Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Karak-Parichayah कारक-परिचयः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

कारक ज्ञान :

क्रिया के सम्पादन में जिन शब्दों का प्रयोग होता है वे कारक कहलाते हैं। “क्रिया जनकं” अथवा क्रियां करोति इति कारकम्। इसी प्रकार ‘क्रियान्वयि कारकम्’ अर्थात् क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो उसे कारक कहते हैं। जिसका क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं हो वे कारक नहीं माने जाते। संस्कृत में कारक छः हैं कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण। इन छ: कारकों का क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध रहता है जैसे-‘राजा ने हरिद्वार’ में यश पाने के लिए अपने हाथ से रुपये ब्राह्मणों को दान दिए। इस वाक्य में दान क्रिया को सम्पादन करने में जिन शब्दों का प्रयोग हुआ है वे सभी कारक हैं।

1. यहाँ दान (क्रिया) करने वाला राजा है – अतः राजा कारक हुआ।
2. दान का स्थान हरिद्वार है – अतः हरिद्वार कारक हुआ।
3. दान लेने वाला ब्राह्मण है – अतः ब्राह्मण कारक हुआ।
4. क्रिया हाथ से हुई – अतः हाथ कारक हुआ
5. रुपए दिए गए – अतः रुपए कारक हुआ।
6. दान का प्रयोजन यश प्राप्ति है – अत: यश कारक हुआ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

इस प्रकार क्रिया को पूरा करने में छ: सम्बन्ध स्थापित होते हैं जिन्हें कारक कहा जाता है और उन्हीं कारकों के चिहनों (प्रत्यय) को विभक्ति कहते हैं। जैसे –

  1. कर्ता कारक – प्रथमा विभक्ति-ने अर्थ में।
  2. कर्म कारक – द्वितीया विभक्ति-को अर्थ में।
  3. करण कारक – तृतीया विभक्ति-से, के, द्वारा अर्थ में। (with)
  4. सम्प्रदान कारक – चतुर्थी विभक्ति-के, लिए अर्थ में।
  5. अपादान कारक – पंचमी विभक्ति-से (अलग होना अर्थ में) (From)
  6. अधिकरण – सप्तमी विभक्ति में, पर, अर्थ में।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिसका क्रिया के निर्माण में कोई सम्बन्ध नहीं है, वह कारक नहीं होता।

उपर्युक्त सूची में सम्बन्ध कारक अर्थात् षष्ठी विभक्ति को कारक नहीं माना गया है क्योंकि उसका क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता। जैसे-‘राज्ञः पुरुषः गच्छति।’ इस वाक्य में राजा का जाना क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है। राजा के होने या न होने से क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यहाँ ‘राजा’ सम्बन्ध कारक नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी षष्ठी को कारक नहीं माना जाता है। परन्तु, सम्बन्ध अर्थ को बताने वाली षष्ठी विभक्ति का, के, की, के अतिरिक्त कुछ विशेष अर्थों (संख्या आदि) में भी प्रयुक्त होती है। अतः उसे दिखाने के लिए षष्ठी विभक्ति का भी कारक प्रकरण में विवेचन किया जाता है।

कारक और उपपद विभक्ति में भेद इस प्रकार जिस शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है उसे कारक विभक्ति कहते हैं और क्रिया से भिन्न नमः, स्वस्ति, सह, विना इत्यादि कुछ अव्यय शब्दों एवं पद विशेष के योग में जो विभक्ति होती है उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे-‘रामः पुस्तकं पठति’ कारक विभक्ति है और ‘सीता रामेण सह गच्छति’ में ‘रामेण’ उपपद विभक्ति है क्योंकि रामेण में ततीया गमन क्रिया के कारण नहीं हई किन्त ‘सह’ के कारण हई है।

जहाँ कारक विभक्ति और उपपद विभक्ति दोनों की उपस्थिति हो वहाँ कारक विभक्ति ही होती है। जैसे ‘देवं नमस्करोति’ में नम: के योग में चतुर्थी उपपद विभक्ति भी प्रयुक्त है और नमस्करण क्रिया के योग में द्वितीया कारक विभक्ति भी प्रयुक्त है। किन्तु चतुर्थी के स्थान पर नियमानुसार द्वितीया ही होगी।

प्रथमा विभक्ति :

सूत्र-प्रादिपदिकार्थ-लिंग-परिमाण-वचनमात्रे प्रथमा

अर्थ – प्रातिपादिकार्थ (व्यक्ति और जाति-Crude form) मात्र में, लिंग (स्त्रीलिंग, पुंल्लिंग-नपुंसकलिंग) मात्र में, परिणाम (वचन) मात्र में, और वचन (संख्या) (एकत्व-द्वित्व-बहुत्व) मात्र में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण –
(क) प्रातिपदिकार्थ मात्र में उच्चैः, नीचैः, कृष्णः, श्रीः, ज्ञानम्।
(ख) लिंग मात्र में – तट: (पुंल्लिंग), तटी (स्त्रीलिंग), तटम् (नपुंसकलिंग)।
(ग) परिणाम मात्र में – द्रोणः ब्रीहिः। द्रोण-वजन जितना नपा-तुला हुआ धान। यहाँ द्रोण-किसी, आदि परिणाम का सूचक है।
(घ) वचन मात्र में – एक: (एकवचन), द्वौ (द्विवचन), बहवः (बहुवचन)।
सूचना – कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग वास्तव में प्रातिपदिकार्थ मात्र में होता है। जैसे-रामः पाठं पठति।
इसी प्रकार कर्तवाच्य के कर्म में भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग प्रातिपादक का अर्थमात्र कहने में होता है। जैसे-रामेण पाठः पठ्यते।

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प्रथमा विभक्ति-सम्बोधन

सूत्र-सम्बोधने च

अर्थ – सम्बोधन अर्थ में भी प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण – हे राम ! हे नदि ! हे ज्ञान ! यहां सम्बोधन अर्थ में ‘राम’ से प्रथमा विभक्ति हुई है।

द्वितीया विभक्ति-कर्मकारक

सूत्र-कर्तुरीप्सिततमं कर्म

अर्थ – किसी वाक्य में प्रयोग किए गए पदार्थों में जिसमें कर्ता सबसे अधिक चाहता है, उसे कर्म कहते हैं अर्थात् कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा विशेष रूप से जिसे प्राप्त करना चाहता है, उसे कर्म कहते हैं।

उदाहरण – देवदत्तः पयसा ओदनं खादति, देवदत्त दूध से भात खाता है, इस वाक्य में भात की तरह यद्यपि दूध भी कर्ता को प्रिय है, परन्तु कर्त्ता खादन क्रिया द्वारा भात (ओदन) को विशेष रूप में प्राप्त करना चाहता है, अत: ओदन अत्यन्त इष्ट होने से कर्म हुआ, दूध नहीं।

सूत्र-कर्मणि द्वितीया

अर्थ – अनुक्त कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। (कर्तृवाच्य में कर्म अनुक्त होता है, और कर्मवाच्य में उक्त।) कर्तृवाच्य में ही कर्म में द्वितीया होती है। उक्त (अभिहित) कर्म में तो प्रथमा होती है।

उदाहरण – कर्तृवाच्य कर्म (अनुक्त कर्म) में द्वितीया-हरिं भजति।
भजन क्रिया का कर्म हरि है अतः उसमें द्वितीया हुई है।
कर्मवाच्य कर्म में प्रथमा – हरिः सेव्यते, लक्ष्म्या हरिः सेवितः। यहाँ कर्म के अनुसार प्रत्यय (क्रिया) होने से कर्म उक्त है अत: यहाँ हरि में द्वितीया न होकर प्रथमा विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –

  1. छात्रः विद्यालयं गच्छति।
  2. क्षुधातः भोजनं भुंक्ते।
  3. परीक्षार्थी पुस्तकं पठति।
  4. अहं पत्रम् लिखामि।
  5. भक्तः भक्तिं लभते।
  6. पाचकः तण्डुलं पचति।
  7. भृत्यः भारं वहति।

नोट – उपर्युक्त उदाहरणों में स्थूलाक्षर कर्म हैं।

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सूत्र-अकथितं च

अर्थ – जिस कारक की अपादान, सम्प्रदान, करण या अधिकरण आदि विवक्षा न करना चाहे, उसका कर्म संज्ञा हो जाती है। भाव यह है कि अपादान आदि कारकों के स्थान पर उनकी विवक्षा न होने पर कर्मकारक का प्रयोग होता है। किन्तु यह नियम निम्नलिखित सोलह धातुओं या उनकी समानार्थक धातुओं में ही सम्भव है –

उदाहरण – क्रम से नीचे दिए जा रहे हैं –

1. गां दोग्धि पयः (गाय से दूध दुहता है) यहाँ गाय अपादान कारक (गोः) है, किन्तु उसकी विवक्षा न होने पर गाय में पंचमी न होकर द्वितीया हुई है।
2. बलिम् याचते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी मांगता है)-यहाँ बलि अपादान कारक (बलेः) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. तण्डुलान् ओदनं (क्षीरम्) पचति (चावलों से भात पकाता है)-यहाँ ताण्डुल करण कारक (ताण्डुलैः) है, उसकी अविवक्षा होने पर उसमें द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. गर्गान् शतं दण्डयति (गर्गों को सौ रुपए जुर्माना करता है)-यहाँ गर्गान् अपादान कारक (गर्गेभ्यः) है, अविवक्षा होने पर, कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
5. व्रजं अवरुणद्वि गाम् (व्रज (बाड़े) में गाय को रोकता है)-यहाँ व्रज अधिकरण कारक (व्रज) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई।
6. माणवकं (बालकम्) पन्थानं पृच्छति (लड़के से मार्ग पूछता है)-यहाँ ‘माणवक’ करण-कारक (माणवकेन) है, उसकी अविवक्षा हों पर कर्म संज्ञा होकर, द्वितीया विभक्ति हुई है।
7. वृक्षम् अवचिनोति (चिनोति) फलानि (वृक्ष से फलों को चुनता है)-यहाँ वृक्ष अपादान कारक (वृक्षात्) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हई है।
8. माणवकं (बालकम्) धर्मं ब्रूते (लड़के के लिए धर्म कहता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) है। उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
9. माणवकं धर्म शास्ति (लड़के के लिए धर्म की शिक्षा देता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) कारक है, उसके अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
10. शतं जयति देवदत्तम् (देवदत्त से सौ रुपए जीतता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
11. सुधां क्षीरनिधिं मनाति (अमृत के लिए समुद्र को मथता है)-यहाँ सुधा सम्प्रदान कारक (सुधायै) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
12. देवदत्तं शतं मुष्णाति (देवदत्त से सौ रुपए चुराता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
13. ग्रामं अजां नयति (गाँव में बकरी को ले जाता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
14. ग्रामं अजां हरति (गाँव में बकरी को हर कर ले जा रहा है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
15. ग्रामं अजां कर्षति (गाँव में बकरी को खींचता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
16. ग्रामं अजां वहति (ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।

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समानार्थक धातुओं के उदाहरण –

1. बलिं भिक्षते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी माँगता है) – यहाँ याच धातु की समानार्थक भिक्ष् धातु है। अतः बलि में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
2. माणवकं धर्मं भाषते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ब्रू धातु की समानार्थक भाष् धातु है। अत: माणवक में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. माणवकं धर्मं अभिधत्ते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ की समानार्थक अभि + धा धातु है। अतः माणवक में अपादान की विवक्षा न होने से द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. माणवकं धर्मं वक्ति – (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ धातु की समानार्थक ‘वच्’ धातु है। अत: माणवक में सम्प्रदान कारक की विवक्षा न होने के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है।

कर्ता कारक
सूत्र-स्वतन्त्रः कर्ता

अर्थ – क्रिया का प्रधान भूत कारक कर्ता कहलाता है अर्थात् जो क्रिया के सम्प्रदान में प्रधान होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता का अर्थ है करने वाला। वाक्य में क्रिया को करने में जो स्वतन्त्र होता है वह कर्ता होता है। कर्तवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण – देवदत्तः गच्छति, यहाँ जाता है, क्रिया का प्रधान भूत कारक देवदत्त है, अत: वह कर्ता है।

तृतीया विभक्ति-करणकारक

सूत्र-साधकतमं करणम्

अर्थ – अपने कार्य को सिद्धि में कर्ता जिसकी सबसे अधिक सहायता लेता है, उसे करण कारक कहते हैं।
उदाहरण – रामेण बाणेन हतो बालि:-(राम ने बाण से बालि को मारा)। इस वाक्य में हनन क्रिया में बाण अत्यन्त सहायक होने से करण कारक है।

सूत्र-कर्तृकरणयोस्तृतीया

अर्थ – अनुक्त कर्ता (कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता अनुक्त होता है) तथा करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण – ‘रामेण बाणेन हतो बालिः’ (राम ने बाण से बाली को मारा)-इस वाक्य में करण ‘बाण’ में तृतीया विभक्ति हुई है। कर्मवाच्य में होने से यहाँ कर्ता ‘राम’ अनुक्त है, अत: राम में भी तृतीया विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –
सः स्व हस्तेन लिखति
दना भोजनं कुरु।
अहं यानेन ग्रामम् अगच्छम्।
रामः बाणेन रावणं हतवान्।
नोट – मोटे काले पदों में करण (साधन) होने से तृतीया विभक्ति हुई है।

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चतुर्थी विभक्ति-सम्प्रदान कारक

सूत्र-कर्मणा यमभि प्रैतिस सम्प्रदानम्

अर्थ – दान के कर्म द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि दान क्रिया जिसके लिए होती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है)-यहाँ गोदान कर्म के द्वारा कर्त्ता विप्र से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, अतः ‘विप्र’ सम्प्रदान कारक है।

सूत्र-चतुर्थी सम्प्रदाने

अर्थ – सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है) यहाँ ‘विप्र’ के सम्प्रदान संज्ञक होने के कारण उसमें चतुर्थी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-माता पुत्राय भोजनं ददाति।
गुरुः शिष्येभ्यः विद्यां प्रयच्छति।
‘के लिये’ अर्थ में भी चतुर्थी का प्रयोग होता है, जैसे –

1. स पूजनाय मन्दिरं गच्छति।
2. बालकाः पठनाय अत्र आगच्छन्ति।
3. लेखनी लेखनाय भवति।

सूत्र-नमः स्वस्ति-स्वाहा-स्वधाऽलं-वषड्योगाच्च

अर्थ – नमः स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् (पर्याप्त, समर्थ) और वषट् (देवताओं को आहुति देना)-इन छ: अव्ययों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ‘अलम् यहाँ पर्याप्त, समर्थ अर्थ का सूचक है।’ अतः अलम् अर्थ वाचक-प्रभुः समर्थः, शक्तः-इन पदों का भी अलम् में ग्रहण होता है और उस समर्थ वाचक शब्दों के योग में भी चतुर्थी होती है।

उदाहरण –

  1. हरये नमः (हरि को नमस्कार) – यहाँ हरि में नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति हुई है।
  2. प्रजाभ्यः स्वस्ति (प्रजा का कल्याण हो) – यहाँ प्रजा में चतुर्थी है।
  3. अग्नये स्वाहा (अग्नि में आहुति है) – यहाँ अग्नि में चतुर्थी है।
  4. पितृभ्यः स्वधा (पितरों को आहुति है) – यहाँ पितृ में चतुर्थी है।
  5. दैत्येभ्यः हरि अलम् (हरि दैत्यों के लिए काफी है) – यहाँ दैत्य में चतुर्थी हुई है।

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अन्य उदाहरण –

(i) दैत्येभ्यः हरिः प्रभुः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(i) दैत्येभ्यः हरिः समर्थः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(ii) दैत्येभ्यः हरिः शक्तः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)। यहाँ दैत्य में चतुर्थी विभक्ति हुई है। नोट-यहाँ अलम का अर्थ काफी है, निषेध नहीं।

5. इन्द्राय वषट् – (इन्द्र के लिए आहुति)-यहाँ इन्द्र में चतुर्थी हुई है। वषट् का प्रयोग वेद में ही मिलता है, लोक में नहीं।

पञ्चमी विभक्ति-अपादानकारक

सूत्र-ध्रुवमपायेऽपादानम्

अर्थ – अलग होने में स्थिर या अचल कारक को अपादान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि दो वस्तुओं का अलगाव हो, तब जो वस्तु अपने स्थान से अलग नहीं होती, उसी को अपादान कहते हैं।

उदाहरण –
(i) ग्रामात् आयाति (गाँव से वह आता है) – यहाँ गाँव अपने ही स्थान पर स्थिर रहता है। अतः वह अपादान कारक है।
(ii) धावतः अश्वात् पतति-(दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है)-यहाँ पतन क्रिया में अश्व स्थिर है अतः अपादान संज्ञक है।

नोट – दौड़ता हुआ भी घोड़ा पतन क्रिया स्थिर में रहता है अर्थात् सवार गिरता है घोड़ा नहीं, अतः अश्व के अपादान कारक बनने में कोई बाधा नहीं।

सूत्र-अपादाने पंचमी

अर्थ-अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।
उदाहरण –

1. ग्रामात् आयाति (गाँव से आता है) – यहाँ ग्राम में अपादान संज्ञक होने से पंचमी विभक्ति हुई है।
2. धावतः अश्वात् पतति (दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है) – यहाँ अश्व में अपादान संज्ञा होने से पंचमी विभक्ति हुई है। धावतः अश्व का विशेषण है, अतः उसमें भी पंचमी हुई है।
3. वृक्षात् पत्रं पतति (वृक्ष से पत्ता गिरता है) – यहाँ वृक्ष में अपादान होने से पंचमी विभक्ति हुई है।

षष्ठी विभक्ति

सूत्र-षष्ठी शेषे

अर्थ – प्रतिपादिकार्थ, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण इन सम्बन्धों को छोड़ कर शेष-अर्थात् स्वामी-सेवक, जन्य-जनक तथा कार्य-कारण आदि अन्य सम्बन्धों में षष्ठी विभक्ति होती है।

इसके अतिरिक्त कर्म, करण आदि कारकों की सम्बन्ध क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध) मात्र विवक्षा की षष्ठी विभक्ति होती है।

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उदाहरण –

1. राज्ञः पुरुषः (राजा का आदमी)। यहाँ स्वामी-सेवक सम्बन्ध होने से राजन् में षष्ठी विभक्ति हुई है।
2. बालकस्य माता (बालक की मां)-यहाँ जन्य-जनक भाव होने से बालक में षष्ठी हुई है।
3. मृत्तिकायाः घटः (मिट्टी का घड़ा)-यहाँ कार्य-कारण सम्बन्ध होने से मृत्तिका में षष्ठी विभक्ति हुई है।
4. सतां गतम् (सत्पुरुष सम्बन्धि गमन)-यहाँ कर्ता ‘सत्’ की सम्बन्ध मात्र विवक्षा होने से उसमें षष्ठी विभक्ति हुई है।
5. सर्पिषो जानीते-(घी के सम्बन्ध से प्रवृत्त होता है) (सर्पिष: सम्बन्धित उपायेन प्रवर्तते) यहाँ भी सम्बन्ध मात्र की विवक्षा में करण कारण ‘सर्पिष्’ में षष्ठी विभक्ति हुई है।
6. मातुः स्मरति (माता सम्बन्धी स्मरण करता है)-हाँ सम्बन्ध को विवक्षा में कर्म कारक ‘मातृ’ में षष्ठी विभक्ति है।
7. एधः उदकस्य उपस्कुरुते (लकड़ी जल-सम्बन्धी गुणों को धारण करती है)-यहाँ कर्म कारक “दक” में सम्बन्ध विवक्षा के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
8. भजे शंभोश्चरणयोः (शम्भू के चरणों के विषय (सम्बन्ध में) भेजता हूँ)-यहाँ सम्बन्ध मात्र की विवक्षा होने से कर्मकारक चरण में षष्ठी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-सतां चरितम् (सज्जनों का चरित्र)।

रामस्य भ्राता लक्ष्मणः अस्ति।
यहां रेखांकित में षष्ठी सम्बन्ध के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
टिप्पणी (i) शेष – शेष का अर्थ है कर्म करण आदि की अविवक्षा।
(ii) सम्बन्ध–सम्बन्ध का अर्थ है क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध)।

सप्तमी विभक्ति-अधिकरण कारक

सूत्र-आधारोऽधिकरणम्

अर्थ – कर्ता और कर्म के द्वारा किसी भी क्रिया के आधार कारक को अधिकरण कहते हैं। जिसमें क्रिया रहती है, उसे आधार कहते हैं। यह आधार तीन प्रकार का होता है –
औपश्लेषिक, वैषयिक तथा अभिव्यापक।

उदाहरण –

1. औपश्लेषिक आधार – जिसके साथ आधेय का भौतिक संयोग (संश्लेष) होता है, उसे औपश्लेषिक आधार कहते हैं।
जैसे – (i) कटे आस्ते – (चटाई पर है) – यहाँ चटाई (कट) से बैठने वाले का प्रत्यक्ष भौतिक मेल है। अतः ‘कट’ औपश्लेषिक आधार है।
(ii) स्थाल्यां पचति – (पतीली में पकाता है) – यहाँ ओदन कर्म (आधेय) का पतीली (स्थली) से भौतिक संयोग है, अतः स्थाली औपश्लेषिक आधार है।

2. वैषयिक आधार – जिसके साथ आधेय का बौद्धिक संयोग (सम्बन्ध) रहता है, वह वैषयिक आधार कहलाता है।
जैसे – मोक्षे इच्छा अस्ति – मोक्ष के विषय में इच्छा है) – यहाँ मोक्ष वैषयिक आधार है, क्योंकि यह इच्छा का विषय है। जैसे –

3. अभिव्यापक आधार – जिसके साथ आधेय का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध हो उसे अभिव्यापक आधार कहते हैं। जैसे
(i) तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ ‘तिल’ अभिव्यापक आधार है, क्योंकि उसके सभी अवयवों में तेल व्याप्त है उसके किसी एक हिस्से में नहीं।
(ii) सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (विराजते) – (सब में आत्मा है)-यहाँ ‘सर्व अभिव्यापक आधार क्योंकि आत्मा का सब में सर्वात्मना संयोग है।

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सूत्र-सप्तम्यधिकरणे च

अर्थ – अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है और दूर तथा अन्तिक (पास) अर्थवाचक शब्दों से भी सप्तमी विभक्ति होती है।

उदाहरण –

  1. कटे अस्ति (चटाई पर है) – यहाँ अधिकरण कट में सप्तमी है।
  2. स्थाल्यां पचति (पतीली में पकाता है) – यहाँ अधिकरण स्थाली में सप्तमी है।
  3. मोक्षे इच्छा अस्ति (मोक्ष में इच्छा है) – यहाँ अधिकरण मोक्ष में सप्तमी हुई है।
  4. तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ अधिकरण तिल में सप्तमी है।
  5. सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (सब में आत्मा है) – यहाँ अधिकरण ‘सर्व’ में सप्तमी विभक्ति है।
  6. वनस्य दूरे (वन से दूर) – यहाँ दूर अर्थवाची दूर शब्द में सप्तमी विभक्ति है।
  7. वनस्य अन्तिके (वन के पास) – यहाँ पास अर्थवाची अन्तिक शब्द में सप्तमी विभक्ति हुई है।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pratyayah प्रत्ययाः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

तद्धित प्रत्यय, प्रातिपदिकों के अन्त में जोड़े जाते हैं। तद्धित प्रत्यय लग जाने से ये शब्द संज्ञा या विशेषण बन जाते हैं।

I. मतुप् प्रत्यय

मतुप् प्रत्यय ‘अस्य अस्ति’ (इसका है), ‘अस्मिन् अस्ति’ (इसमें है) इन दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है। इन्हीं अर्थों में कुछ और भी प्रत्यय विशेषण बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

मतुप् प्रत्यय का वत् शेष रहता है। अकारान्त शब्दों को छोड़कर शेष शब्दों में वत् का मत् बन जाता है। मतुप् – प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में रहते हैं। इनके शब्द रूप पुंल्लिङ्ग में बलवत्’ शब्द की तरह नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्’ शब्द की तरह तथा स्त्रीलिङ्ग में ‘नदी’ शब्द की तरह बनते हैं।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

II. ‘इन्’ प्रत्यय

‘णिनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है। इन्’ प्रत्यय स्वार्थ (वाला अर्थ) में जोड़कर विशेषण शब्द बनाए जाते हैं। णिनि
(इन्) प्रत्यय के कुछ प्रमुख उदाहरण –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 3

इनके रूप पुंल्लिग में ‘शशिन्’ की तरह, स्त्रीलिंग में ‘नदी’ की तरह तथा नपुंसकलिंग में वारि’ शब्द की तरह
चलते हैं।

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III. तल, त्व प्रत्यय

ये प्रत्यय संज्ञा, विशेषण या अव्यय निर्माण करने के लिए लगाए जाते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द सदैव नपुंसकलिङ्ग और भाववाचक होता है।

‘तल’ प्रत्यय भी भाव अर्थ में लगाया जाता है। ‘तल’ प्रत्यय लगाने से शब्द के साथ ‘ता’ लग जाता है। तल् प्रत्ययान्त शब्द सदैव स्त्रीलिङ्ग होता है।

“त्व’ तथा ‘तल्’ (ता) प्रत्ययान्त शब्दों के कुछ प्रमुख उदाहरण –

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IV. इक (ठ) प्रत्यय

‘ठक्’ तथा ‘ठब्’ प्रत्यय को ‘इक’ आदेश हो जाता है। ‘इक’ प्रत्यय लगाकर ‘वाला अर्थ’ में निम्न प्रकार से कुछ विशेषण शब्द बनाए जाते हैं –

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

कृदन्त प्रत्यय

परिभाषा – कृदन्त प्रत्यय धातुओं के अन्त में जुड़ते हैं। इन प्रत्ययों को जोड़ने से नाम और अव्यय बनते हैं।
सूचना-प्रायः सभी धातुरूपों के अन्त में उन धातुओं के कृदन्त रूप भी दिए गए हैं, वहाँ देख सकते हैं।

शत-शानच् प्रत्ययान्तशब्द

शतृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने के लिए धातुओं से परे ‘अत्’, लगाया जाता है-शतृ > अत्। ‘शानच्’ प्रत्यय का ‘आन’ या ‘मान’ बन जाता है। परस्मैपदी धातुओं के परे ‘अत्’ लगाया जाता है। आत्मनेपदी धातुओं के परे भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण और चुरादिगण में ‘मान’ तथा शेष गणों में आन’ लगता है।
कुछ धातुओं के शत-शानच्-प्रत्ययान्त रूप नीचे दिए जाते हैं –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 7

क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के नियम

नियम 1. क्त प्रत्यय किसी भी धातु से लगाया जा सकता है। इस प्रत्यय के (क) का लोप हो जाता है और फिर धातु के (इ), (उ) और (ऋ) गुण नहीं होता है, जैसे –

जितः, भूतः, कृतः, श्रुतः, स्मृतः आदि।

नियम 2. क्तवतु प्रत्यय कर्तवाच्य में प्रयुक्त होता है और कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द में वचन तथा विभक्ति आदि कर्ता के अनुसार होंगे, जैसे –

रामः ग्रामं गतवान्।

नियम 3. गत्यर्थक, अकर्मक और किसी उपसर्ग से युक्त स्था, जन्, वस, आस्, सह तथा जृ धातुओं से कर्ता के अर्थ में क्त प्रत्यय होता है, जैसे –

(i) गङ्गां गतः।
(ii) राममनुजातः।

नियम 4. सेट् धातुओं में क्त प्रत्यय करने पर धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘इ’ आ जाता है। जैसे –
ईक्ष् + इ + त = ईक्षितः। पठ् + इ + त = पठितः।
सेव् + इ + त = सेवितः। कुप् + इ + त = कुपितः।

नियम 5. यज्, प्रच्छ, सृज, इन धातुओं से त प्रत्यय परे होने पर इनके अन्तिम वर्ण कोष तथा यज् एवं प्रच्छ को सम्प्रसारण हो जाता है, अर्थात् ‘व’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ हो जाता है। फिर ‘त् ‘ को ‘ट्’ होता है, जैसे –

यज् + तः = इष्टः।
प्रच्छ् + तः = पृष्टः।
सृज् + तः = सृष्टः।

नियम 6. शुष धातु से परे ‘त’ को ‘क’ हो जाता है, जैसे –

शुष् + त = शुष्कः।

नियम 7. पच् धातु से परे क्त = ‘त’ प्रत्यय होने पर ‘त’ का ‘व’ हो जाता है, जैसे –

पच् + क्त = पक्वः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 8. दा (देने) धातु को क्त प्रत्यय परे होने पर ‘दत्’ हो जाता है, जैसे –

दा + त = दत्तः।

नियम 9. धातु के अन्तिम श् को ‘ष्’ हो जाता है और ‘ष्’ से परे (त्) को (ट्) हो जाता है, जैसे –

नश् + त = नष्टः।
दृश् + त = दृष्टः।
स्पृश् + त = स्पृष्टः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 10. जिन अनिट् धातुओं के अन्त में ‘द्’ होता है उनसे आगे आने वाले क्त प्रत्यय के ‘त्’ को ‘न्’ तथा
धातु के ‘द्’ को भी न् हो जाता है, जैसे –

छिद् = तः = छिन्नः।
खिद् + तः = खिन्नः।
भिद् + तः = भिन्नः। .
तुद् + तः = तुन्नः।

नियम 11. धातु के अन्त के न् को म् तथा धातु के बीच में आने वाले अनुस्वार आदि का लोप हो जाता है, जैसे

गम् + तः = गतः।
रम् + तः = रतः।
हन् + तः = हतः।
तन् + तः = ततः।
मन् + तः = मतः।
नम् + तः = नतः।

अपवाद-जन् धातु के ‘न्’ को ‘अ’ हो जाता ह-जन् + क्त = जातः। श्रम, भ्रम, क्षम, दम्, वम्, शम्, क्रम, कम् धातुओं की उपधा को दीर्घ हो जाता है, जैसे-श्रान्तः, भ्रान्तः, दान्तः, वान्तः, शान्तः, क्रान्तः इत्यादि।

नियम 12. चुरादिगण की धातुओं से आगे (इत) लगाकर क्तान्त रूप बन जाता है, जैसे –

चुर् + इत = चोरितः।
कथ् + इत = कथितः।
गण् + इत = गणितः।
निन्द् + इत = निन्दितः।

नियम 13. निम्नलिखित धातुओं में सम्प्रसारण अर्थात् ‘य’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ होता है, जैसे –
वद् + त – उक्तः।
वस् + त = उषितम्।
वप् + त = उप्तः।
वद् + त = उदितः।
वह + न = ऊढः।
यज् + त = इष्टः।
हवे + त = हूतः।
प्रच्छ् + त = पृष्टः।
व्यध् + त = विद्धः।
ग्रह + त = गृहीतः।
स्वप् + त = सुप्तः।
ब्रू (वच्) + क्त = उक्तः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

मुख्य-मुख्य धातुओं के क्त तथा क्तवत् प्रत्ययों के रूप –
(पुंल्लिङ्ग प्रथमा विभक्ति एकवचन में)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 8
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 9

क्त्वा-प्रत्ययान्त

वाक्य में दो क्रियाओं के होने पर जो क्रिया पहले समाप्त हो जाती है उसे बताने वाली धातु से क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है।

नियम – क्त्वा प्रत्यय के परे होने पर रूपसिद्धि के लिए वही नियम लागू होते हैं, जो क्त प्रत्यय के होने पर होते हैं। क्त्वा-प्रत्ययान्त शब्द अव्ययी होते हैं, जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 10

विशेष – यदि धातु से पूर्व उपसर्ग हो तो क्त्वा के स्थान पर ‘य’ (ल्यप) लगता है, जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 11

तुमुन्-प्रत्ययान्त

जब कोई कार्य अन्य (भविष्यत्) अर्थ के लिए किया जाए तो धातु से परे ‘तुमुन्’ प्रत्यय आता है। ‘तुमुन्’ का ‘तुम्’ शेष रह जाता है। जैसे –

पठ् + तुमुन् = पठितुम्-पढ़ने के लिए।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

ध्यान रहे तुम् प्रत्यय के परे होने पर पूर्व इ, ई, उ, ऊ, ऋ तथा उपधा के इ, उ तथा ऋ को गुण हो जाता है, जैसे –

जि + तुम् = जेतुम्, कृ + तुम् = कर्तुम्
नी + तुम् = नेतुम्, वृध् + तुम् = वर्धितुम्
पठ् + तुमुन् = पठितुम्
भुज् + तुम् = भोक्तुम्

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 12

तव्यत्, अनीयर् तथा यत्

विधिकृदन्त शब्द धातु से परे तव्यत्, अनीयर् और यत् लगाने से बनते हैं। ‘तव्यत्’ का तव्य, ‘अनीयर्’ का अनीय तथा ‘यत्’ का य शेष रहता है।

नियम 1. तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय के परे होने पर धातु के अन्तिम स्वर को गुण होता है; अर्थात् इ/ई, को ‘ए’, उ/ ऊ को ‘ओ’ और ‘ऋ’ को ‘अर’ हो जाता है ; जैसे –
जि + तव्यत् = जेतव्यः।
नी + तव्यत् = नेतव्यः।
स्तु + तव्यत् = स्तोतव्यः।
हु + तव्यत् = होतव्यः।

नियम 2. तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय सकर्मक धातुओं से कर्म में होते हैं और वाक्य में अर्थ की उपेक्षा करने पर भाव में भी हो जाते हैं। अकर्मक धातुओं से भाव में ही यह प्रत्यय होता है।

नियम 3. अनीयर् (अनीय) प्रत्यय के परे होने पर ‘इ’ का आगम नहीं होता, प्रत्युत इ, उ को गुण करके क्रमशः, ‘अय’. ‘अव’ आदेश कर देते हैं ; जैसे –

श्रि + अनीयर् = श्रे + अनीयर् = श्रयणीयः।
भू + अनीयर् = भो + अनीयर् = भवनीयः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 4. कर्म में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और क्रिया कर्म के अनुसार होती है ; जैसे –

तेन ग्रामः गन्तव्यः।

नियम 5. भाव में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और तव्य प्रत्ययान्त शब्द में नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन होता है ; जैसे –

तेन गन्तव्यम्। तेन कर्तव्यम्। तेन स्मरणीयम्।

नियम 6. अजन्त धातुओं से यत् ‘य’ प्रत्यय होता है। यत् प्रत्यय होने पर अजन्त धातुओं के (ई) तथा (उ) को गुण हो जाते हैं। जैसे –

चि + यत् = चेयम।
जि + यत् = जेयम्।
नी + यत् = नेयम्।
श्रु + यत् = श्रव्यम्।

नियम 7. यत् प्रत्यय के परे होने पर आकारान्त धातु के ‘आ’ को ‘ए’ हो जाता है ; जैसे –

पा + य = पेयम्।
स्था + य = स्थेयम्।
चि + य = चेयम्।
जि + य = जेयम्।

मुख्य-मुख्य धातुओं के तव्यत्, अनीयर् और यत् प्रत्ययान्त शब्द नीचे दिए गए हैं –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 13

स्त्रीप्रत्यय

पुँल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उन प्रत्ययों को स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं। संस्कृत व्याकरण के अनुसार इस प्रकार के चार प्रत्यय हैं –

(1) आ, (2) ई, (3) ऊ, (4) ति।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 1. अकारान्त पुंल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए प्रायः उनके आगे ‘आ’ लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 14
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 15

नियम 2. जिन अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में अक’ होता है उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘इका’ जोड़ा जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 16

नियम 3. कई पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है और शब्द के अन्त में ‘अ’ का लोप हो जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 17

नियम 4. ऋकारान्त, इन्नन्त तथा ईयस् एवं मत् वत् प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए उनके आगे ‘ई’ प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 18

नियम 5. शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादि, दिवादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से शतृ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त्’ से पहले ‘न्’ जोड़ दिया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 19

नियम 6. यदि तुदादिगण तथा अदादिगण की धातुओं से शतृप्रत्यय करने पर स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो ‘ई’ प्रत्यय करके ‘त्’ से पहले विकल्प से ‘न्’ लगाया जाता है ; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 20

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 7. जातिवाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 21

अपवाद – जिन अकारान्त जातिवाचक पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में ‘य’ होता है, उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘आ’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 22

नियम 8. गुणवाचक उकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके अन्त में ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 23

नियम 9. इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, हिम, अरण्य, मृड, यव, यवन, मातुल, आचार्य-इन शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए इनके अन्त में ‘आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 24

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

सूचना – (क) हिम तथा अरण्य शब्दों से महत्त्व अर्थ में भी ‘आनी’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। (ख) मातुल और उपाध्याय-इन शब्दों से ‘ई’ प्रत्यय करने पर विकल्प से आन् आगम हो जाता है। अत: इन शब्दों के दो-दो रूप बनते हैं। जैसे-मातुल = मातुलानी, मातुली। उपाध्याय = उपाध्यायानी, उपाध्यायी।

नियम 10. ‘युवन्’ शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘ति’ प्रत्यय लगाया जाता है ; जैसे –
युवन्      युवतिः

नियम 11. उकारान्त मनुष्यवाचक शब्दों में ऊ प्रत्ययं लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 25

कुछ प्रष्टव्य शब्दों के स्त्रीप्रत्ययान्त रूप

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 26
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 27

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण –

  • त्यक्तेन = त्यज् + क्त
  • आवृताः = आ + वृञ् + क्त
  • प्रेत्य = प्र + इ + ल्यप्
  • तिष्ठत् = स्था + शतृ
  • धावतः = धाव् + शतृ
  • तीर्वा = तृ + क्त्वा
  • जवीयः = जव + ईयसुन्
  • कुर्वन् = कृ + शतृ
  • ततः = तत् + तसिल
  • अर्घ्यम् = अर्घ + यत्
  • श्रुतम् = श्रु + क्त
  • अर्चयित्वा = अर्च् + णिच् + क्त्वा
  • आप्तम् = आप् + क्त
  • तृप्तम् = तृप् + क्त
  • अर्हतः = अर्ह + शतृ
  • निशम्य = नि + शम् + ल्यप्
  • आहर्तुम् = आ + हृ + तुमुन्
  • उक्त्वा = वच् + क्त्वा
  • प्रदेयम् = प्र + दा + यत्
  • निषिध्य = नि + सिध् + ल्यप्
  • वर्णी = वर्ण + इन्
  • विज्ञापितः =  वि + ज्ञप् + णिच् + क्त
  • आवेदितः = आ + विद् + क्त
  • अनवाप्य = नञ् + अव + आप् + ल्यप्
  • गतः = गम् + क्तः
  • अर्थी = अर्थ + इन्
  • मृण्मयम् = मृत् + मयट्
  • अवशिष्टः = अव + शास् + क्त
  • प्रस्तुतम् = प्र + स्तु + क्त
  • लब्धम् = लभ् + क्त
  • अवेक्ष्य = अव + ईक्ष् + ल्यप्।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण –

1. प्रकृति प्रत्ययं च योजयित्वा पदरचनां कुरुत –
त्यज् + क्तः; कृ + शत; तत् + तसिल
उत्तरम् :
(क) त्यज् + क्त = त्यक्तः
(ख) कृ + शतृ = बु
(ग) तत् + तसिल = ततः

2. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम्
प्रेत्य, तीर्खा, धावतः, तिष्ठत्, जवीयः
उत्तरम् :
(क) प्रेत्य = प्र + √इ + ल्यप्
(ख) तीर्वा = √तु + क्त्वा
(ग) धावत: = √धाव् + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, षष्ठी-एकवचनम्)
(घ) तिष्ठत् = √स्था + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ङ) जवीयः = जव + ईयसुन् > ईयस् (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)

II. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम् –
(क) अर्थी
(ख) मृण्मयम्
(ग) शासितुः
(घ) अवशिष्टः
(ङ) उक्त्वा
(च) प्रस्तुतम्
(छ) उक्तः
(ज) अवाप्य
(झ) लब्धम्
(ब) अवेक्ष्य।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 28

III. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम् –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 29

IV. अधोलिखितशब्देषु प्रकृतिप्रत्ययानां विभागः करणीयम् –
यथा – राजितम् = राज् + क्त
उत्तरसहितम् –
(क) दैष्टिकताम् = दैष्टिक + तल्
(ख) कुर्वाणः = √कृ + शानच् (आत्मनेपदे)
(ग) पटुता = पटु + तल्
(घ) सिद्धम् = √सिध् + क्त
(ङ) विमृश्य = वि √मृश् + ल्यप्

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

V. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम् –
उपक्रान्तवान्, विधाय, गत्वा, गृहीत्वा, स्थितः, व्यतिक्रम्य, दातव्यम्।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 30

VI. अधोलिखितानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययविभागं प्रदर्शयत –
प्रयुक्तः, उत्थितः, उत्प्लुत्य, रुतैः, उपत्यकातः, उत्थितः, ग्रस्यमानः।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 31

VII. अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत –
समाप्य, जातम्, त्यक्त्वा, धृत्वा, पठन्, संपोष्य
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 32

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

VIII. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम् –
निकृष्टतमा, उपगम्य, प्रवर्तमाना, अतिक्रान्तम्, व्याख्याय, कथयन्तु, उपघ्नन्ति, आक्रीडनम्।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 33
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 34

IX. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम् –
उत्तरसहितम् –

(क) निर्मुच्य = निर् + (मुच् + क्त्वा > ल्यप्
(ख) आदाय = आ + √दा + क्त्वा > ल्यप्
(ग) प्रविष्टः = प्र + √विश् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(घ) आगत्य = आ + √गम् + क्त्वा > ल्यप्
(ङ) परिज्ञातम् = परि + √ज्ञा + क्त (नपुंसकलिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Exercise 12.2

प्रश्न 1.
6cm त्रिज्या वाले एक वृत्त के एक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसका कोण 60° है।
हल :
यहाँ पर, – वृत्त की त्रिज्या (r) = 6cm
त्रिज्यखंड का कोण (θ) = 60°
त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{60}{360} \times \frac{22}{7}\) × 6 × 6 cm2
= \(\frac{132}{7}\) cm2

प्रश्न 2.
एक वृत्त, के चतुर्थांश (quadrant) का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसकी परिधि 22cm है।
हल :
यहाँ पर,
माना वृत्त की त्रिज्या = r cm
वृत्त की परिधि = 22 cm
2πr = 22 cm
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 1

प्रश्न 3.
एक घड़ी की मिनट की सुई जिसकी लंबाई 14cm है। इस सुई द्वारा 5 मिनट में रचित क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
यहाँ पर घड़ी की मिनट की सुई की लंबाई (r) = 14cm
360 5 मिनट में मिनट की सुई द्वारा तय कोण (θ) = \(\frac{360}{60}\) × 5 = 30°
अतः मिनट की सुई द्वारा 5 मिनट में
रचित क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{30}{360} \times \frac{22}{7}\) × 14 x 14 cm2
= \(\frac{154}{3}\) cm2

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2

प्रश्न 4.
10cm त्रिज्या वाले एक वृत्त की कोई जीवा केंद्र पर एक समकोण अंतरित करती है। निम्नलिखित के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए-
(i) संगत लघु वृत्तखंड (ii) संगत दीर्घ त्रिज्यखंड (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 2
यहाँ पर – वृत्त की त्रिज्या (7) = 10cm
माना जीवा AB द्वारा वृत्त के केंद्र पर
अंतरित कोण (θ1) = 90°
लघु वृत्तखंड द्वारा केंद्र पर अंतरित कोण (θ1) = 90°
तथा दीर्घ वृत्तखंड द्वारा केंद्र पर अंतरित कोण (θ2) = 360° – 90°
= 270°

(i) संगत लघु वृत्तखंड APB का क्षेत्रफल = त्रिज्यखंड OAPB का क्षेत्रफल – त्रिभुज AOB का क्षेत्रफल
= \(\frac{\theta_{1}}{360} \times \pi r^{2}-\frac{1}{2}\) × OA × OB
= \(\frac{90}{360}\) × 3.14 × 10 × 10 – \(\frac{1}{2}\) × 10 × 10]cm2
= [78.5 – 50]cm2 = 28.5cm2

(ii) संगत दीर्घखंड OAQB का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta_{2}}{360} \times \pi r^{2}\)
= \(\frac{270}{360}\) × 3.14 × 10 × 10 cm2
= 235.5 cm2

प्रश्न 5.
त्रिज्या 21cm वाले वृत्त का एक चाप केंद्र पर 60° का कोण अंतरित करता है। ज्ञात कीजिए-
(i) चाप की लंबाई
(ii) चाप द्वारा बनाए गए त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल
(iii) संगत जीवा द्वारा बनाए गए वृत्तखंड का क्षेत्रफल
हल :
यहाँ पर
वृत्त की त्रिज्या (r) = 21cm
चाप APB द्वारा केंद्र पर
अंतरित कोण (θ) = 60°
(i) चाप APB की लंबाई = \(\frac{\theta}{360}\) × 2πr
= \(\frac{60}{360} \times 2 \times \frac{22}{7}\) × 21 cm
= 22cm

(ii) त्रिज्यखंड OAPB का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{60}{360} \times \frac{22}{7}\) × 21 × 21 cm2
= 231 cm2

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 3

(iii) त्रिभुज OAB का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) r2sinθ
= \(\frac{1}{2}\) × 21 × 21 × sin 60°
= \(\frac{1}{2}\) × 441 × \(\frac{\sqrt{3}}{2} \mathrm{~cm}^{2}=\frac{441 \sqrt{3}}{4} \mathrm{~cm}^{2}\)
संगत जीवा AB द्वारा बनाए गए छायांकित वृत्तखंड का क्षेत्रफल = (त्रिज्यखंड OAPB – त्रिभुज OAB) का क्षेत्रफल
= ( 231 – \(\frac{441}{4} \sqrt{3}\))cm2

प्रश्न 6.
15cm त्रिज्या वाले एक वृत्त की कोई जीवा केंद्र पर 60° का कोण अंतरित करती है। संगत लघु और दीर्घ वृत्तखंडों के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
(π = 3.14 और √3 = 1.73 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 4
यहाँ पर, वृत्त की त्रिज्या (r) = 15cm
माना जीवा AB द्वारा केंद्र पर ।
अंतरित कोण (θ) = 60°
लघु त्रिज्याखंड OAPB का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{60}{360}\) × 3.14 × 15 × 15 cm2
= 117.75 cm2

त्रिभुज OAB का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) r2sin θ
= \(\frac{1}{2}\) × 15 × 15 × sin 60°
= \(\frac{225}{2} \times \frac{\sqrt{3}}{2}\) cm2
= \(\frac{225 \times 1.73}{4}\) cm2
= 97.3125 cm2

वृत्त का क्षेत्रफल = πr2
= 3.14 × 15 × 15 cm2
= 706.5 cm2

(i) लघु वृत्तखंड APB का क्षेत्रफल = (त्रिज्यखंड OAPB – त्रिभुज OAB) का क्षेत्रफल
= (117.75 – 97.3125) cm2
= 20.4375 cm2 उत्तर दीर्घ वृत्तखंड AQB का क्षेत्रफल = वृत्त का क्षेत्रफल – लघुखंड का क्षेत्रफल
= (706.5 – 20.4375) cm2
= 686.0625 cm2

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2

प्रश्न 7.
त्रिज्या 12cm वाले एक वृत्त की कोई जीवा केंद्र पर 120° का कोण अंतरित करती है। संगत वृत्तखंड का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
(π = 3.14 और √3 = 1.73 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 5
यहाँ पर,
वृत्त की त्रिज्या (r) = 12cm
जीवा AB द्वारा केंद्र पर अंतरित कोण (θ) = 120°
त्रिज्यखंड OAPB का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{120}{360}\) × 3.14 × 12 × 12 cm2
= 150.72 cm2
त्रिभुज OAB का क्षेत्रफल = r2 sin\(\frac{\theta}{2}\) . cos\(\frac{\theta}{2}\)
= 12 × 12 × \(\sin \frac{120^{\circ}}{2} \cdot \cos \frac{120^{\circ}}{2}\)
= 144 × sin60°. cos60°
= 144 × \(\frac{\sqrt{3}}{2} \times \frac{1}{2}\) cm2
= 36 × 1.73 cm2 = 62.28 cm2
संगत लघु वृत्तखंड APB (छायांकित)का क्षेत्रफल = (त्रिज्यखंड OAPB – त्रिभुज OAB) का क्षेत्रफल
= (150.72 – 62.28) cm2
= 88.44 cm2

प्रश्न 8.
15m भुजा वाले एक वर्गाकार घास के मैदान के एक कोने पर लगे खूटे से एक Awadhan घोड़े को 5 m लंबी रस्सी से बाँध दिया गया है (देखिए संलग्न आकृति)। ज्ञात कीजिए
(i) मैदान के उस भाग का क्षेत्रफल जहाँ घोड़ा घास चर सकता है।
(ii) चरे जा सकने वाले क्षेत्रफल में वृद्धि, यदि घोड़े को 5 m लंबी रस्सी के स्थान पर 10m लंबी रस्सी से बाँध दिया जाए। (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 6
(i) पहली अवस्था में, मैदान के उस भाग का क्षेत्रफल जहाँ तक घोड़ा चर सकता है
= \(\frac{\pi r^{2}}{4}=\frac{1}{4}\) × 3.14 × 5 × 5 m2
= \(\frac{78.5}{4}\) m2 = 19.625m2

(ii) दूसरी अवस्था में,
मैदान के उस भाग का क्षेत्रफल जहाँ तक घोड़ा चर सकता है
= \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2}}{4}=\frac{1}{4}\) × 3.14 × 10 ×10 m2
= \(\frac{314}{4}\) = m2 = 78.5m2
अतः दूसरी अवस्था में चरे जा सकने वाले क्षेत्रफल में वृद्धि = (78.5 — 19.625)m2
= 58.875m2

प्रश्न 9.
एक वृत्ताकार ब्रूच (brooch) को चाँदी के तार से बनाया जाना है जिसका व्यास 35mm है। तार को वृत्त के 5 व्यासों को बनाने में भी प्रयुक्त किया गया है जो उसे 10 बराबर त्रिज्यखंडों में विभाजित करता है जैसा कि संलग्न आकृति में दर्शाया गया है। तो ज्ञात कीजिए
(i) कुल वांछित चाँदी के तार की लंबाई
(ii) बेच के प्रत्येक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 7
हल :
(i) यहाँ पर, वृत्ताकार ब्रूच का व्यास (d) = 35mm
वृत्ताकार ब्रूच की त्रिज्या (r) = \(\frac{d}{2}=\frac{35}{2}\) = 35mm
∴ वृत्ताकार ब्रूच की परिधि के लिए आवश्यक चाँदी की तार की लंबाई = 2πr
= 2 × \(\frac{22}{7} \times \frac{35}{2}\) mm = 110 mm .
10 बराबर त्रिज्यखंडों में बाँटने के लिए 5 व्यासों की लंबाई के लिए आवश्यक चाँदी की तार = 35 × 5mm = 175mm
अतः कुल आवश्यक चाँदी की तार की लंबाई = (110 + 175)mm == 285 mm

(ii) यहाँ पर, वृत्ताकार ब्रूच के प्रत्येक त्रिज्यखंड द्वारा केंद्र पर अंतरित कोण (θ) = \(\frac{360^{\circ}}{10}\) = 36°
वृत्ताकार ब्रूच के प्रत्येक त्रिज्यखंड की त्रिज्या (r) = \(\frac{35}{2}\) mm
अतः वृत्ताकार ब्रूच के प्रत्येक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{36}{360} \times \frac{22}{7} \times \frac{35}{2} \times \frac{35}{2}\) mm2
= \(\frac{385}{4}\) mm2

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2

प्रश्न 10.
एक छतरी में आठ ताने हैं, जो बराबर दूरी पर लगे हुए हैं (देखिए संलग्न आकृति)। छतरी को 45cm त्रिज्या वाला एक सपाट वृत्त मानते हुए, इसकी दो क्रमागत तानों के बीच का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 8
हल :
यहाँ पर,
छतरी के दो क्रमागत तानों के बीच त्रिज्यखंड द्वारा केंद्र पर
अंतरित कोण (θ) = \(\frac{360^{\circ}}{8}\) = 45°
छतरी के वृत्ताकार भाग की त्रिज्या (r) = 45cm
अतः छतरी के दो क्रमागत तानों के बीच त्रिज्यखंड का क्षेत्र = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{22}{7}\) × 45 cm2
= \(\frac{22275}{28}\) 2 = 795.53 cm2

प्रश्न 11.
किसी कार के दो वाइपर (Wipers) हैं, परस्पर कभी आच्छादित नहीं होते हैं। प्रत्येक वाइपर की पत्ती की लंबाई 25cm है और 115° के कोण तक घूम कर सफाई कर सकता है। पत्तियों की प्रत्येक बुहार के साथ जितना क्षेत्रफल साफ हो जाता है, वह ज्ञात कीजिए।
हल :
यहाँ पर, कार का प्रत्येक वाइपर जितने त्रिज्यखंड वाले वृत्त के क्षेत्र को साफ कर सकता है। इसके लिए,
त्रिज्या (r) = 25cm
त्रिज्यखंड कोण (θ) = 115°
क्षेत्रफल (A) = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{115}{360} \times \frac{22}{7}\) × 25 × 25 cm2
= \(\frac{158125}{252}\) cm2 = 627.48 cm2

प्रश्न 12.
जहाज़ों को समुद्र में जलस्तर के नीचे स्थित चट्टानों की चेतावनी देने के लिए, एक लाइट हाउस (light house) 80° कोण वाले एक त्रिज्यखंड में 16.5km की दूरी तक लाल रंग का प्रकाश फैलाता है। समुद्र के उस भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए जिसमें जहाज़ों को चेतावनी दी जा सके। (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए।)
हल :
यहाँ पर,
लाइट हाउस द्वारा चेतावनी देने वाले त्रिज्यखंड की त्रिज्या (r) = 16.5 km
लाइट हाउस द्वारा चेतावनी देने वाले त्रिज्यखंड का कोण (θ) = 80°
लाइट हाउस द्वारा चेतावनी देने वाले त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल (A) = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2
= \(\frac{80}{360}\) × 3.14 × 16.5 × 16.5 km2
= \(\frac{1709.73}{9}\) km2
= 189.97 km2

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2

प्रश्न 13.
एक गोल मेज़पोश पर छः समान डिज़ाइन बने हुए हैं जैसाकि संलग्न आकृति में दर्शाया गया है। यदि मेज़पोश की त्रिज्या 28cm है, तो 0.35 रु० प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर से इन डिज़ाइनों को बनाने की लागत ज्ञात कीजिए।
(√3 = 1.7 का प्रयोग कीजिए।)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 9
हल :
यहाँ पर,
मेज़पोश के प्रत्येक डिजाइन की जीवा द्वारा केंद्र पर अंतरित कोण (θ) = \(\frac{360^{\circ}}{6}\) = 60°
मेज़पोश की त्रिज्या (r) = 28cm
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.2 10
= [410.67 – 333.20]cm2
= 77.47 cm2
अतः मेज़पोश के डिजाइन का कुल क्षेत्रफल = 6 × प्रत्येक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल
= 6 × 77.47 cm2
= 464:82 cm2
1 cm2 डिजाइन को बनाने की लागत = 0.35 रु०
464.82 cm2 डिजाइन को बनाने की लागत = 464.82 × 0.35 रु०
= 162.68 रु०

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनिए-
त्रिज्या R वाले वृत्त के उस त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल जिसका कोण p° है, निम्नलिखित है-
(A) \(\frac{p}{180}\) × 2πR
(B) \(\frac{p}{180}\) × πR²
(C) \(\frac{p}{360}\) × 2πR
(D) \(\frac{p}{720}\) × 2πR²
हल :
यहाँ पर, वृत्त के त्रिज्यखंड की त्रिज्या (7) = R
वृत्त के त्रिज्यखंड का कोण (θ) = P
वृत्त के त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल (A) = \(\frac{\theta}{360}\) × πr2 = \(\frac{p}{360}\) × πR²
= \(\frac{p}{360 \times 2}\) × 2πR² [दोनों ओर 2 से गुणा करने पर]
= \(\frac{p}{720}\) × πR²
अतः अभीष्ट सही उत्तर = D

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र (समस्त) माँग के निम्नलिखित में से कौन-से घटक हैं?
(A) निजी उपभोग व्यय
(B) निजी निवेश व्यय
(C) सरकारी व्यय + उपभोग व्यय
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात
उत्तर:
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात

2. AS और AD तथा S और I में एक-साथ संतुलन तब आता है जब-
(A) AS = AD
(B) S = I
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) कोई भी बराबर नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

3. समग्र पूर्ति के कौन-से घटक हैं?
(A) उपभोग
(B) बचत
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

4. उपभोग फलन फलनात्मक संबंध है-
(A) आय एवं बचत का
(B) आय एवं उपभोग का
(C) उपभोग एवं बचत का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) आय एवं उपभोग का

5. उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है
(A) उपभोक्ता का उत्कृष्ट उपभोग की ओर झुकाव होना
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात
(C) आय का स्तर जिस पर उपभोग व्यय आय के बराबर है
(D) आय की अतिरिक्त दर जो उपभोग पर व्यय की जाएगी
उत्तर:
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात

6. समग्र माँग व्यक्त करती है-
(A) संभावित कुल प्राप्तियाँ
(B) संभावित कुल व्यय
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संभावित कुल व्यय

7. समग्र माँग कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(C) कुल लागतें
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) संभावित प्राप्तियाँ

8. समग्र पूर्ति कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) कुल लागतें
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

9. केज के अनुसार समस्त माँग बराबर है-
(A) C + S
(B) C + I
(C) C + I + G
(D) C + I + G + X – M
उत्तर:
(B) C + I

10. एक अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर
(A) C = 0
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)
(C) S = 0
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)

11. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत होती है-
(A) ऋणात्मक
(B) शून्य
(C) धनात्मक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ऋणात्मक

12. स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग का संकेतक है-
(A) C
(B) C
(C) I
(D) A
उत्तर:
(B) C

13. कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है-
(A) A = C + I
(B) A = C + I
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) A = C + I

14. ‘I’ संकेतक है-
(A) प्रत्याशित (नियोजित) निवेश का
(B) यथार्थ निवेश का
(C) स्वायत्त निवेश का
(D) इनमें से किसी का नहीं
उत्तर:
(C) स्वायत्त निवेश का

15. स्वायत्त निवेश का प्रतीक (चिह) है-
(A) A
(B) C
(C) I
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) I

16. सही सूत्र चुनिए-
(A) APC = \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(B) MPC = \(\frac { C }{ Y }\)
(C) K = \(\frac { 1 }{ 1-APS }\)
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
उत्तर:
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)

17. प्रभावी माँग अथवा प्रभावपूर्ण माँग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें-
(A) AD = AS
(B) AD > AS
(C) AD < AS
(D) AD = 0
उत्तर:
(A) AD = AS

18. प्रभावपूर्ण माँग की स्थिति दिखती है-
(A) पूर्ण रोज़गार में
(B) अल्परोज़गार में
(C) पूर्ण रोज़गार से अधिक में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

19. उपभोग फलन का समीकरण है-
(A) C = f (Y)
(B) C = f (S)
(C) C = f (R.I.)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) C = f (Y)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

20. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) आय में प्रत्येक वृद्धि के साथ उपभोग बढ़ता है
(B) उपभोग सदैव धनात्मक होता है (आय के शून्य स्तर पर भी)
(C) आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं

21. APC बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ C }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

22. MPC बराबर है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

23. यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.5 हो तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर उपभोग व्यय क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(B) 50 रुपए

24. बचत प्रवृत्ति का अर्थ है-
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात
(B) आय का स्तर जिस पर बचत आय के बराबर हो
(C) आय की अतिरिक्त दर जिसकी बचत की जाए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात

25. APS बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(C) \(\frac { S }{ Y }\)

26. MPS बराबर होती है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ S }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)

27. यदि MPS 0.6 है तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर बचत क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(C) 60 रुपए

28. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) APC + APS = 1
(B) MPC + MPS = 1
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

29. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC + MPS = 0
(B) MPC + MPS = 1
(C) MPC+ MPS > 1
(D) MPS + MPS < 1
उत्तर:
(B) MPC + MPS = 1

30. निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) APC + APS = 1
(B) APC = 1 – APS
(C) APS = 1 – APC
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC = 1 – MPS
(B) MPS = 1 – MPC
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई भी सत्य नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. यदि MPC 40% है, तो MPS होगी-
(A) 70%
(B) 60%
(C) 50%
(D) 40%
उत्तर:
(B) 60%

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

33. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प गलत है?
(A) AS वक्र 45° पर बनी सीधी रेखा होती है
(B) MPC का मूल्य शून्य व इकाई के बीच रहता है
(C) समस्तर बिंदु से पहले उपभोग आय से अधिक रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(D) इनमें से कोई नहीं

34. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की अवस्था में किसी भी प्रकार की बेरोज़गारी संभव नहीं है
(B) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है

35. निवेश गुणक का संबंध होता है-
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन के कारण स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन
(C) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन
(D) प्रेरित निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
उत्तर:
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन

36. गुणक =
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(C) \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(D) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

37. निवेश गुणक से अभिप्राय है-
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(B) K = \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

38. निवेश गुणक कौन-से सूत्र द्वारा निर्धारित होता है?
(A) \(\frac { 1 }{ MPC }\)
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
(C) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPC}}\)
(D) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPS}}\)
उत्तर:
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

39. यदि MPC = \(\frac { 1 }{ 2 }\) है, तो गुणक होगा
(A) 3
(B) 4
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(D) 2

40. यदि MPS = \(\frac { 1 }{ 4 }\) है, तो गुणक का मूल्य होगा
(A) 4
(B) 5
(C) 2
उत्तर:
(A) 4

41. यदि MPC = 0.8 है, तो गुणक (K) का मूल्य होगा-
(A) 1
(B) 2
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(D)5

42. यदि MPC =.80 है, तो निवेश में 100 रुपए की वृद्धि होने से आय में वृद्धि होगी-
(A) 400 रुपए
(B) 300 रुपए
(C) 500 रुपए
(D) 200 रुपए
उत्तर:
(C) 500 रुपए

43. यदि MPC = 0.5 है, तो गुणक (K) क्या होगा?
(A) 1
(B) 8
(C) 2
(D) 5
उत्तर:
(C) 2

44. यदि गुणक का मूल्य 10 है, तो उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति होगी-
(A) 0.8
(B) 0.6
(C) 0.9
(D) 0.5
उत्तर:
(C) 0.9

45. यदि MPC(\(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)) = 1 हो, तो गुणक होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(D) ∞ (अनंत)

46. यदि MPC = 0 हो, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(B) 1

47. जब गुणक का आकार 1 है, तो MPC होगी-
(A) 1
(B) \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(C) शून्य
(D) 3
उत्तर:
(C) शून्य

48. गुणक का MPC के साथ-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) आनुपातिक संबंध होता है
(D) कोई संबंध नहीं होता है
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

49. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.2 है, तो गुणक का मान होगा-
(A) 2.0
(B) 1.25
(C) 4.0
(D) 5.0
उत्तर:
(D) 5.0

50. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.4 है, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) 6
(B) 2
(C) 4
(D) 2.5
उत्तर:
(D) 2.5

51. यदि \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\) = 1 तब गुणक होगा
(A) शून्य
(B) ∞
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(B) ∞ (अनंत)

52. चूँकि AS = C + S तथा AD = C + I, इसलिए संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ C + S = C + I या वहाँ स्थापित होता है जहाँ-
(A) S = I
(B) S > I
(C) S < I
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(A) S = I

53. न्यून (अभावी) माँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से-
(A) अधिक होती है
(B) कम होती है
(C) बराबर होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कम होती है

54. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोजगार का स्तर होगा-
(A) निम्नतम
(B) अधिकतम
(C) शून्य
(D) ऋणात्मक
उत्तर:
(A) निम्नतम

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

55. न्यून माँग को प्रायः किससे संबोधित किया जाता है?
(A) अवस्फीतिक अंतराल
(B) स्फीतिक अंतराल
(C) आय-व्यय अंतराल
(D) बचत-उपभोग अंतराल
उत्तर:
(A) अवस्फीतिक अंतराल

56. न्यून माँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमतों में कमी
(B) रोज़गार में कमी
(C) उत्पादन में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

57. निम्नलिखित में से कौन-सा न्यून माँग अथवा अवस्फीतिक अंतराल का कारण नहीं है?
(A) निजी उपभोग व्यय में कमी
(B) निवेश व्यय में कमी
(C) आयातों में कमी
(D) करों में वृद्धि
उत्तर:
(C) आयातों में कमी

58. निम्नलिखित में से न्यून माँग के परिणाम होते हैं-
(A) कीमत स्तर में निरंतर गिरावट
(B) लाभ घटने लगते हैं।
(C) निवेश निरुत्साहित होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

59. अधिमाँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से होती है-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिक

60. अधिमाँग =
(A) ADE + ADF
(B) ADE – ADF
(C) ADE ÷ ADF
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ADE – ADF

61. अधिमाँग की स्थिति में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) AD > AS
(B) AD < AS
(C) AD = AS
(D) AD x AS
उत्तर:
(A) AD > AS

62. स्फीतिक अंतराल निम्नलिखित में से किसका माप है?
(A) न्यून माँग
(B) अधिमाँग
(C) उपभोग प्रवृत्ति का
(D) निवेश प्रवृत्ति का
उत्तर:
(B) अधिमाँग

63. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिमाँग (स्फीतिक अंतराल) का कारण है?
(A) कर की दर में वृद्धि
(B) निवेश में कमी
(C) सरकारी व्यय में कमी
(D) आयातों में कमी
उत्तर:
(D) आयातों में कमी

64. अधिमाँग का निम्नलिखित में से कौन-सा परिणाम है?
(A) कीमत स्तर में निरंतर वृद्धि होती है
(B) उत्पादन को अधिक बढ़ाया नहीं जा सकता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

65. अधिमाँग का कारण होता है-
(A) उपभोग माँग में वृद्धि
(B) निवेश माँग में वृद्धि
(C) निर्यात माँग में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

66. अधिमाँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमत में वृद्धि
(B) उत्पादन में कमी
(C) रोज़गार में कमी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कीमत में वृद्धि

67. अभावी माँग को ठीक करने का राजकोषीय उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि व करों की कमी
(B) सार्वजनिक ऋणों में कमी
(C) घाटे की वित्त व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

68. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) करों में कमी

69. अत्यधिक माँग को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) घाटे की वित्त व्यवस्था।
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
उत्तर:
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

70. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

71. अभावी माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

72. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की केंद्रीय बैंक द्वारा खरीद
(B) साख की राशनिंग खत्म करके
(C) ऋण की सीमांत आवश्यकता में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

73. अत्यधिक माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय
उत्तर:
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय

74. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में वृद्धि
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) बैंक दर में वृद्धि

75. स्फीतिक अंतराल को कम करने का उपाय है-
(A) कर तथा ऋण द्वारा लोगों की व्यय योग्य
(B) पूर्ति में वृद्धि करना आय कम करना
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ति में वृद्धि करना

76. विस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय है-
(A) करों में कमी तथा व्यय में वृद्धि।
(B) साख-प्रवाह में वृद्धि
(C) निर्यातों में आधिक्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र माँग के घटक, निजी उपभोग व्यय, निजी निवेश आय, सरकारी व्यय तथा …………………. है। (शुद्ध निर्यात/उपभोग व्यय)
उत्तर:
शुद्ध निर्यात

2. आय एवं ……………. का संबंध उपभोग फलन होता है। (बचत/उपभोग)
उत्तर:
उपभोग

3. आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय के अनुपात को …………………. कहते हैं। (उपभोग प्रवृत्ति/बचत प्रवृत्ति)
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति

4. समग्र माँग …………………. व्यक्त करती है। (संभावित कुल प्राप्तियाँ/संभावित कुल व्यय)
उत्तर:
संभावित कुल व्यय

5. समग्र माँग कीमत ………………….. व्यक्त करती है। (संभावित प्राप्तियाँ न्यूनतम प्राप्तियाँ)
उत्तर:
बचत

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

6. गुणक का मूल्य = ……………………. \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} / \frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
उत्तर:
\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

7. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर ………………… बचत होती है। (धनात्मक/ऋणात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

8. माँग आधिक्य के कारण कीमत ………………… है। (बढ़ती/घटती)
उत्तर:
बढ़ती

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. केज का रोजगार सिद्धान्त खुली अर्थव्यवस्था में लागू होता है।
  2. ऐच्छिक बेरोजगारी पूर्ण रोजगार की अवस्था में भी हो सकती है।
  3. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोज़गार का स्तर निम्नतम होगा।
  4. किसी पुरानी कम्पनी के शेयर खरीदना वास्तविक निवेश है।
  5. यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य है तो गुणक का मूल्य 1 होगा।
  6. स्वचालित निवेश ब्याज की दर पर निर्भर करता है।
  7. MPC शून्य से अधिक और इकाई से कम होती है।
  8. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति सदैव धनात्मक होती है।
  9. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक होती है।
  10. परम्परावादी रोज़गार सिद्धान्त के अनुसार बचत आय का फलन है।
  11. आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
  12. ‘से’ का बाज़ार नियम परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त का मुख्य आधार है।
  13. जे० बी० से के अनुसार, “पूर्ति स्वयं अपनी माँग का निर्माण करती है।”
  14. गुणक का मूल्य = 1-MPS
  15. सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग एक होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के किन्हीं दो परिवर्तों (Variables) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के दो मुख्य परिवर्त हैं:

  • उपभोग तथा
  • निवेश।

प्रश्न 2.
प्रत्याशित (नियोजित या इच्छित) उपभोग क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा नियोजित उपभोग से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) उपभोग के मूल्य से है। यह सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
प्रत्याशित (नियोजित) निवेश क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित निवेश से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) निवेश के मूल्य से है। यह बाज़ार ब्याज की दर पर निर्भर करता है।

प्रश्न 4.
प्रस्तावित (प्रयोजित) और यथार्थ (वास्तविक) निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में फर्मों और नियोजकों द्वारा आरंभ में जितना निवेश करने की योजना होती है, उसे प्रस्तावित निवेश कहते हैं। दी हुई अवधि में वास्तव में जितना निवेश किया जाता है, उसे यथार्थ निवेश कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्याशित (Ex-ante) बचत और यथार्थ (Ex-post) बचत में भेद का आधार क्या है?
उत्तर:
दोनों में भेद का आधार प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रस्तावित स्थिति और प्रक्रिया समाप्ति के बाद वास्तविक स्थिति है। अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक अवधि में जितना बचाने की योजना बनाई जाती है, उसे प्रत्याशित बचत कहते हैं। इसके विपरीत, अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं, उसे यथार्थ बचत कहते हैं।

प्रश्न 6.
समीकरण C = C + bY के घटक बताइए।
उत्तर:
C उपभोग फलन का प्रतीक है, \(\overline{\mathrm{C}}\) स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) को दर्शाता है, b सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का प्रतीक है और Y आय (राष्ट्रीय आय) का प्रतीक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति (AS) किसे कहते हैं? समग्र पूर्ति के दो घटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन को समग्र पूर्ति कहते हैं। मौद्रिक रूप में राष्ट्रीय आय, समग्र पूर्ति का प्रतीक है।
समग्र पूर्ति के दो घटक हैं-

  • उपभोग
  • बचत।

समग्र पूति = उपभोग + बचत।

प्रश्न 8.
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित (Classical) अवधारणा, केज की AS अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रतिष्ठित अवधारणा के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार रहती है, जबकि केज़ के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार रहती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
बचत प्रवृत्ति अथवा बचत फलन से अभिप्राय बचत और आय के बीच संबंध बताने वाली प्रवृत्ति से है। अन्य शब्दों में, आय और बचत के बीच फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय आय (Y) के साथ बचत (S) के अनुपात को बताने वाली दर से है। सूत्र के रूप में
APS = \(\frac { S }{ Y }\)

प्रश्न 11.
सीमांत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सीमांत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय बचत में परिवर्तन (∆S) और आय में परिवर्तन (∆Y) के अनुपात से है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।

प्रश्न 12.
मितव्ययिता (बचत) का विरोधाभास (Paradox of Saving) क्या है?
उत्तर:
मितव्ययिता का विरोधाभास वह सिद्धांत है जिसके अनुसार जब लोग अधिक मितव्ययी हो जाते हैं तो वे समस्त रूप से बचत कम करते हैं या पूर्ववत करते हैं क्योंकि अधिक बचत = कम माँग = उपभोग में कमी = आय में कमी = बचत में कमी।

प्रश्न 13.
औसत बचत प्रवृत्ति का औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या संबंध है?
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति + औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1, अर्थात् औसत बचत प्रवृत्ति के अधिक होने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति कम होगी।

प्रश्न 14.
निवेश को समझ पाने में किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:

  • निवेश से आगम
  • ब्याज की दर
  • भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

प्रश्न 15.
निवेश माँग फलन क्या होता है?
उत्तर:
निवेश माँग फलन से हमारा अभिप्राय निवेश माँग और ब्याज की दर के संबंध से है।

प्रश्न 16.
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय में वृद्धि होती है।

प्रश्न 17.
संतुलन आय में बचत और निवेश का क्या संबंध होता है?
उत्तर:
संतुलन आय में प्रत्याशित बचत और प्रत्याशित निवेश दोनों बराबर होते हैं अर्थात् प्रत्याशित बचत = प्रत्याशित निवेश।

प्रश्न 18.
निवेश गुणक की धारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निवेश गुणक से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार, निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 1

प्रश्न 19.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन का शाब्दिक अर्थ है, दो विपरीत स्थितियों के बीच साम्य या बराबरी। यहाँ इससे अभिप्राय समग्र माँग और . समग्र पूर्ति के विशेष कीमत पर बराबर-बराबर होने से है।

प्रश्न 20.
उत्पादन का स्तर क्या है?
उत्तर:
उत्पादन का वह स्तर, जिस पर उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा, माँगी गई मात्रा के बराबर हो, उत्पादन का संतुलन स्तर कहलाता है।

प्रश्न 21.
ऐच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए योग्य व्यक्ति अपनी इच्छा से कार्य नहीं करते यद्यपि अर्थव्यवस्था में उनके लिए उपयुक्त कार्य उपलब्ध होता है।

प्रश्न 22.
अनैच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए इच्छुक और योग्य व्यक्तियों को रोज़गार प्राप्त न हो।

प्रश्न 23.
प्रभावी माँग का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
प्रभावी माँग का सिद्धांत यह बताता है कि समस्त निर्गत (उत्पादन) का निर्धारण केवल समस्त माँग के मूल्यों द्वारा होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 24.
पूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था में संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग हो रहा हो।

प्रश्न 25.
अपूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अपूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग नहीं हो रहा हो अर्थात् कुछ संसाधन अप्रयुक्त रहते हैं। यह स्थिति समस्त माँग का समस्त पूर्ति से कम होने पर उत्पन्न होती है।

प्रश्न 26.
क्या बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है?
उत्तर:
हाँ, बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है क्योंकि संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ समग्र माँग (AD), समग्र पूर्ति (AS) के बराबर होती है। लेकिन संतुलन अवस्था पूर्ण रोज़गार की स्थिति में ही हो, यह जरूरी नहीं होता। संतुलन स्थिति अपूर्ण रोज़गार अवस्था पर भी हो सकती है।

प्रश्न 27.
केज़ सिद्धांत के अनुसार अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
समग्र माँग में वृद्धि द्वारा अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से कम रह जाती है, तो उसे माँग का अभाव कहते हैं।

प्रश्न 29.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग, पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से अधिक होती है, तो उसे माँग आधिक्य कहते हैं।

प्रश्न 30.
मुद्रास्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार के स्तर के बाद निर्धारित होता है तो वह मुद्रास्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 31.
अवस्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि कुल माँग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो वह अवस्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 32.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 33.
बैंक दर से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बैंक दर से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिस पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंक को वित्तीय सुविधाएँ अर्थात् ऋण प्रदान करता है।

प्रश्न 34.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की व्यय तथा कर नीति से है; जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में कुल माँग के संतुलन को ठीक करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 35.
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) और साविधिक तरल अनुपात (SLR) में भेद कीजिए।
उत्तर:
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात कानूनी त पर केंद्रीय बैंक के पास जमा करना होता है, उसे नकद रिजर्व अनपात (CRR) कहते हैं।

साविधिक तरल अनुपात (SLR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना कानूनन अनिवार्य होता है, उसे साविधिक तरल अनुपात (SLR) कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक काल्पनिक उपभोग तालिका की सहायता से उपभोग फलन की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
केज के अनुसार, “उपभोग और आय के बीच के संबंध को उपभोग की प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।” उपभोग फलन आय और उपभोग के पारस्परिक संबंध को दर्शाता है। उपभोग फलन हमें बताता है कि आय का कौन-सा भाग उपभोग वस्तुओं की माँग पर व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, Consumption = f (Y).

प्रो० केज़ के अनुसार, “जैसे-जैसे किसी परिवार की आय बढ़ती जाती है, उसका उपभोग व्यय भी बढ़ता जाता है, परंतु उपभोग उस दर से नहीं बढ़ता, जिस दर से आय बढ़ती है।” दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, बचत भी बढ़ती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय भी कम होता जाता है। हम उपभोग फलन को निम्नलिखित काल्पनिक तालिका के रूप में दिखा सकते हैं
उपभोग फलन तालिका

राष्ट्रीय आय
(करोड़ रुपए)
उपभाग
(करोड़ रुपए)
030
100100
200170
300240
400310
500380
600450

प्रश्न 2.
उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति क्या है? अर्थव्यवस्था में आय स्तर को यह कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
आय में वृद्धि का वह भाग जो उपभोग पर व्यय किया जाता है, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहलाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति एक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को प्रदर्शित करती है। उपभोग कुल माँग का एक संघटक है। राष्ट्रीय आय का स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर हों। अगर कुल माँग कम है तो राष्ट्रीय आय का स्तर भी कम होगा। इसके अतिरिक्त, अर्थव्यवस्था में गुणक का मूल्य सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का मूल्य भी उतना ही अधिक होगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 3.
बचत की परिभाषा दीजिए। एक बचत अनुसूची बनाइए तथा उस पर आधारित वक्र खींचिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है। सूत्र के रूप में,
बचत = आय – उपभोग
काल्पनिक बचत अनुसूची और इस पर आधारित रेखाचित्र निम्नलिखित प्रकार से बना सकते हैं-
काल्पनिक उपभोग और बचत अनुसूची
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 3

राष्ट्रीय आय (Y)उपभोग (C)बचत (S)
06-6
1013-3
20200
30273
40346
50419
604812
705515

उपर्युक्त अनुसूची के आधार पर हम संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र खींच सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘निवेश गुणक’ की अवधारणा से क्या अभिप्राय है? सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और निवेश गुणक के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। दूसरे शब्दों में, (निवेश) गुणक आय में होने वाले परिवर्तन तथा निवेश में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 4
गुणक का प्रत्यक्ष संबंध सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक उतना ही अधिक होगा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 5
हम एक उदाहरण द्वारा गुणक की प्रक्रिया समझा सकते हैं। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 80% अर्थात् 0.8 है और नवीन निवेश 100 करोड़ रुपए है। निवेश में वृद्धि होने के फलस्वरूप अतिरिक्त वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी जिसकी पूर्ति के लिए उत्पादक अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को बढ़ाएँगे। यह निवेश जिन लोगों की आय बनेगी, वे उसका 80% व्यय करेंगे। यह क्रम उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि निवेश की पूरी राशि समाप्त नहीं हो जाती।

इस प्रकार 100 करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश से अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्पन्न होगी। इस प्रकार सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के 0.8 पर गुणक 5 है। इसे हम इस प्रकार निकाल सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 6

प्रश्न 5.
समग्र माँग के कोई तीन संघटक बताइए।
उत्तर:
समग्र माँग के तीन संघटक निम्नलिखित हैं-
1. पारिवारिक उपभोगिक माँग-पारिवारिक उपभोगिक माँग का स्तर सबसे पहले परिवार की प्रबंध आय पर निर्भर करता है। उपभोग और आय के बीच संबंध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।

2. निवेश माँग-निवेश का अर्थ पूँजी की नई संपत्ति बनाने पर होने वाले खर्च से है। किसी अर्थव्यवस्था में निवेश दो कारकों पर निर्भर करता है। (क) ब्याज की दर (ri) तथा (ख) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI)।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-सरकार की यह माँग सार्वजनिक आवश्यकताओं; जैसे सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य, सिंचाई, बिजली आदि के लिए हो सकती है।

प्रश्न 6.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो आय के साथ उपभोग के अनुपात को बताती है। इस प्रकार
औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभोग }{ आय }\)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो उपभोग में परिवर्तन और आय में परिवर्तन का अनुपात बताती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 7
आय में परिवर्तन औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य एक से अधिक हो सकता है। यह उस समय हो सकता है जब निम्न आय स्तर पर लोगों का उपभोग उनकी आय से अधिक हो।

प्रश्न 7.
समष्टि अर्थशास्त्र में समग्र माँग और समग्र पूर्ति से क्या अभिप्राय है? जब ये दोनों बराबर हों तो क्या पूर्ण रोज़गार की स्थिति होगी?
उत्तर:
समग्र माँग से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। दूसरे शब्दों में, समग्र माँग से अभिप्राय उपभोग तथा निवेश पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र माँग = उपभोग + निवेश
समग्र पूर्ति से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य से है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति से अभिप्राय उपभोग तथा बचत के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र पूर्ति = उपभोग + बचत
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग और समग्र पूर्ति बराबर होते हैं। संतुलन की इस स्थिति पर पूर्ण रोज़गार का होना आवश्यक नहीं है। संतुलन की यह
स्थिति पूर्ण रोज़गार के स्तर से पहले अथवा बाद में भी हो सकती है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अधिमाँग अथवा अभावी माँग की स्थिति हो जाती है।

प्रश्न 8.
एक सीधी पंक्ति का उपभोग वक्र खींचिए। प्रक्रिया समझाते हुए उसका एक बचत वक्र खींचिए। निम्नलिखित को रेखाचित्र पर दिखाइए
(i) आय का वह स्तर जिस पर उपभोग औसत प्रवृत्ति इकाई (1) के बराबर है।
(ii) आय का वह स्तर जिस पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।
उत्तर:
संलग्न रेखाचित्र उपभोग वक्र और बचत वक्र को दर्शाता है-
संलग्न रेखाचित्र में, CC उपभोग वक्र है और OY आय वक्र है। यह एक तथ्य है जो कि बचत आय और उपभोग का अंतर है। जब आय शून्य है तो उपभोग OC के बराबर है और बचत – OA होगी। इसी प्रकार -A बचत वक्र का प्रारंभिक बिंदु होगा। E बिंदु पर आय और उपभोग एक बराबर हैं और बचत शून्य है। इस प्रकार बचत वक्र का एक बिंदु B भी होगा। -A और B बिंदु को मिलाते हुए जो वक्र खींची जाएगी वह बचत वक्र होगी। इस प्रकार -AS बचत वक्र होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 8
बचत वक्र पर OB आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति एक के बराबर है। -AS बचत वक्र पर OY आय स्तर पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।

प्रश्न 9.
एक अर्थव्यवस्था के लिए सीधी रेखा बचत वक्र एक रेखाचित्र पर खींचिए। इसके आधार पर उपभोग वक्र बनाइए और इसके बनाने की विधि बताइए। उपभोग वक्र पर एक ऐसा बिंदु दर्शाइए जिस पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर हो।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात् आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है।
सूत्र के रूप में,
बचंत = आय – उपभोग
आय वक्र उद्गम पर 45° का कोण बनाता है। आय वक्र और बचत वक्र की दूरी से उपभोग को मापा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जब बचत ऋणात्मक है तो उपभोग वक्र 45° वक्र के ऊपर होगा। जहाँ उपभोग वक्र और आय वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो आय और उपभोग वहाँ बराबर होंगे और बचत शून्य होगी। 1 के बराबर होगी। संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र, आय वक्र और उपभोग वक्र दर्शाए गए हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 9
संलग्न रेखाचित्र में SS1 बचत वक्र है और OY आय वक्र है जो 45° कोण वक्र है। चूँकि OS उद्गम पर ऋणात्मक बचत प्रदर्शित करती बचत है, उपभोग वक्र का उद्गम C बिंदु होगा क्योंकि OC = OS, A1 बिंदु पर बचत शून्य है। C और A1 बिंदुओं को जोड़ते हुए CC1 उपभोग वक्र खींचा जा सकता है।

A1 बिंदु पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर होगी क्योंकि इस बिंदु पर आय और उपभोग बराबर होते हैं।

प्रश्न 10.
उपभोग + निवेश (C+I) वक्र की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के समायोजन इन दोनों को बराबर कर देंगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो?
अथवा
उपभोग + निवेश (C + I) दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
उपभोग + निवेश वक्र का तात्पर्य समग्र अथवा कुल माँग वक्र से है। एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन वहाँ निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग कुल पूर्ति के बराबर हो। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से कम है तो राष्ट्रीय उत्पादन और आय में कमी होने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक है तो राष्ट्रीय आय और उत्पादन में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 10
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय आय का संतुलन बिंदु E है और इस संतुलन बिंदु पर राष्ट्रीय आय OY होगी।

यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका अर्थ यह हुआ कि परिवार इतना उपभोग नहीं कर रहे हैं जितना उन्हें करना चाहिए, क्योंकि अधिक बचत से उपभोग कम होता है। कम उपभोग का परिणाम यह होगा कि विक्रेताओं के पास बिना बिके माल का स्टॉक राष्ट्रीय आय एकत्रित होने लगेगा, क्योंकि माँग पूर्ति की तुलना में कम है। बिना बिके माल के स्टॉक में वृद्धि से उत्पादक उत्पादन (तथा रोज़गार) में कमी करेंगे। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती।

प्रश्न 11.
बचत और निवेश वक्रों की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के परिवर्तन इन दोनों में समानता लाएँगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से कम हो,
अथवा
बचत-निवेश दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ बचत और निवेश बराबर होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
संलग्न रेखाचित्र में SS बचत वक्र है और II निवेश वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को A बिंदु पर काटते हैं। A बिंदु पर राष्ट्रीय आय का संतुलन है जहाँ राष्ट्रीय आय OY होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 11
यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका यह प्रभाव होगा कि परिवार उपभोग पर कम व्यय कर रहे हैं और उनकी बचत निवेश से अधिक होगी। इसके फलस्वरूप व्यापारियों के पास वस्तुओं का बिना बिका हुआ स्टॉक जमा हो जाएगा। इस राष्ट्रीय आय + स्टॉक को कम करने के लिए विभिन्न फर्मे अपने उत्पादन में कमी करेंगी; जिससे रोज़गार में भी कमी आएगी। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि बचत और नियोजित निवेश बराबर नहीं हो जाते।

प्रश्न 12.
बचत और निवेश सदैव बराबर होते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बचत और निवेश दोनों ही दो प्रकार के होते हैं-

  • नियोजित
  • वास्तविक।

वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश हमेशा बराबर होते हैं, लेकिन ऐच्छिक बचत और ऐच्छिक निवेश केवल तभी बराबर होंगे जब अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय संतुलन की स्थिति में होगी क्योंकि संतुलन स्थिति में कोई भी अनैच्छिक या अनियोजित निवेश नहीं होता। बचत और निवेश की समानता को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है-
Y = C + S
और Y = C + I
अतः S = I

प्रश्न 13.
समझाइए कि किस प्रकार समग्र माँग और समग्र पूर्ति पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ समग्र माँग (C+ I) समग्र पूर्ति (C+S) के बराबर हो। लेकिन इस स्थिति का पूर्ण रोज़गार स्तर पर होना आवश्यक नहीं है। राष्ट्रीय आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर भी हो सकता है। ऐसा उस समय संभव है जब समग्र माँग समग्र पूर्ति से कम हो। इस स्थिति को अभावी माँग या अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 12
संलग्न रेखाचित्रं में हम देखते हैं कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति राष्ट्रीय आय पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।

प्रश्न 14.
स्फीतिक अंतराल व अवस्फीतिक अंतराल के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर के बाद निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
स्फीतिक अंतराल = नियोजित कुल व्यय – संतुलन स्तर का व्यय
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से पहले निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
अवस्फीतिक अंतराल = संतुलन स्तर का व्यय – नियोजित कुल व्यय
स्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक होती है जिससे कीमतें बढ़ने लगती हैं। इसके विपरीत, अवस्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है जिससे कीमतें घटने लगती हैं।

प्रश्न 15.
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार मौद्रिक नीति के उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के मौद्रिक नीति के चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. बैंक दर-अभावी माँग में केंद्रीय बैंक, बैंक दर में कमी करेगा जिससे व्यावसायिक बैंकों की ब्याज दर कम हो जाएगी और बैंक उद्यमियों को सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे।
  2. खुली बाज़ार प्रक्रिया-इस उपाय के अंतर्गत केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियाँ बड़े पैमाने पर क्रय करता है, इससे व्यावसायिक बैंकों की ऋण देय क्षमता बढ़ जाती है।
  3. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में कमी करेगा जिससे बैंकों की ऋण देय क्षमता अधिक हो जाएगी।
  4. सीमांत अनिवार्यताओं में परिवर्तन-केंद्रीय बैंक सदस्यं बैंकों को यह आदेश देगा कि वे अपनी सीमांत अनिवार्यता कम कर दें, इससे लोगों को अधिक ऋण लेने में सुविधा होगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 16.
अवस्फीतिक अंतराल या अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार राजकोषीय उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीति अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के निम्नलिखित चार उपाय अपनाए जा सकते हैं-
1. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-अभावी माँग को दूर करने के लिए सरकार को सावजनिक व्यय में वृद्धि करनी होगी ताकि मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाए। सरकार सड़कें बनाने, विद्युतीकरण, जन-स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक व्यय कर सकती है।

2. करों में कमी देश में लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सरकार कर की दरों में कमी कर सकती है जिससे लोग अधिक मात्रा में क्रय करें और माँग में वृद्धि हो।

3. सार्वजनिक ऋणों में कमी-सरकार को लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सार्वजनिक ऋणों में कमी करनी चाहिए ताकि लोगों की क्रय-शक्ति अधिक हो और कुल माँग में वृद्धि हो।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था सरकार को घाटे का बजट बनाना चाहिए और नए नोट छापकर दीर्घकालीन परियोजनाओं पर व्यय करना चाहिए।

प्रश्न 17.
ऐसे किन्हीं दो उपायों का वर्णन करें जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को कम करने का प्रयत्न कर सकता हैं।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को निम्नलिखित उपायों द्वारा कम करने का प्रयत्न कर सकता है-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपनी माँग जमा दायित्व का न्यूनतम प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात को बढ़ाकर व्यावसायिक बैंकों के नकदी के साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपनी ऋण को कम करने के लिए मजबूर कि

2. कटौती की दर में परिवर्तन केंद्रीय बैंक जैसेकि ऋण थोक के व्यापारी जिस पर व्यावसायिक बैंकों जैसेकि परचून में ऋण का व्यापार करने वालों को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से केंद्रीय बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (आई.ओ.यू.) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ या ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोट की पुनः कटौती करके। व्यावसायिक बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए करनी पड़ती है। कटौती की दर बढ़ाकर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को सीधे से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित ‘ कर सकता है।

प्रश्न 18.
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय बताएँ।
उत्तर:
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय निम्नलिखित हैं-
1. आय का पुनर्वितरण-उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आय का पुनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में होना चाहिए। मोग प्रवत्ति धनी वर्ग की उपभोग प्रवत्ति से अधिक होती है, इसलिए यदि आय का पनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में किया जाए अर्थात् अमीरों की कुछ आय गरीबों को प्राप्त होने लगे तो स्वाभाविक है कि उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी।

2. सामाजिक सुरक्षा-लोगों को सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएँ प्रदान करने से भी उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। जब सरकार लोगों को बेरोज़गारी भत्ते, पेंशन तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ इत्यादि प्रदान करती है तो लोगों में असुरक्षा का भय समाप्त हो जाता है। फलस्वरूप लोगों की बचत करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।।

3. साख सुविधाएँ साख सुविधाओं के उपलब्ध होने पर लोग अधिक मात्रा में कार, स्कूटर, टेलीविज़न, फ्रिज आदि खरीदेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।

4. नगरीकरण-ग्रामीण लोगों में नगरीकरण की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। यह देखने में आया है कि शहरों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है। अतः यदि नगरीकरण द्वारा ग्रामीण जनता के कुछ भाग- को नगरों में बसाने का प्रयत्न किया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 19.
निवेश को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों या तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निवेश को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. विदेशी व्यापार-किसी देश के विदेशी व्यापार का भी निवेश पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि देश में विदेशी व्यापार के विस्तार की सम्भावना बढ़ जाती है, तो निवेश पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत विदेशी व्यापार की मात्रा के कम हो जाने का निवेश की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात् निवेश कम मात्रा में किया जाता है।

2. राजनीतिक वातावरण-यदि देश का राजनीतिक वातावरण शान्तिपूर्ण है तथा देश में आन्तरिक व बाहरी शान्ति एवं स्थिरता है तो इसका निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि देश में अशान्ति और अस्थिरता का वातावरण है, कानून व्यवस्था ठीक नहीं है, विदेशी आक्रमण का भय बना हुआ है तो इसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश कम हो जाता है।

3. व्यावसायिक आशाएँ-निवेश प्रेरणा व्यावसायिक आशाओं पर भी निर्भर करती है। यदि निवेशकर्ता भविष्य के सम्बन्ध में आशावादी (Optimistic) होंगे तो निवेश में वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि निवेशकर्ता निराशावादी (Pessimistic) होंगे तो निवेश की मात्रा कम होगी।

4. पूँजी का वर्तमान स्टॉक-किसी अर्थव्यवस्था में पूँजी के वर्तमान स्टॉक का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि पूँजीगत वस्तुओं का स्टॉक बहुत अधिक है तो अतिरिक्त निवेश नहीं किया जाएगा। यदि वर्तमान पूँजीगत स्टॉक को पूर्ण रूप से प्रयोग कर लिया गया है, परन्तु माँग में लगातार वृद्धि हो रही है, तो नए निवेश की सम्भावना अधिक होगी।

प्रश्न 20.
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त/स्वतंत्र निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त निवेश में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

प्रेरित निवेशस्वायत्त निवेश
1. यह निवेश आय प्रेरित होता है।1. यह निवेश आय प्रेरित नहीं होता।
2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम सामाजिक कल्याण होता है।
3. प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र में किया जाता है, इसे निजी निवेश भी कहते हैं।3. स्वायत्त निवेश प्रायः सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार द्वारा किया जाता है, इसे सार्वजनिक निवेश भी कहते हैं।
4. प्रेरित निवेश का स्तर केवल लाभप्रदता की मात्रा से प्रभावित होता है।4. स्वायत्त निवेश का स्तर राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य कारणों से प्रभावित होता है।

प्रश्न 21.
निजी निवेश तथा सार्वजनिक निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी निवेश-निजी निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो निजी व्यक्ति लाभ कमाने के उद्देश्य से करते हैं। इस प्रकार का निवेश केज के अनुसार मुख्यतः दो तत्त्वों पर निर्भर करता है (i) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) तथा (ii) ब्याज की दर (Rate of Interest)। यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) ब्याज की दर (r) से अधिक है अर्थात् (MEC>r), तो निजी निवेश अधिक किया जाएगा। इसके विपरीत, यदि MEC, ब्याज की दर से कम है अर्थात् (MEC <r) तो निजी निवेश नहीं किया जाएगा। इस प्रकार का निवेश, प्रेरित निवेश (Induced Investment) होता है।

सार्वजनिक निवेश सार्वजनिक निवेश वह निवेश है जो देश की केन्द्रीय, प्रान्तीय या स्थानीय सरकारों के द्वारा किया जाता है। यह निवेश लोगों के कल्याण, देश की सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के लिए किया जाता है। यह निवेश लाभ के उद्देश्य से नहीं किया जाता। अतः यह लाभ-सापेक्ष (Profit Elastic) नहीं होता। यह निवेश साधारणतया स्वतंत्र निवेश होता है। स्कूलों, कॉलेजों, रेलों, सड़कों, अस्पतालों, नहरों तथा बाँधों आदि पर किया जाने वाला निवेश इसी श्रेणी में आता है।

प्रश्न 22.
रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में पूर्ण रोजगार कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार परिभाषित कर संतुलन बिंदु सकते हैं। “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 13
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM – BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी और बेरोजगारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 23.
क्या एक अर्थव्यवस्था अल्प रोज स्थिति में हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
आय व रोज़गार का संतुलन स्तर उस बिंदु पर होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर होती है। संतुलन स्तर के पूर्ण रोजगार स्तर पर निर्धारण में कुल माँग महत्त्वपूर्ण घटक है। कुल माँग उपभोग और वास्तविक स्तर पर निवेश का योग है। संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार स्तर से कम हो सकता है जहाँ अल्प रोज़गार होता है। अल्प रोज़गार संतुलन की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है, जब अभावी माँग अर्थात् अवस्फीतिक अंतराल हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 14
संलग्न रेखाचित्र में F पूर्ण रोज़गार स्तर है जहाँ राष्ट्रीय आय OYf होनी चाहिए, परंतु अभावी माँग के कारण आय का वास्तविक राष्ट्रीय आय  संतुलन स्तर E पर है जहाँ राष्ट्रीय आय OY है। पूर्ण रोज़गार संतुलन पर पहुँचने के लिए निवेश व्यय में FG की वृद्धि करनी होगी।

प्रश्न 24.
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में निम्नलिखित अंतर हैं-

राजकोषीय नीतिमौद्रिक नीति
1. इस नीति का संबंध सार्वजनिक आय, व्यय, ऋण एवं बजट से होता है।1. इस नीति का संबंध मुद्रा की पूर्ति तथा साख की उपलब्धता एवं लागत से होता है।
2. इसका निर्धारण प्रायः वित्त मंत्रालय करता है।2. इसका निर्धारण केंद्रीय बैंक करता है।
3. इस नीति का अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।3. इसका प्रमुख रूप से उत्पादक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है।
4. इस नीति के मुख्य संघटक कर, सार्वजनिक व्यय, ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था आदि हैं।4. इस नीति के मुख्य संघटक बैंक दर, खुली बाज़ार प्रक्रियाएँ, तरलता अनुपात आदि हैं।

प्रश्न 25.
‘से’ के बाजार नियम की कोई पाँच मान्यताएँ बताएँ।
उत्तर:
‘से’ के बाज़ार नियम की पाँच मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
1. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था पाई जाती है जिसमें माँग तथा पूर्ति की शक्तियों के द्वारा सन्तुलन स्थापित होता है।

2. लोचशील कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज-कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज पूर्णतया लोचशील हैं। यदि माँग पूर्ति से कम है तो कीमतें कम हो जाएँगी जिससे माँग तथा पूर्ति में फिर से सन्तुलन आ जाएगा। यदि देश में बेरोज़गारी है तो मज़दूरी कम हो जाएगी जिससे रोज़गार बढ़ जाएगा। इसी प्रकार, यदि निवेश तथा बचत में असन्तुलन है तो ब्याज की दर में परिवर्तन होने से निवेश तथा बचत में समानता आ जाएगी।

3. मुद्रा केवल विनिमय का माध्यम है-मुद्रा केवल एक आवरण (Veil) है जिसका अर्थ है कि मुद्रा द्वारा केवल वस्तुओं का लेन-देन ही होता है। मुद्रा धन के संचय के लिए नहीं होती।

4. धन-संचय का न होना-लोग जो कुछ कमाते हैं, वह समस्त मुद्रा व्यय कर दी जाती है अर्थात् किसी प्रकार का संचय (Hoarding) नहीं किया जाता। मुद्रा को या तो उपभोग पदार्थों पर खर्च कर दिया जाता है या पूँजी पदार्थों पर। यही कारण है कि बचत तथा निवेश एक-समान हो जाते हैं।

5. राज्य के तटस्थ होने की नीति-आर्थिक क्षेत्र में राज्य की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अर्थव्यवस्था में माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्वयं ही संतुलन (Automatic Adjustment) स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 26.
उपभोग फलन को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को निम्नलिखित तालिका की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है दी गई तालिका से स्पष्ट होता है कि आरम्भ में जब आय शून्य है तो लोगों का उपभोग 10 करोड़ रुपए है। लोग यह उपभोग व्यय पिछली बचतों (Past Savings) के द्वारा या उधार लेकर करते हैं। जब आय बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाती है, तो उपभोग व्यय भी बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाता है। यहाँ बचत शुन्य होती है और जब आय बढ़कर क्रमशः 200, रुपए हो जाती है तो उपभोग व्यय बढ़कर क्रमशः 190, 280, 370 व 460 करोड़ रुपए हो जाता है। तालिका से यह भी स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ रही है, उपभोग व्यय तथा बचत भी बढ़ रहे हैं, परन्तु उपभोग व्यय में होने वाली वृद्धि आय में होने वाली वृद्धि की तुलना में कम होती है।

आयउपशायबचत
010-10
1001000
200190+10
300280+20
400370+30
500460+40

रेखाचित्र-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है चित्र में OX-अक्ष पर आय तथा OY-अक्ष पर उपभोग और बचत को दर्शाया गया है। चित्र में 45° वाली Y = C + S रेखा आय तथा उपभोग + बचत की समानता को प्रकट करती है। चित्र में CC रेखा उपभोग वक्र है। चित्र से स्पष्ट है कि जब आय शून्य है तो उपभोग व्यय OC है। आय के OY तक बढ़ जाने से उपभोग व्यय आय के समान है तथा इस बिन्दु पर बचत शून्य है।

OY के बाद आय में वृद्धि से उपभोग व्यय अवश्य बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है। चित्र में SS वक्र बचत रेखा है जो कि यह स्पष्ट करती है कि शून्य आय के स्तर पर बचत ऋणात्मक है। आय के OY स्तर पर बचत शून्य है तथा इसके बाद आय के बढ़ने पर बचत बढ़ती जाती है; जैसे आय के OY1 स्तर पर उपभोग C1Y1 है और बचत S1 C1 है। इस प्रकार CC उपभोग वक्र की ढलान से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि आय होती है, उपभोग व्यय भी बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय की तुलना में कम दर से होती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 15

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित कीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है? उपभोग फलन के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोग फलन/उपभोग प्रकृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ-उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी तालिका है जो आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करती है अर्थात् उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध (Functional Relationship) व्यक्त करती है। इससे यह पता चलता है कि आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग व्यय के कौन-कौन से स्तर हैं।

उपभोग (Consumption) और उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) में अन्तर होता है। उपभोग का अर्थ यह है कि किसी देश की समस्त आय में से कल कितना उपभोग पर खर्च किया जाता है। मान लीजिए कि एक देश की राष्ट्रीय आय 100 करोड़ रुपए है और इसमें से 80 करोड़ रुपए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने पर खर्च कर दिए जाते हैं तो 80 करोड़ रुपए उपभोग कहलाएगा, जबकि उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी अनुसूची है जो यह स्पष्ट करती है कि आय के बदलने के साथ-साथ उपभोग कैसे बदलता है?

यदि उपभोग को अक्षर ‘C’ द्वारा और आय को अक्षर ‘Y’ द्वारा दर्शाया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कुल उपयोग व्यय तथा कुल राष्ट्रीय आय में फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। समीकरण के रूप में,
c = f(Y)
इसे पढ़ सकते हैं कि उपभोग (C), आय (Y) का फलन है। समीकरण में (1) उपभोग तथा आय के कार्यात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है और चूँकि उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति भी राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। इसलिए हम (f) को ही उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) कह सकते हैं। यदि हमें लोगों की उपभोग प्रवृत्ति का पता लग जाए तो हमें ज्ञात हो जाता है कि एक दी हुई आय में से देशवासी उपभोग पर कितना व्यय करेंगे। संक्षेप में, उपभोग प्रवृत्ति, उपभोग तथा आय के फलनात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है।
1. डिलर्ड के अनुसार, “आय के विभिन्न स्तरों पर, उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट करने वाली अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।”

2. लिप्सी के अनुसार, “उपभोग फलन उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध में वक्तव्य से अधिक कुछ भी नहीं है।”

3. पीटरसन के अनुसार, “उपभोग फलन की परिभाषा एक अनुसूची के रूप में दी जा सकती है जो कि विभिन्न आय-स्तरों पर उपभोग पदार्थों और सेवाओं पर किए गए व्यय की मात्रा को बताती है।” ।

उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ-उपभोग प्रवृत्ति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उपभोग प्रवृत्ति अल्पकाल में स्थिर रहती है चूँकि उपभोग प्रवृत्ति एक मनोवैज्ञानिक धारणा (Psychological Concept) है, इस पर कई भावगत तत्त्वों (Subjective Factors); जैसे मनुष्यों की आदतों, रुचि, फैशन आदि का प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में ये तत्त्व स्थिर रहते हैं। इसलिए अल्पकाल में उपभोग प्रवृत्ति भी स्थिर रहती है।

2. गरीब वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति, अमीर वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है इसका कारण यह है कि निर्धन लोगों की आय कम होने के कारण कुछ आवश्यकताएँ असन्तुष्ट रहती हैं और जब आय बढ़ती है तो वे तुरन्त ही अपनी असन्तुष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय कर देते हैं। इसके विपरीत अमीर लोगों की आवश्यकताएँ पहले ही तृप्त होती हैं। अतः जब धनी लोगों की आय बढ़ती है तो वह उपभोग पर खर्च न होकर बचत का रूप धारण कर लेती है।

3. अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उपभोग फलन-अल्पकाल में उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग (Autonomous Consumption) प्रकार का होता है। स्वतन्त्र उपभोग से अभिप्राय, उस न्यूनतम उपभोग व्यय से है जो एक व्यक्ति को अवश्य करना पड़ता है, चाहे उसकी आर्य शून्य ही क्यों न हो। जबकि दीर्घकालीन उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग नहीं होता। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में कोई भी व्यक्ति बिना आय के खर्च नहीं कर सकता।

4. आय और रोजगार उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करते हैं-आय और रोज़गार का उपभोग प्रवृत्ति से सीधा सम्बन्ध है। उपभोग प्रवृत्ति के बढ़ने पर कुल उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, फलस्वरूप आय तथा रोज़गार में वृद्धि होती है। इसी प्रकार, उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से कुल उपभोग व्यय में कमी होने के कारण आय और रोज़गार में कमी आती है। अतः देश में रोज़गार या राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए ऐसे कदम उठाए जाने चाहिएँ जिनसे देश में उपभोग प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 2.
निवेश गणक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। निवेश की प्रक्रिया या कार्यशीलता को तालिका की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा हम जानते हैं कि निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है जिससे रोज़गार, उत्पादन व आय का स्तर बढ़ जाता है अर्थात् निवेश में परिवर्तन, आय में परिवर्तन लाता है। आय में यह परिवर्तन, निवेश में परिवर्तन का कई गुना (या गुणक) होता है। अतः अर्थव्यवस्था में जितनी मात्रा में निवेश बढ़ाया जाता है, राष्ट्रीय आय में उससे कई गुना वृद्धि हो जाती है। चूंकि आय में होने वाला परिवर्तन, निवेश परिवर्तन का कई गुना होता है, इसलिए इसे निवेश गुणक कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दी हुई अवधि में निवेश राशि 100 करोड़ रुपए बढ़ाने से कुल आय 500 करोड़ रुपए बढ़ जाती है तो निवेश गुणक 500/100 = 5 होगा। निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं। सूत्र के रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 16
संक्षेप में, गुणक (K) से अभिप्राय निवेश में परिवर्तन (AI) और आय में परिवर्तन (AY) के अनुपात से है।

निवेश गुणक की प्रक्रिया निवेश व्यय बढ़ाने से आय में कई गुना बढ़ने की प्रक्रिया इस प्रकार है। हम जानते हैं कि एक व्यक्ति का व्यय, दूसरे व्यक्ति की आय बन जाती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति का व्यय, तीसरे व्यक्ति की आय होती है और तीसरे व्यक्ति का व्यय, चौथे व्यक्ति की आय होती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में उपभोग व्यय और आय की एक ह्रासमान (Dwindling Chain of Consumption and Income) श्रृंखला बनती चली जाती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक उपभोग शून्य नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया के अंत में आय का जोड़ करने पर कुल आय, आरंभिक निवेश की कई गुना हो जाती है। ध्यान रहे, एक व्यक्ति का व्यय, उसकी आय और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है। अब एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हैं

मान लीजिए कि सरकार 100 करोड़ रुपए, निवेश करके खाद का एक कारखाना स्थापित करती है। इसका पहला प्रभाव यह होगा कि कारखाने में लगे श्रमिकों की आय 100 करोड़ रुपए बढ़ जाएगी। यदि उनकी सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 1/2 या 50% है तो वे 50 करोड़ (100 का 1/2) नई उपभोग वस्तुओं पर खर्च करेंगे। यह इस कथा का अंत नहीं है। अब इन वस्तुओं के उत्पादकों की आय 50 करोड़ रुपए (कारकों के व्यय के बराबर) बढ़ जाएगी और वे 25 करोड़ रुपए (50 का 1/2) उपभोग प खर्च करेंगे। इस प्रकार यह श्रृंखला बढ़ती जाएगी जिसमें प्रत्येक दौर (Round), पिछले दौर का 1/2 होगा। आय में वृद्धि तब समाप्त हो जाएगी, जब आय में परिवर्तन (AI), बचत में परिवर्तन (AS) के बराबर हो जाएगा अर्थात् ∆I = ∆S.

निवेश-गुणक की प्रक्रिया को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि निवेश में आरंभिक वृद्धि 10 करोड़ रुपए है और MPC = 50% या 1/2 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 17
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि पहले दौर में आय में वृद्धि 10 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि इसी दौर में सरकार ने 10 करोड़ रुपए का निवेश किया है। दूसरे दौर में आय में वृद्धि 5 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि लोगों की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 1/2 है। इसलिए लोग अपनी बढ़ी हुई आय का 50% खर्च करेंगे तथा 50% बचाकर रखेंगे। इस प्रकार, प्रत्येक दौर में आय में वृद्धि होती जाएगी। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक कि अंततः कुल आय में होने वाली वृद्धि 20 करोड़ रुपए के बराबर नहीं हो जाती। इस क्रिया को हम आय सृजन का चलचित्र (Motion Picture of Income Propogation) कहते हैं।

तालिका के स्तंभों का जोड़ करने के लिए G.P. Series (Geometrical Progression Series) के सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे कि-
GP. Series का सूत्र है- S = \(\frac { a }{ 1-r }\)
यहाँ, S = Sum total (कुल जोड़), a = First item of the column तथा r = Rate of change or MPC
आय वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 10 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 10 }{ 1/2 }\) = 20
उपभोग वाले स्तंभ का जोड़ = \(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
बचत वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
स्पष्ट है कि 10 करोड़ रुपए का आरंभिक निवेश करने से जब MPC = 1/2 हो तो गुणक का मूल्य 2 होगा और आय में वृद्धि निवेश की दो गुना अर्थात् 20 करोड़ रुपए होगी। इस प्रकार गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\) = \(\frac { 20 }{ 10 }\) = 2

प्रश्न 3.
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ के सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित सिद्धांत और केज के सिद्धांत में अंतर निम्नलिखित हैं-

प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांतकेज्ज का सिद्धांत
1. आय व रोज़गार का साम्य (संतुलन) स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार के स्तर पर निर्धारित होता है। पूर्ण रोज़गार की मान्यता इस सिद्धांत में सर्वव्याप्त है।1. आय व रोज़गार का साम्य स्तर, उस स्तर पर निर्धारित होता है जहाँ AD = AS परंतु आवश्यक नहीं कि यह साम्य, पूर्ण रोज़गार पर ही हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है।
2. पूर्ण रोज़गार संतुलन एक सामान्य (Normal) स्थिति है। दीर्घकाल में पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति संभव नहीं है।2. ‘पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन’ एक सामान्य स्थिति है जबकि पूर्ण रोज़गार संतुलन एक आदर्श और असाधारण अवस्था है।
3. यह सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित है कि ‘पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न करती है।’ फलस्वरूप समस्त उत्पादन के बिक जाने से अति-उत्पादन (Overproduction) और बेरोज़गारी असंभव है।3. पूर्ति स्वतः अपनी माँग उत्पन्न नहीं करती जिससे अति-उत्पादन और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा हो जाती है। इसके विपरीत ‘माँग, पूर्ति को सृजित करती है।’
4. अल्पकालिक या अस्थाई बेरोज़गारी की दशा में मज़दूरी दर घटाने से रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।4. प्रभावी या समग्र माँग (AD) बढ़ाकर ही रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।
5. ब्याज दर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होंता है।5. आय स्तर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होता है।
6. कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर की लोचदार (Elastic) प्रणाली से अर्थव्यवस्था स्वयं ही पूर्ण रोज़गार संतुलन लाती है।6. एकाधिकार और ट्रेड यूनियनों के होते हुए कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर में लोच या परिवर्तनशीलता नहीं रहती।
7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार होती है।7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार होती है।
8. सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र शक्तियों द्वारा संतुलन स्वतः ही स्थापित हो जाता है।8. AD और AS में संतुलन लाने व पूर्ण रोज़गार को संभव बनाने के लिए संरकारी हस्तक्षेप जरूरी है।
9. यह सिद्धांत दीर्घकाल में लागू होता है।9. यह सिद्धांत अल्पकाल में लागू होता है।

प्रश्न 4.
आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित/परंपरावादी (Classical) सिद्धांत तथा केञ्ज (Keynes) के सिद्धांत का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
‘आय के निर्धारण’ से अभिप्राय देश में ‘आय और रोज़गार के संतुलन स्तर के निर्धारण’ से है। हम व्यष्टि अर्थशास्त्र में उत्पादक (फम) के संतुलन के विषय का अध्ययन करते हैं कि उत्पादक का संतुलन, उत्पादन के उस स्तर पर होता है जिस स्तर पर उत्पादक को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। इसी प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में हम देश की आय और रोज़गार के संतुलन स्तर का अध्ययन करते हैं जोकि राष्ट्रीय आय (उत्पादन) का उच्चतम स्तर प्राप्त करने का प्रयास करता है, जब समस्त साधनों का पूर्ण उपयोग (अर्थात् पूर्ण रोज़गार संतुलन की स्थिति में) किया जाता है। इस विषय में दो सिद्धांत-प्रतिष्ठित (या परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ का सिद्धांत प्रसिद्ध हैं। दोनों सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

ध्यान रहे, समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन का स्तर, पूर्ण रोज़गार का स्तर और सामान्य कीमत-स्तर निर्धारित करते हैं।
(क) आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने आय व रोज़गार से संबंधित कोई सिद्धांत अलग से नहीं दिया, बल्कि व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को समस्त अर्थव्यवस्था की आय व रोजगार के निर्धारण में लागू किया। प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं

अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति में रहती है यदि संसाधनों के पूर्ण रोज़गार में अस्थाई रूप से कभी कमी आ भी जाए, तो यह अल्पकालिक होती है, क्योंकि मजदूरी-दर में कमी आने से श्रम की माँग बढ़ जाती है जिससे बेरोज़गारों को शीघ्र ही रोज़गार मिल जाता है। अतः दीर्घकाल में बेरोज़गारी स्वतः समाप्त हो जाती है। परंपरावादियों का यह विश्वास कि समग्र पूर्ति सदा पूर्ण रोज़गार वाली होगी, निम्न दो मान्यताओं-‘से’ का बाज़ार नियम और कीमत-मजदूरी की लोचशीलता पर आधारित है जिनका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

(i) ‘से’ (Say) का बाजार नियम-उपर्युक्त मत फ्रांसीसी अर्थशास्त्री, जे.बी. ‘से’ के इस बाज़ार नियम पर आधारित है कि “पर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है” अर्थात उत्पादन की प्रत्येक क्रिया से आय सजित होती है और आय से माँग उत्पन्न होती है जिससे समस्त उत्पादन बिक जाते हैं। फलस्वरूप अति-उत्पादन व बेरोज़गारी की संभावना समाप्त हो जाती है। इस प्रकार . प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था की स्वचालिता (Automatic Functioning) में विश्वास रखते थे और सरकार के हस्तक्षेप का विरोध करते थे।

(ii) लोचशील कीमत, मजदूरी और ब्याज दर-इनके कारण अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था स्वतः स्थापित हो जाती है, जैसे-

  • कीमतों में लचीलेपन के कारण माँग और पूर्ति की शक्तियों में संतुलन हो जाता है।
  • मज़दूरी-दर में लचीलापन, पूर्ण रोज़गार संतुलन स्थापित करता है।
  • ब्याज-दर में लचीलापन, बचत और निवेश में समानता बनाए रखता है। लचीलेपन से अभिप्राय है स्वतंत्रतापूर्वक घटने-बढ़ने का गुण। ऐसी स्थिति में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र आर्थिक शक्तियाँ स्वयं ही अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था ला देती हैं।

(ख) आय व रोजगार का केज (Keynes) का सिद्धांत – सन 1929-33 में अमेरिका और यूरोप के पश्चिमी देशों में महामंदी की स्थिति ने परंपरावादी (प्रतिष्ठित) अर्थशास्त्रियों के इस मत को चूर-चूर कर दिया कि अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति में रहती है। यहाँ ‘से’ का बाज़ार नियम (पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है) फेल हो गया और किसी अन्य सिद्धांत की जरूरत अनुभव होने लगी जो यह बताए कि अमेरिका जैसे विकसित देशों को भी बेरोज़गारी का सामना क्यों करना पड़ा?

इस पृष्ठभूमि में सन् 1936 में इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केज ने अपनी पुस्तक “रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत” (General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की जो 20वीं शताब्दी की अर्थशास्त्र की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है। इसके साथ ही एक नया अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र या केज का अर्थशास्त्र विकसित हुआ। यह शास्त्र मुख्य रूप से बताता है कि किसी देश में आय व रोज़गार के संतुलन (साम्य) स्तर का निर्धारण कैसे होता है। केज ने बेरोज़गारी का मुख्य कारण प्रभावी माँग की कमी बतलाया। केज के सिद्धांत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं
(i) यह आवश्यक नहीं कि आय और रोज़गार का संतुलन स्तर, पूर्ण रोज़गार पर हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है, बल्कि पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन, एक सामान्य अवस्था है।

(ii) माँग, पूर्ति को सृजित करती है न कि पूर्ति माँग को। विकसित देशों को भी महामंदी का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनके माल के लिए प्रभावी माँग कम थी।

(iii) उत्पादन, आय और रोज़गार का स्तर, वस्तुओं व सेवाओं की समग्र (समस्त) माँग पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करता है। यदि समग्र माँग में वृद्धि होती है तो बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए संसाधनों के कुशलतम प्रयोग या अधिक रोजगार से उत्पादन व आय का स्तर भी बढ़ जाएगा।

विस्तृत रूप में केज के सिद्धांत का सार है-समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध मुख्य रूप से आय, रोज़गार और उत्पादन स्तर के निर्धारण में है। ध्यान रहे, यद्यपि समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन, रोज़गार और कीमत स्तर निर्धारित करते हैं, फिर भी केज द्वारा रचित इस ढाँचे में यह स्तर मुख्य रूप से समग्र माँग द्वारा ही निर्धारित होता है क्योंकि समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचशील होती है अर्थात फर्मे चालू कीमतों पर किसी भी मात्रा तक पूर्ति करने को तैयार होती हैं। यदि समग्र माँग बढ़ती है तो उत्पादन, आय व रोजगार का स्तर भी बढ़ता है। यदि समग्र माँग घटती है तो उत्पादन, आय व रोज़गार का स्तर भी गिरता है।

प्रश्न 5.
समग्र (समस्त) माँग किसे कहते हैं? समग्र माँग के विभिन्न संघटक क्या हैं?
उत्तर:
समग्र माँग का अर्थ-समग्र माँग से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग से है। चूँकि इसे समाज के कुल व्यय द्वारा मापा जाता है, इसलिए समग्र माँग का अर्थ मुद्रा की वह राशि है जिसे समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्मे और सरकार) अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के क्रय पर दी हुई अवधि में, खर्च करने को तैयार हैं। इस प्रकार समग्र माँग अर्थव्यवस्था के समग्र व्यय का पर्यायवाची है। इसमें उपभोग व्यय और निवेश व्यय दोनों शामिल होते हैं।

यहाँ माँग को प्रभावी माँग के अर्थ में लिया गया है। यदि अर्थव्यवस्था के उत्पादन की खरीद पर समाज पहले से अधिक खर्च करने का इरादा करता है तो यह समग्र माँग में वृद्धि दर्शाता है। इसके विपरीत, यदि समाज उपलब्ध वस्तुओं व सेवाओं पर पहले से कम खर्च करने का निर्णय लेता है तो यह समग्र माँग में गिरावट प्रकट करता है। संक्षेप में, समग्र माँग से अभिप्राय वह राशि है जो अर्थव्यवस्था के उत्पादन पर समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्म, सरकार) खर्च करने को तैयार हैं।

समग्र माँग के संघटक-वस्तुओं व सेवाओं की माँग गृहस्थों, फर्मों, सरकार तथा विदेशियों द्वारा की जाती है। इसलिए समग्र माँग (AD) के घटक भी यही होते हैं; जैसे-

  • निजी उपभोग माँग (C)
  • निजी निवेश माँग (I)
  • सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग (G) और शुद्ध निर्यात (X – M)।
  • इसे निम्नलिखित समीकरण के रूप में स्पष्ट किया गया है-
    AD = C + I + G + (X – M)

1. निजी (या गृहस्थ) उपभोग माँग-निजी उपभोग माँग से अभिप्राय उन वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है जिन्हें किसी समय विशेष पर गृहस्थ खरीदने के इच्छुक और सक्षम होते हैं। गृहस्थ या परिवार अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने व जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं की माँग करते हैं; जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, चीनी, पुस्तकें, जूते, स्कूटर, कार, टी.वी., फर्नीचर और शिक्षा व मनोरंजन सेवाएँ आदि। इसे निजी उपभोग माँग कहते हैं। गृहस्थ उपभोग माँग का स्तर, प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं की प्रयोज्य आय (वैयक्तिक आय–वैयक्तिक कर) पर निर्भर करता है। उपभोग (C) आय (Y) का फलन है अर्थात् C = f (Y)। यदि आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय भी बढ़ता है पर कितना? यह उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

केञ्ज ने इसी आधार पर उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम (Psychological Law of Consumption) की रचना की। इस नियम के अनुसार, “जैसे-जैसे आय बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे लोग अपना उपभोग भी बढ़ा देते हैं परंतु उपभोग में यह वृद्धि, आय की वृद्धि से कम रहती है।” कारण यह है कि जब आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं की अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी होती जाती हैं। फलस्वरूप, समस्त आय वृद्धि को शेष बची आवश्यकताओं पर खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

2. निजी निवेश माँग-इसमें निजी फर्मों द्वारा पूँजीगत परिसंपत्तियों; जैसे मशीनों, औज़ारों, इमारतों आदि के निर्माण पर खर्च शामिल होता है। निवेश माँग दो मुख्य तत्त्वों पर निर्भर करती है-
(i) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI) अर्थात् निवेश से आगम में कितनी वृद्धि होती है।

(ii) ब्याज की दर अर्थात् लागत। जब तक संभावित लाभ (या आगम) की दर, ब्याज की दर से अधिक है अर्थात् MEI, ब्याज की दर से ऊँचा है तब तक निजी उद्यमियों को अधिक निवेश करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

(iii) इन दो तत्त्वों के अतिरिक्त एक तीसरा तत्त्व अपेक्षाएँ भी अपना महत्त्व रखती हैं अर्थात् भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ कैसी होगी। संक्षेप में निवेश के तीन निर्धारक तत्त्व हैं-निवेश से आय, निवेश की लागत अर्थात् ब्याज दर और भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

निवेश माँग को प्रभावित करने वाले तीन तत्त्वों में से ‘ब्याज की दर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। अतः निवेश माँग और ब्याज की दर के बीच संबंध को निवेश माँग फलन कहते हैं। ध्यान रहे ब्याज दर और निवेश माँग के बीच विपरीत संबंध होता है।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग-सरकार उपभोक्ता भी है और उत्पादक भी। इसलिए सरकार उपभोग व निवेश दोनों की माँग करती है। उत्पादक के नाते सरकार सड़कें, पुल, इमारतें, रेलों आदि के निर्माण के लिए वस्तुओं व सेवाओं की माँग करती है जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि लोक कल्याण व समाज की सामूहिक जरूरतों को पूरा करना होता है। इसी प्रकार सरकार को तब उपभोक्ता माना जाता है जब जनता, सरकार द्वारा उपलब्ध शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शांति व्यवस्था व सुरक्षा संबंधी सुविधाओं का उपभोग करती है। दूसरे शब्दों में, लोगों की सामूहिक उपभोग माँग पूरी करने के लिए सरकार समाज की ओर से इनकी खरीद करती है। ध्यान रहे, जहाँ निजी निवेश लाभ से प्रेरित होने के कारण प्रेरित निवेश कहलाता है, वहीं सार्वजनिक (या सरकारी) निवेश समाज हित में होने के कारण स्वायत्त निवेश कहलाता है।

4. शुद्ध निर्यात-यद्यपि दी हुई अवधि में निर्यात और आयात का अंतर शुद्ध निर्यात कहलाता है, परंतु समग्र माँग के संद में शुद्ध निर्यात हमारे माल के लिए विदेशी माँग को दर्शाता है। विदेशी माँग को प्रभावित करने वाले अनेक तत्त्व होते हैं; जैसे व्यापार की शर्ते, निर्यातक व आयातक देशों की व्यापार नीतियाँ, विदेशी विनिमय दर, भुगतान संतुलन की स्थिति आदि।

ध्यान रहे कि आय व रोज़गार के विश्लेषण को सरल व सुविधाजनक बनाने के लिए केज़ ने दो क्षेत्रीय (गृहस्थ और फमें) अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जिसमें समग्र माँग को उपर्युक्त चार घटकों की बजाय दो मुख्य संघटकों-उपभोग माँग (व्यय) और निवेश माँग (व्यय) के योग के रूप में प्रकट किया है। सूत्र के रूप में
AD = C + I
समग्र माँग (AD) वक्र जिसमें AD समग्र माँग को, C उपभोग माँग को और I निवेश माँग को दर्शाते हैं। समग्र माँग वक्र को, उपभोग माँग वक्र और निवेश माँग वक्र के ऊर्ध्व (vertical) योग के रूप में संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र से निम्नलिखित मुख्य बातें स्पष्ट होती हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 18
(i) AD वक्र धनात्मक ढाल वाला है जो यह बताता है कि आय बढ़ने पर समग्र माँग (व्यय). बढ़ जाती है।

(ii) AD वक्र अपने मूल बिंदु 0 से आरंभ नहीं होता जो यह दर्शाता है कि आय शून्य होने पर भी, न्यूनतम उपभोग (रखाचित्र में OR के बराबर) निवेश जरूरी करना पड़ता है।

(iii) निवेश वक्र, X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा इसलिए है, क्योंकि केज के अनुसार अल्पकाल में निवेश का स्तर वही (स्थिर) रहता है चाहे आय का स्तर कुछ भी हो।

AD का आय स्तर पर प्रभाव – यदि देश में बेरोज़गारी की अवस्था है तो समग्र माँग (AD) बढ़ने पर उत्पादन में वृद्धि होगी और फलस्वरूप आय स्तर में भी वृद्धि होगी। इसी प्रकार AD में कमी आने पर आय स्तर में भी कमी आएगी परंतु यदि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति है तो AD बढ़ने पर भी उत्पादन में वृद्धि संभव नहीं होगी, क्योंकि पहले ही सभी संसाधनों के प्रयोग से यथासंभव उत्पादन हो रहा है तब आय स्तर में वृद्धि नहीं होगी। हाँ, ऐसी अवस्था में कीमतें अवश्य बढ़ेगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 6.
समग्र (समस्त) पूर्ति की संकल्पना स्पष्ट कीजिए। समग्र पूर्ति के संघटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को विस्तृत रूप में समग्र पूर्ति कहते हैं। दी हुई अवधि में एक अर्थव्यवस्था द्वारा जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उनके मौद्रिक मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं। यदि हम गहराई से देखें तो पाएँगे कि राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति का प्रतीक है। हम जानते हैं कि देश में अंतिम उत्पादन का मूल्य ही उत्पादन के साधनों में समग्र पूर्ति (AS) वक्र लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में बाँट दिया जाता है। उत्पादकों की दृष्टि से यह वस्तुएँ व सेवाएँ उत्पादन करने की लागतें हैं जो उत्पादकों को इनके विक्रय से जरूर मिलनी चाहिए अन्यथा वे उत्पादन नहीं करेंगे। यद्यपि उद्यमी के लिए ये साधन भुगतान लागतें हैं, परंतु साधनों के लिए वही साधन आय है। देश की संपूर्ण साधन आय का योग राष्ट्रीय आय (या साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद) कहलाती है। अतः राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति को प्रकट करती है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति का मूल्य, राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य (राष्ट्रीय आय) के बराबर होता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 19
राष्ट्रीय आय का बड़ा भाग उपभोग पर खर्च किया जाता है और शेष भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। अतः समग्र पूर्ति के दो मुख्य घटक उपभोग और बचत हैं। सूत्र के रूप में-
AS = C + S
जिसमें AS = समग्र पूर्ति, C = उपभोग, S = बचत को प्रकट करते हैं। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
ध्यान रहे, समग्र पूर्ति वक्र सदा 45° पर बनी रेखा द्वारा दिखाया जाता है, क्योंकि इस रेखा पर प्रत्येक बिंदु की X-अक्ष और Y-अक्ष से दूरी बराबर होती है जिससे संतुलन बिंदु पहचानना आसान होता है। 45° पर यह वक्र इस मान्यता पर आधारित है कि AS (राष्ट्रीय आय) और AD (कुल व्यय) बराबर होते हैं, क्योंकि उत्पादकों को विक्रय से प्राप्त आगम, उनकी लागत (राष्ट्रीय आय) के बराबर अवश्य होना चाहिए। अतः 45° रेखा पर समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय और कुल व्यय बराबर होते हैं।

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति की प्रतिष्ठित तथा केजीयन अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित व केजीयन अवधारणा-अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को समग्र पूर्ति कहते हैं परंतु ‘कीमत और समग्र पूर्ति वक्र पूर्ति में संबंध’ के बारे में प्रतिष्ठित अवधारणा और केज़ की अवधारणा अलग-अलग हैं, जैसाकि नीचे स्पष्ट किया गया है।
1. प्रतिष्ठित विचारधारा-इसके अनुसार ‘समग्र पूर्ति कीमतों के स्तर से पूर्णतः बेलोच रहती है। दूसरे शब्दों में, कीमत स्तर में उतार-चढ़ाव का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र, Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। यह वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्णतया बेलोचदार होता है। रेखाचित्र में वक्र AS समग्र पूर्ति वक्र है और OQ पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर को दर्शाता है। समग्र पूर्ति वक्र AS का Y-अक्ष के समानांतर होना यह प्रकट करता है कि कीमत स्तर में परिवर्तनों का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं होता।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 20

2. केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा के अनुसार, ‘समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्णतया लोचदार (Perfectly elastic) होती है। दूसरे शब्दों में, सभी फर्मे चालू कीमतों पर वस्तु की कितनी ही मात्रा उत्पादन करने को तब तक तैयार रहती है जब तक पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त नहीं हो जाती। फलस्वरूप केजीय समग्र पूर्ति वक्र, पूर्णतया रोज़गार की स्थिति प्राप्त होने से पहले पूर्ण लोचदार होता है, परंतु पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर पहुँचकर समग्र पूर्ति वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्ण बेलोचदार हो जाता है क्योंकि सब संसाधनों का पहले ही पूर्ण प्रयोग होने के कारण उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं होता। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है जिसमें पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर OQ पर समग्र पूर्ति वक्र AS पूर्णतया बेलोचदार है।
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए-
(क) औसत उपभोग प्रवत्ति (APC) क्या है? क्या APC का मल्य एक से अधिक हो सकता है?
(ख) सीमांत उपभोग प्रवत्ति (MPC) क्या है? MPC की विशेषताएँ बताइए।
(ग) APC और MPC में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक (इकाई) से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
(क) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग (अनुपात) है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। समग्र उपभोग (C) को समग्र आय (Y) से भाग करके APC ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में
APC = C/Y
उदाहरण के लिए, यदि एक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय या समग्र आय 100 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग 90 करोड़ रुपए है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = \(\frac { C }{ Y }\) = \(\frac { 90 }{ 100 }\) = 0.9 या 90%

औसत उपभोग प्रवृत्ति की उपरोक्त मात्रा यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था अपनी कुल आय का $90 \%$ उपभोग पर खर्च कर रही है, परंतु यदि समग्र आय बहुत कम है, जैसे 1000 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग व्यय 1200 करोड़ रुपए है तो APC = 1200 / 1000 = 1.2 । अतः हम कह सकते हैं कि APC का मूल्य तब 1 से अधिक होता है जब आय का स्तर कम होने पर, उपभोग व्यय, आय से बढ़ जाता है तब बचत ऋणात्मक (-) होती है अर्थात् वह अवबचत (Dissaving) की स्थिति होती है।

(ख) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (∆C) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में,
MPC = ∆C/∆Y
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय ‘अतिरिक्त उपभोग करने की तत्परता (प्रवृत्ति) से है।’ यह अतिरिक्त आय के उस भाग को, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है, दर्शाता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 50 करोड़ रुपए बढ़ जाती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय 30 करोड़ रुपए बढ़ जाता है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{30}{50}=\frac{3}{5}\) = 0.6 या 60%
इससे यह पता चलता है कि आय में 100 रुपए की वृद्धि से उपभोग में 60 रुपए की वृद्धि हुई है।

MPC की विशेषताएँ – आय बढ़ने से उपभोग व्यय भी बढ़ता है (MPC > 0), लेकिन आय में सारी वृद्धि को उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता (MPC <1),

अतः

  • MPC का मूल्य सदा धनात्मक अर्थात् शून्य से अधिक होता है. (MPC >0)।
  • MPC का मूल्य 1 से कम होता है (MPC <1), क्योंकि अतिरिक्त उपभोग (∆C) अतिरिक्त आय (∆Y) से कम होता है। संक्षेप में, MPC का मूल्य शून्य और 1 के बीच रहता है।

MPC का आय के स्तर पर प्रभाव केज्ज़ के अनुसार, ‘माँग पूर्ति को सृजित करती है। इस प्रकार ऊँची सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) उत्पादन के स्तर (पूर्ति) और आय के स्तर को बढ़ाएगी जबकि निम्न सीमांत उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर को नीचे लाएगी।

(ग) APC और MPC में अंतर-
(i) समग्र उपभोग व्यय (C) को समग्र आय (Y) से भाग देने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, APC = C/Y, जबकि उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग देने पर सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, MPC = ∆C/∆Y।

(ii) APC और MPC में से APC का मूल्य एक (इकाई) से अधिक तभी हो सकता है जब उपभोग व्यय आय से अधिक हो जाता है। इसका कारण यह है कि उपभोग का न्यूनतम स्तर बनाए रखना होता है, चाहे आय शून्य हो।

(iii) जब आय में वृद्धि होती है तो APC और MPC दोनों में भी कमी होती है परंतु MPC में गिरावट अधिक होती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति या बचत फलन किसे कहते हैं? आय और बचत में संबंध बताइए।
उत्तर:
आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। दूसरे शब्दों में, आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बचता है, उसे बचत कहते हैं। सूत्र के रूप में
बचत = आय – उपभोग
बचत प्रवृत्ति का अर्थ-आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं। बचत फलन, बचत और आय की एक सूची होती है जो आय के विभिन्न स्तरों पर बचत की मात्रा व्यक्त करती है। बचत आय पर निर्भर करती है अर्थात् बचत (S), आय (Y) का फलन (1) है। सूत्र के रूप में-
S = f (Y)
यह दी हुई आय के स्तर पर गृहस्थों द्वारा बचत करने की तत्परता (प्रवृत्ति) दर्शाती है। इस प्रकार बचत फलन, उपभोग फलन का उप-सिद्धांत है।

आय और बचत में संबंध-
(i) दोनों में प्रत्यक्ष संबंध होता है अर्थात् आय बढ़ने पर बचत भी बढ़ जाती है, परंतु बचत में वृद्धि की दर आय में वृद्धि की दर से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि आय बढ़ने पर उस आय में से बचत का अनुपात बढ़ता जाता है और उपभोग पर खर्च का अनुपात घटता जाता है।

(ii) आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक (-) होती है। ऐसा उपभोग का आय से अधिक होने के कारण होता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 5,000 रुपए है और उपभोग व्यय 6,000 रुपए है तो बचत-1000 रुपए (5000-6000) होगी अर्थात् अवबचत (dissaving) होगी। स्पष्ट है यहाँ औसत बचत प्रवृत्ति, ऋणात्मक है अर्थात्
APS = S/Y = \(\frac { -1000 }{ 5000 }\) = – 0.2
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संलग्न रेखाचित्र में बचत फलन दर्शाती है जो आय और बचत के स्तर (या मात्रा) में संबंध प्रकट करती है। बचत फलन रेखा SS, आय रेखा ox को बिंदु B पर काटती है जिसे समता बिंदु कहते हैं, क्योंकि इस बिंदु पर बचत शून्य होती है (उपभोग, आय के बराबर है)। समता बिंदु के बाईं ओर बचत ऋणात्मक (-) है अर्थात् उपभोग आय से अधिक है जबकि समता बिंदु के दाईं ओर बचत धनात्मक (+) है अर्थात् उपभोग व्यय आय से कम है। छायादार क्षेत्र अवबचत (Dissaving) का प्रतीक है जो स्वायत्त समता बिंदु उपभोग के बराबर है जैसाकि रेखाचित्र में द्वारा दर्शाया गया है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश।
(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में एक्स-एन्टे (Ex-ante)अथवा नियोजित और एक्स-पोस्ट (Ex-post) अर्थात् वास्तविक शब्दावली का निवेश और उत्पाद के संदर्भ में किया जाता है। दोनों में अंतर केवल इतना है कि एक कार्य शुरू होने के पहले की प्रस्तावित स्थिति बताता है और दूसरा कार्य समाप्ति के बाद की वास्तविक स्थिति प्रकट करता है।

(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश – अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक दी हुई अवधि में जितनी बचाने की योजना आरंभ में बनाई जाती है उसे नियोजित या इच्छित (Intended) बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में फर्म या उद्यमी जितना निवेश करने की शुरू में योजना बनाते हैं उसे प्रत्याशित या नियोजित या इच्छित निवेश कहते हैं। विचार करने वाली बात यह है कि अर्थव्यवस्था में आय का संतुलन स्तर वहाँ होता है जहाँ नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर होती है, परंतु ऐसा विरला या कदाचित (Rarely) ही होता है क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं और उनके उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि बचतकर्ता जितना बचाने की योजना बनाते हैं, निवेशकर्ता उतना ही निवेश करने ‘ की योजना बनाएँ।

बचत और निवेश में अंतर के प्रभाव-इन दोनों में अंतर के राष्ट्रीय आय पर प्रभाव इस प्रकार हैं-
(i) जब नियोजित बचत. नियोजित निवेश से अधिक होती है तो यह उपभोग व्यय में गिरावट दर्शाता है। जिसके कारण समग्र माँग, समग्र पूर्ति से कम हो जाती है। फलस्वरूप कुछ वस्तुएँ अन-बिकी रह जाती हैं। फर्मों का अन-बिका माल जमा होने से फर्मे श्रमिकों की संख्या और उत्पाद को घटा देती हैं। फलस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन (आय) में कमी आती है। आय में कमी आने से बचत भी घटती जाती है जब तक कि नियोजित बचत, नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती। इसी समता बिंदु पर अर्थव्यवस्था संतुलन अवस्था में पहुँच जाती है।

(ii) जब नियोजित बचत, नियोजित निवेश से कम होती है तो समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है। उत्पादकों का वर्तमान स्टॉक बिक जाएगा और बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए वे उत्पादन बढ़ाएँगे। फलस्वरूप जब राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो बचत भी बढ़ती जाती है जब तक कि यह निवेश के बराबर नहीं हो जाती। यहीं पर राष्ट्रीय आय का साम्य (संतुलन) स्तर निर्धारित होता है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर ही नियोजित बचत और नियोजित निवेश दोनों बराबर होते हैं।

(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश-अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं या आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बच जाता है उसे वास्तविक बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में जितना हम वास्तव में निवेश करते हैं या पूँजी के भंडार में जितनी वास्तविक वृद्धि होती है, उसे वास्तविक निवेश कहते हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि नियोजित बचत व नियोजित निवेश विरले ही बराबर होते हैं, परंतु वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदा बराबर होते हैं।

इसका कारण वास्तविक निवेश में अनियोजित निवेश का शामिल होना है जो न चाहने पर भी शामिल हो जाता है; जैसे राष्ट्रीय उत्पादन में उपभोग और नियोजित निवेश के बराबर वस्तुएँ खरीदने के बाद यदि कुछ वस्तुएँ बच जाती हैं और स्टॉक में वृद्धि हो जाती है तो इसे अनियोजित निवेश कहते हैं। वास्तविक निवेश = नियोजित निवेश + अनियोजित निवेश। इस प्रकार वास्तविक निवेश में नियोजित निवेश और अनियोजित निवेश शामिल होने से यह वास्तविक बचत के बराबर हो जाता है।

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर नियोजित निवेश और नियोजित बचत बराबर होने के कारण अनियोजित बचत शून्य होगी। बचत के नियोजित निवेश से अधिक होने पर इस अंतर के बराबर अनियोजित निवेश धनात्मक होगा। बचत के नियोजित निवेश से कम होने पर इस अंतर के बराबर पिछला स्टॉक कम हो जाएगा अर्थात् अनियोजित निवेश ऋणात्मक होगा।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) प्रेरित निवेश (Induced Investment) व स्वायत्त निवेश (Autonomous Investment)।
(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (Marginal Efficiency of Investment)।
उत्तर:
(क) प्रेरित निवेश व स्वायत्त निवेश-
(i) प्रेरित निवेश, वह निवेश है जो लाभ की भावना से प्रेरित होकर किया जाता है, जैसे निजी क्षेत्र में निवेश मुख्य रूप से प्रेरित निवेश होता है। समष्टिगत दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रेरित निवेश राष्ट्रीय आय से संबंधित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो वस्तुओं व सेवाओं की माँग भी बढ़ती है जिसे पूरा करने के लिए निवेश में वृद्धि की जाती है। अतः प्रेरित निवेश आय सापेक्ष होता है अर्थात् इसका राष्ट्रीय आय से सीधा संबंध होता है। फलस्वरूप प्रेरित निवेश वक्र, बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर (पूर्ति वक्र की भाँति) बढ़ता जाता है अर्थात् आय बढ़ने पर निवेश बढ़ता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
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(ii) स्वायत्त या स्वचालित निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध आय नहीं होता अर्थात् यह आय-निरपेक्ष होता है। इस पर आय, लाभ, ब्याज की दर में परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसे प्रभावित करने वाले दूसरे बाहरी तत्त्व होते हैं; जैसे तकनीकी विकास, नए संसाधनों की खोज व आविष्कार, जनसंख्या में वृद्धि आदि। ऐसे निवेश प्रायः सार्वजनिक हित के लिए सरकार द्वारा किए जाते हैं। चूँकि स्वायत्त निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध नहीं होता अर्थात् आय के प्रत्येक स्तर पर निवेश स्वायत निवेश वक्र की राशि उतनी ही (स्थिर) रहती है, इसलिए स्वायत्त निवेश का वक्र X-अक्षांश के समानांतर रहता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
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(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI)- हम जानते हैं कि निजी निवेश माँग, MEI और ब्याज की दर पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, निवेश (I) वास्तव में ब्याज दर (r:) और निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) का फलन () है। समीकरण के रूप में
I = f(ri, MEI)
पूँजी की एक अतिरिक्त इकाई निवेश करने से संभावित प्रतिफल (या लाभ) की दर को निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) कहते हैं। निवेशकर्ता तभी निवेश करेगा जब निवेश की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से प्राप्त होने वाला संभावित लाभ,
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उसके द्वारा अदा की जाने वाली ब्याज दर से अधिक होगा। उदाहरण के लिए, यदि निवेश से संभावित लाभ दर (या MEI) 16% है और उधार लिए गए ऋण पर ब्याज दर 12% है तो निवेशकर्ता तब तक निवेश बढ़ाता जाएगा जब तक MEI ब्याज दर के बराबर नहीं हो जाता। ध्यान रहे, अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे निवेश की अधिक मात्रा लगाई जाती है, वैसे-वैसे MEI घटता जाता है अर्थात् निवेश की मात्रा और MEI में विपरीत संबंध होता है, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। अतः हम कह सकते हैं कि ब्याज दर कम होने पर पूँजी की अधिक मात्रा निवेश की जाएगी।

प्रश्न 12.
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग (Ex-ante Demand) क्या है? इसके (नियोजित उपभोग और निवेश के) माप निवेश (लाख रु०) या निर्धारक कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग-सरकार व विदेशी क्षेत्र रहित अर्थव्यवस्था में अंतिम वस्तुओं की माँग (AD) ऐसी वस्तुओं पर कुल नियोजित उपभोग व्यय (C) और नियोजित निवेश व्यय (I) का योग होती है। सांकेतिक रूप में
AD = C + I
उपभोग फलन को समीकरण C = C + bY द्वारा प्रकट किया जाता है जिसमें C = उपभोग फलन, C = स्वायत्त उपभोग अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग, b = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और Y= आय का स्तर । संक्षेप में, MPC आय में परिवर्तन (∆Y) के फलस्वरूप उपभोग में परिवर्तन (∆C) का अनुपात (∆C/∆Y) है।

नियोजित निवेश व्यय के संदर्भ में समग्र माँग का स्तर निर्धारित करने के लिए सर मान लेते हैं कि अल्पकाल में ब्याज दर और कीमत स्थिर रहती है और फर्म हर वर्ष उसी मात्रा में निवेश करने की योजना बनाती है अर्थात I = I जिसमें 1 स्वायत्त निवेश को प्रकट करता है। साथ ही हम यह भी मान लेते हैं कि इस (स्थिर) कीमत पर समग्र पूर्ति केवल समग्र माँग द्वारा निर्धारित होती है। इसे प्रभावी माँग (Effective Demand) के सिद्धांत की संज्ञा दी जाती है।
(ध्यान रहे, उत्पादन का संतुलन स्तर वह स्तर है जिस पर उत्पादित की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो।)
समीकरण, AD = C+ I में C और I के मूल्य भरकर इसे सरल बनाते हैं।
AD = C +I
AD = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (क्योंकि C = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY और I = \(\overline{\mathrm{I}}\))
जब अंतिम वस्तुओं का बाज़ार में संतुलन होता है अर्थात् माँगी गई मात्रा (AD) = पूर्ति की मात्रा (Y) हो तो हम समीकरण को इस प्रकार भी लिख सकते हैं-
Y = AD
Y = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (जिसमें Y अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति है)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) + bY
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (\(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है)

संतुलन पर अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति = अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग
विचार करने वाली बात यह है कि नियोजित पूर्ति और नियोजित माँग सदा बराबर नहीं होते, क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं। केवल संतुलन की स्थिति में ये बराबर होते हैं। यदि नियोजित पूर्ति (उत्पादन), नियोजित माँग से अधिक है तो अन-बिके माल के स्टॉक में अनियोजित वृद्धि होगी। फलस्वरूप उत्पादक अपना उत्पादन तब तक घटाते जाएँगे जब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति (उत्पादन) में संतुलन न हो जाए। इसके विपरीत, यदि उत्पादन, समग्र माँग से कम है तो उत्पादक अपने माल का स्टॉक (Inventories) तब तक बेचते जाएँगे जंब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति में संतुलन पुनः स्थापित नहीं हो जाता।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी (Involuntary Unemployment) की अवधारणा तथा ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर।
(ख) पूर्ण रोज़गार (Full Employment) की अवधारणा।
उत्तर:
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी की अवधारणा अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें काम करने के इच्छुक व योग्य लोग प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहते हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता है। ऐसे लोग शारीरिक व मानसिक रूप से काम करने के योग्य भी हैं और काम करने को तैयार भी हैं परंतु बेरोज़गार हैं। इस प्रकार की बेरोज़गारी को अनैच्छिक बेरोज़गारी कहते हैं क्योंकि यह बेरोज़गारी उनकी इच्छा के खिलाफ (विरुद्ध) है। पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग में कमी के कारण, अनैच्छिक बेरोज़गारी की समस्या पैदा होती है। स्पष्ट है जब तक अनैच्छिक बेरोज़गारी विद्यमान रहेगी तब तक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति नहीं हो पाएगी अर्थात् अर्थव्यवस्था अल्प-रोज़गार की स्थिति में रहेगी।

ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर-अनैच्छिक बेरोज़गारी, ऐच्छिक बेरोज़गारी से भिन्न होती है। ऐच्छिक बेरोज़गारी देश की श्रम शक्ति के उस भाग या उन लोगों की ओर संकेत करती है जो काम उपलब्ध होने के बावजूद काम करने को तैयार नहीं हैं अर्थात् वे अपनी इच्छा से बेरोज़गार हैं। यह वास्तव में बेरोज़गारी की समस्या नहीं है। इसलिए ऐसे लोगों को देश की श्रम-शक्ति में शामिल नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, अनैच्छिक बेरोज़गारी वह स्थिति है जब लोग मज़दूरी की चालू दर पर काम करने को तैयार हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता।

(ख) पूर्ण रोज़गार की अवधारणा पूर्ण रोजगार से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक शारीरिक व मानसिक दृष्टि से योग्य व्यक्ति को, जो मज़दूरी की प्रचलित दर पर काम करने को तैयार है, काम मिलता है। दूसरे शब्दों में, यह अर्थव्यवस्था की वह स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। पूर्ण रोज़गार की स्थिति में समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम प्रयोग होता है। संसार में प्रत्येक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम प्रयोग कर पूर्ण रोज़गार चाहती है, परंतु व्यवहार में पूर्ण रोज़गार का अर्थ देश की श्रम शक्ति के पूर्ण रोज़गार से लिया जाता है।

ध्यान रहे, पूर्ण रोज़गार की अवस्था में ऐच्छिक बेरोज़गारी, संघर्षी बेरोज़गारी (Frictional Unemployment) व संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment) विद्यमान रह सकती हैं। एक बात निश्चित है कि पूर्ण रोज़गार का अर्थ यह नहीं है कि एक भी श्रमिक बेरोज़गार न हो क्योंकि नई व बेहतर नौकरी की खोज में अथवा उत्पादन की तकनीक व विधियों में परिवर्तन से संबंधित कुछ बे रोज़गारी (जैसे 3% तक) अत्याज्य (Unavoidable) है, अर्थात् कुछ बेरोज़गारी सदा ही रहती है। केज़ पूर्ण रोज़गार को अलग दृष्टि से देखता है। केज़ के अनुसार, “जब समग्र माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन और रोज़गार के स्तर में वृद्धि नहीं होती, तो वह पूर्ण रोज़गार की स्थिति होती है।”

परंपरावादी और केज़ के विचार-यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री और केज दोनों पूर्ण रोज़गार को ‘अनैच्छिक बेरोज़गारी का अभाव’ मानते हैं फिर भी दोनों के विचारों में भिन्नता पाई जाती है। परंपरावादी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति पाई जाती है जबकि केज के मतानुसार अर्थव्यवस्था में प्रायः पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 14.
(क) आय के संतुलन स्तर (Equilibrium level of Income) से आप क्या समझते हैं?
(ख) पूर्ण रोज़गार एवं अल्प रोज़गार संतुलन की अवधारणा, रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
(क) आय के संतुलन स्तर का अर्थ-आय का संतुलन स्तर आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर (समग्र पूर्ति) के बराबर होती है। संतुलन बिंदु पर समस्त वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन, उन वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग के बराबर होता है। इसीलिए आय के संतुलन स्तर को उत्पादन का संतुलन स्तर भी कहा जाता है। आय के संतुलन स्तर पर इसे बढ़ाने या घटाने की प्रवृत्ति नहीं रहती। स्मरण रहे, अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग को समग्र माँग कहते हैं जबकि वस्तुओं और सेवाओं की कुल पर्ति को समग्र पर्ति कहते हैं।

समग्र पूर्ति और समग्र माँग में संतुलन का अर्थ मात्र इन दोनों का बराबर होना है चाहे रोजगार का स्तर कैसा भी हो। इस संतुलन का अर्थव्यवस्था के संसाधनों के पूर्ण या अपूर्ण प्रयोग से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। अतः यह आवश्यक नहीं है कि आय का संतुलन स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर हो। यह पूर्ण रोज़गार स्तर से कम पर भी हो सकता है अर्थात् अल्प रोज़गार स्तर भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में, आय के संतुलन स्तर पर बेरोज़गारी हो सकती है।

(ख) रोज़गार का संतुलन स्तर-संतुलन स्तर वाली समग्र पूर्ति से जुड़े रोज़गार स्तर को रोज़गार का संतुलन स्तर कहते हैं। यह दो प्रकार का हो सकता है-पूर्ण रोज़गार संतुलन तथा अपूर्ण (अल्प) रोज़गार संतुलन जैसाकि स्पष्ट किया गया है।

पूर्ण रोज़गार संतुलन-पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था है जहाँ अर्थव्यवस्था के सभी संसाधनों का पूरा उपयोग हो रहा हो अर्थात समस्त संसाधन अपनी चरम सीमा तक प्रयुक्त हो रहे हों।। तब कोई संसाधन बेकार नहीं होता। अनैच्छिक बेकारी समाप्त हो जाती है। पूर्ण रोज़गार समग्र माँग न तो अधिक है और न ही कम है बल्कि पूर्ण रोज़गार वाले संतुलन बिंदु उत्पादन (समग्र पूर्ति) के बराबर है। संक्षेप में जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति’ के बराबर हो तो उसे पूर्ण रोज़गार संतुलन की संज्ञा दी जाती है।
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पूर्ण रोज़गार संतुलन वाली अवस्था अग्रांकित रेखाचित्र में दर्शाई गई है। अल्प रोज़गार रेखाचित्र में 45° वाली AS रेखा समग्र पूर्ति को और AD रेखा समग्र माँग को संतुलन बिंदु प्रदर्शित करती है। दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को बिंदु E पर काटती हैं। यह पूर्ण रोज़गार संतुलन | बिंदु है क्योंकि बिंदु E45° रेखा पर होने के कारण समग्र उत्पादन (आय)या (AS)+ माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। अर्थव्यवस्था OMके उत्पादन स्तर पर, पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था में है क्योंकि इस पर उन सब लोगों को जो प्रचलित मज़दूरी दर पर काम करने को तैयार हैं, रोज़गार मिला हुआ है।

नोट-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के मत में समग्र पूर्ति, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर होती है। चूंकि यह पूर्णतया कीमत-बेलोचदार होती है इसलिए प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। इसलिए प्रतिष्ठित पूर्ण रोज़गार संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग वक्र, इस लंबवत समग्र पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अत्यधिक (अधि) माँग (Excess Demand) का अर्थ बताइए।
(ख) स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) का अर्थ रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
(क) अत्यधिक माँग का अर्थ-जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से अधिक हो तो उसे अत्यधिक माँग (या अतिरेक माँग या अधिमाँग) कहते हैं। यह स्फीतिक अंतराल को जन्म देती है। इसे हम एक काल्पनिक उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। सुविधा के लिए मान लीजिए, एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था अपने समस्त उपलब्ध संसाधनों के पूर्ण प्रयोग से 5000 क्विंटल गेहूँ पैदा कर सकती है। यह अर्थव्यवस्था की ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ होगी। यदि गेहूँ की कुल माँग 6000 क्विंटल हो तो इस माँग को अत्यधिक माँग मानी जाएगा क्योंकि यह ‘पूर्ण रोज़गार देने वाली पूर्ति’ (5000 क्विंटल) से अधिक है। दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं।

(ख) स्फीतिक अंतराल–पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से जब समग्र माँग अधिक होती है तो दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, यह समग्र माँग के आधिक्य का माप है। इसे वैकल्पिक अत्यधिक माँग रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं। “स्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र माँग के बीच का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र स्फीतिक अंतराल माँग के आधिक्य का माप है।” स्फीतिक अंतराल को संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 27
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए, नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से अधिक है। दोनों में अंतर EB(BM – EM) स्फीतिक अंतराल है। यह अत्यधिक माँग का माप है। अत्यधिक माँग की अवस्था में, रोज़गार और उत्पादन में वृद्धि नहीं हो सकती क्योंकि पहले ही समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से अधिकतम उत्पादन किया जा रहा है। फलस्वरूप अत्यधिक माँग का प्रभाव मुद्रास्फीतिक व कीमत स्तर में वृद्धि के रूप में होता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अभावी (न्यून) माँग (Deficient Demand) का अर्थ समझाइए।
(ख) रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
(क) अभावी माँग का अर्थ-अभावी माँग से अभिप्राय उस समग्र माँग से है जो ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से कम होती है। यह इस बात का बोध कराती है कि देश के समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से जितना उत्पादन होता है उसे खपाने के लिए माँग कम है। इसे एक काल्पनिक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधन पूर्ण रूप से जुटाकर केवल 5000 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन करती है। यह उसकी ‘पूर्ण रोज़गार स्तर का उत्पादन (पूर्ति) है, क्योंकि इसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। यदि देश में गेहूँ के लिए समग्र (या कुल) माँग 4000 क्विंटल हो तो इसे अभावी या न्यून माँग कहेंगे, क्योंकि यह माँग पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति (5000 क्विंटल) से 1000 क्विंटल कम है। माँग और पूर्ति में यह अंतर ‘अवस्फीतिक अंतराल’ की स्थिति दर्शाता है। माँग कम होने से कुछ संसाधन बेकार हो जाएँगे अर्थात् बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

(ख) अवस्फीतिक अंतराल-पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं, “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक पूर्ण रोजगार समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का संतुलन बिंदु अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 28
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM-BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक MM अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी राष्ट्रीय आय (समग्र पूर्ति), और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 17.
अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति को ठीक करने के राजकोषीय उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिमाँग को ठीक करने के उपाय-अधिमाँग जो ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ से अधिक होती है, कीमतों में वृद्धि लाती है। मुद्रास्फीति (कीमतों में निरंतर वृद्धि), पूर्ति में वृद्धि हुए बिना माँग में वृद्धि के कारण पैदा होती है। मुद्रास्फीति संपत्ति में विषमताएँ लाती है, बँधी आय के लोगों का जीवन दूभर करती है जिससे लोगों का सरकार व नैतिकता से विश्वास उठ जाता है। अतः हमें समग्र माँग को स्फीतिक अंतराल की मात्रा के बराबर घटाना होगा। यहाँ हम सरकारी क्षेत्र को शामिल करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था तीन-क्षेत्रीय हो जाएगी और समग्र माँग-गृहस्थों, फर्मों और सरकार की माँग का योग हो जाएगी। सरकार को शामिल करने का कारण यह है कि सरकार करों और सार्वजनिक व्यय के माध्यम से समग्र माँग को घटाने-बढ़ाने में बहुत प्रभावित होती है। अतः यदि अर्थव्यवस्था ने ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास करना’ (Growth with Social Justice) है तो अधिमाँग की स्थिति को ठीक करने के प्रभावी उपाय अपनाने होंगे। इसे ठीक करने के राजकोषीय उपाय निम्नलिखित हैं

राजकोषीय नीति/बजट घाटों में कमी – सरकार की आय-व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं और बजट इस नीति का सार होता है। राजकोषीय नीति के दो पक्ष-व्यय नीति और आय नीति होते हैं। वर्ष के बजट में जब व्यय, आय से अधिक दिखाया जाता है तो इसे घाटे का बजट कहते हैं और जब आय, व्यय से अधिक दिखाई जाती है तो इसे बचत का बजट कहते हैं।

1. व्यय नीति-अधिमाँग की स्थिति में सरकार को सार्वजनिक खर्चे कम करके बजट घाटों में कमी लानी चाहिए; जैसे सड़कों, इमारतों, ग्रामीण विद्युतीकरण, सिंचाई, निर्माण कार्यों पर यदि सरकार खर्च कम कर देती है तो इससे लोगों की आय कम होगी और फलस्वरूप उनकी वस्तुओं के लिए माँग गिरेगी। अतः अधिमाँग की स्थिति में ‘बचत का बजट’ अपनाना चाहिए।

2. आय नीति-राजकोषीय नीति का दूसरा पक्ष आय नीति है। चूँकि सरकार की आय का प्रमुख भाग करों से आता है, इसलिए आय नीति को सरकार की कर नीति भी कहते हैं। मुद्रास्फीति के दौरान सरकार को न केवल नए कर लगाने चाहिए, बल्कि करों की दर भी बढ़ानी चाहिए, विशेष रूप से अमीर लोगों पर। इससे लोगों के पास खरीदने की शक्ति कम होगी और उनकी प्रभावी माँग गिर जाएगी। इस तरह कर बढ़ाकर बजट घाटे में कमी लाई जा सकती है।

3. सरकार द्वारा लिए जाने वाले सार्वजनिक ऋण को बढ़ाना चाहिए ताकि मुद्रास्फीति को रोका जा सके।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था (नोट छापना) में कमी करनी चाहिए। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति कम होगी जिससे बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जा सकेगा।

संख्यात्मक प्रश्न

APC, MPC,APS और MPS पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि प्रयोज्य आय 1,000 रुपए हो और उपभोग व्यय 700 रुपए हो, तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात (APS) कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 29

प्रश्न 2.
यदि प्रयोज्य आय 500 रुपए हो और बचत 100 रुपए हो, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 30

प्रश्न 3.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है, तो औसत बचत प्रवृत्ति क्या होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
0.75 + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 4.
यदि औसत बचत प्रवृत्ति 0.6 है, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति + 0.6 = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1-0.6 = 0.4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 1 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कितनी होगी?
हल:
सीमांत बचत प्रवृत्ति + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
चूंकि 1 + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 इसलिए
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 1 = 0 (शून्य) उत्तर

प्रश्न 6.
जिस अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है उसमें सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कितनी है?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा जब सीमांत बचत प्रवृत्ति शून्य हो?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – सीमांत बचत प्रवृत्ति
= 1 – 0
= 1 उत्तर

प्रश्न 8.
जब प्रयोज्य आय 1,000 रुपए से बढ़कर 1,100 रुपए हो जाती है, तो बचत में 30 रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 31

प्रश्न 9.
देश में कुल आय 1000 करोड़ रुपए है तथा उपभोग 750 करोड़ है। जब आय बढ़कर 1500 करोड़ रुपए हो जाती है तो उपभोग 1150 करोड़ हो जाता है। औसत उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति बताइए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 32

प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
0-90
1000.6
2000.6
3000.6

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिउपभोगबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
090-90
1000.6150-50-0.5
2000.6210-10-0.05
3000.6270300.1

प्रयोग किए गए सूत्र-

  • उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन
  • वर्तमान आय स्तर पर उपभोग = पूर्ववत्त उपभोग + उपभोग में परिवर्तन
  • औसत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { बचत }{ आय }\)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75
2000.75

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75-51.05
2000.75200.90
3000.75450.85

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभाग }{ आय }\)

(ii) बचत = आय – उपभोग

(iii) शून्य आय पर उपभोग = – बचत

(iv) उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन

(v) 0 आय पर उपभोग = 30
100 आय पर उपभोग = 30 + 75 = 105
200 आय पर उपभोग = 105 + 75 = 180
300 आय पर उपभोग = 180 + 75 = 255

प्रश्न 12.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय का स्तर
(रुपए)
उपभोग व्यय
(रुपए)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रतृत्ति
(MPS)
400240
500320
600395
700465

हल:
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 33
वैकल्पिक रूप से-
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

आय का स्तर (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)
400240
5003200.800.20
6003950.750.25
7004650.700.30

प्रश्न 13.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
5050
10085
150120

हल:

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
50500.31.0
100850.30.85
1501200.30.80

प्रयोग किए गए सूत्र
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 34

प्रश्न 14.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)
1000900
12001060
14001210
16001350

हल:

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC) (∆C/∆Y)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)(∆S/∆Y)
1000900
12001060160 / 200 = 0.840 / 200 = 0.2
14001210150 / 200 = 0.7550 / 200 = 0.25
16001350140 / 200 = 0.760 / 200 = 0.3

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC))
औसत उपभोग प्रवृत्ति
(APC)
20001900
30002700
40003400
50004000

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 35

प्रश्न 16.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-3
400
603

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-30.850.15
4000.85
6030.850.05

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 36

प्रश्न 17.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय(Y)बचत(S)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-12
20-6
400
606

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 37

प्रश्न 18.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-10
1000
15030
20060

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-100.81.2
10000.81
150300.40.8
200600.40.7

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 38

प्रश्न 19.
नीचे आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग की मात्राएँ दी गई हैं। APC, MPC, APS तथा MPS ज्ञात कीजिए।

आय (करोड़ रुपए)
Y
उपभोग (रुपए)

C

10090
200170
300240
400300
500350
600390
700420

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 39

निवेश गुणक पर आधारित अंकमूलक प्रश्न

प्रश्न 1.
निवेश में 1,000 रुपए की वृद्धि से कुल राष्ट्रीय आय में 5,000 रुपए की वृद्धि होती है। गुणक का मूल्य क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 40

प्रश्न 2.
यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य \(\frac { 4 }{ 5 }\) हो, तो गुणक (K) का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 41

प्रश्न 3.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति का मूल्य 0.25 हो, तो गुणक का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 42

प्रश्न 4.
यदि MPC 0.50 है, तो गुणक का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.50}=\frac{1}{0.50}=\frac{1}{50}=\frac{100}{50}\) = 2 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि MPS 0.1 है, तो गुणक के मूल्य का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}\) = 10

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2000 करोड़ रुपए है और MPC 0.75 है। यदि निवेश 200 करोड़ रुपए बढ़ता है तो आय में कुल वृद्धि निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में MPC 0.75 है। यदि निवेश व्यय 500 करोड़ रुपए बढ़ा दिया जाए तो आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = निवेश में वृद्धि – K = 500 x 4 = 2000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में वृद्धि = 2000 का 0.75 = 2000 का 3/4 = 1500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित परिस्थितियों में आय में परिवर्तन की गणना कीजिए जब-
(i) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 0.8 हो।
(ii) निवेश में परिवर्तन = 1,000 रुपए हो।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 43

प्रश्न 9.
यदि गुणक का मूल्य 5 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 44

प्रश्न 10.
निवेश में 20 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 100 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 45

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 120 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई। गुणक (K) का मूल्य 4 है। MPC का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) 4 – 4 MPC = 1
MPC = 4 – 1 = 3
MPC = 3/4 = 0.75

प्रश्न 12.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1000}{200}\) = 5
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5-5 MPC = 1 या
5MPC = 5 – 1 = 4 MPC = 4/5 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 है और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए होती है। राष्ट्रीय आय में होने वाली कुल वृद्धि परिकलित कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}=1 \times \frac{5}{1}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 x 100 = 500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
निवेश में 125 रुपए की वृद्धि राष्ट्रीय आय में 500 करोड़ रुपए की वृद्धि लाती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{500}{125}\) = 4
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 – 4 MPC = 1
4 MPC = 4 – 1 = 3 या MPC = 3/4 = 0.75 उत्तर

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि, निवेश में वृद्धि से 3 गुना अधिक होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 46
MPC = 3 – 1 = 2 या MPC = 2/3 = 0.67 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 400 करोड़ रुपए की वृद्धि की जाती है और MPC 0.8 है। आय और बचत में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}\) = 5
आय में कुल वृद्धि = 400 x 5 = 2000 करोड़ रुपए
बचत में कुल वृद्धि = 2000 का 0.2 = 400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 17.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 700 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। MPC 0.9 है। आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-M P C}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}\) = 10
आय में कुल वृद्धि = 700 x 10 = 7000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में कुल वृद्धि = 7000 का 0.9 = 7000 x 9/10 = 6300 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPC 0.9 हो और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}=\) = 10
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 100 x 10 = 1000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में जब भी आय में वृद्धि होती है तो आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय किया जाता है। अब मान लीजिए उसी अर्थव्यवस्था में निवेश में 750 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। निम्नलिखित ज्ञात कीजिए-) आय में परिवर्तन, (ii) बचत में परिवर्तन।
हल:
आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय करने का अर्थ है MPC = 75%
(i) K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ 1-75/100}\) = \(\frac { 1 }{ 1-3/4 }\) = \(\frac { 1 }{ 1/4 }\) = 4
K = \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\) अथवा 4 = \(\frac { ∆Y }{ 750 }\) Y∆ = 4 x 750 = 3,000 करोड़ रुपए
आय में परिवर्तन = 3000 करोड़ रुपए

(ii) MPS = 1 – MPC = 1 – 75% = 25%
बचत में परिवर्तन = आय में परिवर्तन का 25%
3000 का 25% = 750 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 20.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश 1,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,200 करोड़ रुपए हो जाता है और इसके फलस्वरूप कुल आय में 800 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो सीमांत बचत प्रवृत्ति परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 47

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि इस अर्थव्यवस्था में निवेश में 300 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो इसका कुल आय पर क्या प्रभाव होगा?
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 48
अतः कुल आय में वृद्धि = 300 x 4 = 1,200 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 1,000 रुपए की वृद्धि से आय में 10,000 रुपए की वृद्धि होती है। गणना कीजिए
(अ) निवेश गुणक
(ब) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 49

प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप कुल आय में वृद्धि 1,000 करोड़ रुपए होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का परिकलन कीजिए।
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 50
5 – 5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 5 – 1 = 4
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { 4 }{ 5 }\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 24.
निवेश में 1,500 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में 7,500 करोड़ की वृद्धि होती है। निवेश गुणक (K), सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का परिकलन कीजिए।
हल:

  1. निवेश गुणक (K) = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{7,500}{1,500}\) = 5
  2. K = \(\frac { 1 }{ MPS }\) या MPS = \(\frac { 1 }{ K }\) = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
  3. MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2,000 करोड़ रुपए है और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है तो आय में होने वाली कुल वृद्धि की गणना कीजिए।
हल:
आय में होने वाली वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 51
इसलिए, आय में होने वाली वृद्धि= 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 26.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
निवेश में वृद्धि = 200 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 1,000 करोड़ रुपए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 52
सीमांत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

आय के संतुलन स्तर पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में C = 500 + 0.9Y और I = 1000 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 500+ 0.9Y + 1000
Y – 0.9Y = 500 + 1000
0.1Y = 1500
Y = 1500 x 10 = 15000 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 500 + 0.9Y
= 500 + 9/10 x 15000
= 500 + 13500
= 14000 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था में C = 300 + 0.5Y और I = 600 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 300+ 0.5Y +600
Y – 0.5Y = 900
1/2Y = 900
Y = 900 x 2 = 1800 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 300 + 0.5Y
= 300 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 1800
= 300 + 900 = 1200 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 3.
जब स्वायत्त (Autonomous) निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर 4000 करोड़ रुपए हो तो प्रत्याशित (Ex-ante) समग्र माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं, कारण भी बताएँ।
हल:
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8
AD = C + I (Ex-ante समग्र माँग)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY + \(\overline{\mathrm{I}}\) = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (क्योंकि \(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\))
= 50 + (0.8 x 4000)
= 50 + 3200 करोड़ रुपए
= 3250 करोड़ रुपए
AS (Y) = 4000 करोड़ रुपए (Ex-ante समग्र पूर्ति दी गई है)
चूँकि समग्र माँग (अर्थात् 3250 करोड़), समग्र पूर्ति (अर्थात् 4000 करोड़) के बराबर नहीं है, इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 4.
यदि उपभोग फलन C = 100 + 0.75Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) और निवेश व्यय 1000 रुपए हो तो ज्ञात कीजिए-(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 100 + 0.75Y + 1000
Y – 0.75Y = 100 + 1000 = 1100
25Y = 1100 अथवा 1/4Y = 1100
Y = 1100 x 4 = 4400 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 100 + 0.75Y (दिया है)
= 100 + \(\frac { 3 }{ 4 }\) x 4400
= 100 + 3300 = 3400 (यह आय के संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 5.
एक अर्थव्यवस्था में C = 600 + 0.5Y और Y = 1200 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय और I = निवेश) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन पर उपभोग।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 600 + 0.5Y + 1200
Y – 0.5Y = 1800
1/2Y = 1800
Y = 1800 x 2 = 3600 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 600 + 0.5Y
= 600 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 3600
= 600+ 1800 = 2400 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में उपभोग फलन दिया हुआ है- C = 100 + 0.5Y
एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से यह दिखाइए कि इस अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आएगी।
हल:
उपभोग फलन,
C = 100 + 0.5Y
100 रुपए के आय स्तर पर उपभोग (C)
= 100 + (0.5 x 100)
= 100 + 50 = 150 रुपए
इसी प्रकार विभिन्न आय स्तरों पर उपभोग निकाले जा सकते हैं और निम्नलिखित सारणी बनाई जा सकती है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 53
उपर्युक्त सारणी को देखने से पता चलता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आती है।

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में बचत फलन दिया हुआ है- S = – 200 + 0.25Y
अर्थव्यवस्था उस समय संतुलन में होती है जब आय 2,000 के बराबर है। निम्नलिखित की गणना कीजिए-
(क) आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय
(ख) स्वायत्त उपभोग
(ग) निवेश गुणक।
हल:
(क) आय के संतुलन स्तर पर नियोजित बचत और नियोजित निवेश बराबर होते हैं। संतुलन स्तर पर बचत की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-
S = – 200 + 0.25Y
S = – 200 + 0.25 x 2000
= – 200 + 500 = 300
इस प्रकार आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय = 300

(ख) स्वायत्त उपभोग से अभिप्राय उपभोग की उस राशि से है जो शून्य आय पर भी उपभोग में व्यय किया जाता है।
स्वायत्त उपभोग = शून्य आय पर ऋणात्मक बचत
= 200

(ग) निवेश गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
बचत फलन के अनुसार MPS = 0.25
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
निवेश गुणक = 4

प्रश्न 8.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई निम्नलिखित सूचना से (i) उसकी राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर और (ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर बचत का परिकलन कीजिए।
उपभोग फलन : C = 200 + 0.9Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) निवेश व्यय : I = 3,000
हल:
(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस स्थिति में होगा जहाँ बचत और निवेश व्यय बराबर हो।
निवेश व्यय = 3,000
वांछित बचत = 3,000
बचत = आय – उपभोग
= Y – [200 + 0.9Y]
3000 की बचत का समीकरण इस प्रकार होगा,
Y – [200 + 0.9Y] = 3000
Y – 200 – 0.9Y = 3000
Y – 0.9Y = 3000 + 200
0.1Y = 3200
Y = 32000
इस प्रकार राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर 32000 होगा।

(ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर
उपभोग व्यय = आय – बचत
= 32000 – 3000
= 29000

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्थितियों में चरों, अचरों और अंक गणितीय संक्रियाओं का प्रयोग करते हुए बीजीय व्यंजक प्राप्त कीजिए :
(i) संख्या y में से z को घटाना।
(ii) संख्याओं x और y के योग का आधा।
(ii) संख्या z को स्वयं उससे गुणा किया जाता है।
(iv) संख्याओं p और q के गुणनफल का एक चौथाई।
(v) दोनों संख्याओं x और y के वर्गों को जोड़ा जाता है।
(vi) संख्याओं m और n के गुणनफल के तीन गुने में संख्या 5 जोड़ना।
(vii) 10 में से संख्याओं y और z गुणनफल को घटाना।
(viii) संख्याओं a और b के गुणनफल में से उसके योग को घटाना।
हल :
दी गई स्थितियों के बीजीय व्यंजक निम्न होंगे-
(i) y – z
(ii) \(\frac{1}{2}\) (x + y)
(iii) z × z अथवा z2
(iv) \(\frac{1}{4}\)pq
(v) x2 + y2
(vi) 3mn + 5
(vii) 10 – yz
(viii) ab – (a + b)

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1

प्रश्न 2.
(i) निम्नलिखित व्यंजकों में पदों और उनके गुणनखण्डों को छाँटिए। पदों और उनके गुणनखण्डों को पेड़ आरेखों द्वारा भी दर्शाइए।
(a) x – 3
(b) 1 + x + x2
(c) y – y3
(d) 5xy2 + 7x2y
(e) – ab + 2b2 – 3a2
(ii) नीचे दिए व्यंजकों में, पदों और उनके गुणनखण्डों को छाँटिए।
(a) – 4x + 5
(b) – 4x + 5y
(c) 5y + 3y2
(d) xy + 2x2y2
(e) pq + q
(f) 1.2ab – 2.4b + 3.6a
(g) \(\frac{3}{4}\)x + \(\frac{1}{4}\)
(h) 0.1p2 + 0.2q2
हल :
(i) व्यंजक में पद और उनके गुणनखण्ड पेड़ आरेख द्वारा निम्न प्रकार दर्शाया गया है-
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1 1
(ii)
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1 2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यंजकों में पदों के संख्यात्मक गुणांकों जो अचर न हों, की पहचान कीजिए।
(i) 5 – 3t2
(ii) 1 + t + t2 + t3
(iii) x + 2xy + 3y
(iv) 100m + 1000n
(v) -p2q2 + 7pq
(vi) 1.2a + 0.8b
(vii) 3.14r2
(viii) 2(l + b)
(ix) 0.1y + 0.01y2
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1 3

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1

प्रश्न 4.
(a) वे पद पहचानिए जिनमें x है और फिर इनमें x का गुणांक लिखिए :
(i) y2x + y
(ii) 13y2 – 8yx
(iii) x + y + z
(iv) 5 + z + zx
(v) 1 + x + xy
(vi) 12xy2 + 25
(vii) 7 + xy2
(b) वे पद पहचानिए जिनमें 2 है और फिर इनमें 2 का गुणांक लिखिए :
(i) 8 – xy2
(ii) 5y2 + 7x
(ii) 2x2y – 15xy2 + 7y2
हल :
(a)

व्यंजक

x वाले पद

x के गुणांक

(i)y2x + yy2xy2
(ii)13y2 – 8yx– 8yx-8y
(iii)x + y + 2x1
(iv)5 + z + zxzxZ
(v)1 + x + xyX

Xy

1

y

(vi)12xy2 + 2512xy212y2
(vii)7 + xy2xy2y2

(b)

व्यंजकy2 वाले पद

y2 के गुणांक

(i)8 – xy2-xy2-x
(ii)5y2 + 7x5y25
(iii)2x2y – 15xy2 + 7y2-15xy2

7y2

– 15x

7

प्रश्न 5.
निम्नलिखित व्यंजकों को एकपदी, द्विपद और त्रिपद के रूप में वर्गीकृत कीजिए :
(i) 4y – 7z
(ii) y2
(iii) x + y – xy
(iv) 100
(v) ab – a – b
(vi) 5 – 3t
(vii) 4p2q – 4pq2
(viii) 7mn
(ix) z2 – 3z + 8
(x) a2 + b2
(xi) z2 + z
(xii) 1 + x + x2
हल :
केवल एक पद वाले बीजीय व्यंजक एकपदी कहलाते हैं। अतः एकपदी व्यंजक (ii), (iv) और (viii) हैं।
दो पद वाले बीजीय व्यंजक द्विपद व्यंजक कहलाते हैं।
अतः द्विपद व्यंजक : (i), (vi), (vii), (x) और (xi) हैं।
जिन बीजीय व्यंजकों में तीन पद होते हैं, उन्हें त्रिपद व्यंजक कहते हैं।
अतः त्रिपद व्यंजक : (iii), (v), (ix) और (xii) हैं।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.1

प्रश्न 6.
बताइए कि दिए हुए पदों के युग्म समान पदों के हैं या असमान पदों के हैं :
(i) 1, 100
(ii) – 7x, \(\frac{5}{2}\)x
(iii) – 29x, – 29y
(iv) 14xy, 42yx
(v) 4m2p, 4mp2
(vi) 12xz, 12x2z2
हल :
(i) समान
(ii) समान
(iii) असमान
(iv) समान
(v) असमान
(vi) असमान।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में समान पदों को छाँटिए :
(a) -xy2, -4yx2, 8x2, 2xy2, 7y, – 11x2,- 100x, – 11yx, 20x2y, -6x2, y, 2xy, 3x
(b) 10pq, 7p, 8q, -p2q2, -7qp, – 100g, -23, 12q2p2, -5p2, 41, 2405p, 78qp, 13p2q, qp2, 701p2
हल :
(a) दिए गए पर्दो में समान पदों के समूह निम्न होंगे-
-xy2, 2xy2; -4yx2, 20x2y; 8x2, -11x2, -6x2; 7y, y; -100x, 3x और -11yx, 2xy
(b) दिए गए पदों में समान पदों के समूह निम्न होंगे-
10pq, – 7gp, 78qp; 7p, 2405p 8q, – 100q; – p2q2, 12q2p2; – 23, 41; – 5p2, 701p2 और 13p2q, qp2

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

प्रश्न 1.
PQR एक त्रिभुज है जिसका P एक समकोण है। यदि PQ = 10 सेमी तथा PR = 24 सेमी हो, तब QR ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 1
समकोण ΔPQR में पाइथागोरस प्रमेय से,
QR2 = PQ2 + PR2
= 242 + 102
= 576 + 100 = 676
QR = \(\sqrt{676}\)
QR = \(\sqrt{26 \times 26}\)
OR = 26 सेमी। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

प्रश्न 2.
ABC एक त्रिभुज है जिसका एक समकोण है। यदि AB = 25 सेमी तथा AC = 7 सेमी हो, तब BC ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 2
समकोण ΔABC में पाइथागोरस प्रमेय से,
AB2 = AC2 + BC2
BC2 = AB2 – AC2
= 252 – 72
= 625 – 49 = 576
∴ BC = \(\sqrt{576}\)
BC = \(\sqrt{24 \times 24}\)
BC = 24 सेमी। उत्तर

प्रश्न 3.
दीवार के सहारे उसके पैर कुछ दूरी पर टिका कर 15 मीटर लम्बी एक सीढ़ी भूमि से 12 मीटर ऊँचाई पर स्थित खिड़की तक पहुँच जाती है। दीवार से सीढ़ी के पैर की दूरी ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 3
माना AB एक सीढ़ी है और B खिड़की है।
AB = 15 मीटर
BC = 12 मीटर
∵ ΔABC एक समकोण Δ है जिसमें ∠C समकोण है।
∴ AC2 = AB2 – BC2 = 152 – 122
= 225 – 144 = 81
AC2 = 81
AC = \(\sqrt{9 \times 9}\) = 9 मीटर ।
अतः दीवार से सीढ़ी के पैर की दूरी 9 मीटर है। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में भुजाओं के कौन-से समूह एक समकोण त्रिभुज बना सकते हैं ?
(i) 2.5 सेमी, 6.5 सेमी, 6 सेमी
(ii) 2 सेमी, 2 सेमी, 5 सेमी
(iii) 1.5 सेमी, 2 सेमी, 2.5 सेमी
समकोण त्रिभुज होने की स्थिति में उसके समकोण को भी पहचानिए।
हल :
(i) मांना a = 2.5 सेमी, b = 6.5 सेमी और c = 6 सेमी, तो
a2 + c2 = (2.5)2 + 62
= 6.25 + 36 = 42.25
b2 = 42.25
b2 = (6.5)2
b = 6.5
अतः a2 + c2 = b2
इसलिए दी गई भुजाएँ समकोण Δ बनाती हैं। और ∠B = 90°

(ii) माना a = 2 सेमी, b = 2 सेमी और c = 5 सेमी
a2 + b2 = (2)2 + (2)2 = 4 + 4 = 8
(c)2 = (5)2 = 25
a2 + b2 ≠ c2
अतः दी गई भुजाएँ समकोण Δ नहीं बनाती हैं।

(iii) माना a = 1.5 सेमी, b = 2 सेमी और c = 2.5 सेमी
a2 + b2 = (1.5)2 + (2)2
= 2.25 + 4 = 6.25
(c)2 = (2.5)2 = 6.25
⇒ a2 + b2 = c2
अतः दी गई भुजाएँ समकोण त्रिभुज बनाती हैं। और ∠C = 90°

प्रश्न 5.
एक पेड़ भूमि से 5 मीटर की ऊंचाई पर टूट जाता है और उसके ऊपरी भाग को उसके आधार से 12 मीटर की दूरी पर छूता है। पेड़ की पूरी ऊँचाई ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 4
माना BCD एक पेड़ है, जो बिन्दु C से टूटता है और इसका ऊपरी सिरा D जमीन पर बिन्दु A को छूता है।
CD = AC
BC = 5 मीटर
AB = 12 मीटर
समकोण ΔABC में,
AC2 = AB2 + BC2
= 122 + 52
= 144 + 25 = 169
AC2 = 169
(AC)2 = (13)2
AC = 13 सेमी
∴ CD = AC = 13 मीटर
पेड़ की ऊँचाई BD = BC + CD
= 5 + 13
= 18 मीटर। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

प्रश्न 6.
त्रिभुज PQR में ∠Q = 25° तथा कोण R = 65° है। निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है ?
(i) PQ2 + QR2 = RP2
(ii) PQ2 + RP2 = QR2
(iii) RP2 + QR2 = PQ2
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 5
हल :
कोण योग गुण से,
∠P + ∠Q + ∠R = 180°
⇒ ∠P + 25° + 65° = 180°
⇒ ∠P + 90° = 180°
⇒ ∠P = 180° – 90° = 90°
∴ ΔPQR समकोण त्रिभुज है, जिसमें ∠P = 90° है।
∴ पाइथागोरस प्रमेय से,
PR2 + PQ2 = QR2
∴ (ii) सत्य हैं। उत्तर

प्रश्न 7.
एक आयत की लम्बाई 40 सेमी है तथा उसका एक विकर्ण 41 सेमी है। इसका परिमाप ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 6
माना ABCD एक आयत है। जिसमें AB = 40 मीटर और AC = 41 मीटर।
समकोण ΔABC में कोण B समकोण है।
पाइथागोरस प्रमेय से,
BC2 = AC2 – AB2
= 412 – 402
= (41 + 40) (41 – 40)
= 81 × 1
BC2 = 81
(BC)2 = (9)2
BC = 9 मीटर
अब आयत का परिमाप = 2(AB + BC)
= 2(40 + 9) मीटर
= 2 × 49
= 98 मीटर। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5

प्रश्न 8.
एक समचतुर्भुज के विकर्ण 16 सेमी तथा 30 सेमी हैं। इसका परिमाप ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.5 - 7
माना ABCD एक समचतुर्भुज है, जिसमें
विकर्ण AC = 16 सेमी और विकर्ण BD = 30 सेमी
हम जानते हैं कि समचतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समकोण पर समद्विभाजित करते हैं।
∴ ΔAOB में,
AO = \(\frac {1}{2}\)AC
= \(\frac {1}{2}\) × 16 = 8 सेमी
OB = \(\frac {1}{2}\)BD = \(\frac {1}{2}\) × 30 = 15 सेमी
समकोण ΔAOB में,
AB2 = OA2 + OB2 = 82 + 152 = 64 +225 = 289.
AB = \(\sqrt{289}\)
AB = \(\sqrt{17 \times 17}\) = 17 सेमी
अतः समचतुर्भुज का परिमाप = 4 × 17 = 68 सेमी। उत्तर

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. सार्वजनिक वस्तुओं की विशेषता है-
(A) ये अप्रतिस्पर्धी होती हैं
(B) ये अवर्ण्य होती हैं
(C) इनके उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. निम्नलिखित में से सरकारी बजट के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(B) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की वास्तविक आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(C) इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों के संबंध में कोई चर्चा नहीं होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

3. बजट में-
(A) पिछले वर्ष की आय का विवरण होता है
(B) चालू वर्ष की आय-व्यय की संशोधित स्थिति होती है
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं

4. सरकारी बजट के निम्नलिखित में से कौन-से उद्देश्य हैं?
(A) आय और संपत्ति का पुनः वितरण
(B) आर्थिक स्थिरता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सार्वजनिक उद्यमों को निजी क्षेत्र को सौंपना
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. राजस्व प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती
(B) परिसंपत्तियों में कमी होती है
(C) कोई देयता उत्पन्न नहीं होती
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

6. निम्नलिखित में से कौन-सी करेत्तर प्राप्ति (Non-tax Receipts) है?
(A) उपहार कर
(B) बिक्री कर
(C) उपहार और अनुदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) उपहार और अनुदान

7. कर एक
(A) ऐच्छिक भुगतान है
(B) अनिवार्य भुगतान है
(C) एक कानूनी भुगतान नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अनिवार्य भुगतान है

8. जब किसी कर का करापात तथा कराघात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे कहते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष कर

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) मनोरंजन कर
(B) उत्पादन कर
(C) आय कर
(D) सेवा कर
उत्तर:
(C) आय कर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

10. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) उत्पादन कर
(B) सेवा कर
(C) मनोरंजन कर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण नहीं है?
(A) निगम कर
(B) संपत्ति कर
(C) सेवा कर
(D) आय कर
उत्तर:
(C) सेवा कर

12. निम्नलिखित में से प्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आयात-निर्यात कर
(B) उत्पादन कर
(C) बिक्री कर
(D) आय कर
उत्तर:
(D) आय कर

13. निम्नलिखित में से अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आय कर
(B) निगम कर
(C) मृत्यु कर
(D) आयात-निर्यात कर
उत्तर:
(D) आयात-निर्यात कर

14. कारकों के आबंटन की दृष्टि से अच्छे होते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर

15. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर नहीं है?
(A) सीमा शुल्क
(B) निगम कर
(C) केंद्रीय उत्पाद शुल्क
(D) व्यापार कर
उत्तर:
(B) निगम कर

16. कर की दर के अनुसार एक आनुपातिक कर प्रणाली क्या है?
(A) कर की दर समान रहे
(B) प्रत्येक को समान कर राशि चुकानी पड़े
(C) कर की दर में कमी हो
(D) कर की दर में वृद्धि हो
उत्तर:
(A) कर की दर समान रहे

17. प्रगतिशील कर पद्धति में-
(A) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत कम होता रहता है
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है
(C) आय कम हो या अधिक कर का प्रतिशत समान रहता है
(D) निर्धनों पर कर का भार अधिक पड़ता है
उत्तर:
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है

18. प्रगतिशील कर का उद्देश्य होता है-
(A) त्याग का समान बंटवारा
(B) कर में वृद्धि
(C) हानिप्रद उपभोग पर प्रतिबंध
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) त्याग का समान बंटवारा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

19. प्रतिगामी कर वह कर है जो
(A) व्यक्ति की आय बढ़ने पर बढ़ता प्रतिशत लेता है
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है
(C) व्यक्ति की आय का सापेक्षिक रूप में निम्न प्रतिशत होता है
(D) व्यक्ति की आय का स्थिर प्रतिशत लेता है
उत्तर:
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है

20. आय के असमान वितरण को कम किया जा सकता है-
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा
(B) आनुपातिक कर प्रणाली द्वारा
(C) प्रतिगामी कर प्रणाली द्वारा
(D) अवरोही कर प्रणाली द्वारा
उत्तर:
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा

21. सरकार की गैर-कर आय का मुख्य स्रोत कौन-सा है?
(A) फीस
(B) लाइसेंस तथा परमिट
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) आय कर पर सरचार्ज
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

22. पूँजीगत प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) देयता उत्पन्न होती है
(B) देयता उत्पन्न नहीं होती
(C) परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देयता उत्पन्न होती है

23. निम्नलिखित में से सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ कौन-सी हैं?
(A) ऋणों की वसूली
(B) उधार तथा अन्य देयताएँ
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्नलिखित में से कौन-सी पूँजीगत प्राप्ति है?
(A) कर राजस्व
(B) सरकारी निवेश से प्राप्त आय
(C) फीस व जुर्माने से प्राप्त राशि
(D) उधार ली गई राशि
उत्तर:
(D) उधार ली गई राशि

25. निम्नलिखित में से कौन-सी गैर-राजस्व प्राप्ति नहीं है?
(A) फीस
(B) उपहार कर
(C) जुर्माना
(D) अनुदान
उत्तर:
(B) उपहार कर

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26. विनिवेश से अभिप्राय है-
(A) वर्तमान निवेश को कम करना
(B) वर्तमान निवेश को शून्य करना
(C) लोगों के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) सरकार की परिसंपत्तियों को बढ़ाना
उत्तर:
(A) वर्तमान निवेश को कम करना

27. राजस्व व्यय वह व्यय है जिसके फलस्वरूप-
(A) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण होता है
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता
(C) सरकार की देयता में कमी होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता

28. पूँजीगत व्यय सरकार की वे अनुमानित व्यय हैं जो सरकार की-
(A) परिसंपत्ति में वृद्धि करते हैं
(B) देयता को कम करते हैं
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) देयता को बढ़ाते हैं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

29. निम्नलिखित में कौन-सा गैर-विकासात्मक (विकासेत्तर) व्यय है?
(A) देश की सुरक्षा पर व्यय
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय
(C) वृद्धावस्था पेंशन
(D) बेरोज़गारी भत्ता
उत्तर:
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय

30. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास व्यय नहीं है?
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय
(B) शिक्षा और चिकित्सा पर व्यय
(C) बिजली उत्पादन पर व्यय
(D) सड़क निर्माण पर व्यय
उत्तर:
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय

31. शिक्षा, प्रशिक्षण, जनस्वास्थ्य आदि पर व्यय कहलाता है-
(A) पूँजीगत निर्माण
(B) मानव पूँजीगत
(C) तकनीकी प्रगति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मानव पूँजीगत

32. बजट घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से-
(A) कम होता है
(B) अधिक होता है।
(C) बराबर होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अधिक होता है

33. राजस्व घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) इसका संबंध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है
(B) इसका संबंध पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय से है
(C) यह राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

34. राजकोषीय घाटा =
(A) बजट व्यय – उधार को छोड़कर बजट प्राप्तियाँ
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ

35. राजकोषीय घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही है?
(A) इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है
(B) इससे विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है
(C) इससे ऋणों में वृद्धि होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. प्राथमिक घाटा =
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
(B) राजकोषीय घाटा + ब्याज भुगतान
(C) राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान
(D) राजकोषीय घाटा x ब्याज भुगतान
उत्तर:
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

37. सरकार की कुल आय तथा कुल व्यय का अंतर कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) राजकोषीय घाटा
(C) मौद्रिक घाटा
(D) राजस्व घाटा
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा

38. राजस्व घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटे का आकार हमेशा होगा?
(A) बड़ा
(B) छोटा
(C) एक जैसा
(D) अनियत
उत्तर:
(A) बड़ा

39. राजस्व घाटे में सरकार की किस आय को शामिल किया जाता है?
(A) कर स्रोत को
(B) गैर-कर स्रोत को
(C) (A) और (B) दोनों को
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों को

40. राजकोषीय घाटे में से ब्याज की अदायगियाँ घटा देने पर प्राप्त होने वाला घाटा कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) प्राथमिक घाटा
(C) राजस्व घाटा
(D) मौद्रिक घाटा
उत्तर:
(B) प्राथमिक घाटा

41. राजस्व प्राप्ति + पूँजीगत प्राप्ति – गैर-आयोजन व्यय + आयोजन व्यय-पर गणना किसे प्रदर्शित करती है?
(A) बजटीय घाटा को
(B) प्राथमिक घाटा को
(C) राजस्व घाटा को
(D) राजकोषीय घाटा को
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा को

42. सरकार का राजकोषीय घाटा बराबर होता है
(A) चालू आय – चालू व्यय
(B) कुल आय – कुल व्यय
(C) पूँजीगत प्राप्तियाँ – पूँजीगत भुगतान
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)
उत्तर:
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)

43. राजस्व घाटा (Revenue Deficit) बजटीय घाटे से कम होगा यदि-
(A) पूँजीगत खाते में घाटा हो
(B) पूँजीगत खाता संतुलित हो
(C) पूँजीगत खाते में बचत (Surplus) हो
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पूँजीगत खाते में बचत हो

44. निम्नलिखित में से सही है
(A) बजट घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व आय
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय
(C) बजट घाटा = चालू व्यय – चालू आय
(D) बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय – सकल राजस्व आय
उत्तर:
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय

45. यदि सरकार द्वारा दिया गया ब्याज प्राथमिक घाटे में जोड़ दिया जाए तो यह बराबर होगा-
(A) राजस्व घाटे के
(B) बजट घाटे के
(C) मौद्रिक घाटे के
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) राजस्व घाटे के

46. एक बजट में राजस्व = व्यय हो तो उसे कहते हैं-
(A) घाटे का बजट
(B) संतुलित बजट
(C) बचत का बजट
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित बजट।

47. सरकारी व्यय उसकी आय से अधिक होने की स्थिति को क्या कहते हैं?
(A) संतुलित बजट
(B) बचत का बजट
(C) घाटे का बजट
(D) स्फीतिक बजट
उत्तर:
(C) घाटे का बजट

48. निम्नलिखित में से कौन-सा असंत त बजट है?
(A) बचत का बजट
(B) घाटे का बजट
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

49. घाटे का बजेट वह बजट है जिसमें
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय (B) सरकार की अनुमानित आय > सरकार का अनुमानित व्यय
(C) सरकार की अनुमानित आय = सरकार का अनुमानित व्यय
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय

50. बजट के घाटे को निम्नलिखित में से किस उपाय द्वारा दूर किया जा सकता है?
(A) मुद्रा का विस्तार
(B) जनता से उधार लेना
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगियाँ घटाने पर क्या प्राप्त होता है?
(A) बजटीय घाटा
(B) राजस्व घाटा
(C) प्राथमिक घाटा
(D) कुल उधार
उत्तर:
(C) प्राथमिक घाटा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

52. बजटीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था की जाती है
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) ऋणों द्वारा
(C) बचतों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

53. राजकोषीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था होती है-
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) घरेलू ऋण उगाही द्वारा
(C) विदेशी ऋणों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. बजट 1 अप्रैल से ………………. तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है। (आगामी 31 मार्च/आगामी 30 अप्रैल)
उत्तर:
आगामी 31 मार्च

2. राजस्व प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में ……………… (कोई कमी नहीं होती/कमी होती है)
उत्तर:
कोई कमी नहीं होती

3. कर एक ……………… भुगतान है। (ऐच्छिक/अनिवार्य)
उत्तर:
अनिवार्य

4. जब किसी कर का कराधान तथा करापात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे ……………… कहते हैं। (प्रत्यक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर)
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर

5. प्रगतिशील कर का वास्तविक भार ………….. पर अधिक पड़ता है। (अमीरों/गरीबों)
उत्तर:
गरीबों

6. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय राजस्व प्राप्तियाँ ……………… (पूँजीगत व्यय/ पूँजीगत प्राप्तियाँ)
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ

7. ……………… = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय। (घाटे का बजट/संतुलित बजट)
उत्तर:
घाटे का बजट

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. आय कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  2. सरकारी बजट प्रति मास पेश किया जाता है।
  3. भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च की अवधि तक होता है।
  4. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क अप्रत्यक्ष कर है।
  5. सार्वजनिक ऋण वह ऋण है जो सरकार केवल जनता से लेती है
  6. राजस्व घाटे का सम्बन्ध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है।
  7. अप्रत्यक्ष करों में कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता है।
  8. कर एक अनिवार्य भुगतान नहीं है।
  9. संपत्ति कर एवं उपहार कर प्रत्यक्ष कर हैं।
  10. राजस्व, सार्वजनिक वित्त तथा राज्य वित्त पर्यायवाची हैं।
  11. निजी वित्त और सार्वजनिक वित्त में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता।
  12. सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  13. कर सदा उपभोग में कमी लाते हैं।
  14. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि सदा मुद्रास्फीति लाती है।
  15. प्रगतिशील कर पद्धति में आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निजी वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निजी वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो एक व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर उपभोग में लाई जाती है। उदाहरण के लिए-

  • कपड़े
  • कार।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जिसका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए-

  • सड़कें
  • पुलिस सुरक्षा।

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प्रश्न 3.
मुफ्तखोरी (Free-Rider) की समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुफ्तखोरी की समस्या से अभिप्राय यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का शुल्क एकत्रित करना या तो बहुत कठिन या असंभव होता है इसलिए इन्हें मुफ्त ही प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक प्रावधान का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सार्वजनिक प्रावधान का तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का वित्त प्रबंधन बजट के माध्यम से मुफ्त में उपलब्ध होता है।

प्रश्न 5.
सरकार के नियतन फलन (Allocation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के नियतन फलन से अभिप्राय लोगों को वे वस्तुएँ उपलब्ध करवाना है जिन्हें कीमत तंत्र द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.
सरकार के वितरण फलन (Distribution Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के वितरण फलन से अभिप्राय लोगों को अंतरण भुगतान करके अथवा लोगों से कर एकत्रित करके लोगों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय प्रभावित करना है।

प्रश्न 7.
सरकार के स्थिरीकरण फलन (Stablisation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के स्थिरीकरण फलन से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में होने वाले उच्चावचनों को नियंत्रित करना है।

प्रश्न 8.
सरकारी बजट क्या होता है?
उत्तर:
सरकारी बजट 1 अप्रैल से आगामी 31 मार्च तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है।

प्रश्न 9.
भारत में वित्तीय वर्ष से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में वित्तीय वर्ष से अभिप्राय किसी वर्ष के 1 अप्रैल से दूसरे वर्ष के 31 मार्च की अवधि से है।

प्रश्न 10.
बजट को किस प्रकार विभाजित किया जाता है?
उत्तर:
बजट को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • राजस्व बजट
  • पूँजीगत बजट।

प्रश्न 11.
राजस्व बजट (Revenue Budget) क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्तियों और अनुमानित राजस्व भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 12.
पूँजीगत बजट (Capital Budget) क्या है?
उत्तर:
पूँजीगत बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित पूँजीगत प्राप्तियों और अनुमानित पूँजीगत भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 13.
राजस्व की मदों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजस्व मदें, वे मौद्रिक मदें हैं जो सरकार के लिए कोई देयता उत्पन्न नहीं करती तथा परिसंपत्तियों में कोई कमी उत्पन्न नहीं करतीं।

प्रश्न 14.
राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि नहीं करती और जिनकी प्रकृति प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती है। राजस्व प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • आय कर
  • लाइसेंस फीस।

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प्रश्न 15.
पूँजीगत प्राप्तियों (Capital Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि करती हैं और जिनकी प्रकृति आकस्मिक होती है। पूँजीगत प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • सार्वजनिक ऋण
  • अनुदान।

प्रश्न 16.
राजस्व अथवा आगम व्यय (Revenue Expenditure) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व अथवा आगम व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कोई कमी आती है। राजस्व व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन।

प्रश्न 17.
पूँजीगत व्यय (Capital Revenue) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप भौतिक तथा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा जिनके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है। पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का विकास।

प्रश्न 18.
कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से एकत्रित की गई राशियों से है।

प्रश्न 19.
गैर-कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए करों से एकत्रित की गई राशियों के अलावा प्राप्त की गई राशियों से है। यह करों के अतिरिक्त राजस्व के अन्य स्रोतों; जैसे लाभ, ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश आदि का जोड़ होता है।

प्रश्न 20.
कर क्या है?
उत्तर:
कर एक व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सरकार को बिना किसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है।

प्रश्न 21.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अन्य व्यक्तियों पर डाला नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, (i) आय कर, (ii) संपत्ति कर।

प्रश्न 22.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अंशतः या पूर्णतया अन्य व्यक्तियों पर डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए-

  • बिक्री कर
  • उत्पादन शुल्क।

प्रश्न 23.
मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर लगाए जाने वाले कर को मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर (Value Added Tax-VAT) कहा जाता है।

प्रश्न 24.
प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर क्या हैं? अथवा प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर वह कर है जिसका भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। प्रतिगामी कर वह कर है जिसका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक तथा धनी व्यक्तियों पर कम पड़ता है।

प्रश्न 25.
आनुपातिक कर क्या है?
उत्तर:
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें कर की दर समान रहती है। आय के बढ़ने या घटने पर भी इसकी दर में परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 26.
गैर-योजना व्यय क्या होता है?
उत्तर:
गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। यह व्यय सरकारी प्रशासन और सामान्य गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने पर किया जाता है। चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 27.
विकासात्मक व्यय (Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिन्हें सरकार द्वारा देश की आर्थिक तथा सामाजिक विकास संबंधी योजनाओं के अंतर्गत व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विकासात्मक व्यय का प्रत्यक्ष संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 28.
गैर-विकासात्मक व्यय (Non-Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसे सरकार सामान्य सामाजिक सेवाओं व प्रशासन, पुलिस आदि पर करती है।

प्रश्न 29.
संतुलित बजट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलित बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय दोनों बराबर होते हैं।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल राजस्व व्यय कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है।

प्रश्न 31.
घाटे के बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

प्रश्न 32.
प्राथमिक घाटे (Primary Deficit) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से पुराने ऋणों पर ब्याज घटाने पर जो घाटा प्राप्त होता है, उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं।

प्रश्न 33.
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की सुरक्षित सीमा क्या है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा तब तक मानी जाती है जब तक उसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा सकल घरेलू उत्पाद के 5% के बराबर मानी जाती है।

प्रश्न 34.
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय क्यों है?
उत्तर:
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय है क्योंकि ब्याज की अदायगी से न तो कोई दायित्वों में वृद्धि होती है और न ही संपत्तियों में कोई कमी होती है।

प्रश्न 35.
आभ्यांतरिक स्थिरक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आभ्यांतरिक स्थिरक से अभिप्राय यह है कि निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है तो व्यय में स्वतः बढ़ोत्तरी हो जाती है अथवा करों में स्वतः कमी हो जाती है जिससे अर्थव्यवस्था स्वतः स्थिर दशा को प्राप्त करती है।

प्रश्न 36.
सरकारी व्यय गुणक निकालने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)

प्रश्न 37.
रिकॉर्डो समतुल्यता क्या है?
उत्तर:
रिकॉर्डों समतुल्यता वह सिद्धांत है जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ऋण ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता है।

प्रश्न 38.
कर गुणक की गणना का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणक की गणना = \(\frac { -c }{ 1-c }\)

प्रश्न 39.
आनुपातिक कर गुणक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
आनुपातिक कर गुणक = \(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है, जिनका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुओं और निजी वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-
(i) निजी वस्तुओं का लाभ केवल एक ही उपभोक्ता तक सीमित होता है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ सभी लोगों तक उपलब्ध होता है। किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता। इससे मुफ्तखोरी की समस्या उत्पन्न होती है।

(ii) निजी वस्तुओं की कुछ-न-कुछ कीमत होती है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं की कोई कीमत नहीं होती। ये सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त उपलब्ध करवाई जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है।

प्रश्न 2.
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के कार्य बताइए।
उत्तर:
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(i) नियतन कार्य (आबंटन कार्य)-सरकारी बजट के मुख्य कार्य लोगों को सार्वजनिक वस्तुएँ; जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, सरकारी प्रशासन आदि उपलब्ध करवाना है।

(ii) वितरण कार्य-सरकारी बजट आय के वितरण को न्यायपूर्ण बनाता है, ताकि आय की असमानताओं को दूर किया जा सके। स्थिरीकरण कार्य-सरकारी बजट अर्थव्यवस्था में उच्चावचों के प्रभाव को समाप्त करता है, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रह सके।

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प्रश्न 3.
कर की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कर एक अनिवार्य भुगतान है।
  2. कर एक कानूनी भुगतान है।
  3. कर से प्राप्त आय जन-कल्याण हेतु खर्च की जाती है।
  4. कर देना प्रत्येक व्यक्ति का निजी उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 4.
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. संसाधनों का पुनः आबंटन-बजट का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा सामाजिक संसाधनों को घोषित कर सामाजिक और आर्थिक हितों के अनुरूप पुनः आबंटित करना है।

2. आय संपत्ति का पुनः वितरण-सरकारी बजट द्वारा क्षेत्रीय तथा व्यक्तिगत असमानताओं को कम करना है। सार्वजनिक व्यय द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाता है तथा निर्धन वर्ग को मुफ्त या रियायती दरों पर सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

3. स्थिरीकरण बजट का उद्देश्य व्यापार चक्रों की संभावनाओं को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करना है।

4. सामाजिक कल्याण में वृद्धि-बजट द्वारा सामाजिक कल्याण में वृद्धि का प्रयास किया जाता है। बजट द्वारा सार्वजनिक उद्यमों के उत्तम प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 5.
बजट समाज को किन तीन स्तरों पर प्रभावित करता है?
उत्तर:
बजट समाज को निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रभावित करता है-
1. वित्तीय अनुशासन-बजट समग्र स्तर पर वित्तीय अनुशासन लागू करता है। वित्तीय अनुशासन का अर्थ राजस्व के स्तर का पूर्व निर्धारण कर व्यय पर अंकुश रखना है।

2. संसाधनों का आवंटन-सामान्यतया संसाधनों का आबंटन बाज़ार में कीमत प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। जब बाज़ार संसाधनों के कुशलतम आबंटन में असफल रहता है तो बजट द्वारा संसाधनों के कुशलतम आबंटन का प्रयास किया जाता है। बजट सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर संसाधनों का आबंटन करता है।

3. लक्ष्यों की प्राप्ति-बजट विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं को प्रदान किए जाने का प्रभावी एवं कुशल माध्यम है। बजट के द्वारा सरकार अपने लक्ष्यों को न्यूनतम आर्थिक व सामाजिक लागत पर प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 6.
एक अच्छी कर संरचना की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक अच्छी कर संरचना की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उत्पादकता एक अच्छी कर संरचना में सभी प्रकार के कर होने चाहिएँ, ताकि सरकार को नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में आय प्राप्त होती रहे।

2. लोच-एक अच्छी कर संरचना में लोचशीलता का गुण होना चाहिए जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ कर आगम में भी वृद्धि होती रहे।

3. न्यायसंगत कर प्रणाली को न्यायसंगत होना चाहिए अर्थात् कर प्रणाली के अंतर्गत निर्धन वर्ग की तुलना में धनी वर्ग पर कर का भार अधिक होना चाहिए।

4. प्रशासनिक व्यवहार्यता-कर के एकत्रीकरण के लिए समय, प्रयास और लागत आवश्यक होते हैं। इसलिए कर प्रणाली को सरल और मितव्ययी होना चाहिए। कर अपवचन की संभावनाएँ न्यूनतम होनी चाहिएँ। कर प्रणाली करदाताओं के लिए सुविधाजनक होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारप्रत्यक्ष करअप्रत्यक्ष कर
(i) अंतिम भारप्रत्यक्ष कर का अंतिम भार उसी व्यक्ति को सहन करना पड़ता है जिस पर इसे लगाया जाता है।अप्रत्यक्ष कर कां अंतिम भार उस व्यक्ति को नहीं सहन करना पड़ता जिस पर इसे लगाया जाता है।
(ii) करों का टालनाप्रत्यक्ष कर के भार को टाला नहीं जा सकता।अप्रत्यक्ष कर के भार को टाला जा सकता है।
(iii) प्रकृतिप्रत्यक्ष कर प्रायः प्रगतिशील होते हैं अर्थात् आय बढ़ने पर इनका भार बढ़ता है।अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी होते हैं। इनका भार गरीबों पर अधिक पड़ता है।

प्रश्न 8.
राजस्व प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारराजस्व प्राप्तियाँपूँजीगत प्राप्तियाँ
(i) प्रकृतिराजस्व प्राप्तियाँ प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती हैं।पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति आकस्मिक होती हैं।
(ii) उद्देश्यइसका उद्देश्य नियमित व्ययों को पूरा करना है।इसका उद्देश्य दायित्व का निर्माण करना अथवा संपत्तियों में कमी करना है।
(iii) संघटकइसमें कर और गैर-कर दोनों प्राप्तियाँ सम्मिलित हैं।इसमें केवल गैर-कर प्राप्तियाँ सम्मिलित होती हैं।
(iv) उदाहरणआय करलोगों से ऋण

प्रश्न 9.
पूँजीगत व्यय और राजस्व व्यय का क्या अर्थ है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
अथवा
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इस व्यय के फलस्वरूप भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों की कमी होती है। राजस्व व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। इन व्ययों की प्रकृति प्रतिवर्ष किए जाने की होती है। इसके विपरीत, पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय के उदाहरण

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन, पेंशन आदि।

पूँजीगत व्यय के उदाहरण

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का निर्माण।

प्रश्न 10.
योजना व्यय और गैर-योजना व्यय का क्या अर्थ है? अथवा सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दें।
उत्तर:
सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इसका संबंध देश के आर्थिक विकास की योजनाओं से है। योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस, प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 11.
कारण बताते हुए निम्नलिखित को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत कीजिए
(i) आर्थिक सहायता
(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान
(iii) ऋणों की अदायगी
(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण।
उत्तर:
(i) आर्थिक सहायता राजस्व व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। आर्थिक सहायता अल्पकालीन और बार-बार होने वाला व्यय है और इसकी आवृत्ति अधिक होती है।

(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान राजस्व व्यय है क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही इसके दायित्वों में कमी आती है।

(iii) ऋणों की अदायगी पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है।

(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप संपत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 12.
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि अमुक कर के भार को दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है या नहीं। यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर नहीं टाला जा सकता तो वह प्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे आय कर, लाभ (निगम) कर, उत्पादन शुल्क, संपत्ति कर आदि। इसके विपरीत, यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है तो वह, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे बिक्री कर जिसे दुकानदार पहले सरकार को अदा करता है और फिर दुकानदार अपने ग्राहक से कीमत में मिलाकर बिक्री कर वसूल करता है। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष कर के अन्य उदाहरण हैं; जैसे मनोरंजन कर, उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क आदि।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक ऋण तथा कर में अंतर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण तथा कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारकरसार्वजनिक ऋण
(i) प्रकृतिकर सरकार की आय का निर्माण स्रोत है।सार्वजनिक ऋण विशेष परिस्थितियों में लिया जाता है।
(ii) मात्राकर से एक सीमित मात्रा में ही धन एकत्रित किया जाता है।सार्वजनिक ऋण से बहुत अधिक मात्रा में धन एकत्रित किया जा सकता है।
(iii) भार एवं लाभकर का भार एवं लाभ वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होता है।सार्वजनिक ऋणों का भार व लाभ भावी पीढ़ी को प्राप्त होता है।
(iv) वापसी का दायित्वकरों से प्राप्त रकम को वापिस नहीं करना पड़ता।सार्वजनिक ऋणों को सरकार को वापिस करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
राजस्व घाटे का क्या अर्थ है? इससे क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थव्यवस्था में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। राजस्व घाटे का अर्थ है कि सरकार को अपने नियमित राजस्व व्यय के लिए अपनी बचत को प्रयोग करना पड़ेगा। राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान तथा ऋणों पर ब्याज के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक राजस्व घाटा सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है। राजस्व घाटे से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने लगती है जिससे देश की आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 15.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जब सरकार का राजस्व व्यय (योजना व्यय), राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में अधिक होता है तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटा सरकार की अवबचतें (Dissavings) को दर्शाता है क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजीगत प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) जब बज व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय), उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियों + पूँजीगत प्राप्तियों) से अधिक होता है तो इसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। गहराई से देखें तो राजकोषीय घाटा वास्तव में उधार के बराबर होता है। यह बजट को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
संतुलन आय पर एकमुश्त करों में परिवर्तन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
एकमुश्त करों में परिवर्तन का संतुलन आय पर पड़ने वाला प्रभाव कर गुणक पर निर्भर करता है, जिसे हम निम्नलिखित प्रकार से निकाल सकते हैं-
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 1
इस प्रकार संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तन होगा
∆Y = कर गुणक x ∆T
= \(\frac { -c }{ 1-c }\)∆T
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में E संतुलन बिंदु है जहाँ OY संतुलन आय है। जब कर में कमी होती है तो वैयक्तिक प्रयोज्य आय बढ़ जाती है और समस्त माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाता है। परिणामस्वरूप नया संतुलन बिंदु E’ हो जाता है और सतुलन आय बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 17.
क्या संतुलित बजट भारत के लिए लाभकारी है? समझाइए।
उत्तर:
यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। संतुलित बजट वह होता है जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ, अनुमानित व्यय के बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, करों से प्राप्त राशि, व्यय राशि के बराबर होती है। यद्यपि संतुलित बजट आर्थिक स्थायित्व (Financial Stability) लाता है और सरकार को फिजूलखर्ची से बचाता है परंतु यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया को अवरुद्ध भी करता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ बेरोज़गारी और गरीबी व्याप्त है, सरकार को व्यय बढ़ाना चाहिए ताकि रोज़गार के अधिक-से-अधिक अवसर उत्पन्न हों और अधिक उत्पादन से बेरोज़गारी दूर करने में सहायता मिले। इसलिए भारत के लिए इस समय घाटे का बजट (अनुमानित व्यय > अनुमानित प्राप्तियाँ) अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।

प्रश्न 18.
संतुलन आय पर सरकारी व्यय में परिवर्तन के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय समस्त माँग का एक भाग है। इस प्रकार सरकारी व्यय संतुलन आय को प्रभावित करता है। आय पर होने वाला प्रभाव सरकारी व्यय गुणक पर निर्भर करता है जिसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 2
संतुलन आय में परिवर्तन को निम्नलिखित सूत्र से निकाल सकते हैं राष्ट्रीय आय में परिवर्तन (∆Y) = ∆G x गुणक
= \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि संतुलन आय OY है। सरकारी व्यय में वृद्धि होने से संतुलन आय OY से बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 19.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है? घाटे के बजट के लाभ बताइए।
उत्तर:
घाटे के बजट का अर्थ-घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

घाटे के बजट के लाभ-घाटे के बजट के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. घाटे के बजट द्वारा महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. अल्पविकसित देशों को घाटे के बजट से अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है।
  3. घाटे के बजट से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक व्यय क्या है? इसके मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय का अर्थ-सार्वजनिक व्यय (Government Expenditure) से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

सार्वजनिक व्यय के उद्देश्य-सार्वजनिक व्यय के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करना
  2. सरकारी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना
  3. लोगों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु हस्तांतरण भुगतान से वृद्धि लाना
  4. पूँजीगत संपत्तियों व आधारित ढाँचे (Infrastructure) का निर्माण करना
  5. अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी को नियंत्रित करना
  6. आर्थिक विकास की गति बढ़ाना
  7. क्षेत्रीय विकास में असमानता दूर करना आदि।

प्रश्न 21.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) से आप क्या समझते हैं? पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ है? इसकी श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर का अर्थ-वस्तु एवं सेवा कर, देश में सबसे बड़ा कर सुधार है जो 30 जून/1 जुलाई, 2017 की अर्धरात्रि को संसद द्वारा देश में लागू किया गया। यह कर उत्पाद को सेवा प्रदायकों से सीधे ही वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति पर लगाया जाता है। यह कर पूरे भारत में एक ही प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही दर से लागू होता है।

पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था श्रेष्ठ अनेकों मध्यवर्ती वस्तुएँ/सेवाएँ, जो GST लगने से पहले अर्थव्यवस्था में उत्पादन कर रही थीं, उनके प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर एवं वस्तु सेवा के कुल मूल्य पर बिना किसी आगत कर जमा (ITC) के कर लगाए जाते थे जिसमें कुल मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं/सेवाओं पर दिया गया कर सम्मिलित था। इससे करों का सोपानन हो जाता था। GST पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर लिया जाता है। यह प्रभावी रूप से पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर एक मूल्य वर्जित कर है। हमारी तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए यह पूरे देश में कराधार में समता और मूल्य संवर्धित करके सिद्धांतों को सभी वस्तुओं और सेवाओं पर स्थापित करता है।

इसने केन्द्र/राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों के द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के करों/उपकरों को प्रतिस्थापित कर दिया है। केन्द्र द्वारा लगाए गए कुछ कर केन्द्रीय उत्पादन कर, सेवाकर, केन्द्रीय बिक्री कर और कृषि कल्याण कर, स्वच्छ भारत कर उपकर थे।

GST की शुरुआत में पैट्रोलियम पदार्थों को बाहर रखा गया था, लेकिन समय बीतने के साथ इन्हें भी GST में समाहित कर दिया। मानव उपयोग के लिए मादक पेयों पर राज्य सरकारें वस्तु और सेवा कर लगाती रहेगी।

श्रेणियाँ-GST की श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं-
1. SGST-SGST का पूर्ण रूप State Goods and Services Tax है जिसका अर्थ राज्य माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो राज्य सरकार को मिलता है। इस कर को वसूलने के लिए भिन्न राज्यों ने अपने यहाँ SGST Act पारित किए हैं। यह उन्हीं सौदों पर लगता है जो उस राज्य के भीतर होते हैं।

2. CGST-CGST का पूर्ण रूप Central Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्र माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो केन्द्र सरकार को मिलता है।

3. UTGST- UTGST का पूर्ण रूप Union Territory Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्रशासित प्रदेश का माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए GST का वह भाग होता है जो केंद्रशासित प्रदेश को मिलता है।

4. IGST-IGST का पूर्ण रूप Integrated Goods and Services Tax है जिसका अर्थ समेकित या एकीकृत माल एवं सेवा कर होता है। किसी माल की पूर्ति पर IGST तब लगाया जाता है जब वह माल किसी अन्य राज्य में भेजा जाता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकारी बजट को परिभाषित कीजिए। बजट के घटक (Components) भी बताइए।
उत्तर:
बजट का अर्थ “बजट आगामी वित्तीय वर्ष में सरकार की अनमानित आय और अनमानित व्यय का मदवार विवरण होता है।” दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Head) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ और व्यय। भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शरू होकर अगले वर्ष 31 मार्च को समाप्त होता है।

बजट की परिभाषाएँ:
1. प्रो० जॉनसन के अनुसार, “सरकार का बजट आगामी अवधि, जो कि आमतौर पर एक वर्ष होती है, के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्यय का ब्यौरा है।”

2. प्रो० रिचर्ड गुड के अनुसार, “एक सरकारी बजट सरकार के व्यय और आय संबंधी एक वित्तीय योजना है।” इस प्रकार बजट में सम्मिलित तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • यह सरकार की प्राप्तियों और व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
  • बजट अनुमानों की अवधि सामान्यतया एक वर्ष होती है।
  • व्यय की मदें और आय के स्रोत सरकार की नीतियों और लक्ष्यों के अनुरूप रखे जाते हैं।
  • बजट लागू करने से पहले इसे संसद अथवा विधानसभा द्वारा पास करवाना आवश्यक होता है।

बजट के घटक बजट को दो भागों-राजस्व बजट और पूँजीगत बजट में बाँटा जाता है। राजस्व बजट में सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ और इनके द्वारा पूरे किए गए खर्चों का विवरण होता है। राजस्व प्राप्तियों में दोनों राजस्व कर और गैर-राजस्व प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं। पूँजीगत बजट में सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतानों का विवरण होता है। पुनः बजट प्राप्तियों और बजट खर्चों को राजस्व और पूँजी के संदर्भ में विभक्त किया जाता है जैसाकि आगे दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 3

प्रश्न 2.
बजट से क्या अभिप्राय है? इसके उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है। दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित (Expected) व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों (Proposed Sources of Financing Expenditure) का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ (Receipts) और व्यय (Expenditure)।

बजट के उद्देश्य सरकारी बजट सरकार की अनुमानित प्राप्तियों अथवा आय और व्ययों का एक सांख्यिकीय ब्यौरा मात्र नहीं है। यह सरकार की नीतियों और उद्देश्यों का विवरण है। बजट के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. आर्थिक विकास-सभी देशों का मुख्य उद्देश्य अपना-अपना आर्थिक विकास करना होता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बजटीय नीति का प्रयोग किया जाता है। एक देश की विकास दर उसकी बचत और निवेश की दरों पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से बचत की भूमिका बजट और निवेश में वृद्धि के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने की रहनी चाहिए।

2. संसाधनों का उचित आबंटन-निजी उद्यमी सदा यही चाहेंगे कि संसाधनों का आबंटन उत्पादन के उन क्षेत्रों में किया जाए जहाँ ऊँचे लाभ मिलने की आशा हो। परंतु यह भी संभव है कि उत्पादन के कुछ क्षेत्रों द्वारा सामाजिक कल्याण में कोई वृद्धि न हो। अतः सरकार अपनी बजटीय नीति में संसाधनों के आबंटन को इस प्रकार से प्रकट करती है जिससे अधिकतम लाभ और सामाजिक कल्याण के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके।

3. आर्थिक स्थिरता आर्थिक स्थिरता लाना भी सरकारी बजट का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र निरंतर चलते रहते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रों से सुरक्षित रखने के लिए सदा ही वचनबद्ध होती है। बजट सरकार के हाथों में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसके द्वारा सरकार अवस्फीतिक और मुद्रा स्फीतिक की स्थितियों का मुकाबला करती है। ऐसा करके सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

4. आर्थिक समानता-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पाई जाती हैं परंतु एक सीमा से अधिक आर्थिक विषमताएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अवांछनीय मानी जाती हैं। अतः आर्थिक विषमताओं में कमी लाने का महत्त्वपूर्ण उपकरण बजटीय नीति अथवा बजट है। अमीरों और गरीबों के बीच आय और धन की विषमता को कम करने के लिए कर (Tax) और सार्वजनिक व्यय के उपायों को अपनाया जा सकता है।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध-सरकार की बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों के माध्यम से विकास की गति को तेज करने के लिए उत्सुक है। अक्सर सार्वजनिक उद्यमों को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता जहाँ प्राकृतिक एकाधिकार पाया जाता है। प्राकृतिक एकाधिकार से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जहाँ विशाल स्तर पर उत्पादन की बचतें मिलती हैं और कोई एक अकेली फर्म निम्न औसत लागत पर उत्पादन कर सकती है।

6. रोज़गार का सृजन-रोज़गार का सृजन भी सरकार की बजट संबंधी नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस दृष्टि से आवश्यक है कि सरकार श्रम गहन तकनीक और सड़क, बाँध, नहरें व पुल निर्माण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करे और विशिष्ट रोज़गार कार्यक्रमों को अपनाए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
बजट (सरकारी) व्यय किसे कहते हैं? इसके मुख्य घटकों या अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय का अर्थ-सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

बजट व्यय के घटक बजट व्यय भी दो प्रकार का होता है-
(i) राजस्व व्यय

(ii) पूँजीगत व्यय, परंतु सरकारी व्यय के संदर्भ में नोट करने वाली बात यह है कि समस्त सरकारी व्यय को पहले

  • योजना व्यय और
  • गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत किया जाता है और फिर उन्हें राजस्व व्यय तथा पूँजीगत व्यय में बाँटा जाता है। जैसे निम्नलिखित चार्ट में घटकों सहित दिखाया गया है।

मोटे रूप में व्यय को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
(a) योजना और गैर-योजना व्यय
(b) राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय
(c) विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 4

प्रश्न 4.
राजस्व प्राप्तियों के घटकों व स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों के घटक-सरकार की राजस्व प्राप्तियों (अथवा आय) को दो भागों में बाँटा जाता है (i) करों से प्राप्त राजस्व और (ii) गैर-करों से प्राप्त राजस्व। कर राजस्व से अभिप्राय सभी प्रकार के करों से प्राप्त राजस्व (आय) से है। उदाहरण के लिए, आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क आदि। गैर-कर राजस्व से अभिप्राय कर-भिन्न राजस्व के स्रोतों (जैसे ब्याज प्राप्तियाँ, लाभ, लाभांश आदि) से है। राजस्व प्राप्तियों के स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
1. कर राजस्व-यह सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से प्राप्त राशियों का योग होता है। कर, सरकारी राजस्व का मुख्य स्रोत है। कर एक कानूनी अनिवार्य भुगतान (Legal Compulsory Payment) है जो सरकार द्वारा व्यक्तियों व कंपनियों की आय व लाभ पर लगाया जाता है। बदले में मिलने वाली सरकारी सेवा का इससे कोई संबंध नहीं होता। इसी प्रकार सरकार वस्तुओं के उत्पादन पर, बिक्री पर, आयात-नि ति पर तथा धन व उपहार आदि पर कर लगाती है। करों से प्राप्त आय की सामूहिक आवश्यकताएँ (जैसे सड़के, पुल, पार्क, स्कूल, अस्पताल, कानून व्यवस्था, सुरक्षा आदि) पूरी करने व सार्वजनिक हित में व्यय करती है।

कर अदा न करने पर सरकार उचित सजा देती है। करदाता सरकार से बदले में कुछ माँग नहीं सकता। जैसे कोई अमीर व्यक्ति विद्यालय चलाने हेतु सरकार द्वारा लगाए गए कर को देने से इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि उसकी कोई संतान नहीं है। केंद्रीय (या संघ) सरकार विभिन्न प्रकार के करों से राजस्व एकत्रित करती है; जैसे आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, व्यय कर, धन कर, ब्याज कर, उपहार कर आदि। विभिन्न प्रकार के कर लगाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी राजस्व बढ़ाना
  • आय व संपत्ति में विषमता कम करना
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपभोग नियंत्रित करना
  • विदेशी व्यापार को व्यवस्थित करना
  • देश के संसाधनों को सुरक्षित रखना
  • विकास कार्यों और प्रशासन चलाने के लिए आवश्यक धन जुटाना।

कर कई प्रकार के होते हैं; जैसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर, प्रगतिशील व आनुपातिक कर आदि।

2. गैर-कर राजस्व-यह कर भी सरकार की आय (राजस्व) का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसमें सरकारी उद्यमों द्वारा बेची गई वस्तुओं व सरकारी विभागों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त आय शामिल की जाती है। गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) के मुख्य स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
(i) ब्याज प्राप्तियाँ-केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों, स्थानीय सरकारों, निजी उद्यमों व लोगों को दिए गए ऋण पर बड़ी मात्रा में ब्याज प्राप्त होता है। यह सरकार को गैर-कर आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

(ii) लाभ और लाभांश-गत कुछ वर्षों से सरकार ने आय का एक अन्य स्रोत विकसित किया है। सरकार ने सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises) स्थापित किए हैं जो निजी उद्यमों की भाँति वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करते हैं और बिक्री से लाभ अर्जित करते हैं; जैसे राष्ट्रीयकृत बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय बीमा निगम (LIC), STC, MMTC, BHEL इत्यादि। इसी प्रकार सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में उद्यमों के किए गए निवेश से लाभांश भी प्राप्त होता है।

(iii) फीस और जर्माना सरकार को विभिन्न प्रकार की फीस वसल करने से भी कछ आय होती है; जैसे स्कल में पढ़ाई की फीस, अस्पताल में कार्ड बनवाने की फीस, भूमि की रजिस्ट्री करवाने की फीस, पासपोर्ट बनवाने की फीस, कोर्ट फीस, स्कूटर कार चलाने हेतु लाइसेंस बनवाने की फीस आदि। इन्हें प्रशासकीय राजस्व (Administrative Revenue) कहते हैं क्योंकि यह प्रशासकीय कार्यों से प्राप्त होती है। इसी प्रकार कानून तोड़ने वालों से जुर्माने के रूप में भी सरकार को आय प्राप्त होती है।

(iv) विशेष आकलन-जब सरकार किसी विशेष क्षेत्र में सड़कें, नालियाँ व पार्क बनवाती है या सीवरेज व्यवस्था उपलब्ध करवाती है तो इसके फलस्वरूप आस-पास स्थित मकानों की कीमतें व किराए बढ़ जाते हैं जो मकान मालिकों की मेहनत का परिणाम नहीं है। इसलिए सरकार ऐसे मकान मालिकों से उनकी संपत्ति को पहुँचने वाले लाभ का विशेष आकलन करके सुधारों पर किए गए व्यय का कुछ भाग वसूल करती है। इसे विशेष आकलन (Special Assessment) कहते हैं जो सरकार की आय का एक स्रोत बन जाता है।

(v) विदेशी सहायता अनुदान-सरकार को विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे WHO, UNESCO आदि) से अनुदान, उपहार, भेंट और योगदान के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। यह भी गैर-कर राजस्व का एक स्रोत है।

3. पूँजीगत प्राप्तियों के स्रोत-यह पहले भी बताया जा चुका है कि सरकार की वे प्राप्तियाँ जो (i) देनदारियाँ पैदा करती हैं या (ii) जो परिसंपत्तियाँ कम कर देती हैं पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
(i) आंतरिक व विदेशी ऋण-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए (a) खुले बाज़ार से, (b) भारतीय रिज़र्व बैंक से, (c) विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक) से कर्ज लेती है। उधार से एकत्रित की गई धनराशि पूँजीगत प्राप्ति मानी जाती है, क्योंकि इसमें सरकार की देनदारी बढ़ती है।

(ii) ऋणों व अग्रिमों की वसूली केंद्र सरकार द्वारा (a) राज्य सरकारों व केंद्र-शासित प्रदेशों, (b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और (c) विदेशी सरकारों को जो ऋण व अग्रिम, भूतकाल में दिए गए थे, उनकी वसूली, पूँजीगत प्राप्ति का अंग है क्योंकि इससे वित्तीय परिसंपत्ति कम होती है।

(iii) विनिवेश-सरकार विनिवेश के माध्यम से भी धन इकट्ठा करती है। विनिवेश (Disinvestment) का अर्थ है सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उद्यमों के शेयर्ज (Shares) पूर्ण रूप या आंशिक रूप से बेचना। इसके फलस्वरूप सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आ जाती है। कभी-कभी विनिवेश को निजीकरण (Privatisation) भी कहा जाता है क्योंकि इससे सरकारी उद्यमों का स्वामित्व, निजी क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाता है।

(iv) लघु बचतें इसमें छोटी-छोटी बचतें; जैसे डाकघर बचत खातों में जमा सामान्य भविष्य निधि (GPF) में जमा, राष्ट्रीय बचत योजना (NSS) में जमा, किसान विकास पत्रों के रूप में जमा राशियाँ शामिल की जाती हैं।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक (सरकारी) व्यय का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय-वे सभी व्यय जो पूँजी का निर्माण करते हैं अथवा दायित्वों में कमी करते हैं पूँजीगत व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं। वे सभी व्यय जो न तो संपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही दायित्वों में कमी करते हैं राजस्व व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं।

पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • स्कूल के भवन का निर्माण।
  • सड़कों का निर्माण।

राजस्व व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • वेतन।
  • ब्याज का भुगतान।

2. विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है। विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा
  • चिकित्सा
  • उद्योग
  • कृषि
  • यातायात
  • बिजली।

गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध सरकारी प्रशासन तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों से है। गैर-विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कानून व्यवस्था
  • वेतन
  • वृद्धावस्था पेंशन
  • ऋण पर ब्याज।

3. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक
विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए। (क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय। (ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय।
उत्तर:
(क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय में अंतर-जब किसी व्यय से वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है तो यह विकासात्मक व्यय है अन्यथा गैर-विकासात्मक व्यय होता है।
1. विकासात्मक व्यय ऐसे कार्यों पर व्यय जिनका देश के आर्थिक व सामाजिक विकास से प्रत्यक्ष संबंध होता है, विकासात्मक व्यय कहलाता है; जैसे कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि से संबंधित क्रियाओं पर व्यय, विकासात्मक व्यय कहलाता है।

2. गैर-विकासात्मक व्यय-सरकार का आवश्यक सामान्य सेवाओं पर व्यय, गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। उदाहरण के लिए, प्रशासन, कानून व्यवस्था, पुलिस, जेल, न्यायाधीशों, कर वसूली आदि पर व्यय गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। यद्यपि ऐसा व्यय राष्ट्रीय उत्पाद में प्रत्यक्ष योगदान नहीं देता फिर भी आर्थिक विकास की गति देने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देता है। इस दृष्टि से गैर-विकासात्मक व्यय, विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक भाग है।

(ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर
1. योजना व्यय इससे अभिप्राय उस अनुमानित व्यय से है जिसे चालू पंचवर्षीय योजना में शामिल परियोजनाओं और कार्यक्रमों (projects and programmes) के लागू करने पर व्यय करने का प्रावधान बजट में किया गया हो। बजट में ऐसे व्ययों का प्रावधान, ‘योजना व्यय’ कहलाता है। इसमें तात्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती हैं; जैसे

  • सड़कों व पुलों का निर्माण
  • विद्युत उत्पादन
  • सिंचाई व ग्रामीण विकास
  • विज्ञान, टेक्नॉलोजी तथा पर्यावरण आदि।

इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित केंद्रीय योजना के वित्तीयन (financing) पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की योजनाओं हेतु केंद्र सरकार द्वारा दी गई सहायता भी योजना व्यय में शामिल की जाती है। योजना व्यय को राजस्व व्यय और पूँजी व्यय में बाँटा जाता है।

2. गैर-योजना व्यय चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर सरकार के अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं। ये व्यय मुख्यतः सरकारी प्रशासन व सामान्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने पर किए जाते हैं। ऐसे व्यय प्रत्येक सरकार के लिए आवश्यक होते हैं, चाहे योजना हो या न हो। उदाहरण के लिए, कोई भी सरकार लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने तथा विदेशी आक्रमण से देश को बचाने जैसे अपने बुनियादी कर्तव्यों से बच नहीं सकती। अतः इसके लिए सरकार को पुलिस, न्यायाधीशों, सेना आदि पर व्यय करना पड़ता है। इसी प्रकार सरकार को सरकारी विभागों को सामान्य रूप से चलाने तथा आर्थिक व सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने पर व्यय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
संतुलित बजट क्या है? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
संतुलित बजट (Balanced Budget)-संतुलित बजट वह बजट होता है जिसमें सरकार की अनुमानित आय (राजस्व प्राप्तियाँ अथवा आय + पूँजीगत प्राप्तियाँ अथवा आय) के बराबर होती हैं। अर्थात्
संतुलित बजट : अनुमानित आय = अनुमानित व्यय

संतुलित बजट के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Balanced Budget)-

  • सरकार की फिजूलखर्ची पर प्रभावी रूप से रोक लगाने की दृष्टि से संतुलित बजट को उपयोगी माना जाता है।
  • संतुलित बजट के द्वारा अर्थव्यवस्था में आने वाले आर्थिक उतार-चढ़ावों से बचा जा सकता है।
  • मंदी को दूर करने के लिए घाटे का बजट बनाना आवश्यक नहीं है।

संतुलित बजट के विपक्ष में तर्क (Arguments against Balanced Budget)

  • ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में केवल घाटे का बजट ही सहायक हो सकता है।
  • केज के अनुसार, कई बार तो संतुलन बनाने के लिए अपनाए गए बजटीय उपाय ही आगे चलकर बजटीय घाटे का कारण बन जाते हैं।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संतुलित बजट सरकार के द्वारा वित्तीय अनुशासन और कुशल वित्तीय प्रशासन लाने वाला सिद्ध हो।
  • पहले से ही यह नियम बनाकर चलना कि बजट हमेशा संतुलित रहना चाहिए, सरकार की स्वतंत्रता छीन लेता है और सरकार उचित राजकोषीय नीति का प्रयोग नहीं कर पाती।

प्रश्न 8.
संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे के बजट का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बजट की तीन श्रेणियाँ होती हैं संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे का बजट। प्रत्येक का विवरण इस प्रकार से है
1. संतुलित बजट-सरकार का वह बजट जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ (राजस्व व पूँजी) सरकार के अनुमानित व्यय के बराबर दिखाई गई हों, संतुलित बजट कहलाता है।
उदाहरण के लिए, सरलता के लिए मान लीजिए कि सरकार के राजस्व (आय) का एकमात्र स्रोत एकमुश्त कर है। यदि कर राजस्व, सरकारी व्यय के बराबर है तो यह संतुलित बजट कहलाएगा।
सांकेतिक रूप में संतुलित बजट वह है जिसमें
संतुलित बजट : अनुमानित प्राप्तियाँ = अनुमानित व्यय
परंपरावादी (Classical) अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केञ्ज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं रहे। उनके मत में संतुलित बजट के कुल व्यय (सरकारी तथा निजी व्यय), पूर्ण रोज़गार की अवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यय से कम रहता है। इसलिए सरकार ने इस अंतराल को भरने के लिए अपना व्यय बढ़ाना चाहिए अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए।

असंतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय, सरकार की अनुमानित प्राप्तियों से कम या अधिक दिखाया गया हो। असंतुलित बजट के दो रूप हो सकते हैं-सरकारी व्यय या तो सरकारी प्राप्तियों से अधिक है या कम है।

2. बचत (आधिक्यपूर्ण) बजट-जब बजट में सरकार की प्राप्तियाँ सरकार के खर्चों से अधिक दिखाई जाती हैं तो उस बजट को बचत का बजट,कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बचत बजट उस स्थिति का प्रतीक है जब सरकार का राजस्व, सरकार के व्यय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
बचत बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ > अनुमानित सरकारी व्यय
आधिक्यपूर्ण (बचत) बजट दर्शाता है कि सरकार अधिक मुद्रा उगाह रही है और आर्थिक प्रणाली में उससे कम मुद्रा डाल रही है। फलस्वरूप समग्र माँग (Aggregate Demand) गिरने लगती है जिससे कीमत स्तर भी गिरने लगता है। अतः मंदी या अवस्फीतिक (Deflation) की स्थिति में, बचत बजट से बचना चाहिए (अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए)। हाँ तेजी व स्फीतिकारी (Inflationary) स्थिति में बचत का बजट लाभकारी व उचित माना जाता है।

3. घाटे का बजट-जब बजट में सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से अधिक दिखाया जाता है तो उस बजट को घाटे का बजट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे के बजट में सरकारी व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
घाटे का बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय
विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के दो विशेष लाभ हैं-

  • यह आर्थिक संवृद्धि की गति को बढ़ाता है और
  • यह लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रम को लागू करने में सहायक है।

साथ ही घाटे के बजट के दोष भी हैं; जैसे-

  • यह सरकार की अनावश्यक और फिजूलखर्ची को बढ़ाता है और
  • इससे वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होने का डर बना रहता है।

संक्षेप में, तेजी (निरंतर बढती हुई कीमतों की स्थिति में बचत वाला बजट और मंदी (कीमतों और रोजगार स्थिति में घाटे वाला बजट अपनाना चाहिए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं? इसे कैसे पूरा किया जाता है?
उत्तर:
बजटीय घाटा-बजटीय घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजी व्यय) को कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक होने से है। दूसरे शब्दों में जब सरकार की चालू राजस्व प्राप्तियों और निवल पूँजी प्राप्तियों का जोड़, कुल व्यय से कम रह जाता है तो उसे बजटीय घाटा (या कुल बजट घाटा) कहते हैं। सांकेतिक रूप में
बजटीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी वर्ष के लिए केंद्रीय बजट में कुल व्यय 90,000 करोड़ रुपए और कुल प्राप्तियाँ 80,000 करोड़ रुपए दिखाई गई है। ऐसी स्थिति में बजटीय घाटा 10,000 (90,000-80,000) करोड़ रुपए होगा क्योंकि कुल प्राप्तियाँ कुल व्यय से 10,000 करोड़ रुपए कम रह गई हैं।

बजट घाटे को कैसे पूरा किया जाता है?
(1) घाटे की वित्त व्यवस्था-बजट घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार अपने ट्रेजरी बिल (Treasury Bill) जारी करके बदले में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार ले लेती है। दूसरे शब्दों में, सरकार अपने कुल खर्चे और कुल प्राप्तियों के अंतर को पाटने की वित्त-व्यवस्था, रिज़र्व बैंक से उधार लेकर करती है और रिज़र्व बैंक इसके लिए नए करेंसी नोट छापता है। इसे तकनीकी भाषा में घाटे की वित्त-व्यवस्था (Deficit Financing) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे की । वित्त-व्यवस्था से अभिप्राय बजटीय घाटे को नए करेंसी नोट छापकर पूरा करने से है। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति (Supply) में वृद्धि होने से कीमतें लगातार बढ़ने लगती हैं और यह स्फीतिकारी स्थिति कई अन्य समस्याओं को जन्म देती उपाय (नए करेंसी नोट छापने) का तभी प्रयोग करना चाहिए जब उसके पास कोई अन्य विकल्प न हो।

(2) ऋण लेना-बजट घाटे को घरेलू बाज़ार व विदेशों से ऋण लेकर भी पूरा किया जा सकता है। बजट के घाटे से संबंधित तीन अवधारणाएँ हैं-राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और प्राथमिक घाटा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 5

घाटा सांकेतिक रूप में[-

  1. राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – व्याज अदायगियाँ

प्रश्न 10.
राजस्व घाटा किसे कहते हैं? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
राजस्व घाटा-राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में राजस्व व्यय (योजना राजस्व + गैर-योजना राजस्व व्यय) के अधिक होने से है। संक्षेप में, सरकार जब प्राप्त किए गए राजस्व से अधिक व्यय करती है तो उसे राजस्व घाटा सहन करना पड़ता है। ध्यान रहे, राजस्व घाटे में केवल वे मदें शामिल की जाती हैं जो सरकार की चालू (Current) राजस्व आय और व्यय को प्रभावित करती है। सांकेतिक रूप में-
राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे को पूँजीगत प्राप्तियों से अर्थात् उधार लेकर या परिसंपत्ति के विक्रय से पूरा किया जाता है। राजकोषीय घाटा स्थिर (या उतना) रहने पर, अधिक राजस्व घाटा, कम राजस्व घाटे की तुलना में बदतर (Worse) होगा क्योंकि इससे भविष्य में पुनर्भुगतान (Repayment) का भार बढ़ जाएगा जबकि इतनी राशि निवेश करने से लाभ सृजित होगा।

प्रभाव-
(i) राजस्व घाटा सरकार की अवबचतों (Dissavings) को दर्शाते हैं क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजी प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) चूँकि सरकार अपने आधिक्य उपभोग व्यय को मुख्यतः पूँजी खाते से उधार लेकर पूरा करती है। इसलिए स्फीतिकारी स्थिति उत्पन्न होने का भय बना रहता है।

(iii) राजस्व घाटे को पूरा करने हेतु लिए गए ऋण से कर्ज का भार और अधिक बढ़ जाएगा क्योंकि ऋण की राशि और उस पर ब्याज वापस करना होगा। फलस्वरूप भविष्य में राजस्व घाटा और बढ़ाता जाएगा और यह कुचक्र का रूप धारण कर लेगा।

उपाय-

  1. सरकार अमीर लोगों पर लगे करों की दर बढ़ाए और नए कर लगाएँ।
  2. सरकार को खर्चे कम करने चाहिएँ और अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए।

प्रश्न 11.
राजकोषीय घाटा क्या है? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार के कुल व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय) का उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार बिना पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक हो जाना। सांकेतिक रूप में-
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ-उधार रहित पूँजी प्राप्तियाँ

वास्तव में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।
राजकोषीय घाटे के संबंध में नोट करने वाली बात यह है कि इसमें उधार (Borrowing), जो पूँजी प्राप्तियों का एक घटक है, को शामिल नहीं किया जाता है।

प्रभाव – राजकोषीय घाटा सरकार की उधार संबंधी जरूरतों को प्रकट करता है। यह बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि राजकोषीय घाटे की संपूर्ण राशि व्यय पूरा करने के लिए उपलब्ध नहीं होती क्योंकि इसका एक भाग ब्याज अदा करने में लग जाता है। पुनः जैसे-जैसे सरकार द्वारा लिए गए ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भविष्य में ब्याज सहित ऋण वापस करने की सरकार की देनदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं जिसके फलस्वरूप राजकोषीय घाटा और भी बढ़ता जाता है। अंत में यह एक कुचक्र का रूप धारण कर लेता है। अतः सरकार को राजकोषीय घाटा यथासंभव न्यूनतम रखना चाहिए।

उपाय – जब सार्वजनिक व्यय और राजस्व व्यय में कटौती करने पर भी राजकोषीय घाटा दूर नहीं होता तो इसे निम्नलिखित दो उपायों ऋण और मौद्रिक प्रसार-से दूर करना चाहिए।
1. उधार-आंतरिक और विदेशी स्रोतों से उधार लेकर घाटे को पूरा करना चाहिए।

2. घाटे की वित्त-व्यवस्था (अर्थात् नए करेंसी नोट छापना)-राजकोषीय घाटे को रिज़र्व बैंक से उधार लेकर पूरा किया जा सकता है जो सरकारी प्रतिभूतियों (Securities) के बदले में नए करेंसी नोट छापकर सरकार को उधार देता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि घाटे की वित्त-व्यवस्था से मुद्रास्फीति तथा अन्य कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अतः इसका यथासंभव कम-से-कम सहारा लेना चाहिए।

संख्यात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय1,00,000
(ii) कुल प्राप्तियाँ92,000

हल:
बजट घाटा = कुल व्यय > कुल आय
Budget Deficit = Total Expenditure >Total Receipts
or
Budget Deficit = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
बजट घाटा = 1,00,000 > 92,000 करोड़ रुपए
= 8000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजस्व व्यय60,000
(ii) पूँजीगत व्यय30,000
(iii) राजस्व प्राप्तियाँ50,000
(iv) पूँजीगत प्राप्तियाँ25,000

हल:
बजट घाटा = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
= 60,000 + 30,000 > 50,000 + 25,000 करोड़ रुपए
= 90,000 > 75000 करोड़ रुपए
= 15,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजस्व घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राज प्राप्तियाँ80,000
(ii) राजस्व व्यय90,000

हल:
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ (जब राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ)
(Revenue Deficit) = (RE) – (RR) जब RE > RR
= 90,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजकोषीय घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय75,000
(ii) राजस्व प्राप्तियाँ60,000
(iii) गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ5,000

हल:
राजकोषीय घाटा = बजट व्यय या कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – ऋण छोड़कर बजट प्राप्तियाँ या कुल प्राप्तियाँ (राजस्व प्राप्तियाँ + ऋण छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ) जब कुल व्यय > ऋण छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
= 75,000 – (60,000 + 5000) करोड़ रुपए
= 75,000 – 65,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें-

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजकोषीय घाटा10,000
(ii) सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान600

हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
PD = FD – IP
= 10,000 – 600 करोड़ रुपए
= 9400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 6.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और व्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 8,000 करोड़ रुपए
= 28,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 7.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 7,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 7,000 करोड़ रुपए
= 27,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और ऋण की वसूली 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – ऋण की वसूली
= 60,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= (-)20,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
एक सरकारी बजट 5,600 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा दिखाता है। ब्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 599 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा ज्ञात करें।
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
5,600 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 599 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 5,600 करोड़ रुपए + 599 करोड़ रुपए = 6,199
= 6,199 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और उधार 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार और अन्य दायित्व = 80,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
एक सरकारी बजट में 4,400 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा है। व्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 400 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4,400 + 400
= 4,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 12.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 10,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल : राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 10,000 + 8,000
= 18,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 13.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 50,000 करोड़ रुपए है और उधार 75,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार = 75,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 500 करोड़ रुपए है तथा ब्याज का भुगतान 200 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज का भुगतान
500 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 200 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 500 करोड़ रुपए + 200 करोड़ रुपए
= 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 15.
सरकार के बजट में कुल व्यय 1500 करोड़ रुपए है। राजस्व आय 1100 करोड़ रुपए है तथा गैर-ऋण पूँजी आय 300 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा बताइए।
हल:
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (ऋण के अतिरिक्त)
= 1500 करोड़ रुपए – (1100 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए)
= 1500 करोड़ रुपए – 1400 करोड़ रुपए
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 16.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। राष्ट्रीय आय में क्या वृद्धि होगी यदि
(a) सरकारी व्यय में 1000 रुपए की वृद्धि होती है?
(b) कर में 1000 रुपए की कटौती होती है?
हल:
(a) सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}\) = 5
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 × 1000
= 5,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि =\(\frac{1}{1-c}\) ∆G = \(\frac{1}{1-0.8}\) × 1000 = \(\frac{1}{0.2}\) × 1000
= 5,000 रुपए

(b) कर गुणक = \(\frac{-c}{1-c}\) = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) = \(\frac{0.8}{0.2}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 4 × 1000
= 4,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = \(\frac{-c}{1-c}\) ∆T = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) × 1000
= 4,000 रुपए

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Exercise 10.1

प्रश्न 1.
एक वृत्त की कितनी स्पर्श रेखाएँ हो सकती हैं? ।
हल :
एक वृत्त की अपरिमित रूप से अनेक स्पर्श रेखाएँ हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) किसी वृत्त की स्पर्श रेखा उसे ………. बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करती है।
(ii) वृत्त को दो बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करने वाली रेखा को ………. कहते हैं।
(iii) एक वृत्त की ………. समांतर स्पर्श रेखाएँ हो सकती हैं।
(iv) वृत्त तथा उसकी स्पर्श रेखा के उभयनिष्ठ बिंदु को ………. कहते हैं।
हल :
(i) एक,
(ii) छेदक रेखा,
(iii) दो,
(iv) स्पर्श बिंदु।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

प्रश्न 3.
5 cm त्रिज्या वाले एक वृत्त के बिंदु P पर स्पर्श रेखा PQ केंद्र 0 से जाने वाली एक रेखा से बिंदु Q पर इस प्रकार मिलती है कि OQ = 12 cm | PQ की लंबाई है-
(A) 12 cm
(B) 13 cm
(C) 8.5cm
(D) \(\sqrt{119}\) cm
हल :
(D) \(\sqrt{119}\) cm
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 1
प्रश्नानुसार,
∠DPQ = 90° [∴ स्पर्श बिंदु पर स्पर्श रेखा की त्रिज्या लंबवत् होती है]
OP = 5cm
OQ = 12cm
अब समकोण ∆OPQ में,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 2

प्रश्न 4.
एक वृत्त खींचिए और एक दी गई रेखा के समांतर दो ऐसी रेखाएँ खींचिए कि र उनमें से एक स्पर्श रेखा हो तथा दूसरी छेदक रेखा हो।।
हल :
दी गई रेखा l के समांतर दो रेखाएँ m और n खींचिए। अब रेखाओं l, m और n से एक लंब xy खींचिए। रेखाखंड xy पर एक बिंदु 0 तथा रेखा m पर बिंदु P लीजिए। 0 केंद्र तथा OP को त्रिज्या लेकर वृत्त खींचिए जो n को Q तथा R पर प्रतिच्छेद करे। इस प्रकार m स्पर्श रेखा तथा n छेदक रेखा होगी।

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.1

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Exercise 12.1

प्रश्न 1.
दो वृत्तों की त्रिज्याएँ क्रमशः 19cm और 9cm हैं। उस वृत्त की त्रिज्या ज्ञात कीजिए जिसकी परिधि इन दोनों वृत्तों की परिधियों के योग के बराबर है।
हल :
यहाँ पर, .
पहले वृत्त की त्रिज्या (r1) = 19 cm
दूसरे वृत्त की त्रिज्या (r2) = 9 cm
माना वांछित वृत्त की त्रिज्या = R cm
प्रश्नानुसार, वांछित वृत्त की परिधि = पहले वृत्त की परिधि + दूसरे वृत्त की परिधि
2πR = 2πr1 + 2πr2
R = r1 + r2 (दोनों ओर 2π से भाग करने पर)
= (19+ 9)cm
= 28cm
अतः वांछित वृत्त की त्रिज्या = 28cm

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.1

प्रश्न 2.
दो वृत्तों की त्रिज्याएँ क्रमशः 8cm और 6cm हैं। उस वृत्त की त्रिज्या ज्ञात कीजिए जिसका क्षेत्रफल इन दोनों वृत्तों के क्षेत्रफलों के योग के बराबर है।
हल :
यहाँ पर,
पहले वृत्त की त्रिज्या (r1) = 8 cm
दूसरे वृत्त की त्रिज्या (r2) = 6 cm
माना वांछित वृत्त की त्रिज्या = R cm
प्रश्नानुसार,
वांछित वृत्त का क्षेत्रफल = पहले वृत्त का क्षेत्रफल + दूसरे वृत्त का क्षेत्रफल
πR2 = πr12 + πr12
R2 = r12 + r22(दोनों ओर T से भाग करने पर)
R2 = (8)2 + (6)2
= 64 + 36 = 100
(R)2 = (10)2
R = 10
अतः वांछित वृत्त की त्रिज्या = 10cm

प्रश्न 3.
संलग्न आकृति एक तीरंदाजी लक्ष्य को दर्शाती है, जिसमें केंद्र से बाहर की ओर पाँच क्षेत्र GOLD, RED, BLUE, BLACK और WHITE चिह्नित हैं, जिनसे अंक अर्जित किए जा सकते हैं। GOLD अंक वाले क्षेत्र का व्यास 21cm है तथा प्रत्येक अन्य पट्टी 10.5cm चौड़ी है। अंक प्राप्त कराने वाले इन पाँचों क्षेत्रों में से प्रत्येक का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 12 वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल Ex 12.1 1
हल :
यहाँ पर,
GOLD अंक वाले वृत्त का व्यास = 21cm
GOLD अंक वाले वृत्त की त्रिज्या (r) = \(\frac{21}{2}\) = 10.5cm
GOLD अंक प्राप्त करने वाले क्षेत्र का क्षेत्रफल (A1) = πr2
= \(\frac{22}{7}\) x 10.5 x 10.5 cm2
= 22 x 1.5 x 10.5 cm2
= 346.5 cm2 …..(i)
(GOLD + RED) अंक वाले वृत्त की त्रिज्या (r1)= (10.5 + 10.5)cm
= 2 x 10.5 cm
= 2 r cm
RED अंक प्राप्त करने वाले क्षेत्र का क्षेत्रफल (A2) = πr12 – πr12
= π[(2r)2 – r2]
= π [4r2 – r2] = 3πr2
= 3 x 346.5 cm2 [समीकरण (i) से]
= 1039.5 cm2
(GOLD + RED + BLUE) अंक वाले वृत्त की त्रिज्या (r2) = (10.5 + 10.5 + 10.5)cm
= 3 x 10.5 cm = 3 r cm

.. BLUE अंक प्राप्त करने वाले क्षेत्र का क्षेत्रफल (A3) = \(\pi r_{2}^{2}-\pi r_{1}^{2}\)
= π [(3r)2 – (2r)2]
= π[9r2 – 4r2]
= 5πr2
= 5 x 346.5 cm2 [समीकरण (i) से]
= 1732.5 cm2

∴ (GOLD + RED + BLUE + BLACK) अंक वाले वृत्त की त्रिज्या (r5) = 4 r cm
∴ BLACK अंक प्राप्त करने वाले क्षेत्र का क्षेत्रफल (A) = \(\pi r_{3}^{2}-\pi r_{2}^{2}\)
= π[(4r)2 – (3r)2]
= π[162 – 9r2] = 7πr2
= 7x 346.5 cm2 [समीकरण (i) से]
= 2425.5 cm2

(GOLD + RED + BLUE + BLACK + WHITE) अंक वाले वृत्त की त्रिज्या (r4) = 5 r cm
∴ WHITE अंक प्राप्त करने वाले क्षेत्र का क्षेत्रफल (A5) = \(\pi r_{4}^{2}-\pi r_{3}^{2}\)
= π[(5r)2 -(4r)2 ]
= π[25r2 – 16r2] = 9π2
= 9 x 346.5 cm2 [समीकरण (i) से]
= 3118.5 cm2

प्रश्न 4.
किसी कार के प्रत्येक पहिए का व्यास 80cm है। यदि यह कार 66km प्रति घंटे की चाल से चल रही है, तो 10 मिनट में प्रत्येक पहिया कितने चक्कर लगाता है?
हल :
यहाँ पर,
कार के पहिए का व्यास = 80cm
कार के पहिए की त्रिज्या (r) = 80/2 cm = 40cm
अतः कार के पहिए की परिधि = 2 πr
= 2 x \(\frac{22}{7}\) x 40 cm
= \(\frac{1760}{7}\) cm
कार की चाल = 66 km/h
= \(\frac{66 \times 1000 \times 100}{60}\) cm/min.
= 110000 cm/min.
10 मिनट में कार द्वारा तय दूरी = चाल x समय
= 110000 x 10 cm
= 1100000 cm
10 मिनट में कार के प्रत्येक पहिए द्वारा लगाए गए चक्करों की संख्या = कार द्वारा तय दूरी /पहिए की परिधि
= \(\frac{1100000}{\frac{1760}{7}}=\frac{1100000 \times 7}{1760}\)
= 4375

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनिए तथा अपने उत्तर का औचित्य दीजिएयदि एक वृत्त का परिमाप और क्षेत्रफल संख्यात्मक रूप से बराबर है, तो उस वृत्त की त्रिज्या है-
(A)2 मात्रक
(B) π मात्रक
(C) 4 मात्रक
(D)7 मात्रक
हल : माना
वृत्त की त्रिज्या = r मात्रक
तो वृत्त का परिमाप = 2πr मात्रक
वृत्त का क्षेत्रफल = πr2 वर्ग मात्रक
प्रश्नानुसार
2πr = πr2
r = 2
अतः वृत्त की त्रिज्या = 2 मात्रक
अभीष्ट उत्तर = A

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कोणों में से प्रत्येक का पूरक ज्ञात कीजिए:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 1
हल :
एक-दूसरे के पूरक कोणों का योग 90° होता है।
(i) 20° के कोण का पूरक कोण
= 90° – 20° = 70°
(ii) 63° के कोण का पूरक कोण
= 90° – 63° = 27°
(iii) 57° के कोण का पूरक कोण
= 90° – 57° = 33°

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कोणों में से प्रत्येक का संपूरक ज्ञात कीजिए:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 2
हल :
हम जानते हैं कि एक-दूसरे के सम्पूरक कोणों का योग 180° होता है।
(i) 105° के कोण का सम्पूरक कोण
= 180° – 105° = 75°
(ii) 87° के कोण का सम्पूरक कोण
= 180° – 87° = 93°
(iii) 154° के कोण का सम्पूरक कोण ।
= 180° – 154° = 26°

प्रश्न 3.
कोणों के निम्नलिखित युग्मों में से पूरक एवं सम्पूरक युग्मों की पृथक्-पृथक् पहचान कीजिए:
(i) 65°, 115°
(ii) 63°, 27°
(iii) 112°, 68°
(iv) 130°, 50°
(v) 45°, 45°
(vi) 80°,10°
हल :
(i) कोणों का योग = 65° + 115° = 180°
अत: कोणों का यह युग्म सम्पूरक है।
(ii) कोणों का योग = 63° +27° = 90°
अत: कोणों का. यह युग्म पूरक है।
(iii) कोणों का योग = 112° + 68° = 180°
अतः कोणों का यह युग्म सम्पूरक है। .
(iv) कोणों का योग = 130° + 50° = 180°
अत: कोणों का यह युग्म संपूरक है।
(v) कोणों का योग = 45° + 45° = 90°
अत: कोणों का यह युग्म पूरक है।
(vi) कोणों का योग = 80° + 10° = 90°
अतः कोणों का यह युग्म पूरक है।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 4.
ऐसा कोण ज्ञात कीजिए जो अपने पूरक के समान हो।
हल :
माना एक कोण x° है, तो इसका पूरक कोण x° होगा।
x° + x° = 90°
2x° = 90°
x° = \(\frac {90°}{2}\) = 45°
अतः वाँछित कोण = 45°

प्रश्न 5.
ऐसा कोण ज्ञात कीजिए जो अपने सम्पूरक के समान हो।
हल :
माना कोण का माप x° है, तो इसके सम्पूरक कोण का माप = x°
∵ एक कोण और इसके सम्पूरक कोण का योग 180° होता है।
अतः x° + x° = 180°
⇒ 2x° = 180° ⇒ x° = \(\frac {180°}{2}\)
⇒ x° = 90°
अत: वांछित कोण 90° है।

प्रश्न 6.
दी हुई आकृति में ∠1 एवं ∠2 सम्पूरक कोण हैं। यदि ∠1 में कमी की जाती है, तो ∠2 में क्या परिवर्तन होगा, ताकि दोनों कोण फिर भी सम्पूरक ही रहें।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 3
हल :
यदि ∠1 में कमी की जाती है, तो ∠2 उसी माप में बढ़ेगा।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 7.
क्या दो ऐसे कोण संपूरक हो सकते हैं यदि उनमें से दोनों :
(i) न्यून कोण हैं ?
(ii) अधिक कोण हैं ?
(iii) समकोण हैं ?
हल :
(i) नहीं,
(ii) नहीं,
(iii) हाँ।

प्रश्न 8.
एक कोण 45 से बड़ा है। क्या इसका पूरक कोण 45° से बड़ा है अथवा 45° के बराबर है अथवा 45° से छोटा है?
हल :
हम जानते हैं कि एक कोण और उसके पूरक कोण का योग 90° होता है।
माना एक कोण 45° + x° हैं, तो
इसका पूरक कोण = 90° – (45° +x°)
= 90° – 45° – x°
= 45° – x°
स्पष्टतः 45° + x° > 45° – x°
अत: 45° से बड़े कोण का पूरक 45° से छोटा होगा।

प्रश्न 9.
निम्न आकृति में:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 4
(i) क्या ∠1, ∠2 का आसन्न
(ii) क्या ∠AOC, ∠AOE का आसन्न है?
(iii) क्या ∠COE एवं ∠EOD रैखिक युग्म बनाते हैं ?
(iv) क्या ∠BOD एवं ∠DOA सम्पूरक हैं ?
(v) क्या ∠1 का उर्ध्वाधर सम्मुख कोण ∠4 है ?
(vi) ∠5 का ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण क्या है ?
हल :
(i) हाँ,
(ii) नहीं,
(iii) हाँ,
(iv) हाँ,
(v) हाँ,
(vi) ∠2 + ∠3 = ∠COB

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 10.
पहचानिए कि कोणों के कौन-से युग्म
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 5
(i) ऊध्वाधर सम्मुख – कोण हैं
(ii) रैखिक युग्म हैं।
हल :
(i) ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोणों के युग्म : ∠1, ∠4, ∠5, ∠2 + ∠3 हैं।
(ii) रैखिक युग्म : ∠1, ∠5, ∠4, ∠5 हैं।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आकृति में क्या ∠1, ∠2 का आसन्न है? कारण लिखिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 6
हल :
∠1, ∠2 का आसन्न नहीं है, क्योंकि इन दोनों का कोई उभयनिष्ठ शीर्ष नहीं है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से प्रत्येक में कोण x, y एवं z के मान ज्ञात कीजिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 7
हल :
(i) दो रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करती हैं।
∴ ∠x = ∠55°, (शीर्षाभिमुख कोण)
∵ ∠x + ∠z = 180° (x, z रैखिक युग्म कोण हैं, जिनका योग 180° होता है)
⇒ 55° + ∠z = 180°
⇒ ∠z = 180° – 55°
⇒ ∠z = 125°
स्पष्टतः ∠z = ∠y (शीर्षाभिमुख कोण)
⇒ ∠y = 125°
अत: ∠x = 55°, ∠y = 125° और ∠z = 125° उत्तर

(ii) यहाँ 40° + ∠x + 25° = 180°, (सरल कोण)
⇒ 65° + ∠x = 180°
⇒ ∠x = 180° – 65°
⇒ ∠x = 115°
और ∠y + 40° = 180°, (रैखिक युग्म कोण)
⇒ ∠y = 180° – 40°
⇒ ∠y = 140°
और ∠y + ∠z = 180°, (रैखिक युग्म कोण)
∠z = 180° – ∠y
= 180° – 140°
∠z = 40°
अत: ∠x = 115°, ∠y = 140° और ∠z = 40° उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1

प्रश्न 13.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(i) यदि दो कोण पूरक हैं, तो उनकी मापों का योग ………. है।
(ii) यदि दो कोण सम्पूरक हैं, तो उनकी मापों का योग ………. है।
(iii) रैखिक युग्म बनाने वाले दो कोण ………. होते हैं।
(iv) यदि दो आसन्न कोण सम्पूरक हैं, तो वे ……….. बनाते हैं।
(v) यदि दो रेखाएँ एक-दूसरे को एक बिन्दु पर प्रतिच्छेद करती हैं, तो ऊध्वाधर सम्मुख कोण हमेशा ……….. होते हैं।
(vi) यदि दो रेखाएँ एक-दूसरे को एक बिन्दु पर प्रतिच्छेद करती हैं और यदि ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोणों का एक युग्म न्यून कोण है, तो ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोणों का दूसरा युग्म ……….. है।
हल :
(i) 90°,
(ii) 180°,
(iii) सम्पूरक,
(iv) रैखिक युग्म,
(v) समान,
(vi) अधिक कोण।

प्रश्न 14.
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.1 - 8
(i) ऊर्ध्वाधर अधिककोण
(ii) आसन्न पूरक कोण
(iii) समान सम्पूरक कोण
(iv) असमान सम्पूरक कोण
(v) आसन्न कोण जो रैखिक युग्म नहीं बनाते हैं।
हल :
(i) ऊध्र्वाधर सम्मुख अधिककोण ∠AOD और ∠BOC हैं।
(ii) आसन्न पूरक कोण ∠BOA और ∠AOF हैं।
(iii) समान सम्पूरक कोण ∠BOE और ∠EOD हैं।
(iv) असमान सम्पूरक कोण ∠BOA और ∠AOD,∠BOC और ∠COD, ∠EOA और ∠EOC हैं।
(v) आसन्न कोण जो रैखिक युग्म नहीं बनाते हैं : ∠AOB और ∠AOE; ∠AOE और ∠EOD, ∠EOD और ∠COD.

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के मान ज्ञात कीजिए :
(i) 26
(ii) 93
(ii) 112
(iv) 54
हल :
(i) 26 = 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 = 64
(ii) 93 = 9 × 9 × 9 = 729
(iii) 112 = 11 × 11 = 121
(iv) 54 = 5 × 5 × 5 × 5= 625

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को घातांकीय रूप में व्यक्त कीजिए:
(i) 6 × 6 × 6 × 6
(ii) t × t
(iii) b × b × b × b
(iv) 5 × 5 × 7 × 7 × 7
(v) 2 × 2 × a × a
(vi) a × a × a × c × c × c × c × d
हल :
(i) 6 × 6 × 6 × 6 = 64
(ii) t × t = t2
(iii) b × b × b × b = b4
(iv) 5 × 5 × 7 × 7 × 7 = 52 × 73
(v) 2 × 2 × a × a = 22 × a2
(vi) a × a × a × c × c × c × c × d
= a3 × c4 × d

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित संख्याओं में से प्रत्येक को घातांकीय संकेतन में व्यक्त कीजिए :
(i) 512
(ii) 343
(iii) 729
(iv) 3125
हल :
(i)
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 1
∴ 512 = 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2
= 29

(ii)
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 2
∴ 343 = 7 × 7 × 7
= 73

(iii)
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 3
∴ 729 = 3 × 3 × 3 × 3 × 3 × 3 = 36

(iv)
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 4
∴ 3125 = 5 × 5 × 5 × 5 × 5 = 55

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से प्रत्येक भाग में, जहाँ भी सम्भव हो, बड़ी संख्या को पहचानिए :
(i) 43 या 34
(ii) 53 या 35
(iii) 28 या 82
(iv) 1002 या 2100
(v) 210 या 102
हल :
(i) दिया है :
43 = 4 × 4 × 4 = 64
और 34 = 3 × 3 × 3 × 3 = 81
स्पष्टतः 81 > 64
अत: 34 बड़ी संख्या है।

(ii) दिया है : 53 = 5 × 5 × 5 = 125
और 35 = 3 × 3 × 3 × 3 × 3 = 243
स्पष्टतः 243 > 125
अतः 35 बड़ी संख्या है।

(iii) दिया है :
28 = 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2
= 256
और 82 = 8 × 8 = 64
स्पष्टतः 256 > 64
अतः 28 बड़ी संख्या है।

(iv) दिया है : 1002 = 100 × 100 = 10000
और 2100 = (210)10
= (2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2)10
= (1024)10 = [(1024)2]5
= (1024 × 1024)5
= [1048576]5
अत: 2100 बड़ी संख्या है।

(v) दिया है :
210 = 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 × 2 = 1024
और 102 = 10 × 10 = 100
स्पष्टतः 1024 > 100
अतः 210 बड़ी संख्या है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक को उनके अभाज्य गुणनखण्डों की बातों के गुणनफल के रूप में व्यक्त कीजिए-
(i) 648
(ii) 405
(iii) 540
(iv) 3600
हल :
(i) भाग विधि से 648 के अभाज्य गुणनखण्ड करने पर,
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 5
∴ 648 = 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 3 × 3
= 23 × 34

(ii) भाग विधि से 405 के अभाज्य गुणनखण्ड करने पर,
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 6
∴ 405 = 3 × 3 × 3 × 3 × 5 = 34 × 5

(iii) भाग विधि से 540 के अभाज्य गुणनखण्ड करने पर,
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 7
∴ 540 = 2 × 2 × 3 × 3 × 3 × 5
= 22 × 33 × 5

(iv) भाग विधि से 3600 के अभाज्य गुणनखण्ड करने पर,
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 13 घातांक और घात Ex 13.1 8
∴ 3600 = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5 × 5
= 24 × 32 × 52

प्रश्न 6.
सरल कीजिए :
(i) 2 × 103
(ii) 72 × 22
(iii) 23 × 5
(iv) 3 × 44
(v) 0 × 102
(vi) 52 × 33
(vii) 24 × 32
(viii) 32 × 104
हल :
(i) 2 × 103 = 2 × 10 × 10 × 10 = 2000

(ii) 72 × 22 = 7 × 7 × 2 × 2
= 49 × 4 = 196

(iii) 23 × 5 = 2 × 2 × 2 × 5
= 8 × 5 = 40

(iv) 3 × 44 = 3 × 4 × 4 × 4 × 4
3 × 256 = 768

(v) 0 × 102 = 0

(vi) 52 × 33 = 5 × 5 × 3 × 3 × 3
= 25 × 27 = 675

(vii) 24 × 32 = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 × 3
= 16 × 9 = 144

(viii) 32 × 104 = 3 × 3 × 10 × 10 × 10 × 10
= 9 × 10000
= 90000

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प्रश्न 7.
सरल कीजिए :
(i) (-4)3
(ii) (-3) × (-2)3
(iii) (-3)2 × (-5)2
(iv) (-2)3 × (-10)3
हल :
(i) (-4)3
= (-4) × (-4) × (-4)
= -64

(ii) (-3) × (-2)3
= (-3) × (-2) × (-2) × (-2)
= (-3) × (-8)
= 24

(iii) (-3)2 × (-5)2
= (-3) × (-3) × (-5) × (-5)
= 9 × 25
= 225

(iv) (-2)3 × (- 10)3
= (-2) × (-2) × (-2) × (-10) × (-10) × (-10)
= (-8) × (- 1000)
= 8000

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित संख्याओं की तुलना कीजिए :
(i) 2.7 × 1012; 1.5 × 108
(ii) 4 × 1014; 3 × 1017
हल :
(i) 2.7 × 1012 = 2.7 × 10 × 1011
= 27 × 1011,
अत: संख्या में 13 अंक होंगे
और 1.5 × 108 = 1.5 × 10 × 107
= 15 × 107
अतः संख्या में 9 अंक होंगे।
∴ 2.7 × 1012 > 1.5 × 108

(ii) 4 × 1014
अतः संख्या में 15 अंक होंगे
और 3 × 1017
अतः संख्या में 18 अंक होंगे
∴ 4 × 1014 < 3 × 1017

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