HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

Haryana State Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

HBSE 12th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? शारीरिक शिक्षा व खेलों में इसके महत्त्व का उल्लेख करें।
अथवा
समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।शारीरिक शिक्षा एवं खेलों में समाजशास्त्र की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए। शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद के क्षेत्र में इसके महत्त्व का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहता है, क्योंकि मनुष्य के दिमाग में समाज की कल्पना बहुत पहले से ही रही होगी, इसलिए समाजशास्त्र की कल्पना और रचना भी बहुत पहले ही हो चुकी होगी, परंतु एक सामाजिक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति 1838 ई० में ऑगस्ट कॉम्टे (Auguste Comte) के द्वारा की गई। इसी कारण ऑगस्ट कॉम्टे को ‘समाजशास्त्र का पिता’ कहा जाता है। आज समाजशास्त्र को एक नया विकासशील सामाजिक विज्ञान माना जाता है। मिचेल (Mitchell) ने, “समाजशास्त्र को चिंतनशील जगत् का बच्चा माना है।” इसके बाद सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले विज्ञान को समाजशास्त्र के नाम से ही संबोधित किया जाने लगा।

समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning of Sociology):
‘समाजशास्त्र’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Sociology’ शब्द का हिंदी रूपांतरण है। ‘Sociology’ शब्द लैटिन भाषा के ‘Socius’ और ग्रीक (Greek) भाषा के ‘Logos’ शब्दों से मिलकर बना है। इन दोनों का अर्थ क्रमशः समाज व विज्ञान या शास्त्र है अर्थात् समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है । ‘Socius’ और ‘Logos’ दो भाषाओं के शब्द होने के कारण ही संभवतः प्रो० बीरस्टीड ने समाजशास्त्र को दो भाषाओं की अवैध संतान माना होगा।

समाजशास्त्र की परिभाषाएँ (Definitions of Sociology):
1. विद्वानों ने समाजशास्त्र की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं1. आई० एफ० वार्ड (I. F. Ward) के अनुसार, “समाजशास्त्र, समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
2. मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है, संबंधों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं।”
3. गिलिन व गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “व्यक्तियों के एक-दूसरे के संपर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अंतःक्रियाओं के अध्ययन को ही समाजशास्त्र कहा जा सकता है।” 4. गिन्सबर्ग (Ginesbarg) ने कहा है, “समाजशास्त्र मानवीय अंतःक्रियाओं तथा अंतर्संबंधों, उनके कारणों और परिणामों का अध्ययन है।”
5. जॉनसन (Johnson) का कथन है, “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है-सामाजिक समूह सामाजिक अंतःक्रियाओं की ही एक व्यवस्था है।”
6. मैक्स वेबर (Max Weber) के शब्दों में, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का व्याख्यात्मक बोध करवाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘समाजशास्त्र’ एक ऐसा विषय है जो समाज का वैज्ञानिक अध्ययन या चिंतन करता है। यह समाज में मानवीय व्यवहार का भी चिंतन करता है।

शारीरिक शिक्षा एवं खेलों में समाजशास्त्र की महत्ता (Importance of Sociology in Physical Education and Sports):
खेल समाज का दर्पण कहलाती हैं। वर्तमान समय में किसी देश या राष्ट्र की सर्वोच्चता उसके द्वारा ओलंपिक तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में जीते गए पदकों में झलकती है। इसी कारण भारत सहित प्रत्येक देश अधिकतम संख्या में पदक जीतने की होड़ में शामिल हैं। समाजशास्त्र की शारीरिक शिक्षा तथा खेलों में महत्ता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) समाजशास्त्र शारीरिक शिक्षा तथा खेलों का वैज्ञानिक अध्ययन करने में सहायक है। चूँकि समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है और शारीरिक शिक्षा और खेल समाज के अभिन्न अंग हैं, इसलिए दोनों एक-दूसरे से संबंधित हैं। इसलिए हम समाजशास्त्र में अपनाए गए वैज्ञानिक साधनों तथा ढंगों की सहायता इनको समझने हेतु ले सकते हैं।

(2) यह शारीरिक शिक्षा तथा खेलों को समाज की एक महत्त्वपूर्ण संस्था के रूप में अध्ययन करने में सहायता करता है। आधुनिक समय में खेलें संस्थागत बन गई हैं जो समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

(3) यह शारीरिक शिक्षा तथा खेलों द्वारा समाज को दी गई नई दिशा के योगदान को समझने में हमारी सहायता करता है। चूंकि यह समाज की समझ तथा नियोजन से संबंधित है।

(4) यह व्यक्ति की महिमा तथा गरिमा से संबंधित है और शारीरिक शिक्षा तथा खेल व्यक्ति की महिमा तथा गरिमा में वृद्धि करने के यंत्र हैं।

(5) यह शारीरिक शिक्षा तथा खेलों द्वारा बच्चों की समस्याओं तथा खिलाड़ियों की अनियमितताओं को दूर करने में सहायता करता है।

(6) समाजशास्त्र मानवता या समाज की सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन को समझने में मदद करता है।

(7) शारीरिक शिक्षा तथा खेल समाजशास्त्र से बहुत-से शिक्षाप्रद साधन तथा ढंग ग्रहण करती हैं ताकि उनका प्रयोग समाज के हित के लिए किया जाए।

(8) यह सामूहिक मनोबल तथा सामूहिक एकता को बढ़ाने में सहायक होता है जिससे खेलों में मदद मिलती है।

(9) यह सामाजिक गुणों; जैसे ईमानदारी, आत्म-संयम, सहनशीलता, सद्भाव आदि को विकसित करने में सहायक होता है। इन गुणों का खेल के क्षेत्र में विशेष महत्त्व है।

(10) यह उचित मार्गदर्शन प्रदान करने में भी हमारी मदद करता है।

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प्रश्न 2.
सामाजीकरण क्या है? शारीरिक शिक्षा की सामाजीकरण की प्रक्रिया में क्या उपयोगिता है?
अथवा
सामाजीकरण को परिभाषित करें। शारीरिक शिक्षा व खेलों में सामाजीकरण के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Socialization):
सामाजीकरण एक ऐसी धारणा है जिससे व्यक्ति अपने समुदाय या वर्ण का सदस्य बनकर उसकी परंपराओं व कर्तव्यों का पालन करता है। वह स्वयं को सामाजिक वातावरण के अनुरूप ढालना सीखता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को स्वीकार करता है और उनसे अनुकूलन करना भी सीखता है। विभिन्न विद्वानों ने सामाजीकरण की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं

1.गिलिन व गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजीकरण से हमारा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह में एक क्रियाशील सदस्य बनता है, समूह की कार्य-विधियों से समन्वय स्थापित करता है, इसकी परंपराओं का ध्यान रखता है और सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना को विकसित करता है।”

2. प्रो० ए० डब्ल्यू० ग्रीन (Prof. A. W. Green) के अनुसार, “सामाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सांस्कृतिक विशेषताओं और आत्म-व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।”

3. जॉनसन (Johnson) के अनुसार, “सामाजीकरण एक प्रकार की शिक्षा है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने के योग्य बना देती है।”

4. अरस्तू (Aristotle) के अनुसार, “सामाजीकरण संस्कृति के बचाव के लिए सामाजिक मूल्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजीकरण की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण तीन पक्षों पर आधारित है-
(1) जीव रचना (Organism),
(2) व्यक्ति (Human Being),
(3) समाज (Society)।

शारीरिक शिक्षा व खेलों में सामाजीकरण का महत्त्व (Importance of Socialization in Physical Education and Sports):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, क्योंकि वह जीवन-भर अपने ही जैसे आचार-विचार रखने वाले जीवों के बीच रहता है। सामाजीकरण की सहायता से मनुष्य अपनी पशु-प्रवृत्ति से ऊपर उठकर सभ्य मनुष्य का स्थान ग्रहण करता है। शिक्षा द्वारा उसके व्यक्तित्व में संतुलन स्थापित हो जाता है। सामाजीकरण के माध्यम से वह अपने निजी हितों को समाज के हितों के लिए न्योछावर करने को तत्पर हो जाता है। उसमें समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना विकसित हो जाती है और वह समाज का सक्रिय सदस्य बन जाता है।

शारीरिक शिक्षा सामाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विद्यार्थी खेल के मैदान में अपनी टीम के हितों को सम्मुख रखकर खेल के नियमों का भली-भाँति पालन करते हुए खेलते हैं। वे पूरी लगन से खेलते हुए अपनी टीम को विजय-प्राप्ति के लिए पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। वे हार-जीत को एक-समान समझने के योग्य हो जाते हैं और उनमें सहनशीलता व धैर्यता का गुण विकसित हो जाता है। इतना ही नहीं, प्रत्येक पीढ़ी आगामी पीढ़ियों के लिए खेल-संबंधी कुछ नियम व परंपराएँ छोड़ जाती है, जो विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के माध्यम से परिचित करवाई जाती हैं।

ज़िला, राज्य, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में समाज की विभिन्न श्रेणियों से आकर खिलाड़ी भाग लेते हैं। इन अवसरों पर उन्हें परस्पर मिलकर रहने, इकट्ठे भोजन करने तथा विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्राप्त होता है। वे यह बात भूल जाते हैं कि उनका संबंध किस समाज या राष्ट्र से है। खिलाड़ियों के लिए प्रतियोगिता के समय खेल-भावना कायम रखना आवश्यक होता है। खिलाड़ी एक ऐसी भावना से ओत-प्रोत हो जाते हैं जो उन्हें सामाजीकरण एवं मानवता के उच्च शिखरों तक ले जाती है। शारीरिक शिक्षा अनेक सामाजिक गुणों; जैसे आत्म-विश्वास, आत्म-अभिव्यक्ति, आत्म-संयम, भावनाओं पर नियंत्रण, नेतृत्व की भावना, चरित्र-निर्माण, सहयोग की भावना व बंधुत्व आदि का विकास करने में उपयोगी होती है। अतः शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के सामाजीकरण में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा अथवा खेल व स्पर्धा किस तरह से सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देते हैं? वर्णन करें।
अथवा
उन सामाजिक गुणों का वर्णन करें, जिन्हें शारीरिक शिक्षा के माध्यम से उन्नत किया जा सकता है।
अथवा
शारीरिक शिक्षा, सामाजिक मूल्यों को किस प्रकार बढ़ाती है?
अथवा
“सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, सहनशीलता और धैर्यता शारीरिक शिक्षा के सकारात्मक/धनात्मक प्रभाव हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
शारीरिक शिक्षा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, सहनशीलता, सहयोग व धैर्यता बढ़ाने में किस प्रकार आवश्यक है? वर्णन करें।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का सामाजीकरण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। खिलाड़ी खेल के दौरान खेल के नियमों का पालन करता है, खेल में टीम के बाकी सदस्यों को सहयोग देता है और जीत-हार को बराबर समझकर अच्छे खेल का प्रदर्शन करता है। इससे उसमें समाज के आवश्यक गुण विकसित होते हैं। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य खिलाड़ी या व्यक्ति में ऐसे सामाजिक मूल्यों को विकसित करना है जिससे समाज में रहते हुए वह सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से निम्नलिखित सामाजिक गुणों या मूल्यों को उन्नत या प्रोत्साहित किया जा सकता है

1. व्यवहार में परिवर्तन (Change in Behaviour):
खेल या शारीरिक शिक्षा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन लाती है। खेल मनुष्य की बुरी प्रवृत्तियों को बाहर निकालकर उसमें सहयोग, अनुशासन, नियमों का पालन करना और बड़ों का कहना मानना आदि जैसे गुण विकसित करते हैं। खेलों द्वारा व्यवहार में आए परिवर्तन जीवन के साथ-साथ चलते हैं।

2. त्याग की भावना (Feeling of Sacrifice):
शारीरिक शिक्षा से त्याग की भावना पैदा होती है। खेलों में कई तरह की मुश्किलें आती हैं। खिलाड़ी अपनी मुश्किलों को भूलकर टीम की खातिर बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस तरह खिलाड़ी में त्याग की भावना पैदा होने के कारण वह समाज के दूसरे सदस्यों के प्रति हमदर्दी का व्यवहार रखता है।

3. तालमेल की भावना (Feeling of Co-ordination):
शारीरिक शिक्षा व खेलों से खिलाड़ी एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। जब खिलाड़ी अपने राज्य या दूसरे राज्यों में खेलने के लिए जाते हैं तो वे आपसी मेल-मिलाप और अच्छे संबंध बनाकर, उनकी भाषा और संस्कृति को जानते हैं। इस तरह खिलाड़ियों में तालमेल की भावना जागरूक होती है।

4.सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार में वृद्धि (Increase in Sympathize Behaviour):
खेल के दौरान यदि कोई खिलाड़ी घायल हो जाता है तो दूसरे सभी खिलाड़ी उसके प्रति हमदर्दी की भावना रखते हैं। ऐसा हॉकी अथवा क्रिकेट खेलते समय देखा भी जा सकता है। जब भी किसी खिलाड़ी को चोट लगती है तो सभी खिलाड़ी हमदर्दी प्रकट करते हुए उसकी सहायता के लिए दौड़ते हैं । यह गुण व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। .

5.सहनशीलताव धैर्यता में वृद्धि (Increase in Tolerance and Patience):
मानव के समुचित विकास के लिए सहनशीलता व धैर्यता अत्यन्त आवश्यक मानी जाती है। जिस व्यक्ति में सहनशीलता व धैर्यता होती है वह स्वयं को समाज में भली-भाँति समायोजित कर सकता है। शारीरिक शिक्षा अनेक ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे उसमें इन गुणों को बढ़ाया जा सकता है।

6. अनुशासन की भावना (Feeling of Discipline):
अनुशासन को शारीरिक शिक्षा की रीढ़ की हड्डी कहा जा सकता है। अनुशासन की सीख द्वारा शारीरिक शिक्षा न केवल व्यक्ति के विकास में सहायक है, बल्कि यह समाज को अनुशासित नागरिक प्रदान करने में भी सक्षम है।

7. सहयोग की भावना (Feeling of Co-operation):
समाज में रहकर हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से सहयोग की भावना में वृद्धि होती है। सामूहिक खेलों या गतिविधियों से व्यक्तियों या खिलाड़ियों में सहयोग की भावना बढ़ती है। यदि कोई खिलाड़ी अपने सहयोगी खिलाड़ियों से सहयोग नहीं करेगा तो उसका नुकसान न केवल उसको होगा बल्कि पूरी टीम को होगा। शारीरिक शिक्षा इस भावना को सुदृढ़ करने में सहायक होती है।

8. चरित्र-निर्माण में सहायक (Helpful in Character Formation):
शारीरिक शिक्षा चरित्र-निर्माण में भी सहायक है। यह व्यक्ति में अनेक नैतिक, मूल्य-बोधक, सामाजिक गुणों को बढ़ाने में सहायक होती है। यह व्यक्ति को अच्छा चरित्रवान नागरिक बनाने में सहायक होती है।

9.सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility):
शारीरिक शिक्षा खिलाड़ी में सामूहिक उत्तरदायित्व जैसे गुण पैदा करती है। खेलों में बहुत-सी ऐसी क्रियाएँ हैं जिनमें खिलाड़ी एक-जुट होकर इन क्रियाओं को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं।

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प्रश्न 4.
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का व्यक्ति व समूह व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है? पुष्टि कीजिए।
अथवा
सामाजिक मूल्यों को विकसित करने वाली विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की भूमिका का वर्णन करें।
अथवा
व्यक्तिगत व समूह व्यवहार को सामाजिक संस्थाएँ किस प्रकार प्रभावित करती हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
उन सामाजिक संस्थाओं का वर्णन करें जिनमें हम सामाजिक मूल्यों को विकसित कर सकते हैं।
उत्तर:
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के व्यक्ति एवं समूह व्यवहार पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं
1. परिवार (Family):
परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। बच्चा इसी संस्था में जन्म लेता है और इसी में पलता है। परिवार में बच्चा अपने माता-पिता तथा भाई-बहनों से सामाजीकरण का प्रथम पाठ पढ़ता है। परिवार में माता-पिता और दूसरे सदस्यों के आपसी संबंध, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ, पारिवारिक मूल्य और परंपराएँ बच्चों के व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इसलिए कहते हैं कि परिवार में अच्छे वातावरण का होना बहुत आवश्यक है। अगर परिवार में सदस्यों के आपसी संबंध ठीक न हों, तनाव बना रहता हो तथा सभी सदस्यों की प्राथमिक जरूरतें पूरी न होती हों तो बच्चे बुरी आदतों के शिकार हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि परिवार में माता-पिता अच्छे वातावरण का निर्माण करें जिससे बच्चे में अच्छे गुणों व आदतों का विकास हो सके।

परिवार एक ऐसी संस्था है जो अपने सदस्यों को विशेषकर बच्चों को समाज के रहन-सहन एवं खाने-पीने के ढंग सिखाती है। यह वह स्थान है जहाँ पर बच्चा अपने आने वाले जीवन के लिए स्वयं को तैयार करता है। इसीलिए कहा जाता है कि बच्चों को बनाने या बिगाड़ने में माता-पिता का काफी हाथ होता है। अगर परिवार को व्यक्तित्व निखारने की संस्था कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। आमतौर पर यह देखने में आया है कि जिस परिवार की रुचि संगीत कला, नृत्य-कला, खेलकूद या किसी और विशेष क्षेत्र में होती है, उस परिवार के बच्चे की रुचि प्राकृतिक रूप से उसी क्षेत्र में हो जाती है। अगर परिवार की रुचि खेलकूद के क्षेत्र में या किसी विशेष खेल में है तो उस परिवार में बढ़िया खिलाड़ी पैदा होना या उस खेल के प्रति दिलचस्पी रखना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी। इस प्रकार परिवार व्यक्तिगत व समूह व्यवहार को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

2. धार्मिक संस्थाएँ (Religious Institutions):
आज से कुछ समय पहले विद्यालयों में अधिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं। बहुत-से लोग धार्मिक संस्थाओं में ही विद्या प्राप्त करते थे। चाहे वह विद्या आगे बढ़ने में इतनी सहायक नहीं होती थी परंतु मनुष्य में सकारात्मक सोच लाने के लिए काफी थी। परंतु आज के युग में स्कूल तथा कॉलेज खुलने से विद्या का स्वरूप ही बदल गया है। चाहे अब विद्या धार्मिक संस्थानों में नहीं दी जाती, पर फिर भी धार्मिक संस्थाएँ व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव डालती हैं। धार्मिक संस्थानों में जाकर व्यक्ति कई अच्छे नैतिक गुण सीखता है। धार्मिक संस्थाओं में महापुरुषों की कहानियाँ सुनने के कारण वे अपने-आपको उन जैसा बनाने की कोशिश करते हैं।

धार्मिक संस्थाओं का मानवीय व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ये संस्थाएँ प्रत्येक धर्म का सम्मान करना, प्रत्येक धर्म के अच्छे गुणों को अपनाना, प्रत्येक मनुष्य से अच्छा व्यवहार करना, भगवान की रज़ा में रहना, सत्य बोलना, चोरी न करना, बड़ों का आदर करना, महिलाओं का सम्मान करना, हक की कमाई में विश्वास करना और जरूरतमंदों व गरीबों की सहायता करना आदि अच्छी आदतें सिखाती हैं।

3.शैक्षिक संस्थाएँ (Educational Institutions):
संस्था के रूप में शैक्षिक संस्थाएँ बच्चे के सामाजीकरण पर प्रभाव डालती हैं। इन संस्थाओं का बच्चों या मनुष्य के व्यवहार पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। अगर बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ता है तो उसका प्रभाव अच्छा पड़ता है। स्कूल का अनुशासन, स्वच्छ वातावरण तथा अच्छे अध्यापकों का बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज के युग में प्रत्येक माता-पिता हर स्थिति में अपने बच्चे को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। इस तरह शैक्षिक संस्थाओं का बच्चों या छात्रों के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि शैक्षिक संस्थाओं का वातावरण अच्छा है तो उनमें अच्छे गुण विकसित होंगे और यदि इन संस्थाओं का वातावरण अच्छा न हो, तो वे अच्छे गुणों से वंचित रह जाएँगे।

4.समुदाय या समूह (Society or Group):
बच्चा परिवार के बाद समुदाय या समूह के संपर्क में आता है। समुदाय या समूह में जिस तरह का वातावरण और परंपराएँ होंगी, बच्चे का ध्यान उस तरफ ही हो जाता है। अगर समुदाय में खेलों का वातावरण होगा तो बच्चा जरूर खेलों में रुचि लेने लगेगा। इस तरह कई खेल समुदाय से जुड़े हुए हैं; जैसे कि बंगाली फुटबॉल और पंजाबी हॉकी खेलना अधिक पसंद करता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि हर अच्छी-बुरी चीज़ का व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है। अगर वह अच्छे समुदाय में रह रहा है तो उस पर अच्छा असर पड़ता है। अगर वह बुरे समुदाय में रह रहा है तो उस पर बुरा असर पड़ेगा। इस तरह समुदाय या समूह व्यक्ति व समूह व्यवहार पर गहरी छाप छोड़ता है।

5. राष्ट्र (Nation):
हम लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्ष देश के निवासी हैं। इसलिए हमारी हर संस्था लोकतांत्रिक है। इसका हमारे व्यक्तित्व व समूह व्यवहार पर गहरा प्रभाव है। हमारे देश में हर प्रकार की आज़ादी है। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है। जिस तरह का काम करना चाहता है, कर सकता है। उसको कोई नहीं रोक सकता। केवल परिवार, शैक्षिक संस्थाएँ, समुदाय और धार्मिक संस्थाएँ ही व्यक्ति व समूह व्यवहार पर असर नहीं डालतीं बल्कि राष्ट्र का भी उन पर गहरा असर पड़ता है।

जिस देश में जिस प्रकार की सरकार और उसकी सोच होगी, उसी प्रकार देश के समूचे लोगों पर उसका प्रभाव होगा। अगर देश लोकतांत्रिक है, तो वहाँ के लोग स्वतंत्र निर्णय लेने वाले, प्रत्येक धर्म को मानने वाले, मिल-जुलकर रहने वाले तथा प्रत्येक जाति, रंग, धर्म का सम्मान करने वाले होंगे। परंतु जहाँ पर तानाशाही सरकार होती है, वहाँ के लोगों की सोच संकीर्ण होती है। इसीलिए जिस प्रकार का राष्ट्र होता है, उसी प्रकार का ही लोगों का रहन-सहन और सोच-शक्ति होती है । अतः राष्ट्र का व्यक्तियों के व्यवहार पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक संगठनों का व्यक्तिगत तथा सामूहिक व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 5.
संस्कृति को परिभाषित करें। खेलकूद व स्पर्धाओं द्वारा सांस्कृतिक विरासत को विभिन्न देशों ने कैसे बनाए रखा?
अथवा
संस्कृति किसे कहते हैं? विभिन्न देशों ने खेल व स्पर्धाओं में सांस्कृतिक विरासत कैसे प्राप्त की?
अथवा
सांस्कृतिक विरासत को खेल व स्पोर्ट्स द्वारा बताइए।
उत्तर:
संस्कृति का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Culture):
मनुष्य जहाँ प्राकृतिक वातावरण में अनेक सुविधाओं का उपभोग करता है तो दूसरी ओर उसे अनेक असुविधाओं या बाधाओं का सामना भी करना पड़ता है। आदिकाल से अब तक इन बाधाओं के समाधानों के अनेक उपाय भी खोजे गए हैं। इन खोजे गए उपायों को मनुष्य ने भावी पीढ़ी को भी हस्तांतरित किया। प्रत्येक पीढ़ी ने अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान व कला का और अधिक विकास किया है और नवीन ज्ञान व अनुभवों का भी अर्जन किया है। इस प्रकार के ज्ञान व अनुभव के अंतर्गत प्रथाएँ, विचार व मूल्य आते हैं, इन्हीं के संग्रह को संस्कृति कहा जाता है। अत: संस्कृति एक विशाल शब्द है जो किसी भी देश के समाज, संप्रदाय, धर्म को दर्शाती है। संस्कृति किसी भी देश की कला की छवि, ज्ञान, भाव, विचार, शक्ति तथा सामाजिक योग्यता को उभारती है। विद्वानों ने संस्कृति को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
1. रॉबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) के अनुसार, “संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है जिसमें वे सभी वस्तुएँ शामिल हैं जिन पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं।”
2. टेलर (Taylor) के अनुसार, “संस्कृति में वे सभी जटिलताएँ जैसे कि ज्ञान, विश्वास कला, कानून तथा वे सभी योग्यताएँ पाई जाती हैं जो व्यक्ति को समाज में रहने के लिए आवश्यक होती हैं।”
3. मैथ्यू (Mathew) का कहना है, “किसी भी देश की समृद्धि का गवाह उसकी संस्कृति है।”
4. मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) के शब्दों में, “संस्कृति हमारे दैनिक व्यवहार में कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनंद में पाए जाने वाले रहन-सहन और विचार के ढंगों में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।”

खेलवस्पर्धाओं द्वारा सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage Through Games and Sports):
हमारे जीवन में खेलकूद का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि पृथ्वी पर मानव-जीवन।शारीरिक गतिविधियों का दूसरा नाम ही खेलकूद है। ये गतिविधियाँ ही मानव-जीवन की आधार हैं। जब से मनुष्य ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है तभी से वह विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ करता आया है। प्राचीन युग में हमारे पूर्वजों की अनेक गतिविधियाँ आत्मरक्षा के लिए होती थीं, जिनमें भागना, शिकार करना, भाले का प्रयोग करना, तीर चलाना आदि प्रमुख थीं। संस्कृति किसी भी देश की विरासत हो सकती है। सभी देश अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि संस्कृति विरासत हर देश का गर्व होती है। खेलों को भी संस्कृति माना जाता है तथा कुछ देशों ने तो खेलों को अपनी सांस्कृतिक विरासत माना है।

सांस्कृतिक विरासत का अर्थ उचित परिवर्तनों के साथ मूल्यों, परंपराओं और प्रथाओं आदि का भूत से वर्तमान तक तथा वर्तमान से भविष्य में स्थानांतरण करना है। सांस्कृतिक विरासत प्रत्येक राष्ट्र का गौरव है। कुछ राष्ट्र शारीरिक गतिविधियों या क्रीड़ाओं को संस्कृति का रूप मानते हैं और कुछ सांस्कृतिक विरासत के रूप में देखते हैं। हमारे पूर्वज इन क्रियाओं में अपने बच्चों को निपुण बनाना अपना धर्म समझते थे और इन्हें जीवन का अभिन्न अंग मानते थे। इस प्रकार के प्रयास के कारण हमारे पूर्वज जो क्रियाएँ करते थे वे आधुनिक युग में किसी-न-किसी रूप में अभी भी प्रचलित हैं। विभिन्न देशों ने खेल व स्पर्धाओं में सांस्कृतिक विरासत को निम्नलिखित प्रकार से प्राप्त किया है

1. ग्रीस/यूनान (Greece):
यूनानी सभ्यता सबसे पुरानी सभ्यता है। यूनान के लोग खेल-प्रेमी थे। उनकी खेलों में विशेष रुचि थी। खेलकूद को सर्वप्रथम मान्यता और प्राथमिकता इसी देश ने प्रदान की। उन्होंने खेलों के महत्त्व को समझा और इन्हें प्रोत्साहित किया। प्राचीन व आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत भी इसी देश से हुई। यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने कहा था, “शरीर के लिए जिम्नास्टिक तथा आत्मा के लिए संगीत का विशेष महत्त्व है।”

2. रोम (Rome):
रोम के लोग कुशल योद्धा तथा खेल-प्रेमी थे। वे तलवार चलाना, दौड़ना, कुश्ती लड़ना, कूदना आदि गतिविधियों में विशेष रुचि लेते थे। लेकिन धीरे-धीरे रोम से खेल गतिविधियों का पतन होने लगा। ये गतिविधियाँ आनंद व मस्ती हेतु खेली जाने लगीं। लेकिन वर्तमान में रोम में खेलकूद गतिविधियों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

3. इंग्लैंड (England):
इंग्लैंड को आधुनिक बॉलगेम्स का जन्मदाता कहा जाता है । इंग्लैंड की संस्कृति ने हमें बहुत-सी खेल स्पर्धाएँ दी हैं जो वर्तमान में काफी लोकप्रिय हैं; जैसे फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, कुश्ती आदि।

4. अमेरिका (America): अमेरिका ने विश्व को विभिन्न खेलों से परिचित करवाया है। अमेरिका ने ही हमें बेसबॉल और वॉलीबॉल जैसी खेलों का ज्ञान दिया।

5. भारत (India):
खेलकूद की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। प्राचीनकाल में शिष्य अपने गुरुओं से धार्मिक ग्रंथों तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने के अतिरिक्त युद्ध एवं खेल कौशल में भी प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। इनमें मुख्य रूप से तीरंदाजी, घुड़सवारी, भाला फेंकना, तलवार चलाना, मल्लयुद्ध आदि क्रियाएँ सम्मिलित थीं। भगवान श्रीकृष्ण, कर्ण, अर्जुन आदि धनुर्विद्या में कुशल थे। भीम एक महान् पहलवान था। दुर्योधन मल्लयुद्ध में कुशल था। इसी प्रकार चौपड़, शतरंज, खो-खो, कुश्ती और कबड्डी आदि खेलों का उल्लेख भी भारतीय इतिहास में मिलता है। आधुनिक भारत में भी खेलों की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। क्रिकेट यहाँ बहुत लोकप्रिय खेल बन गया है।

6. अन्य देश (Other Countries):
खेल जगत् में जर्मनी का भी विशेष योगदान है। जर्मनी ने हमें आधुनिक जिम्नास्टिक खेल सिखाए हैं। इसी प्रकार स्वीडन तथा डेनमार्क ने जिम्नास्टिक के साथ संगीत पद्धति द्वारा चिकित्सा प्रणाली विकसित की। चीन ने हमें डाइविंग तथा जापान ने जूडो व ताइक्वांडो जैसी खेलों से परिचित करवाया।

निष्कर्ष (Conclusion):
यूनान (Greece) ने खेलों के महत्त्व को समझते हुए खेलकूद को शिक्षा के रूप में सबसे पहले मान्यता प्रदान की और बच्चों को इनके प्रति उत्साहित किया। सभी खेलें हमें अपने पूर्वजों से ही प्राप्त हुई हैं और हमारी संस्कृति पर प्रकाश डालती हैं। खेल जगत् की नई-नई खेलों ने हमारे जीवन को प्रभावित किया। इनमें निरन्तर परिवर्तन और सुधार होता रहा है। वर्तमान युग में ये खेलें वैज्ञानिक ढंग से खेली और सिखाई जा रही हैं । इन खेलों को आधुनिक स्वरूप धारण करने के लिए एक लम्बे समय की लम्बी यात्रा तय करनी पड़ी है।

हमारे खेल जगत् की गतिविधियाँ थोड़े समय की पैदाइश नहीं हैं अपितु इन्हें यह रूप धारण करने के लिए मीलों लम्बा रास्ता तय करना पड़ा है। ये खेलें एक लम्बे समय के संघर्ष की देन हैं और हमें पूर्वजों से विरासत के रूप में प्राप्त हुई हैं। ये खेल हमारे समाज का न केवल सांस्कृतिक अंग हैं, अपितु प्रतिष्ठा का प्रतीक भी बन चुके हैं। खेलें एक प्रकार से हमारी सांस्कृतिक धरोहर या बपौती हैं।

प्रश्न 6.
शारीरिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं? इसके लक्ष्यों एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
शारीरिक शिक्षा को परिभाषित कीजिए। इसके लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शारीरिक शिक्षा का अर्थ तथा परिभाषा लिखें। इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Physical Education):
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति में एक चुनी हुई दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है अर्थात् शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक आदि) व्यक्तित्व का विकास होता है। शारीरिक शिक्षा ऐसी शिक्षा है जो वैयक्तिक जीवन को समृद्ध बनाने में प्रेरक सिद्ध होती है। शारीरिक शिक्षा, शारीरिक विकास के साथ शुरू होती है और मानव-जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वह एक हृष्ट-पुष्ट और मजबूत शरीर, अच्छा स्वास्थ्य, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक संतुलन रखने वाला व्यक्ति बन जाता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार की चुनौतियों अथवा परेशानियों से प्रभावी तरीके से लड़ने में सक्षम होता है। शारीरिक शिक्षा के विषय में विभिन्न शारीरिक शिक्षाशास्त्रियों के विचार निम्नलिखित हैं
1.सी० सी० कोवेल (C.C.Cowell) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा व्यक्ति-विशेष के सामाजिक व्यवहार में वह परिवर्तन है जो बड़ी माँसपेशियों तथा उनसे संबंधित गतिविधियों की प्रेरणा से उपजता है।”
2.जे० बी० नैश (J. B. Nash) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के संपूर्ण क्षेत्र का वह भाग है जो बड़ी माँसपेशियों से होने वाली क्रियाओं तथा उनसे संबंधित प्रतिक्रियाओं से संबंध रखता है।”
3. ए० आर० वेमैन (A. R: Wayman) के मतानुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह भाग है जिसका संबंध शारीरिक गतिविधियों द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण विकास एवं प्रशिक्षण से है।”
4. आर० कैसिडी (R. Cassidy) के अनुसार, “शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों द्वारा जो परिवर्तन मानव में आते हैं, वे ही शारीरिक शिक्षा कहलाते हैं।”
5. जे० एफ० विलियम्स (J. F. Williams) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा मनुष्य की उन शारीरिक क्रियाओं को कहते हैं, जो किसी विशेष लक्ष्य को लेकर चुनी और कराई गई हों।”
6. सी० एल० ब्राउनवेल (C. L. Brownwell) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन परिपूर्ण एवं संतुलित अनुभवों का जोड़ है जो व्यक्ति को बहु-पेशीय प्रक्रियाओं में भाग लेने से प्राप्त होते हैं तथा उसकी अभिवृद्धि और विकास को चरम-सीमा तक बढ़ाते हैं।”
7. निक्सन व कोजन (Nixon and Cozan) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा की पूर्ण क्रियाओं का वह भाग है जिसका संबंधशक्तिशाली माँसपेशियों की क्रियाओं और उनसे संबंधित क्रियाओं तथा उनके द्वारा व्यक्ति में होने वाले परिवर्तनों से है।”
8. डी०ऑबरटियूफर (D.Oberteuffer) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का जोड़ है जो व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों से प्राप्त हुई है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी पहलू है जिसमें शारीरिक गतिविधियों या व्यायामों द्वारा व्यक्ति के विकास के प्रत्येक पक्ष प्रभावित होते हैं। यह व्यक्ति के व्यवहार और दृष्टिकोण में आवश्यक परिवर्तन करती है। इसका उद्देश्य न केवल व्यक्ति का शारीरिक विकास है, बल्कि यह मानसिक विकास, सामाजिक विकास, भावनात्मक विकास, बौद्धिक विकास, आध्यात्मिक विकास एवं नैतिक विकास में भी सहायक होती है अर्थात् यह व्यक्ति का संपूर्ण या सर्वांगीण विकास करती है।

शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य (Aims of Physical Education):
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थी को इस प्रकार तैयार करना है कि वह एक सफल एवं स्वस्थ नागरिक बनकर अपने परिवार, समाज व राष्ट्र की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता या योग्यता उत्पन्न कर सके और समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनकर सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके। विभिन्न विद्वानों के अनुसार शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य निम्नलिखित हैं

1.जे० एफ० विलियम्स (J. F. Williams) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य एक प्रकार का कुशल नेतृत्व तथा पर्याप्त समय प्रदान करना है, जिससे व्यक्तियों या संगठनों को इसमें भाग लेने के लिए पूरे-पूरे अवसर मिल सकें, जो शारीरिक रूप से आनंददायक, मानसिक दृष्टि से चुस्त तथा सामाजिक रूप से निपुण हों।”

2.जे० आर० शर्मन (J. R. Sherman) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य है कि व्यक्ति के अनुभव को इस हद तक प्रभावित करे कि वह अपनी क्षमता से समाज में अच्छे से रह सके, अपनी जरूरतों को बढ़ा सके, उन्नति कर सके तथा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम हो सके।”

3. केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय (Central Ministry of Education) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा को प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से स्वस्थ बनाना चाहिए और उसमें ऐसे व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए ताकि वह दूसरों के साथ प्रसन्नता व खुशी से रह सके और एक अच्छा नागरिक बन सके।”

दिए गए तथ्यों या परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। इसके लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए जे०एफ० विलियम्स (J.F. Williams) ने भी कहा है कि “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।”

शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education)-शारीरिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शारीरिक विकास का माध्यम हैं। शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत करने, रक्त का बहाव ठीक रखने, पाचन-शक्ति में बढ़ोतरी करने और श्वसन क्रिया को ठीक रखने में सहायक होती हैं । शारीरिक क्रियाएँ न केवल भिन्न-भिन्न प्रणालियों को स्वस्थ और ठीक रखती हैं, बल्कि उनके आकार, शक्ल
और कुशलता में भी बढ़ोतरी करती हैं। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाना और उसके व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को निखारना है।

2. गतिज विकास (Motor Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शरीर में ज्यादा-से-ज्यादा तालमेल बनाती हैं। अगर शारीरिक शिक्षा में उछलना, दौड़ना, फेंकना आदि क्रियाएँ न हों तो कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता। मानवीय शरीर में सही गतिज विकास तभी हो सकता है जब नाड़ी प्रणाली और माँसपेशीय प्रणाली का संबंध ठीक रहे। इससे कम थकावट और अधिक-से-अधिक कुशलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

3. भावनात्मक विकास (Emotional Development):
शारीरिक शिक्षा कई प्रकार के ऐसे अवसर पैदा करती है, जिनसे शरीर का भावनात्मक या संवेगात्मक विकास होता है । खेल में बार-बार जीतना या हारना दोनों हालातों में भावनात्मक पहलू प्रभावित होते हैं। इससे खिलाड़ियों में भावनात्मक स्थिरता उत्पन्न होती है। इसलिए उन पर जीत-हार का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। शारीरिक शिक्षा खिलाड़ियों को अपनी भावनाओं पर काबू रखना सिखाती है।

4. सामाजिक व नैतिक विकास (Social and Moral Development):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में मिल-जुलकर रहना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा कई प्रकार के ऐसे अवसर प्रदान करती है, जिससे खिलाड़ियों के सामाजिक व नैतिक विकास हेतु सहायता मिलती है; जैसे उनका एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहना, एक-दूसरे का सम्मान करना, दूसरों की आज्ञा का पालन करना, नियमों का पालन करना, सहयोग देना, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना आदि।

5. मानसिक विकास (Mental Development):
शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है। जब बालक या खिलाड़ी शारीरिक क्रियाओं में भाग लेता है तो इनसे उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास में भी बढ़ोतरी होती है।

6. सांस्कृतिक विकास (Cultural Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी खेल और क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न संस्कृतियों के व्यक्ति आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे के बारे में जानते हैं व उनके रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन-शैली के बारे में परिचित होते हैं, जिससे सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का क्षेत्र बहुत विशाल है। शारीरिक शिक्षा को व्यक्ति का विकास सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक तथा अन्य कई दृष्टिकोणों से करना होता है ताकि वह एक अच्छा नागरिक बन सके। एक अच्छा नागरिक बनने के लिए टीम भावना, सहयोग, दायित्व का एहसास और अनुशासन आदि गुणों की आवश्यकता होती है। शारीरिक शिक्षा, एक सामान्य शिक्षा के रूप में शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक होती है। यह व्यक्ति में आंतरिक कुशलताओं का विकास करती है और उसमें अनेक प्रकार के छुपे हुए गुणों को बाहर निकालती है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 7.
आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
दैनिक जीवन में शारीरिक शिक्षा की महत्ता तथा उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आज का युग एक मशीनी व वैज्ञानिक युग है, जिसमें मनुष्य स्वयं मशीन बनकर रह गया है। इसकी शारीरिक शक्ति खतरे में पड़ गई है। मनुष्य पर मानसिक तनाव और कई प्रकार की बीमारियों का संक्रमण बढ़ रहा है। आज के मनुष्य को योजनाबद्ध खेलों और शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। शारीरिक शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए रूसो ने कहा-“शारीरिक शिक्षा शरीर का एक मजबूत ढाँचा है जो मस्तिष्क के कार्य को निश्चित तथा आसान करता है।”
1. शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है (Physical Education is useful for Health):
अच्छा स्वास्थ्य अच्छी जलवायु की उपज नहीं, बल्कि यह अनावश्यक चिंताओं से मुक्ति और रोग-रहित जीवन है। आवश्यक डॉक्टरी सहायता भी स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए जरूरी है। बहुत ज्यादा कसरत करना, परन्तु आवश्यक खुराक न खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जो व्यक्ति खेलों में भाग लेते हैं, उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है। खेलों में भाग लेने से शरीर की सारी शारीरिक प्रणालियाँ सही ढंग से काम करने लग जाती हैं। ये प्रणालियाँ शरीर में हुई थोड़ी-सी कमी या बढ़ोतरी को भी सहन कर लेती हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति खेलों में अवश्य भाग ले।

2. शारीरिक शिक्षा हानिकारक मनोवैज्ञानिक व्याधियों को कम करती है (Physical Education decreases harmful Psychological Disorders):
आधुनिक संसार में व्यक्ति का ज्यादा काम दिमागी हो गया है; जैसे प्रोफैसर, वैज्ञानिक, गणित-शास्त्री, दार्शनिक आदि सारे व्यक्ति मानसिक कामों से जुड़े हुए हैं। मानसिक काम से हमारे स्नायु संस्थान (Nervous System) पर दबाव बढ़ता है। इस दबाव को कम करने के लिए काम में परिवर्तन आवश्यक है। यह परिवर्तन मानसिक शांति पैदा करता है। जे०बी० नैश का कहना है कि “जब कोई विचार दिमाग में आ जाता है तो हालात बदलने पर भी दिमाग में चक्कर लगाता रहता है।”

3. शारीरिक शिक्षा भीड़-भाड़ वाले जीवन के दुष्प्रभाव को कम करती है (Physical Education decreases the side effects of Congested Life):
आजकल शहरों में जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है जिसके कारण शहरों में कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। शहरों में कारों, बसों, गाड़ियों, मोटरों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। मोटर-गाड़ियों और फैक्टरियों का धुआँ निरंतर पर्यावरण को प्रदूषित करता है। अत: शारीरिक शिक्षा से लोगों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में शारीरिक शिक्षा संबंधी खेल क्लब बनाकर लोगों को अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

4. आधुनिक शिक्षा को पूर्ण करने के लिए शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता (Physical Education Necessities for Supplements the Modern Education):
पुराने समय में शिक्षा का प्रसार बहुत कम था। पिता पुत्र को पढ़ा देता था या ऋषि-मुनि पढ़ा देते थे। परन्तु आजकल प्रत्येक व्यक्ति के पढ़े-लिखे होने की आवश्यकता है। बच्चा भिन्न-भिन्न क्रियाओं में भाग लेकर अपनी वृद्धि और विकास करता है। इसलिए खेलें बच्चों के लिए बहुत आवश्यक हैं। शारीरिक शिक्षा केवल शरीर के निर्माण तक ही सीमित नहीं है। वास्तव में, यह बच्चों का मानसिक, भावात्मक और सामाजिक विकास भी करती है।

5. शारीरिक शिक्षा और सामाजिक एकता (Physical Education and Social Cohesion):
सामाजिक जीवन में कई तरह की भिन्नताएँ होती हैं; जैसे अलग भाषा, अलग संस्कृति, रंग-रूप, अमीरी-गरीबी आदि । इन भिन्नताओं के बावजूद मनुष्य को सामाजिक इकाई में रहना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों को एक स्थान पर इकट्ठा करती है। उनमें एकता व एकबद्धता लाती है। खेल में धर्म, जाति, श्रेणी, वर्ग या क्षेत्र आदि के आधार पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

6.शारीरिक शिक्षावसाम्प्रदायिकता (Physical Education and Communalism):
शारीरिक शिक्षा जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग-रूप, धर्म, वर्ग, समुदाय के भेदभाव को स्वीकार नहीं करती। साम्प्रदायिकता हमारे देश के लिए बहुत घातक है। शारीरिक शिक्षा इस खतरे को राष्ट्र हित की ओर अग्रसर कर देती है। खिलाड़ी सभी बंधनों को तोड़कर एक राष्ट्रीय टीम में भाग लेकर अपने देश का नाम ऊँचा करते हैं। खिलाड़ी किसी प्रकार के देश-विरोधी दंगों में नहीं पड़ते । अतःशारीरिक शिक्षा लोगों में साम्प्रदायिकता की भावना को खत्म करके राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि करती है।

7. शारीरिक शिक्षा मनोरंजन प्रदान करती है (Physical Education provides the Recreation):
मनोरंजन जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। मनोरंजन व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक खुशी प्रदान करता है। इसमें व्यक्ति निजी प्रसन्नता और संतुष्टि के कारण अपनी इच्छा से भाग लेता है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को कई प्रकार की क्रियाएँ प्रदान करती हैं जिससे उसको मनोरंजन प्राप्त होता है।

8.शारीरिक शिक्षा व प्रान्तवाद (Physical Education and Provincialism):
शारीरिक शिक्षा में प्रान्तवाद या क्षेत्रवाद का कोई स्थान नहीं है। जब कोई खिलाड़ी शारीरिक क्रियाएँ करता है तो उस समय उसमें प्रान्तवाद की कोई भावना नहीं होती कि वह अमुक प्रान्त का निवासी है। उसको केवल मानव-कल्याण का लक्ष्य ही दिखाई देता है। विभिन्न प्रान्तों या राज्यों के खिलाड़ी खेलते समय आपस में सहयोग करते हुए एक-दूसरे की भावनाओं का सत्कार करते हैं, जिससे उनमें राष्ट्रीय एकता की वृद्धि होती है। राष्ट्रीय एकता समृद्ध होती है और देश शक्तिशाली बनता है।

9. शारीरिक शिक्षा सुस्त जीवन के बुरे प्रभावों को कम करती है (Physical Education corrects the harmful effects of Lazy Life):
आज का युग मशीनी है। दिनों का काम कुछ घण्टों में हो जाता है जिसके कारण मनुष्य के पास काफी समय बच जाता है। ऐसी हालत में लोगों को दौड़ने-भागने के मौके देकर उनका स्वास्थ्य ठीक रखा जा सकता है। जब तक व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से खेलों और शारीरिक क्रियाओं में भाग नहीं लेगा, तब तक वह अपने स्वास्थ्य को अधिक दिन तक तंदुरुस्त नहीं रख पाएगा। अतः शारीरिक शिक्षा जीवन के बुरे प्रभावों को कम करती है।

10. शारीरिक शिक्षा व भाषावाद (Physical Education and Linguism):
भारतवर्ष में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। देश में कई राज्यों में भाषा के लिए झगड़े हो रहे हैं। कहीं पर हिन्दी, कहीं तमिल भाषा का झगड़ा तो कहीं पर बंगला, पंजाबी एवं ओड़िया
भाषाओं के नाम पर झगड़ा उत्पन्न हुआ है। एक स्थान की भाषा दूसरे स्थान पर समझने में कठिनाई आती है परन्तु शारीरिक शिक्षा भाषावाद को स्वीकार नहीं करती। अच्छा खिलाड़ी चाहे वह पंजाबी बोलता हो या तमिल सभी को अपना साथी मानता है और सभी भाषाओं का सम्मान करता है। सभी खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के रूप में मैदान में आते हैं। आपसी सहयोग से अपने देश की मान-मर्यादा को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। इस तरह शारीरिक शिक्षा भाषाओं के झगड़े को समाप्त करके राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 8.
नेतृत्व को परिभाषित कीजिए।शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में एक नेता के गुणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
नेतृत्व क्या है? शारीरिक शिक्षा में एक नेता के गुणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Leadership):
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि या विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करती है। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है। नेतृत्व को विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
1. मॉण्टगुमरी (Montgomery) के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा व योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।”
2. ला-पियरे व फा!वर्थ (La-Pierre and Farmowerth) के अनुसार, “नेतृत्व एक ऐसा व्यवहार है जो लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालता है, न कि लोगों के व्यवहार का प्रभाव उनके नेता पर।”
3. पी० एम० जोसेफ (P. M. Joseph) के अनुसार, “नेतृत्व वह गुण है जो व्यक्ति को कुछ वांछित काम करने के लिए, मार्गदर्शन करने के लिए पहला कदम उठाने के योग्य बनाता है।”

एक अच्छे नेतां के गुण (Qualities of aGood Leader):
प्रत्येक समाज या राज्य के लिए अच्छे नेता की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि वह समाज और राज्य को एक नई दिशा देता है। नेता में एक खास किस्म के गुण होते हैं जिनके कारण वह सभी को एकत्रित कर काम करने के लिए प्रेरित करता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे नेता का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि शारीरिक क्रियाएँ किसी योग्य नेता के बिना संभव नहीं हैं। किसी नेता में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होना आवश्यक हैं तभी वह कुशलता से व्यक्तियों या खिलाड़ियों को प्रेरित कर सकता है
1. ईमानदारी एवं कर्मठता (Honesty and Energetic): शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में ईमानदारी एवं कर्मठता एक नेता के महत्त्वपूर्ण गुण हैं । ये उसके व्यक्तित्व में निखार और सम्मान में वृद्धि करते हैं।
2. वफादारी एवं नैतिकता (Loyality and Morality): शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में वफादारी एवं नैतिकता एक नेता के महत्त्वपूर्ण गुण हैं । उसे अपने शिष्यों या अनुयायियों (Followers) के प्रति वफादार होना चाहिए और विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी उसे अपनी नैतिकता का त्याग नहीं करना चाहिए।
3. सामाजिक समायोजन (Social Adjustment): एक अच्छे नेता में अनेक सामाजिक गुणों; जैसे सहनशीलता, धैर्यता, सहयोग, सहानुभूति व भाईचारा आदि का समावेश होना चाहिए।
4. बच्चों के प्रति स्नेह की भावना (Affection Feeling for Children): नेतृत्व करने वाले में बच्चों के प्रति स्नेह की भावना होनी चाहिए। उसकी यह भावना बच्चों को अत्यधिक प्रभावित करती है।
5. तर्कशील एवं निर्णय-क्षमता (Logical and Decision-Ability): उसमें समस्याओं पर तर्कशील ढंग से विचार-विमर्श करने की योग्यता होनी चाहिए। वह एक अच्छा निर्णयकर्ता भी होना चाहिए। उसमें उपयुक्त व अनायास ही निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।
6. शारीरिक कौशल (Physical Skill): उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। वह शारीरिक रूप से कुशल एवं मजबूत होना चाहिए, ताकि बच्चे उससे प्रेरित हो सकें।
7. बुद्धिमान एवं न्यायसंगत (Intelligent and Fairness): एक अच्छे नेता में बुद्धिमता एवं न्यायसंगतता होनी चाहिए। एक बुद्धिमान नेता ही विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों का समाधान ढूँढने की योग्यता रखता है। एक अच्छे नेता को न्यायसंगत भी होना चाहिए ताकि वह निष्पक्ष भाव से सभी को प्रभावित कर सके।
8. शिक्षण कौशल (Teaching Skill): नेतृत्व करने वाले को विभिन्न शिक्षण कौशलों का गहरा ज्ञान होना चाहिए। उसे
कुशल होना चाहिए।
9. सृजनात्मकता (Creativity): एक अच्छे नेता में सृजनात्मकता या रचनात्मकता की योग्यता होनी चाहिए, ताकि वह नई तकनीकों या कौशलों का प्रतिपादन कर सके।
10. समर्पण व संकल्प की भावना (Spirit of Dedication and Determination): उसमें समर्पण व संकल्प की भावना होना बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसे विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी दृढ़-संकल्पी या दृढ़-निश्चयी होना चाहिए। उसे अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित भी होना चाहिए।
11. अनुसंधान में रुचि (Interest in Research): एक अच्छे नेता की अनुसंधानों में विशेष रुचि होनी चाहिए।
12. आदर भावना (Respect Spirit): उसमें दूसरों के प्रति आदर-सम्मान की भावना होनी चाहिए। यदि वह दूसरों का आदर नहीं करेगा, तो उसको भी दूसरों से सम्मान नहीं मिलेगा।
13. पेशेवर गुण (Professional Qualities): एक अच्छे नेता में अपने व्यवसाय से संबंधित सभी गुण होने चाहिएँ।
14. भावनात्मक संतुलन (Emotional Balance): नेतृत्व करने वाले में भावनात्मक संतुलन का होना बहुत आवश्यक है। उसका अपनी भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।
15. तकनीकी रूप से कुशल (Technically Skilled): उसे तकनीकी रूप से कुशल या निपुण होना चाहिए।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 9.
नेतृत्व (Leadership) क्या है? इसके महत्त्व का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व प्रशिक्षण की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डालें।
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ (Meaning of Leadership)-मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि व विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करते हैं। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है।

नेतृत्व का महत्त्व (Importance of Leadership):
नेतृत्व की भावना को बढ़ावा देना शारीरिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है, क्योंकि इस प्रकार की भावना से मानव के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास होता है। क्षेत्र चाहे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक अथवा शारीरिक शिक्षा का हो या अन्य, हर क्षेत्र में नेता की आवश्यकता पड़ती है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, जिससे उसकी शारीरिक शक्ति, सोचने की शक्ति, व्यक्तित्व में निखार और कई प्रकार के सामाजिक गुणों का विकास होता है। मानव में शारीरिक क्षमता बढ़ने के कारण निडरता आती है जो नेतृत्व का एक विशेष गुण माना जाता है। इसी प्रकार खेलों के क्षेत्र में हम दूसरों के साथ सहयोग के माध्यम से लक्ष्य प्राप्त करना सीख जाते हैं। व्यक्तिगत एवं सामूहिक खेलों में व्यक्ति को अच्छे नेता के सभी गुणों को ग्रहण करने का अवसर मिलता है।

आज के वैज्ञानिक युग में पूर्ण व्यावसायिक योग्यता के बिना काम नहीं चल सकता, क्योंकि नेताओं की योग्यता पर ही किसी व्यवसाय की उन्नति निर्भर करती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शारीरिक शिक्षा के क्षेत्रों में कई प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं; जैसे ग्वालियर, चेन्नई, पटियाला, चंडीगढ़, लखनऊ, हैदराबाद, मुंबई, अमरावती और कुरुक्षेत्र आदि। इन केंद्रों में शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों को इस क्षेत्र के नेताओं के रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे शारीरिक शिक्षा की ज्ञान रूपी ज्योति को अधिक-से-अधिक फैला सकें और अपने नेतृत्व के अधीन अधिक-से-अधिक विद्यार्थियों में नेतृत्व के गुणों को विकसित कर सकें। विद्यार्थी देश का भविष्य होते हैं और एक कुशल व आदर्श अध्यापक ही शारीरिक शिक्षा के द्वारा अच्छे समाज व राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकता है। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र और मैदान नेतृत्व के गुण को उभारने में कितना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। यह प्रस्तुत कथन से सिद्ध होता है”वाटरलू का प्रसिद्ध युद्ध, ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।” यह युद्ध अच्छे नेतृत्व के कारण जीता गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि नेतृत्व का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 10.
समूह की गतिशीलता से क्या अभिप्राय है? इसको समझने के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का वर्णन करें।
अथवा
समूह गत्यात्मक के बारे में आप क्या जानते हैं? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
समूह की गतिशीलता का अर्थ (Meaning of Group Dynamics):
समूह की गतिशीलता (गत्यात्मक) का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1924 में मैक्सवर्थीमर (Max Wertheimer) ने किया। डायनैमिक’ शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है’शक्ति’। इस प्रकार समूह की गतिशीलता का अर्थ उन शक्तियों या गतिविधियों से होता है जो एक समूह के अंदर कार्य करती हैं।

हम इस तथ्य को जानते हैं कि शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति के व्यवहार में यह वांछनीय परिवर्तन लाती है। जब एक बच्चे का विद्यालय में प्रवेश होता है, तो वह विद्यालय तथा अपनी कक्षा के वातावरण को समझने की कोशिश करता है। वह दूसरे बच्चों से मिलने की इच्छा करता है। वह अपने अध्यापकों से भी प्रशंसा चाहता है ताकि दूसरे बच्चे उसके बारे में अच्छा दृष्टिकोण या विचार रख सकें। इस प्रकार उसका व्यवहार लगातार प्रभावित होता रहता है। विशेष रूप से वह अपने समूह के सदस्यों द्वारा प्रभावित होता है। अत: वे शक्तियाँ या गतिविधियाँ जो विद्यालय के वातावरण से उसको प्रभावित करती हैं, उसके उचित व्यवहार के प्रतिरूप के विकास में सहायक होती हैं, समूह गत्यात्मकता की प्रक्रिया कहलाती है।

समूह की गतिशीलता को समझने के महत्त्वपूर्ण बिंदु (Important Points to Understand Group Dynamics):
एक समूह की गतिशीलता को समझने के महत्त्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं
(1) एक व्यक्ति की प्रवृत्ति सदा उन समूहों के द्वारा प्रभावित होती है, जिनका वह सदस्य होता है। यदि कोई अध्यापक, किसी

बच्चे की प्रवृत्ति में परिवर्तन चाहता है तो उसे, उसके समूह की विशेषताओं में परिवर्तन लाना होगा।
(2) समूहों में कुछ बाधाओं के कारण सीखने में रुकावट आ जाती है। यदि अध्यापक शिक्षण और सीखने को प्रभावी बनाना चाहता है तो उसे इन बाधाओं को हटाना होगा।
(3) सामाजिक क्रियाओं के प्रदर्शन में व्यक्तिगत प्रशिक्षण की अपेक्षा समूह के रूप में प्रशिक्षण अधिक अच्छा होता है।
(4) एक कक्षा में विद्यार्थियों के बीच प्रतिक्रियाओं को सामाजिक कारकों के द्वारा किसी एक सीमा तक जाना जा सकता है।
उदाहरण के लिए, विद्यार्थियों के आपसी लगाव वाले समूह में एक विद्यार्थी, जो अपने समूह के विचार से अपना अलग विचार रखता है, प्रायः उस समूह से उसका बहिष्कार कर दिया जाता है अर्थात् समूह उसे अस्वीकार कर देता है। लेकिन
विद्यार्थियों के एक व्यापक समूह में, वह विद्यार्थी, जिसके अलग विचार हैं, समूह का ध्यान अधिक आकर्षित करेगा।
(5) समूह का वातावरण व सामूहिक जीवन की प्रणाली की क्रिया समूह के सदस्यों के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
(6) कक्षा के व्यवहार के कुछ प्रतिरूप, तनाव व दबाव को कम कर देते हैं।
(7) विद्यार्थी का विश्वास और उसकी क्रियाएँ कक्षा के छोटे समूहों द्वारा प्रभावित होती हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 11.
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक के व्यक्तिगत गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक के व्यक्तिगत गुण निम्नलिखित हैं
1. व्यक्तित्व (Personality):
अच्छा व्यक्तित्व शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का सबसे बड़ा गुण है, क्योंकि व्यक्तित्व बहुत सारे गुणों का समूह है। एक अच्छे व्यक्तित्व वाले अध्यापक में अच्छे गुण; जैसे कि सहनशीलता, पक्का इरादा, अच्छा चरित्र, सच्चाई, समझदारी, ईमानदारी, मेल-मिलाप की भावना, निष्पक्षता, धैर्य, विश्वास आदि होने चाहिएँ।

2. चरित्र (Character):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक एक अच्छे चरित्र वाला व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि उसका सीधा संबंध विद्यार्थियों से होता है। अगर उसके अपने चरित्र में कमियाँ होंगी तो वह कभी भी विद्यार्थियों के चरित्र को ऊँचा नहीं उठा पाएगा।

3. नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक में एक अच्छे नेता के गुण होने चाहिएँ क्योंकि उसने ही विद्यार्थियों से शारीरिक क्रियाएँ करवानी होती हैं और उनसे क्रियाएँ करवाने के लिए सहयोग लेना होता है। यह तभी संभव है जब शारीरिक शिक्षा का अध्यापक अच्छे नेतृत्व वाले गुण अपनाए।

4. दृढ़ इच्छा-शक्ति (Strong Will Power):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक दृढ़ इच्छा-शक्ति या पक्के इरादे वाला होना चाहिए। वह विद्यार्थियों में दृढ़ इच्छा-शक्ति की भावना पैदा करके उन्हें मुश्किल-से-मुश्किल प्रतियोगिताओं में भी जीत प्राप्त करने के लिए प्रेरित करे।

5. अनुशासन (Discipline):
अनुशासन एक बहुत महत्त्वपूर्ण गुण है और इसकी जीवन के हर क्षेत्र में जरूरत है। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी बच्चों में अनुशासन की भावना पैदा करना है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों में निडरता, आत्मनिर्भरता, दुःख में धीरज रखना जैसे गुण पैदा करता है। इसलिए जरूरी है कि शारीरिक शिक्षा का अध्यापक खुद अनुशासन में रहकर बच्चों में अनुशासन की आदतों का विकास करे ताकि बच्चे एक अच्छे समाज की नींव रख सकें।

6. आत्म-विश्वास (Self-confidence):
किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्म-विश्वास का होना बहुत आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा करके उन्हें निडर, बलवान और हर दुःख में धीरज रखने वाले गुण पैदा कर सकता है।

7. सहयोग (Co-operation):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का सबसे बड़ा गुण सहयोग की भावना है। शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का संबंध केवल बच्चों तक ही सीमित नहीं है बल्कि मुख्याध्यापक, बच्चों के माता-पिता और समाज से भी है।

8. सहनशीलता (Tolerance):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों से अलग-अलग क्रियाएँ करवाता है। इन क्रियाओं में बच्चे बहुत सारी गलतियाँ करते हैं। उस वक्त शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को धैर्य से उनकी गलतियाँ दूर करनी चाहिएँ। यह तभी हो सकता है अगर शारीरिक शिक्षा का अध्यापक सहनशीलता जैसे गुण का धनी हो।

9. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक में त्याग की भावना का होना बहुत जरूरी है। त्याग की भावना से ही अध्यापक बच्चों को प्राथमिक प्रशिक्षण अच्छी तरह देकर उन्हें अच्छे खिलाड़ी बना सकता है।

10. न्यायसंगत (Fairness):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक न्यायसंगत या न्यायप्रिय होना चाहिए, क्योंकि अध्यापक को न केवल शारीरिक क्रियाएँ ही करवानी होती हैं बल्कि अलग-अलग टीमों में खिलाड़ियों का चुनाव करने जैसे निर्णय भी लेने होते हैं। न्यायप्रिय और निष्पक्ष रहने वाला अध्यापक ही बच्चों से सम्मान प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 12.
“शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण का विकास होता है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ाने में शारीरिक शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने में शारीरिक शिक्षा का क्या योगदान है? वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। इसमें अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। लोगों का रहन-सहन और रीति-रिवाज अलग-अलग हैं। उनकी भाषा और पहनावा भी अलग-अलग है। इतना कुछ भिन्न-भिन्न होते हुए राष्ट्रीय एकता को विकसित करना एक बड़ी समस्या है। देखने वाली बात यह है कि वह कौन-सी शक्ति है जो इतना कुछ भिन्न-भिन्न होते हुए भी लोगों को इकट्ठा रहने के लिए प्रेरित करती है। यह शक्ति राष्ट्रीय एकता की शक्ति है। राष्ट्रीय एकता के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता।

शारीरिक शिक्षा एक ऐसा साधन है जिससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। यूनान में ओलम्पिक खेलें शुरू कराने का अर्थ भी राष्ट्रीय एकता को ही बढ़ाना था। खेलों द्वारा मनुष्य एक-दूसरे के सम्पर्क में आता है। खेलों द्वारा लोगों को एक-दूसरे की भाषा, रहन-सहन, विचारों का आदान-प्रदान और एक-दूसरे की समस्या को समझने का अवसर मिलता है। खेलें एकता और सद्भावना जैसे गुणों को विकसित करके राष्ट्र की कई समस्याओं को सुलझाने में सहायता करती हैं।

इस उद्देश्य को लेकर ही अलग-अलग तरह के खेल मुकाबले अलग-अलग प्रान्तों में आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें राष्ट्रीय खेलों के नाम से जाना जाता है। इस तरह के खेल मुकाबले अलग-अलग प्रान्तों के खिलाड़ियों को एक मंच पर इकट्ठा करते हैं, ताकि हर खिलाड़ी एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ सके। इस तरह के प्रयत्न वास्तव में राष्ट्रीय एकता लाने में सहायक होते हैं। शारीरिक शिक्षा द्वारा निम्नलिखित ढंगों से राष्ट्रीय एकता को बढ़ाया जा सकता है

1.शारीरिक शिक्षा और भाषावाद (Physical Education and Linguism):
भारत एक विशाल देश है। इसमें अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। उनका अलग-अलग पहनावा, विचारधारा और भाषाएँ हैं परन्तु फिर भी भारत एक है। शारीरिक शिक्षा इन सभी भिन्नताओं के बावजूद राष्ट्रीय एकता में अपना योगदान देती है।

2. अनुशासन और सहनशीलता (Discipline and Toleration):
शारीरिक शिक्षा अनुशासन और सहनशीलता जैसे गुणों को उभारती है। खेलें अनुशासन के बिना नहीं खेली जा सकतीं। इनकी पालना करते हुए ही मनुष्य साधारण ज़िन्दगी में अनुशासन में रहना सीख जाता है। खेलों में सहनशीलता का बहुत महत्त्व है। जिन देशों के लोगों में अनुशासन और सहनशीलता जैसे गुण विकसित हो जाते हैं वे देश सदैव उन्नति की राह पर चलते रहते हैं। राष्ट्रीय एकता के लिए इन गुणों का होना अति आवश्यक है।

3. राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान (Solution of National Problems):
खेलें राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने में सबसे अधिक योगदान देती हैं। खेलों द्वारा खिलाड़ी एक-दूसरे के सम्पर्क में आ जाते हैं। उन्हें एक-दूसरे की भाषा, संस्कृति, पहनावा आदि समझने में मदद मिलती है। खिलाड़ी एक-दूसरे के दोस्त बन जाते हैं जिससे कई प्रकार की समस्याएं हल हो जाती हैं। इसलिए प्रत्येक देश को चाहिए कि वह अलग-अलग खेलों को उत्साहित करे ताकि खेलों द्वारा राष्ट्रीय समस्याएं सुलझाई जा सकें।

4. शारीरिक शिक्षा और राष्ट्रीय आचरण (Physical Education and National Character):
जिस देश और राष्ट्र में आचरण की कमी आ जाती है वह देश और राष्ट्र कभी भी उन्नति नहीं कर सकते। शारीरिक शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा राष्ट्रीय आचरण बनाया जा सकता है। खेल मनुष्य में अच्छे गुण (सहनशीलता, सहयोग, अनुशासन, बड़ों की आज्ञा का पालन करना, समय का महत्त्व जानना, जीवन के उतार-चढ़ाव में हिम्मत न हारना आदि) पैदा करके राष्ट्रीय आचरण में वृद्धि करते हैं।

5.शारीरिक शिक्षा और साम्प्रदायिकता (Physical Education and Communalism):
शारीरिक शिक्षा और साम्प्रदायिकता का आपस में कोई मेल नहीं है । खेलें किसी नस्ल, रंग, धर्म, जात-पात को नहीं मानतीं । खिलाड़ी सभी बन्धनों को तोड़कर एक राष्ट्रीय टीम में भाग लेकर अपने देश का नाम ऊँचा करते हैं। खेलों में साम्प्रदायिकता की कोई जगह नहीं है।

6. शारीरिक शिक्षा और असमानता (Physical Education and Inequality):
शारीरिक शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम असमानता पर आधारित नहीं है। खेलों में सभी खिलाड़ी चाहे वे अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा हो, सभी एक-समान होते हैं। खेल जीतने के लिए सभी खिलाड़ी योगदान देते हैं।

7. शारीरिक शिक्षा और खाली समय (Physical Education and Leisure Time):
कहावत है कि खाली समय झगड़े की जड़ है। खाली समय में लोग बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं जिससे कई समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं । शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के खाली समय को व्यतीत करने का साधन है। व्यक्ति छोटी-छोटी खेलों में भाग लेकर अपने अन्दर की अतिरिक्त शक्ति को प्रयोग में लाकर तन्दुरुस्त जीवन व्यतीत कर सकता है। इस प्रकार खेलों में खाली समय का उचित प्रयोग हो जाता है।

8. शारीरिक शिक्षा और व्यक्तित्व (Physical Education and Personality):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य के पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है। इस प्रकार वह अपने जीवन की उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने के योग्य हो जाता है। इस प्रकार अच्छे आचरण एवं व्यक्तित्व वाला व्यक्ति समाज का अच्छा नागरिक बनकर खुशी भरा जीवन व्यतीत करने के योग्य हो जाता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा में सामाजिकता का महत्त्व बताइए।
अथवा
शारीरिक शिक्षा किस प्रकार सामाजीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करती है?
अथवा
सामाजीकरण में शारीरिक शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, क्योंकि वह जीवन-भर अपने ही जैसे आचार-विचार रखने वाले जीवों के बीच रहता है।सामाजीकरण की सहायता से मनुष्य अपनी पशु-प्रवृत्ति से ऊपर उठकर सभ्य मनुष्य का स्थान ग्रहण करता है। सामाजीकरण के माध्यम से वह अपने निजी हितों को समाज के हितों के लिए न्योछावर करने को तत्पर हो जाता है। उसमें समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना विकसित हो जाती है और वह समाज का सक्रिय सदस्य बन जाता है।

शारीरिक शिक्षा सामाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विद्यार्थी खेल के मैदान में अपनी टीम के हितों को सम्मुख रखकर खेल के नियमों का भली-भाँति पालन करते हुए खेलते हैं। वे पूरी लगन से खेलते हुए अपनी टीम को विजय-प्राप्ति के लिए पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। उनमें सहनशीलता व धैर्यता का गुण विकसित होता है। इतना ही नहीं, प्रत्येक पीढ़ी आगामी पीढ़ियों के लिए खेल-संबंधी कुछ नियम व परंपराएँ छोड़ जाती है, जो विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के माध्यम से परिचित करवाई जाती हैं। .. खिलाड़ियों के लिए प्रतियोगिता के समय खेल-भावना कायम रखना आवश्यक होता है। खिलाड़ी एक ऐसी भावना से ओत-प्रोत हो जाते हैं जो उन्हें सामाजीकरण एवं मानवता के उच्च शिखरों तक ले जाती है। शारीरिक शिक्षा अनेक सामाजिक गुणों; जैसे आत्म-विश्वास, आत्म-अभिव्यक्ति, आत्म-संयम, भावनाओं पर नियंत्रण, नेतृत्व की भावना, चरित्र-निर्माण, सहयोग की भावना व बंधुत्व आदि का विकास करने में उपयोगी होती है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के सामाजीकरण में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र के महत्त्व का वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक शिक्षा में समाजशास्त्र के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
समाजशास्त्र शारीरिक शिक्षा तथा खेलों का वैज्ञानिक अध्ययन करने में सहायक है। चूँकि समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है और शारीरिक शिक्षा और खेलें समाज के अभिन्न अंग हैं, इसलिए दोनों एक-दूसरे से संबंधित हैं। इसलिए हम समाजशास्त्र में अपनाए गए वैज्ञानिक साधनों तथा ढंगों की सहायता इनको समझने हेतु ले सकते हैं। आधुनिक समय में खेलें संस्थागत बन गई हैं जो समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। समाजशास्त्र शारीरिक शिक्षा तथा खेलों द्वारा समाज को दी गई नई दिशा के योगदान को समझने में हमारी सहायता करता है। यह समाज की समझ तथा नियोजन से संबंधित है, इसलिए यह शारीरिक शिक्षा तथा खेलों की समझ तथा नियोजन के रूप में सहायता करता है। यह व्यक्ति की महिमा तथा गरिमा में वृद्धि करने में सहायक है। यह शारीरिक शिक्षा तथा खेलों द्वारा बच्चों की समस्याओं तथा खिलाड़ियों की अनियमितताओं को दूर करने में भी सहायता करता है। यह मानवता या समाज की सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन में भी हमारी सहायता करता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा में समाजशास्त्र विशेष योगदान देता है।

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का अभिन्न अंग है-इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
आज से कुछ ही दशक पूर्व शिक्षा का लक्ष्य केवल मानसिक विकास माना जाता था और इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल किताबी ज्ञान पर ही बल दिया जाता था। लेकिन आधुनिक युग में यह अनुभव होने लगा कि मानसिक व शारीरिक विकास एक-दूसरे से किसी भी प्रकार अलग नहीं हैं । जहाँ मानसिक ज्ञान से बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य इस ज्ञान का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में करके सुखी जीवन के लिए साधन जुटाने में सक्षम हो पाता है, वहीं शारीरिक शिक्षा उसे अतिरिक्त समय को बिताने की विधियाँ, अच्छा स्वास्थ्य रखने का रहस्य तथा चरित्र-निर्माण के गुणों की जानकारी प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य में सुधार लाकर कार्य-कुशलता को बढ़ाने में सहायता करती है और शिक्षा मानसिक विकास के उद्देश्यों की पूर्ति करने में विशेष भूमिका निभाती है।अतः आज के समय में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) शिक्षा का अभिन्न अंग है जिससे व्यक्ति के जीवन का प्रत्येक पक्ष प्रभावित होता है।

प्रश्न 4.
व्यक्ति के व्यवहार पर सामाजिक संस्थाओं के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के व्यवहार पर सामाजिक संस्थाओं के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं
1. परिवार-परिवार एक ऐसी संस्था है जो अपने सदस्यों को विशेषकर बच्चों को समाज के रहन-सहन एवं खाने-पीने के ढंग सिखाती है। यह वह स्थान है जहाँ पर बच्चा अपने आने वाले जीवन के लिए स्वयं को तैयार करता है। इसलिए कहा जाता है कि बच्चों को बनाने या बिगाड़ने में माता-पिता का काफी हाथ होता है। अगर परिवार को व्यक्तित्व निखारने की संस्था कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। अतः परिवार व्यक्तिगत व्यवहार को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

2. धार्मिक संस्थाएँ-आज के युग में स्कूल तथा कॉलेज खुलने से विद्या का स्वरूप ही बदल गया है। चाहे अब शैक्षिक विद्या धार्मिक संस्थानों में नहीं दी जाती, पर फिर भी धार्मिक संस्थाएँ व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव डालती हैं। धार्मिक संस्थानों में जाकर व्यक्ति कई अच्छे नैतिक गुण सीखता है।

3. शैक्षिक संस्थाएँ-संस्था के रूप में शैक्षिक संस्थाएँ व्यक्ति के सामाजीकरण पर प्रभाव डालती हैं। इन संस्थाओं का व्यक्ति के व्यवहार पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। अगर बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ता है तो उसका प्रभाव अच्छा पड़ता है। स्कूल का अनुशासन, स्वच्छ वातावरण तथा अच्छे अध्यापकों का बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि इन संस्थाओं का वातावरण अच्छा न हो, तो वे अच्छे गुणों से वंचित रह जाएँगे।

4. समुदाय या समूह-सभी अच्छी-बुरी चीज़ों का व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है। अगर वह अच्छे समुदाय में रह रहा है तो उस पर अच्छा असर पड़ता है। अगर वह बुरे समुदाय में रह रहा है तो उस पर बुरा असर पड़ेगा। इस तरह समुदाय या समूह व्यक्ति के व्यवहार पर गहरी छाप छोड़ता है।

5. राष्ट्र-हम लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्ष देश के निवासी हैं । इसलिए हमारी हर संस्था लोकतांत्रिक है। इसका हमारे व्यक्तित्व व्यवहार पर गहरा प्रभाव है। हमारे देश में हर प्रकार की आजादी है। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है। जिस तरह का काम करना चाहता है, कर सकता है। उसको कोई नहीं रोक सकता। केवल परिवार, शैक्षिक संस्थाएँ, समुदाय और धार्मिक संस्थाएँ ही व्यक्ति के व्यवहार पर असर नहीं डालतीं, बल्कि राष्ट्र का भी उस पर गहरा असर पड़ता है।

प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक शिक्षक क्या भूमिका निभा सकता है?
उत्तर:
वर्तमान में स्कूल ही एकमात्र ऐसी प्राथमिक संस्था है, जहाँ शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यार्थी स्कूलों में स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान शिक्षकों से सीखते हैं। मुख्याध्यापक व शिक्षक-वर्ग विद्यार्थियों के लिए शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम बनाकर उन्हें शिक्षा देते हैं जिनसे विद्यार्थी यह जान पाते हैं कि किन तरीकों और साधनों से वे अपने शारीरिक संस्थानों व स्वास्थ्य को सुचारु व अच्छा बनाए रख सकते हैं। शिक्षकों द्वारा ही उनमें अपने शरीर व स्वास्थ्य के प्रति एक स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है और उनको अच्छे स्वास्थ्य हेतु प्रेरित किया जा सकता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 6.
खेलकूद द्वारा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा कैसे मिलता है? अथवा शारीरिक शिक्षा का राष्ट्र के उत्थान में क्या योगदान है?
उत्तर:
खेल एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति या खिलाड़ी एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। खेल के मैदान में मित्रता पनपती है तथा कई बार गहरे रिश्ते तक स्थापित हो जाते हैं । खेलों में एक-दूसरे के साथ मिलकर चलने में ही सफलता प्राप्त होती है। जब एक टीम राष्ट्र के लिए खेलती है तो उसमें एक प्रांत या जाति के लोग नहीं होते। सभी खिलाड़ी एक परिवार के सदस्यों की भाँति खेलते हैं। इनमें कोई जाति-पाति, रंग-भेद नहीं होता। सभी खिलाड़ी पूर्ण शक्ति लगाकर देश की जीत में बराबर के हिस्सेदार होते हैं । अतः खेलों के प्रसार से आपसी सद्भावना एवं एकता को बढ़ावा मिलता है तथा देश की अनेक समस्याओं का समाधान हो जाता है। राजनीतिक भावना से खेल खेलना विश्व-बंधुत्व को समाप्त करना है। रूस द्वारा ओलंपिक खेलों का आयोजन करने पर अमेरिका द्वारा उसका बहिष्कार किया जाना इसका एक उदाहरण है। इसी प्रकार अमेरिका द्वारा आयोजित खेलों में रूस तथा उसके सहयोगी देशों का भाग न लेना ओलंपिक खेलों के मूल आधार को ठेस पहुंचाता है । ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कड़े कदम उठाना हम सबके लिए अति-आवश्यक है।

प्रश्न 7.
खेलकूद द्वारा संस्कृति का विकास कैसे संभव है?
अथवा
क्या खेलकूद मनुष्य की सांस्कृतिक विरासत हैं? स्पष्ट करें। अथवा
“खेलकूद, मनुष्य की एक सांस्कृतिक विरासत है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
अथवा
मानव की सांस्कृतिक विरासत के रूप में खेलकूद’ पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
संस्कृति मनुष्य की सबसे बड़ी धरोहर है। यह संस्कृति ही है जो मनुष्य को पशुओं से पृथक् करती है। संस्कृति व्यक्ति के समूह में रहन-सहन के ढंग, जीवन-विधि, विचारधारा आदि से संबंधित मानी जाती है। जीवन में खेलकूद का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना कि पृथ्वी पर मानव-जीवन। खेलकूद शारीरिक गतिविधियों का दूसरा रूप है। जब से मनुष्य ने धरती पर जन्म लिया है, वह किसी-न-किसी प्रकार की गतिविधियाँ करता ही आया है। प्राचीनकाल में शिकार खेलना, भाले का प्रयोग करना, तीर चलाना, शिकार के पीछे भागना आदि एक प्रकार से खेल ही थे। धीरे-धीरे इन क्रियाओं में बढ़ोतरी हुई तथा नाच-गाना आदि सम्मिलित होने लगा। खेलों के प्रति इसी रुझान से यूनान में ओलंपिक खेलों का जन्म हुआ।

सांस्कृतिक विरासत का अर्थ उचित परिवर्तनों के साथ मूल्यों, परंपराओं और प्रथाओं आदि का भूत से वर्तमान तक तथा वर्तमान से भविष्य में स्थानांतरण करना है। सांस्कृतिक विरासत प्रत्येक राष्ट्र का गर्व है। कुछ राष्ट्र शारीरिक गतिविधियों या क्रीड़ाओं को संस्कृति का रूप मानते हैं और कुछ सांस्कृतिक विरासत के रूप में देखते हैं। हमारे पूर्वज इन क्रियाओं में अपने बच्चों को निपुण बनाना अपना धर्म समझते थे और इन्हें जीवन का अभिन्न अंग मानते थे। इस प्रकार के प्रयास के कारण हमारे पूर्वज जो क्रियाएँ करते थे वे आधुनिक युग में किसी-न-किसी रूप में अभी भी प्रचलित हैं।

प्रश्न 8.
समूह की गतिशीलता की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा
समूह की गत्यात्मकता (Group Dynamic) पर संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर:
समूह की गतिशीलता (गत्यात्मकता) का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1924 में मैक्सवर्थीमर (Max Wertheimer) ने किया। डायनैमिक (Dynamic) शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है-शक्ति । इस प्रकार समूह की गतिशीलता/गत्यात्मकता का अर्थ उन शक्तियों या गतिविधियों से होता है जो एक समूह के अंदर कार्य करती हैं।

हम इस तथ्य को जानते हैं कि शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति के व्यवहार में यह वांछनीय परिवर्तन लाती है। जब एक बच्चे का विद्यालय में प्रवेश होता है, तो वह विद्यालय तथा अपनी कक्षा के वातावरण को समझने की कोशिश करता है। वह दूसरे बच्चों से मिलने की इच्छा करता है, और उनमें से कुछ एक की तरह व्यवहार करने की भी इच्छा करता है। वह अपने अध्यापकों से भी प्रशंसा चाहता है ताकि दूसरे बच्चे उसके बारे में अच्छा दृष्टिकोण या विचार रख सकें। इस प्रकार उसका व्यवहार लगातार प्रभावित होता रहता है। विशेष रूप से वह अपने समूह के सदस्यों द्वारा प्रभावित होता है। वे शक्तियाँ, जो विद्यालय के वातावरण में उसको प्रभावित करती हैं, उसके उचित व्यवहार के प्रतिरूप के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती हैं।

प्रश्न 9.
मानव का विकास समाज से संभव है। व्याख्या करें।
अथवा
मनुष्य और समाज का परस्पर क्या संबंध है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। आधुनिक युग में मानव-संबंधों की आवश्यकता पहले से अधिक अनुभव की जाने लगी है। कोई भी व्यक्ति अपने-आप में पूर्ण नहीं है। किसी-न-किसी कार्य के लिए उसे दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। इन्हीं जरूरतों के कारण समाज में अनेक संगठनों की स्थापना की गई है। समाज द्वारा ही मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। अतः मनुष्य समाज पर आश्रित रहता है तथा इसके द्वारा ही उसका विकास संभव है।

प्रश्न 10.
स्कूल या शैक्षिक संस्थाओं का सामाजीकरण में क्या योगदान है?
उत्तर:
स्कूल या शैक्षिक संस्थाएँ बच्चे के सामाजीकरण पर प्रभाव डालती हैं। इन संस्थाओं का बच्चों के व्यवहार पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। अगर बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ता है तो उसका प्रभाव अच्छा पड़ता है। इसके विपरीत यदि बच्चा ऐसे स्कूल में पढे जहाँ पढ़ाई पर अधिक ध्यान न दिया जाए तो उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। स्कूल के अनुशासन, स्वच्छ वातावरण और अच्छे शिक्षकों का बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज के भौतिक एवं वैज्ञानिक युग में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को हर स्थिति में अच्छी-से-अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं ताकि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सके। इस प्रकार स्कूल या शैक्षिक संस्थाओं का सामाजीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 11.
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा में निम्नलिखित दो प्रकार का नेतृत्व होता है
1.अध्यापक का नेतृत्व-शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक का नेतृत्व बहुत ही आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक या शिक्षक कुशल होना चाहिए तभी वह शिक्षण संस्थान के लिए व विद्यार्थियों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। भारतवर्ष में शारीरिक शिक्षा के बहुत से संस्थान हैं। इसलिए शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को अब अपना नेतृत्व ठीक ढंग से करना पड़ेगा, अन्यथा विद्यार्थियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। उनको अब अधिक कार्य करना पड़ेगा तथा सुनियोजित ढंग से शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम चलाने होंगे। तभी वे शारीरिक शिक्षा के अच्छे नेता सिद्ध हो सकते हैं। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में एक शिक्षक के नेतृत्व का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वह विद्यार्थियों के काफी समीप होता है। उसके व्यक्तित्व व गुणों का प्रभाव अवश्य ही विद्यार्थियों पर पड़ता है।

2. विद्यार्थी का नेतृत्व-कॉलेज के स्तर पर शारीरिक शिक्षा ऐच्छिक विषय के रूप में शुरू होने से विद्यार्थी के नेतृत्व को बढ़ावा मिल गया है। खेलकूद एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थी को बहुत-से कार्य करने पड़ते हैं। उन्हें कई बार अपने शारीरिक शिक्षक की सहायता भी करनी पड़ती है। वास्तव में, प्रशिक्षण या प्रतियोगिताओं के दौरान ऐसे विद्यार्थियों की बहुत आवश्यकता होती है। पिकनिक पर जाते हुए, लंबी दूरी की दौड़ों में और कॉलेजों तथा महाविद्यालयों में अनुशासन ठीक रखने के लिए उनकी काफी हद तक जिम्मेदारी होती है। इसके अतिरिक्त खेलों के समय जब अभ्यास किया जाता है या किसी प्रतियोगिता के लिए टीम बाहर जाती है तो उस समय भी विद्यार्थियों के नेतृत्व की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 12.
विद्यार्थी नेता को कैसे चुना जाता है?
अथवा
विद्यार्थी नेता को किन-किन ढंगों या तरीकों से चुना जा सकता है?
उत्तर:
विद्यार्थी नेता को निम्नलिखित ढंग अपनाकर चुना जा सकता है
1. मनोनीत करना-इस ढंग के अनुसार विद्यार्थी अपना नेता स्वयं नहीं चुनते, क्योंकि छोटी कक्षा के बच्चे अपना नेता चुनने में असमर्थ होते हैं। इसीलिए अध्यापक सब विद्यार्थियों के गुणों को ध्यान में रखकर उस विद्यार्थी को नेता बनाते हैं, जिसमें नेतृत्व वाले गुण होते हैं।

2. चुनाव करवाना-यह ढंग आमतौर पर बड़े विद्यार्थियों में अपनाया जाता है, क्योंकि यह उस स्थिति में होता है जिसमें वे अपना बुरा-भला खुद समझ सकते हैं। इस तरह सभी विद्यार्थी अपनी जिम्मेवारी समझकर अपना नेता चुनते हैं। यह ठीक है कि इस तरीके में बहुत मुश्किलें आती हैं । विद्यार्थी अलग-अलग दलों में बँट जाते हैं जोकि बाद में झगड़े का रूप धारण कर लेते हैं। परंतु योग्य अध्यापक के नेतृत्व में ये झगड़े जल्दी सुलझाए जा सकते हैं।

3. लॉटरी द्वारा-इसके अनुसार नेता की चुनाव प्रक्रिया लॉटरी निकालकर की जाती है। इसका उपयोग उस समय किया जाता है जब कक्षा में सारे विद्यार्थी एक ही प्रकार के गुण आदि रखते हों। इसमें किस्मत का बहुत हाथ होता है। इसमें नुकसान भी हो सकता है। कभी-कभी तो पर्ची या लॉटरी ऐसे विद्यार्थी की निकल जाती है, जिसमें नेतृत्व के गुण नहीं होते। इससे सारी कक्षा को नुकसान उठाना पड़ता है।

4. बारी-बारी लीडर बनना-इसका उपयोग उस समय किया जाता है जब सारे विद्यार्थी नेतृत्व की योग्यता रखते हों। इसमें प्रत्येक विद्यार्थी को बारी-बारी से मॉनीटर या अगवाई का मौका दिया जाता है। इसमें सबसे बड़ा नुकसान यह है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपने तरीके से कक्षा का प्रबंध आदि करता है, जिससे कक्षा में अनुशासन की कमी आ जाती है।

5. योग्यतानुसार चयन-इसके अनुसार कक्षा में सबसे अधिक योग्यता रखने वाले विद्यार्थी को ही नेता बनाया जाता है। कई खेलों में तो यह तरीका बहुत महत्त्वपूर्ण है; जैसे जिम्नास्टिक, तैराकी आदि में। इस तरह विद्यार्थी जरूरत पड़ने पर अपना योगदान दे सकते हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 13.
सामाजिक मूल्यों को विकसित करने में शारीरिक शिक्षा की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का सामाजीकरण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य खिलाड़ी या व्यक्ति में ऐसे सामाजिक मूल्यों को विकसित करना है जिससे समाज में रहते हुए वह सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से निम्नलिखित सामाजिक गुणों या मूल्यों को विकसित किया जा सकता है
(1) खेल या शारीरिक शिक्षा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन लाती है।
(2) शारीरिक शिक्षा से त्याग की भावना पैदा होती है।
(3) शारीरिक शिक्षा व खेलों से खिलाड़ियों में तालमेल की भावना जागरूक होती है।
(4) मानव के समुचित विकास के लिए सहनशीलता व धैर्यता अत्यन्त आवश्यक है। जिस व्यक्ति में सहनशीलता व धैर्यता होती है वह स्वयं को समाज में भली-भाँति समायोजित कर सकता है। शारीरिक शिक्षा अनेक ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे उसमें इन गुणों को बढ़ाया जा सकता है।
(5) समाज में रहकर हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
(6) शारीरिक शिक्षा खिलाड़ी में सामूहिक उत्तरदायित्व जैसे गुण पैदा करती है। खेलों में बहुत-सी ऐसी क्रियाएँ हैं जिनमें खिलाड़ी एक-जुट होकर इन क्रियाओं को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 14.
परिवार, व्यक्ति के व्यवहार पर किस प्रकार प्रभाव डालता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। बच्चा इसी संस्था में जन्म लेता है और इसी में पलता है। परिवार में बच्चा अपने माता-पिता तथा भाई-बहनों से सामाजीकरण का प्रथम पाठ पढ़ता है। परिवार में माता-पिता और दूसरे सदस्यों के आपसी संबंध, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ, पारिवारिक मूल्य और परंपराएँ बच्चों के व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इसलिए कहते हैं कि परिवार में अच्छे वातावरण का होना बहुत आवश्यक है। अगर परिवार में सदस्यों के आपसी संबंध ठीक न हों, तनाव बना रहता हो तथा सभी सदस्यों की प्राथमिक जरूरतें पूरी न होती हों तो बच्चे बुरी आदतों के शिकार हो सकते हैं । इसलिए जरूरी है कि परिवार में माता-पिता अच्छे वातावरण का निर्माण करें जिससे बच्चे या व्यक्ति में अच्छे गुणों व आदतों का विकास हो सके।

अगर परिवार को व्यक्तित्व निखारने की संस्था कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। आमतौर पर यह देखने में आया है कि जिस परिवार की रुचि संगीत कला, नृत्य-कला, खेलकूद या किसी और विशेष क्षेत्र में होती है, उस परिवार के बच्चे की रुचि प्राकृतिक रूप से उसी क्षेत्र में हो जाती है। अगर परिवार की रुचि खेलकूद के क्षेत्र में या किसी विशेष खेल में है तो उस परिवार में बढ़िया खिलाड़ी पैदा होना या उस खेल के प्रति दिलचस्पी रखना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी। इस प्रकार परिवार व्यक्तिगत व समूह व्यवहार को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

प्रश्न 15.
ग्रीस में खेल के ऐतिहासिक विकास का उल्लेख करें।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का जन्मदाता यूनान/ग्रीस को माना जाता है। ग्रीस में सैनिकों को शारीरिक दृष्टि से मजबूत करने हेतु प्रशिक्षण दिया जाता था। धीरे-धीरे कुछ नियम बनते गए, जिससे ये शारीरिक प्रशिक्षण खेलकूद या शारीरिक शिक्षा में परिवर्तित होते गए। ग्रीस के लोगों को खेलों में विशेष रुचि थी। उन्होंने ही ओलंपिक खेल विश्व को प्रदान किए।आज ओलंपिक खेलों की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि प्रत्येक देश इनमें भाग लेने और अच्छे-से-अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रयास करता है, ताकि वह विश्व पर अपना प्रभाव छोड़ सके। वे खेलों की उपयोगिता को अच्छे से जानते थे। इसी कारण ग्रीस में खेलकूद को शिक्षा का अभिन्न अंग समझा जाता था। खेलों की दृष्टि से यूनानी सभ्यता को खेलों का स्वर्ण काल कहा जा सकता है। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो के अनुसार, “शरीर के लिए जिम्नास्टिक और आत्मा के लिए संगीत का विशेष महत्त्व है।”

प्रश्न 16.
भारत में खेलों के ऐतिहासिक विकास का उल्लेख करें।
उत्तर:
खेलकूद की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। प्राचीनकाल में शिष्य अपने गुरुओं से धार्मिक ग्रंथों तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने के अतिरिक्त युद्ध एवं खेल कौशल में भी प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। इनमें मुख्य रूप से तीरंदाजी, घुड़सवारी, भाला फेंकना, तलवार चलाना, मल्लयुद्ध आदि क्रियाएँ सम्मिलित थीं। भगवान श्रीकृष्ण, कर्ण, अर्जुन आदि धनुर्विद्या में प्रसिद्ध थे। भीम एक महान् पहलवान था। दुर्योधन मल्लयुद्ध में कुशल था। इसी प्रकार चौपड़, शतरंज, खो-खो, कुश्ती और कबड्डी आदि खेलों का उल्लेख भी भारतीय इतिहास में मिलता है। आधुनिक भारत में क्रिकेट बहुत लोकप्रिय खेल बन गई है। आज लगभग सभी आधुनिक खलों में भारत का विशेष योगदान है। संक्षेप में भारत में खेलों का इतिहास बहुत पुराना और विकसित है।।

प्रश्न 17.
नेतृत्व के विभिन्न प्रकार कौन-कौन-से हैं?
अथवा
नेता के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नेतृत्व/नेता के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं
1.संस्थागत नेता-इस प्रकार के नेता संस्थाओं के मुखिया होते हैं। स्कूल, कॉलेज, परिवार, फैक्टरी या दफ्तर आदि को मुखिया की आज्ञा का पालन करना पड़ता है।
2. प्रभुता-संपन्न या तानाशाही नेता-इस प्रकार का नेतृत्व एकाधिकारवाद पर आधारित होता है। इस प्रकार का नेता अपने आदेशों का पालन शक्ति से करवाता है और यहाँ तक कि समूह का प्रयोग भी अपने हित के लिए करता है। यह नेता नियम और आदेशों को समूह में लागू करने का अकेला अधिकारी होता है। स्टालिन, नेपोलियन और हिटलर इस प्रकार के नेता के उदाहरण हैं।
3. आदर्शवादी या प्रेरणात्मक नेता-इस प्रकार का नेता समूह पर अपना प्रभाव तर्क-शक्ति से डालता है और समूह अपने नेता के आदेशों का पालन अक्षरक्षः (ज्यों-का-त्यों) करता है। समूह के मन में अपने नेता के प्रति सम्मान होता है। नेता समूह या लोगों की भावनाओं का आदर करता है। महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन, जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री इस तरह के नेता थे।
4. विशेषज्ञ नेता-समूह में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको किसी विशेष क्षेत्र में कुशलता हासिल होती है और वे अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। ये नेता अपनी कुशल सेवाओं को समूह की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करते हैं और समूह इन कुशल सेवाओं से लाभान्वित होता है। इस तरह के नेता अपने विशेष क्षेत्र; जैसे डॉक्टरी, प्रशिक्षण, इंजीनियरिंग तथा कला-कौशल के विशेषज्ञ होते हैं।

प्रश्न 18.
एक अच्छे नेता में कौन-कौन से गुण होने चाहिएँ? अथवा
उत्तर:
एक अच्छे नेता में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ
(1) एक अच्छे नेता में पेशेवर प्रवृत्तियों का होना अति आवश्यक है। अच्छी पेशेवर प्रवृत्तियों का होना न केवल नेता के लिए आवश्यक है बल्कि समाज के लिए भी अति-आवश्यक है।
(2) एक अच्छे नेता की सोच सकारात्मक होनी चाहिए, ताकि बच्चे और समाज उससे प्रभावित हो सकें।
(3) उसमें ईमानदारी, निष्ठा, समय-पालना, न्याय-संगतता एवं विनम्रता आदि गुण होने चाहिएँ।
(4) उसके लोगों के साथ अच्छे संबंध होने चाहिएं।
(5) उसमें भावनात्मक संतुलन एवं सामाजिक समायोजन की भावना होनी चाहिए।
(6) उसे खुशमिजाज तथा कर्मठ होना चाहिए।
(7) उसमें बच्चों के प्रति स्नेह और बड़ों के प्रति आदर-सम्मान की भावना होनी चाहिए।
(8) उसका स्वास्थ्य भी अच्छा होना चाहिए, क्योंकि अच्छा स्वास्थ्य अच्छी आदतें विकसित करने में सहायक होता है।
(9) उसका मानसिक दृष्टिकोण सकारात्मक एवं उच्च-स्तर का होना चाहिए।

प्रश्न 19.
खेल व स्पर्धा कैसे व्यक्ति व समूह व्यवहार को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
खेलों में भाग लेने से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। उसमें नेतृत्व, आत्म-अभिव्यक्ति, सहयोग, अनुशासन, धैर्य आदि अनेक गुण विकसित हो जाते हैं । जीवन की चिंताओं से मुक्ति पाने हेतु भी खेल व स्पर्धा बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये खिलाड़ियों के मनोभावों, रिवाजों, संस्कृतियों व व्यवहार को समझने हेतु अवसर प्रदान करते हैं। अतः इनके कारण व्यक्ति व समूह व्यवहार काफी प्रभावित होता है। व्यक्ति एवं समूह का व्यवहार सकारात्मक एवं विस्तृत होता है और उनमें अनेक नैतिक एवं सामाजिक गुणों का विकास होता है। ये गुण जीवन में सफल एवं उपलब्धि प्राप्त करने हेतु आवश्यक होते हैं।

प्रश्न 20.
खेल व स्पर्धा से सामाजीकरण को कैसे सुधारा या बढ़ाया जा सकता है?
उत्तर:
खेल व स्पर्धा का संबंध व्यक्ति से होता है। अतः ये प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । ये स्वतंत्र व्यवहार का विकास करने में सहायक होते हैं। ये हमें समाज की चिंताओं से भी स्वतंत्र करते हैं। इनके द्वारा हम कोई भी प्रशासनिक, नैतिक एवं सामाजिक गुण विकसित कर सकते हैं अर्थात् संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास खेल व स्पर्धा से संभव है। इनके माध्यम से समाज के प्रति सकारात्मक व सामाजिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है। इस तरह खेल व स्पर्धा से सामाजीकरण को सुधारा जा सकता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 21.
शारीरिक शिक्षा, स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में कैसे सहायता करती है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज के साथ रहना पड़ता है। यदि व्यक्ति को सफल जीवन व्यतीत करना है तो उसे स्वयं को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखना होगा। इस कार्य में शारीरिक शिक्षा उसको महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती है और उन्हें विकसित करने में सहायक होती है। शारीरिक शिक्षा कई ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे व्यक्ति में अनेक सामाजिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। इसके माध्यम से वह अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहता है, एक-दूसरे को सहायता करता है, दूसरों की भावनाओं की कदर करता है और मनोविकारों व बुरी आदतों से दूर रहता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा, स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में सहायता करती है।

प्रश्न 22.
शारीरिक शिक्षा खाली समय का सदुपयोग करना कैसे सिखाती है ?
उत्तर:
किसी ने ठीक ही कहा है कि “खाली दिमाग शैतान का घर होता है।” (An idle brain is a devil’s workshop.) यह आमतौर पर देखा जाता है कि खाली या बेकार व्यक्ति को हमेशा शरारतें ही सूझती हैं। कभी-कभी तो वह इस प्रकार के अनैतिक कार्य करने लग जाता है, जिनको सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं समझा जा सकता। खाली या बेकार समय का सदुपयोग न करके उसका दिमाग बुराइयों में फंस जाता है। शारीरिक शिक्षा में अनेक शारीरिक क्रियाएँ शामिल होती हैं। इन क्रियाओं में भाग लेकर हम अपने समय का सदुपयोग कर सकते है। अतः शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को खाली समय का सदुपयोग करना सिखाती है।

खाली समय का प्रयोग यदि खेल के मैदान में खेलें खेलकर किया जाए तो व्यक्ति के हाथ से कुछ नहीं जाता, बल्कि वह कुछ प्राप्त ही करता है। खेल का मैदान जहाँ खाली समय का सदुपयोग करने का उत्तम साधन है, वहीं व्यक्ति की अच्छी सेहत बनाए रखने का भी उत्तम साधन है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति को एक अच्छे नागरिक के गुण भी सिखा देता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
सोशिओलॉजी (Sociology) शब्द का शाब्दिक अर्थ बताएँ।
अथवा
समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट करें।
अथवा
‘सोशिओलॉजी’ शब्द लैटिन भाषा के किस शब्द से लिया गया है?
उत्तर:
सोशिओलॉजी (Sociology) शब्द लैटिन भाषा के ‘Socios’ और ग्रीक भाषा के ‘Logos’ शब्द से मिलकर बना है। ‘Socios’ का अर्थ-समाज और ‘Logos’ का अर्थ-शास्त्र या विज्ञान है। अतः समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
अथवा
समाजशास्त्र की कोई दो परिभाषा लिखें।
उत्तर:
1. आई०एफ० वार्ड के अनुसार, “समाजशास्त्र, समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
2. गिलिन व गिलिन के कथनानुसार, “व्यक्तियों के एक-दूसरे के संपर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अंतःक्रियाओं के अध्ययन को ही समाजशास्त्र कहा जाता है।”

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प्रश्न 3.
सामाजीकरण (Socialization) का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपने समुदाय या वर्ग का सक्रिय सदस्य बनकर उसकी परंपराओं या कर्तव्यों का पालन करता है | स्वयं को सामाजिक वातावरण के अनुरूप ढालना सीखता है । यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा वह सांस्कृतिक और व्यक्तिगत विशेषताओं को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 4.
सामाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
अथवा
सामाजीकरण की कोई दो परिभाषा लिखें।
उत्तर:
1, जॉनसन के अनुसार, “सामाजीकरण एक प्रकार की शिक्षा है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने के योग्य बना देती है।”
2. अरस्तू के अनुसार, “सामाजीकरण संस्कृति के बचाव के लिए सामाजिक मूल्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया है।”

प्रश्न 5.
देश में स्थापित उन प्रमुख केंद्रों के नाम लिखिए जो नेतृत्व प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
अथवा
भारत में नेतृत्व प्रशिक्षण संस्थानों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) Y.M.C.A., चेन्नई,
(2) L.N.C.P.E., ग्वालियर,
(3) गवर्नमैंट कॉलेज फिज़िकल एज्यूकेशन, पटियाला,
(4) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पो, पटियाला।
इसके अतिरिक्त अनेक प्रशिक्षण कॉलेज तथा विभाग देश के विभिन्न भागों; जैसे अमृतसर, चंडीगढ़, कोलकाता, नागपुर, दिल्ली, अमरावती, कुरुक्षेत्र आदि में कार्यरत हैं।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र किस प्रकार अनुशासन बनाने में सहायता करता है?
उत्तर:
समाजशास्त्र समग्र समाज का अध्ययन है। इसके अंतर्गत सामाजिक संबंधों के संपूर्ण क्षेत्र का अध्ययन आ जाता है। इसके अध्ययन द्वारा सामाजिक जीवन में आने वाली बाधाओं को भली-भांति समझा जाता है और उनको दूर करने का व्यावहारिक प्रयास किया जाता है, ताकि व्यक्ति के व्यक्तित्व का समुचित एवं सर्वांगीण विकास हो सके। जब समाज में व्यक्ति को उचित एवं अनुकूल वातावरण मिलेगा तो वे निश्चित रूप में अपने-आपको अनुशासित एवं संगठित करने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार समाजशास्त्र अनुशासन बनाने में सहायता करता है।

प्रश्न 7.
सामाजिक संस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक संस्थाएँ वे संस्थाएँ होती हैं जो व्यक्ति में सामाजिक गुणों के विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं और उसे सामाजीकरण का ज्ञान प्रदान करती हैं।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से, व्यक्तियों में एक चुनी हुई दिशा में, परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है। अतः शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक) व्यक्तित्व का विकास होता है।

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प्रश्न 9.
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थी को इस प्रकार तैयार करना है कि वह एक सफल एवं स्वस्थ नागरिक बनकर अपने परिवार, समाज व राष्ट्र की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता या योग्यता उत्पन्न कर सके और समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनकर सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके।

प्रश्न 10.
शारीरिक शिक्षा में ग्रीस को महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
ग्रीस को शारीरिक शिक्षा का जन्मदाता माना जाता है। ग्रीस ने ही सर्वप्रथम शिक्षा में इस विषय को स्थान दिया है। ग्रीस के लोगों ने ही विश्व को खेलों का ज्ञान प्रदान किया। आज विश्व जो ओलंपिक खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करता है, वह ग्रीस की देन है। ग्रीसवासियों की खेलों में विशेष रुचि के कारण ही खेलों को शिक्षा में शामिल किया गया। इसी कारण शारीरिक शिक्षा में ग्रीस को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

प्रश्न 11.
सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक विरासत का अर्थ उचित परिवर्तनों के साथ मूल्यों, परंपराओं और प्रथाओं आदि का भूत से वर्तमान तक तथा वर्तमान से भविष्य में स्थानांतरण करना है। सांस्कृतिक विरासत प्रत्येक राष्ट्र का गर्व है। कुछ राष्ट्र शारीरिक गतिविधियों या क्रीड़ाओं को संस्कृति का रूप मानते हैं और कुछ सांस्कृतिक विरासत के रूप में देखते हैं। हमारे पूर्वज इन क्रियाओं में अपने बच्चों को निपुण बनाना अपना धर्म समझते थे और इन्हें जीवन का अभिन्न अंग मानते थे। इस प्रकार के प्रयास के कारण हमारे पूर्वज जो क्रियाएँ करते थे वे आधुनिक युग में किसी-न-किसी रूप में अभी भी प्रचलित हैं।

प्रश्न 12.
खेल व स्पर्धाओं में भाग लेने से नेतृत्व के गुणों का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। जब कोई खिलाड़ी या व्यक्ति किसी शारीरिक गतिविधि या खेल व स्पर्धा में भाग लेता है तो वह किसी प्रशिक्षक के नेतृत्व में खेल संबंधी नियम प्राप्त करता है। वह प्रशिक्षक से गतिविधि व स्पर्धा संबंधी सभी आवश्यक निर्देश प्राप्त करता है। इससे उसमें नेतृत्व के गुण विकसित होते हैं। कई बार प्रतियोगिताओं का प्रतिनिधित्व करना भी नेतृत्व के गुणों के विकास में सहायक होता है।

प्रश्न 13.
संस्कृति (Culture) किसे कहते हैं? अथवा संस्कृति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक पीढ़ी ने अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान व कला का अधिक-से-अधिक विकास किया है और नवीन ज्ञान व अनुभवों का भी अर्जन किया है। इस प्रकार के ज्ञान व अनुभव के अंतर्गत प्रथाएँ, विचार व मूल्य आते हैं, इन्हीं के संग्रह को संस्कृति कहा जाता है। रॉबर्ट बीरस्टीड के अनुसार, “संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है जिसमें वे सभी वस्तुएँ शामिल हैं जिन पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं।”

प्रश्न 14.
शारीरिक शिक्षा के मूलभूत सिद्धांत बताएँ।
उत्तर:
(1) समाजशास्त्रीय/सामाजिक सिद्धांत (Sociological Principles)।
(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धांत (Psychological Principles)।
(3) जैविक सिद्धांत (Biological Principles)।

प्रश्न 15.
समूह निर्माण के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) सामूहिक जीवन व वातावरण के विकास हेतु।
(2) व्यक्तिगत प्रशिक्षण की अपेक्षा सामूहिक गतिविधियों के माध्यम से बाधाओं को दूर करने हेतु।

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प्रश्न 16.
शारीरिक शिक्षा के द्वारा प्राप्त किए जाने वाले सामाजिक मूल्य बताइए।
उत्तर:
(1) नेतृत्व की भावना,
(2) अनुशासन की भावना,
(3) धैर्यता,
(4) सहनशीलता,
(5) त्याग की भावना,
(6) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार,
(7) आत्म-विश्वास की भावना,
(8) सामूहिक एकता,
(9) सहयोग की भावना,
(10) खेल-भावना।

प्रश्न 17.
समूह क्या है?
अथवा
समूह (Group) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समूह एक ऐसी सामाजिक अवस्था है जिसमें सभी इकट्ठे होकर कार्य करते हैं और अपने-अपने विचारों या भावनाओं को संतुष्ट करते हैं। इसके द्वारा एकीकरण, मित्रता, सहयोग व सहकारिता के विचारों को बढ़ावा मिलता है। समूह में समान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इकट्ठे होकर कार्य किया जाता है।

प्रश्न 18.
प्राथमिक समूह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राथमिक समूह वह पारिवारिक समूह है जिसमें भावनात्मक संबंध, घनिष्ठता, प्रेम-भाव प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसमें सशक्त सामाजीकरण, अच्छे चरित्र तथा आचरण का विकास होता है। इस समूह के सदस्य एक-दूसरे से अपनी गतिविधियों व संस्कृति संबंधी वार्तालाप करते हैं।

प्रश्न 19.
द्वितीयक समूह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
द्वितीयक समूह प्राथमिक समूह से अधिक विस्तृत होता है। यह एक ऐसा समूह है जिसमें अप्रत्यक्ष, प्रभावरहित, औपचारिक संबंध होते हैं। इस समूह में सम्मिलित सदस्यों में कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता। ऐसे समूहों में स्वार्थ-प्रवृत्तियाँ अधिक पाई जाती हैं।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

प्रश्न 20.
शारीरिक शिक्षा साम्प्रदायिकता को कैसे रोकने में सहायक होती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग-रूप, धर्म, वर्ग, समुदाय के भेदभाव को स्वीकार नहीं करती।साम्प्रदायिकता हमारे देश के लिए बहुत घातक है। शारीरिक शिक्षा इस खतरे को समाप्त कर राष्ट्र हित की ओर अग्रसर कर देती है। खिलाड़ी सभी बंधनों को तोड़कर एक राष्ट्रीय टीम में भाग लेकर अपने देश का नाम ऊँचा करते हैं। किसी प्रकार के देश विरोधी दंगों में नहीं पड़ते। शारीरिक शिक्षा लोगों में साम्प्रदायिकता की भावना को खत्म करके राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि करती है।

प्रश्न 21.
शारीरिक शिक्षा समूह के आपसी लगाव व एकता में कैसे सहायता करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा समूह के आपसी लगाव और एकता को बढ़ाने में मदद करती है। यदि एक टीम में आपसी संबंध या लगाव हो और एकता न हो तो उस टीम का खेल स्तर अच्छा होने पर भी, उसका जीतना मुश्किल होता है । शारीरिक शिक्षा से सामाजिक गुणों का विकास होता है और यही सामाजिक गुण आपसी संबंधों और एकता को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 22.
शारीरिक शिक्षा प्रान्तवाद या क्षेत्रवाद को कैसे रोकने में सहायक होती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा में प्रान्तवाद या क्षेत्रवाद का कोई स्थान नहीं है। जब कोई खिलाड़ी शारीरिक क्रियाएँ करता या कोई खेल खेलता है तो उस समय उसमें क्षेत्रवाद की कोई भावना नहीं होती। विभिन्न प्रान्तों या राज्यों के खिलाड़ी खेलते समय आपस में सहयोग करते हुए एक-दूसरे की भावनाओं का सत्कार करते हैं, जिससे उनमें राष्ट्रीय एकता की वृद्धि होती है। राष्ट्रीय एकता समृद्ध होती है और देश शक्तिशाली बनता है।

प्रश्न 23.
नेतृत्व (Leadership) से आप क्या समझते हैं?
अथवा
नेतृत्व की कोई दो परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि या विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करती है। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है।
1. मॉण्टगुमरी के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा तथा योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।”
2. ला-पियरे व फा!वर्थ के अनुसार, “नेतृत्व एक ऐसा व्यवहार है जो लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालता है, न कि लोगों के व्यवहार का प्रभाव उनके नेता पर।” ।

प्रश्न 24.
हमें एक नेता की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
नेता जनता का प्रतिनिधि होता है। वह सरकार या प्रशासन को लोगों की आवश्यकताओं व समस्याओं से अवगत करवाता है। वह लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयास करता है। एक नेता के माध्यम से ही जनता अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं समस्याओं के निवारण हेतु प्रयास करती है। इसलिए हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं समस्याओं के निवारण हेतु एक नेता की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 25.
सुनागरिक बनाने में शारीरिक शिक्षा का क्या योगदान है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा मनुष्य के शरीर, मन और बुद्धि तीनों का एक-साथ विकास करती है जो व्यक्ति के सुनागरिक बनने के लिए आवश्यक हैं। यह स्वाभाविक है कि शरीर के विकास के साथ-साथ मानसिक या बौद्धिक विकास भी होता है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से श्रेष्ठ विचारों की पूर्ति होती है। इसलिए शारीरिक शिक्षा एक अच्छे नागरिक के गुणों का विकास करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। मॉण्टेग्यू के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा न तो मस्तिष्क का और न ही शरीर का प्रशिक्षण करती है, बल्कि यह संपूर्ण . व्यक्ति का प्रशिक्षण करती है।”

प्रश्न 26.
एक अच्छे नेता का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
प्रत्येक समाज या देश के लिए एक अच्छा नेता बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि वह समाज और देश को एक नई दिशा देता है। अच्छे नेता में एक खास किस्म के गुण होते हैं जिनके कारण वह सभी को एकत्रित कर काम करने के लिए प्रेरित करता है। वह प्रशासन को लोगों की आवश्यकताओं से अवगत करवाता है।

HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 5 शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष

HBSE 12th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न] [Objective Type Questions]

भाग-I: एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
समाज क्या है?
उत्तर:
समाज सामाजिक संबंधों का एक जाल है।

प्रश्न 2.
मनुष्य को कैसा प्राणी कहा गया है?
अथवा
मनुष्य कैसा प्राणी है?
उत्तर:
मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा गया है।

प्रश्न 3.
‘समाजशास्त्र’ किस भाषा का शब्द है?
उत्तर:
‘समाजशास्त्र’ लैटिन भाषा का शब्द है।

प्रश्न 4.
‘समाजशास्त्र, समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।’ यह किसका कथन है?
उत्तर;
आई० एफ० वार्ड का।

प्रश्न 5.
जॉनसन द्वारा दी गई समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जॉनसन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है-सामाजिक समूह सामाजिक अंतःक्रियाओं की ही एक व्यवस्था है।”

प्रश्न 6.
“समाजशास्त्र का अतीत अत्यधिक लंबा है लेकिन इतिहास उतना ही छोटा है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन रॉबर्ट बीरस्टीड ने कहा।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र का पिता या जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
समाजशास्त्र का पिता या जनक ऑगस्ट कॉम्टे को कहा जाता है।

प्रश्न 8.
बच्चा सामाजीकरण का प्रथम पाठ कहाँ से सीखता है?
उत्तर:
बच्चा सामाजीकरण का प्रथम पाठ परिवार से सीखता है।

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प्रश्न 9.
‘डायनैमिक’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
‘डायनैमिक’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मैक्स वर्थीमर ने किया था।

प्रश्न 10.
डायनैमिक (Dynamic) शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर:
डायनैमिक (Dynamic) शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है।

प्रश्न 11.
क्या समाजशास्त्र अच्छे खिलाड़ी बनाने में सहायक है?
उत्तर:
हाँ, समाजशास्त्र अच्छे खिलाड़ी बनाने में सहायक है।

प्रश्न 12.
किस देश को बॉल गेम्स का जन्मदाता कहा जाता है?
उत्तर:
इंग्लैंड को बॉल गेम्स का जन्मदाता कहा जाता है।

प्रश्न 13.
बेसबॉल और वॉलीबॉल का प्रारंभ किस देश से हुआ?
उत्तर:
बेसबॉल और वॉलीबॉल का प्रारंभ अमेरिका से हुआ।

प्रश्न 14.
शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद से किस प्रकार के मूल्यों का विकास होता है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद से सामाजिक व नैतिक मूल्यों का विकास होता है।

प्रश्न 15.
कोई चार सामाजिक मूल्य बताइए।
उत्तर:
(1) धैर्य,
(2) सहयोग की भावना,
(3) बंधुत्व,
(4) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार।

प्रश्न 16.
“मजबूत शारीरिक नींव के बिना कोई राष्ट्र महान् नहीं बन सकता।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन डॉ० राधाकृष्णन का है।

प्रश्न 17.
“शरीर के लिए जिम्नास्टिक तथा आत्मा के लिए संगीत का विशेष महत्त्व है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन प्लेटो ने कहा।

प्रश्न 18.
मनुष्य में पाई जाने वाली मूल प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
(1) शिशु रक्षा,
(2) आत्म प्रदर्शन,
(3) सामूहिकता।

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प्रश्न 19.
समूह की सबसे छोटी इकाई कौन-सी है?
उत्तर:
समूह की सबसे छोटी इकाई परिवार है।

प्रश्न 20.
“समाज के बिना मनुष्य पशु है या देवता।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन अरस्तू का है।

प्रश्न 21.
एक राष्ट्र कैसी संस्था है?
उत्तर:
सामाजिक संस्था।

प्रश्न 22.
उन शक्तियों को क्या कहते हैं जो एक समूह के अंदर कार्य करती हैं?
उत्तर:
समूह की गतिशीलता।

प्रश्न 23.
परिवार कैसी संस्था है?
उत्तर:
सामाजिक संस्था

प्रश्न 24.
नेता का प्रमुख गुण क्या होना चाहिए?
उत्तर:
नेता का प्रमुख गुण ईमानदारी एवं कर्मठता होना चाहिए।

प्रश्न 25.
समूह कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
समूह दो प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 26.
सन् 1961 में राष्ट्रीय खेल संस्था कहाँ स्थापित की गई?
उत्तर:
सन् 1961 में राष्ट्रीय खेल संस्था पटियाला में स्थापित की गई।

प्रश्न 27.
Y.M.C.A. की स्थापना किसने और कहाँ की थी?
उत्तर:
Y.M.C.A. की स्थापना शारीरिक शिक्षा के भारतीय प्रचारक श्री एच०सी० बँक ने चेन्नई में की थी।

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प्रश्न 28.
सामाजिक संगठनों का आधार क्या है?
उत्तर:
सामाजिक संगठनों का आधार परिवार है।

प्रश्न 29.
“समाजशास्त्र को चिंतनशील जगत् का बच्चा माना जाता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन मिचेल का है।

प्रश्न 30.
व्यक्ति का व्यक्तित्व किन पक्षों पर आधारित है?
उत्तर:
(1) शारीरिक पक्ष,
(2) मानसिक पक्ष,
(3) सामाजिक पक्ष।

प्रश्न 31.
किस देश ने जिम्नास्टिक पर बल दिया था?
उत्तर:
जर्मनी ने जिम्नास्टिक पर बल दिया था।

प्रश्न 32.
Y.M.C.A. कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
चेन्नई में।

प्रश्न 33.
Y.M.C.A. का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Young Men’s Christian Association.

प्रश्न 34.
खेलों द्वारा किस विशाल भावना का विकास होता है?
उत्तर:
खेलों द्वारा विश्व-शक्ति एवं बंधुत्व की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 35.
विद्यालय कैसी संस्था है?
उत्तर:
सामाजिक संगठन।

प्रश्न 36.
व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
(1) परिवार,
(2) समाज,
(3) मित्र-मण्डली,
(4) सामाजिक वातावरण।

प्रश्न 37.
घर, परिवार, विद्यालय व महाविद्यालय किस प्रकार के संगठन हैं?
उत्तर:
घर, परिवार, विद्यालय व महाविद्यालय सामाजिक संगठन हैं।

प्रश्न 38.
खेलों द्वारा विकसित होने वाले कोई दो गुण लिखें।
उत्तर:
(1) आत्म-विश्वास,
(2) धैर्यता।

प्रश्न 39.
परिवार किसके सिद्धान्त पर आधारित है?
उत्तर:
परिवार सामाजीकरण (Socilaization) के सिद्धान्त पर आधारित है।

प्रश्न 40.
वे गुण क्या हैं जो खेलकूद द्वारा प्राप्त किए जाते हैं?
उत्तर:
सामाजिक एवं नैतिक गुण। ।

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भाग-II: सही विकल्प का चयन करें

1. ‘समाजशास्त्र’ किस भाषा का शब्द है?
(A) फ्रैंच भाषा का
(B) अंग्रेजी भाषा का
(C) लैटिन भाषा का
(D) जर्मन भाषा का
उत्तर:
(C) लैटिन भाषा का

2. “समाजशास्त्र का अतीत अत्यधिक लंबा है लेकिन इतिहास उतना ही छोटा है।” यह कथन किसने कहा?
(A) मैकाइवर ने
(B) रॉबर्ट बीरस्टीड ने
(C) मिचेल ने
(D) ऑगस्ट कॉम्टे ने
उत्तर:
(B) रॉबर्ट बीरस्टीड ने

3. “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन अथवा समाज दृष्टि का विज्ञान है” यह कथन है
(A) डेविड पोर्ट का
(B) स्टालिन का
(C) मैक्स वेबर का
(D) आई० एफ० वार्ड का
उत्तर:
(D) आई० एफ० वार्ड का

4. समाजशास्त्र का पिता किसे कहा जाता है?
(A) मिचेल को
(B) ऑगस्ट कॉम्टे को
(C) मैकाइवर व पेज को
(D) रॉबर्ट बीरस्टीड को
उत्तर:
(B) ऑगस्ट कॉम्टे को

5. खेलों द्वारा किस विशाल भावना का विकास होता है?
(A) राष्ट्रीय भावना का
(B) स्थानीय भावना का
(C) अंतर्राष्ट्रीय भावना का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अंतर्राष्ट्रीय भावना का

6. जिम्नास्टिक के साथ संगीत पद्धति द्वारा चिकित्सा प्रणाली का जन्म किस देश में हुआ?
(A) स्वीडन और डेनमार्क में
(B) यूनान में
(C) इंग्लैंड में
(D) अमेरिका में
उत्तर:
(A) स्वीडन और डेनमार्क में

7. अमेरिका ने हमें किन खेलों का ज्ञान दिया?
(A) बास्केटबॉल का
(B) बेसबॉल का
(C) वॉलीबॉल का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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8. व्यक्ति का व्यक्तित्व किन पक्षों पर आधारित है?
(A) शारीरिक पक्ष पर
(B) मानसिक पक्ष पर
(C) सामाजिक पक्ष पर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. रूस द्वारा ओलंपिक खेलों के आयोजन के समय किस देश ने बहिष्कार किया था?
(A) जापान ने
(B) अमेरिका तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों ने
(C) स्वीडन ने
(D) हॉलैंड ने
उत्तर:
(B) अमेरिका तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों ने

10. उन शक्तियों को क्या कहते हैं जो एक समूह के अंदर कार्य करती हैं?
(A) सामूहिकता
(B) समूह
(C) समूह की गतिशीलता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समूह की गतिशीलता

11. समूह के कितने प्रकार होते हैं?
(A) चार
(B) दो
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर:(B) दो

12. “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है-सामाजिक समूह सामाजिक अंतःक्रियाओं की ही एक व्यवस्था है।” यह कथन किसने कहा?
(A) जॉनसन ने
(B) फा!वर्थ ने
(C) ला-पियरे ने
(D) मॉण्टगुमरी ने
उत्तर:
(A) जॉनसन ने

13. ‘समाजशास्त्र’ की उत्पत्ति ऑगस्ट कॉम्टे द्वारा की गई
(A) वर्ष 1838 में
(B) वर्ष 1850 में
(C) वर्ष 1938 में
(D) वर्ष 1950 में
उत्तर:(A) वर्ष 1838 में

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14. सामाजीकरण की प्रक्रिया में निम्नलिखित पक्ष सम्मिलित होते हैं
(A) जीव रचना
(B) समाज
(C) व्यक्ति
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

15. समाजशास्त्र का अर्थ है
(A) व्यक्ति का अध्ययन
(B) समाज का वैज्ञानिक अध्ययन
(C) समाज का आर्थिक अध्ययन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समाज का वैज्ञानिक अध्ययन

16. बॉलगेम्स का जन्मदाता किसे कहा जाता है?
(A) स्वीडन को
(B) इंग्लैंड को
(C) डेनमार्क को
(D) अमेरिका को
उत्तर:
(B) इंग्लैंड को

17. बच्चा सामाजीकरण का प्रथम पाठ कहाँ से सीखता है?
(A) विद्यालय से
(B) महाविद्यालय से
(C) मठ से
(D) परिवार से
उत्तर:
(D) परिवार से

18. सामाजीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है
(A) आध्यात्मिक शिक्षा
(B) शारीरिक शिक्षा
(C) मनोवैज्ञानिक शिक्षा
(D) यौन शिक्षा
उत्तर:
(B) शारीरिक शिक्षा

19. ‘डाइनैमिक्स’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया
(A) चार्ल्स कूले ने
(B) बरदँड रसल ने
(C) मैक्स वर्थीमर ने
(D) जॉनसन ने
उत्तर:
(C) मैक्स वर्थीमर ने

20. ‘डाइनैमिक्स’ (Dynamic) शब्द किस भाषा से लिया गया है?
(A) ग्रीक भाषा से
(B) जर्मन भाषा से
(C) फ्रैंच भाषा से
(D) अंग्रेजी भाषा से
उत्तर:
(A) ग्रीक भाषा से

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21. ‘डाइनैमिक्स’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
(A) ऊर्जा
(B) परिवर्तन
(C) शक्ति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शक्ति

22. सन् 1961 में राष्ट्रीय खेल संस्था कहाँ स्थापित की गई?
(A) पटियाला में
(B) ग्वालियर में
(C) चेन्नई में
(D) दिल्ली में
उत्तर:
(A) पटियाला में

23. “समाजशास्त्र को चिंतनशील जगत् का बच्चा माना जाता है।” यह कथन है-
(A) मैकाइवर का
(B) मिचेल का
(C) जॉनसन का
(D) रॉबर्ट बीरस्टीड का
उत्तर:
(B) मिचेल का

24. मनुष्य में पाई जाने वाली मूल प्रवृत्तियाँ हैं
(A) शिशु रक्षा
(B) आत्म प्रदर्शन
(C) सामूहिकता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

25. सामाजिक संबंधों का जाल क्या कहलाता है?
(A) समाज
(B) परिवार
(C) समुदाय
(D) समूह
उत्तर:
(A) समाज

26. “समाज के बिना मनुष्य पशु है या देवता।” ये शब्द किसके हैं?
(A) अरस्तू
(B) रोजर
(C) थॉमस
(D) वुड्स
उत्तर:
(A) अरस्तू

27. Y.M.C.A. कहाँ पर स्थित है?
(A) कोलकाता में
(B) चेन्नई में
(C) नई दिल्ली में
(D) चण्डीगढ़ में
उत्तर:
(B) चेन्नई में

28. सामाजिक संगठन है
(A) परिवार
(B) धार्मिक व शैक्षणिक संस्थाएँ
(C) राष्ट्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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29. घर, परिवार, विद्यालय व महाविद्यालय किस प्रकार के संगठन हैं?
(A) आर्थिक संगठन
(B) सामाजिक संगठन
(C) राजनैतिक संगठन
(D) भावनात्मक संगठन
उत्तर:
(B) सामाजिक संगठन

30. स्कूल/विद्यालय कैसी संस्था है?
(A) व्यक्तिगत
(B) राजनीति
(C) सामाजिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सामाजिक

भाग-III: रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. ……………….. के अनुसार समाजशास्त्र को चिंतनशील जगत् का बच्चा माना जाता है।
2. समाजशास्त्र का पिता या जनक ……………….. को माना जाता है।
3. “शारीरिक शिक्षा शरीर का एक मजबूत ढाँचा है जो मस्तिष्क के कार्य को निश्चित तथा आसान करता है।” यह कथन ………………. ने कहा।
4. Y.M.C.A. की स्थापना ……………….. ने की।
5. “शरीर के लिए जिम्नास्टिक तथा आत्मा के लिए संगीत का विशेष महत्त्व है।” यह कथन ……………….. ने कहा।
6. समूह की सबसे छोटी इकाई ……….
7. “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा तथा योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।” यह कथन
……………….. ने कहा।
8. सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप से अध्ययन करने वाले विज्ञान को ……………….. कहते हैं।
9. मनुष्य एक ……………….. प्राणी है।
10. सामाजीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन ……………….. है।
11. सामाजिक संगठनों का आधार ………………… है।
12. खेलों के मूल उद्देश्यों ने रोमवासियों की ……………….. गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
उत्तर:
1. मिचेल
2. ऑगस्ट कॉम्टे
3. रूसो
4. श्री एच०सी० बॅक
5. प्लेटो
6. दंपति
7. मॉण्टगुमरी
8. समाजशास्त्र
9. सामाजिक
10. शारीरिक शिक्षा
11. परिवार
12. खेल।

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शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष Summary

शारीरिक शिक्षा के सामाजिक पक्ष परिचय

प्राचीनकाल में विचारों के आदान-प्रदान का सर्वव्यापी माध्यम शारीरिक गतिविधियाँ व शारीरिक अंगों का हाव-भाव होता था। आदि-मानव शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से ही अपने बच्चों को शारीरिक शिक्षा देते थे, क्योंकि प्राचीनकाल में शारीरिक शिक्षा लोगों के जीवित रहने के लिए आवश्यक मानी जाती थी। शारीरिक शिक्षा पर सबसे अधिक बल यूनान ने दिया। सुकरात, अरस्तू व प्लेटो जैसे महान् दार्शनिकों का विचार था कि शारीरिक प्रशिक्षण युवाओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जो वैयक्तिक जीवन को समृद्ध बनाने में प्रेरक व सहायक सिद्ध होती है। यह शारीरिक विकास के साथ शुरू होती है और मानव-जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वह एक हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक संतुलन रखने वाला व्यक्ति बन जाता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार की चुनौतियों अथवा मुश्किलों से प्रभावी तरीके से लड़ने में सक्षम होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यह जन्म से मृत्यु तक अपने ही जैसे आचार-विचार रखने वाले जीवों के बीच रहता है। सामाजीकरण की सहायता से वह अपनी पशु-प्रवृत्ति से ऊपर उठकर सभ्य मनुष्य का स्थान ग्रहण करता है। अतः सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपने समुदाय का सक्रिय सदस्य बनकर उसकी परंपराओं का पालन करता है एवं स्वयं को सामाजिक वातावरण के अनुरूप ढालना सीखता है।

शारीरिक शिक्षा सामाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विद्यार्थी खेल के मैदान में अपनी टीम के हितों को सम्मुख रखकर खेल के नियमों का भली-भाँति पालन करते हुए खेलने की कोशिश करता है। वह पूरी लगन से खेलता हुआ अपनी टीम को विजय-प्राप्ति के लिए पूर्ण सहयोग प्रदान करता है। वह हार-जीत को एक-समान समझने के योग्य हो जाता है और उसमें सहनशीलता व धैर्यता का गुण विकसित होता है। इतना ही नहीं, प्रत्येक पीढ़ी आगामी पीढ़ियों के लिए खेल संबंधी कुछ नियम व परंपराएँ छोड़ जाती है, जो विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के माध्यम से परिचित करवाई जाती हैं। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा व खेलें व्यक्ति के सामाजीकरण में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

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