HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

Haryana State Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

HBSE 12th Class Physical Education पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
परिवार का अर्थ एवं परिभाषा लिखें। इसके प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
परिचय (Introduction):
परिवार की उत्पत्ति कब हुई? इस संदर्भ में कोई निश्चित समय अथवा काल नहीं बताया जा सकता, पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे आवश्यकताओं की बढ़ोतरी हुई, वैसे-वैसे परिवार का विकास हुआ। परिवार की उत्पत्ति के विषय में अरस्तू जैसे विद्वान् ने कहा था कि, “परिवार का जन्म अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है।” परिवार को अंग्रेजी भाषा में ‘Family’ कहते हैं, जो रोमन भाषा के ‘Famulus’ से बना है। लैटिन भाषा में परिवार को फेमिलिआ (Familia) कहा जाता है, जिसका अर्थ है-माता-पिता, बच्चे, श्रमिक और गुलाम।

परिवार की परिभाषाएँ (Definitions of Family):
परिवार के संबंध में कुछ धारणाएँ इस प्रकार हैं-
(1) परिवार दो व्यक्तियों (स्त्री व पुरुष) का प्रेम स्वरूप बंधन है जो एक साथ सहवास, सहयोग की भावना पर आधारित है तथा प्रजनन की क्रिया को जन्म देता है,
(2) परिवार दो व्यक्तियों का ऐसा स्वरूप है जिससे सामाजिक प्रेरणाओं को रचनात्मक रूप देने का प्रयास किया जाता है। भिन्न-भिन्न समाजशास्त्रियों ने परिवार के बारे में अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. क्लेयर (Clare) का कथन है, “परिवार से अभिप्राय उन संबंधों से है जो माता-पिता और बच्चों में मौजूद होते हैं।”
2. बैलार्ड (Ballard) के अनुसार, “परिवार एक मौलिक सामाजिक संस्था है, जिससे अन्य सभी संस्थाओं का विकास होता है।”
3. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “परिवार व्यक्तियों का एक समूह है जो एक ही छत के नीचे रहते हैं जो क्षेत्र, रुचि, आपसी बंधन और सूझ-बूझ के अनुसार स्नेह और खून के रिश्ते में बंधे होते हैं।”
4. बर्गेस और लॉक (Burgess and Lock) के अनुसार , “परिवार ऐसे व्यक्तियों का एक समूह है जो विवाह, खून या अपनाए गए रिश्तों या सम्बन्धों में बंधकर एक घर का निर्माण करता है। पति-पत्नी, माता-पिता, बेटा-बेटी, बहन-भाई आदि से सम्बन्धित सामाजिक बन्धनों से उनके आपसी सम्बन्ध बनते हैं और इस प्रकार से वे साधारण सभ्यता का निर्माण और उसको कायम रखते हैं।”

ऊपर दिए गए वर्णन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि परिवार एक आन्तरिक क्रियाशील व्यक्तियों का समूह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का निश्चित कर्त्तव्य और निश्चित स्थान होता है। यह समूह अच्छी तरह संगठित होता है और इसकी अपनी पहचान होती है। मित्रता, प्यार, सहयोग और हमदर्दी परिवार के आधार हैं। परिवार सभी सामाजिक गठनों का आधार है। परिवार बच्चों की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

परिवार के प्रकार (Types of Family):
परिवार समाज की एक मौलिक, सार्वभौमिक संस्था है। परिवार सभी स्तरों के समाज में किसी-न-किसी रूप में सदैव विद्यमान रहा है। विद्वानों ने परिवार के स्वरूपों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है; जैसे निवास-स्थान, सत्ता, वंश, विवाह, सदस्यों की संख्या के आधार पर आदि।

सदस्यों की संख्या के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के परिवार पाए जाते हैं
1. एकल या मूल परिवार (Single Family)
2. संयुक्त परिवार (Joint Family)
1. एकल या मूल परिवार (Single Family):
केंद्रीय परिवार को प्राथमिक, व्यक्तिगत, केंद्रीय, मूल अथवा नाभिक परिवार भी कहते हैं। यह परिवार का सबसे छोटा और आधारभूत स्वरूप है जिसमें सदस्यों की संख्या बहुत कम होती है। आमतौर पर पति-पत्नी तथा उसके अविवाहित बच्चे ही इस परिवार के सदस्य होते हैं। ऐसे परिवार में सदस्य भावात्मक आधार पर एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं। परिवार का आकार सीमित होने के कारण इसका बच्चों के जीवन पर काफी रचनात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. संयुक्त परिवार (Joint Family):
संयुक्त परिवार में दो या दो से अधिक पीढ़ियों के सदस्य; जैसे पति-पत्नी, उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, चचेरे भाई, बच्चों की पत्नियाँ आदि. एक साथ एक घर में निवास करते हैं। उनकी संपत्ति साँझी होती है। वे एक ही चूल्हे पर भोजन बनाते हैं, सामूहिक धार्मिक कार्यों का निर्वाह करते हैं और परस्पर किसी-न-किसी नातेदारी व्यवस्था से जुड़े होते हैं। संयुक्त परिवार के सदस्य परस्पर अधिकारों व कर्तव्यों को निभाते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

प्रश्न 2.
परिवार का अर्थ बताते हुए इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
परिवार का अर्थ (Meaning of Family):
परिवार एक सामाजिक संगठन है जिसके अंतर्गत पति-पत्नी एवं उनके बच्चे तथा अन्य सदस्य आ जाते हैं जो उत्तरदायित्व व स्नेह की भावना से परस्पर बंधे रहते हैं।

परिवार की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of Family):
परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. सामाजिक आधार (Social Basis):
परिवार के नियम सामाजिक नियंत्रण करने में सहायक होते हैं। परिवार में रहकर सदस्य सहनशीलता, सहयोग, सद्व्यवहार, रीति-रिवाज़ और धर्म जैसे नियमों का पालन करते हैं। परिवार सामाजिक नियमों का पालन करने में बहुत बड़ा योगदान देता है।

2. भावनात्मक आधार (Emotional Basis):
परिवार के सभी सदस्य भावनात्मक आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। पति-पत्नी का प्यार, बच्चों तथा बहन-भाइयों का प्यार विशेष महत्त्व रखता है। इसी कारण परिवार के सभी सदस्य प्यार की माला में पिरोए होते हैं।

3. आर्थिक आधार (Economical Basis):
परिवार में कमाने वाले सदस्य बाकी सदस्यों; जैसे बच्चे, बूढे, स्त्रियों आदि के पालन-पोषण की व्यवस्था करते हैं। वह परिवार के सदस्यों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस प्रकार परिवार के सभी सदस्य अधिकार और कर्तव्यों से बंधे होते हैं।

4. जिम्मेवारी या उत्तरदायित्व (Responsibility):
परिवार में रहते हुए प्रत्येक सदस्य अपनी जिम्मेवारी या उत्तरदायित्व को पूरा करता है। इनमें किसी सदस्य का निजी स्वार्थ नहीं होता। परिवार में आई प्रत्येक कठिनाई का सामना वे सामूहिक रूप से करते हैं।

5. सर्वव्यापकता (Universality): परिवार का अस्तित्व प्राचीनकाल से सर्वव्यापक है। इसी कारण परिवार को सर्वव्यापक सामाजिक संगठन कहा जाता है।

6. स्थायी लैंगिक संबंध (Permanent Sexual Relation):
स्त्री-पुरुष के स्थायी लैंगिक संबंध समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। इसी कारण ही उनकी संतान वैध और सामाजिक रूप से परिवार की सदस्य होती है। संबंधों के स्थायी होने से बच्चों का पालन-पोषण ठीक प्रकार से होता है।

7.खून का रिश्ता (Blood Relation):
परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके सदस्यों का आपस में खून का रिश्ता होता है। इसी नाते सभी सदस्य परिवार में आई मुश्किल को सामूहिक रूप से हल करने की कोशिश करते हैं। परिवार में सदस्यों का ऐसा रिश्ता उनमें विश्वास व निःस्वार्थ की भावना पैदा करता है।

प्रश्न 3.
परिवार के कार्यों और उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
परिवार के प्राथमिक या आधारभूत कार्य कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक लिखें।
अथवा
परिवार के मूल मौलिक तथा गौण कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव-जीवन में परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। परिवार मानव की आज तक सेवा करता रहा है और कर रहा है जो किसी अन्य संस्था या समिति द्वारा संभव नहीं है। परिवार समाज की एक स्थायी व मौलिक सामाजिक संस्था है। अतः इसके कार्यों अथवा कर्तव्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) मौलिक या आधारभूत कार्य (Basic Functions)
(ख) द्वितीयक या गौण कार्य (Secondary Functions)

(क) मौलिक या आधारभूत कार्य (Basic Functions):
मौलिक कार्यों को प्राथमिक या आधारभूत कार्य भी कहते हैं। ये सार्वभौमिक होते हैं।
1. बच्चे का पालन-पोषण (Infant Rearing):
बच्चों के माता-पिता का उनके पालन-पोषण में बहुत बड़ा योगदान होता है। बच्चे को दूसरे लोगों की बजाय अपने माता-पिता का साथ ज्यादा मिलता है क्योंकि बच्चे के ऊपर माता-पिता का काफ़ी लम्बे समय तक गहरा प्रभाव रहता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चे में जीवन के बहुमूल्य पाँच सालों में अच्छे गुणों को प्राप्त करने की आध्यात्मिक शक्ति होती है। दूसरे लोगों का प्रभाव बच्चे पर इस अवस्था के बाद में ही होता है।

2. प्रजनन क्रिया (Birth Process):
प्रजनन क्रिया परिवार का एक महत्त्वपूर्ण बुनियादी कार्य है। इस सम्बन्ध में वुड्सवर्थ का विचार है, “यह एक प्राणी का बुनियादी कार्य है जो परिवार करता है। यह कार्य किसी भी व्यक्ति या समाज के लिए आवश्यक है।”

3. परिवार के सदस्यों की सुरक्षा (Security of Family Members):
परिवार का बुनियादी कार्य केवल संतान पैदा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि परिवार के सदस्यों की सुरक्षा अच्छे ढंग से करना भी उसका कार्य है। माता-पिता की देखभाल में रहकर बच्चा अपने व्यक्तित्व को निखार सकता है।

4. रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करना (To Manage the Basic Necessities):
रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मुख्य जरूरतें हैं। इनकी व्यवस्था करना परिवार का बुनियादी कार्य है। परिवार के सदस्यों की शारीरिक शिक्षा और उसके लिए स्थान की व्यवस्था भी परिवार ही करता है।

5. बच्चे की देखभाल (Care of Child):
बच्चे की देखभाल और संतुलित विकास में माता-पिता का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। परिवार में रहते हुए बच्चे पर परिवार और परिवार के सदस्यों के व्यवहार का असर पड़ना भी स्वाभाविक होता है। माता-पिता से मेल-मिलाप, हमदर्दी और प्यार आदि मिलने से उसमें आत्म-सम्मान बढ़ता है। यह गुण बच्चे को जिंदगी में सफल बनाने में मदद करते हैं। बच्चे देश या परिवार के भविष्य की आशा की किरण होते हैं। इस कारण माता-पिता को बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए।

6. परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखना (To Take Care of Family Health):
परिवार का सबसे मुख्य कर्त्तव्य परिवार के सदस्यों की सेहत का ध्यान रखना है। बच्चे की साफ-सफाई की तरफ ध्यान देना भी परिवार की मुख्य जिम्मेदारी होती है। उसको संतुलित खुराक, आवश्यक वस्त्र, आराम, नींद, खेल, कसरत और डॉक्टरी सहायता की व्यवस्था करना परिवार का मुख्य कर्तव्य है।

7. शिक्षा की व्यवस्था करना (Arrangement of Education):
परिवार बच्चों के लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था करता है। वह बच्चों की शिक्षा संबंधी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

(ख) द्वितीयक या गौण कार्य (Secondary Functions):
इन कार्यों को अधिक प्राथमिकता नहीं दी जाती, इसलिए इन्हें द्वितीयक या गौण कार्य कहा जाता है। समाज विशेष के अनुसार, इन कार्यों में परिवर्तन होता रहता है।
1. आमोद-प्रमोद संबंधी कार्य (Recreative Functions)-परिवार पारिवारिक सदस्यों के मनोरंजन या आमोद-प्रमोद हेतु भी कार्य करता है। इससे वे संतुष्टि व राहत महसूस करते हैं।

2. मनोवैज्ञानिक कार्य (Psychological Functions)-परिवार सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। परिवार में सदस्यों का परस्पर प्रेम, सहानुभूति, त्याग, धैर्य आदि भावनाएँ देखने को मिलती हैं। परिवार में सदस्यों के संबंध पूर्ण व घुले-मिले होते हैं। इसलिए सदस्य सुख-दुःख आदि में एक-दूसरे को सहयोग देते हैं।

3. व्यक्तित्व का विकास (Personality Development)-एक बच्चे का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास करने का अवसर प्रदान करना परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। परिवार का मुख्य उद्देश्य बच्चे का बहुमुखी विकास करना है। इसलिए बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में माता-पिता को बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए।

4. सामाजिक कार्य (Social Work):
परिवार के प्रमुख सामाजिक कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) स्थिति प्रदान करना-सबसे पहले परिवार में ही व्यक्ति को उसकी प्रथम स्थिति प्राप्त होती है। पैदा होते ही वह एक पुत्र, भाई आदि की स्थिति प्राप्त कर लेता है। स्थिति के अनुसार ही व्यक्ति की भूमिका होती है। अतः हम कह सकते हैं कि परिवार ही सबसे पहले व्यक्ति की स्थिति और भूमिका निश्चित करता है।

(2) सामाजिक नियंत्रण-परिवार अपने सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण रखकर सामाजिक नियंत्रण में भी सहायक होता है। परिवार ही सबसे पहले व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार के स्वीकृत मानदंडों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

(3) मानवीय अनुभवों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाना-आज तक के मानवीय अनुभवों को परिवार बच्चों को कुछ ही वर्षों में सिखा देता है। इस प्रकार ये अनुभव पीढ़ी-दर-पीढ़ी अविराम गति से पहुँचते रहते हैं।

(4) मानवता का विकास-परिवार के सदस्य तीव्र भावात्मक संबंधों में बँधे होने के कारण सदैव एक-दूसरे के लिए त्याग तथा बलिदान हेतु तत्पर रहते हैं । पारस्परिक सहयोग, त्याग, बलिदान, प्रेम, स्नेह आदि के गुणों का विकास करके परिवार अपने सदस्यों में मानवता का विकास करता है।

5. आर्थिक कार्य (Economical Functions)-
परिवार के आर्थिक कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) उत्तराधिकार का नियमन-प्रत्येक समाज में संपत्ति एवं पदों की पुरानी पीढ़ी में हस्तांतरण की व्यवस्था पाई जाती है। यह कार्य परिवार के द्वारा ही किया जाता है। पितृ-सत्तात्मक परिवार में उत्तराधिकार पिता से पुत्र को तथा मातृ-सत्तात्मक परिवार में माता से पुत्री या मामा से भाँजे को मिलता है। इस प्रकार परिवार संपत्ति एवं पद के उत्तराधिकार संबंधी कार्यों की देख-रेख करता है। परिवार द्वारा यह निश्चित होता है कि संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन-कौन होगा।

(2) श्रम-विभाजन-श्रम-विभाजन परिवार से आरंभ होता है। परिवार में श्रम-विभाजन उसके सदस्यों की स्थिति, आयु, कार्य-शक्ति एवं कुशलता के अनुसार ही होता है। परिवार में महिलाओं, बच्चों, पुरुषों, बूढ़ों आदि में श्रम-विभाजन होता है; जैसे महिलाएँ गृह-कार्य करती हैं, पुरुष शक्ति या परिश्रम संबंधी बाहरी कार्य तथा बच्चे छोटा-मोटा घरेलू कार्य करते हैं। परिवार के सदस्यों में श्रम-विभाजन आर्थिक सहयोग का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

(3) आय तथा संपत्ति का प्रबंध-परिवार अपने सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन (आय) का प्रबंध करता है। परिवार की आय से ही उसकी गरीबी या अमीरी का आकलन किया जाता है। परिवार का मुखिया, आय को कैसे खर्च करना है, तय करता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार के पास अपनी चल तथा अचल संपत्ति; जैसे जमीन, सोना, गहने, नकद, पशु, दुकान आदि होती है। उसकी देखभाल एवं सुरक्षा परिवार के द्वारा की जाती है।

6. राजनीतिक कार्य (Political Funcitons):
राज्य के अनुसार, आदर्श नागरिक बनाने का सर्वप्रथम कार्य परिवार में ही होता है। परिवार ही परिवार के सदस्यों को देश व राज्य की राजनीतिक गतिविधियों से अवगत करवाता है। कन्फ्यूशियस के अनुसार, “मनुष्य सर्वप्रथम परिवार का तथा उसके बाद उस राज्य का सदस्य होता है जो परिवार के स्वरूप के अनुरूप ही निर्मित होता है।”

7. सांस्कृतिक व धार्मिक कार्य (Cultural and Religious Functions):
बच्चे को समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को सौंपने में परिवार महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। परिवार अपने सदस्यों को अपने कार्य के अनुसार पूजा-पाठ, आराधना, इबादत, भक्ति आदि धार्मिक कार्यों के लिए तैयार करता है जिससे धर्म का महत्त्व बना रहता है। परिवार सदस्यों में परिश्रम, ईमानदारी, सहयोग, सहानुभूति, सच बोलना आदि गुण विकसित करने में सहायक होता है।

परिवार की उपयोगिता (Utility of Family);
परिवार को बच्चे का पालना कहा जाता है । यह बच्चे और अन्य सदस्यों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। बच्चों व अन्य सदस्यों को पालने में परिवार की उपयोगिता या भूमिका निम्नलिखित है-
(1) परिवार बच्चों व अन्य सदस्यों के लिए संतुलित भोजन, समयानुसार वस्त्र, आवास एवं चिकित्सा सुविधा आदि का प्रबंध करता है।
(2) परिवार में बच्चों के धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।
(3) परिवार को सामाजिक गुणों का पालना कहा जाता है। परिवार बच्चे के सामाजिक विकास में सहायक होता है।
(4) परिवार बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अवसर जुटाता है।
(5) परिवार बच्चों के मूल्यपरक अर्थात् नैतिक गुणों के विकास में सहायक होता है। परिवार उनमें परिश्रम, ईमानदारी, सहयोग एवं सहानुभूति आदि गुणों को विकसित करता है। इनके अतिरिक्त बच्चा परिवार के संरक्षण में रहकर चिंताओं एवं मानसिक तनाव से मुक्त रहता है, उसमें इंसानियत या मानवता जागृत होती है, आत्मविश्वास जागृत होता है, सहनशीलता की भावना उत्पन्न होती है। बच्चा अपने परिवार से दूसरे परिवारों के साथ ‘सहकारिता की भावना व घर के कार्य में सहयोग का पाठ पढ़ता है। अंत में, हम कह सकते हैं कि परिवार अनेक नैतिक व सामाजिक गुणों का पालना है।

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प्रश्न 4.
“परिवार एक सामाजिक संस्था के रूप में उपयोगी है।” वर्णन करें।
अथवा
क्या परिवार एक समाजिक संस्था के रूप में कार्य करता है? इस विषय का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर:
परिवार एक सामाजिक संस्था है जो सामाजिक संस्था के रूप में कार्य करता है। सामाजिक क्षेत्र में परिवार की उपयोगिता निम्नलिखित कार्यों से सिद्ध होती है- .
1. रहन-सहन के गुणों का विकास करना (To Develop the Qualities of Living):
परिवार एक ऐसी संस्था है जो अपने सदस्यों को विशेषकर बच्चों को समाज में रहन-सहन, खाने-पीने और बोलने आदि के ढंग सिखाता है। परिवार ही ऐसा स्थान है जहाँ पर बच्चे अपने भविष्य के लिए स्वयं को तैयार करते हैं और स्वयं में सामाजिकता के गुणों को विकसित करके अपने रहन-सहन के गुणों को विकसित करते हैं।

2. व्यक्तित्व निखारने वाली संस्था (Organisation of Personality Development);
परिवार को यदि व्यक्तित्व निखारने वाली संस्था कहा जाए तो कोई गलत बात नहीं होगी। परिवार में रहकर बच्चे अपने व्यक्तित्व को निखार सकते हैं।

3. परिवार एक मौलिक इकाई के रूप में (Family as Basic Unit):
परिवार एक मौलिक इकाई है। परिवार में रहकर सदस्यों के सम्बन्धों की रचना होती है। सभी सदस्य एक-दूसरे के इशारों पर चलते हैं। सामाजिक रीति-रिवाजों की रक्षा करना और सदस्यों के किसी भी तरह के व्यवहार पर काबू रखना परिवार का ही फर्ज है।

4. बच्चे पैदा करना (To Give Birth to Infant):
इस सम्बन्ध में वुडवर्थ का मानना है कि यह एक प्राणी का बुनियादी कर्तव्य है जिसे परिवार करता रहता है। इस तरह का कार्य किसी भी व्यक्ति या समाज के लिए आवश्यक है।

5. बच्चों का पालन-पोषण करना (Infant Rearing):
परिवार का बुनियादी कार्य केवल बच्चे पैदा करना ही नहीं बल्कि बच्चे का पालन-पोषण माता-पिता की तरफ से सबसे अच्छे ढंग से किया जा सकता है। माता-पिता की देखरेख में रहकर ही बच्चा अपने व्यक्तित्व का अच्छी तरह से विकास कर सकता है।

6. पारिवारिक सभ्याचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाने वाली संस्था (Organisation of Spread Family Culture Step-wise-step):
हमारे बजुर्गों के पास अनुभव होता है। माता-पिता अपने बजुर्गों से जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बांटने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार पारिवारिक सभ्याचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने वाली संस्था के रूप में कार्य करता है।

7. मनोवैज्ञानिक कार्यों का केन्द्र बिन्दु (Central Point of Psychological Functions):
परिवार मनोवैज्ञानिक कार्यों का केन्द्र है। परिवार अपने सदस्यों के आपसी प्यार और सद्भावना का संचार करता है। कोई भी व्यक्ति परिवार में रहकर हमदर्दी, त्याग और प्रेम आदि मनोवैज्ञानिक गुणों को प्राप्त करता है। आदर्श रूप में परिवार एक प्रभावशाली मनोविज्ञान का आधार स्तम्भ है। यहां रहकर एक व्यक्ति को दुनिया की चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती है।

8. मनोरंजन का केन्द्र (Centre of Entertainment):
कामकाज से थका हुआ व्यक्ति परिवार में आकर बच्चों के साथ अपना मन बहला लेता है। बच्चों के साथ खेलकर तथा उनकी मधुर और तोतली आवाज सुनकर व्यक्ति की सारे दिन की थकावट दूर हो जाती है तथा वह अपनी सभी चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है।

9. आर्थिक कार्यों का केन्द्र (Centre of Economic Functions):
परिवार हमेशा से ही आर्थिक कार्यों का केन्द्र-बिन्दु रहा है। वस्तुओं को बनाना और उन्हें ज़रूरत के अनुसार बांटना ही परिवार का मुख्य कार्य है। परिवार में सदस्यों को अपने काम की जानकारी होती है। इसीलिए कहा जाता है कि परिवार अपने कार्य स्वयं ही निश्चित करता है। परिवार ही यह फैसला लेता है कि उसकी धन-दौलत तथा सम्पत्ति का मालिक कौन होगा और कौन-कौन इस सम्पत्ति का हिस्सेदार होगा।

प्रश्न 5.
किशोरावस्था को परिभाषित करें। इस अवस्था में कौन-कौन-से परिवर्तन होते हैं? वर्णन करें।
अथवा
“किशोरावस्था परिवर्तन का काल है।” इस कथन को विस्तारपूर्वक स्पष्ट करें।
अथवा
किशोरावस्था का क्या अर्थ है? किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करें।
उत्तर:
किशोरावस्था का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Adolescence):
किशोरावस्था अंग्रेज़ी शब्द ‘Adolescence’ का हिंदी रूपांतरण है। ‘Adolescence’ लैटिन भाषा के शब्द ‘Adolesceker’ (एडोलेसेकर) से बना है जिसका अर्थ है-परिपक्वता की ओर अग्रसर होना। किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें बालक बाल्यावस्था का त्याग करता है। यह अवस्था बाल्यावस्था के बाद और युवावस्था से पहले की अवस्था है। यह अवस्था लगभग 12 से 18 वर्ष के बीच की होती है।
1. स्टेनले हाल (Stanley Hall) के अनुसार, “किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।”
2. जरसील्ड (Jersield) के अनुसार, “किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।”
3. सैडलर (Sadler) के मतानुसार, “किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बच्चा अपने-आप ही प्रत्येक कार्य करने की कोशिश करता है।”

किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन (Changes of Adolescence):
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि इस अवस्था में किशोरों में अनेक शारीरिक-मानसिक परिवर्तन होते हैं जिस कारण वे चिंतित एवं बेचैन होते हैं। अनेक परिवर्तन होने के कारण इस अवस्था को परिवर्तन का काल कहा जाता है। इस अवस्था में होने वाले मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित हैं

1.शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes):
किशोरावस्था में किशोरों में दो प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते हैं-आंतरिक एवं बाहरी। किशोरों की ऊँचाई में तेजी से परिवर्तन होते हैं। भार में भी पर्याप्त वृद्धि होती है। किशोरों की आवाज में बहुत परिवर्तन होता है। लड़कों की आवाज में भारीपन तथा लड़कियों की आवाज कोमल व सुरीली हो जाती है।

2. मानसिक परिवर्तन (Mental Changes):
किशोरावस्था में किशोरों में अनेक बौद्धिक या मानसिक परिवर्तन होते हैं। उनमें स्मरण-शक्ति एवं कल्पना-शक्ति विकसित हो जाती है। किशोरों में तर्क एवं विचार-शक्ति का तीव्र विकास होने लगता है। उनमें किसी वस्तु या विषय के प्रति ध्यान केंद्रित करने की शक्ति विकसित हो जाती है। उनमें प्रदर्शन व मुकाबले की भावना का भी विकास होता है।

3. सामाजिक परिवर्तन (Social Changes):
इस अवस्था में किशोरों में सामाजिक भावना का विकास तीव्र गति से होता है। वे किसी-न-किसी सामाजिक संस्था का सदस्य बनने में रुचि लेने लगते हैं। उनमें सद्भाव, सहयोग, प्रेम, वफादारी, मित्रता तथा सहानुभूति आदि गुणों के लक्षण अधिक विकसित होने लगते हैं। वे खेलकूद व क्रियाशील कार्यों में भी अधिक रुचि लेने लगते हैं। .

4. संवेगात्मक परिवर्तन (Emotional Changes):
इस अवस्था में किशोरों में जिज्ञासा-प्रवृत्ति तीव्र हो जाती है। उनमें काल्पनिकता एवं भावुकता का पूर्ण विकास हो जाता है। उनमें विद्रोह की भावना तीव्र हो जाती है। वे स्वाभिमानी हो जाते हैं। उनमें आत्म-सम्मान की भावना का पूरी तरह विकास होने लगता है। वे विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं या क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए तैयार रहते हैं। उनमें संवेगात्मक तनाव तीव्र हो जाता है। उनमें उपेक्षा के भावों के कारण विद्रोह व अपराध करने की प्रवृत्तियाँ भी अधिक विकसित होने लगती हैं । इस अवस्था में उनका अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रहता। वे छोटी-छोटी बातों से भी अपना संवेगात्मक या भावनात्मक संतुलन खो देते हैं।

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प्रश्न 6.
किशोरावस्था क्या है? इसकी समस्याओं या कठिनाइयों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
अथवा
किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक-मानसिक परिवर्तनों के कारण किशोरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? वर्णन करें।
अथवा
किशोरावस्था एक गंभीर, तनावपूर्ण तथा समीक्षात्मक अवस्था है-स्पष्ट करें।
अथवा
“किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।” इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
किशोरावस्था काअर्थ (Meaning of Adolescence):
किशोरावस्था एक गंभीर, तनावपूर्ण तथा समीक्षात्मक अवस्था है। इस अवस्था में शारीरिक वृद्धि और विकास तीव्र गति से होता है। इस अवस्था के आरंभ होते ही शरीर में अनेक अंतर आ जाते हैं। इसी कारण इस अवस्था को तनावपूर्ण व विरोध करने की अवस्था कहा जाता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्टेनले हाल का कथन है, “किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।”

किशोरावस्था की समस्याएँ या कठिनाइयाँ (Problems or Difficulties of Adolescence);
किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और व्यवहार में बहुत जल्दी परिवर्तन आते हैं। इस कारण किशोरों को कई प्रकार की कठिनाइयों या समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनको बचपन की आदतों को छोड़कर किशोरावस्था की आदतों में ढलना पड़ता है। इसी कारण किशोरावस्था में माता-पिता और अध्यापकों का दायित्व और भी बढ़ जाता है। इस अवस्था में किशोरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है

1. शारीरिक समस्याएँ (Physical Problems):
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन स्पष्ट नज़र आते हैं। कुछ शारीरिक परिवर्तनों के कारण उनमें बेचैनी होती है, क्योंकि उनको इन बातों की पूर्ण

2. मानसिक समस्याएँ (Mental Problems):
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ अनेक मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। इन परिवर्तनों के कारण कई प्रकार की मानसिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; जैसे तनाव, चिंता, बेचैनी, खिंचाव आदि।मानसिक तनाव के कारण वे किसी दूसरे से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।

3. आत्म-चेतना में वृद्धि (Increase in Self-consciousness):
बचपन में आत्म-चेतना कम होती है। जैसे ही बच्चा किशोरावस्था में कदम रखता है, उसकी चेतना में एकदम परिवर्तन आता है। वह लोगों को बताना चाहता है कि वह अब बच्चा नहीं रहा, बल्कि हर बात को भली-भाँति समझने लगा है। इस अवस्था में लड़के-लड़कियाँ कुछ बनने के लिए तत्पर रहते हैं। कई बार इस आत्म-चेतना के कारण वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं।

4. भावनात्मक या संवेगात्मक समस्याएँ (Emotional Problems):
किशोरावस्था में किशोरों का भावनात्मक होना एक साधारण बात है, क्योंकि इस अवस्था में उनमें संवेगात्मकता चरम-सीमा पर होती है। इसका मुख्य कारण उसकी शारीरिक और लिंग ग्रंथियों में जरूरत से अधिक वृद्धि है। किशोरावस्था में प्यार और नफरत दोनों बहुत ताकतवर होते हैं । इस अवस्था में उनका अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रहता। वे छोटी-छोटी बातों से भी अपना भावात्मक संतुलन खो देते हैं।

5. व्यवसाय और विषयों की समस्याएँ (Problems of Career and Subjects):
किशोरावस्था में व्यवसाय और विषयों का चुनाव एक आम समस्या है। इस अवस्था में बच्चा स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए तैयार होता है। विषयों का चुनाव और व्यवसाय के चुनाव पर उसका आने वाला भविष्य निर्भर करता है। उसके भविष्य की उज्ज्वलता अथवा अंधकारमयता उसके चुनाव पर निर्भर करती है।

6. चिड़चिड़ेपन में वृद्धि (Increase in Irritation):
किशोरावस्था में किशोर स्वतंत्र होना चाहते हैं ताकि वे अपना फैसला स्वयं कर सकें, परंतु माता-पिता उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। उनमें भावुकता बहुत अधिक होती है। इसी कारण माता-पिता उनकी प्रत्येक क्रिया पर नज़र रखते हैं ताकि वे भटक न जाएँ। परंतु बच्चे इन बातों से चिड़चिड़े हो जाते हैं और माता-पिता से सवाल-जवाब करने शुरू कर देते हैं। कई बार तो लड़ाई-झगड़े तक की नौबत आ जाती है।

7. बौद्धिक चेतना संबंधी समस्याएँ (Problems of Intellectual Consciousness):
किशोरावस्था में बौद्धिक चेतना अपनी चरम-सीमा पर होती है। उसकी बात को समझने की शक्ति तेज हो जाती है। वह माता-पिता से कई ऐसे सवाल करता है कि माता-पिता चकित रह जाते हैं । वह हर बात की छानबीन करना चाहता है। उनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहता है। वह सदैव इसी ताक में रहता है कि वह किसी समूह अथवा अपनी मित्र-मंडली में बौद्धिक चेतना का प्रदर्शन करके अपने सम्मान में वृद्धि कर सके। बौद्धिक चेतना में वृद्धि होने के कारण किशोर स्वयं को दूसरों से अधिक बुद्धिमान एवं चालाक समझने लगते हैं। उन्हें स्वयं पर इतना अधिक विश्वास होता है कि वे दूसरों को मूर्ख समझने लगते हैं।

8. यौन संबंधी समस्याएँ (Sexual Problems): इस अवस्था में यौन संबंधी समस्याओं का होना भी एक आम बात है।

9. स्थिरता की कमी (Lack of Stability):
किशोरावस्था में किशोरों में स्थिरता की कमी होती है अर्थात् उनका व्यवहार स्थिर नहीं रहता। इसी कारण वे दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। स्थिरता की कमी के कारण किशोरों का व्यवहार आक्रामक हो जाता है। वे घर व बाहर पूर्ण रूप से स्वतंत्रता चाहते हैं।

10. नशीली दवाइयों का सेवन (Use of Drug Abuses):
किशोरावस्था में सिगरेट, शराब, नशीली दवाइयों आदि का सेवन सामान्य बात हो गई है। किशोर इस अवस्था में अपनी पढ़ाई की तरफ कम ध्यान देता है। वह नशीली दवाइयों का सेवन अपने दोस्तों के साथ बिना उसकी हानि जाने शुरू कर देता है जो कि उसके जीवन के लिए बहुत घातक सिद्ध होता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

प्रश्न 7.
हमें किशोरावस्था की समस्याओं का समाधान प्रबंध किस प्रकार करना चाहिए?
अथवा
किशोरों की समस्याओं को अध्यापकों व संरक्षकों या अभिभावकों को कैसे हल करना चाहिए?
अथवा
किशोरों को तनाव व चिंता से कैसे बचाया जा सकता है? वर्णन करें।
उत्तर:
किशोरावस्था में बच्चों को शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यद्यपि इनका हल इतना आसान नहीं है, परंतु असंभव भी नहीं है। किशोरावस्था की समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न प्रत्येक वर्ग के सदस्यों को करना चाहिए ताकि बच्चों का पूर्ण विकास हो सके। अध्यापकों व अभिभावकों द्वारा किशोरावस्था की समस्याओं को निम्नलिखित तथ्यों के अंतर्गत सुलझाया जा सकता है

1. व्यक्तित्व को समझना (Recognition of Individuals):
किशोरावस्था में किशोर अपना निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं । वे समाज में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। परंतु कई बार माता-पिता उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। माता-पिता को किशोरों की सलाह को चाहे वह गलत हो अथवा ठीक हो उसे तुरंत नकारना नहीं चाहिए। यदि माता-पिता उनके विचारों की उपेक्षा करेंगे तो उनमें हीनता की भावना आ जाएगी और वे भविष्य में कोई भी निर्णय लेने में असमर्थता महसूस करेंगे।

2. मनोविज्ञान की शिक्षा (Education of Psychology):
अध्यापकों व अभिभावकों को मनोविज्ञान की मौलिक जानकारी होनी चाहिए। किशोरों को मनोविज्ञान के संबंध में संपूर्ण जानकारी देनी चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याओं को दूर करने में समर्थ हो सकें।

3. वृद्धि और विकास के बारे में पूर्ण जानकारी (ProperKnowledge of Growth and Development):
किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों में वृद्धि और विकास अलग-अलग चरणों में होता है। लड़कियाँ लड़कों से जल्दी वयस्क हो जाती हैं और जल्दी परिपक्वता में आ जाती हैं। माता-पिता और अध्यापकों को वृद्धि और विकास के अलग-अलग चरणों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। किशोरों को वृद्धि और विकास के दौरान संतुलित भोजन, आराम, अच्छा वातावरण, मानसिक आजादी देना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इन बातों से बच्चों में अच्छे गुण विकसित किए जा सकते हैं जो परिवार और समाज के लिए लाभदायक होते हैं।

4.धार्मिक शिक्षा (Religious Education):
किशोरावस्था में आ रहे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक परिवर्तनों से किशोर अनभिज्ञ होते हैं। ये परिवर्तन उनके मन में हलचल पैदा कर देते हैं। इसलिए माता-पिता को उनकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिए और अच्छा चरित्र-निर्माण करने के लिए उनको धार्मिक शिक्षा देनी चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों को मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद और चर्च आदि में लेकर जाना चाहिए ताकि वे गुरु, संतों, पीर पैगंबरों आदि की गाथाएँ सुनकर अपने अंदर अच्छे गुण विकसित कर सकें। इस प्रकार उनके सामाजिक व्यवहार में भी परिवर्तन आएगा।

5. किशोरों के प्रति उचित व्यवहार (Proper Behaviour with Adolescence):
किशोरों के साथ उचित व्यवहार करना अति-आवश्यक है। यह आयु तनाव और खिंचाव वाली होती है। शरीर में आए परिवर्तनों के कारण बच्चे भावुक होते हैं। माता-पिता, बड़े भाई-बहन और समाज के सदस्यों को उनके साथ उचित व्यवहार करना चाहिए। उनकी आदतों, रुचियों और जरूरतों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। इस प्रकार का व्यवहार बच्चे के चहुँमुखी विकास पर प्रभाव डालता है।

6. व्यावसायिक मार्गदर्शन (Vocational Guidance):
अध्यापकों को चाहिए कि वे किशोरों को व्यावसायिक शिक्षा संबंधी आवश्यक निर्देश दें। ये निर्देश उनकी आयु, वृद्धि एवं रुचि के अनुसार होने चाहिएँ। माता-पिता को उनका उचित व्यावसायिक मार्गदर्शन करना चाहिए अर्थात् निस व्यवसाय या कोर्स में उनकी रुचि है, उसमें माता-पिता को पूरा सहयोग करना चाहिए।

7.संवेगों का प्रशिक्षण और संतुष्टि (Training and Satisfaction of Emotions):
किशोरावस्था में संवेगों में परिपक्वता न होने के कारण व्यवहार में उतार-चढ़ाव बहुत जल्दी आता है। माता-पिता के लिए संवेगों के बारे में जानकारी प्राप्त करना अति-आवश्यक है। अगर बच्चा भावुक होकर अपने उद्देश्यों से भटक जाता है तो वह जीवन के हर पहलू में पिछड़ जाता है। अगर उसकी भावनाओं को उचित मोड़ दिया जाए तो वह एक अच्छा नागरिक बन सकता है। संवेगों में परिवर्तन प्रेरणा द्वारा ही लाया जा सकता है।

8. माता-पिता का संबंध और सहयोग (Relationship and Co-operation of Parents):
किशोरावस्था में किशोर प्रत्येक बात को बारीकी से सोचता है और उसकी छानबीन करता है। माता-पिता के आपसी अच्छे संबंध उस पर गहरा प्रभाव डालते हैं। उसका बहिर्मुखी और अंतर्मुखी होना माता-पिता के संबंधों पर निर्भर करता है। माता-पिता का सहयोग बच्चों के लिए वरदान साबित होता है। इस अवस्था में स्कूल, कॉलेज और अन्य कई प्रकार की समस्याएँ माता-पिता के सहयोग से जल्दी निपटाई जा सकती हैं। माता-पिता की तरफ से दिया गया अच्छा वातावरण बच्चे को तनावमुक्त बनाता है।
अंत में हम यह कह सकते हैं कि किशोरावस्था दबाव, संघर्ष, संवेगात्मक तूफान की अवस्था होती है। इस अवस्था में बालकों की आवश्यकताओं और समस्याओं की ओर उचित ध्यान देना चाहिए।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

प्रश्न 8.
शादी तथा पितृत्व (Marriage and Parenthood) के लिए की जाने वाली तैयारी के आधारों का वर्णन करें।
अथवा
विवाह तथा पारिवारिक जीवन के लिए की जाने वाली आधारभूत तैयारियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैवाहिक तथा पारिवारिक जीवन की तैयारी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विवाह से परिवार की नींव बनती है और यहीं से पारिवारिक जीवन प्रारंभ होता है। उस जीवन को सुखद बनाने के लिए प्रारंभिक तैयारी तथा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि पारिवारिक जीवन सुखद बनाने पर भी व्यक्ति का जीवन अनेक समस्याओं से घिरा रहता है, जिनका समाधान करने से ही वैवाहिक और पारिवारिक जीवन भली-भाँति आगे बढ़ सकता है। अतः विवाह और पारिवारिक जीवन की तैयारी के मुख्य आधार या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. आर्थिक आधार (Economic Basis):
आर्थिक आधार विवाह तथा पारिवारिक जीवन की तैयारी के लिए प्रमुख आधार है। इससे अभिप्राय यह है कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक रूप से पूर्णतया आत्मनिर्भर होना चाहिए। उसके पास आजीविका कमाने के पर्याप्त साधन होने चाहिएँ। आधुनिक युग में संयुक्त परिवार प्रणाली के विघटन से इस आधार के महत्त्व में और भी वृद्धि हो गई है।

2. सहयोग की भावना (Spirit of Co-operation):
पारिवारिक जीवन देखने में जितना आकर्षक एवं सुखद होता है, वास्तव में वैसा नहीं है। पारिवारिक जीवन का बोझ उठाने के लिए व्यक्ति को मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से पूर्णतया तैयार होना चाहिए। मानसिक रूप से कमजोर तथा मनोवैज्ञानिक रूप से अशिक्षित व्यक्ति को पारिवारिक जीवन में अनेक प्रकार की जटिलताओं या समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। इस प्रकार की समस्याओं का समाधान व्यक्ति अकेला नहीं कर सकता। इसलिए उसे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, हम यह भी कह सकते हैं कि सुखद विवाहित जीवन के लिए सहयोग की भावना एक महत्त्वपूर्ण आधार है।

3. आवास का आधार (Basis of Dwelling):
एक अनुचित स्थान पर इकट्ठे रहने के कारण अनेक समस्याएँ एवं झगड़े पैदा होने का भय रहता है। अतः परिवार की प्रसन्नता, सुख और शान्ति के लिए पृथक् आवास की व्यवस्था होना परमावश्यक है। वर्तमान युग में पृथक् रहने की प्रवृत्ति के कारण आवास की समस्या और भी गंभीर रूप धारण कर रही है। आवास स्वच्छ वातावरण के आस-पास होना चाहिए। अच्छे व स्वच्छ वातावरण का पारिवारिक सदस्यों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और विवाहित जीवन संतुलित रहता है।

4. नियोजित परिवार (Planned Family):
एक नियोजित परिवार की नींव और उससे प्राप्त होने वाले लाभों की इच्छा, पारिवारिक जीवन को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है। परिवार नियोजन के महत्त्व को आज प्रत्येक व्यक्ति समझने लगा है। परिवार के सभी सदस्यों की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक प्रगति अथवा सुख, नियोजित परिवार पर निर्भर करता है। इन्हें प्राप्त करने के लिए नियोजित परिवार तथा परिवार कल्याण को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।

5. चिकित्सा परीक्षण (Medical Check-up):
विवाहित जीवन और पारिवारिक जीवन में प्रवेश हेतु दंपतियों को अपने स्वास्थ्य का पूर्ण रूप से चिकित्सा परीक्षण (Medical Check-up) करा लेना चाहिए। इस प्रकार के निरीक्षण से शारीरिक विकारों का पता चल जाता है और उनकी रोकथाम की जा सकती है। सत्य तो यह है कि इस प्रकार का चिकित्सा परीक्षण सुखी जीवन तथा भविष्य में होने वाली संतान के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

प्रश्न 9.
शिशु या बालक की देखभाल व विकास में माता-पिता की किस प्रकार की भूमिका होनी चाहिए?
अथवा
माता-पिता का शिशु की देखभाल में क्या योगदान होता है?
उत्तर:
शिशु के पालन-पोषण में माता-पिता की विशेष भूमिका होती है। जीवों में मानव ही एक ऐसा जीव है जिसमें बच्चों को काफी लंबे समय तक अपने माता-पिता के संरक्षण में रहना पड़ता है। इससे माता-पिता के व्यवहार का उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शिशु के जीवन के प्रारंभिक पाँच वर्ष बहुत ही लचीले होते हैं। इस अवस्था में उसमें बातों को ग्रहण करने की अत्यधिक क्षमता होती है। वैसे तो बच्चों के संपर्क अथवा जीवन में आने वाले सभी व्यक्तियों का उन पर प्रभाव पड़ता है; जैसे दादा-दादी, भाई-बहन, पड़ोसी, अध्यापक, मित्र-मण्डली और समाज के अन्य वर्गों के लोग, किंतु उनकी देखभाल और उनके सम्पूर्ण विकास में माता-पिता का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है।
1. घर का वातावरण (Atmosphere of House):
बच्चों पर घर के वातावरण की सबसे अधिक छाप होती है। इस अवस्था में ग्रहण की गई अच्छी बातें अथवा आदतें उनका जीवन-भर साथ देती हैं। माता-पिता के आपसी संबंध, उनका व्यवहार, स्थिति, उनका आर्थिक एवं सामाजिक स्तर और उनकी रुचियाँ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों के व्यक्तित्व अथवा व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

2. माता-पिता का स्नेह (Parents Affection):
माता-पिता के आपसी संबंध अच्छे होने का बच्चों के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे को माता-पिता से मिलने वाला स्नेह उसके जीवन की अनेक समस्याओं अथवा जटिलताओं को सुलझाने में सहायक सिद्ध होता है। माता-पिता से उचित स्नेह, सहानुभूति और सहयोग इत्यादि मिलने से उसका आत्म-सम्मान और आत्म-गौरव बढ़ता है।

3. मार्गदर्शन (Guidance):
माता-पिता का कर्त्तव्य बच्चों को केवल स्नेह देना ही नहीं, बल्कि उनके व्यवहार के उचित विकास के लिए मार्गदर्शन करना भी है। यदि माता-पिता अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन नहीं करते तो वे अपने रास्ते से भटक जाते हैं, जिससे उन्हें असफलता एवं निराशा का मुँह देखना पड़ता है। इसलिए माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों का मार्गदर्शन करके उन्हें भटकने से बचाएँ।

4. शैक्षिक सुविधाएँ (Educational Facilities):
माता-पिता को अपने बच्चों को सभी प्रकार की अच्छी शैक्षिक सुविधाएँ देने का प्रयास करना चाहिए। अच्छी शिक्षा से बच्चों की वृद्धि तथा विकास पर ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उनका भविष्य भी उज्ज्वल होता है। कई माता-पिता समय के अभाव या निरक्षरता के कारण बच्चों की शिक्षा की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते जिससे उनके बच्चों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं। माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा के उत्तरदायित्व से पीछे नहीं हटना चाहिए।

5. शारीरिक समस्याएँ (Physical Problems):
किशोरावस्था में बच्चों में शारीरिक परिवर्तन आने के कारण उनमें काम-चेतना काफी प्रबल हो जाती है जिससे उनके सामने अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। माता-पिता अपने बच्चों की शारीरिक समस्याओं को अच्छी प्रकार समझकर उनका उचित समाधान करने के लिए प्रयास कर सकते हैं। वे बच्चों के सर्वांगीण विकास में अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

प्रश्न 10.
एक अच्छे नागरिक के तौर पर व्यक्ति की क्या भूमिका होनी चाहिए?
अथवा
‘नागरिक’ को परिभाषित कीजिए। एक अच्छे नागरिक में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ?

के बिना नहीं रह सकता और समाज में रहकर ही वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है। समाज का निर्माण भी नागरिकों से ही संभव है।
1.अरस्तू (Aristotle) नागरिक की परिभाषा देते हुए लिखते हैं, “जिस व्यक्ति विशेष के पास राज्य की समीक्षा अथवा न्याय
2. श्रीनिवास शास्त्री (Sriniwas Shastari) के अनुसार, “नागरिक वही है जो राज्य का सदस्य है और समाज की भलाई के लिए बनाए गए नियमों का पालन करता है। राष्ट्र का निर्माण नागरिकों के द्वारा होता है और समाज का निर्माण व्यक्ति के द्वारा होता है।”

एक अच्छे नागरिक के गुण व भूमिका (Qualities and Role of aGood Citizen):
प्रत्येक बच्चे को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपना विशेष कर्त्तव्य समझ सके और उसके विकास में अपना योगदान दे सके। उसमें वे सभी गुण होने चाहिएँ, जो न केवल उसके लिए अपितु समाज व देश के लिए भी लाभदायक हों। एक अच्छे नागरिक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ
(1) प्रत्येक नागरिक में ईमानदारी, सहयोग, सहनशीलता आदि गुणों का होना अनिवार्य है। ये गुण सामाजिक कर्तव्यों को निभाने में सहायक होते हैं।
(2) नागरिक का चरित्र उच्चकोटि का होना चाहिए। उसे सादे जीवन के निर्वाह में विश्वास रखना चाहिए।
(3) प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति की भावना होनी चाहिए। उसे अपनी रुचियों की अपेक्षा देश की रुचियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उसे अपने देश को ही सबसे ऊपर समझना चाहिए।
(4) उसे खेलकूद के नियमों का पालन करना चाहिए। यह नियम भी एक अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होता है।
कोई भी व्यक्ति तब तक अपने राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हो सकता, जब तक वह स्वयं अपने माता-पिता, परिवार, समाज आदि के प्रति वफादार नहीं है। जब तक हम एक अच्छे पड़ोसी की भाँति नहीं रहेंगे, तब तक हम शांति से नहीं रह सकते।
(6) प्रजातांत्रिक देश में नागरिक को जाति, रंग, भाषा या धर्म में भेदभाव नहीं करना चाहिए। यदि प्रत्येक नागरिक अनुशासित होगा तो देश अनुशासित होगा।
(7) उसे समाज में भाईचारे, सहयोग, बंधुत्व की भावनाओं का विकास करने में अपना योगदान देना चाहिए।
एक अच्छे नागरिक के गुणों को महात्मा गाँधी ने इस प्रकार से व्यक्त किया-“एक अच्छे नागरिक में सत्य, अहिंसा एवं निर्भीकता के गुण होने चाहिएँ ताकि वह उच्च एवं अच्छे समाज की स्थापना कर सके।”

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
गर्भधारण और जन्म से पूर्व सावधानियों का वर्णन करें।
अथवा
गर्भ में तथा बच्चा पैदा होने से पहले की देखभाल का वर्णन करें।
उत्तर:
गर्भ में तथा बच्चा पैदा होने से पहले की देखभाल माँ या गर्भवती महिला पर निर्भर करती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला ‘कुछ सावधानियाँ बरतकर न सिर्फ अपने होने वाले शिशु को स्वस्थ पैदा कर सकती है, बल्कि वह स्वयं को भी स्वस्थ रख सकती है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि गर्भकाल में प्रकट होने वाले अनेक विकार और व्याधि मानसिक कारणों से होते हैं। इसलिए गर्भवती महिला को अपनी मानसिक स्थिति ठीक रखनी चाहिए। गर्भवती को अपने भोजन में सभी आवश्यक एवं पौष्टिक तत्त्वों को शामिल करना चाहिए। हरी सब्जियों और मौसम के अनुसार ताजे फल भी बहुत आवश्यक होते हैं, क्योंकि इनसे माँ और बच्चे को शरीर के जरूरी खनिज लवण और विटामिन्स प्राप्त होते हैं।

परिवार को भी गर्भवती महिला के भोजन की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि बच्चा अपनी वृद्धि एवं विकास के लिए माँ के शरीर से भोजन प्राप्त करता है। अपने भोजन के प्रति माँ (गर्भवती) को विशेष सावधानी रखनी चाहिए। उसे अपने भोजन में उन्हीं भोजन अवयवों का चयन करना चाहिए जिनसे गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर हो। गर्भवती महिला को किसी बीमारी के कारण औषधियों या दवाइयों के सेवन में भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिला को विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही औषधियों या दवाइयों का सेवन करना चाहिए। गर्भावस्था के आखिरी दिनों में मधुमेह और थाइराइड के लिए ली जाने वाली औषधियों से बचना चाहिए क्योंकि इन औषधियों का शिशु के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए माँ को अपने गर्भावस्था के दौरान सभी आवश्यक सावधानियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि उसका बच्चा सुंदर एवं स्वस्थ पैदा हो सके और उसका स्वयं का स्वास्थ्य भी ठीक रहे।

प्रश्न 2.
परिवार कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन करें।
अथवा
व्यक्तिगत परिवार तथा संयुक्त परिवार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
परिवार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
1. व्यक्तिगत या एकल परिवार-व्यक्तिगत या एकल परिवार को प्राथमिक, मूल अथवा नाभिक परिवार भी कहते हैं। यह परिवार का सबसे छोटा और आधारभूत स्वरूप है जिसमें सदस्यों की संख्या बहुत कम होती है। आमतौर पर पति-पत्नी तथा उसके अविवाहित बच्चे ही इस परिवार के सदस्य होते हैं। ऐसे परिवार में सदस्य भावात्मक आधार पर एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं। परिवार का आकार सीमित होने के कारण इसका बच्चों के जीवन पर काफी रचनात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. संयुक्त परिवार-संयुक्त परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य; जैसे पति-पत्नी, उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, चचेरे भाई, बच्चों की पत्नियाँ आदि साथ-साथ एक घर में निवास करते हैं, उनकी संपत्ति सांझी होती है। संयुक्त परिवार के सदस्य परस्पर अधिकारों व कर्तव्यों को निभाते हैं।

प्रश्न 3.
बच्चों को पालने में परिवार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बच्चों व अन्य सदस्यों को पालने में परिवार की भूमिका निम्नलिखित है
(1) परिवार बच्चों व अन्य सदस्यों के लिए संतुलित भोजन, समयानुसार वस्त्र, आवास एवं चिकित्सा सुविधा आदि का प्रबंध करता है।
(2) परिवार में बच्चों के धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।
(3) परिवार को सामाजिक गुणों का पालना कहा जाता है। परिवार बच्चे के सामाजिक विकास में सहायक होता है।
(4) परिवार बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अवसर जुटाता है।
(5) परिवार बच्चों के मूल्यपरक अर्थात् नैतिक गुणों के विकास में सहायक होता है। परिवार उनमें परिश्रम, ईमानदारी, सहयोग एवं सहानुभूति आदि गुणों को विकसित करता है।

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प्रश्न 4.
परिवार के आधारभूत या बुनियादी कार्य कौन-कौन-से हैं?
अथवा
परिवार के कोई चार प्राथमिक या मूल कार्य बताएँ।
उत्तर:
परिवार के आधारभूत या बुनियादी कार्य निम्नलिखित हैं
(1) बच्चों के माता-पिता का उनके पालन-पोषण में बहुत बड़ा योगदान होता है। बच्चे को दूसरे लोगों की बजाय अपने माता-पिता का साथ ज्यादा मिलता है क्योंकि बच्चे के ऊपर माता-पिता का काफ़ी लम्बे समय तक गहरा प्रभाव रहता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चे में जीवन के बहुमूल्य पाँच सालों में अच्छे गुणों को प्राप्त करने की आध्यात्मिक शक्ति होती है। दूसरे लोगों का प्रभाव बच्चे पर इस अवस्था के बाद में ही होता है।
(2) परिवार बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करता है। वह बच्चों की शिक्षा संबंधी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
(3) परिवार का बुनियादी कार्य केवल संतान पैदा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि परिवार के सदस्यों की सुरक्षा अच्छे ढंग से करना भी उसका कार्य है। माता-पिता की देखभाल में रहकर बच्चा अपने व्यक्तित्व को निखार सकता है।
(4) रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मुख्य जरूरतें हैं। इनकी व्यवस्था करना परिवार का बुनियादी कार्य है।

प्रश्न 5.
परिवार के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
परिवार के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. लैंगिक संबंध-परिवार का मुख्य तत्त्व लैंगिक संबंध होता है। यह संबंध स्थायी होता है।
2. समान अधिकार-निवास स्थान पर हर सदस्य का समान अधिकार होना चाहिए।
3. सामूहिक दायित्व-परिवार के प्रत्येक सदस्य का घर के किसी भी काम के प्रति सामूहिक दायित्व होता है। प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता मिल-जुलकर पूरी की जाए तो परिवार का हर सदस्य कुछ-न-कुछ सहयोग ज़रूर देगा।
4. वंशावली-राज्य और समाज वंशावली को मान्यता देता है और भविष्य में कोई भी परिवार वंश के नाम से ही जाना जाएगा।

प्रश्न 6.
परिवार के प्रमुख सामाजिक कार्य लिखिए।
उत्तर:
परिवार के प्रमुख सामाजिक कार्य निम्नलिखित हैं
1. स्थिति प्रदान करना-सबसे पहले परिवार में ही व्यक्ति को उसकी प्रथम स्थिति प्राप्त होती है। पैदा होते ही वह एक पुत्र, भाई आदि की स्थिति प्राप्त कर लेता है। स्थिति के अनुसार ही व्यक्ति की भूमिका होती है। अतः हम कह सकते हैं कि परिवार ही सबसे पहले व्यक्ति की स्थिति और भूमिका निश्चित करता है।

2. सामाजिक नियंत्रण-परिवार अपने सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण रखकर सामाजिक नियंत्रण में भी सहायक होता है। परिवार ही सबसे पहले व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार के स्वीकृत मानदंडों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

3. मानवीय अनुभवों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाना-आज तक के मानवीय अनुभवों को परिवार बच्चों को कुछ ही वर्षों में सिखा देता है। इस प्रकार ये अनुभव पीढ़ी-दर-पीढ़ी अविराम गति से पहुँचते रहते हैं।

4. मानवता का विकास-परिवार के सदस्य तीव्र भावात्मक संबंधों में बँधे होने के कारण सदैव एक-दूसरे के लिए त्याग तथा बलिदान हेतु तत्पर रहते हैं। पारस्परिक सहयोग, त्याग, बलिदान, प्रेम, स्नेह आदि के गुणों का विकास करके परिवार अपने सदस्यों में मानवता का विकास करता है।

प्रश्न 7.
परिवार के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
परिवार की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिवार को बच्चे का पालना कहा जाता है। यह बच्चे और अन्य सदस्यों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हमारे जीवन में परिवार का बहुत महत्त्व है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट किया जा सकता है
(1) परिवार की वजह से हम बहुत-सी परेशानियों से दूर रहते हैं, क्योंकि पारिवारिक सदस्य एक-दूसरे की हर तरह की सहायता करते हैं।
(2) परिवार से ही हमें जीवन जीने का मकसद मिलता है और हम अपने परिवार के साथ खुश रहकर जीवन का निर्वाह करते हैं।
(3) परिवार से ही हमारा समाज आगे बढ़ता है और समाज का निर्माण होता है।
(4) परिवार ही हमें सामाजिकता सिखाता है और हमारी सभी मूल जरूरतों को पूरा करता है।
(5) परिवार ही पारिवारिक सदस्यों में नैतिक गुणों का विकास करता है। (6) परिवार से ही हमें आत्म-रक्षा, संस्कृति व भाषा का ज्ञान प्राप्त होता है।

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प्रश्न 8.
“किशोरावस्था एक समस्या की उम्र है।” स्पष्ट करें।
अथवा
“किशोरावस्था एक गंभीर अवस्था है।” स्पष्ट करें।
अथवा
किशोरावस्था में किशोरों को किन-किन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
किशोरावस्था एक गंभीर एवं समस्या की उम्र (अवस्था) है। इसमें किशोरों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस उम्र में किशोरों को निम्नलिखित प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है
(1) किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों के कारण किशोरों को चिंता एवं बेचैनी होती है।
(2) इस अवस्था में किशोर दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। वे अनेक मानसिक तनावों से प्रभावित होते हैं।
(3) इस अवस्था में किशोरों को अपने व्यवसाय या विषय का चयन करने में भी समस्या आती है।
(4) किशोरावस्था में भावुकता बहुत होती है। इसी कारण माता-पिता उनकी प्रत्येक क्रिया पर नज़र रखते हैं ताकि वे भटक न जाएँ। परन्तु बच्चे इन बातों से चिड़चिड़े हो जाते हैं और माता-पिता से सवाल-जवाब करने शुरू कर देते हैं। कई बार तो लड़ाई-झगड़े तक की नौबत आ जाती है।

प्रश्न 9.
किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
अथवा
किशोरावस्था की कोई चार विशेषताएँ या लक्षण लिखें।
उत्तर:
किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) बाहरी व आंतरिक शारीरिक भागों का विकास,
(2) मानसिक या बौद्धिक चेतना का विकास,
(3) सामाजिक चेतना में वृद्धि,
(4) भावी जीवन की योजनाएँ बनाने में रुचि,
(5) स्मरण शक्ति व कल्पना-शक्ति का तीव्र विकास,
(6) सामाजिक वातावरण के प्रति जागरूकता,
(7) विपरीत लिंग से संबंधित चर्चा एवं साहित्य में अधिक रुचि।

प्रश्न 10.
किशोरावस्था को परिवर्तन की अवस्था क्यों कहा जाता है?
अथवा
किशोरावस्था तनाव एवं खिंचाव की अवस्था है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
किशोरावस्था तनाव एवं खिंचाव तथा परिवर्तन की अवस्था है। इसमें किशोरों में वृद्धि की गति तीव्र होती है। उनके बाहरी व आंतरिक अंगों का विकास तीव्र गति से होना आरंभ हो जाता है। लड़कियों की आवाज कोमल व मधुर तथा लड़कों की आवाज भारी हो जाती है । इस अवस्था में लड़कों को दाढ़ी-मूंछ आ जाती है। किशोरों में शारीरिक परिवर्तन के साथ मानसिक परिवर्तन भी तीव्र गति से होते हैं। इसी कारण इस अवस्था को परिवर्तन की अवस्था भी कहा जाता है । इस अवस्था में उनमें मानसिक तनाव, खिंचाव व चिंता आदि बढ़ने लगती है । वे दूसरों के साथ समायोजन नहीं कर पाते । स्वयं को ही अधिक महत्ता देने लगते हैं। जिस कारण उनको अनेक मानसिक तनावों का सामना करना पड़ता है । इस प्रकार किशोरावस्था तनाव एवं खिंचाव तथा परिवर्तन की अवस्था है।

प्रश्न 11.
किशोर आयु के बालक/बालिकाओं के तनाव व खिंचाव को किस प्रकार दूर करेंगे?
अथवा
किशोरावस्था की समस्याओं के निवारण का संक्षेप में उल्लेख करें।
अथवा
किशोरों की समस्याओं को अध्यापक को कैसे दूर करना चाहिए?
अथवा
माता-पिता को किशोरों की समस्याओं का निपटारा कैसे करना चाहिए?
अथवा
किशोरावस्था की समस्याएँ आप कैसे नियंत्रित करेंगे?
उत्तर:
किशोरावस्था की समस्याओं को समझना तथा उनकी संतुष्टि का प्रयास करना अति आवश्यक है। माता-पिता और अध्यापक को किशोरों के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित सुझाव लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं-
(1) किशोरों को लिंग संबंधी शिक्षा देना,
(2) किशोरों को मनोविज्ञान के संबंध में पूर्ण जानकारी देना,
(3) उन्हें पर्याप्त स्वतंत्रता देना,
(4) उनकी भावनाओं का आदर करना,
(5) घर-परिवार का वातावरण उचित बनाना,
(6) व्यावसायिक पथ-प्रदर्शन करना,
(7) नैतिक व मूल्य-बोध की शिक्षा देना,
(8) सहसंबंध एवं सहयोग की भावना रखना,
(9) उचित व्यवहार करना,
(10) उनकी विभिन्न आवश्यकताओं व इच्छाओं की पूर्ति करना,
(11) संवेगों का प्रशिक्षण तथा संवेगात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करना आदि।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 6 पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा

प्रश्न 12.
किशोरों की शिक्षा-व्यवस्था करते समय किन-किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
किशोरों की शिक्षा-व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए
(1) किशोरावस्था को परिवर्तन की अवस्था कहा जाता है। इसमें किशोरों में अनेक परिवर्तन होते हैं। माता-पिता एवं अध्यापकों द्वारा उन्हें उचित दिशा का बोध कराने का दायित्व निभाया जाना चाहिए।
(2) इस अवस्था में उनमें किसी विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त करने की उत्तेजना होती है। इसलिए माता-पिता व अध्यापकों के द्वारा उन्हें ऐसे विषय दिए जाने चाहिएँ जिनसे उनकी जिज्ञासा की पूर्ति हो और उनकी स्मरण शक्ति का विकास हो।
(3) किशोरों के संतुलित विकास के लिए, खेलकूद व व्यायाम आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(4) उनके मानसिक या बौद्धिक विकास हेतु उनकी बुद्धि, स्मरण-शक्ति, तर्क-शक्ति, चिंतन-शक्ति, कल्पना-शक्ति आदि का विकास उनकी रुचि, इच्छा, क्षमता एवं योग्यता के अनुसार किया जाना चाहिए।
(5) उन्हें शुद्ध पढ़ने, बोलने और लिखने का अभ्यास करवाना चाहिए, क्योंकि इस अवस्था में स्मरण शक्ति काफी विकसित होती है।
(6) विषयों को पढ़ाते समय उनकी रुचि एवं इच्छाओं पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए। इस अवस्था में इनमें स्वतंत्र पठन करने की रुचि भी विकसित हो जाती है। इसलिए अध्यापकों को उनकी इस रुचि को अधिक-से-अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।

प्रश्न 13.
एक अच्छे नागरिक के कोई चार गुण बताएँ। अथवा एक नागरिक में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ?
उत्तर:
एक अच्छे नागरिक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ
(1) प्रत्येक नागरिक में ईमानदारी, सहयोग, सहनशीलता आदि गुणों का होना अनिवार्य है। ये गुण सामाजिक कर्तव्यों को निभाने में सहायक होते हैं।
(2) नागरिक का चरित्र उच्चकोटि का होना चाहिए। उसे सादे जीवन के निर्वाह में विश्वास रखना चाहिए।
(3) प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति की भावना होनी चाहिए। उसे अपनी रुचियों की अपेक्षा देश की रुचियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उसे अपने देश को ही सबसे ऊपर समझना चाहिए।
(4) उसे समाज में भाईचारे, सहयोग, बंधुत्व की भावनाओं का विकास करने में अपना योगदान देना चाहिए।

प्रश्न 14.
बच्चे के सामाजिक विकास में परिवार की क्या भूमिका होनी चाहिए?
अथवा
बालक के सामाजिक विकास में माता-पिता का क्या योगदान होता है?
उत्तर:
बच्चे का पालन-पोषण परिवार में होता है। माता-पिता उसकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। वे उसके लिए भोजन, कपड़े व सुरक्षा आदि की व्यवस्था करते हैं। वे उसके मनोरंजन, खेलकूद व सामाजिक विकास संबंधी सभी जरूरतों को भी पूरा करते हैं। वे लड़का-लड़की दोनों के साथ समान व्यवहार करते हैं। वे परिवार में ऐसे वातावरण का निर्माण करते हैं जिसमें बच्चों का सर्वांगीण विकास हो। वे बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति के प्रति सजग रहते हैं। अतः परिवार या माता-पिता का बच्चे के सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

प्रश्न 15.
किशोरावस्था की रुचियों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर:
किशोरावस्था में किशोरों में अनेक रुचियों का तेजी से विकास होता है। इस अवस्था में लड़के सामूहिक खेल खेलने में रुचि रखते हैं; जैसे क्रिकेट, कबड्डी, हॉकी आदि। लड़कियाँ गीत, संगीत, नाटक, नृत्य आदि में रुचि रखती हैं। इनमें प्रदर्शन करने की भावना भी विकसित हो जाती है। लड़कियाँ शृंगार के सामान का अच्छी तरह से प्रयोग करने लगती हैं। वे विज्ञान, साहित्य, देश-प्रेम साहित्य, यौन साहित्य आदि को पढ़ने में रुचि रखते हैं। इनमें सिनेमा, टी०वी० देखने, फिल्मी गीत सुनने और घूमने-फिरने की आदत विकसित हो जाती है। वे सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेने लगते हैं। लड़कियाँ अपनी सहेलियों से अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से संबंधित वार्तालाप

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प्रश्न 16.
एक अच्छे नागरिक के कोई तीन वैधानिक कर्त्तव्य लिखें।
उत्तर:
एक अच्छे नागरिक के प्रमुख वैधानिक कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं-
1. कानून का पालन करना-इसके अन्तर्गत हमें कानून द्वारा दिए गए हर आदेशों का पालन करना चाहिए। कभी भी कानून के नियमों की उल्लंघना नहीं करनी चाहिए।
2. करों का भुगतान-हर नागरिक का यह परम कर्त्तव्य है कि वह अपने करों को पूरी ईमानदारी के साथ उसका भुगतान करे क्योंकि करों द्वारा इकट्ठी की गई राशि देश के विकास में खर्च की जाती है। सड़क बनाना, बिजली प्रदान करना तथा अन्य कई प्रकार की सुविधाएँ सरकार हमें इन्हीं करों के माध्यम से प्रदान करती है। इसलिए हर नागरिक को अपने करों का भुगतान करना चाहिए।
3. मत का उचित प्रयोग-मत ही आम नागरिक का एक ऐसा हथियार है जिसके द्वारा वह सरकार की काया पलट सकता है। हमें अपने मतों का प्रयोग अच्छी सरकार के चयन हेतु करना चाहिए। इसलिए मत का उचित प्रयोग हर नागरिक का परम कर्त्तव्य है।

प्रश्न 17.
एक अच्छे नागरिक के किन्हीं तीन नैतिक कर्तव्यों या उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए। उत्तर:एक अच्छे नागरिक के तीन नैतिक कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व निम्नलिखित प्रकार से हैं
1. परिवार के प्रति कर्त्तव्य-एक नागरिक का नैतिक तथा प्रमुख कर्त्तव्य उसके परिवार के प्रति है; जैसे कि शिशु पालन, बच्चों की देखभाल, शिक्षा प्रदान करना, सुरक्षा प्रदान करना, जीवन की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति इत्यादि। इन कर्तव्यों का पालन करके एक नागरिक देश को विकास की तरफ ले जा सकता है।

2. समाज के प्रति कर्त्तव्य-एक नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य समाज के प्रति बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसे अपने समाज के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करना चाहिए। उसे समाज के साथ सहयोग, सहनशीलता, सद्भावना, आज्ञा पालन, अनुशासन में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

3. मानवता के प्रति कर्त्तव्य-एक नागरिक को मानवता को ध्यान में रखकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। अपने फायदे के लिए मानव जाति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। अक्सर हम अपने निजी फायदों के लिए मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं। जैसे कि लगातार जंगलों को अपने निजी फायदे के लिए काटते जा रहे हैं जिससे वातावरण दूषित हो रहा है। दूषित वातावरण मानव जीवन के लिए हानिकारक है। इसलिए हमें मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चा

प्रश्न 18.
परिवार के कोई तीन गौण या द्वितीयक कार्य बताएँ।
उत्तर:
इन कार्यों को अधिक प्राथमिकता नहीं दी जाती, इसलिए इन्हें द्वितीयक या गौण कार्य कहा जाता है। समाज विशेष के अनुसार इन कार्यों में परिवर्तन होता रहता है।
1. आमोद-प्रमोद संबंधी कार्य-परिवार पारिवारिक सदस्यों के मनोरंजन या आमोद-प्रमोद हेतु कार्य करता है। इससे वे संतुष्टि व राहत महसूस करते हैं।
2. मनोवैज्ञानिक कार्य-परिवार सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। परिवार में सदस्यों का परस्पर प्रेम, सहानुभूति, त्याग, धैर्य आदि भावनाएँ देखने को मिलती हैं। परिवार में सदस्यों के संबंध पूर्ण व घुले-मिले होते हैं। इसलिए सदस्य सुख-दुःख आदि में एक-दूसरे को सहयोग देते हैं।
3. आर्थिक कार्य-परिवार अपने सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन (आय) का प्रबंध करता है। परिवार की आय से ही उसकी गरीबी या अमीरी का आकलन किया जाता है। परिवार का मुखिया, आय को कैसे खर्च करना है, तय करता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार के पास अपनी चल तथा अचल संपत्ति; जैसे जमीन, सोना, गहने, नकद, पशु, दुकान आदि होती है। उसकी देखभाल एवं सुरक्षा परिवार के द्वारा की जाती है।

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प्रश्न 19.
“विवाह से पूर्व बच्चों के पालन-पोषण एवं देखभाल की जानकारी अत्यन्त आवश्यक है।” संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक परिवार या माता-पिता की खुशी, इच्छा व भविष्य बच्चों के साथ जुड़ा होता है। शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे ही देश के भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं। बच्चों के पालन-पोषण व देखभाल का मूल उत्तरदायित्व माता-पिता का होता है जो उसके शारीरिक, मानसिक, नैतिक व व्यावहारिक विकास में अपना योगदान देते हैं। अतः विवाह से पूर्व बच्चों के पालन-पोषण एवं देखभाल की जानकारी अत्यन्त आवश्यक है। यह कथन निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है
(1) बच्चों को पालना बहुत कठिन कार्य है। यदि पहले ही बच्चों के पालन-पोषण व देखभाल की पूर्ण जानकारी प्राप्त की जाए तो यह कार्य आसान हो जाता है।
(2) बच्चों की आवश्यकताओं व इच्छाओं का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य का शुरू से ही ध्यान रखा जा सकता है।
(3) विवाह से पूर्व बच्चों का मनोविज्ञान अच्छे से समझ सकते हैं। बाद में इसकी सहायता से उनके लिए ऐसा वातावरण प्रदान कर सकते हैं जिसमें रहकर वे प्रसन्नता व खुशी महसूस कर सकें।
(4) बच्चों के उचित विकास हेतु हमें वंश व वातावरण संबंधी विशेष जानकारी मिल सकती है। ये दोनों पक्ष बच्चों के पालन पोषण व विकास के लिए बहुत आवश्यक होते हैं।
(5) शुरू में छोटे बच्चों को कई टीके की बूस्टर या खुराक निश्चित समय पर दी जाती है। इनसे बच्चे रोगों से बचे रहते हैं। यदि बच्चों को लगने वाले टीकों की पूर्ण जानकारी पहले से ही हो तो यह बूस्टर या खुराक बच्चों को निश्चित समय पर दी जा सकती है। इसमें देरी होने से या न लगवाने से बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो सकती है। इस प्रकार विवाह से पूर्व ही बच्चों के पालन-पोषण की पूर्ण जानकारी होने से हम बच्चे के सभी पक्षों व अवस्थाओं का उचित विकास कर सकते हैं।

प्रश्न 20.
किशोरों की ऊर्जा को उचित ढंग से प्रयोग करने में शारीरिक शिक्षा क्या भूमिका निभा सकती है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था को तनाव, खिंचाव व परिवर्तन की अवस्था कहा जाता है। इस अवस्था में किशोरों में अनेक शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक परिवर्तन होते हैं जिनके कारण किशोर बेचैन व चिंतित रहते हैं। उनमें तीव्र उत्साह एवं व्याकुलता की भावना प्रबल होती है। वे हर कार्य को जल्दी-से-जल्दी करने के लिए व्याकुल रहते हैं और किसी प्रकार का कोई नियम नहीं मानते। परन्तु शारीरिक शिक्षा किशोरों की ऊर्जा को उचित ढंग से प्रयोग करने में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है
(1) शारीरिक शिक्षा खेलकूद व व्यायाम क्रियाओं पर बल देती है। किशोर खेलकूद व व्यायाम क्रियाओं के माध्यम से स्वयं को समायोजित कर सकते हैं और अपनी ऊर्जा या शक्ति का सही दिशा में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कार्य में शारीरिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। अतः खेलों में किशोरों की ऊर्जा का उचित इस्तेमाल हो जाता है।

(2) शारीरिक शिक्षा संबंधी खेल गतिविधियाँ नियमों में बंधी होती हैं। जब किशोर इन खेल गतिविधियों में भाग लेते हैं तो उन्हें इन नियमों का पालन करना पड़ता है। अतः किशोरों में भी सामाजिक जीवन में नियमों का पालन करने की आदत विकसित हो सकती है। वे अपनी ऊर्जा को अच्छे कार्यों की ओर लगाते हैं।

(3) योग व ध्यान शारीरिक शिक्षा के महत्त्वपूर्ण विषय हैं। योग एवं ध्यान से किशोरों का मानसिक संतुलन स्थापित होता है। योग एवं ध्यान उन्हें अपने मन को नियंत्रित करना सिखाता है।

(4) शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य एवं भोजन संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से किशोरों को अपने शरीर को स्वस्थ एवं तंदुरुस्त रखने हेतु महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

(5) शारीरिक शिक्षा के माध्यम से अनेक नैतिक व सामाजिक गुणों को विकसित किया है; जैसे-
(i) सकारात्मक क्रियाओं को प्रोत्साहित करना,
(ii) नकारात्मक क्रियाओं के लिए दंड देना,
(ii) न्याय व समानता को प्रोत्साहित करना,
(iv) सहयोगियों व दूसरों का आदर-सम्मान करना आदि।

ये सभी गुण किशोरों को बहुत प्रभावित करते हैं। अतः उनमें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की प्रेरणा आती है।

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अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
परिवार का शाब्दिक अर्थ क्या है? अथवा परिवार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवार को अंग्रेज़ी भाषा में ‘Family’ कहते हैं। ‘Family’ शब्द लैटिन भाषा के ‘Famulus’ शब्द से निकला है। ‘Famulus’ शब्द का प्रयोग एक ऐसे समूह के लिए किया गया है जिसमें माता-पिता, बच्चे, नौकर एवं दास हों। परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो रक्त तथा वैवाहिक संबंध के कारण परस्पर जुड़े होते हैं।

प्रश्न 2.
परिवार की कोई दो परिभाषा लिखें। अथवा परिवार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
1. मजूमदार के अनुसार, “परिवार व्यक्तियों का एक समूह है जो एक ही छत के नीचे रहते हैं जो क्षेत्र, रुचि, आपसी बंधन और सूझ-बूझ के अनुसार केंद्रीय और खून के रिश्ते में बंधे होते हैं।”
2. क्लेयर के अनुसार, “परिवार से अभिप्राय उन संबंधों से है जो माता-पिता और बच्चों में विद्यमान होते हैं।”

प्रश्न 3.
रिवार की उत्पत्ति के आधार कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
(1) स्त्री-पुरुष का आपसी प्रेम,
(2) संतान उत्पन्न करने की इच्छा,
(3) लंबी शैशवकाल की अवस्था,
(4) माता का बच्चे के लिए वात्सल्य,
(5) शिक्षा की व्यवस्था करना।

प्रश्न 4.
परिवार के उद्गम के बारे में अरस्तू के विचारों का उल्लेख करें।
उत्तर:
परिवार के उद्गम के बारे में अरस्तू ने कहा, “परिवार का जन्म अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है।”

प्रश्न 5.
पारिवारिक जीवन के आधारों या आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विवाह से परिवार की नींव बनती है और यहीं से पारिवारिक जीवन की शुरुआत होती है। उस जीवन को सुखद बनाने के लिए प्रारंभिक तैयारी एवं देखभाल की आवश्यकता पड़ती है; जैसे आवास की व्यवस्था, नियोजित परिवार, चिकित्सा परीक्षण, सहयोग की भावना तथा आर्थिक स्थिति आदि। ये सभी पारिवारिक जीवन के मुख्य आधार या आवश्यकताएँ हैं।

प्रश्न 6.
परिवार बच्चे के सांस्कृतिक विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर:
परिवार बच्चों को समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को सौंपने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। जिस परिवार में माता-पिता बच्चों के प्रति अपना सहयोगपूर्ण व दोस्तानापूर्ण व्यवहार करते हैं, उस परिवार के बच्चों में अनेक सांस्कृतिक-सामाजिक गुणों का विकास होता है; जैसे सहानुभूति, स्नेह, अनुकरण की भावना, सद्भाव, शिष्यचार और सहिष्णुता आदि। ये गुण बच्चे के सांस्कृतिक विकास में सहायक हैं।

प्रश्न 7.
परिवार के कोई दो आध्यात्मिक कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) परिवार बच्चों को महापुरुषों की जीवनियों से परिचित करवाकर उनमें आध्यात्मिक गुण विकसित करता है।
(2) परिवार बच्चों को सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् जैसी बहुमूल्य भावना से परिचित करवाता है।

प्रश्न 8.
परिवार के कोई दो नागरिक कार्य लिखें।
उत्तर:
(1) परिवार बच्चों में अच्छे नागरिकों के गुण; जैसे सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, अनुशासन, सहानुभूति, सहयोग की भावना, आज्ञा पालन आदि से परिचित करवाता है।
(2) परिवार बच्चों में रहन-सहन, बोलचाल, बड़ों का आदर करना, अतिथि सत्कार करना आदि गुणों का विकास करता है।

प्रश्न 9.
किशोरावस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किशोरावस्था (Adolescence) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Adolesceker’ से हुई है जिसका अर्थ हैपरिपक्वता की ओर अग्रसर होना। यह अवस्था बाल्यावस्था के बाद और युवावस्था से पहले की अवस्था है जिसमें किशोरों में अनेक शारीरिक व मानसिक परिवर्तन होते हैं। प्राणी विज्ञान की दृष्टि से इस अवस्था को उत्पादन प्रक्रिया या प्रजनन की शुरुआत की अवस्था कहते हैं। आम भाषा में इसे परिवर्तन की अवस्था भी कहा जाता है।

प्रश्न 10.
किशोरावस्था की कोई दो परिभाषा लिखें। अथवा किशोरावस्था को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
1. स्टेनले हाल के अनुसार, “किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।”
2. जरसील्ड के अनुसार, “किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।”

प्रश्न 11.
किशोरों में कौन-कौन-से शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
किशोरावस्था में किशोरों में दो प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते हैं-आंतरिक एवं बाहरी । किशोरों की ऊँचाई में तेजी से परिवर्तन होते हैं। भार में भी पर्याप्त वृद्धि होती है। किशोरों की आवाज में बहुत परिवर्तन होता है। लड़कों की आवाज में भारीपन तथा लड़कियों की आवाज कोमल व सुरीली हो जाती है। इस अवस्था में हड्डियों का लचीलापन समाप्त होने लगता है।

प्रश्न 12.
किशोरों में कौन-कौन-से संवेगात्मक परिवर्तन आते हैं? ।
उत्तर:
किशोरावस्था में किशोरों में जिज्ञासा-प्रवृत्ति तीव्र हो जाती है। उनमें काल्पनिकता एवं भावुकता का पूर्ण विकास हो जाता है। उनमें विद्रोह की भावना तीव्र हो जाती है। वे छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति न होने के कारण माता-पिता से झगड़ पड़ते हैं। उनमें संवेगात्मक तनाव तीव्र हो जाता है। उनमें उपेक्षा के भावों के कारण विद्रोह व अपराध करने की प्रवृत्तियाँ भी अधिक विकसित होने लगती हैं। इस अवस्था में उनका अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रहता। वे छोटी-छोटी बातों से भी अपना भावात्मक संतुलन खो देते हैं।

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प्रश्न 13.
किशोरावस्था की समस्याओं को सूचीबद्ध कीजिए।
अथवा
किशोरावस्था की कोई चार समस्याएँ बताएँ।
उत्तर:
(1) शारीरिक व मानसिक समस्याएँ,
(2) आक्रामक व्यवहार की समस्या,
(3) भावनात्मक समस्याएँ,
(4) व्यवसाय संबंधी समस्या,
(5) विषय चयन संबंधी समस्या,
(6) यौन संबंधी समस्याएँ,
(7) सामंजस्य व स्थिरता की कमी आदि।

प्रश्न 14.
वैवाहिक जीवन की तैयारी के बारे में लिखें।
उत्तर:
विवाह परिवार का आधार स्तंभ है। इससे पारिवारिक जीवन की शुरुआत होती है। वैवाहिक जीवन वास्तव में सुख-दुःख का मिश्रण है । विवाह के उपरांत पति-पत्नी को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि बालिग लड़का-लड़की स्वयं को विवाह के लिए अच्छे से तैयार कर लें तो वैवाहिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान भी आसानी से किया जा सकता है। अतः वैवाहिक जीवन को आनन्दमयी एवं सुखमय बनाने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 15.
आप किशोरों को सफलता की ओर कैसे मार्गदर्शित कर सकते हैं?
उत्तर:
किशोरावस्था तनावपूर्ण एवं परिवर्तन की अवस्था होती है। इस अवस्था में किशोरों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि हमारे द्वारा उन्हें उचित प्रशिक्षण अर्थात् उनकी भावनाओं व विचारों का आदर किया जाए, व्यवसाय हेतु उनका उचित पथ प्रदर्शन किया जाए, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए तो वे सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

प्रश्न 16.
किशोरावस्था के बालक/बालिकाओं की क्या आवश्यकताएँ हैं?
अथवा
किशोरों की मुख्य मांगों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
किशोरावस्था के बालकों की आवश्यकताएँ (माँगें) हैं-
(1) स्वतंत्रता,
(2) आत्मनिर्भरता,
(3) व्यावसायिक चयन संबंधी स्वेच्छा,
(4) शैक्षिक सुविधाएँ,
(5) आर्थिक सुविधाएँ,
(6) माता-पिता का स्नेह,
(7) फैशनपरस्ती।

प्रश्न 17.
विवाह/शादी क्या है?
अथवा
विवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विवाह या शादी से परिवार की नींव बनती है और यहीं से पारिवारिक जीवन प्रारंभ होता है। यह एक ऐसी सामाजिक संरचना है जिसमें स्त्री-पुरुष कानूनी रूप से इकट्ठे रहते हैं और पारिवारिक जीवन की शुरुआत करते हैं।
1. होर्टन व हंट के अनुसार, “विवाह एक सामाजिक मान्यता है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक परिवार के सदस्यों का संबंध स्थापित होता है।”
2. मैलिनोस्वास्की के अनुसार, “विवाह एक ऐसा समझौता है जिसमें बच्चों को पैदा करना और उनकी देखभाल करना है।” प

प्रश्न 18.
माता-पिता को अपने बच्चों से कैसा व्यवहार करना चाहिए?
उत्तर:
माता-पिता को अपने बच्चों से अच्छा व्यवहार करना चाहिए। बच्चों द्वारा गलती करने पर उन्हें प्यार से समझाना चाहिए। उनकी सभी मूल आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति करनी चाहिए। माता-पिता को उनके संवेगों को अच्छे से समझना चाहिए। बच्चों से माता-पिता का व्यवहार धैर्यमय एवं शांतिमय होना चाहिए।

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प्रश्न 19.
सफल विवाहित जीवन की क्या जरूरतें हैं?
उत्तर:
सफल विवाहित जीवन के लिए सबसे जरूरी बात दंपति में आपसी समझदारी होनी चाहिए। उन्हें एक-दूसरे पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। उनमें एक-दूसरे के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पूर्ण अहसास होना चाहिए। उनमें सहयोग की भावना भी होनी चाहिए। परिवार की सभी आवश्यक जरूरतें पूरी होनी चाहिएँ।

प्रश्न 20.
नागरिक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अरस्तू के अनुसार, “जिस व्यक्ति विशेष के पास राज्य की समीक्षा अथवा न्यास संबंधी प्रशासन में भाग लेने की शक्ति है, वही उस राज्य का नागरिक कहलाता है।”

प्रश्न 21.
महात्मा गाँधी जी के अनुसार एक अच्छे नागरिक में क्या गुण होने चाहिएँ? .
उत्तर:
एक अच्छे नागरिक में सत्य, अहिंसा एवं निर्भीकता के गुण होने चाहिएँ, ताकि वह एक उच्च एवं अच्छे समाज की स्थापना कर सके। उसमें सद्भावना, आपसी प्रेम, देश-भक्ति और साहस के गुण भी होने चाहिएँ।

प्रश्न 22.
समान अधिकार क्या होता है?
उत्तर:
प्रत्येक समाज या परिवार अपने नागरिकों या सदस्यों को कर्तव्यों के साथ-साथ कुछ अधिकार या सुविधाएँ भी प्रदान करता है। नागरिकों या सदस्यों का कर्त्तव्य होता है कि वे इन अधिकारों को समझने का प्रयास करें। परिवार का भी परम कर्त्तव्य है कि वह परिवार के प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार प्रदान करे, जैसे निवास स्थान पर हर सदस्य का समान अधिकार होना चाहिए।

प्रश्न 23.
वंशावली (Geneology) से क्या भाव है?
उत्तर:
वंशावली जिसे पारिवारिक इतिहास भी कहा जाता है, में परिवारों का अध्ययन तथा वंश व इतिहास का पता लगाया जाता है। राज्य एवं समाज वंशावली को मान्यता देता है। भविष्य में कोई भी परिवार वंश के नाम से ही जाना जाता है।

प्रश्न 24.
संयुक्त जिम्मेदारी (Joint Responsibility) क्या होती है?
उत्तर:
संयुक्त जिम्मेदारी से अभिप्राय परिवार के प्रत्येक सदस्य का घर के किसी काम के प्रति सामूहिक दायित्व से होता है। परिवार के सभी सदस्यों में एक-दूसरे की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संयुक्त जिम्मेदारी होनी चाहिए। सभी पारिवारिक सदस्यों को मिलजुल कर काम करना चाहिए और अपने-अपने दायित्व को निभाना चाहिए।

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प्रश्न 25.
किशोरावस्था के मानसिक विकास की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
(1) स्मरण-शक्ति व कल्पना-शक्ति का तीव्र विकास,
(2) तर्क-शक्ति व चिंतन-शक्ति का विकास,
(3) प्रदर्शन या मुकाबले की भावना का विकास।

प्रश्न 26.
किशोरावस्था के सामाजिक विकास की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
(1) रुचियों व अभिरुचियों की भावना,
(2) सामाजिक वातावरण के प्रति जागरूकता,
(3) विपरीत लिंग से संबंधित चर्चा एवं साहित्य में अधिक रुचि रखना।

प्रश्न 27.
परिवार के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं
1. व्यक्तिगत या एकल परिवार-व्यक्तिगत या एकल परिवार को प्राथमिक, मूल अथवा नाभिक परिवार भी कहते हैं। यह परिवार का सबसे छोटा और आधारभूत स्वरूप है जिसमें सदस्यों की संख्या बहुत कम होती है। आमतौर पर पति-पत्नी तथा उसके अविवाहित बच्चे ही इस परिवार के सदस्य होते हैं। ऐसे परिवार में सदस्य भावात्मक आधार पर एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं।

2. संयुक्त परिवार-संयुक्त परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य; जैसे पति-पत्नी, उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, आदि साथ-साथ एक घर में निवास करते हैं, उनकी संपत्ति सांझी होती है। संयुक्त परिवार के सदस्य परस्पर अधिकारों व कर्तव्यों को निभाते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

भाग-I: एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
भारतीय साहित्य में बच्चे का प्रथम गुरु किसे माना गया है?
उत्तर:
भारतीय साहित्य में बच्चे का प्रथम गुरु माता को माना गया है।

प्रश्न 2.
नियोजित परिवार का क्या लाभ है?
उत्तर:
नियोजित परिवार में परिवार के सभी सदस्य आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से खुशहाल एवं प्रसन्न रहते हैं।

प्रश्न 3.
किस अवस्था को साज-श्रृंगार की आयु’ कहा जाता है?
उत्तर:
किशोरावस्था को ‘साज-शृंगार की आयु’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
क्लेयर के अनुसार परिवार क्या है?
उत्तर:
क्लेयर के अनुसार, “परिवार से अभिप्राय उन संबंधों से है जो माता-पिता और बच्चों में मौजूद होते हैं।”

प्रश्न 5.
परिवार क्या है?
उत्तर:
परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो रक्त तथा वैवाहिक संबंध के कारण परस्पर जुड़े होते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
परिवार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

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प्रश्न 7.
परिवार क्या सिखाता है?
उत्तर:
परिवार सामाजिकता का पाठ सिखाता है।

प्रश्न 8.
एकल परिवार (Single Family) क्या है?
उत्तर:
वह परिवार जिसमें माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे रहते हों, एकल परिवार कहलाता है।

प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार (Joint Family) क्या है?
उत्तर:
वह परिवार जिसमें दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची और उनके बच्चे एक साथ रहते हैं, संयुक्त परिवार कहलाता है।

प्रश्न 10.
शैशवकाल/बाल्यावस्था के बाद तथा युवावस्था से पहले की अवस्था क्या कहलाती है?
उत्तर:
किशोरावस्था।

प्रश्न 11.
लड़कों की किशोरावस्था कब-से-कब तक होती है?
उत्तर:
लड़कों की किशोरावस्था लगभग 13 वर्ष से 18 वर्ष तक होती है।

प्रश्न 12.
लड़कियों की किशोरावस्था कब-से-कब तक होती है?
उत्तर:
लड़कियों की किशोरावस्था लगभग 12 वर्ष से 16 वर्ष तक होती है।

प्रश्न 13.
तनावपूर्ण व परिवर्तन की अवस्था किसे कहा जाता है?
उत्तर:
तनावपूर्ण व परिवर्तन की अवस्था किशोरावस्था को कहा जाता है।

प्रश्न 14.
कौन-सा सामजिक संगठन बच्चों के मानसिक विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
परिवार बच्चों के मानसिक विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 15.
परिवार के दो कार्य बताएँ।
उत्तर:
(1) बच्चों का पालन-पोषण करना, (2) सुरक्षा प्रदान करना।

प्रश्न 16.
परिवार के कोई दो आमोद-प्रमोद संबंधी कार्य बताएँ।
उत्तर:
(1) पार्क आदि में घुमाने ले जाना,
(2) सिनेमा या सर्कस आदि दिखाने ले जाना।

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प्रश्न 17.
शिशु के जीवन के कौन-से वर्ष सबसे अधिक लचीले होते हैं?
उत्तर:
शिशु के जीवन के प्रारंभिक पाँच वर्ष सबसे अधिक लचीले होते हैं।

प्रश्न 18.
किशोरावस्था में लड़कों में होने वाले कोई दो शारीरिक परिवर्तन बताइए।
उत्तर:
(1) दाढ़ी-मूंछ आना,
(2) आवाज का भारी होना।

प्रश्न 19.
किस अवस्था में स्मरण व तर्क शक्ति अधिक विकसित होती है?
उत्तर:
किशोरावस्था में स्मरण व तर्क शक्ति अधिक विकसित होती है।

प्रश्न 20.
भारत में विवाह के लिए लड़के-लड़कियों की आयु क्या निर्धारित की गई है?
उत्तर:
भारत में विवाह के लिए लड़के की 21 वर्ष तथा लड़कियों की 18 वर्ष आयु निर्धारित की गई है।

प्रश्न 21.
जरसील्ड के अनुसार किशोरावस्था क्या है?
उत्तर:
जरसील्ड के अनुसार, “किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।”

प्रश्न 22.
किशोरावस्था का समय कैसा होता है?
उत्तर:
किशोरावस्था का समय तनावपूर्ण होता है।

प्रश्न 23.
गर्भावस्था में मदिरापान से होने वाली एक हानि बताइए।
उत्तर:
शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी।

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प्रश्न 24.
एडोलसेकर का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिपक्वता की ओर अग्रसर होना।

प्रश्न 25.
बच्चे की प्रथम पाठशाला किसे कहते हैं?
उत्तर:
बच्चे की प्रथम पाठशाला परिवार को कहते हैं।

प्रश्न 26.
“शिशु का पालन-पोषण करो, बच्चों को सुरक्षा दो और वयस्क को स्वतंत्र कर दो।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन एडम स्मिथ का है।

प्रश्न 27.
12 से 18 वर्ष की अवस्था को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
12 से 18 वर्ष की अवस्था को किशोरावस्था कहा जाता है।

प्रश्न 28.
किस भाषा में परिवार को फैम्युलस (Famulus) कहा जाता है?
उत्तर:
रोमन भाषा में।

प्रश्न 29.
परिवार की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर:
परिवार एक सर्वव्यापक सामाजिक संगठन होता है।

प्रश्न 30.
फेमिली (Family) शब्द की उत्पत्ति किस रोमन शब्द से हुई?
उत्तर:
फेमिली शब्द की उत्पत्ति ‘फैम्युलस’ शब्द से हुई।

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प्रश्न 31.
ग्रीक भाषा में परिवार को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ग्रीक भाषा में परिवार को एकोनोमिया कहते हैं।

प्रश्न 32.
“किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान और विरोध की अवस्था है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन स्टेनले हाल का है।

प्रश्न 33.
कन्फ्यूशियस के अनुसार, मनुष्य राज्य के सदस्य से पहले किसका सदस्य है?
उत्तर:
कन्फ्यूशियस के अनुसार, मनुष्य राज्य के सदस्य से पहले परिवार का सदस्य है।

प्रश्न 34.
बच्चे का प्रथम गुरु कौन है?
उत्तर:
बच्चे का प्रथम गुरु माता है।

प्रश्न 35.
बच्चे की किस अवस्था में मानसिक विकास हेतु उचित परामर्श की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बच्चे की किशोरावस्था में मानसिक विकास हेतु उचित परामर्श की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 36.
बच्चों में विद्रोह एवं मुकाबले की भावना किस अवस्था में सर्वाधिक होती है?
उत्तर:
बच्चों में विद्रोह एवं मुकाबले की भावना किशोरावस्था में सर्वाधिक होती है।

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भाग-II : सही विकल्प का चयन करें

1. फेमिली (Family) शब्द की उत्पत्ति किस रोमन शब्द से हुई?
(A) फेमिलिआ
(B) फैम्युलस
(C) एकोनोमिया
(D) इको
उत्तर:
(B) फैम्युलस

2. ग्रीक भाषा में परिवार को क्या कहते हैं?
(A) फेमिलिआ
(B) फैम्युलस
(C) एकोनोमिया
(D) इको
उत्तर:
(C) एकोनोमिया

3. लैटिन भाषा में परिवार को क्या कहा जाता है?
(A) फेमिलिआ
(B) फैम्युलस
(C) एकोनोमिया
(D) इको
उत्तर:
(A) फेमिलिआ

4. भारत में विवाह के लिए लड़कियों की आयु निर्धारित की गई है
(A) 21 वर्ष
(B) 18 वर्ष
(C) 26 वर्ष
(D) 24 वर्ष
उत्तर:
(B) 18 वर्ष

5. “किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान और विरोध की अवस्था है।” यह कथन है
(A) रॉस का
(B) स्टेनले हाल का
(C) मैजिनी का
(D) एडम स्मिथ का
उत्तर:
(B) स्टेनले हाल का

6. ‘फैम्युलस’ शब्द का अर्थ है
(A) नौकर या दास
(B) माता-पिता
(C) श्रमिक
(D) बच्चे
उत्तर:
(A) नौकर या दास

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7. ‘फेमिलिआ’ शब्द का अर्थ है
(A) माता-पिता
(B) बच्चे
(C) श्रमिक और गुलाम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अनुसार, एक अच्छे नागरिक में अच्छे समाज के निर्माण के लिए गुण होने चाहिएँ
(A) सत्य
(B) अहिंसा
(C) निर्भीकता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. किस अवस्था को साज-श्रृंगार की अवस्था कहा जाता है?
(A) बाल्यावस्था
(B) शैशवावस्था
(C) किशोरावस्था
(D) युवावस्था
उत्तर:
(C) किशोरावस्था

10. कन्फ्यूशियस के अनुसार, “मनुष्य राज्य के सदस्य के पहले सदस्य है”-
(A) देश का
(B) समाज का
(C) गाँव का
(D) परिवार का
उत्तर:
(D) परिवार का

11. परिवार मार्ग प्रशस्त करता है
(A) उन्नति का
(B) समृद्धि का
(C) सामाजीकरण का
(D) परिवार का
उत्तर:
(C) सामाजीकरण का

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12. “शिशु का पालन-पोषण करो, बच्चों को सुरक्षा दो और वयस्क को स्वतंत्र कर दो।” यह कथन है
(A) एडम स्मिथ का
(B) मैजिनी का
(C) रॉस का
(D) महात्मा गाँधी का
उत्तर:
(A) एडम स्मिथ का

13. पारिवारिक जीवन का आरंभ होता है
(A) जन्म से
(B) विवाह से
(C) पढ़ाई से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) विवाह से

14. किशोरावस्था का अर्थ है
(A) परिपक्वता की ओर बढ़ना
(B) बाल्यावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ना
(C) शिशु-अवस्था से बाल्यावस्था की ओर बढ़ना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) परिपक्वता की ओर बढ़ना

15. निम्नलिखित में से किसमें परिवार के सभी सदस्य आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से खुशहाल एवं सुखी रहते हैं?
(A) एकल परिवार में
(B) संयुक्त परिवार में
(C) नियोजित परिवार में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) नियोजित परिवार में

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16. जो संबंध माता-पिता और बच्चों में होता है, उसे कहते हैं-
(A) परिवार
(B) घर
(C) समाज
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) परिवार

17. परिवार की विशेषता है
(A) सार्वभौमिक
(B) स्थायी संस्था
(C) लैंगिक संबंध
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. विवाह की बुनियादी आवश्यकता है
(A) घर का प्रबंध
(B) बच्चों का पालन-पोषण
(C) प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

19. “बच्चा नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुम्बन और पिता के दुलार से सीखता है।” यह कथन है
(A) एडम स्मिथ का
(B) महात्मा गाँधी का
(C) मैजिनी का
(D) मॉण्टगुमरी का
उत्तर:
(C) मैजिनी का

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20. निम्नलिखित में से परिवार का मूलभूत कार्य है
(A) बच्चों का पालन-पोषण करना
(B) उचित शिक्षा देना
(C) वस्त्र एवं आवास की व्यवस्था करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. किशोरों की समस्याओं के निवारण हेतु उपाय है
(A) नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा
(B) लिंग शिक्षा
(C) मनोविज्ञान एवं व्यावसायिक शिक्षा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. “परिवार एक मौलिक सामाजिक संस्था है, जिससे अन्य सभी संस्थाओं का विकास होता है।” यह कथन है
(A) स्टेनले हाल का
(B) एडम स्मिथ का
(C) बैलार्ड का
(D) अरस्तू का
उत्तर:
(C) बैलार्ड का

23. बच्चे की किस अवस्था में मानसिक विकास हेतु उचित परामर्श की आवश्यकता होती है?
(A) शैशवावस्था में
(B) युवावस्था में
(C) किशोरावस्था में
(D) प्रौढ़ावस्था में
उत्तर:
(C) किशोरावस्था में

24. ‘Adolescence’ किस भाषा के शब्द से बना है?
(A) अंग्रेज़ी भाषा
(B) लैटिन भाषा
(C) फ्रैंच भाषा
(D) ग्रीक भाषा
उत्तर:
(B) लैटिन भाषा

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25. उन व्यक्तियों का समूह, जो रक्त एवं वैवाहिक संबंधों के कारण परस्पर जुड़े होते हैं, क्या कहलाता है?
(A) जाति
(B) समाज
(C) समूह
(D) परिवार
उत्तर:
(D) परिवार

26. सामाजिक संगठनों का आधार है
(A) शादी
(B) परिवार
(C) समाज
(D) जाति
उत्तर:
(B) परिवार

27. भारतीय साहित्य में बच्चे का प्रथम गुरु किसे माना गया है?
(A) माता को
(B) पिता को
(C) शिक्षक को
(D) समाज को
उत्तर:
(A) माता को

28. अर्थशास्त्र का पिता किसे कहा जाता है?
(A) एडम स्मिथ को
(B) बील्स को
(C) मॉर्गन को
(D) कीट्स को
उत्तर:
(A) एडम स्मिथ को

29. “परिवार का जन्म अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है।” यह कथन किसका है?
(A) स्टेनले हॉल का
(B) अरस्तू का
(C) बैलार्ड का
(D) क्लेयर का
उत्तर:
(B) अरस्तू का

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30. किशोरावस्था ………… की ओर बढ़ने की अवस्था है।
(A) परिपक्वता
(B) अपरिपक्वता
(C) असमायोजन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) परिपक्वता

भाग-III: रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. लड़कों में किशोरावस्था ………….. से …………… तक होती है।
2. भारत में विवाह के लिए लड़कियों की आयु ………….. वर्ष निर्धारित की गई है।
3. “परिवार का जन्म अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है।” यह कथन ……………….. ने कहा।
4. …………….. के अनुसार सत्य, अहिंसा एवं निर्भीकता एक अच्छे नागरिक के गुण हैं।
5. परिवार मानवीय समाज की ……………….. इकाई है।
6. मैकाइवर के अनुसार परिवार ……………….. होना चाहिए।
7. परिवार की उत्पत्ति का आधार …………… है।
8. किशोरावस्था की मुख्य माँग ……………….. है।
9. शैशवकाल या बाल्यावस्था के बाद तथा युवावस्था से पहले की अवस्था को …… कहते हैं।
10. किशोरावस्था ……………….. की ओर बढ़ने की अवस्था है।
11. परिवार को सामाजिक गुणों का ……………… कहा जाता है।
12. अंग्रेज़ी में किशोरों को ………………. कहा जाता है।
उत्तर:
1. 13, 18,
2. 18,
3. अरस्तू,
4. महात्मा गाँधी,
5. मौलिक,
6. छोटा व स्थायी,
7. विवाह,
8. स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता,
9. किशोरावस्था,
10. परिपक्वता,
11. पालना,
12. टीनेजर्स (Teenagers)।

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पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा Summary

पारिवारिक जीवन संबंधी शिक्षा परिचय

परिवार (Family):
परिवार की उत्पत्ति कब हुई? इस संदर्भ में कोई निश्चित समय अथवा काल नहीं बताया जा सकता, पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे आवश्यकताओं की बढ़ोतरी हुई, वैसे-वैसे परिवार का विकास हुआ। परिवार की उत्पत्ति के विषय में अरस्तू जैसे विद्वान् ने कहा था कि परिवार का जन्म अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है। परिवार एक ऐसा स्थायी संगठन है जिसके अंतर्गत पति-पत्नी एवं उनके बच्चे तथा अन्य सदस्य आ जाते हैं जो उत्तरदायित्व व स्नेह की भावना से परस्पर बंधे रहते हैं। बैलार्ड (Ballard) के अनुसार, “परिवार एक मौलिक सामाजिक संस्था है, जिससे अन्य सभी संस्थाओं का विकास होता है।”

मानव-जीवन में परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। परिवार मानव की आज तक सेवा करता रहा है और कर रहा है, जो किसी अन्य संस्था या समिति द्वारा संभव नहीं है। परिवार बच्चों व अन्य सदस्यों के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है; जैसे-
(1) पालन-पोषण करना
(2) आहार उपलब्ध करवाना
(3) सुरक्षा करना
(4) स्वास्थ्य का ध्यान रखना
(5) कपड़े एवं आवास की व्यवस्था करना
(6) आर्थिक व धार्मिक कार्यों की पूर्ति करना आदि।

किशोरावस्था (Adolescence):
किशोरावस्था में शारीरिक वृद्धि और विकास तीव्र गति से होता है। यह वह अवस्था है जो बाल्यावस्था के बाद तथा युवावस्था से पहले शुरू होती है। प्राणी विज्ञान की दृष्टि से इस अवस्था को उत्पादन प्रक्रिया अथवा प्रजनन की शुरुआत कहते हैं। साधारण भाषा में, किशोरावस्था को परिवर्तन की अवस्था भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें शारीरिक, मानसिक व संवेगात्मक परिवर्तन तीव्र गति से होते हैं। स्टेनले हाल (Stanley Hall) के अनुसार, “किशोरावस्था तीव्र दबाव एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।”

विवाह तथा पारिवारिक जीवन के लिए तैयारी (Preparation for Marriage and Family Life):
विवाह से परिवार की नींव बनती है और यहीं से पारिवारिक जीवन की शुरुआत होती है। यह एक ऐसी सामाजिक संरचना है जिसमें स्त्री-पुरुष कानूनी रूप से इकट्ठे होते हैं और पारिवारिक जीवन की शुरुआत करते हैं। इस जीवन को सुखद बनाने के लिए प्रारंभिक तैयारियों तथा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि पारिवारिक जीवन सुखद लगने पर भी अनेक समस्याओं से घिरा रहता है जिनका समाधान करने से ही विवाहित और पारिवारिक जीवन भली-भाँति आगे बढ़ सकता है।

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