक उपभोक्ता मुख्य रूप से शाकाहारी (Herbivores) जन्तु होते हैं। जैसे-कीट, गाय, भैंस, बकरी, खरगोश, भेड़, हिरण, चूहा इत्यादि। स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के सामान्यतः शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं।

(ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers)-इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्रथम श्रेणी के शाकाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं। इस श्रेणी के उपभोक्ता प्रायः मांसाहारी (Carnivores) होते हैं, जैसे-मेंढक, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली, चीता इत्यादि।

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(iii) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers)-इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन द्वितीयक श्रेणी के मांसाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं और यही नहीं, यहाँ तक सर्वाहारी व शाकाहारी का भी भक्षण कर लेते हैं। कुछ उपभोक्ता उच्च मांसाहारी (Top Carnivores) होते हैं, जो स्वयं तो अन्य मांसाहारी जन्तुओं को खा जाते हैं किन्तु उन्हें कोई प्राणी नहीं खा सकता। इस प्रकार के उपभोक्ताओं को शीर्ष या उच्च उपभोक्ता (Top Consumers) कहा जाता है; जैसे-शेर, चीता, बाज व गिद्ध इत्यादि।

अतः उपर्युक्त उपभोक्ताओं की श्रेणियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भोजन उत्पादकों से होता हुआ उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों से गुजर कर उच्य उपभोक्ताओं तक पहुँच जाता है। अतः भोजन या खाद्य की इस शृंखला को खाद्य शृंखला (Food Chain) कहते हैं।

2. सूक्ष्म या लघु उपभोक्ता या अपघटक जीव (Microconsumers or Decomposers)-लघु उपभोक्ता भी पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण सजीव घटक हैं। इस श्रेणी के जीव विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थो को उनके अवयवों में विघटित कर देते हैं। इस क्रिया में यह जीव पाचन विकर का स्रवण कर भोजन को सरल पदार्थों में तोड़कर इस पचित भोजन को अवशोषित करते हैं। इनमें मुख्यत: कवक, जीवाणु, एक्टिनोमाइसीटिज तथा मृतोपजीवी होते हैं।

इन्हें अपघटक या मृतोपजीवी (Saprotrophs) या परासरणजीवी (Osmotrophs) कहते हैं। इस प्रकार के जीव उत्पादक तथा उपभोक्ता के मृत शरीरों पर क्रिया कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण पदार्थों में परिवर्तित करते हैं। इन साधारण कार्बनिक पदार्थ पर अन्य प्रकार के जीवाणु क्रिया कर अन्त में इन्हें अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं।
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बह प्राणी क्रिया करते समय अपघटन से निर्मित उत्पादों का स्वयं अवशोषण कर अपने पोषण में उपयोग कर लेते हैं व अन्य पदार्थों को बातावरण में मुक्त कर देते है। अपघटक व परिवर्तक क्रिया से निर्मित अकार्बनिक पदार्थ पुनः उत्पादकों या हरे पौधों द्वारा उपयोग में ले लिये जाते हैं। इस प्रकार से हरे पौधों में जिसमें भोजन का निर्माण या संचय हुआ था उसका उपयोग उपभोक्ताओं ने किया तथा उपभोक्ताओं व उत्पादकों के मृत होने पर ये सुक्ष्म उपभोक्ता अपघटन क्रिया कर अकार्बनिक पदार्थों को पर्यावरण में वापस लौटाने का कार्य करते है। अतः अपघटनकर्ता तथा परिवर्तक पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व को बनाये रखने में महत्तपपर्ण कार्य करते हैं।

II. अजीवीय घटक (Abiotic Component)-ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय घटक हैं। तंत्र के प्रथम भाग में जीवीय घटक का उल्लेख करते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश ड्डाला गया है। उसी प्रकार अजीवीय घटक जो कि भौतिक पर्यावरण से बनता है, यह भी उतना ही महत्तपपर्ण है।

इस भौतिक पर्यावरण को तीन भागों में विभाजित किया गया है –
(क) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances)-जैसेमृदा, जल, कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कैल्सियम काबोनेट ब फॉस्फेट इत्यादि जो पारिस्थितिक तंत्र में चक्रीय पर्थों से गुजरते हैं, जिसे जैव-भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) कहते हैं।

(ख) कार्बनिक पदार्ध (Organic Substances)-इसमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, हूमस, क्लोरोफिल, लिपिड इत्यादि होते हैं तथा ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय और जीवीय घटकों को जोड़ने का सम्बन्ध स्थापित करने में प्रयुक्त होते हैं।

(ग) जलवायवीय कारक (Climatic Factors)-जैसे-प्रकाश, तापक्रम, आर्द्रता, पवन, वर्षा इत्यादि भौतिक कारक हैं। इन सभी भौतिक कारकों में से सूर्य की विकिरण ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र के ऊर्जा स्रोत के लिए महत्चपूर्ण होती है। किसी पारिस्थितिक-तंज्र में नियत समय में उपस्थित अजैव पदार्थों की मात्रा को स्थायी अवस्था (Standing State) या स्थायी गुणता (Standing Quality) कहा जाता है, जबकि जैविक पदार्थों या कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा को खड़ी फसल या स्थित शस्य (Standing Crop) कहते हैं। इसे इकाई क्षेत्र में उपस्थित जीवों की संख्या या जैवभार (Biomass) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

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उपर्युक्त अजीवीय घटक पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति को सुनिश्चित कर इसमें जीवों को सीमित रखते हुए इस तंत्र के प्रकार्यों को नियंत्रित करते हैं। मृदा में पाये जाने वाले खनिजों को पौधे अवशोषित कर शरीर निर्माण में उपयोग लेते हैं तथा सूर्य के प्रकाश में उपस्थित ऊर्जा के सहयोग से भोजन का निर्माण करते हैं।

इन सभी खनिजों में से विशेषत: C,H, N, P इत्यादि पौधों तथा जन्तुओं के शरीर निर्माण हेतु परम आवश्यक हैं। जीवों की मृत्यु पश्चात् इनके शरीर अपघटित कर दिये जाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में वापस चली जाती है तथा खजिन लवण पुन: भूमि में मिल जाते हैं तथा इस भूमि से पौधे उनका पुनः अवशोषण करते रहते हैं।

अतः इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में खानिज लवणों का चक्र चलता रहता है। इसे खनिज प्रवाह कहा जाता है। इस खनिज प्रवाह को चलायमान रखने हेतु जीवीय तथा अजीवीय दोनों घटक निरन्तर क्रियाशील रहते हैं। इसलिए इसे खनिज प्रवाह के साथ-साथ जैवभूरासायनिक चक्र (Bio-geochemical cycle) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
(i) पारिस्थितिक अनुक्रमण किसे कहते हैं?
(ii) प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रमण में प्रमुख अन्तर बताइए।
(iii) खाली एवं नग्न क्षेत्र में पादपों का अनुक्रमण समझाइए।
(iv) कुंज चरण का चित्र बनाइए।
उत्तर:
(i) किसी एक ही स्थान पर होने वाले दीर्घकालीन एकदिशीय (unidirectional) समुदाय परिवर्तनों को या समुदाय के विकासीय प्रक्रम को पारिस्थितिक अनुक्रमण कहते हैं।

प्राथमिक अनुक्रमणद्वितीयक अनुक्रमण
वनस्पति रहित स्थलों (प्राथमिक अनाच्छादित क्षेत्र) पर होने वाला अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण क ह लाता है। भू-स्खलन, ज्वालामुखी के फटने, कोरल शैलों (Coral reef) के निर्माण, रेतीले टीले, नग्न चट्टानें आदि क्षेत्र इसी श्रेणी में आते हैं।ऐसे स्थल जहाँ पूर्व में वनस्पति हो, लेकिन बाढ़, अग्नि, काष्ठ कर्तन (Wood Cutting), कृषि या अन्य कारणों से नष्ट हो गई हो तथा नई प्रकार की वनस्पति पुनः स्थापित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो तो उसे द्वितीयक अनुक्रमण कहते हैं।

(iii) नग्न चट्टानों पर सर्वप्रथम उगने वाले अर्थात् पुरोगामी पौधे प्रायः नील हरित शैवाल व पर्पटी लाइकेन उगते हैं। ये चट्टानों का संक्षारण कर मृदा की एक पतली परत बना देते हैं। अनुक्रमण के द्वितीय चरण में इस परिवर्तित आवास में अनेक मॉस जातियाँ उगने लगती हैं जो वायु में उपस्थित मृदा कणों को संग्रहित कर मृदा संचयन की प्रक्रिया को बढ़ाती हैं तथा अम्लीय स्थिति उत्पन्न कर खनिजों के जल अपघटन करती हैं।

अब मृदा में जल धारण क्षमता, कार्बनिक पदार्थ व खनिज पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ने से यह स्थान इनके लिए उपयुक्त नहीं रहता। अनुक्रमण के तृतीय चरण में अब एकवर्षीय तत्पश्चात् द्विवर्षीय व बाद में बहुवर्षीय शाकीय पौधे उगने लगते हैं। इन सभी पौधों की जड़ें शैल विघटन की क्रिया को बढ़ाती हैं।

अंतत: अनुक्रमण के चतुर्थ चरण में मरुद्भिद क्षुप आदि प्रकट होने लगते हैं जो शाकीय पौधों को प्रतिस्थापित करते हैं। ये चट्टानों का अधिक विघटन करते हैं तथा इनके सूखे गिरे पत्ते व टहनियाँ मृदा को अधिक उर्वर बनाते हैं। अब कुछ वर्षों बाद इनके स्थान पर मरुद्भिद वृक्ष उगने लगते हैं।
(iv) कुंज चरण का चित्र –
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प्रश्न 4.
(i) पोषण चक्र किसे कहते हैं?
(ii) गैसीय तथा अवसादी पोषक चक्र में प्रमुख अन्तर बताइए।
(iii) पारितंत्र में कार्बन चक्र को संक्षेप में समझाइए।
(iv) भूमण्डल में कार्बन चक्र के सरलीकृत मॉडल का चित्र बनाइए।
उत्तर:
(i) पोषण चक्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्वों की गतिशीलता को पोषण चक्रण (nutrient cycle) कहते हैं।

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(ii) गैसीय तथा अवसादी पोषक चक्र में प्रमुख अन्तर बताइए ।
उत्तर:

गैसीय चक्रअवसादी चक्र
1. इनका निचय कुण्ड (Reservoir pool) वायु- मण्डल या जल-मण्डल होता है।इनका निचय कुण्ड स्थलमण्डल होता है।
2. इनके चक्र पूर्ण होते हैं।इनके चक्र अपूर्ण होते हैं।
3. बार-बार चक्रीय प्रवाह के दौरान इनकी मात्रा कम नहीं होती है।मात्रा कम होती है क्योंकि कुछ मात्रा समुद्र, भूमि या अन्य जलाशयों की तलहटी में समाहित हो जाती है।
4. उदाहरण-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन चक्र।उ दाह र ण-सल्फ र, फॉस्फोरस चक्र।

(iii) पारितंत्र में कार्बन चक्र को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
पारितंत्र-कार्बन चक्र (Ecosystem-Carbon cycle) सजीवों की संरचना का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि जीवों के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग कार्बन से बना होता है। जल के पश्चात् सर्वाधिक मात्रा कार्बन की ही होती है। यदि भूमण्डलीय कार्बन की कुल मात्रा का ध्यान करें तो हम यह पाते हैं कि समुद्र में 71 प्रतिशत कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है।

यह सागरीय कार्बन भंडार वायुमण्डल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है (चित्र 14.9)। कुल भूमण्डलीय कार्बन का केवल एक प्रतिशत भाग ही वायुमण्डल में समाहित है। जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के भंडार का प्रतिनिधित्व करता है। कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित व मृतजीवों द्वारा सम्पन्न होता है।

अनुमानानुसार जैव मण्डल में प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 × 1013 कि.ग्रा. कार्बन का स्थिरीकरण होता है। एक महत्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। इसके साथ ही भूमि एवं सागरों की कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री की अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
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पोषक और पादप पोषक में जुड़ते हैं। जब कुल प्राथमिक उत्पादन, श्वसन से अधिक होता है तब पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन-समृद्ध जैविक पदार्थ संचित होता है। प्राचीन समय में इस प्रकार का संचयन जीवाष्मी ईंधन, कोयला और तेल के रूप में होता था। यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है।

लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि के अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त किया जाता है। कार्बन चक्र में मानवीय क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण प्रभाव है। तेजी से जंगलों का विनाश तथा परिवहन एवं ऊर्जा के लिए जीवाश्मी ईंधनों को जलाने आदि से महत्वपूर्ण रूप से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करने की दर बढ़ी है।

(iv) भूमण्डल में कार्बन चक्र के सरलीकृत मॉडल का चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं? एक स्थलीय पारितंत्र में अपघटन चक्र का वर्णन कीजिए। इसका आरेखीय निरूपण बनाइए ।
उत्तर:
अपघटक जटिल कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक तत्त्वों जैसे CO2, जल एवं पोषक पदार्थों में खण्डित करने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया को अपघटन (decomposition) कहते हैं । इस प्रक्रिया में कवक, जीवाणुओं, अन्य सूक्ष्म जीवों के अतिरिक्त छोटे प्राणियों जैसे निमेटोड, कीट, केंचुए आदि का मुख्य योगदान रहता है। पौधों तथा जन्तुओं के मृत अवशेषों को अपरद (detritus) कहते हैं।
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अपघटन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण चरण खंडन निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस बनना (humification) व खनिजीकरण (mineralisation ) हैं। अपरदहारी (जैसे कि केंचुए) अपरद को छोटे-छोटे कणों में खंडित कर देते हैं। इसे खंडन कहते हैं। निक्षालन प्रक्रिया के अन्तर्गत जल – विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदासंस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं।

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‘जीवाणुवीय एवं कवकीय एन्जाइम्स अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्त्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को अपचयन कहते हैं। अपघटन की सभी क्रियायें अपरद पर समानांतर रूप से निरंतर चलती रहती हैं (चित्र को देखिए)। ह्यूमीफिकेशन (humification) और खनिजीकरण (mineralisation) की प्रक्रिया अपघटन के दौरान मृदा में सम्पन्न होती है।

ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्त्व का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस (humus) कहते हैं। इसका अपघटन बहुत ही धीमी गति से चलता रहता है। इसकी प्रकृति कोलाइडल होने से यह पोषक के भंडार का कार्य करता है। ह्यूमस पुन: कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित होता है और खनिजीकरण प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पोषक उत्पन्न होते हैं।
अथवा
(i) पोषक चक्र क्या है?
(ii) भूमण्डल में कार्बन चक्र का आरेखित चित्र बनाकर समझाइये |
उत्तर:
(i) पोषक चक्र (Nutrient Cycle) – एक पारितंत्र के विभिन्न घटकों के माध्यम से पोषक तत्त्वों की गतिशीलता को पोषक चक्र कहा जाता है। पोषक चक्र का एक अन्य नाम जैव भू रसायन चक्र (Biogeochemical cycle) भी है।

(ii) कार्बन चक्र (Carbon Cycle) – जीवों के शुष्क भार का 49% भाग कार्बन से बना होता है। समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में होती है। यह सागरीय कार्बन भंडार वायुमंडल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है। कुल भूमंडलीय कार्बन का केवल एक प्रतिशत भाग वायुमंडल में समाहित है।

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जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के भंडार हैं। कार्बन चक्र वायुमंडल, सागर तथा जीवित एवं मृतजीवों द्वारा सम्पन्न होता है। अनुमानानुसार जैव मंडल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 × 103 किग्रा. कार्बन का स्थिरीकरण होता है । उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमंडल में महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में वापस आती है। इसी के साथ भूमि एवं सागरों के कचरा सामग्री व मृत कार्बनिक सामग्री की अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी CO2 की काफी ।

प्रश्न 6
पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह से आप क्या समझते हैं? विभिन्न पोषण स्तरों में से होते हुए ऊर्जा प्रवाह को समझाइए । एक खाद्य श्रृंखला का आरेखी चित्र बनाइए ।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवेश, स्थानान्तरण, रूपान्तरण एवं वितरण ऊष्मागतिकी के दो मूल नियमों (Law of thermodynamics) के अनुरूप होता है। कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। प्रत्येक जीव को अपनी जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का एकमात्र एवं अन्तिम मुख्य स्रोत सूर्य है। पृथ्वी पर पहुँचने वाली कुल प्रकाश ऊर्जा का केवल 1% भाग प्रकाश संश्लेषण द्वारा खाद्य ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित हो पाता है।

वन वृक्षों में यह दक्षता 5% तक हो सकती है। शेष ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में ह्रास हो जाता है। पृथ्वी पर कुल प्रकाश संश्लेषण का लगभग 90% भाग जलीय पौधों विशेषत: समुद्रीय डायटमों (Diatoms) शैवालों द्वारा सम्पन्न होता है। और शेष भाग स्थलीय पौधों द्वारा होता है। इनमें भी वन वृक्ष सबसे अधिक प्रकाश संश्लेषण करते हैं। इसके बाद कृष्य ( cultivated ) पौधे तथा घास जातियाँ आती हैं।

कोई भी जीव प्राप्त की गई ऊर्जा के औसतन 10% से अधिक ऊर्जा अपने शरीर निर्माण में प्रयोग नहीं कर पाता है तथा शेष 90% ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में श्वसन आदि क्रियाओं में ह्रास हो जाता है अर्थात् खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा के स्थानान्तरण में एक पोष स्तर पर लगभग 10% ऊर्जा ही संग्रहित होती है। इसे पारिस्थितिक दशांश का नियम (Rule of ecological tenthe) कहते हैं।

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इस प्रकार यदि किसी स्थान पर सौर ऊर्जा की मात्रा 100 कैलोरी हो तो पादपों (प्राथमिक उत्पादक) को 10 कैलोरी, उन पादपों का चारण करके शाकभक्षी को केवल 1 कैलोरी और उस शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता) को खाकर मांसाहारी (द्वितीयक उपभोक्ता) में केवल 0.1 कैलोरी ऊर्जा संग्रहित होगी तथा अपघटक तक यह बहुत न्यून मात्रा में पहुँचेगी । वास्तव में ऊर्जा संकल्पना में ऊर्जा का एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में स्थानान्तरण एवं रूपान्तरण है।
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पादप प्लवक → जन्तु प्लवक → छोटी मछली → बड़ी → मछली → मनुष्य

प्रश्न 7.
पारिस्थितिक पिरैमिड से आप क्या समझते हैं? घास मैदान में जैवमात्रा पिरैमिड का वर्णन चित्र की सहायता से कीजिए ।
उत्तर:
यदि पारितंत्र के प्रथम पोष स्तर को आधार मानकर क्रमशः उत्तरोत्तर विभिन्न पोष स्तरों को चित्र में दिखाया जावे तो इससे स्तूपाकार (Pyramid ) लेखाचित्र प्रदर्शित होता है तथा इन्हें ही पारिस्थितिक स्तूप या पिरैमिड कहते हैं। जीवभार के पिरामिड (Pyramid of Biomass ) – पारिस्थितिक तंत्र में भोजन श्रृंखला तथा प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के पारस्परिक सम्बन्ध दर्शाने का अन्य पारिस्थितिक पिरामिड जीवभार पिरामिड है ।

एक पारिस्थितिक तंत्र के जीवों का जो इकाई क्षेत्र में शुष्क भार (Dry Weight) होता है उसे जीवभार (Biomass) कहते हैं। इसमें भी यदि प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के जीवभार के आधार पर लेखाचित्र बनाया जावे तो यह ठीक स्तूप जैसा बनता है। जीवभार या जैवभार के आधार पर जो पिरैमिड बनते हैं उनसे यह ज्ञात होता है कि प्रायः उत्पादक स्तर का जीवभार सर्वाधिक होता है तथा धीरे-धीरे अन्य स्तरों में यह जीवभार क्रमशः कम होता है। जीवभार के आधार पर स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के पिरैमिड सीधे बनते हैं; जैसे- घास के जैवमात्रा के पिरैमिड इसमें उत्पादक से उपभोक्ता की ओर क्रमश: जैवमात्रा की निरन्तर कमी होती जाती है।
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. एक पारितंत्र में सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है? (NEET-2020)
(अ) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से अधिक होती है।
(ब) सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता एक ही हैं और अभिन्न हैं।
(स) सकल प्राथमिक उत्पादकता और नेट प्राथमिक उत्पादकता के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है।
(द) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से कम होती है।
उत्तर:
(अ) सकल प्राथमिक उत्पादकता सदैव नेट प्राथमिक उत्पादकता से अधिक होती है।

2. घास भूमि पारितंत्र में पोषी स्तरों के साथ जातियों के सही उदाहरण को सुमेलित कीजिए- (NEET-2020)

1. चतुर्थ पोषी स्तर(i) कौआ
2. द्वितीय पोषी स्तर(ii) गिद्ध
3. प्रथम पोषी स्तर(iii) खरगोश
4. तृतीय पोषी स्तर(iv) घास
(1)(2)(3)(4)
(अ)(iii)(ii)(i)(iv)
(ब)(iv)(iii)(ii)(i)
(स)(i)(ii)(iii)(iv)
(द)(ii)(iii)(iv)(i)

उत्तर:

(द)(ii)(iii)(iv)(i)

3. निम्नलिखित में से कौनसा पारिस्थितिकी पिरैमिड सामान्यतः उल्टा होता है? (MHCET-2003, Mains-2005, NEET-2019)
(अ) एक समुद्र में जैवभार का पिरैमिड
(ब) घास भूमि में संख्या का पिरैमिड
(स) ऊर्जा का पिरैमिड
(द) एक वन में जैवभार का पिरैमिड
उत्तर:
(अ) एक समुद्र में जैवभार का पिरैमिड

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4. किस पारितंत्र में अधिकतम जैवभार होता है? (NEET-2017)
(अ) वन पारितंत्र
(ब) घास स्थल पारितंत्र
(स) ताल पारितंत्र
(द) झील पारितंत्र
उत्तर:
(अ) वन पारितंत्र

5. एक नग्न चट्टान पर एक अग्रगामी जीव के रूप में निम्नलिखित में से कौन आयेगा? (NEET I-2016)
(अ) मॉस
(ब) हरित शैवाल
(स) लाइकेन
(द) लिवरवर्ट
उत्तर:
(स) लाइकेन

6. इकोसिस्टम (पारितंत्र) शब्द सबसे पहले किसने बनाया था? (RPMT-2005, NEET-2016)
(अ) ई. हेकल
(ब) ई. वार्मिग
(स) ई.पी. ओडम
(द) ए.जी. टेन्सले
उत्तर:
(द) ए.जी. टेन्सले

7. ज्यादातर जन्तु जो गहरे समुद्र में रहते हैं, वे होते हैं- (NEET-2015)
(अ) द्वितीयक उपभोक्ता
(ब) तृतीयक उपभोक्ता
(स) अपरद भोजी
(द) प्राथमिक उपभोक्ता
उत्तर:
(स) अपरद भोजी

8. निम्नलिखित में से दोनों युग्मकों में सही संयोजन है- (NEET-2015)

(अ) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र– कार्बन और सल्फर नाइट्रोजन और फास्फोरस
(ब) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र– नाइट्रोजन और सल्फर कार्बन और फास्फोरस
(स) गैसीय पोषण चक्र अवसादी पोषण चक्र– सल्फर और फास्फोरस कार्बन और नाइट्रोजन
(द) गैसीय पोष्ण चक्त अवसादी पोषण चक्र– कार्बन और नाइट्रोजन् सल्फर और फास्फोरस

उत्तर:

(द) गैसीय पोष्ण चक्त अवसादी पोषण चक्र– कार्बन और नाइट्रोजन् सल्फर और फास्फोरस

9. फास्फोरस का प्राकृतिक भण्डार कौनसा है- (NEET-2013)
(अ) समुद्री जल
(ब) प्राणी अस्थियाँ
(स) शैल
(द) जीवाश्म
उत्तर:
(स) शैल

10. द्वितीयक उत्पादकता किसके द्वारा नये कार्बनिक पदार्थ बनाने की दर है- (NEET-2013)
(अ) उत्पादक
(ब) परजीवी
(स) उपभोक्ता
(द) अपघटक
उत्तर:
(स) उपभोक्ता

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

11. निम्नलिखित में वह कौन एक है जो पारिस्थितिक तंत्र की कोई कार्यात्मक इकाई नहीं है? [CBSE PMT (Pre), NEET-2012]
(अ) ऊर्जा प्रवाह
(ब) अपघटन
(स) उत्पादकता
(द) स्तरीकरण (स्ट्रैटीफिकेशन)
उत्तर:
(द) स्तरीकरण (स्ट्रैटीफिकेशन)

12. संख्या का सीधा पिरामिड किसमें नहीं होता है? [NEET-2012, CBSE PMT (Pre) 2012]
(अ) ताल
(ब) वन
(स) झील
(द) घास स्थल
उत्तर:
(ब) वन

13. निम्नलिखित खाद्य शृंखला में संभावित कड़ी ‘A’ क्या हो सकती है, पहचानिए-
पौधा→ कीट→ मेंढ़क→ ‘A ‘→ गिद्ध [CBSE PMT (Pre)-2012]
(अ) खरगश
(ब) भेड़िया
(स) नाग
(द) तोता
उत्तर:
(स) नाग

14. निम्नलिखित में से वह कौनसा एक प्राणी है जो एक ही पारितंत्र के भीतर एक ही समय पर एक से अधिक पोषक स्तरों को ग्रहण कर सकता है- [NEET 2009, CBSE PMT (Mains)-2011]
(अ) बकरी
(ब) मेंढ़क
(स) गाँरैया
(द) शेर
उत्तर:
(स) गाँरैया

15. चरना (grazing) खाद्य श्शृंखला में, मांसाहारी को कहा जाता है- (Kerala PMT-2011)
(अ) प्राथमिक उत्पादक
(ब) द्वितीयक उत्पादक
(स) प्राथमिक उपभोक्ता
(द) द्वितीयक उपभोक्ता
उत्तर:
(द) द्वितीयक उपभोक्ता

16. केंचुए द्वारा अपशिष्ट को छोटे टुकड़ों में तोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं- (Mains-2011)
(अ) अपचयन
(ब) ह्यूमिकरण
(स) विखण्डन
(द) खनिजीकरण
उत्तर:
(स) विखण्डन

17. ऊर्जा का पिरामिड होता- [RPMT-2005, AMU (Med)-2010, AFMC-2010]
(अ) सीधा
(स) तिरछा
(ब) उल्टा
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) सीधा

18. प्रत्येक ट्रेफिक स्तर के जीव द्वारा ऊर्जा का कितना प्रतिशत उपभोग होता है- (BHU-2005, 2008, DUMET-2010)
(अ) 20%
(ब) 30%
(स) 90%
(द) 10%
उत्तर:
(द) 10%

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

19. एक पारिस्थिनिकी तंत्र के लिए ऊर्जा का स्रोत है- (CPMT-2002, RPMT-2005, Orissa-2010)
(अ) सर्यू
(ब) ATP
(स) पौधों द्वारा निर्मित शर्करा
(द) हरे पौधे
उत्तर:
(अ) सर्यू

20. इकोसिस्टम की प्राथमिक उत्पादकता की प्राय: सीमा क्या होती है? (Orissa JEE-2009)
(अ) सोलर विकिरण
(ब) ऑक्सीजन
(स) उपभोक्ता
(द) नाइट्रोजन
उत्तर:
(अ) सोलर विकिरण

21. सही खाद्य श्रृंखला को पहचानिए- (WB JEE-2009)
मृत जानवर → मैगट फ्लाइ का प्रवाह → सामान्य मेंढ़क → सांप
(अ) चरण खाद्य शृंखला
(ब) मृत खाद्य श्रृंखला
(स) अपघटन खाद्य शृंखला
(द) परभक्षी खाद्य श्रृंखला
उत्तर:
(ब) मृत खाद्य श्रृंखला

22. निम्न में से कौन मनुष्य निर्मित इकोसिस्टम है- (WB JEE-2009)
(अ) हरबेरियम
(ब) एक्यूरेयिम
(स) ऊतक संवर्धन
(द) वन
उत्तर:
(ब) एक्यूरेयिम

23. तालाब के पारितंत्र में कौनसा जीव एक से अधिक पोषक स्तर पर स्थान ग्रहण करता है- (CBSE AIPMT-2009)
(अ) पादपप्लवक
(ब) जन्तुप्लवक
(स) मछली
(द) मेंढक
उत्तर:
(स) मछली

24. निम्न में से कौन अपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है- (WB JEE-2008)
(अ) घास मैदान
(ब) गुफा
(स) नदी
(द) वेट लैण्ड
उत्तर:
(ब) गुफा

25. लघु जीव क्या है? (J&K CET-2008)
(अ) प्रारम्भिक उपभोका
(ब) द्वितीयक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) अपघटक
उत्तर:
(द) अपघटक

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

26. पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा है- (MP PMT-2006)
(अ) पौधे का वह समूह जो ऊर्जा आपूर्ति करता है
(ब) पौधों का वह समूह जो जनसंख्या बनाता है
(स) पारिस्थितिक अध्ययन की कार्यिकी इकाई है
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पारिस्थितिक अध्ययन की कार्यिकी इकाई है

27. अपघटक होते हैं- (BHU-2006)
(अ) स्वपोषी
(ब) ऑर्गेनोट्रॉप्स
(स) स्वतः विषमपोषी
(द) विषमपोषी
उत्तर:
(द) विषमपोषी

28. पारितंत्र होता है- (MP PMT-2002; Orissa JEE-2005)
(अ) खुला
(ब) बंद
(स) दोनों खुला और बंद
(द) न ही खुला न बंद
उत्तर:
(अ) खुला

29. झील पारितंत्र में जैवभार का पिरैमिड होता है- (Bihar-2005)
(अ) सीधा
(ब) उल्टा
(स) कोई भी संभव है
(द) कोई भी सत्य नहीं है
उत्तर:
(ब) उल्टा

30. स्थाई पारितंत्र में पिरैमिड जो उल्टा नहीं हो सकता, वह पिरैमिड है- (HP PMT-2005; ORISSA JEE-2005)
(अ) संख्या का
(ब) ऊर्जा का
(स) जैव भार (Biomass) का
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) ऊर्जा का

31. यदि पारितंत्र को बनाये रखा जाये तो निम्न में से क्या परिरक्षित रह पायेगा- (Kerala PMT-2004)
(अ) उत्पादक तथा मांसाहारी
(ब) उत्पादक तथा अपघटक
(स) मांसाहारी तथा अपघटक
(द) शाकाहारी तथा मांसाहारी
उत्तर:
(ब) उत्पादक तथा अपघटक

32. शाकाहारी से मांसाहारी स्तर में ऊर्जा स्थानान्तरण में कितनी कमी आती है- (AIEEE-2004)
(अ) 5%
(ब) 10%
(स) 20%
(द) 30%
उत्तर:
(ब) 10%

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33. खाद्य शृंखला के समय सर्वाधिक ऊर्जा संचित होती है- (MHCET-2001; Pb. PMT-2004)
(अ) उत्पादक
(ब) अपघटक
(स) शाकाहारी
(द) मांसाहारी
उत्तर:
(अ) उत्पादक

34. ये प्राथमिक उपभोक्ता की श्रेणी से संबंधित होते हैं- (KCET-2004)
(अ) सर्प और मेंढक
(ब) जलीय कीट
(स) बाज और सर्प
(द) कीट और मवेशी
उत्तर:
(द) कीट और मवेशी

35. खाद्य श्रृंखला का प्रारम्भ होता है- (BVP-2002; MP PMT-2004)
(अ) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवों से
(ब) प्रकाश-संश्लेषण से
(स) श्वसन से
(द) अपघटकों से
उत्तर:
(ब) प्रकाश-संश्लेषण से

36. खाद्य शृंखला में जीवित पदार्थों की कुल मात्रा को किसके द्वारा प्रदर्शित किया जाता है- (Pb. PMT-2004)
(अ) जैवभार के पिरैमिड
(ब) ऊर्जा का पिरैमिड
(स) संख्या का पिरैमिड
(द) पोषक स्तर
उत्तर:
(अ) जैवभार के पिरैमिड

37. निम्न में से किस पारितंत्र की सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता उच्चतम है- (CBSE PMT-2004)
(अ) घास के मैदान
(ब) कोरल रीफ
(स) मैन्यूव
(द) वर्षा वन
उत्तर:
(ब) कोरल रीफ

38. पादप अनुक्रमण में अंतिम स्थिर समुदाय कहलाता है- (DPMT-2004)
(अ) क्रमक समुदाय
(ब) अग्रणी समुदाय
(स) इकोस्फीयर
(द) चरम समुदाय
उत्तर:
(द) चरम समुदाय

39. निम्नलिखित में से कौनसा सर्वाधिक स्थाई पारितंत्र है- (RPMT-2004)
(अ) वन का
(ब) पर्वतों का
(स) मरुस्थल का
(द) सागर का
उत्तर:
(द) सागर का

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

40. निम्नलिखित में से किस पारितंत्र में उच्च सकल प्राथमिक उत्पादकता होती है- (DPMT-2003)
(अ) मैंग्रूव
(ब) वर्षा वन
(स) कोरल रीफ्स
(द) घास स्थल
उत्तर:
(ब) वर्षा वन

41. यदि अपघटनकर्ताओं को हटा दिया जाये तो पारिस्थितिक तंत्र का क्या होगा? (BHU-2003)
(अ) ऊर्जा का चक्रीकरण रुक जायेगा
(ब) खनिजों का चक्रीकरण रूक जायेगा
(स) उपभोक्ता सौर ऊर्जा को अवशोषित नहीं कर पायेंगे
(द) खनिजों के विखंडन की दर बढ़ जायेगी।
उत्तर:
(ब) खनिजों का चक्रीकरण रूक जायेगा

42. जैव संतुलन किसमें पाया जाता है- (MHCET-2003)
(अ) केवल उत्पादक
(ब) उपभोक्ता एवं उत्पादक
(स) अपघटक
(द) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक
उत्तर:
(द) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक

43. किसी पारितंत्र में प्रकाश ऊर्जा का कार्बनिक अणुओं की रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन की दर कहलाती है- (Kerala CET-2003)
(अ) नेट प्राथमिक उत्पाद्कता
(ब) सकल द्वितीयक उत्पादकता
(स) नेट द्वितीयक उत्पादकता
(द) सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता
उत्तर:
(द) सकल (Gross) प्राथमिक उत्पादकता

44. खाद्य शृंखला में सम्मिलित है- (MP PMT-2000, 03)
(अ) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटनकर्त्ता
(ब) उत्पादक, मांसाहारी एवं अपघटनकर्त्ता
(स) उत्पादक एवं प्राथमिक उपभोक्ता
(द) उत्पादक, शाकाहारी एवं मांसाहारी
उत्तर:
(अ) उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटनकर्त्ता

45. खाद्य भृंखला में शेर है एक- (MHCET-2003)
(अ) द्वितीयक उपभोक्ता
(ब) प्राथमिक उपभोक्ता
(स) तृतीयक उपभोक्ता
(द) द्वितीयक उत्पादक
उत्तर:
(स) तृतीयक उपभोक्ता

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र

46. पारितंत्र में होते है- (PB PMT-2003)
(अ) उत्पादक
(ब) उपभोक्ता
(स) अपघटक
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

47. फॉस्फोरस चक्र में अपक्षरण द्वारा उत्पन्न फॉस्फेट सर्वप्रथम उपलब्ध होती है- (AMU-2002)
(अ) उत्पादकों को
(ब) अपघटकों को
(स) उपभोक्ताओं को
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) उत्पादकों को

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HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. ठंडी जलवायु वाले स्तनधारियों के कान व पाद प्रायः छोटे होते हैं ताकि उष्मा की हानि कम से कम होती है, यह किसका नियम है?
(अ) ऐलन का नियम
(ब) बेलन का नियम
(स) हेलन का नियम
(द) डेलन का नियम
उत्तर:
(अ) ऐलन का नियम

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

2. तुंगता बीमारी का लक्षण है-
(अ) मिचली आना
(ब) थकान आना
(स) हृदय स्पंदन में वृद्धि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

3. समष्टि का दूसरा विशिष्ट गुण है-
(अ) लिंग अनुपात
(ब) जन्म दर
(स) मृत्यु दर
(द) यूरीथर्मल
उत्तर:
(अ) लिंग अनुपात

4. ध्रुवीय समुद्रों में सील जैसे जलीय स्तनधारियों में उनकी त्वचा के नीचे वसा (तिमिवसा/बलबर) की मोटी परत होती है। इसका क्या कार्य है?
(अ) उष्माशोषी
(ब) उष्मारोध (इंसुलेटर)
(स) अस्टिवेशन
(द) डॉरमेसी
उत्तर:
(ब) उष्मारोध (इंसुलेटर)

5. नागफनी (ओपंशिया) का कौनसा भाग प्रकाश संश्लेषण का प्रकार्य करता है?
(अ) चपटा तना
(ब) पत्ती
(स) पुष्प
(द) कांटों द्वारा
उत्तर:
(अ) चपटा तना

6. डायापॉज (Diapause) की परिघटना सम्बन्धित है-
(अ) निम्न ताप के प्रति अनुकूलन
(ब) उच्च ताप के प्रति अनुकूलन
(स) विषम ताप के प्रति अनुकूलन
(द) रंग प्रतिरूप
उत्तर:
(अ) निम्न ताप के प्रति अनुकूलन

7. ‘स्पर्धी” अपवर्जन नियम (Competitive exclusion principle) को देने वाले थे-
(अ) प्रो. रामदेव मिश्र
(स) ऐलन
(ब) गॉसे
(द) स्वामीनाथन
उत्तर:
(ब) गॉसे

8. चारघातांकी वृद्धि के अन्तर्गत जब ग्राफ बनाया जाता है तो यह किस प्रकार का बनता है?
(अ) S-आकार का
(ब) J-आकार का
(स) L-आकार का
(द) M-आकार का
उत्तर:
(ब) J-आकार का

9. शीतनिष्क्रियता (hibernation) ग्रीष्मनिष्क्रियता (aestivation) व उपरति (diapause) किससे सम्बन्धित है?
(अ) प्रवास करने से
(ब) समष्टि से
(स) अनुकूलन से
(द) नियमन से
उत्तर:
(स) अनुकूलन से

10. पृथ्वी की सतह के स्वरूप और व्यवहार से सम्बन्धित कारक कहलाता है-
(अ) मृदीय
(ब) स्थलाकृतिक
(स) जलवायवीय
(द) जैविक
उत्तर:
(ब) स्थलाकृतिक

11. निम्न तापक्रम पर पौधे मर जाते हैं क्योंकि-
(अ) धानीयुक्त जीवद्रव्य (Vacuolated Protoplasm) से जल निकल जाता है और पौधे सूख जाते हैं
(ब) बर्फ के यांत्रिक दबाव (Mechanical Pressure) के कारण कोशिकाएँ फट जाती हैं
(स) कोशिकीय प्रोटीनों का अवक्षेपण हो जाता है
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

12. पादप वृद्धि के लिए सबसे उपयुक्त है-
(अ) बलुई मृदा
(ब) दोमट मृदा
(स) मृण्मय मृदा
(द) बजरी
उत्तर:
(ब) दोमट मृदा

13. निम्नलिखित में से कौनसा कारक प्रथमतः किसी स्थान की वनस्पति को निर्धारित करता है?
(अ) जलवायवीय
(ब) स्थलाकृतिक
(स) जैविक
(द) मृदीय
उत्तर:
(अ) जलवायवीय

14. समष्टि घनत्व बढ़ता है-
(अ) तीव्र मृत्युदर से
(ब) स्वदेश त्याग से
(स) देशान्तरवास
(द) उपरोक्त किसी से नहीं
उत्तर:
(स) देशान्तरवास

15. जलीय तल में सबसे नीचे का स्तर है-
(अ) एपिलिम्निओन (Epilimnion)
(ब) थर्मोक्लीन (Thermocline)
(स) हाइपोलिम्निओन (Hypolimnion)
(द) मीजोलिम्निओन (Mesolimnion)
उत्तर:
(स) हाइपोलिम्निओन (Hypolimnion)

16. प्राणी जो तापक्रम की वृहद परास को सहन कर सकते हैं, कहते हैं-
(अ) यूरीथर्मल (Eurythermal)
(ब) स्टीनोथर्मल (Stenothermal)
(स) पेरीथर्मल (Perithermal)
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) यूरीथर्मल (Eurythermal)

17. निम्न में से एक्टोथर्मिक प्राणी होते हैं-
(अ) शीतरूधिरधारी प्राणी (Poikilothermic animals)
(ब) गर्मरुधिर प्राणी (Homeothermic animals)
(स) विषमजातीय प्राणी (Heterothermic animals)
(द) (ब) व (स) दोनों
उत्तर:
(अ) शीतरूधिरधारी प्राणी (Poikilothermic animals)

18. भू-आकृतिक या स्थलाकृतिक (topographic) कारक है-
(अ) ऊँचाई, वर्षा व वायु की आर्द्रता
(ब) ढलानों की प्रवणता, वर्षा व ऊँचाई
(स) वर्षा, प्रकाश व वायुमण्डल का तापक्रम
(द) ढलानों की प्रवणता, ऊँचाई व घाटियाँ
उत्तर:
(द) ढलानों की प्रवणता, ऊँचाई व घाटियाँ

19. जैविक कारक के अन्तर्गत विभिन्न जातियों के मध्य वह सहयोग जिसमें एक को लाभ परन्तु हानि दोनों में से किसी को नहीं होगी-
(अ) प्राक्-सहयोग
(ब) सहोपकारिता
(स) सहभोजिता
(द) परजीविता
उत्तर:
(ब) सहोपकारिता

20. परजीविता और परभक्षण में होता है-
(अ) दोनों जातियों को लाभ
(ब) दोनों जातियों को हानि
(स) एक जाति को लाभ व दूसरी जाति को हानि
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) एक जाति को लाभ व दूसरी जाति को हानि

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

21. जैविक कारक में जब दोनों सहयोगी जातियाँ लाभान्वित होती हैं तो इस प्रकार के सम्बन्ध को कहते हैं-
(अ) प्राक्-सहयोग
(ब) सहोपकारिता
(स) सहयोजिता
(द) परजीविता
उत्तर:
(ब) सहोपकारिता

22. मृदा में उपस्थित अपक्षयित होते कार्बनिक पदार्थों को कहते हैं-
(अ) ह्यूमस
(ब) ह्यूमिक-सम्मिश्र
(स) डफ
(द) करकट
उत्तर:
(अ) ह्यूमस

23. अजैविक कारकों के प्रति अनुक्रियाओं के अन्तर्गत नियमन (regulate) करने वाले प्राणी हैं-
(अ) सभी पक्षी
(ब) स्तनधारी
(स) कुछ निम्न कशेरुकी (Vertebrates) व कुछ अकशेरूकी जातियाँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

24. राजस्थान के केवलादेव राप्र्रीय उद्यान में प्रवासी पक्षी कहाँ से आते हैं?
(अ) आस्ट्रेलिया
(ब) नाइजीरिया
(स) साइबेरिया
(द) इथोपिया
उत्तर:
(स) साइबेरिया

25. मरूद्भिदी प्रवृत्तियाँ तथा सजीवप्रजकता किन पादपों में पाई जाती है?
(अ) मरूद्भिदों में
(ब) अम्लोद्भिदों में
(स) लवणमृदोद्भिदों में
(द) दरारोद्धिभों में
उत्तर:
(स) लवणमृदोद्भिदों में

26. एक जीव वैज्ञानिक ने खलिहान में चूहों की समष्टि का अध्ययन किया। उसने पाया कि औसत जन्म दर 250 है, औसत मृत्यु दर 240 है, अप्रवासन दर 20 है और उत्प्रवासन दर 30 है। समएि की शुद्ध वृद्धि कितनी है ?
(अ) 10
(ब) 15
(स) 05
(द) शून्य
उत्तर:
(द) शून्य

27. यदि ‘+’ चिह्न को लाभदायी परस्पर क्रिया के लिए,’-‘ चिन्द को हानिकारक के लिए और ‘O’ चिह्न को उदासीन परस्पर क्रिया के लिए दिया जाता है, तो ‘+’ ‘-‘ द्वारा प्रदर्शित समष्टि परस्पर क्रिया किसे संदर्भित करती है?
(अ) सहयोजिता
(ब) परजीविता
(स) सहपरोपकारिता
(द) अंतरजातीय परजीविता
उत्तर:
(ब) परजीविता

28. ऑफ्रिस (Ophrys) नामक भूमध्य सागरीय मेडिटेरिनियन आर्मिड की एक जाति परागण कराने के लिए किसका सहारा लेती है-
(अ) लैंगिक कपट
(ब) अलैंगिक कपट
(स) कायिक कपट
(द) असूत्री कपट
उत्तर:
(अ) लैंगिक कपट

29. किसके पुष्प के साथ मक्षिका कूट मैथुन (Pseudo Copulates) करती है?
(अ) ऑंक्रिस आर्मिड
(ब) सरसों
(स) एल्थेरोजिया
(द) अंजीर
उत्तर:
(अ) ऑंक्रिस आर्मिड

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

30. आमडा (Calotropis) में पाये जाने वाला विषैला पदार्थ होता है-
(अ) ग्लाइकोसाइड
(ब) निकोटीन
(स) कैफीन
(द) क्वीनीन
उत्तर:
(अ) ग्लाइकोसाइड

31. नीचे दिये जा रहे चित्र में जीवधारियों की अजैविक कारकों के प्रति अनुक्रिया का एक आरेखीय निरूपण दिया गया है। इसमें रेखायें (i), (ii) तथा (iii) क्रमशः किनके प्रतिदर्श हैं-
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 1

(i)(ii)(iii)
(अ) नियामकआंशिक नियामकसंरूपक
(ब) आंशिक नियामकनियामकसंरूपक
(स) नियामकसंरूपकआंशिक नियामक
(द) संरूपकनियामकआंशिक नियामक

उत्तर:

(स) नियामकसंरूपकआंशिक नियामक

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
सहोपकारिता व सहभोजिता में अंतर बताइये।
उत्तर:
सहोपकारिता में संपर्क में रहने वाले जीवों को आपस में लाभ होता है जबकि सहभोजिता में केवल एक जीव को ही लाभ तथा दूसरे को न लाभ न हानि होती है।

प्रश्न 2.
ऐलन का नियम क्या बताता है?
उत्तर:
ठंडी जलवायु वाले स्तनधारियों के कान व पाद प्रायः छोटे होते हैं ताकि ऊष्मा की हानि कम से कम होती है।

प्रश्न 3.
छोटे आकार के गुंजन पक्षियों के लिये ध्रुवीय प्रदेश एक उपयुक्त आवास क्यों नहीं है?
उत्तर:
गुंजन पक्षी ध्रुवीय प्रदेश की सर्दी को सहन नहीं कर पाने के कारण यह आवास इनके उपयुक्त नहीं होता है।

प्रश्न 4.
प्रकृति में परभक्षण द्वारा निभायी जाने वाली कोई दो महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ बताइये।
उत्तर:
परभक्षण द्वारा भक्षों की संख्या को नियंत्रित करना तथा खाद्य श्रृंखला का क्रियान्वयन करना है।

प्रश्न 5.
किसी जीव के पारिस्थितिक निकेत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जैवीय पर्यावरण में प्राणी का स्थान तथा पारितंत्र में इसकी भूमिका को पारिस्थितिकी निकेत कहते हैं।

प्रश्न 6.
कीट पीड़कों (pest/ insect) के प्रबंध के लिये जैव- नियंत्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धांत है ?
उत्तर:
कीट पीड़कों को उनके शिकारियों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
शरीर की ऊष्मा हानि को कम करने के अनुकूलन का उदाहरण दें।
उत्तर:
ध्रुवीय समुद्रों में सील जैसे जलीय स्तनधारियों में उनकी त्वचा के नीचे बसा की मोटी परत होती है जो ऊष्मारोधी (insulator) का कार्य करती है व शरीर की ऊष्मा हानि को कम करती है।

प्रश्न 8.
प्राणियों में प्रवास क्रिया का उदाहरण दीजिये, यह क्यों होता है?
उत्तर:
प्रत्येक शीत ऋतु में साइबेरिया व अन्य अधिक ठण्डे उत्तरी क्षेत्रों से आने वाले प्रवासी पक्षियों का तांता राजस्थान स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर में लगा रहता है। अनुकूलता आते ही ये पक्षी वापस लौट जाते हैं। प्रतिकूलता से बचने के लिये ये पक्षी वहाँ से यहाँ आते हैं। इसे प्रवास करना कहते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँb

प्रश्न 9.
पृथुलवणी व तनुलवणी क्या होते हैं?
उत्तर:
जो जीव लवणता की व्यापक परास के प्रति सहनशील होते हैं, उन्हें पृथुलवणी (Eurohaline) तथा कम परास में रहने वालों को तनुलवणी ( Stenohaline) कहते हैं।

प्रश्न 10.
अनुकूलनों का विकास किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
एक लम्बे समय में प्राकृतिक वरण द्वारा अपने आवास में उत्तरजीविता (survival) व जनन को इष्टतम बनाने के लिये जीव ने अनुकूलनों का विकास किया है।

प्रश्न 11.
तुंगता बीमारी का समाधान हमारा शरीर किस प्रकार करता है?
उत्तर:
यह बीमारी उच्च तुंगता वाले स्थानों पर होती है। हमारा शरीर कम O2 उपलब्ध होने की क्षतिपूर्ति लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ाकर, हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता पटाकर और श्वसन दर बढ़ाकर करता है।

प्रश्न 12.
किन स्थानों के व्यक्तियों में लाल रुधिर कोशिकाओं की संख्या व कुल हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है?
उत्तर:
जो व्यक्ति उच्च तुंगता वाले स्थलों पर रहते हैं उनके अन्दर लाल रुधिर कोशिकाओं की संख्या व कुल हीमोग्लोबिन की मात्रा मैदानी क्षेत्रों वाले व्यक्तियों से अधिक होती है।

प्रश्न 13.
आयु पिरैमिड क्या दर्शाता है?
उत्तर:
पिरैमिड का आकार समष्टि की स्थिति को प्रतिबिंबित करता है क्या यह बढ़ रहा है, स्थिर है या घट रहा है?

प्रश्न 14.
समष्टि साइज का मापन किस विधि से अधिक उपयुक्त है?
उत्तर:
समष्टि साइज के माप के लिये प्रतिशत आवरण अथवा जीव भार (Biomass) अधिक उपयुक्त है।

प्रश्न 15.
आप्रवासन ( immigration) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी जाति के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समय अवधि के दौरान आवास में कहीं और से आये हैं।

प्रश्न 16.
उत्प्रवासन (emigration) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समष्टि के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समयावधि के दौरान आवास छोड़कर कहीं और चले गये हैं।

प्रश्न 17.
यदि समय पर समष्टि घनत्व N है तो समय + पर इसका घनत्व क्या होगा?
उत्तर:
Nt+1 = N1 + [(B + 1) (D +E)]
B + 1 = जन्म लेने वालों की संख्या जमा आप्रवासियों की संख्या ।
D + E – मरने वाले की संख्या जमा उत्प्रवासियों की संख्या ।

प्रश्न 18.
डार्विन योग्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
समष्टियाँ जिस आवास में रहती हैं, उसमें अपनी जनन योग्यता को डार्विन योग्यता कहते हैं।

प्रश्न 19.
कुछ जीव अपने जीवन काल में केवल एक बार प्रजनन करते हैं, इसके दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
प्रशांत महासागरीय सामन मछली (Salmon Fish) तथा बाँस (Bamboo)।

प्रश्न 20.
ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिये जो कुछ छोटी साइज की संतति बहुत बड़ी संख्या में उत्पन्न करती है।
उत्तर:
ऑयस्टर (Oysters) और पैलेजीक मछलियाँ ( Pelagic Fishes)।

प्रश्न 21.
कोई दो उदाहरण बताइये जिसमें बड़ी साइज की संतति कम संख्या में उत्पन्न करती है ।
उत्तर:
पक्षी और स्तनधारी ।

प्रश्न 22.
परजीविता व परभक्षण में किसको लाभ व हानि होती है?
उत्तर:
परजीवी व परभक्षी को लाभ होता है तथा परपोषी व शिकार को हानि होती है।

प्रश्न 23.
परभक्षी किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
ये शिकार समष्टि को नियंत्रण में रखते हैं। यदि परभक्षी नहीं होते तो शिकार जातियों का समष्टि घनत्व बहुत ज्यादा हो जाता और परितंत्र में अस्थिरता आ जाती।

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प्रश्न 24.
मैंग्रोव (Mangrove) वनस्पति क्या है?
उत्तर:
उष्ण व उपोष्ण कटिबन्धों के समुद्रतटों पर मैंग्रोव वन पाये जाते हैं। इनकी मूलों को न्यूमेटोफोर कहते हैं तथा इनमें सजीव प्रजक बीजांकुरण पाया जाता है। जैसे- राइजोफोरा ।

प्रश्न 25.
मरुस्थलीय पौधों में वाष्पोत्सर्जन को कम करने हेतु पाये जाने वाले कोई चार अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:
चार अनुकूलन निम्न हैं-

  • पर्ण तथा स्तम्भ की अधिचर्म मोटी क्यूटिकल युक्त होती है।
  • रन्ध्र (Stomata) गहरे गर्त में अर्थात् गर्ती रन्ध्र होते हैं, जैसे- कनेर ।
  • पत्तियाँ कांटों में रूपान्तरित हो जाती हैं।
  • तने व पत्तियों में मोम के समान आवरण पाया जाता है जो वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
किसी कार्यिकीय अनुकूलन को उदाहरण सहित समझाइये |
उत्तर:
कुछ जीवों के अनुकूलन कार्यिकीय होते हैं जिसकी वजह से वे दबावपूर्ण परिस्थितियों के प्रति शीघ्र अनुक्रिया करते हैं। यदि हमें कभी उच्च तुंगता वाले क्षेत्र में जाने का मौका मिले (3,500 मी. से अधिक, मनाली के पास रोहतांग दर्रा, तिब्बत में मानसरोवर) तो वहाँ ‘तुंगता बीमारी’ का अवश्य अनुभव होता है। इस ‘बीमारी’ के लक्षण हैं- मिचली, थकान और हृदय स्पंदन में वृद्धि ।

इसका कारण यह है कि उच्च तुंगता वाले क्षेत्र में वायुमंडलीय दाब कम होता है इसलिए शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती। लेकिन धीरे-धीरे पर्यानुकूलित (एक्लेमिटाइज्ड) हो जाते हैं और फिर हमें तुंगता बीमारी का अनुभव नहीं होता। इस समस्या का समाधान हमारा शरीर स्वयं करता है।

हमारा शरीर कम ऑक्सीजन उपलब्ध होने की क्षतिपूर्ति लाल रुधिर कोशिका का उत्पादन बढ़ाकर, हीमोग्लोबिन की बंधनकारी क्षमता घटाकर और श्वसन दर बढ़ाकर करता है। हिमालय के ऊँचे क्षेत्रों में अनेक जनजातियाँ रहती हैं जिसमें मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों की तुलना में सामान्यतया लाल रुधिर कोशिकाओं की संख्या (या कुल हीमोग्लोबिन) ज्यादा होती है।

प्रश्न 2.
जलवायु तथा मौसम में भेद कीजिये ।
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष की जलवायु से तात्पर्य उस क्षेत्र के जलवायवीय कारकों (प्रकाश, तापमान, वर्षण, पवन, वायुमण्डलीय गैसें, आर्द्रता आदि) की मात्रा के वर्षभर के औसत से होता है। जब इन्हीं कारकों की मात्रा का निर्धारण अल्पावधि के लिये नियत जगह पर किया जाये तो मौसम कहलाता है। इस प्रकार मौसम में साप्ताहिक, दैनिक परिवर्तन होते हैं, जबकि जलवायु का निर्धारण दीर्घकालिक ऋतुओं और वर्षों के आधार पर होता है।

प्रश्न 3.
सजीव प्रजकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अधिकांश लवणोद्भिद् में सजीवप्रजक बीजांकुरण पाया जाता है। इसमें बीज का अंकुरण फल के भीतर मातृ पौधे पर ही हो जाता है, इसे ही सजीवप्रजकता कहते हैं। मैंग्रोव वनस्पति में इस प्रकार का बीजांकुरण पाया जाता है। इनके बीजों में विश्रामी अवस्था नहीं होती है। जैसे ही फल का भार बढ़ता है तो वह टूटकर नीचे दलदली भूमि पर गिरता है तथा इससे नये पौधे का विकास हो जाता है।

प्रश्न 4.
आतपोद्भिद तथा छायोद्भिद में अन्तर लिखिये ।
उत्तर:
आतपोद्भिद और छायोद्भिद पादपों में अन्तर-

आतपोद्भिद (Heliophytes)छायोद्भिद (Sciophytes)
1. जड़ें विकसित, संख्या में अधिक तथा पूर्ण शाखित होती हैं।जड़ें छोटी, संख्या में कम और अल्प शाखित होती हैं।
2. तना सुदृढ़ तथा जाइलम पूर्ण विकसित होता है।तना पतला, दुर्बल तथा जाइलम अल्प विकसित होता है।
3. पत्तियाँ छोटी, हल्की हरी तथा मोटी होती हैं।पत्तियाँ बड़ी, गहरी हरी तथा पतली होती हैं।
4. पर्णरंध्रों (Stomata) की संख्या अधिक होती है। पर्णरंध्र निचली सतह पर ऊपरी सतह की अपेक्षा अधिक होते हैं।पर्णरंध्रों की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है तथा दोनों सतहों पर समान रूप से वितरित होते हैं।
5. पर्णमध्योतक (Mesophyll tissue) में खंभ ऊतक (Palisade tissue) अधिक विकसित तथा अन्तराकोशिकीय अवकाश काफी छोटे होते हैं।पर्णमध्योतक में स्पंजी ऊतक (Spongy tissue) अधिक विकसित तथा अन्तराकोशिकीय अवकाश (Inter-cellular space) अपेक्षाकृत अधिक होते हैं।
6. यांत्रिक ऊतक (Mechanical tissues) पूर्ण विकसित होते हैं।यांत्रिकी ऊतक अल्प विकसित या अनुपस्थित होते हैं।
7. पुष्प एवं फल उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है।पुष्प एवं फल उत्पन्न करने की क्षमता अपेक्षाकृत बहुत कम होती है।
8. खनिज लवणों की मात्रा अधिक होती है। इस कारण कोशिकाओं का परासरण दाब अधिक होता है।खनिज लवणों की मात्रा कम होती है। कोशिकाओं का परासरण दाब कम होता है।

प्रश्न 5.
ह्यूमस के प्रकार और निर्माण को समझाइये।
उत्तर:
मृदा के मृत अपघटित कार्बनिक अवशेषों को ह्यूमस कहते हैं। यह मृदा की उर्वरकता के लिये अति आवश्यक है। यह मुख्य रूप से पौधों तथा जन्तुओं के अवशेषों तथा उनके उत्सर्जी पदार्थों के अपघटन से बनता है। केंचुए ह्यूमस निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। मृत कार्बनिक पदार्थों का अपघटन मृदा सूक्ष्म जीवों, जैसे- जीवाणुओं, कवकों आदि द्वारा होता है। ह्यूमस निर्माण प्रक्रिया को ह्यूमीफिकेशन (Humification) कहते हैं तथा ह्यूमस का खनिज लवणों में परिवर्तन खनिजीकरण (Mineralization) कहलाता है।

ह्यूमस दो प्रकार के होते हैं-

  • मोर ह्यूमस (Mor Humus) – यह ह्यूमस अपरिपक्व अवस्था में होता है। इसमें खनिज लवण अपेक्षाकृत कम होते हैं। मृदा में केंचुओं का अभाव होता है। इसकी pH 3.8 4.0 होती है। अपघटन धीरे-धीरे होता है।
  • मल ह्यूमस (Mull Humus) – यह परिपक्व ह्यूमस होता है। इसमें केंचुओं की बाहुल्यता होती है। मृदा की pH 5.0 होती है। अपघटन तेजी से होता है।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिये-
(i) वसन्तीकरण
(ii) दीप्तिकालिकता ।
उत्तर:
(i) वसन्तीकरण (Vernalization) – कुछ पौधों में पुष्पीकरण न्यूनताप मिलने पर होता है। बीज पर न्यून तापक्रम प्रयोग द्वारा पुष्पीकरण शीघ्र प्राप्त करने की क्रिया को वसन्तीकरण कहते हैं । इसके लिये ऑक्सीजन की उपस्थिति आवश्यक होती है। वसन्तीकरण में वर्नेलिन (Vernalin) नामक पदार्थ बनता है जो फ्लोरीजन (Florigen ) या जिबरेलिन में परिवर्तित हो जाता है तथा यह पुष्पीकरण को समय से पूर्व प्रारम्भ करने के लिए उत्तरदायी होता है।

(ii) दीप्तिकालिकता (Photoperiodism)- पौधों के पुष्पीकरण तथा फलन क्रियाओं पर दैनिक प्रकाश की अवधि का प्रभाव पड़ता है, इसे दीप्तिकालिकता कहते हैं। दैनिक प्रकाश अवधि के प्रभाव के अनुसार पुष्पी पादपों को तीन वर्गों में बांटा गया है-

  • दीर्घ – प्रकाशीय (दीप्तिकाली) पौधे
  • अल्प- प्रकाशीय (दीप्तिकाली) पौधे
  • प्रकाश या दिवस निरपेक्ष पौधे ।

तापमान दीप्तिकालिकता को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसके अलावा पौधे की आयु और उसका प्रकार (श्यान या ऊर्ध्ववर्ती) भी दीप्तिकालिकता को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 7.
शुष्कतारोधी पादपों में पाये जाने वाले चार आकारिकी व शरीर क्रियात्मक अनुकूलन बताइये ।
उत्तर:
आकारिकी अनुकूलन-

  • मूलतंत्र सुविकसित, शाखित, गहरा तथा प्रसारित मूल रोम व मूल गोप पूर्ण विकसित होते हैं।
  • तना चपटा व मांसल हो जाता है तथा पर्ण व स्तम्भ दोनों का कार्य करता है, जिसे पर्णाभ स्तम्भ कहते हैं, जैसे-नागफनी, कोकोलाबा ।
  • पत्तियाँ बहुकोशिकीय रोमों से ढँकी होती हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन कम होता है, जिसे रोम पर्ण पादप (Trichophyllous Plants) कहते हैं, जैसे- केलोट्रापिस ।
  • इनमें हाइड्रोकेसी या आर्द्रता स्फुटन का लक्षण पाया जाता है।

शारीरिकीय अनुकूलन-

  1. पर्ण तथा स्तम्भ की अधिचर्म मोटी क्यूटिकल युक्त होती है।
  2. रंध्र गहरे गर्त में अर्थात् गर्ती रंध्र होते हैं, जैसे- कनेर ।
  3. यांत्रिक व संवहन ऊतक सुविकसित होती है।
  4. अधिचर्म तथा अधश्चर्म में क्यूटीन, लिग्निन, सूबेरिन का निक्षेपण होता है।

प्रश्न 8.
पहाड़ियों के तीव्र ढलानों पर वनस्पति क्यों नहीं पायी जाती है? कारण सहित समझाइये |
उत्तर:
ढलान प्रवणता जितनी अधिक होगी वर्षाजल उतने ही वेग से नीचे की ओर प्रवाहित होगा। यह ढलानों की मृदा के गुणों को बदलता है। तीव्र ढलानों पर भूमि को जल अवशोषित करने का अवसर नहीं मिल पाता है, अतः अधिक ढलान वाले भागों पर कम वनस्पति, कम प्रवणता के ढलानों पर अपेक्षाकृत सघन वनस्पति पायी जाती है। अधिक प्रवणता वाले ढलानों पर वर्षा व वायु द्वारा होने वाला मृदा अपरदन भी अधिक होता है और ऐसे ढलानों पर पादप नहीं पाये जाते हैं।

प्रश्न 9.
पारिस्थितिकी में वनस्पति को ताप आधारित संवर्गों में वगीकृत किया गया है। इन संवर्गों के नाम दीजिये तथा प्रत्येक की ताप स्थिति व वनस्पति प्रकार का वर्णन कीजिये ।
उत्तर:
संवर्गों के नाम-

  1. उच्चतापी – ये वे पौधे हैं, जिन्हें वृद्धि व विकास के लिए निरन्तर उच्च तापक्रम चाहिए। उदाहरण- मरुस्थल, घास वन आदि ।
  2. मध्यतापी – पौधे निम्न तापक्रम को कुछ समय सह सकते हैं। उच्च एवं न्यून तापक्रम एकान्तर क्रम में पाया जाता है। उदाहरण- उष्णकटिबन्ध वन ।
  3. निम्नतापी- इनमें न्यून तापक्रम पर वृद्धि एवं विकास होता है। उदाहरण- शीतोष्ण वन ।
  4. अतिनिम्नतापी या हैकिस्टोथर्म- ये अधिकांशत: न्यून तापक्रम पर वृद्धि एवं विकास करते हैं, अल्पाइन वनस्पति ।

प्रश्न 10.
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है? इनके विभिन्न कारकों के शीर्षक लिखिये ।
उत्तर:
पर्यावरण से तात्पर्य है ‘चारों ओर से घेरे हुये। पर्यावरण अनेक कारकों का मिला-जुला एक जटिल सम्मिश्र है जो जीव को चारों ओर से घेरे हुए है। कोई पदार्थ या परिस्थिति या बाहरी बल जो जीव के जीवन को किसी भी प्रकार से प्रभावित करे, वह पर्यावरण कारक होता है। इन्हें पर्यावरण कारक या पारिस्थितिकी कारक कहते हैं। ये कारक जैविक या अजैविक हो सकते हैं। अजैविक व जैविक कारकों का जटिल सम्मिश्र ही जीव का पर्यावरण बनता है। पर्यावरणी कारकों को निम्न चार वर्गों में वगीकृत किया गया है-

1. जलवायवी या वायुव कारक – इसमें
(अ) प्रकाश,
(ब) तापमान,
(स) वर्षा,
(द) पवन,
(य) वायुमण्डलीय आर्द्रता तथा
(र) वायुमण्डलीय गैसें होती हैं।

2. भू-आकृतिक या स्थलाकृतिक कारक – यह कारक पृथ्वी के भौतिक भूगोल से सम्बन्धित है। इसमें
(अ) ऊँचाई,
(ब) पर्वत श्रृंखलाओं की दिशा व घाटियां तथा
(स) ढलानों की प्रवणता आती है।

3. मृदीय कारक – इसमें मृदा का संगठन व उसके गुण आते हैं।

4. जैविक कारक विभिन्न प्रकार के जीवों की अन्तर्क्रियाएँ।

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प्रश्न 11.
जलवायवीय कारकों के अन्तर्गत पवन से होने वाले पादप प्रभाव को समझाइए ।
उत्तर:
बहती वायु को पवन कहते हैं। पवन का पौधों पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों प्रकार का प्रभाव होता है। पवन की गति पादपों की आकृति, वाष्पोत्सर्जन, आन्तरिक संरचना, परागण, प्रजनन, फल एवं बीजों के प्रकीर्णन इत्यादि पर प्रभाव डालती है। यही नहीं, पवन का तापमान, वर्षण व वायुदाब पर भी प्रभाव पड़ता है। पवन के कारण पौधों में अनेक कार्यिकी एवं आन्तरिक संरचना में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं।

समुद्रतट व ऊँचे पर्वतों के पादपों में तेज हवाओं के एक दिशा में गति के कारण स्थायी वक्रता उत्पन्न हो जाती है तथा इन पौधों की शाखाएँ भी एक ही ओर से निकलती हैं। शुष्क वायु के प्रभाव से पौधों में निर्जलीकरण हो जाता है तथा उनकी स्फीति कम हो जाती है। फलस्वरूप पौधे वामन या बौने रह जाते हैं। समुद्रतटों तथा ऊँचे पर्वतों की वनस्पति प्रायः बौनी होती है।

प्रश्न 12.
ऑर्किड में पाये जाने वाले लैंगिक कपट (Sexual Deceit) को समझाइये।
अथवा
मेडिटेरेनियन ऑर्किड पुष्प की एक पंखुड़ी का आकार, रंग तथा चिह्नों का मादा भक्षिका से मिलता-जुलता होने का क्या कारण है ? समझाइए ।
उत्तर:
ऑर्किड पुष्प प्रतिरूपों में आश्चर्यचकित करने वाली विविधता पाई जाती है। इनके पुष्पों में पुष्पीय संरचना परागणकारी कीट भ्रमरों व गुंज मक्षिकाओं (Bees and Bumblebees) को आकर्षित करने के लिये ही विकसित हुए हैं ताकि इसके द्वारा निश्चित रूप से परागण हो सके । यद्यपि यह प्रवृत्ति सभी ऑर्किड पुष्पों में नहीं पायी जाती है। परन्तु ऑफिस (Ophrys) नामक भूमध्य सागरीय मेडिटेरिनियन ऑर्किड मक्षिका (Boc) की एक जाति परागण कराने के लिए लैंगिक कपट (Sexual Doceit) का सहारा लेता है।

इस पुष्प की एक पंखुड़ी (petal) साइज, रंग और चिन्हों में मादा मक्षिका (Bee) से मिलती-जुलती होती है। नर मक्षिका इसे मादा समझकर इसकी ओर आकर्षित होती है तथा पुष्प के साथ कूट मैथुन (Pseudo copulates ) करती है। इस क्रिया के दौरान इस पर पुष्प से पराग झड़कर उस पर गिर जाते हैं।

जब यही मक्षिका अन्य पुष्प से कूट मैथुन करती है तो इसके शरीर पर लगे परागकण उस पुष्प पर गिर जाते हैं जिससे पुष्प को परागित करती है। परन्तु विकास के दौरान यदि किसी भी कारण से मादा मक्षिका का रंग-प्रतिरूप (Colour-pattern) जरा सा भी बदल जाता है तो परागण की सफलता कम रहेगी अतः इस कारण से ऑर्किड पुष्प अपनी पंखुड़ी को मादा मक्षिका के सदृश बनाए रखते हैं ।

प्रश्न 13.
बताइये कि दी गई अवधि के दौरान दिये गये आवास में समष्टि का घनत्व किन मूलभूत प्रक्रमों (Processes) में घटता-बढ़ता है?
उत्तर:
जन्मदर तथा आप्रवासन समष्टि घनत्व को बढ़ाते हैं तो मृत्युदर व उत्प्रवासन इसे घटाते हैं। इन प्रक्रमों को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा रहा है-

  • जन्मदर (Natality )-जन्मदर से तात्पर्य समष्टि में जन्मी उस संख्या से है जो दी गई अवधि के दौरान आरंभिक घनत्व में जुड़ती है।
  • मृत्युदर (Mortality )-यह दी गई अवधि समष्टि में होने वाली मृत्यु की संख्या है।
  • आप्रवासन (Immigration )-उसी जाति के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समय अवधि के दौरान आवास में कहीं और आए हैं।
  • उत्प्रवासन (Emigration )-समष्टि के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समयावधि के दौरान आवास छोड़कर कहीं और चले गए हैं।

प्रश्न 14.
समष्टि पारस्परिक क्रियाओं को संक्षेप में बताइये ।
उत्तर:
समष्टि पारस्परिक क्रियाएँ (Population Interactions)
पृथ्वी के किसी भी आवास पर किसी एक ही जाति का वास नहीं होता। विभिन्न प्रकार की जातियाँ एक दूसर पर निर्भर होती हैं। पौधे भले ही अपना भोजन स्वयं बनाते हैं परन्तु वे अकेले जीवित नंहीं रह सकते। जैसे मृदा के कार्बनिक पदार्थ को तोड़ने और अकार्बनिक पोषकों को इसके अवशोषण के लिये लौटने के लिये मृदा के सूक्ष्मजीवों की आवश्यकता पड़ती है।

इसके अतिरिक्त प्राणी एजेन्ट (agent) पादप परागण की व्यवस्था बनाते हैं। अतः कोई भी जीव पृथक् नहीं रहता जब वे साथ रहते हैं तो उनमें पारस्परिक क्रियायें होती हैं। अंतराजातीय (interspecific) पारस्परिक क्रियायें (दो भिन्न जातियों की समष्टियों के बीच) एक जाति या दोनों जातियों के लिये हितकारी, हानिकारक या उदासीन (न हानिकारक न लाभदायक) हो सकती हैं।

लाभदायक पारस्परिक क्रियाओं के लिये ‘ + ‘ चिन्ह तथा हानिकारक के लिये ‘-‘ चिन्ह तथा उदासीन के लिये ‘ 0 ‘ चिन्ह का उपयोग करते हैं। अंतराजातीय पारस्परिक क्रियाओं को निम्न सारणी में दर्शाया जा रहा है-

सारणी-समष्टियों की पारस्परिक क्रिया

जाति ‘अ’जाति ‘ब’पारस्परिक क्रिया का नाम
++सहोपकारिता (Mutualism)
स्पर्धा (Competition)
+परभक्षण (Predation)
+परजीविता (Parasitism)
+0सहभोजिता (Commensalism)
0अंतराजातीय परजीविता (Amensalism)

सहोपकारिता में दोनों जातियों को लाभ होता है और स्पर्धा में दोनों को हानि होती है। परजीविता और परभक्षण दोनों में केवल एक जाति को लाभ होता है (क्रमशः परजीवी और परभक्षी को) और पारस्परिक क्रिया दूसरी जाति (क्रमशः परपोषी और शिकार) के लिये हानिकारक है।

वह पारस्परिक क्रिया जिसमें एक जाति को लाभ होता है और दूसरी को न लाभ व न हानि होती है, उसे सहभोजिता कहते हैं। दूसरी ओर, अंतरजातीय परजीविता में एक जाति को हानि होती है जबकि दूसरी जाति अप्रभावित रहती है।

(क) परभक्षण (Predation) – यदि किसी समुदाय में पौधों को खाने वाले प्राणी न हों तो स्वपोषी जीवों द्वारा स्थिर की गई संपूर्ण ऊर्जा व्यर्थ होगी। प्राणियों के द्वारा पौधे खाये जाते हैं तथा ऊर्जा को उच्चतर पोषी स्तरों में स्थानांतरित करते हैं। परभक्षण वे होते हैं जो अन्य जीवों का भक्षण या खाते हैं। यद्यपि पौधों को खाने वाले जीवों को शाकाहारी कहते हैं परंतु सामान्य पारिस्थितिक संदर्भ में वे भी परभक्षी जैसे होते हैं।

परभक्षी पोषी स्तर तक ऊर्जा स्थानांतरण के लिये संनाल (Conduits) का कार्य करने के अतिरिक्त वे शिकार समष्टि को नियंत्रित रखते हैं। यदि प्रकृति में परभक्षी नहीं होते तो शिकार जातियों का समष्टि घनत्व बहुत अधिक हो जाता और परितंत्र में अस्थिरता आ जाती। जब भी किसी भौगोलिक क्षेत्र में कुछ विदेशज जातियाँ लाई जाती हैं तो वे आक्रामक होकर तेजी से फैलने लगती हैं क्योंकि उन स्थानों पर उसके प्राकृतिक परभक्षी नहीं होते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

सन् 1920 के आरंभ में आस्ट्रेलिया में लाई गई नागफनी ने वहाँ लाखों हेक्टेयर भूमि में तेजी से फैलकर तबाही मचा दी। अंत में नागफनी को खाने वाले परभक्षी (एक प्रकार का शलभ) को लाकर आक्रामक नागफनी को नियंत्रित किया जा सका। परभक्षी, स्पर्धी शिकार जातियों के बीच स्पर्धा की तीव्रता कम करके किसी समुदाय में जातियों की विविधता (diversity) बनाए रखने में भी सहायता करता है।

उदाहरणार्थ, अमेरिकी प्रशांत तट की चट्टानी अंतराज्वारीय (intertidal) समुदायों में पाइसैस्टर तारामीन एक महत्त्वपूर्ण परभक्षी है। प्रयोग में जब एक बंद अंतराज्वारीय क्षेत्र से सभी तारामीन को हटा दिया गया तो अंतराजातीय स्पर्धा के कारण एक वर्ष में ही अकशेरुकियों की 10 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गईं।

यदि परभक्षी ज्यादा ही दक्ष है तो वह अपने शिकार का अतिदोहन करता है जिससे शिकार विलुप्त हो जायेगा परंतु जब शिकार का अभाव हो जायेगा तो परभक्षी भी शिकार न मिलने के कारण विलुप्त हो जायेगा। प्रकृति में शिकारी जातियों ने परभक्षण के प्रभाव को कम करने के लिये विभिन्न रक्षा विधियाँ विकसित कर ली हैं। कीटों और मेढ़कों की कुछ जातियों ने परभक्षी से बचने के लिये गुप्त रूप से रंगीन (छद्मावरण) हो जाती हैं, जिससे परभक्षी उन्हें पहचान नहीं पाता।

कुछ शिकार जातियाँ विषैली होती हैं, इसके कारण परभक्षी उनका भक्षण नहीं करते। मॉनार्क तितली के शरीर में विशेष रसायन होने के कारण स्वाद में खराब होती है, इस कारण परभक्षी उन्हें नहीं खाते हैं। यह तितली इस रसायन को अपनी इल्ली अवस्था में विषैली खरपतवार खाकर प्राप्त करती है।

पौधों के लिये शाकाहारी प्राणी परभक्षी होते हैं। लगभग 25% कीट पादपभक्षी (phytophagous) होते हैं अर्थात् वे पादप रस या पादपों के अन्य भाग खाते हैं। पादपों के लिये परभक्षी से बचने के लिये एक समस्या है क्योंकि वे प्राणियों की जैसे भाग नहीं सकते। इस कारण पौधों ने शाकाहारियों से बचने के लिये आकारिकीय और रासायनिक रक्षाविधियाँ विकसित कर ली हैं।

आकारिकीय रक्षाविधियों का उदाहरण एकेशिया (Acacia) व कैक्टस (Cactus) में कांटे हैं। रासायनिक रक्षाविधियों में अनेक पादप ऐसे रसायन उत्पन्न कर एकत्रित कर लेते हैं जो कि शाकाहारी द्वारा खाये जाने पर, उन्हें बीमार कर देते हैं, पाचन का संदमन करते हैं, उनके जनन को भंग कर देते हैं या मार देते हैं।

प्रायः खाली खेतों में आकड़ा या मदार (Calotropis) की खरपतवार उगी रहती है, उसे कोई भी पशु नहीं खाता है क्योंकि इस पौधे में विषैला ग्लाइकोसाइड (glycoside) उत्पन्न होता है। विविध प्रकार के पौधों से अनेक प्रकार के व्यापारिक स्तर पर रासायनिक पदार्थ जैसे-निकोटीन, कैफीन, क्वीनीन, स्ट्रिकनीन, अफीम इत्यादि प्राप्त करते हैं। इन रसायनों के कारण पशु इन्हें नहीं खाते हैं तथा पौधे शाकाहारी प्राणियों से अपनी रक्षा करते हैं।

(ख) स्पर्धा (Competition)-डार्विन ने प्रकृति में जीवनसंघर्ष और योग्यतम की उत्तरजीविता के विषय में बताते हुये कहा कि जैव-विकास में अंतरजातीय स्पर्धा (interspecific competition) एक शक्तिशाली कारक है। वस्तुतः स्पर्धा प्रायः तब होती है जब निकट रूप से संबंधित जातियाँ उन्हीं संसाधनों के लिये स्पर्धा करती हैं जो सीमित हैं।

किन्तु यह सत्य नहीं है कि एक ही जाति के जीव आपस में प्रतिस्पर्धा रखें। डार्विन के अनुसार भोजन व स्थान के लिये विभिन्न समष्टियों के जीव भी स्पर्धा रख सकते हैं। उदाहरणार्थ, दक्षिण़ी अमेरिका की कुछ उथली (कम गहरी) झीलों में आगुंतक फ्लेमिंगो और वहीं क्री रहने वाली मछलियां दोनों ही झील में मिलने वाले प्राणिप्लवक (Zooplankton) के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं।

स्थान व खाद्य सामग्री पर्याप्त होने पर भी यह देखा गया है कि स्पर्धा में एक समष्टि के प्राणी बाधित हो जाते हैं क्योंकि दूसरी समष्टि के जीव अधिक आक्रामक होते हैं जिससे वे पहली जाति के जीवों को उपलब्ध स्थान व भोजन का उपयोग नहीं करने देते हैं। प्रकृति में यह देखा गया है कि एक जाति की योग्यता अधिक बढ़ने पर वह दूसरी जाति के जीवों को कम कर सकती है परन्तु उन्हें विलुप्त नहीं कर पाती।

यद्यपि प्रकृति में ऐसे उदाहरण हैं कि योग्य जाति दूसरी जाति को समाप्त कर देती है। गैलापेगो द्वीप में एबिंगडन (Abingdon) कहुए अधिक संख्या में पाये जाते थे परंतु जब बकरियाँ पहुँचीं तो उन्होंने अधिक चरने के कारण सारे पौधे समाप्त कर दिये जिससे 10 साल में ही कछुए समाप्त हो गये।

प्रतिस्पर्धा का एक अन्य प्रमाण स्पर्धी मोचन (competitive release) है। यदि एक योग्य जाति है जिसने अपने से कम योग्य जाति को स्थान विशेष में सीमित कर रखा है व किसी भी कारण से यदि योग्य जाति नष्ट हो जाती है व उस स्थान से प्रवास कर जाती है तो दूसरी जाति स्पर्धा के अभाव में उस पूरे क्षेत्र में फैल कर समष्टि घनत्व बढ़ा सकती है।

गॉसे (Gause) का स्पर्धी अपवर्जन नियम (Competitive exclusion principle) यह बताता है कि एक ही प्रकार के संसाधनों के लिये स्पर्धा करने वाली दो निकटतम संबंधित जातियाँ लंबे समय तक साथ-साथ नहीं रह सकतीं और स्पर्धी रूप से कमजोर जाति बाद में समाप्त हो जाती है। गॉसे का यह नियम केवल तब ही लागू होगा जब स्थान या भोजन सीमाकारी (limiting) हो जायेंगे अन्यथा स्पर्धा

का यह नियम लागू नहीं होगा। आधुनिक अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि जब दो जातियाँ स्पर्धा करती हैं तब एक विलुप्त नहीं होती वरन् यह इस प्रकार के अनुकूलन विकसित कर लेती है जिससे दोनों का एक साथ अस्तित्व बना रहता है। इस प्रकार की क्रियाविधि को ‘संसाधन विभाजन’ कहते हैं।

यदि दो जातियां एक ही संसाधन के लिये स्पर्धा करती हैं तो वे आहार के लिये भिन्न समय या भिन्न चारण प्रतिरूप चुनकर स्पर्धा से बच सकती हैं। मैक आर्थर (Mac Arthur) ने बताया कि एक ही पेड़ पर रह रही फुदकी (Warblers) की पांच जातियां स्पर्धा से बचने में सफल रहीं और पेड़ की शाखाओं और वितान पर कीट शिकार के लिये तलाशने की अपनी चारण गतिविधियों में व्यावहारिक भिन्नताओं के कारण साथ-साथ रह सकीं।

(ग) परजीविता (Parasitism) – परजीविता में रहने व भोजन की मुफ्त व्यवस्था होती है। एक जीव दूसरे जीव पर भोजन या आश्रय के लिये उस पर निर्भर होता है। जो जीव दूसरे जीव पर निर्भर होता है उसे परजीवी (parasite) तथा जिसके ऊपर यह आश्रित होता है उसे परपोषी (host) कहते हैं। इसमें परजीवी को तो लाभ होता है परन्तु परपोषी का शोषण होता है।

परजीविता पादपों से लेकर उच्च कोटि के कशेरुकियों तक पाई जाती है। ऐसे परजीवी जो एक निश्चित परपोषी के साथ ही रहते हैं, यदि उनको अपना निश्चित परपोषी उपलब्ध नहीं होता है तो उनकी मृत्यु हो जाती है, ऐसे परजीवियों को अविकल्पी परजीवी (obligate parasite) कहते हैं।

परजीविता में परजीवियों ने विशेष अनुकूलन विकसित किये हैं, जैसे-आसंजी अंगों या चूषकांगों (haustoria) की उपस्थिति, पाचन तंत्र का लोप तथा उच्च जनन क्षमता आदि। परजीवियों का जीवन चक्र प्रायः जटिल होता है। जिसमें एक या दो मध्यस्थ पोषक अथवा रोगवाहक होते हैं।

उदाहरणस्वरूप मानव यकृत पर्णाभ (liver fluke) अपने जीवन चक्र को पूर्ण करने के लिये दो मध्यस्थ पोषकों जैसेघोंघा और मछली पर निर्भर करता है। मलेरिया परजीवी को दूसरे परपोषियों पर फैलने के लिये रोगवाहक (मच्छर) की आवश्यकता पड़ती है। अधिकांश परजीवी, परपोषी को हानि पहुँचाते हैं, परपोषी की उत्तरजीविता, वृद्धि और जनन को कम कर सकते हैं तथा उसके समष्टि घनत्व को घटा सकते हैं।

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परजीवी परपोषी को कमजोर बनाकर, उसे परभक्षण के लिये अधिक सुरक्षित बना देते हैं। परजीवी दो प्रकार के होते हैं-बाह्य परजीवी (Ecto-parasite) तथा अन्तः परजीवी (Endo-parasite)। वे परपोषी जो अपना पोषण परपोषी की बाहरी सतह से प्राप्त करते हैं, उन्हें बाह्य परजीवी कहते हैं, उदाहरण-जूँ मानव पर, कुत्तों पर चिंचिड़ियाँ (Tricks) तथा प्राणियों में कई मछलियों पर कोपीपॉड्स (copepods) इनके शरीर पर निवास करते हैं।

अमरबेल या आकाश बेल (Cuscuta) एक स्तम्भ परजीवी है जिसमें पत्तियों व पर्णहरित (chlorophyll) का अभाव होता है। इसमें केवल पीले रंग का दुर्बल तना होता है। इसके तने से अनेक चूषकांग (haustoria) निकलकर, परपोषी के अंदर घुसकर उसके संवहन ऊतक (जाइलम व फ्लोयम) से अपना संबंध स्थापित कर लेते हैं।

ये पूर्णतः तैयार भोजन अपने परपोषी से प्राप्त करते हैं। अंतःपरजीवी (endoparasite) वे हैं जो परपोषी के शरीर में भिन्न स्थलों जैसे यकृत, वृक्क, फुफ्फुस, लाल रुधिर कोशिका आदि में रहते हैं। पक्षियों में अंड परजीविता (egg or brood parasitism) का अच्छा उदाहरण है जिसमें परजीवी पक्षी अपने अंडे परपोषी के घोंसले में देता है और परपोषी को उन अंडों को सेने (incubate) देता है।

आगे जाकर परजीवी पक्षी के अंडे साइज और रंगों में परपोषी के अंडों की भांति विकसित हो जाते हैं। इससे परपोषी इन अंडों को अपना समझकर बाहर नहीं निकालता। कोयल में भी अंड परजीविता पाई जाती है।

(घ) सहभोजिता (Commensalism) – इस प्रक्रिया में एक जाति को लाभ और दूसरी जाति को न तो लाभ होता है व न हानि होती है। उदाहरणार्थ, ऑर्किड (Orchid) आम की शाखा पर अधिपाद्प (epiphyte) के रूप में उगता है, ठीक इसी प्रकार व्हेल (whale) की पीठ पर बार्नेकल (Barnacle) निवास करता है। इस संबंध में ऑर्किड व बार्नेकल को तो लाभ होता है परंतु आम व क्लेल को न तो इनसे लाभ व न हानि होती है।

इसी प्रकार अन्य उदाहरणों में पक्षी बगुला और चरने वाले पशु आपस में साहचर्य में रहते हैं जो कि सहभोजिता का एक अच्छा उदाहरण है। खेत में पशु चरते रहते हैं और उनके पास ही बगुला भोजन प्राप्त करता रहता है। वस्तुत: खेत में पशु चरते हुये वनस्पति को हिलाते रहते हैं जिससे कीट बाहर निकलते रहते हैं तथा बगुला उन कीटों को खा जाता है।

सहभोजिता का एक अन्य उदाहरण समुद्री ऐनीमोन (Sea anemons) की दंशन स्पर्शक (stinging tantacles) का है। इन समुद्री ऐनीमोन के बीच रहने वाली क्लाउन मछली को परभक्षियों से दंशक स्पर्शक द्वारा सुरक्षा मिल जाती है क्योंकि परभक्षी इन दंशन स्पर्शकों से दूर रहते हैं यद्यपि समुद्री ऐनीमोन को क्लाउन मछली से कोई लाभ नहीं मिलता है।

(ङ) सहोपकारिता (Mutualism)-इस प्रक्रिया में दोनों जीवों को लाभ होता है। इसे प्रकाश-संश्लेषी शैवाल या सायनोबैक्टीरिया व लाइकेन के मध्य देखा जा सकता है। यहां शैवाल प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा अपने तथा कवक सहभागी के लिये खाद्य पदार्थों का निर्माण करता है।

इसके बदले में कवक अपने तथा शैवाल सहभागी के लिये वर्षा का जल, नमी आदि एकत्र करके उसका जीवन आसान बनाता है। इसमें कवक व शैवाल दोनों को लाभ होता है। इसी प्रकार का संबंध कवकों और उच्च कोटि के पादपों की जड़ों के बीच कवकमूल (Mycorrhiza) संबंध होता है।

कवक, मृदा से आवश्यक पोषक तत्वों के अवशोषण में पादपों की सहायता करते हैं जबकि बदले में पादप, कवकों को ऊर्जा-उत्पादी कार्बोहाइड्रेट देते हैं। विकास की दृष्टि से सहोपकारिता के अच्छे उदाहरण पादपप्राणी संबंध में मिलते हैं। पादपों को अपने पुष्प परागित करने और बीजों के प्रकीर्णन के लिये प्राणियों की सहायता जरूरी है।

अनेक जंतु एवं पक्षी फलों व बीजों को खाकर अन्य स्थानों पर अपना मल विसर्जित करते हैं। इनके मल के साथ फलों के बीज भी बाहर आ जाते हैं, जिससे बीजों के प्रकीर्णन में सहायता मिलती है। विभिन्न पादपों में कुछ प्राणियों जैसे मधुमक्खी तथा तितलियों व अन्य पक्षियों की अहम भूमिका होती है।

ये पुष्पों पर मकरन्द प्राप्त करने के लिये जाते हैं तथा इसके बदले में परागकणों को एक पुष्प से अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित करके परागण क्रिया संपन्न कराते हैं। इस प्रकार पादप- प्राणी पारस्परिक क्रिया में सहोपकारिता होती है या यों कहा जा सकता है कि पुष्य व इसके परागणकारी जातियों के विकास एक-दूसरे से मजबूती से जुड़े हुए हैं।

अंजीर के वृक्षों की अनेक जातियों में बर्र की परागणकारी जातियों के बीच अगाढ़ संबंध है। अंजीर की जाति केवल इसके ‘साथी’ बर्र की जाति से ही परागित हो सकती है, यह किसी बर्र की दूसरी जाति से परागित नहीं हो सकती। मादा बर्र फल को केवल अंड निक्षेपण (ovipositor) के लिये ही उपयोग में नहीं लेती, बल्कि फल के अंदर वृद्धि कर रहे बीजों के डिंबकों (larvae) के पोषण के लिये उपयोग करती है।

अंडे देने के लिये उपयुक्त स्थान की तलाश करते हुए बर्र अंजीर पुष्पक्रम को परागित करती है। इसके बदले में अंजीर अपने कुछ परिवर्धनशील बीज, परिवर्धनशील बर्र के डिंबकों को आहार के रूप में देती है। अ पुष्प प्रतिरूपों में अ श चर्य चकि त करने वाली विविधता पाई जाती है।
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इनके पुष्पों में पुष्पीय संरचना परागणकारी कीट भ्रमरों व गुंज मक्षिकाओं (Bees and Bumblebees) को आकर्षित करने के लिये ही विकसित हुए हैं ताकि इसके द्वारा निश्चित रूप से परागण हो सके। यद्यपि यह प्रवृत्ति सभी ऑर्किड पुष्पों में नहीं पायी जाती है परन्तु ऑफ्रिस (Ophrys) नामक भूमध्यसागरीय मेडिटेरिनियन ऑर्किड की एक जाति परागण कराने के लिए लैंगिक कपट (Sexual deceit) का सहारा लेती है।

इस पुष्प की एक पंखुड़ी (petal) साइज, रंग और चिन्हों में मादा मक्षिका (Bee) से मिलती-जुलती होती है। नर मक्षिका इसे मादा समझकर इसकी ओर आकर्षित होती है तथा पुष्प के साथ कूट मैथुन (Pseudo copulates) करती है। इस क्रिया के दौरान इस पर पुष्प से पराग झड़कर उस पर गिर जाते हैं।

जब यही मक्षिका अन्य पुष्प से कूट मैथुन करती है तो इसके शरीर पर लगे परागकण उस पुष्प पर गिर जाते हैं जिससे पुष्प को परागित करती है। परन्तु विकास के दौरान यदि किसी भी कारण से मादा मक्षिका का रंग-प तिरूप (Colourpattern) जरा-सा भी बदल जाता है तो परागण की सफलता कम रहेगी अतः इस कारण से ऑर्किड पुष्प अपनी पंखुड़ी को मादा मक्षिका के सदृश बनाए रखते हैं
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प्रश्न 15.
जीवोम से क्या समझते हैं? ये विभिन्न प्रकार के क्यों होते हैं? पाये जाने वाले जीवोम को सचित्र बताइये ।
उत्तर:
विश्व के मुख्य पादप समुदायों को जीवोम (Biomes ) कहते हैं । जीवोम में विभिन्नता तापक्रम, वर्षण व विभिन्न ऋतुओं के कारण होती है। प्रत्येक जीवोम के अंदर ही क्षेत्रीय और स्थलीय विभिन्नताओं के कारण आवास में व्यापक विभिन्नता होती है। भारत के प्रमुख जीवोम निम्न प्रकार से हैं-

  • मरुथल जीवोम (Desert Biome )
  • घास स्थल जीवोम (Grassland Biome)
  • उष्णकटिबंध वन जीवोम (Tropical Forest Biome)
  • शीतोष्ण वन जीवोम (Temperate Forest Biome)
  • शंकुधारी वन जीवोम (Coniferous Forest Biome)
  • उत्तरी ध्रुवीय और अल्पाइन टुंड्रा जीवोम (Arctic and Alpine Tundra Biome)

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प्रश्न 16.
जैविक अनुक्रिया के अन्तर्गत नियमन करने (Regulate) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कुछ जीव समस्थापन (Homeostasis) कार्यिकीय साधनों द्वारा बनाए रखते हैं जिसके कारण शरीर का तापमान, परासरणी सांद्रता इत्यादि स्थिर रहती है। सभी पक्षी और स्तनधारी तथा बहुत कम निम्न कशेरुकी (Lower vertebrates ) व अकशेरुकी ( invertebrates ) जातियाँ वास्तव में ताप व परासरण नियमन (Thermoregulation and Osmoregulation) बनाए रखने में सक्षम होते हैं।

विकासवादी जीव वैज्ञानिकों का यह विश्वास है कि स्तनधारियों की सफलता का मुख्य कारण यही है कि वे अपने शरीर का तापमान स्थिर बनाये रखने में सक्षम होते हैं, भले वे अंटार्कटिका में रहें या सहारा के मरुस्थल में । प्रायः स्तनधारी अपने शरीर के तापमान का नियमन उसी प्रकार करते हैं जैसे मानव करते हैं। हम शरीर का तापमान 37°C स्थिर रखते हैं।

गर्मियों के समय में जब बाहर का तापमान शरीर से अधिक हो जाता है तब हमें अधिक पसीना आता है। यह पसीना वाष्प बनकर उड़ता है उससे शरीर के तापमान का नियमन हो जाता है। सर्दियों में पर्यावरण में जब तापक्रम कम हो जाता है तब हम काँपने लगते हैं। काँपने से जो व्यायाम होता है उससे ऊष्मा पैदा होकर शरीर के ताप का नियमन होता है । परन्तु पादपों में नियमन करने का कोई तरीका नहीं होता है।

प्रश्न 17.
संरूपण रखना भी जैविक अनुक्रिया का तरीका है, इसे स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
लगभग 99% प्राणी व सभी पौधे स्थिर आंतरिक पर्यावरण बनाये रखने में सक्षम नहीं होते हैं। उनके शरीर का तापमान पर्यावरण तापमान के अनुसार बदलता रहता है। जलीय प्राणियों में तो शरीर के द्रव की परासरण सांद्रता बाहरी जल की परासरण सांद्रता के अनुसार बदलती रहती है। ये प्राणी और पौधे संरूपी (Conform ) कहलाते हैं।

संरूपी या संरूपण जैविक अनुक्रिया की विधि है। अनेक जीवों के लिये ताप नियमन ( Thermoregulation) ऊर्जा की दृष्टि से महँगा है। यह तर्क मंजोरु ( Shrews ) व गुंजन पक्षी (Humming Birds) जैसे छोटे प्राणियों के विषय में सही है। ताप हानि या ताप लाभ पृष्ठीय क्षेत्रफल ( Surface Area) का प्रकार्य है।

चूंकि छोटे प्राणियों का पृष्ठीय क्षेत्रफल उनके आयतन की अपेक्षा ज्यादा होता है, इसलिए जब बाहर ठंड होती है तो उनके शरीर की ऊष्मा बहुत तेजी से कम होती है। ऐसी स्थिति में उन्हें उपापचय (Metabolism) द्वारा शरीर की ऊष्मा पैदा करने के लिए अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है।

यह मुख्य कारण है कि बहुत छोटे प्राणी बिरले ही ध्रुवीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। विकास के दौरान कुछ जातियों में नियमन करने की क्षमता उत्पन्न हो गई है ( केवल सीमित परास वाले पर्यावरण परिस्थितियों में ) । यदि पर्यावरण परास ज्यादा होता है तो वे केवल संरूपण (Conform ) करते हैं।

प्रश्न 18.
जीवों में प्रवास करने (Migration) को समझाइये।
उत्तर:
जीव दबावपूर्ण आवास से अस्थायी रूप से अधिक अनुकूल क्षेत्र में चला जाए और जब दबावभरी अवधि बीत जाये तो वापस लौट आए। मानव सादृश्य में, यह नीति ऐसी है जैसे गरमी की अवधि में व्यक्ति दिल्ली से शिमला चला जाए। अनेक प्राणी, विशेषत: पक्षी, शीतऋतु के दौरान लंबी दूरी का प्रवास करके अधिक अतिथि अनुकूली क्षेत्रों में चले जाते हैं।

प्रत्येक शीतकाल में राजस्थान स्थित प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर) साइबेरिया और अन्य अत्यधिक ठंडे उत्तरी क्षेत्रों से आने वाले प्रवासी पक्षियों को अतिथि के रूप में स्वागत करता है। इस प्रकार जीवों के एक स्थान से अन्य स्थान पर जाने की प्रक्रिया को प्रवास करना कहते हैं।

प्रश्न 19
गाँसे (Gauses) के स्पर्धी अपवर्जन नियम (Competitive Exclusion Principle) को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
गाँसे ‘स्पर्धी अपवर्जन नियम’ यह बतलाता है कि एक ही तरह के संसाधनों के लिए स्पर्धा करने वाली दो निकटतम से संबंधित जातियाँ अनंतकाल तक साथ-साथ नहीं रह सकतीं और स्पर्धी रूप से घटिया जाति अंततः विलुप्त कर दी जाती है। ऐसा तभी होगा जब संसाधन सीमाकारी होंगे अन्यथा नहीं।

अधिक वर्तमान अध्ययन स्पर्धा के ऐसे घोर सामान्यीकरण की पुष्टि नहीं करते। वे प्रकृति में अंतरजातीय स्पर्धा होने को नकारते तो नहीं पर वे इस ओर ध्यान दिलाते हैं स्पर्धा का सामना करने वाली जातियाँ ऐसी क्रियाविधि विकसित कर सकती हैं जो बहिष्कार की बजाय सह अस्तित्व को बढ़ावा दे। ऐसी क्रियाविधि ‘संसाधन विभाजन है।

अगर दो जातियाँ एक ही संसाधन के लिए स्पर्धा करती हैं तो उदाहरण के लिए वे आहार के लिए भिन्न समय अथवा भिन्न चारण प्रतिरूप चुनकर स्पर्धा से बच सकती हैं। मैकआर्थर ने दिखाया कि एक ही पेड़ पर रह रहीं फुदकी (वार्बलर) की पाँच निकटत: संबंधित जातियाँ स्पर्धा से बचने में सफल रहीं और पेड़ की शाखाओं और वितान पर कीट शिकार के लिए तलाशने की अपनी चारण गतिविधियों में व्यावहारिक भिन्नताओं के कारण साथ- साथ रह सकीं।

प्रश्न 20.
सहोपकारिता के अन्तर्गत पुष्पीय पादपों में पुष्प व इसके परागणकारी जातियों के विकास एक-दूसरे से मजबूती से जुड़े होते हैं, इस कथन की पुष्टि अंजीर (Fig) पादप से कीजिए ।
उत्तर:
अंजीर के पेड़ों की अनेक जातियों में बर्र की परागणकारी जातियों के बीच मजबूत संबंध है। इसका अर्थ यह है कि कोई दी गई अंजीर जाति केवल इसके ‘साथी’ बर्र की जाति से ही परागित हो सकती है, बर्र की दूसरी जाति से नहीं। मादा बर्र फल को न केवल अंडनिक्षेपण (अंडे देने) के लिए काम में लेती है; बल्कि फल के भीतर ही वृद्धि कर रहे बीजों को डिंबकों (लार्वी) के पोषण के लिए प्रयोग करती है। अंडे देने के लिए उपयुक्त स्थल की तलाश करते हुए बर्र अंजीर पुष्पक्रम (इनफ्लोरेसेंस) को परागित करती है। इसके बदले में अंजीर अपने कुछ परिवर्धनशील बीज, परिवर्धनशील बर्र के डिंबकों को आहार के रूप में देती है।

प्रश्न 21.
सहभोजिता एवं सहपरोपकारिता में अन्तर स्पष्ट कीजिए । प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सहभोजिता (Commensalism) – इस साहचर्य में दोनों में से केवल एक को लाभ होता है लेकिन हानि किसी को नहीं होती है। अधिपादप तथा कंठलताएँ इसका उपयुक्त उदाहरण हैं। अधिपादप स्वपोषी होते हुए भी अन्य पौधों पर उगते हैं। ये वेलामेन (Velamen) मूल द्वारा आर्द्रता को ग्रहण करते हैं तथा प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं।

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उदा – वैन्डा तथा आर्किड्स । हरित शैवाल बेसीक्लेडिया (Basicladia) अलवणीय जल में पाये जाने वाले कछुए के कवच पर उगता है, यह अधिजन्तु का उदाहरण है। कंठलताएँ काष्ठीय आरोही पौधे हैं जो पृथ्वी पर उगकर अन्य पेड़ों का सहारा लेकर ऊपर चढ़ते हैं तथा उनके शीर्ष भागों पर फैल जाते हैं ताकि उन्हें उचित प्रकाश प्राप्त हो।

उदाहरण- टीनोस्पोरा, बिग्नोनिया, बोगेनविलिया आदि । सहोपकारिता (Mutualism) – इसमें दोनों जातियों को लाभ पहुँचता है तथा जीवनयापन हेतु दोनों का साथ आवश्यक है। उदाहरण-शैक, सहजीवी नाइट्रोजन स्थिर कारक, कवकमूल साहचर्य आदि । कुछ उच्च श्रेणी के पौधों की मूलों व कवक में साहचर्य होता है, इसे कवकमूल साहचर्य कहते हैं।

उदाहरण-पाइनस, ओक, हिकरी, बीच आदि। इनमें कवक जल व खनिज लवणों का अवशोषण कर पौधे को उपलब्ध करवाता है तथा मूल कवक को भोजन प्रदान करते हैं। इस प्रकार के पौधों की मूल में मूलरोमों का अभाव होता है ।

प्रश्न 22.
रेगिस्तानी पौधों की पत्तियों में पाये जाने वाले चार अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:

  • रंध्र (stomata) गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन (transpiration) द्वारा जल की न्यूनतम हानि हो।
  • प्रकाश संश्लेषी (सी ए एम) मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रंध्र दिन के समय में बन्द रख सकते हैं।
  • कुछ पौधों जैसे-नागफनी, कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होतीं बल्कि वे काँटे के रूप में रूपान्तरित हो जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण का प्रकार्य चपटे तनों द्वारा होता है।

प्रश्न 23.
जीवाणु, कवक और निम्न पादप प्रतिकूल परिस्थितियों में कैसे जीवित रहते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
जीवाणुओं, कवकों और निम्न पादपों में विभिन्न प्रकार के मोटी भित्ति वाले बीजाणु बन जाते हैं, जिससे उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित बचे रहने में सहायता मिलती है। उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध होने पर ये अंकुरित हो जाते हैं।

प्रश्न 24.
जहाँ पशु चरते हैं, उसके पास ही बगुले भोजन प्राप्ति के लिए रहते हैं । इस पारस्परिक क्रिया को क्या कहते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
पक्षी बगुला और चारण पशु निकट साहचर्य में रहते हैं। यह सहभोजिता (Commensalism) का अच्छा उदाहरण है। इसका कारण यह है कि जब पशु चलते हैं तो उनके खुरों से जमीन से पौधों के हिलने से कीड़े बाहर निकलते हैं। बगुले उन कीटों को आसानी से पकड़कर खा लेते हैं।

प्रश्न 25.
परभक्षण तथा परजीविता में अन्तर स्पष्ट कीजिए । उत्तर- परभक्षण व परजीविता दोनों ऋणात्मक पारस्परिक सम्बन्ध हैं क्योंकि इन दोनों परस्पर सम्बन्धों में एक जाति को लाभ होता है तो दूसरी जाति को हानि होती है। परभक्षण प्रक्रिया में एक जीव दूसरे जीव को खाता है, जैसे बाघ हिरण को खाता है, जन्तु पौधों को खाते हैं। यहाँ बाघ शिकारी है व हिरण शिकार है।

परभक्षित जीव शिकार समष्टि को नियंत्रित करते हैं। परजीविता में छोटे आकार की जाति (परजीवी) बड़ी जातियों ( पोषक) के अन्दर या उन पर जीवित रहते हैं जिससे कि वह भोजन और आश्रय ग्रहण करते हैं। परजीवी पोषक के शारीरिक द्रव्य से भोजन लेते हैं। परजीवी, परभक्षक की तरह पोषक जातियों की संख्या को सीमित करते हैं।

परजीवी पोषक विशिष्ट होते हैं, उनके पास परभक्षियों की जैसे कोई विकल्प नहीं होता। परजीवी आकार में छोटे होते हैं और इनमें परभक्षक की तुलना में उच्च जैविक/ प्रजनन सामर्थ्य होता है। परजीवियों में प्रकीर्णन के लिए विशिष्ट संरचनाओं की आवश्यकता पोषक तक पहुँचने और उन पर आक्रमण करने के लिए होती है। परभक्षक चलनशील होते हैं और शिकार को पकड़ने के लिए समर्थ होते हैं।

प्रश्न 26.
किसी आवास में समष्टि के घनत्व के घटने-बढ़ने के चार मूलभूत प्रक्रमों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समष्टि के घनत्व के घटने-बढ़ने के चार मूलभूत प्रक्रम निम्न प्रकार से हैं-

  • जन्मदर – जन्म दर से तात्पर्य समष्टि में जन्मी उस संख्या से है जो दी गई अवधि के दौरान आरम्भिक घनत्व में जुड़ती है।
  • मृत्युदर – यह दी गई अवधि समष्टि में होने वाली मौतों की संख्या है।
  • आप्रवासन – उसी जाति के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समय अवधि के दौरान आवास में कहीं और से आये हैं।
  • उत्प्रवासन – समष्टि के व्यष्टियों की वह संख्या है जो दी गई समयावधि के दौरान आवास छोड़कर कहीं और चले गये हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) परभक्षण
(ख) स्पर्धा
(ग) मृदा ।
उत्तर:
(क) परभक्षण (Predation) – यदि किसी समुदाय में पौधों को खाने वाले प्राणी न हों तो स्वपोषी जीवों द्वारा स्थिर की गई संपूर्ण ऊर्जा व्यर्थ होगी। प्राणियों के द्वारा पौधे खाये जाते हैं तथा ऊर्जा को उच्चतर पोषी स्तरों में स्थानांतरित करते हैं। परभक्षण वे होते हैं जो अन्य जीवों का भक्षण या खाते हैं।

यद्यपि पौधों को खाने वाले जीवों को शाकाहारी कहते हैं परंतु सामान्य पारिस्थितिक संदर्भ में वे भी परभक्षी जैसे होते हैं। परभक्षी पोषी स्तर तक ऊर्जा स्थानांतरण के लिये संनाल (Conduits) का कार्य करने के अतिरिक्त वे शिकार समष्टि को नियंत्रित रखते हैं। यदि प्रकृति में परभक्षी नहीं होते तो शिकार जातियों का समष्टि घनत्व बहुत अधिक हो जाता और परितंत्र में अस्थिरता आ जाती।

जब भी किसी भौगोलिक क्षेत्र में कुछ विदेशज जातियाँ लाई जाती हैं तो वे आक्रामक होकर तेजी से फैलने लगती हैं क्योंकि उन स्थानों पर उसके प्राकृतिक परभक्षी नहीं होते हैं। सन् 1920 के आरंभ में आस्ट्रेलिया में लाई गई नागफनी ने वहाँ लाखों हेक्टेयर भूमि में तेजी से फैलकर तबाही मचा दी।

अंत में नागफनी को खाने वाले परभक्षी (एक प्रकार का शलभ) को लाकर आक्रामक नागफनी को नियंत्रित किया जा सका। परभक्षी, स्पर्धी शिकार जातियों के बीच स्पर्धा की तीव्रता कम करके किसी समुदाय में जातियों की विविधता (diversity) बनाए रखने में भी सहायता करता है।

उदाहरणार्थ, अमेरिकी प्रशांत तट की चट्टानी अंतराज्वारीय (intertidal) समुदायों में पाइसैस्टर तारामीन एक महत्त्वपूर्ण परभक्षी है। प्रयोग में जब एक बंद अंतराज्वारीय क्षेत्र से सभी तारामीन को हटा दिया गया तो अंतराजातीय स्पर्धा के कारण एक वर्ष में ही अकशेरुकियों की 10 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गईं।

यदि परभक्षी ज्यादा ही दक्ष है तो वह अपने शिकार का अतिदोहन करता है जिससे शिकार विलुप्त हो जायेगा परंतु जब शिकार का अभाव हो जायेगा तो परभक्षी भी शिकार न मिलने के कारण विलुप्त हो जायेगा। प्रकृति में शिकारी जातियों ने परभक्षण के प्रभाव को कम करने के लिये विभिन्न रक्षा विधियाँ विकसित कर ली हैं।

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कीटों और मेढ़कों की कुछ जातियों ने परभक्षी से बचने के लिये गुप्त रूप से रंगीन (छद्मावरण) हो जाती हैं, जिससे परभक्षी उन्हें पहचान नहीं पाता। कुछ शिकार जातियाँ विषैली होती हैं, इसके कारण परभक्षी उनका भक्षण नहीं करते। मॉनार्क तितली के शरीर में विशेष रसायन होने के कारण स्वाद में खराब होती है, इस कारण परभक्षी उन्हें नहीं खाते हैं।

यह तितली इस रसायन को अपनी इल्ली अवस्था में विषैली खरपतवार खाकर प्राप्त करती है। पौधों के लिये शाकाहारी प्राणी परभक्षी होते हैं। लगभग 25% कीट पादपभक्षी (phytophagous) होते हैं अर्थात् वे पादप रस या पादपों के अन्य भाग खाते हैं। पादपों के लिये परभक्षी से बचने के लिये एक समस्या है क्योंकि वे प्राणियों की जैसे भाग नहीं सकते। इस कारण पौधों ने शाकाहारियों से बचने के लिये आकारिकीय और रासायनिक रक्षाविधियाँ विकसित कर ली हैं।

आकारिकीय रक्षाविधियों का उदाहरण एकेशिया (Acacia) व कैक्टस (Cactus) में कांटे हैं। रासायनिक रक्षाविधियों में अनेक पादप ऐसे रसायन उत्पन्न कर एकत्रित कर लेते हैं जो कि शाकाहारी द्वारा खाये जाने पर, उन्हें बीमार कर देते हैं, पाचन का संदमन करते हैं, उनके जनन को भंग कर देते हैं या मार देते हैं।

प्रायः खाली खेतों में आकड़ा या मदार (Calotropis) की खरपतवार उगी रहती है, उसे कोई भी पशु नहीं खाता है क्योंकि इस पौधे में विषैला ग्लाइकोसाइड (glycoside) उत्पन्न होता है। विविध प्रकार के पौधों से अनेक प्रकार के व्यापारिक स्तर पर रासायनिक पदार्थ जैसे-निकोटीन, कैफीन, क्वीनीन, स्ट्रिकनीन, अफीम इत्यादि प्राप्त करते हैं। इन रसायनों के कारण पशु इन्हें नहीं खाते हैं तथा पौधे शाकाहारी प्राणियों से अपनी रक्षा करते हैं।

(ख) स्पर्धा (Competition)-डार्विन ने प्रकृति में जीवनसंघर्ष और योग्यतम की उत्तरजीविता के विषय में बताते हुये कहा कि जैव-विकास में अंतरजातीय स्पर्धा (interspecific competition) एक शक्तिशाली कारक है। वस्तुतः स्पर्धा प्रायः तब होती है जब निकट रूप से संबंधित जातियाँ उन्हीं संसाधनों के लिये स्पर्धा करती हैं जो सीमित हैं।

किन्तु यह सत्य नहीं है कि एक ही जाति के जीव आपस में प्रतिस्पर्धा रखें। डार्विन के अनुसार भोजन व स्थान के लिये विभिन्न समष्टियों के जीव भी स्पर्धा रख सकते हैं। उदाहरणार्थ, दक्षिण़ी अमेरिका की कुछ उथली (कम गहरी) झीलों में आगुंतक फ्लेमिंगो और वहीं क्री रहने वाली मछलियां दोनों ही झील में मिलने वाले प्राणिप्लवक (Zooplankton) के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं।

स्थान व खाद्य सामग्री पर्याप्त होने पर भी यह देखा गया है कि स्पर्धा में एक समष्टि के प्राणी बाधित हो जाते हैं क्योंकि दूसरी समष्टि के जीव अधिक आक्रामक होते हैं जिससे वे पहली जाति के जीवों को उपलब्ध स्थान व भोजन का उपयोग नहीं करने देते हैं। प्रकृति में यह देखा गया है कि एक जाति की योग्यता अधिक बढ़ने पर वह दूसरी जाति के जीवों को कम कर सकती है परन्तु उन्हें विलुप्त नहीं कर पाती।

यद्यपि प्रकृति में ऐसे उदाहरण हैं कि योग्य जाति दूसरी जाति को समाप्त कर देती है। गैलापेगो द्वीप में एबिंगडन (Abingdon) कहुए अधिक संख्या में पाये जाते थे परंतु जब बकरियाँ पहुँचीं तो उन्होंने अधिक चरने के कारण सारे पौधे समाप्त कर दिये जिससे 10 साल में ही कछुए समाप्त हो गये। प्रतिस्पर्धा का एक अन्य प्रमाण स्पर्धी मोचन (competitive release) है।

यदि एक योग्य जाति है जिसने अपने से कम योग्य जाति को स्थान विशेष में सीमित कर रखा है व किसी भी कारण से यदि योग्य जाति नष्ट हो जाती है व उस स्थान से प्रवास कर जाती है तो दूसरी जाति स्पर्धा के अभाव में उस पूरे क्षेत्र में फैल कर समष्टि घनत्व बढ़ा सकती है। गॉसे (Gause) का स्पर्धी अपवर्जन नियम (Competitive exclusion principle) यह बताता है कि एक ही प्रकार के संसाधनों के लिये

स्पर्धा करने वाली दो निकटतम संबंधित जातियाँ लंबे समय तक साथ-साथ नहीं रह सकतीं और स्पर्धी रूप से कमजोर जाति बाद में समाप्त हो जाती है। गॉसे का यह नियम केवल तब ही लागू होगा जब स्थान या भोजन सीमाकारी (limiting) हो जायेंगे अन्यथा स्पर्धा  का यह नियम लागू नहीं होगा।

आधुनिक अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि जब दो जातियाँ स्पर्धा करती हैं तब एक विलुप्त नहीं होती वरन् यह इस प्रकार के अनुकूलन विकसित कर लेती है जिससे दोनों का एक साथ अस्तित्व बना रहता है। इस प्रकार की क्रियाविधि को ‘संसाधन विभाजन’ कहते हैं। यदि दो जातियां एक ही संसाधन के लिये स्पर्धा करती हैं तो वे आहार के लिये भिन्न समय या भिन्न चारण प्रतिरूप चुनकर स्पर्धा से बच सकती हैं।

मैक आर्थर (Mac Arthur) ने बताया कि एक ही पेड़ पर रह रही फुदकी (Warblers) की पांच जातियां स्पर्धा से बचने में सफल रहीं और पेड़ की शाखाओं और वितान पर कीट शिकार के लिये तलाशने की अपनी चारण गतिविधियों में व्यावहारिक भिन्नताओं के कारण साथ-साथ रह सकीं।

मृदा (Soil)-भूमि की ऊपरी उपजाऊ सतह को मृदा कहते हैं। पौधों तथा जंतुओं के लिए मृदा प्राकृतिक आवास होता है। जीवधारियों को मृदा से जल एवं खनिज लवण प्राप्त होते हैं। विभिन्न स्थानों की मृदा की प्रकृति और गुण में भिन्नता होती है। मृदा का निर्माण कठोर चट्टानों के अपक्षय (weathering) के कारण होता है। यह अपक्षय प्रक्रिया भौतिक, रासायनिक व जैविक प्रकार की होती है।

इन अपक्षयित पदार्थों से मृदा का निर्माण होता है जिसे मृदाजनन (Pedogenesis) कहते हैं। इन कणों में अनेक जीवधारी व पादपों के भाग (पत्तियां, जड़ें, भूमिगत भाग इत्यादि) मृत्यु के पश्चात् कार्बनिक पदार्थों में रूपातंरित होकर मिल जाते हैं जिससे वास्तविक मृदा या उर्वर मृदा का निर्माण होता है। निर्माण के आधार पर मृदा दो प्रकार की होती-
(i) अवशिष्ट मृदा (Residual soil) – जिन चट्टानों के अपक्षय से मृदा कण बनते हैं, यदि वह मृदा उसी स्थान पर रहती है तो उसे अवशिष्ट मृदा कहते हैं।

(ii) वाहित मृदा (Transported soil) – निर्माण स्थल से जब मृदा किन्हीं कारकों द्वारा अन्य स्थानों पर पहुंच जाती है तो उसे वाहित मृदा कहते हैं। हवा द्वारा लायी गयी मृदा इओलियन मृदा (Eolian soil), गुरुत्व द्वारा लायी गई मृदा कोल्युवियल मृदा (Colluvial soil), जल द्वारा बहाकर लायी गई मृदा को एल्युवियल मृदा (Alluvial soil) तथा ग्लेशियरों के पिघलने से लायी गयी मृदा ग्लेसियल मृदा (Glacial soil) कहते हैं।

मृदा का अध्ययन विज्ञान की जिस शाखा में किया जाता है उसे मृदा विज्ञान (Pedology) कहते हैं। मृदा के तीन संस्तर (horizon) होते हैं-

  • शीर्ष मृदा (Top soil or ‘A’-horizon)-यह मृदा की सबसे ऊपरी परत है जिसमें बालू (sand) और ह्यूमस (humus) होता है। पौधों की जड़ें प्राय: इसी संस्तर में रहती हैं।
  • उपमृदा (Subsoil or ‘B’-horizon)-शीर्ष मृदा के नीचे वाले स्तर को उपमृदा कहते हैं, इसमें चिकनी मिट्टी होती है। वर्षा का जल रिसकर इस स्तर में एकत्रित होता रहता है। इसमें ह्यूमस व वायु की मात्रा कम होती है तथा इस संस्तरण में जीव भी नहीं पाये जाते हैं।
  • ‘C’ संस्तर (C’-horizon) – यह संस्तर ‘B’ के नीचे होता है। इसमें अपूर्ण क्षरित चट्टानें होती हैं तथा ह्यूमस एवं सूक्ष्मजीवों का अभाव होता है। इस संस्तर के नीचे बिना अपक्षयित मातृ चट्टानें होती हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को समझाइये-
(क) समतापीय प्राणियों में उच्चताप के प्रति होने वाली अनुक्रियायें ।
(ख) चारघातांकी वृद्धि को सचित्र बताइये ।
उत्तर:
(क) समजात प्राणियों में उच्च ताप के प्रति होने वाली अनुक्रियाएँ – समतापीय प्राणियों में उच्च ताप के प्रति होने वाली अनुक्रियाएँ ( responses ) निम्न प्रकार से होती हैं-
(1) कम उपत्वचीय वसा (Less subcutaneous fat) – वे प्राणी जो प्रायः अधिक ताप वाले क्षेत्रों में रहते हैं, उनमें त्वचा में संचित वसा की मात्रा कम होती है। इसी कारण रेगिस्तानी प्राणियों में वसा कूबड़ (hump) में उपस्थित होती है।

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(2) लोमचर्म का झुकना (Lowerdown of pelage) – उत्थापक पेशी के शिथिलन के कारण, लोमचर्म पुनः सामान्य हो जाता है जिससे रोम के मध्य कोई वायु नहीं रहती है। इस कारण ऊष्मा का ह्रास विकिरणों के रूप में हो जाता है परन्तु ताप के और अधिक बढ़ जाने के कारण ऊष्मा का ह्रास विकिरणों के रूप में नहीं होता है बल्कि त्वचा अवरोधक का कार्य करती है।

(3) पृष्ठीय रक्तवाहिनियों का प्रसारित होना (Dialation of superficial blood vessels) – पृष्ठीय रक्तवाहिनियों के प्रसारित होने से रक्त समूह के निकट आ जाता है, जिससे वातावरण में ऊष्मा का ह्रास हो जाता है, सेतु वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं, जिससे कुल रक्त का आयतन बढ़ जाता है। इस कारण भी सतह पर रक्त का प्रभाव बढ़ जाता है।

(4) पसीने का स्राव ( Secretion of Sweat ) – शरीर का ताप बढ़ने के साथ ही स्वेद ग्रंथियों द्वारा पसीने का स्राव होता है, जिसके वाष्पीकरण से शरीर का तापमान कम हो जाता है। वाष्पीकरण की दर प्रवाहित वायु के द्वारा भी प्रभावित होती है। इस क्रिया में ऊष्मा का ह्रास फेफड़ों से वाष्पीकरण द्वारा होता है, साथ ही रक्त के फुफ्फुसीय कोशिकाओं (pulmonary capillary) में प्रवाहित होने के कारण, ऊष्मा का कुछ ह्रास रक्त के द्वारा भी होता है।

(5) उपापचय का मंद होना (Fall of metabolism) – तापमान अधिक होने से प्राणियों में उपापचय दर कम हो जाती है व कम ऊष्मा का उत्पादन होता है। अतः ये प्राणी कम सक्रिय रहते हैं। स्तनधारियों में ताप का नियमन हाइपोथेलेमस द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त इन प्राणियों में लम्बे कान होते हैं, जो एक रेडियेटर का कार्य करते हैं व ये रात्रिचर आवास के होते हैं।

(ख) चरघातांकी वृद्धि (Exponential growth) को सचित्र बताइये –
समष्टि में व्यष्टियों की संख्या का बढ़ना समष्टि वृद्धि (Population growth) कहलाता है। वैसे किसी भी जाति के लिये समष्टि का आकार स्थितिक (static) नहीं होता है। यह समय-समय पर बदलता रहता है जो विभिन्न कारकों जैसे आहार उपलब्घता, परभक्षण दाब और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

यदि उपरोक्त दशाएँ अनुकूल होती हैं तो समष्टि की वृद्धि होती है परंतु प्रतिकूल दराओं के होने पर समध्टि की हानि होती है। किसी आवास में समष्टि का घनत्व चार मूलभूत प्रक्रमों में घटता व बढ़ता है। इन चारों में से जन्म दर व आप्रवासन (migration) समष्टि घनत्व को बढ़ाते है अरकि मृत्युदर तथा उत्प्रवासन (Emigration) इसे घटाते हैं।
(i) जन्म दर (Natality) समस्त जीव प्रजनन क्रिया द्वारा अपनी संतति में वृद्धि करके समष्टि में वृद्धि करते हैं अतः एक निश्चित अवधि में किसी समष्टि द्वारा उत्पन्न नये जोवों की औसत संख्या को उस समष्टि की जन्म दर कहते हैं।

(ii) मृत्यु दर (Death rate or Mortality)—समष्टि में सभी जीव एक निश्चित समय उपरांत मरते हैं अतः एक निश्चित अव्वि में समष्टि में मरने वाले जीवों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। इससे समष्टि में कमी आती है।

(iii) आप्रवासन या अन्तःप्रवास (Immigration)- किसी स्थान पर एक जाति के जीवों का आगमन अन्तःप्रवास कहलाता है। इस प्रकार के प्रवास में किसी क्षेत्र में अंदर की ओर केवल एक तरफ गति होती है। इस प्रक्रिया फलस्वरूप आये हुये जीव वापस न तो लौटते हैं व न ही इरादा रखते हैं।

(iv) उत्प्रवासन या बहि:प्रवास (Emigration)-इस प्रक्रिया में जीवों का गमन आवास को छोड़कर अन्य स्थान की ओर होता है या एक देश से दूसरे देश की ओर होता है। अतः एक क्षेत्र से जाति के निकास को उत्प्रवासन कहते हैं। यह निकास स्थायी होता है क्योंकि ये जीव वापस पूर्व स्थान की और नहीं लौटते हैं।

इसलिये यदि समय t पर समष्टि धनत्व N है तो समय t+I पर इसका घनत्व
Nt+I = N1 + [(B+I) -(D+E)]
N1 = एक समय पर समष्टि घनत्व, B = जन्म दर (Birth rate), I = आप्रवासन (Immigration), D = मृत्यु दर (Death rate), E = उत्त्रवासन (Emigration) है।

उपरोक्त समीकरण को देखने पर हम यह कह सकते है कि यदि जन्मदर व आप्रवासन अधिक हो रहा है तब समष्टि घनत्व बढ़ जायेगा परंतु मृत्युदर व उत्त्रवासन अधिक होने पर समष्टि घनत्व घट जायेगा। सामान्यतः समष्टि घनत्व को जन्म दर व मृत्यु दर ही प्रभावित करते हैं। उत्प्रवासन व आप्रवासन इसे कम प्रभावित करते हैं परंत ऐसे समय में जब कहीं नया आवास बना हो तब वहाँ का समष्टि घनत्व जन्म दर से न बढ़कर बल्कि आप्रवासन से बढ़ेगा।
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वृद्धि मॉडल (Growth Model)-वृद्धि मॉडल के दो प्रारूप होते हैं-चरघातांकी वृद्धि तथा संभार तंत्र वृद्धि।

(अ) चरघातांकी वृद्धि (Exponential growth)-किसी भी समष्टि की निरंतर वृद्धि के लिये पर्याप्त संसाधन (आहार और स्थान) उपलब्ध होना आवश्यक है। यदि यह दोनों उपलब्ध हैं तब समष्टि की वृद्धि अबाधित रूप से चलती रहेगी। इसे डार्विन ने अपने प्राकृतिक वरण के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुये बताया था। ऐसी स्थिति में समष्टि चरघातांकी या ज्यामितीय (geometrical) शैली में वृद्धि करती है। यदि समष्टि घनत्व N में प्रति व्यक्ति जन्म दर को b से व प्रति व्यक्ति मृत्यु दर को d से दर्शाएं तब दिये गये समय t में वृद्धि की कमी या अधिकता को निम्न समीकरण द्वारा दर्शा सकते हैं-
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r = प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीन्जिक दर (intrinsic rate of natural increase) कहते हैं।
N = समष्टि का आकार
r का मान अलग-अलग समष्टियों के लिये अलग-अलग होता है, जैसे नार्वे चूहे के लिये r 0.015, आटा भृंग (floor betel) के लिये 0.12 तथा मानव आबादी के लिये 0.0205 होता है (1981 की गणना के अनुसार)। उपरोक्त दी गई समीकरण समष्टि के चरघातांकी था ज्यामितीय वृद्धि को बताता है।
और जबN को समय के संदर्भ में आरेखित करते हैं तो इससेJ-आकार का वक्र बनता है। अतः हम चरघातांकी समीकरण समाकलीय रूप से निम्न प्रकार से बता सकते हैं-
Nt = Noert
Nt  = समय t में समष्टि घनत्व
No = समय शून्य में समष्टि घनत्व

r = प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीन्जिक दर (आंतरिक दर)
e = प्राकृतिक लघुगणकों (logarithms) का आधार (2.71828)
असीमित संसाधन परिस्थितियों में चरघातांकी रूप से वृद्धि करने वाली कोई भी जाति कुछ ही समय में विशाल समष्टि घनत्वों तक पहुंच सकती है। डार्विन ने बताया कि हाथी जैसा धीमे बढ़ने वाला प्राणी, किसी प्रकार की रोक न होने पर विशाल संख्या तक पहुँच सकता है।
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(ब) संभार तंत्र (Logistic growth)-प्रकृति में किसी भी समष्टि के पास इतने असीमित संसाधन नहीं होते जिससे कि चरघातांकी वृद्धि होती रहे। इसके कारण सीमित संसाधनों के लिये व्यष्टियों में प्रतिस्पर्धा होती है। प्रतिस्पर्धा के कारण अन्त में ‘योग्यतम’ व्यष्टि जीवित रह पाती है और जनन करती रहती है। इस प्रकार के वृद्धि प्रारूप में समष्टि की सजीव संख्या में प्रारम्भ में तो धीरे-धीरे वृद्धि होती है, इसे पश्चता प्रावस्था (Lag Phase) कहते हैं।

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परन्तु इसके पश्चात् वृद्धि की दर तेजी से बढ़ती है। समष्टि की तेजी से वृद्धि होने पर वातावरणीय प्रतिरोध बढ़ जाने के कारण एक संतुलन स्तर या स्थिर अवस्था (Stationary Phase) स्थापित हो जाती है। यदि इस प्रकार की वृद्धि प्रदर्शित कर रही समष्टि एवं समय के मध्य एक आरेख बनाया जावे तो एक S – आकार का वक्र बनता है। इस वक्र को सिग्माइड वक्र (Sigmoid curve) कहते हैं। इस प्रकार की समष्टि वृद्धि विर्हुस्ट-पर्ल लॉजिस्टिक वृद्धि (Verhulst-Pearl logistic growth) कहलाती है। इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-
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अधिकतर प्राणियों की समष्टियों में वृद्धि हेतु संसाधन सीमित होते हैं और धीरे-धीरे और अधिक सीमित होते जायेंगे। इस कारण से लॉजिस्टिक वृद्धि मॉडल को अधिक यथार्थपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 3.
पारिस्थितिकी के जैविक कारकों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
सजीवों के समस्त जैविक क्रियाओं तथा अन्योन्यक्रियाओं के प्रभाव को जैविक कारक कहते हैं। ओडम ने समस्त जैविक सम्बन्धों को धनात्मक तथा ऋणात्मक अन्योन्यक्रियाओं में बाँटा है।
I. धनात्मक अन्योन्यक्रियाएँ (Positive interactions ) – इस प्रकार की क्रियाओं में एक या दोनों जातियों को लाभ पहुँचता है। ये तीन प्रकार की होती हैं-
(अ) सहोपकारिता (Mutualism) – इसमें दोनों जातियों को लाभ पहुँचता है तथा जीवनयापन हेतु दोनों का साथ आवश्यक है। उदा. – शैक, सहजीवी नाइट्रोजन स्थिर कारक, कवकमूल साहचर्य आदि । कुछ उच्च श्रेणी के पौधों की मूलों व कवक में साहचर्य होता है, इसे कवकमूल साहचर्य कहते हैं। उदा. पाइनस, ओक, हिकरी, बीच · आदि। इनमें कवक जल व खनिज लवणों का अवशोषण कर पौधे को उपलब्ध करवाता है तथा मूल कवक को भोजन प्रदान करते हैं। इस प्रकार के पौधों की मूल में मूलरोमों का अभाव होता है।

(ब ) प्राक् सहयोगिता (Protocooperation)-इसमें दोनों समष्टियों को लाभ होता है परंतु जीवनयापन हेतु साथ रहना आवश्यक नहीं होता है। उदा. समुद्री एनिमोन तथा हर्मिट केंकड़े के बीच इसी प्रकार का सम्बन्ध होता है। समुद्री एनिमोन केंकड़े के कवच से चिपका रहता है जो इसे भोजन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है तथा समुद्री एनिमोन अपनी दंश कोशिकाओं के हर्मिट केंकड़े को शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
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(स) सहभोजिता (Commensalism) – इस साहचर्य में दोनों में से केवल एक को लाभ होता है लेकिन हानि किसी को नहीं होती है। अधिपादप तथा कंठलताएँ इसका उपयुक्त उदाहरण हैं। अधिपादप स्वपोषी होते हुए भी अन्य पौधों पर उगते हैं। ये वेलामेन (Velamen) मूल द्वारा आर्द्रता को ग्रहण करते हैं तथा प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं।

उदा.- वैन्डा तथा आर्किड्स । हरित शैवाल बेक्लेडिया (Basicladia) अलवणीय जल में पाये जाने वाले कछुए के कवच पर उगता है, यह अधिजन्तु का उदाहरण है। कंठलताएँ काष्ठीय आरोही पौधे हैं जो पृथ्वी पर उगकर अन्य पेड़ों का सहारा लेकर ऊपर चढ़ते हैं तथा उनके शीर्ष भागों पर फैल जाते हैं ताकि उन्हें उचित प्रकाश प्राप्त हो उदा. टीनोस्पोरा, बिग्नोनिया, बोगेनविलिया आदि ।

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II. ऋणात्मक अन्योन्यक्रियाएँ (Negative interactions) – इस प्रकार का सहजीवन जिसमें एक या दोनों जीव को हानि पहुँचती है। इन्हें ऋणात्मक अन्योन्यक्रियाएँ या विरोध ( antagonism) कहते हैं। ऐसे सम्बन्धों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है –
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(अ) शोषण (Exploitation) – इसमें एक जीव अन्य जीव को आधार, आश्रय या भोजन हेतु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपभोग करके हानि पहुँचाता है। भोजन के लिए शोषण दो प्रकार का होता है-
(i) परजीविता (Parasitism) – वे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीव पर निर्भर रहते हैं, उन्हें परजीवी कहते हैं तथा जिससे भोजन प्राप्त करते हैं उसे परपोषी (host) कहते हैं। परजीवी, परपोषी से चूषकांग (haustoria) की सहायता से भोजन चूसते हैं।

परजीवी दो प्रकार के होते हैं- बाह्य परजीवी (Ectoparasite) – ऐसे परजीवी, परपोषी के बाहर रहते हैं किन्तु चूषकांगों को परपोषी की कोशिका में प्रवेश करा देते हैं। उदा. – अमरबेल, कसाईथा (Cassytha) आदि । ऐसे परजीवी जब परपोषी की मूलों से भोजन प्राप्त करते हैं तो मूल परजीवी कहलाते हैं।

ये आंशिक या पूर्ण मूल परजीवी हो सकते हैं, जैसे चंदन, शीशम, सीरस की जड़ों पर आंशिक परजीवी होता है। स्ट्राइगा घासों पर तथा ऑरोबैंकी, सोलेनेसी व क्रूसीफेरी कुल के पादपों की जड़ों पर पूर्ण मूल परजीवी होते हैं। वे परजीवी जो परपोषी के स्तम्भ से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे अमरबेल, बेर, आक आदि पर पूर्ण स्तम्भ परजीवी होता है ।

कसाई था नीम पर पूर्ण स्तम्भ परजीवी तथा लोरेन्थस व विस्कम क्रमशः बोसविलीया (Boswellia) व पाइनस पर आंशिक स्तम्भ परजीवी होता है। अन्त: परजीवी (Endoparasite ) – इसमें परजीवी, परपोषी की कोशिकाओं के अन्दर रहते हैं, जैसे विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा आदि।

(ii) परभक्षिता (Predation ) – कुछ जीव अन्य जीवों को भोजन के लिए उपयोग करते हैं। प्रायः परभक्षी जन्तु होते हैं जो शाकाहारी या मांसाहारी हो सकते हैं। कवक डेक्टिलेला तथा जुफेगस आदि कीटों, गोलकृमि आदि को खाते हैं। कुछ कीटभक्षी पादप जैसे नेपेन्थीज, ड्रोसेरा, यूट्रीकुलेरिया, डायोनिया आदि प्रायः नाइट्रोजन की कमी व जलाक्रांत मृदा में उगते हैं। ये पौधे अपने विशेष अंगों की सहायता से कीटों को खाते हैं।

(ब) प्रतिजीविता (Antibiosis ) – इसमें एक जीव द्वारा कुछ रासायनिक पदार्थों का स्रवण किया जाता है जिससे दूसरे जीव की वृद्धि पूर्ण या आंशिक रूप से अवरुद्ध हो जाती है या उसकी मृत्यु हो जाती है, इसे प्रतिजीविता कहते हैं। कुछ उच्च श्रेणी पादपों की जड़ों से ऐसे रसायनों का स्रवण होता है जिससे दूसरे जाति के पौधों के बीजों के अंकुरण संदमित हो जाते हैं, इसे एलीलोपैथी (allelopathy) कहते हैं। उदा.- एरिस्टिडा घास फीनोल जैसे पदार्थों का स्रवण कर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु व शैवालों की वृद्धि को रोक देती है ।
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(स) स्पर्धा (Competition ) – पर्यावरण की समान आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए जीवों में स्पर्धा उत्पन्न होती है। यह स्पर्धा मुख्यतः जल, प्रकाश, पोषक तत्वों व आश्रय के लिए होती है। यह स्पर्धा जब एक ही जाति के पादपों के बीच होती है तो उसे अन्तरजातीय स्पर्धा कहते हैं। दो भिन्न जातियों के बीच होने वाली स्पर्धा को अन्तरजातीय स्पर्धा कहा जाता है।

प्रश्न 4.
तापमान पौधों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः पौधे 0° से. से 52° से. तापमान परिसर में अपनी समस्त जैविक क्रियाओं को संचालित करते हैं किन्तु 20° से. से 30° से. का तापमान पादप वृद्धि हेतु अनुकूल होता है। तापमान पौधों को अग्र प्रकार से प्रभावित करता है-
1. उपापचयी क्रियाएँ (Metabolic activities) – जीवों की समस्त उपापचयी क्रियायें तापमान की एक निश्चित परास के अन्दर एन्जाइमों की सहायता से होती हैं। प्रत्येक 10° से. तापमान बढ़ने पर रासायनिक क्रिया दुगुनी हो जाती है। इसे Q10 या तापमान गुणांक कहते हैं। अधिक ताप पर एन्जाइम विकृत हो जाते हैं।

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2. वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)- अधिक तापमान पर वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है तथा कम तापमान पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।

3. अवशोषण (Absorption ) – स्थलीय पौधों में जड़ों द्वारा अवशोषण 20° से. से 30° से. के बीच सबसे अधिक होता है। 0° से. के आसपास अवशोषण प्रायः रुक जाता है। 0° से. पर जल बर्फ में बदल जाता है। इस प्रकार के आवास स्थल कार्यिकी शुष्क होते हैं।

4. प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis ) – प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्राय: 5° से. ताप पर आरम्भ हो जाती है किन्तु इस क्रिया के लिए अनुकूलतम तापमान 10° से. से 30° से. है। एक सीमा तक ताप वृद्धि के पश्चात् प्रकाश संश्लेषण क्रिया में भारी गिरावट आती है क्योंकि अधिक ताप पर प्रकाश संश्लेषणीय एन्जाइम्स विकृत हो जाते हैं।

5. श्वसन (Respiration ) – श्वसन क्रिया पर तापमान का प्रभाव 0° से. से 40° से. के मध्य होता है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है श्वसन दर कम हो जाती है। इसमें भी उच्च ताप पर श्वसनीय एन्जाइम नष्ट हो जाते हैं।

6. गति ( Movement ) – पौधों में तापानुचलनी (thermotactic) व तापानुकुंचनी ( thermonastic ) गतियाँ ताप के उद्दीपन के कारण होती हैं।

7. तापकालिता (Thermoperiodism ) – पौधों की कुछ कार्यिक क्रियायें तापमान के दैनिक चक्र द्वारा प्रभावित व नियंत्रित होती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर में पुष्पन तभी होता है जब तापमान परास (range) 18° से. से 26° से. के बीच की होती है। इस प्रकार के तापक्रम को तापकालिता कहते हैं।
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8. बसन्तीकरण (Vernalisation)- कुछ पौधों में पुष्पों का निर्माण न्यून ताप पर होता है। बीज पर शीत या न्यून ताप का प्रयोग द्वारा पुष्पीकरण शीघ्र प्राप्त करने की क्रिया को बसन्तीकरण कहते हैं, किन्तु इसके लिए ऑक्सीजन की उपस्थिति आवश्यक है। वैज्ञानिकों के अनुसार बसन्तीकरण में वर्नेलिन नामक पदार्थ बनता है जो फ्लोरीजन (florigen ) या जिबरेलिन (gibberellin) में परिवर्तित हो जाता है। यह पुष्पीकरण को समय से पूर्व प्रारम्भ करने के लिए उत्तरदायी होता है।

9. पादप वृद्धि पर प्रभाव (Effect on plant growth) – अधिक व कम ताप दोनों ही पादप वृद्धि को अधिक प्रभावित करते हैं। न्यून या कम ताप से पौधों में तीन प्रकार की शीत क्षति (cold injury) हो सकती है-

  • निर्जलीकरण (dessication),
  • द्रुतशीतलन क्षति (chilling injury) तथा
  • प्रशीतलन क्षति ( freezing injury)

प्राय: 40° से. ताप पर जीवद्रव्य न्यूनतम क्रिया करने लगता है तथा 90° से. पर निष्क्रिय या मृत हो जाता है। इसे ऊष्मा क्षति (heat injury) कहते हैं। अतः न्यून या उच्च तापक्रम पर पौधे या तो प्रसुप्त रहते हैं या फिर मृत हो जाते हैं। अनेक मरुस्थलीय पौधे आकारिकीय, शारीरिकीय व कार्यिकीय अनुकूलन उत्पन्न कर 66° से. ताप पर भी जीवित रहते हैं। इन पौधों को ऊष्मा प्रतिरोध (heat resistant) कहते हैं। यद्यपि हवा में सूखी यीस्ट कोशिकाएँ 114° से. तथा जीवाणु 120° से. से 130° से. तक कार्यशील बने रह सकते हैं। कुछ कवक तो 89° से. ताप पर भी जीवित रहते हैं।

10. वनस्पति के विस्तार पर प्रभाव (Effect on distribution of vegetation) – तापक्रम का वनस्पति के विस्तारण पर भी प्रभाव पड़ता है । ताप के आधार पर समस्त वनस्पति को उच्चतापी, मध्यतापी, निम्नतापी तथा अतिनिम्नतापी या हैकिस्टोथर्म में विभक्त किया गया है। भूमध्य रेखा से उत्तरी या दक्षिणी ध्रुवों की ओर जैसे-जैसे अक्षांश बढ़ते जाते हैं त्यों- त्यों तापमान कम होता जाता है। इसी प्रकार समुद्र से पहाड़ों की ओर ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान कम होता जाता है। दोनों ओर लगभग समान प्रकार की वनस्पति समूह मिलते हैं जैसे उष्णकटिबन्धीय वर्षा सदाबहार वन, उष्णकटिबन्धीय वन, शंकुधारी वन, अल्पाइन वनस्पति आदि ।

प्रश्न 5.
पौधों पर प्रकाश के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रकाश का मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य विकिरण का केवल 390nm से 760nm तक का दृश्यमान वर्णक्रम ही दृश्य प्रकाश (visible light) कहलाता है तथा इसे ही प्रकाश संश्लेषी सक्रिय विकिरण (PAR) कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश के नीले (430 से 470 nm) और लाल (650 से 760 nm ) भाग में अधिकतम होती है। प्रकाश की तीव्रता तथा अवधि का भी विशेष महत्त्व होता है। पादपों पर प्रकाश के निम्न प्रभाव होते हैं-
1. प्रकाश संश्लेषण पर प्रभाव (Effect on Photosynthesis) – पौधों में पर्णहरिम का निर्माण प्रकाश की उपस्थिति में होता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय क्रिया में प्रकाश का महत्त्वपूर्ण योगदान है। प्रकाशीय ऊर्जा के आधार पर ही फोटोफोस्फोराइलेशन क्रिया द्वारा ATP अणुओं का निर्माण होता है तथा जल का प्रकाश अपघटन द्वारा सह एन्जाइम NADPH बनता है। प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशी अभिक्रिया में CO2 के स्थिरीकरण हेतु NADPH, महत्त्वपूर्ण होते हैं।

2. वाष्पोत्सर्जन पर प्रभाव (Effect on transpiration) – पौधों में रंध्रों का खुलना व बन्द होना प्रकाश पर आधारित है। रंध्र के द्वारा गैसों तथा जलवाष्प का विनिमय होता है। तीव्र प्रकाश में पर्णरंध्र खुल जाते हैं तथा वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। वाष्पोत्सर्जन की दर पर ही अवशोषण तथा रसारोहरण की दर निर्भर करती है।

3. श्वसन व पादप वृद्धि पर प्रभाव (Effect on respiration and plant growth) – अनेक पौधों में प्रकाश की तीव्रता में श्वसन दर बढ़ जाती है। श्वसन में वृद्धि प्रकाश के कोशिका झिल्ली का पारगम्यता तथा जीवद्रव्य की श्यानता ( viscocity) पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है।

पौधों की अनेक क्रियायें जैसे बीजों का अंकुरण, नवोद्भिद की वृद्धि, कलियों का खिलना, प्ररोह की शीर्ष वृद्धि आदि क्रियायें प्रकाश द्वारा प्रभावित होती हैं। प्रकाश की अनुपस्थिति में नवोद्भिद पीला रहकर पाण्डुरित (etiolated) रह जाता है, इसे पाण्डुरिता (etiolation ) कहते हैं। पादप वृद्धि हार्मोन्स तथा फ्लोरीजन (पुष्पीय हार्मोन) के निर्माण में भी प्रकाश महत्त्वपूर्ण है।

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4. पादप वितरण पर प्रकाश का प्रभाव (Effect of light on plant distribution ) – पौधों के वितरण तथा वनस्पति के स्तरीकरण में प्रकाश एक महत्त्वपूर्ण कारक है। जलीय तंत्र में भी पादप वितरण प्रकाश की उपस्थिति व तीव्रता से नियंत्रित होता है। फलस्वरूप जल में वनस्पति के भिन्न-भिन्न क्षेत्र (जैसे- वेलांचल, सरोवरी तथा गंभीर क्षेत्र) बन जाते हैं।

5. प्रकाश का पौधों की आन्तरिक रचना पर प्रभाव (Effect of light on internal structure of plants) प्रकाश के आधार पर पौधों की आन्तरिक संरचना में अन्तर आता है। द्विबीजपत्री पौधों की पृष्ठाधारी पत्तियों में पर्णमध्योतक का खम्भ ऊतक तथा स्पंजी मृदूतक में विभेदन दोनों सतह पर प्रकाश के असंगत वितरण के कारण होता है।

एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों को दोनों पार्श्व सतह को बराबर सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है अतः उनके पर्णमध्योतक में इस प्रकार का विभेदन नहीं पाया जाता है। जलीय तंत्र में प्रकाश एक सीमाकारक है। इसमें प्रकाश की उपलब्धता अधिकांश जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करती है।

झील, समुद्र तथा गहरे जलीय तंत्र में प्रकाश की उपलब्धता तथा इसकी मात्रा उत्पादक व उपभोक्ता जीवों के प्रकार व जीव संख्या को निर्धारित करती है। जैसे अधिकतर पादप्लवक ( phytoplankton ) जल की सतह पर रहते हैं जहाँ उन्हें प्रकाश प्राप्त होता है जबकि नितलस्थ (benthic ) जन्तु झील के तलछट पर या तलछट के भीतर रहते हैं।
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प्रश्न 6.
स्थलाकृतिक कारक क्या होते हैं? पौधों को प्रभावित करने वाले स्थलाकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमि या स्थल की आकृति जैसे तुंगता, घाटियाँ, पर्वतों की दिशायें आदि स्थलाकृतिक कारक होते हैं। अक्षांश, समुद्रतल से ऊँचाई या तुंगता ( altitude) भूमध्यरेखा से दूरी तथा ढाल एवं पर्वतों की. दिशा, घाटियाँ आदि का पौधों के प्रकार व उनके वितरण पर प्रभाव होता है। स्थलाकृतिक कारक मुख्यरूप से चार प्रकार के होते हैं-
1. तुंगता या ऊँचाई ( Altitude) – प्राय: किसी स्थान की समुद्रतल से ऊँचाई बढ़ने पर ताप कम हो जाता है। यह देखा गया है कि समुद्रतल से प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1° से. गिर जाता है। इस प्रकार प्रत्येक 1000 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 6-7° से. तक तापमान कम हो जाता है परन्तु वर्षा अधिक होती है।

प्रत्येक 1000 से 1500 मीटर की ऊँचाई पर वनस्पति में सुस्पष्ट परिवर्तन आते हैं। पश्चिमी हिमालय के ढलान के अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रथम 1200 मीटर की ऊँचाई पर मिश्रित पर्णपाती वन, 1200-3300 मीटर तक शंकुधारी वन तथा ऊँचाई के साथ-साथ रोडोडेन्ड्रोन पौधे पाये जाते हैं। 3600 मीटर पर वन समाप्त हो जाते हैं। 4200 मीटर की ऊँचाई पर अल्पाइन क्षेत्र होता है जिसके नीचे कुछ मॉस, शैक आदि पाये जाते हैं। सबसे अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन किस्म की वनस्पतियाँ मिलती हैं तथा इससे भी अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्र वनस्पति रहित होते हैं।

2. ढाल (Slope) – पर्वतों पर ढाल होती है। वर्षा के समय इन ढलानों पर जल बहकर नीचे आ जाता है तथा मृदा में इसका रिसाव नहीं हो पाता है । फलस्वरूप इन ढलानों पर वनस्पति का पूर्ण अभाव रहता है या कुछ झाड़ीनुमा मरुद्भिद् वनस्पति मिलती है, जैसे अगेव, यूफोर्बिया आदि।

3. ढाल का अनावरण (Exposure of slope ) – पर्वतों के दक्षिण अभिमुखी ढालों पर उत्तर अभिमुख ढालों की अपेक्षा अधिक धूप तथा गर्मी पड़ती है। इसी कारण दक्षिणी ढलानों पर मरुद्भिद् वनस्पति तथा उत्तरी ढलानों पर वन तथा सतही वनस्पति अधिक संख्या में होती है।
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4. पर्वतों की दिशा (Direction of mountains) – पर्वत दिशाओं का जलवायु तथा वनस्पति दोनों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ये हवाओं को निश्चित दिशा में मोड़कर वात उत्पन्न करते हैं। दिशा के अनुसार पर्वतों को प्राप्त होने वाली प्रकाश की मात्रा, वायु तथा वायुमण्डलीय आर्द्रता में परिवर्तन आते हैं। ऊँचे पर्वतों से जैसे ही मानसूनी हवाएँ टकराती हैं, उससे वर्षा होती है।

यही कारण है कि बाहरी हिमालय सघन वनों से ढँका हुआ है ताकि यहाँ समोद्भिद् प्रकार की वनस्पति की बाहुल्यता होती है। मध्य व केन्द्रवर्ती हिमालय तुलनात्मक शुष्क है तथा यहाँ मरुद्भिद् प्रकार की वनस्पति मिलती है। यही कारण है कि ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं को जलवायु अवरोध (climatic barriers) कहते हैं।
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. निम्नलिखित में से कौन एक जीव संख्या का एक गुण नहीं है? (NEET-2020)
(अ) जन्म दर
(ब) मृत्यु दर
(स) जाति परस्पर क्रिया
(द) लिंग अनुपात
उत्तर:
(स) जाति परस्पर क्रिया

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2. निम्नलिखित में से कौनसा पादप शलभ की एक जाति के साथ ऐसा निकट सम्बन्ध दर्शाता है, जिसमें कोई भी एक-दूसरे के बिना अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकता? (NEET-2018)
(अ) केला
(ब) भुक्का
(स) हाइड्रिला
(द) वायोला
उत्तर:
(ब) भुक्का

3. श्वसन मूल किससे होते हैं? (NEET-2018)
(अ) माँसाहारी पादपों में
(ब) स्वतंत्र-अल्पलावक जलोद्भिद् में
(स) लवणमृदोद्भिद् में
(द) जलमान जलोद्भिद् में
उत्तर:
(स) लवणमृदोद्भिद् में

4. निकेत क्या है? (NEET-2018)
(अ) तापमान का वह परास जो जीव को रहने के लिए चाहिए
(ब) वह भौतिक स्थान जहाँ एक जीवधारी रहता है
(स) जीव के पर्यावरण में सभी जैविक कारक
(द) एक जीव द्वारा निभाई गई कार्यात्मक भूमिका, जहाँ वह रहता है।
उत्तर:
(द) एक जीव द्वारा निभाई गई कार्यात्मक भूमिका, जहाँ वह रहता है।

5. निम्नलिखित में से चिकित्सा विज्ञान में प्रतिजैविक के उत्पादन के लिए समष्टि की कौनसी पारस्परिक क्रिया बहुदा प्रयोग की जाती है? (NEET-2018)
(अ) परजीविता
(ब) सहोपकारिता
(स) सहभोजिता
(द) अंतराजातीय परजीविता (एमेन्सेलिज्म)
उत्तर:
(द) अंतराजातीय परजीविता (एमेन्सेलिज्म)

6. कवकमूल किसके उदाहरण हैं? (NEET-2017)
(अ) कवकरोधन
(ब) अंतराजातीय परजीविता
(स) प्रतिजीविता
(द) सहपरोपकारिका
उत्तर:
(द) सहपरोपकारिका

7. लॉजिस्टिक वृद्धि (संभार तंत्र) में अनंतस्पर्शी कब प्रास होता है? जब- (NEET-2017)
(अ) ‘r’ की मान शून्य की तरफ अग्रसर होता है
(ब) K=N
(स) K>N
(द) K<N
उत्तर:
(ब) K=N

8. सुस्पष्ट उध्ध्वाधर स्तरों में व्यवस्थित पादपों की अपनी लम्बाई के अनुसार उपस्थिति सबसे अच्छी कहाँ देखी जा सकती है? (NEET-2017)
(अ) उष्णकटिबन्धीय सवाना
(स) घास भूमि
(ब) उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन
(द) शीतोष्ण वन
उत्तर:
(ब) उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन

9. स्पर्धी अपवर्जन के नियम का प्रतिपादन किसने किया था? (NEET II-2016)
(अ) मैक्आर्थर
(ब) वरहुल्स्ट और पर्ल
(स) सी. डार्बिन
(द) जी.एफ. गॉसे
उत्तर:
(द) जी.एफ. गॉसे

10. स्पर्धी अपवर्जन का गॉसे नियम कहता है कि- (NEET-2016)
(अ) कोई भी दो स्पीशीज एक ही निकेत में असीमित अवधि के लिए नहीं रह सकती क्योंकि सीमाकारी संसाधान समान ही होते हैं।
(ब) अपेक्षाकृत बड़े आकार के जीव स्पर्धा द्वारा छोटे जन्तुओं को बाहर निकाल देते हैं।
(स) अधिक संख्या में पाए जाने वाली स्पीशीज स्पर्धा द्वारा कम संख्या में पाये जाने वाली स्पेशीज को अपवर्जित कर देगी।
(द) समान संसाधनों के लिए स्पर्धा उस स्पीशीज को अपवर्जित कर देगी जो भिन्न प्रकार के भोजन पर भी जीवित रह सकती है।
उत्तर:
(अ) कोई भी दो स्पीशीज एक ही निकेत में असीमित अवधि के लिए नहीं रह सकती क्योंकि सीमाकारी संसाधान समान ही होते हैं।

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11. निम्नलिखित में से किस पारस्परिक क्रिया में दो सभी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं? (NEET-2015)
(अ) परभक्षण
(ब) परजीविता
(स) सहोपकारिता
(द) स्पर्धा
उत्तर:
(द) स्पर्धा

12. एक ही पर्यावरण में रह रही विभिन्न स्पीशीजों की व्यट्टियों का पारस्परिक सम्बन्ध और क्रियात्मक क्रिया करना है- (NEET-2015)
(अ) जीवीय समुदाय
(ब) पारितंत्र
(स) समष्टि
(द) पारिस्थितिक निकेत
उत्तर:
(अ) जीवीय समुदाय

13. जिस प्रकार एक व्यक्ति गर्मी के मौसम में गर्मी से बचने के लिए दिल्ली से शिमला जाता है उसी प्रकार साइबेरिया और अन्य अत्यधिक ठंडे उत्तरी प्रदेशों से हजारों प्रवासी पक्षी किस ओर जाते हैं? (NEET-2014)
(अ) पश्चिमी घाट
(ब) मेघालय
(स) कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान
(द) केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर:
(द) केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

14. एक स्थानबद्ध समुद्री एनीमोन केकड़े के कवच के अस्तर पर चिपक गया। यह सम्बन्ध क्या कहलाता है? (NEET-2013)
(अ) बाह्य परजीविता
(ब) सहजीविता
(स) सहयोजिता
(द) ऐमेन्सेलिज्म
उत्तर:
(ब) सहजीविता

15. नीलहरित शैवाल (सायनोबैक्टिरिया) धान के खेतों के अलावा किसके कायिक भाग के अन्दर भी पाये जाते हैं? (NEET-2013)
(अ) पाइनस
(ब) सायकस
(स) इम्वीसीटम
(द) साइलोटम
उत्तर:
(ब) सायकस

16. अमरबेल (कस्कुटा) किस एक का उदाहरण है? (Mains-2012)
(अ) बाह्य परजीविता
(ब) प्रजनन परजीविता
(स) परभक्षण
(द) अन्तःपरजीविता
उत्तर:
(अ) बाह्य परजीविता

17. नीचे दिये जा रहे आयुपिरामिड में किस प्रकार की मानव समष्टि प्रदर्शित की गई है? [CBSE PMT (Pre)-2011, NEET-2011]
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(अ) गायब होती समष्टि
(ब) स्थिर समष्टि
(स) घटती समष्टि
(द) बढ़ती समष्टि
उत्तर:
(स) घटती समष्टि

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18. लघुगणक समष्टि वृद्धि (लॉजिस्टिक जनसंख्या वृद्धि) को किस समीकरण से अभिव्यक्त किया जाता है? [CBSE PMT (Mains)-2011, NEET-2011]
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उत्तर:
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19. चारघातांकी जनसंख्या वृद्धि का सूत्र कौनसा है? (NEET-2006, Kerala PMT-2010)
(अ) rN/dN = dt
(ब) dN/dt = rN
(स) dt/dN = rN
(द) dN/rN = dt
उत्तर:
(ब) dN/dt = rN

20. निश्चित वहन क्षमता के द्वारा सीमित जनसंख्या वाली लॉजिस्टिक वृद्धि का आकार किस अक्षर के समान होगा? (DUMET-2010)
(अ) J
(ब) L
(स) M
(द) S
उत्तर:
(द) S

21. निम्नलिखित में से किस एक में क्वेरकस की जातियाँ एक प्रभावी घटक होती हैं? (NEET-2008)
(अ) स्क्रब वन
(ब) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
(स) शीतोष्ण पर्णपाती वन
(द) ऐल्पाइन वन
उत्तर:
(स) शीतोष्ण पर्णपाती वन

22. किसी क्षेत्र में हाथियों की समष्टि की अधिक सघनता का नतीजा क्या हो सकता है? (NEET-2007)
(अ) एक-दूसरे का परभक्षण
(ब) सहोपकारिता
(स) अन्तरजातीय प्रतिस्पर्धा
(द) अन्तर्जातीय प्रतिस्पर्धा
उत्तर:
(अ) एक-दूसरे का परभक्षण

23. आयु संरचना का ज्यामितीय प्रदर्शन क्या दर्शाता है? (NEET-2007, CBSE PMT-2007)
(अ) जैविक समुदाय
(ब) जनसंख्या
(स) भूस्खलन
(द) परिस्थितिकी
उत्तर:
(ब) जनसंख्या

24. गर्तीय रंध्र (sunken stomata) पाये जाते हैं- (Orissa JEE 2006)
(अ) मरुद्भिदों में
(ब) जलोद्भिदों में
(स) समोद्भिदों में
(द) लवणोद्भिदों में
उत्तर:
(अ) मरुद्भिदों में

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25. इ.पी. ओडम है- (HP PMT 2005)
(अ) ब्रायोलोजिस्ट
(ब) फिजियोलोजिस्ट
(स) इकोलोजिस्ट
(द) माइकोलोजिस्ट
उत्तर:
(स) इकोलोजिस्ट

26. छोटी मछली शार्क के निचले तल के पास चिपक जाती है और पोषण प्राप्त करती है, तो ऐसा संबंध कहलाता है- (BHU 2005)
(अ) सहजीविता
(ब) सहभोजिता
(स) परभक्षण
(द) परजीविता
उत्तर:
(ब) सहभोजिता

27. प्राणियों में शिकारियों से बचने की स्वाभाविक क्षमता होती है, गलत उदाहरण को चुनिये- (CBSE, 2005)
(अ) केमीलोन में रंग परिवर्तन
(ब) पफर मछली में हवा खींचकर बड़ा आकार
(स) सर्पों का विष
(द) माँस में मेलेनिन
उत्तर:
(स) सर्पों का विष

28. दो जातियाँ जिनमें दोनों साथी एक-दूसरे के लाभकारी होते हैं तो ऐसा संबंध कहलाता है- (HP PMT 2005)
(अ) परजीविता
(ब) सहजीविता
(स) सहभोजिता (Commensalism)
(द) परभक्षण (Predation)
उत्तर:
(ब) सहजीविता

29. निम्न में से कौनसा, वातावरण का भाग नहीं है- (MP PMT 2005)
(अ) प्रकाश
(ब) तापमान
(स) मृदीय कारक
(द) अवक्षेपण
उत्तर:
(स) मृदीय कारक

30. शब्द ‘पारिस्थितिकी’ किसने प्रस्तावित किया- (M.P. PMT, 2003; KCET 2004)
(अ) हेकल
(ब) ओडम
(स) रीटर
(द) डोबेनमायर
उत्तर:
(स) रीटर

31. सहभोजिता होती है- (MP PMT 2004)
(अ) जब दोनों सहभागी लाभान्वित होते हैं।
(ब) जब दोनों सहभागियों को हानि होती है।
(स) कमजोर लाभान्वित होते हैं अपेक्षाकृत शक्तिशाली हानिकारक होते हैं।
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) कमजोर लाभान्वित होते हैं अपेक्षाकृत शक्तिशाली हानिकारक होते हैं।

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32. चरने वाले जंतुओं से संभवतः क्या लाभ है- (BVP 2003)
(अ) वन्य जीवधारियों को हटाना
(ब) खरपतवारों का नाश करना
(स) वन्य पौधों को हटाना
(द) उनके उत्सर्जी पदार्थों का मृदा में मिलना
उत्तर:
(द) उनके उत्सर्जी पदार्थों का मृदा में मिलना

33. पौधों की वृद्धि के लिये ह्यूमस आवश्यक है क्योंकि- (BVP 2003)
(अ) यह आंशिक अपघटित होती है
(ब) यह पत्तियों से व्युत्पन्नित होती है
(स) इसमें पोषक तत्वों की अधिकता एवं जल धारण करने की क्षमता भी अधिक होती है
(द) यह मृत कार्बनिक पदार्थों की बनी होती है
उत्तर:
(स) इसमें पोषक तत्वों की अधिकता एवं जल धारण करने की क्षमता भी अधिक होती है

34. निम्न में से कौनसा सही चयनित युग्म है- (AIIMS 2003)
(अ) शार्क एवं सकर मछलियाँ-असहभोजिता (Amensalism)
(ब) शैवाल एवं कवक का लाइकेन्स से-सहोपकारिता (Mutualism)
(स) आर्किड्स का वृक्षों पर उगना-परपोषिता
(द) परपोषिता (डोडर) का दूसरे पुष्पीय पौधों पर उगनाअधिपादपता
उत्तर:
(ब) शैवाल एवं कवक का लाइकेन्स से-सहोपकारिता (Mutualism)

35. झील के सतही जल में किसकी अधिकता होती है- (AFMC 2003)
(अ) कार्बनिक पदार्थ
(ब) खनिजों
(स) अकार्बनिक पदार्थ
(द) प्रदूषकों
उत्तर:
(अ) कार्बनिक पदार्थ

36. अधिकतर ह्यूमस की मात्रा पायी जाती है- (CPMT 2003)
(अ) सबसे निचली परत में
(ब) ऊपरी परत में
(स) मध्य परत में
(द) सभी जगह समान
उत्तर:
(ब) ऊपरी परत में

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37. जलधारण क्षमता अधिकतम होती है- (CMC Ludhiana 2003)
(अ) मृत्तिका (Clay) या चिकनी मिट्टी में
(ब) बालू में
(स) गाद (silt) में
(द) बजरी (gravel) में
उत्तर:
(अ) मृत्तिका (Clay) या चिकनी मिट्टी में

38. किसी समष्टि में अबाधिकजनन की क्षमता को क्या कहते हैं? (NEET-2002)
(अ) जैव विभव
(ब) उपजाऊता
(स) वहन क्षमता
(द) जन्म दर
उत्तर:
(अ) जैव विभव

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