Class 11

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 13 उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 13 उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 13 उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. ऑक्सीकीय फॉस्फेटीकरण होता है-
(A) क्लोरोप्लास्ट में
(B) माइटोकॉण्ड्रिया में
(C) परऑक्सीसोम में
(D) सेन्ट्रिओल में
उत्तर:
(B) माइटोकॉण्ड्रिया में

2. जब ATP ADP में परिवर्तित होता है तो-
(A) ऊर्जा निकलती है।
(B) ऊर्जा शोषित होती है
(C) विकर बनता है।
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(A) ऊर्जा निकलती है।

3. ऑक्सीजन के EMP पथ के मध्य कुल ATP का उत्पादन होता है-
(A) 24 ATP
(B) 8 ATP
(C) 38 ATP
(D) 6 ATP
उत्तर:
(B) 8 ATP

4. सुमेलित करके सही कूट चुनिए –

1. C4 चक्र के प्रतिपादनकर्ता(a) बारवर्ग
2. फोटोफॉस्फोरिलेशन के खोजकर्ता(b) ब्लैकमेन
3. C3 चक्र के प्रतिपादनकर्ता(c) केल्विन व बेन्सन
4. सीमाकारक नियम के प्रस्तुतकर्ता(d) आर्नन
5. क्लोरेला पर प्रयोग(e) हैच व स्लैक

कूट
(A) 1 (a), 2. (b), 3. (c), 4. (d), 5. (e)
(B) 1. (e), 2. (d), 3. (c), 4. (b), 5. (a)
(C) 1. (a), 2. (b), 3. (e), 4. (d), 5. (c)
(D) 1. (c), 2. (b), 3. (d), 4. (a), 5. (e)
उत्तर:
(B) 1. (e), 2. (d), 3. (c), 4. (b), 5. (a)

5. कौन-सा युग्म सही नहीं है ?
(A) C3 – मक्का
(B) केल्विन चक्र – PGA
(C) हैच- स्लेक चक्र – OAA
(D) C4 – ब्रॉन्ज शारीरिकी
उत्तर:
(A) C3 – मक्का

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6. केरोटीन पौधों को बचाता
(A) प्रकाश ऑक्सीकरण से
(B) निर्जलीकरण से
(C) प्रकाश श्वसन से
(D) प्रकाश संश्लेषण से
उत्तर:
(C) प्रकाश श्वसन से

7. कौन- इलेक्ट्रॉन संवहन में भाग नहीं लेता है-
(A) CO2
(B) Fa-S
(C) ATP
(D) NAD+
उत्तर:
(C) ATP

8. कौन-सा C4 पौधा है-
(A) प्याज
(B) चौलाई
(C) आलू
(D) सरसों
उत्तर:
(B) चौलाई

9. प्रकाश तंत्र-1 में पहला इलेक्ट्रॉन पाही है-
(A) एक- आयरन सल्फर प्रोटीन
(B) फैरोडॉक्सिन
(C) साइटोक्रोम
(D) प्लास्टोसायनिन
उत्तर:
(A) एक- आयरन सल्फर प्रोटीन

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10. प्रकाश संश्लेषण में O निकलती है-
(A) CO2 से
(C) जल से
(B) ATP से
(D) भोजन से
उत्तर:
(C) जल से

11. ग्लूकोज के संश्लेषण में आवश्यक हाइड्रोजन का स्रोत है –
(A) NADPH2
(B) FADH2
(C) H2O
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) NADPH2

12. मण्ड संचित करने वाला लवक होता है-
(A) एमाइलोप्लास्ट
(B) ल्यूकोप्लास्ट
(C) क्लोरोप्लास्ट
(D) क्रोमोप्लास्ट
उत्तर:
(B) ल्यूकोप्लास्ट

13. सूर्य की ऊर्जा किस रूप में रासायनिक ऊर्जा में संचित होती है ?
(A) ATP
(B) RNA
(C) DNA
(D) खाद्य रूप में
उत्तर:
(A) ATP

14. प्रकाश संश्लेषण की दर सर्वाधिक होती है-
(A) लाल प्रकाश में
(B) नीले प्रकाश में
(C) अवरक्त प्रकाश में
(D) हरे प्रकाश में
उत्तर:
(A) लाल प्रकाश में

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15. DCMU
(A) ऑक्सीजन को मुक्त होने से रोकता है।
(B) ऑक्सीजन का मुक्त होना उद्दीपित करता है।
(C) CO2 का स्थिरीकरण निरुद्ध करता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ऑक्सीजन को मुक्त होने से रोकता है।

16. केल्विन चक्र पाया जाता है-
(A) क्लोरोप्लास्ट में
(B) माइटोकॉन्ड्रिया में
(C) गॉल्सीका में
(D) केन्द्रक में
उत्तर:
(A) क्लोरोप्लास्ट में

17. प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश-
(A) पत्ती को गर्म करता है
(B) इलेक्ट्रॉनों को ऊर्जा देता है
(C) ATP में संचित होता है
(D) जल अपघटन करता है
उत्तर:
(D) जल अपघटन करता है

18. प्रकाश कर्म-11 में होता है –
(A) CO2 स्थिरीकरण
(B) CO2 अपचयन
(C) HO2 विखण्डन
(D) ये सभी
उत्तर:
(B) CO2 अपचयन

19. वॉयलेकॉइड होते हैं-
(A) माइटोकॉण्ड्रिया में
(B) हरित लवक में
(C) गॉल्जीकार्य में
(D) तारक काय में
उत्तर:
(B) हरित लवक में

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20. प्रकाश संश्लेषण में प्रमुख सीमाकारी है-
(A) जल
(B) O2
(C) CO2
(D) N2
उत्तर:
(C) CO2

21. प्रकाश कर्म-1 में अभिक्रिया केन्द्र है-
(A) P-680
(B) P – 700
(C) P-650
(B) P – 700
(D) P-670
उत्तर:
(B) P – 700

22. O18 का प्रयोग करके किसने बताया कि O2 जल से निकलती है-
(A) केल्विन तथा बेन्सन ने
(B) इमर्सन तथा अरनॉल्ड ने
(C) हिल तथा बेहाल ने
(D) रुबेन तथा कामेन ने
उत्तर:
(D) रुबेन तथा कामेन ने

23. क्लोरोफिल ‘ए’ का सूत्र है-
(A) C55 H70O6N4 Mg
(B) C55 H72O5N4 Mg
(C) C55 H48O2N4 Mg
(D) C55 H70O5N6 Mg
उत्तर:
(B) C55 H72O5N4 Mg

24. प्रकाशीय क्रिया के दौरान नहीं होता है-
(A) जल का प्रकाशीय अपघटन
(B) H की विमुक्ति
(C) O2 की विमुक्ति
(D) इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण
उत्तर:
(D) इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण

25. फोटोसिस्टम-11 में उपयोग होने वाले आयन है-
(A) Mn+ और Cl
(B) Mg+2 और NO
(C) Fe++ और Cl
(D) K+ और Na+
उत्तर:
(A) Mn+ और Cl

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26. हरित लवक में NADPH2 का निर्माण किस समय होता है ?
(A) अचक्रीय प्रकाशीय फॉस्फोरिलेशन
(B) चक्रीय प्रकाशीय फॉस्फोरिलेशन
(C) ऑक्सकीय फॉस्फोरिलेशन
(D) सबस्ट्रेट लेबल फॉस्फोरिलेशन
उत्तर:
(B) चक्रीय प्रकाशीय फॉस्फोरिलेशन

27. प्रकाश संश्लेषण में प्रथम CO2 पाही है-
(A) फॉस्फोरिक अम्ल
(B) राहबुलोज फॉस्फेट
(C) ग्लूकोज
(D) राहबुलोज 1, 5-बाइफॉस्फेट
उत्तर:
(D) राहबुलोज 1, 5-बाइफॉस्फेट

28. केल्विन चक्र की खोज में प्रयोग किया गया था-
(A) स्पाइरोगाइरा
(C) क्लेमाइडोमोनास
(B) वॉलवॉक्स
(D) क्लोरेला
उत्तर:
(D) क्लोरेला

29. C4 पौधों में CO2 का प्रथम प्राही है-
(A) फॉस्फोइनोल पाइरुवेट
(B) रिबुलोज-1, 5-बाईफॉस्फेट
(C) आक्सेलोएसीटिक एसिड
(D) फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल
उत्तर:
(A) फॉस्फोइनोल पाइरुवेट

30. प्रकाश संश्लेषण के दौरान –
(A) उत्पन्न O2 CO2 से आती है
(B) ATP बनते हैं
(C) ATP नहीं बनते हैं
(D) H2O माध्यम आवश्यक है किन्तु प्रकाश संश्लेषण में भाग नहीं लेता
उत्तर:
(B) ATP बनते हैं

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31. C4 पाया जाता है-
(A) अंजीर में
(B) आम में
(C) गन्ना में
(D) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर:
(C) गन्ना में

32. RuBP पाया जाता है –
(A) ETS में
(B) केल्विन चक्र में
(C) C, पौधे में
(D) फ्रेम में
उत्तर:
(B) केल्विन चक्र में

33. प्रकाश श्वसन के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ हैं-
(A) अधिक O2 तथा कम CO2
(B) कम O2 तथा अधिक CO2
(C) अधिक तापमान तथा अधिक CO2
(D) अधिक आईता तथा कम तापमान
उत्तर:
(A) अधिक O2 तथा कम CO2

34. गन्ना CO2 स्थिरीकरण की उच्च दक्षता दर्शाता है क्योंकि होता है –
(A) केल्विन चक्र
(B) हैच-स्लैक चक्र
(C) TCA
(D) उच्च सूर्य प्रकाश
उत्तर:
(B) हैच-स्लैक चक्र

35. क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल स्थित होते हैं-
(A) बाह्य झिल्ली में।
(B) आन्तरिक झिल्ली में
(C) पॉयलेॉइड में
(D) स्ट्रोमा में
उत्तर:
(C) पॉयलेॉइड में

36. C4 पादपों में प्रकाश-संश्लेषण वातावरणीय CO2 के कारण अन्य सीमित होता है क्योंकि –
(A) CO2 बंडलाच्छद कोशिका में प्रभावी पम्पिंग
(B) C4 पौधों में रुविस्को को CO2 के प्रति उच्च बन्धुता
(C) CO2 स्थिरीकरण का प्राथमिक उत्पाद 4 कार्बन यौगिक
(D) CO2 का प्राथमिक स्थिरीकरण PEP के मध्यस्थ होकर
उत्तर:
(D) CO2 का प्राथमिक स्थिरीकरण PEP के मध्यस्थ होकर

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37. C4 पादपों में CO2 स्थिर करने वाला एन्जाइम है-
(A) PEP कार्बोक्सिले
(C) RuBP ऑक्सिलेज
(B) RuBP कार्बोक्सिलेज
(D) लाइगेज
उत्तर:
(D) लाइगेज

38. प्रकाश संश्लेषण के लिए ऊर्जा को कौन-सा पदार्थ ग्रहण करता है ?
(A) पर्णहरित
(B) जल का अणु
(C) O2
(D) RUBP
उत्तर:
(A) पर्णहरित

39. सीमाकारी कारकों का नियम किसने दिया-
(A) लीबिग
(B) ब्लैकमैन ने
(C) केल्विन ने
(D) आर्नन ने
उत्तर:
(B) ब्लैकमैन ने

40. प्रकाश कर्म-II के उत्तेजित क्लोरोफिल अणु से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन का प्रथम ग्राही है-
(A) सायटोक्रोम
(B) आयरन-सल्फर प्रोटीन
(C) फैरीडॉक्सिन
(D) क्वीनोन
उत्तर:
(D) क्वीनोन

41. उच्च पादपों में हरित लवक के स्ट्रोमा में उपस्थित होते हैं-
(A) प्रकाश-स्वतन्त्र अभिक्रिया के एन्जाइम
(B) प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया के एन्जाइम
(C) राइबोसोम
(D) पर्णहरिम
उत्तर:
(A) प्रकाश-स्वतन्त्र अभिक्रिया के एन्जाइम

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42. चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण द्वारा निर्मित होते हैं-
(A) NADPH
(B) ATP तथा NADPH
(C) ATP, NADPHO2
(D) ATP.
उत्तर:
(D) ATP.

43. C3 पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रिया का प्रथम स्थाई उत्पाद है-
(A) PGAL
(B) RuBP
(C) PGA
(D) OAA.
उत्तर:
(C) PGA

44. चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण ह्षोता है-
(A) प्रकाश तन्न्र-I में
(B) प्रकाश तन्त्र-II में
(C) A तथा B दोनों में
(D) केल्विन-चक्र में।
उत्तर:
(A) प्रकाश तन्न्र-I में

45. क्राँज शरीरिकी (Kranz anatomy) अभिलक्षण है-
(A) जलोद्भिदों का
(B) मरुद्भिदों का
(C) C3 पादपों का
(D) C4 पादपों का।
उत्तर:
(D) C4 पादपों का।

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46. निम्नलिखित में से किसमें प्रकाश-संश्लेषण के दौरान प्रथम CO2 स्थिरीकरण उत्पाद के रूप में PGA की खोज की गई-
(A) बायोफाइटा
(B) अनावृतबीजी
(C) आवृतबीजी
(D) शैवाल।
उत्तर:
(D) शैवाल।

47. कैम (CAM) पौधों की सहायता करता है –
(A) द्वितीयक वृद्धि में
(B) रोग प्रतिरोधकता में
(C) प्रजनन में
(D) जल संरक्षण में।
उत्तर:
(D) जल संरक्षण में।

48. कुल और विकिरण में PAR अनुपात होता है-
(A) लगभग 60 %
(B) 50 % से कम
(C) 80% से अधिक
(D) लगभग 70%
उत्तर:
(B) 50 % से कम

49. प्रकाश-संश्लेषण में प्रथम अभिक्रिया होती है-
(A) जल का प्रकाश अपघटन
(B) पर्णहरिम अणु का उत्तेजन
(C) ATP का निर्माण
(D) CO2 का स्थिरीकरण
उत्तर:
(B) पर्णहरिम अणु का उत्तेजन

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50. हरित लवक के स्ट्रोमा लैमेली में प्रकाश अभिक्रिया के फलस्वसूप निर्मित होता है-
(A) NADPH2
(B) ATP, NADPHN2
(C) ATP
(D) O2
उत्तर:
(B) ATP, NADPHN2

51. प्रकाश-श्वसन निम्नलिखित पौधों का अभिलक्षण है-
(A) C3-पादप
(B) C4-पादप
(C) वायवीय श्वसन करने वाले पादप
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(A) C3-पादप

52. C3 तथा C4 पादपों के मध्य महत्वपूर्ण अन्तर करने वाली प्रक्रिया है-
(A) वाष्पोत्सर्जन
(B) ग्लाइकोलाइसिस
(C) प्रकाश संश्लेषण
(D) प्रकाश-श्वसन
उत्तर:
(D) प्रकाश-श्वसन

53. प्रकाश-श्वसन के दौरान कोशिकांगों का सही क्रम है-
(A) हरितलवक-गाल्जीकाय-माइटोकॉण्ड्रिया
(B) हरितलवक-रुक्ष अन्तःप्रद्रव्यी जालिका-डिक्टियोसोम्स
(C) हरितलवक-माइटोकॉण्ड्रिया-परॉक्सीसोम्स
(D) हरितलवक-रिक्तिका-परॉक्सीसोम्स
उत्तर:
(C) हरितलवक-माइटोकॉण्ड्रिया-परॉक्सीसोम्स

54. आरेख में दिए गए तीन कक्ष तीन मुख्य जैव संश्लेषण मार्गकों को निरूपित करते हैं। तीर सकल अभिकारक या उत्याद को निरूपित कसते हैं।
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4,8 और 12 संख्यांकित तीर क्या हो सकते हैं ?
(A) NADH
(B) ATP
(C) H2O
(D) FAD+ या FADH2
उत्तर:
(B) ATP

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55. अनॉक्सी प्रकाश संश्लेषण किसका अभिलधे है?
(A) स्पाइरोगाइरा
(B) क्लेमाइडोमोनास
(C) अल्वा
(D) रोडोस्पाइरिलम।
उत्तर:
(D) रोडोस्पाइरिलम।

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer type Quesitons)

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण सम्बन्धी शोध में प्रयुक्त शैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर:
डार क्लोरेला (Chlorella)

प्रश्न 2.
ऐसे स्वपोषी जीव का नाम बताइए जिसमें हरित लवक नहीं पाया
उत्तर:
सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria)

प्रश्न 3.
कॉज शारीरिकी किन पौधों में पायी जाती है ?
उत्तर:
C, पौधों में

प्रश्न 4.
C. चक्र को किसने प्रस्तावित किया ?
उत्तर:
एम. डी. हेच तथा सौ. आर. स्लैक ने

प्रश्न 5.
प्रकाशिक अभिक्रिया की 2 स्कीम किसने प्रस्तुत की ?
उत्तर:
रोबिन हिल एवं बेन्डाल (R. Hill & Bendall 1960) ने

प्रश्न 6.
हरित लवक के किस भाग में प्रकाश अभिक्रिया होती है ?
उत्तर:
मेना (Grana) में।

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प्रश्न 7.
हरित लवक के किस भाग में अन्धकार अभिक्रिया होती है ?
उत्तर:
स्ट्रोमा (Stroma) में।

प्रश्न 8.
प्रकाश अभिक्रिया के दोनों प्रक्रमों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रकाशकर्म-1 तथा प्रकाशकर्म-II ।

प्रश्न 9.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें रात्रि में रन्ध खुलते हैं ?
उत्तर:
नागफनी (Opuntia) तथा अगेव (Agave)

प्रश्न 10.
प्रकाश अनिर्भर अभिक्रिया के लिए ऊर्जा कहाँ से आती है ?
उत्तर:
प्रकाश अभिक्रिया में उत्पन्न ATP से।

प्रश्न 11.
हिल अभिक्रिया के तीन उत्पादों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन, ATP तथा NADPH,

प्रश्न 12.
क्वांटम लब्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अवशोषित प्रकाश की प्रति क्वांटा में विमोचित ऑक्सीजन अणुओं की संख्या क्वांटम लब्धि (Quantum yield) कहलाती है।

प्रश्न 13.
NADP का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
निकोटिनामाइड एडीनीन डाह न्यूक्लियोटाइड फॉस्फेट

प्रश्न 14.
C पौधों में CO2 माही कौन होता है ?
उत्तर:
रियुलोज वा फॉस्फेट ( RUBP)।

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प्रश्न 15.
C2 पौधों में CO2 पाही कौन होता है ?
उत्तर:
फास्फोइनोल पाइरुविक अम्ल (PEP)। प्रश्न 16. किन्हीं दो C, पौधों के नाम लिखिए। उत्तर—गन्ना, मक्का ।

प्रश्न 17.
CAM चक्र किन पौधों में पाया जाता है ?
उत्तर:
मांसल पौधों में।

प्रश्न 18.
किसी प्रकाश संश्लेषी जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लोरोबियम (Chlorobium) ।

प्रश्न 18.
वायुमण्डल में गैसीय CO का सान्द्रण कितना होता है ?
उत्तर:
0.039% से 0.04% 1

प्रश्न 20.
जलीय पौधे किस रूप में सामान्य सतह से कार्बन का अवशोषण करते हैं ?
उत्तर:
बाइकार्बोनेट्स ।

प्रश्न 21.
जन्तुओं तथा मनुष्यों में कौन-सा वर्णक विटामिन A में बदलता
उत्तर:
B-कैरोटिन।

प्रश्न 22.
उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो राज्युलोस-1, 5-बाइफॉस्फेट को 3- फॉस्फोलिसारिक अम्ल तथा 2- फॉस्फोग्लाइकोलिक अम्ल में तोड़ता है।
उत्तर:
राइबुलोस बाइफॉस्फेट ऑक्सीजनेस ।

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प्रश्न 23.
प्रकाश संश्लेषण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सीमाकारी कारक कौन सा है ?
उत्तर:
कार्बन डाइ ऑक्साइड।

प्रश्न 24.
केल्विन चक्र में कौन-सा यौगिक कार्बोहाइड्रेट को हाइड्रोजन दान करता है ?
उत्तर:
NADPH

प्रश्न 25.
C4 चक्र में प्रथम स्थायी उत्पाद कौन सा होता है ?
उत्तर:
ऑक्सेलो ऐसीटिक अम्ल ।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न-1 (Short Answer Type Questions-I)

प्रश्न 1.
प्रकाश का गुण किस प्रकार प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करता है ?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषी वर्णक दृश्य स्पैक्ट्रम की तरंगदैर्धा (400 mp-800mji) को अवशोषित कर सकते हैं हरे पौधों में लाल प्रकाश में अधिकतम प्रकाश संश्लेषण होता है लाल शैवालों में अधिकतम प्रकाश संश्लेषण नीले प्रकाश में होता है।

प्रश्न 2.
रेड ड्राप किसे कहते हैं ?
उत्तर:
रॉबर्ट इमर्सन (Robert Emerson) ने पता लगाया कि जब पौधों को 680 m से अधिक की तरंगदैर्ध्य (लाल रंग) दी जाती है, तब क्वांटम लब्धि में कमी आ जाती है, इसे रेड ड्राप (Red drop) कहते हैं।

प्रश्न 3.
सोलेराइजेशन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अत्यधिक तीव्र प्रकाश में पर्णहरित (Chlorophylli) का प्रकाशीय ऑक्सीकरण होने लगता है, इस स्थिति को सोलेराइजेशन (Solarization) कहते हैं। इसमें प्रकाश संश्लेषण की दर अत्यधिक गिर जाती है।

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प्रश्न 4.
श्वसन तथा प्रकाश श्वसन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
(i) श्वसन सभी पौधों में पाया जाता है, जबकि प्रकाश श्वसन केवल C2 पौधों में पाया जाता है।
(ii) श्वसन क्रिया में ग्लूकोज प्रयुक्त होता है, जबकि प्रकाश श्वसन में ग्लाइकोलेट प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 5.
कन्येन्सेसन विन्दु क्या है ?
उत्तर:
संतुलन प्रकाश तीव्रता (Compensation point)- शाम एवं सुबह के समय पौधों के लिए एक ऐसा समय आता है जब पत्तियों और वायुमण्डल के बीच गैसों का आदान-प्रदान नहीं होता अर्थात् कम प्रकाश प्रखरता के कारण प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन दरें समान होती हैं। इस समय CO2 व O का वायुमण्डल से विनिमय (Exchange) नहीं होता है, इसे कम्पेन्सन बिन्दु (Compensation point) कहते हैं।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II (Short Answer type Questions-II)

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण की रासायनिक प्रक्रिया के सारांश को प्रदर्शित करने वाले निम्न समीकरण की व्याख्या कीजिए-
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उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण एक उपचयी ( anabolic) क्रिया है। इसमें वायुमण्डलीय CO2 तथा अवशोषित जल का उपयोग करके क्लोरोफिल (chlorophyll) तथा प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोज (शर्करा) का निर्माण होता तथा O2 उपोत्पाद के रूप में निकलती है। हिल (1941) स्वेन तथा कामेन (1943) आदि ने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि प्रकाश संश्लेषण में O2 जल के प्रकाशीय अपघटन से प्राप्त होती है। उपरोक्त समीकरण में ग्लूकोज (Glucose) के एक अणु के निर्माण के लिए 6 अणु CO2 क्रे तथा 12 अणु जल के प्रयुक्त होते हैं और साथ ही 6 अणु जल के तथा 6 अणु O2 के निकल जाते हैं।

प्रश्न 2.
प्रयोग द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण में CO2 की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
CO2 प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में होती हैं। यह ज्ञात करने के लिए कि इस प्रक्रिया में CO की आवश्यकता होती है, घोल की आधी पत्ती का प्रयोग (Mohl’s half leaf experiment) किया जा सकता है। एक चौड़े मुंह वाली बोतल लेकर कार्क (Cork) को दो भागों में काटकर इसके बीच गमले में लगे पौधे की एक स्वस्थ पत्ती फँसाकर इसे कार्क सहित बोतल के मुंह में फिट कर देते हैं। बोतल में पहले से ही थोड़ी मात्रा में KOH रखा होता है। उपकरण को चित्रानुसार तैयार करके धूप में रख देते हैं। कुछ समय पश्चात् पत्ती को बाहर निकाल कर इसका मण्ड परीक्षण करते हैं। परीक्षण स
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ज्ञात होता है कि पत्ती का वह भाग जो बोतल के अन्दर है, को CO2 प्राप्त नहीं हुई ( क्योंकि KOH CO2 का अवशोषण कर लेता है) जिससे उसमें मण्ड (Starch) का निर्माण नहीं हुआ। अतः स्पष्ट है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 आवश्यक है।

प्रश्न 3.
कैसे सिद्ध करोगे कि प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन निकलती है?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में CO2 तथा जल प्रयुक्त होकर शर्करा तथा ऑक्सीजन का निर्माण होता है।
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यह सिद्ध करने के लिए कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में O2 उत्पन्न होती है एक सरल प्रयोग किया जा सकता है। कोई जलीय पौधा जैसे हाइड्रिला (Hydrilla) काँच की एक फनल में लेकर इसे जल से भरे बीकर में उल्टा करके रख देते हैं । फनल के ऊपर जल से भरी एक परखनली उलट देते हैं । उपकरण को धूप में रख देते हैं। कुछ समय बाद हम देखते हैं कि परखनली में जल का स्तर नीचे गिरने लगता है और इसके स्थान पर पौधे से बुलबुलों के रूप में निकली एक गैस एकत्र होने लगती है। यह प्रदर्शित करने के लिए कि यह गैस ऑक्सीजन है परखनली के भरने पर इसे अंगूठे से बन्द करके बाहर निकाल लेते हैं। अब एक जलती हुई तीली नली के मुख के पास लाते हैं। यह तीली तेजी से जलने लगती है। इससे सिद्ध होता है कि प्रकाश संश्लेषण में O2 निकलती है।
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प्रश्न 4.
कैसे सिद्ध करोगे कि प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
यह सिद्ध करने के लिए कि प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश की आवश्यकता होती है एक सरल प्रयोग किया जा सकता है। गमले में लगा एक स्वस्थ पौधा लेकर पहले
इसे 48 घंटे के लिए अंधेरे में रख देते हैं जिससे पत्तियों में संचित मण्ड समाप्त हो जाए। अब इस पौधे की किसी पत्ती पर दोनों ओर काले कागज की चौकोर पट्टी क्लिप (Clip) की सहायता से लगाते हैं। पौधे को धूप में रख देते हैं। जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है कुछ घंटे बाद उस पत्ती को तोड़कर उसका मण्ड परीक्षण करते हैं। परीक्षण (Strach Test) से ज्ञात होता है कि पत्ती में कागज लगाए गए भाग को प्रकाश न मिलने के कारण मण्ड (Starch) का निर्माण नहीं हुआ जबकि पत्ती के शेष भाग ने मण्ड परीक्षण (Starch) दिया।
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प्रश्न 5.
प्रकाश फॉस्फेटीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Photo Phosphorylation):
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में हरित लवक के अन्दर उपस्थित हरित कण प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करते हैं। यह ऊर्जा प्रकाश रासायनिक क्रिया में ADP द्वारा उच्च ऊर्जा बन्धों के रूप में एकत्र की जाती है तथा उच्च ऊर्जा अणु ATP का निर्माण होता है। आर्नन ने इसे फोटोसिन्थेटिक फॉस्फोराइलेशन (Photosynthetic Phosphorylation) कहा तथा ATP को प्रकाश संश्लेषण की स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) माना। प्रकाश फॉस्फेटीकरण की क्रिया दो वर्णक तंत्रों में उपस्थित भिन्न-भिन्न वर्णकों द्वारा होती हैं। इस प्रक्रिया में दो चक्र कार्य करते हैं। इन्हें चक्रीय फास्फेटीकरण (cyclic phosphorylation) तथा अचक्रीय फॉस्फेटीकरण (Noncyclic phosphorylation) कहते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रकाश संश्लेषण की चक्रिक फॉस्फेटीकरण अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चक्रिक प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Cyclic Photophosphorylation):
प्रकाश कर्म-1 के वर्णक तंत्र I के अणु प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करके इसे अभिक्रिया केन्द्र P-700 पर स्थानान्तरित कर देते हैं। P-700 ऊर्जा प्राप्त करके 4e बाहर निकालता है। उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन एक आयरन सल्फर प्रोटीन माही A(FeS) द्वारा प्रहण कर लिए जाते हैं। यहाँ से इलेक्ट्रान क्रमशः फैरीडाक्सिन (Ferridoxin) तथा FAD द्वारा महण किये जाते हैं। यहाँ पर इलेक्ट्रान तथा प्रकाश जल अपघटन द्वारा उत्पन्न Ht के संयोग से FADH2 का निर्माण होता है। FADH2 से इलेक्ट्रान व H+ आयन्स NADP पर स्थानान्तरित होकर NADPH बनता है। ये NADPH2 अंधकार प्रक्रिया में CO2 स्थिरीकरण में भाग लेते हैं। यदि अपचयित A (FeS) से आगे का कोई इलेक्ट्रॉन माही e को ग्रहण नहीं कर पाता तो ये e एक अन्य पथ द्वारा वापस Cyt – bof कॉम्प्लैक्स से में पहुँच जाते हैं। इस पथ में ATP का निर्माण होता
होते हुए पुन P – 700 है। इस प्रक्रिया को चक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Cyclic Phosphorylation) कहते हैं।
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प्रश्न 7.
अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण को समझाइए।
उत्तर:
अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Non-cyclic Pho Photophosphorylation ):
प्रकाश कर्म – II के वर्णक तंत्र से उत्सर्जित इलेक्ट्रान क्रमशः फिओफाइटिन (Phaeophytin) प्लास्टोक्वीनोन (Plastoquinone), cyt-bo f समिश्र तथा प्लास्टोसायनिन (Plastocyanin) से होते हुए प्रकाश कर्म-1 के अभिक्रिया केन्द्र P-700 पर पहुँचते हैं। ये इलेक्ट्रॉन वापस वर्णक तंत्र I के अभिक्रिया केन्द्र P-680 में वापस नहीं लौटते हैं। इस
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पथ में भी एक ATP अणु का निर्माण होता है। इसे अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्रकाश कर्म-1 तथा प्रकाश कर्म-11 में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश कर्म । तथा प्रकाश कर्म | में अन्तर

प्रकाश कर्म-I (Photo act-I)प्रकाश कर्म-II (Photo act-II)
इसका अभिक्रिया केन्द्र P-700 होता है।इसका अभिक्रिया केन्द्र P-680 होता है।
प्रकाश तंत्र-I स्ट्रोमा थाइलेकॉइड की झिल्ली तथा इसके दृश्य भाग में होता है।यह प्रेना थाइलेकॉइड (Thylakoid) के दृश्य भाग की केवल झिल्ली में होता है।
यह प्रकाश फॉस्फेटीकरण के चक्रीय तथा अचक्रीय दोनों पदों में भाग लेता है।यह केवल अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण में भाग लेता है।
यह PS-II से इलेक्ट्रॉन प्रहण करता है।यह प्रकाश जल अपघटन से इलेक्ट्रॉन लेता है।
यह इलेक्ट्रॉन NADP को देता है।यह P-700 को इलेक्ट्रॉन देता है।

प्रश्न 9.
टिप्पणी लिखिए पत्तियाँ सौर संग्राहक हैं।
उत्तर:
सभी हरे पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्वयं बना लेते हैं। इन पौधों की पत्तियों में हरित लवक पाया जाता है। हरित लवक (Chloroplast) में विभिन्न प्रकार के वर्णक मिलते हैं। ये वर्णक सूर्य के प्रकाश की विभिन्न तरंगदैयों (Wave length) का अवशोषण करते हैं। इसीलिए पत्तियों को सौर संग्राहक कहते हैं। हरित लवक का मुख्य वर्णक क्लोरोफिल होता है। यह CO2 व जल द्वारा प्रकाश की उपस्थिति में शर्करा का निर्माण करते हैं। पौधों द्वारा अवशोषित सौर ऊर्जा (Solar energy) का केवल 3-5% भाग ही प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होता है। शेष का परावर्तन कर दिया जाता है।
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प्रश्न 10.
प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रकाशिक व अप्रकाशिक अभिक्रिया में अन्तर (Difference between Light and Dark Reaction)

प्रकाशिक अभिक्रिया (Light Reaction):अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction):
इसके लिए प्रकाश आवश्यक है।इसके लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है।
हरित लवक के म्रेना (grana) में होती है।हरितलवक के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है।
प्रकाशीय ऊर्जा का अवशोषण होता है तथा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन कर ATP का निर्माण होता है। इसे प्रकाश फॉस्फेटीकरण कहते हैं।प्रकाशीय क्रिया से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग CO2 स्वांगीकरण में होता है तथा कार्बोहाइड्रेट बनता है ।
जल का अपघटन होता है जिससे O2 उप-उत्पाद के रूप में मिलती है तथा H+ व e मिलते हैं।H+ का उपयोग CO2 के अपचयन में होता है।
ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है। वर्णक तन्नों की आवश्यकता होती है।CO2 प्रयुक्त होती है ।

प्रश्न 11.
रसो- परासरणी परिकल्पना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। रसो- परासरणी परिकल्पना
उत्तर:
रसो- परासरणी परिकल्पना (Chemi-osmotic Hypothesis)
हरित लवक में ATP का संश्लेषण होता है। ATP संश्लेषण का वर्णन रसोपरासरणी (Chemi-osmotic) परिकल्पना के आधार पर किया जा सकता है। ATP का संश्लेषण क्लोरोप्लास्ट के थायलेकॉइड झिल्लियों के आर-पार प्रोटोन प्रवणता (Proton gradint) के कारण होता है। प्रोटॉन का संचय झिल्ली के अन्दर अर्थात् गुहा (Lumen) की ओर होता है। प्रोटॉन का झिल्ली की गुहा में संचय निम्नलिखित कारणों से होता है –
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(क) जल के अणु का अपघटन झिल्ली के अन्दर होता है, अतः जल के अपघटन से मुक्त H+ अथवा थायलेकॉइड गुहा में संचित होते हैं।

(ख) इलेक्ट्रॉन के प्रकाश तंत्र के माध्यम से गति करते ही प्रोटॉन झिल्ली के पार चला जाता है। क्योंकि इलेक्ट्रॉन माही झिल्ली के बाहर स्थित होता है। इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण H+ ग्राही को किया जाता है। अतः e प्रवाह के समय यह अणु स्ट्रोमा से एक प्रोटॉन ले लेता है, जब यह अणु अपने इलेक्ट्रॉन को झिल्ली के भीतरी ओर स्थित इलेक्ट्रॉन वाहक (elctron carrier) को देता है, तब प्रोटॉन को झिल्ली के अन्दर की ओर मुक्त कर देता है।

(ग) NADP रिडक्टेज विकर ( enzyme) झिल्ली के स्ट्रोमा की ओर होता है। प्रकाश प्रक्रम I के इलेक्ट्रॉन ग्राही आने वाले इलेक्ट्रॉन के साथ-साथ प्रोटीन NADP को NADPH में अपचयित करने के लिए आवश्यक होता है। ये प्रोटॉन स्ट्रोमा से प्राप्त होते हैं। अतः स्ट्रोमा में प्रोटॉन की संख्या घटती है और झिल्ली के भीतर (गुहा में) प्रोटॉन का संचय होता है। इस प्रकार झिल्ली के आर-पार प्रोटॉन प्रवणता उत्पन्न होती है। प्रोटॉन प्रवणता के टूटने से ऊर्जा मुक्त होती है। ATPase विकर की उपस्थिति में ADP ऊर्जा महण करके ATP का निर्माण करता है।

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प्रश्न 12.
CAM पौधों में CO2 का स्थिरीकरण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अनेक मांसल, मरुद्भिद (xerophytic) पादपों जैसे नागफनी (Opuntia), भीक्वार (Agave) आदि को कैम (CAM) पौधे कहते हैं। इन पौधों में CO2 स्थिरीकरण विशेष प्रकार से होता है। इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन रोकने के लिए रन्ध्र दिन के समय बन्द रहते हैं तथा रात्रि के समय खुलते हैं। दिन के समय पौधों को प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 उपलब्ध नहीं होती । रात्रि के समय CO2 स्थिरीकरण C2 पौधों की भांति होता है। CO2 पहले फॉस्फोइनोल पाइरुविक अम्ल (PEP) से क्रिया करके ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल (OAA) बनाती है। यह मैलिक अम्ल में अपचयित (Reduce) हो जाता है। मैलिक अम्ल कोशिका रस में संचित हो जाता है।

इस क्रिया को अम्लीकरण कहते हैं। प्रात:काल रन्ध्र (Stomata) बन्द होने पर मैलिक अम्ल विघटित होकर CO2 मुक्त करता है। CO2 केल्विन चक्र में प्रवेश करके RuBP से मिलकर 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल बनाती है। दिन के समय मैलिक अम्ल में विघटन से CO2 के मुक्त होने की क्रिया को विअम्लीकरण कहते हैं। इस प्रकार अम्लीकरण की क्रिया को कैम (CAM-Crassulacean Acid Metabolism) कहते हैं। कैम तथा C2 पौधों में CO2 का स्थिरीकरण दो बार होता है लेकिन कैम पौधों में यह क्रिया पर्णमध्योतक कोशिकाओं (Mesophyll cells) में होती है। और अलग-अलग समय पर होती है C2 पौधों में CO2 का स्थिरीकरण अलग-अलग कोशिकाओं में दिन के समय ही होता है।

(E) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण को परिभाषित कीजिए। प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis ) – प्रकाश संश्लेषण हरे पादपों में होने वाली एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया है। सुकेन्द्री (Eukaryotic) पादपों में यह क्रिया हरित लवक में होती है। इस सम्पूर्ण क्रिया में पौधे मृदा से जल व वायुमण्डल से CO2 महण करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हरित लवक की सहायता से शर्करा (sugar) का निर्माण करते हैं। अतः वह उपचय क्रिया जिसमें हरे पौधे CO2 व जल का उपयोग करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हरित लवक की सहायता से भोज्य पदार्थ व O2 बनाते हैं प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहलाती है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है –
I. प्रकाश निर्भर अभिक्रिया या प्रकाश रासायनिक प्रतिक्रिया।
II. अन्धकार अभिक्रिया या ब्लैकमैन प्रतिक्रिया।
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1. प्रथम प्रकाश रासायनिक आयाक्रया (First Step Photo Chemical Reaction):
यह अभिक्रिया हरित लवक के मेना में होती है। सर्वप्रथम हरित लवक में हरिम कण अणु प्रकाश की निश्चित तरंगदैर्ध्य का अवशोषण करके उत्तेजित अवस्था में आ जाते हैं। प्रकाश की इस ऊर्जा से जल के अणुओं का अपघटन OH+ तथा H+ आयनों में होता है। OH आयन संयुक्त होकर पानी तथा O2 बनाते हैं H+ आयन NADP2 द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं। उत्पन्न ऑक्सीजन की कुछ मात्रा कोशिकीय श्वसन में प्रयुक्त हो जाती है तथा शेष वातावरण में मुक्त हो जाती है। इस क्रिया में इलेक्ट्रानों की उत्पत्ति होती है जो विभिन्न पथों से गुजरते हुए ATP का निर्माण करते हैं। इस प्रकार प्रकाश अभिक्रिया के तीन उत्पाद होते हैं – ATP NADP H2 तथा O2

II. द्वितीय चरण अंधकार अभिक्रिया या ब्लैकमैन अभिक्रिया (Second Step Dark reaction or Blackmann reaction ) – इस प्रक्रिया के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। यह हरित लवक के स्ट्रोमा में होती है। इसमें प्रकाश अभिक्रिया में उत्पन्न ATP तथा NADPH का प्रयोग करके CO2 का अवकरण होकर शर्करा का निर्माण होता है। इस क्रिया में स्ट्रोमा (Stroma) में पहले से उपस्थित 5 कार्बन वाला पदार्थ रिबुलोज डाई फास्फेट ( Ru BP) कार्बन डाइ ऑक्साइड के एक अणु को प्राप्त करके 6 कार्बन वाला एक अस्थाई यौगिक बनाना है जो बाद में 3 कार्बन वाले फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (3-PGA) के अणुओं में टूट जाते हैं। यहाँ पर NADPH2 प्रयुक्त होकर अन्ततः 6 कार्बन परमाणु वाले यौगिक ग्लूकोज का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 2.
0प्रकाश संश्लेषण के दो वर्णक तंत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सिद्ध कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया दो वर्णक तंत्रों में पूर्ण होती है।
उत्तर:
इमरसन (Emerson) ने क्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल पर किये गए प्रयोगों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि प्रकाश अवशोषण करने के लिए वर्णकों के कम से कम दो समूह होते हैं। एक समूह के वर्णक लघु तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरणों को अवशोषित करते हैं तथा दूसरे समूह के वर्णक दीर्घ तरंगदैर्ध्य की प्रकाश किरणों को अवशोषित करते हैं। वर्णकों के ये समूह क्रमश: प्रकाश कर्म-1 (Photosystem I) तथा प्रकाश कर्म-11 (Photosystem II ) को संचालित करते हैं।

वर्णक तंत्र-I (Pigment system-1 ) यह प्रकाश कर्म-1 को संचालित करता है। इसमें पर्णहरिम ‘8’ के विभिन्न अणु जैसे Chl ‘a’ 660, Chl ‘a’ 670, Chla 690, Chl ‘a’ 700 होते हैं। ये सभी विभिन्न तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरणों का अवशोषण करते हैं। इनमें से Chl ‘a’ 700 अभिक्रिया केन्द्र का कार्य करता है। इसके शेष क्लोरोफिल अणु एन्टीना का कार्य करते हैं और अवशोषित ऊर्जा को अभिक्रिया केन्द्र पर स्थानान्तरित करते हैं। Chl’a’ 700 को P-700 भी कहते हैं। इसी से उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों (High energy electron) का स्थानांतरण होता है। यह प्रकाश कर्म चक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Cyclic Photophosphorylation) तथा अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण (Non-cyclic Photophosphorylation) दोनों में कार्य करता है।

वर्णक तंत्र-II (Pigment system-II) – यह प्रकाश कर्म-11 को संचालित करता है। इसमें क्लोरोफिल ‘४’ के विभिन्न अणु जैसे Chl ‘a’ 660, Chl-‘a’ 670, Chl ‘a’ 678 तथा Chl ‘b’ 650 होते हैं। इनमें से एक विशिष्ट अणु क्लोरोफिल a-680 (Chlorophyll] ‘a’ 680) भी होता है। यह अभिक्रिया केन्द्र का कार्य करता है। इसे P-680 भी कहते हैं। प्रकाशकर्म-II तथा वर्णक तंत्र-II केवल अचक्रीय प्रकाश फॉस्फेटीकरण में भाग लेता है।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. जल की परासरणी गति के कारण पादप कोशिका भित्ति पर उत्पन्न दाब कहलाता है –
(A) परासरणी दाब
(B) भित्ति दाब
(C) स्फीति दाब
(D) परासरण विभव
उत्तर:
(C) स्फीति दाब

2. जब कोशिका पूर्णतया आशून हो तब निम्न में से कौन शून्य होगा ?
(A) आशून दाब
(B) भित्ति दाब
(C) चूषण दाब
(D) परासरण दाब
उत्तर:
(C) चूषण दाब

3. जल अवशोषण की क्रिया सबसे अधिक होती है-
(A) मूलरोमों द्वारा
(B) पत्तियों द्वारा
(C) परिपक्व जड़ द्वारा
(D) मूल गोप द्वारा
उत्तर:
(A) मूलरोमों द्वारा

4. पौधे मृदा से किस प्रकार के जल को अवशोषित करते हैं ?
(A) गुरुत्वीय जल
(B) रसायनिकबद्ध जल
(C) केशिकीय जल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) केशिकीय जल

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5. डिक्सन तथा जॉली का रसारोहण सिद्धान्त आधारित है-
(A) जल का संसंजन बल
(B) जल स्तम्भ की निरन्तरता
(C) वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष
(D) ये सभी
उत्तर:
(A) जल का संसंजन बल

6. पोटोमीटर का प्रयोग मापने में किया जाता है-
(A) श्वसन
(B) हवा का वेग
(C) प्रकाश संश्लेषण
(D) वाष्पोत्सर्जन
उत्तर:
(D) वाष्पोत्सर्जन

7. शुद्ध जल का विभव तथा परासरण विभव होता है –
(A) 0 तथा 0
(C) 100 तथा 100
(B) 100 तथा 0
(D) 0 तथा 100
उत्तर:
(A) 0 तथा 0

8. जिस विलयन में कोशिका स्फीति होती है, वह है –
(A) अल्पपरासारी
(B) समपरासारी
(C) अतिपरासारी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अल्पपरासारी

9. रसारोहण का सिद्धान्त दिया था –
(A) मैक क्लंग ने
(B) जे. सी. बोस ने
(C) फ्लेमिंग ने
(D) लीडर वर्ग ने
उत्तर:
(B) जे. सी. बोस ने

10. वातरन्त्रों का कार्य है –
(A) बिन्दु स्राव
(B) वाष्पोत्सर्जन
(C) रक्त स्राव
(D) गैसों का विनिमय
उत्तर:
(D) गैसों का विनिमय

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11. एक विलयन का जल विभव निरूपित किया जाता है –
(A) 4’r से
(B) 4°W से
(C) से
(D) App से
उत्तर:
(B) 4°W से

12. K+ आयन परिकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
(A) जे. सी. बोस ने
(B) ए. फ्लेमिंग ने
(C) लैविट ने
(D) मुंच ने
उत्तर:
(C) लैविट ने

13. मूलदाय सिद्धान्त प्रस्तुत किया-
(A) मुंच ने
(B) डिक्सन तथा जॉली ने
(C) लैविट ने
(D) प्रीस्टले ने
उत्तर:
(D) प्रीस्टले ने

14. किसका जल विभव उच्चतम होगा ?
(A) 2% ग्लूकोज
(B) शुद्ध जल
(C) 10% ग्लूकोज
(D) 10% NaCl
उत्तर:
(B) शुद्ध जल

15. जल प्रवेश होने से कोशाओं के फूलने का कारण है-
(A) DPD
(B) स्फीति दाब
(C) अन्तःशोषण
(D) OP
उत्तर:
(B) स्फीति दाब

16. वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जल पादप कोशिकाओं में प्रवेश करता है-
(A) विसरण
(B) परासरण
(C) अन्तःचूषण
(D) परासरण और अन्तःचूषण
उत्तर:
(C) अन्तःचूषण

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17. वेलामेन एवं स्पंजी ऊतक पाये जाते हैं-
(A) श्वसनमूल में
(B) परजीवी मूल में
(C) कन्दमूल में
(D) उपरिरोही मूल में
उत्तर:
(D) उपरिरोही मूल में

18. जब कोई जीवद्रव्य कुंचित कोशिका अल्प परासारी विलयन में रखी जाती है तो निम्न में से किस बल के कारण जल कोशिका के अन्दर प्रवेश
करता है-
(A) DPD
(B) OP
(C) WP
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) OP

19. परासरण में गति होती है-
(A) केवल विलेय की
(B) केवल विलायक की
(C) दोनों (अ) तथा (ब)
(D) न विलेय न विलायक की
उत्तर:
(B) केवल विलायक की

20. स्टोमेटा कह सकते हैं-
(A) स्टोमेट्स को
(B) लेन्टिसेल को
(C) हाइडेथोड को
(D) वार्म को
उत्तर:
(A) स्टोमेट्स को

21. भूमि में पौधों के लिए आवश्यक जल होता है-
(A) केशिका जल
(B) रासायनिक बन्धित जल
(C) गुरुत्वीय जल
(D) आर्द्रताग्राही जल
उत्तर:
(A) केशिका जल

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22. निम्नलिखित में से कोशिका विभाजन का क्षेत्र है-
(A) मूलगोप
(B) विभज्योतक क्षेत्र
(C) मूलरोम प्रदेश
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभज्योतक क्षेत्र

23. निम्न में से कौन-सा पदार्थ वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करता है-
(A) फिनाइल मरक्यूरिक एसीटेट
(B) ऐब्सीसिक अम्ल
(C) (A) तथा (B)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B)

24. CAM पौधों के रन्ध्र –
(A) रात में खुलते हैं और दिन में बन्द हो जाते हैं
(B) कभी नहीं खुलते
(C) हमेशा खुले रहते हैं
(D) दिन में खुलते हैं तथा रात में बन्द हो जाते हैं।
उत्तर:
(A) रात में खुलते हैं और दिन में बन्द हो जाते हैं

25. यदि पुष्पों को काटकर तनु NaCl विलयन में डुबोया जाए तो-
(A) वाष्पोत्सर्जन कम होगा।
(B) अन्तः परासरण होगा।
(C) जीवाण्विक वृद्धि नहीं होगी।
(D) विलेय का पुष्प कोशिकाओं के अन्दर अवशोषण होगा।
उत्तर:
(B) अन्तः परासरण होगा।

26. एक कोशिका फूल जायेगी, यदि इसे रखा जाए-
(A) अल्प परासारी विलयन में
(B) अति परासारी विलयन में
(C) सम परासारी विलयन में
(D) इन सभी में।
उत्तर:
(A) अल्प परासारी विलयन में

27. पादपों में जल आपूर्ति होती है –
(A) परासरण के कारण
(B) अन्तःशोषण के कारण
(C) बिन्दुस्राव के कारण
(D) आसंजन बल के कारण
उत्तर:
(D) आसंजन बल के कारण

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28. रसारोहण के लिए सर्वमान्य परिकल्पना है-
(A) केशिका परिकल्पना
(B) मूल दाबवाद
(C) स्पन्दनवाद
(D) वाष्पोत्सर्जनाकर्षण
उत्तर:
(D) वाष्पोत्सर्जनाकर्षण

29. पथ कोशिकाएँ पतली भित्तियों वाली कोशिकाएँ होती हैं जो-
(A) जड़ों की अन्तस्त्वचा में पायी जाती हैं और ये कार्टेक्स से परिरंभ में जल के परिवहन को सुगम बना देती है।
(B) पोषवाह तत्वों में होती हैं जो पदार्थों के प्रवेश बिन्दु का कार्य करते हैं जहाँ से वे पदार्थ अन्य पादप भागों तक पहुँचा दिए जाते हैं।
(C) बीजों के बीज चोलों में होती हैं ताकि बीजांकुरण के दौरान वृद्धिशील भ्रूण अक्ष उनमें से होकर बाहर आ सकें।
(D) वर्तिका के केन्द्रीय भाग में पायी जाती हैं जिसमें से होकर पराग नलिका अण्डाशय की ओर बढ़ती जाती है।
उत्तर:
(A) जड़ों की अन्तस्त्वचा में पायी जाती हैं और ये कार्टेक्स से परिरंभ में जल के परिवहन को सुगम बना देती है।

30. रसारोहण के दौरान वाहिकाओं / ट्रैकीडों में जल स्तम्भ का टूटना एवं प्रभाजन सामान्यतः किसके कारण नहीं होता-
(A) लिग्नीकृत मोटी भित्तियाँ
(B) संसंजन तथा आसंजन
(C) मंद गुरुत्वाकर्ष अभिकर्ष
(D) वाष्पोत्सर्जन अभिकर्ष
उत्तर:
(B) संसंजन तथा आसंजन

31. द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) सहायक होती हैं-
(A) चारण से सुरक्षा प्रदान करने में
(B) वाष्पोत्सर्जन में
(C) बिन्दुस्रावण में
(D) संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने में
उत्तर:
(B) वाष्पोत्सर्जन में

32. वलयकरण प्रयोग (girdling experiment) में निम्नलिखित में से किसे हटा दिया जाता है ?
(A) केवल छाल को
(B) फ्लोएम सहित छाल को
(C) केवल फ्लोएम को
(D) सम्पूर्ण संवहन ऊतक को
उत्तर:
(B) फ्लोएम सहित छाल को

33. स्थलीय पादपों में द्वारा कोशिकाएँ निम्नलिखित में भिन्न होती हैं –
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका
(C) हरित लवक
(D) कोशिका पंजर
उत्तर:
(C) हरित लवक

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34. वाष्पोत्सर्जन निम्नलिखित में से किसकी अभिव्यक्ति है ?
(A) स्फीति दाब
(B) भित्तिदाब
(C) मूल दाब
(D) उपरोक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(A) स्फीति दाब

35. पूर्णतया स्फीति (fully turgid) कोशिका में होता है-
(A) TPO = 0
(B) WP = 0
(C) DPD = 0
(D) OP = 0
उत्तर:
(C) DPD = 0

36. खनिज तत्वों हेतु मुख्य सिंक (sink) है-
(A) जीर्ण पत्तियाँ
(B) पके फल
(C) पार्श्व विभज्योतक
(D) छाल
उत्तर:
(A) जीर्ण पत्तियाँ

37. रन्धों के खुलने एवं बन्द होने की क्रिया में K+ आयनों का आगम होता है तो निम्नलिखित का निर्गमन होता है-
(A) Na+
(B) K+
(C) Cl+
(D) H+
उत्तर:
(D) H+

38. वातरन्ध्र क्या करते हैं ?
(A) वाष्पोत्सर्जन
(B) गैसीय विनिमय
(C) खाद्य अभिगमन
(D) प्रकाश संश्लेषण।
उत्तर:
(B) गैसीय विनिमय

39. जल में रखी एक कोशिका का परासरणी फैलाव मुख्यतः किसके द्वारा नियन्त्रित होता है ?
(A) रसधानी
(B) लवक
(C) राइबोसोम
(D) सूत्रकणिका।
उत्तर:
(A) रसधानी

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(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शुद्ध जल का विभव कितना होता है ?
उत्तर:
शून्य बार (bars)

प्रश्न 2.
जल अणुओं का जाइलम वाहिकाओं की भित्ति के प्रति आकर्षण बल क्या कहलाता है ?
उत्तर:
आसंजन (adhesion)

प्रश्न 3.
मूल दाब को किस यन्त्र द्वारा नापा जाता है ?
उत्तर:
मैनोमीटर (manometer) द्वारा।

प्रश्न 4.
उस आयन का नाम बताइए जो रन्धों के खुलने एवं बन्द होने में भाग लेता है।
उत्तर:
पोटैशियम आयन (K+ ions )।

प्रश्न 5.
डोनन साम्यावस्था (Donnan’s equilibrium) के अनुसार यदि कोशिका में स्थिर आयन + ve हैं तो आने वाले आयन कौनसे होंगे ?
उत्तर:
-ve आयन अधिक संख्या में होंगे।

प्रश्न 6.
कार्बनिक भोज्य पदार्थ का स्थानान्तरण किस ऊतक द्वारा होता है ?
उत्तर:
फ्लोएम (phloem) द्वारा।

प्रश्न 7.
द्रव्य प्रवाह परिकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
उत्तर:
मुंच (Munch) ने।

प्रश्न 8.
किन पौधों में रन्ध्र दिन में बन्द व रात में खुलते हैं ?
उत्तर:
माँसल पौधों में- जैसे-नागफनी (Opuntia)।

प्रश्न 9.
नमक के घोल में अंगूर क्यों सिकुड़ जाते हैं ?
उत्तर:
बहि परासरण (exosmosis) के कारण।

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प्रश्न 10.
रसारोहण का स्पन्दनवाद किसने प्रस्तुत किया था ?
उत्तर:
जे. सी. बोस (J. C. Bose) ने।

प्रश्न 11.
जल अणुओं के मध्य परस्पर आकर्षण को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
संसंजन बल (cohesion force)

प्रश्न 12.
जल अवशोषण के दो पथों के नाम लिखिए।
उत्तर:
एपोप्लास्ट पथ तथा सिमप्लास्ट पथ (apolast path and symplast path)

प्रश्न 13.
रन्धों के खुलते समय रक्षक कोशिकाओं का pH कितना होता है ?
उत्तर:
pH 7-8 होता है।

प्रश्न 14.
रसारोहण क्रिया किस ऊतक द्वारा होती है ?
उत्तर:
जाइलम (xylem) द्वारा।

प्रश्न 15.
माइकोराइजा क्या है ?
उत्तर:
उच्च पादप की जड़ों तथा कवक का सहजीवी सम्बन्ध (Symbiotic association ) ।

प्रश्न 16.
जल रन्ध्र कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
शाकीय पौधों जैसे- टमाटर, घास आदि की पत्तियों के किनारों

प्रश्न 17.
कोशिका को आसुत जल में रखने पर क्या होगा ?
उत्तर:
यह जल अवशोषण करके फट जायेगी।

प्रश्न 18.
कौन-सा जल पौधों के लिए सर्वाधिक उपयोगी होता है ?
उत्तर:
केशिका जल (capillary water)

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प्रश्न 19.
मूलदाब उत्पन्न होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता क्यों होती
उत्तर:
मूल दाब जल के सक्रिय अवशोषण से उत्पन्न होता है। अतः इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 20.
बिन्दु श्रावण किससे होता है ?
उत्तर:
जलरन्ध्रों (hydrathodas) से ।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न -I ( Short answer type questions-I)

प्रश्न 1.
पौधों में जल एवं खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण किस ऊतक द्वारा होता है ? पदार्थों का दो दिशीय प्रवाह किस ऊतक में होता है ?
उत्तर:
जाइलम द्वारा जल एवं खनिज लवणों का जड़ों से ऊपर पत्तियों की ओर स्थानान्तरण होता है। पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थ फ्लोएम द्वारा पहले संचयी क्षेत्रों में तथा फिर यहाँ से धीरे-धीरे उपभोग क्षेत्रों की ओर स्थानान्तरण होता है। पदार्थों का द्विदिशीय प्रवाह फ्लोयम द्वारा होता है।

प्रश्न 2.
जल विभव क्या है ?
उत्तर:
जल विभव (Water Potential ) – शुद्ध जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा तथा किसी अन्य तन्त्र (जैसे- विलयन में जल या पादप कोशिका या ऊतक में जल) में जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा में अन्तर को जल विभव ( water potential ) कहते हैं। इसे प्रीक अक्षर साई ( ) से प्रदर्शित करते हैं। जल विभव को दाब के मात्रकों में भी व्यक्त किया जाता है।
1 bar = 14.5lbf / in2 = 750mm Hg = 0.987 atm

प्रश्न 3.
अन्तःशोषण को कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
अन्तःशोषण को निम्न कारक प्रभावित करते हैं-
1. तापमान के साथ अन्तःशोषण बढ़ जाता है।
2. pH की अधिकता अन्तःशोषण को प्रभावित करती है।
3. विलेय की सान्द्रता अधिक होने पर अन्तःशोषण दर कम हो जाती है।

प्रश्न 4.
प्रतिवाष्पोत्सर्जक क्या हैं ? चार प्रतिवाष्पोत्सर्जकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसे पदार्थ जो वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं, प्रतिवाष्पोत्सर्जक कहलाते हैं।
(i) CO2
(ii) ऐब्सीसिक अम्ल
(iii) फिनाइल मर्क्यूरिक एसीटेट
(iv) ऑक्सीएथीन ।

प्रश्न 5.
पारगम्यता एवं जीवद्रव्य कुंचन में भेद कीजिए।
उत्तर:
पारगम्यता एवं जीवद्रव्य कुंचन (Permeability and Plasmolysis) – कोशिका कला का वह गुण जिसके द्वारा वह अपने से होकर गुजरने वाले अणुओं का नियन्त्रण रखती है, पारगम्यता ( permeabilily ) कहलाती है। जब रिक्तिका में से रिक्तिका रस कोशिका के बाहर निकल जाता है तथा जीवद्रव्य सिकुड़ जाता है तो इसे जीवद्रव्य कुंचन (plamolysis) कहते हैं ।

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प्रश्न 6.
परासरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
परासरण (Osmosis) परासरण वह क्रिया है जिसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक् किये गये विभिन्न सान्द्रता वाले घोलों में विलायक के अणुओं का विसरण कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर होता है।

प्रश्न 7.
भित्ति दाब से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जल के प्रासरण के कारण कोशिका की अन्तर्वस्तुएँ कोशिका भित्ति पर दाब डालती हैं जिसे स्फीति दाब कहते हैं। स्फीति दाब के समान कोशिका भित्ति भी एक दाब डालती है जो कि स्फीति दाब के बराबर एवं विपरीत होता है। इसे भित्ति दाव (wall pressure) कहते हैं।

प्रश्न 8.
बिन्दुस्राव के लिए उत्तरदायी दो परिस्थितियाँ लिखिए।
उत्तर:
(i) मूल दाब (root pressure)
(ii) अधिक जल अवशोषण किन्तु कम वाष्पोत्सर्जन ।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न- II ( Short Answer Type Questions-II)

प्रश्न 1.
पारगम्यता क्या है ? पारगम्यता के आधार पर झिल्लियाँ कितने प्रकार की होती हैं। पारगम्यता को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए।
उत्तर:
पारगम्यता (Permeability) झिल्लियों का वह गुण जिसके कारण झिल्ली से होकर कोई विलेय अथवा विलायक गुजरता है, झिल्ली की पारगम्यता (permeability) कहलाता है। इसके आधार पर झिल्लियाँ चार प्रकार की होती हैं –
(i) अपारगम्य ( Impermeable ) – ये झिल्लियाँ विलेय या विलायक किसी को भी आर-पार नहीं होने देती, जैसे- कार्क कोशिकाओं की सुबेरिनयुक्त कोशाभित्ति ।
(ii) अर्द्ध- पारगम्य (Semi-permeable ) – यह केवल विलायक के अणुओं को अपने से पार जाने देती है; जैसे- रिक्तिका झिल्ली ।
(iii) वरणात्मक पारगम्य (Selectively permeable ) – यह आवश्यकतानुसार कुछ विलेय अणुओं को आर-पार जाने देती है जैसे—कोशिका झिल्ली (cell membrane) |
(iv) पारगम्य (Permeable ) – यह विलेय तथा विलायक दोनों को आर-पार जाने देती है। जैसे—कोशिका भित्ति ।

पारगम्यता को प्रभावित करने वाले कारक
(i) ताप, pH में अन्तर दाब आदि।
(ii) O2 की कमी, CO2 की अधिकता।
(iii) जीर्णावस्था।

प्रश्न 2.
परासरण तथा अन्तःशोषण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परासरण तथा अन्तः शोषण में अन्तर

परासरण ( osmosis):अन्तःशोषण (Imbibition):
(i) यह द्रव पदार्थों द्वारा जल का अवशोषण है।(i) यह ठोस पदार्थों द्वारा जल का अवशोषण है।
(ii) यह क्रिया केवल जीवित कोशिका में होती है।(ii) जीवित कोशिका में होना आवश्यक नहीं है।
(iii) इसमें अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली (semi-permeable membrane) की आवश्यकता होती है।(iii) इसमें अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली (semi-permeable membrane) की आवश्यकता नहीं होती है।
(iv) विलयन की सान्द्रता के अनुसार ही पररासरण की दिशा निर्धारित होती है।(iv) इसमें सान्द्रता का महत्व नहीं है।

प्रश्न 3.
परासरण का पौधों में महत्व लिखिए।
उत्तर:
परासरण का महत्व (Importance of Osmosis) – पौधों में परासरण के निम्नलिखित महत्व हैं-
(i) इसके फलस्वरूप मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण होता है।
(ii) एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जल का स्थानान्तरण होता है।
(iii) कोशिका की स्फीति (turgidity) बनी रहती है।
(iv) रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने की क्रिया होती है।
(v) वाष्पोत्सर्जन में सहायक होता है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित के कारण लिखिए-
(क) बाढ़ के पानी में अधिक दिनों तक डूबे रहने के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं।
(ख) समुद्री जन्तु या पौधे को अलवणीय जल में रखने पर वह जीवित नहीं रहता, जबकि उचित मात्रा में जल यहाँ भी उपलब्ध है।
(ग) रन्ध्रीय एवं उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन की तुलना के लिए केवल पृष्ठाधारी पत्ती ही क्यों प्रयोग की जाती है ?
(घ) पौधघर से पौधों का बगीचे में स्थानान्तरण सायंकाल में करना क्यों लाभदायक है ?
उत्तर:
(क) बाढ़ के पानी में डूबे रहने से पौधों की अनेक क्रियाएँ प्रभावित होती हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन एवं श्वसन क्रियाएँ बन्द हो जाती हैं। जड़ों में श्वसन न हो पाने के कारण सक्रिय अवशोषण बन्द हो जाता है। रन्नों के बन्द हो जाने से गैसों का विनिमय (exchange of gases) नहीं हो पाता । अन्ततः पौधे की क्रियाएँ शिथिल होकर वह मर जाता।
(ख) समुद्र जलीय पौधे को अलवणीय जल में रखने पर इनमें अन्त: परासरण (endosmosis) होने लगता है जिससे इनकी कोशिकाएँ फटने लगती हैं।
(ग) पृष्ठाधारी पत्तियों (dorsiventral leaves) के एक ओर अधिक तथा दूसरी ओर कम प्रकाश पड़ता है। इसकी पृष्ठ सतह पर मोटी उपचर्म (cuticle) होती है और रन्ध्रों (stomata) की संख्या भी कम होती है। अतः इन पत्तियों की पृष्ठ सतह से वाष्पोत्सर्जन कम तथा अधर सतह से अधिक होता है।
(घ) सायं के समय पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थ विलेय अवस्था में आकर निचले भागों में अधिक पहुँचता है। इसी कारण शीर्षो पर वृद्धि की दर भी सायंकाल में बढ़ जाती है। अतः पौधे को जमने में अधिक समय नहीं लगता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए – (क) परासरण दाब, (ख) प्लानि या मुर्झाना।
उत्तर:
(क) परासरण दाब (Osmotic Pressure):
परासरण दाब दो भिन्न-भिन्न सान्द्रता वाले विलयनों के बीच रखी गई अर्द्धपारगम्य झिल्ली के दोनों ओर वाले उच्चतम विसरण दाब ( diffusion pressure) को कहते हैं। परासरण दाब के कारण ही अर्द्धपारगम्य झिल्ली के दोनों ओर परासरण की क्रिया होती है। परासरण दाब को वायुमण्डलीय दाब ( atm) में मापा जाता है। यह विलेय अणुओं के अनुक्रमानुपाती होता है। विलेय की मात्रा बढ़ाने पर यह बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, “किसी विलयन का परासरण दाब (OP) वह दाब है जो उस विलयन को अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक से पृथक् करने पर अधिक सान्द्रता वाले विलयन में विलायक के परासरण (Osmosis) के कारण उत्पन्न होता है।”

(ख) ग्लानि या मुर्झाना (wilting):
अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन या जड़ों द्वारा कम जल अवशोषण के कारण पौधे में जल की कमी हो जाती है जिससे कोशिकाओं का स्फीति दाब (turgor pressure) कम हो जाता है। इसके कारण पत्तियाँ नीचे की ओर लटक जाती हैं। ऐसी स्थिति को ग्लानि या मुर्झाना (wilting) कहते हैं। जब पत्तियाँ दोपहर के समय मुर्झाती हैं तथा सायंकाल फिर सीधी हो जाती हैं तो इसे अस्थाई म्लानि कहते हैं। यदि मृदा में जल की कमी हो जाय तो यह स्थाई म्लानि में बदल सकती है। इस स्थिति में पौधा मर जाता है।

प्रश्न 6.
रन्ध्र तथा जलरन्ध्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रन्ध्र तथा जलरन्ध्र में अन्तर –

रन्य (Stomata)जलरन्य (Hydrathodes)
रन्ध्र (stomata) पौधों के वायवीय अंगों (पत्ती, कोमल तने) आदि पर मिलते हैं।जलरन्ध्र (hydrathodes) केवल कुछ पत्तियों पर मिलते हैं।
ये पत्ती, दल आदि की ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचा (upper or lower epidermis) पर मिलते हैं।ये केवल पत्ती के किनारे (margin) पर मिलते हैं।
इनमें रक्षक कोशिकाएँ (guard cells) पायी जाती हैं।इनमें नहीं मिलती हैं।
रक्षक कोशिकाओं क्लोरोप्लास्ट मिलता है।जलरन्ध्र (hydrathodes) को घेरने वाली कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट नहीं मिलता है।
रन्ध्र स्फीति तथा श्लथ (flaccid) दशा में खुलते तथा बन्द होते हैं।जलरन्ध्र्र हमेशा खुले रहते हैं।
केवल, शुद्ध जल बाहर वाष्प (vapour) बनकर निकलता है।जल द्रव के रूप में निकलता है तथा उसमें शर्करा, खनिज आदि मिले होते हैं।
रन्ध्र के नीचे रन्ध्रीय गुहा (stomatal cavity) पायी जाती है।जलरन्द्र के नीचे की ओर एपीथेम कोशिकाएँ मिलती हैं।
रन्ध्र का शिरा से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।यह शिरा के अन्त में बनते हैं।

प्रश्न 7.
वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुख्तावण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में अन्तर

वाघ्मोत्सर्जन (Transpiration):बिन्दुसावण (Guttation):
यह क्रिया दिन में होती है।यह क्रिया रात में होती है।
पानी वाष्प बनकर उड़ता है। यह क्रिया रन्ध्रों (stomata) द्वारा होती है।पानी द्रव के रूप में निकलता है।
वाष्पोत्सर्जित (transpirated) जल शुद्ध होता है।यह जलरन्ड्रों (hydrathodes) द्वारा होती है जो शिराओं के अन्त में स्थित होते हैं।
यह क्रिया रन्ध्रों (stomata) से नियन्त्रित हैं।बिन्दु श्रावित जल अशुद्ध होता है परन्तु इसमें खनिज तथा शर्करा आदि पाए जाते हैं।
यदि सतह का तापमान घटा दिया जाय तो वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की क्रिया धीमी पड़ जाती है।यह क्रिया अनियन्त्रित है।

प्रश्न 8.
निक्किय व सक्रिय खनिज अवशोषण में अन्तर लिखिए। उत्तरि्क्रिय व सक्रिय खनिज अवशोषण में अन्तर
उत्तर:

निक्क्रिय खनिज अवशोषण (Passive Mineral Absorption)सक्रिय खनिज अवशोषण (Active Mineral Absorption)
इसमें ऊर्जा की आवशयकता नहीं होती है।इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
यह कोशिका कला से अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होता है ।यह कोशिका कला द्वारा सान्द्रण प्रवणता (concentration gradient) के विरुद्ध कम रासायनिक विभव से अधिक की ओर होता है।
यह कोशिका भित्ति व रिक्तिका (vacuole) के मध्य उपस्थित कोशिकाद्रव्य से होता है।यह कोशिका कला तथा रिक्तिका कला (tonoplast) द्वारा होता है।
इसे सामान्यतः पम्प नहीं कहते हैं।इसे सामान्यतः पम्प कहते हैं।
यह क्रिया अचानक होती है तथा सन्तलन होने तक चलती है।इस क्रिया में किसी प्रकार का सन्तुलन स्थापित नहीं होता है।

प्रश्न 9.
निष्क्रिय अवशोषण तथा सक्रिय जल अवशोषण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
निक्क्रिय व सक्रिय जल अवशोषण में अन्तर

निक्किय जल अवशोषण (Passive water Absorption):सक्रिय जल अवशोवण (Active Water Absorption):
क्रियात्मक विभव पौधे के वायवीय भागों में उत्पन्न होता है।इसके लिए क्रियात्मक विभव मूल की कोशिकाओं में उत्पन्न होता है।
तेजी से वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जाइलम वाहिनियों में वाष्पोत्सर्जन खिंबचाव उत्पन्न होता है।जड़ें धीमी गति से जल को भमि से परासरित करती रहती हैं और दारु वाहिनियों में भेजती रहती हैं।
वह खिंचाव मूलीय जाइलम (xylem) में पहुँचा दिया जाता है।अतः मूलदाब (root pressure) उत्पन्न होता है।
जड़ें निक्रिय अवशोषण तल का कार्य करती हैं।यह क्रिया धीमी गति से वाष्पोत्सर्जन करते हुए पादप के जाइलम (xylem) पर पर्याप्त दाब बनाती है।
अवशोषण मूल के माध्यम से होता है।अवशोषण मूल के द्वारा होता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –
(क) बिन्दुस्राव
(ख) रसस्राव।
उत्तर:
बिन्दुस्राव (Guttation ) – पत्तियों के किनारों (Margins) जल की छोटी-छोटी बूंदों का स्रावण (Secretion) बिन्दुस्राव कहलाता है। छिद्र कोशिका से अरबी (Colocasia ), टमाटर, आलू, घास आदि शाकीय पौधों की पत्तियों में यह क्रिया प्रातः काल के समय स्पष्ट देखी जा सकती है। इनमें पत्तियों के किनारों पर सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें जलरन्ध्र (hydrathodes) कहते एपीथेम वाहिका हैं। इन जलरन्ध्रों में एपीथेम (epithem) कोशिकाएँ पायी जाती हैं जो जाइलम से जल ग्रहण करके जलरन्ध्रों से होकर इसे बूंदों के रूप में बाहर निकालती हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 1
रसस्राव (Latex secretion) – पौधे के किसी क्षतिग्रस्त या कटे हुए भाग से जल सदृश रस या लैटेक्स (latex) का बाहर निकलना रसस्राव कहलाता है। पाम (palm) के पौधे में यह फ्लोएम से होता है। कनेर (Nerium), आम आदि में यह स्राव लैटेक्स (latex) के रूप में होता है।

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(E) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions )

प्रश्न 1.
परासरण किसे कहते हैं ? किसी एक प्रयोग द्वारा परासरण क्रिया प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
परासरण (Osmosis):
faeft अर्द्धपारगम्य (semi- permeable) कला से होकर एक विलयन से दूसरे विलयन की ओर जल के अणुओं के विसरण को परासरण ( osmosis) कहते हैं। जल के अणुओं का यह विसरण कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर होता है। परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है –
1. बहि: परासरण (Exosmosis) – कोशिका को किसी सान्द्र विलयन ( अतिपरासारी) में रखने पर कोशिका के अन्दर से जल बाह्य विलयन में जाने लगता है, इसे बहि: परासरण (exomosis) कहते हैं। जैसे- अंगूर को शर्करा या नमक के गाढ़े घोल में रखने पर यह सिकुड़ जाता है।

2. अन्तःपरासरण (Endosmosis) – कोशिका को आसुत या शुद्ध जल (अल्पपरासारी) में रखने पर जल के अणु कोशिका में प्रवेश करते हैं, इसे अन्त:परासरण (endosmosis) कहते हैं। जैसे- किशमिश (dry grapes) को जल में रखने पर ये जल अवशोषित कर फूल जाते हैं।

परासरण का प्रदर्शन (Demonstration of Osmosis)
अण्डे का ऑस्मोमीटर (Egg Osmometer ) – मुर्गी का साबुत अण्डा (egg) लेकर इसमें छोटा-सा एक गोल छेद करके इसका अन्तःपदार्थ निकाल देते हैं। अब अण्डे के खोल को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) में कुछ देर रखते हैं। जिससे इसका कैल्शियम कार्बोनेट का बना कड़ा घोल घुल जाता है और जीवद्रव्य कला बचती है। जीवद्रव्य कला को कांच की एक नली को कला में उपस्थित छिद्र में डालकर बाँध देते हैं। अब इस कला में चीनी का गाढ़ा घोल भरकर इसे जल से भरे बीकर में चित्रानुसार रखकर स्टैण्ड से कस देते हैं। कुछ समय बाद हम देखते हैं कि काँच की नली में जल का तल काफी ऊपर चढ़ गया है। इससे स्पष्ट है कि जीवद्रव्य कला से होकर जल के अणु अन्तःपरासरण (endosmosis) द्वारा अण्डे की झिल्ली के अन्दर घोल में प्रवेश करते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 2

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –
(क) आयन विनिमय
(ख) डोनन साम्यावस्था
(ग) वाहक संकल्पना
(घ) बेनेट क्लार्क का प्रोटीन लेसीथिन सिद्धान्त
(ङ) खनिज स्थानान्तरण।
उत्तर:
1. आयन विनिमय (Ion Exchange) – मृदा में खनिजों का अवशोषण आयनों (ions) के रूप में होता है। ये आयन मूलरोम (root hairs) की सतह पर अधिशोषित होते हैं तथा उनका विनिमय अपने ही प्रकार के आयनों से हो जाता है। यह क्रिया निम्न दो प्रकार से होती है-
(a) सम्पर्क आयन विनिमय (Contact Ion Exchange) – मृदा के कणों पर उपस्थित आयन जड़ की सतह पर उपस्थित आयनों के सम्पर्क में आकर बदल जाते हैं।
(b) काबोंनिक अम्ल विनिमय (Carbonic Acid Exchange)- जड़ों द्वारा श्वसन प्रक्रिया में छोड़ी गयी CO2मृदा जल से क्रिया करके कार्बोनिक अम्ल H2CO3 बनाती हैं। कारोनिक अम्ल H+तथा HCO3आयनों में टूट जाता है। H+ मृदा में उपस्थित दूसरे विद्युत धनात्मक तत्वों से मिलकर पौधों द्वारा अवशोषित होते
2. डोनन-साम्यावस्था (Donnan’s Equilibrium)-ऐसे आयन जो कोशिका कला से बाहर नहीं आ सकते, स्थिर आयन (fixed ions) कहलाते हैं। कोशिका कला धनात्मक +ve तथा ऋणात्मक -ve दोनों प्रकार के आयनों को भीतर आने दे सकती है। सामान्यतः कोशिका में कला से होकर जितने आयन प्रवेश करते हैं उतने ही
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दूसरे प्रकार के आयन बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार आयनों की स्थिति सन्तुलित बनी रहती है, जो – ve आयन कोशिका से बाहर नहीं जा सकते उनके लिए +ve आयन बाहर से आते हैं। इस प्रकार अन्दर प्रवेश करने वाले + ve आयन की संख्या – ve आयनों से अधिक होती है। यदि स्थिर आयन + ve हैं तो अन्दर प्रवेश करने वाले – ve आयन्स की संख्या अधिक होगी। इसे डोनन साम्यावस्था कहते हैं।
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3. वाहक संकल्पना (Carrier Concept) कोशिका कला में मुक्त आयनों के विनिमय के लिए वाहक मिलते हैं, जो आयनों से मिलकर वाहक आयन समिश्र (Carrier Ion Complex) बनाते हैं। ये वाहक (Carriers) उन आयनों को कोशाकला से पार ले जाते हैं। ये वाहक (Carriers) सक्रिय अवशोषण (Active absorption) करते हैं। आयन्स का अवशोषण केवल संतृप्त दशा तक होता है।

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(घ) बैनेट-क्लार्क का प्रोटीन लेसीथिन सिद्धान्त (Protein Lecithin Theory of Bennet Clark) – बेनेट तथा क्लार्क (1956) ने कोशिका कला में प्रोटीन तथा फॉस्फोलिपिड की उपस्थिति को बताया। जहाँ प्रोटीन लैसीथिन (फॉस्फोटाइड) से बन्धित होते हैं। इनमें उपस्थित फाँस्फेट समूह + ve आयनो का बाँधता है जो कला के अन्दर की ओर लैसीथिनेज़ (lacithinase) विकर की क्रिया से मुक्त होते हैं। लेसीथिन का संश्लेषण पुनः कोलीन एसीटाइलेज (cholineacetylase) विकर की उपस्थिति में फॉस्फेटिडिक अम्ल (phosphatidic acid) एवं कोलीन (choline) से होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 18

खनिज आयनों का स्थानान्तरण (Translocation of Mineral Ions) – जब आयन सक्रिय या निक्क्रिय उद्र्रहण से या फिर दोनों की सम्मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से जाइलम में पहुँच जाते हैं, तब उनका परिवहन पादप तने एवं सभी भागों तक वाष्पोत्सर्जन प्रवाह के माध्यम से होता है। खनिज तत्वों के लिए मुख्य कुंड पौधे की वृद्धि का क्षेत्र होता है जैसे कि शिखाग एवं पार्श्व विभज्योतक (meristems), तरुण पत्तियाँ, विकासशील फूल, फल एवं बीज तथा भंडारण अंग। खनिज आयनों का विसर्जन महीन शिराओं के अन्तिम छोर पर कोशिकाओं के द्वारा विसरण एवं सक्रिय उद्ग्रण से होता है। खनिज आयनों को जल्दी ही पुनः संघटित विशेष रूप से पुराने जरावस्था (senescing) वाले भाग से किया जाता है। पुरानी तथा मरती हुई पत्तियाँ अपने भीतर के खनिजों को नई पत्तियों में निर्यातित (export) कर देती है।
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ठीक इसी प्रकार से पत्तियाँ पर्णपाती वृक्ष (deciduous tree) से झड़ने से पहले अपने खनिज तत्त्वों को अन्य भागों को दे देती हैं। जो पदार्थ प्रायः त्वरित संचारित या संघटित होते हैं, वे हैं फॉस्फोरस, सल्फर, नाइट्रोजन तथा पौटेशियम। कुछ तत्व जो कि संरचनात्मक कारक होते हैं, जैसे कि कैल्सियम इन्हें पुनः संघटित नहीं किया जाता है। जाइलम स्राव का विश्लेषण यह दर्शाता है कि कुछ नाइट्रोजन अकार्बनिक आयनों के रूप में ढोए (carried) जाते हैं। इसी तरह फॉस्फोरस एवं सल्फर भी कार्बनिक यौगिकों के रूप में पहुँचाए जाते हैं। इसके अलावा जाइलम एवं फ्लोएम के बीच भी पदार्थों का आदान-्रदान होता है। अतः हम स्पष्ट रूप से अन्तर नहीं कर पाते कि जाइलम केवल अकार्बनिक पोषकों का परिवहन करता है तथा फ्लोएम कार्बनिक पदार्थों का, जैसा कि पहले विश्वास किया जाता है।

प्रश्न 3.
विसरण दाब न्यूनता से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
पौधों की कोशिका में विसरण दाब न्यूनता, परासरण दाब, स्फीति दाब एवं भित्ति दाव में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
1. परासरण दाब (Osmotic Pressure or OP)-परासरण दाब (O P) वह दाब है जो किसी विलयन पर बाहर से अनुप्रयुक्त करने पर विलायक के उस परासरण को रोकती है जो उस विलयन (solution) को उसके विलायक (solvent) से अर्द्धपारगम्य कला द्वारा पृथक् करने पर विलयन की ओर होता है। दूसरे शब्दों में, किसी भी विलयन को उसके विलायक (जल) से अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक् करने पर विलयन में उत्पन्न होने वाले अधिकतम दाब को परासरण दाब (OP) कहते है। किसी विलयन का परासरण दाब (OP) विलायक में उपस्थित विलेय पदार्थ के अणुओं की संख्या के समानुपाती होती है। किसी कोशिका में परासरण दाब (OP) तथा स्फीति दाब (TP) दोनों परासरण क्रिया के कारण उत्पन्न होते हैं। कुछ पदार्थों में जल का परासरण दाब (OP) सदैव शून्य होता है। जल का प्रवाह सदैव कम परासरी सान्द्रता से अधिक परासरी सान्द्रता की ओर होता है। परासरण दाब मापने के लिए ओस्मोमीटर (osmometer) नामक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।
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2. आशून या स्पीति दाब (Turgor Pressure TP) – किसी भी कोशिका में कोशिकाद्रव्य तथा कोशिकांग कोशिकाकला (plasmalemma) द्वारा घिरे रहते हैं। कोशिका झिल्ली के बाहर कोशिकाभित्ति (cell wall) होती है जो सेल्युलोज की बनी होती है जब किसी पादप कोशिका को जल में रखा जाता है तो जल कोशिका की रिक्तिका में रस का परासरण दाब (OP) अधिक होने लगता है, क्योंकि बाहर से जल के अणु कोशिका में विसरित होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप जीवद्रव्य कला या प्लाज्मालेमा कोशिकाभित्ति पर दबाव डालने लगती है जिसे आशून या स्पीति दाब्ब (TP) कहते हैं।

3. भित्ति दाब (Wall Pressure ; WP) – कोशिकाभित्ति मजबूत होती है जिसके फलस्वरूप स्फीति दाब के समान किन्तु विपरीत दिशा में जीवद्रव्य पर कोशिका भित्ति एक दाब उत्पन्न करती है अर्थात् स्फीति दाब (TP) का विरोध करती है, इसे भित्ति दाब (WP) कहते हैं। भित्ति दाब (WP) तथा स्फीति दाब (TP) के कारण ही कोशिकाएँ आशून (turgid) रहती हैं और आशून दाब (TP) के कम होने पर ही पत्तियाँ मुरझाती हैं।

विसरण दाब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit):
जीवित कोशिकाएँ प्रायः परासरण मापी (osmometer) के रूप में कार्य करती हैं। पादप कोशाभित्ति पूर्णत: पारगम्य (permeable) होती है। अतः ये शरीर क्रियात्मक दृष्टि से अधिक उपयोगी नहीं हैं, परन्तु यह कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती हैं। कोशाभित्ति के अन्दर की ओर अर्द्धपारगम्य कला (semipermeable membrane) होती है। पादप कोशिकाओं (plant cells) में एक बड़ी रसधानी (vacuole) होती है जिसमें कोशिका रस (cell Sap) भरा होता है। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) को रसधानी से अलग करने वाली झिल्ली टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहलाती है। यह भी प्लाज्माकला (plasma membrane) के समान होती है। कोशिका के परासरण (osmosis) के लिए आवश्यक दशाएँ होती हैं।
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जब कोशिका को जल में रखा जाता है तो इसके द्वारा जल अवशोषण (absorption) के कारण स्फीति दाब (TP) बढ़ता है और साथ ही भित्ति दाब (WP) भी बढ़ता जाता है। साम्यावस्था स्थापित होने पर स्फीति दाब (TP) परासरण दाब के बराबर होता है।
परासरण दाब = स्फीति दाब
OP = TP
OP – TP = 0
साम्यावस्था स्थापित होने से पूर्व परासरणी दाब (OP) एवं स्पीति दाब (TP) के कारण जल के अणु कोशिका में प्रवेश करते हैं। अतः जल का कोशिका के अन्दर प्रवेश करना अथवा न करना इन दोनों दाबों के अन्तर पर ही निर्भर करता है। अतः वह शक्ति जो कोशिका में जल (अथवा विलायक) के अणुओं के आने-जाने को नियत्रित करती है, उसे विसरण दाव्ब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit : DPD) कहते हैं। इसे कोशिका का चूष्ण दाब (Suction Pressure; SP) भी कहते हैं।
विसरण दाब न्यूनता = परासरण दाब – स्फीति दाब
DPD (SP) = OP – TP
चूँकि साम्यावस्था में OP = TP
इसलिए इस स्थिति में विसरण दाब न्यूनता
DPD = 0
श्लथ (Flaccid) कोशिका का स्फीति दाब (TP) शून्य होता है तथा ऐसी
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स्थिति में कोशिका रस का परासरण दाब (OP) विसरण दाब न्यूनता (DPD) के बराबर होता है।
यदि TP = 0 हो, तो
DPD = OP
जब कोशिका को अल्पपरासरी विलयन (hypotonic solution) में रखा जाता है तो स्फीति दाब (TP) धीरे-धीरे बढ़ने लगता है साथ ही परासरण दाब (OP) कम होने लगता है। स्फीति दाब के बढ़ने तथा परासरण दाब के कम होने से DPD भी कम होता रहता है। जब कोशिका पूर्ण रूप से स्सीति (turgid) होती है तब OP, TP के बराबर हो जाता है। उस समय DPD का मान शून्य होता है।

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प्रश्न 5.
मूलदाब किसे कहते हैं ? चित्र द्वारा मूल दाब का प्रदर्शन के लिए एक प्रयोग लिखिए।
उत्तर:
मूल दाब्ब सिद्धात (Root Pressure Theory) – सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (1727) ने मूल दाब (Root Pressure) शब्द का प्रयोग किया था। मूलरोम मृदा से जल अवशोषित करते हैं। वल्कुट कोशिकाएँ (cortical cells) मूलरोमों (root hairs) से जल प्रहण करके जाइलम वाहिनियों (xylem vessels) में अत्यधिक दबाव के साथ पहुँचाती हैं, इस दाब को मूलदाब (root pressure) कहते हैं।

मूल दाब का प्रदर्शन निम्न प्रयोग द्वारा किया जा सकता है –
मूलदाब का एक प्रयोग द्वारा प्रदर्शन (Demonstration of Root Pressure by an Experiment) – गमले में लगा एक छोटा पौधा लेकर इसे जल से भरी एक नाद में रख देते हैं। जल के अन्दर ही पौधे को मिट्टी से 7.8 cm ऊपर से तेज चाकू से काटकर ऊपरी भाग अलग कर देते हैं। तने के कटे हुए सिरे पर रबर की सहायता से काँच की एक नली लगा देते हैं। उपकरण को चित्रानुसार स्टैण्ड में कस देते हैं। काँच की नली के स्थान पर मैनोमीटर (manometer) भी लगाया जा सकता है।

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मैनोमीटर की U नली में पारा Hg भरा होता है। रबर की नली के अन्दर तथा मैनोमीटर के शेष भाग में जल भर लेते हैं। उपकरण को चित्रानुसार स्टैण्ड में कस देते हैं। मैनोमीटर के स्केल पर जल या पारे का तल प्रयोग प्रारम्भ करने से पहले तथा प्रयोग समाप्त होने के बाद पढ़ लेते हैं। मैनोमीटर की खड़ी भजा में पारे का तल में वृद्धि दाब को प्रदर्शित करता है। कटे हुए तने की जाइलम वाहिनियों से मूलदाब (root pressure) के कारण जल रबर की नली में उपस्थित जल में आता है, जिससे मैनोमीटर में पारे का तल ऊपर की ओर बढ़ जाता है।

2. जैव शक्तिवाद (Vital Force Theory) – रसारोहण की क्रियाविधि को समझाने के लिए भारतीय वनस्पति विज्ञानी सर जे. सी. बोस (Sir J. C. Bose) ने 1923 में जैविक शक्तिवाद प्रस्तुत किया। इसे बोस का स्पद्दन सिद्धान्त (Bose’s Pulsation Theory) भी कहते हैं। इन्होंने रसारोहण की क्रिया को स्वनिर्मित क्रिस्कोग्राफ उपकरण द्वारा प्रदर्शित किया। ड्वाक्टर बोस ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि तने की सबसे भीतरी कारेंक्स की कोशिकाओं में स्पन्दन गति (pulsation movement) होती है, जिसके कारण रसारोहण होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।

3. भौतिक बल सिद्धांत (Physical Force Theory):
इस वाद के अनुसार रसारोहण की क्रिया निर्जीव कोशिकाओं में ही होती है, अनेक वैज्ञानिकों ने इसका समर्थन किया है। इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं –
(i) कोशिका बल सिद्धातत (Capillary Force Theory) – वोहम (1809) के मतानुसार जाइलम की वाहिकाएँ केशिका नली की भांति कार्य करती हैं जिनमें जल केशिका बल (capillary force) के कारण ऊपर चढ़ता है, किन्तु इस मत को मान्यता प्राप्त नहीं हो सकी क्योंकि वाहिकाओं का व्यास इतना कम नहीं होता और न ही इस के अनुसार जल पौधों की इतनी ऊँचाई तक पहुँच सकता है।
(ii) अन्त:शोषणवाद (Imbibition Theory) – सेक्स (1878) के अनुसार जाइलम वाहिनियों में जल अन्तःशोषण के कारण चढ़ता है परन्तु यह मत भी मान्य नहीं है।
(iii) वाद्योत्सर्जन खिंचाव एवं डिक्सन का ससंजनवाद (Transpiration Pull and Dixon’s Theory of Cohesion)
इस मत के अनुसार पौधों में लगातार वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जल ऊपर चढ़ता रहता है तथा खड़ी दिशा में पानी का स्तथ (water column) टूटता नहीं है। इस मत को डिक्सन तथा जौली (1894) ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया।
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इस सिद्धान्त को निम्न तीन भागों में समझा जा सकता है –
(i) वाप्योत्सर्जन कर्षण (Transpiration Pull) – पौधों में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की क्रिया द्वारा जल की कमी होने से पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं (mesophyll cells) में भी जल की कमी हो जाती है। यह कमी जाइलम द्वारा जल की आपूर्ति से पूर्ण की जाती है। जाइलम में जल की कमी या विसरणदाब न्यूनता (DPD) से एक खिंचाव या तनाव उत्पन्न होता है जिसे वायोत्सर्जन कर्षण (transpiration pull) कहते हैं। यह कर्षण पत्ती के जाइलम से जड़ों के जाइलम तक उत्पन्न होता जाता है। यह कर्षण ॠणात्मक खिंचचाव कहलाता है, क्योंकि यह वायवीय भाग.से भूमिगत भाग की ओर उत्पन्न होता है तथा वाष्पोत्सर्जन के कारण उत्पन्न होता है।

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(ii) जल का संसंजक बल (Cohesive Force of Water)-जल के अणुओं के बीज एक प्रबल बल कार्य करता है जिसे संसंजक बल (cohesive force) कहते हैं। इस बल के कारण जल के अण अधिक मजबती से ज़ड़े रहते हैं तथा जल के अणुओं को पृथक् करना कठिन होता है। जल के अणुओं तथा कोशिका भित्ति (cell wall) के बीच उत्पन्न बल को आसंजक बल (adhesive Force) कहते हैं। ये दोनों बल जाइलम कोशिका में एक साथ कार्य करते हैं जिससे जल स्तंभ की निरन्तरता बनी रहती है।

(iii) जल स्तम्भ की निरन्तरता (Continuity of Water Column) – जल का स्तम्भ जाइलम कोशिका की गुहा (lumen) में लगातार बनता है, जो आसानी से नहीं टूटता है।
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डिक्सन तथा जौली ने निष्कर्ष निकाला कि –
(a) पौधों में पत्तियों द्वारा निरन्तर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) होता रहता है जिससे वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (transpiration pull) उत्पन्न होता है।
(b) पानी में अणुओं को अत्यन्त बल के साथ जकड़े रहने का गुण होता है जिसे संसजन शक्ति कहते हैं। इसी गुण के कारण पानी यूकेलिप्टस जैसे ऊँचे वृक्षों में 120 फीट तक चढ़ सकता है।

प्रश्न 6.
वाष्पोत्सर्जन से आप क्या समझते हैं ? वाष्पोत्सर्जन के प्रदर्शन के लिए बेलजार प्रयोग को समझाइए। वाष्पोत्सर्जन को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
वाष्योत्सर्जन (Transpiration) – पौधों के वायवीय भागों से जल का वाष्प के रूप में उड़ना वाष्योत्सर्जन (Transpiration) कहलाता है। पोधे जितना जल मृदा (soil) से प्रहण करते हैं, उसका केवल 1% भाग ही पौधे की उपापचयी क्रियाओं में प्रयक्त होता है। शेष जल वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में उड़ जाता है। वाष्पोत्सर्जन (transpiration) पौधों का आवश्यक दुर्गुण (necessary evil) है।

वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार का होता है-
(i) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal Transpiration)-यह रन्ध्रों द्वारा एवं कुल वाष्पोत्सर्जन का लगभग $98 \%$ होता है।
(ii) उपत्वचीय वाष्पोत्रर्जन (cuticular Trans- piration)-यह पौधे की वायवीय उपत्वचा (cuticle) द्वारा होता है। यह केवल 1.8% होता है।
(iii) लेन्टीकुलर वाष्पोत्सर्जन (Lenticular Trans- piration)-यह लेन्ओसेल्स (lenticells) द्वारा होता है। यह केवल 0.2% होता है।

प्रयोग : बेलजार प्रयोग द्वारा वाप्योत्सर्जन क्रिया का प्रदर्शन –
गमले में लगे एक स्वस्थ पौधे को लेकर इसमें पर्याप्त मात्रा में जल डालते हैं। अब गमले को मिट्टी की सतह के ऊपर पॉलीधिन से इस प्रकार बाँधते हैं कि पौधे का प्ररोह बाहर रहे जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। अब गमले को काँच की प्लेट पर रखकर इसके ऊपर काँच का
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वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Transpiration)
(अ) बाह्य कारक (External factors):
1. वायुमण्डलीय आपेक्षिक आर्द्रता (Relative humidity of atmosphere)वायुमण्डल में आर्द्रता कम होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अधिक होता है। नम वातावरण होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर घट जाती है।
2. प्रकाश (Light)-प्रकाश की उपस्थिति में रन्ध्र (stomata) खुलते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अंधिक होता है। रन्ध्र बन्द होने की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
3. वायु (Wind) – तीव्र वायु वेंग की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) बढ़ जाता है ।
4. तापक्रम (Temperature) – ताप बढ़ने से आपेक्षिक आर्द्रता कम हो जाती है तथा वायुमण्डल अधिक नमी ग्रहण कर सकता है। इससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
5. मृदा जल (Soil water) – मृदा में जल की कमी होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कम हो जाता है।

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(ब) आन्तरिक कारक (Internal factors) – पत्तियों की संरचना, रन्ध्रों की संरचना एवं प्रकार, रन्ध्रों (Stomata) की संख्या, जाइलम एवं मूलरोम की संरचना आन्तरिक कारक हैं। ये वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं।

वाप्योत्सर्जन की उपयोगिता (Importance of Transpiration):
1. जल एवं खनिजों के अवशोषण के लिए वाष्पोत्सर्जन एक खिंचाव (pull) उत्पन्न करता है
2. इससे मृदा जल विभिन्न पादप अंगों में खनिजों का वितरण करता है।
3. इसके द्वारा पत्तियों का ताप अपेक्षाकृत कम रहता है।
4. अतिरिक्त जल पौधों से बाहर निकलता है।
5 कोशिकाओं की स्फीति बनी रहती है।

प्रश्न 7.
रन्धों के खुलने तथा बन्द होने की मण्ड शर्करा परिकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि (Mechanism of Stomatal Opening and Closing):
द्वार कोशिकाओं की स्फीति अवस्था (turgidity) तथा श्लथ अवस्था (flaccidity) पर रन्द्रों का खुलना एवं बन्द होना निर्भर करता है। द्वार कोशिकाओं (guard cells) की परासरण सान्द्रता अधिक होने पर इनमें पानी प्रवेश करता है और कोशिका में स्फीति दाब (TP) बढ़ जाता है जिससे बाहर की भित्ति पर दबाव पड़ने से रन्ध्र खुल जाते हैं। इसके विपरीत जब द्वार कोशिका से पानी निकल जाता है तो कोशिकाएँ श्लथ (flaccid) हो जाती हैं और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। रन्ध्र के बंद होने तथा खुलने की क्रिया पर प्रकाश तथा अन्धकार का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त पानी की उपस्थिति, कोशिका रस की सान्द्रता, CO2 सान्द्रता, आदि भी इस क्रिया को प्रभावित करते हैं।

वॉन मोल (Von Mohl) ने 1856 में देखा कि यदि द्वार कोशिका (guard cells) की बाब्य त्वचा को जल के सम्पर्क में रखा जाता है तो रन्धु (stomata) खुल जाते हैं और यदि इसे शर्करा के घोल के सम्पर्क में रखा जाए तो रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। हीथ (Heath) ने 1958 में बताया कि एक ओर की द्वारक कोशिका में एक बारीक छिद्र कर दिया जाए तो रन्ध्र एक तरफ से बन्द हो जाता है। अत: इससे सिद्ध होता है कि रन्ध्र केवल स्फीति दिशा में ही खुलते हैं। CO2 की सान्द्रता बढ़ने से रन्ध्र बन्द हो जाते हैं तथा कम होने पर एवं पानी की मात्रा बढ़ने पर रन्ध्र खुलते हैं। लगभग 30 C तापमान पर रन्ध्र खुलते हैं।

मण्ड शर्करा ⇔ अन्तरा परिवर्तन संकल्पना
(Starch ⇔ Sugar Interconversion Hypothesis)

यह संकल्पना जे. डी. सायरे (1923) ने प्रस्तुत की थी तथा इसे स्टीवार्ड ने 1964 में रूपान्तरित किया था। इस संकल्पना के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैंप्रकाश में (In Light)
(i) दिन (प्रकाश) में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है, जिसमें अन्तराकोशिकीय स्थानों में उपलब्ध श्वसनीय CO2 का उपभोग होता है।
(ii) इसके परिणामस्वरूप कोशिका रस में H+ सान्द्रता कम हो जाता है तथा रक्षक कोशिकाओं में pH मान बढ़ जाता है।
(iii) उच्च pH (7 cdot 0) फॉस्फोरिलेस एन्जाइम की क्रियाशीलता बढ़ाता है जो कि स्टॉर्च को ग्लूकोस-1-फॉस्फेट में बदलता है।
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(iv) ग्लूकेस-1-फॉस्फेट, फॉस्फोग्लूकोम्यूटेस एन्जाइम की उपिस्थिति में ग्लूकोस-6-फॉस्फेट में बदल जाता है।
ग्लूकोस-6-फॉस्फेट → ग्लूकोस + फॉस्फेट
(v) ग्लूकोस-6-फॉस्फेट फॉस्फेटेस एन्जाइम की सहायता से ग्लूकोस तथा फॉस्फेट में बदल जाता है।
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(vi) ग्लूकोस तथा फॉस्फेट माध्यम में घुलकर कोशिका रस की सान्द्रता बढ़ा देते हैं।
(vii) सान्द्रता बढ़ने से रक्षक कोशिकाओं का OP बढ़ जाता है तथा जल विभव कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में परिवेश की कोशिकाओं से जल आ जाता है तथा रक्षक कोशिकाएँ स्फीति दशा में आकर फल जाती है एवं रन्ध खल जाते हैं।

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अन्धकार में (In dark):
(i) अन्धकार में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। उपरन्द्रीय गुहा (substomatal cavity) में श्वसनीय CO2 का स्तर बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में pH मान घट जाता है।
(ii) निम्न pH पर ग्लूकोस अणु हेक्सोकाइनेस एन्जाइम की उपस्थिति में ATP का प्रयोग करके ग्लूकोस-1-फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाते हैं।
ग्लूकोस + ATP हेक्सोकाइनेस ग्लूकोस-1-फॉस्फेट + ADP
(iii) ग्लूकोस-1-फॉस्फेट अणु फॉस्फोरिलेज एन्जाइम की उपस्थिति में स्टॉर्च में बदल जाता है।
ग्लूकोस-1-फॉस्फेट → स्टॉर्च
(iv) स्टॉर्च के संश्लेषण से कोशिका रस तनु हो जाता है क्योंकि घुलित ग्लूकोस अणुओं की खपत हो जाती है। इसके फलस्वरूप कोशिका रस का OP घट जाता है तथां जल विभव बढ़ जाता है। रक्षक कोशिकाएँ समीपस्थ कोशिकाओं को जल देकर स्लथ (flaccid) हो जाती हैं एवं स्टोमेटा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

सीमाएँ (Limitations) –
(i) शर्करा, स्टॉर्च अन्तरा परिवर्तन एक मन्द प्रक्रम है जो तीव्र स्टोमेटा गति को नहीं समझाता।
(ii) स्टॉर्च या अन्य बहुलीकृत पॉलीसैकेराइड प्याज के पौधों में नहीं पाए जाते हैं जबकि इनमें स्टोमेटा खुलते तथा बन्द होते हैं।
(iii) जब स्टोमेटा खुलते हैं तब रक्षक कोशिकाओं में ग्लूकोस की पहचान नहीं होती है।
(iv) स्टोमेटा के खुलते समय नीले प्रकाश की अत्यधिक प्रभाविता (extra effectiveness) को यह सिद्धान्त नहीं समझाता है।

2. प्रोटॉन स्थानान्तरण अवधारणा (स्टोमेटा की गति में K+की भूमिका) (Proton Transport Concept (Role of K+ in Stomatal Movement) इस सिद्धान्त को लेविट (1974) ने प्रस्तावित किया था तथा रॉसके (1975) तथा बाउलिल (1976) ने परिमार्जित किया था।

इस सिद्धान्त का विवरण निम्नवत् है –
प्रकाश में (In Light):

(i) प्रकाश में स्टॉर्च लुप्त हो जाता है। सर्वप्रथम समस्त स्टॉर्च विशेषतः फॉस्फोईनोल पाइरूबिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। फॉस्फोईनोल पाइरूबिक अम्ल CO2 से संयुक्त होकर ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल तत्पश्चात् मैलिक अम्ल बनाता है।
(ii) रक्षक कोशिकाओं में कार्बनिक अम्ल यथा मैलिक अम्ल मैलेट आयन तथा H+ में वियोजित हो जाते हैं।
(iii) H+ एपीडर्मल कोशिकाओं तथा समीपस्थ कोशिकाओं में स्थानान्तरित हो जाते हैं तथा इनके विनिमय के फलस्वरूप H + आयन रक्षक कोशिकाओं में आ जाते हैं। इस प्रक्रम को आयन विनिमय (ion-exchange) कहते हैं।
(iv) K+ आयन मैलेट ऋणायनों से सन्तुलित होते हैं। K+ आयनों के लघु सान्द्रण को उदासीन करने के लिए कुछ Cl आयन भी म्रहण किए जाते हैं ।
(v) H+ -K +विनिमय एक सक्रिय प्रक्रम है, जिसके लिए ऊर्जा (ATP) की आवश्यकता होती है तथा ATP की आपूर्ति श्वसन या फोटोफॉस्फोरिलेशन से होती है।
(vi) रक्षक कोशिकाओं की रिक्तिका में K+ तथा मैलेट आयनों का बढ़ा सान्द्रण पर्याप्त परासरण दाब उत्पन्न करता है जिससे परिवेश की कोशिकाओं से जल अवशोषित हो सके।
(vii) जल के प्रवेश करने से रक्षक कोशिकाओं का स्फीति दाब बढ़ता है तथा रन्ध्र खुल जाते हैं।

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अन्धकार में (In dark)
(i) अन्धकार में उपरन्ध्रीय गुहा में CO2 सान्द्रण बढ़ जाता है क्योंकि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाती है तथा श्वसन लगातार होता रहता है।
(ii) उपरन्ध्रीय गुहा में CO2 के उच्च सान्द्रण से रक्षक कोशिकाओं की जीवद्रव्य कला के आधार प्रोटॉन प्रवणता (proton gradient) का रक्षण होता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में K+का सक्रिय स्थानान्तरण रुक जाता है।
(iii) रन्द्रों के बन्द होने की क्रिया में निरोधक हॉमोंन ऐब्सीसिक हॉमोंन भाग लेता है जो निम्न pH पर कार्य करता है। जैसे ही रक्षक कोशिकाओं का pH घटता है वैसे ही ऐब्सीसिक हॉमोंन रक्षक कोशिकाओं के विसरण तथा पारणम्यता को परिवर्तित करके K+प्रहण करने को रोकता है।
(iv) रक्षक कोशिकाओं में उपस्थित मैलेट आयन H+ से संयोग करके मैलिक अम्ल बनाते हैं। मैलिक अम्ल का आधिक्य PEP-कार्बोक्सिलेस की क्रियाशीलता घटाकर स्वयं के और अधिक संश्लेषण को रोकता है।
(v) इन परिवर्तनों के कारण आयनों की गति व्युक्कमित (reversed) हो जाती है, अतः रक्षक कोशिकाओं से K+आयन समीपस्थ कोशिकाओं में स्थानान्तरित हो जाते हैं।
(vi) रक्षक कोशिकाओं का परासरण दाब (OP) घट जाता है एवं जल रक्षक कोशिकाओं से परिवेश की कोशिकाओं में चला जाता है।
(vii) रक्षक कोशिकाएँ श्लथ (flaccid) हो जाती हैं तथा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
जल अवशोषण की क्रियाविधि को समझाइए।
अथवा
जड़ों द्वारा अवशोषण का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल अवशोषण (Water Absorption):
प्राय: पादपों में जल अवशोषण मूल पर उपस्थित मूलरोमों (root hairs) द्वारा होता है किन्तु कुछ पौधों में जल का अवशोषण पत्तियों तथा तनों द्वारा भी होता है। जलोद्भिदों (hydrophytes) में जल अवशोषण प्राय: सामान्य सतह द्वारा होता है। वुड (Wood; 1925) के अनुसार कुछ पौधे, जैसे-कोचिया, रेगोडिया आदि में जल का अवशोषण वायुमण्डल से होता है।
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पौधौं में जल अवशोषण ज़ड़ की सम्पूर्ण सतह से नहीं होता, अपितु मूल के सिरे (root tips) के समीप मूलरोमों द्वारा होता है। मूल के सिरों को चार प्रदेशों में बाँटा जा सकता है-
1. मूल गोप प्रदेश (Root Cap Zone) – यह मूल के सिरे पर एक आवरण के रूप में उपस्थित होता है। यह मूल के विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic zone) की मृदा की रगड़ से रक्षा करता है।
2. प्रविभाजी प्रदेश (Meristematic Zone)-यह मूल गोप के ठीक पीछे स्थित होता है, इसकी कोशिकाओं में विभाजन के कारण ही मूल की वृद्धि होती है।
3. दीर्घन प्रद्देश (Zone of Elongation)-इस प्रदेश की कोशिकाएँ लम्बाई में वृद्धि करती हैं।
4. मूलरोम प्रदेश (Root hair zone) – यह दीर्घन प्रदेश के ठीक पीछे का क्षेत्र होता है। इस पर अनेक एककोशिकीय मूलरोम (unicellular root hairs) पाये जाते हैं। इसी प्रदेश में मूल रोमों का सबसे अधिक जल का अवशोषण होता है। इस प्रदेश के पीछे परिपक्वन (maturation zone) प्रदेश होता है।

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पादपों में जल का पथ (Pathway of water in Plants) – मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल को जड़ में आन्तरिक संवहनी उतक तक पहुँचाने के लिए पौधों में निम्नलिखित दो पथ पाये जाते हैं –
1. एपोप्लास्ट पथ (Apoplast pathway) – जल मृदा से मूलरोम कोशिकाओं की कोशिका भित्तियों, वल्कुटी कोशिकाओं, (cortical cells) अन्तः़्वचा (endodermis), परिरम्भ, (pericycle) जाइलम मुदतक (xylem parenchyma) तथा जाइलम मार्गों तक पहुँचता है। चूँकि जाइलम मारों में जल पर अत्यांजक ऋणात्मक दाब होता है। अतः यह एपोप्लास्ट के मध्य से गुजरता हुआ मृदा से जल प्राप्त कर लेता है, यद्यपि अन्त:स्वचा (endodermis) की भुत्ति पूर्णतया पारगम्य नहीं होती है, क्योंकि इन पर अपारगम्य स्थूलन होता है जिन्हें कैस्पेरियन पट्टियाँ (casparian strips) कहते हैं। ये पट्टियाँ मोम सदूश सुबेरिन तथा लिग्निन युक्त होती हैं। अतः एपोप्लास्ट अन्तस्त्वचा (endodermis) तक ही क्रियाकारी होता है। अन्तस्वचा से होकर गुजरने के लिए जल को कोशिकाओं के एक किनारे से प्रविष्ट होकर दूसरे किनारे से निकलना होता है।

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2. सिम्लास्ट पथ (Symplast Pathway) – युवा मूल रोम प्रदेश में जाइलम वाहनियाँ पूर्णkूपेण खाली नहीं होती हैं वरन् इनमें जीवित कोशिकाद्रव्य की एक पतली परत पायी जाती है। यह परत एक केन्द्रीय गुहा के चारों ओर होती है जिसमें जल भरा होता है। कोशिकाद्रव्य की यह स्तरित परत जाइलम मृदूतक, परिम्भ, अन्तस्वचा, बल्कुट तथा मूलरोम कोशिकाओं से जीवद्रव्य तन्तुओं द्वारा जुड़ी रहती है। वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जाइलम में उत्पन्न तनाव से जल निक्रिय रूप से इन कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य की ओर गति करता है। कोशिकार्रव्यी प्रवाह (cytoplasmic flow) जल की गति को बढ़ाने में सहायक होता है ताकि यह प्रत्येक कोशिका से होता हुआ सुगमतापूर्वक गुजर सके। मृदा जल सिम्लास्ट में मूल रोम कोशाओं या अन्नस्वचा द्वारा प्रविष्ट होता है।

प्रश्न 9.
एक ऐसे प्रयोग का वर्णन कीजिए जिससे यह स्पष्ट किया जा सके कि वाष्पोत्सर्जन की क्रिया वातावरणीय कारकों द्वारा प्रभावित होती है. –
उत्तर:
वातावरणीय कारकों का अध्ययन (Study of environmental factors)
(i) यदि उपकरण को छायादार एवं नम स्थान पर रखा जाय तो वहाँ नमी की अधिकता के कारण वाष्तोर्सर्जन (transpiration) कम होगा और बुलबुला कम दूरी खिसकेगा।
(ii) यदि उपकरण को धूप में रखा जाय तो यहाँ वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अधिक होता है।
(iii) यदि उपकरण को तीव वायु एवं धूप में रखा जाता है तो वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) बहुत तीव्र होता है और बुलबुला तेजी से गति करता है।
(iv) यदि उपकरण को अन्दें स्थान पर रखते हैं तो बुलबुला बिल्कुल गति नहीं करता है। रन्ध्र की संरचना (Structure of Stomata)

रन्ध्र (Stomata) पत्ती की सतह पर पाये जाने वाले छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। ये पत्ती के अतिरिक्त, फलों, कोमल तनों आदि वायवीय भागों पर भी पाये जाते हैं। प्रत्येक रन््ध दो वृक्काकार (kidney shaped) द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरा हुआ छिद्र है। यह अत्यन्त सूक्ष्म संरचना है तथा छिद्र अण्डाकार होता है। द्वारकोशिका (guard cells) बाह्म त्वचा की अन्य कोशिकाओं से भिन्न होती हैं। इसकी बाह्य सतह पतली परन्तु भीतरी सतह मोटी होती है। कभी-कभी द्वार कोशिकाओं के बाहर सहायक कोशिकाएँ (subsidiary cells) भी मिलती हैं। जब द्वार कोशिकाएँ स्फीत (turgid) होती हैं तो छिद्र खुला होता है तथा इनकी श्लथ (flaccid) अवस्था में ये बन्द होते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 11

द्वार कोशिकाओं में केन्द्रक तथा क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) पाए जाते हैं। द्वार कोशिकाओं में केन्द्रक तथा क्लोरोप्लास्ट मीसोफिल के क्लोरोप्लास्ट से भिन्न होता है। इसमें दोनों प्रकाशीय तंत्र PSI तथा PSII तन्त मिलते हैं। अतः फोटोफास्पोरिलेशन (photophosphorylation) की क्रिया प्रकाश में पूर्ण होती है परन्तु रिबुलोज डाइफास्फेट कार्बोंक्सिलेज एन्जाइम (ribulose biphosphate carboxylase enzyme) के न मिलने से भोजन नहीं बनता है। आसपास की कोशिकाओं से मिलने वाली शर्करा मण्ड (starch) में बदलती है। रात के समय मण्ड (starch) की मात्रा अधिक होने से रन्ध्र (stomata) बन्द हो जाते हैं तथा दिन में मण्ड के शर्करा में बदलने से ये खुल जाते हैं।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. अर्थसूत्री विभाजन का परिणाम है- (Exemplar Problem NCERT)
(A) युग्मकों का निर्माण
(B) क्रोमोसोम की संख्या में कमी
(C) विभिन्नताओं का जन्म
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

2. सेन्ट्रोमियर भाग लेता है-
(A) ट्रान्सक्रिप्सन में
(B) विनिमय में
(C) साइटोप्लाज्मिक विदलन में
(D) गुणसूत्र की ध्रुव की ओर गति में।
उत्तर:
(D) गुणसूत्र की ध्रुव की ओर गति में।

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3. अर्धसूत्री विभाजन की किस अवस्था में अन्ततः युग्मकों का आनुवंशिक संगठन निर्धारित हो जाता है- (Exemplar Problem NCERT)
(A) मध्यावस्था (I)
(B) पश्चावस्था II
(C) मध्यावस्था III
(D) पश्चावस्था I
उत्तर:
(A) मध्यावस्था (I)

4. जीवधारियों में अर्धसूत्री विभाजन किस दौरान होता है-
(A) लैंगिक जनन
(B) वर्षी प्रजनन
(C) लैंगिक व वर्धी प्रजनन दोनों
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
(C) लैंगिक व वर्धी प्रजनन दोनों

5. अर्थसूत्री विभाजन की पश्चावस्था I के समय- (Exemplar Problem NCERT)
(A) समजात गुणसूत्र अलग हो जाते हैं
(B) असमजात ऑटोसोम अलग होते हैं।
(C) अर्धगुणसूत्र अलग होते हैं।
(D) नॉन-सिस्टर अर्धसूत्र अलग होते हैं।
उत्तर:
(A) समजात गुणसूत्र अलग हो जाते हैं

6. सूत्री विभाजन का विशिष्ट गुण है- (Exemplar Proble NCERT)
(A) निम्नकारी विभाजन
(B) समकारी विभाजन
(C) निम्नकारी व समकारी दोनों विभाजन
(D) उपर्युक्त कोई नहीं ।
उत्तर:
(B) समकारी विभाजन

7. केन्द्रक कला अदृश्य हो जाती है-
(A) प्रोफेज में
(B) मेटाफेज में
(C) एनाफेज में
(D) टीलोफेज में।
उत्तर:
(A) प्रोफेज में

8. कोशिका चक्र का सही क्रम है- (RPMT 2003)
(A) G1, S, G2, M
(B) G1, G2, S, M
(C) M, G1, G2, S
(D) S, G1, G2 M.
उत्तर:
(A) G1, S, G2, M

9. अर्द्धसूत्री विभाजन में समजाती गुणसूत्र कब पृथक् होते हैं ?
(A) मेटाफेज- I
(C) ऐनाफेज-1
(B) मेटाफेज-II
(D) ऐनाफेज-II.
उत्तर:
(C) ऐनाफेज-1

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10. DNA का संश्लेषण किस अवस्था में होता है ? (UPCPMT2010)
(A) G1
(B) G2
(C) s
(D) M.
उत्तर:
(C) s

11. युम्मन के समय गुणसूत्रों के मध्य युग्मनहोता है-
(A) समान गुणसूत्रों के बीच
(B) समजात गुणसूत्रों के बीच
(C) असमजात गुणसूत्रों के बीच
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(B) समजात गुणसूत्रों के बीच

12. अर्धसूत्री विभाजन का वाइवेलेन्ट बना होता है- (Exemplar Problem NCERT)
(A) दो अर्धगुणसूत्र व एक सेण्ट्रोमियर
(B) दो अर्धगुणसूत्र व दो सेण्ट्रोमियर
(C) चार अर्धगुणसूत्र व 2 सेण्ट्रोमियर
(D) चार अर्धगुणसूत्र व4 सेण्ट्रोमियर ।
उत्तर:
(C) चार अर्धगुणसूत्र व 2 सेण्ट्रोमियर

13. कोशिकाएँ जो विभाजित नहीं हो रही सम्भवतः कौन-सी अवस्था प्रदर्शित करती है ? (Exemplar Problem NCERT)
(A) G1
(C) Go
(B) G2
(D) SPhase.
उत्तर:
(C) Go

14. G1 अवस्था के बारे में सही कथन का चुनाव कीजिए- (Exemplar Problem NCERT)
(A) कोशिका उपापचयी रूप से असक्रिया होती है
(B) कोशिका का DNA प्रतिकृति नहीं बनाता
(C) यह दीर्घ अणुओंके संश्लेषण की प्रावस्था नहीं है।
(D) कोशिका वृद्धि बंद कर देती है।
उत्तर:
(B) कोशिका का DNA प्रतिकृति नहीं बनाता

15. अर्थसूत्री विभाजन-1 की प्रोफेज की उपावस्थाओं का सही कम है-
(A) जाइगोटीन, पैकोटीन, डिप्लोटीन, लैप्टोटीन, डिकाइनेसिस
(B) सैप्टोटीन, जाइगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन, डिकाइनेसिस
(C) डिकाइनेसिस, लैप्टोटीन, पैकीटीन, जाइगोटीन, डिप्लोटीन
(D) सैप्टोटीन, पैकीटीन, जाइगोटीन, डिकाइनेसिस, डिप्लोटीन
उत्तर:
(B) सैप्टोटीन, जाइगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन, डिकाइनेसिस

16. जीन विनिमय होता है-
(A) सेप्टोटीन में
(B) जाइगोटीन में
(C) पैकीटीन में
(D) डिप्लोटीन में
उत्तर:
(C) पैकीटीन में

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17. तर्क तन्दुओं का निर्माण इस प्रोटीन से होता है- (UPPMT 2008)
(A) मायोसीन
(B) एक्टिन
(C) ग्लोबुलर
(D) दयूबलिन।
उत्तर:
(D) दयूबलिन।

18. मनुष्य में अर्धसूत्री विभाजन होता है-
(A) यकृत एवं किडनी में
(B) नाखूनों की जड़ों में
(C) अस्थियों एवं उपास्थियों में
(D) वृषण एवं अण्डाशय में।
उत्तर:
(D) वृषण एवं अण्डाशय में।

19. निम्न में से कौन-सी परिघटना सूत्री विभाजन के समय नहीं देखी जाती ? (Exemplar Problem NCERT)
(A) क्रोमेटिन संघनन
(B) सेष्ट्रि ओल का विपरीत ध्रुवों की ओर गमन
(C) दो अर्धगुणसूत्र जो सेण्ट्रोमियर पर जुड़े हों वाले गुणसूत्र
(D) सिंग ओवर
उत्तर:
(D) सिंग ओवर

20. कोशिका लागू नहीं होता है-
(A) समसूत्री विभाजन में
(B) अर्द्धसूत्री विभाजन में
(C) A तथा B दोनों में
(D) इनमें से किसी में नहीं।
उत्तर:
(B) अर्द्धसूत्री विभाजन में

21. कौन-सी मीओसिस की सबसे लम्बी अवस्था है ? (UPPMT 2001)
(A) प्रोफेज-1
(C) एनाफे
(B) मेटाफेज-11
(D) टीलोफेन।
उत्तर:
(A) प्रोफेज-1

22. सूक्ष्म नलिकाएँ अनुपस्थित होती है-(CBSE PMT, 2001)
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) सेन्ट्रियोल
(C) फ्लैजिला
(D) तर्कु तन्तु ।
उत्तर:
(A) माइटोकॉण्ड्रिया

23. एक कोशिका एक मिनट में एक बार विभाजित होती है एक घण्टे में कोई ट्यूब विभाजित कोशिकाओं से भर जाती है तो आधा ट्यूव धरने में कितना समय लगेगा ? (UPPMT 2001)
(A) तीस मिनट
(C) 59 मिनट
(B) 61 मिनट
(D) 45 मिनट
उत्तर:
(C) 59 मिनट

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24. G2 अवस्था में गुणसूत्र में DNA की संख्या होती हैRPMT 2002)
(A) एक
(C) चार
(B) दो
(D) आठ
उत्तर:
(A) एक

25. मिओटिक मेटाफेज-1 के लिए कौन-सा कथन सत्य है ? (RPMT, 2002)
(A) युग्मित गुणसूत्र मध्यवर्ती अक्ष पर व्यवस्थित होते हैं
(B) अयुग्मित गुणसूत्र मध्य रेखापर व्यवस्थित होते हैं
(C) विषमजात गुणसूत्र जोड़ा बनाते हैं
(D) तर्कुन्दु गुणसूत्र से जुड़े होते हैं।
उत्तर:
(A) युग्मित गुणसूत्र मध्यवर्ती अक्ष पर व्यवस्थित होते हैं

26. समसूत्री विभाजन होता है- (RPMT, 2001)
(A) अगुणित जीवों में
(C) A व B दोनों में
(B) द्विगुणित जीवों में
(D) केवल जीवाणु में
उत्तर:
(C) A व B दोनों में

27. माइटोटिक मुख्य बने होते हैं- (CBSE PMT 2002, RPMT 2003 RPPMT 2006, 2008)
(A) दम्बुलिन के
(C) एक्टोमायोसिन के
(B) मायोसिन के
(D) मायोग्लोबिन के
उत्तर:
(A) दम्बुलिन के

28. प्रयोगशाला में समसूत्री विभाजन के अध्ययन के लिए सबसे उत्तम है- (RPPMT 2006, 2008)
(A) पुंकेसार
(B) मूलशीर्ष
(C) पर्णशी
(D) अण्डाशय।
उत्तर:
(B) मूलशीर्ष

29. यदि द्विगुणित कोशिका को कोल्विसीन से उपचारित किया जाता है यह हो जाती है- (CBSE PMT 2002)
(A) त्रिगुणित
(B) चतुर्गुणित
(C) द्विगुणित
(D) एक गुणित
उत्तर:
(B) चतुर्गुणित

30. समसूत्री विभाजन के दौरान गुणसूत्रों की संख्या (UPPMT 2003)
(A) बदल जाती है।
(B) नहीं बदलती है
(C) बदल सकती है यदि कोशिका परिपक्व है
(D) बदल सकती है यदि कोशिका अपरिपक्व हो ।
उत्तर:
(B) नहीं बदलती है

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31. निम्न में से किस अवस्था में गुणसूत्र कोशिका के वियुक्त वृत्त पर व्यवस्थित हो जाते हैं ? (UPPMT 2003, RPMT, 2008, UPCPMT 2008, 12)
(A) एनाफेज
(B) मेटाफेज
(C) मोफेज
(D) टीलोफेन
उत्तर:
(B) मेटाफेज

32. DNA का द्विगुणन होता है- (RPMT 2003)
(A) S-फेज में
(B) प्रोफेज में
(C) मेटाफे में
(D) एनाफेज में
उत्तर:
(A) S-फेज में

33. गुणसूत्रों की संख्या किस अवस्था में आधी हो जाती है ? (RPMT 2004, 2006)
(A) पश्चावस्था-1
(B) पश्चावस्था-II
(C) अन्त्यावस्था-1
(D) अत्यावस्था-II.
उत्तर:
(A) पश्चावस्था-1

34. कियाज्पेटा का निर्माण होता है- (RPMT 2004)
(A) युग्मित समजात गुणसूत्रों के कुछ भाग में विनिमय के कारण
(B) अयुग्मित असमजात गुणसूत्रों के कुछ भाग में विनिमय के कारण
(C) युग्मित व समजात गुणसूत्रों के द्विगुणन के कारण
(D) गुणसूत्रों के अयुग्मित भाग के टूटने के कारण।
उत्तर:
(A) युग्मित समजात गुणसूत्रों के कुछ भाग में विनिमय के कारण

35. GI- प्रावस्था में कौन-सा संश्लेषित होता है ? (UPPMT, 2004)
(A) रामोजाइ
(B) हिस्टोन
(C) केन्द्रिकीय DNA
(D) DNA पॉलिमरेज व ट्यूबुलिन प्रोटीन ।
उत्तर:
(D) DNA पॉलिमरेज व ट्यूबुलिन प्रोटीन ।

36. अर्द्धसूत्रीविभाजन की किस अवस्था में कियामेटा दिखाई देता है ? (UPPMT 2004)
(A) डाइकाइनेसिस में
(B) डिप्लोटीन में
(C) मेटाफेज-11 में
(D) पैकीटीन में
उत्तर:
(D) पैकीटीन में

37. जाइगोटिक मीओसिस पाया जाता है- (UPPMT 2005)
(A) क्लेमाइडोमोनास में
(B) सभी यूकैरियोट्स में
(C) फ्यूनेरिया में
(D) इनमें से किसी मेंनहीं। बनाने के लिए 80 सूत्री विभाजन होत
उत्तर:
(A) क्लेमाइडोमोनास में

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38. आवृतबीजियों में 64 युग्मनज हैं लेकिन जिम्नोस्पर्मस में जाता है- (UPPMT 2006)
(A) 40
(B) 80
(C) 160
(D) 20.
उत्तर:
(B) 80

39. कोशिका विभाजन के दौरान RNA तथा अहिस्टोन प्रोटीन का संश्लेषण होता है- (RPMT 2009, UPCPMT 2009)
(A) S-प्रावस्था में
(C) G2-भावस्था में
(B) G1 भावस्था में
(D) M-प्रावस्था में।
उत्तर:
(B) G1 भावस्था में

40. टोलोमीयर पुनरावर्ती DNA अनुक्रम सुकेन्द्री गुणसूत्रों के कार्य का नियन्त्रण करते हैं क्योंकि थे- (CBSE-AIPMT 2007)
(A) रेप्लिकानों की तरह कार्य करते हैं
(B) RNA ट्रांसक्रिप्शन के आरम्भकर्ता होते हैं
(C) गुणसूत्र युग्मन में सहायता करते हैं
(D) गुणसूत्र हानि को रोकते हैं।
उत्तर:
(D) गुणसूत्र हानि को रोकते हैं।

41. किस कोशिका विभाजन के दौरान कोशिका पट्ट (Cell plate) का निर्माण होता है ? (UPCPMT 2007)
(A) कोशिका द्रव्य विभाजन
(B) केन्द्रक विभाजन
(C) अन्तरावस्था
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) कोशिका द्रव्य विभाजन

42. मानवों में प्रथम सूत्री विभाजन के बाद नर जनन कोशिकाएँ किसके रूप में विदित हो जाती हैं ? (CBSE AIPMT 2008)
(A) प्राथमिक प्रशुक्राणु जन
(B) द्वितीयक अशुक्राणुजन
(C) प्रशुक्राणुजन
(D) शुक्राणुजन ।
उत्तर:
(B) द्वितीयक अशुक्राणुजन

43. दिए गए चित्र में कोशिका विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं की रूपरेखा दर्शायी गई है-
निम्नलिखित में से कौन कोशिका विभाजन की अवस्था का सही प्रदर्शन करता है ? (UPCPMT 2009)
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन 1
(A) B मध्यावसथा
(B) C-केन्द्रक विभाजन
(C) D संश्लेषण अवस्था
(D) A- कोशिका द्रव्य विभाजन ।
उत्तर:
(C) D संश्लेषण अवस्था

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44. अर्धसूत्री विभाजन के बारे में गलत तथ्य है-
(A) समजात गुणसूत्रों का युग्मन
(B) पार अगुणित कोशिकाएँ बनती हैं
(C) अंत में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है।
(D) DNA प्रतिकृतिकरण के दो चक्र होते हैं।
उत्तर:
(D) DNA प्रतिकृतिकरण के दो चक्र होते हैं।

45. समसूत्री विभाजन के सम्बन्ध में सही विकल्प चुनिए – (AIPMT 2011)
(A) अन्त्यावस्था में अर्द्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर गति प्रारम्भ करते
(B) पूर्वावस्था के अन्त पर भी गॉल्जी समिश्र एवं अन्य दिखाई देती है द्रव्यी जालिका
(C) मध्यावस्था में गुणसूत्र तर्क मध्याक्ष की ओर गति करते हैं तथा मध्यवर्ती प्लेट के साथ व्यवस्थित हो जाते हैं।
(D) पश्चावस्था में अर्द्धगुणसूत्र हो जाते हैं किन्तु कोशिका के केन्द्र में ही बने रहते हैं।
उत्तर:
(C) मध्यावस्था में गुणसूत्र तर्क मध्याक्ष की ओर गति करते हैं तथा मध्यवर्ती प्लेट के साथ व्यवस्थित हो जाते हैं।

46. यदि अण्डकोशिका में गुणसूत्र की संख्या 8 हो तो भ्रूण में गुणसूत्रों की संख्या क्या होगी ? (UPCPMT 2011)
(A) 12
(B) 8
(C) 16
(D) 12.
उत्तर:
(A) 12

47. द्वितीय अर्द्ध-सूत्री विभाजन के फलस्वरूप होता है- (RPMT 2012)
(A) लिंग गुणसूत्रों का पृथक्करण
(B) नए DNA का संश्लेषण
(C) क्रोमेटिड्स तथा सेन्ट्रीमियर का पृथक्करण
(D) समजात गुणसूत्रों का पृथक्करण ।
उत्तर:
(C) क्रोमेटिड्स तथा सेन्ट्रीमियर का पृथक्करण

48. दिए गए चित्र में कोशिका विभाजन के दौरानएक निश्चित अवस्था पर एक विशेष घटना को प्रदर्शित किया जा रहा है कोशिका विभाजन की इस अवस्था को पहचानिए-(CBSE AIPMT 2012)
(A) अर्धसूत्री विभाजन के दौरान पूर्वावस्था-1
(B) अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान पूर्वावस्था-II
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन 2
(C) सूत्री विभाजन के दौरान पूर्वावस्था
(D) सूत्री विभाजन के दौरान पूर्वीवस्था तथा मध्यावस्था ।
उत्तर:
(A) अर्धसूत्री विभाजन के दौरान पूर्वावस्था-1

49. सूत्र युग्मित समजात गुणसूत्रों के युग्प द्वारा बनाये गये सम्मिन्न को क्या कहा जाता है ? (NEET 2013)
(A) मध्यवर्ती पट्टी
(B) काइनेटोकोर
(C) greft (Bivalant)
(D) अक्षसूत्र (Axoneme)
उत्तर:
(C) greft (Bivalant)

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50. चित्र में कोशिका विभाजन की एक अवस्था दर्शायी गयी है। अवस्था की सही पहचान और उसकी सही विशिष्टता को चुनिए-
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन 3

(A)अंत्यावस्था (टीलोफेज)केन्द्रकीय आवरण दुबारा बन जाता है, गॉल्जी सिम्मश्र भी दुबारा बन जाता है।
(B)परवर्ती पश्चावस्था (लेट ऐनाफेज)गुणसूत्र मध्यवर्ती पह्टी से दूर चले जाते हैं, गॉल्जी सम्मिश्र नहीं होता।
(C)कोशिकाभाजन (साइटोकाइनेसिस)कोशिकापह्टी बन जाती है, माइटोकीण्ड्रिया दोनों संतति कोशिकाओंमें वितरित हो जाती हैं।
(D)अंत्यावस्थ (टीलोफेज)एंडोप्लाज्ञिक रेटिकुलम और केन्द्रिका अभी दुबारा नहीं बने होते।

उत्तर:

(A)अंत्यावस्था (टीलोफेज)केन्द्रकीय आवरण दुबारा बन जाता है, गॉल्जी सिम्मश्र भी दुबारा बन जाता है।

B. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कोशिका चक्र की कौन-सी अवस्था सबसे लम्बी अवधि की होती है ? (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
G1 अवस्था ।

प्रश्न 2.
कोशिका चक्र की सबसे छोटी तथा सबसे बड़ी प्रावस्थाओं के नाम बताए।
उत्तर:
सबसे छोटी प्रावस्था M तथा सबसे बड़ी प्रावस्था G1 है।

प्रश्न 3.
कोशिका चक्र का नियमन किस पदार्थ द्वारा होता है ?
उत्तर:
साइक्लिन निर्भर प्रोटीन काइनेज (cyclin dependent protein kinase) एन्जाइम द्वारा

प्रश्न 4.
DNA की दो कुण्डलियों को पृथक् करने का कार्य कौन-सा एन्जाइम करता है ?
उत्तर:
डी. एन. ए. हेलिकेज (DNA helicase) एन्जाइम ।

प्रश्न 5.
Go प्रावस्था की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
Go प्रावस्था में कोशिका विभेदित हो जाती है जो विभाजन नहीं करती है।

प्रश्न 6.
सबसे कम तथा सबसे अधिक गुणसूत्र संख्या किन प्राणियों में पायी जाती है ?
उत्तर:
एस्कैरिस मैगालोसिफेला (Ascaris megalocephala) में सबसे कम (2) गुणसूत्र तथा ऑलाकैन्था (Alacantha) में सबसे अधिक (1600) गुणसूत्र पाए जाते हैं।

प्रश्न 7.
उस रंजक का नाम बताइये कि गुणसूत्रों के रंगने के लिए सामान्यतः प्रयोग किया जाता है ? (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
एसीटोकामन ।

प्रश्न 8.
जन्तुओं और पौधों के कौन-से ऊतको में अर्धसूत्री विभाजन होता है ? (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
जन्तु जनद (वृषण (testes) व अण्डाशय (ovaries). पौधे परागकोष (pollen sac), बीजाण्ड (owule) पुच्ची पौधों में बीजाणुधानी फर्म में।

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पान 9.
मिओसिस की किस अवस्था में क्रॉसिंग ओवर होता है ?
उत्तर:
पैकीटीन (Pachytene) में।

प्रश्न 10.
प्याज की जड़ की कोशिका में यदि गुणसूत्र संख्या 18 है तो इसके युग्मक में गुणसूत्र होंगे।
उत्तर:
9 गुणसूत्र

प्रश्न 11.
किस अवस्था में सेण्ट्रोमीअर के विभाजन से प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों कोमेटिक पृथक होकर दो संतति गुणसूत्र बनाते हैं ?
उत्तर:
पश्चावस्था या पेनाफेज (anaphase) में।

प्रश्न 12.
कोशा विभाजन की किस अवस्था में क्रोमोसेन्टर तथा न्यूक्लिओलाई पुनः दृष्टिगत हो जाते हैं ?
उत्तर:
अन्त्यावस्था या टीलोफेज में

प्रश्न 13.
किसी समसूत्री विष पदार्थ का नाम लिखिए।
उत्तर:
कोल्वीसीन (colchicinc)

प्रश्न 14.
ऑन्कोजीन्स किससे सम्बन्धित होते हैं ?
उत्तर:
कैंसर (cancer) से।

प्रश्न 15.
किस उप-प्रावस्था में गुणसूत्र लम्बे पतले व अकुण्डलित होते
उत्तर:
तनुपट्ट या लैप्टोटीन (laprotene) अवस्था में।

प्रश्न 16.
जीन विनिमय में क्या होता है ?
उत्तर:
गुणसूत्र के समजात खण्डों की बदला बदली।

प्रश्न 17.
क्या बिना सेण्ट्रोमियर वाला गुणसूत्र विभाजन कर सकता है ? उत्तर नहीं क्योंकि यह अधिक समय के लिए जीवन धम (viable) नहीं होता।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न- 1

प्रश्न 1.
अर्द्धसूत्री विभाजन केवल जन्द कोशिकाओं में ही क्यों होता है ?
उत्तर:
जनद कोशिकाओं से युग्मक (gamete) बनते समय गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी (अगुणित) रह जाती है। युग्मक केवल जनद कोशिकाओं में ही बनते हैं निषेचन (fertilization) के समय युग्मकों (gametes) के परस्पर मिलने से गुणसूत्रों की संख्या पुनः द्विगुणित (2n) हो जाती है। इससे प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में होने वाले विभाजन का नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) आवृतबीजी पौधों में पराग मातृ कोशिका से परागकण (pollen grain) बनने में।
(ii) यूलोथ्रिक्स में लघु चलबीजाणु बनने में।
(iii) फ्यूनेरिया के संपुट (capsule) में बीजाणु मातृ कोशिका से बीजाणु (spore) बनने में।
(iv) सरसों के पौधे में नई पत्ती बनने में
उत्तर:
(i) अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis)
(ii) समसूत्री विभाजन (mitosis)
(iii) अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis)
(iv) समसूत्री विभाजन (mitosis)।

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प्रश्न 3.
कैंसर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार कशेरुकियों में 20 ऐसे जीन्स (genes) होते हैं जो कोशिकाओं के अनियिमत विभाजन को प्रेरित करते हैं। इन्हें प्रोटोओंकोजीन्स (protooncogenes) कहते हैं। DNA के द्विगुणन के समय इनमें उत्परिवर्तन (mutation) होने से विभाजन में अनियमितताएं आ जाती हैं तथा कोशिका विभाजन अनियंत्रित हो जाता है। इस रोग को कैन्सर कहते हैं।

प्रश्न 4
सूत्री विभाजन का महत्व लिखिए।
उत्तर:
सूत्री विभाजन जीवधारी की दैहिक कोशिकाओं (somatic cell) में होती है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या समान बनी रहती है। यही विभाजन ऊतक सम्बर्धन हेतु आवश्यक है। इस विभाजन से जीवधारियों में कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है जिससे वृद्धि होती है। ऊतकों की मरम्मत ( repair) व घावों का भरना इसी के द्वारा होता है। कुछ एककोशिकीय जीवों में इसके द्वारा जनन होता है।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न- II

प्रश्न 1.
जन्तु कोशिका विभाजन तथा पादप कोशिका विभाजन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जन्तु कोशिका विभाजन तथा पादप कोशिका विभाजन में अन्तर (Differences between Animal and Plant cell division)

जनु कोशिका विधाजनपदूप कोशिंका विभाजन
1. इनमें पूर्वावस्था (prophase) में तारक काय दो भागों में बँट कर प्रत्येक से तारा रशिमयाँ (astral rays) निकलती हैं। इस प्रकार का विभाजन तारक प्रकार का विभाजन कहलाता है।इनमें तारक काय (centrosome) का अभाव होता है अत: इसे अतारक प्रकार का विभाजन कहते हैं।
2. इसमें संतति तारक काय दूर खिसके लगते हैं और अन्तत विपरीत ध्रुवों पर स्थापित हो जाते है। इनके मध्य तर्कु तन्तुओं (spindle fibres) का निर्माण होता है।इनमें तर्कु तन्तु कोशिका के विपरीत छोरों से जुड़ते हैं। इनमें तारक रश्मियाँ (astral rays) नहीं बनती है।
3. कोशिका द्रव्य विभाजन कोशिका कला के अन्तर्वलन द्वारा होता है जिसे खांच विधि कहते हैं।कोशिका द्रव्य विभाजन मध्य प्लेट (mid plate) द्वारा होता है। इसे पह्टिका निर्माण विधि कहते हैं।

प्रश्न 2.
जीविनिमय (Crossing over) पर संधित टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जीन विनिमय (Crossing over ) अर्द्धसूत्री विभाजन की पूर्वावस्था प्रथम की जाइगोटीन (zygotene ) उपावस्था में समजात गुणसूत्र (homologous chromosome ) परस्पर जोड़े बनाते हैं। इस क्रिया को युग्मबन्धन (synapsis) कहते हैं। पैकीटीन (pachytene) उपावस्था में प्रत्येक गुणसूत्र क्रोमेटिड्स में विभाजित हो जाता है और इस अवस्था के अन्त में समजात गुणसूत्रों के क्रोमेटिड्स कुछ बिन्दुओं पर परस्पर चिपक जाते हैं। बिन्दुओं को काइज्मेटा (chiasmata) कहते हैं। इस बिन्दु पर समजात गुणसूत्रों में क्रोमेटिड्स के टुकड़ों का आदान-प्रदान होता है। इस क्रिया को जीन-विनिमय (crossing over) कहते हैं। जीन (gene) विनिमय के फलस्वरूप गुणसूत्रों की जीन संरचना बदल जाती है।

प्रश्न 3.
युग्मकी तथा युग्मनजी अर्द्धसूत्री विभाजन को समझाइए ।
उत्तर:
युग्मकी अर्द्धसूत्री विभाजन (Gametic Meiosis) – यह जन्तुओं पादपों तथा कुछ शैवालों में होता है। इसमें मुख्य काय द्विगुणित (Diploid-2n) होती है और युग्मकों के निर्माण के समय अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) होता है। उत्पनन युग्मक ( gametes) अगुणित (haploid) होते हैं। इसे समापन अर्द्धसूत्री विभाजन (terminal meiosis) भी कहते हैं। युग्मजी अर्द्धसूत्री विभाजन (Zygotic Meiosis) – यह प्रोटोजोअन्स तथा शैवालों में पाया जाता है।

इनमें जीवन चक्र (life cycle) मुख्यतः अगुणित (haploid) होता है और द्विगुणित अवस्था ( diploid phase) बहुत कम समय की होती है। जैसे पुलोजिक्स (Ulothrix) में दो युग्मकों के मिलने से युग्मनज (zygote) बनता है। युग्मनज अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis) द्वारा चार अगुणित बीजाणु (haploid spores) बनाता है। इनसे अगुणित पौधे बनते हैं।

प्रश्न 4.
एक पुष्पी पौधे की मूलाग्र कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या 24 है उस पौधे की निम्नलिखित संरचनाओं में गुणसूत्रों की संख्या क्या होगी ?
(i) तना,
(ii) पत्ती,
(iii) परागकण,
(iv) भ्रूणपोष
(v) भ्रूण ।
उत्तर:
(i) तने में 24 गुणसूत्र,
(ii) पत्ती में 24 गुणसूत्र,
(iii) परागकण में 12 गुणसूत्र,
(iv) भूणपोष में 36 गुणसूत्र
(v) भ्रूण में 24 गुणसूत्र ।

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(E) निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कोशिका चक्र का विस्तृत वर्णन रेखाचित्र द्वारा कीजिए।
उत्तर:
कोशिका चक्र (Cell Cycle)
जीवधारियों के शरीर में विभाजन करने वाली कायिक कोशिकाओं (somatic cells) में वृद्धि एवं विभाजन का नियमित चक्र चलता रहता है। इस चक्र को कोशिका चक्र (cell cycle) कहते हैं। कोशिका चक्र कोशिका के पूर्ण जीवन काल को प्रदर्शित करता है। कोशिका का जीवन उसकी उत्पत्ति अर्थात कोशिका विभाजन के साथ संतति कोशिका ( daughter cell) के रूप में प्रारम्भ होता है और अगले कोशिका विभाजन के समाप्त होने के साथ समाप्त हो जाता है । संतति कोशिकाएँ जनक कोशिका की अपेक्षा छोटी होती हैं। वृद्धि की चरमसीमा पर पहुँचकर पुनः विभाजित होती है।

नियिमत रूप से विभाजन करने वाली कोशिकाओं में कोशिका चक्र की अवधि 10-30 घण्टे की होती है तथा कोशिका विभाजन (cell division ) से बनी संतति कोशिकाओं में आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) की मात्रा बराबर तथा जनक कोशिकाओं के समान होती है। इसका अर्थ है कि कोशिका विभाजन से पूर्व इसके आनुवांशिक पदार्थ (genetic material) का अनुलिपिकरण होता है।

प्रश्न 2.
समसूत्री कोशिका विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समसूत्री कोशिका विभाजन या माइटोसिस (Mitotic cell division or mitosis)
समसूत्री विभाजन केवल यूकैरियोटिक जीवधारियों की कायिक कोशिकाओं (vegetative cells) में होता है। फलस्वरुप जनक- कोशिका (parent cell) दो समान संतति कोशिकाओं (daughter cells) में विभाजित हो जाती है। कोशिकाओं में गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या जनक कोशिका के बराबर होती है । इसीलिए इसे समसूत्री विभाजन कहते हैं ।
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समसूत्री विभाजन को निम्नलिखित दो अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है-
A. केन्द्रक विभाजन या कैरियोकाइनेसिस (Karyokinesis)
B. कोशिकाद्रव्य विभाजन या साइटोकाइनेसिस (Cytokinesis)

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(अ) कोशिका द्रव्य विभाजन,
(ख) बीजाणु जनक मीओसिस
(स) युग्मकी अर्धसूत्री विभाजन,
(द) जाइगोटिक मीओसिस ।
उत्तर:
द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis – II)
यह विभाजन सूत्री की भाँति ही होता है जिसमें प्रथम मिओटिक विभाजन से बनी दोनों सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ ( daughter cells) बनाती हैं। इस विभाजन में सन्तति कोशिकाएँ अपनी जनक कोशिकाओं से गुणसूत्रों की संख्या में पूर्णतया समान होती है। अतः यह विभाजन समविभाजन (homotypic division) भी कहलाता है ।
यह विभाजन निम्नलिखित पाँच अवस्थाओं में पूर्ण होता है –
1. द्वितीय पूर्वावस्था (Prophase II)
2. द्वितीय मध्यावस्था ( Metaphase II)
3. द्वितीय पश्चावस्था (Anaphase II)
4. द्वितीय अन्त्यावस्था ( Telophase II )
5. कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis)

1. द्वितीय पूर्वावस्था (Prophase II) – इस अवस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) गुणसूत्र दो अर्द्ध- गुणसूत्रों (chromatids ) सहित भली प्रकार स्पष्ट हो जाते हैं ।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्ध-गुणसूत्रों में विभक्त होकर सेण्ट्रयोल पर लगे रहते हैं ।
(iii) केन्द्रक कला तथा केन्द्रिका विलुप्त हो जाते हैं ।
(iv) सेण्ट्रोमीयर तथा गुणसूत्र बिन्दु के मध्य में तर्क तन्तु बन जाते हैं ।

2. द्वितीय मध्यावस्था (Metaphase II) – इस अवस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) इस अवस्था में गुणसूत्र मध्यतल ( equator) पर आकर विन्यस्त हो जाते हैं ।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र के दो अर्द्ध-गुणसूत्र सेण्ट्रोमियर्स के विभाजित हो जाने के कारण अलग हो जाते हैं।
(iii) स्पिण्डिल तन्तु, सेण्ट्रोमियर्स से जुड़े रहते हैं ।

3. द्वितीय पश्चावस्था ( Anaphase II )
इस अवस्था में गुणसूत्र से अलग अर्द्ध-गुणसूत्र, तर्क तन्तु के खिंचाव के कारण विपरीत ध्रुवों पर पहुँच जाते हैं । यही अर्द्ध-सूत्र आगे चलकर सन्तति कोशाओं में गुणसूत्र का निर्माण करते हैं ।

4. द्वितीय अन्त्यावस्था (Telohase II) ।
(i) अर्द्ध-गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर पहुँचकर पुनः फैलकर क्रोमेटिन जाल बनाते हैं ।
(ii) क्रोमेटिन जाल के चारों ओर केन्द्रक कला बन जाती है।
(iii) केन्द्रिका पुनः बन जाती है। इस प्रकार केन्द्रक का निर्माण पूर्ण हो जाता है ।
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5. कोशिकाद्रव्य (Cytokinesis)
केन्द्रकों के बन जाने के बाद, प्रत्येक कोशिका का कोशिकाद्रव्य दो समान भागों में विभाजित हो जाता है जिससे प्रकार द्वितीय मिओटिक विभाजन के पश्चात् चार अगुणित (haploid) सन्तति कोशिकाएँ बन जाती हैं । सन्तति कोशिकाएँ बन जाती हैं। इस

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अर्द्धसूत्री विभाजन या न्यूनकारी विभाजन (Meiosis or Reduction Division)
अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) के फलस्वरुप गुणसूत्रों की संख्या मूल संख्या से आधी रह जाती है। इसीलिए इसे न्यूनकारी विभाजन (reduction division ) भी कहते हैं।
मूल रूप से अर्द्धसूत्री विभाजन की क्रिया सभी जीवधारियों में एक ही प्रकार की होती है किन्तु जीवों के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में होने के कारण कुछ जीव-वैज्ञानिकों ने तीन प्रकार के अर्द्ध-सूत्री विभाजन ( meiosis) का वर्णन किया है।
1. बीजाणु जनक अर्द्धसूत्री विभाजन (Sporogenetic meiosis) – बीजाणुओं (spores) के निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis) को बीजाणु जनक मीओसिस कहते हैं। इस प्रकार का विभाजन केवल पादपों में पाया जाता है।
2. युग्मकी अर्द्धसूत्री विभाजन (Gametic Meiosis) – अधिकांश जन्तुओं एवं पादपों में युग्मन निर्माण के समय (शुक्रजनन एवं अण्ड जनन) अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इसे युग्मकी अर्द्धसूत्री विभाजन (gametic meiosis) कहते हैं।
3. जाइगोटिक अर्द्धसूत्री विभाजन (Zygotic meiosis) – कुछ निम्न पादपों में निषेचन के तुरन्त बाद ही अर्द्धसूत्री विभाजन प्रारम्भ हो जाता है। इसे जाइगोटिक अर्द्धसूत्री विभाजन कहते हैं।

अर्द्धसूत्री विभाजन की क्रिया (Process of Meiosis)
अर्द्धसूत्री विभाजन में दो क्रमिक कोशिका विभाजन होते हैं किन्तु गुणसूत्रों का विभाजन केवल एक बार ही होता है। अतः समसूत्री विभाजन की मुख्य विशेषता दो क्रमिक विभाजन तथा इनसे बनने वाली चार संतति कोशिकाएँ (daughter cells) हैं। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। इसे प्रथम, न्यूनकारी विभाजन या मीओसिस – प्रथम (Ist reduction division or meiosis-I) कहते हैं। दूसरा अर्धसूत्री विभाजन समविभाजन (homotypic) या मीओसिस – II कहलाता है। यह सूत्री विभाजन ( mitosis) के समान ही होता है। जिसमें संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या परिवर्तित नहीं होती है। उपरोक्त दोनों विभाजनों के फलस्वरूप चार संतति कोशिकाएँ बनती हैं जिनमें से प्रत्येक में गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है।

प्रश्न 4.
समसूत्री विभाजन का महत्व लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis-II)
यह विभाजन सूत्री की भाँति ही होता है जिसमें प्रथम मिओटिक विभाजन से बनी दोनों सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ ( daughter cells) बनाती हैं। इस विभाजन में सन्तति कोशिकाएँ अपनी जनक कोशिकाओं से गुणसूत्रों की संख्या में पूर्णतया समान होती है। अतः यह विभाजन समविभाजन (homotypic division ) भी कहलाता है।
यह विभाजन निम्नलिखित पाँच अवस्थाओं में पूर्ण होता है –
1. द्वितीय पूर्वावस्था (Prophase II),
2. द्वितीय मध्यावस्था ( Metaphase II),
3. द्वितीय पश्चावस्था ( Anaphase II ),
4. द्वितीय अन्त्यावस्था ( Telophase II),
5. कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis)

प्रश्न 5.
प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन तथा द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis I)
प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन को पूर्वावस्था प्रथम (Prophase I) मध्यावस्था प्रथम ( Metaphase I), पश्चावस्था प्रथम (Anaphase I) तथा अन्त्यावस्था प्रथम (Telophase I) द्वारा निरूपित करते हैं।
1. पूर्वावस्था प्रथम (Prophase – 1 ) – प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन की पूर्वावस्था अपेक्षाकृत जटिल एवं लम्बी होती है। इसे लेप्टोटीन, जाइगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन तथा डाइकाइनेसिस नामक पाँच उप- अवस्थाओं में बाँटा गया है।
(a) तनुपट्ट अवस्था (Leptotene or Leptonema ) – लेप्टोटीन उपावस्था के साथ अर्द्धसूत्री विभाजन प्रारम्भ होता है। इस उपावस्था में निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं-
(i) केन्द्रक में क्रोमेटिन पदार्थ संघनित होकर पतले, लम्बे एवं अकुण्डलित तन्तुओं के समान गुणसूत्रों में बदल जाता है।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र में दो अर्द्धगुणसूत्र बन जाते हैं किन्तु इनके क्रोमेटिड (chromatids ) एक-दूसरे के चारों ओर इतने घनिष्ठ रूप से लिपटे रहते हैं कि इनको अलग से पहचानना सम्भव नहीं है।

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(b) युग्मपट्ट अवस्था (Zygotene or Zygonema) – इस उपावस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) समजात गुणसूत्र एक-दूसरे केपास आकर जोड़े बनाते हैं, इसे युगली (bivalent ) कहते हैं ।
(ii) प्रत्येक युगल के सजातीय गुणसूत्र एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं और धीरे-धीरे एक-दूसरे के समीप आकर सजातीय गुणसूत्र (homologous chromosome) आपस में लिपट जाते हैं, इसे सिनेप्स (synapse) कहते हैं।
(iii) प्रत्येक बाइवेलेन्ट (bivalent) के दो गुणसूत्र एक ही द्विगुण गुणसूत्र के दो क्रोमेटिड्स (chromatids ) जैसे लगते हैं और पूर्ण केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या वास्तविक संख्या की आधी लगती है ।
(iv) तारक केन्द्र विभाजित होकर विपरीत ध्रुवों की ओर गमन करने लगते हैं तथा केन्द्रिक के आकार के वृद्धि होती है।
(v) गुणसूत्र छोटे व मोटे दिखाई देते हैं।

(c) स्थूल पट्ट अवस्था (Pachytene or Pachynema ) – इस उपावस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) सजातीय गुणसूत्रों के युग्मन या सिनेप्सिस के पश्चात् प्रत्येक बाइवेलेन्ट के युग्मित गुणसूत्र आंकुचन के कारण ओर अधिक छोटे व मोटे हो जाते हैं।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स (chromatids ) अधिक स्पष्ट हो जाते हैं जिससे प्रत्येक बाइवेलेंट चार स्पष्ट अर्द्धसूत्रों या क्रोमेटिड्स का बना प्रतीत होता है। अब इसे ट्रेट्रावेलेंट या टेट्राड (tatrad) कहते हैं।
(iii) सजातीय गुणसूत्रों में एक तनाव उत्पन्न होता है इससे दुर्बल क्रोमेटिड्स अनेक स्थानों पर टूट जाते हैं और अनुरुपी क्रोमेटिड्स में विच्छेदित खण्डों का विनिमय या पारस्परिक अदला-बदली होती है।
(iv) विनिमय की क्रिया को जीन विनिमय या क्रॉसिंग ओवर (crossing over) तथा विसंयोजन की क्रिया को पुनर्संयोजन (recombination) कहते

(d) द्विपट्ट अवस्था (Diplotene or Diplonema) – इस उपावस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) क्रोमेटिड्स के टूटने पर गुणसूत्रों के बीच आकर्षण बल समाप्त हो जाता है और इनमें प्रतिकर्षण आरम्भ हो जाता है।
(ii) सजातीय गुणसूत्र अकुण्डलित होकर पृथक् होने लगते हैं किन्तु विनिमय (crossing over) वाले स्थानों पर यह एक-दूसरे से चिपके रह जाते हैं। इन स्थानों को क्याज्पेटा (chiasmata) कहते हैं ।
(iii) प्रत्येक बाइवेलेन्ट के और अधिक छोटा होने पर क्याज्मेटा गुणसूत्रों के सिरों की ओर फिसलने लगते हैं। क्याज्मेटा इस प्रकार फिसलने को उपान्ती भवन या टर्मीनेलाइजेशन (terminalization) कहते हैं।
(iv) इस उपावस्था में केन्द्रक कला तथा केन्द्रिक (nucleolus) दोनों ही विलुप्त हो जाते हैं।
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(e) पारगतिक्रम या डाइकाइनेसिस (Diakinesis) – इस उपावस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) वाइवेन्ट सिकुड़कर और अधिक मोटे व छोटे हो जाते हैं और गुणसूत्र गहरी रंगीन कायों (bodies) के रुप में दिखाई देते हैं तथा केन्द्रक की परिधि पर पहुँच जाते हैं।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों अर्द्धगुणसूत्र इतने निकट होते हैं कि उनको अलग-अलग नहीं पहचाना जा सकता।
(iii) इस उपावस्था के अन्त में तारक केन्द्र एवं तारक गोलार्द्ध (centriole and centrosphere) विभाजित होकर विमुख ध्रुवों की ओर चले जाते हैं।
(iv) केन्द्रक कला ( nuclear membrane) पूर्ण रुप से विलुप्त हो जाती है तथा गुणसूत्र कोशिकाद्रव्य में मुक्त हो जाते हैं।
(v) इस उपावस्था में केन्द्रीय तर्कु (central spindle) का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है।

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2. मध्यावस्था प्रथम (Metaphase I) – इस अवस्था में-
(i) केन्द्रक कला तथा केन्द्रिका पूर्णतया विलुप्त हो जाते हैं ।
(ii) स्पिण्डिल तन्तु पूर्ण तथा विकसित हो जाते हैं तथा दोनों ध्रुवों तथा गुणसूत्र बिन्दुओं पर जुड़ जाते हैं।
(iii) गुणसूत्र अपने अर्द्ध गणसूत्र सहित तर्क के मध्य रेखा ( equator) पर व्यवस्थित ( arranged) हो जाते हैं ।
(iv) गुणसूत्र अधिक स्पष्ट एवं बड़े दिखाई देते हैं।

द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis – II)
यह विभाजन सूत्री की भाँति ही होता है जिसमें प्रथम मिओटिक विभाजन से बनी दोनों सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ बिना गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के विभाजित होकर चार सन्तति कोशिकाएँ ( daughter cells) बनाती हैं। इस विभाजन में सन्तति कोशिकाएँ अपनी जनक कोशिकाओं से गुणसूत्रों की संख्या में पूर्णतया समान होती है। अतः यह विभाजन समविभाजन (homotypic division) भी कहलाता है ।
यह विभाजन निम्नलिखित पाँच अवस्थाओं में पूर्ण होता है –
1. द्वितीय पूर्वावस्था (Prophase II)
2. द्वितीय मध्यावस्था ( Metaphase II)
3. द्वितीय पश्चावस्था (Anaphase II)
4. द्वितीय अन्त्यावस्था ( Telophase II)
5. कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis)

1. द्वितीय पूर्वावस्था (Prophase II) – इस अवस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) गुणसूत्र दो अर्द्ध- गुणसूत्रों (chromatids) सहित भली प्रकार स्पष्ट हो जाते हैं ।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्ध-गुणसूत्रों में विभक्त होकर सेण्ट्रयोल पर लगे रहते हैं ।
(iii) केन्द्रक कला तथा केन्द्रिका विलुप्त हो जाते हैं ।
(iv) सेण्ट्रोमीयर तथा गुणसूत्र बिन्दु के मध्य में तर्क तन्तु बन जाते हैं ।

2. द्वितीय मध्यावस्था (Metaphase II) – इस अवस्था में निम्नलिखित घटनाएँ दिखाई देती हैं-
(i) इस अवस्था में गुणसूत्र मध्यतल ( equator) पर आकर विन्यस्त हो जाते हैं ।
(ii) प्रत्येक गुणसूत्र के दो अर्द्ध-गुणसूत्र सेण्ट्रोमियर्स के विभाजित हो जाने के कारण अलग हो जाते हैं।
(iii) स्पिण्डिल तन्तु, सेण्ट्रोमियर्स से जुड़े रहते हैं ।

3. द्वितीय पश्चावस्था ( Anaphase II) इस अवस्था में गुणसूत्र से अलग अर्द्ध-गुणसूत्र, तर्क तन्तु के खिंचाव के कारण विपरीत ध्रुवों पर पहुँच जाते हैं । यही अर्द्ध-सूत्र आगे चलकर सन्तति कोशाओं में गुणसूत्र का निर्माण करते हैं ।

4. द्वितीय अन्त्यावस्था (Telohase II) ।
(i) अर्द्ध-गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर पहुँचकर पुनः फैलकर क्रोमेटिन जाल बनाते हैं ।
(ii) क्रोमेटिन जाल के चारों ओर केन्द्रक कला बन जाती है।
(iii) केन्द्रिका पुनः बन जाती है। इस प्रकार केन्द्रक का निर्माण पूर्ण हो जाता है ।
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5. कोशिकाद्रव्य (Cytokinesis)
केन्द्रकों के बन जाने के बाद, प्रत्येक कोशिका का कोशिकाद्रव्य दो समान भागों में विभाजित हो जाता है जिससे प्रकार द्वितीय मिओटिक विभाजन के पश्चात् चार अगुणित (haploid) सन्तति कोशिकाएँ बन जाती हैं । सन्तति कोशिकाएँ बन जाती हैं।

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प्रश्न 6.
समसूत्री एवं अर्द्धसूत्री विभाजन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:

क्रमअर्ब्छसूत्री विभाजन (Melosis)समसूली विभाजन (Mitosis)
1. यह जनन कोशिकाओं में युग्मकों (gametes) के निर्माण के समय होता है।1. शरीर की सभी कोरिकाओं (vegetative cells) में वृद्धि विकास के लिए होता है।
2. यह दो बार में पूर्ण होता है। मीओसिस I न्यूनकारी होता है तथा मीओसिस II समविभाजन होता है। पूर्वावस्था-I (prophase-I)2. पूर्ण विभाजन क्रिया एक बार में ही पूर्ण हो जाती है।
3. यह लम्बी एवं जटिल प्रक्रिया है जिसे पाँच उप-अवस्थाओं लेप्टोटीन (Leptotene), जाइगोटीन (Zygotene), पैकीटीन (Pachytene) डिप्लोटीन (Diplotene) तथा डाइकानेसिस (Diakinesis) में बाँटा जाता है।3. प्रोफेज्ञ (Prophase) अपेक्षाफृत छेटी अवस्था है। इसे उप-अवस्थाओं में नहीं बॉंटा जाता है।
4. प्रोफेज के प्रारम्भ में प्रत्येक गुणसूत्र एक एकल रचना के रूप में होता है।4. गुणसूत्र दो लम्बवत् भागों में बँट जाते हैं, जिन्हें कोमेटिह्स कहते हैं।
5. समजात गुणसूत्र युग्मन (synapase) करके डायड (dyad) बनाते हैं।5. गुणसूत्रों में युग्म नहीं बनते हैं।
6. सजातीय गुणसूत्र एक-दूसरे से लिपटे रहते हैं।6. अर्द्ध-गुणसूत्र (chromatids) में कुण्डलित होते हैं।
7. पैकीटीन उपावस्था में क्रॉसिग ओवर (crossing over) तथा कियाज्मेटा का निर्माण होता है जिससे सजातीय गुणसूत्रों के क्रोमेटिड में आनुवंशिक पदार्थ का विनिमय (exchange) होता है।7. इसमें क्रतिंग ओवर तथा किभाज्भेटा (chiasmata) का निर्माण नहीं होता है।
8. इसमें गुणसूत्र टेट्रेड (tetrade) के रूप में होते हैं जिनमें चार अर्द्ध-गुणसूत्र होते हैं।8. इसमें गुणसूत्र ड्वायड (dyad) के कूप में होते हैं त्रिनें दो अर्द्ध-सूत्र होते है।
9. विषुवत् पर टेरेटे का विन्यास इस प्रकार होता है कि उनके दोनों सेन्ट्रोमियर्स विषुवत से धुवों की ओर तथा भुजाएँ विषुवत की दिशा में होती हैं।9. ड्ञायड़ो (dyad) का विन्यास इस प्रकार होता है कि सेच्ट्रोमीयर विषुवत् (equator) की ओर तथा भुजाएँ ध्रुवों की ओर होती है।
10. सेन्ट्रोमीयर्स का विभाजन नहीं होता किन्तु डायड में से सजातीय गुणसूत्र अलग रहते हैं।10. मेटाकेज में सेन्ट्रोमीयर्स के युगर्लो (bivalent) का विभाजन होता है।
11. इस अवस्था में गुणसूत्र युगलों (bivalent) में दो अर्द्ध-गुणसूत्र (chromatids) होते हैं।11.  इसमें एकल गुणसूू होते हैं।
12. गुणसूत्र अत्यधिक छोटे एवं मोटे होते हैं।12. गुणसूत्र अपेक्षाकृत्त बड़े वषा कम मोटे होते हैं।
13. अर्द्धसूत्री विभाजन में प्रथम अन्त्यावस्था (telophase) सार्वत्रिक रूप से कोशिकाओं में नहीं पायी जाती है। विभाजनशील केन्द्रक सीधे ही पश्चावस्था से पूर्वावस्था द्वितीय में आ जाता है। महरंव (Importance)13. अन्त्यावस्था (telophase) सार्वत्रिक रूप से कोशिकाओं में पाथी जाती हैं। इसके बाद कोशिकात्रव्य का विभाजन होता है।
14. अर्द्धसूत्री विभाजन के अन्त में चार कोशिकाएँ बनती हैं।14. इसाके अन्न में दो कोशिकाएँ बनती हैं।
15. संतति कोशिकाएँ (daughter cells) अगुणित होती हैं अर्थात् इनमें गुणसूत्रों की संख्या जनक की आधी होती हैं।15. संतति कोशिकाएँ (daughter cells) द्विगुणित होती हैं अर्थात् गुणसूत्रों की संख्या जनक कोशिक के बराबर होती है।
16. संतति कोशिकाएँ आनुवंशिक रूप से जनन कोशिका में भिन्न होती है।16. संतति कोशिकाएँ जनक कोशिका से आनुवंशिक रूप से समान होती हैं

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन

4. असूत्री विभाजन (Amitosis) – इसे सीधा विभाजन ( direct division) भी कहते हैं। यह कोशिका विभाजन की सरलतम विधि है। इस प्रकार का विभाजन श्रेणी के सरल रचना वाले एककोशिकीय (unicellular) जीवों, जैसे-क्लेमाइडोमोनास, यीस्ट, अमीबा आदि में होता है। सूत्री विभाजन (amitosis) केन्द्रक के दीर्घीकरण से प्रारम्भ होता है। लम्बे हुए केन्द्रक में एक संकीर्णन बनने के कारण इसकी आकृति डम्बल जैसी हो जाती है। संकीर्णन के और अधिक गहरा होने से केन्द्रक दो भागों में बँट जाता है। इसके साथ ही कोशिका द्रव्य भी दो भागों में बँटा जाता है और दो संतति कोशिकाएं बन जाती हैं।
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प्रश्न 7.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए-
असूत्री विभाजन ।
उत्तर:
असूत्री विभाजन (Amitosis) -इसे सीधा विभाजन (direct division) भी कहते हैं। यह कोशिका विभाजन की सरलतम विधि है। इस प्रकार का विभाजन श्रेणी के सरल रचना वाले एककोशिकीय (unicellular) जीवों, जैसे —क्लेमाइडोमोनास, यीस्ट, अमीबा आदि में होता है। सूत्री विभाजन (amitosis) केन्द्रक के दीर्घीकरण से प्रारम्भ होता है। लम्बे हुए केन्द्रक में एक संकीर्णन बनने के कारण इसकी आकृति डम्बल जैसी हो जाती है। संकीर्णन के और अधिक गहरा होने से केन्द्रक दो भागों में बँट जाता है। इसके साथ ही कोशिका द्रव्य भी दो भागों में बँटा जाता है और दो संतति कोशिकाएँ बन जाती हैं।
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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु  Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु


(A) वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दो कार्बनिक यौगिकों के संरचनात्मक सूत्रों में से कौन, उसके सम्बन्धित कार्य के साथ सही प्रकार से पहचाना गया है ? (CBSE AIPMT)
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु 1

(A) A: ट्राइग्लिसराइड – ऊर्जा का मुख्य स्रोत
(B) B : यूरेसिल – DNA का एक संघटक ‘
(C) A : लैसीथिन – कोशिका कला का एक संघटक
(D) B: एडीनीन – एक न्यूक्लिओटाइड, जो न्यूक्लिक अम्ल बनाता है।
उत्तर:
(B) B : यूरेसिल – DNA का एक संघटक ‘

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु

2. एपोएन्जाइम होता है एक-
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट
(C) विटामिन
(D) अमीनो अम्ल ।
उत्तर:
(A) प्रोटीन

3. DNA द्विकुण्डलिनी के दोनों सूत्र परस्पर जुड़ रहते हैं-
(A) हाइड्रोजन बन्धों द्वारा
(B) हाइड्रोफोबिक बन्धों द्वारा
(C) पेप्टाइड बन्धों द्वारा
(D) फास्फोडाइएस्टर बन्धों द्वारा ।
उत्तर:
(C) पेप्टाइड बन्धों द्वारा

4. हिस्टोन में पाए जाने वाले अमीनो अम्ल हैं- (RPMT)
(A) आर्जिनिनि तथा हिस्टीडीन
(B) आर्जिनीन तथा लाइसी
(C) बेलीन तथा हिस्टीडीन
(D) लाइसीन तथा हिस्टीडीन ।
उत्तर:
(C) बेलीन तथा हिस्टीडीन

5. नीचे A D तक चार सूत्र दिए गए हैं- इनमें से कौन-सा एक क्षारीय अमीनो अम्ल के सही संरचना सूत्र को प्रदर्शित करता है ? (CBSE-AIPMT)
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु 2

(A) C
(C) A
(B) D
(D) B.
उत्तर:
(A) C

6. एक एंजाइमी अभिक्रिया के दौरान बनी पदार्थ की परिवर्तित अवस्था रचना है-
(A) क्षणिक परन्तु स्थिर
(B) स्थायी परन्तु अस्थिर
(C) क्षणिक और अस्थिर
(D) स्थायी और स्थिर ।
उत्तर:
(A) क्षणिक परन्तु स्थिर

7. फास्फोग्लिसेराइड सदैव बने होते हैं- (NEET)
(A) ग्लिसरॉल अणु से एस्टरीकृत एक संतृप्त वसा अम्ल जिसमें फॉस्फेट समूह भी संयोजित रहता है
(B) ग्लिसरॉल अणु से एस्टरीकृत एक असंतृप्त वसा अम्ल जिसमें फॉस्फेट समूह भी संयोजित रहता है।
(C) ग्लिसरॉल अणु से एस्टरीकृत एक संतृप्त या असंतृप्त वसा अम्ल जिसमें फॉस्फेट समूह भी संयोजित रहता है।
(D) फॉस्फेट समूह से एस्टरीकृत एक संतृप्त या संतृप्त वसा अम्ल जिसमें एक ग्लिसरॉल अणु भी संयोजित रहता है।
उत्तर:
(D) फॉस्फेट समूह से एस्टरीकृत एक संतृप्त या संतृप्त वसा अम्ल जिसमें एक ग्लिसरॉल अणु भी संयोजित रहता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु

8. काइटिन महाअणु- (NEET)
(A) नाइट्रोजनी पॉलीसेकेराइड है
(B) फास्फोरसमय पॉलीसेकेराइड है।
(C) सल्फरमय पॉलीसैकेराइड है
(D) सरल पॉलीसेकेराइड हैं।
उत्तर:
(B) फास्फोरसमय पॉलीसेकेराइड है।

9. अनेक सह एंजाइमों के रासायनिक घटक क्या हैं ?
(A) प्रोटीन
(C) कार्बोहाइड्रेट
(B) न्यूक्लिक अम्ल
(D) विटामिन ।
उत्तर:
(A) प्रोटीन

(B) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न के लिए एस्टर बंध, ग्लाइकोसिडिक बंध, पेप्टाइड बंध व हाइड्रोजन बंध में से सही बंध का चुनाव कीजिए-(Exemplar Problem NCERT)
(A) पालीसैकेराइड
(B) प्रोटीन
(C) वसा
(D) जल
उत्तर:
(A) ग्लाइकोसिडिक,
(B) पेप्टाइड बंध,
(C) एस्टर बंध,
(D) हाइड्रोजन बंध

प्रश्न 2.
किसी एक अमीनो अम्ल शर्करा, न्यूक्लिओटाइड व वसीय अम्ल का नाम लिखिए। (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
अमीनो अम्ल – ग्लाइसीन, एलेनीन, वैलीन।
शर्करा – ग्लूकोस, फ्रक्टोस, सुक्रोस ।
न्यूक्लिओटाइड – एडीनोसीन, ट्राइफॉस्फेट ।
वसीय अम्ल – स्टीयरिक अम्ल, पामिटिक अम्ल, ब्यूटाइरिक अम्ल ।

प्रश्न 3.
कार्बोहाइड्रेट क्या होते हैं ?
उत्तर:
कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के बने यौगिक जिनका सामान्य सूत्र (CH2 O)n होता है।

प्रश्न 4.
संगठन के तीन स्तरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • उप-परमाण्विक स्तर,
  • परमाण्विक स्तर तथा
  • आण्विक स्तर ।

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प्रश्न 5.
जैविक तत्व किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे तत्व जो जीवधारी की शरीर रचना में भाग लेते हैं।

प्रश्न 6.
तीन वृहत् तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिक अम्ल, प्रोटीन, वसा।

प्रश्न 7.
स्टार्च परीक्षण में क्या प्रदर्शित होता है ?
उत्तर:
स्टार्च आयोडीन घोल ( iodine solution) के साथ नीला-काला रंग देता है

प्रश्न 8.
दो असंतृप्त वसा अम्लों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लिनोलीक (linolic) तथा लिनोलेनिक (linolenic) अम्ल ।

प्रश्न 9.
पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं में कौन-से बन्य होते हैं ?
उत्तर:
पेप्टाइड बन्ध (peptide bonds)।

प्रश्न 10.
यूनीमेरिक प्रोटीन अणु क्या होते हैं ?
उत्तर:
यूनीमेरिक प्रोटीन अणु में केवल एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला (polypeptide chain) होती है।

प्रश्न 11.
प्राकृत संरूपण के आधार पर प्रोटीन्स के कितने स्तर होते हैं ?
उत्तर:
चार स्तर – प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक व चतुष्क स्तर ।

प्रश्न 12.
ATP के उच्च ऊर्जा बन्ध के जल अपघटन से विमोचित ऊर्जा की कितनी मात्रा होती है ?
उत्तर:
7.3k cal. किलो कैलोरी ।

प्रश्न 13.
एन्जाइम क्रियाविधि की ताला चाबी परिकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
उत्तर:
एमिल फिशर (1894) ने।

प्रश्न 14.
एन्जाइम क्रिया विधि की प्रेरित जोड़ संकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
उत्तर:
कोशलैण्ड (Koshland: 1960) ने ।

प्रश्न 15.
काइटिन क्या है ?
उत्तर:
काइटिन सेलुलोस की भाँति संरचनात्मक पॉलीसेकेराइड (stuctural polysacharide) है ।

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प्रश्न 16.
दो हैक्सोज शर्कराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • ग्लूकोस,
  • फ्रक्टोस ।

प्रश्न 17.
डेक्स्ट्रान क्या है ?
उत्तर:
यीस्ट एवं जीवाणुओं के संचायक होमोपॉलीसेकेराइड ।

प्रश्न 18.
एगार- एगार क्या होता है ?
उत्तर:
समुद्री शैवालों से प्राप्त श्लेष्मी पॉलीसेकेराइड ।

प्रश्न 19.
संयुग्मित लिपिड क्या होते हैं ?
उत्तर:
ये ऐल्कोहॉल के साथ वसीय अम्लों के एस्टर हैं जिनमें एक फॉस्फेट, कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन समूह भी होता है।

प्रश्न 20.
जब एक पेन्टोज शर्करा एक नाइट्रोजनी क्षारक से जुड़ती है तो क्या बनता है ?
उत्तर:
एक न्यूक्लिओसाइड ( nucleoside )

प्रश्न 21.
डी. एन. ए. की संरचना का डबल हैलिकल मॉडल किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
वाटसन एवं क्रिक ने।

प्रश्न 22.
सह-संयोजी बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी से बनने वाले बन्ध सहसंयोजी बन्ध कहलाते हैं।

प्रश्न 23.
डी. एन. ए. द्विरज्जुक में ग्वानिन व साइटोसीन के बीच कितने हाइड्रोजन बन्ध बनते हैं ?
उत्तर:
तीन (CG)

प्रश्न 24.
प्यूरीन तथा पिरिमिडीन का क्या अनुपात होता है ?
उत्तर:
A/T = 1 तथा G / C = 1

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न-I

प्रश्न 1.
प्रोटीन्स के विकृतीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उच्च तापमान या pH परिवर्तन के फलस्वरूप प्रोटीन्स की तृतीयक या चतुष्क संरचना को बनाए रखने वाले बन्ध टूट जाते हैं, जिससे प्रोटीन्स की प्रकार्य सक्रियता समाप्त हो जाती है। इसे विकृतीकरण (denaturation ) कहते हैं। जैसे- अण्डे को उबालने पर इसका पीतक ( yolk ) जम जाता है।

प्रश्न 2.
जीवधारियों के शरीर में होने वाली उपचय तथा अपचय क्रियाओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
उपचय या संश्लेषण अभिक्रियाओं के तरल अणुओं से जटिल अणुओं का संश्लेषण होता है जैसे ग्लूकोस के अणुओं के संयोजन से ग्लाइकोजन का निर्माण। अपचय ( catabolic) क्रियाओं में जटिल अणु छोटे-छोटे अणुओं में विघटित हो जाते हैं और ऊर्जा मुक्त होती है जैसे श्वसन क्रिया।

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प्रश्न 3.
न्यूक्लिक अम्ल में पाए जाने वाले विभिन्न नाइट्रोजनी क्षारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्यूरीन्स (Purines ) –

  • एडिनीन ( Adenine)
  • ग्वानीन ( Guanine)

पिरिमिडीन्स (Pyrimidines)-

  • साइटोसीन (Cytosine)
  • थाइमीन (Thymine)
  • यूरेसिल (Uracil)।

प्रश्न 4.
वसा अम्ल क्या है ?
इनका सामान्य सूत्र लिखिए।
उत्तर:
वसा अम्ल (Fatty acid) ये कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से मिलकर बनते हैं। तीन अणु वसा अम्ल तथा एक अणु ग्लिसरॉल मिलकर वसा (fat) अणु बनाते हैं। वसा अम्ल का सामान्य सूत्र CH3(CH2)n COOH है ।

प्रश्न 5.
जैविक अणुओं का संश्लेषण कहाँ होता है ?
उत्त:
जैविक अणुओं का संश्लेषण पौधों एवं जन्तुओं में होता है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा अकार्बनिक अणुओं से जैविक अणुओं का संश्लेषण करते हैं। जन्तु इन्हें भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। जन्तुओं द्वारा इनसे आवश्यक अन्य जैव अणुओं का संश्लेषण होता है।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
ऊष्माशोषी तथा ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाओं को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
ऊष्माशोषी अभिक्रियाएँ (Endothermic reactions ) – ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें ऊष्मा का अवशोषण होता है, ऊष्माशोषी अभिक्रियाएँ (endothermic reactions) कहलाती हैं। जैसे- प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु 4

C6H12O6 + 6H2 O + 6O2
ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाएँ (Exothermic reactions ) – ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें ऊर्जा मुक्त होती है, ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाएँ (exothermic reactions) कहलाती हैं-जैसे श्वसन (Respiration) ।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा

प्रश्न 2.
आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्लों का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
(A) आवश्यक अमीनो अम्ल (Essential Amino Acids) – इन ऐमीनो अम्लों का संश्लेषण हमारे शरीर में नहीं हो सकता है। यह हमें केवल पौधों से भोजन के रूप में प्राप्त होते हैं। परन्तु किसी भी पादप स्रोत में ये सभी आवश्यक एमीनो अम्ल ( amino acids) नहीं पाए जाते हैं। जन्तु प्रोटीन्स में सभी आवश्यक ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं। आवश्यक एमीनो अम्लों की संख्या 10 है ।

(B) अनावश्यक एमीनो अम्ल (Non essential Amino 3(Non-essential Acids) इन ऐमीनो अम्लों का संश्लेषण स्वयं शरीर द्वारा अन्य ऐमीनो अम्लों द्वारा हो जाता है। अतः इन्हें अतिरिक्त रूप से भोजन में लेने की आवश्यकता नहीं होती है, इनकी संख्या भी 10 है।

प्रश्न 3.
ATP क्या है ? ATP की संरचना समझाइए ।
उत्तर;
ATP या एडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट (Adenosine triphosphate) एक उच्च ऊर्जा यौगिक है। इसका निर्माण राइबोस शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक तथा फॉस्फेट समूह के जुड़ने से होता है। सर्वप्रथम नाइट्रोजनी क्षारक एडेनीन एवं राइयोज शर्करा (ribose sugar) अणु मिलकर एडिनोसिन (adenosine) न्यूक्लिओसाइड (nucleoside) बनाते हैं। न्यूक्लिओसाइड से अब एक फॉस्फेट जुड़कर न्यूक्लिओटाइड ( nucleotide ) बनता है। इसे एडिनोसिन मोनोफास्फेट (AMP) कहते हैं। न्यूक्लिओसाइड से न्यूक्लिओटाइड
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 9 जैव अणु 3

बनने बने फास्फोडाइएस्टर बन्ध में 1500-1800 कैलारी प्रतिमोल ऊर्जा संचित होती है। AMP में अब एक और फॉस्फेट अणु जुड़ता है तथा एडिनोसिन डाइ फास्फेट ( ADP) बनता है और इस बन्ध में 7300 कैलोरी मोल ऊर्जा संचित होती है। अब ADP में एक और फॉस्फेट अणु जुड़ता है जिससे एडिनोसिन है ट्राइ फॉस्फेट ( ATP ) बनता है। इस बन्ध में भी 7300 कैलारी मोल ऊर्जा संचित होती है। ATP को ऊर्जा की करेन्सी कहा जाता है। ATP जब ADP में बदलता है तब ऊर्जा मुक्त होती है जो जैविक क्रियाओं में प्रयोग की जाती है।

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प्रश्न 4.
माइकेलिस स्थिरांक से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
माइकेलिस स्थिरांक (Michalis constant ) – रासायनिक अभिक्रिया में क्रियाधार (substrate) की वह सान्द्रता जिस पर क्रिया की गति उसकी अधिकतम गति की आधी होती है, माइकेलिस स्थिरांक कहलाता है। यह क्रियाघर (substrat ) से लगाव प्रदर्शित करता है। इसे Km से दर्शाते हैं। Km का मान एन्जाइम का क्रियाधार (substrate) से अधिक लगाव की स्थिति में कम होता है। किसी भी विकर में Km का मान अलग-अलग क्रियाधारों में अलग-अलग होता है।

प्रश्न 5.
न्यूक्लिओसाइड्स तथा न्यूक्लिओटाइड में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिओसाइड्स तथा न्यूक्लिओटाइड्स में अन्तर (Differences between Nucleside and Nucleotides)-

न्यूक्लिओसाइड्स (Nucleosides)न्यूक्लिओटाइड्स (Nucleotides)
1. इसमें एक नाइट्रोजनी क्षारक तथा एक पेन्टोस शर्करा होती है।इसमें एक नाइट्रोजनी क्षारक, एक | पेन्टोस शर्करा तथा एक फॉस्फेट समूह होता है।
2. यह स्वभाव में क्षारीय ( basic ) होते हैं।यह स्वभाव में अम्लीय (acidic) होते हैं।
3. यह न्यूक्लिओटाइड्स के घटक अणु होते हैं।यह न्यूक्लिक अम्लों के घटक अणु होते हैं।

प्रश्न 6.
संतृप्त तथा असंतृप्त वसा अम्लों में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
संतृप्त वसा अम्ल तथा असंतृप्त वसा अम्ल में अन्तर (Differences between saturated fatty acids and unsaturated fatly acids)

संतृप्त वसा अम्लअसंतृप्त वसा अम्ल
1. इनमें शृंखला के सभी कार्बन परमाणु एकल बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं।श्रृंखला के एक या अधिक स्थानों पर कार्बन कार्बन परमाणुओं के बीच द्वि या त्रि बन्ध होते हैं।
2. इनमें श्रृंखला के शीर्षस्थ कार्बन – COOइसमें दोहरे बन्धों वाले कार्बन परमाणुओं पर हाइड्रोजन परमाणु नहीं होते हैं।
3. यह सामान्य ताप पर ठोस (solid) होते हैं।यह सामान्य ताप पर द्रव (liquid) होते हैं।
4. इनका गलनांक (melting point) अधिक होता है।इनका गलनांक (melting point) कम होता है।
5. यह सामान्यतया जन्तु वसाओं किन्तु कुछ पौधों में भी पाए जाते हैं ।यह सामान्यतया पादप वसाओं में पाए जाते हैं।

प्रश्न 7.
न्यूक्लिओटाइड्स के कार्य लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिओटाइड्स के कार्य (Functions of Nucleotides ) – न्यूक्लिओटाइड्स के निम्नलिखित कार्य हैं-
(1) न्यूक्लीक अम्लों का निर्माण (Formation of Nucleic Acids) – न्यूक्लिओटाइड्स के बहुलीकरण (polymerization) से न्यूक्लीक अम्ल DNA, RNA बनते हैं।

(2) ऊर्जा वाहकों का निर्माण (Formation of Energy Carriers) न्यूक्लिओटाइड्स फास्फेट अणुओं से संयुक्त होकर AMP ADP व ATP बनाते हैं।

(3) सह- एन्जाइम का निर्माण (Formation of Co-enzymes ) – न्यूक्लिओटाइड्स अन्य अणुओं से संयुक्त होकर NAD, NADP, FAD, FMN आदि सह- एन्जाइम (Coenzeyme) बनाते हैं। अनेक सह एंजाइम विटामिन के रूप में कार्य करते हैं। श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण क्रियाओं में प्रयोग में आते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या हैं? कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख संवर्गों का उल्लेख कीजिए। सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट का रासायनिक सूत्र लिखिए। बताइए कि जन्तु में कार्बोहाइड्रेट्स की क्या भूमिका है ?
अथवा
कार्बोहाइड्रेट क्या होते हैं ? इनका महत्व लिखिए।
अथवा
कार्बोहाइड्रेट क्या होते हैं ? इन्हें सैकेराइड्स क्यों कहते हैं? इनका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
कार्बोहाइड्रेट्स क्या हैं ? इनका खोत तथा संयोजन लिखिए । कार्बोहाइड्रेट के विभिन्न प्रकार लिखिए।
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेटस (Carbohydrates)
कार्बोहाइड्रेटस, कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के यौगिक हैं, जिनमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का अनुपात जल में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के अनुपात के समान होता है। इसीलिए इन्हें कार्बन के हाइड्रेटस (hydrates of carbon) कहते हैं। इनका सामान्य सूत्र Cn (H2 O)n या (C2 H2 O) है।

कार्बोहाइड्रेट्स को शर्करा के यौगिक या सैकेराइड्स भी कहते हैं क्योंकि या तो ये शर्करा होते हैं अथवा शर्करा एककों (monomers) के बहुलक (polymes) होते हैं। कुछ कार्बोहाइड्रेटस में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस या सल्फर के परमाणु (atom) भी होते हैं। इनमें एक से अधिक हाइड्रोक्सिल समूह (OH) भी होते हैं।

कार्बोहाइड्रेट के स्रोत (Sources of carbohydrates) – कार्बोहाइड्रेट्स भोजन के मौलिक घटक हैं। हरे पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण द्वारा CO2 एवं जल से कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करते हैं। पौधों के शुष्क भार (dry weight) का लगभग 80% भाग कार्बोहाइड्रेट का बना होता हैं।

कार्बोहाइड्रेटस के तीन प्रकार (Three Types of Carbohydrates) –
1. मोनोसैकेराइडस
2. औलिगोसैकेराइड्स तथा
3. पॉलीसैकेराइड्स । मोनोसैकेराइडस तथा ओलिगोसैकेराइड्स सामान्य शर्कराएँ हैं, जो जल में घुलनशील हैं। इन्हें लघु अणु कहते हैं जबकि पॉलिसैकेराइडस को वृहदाणु कहते शर्करा (Sugas) – स्वाद में मीठे कार्बोहाइड्रेट्स ही शर्करा कहलाते हैं जैसे- ग्लूकोस, फ्रक्टोस, सुक्रोस आदि। सभी मीठे पदार्थ शर्करा (sugar) नहीं होते। मोनोसैकेराइड व डाइसैकेराइड विभिन्न प्रकार की शर्कराएँ हैं।
1. मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides) या सरल शर्कराएँ (Simple Sugars) –
मोनोसैकेराइड्स सरलतम कार्बोहाइड्रेटस हैं, जिन्हें सरल शर्कराएं भी कहते है। इनका और अधिक छोटा इकाइया में जल अपघटन (hydrolysis) नहीं हो सकता। इनका सामान्य सूत्र CnH2On होता है। मोनोसैकेराइडस के प्रत्येक अणु में 3-7 कार्बन परमाणु होते हैं।

प्रत्येक मोनोसैकेराइड्स अणु में कार्बन अणुओं की एक अशाखित श्रृंखला (unbranched chain) होती है जिसमें कार्बन परमाणु एकल सहसंयोजी बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। एक कार्बन परमाणु दोहरे बन्ध द्वारा एक ऑक्सीजन परमाणु से जुड़कर कार्बोनिल समूह बनाता है। शेष कार्बन परमाणुओं में से प्रत्येक परमाणु हाइड्रोक्सिल समूह (-OH) से जुड़ा होता है।

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कार्बोनिल समूह जब कार्बन श्रृंखला के छोर पर होता है तो ऐल्डिहाइड (HCO) समूह बनाता है। ऐसी शर्करा एल्डोलेस कहलाती है। जब कार्बोनिल समूह मध्यवर्ती कार्बन से जुड़ा हो तो कीटोन समूह (C = O) बनता है। इन्हें कीटोज कहते हैं। इसी आधार पर मोनोसैकेराइड्स के दो प्रमुख रासायनिक गुण हैं। कीटोन या ऐल्डिहाइड समूह वाली शर्करा Cu u++ को Cut में अपचयित ( reduce ) कर देती है।

इन्हें अपचायक शर्कराएँ (reducing sugars) कहा जाता है। यही बेनेडिक्ट (Benedict’s ) टेस्ट या फेहलिंग टेस्ट (Fehling’s Test) का आधार है। मोनोसैकेराइड्स का वर्गीकरण (Classification of Monosaccharides) कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर मोनोसैकेराइड्स को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है-
(i) ट्रायोजेस (Trioses: CHO2 – इनके प्रत्येक अणु में 3- कार्बन परमाणु होते हैं जैसे – ग्लिसरैल्डीहाइड (glyceraldehyde ) तथा डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन (Dihydroxyacetone)। यह सबसे छोटे मोनोसैकेराइड्स हैं।

(ii) टेट्रोजेस (Tetroses: C4H6 O4 ) – यह चार कार्बन परमाणु वाली शर्कराएँ हैं, जैसे- एरिथ्रोस ( erythrose) तथा थ्रिओस (threose)।

(iii) पेन्टोज (Pentose C5 H10H5 – यह पाँच कार्बन वाली शर्कराएँ हैं जो कोशिका द्रव्य में मुक्त रूप से नहीं मिलती हैं। जैसे-राइबोस, राइबुलोस, जाइलोस, आर्बीनोस, डिऑक्सीराइबोस।

(iv) हेक्सोस (Haxose C6 H12O6) – इनमें कार्बन के छ: परमाणु होते हैं। यह एक सामान्य कार्बोहाइड्रेट है। जैसे- ग्लूकोस, फ्रक्टोस, गैलेक्टोस तथा मैनोस इन चारों का रासायनिक सूत्र एक समान होता है। इनमें से केवल ग्लूकोस (glucose) तथा फ्रक्टोस (fructose) विलयन के रूप में मिलते हैं।

इनके अणुओं में परमाणुओं के विन्यास में अन्तर के कारण इनके गुणों में अन्तर होता है। ग्लूकोस, फ्रक्टोस तथा मेनोस की संरचना में प्रथम व द्वितीय कार्बन में अन्तर होता है। फ्रक्टोस कीटोस है जबकि ग्लूकोस व मैनोस एल्डोस हैं। गैलेक्टोस में 4- कार्बन में – OH समूह की स्थिति के कारण यह ग्लूकोज से भिन्न होता है ।

(v) हेप्टोस (Heptose C7 H14O7) – यह सात कार्बन परमाणु वाली शर्कराएँ (sugars) हैं, जैसे- सीडो हेप्टुलोस (sedoheptulose) तथा ग्लूकोहेप्टोस (glucoheptose) ।

प्रश्न 2.
लिपिड्स क्या हैं ? इनके उदाहरण दीजिए। लिपिड्स के विशिष्ट गुण लिखिए।
अथवा
वसा क्या है ? यह कितने प्रकार की होती हैं ? संतृप्त तथा असंतृप्त वसा अम्ल में अन्तर लिखिए ।
अथवा
लिपिड्स का संयोजन बताइए तथा लिपिड्स का वर्गीकरण कीजिए ।
उत्तर:
लिपिड्स (Lipids)
लिपिड विविध प्रकार के तैलीय, स्नेहकीय (lubricant) तथा मोम के समान कार्बनिक पदार्थ हैं जो जीवधारियों में पाए जाते हैं। घी, चर्बी, वनस्पति तेल, मोम, प्राकृतिक रबर, कोलेस्ट्रॉल, पादपों के रंगा पदार्थ एवं गंधयुक्त पदार्थ जैसे – मेंथाल यूकेलिप्टस आयल, वसा में घुलनशील विटामिन्स, स्टीरॉइड हॉर्मोन्स आदि लिपिड्स ही होते हैं। सभी लिपिड्स में निम्नलिखित दो लक्षण समान रूप से पाए जाते हैं-
(a) यह सब वास्तविक या सम्भाव्य रूप से वसीय अम्लों के एस्टर (esters of fatty acids) होते हैं।

(b) यह सब अध्रुवीय (non-polar) होते हैं। अतः यह जल में अघुलनशील परन्तु अध्रुवीय कार्बनिक विलायकों जैसे – क्लोरोफार्म, ईथर, बेन्जीन आदि में घुलनशील होते हैं ।

सभी लिपिड अणु छोटे जैव अणु होते हैं। इनका अणुभार 750 से 1500 ही होता है । कार्बोहाइड्रेटस की भाँति लिपिड्स भी कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के बने होते हैं, परन्तु इनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के परमाणुओं का अनुपात 2: 1 नहीं होता है। हाइड्रोजन तथा कार्बन के परमाणुओं की संख्या ऑक्सीजन के परमाणुओं से बहुत अधिक होती है।

कुछ में फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा सल्फर के भी कुछ परमाणु होते हैं । रासायनिक दृष्टि से लिपिड्स वसीय अम्लों (fatty acids) तथा ग्लिसरॉल (glycerol) के एस्टर या ग्लिसरॉइडस होते हैं । अर्थात लिपिड का एक अणु वसीय अम्लों के तीन तथा ग्लिसरॉल के एक अणु के मिलने से बनता है ।
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वसीय अम्ल (Fatty acids) – वसीय अम्लों का सामान्य सूत्र CH3 (CH2)n COOH होता है। यह अधिकांश लिपिड्स का प्रमुख भाग बनाते हैं । प्रत्येक वसीय अम्ल के अणु में हाइड्रोकार्बन्स (CH) की एक अशाखित श्रृंखला होती है। श्रृंखला के एक छोर के कार्बन परमाणु से एक कार्बोक्सिल समूह (- COOH) तथा दूसरे छोर के कार्बन परमाणु से एक मेथिल समूह ( – CH3) जुड़ा होता है ।

संतृप्त एवं असंतृप्त वसीय अम्ल (Saturated and Unsaturated Fatty Acids) – कुछ वसीय अम्लों में सभी कार्बन परमाणु एकल सहसंयोजी बन्धों (covalent bond) द्वारा एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, इन्हें संतृप्त वसीय अम्ल (saturated fatty acids) कहते हैं।

जन्तु वसाओं में प्रायः ऐसे ही वसीय अम्ल होते हैं। अन्य वसीय अम्लों की हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाओं में निश्चित स्थानों के कार्बन परमाणु दोहरे बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। ऐसा प्रत्येक C- परमाणु एक अतिरिक्त हाइड्रोजन परमाणु से भी जुड़ सकता है। ऐसे वसीय अम्ल असंतृप्त वसीय अम्ल ( unsaturated fatty acids) कहलाते हैं।

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प्रश्न 3.
प्रोटीन की रचना प्रकार एवं कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन्स (Proteins)
प्रोटीन शब्द प्रोटिओज (proteose) नामक ग्रीक शब्द से व्युत्पन्न हुआ है – जिसका अर्थ है पहला स्थान रखना। बर्जिलियस (1837 ) ने प्रोटीन की उत्प्रेरक क्रिया (catalytic reaction) को प्रस्तुत किया। प्रोटीन (protein) शब्द सर्वप्रथम मुल्डर (1839 ) ने दिया । कोशिकाओं में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला पदार्थ प्रोटीन ही होता है ।

प्रोटीन्स कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन सभी प्रोटीन्स का आवश्यक घटक है। प्रोटीन्स में सल्फर की भी कुछ मात्रा होती है। प्रोटीन्स की प्रतिशत मात्रा विभिन्न स्रोतों में भिन्न-भिन्न होती है जैसे- स्तनियों की पेशियों में 20%, रक्त प्लाज्मा में 70%, गाय के दूध में 3.5%, अनाज में 12%, दालों में 20%, अण्डे की सफेदी में 11-13%, अण्डे के पीतक ( yolk) में 15-17%, मुर्गे के गोश्त में 24%, सोयाबीन में 40% तथा मशरुम्स में 55% तक प्रोटीन्स होती है ।

प्रोटीन की संरचनात्मक इकाई : अमीनो अम्ल (Building Blocks of Protein : Amino acids)
प्रोटीन की निर्माणकारी इकाइयाँ अमीनो अम्ल होते हैं। यह एक प्रकार के कार्बनिक अम्ल हैं जिनमें कम-से-कम एक मुक्त अमीनो समूह (-NH2) तथा एक कार्बोक्सिलिक समूह ( – COOH) अवश्य होता है। अर्थात् अमीनो अम्ल मोनो या डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल हैं जिनमें एक या दो अमीनो समूह होता है । a कार्बन का स्थान कार्बोक्सिल कार्बन से अलग होता है ।

अमीनो अम्ल के a कार्बन की चार संयोजकताएँ में से एक पर अमीनो समूह (2), एक पर कार्बोक्सिलिक समूह (COOH), एक पर  हाइड्रोजन व एक पर पार्रव श्रृंखला होती है। यह पार्रव श्रृंखला ध्रुवीय (polar) या अध्रुवीय (non-polar) हो सकती है। इनका सामान्य सूत्र R – CHNH2 COOH होता है। ग्लाइसीन (glycine) सबसे सरल प्रकार का अमीनो अम्ल होता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल उभयधर्मी (amphoteric) यौगिक होता है, क्योंकि इसमें – COOH मन्द अम्लीय व – NH2 मन्द क्षारीय समूह पाए जाते हैं। अमीनो अम्लों के आय विटर आयन्स (zwiter ions) कहलाते हैं।
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अनिवार्य एवं अनानिवार्य अमीनो अम्ल (Essential and non essential amino acids) – अब तक ज्ञात अमीनो अम्लों में से केवल 20 प्रकार के अमीनो अम्ल जैविक महत्व के होते हैं। सूक्ष्मजीवों एवं पादपों में इन बीसों प्रकार के अमीनो अम्लों का निर्माण होता है । परन्तु स्तनियों में केवल 10 ही शरीर में बनते हैं इन्हें अनानिवार्य अमीनो अम्ल (non-essential amino acids) कहते हैं। शेष 10 अमीनो अम्लों को ये स्तनी भोजन से प्राप्त करते हैं, जिन्हें अनिवार्य अमीनो अम्ल (essential amino acids) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
एन्जाइम की रासायनिक संरचना एवं इनकी क्रियाविधि समझाइए ।
उत्तर:

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माइकेलिस स्थिरांक ( Michaelis constant) – रासायनिक अभिक्रिया में क्रियाधार की वह सान्द्रता जिस पर क्रिया की गति उसकी अधिकतम गति की आधी होती है, माइकेलिस स्थिरांक कहलाता है क्रियाधार से लगाव प्रदर्शित करता है। इसे Km से दर्शाते हैं। Km का मान एन्जाइम का क्रियाधार से अधिक लगाव की स्थिति में कम होता है।

किसी भी विकर में Km का मान अलग-अलग क्रियाधारों में अलग-अलग होता है। विकरों की क्रियाविधि को ताला चाबी परिकल्पना (lock and Key hypothesis) द्वारा समझाया जाता है। रासायनिक क्रियाओं के सम्पन्न होने के लिए ऊर्जा के ‘इनपुट’ की आवश्यकता होती है।

इस ऊर्जा की सक्रियण ऊर्जा (activation energy) कहा जाता है। क्रियाधार के एंजाइम से बंधने से सक्रियण ऊर्जा कम हो जाती है। वास्तव में सक्रियण ऊर्जा में कमी लाकर ही एंजाइम क्रिया की दर को बढ़ाते हैं। इसके अनुसार ताला क्रियाधार (substrate) तथा चाबी विकर की भाँति कार्य करती हैं। जिस प्रकार चाबी
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प्रश्न 5.
आई. यू. बी. प्रणाली के अनुसार विकरों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
विकरों का वर्गीकरण (Classification of Enzymes ) – विकर जिन पदार्थों पर क्रिया करते हैं, जिस प्रकार की क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं अथवा है बनने वाले उत्पाद के नाम के पीछे ऐज (-ase) शब्द लगाकर इनका नामकरण किया जाता है- एन्जाइमों को उनकी कार्यात्मक विशिष्टता या उनकी उत्प्रेरक क्रिया (catalytic activity) के आधार पर अग्रलिखित 6 मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया गया

एन्जाइम समूह (Enzyme group)अभिक्रिया का प्रकार (Type of Reaction)
1. ऑक्सीडोरिडक्टेज (Oxydoredu- ctase)ऑक्सीकरण अपचयन अभिक्रियाएँ (Oxydation- reduction)
2. ट्रांसफरेज (Transferase)यह क्रियात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण समूह जैसे- CH3 NH2 आदि का एक अणु से दूसरे अणु में स्थानांतरण करता है।
3. हाइड्रोलेजेज (Hydrolases)यह क्रियाधर (substarate) का जल अपघटन करते हैं।
4. आइसोमरेजेज या म्यूटेजेज (Isomerases or Mutases)यह परमाणुओं का पुनर्वितरण करके किसी यौगिक के एक आइसोमर को दूसरे आइसोमर में बदलते हैं।
5. लायेजेज (Lyases)जल की अनुपस्थिति में विशिष्ट संयोजी बंधों को तोड़ते हैं तथा समूहों को हटाते हैं ।
6. लाइगेजेज सिंथेटेजेज (Ligases Synthetases)ऊर्जा के उपयोग से दो अणुओं को जोड़ने की क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं। बंध का निर्माण करते हैं।

विवरण व उदाहरण यह इलेक्ट्रॉन अथवा या (H+ आयन) को घटाकर अथवा जोड़कर क्रिया सम्पन्न करते हैं- जैसे साइटोक्रोम ऑक्सीडेज साइटोक्रोम की ऑक्सीकृत करता है, लैक्टेट डिहाइड्रोजिनेज फॉस्फोट्रांसफरेज (phosphotransferase) – फॉस्फेट समूह का एक अणु से दूसरे अणु में स्थानांतरण करता है। जैसे- ग्लूटेमेट पाइरूवेट ट्रांसएमीनेज । सभी पाचक एन्जाइम इस श्रेणी में आते हैं। जैसे पेप्सिन (pepsin) आदि ।

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यह जल के अणु की सहायता से बड़े अणुओं को छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं जैसे – एमाइलेज म्यूटेज (mutase) जैसे – फॉस्फोहेक्सोज आइसोमरेज (Phosphoheose isomerase) ग्लूकोज -6- फॉस्फेट को फ्रक्टोज – 6- फॉस्फेट में बदल देता है । हिस्टीडिन डिकार्बोक्टिनेज हिस्टीडिन के C-C बंध को तोड़कर हिस्टीडिन व कार्बनडाइऑक्साइड बनाता है। DNA लाइगेज दो DNA खण्डों को जोड़ता है। पाइरूवेट कार्बोक्सिलेज, पाइरूविक अम्ल व CO2 को जोड़कर ऑक्सेलोएसीटेट बनाता है।

प्रश्न 6.
न्यूक्लिक अम्ल क्या होते है ? यह कितने प्रकार के होते हैं ? इनके कार्य लिखिए ।
उत्तर:
न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic Acid)
फ्रेडरिक मीशर (Frederick Meischer) ने 1869 में सर्वप्रथम पस कोशिकाओं (pus cells) में न्यूक्लिक अम्ल ( nucleic acid) की खोज की थी। क्योंकि यह केन्द्रक में पाये जाते हैं अतः इन्हें न्यूक्लिन ( nuclein) नाम दिया गया। बाद में इनकी अम्लीय प्रवृत्ति का पता लगने पर इन्हें न्यूक्लिक अम्ल (nucleic acids) कहा गया। यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फेट से बने वृहद् अणु  (maeromolecules) होते हैं। न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लिओटाइड्स (nucleotides) के रेखीय बहुलक (polymers) होते हैं अर्थात् न्यूक्लिक अम्ल की इकाई न्यूक्लिओटाइड है। न्यूक्लिओटाइड्स आपस में फॉस्फोडाइऐस्टर बन्धों (phosphodiester bonds)

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द्वारा जुड़े होते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में तीन प्रकार के अणु होते हैं, एक पंचकार्बनी शर्करा (pentose sugar), एक नाइट्रोजन क्षारक ( nitrogenouse base) तथा एक फॉस्फेट समूह ( phosphate group) ।
1. पंच कार्बनी शर्करा (Pentose sugar) – यह दो प्रकार की होती हैं- राइबोस शर्करा (ribose sugar) तथा डिऑक्सीराइबोस शर्करा ( deoxyribose sugar)।
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2. नाइट्रोजनी क्षारक (Nitrogeneous bases) – यह दो मुख्य प्रकार के होते हैं-

  • प्यूरीन (Purines) – यह दो वलयों वाले क्षारक हैं तथा दो प्रकार के होते हैं- एडिनीन ( adenine) तथा ग्वानीन ( guanine)।
  • पिरिमिडीन्स (Pyrimidines) – यह एक वलय वाले क्षारक हैं जो तीन प्रकार के होते हैं- सायटोसीन (cytosine), थायमीन (thymine) तथा यूरेसिल (uracil)।

3. फॉस्फेट समूह (Phosphate Group) – यह दो न्यूक्लिओटाइड्स को बंध बनाकर जोड़ते हैं।
न्यूक्लिक अम्ल के प्रकार (Types of Nucleic acids) न्यूक्लिक अम्ल दो प्रकार के होते हैं-

1. डिऑक्सीरिबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic acid or DNA ) – इसके न्यूक्लिओटाइड एक पंच कार्बनीय शर्करा डी-ऑक्सीराइबोस, एक नाइट्रोजनी क्षारक (एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तथा थाइमीन में से कोई एक ) तथा फॉस्फेट समूह के बने होते हैं।

2. राइबोन्यूक्लिक अम्ल (Ribonucleic acid ) – इनमें राइबोस शर्करा (ribose sugar) पायी जाती है। इसका प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड एक शर्करा अणु, एक नाइट्रोजनी क्षारक (एडिनीन, ग्वानीन, साइटोसिन तथा यूरेसिल में से कोई एक तथा फॉस्फेट समूह से मिलकर बनता है। यह तीन प्रकार के होते हैं-

  • संदेश वाहक आर.एन.ए. (mRNA)
  • स्थानांतरण आर.एन.ए. ( tRNA)
  • राइबोसोमल आर. एन. ए. ( FRNA)

प्रश्न 7.
DNA की संरचना का द्विरज्जुक मॉडल (Double helical model) का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डीऑक्सी राइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic Acid, DNA
डी.एन.ए. (de-oxyribonucleic acid) न्यूक्लिओटाइड ( nucleotide ) अणुओं का रेखीय बहुलक (polymer) है। यह आनुवंशिक सूचनाओं (genetic informations) का वाहक (carrier) है। यह गुणसूत्रों (chromosoms) का प्रमुख घटक है और इनके द्वारा लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाता है । यूकैरियोटिक कोशिकाओं में यह केन्द्रक के अतिरिक्त माइटोकान्ड्रिया तथा हरित लवक में भी पाया जाता है। DNA जीवजगत का अनूठा आणु है क्योंकि यह प्रतिकृतिकरण (replication) कर सकता है।

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डी. एन. ए. की संरचना (Structure of DNA)
DNA उच्च अणुभार वाला वृहत् अणु है। इसका निर्माण हजारों न्यूक्लिओटाइडों के फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों द्वारा जुड़ने से होता है। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड में तीन अणु होते हैं – एक डिऑक्सीराइबोस शर्करा अणु एक नाइट्रोजनी क्षारक अणु तथा एक फॉस्फेट समूह । न्यूक्लिओटाइड्स, न्यूक्लिओसाइड्स के फॉस्फेट होते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओसाइड एक शर्करा अणु व एक नाइट्रोजनी क्षारक से मिलकर बना होता है ।
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न्यूक्लिओसाइड (Nucleosides ) सबसे पहले पेन्टोस शर्करा (pentose sugar) अणु से एक नाइट्रोजनी क्षारक प्रथम कार्बन पर B ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा जुड़कर न्यूक्लिओसाइड बनाता है। क्योंकि DNA के निर्माण में चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारक भाग लेते हैं। इस आधार पर न्यूक्लिओसाइड भी चार प्रकार के होते हैं-

(i) डि-ऑक्सीएडिनोसीन (Deoxyadenosine) – एडिनोसिन + डिऑक्सीराइबोज शर्करा ।

(ii) डि-ऑक्सीग्वानोसीन (Deoxyguanosine)- ग्वानोसीन + डिऑक्सीराइबोज शर्करा ।

(iii) डि-ऑक्सीसायटिडीन ( Deoxycytidine ) – सायटोसीन + डिऑक्सीराइबोज शर्करा ।

(iv) डि-ऑक्सीथायमिडीन (Deoxythymidine ) – थायमीन + डिऑक्सीराइबोज शर्करा ।

न्यूक्लिओटाइड (Nucleotides) – न्यूक्लिओसाइड डाइएस्टर बंधू द्वारा अब फॉस्फोरिक अम्ल के साथ जुड़कर न्यूक्लिओटाइड

(nucleotide) बनाता है। नाइट्रोजनी क्षारकों के आधार पर न्यूक्लिओटाइड भी चार प्रकार के होते हैं-
(i) डि-ऑक्सीएडिनिलिक अम्ल (Deoxyadenylic acid) – डि-ऑक्सीएडिनोसीन + फॉस्फोरिक अम्ल ।

(ii) डि-ऑक्सीग्वानीलिक अम्ल (Deoxyguanylic acid ) – डि-ऑक्सीग्वानोसीन + फॉस्फोरिक अम्ल
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(iii) डि-ऑक्सीसाइटिडिलिक अम्ल (Deoxycytidylic acid ) – डि- आक्सीसायटिडीन + फॉस्फोरिक अम्ल

(iv) डि-ऑक्सीथाइमीडिलिक अम्ल ( Deoxythymidylic acid ) – डि-ऑक्सीथाइमिडीन + फॉस्फोरिक अम्ल ।
इस प्रकार बने न्यूक्लिओटाइड एक-दूसरे से विभिन्न क्रमों में जुड़कर पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला (polynucleotide chain) का निर्माण करते हैं 1 पॉलीन्यूक्लिओटाइड्स की दो श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से हाइड्रोजन बंधों (hydrogen bonds) द्वारा प्रति समानान्तर जुड़कर DNA द्विरज्जु (DNA double strand) का निर्माण करती हैं।

इरविन चारगाफ (Erwin Chargaff) ने DNA के जल अपघटन (hydrolysis) के पश्चात् यह पाया कि DNA में एडीनीन की कुल मात्रा सदैव थायमीन के बराबर (A = T) तथा ग्वानीन की कुल मात्रा सायटोसीन के बराबर (G = C) होती है। इसे चारगाफ का तुल्यता का नियम ( equivalence rule of Chargaff) कहते हैं।

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DNA की रचना का द्विरज्जुकी मॉडल (Double helical model of DNA Structure)
वाटसन एवं क्रिक (Watson and Crick 1953) ने DNA की रचना का द्विरज्जुकी मॉडल (double helix model) प्रस्तुत किया। इसके अनुसार DNA अणु पॉलीन्यूक्लिओटाइड की दो प्रति समानान्तर शृंखलाओं से बना होता है। इसमें एक पॉलीन्यूक्लिओटाइड (polynucleotide ) अणु का फॉस्फेट समूह दूसरे न्यूक्लिओटाइड के शर्करा अणु के कार्बन परमाणु के साथ जुड़ा होता है।

इस प्रकार दो शर्करा अणुओं के मध्य 5′ और 3′ स्थितियों पर बंध बनता है। दोनों श्रृंखलाओं के नाइट्रोजनी क्षारक हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़कर DNA अणु का निर्माण करते हैं। दोनों शृंखलाएँ एक काल्पनिक केन्द्रीय अक्ष (axis) पर दक्षिणावर्त दिशा में कुण्डलित रहती हैं। और सीढ़ीनुमा रचना बनाते हैं।

शर्करा व फॉस्फेट अणु सीढ़ी के दो स्तंभ ( side bars) बनाते हैं तथा नाइट्रोजनी क्षारक इसके पगडण्डे होते हैं। दोनों रज्जुक (strands ) एक-दूसरे के प्रति समांतर होते हैं। अर्थात् एक स्ट्रेण्ड का 5′ छोर तथा दूसरे स्ट्रेण्ड का 3′ छोर एक ही दिशा में होते हैं । नाइट्रोजनी क्षारक एक-दूसरे से विशिष्ट क्रम में जुड़े रहते हैं।

एडिनीन थायमीन से द्वि- हाइड्रोजन बंधों द्वारा तथा ग्वानीन सायटोसीन से तीन हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़े रहते हैं। DNA द्वि रज्जुक (double strand) का व्यास 20A होता है। कुण्डलिनी के प्रत्येक कुण्डल में 10 क्षारक युगल होते हैं। प्रत्येक क्षारक युग्म (base pain) के बीच की दूरी 3.4 A तथा सम्पूर्ण कुण्डल की लम्बाई 34 Å होती है।

DNA के कार्य (Function of DNA)

  • DNA गुणसूत्रों (Chromosomes) के निर्माण में भाग लेता है।
  • DNA के विशेष खण्ड जीन्स का कार्य करते हैं जिन पर आनुवंशिक सूचनाएँ निहित होती हैं जिन्हें गुणसूत्रों के माध्यम से नयी पीढ़ी में पहुँचाया जाता है।
  • DNA में स्वद्विगुणन की क्षमता होती है। अतः यह कोशिका विभाजन (cell division ) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह प्रोटीन संश्लेषण के लिए mRNA का निर्माण करता है
  • यह कोशिका की विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
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प्रश्न 8.
जल के गुण तथा इसके जैविक महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल (Water)
जल जीवद्रव्य (protoplasm) का सबसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक घटक है। यह हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के 21 के अनुपात में मिलने से बनता है। यह एक ऐसा पदार्थ है जो एक अद्वितीय (unique) प्रकार के भौतिक तथा रासायनिक लक्षण प्रदर्शित करता है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । जीवों में जल की मात्रा सामान्यतया जीवधारियों में जल कुल जीव भार का 60-90% भाग बनाता है।

जल के गुण (Properties of water)

  1. जल पारदर्शी, स्वादहीन, गंधहीन, रंगहीन व उदासीन द्रव है। शुद्ध जल का pH-7 होता है। इसमें OH तथा H+ आयनों की संख्या बराबर होती
  2. द्विध्रुवीय (bipolar) होने के कारण जल एक उत्तम विलायक (solvent) है।
  3. जल का उच्च क्वथनांक (boiling point) होता है (100°C) ।
  4. जल का पृष्ठ तनाव (surface tension) उच्च होता है, क्योंकि इसके अणुओं के बीच अंतराणुक आकर्षण अधिक होते हैं।
  5. जल की विशिष्ट ऊष्मा (specific heat) उच्च होती है, अतः यह तप्त एवं ठंडा होने में अधिक समय लेता है।
  6. जल की ऊष्मा चालकता (heat conductivity) अधिक होती है इसीलिए जल के पात्र को एक ओर से गर्म करने पर सम्पूर्ण जल गर्म हो जाता
  7. शुद्ध जल की विद्युत चालकता (electrical conductivity) अल्प होती है किन्तु इसमें विद्युत अपघट्य मिलाने पर यह विद्युत का सुचालक हो जाता है।
  8. जल के अणुओं के बीच प्रबल आकर्षण के कारण इनमें ससंजन (cohesion) तथा आसंजन (adhesion) का गुण होता है।
  9. जल ठोस, द्रव तथा गैस तीन भौतिक अवस्थाओं में पाया जा सकता है।

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जल का जैविक महत्व (Biological Significance of water)

  1. अनेक अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थ जल में घुलनशील हैं। अतः घुलनशील अवस्था में रासायनिक क्रियाएँ अपेक्षाकृत सरलता से एवं तीव्र गति से सम्पन्न होती हैं।
  2. विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं में जल क्रियाशील पदार्थ के रूप में कार्य करता है तथा अनेक क्रियाओं के अन्त में उत्पाद के साथ बनता हैं।
  3. पौधों में जल के प्रकाशीय अपघटन से H+ आयन उत्पन्न होते हैं जो पौधों की परिपाचन शक्ति बनाते हैं। इस क्रिया में उत्पन्न ऑक्सीजन सभी जीवों के लिए श्वसन (respiration) में काम आती है।
  4. जल सजीवों के ताप नियन्त्रण में सहायक है।
  5. जल में ससंजन (cohesion) एवं आसंजन ( adhesion) का गुण होने के कारण यह ऊंचे वृक्षों में ऊपर चढ़ता है साथ ही अपने साथ खनिज लवणों का परिवहन करता है।
  6. जल प्राणियों के विभिन्न अंगों के मध्य स्नेहक (lubricant ) की भाँति कार्य करता है, जैसे-आँखों की पलकों के बीच।
  7. ल जैविक क्रियाओं के लिए माध्यम का कार्य करता है।
  8. अधिकांश विकर (enzyme) जलीय माध्यम में प्रभावशाली होते हैं।
  9. जल से उत्पन्न आयन्स pH मान स्थिर रखने में सहायक होते हैं।
  10. जल सजीवों के शरीर में विभिन्न पदार्थों के संवहन (conduction) के लिए माध्यम प्रदान करता है।
  11. जल जीवद्रव्य में कोलाइडी तन्त्र में परिक्षेपण प्रावस्था ( dispersion phase) का कार्य करता है।
  12. बहुत से जीवों का आवास भी जल होता है।

प्रश्न 9.
कोशिका में उपस्थित विभिन्न प्रकार के अकार्बनिक पदार्थों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
कोशिका के अकार्बनिक पदार्थ ( Inorganic substances of the cell)
इस प्रकार के पदार्थों में कार्बन नहीं होता है। यह सरल संरचना वाले छोटे अणु हैं जिनका आण्विक भार कम होता है। इनमें जल, खनिज लवण, आयन्स एवं गैसें सम्मिलित हैं।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. प्लाज्मा झिल्ली (जीवद्रव्य कला) मुख्यतः निर्मित होता है-
(A) फॉस्फोलिपिड्स प्रोटीन द्विस्तर में धंसे रहते हैं
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।
(C) प्रोटीन ग्लूकोस अणुओं के बहुलक में धंसे रहते है।
(D) प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट परत में धँसी रहती है।
उत्तर:
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।

2. निम्न में से कौन-सी संरचना दो परिवहन मार्ग है ?
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी
(B) प्लास्टोक्विनोन
(C) इण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(D) प्लाज्मालेमा
उत्तर:
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी

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3. कोशिका में विभिन्न गतिविधियों का केन्द्र है ?
(A) प्लाज्मा झिल्ली
(B) माइटोकॉण्ड्रिया
(C) कोशिका द्रव्य
(D) नाभिक
उत्तर:
(C) कोशिका द्रव्य

4. निम्न में से किसमें स्वयं का DNA होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) डिक्टियोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) परऑक्सीसोम
उत्तर:
(A) माइटोकॉण्ड्रिया

5. कोशिका के अन्दर पेप्टाइड संश्लेषण किसमें होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्यिा
(B) वर्गीलवक
(C) राइबोसोम
(D) हरित लवक
उत्तर:
(C) राइबोसोम

6. निम्न में से कौन जीवाणु कोशिका में उत्प्रेरक का कार्य भी करता है ?
(A) sn-RNA
(C) 23 s-r RNA
(B) hn-RNA
(D) 5 sr RNA
उत्तर:
(C) 23 s-r RNA

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7. ग्लाकोप्रोटीन तथा ग्लाकोलिपिड के निर्माण का प्रमुख स्थल है-
(A) गॉल्जी उपकरण
(C) लाइसोसोम
(B) लवक
(D) रिक्तका
उत्तर:
(A) गॉल्जी उपकरण

8. निम्न में से कौन-सा जीवधारी यूकोरियोटिक कोशिका का उदाहरण नहीं है ?
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई
(C) प्लाज्मोडियम बाइवैक्स
(B) युग्लीना विडिस
(D) पैरामीशियम कॉडेटम
उत्तर:
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई

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9. कोशिका कला का मॉडल किस में दिया जाता है ?
(A) NOT तथा K+ आयन सक्रिय परिवहन द्वारा
(B) प्रोटीन कोशिका कला का 60 से 70% भाग बनाते हैं।
(C) कोशिका कला में लिपिड द्विस्तर के रूप में व्यवस्थित रहते हैं जिसमें ध्रुवीय शीर्ष अन्दर की ओर होते हैं।
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।
उत्तर:
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।

10. राइबोसोम के बारे में क्या सत्य है ?
(A) प्रोकैरियोटिक राइबोसोम 80s होते हैं जहाँ s अवसादन गुणांक है।
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।
(C) ये केवल यूकॉरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
(D) ये कुछ RNA के स्वप्रतिकृत इन्ट्रान्स होते हैं।
उत्तर:
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।

11. राइबोसोमल RNA सहियतः किसमें संश्लेषित होता है ?
(A) लाइसोसोम
(B) केन्द्रिक
(C) न्यूक्लियोप्लाका
(D) राइबोसोम
उत्तर:
(B) केन्द्रिक

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12. लिपिड्स के संश्लेषण का मुख्य स्थल है-
(A) RER
(B) SER
(C) सिमलास्ट
(D) न्यूक्लियोप्लाज्म
उत्तर:
(B) SER

13. निम्न का मिलान करके सही उत्तर का चयन कीजिए-

स्तंभ Iस्तंभ II
1. माइटोकॉडिया के अन्तर्बलन(A) तारककेन्द्र
2. थायलेकॉइड(B) क्लोरोफिल
3. केन्द्रकीय अम्ल(C) क्रिस्वी
4. पक्ष्माभ या कशाभ के आधार काय(D) राइबोजाइम

कूट-

abcd
(A)4213
(B)1243
(C)1324
(D)4312

उत्तर:
(C) 1 3 2 4

14. ठोस रेखित कोशिका कंकाल तन्त्र जिसका व्यास 5 mm होता है-
(A) सूक्ष्मनलिकाएँ
(B) सूक्ष्मतंतुक
(C) मध्यवर्ती तन्तु
(D) सैमिन्ली
उत्तर:
(B) सूक्ष्मतंतुक

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15. कलाओं युक्त कोशिकीय अवयव है-
(A) केन्द्रक, राइबोसोम तथा माइटोकॉन्ड्रिया
(B) गुणसूत्र, राइबोसोम तथा एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(C) एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम, राइबोसोम, केन्द्रक
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया
उत्तर:
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया

16. निम्न में से कौन कलाबद्ध नहीं होता है ?
(A) रिक्तकाएँ
(B) राइबोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) मीसोसोम
उत्तर:
(B) राइबोसोम

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17. स्तंभों का मिलान कर सही विकल्प का चयन कीजिए-

स्तंभ Iस्तंभ II
a. थाइलेकॉयड1. गॉल्जी उपकरण में डिस्क के समान कोश
b. क्रिस्टी2. DNA की संघनित संरचना
c. सिस्टर्नी3. स्ट्रोमा के समान झिल्लीमय चपटे आशय
d. क्रोमेटिन4. माइटोकॉण्ड्रिया अन्तर्वलन

कूट:

abcd
(A)4312
(B)3412
(C)3412
(D)3421

उत्तर:
(B) 3 4 1 2

18. निम्न में से कौन-सी संरचना प्रोकॉरियोटिक कोशिका में नहीं पायी जाती है?
(A) नाभिकीय आवरण
(C) मीसोसोम
(B) राइबोसोम
(D) जीवद्रव्य कला
उत्तर:
(A) नाभिकीय आवरण

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19. गक्त सुमेलित का चयन कीजिए-
(A) गैस रिक्तिकाएँ-हरी जीवाणु कोशिकाएँ
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ
(C) प्रोटिस्ट-यूकैरियोट
(D) मेथेनोजन्स-प्रोकैरियोट्स
उत्तर:
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ

20. गलत कथन का चयन कीजिए-
(A) जीवाणु कोशिका पेप्टिडोग्लाइकन की बनी होती है।
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।
(C) सायनोबैक्टीरिया में कशाभयुक्त कोशिकाएँ नहीं पायी जाती है।
(D) माइकोप्लाज्मा भित्ति रहित शुक्ष्मजीव है।
उत्तर:
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।

21. निम्न में से कौन-सा कोशिकांग एकल कला द्वारा घिरा रहता है ?
(A) हरितलवक
(C) केन्द्रक
(B) लाइसोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्यिा
उत्तर:
(A) हरितलवक

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22. पादप कोशिका रिक्तकाओं में पाया जाने वाला जल में विलेय वर्णक
(A) क्लोरोफिल
(C) एन्थोसायनिन
(B) माइटोकॉण्ड्यिा
(D) जैन्योफिल
उत्तर:
(C) एन्थोसायनिन

23. निम्न में कौन-सा कोशिकांग कार्बोहाइड्रेट्स से ऊर्जा निष्कासित करके ATP निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है ?
(A) लाइसोसोम
(C) क्लोरोप्लास्ट
(B) राइबोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्रिया
उत्तर:
(D) माइटोकॉण्ड्रिया

24. निम्न में से कौन-सा अवयव जीवाणु कोशिका को चिपकने वाला लक्षण प्रदान करता है ?
(A) कोशिका मिति
(C) जीवद्रव्य कला
(B) केन्द्रक कला
(D) ग्लाइकोकैलिक्स
उत्तर:
(D) ग्लाइकोकैलिक्स

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25. निम्न कोशिकागों के युग्म में किसमें DNA नहीं होता ?
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ
(B) केन्द्रक आवरण एवं सूत्रकणिका
(C) सूत्रकणिका एवं लयनकाय
(D) क्लोरोप्लास्ट एवं रसधानियाँ
उत्तर:
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सबसे छोटी कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
माइकोप्लाज्मा गैलीसेप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum; 0.1μ)

प्रश्न 2.
कोशिका सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
श्लाइडेन तथा श्वान ने।

प्रश्न 3.
सबसे बड़े एक कोशिकीय पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक शैवाल

प्रश्न 4.
सबसे बड़ी जन्तु कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
शुतुर्मुर्ग ( Osrich ) का अण्डा ।

प्रश्न 5.
थाइलेकॉइड कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
हरित लवक (chloroplast) के प्रेना. (granna) में।

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प्रश्न 6.
गुणसूत्र को सर्वप्रथम किसने देखा ?
उत्तर:
स्ट्रासबर्गर (Strasburger; 1875 ) ने।

प्रश्न 7.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में एक अन्तर बताइए ।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) में केन्द्रक कला का अभाव होता है; जबकि यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) में केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

प्रश्न 8.
दो प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवाणु कोशिका तथा सायनोबैक्टीरिया ।

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प्रश्न 9.
किसी एककोशिकीय यूकैरियोटिक पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas )।

प्रश्न 10.
ऑक्सीसोम्स कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया की क्रिस्टी (cristae) पर।

प्रश्न 11.
फ्रेस्ट क्या होते हैं ?
उत्तर:
दो मेना को जोड़ने वाली लैमेली को फ्रेस्ट (freste) कहते हैं।

प्रश्न 12.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या है ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच स्थित जीवद्रव्य तन्तु (protoplasmic fibre) ।

प्रश्न 13.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या कार्य करते हैं ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच पदार्थों का आदान-प्रदान ।

प्रश्न 14.
दो ऐसे कोशिकांगों के नाम लिखिए जिनमें 70 S राइबोसोम्स पाये जाते हैं ?
उत्तर:
(i) माइटोकॉण्ड्रिया
(ii) हरित लवक।

प्रश्न 15.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया तथा हरित लवक।

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प्रश्न 16.
प्रोटीनोप्लास्ट क्या है तथा ये कहाँ अधिक पाये जाते हैं ?
उत्तर:
प्रोटीन संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट। ये दलहनी बीजों में अधिकता में पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
एमाइलोप्लास्ट क्या हैं ? ये कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
मण्ड का संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट (leucoplast)। ये आलू कन्द, अन्न वाले बीजों आदि में अधिकता में पाये जाते हैं।

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प्रश्न 18.
खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका खुरदरी क्यों प्रतीत होती है ?
उत्तर:
इसकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes ) उपस्थित होने के कारण ।

प्रश्न 19.
जीन्स कहाँ स्थित होते हैं ?
उत्तर:
गुणसूत्रों (chromosomes) पर।

प्रश्न 20.
यूक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल जो हल्का स्टेन ( light stain ) लेता है यूक्रोमेटिन कहलाता है।

प्रश्न 21.
हिटरोक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल (chromatin net) जो गहरा स्टेन लेता है हिटरोक्रोमेटिन ( heterochromatin) कहलाता है।

प्रश्न 22.
केन्द्रिका ( neucleolus) का क्या कार्य है ?
उत्तर:
RNA का संश्लेषण तथा राइबोसोम्स का निर्माण करना ।

प्रश्न 23.
एकक कला की विचारधारा किसने और कब प्रस्तुत की थी ?
उत्तर:
जे. डेविड रॉबर्टसन (J. David Robertson) ने 1959 में ।

प्रश्न 24.
प्लाज्मा झिल्ली की मोटाई कितनी होती है ?
उत्तर:
75 A ।

प्रश्न 25.
स्पाइरोगाइरा में किस प्रकार का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है ?
उत्तर:
फीते के आकर का ( ribbon shaped )।

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प्रश्न 26.
क्लोरोफिल में कौन-सी धातु उपस्थित होती है ?
उत्तर:
मैग्नीशियम (magnesium)।

प्रश्न 27.
पॉलीराइबोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लड़ी के रूप में व्यवस्थित राइबोसोम्स

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प्रश्न 28.
कोशिका की ऊर्जा मुद्रा का नाम लिखिए।
उत्तर:
एडिनोसिन ट्राइफास्फेट ( ATP)।

प्रश्न 29.
गुणसूत्र किन पदार्थों के बने होते हैं ?
उत्तर:
DNA, RNA तथा प्रोटीन्स के।

प्रश्न 30.
कौन-सा नाइट्रोजनी क्षार है जो DNA में पाया जाता है किन्तु RNA में नहीं पाया जाता है ?
उत्तर:
थायमीन (T)

प्रश्न 31.
डिक्टियोसोम्स क्या है ?
उत्तर:
पादप कोशिकाओं में गॉल्जीकाय को डिक्टियोसोम कहते हैं।

प्रश्न 32.
कौन-सा कोशिकांग ऐसा है जो बहुरूपता प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
लाइसोसोम (lysosome)।

प्रश्न 33.
पायरीनॉइड क्या होता है ?
उत्तर:
शैवालों में पायी जाने वाली रचना जिसमें प्रोटीन के चारों ओर मण्ड कण (starch grain) पाए जाते हैं।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रोकैरियोटिक कोशिका में हिस्टोन का अभाव होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होता है ।
(ii) प्रोकैरियोटिक कोशिका में कलाबद्ध कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोशिका के किन्हीं चार जीवित अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) केन्द्रक
(ii) माइटोकॉन्ड्रिया
(iii) लवक
(iv) गॉल्जीकाय।

प्रश्न 3.
पादप कोशिका में दो संचित तथा दो स्रावी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संचित पदार्थ –
(i) कार्बोहाइड्रेट
(ii) वसा ।

स्त्रावी पदार्थ –
(i) एन्जाइम
(ii) मकरन्द।

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प्रश्न 4.
पादप कोशिका के किन्हीं चार उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) एल्केलॉइड (Alkaloids)
(ii) टेनिन्स (Tannins)
(iii) रेजिन्स (Rasins)
(iv) गोंद (Gum )।

प्रश्न 5.
माइक्रोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
माइक्रोसोम (Microsome ) – सेन्ट्रीफ्यूज द्वारा अलग किया हुआ कोशा का वह भाग जिसमें कुछ कलाएँ (विशेष रूप से ER के टूटे भाग) और राइबोसोम होते हैं, माइक्रोसोम (microsome) कहलाता है । पूर्ण कोशा के किसी भाग अथवा अंग के लिए यह शब्द प्रयोग नहीं किया जाता है

प्रश्न 6.
लोमासोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लोमासोम (Lomasome) – ये छोटी थैली के आकार की रचनाएँ हैं जो पादप कोशिकाओं में प्लाज्मालेमा (plasmalemma) तथा कोशिकाभित्ति के बीच पायी जाती है। ये सम्भवतः कोशिका भित्ति के विस्तार में सहायता करती हैं।

प्रश्न 7.
पिनोसाइटोसिस तथा फेगोसाइटोसिस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कोशिका, कोशिका कला से होकर अपने बाहरी वातावरण से भोजन ग्रहण करती है। ये भोज्य पदार्थ ठोस या तरल रूप में होते हैं। जब कोशिका कला द्वारा तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है तो इसे पिनोसाइटोसिस (pinocytosis) कहते हैं तथा जब कोशिका कला द्वारा ठोस कणों को ग्रहण किया जाता है तो इसे फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) कहते हैं।

प्रश्न 8.
स्रावी पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर:
स्त्रावी पदार्थ (Secretory Substances ) – पादपों में कुछ उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं जिनका पोषण एवं वृद्धि से सम्बन्ध नहीं होता है। ये स्रावी पदार्थ ( secretory substances) कहलाते हैं। ये पदार्थ कुछ आशयों या ग्रन्थियों में पाये जाते हैं। जैसे-मकरन्द, एन्जाइम, गोंद आदि ।

प्रश्न 9.
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स तीन प्रकार के होते हैं –

  • मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides )-जैसे-ट्रायोजेस, टेट्रोजेस, पेंटोजेस, हेक्सोजेस आदि।
  • औलिगोसैकेराइड्स माल्टोस, लैक्टोस, रेफिनोसे आदि (Oligosaccharides )-जैसे-सुक्रोस,
  • पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides )-जैसे-सेल्युलोस, स्टार्च, ग्लाइकोजन आदि।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

प्रश्न 10.
सैट गुणसूत्र क्या होते हैं ?
उत्तर:
सैट गुणसूत्र ( Sat chromosome) : कुछ विशेष गुणसूत्रों पर एक द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) भी होता है। इसके ऊपर का घुण्डीनुमा भाग सैटेलाइट कहलाता है और सैटेलाइट युक्त गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र (Sat-chromosome) कहते हैं ।

प्रश्न 11.
विषम पिक्नोसिस किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विषम पिक्नोसिस (Heteropycnosis) – क्षारीय अभिरंजन से क्रोमेटिन पदार्थ के दो स्पष्ट क्षेत्र होने की घटना को विषम पिक्नोसिस कहते हैं। कोशिका विभाजन की अन्तरावस्था (interphase) में हल्के अभिरंजित क्षेत्र यूक्रोमेटिन (euchromatin) तथा गहरे अभिरंजित क्षेत्र हिटरोक्रोमेटिन (heterochromatin) बनते हैं।

प्रश्न 12.
न्यूक्लियो प्लाज्मिक इण्डेक्स किसे कहते हैं ?
उत्तर:
केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य के आयतन में एक निश्चित अनुपात होता है, जिसे न्यूक्लियोप्लाज्मिक इण्डैक्स ( neucleoplasmic index) कहते हैं।
हर्टविग ने इसे निम्न सूत्र से प्रदर्शित किया-
\(N P=\frac{V n}{V c-V n}\)
यहाँ NP = केन्द्रकद्रव्यी सूचकांक
Vn = केन्द्रक का आयतन
Vc कोशिका द्रव्य का आयतन

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न – II

प्रश्न 1.
कोशिका सिद्धान्त क्या है तथा इसे किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर:
कोशिका सिद्धान्त (Cell theory):
श्लाइडेन तथा श्वान नामक वैज्ञानिकों ने कोशिका की संरचना तथा उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपने कुछ तथ्य प्रस्तुत किए जिन्हें कोशिका सिद्धान्त कहते हैं इनके अनुसार –

  • सभी जीवधारियों के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है।
  • कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
  • नयी कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती जीवित कोशिकाओं से होती है प्रत्येक जीवधारी प्रारम्भ में एक कोशिकीय होता है (जैसे-युग्मनज ) परन्तु इसके विकास से जीवधारी बहुकोशिकीय हो जाता है।

प्रश्न 2.
रॉबर्टसन द्वारा प्रस्तुत कोशिका झिल्ली का एकक कला (Unit membrane) मत पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
एकक कला मत (Unit membrane theory): कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन ( roberson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत चित्र – कोशिका कला – एकक कला (Unit membrane) रॉबर्टसन का मॉडल किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 Å होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परतें प्रोटीन (protein) की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 A होती है। मध्य परत लिपिड (lipids ) की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 A होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 31

प्रश्न 3.
कोशिका कला की संरचना के तरल मोजेक मॉडल का संक्षेप में सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model ) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त: प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं-
(I) जल रागी शीर्ष (hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।

(ii) जल विरागी पुच्छ (hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।
दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 Å तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (fluid mosaic model) कहते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 32

प्रश्न 4.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर
(Differences between Prokaryotic and Eukaryotic cells)

पूर्वकेन्द्रीय कोशिका (Prokaryotic cells)सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
1. केन्द्रक कला, अनुपस्थित होने के कारण आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कोशा द्रव्य में नग्न पड़ा रहता है। इसे असत्य केन्द्रक कहते हैं।केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।
2. आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन रहित होता है।आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन युक्त होता है।
3. केवल एक गुणसूत्र (chromosome) पाया जाता है।एक अधिक गुणसूत्र (chromosomes) पाए जाते हैं। कलाबद्ध कोशिकांग उपस्थित होते हैं।
4. कलाबद्ध कोशिकांग जैसे लवक, माइटोकॉन्ड्रिया ER आदि अनुपस्थित होते हैं।इनमें 80 S राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं मीसोसोम्स (mesosomes ) नहीं पाए जाते है।
5. इसमें 70 S (ribosomes) पाए जाते हैं।अपेक्षाकृत बड़े आकार की होती है।
6. कला के वलनों में मीसोसोम (mesosomes ) पाए जाते हैं।सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
7. आकार में अपेक्षाकृत छोटे आकार की होती है।केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पादप कोशिका भित्तियों में विभिन्न प्रकार के स्थूलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति के विभिन्न प्रकार के स्थूलन:
(Various types of Thickening of cell wall)
पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पायी जाती है जो मुख्य रूप से सैलुलोस की बनी होती है। इसका प्रमुख कार्य कोशिका को निश्चित आकार तथा दृढ़ता प्रदान करना होता है। यह कोशिका की सुरक्षा तथा जल अवशोषण भी करती है। कोशिका भित्ति पर जीवद्रव्य से स्रावित विभिन्न पदार्थों जैसे- लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन आदि का जमाव होता रहता है।

जिसके कारण कोशिका भित्ति अनेक स्थानों पर स्थूलित हो जाती है। ये स्थूलन कोनों पर अधिक होते हैं। जाइलम वाहिनिकाओं (xylem tracheids) में लिग्निन के एकत्र होने से स्थूलन होता है। स्थूलन विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे– छल्लेदार (Annular), सीढ़ीनुमा ( Sclariform ), जालिकावत (Raticulate), सर्पिल (Spiral), गर्तमय (Pitted) इत्यादि। मरुद्भिदी पादपों की बाह्य त्वचा कोशिकाओं पर क्यूटिन का स्थूलन, कार्क कोशिकाओं की भित्तियों पर सुबेरिन का स्थूलन पाया जाता है। इसके कारण कोशिकाएँ जल के लिए अपारगम्य हो जाती हैं।

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प्रश्न 6.
पादप तथा जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर
(Differences between Plant cell and Animal cell)

पादप कोशिका (Plant cell )जन्तु कोशिका (Animal cell)
1. दृढ़ कोशिका (rigid cell wall) भित्ति उपस्थित होती है ।कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है।
2. कोशिका भित्ति के अन्दर तथा जीवद्रव्य के बाहर की ओर प्लाज्मा कला होती है।प्लाज्मा कला जीवद्रव्य के ऊपर सबसे बाहरी आवरण बनाती है।
3. लवक (plastids ) पाए जाते हैं।लवकों (plastids ) का अभाव होता है।
4. बड़ी-बड़ी रिक्तिकाएँ (vacuoles) पायी जाती हैं।रिक्तिकाएँ ( vacuoles) या तो बहुत छोटी या अनुपस्थित होती हैं ।
5. इनमें तारक काय का अभाव होता है।इनमें केन्द्रक के समीप तारक काय पाया जाता है।
6. इनमें डिक्टियोसोम मिलते हैं।इनमें गॉल्जीकाय मिलते हैं।
7. कोशिका विभाजन मध्य पट्ट होता है।कोशिका विभाजन खाँच विधि से होता है।

प्रश्न 7.
केन्द्रक के महत्व को बताने के लिए हेमरलिंग के प्रयोग को समझाइए ।
उत्तर:
केन्द्रक के महत्व के लिए हेमरलिग का प्रयोग (Experiment of Hammerling for importance of necleus):
जे. हेमरलिंग (J. Hammerling) ने 1953 में केन्द्रक के महत्व को समझाने के लिए ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक एककोशिकीय शैवाल (unicellular algae) पर अपने प्रयोग किये। ऐसीटाुलेरिया पौधे को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है-टोपी (cap), वृन्त तथा शाखित पाद (stalk)। ऐसीटाबुलुलेरिया क्रनुलेटी (A. cranulate) में टोपी का आकार छाताकार होता है तथा ए. मेडीटेरेनिया (A. mediterranea) में टोपी का आकार गुच्छित होता है।

यदि इस शैवाल के तीनों भागों को काटकर अलग कर दिया जाय तथा पहली जाति के वृन्त को दूसरी जाति के पाद पर तथा दूसरी जाति के वृन्त को पहली जाति के पाद पर खखा जाए तो दोनों जातियों में पुनर्निर्मित टोपियाँ एक दूसरी में उलर-पुलट जाती हैं अर्थात् पहली जाति में छाताकार टोपी तथा दूसरी जाति में गच्छित टोपी उत्पन्न होती है। इससे सिद्ध होता है कि टोपी के आकार का नियंत्रण पाद में स्थित केन्द्रक (nucleus) द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(क) परऑक्सीसोम
(ख) स्फीरोसोम ।
उत्तर:
पर ऑक्सीसोम (Peroxysome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जो एक परत वाली झिल्ली से ढंके होते हैं। ये उन पौधों में पाये जाते हैं जिनमें प्रकाश श्वसन की क्रिया होती है। जन्तु कोशिओं में ये जिगर एवं गुरदे में तथा प्रोटोजोन्स (protozoans) में पाये जाते हैं। इनमें सूक्ष्म कणिकाओं वाली आधात्री ( matrix ) होती है जिसके केन्द्र में एक समांग तथा अपारदर्शी कोर होती है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (ER ) से होता है। इनमें ग्लाइकोलिक अम्ल, ऑक्सीडेज, परऑक्सीडेज केटालेज, डी अमीनो अम्ल ऑक्सीडेज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनकी खोज टोलबर्ट (Tolbert ) ने की थी।

(ख) स्फीरोसोम (Spherosome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जिनका व्यास 0.244 तक होता है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के टूटने से होता है। इनमें हाइड्रोलेज, प्रोटीएज, रिबोन्यूक्लिएज, फास्फोटेज एवं ईस्टरेज विकर पाये जाते हैं। ये केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं और जन्तु कोशिकाओं के लाइसोसोम (lysosome) की तरह होते हैं। डेनजियर्ड ने इन्हें स्फीरोसोम नाम दिया।

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प्रश्न 9.
प्लाज्मोडेमेटा पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्लाज्मोडेस्पेटा (Plasmodesmata) – पादप कोशिकाओं में मध्य पटलिका (middle lamella) तथा कोशिका भित्तियों के बीच छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से होकर कोशिका का जीवद्रव्य समीपवर्ती कोशिकाओं में जीवद्रव्य से निरंतरता बनाए रखता है। इस संरचना को प्लाज्मोडेस्मेटा (plasmodemata) कहते हैं। इनके बारे में स्ट्रास वर्गर ने सर्वप्रथम बताया था। ये एक कोशिका के पदार्थों का दूसरी कोशिका में आवागमन का कार्य करते हैं।
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प्रश्न 10.
विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
कोशिकाएँ (Cells) आमाप, आकृति एवं कार्य की दृष्टि से अत्यधिक विभिन्नता प्रदर्शित करती हैं। माइकोप्लाज्मा (PPLO) की कोशिकाएँ आकार में सबसे छोटी (0-14m से 0.3m) होती हैं। जीवाणु कोशिकाएँ सामान्यतया 3 से 5m आकार की होती हैं। ऐसीटाबुलेरिया नामक शैवाल सबसे बड़ा एक कोशिकीय शैवाल है। शतुर्मुर्ग ( Ostrich ) का अण्डा सबसे बड़ी जन्तु कोशिका है, जबकि तंत्रिका कोशिका सबसे लम्बी जन्तु कोशिका है। कोशिकाएँ गोलाकार, अण्डाकार, चपटी, बहुभुजीय, बिम्बाकार, घनाकार आदि आकार की हो सकती हैं।
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प्रश्न 11.
सिस्टोलिथ क्या होते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
सिस्टोलिथ (Cystolith) – कुछ पौधों जैसे – बरगद, रबर, कनेर आदि की बहुस्तरीय बाह्य त्वचा की कोशिकाएँ आकार में बड़ी हो जाती हैं। जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO) के कण क्रिस्टल या गुच्छों के रूप में पाए जाते हैं। ऐसी कोशिका की कोशिका भित्ति में सेलुलोस का एक वृन्त होता है जिस पर ये क्रिस्टल अंगूर के गुच्छे की भाँति लगे होते हैं। सिस्टोलिथ इन्हें (cystolith) कहते सिस्टोलिथ हैं । जिस HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 35

प्रश्न 12.
रेफाइड्स तथा इन्युलिनं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेफाइड्स (Raphides ) – ये अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ हैं, जो कैल्शियम ऑक्सेलेट (calcium oxalate) के क्रिस्टलों के रूप में कुछ पौधों की पत्तियों में पाए जाते हैं; जैसे- समुद्रसोख (Echomnia), अरबी, गुलमेंहदी आदि में। अरबी / नागफनी (Opuntia) आदि में रेफाइड्स समूह में न होकर सितारे के आकार की संरचना बनाते हैं जो स्फिरेफाइड्स कहलाते हैं।
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इन्युलिन ( Inulin) – यह घुलनशील पॉलीसेकेराइड्स है। डहेलिया (Dahelia) की कन्दिल जड़ों में इन्युलिन (insulin crystal) भोज्य पदार्थ के रूप में संचित रहता है । इन्युलिन एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में अघुलनशील है। ऐसे पौधों की जड़ों को काटकर एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में रखने से ये अवक्षेपित होकर पंखनुमा क्रिस्टल बना लेता है। यह मण्ड के समान पदार्थ होता है।
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प्रश्न 13.
सक्रिय परिवहन से आप क्या समझते हैं ? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सक्रिय परिवहन ( Active transport ) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता के विपरीत होता है अर्थात् निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers ) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्ज़ाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
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प्रश्न 14.
मीसोसोम्स क्या है ? ये कहाँ मिलते हैं ? मीसोसोम की संरचना का चित्र बनाकर इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
मीसोसोम्स (Mesosomes ) – मीसोसोम जीवाणु कोशिका (barcterial cell) में कोशिका कला के अन्तर्वलन (infold) से बनी नालवत (tubular) या थैली (vesicular) संरचनाएँ हैं। ये अधिकांशतः ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में पायी जाती हैं। इनमें श्वसन के विकर पाए जाते हैं और सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया के समरूप हैं अर्थात् श्वसन क्रिया में भाग लेते हैं। कोशिका विभाजन एवं एण्डोस्पोर (endospore) बनते समय कोशिका भित्ति के बनने में भी सहायता करते हैं।
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प्रश्न 15.
न्यूक्लिओसोम पर सचित्र टिपणी लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिओसोम (Neucleosome)-वुङकोक (Woodcock) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1973 में क्रोमेटिन (chromatin) की संरचना का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्र्शी की सहायता से विश्लेषण किया तथा बताया कि प्रत्येक क्रोमेटिन पर मोतीनुमा क्रोमेटिन पर मोतीनुमा (beaded) रचनाएँ होती है जिन्हं न्यूक्सियोसोम (nucleosome) कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोसोम हिस्टोन प्रोटीन्स तथा DNA की बनी अर्द्ध-बेलनाकार संरचना है। इसके मध्य का भाग हिस्टोन से बना कोर (core) होता है। कोर में हिस्टोनप्रोटीन H2 A, H2 B, H3 तथा H4 के दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक कहते हैं। इस कोर के चारों ओर DNA की कुण्डली मिलती है। इसमें लगभग 166 पॉली न्यूक्लिओटाइड (nucleotides) मिलते हैं। दो न्यूक्लिओसोम (nucleosome) को जोड़ने वाले DNA को लिंकर DNA कहते हैं।
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H1 प्रोटीन न्यूक्लिओटाइड को कसने का कार्य करती हैं। छ: न्यूक्लिओसोम पुन: कुण्डलित होकर एक सोलेनाइड (solenoid) बनाते हैं। बहुत से सोलेनाइड कुण्डलित होकर एक क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं। क्लुग (Klug 1982) को सोलेनॉइड की संरचना बताने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

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प्रश्न 16.
पक्ष्पाभिका तथा कशाभिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पक्ष्माभिका एवं कशाभिका में अन्तर (Differences between Cilia and Flagella)

पक्ष्माभिका (Cilia)कशाभिका (Flagella)
ये संख्या में अधिक होते हैं।इनकी संख्या कम होती है।
(ii) ये कम लम्बे 0.5-1.0μ होते हैं।ये अधिक लम्बे (1μ-4μ) होते हैं।
(iii) पक्ष्माभिकाएँ समूह में गति करती है ।कशाभिका एकल तथा स्वतंत्र रूप से गति कर सकती है।
(iv) इनकी गति घड़ी के पेण्डुलम की भाँति होती है।इसकी गति लहरदार होती हैं।
(v) ये कोशिका के चारों ओर पाये जाते हैं।ये प्रायः कोशिका में एक या दो ओर पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये-
(अ) क्वाण्टासोम
(ब) जीन।
उत्तर:
(अ) क्वाण्टासोम (Quantasome)-पादप कोशिकाओं में हरित लवक (plastid) के स्ट्रोमा में पटलिकाएँ (lamellae) पायी जाती हैं। ये पटलिकाएँ सिक्कों के ढेर के समान व्यवस्थित होती हैं, इस ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। पटलिकाओं पर असंख्य सूक्ष्म कण पाये जाते हैं। इन कणों को पार्क एवं पॉन (Park and Pon, 1961) ने क्वाण्टासोम (quantasome) नाम दिया। प्रत्येक क्वांटासोम लगभग 230 पर्णहरित अणु (chlorophyll molecules) धारण करता है। क्वांण्टासोम (Quantasomes) को प्रकाश संश्लेषण के केन्द्र कहते हैं।

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(ब) जीन (Gene)-जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जोहान्सन (Johanson) ने किया। जीन किसी लक्षण (Character) की आनुवंशिकी को नियंत्रित करने वाली इकाई होते हैं। विषाणुओं को छोड़कर सभी जीवों में जीन DNA का एक विशेष खण्ड होता है। जीन्स के विषय में अनेक धारणाएँ हैं। गुणसूत्र के क्रोमोमीयर्स (chromomeres) पर इनकी उपस्थिति समूह अथवा एकल रूप में सर्वमान्य है। लैम्पबुश गुणसूत्रों (lampbrush chromsome) में लूप तथा अक्ष दोनों में इनकी उपस्थिति स्पष्ट है।

आधुनिक विचारधारा के अनुसार जीन को कार्यात्मक इकाई सिस्ट्रॉन (cistron), उत्परिवर्तनात्मक इकाई म्यूटॉन (muton) तथा पुनर्सयोजन की इकाई रीकोन (recon) का समूह माना जाता है। जीन प्रोटीन संश्लेषण द्वारा लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
विभिन्न प्रकार के मण्ड कणों पर सचित्र टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मण्ड कण (Starch grains) – हरे पादपों में भोज्य पदार्थ प्रायः मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है। संचित मण्ड अवर्णी लवकों (leucoplasts) में मिलते हैं और इन्हें एमाइलोप्लास्ट (amyloplast) कहते हैं। मण्ड कण विभिन्न प्रकार के जैसे-अण्डाकार (आलू), गोलाकार (मटर), चपटे (गेहुँ), अथवा मुग्दाकार (club shaped)-एवं बहुभुजी (polygonal) होते हैं। कैना (Canna) के मण्ड कण बड़े जबकि चावल के मण्ड कण लम्बे व छोटे होते हैं। मण्ड कण की उत्पत्ति का केन्द्र नाभिक (hilum) कहलाता है, जिसके ऊपर मण्ड परतें बनाता हुआ होता है।

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नाभिक की स्थिति के अनुसार मण्ड कण दो प्रकार के होते हैं –
1. संकेन्द्री (Concentric)-इसमें नाभिक केन्द्र में स्थित होता है। जैसे-गेहूँ, मटर, सेम आदि में।

2. उाकेन्द्री (Ecentric)-इसमें नाभिक एक ओर स्थित होता है, जैसे-आलू, चावल आदि में।

कभी-कभी मण्ड कणों में एक से अधिक नाभिक मिलते हैं ये संयुक्त मण्ड कण कहलाते हैं, जैसे चावल एवं शकरकन्द। मण्ड जल एवं एल्कोहॉल में अघुलनशील हैं। चावल में 70-80 गेहूँ में 70 मक्का में 68 तथा आलू में 20 मण्ड मिलता है।

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प्रश्न 19.
परासरण से आप क्या समझते हैं ? अन्त: परासरण एवं बाहा परासरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण (Osmosis) – किसी अर्द्धपारगम्य कला से होकर विलायक के अणुओं का उनकी अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण की क्रिया परासरण (osmosis) कहलाती है। यह क्रिया तब तक चलती है जब तक कि कला के दोनों ओर साम्यावस्था स्थापित नहीं हो जाती।

अन्त: परासरण तथा बाउ परासरण में अन्तर (Differences between endosmosis and exoemosis) –

अन्त: परासरण (Endosmosis)बंड परासरण (Exosmosis)
इसमें परासरण बाह्य माध्यम से अन्दर की ओर होता है।इसमें परासरण अन्दर से बाह्य माध्यम की ओर होता है।
इसमें विलायक अणु सान्द्र घोल की ओर गति करते हैं।इसमें तनु घोल अन्दर होता है जिसमें विलायक (solvent) अणु बाहर की ओर गति करते हैं।

प्रश्न 20.
परासरण एवं विसरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण एवं विसरण में अन्तर (Differences between osmosis and diffusion)

परासरण (Osmosis)विसरण (Diffusion)
इसमें विलायक के अणु अर्द्धपारगम्य (semipermeable membrane) से होकर विसरित होते हैं ।इसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable) आवश्यकता नहीं होती। अणु स्वतंत्र रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करते हैं।
इसमें विलायक के अणुओं का प्रवाह परासरण दाब (OP) पर निर्भर करता है ।इसमें अणुओं का प्रवाह विसरण दाब (diffusion pressure) पर निर्भर करता है।
विलायक के प्रवाह की दर घोल की सान्द्रता पर निर्भर करती है।विसरण की दर पदार्थ के वाष्प घनत्व पर निर्भर करती है।

प्रश्न 21.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिये। इन्हें यह नाम क्यों दिया गया है ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
माइटोकॉष्ट्रिया (Mitochondria) तथा हरित लवक (Chborophylc) को कोशिका के अर्ध्ध स्वायत्त संस्थान (autonomous body) कहा जाता है। माइटोकॉण्डिया तथा हरित लवक दोनों में ही DNA की थोड़ी-सी मात्रा उपस्थित होती है। इसकी उपस्थिति के कारण ये दोनों कोशिकांग स्वतंत्र रूप से विभाजन करके अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं। इन दोनों कोशिकांगों में 70 S प्रकार के राइबोसोम्स भी होते हैं। जिनकी सहायता से ये आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण DNA के नियंत्रण द्वारा कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें अर्द्ध-स्वायत्त संस्थान कहते हैं।

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प्रश्न 22.
अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर लिखिये। उत्तर-अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर (Differences between Leucoplants and Chromoplasts)

अवर्णी लवक (Leucoplast)वर्णी लवक (Chromoplast)
ये प्राय: पौधे के भूमिगत भागों जैसे-प्रकन्द (rhizome), घनकन्द (corn) शल्क कन्द (bulb) तथा-अन्य संचयी भागों में पाया जाता है।ये पौधे के वायवीय भागों जैसे-पुष्प की पंखुड़ियाँ, फलों के छिलके आदि में पाये जाते हैं।
यह रंगहीन होता है परन्तु प्रकाश मिलने पर हरे या रंगीन हो सकते हैं।ये विभिन्न रंगों के होते हैं और अन्य लवकों (plasticls) में परिवर्तित हो सकते हैं।
ये भोज्य पदार्थों का संचय करते हैं।ये भोज्य पदार्थों का संचय नहीं करते। परन्तु पौधों के विभिन्न भागों को विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 23.
साइटोपंजर क्या होता है ? समझाइये।
उत्तर:
साइटोपंजर (Cytoskeletal Structure) – प्रोटीनयुक्त जालिकावत् तन्तु जो कोशिका द्रव्य में मिलते हैं साइटोपंजर कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार के तन्तु होते हैं –
(i) सूक्ष्म तन्तुक (microfilaments)
(ii) सूक्ष्मनलिका (microtubules) तथा
(iii) मध्यस्थ तन्तु (intermediate filaments) I
माइक्रोफिलामेण्ट लगभग 8 nmव्यास के होते हैं। जो बिखरे हुए या समान्तर समूहों में व्यवस्थित होकर कोशिका की अधात्री (matrix) में पड़े रहते हैं। इनका निर्माण एक्टिन सदृश प्रोटीन्स से होता है। साइटोपंजर (cytoskeleton) कोशिका को यांत्रिक दृढ़ता तथा कोशिका के आकार तथा गति को बनाये रखता है।

प्रश्न 24.
खुदरी तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
खुरदरी अन्त:प्रद्रष्यी जालिका तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यमी जालिका (Differences between rough endoplasmic reticulum and smooth endoplasmic reticulum)

खुरदरी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough Endoplasmic Reticulum)चिकनी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Smooth Endoplasmic Reticulum)
इनकी सतह पर राइबोसोम (ribosomes) होते हैं जिनके कारण यह खुरदरी (rough) प्रतीत होती हैं।इनकी सतह पर राइबोसोम्स का अभाव होता है।
ये प्रोटीन्स, एन्जाइम के संश्लेषण में भाग लेती है।ये लिपोप्रोटीन्स, ग्लाइकोजन्स, ग्लिसराइड्स, स्टीरॉइड्स, हार्मोन्स आदि के संश्लेषण में भाग लेती है।

प्रश्न 25.
प्राम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
भाम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर (Differences between Gram positive and Gram negative Bacteria)-
प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria)

प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria)ग्राम ऋणात्मक जीवाणु (Gram -ve Bacteria)
1. कोशिका भित्ति पतली 100-200 होती हैं।कोशिका भित्ति मोटी 70-120  होती है।
2. इनमें मीसोसोम्स (mesosomes) पाए जाते हैं।इनमें मीसोसोम्स अनुपस्थित या अल्पविकसित होते हैं।
3. इनमें रोम या पिलाई (pili) अनुपस्थित होते हैं।इनमें रोम या पिलाई उपस्थित होते हैं।
4. ये प्रति जैविकों के लिए कम प्रतिरोधी होते हैं।ये प्रतिजैविकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।
5. क्रिस्टल वायलेट तथा आयोडीन का स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने के बाद भी बैंगनी रह जाता है।क्रिस्टल वायलेट (crystgal violet) स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने से धुलकर रंगहीन हो जाते हैं।

प्रश्न 25.
जन्तु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
कोशिका का समग्र अवलोकन (Overall review of Cell)
प्याज की झिल्ली में देखी गयी कोशिका जो एक प्रारूपी पादप कोशिका है, जिसकी बाहरी सतह पर एक स्पष्ट कोशिका भित्ति व इसके ठीक नीचे कोशिका कला होती है। मनुष्य के गाल की कोशिका के संगठन में बाहर की ओर केवल एक कलावत् संरचना दिखाई देती है। दोनों ही कोशिकाओं के अन्दर दोहरी कला से घिरी एक संरचना होती है जिसे केन्द्रक (nucleus) कहते हैं। केन्द्रक के अन्दर गुणसूत्र होते हैं जिनमें आनुवंशिक पदार्थ डी. एन. ए. होता है। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलायुक्त केन्द्रक होतां है। यूकरियोटिक कोशिकाएँ (eukaryotic cells) कहलाती हैं। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलाबद्ध केन्द्रक नहीं मिलता है उन्हें प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (prokaryotic cell) कहते हैं।

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प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में इसके आयतन को घेरे हुए एक अर्द्धतरल द्रव मिलता है जिसे कोशिका द्रव्य कहते हैं। पादप एवं जन्तु कोशिकाओं दोनों में कोशिकीय क्रियाओं के लिए कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) एक प्रमुख स्थल होता है। कोशिका की जैविक अवस्था सम्बन्धी विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएँ यहीं सम्पन्न होती हैं।

कोशिका-आकृति माप एवं आयतन (Cell : Shape, Size and Volume) आकृति (Shape)-जीवधारियों की कोशिकाएँ आकृति में अत्यधिक विविधता दर्शाती हैं। कोशिकाएँ गोल (Spherical), चपटी, (flat) अण्डाकार (ovate), नलिकाकार (tubular), ताराकृत (starshaped), तर्कुआकार (spindle shaped) अथवा अनियमित आकार की हो सकती हैं। इनकी आकृति स्थाई होती है।
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माप (Size) -कोशिका सामान्यतः 1-2 mu m से 100 mके व्यास की होती हैं। माइकोप्लाज्मा गैलीसैप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum = Pleuro Pneumania Like Organism – PPLO) अब तक देखी गयी सबसे छोटी कोशिका है 1.0 एक जीवाणु का 10 भाग)। प्राणियों में सबसे लम्बी कोशिका, तंत्रिका कोशिका (लम्बाई 90 सेमी) तथा प्राणियों की सबसे बड़ी व्यास वाली कोशिका शुतुरमुर्ग (Ostrich) का अण्डा 170 155 mm है। ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) जो एक कोशिकीय शैवाल है, की लम्बाई 10 सेमी. तक होती है तथा दूसरे एक कोशिकीय शैवाल कौलर्पा (Caulerpa) की कुछ जातियों की लम्बाई एक मीटर तक होती है। बोहमेरिया निविया (Bochmeria nivia) पौधे की कोशिकाओं में रेमी (Rami) के रेशों की लम्बाई 55 सेमी तक होती है। राइजोपस (Rhizopus) नामक कवक बहुकेन्द्री परन्तु एक कोशिकीय होता है। इनकी लम्बाई 90 सेमी तक होती है।

आयतन (Volume) -एक कोशिकीय जीव को सभी क्रियाएँ जैसे गैस विनिमय, पोषण, अवशोषण तथा उपापचयी क्रियाएँ (metabolic activities) आदि एक ही कोशिका में सम्पन्न करने होते हैं। इन सभी कार्यों के लिए अधिक स्थान (space) की आवश्यकता होती है। यदि सतही क्षेत्र (surface area) में वृद्धि होती है तो साथ-साथ आयतन (volume) भी बढ़ता है परन्तु समान अनुपात में नहीं। जैविक क्रियाओं के लिए यह अति आवश्यक है। आयतन के अनुसार ही कोशिका की रासायनिक क्रिया इकाई समय में तय होती है तथा सतही क्षेत्र के अनुसार कोशिका द्वारा पदार्थों का अवशोषण व उत्सर्जन तय होता है।

कोशिकाओं के प्रकार (Types of Cells)
समस्त जीवधारियों में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं –

  • प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (Prokaryotic cells)
  • यूकैरियोटिक कोशिकाएँ (Eukaryotic cells)

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प्रश्न 26.
कशाभिका की संरचना को चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कशाभिका (Flagella) – ये जीवाणुओं, कुछ जन्तुओं तथा कुछ पादपों की कोशिकाओं या युग्मकों (gametes) में पायी जाने वाली चाबुकनुमा संरचना है। ये फ्लैजिन नामक प्रोटीन के बने होते हैं। इनका निर्माण अनेक तंतुओं के सर्पिलाकार क्रम (spirally) में व्यवस्थित होने से होता है। इनमें मिलने वाली छोटी-छोटी उप-इकाइयों का व्यास 40-50 होता है। यूकैरियोटिक फ्लैजिला में तन्तुओं का विन्यास 9+2 होता है, जबकि जीवाणु फ्लैजिला में ऐसा विन्यास नहीं होता है। फ्लैजिला के तीन भाग होते हैं –
(i) आधार कण (basal granule)
(ii) अंकुश (hook) तथा
(iii) मुख्य तन्तु (main filament)।
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(E) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप कोशिका का इलेक्टॉन सूक्षमदर्शीय चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पादप कोशिका (Plant cell) – पादप कोशिका जन्तुओं से मुख्यतया कोशिका भित्ति, लवक (Plastids) तथा बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं (vacuoles) की उपस्थिति के कारण तथा जीवाणुओं से कलाबद्ध कोशिकांगों (membrane bound cell organells) एवं केन्द्रक की संरचना के कारण भिन्न होती है। एक प्रारूपिक पादप कोशिका के निम्नलिखित भाग होते हैं –
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कोशिका भिति एवं कलाएँ (Cell Wall and Membranes) – कोशिका भित्ति (cell wall) पादप कोशिका की बाह्म चार दीवारी है जो प्राय: त्रिस्तरीय होती है। यह मुख्यतया सेलुलोस की बनी होती है। कोशिका भित्ति के ठीक अन्दर लाइपोप्रोटीन की बनी कोशिका कला (plasma membrane) होती हैं। रिक्तिका (vacuole) को घेरने वाली झिल्ली टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहलाती हैं जो जीवद्रव्य को रिक्तिका रस से. पृथक् करती है। कोशिका भित्ति कोशिका को सुरक्षा व आकृति प्रदान करती हैं, जबकि कलाएँ पदार्थों के आवागम्न पर नियंत्रण करती हैं।

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कोशा द्रव्य (Cytoplasm) – कोशिका द्रव्य एक कोलाइडी तंत्र (colloidal system) होता है। इसमें जीवित कोशिकांग; जैसेमाइटोकॉन्ड्रिया, अन्तं्रद्रव्यी जालिका, लवक, गॉल्जीकाय, राइबोसोम्स, लाइसोसोम्स तारककाय एवं अन्य सूक्ष्मकाय निलम्बित रहते हैं। इसमें, प्रोटीन्स, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं अतः कोशिका द्रव्य एक जटिल मिश्रण होता है। कोशिका द्रव्य में विभिन्न प्रकार के उपापचयी निफ्क्रिय पदार्थ भी मिलते हैं। संचित फदार्थ जैसे-वसा, तेल, शर्कराएँ, प्रोटीन्स आदि स्रावी पदार्थ जैसे-मकरन्द, वर्णक, एन्जाइम आदि तथा उत्सर्जी पदार्थ जैसे-लैटेक्स, गोंद, टैनिन्स, एल्केलॉइड आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 43

केन्द्रक (Nucleus) – यह कोशिका का प्रमुख भाग है। यह दोहरी कला से घिरा होता है जिसके अन्दर केन्द्रक द्रव्य एवं इसमें केन्द्रिका तथा क्रोमेटिन निलंबित रहता है। केन्द्रक कोशिका की समस्त क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करता है। विभाजन के समय केन्द्रक में स्थित क्रोमेटिन टूटकर गुणसूत्र बनाता है जो आनुवंशिक लक्षणों नयी कोशिका या नई पीढ़ी में पहुँचाने का कार्य करते हैं। जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में कुछ भिन्नता पायी जाती है। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति का अभाव होता है। केवल प्लाज्मामेम्ब्रेन कोशिका का बाह्य आवरण बनाती है। इनमें बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं तथा लवकों का भी अभाव होता है। जन्तु कोशिकाओं में तारक काय पाए जाते हैं। जिनका पादप कोशिका में अभाव होता है। विभिन्न जीवों या ऊतकों में कोशिकाओं का आकार एवं आकृति भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
पदिप कोशिका भिति की संरचना एवं कार्य लिखिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति (Cell wall):
पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmamembrane) के बाहर एक कठोर एवं दृढ़ भित्ति (rigid wall) होती है। जन्तुओं में कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है। इसकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर पादप एवं जन्तु कोशिकाओं में अन्तर किया जाता है। राबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) ने प्रथम बार कार्क कोशिका का निरीक्षण किया था वास्तव में वे केवल कोशिका भित्तियों के कोष्ठक ही थे। नेशिका भित्ति (cellwall) मुख्यतः सेल्युलोस की बनी होती है परन्तु इसमें हेमीसेलुलोस (hemicelluase) तथा कभी-कभी लिगिनन आदि पदार्थ भी उपस्थित होते हैं। कोशिका भित्ति के निर्माण के समय सबसे पहले मध्य-पटलिका (middle lamella) का निर्माण होता है। इसके बाद इस पर क्रमश: प्राथमिक, द्वितीयक एवं ततीयक भित्तियों का निर्माण होता है।
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मध्य पटलिका (Middle lamellae):
मध्य पटलिका दो संलग्न कोशिकाओं के बीच सीमेण्ट का कार्य करती है और इसका निर्माण कोशिका विभाजन के पश्चात् दो पुत्री कोशिकाओं के बनते समय होता है। यह मुख्यतः कैल्शियम पेक्टेट तथा कुछ मात्रा में मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है। फलों के पकने पर यह घुलनशील अवस्था में आ जाती है। मध्यपटलिका (middle lamellae) के दोनों ओर ही प्राथमिक एवं द्वितीय भित्तियों का निर्माण होता है।

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प्राथमिक भित्ति (Primary wall):
मध्य पटलिका के ऊपर जीवद्रव्य अनेक पदार्थ जमा करता है जिससे एक कोमल, पतली, सुघट्य भित्ति बनती है जिसे प्राथमिक कोशिका भित्ति कहते हैं। इसमें पैक्टिक पदार्थ (गैलेक्टोस, अरेबिनोस व गैलेक्टूरोनिक अम्ल का मिश्रण), हेमीसेलुलोस (मेनोज, ग्लूकोनिक अम्ल का मिश्रण) तथा सेलूलोज सूक्ष्म तन्तुक (cellulose microfibrils) होते हैं।
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द्वितीयक भित्ति (Secondary wall):
कोशिका वृद्धि के समय प्राथमिक कोशिकाभित्ति अधिक से अधिक खिंच जाती है। समय के साथ-साथ प्राथमिक भित्ति पर लिग्निन क्यूटिन एवं सुबेरिन आदि जमा होने लगते हैं जिससे द्वितीयक कोशिका भित्ति (secondary cell wall) बनती है। यद्यपि आरम्भ में बनी द्वितीयक कोशिका में कुछ पेक्टोज भी होता है परन्तु मुख्य रूप से हैमीसेल्युलोस और सेलुलोस की बनी होती हैं।

तृतीयक कोशिका भित्ति (Tertiary cell wall):
अधिकांश कोशिकाओं में द्वितीयक कोशिका भित्ति तीन परत की बनी होती हैं। इसमें बीच की परत सबसे मोटी होती है। कुछ बाद में बनी कोशा भित्ति जो आरम्भ में बनी तृतीयक कोशा भित्ति के ऊपर बनती हैं केवल सेलुलोस की बनती है। कुछ वैज्ञानिक बाद में बनी इस द्वितीयक भित्ति को तृतीयक भित्ति कहते हैं। प्रायः द्वितीयक और तृतीयक भित्तियों को मिलाकर द्वितीय स्थूलन (secondary thicking) भी कहा जाता है।

कोशिका भित्ति की परा संरचना (Ultrastructure of cell wall):
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि पादप कोशिका भित्ति सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) की बनी होती है जो विभिन्न लम्बाई व व्यास के होते हैं। इनका व्यास $100-200 होता है। एक तन्तुक (fibril) 250 सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) से बनता है। प्रत्येक सूक्ष्म तन्तुक 20 मिसेल (micelle) का बनता है तथा प्रत्येक मिसेल में सेलुलोस अणुओं की 100 भृृंखलाएँ होती हैं।

सेल्युलोस के साथ कुछ पेक्टिक पदार्थ-हेमी सेल्यूलोज और दूसरे पालीसैकेराइड उपस्थित होते हैं। मध्य पटलिका (middle lamellae) मुख्य रूप से कैल्शियम पेक्टेट या मैग्नीशियम पैक्टेट की बनती है। प्राथमिक और द्वितीयक भित्तियाँ मुख्य रूप से सेल्युलोस की बनी होती हैं। कोशिका भित्ति का निरीक्षण यदि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) से किया जाए तो इसमें पेक्टिन एवं हेमीसेल्यूलोस की अधात्रि में अनेक सूक्ष्म तन्तु पाए जाते हैं ।ये सूक्ष्म तन्तु सेल्यूलोस के बने होते हैं और अधात्री में लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन, गोंद, टेनिन तथा अल्प मात्रा में खनिज पदार्थ जैसे-सिलिका, कैल्शियम ऑक्सलेट, कैल्शियम कार्बोनेट इत्यादि पाए जाते हैं।

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति (Origin of cell wall):
कोशिका भित्ति के निर्माण की शुरूआत कोशिका विभाजन की अन्त्यावस्था (telophase) में ही हो जाती है। इस अवस्था में ही फ्रेम्मोप्लास्ट के द्वारा कोशिका प्लेट का निर्माण होता है जिससे मध्य पटलिका बनती है। मध्य पटलिका पर धीरे-धीरे प्राथमिक भित्ति एवं द्वितीयक भित्रियों का निक्षेपण होता है।

कोशिका भित्ति के कार्य-कोशिका भित्ति के निम्नलिखित कार्य हैं –

  • यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार प्रदान करती है।
  • यह पौधों को दृढ़ता प्रदान करती है।
  • यह कोशिका से विभिन्न पदार्थों के आवागमन में सहायक है।
  • यह बाहरी वातावरण से एवं रोगाणुओं (pathogens) से कोशिका की रक्षा करती है।

प्रश्न 3.
अन्तर्रम्रक्यी जालिका की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum = ER)
पोर्टर एवं सहयोगियों (Porter et. al.) ने सन् 1945 में कोशिका द्रव्य में महीन एवं शाखित, दोहरी झिल्लीदार नलिकाओं का एक अनियमित जाल देखा जिसमें थैलेनुमा रचनाएँ भी थीं। ये रचनाएँ केन्द्रक कला से लेकर कोशिका कला तक फैलकर एक जटिल जाल बनाती हैं। पोर्टर ने इनकी स्थिति अन्तंप्रद्रव्यी होने के कारण इन्हें अंत: प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) कहा। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (prokaryotic cells) में तथा स्तनियों (mammals) की लाल रुधिर कणिकाओं में अन्तप्रद्रव्यी जालिका (ER) का अभाव होता है।

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परासंरचना (Ultrastructure):
यह कोशिका कला से केन्द्रक कला तक फैला हुआ नलिकाओं का जाल है। इसकी नलिकाओं की चौड़ाई $50-60 तक होती है। नलिकाएँ एकक कला (unit membrane) की बनी होती हैं।

कभी-कभी ये नलिकाएँ अधिक चौड़ी होकर टूट जाती हैं जिससे आशय (vescicles) बनते हैं। आकृति के आधार पर यह तीन प्रकार की रचनाओं से मिलकर बनती हैं –

  • सिस्टर्नी (Cisternae)
  • थैलियाँ (Vescicles)
  • नलिकाएँ (Tubules)

(i) सिस्टर्नी (Cisternae):
ये 40-50 लम्बी व चपटी नलिकाएँ हैं जो कि केन्द्रक (nucleus) के चारों ओर समानान्तर पट्टियों के रूप में व्यवस्थित होती हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं।

(ii) थैलियाँ या आशय (Vescicles):
ये 20-500 व्यास की गोलाकार या अण्डाकार संरचनाएँ हैं।

(iii) नलिकाएँ (Tubules) इनकी आकृति एवं व्यवस्था अनियमित होती है। इनका व्यास 50-100 होता है। ये चिकनी सतह युक्त शाखित होती हैं। ये अन्तः स्रावी कोशिकाओं में अधिकता से पायी जाती हैं।
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अन्त:्रद्रव्यी जालिका (ER) दो प्रकार की होती हैं –
1. चिकनी भित्ति वाली अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Smooth walled Endoplasmic Reiticulum or SER):
इनकी सतह सपाट या चिकनी (smooth) होती है। ये उन कोशिकाओं में अधिकता से पायी जमती है जिनमें स्टीराइड एवं वसा का संश्लेषण होता है। जैसे-वृक्क (kidney) की नलिका कोशिकाएँ, आंत्र कोशिकाएँ, ग्लाइकोजन संग्रह कोशिकाएँ आदि।

2. खुरदरी भित्ति वाली अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough walled Endoplasmic Reticulum or RER):
इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) लगे रहने के कारण, खुरदरी प्रतीत होती हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) करने वाली कोशिकाओं में अध्धिकता से पायी जाती हैं। कोशिका की उपापचयी क्रियाओं के अनुसार SER, RER में बदल सकती हैं। क्योंकि प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) के समय राइबोफोरिन (ribophorin) प्रोटीन की उपस्थिति में राइबोसोम SER से जुड़कर RER बनाते हैं तथा इस कार्य के समाप्त होने पर पुनः अलग होकर फिर से SER बन जाती हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition)-अन्त्रप्रव्यव्यी जालिका (ER) मुख्यतः फॉस्फोलिपिड की बनी होती है। इसमें $70 \%$ तक फास्फोलिपिड होते हैं जिसमें 30-50\% तक लिपिड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लेसिथिन (lecithin), सिफेलिन (cephalin), नॉसिटाल (nosital) आदि भी होते हैं। कार्य (Functions)

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1. प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis): RER की सतह पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया होती है। प्रोटीन संश्लेषण राइबोसोम्स द्वारा सम्पन्न होता है और बनने वाली प्रोटीन ER में चली जाती है। इसके बाद प्रोटीन नलिकाओं से होकर गाल्जी तंत्र में चली जाती है जहाँ से आशय तथा रिक्तिका (vacuole) के रूप में यह कोशिका रस में स्रावित कर दिए जाते हैं। फाइब्रोल्लास्ट कोशिकाओं में कौलेजन RER से सीधे ही व आशयों से होकर कोशिका से बाहर स्रावित होते हैं इसमें गॉल्जी तंत्र (golgi system) की भागीदारी नहीं होती है।

2. ग्लाइकोजन संश्लेषण तथा संचयन (Glycogen Synthesis and Storage) -चहे की यकृत कोशिकाओं की SER में ग्लूकोज 6-फॉस्फेट मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ER में ग्लाइकोजिनोलाइसिस (glycogenolysis) की क्रिया होती है। यह ग्लाइकोजन का संय्रह भी करती है।

3. अंन्तः प्रद्रव्यी (ER) जाल द्वारा कोशिका के कोलाइडी तंत्र को अधिक शक्ति मिलती है।

4. यह अभिगमन तंत्र (transport system) का कार्य भी करती है। इसी के द्वारा अनेक पदार्थों एवं संदेश वाहक आर. एन. ए. (m RNA) केन्द्रक से कोशिका द्रव्य में पहुँचते हैं।

5. इनकी उपस्थिति के कारण कोशिका को आन्तरिक शक्ति प्रदान होती है जिससे कोशिका (Cell) पिचकती नहीं है

6. यह ग्लिसरॉल, कोलेस्ट्रॉल आदि पदार्थों के संश्लेषण के लिए स्थान प्रदान करती है।

7. यह अन्य कलाओं के निर्माण में भी सहायक है।

8. यह कोशिका विभाजन के दौरान केन्द्रक आवरण बनाने में सहायक होती है।

प्रश्न 4.
गॉल्जीकाय संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखाए।
उत्तर:
गॉल्जीकाय (Golgi Body):
पादप कोशिकाओं में इन्हें डिक्टियोसोम (Dictyosomes) या लाइपोकॉन्ड्रिया (Lipochondria) कहते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम कैमीलियो गॉल्जी (Camilio Golgi) ने 1898 में की थी। यह विभिन्न प्रकार की चपटी तथा कुछ मुढ़ी हुई थैलियों का समूह होता है। प्रत्येक समूह में 4-10 थैलियाँ होती हैं जो कहीं-कहीं एण्डोप्लाज्मिक जालिका (ER) से जुड़ी होती हैं इन थैलियों की झिल्ली दोहरी परत वाली होती है। प्रत्येक चपटी थैली (cisternae) किनारे पर कुछ मुड़ी हुई होती है जिसके कारण यह उत्तलोअवतल (biconcave) दिखाई देती है।

उत्तल (convex) सतह को फॉर्मिंग या सिस फेस (forming or cis face) कहते हैं तथा अवतल (concave) सतह को मेचुरिंग फेस अथवा ट्रांस फेस (maturing or trans face) कहते हैं। फॉर्मिंग फेस सदैव केन्द्रक और ER की ओर होता है। मेचुरिंग फेस (maturing face) प्लाज्मा कला की ओर होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि केन्द्रक कला एवं ER से छोटी थैलियों (vesicles) का निर्माण होता है जो गॉल्जीतंत्र के फार्मिग फेस (forming face) से जुड़ती है। मेचुरिंग फेस की ओर स्थित बड़ी थैलियाँ अन्त में प्लाज्मा कला से जुड़ जाती हैं। तरुण कोशिकाओं में गॉल्जीकाय की छोटी गोलाकार थैलियों की संख्या कम होती है परन्तु वृद्धि और विकास की अवस्था में इनकी संख्या बढ़ जाती है।

रासायनिक संगठन (Chemical composition):
इनमें लिपोप्रोटीन, लैसीथिन, कैरोटीन, सिफेलिन, RNA, विकर तथा विटामिन E आदि मुख्य रूप से मिलते हैं। कार्य (Functions)-इनका कार्य अभी ठीक से ज्ञात नहीं है परन्तु ऐसा माना जाता है कि कोशा में किसी प्रकार के संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।
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1. स्रावण (Secretion) – इनकी गुहाओं में पॉलीसैकेराइड सल्फोसायलो म्यूसिन और म्यूकोपॉलीसैकेराइड पायी जाती है। बहुत से विकर (enzymes), न्यूक्लियोसाइड्स फास्फोटेज, थायमीन पाइरो फास्फेट, एसिड फॉस्फेटेज और परऑक्सीडेज भी इनमें पाए जाते हैं। कुछ विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स भी इनमें संचित होते हैं इन प्रोटीन्स का निर्माण ER पर स्थित राइबोसोम्स (ribosomes) में होता है। ये प्रोटीन्स ER से बहुत-सी ट्रॉजीशन थैलियों के द्वारा गॉल्जीकाय में प्रवेश करती हैं गॉल्जीकाय के आशयों (vescules) से छोटी मुकुलों (buds) के रूप में सावी कण उत्पन्न होकर कोशिका की सतह पर बाहर निकलते रहते हैं।

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2. कोशापट्ट निर्माण (Cell plate farmation) – कोशा विभाजन के समय गॉल्जी तंत्र के आशय कटकर नये कोशा पटट का निर्माण करते हैं।

3. कोशा भित्ति का निर्माण (Formation of cell wall) – गॉल्जी तंत्र ऐसे पदार्थों का स्रावण करता है जो कोशा भित्ति (cell wall) का निर्माण करते हैं। सम्भवतः यह पदार्थ हेमी सेल्युलोस है।

4. शुक्र जनन के अन्तर्गत अग्रपिण्डक का निर्माण (Formation of Acrosome) – जिस समय जन्तुओं में शुक्राणु परिपक्व होता है तो गॉल्जी तंत्र उसमें अग्रपिण्ड (acrosome) बनाता है।

5. हॉर्मोन का उत्पाद (production of hormose) – जन्तुओं की अन्त:स्रावी कोशाओं में गॉल्जी तंत्र हारमोन के स्रावण में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
गुणसूत्र क्या है ? इसकी जैव-रसायनिक संरचना का वर्णन चित्र द्वारा कीजिए।
उत्तर:
गुणसूत्र (Chromosome) गुणसूत्र क्रोमेटिन जाल (chromatin network) से बने छोटे एवं संघनित टुकड़े होते हैं और कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) में स्पष्ट दिखाई देते हैं। किसी की जाति में गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या निश्चित होती है। क्रोमेटिन (chromatin) के कुछ भाग विभाजनान्तराल अवस्था के समय केन्द्रक के अन्दर गहरा स्टेन लेते हैं और विभाजन के समय हल्का स्टेन (stain) लेते हैं। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिन जाल (chromatin network) के ये धागे छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में स्पष्ट हो जाते हैं।

इन टुकड़ों को ही गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं। क्रोमोसोम (chromosomes) की खोज स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने की तथा वाल्डेयर (Waldeyer) ने इन्हें क्रोमोसोम (chromosome) नाम दिया। सटन तथा वाबेरी (Sutton and Wobery) ने इनके महत्व को समझाया। गुणसूत्र छड़ाकार धागेनुमा पतली, कुण्डलित रचनाएँ होती हैं। इनकी लम्बाई 0.1-30 तथा व्यास 0.2 से 2 तक होता है। मक्का (maize) के गुणसूत्र की लम्बाई 12 तक होती है।

गुणसूत्र के निम्नलिखित भाग होते हैं –
1. पेलिकल (Pelicle) – यह कणिका विहीन पतला बाह्य आवरण होता है जो गुणसूत्र (chromosome) पर एक पतला आवरण बनाता है।

2. क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) – प्रत्येक गुणसूत्र (chromosome) में दो समान गुणों वाली धागेनुमा रचनाएँ होती हैं, इन्हें अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) कहते हैं। प्रत्येक क्रोमेटिड में अनेक धागे समान पतले क्रोमोनिमेटा पाए जाते हैं। ये संघनित होकर क्रोमेटिड कहलाते हैं। क्रोमोनीमा (chromenema) कुण्डलित होते हैं। कुण्डलन पैरानेमिक या प्लेक्टोनेमिक हो सकती है।

3. अधात्री (Matrix) – पेलिकल (pelicle) के अन्दर का समांगी पदार्थ जिसमें क्रोमोनिमेटा निलम्बित रहते हैं, आधात्री कहलाता है।

4. गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) – यह गुणसूत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है जिस पर गुणसूत्र (Chromosome) के दो अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) आपस में जुड़े होते हैं। इसे प्राथमिक संकीर्णन कहते है। प्रायः एक गुणसूत्र पर एक ही गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु होता है और यह मोनोसेन्ट्रिक (monocentric) कहलाता है। कभी-कभी एक गुणसूत्र पर द्वो केन्द्र बिन्दु (Dicentric) या तीन केन्द्र बिन्दु (tricentric) भी पाए जाते हैं।
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गुणसूत्र पर केन्द्र बिन्दुओं की स्थिति के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) अन्त:केन्द्री (Telocentric) – जब गुणसूत्र बिन्दु (chromosome) गुणसूत्र के एक छोर पर स्थित होता है। ऐसा गुणसूत्र एक भुजीय होता है।

(ii) अम्रकेन्द्री (Acrocentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के एक छोर से कुछ हटकर होता है। इसमें गुणसूत्र की एक भुजा बहुत बड़ी तथा दूसरी बहुत छोटी होती है।

(iii) उपमध्यकेन्द्री (Submetacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के मध्य भाग से कुछ हटकर होता है। इस स्थिति में गुणसूत्र V के आकार का होता है।

(iv) मध्य केन्द्री (Metacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के ठीक मध्य में स्थित होता है। ऐसी स्थिति में गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर होती हैं। कभी-कभी गुणसूत्र केन्द्र-बिन्दु रहित होता है इसे ऐसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और यह कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है।

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5. क्रोमोमीयर अथवा जीन्स (Chromomeres or genes) गुणसूत्र के क्रोमोनिमेटा (chromonemata) पर उभरे हुए मोती की माला के समान दाने क्रोमोमीयर या जीन्स (genes) कहलाते हैं। जोहन्सन ने इन दानों के लिए सर्वप्रथम जीन (Genes) शब्द का प्रयोग किया। ये जीवधारियों के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

6. टीलोमीयर (Telomere) – गुणसूत्र के छोरो को टीलोमीयर (telomeres) जुड़ने से रोकते हैं।
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7. सैटेलाइट (Satellite) – गुणसूत्र पर कभी-कभी द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) बनने से एक घुण्डीनुमा संरचना बनती है जिसे सैटेलाडट कहते हैं और ऐसे गुणस्त्र सैट-क्रोमोसोम (sat-chromo-somes) कहलाते हैं। रासायनिक सघटन (Chemical composition) – गुणसूत्र मुख्यतया न्यूक्लियो प्रोटीन के बने होते हैं। इसमें हिस्टोन प्रोटीन लगभग 11 सरल प्रोटीन, लगभग 14 अम्लीय प्रोटीन लगभग65 DNA 10 तथा RNA 2-3 होता है।
कार्य (Functions) – गुणसूत्र के निम्नलिखित कार्य हैं –
1. गुणस्त्र पर जीन्स पाए जाते हैं जो किसी भी जीवधारी के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।
2. प्रजनन के समय गुणसूत्र ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीन्स का वहन करते हैं।
3. गुणसूत्र का DNA जीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (metabolic reactions) का नियंत्रण करता है।
4. गुणसूत्रों की संख्या एवं संरचना में परिवर्तन से उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न होते हैं जो वंशागत होते हैं।
5. गुणसूत्रों के हिटरोक्रोमेटिन (heterocheromatin) भाग केन्द्रिका के निर्माण में भाग लेते हैं।
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्रणी लिखिए-
(अ) केन्द्रिका
(ब) लैम्पबुश गुणसूत्र
(स) पॉलीटीन गुणसूत्र
उत्तर:
(अ)  केन्द्रक के चारों ओर 10-50 मोटी दोहरी झिल्ली की बनी केन्द्रक कला (nuclear membrane) होती है। केन्द्रक कला पर असंख्य सुक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। प्रत्येक छिद्र का व्यास लगभग 400-500 होता है। प्रत्येक छिद्र की संरचना जटिल होती है जो अष्टकोणीय सममिति दर्शाता है। दोनों कलाओं के बीच एक केन्द्रीय छिद्र (nuclear pore) होता है जो 8 गोलाभ कणों से घिरा होता है। केन्द्रीय छिद्र तथा कणों के बीच के स्थान को एन्युली (annuli) कहते हैं।
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कार्य (Functions) – केन्द्रक के अन्दर निर्मित mRNA इन्हीं छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में पहुँचता है। इसके अतिरिक्त केन्द्रिका में निर्मित राइबोसोम की सब-यूनिटें केन्द्रक छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में आती हैं।

केन्द्रिका (Nucleolus) – केन्द्रक में एक छोटा गोल भाग होता है जिसे केन्द्रिका कहते हैं। कभी-कभी एक केन्द्रक में दो या इससे अधिक केन्द्रिकाएँ (nucleoli) भी पायी जाती हैं। केन्द्रिका में 10 RNA, 85 प्रोटीन एवं 5 DNA होता है। केन्द्रिका के चारों ओर कोई कला नहीं होती हैं।

एक केन्द्रिका के चार भाग होते हैं –
(a) एमोरफस मैट्टिक्स (Amorphous matrix)-एक समांगी भाग जिसमें प्रोटीन कण एवं धागे बिखरे रहते हैं। इसे पार्स एमोर्फा (pars amorpha) कहते हैं।
(b) दानेदार भाग (Granular portion) – यह प्रोटीन एवं RNA का बना होता है। इन्हें न्यूक्लियोलर राइबोसोम भी कहते हैं।
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(d) क्रोमेटिन (Chromatin)- यह फ्यूल्जिन पॉजीटिव (fulgin positive) होता है। ये दो प्रकार के होते हैं-केन्द्रिका को घेरने वाला भाग पेरीन्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (perinucleolar chromatin) तथा नलिकाएँ जो केन्द्रिका के अन्दर की ओर जाती है, इड्टान्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (intranuclear chromation)। कार्य (Function)-केन्द्रिका राइबोसोम्स की विभिन्न उपइकाइयों का निर्माण करती हैं।

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(ब) विशेष प्रकार के गुणसूत्र (Special Type of Chromosomes)
1. लेम्पबुश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes) – इनकी खोज रुकर्ट (Ruckert) ने 1882 में की थी। लैम्पबुश गुणसूत्र (lampbrush chromosome) कशेरकियों (vertibrates) के ऊसाइट (oocyte) में पाए जाते हैं। ये आकार में अत्यधिक बड़े होते हैं। इन गुणसूत्रों में एक मुख्य धागे जैसी रचना मुख्य अक्ष (main axis) होती है। यह RNA की बनी होती है जिससे अनेक स्थानों पर बहुत से गोलाकार लूप (Loops) निकलते हैं। लूप्स के मध्य DNA तथा अधात्रि के रूप में RNA एवं प्रोटीन्स होते हैं। लूप्स की संख्या के कारण ही ये गुणसूत्र बोतल साफ करने वाले बुश जैसे दिखाई देते हैं। कार्य (Functions) -इनका प्रमुख कार्य RNA संश्लेषण प्रोटीन संश्लेषण तथा पीतक (yolk) का निर्माण करना है।
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2. लार ग्रन्थि या पॉलीटीन गुणसूत्र (Salivary gland or Polytene chromosome)- इनकी खोज बालबियानी ने काइरोनोमस (Chironomus) कीट की लार ग्रन्थियों में की थी। फलमक्खी एवं अन्य डिप्टेरन के लार्वा की लार ग्रन्थियों (Salivary gland) में अत्यधिक लम्बे व चौड़े दैत्याकार गुणसूत्र पाए जाते हैं इन्हें पालीटीन गुणसूत्र (polytene chromosome) कहते हैं। इन गुणसूत्रों पर गहरी काली एवं हल्की पट्टी पायी जाती हैं। काली पट्टियों पर यूक्रोमेटिन होता है तथा हल्के रंग की पट्टियों में हिटरोक्रोमेटिन होता है। ये गुणसूत्र

कुछ स्थानों पर अधिक फूले हुए दिखाई देते हैं जिन्हें पफ्स (puffs) कहते हैं। काली पह्टियों से कुछ loops बन जाते है जिन्हे बाल्वीनी छत्ले (balbini rings) कहते हैं। इन स्थानों पर m-RNA बनता है।

कार्य (Functions) – सम्भवतः ये प्रोटीन संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(अ) राइपोसोम
(ब) लाइसोसोम
उत्तर:
(अ) गाबलोसोम (Ribosomes) – क्लाउड (Clowd; 1943) ने कोशिका के समांगी मिश्रण का परानिश्यन्दन (ultra filtration) करके कुछ क्षाररागी (basophilic) कण प्राप्त किए और इन्हें माइक्रोप्रभाज नाम दिया। पैलाडे (Palade, 1955) ने जन्तु कोशिकाओं में इनकी खोज की और राइबोसोम (ribsomes) कहा। इनमें RNA की अत्यधिक मात्रा होती है।
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संरचना (Structure) – राइबोसोम (ribosome) मुख्यतया RNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं। इनका व्यास लगभग 150 होता है। प्रत्येक राइबोसोम दो उपइकाइयों से मिलकर बनता है। एक बड़ी तथा दूसरी छोटी उप-इकाई, बड़ी उप-इकाई में वृन्त केन्द्रीय उभार, खांच या धारी तथा परिधीय उभार भाग होते हैं। छोटी उपइकाई में आधार, शीर्ष, क्लैफ्ट तथा प्लेटफार्म भाग होते हैं। प्रौकेरियोटिक कोशाओं तथा यूकैरियोटिक कोशाओं के माइटोकॉन्डिया एवं प्लास्टिडडस में 70 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं। 70 s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 की तथा छोटी उपडकाई 30s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं।
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70s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 s की तथा छोटी उपइकाई 30 s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइब्रोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है।
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की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg ++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइबोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg ++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है। अवसादन गणांक (Sedimentation coefficient = Svedberg unit)-राइबोसोम के अध्ययन के लिये एक यन्त्र प्रयोग किया जाता है जिसे अल्ट्रासेण्ट्रीफ्यूज (ultracentrifuge): कहते हैं। इसमें कुछ विशष प्रकार का नालकाय लगा होती हैं जिनमें हम राइबोसोम को एक विशेष प्रकार के घोल में लेकर रख लेते हैं। इस यन्त्र को विद्युत द्वारा एक निश्चित तेज रफ्तार से घुमाने पर एक विशेष प्रकार के राइबोसोम्स नलिका की तली पर बैठ (sediment) जाते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के राइबोसोम्स एक-दूसरी निश्चित रफ्तार पर बैठते हैं। इस निश्चित रफ्तार को अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) कहते हैं। अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) को Svedberg unit S में मापा जाता है। उदाहरण के लिए, जो राइबोसोम्स 80 Sपर बैठते हैं। उन्हे 80 S राइबोसोम्स कहा जाता है।

राइबोसोम्स (Ribosomes) के दो भाग होते हैं जिन्हें Mg 2+ आयन की सान्द्रता घटाने पर दो छोटे भागों (subunits) में विभक्त किया जा सकता है। यदि इन दो भागों वाले मिश्रण को फिर से यन्त में रखकर घुमाया जाये तो 80 S राइबोसोम्स का एक भाग 60 S पर बैठता है तथा दूसरा भाग 40 S पर जिन्हें क्रमशः 60 S व 40 S राइबोसोम्स कहते हैं। (इन संख्याओं को 60 S 40 S 100 S वाली गणित की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।) कार्य (Function) राइबोसोम का निर्माण केन्द्रिका (Nuclealus) में होता है तथा इनका क्रिया-स्थल कोशिका द्रव्य है। राइबोसोम विभिन्न प्रकार के RNA की सहायता से प्रोटीन निर्माण में भाग लेते हैं।

राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रियाविधि (Mechanism of protein synthesis at ribosomes):
(i) गुणसूत्र के DNA में न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) के क्षारों की व्यवस्था प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) का संकेत देती है।

(ii) DNA कोड की नकल mRNA के निर्माण द्वारा प्रदान की जाती है जिसमें थायमीन के स्थान पर यूरसिल (uresil) आ जाती है।

(iii) mRNA केन्द्रक से निकलकर कोशाद्रव्य में राइबोसोम पर स्थित होकर सांचा बनाती है। m RNA पर तीन न्यूक्लियोहाइड्स एक विशेष अमीनो अम्ल के लिए संकेत देते हैं। इसे त्रिक संकेत कहते हैं।

(iv) विशेष प्रकार की अमीनो अम्ल, ATP द्वारा सक्रिय अवस्था में आकर एक विशेष प्रकार के sRNA (t RNA) से प्रक्रिया करते हैं।

(v) s RNA + अमीनो अम्ल पर अपना प्रतिकूट होता है जो m -RNA पर स्थित प्रकूट (codon) पर आकर मिलता है।

(vi) एमीनो अम्ल एक-दूसरे से पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़कर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ (uresil) बनाते हैं।

(vii) एमीनो अम्लों की इस प्रकार की श्रृंखला अलग होकर प्रोटीन अणु का निर्माण करती है। इस सम्पूर्ण क्रिया को प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis)
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(ब) लाइसोसोम (Lysosome):
लयनकाय या लाइसोसोम (Lysosome) की खोज सर्वप्रथम क्रिश्चियन डी. डबे (C. de Duve) ने 1949 में की थी। ये केवल जन्तु कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये अनेक प्रकार के जल अपघटनीय (hydrolytic) विकरों से भरी थैलियाँ हैं। इनके फटने पर कोशिका में ये विकर मुक्त होकर कोशिकांगों का पाचन कर लेते हैं। अतः इन्हें पाचक थैलियाँ (digestive vesicle) या कोशिका की आत्पघाती थैलियाँ (suicidal bags) कहते हैं। ये जन्तुओं के अग्न्याशय (pancreas), यकृत (liver) प्लीहा, मस्तिष्क तथा गुर्दे (kidney) की कोशिकाओं में पाए जाते हैं। लाइसोसोम गोल या अनियमित आकार की रचनाएँ हैं जिनका व्यास 0.6 होता है। इसके ऊपर इकहरी एकक कला पायी जाती है। लाइसोसोम बहुरूपता (polymorphism) प्रदर्शित करते हैं।
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लाइसोसोम चार प्रकार के होते हैं –
(a) प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosome) – ये गॉल्जी काय से उत्पन्न संचय कण एवं स्रावी पुटिकाएँ हैं।
(b) द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome) – इनमें पाचक विकर भरे होते हैं और प्राथमिक लाइसोसोम्स (primary lysosomes) से बनते हैं
(c) अवशिष्ट काय (Residual bodies) – द्वितीयक लाइसोसोम जब बाह्य पदार्थों का अपूर्ण पाचन करता है तब इन्हें अवशिष्ट काय (residual body) कहते हैं।
(d) ऑटोफैजिक रिक्तिकाएँ (Autophagic vacuoles)-इन्हें साइटोलाइसोसोम या ऑटोफेगोसोम (autophagosome) कहते हैं। इनमें लयनकारी विकर (lytic enzyme) होते हैं।

कार्य (Functions):
(i) कोशिका में आये बाहरी पदार्थों का पाचन करके कोशिका की सुरक्षा।
(ii) क्षतिप्रस्त कोशिकांगों का पाचन।
(iii) मृत कोशिकाओं या निक्रिय कोशिकाओं का पाचन।

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प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:

सक्षण (Characters)श्रोकैजियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell)यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell)
1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)पूर्ण कोरिका में क्षिता रहत्ता है।केन्द्रक एवं कोशिका कला के बीच सीमित रहता है।
2. केन्ट्रक (Nucleus)आद्ध (incipient) अविकसित केन्द्रक होता है जिसे केन्द्रकाभ (nucleoid) कहते हैं। इसमें –
(i) केन्द्रक कत्ता अनुपस्थित होती है।
(ii) केन्रिका (nucleolus) अनुपस्थित होती है।
(iii) DNA के तन्तुओं (जो सभी एक प्रकार के होते है) के साय ग्रोटीन (हिस्टोन) नहीं जुड़ी रहती हैं।
पूर्ण विकसित सत्य (true) केन्द्रक होता है। इसमें-

(i) केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

(ii) केन्द्रिका (nucleolus) उपस्थित होती है।

(iii) DNA के बहुत से सूत्रों के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़ी रहती हैं। इन्हें गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं।

3. गाल्जीकास, अन्त क्रद्रव्यी जालिका, लवक तथा माइडोकींच्द्रियाअनुपस्थित होते हैं।उपस्थित होते हैं।
4. माइट्टोसिस तथा मीओसिस कोशिका विभाजन (Cell divisions)नहीं होता है।होता है।
5. श्वसन तन्त (Respiralory system)जीचद्धव्य कला में उपस्थित होता है।माइटोकॉण्ड्रया में उपस्थित होता है।
6. श्रक्ारा संश्लेषी तंत्र (Photosynthetic sysiem)आन्तरिक द्विल्लियों में होता है, हरित शवक अनुषस्थित होते हैं।हरित लवकों में होता है। जन्तुओं में अनुपस्थित
7. कोशिका भिति (Cell wall)पतली होती है।मोटी होती है।
8. कोशिकाइव्यी गति (Cytoplasmic movement)स्पष्ट नहीं होती है।स्पष्ट होती है।
9. राइबोसोम (Ribosome)70 s प्रकार के होते हैं।80 S प्रकार के होते हैं।
10. कराभिका (Flagellum)कशाभिका में सूक्ष्म तन्तु होते हैं परन्तु (9 + 2) व्यवस्था नहीं होती है।कशाभाकाओं में सूक्ष्म नलिकाओं की $(9+2)$ व्यवस्था स्पष्ट होती है।
11. रिक्तिका (Vacuole)अनुपस्यित होती हैं।पादपों में उपस्थित जन्तुओं में अल्पर्वर्धित या अनुपस्थित
12. लाइसोसोम (Lysosome)अनुपस्यित होती हैं।जन्तु कोशिका में उपस्थित किन्तु पादप कोशिका में अनुपस्थित।
13. नारककाय (Centrosome)अनुपस्यित होती हैं।पादप कोशिका में अनुपस्थित, जन्तु कोशिका में उपस्थित
14. सम्मुट (Capsule)हो सक्ता है।नहीं होता ।
15. प्लाबिम्ड (Plasmid)उपस्थित हो सकते हैं।अनुपस्थित होते हैं।
16. लिगी बनन (Sexual Reprodction) उदाहाण (Examples)अनुपस्थित वा कम विकसित जीवाणु, नीली हरी शैवास, माइकोप्ताज्मा।पूर्ण विकसित शैवाल, कवक, ब्रायोफाइटा एवं उच्च पौधे एवं प्रोटोजोआ से कॉर्डेटा तक के सभी प्राणी।

प्रश्न 9.
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप एवं प्राणी कोशिका-सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएँ भी समान प्रकार की नहीं होती हैं। पादप एवं प्राणी कोशिकाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति, लवण एवं बड़ी-बड़ी एक या अधिक रिक्तिकाएँ (vacuoles) उपस्थित होती हैं। प्राणी कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होते हैं। इसके अलावा जहाँ प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (Centrosome) एवं लयनकाय (lysosome) उपस्थित होते हैं जो पादप कोशिकाओं में नहीं पाए जाते हैं। यद्यपि अन्य कोशिकाओं की संरचना एवं कार्धिकी में दोनों प्रकार की कोशिकाएँ समानताः प्रदर्शित करती हैं।
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लक्षणपादप कोशिकाजन्तु कोशिका
1. कोशिका भित्ति (Cell wall)उपस्थित, सेल्युलोस मुख्यतः (cellulose) की बनी होती है।अनुपस्थित।
2. लवक (Plastids)कोशिका द्रव्य में तीन प्रकार के लवक पाए जाते हैं-अवर्णी लवक, वर्णी लवक व हरित लवक (Leucoplast, chromoplast and chloroplast) 1लवक (plastids) अनुपस्थित होते हैं।
3. रिक्तिका (Vacuoles)प्रारम्भ में छोटी किन्तु प्रौढ़ कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका उपस्थित। इसमें कोशिका रस भरा रहता है।रिक्तिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।
4. तारककाय (Centrosome)कुछ शैवालों एवं कवकों को छोड़कर पादप कोशिकाओं में तारककाय अनुपस्थित होते हैं।लगभग सभी प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (centrosome). उपस्थित होते हैं।
5. लयनकाय (Lysosome)कुछ पौधों को छोड़कर अधिकांश पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित।सामान्यतया उपस्थित।
6. सूक्ष्म रसांकुर (Microvilli)अनुपस्थित।उपस्थित।
7. कोशिकाद्रव्य विभाजन (division of cytoplasm)कोशिका विभाजन के समय दो संतति कोशिकाओं के बीच कोशिका की मध्य प्लेट पर नई मध्य पटलिका का निर्माण प्रारम्भ होकर किनारों की ओर बढ़ता है।संतति कोशिकाओं के बीच बाहर से एक खांच बनती है जो अन्दर की ओर बढ़ती हुई दोनों संतति कोशिकाओं को पृथक् कर देती हैं।
8. संचित खाद्य पदार्थ (Reserved Food Material)कार्बोहाइड्रेट, सेल्यूलोस, व मण्ड के रूप में संचित होता हैं।कार्बोहाइड्रेट अधिकतर ग्लाइकोजन, तथा वसा के रूप में संचित होता है।

प्रश्न 10.
हृरित लवक का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित लवक (Chloroplasts)-ये हरे रंग के लवक होते हैं। इनकी खोज शिम्पर (1885) ने की थी। इ्रनमें हरे रंग का वर्णक पर्णहरिम (chlorophyll) होता है जिसके कारण पत्तियाँ एवं कुछ अन्य भाग हर दिखाई देते हैं। उच्च श्रेणी के पौधों में विशेषकर उनकी पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं (mesophyll cells) में तथा तनों के हरित ऊतकों में हरित लवक पाए जाते हैं।
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बहुत सी शैवाल कोशिकाओं में केवल एक हरितलवक (Chloraplasts) होता है, परन्तु अधिक विकसित पौधों की एक कोशिका में 20 से 50 तक हरित लवक (chloraplast) हो सकते हैं। विभिन्न वर्ग के पौधों में इनकी रचना और आकार भिन्न होते हैं। शैवालों की कोशिकाओं में मेखलाकार (girdle shaped-यूलोध्रिक्स में), टिकियाकार (disc like – प्लूरोसिग्मा में) प्यालाकार (cup shaped-क्लैमाइडोमोनस में), पद्टीकार (ribon shaped-स्पाइोगाइा में), ताऱाकार (stellate- जिगिनया में) अथवा जालिकामय (reticulate- ऊडोगोनियम में) पाए जाते हैं। आमाप, परिमाप एवं संख्या-उच्च पादपों के लवक (chloraplasts) गोल, अण्डाकार या चपटे व दीर्घ वृत्ताकार होते हैं। सामान्यतः इनकी लम्बाई 2.5 तथा चौड़ाई 3-4 तक होती है। प्रतिकोशिका इनकी संख्या 20-40 तक हो सकती है।

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परासंरचना (Ultrastructure) – उच्च वर्ग के पादपों के हहरित लवक जटिल संरचना वाले होते हैं। प्रत्येक लवक दोहरी इकाई झिल्ली से घिरा होता है। प्रत्येक झिल्ली (unit membrane) की मोटाई 50 होती है। दोनों झिल्लियों के बीच 10 A-30 चौड़ा पेरीप्लास्टिडल स्थान (periplastidal space) होता है। झिल्लियों के अन्दर एक तरल दानेदार पदार्थ भरा होता है जिसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर दोहरी कलाओं की बनी असंख्य संरचनाएँँ पायी जाती हैं जिन्हें थाइलेकॉइड (thylakoid) कहते हैं तथा थाइलेकॉइड के द्वारा बने सिक्कों के समान एक ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। ऐसे अनेक प्रेनम स्ट्रोमा में पाए जाते हैं। एक प्रेनम दूसरे प्रेनम से स्ट्रोमा लैमेली (stroma lamellae) द्वारा जुड़े रहते हैं।
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थाइलैकाइड को ग्रेना की इकाई कहते हैं। थाइलैकाइड पर क्वांटासोम (quantasomes) पाए जाते हैं और प्रत्येक क्वांटासोम (quantasomes) पर लगभग 230 पर्णहरिम कण (chlorophyll particles) पाए जाते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर कुछ मात्रा में DNA, RNA स्टार्च कण (starch grains) आदि भी पाए जाते हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition) – प्रत्येक हरित लवक में 40-50  प्रोटीन, 23-25 फास्फोलिपिड, 3-10 पर्णहरिम (जिसमें 75 पर्णहरिमम a तथा 25 पर्णहरिम b), 5 RNA, 0.01-0.02 DNA; 1-2 कैरोटिन जैन्थोफिल, विकर, विटामिन तथा धातुएँ जैसे- Mg,Fe,Cu,Zn,Mn आदि होते हैं।

कार्य (Functions) – हरित लवक (choroplast) का प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण (nhotosunthesis) क्रिया सम्पन्न करना है। हरित लवक (chloroplast) के ग्रेना में प्रकाशीय अभिक्रिया तथा स्ट्रोमा में अन्धकार अभिक्रिया होती है। प्रकाश अभिक्रिया में जल का प्रकाशीय अपघटन होकर NADP.2H तथा ATP का निर्माण होता है, जिससे O2 उपउत्पाद के रूप में उत्पन्न होती है। अन्धकार अभिक्रिया में ATP तथा NADP. 2 H का प्रयोग करके CO2 का स्थिरीकरण किया जाता है और विभिन्न शर्कराओं का निर्माण होता है। इसलिए हरितलवक को कोशिका का रसोईघर (kitchen) कहते हैं।

प्रश्न 11.
कोशिका कला के तरल मोलेज मॉडल का सचित्र वर्पन
कोशिका झिल्ली (Cell membrane):
कोशिका झिल्ली या कोशिका कला (cell membrane or plasma membrane), एक लचीली, अल्पपारदर्शी तथा चयनात्मक पारगम्यकला (selectively permeamble Membrane) है जो पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति के ठीक नीचे तथा जन्तु कोशिकाओं में सबसे बाहर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाती है। यह जीवद्रव्य का ही एक अंश होती है तथा स्तरीय रासायनिक परिवर्तनों के कारण बनती है। जीवद्रव्य की इस बाह्यपरत को कोशिका कला (cell membrane) नाम नगेली एवं क्रेमर (Naggeli and Cremer, 1855) ने दिया। प्लावे (Plowe; 1931) ने इसे प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) नाम दिया।

संरचना (Structure) – सभी जन्तु कोशिकाओं में कोशिका कला बाह्य रूप में देखी जा सकती है। पादप कोशिकाओं एवं जीवाणु कोशिकाओं में यह कोशिका भित्ति के ठीक नीचे पायी जाती है। सभी प्राणी एवं पादपों की कोशिका कलाओं की संरचना लगभग समान होती है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 75 होती है। इसमें लगभग 3.5 व्यास के अनेक छिद्र पाए जाते हैं।
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कोशिका कला की संरचना के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने मत प्रस्तुत किए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख मत निम्न प्रकार हैं –
1. कोशिका कला का सेंडविच या त्रिस्तरीय मॉडल (Sandwitch or trilamella model of plasma membrane): इस मॉडल को डेनियल एवं डॉसन (1935) ने प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड के अणुओं की बनी हुई एक त्रिस्तरीय (triple layerd) कला होती है जिसमें 40 प्रोटीन्स तथा 60 फास्फोलिपिड्स पाए जाते हैं। इस मॉडल में फास्फोलिपिड अणु प्रोटीन्स द्वारा ठीक उसी प्रकार आस्तरित होते हैं जैसे सेंडविच में डबल रोटी एवं भरावन की व्यवस्था होती है। अर्थात् फास्फोलिपिड की द्विस्तरीय परत प्रोटीन की दो परतों से घिरी होती है।

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एकक कला मत (Unit membrane theory) – कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन (Robertson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परर्ते प्रोटीन की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 AA होती है। मध्य परत लिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
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तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त:प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं।

लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं –
(i) जल रागी शीर्ष (Hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।
(ii) जल विरागी पुच्छ (Hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।

दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन (intrinsic protein) लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (mosoaic model) कहते हैं।

जैव कला का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Plasma membrane):
प्लाज्मा मेंम्ब्बेन (plasma membrane) या कोशिका कला मुख्यतः प्रोटीन व फास्फोलिपिड्स की बनी होती है यद्यपि इसमें अल्प मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स भी उपस्थित होते हैं। कोशिका कला में कार्बोंहाइड्रेट स्वतन्त्र अवस्था में न रहकर दो संयोजी रूपों में पाया जाता है। यह लिपिड के साथ ग्लाइकोलिपिड तथा प्रोटीन के साथ ग्लाइकोप्रोटीन के रूप में पाया जाता है। ये दोनीं पदार्थ कोशिका को समान कोशिकाओं की पहचान की क्षमता प्रदान करते हैं।
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कोशिका कला में इन पदार्थों का अनुपात निम्न प्रकार है –
प्रोटीन – 60-80 %
लिपिड – 20-40
काबोंहाइड्रेट – लगभग – 5 %
प्राणियों (animals) के यकृत (livar) तथा लाल रुधिराणुओं (RBCs) की जैव-कलाओं में हैक्सोस, हैक्सोस एमीन, फ्रक्टोस, कारोंहाइड्रेट तथा सियालिक अम्ल, प्रोटीन्स के साथ पाए जाते हैं।

प्लाज्मा कला के रूपान्तरण (Modifications of Plasma membrane):
प्लाज्मा कला कभी-कभी कोशिकाओं में कुछ विशेष कार्यों के लिए रूपान्तरित हो जाती है। इसके कुछ रूपान्तरण निम्न प्रकार है –
1. सूक्ष्मांकुर (Microvilli) – प्राणी कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane) पर कभी-कभी अंगुली के समान उभार निकल आते हैं इन्हें सुक्ष्मांकुर (microvilli) कहते हैं। ये प्लाज्मा मेम्बेने के सतही क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए आंत्र (intestine) में पायी जाने वाली उपकला कोशिकाएँ।

2. डेस्मोसोम (Desmosomes) – संलग्न कोशिकाओं के आसंजन स्थलों पर प्लाज्मा कला से अनेक पतों वाली धागे जैसी कुछ संरचनाएँ बनती हैं। इस स्थल को डेस्पोसोम (desmosomes) कहते हैं तथा धागे जैसी संरचनाओं को टोनोफाइबिल्स (tonofibrils) कहते हैं। इनका प्रमुख कार्य कोशिका को आन्तरिक रूप से यांत्रिक शक्ति (Mechanical suport) प्रदान करता है साथ ही ये कोशिकाओं को परस्पर जोड़ने का भी कार्य करती हैं।

3. इंटरडिजिटेशन (Interdigitations) – कभी-कभी प्राणी कोशिकाओं में संलग्न स्थलों पर कुछ प्रवर्ध निकलकर कोशिकाओं को बाँधे रखने का कार्य करते हैं। इन्हें इंटरडिजिटेशन (interdigitations) कहते हैं।

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प्लाज्मा कला के कार्य (Functions of Plasma Membrane):
कोशिका कला या प्लाज्मा मैम्बेन (plasma membrane) के निम्नलिखित कार्य हैं-
1. यह कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती है।
2. यह विभिन्न पदार्थों के आयनों तथा अणुओं के कोशिका के अन्दर-बाहर आने-जाने का नियंत्रण करती है। अर्थात् यह चयनात्मक पारगम्य (selectively permeable) कला का कार्य करती है।
3. यह रक्षण, अवलम्बन तथा यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
4. इसके द्वारा विभिन्न पदार्थों का परिवहन होता है। यह दो प्रकार का होता है-
(i) सक्रिय परिवहन (Passive Transport) – प्लाज्मा कला से होकर अनेक प्रकार के आयन्स (ions) अपने अधिक सान्द्रता के क्षेत्र से कम सान्द्रता के क्षेत्र की ओर साधारण रूप से विसरित हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकार की ऊर्जा का व्यय नहीं होता है। इसे निक्रिय परिवहन (passive transport) कहते हैं।
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(ii) सक्रिय परिवहन (Active transport) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) के विपरीत होता है अर्थात निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्जाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
5. कोशिका कला के द्वारा ठोस एवं तरल पदार्थों का अन्तप्रम्णण भी किया जाता है, इस क्रिया को एण्डोसाइटोसिस (endocytosis) भी कहते हैं।
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पदार्थों की प्रकृति के अनुसार यह क्रिया दो प्रकार की होती है –
(i) कोशिका पायन (Pinocytosis) -प्लाज्मा कला से होकर कोशिका द्वारा तरल पदार्थों के अर्न्तग्रहण की क्रिया कोशिकापायन (Pinocytosis) कहलाती है। अधिक आण्विक भार वाले पदार्थ जैसे -प्रोटीन आदि को परासरण (osmosis) द्वारा कोशिका कला से होकर कोशिका में नहीं पहुँचाया जा सकता है। ऐसे पदार्थों को कोशिका पायन (pinocytosis) द्वारा प्रहण किया जाता है। इस क्रिया में प्लाज्मा कला (plasma membrane) में एक आशय बनता है जिसमें द्रव पदार्थों की बूदें बहकर आ जाती हैं। इसके पश्चात् यह आशय पृथक् होकर कोशिका के अन्दर आ जाता है। लाइसोसोम द्वारा इन आशयों का पाचन कर लिया जाता है। ऐसे पदार्थों के निष्षासन के लिए उपरोक्त क्रिया विपरीत हो जाती है। थाइाइड प्रन्थि (thyroid gland) में इस क्रिया को देखा जा सकता है।

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(ii) भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) – प्लाज्मा-कला से होकर कोशिका द्वारा ठोस पदार्थों के अर्त्तप्रहण की क्रिया भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया कहलाती है। प्रोटोजोआ संघ के अनेक प्राणी इसी विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को प्रहण करते हैं। श्वेत रुधिर कणिकाएँ रोगाणओं का इसी प्रकार भक्षण करके रोगों से रक्षा करती हैं। इस विधि में जब कोई ठोस पदार्थ प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmam embrane) के सम्पर्क में आता है तो प्लाज्मा मेम्बेन अन्तर्वलित होकर इसे अन्दर ले लेती है और पृथक् होकर जीवद्रव्य (protoplasm) में समाहित हो जाती है बाद में लाइसोसोम (lysosome) से मिलकर इसके पदार्थ का पाचन हो जाता है। अपचित पदार्थ पुनः प्लाज्मा मेम्ब्रेन से बाहर कर दिया जाता है। कोशिका पायन (pinocytosis) तथा भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया दोनों ही क्रियाएँ समान होती हैं और दोनों में ही ऊर्जा व्यय होती है।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर


(A) बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मूल विभज्योतक का प्रशान्त केन्द्र कार्य करता है- (RPMT)
(A) परिपक्वन के दौरान भोजन के भण्डारण स्थल की तरह
(B) वृद्धि हार्मोन के भण्डारण की तरह
(C) विभत्र्योटक की क्षति ग्रस्त कोशिकाओं की पुनः पूर्ति के लिए संचय की तरह
(D) जल अवशोषण के क्षेत्र की तरह।
उत्तर:
(C) विभत्र्योटक की क्षति ग्रस्त कोशिकाओं की पुनः पूर्ति के लिए संचय की तरह

2. काग एथा (crok camblum), काग (cork) तथा द्विपीय वल्कुट (secondary cortex) सामूहिक रूप से कहलाते हैं- (AIPMT)
(A) कागजन
(B) परित्वक
(C) काग
(D) कागज अस्तर ।
उत्तर:
(B) परित्वक

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3. वार्षिक वलयों को गिनकर वृक्ष की आयु का पता लगाना कहलाता है- (UPCPMT)
(A) डेण्ड्रोक्रोनोलॉजी
(B) आयुवृद्धि
(C) क्रोनोलॉजी
(D) कॉन्ट्रालोजी
उत्तर:
(A) डेण्ड्रोक्रोनोलॉजी

4. छाल (bark) शब्द सम्बोधित करता है- (RPMT)
(A) फैलम, फैलाडर्म तथा संवहन कैम्बियम को
(B) पैरीडर्म तथा द्वितीयक जाइलम को
(C) कॉर्क, कैम्बियम तथा कॉर्क को
(D) फैलोजन, फैलम, फैलोडम तथा द्वितीयक फ्लोएम को
उत्तर:
(D) फैलोजन, फैलम, फैलोडम तथा द्वितीयक फ्लोएम को

5. कैस्पेरियन स्ट्रिप्स पायी जाती है- (RPMT)
(A) अन्तः स्त्वचा में
(B) बाध्य त्वचा में
(C) बल्कुट में
(D) परिरम्भ में
उत्तर:
(A) अन्तः स्त्वचा में

6. पाश्र्व विभज्योतक निम्नलिखित में वृद्धि हेतु उत्तरदायी होता है। (RPMT)
(A) लम्बाई
(B) मोटाई
(C) मुद्वतक
(D) बल्कुट
उत्तर:
(B) मोटाई

7. ड्यूरोमन पाया जाता है- (UPCPMT)
(A) द्वितीयक वस्तु के भीतरी भाग में
(B) रस वस्तु में
(C) द्वितीयक वस्तु के बाह्य भाग में
(D) परिरम्भ में
उत्तर:
(A) द्वितीयक वस्तु के भीतरी भाग में

8. बन्द संवहन पूलों में नहीं पाया जाता है- (CBSE AIPMT)
(A) भरण ऊतक
(B) कंजक्टिव ऊतक
(C) एधा
(D) मज्जा
उत्तर:
(C) एधा

(B) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊतक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समान संरचना, उत्पत्ति एवं कार्य वाली कोशिकाओं का समूह ऊतक कहलाता है।

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प्रश्न 2.
विभज्योतक की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
विभाजन की अपार क्षमता का पाया जाना।

प्रश्न 3.
ऊतकों का अध्ययन क्या कहलाता है ?
उत्तर:
औतिकी (Histology) ।

प्रश्न 4.
शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाए जाते हैं ?
उत्तर:
मूल तथा प्ररोह के शीर्षो पर ।

प्रश्न 5.
पार्श्व विभज्योतक के उदाहरण लिखिए ।
उत्तर:
संवहन एधा (vascular cambium) तथा कार्क एधा (cork cambium)।

प्रश्न 6.
स्थाई ऊतक के प्रकार लिखिए।
उत्तर:

  • सरल ऊतक,
  • जटिल ऊतक,
  • विशिष्ट ऊतक ।

प्रश्न 7.
मृदूतक कोशिकाएँ जब प्रकाश संश्लेषी हो जाती है तो इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
[क्लोरेन्काइमा (Chlorenchyma)।

प्रश्न 8.
मृदूतक का प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
भोजन संचय करना ।

प्रश्न 9.
अधिधर्म की उत्पत्ति किससे होती है ?
उत्तर:
त्वचाजन (dermatogen) से ।

प्रश्न 10.
कैस्पेरियन पट्टियाँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
जड़ की अन्तस्त्वचा (endodermis ) में।

प्रश्न 11.
अखरोट, नारियल आदि की अन्तःभित्ति कठोर क्यों होती है ?
उत्तर:
दृढ़ कोशिकाओं (stone cells) के कारण ।

प्रश्न 12.
वेलामेन ऊतक किन पौधों में पाए जाते हैं ?
उत्तर:
अधिपादपों (epiphytes ) की जड़ों में।

प्रश्न 13.
वाहिकाएँ किस ऊतक का अवयव हैं
उत्तर;
जाइलम (xylem) का ।

प्रश्न 14.
कम पैरन्काइमा वाला सघन काष्ठ क्या कहलाता है ?
उत्तर:
पिक्नोजाइलिक वुड (Pycnoxylic wood) ।

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प्रश्न 15.
वार्षिक वलय किसकी सक्रियता के कारण बनते हैं ?
उत्तर:
कैम्बियम की सक्रियता के कारण।

प्रश्न 16.
रबर क्षीरी ऊतक पाए जाने वाले पौधे का नाम लिखिए।
उत्तर:
मदार, कनेर ।

प्रश्न 17.
किसी वाहिका रहित आवृतबीजी का नाम लिखिए।
उत्तर:
ट्रोकोडेन्ड्रान, हाइड्रिला ।

प्रश्न 18.
कैलिप्ट्रोजन का क्या कार्य है ?
उत्तर:
मूलगोप (root cap) का निर्माण करना ।

प्रश्न 19.
जलीय आवृतबीजियों में प्लावकता प्रदान करने वाले ऊतक का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐरन्काइमा (aerenchyma)।

प्रश्न 20.
ऊतक शब्द का प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया ?
उत्तर:
एन. मयू (grew) ने ।

प्रश्न 21.
एक्सार्क जाइलम तथा पॉलीआर्क संवहन पूल किसमें मिलते
उत्तर:
‘एकबीजपत्री मूल में ।

प्रश्न 22.
भोजपत्र किससे प्राप्त होता है ?
उत्तर:
बेटुला (Batula) नामक पौधे की छाल से ।

प्रश्न 23.
किस एकबीजपत्री पौधे के तने में संवहन पूल एक घेरे में स्थित होते हैं ?
उत्तर:
गेहूँ (Triticum) में ।

प्रश्न 24.
वार्षिक वलय बैण्ड क्या होते हैं ?
उत्तर:
द्वितीयक जाइलम तथा मैड्यूलरी किरणों के छल्ले ।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
जाइलम के तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वाहिनिकाएँ (tracheids), वाहिकाएँ ( vessels), जाइलम मृदूतक (xylem parenchyma) तथा जाइलम तन्तु (xylem fibres ) ।

प्रश्न 2.
फ्लोएम के तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सहचर कोशिकाएँ (companian cells), चालनी नलिकाएँ (sieve tubes), फ्लोएम पैरन्काइमा (Phloem parenchyma) तथा फ्लोएम तन्तु (phloem fibres ) ।

प्रश्न 3.
यूस्टील किसे कहते हैं ?
उत्तर:
द्विबीजपत्रों तनों में संवहन पूल संयुक्त, कोलेटरल व खुले होते हैं। तथा ये एक वलय में व्यवस्थित होते हैं। दो पूलों के बीच पिथ किरणें होती हैं। यह अतिविकसित स्टील है। इसे यूस्टील (eustele) कहते हैं।

प्रश्न 4.
एटेक्टोस्टील किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एक बीजपत्री तनों में संवहन पूल संयुक्त, कोलेटरल व बन्द होते हैं तथा भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। इसे एटेक्टोस्टील ( atactostele) कहते हैं ।

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प्रश्न 5.
अरीय संवहन पूल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम एवं फ्लोएम अलग-अलग समूहों में तथा भिन्न-भिन्न अर्द्धव्यासों पर स्थित होते हैं तब इन्हें अरीय संवहन पूल (radial vascular bundles ) कहते हैं।

प्रश्न 6.
संयुक्त पूल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम तथा फ्लोएम एक ही पूल में स्थित होते हैं और एक ही अर्द्धव्यास में स्थित होते हैं तो इन्हें संयुक्त पूल (conjoint vascular bundles) कहते हैं।

प्रश्न 7.
अधिचर्म में पाए जाने वाले चार उपांगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • उपत्वचा (cuticle)
  • रन्ध्र (stomta)
  • रोम (hairs)
  • बुल्लीफार्म कोशिकाएँ (bulliform cells) ।

प्रश्न 8.
बाह्यमूल त्वचा क्या होती है ?
उत्तर:
कुछ पौधों की पुरानी मूलों की मूलीय त्वचा नष्ट हो जाने पर वल्कुट की बाहरी कोशिकाएँ क्यूटिन युक्त या लिग्नीभूत होकर रक्षक आवरण बनाती हैं। इसके स्तर को बाह्य मूल त्वचा कहते हैं।

प्रश्न 9.
जड़ के बाहरी स्तर को रोमधर स्तर क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
जड़ का बाहरी स्तर मृदूतक कोशिकाओं का एक कोशिकीय स्तर होता है जिसकी कोशिकाएँ वृद्धि करके रोम बनाती हैं, जिन्हें मूलरोम कहते हैं इसीलिए बाहरी स्तर रोमधर स्तर कहलाता है।

प्रश्न 10.
एक्सार्क तथा एण्डार्क जाइलम में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
एक्सार्क जाइलम में प्रोटोजाइलम परिधि की ओर तथा मेटाजाइलम केन्द्र की ओर होता है, जैसे-जड़ों में, जबकि एण्डार्क जाइलम में प्रोटोजाइलम सदैव केन्द्र की ओर तथा मेटाजाइलम परिधि की ओर होता है, जैसे-तनों में ।

प्रश्न 11.
स्थाई ऊतक क्या होते हैं
उत्तर:
इस श्रेणी के ऊतक ऐसी विभज्योतकी कोशिकाओं से बने होते हैं। जो विभाजन के पश्चात् एक निश्चित स्वरूप और परिमाण ग्रहण कर लेती हैं। ये पतली या मोटी भित्ति वाली जीवित या मृत कोशिकाएँ होती हैं। इनमें विभाजन की क्षमता नहीं होती है।

प्रश्न 12.
भरण विभज्योतक क्या होता है ?
उत्तर:
यह शीर्ष विभज्योतक का प्रमुख भाग होता है। इससे अधस्त्वचा, वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा रश्मियाँ तथा मज्जा का निर्माण होता है।

प्रश्न 13.
शान्त क्षेत्र क्या होते हैं ?
उत्तर:
पौधे के जिस भाग की कोशिकाओं में DNA एवं RNA की मात्रा कम होती है एवं विभाजन की क्षमता कम होती है। उसे शान्त क्षेत्र (quiescent centre) कहते हैं।

प्रश्न 14.
पृष्ठाधारी पत्ती की ऊपरी सतह अधिक गहरी क्यों दिखाई देती
उत्तर:
पृष्ठाधारी पत्ती की ऊपरी सतह में स्थित खम्भ मृदूतक (pallisade parenchyma) की कोशिकाएँ परस्पर सटी हुई होती हैं और इनमें हरित लवक अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। अतः हरित लवक की अधिक उपस्थिति के कारण पृष्ठाधारी पत्तियों की ऊपरी सतह अधिक गहरी दिखाई देती है।

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प्रश्न 15.
अन्तःकाष्ठ एवं रस-काष्ठ में से कौन-सी अधिक टिकाऊ होती ? कारण बताइए।
उत्तर:
अन्तः काष्ठ (heart wood) रस-काष्ठ (sap wood) की अपेक्षा अधिक टिकाऊ एवं सूक्ष्म जीवियों के लिए प्रतिरोधी होती है। अन्तःकाष्ठ की कोशिकाएँ तेल, रेजिन, गोंद, टेनिन आदि के जमाव के कारण कठोर हो जाती है। जबकि रस- काष्ठ जीवित कोशिकाओं की बनी होती है।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न – II

प्रश्न 1.
मूल शीर्ष तथा प्ररोह शीर्ष में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
मूलशीर्ष तथा प्ररोह शीर्ष में अन्तर (Differences between root apex and shoot apex)

मूल शीर्ष (Root apex)प्ररोह शीर्ष (Shoot apex )
1. यह उपान्तस्थ होता है।यह शीर्षस्थ होता है।
2. मूल शीर्ष छोटा होता है ।प्ररोह शीर्ष लम्बा होता है।
3. शीर्ष पतला होता है।अपेक्षाकृत चौड़ा होता है।
4. मूल शीर्ष मूल गोप से ढँका होता है ।शीर्ष पर्ण आद्यकों (leaf premordia) से घिरा होता है।
5. पार्श्व उपांग नहीं पाए जाते हैं।पर्ण आधकों (leaf promordia) के रूप में होते हैं ।
6. मूलीय शाखाएँ मूल शीर्ष (root apex) से दूर निकलती है।प्ररोह शाखाएँ कक्षस्थ कलिकाओं (axillary bud) के रूप में शीर्ष विभज्योतक के बहिर्जात (exogenous) निकलती हैं।
7. पर्व एवं पर्वसन्धियाँ (nodes) विकसित नहीं होते हैं ।पर्व एवं पर्वसन्धियाँ (nodes) विकसित होते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का एक-एक मुख्य कार्य बताइए-
(अ) दृढ़ ऊतक
(आ) वेलामेन
(इ) एधा
(ई) जाइलम
(उ) मृदूतक
(ऊ) चालनी नलिका
(ए) विभज्योतक
(ऐ) वुल्लीफार्म कोशिकाएँ
(ओ) खम्म ऊतक
(औ) वाहिका
(अं) द्वार कोशिकाएँ ।
उत्तर:
(अ) दृढ़ ऊतक ( Sclerenchyma ) – पौधों को यांत्रिक सहारा देता है।
(आ) वेलामेन (Velamen ) – वायु से नमी अवशोषित करता है।
(इ) एधा (Cambium) – पौधों की द्वितीयक वृद्धि में भाग लेता है।
(ई) जाइलम ( Xylem ) – पौधों में जल तथा खनिजों का संवहन करता है ।
(उ) मृदूतक (Parenchyma ) – भोजन संचय करता है।
(ऊ) चालनी नलिका ( Sieve tube ) – संश्लेषित भोजन का करती है।
(ए) विभज्योतक (Meristem) – पौधों की वृद्धि में भाग लेना है।
(ऐ) बुल्लीफार्म कोशिकाएँ (Bulliform cells) – अधिक वाष्पोत्सर्जन (transpiration) से रक्षा करना ।
(ओ) खम्भ ऊतक (Pallisade tissue ) – प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) में भाग लेता है।
(औ) वाहिका (Vessel ) – जल एवं खनिजों का संवहन।
(अं) द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) – रन्ध्रों को खोलने एवं बन्द करने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 3.
विभाजन के तल के आधार पर विभज्योतकों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
विभाजन के तल के आधार पर विभज्योतक (Meristematic tissue on the basis of Plane of Division ) – ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

  1. स्थूल विभज्योतक (Mass meristem) – इनकी कोशिकाओं में विभाजन सभी सम्भव तलों में होते हैं। ये विभाजित होकर अनियमित आकार की संरचनाएँ बना लेती हैं, जैसे- भ्रूणपोष में।
  2. पटिट्का विभज्योतक (Plate meristem) – इसकी कोशिकाएँ अपनत तल (anticlinal plane) में विभाजित होती है। विभाजन के पश्चात् ये पट्टिका जैसी रचना बनाती हैं। ये एकपंक्तिक फलक का निर्माण करती हैं।
  3. पट्टी विभज्योतक (Rib meristem) – इन कोशिकाओं में अपनत व परिनत (anticlinal and periclinal) विभाजन होते हैं जिससे अनुदैर्ध्य अक्ष पर पट्टियों का निर्माण होता है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) अष्ठि कोशिकाएँ
(ख) जलरन्ध्र
उत्तर:
(अ) अष्ठि कोशिकाएँ (Stone cells or Scleroids) – अष्ठि कोशिकाएँ समव्यासी (isodimetric) या अनियमित आकृति की निर्जीव कोशिकाएँ हैं जिनकी भित्ति मोटी एवं लिग्निन युक्त होती हैं जिससे इनकी कोशिका गुहा (cell lumen) संकरी हो जाती है। इनकी भित्ति में शाखित या अशाखत गर्त होते हैं।

इन्हें स्क्लीरोटिक कोशिकाएँ ( sclerotic cells) कहते हैं। अष्ठि कोशिकाएँ सख्त बीजों, अष्ठिफलों, के खोल जैसे अखरोट, तथा वृक्षों की छाल के अतिरिक्त द्विबीजपत्री तने व पत्तियों में कार्टेक्स, मज्जा, फ्लोएम में तथा कुछ फलों जैसे नाशपाती नख आदि के गूदे में पायी जाती हैं।

(ब) जलरन्ध्र (Hydathodes) –

रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue ) – यह एक प्रकार का स्रावी (secretory ) ऊतक है जो आवृतबीजियों में बहुतायत से पाया जाता है। इससे एक गाढ़ा या पतला, रंगीन या रंगहीन, चिपिचपा पदार्थ स्त्रावित होता है। यह जल में विलेय या कलिलीय (calloidal ) अवस्था में पड़े कई पदार्थों जैसे- प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, एल्केलॉइडस, एन्जाइम, मण्डकण आदि का मिश्रण है जो हल्का पीला, सफेद, दूधिया या जल के समान हो सकता है ।

इस तरल को रबरक्षीर या लेटेक्स (Latex) कहते हैं। रबर (Hevea) और फाइकस (Ficus ) की कुछ जातियों में मिलने वाले रबरक्षीर से रबर प्राप्त होता है। पपीता में मिलने वाले लेटेक्स में पेपेन (papain) नामक एल्केलॉइड होता है। रबरक्षीरी ऊतकों में मुख्यतः दो प्रकार की रचनाएँ मिलती हैं-
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(अ) रबरक्षीरी को शिकाएँ (Laticiferous cells) – ये
लम्बी शाखा युक्त तथा बहुकेन्द्रीय होती हैं। इनका निर्माण भी विभज्योतकों से ही होता है । जैसे -मदार ( Calotropis ), यूफोर्बिया (Euphorbia) आदि ।

(ब) रबर क्षीरी वाहिकाएँ (Laticiferous vessels) – इनका निर्माण अनेक रबरक्षीरी कोशिकाओं के आपस में मिलने से होता है। ये जीवित तथा बहुकेन्द्रीय होती हैं। इनमें अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं। जैसे – पपीता, पोस्त ।
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2. ग्रन्थिल ऊतक (Glandular Tissue) – इस ऊतक की कोशिकाएँ ग्रन्थिल (Glandular) होती हैं। ये पौधों के बाहरी तथा भीतरी भागों में पाये जाते हैं, इनसे तेल, गोंद, मकरन्द, विकर, श्लेष्म रॉल, टैनिन आदि अनेक पदार्थों का स्त्रावण होता है। स्थिति के आधार पर ये ग्रन्थियाँ दो प्रकार की होती हैं-

(a) बाह्य ग्रन्थि (External Glands) – य बाह्य त्वचा में मिलती है। कभी-कभी ये बाह्य त्वचा पर निकले छोटे-छोटे रोमों पर होती हैं। इन्हें प्रन्थिल रोम कहते हैं। जलरन्ध्र मन्थिल रोम, मकरन्द, प्रन्थियाँ, कीट भक्षी पौधों की पाचक प्रन्थियाँ आदि इसी प्रकार की प्रन्थियाँ होती हैं।

(i) जलरन्ध्र (Hydathodes) – जलरन्ध्र पौधों की पत्तियों के किनारों या शीर्ष पर पायी जाने वाली वे अन्तः मन्थियाँ हैं जिनसे जल का स्रावण होता है। इस ग्रन्थि के सिरे पर एक छिद्र होता है जो द्वार कोशिकाओं (gaurd cells) द्वारा घिरा रहता है रन्ध्र के नीचे वायु गुहा तथा विशेष मृदूतकीय कोशिकाएँ ( epithem) होती हैं जिनके नीचे के अवकाशों में जल भरा होता है। इनके नीचे जाइलम वाहिकाएँ पायी जाती हैं। यह जल बूंद-बूंद करके पत्तियों के किनारों से टपकता रहता है जैसे-टमाटर, घास आदि ।

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(ii) पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands) – अनेक कीटभक्षी पौधों (insectivorous plants) में पाचक प्रन्थियाँ पायी जाती हैं। इनसे पाचक एन्जाइम स्रावित होते हैं जो कीटों को पचाने का कार्य करते हैं। जैसे – ड्रोसेरा ।
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(iii) मकरन्द ग्रन्थियाँ (Nectaries) – मकरन्द प्रन्थियाँ प्रायः अण्डाशय के चारों ओर एक डिस्क के रूप में पायी जाती हैं, जैसे- डिस्कीप्लोरी में ।

(iv) ग्रन्थिल रोम (Glandular hairs) – ये बाह्य त्वचा से निकले छोटे-छोटे रोमों के ऊपर पायी जाती हैं। इनसे गोंद की तरह चिपचिपे पदार्थ का स्त्रावण होता है। जैसे- प्लम्बेगो में ।

(b) आन्तरिक ग्रन्थियाँ (Internal Glands) – ये ऊतकों के अन्दर पायी जाती हैं। नीबू, नारंगी आदि में पायी जाने वाली तेल ग्रन्थि, पाइनस की रेजिन ग्रन्थि पान की म्यूसिलेज, प्रन्थि आदि आन्तरिक प्रन्थि के उदाहरण हैं।

  • तेल ग्रन्थि (Oil glands) – इन प्रन्थियों से सुगन्धित तेलों का स्राव होता है। इस प्रकार की ग्रन्थियाँ नीबू नारंगी आदि में होती हैं।
  • पाइनस की रेजिन ग्रन्थियाँ- गोंद तथा टेनिंन स्रावित करने वाली ग्रन्थियाँ आन्तरिक प्रन्थियों के उदाहरण हैं ।HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर 4

प्रश्न 5.
रबरक्षीरी ऊतक कहां पाए जाते हैं ? इससे स्रावित पदार्थ के लक्षण बताइए ।
उत्तर:
रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous Tissue)
यह एक प्रकार का स्रावी (secretory) ऊतक है। आवृतबीजी पौधों में बहुतायत से पाया जाता है। इससे एक प्रकार का तरल स्रावित होता है। यह गाढ़ा या जलीय होता है। यह जल में घुलनशील या कोलॉयडल अवस्था में पाए जाने वाले पदार्थों जैसे प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, ऐल्केलॉयड्स, एन्जाइम्स, मण्ड कण आदि का मिश्रण होता है यह हल्का पीला, सफेद (white) दूध को तरह या जल की तरह हो सकता है। इस तरलं को रबरक्षीर या लेटेक्स (latex) कहते हैं। हेविया (Hevea) और फाइकस (FYeus) की कुछ जातियों से मिलने वाले रबरक्षीर से रबर (rubber) प्राप्त होता है। अफीम पोस्त पादप से स्रावित रबरक्षीर (latex) ही है।

पपीता (Carica) से मिलने वाले रबरक्षीर में पैपेन (papain) नामक एन्जाइम होता है। रबरक्षीरी कोशिकाएँ। रबरक्षीरी ऊतकों में प्रमुखतः दो प्रकार की संरचनाएँ मिलती हैं रबरक्षीरी कोशिकाएँ (Latex cells)-ये लम्बी, शाखायुक्त तथा बहुकेन्द्रकीय होती हैं। ये विभज्योतकों से बनती हैं, जैसे – मदार (Calotropis), यूफोर्बिया (Euphorbia) आदि में। रबरक्षीरी वाहिकाएँ (Latex vessels)-इनका निर्माण अनेक रबरक्षीर कोशिकाओं के जुड़ने से होता है। ये जीवित एवं बहुकेन्द्रकीय होती हैं। इनमें अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं, जैसे-पपीता (Carica), पोस्त (Poppy), हेविया (Hevea), फाइकस (Ficus sp.) आदि।

प्रश्न 6.
वातरन्ध्र क्या है ? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वार (Lenticel) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप, कार्क एधा (cork cambium) सक्रिय होकर वायुरुद्ध कार्क (cork) बनाती है जिससे जीवित ऊतकों का सम्बन्ध बाह्य बातावरण से समाप्त हो जाता है। कार्क बनने के कारण श्वसन, वाष्पोत्सर्जन आदि जैविक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है। कार्क एधा से बाहर की ओर कुछ स्थानों पर तनों में कार्क के स्थान पर ढीली-ढाली मृदूतकीय कोशिकाएँ बनती हैं इन्हें सम्पूरक कोशिकाएँ कहते हैं। अधिक दबाव के कारण बाह्य त्वचा फट जाती हैं। यह संरचना वातरन्ध्र कहलाती है ।
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द्वितीयक वृद्धियुक्त तने पर वातरन्ध्र-

  • बाह्य स्वरूप,
  • काट में संरचना (आवर्द्धित) ।

वातरन्ध्र द्वारा पौधे के उस अंग तथा बाह्य वातावरण से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इनके द्वारा गैसों का विनिमय तथा वाष्पोत्सर्जन होता है।

प्रश्न 7.
टायलोसिस क्या है ? समझाइए ।
उत्तर:
अन्तःकाष्ठ (Heart wood) एवं टायलोसिस (Tylosis) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरुप नया जाइलम या काष्ठ (wood) बनता है और पुराना जाइलम जो केन्द्र की ओर स्थित होता है व्यर्थ हो जाता है। किसी पुराने वृक्ष के कटे स्तम्भ को देखने पर इसका केंन्द्रीय भाग अन्तः काष्ठ (heart wood) कहलाता है । अन्तः काष्ठ की सभी कोशिकाएँ मृत एवं ज्यादा दृढ़ होती हैं। इस भाग की वाहिकाएँ भी अनेक पदार्थों और रचनाओं में बन जाने के कारण रूंध जाती है। तेल, रेजिन, गोंद आदि पदार्थ इनमें बहुतायत में एकत्रित हो जाने के कारण अन्तः काष्ठ अधिक मजबूत तथा गहरे रंग का हो जाता हैं।

जाइलम मृदूतक से वाहिकाओं के गर्तौ (pits) में होकर गुब्बारे की तरह की रचनाएँ बन जाती हैं, इन्हें टायलोसिस (tylosis) कहते हैं। इनमें उपरोक्त पदार्थ भरे होते हैं। ये वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देते हैं। अन्तः काष्ठ केवल कंकाल का ही कार्य करता है। इसमें किसी प्रकार का संवहन नहीं होता। यह भाग अधिक मजबूत एवं टिकाऊ होने के कारण फर्नीचर एवं अन्य सामान बनाने के काम आता है।

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प्रश्न 8.
मृदूतक तथा दृढ़ ऊतक में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मृदूतक तथा दृढ़ ऊतक में अन्तर (Differences between parenchyma and sclerenchyma)

मृदूतक (Parenchyma)दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma)
1. परिपक्व होकर भी जीवित बनी रहती हैं।परिपक्व होकर मृत हो जाती हैं।
2. कोशिकाएँ हरितलवक युक्त होती हैं इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान पाए जाते हैं ।हरित लवक एवं अन्तराकोशीय स्थान (intercellula spaces ) नहीं पाए जाते हैं।
3. कोशिकाओं की भित्तियाँ पतली तथा सेलुलोस की बनी होती हैं।कोशिका भित्तियाँ लिग्नीकृत होने से स्थूलित हो जाती हैं।
4. इसकी कोशिकाएँ प्रायः समव्यासी होती हैं।कोशिकाएँ समव्यासी या रेशामय होती हैं।
5. कोशिकाएँ जल, भोज्य पदार्थ का संचय करती हैं। इसके अतिरिक्त भोजन निर्माण गैस विनिमय, प्लवन आदि में भाग लेती हैं।यह पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करती हैं।

प्रश्न 9.
वार्षिक वलय क्या होते हैं ? समझाइए ।
उत्तर:
वार्षिक क्लय (Annual rings)-बहुवर्षी (perennial) पौधों के तनों में द्वितीयक जाइलम के स्तरों का निर्माण संकेन्द्रित (concentric) होता है। तने की अनुपस्थ काट में ये स्तर वलयों (rings) के रूप में दिखाई देते हैं जिन्हें वृद्धि वलय कहते हैं। कुछ स्थानों की जलवायु में बहुत अन्तर पाया जाता है जिसके कारण संवहन एधा (vascualr cambium) की सक्रियता बहुत प्रभावित होती है। विश्व के शीतोष्ण (temperate) क्षेत्रों में वर्षभर जलवायु एक जैसी नहीं होती है जिससे केम्बियल सक्रियता भिन्न होती है। शरद ऋतु (winter) में एधा (canbuim) का विभाजन बन्द हो जाता है।

बसन्त ऋतु (spring) में यह अपनी सक्रियता पुनः प्राप्त करके विभाजन करना प्रारम्भ कर देता है। इस ॠतु में वृक्षों की वृद्धि स्पष्ट होती है और III पत्तियों का निर्माण अधिक होता है। इसके लिए जल एवं खाद्य पदार्थों के संवहन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। यह कार्य जाइलम तथा फ्लोएम द्वारा होता है, अत: कैम्बियम की सक्रियता से बड़ी अवकाशों वाली वाहिकाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार बने द्वितीयक जाइलम को स्र्रिंग काष्ठ (spring wood) कहते हैं।

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प्रश्न 10.
रसकाष्ठ एवं अन्तःकाष्ठ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रसकाष्ठ एवं अन्तः काष्ठ (Sap wood and Heart wood) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप बना द्वितीयक जाइलम बहुत क्रियाशील होता है जिसकी ट्रेकियल कोशिकाओं द्वारा पानी विभिन्न भागों में जाता है तथा जाइलम की मृदूतकीय कोशिकाओं (parenchymatous cell) में बहुत कम मात्रा में कार्बनिक भोज्य पदार्थ एकत्रित रहता है। पुराना जाइलम केन्द्र की ओर चला जाता है जिसकी कोशिकाओं का जीवद्रव्य नष्ट हो जाता है तथा उनमें कार्बनिक पदार्थ जैसे- गोंद, टेनिन, तेल आदि जमा हो जाते हैं।

ट्रेकियल कोशिकाओं में टायलोसिस ( tylosis) बन जाते हैं। अतः ये बन्द हो जाती हैं तथा पानी का संवहन नहीं करती हैं। इसे अन्तःकाष्ठ (heart wood) कहते हैं। द्वितीयक जाइलम की जीवित मृदूतकीय कोशिकाएँ जो जल संवहन करती हैं जो हल्के रंग की होती हैं रस काष्ठ (sap wood) कहलाती हैं। वाली वाहिकाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार बने द्वितीयक जाइलम को स्र्रिंग काष्ठ (spring wood) कहते हैं।

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प्रश्न 11.
एक समद्विपार्श्विक पत्ती की आन्तरिक संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समद्विपार्श्विक या एकबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Isobilateral or monocot leaf)-
एक बीजपत्री पादपों में पत्तियाँ प्रायः ऊर्ध्व (erect) होती है। जिससे इनकी दोनों सतहों पर सूर्य का प्रकाश लगभग बराबर मात्रा पड़ता है। इसीलिए इन पत्तियों में दोनों बाह्यत्वचाओं के बीच स्थित पर्णमध्योतक (mesophyll) केवल एक ही प्रकार का होता है। एक प्रारुपिक (Typical) एक बीजपत्री पत्ती की काट का सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन करने पर निम्नलिखित रचनाएँ दिखाई देती हैं-

1. बाह्य त्वचा (Epidermis ) – यह एक कोशिका मोटी परत है जो ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचा ( epidermis ) कहलाती है। दोनों ही बाह्य त्वचाओं में रन्ध्र (stomata) उपस्थित होते हैं तथा दोनों ही के ऊपर मोटी क्यूटिकल का आवरण पाया जाता है। ऊपरी बाह्यत्वचा में दो रन्ध्रों के बीच की कोशिकाएँ बड़ी तथा रंगहीन होती है। इन्हें आवर्ध त्वक कोशिका (bulliform cells) अथवा मोटर सेल्स (motor cells) कहते हैं।

2. पर्णमध्योतक (Mesophyll) – यह दोनों बाह्य कोशिकाओं के बीच पाया जाने वाला ऊतक है। सम्पूर्ण पर्णमध्योतक (mesophyll) केवल स्पंजी पैरन्काइमा का बना होता है। इसकी कोशिकाएँ विभिन्न आकारों वाली होती हैं तथा इनमें पर्ण हरिम (Chlorophyll) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचाओं में स्थित रन्ध्रों के नीचे अधोरन्ध्री कोष्ठ पाए जाते हैं।

3. संवहन पूल (Vascular bundles ) – प्रत्येक संवहन पूल मृदूतकीय पूलाच्छद (parenchymatous bundle sheath) से घिरा हुआ होता है। संवहन पूल विभिन्न आमाप के बहिपोषवाही (collateral) और अवर्धी (closed) होते हैं। बड़े पूलों के ऊपर व नीचे दोनों ओर दृढ़ोतक का समूह होता है। मूलाच्छद एक प्रकार के संचयी ऊतक का कार्य करता है। इसकी कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट तथा मण्ड कण पाए जाते हैं।
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प्रश्न 12.
मूल तथा तने की आन्तरिक संरचना में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जड़ (root) तथा तना (stem) की आन्तरिक संरचना में अन्तर-

जड़ (root)तना (stem)
1. बाबत्वचा को एपीब्लेमा कंहते हैं जिस पर उपचर्म (culticle) का प्रायः अभाव होता है।1. बाहा त्वचा को एपीडर्मिस कहते हैं। इस पर उपचर्म (cuticle) पायी जाती है।
2. मूलीय त्वचा (epiblend) से अनेक एक कोशिकीय रोम निकलते हैं।2. बाहा त्वचा (epidermis) पर बहुकोशिकीय रोम मिलते हैं ।
3. कारेंक्स की कोरिकाएँ हरितलवक (chloroplasts) रहित होती हैं।3. तरुण तनों के काटेंक्स में हरित लवक (chloroplasts) होते हैं किन्तु पुराने तर्नों में नहीं।
4. अन्तस्वचा अंक विकसित होती है।4. अन्तस्वचा (endodermis) कम विकसित। एकबीजपत्री में अनुपस्थित।
5. संवह्न पूल(vascular bundles) अरीय होते हैं।5. संवहन पूल (Vacular bundles) संयुक्त, कोलेटरल या बाइकोलेटरल या कमी-कभी संकेन्द्री (concentric) होते हैं।
6. जाइलम एक्सार्क होता है।6. जाइलम एण्डार्क होता है।
7. मूल शीर्ष की संरचना सरल होती है।7. प्ररोह शीर्ष की संरचना जटिल होती है।

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प्रश्न 13.
एकबीजपत्री पत्ती तथा द्विबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एकबीजपत्री पत्ती तथा द्विबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना में अन्तर-

एकबीजपत्री पत्ती (Monocot leaf)द्विबीजपत्री पती (Dicot leaf)
1. समद्विपार्श्विक (isobilateral) पत्ती होती है।1. पृष्ठाधारी (dorsoventral) पत्ती होती है।
2. इसमें दोनों बाह्य त्वचा समान होती हैं।2. इसमें दोनों बाह्य त्वचा भिन्न-भिन्न होती हैं।
3. रन्ध्र दोनों सतहों पर समान रूप से मिलते हैं।3. रन्ध्र प्रायः निचली बाह्य त्वचा पर मिलते हैं।
4. बाह्म त्वचा में बुल्लीफार्म कोशिकाएँ मिलती हैं।4. नहीं मिलती हैं।
5. दोनों अधिर्मों पर क्यूटिकल समान होती हैं।5. दोनों अधिचमों पर क्यूटिकल समान नहीं होती।
6. पर्णमध्योतक की सभी कोशिकाएँ समान होती हैं।6. पर्णमध्योतक, खम्भ मूदूतक तथा स्पंजी मृदूतक में विभेदित होता है।
7. पर्णमध्योतक में छोटे अन्तरा कोशिकीय स्थान होते हैं।7. स्पंजी मृदूतक में बड़े-बड़े अन्तरा कोशिकीय स्थान होते हैं।
8. इसमें बंडल शीथ की कोशिकाओं में हरित लवक मिल सकते हैं।8. बण्डल शीथ (bundle sheet) कोशिकाओं में हरित लवक नहीं मिलते हैं।
9. इसमें संवहन पूल (V.B.) के ऊपर तथा नीचे केवल दढ़ ऊतक पाया जाता है।9. इसमें मुख्य संवहन पूल (V.B.) के ऊपर तथा नीचे मृदूतक या स्थूलकोण ऊतक अधिचर्म तक पाया जाता है।

प्रश्न 14.
पौधों के तनों से उतरने वाली छाल क्या है ? समझाइए ।
उत्तर:
छाल (Bark) – कार्क एधा के बाहर अपारगम्य कार्क (cork) निर्मित होने से इससे बाहर के सभी ऊतक प्रायः मृत हो जाते हैं। संवहन धा एवं कार्क एधा की सक्रियता के फलस्वरूप तने की मोटाई बढ़ती रहती है। इस प्रकार अन्दर से बाहर की ओर एक दबाव उत्पन्न होता है। इस दबाव को मृत कार्क कोशिकाएँ सहन नहीं कर पाती हैं तो ये तिरक जाती हैं और सूख कर तनों पर खुरंट जैसी रचना बनाती हैं इन स्तरों को छाल (bark) कहते हैं।

प्रश्न 15.
संवहन एथा तथा कार्क एधा में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
संवहन एथा तथा कार्क एधा में अन्तर (Differences between vascular cambium and Cork cambium)-

संवहन एधा (Vascular cambium)करके एथ (Cork camblum)
1. यह जाइलम तथा फ्लोएम के बीच स्थित होती है।1. यह द्वितीयक वृद्धि के समय वल्कुट (cortex) या परिरम्भ कोशिकाओं के पुनः सक्रिय होने से बनती हैं।
2. उत्पत्ति के आधार पर संवहन एधा (vascular cumbium) प्राथमिक तथा अन्तरा पूलीय एधा (intrafascicular cambium) द्वितीयक होती है ।2. उत्पत्ति के आधार पर कार्क एधा (cork cambium) द्वितीयक होती है।
3. इससे केन्द्र की ओर द्वितीयक जाइलम तथा परिधि की ओर द्वितीयक फ्लोएम बनता है।3. कार्क एधा से केन्द्र की ओर द्वितीयक वल्कुट (cortex) तथा परिधि की ओर कार्क बनता है।

प्रश्न 16.
वायु ऊतक क्या होते हैं ? ये किन पौधों में मिलते है ?
उत्तर:
वाय ऊतक (Aerenchyma ) – कभी-कभी मृदूतक कोशिकाओं में जब अपेक्षाकृत बड़े अन्तरकोशिकीय स्थान पाए जाते हैं जिनमें वायु भरी होती है तब इसे वायु ऊतक या एरन्काइमा कहा जाता है। ये जलोद्भिद् पादपों जैसे जलकुम्भी (Eichomia) हाइड्रिला (Hydrilla) कैना (Canna) आदि पौधों में पाए जाते हैं। इनका प्रमुख कार्य इन पादपों को प्लावकता प्रदान करना तथा वातन है।
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प्रश्न 17.
पौधों में वितरण के आधार पर रन्ध्रों के प्रकार बताइए। उत्तर- वितरण के आधार पर न्यों के प्रकार-पत्तियों पर रन्ध्रों के वितरण के आधार पर रन्ध्र निम्न प्रकार के होते हैं।

  1. सेब प्रकार (Apple type ) – रन्ध्र केवल पत्ती की निचली सतह पर मिलते हैं; जैसे सेब, अखरोट आदि। ऐसी पत्ती अधोरन्ध्री कहलाती है।
  2. आलू प्रकार (Potato type)- पत्ती की निचली सतह पर अधिकांश रन्ध्र तथा ऊपरी सतह पर कम रन्ध्र होते हैं; जैसे- आलू, टमाटर, बैंगन आदि ।
  3. जई प्रकार (Oat type) – पत्ती की दोनों सतहों पर रन्ध्र बराबर पाए जाते हैं; जैसे मक्का, जई आदि। ऐसी पत्तियाँ उभयरन्ध्रीय कहलाती हैं।
  4. जल लिली प्रकार (Water lily type) – रन्ध्र केवल पत्ती की ऊपरी सतह पर पाए जाते हैं। निचली सतह पानी में रहती है; जैसे तैरने वाले जलोद्भिद । ऐसी पत्तियाँ अधिरन्ध्री (epistomatic) कहलाती हैं।
  5. पोटेमोजीटान प्रकार (Potamogeton type ) – सामान्यतः पत्तियाँ रन्ध्रहीन होती हैं। यदि रन्ध्र उपस्थित भी हैं तो अक्रियाशील होते हैं; जैसे- पोटेमोजीटान आदि में ।

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प्रश्न 18.
पादप ऊतकों का रेखीय वर्गीकरण दीजिए।
उत्तर:
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(E) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (निबन्धात्मक)

प्रश्न 1.
स्थायी ऊतक क्या हैं तथा ये कितने प्रकार के होते हैं ? साधारण स्थायी ऊतकों की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न जटिल स्थायी ऊतकों का सचित्र वर्णन करें।
अथवा
जाइलम तथा फ्लोएम की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जटिल अतक (Complex Tissues) –
जटिल स्थाई ऊतक अथवा संवहन ऊतक (Complex Permanent or Vascular Tissues) विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित होते हैं। सभी कोशिकाएँ मिलकर किसी कार्य को सामूहिक रूप से सम्पन्न करते हैं। जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (phloem) जटिल स्थाई ऊतक के दो प्रकार हैं। ये पौधों में जल एवं खाद्य पदार्थों के संवहन का कार्य करते हैं, इसलिए इन्हें संवहन ऊतक (vascular tissues) भी कहते हैं।

(A) जाइलम या दारु (Xylem) – यह एक संवहन ऊतक (vascular tissue) है जो पौधों में जल एवं इसमें घुलित खनिज लवणों का संवहन करता है। यह चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है जो निम्न प्रकार है-
1. वाहिनिकाएँ (Tracheids) – ये जाइलम की आधारभूत कोशिकाएँ हैं जो अधिक लम्बी तथा संकरी होती हैं। इनके सिरे नुकीले होते हैं। परिपक्व होने पर ये कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं तथा इनकी भित्तियाँ लिग्नीकृत (lignified) हो जाती हैं। अनुप्रस्थ काट में देखने पर ये कोणीय प्रतीत होती हैं। भित्तियों पर अनेक गर्त (pits) पाये जाते हैं। वाहिनिकाएँ पौधे के लम्बवत् अक्ष के समान्तर रहती हैं तथा नुकीले सिरों पर दूसरी वाहिनिकाओं से जुड़ती हैं। वाहिनिकाएँ पौधों में जल संवहन के साथ-साथ दृढ़ता भी प्रदान करती हैं।

प्रश्न 3.
विशिष्ट ऊतक कितने प्रकार के होते हैं ? रबर क्षीरी ऊतक का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue) – यह एक प्रकार का स्रावी (secretory) एक गाढ़ा या पतला, रंगीन या रंगहीन, चिपिचपा पदार्थ स्रावित होता है। यह जल में विलेय या कलिलीय (calloidal) अवस्था में पड़े कई पदार्थों जैसे-प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, एल्केलॉइडस, एन्जाइम, मण्डकण आदि का मिश्रण है जो हल्का पीला, सफेद, दूधिया या जल के समान हो सकता है। इस तरल को रबरक्षीर या लेटेक्स (Latex) कहते हैं। रबर (Hevea) और फाइकस (Ficus) की कुछ जातियों में मिलने वाले रबरक्षीर से रबर प्राप्त होता है। पपीता में मिलने वाले लेटेक्स में पेपेन (papain) नामक एल्केलॉइड होता है। रबरक्षीरी ऊतकों में मुख्यत: दो प्रकार की रचनाएँ मिलती हैं-

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प्रश्न 4.
आवृत बीजी में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के संवहन पूलों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
का प्राथमिक फ्लोएम के अन्तर्गत दिया गया भाग (IV) का अवलोकन करें।
संवहन पूलों के प्रकार (Types of Vascular Bundles) जाइलम और फ्लोएम की एक दूसरे के सापेक्ष स्थिति के आधार पर संवहन पूल निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
1. बदि:पोषवाही (Collateral or Exophloic) – ऐसे संवहन पूल जिनमें जाइलम व फ्लोएम एक ही त्रिज्या पर स्थित हों तथा जाइलम अन्दर की ओर

  • वर्धी (Open)-जब जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एधा (cambium) उपस्थित होती है, जैसे-द्विबीज पत्री पौधीं में।
  • अवर्धी (Closed) – जब जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एधा अनुपस्थित हो जैसे एकबीजपत्री पौधे।

2. उभय पोषवाही (Bicollateral or Amphiph- loic) – इस प्रकार के संवहन पूलों में फ्लोएम समूह जाइलम समूह के अन्दर व बाहर, दोनों ओर स्थित होते हैं। बाह्य फ्लोएम समूह व जाइलम के बीच स्थित कैम्बियम पट्टी बाहा कैम्बियम तथा आंतरिक फ्लोएम पट्टी आंतरिक कैम्बियम कहलाती है। इस प्रकार के संवहन पूल कुकरबिटेसी, सोलेनेसी आदि कुल के पौधों में पाए जाते हैं।

3. अरीय (Radial) – इन संवहन पूलों में जाइलम व फ्लोएम समूह अलग-अलग त्रिज्याओं (radius) पर एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ऐसे संवहन पूल (vascular boundles) जड़ों में पाए जाते हैं।

4. संकेन्द्री (Concentric) – इन संवहन पूलों (vasclar bundles) में एक प्रकार का संवहन ऊतक दूसरे संवहन ऊतक से पूर्णत: घिरा होता है। ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • दासकेन्द्री (Amphicribal or Hadrocentric) – इन संवहन पूलों का मध्य भाग जाइलम का बना तथा इसके चारों ओर फ्लोएम पाया जाता है।
  • पोषवाह केन्दी (Amphivasal or Lepto- centric) – इन पूलों के मध्य भाग में फ्लोएम होता है तथा इसके चारों ओर जाइलम होता है।
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प्रश्न 5.
एक बीज पत्री जड़ की आंतरिक संरचना का सचित्र वर्णन् कीजिए।
उत्तर:
एकबीजपप्री जड़ (मक्का) की आंतरिक संरचना [Internal Structure of Monocot root (Maize)] एकबीजपत्री जड़ की अनुप्रस्थ काट को सूक्ष्मदर्शी में देखने पर इसमें निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. मूलीय वचा (Epiblema)-जड़ की सबसे बाहरी परत एपीब्लेमा कहलाती है। यह मृदूतकीय कोशिकाओं की बनी होती है। इसमें अनेक एक कोशिकीय मूलरोम (Root hairs) पाये जाते हैं।

2. वस्कुट (Cortex)-यह मृद्तकीय कोशिकाओं (parenchymatous celsl) का बना तथा कई कोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) मिलते हैं। कभी-कभी जब मूलीय त्वचा नृ हो जाती है तब करेंक्स की बाहर की कोशिकाएँ क्यूटिनीकृत (cutinized) होकर एक्सोडर्मिस बनाती है। यह एक रक्षात्मक परत (protective layer) का कार्य करती है।

3. अन्नसवच्चा (Endodermis) – यह रम्भ के चारों ओर एक घेरा बनाती है। इसकी कोशिकाएँ अरीय तथा स्पशरेखीय भित्तियाँ (tegnetial wall) मोटी होती हैं। परन्तु प्रोटो जाइलम के सम्पुख मिलने वाली कोशिकाओं की कोशिका भित्तियाँ पतली होती हैं। इन कोशिकाओं को पाथ कोशिकाएँ कहते हैं।

4. परिरम्घ (Pericycle)-यह मृद्तकीय कोशिकाओं की बनी एक कोशिकीय मोटी परत है। जो एन्डोड़िंस के नीचे मिलती है। कभी-कभी इसमें प्रोटोजाइलम के पास स्क्लेर्क्काइमा कोशिकाएँ या इनके समूह मिलते हैं।

5. संवहन पूल (Vascular bundles)-संवहुन पूल में जाइलम व फ्लोएम समान संख्या में मिलते हैं। पूल संख्या में बहुत अधिक (प्राय: 6 से अधिक) होते हैं। जाइलम एक्सार्क (exarch) होता है। प्रोटोजाइलम व मेटाजाइलम स्पष्ट होते हैं। जाइलम में वलयाकार, सर्पिलाकार, जालिकावत, व गर्ती स्थूलन (thickning) मिलते हैं।

6. पिथ (Pith)- यह केन्द्रीयु भाग में मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। इसमें मण्ड कण मिल सकते हैं। पिथ स्पष्ट व विकसित होता है।
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प्रश्न 6.
द्विबीज पत्री जड़ की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाकर इसकी संरचना का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हिबीजजपत्री जड़ की आन्तरिक सरच्चा (Internal Structure of Dicot Root) –
द्विबीजपत्री पौधे (चने) की जड़ की अनुप्रस्थ काट को सूक्ष्मदर्शी में देखने पर उसमें निम्न संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. मूलीयत्वच्वा (Epiblema) – यह सबसे बाहर स्थित एक कोशिका मोटी परत है। इसकी कोशिकाओं की कोशिका भित्तियाँ पतली तथा ये एक कोशिकीय रोम (unicellular hairs) युक्त होती हैं। इस पर उपचर्म (cuticle) तथा रन्श्रों (stomata) का अभाव होता है।

2. क्क्कुट (Cortex)- यह मूलीय त्वचा के ठीक नीचे पाया जाने वाला कई कोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली, गोल या अण्डाकार अथवा बहुभुजी (polygonal) होती हैं। कोशिकाओं के बीच बड़े-बड़े अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) पाये जाते हैं। कोशिकाओं में स्टार्च कण व अवर्णी लवंक (leucoplasts) मिलते हैं। कभी-कभी मूलीय त्वचा नष्ट हो जाती है तो वल्कुट की कोशिकाएँ क्यूटिनीकृत होकर एक्सोडर्मिस (exodermis) बनाती हैं।

3. अन्नस्चचचा (Endodermis)-वल्कुट की भीवरी परत अन्तस्वचा बनाती है जो स्टील बनाती है। इसकी कोशिकाएं ढोलकाकार होती है। इनकी अराय भित्तियों पर कैस्पेरियन पह्टियाँ उपस्थित होती हैं। प्रोटोजाइलम के सम्मुख स्थित अन्तस्त्वचा (endodermis) की कोशिका भित्तियाँ पाथ कोशिकाएँ कहलाती हैं।

4. परिरम्म (Pericycle) – यह मृदूतकीय कोशिकाओं (parenchymatous cells) का बना एक कोशा मोटा स्तर है जो अन्तस्वचा (endodermis) के ठीक नीचे पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली (thin walled) होती हैं।

5. संवहन पूल (Vascular bundles)-संवहन पूल अरीय (radial) होते हैं अर्थात् जाइलम तथा फ्लोएम एकांतर अर्धव्यासों पर मिलते हैं। जाइलम एक्सार्क होता है। प्रोटोजाइलम केन्द्र से दूर तथा मेटाजाइलम केन्द्र की ओर मिलता है। संवहन पूलों की संख्या 2 से 6 तक होती है। जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एथा (cambium) का अभाव होता है। द्वितीयक वृद्धि के समय ऐधा (cambium) का निर्माण हो जाता है। जाइलम तथा फ्लोएम के बीच में चारों ओर पाया जाने वाला ऊतक संयोजी ऊतक (connective tissue) कहलाता है।

6. मग्दा (Pith)-जड का केन्द्रीय भाग पिथ (pith) कहलाता है तथा यह बहुत कम विकसित होता है, इसकी कोशिकाएँ मृदूतकीय होती हैं।
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प्रश्न 7.
एक बीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
एकबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना (Anatomy of Monocot Stem) – एकबीजपत्री तने (मक्का) की आन्तरिक संरचना में निम्नलिखित भाग दिखाई देते हैं-
1. बहु त्वचा (Epidermis) – यह. सबसे बाहरी परत. है, जो उपचर्म (cuticle) से ढँकी रहती है। इसमें रोम का अभाव होता है। कोमल तनों की बाह्म त्वचा में रन्ध्र (stomata) मिल सकते हैं।

2. अघस्तचा (Hypodermis) – यह दृढ़ोतकी कोशिकाओं की बनी दो-तीन कोशा मोटी परत है। इसमें अन्तराकोशिकीय स्थान अनुपस्थित होते हैं। यह पौधे को यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।

3. भरण ऊतक (Ground Tissue) – यह अधस्तचा से लेकर तने में केन्द्र तक फैला होता है। इसकी कोशिकाएँ मृदूतकीय (parencymatous) तथा अन्तरा कोशिक स्थान युक्त होती हैं। भरण ऊतक में संवहन पूल विखेे रहते हैं। कुछ पौहों जैसे-ोहुँ, घासों में भरण ऊतक का केन्द्रीय भाग खोखला हो जाता है जिसे मज्जा गुहा (pith cavity) कहते हैं।

4. संवहन पूल (Vascular bundles) – संवहन पूल अधिक संख्या में मिलते हैं जो भरण ऊतक में बिखे हुए पाये जाते हैं। संवहन पूल संयुक्त (conjoint), कोलेटरल (collateral) तथा बन्द (closed) होते हैं। प्रत्येक पूल दृणोतकीय कोशिकाओं की बनी एक बलय से घिरा होता है जिसे बण्डल छाद (bundle sheath) कहते हैं।

जाइलम ‘y’ के आकार में व्यवस्थित होते हैं। बड़े आकार व गर्त वाली मेटाजाइलम की दो वाहिकाएँ ‘ y ‘ की दो भुजाएँ बनाती हैं। एक या दो वाहिकाएँ का आधार बनाती हैं। प्रोटोजाइलम के पास कुछ वाहिनिकाओं (trachieds) की भित्तियाँ गलकर एक बड़ी गुहा बनाती हैं। फ्लोएम चालनी नलिका, संहचर कोशिकाओं व अन्य तत्वों से मिलकर बनता है। फ्लोएम का बाहरी टूटा हुआ भाग प्रोटोफ्लोएम तथा भीतरी भाग मेटाफ्लोएम कहलाता है। इसमें पिथ का अभाव होता है।
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प्रश्न 8.
द्विबीजपत्री तने की आंतरिक संरचना का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
द्विबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना (Anatomy of dicot stem) – द्विबीजपत्री तने (सूर्यमुखी का तना) की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. बाह़ त्वचा (Epidermis)- यह सबसे बाहरी एक स्तरीय परत है। यह उपचर्म (cuticle) से ढकी होती है। इसमें कहीं-कहीं पर बहुकोशिकीय रोम तथा रन्प्र (stomata) मिलते हैं।

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2. वस्कुट (Cortex)- यह बाह्य तचा के ठीक नीचे स्थित होता है इसे तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है-
(a) अधस्त्वचा (Hypodermis)-यह कोलेन्काइमी कोशिकाओं से बना 4-5 कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ जीवित एवं हरितलवक (chloroplasts) युक्त होती है। कोशिका भित्तियाँ कोनों पर पेक्टिनीकृत सेल्युलोस से स्थूलित होती हैं।

(b) सामान्य काटेंक्स (General Cortex) – यह अधस्तचा तथा अन्तस्तचा के बीच का भाग है। यह मृदुतकीय कोशिकाओं का बना काफी चौड़ा भाग है। इसकी कोशिकाए पतली कोशिकाभित्ति वाली, गोल या अण्डाकार एवं अन्तराकोशिकीय स्थान युक्त होती हैं। कार्टेक्स में कहीं-कहीं रेजिन नलिकाएँ (Rasin canals) पायी जाती हैं।
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(c) अन्तस्वची (Endo- dermis) – यह वल्कुट की सबसे भीतरी परत है जो वल्कुट को स्टील से अलग करती है । इसकी कोशिकाएँ ठोलकनुमा (barrelshaped) एवं स्टार्चयुक्त होती हैं।

3. स्टील (Stele) – अन्तस्ववचा (endodermis) से घिरा मध्य भाग स्टील कहलाता है। यह परिरम्भ (pericycle), पिथ, पिथ किरणें एवं संवहन पूलों (vascular bundle) से मिलकर बनता है ।
(i) परिरम्भ (Pericycle) – यह स्क्लेर्काइमेटस तथा पैरन्काइमेटस कोशिकाओं से मिलकर बनता है। स्क्लेर्काइमा के समूह अन्तस्वचा एवं संवहन पूल के बीच मिलते हैं। इन समूहों का संबंध संवहन पूल के फ्लोएम से होता है। इस समूह को बास्ट तन्तु (bast fibre) या कठोर बास्ट (hard bast) भी कहते हैं।

(ii) पिथ किरणें (Pith rays) – यह दो संवहहन पूलों के मध्य मृदृतकीय, बड़ी बहुभुजी तथा लम्बी कोशिकाओं से बनी होती हैं।

(iii) पिथ (Pith)-यह तने के मध्य भाग में मिलता है जो मृदूतकी, गोल या बहुभुजी कोशिकाओं (polygonal cells) का बना होता है। इसकी कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिक अवकाश (intercellular spaces) मिलते हैं।

(iv) संवहन पूल (Vascular bundles) – प्रत्येक संवहन पूल जाइलम, फ्लोएम तथा कैम्बयम का बना होता है। संवहन पूल संयुक्त कोलेटराल खुले तथा एक वलय (ring) में व्यवस्थित होते हैं।

प्रश्न 9.
परिचर्म क्या है ? इसमें कितने प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं तथा इनका निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर:
नमस्कार दोस्तों हमारा आज का प्रश्न है परीक्षण किया है री बीज पत्री तने में परिचय कैसे बनता है तो देखते हैं दोस्तों सर्वप्रथम परीक्षण होता क्या है दोस्तों यह पौधों में पाया जाता है यानी कि यह पौधों में कार्य था कार्य दैनिक दोस्तों कोर्ट कैंबियम की जीवित मृत कोशिका से परिचय बनता है दोस्तों को और कोई था यानी कि कोर को कम दिया कि जो जीवित मृत्यु तक कोशिका से ही परिचय का निर्माण होता है

अधिकतर सुदी बीज पत्री तने में परिचय बनता कैसे हैं तो दोस्तों को रिझाया कागज इसे कहते हैं यानी कि कोर्ट कैंबियम यह कोर को कैंबियम की कोशिका जो होते हैं वह कोशिका विभाजित होकर परिधि की ओर इसकी और परिधि की तरफ या परिधि की ओर जो कोशिका का निर्माण करती है खुशी को बनाती हैं वे से बुरी युक्त होता है यानी कि शबुरी नाइस होती है और इससे बुरी नियत कोशिका से

बना यह स्तर कोर्ट या इसे से लंबी कहते हैं और कोर कैदा यानी कि कोर्ट को पीएम से भीतर की ओर जो बनने वाली मरुधर की कोशिका होती हैं वह कोशिका भित्ति एक्वल कुटिया सिलोडर्म का निर्माण करती है फिर ऑर्डर में बनाती हैं और से लाभ तथा यानी कि कोर्ट और कोर्ट कैंबियम और इसके अतिरिक्त दीदी अक्कलकोट यह सब मिलकर परिजनों का निर्माण करती हैं परिजनों को बनाती हैं तो दोस्तों हमने देखा कि और कोई ध्यान की कोर को हम भी उनकी जीवित मृत कोशिका से परिचय धन्यवाद दोस्तों आशा करता हूं आपको यह उत्तर जरूर समझ में आया होगा ।

प्रश्न 10.
नामांकित चित्रों की सहायता से द्विबीजपत्री पौधे की जड़ में पायी जाने वाली द्वितीय वृद्धि का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
द्वितीयंक वृद्धि (Secondary growth)-शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अतः शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विवीजपत्री आवृतबीजी तथा अनावृतबीजी काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं।

जाइलम और पलोएम.के मध्य विभज्योतक को संवहन एघा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं। द्विबीजपत्री. जड़ में द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth in Dicot Root) जड़ों में प्राथमिक एधा (cambium) नहीं होती है। द्विबीजपत्री जड़ों में द्वितीयक एधा दो प्रकार की होती है ।
I. संवहन एधा (vascular cambium) तथा
II. कॉर्क कैम्बियम (cork cambium)

I. संवहन एधा का निर्माण तथा क्रियाशीलता (Formation and Activity of Vascular Camblum).
पौधे की आयु एक वर्ष हो जाने के पश्चात् अरीय संवहन बण्डल में फ्लोएम के नीचे स्थित मर्दूतकीय संयोजक ऊतक.को कोशिकाएँ विभज्योतकी (meristematic) होकर वक्राकृति द्वितीयक संवहन एथा (secondary vascular cambium) बनाती हैं। आदिदारु (protoxylem) के बाहर स्थित परिरम्भ की कोशिकाएं भी विभज्योतको (meristematic) होकर संवहन एधा बनाती हैं। इसके फलस्वरूप द्वितीयक संवहन एघा का एक लहरदार वलय बन जाता है।

II कॉर्क कैम्बियम का निर्माण और क्रियाशीलता (Formation and Activity of Cork Cambium)
द्वितीयक संवहन ऊतक बनने के कारण बाहरी ऊतकों पर दबाव बढ़ जाता है तो प्रायः परिरम्भ की कोशिकाओं का एक घेरा सक्रिय होकर विभज्योतक हो जाता है। इसके फलस्वरूप कॉर्क एया (cork cambium) बनती है।

कॉर्क एधा कोशिकाओं के विभाजन से बाहर की ओर कॉर्क (cork) और केन्द्र की ओर द्वितीयक कॉर्टेक्स (secondary cortex) का निर्माण होता है।. कॉर्क की कोशिकाएँ सुबेरिनयुक्तं (suberinized) होती हैं। अत: अपारगम्य कॉर्क के बाहर के सभी ऊतक (वल्कुट, अन्तस्त्वचा, बाह्यत्वचा) मृत हो जाते हैं। मृत ऊतक छाल (bark) बनाते हैं। द्वितीयक कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ मृदूतकीय तथा जीवित होती हैं। कॉर्क एधा से स्थान-स्थान पर वांतरन्ध्र lenticels) बनते हैं।

प्रश्न 11.
मृदूतक, स्थूल कोण ऊतक तथा दृढोतक का तुलनात्मक वर्णन कीजिये ।
उत्तर:
सरल ऊतक (Simple Tissues) –
1. मृदूतक या पैरन्काइमा (Parenchyma) – यह ऊतक पौधे के लगभग सभी अंगों का आधार बनाता है। यह मूल तथा स्तम्भों के कार्टेक्स (cortex), पिथ (pith), परिरम्भ (pericyle) में पत्तियों के पर्णमध्योतक (mesophyll) में तथा फलों के गूदे तथा बीजों के भ्रूणपोष में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह प्राथमिक व द्वितीयक संवहन ऊतक व मज्जा किरणों (medullary rays) का भी प्रमुख घटंक है। यह ऊतक पतली कोशिका भित्ति वाली जीवित कोशिकाओं का बना होता है। कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है। कोशिकाएँ समव्यासी (isodiametric), जैसे-गोल, अण्डाकार या कोणीय होती हैं।

कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular space) पाए जाते हैं। मांसल पौधों की पत्तियों में इनके बीच ये स्थान नहीं पाए जाते हैं। मृदूतकीय कोशिकाओं में एक बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) होती है। मृदूतक विभिन्न आवास रुपों तथा विशिष्ट कार्यों से सम्बद्ध पादप अंगों में विभेदन दर्शाते हैं। जलीय पौधों के मृदूतक में अन्तरा कोशिक अवकाश सबसे अधिक विकसित होते हैं। इनमें पौधे के सभी अन्तराकोशिक अवकाश मिलकर एक सरल वातन तन्त्र (aeriation system) बनाते हैं। इस ऊतक को वायूतक (aerenchyma) कहते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर

यह पौधों को उत्लावकता (buyoncy) प्रदान करता है । जिन मृद्तरकों में पर्णहरिम (chlorophyll) उपस्थित होता है, हरित ऊतक (chlorenchyma) कहलाते हैं। जब मृदूतक विभिन्न पदार्थों के संम्रह का कार्य करते हैं तो ये संचयी पैरेन्काइमां (storage parenchyma) कहलाते हैं। कुछ मृदूतकी कोशिकाएँ अनेक प्रकार के पाचक विकर (digestive enzymes) स्रावित करने लगती हैं, तब इन्हें इडियोब्लास्ट (Idioblasts) कहते हैं।मृदूतक के कार्य (Functions of Parenchyma)

  • ये भोज्य पदार्थों एवं जल का संप्रह करते हैं।
  • शाकीय पौध़ों में इनकी स्फीतिता (turgidity) यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
  • इनकी कोशिकाओं में जब हरित लवक (chloroplasts) उत्पन्न हो जाते हैं तब इन्हें क्लोरन्काइमा (chlorenchyma) कहते हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) में भाग लेते हैं।
  • जब इनकी कोशिकाओं के बीच बड़े-बड़े वायु आशय (air spaces) बन जाते हैं तो इन्हें एन्काइमा (aerenchyma) कहते हैं और ये जलीय पौधों को प्लावकता (buyoncy) प्रदान करते हैं।
  • कभी-कभी इनकी कोशिकाएँ विभाजित होकर घाव भरने का कार्य करती हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर 17

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन  Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

(A) बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर देने के लिए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-
1. हैविर्सियन नलिकाएँ उपस्थित होती हैं-
(A) अस्थियों में
(B) उपास्थियों में
(C) स्नायुओं में
(D) यकृत में
उत्तर:
(A) अस्थियों में

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2. मेड्युला ऑब्लोंगेटा उत्पन्न होती है-
(A) एक्टोडर्म से
(B) मीसीडर्म से
(C) एण्डोडर्म से
(D) एक्टोमीसोडर्म से
उत्तर:
(A) एक्टोडर्म से

3. विडर्स केनाल पायी जाती है-
(A) मेढ़क के वृषणों में
(B) मेंढ़क के वृक्क में
(C) स्तनधारियों के वृक्क में
(D) स्तनधारियों के अण्डाशय से
उत्तर:
(B) मेंढ़क के वृक्क में

4. केंचुए का अत्यन्त विशेष लक्षण है-
(A) आंत्र में आंत्र वलन (Typhlosole) पंचित भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र में वृद्धि करता है।
(B) देहभित्ति में धँसी S-आकार की सीटी (setae) शत्रुओं के विरुद्ध सुरक्षात्मक हथियार की भाँति प्रयोग होते हैं।
(C) इसमें एक लम्बा, पृष्ठीय नलिकाय हृदय होता है
(D) अण्डों का निषेचन शरीर के भीतर होता है।
उत्तर:
(A) आंत्र में आंत्र वलन (Typhlosole) पंचित भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र में वृद्धि करता है।

5. सामान्य कॉकरोच के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है ?
(A) ऑक्सीजन का परिवहन रुधिर में हीमोग्लोबिन द्वारा होता है।
(B) नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ यूरिया होता है।
(C) भोजन को मण्डिबल्स तथा पेषणी द्वारा पीसा जाता है
(D) कोलन से निकलने वाली मैल्पीधियन नलिकाएँ उत्सर्जी अंग होते. हैं।
उत्तर:
(C) भोजन को मण्डिबल्स तथा पेषणी द्वारा पीसा जाता है

6. सीरम होता है-
(A) फाइब्रोजन रहित रुधिर
(B) कणिका रहित लसीका
(C) कणिका एवं फाइब्रिनोजन रहित रुधिर
(D) लसीका
उत्तर:
(A) फाइब्रोजन रहित रुधिर

7. निम्नलिखित में से कौन W.BCs नहीं है-
(A) थ्रोबोसाइट्स
(B) लिम्फोसाइट्स
(C) इयोसिनोफिल्स
(D) बेसोफिल्स
उत्तर:
(A) थ्रोबोसाइट्स

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8. मेढ़क के हृदय में हृद पेशियाँ कुछ तन्तुओं द्वारा निर्मित होती हैं जिन्हें कहते हैं-
(A) पुरकिंजे तंतु
(C) टीलोडेन्ड्रिया
(B) पेशीय सूत्र
(D) पेशी स्तम्भ
उत्तर:
(A) पुरकिंजे तंतु

9. पैरिप्लेनेटा अमेरिकाना के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से सही कथन का चुनाव कीजिए-
(A) इसमें पृष्ठीय तंत्रिका तंत्र होता है, जिसमें खण्डीय रुप से व्यवस्थित गैलिया लम्बवत संयोजकों के एक युग्म द्वारा जुड़े रहते हैं
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागेनुमा गुदा शुकु पाए जाते हैं
(C) इसमें मध्यांत्र तथा पश्चांत्र के जोड़ पर 16 अत्यधिक लम्बी मैल्पिधिअन नलिकाएँ पायी जाती हैं।
(D) भोजन को पीसने का कार्य केवल मुखांगों द्वारा ही किया जाता है।
उत्तर:
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागेनुमा गुदा शुकु पाए जाते हैं

10. सुमेलित कीजिए-
(A) लार वाहिकाओं का आन्तिरक स्तर – रोमाभि एपीथीलियम
(B) मुख गुहा की नम सतह – प्रन्थिल एपीथीलियम
(C) वृक्क नलिका का नलिकाकार भाग – घनाकार एपीथीलियम
(D) श्वशनिकाओं की आन्तरिक सतह – शल्की एपीथीलियम
उत्तर:
(C) वृक्क नलिका का नलिकाकार भाग – घनाकार एपीथीलियम

11. सुमेलित युग्म का चयन कीजिए-
(A) कंडरा – विशिष्टीकृत संयोजी ऊतक
(B) वसीय ऊतक सघन संयोजी ऊतक
(C) एरियोलर ऊतक
(D) ढीला संयोजी ऊतक
उत्तर:
(C) एरियोलर ऊतक

12. तिलचट्टे की ग्रन्थिल कोशिकाएँ अपने नाइट्रोजनी वज्यों को हीमोलेम्फ मेंकिस रूप में नियुक्ति करता है ?
(A) अमोनिया
(B) पोटैशियम यूरेट
(C) यूरिया
(D) कैल्शियम कार्बोनेट
उत्तर:
(B) पोटैशियम यूरेट

13. नर कॉकरोच में शुक्राणु नर जननतन्त्र के किस भाग में संग्रहित रहते हैं ?
(A) शुक्राशय
(B) छत्रक मन्थि
(C) वृषण
(D) शुक्रवाहिनी
उत्तर:
(A) शुक्राशय

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14. कौन सा ऊतक अपनी स्थिति से सही सुमेलित है-
उत्तर:
उतक
(A) एरियोलर ऊतक
(B) अन्तर्वर्ती एपीथीलियम
(C) घनाकार एपीथीलियम
(D) चिकनी पेशियाँ
(D) चिकनी पेशियाँ

स्थिति
कंडरा
नाक का शीर्ष
आमाशय स्तर
आंत्र भित्तियाँ

15. मेढक का हृदय शरीर से बाहर निकालने पर कुछ समय तक धड़कता रहता है। निम्न कथनों में सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन कीजिए-
(I) मेंढक का हृदय पेशीजेनकि होता है।
(II) मेढक में कोरोनरी परिसंचरण नहीं पाया जाता है
(III) हृदयमायोजेनिक प्रकृति का होता है।
(IV) हृदय स्वतः उत्तेजित होता है
(A) केवल III
(B) केवल IV
(C) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:

16. नर मेढक में शुक्राणुओं के स्थानान्तरण के उचित मार्ग का चयन कीजिए-
(A) वृषण → शुक्रवाहिकाएँ → वृक्क → विडर नाल → मूत्रजनन बाहिनी → अवस्कर
(B) वृषण → विडर नाल → वृक्क → शुक्राशय → मूत्रजनन वाहिनी → अवस्कर
(C) वृषण → शुक्र वाहिकाएँ → वृक्क → शुक्राशय → मूत्रजनन → वाहिनी → अवस्कर
(D) वृषण → शुक्रवाहिकाएँ → विडरनाल → मूत्रवाहिनी → अवस्कर
उत्तर:
(D) वृषण → शुक्रवाहिकाएँ → विडरनाल → मूत्रवाहिनी → अवस्कर

17. तिलचट्टे की आहारनाल में मुख से आरम्भ कवक अंगों के उचित क्रम का चयन करों-
(A) प्रसनी → प्रसिका → पेषणी → इलियम → इलियम → अन्नपुट → कोलन → रेक्टम
(B) मसनी → प्रसिका → इलियम → अन्नपुट → पेषणी → कोलन → ऐक्वेम
(C) मसनी → प्रसिका → अन्नपुट → पेषणी → इलियम → कोलन → रैक्टम
(D) प्रसनी → प्रसिका → पेषणी → अन्नपुट → इलियम → कोलन → रैक्टम
उत्तर:
(C) मसनी → प्रसिका → अन्नपुट → पेषणी → इलियम → कोलन → रैक्टम

(B) अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तरल संयोजी ऊतकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
रुधिर तथा लसीका (blood and lymph) तरल संयोजी ऊतक

प्रश्न 2.
संयोजी ऊतक का क्या कार्य है ?
उत्तर:
संयोजी ऊतक शरीर के विभिन्न ऊतकों व अंगों को परस्पर जोड़ने का कार्य करता है।

प्रश्न 3.
पेशियाँ कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर:
पेशियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

  • रेखित पेशियाँ (Striated muscles),
  • अरेखित पेशियाँ (Cardiac muscles),
  • हृदयी पेशियाँ (Unstriated muscles)।

प्रश्न 4.
मूत्राशय में कौन-सी पेशी पायी जाती है?
उत्तर:
मूत्राशय में अरेखित पेशी पायी जाती है।

प्रश्न 5.
आधारभूत संयोजी ऊतक कौन-सा है?
उत्तर:
अन्तराली उत्तक आधारभूत संयोजी ऊतक है।

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प्रश्न 6.
रुधिर प्लेटलेट्स का कार्य बताइए।
उत्तर:
रुधिर प्लेटलेट्स रक्त का थक्का (blood ctot) जमाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो प्रकार की उपास्थियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. काचाभ उपास्थि (hyline cartilage),
  2. कैल्सीफाइड उपास्थि (calcified cartilage) ।

प्रश्न 8.
न्यूरॉन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
तन्त्रिका ऊतक की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को न्यूरॉन कहते हैं।

प्रश्न 9.
न्यूरॉन के भागों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. साइटोन (cyton),
  2. डेन्ड्रोन (dendron),
  3. ऐक्सोन (axon)।

प्रश्न 10.
सिनैप्स किसे कहते हैं ?
उत्तर:
दो न्यूरॉन्स के पारस्परिक क्रियात्मक सम्बन्ध को (जुड़े रहने को) सिनैप्स (युग्मानुबंधन) कहते हैं।

प्रश्न 11.
केंचुए का जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
केंचुए का जन्तु वैज्ञानिक नाम फेरेटिमा पोस्युमा (Phertima posthuma) है।

प्रश्न 12.
क्लाइटेलम (पर्याणिका) कौन-से खण्डों से मिलकर बनी होती है ?
उत्तर:
क्लाइटेलम केंचुए के 14वें, 15वें व 16वें खण्डों से मिलकर बनी होती है।

प्रश्न 13.
केंचुए में श्वसन किसकी सहायता से होता है?
उत्तर:
केंचुए में श्वसन त्वचा की सहायता से होता है।

प्रश्न 14
केंचुए में रक्त परिसंचरण-तन्त्र किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
केंचुए में बन्द (closed) प्रकार का रक्त परिसंचरण तन्त्र होता

प्रश्न 15.
केंचुए में कितने जोड़ी वृषण पाये जाते हैं?
उत्तर:
केंचुए में दो जोड़ी वृषण 10वें एवं 11 वें खण्डों में पाये जाते हैं।

प्रश्न 16.
केंचुए में क्लाइटेलम का क्या कार्य है ?
उत्तर;
क्लाइटेलम जनन काल में कोकून (cocoon) का निर्माण करती

प्रश्न 17.
केंचुए में निषेचन कहाँ होता है?
उत्तर:
केंचुए में निषेचन कोकून के अन्दर होता है।

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प्रश्न 18.
केंचुए में कितने जोड़ी शुक्रग्राहिकाएँ (स्पर्मचीकी) होती हैं?
उत्तर:
केंचुए में चार जोड़ी शुक्रमाहिकाएँ (स्पर्मेथीकी) होती हैं।

प्रश्न 19. केंचुए में मिलने वाले वृक्ककों नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. पट्टीय वृक्कक,
  2. प्रसनी वृक्कक,
  3. अध्यावरणीय वृक्कक।

प्रश्न 20.
केंचुए में सबसे बड़ी व प्रमुख रक्तवाहिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठ रुधिर वाहिका (dorsal blood vessel)।

प्रश्न 21.
केंचुए में कुल कितने जोड़ी हृदय पाये जाते हैं?
उत्तर:
केंचुए में कुल चार जोड़ी हृदय (heart) पाये जाते हैं।

प्रश्न 22.
केंचुए में भ्रूण का विकास कहाँ होता है?
उत्तर:
केंचुए में भ्रूण का विकास कोकून (cocoon) में होता है।

प्रश्न 23.
केंचुए में शुक्राणुओं का परिपक्वन कहाँ होता है?
उत्तर:
केंचुए में शुक्राणुओं का परिपक्वन शुक्राशयों (seminal vescicles) में होता है।

प्रश्न 24.
कॉकरोच का जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
कॉकरोच का जन्तु वैज्ञानिक नाम पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना है।

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प्रश्न 25.
कॉकरोच के एन्टीना का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
कॉकरोच के एन्टीना स्पर्शमाही तथा घ्राणमाही होते हैं।

प्रश्न 26.
कॉकरोच के मुखांगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. लेब्रम
  2. मैण्डीबल्स
  3. मैक्सिली
  4. लोबियम
  5. हाइपोफेरिंक्स ।

प्रश्न 27.
मैण्डीबल्स का कार्य बताइए।
उत्तर:
मैण्डीबल्स भोजन को कुतरने व चबाने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 28.
कॉकरोच में मैलपीधी नलिकाओं का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
उत्सर्जन (excertion) का कार्य करना ।

प्रश्न 29.
हिपेटिक सीका का कार्य बताइए।
उत्तर:
पाचन एन्जाइम का स्रावण करना।

प्रश्न 30.
हीमोसील क्या होती है?
उत्तर- रुधिर से भरी हुई देहगुहा को हीमोसील ( haemocoel) कहते

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प्रश्न 31.
कॉकरोच में रुधिर परिसंचरण किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
कॉकरोच में खुला हुआ रुधिर परिसंचरण होता है।

प्रश्न 32.
हीमोलिम्फ किसे कहते हैं?
उत्तर:
रुधिर एवं प्रगुही द्रव (coelomic fluid) के मिलने से बने द्रव को हीमोलिम्फ कहते हैं।

प्रश्न 33.
कॉकरोच में कितने जोड़ी श्वास रन्ध्र होते हैं?
उत्तर:
कॉकरोच में 10 जोड़ी श्वास रन्ध्र ( spiracles) होते हैं।

प्रश्न 34.
कॉकरोच में वृषण कहाँ स्थित होते हैं?
उत्तर:
नर कॉकरोच में एक जोड़ी वृषण चौथे से छठे उदरीय खण्डों के पार्श्व में व्यवस्थित होते हैं।

प्रश्न 35.
गुदशूक किस कॉकरोच में पाये जाते हैं ?
उत्तर:
गुदशूक (anal circi) केवल नर कॉकरोच में पाये जाते हैं।

प्रश्न 36.
शुक्राणुधर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मैथुन से पूर्व शुक्राशय की प्रत्येक नलिका के शुक्राणु परस्पर चिपककर जो रचना बनाते हैं, उसे शुक्राणुधर कहते हैं।

प्रश्न 37.
अर्थक अवस्था किसमें पायी जाती है ?
उत्तर:
अर्धक (nymph) अवस्था कॉकरोच में पायी जाती है। अर्भक वयस्क के समान दिखते हैं।

प्रश्न 38. कॉकरोच में अण्डाशय कहाँ स्थित होते हैं ?
उत्तर- मादा कॉकरोच में 2 अण्डाशय होते हैं जो उदर के दो से छठे खण्ड के पार्श्व में स्थित होते हैं।

प्रश्न 39.
कॉकरोच के अण्डाशय कैसे होते हैं ?
उत्तर:
कॉकरोच का प्रत्येक अण्डाशय आठ अण्डाशयी नलिका या अण्डाशयों का बना होता है जिसमें परिवर्धित हो रहे अण्डों की एक श्रृंखला होती है।

प्रश्न 40.
कॉकरोच में अण्डकवच का क्या महत्व है ?
उत्तर:
अण्डकवच (ootheca) अण्डाणुओं की सुरक्षा करता है।

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प्रश्न 41.
सामान्य भारतीय मेंढक का वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
सामान्य भारतीय मेंढक का वैज्ञानिक नाम राना टिमीना है।

प्रश्न 42.
मेंढक के दो शारीरिक अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:

  1. मेंढक का शरीर धारारेखित होता है। पश्चपादों में पाद जाल होता है।
  2. त्वचा द्वारा श्वसन करता है। इसकी त्वचा पतली, नम व लसलसी (चिकनी होती है। इसमें रंग परिवर्तन की क्षमता होती है।

प्रश्न 43.
मेंढक में रंग परिवर्तन की क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
मेंढक में रंग परिवर्तन की क्रिया को अनुहरण (मिमिक्री) कहते हैं।

प्रश्न 44.
मेंढक में किस प्रकार की जिह्वा पायी जाती है?
उत्तर:
मेंढक में जिह्वा आगे से जुड़ी हुई तथा पिछले सिरे पर स्वतन्त्र तथा द्विपालित होती है।

प्रश्न 45.
शीत एवं ग्रीष्म निष्क्रियता ( aestivation) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मेंढक असमतापी जन्तु है। वह सर्दी तथा गर्मी से बचने के लिए कीचड़ में धंस जाता है। इस समय यह शान्त पड़ा रहता है। इसे क्रमशः शीत निष्क्रियता (hibernation) तथा प्रीष्म निष्क्रियता ( aestivation) कहते हैं।

प्रश्न 46.
शीत निष्क्रियता एवं ग्रीष्म निष्क्रियता में मेंढक श्वसन किस प्रकार करता है ?
उत्तर:
शीत निष्क्रियता ( Hibernation) तथा मीष्म निष्क्रियता (Astivation) में मेंढक त्वचीय श्वसन करता है।

प्रश्न 47.
मेंढक में रक्त परिसंचरण तन्त्र किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
मेंढक में रक्त परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है।

प्रश्न 48.
मेंढक में आहारनाल तथा पश्च भागों से शिराएँ रुधिर एकत्र करके यकृत तथा वृक्कों में पहुंचाती हैं। इस तन्त्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
इन तन्त्रों को क्रमशः यकृत निवाहिका तन्त्र ( hepatic portal system) एवं वृक्कीय निवाहिका तन्त्र (renal portal system) कहते हैं।

प्रश्न 49
हीमोग्लोबिन क्या होता है?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन लाल रंग का श्वसनरंजक ( respiratory pigment) है जो लाल रुधिर कणिकाओं में पाया जाता है। इसमें ग्लोबिन (globin) नामक प्रोटीन तथा ‘हीम’ (heam) नामक वर्णक पदार्थ संयुक्त होते । यह श्वसन में ऑक्सीजन का वहन करता है।

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प्रश्न 50.
लसीका का रंग सफेद क्यों होता है?
उत्तर:
क्योंकि लसीका में लाल कणिकाएँ नहीं होती हैं, केवल श्वेत रक्त कणिकाएँ उपस्थित होती हैं। इसलिए लसीका का रंग सफेद होता है।

प्रश्न 51.
मेंढक का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ क्या है ?
उत्तर:
मेंढक का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ यूरिया (urea) है।

प्रश्न 52.
हॉमॉन किसे कहते हैं?
उत्तर:
विभिन्न अंगों में आपसी समन्वय जिन रसायनों द्वारा होता है, उन्हें हॉर्मोन कहते हैं। ये अन्तःस्रावी ग्रन्थियों (endocrine gland) द्वारा स्रावित होते हैं।

प्रश्न 53.
मेंढक की मुख्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम लिखिए।.
उत्तर:
मेंढक की मुख्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम हैं- पीयूष (पिट्यूटरी), अवटु (थाइरॉइड ), परावटु (पेराथाइरॉइड ), थाइमस, पीनियलकाय, अग्न्याशयी द्वीपिकाएँ, अधिवृक्क (एड्रीनल) तथा जनद (gonads)।

प्रश्न 54.
मेंढक के तन्त्रिका तन्त्र के कितने भाग होते हैं ?
उत्तर:
मेंढक के तन्त्रिका तन्त्र के तीन भाग होते हैं-

  1. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र ( CNS),
  2. परिधीय तन्त्रिका तन्त्र ( PNS) तथा
  3. स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (ANS)

प्रश्न 55.
मेंढक में कितनी कपाल तन्त्रिकाएँ होती हैं?
उत्तर:
मेंढक में 18 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ (cranial nerves) मस्तिष्क (brain) से निकलती हैं।

प्रश्न 56.
मेंढक का मेरुरज्जु कहाँ स्थित होता है?
उत्तर:
मेंढक का मेरुरज्जु मेरुदण्ड में स्थित होता है।

प्रश्न 57.
मेंढक के कर्ण के कार्य बताइए।
उत्तर:
मेंढक के कर्ण श्रवण एवं शरीर का सन्तुलन बनाये रखने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 58.
मेंढक में कितनी शुक्रवाहिकाएँ होती हैं?
उत्तर:
मेंढक में 10-12 शुक्रवाहिकाएँ (spermathacae) होती हैं।

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प्रश्न 59.
मेंढक में अण्डों का निषेचन कहाँ होता है?
उत्तर:
मेंढक में अण्डों का बाह्य निषेचन (external fertilization) पानी में होता है।

प्रश्न 60.
मेंढक के लार्वा को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मेंढक के लार्वा को ‘टेडपोल’ कहते हैं।

(C) लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊतक की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
तक (Tissue) – ऊतक कोशिकाओं का वह समूह है जो मौलिक रूप से आपस में जुड़ी रहती हैं एवं जिनकी उत्पत्ति समान होती है तथा इनके द्वारा एक निश्चित कार्य सम्पन्न किया जाता है।

प्रश्न 2.
उत्तक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
ऊतक मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-

  1. उपकला या एपीथीलियमी ऊतक (Epithelial tissue),
  2. संयोजी ऊतक (Connective tissue)
  3. पेशीय ऊतक (Muscular tissue),
  4. तन्त्रिका ऊतक (Nervous tissue)।

प्रश्न 3.
रक्त की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
रक्त (Blood) रक्त एक महत्वपूर्ण तरल संयोजी ऊतक (liquid connective tissue) है, जो कि प्लाज्मा और रक्त कणिकाओं (blood corpuscles) का बना होता है और यह विभिन्न पदार्थों (कार्बनिक, अकार्बनिक, गैसों तथा अन्य पदार्थों) को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजता है।

प्रश्न 4.
ऑक्सीजन कोशिकाओं को किस प्रकार मिलती है?
उत्तर:
रुधिर की लाल रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक लाल रंग का वर्णक पाया जाता है। यह ऑक्सीजन को ग्रहण करके अस्थायी यौगिक ऑक्सी- हीमोग्लोबिन (oxyheamoglobin) बनाता है। रुधिर प्रवाह के साथ यह कोशिकाओं में पहुँचकर ऑक्सीजन को मुक्त करके पुनः हीमोग्लोबिन में बदल जाता है। इस प्रकार कोशिकाओं को ऑक्सीजन प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
शरीर में सुरक्षा तन्त्र के लिए कौन-सी कोशिकाएँ कार्य करती
उत्तर:
शरीर में सुरक्षा तन्त्र के लिए श्वेत रक्त कणिकाएँ होती हैं, ये निम्नलिखित प्रकार के सुरक्षात्मक कार्य करती हैं-

  1. न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) – ये भक्षकाण्विक होती हैं।
  2. इओसिनोफिल्स (Eosinophils) – ये एलर्जी के समय शरीर की रक्षा करती हैं।
  3. लिम्फोसाइट्स B तथा T (lymphocytes B and T) ये प्रतिरक्षियों (antibodies) का उत्पादन व फाइब्रोब्लास्ट का निर्माण करती हैं।
  4. मोनोसाइट्स (Monocytes) – ये न्यूट्रोफिल्स की तरह ही शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवों को फेगोसाइटोसिस की विधि से नष्ट करती हैं।

प्रश्न 6.
रुधिर लसीका से कैसे चिन्न होता है ?
उत्तर:
रुधिर और लसीका में अन्तर (Differences between Blood and Lymph) –

रुचिर (Blood)लसीका (Lymph)
1. इसमें लाल रक्त कणिकाएँ होती हैं।इसमें लाल रक्त कणिकाएँ नहीं होती हैं।
2. इसमें श्वेत रक्त कणिकाएँ कम होती है।इसमें शवेत रक्त कणिकाएँ अधिक होती हैं।
3. इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।इसमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है।
4. इसमें पोषक पदार्थ तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है।इसमें इन दोनों की मात्रा कम होती है।
5. रुधिर सामान्य तरल संयोजी ऊतक है।लसीका (lymph) हना हुआ रूधिर है।

प्रश्न 7.
संयोजी ऊतक की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
संयोजी ऊतक शरीर के विभिन्न ऊतकों या अंगों को परस्पर जोड़ने वाले ऊतकों को संयोजी ऊतक कहते हैं, ये चार प्रकार के होते हैं-

  1. सरल संयोजी ऊतक,
  2. रेशेदार संयोजी ऊतक,
  3. कंकालीय संयोजी ऊतक – अस्थियाँ व उपास्थियाँ
  4. संवहनीय या तरल संयोजी ऊतक – रक्त व लसीका।

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प्रश्न 8.
पेशीय ऊतक की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
पेशीय ऊतक – अधिकांश बहुकोशिकीय जन्तुओं में गमन और अंगों की गति के लिए विशेष प्रकार की कोशिकाओं के सफेद से या लाल से ऊतक होते हैं जिन्हें पेशीय ऊतक कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं

  1. रेखित,
  2. अरेखित तथा
  3. हृदयी।

प्रश्न 9.
तत्रिका ऊतक को परिभाषित कीजिये ।
उत्तर:
न्त्रका ऊतक (Nervous tissue ) – शरीर के अन्दर तन्त्रिका आवेगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का कार्य करने वाले ऊतक को ‘तन्त्रिका ऊतक’ कहते हैं। तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है, जो निम्न प्रकार की होती हैं-

  1. तन्त्रिका कोशिकाएँ (neurons ),
  2.  ग्लियल कोशिकाएँ (glial cells)।

प्रश्न 10.
तन्त्रिका ऊतक का शरीर में क्या महत्व है ?
उत्तर:
तन्त्रिका ऊतक का कार्य तन्त्रिकीय प्रेरणाओं का शरीर के एक भाग से दूसरे भाग या भागों तक संवहन करना होता है। त्वचा, कान, आँख, नाक आदि संवेदी अंगों की संवेदी तन्त्रिका कोशिकाएँ (Sensory nerve cells) जब बाहरी उद्दीपनों को ग्रहण करती हैं, तो इनसे सम्बन्धित संवेदी तन्त्रिका कोशिकाओं के तन्तुओं में विद्युत प्रवाह के रूप में संवेदी प्रेरणाएँ उत्पन्न होती हैं जिन्हें ये तन्तु केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में पहुँचाते हैं, जहाँ से प्रेरक तन्त्रिका कोशिकाओं के तन्तु प्रेरणाओं को पेशियों एवं मन्थियों (कार्यकारी अंगों) में ले जाते हैं, जो उद्दीपन के अनुसार प्रतिक्रियाएँ करते हैं। इस प्रकार तन्त्रिका ऊतकों (nervous tissues) से हमें बाहरी उद्दीपनों का ज्ञान हो जाता है तथा आकस्मिक संकट में हमारी रक्षार्थ सहायता भी हो जाती है।

प्रश्न 11.
एलाज्मा का क्या कार्य है?
उत्तर:
प्लाज्मा के कार्य

  1. विभिन्न प्रकार के कार्बनिक, अकार्बनिक व अन्य पदार्थों का परिवहन करना।
  2. रक्त प्रोटीन एल्ब्यूमिन परासरण दाब को उत्पन्न करता है।
  3. ग्लोब्युलिन हॉर्मोन्स रासायनिक पदार्थों का स्थानान्तरण तथा प्रतिरक्षी का कार्य करते हैं।
  4. प्रोधोबिन तथा फाइब्रिनोजन रक्त के स्कन्दन (blood clotting) का कार्य करते हैं।
  5. प्लाज्मा के अकार्बनिक घटक क्षारीयता उत्पन्न करते हैं व अन्य कई कार्य भी करते हैं, जैसे लूकोज ऊर्जा उत्पन्न करता है।

प्रश्न 12.
रेखित तथा अरेखित पेशी में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
रेखित तथा अरेखित पेशियों में अन्तर (Differences between Striped and Unstriped Muscles)

रेखित प्रेशियाँ (Striped Muscles)अरेखित पेशियाँ (Unstriped Muscles)
1. इनकी कोशिकाएँ बेलनाकार होती हैं तथा पेशीचोल नामक झिल्ली से स्तरित होती हैं।इनकी कोशिकाएँ तर्कुरूप, लम्बी व संकरी होती हैं।
2. रेखित कोशिका बहु-केन्द्रिकी (multinucleated) होती हैं।अरेखित पेशी कोशिका में केवल एक केन्द्रक मध्य में स्थित होता है।
3. इनमें गहरी व हल्की पट्टियाँ एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होती हैं।इनमें पेशी तन्तुक (myofibrils) होते हैं।
4. ये जन्तु की इच्छा से सिकुड़ती व फैलती हैं, अतः ये ऐच्चिक (voluntary) होती हैं।ये स्वतः ही सिकुड़ती एवं फैलती हैं, अतः ये अनैच्छिक (involuntory) होती हैं।
5. ये अस्थियों से जुड़ी रहती हैं, अत: इन्हें कंकाल पेशी भी कहतें हैं।ये पेशियाँ आन्तरांगों में पायी जाती हैं।
6. क्रियाशील रहने पर इनमें थकान का अनुभव होता है, अतः आराम आवश्यक है।क्रियाशील रहने पर भी इनमें थकान का अनुभव नहीं होता है।

प्रश्न 13.
अस्थि एवं उपास्थि में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अस्थि एवं उपास्थि में अन्तर (Differences between Bone and Cartilage)

अस्थि (Bone)उपास्थि (Cartilage)
1. यह कठोर तथा दृढ़ होती है।1. यह लचीली तथा कोमल होती है।
2. मेट्रिक्स में पायी जाने वाली प्रत्येक गर्तिका (lacunae) में केवल एक कोशिका होती है।2. मेट्रिक्स में पायी जाने वाली गर्तिकाओं में एक से अधिक कोशिकाएँ होती हैं।
3. इसका मेट्रिक्स ओसीन (ocein) का बना होता है।3. इसका मेट्रिक्स कॉन्ड़न (Chondrin) का बना होता है।
4. अस्थि कोशिकाएँ सदैव आस्टिओष्लास्ट्स (osteoblasts) के विभाजन से बढ़ती हैं।4. उपास्थि कोशिकाओं की संख्या उनके विभाजन से बढ़ती है।
5. अस्थि पर तन्तु ऊतक का बना आवरण पेरिऑंस्टिडियम कहलाता है।5. उपास्थि पर तन्तु ऊतक का बना आवरण पैरिकॉंड्र्रयम (perichondrium) कहलाता है।
6. इसमें मज्जा गुहा होती है।6. इनमें मज्जा गुहा नहीं होती है।

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प्रश्न 14.
रेखित पेशियों में पट्टियों में पट्टिकाएं (Bands) क्यों दिखायी देती हैं ?
उत्तर:
रेखित पेशियों (Striped muscles) में संकुचनशीलता प्रोटीन मायोसिन तथा एक्टिन का नियमित वितरण होता है इसलिए इन पेशियों में पट्टिकाएँ (bands) दिखायी देती हैं ये पट्टियाँ हल्के व गहरे रंग की एकान्तर क्रम में व्यवस्थित रहती हैं। गहरी पट्टियाँ 4′ बैण्ड तथा हल्की पट्टियाँ ‘I’ बैण्ड कहलाती हैं। गहरी पट्टियों में मोटे संकुचनशील प्रोटीन मायोसिन (myosin) पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के बीच एक अपेक्षाकृत हल्का भाग होता है, जिसे ‘H’ बैण्ड कहते हैं। शेष गहरे भाग ‘O’ बैण्ड कहलाते हैं। यहाँ पर ‘एक्टिन’ नामक एक अन्य संकुचनशील प्रोटीन भी पायी जाती है।

प्रश्न 15.
लसीका की संरचना एवं कार्य बताइए ।
उत्तर:
लसीका की संरचना (Structure of Lymph ) लसीका (lymph) रुधिर के समान ही एक तरल संयोजी ऊतक है। इसमें प्लाज्मा तथा श्वेत रुधिर कणिकाएँ (W.B.Cs.) होती हैं। सर्वाधिक संख्या में लिम्फोसाइट्स (lymphocytes) होती हैं। लाल रुधिर कणिकाएँ नहीं होती हैं। इसलिए लसीका का रंग सफेद होता है। इसमें अघुलनशील प्रोटीन्स अधिक मात्रा में तथा घुलनशील प्रोटीन्स कम मात्रा में होते हैं ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थों की मात्रा भी कम होती है। उत्सर्जी पदार्थ तथा CO, की मात्रा अधिक होती है। लसीका के कार्य (Functions of Lymph) – लसीका के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. इसका प्रमुख कार्य ऊतक द्रव्य से बड़े कोलॉइडी कणों, क्षतिमस्त कोशिकाओं आदि के अवशेष को निकालने के लिए वापस रुधिर परिसंचरण में पहुँचाना है।
  2. लसीका कोशिकाएँ जीवाणुओं को नष्ट करती हैं एवं टूट-फूट की मरम्मत का कार्य करती हैं।
  3. छोटी आंत्र से वसाओं का अवशोषण लसीका कोशिकाओं (lactcales) द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 16.
कण्डरा तथा स्नायु में अन्तर बताइए ।
उत्तर:
कण्डरा एवं स्नायु में अन्तर (Differences between Tendon and Ligament)

  1. कण्डरा (Tendons) तथा स्नायु (Ligaments) दोनों ही तन्तुमय संयोजी ऊतक हैं। कण्डरा (tendon) के मैट्रिक्स में सफेद कोलेजन प्रोटीन के बने व आपस में सटे हुए तन्तुओं के समानान्तर गुच्छे होते हैं, जबकि स्नायु ( ligaments) पीले इलास्टिन तन्तुओं से बने होते हैं।
  2. कण्डराएँ पेशियों को अस्थियों से जोड़ती हैं, जबकि स्नायु अस्थियों को अस्थियों से जोड़ते हैं।

प्रश्न 17.
कॉकरोच और मेंब्क के रुधिर में अन्तर बताइए।
उत्तर:
कॉकरोच और मेंउक के रुधिर में अन्तर (Differences between Blood of Cockroach and Blood of Frog)

कॉकरोच का रुधिर (Blood of Cockroach)मेंबक का रुधिर (Blood of Frog)
1. इसका रुधिर रंगहीन होता है, जिसे हीमोलिम्फ कहते हैं।मेंढक का रुध्रिर लाल रंग का होता है।
2. हीमोलिम्फ में हीयोम्लोबिन (haemoglobin) का अभाव होता है।लाल रक्त कणिकाओं में
3. प्लाज्मा में श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBCs) हीमोसाइट्स पायी जाती है।हीमोग्लोबिन उपस्थित होता है।
4. रुधिर के जमने में हीमोसाइट्स (heamocytes) सहायक होती हैं।प्लाज्मा में RBCs, WBCs तथा
5. हीमोलिम्फ O2 का परिवहन नहीं करता है।रुधिर प्लेटलेट्स (Platelets) पाई जाती हैं।

प्रश्न 18.
बन्द एवं खुले रूचिर परिसंचरण में अन्तर बताइए।
उत्तर:
बन्द एवं खुले रूचिर परिसंचरण में अन्तर (Differences between Closed and Open Type Blood Circulation)

बन्द प्रकार का रुचिर परिसंचरण (Closed Type Blood Circulation)खुले प्रकार का रुचिर परिसंचरण (Open Type Blood Circulation)
1. इसमें रुधिर एवं लसीका (Blood and lymph) अलग-अलग होते हैं।रुधिर और लसीका मिलकर (haemolymph) बनाते हैं।
2. रुधिर हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण लाल रंग का होता है।हीमोलिम्फ बनाते हैं। हीमोलिम्फ में हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) नहीं होता
3. रुधिर रुधिर वाहिनियों में बहता है। धमनियाँ रूधिर को वितरित करती हैं। शिराएँ ( veins) रुधिर एकत्र करके वापस लाती है।रुधिर, रुधिर कोटरों में भरा रहता है। रुधिर कोटरों (Sinus ) अंग पड़े रहते हैं। अंग सीधे रुधिर के सम्पर्क में बने रहते हैं।
रुधिर पर दबाव नहीं होता है।
4. धमनियों में रुधिर दबाव के साथ प्रवाहित होता है।खुले प्रकार का रुचिर परिसंचरण (Open Type Blood Circulation)

प्रश्न 19.
यकृतीय अंथनाल और मैलपीधी नलिकाओं में अन्तर बताइए।
उत्तर:
यकृत अन्धनाल और मैलपीधी नलिकाओं में अन्तर (Differences between Hepatic Caeca and Malpighian Tubules)

यकृतीय अन्धनाल (Hepatic Caeca)मैलपीघी नलिकाएँ (Malpighian Tubules)
कॉकरोच में इनकी संख्या 7-8 होती है तथथा ये मध्यांत्र के प्रारम्भिक भाग में स्थित होते हैं।इनकी संख्या लगभग 150 होती है तथा ये मध्यांत्र के पश्च भाग में लगी होती हैं।
ये मोटी भित्ति युक्त नलिकाकार प्रन्थिल रचनाएँ होती हैं।ये धागे जैसी पीले रंग की नलिका रूपी संरचनाएँ होती हैं।
ये पाचन क्रिया से सम्बन्धित होती हैं।ये उत्सर्जन से सम्बन्धित होती हैं।
मैलपीघी नलिकाएँ (Malpighian Tubules)

प्रश्न 20.
कोकून निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
कोकून का निर्माण (Formation of Cocoon) केंचुए के कोकून (cocoon) का निर्माण क्लाइटेलम वाले भाग में होता है। मैथुन क्रिया के पश्चात् क्लाइटेलम (clitelum) की मन्थिल कोशिकाएँ एक जिलेटिन जैसे पदार्थ का खाव करती हैं जो क्लाइटेलम (clitalum) के चारों ओर लिपट जाता है और वायु के सम्पर्क में आकर (सूखकर) एक चौड़ी व चिमड़ी नली अथवा पेटी बना लेता है जिसे कोकून कहते हैं।

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प्रश्न 21.
केंचुए में नर तथा मादा जननांग दोनों ही पाये जाते हैं तो इसमें स्वनिषेचन क्यों नहीं होता है ?
उत्तर:
यद्यपि केंचुए में नर तथा मादा जननांग दोनों ही पाये जाते हैं। अतः ये द्विलिंगी या उभयलिंगी (hermaphrodite ) होते हैं। फिर भी इनमें स्वनिषेचन (self fertilization) नहीं होता है क्योंकि इसके वृषण अण्डाशय (Ovary) से पहले ही परिपक्व हो जाते हैं अतः इनमें पर निषेचन (cross fertilization) होता है।

प्रश्न 22.
केंचुए को किसान का मित्र क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
केंचुओं को किसान का मित्र कहा जाता है, क्योंकि ये भूमि को उपजाऊ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। ये खेतों में बिल (सुरंग) बनाकर रहते हैं। इससे मिट्टी रन्धित हो जाती है और वायु एवं नमी मिट्टी में भली-भाँति प्रवेश करते हैं। इससे पौधों को भूमि में बढ़ने के लिए अधिक सुगमता होती है।

केंचुए मिट्टी को खाकर मल के रूप में छोटी-छोटी गोलियों को बाहर निकालते हैं। इसे पुरीष या कास्टिंग (casting) कहते हैं। इसमें चूना, नाइट्रेट, पोटैशियम व फॉस्फोरस युक्त ह्यूमस मिट्टी होती है। ये सड़े-गले पदार्थों को खाद्य के रूप में ग्रहण करके उन्हें समाप्त कर देते हैं। इनके द्वारा त्यागे गये उत्सर्जी पदार्थ मिट्टी में मिलकर नाइट्रोजन की वृद्धि करते हैं। केंचुए नीचे की उपजाऊ (fertile) मिट्टी को सतह पर लाते हैं। इस प्रकार केंचुए भूमि की उर्वरक क्षमता का संरक्षण करते हैं।

प्रश्न 23.
केंचुआ बरसात में अपने बिलों से बाहर क्यों आ जाता है?
उत्तर:
बरसात में जब बिलों में पानी भर जाता है तो केंचुआ जमीन के ऊपर आ जाता है। केंचुओं का प्रजनन (Reprodution) काल वर्षा ऋतु होती है। भारतीय केचुओं में मैथुन (Copulation) क्रिया वर्षाकाल में रात्रि के समय बिलों के बाहर जमीन की सतह पर होती है। मैथुन क्रिया में लगभग एक घण्टा लगता है तथा यह ‘हैड ऑन टेल’ (head on tail) अवस्था में होती है अतः केंचुओं का वर्षाकाल में अपने बिलों से बाहर आना आवश्यक है।

प्रश्न 24.
कॉकरोच के आहार नाल में पाये जाने वाले विभिन्न भागों को क्रमशः लिखिए।
उत्तर:
कॉकरोच की आहार नाल के भाग कॉकरोच की आहार नाल तीन भागों में बँटी होती है-

  1. अपात्र (Fore-gut) इसमें निम्नोक्त भाग पाये जाते हैं-
    • मुख,
    • प्रसिका,
    • अन्नपुट,
    • पेषणी।
  2.  मध्यान्त्र (Midgut )
  3.  पश्चात्र (Hind gut) इस भाग में निम्न संरचनाएँ पायी जाती हैं
    • क्षुद्रान्त्र (Ileum),
    • कोलोन (Colon),
    • मलाशय (Rectum),
    • गुदा (Anus)।

प्रश्न 25.
इमेगो किसे कहते हैं ?
उत्तर:
इमेगो (Imago ):
कॉकरोच के भ्रूणीय परिवर्धन के अन्तर्गत कायान्तरण (metamorphosis) के फलस्वरूप निम्फ में लगभग 10-12 बारे त्वक्पतन (निर्मोचन) की क्रिया होती है और लगभग एक वर्ष में निम्फ ( nymph) से वयस्क बन जाता है। प्रत्येक निर्मोचन के समय देहगुहा की लम्बाई में वृद्धि होती है। त्वचा में पंख बनते हैं। इस अवस्था को इमेगो (imago) कहते हैं।

प्रश्न 26.
कॉकरोच का हृदय किस प्रकार का होता है तथा इसमें कितने खण्ड पाये जाते हैं ?
उत्तर:
कॉकरोच का हृदय कॉकरोच का हृदय स्पन्दनशील, संकरा, नलिकाकार होता है। इसके हृदय में 13 खण्ड पाये जाते हैं। यह पीछे से बन्द रहता है तथा आगे से खुला होता है। प्रत्येक हृदयखण्ड कीपनुमा होता है तथा इसमें दो पार्श्व रन्ध्र पाये जाते हैं। इन पार्श्व रन्धों द्वारा रक्त पेरिकार्डियल कोटर से हृदय में प्रवेश करता है। रक्त का प्रवाह पीछे से आगे की ओर होता है प्रथम वक्षीय हृदय खण्ड सबसे बड़ा तथा अन्तिम उदरीय खण्ड सबसे छोटा होता है। यह तन्त्रिका तन्त्र जनित (neurogenic) होता है। हृदय स्पन्दन दर 49 प्रति मिनट होती है।

प्रश्न 27.
कॉकरोच में श्वसन क्रिया में वायु का पथ किस प्रकार होता
उत्तर:
कॉकरोच में श्वसन क्रिया में वायु पथ – हीमोग्लोबिन का अभाव होने के कारण कॉकरोच में रुधिर ऑक्सीजन के वाहक के रूप में कार्य नहीं करता है। इसलिए ऊतकों और शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए इसमें खास नलियाँ (tracheae) जाल के रूप में फैली रहती हैं। शरीर के पार्श्व भागों में स्थित 10 जोड़ी दरार जैसे श्वास रन्ध्रों (spiracles or stigmata) से होकर बाहरी वायु इन श्वास नलियों में आवागमन करती है।

प्रश्न 28.
कॉकरोच में उत्सर्जी अंग कौन-कौनसे होते हैं तथा इसमें उत्सर्जी पदार्थ क्या होता है?
उत्तर:
कॉकरोच के उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं-

  1. मैलपीधी नलिकाएँ (Malpighian tubules),
  2. वसा काय कोशिकाएँ (Fat body cells),
  3. यूरिकोस पन्थियाँ (Uricose glands),
  4. क्यूटिकल (Cuticle),
  5. वृक्काणु (Nephrocytes)

कॉकरोच में मुख्य उत्सर्जी पदार्थ यूरिक अम्ल (uric acid ) होता है। अतः कॉकरोच यूरिकोटेलिक (urecotclic) प्राणी है।

प्रश्न 29.
कॉकरोच के विभिन्न मुखांगों के नाम तथा कार्य भी लिखिए।
उत्तर:
कॉकरोच के विभिन्न मुखांगों के नाम व उनके कार्य-

मुखांग का नामकार्य
1. लेबम (Labrum )वस्तु के स्वाद का अनुभव करना
2. मेण्डीबिल्स (Mandibles )भोजन को कुतरना और चबाना
3. मैक्सिली (Maxillae)भोजन को पकड़ना, श्रृंगिकाओं
4. लेबियम (Labium)पाल्प व टांगों की सफाई करना
5. हाइपोफेरिंक्स (Hypopharynx)भोजन के टुकड़ों को बाहर गिरने से रोकना

प्रश्न 30.
कॉकरोच में कौन-कौन-से संवेदी अंग पाये जाते हैं तथा ये किस प्रकार की संवेदनाएँ ग्रहण करते हैं ?
उत्तर:

संखेदी अंग का नामस्थितिकार्य
1. प्रकाश ग्राही अंग (Photoreceptor)सरल व संयुक्त नेत्र सिर परवस्तु को देखना
2. स्पर्शम्राही (Tectroreceptor)सम्पूर्ण शरीर परस्पर्श का जान
3. स्वादम्राही (Gustatorecetor)मैक्सीलरी पाल्स्स परस्वाद अनुभव करना
4. गन्ध ग्राही (Olfectoreceptor)शृंगिकाओं परगन्ध प्रहण करना
5. ध्वनिग्राही (Auditoreceptor)गुदा लूम परध्वनि प्रहण करना
6. तापग्राही (Thermoreceptor)टाँग की प्लैन्टुली व भृंगिकाओं परताप का अनुभव करना
7. प्रोपियोग्राही (Propiorecetor)टाँगों की सन्धियों परज्रोड़ों के पास की संवेदनाओं को ग्रहण करना

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प्रश्न 31.
कॉकरोच के नर जननांगों के नाम लिखिए। उत्तर- कॉकरोच के नर जननांग निम्नलिखित हैं-

  1. वृषण (Testes),
  2. शुक्र वाहिनियाँ,
  3. छत्रक प्रन्थि
    • लम्बी पन्थिल नलिकाएँ,
    • छोटी पन्थिल नलिकाएँ
    • शुक्राशय
    • स्खलन नलिका,
  4. फेलिक मन्थि
  5. गोनैपोफाइसिस
    • दायाँ फैलोमीयर,
    • बायाँ फैलोमीयर
    • अधर फैलोमीयर ।

प्रश्न 32.
कॉकरोच के मादा जननांगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कॉकरोच के मादा जननांग निम्नलिखित हैं-

  1. अण्डाशय,
  2. अण्डवाहिनियों
  3. सामान्य अण्डवाहिनी,
  4. शुक्र प्राहिका,
  5. जनन कक्ष,
  6. संग्राहक मन्थियाँ
  7. गोनेपोफाइसिस ।

प्रश्न 33.
कॉकरोच के अण्ड प्रावर (Ootheca) का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
कॉकरोच में अण्ड प्रावर (अण्ड कवच ) का निर्माण (Formation of Ootheca in Cockroach) – कॉकरोच के निषेचित अण्डे (Egg) जनन कक्ष में प्रवेश करते हैं। यहाँ कोलेटरियल ग्रन्थि से स्कलेरोप्रोटीन (Scaleroprotein) का स्राव होता है, जिससे ऊथीका (ootheca) का निर्माण होता है। ऊंथीका (ootheca) के निर्माण में लगभग 20 घण्टे का समय लगता है। एक मादा जन्तु अपने जीवनकाल में 20-40 तक ऊथीका (ootheca) का निर्माण करती है। कुछ दिनों के बाद मादा ऊथीका को अन्धेरे, सूखे तथा गर्म स्थान पर रख देती है। ऊथीका (oothea) के ऊपर काइटिन का आवरण तथा माइक्रोपाइल (micropyle) पाया जाता है।

प्रश्न 34.
कॉकरोच में कायान्तरण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
कॉकरोच में कायान्तरण ( Metamorphosis) – कॉकरोच में भ्रूणीय परिवर्धन (embryonic development) के फलस्वरूप पहले निम्फ (Nymph) बनता है। निम्फ से वयस्क ( adult) के निर्माण में 6 माह से 2 साल तक का समय लग जाता है। इसके कायान्तरण में 7-10 बार त्वक् पतन या निर्मोचन (moulting) होता है। निर्मोचन (moulting) में बाह्य कंकाल पृथक् हो जाता है तथा शारीरिक वृद्धि से नया कंकाल बन जाता है। अन्तिम निर्मोचन के बाद 4-6 दिनों में जननांग विकसित हो जाते हैं। इसका जीवन काल 2-4 वर्षों का होता है।

प्रश्न 35.
मेंढक में पाचक प्रन्थियाँ कौन-कौनसी होती हैं ?
उत्तर:
मेंढक की पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive Glands of Frog)
(1) यकृत (Liver):
यह चॉकलेटी रंग की सबसे बड़ी मन्थि होती है। यह पित्तरस का लावण करती है। यह पित्ताशय (Pancreas) में संचित होता है। पित्त रस ग्रहणी में आये भोजन के माध्यम को अम्लीय से क्षारीय में बदलता है तथा यह वसा का पायसीकरण (Imulsification) कर देता है।

(2) अग्न्याशय (Pancreas):
यह बहुशाखित, अनियमित, चपटी तथा पीले रंग की मन्थि है तथा अन्तःस्रावी एवं बहिस्रावी ग्रन्थि का कार्य करती है। यह अग्न्याशय रस (pancreatic juice) का स्राव करती है। इस रस में ट्रिप्सिन, स्टीएप्सिन एवं एमाइलोप्सिन नामक पाचक एन्जाइम्स उपस्थित होते हैं जो भोजन को पचाने में सहायक होते हैं।.

प्रश्न 36.
मेंढक में पेन्क्रियाज से कौन-कौन-से पाचक एन्जाइम्स स्रावित होते हैं ?
उत्तर:
मेंढक में पेन्क्रियाज से तीन पाचक एन्जाइम्स स्त्रावित होते हैं

  1. ट्रिप्सिन (Trypsin) यह भोजन की शेष प्रोटीन, पेप्टोन तथा प्रोटिओजेज को पौलीपेप्टाइड्स में बदलता है।
  2. एमाइलोप्सिन (Amylopsin) यह मण्ड को माल्टोज शर्करा में बदलता है।
  3. स्टीएप्सिन (Steapsin) यह पायसीकृत ( Imulsified) वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदलता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 

प्रश्न 37.
मेंढक का यकृत क्या कार्य करता है ?
उत्तर:
पेंढक के यकृत के कार्य

  1. पित्त रस का स्त्राव करना,
  2. वसा का संचय करना,
  3. विषैले (toxic) पदार्थों को निष्क्रिय करना,
  4. हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करना,
  5. भोजन के अम्लीय माध्यम को क्षारीय बनाना,
  6. हिपेरिन (heparin) का लावण करना,
  7. ग्लाइकोजन आदि का संचय करना,
  8. भोजन का पायसीकरण करना।

प्रश्न 38.
मेंढक के पाचन में सहायक हॉर्मोन्स के नाम लिखिए।
उत्तर:
मेंढक के पाचन में सहायक हॉर्मोन्स-

  1. एन्टेरोगेस्ट्रोन ( Entrogastron ) : यह आमाशय में HCI के उत्पादन को कम करता है।
  2. कोलेसिस्टोकाइनिन (Colicystokinin) : यह पित्ताशय को उत्तेजित करता है जिससे पित्त इयोडीनम (ग्रहणी) में पहुंचता है।
  3. सिकिटिन (Secretin ) : यह अग्न्याशय को उत्तेजित करता है जिससे अग्न्याशय रस महणी ( deuodenum) की ओर बहने लगता है।
  4. एन्टेरोकाइनिन (Enterokinin) : यह आन्न रस को सावित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 39.
मेंढक के रक्त में कौन-कौनसी कोशिकाएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
मेंढक के रक्त की कोशिकाएँ- मेंढक के रक्त में तीन प्रकार की रक्त कोशिकाएँ पायी जाती हैं-

  1. लाल रक्त कणिकाएँ (R.B. Cs) इनमें हीमोग्लोर्बिन (haemoglobin) पाया जाता है।
  2. श्वेत रक्त कणिकाएँ (W.B.Cs) ।
  3. थ्रोम्बोसाइट्स (Thrombocytes) ।

प्रश्न 40.
मेंढक की मूत्र वाहिनी मूत्र जनन नलिका क्यों कहलाती है ?
उत्तर:
मेंढक में शुक्राणु भी मूत्रवाहिनी में पहुंचते हैं और मूत्र वाहिनी के द्वारा ही शुक्राणु अवस्कर (cloaca) द्वार से होकर बाहर निकलते हैं। अतः मूत्र वाहिनी जनन मूत्र वाहिनी कहलाती है।

प्रश्न 41.
मेंढक के वृषण में कार्यात्मक तथा संरचनात्मक इकाई क्या होती है और यह क्या बनाती है ?
उत्तर:
मेंढक के वृषण में कार्यात्मक और संरचनात्मक इकाई शुक्रजनन नलिकाएँ (seminiferous tubules) होती हैं। ये शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण करती हैं।

(D) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उनकों का वर्गीकरण कीजिये।
उत्तर:
ऊतकों का वर्गीकरण (Classification of Tissues)
प्राणियों में निम्नलिखित चार प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं-
(1) उपकला ऊतक (Epithelial tissues) : ये सात प्रकार के होते
(i) शल्की उपकला,
(ii) घनाकार उपकला
(iii) स्तम्भी उपकला,
(iv) रोमाभि उपकला
(v) मन्थिल उपकला
(क) एक कोशिकीय पन्थि,
(ख) बहुकोशिकीय प्रथि –
1. नलाकार मन्थियाँ
2. कूपिकीय मन्थियाँ ।
(vi) तन्त्रिका संवेदी उपकला
(vii) संयुक्त कला-
(क) अन्तर्वर्ती उपकला,
(ख) स्तरित शल्की उपकला,
(ग) स्तरित घनाकार उपकला,
(घ) कूटस्तरित स्तम्भी उपकला,
(ङ) स्तरित स्तम्भी उपकला ।

(2) संयोजी ऊतक (Connective tissues) ये चार प्रकार के होते हैं
(i) सरल संयोजी ऊतक
(क) अन्तरात्विक ऊतक,
(ख) वसीय ऊतक,
(ग) वर्णक ऊतक,
(घ) जालिकामय ऊतक ।

(ii) रेशेदार संयोजी ऊतक-
(क) सफेद रेशेदार ऊतक,
(ख) पीले रेशेदार

(iii) कंकालीय संयोजी ऊतक –
(क) अस्थियाँ-
1. कलाजात अस्थियाँ (membranous bone),
2. उपास्थिजात अस्थियाँ (cartilagenous bone)।

(ख) उपास्थियाँ-
1. काचाभ उपास्थि
2. लचीली उपास्थि,
3. तन्तुमय उपास्थि,
4. कैल्सीफाइड उपास्थि ।

(vi) संवहन ऊतक-
(क) रक्त
(ख) लसीका।

(3) पेशीय ऊतक (Muscular tissue) ये तीन प्रकार के होते हैं-
(i) अरेखित पेशी,
(ii) रेखित पेशी,
(iii) हृदय पेशी।

(4) तत्रिका ऊतक (Nervous tissue)
(i) तन्त्रिका कोशिकाएँ-
(क) एक ध्रुवीय,
(ख) द्विध्रुवीय,
(ग) बहुध्रुवीय,
(ii) न्यूरोलियन कोशिकाएँ ।

प्रश्न 2.
पेशी ऊतकों की परिभाषा संरचना तथा कार्य लिखिए।
उत्तर:
पेशी ऊतक (Muscular Tissue) – पेशी उतक लम्बी संकरी एवं अत्यधिक संकुचनशील पेशी कोशिकाओं या पेशी तन्तुओं से बने बडलो के रूप में होता है। इसके चारों ओर संयोजी ऊुतक का आवरण होता है। पेशी ऊतक की उत्पत्ति भ्रूण के मीसोडर्म से होती है।
संरचना (Structure)-समस्त पेशियाँ दीर्षित व महीन कोशिकाओं की बनी होती हैं जिन्हें पेशी तन्तु (muscle fibres) कहते हैं।

पेशी तन्तुओं के कोशिकाद्रव्य को साकोष्लाइम (sarcoplasm) कहते हैं। इसमें शिल्लियों एवं कलाओं का एक जाल होता है जिसे सार्कोप्लाज्ञिक रेटिकुलम (sarcoplasmic reticulum) कहते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तु के चारों ओर सार्कोंलेमा (sarcolemma) नामक विशिष्ट कला होती है। प्रत्येक पेशी तन्तु में एक या एक से अधिक केन्द्रक होते हैं।

विभिन्न प्रकार के पेशी तन्तुओं में केन्द्रक की स्थिति भिन्न भिन्न होती है। प्रत्येक पेशी तन्तु में अनेक महीन मायोफाइबिल्स (myofibrils) होते हैं जो तन्तु की लम्बवत् अक्ष के साथ लगे होते हैं। मायोफाइब्रिल्स के बीच में अनेक माइटोकाण्ड्र्या होते हैं।
पेशियों के प्रकार (Types of muscles)
स्थिति, संरचना एवं कार्य के आधार पर पेशियाँ निम्न तीन प्रकार की होती हैं-
1. रेखित या कंकाल पेशियाँ (Striped or Skeletal muscles)
2. अरेखित पेशियाँ (Unstriped muscles)
3. हृद पेशियाँ (Cardiac muscles)
(1) अरेखित पेशियाँ (Unstriped Muscles) – अरेखित पेशियाँ को अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) भी कहते हैं, क्योंकि ये पेशियाँ स्वत: सिकुड़ती व फैलती हैं और इन पर जन्तु की इच्छा शक्ति का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। अरेखित पेशी की कोशिकाएँ लम्बी, सँकरी तथा दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। मध्य में एक केन्द्रक होता है जिसके चारों ओर तरल पदार्थ सारकोप्लाउना (Sarcoplasma) पाया जाता है, इसलिए मध्य भाग मोटा होता है। कोशिका द्रव्य में अनेक छोटे-छोटे पेशी तन्तुक (मायोफाइब्रिस्स-myofibrils) पाये जाते हैं, जो फैलते और सिकुड़ते रहते हैं।

प्रत्येक पेशी कोशिका के चारों ओर प्लाज्मा झिल्ली का आवरण होता है जिसे पेशीचोल (सारकोलेमा-Sarcolemma) कहते हैं। इन पेशियों के सूत्रों में तन्त्रिका तन्तु अनुकम्पी तन्त्रिका तन्तु से आते हैं। इन पेशियों में संकुचन धीमी गति से व लम्बे समय तक होती है। उपस्थिति (Position)-अरेखित पेशियाँ मुख्य रूप से आहारनाल की दीवार, रुधिर वाहिनियों, मूत्राशय, पित्ताशय, जननांगों व मूत्रवाहिनियों में पायी जाती हैं। कार्य (Functions) -इनके आंकुचन पर जीव की इच्छा का कोई नियन्रण नहीं होता है।

इसी कारण इन पेशियों को अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) भी कहते हैं। इनका कार्य गुहाओं को चौड़ा करना तथा छिद्रों को खोलना व बन्द करना होता है। छिद्रों के चारों ओर स्थित ये पेशियाँ संवरगी (Sphincter) बनाती हैं।

(2) कंकाल पेशी (Skeletal Muscles) – कंकाल पेशी को रेखित पेशी (Striped muscle) भी कहते हैं। रेखित पेशी तन्तु लम्बे, बेलनाकार, अशाखित, मोटे और 2 से 4 सेमी. लम्ब्बे होते हैं। इनकी गति जन्तु की इच्छा पर निर्भर करती है, अतः इसको ऐच्चिक पेशियाँ (voluntary muscles) भी कहते हैं।

कंकाल से जुड़ी रहने के कारण इन्हें कंकाल पेशियाँ (skletal muscles) भी कहते हैं। इनकी कोशिका झिल्ली को सारकोलीमा (sarcolemma) तथा कोशिका द्रव्य को सारकोप्लाज्म (sarcoplasm) कहते हैं। इसमें मायोफाइबिल्स (Myofibril) पाये जाते हैं। इसके तन्तुओं में अनुप्रस्थ धारियाँ पायी जाती हैं। इनमें ‘A’ धारियाँ तथा ‘T’ धारियाँ पायी जाती हैं।

पेशी जीव द्रव्य में पेशी तन्तु पाये जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-मोटे तन्तु तथा पतले तन्तु। पतले तन्तु मोटे तन्तुओं के बीच समानान्तर चलते हैं और उनका एक सिरा ‘Z’ रेखा से जुड़ जाता है। मोटे तन्तु मायोसीन प्रोटीन के बने होते हैं। मायोसीन तन्तु ‘A’ पट्वियों पर लम्बवत् रहते हैं। पतले तन्तु एक्टिन (actin), ट्रोपोमाइसिन (tropomyosin) तथा ट्रोपोनिन (troponin) प्रोटीन के बने होते हैं, इसका प्रत्येक टुकड़ा संकुचनशील इकाई के समान कार्य करता है जिसे सारकोमियर (sarcomere) कहते हैं।

सिकुड़ने पर दोनों मोटे तथा पतले तन्तु अपनी वास्तविक लम्बाई बनाये रखते हैं। पेशी का संकुचन स्लाइडिंग फिलामेन्ट (Sliding filament Hypothesis) परिकल्पना द्वारा समझा जा सकता है। उपस्थिति (Position)-शरीर का अधिकांश भाग रेखित पेशियों का ही बना होता है और शरीर का 40% भार इन्हीं पेशियों के कारण होता है। ये पेशियाँ अम्रपाद, पश्चपाद तथा गति करने वाले समस्त अंगों में पायी जाती हैं।
कार्य-

  • ये पेशियाँ जन्तु की इच्छानुसार फैलती और सिकुड़ती हैं।
  • ये अंगों को हिलाने-डुलाने में सक्रिय भाग लेती हैं
  • ये पेशियाँ जन्तु के गमन में सहायक होती हैं।

प्रश्न 3.
तंत्रिकीय ऊतक का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तन्रिका ऊँक (Nervous Tissue)
तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue) – तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करता है। तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है, जिन्हें न्यूरॉन (Neurons) कहते हैं। ये दो प्रकार की होती हैं-
(1) तन्त्रिका कोशिकाएँ (Neurons),
(2) ग्लियल कोशिकाएँ (Glial cells).

तन्त्रिका कोशिका की संरचना (Structure of neuron) – प्रत्येक तन्त्रिका कोशिका तीन भागों से मिलकर बनी होती है –
(1) कोशिकाकाय या तन्रिकाकाय (Cyton) – यह तन्त्रिका कोशिका का मुख्य भाग है। इसके मध्य में एक बड़ा केन्द्रक (nucleus) होता है, जो चारों ओर से कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) से घिरा रहता है। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में प्रोटीन के बने अनेक रंगीन कण पाये जाते हैं, जिन्हें निसल्स कण (Nisal’s granules) कहते हैं।

(2) वृद्षिका या दुमाश्म (Dendron) – कोशिकाकाय (cyton) से अनेक प्रवर्ध निकले रहते हैं। इन्हें वृक्षिका या द्रुमाइ्प (Dendorns) कहते हैं। वृक्षिका (dendron) से अनेक पतली-पतली शाखाएँ निकली रहती हैं। इन्हें वृभ्षिकान्त या ह्रुमिका (dendrites) कहते हैं।

(3) तन्त्रिकाध्ध या एक्सोन (Axon) – तन्त्रिकाकाय से निकले कई प्रवर्धों में से एक प्रवर्ध अपेक्षाकृत लम्बा, मोटा तथा बेलनाकार होता है। इस प्रवर्ध को तन्त्रिकाध्ष (axon) कहते हैं। यह तन्त्रिकाच्छाद या न्यूरोलीमा (neurolemma) नामक झिल्ली से स्तरित होता है। न्यूरोलीमा तथा तन्त्रिकाक्ष (axon) के मध्य वसा का स्तर पाया जाता है, जो चमकीला तथा सफेद होता है।

यह स्तर मज्जा आच्छाद या मैडूलरी आच्छाद (medullary sheath) कहलाता है। मज्जा आच्छद (marrow sheath) में स्थान-स्थान पर दबाव के क्षेत्र होते हैं इन्हें रेन्वियर का नोड (Node of Ranvier) कहते हैं। तन्त्रिकाक्ष (axon) के अन्तिम सिरे पतली-पतली शाखाओं में बँट जाते हैं।

इन शाखाओं के अन्तिम सिरे घुण्डी के रूप में होते हैं, जिन्हें अन्तस्थ बटन या सिनैप्टिक घुण्डययाँ (terminal knobs or synaptic knobs) कहते हैं। ये घुण्डियाँ दूसरी कोशिका के वृष्षिकान्तों (dendrites) से सम्बन्धित रहती हैं। इस सम्बन्य को युग्मानुबन्यन या सिनेप्स (synapse) कहते हैं। तन्त्रिकाक्ष से तन्त्रिका तन्तुओं (neurofibrils) का निर्माण होता है।

तन्त्रिका कोशिका के कार्य (Functions of Neuron):
स्वभाव या कार्य के आधार पर न्यूरॉन (Neurons) तीन प्रकार की होती हैं
1. संवेदी तन्तिका कोशिकाएँ (Sensory Nerve cells) -ये संवेदांगों को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्न्र से जोड़ते हैं तथा संवेदना को संवेदी अंगों से केन्द्रीय तन्त्रिका तन्न-(CNS) मस्तिष्क (brain) व मेरुरज्जु में पहुँचाते हैं।

2. चालक तन्रिका कोशिकाएँ (Motor nerve cells) -ये केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त को क्रियात्मक अंगों, पेशियों एवं प्रन्थियों से जोड़ती हैं। ये कोशिकाएँ केन्द्रीय तन्तिका तन्र से संवेदनाओं को प्रेरणा या आदेश के रूप में प्रेणा कार्यकारी अंग की पेशियों में ले जाती हैं।

3. मध्यस्घ तन्त्रिका कोशिकाएँ (Intermediate Nerve Cells)-ये केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में दो या अधिक-न्यूरॉन्स को परस्पर जोड़ती हैं। मिलयल कोशिकाओं के प्रवर्ध छोटे होते हैं तथा ये न्यूरॉन (nuron) को सुरक्षा एवं सहारा देती हैं। तन्तिका कोशिकाओं द्वारा शरीर के अन्दर तन्न्रिका आवेगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का कार्य किया जाता है। तन्त्रिका तन्तु में फैलने वाले विभव परिवर्तन के संन्देश को तत्रिका आवेग कहते हैं। यह एक सन्देश के रूप में दूसरी तत्त्रिका कोशिकाओं या पेशी को जाता है। [नोट-तंत्रिका तन्त का विस्तृत वर्णन अध्याय 21 में किया गया है।]

प्रश्न 4.
अस्थि तथा उपास्थि में अन्तर लिखिए।
उत्तर:

अस्थि (Bone)उपास्थि (Cartilage)
1. यह कठोर तथा दृढ़ होती है।1. यह लचीली तथा कोमल होती है।
2. मेट्रिक्स में पायी जाने वाली प्रत्येक गर्तिका (lacunae) में केवल एक कोशिका होती है।2. मेट्रिक्स में पायी जाने वाली गर्तिकाओं में एक से अधिक कोशिकाएँ होती हैं।
3. इसका मेट्रिक्स ओसीन (ocein) का बना होता है। 3. इसका मेट्रिक्स कॉन्ड़न (Chondrin) का बना होता है।
4. अस्थि कोशिकाएँ सदैव आस्टिओष्लास्ट्स (osteoblasts) के विभाजन से बढ़ती हैं।4. उपास्थि कोशिकाओं की संख्या उनके विभाजन से बढ़ती है।
5. अस्थि पर तन्तु ऊतक का बना आवरण पेरिऑंस्टिडियम कहलाता है।5. उपास्थि पर तन्तु ऊतक का बना आवरण पैरिकॉंड्र्रयम (perichondrium) कहलाता है।
6. इसमें मज्जा गुहा होती है।6. इनमें मज्जा गुहा नहीं होती है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 

प्रश्न 5.
केंचुए की बाह्य संरचना सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) आकृति एवं परिमाप (Shape \& Size) – केंचुए का शरीर संकरा, लम्बा, बेलनाकार, द्विपार्श्व सममिति (bilateral symmetrical) तथा वास्तविक रूप से विखण्डित होता है। इसके दोनों सिरे कन्द (blunt) होते हैं। अगला सिरा पिछले सिरे से अधिक नकीला होता है। शेष शरीर की मोटाई एक जैसी होती है। इसके शरीर की लम्बाई 15-20 सेमी. तथा व्यास 0.3-0.5 सेमी. तक होता है।

(2) रंग (Colour)-केंचुए के शरीर का रंग इसकी देहॉिति में उपस्थित पोरफाइरिन (porphyrin) नामक वर्णक के कारण भूरा होता है। पोरफाइरिन परार्बैगनी किरणों के दुष्पभाव से इसकी रक्षा करता है। इसकी पृष्ठ सतह का रंग अधर तल की अपेक्षा गहरा होता है।

(3) खण्डीभवन (Segmentation) – केंचुए का पूरा कोमल शरीर वृत्ताकार अन्तराखण्डीय खाँचों (intersegmental groves) द्वारा लगभग 100 से 120 छोटे-छोटे समान छल्लों (खण्डों या समखण्डों) में बैंटा होता है। ये खण्ड अन्दर देह गुहा (coelom) को भी पटों (septum) द्वारा खण्डों में बाँटते हैं। अतः आन्तरिक खण्डों की संख्या शरीर के बाह्य खण्डों के बराबर ही होती है। इस प्रकार खण्डीभवन विखण्डीय खण्डीभवन (metameric segmentation) कहलाता है। आगे के चार खण्डों में पट नहीं होते हैं।

(4) परिमुख एवं पुरोमुख (Peristomium and Prostomium)-केंचुए में सिर अलग से स्पष्ट नहीं होता है। इसके प्रथम खण्ड को परिमुख (peristomium) कहते हैं। परिमुख का ऊपरी भाग आगे की ओर प्रवर्ध के रूप में निकला रहता है। इस छोटी मांसल रचना को पुरोमुख (prostomium) कहते हैं। यह मुख से आगे निकला रहता है। जन्तु के अन्तिम खण्ड को गुद्रण्ड (pygidium) कहते हैं।

(5) क्साइटेलम (Clitellum) – केंचुए के 14 वें, 15 वें व 16 वें खण्डों के चारों ओर प्रन्थिल कोशिकाओं (Glandular cells) की एक मोटी, चिकनी तथा छल्लेदार पही होती है जिसे पर्याणिका या क्लाइटेलम (clitellum) कहते हैं। प्रजनन के समय यह पह्टी अण्डों के चारों ओर एक खोल बनाती है, जिसे अण्ड कवच या कोकून (cocoon) कहते हैं। पर्याणिका (clietellum) के कारण जन्तु का शरीर स्पष्टतः तीन भागों में बँटा होता है-

  • पूर्व क्लाइटेलर (Pre-clitellar) भाग-1 से 13 खण्डों सक का क्षेत्र।
  • क्लाइडेलर (Clitellar). भाग-14वें से 16 वें खण्डों से निर्मित।
  • क्लाइटेलर पश्चीय (Post-Clitellar) भाग-17वें से अन्तिम खण्ड तक।

(6) सीटी (Setae) – एक परिपक्व (वयस्क) केंचुए के प्रथम, अन्तिम व 14,15 व 16 वें खण्डों के अतिरिक्त प्रत्येक खण्ड की मध्य रेखा पर त्वचा में 80-120 काइटिन (chitin) की घनी छोटी-छोटी ‘S’ के आकार की काँटे जैसी हल्की पीली-सी सीटी पंक्तिबद्ध रहती हैं। सीटी (setae) का कुछ भाग त्वचा में धँसा रहता है और कुछ भाग सतह पर बाहर निकला व पीछे की ओर झुका रहता है। ये जन्तु को गमन में सहायता करते हैं। प्रत्येक शूक में आकुंचक तथा अपाकुंचक पेशी पायी जाती है।

(7) बाहू़ छिद्र (External Apertures) – केंचुए के शरीर पर निम्न प्रकार के छिद्र पाये जाते हैं-
(i) मुख (Mouth)- यह अर्द्धचन्द्राकार होता है जो माध्य अधर अवस्था में परितुण्ड (peristomium) पर पाया जाता है।

(ii) पृष्ठ छिद्र (Dorsal pore)- 12 वें खण्ड के पीछे सभी खाँचों में एक पृष्ठ छिद्र होता है। इन छिद्रों से देहगुहीय द्रव. बाहर निकलता रहता है। यह केंचुए के शरीर और उसके बिल को नम बनाये रखता है।

(iii) वृक्कक रस्ध (Nephridiopore) – इस प्रकार के छिद्र प्रथम दो खण्डों को छोड़कर समूूर्ण शरीर में मिलते हैं। इनके द्वारा वृक्कक (nephridia) बाहर की ओर खुलते हैं।

(iv) शुक्रग्राहिका रन्म्र (Spermathecal pores) – केंचुए में चार जोड़ी शुक्रगाहिका रन्ध (Spermathecal pores) पाये जाते हैं.। जो अधर पार्श्व सतह पर 56, 6, 7,7, 8 व 8 , 9 खण्डों के मध्य पाये जाते हैं। शुक्र ग्राहिका इन रन्श्रों द्वारा बाहर खुलती है।

(v) मादा जन्न छिद्र (Female genital pore) – केंचुए के 14वें खण्ड के अधर तल पर यह एक सूक्ष्म छिद्र होता है। अण्डाणु अण्डवाहिनियों (oviduct) से होते हुए इसी मादा जनन छिद्र द्वारा बाहर निकलते हैं।

(vi) नर जनन छिद्र (Male genital Pores) – केंचुए के 18 वें खण्ड के अधर तल पर एक जोड़ी नर जनन छिद्र होते हैं। मैथुन क्रिया (copulation) के समय शुक्राणु (Sperms) तथा प्रास्टेट द्रव (prostate fluid) इन्हीं छिद्रों द्वारा बाहर निकलते हैं ।

(vii) जननिक अंकुर (Genital Papillae) – 17वें तथा 18 वें खण्डों के अधर तल पर एक-एक जोड़ी जनन अंकुर होते हैं। ये मैथुन क्रिया में सहायक होते हैं। प्रत्येक जनन अंकुर (genital papillae) के शिखर पर एक सहायक प्रन्थि छोटे से छिद्र द्वारा बाहर की ओर खुलती है।

(viii) गुदा (Anus) – यह जन्तु के पश्च व अन्तिम सिरे पर स्थित होती है। यह एक खड़ी लम्बवत् दरार जैसी होती है और दो पार्श्वीय ओठों (lateral labia) से घिरी रहती है ।

प्रश्न 6.
केंचुए की आन्तरिक संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंचुआ (Pheretima posthuma) समूह, यूमेटाजोआ (eumatozoa) के संघ एनीलिडा (Annelida) का प्राणी है। यह द्विपार्श्व सममित (bilateral symmetrical), एवं त्रिस्तरीय (Triplablastic) जन्तु है जिसमें वास्तविक देहगुहा (True Coelom) एवं मेटामेरिक खण्डीभवन पाया जाता है। यह शीत रुधिर वाला (cold blooded) प्राणी है जो नम भूमि में सुरंग बनाकर रहता है और रात्रि के समय बिल से बाहर निकलता है।

वर्गीकरण (Classification):

प्रभाग (Division)यूसीलोमेटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)एनीलिडा (Annelida)
वर्ग (Class)ओलिगोकीटा (Oligochaeta)
गण (Order)हेप्लोटेक्सिडा (Haplotaxida)
वंश (Gamus)फैरिटिमा (Pheretima)
जाति (Species)पोस्थुमा (Posthuma)

प्रश्न 7.
केंचुआ में प्रचलन विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंचुआ में प्रचलन विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंचुआ में प्रचलन (Locomotion in Earth Worm):
केंचुआ रेंगकर आगे बढ़ता है इसके प्रचलन में चार प्रकार की संरचनाएँ भाग लेती हैं।

  • शूक या सीटा (setae)
  • पेशियाँ (muscles)
  • मुख (mouth)
  • देहगुहीय द्रव का स्थैतिक दाब (hydrostatic pressure of coelomic fluid)

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन - 1
प्रचलन के निम्नलिखित मुख्य चरण होते हैं –
(a) सर्वप्रथम अम नौ खण्डों की वर्तुल पेशियाँ (circular muscle ) संकुचित होती हैं जिससे
यह भाग पतला एवं लम्बा हो जाता है और आगे की ओर बढ़ता है। इस भाग के शूक अन्दर खिच जाते हैं।

(b) जब संकुचन तरंग शरीर के मध्य भाग तक पहुँचती है तो मुख, चूषक की सहायता से जमीन पर चिपक जाता है। इस समय पश्च भाग के शूक बाहर निकल कर भूमि से चिपक जाते हैं।

(c) अब अग्र भाग की वर्तुल पेशी (circular muscle शिथिल हो जाती है तथा अनुदैर्ध्य पेशी संकुचित होती है जिससे यह भाग छोटा व मोटा हो जाता है तथा शूक बाहर निकल कर भूमि में गढ़ जाते हैं।

(d) इस प्रकार अनुदैर्ध्य पेशियों (vertical muscles) में संकुचन की तरंग आगे से पीछे की ओर बढ़ती है जिससे शरीर आगे की ओर बढ़ता है।

(e) इस प्रकार एक बार वर्तुल पेशियाँ (circular muscles) संकुचित होकर शरीर को लम्बा व पतला करती हैं जिससे शरीर आगे बढ़ता है। तत्पश्चात्, अनुदैर्ध्य पेशियाँ (vertical muscles) संकुचित होती हैं जिससे छोटा व मोटा होता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है और केंचुआ आगे बढ़ता जाता है । गमन क्रिया में जिस भाग की वर्तुल पेशियाँ संकुचित होती हैं, वहाँ के शूक शूकीय कोष में अन्दर खिंच जाते हैं तथा जिस भाग की अनुदैर्ध्य पेशियाँ संकुचित होती हैं वहाँ के शूक बाहर निकलकर भूमि में चिपक जाते हैं।

(f) केंचुआ चिकनी व खड़ी सतह पर गमन कर सकता है लेकिन इसमें श्लेष्मा एवं मुख का ही चित्र 7.35. गमन में विविध भागों के सिकुड़ने-फैलने उपयोग होता है। सीटा (setae ) का उपयोग नहीं होता है।

(g) केंचुआ की गमन दर 2-3 सेमी /प्रति सेकण्ड या एक मिनट में लगभग 25 सेमी होती है।

प्रश्न 8.
केंचुए की आहार नाल का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंचुए का पाचन तन्त्र (Digestive System of Earth Worm)
केंचुए की आहारनाल (Alimentary Canal of Eerthworm) – केंचुए की आहारनाल में निम्नलिखित भाग पाये जाते हैं –
(1) मुख (Mouth) – यह प्रथम खण्ड के अधर तल के अग्र सिरे पुरोमुख (prostomium) के नीचे स्थित होता है और अर्द्ध-चन्द्राकार ( Semilunar) होता है। यह अन्दर की ओर मुख गुहा में खुलता है।
(ii) मुख गुहिका (Buccal Cavity) – यह पहले से तीसरे खण्ड तक फैली रहती हैं। मुख इसी में खुलता है। मुख गुहिका भोजन के अन्तर्ग्रहण तथा गमन में सहायक होती है ।

(iii) प्रसनी (Pharynx) – मुख गुहिका पीछे की ओर प्रसनी से जुड़ी रहती है और तीसरे से चौथे खण्ड तक पायी जाती है। यह पेशीय होती है। प्रसनी का पृष्ठ भाग मोटा होता है। इसमें लार ग्रन्थियाँ तथा क्रोमोफिल कोशिकाएँ (chromophyll cells) पायी जाती हैं। लार ग्रन्थियाँ लार स्रावित करती हैं तथा क्रोमोफिल कोशिकाएँ लार के संश्लेषण में सहायक होती हैं। प्रसनी क्षैतिज पट द्वारा दो कोष्ठों में बँटी होती है –

(क) पृष्ठीय लार कोष्ठ (Dorsal Salivary Chamber),
(ख) अधरीय संवहन कोष्ठ (Ventral Conducting chamber)।

प्रसनी में पायी जाने वाली अरीय पेशियों के कारण यह चूषक (sucker ) अंग के समान कार्य करती है। लार में श्लेष्मा और प्रोटीन पाचक एन्जाइम पाये जाते हैं।
(iv) प्रसिका (Oesophagus) – यह प्रसनी के पीछे छोटी तथा पतली नली है जो 5वें से 7वें खण्ड तक फैली रहती है। इसकी दीवार में अनेक अनुप्रस्थ वलय (transverse rings) होते हैं।

(v) पेषणी ( Gizzard) – यह प्रसिका के पीछे 8वें खण्ड में स्थित होती है। इसकी दीवार में वर्तुल का मोटा स्तर पाया जाता है। पेषणी (gizzrd) की गुहा स्तम्भीय उपकला से स्तरित होती है । यह कठोर क्यूटिकल का स्त्रावण करती है। पेषणी (gizzrd) भोजन को पीसने का कार्य करती है। आन्त्र की पृष्ठभित्तिपेशियों का कटा खुला भाग (Dorsal wall of intestine cut open) आन्त्रवलन (Typhlosolar)
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(vi) आमाशय (Stomach) – पेषणी एक पतली नलिकानुमा रचना से पीछे की ओर मिलती है जिसे आमाशय कहते हैं। यह 9वें से 14वें खण्ड तक फैला रहता है। इसकी दीवारें प्रन्थिल होती हैं तथा इसमें अनुलम्ब वलन (longitudinal Folds) पाये जाते हैं। आमाशय की दीवारों पर कैल्सिफेरस ग्रन्थिल कोशिकाएँ (calciferous plandular cells) पायी जाती हैं। इनसे स्रावित होने वाला चूने के समान पदार्थ भोजन में है।

(vi) आमाशय (Stomach) – पेषणी एक पतली नलिकानुमा रचना से पीछे की ओर मिलती है जिसे आमाशय कहते हैं। यह 9वें से 14वें खण्ड तक फैला रहता है। इसकी दीवारें प्रन्थिल होती हैं तथा इसमें अनुलम्ब वलन (longitudinal Folds) पाये जाते हैं। आमाशय की दीवारों पर कैल्सिफेरस ग्रन्थिल कोशिकाएँ (calciferous glandular cells) पायी जाती हैं। इनसे स्त्रावित होने वाला चूने के समान पदार्थ भोजन में स्थित हामक अम्ल (humic acid) को उदासीन करके माध्यम को क्षारीय बनाता है।

(vii) आन्त्र (Intestine) – यह 15वें खण्ड से अन्तिम खण्ड (पाइजीडियम को छोड़कर) तक पायी जाती है। यह आमाशय से चौड़ी होती है। इसकी भीतरी सतह पक्ष्माभी, संवहनी, प्रन्थिल तथा वलित होती है।

आन्त्र के तीन भाग होते हैं –
(क) पूर्व आत्रवलन क्षेत्र (Pre- typhlosolar Region ) – यह भाग 15वें से 26वें खण्ड तक पाया जाता है। इसमें आन्त्रवलन (typhlosol) का अभाव होता है। 26वें खण्ड में एक जोड़ी आन्त्र सीकी (intestinal caeca) पायी जाती है जो कि 23वें खण्ड तक आन्त्र के दोनों ओर स्थित रहती है। इनसे पाचक एन्जाइम का त्रावण होता है।

(ख) आन्त्रवलन क्षेत्र (Typhlosolar Region) – यह 27वें खण्ड से अन्तिम 25 खण्डों को छोड़कर पाया जाता है। इन वलनों को विलाई ( villi) कहते हैं। यह क्षेत्र भोजन के अवशोषण में अत्यधिक सहायक होता है।

(ग) पश्च आत्रवलन क्षेत्र (Post Typhlosolar Region ) – यह क्षेत्र अन्तिम 25 खण्डों में पाया जाता है। इसमें आन्त्रवलन नहीं मिलता है। इस भाग को मलाशय भी कहते हैं।

(viii) गुदा (Anus) – आन्त्र का पश्च आन्त्रवलन (typhlosol ) भाग एक दरारनुमा छिद्र – गुदा के द्वारा बाहर खुलता है।

केंचुए की पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands of Earthworm):
(i) प्रसनी पुंज (Pharyngeal Bulb ) – यह प्रसनी (Pharynx) की पृष्ठ गुहा में स्थित होती है। इसमें प्रसनी ग्रन्थियाँ ( Pharongeal glands) होती हैं जो लार का स्त्रावण करती हैं। लार में प्रोटीन पाचक विकर ( enzymes ) तथा श्लेष्म होता है।

(ii) आमाशयी ग्रन्थिल उपकला (Glandular epithelium of Stomach)-ये आमाशय (stomach) की प्रन्थिल उपकला में स्थित होती हैं और प्रोटियोलाइटिक विकर स्त्रावित करती हैं। इसकी कैल्सिफेरस प्रन्थियाँ (calciferaes glands) मृदा के ह्यूमस को उदासीन भी करती हैं।

(iii) आंत्रीय अंधनाल (Intestinal Caeca) ये एमाइलेज विकर का स्त्रावण करती हैं।

(iv) आन्त्रीय ग्रन्थिल उपकला (Intestinal glandular Epithelium) – यह आंत्र की उपकला ( cuticle) में पायी जाती है तथा एमाइलेज, लाइपेज, तथा प्रोटिएज एन्जाइमों का स्त्रावण करती हैं।
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भोजन ग्रहण करना एवं पाचन (Feeding and digestion):
भोजन (Food) – केंचुआ सर्वाहारी (Omnivorous) प्राणी है। यह सड़ी गली पत्तियों, कीड़े मकोड़ों, शैवालों, रोटफर्स आदि को अपना भोजन बनाता है।

अशन (Feeding) – यह प्रसनी (pharynx) का प्रयोग प्रचूषक की भाँति करके भोजन का अर्न्तग्रहण करता है। इसके लिए यह मुखगुहा को बाहर की ओर उलटता है और भोजन युक्त मृदा को मुखगुहा में भरकर इसे वापस खींचता है। फिर प्रसनी (Pharynx) भोजन को अन्दर खींच लेती हैं। प्रसनी की ऐच्छिक पेशियाँ (voluntary mucles) इसमें भाग लेती हैं।

पाचन (Digestion) – केंचुए में बाह्य कोशिकीय पाचन पाया जाता है। प्रसनी में भोजन पहुँचते ही प्रोटीन पाचक विकर प्रोटीन को पेप्टोन्स में तोड़ देता है। प्रसनी से भोजन पेषणी में पहुँचता है जहाँ इसे बारीक पीसा जाता है। पेषणी या गिजर्ड (gizzard) में किसी प्रकार का पाचन नहीं होता है। यहाँ से भोजन आमाशय में पहुँचता है जहाँ शेष प्रोटीन्स को पेप्टोन्स में तोड़ा जाता है। आमाशय (stomach) की कैल्शीफेरस प्रन्थियों का स्राव मृदा के ह्यूमिक अम्ल का उदासीनीकरण करता है और अब भोजन आंत्र (intestine) में पहुँचता है। यहाँ पर भोजन का अन्तिम पाचन होता है।

आंत्र की अन्धनाल (caecum ) ग्रन्थियाँ पाचक रस का स्रावण करती हैं जिसके एन्जाइम निम्न प्रकार क्रिया करते हैं –
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अवशोषण (absorption ) – आंत्र में पचे हुए भोजन का रक्त केशिकाओं में पहुँचना अवशोषण कहलाता है। पचा हुआ भोजन आंत्र में आंत्रवलनी या टिफ्टोसोल द्वारा अवशोषित होता है।

स्वांगीकरण (Assimilation ) – अवशोषित भोज्य पदार्थों का कोशिका में पहुँचकर जीवद्रव्य का भाग बनना स्वांगीकरण ( assimilation) कहलाता है।

बहिक्षेपण (Egestion) – अपचित भोजन मलाशय में भेज दिया जहाँ से यह शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। अपचित भोजन या मल मलाशय से छोटी-छोटी गोलियों के रूप में बाहर निकाला जाता है। ये गोलियाँ बिल के बाहर एक ढेर के रूप में एकत्र की जाती हैं जिसे वर्म कास्टिंग (castings) कहते हैं।

प्रश्न 9.
केंचुए में उत्सर्जन अंगों का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर:
केंचुए का उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System of Earthworm)
केंचुआ यूरियोटेलिक (Ureotelic) प्राणी है। इसमें उत्सर्जी पदार्थ 55% यूरिया तथा 40% अमोनिया होता है। केंचुए में उत्सर्जी अंग वृक्कक या काएँ (नेफ्रीडया nephridia) होते हैं। ये प्रथम तीन खण्डों को छोड़कर शेष सभी खण्डों में पाये जाते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं –

  1. पट्टीय वृक्कक
  2. प्रसनी वृक्कक
  3. अध्यावरणीय वृक्कक।

(1) पट्टीय वृक्कक (Septal Nephridia ) – ये होलोनेफ्रिक (holonephric) होते हैं। ये वृक्कक 15वें खण्ड के बाद वाले सभी खण्डों में प्रत्येक पट की दोनों सतहों पर स्थित होते हैं। ये प्रत्येक खण्ड के एक ओर 40-50 हो सकते हैं। जो कि 20-25 के दो समूहों में पाये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक खण्ड में 80-100 पटीय वृक्कक होते हैं। ये आन्त्र में खुलते हैं। अतः ये आन्त्र मुखी होते हैं।

पट्टीय वृक्कक की संरचना-पट्टीय वृक्कक (septal nepheidia ) के निम्ललिखित प्रमुख भाग होते हैं –
(1) वृक्कक मुख या नेफ्रोस्टोम (Nephrostome ) – यह एक कीपनुमा संरचना होती है। यह ओष्ठों से घिरी रहती है। यह ओष्ठ कशाभी सीमान्तीय कोशिकाओं से बने होते हैं। कशाभी भाग आगे की ओर कुछ बढ़ा हुआ है जिसे ऊपरी होठ कहते हैं तथा दूसरा भाग निचला होठ कहलाता है। दोनों ओठों के बीच 5) दीर्घवृत्ताकार मुख होता है जो वृक्कक गुहा में खुलता है।
(ii) ग्रीवा (Neck) – यह एक पतली व छोटी नलिका होती है जो अन्दर से रोमयुक्त होती है। यह वृक्कक मुख को वृक्कक काय (naphridial body) की समीपस्थ भुजा से जोड़ती है।

(iii) वृक्कक काय (Nephridial Body ) – यह पट्टीय वृक्कक का सबसे बड़ा तथा मुख्य भाग है। यह दो भाग में बँटा होता है-
(क) सीधी पालि
(ख) कुन्तल पालि ।
सीधी पालि में 4 नलिकाएँ दो लूपों में पायी जाती हैं। प्रत्येक लूप की एक नलिका रोमयुक्त होती है। कुन्तल पालि (twisted loop) की लम्बाई सीधी पालि से दुगनी होती है। कुन्तल पालि के दूरस्थ भाग को शीर्ष पालि (एपीकल लूप) कहते हैं जिसमें दो नलिकाएँ उपस्थित रहती हैं।
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(iv) अन्तस्थ नलिका (Terminal Duct ) – यह कुन्तल पालि के पास के भाग से निकलती है। इसमें एक रोमयुक्त नलिका होती है।

(v) पट्टीय उत्सर्जी नलिका (Septal Excretory duct) प्रत्येक खण्ड में 4 पट्टीय उत्सर्जी नलिकाएँ उपस्थित होती हैं।

(vi) अधि आन्त्र उत्सर्जी नाल (Supra- Intestinal Exeretory Canals) – ये 15वें से अन्तिम खण्ड तक पायी जाती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकालने का कार्य करती हैं।

(2) प्रसनी वृक्कक (Pharangeal Nephridia) – ये वृक्कक 4, 5 एवं 6वें खण्डों से युग्मित गुच्छों (paired ganglia) के रूप में पाये जाते हैं। ये वृक्क तीन जोड़ी सहनलियों द्वारा आहार नाल में खुलते हैं। 6वें खण्ड के प्रसनी वृक्कक, दूसरे खण्ड की पाचक नली में, 5वें खण्ड के तीसरे खण्ड में तथा चौथे खण्ड के वृक्कक (nephridia) चौथे खण्ड की पाचक नलिका में खुलते हैं।

(3) त्वचीय या अध्यावरणी, वृक्कक ( Integumentary Nephridia ) – ये वृक्कक (nephridia ) प्रथम 6 खण्डों को छोड़कर शेष सभी खण्डों की देहभित्ति में पाये जाते हैं। प्रत्येक खण्ड में इनकी संख्या 200-250 तक तथा क्लाइटेलम ( clitelum) भाग में इनकी संख्या 2000-2500 तक होती है। इसलिए इस क्षेत्र को ‘वृक्कक वन’ (nephridia forest) कहते हैं। ये आकार में छोटे, ‘V’ आकार के तथा वृक्कक मुख विहीन होते हैं। अतः ये होलोनेफ्रिक होते हैं। ये वृक्कक रन्ध्रों (stomata) द्वारा शरीर की सतह पर खुलते हैं।
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उत्सर्जन की कार्यिकी (Physiology of Excretion) – केंचुए में प्रोटीन के उपापचय के फलस्वरूप नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण होता है। यह मुख्यतः यूरियोउत्सर्जी (Ureotelic) प्राणी है। इसके उत्सर्जी पदार्थ यूरिया (50%) अमोनिया 42% तथा अमीनो अम्ल एवं क्रिएटिनीम 8% होते हैं। यद्यपि तृप्त केंचुआ अमोनोटेलिक (72% अमोनिया) होता है।

केंचुआ के मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्कक होते हैं जो उत्सर्जन के साथ-साथ जल नियमन का कार्य भी करते हैं। केंचुए की क्लोरोगोगन कोशिकाएँ (Chloregogen cells) यूरिया एवं अमोनिया का निर्माण करके देहगुहीय द्रव (coelornic fluid) में पहुँचाती हैं।

उत्सर्जी पदार्थ वृक्ककों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। वृक्ककों की उपकला कोशिकाएँ जल अवशोषण में सहायक होती हैं। यहाँ से ये वृक्ककों की अन्तस्थ वाहिनियों (terminal vssels) द्वारा बाहर निकाल दिए जाते हैं। प्रसनी व पट्टीय वृक्कक आंत्रमुखीय होते हैं। अतः ये उत्सर्जी पदार्थों को आंत्र में डालते हैं। इससे जल का पुनः अवशोषण आहार नाल में हो जाता है।

अध्यावरणीय वृक्कक (Integumentary nephidia) बहि: मुखीय होते हैं अतः ये उत्सर्जी पदार्थों को देहगुहीय द्रव (coelomic fluid) से एकत्र कर स्वयं ही शरीर से बाहर निकाल देते हैं। कुछ मात्रा में उत्सर्जन की क्रिया श्लेष्मा कोशिकाओं द्वारा भी होती हैं क्योंकि श्लेष्म के साथ-साथ उत्सर्जी पदार्थ भी शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। केंचुए का मूत्र अम्लीय होता है तथा इसमें यूरिक अम्लों (uric acid) का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 10.
केंचुए के तन्त्रिका तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंचुए का तंत्रिका तन्त्र (Nervous System of Earthworm ) –
केंचुए में सुविकसित तंत्रिका तन्त्र होता है। इसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता – केन्द्रीय, परिधीय तथा अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र।

A. केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र (Central Nervous System) – केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र (CNC) एक जोड़ी अधि प्रसनी गुच्छक (supra pharyngeal ganglia), एक जोड़ी परिमसनी योजियों (peripharyngeal connectives), एक अधो उप प्रसनी गुच्छक (Sub-Pharyngeal ganglia) व अधर तंत्रिका रज्जु ( ventral nerve cord) का बना होता है।

तंत्रिका वलय (Nerve Ring) – यह शरीर के तीसरे खण्ड में प्रसनी (pharynx) के चारों ओर पाया जाता है। यह एक जोड़ी अधिप्रसनी गुच्छक या प्रमस्तिष्क गुच्छक (carebral ganglia), एक जोड़ी परिप्रसनी योजियों तथा 4वें खण्ड में स्थित अधिमसनी गुच्छक का बना एक वलय होता है। दोनों अधिग्रसनी गुच्छकों (sub pharyngeal ganglia) को मस्तिष्क के समरूप माना जाता है।

तंत्रिका रज्जु (Nerve Cord) – यह अधोग्रसनी गुच्छक से निकलकर अन्तिम खण्ड तक फैला रहता है तथा प्रत्येक खण्ड में फूलकर यह गुच्छक का निर्माण करता है। यह बाहर से देखने पर इकहरा दिखाई देता है किन्तु वास्तव में यह दोहरा होता है। तंत्रिका रज्ज (Nerve Cord) के मध्य से चार अनुदैर्ध्य महातन्तु निकलते हैं। जिनमें से एक मुख्य मध्य महा तन्तु, एक उपमध्य महातंतु तथा दो पाश्र्वय महातंतु होते हैं। ये खोखली संरचनाएँ हैं जिनमें एक तरल भरा रहता है। ये महातन्तु चेतावनी के समय शरीर को संकुचित करने में सहायक होते हैं। इन महातन्तुओं में उद्दीपन ( stimulus ) की दर सामान्य तंत्रिकाओं से 60 गुना तीव्र होती है। उद्दीपन शरीर में बहुदिशीय हो सकते हैं।
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B. परिधीय तंत्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System) – केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र से निकलने वाली तंत्रिकाएँ मिलकर परिधीय तंत्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं।

इसमें निम्नलिखित तंत्रिकाएँ होती हैं –
1. मस्तिष्क गुच्छिका (Brain ganglia ) – प्रत्येक मस्तिष्क गुच्छक की पार्श्व सतह से 8-10 जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती हैं, जो देहभित्ति, प्रोस्टोमियम, मुखगुहा व प्रसनी में जाती हैं ।

2. परिप्रसनी संयोजक (Circumpharyngeal connectives ) – इससे निकली दो जोड़ी तंत्रिकाएँ पेरीस्टोमियम तथा मुखगुहा में जाती हैं।

3. अधोग्रसनी गुच्छक (Supra pharyngeal ganglia ) – इससे तीन जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती हैं जो 2, 3, 4 वे खण्डों के अंगों में जाती हैं।

4. तंत्रिका रज्जु (Nerve Cord) – तंत्रिका रज्जु के प्रत्येक खण्डीय गुच्छक से तीन जोड़ी पार्श्व तंत्रिकाएँ निकलती हैं। जिनमें से एक जोड़ी शूक (seta) पंक्ति के आगे तथा दो जोड़ी उनके पीछे जाती हैं और अपने-अपने खण्डों की पेशियों एवं त्वचा में जाती हैं।
इन तंत्रिकाओं में संवेदी व चालक (sensory and motor) दोनों प्रकार के तंत्रिका तन्तु होते हैं। अतः ये मिश्रित प्रकार की होती हैं।
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C. अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Sympathatic Nervous System) – अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (SNS) सम्पूर्ण शरीर में एक जालक के रूप में पाया जाता है। यह अधिधर्म के नीचे पेशियों तथा आहार नाल में फैला रहता है और यह परिप्रसनीय संयोजनियों (circumpharyngeal connectives) से जुड़ा होता है। यह सभी आन्तरिक अंगों की क्रियाओं को नियन्त्रित करता है।

तंत्रिका तन्त्र कार्यविधि केंचुए में कशेरुकों के समान प्रतिवर्ती चाप (peflex arch) पाया जाता है क्योंकि त्वचा में उपस्थित संवेदागों से संवेदनाएँ संवेदी तंत्रिकाओं द्वारा तंत्रिका रज्जु में पहुँचायी जाती हैं। जहाँ युग्मानुबंधन (synapse) द्वारा ये चालक न्यूरोन (neuron) के माध्यम से अपवाहक अंगों की पेशियों में पहुँचा दी जाती हैं। संवेदी व प्रेरक तंत्रिका तन्तुओं के मध्य समायोजन तंत्रिका तन्तु भी पाए जाते हैं। ये संवेग को संवेदी तन्तुओं से प्रेरक तन्तुओं तक पहुँचाते हैं। केंचुए में संवेग संचरण की दर लगभग 600 मी / से होती है।
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प्रश्न 11.
केंचुए के नर एवं मादा जननांगों का केवल नामांकित चित्र
उत्तर:
कॉकरोच का परिसंचरण तन्त (Circulatory System of Cockroach):
अन्य कीटों की भाँति कॉकरोच में रुधर परिसंचरण खुले(Open) प्रकार का होता है। अर्थात् रधधिर नलिकाओं (Vessels) में न बहकर देहगुहा (Coelom) में भरा रहता है। रुधर परिसंचरण तंत्र को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. हीमोसील,
  2. हृदय, तथा
  3. रुधिर।

1. ह्रीमोसील (Haemocoel)-कॉकरोच की देहगुहा हीमोसील (haemocoel) कहलाती है। यह आन्तरिक मीजोडर्म के उपकला द्वारा आच्छादित नहीं होती अतः यह अवास्तविक देहगुहा (pseudocoelome) कहलाती है। हीमोसील दो पेशीय कलाओं द्वारा तीन कोष्ठकों में विभाजित रहती है। ये कोष्ठक हैं-पृष्ठकोटर (dorsal sinus) अथवा हृदयावरणी हीमोसील (perivisceral sinus), मध्यकोटर या परिअंतरंग हीमोसील तथा अधर कोटर या अधरक हीमोसील। मध्य कोटर अन्य दोनों कोटरों की अपेक्षा अधिक बड़ा होता है तथा तीनों कोटरों का रुधिर आपस में मिल जुल सकता है।

2. हृदय (Heart) -हृदय पृष्ठकोटर में स्थित रहता है। यह एक लम्बी पेशीय क्रमांकुचनी संरचना है जो कि वक्ष (thorax) तथा उदर के पृष्ठ भाग में टर्गम के ठीक नीचे मध्य रेखा में व्यवस्थित रहती है। कॉकरोच का हुदय कुल 13 खण्डों का बना है जिसमें 3 खण्ड वक्ष में तथा शेष 10 खण्ड उदर भाग में रहते हैं। हृदय (heart) का पश्च सिरा बन्द रहता है, जबकि इसका अग्र सिरा महाधमनी (aorata) के रूप में आगे बढ़ता है। हृदय (Heart) के पश्चखण्ड को छोड़कर अन्य सभी खण्डों में पार्श्व स्थिति में एक एक जोड़ी छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostea) कहते हैं।

प्रत्येक खण्ड में कपाट (valves) होते हैं जो रुधर को हुदय के अन्दर जाने देते हैं किन्तु वापस नहीं आने देते। हृदय के प्रत्येक प्रकोष्ठ (sinus) के पार्श में एलेरी पेशियाँ (alary muscles) पायी जाती हैं जिनके संकुचन से परिहृदय कोटर (perichordial sinus) की गुहा का आयतन बढ़ जाता है तथा शिथिलन से वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है। कॉकरोच का हृदय न्यूरोजेनिक (nurogenic) होता है अर्थात् इसकी क्रिया प्रणाली हृदय से नियंत्रित होती है। रुधिर पश्च सिरे से अप्र सिरे की ओर बहता है।

3. रधिर लसीका या हीमोलिम्फ (Haemolymph)-कॉकरोच का रुधर लसीका (blood lymph) रंगहीन होता है क्योंकि इसमें हीमोग्लोबिन या अन्य कोई श्वसन वर्णक (respiratory pigment) नहीं पाया जाता है। इसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (plasma) तथा श्वेत रुधिराणु (white blood carpuscles)।
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प्लाज्मा रंगहीन क्षारीय (alkaline) द्रव है इसमें 70% तक जल होता है। इसमें Na, K, Ca,Mg,PO4 आदि अकार्बनिक लवण (inorganic salts) भी होते हैं। कार्बनिक पदार्थों के रूप में इसमें अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल, वसा, प्रोटीन आदि पदार्थ होते हैं। श्वेत रुधिराणु दो प्रकार के होते हैं-भक्षाणु (phagocytes) तथा प्रोल्यूकोसाइट (proleucocytes)। रुधि लसीका विभिन्न पदार्थों, लवणों, जल आदि का संवहन करती है। इसमें श्वसन वर्णकों (resipratory pigments) के अभाव के कारण यह वायु का संवहन नहीं करता है।

प्रश्न 12.
कॉकरोच के कंकाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कंकाल (Skeleton) – कॉकरोच में मुख्यत: बाह्य कंकाल पाया जाता है, परन्तु आन्तरिक पेशियों को जुड़ने का स्थान प्रदान करने के लिए कुछ मात्रा में अन्तक्कंकाल (endoskeleton) भी पाया जाता है।

बाहु कंकाल (Exoskeleton) – बाद्य कंकाल काइटिन का बना होता है। यह शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है। इसके ऊपर अपारगम्य (Impermeable) मोमिया आवरण पाया जाता है। बाह्य कंकाल छोटी-छोटी प्लेटों का बना होता है। जिन्हें स्कलेराइटस (sclerites) कहते हैं। दो स्कलेराइट्स (sclerites) को जोड़ने के लिए संधिकारी कलाएँ पायी जाती हैं। उदर व वक्ष में प्रत्येक खण्ड में चार स्क्लेराइट्स (sclerites) होती हैं जिनमें से पृष्ठतलीय टरगम (tergite), अधरतलीय स्टनम (sternite) तथा पाश्वों में एक-एक महीन प्लूराइट्स (pleurites) होती हैं।

अन्त:कंकाल (Endoskeleton) – बाह्य कंकाल के प्रवर्ध (processes) अन्दर की ओर घुसकर अन्तक़ंकाल बनाते हैं जिसे एपोडीम्स (apodemes) कहते हैं। ये कॉकरोच की पेशियों को जुड़ने के लिए संधि स्थल प्रदान करता है। तम्बू के आकार की एक प्लेट सिर का अन्तक्कंकाल बनाती है जिसे टेन्टोरियम (tentorium) कहते हैं। इसके मध्य भाग में एक छिद्र पाया जाता है तथा इससे तीन जोड़ी भुजाएँ निकलती हैं। (अग्र व पश्च)। उदर (abdomen) भाग में अंतक़ंकाल का अभाव होता हैं।
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प्रश्न 13.
कॉकरोच के मुखांगों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपांग (Appendages) – संधियुक्त (jointed) उपांग संघ आर्थोोपोडा (arthropoda) का प्रमुख लक्षण है। कॉकरोच के तीनों भागों में संधियुक्त उपांग पाए जाते हैं।

A. सिर के उपांग (Appandages of Head) -कॉकरोच के सिर भाग में श्रृंगिकाएँ एवं मुखांग दो प्रकार के उपांग (appendages) होते हैं।
1. एण्टिनी या श्रृंगिकाएँ (Antennae)-ये शरीर से भी लम्बी एवं पतली, धागेनुमा गतिशील उपांग (appendages) होते हैं। जो स्पर्श (Tctile), गंध ज्ञान (olfactory) एवं लाप (thermal) उद्दीपनों को प्रहण करने का कार्य करती हैं। इन्हें स्पर्श सूत्र भी कहते हैं। प्रत्येक श्रृंगिका अपनी ओर के संयुक्त नेत्र (compound eyes) के निकट एक पृष्ठतलीय श्रृंगिकीय गक्षे (antennal socket) से निकलती हैं।

यह बहुत से छोटे-छोटे खण्डों अर्थात् पोडोमीयर्स (podomeres) की बनी होती हैं। सबसे पहला आधार पोडोमीयर बड़ा होता है। इसे स्केप (scape) भी कहते हैं। दूसरा बेलनाकार होता है, इसे पेडिसल (pedicel) कहते हें। शेष लम्बे भाग को कशाभ (flagellum) कहते हैं। इस पर स्पर्श संवेदना के लिए अनेक संकेदी सीटी (sensory stae) होती हैं।

2. मुखांग (Mouth Parts)-कॉकरोच के मुख से सम्बन्धित काटने व चबाने के लिए अनुकूलित मुखांग (mouth parts) पाए जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) ऊर्धोष्ठ या लेब्रम (Labrum) – यह मुखद्वार षर सिर कोष की सबसे निचली, चपटी व गतिशील स्कलेराइट (sclerite) है जो लचीली पेशियों द्वारा मुखपाली या क्लाइपीयस (clypeus) से जुड़ी होती है। इसके दोनों ओर दो स्वाद ग्राही सीटी की श्रृंखलायें पायी जाती हैं। इसे ऊपरी ओष्ठ (upper lip) भी कहते हैं। यह सिर के तीसरे खण्ड का उपांग होता है।

(ii) मैन्डिबल (Mendibles) – इसमें एक जोड़ी कठोर गहरे रंग के मैन्डिबल (Mendibles) मुख द्वार के पार्श्व में पाये जाते हैं। ये त्रिभुजाकार काइटिन की प्लेंट है जो सिर के 4th खण्ड का उपांग होती है। इसके भीतरी किनारे पर 3 नुकीली दंन्तिकाएं (denticles) पायी जाती हैं ति उनके नीचे छोटी आरी के समान चवर्णक अंग पाये जाते हैं। 3 नुकीले दन्तुर इनसाइजर (inscisors) दाँतों के समान व छोटा चवर्णक क्षेत्र मोलर दाँतों के समान कार्य करता है।

मैण्डीबल के भीतरी निचले क्षेत्र पर एक कोमल गद्दी पायी जाती है। जिसे प्रोस्थीका (prostheca) कहते हैं। इस पर स्पर्श संवेदी सीटा पाये जाते हैं। मेन्डीबल सिर में जीनी (genae) से जुड़े होते हैं इनके बीच कन्दुक उलुखन सन्धि (Ball-socket-joint) पायी जाती है।
मेंडीबल दो प्रकार की पेशियों से जुड़ी होती हैं। भीतरी सतह पर अभिवर्तनी पेशियाँ तथा बाहरी अष्वर्तनी पेशियाँ या एक्डेक्टर पेशियाँ।

3. प्रथम मैक्सिली (First Maxillae) -ये मुखद्वार के पाश्वों में, मैन्डीबल्स के आगे एक-एक होती है। प्रत्येक मैक्सिला कई पोडोमीयर्स की बनी होती हैं। इसके आधार भाग अर्थात् प्रोटोपोडाइट में कार्डों (cardo) एवं स्टाइप्स (stipes) नामक दो पोडोमीयर्स होते हैं। काडों पेशियों द्वारा सिर कोष से तथा स्टाइप्स से 90 के कोण पर कार्डों से जुड़ा होता है।

स्टाइप्स (stipes) के दूरस्थ छोर के बाहरी भाग से एक पतला पंचखण्डीय बाहत पादांग (expodite) जुड़ा होता है। इसे मैक्सिलरी स्पर्शक (maxillary palp) कहते हैं। इसके छोटे आधार पोडोमीयर को पैल्पीफर (palpifer) कहते हैं। स्टाइप्स के छोर से ही जुड़ा अंत:पादांग (endopodite) होता है। इसमें परस्पर सटी दो पोडोमीयर्स होती हैं-बाहरी गैलिया (galea) तथा भीतरी लैसीनिया (lacinia)।

गैलिया कोमल तथा आगे से चौड़ी, छत्ररूपी (hood like) होती है। लैसीनिया (lacinia) कठोर तथा आगे से नुकीली, पंजेनुमा होती है। इसके सिरे पर दो कंटिकाएँ तथा भीतरी किनारों पर अनेक नन्हे शूक (satae) होते हैं। इनके द्वारा प्रथम मैक्सिली (First maxillae) भोजन को उस समय पकड़े रहती हैं जब मैण्डीबल्स भोजन को चबाते हैं। लैसीनिया के शूकों (statae) द्वारा मैक्सिली, बुश की भाँति अन्य मुखांगों (mouth parts) की सफाई भी करती रहती हैं।

4. द्वितीय मैक्सिली (Second Maxillae)-ये समेकित होकर एक सह रचना बनाती हैं। जिसे लेबियम (labium) या निचला होठ (lower lip) कहते हैं। इसका आधार भाग बड़ा सा चपटा सबमेष्टम (submentum) होता है जो इसे सिर कोष से जोड़ता है। सबमेण्टम के आगे छोटा मेण्टम (mentum) इससे जुड़ा होता है। लेबियम (labium) का शेष, शिखर भाग प्रथम मक्सिली की भाँति एक जोड़ी रचनाओं का बना होता है जिनके आधार भाग मिलकर प्रीमेण्टम (prementum) बनाते हैं।

सबमेण्टम, मेण्टम और प्रीमेण्टम मिलकर लेबियम का प्रोटोपोडाइट (protopodite) बनाते हैं। प्रीमेण्टम के प्रत्येक पाश्र्व में एक पैल्पीजर (palpiger) नामक स्कलीराइट (sclerites) होती है। इससे एक त्रिखण्डीय, बाह्य पादांग (expodite) जुड़ा होता है जिसे लेबियल स्पर्शक कहते हैं।

प्रीमेण्टम के सिरे पर मध्य भाग से लगे, दो छोटे ग्लोसी (glossae) तथा बाहरी भागों से लगे एक-एक बड़े पैराग्लोसी (Paraglossae) नामक पोडोमीयर्स होते हैं। ये मिलकर इन मैक्सिली के अन्न:पददांग बनाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से लिगूला (ligula) भी कहते हैं। पैल्स्स के अन्तिम खण्डों तथा पैराग्लोसी पर स्पर्शक एवं स्वाद ज्ञान की संवेदी सीटी (sensory setae) होती है।

5. हाइपोफेरिक्स या लिख्वा (Hypopharynx or Lingua)-यह लेबियम के पृष्ठतल पर, लेब्रम से ढका, प्रथम मैक्सिली (first maxillae) के बीच में, मुखद्वार के छोर से लगा हुआ बेलनाकार सा मुख उपांग होता है। इसके स्वतन्त्र छोर पर अनेक संवेदी सीटी होती हैं। आधार भाग पर सह लार नलिका (common salivary duct) का छिद्र होता है।
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B. वक्ष उपांग (Thoracic Appandages)-वक्ष भाग के तीन खण्डों की प्लूराइट्स (plurites) से जुड़े तीन जोड़ी लम्बे पाश्व उपांग चलन-पाद होते हैं। इन्हीं के द्वारा कॉकरोच तेजी से दौड़ता है। रचना में छहों पाद समान होते हैं। प्रत्येक पाद में पाँच प्रमुख पोडोमीयर्स आधार से शिखर की ओर क्रमशः होते हैं-

  • लम्बा व चौड़ा कॉक्सा (coxa) जो चल संधि द्वारा अप्रनी ओर के प्लूराइट्स से जुड़ा रहता है।
  • कॉक्सा पर स्वतन्त्र हिलने-डुलने वाला छोटा-सा ट्रोकेन्टर (trocanter),
  • लम्बी बेलनाकार एवं चल फीमर (Femur),
  • फीमर से लम्बी, परन्तु पतली टिबिया (Tibia) तथा
  • लम्बा व पतला टारसस (tarsus) जो स्वयं पाँच खण्डों या टारसोमीयर्स का बना होता है।

अन्तिम टारसोमीयर के शीर्ष पर प्रीटार्सस (pretarsus) नामक रचना होती है। इसमें दोनों ओर एक-एक कांटे नुमा पंजा होता है। तथा बीच में एक शूक युक्त, एरोलियम नामक चौड़ी-सी चिपचिपी गद्दी। पूरे पाद पर नन्हीं, काँटेनुमा सीटी होती हैं। टारसस के विभिन्न खण्डों के बीच प्लैंटुली (plantulae) नामक छोटी-छोटी चिपचिपी गद्धियाँ (pads) होती हैं। इन गद्दियों और एरोलियम (proluim) की सहायता से कॉकरोच चिकनी सतहों पर चल सकता है तथा दीवारों पर चढ़ उतर सकता है।

पंख (Wings) – कॉकरोच में दो जोड़ी पंख पाये जाते हैं। नर में पंख मादा की तुलना में बड़े होते हैं। अप्र पंख मीजोथेरक्स (mesothoraz) से व पश्च पंख मेटाथोरेक्स (metathorax) से निकलते हैं। अप्रवक्ष खण्ड पर पंख नहीं पाये जाते है।

(i) प्रथम जोड़ी पंख (First pair wings) – इन्हें पक्षवर्म या टेगमिना (elytra or tegmina):
भी कहा जाता है। ये मोटे कठोर अपारदर्शी व चमकीले होते हैं तथा विश्राम अवस्था में दूसरी जोड़ी पंखों को ढके रहते हैं। इसलिए इन्हें ढापन पंख भी कहते हैं। विश्राम करते समय इनमें से बाँया पंख सदैव दायें पंख को थोड़ा सा ढके रहता है। ये उड़ने में सहायता नहीं करते हैं। ये सुरक्षा का कार्य करते हैं।

(ii) द्वितीय जोड़ी पंख (Second pair-wings) – ये पतले, पारदर्शी व चौड़े होते हैं तथा उड़ने में सहायक होते हैं, परन्तु उड़न पेशियों के कम विकसित होने के कारण छोटी-छोटी उड़ाने ही भर सकते हैं।

पखों का उद्भव व निर्माण (Origin and formation of wings) – पंखों का उद्भव श्रुण काल मे वक्षीय टरगम (नोटम) व प्लूरोन (plunon) के बीच की अधिचर्म के बर्हिवलन से होता है। इस बर्हिवलन की दो स्तरों के बीच हीमोसिल की रक्त केशिकाएँ पायी जाती हैं जो भ्रूण काल में पंखों को ऑक्सीजन व भोजन का संवहन करती हैं।

वयस्क में दोनों स्तरों के बीच की अधिचर्म (epidermis) समाप्त हो जाती है व केशिकाओं का हीमोलिम्फ (haemolymph) सूख जाता है। केशिकाएँ कठोर हो पंखों को अवलम्बन (support) प्रदान करती हैं। इन केशिकाओं को अब शिरायें या नर्वूर्स (Nervures) कहते हैं। कॉकरोच के पंखो से चार प्रकार की पेशियाँ जुड़ी होती हैं परन्तु ये कमजोर होती हैं इसलिए यह लगातार नहीं उड़ सकता है केवल $2-3$ मीटर लम्बी उड़ान भर सकता है।
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(C) उदर के उपांग (Appendages of Abdoman):
उदर भाग में पार्श्व उपांग नहीं पाये जाते हैं इसके उदर भाग में वयस्क (adult) अवस्था में 10 खण्ड पाये जाते हैं। उदर में 5 वें एवं 6 वें खण्ड के टरगम के बीच की झिल्ली पर गन्ध-प्रन्थियाँ (stinkle glands) पायी जाती हैं। इसका साव शत्रुओं को भगाने व नर द्वारा मादा (male and female) को आकर्षित करने में किया जाता है।
उदर के 10 वें खण्ड के पश्च भाग में उपांग पाये जाते हैं जो नर व मादा में भिन्न-भिन्न होते हैं।

(i) गुदा लूम या एनल सरसाई (Anal cerci) – ये नर व मादा (male and female) दोनों में पायी जाती हैं। 10 वें खण्ड का टरगाइट द्विभाजित होता है। इसी में एनल सरसाई (anal cerci) निकलती हैं। ये 15 खण्डों की बनी होती है इन पर पतले संवेदी रोम पाये जाते हैं जो ध्वनि तरंगों के प्रति संवेदी होते हैं। इनके द्वारा यह भूकम्प के समय भूमि में हुए सूक्ष्म कम्पनों को भी पहचान सकता है।

(ii) गुदाशूक या एनल स्टाइल (Anal Styles) – ये केवल नर में पाये जाते हैं तथा 9 वें खण्ड के स्टरनम (sternum) से जुड़े होते हैं। ये अखण्डित होती हैं व मैथुन क्रिया में सहायता करती हैं।

प्रश्न 14.
कॉकरोच की आहार नाल तथा पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कॉकरोच का पाचन तंग्र (Digestive System of Cockroach)
कॉकरोच के पाचन तन्त्र में मुखांग (mouth parts), आहार नाल (alimentory canal) व लार ग्रन्थियाँ (salivary glands) सम्मिलित हैं।

कॉकरोच की आहारनाल (Alimentary Canal of Cockroach):
कॉकरोच के आहार नाल को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. अग्रान्त्र
  2. मध्यान्त्र तथा
  3. पश्चान्त्र।

(1) अम्रान्न (Foregut) – यह आहारनाल का सबसे अगला व लगभग एक-तिहाई भाग होता है। इसका भीतरी भाग क्यूटिकल (cuticle) से स्तरित होता है। इसमें निम्नलिखित चार भाग होते हैं-

  • मुख (Mouth) – मुख वाला क्षेत्र पूर्व मुख गुहा के आधार पर स्थित रहता है और प्रसिका में खुलता है।
  • ग्रसिका (Oesophagus) – आहारनाल का यह भाग ग्रीवा एवं प्रोथोरेक्स में. स्थित रहता है तथा अन्नपुट (crop) में खुलता है। यह अन्दर से बेलनाकार होता है।
  • अन्नपुट (Crop) – आहारनाल का यह भाग थैलाकार होता है। अन्नपुट मीसोथोरेक्स, मेटाथोरेक्स तथा उदर के 3-4 खण्डों में फैला रहता है।
  • पेषणी. (Gizzard) – यह एक छोटी तथा मोटी दीवारों वाली शंक्वाकार (conical) रचना है।

इसकी अवकाशिका क्यूटिकल से स्तरित होती है। इसमें वर्तुल पेशी पायी जाती है। इसके अग्रभाग को शस्तागार (armarium) कहते हैं। शस्तागार में 6 क्यूटिकुलर दाँत पाये जाते हैं। इनमें पेशियाँ भी होती हैं तथा इन पर दुक शूक (bristles) लगे रहते हैं। पेषणी (Gizzard) के पश्च भाग पर शूकयुक्त प्रन्थियाँ स्थित होती हैं। यह भाग मध्यान्त्र में धँसकर स्टोमोडियल वाल्व (stomdeate valve) का निर्माण करता है। यह भोजन को अग्रान्त से मध्यान्त्र में तो जाने देता है, किन्तु वापस नहीं लौटने देता है।
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2. मध्यान्त्र (Midgut) – यह आहारनाल का नलिका के समान 1/3 भाग होता है। इसका अगला भाग कार्डिया (cardia) कहलाता है, जिसमें 6-8 हिपेटिक सीकी आकर खुलती है। इनके दूरस्थ सिरे बन्द होते हैं। इनमें पाचक एन्जाइम होते हैं। हिपेटिक सीकी पूर्वान्न्र (Archentron) तथा मध्यान्त्र के जोड़. पर लगी रहती है। मध्यान्त्र (mesentron) का अगला शग स्रावी तथा पिछला भाग अवशोषी होता है।

3. पश्चान्त्र (Hindgut) – पश्चान्त्र में निम्नोक्त चार भाग होते हैं-
क्षुदान्त्र (Ileum) – मध्यान्त्र तथा पश्चान्त्र के जोड़ पर मैलपीघी नलिकाएँ (malpighi tuvules) पायी जाती हैं। क्षुद्रान्त छोटी, पतली नलिका के समान रचना होती है। यह अन्दर से क्यटिकल से आस्तरित रहती है तथा इसमें छोटी कंटिका पायी जाती है।
(ii) कोलोन (Colon) – यह एक मोटी लम्बी कुण्डलित जैसी नलिका है और कंटिका रहित होती है।

(iii) मलाशय (Rectum) – यह आहारनाल (alimentary canal) का अन्तिम छोटा व अण्डाकार भाग होता है। इसमें 6 अनुलम्ब मलाशयी अंकुर (rectal papillae) होते हैं। यह भी क्यूटिकल (cuticle) से स्तरित रहता है।

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(iv) गुदा (Anus) – इसके द्वारा मल त्याग किया जाता है।
लार ग्रन्धियाँ (Salivary glands) -कॉकरोच में एक जोड़ी लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands) उपस्थित होती हैं। ये ग्रासनाल एवं अन्नपुट (crop) के अग्र भाग के दोनों ओर चिपकी रहती हैं। यह द्विपालित होती हैं तथा प्रत्येक के दो भाग होते हैं। ग्रन्थिल भाग तथा लार आशय। ग्रन्थिल भाग (glandular part) -तीन पालियों का बना होता है जिनमें से दो पालियाँ बड़ी तथा एक बहुत छोटी होती हैं। प्रत्येक पाली पुन: अनेक पिण्डों में बँटी होती है और अंगूर के गुच्छे की भाँति दिखाई देती है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं। ये जाइमोजन कोशिकाएँ तथा नलिका युक्त कोशिकाएँ कहलाती हैं। ये लार, श्लेष्म, एवं एमाइलेज विकर का स्रावण करती हैं।

दोनों पालियों की लार नलिका मिलकर सह लारनलिका (Common reservoir duct) बनाती है तथा दोनों लार आशयों से निकली वाहिनी भी मिलकर सहपात्र नलिका बनाती है। सहलार नलिका एवं सहपात्र नलिका संयुक्त होकर अपवाही लार नलिका बनाती हैं जो हाइपोफेरेंक्स के आधार भाग में खुलती हैं। लार नलिकाओं व आशय नलिकाओं के भीतरी भाग पर क्यूटिकल के वलय पाए जाते हैं जो इन्हें चिपकने से बचाते हैं।
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आहार एवं पाचन की कार्यिकी (Food and Physiology of digestion)
1. भोजन (Food)-कॉकरोच सर्वाहारी (Omnivorous) प्राणी है। यह अनाज; फल, ब्रेड, रोटी, माँस, कागज, सब्चियों, कपड़ा एवं लकड़ी को अपना भोजन बनाता है। भोजन न मिलने पर यह मल, कूड़ाकरकट यहाँ तक कि स्वजाति के मृत कॉकरोचों को भी खा लेता है।

2. भोजन का अन्तर्गहण (Ingestion of food)-कॉकरोच अपनी श्रृंगिकाओं (antennae) की सहायता से अपना भोजन तलाशता है। यह अग्रपाद, लेब्रम व लेबियम की सहायता से भोजन को पकड़कर मुखपूर्व गुहा तक लाता है जहाँ मैण्डिबल उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है। लेसिनिया, गैलिया, पैराग्लोसा व ग्लोसा भोजन को कुतरते समय बाहर गिरने से रोकते हैं। यहाँ से भोजन मुखगुहा के सेलिवेरियम में पहुँचता है। यदि कॉकरोच के मैण्डीबल (mandibles) को हटा दिया जाय तो वह भोजन को काट नहीं पाएगा और भूख के कारण कॉकरोच की मृत्यु हो जाएगी।

पाचन (Digestion) – भोजन का पाचन मुखगुहा से ही प्रारम्भ हो जाता है, क्योंकि मुखगुहा की लार (saliva) में उपस्थित एमाइलेज विकर मण्ड (starch) को तोड़कर उसे माल्टोस में बदल देता है। लार में काइटिनेज एवं सेल्युलेस विकर भी पाए जाते हैं। मुखगुहा से भोजन प्रसनी (oesophagus) व प्रसिका से होता हुआ अन्नपुट (crop) में पहुँचता है। इस क्रिया में क्रमाकुंचन गति सहायक होती हैं। मध्यांत्र से कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन व वसा पाचक विकर पेषणी से होते हुए अन्नपुट (crop) में आ जाते हैं।

  • कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम-इनवरेंस, माल्टेस, लेक्टेस।
  • प्रोटीन पाचक एन्जाइम-ट्रिप्सिन, प्रोटिएज, पेप्टिडेज।
  • वसा पाचक एन्जाइम-प्रायः लाइपेस।

कीटों में पेप्सिन एन्जाइम का स्रावण नहीं होता क्योंकि यह कम pH पर कार्य करता है और कीटों की आहारनाल का pH अधिक होता है। पेषणी (gizzand) की भीतरी दीवार में काइटिन के बने छ: दन्तुर (dentacles)पाए जाते हैं जो भोजन को महीन पीस देते हैं तथा दन्तुरों (dentacles) के बीच पाए जाने वाले शूकों के कारण बनी छलनी जैसी रचना से भोजन कण छनकर स्टोमोडियल कपाट (stamodial valve) द्वारा मध्यांत्र (midgut) में प्रवेश कर जाता है। यहाँ उपस्थित ग्रन्थियाँ, भोजन के चारों ओर परिपोष झिल्लियाँ बना देती हैं जिससे भोजन के कठोर कणों से मंध्यात्र को हानि न हो। मध्यांत्र (midgut) के अग्रभाग में हिपेटिक सीका (Hapatic caeca) द्वारा स्नावित विकर भोजन का पूर्ण पाचन करते हैं।

अवशोषण (Absorption) -पचित भोजन का अवशोषण मंध्यात्र व हिपेटिक सीका (hepatic caeca) द्वारा होता है। अतिरिक्त भोजन वसा, ग्लाइकोजन, एल्ड्यूमिन का संप्रह वसा काय (Fat bodies) में किया जाता है। वहिक्षेपण (Egestion)-अपचित भोजन पश्चान्त्र में पहुँचता है जहाँ पर जल एवं लवणों का अवशोषण होकर मल की छोट़ी-छोटी गोलियाँ बना दी जाती हैं जिन्हें शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

प्रश्न 15.
कॉकरोच के परिसंचरण तन्त्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

कॉकरोच का परिसंचरण तन्त (Circulatory System of Cockroach):
अन्य कीटों की भाँति कॉकरोच में रुधर परिसंचरण खुले(Open) प्रकार का होता है। अर्थात् रधधिर नलिकाओं (Vessels) में न बहकर देहगुहा (Coelom) में भरा रहता है। रुधर परिसंचरण तंत्र को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. हीमोसील,
  2. हृदय, तथा
  3. रुधिर।

1. ह्रीमोसील (Haemocoel)-कॉकरोच की देहगुहा हीमोसील (haemocoel) कहलाती है। यह आन्तरिक मीजोडर्म के उपकला द्वारा आच्छादित नहीं होती अतः यह अवास्तविक देहगुहा (pseudocoelome) कहलाती है। हीमोसील दो पेशीय कलाओं द्वारा तीन कोष्ठकों में विभाजित रहती है। ये कोष्ठक हैं-पृष्ठकोटर (dorsal sinus) अथवा हृदयावरणी हीमोसील (perivisceral sinus), मध्यकोटर या परिअंतरंग हीमोसील तथा अधर कोटर या अधरक हीमोसील। मध्य कोटर अन्य दोनों कोटरों की अपेक्षा अधिक बड़ा होता है तथा तीनों कोटरों का रुधिर आपस में मिल जुल सकता है।

2. हृदय (Heart) -हृदय पृष्ठकोटर में स्थित रहता है। यह एक लम्बी पेशीय क्रमांकुचनी संरचना है जो कि वक्ष (thorax) तथा उदर के पृष्ठ भाग में टर्गम के ठीक नीचे मध्य रेखा में व्यवस्थित रहती है। कॉकरोच का हुदय कुल 13 खण्डों का बना है जिसमें 3 खण्ड वक्ष में तथा शेष 10 खण्ड उदर भाग में रहते हैं। हृदय (heart) का पश्च सिरा बन्द रहता है, जबकि इसका अग्र सिरा महाधमनी (aorata) के रूप में आगे बढ़ता है। हृदय (Heart) के पश्चखण्ड को छोड़कर अन्य सभी खण्डों में पार्श्व स्थिति में एक एक जोड़ी छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostea) कहते हैं।

प्रत्येक खण्ड में कपाट (valves) होते हैं जो रुधर को हुदय के अन्दर जाने देते हैं किन्तु वापस नहीं आने देते। हृदय के प्रत्येक प्रकोष्ठ (sinus) के पार्श में एलेरी पेशियाँ (alary muscles) पायी जाती हैं जिनके संकुचन से परिहृदय कोटर (perichordial sinus) की गुहा का आयतन बढ़ जाता है तथा शिथिलन से वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है। कॉकरोच का हृदय न्यूरोजेनिक (nurogenic) होता है अर्थात् इसकी क्रिया प्रणाली हृदय से नियंत्रित होती है। रुधिर पश्च सिरे से अप्र सिरे की ओर बहता है।

3. रधिर लसीका या हीमोलिम्फ (Haemolymph)-कॉकरोच का रुधर लसीका (blood lymph) रंगहीन होता है क्योंकि इसमें हीमोग्लोबिन या अन्य कोई श्वसन वर्णक (respiratory pigment) नहीं पाया जाता है। इसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (plasma) तथा श्वेत रुधिराणु (white blood carpuscles)।
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प्लाज्मा रंगहीन क्षारीय (alkaline) द्रव है इसमें 70% तक जल होता है। इसमें Na, K, Ca,Mg,PO4 आदि अकार्बनिक लवण (inorganic salts) भी होते हैं। कार्बनिक पदार्थों के रूप में इसमें अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल, वसा, प्रोटीन आदि पदार्थ होते हैं। श्वेत रुधिराणु दो प्रकार के होते हैं-भक्षाणु (phagocytes) तथा प्रोल्यूकोसाइट (proleucocytes)। रुधि लसीका विभिन्न पदार्थों, लवणों, जल आदि का संवहन करती है। इसमें श्वसन वर्णकों (resipratory pigments) के अभाव के कारण यह वायु का संवहन नहीं करता है।

प्रश्न 16.
कॉकरोच के नर अथवा मादा जननांगों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनन तन्त (Reproductive System):
कॉकरोच एकर्लिंगी (unisexual) प्राणी है। अर्थात् इनमें लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पायी जाती है। नर की तुलना में मादा का उदर अधिक चौड़ा होता है। नर में जनन कोष्ठ नहीं होता है। मादा में गुदशुकों (anal cerei) का अभाव होता है। अतः लिंगभेद स्पष्ट होता है। कांकरोच के नर जननांग (Male Reproductive Organs of Cockroach) कॉकरोच एकलिंगी कीट है। अतः नर और मादा अलग-अलग होते हैं। नर कॉकरोच में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं-

(1) वृषण (Testis) – कॉकरोच के उदर भाग के दोनों पाश्व्वों में चौथे, पाँचवें तथा छठे खण्डों में वसाकायों में धँसे एक जोड़ी वृषण (testes) पाये जाते हैं। प प्रत्येक वृषण में 3-4 पालियाँ होती हैं। इनमें कलिकानुमा पिण्डक (lobules) पाये जाते हैं।
(2) शुक्रवाहिनियाँ (Vas deferens) – प्रत्येक वृषण से एक पतली शुक्रवाहिनी निकलकर छत्रक ग्रन्थि के आधार पर स्खलन नसिका (ejaculatory duct) में खुलती है।
(3) छत्तक ग्रन्थि (Mushroom Gland or Utricular Gland) – यह सातवें उदर खण्ड में पायी जाती है। यह स्खलन नलिका (ejaculation duct) में खुलती है।

इसमें तीन रचनाएँ पायी जाती हैं –

  • शुक्राशय (Seminal Vesicle) – इसमें शुक्राणुओं (sperms) का संग्रह किया जाता है।
  • छोटी मध्य नलिकाएँ (Short Central Tubules) – ये शुक्राणुओं (sperms) को पोषक तत्व प्रदान करती हैं।
  • लम्बी परिधीय नलिकाएँ (Long Peripheral Tubules) – यह शुक्राणुधर की भीतरी परत का स्रावण करती हैं।

(4) सखलन नलिका (Ejaculatory Duct) – यह नलिका मोटी, प्रन्थिल तथा संकुचनशील (contractile) होती है। यह अधर फैलोमीयर से जुड़ी रहती है। यह पिछले सिरे पर नर जनन छिद्र (male genital pore) से बाहर खुलती है।

(5) फैलिक ग्रन्थि (Phallic or Conglobate Gland) श्वेत रंग की यह प्रन्थि स्खलन वाहिनी के नीचे स्थित होती है। इसका स्राव शुक्राणुधर की बाहरी भित्ति बनाता है।

(6) बांड उननांग (Phallomeres or Gonapophysis) – नर जनन छिक्र्र पर काइटिन से बनी तीन अनियमित प्लेट पायी जाती हैं, जिन्हें फैलोमीयर्स कहते हैं। इनमें से एक दाहिनी ओर, एक बायीं ओर तथा एक अधर तल की ओर होती है।
बायें फैलोमीयर (Left phallomere) में चार पालियाँ होती हैं-

  • ऐसपेरेट पालि (Asperate lobe),
  • टिटीलेटर (Titillator),
  • ऐक्यूटोलोबस (Accetolobus),
  • स्यूडोपेनिस (Pseudopenis)

दायें फैलोमीयर (Right phallomere ) में एक हुक तथा एक आरी प्लेट पायी जाती है। अधर फैलोमीयर (ventral phellomere) में स्खलन नलिका (ejaculatory duct) लगी होती है। शुक्राणुधर का निर्माण (Fromation of Spermatophore)मैथुन से पूर्व शुक्राणु (sperms) आपस में चिपक कर शुक्राणुधर (spermatophore) का निर्माण करते हैं। शुक्राणुधर को मैथुन के द्वारा मादा के शुक्रमाही छिद्र से चिपका दिया जाता है।
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मादा कॉकरोच के जननांग (Reproductive Organs of Female Cockroach) -मादा कॉकरोच में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं –
(1) अण्डाशय (Ovaries) – कॉकरोच के उदर भाग में दूसरे से छठे खण्डों के बीच, अधर पार्श्वतल पर वसाकायों के बीच धँसे एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाये जाते हैं। प्रत्येक अण्डाशय 8 पतली व लचीली अप्डनलिकाओं या अण्डिकाओं (ovarioles) से बना होता है।

(2) अण्डवाहिनी (Oviducts) – अण्ड नलिकाएँ एक चौड़ी एवं छोटी अण्डवाहिनी (oviduct) में खुलती हैं। दोनों ओर की अण्ड वाहिनियाँ (oviducts) एक छोटी किन्तु चौड़ी सामान्य अण्डवाहिनी (योनि) में खुलती हैं।

(3) संत्राहक ग्रन्थियाँ (Collaterial Glands) – ये जनन वेश्म के पृष्ठ तल की ओर स्थित एक जोड़ी सफेद रंग की, शाखित तथा असमान नलिकावत् सहायक म्रन्थियाँ होती हैं। बायीं ग्रन्थि अधिक बड़ी तथा शाखित होती है। ये जनन कक्ष (genital chamber) में खुलती हैं। इनका स्रावण अण्डों के समूह के चारों ओर अण्ड कव्च (egg shell) बनाता है।

(4) शुक्र ग्रातिका या शुक्रधानी (Spermatheca) – कॉकरोच में एक जोड़ी शुक्र प्राहिका पायी जाती है। दोनों शुक्रम्राहिकाओं की वाहिनियाँ मिलकर एक ही छिद्र द्वारा मादा जनन छिद्र के पास जनन वेश्म (genital chamber) की छत पर खुलती हैं।

(5) जनन कक्ष (Genital Chamber)-मादा कॉकरोच में एक जनन कक्ष तथा इसके पीछे एक अण्डपुटक स्थित होता है।

(6) बाह्य जननांग या गोनेपोफाइसिस (Gonapophy- sis) – मादा कॉकरोच के जनन वेश्म, में 3 जोड़ी काइटिन से बने गोनेपोफाइसिस (gonapohysis) पाये जाते हैं। ये अण्ड निक्षेपक के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि ये अण्डों को अण्ड प्रावर (ootheca) में जमाकर व्यवस्थित रखते हैं।
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मैथुन (Copulation)-जनन काल में नर कॉकरोच मादा से आकर्षित होकर इसके समीप आता है। नर व मादा अपने पश्च भागों को एक-दूसरे के समीप लाते हैं। अब नर अपने टिटिलेटर (titillater) द्वारा मादा की गाइनोवैल्यूलर (gynovalular plate) प्लेट को खोल देता है और अपने कूट शिश्न (Pseudopenis) को मादा के जनन छिद्र (genital pore) में प्रवेश करा देता है तथा अधर फेलोमीयर अपने दाँयी ओर घूमकर स्खलन वाहिनी के छिद्र को खोल देता है। इस समय शुक्राणुधर (spermatophore) को मादा के जनन पैपीला पर चिपका देता है। मैथुन क्रिया प्रायः रात्रि को सम्पन्न होती है और इसमें 60 मिनट का समय लगता है।
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इसके बाद दोनों जन्तु अलग-अलग होते हैं और शुक्रणुधर से शुक्काणु (sperms) निकलकर शुक्रमाहिका (spermothaca) में चले जाते हैं, परन्तु खाली शुक्राणुधर (sperms) मादा से लगभग 20 घण्टे तक चिपटा रहता है और उसके पश्चात् वह शरोर से हट जाता है।

निषेचन (Fertilization) – निषेचन की क्रिया मादा के जनन-कक्ष में होती है इसमें दोनों अण्डाशयों (Ovaries) के प्रत्येक ओवेरियोल (ovaiole) द्वारा अण्डों का निक्षेपण जनन-कक्ष में होता है। इसमें 16 अण्डे $8-8$ अण्डों की दो कतारों में व्यवस्थित हो जाते हैं। अब शुक्राणुप्राहिका (spermetheca) से निकले शुक्राणु इन अण्डों (Ova) का निषेचन कर देते हैं।

कॉकरोच में अण्ड प्रावर (अण्ड कवच) का निर्माण (Formation of Ootheca) – कॉकरोच के निषेचित अण्डे (fertilized) जनन कक्ष में प्रवेश करते है। यहाँ कोलेटरियल श्रन्थि से सकलेरोप्रोटीन (scaleroprotein) का स्राव होता है, जिससे ऊथीका (ootheca) का निर्माण होता है। ऊथीका के निर्माण में लगभग 20 घण्टे का समय लगता है।

एक मादा जन्तु अपने जीवनकाल में $20-40$ तक ऊथीका (ootheca) का निर्माण करती है। कुछ दिनों के बाद मादा ऊथीका को अन्येर, सूखे तथा गर्म स्थान पर रख देती है। ऊथीका के ऊपर काइटिन का आवरण तथा माइक्रोपाइल (mircropyle) पाया जाता है।
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कॉकरोच में कायान्तरण (Metamorphosis) – कॉकरोच में ध्रूणीय परिवर्धन के फलस्वरूप पहले निम्फ (nymph) बनता है। निम्म से वयस्क के निर्माण में 6 माह से 2 साल तक का समय लग जाता है। इसके कायान्तरण में 7-10 बार त्वक् पतन या निमोंचन (moulting) होता है। निर्मोचन में बाह्य कंकाल पृथक् हो जाता है तथा शारीरिक वृद्धि से नया कंकाल बन जाता है। अन्तिम निर्मोंचन (moulting) के बाद 4-6 दिनों में जननांग विकसित हो जाते हैं। इसका जीवन काल 2-4वर्षों का होता है।

प्रश्न 17.
कॉकरोच में मैथुन क्रिया, निषेचन, अण्ड कवच का निर्माण तथा कायान्तरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनन तन्त (Reproductive System):
कॉकरोच एकर्लिंगी (unisexual) प्राणी है। अर्थात् इनमें लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पायी जाती है। नर की तुलना में मादा का उदर अधिक चौड़ा होता है। नर में जनन कोष्ठ नहीं होता है। मादा में गुदशुकों (anal cerei) का अभाव होता है। अतः लिंगभेद स्पष्ट होता है। कांकरोच के नर जननांग (Male Reproductive Organs of Cockroach) कॉकरोच एकलिंगी कीट है। अतः नर और मादा अलग-अलग होते हैं। नर कॉकरोच में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं-

(1) वृषण (Testis) – कॉकरोच के उदर भाग के दोनों पाश्व्वों में चौथे, पाँचवें तथा छठे खण्डों में वसाकायों में धँसे एक जोड़ी वृषण (testes) पाये जाते हैं। प प्रत्येक वृषण में 3-4 पालियाँ होती हैं। इनमें कलिकानुमा पिण्डक (lobules) पाये जाते हैं।
(2) शुक्रवाहिनियाँ (Vas deferens) – प्रत्येक वृषण से एक पतली शुक्रवाहिनी निकलकर छत्रक ग्रन्थि के आधार पर स्खलन नसिका (ejaculatory duct) में खुलती है।
(3) छत्तक ग्रन्थि (Mushroom Gland or Utricular Gland) – यह सातवें उदर खण्ड में पायी जाती है। यह स्खलन नलिका (ejaculation duct) में खुलती है।

इसमें तीन रचनाएँ पायी जाती हैं –

  • शुक्राशय (Seminal Vesicle) – इसमें शुक्राणुओं (sperms) का संग्रह किया जाता है।
  • छोटी मध्य नलिकाएँ (Short Central Tubules) – ये शुक्राणुओं (sperms) को पोषक तत्व प्रदान करती हैं।
  • लम्बी परिधीय नलिकाएँ (Long Peripheral Tubules) – यह शुक्राणुधर की भीतरी परत का स्रावण करती हैं।

(4) सखलन नलिका (Ejaculatory Duct) – यह नलिका मोटी, प्रन्थिल तथा संकुचनशील (contractile) होती है। यह अधर फैलोमीयर से जुड़ी रहती है। यह पिछले सिरे पर नर जनन छिद्र (male genital pore) से बाहर खुलती है।

(5) फैलिक ग्रन्थि (Phallic or Conglobate Gland) श्वेत रंग की यह प्रन्थि स्खलन वाहिनी के नीचे स्थित होती है। इसका स्राव शुक्राणुधर की बाहरी भित्ति बनाता है।

(6) बांड उननांग (Phallomeres or Gonapophysis) – नर जनन छिक्र्र पर काइटिन से बनी तीन अनियमित प्लेट पायी जाती हैं, जिन्हें फैलोमीयर्स कहते हैं। इनमें से एक दाहिनी ओर, एक बायीं ओर तथा एक अधर तल की ओर होती है।
बायें फैलोमीयर (Left phallomere) में चार पालियाँ होती हैं-

  • ऐसपेरेट पालि (Asperate lobe),
  • टिटीलेटर (Titillator),
  • ऐक्यूटोलोबस (Accetolobus),
  • स्यूडोपेनिस (Pseudopenis)

दायें फैलोमीयर (Right phallomere ) में एक हुक तथा एक आरी प्लेट पायी जाती है। अधर फैलोमीयर (ventral phellomere) में स्खलन नलिका (ejaculatory duct) लगी होती है। शुक्राणुधर का निर्माण (Fromation of Spermatophore)मैथुन से पूर्व शुक्राणु (sperms) आपस में चिपक कर शुक्राणुधर (spermatophore) का निर्माण करते हैं। शुक्राणुधर को मैथुन के द्वारा मादा के शुक्रमाही छिद्र से चिपका दिया जाता है।
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मादा कॉकरोच के जननांग (Reproductive Organs of Female Cockroach)
मादा कॉकरोच में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं –
(1) अण्डाशय (Ovaries) – कॉकरोच के उदर भाग में दूसरे से छठे खण्डों के बीच, अधर पार्श्वतल पर वसाकायों के बीच धँसे एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाये जाते हैं। प्रत्येक अण्डाशय 8 पतली व लचीली अप्डनलिकाओं या अण्डिकाओं (ovarioles) से बना होता है।

(2) अण्डवाहिनी (Oviducts) – अण्ड नलिकाएँ एक चौड़ी एवं छोटी अण्डवाहिनी (oviduct) में खुलती हैं। दोनों ओर की अण्ड वाहिनियाँ (oviducts) एक छोटी किन्तु चौड़ी सामान्य अण्डवाहिनी (योनि) में खुलती हैं।

(3) संत्राहक ग्रन्थियाँ (Collaterial Glands) – ये जनन वेश्म के पृष्ठ तल की ओर स्थित एक जोड़ी सफेद रंग की, शाखित तथा असमान नलिकावत् सहायक म्रन्थियाँ होती हैं। बायीं ग्रन्थि अधिक बड़ी तथा शाखित होती है। ये जनन कक्ष (genital chamber) में खुलती हैं। इनका स्रावण अण्डों के समूह के चारों ओर अण्ड कव्च (egg shell) बनाता है।

(4) शुक्र ग्रातिका या शुक्रधानी (Spermatheca) – कॉकरोच में एक जोड़ी शुक्र प्राहिका पायी जाती है। दोनों शुक्रम्राहिकाओं की वाहिनियाँ मिलकर एक ही छिद्र द्वारा मादा जनन छिद्र के पास जनन वेश्म (genital chamber) की छत पर खुलती हैं।

(5) जनन कक्ष (Genital Chamber)-मादा कॉकरोच में एक जनन कक्ष तथा इसके पीछे एक अण्डपुटक स्थित होता है।

(6) बाह्य जननांग या गोनेपोफाइसिस (Gonapophy- sis) – मादा कॉकरोच के जनन वेश्म, में 3 जोड़ी काइटिन से बने गोनेपोफाइसिस (gonapohysis) पाये जाते हैं। ये अण्ड निक्षेपक के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि ये अण्डों को अण्ड प्रावर (ootheca) में जमाकर व्यवस्थित रखते हैं।
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मैथुन (Copulation)-जनन काल में नर कॉकरोच मादा से आकर्षित होकर इसके समीप आता है। नर व मादा अपने पश्च भागों को एक-दूसरे के समीप लाते हैं। अब नर अपने टिटिलेटर (titillater) द्वारा मादा की गाइनोवैल्यूलर (gynovalular plate) प्लेट को खोल देता है और अपने कूट शिश्न (Pseudopenis) को मादा के जनन छिद्र (genital pore) में प्रवेश करा देता है तथा अधर फेलोमीयर अपने दाँयी ओर घूमकर स्खलन वाहिनी के छिद्र को खोल देता है। इस समय शुक्राणुधर (spermatophore) को मादा के जनन पैपीला पर चिपका देता है। मैथुन क्रिया प्रायः रात्रि को सम्पन्न होती है और इसमें 60 मिनट का समय लगता है।
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इसके बाद दोनों जन्तु अलग-अलग होते हैं और शुक्रणुधर से शुक्काणु (sperms) निकलकर शुक्रमाहिका (spermothaca) में चले जाते हैं, परन्तु खाली शुक्राणुधर (sperms) मादा से लगभग 20 घण्टे तक चिपटा रहता है और उसके पश्चात् वह शरोर से हट जाता है।

निषेचन (Fertilization) – निषेचन की क्रिया मादा के जनन-कक्ष में होती है इसमें दोनों अण्डाशयों (Ovaries) के प्रत्येक ओवेरियोल (ovaiole) द्वारा अण्डों का निक्षेपण जनन-कक्ष में होता है। इसमें 16 अण्डे $8-8$ अण्डों की दो कतारों में व्यवस्थित हो जाते हैं। अब शुक्राणुप्राहिका (spermetheca) से निकले शुक्राणु इन अण्डों (Ova) का निषेचन कर देते हैं।

कॉकरोच में अण्ड प्रावर (अण्ड कवच) का निर्माण (Formation of Ootheca) – कॉकरोच के निषेचित अण्डे (fertilized) जनन कक्ष में प्रवेश करते है। यहाँ कोलेटरियल श्रन्थि से सकलेरोप्रोटीन (scaleroprotein) का स्राव होता है, जिससे ऊथीका (ootheca) का निर्माण होता है। ऊथीका के निर्माण में लगभग 20 घण्टे का समय लगता है।

एक मादा जन्तु अपने जीवनकाल में $20-40$ तक ऊथीका (ootheca) का निर्माण करती है। कुछ दिनों के बाद मादा ऊथीका को अन्येर, सूखे तथा गर्म स्थान पर रख देती है। ऊथीका के ऊपर काइटिन का आवरण तथा माइक्रोपाइल (mircropyle) पाया जाता है।
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कॉकरोच में कायान्तरण (Metamorphosis) – कॉकरोच में ध्रूणीय परिवर्धन के फलस्वरूप पहले निम्फ (nymph) बनता है। निम्म से वयस्क के निर्माण में 6 माह से 2 साल तक का समय लग जाता है। इसके कायान्तरण में 7-10 बार त्वक् पतन या निमोंचन (moulting) होता है। निर्मोचन में बाह्य कंकाल पृथक् हो जाता है तथा शारीरिक वृद्धि से नया कंकाल बन जाता है। अन्तिम निर्मोंचन (moulting) के बाद 4-6 दिनों में जननांग विकसित हो जाते हैं। इसका जीवन काल 2-4वर्षों का होता है।

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प्रश्न 18.
तंत्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाकर तंत्रिका ऊतक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तन्तिका ऊतक (Nervous Tissue) – तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करता है। तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है, जिन्हें न्यूरॉन (Neurons) कहते हैं।

ये दो प्रकार की होती हैं –
(1) तन्त्रिका कोशिकाएँ (Neurons),
(2) ग्लियल कोशिकाएँ (Glial cells). तन्त्रिका कोशिका की संरचना (Structure of neuron)

प्रत्येक तन्त्रिका कोशिका तीन भागों से मिलकर बनी होती है-
(1) कोशिकाकाय या तन्रिकाकाय (Cyton) – यह तन्त्रिका कोशिका का मुख्य भाग है। इसके मध्य में एक बड़ा केन्द्रक (nucleus) होता है, जो चारों ओर से कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) से घिरा रहता है। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में प्रोटीन के बने अनेक रंगीन कण पाये जाते हैं, जिन्हें निसाल्स कण (Nisal’s granules) कहते हैं।

(2) वृक्षिका या त्रुमाश्म (Dendron) – कोशिकाकाय (cyton) से अनेक प्रवर्ध निकले रहते हैं। इन्हें वृक्षिका या द्रुमाश्म (Dendorns) कहते हैं। वृक्षिका (dendron) से अनेक पतली-पतलीं शाखाएँ निकली रहती हैं। इन्हें वृक्षिकान्त या द्रुमिका (dendrites) कहते हैं।

(3) तन्तिकाध्व या एक्सोन (Axon) – तन्त्रिकाकाय से निकले कई प्रवर्धों में से एक प्रवर्ध अपेक्षाकृत लम्बा, मोटा तथा बेलनाकार होता है। इस प्रवर्ध को तन्त्रिकाक्ष (axon) कहते हैं। यह तन्त्रिकाच्छद या न्यूरोलीमा (neurolemma) नामक झिल्ली से स्तरित होता है। न्यूरोलीमा तथा तन्त्रिकाक्ष (axon) के मध्य वसा का स्तर पाया जाता है, जो चमकीला तथा सफेद होता है। यह स्तर मज्जा आच्छाद या मैडूलरी आच्छद्द (medullary sheath) कहलाता है।

मज्जा आच्छद (marrow sheath) में स्थान-स्थान पर दबाव के क्षेत्र होते हैं इन्हें रेन्वियर का नोड (Node of Ranvier) कहते हैं। तन्त्रिकाक्ष (axon) के अन्तिम सिरे पतली-पतली शाखाओं में बँट जाते हैं। इन शाखाओं के अन्तिम सिरे घुण्डी के रूप में होते हैं, जिन्हें अन्तस्थ बटन या सिनैप्टिक घुण्डियाँ (terminal knobs or synaptic knobs) कहते हैं।

ये घुण्डियाँ दूसरी कोशिका के वृद्षिकान्तों (dendrites) से सम्बन्यित रहती हैं। इस सम्बन्य को युग्मानुक््यन या सिनेप्स (synapse) कहते हैं। तन्त्रिकाक्ष से तन्त्रिका तन्तुओं (neurofibrils) का निर्माण होता है।

तन्त्रिका कोशिका के कार्य (Functions of Neuron):
स्वभाव या कार्य के आधार पर न्यूरॉन (Neurons) तीन प्रकार की होती है –
1. संवेदी तत्रिका कोशिकाएँ (Sensory Nerve cells) -ये संवेदांगों को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से जोड़ते हैं तथा संवेदना को संवेदी अंगों से केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र-(CNS) मस्तिष्क (brain) व मेरुरज्जु में पहुँचाते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन - 21
2. चालक तन्त्रिका कोशिकाएँ (Motor nerve cells) – ये केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को क्रियात्मक अंगों, पेशियों एवं प्रन्थियों से जोड़ती हैं। ये कोशिकाएँ केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से संवेदनाओं को प्रेरणा या आदेश के रूप में प्रेरणा कार्यकारी अंग की पेशियों में ले जाती हैं।

3. मध्यस्थ तन्रिका कोशिकाएँ (Intermediate Nerve Cells) -ये केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में दो या अधिक-न्यूरॉन्स को परस्पर जोड़ती हैं। ज्लियल कोशिकाओं के प्रवर्ध छोटे होते हैं तथा ये न्यूरॉन (nuron) को सुरक्षा एवं सहारा देती हैं।

तन्त्रिका कोशिकाओं द्वारा शरीर के अन्दर तन्त्रिका आवेगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का कार्य किया जाता है। तन्त्रिका तन्तु में फैलने वाले विभव परिवर्तन के संन्देश को तन्त्रिका आवेग कहते हैं। यह एक सन्देश के रूप में दूसरी तन्त्रिका काशिकाओं या पेशी को जाता है। [नोट-तंत्रिका तन्त्र का विस्तृत वर्णन अध्याय 21 में किया गया है।]

प्रश्न 19.
मेंढ़क के पाचन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेंढक का पाचन-तन्त्र (Digestive System of Frog)
मेंढक के पाचन-तन्त्र में आहार नाल तथा पाचक ग्रन्थियाँ सम्मिलित होती हैं। मेंढक की आहारनाल देहगुहा (coelom) में आगे से पीछे तक एक लम्बी, कुण्डलित पतली व नालाकार रचना होती है। यह अगले सिरे पर मुखगुहा (buccal cavity) से प्रारम्भ होकर पिछले सिरे पर अवस्कर द्वार पर समाप्त होती है। इसमें निम्नलिखित भाग होते हैं-
(1) मुखगुहा (Buccal Cavity) – यह भोजन प्रहण करने वाला भाग है।

(2) प्रसिका या प्रासनली (Oesophagus) – यह एक छोटी, चौड़ी तथा मांसल नलिका होती है। इसका अगला भाग प्रसनी (pharynx) से जुड़ा रहता है तथा पिछला भाग आमाशय से मिलता है।

(3) आमाशय (Stomach) – आमाशय (cardiac stomach) बड़ी धैलीनुमा संरचना है और देहुगुहा में बायीं ओर स्थित रहता है। इसका अगला चौड़ा भाग कार्डियक आमाशय (cardiac stomach) तथा पिछला सँकरा भाग पाय्लोरिक आमाशय (pyloric stomach) कहलाता है। यह भोजन को काइम (लेई) में परिवर्तित करने में सहायक होता है।

आमाशय की दीवार में स्थित ग्रन्थियों से पाचक रस (जठर रस) स्नावित होता है, जिसमें हास्क्रोक्लोरिक अभ्ल HCl और प्रोटियोलिटिक एन्ञाइम (proteratitic enzymes) होते हैं। यह पीछे छोटी आन्त्र (small intestine) में खुलता है। आमाशय (stomach) में भोजन का संम्रह तथा पाचन होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 3

(4) छोटी आँत्र (Small Intestine) – इसके दो भाग होते हैं –
(i) ग्रढ़णी या इ्योडीनम (Duodenum) – यह पाइलोरिक भाग से जुड़ी हुई आमाशय के समान्तर ‘U’ के आकार की रचना होती है। ‘U’ के आकार में अग्न्याशय नामक पाचक ग्रन्थि स्थित होती है। यकृत (liver) तथा अग्याशय (pancreas) से सामान्य पित्त वाहिनी निकलकर ग्रहणी (Duodenum) के अगले भाग में खुलती है।

(ii) क्षुद्रान्त्र (Illium) – यह लम्बी, पतली, कुण्डलित नलिका होती है। यह पतली मीसन्द्री डिल्ली दारा देहगहा की पष्ठ दीवार से लटकी रहती है। आन्त्र की भित्ति पर अनेक अंगुली के आकार के सूक्ष्मांकुर (villi) होते हैं। ये इसके अवशोषण क्षेत्र को बढ़ाते है जिससे पचे हुए भाजन का पूण अवशाषण है सक (5) बड़ी आत्र (Large Intestine) – छोटी आन्न्र पीछे की ओर बड़ी आन्त्र (large intestine) में खुलती है। इसके दो भाग होते हैं(i) मलाशय (Rectum) – इसमें मल एकत्रित होता रहता है।

(iii) अवस्कर (Cloaca) – यह मलाशय (rectum) का पिछला भार्ग होता है। यह अवस्कर द्वार (colacal aperture) द्वारा बाहर खुलती है। पाचक प्रन्थियाँ (Digestive Glands)
(1) यकृत (Liver) – यह पित्त रस (bile juice) का स्राव करती है जो पहणी में भोजन के माध्यम को क्षारीय (alkaline) बनाता है तथा भोजन की वसा को मथने में सहायक होता है।

(2) अन्नाशय (Pancreas) – यह अग्याशयिक रस (pancreatic juice) का स्नाव करता है। इसके एन्जाइम भोजन की प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा का पाचन करते हैं।

(3) जठर प्रन्थियाँ (Gastric Glands) – आमाशय की दीवार में स्थित ये ग्रन्थियाँ जठर रस तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्नाव करती हैं।

(4) आन्त्र प्रन्थियाँ (Intestinal Glands) – क्षुद्रान्त्र की दीवार में स्थित ये प्रन्थियाँ कई एन्जाइम्स युक्त आन्त्रीय रस (succus intericus) का स्राव करती हैं जो शेष बचे भोजन का पाचन करता है। पाचन (Digestion) -मेंढ़क कीटों को अपना भोजन बनाता है। भोजन मुख, प्रसनी गुहा से होता हुआ ग्रास नाल (oesophagus) द्वारा आमाशय (stomach) में पहुँचाया जाता है।

आमाशय (stomach) में पाचन क्रिया प्रारम्भ होती है। यहाँ HCl व प्रोटीन पाचक एन्जाइम प्रोटीन का पाचन करते हैं। अर्द्ध पचित भोजन काइम कहलाता है जिसे महणी में भेज दिया जाता है। यहाँ पित्त रस तथा अग्न्याशयी रस (pancreatic juice) भोजन का पाचन करते हैं। अन्तिम पाचन क्षुद्रान्त में होता है। क्षुद्रान्त में ही भोजन का अवशोषण होता है। अपचित भोजन को बड़ी आंत्र में भेज दिया जाता है। जहाँ जल का अवशोषण है।

प्रश्न 20.
मेढक के नर अथवा मादा जननांगों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उनन तत्र (Reproductive System) : मेंढ़क में नर तथा मादा प्राणी पृथक होते हैं। नर मादा की अपेक्षा अधिक गहरे रंग का तथा कुछ पतला होता है।
नर मेंढक का प्रजनन तन्त्र (Reproductive System of Male Frog) : मेंढक में नर तथा मादा जननांग अलग-अलग होते हैं।

नर जननांग (Male Reproductive Organs) : नर मेंढक में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं-
(1) वृषण (Testis) – नर मेंढक में एक जोड़ी अण्डाकार पीले रंग के वृषण (testes) वृक्क के प्रतिपृष्ठ तल के अग्र सिरे पर वृषणधर झिल्ली से जुड़े रहते हैं। वृषण में कई शुक्रजनन नलिकाएँ (seminiferous tubules) होती हैं। इनमें शुक्रजनन (Spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।

(2) शुक्रवाहिकाएँ (Vas differentia)-वृषण वृक्क से 10-14 शुक्रवाहिकाओं द्वारा सम्बन्धित रहते हैं। शुक्रवाहिकाएँ वृक्क (Kidney) में अन्दर की ओर बिडर्स नलिका में खुलती है। वृषण में बने शुक्राणु शुक्रवाहिकाओं द्वारा बिर्ड नलिका में पहुँचते हैं।

(3) जनन-मूत्रवाहिनी (Urino-genital Duct)-बिडर्स नलिका (Bidder’s canal) में पहुँचे शुक्राणु (sperm) अनुप्रस्थ संग्रह नलिका (Bidder’s canal) में होते हुए आयाम संख्रह नलिका में पहुँचते हैं, जो कि मूत्रवाहिनी में खुलती है। अत: शुक्राणु (sperms) भी आयाम संभर नलिका से मूत्रवाहिनी (Ureter) में पहुँचते हैं।

चूँकि शुक्राणु मूत्रवाहिनी के द्वारा ही अवस्कर द्वार (Cloacal aperture) से होकर बाहर निकलते हैं, अतः मूत्रवाहिनी जनन-मूत्रवाहिनी (ureno-genital duct) कहलाती है। मेंढक की कुछ जातियों में शुक्राशय (seminal vescile) भी पाया जाता है जिसमें शुक्राणु (sperms) एकत्र होते रहते हैं और मैथुन (copulation) के समय बाहर निकलते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 1

मादा मेंढक का प्रजनन तन्त्र (Reproductive System of Female Frog)
मादा जननांग (Female Reproductive Organs) – मादा मेंढक में निम्नलिखित जननांग पाये जाते हैं-
(1) अण्डाशय (Ovaries)-मादा मेंढक में एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) होते हैं जो वृक्क के अधर तल पर अण्डाशयधर झिल्ली (mesovarium) द्वारा जुड़े रहते हैं। वृक्क से इनका कोई कार्यात्मक सम्बन्ध नहीं होता है। ये बड़ी, अनियमित बहुलोबित संरचना हैं। यहाँ अण्डों का निर्माण होता है।

(2) अण्डवाहिनी (Oviduct) – प्रत्येक अण्डाशय (ovary) के दोनों ओर एक-एक लम्बी व कुण्डलित नलिका-अण्डवाहिनी (Oviduct) पायी जाती है। अण्डवाहिनी (oviduct) का अग्र भाग कीप जैसा होता है और उदर गुहा में स्थित रहता है जिसे अण्डवाहिनी मुखिका (कीप) कहते हैं। अण्डवाहिनी का मध्य भाग कुण्डलित होता है तथा अन्तिम भाग चौड़ा होकर गर्भाशय (Uterus) बनाता है।

(3) गर्भाशय (Uterus) – यह अण्डवाहिनी (oviduct) का अन्तिम चौड़ा भाग होता है। दोनों ओर के गर्थाशय अलग-अलग छिद्रों द्वारा अवस्कर (cloaca) के पृष्ठ तल पर खुलते हैं। अण्डवाहिनी (oviduct) में आये हुए अण्डे गर्थाशय में एकत्र होते हैं, जो मैथुन क्रिया के समय अवस्कर द्वार (clocal aperture) से बाहर जल में निकलते हैं। मेंढक में बाह्य निवेचन (external fertilization) होता है।
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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर देने के लिए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए –

1. गुडहल में पुष्प के पुंमंग के लिए प्रयुक्त तकनीकी शब्द है-
(A) एक संघी
(B) द्विसंघी
(C) बहुसंघी
(D) बहुपुमंगी
उत्तर:
(C) बहुसंघी

2. एकल अण्डप युक्त एककोष्ठकीय अण्डाशय में बीजाण्डन्यास होता है-
(A) सीमान्त
(B) आधारीय
(C) मुक्त केन्द्रीय
(D) अक्षीय
उत्तर:
(D) अक्षीय

3. किसमें ड्रूप का निर्माण होता है-
(A) गेहूँ
(B) मटर
(C) टमाटर
(D) आम
उत्तर:
(C) टमाटर

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

4. मिर्च का सही पुष्प सूत्र है-
(A) K(s) C(s) A5 G(2)
(B) K(5) C(5) A(5) G2
(C) K5 C5 A(5) G2
(D) K(5) C(5) A(5) G(2)
उत्तर:
(C) K5 C5 A(5) G2

5. आलू के कन्द में आँखें होती है-
(A) पुष्प कलिकाएँ
(B) प्ररोह कलिकाएँ
(C) कक्षीय कलिकाएँ
(D) मूल कलिकाएँ
उत्तर:
(A) पुष्प कलिकाएँ

6. ध्वजिक विन्यास किस कुल का अभिलक्षण है-
(A) फेबेसी
(C) सोलेनेसी
(B) ऐस्टरेसी
(D) बेसिकेसी
उत्तर:
(A) फेबेसी

7. निम्नलिखित में से कौन सही सुमेलित है ?
(A) प्याज-कंद
(B) अदरक – सकर
(C) क्लेमाइडोमोनास कोनीडिया
(D) यीस्ट – चल बीजाणु
उत्तर:
(D) यीस्ट – चल बीजाणु

8. टमाटर तथा नींबू में पाया जाने वाला बीजाण्डन्यास है-
(A) भित्तीय
(B) मुक्त केन्द्रीय
(C) सीमान्त
(D) अक्षीय
उत्तर:
(C) सीमान्त

9. किसमें बीजावरण पतला तथा झिल्लीनुमा होता है ?
(A) मक्का
(B) नारियल
(C) मूँगफली
(D) चना
उत्तर:
(B) नारियल

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

10. किसमें एक्ल्यूमिनरहित बीज निर्मित होते हैं ?
(A) मक्का
(B) अरण्डी
(C) गेहूँ
(D) मटर।
उत्तर:
(C) गेहूँ

11. खाने योग्य भूमिगत तने का उदाहरण है-
(A) गाजर
(B) मूँगफली
(C) शकरकन्द
(D) आलू।
उत्तर:
(B) मूँगफली

12. किसमें पुष्प एकलिंगी होते हैं ?
(A) गाजर
(B) मूँगफली
(C) शकरकन्द
(D) आलू
उत्तर:
(A) गाजर

13. किसमें पुष्प एकलिंगी होते हैं ?
(A) मटर
(B) खीरा
(C) गुड़हल
(D) प्याज
उत्तर:
(B) खीरा

14. पद बहुसंधी सम्बिन्धित है ?
(A) जायांग से
(B) पुमंग से
(C) दल पुंज से
(D) केलिक्स से
उत्तर:
(D) केलिक्स से

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15. निम्न में से कौन तने का रूपान्तरण नहीं है-
(A) नींबू के कंटक
(B) खीरा के प्रतान
(C) नागफनी की चपटी संरचनाएँ
(D) घटपर्णी का घट
उत्तर:
(C) नागफनी की चपटी संरचनाएँ

16. तना जो चपटी, हरी संरचनाओं में परिवर्तित होता है जो पत्तियों का कार्य करती है कहलाता है-
(A) फिल्लोड
(B) फिल्लोक्लेड
(C) शल्क
(D) क्लेडोड
उत्तर:
(B) फिल्लोक्लेड

17. पेपिलियोनेसी कुल में दल होते है-
(A) पेरीस्पर्म
(B) बीजपत्र
(C) भ्रूणपोष
(D) पेरीकार्प
उत्तर:
(A) पेरीस्पर्म

18. नारियल के खाये जाने वाले भाग की आकारिकीय प्रकृति है-
(A) पेरीस्पर्म
(B) बीजपत्र
(C) भ्रूणपोष
(D) पेरीकार्य
उत्तर:
(C) भ्रूणपोष

19. बन्दगोभी का खाने योग्य भाग है-
(A) अनुपर्ण
(B) अयस्थानिक जड़े
(C)
(D)
उत्तर:
(C)

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सरसों के पौधे का वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्रेसिका केम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris)।

प्रश्न 2.
फैबेसी कुल के दलपुंज की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
फैबेसी उपकुल में 5 दल 1 + 2 + (2) बैक्सीलरी क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ये पीपैलियोनेसियस कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
गेहूँ एवं चावल के फल को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
कैरिओप्सिस (Caryopsis)।

प्रश्न 4.
बहुसंधी पुंकेसर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब पुंकेसरों के पुंतन्तु अनेक समूहों में जुड़े रहते हैं तब इसे बहुसंघी (polyadelphous ) पुंकेसर कहते हैं।

प्रश्न 5.
गुड़हल में पुष्पक्रम का प्रकार क्या है ?
उत्तर:
एकल कक्षस्थ या एकल शीर्षस्थ।

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प्रश्न 6.
जब परागकोष में परागकण नहीं बनते तो ऐसे पुंकेसर क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:
स्टैमिनोड (staminode)।

प्रश्न 7.
कनेर में किस प्रकार का पर्ण विन्यास पाया जाता है ?
उत्तर:
चक्राकार (Whorled)

प्रश्न 8.
गुड़हल में किस प्रकार के पुंकेसर होते हैं ?
उत्तर:
एकसंघी (Monoadelphous)।

प्रश्न 9.
अण्डप के तीन भाग कौन से हैं ?
उत्तर:

  1. अण्डाशय
  2. वर्तिका तथा
  3. वर्तिकाम।

प्रश्न 10.
फल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
निषेचन के पश्चात् अण्डाशय से बनने वाली संरचना को फल कहते हैं।

प्रश्न 11.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में एक अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मूसला जड़ का निर्माण मूलांकुर (radicle) से होता है जबकि अपस्थानिक जड़ मूलांकुर को छोड़कर किसी अन्य भाग से बनती हैं।

प्रश्न 12.
झकड़ा जड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मूसला जड़ के नष्ट होने के बाद धागे के समान बनी जड़ें झकड़ा जड़ कहलाती हैं।

प्रश्न 13.
मूलगोप का क्या कार्य है ?
उत्तर:
मूलगोप मूलशीर्ष में स्थित प्रविभाजी प्रदेश (meristematic Zone) की रक्षा करता है।

प्रश्न 14.
किसी ऐसी जड़ के दो उदाहरण लिखिए जिनमें प्रजनन कलिकाएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
शकरकन्द (sweet potato) तथा शीशम ( sisoo )।

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प्रश्न 15.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें पत्तियाँ कायिक प्रजनन में भाग लेती हैं ?
उत्तर:
अजूबा (Bryophyllum), बिगोनिया (Bigonia)।

प्रश्न 16.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें श्वसन मूल (pneumatophore) पाये जाते हैं।
उत्तर:
राइजोफोरा ( Rhizophora ), एबीसीनिया (Abiscinia )।

प्रश्न 14.
किसी ऐसी जड़ के दो उदाहरण लिखिए जिनमें प्रजनन कलिकाएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
शकरकन्द (sweet potato) तथा शीशम ( sisoo )।

प्रश्न 15.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें पत्तियाँ कायिक प्रजनन में भाग लेती हैं ?
उत्तर:
अजूबा (Bryophyllum ), बिगोनिया (Bigonia)।

प्रश्न 16.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें श्वसन मूल (pneumatophore) पाये जाते हैं।
उत्तर
राइजोफोरा (Rhizophora ), एबीसीनिया (Abiscinia)।

प्रश्न 17.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ का एक-एक उदाहरण लिखिए। है ?
उत्तर:
मूसला जड़-मूली।
अपस्थानिक जड़ – शकरकन्द।

प्रश्न 18.
अंगूर के प्रतान किस संरचना का रूपान्तरण है ?
उत्तर:
तने का रूपान्तरण।

प्रश्न 19.
प्याज शल्ककन्द है इसके किस भाग में भोजन संचित रहता
उत्तर:
माँसल शल्क पत्रों (succulent scaly leaves) में।

प्रश्न 20.
एकल पुष्प तथा पुंजफल में एक प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एकल फल एकण्डपी या बहुअण्डपी, युक्ताण्डपी अण्डाशय से बनते हैं, जबकि पुंजफल बहुअण्डपी तथा पृथक्काण्डपी अण्डाशय से बनते हैं।

प्रश्न 21.
संग्रथित फल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब सम्पूर्ण पुष्पक्रम विकसित होकर एक फल बनाता है तो इसे संप्रथित फल कहते हैं।

प्रश्न 22.
कूट फल क्या है ?
उत्तर:
जब बल के निर्माण में सम्पूर्ण पुष्पासन भाग लेता है तो इसे असत्य या कूट फल (false fruit) कहते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 23.
बीजाण्डासन क्या है ?
उत्तर:
अण्डाशय में मृदूतकीय संरचना जिस पर बीजाण्ड लगे होते हैं बीजाण्डासन (placenta ) कहलाती हैं।

प्रश्न 24.
आम के फल के खाया जाने वाले भाग का नाम लिखिए।
उत्तर:
मध्यफल भित्ति (mesocarp)।

प्रश्न 25.
रेशेदार अष्ठिफल का एक उदाहरण तथा इसके खाने योग्य भाग का नाम लिखिए। है ?
उत्तर:
नारियल (coconut) भूणपोष ।

प्रश्न 26.
मटर का पुष्प सूत्र लिखिए।
उत्तर:
Br % K(5) C1+2+(2)  A(9)+1  G(1)

प्रश्न 27.
सोलेनेसी कुल के दो पौधों के वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. आलू (Solanum tuberosumn)।
  2. बैंगन (Solanum melongina)।

प्रश्न 28.
लीची के फल में खाये जाने वाले भाग का नाम लिखिए।
उत्तर:
मांसल बीज चोल।

प्रश्न 29.
धँसे हुए रन्ध्र (Sunken stomata) किन पौधों की विशेषता
उत्तर:
मरुद्भिदी पादपों (xerophytes ) की।

प्रश्न 30.
लौंग पौधे का कौन-सा भाग है ?
उत्तर:
लौंग बिना खिली कली है।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
मूसला मूल तन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों में मूलांकुर (redicle) के लम्बे होने से प्राथमिक मूल बनती है। इसमें पाश्र्वय मूल होती है जिन्हें द्वितीयक या तृतीयक मूल कहते हैं। प्राथमिक मूल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर मूसला मूलतन्त्र (tap root system) कहलाता है। जैसे- सरसों ।

प्रश्न 2.
झकड़ा मूल तत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एकबीजपत्री पौधों में प्राथमिक मूल अल्पकालिक (ephimeral) होती है और इसके स्थान पर अनेक मूल निकल आती हैं। ये मूल तने के आधार से निकलती हैं। इन्हें झकड़ा मूल तन्त्र (fibrous root system) कहते हैं; जैसे— गेहूँ ।

प्रश्न 3.
अपस्थानिक मूल तन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कुछ पौधों जैसे घास तथा बरगद में मूल मूलांकुर की बजाय पौधे के किसी अन्य भाग से निकलती हैं। इन्हें अपस्थानिक मूल कहते हैं तथा एक स्थान से निकली सभी अपस्थानिक जड़ों को अपस्थानिक मूल तन्त्र (adventitious root system) कहते हैं। जैसे-दूब घास ।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 4.
मूसला जड़ तन्त्र रेशेदार मूल तन्त्र का केवल नामांकित चित्र
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 32

प्रश्न 5.
वैसीकेसी तथा सोलेनेसी कुल के दो-दो आर्थिक महत्व के पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सोलेनेसी –

  • टमाटर – (Lycopersicum esculentum)
  • बैंगन (Solanum melongina)

ब्रैसिकेसी –

  • सरसों – ( Brassica campestris)
  • मूली – ( Raphanus sativa)

प्रश्न 6.
प्रकृति के आधार पर कलिकाएँ कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर:
प्रकृति के आधार पर कलिकाएँ तीन प्रकार की होती है-

  • कायिक कलिकाएँ (Vegetative buds) – ये कलिकाएँ पत्र प्ररोह बनाती हैं।
  • पुष्पीय कलिकाएँ (Floral buds) – ये कलिकाएँ पुष्पों को जन्म देती
  • मिश्रित कलिकाएँ (Mixed buds) – ये कायिक भाग व पुष्प बनाती

प्रश्न 7.
भ्रूण तथा बीज में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
भ्रूण तथा बीज में अन्तर (Differences between Embryo and Seed) –

निषेचन से पूर्व बीजाu्ड (Ovule)निषेष्न के पर्जात् बीज (Seed)
बाह्म अध्यावरण (Outer integument)बाद बीजचोल (testa)
अन्त: अध्यावरण (Inner integument)अन्त: बीजचोल (tegmen)
बीजाण्ड वृन्त (Funiculus)नष्ट हो जाता है
बीजाण्डकोष (Nucellus)नष्ट हो जाता है या परिश्रूणपोष (perisperm) बनाता है
अण्डकोशिका (Egg cell)भूण (embryo)

प्रश्न 8.
सत्य फल तथा कूट फल में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. सत्य फल (True Fruits) – जब फल का निर्माण केवल अण्डाशय से निषेचन के पश्चात् होता है तो इसे सत्य फल कहते हैं । जैसे – आम, पपीता।
  2. असत्य फल (False Fruits) – जब पुष्प का निर्माण अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भागों तथा पुष्पासन से मिलकर होता है तो इसे कूट या असत्य फल कहते हैं। जैसे-सेब, नाशपाती।

प्रश्न 9.
शिराविन्यास किसे कहते हैं ? इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर:
शिराविन्यास (Veination ) – पत्ती पर शिरा तथा शिरिकाओं के विन्यास को शिराविन्यास कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है-

  • जालिकावत् शिराविन्यास (Reticulate veination ) – जब सिरिकाएँ पत्ती पर जाल जैसी रचना बनाती है; जैसे- द्विबीजपत्री पौधों में।
  • समान्तर शिरा विन्यास (Parallel veination) – जब सिरिकाएँ पत्ती पर समानान्तर रूप से फैली होती हैं; जैसे-एकबीजपत्री पौधों में।

प्रश्न 10.
स्पैडिक्स तथा कैटकिन पुष्पक्रम में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
स्पैडिक्स तथा कैटकिन पुष्पक्रम में अन्तर (Differences between Spadix and Catkin inflorescence)

भ्रूण (Embryo):बीज (Seed):
(i) यह बीजाण्ड की अण्डकोशिका से बनता है।निषेचनोपरान्त बीजाण्ड बीज बनाता है।
(ii) भ्रूण बीजपत्र या भ्रूणपोष में सुरक्षित रहता है।बीज दो पर्तों से बने बीज कवच में सुरक्षित रहता है।
(iii) भ्रूण बीज में पाया जाता है।बीज फल में पाया जाता है।

प्रश्न 11.
युक्तकोशी तथा संयुक्त पुंकेसरीय पुंकेसरों में अन्तर लिखिए। उत्तर- युक्तकोषी तथा संयुक्त पुंकेसरीय पुंकेसरों में अन्तर (Differences stamens between Syngenesious and Synaondrous)
उत्तर:

स्पैडिक्स (Spadix)कैटकिन (Catkin)
पुष्पावली वृन्त स्थूल एवं माँसल होती है।पुष्पावली वृन्त, मुलायम, कमजोर तथा लटकने वाली होती है।
सम्पूर्ण पुष्पक्रम पर अनेक या एक बड़ी प्राय: रंगीन, आकर्षक सहपत्र होती हैं। इसे स्पैथ कहते हैं।सभी पुष्पों की अपनी-अपनी सहपत्र होती हैं। पुष्प प्रायः एकलिंगी होते हैं।
उदाहरण-केला।उदाहरण-शहतूत।

प्रश्न 12.
श्वसन मूल तथा कवक मूल क्या होती हैं ?
उत्तर:
श्वसन मूल (Respiratory roots Pneumatophore) – दलदली स्थानों में उगने वाले पौधों में कुछ जड़ें वायवीय हो जाती हैं जिन्हें श्वसन मूल कहते हैं। ये जड़ों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराती हैं जैसे- राइजोफोरा। कवक मूल (Mycorrhiza ) कुछ उच्च पौधों की जड़ों तथा कवकों के बीच पारस्परिक सहजीविता को कवक मूल (Mycorrhiza ) कहते हैं। जैसे-चीड़ के पौधे में।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पौधों के प्रमुख संचयी भागों के नाम लिखिए –
(i) आलू
(ii) शकरकन्द
(iii) प्याज
(iv) मटर
(v) अदरक
(vi) मूली
(vii) गन्ना
(viii) शलजम
उत्तर:

(i) आलूभूमिगत कन्द
(ii) शकरकन्दकंदिल अपस्थानिक जड़
(iii) प्याजमाँसल शल्क पत्र
(iv) मटरबीज
(v) अदरकभूमिगत प्रकन्द
(vi) मूलीमूसला जड़
(vii) xन्नातना
(viii) शलजममूसला जड़।

(घ) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
जड़ की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जड़ की विशेषताएँ –

  • जड़ की उत्पत्ति प्रायः भ्रूण के मुलांकुर से होती है।
  • जड़ें धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती तथा ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती होती हैं।
  • जड़ों के शीर्ष पर मूलगोप (root cap) पायी जाती है।
  • जड़ों पर पर्व, पर्वसन्धियों तथा कलिकाओं का अभाव होता है।
  • जड़ों पर एककोशिकीय मूलरोम (root hairs) पाये जाते हैं।
  • जड़ की शाखाएँ अन्तर्जात (endogenous) होती हैं।

प्रश्न 2.
तने की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
तने की विशेषताएँ-

  • तने की उत्पत्ति भ्रूण के प्रांकुर (Plumule) से होती है।
  • तने की शीर्ष पर अमस्थ कलिका (apical bud ) तथा पत्तियों के कक्ष में कक्षस्थ कलिका ( axillary bud) पायी जाती है।
  • तने पर शाखाएँ, पत्तियाँ, पुष्प व फल उत्पन्न होते हैं।
  • तने पर पर्व एवं पर्व सन्धियाँ (nodes and internodes) पाये जाते
  • पर्वसन्धियों पर सामान्य पत्तियाँ या शल्क पत्र पाये जाते हैं।
  • तने पर बहुकोशिकीय रोम पाये जाते हैं।
  • तने की शाखाएँ बहिर्जात (exogenous) होती हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 3.
किसी पुष्पी पादप का उसके विभिन्न भागों को दर्शाते हुए नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 15

प्रश्न 4.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में अन्तर –

मूस्ला मूल (Tap Root)अवस्थानिक्ज मूल (Adventitious Root)
यह मूल भूण के मूलाकुर (Radicle) भाग से निकसित होती है।यह मूल मूलाकुर (radicle) से विकसित न होकर पौधे के दूसरे भाग से विकसित होता है।
इनमें प्राथमिक मूल (Primary root) कभी नह नहीं छोता। यह हमेशा भूमिगत (undegraund) होती है। इनमें मुख्य मूल एक ही होती है।इनमें प्राथमिक मूल बहुत अल्पजीवी (ephimeral) होती है।
यह सामान्यतः भूमि में बहुत गहराई तक जाती हैं।यह भूमिगत तथा वायवीय (aerial) दोनों प्रकार की हो सकती है।
इसमें मुख्य मूल बहुत मोटी होती है बाकी जड़ें उतनी मोटी नहीं होती हैं। इनमें प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक जड़ें निकलती है।इनमें बहुत सारी जड़ें छुष्ड में निकलती हैं। यह भूमि में बहुत गहराई तक नहीं जाती हैं।
यह द्विबीजपत्री पौधों (dicotyledons) में पायी जाती है।सारी जड़ें रेशेदार (fibrous) होती हैं।
यह मूल भूण के मूलाकुर (Radicle) भाग से निकसित होती है।इनकी जड़ों में इस प्रकार का विभेदन नहीं पाया जाता।

प्रश्न 5.
जटामूल तथा स्तम्भ मूल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जटामूल तथा स्तम्भमूल में अन्तर (Differences between Stilt root and Prop roots)-

जटामूल (Stilt roots)सतम्भमूल (Prop roots)
ये तने के आधारीय भाग से निकलती हैं।ये तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं।
ये छोटी होती हैं।ये लम्बी होती हैं।
ये आर्द्रताप्राही नहीं होती हैं।ये आर्द्रताम्राही होती हैं।
ये अपेक्षाकृत कम मोटी तथा ऊपर से नीचे तक समान होती हैं।ये इतनी मोटी हो जाती हैं कि
ये तिरछी वृद्धि करती हैं।इन्हें जड़ कहना कठिन होता है।
उद्टरण-गन्ना, मक्का।ये ऊपर मोटी तथा नीचे पतली होती हैं।
उदाइरण-बरगद।

प्रश्न 6.
परजीवी मूल तथा वायवीय मूल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परजीवी मूल तथा वायवीय मूल में अन्तर (Differences between Parasitic root and Aerial root):

परजीवी मूलवाय्वीय मूल
परजीवी पादपों जैसे- अमरबेल आदि में पायी जाती हैं।उपरिरोही पौधों जैसेआर्किड्स में पायी जाती हैं।
छोटी होती हैं जो पोषक के सम्पर्क में आने पर बनती हैं।लम्बी तथा स्वतः बनती हैं।
पोषक के संवहन ऊतक में प्रवेश कर भोजन अवशोषित करती हैं।वायु में लटककर आर्द्रता ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 7.
प्रन्थिमय जड़ें क्या हैं ? ये किन पौधों में पायी जाती हैं ?
उत्तर:
ग्रन्थिमय जड़ें (Nodulated or Tuberculate roots) – इस प्रकार की जड़ें लैग्यूमिनोसी कुल के सदस्यों जैसे—मूंग, मटर, चना आदि में पायी जाती हैं। इन जड़ों पर अनियमित आकार की गुलिकाएँ या मन्थियाँ (nodules) पायी जाती हैं। प्रारम्भ में इनका रंग पीला-गुलाबी होता है बाद में भूरा हो जाता है। इन गुलिकाओं में भारी संख्या में राइजोबियम (Rhizobium) नामक जीवाणु पाये जाते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 1
ये जीवाणु पौधे की जड़ों के साथ सहजीविता प्रदर्शित करते हैं। ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को ग्रहण करके इसे यौगिक रूप में बदल देते हैं जिसे पौधे ग्रहण कर लेते हैं। पौधे जीवाणुओं को आश्रय तथा भोजन प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
पर्णकाय स्तम्भ तथा पर्णाभ वृन्त में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पर्णकाय (पर्णाभ) स्तम्भ तथा पर्णायित (पर्णाभ) वृन्त में अन्तर-

पर्णकाय रतमम्भ (Phylloclade)पर्णाभ ধृत्त (Phyllode)
यह स्तम्भ का रूपान्तरण है।यह पर्णवृन्त का रूपान्तरण है। पर्णफलक (lamina) की भाँति हरा व चपटा होता है जो मुख्यत्याः प्रकाश संश्लेषण करता है।
इसमें स्तम्भ चपटा, हरा, सामान्यतः माँसल होता है अत: प्रकाश संश्लेषण के साथ-साथ भोजन संग्रह भी करता है।इसके कक्ष में कलिका होती है जिससे शाखा बनती है।
यहु स्वयं पत्ती के कक्ष में स्थित होता है।पर्वसन्धियाँ, कलिकाएँ या पुष्प धारण नहीं करता है।
यह पर्वसन्धियाँ, कलिकाएँ, पत्तियौँ तथा पुष्प धारण करता है। पत्तियाँ प्राय: काँटों या शल्कों में बदल जाती हैं।उंसाहरण-ऑस्ट्रेलियन बबूल।

प्रश्न 9.
सिलिकुआ तथा सिलिकुला की तुलना कीजिए ।
उत्तर:
सिलिकुआ तथा सिलिकुला की तुलना (Comparison between Siliqua and Silicula) – दोनों ही फल द्विअण्डपी (Bicarpellary), संयुक्त (Syncarpous ) तथा ऊर्ध्ववर्ती ( Superior) अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये प्रारम्भ में एककोष्ठी (unilocular) तथा भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) वाले होते हैं। बाद में कूटपट (raplum) बन जाने के कारण अण्डाशय द्विवेश्मी हो जाता है। परिपक्व होने पर फल भित्ति आधार से क्रमशः अप्रभाग की ओर स्फुटित होती है। बीज कूटपट (replum) पर ही लगे रह जाते हैं। कूटपट ऐंठकर बीजों को प्रकीर्णित कर देता है। दोनों कुल क्रूसीफेरी (Cruciferae or Brassicaceae) कुल के लाक्षणिक है। इनमें सिलिकुआ अधिक लम्बा तथा संकरा होता है जैसे-सरसों, मूली आदि। सिलिकुला अपेक्षाकृत छोटा होता है इसकी लम्बाई-चौड़ाई लगभग बराबर होती है, जैसे- कैप्सेला ( Capsella), कैण्डीटफट (Iberis sp.) आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 2

प्रश्न 10.
पुष्पीय पौधों की एक सामान्य पत्ती की संरचना समझाइए ।
उत्तर:
पत्ती (Leaf) पत्ती हरी, प्रकाश संश्लेषी उपांग है जो तने की पर्वसन्धियों तथा शाखाओं से बाहर की ओर निकलती है एक प्रारूपिक पत्ती के निम्नलिखित भाग होते हैं-
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 7

1. पर्णाधार (Leaf base ) – यह पत्ती का वह भाग है जो तने के साथ जुड़ता है। कुछ पौधों में पर्णाधार पर विशेष संरचनाएं होती हैं जिन्हें अनुपर्ण ( stipules) कहते हैं। ये छोटी-सी कक्षस्थ कलिका की सुरक्षा करते हैं। जब पर्णाधार पर अनुपर्ण उपस्थित होते हैं तब पत्ती को अनुपर्णी (stipulate) कहते हैं तथा अनुपर्णरहित पत्ती को अननुपर्णी ( exstipulate) कहते हैं।

2. पर्णवृन्त (Petiole ) – यह पत्ती का डण्ठल है। यह पत्ती को पर्णाधार से जोड़कर वायु तथा प्रकाश के लिए साधे रखता है। वृन्त सहित पत्ती को सवृन्त (petiolate) तथा वृन्तरहित पत्ती को अवृन्त (sessile ) कहते हैं।

3. पर्णफलक (Leaf blade or Lamina ) – यह पत्ती का प्रमुख भाग है। यह प्रायः चपटा, तथा हरा भाग है। पर्णफलक की दो सतह अध्यक्ष (adaxial) तथा अपाक्ष (abaxial) होती हैं। प्रायः अलग-अलग पौधों की पत्तियों में आकार आकृति की भिन्नता होती है। पर्णफलक पर शिराओं का विन्यास होता है। फलक एक शीर्ष में समाप्त होता है। पर्णफलक का कार्य प्रकाश संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन तथा श्वसन है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 11.
फैबेसी तथा सोलेनेसी कुल के आर्थिक महत्व के कुछ पौधों तथा उनके आर्थिक महत्व को लिखिए।
उत्तर:
फैबेसी कुल का महत्व –

  • सोयाबीन (Glycine soja) इससे सोया मिल्क प्राप्त किया जाता है।
  • मटर (Pisum sativum) – दाल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • मूँगफली (Arachis hypogea ) – इससे वनस्पति घी बनाया जाता है।

सोलेनेसी कुल का महत्व –

  • एट्रोपा (Atropa belladona) से एट्रोपीन नामक औषधि प्राप्त होती
  • तम्बाकू (Nicotiana tabacum) से निकोटिन प्राप्त होती है।
  • बैंगन (Solanum melongina) सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 12.
जड़ तथा तने में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जड़ तथा तने में अन्तर (Differences between Root and Stem)

(Root)(Stem)
मूलांकुर (radicle) से विकसित होती है।प्रांकुर (plumule) से विकसित होती है।
धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती, तथा ऋणात्मक प्रकाशनुवर्ती होती है।ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती तथा धनात्मक प्रकाशानुवर्ती होता है।
इस पर पर्व एवं पर्वसन्धियाँ, पत्तियाँ आदि नहीं पाये जाते हैं।पर्व एवं पर्वसन्धियाँ, पत्तियाँ, फल, पुष्प पाए जाते हैं।
एककोशिकीय मूल रोम पाये जाते हैं।बहुकोशिकीय रोम पाये जाते हैं।
मूलगोप उपस्थित होती है।मूलगोप उपस्थित नहीं होती है।
प्रकाश संश्लेषण नहीं करती।कुछ कोमल तने प्रकाश संश्लेषण करते हैं।

प्रश्न 13.
सरल तथा संयुक्त पत्ती में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
सरल एवं संयुक्त पत्ती में अन्तर (Differences between Simple and Compound Leaf)

सरल प्ती (Simple Leaf)संयुक्त पती (Compound Leaf)
सम्पूर्ण पर्णफलक एक ही होता है ।फलक छोटे-छोटे भागों में विभाजित होकर पर्णक (leaflet) बनाता है।
एक से अधिक सतहों में व्यवस्थित होती हैं।सारे पत्रक एक सतह पर विकसित होते हैं।
पत्तियाँ अम्राभिसारी क्रम में निकलती हैं।पत्ती के सभी पत्रकों का विकास समकालीन होता है।
पत्ती के आधार पर अनुपर्ण होते हैं।पत्रकों के आधार पर अनुपर्ण नहीं होते हैं। वे संयुक्त पत्ती के आधार पर स्थिर होते हैं।
सरल पत्ती के आधार में कलिका होती है।एकक पत्रक के कक्षक में कलिका नहीं होती बल्कि सम्पूर्ण संयुक्त पत्ती के कक्ष में होती है।

प्रश्न 14.
फलों का वर्गीकरण करते हुए विभिन्न प्रकार के फलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 3

प्रश्न 15.
मुण्डक तथा पुष्पछत्र पुष्पक्रमों में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मुण्डक और पुष्प छत्र पुष्पक्रमों में अन्तर (Differences between Capitulum and Umbel inflorescence):

मुण्डक (Capitulum)पुप्षुत्र (Umbel)
यह एक असीमाक्षी (cymose) प्रकार का पुष्पक्रम है जिसमें मातृ अक्ष या पुष्पावली वृन्त प्रायः चपटा होता है।यह एक असीमाक्षी (cymose) प्रकार का पुष्पक्रम है जिसमें पुष्पाक्ष छोटा या संघनित होता है।
इसमें छोटे-छोटे तथा अवृन्त पुष्पक चपटे पुष्पाक्ष पर लगे रहते हैं।पुष्प सवृन्त तथा पुष्पवृन्त लगभग समान लम्बाई के होते हैं।
अनेक सहपत्र मिलकर आशय को बाहर से घेरे होते हैं इनको सहपत्र चक्र कहते हैं।मातु अक्ष पर अनेक सहपत्र चक्र में लगे प्रतीत होते हैं।
पुष्प प्राय: दो प्रकार के होते हैं-रश्मि पुष्पक (ray flarets) तथा विम्ब पुष्पक (dise florete)।सभी पुष्प एक जैसे होते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 16.
अष्ठिफल तथा पेपो में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अस्फिल तथा पेपों में अन्तर (Differences between Drupe and Pepo)

अष्ठिफल (Drupe)पेपो (Pepo)
यह बहुअण्डपी, संयुक्त एवं ऊर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।यह द्विअण्डपी संयुक्त एवं अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।
यह प्राय: एककोष्ठी तथा एकबीजी होता है।यह प्राय: एककोष्ठी तथा बहुबीजी होता है।
बाह्य फलभित्ति छिलका, मध्य फलभित्ति प्रायः माँसल या रेशेशदार, किन्तु अन्तःफलभित्ति काष्ठीय या कठोर होती है।बाह्य फलभित्ति छिलका बनाती है। मध्य तथा अन्त: फलभित्ति माँसल व सरस होती है।
जैसे-आम, बेर आदि।जैसे-लौकी, खीरा आदि।

प्रश्न 17.
ड्रप तथा बैरी में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अपिठफल तथा बैरी में अन्तर (Differences between Drupe and Berry)

अज्ठिल (Drupe)बैरी (Berry)
यह बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।यह बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊध्ध्ववर्ती या अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।
फल प्राय: एककोष्ठीय तथा एकबीजी होते हैं।फल एककोष्ठी या बहुकोष्ठी तथा प्राय: बहुबीजी होता है।
बाह्य फलभित्ति छिलका, मध्य फलभित्ति गूदेदार (या रेशेदार) तथा अन्त फलभित्ति कठोर या काष्ठीय होती है।बाह़ फलभिति छिलका बनाती है। मध्य तथा अन्तक्फलित्ति माँसल होती है ।अन्त.फलभित्ति झिल्लीनुमा भी हो सकती है।
उदाहरण-आम तथा बेर।उदाहरण-टमाटर, अमरूद, केला आदि।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 18.
बीजों के अंकुरण कितने प्रकार के होते हैं ? समझाइए ।
उत्तर:
बीजों का अंकुरण (Germination of Seeds) – उचित ताप, नमी एवं ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा प्रकाश की अनुपस्थिति में बीज अंकुरण करके नवोद्भिद् (seedling) का निर्माण करते हैं जिससे पादप बनता है। बीजों का अंकुरण तीन प्रकार का होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 4
चित्र – सेम में उपरिभूमिक अंकुरण चने में अधोभूमिक अंकुरण
(i) उपरिभूमिक (Epigeal)-sइसमें बीजपत्राधार (hypocotyl) में वृद्धि के कारण बीजपत्र भूमि के ऊपर आ जाते हैं। जैसे- अरण्डी, सेम आदि ।

(ii) अधोभूमिक (Hypogeal) इसमें बीजपत्र अंकुरण के समय भूमि के अन्दर ही रहते हैं। इसमें एपीकोटाइल (epicotyl ) की वृद्धि अधिक होने के कारण प्रांकुर भूमि से बाहर आते हैं जैसे-चना, मटर आदि ।

(iii) सजीव प्रजता (Vivipary) – इसमें बीजों का अंकुरण फल के अन्दर तथा पौधे पर लगी हुई स्थिति में ही हो जाता है। ऐसा लवणोद्भिदों में देखने को मिलता है; जैसे-राइजोफोरा में शिशुपौधा फल से विलग होकर भूमि में गिरकर नये पौधे का निर्माण करता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 5

प्रश्न 19.
मुण्डक अथवा शीर्ष पुष्पक्रम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुण्डक अथवा शीर्ष (Capitulum or head ) – इसमें मुख्य वृन्त चपटा उत्तल या अवतल डिस्क के आकार का होता है। इसकी ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे अवृन्त पुष्प तथा पुष्पक (florets) लगे होते हैं। युवा पुष्प केन्द्र की ओर तथा पुराने पुष्प परिधि की ओर स्थित होते. हैं। सम्पूर्ण पुष्पक्रम सहपत्र चक्र के एक या एक से अधिक चक्रों से घिरा रहता है। प्रत्येक पुष्प के आधार पर भी सहपत्रों (Bracts) की उपस्थिति सम्भव। है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 6
पुष्पक दो प्रकार के होते हैं नलिकाकार तथा जीभिकाकार। इसमें जिव्हाकार रश्मिपुष्पक परिधि की ओर तथा नलिकाकार बिम्ब पुष्पक केन्द्र की ओर स्थित होते हैं। उदाहरण- गेंदा, सूर्यमुखी, एस्टर आदि।

प्रश्न 20.
पर्णाभ वृन्त तथा पर्णाभ में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
पर्णाभ वृन्त तथा पर्णाभपर्व में अन्तर (Differences between phylloclade and Cladode)

पर्णाभ वृन्तपर्णाभपर्व
यह तने का रूपान्तरण है।यह वृन्त का रूपान्तर है जिसमें प्राक्ष हो भी सकता है और नहीं भी।
वृद्धि अनिश्चित होती है।वृद्धि निश्चित होती है।
पर्वसन्धि तथा पर्व भिन्नित रहते हैं।ये रचनाएँ अनुपस्थित होती हैं।
पर्णाभ वृन्तों पर पत्तियाँ, शाखाएँ, पुष्प तथा फल लगे होते हैं।ये रचनाएँ अनुपस्थित ह़ोती हैं।
यह पत्ती के कक्ष से विकसित होता है ।यह कक्षस्थ रचना नहीं है।
कक्षस्थ कलिका अनुपस्थित होती है जबकि इसका विकास कक्षस्थ कलिका द्वारा होता है।कक्षस्थ कलिका उपस्थित होती है।
इनकी दिशा उर्ध्व या क्षैतिज होती है।इनकी वृद्धि दिशा उर्ध्वाधर होती है।
ये जल, भोजन, श्लेष्म तथा टेटेक्स संग्रहित करते हैं।इनमें संमहण नहीं होता।
कायिक गुणन में सहायक है।इस प्रकार का कार्य नहीं होता।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 21.
कुम्भीरूपी तथा तर्कुरूपी जड़ में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
कुम्भीरूप तथा तर्करूप में अन्तर
(Differences between Napiform and Fusiform Roots)

कुम्भीरूप (Napiform)तर्करूप (Fusiform)
यह लट्टू के आकार का दिखता है।इसका आकार तर्कु के समान है।
शीर्ष अचानक पतला हो जाता है।शीर्ष क्रमानुसार पतला होता है।
आधारीय भाग सबसे मोटा होता है।मध्य भाग सबसे मोटा होता है.
संमाहक जड़ का आधे से अधिक भाग बीजपत्राधार से बना होता है।बीजपत्राधार द्वारा संग्राहक जड़ का आधे से कम बाग बनता है।
शलगम में मूसला जड़ पतली किन्तु चुकन्दर में थोड़ी मोटी होती है।मूसला जड़ संम्राहक जड़ का भाग है।
शीर्ष भाग पर पतली धागे सदृश रचनाएँ पायी जाती हैं।पतली द्वितीयक जड़ें निकलती हैं

प्रश्न 22.
पत्र प्रतान तथा स्तम्भ प्रतान में अन्तर लिखिए। पत्र प्रतान तथा स्तम्भ प्रतान में अन्तर
उत्तर:

पत्र प्रतान (Leaf Tendril)संष्य प्रतान (Stem Tendril)
ये प्राय: अशाखित होते हैं।ये शाखित या अशाखित होते हैं।
ये प्राय: हरे होते हैं।ये हरे या भूरे होते हैं।
शल्क पत्र अनुपस्थित होते हैं।शाखाओं के क्षेत्र में शल्क पत्र होते हैं।
कलिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।शल्क पत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कलिका होती हैं।
सम्पूर्ण पत्ती या पत्ती के किसी भाग से प्रतान बनते हैं।तने की शाखा या कलिका द्वारा प्रतान विकसित होते हैं।

(E) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पत्तियाँ कितने प्रकार की होती हैं ? संयुक्त पत्ती के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्ण के प्रकार (Types of Leaf) – पर्ण दो प्रकार की होती है – सरल (simple) व संयुक्त पर्ण (compaund leaf)।
(1) सरल पर्ण (Simple Leaf) जब पत्ती की पर्ण फलक (lamina) अछिन्न होती है या कटी हुई लेकिन कटाव मध्यशिरा तक नहीं पहुँच पाता तरह की पर्ण को सरल पर्ण या सरल पत्ती कहते हैं। उदाहरण – पीपल की पत्ती के पर्णफलक अछिन्न कोर वाला होता है अर्थात् पर्णफलक में कोई कटाव नहीं होता। मूली व पपीते की पत्तियों के कई कटाव (incisions) पाये जाते हैं पर यह कटाव मध्यशिरा या पर्णवृन्त तक नहीं पहुँच पाते हैं। अतः पर्णफलक (Lamina) अविभाजित होता है व इसे सरल पर्ण कहते हैं।

(2) संयुक्त पर्ण (Compound Leaf) – इस तरह की पत्तियों में पर्णफलक में कटाव मध्य शिरा या पर्णवृन्त तक पहुँच जाते हैं व पर्णफलक कई खण्डों या भागों में बंट जाता है व प्रत्येक खण्ड पर्णफलक का भाग होता है व उसी के समान दिखाई देता है। अतः उसे पर्णक (leaflet) कहते हैं व पर्णकोयुक्त पसी को संयुक्त पर्ण (compound leaf) कहते हैं। संयुक्त पर्ण दो प्रकार के होते हैं –

(i) पिच्छाकार संयुक्त पर्ण (Pinnate Compound Leaf) इस प्रकार के संयुक्त पर्ण में पत्ती की मध्यशिरा को पिच्छाक्ष (rachis) कहते हैं व पिच्छाक्ष (rachis) के दोनों ओर पार्श्व में कई पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- इमली, गुलाब, नीम आदि।

यह निम्न प्रकार की होती है –
(अ) एकपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Uniptnnate compound leaf)-इसमें पर्णफलक एक ही बार विभाजित होता है व पिच्छाक्ष (rachis) अविभाजित होता है व पर्णक दोनों ओर पार्श्व में लगे रहते हैं। अगर पर्णक सम संख्या में होते हैं तो उसे समपिच्छकी (उदाहरण— अमलतास) और जब पर्णकों की संख्या विषम होती है तो पत्ती को विषमपिच्छकी कहते हैं। उदाहरण – गुलाब।

(ब) द्विपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Bipinnate compound leaf) इस तरह की संयुक्त पर्ण में पर्णफलक दो बार विभाजित होता है अर्थात् पर्णक (leaflet) जो पहले पिच्छाक्ष (rachis) पर लगते हैं वह अपनी मध्यशिरा की ओर कटावों द्वारा द्वितीयक पर्णकों में बँट जाता है। ऐसी संयुक्त पत्ती को द्विपिच्छकी कहते हैं। उदाहरण-बबूल और गुलमोह।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

(स) त्रिपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Tripinnate compound leaf) – इसमें द्विपिच्छकी पर्ण के फलकों का कटान अपनी मध्यशिरा की ओर हो जाता है व प्रत्येक द्वितीयक पर्णक कई तृतीय (tertiary) पर्णकों में बंट जाता है। पर्णफलक की मध्यशिरा या पिच्छाक्ष (rachis) प्राथमिक अक्ष ( main axis) बनाती है व इस पर द्वितीयक अक्ष लगे रहते हैं व इस पर तृतीयक अक्ष लगे रहते हैं व इसके दोनों ओर पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- शहजन (Moringa) ।
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(द) बहुपिच्छकी संयुक्त पर्ण ( Multipinnate compound leaf) – पर्णफलक का कटान क्रमशः तीन से अधिक बार हो जाता है व पर्णफलक अनेक पर्णकों (leaflets) में बँट जाता है। उदाहरण- धनिया, गाजर, कॉसमोस आदि।

(य) हस्ताकार संयुक्त पर्ण (Palmate compound leaf) इस तरह की संयुक्त पर्ण में पर्णफलक के कटान पर्णवृन्त तक पहुँच जाते हैं व पर्णफलक कई पर्णकों (leaflets) में विभक्त हो जाता है व पर्णक पर्णवृन्त (petiole ) के अगले सिरे तक लगे रहते हैं। इसे हस्ताकार संयुक्त पर्व कहते हैं क्योंकि इनका -आकार हथेली की अंगुलियों की तरह होता है।

इस पर्ण में पर्णकों की संख्या के आधार पर निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है –
(i) एक पर्णकी (Unifoliate) – इसमें पर्णवृन्त के अगले सिरे से केवल एक ही पर्णक संचित रहता है। उदाहरण- नींबू नारंगी आदि।

(ii) द्विपर्णकी (Bifoliate) – इसमें दो पर्णक पर्णवृन्त क अगले सिरे से जुड़े रहते हैं। उदाहरण-हार्डविकिया।

(iii) त्रिपर्णकी (Trifoliate) – इस प्रकार के हस्ताकार संयुक्त पर्ण में पर्णवृन्त पर तीन पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरणं—बेलपत्र, खट्टी, बूटी।

(iv) चतुपर्णकी (Quadrifoliate) – इस प्रकार के हस्ताकार संयुक्त पर्ण में पर्णवृन्त के अगले सिरे पर चार पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- मार्सिलिया । अगले सिरे पर चार से अधिक पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- बॉम्बेक्स, क्लिोम आदि।

(v) बहुपर्णकी ( Multifoliate) – इसमें पर्णवृन्त के सरल तथा संयुक्त पत्ती में अन्तर –
(Differences between Simple and Compound Leaf)

सरल प्ती (Simple Leaf)संयुक्त फ्ती (Compound Leaf)
सरल पत्ती में एक ही पर्णक (leaflet) होता है जिस पर शिराएँ फैली रहती हैं।पत्ती का किनारा दो या दो से अधिक पर्णकों (leaflets) में बँटा होता है ।
सरल पत्तियाँ एक से अधिक सतहों में व्यवस्थित होती हैं।संयुक्त पत्तियाँ में सभी पत्रक एक सतह पर विकसित होते हैं।
पत्तियों का विकास अप्राभिसारी क्रम में होता है।संयुक्त पत्ती के सभी पत्रकों का विकास समकालीन होता है।
पत्ती के आधार पर अनुपर्ण (stipules) हो सकते हैं।पत्रकों के आधार पर अनुपर्ण (stipules) नहीं होते हैं। परन्तु वे संयुक्त पत्ती के आधार पर स्थित होते हैं.
पत्ती के कक्ष में कलिका होती है।एकक पत्र के कक्ष में कलिका नहीं होती है बल्कि सम्पूर्ण पत्ती के कक्ष में होती है।
उदाहरण-पीपल, बरगद, गुड़हल, बेंगन।उदाहरण-नीबू, गुलाब, बबूल, धनियाँ।

प्रश्न 2.
शिराविन्यास किसे कहते हैं ? पत्तियों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के शिराविन्यास का सचित्र वर्णन कीजिए। इनका महत्व बताइये।
उत्तर:
शिराविन्यास (Venation) – पर्णफलक में मध्यशिरा, शिराओं व शिरिकाओं (midrib, veins and veinlets) का एक जाल बन जाता है। शिरां व शिरिकाओं से बने इस जाल को शिराविन्यास (venation) कहते हैं।

शिराविन्यास मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
(अ) जालिकारूपी शिराविन्यास (Reticulate venation)
(ब) समान्तर शिराविन्यास (Parallel venation)

(अ) जालिका रूपी शिराविन्यास (Reticulate venation ) – इस प्रकार के शिराविन्यास में शिराएँ कई बार शाखित होकर अनेक शिरिकाएँ बनाती हैं। यह पर्णफलक में विभिन्न दिशाओं में फैली रहती है। यह जालिकारूपी शिराविन्यास अधिकतर द्विबीजपत्री (dicotyledons) पौधों में पाया जाता है। किन्तु ब्रायोफिल्म में समान्तर शिराविन्यास मिलता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 7

जालिकारूपी शिराविन्यास मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
1. एकशिरीय या पिच्छाकार,
2. बहुशिरीय या हस्ताकार।

1. एकशिरीय या पिच्चाकार शिराविन्यास (Pinnate reticulate venation ) – इस प्रकार के शिराविन्यास में पर्णफलक के मध्य शिरा से कई पार्श्व शिराएँ निकलकती हैं जो फलक कोर (Lmina margin) व फलक शिखाम की ओर फैली रहती हैं व पूरे फलक में जाल बन जाता है। इसे पिच्छाकार शिराविन्यास (pinnate venation) कहते हैं। इसमें मध्यशिरा से पार्श्व शिराएँ उसी प्रकार निकलती हैं जैसे चिड़ियाँ के पर के मध्य कठोर भाग में असंख्य कोमल रोम निकले रहते हैं। उदाहरण-आम, अमरूद, पीपल, जामुन आदि।

2. बहुशिरीय या हस्ताकार जालिकारूपी शिराविन्यास (Palmate reticulate venation):
इस शिराविन्यास में पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं। कक्षीय कालिका जो क्रमशः फलक कोर तथा फलक शिखाम तक चली जाती हैं। यह दो प्रकार का होता है – (Auxillary bud)

(i) बहुशिरीय अभिसारी (Multicostate convergent or polmale venation ) – पूर्णवृत्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं। पर्णफलक के आधार भाग में यह एक-दूसरे के निकट होती है और फलक के मध्य भाग में एक-दूसरे से दूर हो जाती हैं व फलक के शीर्ष भाग में पुनः एक-दूसरे के निकट हो जाती है। इस क्रम को अभिसारी कहते हैं। उदाहरण-कपूर, दाल चीनी, तेजपात बेर आदि।

(ii) बहुशिरीय अपसारी या हस्ताकार (Multicastate divergent ) – पर्णवृन्त के अगले सिरे पर प्रमुख शिराएँ, एक-दूसरे के निकट होती हैं लेकिन जैसे-जैसे यह फलक कोर तथा फलक शिखाम (apex) की ओर बढ़ती जाती है, यह एक-दूसरे से क्रमशः दूर होती चली जाती है। इस क्रम को अपसारी (divergent) कहते हैं। एकबीजपत्री पौधे जैसे कि स्माइलेक्स, डाइओस्कोरिया आदि में अपवाद के रूप में जालिका रूपी शिराविन्यास (reticulatevenation) पाया जाता है।

(ब) समान्तर शिराविन्यास (Parallel Venation) – इस प्रकार के शिराविन्यास में मध्यशिरा या पर्णवृन्त के अगले सिरे से, पर्णफलक (lamina) में कई (divergent) कहत है। शिराएँ एक-दूसरे के लगभग समान्तर फैली रहती हैं। समान्तर शिराविन्यास (venation) अधिकतर एकबीजपत्री पौधों (monocotyledons) में मिलता है। कुछ एकबीजपत्री पौधे जैसे कि स्माइलेक्स, डाइओस्कोरिया आदि में अपवाद के रूप में जालिका रूपी शिराविन्यास (reticulate venation) पाया जाता है।

यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
1. एकशिरीय या पिच्छाकार समान्तर शिराविन्यास (Unicostate parallel venation)-पर्णफलक में एक मध्यशिरा होती है। इस मध्यशिरा से कई पार्श्व शिराएँ एक-दूसरे के समान्तर निकलती हैं जो क्रमशः फलक कोर (leaf margin) और फलक शिखाग्र तक चली जाती है। यह पार्श्व शिराएँ शिरिकाओं में शाखित नहीं होती है अतः शिरिकाओं का जाल नहीं बनता है। उदाहरण-केना, केला, अदरक व हल्दी।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 9

2. बहुशिरीय समान्तर शिराविन्यासपर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो फलक-कोर (Leaf margin) था फलक शिखाम तक चली जाती है। यह दो प्रकार का होता है।

(i) बहुशिरीय अपसारी या हसतकारी अपसारी (Muticostate divergent) पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो फलक कोर तथा फलक शिखाप्र की ओर अपसारित होती जाती हैं। उदाहरण-ताड़, खजूर, नारियल।
(ii) बहुशिरीय अभ्सिरी (Muticostate convergent)-पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो पर्णफलक के समान्तर वक्रित रेखाओं के समान फैली रहती हैं और फलक के शीर्ष भाग में एक-दूसरे के निकट आ जाती हैं। उदकरणण-धान, गेहूँ, गन्ना, बाँस व घास आदि।

प्रश्न 3.
जड़ के सामान्य कार्य क्या हैं? जड़ों में पाये जाने वाले विशेष प्रकार के जैविक कार्यों को करने के लिए रूपान्तरणों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल के वृद्धि क्षेत्र (Growing Regions of Root) – मूल या जड़ के अन्तिम छोर से कुछ मिमी. से लेकर कुछ सेमी. तक का भाग वृद्धिशील होता है व इसे मूल या जड़ का वृद्धि प्रदेश (growing Region) कहते हैं। मूल का यह भाग मूलगोप (root cap) से ढका रहता है जो टोपीनुमा रचना होती है। यह (मूलगोप), मूल के शीर्ष (root apex ) भाग की भूमि में वृद्धि करते समय नष्ट होने से रक्षा करता है।

मूल के वृद्धि प्रदेश को तीन भागों में विभक्त किया जाता है। यह तीन भाग निम्नलिखित होते हैं –
(i) विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic region)
(ii) दीर्घीकरण क्षेत्र (Region of elongation)
(iii) परिपक्वन क्षेत्र ( Region of maturation )

2. विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic Region ) – यह क्षेत्र मूल के सिरे से ऊपर की ओर एक मिलीमीटर या केवल कुछ ही मिलीमीटर तक होता है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग मूलगोप (root cap) से ढका रहता है। इस क्षेत्र की कोशिकाएँ छोटी ओर पतली कोशिकाभित्ति वाली होती हैं व जीवद्रव्य (protaplam) सघन होता है। यह कोशिकाएँ लगातार विभाजन कर कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती हैं जिससे मूल की वृद्धि होती है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 10

3. दीर्घीकरण क्षेत्र (Region of elongation) – यह क्षेत्र, विभज्योतकी (meristematic) क्षेत्र के ऊपर 1-5 मिमी. तक फैला होता है। विभज्योतक (meristem) क्षेत्र में बनी नई कोशिकाएं इस क्षेत्र की लम्बाई में वृद्धि करती हैं। विभज्योतकी तथा दीर्धीकरण क्षेत्रों में होने वाली इन क्रियाओं के कारण मूल लम्बाई में वृद्धि करती है।

4. परिपक्वम क्षेत्र (Region of maturation ) – दीर्भीकरण क्षेत्र के ऊपर परिपक्वन क्षेत्र होता है। यह कुछ मिमी. से कुछ सेमी. तक हो सकता है। इस क्षेत्र में कोशिकाएं अपना पूर्ण आकार प्राप्त कर विभिन्न प्रकार के ऊतकों में विभेदित होने लगती है। यह क्षेत्र बाहर से आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में असंख्य मूलरोम (root hairs) होते हैं। मूलरोम (root hairs) जल अवशोषण क्रिया के मुख्य अंग होते हैं। यह भूमि से जल तथा जल में घुले हुए लवणों का अवशोषण (absorprion) करते हैं। यह मूल के चारों ओर लगभग 2 सेमी. क्षेत्र में मूलरोमों (root hairs) पर चिपके रहते हैं।
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मूल के रूपान्तरण (Modifications of Roots ):
मूसला जड़ के रूपान्तरण (Modificaitons of tap roots) पादपों के रूप तथा शरीर में होने वाले वे विशेष परिवर्तन जिनके द्वारा वे विशिष्ट कार्यों का सम्पादन करते हैं या स्वयं को पर्यावरण के प्रति अनुकूल बनाते हैं, रूपान्तरण कहलाते हैं। मुसला जड़ें (Top roots) भोजन संग्रहण के लिए, जीवाणु सहजीवन (symbiosis) के लिए, धारी तनों को सहारा प्रदान करने के लिए या लवणीय भूमि में गैसों के आदान-प्रदान के लिए विभिन्न रूपों में रूपान्तरित होती हैं।

2. प्रथमय जड़ें (Nodulated or Tuberculated Roots ) – लेग्यूमिनोसी कुल के पौधों, जैसे-चना, मटर, सोयाबीन, अरहर आदि की मूसला जड़ों पर गोल या अनियमित संरचनाएँ बन जाती हैं जिन्हें मूल गुलिकाएँ (root nodules) कहते हैं। इन मन्थियों में राइजोबियम (Rhizobium) नामक सहजीवी जीवाणु पाये जाते हैं। ये जीवाणु मृदा में उपस्थित पुश्ता नाइट्रोजन को इसके यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं। इन नाइट्रोजनी यौगिकों को पौधे की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। ऐसी जड़ें ग्रन्थिमय मूल कहलाती हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 12

3. पुस्ता जड़ें (Buttress roots) – ये क्षैतिज जड़ें हैं जो तने के आधार पर से विकसित होती हैं। ये पौधे को अतिरिक्त सहारा प्रदान करती हैं। इन्हें प्लैंक जड़ें (plank roots) भी कहा जाता है। कभी-कभी ये पार्श्व से दबी होती हैं। जैसे-बरगद, पीपल, बादाम।
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4. श्वसन मूलें (Respiratory roots or pneumatophores) – इस प्रकार की जड़ें दलदली या अत्यधिक लवणीय मृदा में उगने वाले कुछ पौधों जैसे— राइजोफोरा, सोनेरेशिया, एवीसीनिया, हेरिटिएरा आदि में पायी जाती हैं। इन पौधों को मैंगूव (mangrove) भी कहते हैं। ऐसी भूमि में पौधों की जड़ों को श्वसन के लिए वायु उपलब्ध नहीं होती हैं। अतः मैंप्रूव पादपों की जड़ों से कुछ जड़ें वायवीय होकर भूमि की सतह से ऊपर आ जाती हैं। इन जड़ों श्वसन मूल (pneumetophores) कहते हैं। इन पर सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं, जो वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करते हैं।
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5. मूसला जनन मूल (Reproductive tap roots ) – कुछ पौधों में मूसला जड़ या इनकी शाखाओं पर अपस्थानिक कलिकाएँ उत्पन्न होती हैं जिमसे नये पौधे का निर्माण होता है। जैसे-शीशम।
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अपस्थानिक जड़ों के रूपान्तरण (Modifications of Adventitious roots):
मूसला जड़ों के समान ही अपस्थानिक जड़ों के भी रूपान्तरण पाये जाते हैं। ये रूपान्तरण, संचयन, आरोहण, सहारे अथवा जनन के लिए होते हैं। अपस्थानिक जड़ों के रूपान्तरण निम्न प्रकार हैं –
1. कन्द गुच्छ (Tuberous or fasciculated) – जड़ों में भोजन संचित होने पर यह फूल जाती है व गुच्छे बना लेती है। उदाहरण-शकरकन्द (Sweet potato) व एस्पेरागस (Asparagus) आदि।

2. रेशेदार (Fibrous ) – जड़ें बहुत पतली व तन्तु के समान होती हैं। जैसे-गेहूँ।

3. ग्रन्थिमय (Nodulated)- इनमें जड़ों के सिरे फूल जाते हैं। उदाहरण-मेलीलोटस ( Melilotus), मटर।

4. मणिरूपाकार (Beaded or Moniliform )-जब जड़ बीच-बीच में से निश्चित अन्तर के पश्चात् मोती के समान फूलती है, उसे मणिरूपाकार कहते हैं। उदाहरण-वाइटिस (Vitius)।

5. जटा मूल (Stilt roots)-जब पर्व सन्धियों (Nodes) पर से जड़ें निकलती हैं और भूमि की ओर बढ़ती हैं व भूमि में घुसकर रस्सीनुमा संरचना बना लेती हैं उसे जटा मूल कहते हैं। जैसे-मक्का (Zea mays)।

6. उपरिरोही जड़ें (Epiphytic roots)-अधिपादपों में वायवीय जड़ें निकलती हैं। इन जड़ों में वेलामन ( velamen) ऊतक पाया जाता है। यह ऊतक हवा से नमी सोख लेता है, जैसे- आर्किड की जड़ें (Orchid roots)

7. पर्णिल जड़ें (Foliar roots )-जब पत्तियों से जड़ें निकलती हैं तो पर्णिल जड़ें कहलाती हैं। जैसे-पत्थर चटा (Bryo- phylumn)।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 16
8. परजीवी जड़ें (Sucking or haustorial roots ) – परजीवी पौधों में जड़ें पोषक तने में घुसकर भोजन का चूषण करती हैं जैसे— डेन्ड्रोप्थी (Dendrophthoe)

9. स्तम्भ मूल (Prop roots) – जब जड़ें शाखाओं से निकलती हैं और भूमि में चली जाती हैं। पेड़ को स्तम्भ की तरह दृढ़ता प्रदान करती हैं, स्तम्भ मूल कहलाती हैं। उदाहरण- बरगद।

10. आरोही मूल (Climbing roots ) – यह जड़ें पर्व सन्धियों (nodes) पर निकलती हैं और आरोही (climber ) को चढ़ने में मदद करती हैं। उदाहरण – मनीप्लाण्ट, मोन्स्टेरा (Monstera) आदि।

11. वलयाकार (Annulated) – कुछ पौधों की जड़ों में वलयाकार रचनाएँ पायी जाती हैं। जैसे- आर्किड (Orchid)।.

प्रश्न 4.
एक प्रारूपिक जड़ के विभिन्न स्रोतों का संक्षिप्त तथा सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल या जड़ ( Root):
मूल या जड़ पौधों का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह सूर्य के प्रकाश से दूर तथा पृथ्वी के गुरुत्व केन्द्र की ओर वृद्धि करता है, अतः मूल को धनात्मक गुरुत्वानुर्वी (positive geotropic) एवं ऋणात्मक प्रकाशानुक्ती (negative phototropic) कहा जाता है। मूल सदैव जल स्रोत की ओर भी वृद्धि करती हैं अतः इन्हें धनात्मक उलानुवर्ती (positive hydrotropic) भी कहा जाता है।

मूल को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –
“मूल पौधे का वह अंग है जो प्रकाश स्वोत के विपरीत एवं भूमि के गुरुत्व केन्द्र व जल स्रोत की ओर वृद्धि करता है।” मूल की उत्पत्ति बीज में उपस्थित भ्रूण के मूलांकुर (radicle) से होती है। द्विबीजपत्री पादपों (dicotyledons) में मूलांकर (radicle) ही वृद्धि करके मुख्य या प्राथमिक मूल (primary root) बनाता है। एकबीजपत्री पादपों में

2. Fंख्रा या रेशेषार मूल तन्त (Fibrous Root System)एकबीजपत्री (monocot) पौर्धों में मूलांकुर से परिवर्धित प्राथमिक मूल अल्पजीवी होती है और शीच्र नष्ट हो जाती है इसके स्थान पर तने के आधार भाग से अनेक पतली रेशे के समान जड़ें उत्पन्न हो जाती हैं जिसे आकाता या रेशेषार (fibrous root system) मूल तन्त्र कहते हैं। उदाहरण-गेहूँ।
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3. अप्त्थानिक मूल (Adventitious Root) – जब मूल या जड़ मूलांकर से विकसित न छोकर पौषे के किसी अन्य भाग से जैसे-स्तम्भ, शाखा तथा पत्ती से परिवर्धित छोती है तो उसे अपस्थानिक मूल (adventitious root) मूल कहते हैं। उदाहरण-घास तथा बरगद। एकबीजपत्री पौधों में मिलने वाला झकड़ा मूल तन्त्र (fibrous root system) अपस्थानिक मूल तन्त्र (adventitious roots system) होता है। प्याज में चपटे तश्तरी के समान स्तम्भ की निचली सतह से झकड़ा जड़ें निकलती हैं।

भूमि की सतह पर वृद्धि करने वाले उपरिभूस्तारी (runner) तनों और शाखाओं की पर्ष सन्धियों (modes) से भूमिगत अपस्थानिक मूलान्त परिवर्धित छोता है। ऐसा मूलतन्त घास की अनेक जातियों में भी पाया जाता है। बाँस, गन्ना, मक्षा एवं अन्य सीधे खड़े स्तम्म वाले एकबीजपत्रियों में भूमि की निकटवर्ती पर्वसन्धियों (node) से अपस्थानिक जड़ें (advantitious roots) निकलती हैं जो भूमि में प्रवेश करके सामान्य जड़ों की भाँति कार्य करती हैं।

प्रश्न 5.
लिलिएसी कुल का अर्द्धतकनीकी भाषा में वर्णन किसी प्रतिनिधि सदस्य द्वारा कीजिए। इस पौधे का पुष्प चित्र बनाइये तथा पुष्प सूत्र लिखिए। इस कुल का आर्थिक महत्व लिखिए।
उत्तर:
लिलिएसी कुल ( Family Liliaceas):
आवास एवं स्वभाव (Habit and Habitat ) – प्रायः बहुवर्षीय शाक (perinnial herbs) कुछ पौधे झाड़ी जैसे-रसकस (Ruscus), आरोही जैसे – स्माइलेक्स (Smilax) या छोटे वृक्ष; जैसे- यक्का (Yucca) होते हैं।
जड़ तन्त्र (Root System) – प्रायः तन्तुरूप झकड़ा, अपस्थानिक (adventitious) जड़ें।
तना (Stem)-वायवीय (aerial), सीधा या आरोही (climber), पुष्पीय शाखा स्केप (scape) के रूप में शाखामय कभी-कभी जैसे – पर्णाभ पर्व (cladode); जैसे- रसकस, सतावर (Asparagus) या शल्क्रकन्द (Bulb); जैसे-प्याज (Allium cepa) में रूपान्तरित हो जाता है। पत्तियाँ (Leaves) मूलीय (radicle) या स्तम्भीय (cauline), अनमुपर्णी ( exstipulate ), सरल, प्रायः समानान्तर शिराविन्यास। स्माइलेक्स में अनुपर्णी ( stipulate) तथा अनुपर्ण प्रतान (Tendril) में रूपान्तरित होते हैं।

पुष्पक्रम (Inflorescence) – असीमाक्षी या ससीमाक्षी मुण्डक (cymose head); कभी-कभी एकल पुष्प। पुष्प (Flower) प्रायः सहपत्री (bracteate ), सवृन्त (pedicellate ), पूर्ण (complete), उभयलिंगी (hermaphrodite ), प्रायः त्रिज्यासममित (actinomorphic), जायांगाधर (hypogynous), त्रितयी (trimerous।

परिदलपुंज (Perianth) – परिदल – पत्र (tepals) 6, तीन-तीन के दो चक्रों में, पृथक् या संयुक्त परिदली (poly or gamophyllous) दोनों चक्र एक-दूसरे से एकान्तरित, कोरस्पर्शी या कोरछादी ( valvate or imbricate), दलाभ ( petalloid), बाह्यदलाभ ( sepalloid) एक-दूसरे से भिन्नित अथवा अभिन्नित। पुमंग (Androecium)-पुंकेसर 6, तीन-तीन के दो चक्रों में, पृथक् पुंकेसर (polyandrous ), परिदललग्न (epiphyllous ), आधारलग्न या मुक्तदोली (basifixed or versatile), परागकोष द्विकोष्ठी (dithecous ), अन्तर्मुखी (introrse), अनुलम्ब स्फुटन (dehiscence longitudinal), पुतन्तु आधार पर चपटे तथा फैले हुए।

जायांग (Gynoecium) – त्रिअण्डपी (tricarpellary), युक्ताण्डपी ( syncarpous ), ऊर्ध्ववर्ती (superior), त्रिकोष्ठीय (trilocular) अण्डाशय, बीजाण्डन्यास (placentation) स्तम्भीय (axile), वर्तिकाम त्रिशाखित (trifid)। फल (Fruit) – बेरी (berry) या सम्पुट (capsule)।
पुष्प सूत्र (Floral formula) –
Br, ⊕, P(3 + 3 ) Or 3 +3 A9 +3 G(3)
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आर्थिक महत्त्व के पौधे (Plants of Economic Importance):
लिलिएसी कुल के कुछ पौधे अत्यन्त उपयोगी हैं। कुछ पौधों के नाम निम्नलिखित हैं-
(1) भोजन के लिए (For Food)
(i) प्याज (Onion = Allium cepa)
(ii) लहसुन (Garlic = Allium sativum)

(2) सजावटी पौधे (Ornamental Plants)
(iii) लिली (Lily = Lilium bulbiferum)
(iv) यक्का (Dragon plant = Yucca aloifolia)।

प्रश्न 6.
सरल या एकल फलों का संक्षिप्त विवरण कीजिए।
उत्तर:
फलों के प्रकार (Types of Fruits) – साधारणतयाः फल तीन प्रकार के होते हैं –
I. एकल फल (Simple Fruits)
II. पुंजफल (Aggregate Fruits)
III. संमथित फल (Composite Fruits) ।

I. सरस या एकल फल (Simple Fruits) – ये फल एकअण्डपी अथवा बहुअण्डपी युक्ताण्डपी अण्डाशय (unicarpalary or multicarpalary syncarpous ovary) से विकसित होते हैं। अण्डाशय मध्यवर्ती या अधोवर्ती (inferior) होता है। ये फल दो प्रकार के होते है-
(अ) शुष्क फल
(ब) सरस फल।

(अ) शुष्ठ का (Dry fruits)-इसकी फलभित्ति (Pericarp) शुक्क, कठोर, चीमड़, काष्ठीय या श्रिल्लीदार होती है। ये फल तीन प्रकार के होते हैं –
1. स्फोटी
2. अस्फोटी तथा
3. भिदुर फल।

1. स्फोटी फल (Dehiscent Fruit)- ये पकने पर फट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते है –
(i) फली (Legume or pod) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय (Monocarpalary superiou ovary) से विकसित होते हैं। परिपक्व फल पकने पर दो सीवनी द्वारा फटता है। जैसे-सेम, मटर आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 18
(ii) फालिकल (Follicle)-इनमें केवल एक सीवनी (suture) द्वारा स्फुटन (dehiscence) होता है। शेष गुण फली के समान होते हैं। जैसे-आक, चम्पा आदि।

(iii) सिलिकुआ (Siliqua) – यह फल द्विअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय (bicapalary, compound superior ovary) से विकसित होता है। आरम्भ में अण्डाशय एककोष्ठी किन्तु बाद में कूट पट (replum) बन जाने से द्विकोष्ठी दिखाई देता है, जैसे-सरसों।

(iv) सिलिक्युला (Silicula)- यह पूर्णत: सिलिक्यूआ के समान होता है। परन्तु यह लम्बाई व चौड़ाई में समान होता है। जैसे-कैपसल्ला।

(v) सम्पुट (Capsule)- ये फल बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय तथा कभी-कभी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये विभिन्न विधियों द्वारा स्फुटित होते हैं। जैसे- कपास, पोस्त, भिण्डी आदि।

2. अस्फोटी या एकीनियल (Indihiscent or Achenial)- ये फल पकने पर फटते नहीं। इनके बीज फल के सड़ने पर ही प्रकीर्णित होते हैं। ये फल निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) एकीन (Achene)- ये फल एकाण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलधित्ति बीज चोल से अलग होती है। जैसे-क्लीमेटिस, रेनकुलस आदि।

(ii) कैरिऑफिस (Caryopsis) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलभित्ति बीजचोल से संगलित होते हैं। जैसे-ोोहँ, मक्का।

(iii) सिप्सेला (Cypsella)-ये द्विअण्डपी, संयुक्त, अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें चिरलग्न रोमगुच्छ पाया जाता है। जैसे-सूर्यमुखी, गैंदा आदि।

(iv) नट (Nut)-यह फल एककोष्ठीय, व एकबीजी होते हैं और द्वि या बहुअण्डपी संयुक्त ऊर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे—काजू, लीची, सिंघाड़ा।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 19
3. फिद्र फल (Schizocarpic fruit)- ये बहुवीजी होते हैं, परिपक्व होने पर ये छोटे-छोटे फलाशुकों (mericarp) में टूट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 20

(i) लोमेट् (Lomentum) – ये फल एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इसमें फलभित्ति संकीर्णित होकर फल को एकबीजी फलाशुकों में बाँट देती है। जैसे-इमली, बबूल आदि।

(ii) क्रीमोकार्प (Cremocarp)- ये फल द्विकोष्ठीय तथा द्विबीजी होते हैं। और द्विअण्डपी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे-धनिया, जीरा आदि।

(iii) कासेंससस (Carcerulus)-ये फल कर्श्व द्विअण्डपी खीकेसर से विकसित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय एक फलांशक में बैंट जाता है जैसे तुलसी, साल्विया आदि।

(iv) रेग्मा (Regma)- ये फल बहुअण्डपी खीकेसर से विकसित और पकने पर एकबीजी इकाइयों कोकाई में बैंट जाते हैं। जैसे-अरण्ड में।

(ब) सरस फल (Succulent fruits) – ये फल अफुटन शील होते हैं तथा इनकी फलभित्ति गूदेदार होती है। इन फलों की फलभित्ति तीन भागों- बाह्य फल (epicarp) मध्यफलंभित्ति (mesocarp) तथा अन्त: फलभित्ति (endocarp) में बंटी होती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. अस्ठिफल (Drupe)-ये फल एकाण्डपी या बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डा शप से विकसित होते हैं। इनकी बाह्य फल भित्ति पतली होती है जो छिलका बनाती है।मध्य फलभित्ति गूदेदार या रेशेदार तथा अतः फलभित्ति काष्ठीय कठोर होती हैं। औैसे-आम, नारियल।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 21
2. बेरी (Berry)- ये फल एक या बहुअण्डपी, संयुक्त अण्डाशय से विकसित होते हैं। बाह्म फल भित्ति पतली होती है। बीज मध्यफल भित्ति में धंसे
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 22
होते हैं, अन्तः फलभित्ति झिल्लीनुमा या गूदेदार होती है। जैसे-टमाटर, केला, अमरुद आदि।

3. पेपो (Pepo) – ये फल बहुत कुछ बेरी के समान होते हैं। परन्तु ये भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) युक्त अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। औसे-खीरा, ककड़ी आदि।

4. पोम (Pome)- यह कूट फल (False fruit) है। फल का खाने योग्य भाग माँसल पुस्पासन (thalamus) होता है। यह संयुक्त अधोअण्डाशय (Inferior ovary) के चारों ओर पुस्पासन फैलने से बनता है। औसे-सेब, नाशपाती ।

5. हैस्पीरीडियम (Hesperi- dium)-ये फल बहुअण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय (superior ovary) से विकसित होते हैं। बाह फलभित्ति चर्मिल व तेल प्रन्थि युक्त, मध्य फलभित्ति रेशेदार व पतली, तथा अत: फलभित्तिनुमा होती है जिससे सरस प्रन्थिल रोम लगे होते हैं जो खाए जाते हैं। औसे-संतरा, नींबू ।

6. बालोस्टा (Balausta)-इन फलों की फलभित्ति कठोर होती है। बीज बीजाण्डासन (placenta) पर अनियमित रूप से लगे रहते हैं। अन्तः फल भिति कठोर व चीमड़ होती हैं। सरस बीज चोलक खाये जाते हैं। जैसे-अनार।

7. ऐम्फीसरका (Amphisarca)-इनकी बाह्य फलभित्ति काष्ठीय (woody) होती है। मध्य तथा अन्त:फलभित्ति तथा बीजाण्डासन (placenta) गूदेदार होता है जो खाया जाता है। औैसे-बेल, कैथ आदि।

II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है
2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 23
3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 24

2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(क) संप्रथिल फल
(ख) पुंज फल।
उत्तर:
II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है
2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 23
3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
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2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए-
(क) प्रकन्द एवं घनकन्द
(ख) उपरिस्तरी एवं भूस्तारी
(ग) पुंज फल तथा संग्रथित फल।
उत्तर:
तने के रूपान्तरण (Modifications of Stem):
1. अर्धवायवीय रूपान्तरण (Sub-aerial modifications):
(अं) उपरिभूस्तारी (Runner ) – इनका तना कमजोर तथा पतला होता है। यह भूमि की सतह पर फैलकर अनेक शाखाएँ उत्पन्न करता है। इनकी पर्व सन्धियों (nodes) से ऊपर की ओर पत्तियाँ, शाखाएँ व कलिकाएँ (buds) उत्पन्न होती हैं व भूमि की ओर अपस्थानिक जड़ें (advontitious roots) उत्पन्न होती हैं। उदाहरण दूबघास (Cynodon) खट्टी बूटी (Oxalis) आदि।

(ब) भूस्तारी (Stolon ) – इसमें शाखाएँ छोटी एवं तने संघनित होकर सभी दिशाओं में निकलती हैं। इसमें भूमिगत तने की पर्वसन्धि (Node) से कक्षस्थ कलिका (axillary bud) विकसित होकर शाखा बनाती हैं। यह शाखा प्रारम्भ में सीधे ऊपर की ओर वृद्धि करती है परन्तु बाद में झुककर क्षैतिज हो जाती है। इसकी पर्व सन्धियों से कक्षस्य कलिकाएँ तथा अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं उदाहरण – अरबी (Calocacia ), स्ट्रोबेरी आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 29
(स) अन्तः भूस्तारी ( Sucker ) इनमें मुख्य तना भूमि के भीतर रहता है व इनके आधारीय पर्व सन्धियों पर स्थित कक्षस्थ कलिकाएँ वृद्धि करके नये वायवीय भाग का निर्माण करती हैं। प्रारम्भ में यह क्षैतिज वृद्धि करती है, फिर तिरछे होकर भूमि से बाहर आकार वायवीय शाखाओं की भाँति वृद्धि करती है। इनकी पर्व सन्धियों से अपस्तानिक जड़ें निकलकर जमीन में प्रवेश कर जाती हैं। जैसे— पोदीना (Mentha), गुलदाऊदी (Chrysanthemum) आदि।

(द) भूस्तारिका (Offset) – यह जलीय पौधों में पाया जाने वाला उपरिभूस्तारी तरह का रूपान्तरित तना होता है। इसके मुख्य तने से पार्श्व शाखाएँ निकलती हैं जिन पर पर्व सन्धियाँ होती हैं। पर्व सन्धियों से वायवीय पत्तियाँ तथा जलीय अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। पर्व के रूपान्तरित तना होता है। इसके मुख्य तने से पार्श्व शाखाएँ निकलती हैं जिन पर पर्व सन्धियाँ होती हैं। पर्व सन्धियों से वायवीय पत्तियाँ तथा जलीय अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। पर्व के टूटने से नये पौधे स्वतन्त्र हो जाते हैं जैसे-जलकुम्भी (Echomnia), पिस्टिया (Pistia ) आदि।

2. भूमिगत रूपान्तरण (Underground modifications):
भूमिगत रूपान्तरण मुख्यतः भोजन संचयन (food storage) या वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) के लिए होता है। यह निम्न प्रकार का होता

(अ) तना कन्द (Stem tuber) – यह भूमिगत शाखाओं के अन्तिम शिरों के भोजन संचय के कारण फूलने से बनते हैं। इनका आकार अनियमित होता है। कन्द पर पर्व व पर्व सन्धियाँ (intemnodes and nodes) होती हैं जो अधिक भोजन संचय के कारण स्पष्ट नहीं होती है। इन पर अनेक आँखें (eyes) होती है जिनमें कलिकाएँ तथा शल्क पत्र (scale leave) होते हैं। कलिकाएँ (buds ) वृद्धि करके नये प्ररोह को जन्म देती हैं। उदाहरण-आलू।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 30

(ब) शल्क कन्द (Bulbs ) – यह भूमिगत संघनित प्ररोह (condensed shoot) है। यह शंक्वाकार या गोलाकार होते हैं। इनका तना लेमन्स या डिस्क के आकार का होता है जिस पर अनेक माँसल शल्क पत्र तथा एक शीर्षस्थ कलिका (apical bud) होती है। ह (reduced) तने के नीचे से असंख्य अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं, जैसे- प्याज (Alium), लहसुन (Garlic), लिली (Lily ) आदि।

(स) प्रकन्द (Rhizome ) – यह एक भूमिगत, बहुवर्षीय, मांसल, अनियमित आकार का भूमिगत तना है जो अनुकूल समय में वायवीय प्ररोह (aerial shoot) या पर्ण समूह उत्पन्न करता है व प्रतिकूल मौसम में यह प्रसुप्तावस्था (dormancy) दर्शाता है। इस पर पर्व एवं पर्व सन्धियाँ, शल्क पत्र तथा कक्षस्थ कलिकाएँ (axilary buds) पायी जाती हैं व निचली सतह से अपस्थानिक जड़ें (adventitious roots) निकलती हैं। उदाहरण- अदरक (ginger), केला (banana ), हल्दी (termaric) आदि।

(द) घनकन्द (Corn) – यह लगभग गोलाकार, मोटा फूला हुआ भूमिगत तना है जो जमीन में ऊर्ध्वाधर (Vertical) वृद्धि करता है। यह प्रकन्द का सघनतम रूप माना जाता है। इसके आधार से अनेक अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं तथा शीर्ष पर पर्णयुक्त वायवीय प्ररोह होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में वायवीय प्ररोह सूख जाता है। इस पर गोलाकार पर्वसन्धियाँ (nodes) होती हैं जिन पर नई कलिकाएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण- अरबी, क्रोकस (Crocus)

3. वायवीय रूपान्तरण (Aerial Modifications):

(अ) पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade ) – जिन पौधों में तना मांसल पत्ती (Flashy leaf) के रूप में परिवर्तित होकर चपटा, हरा होकर पत्ती की तरह कार्य करता है इस तरह के रूपान्तरित तने को पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) कहते हैं। इन पौधों में पत्तियाँ सामान्यतः काँटों में परिवर्तित हो जाती हैं। प्रत्येक पर्णाभ में पर्व तथा पर्व सन्धियाँ पायी जाती हैं। प्रत्येक पर्व से पत्तियाँ निकलती हैं जो शीघ्र ही कांटों में बदल जाती हैं। उदाहरण-नागफनी (Opuntia), केक्टस (Cactus), यूफोर्बिया (Euphorbia), कोकोलोबा (Cocoloba) आदि।

(ब) पर्णाभ पर्व (Cladode) इनमें कक्षस्थ कलिका के स्थान पर निश्चित वृद्धि वाली हरी पत्ती के समान रचना पायी जाती है व इनमें शाखा केवल एक पर्व की तरह रह जाती है। पत्ती शल्क पत्र के समान होती है। उदाहरण — एस्पेरागस (Asperagus)।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 31
(स) स्तम्भीय तन्तु या स्तम्भ प्रतान (Stem tendrils) – लम्बी, पतली धागे के समान रचनाएँ प्रतान (tendrils) कहलाती हैं। तने के रूपान्तरण से बनने वाले प्रतान स्तम्भ, प्रतान कहलाते हैं। यह आधार पर मोटे तथा शीर्ष की ओर उत्तरोत्तर (successive) पतले होते जाते हैं। इन पर पर्व व पर्व सन्धियाँ हो सकती हैं। कभी-कभी पुष्प भी उत्पन्न होते हैं। मुख्यतः यह कक्षस्य कलिका से व कभी-कभी अप्रस्थ कलिका से बनते हैं। उदाहरण- अंगूर ( Vitis), झुमकलता (Passiflora) आदि ।

(द) स्तम्भ कंटक (Stem thor) – कक्षस्थ या अग्रस्थ कलिकाओं से बने हुए कांटे स्तम्भ कंटक कहलाते हैं। यह कठोर, नुकीली, आधार पर मोटी तथा शीर्ष पर नुकीली संरचनाएँ होती हैं। यह पौधों की सुरक्षा के साथ-साथ वाष्पोत्सर्जन (transpiration) को कम करते हैं व कभी-कभी पौधे के आरोहण (climbing) में भी सहायता करते है। यह मुख्यतः मरुभिपौधों (Xerophytes) में पाये जाते हैं। उदाहरण- बोगेनविलिया (Baugainvillea ), बेल (Aegle )।

(य) पत्र प्रकलिकाएँ (Bulbils) पत्र प्रकलिकाओं द्वारा भोजन संचय के कारण बनते हैं। इनका प्रमुख कार्य कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) करना है। उदाहरण- रतालू (Dioscoria), केवड़ा (Agave), खट्टी बूटी (Oxalis) आदि।

फलों के प्रकार (Types of Fruits) – साधारणतयाः फल तीन प्रकार के होते हैं –
I. एकल फल (Simple Fruits)
II. पुंजफल (Aggregate Fruits)
III. संमथित फल (Composite Fruits) ।

I. सरस या एकल फल (Simple Fruits) – ये फल एकअण्डपी अथवा बहुअण्डपी युक्ताण्डपी अण्डाशय (unicarpalary or multicarpalary syncarpous ovary) से विकसित होते हैं। अण्डाशय मध्यवर्ती या अधोवर्ती (inferior) होता है। ये फल दो प्रकार के होते है-
(अ) शुष्क फल
(ब) सरस फल।

(अ) शुष्ठ का (Dry fruits)-इसकी फलभित्ति (Pericarp) शुक्क, कठोर, चीमड़, काष्ठीय या श्रिल्लीदार होती है। ये फल तीन प्रकार के होते हैं –
1. स्फोटी
2. अस्फोटी तथा
3. भिदुर फल।

1. स्फोटी फल (Dehiscent Fruit)- ये पकने पर फट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते है –
(i) फली (Legume or pod) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय (Monocarpalary superiou ovary) से विकसित होते हैं। परिपक्व फल पकने पर दो सीवनी द्वारा फटता है। जैसे-सेम, मटर आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 18
(ii) फालिकल (Follicle)-इनमें केवल एक सीवनी (suture) द्वारा स्फुटन (dehiscence) होता है। शेष गुण फली के समान होते हैं। जैसे-आक, चम्पा आदि।

(iii) सिलिकुआ (Siliqua) – यह फल द्विअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय (bicapalary, compound superior ovary) से विकसित होता है। आरम्भ में अण्डाशय एककोष्ठी किन्तु बाद में कूट पट (replum) बन जाने से द्विकोष्ठी दिखाई देता है, जैसे-सरसों।

(iv) सिलिक्युला (Silicula)- यह पूर्णत: सिलिक्यूआ के समान होता है। परन्तु यह लम्बाई व चौड़ाई में समान होता है। जैसे-कैपसल्ला।

(v) सम्पुट (Capsule)- ये फल बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय तथा कभी-कभी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये विभिन्न विधियों द्वारा स्फुटित होते हैं। जैसे- कपास, पोस्त, भिण्डी आदि।

2. अस्फोटी या एकीनियल (Indihiscent or Achenial)- ये फल पकने पर फटते नहीं। इनके बीज फल के सड़ने पर ही प्रकीर्णित होते हैं। ये फल निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) एकीन (Achene)- ये फल एकाण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलधित्ति बीज चोल से अलग होती है। जैसे-क्लीमेटिस, रेनकुलस आदि।

(ii) कैरिऑफिस (Caryopsis) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलभित्ति बीजचोल से संगलित होते हैं। जैसे-ोोहँ, मक्का।

(iii) सिप्सेला (Cypsella)-ये द्विअण्डपी, संयुक्त, अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें चिरलग्न रोमगुच्छ पाया जाता है। जैसे-सूर्यमुखी, गैंदा आदि।

(iv) नट (Nut)-यह फल एककोष्ठीय, व एकबीजी होते हैं और द्वि या बहुअण्डपी संयुक्त ऊर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे—काजू, लीची, सिंघाड़ा।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 19
3. फिद्र फल (Schizocarpic fruit)- ये बहुवीजी होते हैं, परिपक्व होने पर ये छोटे-छोटे फलाशुकों (mericarp) में टूट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 20

(i) लोमेट् (Lomentum) – ये फल एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इसमें फलभित्ति संकीर्णित होकर फल को एकबीजी फलाशुकों में बाँट देती है। जैसे-इमली, बबूल आदि।

(ii) क्रीमोकार्प (Cremocarp)- ये फल द्विकोष्ठीय तथा द्विबीजी होते हैं। और द्विअण्डपी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे-धनिया, जीरा आदि।

(iii) कासेंससस (Carcerulus)-ये फल कर्श्व द्विअण्डपी खीकेसर से विकसित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय एक फलांशक में बैंट जाता है जैसे तुलसी, साल्विया आदि।

(iv) रेग्मा (Regma)- ये फल बहुअण्डपी खीकेसर से विकसित और पकने पर एकबीजी इकाइयों कोकाई में बैंट जाते हैं। जैसे-अरण्ड में।

(ब) सरस फल (Succulent fruits) – ये फल अफुटन शील होते हैं तथा इनकी फलभित्ति गूदेदार होती है। इन फलों की फलभित्ति तीन भागों- बाह्य फल (epicarp) मध्यफलंभित्ति (mesocarp) तथा अन्त: फलभित्ति (endocarp) में बंटी होती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. अस्ठिफल (Drupe)-ये फल एकाण्डपी या बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डा शप से विकसित होते हैं। इनकी बाह्य फल भित्ति पतली होती है जो छिलका बनाती है।मध्य फलभित्ति गूदेदार या रेशेदार तथा अतः फलभित्ति काष्ठीय कठोर होती हैं। औैसे-आम, नारियल।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 21
2. बेरी (Berry)- ये फल एक या बहुअण्डपी, संयुक्त अण्डाशय से विकसित होते हैं। बाह्म फल भित्ति पतली होती है। बीज मध्यफल भित्ति में धंसे
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 22
होते हैं, अन्तः फलभित्ति झिल्लीनुमा या गूदेदार होती है। जैसे-टमाटर, केला, अमरुद आदि।

3. पेपो (Pepo) – ये फल बहुत कुछ बेरी के समान होते हैं। परन्तु ये भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) युक्त अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। औसे-खीरा, ककड़ी आदि।

4. पोम (Pome)- यह कूट फल (False fruit) है। फल का खाने योग्य भाग माँसल पुस्पासन (thalamus) होता है। यह संयुक्त अधोअण्डाशय (Inferior ovary) के चारों ओर पुस्पासन फैलने से बनता है। औसे-सेब, नाशपाती ।

5. हैस्पीरीडियम (Hesperi- dium)-ये फल बहुअण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय (superior ovary) से विकसित होते हैं। बाह फलभित्ति चर्मिल व तेल प्रन्थि युक्त, मध्य फलभित्ति रेशेदार व पतली, तथा अत: फलभित्तिनुमा होती है जिससे सरस प्रन्थिल रोम लगे होते हैं जो खाए जाते हैं। औसे-संतरा, नींबू ।

6. बालोस्टा (Balausta)-इन फलों की फलभित्ति कठोर होती है। बीज बीजाण्डासन (placenta) पर अनियमित रूप से लगे रहते हैं। अन्तः फल भिति कठोर व चीमड़ होती हैं। सरस बीज चोलक खाये जाते हैं। जैसे-अनार।

7. ऐम्फीसरका (Amphisarca)-इनकी बाह्य फलभित्ति काष्ठीय (woody) होती है। मध्य तथा अन्त:फलभित्ति तथा बीजाण्डासन (placenta) गूदेदार होता है जो खाया जाता है। औैसे-बेल, कैथ आदि।

II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है

2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 23
3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 24

2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 9.
बीज किसे कहते हैं ? इसकी सामान्य रचना का वर्णन कीजिए। एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में भेद कीजिए।
उत्तर:
बीच्च (Seed)-निषेचन के पश्चात् बीज्राण्ड (Ovule) एक विशेष संरषना बनाता है जिसे बीज (seed) कहते हैं। जित्र 5.54. कटछल का सोरोसिस बीज में भूण (embryo) पाया जाता है जो अंकुरण (germination) करके नये पौधे को अन्म देता है। बीजाम्ड की ओर (Sorosis of Jack Fruit) के आवरण (integuments) सूख जाते हैं। बाह्य आवरण सख व चपटा होकर बीज के बाह्म कवच (Testa) का निर्माण करता है। अन्तःआवरण अम्तकवच (tegmen) बनाता है। एक स्थान पर जहाँ बीज फल से जुड़ा रहता है, बाह़ कवच पर एक चिद्ध के रूप में वृन्सक होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 25

पष्ष की संरचनाएँ जो बीज बनाती हैं।

निषेचन से पूर्व बीओ ज्ड (Ovule)निषेष्न के पश्वात् बीज (Seed)
बाझ अध्यावरण (Quter integument)बाह बीजचोल (testa)
अन्त: अध्यावरण (Inner integument)अन्त: बीजचोल (tegmen)
बीजाण्ड वृन्त (Funiculus)नष्ट हो जाता है
बीजाण्डकोष (Nucellus)नष्ट हो जाता है या परिश्रूणपोष (perisperm) बनाता है
अण्डकोशिका (Egg cell)भूण (embryo)

बीज के श्रूण में एक मूलांकर (rádicle), एक श्रूणीय तथा एक बीजपत्र (गेहँ, मक्का) या दो बीज पत्र (चना, मटर) होते हैं।

बीजों के प्रकार (Types of Seeds):
प्रूणकोष के आधार पर बीज तीन प्रकार के होते हैं –
1. भ्भूजवोपी बीज (Éndospermic seeds)-जब बीज में भ्रूण (endosperm) परिवर्धन के दोरान भ्रणणयोष (endosperm) का कुछ भाग बचा रहता है तो ऐसे भूणपोष युक्त्र बीजों को भूणपोषी बीज कहते हैं। यह भ्रूणपोष संचित भोजन के रूप में बीज से नवोद्भिद् (seedlings) के विकास में काम आता हैं। जैसे-अरण्डी, नारियल, गेहूँ एवं अन्य एक बीजपत्री पादपों के बीज आदि।

2. अश्रुणोोोी बीज (Non-endospermic seeds)- सामान्यत: द्विबीजपत्री पादपों के बीजों में परिकक्वन क्रिया के दौरान सम्पूर्ण भ्रुणकोष समाप्त हो जाता है। अतः ऐसे बीज अप्रूणपोषी कहलाते हैं। जैसे-चना, मटर, सेम आदि। ऐसे बीजों में बीजपत्र खाद्य संचित कर मोटे एवं मांसल हो जाते हैं।

3 परिणणपोषी बीज (Perispermic seeds)-इस प्रकार के बीजों में बीजाण्ड (ovule) का बीजाण्डकाय (nucellus) पतली झिल्ली के रूप में ऐेष रह जाता है जिसे परिप्रणपोप (perisperm) कहते हैं तथा बीज परिभ्रुणपोषी कहलाते हैं। उदाहरण-कालीमिर्ष ।

बीजपत्रों की उपस्थिति के आधार पर बीज दो प्रकार के होते हैं –

  • द्विबीजपत्री बीज
  • एकबीजपत्री बीज।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. मछलियों के हृदय में कोष्ठों की संख्या होती है –
(A) 4
(B) 3
(C) 2
(D) 1
उत्तर:
(C) 2

2. केंकड़ा में कौन-सी सममिति पायी जाती है ?
(A) अरीय सममिति
(B) द्विपार्श्व सममिति
(C) असममिति
(D) गोलीय सममिति
उत्तर:
(B) द्विपार्श्व सममिति

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

3. किस जन्तु में शरीर खण्डीय नहीं होता है ?
(A) ऐस्केरिस व तारा मछली
(B) मिलीपीड
(C) फीताकृमि
(D) केंचुआ
उत्तर:
(A) ऐस्केरिस व तारा मछली

4. अगुहीय प्राणी किस संघ का लक्षण है ?
(A) आर्थोपोडा
(B) प्लेटीहेल्मिन्थीज
(C) ऐनेलिडा
(D) मोलस्का
उत्तर:
(B) प्लेटीहेल्मिन्थीज

5. सतही खण्डीभवन पाया जाता है –
(A) केंचुए में
(B) कॉकरोच में
(C) टीनिया सोलियम में
(D) ऑक्टोपस में
उत्तर:
(C) टीनिया सोलियम में

6. पुर्तगीज मैन ऑफ वार कहा जाने वाला जन्तु किस संघ से सम्बन्धित है –
(A) मौलस्का
(B) आर्थोपोडा
(C) निडेरिया
(D) कार्डेटा
उत्तर:
(A) मौलस्का

7. निम्न में से कौन-सा अण्डे देने वाला जन्तु है –
(A) प्लेटीपस
(B) फ्लाइंग फाक्स (चमगादड़ )
(C) हाथी
(D) व्हेल।
उत्तर:
(A) प्लेटीपस

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8. पक्षी व स्तनधारी निम्न में से कौन-सा लक्षण साझा करते हैं ?
(A) वर्णकी त्वचा
(B) कुछ रूपान्तरणों वाली आहारनाल
(C) जरायुजता
(D) समतापी।
उत्तर:
(D) समतापी।

9. ज्वाला कोशिकाएँ पायी जाती हैं –
(A) केंचुए में
(B) फीताकृमि में
(C) ऐस्केरिस में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(B) फीताकृमि में

10. रेतीजिल्हा (रेडूला) पाया जाता है –
(A) ऐनेलिडा में
(B) आर्थ्रोपोडा में
(C) मोलस्का में
(D) इकाइनोडर्मेटा में
उत्तर:
(C) मोलस्का में

11. जल- संवहन तन्त्र किस संघ की विशिष्टता है ?
(A) मोलस्का
(B) इकाइनोडर्मेटा
(C) वर्टीब्रेटा
(D) रेप्टीलिया
उत्तर:
(B) इकाइनोडर्मेटा

12. निम्न में जरायुज प्राणी है –
(A) मेंढक
(B) सर्प
(C) कंगारू
(D) बन्दर।
उत्तर:
(C) कंगारू

13. ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में साँस ले सकता है –
(A) अमीबा
(C) यूग्लीना
(B) फीताकृमि
(D) हाइड्रा
उत्तर:
(B) फीताकृमि

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14. निम्न में से कौन-सा एक सीलेण्ट्रेटस है –
(A) समुद्री अनि
(B) समुद्री घोड़ा
(C) समुद्री पेन
(D) समुद्री खीरा।
उत्तर:
(C) समुद्री पेन

15. पैरिप्लेनेटा अमेरिका के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से सही कथन का चुनाव कीजिए-
(A) इसमें पृष्ठीय तंत्रिका तंत्र होता है, जिसमें खण्डीय रूप से व्यवस्थित तंत्रिका गुच्छक लम्बवत् संयोजकों के एक युग्म द्वारा जुड़े होते हैं।
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागे नुमा गुद शूक पाए जाते हैं
(C) इसमें मध्यांत्र तथा पश्चांत्र के जोड़ पर 16 अत्यधिक लम्बी मैल्पीषियन ट्यूबल्स पायी जाती है।
(D) भोजन को पीसने का कार्य केवल मुखांगों द्वारा ही किया जाता है।
उत्तर:
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागे नुमा गुद शूक पाए जाते हैं

16. कॉलम 1 में दिए जन्तुओं को कॉलम II में दी गई इनकी विशिष्टताओं और कॉलम III में दिए गए उनके फाइलम / क्लास से सही-सही मिलान कीजिए –

कॉलम Iकॉलम IIकॉलम III
(A)  पेट्रोमाइजॉनबाह्स परजीवीसाइक्लोस्टोमेटा
(B) इथियोफिसस्थलीयरेप्टीलिया
(C) लिमुलसशरीर पर काइटनी बाह्य कंकालपिसीज
(D) एडेक्सिया, अरीय सममितिपॉरीफेरा

उत्तर:

17. निम्नलिखित जन्तुओं में से किस समूह का वर्गीकरण सही है ?
(A) उड़न मछली, कटल फिश, सिल्वर फिश – पिसीज
(B) सेंटीपीड, मिलीपीड, मकड़ी, बिच्छू कीट (इन्सेक्टा)
(C) घरेलू मक्खी, तितली, सेटसी फ्लाई, सिल्वर फिश – कीट ( इन्सेक्टा)
(D) शूली चींटीखोर (स्पाइनी एंटईटर), समुद्री आर्चिन, समुद्री कुकम्बर– इकाइनोडर्मेटा
उत्तर:
(C) घरेलू मक्खी, तितली, सेटसी फ्लाई, सिल्वर फिश – कीट ( इन्सेक्टा)

18. निम्नलिखित जन्तु समूहों में से कौन सा एक ही फाइलम के अन्तर्गत आते हैं ?
(A) मलेरिया, परजीवी, अमीबा, मच्छर
(B) केंचुआ, पिनवर्म, फीताकृमि (टेपवर्म)
(C) झींगा, बिच्छू, लोकस्ट (टिड्डी)
(D) स्पंज, समुद्री एनीमोन, स्टारफिश।
उत्तर:
(C) झींगा, बिच्छू, लोकस्ट (टिड्डी)

19. निम्नलिखित में से कौन सा जन्तु फाइलम आर्थोपोडा के अन्तर्गत आता है ?
(A) कटल फिश
(B) सिल्वर फिश
(C) फर फिश
(D) उड़न मछली।
उत्तर:
(B) सिल्वर फिश

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20. ???? उच्च क्षमता पायी जाती है। –
(A) कायान्तरण
(B) पुर्नजनन
(C) पीढ़ी एकान्तरण
(D) जैव प्रदीप्तिता
उत्तर:
(B) पुर्नजनन

21. कायान्तरण संदर्भित करता है-
(A) विभिन्न काय रूपों की उपस्थिति
(B) जीव की अलैंगिक तथा लैंगिक प्रावस्थाओं में पीढ़ी एकान्तरण F
(C) पश्च भ्रूणीय विकास में परिवर्तनों की उपस्थिति
(D) खण्डित शरीर तथा जनन की अनिषेक विधि
उत्तर:
(B) जीव की अलैंगिक तथा लैंगिक प्रावस्थाओं में पीढ़ी एकान्तरण F

22. घरेलू मक्खी के वर्गीकरण के लिए स्तंभ I तथा II का मिलान कीजिए तथा नीचे दिए गए कूटों से सही विकल्प का चयन कीजिए –

संभ Iस्तंभ II
(a) फेमिली1. डिपेरा
(b) ऑर्डर2. ऑर्थोपोडा
(c) क्लास3. म्यूसिडी
(d) फाइलम4. इनसेक्टा

उत्तर:

abcd
(a)2314
(b)3241
(c)4321
(d)4213

23. निम्न में से कौन-सा अभिलक्षण ऑर्थोपोडा में नहीं पाया जाता है ?
(A) मेटामोरिक खण्डीभवन
(B) पेरापोडिया
(C) संन्धियुक्त उपांग
(D) काइटिनी बाह्यकंकाल
उत्तर:
(B) पेरापोडिया

24. निम्न में से कौन-सा अभिलक्षण पक्षियों तथा स्तनधारियों द्वारा स्त्रावित नहीं होता है ?
(A) फेफड़ों द्वारा श्वसन
(B) जरायुजता
(C) गर्म रक्त प्रकृति
(D) अश्थिल अन्तःकंकाल
उत्तर:
(B) जरायुजता

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25. पोरोफेरा में स्पंजगुहा कशाभित कोशिकाओं से आस्तरित रहती है उन्हें कहते हैं –
(A) आस्टिया
(B) ऑस्कुलम
(C) कोएनोसाइट्स
(D) मोसेनकाइमा कोशिकाएँ
उत्तर:
(C) कोएनोसाइट्स

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गीकरण के आधारभूत लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्गीकरण के आधारभूत लक्षण निम्न हैं – कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, शरीर योजना, प्रगुहा की प्रकृति, पाचन तन्त्र, परिसंचरण तन्त्र, जनन तन्त्र की रचना एवं पृष्ठीय रज्जु की उपस्थिति आदि।

प्रश्न 2.
अरीय सममिति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणी के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति (radial symmetry) कहते हैं।

प्रश्न 3.
खुला रुधिर परिसंचरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
खुले परिसंचरण तन्त्र में रुधिर खुले स्थानों (open spaces a sinuses) में बहता है, रुधिर वाहिकाओं में नहीं। शरीर के अंग व ऊतक रक्त (हीमोलिम्फ) में डूबे रहते हैं। पर्याप्त दाब व बहाव का नियन्त्रण सम्भव नहीं होता।

प्रश्न 4.
बन्द रुधिर परिसंचरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब रुधिर का परिसंचरण बन्द नलिकाओं ( धमनियों, शिराओं व केशिकाओं) में होकर बहता है तो उसे बन्द परिसंचरण (closed circulation) कहते हैं।

प्रश्न 5.
मेटाजेनेसिस का क्या अर्थ है? इसको प्रदर्शित करने वाला एक उदाहरण दीजिए। (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
मेटाजेनेसिस ( Metagenesis)-नीडेरियन जन्तुओं का पीढ़ी एकान्तरण ( alternation of generation ) जिसमें पॉलिप अलैंगिक जनन द्वारा मेड्यूला बनाता है तथा मेड्यूला लैंगिक जनन द्वारा पॉलिप उत्पन्न करता है, मेटाजेनेसिस कहलाता है।
उदाहरण – ओबेलिआ (Obelia)।

प्रश्न 6.
मिलान कीजिए –

जन्तुप्रचलन अंग
(a) आक्टोपस(i) पाद
(b) क्रोकोडाइल(ii) काम्ब प्लेट
(c) कटला(iii) रेक्टेकिल
(d) टीनोप्लेना(iv) फिन

उत्तर:

जन्तुप्रचलन अंग
(a) आक्टोपस(iii) रेक्टेकिल
(b) क्रोकोडाइल(i) पाद
(c) कटला(iv) फिन
(d) टीनोप्लेना(ii) काम्ब प्लेट

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 7.
किन प्राणियों में केन्द्रीय जठर संवहनी गुहा पायी जाती है ?
उत्तर:
सीलेन्ट्रेटा (नीडेरिया) संघ के प्राणियों में केन्द्रीय जठर संवहनी गुहा (gastrovascular cavity) पायी जाती है।

प्रश्न 8.
सीलेन्ट्रेटा संघ के किस सदस्य के जीवन में पॉलिप तथा मेड्यूसा दोनों अवस्थाएँ पायी जाती हैं ? इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
ओबेलिया में पॉलिप तथा मेड्यूसा दोनों अवस्थाएँ पायी जाती हैं। इसे पीढ़ी एकान्तरण (metagenesis) कहते हैं।

प्रश्न 9.
दंश कोशिकाएँ किस संघ के सदस्यों की विशेषता है ?
उत्तर:
देश कोशिकाओं (nemotoblasts) की उपस्थिति सीलेन्ट्रेटा संघ के सदस्यों की विशेषता है।

प्रश्न 10.
जीव संदीप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्राणी के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करने को जीव संदीप्ति (bioluminiscence) कहते हैं।

प्रश्न 11.
ज्वाला कोशिकाओं की उपस्थिति किस संघ की विशेषता है ?
उत्तर:
ज्वाला कोशिकाओं (Flame cells) की उपस्थिति प्लेटीहेल्मिन्थीज संघ की विशेषता है।

प्रश्न 12.
ऐस्केल्पिन्थी संघ के दो परजीवी जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • एस्केरिस
  • बुचेरेरिया (फाइलेरिया कृमि)।

प्रश्न 13.
एनिलिडा संघ के प्राणियों के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
एनिलिडा संघ के प्राणियों के उत्सर्जी अंग वृक्कक (nephridia )

प्रश्न 14.
आर्थोपोड जन्तुओं में किस प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है ?
उत्तर:
आर्थ्रोपोड जन्तुओं में खुले प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता

प्रश्न 15.
जल-संवहन तन्त्र किस संघ की विशेषता है ? इसका कार्य बताइए।
उत्तर:
जल संवहन तन्त्र इकाइनोडर्मेटा संघ की विशेषता है। यह चलन (गमन), भोजन पकड़ने में तथा श्वसन में सहायक है।

प्रश्न 16.
हेमीकॉर्डेटा संघ के दो प्राणियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बैलेनोग्लॉसस तथा सैकोग्लॉसस।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 17.
कॉर्डेटा (रज्जुकी) संघ की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • पृष्ठ रज्जु
  • पृष्ठ खोखली तन्त्रिका रज्जु
  • ग्रसनीय क्लोम छिद्र की उपस्थिति।

प्रश्न 18.
कॉईंटा संघ को किन तीन उपसंघों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
कॉर्बेटा संघ को तीन उपसंघों में बाँटा गया है –

  • यूरोकॉर्डेटा
  • सेफैलोकॉर्डेटा तथा
  • वर्टीब्रेटा।

प्रश्न 19.
यूरोकॉडेंटा तथा सेफैलोकडिंटा का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
यूरोकॉर्डेटा – एसिडिया, सैल्फ।
सेफैलोकॉडेंटा- ऐम्फी ऑक्सस।

प्रश्न 20.
साइक्लोस्टोमेटा के दो जन्तुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
पेट्रोमाइजोन (लैम्प्रे) तथा मिक्सीन (हैगफिश 1)

प्रश्न 21.
साइक्लोस्टोमेटा वर्ग की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • साइक्लोस्टोमेटा वर्ग के जन्तु समुद्री होते हैं, किन्तु जनन के लिए अलवणीय जल में प्रवास करते हैं।
  • ये प्रायः मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं।

प्रश्न 22.
उपास्थिल मछलियों के वर्ग का नाम बताइए तथा दो मछलियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उपास्थिल मछलियों को कॉन्ड्रिक्थीज वर्ग में रखा गया है। स्कोलियोडोन (डॉगफिश), प्रीस्टिस (सॉनफिश), ट्राइगोन (व्हेलशार्क) इनके उदाहरण हैं।

प्रश्न 23.
समुद्री घोड़ा किस वर्ग का प्राणी है ?
उत्तर:
समुद्री घोड़ा एक प्रकार की मछली है, जो मत्स्य वर्ग का प्राणी है।

प्रश्न 24.
वर्ग ऑस्टिक्थीज की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • चार जोड़ी क्लोम छिद्र दोनों ओर प्रच्छद (आस्कुलम) से ढँके हुए होते हैं
  • अन्त:कंकाल अस्थियों का बना होता है। उदाहरण – रोहू, कतला, मांगुर आदि मछलियाँ।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 25.
उड़न मछली किस वर्ग की सदस्य है ? उसका वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
उड़न मछली ऑस्टिक्थीज वर्ग की सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘एक्सोसीटस’ है।

प्रश्न 26.
उभयचर प्राणियों के हृदय में कितने कोष्ठ होते हैं ?
उत्तर:
उभयचर प्राणियों का हृदय त्रिकोष्ठीय होता है।

प्रश्न 27.
सरीसृप वर्ग के किस प्राणी का हृदय चार कोष्ठीय होता है ?
उत्तर:
सरीसृप वर्ग के ‘मगरमच्छ’ का हृदय चार कोष्ठीय होता है।

प्रश्न 28.
पक्षियों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • मुख के आगे चोंच होती है
  • अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं।

प्रश्न 29.
न उड़ सकने वाले दो पक्षियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐमू, शुतुरमुर्ग तथा पेंग्विन न उड़ सकने वाले पक्षी हैं।

प्रश्न 30.
अण्डे देने वाले स्तनधारी का नाम लिखिए।
उत्तर:
डकबिल्ड प्लेटीपस अण्डे देने वाला स्तनधारी प्राणी है।

प्रश्न 31.
अविकसित शिशु को जन्म देने वाले प्राणी का नाम लिखिए।
उत्तर:
मादा कंगारू अविकसित शिशु को जन्म देती है। यह इसे पूर्ण परिपक्व होने तक ‘मार्सपियम’ नामक पेट के आगे थैली में रखती है जिसमें स्तन होते हैं।

प्रश्न 32.
उड़ने वाले स्तनधारी का नाम लिखिए।
उत्तर:
चमगादड़ एक उड़ने वाला स्तनधारी है।

प्रश्न 33.
पृथ्वी पर सबसे विशालकाय जीवित प्राणी का नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्लू ह्वेल (Blue whale) पृथ्वी पर सबसे बड़ा जीवित प्राणी है। इसकी लम्बाई लगभग 32 मीटर तथा वजन 150 टन तक होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

(C) लघु उत्तरीय एवं निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सममिति किसे कहते हैं ? जन्तुओं में सममिति कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 जीव जगत का वर्गीकरण - 2

प्रश्न 2.
इकाइनोडर्मेटा संघ के कोई चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर:
इकाइनोडर्मेटा संघ के चार विशेष लक्षण –

  •  इस संघ के सभी सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
  • इनकी खुरदरी, दृढ़, चीमड़ देहभित्ति में कैल्सियम युक्त कंटक पाये जाते हैं।
  • गमन के लिये विशेष प्रकार के छोटे-छोटे नाल- पाद (tube feets) पाये जाते हैं।
  • विशिष्ट प्रकार का जल परिवहन तन्त्र (water vascular system) पाया जाता है, जो भोजन ग्रहण, संवेदना ग्रहण तथा श्वसन में सहायक होता है। उदाहरण- तारामछली (एस्टेरियस), एकाइनस, एन्टीडोन, सी- कुकम्बर, ओफीयूरा (ब्रिटिल स्टार) आदि।

प्रश्न 3.
कूटगुहीय संघ के चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर:
कूटगुहीय संघ – निमेटहेल्मिन्थीज के विशेष लक्षण-

  • इनका शरीर पतला, लम्बा, बेलनाकार तथा कृमि के समान होता है।
  • शरीर खण्डविहीन, द्विपार्श्व सममित तथा त्रिस्तरीय (triploblastic ) होता है।
  • शरीर पर मोटा क्यूटिकल (cuticle) का आवरण पाया जाता है।
  • इनकी देहगुहा, कूटगुहा (pseudocoelom) प्रकार की होती है तथा मीसोडर्म से आस्तरित नहीं रहती है।
    उदाहरण – एस्केरिस, वुचेरेरिया, एनसाइक्लोस्टोमा आदि।

प्रश्न 4.
हेमीकॉर्डेटा के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
हेमीकॉर्डेटा के प्रमुख लक्षण – अनुच्छेद 4.11 संघ हेमीकॉर्डेटा का अवलोकन करें।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 जीव जगत का वर्गीकरण - 3

प्रश्न 5.
अरज्जुकी (नॉन कॉर्बेटा) एवं रज्जुकी (कॉडिंटा) के विशिष्ट लक्षणों की तुलना कीजिए।
उत्तर:

अरज्जुकी (नॉन-कॉर्बेटा)रज्जुकी (कॉर्बेटा)
पृष्ठ रज्जु अनुपस्थित होता है।1. पृष्ठ रज्जु उपस्थित होता है।
केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र अधर तल में, ठोस एवं दोहरा होता है।2. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र पृष्ठीय एवं खोखला तथा एकल होता है।
क्लोम छिद्र अनुपस्थित होते हैं।3. क्लोम छिद्र प्रसनी में पाये जाते हैं।
हृदय पृष्ठ भाग में होता है (यदि उपस्थित है तो)।4. हृदय अधर भाग में होता है।
गुदा-पश्च पुच्छ अनुपस्थित होती है।5. एक गुदा पश्च पुच्छ उपस्थित होती है।

प्रश्न 6.
वर्टीब्रेटा के वर्गीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 7.
साइक्लोस्टोमेटा के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
साइक्लोस्टोमेटा के प्रमुख लक्षण-

  •  इस वर्ग के प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं।
  • शरीर लम्बा होता है, जिसमें श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोम छिद्र होते हैं।
  • साइक्लोस्टोम में बिना जबड़ों का चूषक ( sucker ) तथा वृत्ताकार मुख होता है।
  • शल्क तथा युग्मित पख का अभाव होता है।
  • कपाल तथा मेरुदण्ड उपस्थित होता है।
  • परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है।
  • साइक्लोस्टोम समुद्री होते हैं, किन्तु प्रजनन के लिए अलवणीय जल में प्रवास करते हैं। जनन के कुछ दिन बाद वे मर जाते हैं।
  • इसके लार्वा कायान्तरण (Metamorphosis) के बाद समुद्र में लौट जाते हैं।
    उदाहरण – पेट्रोमाइजोन (लैम्प्रे), मिक्सीन (हैगफिश)।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 8.
एग्नेथा तथा नैथोस्टोमेटा में चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एग्नेथा तथा नैथोस्टोमेटा में अन्तर (Differences between Agnatha and Gnathostomato)

ऐमनेथा (Agnatha)नैथोस्टोमेटा (Gnathostomata)
1. मुखगुहा में वास्तविक जबड़े अनुपस्थित होते हैं।वास्तविक जबड़े उपस्थित होते हैं।
2. उपांग तथा जनन वाहिनियाँ अनुपस्थित होती हैं।उपांग तथा जनन वाहिनियाँ उपस्थित होती हैं।
3. अल्पविकसित कशेरुकाएँ पायी जाती हैं।विकसित कशेरुकाएँ पायी जाती हैं।
4. अन्तकर्ण में दो अर्ध्ध वर्तुल्यकुल्याएँ पायी जाती हैं।अन्तकर्ण में तीन अर्द्ध वर्तुल्यकुल्याएँ (Semi-circular canal) पायी जाती हैं।

प्रश्न 9.
उभयचर तथा सरीसृप में अन्तर बताइये।
उत्तर:
उभयचर तथा सरीसृप में अन्तर (Differences between Ambhibia and Reptilia)

उभयचर (Amphibia)सरीसुप (Reptilia)
1. इस वर्ग के प्राणी जल और स्थल दोनों जगह पर रहते हैं।ये प्रायः स्थल पर रहते हैं (कछुआ, मगर, कुछ साँपों को छोड़कर)।
2. बाह्य निषेचन होता है। भूणीय झिल्ली अनुपस्थित होता है।आन्तरिक निषेचन होता है। भूणीय झिल्ली एम्नियान पायी जाती है।
3. मादा सदैव जल में अण्डे देती है।मादा स्थल पर अण्डे देती है।
4. बाह्य कंकाल के रूप में कोई रचना नहीं होती है।शल्कों या प्लेटों के रूप में बाह्य कंकाल पाया जाता है।
5. त्वचा नम लचीली तथा पतली होने से श्वसन में सहायक होती है।त्वचा सदैव शुष्क होती है और इनमें त्वचीय श्वसन नहीं होता है।
6. उत्सर्जी पदार्थ प्रमुखतः यूरिया।उत्सर्जी पदार्थ यूरिया अम्ल। हृदय में दो अलिन्द और निलय अपूर्ण रूप से दो कोष्ठों में विभाजित होते हैं।
7. हृदय में तीन कोष्ठ होते हैं : दो अलिन्द व एक निलय। उदाहरण : मेंढक, टोड।उदाहरण : छिपकली, गिरगिट, कछुआ, सर्प, मगरमच्छ।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 10.
एस्केरिस (गोलकृमि) के परजीवी अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:
एस्केरिस के परजीवी अनुकूलन (Parasitic adoptations of Ascaris)

  • इनका शरीर पतला, लम्बा, बेलनाकार तथा दोनों सिरों पर नुकीला होता है।
  • शरीर पर क्यूटीकल (cuticle) का मजबूत मोटा आवरण होता है। इस पर पाचक एन्जाइमों का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इनका रासायनिक पाचन नहीं होता।
  • अभासी देहगुहा (pseudocoelom) में उपस्थित तरल द्रव स्थैतिक (hydrostatic) कंकाल का कार्य करता है। इससे इनका यान्त्रिक पाचन नहीं हो पाता है
  • शरीर के अग्र सिरे पर अनेक रासायनिक संवेदांग होते हैं।
  • यह पोषक से पचा हुआ भोज्य पदार्थ ग्रहण करता है। इसलिए इसकी आहारनाल सीधी सरल नलिका होती है।
  • इसमें अनॉक्सी श्वसन (anaerobic respiration) होता है।
  • जनन क्षमता अत्यधिक होती है। अण्डे प्रतिकूल परिस्थितियों को लम्बे समय तक सहन करने में समर्थ होते हैं।

प्रश्न 11.
कॉन्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
कॉन्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण (Main characteristics of chondrichthese fishes)
1. इस वर्ग के अधिकांश सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 जीव जगत का वर्गीकरण - 1

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर देने के लिए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए -.
1. आवतबीजियों में क्रियात्मक गुरुबीजाणु निम्नलिखित में से किसके रूप में विकसित होता है-
(A) भ्रूणकोश
(B) बीजाण्ड
(C) भ्रूणपोष
(D) परागकोष
उत्तर:
(A) भ्रूणकोश

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत

2. ब्रायोफाइट्स के युग्मकोदभिद की तुलना में संवहनी पादपों के युग्मकोदभिद होते हैं-
(A) बड़े युग्मकोद्भिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले
(B) बड़े युग्मकोदभिद लेकिन बड़े लैंगिक अंगों वाले
(C) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले
(D) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन बड़े लैंगिक अंगों वाले
उत्तर:
(C) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले

3. निम्नलिखित में से किसमें युग्मकोदभिद एक स्वतंत्रजीवी स्वावलम्बी पीढ़ी
नहीं है ?
(A) एडिएन्टम
(B) मार्केन्शिया
(C) पाइनस
(D) पॉलीट्राइकम
उत्तर:
(C) पाइनस

4. स्त्रीधानीधर उपस्थित होता है-
(A) कारा में
(B) एडिएण्टम में
(C) फ्यूनेरिया में
(D) मार्केन्शिया में
उत्तर:
(D) मार्केन्शिया में

5. निम्नलिखित में से किसमें बीजाणुदचिद एक आत्मनिर्भर पीढ़ी नहीं है ?
(A) ब्रायोफाइटस में
(B) टेरिडोफाइट्स में
(C) अनावृतबीजियों में
(D) आवृतबीजियों में
उत्तर:
(A) ब्रायोफाइटस में

6. टेरिडोफाइट्स तथा अनावृतबीजी दोनों में पाये जाते हैं- (RPMT)
(A) बीज
(B) आत्मनिर्भर युग्मकोदभिद
(C) स्त्रीधानी
(D) बीजाण्ड
उत्तर:
(C) स्त्रीधानी

7. साइकस में परागण का प्रकार है- (UPCPMT)
(A) कीट परागण
(B) जल परागण
(C) वायु परागण
(D) शंबुक परागण
उत्तर:
(C) वायु परागण

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत

8. फ्यूनेरिया में कायिक जनन होता है- (UPCPMT)
(A) प्राथमिक प्रोटोनीमा द्वारा
(B) जेमी द्वारा
(C) द्वितीयक प्रोटोनीमा द्वारा
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी में

9. अनावृतबीजियों में फल नहीं पाया जाता क्योंकि-
(A) ये बीजरहित होते हैं।
(B) इनमें परागण नहीं होता है
(C) इनमें अण्डाशय नहीं होता है
(D) इनमें निषेचन नहीं होता है। है
उत्तर:
(C) इनमें अण्डाशय नहीं होता है

10. टेरिडोफाइटस में प्रभावी पीढ़ी होती है-
(A) बीजाणुदभिद
(B) युग्मकोदभिद
(C) युग्मनजी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) युग्मनजी

11. साइकस तथा एडिएण्टम निम्नलिखित की उपस्थिति में समानता प्रदर्शित करते हैं-
(A) बीज
(B) गतिशील शुक्राणु
(C) एधा
(D) वाहिकाएँ
उत्तर:
(B) गतिशील शुक्राणु

12. बहुकोशिकीय कवकों, तन्तुमय शैवालों एवं मॉस के प्रोटोनीमा तीनों के सम्बन्ध में एक समान है-
(A) डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र
(B) पादप जगत की सदस्यता
(D) खण्डन द्वारा गुणन
(C) पोषण विधि
उत्तर:
(D) खण्डन द्वारा गुणन

13. प्रोटोनीमा का निर्माण होता है-
(A) मॉस में
(C) फर्न में
(B) लिवरवर्ट में
(D) साइकेड्स में
उत्तर:
(A) मॉस में

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14. हृदय की आकृति का प्रोथैलस दर्शाता है-
(A) एक लिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्
(B) उभयलिंगाश्रयी बीजाणु भट
(C) उभयलिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(C) उभयलिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्

15. समयुग्मक अवस्था के साथ अवशाभी युग्मक किसमें पाये जाते है ?
(A) क्लेमिडोमोनास
(B) स्पाइरोगाइटा
(D) फ्यूकस
(C) वॉलवाक्स
उत्तर:
(B) स्पाइरोगाइटा

16. गुरुबीजाणुधानी किसके समतुल्य है-
(A) भ्रूणकोष के
(B) फल के
(C) बीजाण्डकाय के
(D) बीजाण्ड के
उत्तर:
(D) बीजाण्ड के

17. निम्नलिखित चनों (1)- (v) को पढ़िए और उसके बाद दिए गये प्रश्न उत्तर दीजिए-
(i) लिवरबर्ट (यकृत कार्य) मॉस और फर्न में युग्मकोदभिद स्वतन्त्राजीवी होता है
(ii) अनावृत्तबीजी और कुछ फर्म विषमबीजाणुक होते हैं
(iii) फ़्यूक्स, वालवाक्स और एस्क्यूगो में लिंगी प्रजनन अण्डयुग्मन होता है
(iv) लिवरपर्ट (यकृत कार्य का बीजानुद्भिद माँस के बीजागुउद्भिद् से अधिक विस्तृत होता है
(v) पाइनस और मार्केन्शिया एक लिंगाश्रयी होते हैं उपरोक्त में कितने कथन सही है-
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
(C) तीन

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्राम 1.
यॉरपॉक्स किस शैवाल वर्ग का सदस्य है ?
उत्तर:
क्लोरोपाइसी (Chlorophyceae) वर्ग का

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प्रश्न 2.
लाल शैवालों का लाल रंग किस वर्णक की उपस्थिति के कारण होता है ?
उत्त:
पाइकोपरिचिन (Phycoerythrin)।

प्रश्न 3.
उन दो टेरिडोफाइट पौधों के नाम लिखिए जिनमें विषम बीजाणुकता पायी जाती है।
उत्तर:
सिलेजिनेला साल्वीनिया ।

प्रश्न 4.
इन नामक औषधि इफेड़ा पीछे से प्राप्त की जाती है. इसे क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर:
खांसी-जुकाम के उपचार के लिए।

प्रश्न 5.
किसी राजीवी आपका नाम लिखिए।
उत्तर:
बक्सबोमिया एफिल्ला ।

प्रश्न 6.
समुद्री सलाद किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अस्या (Ulva) को।

प्रश्न 7.
कौन से समूह के पौधे संवहनी क्रिप्टोगेम्स कहते है ?
उत्तर:
टेरीडोफाइटा (Pteridophyta) समूह के

प्रश्न 8.
लाल शैवालों का संचित भोज्य पदार्थ क्या है ?
उत्तर:
फ्लोरिडियन स्टार्च

प्रश्न 9.
भूरे शैवालों का संचित भोजन क्या है ?
उत्तर:
लैमिनेरिन एवं मेनीटॉल।

प्रश्न 10.
सबसे बड़े ब्रायोफाइटा का नाम लिखिए।
उत्तर:
डाउसोनिया (Dawsonia)।

प्रश्न 11.
दा निर्माण में कौन-सा ब्रायो महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
उत्तर:
स्फैगनम (Sphaguum)।

प्रश्न 12.
सबसे बड़े लैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर:
मैक्रोसिस्टस पायरीफेरा (Macrocyetis pyrifera)।

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प्राय 13.
एजोला किस समूह का पौधा है ?
उत्तर:
टेरीडोफाइटा समूह का।

प्रश्न 14.
आयोडीन, ब्रोमीन उत्पादित करने वाले शैवाल कौन से है ?
उत्तर:
पूरे सेवाल

प्रश्न 15.
किसी जलीय फर्म का नाम लिखिए।
उत्तर:
मासीलिया, साल्वीनिया ।

प्रश्न 16.
किसी परजीवी शैवाल का
उत्तर:
सिफेल्यूरोस (Cephalurge) नाम लिखिए।

प्रश्न 17.
वैज्ञानिक अनुसन्धानों में सर्वाधिक प्रयुक्त किये जाने वाले शैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लोरेला (Chlorella) ।

प्रश्न 18.
सकस के फ्लोएम में क्या नहीं पायी जाती हैं ?
उत्तर:
सहकोशिकाएँ (Companian cells) ।

प्रश्न 19
उत्तर:
रिक्सिया में।
के किस सदस्य में सबसे सरल स्पोरोफाइट मिलता

प्रश्न 20.
किसी समबीजाणुक टेरिडोफाइट का उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
लाइकोपोडियम (Lycopodium), ड्रायोप्टेरिस (Dryopteris)।

प्रश्न 21.
फर्म का भूमिगत भाग जो तना बनाता है क्या कहलाता है ?
उत्तर:
राइजोम (Rhizome) ।

प्रश्न 22.
साबूदाना किस पौधे से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
साइकस रिवोल्यूटा (Cycas revoluta) से। ग्राम

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प्रश्न 23.
नाम किस पौधे से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
एमीज बालसेमिया (Abies balsamia) से।

प्रश्न 24.
किसी जलीय का नाम लिखिए।
उत्तर:
हाइहिला (Hydrilla), सिंघाड़ा (Thapa) |

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न -1

प्रश्न 1.
साइकस के पौधों में फलों का निर्माण क्यों नहीं होता है ?
उत्तर:
फलों का विकास अण्डाशय भित्ति से होता है। साइकस में अण्डाशय (ovary) का अभाव होता है, जो कि फल का निर्माण करती है। इनमें भीज सीधे ही बीजाणु पर्ण पर उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 2.
शैवाल तथा कवक में एक प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
शेवालों में पर्णहरिम उपस्थित होने के कारण ये स्वपोषी होते हैं किन्तु कमकों में पर्णहरिम न होने के कारण ये विवमपोची होते हैं।

प्रश्न 3.
ग्रायोफाइट समूह के चार पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मार्केन्शिया,
  • एन्योसिरोस,
  • पेलिया
  • फ्यूनेरिया

प्रश्न 4.
जिम्नोस्पर्म के संवहन उतक की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
जिम्नोस्पर्म के संवहन ऊतकों के जाइलम में वाहिकाएं (trachea ) तथा फ्लोएम में सखि कोशिकाओं (companion cells) का अभाव होता है।

प्रश्न 5.
बायोफाइट को पादप उभयचर क्यों कहते है ?
(Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
बायोफाइट स्थलीय पौधे है लेकिन इनमें निवेचन केवल बाह्य जल की उपस्थिति में ही होता है एन्यीरोवाइड्स पानी की उपस्थिति में ही आर्कीगोनिया तक पहुँच पाते हैं इसलिए इन्हें पादप उभयचर माना जाता है।

प्रश्न 6.
अगर अगर क्या है ?
उत्तर:
अगर-अगर (Agar-Agar) एक श्लेष्मीय कार्बोहाइड्रेट है जिसे समुद्री शैवाल जिलेडियम, मेसीलेरिया आदि को उबालकर प्राप्त किया जा सकता है। इसका प्रयोग संवर्धन माध्यम बनाने में किया जाता है।

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प्रश्न 7.
टैरीडोफाइटा को कितने वर्गों में बाँटा गया है ?
उत्तर;
चार वर्गों में-

  • साइलोप्सिडा (Psilopsida),
  • लाइकोप्सिडा (Lycopsida),
  • स्फीनोप्सिडा,
  • टेरोप्सिडा (Pteropsida)।

प्रश्न 8.
मॉस के पौधे झुण्डों में क्यों उगते हैं ?
उत्तर:
मॉस में बीजाणुओं के अंकुरण से तन्तुरूपी, अत्यधिक शाखित, हरे रंग की रचना प्रोटीनीमा बनती है। यह उस स्थान पर एक जाल सा बना लेती है। इससे ही पास पास ऊर्ध्वाधर (vertical) पर्णिल पादपों का निर्माण होता है। जिनसे बहुत-सी कलिकाएं उत्पन्न होकर अनेक मॉस पादपों का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित किन-किन पौधों में मिलते हैं ?

  • सीढ़ीनुमा संयुग्मन
  • चल बीजाणु
  • समयुग्मक,
  • पाइरीनॉइड ।

उत्तर:

  • स्पाइरोगाइरा
  • यूलोथ्रिक्स,
  • स्पाइरोगाइरा ।

प्रश्न 10.
पेरीगोनियम क्या है ?
उत्तर;
फ्यूनेरिया की पुंधानी (antheridium) तथा पैराफाइसिस (paraphysis) कुछ बड़ी पत्तियों से घिरे होते हैं। पत्तियों सहित पुंधानियों का झुं४ पेरीगोनियम (perigonium) कहलाता है।

प्रश्न 11.
पेरीकीटियम किसे कहते हैं ?
उत्तर:
फ्यूनेरिया की स्त्रीधानियाँ समूह में उत्पन्न होती हैं। स्त्रीधानियों के बीच-बीच में पैराफाइसिस पाये जाते हैं। स्त्रीधानियाँ एवं पैराफाइसिस पत्तियों से घिरे रहते हैं। इस सम्पूर्ण झुण्ड को पेरीकीटियम (perichaetium) कहते हैं।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
शैवालों के प्रमुख तीन वर्गों की प्रमुख विशेषताओं के लिए एक तालिका बनाइए ।
उत्तर:

वर्ग (Class)सामान्य नाम (Common name)प्रमुख वर्णक (Main Pigment)संचित भोजन (Reserve Food)कोशिका भित्ति (Cell wall)कशाभों की संख्या तथा उनकी निवेशन की स्थितिआवास (Habitat)
1. क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)हरे शैवालक्लोरोफिल a व bमण्ड (Starch)सेल्युलोस युक्त (Cellulogic)2-8, समान शीर्षस्थअलवण जल, लवणीय जल वै खारा जल
2. फियोफाइसी (Pheophyceae)भूरे शैवालक्लोरोफिल  a व b फ्यूकोजैन्थिनमैनीटोल (Mannitol) लैमीनेरिन (Laminarin)सेल्युलोस एल्जिन युक्त2, असमानअलवण जल (बहुतकम), खारा जल, लवणीय जल
3. रोडोफाइसी (Rhodophyceae)लाल शैवालक्लोरोफिल  a व b फाइकोएरिथ्रिनफ्लोरिडियन स्टार्च (Floridian Starch)सेल्युलोसपार्व्वीयअलवण जल (कुछ), खारा जल, लवण जल (अधिकांश)

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प्रश्न 2.
कवक तथा शैवाल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
कवक तथा शैवाल में अन्तर (Differences between Fungi and Algae)

कवक (Fungl)तैवाल (Algae)
1. पर्णहरिम के अभाव के कारण विषमपोषी अवशोषी (absorptive) होते हैं।1. पर्णहरिम की उपस्थिति के कारण स्वपोषी होते हैं।
2. इनमें कोशाभित्ति काइटिन या फंगल सेल्युलोस की बनी होती है ।2. कोशाभित्ति सेल्युलोस की बनी होती है।
3. खाद्य पदार्थ, वसा, तेल या ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है।3. इनमें खाद्य पदार्थ मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है।
4. इनमें जनन अंग विभिन्न प्रकार के होते हैं। विकसित तथा उच्च वर्ग के सदस्यों में जननांग अस्पष्ट या लुप्त हो जाते हैं।4. निम्न श्रेणी के शैवालों में जननांग अविकसित किन्तु विकसित वर्गों में इनकी जटिलता बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
वर्ग क्लोरोफाइसी का संक्षिप्त विवरण दीजिये ।
उत्तर:
वर्ग- क्लोरोफाइसी (Class- Chlorophyceae ) – ये हरे शैवाल होते हैं। इस वर्ग के अधिकांश सदस्य स्वच्छ या अलवण जलीय ( Fresh water) होते हैं, परन्तु कुछ जातियाँ समुद्र में भी पायी जाती हैं। कुछ सदस्य गीली मिट्टी पर भी उगते हैं। जूक्लोरेला (Zoochlorella) सहजीवी शैवाल है जो हाइड्रा (Hydra) के अन्दर उगता है। प्रोटोमी (Protodema) कछुओं की पीठ पर तथा क्लैडोफोरा (Cladophora ) घोंघे के ऊपर उगता है। इनमें क्लोरोफिल ‘a’ तथा ‘b’ प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाये जाते हैं।

ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं अतः स्वपोषी हैं। हरे शैवाल एक कोशिकी चल या अचल, बहुकोशिकीय, निवही (colonial), शाखाविहीन या शाखामय तन्तुरूपी होते हैं। एसीटाबुलेरिया (Acetabularia) एककोशिकीय सबसे बड़ा शैवाल है। हरे शैवालों में कायिक, अलैंगिक या लैंगिक प्रकार का जनन पाया जाता है।

अलैंगिक जनन, चल बीजाणु (zoospores), अचल बीजाणु सुप्तबीजाणु (hypnospores) एकाइनीट्स या पामेला अवस्था द्वारा होता है। लैंगिक जनन समयुग्मकी, विषमयुग्मकी या असमयुग्मकी प्रकार का होता है। कायिक जनन प्रायः विखण्डन द्वारा होता है। उदाहरण : क्लेमाइडोमोनास, वॉल्वॉक्स क्लोरेला, यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा कारा आदि ।

प्रश्न 4.
फियोफाइसी वर्ग के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्ग फिओफाइसी (Class – Pheophyceae ) – इस वर्ग के सदस्य भूरे शैवाल (Brown sea weed or kelp) कहलाते हैं। इनके प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

  • इनमें मुख्य वर्णक क्लोरोफिल ‘a’ क्लोरोफिल c जैन्थोफिल व फ्यूकोजैन्थिन आदि पाये जाते हैं ।
  • कोशिका भित्ति में सेल्युलोस के अतिरिक्त एल्जिनिक तथा फ्यूसिनिक अम्ल भी पाया जाता है।
  • इनमें पायरीनाइड नग्न एवं उभरे होते हैं।
  • कशाभिकाएँ दो तथा असमान होती हैं तथा पार्श्व स्थिति पर होती
  • संचित भोजन लैमिनेरिन अथवा मेनीटॉल के रूप में पाया जाता है।
  • जनन लैंगिक तथा अलैंगिक विधियों से होता है। उदाहरण: एक्ोकार्पस, फ्यूकस, सरगासम, डिक्टियोटा आदि ।

प्रश्न 5.
वर्ग रोडोफाइसी के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्ग रोडोफाइसी (Class Rhodophyceae ) – इस वर्ग के शैवाल लाल शैवाल कहलाते हैं इनके प्रमुख लक्षण अग्रलिखित हैं-

  • मुख्य वर्णक क्लोरोफिल ‘a’ तथा १ ४ एवं फाइकोरिविन (phycoerythrin ) आदि हैं।
  • थायलेकॉइड लवक में बिखरे रहते हैं तथा पायरीनॉइड अनुपस्थित होते हैं।
  • संचित भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च होता है।
  • किसी भी अवस्था में कशाभिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।
  • कोशाभित्ति पॉलीसैकेराइड्स की बनी होती है।
  • अलवणीय तथा लवणीय जल में पाये जाते हैं। उदाहरण : जैलीडियम, कोन्ड्रेस, पोरफाइरा, रोडीमेनिया आदि ।

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प्रश्न 6.
स्पाइरोगाइरा की कोशिका संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्पाइरोगाइरा (Spirogyra) – स्पाइरोगाइरा एक तन्तुवत् -शाखाविहीन हरा शैवाल है जो प्रायः स्वच्छ जल के तालाबों, झीलों आदि में पाया जाता है। यह पानी की सतह पर पाया जाता है। अतः इसे पांड स्कम (pond scum) कहा जाता है। तन्तु की सभी कोशिकाएँ समरूपी होती हैं। कोशिकाओं की लम्बाई इसकी चौड़ाई से 3-4 गुनी होती हैं। कोशिका भित्ति द्विस्तरीय होती है।

भीतरी स्तर सेल्युलोस का तथा बाह्य स्तर पैक्टिन का बना होता है । बाह्य स्तर जल में घुलकर एक लसलसा पदार्थ बनाता है, इसी कारण स्पाइरोगाइरा चिकने होते हैं। कोशिका में एक केन्द्रीय रिक्तिका होती है। केन्द्रक रिक्तिका के मध्य कोशिकाद्रव्यी तन्तुओं की सहायता से लटका होता है। कोशिका में फीतेनुमा ( ribbon-shaped ) तथा सर्पिलाकार क्लोरोप्लास्ट होते हैं। क्लोरोप्लास्ट पर अनेक पायरीनाइड पाये जाते हैं।
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प्रश्न 7.
अनेक टेरिडोफाइटा व अनावृतबीजियों के नर व मादा जनन अंगों की तुलना आवृतबीजियों की पुष्पीय संरचनाओं से की जा सकती है। टेरिडोफाइटा व अनावृत्तबीजियों के जनन अंगों की तुलना आवृत्तबीजियों के जनन अंगों से करने का प्रयास कीजिए (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:

टेरिडोफाइटअनावृतबीजीआवृतबीजी
1. सूक्ष्मबीजाणुपर्ण (Microsporophyll)सूक्ष्मबीजाणुपर्ण (Microsporophyll)पुंकेसर (Stamen)
2. सूक्ष्मबीजाणुधानी (Microsporangium)सूक्ष्मबीजाणुधानी (Microsporangium)पराग कोष Anther / Poll en Sac)
3. सूक्ष्मबीजाणु (Microspore)सूक्ष्मबीजाणु (Microspore)परागकण; नरयुग्मक
4. गुरुबीजाणुपर्ण | (Megasporophyll)नरयुग्मक गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll)अण्डप (Carpel)
5. गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium)गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium)बीजाण्ड (Ovule)
6. गुरु बीजाणु (Megaspora)बीजाणु गुरु (Megaspore)भ्रूण कोष (Embryo sac)
7. अण्ड कोशिका (egg cell)अण्ड कोशिका (egg (cell)अण्ड कोशिका (egg cell)
8. अनुपस्थितअनुपस्थितफल (परिपक्व अण्डाशय)

प्रश्न 8.
जूस्पोर तथा जाइगोस्पोर में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
जूस्पोर तथा जाइगोस्पोर में अन्तर (Differences between Zoospore and Zygospore)

जूस्पोर (Zoospore)जाइगोस्पोर (Zygospore)
1. ये नग्न बीजाणु होते हैं, इनका निर्माण चलबीजाणुधानी में होता है ।ये मोटी भित्ति वाले निष्क्रिय बीजाणु होते हैं।
2. इनका निर्माण अनुकूल परिस्थितियों में अलैंगिक जनन के समय होता है।इनका निर्माण लैंगिक जनन के समय नर व मादा समयुग्मकों के मिलने से होता है।
3. ये अगुणित होते हैं।ये द्विगुणित (2n) होते हैं।
4. इनमें 2 या अधिक कशाभिकाएँ होती हैं।कशाभिकाएँ नहीं पायी जाती हैं।
5. ये अंकुरित होकर सीधे नया तन्तु बनाते हैं।पहले चल या अचल बीजाणु बनाते हैं जो अगुणित होते हैं अगुणित बीजाणु अंकुरित होकर नया तन्तु बनाते हैं।

प्रश्न 9.
यूलोथ्रिक्स एवं स्पाइरोगाइरा के हरितलवकों में अन्तर बताइए ।
उत्तर:
यूलोजिक्स एवं स्पाइरोगाइरा के हरितलवकों में अन्तर (Differences between Chloroplast of Ulothrix and Spirogyra)

लोक्स का हरितलवकस्पाइरोगाइरा का हरितलवक
1. इसकी प्रत्येक कोशिका में केवल एक क्लोरोप्लास्ट कोशिका दृति | (primordial utricle) में पाया जाता है।1. इसमें 1-16 तक क्लोरोप्लास्ट कोशिका दृति में पाये जाते हैं।
2. क्लोरोप्लास्ट मेखलाकर (girdle shaped ) होते हैं।2. क्लोरोप्लास्ट फीताकार तथा सर्पिल रूप से कुण्डलित होते हैं।
3. एक क्लोरोप्लास्ट में केवल एक पायरीनाइड पाया जाता है।3. एक क्लोरोप्लास्ट में अनेक पायरीनॉइड होते हैं।

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प्रश्न 10.
ब्रायोफाइटा के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
ब्रायोफाइटा संवहन ऊतक विहीन एम्ब्रियोफाइट्स (non-vascular embryophytes) होते हैं। ये स्वतन्त्र युग्मकोदभिद (gametophytic) तथा पराश्रयी बीजाणुद्भिद (sporophytic) अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। ब्बायोफाइटा समूह के विभेदक लक्षण निम्न प्रकार हैं-
1. आवास (Habitat)-ब्रायोफाइट्स को पादप जगत के उभयचर (amphibians of plant kingdom) कहा जाता है, क्योंकि यह भूमि पर जीवित रह सकते हैं लेकिन लैंगिक जनन के लिए बाह्य जल की उपस्थिति अनिवार्य होती है। ब्रायोफाइटा नम एवं छायादार स्थान पर, गीली मिट्टी, चड्टानों, पेड़-पौधों के तनों पर पाये जाते हैं। रिक्सिया फ्लूटेस जलीय ब्रायोफाइट्स हैं।

2. युग्मकोद्धि (Gametophyte) – यह पौधे के मुख्य काय को प्रदर्शित करती है। यह स्वपोषी (autotraphic) अवस्था है।

3. आकार (Size) – ये छोटे आकार के प्रथम स्थलीय पौधे होते हैं। सबसे छोटा ब्रायोफाइट जूपिस अर्जेन्टस (4-5) mm तथा सबसे बड़ा बायोफाइट डोसोनिया (60-70 cm}) होता है।

4. संवहन ऊतक (Vascular tissue) – इनमें संवहन ऊतकों जैसे जाइलम व फ्लोएम का अभाव होता है।

5. संरचना (Structure)-पादप शरीर या तो थैलाभ (thalloid) या पर्णाभ (foliose) होता है। थैलस शैवालों की अपेक्षा अधिक विकसित होता है तथा शयान (prostate) अर्थात् लेटा हुआ या सीधा (erect) हो सकता है। मुख्यकाय अगुणित (haploid) होता है। फोलिओज ब्रायोकाइट मे पत्ती सदृश उपागों वाले पौधे में अक्ष सदृश तना होता है। वास्तविक पत्तियाँ, तने एवं जड़ें अनुपस्थित होती हैं।

6. मूलाभास (Rhizoids) – पौधों के आधार भाग में एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत् संरचनाएँ मूलाभास (rhizoids) होती हैं। ये पौधों को भूमि में स्थिर रखने तथा जल अवशोषण (absorption) का कार्य करती हैं।

7. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) – यह सर्वाधिक रूप से पायी जाने वाली प्रजनन विधि है। वर्धी प्रजनन विखण्डन, अपस्थानिक कलिकाओं, ट्यूबर, अपस्थानिक शाखाओं, प्रोटोनीमा अथवा जैमी द्वारा होता है।

8. अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) – ब्रायोफाइट्स में अर्लैंगिक प्रजनन का प्रायः अभाव होता है।

9. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) – लैंगिक प्रजनन अण्डयुग्मकी (oogamous) प्रकार का होता है। नर जननांग एन्थीरीडियम (antheridium) तथा मादा जननांग आर्कीगोनियम (archegonium) कहलाते हैं जो बहुकोशिकीय संरचनाएं हैं। एन्थीरीडियम (antheridium) तथा आर्कीगोनियम (archigonium) का निर्माण एक ही थैलस पर अथवा अलग-अलग थैलसों पर होता है।

10. पुंधानी (Antheridium) – यह छोटी वृन्तयुक्त गोलाकार या गदाकार (club-shaped) संरचना है। इसके चारों ओर बन्ध्य कोशिकाओं (sterile cells) का जैकेट पाया जाता है। इसमें पुमणु मातृ कोशिकाओं से पुमपुओं (antherozoids) का निर्माण होता है। पुमणु द्विकशाभिकायुक्त चल संरचनाएँ होती हैं।

11. सीधानी (Archegonium) – यह फ्लास्क के आकार की संरचना है जो नलिकाकार प्रीवा तथा फूले हुए वेन्टर (venter) में विभेदित की जा सकती है। वेन्टर में एक अण्ड (oosphere) उपस्थित होता है।

12. निषेचन (Fertilization) – निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु (antherozoids) जल में वैरकर अण्डधानी के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड से संयुजन करता है। इससे युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।

13. श्रूण (Embryo) – भूण का निर्माण स्त्रीधानी (archegonium) के अन्दर होता है। यह विकसित होकर बीजाणुदभिद (sporophytc) को जन्म देता है।

14. बीजाणुद्भिद् (Sporophyte)-द्विगुणित (diploid) कोशिकाओं से बना बीजाणुद्भिद् पूर्ण या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पर आंत्रित होता है। बीजाणुद्भिद् (sporophyte) प्राय: फुट, सीटा तथा संपुट (foot, seta and capsule) में विभेदित होता है। फुट एक अवशोषक रचना है। सीटा अवशोषित जल व पोषकों को संपुट तक पहुँचाता है तथा संपुट में बीजाणुओं का निर्माण होता है। बीजीणुओं का निर्माण स्पोरोफाइट की कोशिकाओं में न्यन्वरण विभाजन या मीओसिस (meiosis) द्वारा होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत 14

प्रश्न 11.
फ्यूनेरिया के पौधे की बाह्य आकारिकी समझाइए ।
उत्तर:
फ्यूनेरिया (Fun- aria ) – फ्यूनेरिया अथवा मॉस एक छोटा सीधा पत्तीयुक्त 1-3 सेमी. ऊँचाई का ब्रायोफाइट है। यह सामान्यतः एक बार शाखान्वित होता है। शाखा निर्माण पार्श्व व एक्स्ट्रा एक्सीलरी (extra axillary) होता है। माँस का पौधा अक्ष, पत्ती सदृश्य रचनाएं तथा राइजोइड में विभेदित होता है। पत्ती सदृश्य रचनाएं अक्ष पर सर्पिल क्रम में व्यवस्थित रहती है। शाखाओं के सिरों पर एंथीरिडिया (anthiridia) व आर्कीगोनिया (archegonia) का विकास होता है। निषेचन के बाद आर्कीगोनिया स्थित युग्मनज (Zygote) से बीजाणुद्भिद का निर्माण होता है जो युग्मकोद्भिद् पर निर्भर होता है। यह फुट (foot), सीटा (seta) व सम्पुट (capsule) में विभाजित होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत 2

प्रश्न 12.
ब्रायोफाइटा के आर्थिक महत्व को समझाइए ।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
ब्रायोफाइटा संवहन ऊतक विहीन एम्ब्रियोफाइट्स (non-vascular embryophytes) होते हैं। ये स्वतन्त्र युग्मकोदभिद (gametophytic) तथा पराश्रयी बीजाणुद्भिद (sporophytic) अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। ब्बायोफाइटा समूह के विभेदक लक्षण निम्न प्रकार हैं-
1. आवास (Habitat)-ब्रायोफाइट्स को पादप जगत के उभयचर (amphibians of plant kingdom) कहा जाता है, क्योंकि यह भूमि पर जीवित रह सकते हैं लेकिन लैंगिक जनन के लिए बाह्य जल की उपस्थिति अनिवार्य होती है। ब्रायोफाइटा नम एवं छायादार स्थान पर, गीली मिट्टी, चड्टानों, पेड़-पौधों के तनों पर पाये जाते हैं। रिक्सिया फ्लूटेस जलीय ब्रायोफाइट्स हैं।

2. युग्मकोद्धि (Gametophyte) – यह पौधे के मुख्य काय को प्रदर्शित करती है। यह स्वपोषी (autotraphic) अवस्था है।

3. आकार (Size) – ये छोटे आकार के प्रथम स्थलीय पौधे होते हैं। सबसे छोटा ब्रायोफाइट जूपिस अर्जेन्टस (4-5) mm तथा सबसे बड़ा बायोफाइट डोसोनिया (60-70 cm}) होता है।

4. संवहन ऊतक (Vascular tissue) – इनमें संवहन ऊतकों जैसे जाइलम व फ्लोएम का अभाव होता है।

5. संरचना (Structure)-पादप शरीर या तो थैलाभ (thalloid) या पर्णाभ (foliose) होता है। थैलस शैवालों की अपेक्षा अधिक विकसित होता है तथा शयान (prostate) अर्थात् लेटा हुआ या सीधा (erect) हो सकता है। मुख्यकाय अगुणित (haploid) होता है। फोलिओज ब्रायोकाइट मे पत्ती सदृश उपागों वाले पौधे में अक्ष सदृश तना होता है। वास्तविक पत्तियाँ, तने एवं जड़ें अनुपस्थित होती हैं।

6. मूलाभास (Rhizoids) – पौधों के आधार भाग में एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत् संरचनाएँ मूलाभास (rhizoids) होती हैं। ये पौधों को भूमि में स्थिर रखने तथा जल अवशोषण (absorption) का कार्य करती हैं।

7. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) – यह सर्वाधिक रूप से पायी जाने वाली प्रजनन विधि है। वर्धी प्रजनन विखण्डन, अपस्थानिक कलिकाओं, ट्यूबर, अपस्थानिक शाखाओं, प्रोटोनीमा अथवा जैमी द्वारा होता है।

8. अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) – ब्रायोफाइट्स में अर्लैंगिक प्रजनन का प्रायः अभाव होता है।

9. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) – लैंगिक प्रजनन अण्डयुग्मकी (oogamous) प्रकार का होता है। नर जननांग एन्थीरीडियम (antheridium) तथा मादा जननांग आर्कीगोनियम (archegonium) कहलाते हैं जो बहुकोशिकीय संरचनाएं हैं। एन्थीरीडियम (antheridium) तथा आर्कीगोनियम (archigonium) का निर्माण एक ही थैलस पर अथवा अलग-अलग थैलसों पर होता है।

10. पुंधानी (Antheridium) – यह छोटी वृन्तयुक्त गोलाकार या गदाकार (club-shaped) संरचना है। इसके चारों ओर बन्ध्य कोशिकाओं (sterile cells) का जैकेट पाया जाता है। इसमें पुमणु मातृ कोशिकाओं से पुमपुओं (antherozoids) का निर्माण होता है। पुमणु द्विकशाभिकायुक्त चल संरचनाएँ होती हैं।

11. सीधानी (Archegonium) – यह फ्लास्क के आकार की संरचना है जो नलिकाकार प्रीवा तथा फूले हुए वेन्टर (venter) में विभेदित की जा सकती है। वेन्टर में एक अण्ड (oosphere) उपस्थित होता है।

12. निषेचन (Fertilization) – निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु (antherozoids) जल में वैरकर अण्डधानी के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड से संयुजन करता है। इससे युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।

13. श्रूण (Embryo) – भूण का निर्माण स्त्रीधानी (archegonium) के अन्दर होता है। यह विकसित होकर बीजाणुदभिद (sporophytc) को जन्म देता है।

14. बीजाणुद्भिद् (Sporophyte)-द्विगुणित (diploid) कोशिकाओं से बना बीजाणुद्भिद् पूर्ण या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पर आंत्रित होता है। बीजाणुद्भिद् (sporophyte) प्राय: फुट, सीटा तथा संपुट (foot, seta and capsule) में विभेदित होता है। फुट एक अवशोषक रचना है। सीटा अवशोषित जल व पोषकों को संपुट तक पहुँचाता है तथा संपुट में बीजाणुओं का निर्माण होता है। बीजीणुओं का निर्माण स्पोरोफाइट की कोशिकाओं में न्यन्वरण विभाजन या मीओसिस (meiosis) द्वारा होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत 12

15. बीजाणु (Spores)- बीजाणु अगुणित संरचना है। बीजाणुघानी के फटने पर इनका प्रकीर्णन होता है। बायोफाइट्स के कुछ वंशों में बीजाणु सीधे ही अंकुरण करके युग्मकोद्भिद्ध (gametophyte) बनाते हैं किन्तु कुछ वंशों में अंकुरण करके प्रोटोनीमा बनाते हैं जिनसे युग्मकोदभभिद का निर्माण होता है।

16. पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of generation) – बायोफाइटस के जीवनकाल में दो अवस्थाएँ युग्मकोदभिद्ध तथा बीजाणुदभिद होती है। ये दोनों एक-दूसरे का एकान्तरण करती हैं अर्थात् गेमीटोफाइट से स्पोरोफाइट व स्पोरोफाइट से गैमीटोफाइट बनता है। युग्मकोद्धिभ् स्वतन्तजीवी तथा अगुणित अवस्था को प्रदर्शित करती है जबकि बीजाणुद्धभिद् पराश्रयी एवं द्विगुणित अवस्था है। इसी को पीढ़ी एकान्तकरण कहते हैं। यह पारिस्थितिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा अनुक्रमण (succession) में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 13.
टेरीडोफाइटा समूह के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
टेरीडोफाइटा (Pteridophyta)
जीवाश्मों (fossils) के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि टेरिडोफाइट 350 मिलियन वर्ष पूर्व प्रभावी वनस्पति थे। उस समय के टेरिडोफाइटा बड़े वायवीय तनों वाले अर्थात् वृक्ष सदृश थे। सजावटी पौछे फर्न जैसे-टेरिस (Pteris), एडिएन्टम (Adiantium) तथा हासटेल (ferse tail) टेरिडोफाइट के सामान्य उदाहरण हैं। टेरीडोफाइटा प्राथमिक बीजविहीन संवहनी पौधे होते हैं जो स्पष्ट बीजाणुद्भिद् पादप काय तथा अस्पष्ट स्वतन्त्र युग्मकोद्भिद् (gamctophyte) में विभेदित होते हैं। इन्हें संकहनी क्रिप्टोगेम्स (vascular cryptogames) भी कहते हैं। टेरिडोफाइटस के निम्नलिखित विभेदक लक्षण हैं-
1. आवास (Habitat)-अधिकांश टेरीडोफाइटा स्थलीय होते हैं जो नम छायादार स्थानों, चट्टानों, पेड़ों के तनों पर उगते हैं। कुछ पादप जलीय तथा मरुस्थलीय आवासों में भी पाये जाते हैं। इक्वीसीटम (Equisetum) की कुछ जातियाँ मरूस्थलीय हैं जबकि एजोला (Azolla), साल्विनिया (Salvina) जलीय जातियाँ हैं। मासीलिया (Marsilia) उभयचर पादप होता है।

2. पादफ्काय (Plant body) – यह बीजाणुद्भिद् द्वारा निरूपित होते हैं अर्थात् मुग्य पौधा स्पोरोफाइट होता है। बीजाणुद्भिद् स्पष्ट जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित होता है।

3. उड़ (Roots) – प्राथमिक जड़ें अल्पकालिक (ephimeral) होती हैं जो अपस्थानिक जड़ों (adventitious roots) द्वारा प्रतिस्थापित कर दी जाती हैं।

4. तना (Stem)-यह शाकीय होता है। अधिकांश फर्न में तना भूमिगत राइजोम (rhizome) होता है।

5. पत्तियाँ (Leaves) – पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं लघुपर्णी तथा गुरुपर्णी (microphyllous and megaphyllous)। सिलैजिनेला में पतियाँ छोटी तथा फर्न में बड़े आकार की होती हैं।

6. संबहलन ऊ्तक (Vascular Tissue)-संवहन ऊतक उपस्थित होता है तथा दो प्रकार के ऊतकों, जाइलम तथा फ्लोएम का बना होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत 13

7. जनन (Reproduction) – जनन कायिक तथा लैंगिक प्रकार का होता है। कायिक प्रजनन अपस्थानिक कलिकाओं, पत्र प्रकलिकाओं (bulbils) या अपस्थानिक शाखाओं द्वारा होता है। लैंगिक जनन विशिष्ट संरचनाओं द्वारा होता है।

8. बीजाणुपर्ण (Sporophyll) – बीजाणु बीजाणुधानियों (sporangia) में बनते हैं तथा बीजाणुधानी धारण करने वाली पत्तियां बीजाणुपर्ण कहलाती हैं। बीजाणु धानियाँ (sporangium) पत्ती की सतह पर उत्पन्न होती हैं।

9. बीजाणुधानियों का वितरण (Distribution of Sporangia)-फर्र्स में बीजाणुधानियाँ बीजाणु पर्णों (sporophylls) की निचली सतह पर समूहों या सोराई (sori) में पायी जाती हैं। एक सोरस (sorus) में 5-6 या अधिक बीजाणुधानी होती हैं।
कुछ टेरिडोफाइट में बीजाणुपर्ण (Sporophylls) सघन होकर शंकु (cone) जैसी सुस्पष्ट रचना बनाते हैं। सिलेजिनेला व इक्वीसीटम में यही रचना जाती है। इन्हुं स्ट्रोविलस (strobilus) कहा जाता है।

10. बीजाणुघानी (Sporangia) – स्पोरोफाइट होने के कारण बीजाणुधानी द्विगुणित (diploid) होती है। यह मोटी भित्चि वाली कोशिकाओं से घिरी रहती है तथा इसके केन्द्र में स्थित बीजाणु मातृ कोशिकाओं (spore mother cells) में हुए अर्धसूत्र विभाजन (meiosis) द्वारा बीजाणुओं का निर्माण होता है।

11. बीज्ञाणु (Spores) – बीजाणुधानी के फटने पर अगुणित बीजाणु हवा द्वारा दूर्दूर वक प्रकीर्णित कर दिए जाते हैं जो अंकुरण कर युग्मकोदभिद् (gametophyte) का निर्माण करते हैं।

12. युग्मकोद्भि्द् (Gametophyte) – यह स्वतन्त्रजीवी छोटी थैलाभ संरचना है जिसे प्रोथैलस (prothallus) कहते हैं। प्रोथेलस बहुकोशिकीय होता है तथा ठण्डे, गीले व छायादार स्थानों पर उगता है। निषेचन के लिए जल की आवश्यकता तथा इसकी अन्य विशिष्ट, सीमित आवश्यकताओं के कारण टेरिडोफाइट भौगोलिक रूप से सीमित क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इसी प्रोथैलस पर नर व मादा जनन अंगों का विकास होता है। अधिकांश फर्न में यह हरा व स्वपोषी (autotrophic) होता है। विषमपोषी (heterotrophic) फर्न में, मादा युग्मकोद्भिद् (gametophyte), सामान्यतः दीर्घबीजाणु (megaspore) द्वारा संचित भोजन पर निर्भर करता है।

13. जनन अंग (Sex organs) – नर जनन अंग पुंधानी (Antheridium) तथा मादा जनन अंग रीधानी (Archegonium) कहलाते हैं। समबीजाणुक (homosporous) वंशों में बीजाणु अंकुरण से बनी हरी एवं स्वतन्त्र रचना प्रोथैलस पर जनन अंगों का निर्माण होता है।

14. पुंधानी (Antheridium) – यह वृन्तहीन मुग्दराकार (club-shaped) संरचना है जो एक स्तरीय जैकेट द्वारा घिरी होती है। पुंधानी के अन्दर द्विकशााभक पुमणुओं (biflagellate antherozoids) का निर्माण होता है। इक्वीसीटम तथा सायलोटम में पुमणु (multiflagellate) बहुकशाभिकीय होते हैं।

15. सीधानी (archegonium)-यह फ्लास्कनुमा रचना होती है। यह आंशिक रूप से प्रोथैलस में धँसी होती है। ग्रीवा वायवीय होती है। सीधानी (archegonium) के आधारीय भाग में एक अण्डगोल (oosphere) या अण्ड होता है।

16. निषेचन (Fertilization) – निषेचन बाहा जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु अपने कशाभों द्वारा तैरकर स्त्रीधानी (archegonium) के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड को निषेचित करता है। निषेचित अण्ड प्रूण का निर्माण करता है।

17. भूण (Embryo)-निषेचन के फलस्वरूप बना युग्मनज (zytoge) विभाजन करके प्रूण (embryo) का निर्माण करता है जो वृद्धि करके प्रोधैलस के ऊतकों को फाड़कर भूमि में स्थापित हो जाता है और नये द्विगुणित पौधे अर्थात् स्पोरोफाइट का निर्माण करता है।

18. पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of Generation) – सभी टेरीडोफाइट्स के जीवन चक्र में बीजाणुद्भिद (sporophyte) तथा युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पीढ़ियों का एकान्तरण होता है। इसे पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generation) कहते हैं।

प्रश्न 14.
फर्न के प्रोथैलस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फर्न का प्रोथैलस (Prothallus of Fern) – फर्न में बीजाणुधानी से प्रकीर्णित होने के बाद बीजाणु स्वतन्त्र रूप से अंकुरण करके, हृदयाकार हरे रंग की स्वपोषी संरचना का निर्माण करते हैं जिसे प्रोथैलस कहते हैं। यह फर्न की युग्मकोद्भिद् अवस्था को प्रदर्शित करता है। प्रोथैलस पतली, चपटी हृदयाकार संरचना है जो बीच में मोटी तथा किनारों पर पतली होती है। फर्न का प्रोथैल उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होता है अर्थात् नर तथा मादा जननांग धारण करता है।

प्रोथैलस का मध्य भाग एक गद्दी जैसी संरचना होता है जिसके नीचे से दोनों ओर को मूलाभास ( rhizoids) निकले होते हैं। पुंधानी पहले विकसित होती है इनका निर्माण मूलभासों के बीच होता है। प्रोथैलस के ऊपरी भाग में शीर्ष खाँच के निकट स्त्रीधानियाँ (Archegonia) विकसित होती हैं। फर्न में पुंपूर्वी दशा (Protandrous) पायी जाती है अर्थात् एन्थीरोजाइड्स आर्कीगोनियम के परिपक्व होने से पहले ही तैयार (परिपक्व हो जाते हैं। अतः स्वनिषेचन नहीं होता है।
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प्रश्न 15.
मॉस तथा फर्न बीजाणुद्भिदों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
मॉस तथा फर्न के बीजाणुद्भिदों की तुलना (Comparison between Sporophytes of Moss and Fern)

मॉस बीजाणुद्भिद्फर्न वीजाद्भिद्
1. बीजाणुद्भिद् लगभग 2 सेमी लम्बा स्पोरोगोनियम होता है।1. बीजाणुद्भिद् एक पूर्ण विकसित पौधे के रूप में होता है।
2. यह फुट, सीटा तथा कैप्सूल में विभेदित होता है।2. यह जड़, भूमिगत तना तथा हरी पत्तियों में विभेदित होता है।
3. संवहन ऊतकों का अभाव होता है।3. संवहन ऊतक जाइलम व फ्लोएम | का बना होता है।
4. यह युग्मको पर पूर्ण परजीवी होता है।4. प्रारम्भिक अवस्था में परजीवी किन्तु बाद में स्वतन्त्र जीवी होता है
5. बीजाणु निर्माण कैप्सूल में होता है ।5. बीजाणु निर्माण बीजाणुधानी में होता है।

प्रश्न 16.
अनावृतबीजी (साइकस) तथा टेरीडोफाइटा (फर्न) में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अनावृतबीजी (साइकस) तथा टेरीडोफाइटा (फर्न) में अन्तर

अनावृतबीजी-साइकसटेरीडोफाइटा-फर्न
1. शुष्क आवासों में पाये जाते हैं।1. प्रायः नम वातावरण में तथा कुछ जल में पाये जाते हैं।
2. युग्मकोद्भिद् ( gametophyte ) पूर्ण रूप से बीजाणुद्भिद् पर आश्रित होता है।2. युग्मकोद्भिद् ( gametophyte ) स्वपोषी होता है।
3. विषम बीजाणुक ( heterosporous) होते हैं।3. प्रायः  समबीजाणु (homosporous) होते हैं।
4. युग्मकोद्भिद् एकलिंगाश्रयी (dioecious) होता है।4. उभयलिंगाश्रयी (monoccious) होता है।
5. बीजों का निर्माण होता है।5. बीजों का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 17.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में अन्तर लिखिए ।
उत्तर;
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में अन्तर (Differences between Gymnosperms and Angiosperms)

जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms)एन्जियोस्पर्म (Angiosperms)
1. पौधे शुष्कोद्भिद्, वृक्ष तथा झाड़ी होते हैं।1. पौधे, शाक, झाड़ी व वृक्ष होते हैं। ये जलोद्भिद मरुद्भिद्, समोद्- भिद् एवं लवणोद्भिद होते हैं।
2. बीज किसी आवरण में बन्द नहीं होते ।2. बीज फल के अन्दर बन्द होते हैं।
3. संवहन बण्डल के जाइलम में वाहिकाएँ तथा फ्लोएम में सखिकोशिकाएँ नहीं पायी जाती हैं।3. वाहिकाएँ तथा सहकोशिकाएँ पायी जाती हैं।
4. ये प्रायः एकलिंगी होते हैं।4. ये एकलिंगी या द्विलिंगी होते हैं।
5. परागण वायु द्वारा होता है।5. परागण, वायु, जल, कीट व जन्तुओं द्वारा होता है।
6. द्विनिषेचन (double fertilization) नहीं पाया जाता है ।6. द्विनिषेचन आवृतबीजियों का विशिष्ट लक्षण है।
7. भ्रूणपोष अगुणित होता है।7. भ्रूण पोष त्रिगुणित होता है।
8. फलों का निर्माण नहीं होता।8. फलों का निर्माण होता है।

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(E) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (निबन्धात्मक)

प्रश्न 1.
मॉस (फ्यूनेरिया) के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए। इसमें पीढ़ी एकान्तर भी समझाइए ।
उत्तर:
मॉस (फ्यूनेरिया) का जीवन चक्र प्रश्नोत्तर देखें प्रश्न 3, पाठ्य-पुस्तक
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प्रश्न 2.
फर्न (ड्रायोप्टेरिस) के जीवन चक्र तथा पीढ़ी एकान्तरण का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
फर्न के जीवन-चक्र का प्राफीय निरूपण कीजिए।
उत्तर:
फर्न का जीवन चक्र (Life cycle of Fern Dryopteris) – फर्न का जीवन-चक्र दो अवस्थाओं में पूर्ण होता है- बीजाद्भिद (sporophyte) तथा युग्मकोद्भिद ( gametophyte )। ये दोनों अवस्थाएँ एक के बाद एक आती है। बीजाणुद्भिद् (Sporophyte ) – यह फर्न की प्रमुख अवस्था है जो भूमिगत प्रकन्द ( rhizome), अपस्थानिक जड़ों ( Adventitious roots), वायवीय प्ररोह (arial shoot) तथा पत्तियों (leaves) में विभेदित होती है।

सामान्य पत्तियों में से ही कुछ पत्तियाँ बीजाणुपर्ण का कार्य करती हैं जिन पर बीजाणुधानियों (Sporangia) के समूह इनकी निचली सतह पर उत्पन्न होते हैं। बीजाणुधानियों के समूह सोराई (sori) कहलाते हैं। फर्न समबीजाणुक (homosporous) होते हैं। प्रत्येक बीजाणुधानी में 12-16 तक बीजाणु मातृ कोशिकाएँ होती हैं।

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प्रत्येक बीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन करके अगुणित बीजाणुओं (haploid spores) का निर्माण करती है। बीजाणु प्रकीर्णित होकर तथा अंकुरण करके युग्मकोद्भिद पीढ़ी को जन्म देते हैं। युग्मकोद्भिद (Gametophyte ) – बीजाणु इस पीढ़ी की प्रारम्भिक अवस्था को प्रदर्शित करते हैं। बीजाणुओं के अंकुरण से हृदयाकार (heart shaped), हरे रंग की चपटी संरचना का निर्माण होता है जिसे प्रोथैलस (prothallus ) कहते हैं। यह स्वपोषी होता है और अपने मूलाभासों द्वारा जमीन में सधा रहता है।

प्रोथैलस की अधर सतह पर पुंधानी तथा स्त्रीधानियों का विकास होता है। पुंधानी गोलाकार अवृन्त संरचनाएँ हैं जो प्रोथैलस पर मूलाभासों के बीच-बीच में उत्पन्न होती हैं। इनमें बहुपक्ष्मीय तथा कुण्डलित पुमणुओं (Antherozoids) का निर्माण होता है। प्रत्येक स्त्रीधानी फ्लास्क के आकार की संरचना है, इनका निर्माण प्रोथैलस की शीर्ष खाँच के समीप समूहों में होता है । प्रत्येक स्त्रीधानी में एक अगुणित अण्ड पाया जाता है।

फर्न में निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु तैरकर स्त्रीधानी के मुँह तक आ जाते हैं तथा स्त्रीधानी का मुख खुलने पर अनेक पुमणु स्त्रीधानी में प्रवेश कर जाते हैं। केवल एक पुमणु अण्ड से संयुजन कर द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनाता है। यह अपने ऊपर एक मोटी भित्ति स्रावित कर लेता है। और निषिक्ताण्ड (oosphere) कहलाता है।

निषिक्ताण्ड (oosphere) अंकुरण करके भ्रूण ( embryo) बनाता है। भ्रूण के परिवर्धन से पुनः बीजाणुद्भिद अवस्था स्थापित होती है। फर्न में पीढ़ी एकान्तरण ( alternation of generations ) – फर्न में बीजाणुद्भिद् तथा युग्मकोद्भिद् अवस्थाओं का एकान्तरण होता है। बीजाणुद्भिद् अवस्था प्रमुख होती है जिस पर बीजाणुधानियाँ होती हैं।

इसमें अगुणित बीजाणुओं का निर्माण होता है, जो अंकुरण करके प्रोथैलस बनाते हैं। प्रोथैलस युग्मकोद्भिद् अवस्था को प्रकट करता है। इस पर नर व स्त्री जननांग होते हैं। इसमें युग्मकों के संलयन से जाइगोट बनता है जो पुनः बीजाणुद्भिद् अवस्था को स्थापित करता है।
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प्रश्न 3.
साइकस के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साइकस का जीवन चक्र (Life cycle of Cycas) -साइकस का पौधा बीजाणुद्भिद होता है जिसमें नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग पौधों पर विकसित होते हैं अर्थात् साइकस एक लिंगाश्रयी (dioecious) होता है। नर पौधे पर नर शंकुओं (Male cones) का निर्माण होता है। प्रत्येक नर शंकु में अनके लघुबीजाणुपर्ण (microsporophylls) होते हैं।

प्रत्येक लघुबीजाणुपर्ण के आधारीय भाग में लघुबीजाणु धानियाँ (microsporangia) होती हैं। इनमें बीजाणु मातृ कोशिकाएँ (microspore mother cells) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा असंख्य अगुणित लघु बीजाणु या परागकण (microspore or pollen grains) बनाती हैं।मादा पौधों में गुरुबीजापर्ण (Megasporophylls) पाये जाते हैं जिन पर बीजाण्ड (Ovules) लगे होते हैं।

साइकस में गुरुबीजाणुपर्ण शंकु के रुप में व्यवस्थित नहीं होते व शीर्ष पर पत्तियों के बीच में लगे रहते हैं। बीजाण्ड के अन्दर गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore mother cell) में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित गुरुबीजाणु बनते हैं जिनमें से तीन नष्ट हो जाते हैं और केवल एक सक्रिय रहता है। नर युग्मकोद्भिद या परागकण दो नर युग्मकों का निर्माण करता है, मादा युग्मकोद्भिद एक या अधिक स्त्रीधानी बनाता है जिनमें एक-एक मादा युग्मक या अण्ड (egg) होता है। साइकस में वायु द्वारा परागण होता है।

नर युग्मको द्भिद तीन कोशिकीय अवस्था में बीजाणु तक पहुँचता है और परागकोष्ठ (pollen chamber) में पहुँच जाता है। यहाँ नर युग्मकोद्भिद् से एक पराग नलिका (pollen tube) बनती है जिसमें दो नर युग्मक होते हैं। स्त्रीधानी तक पहुँचकर एक नर युग्मक एक स्त्रीधानी में प्रवेश करता है।

प्रायः एक से अधिक स्त्रीधानियाँ निषेचित होती हैं किन्तु पूर्ण रूप से किसी एक का ही विकास होता है। निषेचन के पश्चात् द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनता है, जो भ्रूण का निर्माण करता है। भ्रूण बीज में बन्द रहता है। बीजों के अंकुरण से पुनः बीजाणुद्भिद पौधे बनते हैं।
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प्रश्न 4.
समझाइए क्यों आवृत्तबीजियों में लैंगिक जनन को द्विनेषेचन व त्रिसंलयन द्वारा होना बताया जाता है। इस परिघटना को स्पष्ट करने के लिए भ्रूणपोष का चित्र भी बनाइए ।
उत्तर:
परागनलिका में दो नर युग्मक (male gametes) होते हैं। परागनलिका वर्तिका (style) से होती हुई भ्रूणकोष में प्रवेश करके अपने दोनों न युग्मक भ्रूणकोष में छोड़ देती हैं। दोनों नर युग्मकों में से एक अण्ड कोशिका से तथा दूसरा द्वितीयक केन्द्रक से संलयन करता है। पहले संलयन को निषेचन (fertilization) तथा दूसरे को त्रिसंलयन (triple fusion) कहा जाता है। चूंकि निषेचन दो बार होता है अर्थात् पहला नर केन्द्रक अण्ड से तथा दूसरा नर केन्द्रक द्वितीयक केन्द्रक से, अतः इस पूरी प्रक्रिया को द्विनिषेचन (double fertilization) कहा जाता।
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प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (Primary enbryosac nucleus ) निषेचन के पश्चात् अण्ड कोशिका द्विगुणित युग्मनज (Diploid zygote; 2n) तथा द्वितीयक केन्द्रक त्रिगुणित भ्रूणपोष (triploid endosperm; 3n) बनाते हैं। अब सम्पूर्ण बीजाणु बीज की संरचना करता है। बीजों के अंकुरण से पुनः बीजाणुद्भिद पीढ़ी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 5.
किसी अनावृत्तबीजी तथा आवृत्तबीजी के जीवन चक्र का केवल ग्राफीय निरूपण कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 6.
पौधों के जीवनचक्र में अगुणितक, द्विगुणितक तथा मिश्रित प्रकार के जीवन- पैटर्न की संक्षिप्त व्याख्या रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
उत्तर:
पादप जीवन चक्र तथा संतति या पीड़ी-एकान्तरण (Life Cycle of Plant and Alternation of Generation) पादप में अगुणित तथा द्विगुणित कोशिकाएँ माइटोसिस द्वारा विभक्त होती हैं। इसके कारण विभिन्न काय, अगुणित तथा द्विगुणित बनते हैं।
1. अगुणित पादपकाय माइटोसिस द्वारा युग्मक (gametes) बनाते हैं। इसमें पादपकाय युग्मकोद्भिद् (gametophyte) होता है। निषेचन के बाद युग्मनज भी माइडोसिस द्वारा विभक्त होता है जिसके कारण ह्विगुणित स्पोरोफाइट पादपकाय बनाता है।

2. पादपकाय में मिऑसिस द्वारा अगुणित बीजाणु बनते हैं।

3. ये अगुणित बीजाणु माइटोसिस विभाजन द्वारा पुनः अगुणित पादपकाय बनाते हैं। इस प्रकार किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पौरों के जीवन चक्र के दौरान युग्मकों, जो अगुणित युग्मकोद्धिद् (haploid gametophyte) बनाते हैं और बीजाणु जो द्विगुणित स्पोरोफाइट बनाते है, के बीच संतति या पीक़ी-एकान्तरण होता है। विभिन्न पादप वर्गों में निम्नलिखित प्रकार का जीवन चक्र पाया जाता है-
(अ) अगुणितक (Haplontic)
(ब) स्रिणुणितक (Diplontic)
(स) अगुणितक द्विगुणित (Haplo-diplontic)

(अ) अभुजिति (Haplontic)-बीजाणुद्धिद् (sporophyte)- संतति में केवल एक कोशिका वाला युग्मनज होता है। स्योरोफाइट मुक्तजीवी नहीं होता है। युग्मनज में मिओसिस विभाजन होता है विससे अगुणित बीजाणु बनते है। अगुणित बीजाणु में माइटोटिक विभाजन द्वारा युग्मकोदिभद् (gametophyte) बनते हैं। ऐसे पौधों में प्रभावी, प्रकाश संश्लेषी अवस्था मुक्त जीवी युग्मकोदुिद्ध होती है। इस प्रकार के जीवन चक्र को अगुणितक (haplontic) कहते हैं। बहुत से शैवाल, जैसे वरणंक्ता साइोलाखरा तथा क्समाइड्दोमोनोंत की कुछ स्पीशीज में इस प्रकार जीवन चक्र पाया जाता है।

(ब) लिणिंक्ज (Diplontic)-कुछ पादपों में बीजाणुदभिद्ध (sporophyte) प्रभावी प्रकाश संश्लेषी व मुक्त होते है। युग्मकोद्भिद् एक कोशिकीय अथवा कुछ कोशिकीय होते हैं। इस तरह के जीवन चक्र को ऐंयस्पर्म में इस तरह का जीवन चक छोता है। (चित्र 3.7 घ)। बायोफाइट व टैरिडोफाइट समूहों में मिश्रित अवस्था अर्थात् दोनों प्रकार की अवस्थाएँ पायी जाती हैं। दोनों ही अवस्थाएँ बहुकोशिकीय होती हैं, लेकिन उनकी प्रभावी अवस्था में भिन्नता होती है।

(स) अगुणित्र-हिणुणित्क (Haplo-Diplo- ntic)-पादपों के ब्रायोफाइट व टैरिडोफाइट समूहों में मिश्रित अवस्था अर्थात् दोनों प्रकार की अवस्थाएँ पायी जाती हैं। दोनों ही अवस्थाएँ बहुकोशिकीय होती हैं, लेकिन उनकी प्रभावी अवस्था में भिन्नता होती है।
(i) बायोफाइटा (bryophtes) में प्रभावी, मुक्त व प्रकाश संश्लेषी अवस्था अगुणित युग्मकोद्भिद् होती है। यह अल्प आयु की बहुकोशिकीय, द्विगुणित बीजाणुद्धिद् (sporophyte) के साथ पीढ़ी एकान्तरण करती है।

(ii) बीजाणुद्धिद (sporophyte) पूर्ण या आंशिक रूप से जुड़े रहने या पोषण प्राप्त करने के लिये युग्मकोद्धिद्ध पर निर्भर करते हैं।

(iii) टेरिडोफाद्स्स व कुछ शैवालों जैसे-एक्टोकार्पस, पारिंयु कोनिध कैल्प आदि में अगुणितक-द्विगुणितक जीवन चक्र
(Haplo-Diplontic Life Cycle) पाया जाता है। इनमें द्विगुणित बीजाणुदभिद्र प्रभावी, मुक्त, प्रकाशसंश्लेषी, संवहनो पादपकाय होता है जो कि बहुकीशिक, स्वपोषी मुक्त लेकिन अल्पायु अगुणित युग्मकोद्भिद् से पीड़ी एकान्तरण करता है।

(iv) अधिकांश शैवाल में अगुणितक (haplontic) जीवन चक्र होता है। फाइकस एक ऐसे शैवाल का उदाहरण है जिसमें द्विगुणितक (diplontic) जीवन
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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्नलिखित में से किस प्रकार की जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर कशाभ उपस्थित होते हैं ?
(A) एक कशाभीय
(B) उभय कशाभीय
(C) गुच्छ कशाभीय
(D) परिरोमी
उत्तर:
(A) एक कशाभीय

2. नील हरित शैवाल होते हैं-
(A) प्रोकैरियोटिक
(B) यूकैरियोटिक
(C) एकबीजपत्री
(D) द्विबीजपत्री।
उत्तर:
(A) प्रोकैरियोटिक

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3. निम्नलिखित में से किसमें झिल्लीबद्ध कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं –
(A) सैकेरोमाइसिस
(B) स्ट्रेप्टोकोकस
(C) क्लेमाइडोमोनास
(D) प्लाज्मोडियम।
उत्तर:
(B) स्ट्रेप्टोकोकस

4. विषाणु का आवरण कहलाता है –
(A) कैप्सिड
(B) विरियॉन
(C) न्यूक्लियोप्रोटीन
(D) कोर।
उत्तर:
(A) कैप्सिड

5. नाइट्रीकारी जीवाणु है –
(A) स्वयं पोषी
(B) रसायन स्वपोषी
(C) परपोषी
(D) प्रकाश पोषी।
उत्तर:
(B) रसायन स्वपोषी

6. पाँच जगत वाले वर्गीकरण में –
(A) मोनेरा के अन्तर्गत
(B) प्रोटिस्टा के अन्तर्गत
(C) कवकों के अन्तर्गत
(D) एनीमेलिया के अन्तर्गत।
उत्तर:
(B) प्रोटिस्टा के अन्तर्गत

7. हेटरोसिस्ट पायी जाती है –
(A) रिक्सिया में
(B) यूलोथ्रिक्स में
(C) एल्ब्यूगो में
(D) नॉस्टोक में।
उत्तर:
(D) नॉस्टोक में।

8. गर्म पानी के स्रोतों में अनेक नील हरित शैवाल पाए जाते हैं। इन शैवालों में ताप सहने की शक्ति निम्नलिखित कारण से होती है-
(A) कोशिका भित्ति की संरचना
(B) आधुनिक कोशिकीय संगठन
(C) माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना
(D) प्रोटीनों में होमोपॉलीमर बन्धों की उपस्थिति।
उत्तर:
(D) प्रोटीनों में होमोपॉलीमर बन्धों की उपस्थिति।

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9. कवक तंतुओं के शीर्ष पर बाह्य रूप से उत्पन्न कवक बीजाणु कहलाते
(A) कोनीडिया
(C) एप्लानोबीजाणु
(B) ऑइडिया
(D) बीजाणुधानीधर।
उत्तर:
(A) कोनीडिया

10. पाँच जगत वाले वर्गीकरण के अनुसार, डायएटम्स को वर्गीकृत किया गया है –
(A) मोनेरा में
(B) प्रोटिस्टा में
(C) कवक में
(D) पादप (प्लांटी) में।
उत्तर:
(B) प्रोटिस्टा में

11. सायनो बैक्टिरिया को कहा जाता है-
(A) प्रोटिस्ट्स
(B) सुनहरी शैवाल
(C) स्लाइम मोल्डस
(D) नीली हरी शैवाल।
उत्तर:
(D) नीली हरी शैवाल।

12. धान के खेतों में एजोला के साथ पाप्य जाने वाले नाइट्रोजन स्थिरीकारक सूक्ष्मजीव है-
(A) स्पाइरूलिना
(B) एनाबीना
(C) फ्रेंकिया
(D) टॉलियोथ्रिक्स
उत्तर:
(B) एनाबीना

13. नील हरित शैवाल (सायनो बैक्टीरिया) धान के खेतों के अलावा किसके कायिक भाग के अन्दर भी पाये जाते हैं ?
(A) पाइनस
(B) साइकस
(C) इक्वीसीटम
(D) साइलोटम।
उत्तर:
(B) साइकस

14. साइनोबैक्टीरिया के कुछ झिल्लीदार प्रसार वाले वर्णक क्या हैं ?
(A) हेटेऐसिस्ट
(B) आधारकाय
(C) श्वसनमूल
(D) वर्णकी लवक।
उत्तर:
(D) वर्णकी लवक।

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15. निम्नलिखित में से किसकी गहरे समुद्र जल में पाये जाने की सम्भावना है?
(A) आर्कीबैक्टीरिया
(B) यूबैक्टीरिया
(C) नीलहरित शैवाल
(D) मृतजीवी कवक।
उत्तर:
(A) आर्कीबैक्टीरिया

16. अधिकतम पोषण विविधता किस समूह में पायी जाती है ?
(A) कवक
(B) ऐनीमेलिया
(C) मोनेरा
(D) प्लाण्टी
उत्तर:
(C) मोनेरा

17. यूवैक्टीरिया में उपस्थित कोशिकीय अवयव जो यूकैरियोटिक कोशिकाओं के समान होता है-
(A) केन्द्रक
(B) राइबोसोम
(C) कोशिका भित्ति
(D) जीवद्रव्य कला।
उत्तर:
(D) जीवद्रव्य कला।

18. निम्नलिखित में से कौन गहरे समुद्र में पाया जाता है ?
(A) आर्किसैनटीरिया
(B) यूवैक्टीरिया
(C) नील हरित शैवाल
(D) मृतोपजीवी कवक।
उत्तर:
(A) आर्किसैनटीरिया

19. निम्न में से कौन वलयित RNA रज्जुक तथा कैप्सोमीयर्स प्रदर्शित करता है ?
(A) पोलियो विषाणु
(B) टोवेको मोजेक विषाणु (TMV)
(C) चेचक विषाणु
(D) रिट्रोविषाणु
उत्तर:
(B) टोवेको मोजेक विषाणु (TMV)

20. कुछ जीवाणुओं में पायी जाने वाली संरचना जो उन्हें चट्टानों / पोषक कोशिकाओं से चिपकने में सहायता प्रदान करती है-
(A) राइजोप्रड्स
(B) फिम्बी
(C) मीसोसोम
(D) होल्डफास्ट।
उत्तर:
(B) फिम्बी

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21. मेथेनोजेन किस वर्ग से सम्बन्धित है ?
(A) यूबैक्टीरिया
(B) आर्किवैक्टीरिया
(C) डाइनोफ्लेजिलेट्स
(D) स्लाइम गोल्ड
उत्तर:
(B) आर्किवैक्टीरिया

22. निम्न में से कौन-सा कथन गलत है ?
(A) गोल्डन शैवाल डेस्मिड्स भी कहलाते हैं।
(B) यूवैक्टीरिया कूटवैक्टीरिया भी कहलाते हैं।
(C) फाइकोमाइसिटीज शैवाल कवक भी कहलाते हैं।
(D) सायनोवैक्टीरिया नील हरित शैवाल भी कहलाते हैं।
उत्तर:
(B) यूवैक्टीरिया कूटवैक्टीरिया भी कहलाते हैं।

23. वाइरोइड्स के सम्बन्ध में कौन-सा कथन गलत है ?
(A) ये विषाणुओं से होते होते हैं
(B) ये संक्रमण उत्पन्न करते हैं।
(C) इनका RNA उच्च अणुभार युक्त होता है।
(D) इनमें प्रोटीन आवरण का अभाव होता है।
उत्तर:
(C) इनका RNA उच्च अणुभार युक्त होता है।

24. निम्नलिखित में से कौन अत्यधिक क्षारीय परिस्थितिओं में पाया जाता है?
(A) आर्किबैक्टीरिया
(B) यूवैक्टीरिया
(C) सायनोबैक्टीरिया
(D) माइकोबैक्टीरिया।
उत्तर:
(A) आर्किबैक्टीरिया

25. वाइरोइड्स विषाणुओं से किसमें भिन्न होते हैं ?
(A) प्रोटीन आवरण युक्त DNA अणु
(B) प्रोटीन आवरण रहित DNA अणु
(C) प्रोटीन आवरण युक्त RNA अणु
(D) प्रोटीन आवरण रहित RNA अणु ।
उत्तर:
(D) प्रोटीन आवरण रहित RNA अणु ।

(B) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर सर्वप्रथम कौनसे जीव उत्पन्न हुए ?
उत्तर:
नील हरित शैवाल (Blue green algae)।

प्रश्न 2.
कौनसा जीवाणु दूध से दही बनाने में सहायक है ?
उत्तर:
लैक्टोबैसीलस (Lactobacillus )।

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प्रश्न 3.
प्रोटिस्टा भी मोनेरा की तरह एक कोशिकीय होते हैं, फिर भी इन्हें एक अलग जगत में रखा गया है। क्यों ?
उत्तर:
प्रोटिस्टा में वास्तविक केन्द्रक ( true nucleus ) होता है।

प्रश्न 4.
कैप्सिड क्या है ? यह किस पदार्थ का बना होता है ?
उत्तर:
विषाणु का बाह्य आवरण कैप्सिड कहलाता है। यह प्रोटीन इकाइयों कैप्सोमीयर्स का बना होता है।

प्रश्न 5.
किसी आंशिक परजीवी पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
चन्दन (Santalum ) ।

प्रश्न 6.
जन्तुओं में किस प्रकार का पोषण पाया जाता है ?
उत्तर:
जन्तुसम या होलोजोइक (holozoic)।

प्रश्न 7.
प्रिओन्स क्या हैं ?
उत्तर:
संक्रामक प्रोटीन्स (infectious proteins)।

प्रश्न 8.
गेहूँ का काला किट्ट रोग का कारक क्या है ?
उत्तर:
पक्सीनिया प्रेमिनिस ट्रिटिसाई (Puccinia graminis tritici) कवक ।

प्रश्न 9.
दो खाद्य कवकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मोर्केला (Morchella), एगेरिकस (Agaricus) ।

प्रश्न 10.
उस कवक का नाम लिखिए जिसका जैवरासायनिकी तथा आनुवंशिकी में व्यापक प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर:
न्यूरोस्पोरा ((Neurospora ) ।

प्रश्न 11.
दो चल अथवा अचल युग्मकों के प्रोटोप्लाज्म के संलयन को. क्या कहते हैं ?
उत्तर:
प्लाज्मोगेमी (Plasmogamy)।

प्रश्न 12.
पैनीसिलियम से कौन-सा प्रतिजैविक प्राप्त होता है ?
उत्तर:
पैनिसिलीन (penicillin)

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प्रश्न 13.
एनाबीना तथा नोस्टोक किस रचना की सहायता से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं ?
उत्तर:
हिटरोसिस्ट द्वारा (by heterocyst)।

प्रश्न 14.
मटरकुल के पौधों की जड़ों में कौन-सा जीवाणु पाया जाता
उत्तर:
राइजोबियम (Rhizobium)।

प्रश्न 15.
डायनोफ्लैजिलेट किस समूह का जीव
उत्तर:
जगत – प्रोटिस्टा (protista) का ।

प्रश्न 16.
उस जीव का नाम बताइए जिसमें जन्तु तथा पादप दोनों के लक्षण होते हैं।
उत्तर:
युग्लीना (Euglena)

प्रश्न 17.
निद्रालु रोग किसके द्वारा होता है ?
उत्तर:
ट्रिपेनोसोमा (Trypanosoma) द्वारा।

प्रश्न 18.
दो लाभदायक तथा दो हानिकारक कवकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लाभदायक कवक –
(i) मोर्केला,
(ii) यीस्ट । हानिकारक
कवक –
(i) पक्सीनिया,
(ii) एल्ब्यूगो ।

प्रश्न 19.
ट्रिपेनोसोमा (Trypanosoma) का कौन-सा अवलोकनीय लक्षण आपको इसे प्रोटिस्टा में वर्गीकृत करने के लिए कहता है ?
उत्तर:
ट्रिपेनोसोमा एक यूकैरियोटिक तथा एककोशिकीय जीव है। सभी यूकैरियोटिक एककोशिकीय जीवों को प्रोटिस्टा में वर्गीकृत किया गया है।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – 1

प्रश्न 1.
जन्तुओं को उपभोक्ता क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते। ये अपने भोजन के लिये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं । इसीलिए जन्तुओं को उपभोक्ता (consumers) कहते हैं।

प्रश्न 2.
कुछ कवकों को अपूर्ण कवक क्यों कहते हैं ? इन्हें किस समूह में रखा जाता है ?
उत्तर:
कुछ कवकों में कायिक तथा अलैंगिक अवस्था का ही पता लगा है। लैंगिक अवस्था को जीव की पूर्ण (perfect) अवस्था माना जाता है चूँकि इनमें लैंगिक अवस्था का ज्ञान नहीं है अतः इन्हें अपूर्ण कवक या फंजाई इम्परफैक्टाई कहते हैं और ये वर्ग ड्यूटेरोमाइसिटीज में रखे गये हैं।

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प्रश्न 3.
पादपों को उत्पादक क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
सभी हरे पौधे स्वपोषी होते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। साथ ही धरा के अन्य सभी जीवधारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से इन्हीं हरे पौधों से भोजन प्राप्त करते हैं। इसीलिए इन्हें उत्पादक (producers) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पादपों के दो विषाणु रोगों तथा दो जीवाणु रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पादपों के विषाणु रोग –

  • बैंगन का लघु पर्ण रोग
  • टमाटर का पर्ण बेल्लन रोग ।

प्रश्न 5.
खेती में फसल सुधार हेतु सानोबैक्टीरिया के प्रयोग का क्या
उत्तर:
साएनोबैक्टीरिया जैसे नास्टॉक एनाबीना की हेटेरोसिस्ट में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता होती है। खेत में लगे हरे पौधे स्वयं ऐसा नहीं कर पाते। अतः इनके प्रयोग में नाइट्रोजन की आपूर्ति हो जाने के कारण उत्पादन बढ़ जाता है

प्रश्न 6.
डायटम्स को समुद्र के मोती (Pearls of ocean) कहा जाता है, क्यों ? डायटोमेसियस का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
डायटम्स की कोशिका भित्ति सेल्यूलोज के साथ सिलिका की उपस्थिति के कारण दृढ़ होती है। इसकी बाह्य सतह पर अत्याधिक सुन्दर डिजाइन व पैटर्न बने होते हैं। सिलिका के कारण इनकी भित्ति समय के साथ खराब नहीं होती तथा सूक्ष्मदर्शी से देखने पर यह डिजाइन आकर्षक दिखाई देते हैं। इसी कारण इन्हें समुद्र का मोती कहा जाता है। सिलिका इन्हें नष्ट होने से बचाती है। इस प्रकार मृत डायटम्स अपने परिवेश में कोशिका भित्ति के असंख्य अवशेष छोड़ जाते हैं। लाखों में जमा हुए इस अवशेष को डायटोसयिस (diatomaceous) कहा जाता है।

प्रश्न 7.
किसी प्रोटोजोआन प्राणी का नामांकित रेखाचित्र खींचिए ।
उत्तर:
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प्रश्न 8.
किसी ऐसे जीव का नाम लिखिये जिसमें पौधों एवं जन्तुओं दोनों के लक्षण पाये जाते हैं ? एक-एक लक्षण लिखिए।
उत्तर:
युग्लीना (Euglena)। इसमें पौधों व जन्तुओं दोनों के लक्षण पाये जाते हैं। हरितलवक की उपस्थिति पादप लक्षण है तथा सूक्ष्म कीटों का भक्षण, कोशिका भित्ति का अभाव जन्तु लक्षण है।

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(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
जीवाणु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 2

प्रश्न 2.
माइकोप्लाज्मा क्या है ?
उत्तर:
माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) ये बहुआकृतिक (polymorphic), प्रोकैरियोटिक, सूक्ष्मदर्शीय, कोशिका भित्ति रहित जीव है। यह सबसे छोटी कोशिका है। इनका आकार 0.1 से 0.54 होता है माइकोप्लाज्मा कोशिका के चारों ओर लाइपोप्रोटीन से बनी कोशिका कला पायी जाती है। कोशिका द्रव्य में कलाबद्ध कोशिकांगों का अभाव होता है।

इनमें आद्य केन्द्रक (incipient nucleus) पाया जाता है। यह पशुओं में निमोनिया रोग उत्पन्न करता है। मनुष्य में यह तन्त्रिकीय रोग, श्वसन रोग तथा मूत्रल रोग उत्पन्न करता है । माइकोप्लाज्मा को प्लूरो निमोनिया लाइक ऑर्गेनिज्म (Pleuro Pneumonia Like Organism; PPLO) भी कहते हैं ।

प्रश्न 3.
जीवाणुओं की दो लाभदायक तथा दो हानिकारक अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
लाभदायक क्रियाएँ –

  • जीवाणुओं का प्रयोग दूध से दही बनाने में किया जाता है, जैसे- लैक्टोबैसीलस।
  • कुछ जीवाणु भूमि की उर्वरता बढ़ाते हैं । जैसे-एजोटोबैक्टर।

हानिकारक क्रियाएँ –

  • अनेक जीवाणु खाद्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं। जैसे–क्लॉस्ट्रीडियम ।
  • अनेक जीवाणु मवेशियों एवं मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे – क्षय रोग – माइकोबैक्टीरियम ।

प्रश्न 4.
जगत् प्रोटिस्टा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए तथा इसके कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर:
प्रोटिस्टा की विशेषताएँ (Characteristics of Protista) –

  • ये एककोशिकीय तथा सुकेन्द्रकीय जीव होते हैं ।
  • अधिकांश सदस्य जलीय, परन्तु कुछ स्थलीय, नम आवासों में पाये जाते हैं। कुछ सदस्य परजीवी होते हैं।
  • अधिकांश सदस्य प्रकाश-संश्लेषी होते हैं, कुछ सदस्य परजीवी भी होते हैं।
  • कोशिकाओं में संगठित केन्द्रक एवं कलाबद्ध कोशिकांग (membrane bounded cell organelles) पाये जाते हैं।
  • कुछ सदस्यों में कशाभ (flagella ), पक्ष्माभ (cilia ) या कूटपाद ( pseudopodia) पाये जाते हैं जो प्रचलन एवं पोषण में सहायक होते हैं
  • ये अलैंगिक या लैंगिक प्रजनन करते हैं।

    उदाहरण:
    डाएटम्स (Diatoms), डेस्मिड्स ( Dasmids), युग्लीना (Euglena), अमीबा (Amoeba), पैरामीशियम (Paramaecium) आदि।

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प्रश्न 5.
मोनेरा जगत के प्रमुख लक्षण तथा कुछ उदाहरण लिखिए । उत्तर – मोनेरा जगत् के प्रमुख लक्षण (Characteristic features of kingdom Monera)

  • ये सूक्ष्मदर्शीय (microscopic ), सामान्यतया एककोशिकीय जीव होते हैं, परन्तु कुछ सदस्य कोशिकाओं के आपस में जुड़ जाने के कारण बहुकोशिकीय होते हैं।
  • इनकी कोशिका में सुसंगठित ( well organised) केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात् केन्द्रक कला एवं केन्द्रिका अनुपस्थित होते हैं। अतः ये प्रोकैरियोटिक (prokaryotic) कहलाते हैं।
  • इनमें विकसित एवं कलाबद्ध कोशिकांग जैसे गॉल्जीकाय. माइटोकॉण्ड्रिया, अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic reticulum) आदि नहीं पाये जाते हैं।
  • कोशिकाभित्ति पायी जाती है, परन्तु इसमें सेल्युलोस का अभाव होता
  • अधिकांश सदस्य विषमपोषी किन्तु कुछ स्वपोषी होते हैं। उदाहरण-जीवाणु (bacteria), आद्यबैक्टीरिया (Archaebacteria), सायनोबैक्टीरिया (नीले हरे शैवाल : Blue green algae)।

प्रश्न 6.
सायनोबैक्टीरिया क्या होते हैं ? किसी तन्तुमय सायनोबैक्टीरिया का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) – इन्हें नीले-हरे शैवाल (Blue-green algae) भी कहा जाता था। ये स्वपोषी, एककोशिकीय, निवही ( colonial) या तन्तुरूपी ( filamentous ), जलीय या स्थलीय शैवाल होते हैं। इन्हें जगत् मोनेरा में रखा गया है।
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उदाहरण:
नॉस्टोक (Nostoc), एनाबीना ( Anabaena) आदि ।

प्रश्न 7.
किसी पक्ष्माभी प्रोटोजोआ का नामांकित चित्र बनाइए तथा यह बताइए कि इस जीव में पक्ष्माभ क्या कार्य करते हैं ?
उत्तर:
पक्ष्माथ के कार्य –
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  • इनकी लयबद्ध गति से प्रचलन होता है।
  • इनकी गति से भोजन कण कोशिका मुख में खींचे जाते हैं।
  • इनके द्वारा लैंगिक कोशिकाएँ आपस में चिपकती हैं।

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प्रश्न 8.
जीवाणु कोशिका किस प्रकार विभाजित होती है ? चित्र बनाकर समझाइए।
उत्तर:
जीवाणु कोशिका में द्विखण्डन (Binary fission in bacterial cell) – अनुकूल वातावरणीय दशाओं में जीवाणु कोशिका एक अनुप्रस्थ भित्ति (transverse wall) द्वारा दो संतति कोशिकाओं में (daughter cells) विभाजित हो जाती है। इस क्रिया को द्विखण्डन (binary fissions) कहते हैं। विखण्डन से पूर्व जीवाणु कोशिका लम्बाई में वृद्धि करती है। कोशिका का केन्द्रक एवं अन्तर्वस्तुएँ दो भागों में बँटने लगते हैं। इसके पश्चात् कोशिका के मध्य संकीर्णन (Constriction) होता है जो धीरे-धीरे गहरा प्रारम्भ होकर मातृ कोशिका को दो संतति कोशिकाओं में बाँट देता है।
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प्रश्न 9.
पोषण के आधार पर जीवाणुओं का वर्गीकरण कीजिये।
जीवाणु कोशिका द्विखण्डन (Binary Fission )
उत्तर:
पोषण के आधार पर जीवाणु दो प्रकार के होते हैं –
I. स्वपोषी जीवाणु, तथा II. परपोषी जीवाणु।

  • स्वपोषी जीवाणु (Autotrophic Bacteria) – ये अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं-
  • प्रकाश संश्लेषी जीवाणु (Photosynthetic bacteria) – इनमें विभिन्न वर्णक पाये जाते हैं जो प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके भोजन बनाते है; जैसे – क्लोरोबियम।
  • रसायन संश्लेषी जीवाणु ( Chemosynthetic bacteria) – ये विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं । जैसे-बैगिआटोआ।

II. विषमपोषी जीवाणु (Heterotrophic Bacteria) – ये निम्न प्रकार के होते हैं-

  • परजीवी जीवाणु (Parasitic bacteria) – ये दूसरे जीवों से भोजन प्राप्त करते हैं और परजीवी कहलाते हैं। जैसे-माइकोबैक्टीरियम।
  • मृतोपजीवी जीवाणु (Saprobiotic bacteria) – ये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे-बैसिलस माइकोइडिस।
  • सहजीवी जीवाणु (Symbiotic bacteria) – ये उच्च पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध बनाते हैं। जैसे-राइजोबियम।

प्रश्न 10.
सहजीवन किसे कहते हैं ? एक उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
सहजीवन (Symbiosis) – सहजीवन दो विभिन्न जीवधारियों का ऐसा सम्बन्ध है जिसमें दोनों जीवधारी एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं।
उदाहरण:
लैग्युमिनोसी कुल (मटर कुल) के पौधों की जड़ों में मूल गुलिकाएँ (Root nodules) पायी जाती हैं। इन गुलिकाओं में राइजोबियम लैग्युमिनोसेरम (Rhizobium leguminoserum) नामक जीवाणु पाये जाते हैं। पौधा इन जीवाणुओं को आश्रय एवं भोजन उपलब्ध कराता है, जबकि जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके पौधे को नाइट्रोजनी पदार्थ उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार ये एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं।

प्रश्न 11.
डायनोफ्लैजिलेट्स क्या होते हैं ?
उत्तर:
डायनोफ्लैजिलेट्स ( Dianoflagellates ) – ये मुख्यतः समुद्री और प्रकाश संश्लेषी प्रोटिस्ट होते हैं। ये एककोशिकीय तथा प्रौकेरियोटिक संरचना वाले जीव होते हैं। वर्णकों की उपस्थिति के आधार पर ये पीले, हरे, भूरे, नीले या लाल दिखाई देते हैं। इनकी कोशिका भित्ति पर सेल्युलोस की कठोर पट्टियाँ पायी जाती हैं। अधिकांश डायनोफ्लैजिलेट्स में दो कशाभिकाएँ होती हैं जो एक-दूसरे के लम्बवत् होती हैं। उदाहरण-गोनियालैक्स।

प्रश्न 12.
कक्कों के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
कवकों के लक्षण (Characteristics of Fungi)

  • कवक सर्वव्यापी हैं जो जल, स्थल एवं वायु में पाये जाते हैं।
  • कवकों का शरीर (थैलस) शाखित एवं तन्तुमय कवक-तन्तुओं (hyphae) से बना होता है। कवक तन्तुओं की सघन वृद्धि से एक जाल जैसी रचना बनती है जिसे कवक जाल (mycelium) कहते हैं।
  • इनमें कोशिकाभित्ति सेल्युलोस एवं काइटिन की बनी होती हैं।
  • इनमें पर्णहरिम (chlorophyll) का अभाव होता है ।
  • कवक परजीवी (parasite) या मृतोपजीवी (saprophyte) होते हैं।
  • कोशिकीय संरचना यूकैरियोटिक होती है।
  • संग्रहीत भोजन ग्लाइकोजन ( glycogen) होता है।
  • प्रजनन, वर्धी, अलिंगी एवं लिंगी विधियों से होता है।

उदाहरण:
यीस्ट (Yeast), छत्रक (मशरूम), कुकुरमुत्ता (टोडस्टूल ) पैनीसिलियम, पक्सीनिया आदि ।

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प्रश्न 13.
फाइकोमाइसिटीज वर्ग के कवकों के लक्षण लिखिए। म्यूकर के कवक जाल का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
फाइकोमाइसिटीज वर्ग के लक्षण-

  • ये कवक जलीय आवासों, सड़ी-गली लकड़ी, नम तथा सीलन वाले स्थानों अथवा पौधों पर अविकल्पी परजीवी के रूप में पाये जाते हैं।
  • कवक जाल पट्टरहित ( aseptate) तथा बहुकेन्द्रकी (multinucleate) होता है ।
  • अलैंगिक जनन चल बीजाणु (zoospores) बीजाणु या अचल (Aplanospores) द्वारा होता है। इनका निर्माण अन्तर्जातीय (endo- genous) होता है।
  • दो युग्मकों (gametes) के संलयन से युग्माणु (zygospore) बनते
  • युग्मकी आकारिकी समयुग्मकी, असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी हो सकती हैं।
  • उदाहरण-म्यूकर (Mucor), राइजोपस (Rhizopus)।

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प्रश्न 14.
ऐस्कोमाइसिटीज वर्ग के सदस्यों के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
ऐस्कोमाइसिटीज के प्रमुख लक्षण characteristics of Ascomyates):

  • इन्हें थैली या सैक (sac) कवक भी कहते हैं।
  • अधिकांश सदस्य स्थलीय किन्तु कुछ जलीय होते हैं।
  • ये मृतजीवी, अपघटक, परजीवी (caprophilous) होते हैं। (Important) अथवा शंमलरागी हैं।
  • यीस्ट (एककोशिकीय) को छोड़कर सभी सदस्य बहुकोशिकीय कवक जाल बनाते हैं।
  • कवक जाल पटयुक्त होते हैं। प्रायः एक कोशिका में केवल एक केन्द्रक पाया जाता है।
  • कोशिका भित्तिकाइटिन की बनी होती है। इसमें सेल्युलोस भी पाया जाता है।
  • वर्धी, अलैंगिक तथा लैंगिक प्रजनन होता है।
  • अलैंगिक प्रजनन कोनीडिया, क्लेमाइडोस्पोर या ओइडिया द्वारा होता है।
  • लैंगिक जनन युग्मक धानियों के सम्पर्क ( gametangial contact) द्वारा होता है।
  • फलन काय (fruting body) एस्कस (ascus) कहलाते हैं जिनमें एस्कोस्पोर बनते हैं।

उदाहरण:
यीस्ट (Saccharonysis), पैनीसिलियम (penicillium). एस्परजिलस ((Aspergillus ) आदि ।

प्रश्न 15.
शैवाल और कवक में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
शैवाल तथा कवक में अन्तर (Differences between Algae and Fungi)

शैवाल (Algae)कवक (Fungi)
ये पर्णहरिम युक्त होते हैं।ये पर्णहरिम रहित होते हैं।
ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। अतः स्वपोषी हैं।ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते। अतः ये विषमपोषी न अवशोषी (heterotrophic and absorptive) हैं।
कोशिका भित्ति सैल्युलोज (cellulose) की बनी होती है।कोशिका भित्ति कवक काइटिन (chitin) की बनी होती है।
भोजन मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है।भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है।
जल या गीली भूमि पर पाये जाते हैं।ये सड़े-गले पदार्थों अथवा जीवित जीवों पर पाये जाते हैं।

प्रश्न 16.
लाइकेन क्या है ? इनके प्रकारों को उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
लाइकेन (Lichen ) – लाइकेन कवक तथा शैवाल का सहजीवी संगठन है। इनमें कवक तथा शैवाल साथ-साथ रहकर एक विशिष्ट पादप संरचना बनाते हैं। कवकांश (mycobiont) लाइकेन को जल व खनिज उपलब्ध कराता है, जबकि शैवालांश (phycobiont) लाइकेन को भोजन उपलब्ध कराता है।

लाइकेन के प्रकार-ये दो प्रकार के होते हैं –

  • ऐस्कोलाइकेन (Ascolichens) – इनमें कवकांश (mycobiont ) ऐस्कोमाइसिटीज वर्ग के सदस्य होते हैं। जैसे-पारमेलिया।
  • बैसीडियोलाइकेन कवकांश (mycobiont) – बैसीडियोमाइसिटीज वर्ग के सदस्य होते हैं। जैसे-कोरेला ।

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प्रश्न 17.
ह्रीटेकर ने जीवों को कौन-कौन से जगतों में बाँटा ? इनके वर्गीकरण के प्रमुख मानदण्ड क्या थे ?
उत्तर:
ह्रीटेकर ने जीवधारियों को पाँच जगतों में बाँटा-

  • मोनेरा (Monera)
  • प्रोटिस्टा (Protista)
  • फंजाई (Fungi)
  • प्लांटी (Plantae)
  • एनीमेलिया ( Anemalia)

ह्रीटेकर द्वारा अपनाये गये मानदण्ड निम्न प्रकार हैं-

  • कोशिका संरचना
  • शारीरिक संगठन
  • कोशिका भित्ति
  • पोषण विधि
  • प्रचलन
  • पारिस्थितिक भूमिका
  • प्रजनन तथा
  • जातिवृत्तीय सम्बन्ध

प्रश्न 18.
क्लासीकल टैक्सोनॉमी तथा मॉर्डन टैक्सोनोमी में भेद कीजिये।
उत्तर:
‘पुराना वर्गीकरण एवं आधुनिक वर्गीकरण में भेद (Differences between classical classification and modern classification)

पुराना वर्गीकरण (Classical Classification)आधुनिक वर्गीकरण (Modern Classification)
एक जाति की व्याख्या करने के लिये उस जाति के एक या कुछ जीवों का अध्ययन किया गया।अनगिनत जीवधारियों का अध्ययन किया गया।
यह उपजातियों पर अधिक प्रकाश नहीं डालता है।यह विभिन्न जनसंख्याओं, विभिन्न प्रकारों, उपजातियों आदि का अध्ययन करता है।
जातियों का स्थिरीकरण केवल बाह्य आकारिकीय लक्षणों पर आधारित होता है।यह जातियों का स्थिरीकरण करने के लिये अध्ययन के सभी क्षेत्रों से सूचनाएँ एकत्र करता है।
जाति अचल या स्थिर एन्टिटी जानी जाती है।जाति उद्विकास का उत्पाद मानी जाती है।

प्रश्न 19.
विषाणु तथा जीवाणु में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
विषाणु तथा जीवाणु में अन्तर (Differences between Virus and Bacteria)

विषाणु (Virus)जीवाणु (Bacteria)
ये प्राय: 10 से 300 μ आकार के होते हैं।ये प्राय 2 μ से 10 μ आकार के होते हैं।
इनमें सजीव तथा निर्जीव के लक्षण होते हैं।ये सजीवों के लक्षण दर्शाते हैं।
इनमें कोशिकीय संरचना नहीं होती है।इनमें कोशिकीय संरचना होती है।
इनमें जीवद्रव्य एवं अन्य कोशिकांग नहीं होते हैं।इनमें जीवद्रव्य एवं अन्य कोशिकांग होते हैं।
इनमें आनुवंशिक पदार्थ DNA या RNA होता है।इनमें DNA तथा RNA दोनों होते हैं।
ये सदैव रोगकारी होते हैं।ये लाभदायक व हानिकारक दोनों होते हैं।
ये केवल जीवित कोशिका में ही सक्रिय रहते हैं।ये स्वतन्त्रजीवी, परजीवी या मृतोपजीवी होते हैं।

(E) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (निबन्धात्मक प्रश्न)

प्रश्न 1.
पाँच जगत् वर्गीकरण के गुणों एवं कमियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
पाँच जगत् वर्गीकरण के गुण (Merits of Five Kingdom System):
द्विजगत वर्गीकरण में प्रोकैरियोटिक जीवाणुओं को यूकैरियोटिक पादपों के साथ ही रखा गया था। साथ ही विषमपोषी, अवशोषी (heterotrophic absorptive) कवकों को स्वपोषी पादपों के साथ रखा गया था। एक कोशिकीय तथा बहुकोशिकीय जीवों को एक साथ या तो जन्तु जगत या पादपं जगत में रखा गया था। इन सभी कमियों को ह्विटेकर का पाँच जगत वर्गीकरण दूर करता है। इसमें जातिवृत्तीयता ( phylogeny ) भी परिलक्षित होती है। यूग्लीना जैसे जीवों की स्थिति भी विवादास्पद है।

  • इस वर्गीकरण में प्रोकैरियोट्स को अलग जगत् मोनेरा में रखा गया है, क्योंकि ये यूकैरियोटिक से, संरचना, कार्यिकी तथा प्रजनन विधियों में भिन्न होते हैं। इस प्रकार यह द्विजगत वर्गीकरण की इस कमी को समाप्त कर देता है।
  • यह वर्गीकरण अंग संगठन के स्तरों एवं पोषण की विधि पर आधारित है और बाद में उद्विकास के दौरान जल्दी स्थापित हो जाता है।
  • यह जैविक संसार में जातिवृत्तीयता (phylogeny ) स्थापित करता है।
  • अधिकांश यूकैरियोटिक एककोशिकीय जीवों को बहुकोशिकीय जीवों से पृथक् करके जगत् प्रोटिस्टा में रखा गया है।
  • कवकों को पादप जगत् से पृथक् करके नये जगत् फंजाई (fungi) में रखा गया है।

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पाँच जगत् वर्गीकरण की कमियाँ या दोष (Demerits of Five Kingdom System):

  • मोनेरा तथा प्रोटिस्टा जगतों में स्वपोषी तथा परपोषी दोनों प्रकार के जीवधारियों को सम्मिलित किया गया है।
  • निम्न कोटि के जीवधारियों में जातिवृत्तीय सम्बन्ध स्पष्ट नहीं होता है। 3. एक समान लक्षणों वाले अनेक जीवधारी समूह विभिन्न जगतों में शामिल हुए हैं। जैसे-एक कोशिकीय शैवाल प्रोटिस्टा में और बहुकोशिकीय शैवालों को प्लान्टी जगत् में रखा गया है।
  • प्रोस्टिस्टा जगत् में बहुत अधिक विविधता होने के कारण यह एक स्वाभाविक समूह न होकर कृत्रिम प्रतीत होता है।
  • एककोशिकीय कवक (Yeast) को बहुकोशिकीय परपोषी – अवशोषी कवक जगत् में रखा गया है।
  • लाइकेन (Lichens) को कहीं वर्गीकृत नहीं किया गया है।
  • आधुनिक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि प्रोकैरियोट आर्किया, यूकैरियोट्स के अधिक निकट हैं न कि वैक्टीरिया के।

प्रश्न 2.
आकार एवं कशाभिकाओं के आधार पर जीवाणुओं के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
आकार के आधार पर कोहन (Cohn ) ने जीवाणुओं को निम्न प्रकारों में बाँटा –
1. कोकस या गोलाणु ( Spherical or coccus) ये गोलाकार या दीर्घवृत्तीय जीवाणु होते हैं। ये शूक रहित (atrichrous) रहित तथा अचल होते हैं, ये निम्न प्रकार के होते हैं।
(a) डिप्लोकोकस (Diplococcus) – जब कोकस जोड़े में पाये जाते हैं। तो डिप्लोकोकस कहलाते हैं। जैसे- डिप्लोकोकस निमोनी।
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(b) स्रैप्टोकोकस (Streptococcus) – जब कोकस एक-दूसरे से जुडकर एक लड़ी जैसी रचना बनाते हैं, स्ट्रेप्टोकोकस कहलाते हैं। जैसे-स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस।

(c) टैट्टाकोकस (Tetracoccus)-जब कोकस चार-चार के समूह में पाये जाते हैं तो टेट्राकोकाई कहलाते हैं। जैसे-नीसेरिया।

(d) स्टैफाइलोकोकस (Staphylococcus)- जब कोकस गुच्छे के रूप में पाये जाते हैं, स्टैफाइलोकोकस कहलाते हैं। जैसे-स्टैफाइलोकोकस।

(e) सासनी (Sarcinae ) – जब कोकस घनाभ के रूप में होते हैं। जैसे- सार्सीना।

2. बैसीलस (Bacillus ) – ये जीवाणु छड़नुमा, बेलनाकार तथा चल होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) डिप्लोबैसीलस (Diplob – acillus ) – जब बैसीलस जोड़े में पाये जाते हैं, डिप्लोबैसीलस कहलाते हैं। जैसे- कोरीनेबैक्टीरियम डिफ्थीरी।
(b) स्ट्रेप्टोबैसीलस (Streptobacillus ) – जब बैसीलस एक लड़ी के रूप में पाये जाते हैं, स्ट्रेप्टोबैसीलस कहलाते हैं। जैसे-स्ट्रेप्टोबैसीलस।

3. कुण्डलित या सर्पिल जीवाणु (Helical or Spiral Bacteria) – ये जीवाणु कुण्डलित या सर्पिलाकार होते हैं। जैसे-विब्रियो, स्पाइरिलम आदि। कशाभिकाओं के आधार पर जीवाणु निम्न प्रकार के होते हैं-

  • अशूकी (Atrichous) – ये कशाभिक रहित एवं अचल होते हैं। जैसे- लैक्टोबैसीलस।
  • मोनोट्राइकस (Monotrichous) – इनमें केवल एक सिरे पर केवल एक ही कशाभिका होती है। जैसे-बिब्रियो कॉलेरी।
  • एम्फीट्राइकस (Amphitrichous ) – जब जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर कम-से-कम एक कशाभिका अवश्य होती है। जैसे-नाइट्रोसोमोनास।
  • लोफोट्राइकस या सिफेलोट्राइकस (Lophotrichous or Cephalotrichous)-इन जीवाणुओं के एक सिरे पर अनेक कशाभिकाओं का गुच्छा होता है। जैसे-स्यूडोमोनास ।
  • पेरीट्राइकस (Peritrichous)-इनमें जीवाणु की सम्पूर्ण सतह पर कशाभिकाएँ पायी जाती हैं। जैसे-बैसीलस टाइफोसस।

प्रश्न 3.
जीवाणुभोजी की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जीवाणुभोजी (Bacteriophage)-ऐसे विषाणु जो जीवाणुओं के ऊपर परजीवी होते हैं, जीवाणुभोजी कहलाते हैं। एफ. ट्आर्ट (F. Twart 1915) तथा एफ. डी. हेरेल (F. D. Herelle 1917) ने जीवाणुभोजी की खोज की थी। जीवाणुभोजी की आकृति टेडपोल (tadpole) के समान होती है जो सिर (head), प्रीवा (neck) तथा पूँछ ( Tail) में विभक्त होता है।

सिर बहुभुजी 90-95 mu लम्बा तथा 60-65 mu चौड़ा होता है। पूँछ बेलनाकार लगभग 100mpa लम्बी तथा 20-25 mu चौड़ी होती है। सिर एवं पूँछ के बीच बहुत छोटी ग्रीवा (neck) होती है। सिर का खोल प्रोटीन का बना होता है जिसमें DNA का एक केन्द्रीय कोड ( central code) होता है।

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पूँछ के अन्तिम भाग में एक प्लेट होती है जिसे पुच्छ प्लेट या आधार प्लेट (basal plate) कहते हैं । इस प्लेट से नीचे की ओर छः पुच्छ-तन्तु जुड़े होते हैं। पुच्छ तन्तु जीवाणुभोजी को पोषक कोशिका से चिपकाने तथा लयनकारी विकरों (Lytic enzymes ) के त्रावण में भाग लेते हैं।
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प्रश्न 4.
कवकों में लैंगिक जनन किस प्रकार होता है ? सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
कवकों में लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction in Fungi) – कवकों में लैंगिक प्रजनन निम्न पदों में पूर्ण होता है –
(A) कोशिका द्रव्य संलयन (Plasmogamy) – इसमें विपरीत विभेद (strain) के युग्मकों या जनन संरचनाओं का कोशिका द्रव्य परस्पर संलयित (fuse) होता है।
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(B) केन्द्रक संलयन (Karyogamy) – इसमें कोशिकाद्रव्य संलयन द्वारा समीप लाये गये केन्द्रक मिलकर द्विगुणित युग्मनज ( diploid zygote) बनाते हैं।

(C) अर्द्धसूत्रण (Meiosis) – इसमें युग्मनज में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है जिससे अगुणित अवस्था स्थापित होती है।

कवकों में लैंगिक प्रजनन निम्नलिखित प्रकार से होता है –
(A) चलयुग्मकी संयुग्मन (Planogametic Conjugation) – इसमें चल युग्मकों का संयोजन (fusion) होता है। चलयुग्मकों की संरचना एवं कार्यिकी के आधार पर संयुग्मन तीन प्रकार का होता है –
(i) समयुग्मकी ( Isogamous ) – इसमें संयुजन करने वाले युग्मक आकार एवं आकृति में समान किन्तु कार्यिकी में भिन्न होते हैं जैसे – सिनकाइट्रियम (Synchytrium) में।
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(ii) असमयुग्मकी (Anisogamous) – इसमें संयुजन करने वाले युग्मक आकृति में समान किन्तु आकार एवं कार्यिकी में भिन्न होते हैं । जैसे- एलोमाइसिस (Allomyces) ।

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(iii) विषमयुग्मकी (Oogamous) – इसमें युग्मक, आकृति, आकार एवं कार्यिकी में भिन्न होते हैं। नर युग्मक छोटा व चल तथा मादा युग्मक बड़ा तथा अचल होता है। जैसे – मोनोब्लीफेरस (Monoblepharis)

(B) युग्मकधानीय सम्पर्क ( Gametangial contact ) – इसमें नर युग्मकधानी से नर युग्मक सीधे ही मादा युग्मकधानी में चला जाता है, जैसे – सिस्टोपस (Cystopus) ।

(C) युग्मकधानीय संयुग्मन ( Gametangial conjugation) – इसमें युग्मकधानी के युग्मकों का सम्पूर्ण रूप से संयोजन होता है। जैसे—म्यूकर (Mucor), राइजोपस (Rhizopus)।
तथा

(D) काययुग्मन (Somatogamy) – ऐस्कोमाइसिटीज बैसडरोमाइसिटीज वर्ग के सदस्यों में लैंगिक जनन सामान्य कोशिकाओं के केन्द्रकों से संयोजन से होता है। इसे काय युग्मन (sematogamy) कहते हैं।

(E) अचल पुमणु युग्मन ( Spermatization ) – एस्कोमाइसिटीज तथा बेसीडियोमाइसिटीज वर्ग के सदस्यों में नर जननांग से अचल पुमणु बनते हैं जो ग्राही सूत्र (receptive hyphae) द्वारा मादा युग्मकधानी के सम्पर्क में आते हैं। इसे अचल पुमणु युग्मन (spermatization) कहते हैं। जैसे- पक्सीनिया (Puccinia) |

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