Author name: Prasanna

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.3

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Exercise 14.3

प्रश्न 1.
कोई रेखाखंड \(\overline{P Q}\) खींचिए। बिना मापे हुए, \(\overline{P Q}\) के बराबर एक रेखाखंड की रचना कीजिए।
हल :
रचना के पद :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.3 1
(1) रूलर और पेन्सिल की सहायता से एक रेखाखण्ड \(\overline{P Q}\) खींचा।
(2) एक रेखा l खींची जिस पर कोई बिन्दु A लिया।
(3) परकार को इस प्रकार खोला कि परकार का एक सिरा बिन्दु P पर तथा पेन्सिल Q पर आए।
(4) परकार को इस खोली दूरी को बिना हिलाए रेखा l इस प्रकार लगाया कि परकार की नोंक A पर आये और एक चाप लगाया।
(5) माना यह चाप रेखा l को B पर काटता है।
अतः AB = PQ

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प्रश्न 2.
एक रेखाखण्ड \(\overline{A B}\) दिया हुआ है, जिसकी लम्बाई ज्ञात नहीं है। एक रेखाखण्ड \(\overline{P Q}\) की रचना कीजिए, जिसकी लम्बाई \(\overline{A B}\) की दोगुनी हो।
हल :
रचना के पद :
(1) एक रेखाखण्ड AB दिया हुआ है।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.3 2
(2) एक रेखा l खींची, जिस पर एक बिन्दु P अंकित किया।
(3) परकार को रेखाखण्ड AB के बराबर दूरी लेकर खोला।
(4) अब परकार की नोंक को बिन्दु P पर रखकर एक चाप लगाया जहाँ X बिन्दु अंकित किया।
(5) बिन्दु X से पुनः इसी प्रकार चाप काटा जिस पर Q बिन्दु अंकित किया।
∴ AB = PX = XQ, (रचना से)
PQ = PX + XQ
= AB + AB = 2AB

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Exercise 14.2

प्रश्न 1.
रूलर का प्रयोग करके 7.3 सेमी लंबाई का एक रेखाखंड खींचिए।
हल :
(1) कागज पर एक बिन्दु A लेकर और रूलर को इस प्रकार रखा कि रूलर का शून्य A पर आये।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 1
(2) पेन्सिल की सहायता से रूलर के 7.3 सेमी पर बिन्दु B अंकित किया।
(3) रूलर की सहायता से बिन्दु A और B को पेन्सिल से मिलाया।
इस प्रकार प्राप्त रेखाखण्ड AB वांछित रेखाखण्ड है।

प्रश्न 2.
रूलर और परकार का प्रयोग करते हुए 5.6 सेमी लंबाई का एक रेखाखंड खींचिए।
हल :
रचना के पद :
(1) कागज पर एक बिंदु A लिया और इससे गुजरती हुई एक रेखा (माना l) खींची।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 2
(2) परकार की नोंक को रूलर के शून्य पर रखकर और परकार इस प्रकार खोली कि पेंसिल रूलर के 5.6 सेमी तक पहुँचे।
(3) परकार के नुकीले भाग को बिन्दु A पर रखा।
(4) अब इस दूरी से रेखा l पर एक चाप लगाया, जो l को बिन्दु B पर काटता है।
(5) इस प्रकार प्राप्त रेखाखंड AB वांछित रेखाखंड है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2

प्रश्न 3.
7.8 सेमी लंबाई का रेखाखंड \(\overline{A B}\) खींचिए। इसमें से \(\overline{A C}\) काटिए जिसकी लंबाई 4.7 सेमी हो। \(\overline{B C}\) को मापिए।
हल :
रचना के पद :
(1) रेखाखण्ड AB, 7.8 सेमी का खींचा।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 3
(2) परकार की सहायता से A बिन्दु से 4.7 सेमी का चाप रेखाखण्ड AC पर लगाया।
(3) BC को मापने पर, BC = 3.1 सेमी।

प्रश्न 4.
3.9 सेमी लंबाई का एक रेखाखंड \(\overline{A B}\) दिया है। एक रेखाखंड \(\overline{P Q}\) खींचिए जो रेखाखंड \(\overline{A B}\) का दोगुना हो। मापन से अपनी रचना की जाँच कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 4
हल :
रचना के पद :
(1) एक रेखा l खींची और इस पर एक बिन्दु P अंकित किया।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 5
(2) परकार का प्रयोग करके रेखा l पर एक बिन्दु इस प्रकार लगाया कि PX = AB = 3.9 सेमी।
(3) परकार का प्रयोग करके रेखा l पर एक बिन्दु Q इस प्रकार लगाया कि XQ = 3:9 सेमी।
अतः PQ = PX + XQ
= 3.9 सेमी + 3:9 सेमी
= 2(3.9) सेमी = 2AB.

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प्रश्न 5.
7.3 सेमी लंबाई का रेखाखंड \(\overline{A B}\) और 3.4 सेमी लंबाई का रेखाखंड \(\overline{C D}\) दिया है। एक रेखाखंड \(\overline{X Y}\) खींचिए ताकि \(\overline{X Y}\) की लंबाई \(\overline{A B}\) और \(\overline{C D}\) की लंबाइयों के अंतर के बराबर हो।
हल :
रचना के पद :
(1) रेखाखंड AB = 7.3 सेमी और CD = 3.4 सेमी खींची।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 14 प्रायोगिक ज्यामिती Ex 14.2 6
(2) एक रेखा l खींची और इस पर बिन्दु अंकित किया।
(3) परकार की सहायता से रेखा l पर बिन्दु P इस प्रकार लगाया कि रेखाखंड XP = रेखाखंड AB = 7:3 सेमी।
(4) परकार की सहायता से एक बिन्दु X इस प्रकार लगाया कि रेखाखंड PY = रेखाखंड CD (अर्थात् 3.4 सेमी), प्राप्त रेखाखंड XY वांछित रेखाखंड है क्योंकि XY = XP – PY = AB – CD। मापने पर × 4 = 3.9 सेमी

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

प्रश्न 1.
निम्न में से प्रत्येक समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 1
हल :
(a) समांतर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
= (7 × 4) सेमी2 = 28 सेमी2। उत्तर

(b) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
= (5 × 3) सेमी2 = 15 सेमी। उत्तर

(c) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
= (2.5 × 3.5) सेमी2 = 8.75 सेमी। उत्तर

(d) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
= (5 × 4.8) सेमी2 = 24 सेमी2 उत्तर

(e) समांतर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
= (2 × 4.4) सेमी2 = 8.8 सेमी। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

प्रश्न 2.
निम्न में प्रत्येक त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 2
हल :
(a) त्रिभुज का क्षेत्रफल
= \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × 4 × 3
= \(\frac{12}{2}\) = 6 सेमी2। उत्तर

(b) त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × 5 × 3.2
= 5 × 1.6
= 8 सेमी2। उत्तर

(c) त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × 3 × 4
= \(\frac{12}{2}\) = 6 सेमी2। उत्तर

(d) त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × 3 × 2
= 3 × 1 = 3 सेमी2। उत्तर

प्रश्न 3.
रिक्त स्थान का मान ज्ञात कीजिए :

आधारऊँचाईसमान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
20 सेमी246 सेमी2
15 सेमी154.5 सेमी2
8.4 सेमी48.72 सेमी2
15.6 सेमी16.38 सेमी2

हल :
हम जानते हैं कि
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
इसलिए रिक्त स्थान की गणना निम्न प्रकार है-

आधार

ऊँचाई

समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल

20 सेमी\(\frac{246}{20}\) = 12.3 सेमी246 सेमी2
\(\frac{154.5}{15}\) = 10.3 सेमी15 सेमी154.5 सेमी2
\(\frac{48.72}{8.4}\) = 5.8 सेमी8.4 सेमी48.72 सेमी2
15.6 सेमी\(\frac{16.38}{15.6}\) = 1.05 सेमी16.38 सेमी2

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

प्रश्न 4.
रिक्त स्थानों के मान ज्ञात कीजिए :

आधारऊँचाईत्रिभुज का क्षेत्रफल
15 सेमी87 सेमी2
31.4 सेमी1256 सेमी2
22 cm170.5 सेमी2

हल :
हम जानते हैं कि
त्रिभुज का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 3
रिक्त स्थान की पूर्ति निम्न प्रकार करते हैं-

आधार

ऊँचाई

त्रिभुज का क्षेत्रफल

15 सेमी\(\frac{2 \times 87}{15}\) = 11.6 सेमी87 सेमी2
\(\frac{2 \times 1256}{31.4}\) = 80 सेमी31.4 सेमी1256 सेमी2
22 सेमी\(\frac{2 \times 170.5}{22}\) = 15.5 सेमी170.5 सेमी2

प्रश्न 5.
PQRS एक समान्तर चतुर्भुज है (आकृति देखें)। QM शीर्ष Q से SR तक P की ऊँचाई तथा ON शीर्ष Q से PS तक की ऊँचाई है। यदि SR = 12 सेमी और QM = 7.6 सेमी तो ज्ञात कीजिए :
(a) समान्तर चतुर्भुज PQRS का क्षेत्रफल
(b) QN, यदि PS = 8 सेमी
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 4
हल :
(a) PQRS समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई = SR × QM
= (12 × 7.6) सेमी2 = 91.2 सेमी। उत्तर

(b) समान्तर चतुर्भुज PQRS का क्षेत्रफल
= आधार × ऊँचाई
⇒ PS × QN = स. मा. चतुर्भुज PQRS का क्षेत्रफल
⇒ 8 × QN = 91.2
⇒ QN = \(\frac{91.2}{8}\) = 11.4 सेमी। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

प्रश्न 6.
DL और BM समान्तर चतुर्भुज ABCD की क्रमशः भुजाएँ AB और AD पर लम्ब हैं (आकृति देखें)। यदि समान्तर चतुर्भुज का P {l∈Qy 1470 सेमी2 है, AB = 35 सेमी और AD = 49 सेम है, तो BM तथा DL की लम्बाई ज्ञात कीजिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 5
हल :
ABCD चतुर्भुज का क्षेत्रफल = 1470 सेमी2
AB = 35 सेमी और AD = 49 सेमी
ABCD का क्षेत्रफल = AD × BM
⇒ 1470 = 49 × BM
∴ BM = \(\frac{1470}{49}\) = 30 सेमी। उत्तर
ABCD का क्षेत्रफल = AB × DL
⇒ 1470 = 35 × DL
∴ DL = \(\frac{1470}{35}\) = 42 सेमी। उत्तर

प्रश्न 7.
त्रिभुज ABC, A पर समकोण है (आकृति देखें) और AD भुजा BC पर लम्ब है। यदि AB = 5 सेमी, BC = 13 सेमी और AC = 12 सेमी है, तो ΔABC का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। AD की लम्बाई भी ज्ञात कीजिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 6
हल :
ΔABC में, AD, BC पर लम्ब है।
∴ ΔABC का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × AB × AC = \(\frac{1}{2}\) × 5 × 12
= \(\frac{1}{2}\) × 60 = 30 सेमी2। उत्तर
पुनः ΔABC का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × BC × AD
30 = \(\frac{1}{2}\) × 13 × AD
AD = \(\frac{30 \times 2}{13}=\frac{60}{13}\) सेमी। उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2

प्रश्न 8.
ΔABC समद्विबाहु त्रिभुज है जिनमें AB = AC = 7.5 सेमी और BC = 9 सेमी है(आकृति देखें)। A से BC तक की ऊँचाई AD, 6 सेमी है। ΔABC का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। C से AB तक की ऊँचाई अर्थात् CE क्या होगी?
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 11 परिमाप और क्षेत्रफल Ex 11.2 7
हल :
ΔABC का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × BC × AD
= \(\frac{1}{2}\) × 9 × 6
= \(\frac{54}{2}\) = 27 सेमी2 उत्तर
पुनः ΔABC का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) × AB × ऊँचाई
27 = \(\frac{1}{2}\) × 7.5 × CE
ऊँचाई (CE) = \(\frac{27 \times 2}{7.5}\) = 7.2 सेमी। उत्तर

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से किस महाद्वीप में जनसंख्या वृद्धि सर्वाधिक है?
(A) अफ्रीका
(B) एशिया
(C) दक्षिण अमेरिका
(D) उत्तर अमेरिका
उत्तर:
(A) अफ्रीका

2. निम्नलिखित में से कौन-सा एक विरल जनसंख्या वाला क्षेत्र नहीं है?
(A) अटाकामा
(B) भूमध्यरेखीय प्रदेश
(C) दक्षिण-पूर्वी एशिया
(D) ध्रुवीय प्रदेश
उत्तर:
(C) दक्षिण-पूर्वी एशिया

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

3. निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्रतिकर्ष कारक नहीं है?
(A) जलाभाव
(B) बेरोज़गारी
(C) चिकित्सा/शैक्षणिक सुविधाएँ
(D) महामारियाँ
उत्तर:
(C) चिकित्सा/शैक्षणिक सुविधाएँ

4. निम्नलिखित में से कौन-सा एक तथ्य नहीं है?
(A) विगत 500 वर्षों में मानव जनसंख्या 10 गुणा से अधिक बढ़ी है
(B) विश्व जनसंख्या में प्रतिवर्ष 8 करोड़ लोग जुड़ जाते हैं
(C) 5 अरब से 6 अरब तक बढ़ने में जनसंख्या को 100 वर्ष लगे
(D) जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
उत्तर:
(C) 5 अरब से 6 अरब तक बढ़ने में जनसंख्या को 100 वर्ष लगे

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले तीन भौगोलिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक कारक-धरातलीय स्वरूप, जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति।
  2. आर्थिक कारक-खनिज, नगरीकरण, औद्योगिक विकास, परिवहन।
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक-विस्थापन, श्रम का विकास।

प्रश्न 2.
विश्व में उच्च जनसंख्या घनत्व वाले अनेक क्षेत्र हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को उच्च (घनी) जनसंख्या वाले क्षेत्र कहते हैं। विश्व के जिन क्षेत्रों की जलवायु मानव एवं मानवीय क्रियाओं के अनुकूल है, भूमि उपजाऊ एवं समतल है और खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं वहाँ जनसंख्या का उच्च घनत्व पाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा के पूर्वी भाग, पश्चिमी यूरोप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में उच्च जनसंख्या घनत्व के यही कारण हैं। ये सभी क्षेत्र उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, इसलिए ऐसा है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 3.
जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक निम्नलिखित हैं-

  1. जन्म-दर-इसको प्रति हजार स्त्रियों पर जन्मे जीवित बच्चों की गणना करके ज्ञात करते हैं।
  2. मृत्यु-दर-इसको किसी वर्ष विशेष के दौरान प्रति हजार जनसंख्या पर मृतकों की गणना करके ज्ञात करते हैं।
  3. प्रवास इसके अंतर्गत लोग प्रतिवर्ष कारकों के कारण एक स्थान को छोड़ देते हैं तथा अपकर्ष कारकों के कारण दूसरे स्थान पर जाकर बस जाते हैं।

अंतर स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
जन्म-दर और मृत्यु-दर
उत्तर:
जन्म-दर और मृत्यु-दर में निम्नलिखित अंतर हैं-

जन्म-दरजन्म-दर
1. किसी देश में एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या जन्म-दर कहलाती है।1. किसी देश में एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या जन्म-दर कहलाती है।
2. यह दर प्रति हुजार में व्यक्त होती है।2. यह दर प्रति हुजार में व्यक्त होती है।

प्रश्न 2.
प्रवास के प्रतिकर्ष कारक और अपकर्ष कारक
उत्तर:
प्रवास के प्रतिकर्ष कारक और अपकर्ष कारक में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्रतिकर्ष कारकअपकर्ष कारक
1. जब लोग जीविका के साधन उपलब्ध न होने के कारण गरीबी तथा बेरोज़गारी के कारण नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे प्रतिकर्ष कारक (Push Factors) कहा जाता है।1. नगरीय सुविधाओं तथा आर्थिक परिस्थितियों के कारण जब लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे अपकर्ष कारक (Pull Factors) कहा जाता है।
2. प्रतिकर्ष कारक के कारण लोग अपने उद्गम स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाते हैं।2. अपकर्ष कारक के कारण लोग गन्तव्य स्थान को आकर्षक बनाते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
विश्व में जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जनसंख्या के वितरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बड़ा असमान तथा अव्यवस्थित है। अनुमान है कि विश्व की 90% जनसंख्या पृथ्वी के केवल 10% भाग पर निवास करती है, जबकि केवल 10% जनसंख्या धरातल का 90% भाग घेरे हुए है। मानचित्र को देखने से पता चलेगा कि विश्व की कुल जनसंख्या का केवल 10% भाग ही दक्षिणी गोलार्द्ध में बसा हुआ है। शेष 90% उत्तरी गोलार्द्ध में निवास करता है। विश्व की 80% जनसंख्या 20° उत्तरी अक्षांश से 60° उत्तरी अक्षांश तक ही सीमित है।

जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक-किसी भी देश अथवा प्रदेश की जनसंख्या के वितरण को अग्रलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
(क) भौगोलिक कारक (Geographical Factors)-
1. धरातल (Surface) – जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने में धरातल की विभिन्नता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊबड़-खाबड़ तथा ऊंचे पर्वतीय प्रदेशों में जनसंख्या कम आकर्षित होती है। वहाँ जनसंख्या विरल पाई जाती है क्योंकि वहाँ पर मानव निवास की अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध नहीं होती, कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का अभाव होता है, यातायात के साधनों का विकास आसानी से नहीं हो पाता, कृषि फसलों के लिए वर्धनकाल (Growing Period) छोटा होता है, जलवायु कठोर होती है। भारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश, उत्तरी अमेरिका के रॉकीज़ पर्वतीय प्रदेश तथा दक्षिणी अमेरिका के एंडीज़ पर्वतीय प्रदेशों में जनसंख्या के कम पाए जाने का यही कारण है। इसी प्रकार मरुस्थलीय भू-भागों में जलवायु कठोर तथा जीवन-यापन के पर्याप्त साधन न होने के कारण जनसंख्या कम पाई जाती है। थार मरुस्थल, सहारा मरुस्थल तथा अटाकामा मरुस्थल आदि में इसी कारण जनसंख्या कम है।

इसके विपरीत मैदानी भागों में जनसंख्या सघन पाई जाती है। विश्व की लगभग 90% जनसंख्या मैदानों में रहती है। वहाँ कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी, यातायात एवं संचार के साधनों का विकास तथा उद्योग-धंधों की स्थिति जनसंख्या को आकर्षित करती प्रारंभ में मनुष्य ने अपना निवास-स्थान इन्हीं नदियों की घाटियों में बनाया। वहाँ उसके लिए जल की आपूर्ति तथा कृषि करने के लिए उपजाऊ मिट्टी मिल जाती थी। यही कारण है कि नदियों की घाटियों में ही विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ विकसित हुई हैं। इन्हें सभ्यता का पालना भी कहा जाता है। भारत में सतलुज गंगा के मैदान, म्यांमार में इरावती के मैदान, चीन में यांग-टी-सीक्यांग के मैदान, ईरान-इराक में दज़ला फरात तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी के मैदानों में जनसंख्या सघन मिलती है।

2. जलवायु (Climate) – जलवायु का जनसंख्या के वितरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अनुकूल तथा आरामदेय जलवायु में कृषि, उद्योग तथा परिवहन एवं व्यापार का विकास अधिक आसानी से होता है। विश्व में मध्य अक्षांश (शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र का) जलवायु की दृष्टि से अनुकूल है। इसलिए विश्व की अधिकांश जनसंख्या इन्हीं प्रदेशों में निवास करती है। इसके विपरीत अत्यधिक ठंडे प्रदेश जैसे ध्रुवीय प्रदेश मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए शीत प्रदेशों में जनसंख्या विरल पाई जाती है। इसी प्रकार शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों की जलवायु ग्रीष्म ऋतु में झुलसाने वाली होती है तथा शीत ऋतु में ठिठुराने वाली। यही कारण है कि विश्व के मरुस्थलों; जैसे सहारा, थार, कालाहारी, अटाकामा तथा अरब के मरुस्थलों में जनसंख्या विरल है।

3. मृदा (Soil) – मनुष्य की पहली आवश्यकता है-भोजन। भोजन हमें मिट्टी से मिलता है। मिट्टी में ही विभिन्न कृषि फसलें पैदा होती हैं। इसलिए विश्व के जिन क्षेत्रों में उपजाऊ मिट्टी है, वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। भारत में सतलुज गंगा के मैदान, संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी के मैदान, पाकिस्तान में सिंध के मैदान, मिस्र में नील नदी के मैदान आदि में उपजाऊ मिट्टी की परतें हैं जिससे अधिकांश लोग वहाँ आकर बस गए हैं।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

4. वनस्पति (Vegetation) – वनस्पति भी जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है। उदाहरणार्थ, भूमध्य-रेखीय क्षेत्रों में सघन वनस्पति (सदाबहारी वनों) के कारण यातायात के साधनों का विकास कम हुआ है। आर्द्र जलवायु के कारण मानव-जीवन अनेक रोगों से ग्रसित रहता है इसलिए यहाँ की जनसंख्या वेरल है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वनस्पति आर्थिक उपयोग वाली होती है वहाँ मानव लकड़ी से संबंधित अनेक व्यवसाय आरंभ कर देता है; जैसे टैगा के वनों का आर्थिक महत्त्व है इसलिए वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। वनस्पति विहीन क्षेत्रों (मरुस्थलों) में भी जनसंख्या विरल है।

(ख) मानवीय कारक (Human Factors)
1. कृषि (Agriculture) – विश्व में जो क्षेत्र कृषि की दृष्टि से अनुकूल हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। वहाँ लोग प्राचीन समय से ही अधिक संख्या में निवास करते आ रहे हैं। प्रेयरीज़ तथा स्टेपीज़ प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त हैं इसलिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब में जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इसी प्रकार चीन में यांग-टी-सीक्यांग की घाटी कृषि के लिए सर्वोत्तम वातावरण उपलब्ध कराती है इसलिए यहाँ जनसंख्या का केंद्रीकरण अधिक हुआ है।

2. नगरीकरण (Urbanization) – नगर जनसंख्या के लिए चुंबक का कार्य करते हैं। बीसवीं शताब्दी में नगरीकरण की प्रवृत्ति के कारण नगरों की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। नगरों में रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, व्यापार आदि की अधिक सुविधाएँ सुलभ हैं इसलिए जनसंख्या का जमघट नगरों में अधिक देखने को मिलता है। न्यूयार्क, लंदन, मास्को, बीजिंग, शंघाई, सिडनी, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई आदि नगरों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है। कई नगरों में जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति के कारण मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालने वाली समस्याएँ (Health Hazards) उत्पन्न हो रही हैं।

3. औद्योगीकरण (Industrialization) – जिन क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना अधिक हुई है तथा औद्योगिक विकास तीव्र हुआ है, वहाँ जनसंख्या का आकर्षण बढ़ा है। जापान, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका का उत्तरी-पूर्वी भाग, जर्मनी का रूहर क्षेत्र तथा यूरोपीय देशों में औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। भारत में पिछले दो दशकों से दिल्ली, मुंबई तथा हुगली क्षेत्र में औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है।

4. परिवहन (Transportation) – परिवहन की सुविधाओं का भी जनसंख्या के वितरण पर अत्यधिक प्रभाव पड़त में यातायात की अधिक सुविधाएँ हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। महासागरीय यातायात के विकास के कारण कई बंदरगाह विश्व के बड़े नगर बन चुके हैं। वहाँ अन्य यातायात के साधन भी विकसित हो जाते हैं। सिंगापुर, शंघाई, सिडनी, मुंबई, न्यूयार्क आदि बंदरगाहों के रूप में विकसित हुए थे, लेकिन आज इन नगरों में रेल, सड़क तथा वायु यातायात की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

5. राजनीतिक कारक (Political Factors) – राजनीतिक कारक भी कुछ सीमा तक जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। सरकार की जनसंख्या नीति मानव के बसाव को अनुकूल तथा प्रतिकूल बना सकती है। रूस सरकार साइबेरिया में जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करके उनको पारितोषिक देती है। फ्रांस में जनसंख्या वृद्धि के लिए करों में रियायतें दी जाती हैं जबकि चीन, भारत तथा जापान में जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति है। चीन में एक बच्चा होने के बाद सरकार ने दूसरे बच्चे के जन्म देने पर प्रतिबंध लगा रखा है। भारत में भी जनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन पिछले एक दशक से चीन की जनसंख्या में वृद्धि-दर निरंतर कम हो रही है जबकि भारत में वृद्धि-दर 2 प्रतिशत से भी अधिक है। वह दिन निकट ही है जब भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक हो जाएगी।

(ग) आर्थिक कारक (Economic Factors)-जिन क्षेत्रों में खनिज पदार्थों के भंडार मिलते हैं, वहाँ खनन व्यवसाय तथा उद्योगों की स्थापना के कारण जनसंख्या अधिक आकर्षित होती है। ब्रिटेन में पेनाइन क्षेत्र, जर्मनी में रूहर क्षेत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में अप्लेशियन क्षेत्र, रूस के डोनेत्स बेसिन तथा भारत के छोटा नागपुर के पठार में जनसंख्या का केंद्रीकरण वहाँ की खनिज संपदा की ही देन है।

प्रश्न 2.
जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जा सकता है। यह सिद्धांत हमें बताता है कि जैसे ही समाज ग्रामीण अशिक्षित अवस्था से उन्नति करके नगरीय औद्योगिक और साक्षर बनता है तो किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म-दर और उच्च मृत्यु-दर से निम्न जन्म-दर व निम्न मृत्यु दर में बदल जाती है। ये परिवर्तन तीन अवस्थाओं में होते हैं
1. प्रथम अवस्था (First Stage) – उच्च प्रजननशीलता में उच्च मर्त्यता होती है क्योंकि लोग महामारियों और भोजन की अनिश्चित आपूर्ति से पीड़ित थे। जीवन-प्रत्याशा निम्न होती है, अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं और उनके प्रौद्योगिकी स्तर निम्न होते हैं।

2. द्वितीय अवस्था (Second Stage) – द्वितीय अवस्था के प्रारंभ में प्रजननशीलता ऊँची बनी रहती है किंतु यह समय के साथ घटती जाती है। स्वास्थ्य संबंधी दशाओं व स्वच्छता में सुधार के साथ मर्त्यता में कमी आती है।

3. तीसरी अवस्था (Third Stage) – तीसरी अवस्था में प्रजननशीलता और मर्त्यता दोनों घट जाती हैं। जनसंख्या या तो स्थिर . हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है व उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है। ऐसी जनसंख्या विचारपूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है।

विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि HBSE 12th Class Geography Notes

→ जनगणना (Census) : किसी निश्चित अवधि में किसी क्षेत्र की जनसंख्या संबंधी विभिन्न आँकड़ों का एकत्रीकरण।

→ जनसंख्या घनत्व (Population Density) : किसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर में पाई जाने वाली जनसंख्या। इसमें उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या को वहाँ के क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। (D = P/A)।

→ जनसंख्या परिवर्तन अथवा वृद्धि (Population Change or Growth) : एक क्षेत्र विशेष में किसी समय रह रहे लोगों की संख्या में परिवर्तन। यह परिवर्तन नकारात्मक (Negative) भी हो सकता है और सकारात्मक (Positive) भी।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. भूगोल की प्रकृति निम्नलिखित में से किस प्रकार की है?
(A) अंतर्विषयक
(B) समन्वय
(C) आंतरिक एवं समन्वय
(D) गत्यात्मक
उत्तर:
(C) आंतरिक एवं समन्वय

2. भूगोल की दो मुख्य शाखाएँ हैं-
(A) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल
(B) क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल
(C) जनसंख्या भूगोल और नगरीय भूगोल
(D) आर्थिक भूगोल और मानव भूगोल
उत्तर:
(A) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल

3. ‘यूनिवर्सल ज्यॉग्राफी’ पुस्तक किसने लिखी?
(A) हंबोल्ट
(B) वेरेनियस
(C) बॅकल
(D) क्लूवेरियस
उत्तर:
(D) क्लूवेरियस

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4. ‘ज्यॉग्राफिया जनरेलिस’ (सामान्य भूगोल) किसने लिखा?
(A) बर्नार्ड वेरेनियस
(B) हंबोल्ट
(C) चार्ल्स डार्विन
(D) कार्ल रिटर
उत्तर:
(A) बर्नार्ड वेरेनियस

5. ‘ज्यॉग्राफिया जनरेलिस’ नामक पुस्तक के दो प्रमुख भाग थे-
(A) भौतिक भूगोल और प्राकृतिक भूगोल
(B) सामान्य और विशिष्ट भूगोल
(C) क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल
उत्तर:
(B) सामान्य और विशिष्ट भूगोल

6. ‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ पुस्तक, जो डार्विन की प्रमुख रचना है, कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1870 में
(B) सन् 1859 में
(C) सन् 1856 में
(D) सन् 1854 में
उत्तर:
(B) सन् 1859 में

7. ‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ (Origin of Species) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) बॅकल
(B) चार्ल्स डार्विन
(C) डिमांज़िया
(D) ब्लाश
उत्तर:
(B) चार्ल्स डार्विन

8. ‘हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन ऑफ इंग्लैंड’ (History of Civilization of England) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) बॅकल
(B) डार्विन
(C) डिमांज़िया
(D) ब्लाश
उत्तर:
(A) बॅकल

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9. ‘किताब-अल-हिन्द’ नामक ग्रंथ किसने लिखा?
(A) अलबेरूनी
(B) कार्ल रिटर
(C) जीन बूंश
(D) विडाल-डी-ला ब्लाश
उत्तर:
(A) अलबेरूनी

10. आधुनिक मानव भूगोल का जनक किसे कहा जाता है?
(A) कार्ल रिटर
(B) रेटज़ेल
(C) जीन बूंश
(D) विडाल-डी-ला ब्लाश
उत्तर:
(B) रेटज़ेल

11. अर्ड-कुडे (Erd Kunde) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) रेटजेल
(B) डिमांज़िया
(C) कार्ल रिटर
(D) क्लूवेरियस
उत्तर:
(C) कार्ल रिटर

12. ‘प्रिंसिपल्स डी ज्यॉग्राफी हयूमन’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी?
(A) बर्नार्ड वेरेनियस
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश
(C) जीन बूंश
(D) एलन सेंपल
उत्तर:
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश

13. भूगोल के अध्ययन के लिए ‘मानव भूगोल’ कब एक विशेष शाखा के रूप में उभरा?
(A) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
(B) उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में
(C) पन्द्रहवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी तक
(D) इक्कीसवीं शताब्दी में
उत्तर:
(B) उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में

14. ‘मानव भूगोल, क्रियाशील मानव और अस्थिर पृथ्वी के परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।’ यह किसने कहा?
(A) रेटजेल
(B) हंटिग्टन
(C) कुमारी सेंपल
(D) कार्ल रिटर
उत्तर:
(C) कुमारी सेंपल

15. मानव भूगोल का उद्भव कब भौगोलिक अध्ययन की एक विशेष शाखा के रूप में हुआ? …
(A) पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
(B) प्रारंभिक काल में
(C) बीसवीं शताब्दी में
(D) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
उत्तर:
(D) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में

16. निम्नलिखित में से कौन-सा मानव भूगोल का उपक्षेत्र नहीं है?
(A) व्यावहारिक भूगोल
(B) सामाजिक भूगोल
(C) राजनीतिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल
उत्तर:
(D) भौतिक भूगोल

17. मानव भूगोल एक मुख्य शाखा है-
(A) क्रमबद्ध भूगोल की
(B) प्रादेशिक भूगोल की
(C) भौतिक भूगोल की
(D) पर्यावरण भूगोल की
उत्तर:
(A) क्रमबद्ध भूगोल की

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18. “मनुष्य प्रकृति का दास है” यह कथन भूगोल की किस विचारधारा से संबंधित है?
(A) निश्चयवाद
(B) संभावनावाद
(C) संभववाद
(D) व्यवहारदाद
उत्तर:
(A) निश्चयवाद

19. निश्चयवाद के प्रबल समर्थक थे-
(A) जर्मन भूगोलवेत्ता
(B) फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता
(C) अमेरिकन भूगोलवेत्ता
(D) रोमन भूगोलवेत्ता
उत्तर:
(A) जर्मन भूगोलवेत्ता

20. नव नियतिवाद के प्रवर्तक थे-
(A) हंबोल्ट
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश
(C) ग्रिफिथ टेलर
(D) रेटजेल
उत्तर:
(C) ग्रिफिथ टेलर

21. मानव भूगोल का अध्ययन करने के लिए लूसियन फ्रेबने और विडाल-डी-ला ब्लाश ने किस विचारधारा का अनुसरण किया था?
(A) निश्चयवाद
(B) संभावनावाद
(C) संभववाद
(D) प्रत्यक्षवाद
उत्तर:
(C) संभववाद

22. किस तत्त्व को ‘माता प्रकृति’ कहते हैं?
(A) भौतिक पर्यावरण
(B) सांस्कृतिक पर्यावरण
(C) राजनीतिक पर्यावरण
(D) औद्योगिक पर्यावरण
उत्तर:
(A) भौतिक पर्यावरण

23. व्यवहारवाद किसने प्रतिपादित किया?
(A) ग्रिफिथ टेलर
(B) जीन बूंश
(C) गेस्टाल्ट संप्रदाय
(D) डिमांज़िया
उत्तर:
(C) गेस्टाल्ट संप्रदाय

24. निम्नलिखित में से कौन प्रत्यक्षवाद के समर्थक नहीं थे?
(A) बी. जे. एल. बैरी
(B) विलियम बंग
(C) हंटिंग्टन
(D) डेविड हार्वे
उत्तर:
(C) हंटिंग्टन

25. कल्याणपरक विचारधारा के समर्थक थे-
(A) बैरी, विलियम बंग
(B) गेस्टाल्ट संप्रदाय
(C) डी. एम. स्मिथ, डेविड हार्वे
(D) ईसा बोमेन
उत्तर:
(C) डी. एम. स्मिथ, डेविड हार्वे

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26. ‘कौन, कहाँ, क्या पाता है और कैसे?’ यह वाक्य किस विचारधारा का मूलबिंदु है?
(A) निश्चयवाद
(B) प्रत्यक्षवाद
(C) कल्याणपरक
(D) व्यवहारवाद
उत्तर:
(C) कल्याणपरक

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
‘यूनिवर्सल ज्यॉग्राफी’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
क्लूवेरियस ने।

प्रश्न 2.
‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ पुस्तक, जो डार्विन की प्रमुख रचना है, कब प्रकाशित हुई?
उत्तर:
वर्ष 1859 में।

प्रश्न 3.
‘एंथ्रोपोज्यॉग्राफी’ नामक ग्रंथ किसने लिखा?
उत्तर:
जर्मनी के रेटजेल ने।

प्रश्न 4.
निश्चयवाद के प्रबल समर्थक कौन थे?
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटज़ेल।

प्रश्न 5.
‘Principles de Geographie Humaine’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
विडाल-डी-ला ब्लाश ने।

प्रश्न 6.
मानव भूगोल किसकी मुख्य शाखा है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल।

प्रश्न 7.
व्यवहारवाद किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर:
गेस्टाल्ट संप्रदाय ने।

प्रश्न 8.
‘कौन, कहाँ, क्या पाता है और कैसे?’ यह वाक्य किस विचारधारा का मूल-बिंदु है?
उत्तर:
कल्याणपरक विचारधारा का।

प्रश्न 9.
“मनुष्य प्रकृति का दास है।” यह कथन भूगोल की किस विचारधारा से संबंधित है?
उत्तर:
निश्चयवाद विचारधारा से।

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प्रश्न 10.
आधुनिक मानव भूगोल का जनक अथवा संस्थापक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटज़ेल को।

प्रश्न 11.
नव-निश्चयवाद के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर:
ग्रिफ़िथ टेलर।

प्रश्न 12.
रेटज़ेल कहाँ के भूगोलवेत्ता थे?
उत्तर:
जर्मनी के।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल क्या है?
अथवा
रेटज़ेल द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
मानव भूगोल वह विषय है जो प्राकृतिक, भौतिक एवं मानवीय जगत् के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का अध्ययन करता है। रेटज़ेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।”

प्रश्न 2.
कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल के अनुसार मानव भूगोल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।”

प्रश्न 3.
आर्थिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आर्थिक भूगोल में मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा प्राकृतिक वातावरण आदि के साथ मनुष्य के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव समुदाय जीवन-यापन के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाता है; जैसे लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, आखेट, कृषि, खनन, भोज्य पदार्थ, व्यवसाय आदि।

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प्रश्न 4.
फ्रेडरिक रेटजेल की पुस्तक एंथ्रोपोज्यॉग्राफी का प्रकाशन एक युगांतकारी घटना क्यों कहलाती है?
उत्तर:
इस पुस्तक ने भूगोल में मानव केन्द्रित विचारधारा को स्थापित किया। रेटज़ेल ने मानव भूगोल को मानव समाज और पृथ्वी के धरातल के पारस्परिक संबंधों के संश्लेषणात्मक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया।

प्रश्न 5.
प्रौद्योगिक स्तर मनुष्य व प्रकृति के आपसी संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
जब मनुष्य उपकरणों व तकनीकों की सहायता से निर्माण कार्य करता है तो वह प्रौद्योगिकी कहलाती है। प्रकृति के नियमों को ठीक प्रकार से समझकर व प्रौद्योगिकी का विकास करके मानव निर्माण का कार्य करता है; जैसे तेज गति से चलने वाले यान वायुगति के नियमों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 7.
प्रौद्योगिकी को विकसित करने में प्रकृति का ज्ञान क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
क्योंकि सभी उपकरणों की कार्यविधि और तकनीकों को हम प्रकृति से सीखते हैं।

प्रश्न 8.
मानव का प्रकृतिकरण अथवा प्राकृतिक मानव से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी-विहीन आदिम लोगों द्वारा जीवन जीने के लिए प्रकृति पर प्रत्यक्ष एवं पूर्ण निर्भरता मानव का प्रकृतिकरण कहलाती है।

प्रश्न 9.
प्रकृति के मानवीकरण अथवा मानवकृत प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अपनी बुद्धि और कौशल इत्यादि के बल पर विकसित प्रौद्योगिकी के द्वारा मनुष्य का प्रकृति पर छाप छोड़ना प्रकृति का मानवीकरण कहलाता है।

प्रश्न 10.
अध्ययन की विधि के आधार पर भूगोल की कौन-सी दो शाखाएँ हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography)
  2. प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)।

प्रश्न 11.
फ्रांस के किन्हीं चार मानव भूगोलवेत्ताओं के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. विडाल-डी-ला ब्लाश
  2. जीन बूंश
  3. हम्बोल्ट
  4. कार्ल रिटर।

प्रश्न 12.
भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:
भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व-मृदा, जलवायु, भू-आकृति, जल, प्राकृतिक वनस्पति, विविध प्राणी-जातियाँ तथा वनस्पति-जातियाँ आदि हैं।

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प्रश्न 13.
राजनीतिक भूगोल के उपक्षेत्र बताइए।
उत्तर:

  1. निर्वाचन भूगोल
  2. सैन्य भूगोल।

प्रश्न 14.
आर्थिक भूगोल के उपक्षेत्र बताइए।
उत्तर:

  1. संसाधन भूगोल
  2. कृषि भूगोल
  3. उद्योग भूगोल
  4. विपणन भूगोल
  5. पर्यटन भूगोल
  6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोल।

प्रश्न 15.
समायोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र की प्राकृतिक दशाओं और संसाधनों के अनुसार मानव द्वारा चयनित व्यवसाय को प्रकृति के साथ समायोजन कहते हैं।

प्रश्न 16.
पर्यावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्यावरण शब्द हिन्दी के दो पदों परि + आवरण के मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ है-‘चारों ओर से’ तथा आवरण का अर्थ है-‘ढके हुए’ अर्थात् पर्यावरण वह सब कुछ है जो हमें चारों ओर से ढके हुए है।

प्रश्न 17.
पर्यावरणीय निश्चयवाद क्या है?
उत्तर:
पर्यावरणीय निश्चयवाद के अनुसार प्रकृति अथवा पर्यावरण सर्वशक्तिमान है और प्राकृतिक शक्तियों के सामने मनुष्य तुच्छ, शक्तिहीन एवं निष्क्रिय होता है।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद क्या है?
उत्तर:
मानव-शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन निश्चयवाद कहलाता है। इस विचारधारा के अनुसार मानव-जीवन और उसके व्यवहार को विशेष रूप से भौतिक वातावरण के तत्त्व प्रभावित और यहाँ तक कि निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 19.
मानव-पर्यावरण सम्बन्धों की व्याख्या करने वाली तीन अवधारणाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. नियतिवाद या पर्यावरणीय निश्चयवाद
  2. सम्भववाद
  3. नव-निश्चयवाद।

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प्रश्न 20.
मानव भूगोल के दो प्रमुख उद्देश्य कौन-से हैं?
उत्तर:
मानव भूगोल यह जानने का प्रयत्न करता है कि-

  1. मानव ने किन-किन प्रदेशों में क्या-क्या विकास किया है-रचनात्मक या विध्वंसात्मक।
  2. मानव और वातावरण के बीच ऐसे कौन-से संबंध हैं जिनके फलस्वरूप समस्त विश्व एक पार्थिव एकता के रूप में दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 21.
भूगोल पृथ्वी तल पर विस्तृत किन दो प्रकार के तत्त्वों का अध्ययन करता है?
उत्तर:
भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले सभी तत्त्वों को दो वर्गों में बाँटता है-

  • भौतिक तत्त्व
  • मानवीय तत्त्व।

भौतिक तत्त्वों की रचना प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। मानवीय तत्त्वों का निर्माण स्वयं मनुष्य करता है, लेकिन उनका आधार भौतिक तत्त्व ही होते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल एक गत्यात्मक विषय कैसे है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल एक गत्यात्मक विषय है। जिस प्रकार तकनीक के विकास के साथ मनुष्य और पर्यावरण का सम्बन्ध बदलता जा रहा है, उसी प्रकार मानव भूगोल की विषय-वस्तु में भी समय के साथ विस्तार होता जा रहा है। उदाहरणतया बीसवीं सदी के आरंभ में मानव भूगोल में सांस्कृतिक और आर्थिक पक्षों पर विशेष ध्यान दिया जाता था किंतु बाद में नई समस्याओं और चुनौतियों के आने पर उन्हें भी विषय-वस्तु का अंग बना लिया गया। वर्तमान में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में राजनीतिक आयाम, सामाजिक संबद्धता, लिंग असमानता, जन-नीति, नगरीकरण तथा नगर प्रणाली, स्वास्थ्य व सामाजिक सुविधाएँ इत्यादि प्रकरणों को शामिल किया गया।

प्रश्न 2.
जीन बूंश द्वारा बताए गए मानव भूगोल के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जीन बूंश ने मानव भूगोल की विषय-वस्तु को पाँच प्रकार के आवश्यक तथ्यों के अध्ययन के रूप में विभाजित किया है जो इस प्रकार हैं-

  1. मृदा के अनुत्पादक व्यवसाय से संबंधित तथ्य; जैसे मकान और सड़कें
  2. वनस्पति और जीव-जगत् पर मानव विजय से संबंधित तथ्य; जैसे कृषि
  3. पशुपालन
  4. पशुपालन और मृदा के विनाशकारी उपयोग से संबंधित तथ्य; जैसे पौधों और पशुओं का विनाश
  5. खनिजों का अवशोषण।

प्रश्न 3.
मानव भूगोल की विषय-वस्तु अथवा अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित किन्हीं चार प्रमुख तथ्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल की विषय-वस्तु के अंतर्गत मोटे तौर पर निम्नलिखित चार तथ्यों का अध्ययन किया जाता है-

  1. मानव का उद्गम, उसकी प्रजातियाँ तथा भूमंडल पर मानव प्रजातियों का देशकालीन (Spatio-temporal) स्थापन।
  2. जनसंख्या का वितरण, वृद्धि, घनत्व, जनांकिकीय विशेषताएँ तथा प्रवास एवं मिश्रण।
  3. मानव की नितांत आवश्यकताएँ-भोजन, वस्त्र और मकान।
  4. भू-आकारों, जलवायु, मृदा, वनस्पति, जल, जीवों व खनिजों से संबंध व समायोजन।

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प्रश्न 4.
निश्चयवाद का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मानव-शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन निश्चयवाद कहलाता है। इस विचारधारा के अनुसार मानव-जीवन और उसके व्यवहार को विशेष रूप से भौतिक वातावरण के तत्त्व प्रभावित व निर्धारित करते हैं अर्थात मानवीय क्रियाओं पर वातावरण का नियन्त्रण होता है। इसके अनुसार किसी सामाजिक वर्ग की सभ्यता, इतिहास, संस्कृति, रहन-सहन तथा विकासात्मक पक्ष भौतिक कारकों द्वारा नियन्त्रित होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मानव एक क्रियाशील कारक नहीं है। इस विचारधारा को यूनानी तथा रोमन विद्वानों हिप्पोक्रेटस, अरस्तु, हेरोडोटस तथा स्ट्रेबो ने प्रस्तुत किया। इसके बाद अल-मसूदी, अल-अदरीसी, काण्ट, हम्बोल्ट तथा रेटज़ेल आदि ने इस पर विशेष कार्य किया। अमेरिका में कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल तथा ए० हंटिंग्टन ने इस विचारधारा को लोकप्रिय बनाया।

प्रश्न 5.
क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

क्रमबद्ध भूगोलप्रादेशिक भूगोल
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है।1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्त्चों के संदर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है।2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है।3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्च विशेष के क्षेत्रीय वितरण, उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है।4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभीं भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
5. क्रमबद्ध भूगोल में किसी घटक; जैसे जलवायु, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति या वर्षा की मात्रा के आधार पर विभिन्न प्रकार और उप-प्रकार निर्धारित किए जाते हैं।5. ‘प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्त्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं

भौतिक भूगोलमानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है।1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल का अध्ययन किया जाता है।2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
अथवा
सामाजिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूगोल के अन्तर्गत मनुष्य के सांस्कृतिक पहलुओं; जैसे मानव का आवास, सुरक्षा, भोजन, रहन-सहन, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, पहनावा आदि का अध्ययन किया जाता है। भिन्न-भिन्न मानव समुदायों की कला, तकनीकी उन्नति और विज्ञान के विभिन्न स्तरों पर अवस्थित होना मोटे तौर पर उनके भौगोलिक पर्यावरण की देन है। कुछ भूगोलवेत्ता सांस्कृतिक भूगोल को सामाजिक भूगोल भी कहते हैं। सामाजिक भूगोल में मानव को एकाकी रूप में न लेते हुए मानव समूहों और पर्यावरण के सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। सांस्कृतिक भूगोल में भिन्न-भिन्न मानव समुदायों के सांस्कृतिक विकास तथा उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।

प्रश्न 8.
निश्चयवाद और संभववाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
निश्चयवाद और संभववाद में निम्नलिखित अंतर हैं-

निश्चयवादसंभववाद
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं।1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल, हम्बोल्ट व हंटिंग्टन थे।2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल-डी-ला ब्लाश और फ्रैबवे थे।
3. यह एक जर्मन विचारधारा है।3. यह एक फ्रांसीसी विचारधारा है।

प्रश्न 9.
कृषि भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव भूगोल की इस शाखा या उपक्षेत्र में कृषि सम्बन्धी सभी तत्त्वों; जैसे कृषि भूमि, सिंचाई, कृषि उत्पादन तथा पशुपालन व पशु उत्पादों का अध्ययन किया जाता है। कृषि से मनुष्य की मूलभूत जरूरत ‘भोजन’ की आपूर्ति होती है। इसलिए मानव भूगोल की यह शाखा या उपक्षेत्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इन शाखाओं के अतिरिक्त मानव भूगोल की कई अन्य उपशाखाएँ; जैसे नगरीय भूगोल (Urban Geography), अधिवास भूगोल (Settlement Geography), चिकित्सा भूगोल (Medical Geography), व्यापारिक भूगोल (Commercial Geography), ग्रामीण भूगोल (Rural Geography), औद्योगिक भूगोल (Industrial Geography) तथा व्यावहारिक भूगोल (Applied Geography) आदि हैं।

प्रश्न 10.
संभववाद से आप क्या समझते हैं?
अथवा
संभववाद का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
सम्भववाद की विचारधारा का जन्म और विकास फ्रांस में हुआ था। इसलिए इसे फ्रांसीसी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादक पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश थे। उनके पश्चात् अन्य भूगोलवेत्ताओं ब्रूश, डिमांजियां आदि ने भी इस विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सम्भववाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रैबवे ने किया था जो ब्लाश के दृष्टिकोण पर आधारित था।

इस विचारधारा के अनुसार, प्रकृति के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं जिनके अन्दर मानव की छाँट द्वारा किसी क्षेत्र के साथ मानव समाज अपना सामंजस्य स्थापित करता है। इन भूगोलवेत्ताओं ने प्रादेशिक अध्ययन के द्वारा फ्रांस में तथा संसार के अन्य देशों में भी मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य का वर्णन करते हुए दर्शाया कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति के लिए मानवीय छाँट ही महत्त्वपूर्ण होती है। किसी प्रदेश की स्थिति और जलवायु से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव होता है और मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उनके प्रयोग का निर्णायक भी होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 11.
नव-निश्चयवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ग्रिफिथ टेलर ने नव-निश्चयवाद को समझाने के लिए “रुको तथा जाओ” वाक्यांश का प्रयोग किया। उनके अनुसार, मनष्य पर प्रकति का प्रभाव पड़ता है परन्त मनुष्य में भी अपने बद्धि-कौशल तथा प्रौद्योगिकी के दम पर प्रकृति को बदलने की क्षमता होती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मनुष्य अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रकृति का उपयोग भी कर सकता है। इसी विचारधारा को नव-निश्चयवाद कहा जाता है।

प्रश्न 12.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
नियतिवाद के सिद्धांत का जन्म और विकास जर्मनी में हुआ। हम्बोल्ट, रिटर और रेटजेल इस विचारधारा के मुख्य प्रतिपादक थे। इस सिद्धांत के अनुसार, मानव का विकास उसके वातावरण के द्वारा होता है। रेटजेल के अनुसार, मानव अपने वातावरण की उपज है। वातावरण ही मानव के जीवन-यापन के ढंग अर्थात् भोजन, वस्त्र, मकान और सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित करता है। मनुष्य केवल वातावरण के साथ समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

टुंड्रा के एस्किमो, जायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन आदि कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को स्वीकार कर भौतिक परिवेश में समायोजित हो गए। हम्बोल्ट के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कॉसमॉस’ में वातावरण के प्रभावों का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को मानव जातियों के शारीरिक लक्षणों पर और मनुष्यों के रहन-सहन पर स्पष्टतः प्रदर्शित किया था।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए इसकी प्रकृति का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? मानव भूगोल की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Human Geography)-विभिन्न विद्वानों ने मानव भूगोल को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। मानव भूगोल की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
1. फ्रेडरिक रेटजेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाज और धरातल के बीच सम्बन्धों का संश्लेषित अध्ययन है।”

2. कुमारी सेम्पल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।”

3. पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार, “हमारी पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य सम्बन्धों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना को मानव भूगोल कहते हैं।”

4. एल्सवर्थ हंटिंग्टन के अनुसार, “मानव भूगोल भौगोलिक वातावरण और मानव के क्रियाकलापों एवं गुणों के सम्बन्ध . के स्वरूप और वितरण का अध्ययन है।”

5. जीन बूंश के अनुसार, “मानव भूगोल उन सभी वस्तुओं का अध्ययन है जो मानव क्रियाकलाप द्वारा प्रभावित है और जो हमारी पृथ्वी के धरातलीय पदार्थों की एक विशेष श्रेणी के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं।”

6. कैकिले वैलो के अनुसार, “मानव भूगोल वह विज्ञान है जो विस्तृत अर्थों में प्राकृतिक पर्यावरण के साथ मानव समूहों के अनुकूलन का अध्ययन करता है।”

7. ए० डिमांजियां के अनुसार, “मानव भूगोल समुदायों तथा समाज के भौतिक वातावरण से सम्बन्धों का अध्ययन है।”
अतः मानव भूगोल के अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में बसा मानव अपने वातावरण से किस प्रकार अनुकूलन और सामंजस्य स्थापित कर उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन करता है। मानव भूगोल एक दर्शनशास्त्र के समान है। मनुष्य की विचारधारा और जीवन-दर्शन पर किसी स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव भूगोल मनुष्य तथा उस पर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन नहीं है। इस प्रकार निष्कर्ष तौर पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल वह विज्ञान है, जिसमें भूतल के विभिन्न भागों के रहने वाले मानव समूहों तथा उनसे उत्पन्न तथ्यों या भू-दृश्यों का अध्ययन किया जाता है।

मानव भूगोल की प्रकृति (Nature of Human Geography):
मानव भूगोल वह विज्ञान है जिसमें मनुष्य तथा वातावरण के बीच पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों (Functional Relations) का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल की प्रकृति को उसके अर्थ तथा परिभाषाओं के द्वारा जाना जाता है। पिछले कुछ वर्षों से मानव भूगोल का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मानव भूगोल में भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी पर फैली मानव सभ्यता द्वारा निर्मित परिस्थितियों तथा लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। घर, खेत, गाँव, नहरें, पुल, सड़कें, नगर, कारखाने, बाँध व स्कूल इत्यादि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं।

वास्तव में, फ्रांस के पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश (Paul Vidal-de-la Blache) तथा जीन बूंश (Jean Brunches) ने मानव भूगोल को अत्यधिक महत्त्व देकर उसे उच्च शिखर पर बिठा दिया है। प्राकृतिक दशाओं के आधार पर मानव भूगोल के तत्त्वों को आसानी से समझा भी जा सकता है। मानव भूगोल मानव वर्गों और उनके वातावरण की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों का प्रादेशिक आधार पर किया जाने वाला अध्ययन है। मानव भूगोल में मानव और प्रकृति के बीच सतत् परिवर्तनशील क्रिया से उत्पन्न सांस्कृतिक लक्षणों की स्थिति एवं वितरण की विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
भूगोल का मानव एवं वातावरण के साथ संबंध का दो प्रमुख उपागमों के अंतर्गत वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल के अध्ययन के दो प्रमुख उपागमों-नियतिवाद और संभववाद का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौगोलिक अध्ययन के कई पक्ष होते हैं, परंतु भूगोल में मानव और वातावरण के संबंधों को लेकर दो पृथक विचारधाराएँ विकसित हुईं। 19वीं शताब्दी में जर्मनी में मानव और वातावरण के सम्बन्धों का विस्तृत अध्ययन किया गया जिसमें वातावरण को सर्वप्रमुख माना गया। तत्पश्चात् इस विचारधारा में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने मानवीय पक्ष को प्रधानता दी। ये विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं
1. नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism) – नियतिवाद के सिद्धांत का जन्म और विकास जर्मनी में हुआ। हम्बोल्ट, रिटर और रेटज़ेल इस विचारधारा के मुख्य प्रतिपादक थे। इस सिद्धांत के अनुसार, मानव का विकास उसके वातावरण के द्वारा होता है। रेटजेल के अनुसार, मानव अपने वातावरण की उपज है। वातावरण ही मानव के जीवन-यापन के ढंग अर्थात् भोजन, वस्त्र, मकान और सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित करता है। मनुष्य केवल वातावरण के साथ समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है। टुंड्रा के एस्किमो, जायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन आदि कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को स्वीकार कर भौतिक परिवेश में समायोजित हो गए। हम्बोल्ट के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कॉसमॉस’ में वातावरण के प्रभावों का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को मानव जातियों के शारीरिक लक्षणों पर और मनुष्यों के रहन-सहन पर स्पष्टतः प्रदर्शित किया था।

आलोचना (Criticism) – यह बात सत्य है कि वातावरण मनुष्य को प्रभावित करता है परंतु मनुष्य भी वातावरण में परिवर्तन कर सकता है। यह पारस्परिक क्रिया इतनी गहन है कि यह जानना कठिन होता है कि किस समय एक क्रिया का प्रभाव बंद होता है और दूसरी क्रिया का प्रभाव आरंभ होता है। समान भौतिक परिवेश वाले क्षेत्रों में विकास के स्तर में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। पृथ्वी तल पर जनसंख्या के वितरण में जो विषमताएँ पाई जाती हैं उनका कारण केवल वातावरण ही नहीं है। बहुत-से भू-दृश्य जो हमें प्राकृतिक प्रतीत होते हैं वे वास्तव में मानव द्वारा निर्मित होते हैं। अतः नियतिवाद की इस आधार पर आलोचना की गई कि जहाँ पर्यावरण मानव को प्रभावित करता है, वहाँ मानव भी पर्यावरण को परिवर्तित करने में सक्षम है।

2. संभववाद (Possibilism)-संभववाद की विचारधारा का जन्म और विकास फ्रांस में हुआ था। इसलिए इसे फ्रांसीसी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादक विडाल-डी-ला ब्लाश थे। उनके पश्चात् अन्य भूगोलवेत्ताओं जीन ब्रश, डिमांजियां आदि ने भी इस विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। संभववाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रॅबवे ने किया
था जो ब्लाश के दृष्टिकोण पर आधारित था।

इस विचारधारा के अनुसार, प्रकृति के द्वारा कुछ संभावनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं जिनके अंदर मानव की छाँट (Human Choice) द्वारा किसी क्षेत्र के साथ मानव समाज अपना सामंजस्य स्थापित करता है। इन भूगोलवेत्ताओं ने प्रादेशिक अध्ययन के द्वारा फ्रांस में तथा संसार के अन्य देशों में भी मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य का वर्णन करते हुए दर्शाया कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ते के लिए मानवीय छाँट ही महत्त्वपूर्ण होती है। किसी प्रदेश की स्थिति और जलवायु से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव होता है और मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई संभावनाओं का स्वामी होता है तथा उनके प्रयोग का निर्णायक होता है।

निष्कर्ष (Conclusion) – यद्यपि प्रकृति का मनुष्य पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है फिर भी प्रभाव अवश्य है और मानव उस प्रकृति की सीमाओं के अंदर ही विकास कर सकता है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियंत्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है। दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। मानव उन्नति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य प्रकृति के साथ सहयोगी बनकर रहे।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 3.
“द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात, मानव भूगोल ने मानव समाज की समकालीन समस्याओं और चुनौतियों के समाधान प्रस्तुत किए।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल के अध्ययन की विभिन्न विधियों या उपागमों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् भूगोल में विशेषीकरण की प्रवृत्ति आ गई। इस समय भूगोल के अंतर्गत बस्तियाँ, नगर, बाजार, मनोरंजन, सैन्य भूगोल, प्रादेशिक असमानता, गरीबी, लिंग भेद, निरक्षरता आदि संवेदनशील उपविषय पढ़े जा रहे हैं। ये सभी विषय मूल रूप से मानव भूगोल के अंतर्गत आते हैं लेकिन समकालीन मुद्दों और समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान ढूँढने में पारंपरिक विधियां असमर्थ हैं। फलस्वरूप मानव भूगोल ने समय-समय पर अनेक नई विधियों को अपनाया जो समकालीन समस्याओं और चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती हैं। इस उद्देश्य के लिए मानव भूगोल में अपनाई गई विधियाँ अग्रलिखित हैं-
1. प्रत्यक्षवाद (Positivism) इसमें मात्रात्मक विधियों पर अधिक बल दिया गया जिससे भौगोलिक विश्लेषण वस्तुनिष्ठ बनाया जा सके। इस विचारधारा की प्रमुख कमी यह थी कि इसमें मानवीय गुणों; जैसे धैर्य, क्षमता, विश्वास आदि का विश्लेषण नहीं किया जा सकता।

2. व्यवहारवाद (Behaviouralism)-इस विचारधारा के अनुसार, संपूर्ण अपने अंश अथवा अवयवों से महत्त्वपूर्ण होता है। अतः परिस्थिति का समग्र रूप में प्रत्यक्षीकरण किया जाना चाहिए। इस विधि में मानव अपनी शक्तियों का उचित उपयोग करके समस्याओं का बौद्धिक हल ढूँढ सकता है।

3. कल्याणपरक विचारधारा (Welfare Approach) विश्व में व्याप्त विभिन्न प्रकार की असमानताओं की प्रतिक्रियास्वरूप मानव भूगोल में कल्याणपरक प्रतिक्रिया का जन्म हुआ। इसमें निर्धनता, बेरोज़गारी, प्रादेशिक असंतुलन, नगरीय झुग्गी-झोंपड़ियाँ तथा आर्थिक असमानता जैसे विषयों को मुख्य रूप से सम्मिलित किया गया।

4. मानवतावाद (Humanism)-मानवतावाद मनुष्य की सूजन शक्ति पर आधारित मानव भूगोल की एक नवीन विचारधारा है। इसमें मानव जागृति, मानव संसाधन तथा उसकी सृजनात्मकता के संदर्भ में मनुष्य की सक्रिय भूमिका का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
मानव भूगोल की विभिन्न शाखाओं या उपक्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। मानव भूगोल की शाखाएँ या उपक्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) – आर्थिक भूगोल मानव भूगोल की सबसे प्रमुख शाखा है। आर्थिक भूगोल में मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा प्राकृतिक वातावरण आदि के साथ मनुष्य के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव समुदाय जीवन-यापन के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाता है; जैसे लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, आखेट, कृषि, खनन, भोज्य पदार्थ, व्यवसाय आदि। आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं का अध्ययन करता है। आर्थिक क्रियाओं पर वातावरण के विभिन्न तत्त्वों; जैसे मिट्टी, भूमि, प्राकृतिक वनस्पति,. खनिज संसाधन, जनसंख्या तथा घनत्व आदि का प्रभाव पड़ता है।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत मनुष्य के सांस्कृतिक पहलुओं; जैसे मानव का आवास, सुरक्षा, भोजन, रहन-सहन, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, पहनावा आदि का अध्ययन किया जाता है। भिन्न-भिन्न मानव समुदायों की कला, तकनीकी उन्नति और विज्ञान के विभिन्न स्तरों पर अवस्थित होना मोटे तौर पर उनके भौगोलिक पर्यावरण
की देन है। कुछ भूगोलवेत्ता सांस्कृतिक भूगोल को सामाजिक भूगोल भी कहते हैं। सामाजिक भूगोल में मानव को एकाकी रूप न लेते हुए मानव समूहों और पर्यावरण के सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। सांस्कृतिक भूगोल में भिन्न-भिन्न मानव समुदायों के सांस्कृतिक विकास तथा उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।

3. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा में ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र में एक समय से दूसरे समय में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों के अध्ययन को ऐतिहासिक भूगोल कहते हैं। ऐतिहासिक भूगोल विश्लेषण करता है कि किस प्रकार धरातल, स्थिति, भौगोलिक एकान्तता, प्राकृतिक बाधाएँ तथा राज्य का विस्तार
आदि किसी राष्ट्र का भाग्य निर्धारित करती है। हार्टशान के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।”

4. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत राष्ट्रों या राज्यों की सीमाएँ, विस्तार, स्थानीय प्रशासन, प्रादेशिक नियोजन आदि आते हैं। राजनीतिक भूगोल में प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है। राजनीतिक भूगोल मानवीय समूहों की राजनीतिक परिस्थितियों, समस्याओं व क्रियाओं से भूगोल के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। राजनीतिक भूगोल राज्यों का भूगोल है और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की भौगोलिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

5. सैन्य भूगोल (Military Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत स्थल तथा समुद्र के भौगोलिक चरित्र का युद्ध की घटनाओं पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करना है। इस भूगोल में युद्ध के स्थानों के निर्धारण के लिए सम्बन्धित क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं, स्थिति, जलाशयों, उच्चावच, जंगली भूमि आदि की जानकारी आवश्यक होती है। इस भूगोल में अध्ययन के लिए मानचित्रों तथा स्थलाकृतिक मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है।

6. कृषि भूगोल (Agricultural Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा या उपक्षेत्र में कृषि सम्बन्धी सभी तत्त्वों; जैसे कृषि भूमि, सिंचाई, कृषि उत्पादन तथा पशुपालन व पशु उत्पादों का अध्ययन किया जाता है। कृषि से मनुष्य की मूलभूत जरूरत ‘भोजन’ की आपूर्ति होती है। इसलिए मानव भूगोल की यह शाखा या उपक्षेत्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इन शाखाओं के अतिरिक्त मानव भूगोल की कई अन्य उपशाखाएँ; जैसे नगरीय भूगोल, अधिवास भूगोल, चिकित्सा भूगोल, व्यापारिक भूगोल, ग्रामीण भूगोल, औद्योगिक भूगोल तथा व्यावहारिक भूगोल आदि हैं।

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4

प्रश्न 1.
बराबर लम्बाई के रेखाखण्डों से बनाए गए अंकों के पैटर्न को देखिए। आप रेखाखण्डों से बने हुए इस प्रकार के अंकों को इलैक्ट्रॉनिक घड़ियों या कैलकुलेटरों पर देख सकते हैं।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4 1
यदि बनाए गए अंकों की संख्या n ली जाए, तो उसके लिए आवश्यक रेखाखण्डों की (n) संख्या दर्शाने वाला बीजीय व्यंजक प्रत्येक पैटर्न के दाईं ओर लिखा गया है। 6,4,8 के प्रकार के 5, 10, 100 अंकों को बनाने के लिए कितने रेखाखण्डों की आवश्यकता होगी?
हल :
(a) हम जानते हैं कि 6 की तरह n अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या = (5n + 1)
अतः 5, 10, 100 अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या क्रमशः (5 × 5 + 1) = 25 + 1 = 26; (5 × 10 + 1) = 50 + 1 = 51 और (5 × 100 + 1)= 500 + 1 = 501.

(b) हम जानते हैं कि 4 की तरह n अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या = (3n + 1).
अतः 5, 10, 100 अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या क्रमशः (3 × 5 + 1)= 15 + 1 = 16; (3 × 10 + 1) = 30 + 1 = 31 और (3 × 100 + 1)= 300 + 1 = 301.

(c) हम जानते हैं कि 8 की तरह n अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या = (5n + 2).
अतः 5, 10, 100 अंकों को बनाने में लगे रेखाखण्डों की संख्या क्रमशः (5 × 5 + 2) = 25 + 2 = 27; (5 × 10 + 2) = 50 + 2 = 52 और (5 × 100 + 2) = 500 + 2 = 502.

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4

प्रश्न 2.
संख्या पैटों की निम्नलिखित सारणी को पूरा करने के लिए, दिए हुए बीजीय व्यंजकों का प्रयोग कीजिए।
हल :
दिए हुए पैटर्न से तालिका को पूरा करने पर,
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 12 बीजीय व्यंजक Ex 12.4 2
क्योंकि (i) 100वाँ पद = 2 × 100 – 1
= 200 – 1 = 199

(ii) 5वाँ पद = 3 × 5 + 2
= 15 + 2 = 17
10वाँ पद = 3 × 10 + 2
= 30 + 2 = 32
और 100वाँ पद = 3 × 100 + 2
= 300 + 2 = 302

(iii) 5वाँ पद = 4 × 5 + 1
= 20 + 1 = 21
10वाँ पद = 4 × 10 + 1
= 40 + 1 = 41
और 100वाँ पद = 4 × 100 + 1
= 400 + 1 = 401

(iv) 5वाँ पद = 7 × 5 + 20
= 35 + 20 = 55
10वाँ पद = 7 × 10 + 20
= 70 + 20 = 90
और, 100वाँ पद = 7 × 100 + 20
= 700 + 20 = 720

(v) 5वाँ पद = 52 + 1
= 25 + 1 = 26
10वाँ पद = 102 + 1
= 100 + 1
= 101

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक कथन में उपयोग किए गए गुणधर्म का वर्णन कीजिए। (आकृति):
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 1
(i) यदि a || b, तो ∠1 = ∠5
(ii) यदि ∠4 = ∠6, तो a || b
(iii) यदि ∠4 + ∠5 = 180°,
तो a || b
हल :
(i) संगत कोण गुणधर्म
(ii) एकान्तर कोण गुणधर्म
(iii) तिर्यक रेखा के एक ही ओर के अंतः कोणों का प्रत्येक युग्म संपूरक होता है।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2

प्रश्न 2.
आकृति में निम्नलिखित की पहचान कीजिए :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 2
(i) संगत कोणों के युग्म
(ii) अंतः एकांतर कोणों के युग्म
(iii) तिर्यक छेदी रेखा के एक तरफ बने अंत:कोणों के युग्म
(iv) ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण।
हल :
(i) ∠1, ∠5; ∠2, ∠6; ∠3, ∠7 और ∠4, ∠8 चार संगत कोणों के युग्म हैं।
(ii) एकांतर कोणों के दो युग्म हैं : ∠2, ∠8 और ∠3, ∠5
(iii) तिर्यक् रेखा के एक ही ओर के अंत: कोणों के दो युग्म हैं : ∠2, ∠5 और ∠3, ∠8.
(iv) ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोणों के चार युग्म हैं :
∠1, ∠3; ∠2, ∠4; ∠5, ∠7 और ∠6, ∠8.

प्रश्न 3.
निम्न आकृति में p || q अज्ञात कोण ज्ञात कीजिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 3
हल:
∠e + 125° = 180°, (रैखिक युग्म कोण)
⇒ ∠e = 180° – 125°= 55°,
∠e = ∠f = 55°,
[ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण]
आकृत में, p || q और t तिर्यक रेखा है।
∠a = ∠f (एकान्तर कोण)
∠a = 55°,
∠b = 125°, (संगत कोण)
∠d = ∠a = 55°, (ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण) और ∠b = ∠d = 125°,
(ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण)
अतः ∠a = 55°, ∠b = 125°, ∠c = 55°,
∠d = 125°, ∠e = 55° और ∠f = 55° उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2

प्रश्न 4.
यदि l || m है, तो निम्नलिखित आकृतियों में प्रत्येक में x का मान ज्ञात कीजिए।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 4
हल :
(i) आकृति में, l || m और तिर्यक् छेदी रेखा है।
∠x = 180° – 110° = 70°,
(संगत कोण, रैखिक युग्म कोण)

(ii) आकृति में, l || m और a एक तिर्यक् छेदी रेखा है।
∴ ∠x = 100°
(संगत कोण)

प्रश्न 5.
दी हुई आकृति में, दो कोणों की भुजाएँ समांतर हैं। यदि ∠ABC = 70°, तो:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 5
(i) ∠DGC ज्ञात कीजिए।
(ii) ∠DEF ज्ञात कीजिए।
हल :
(i) आकृति में, AB || ED और BC तिर्यक छेदी रेखा है।
∴ ∠DGC = ∠ABC, [संगत कोण]
= 70°,
[∵ ∠ABC = 70°, दिया है]

(ii) आकृति में, BC || EF और ED तिर्यक छेदी रेखा है।
∴ ∠DEF = ∠DGC, [संगत कोण]
= 70°

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2

प्रश्न 6.
नीचे दी हुई आकृतियों में निर्णय लीजिए कि क्या l, m के समांतर है।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 5 रेखा एवं कोण Ex 5.2 - 6
हल :
(i) आकृति में अन्त: कोणों का योग 180° नहीं है।
∴ l, m के समान्तर नहीं है।
(ii) आकृति में, तिर्यक रेखा के एक ओर बने अन्तः कोणों का योग 180° नहीं है।
∴ l, m के समान्तर नहीं है।
(iii) आकृति में, संगत कोण समान हैं।
(57° ⇒ 180° – 123° = 57°)
∴ l, m के समान्तर है।
(iv) आकृति में, तिर्यक रेखा के एक ओर अंतः कोणों का योग 180° नहीं है अर्थात् 98° + 72° = 170 ≠ 180°.
∴ l, m के समान्तर नहीं है।

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4

प्रश्न 1.
निम्न दी गई भुजाओं की मापों से क्या कोई त्रिभुज सम्भव है?
(i) 2 सेमी, 3 सेमी, 5 सेमी
(ii) 3 सेमी, 6 सेमी, 7 सेमी
(iii) 6 सेमी, 3 सेमी, 2 सेमी
हल :
(i) त्रिभुज की दो भुजाओं का योग तीसरी भुजा से अधिक होना चाहिए।
2 + 3 > 5
अतः दी गई भुजाएँ त्रिभुज नहीं बनाती हैं।

(ii) त्रिभुज की दो भुजाओं का योग तीसरी भुजा से अधिक होना चाहिए।
3 + 6 > 7; 3 + 7 > 6 और 6 + 7 > 3
अत: दो भुजाओं का योग तीसरी से अधिक है। इसलिए त्रिभुज बनता है।

(iii) त्रिभुज की दो भुजाओं का योग तीसरी भुजा से अधिक होना चाहिए।
6 + 3 > 2 ; 3 + 2 > 6
अत: दी गई भुजाएँ त्रिभुज नहीं बनाती हैं।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4

प्रश्न 2.
त्रिभुज PQR के अभ्यंतर में कोई बिन्दु 0 लीजिए। क्या यह सही है कि
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 - 1
(i) OP + OQ > PQ?
(ii) OQ + OR > QR?
(iii) OR + OP > RP?
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 - 2
त्रिभुज के गुण से ΔOPQ, ΔOQR और ΔOPR में,
(i) OP + OP > PQ
(ii) OQ + OR > QR
(iii) OR + OP > RP

प्रश्न 3.
त्रिभुज ABC की एक माध्यिका AM है। बताइए कि क्या
AB + BC + CA > 2AM?
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 - 3
हल:
त्रिभुज की असमिकाओं का प्रयोग करने पर,
ΔABM में,
AB + BM > AM ……………. (1)
ΔAMC में,
AC + MC > AM ……………. (2)
(1) और (2) के दोनों पक्षों को जोड़ने पर,
AB + (BM + MC) + AC > AM + AM
AB + BC + CA > 2AM

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4

प्रश्न 4.
ABCD एक चतुर्भुज है। क्या AB + BC + CD + DA > AC + BD?
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 - 4
हल :
माना ABCD एक चतुर्भुज है। विकर्ण AC और BD को मिलाया।
ΔABC में, AB + BC > AC …………(i)
ΔDAC में, CD + DA > AC ………….(ii)
ΔABD में, AB + AD > BD …………(iii)
और ΔCBD में, BC + CD > BD …………(iv)
(i), (ii), (iii) और (iv) के दोनों पक्षों को जोड़ने पर,
2(AB + BC + CD + AD) > 2(AC + BD)
⇒ AB + BC + CD + AD > AC + BD

प्रश्न 5.
ABCD एक चतुर्भुज है। क्या AB + BC + CD + DA < 2(AC + BD)?
हल :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4 - 5
माना ABCD एक चतुर्भुज है और विकर्ण AC और BD एक दूसरे को O बिन्दु पर काटते है।
ΔOAB में, OA + OB > AB …..(1)
ΔBOC में, OB + OC > BC …..(2)
ΔCOD में, OC + OD > DC ……(3)
और ΔAOD में, OD + OA > DA …….(4)
(1), (2), (3) और (4) को जोड़ने पर 2(OA + OB + OC+ OD) > AB + BC + CD + DA
⇒ 2(OA + OC) + 2(OB + OD) > AB + BC + CD + DA
⇒ 2(AC + BD) > AB + BC + CD + DA
⇒ AB + BC + CD + DA < 2(AC + BD).

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 6 त्रिभुज और उसके गुण Ex 6.4

प्रश्न 6.
एक त्रिभुज की दो भुजाओं की माप 12 सेमी तथा 15 सेमी है। इसकी तीसरी भुजा की माप किन दो मापों के बीच होनी चाहिए?
हल :
माना तीसरी भुजा की लम्बाई : सेमी है, तो
12 + 15, > x, x + 12 > 15 और x + 15 > 12
⇒ 27 > x, x >15 – 12 और x > 12 – 15
⇒ 27 > x, x > 3 और x > – 3
3 और 27 के बीच की संख्याएँ इसे सन्तुष्ट करती हैं।
अत: तीसरी भुजा की लम्बाई 3 और 27 के बीच होगी। उत्तर

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक भूगोल का वर्णन नहीं करता?
(A) समाकलनात्मक अनुशासन
(B) मानव और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों का अध्ययन
(C) द्वैधता पर आश्रित
(D) प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप आधुनिक समय में प्रासंगिक नहीं
उत्तर:
(D) प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप आधुनिक समय में प्रासंगिक नहीं

2. निम्नलिखित में से कौन-सा एक भौगोलिक सूचना का स्रोत नहीं है?
(A) यात्रियों के विवरण
(B) प्राचीन मानचित्र
(C) चंद्रमा से चट्टानी पदार्थों के नमूने
(D) प्राचीन महाकाव्य
उत्तर:
(D) प्राचीन महाकाव्य

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

3. निम्नलिखित में कौन-सा एक लोगों और पर्यावरण के बीच अन्योन्यक्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) मानव बुद्धिमता
(B) प्रौद्योगिकी
(C) लोगों के अनुभव
(D) मानवीय भाईचारा
उत्तर:
(B) प्रौद्योगिकी

4. निम्नलिखित में से कौन-सा एक मानव भूगोल का उपगमन नहीं है?
(A) क्षेत्रीय विभिन्नता
(B) मात्रात्मक क्रांति
(C) स्थानिक संगठन
(D) अन्वेषण और वर्णन
उत्तर:
(B) मात्रात्मक क्रांति

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मानव भूगोल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल वह विषय है जो प्राकृतिक, भौतिक एवं मानवीय जगत् के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का अध्ययन करता है। रेटजेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।”

प्रश्न 2.
मानव भूगोल के कुछ उप-क्षेत्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
मानव भूगोल के उप-क्षेत्र हैं-व्यवहारवादी भूगोल, सामाजिक कल्याण का भूगोल, विपणन भूगोल, उद्योग भूगोल, संसाधन भूगोल, जनसंख्या भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, सांस्कृतिक भूगोल, सैन्य भूगोल, चिकित्सा भूगोल, कृषि भूगोल आदि।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 3.
मानव भूगोल किस प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंधित है?
उत्तर:
भौतिक भूगोल की तरह मानव भूगोल भी स्वयं में एक स्वतंत्र विज्ञान नहीं है। अपनी विषय-वस्तु तथा उसके विश्लेषण के लिए मानव भूगोल अनेक सामाजिक विज्ञानों पर निर्भर करता है। यह दूसरे विषयों को क्षेत्रीय संदर्भ (Regional Perspective) प्रदान करता है जिसकी उनमें कमी होती है। उदाहरणतया

  • आर्थिक क्रियाओं व जनसंख्या की विशेषताओं के अध्ययन के लिए मानव भूगोल अर्थशास्त्र व जनांकिकी (Demography) की सहायता लेता है।
  • भूगोल स्थान का और इतिहास समय का ज्ञाता होने के कारण ये न केवल एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं।
  • फसलों के वितरण और उन्हें निर्धारित करने वाली भौगोलिक दशाओं तथा भूमि-उपयोग के अध्ययन के लिए मानव भूगोल कृषि विज्ञान का सहारा लेता है।
  • मानव समुदायों, उनके सामाजिक संगठन, परिवार-प्रणाली, श्रम-विभाजन, रीति-रिवाज़, लोक-नीति, प्रथाओं व जनजातियों के अध्ययन के लिए मानव भूगोल समाजशास्त्र की ओर देखता है।

इनके अतिरिक्त अन्य अनेक सामाजिक विज्ञानों के साथ-साथ मानव भूगोल का संबंध विभिन्न प्राकृतिक विज्ञानों से भी है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मानव के प्राकृतिकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य अपनी सांस्कृतिक विरासत से प्राप्त तकनीक और प्रौद्योगिकी की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता है। महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है कि मनुष्य क्या उत्पन्न एवं निर्माण करता है बल्कि यह है कि वह किन उपकरणों एवं तकनीकों की सहायता से उत्पादन एवं निर्माण करता है। प्रौद्योगिकी से किसी समाज के सांस्कृतिक विकास की सूचना मिलती है। मनुष्य प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से जानने के बाद ही प्रौद्योगिकी का विकास कर पाया है।

उदाहरणतया-

  • तीव्रतर यान विकसित करने के लिए हम वायुगतिकी के नियमों का पालन करते हैं।
  • घर्षण एवं ऊष्मा की संकल्पनाओं ने अग्नि के आविष्कार में हमारी सहायता की।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि सभी विज्ञानों का जन्म प्रकृति से हुआ है। आरंभिक मानव ने स्वयं को प्रकृति के आदेशों के अनुसार ढाल लिया था। क्योंकि उस समय मानव का सामाजिक-सांस्कृतिक विकास आरंभिक अवस्था में था तथा प्रौद्योगिकी न के बराबर थी। सतत् पोषण के लिए मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करता है। ऐसे में वह पर्यावरण को माता-प्रकृति (The Goddess of Nature) का नाम देते हैं। समय के साथ-साथ.सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हुआ और मनुष्य प्रौद्योगिकी का विकास करने लगा। पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों से वे अनेक संभावनाओं को जन्म देने लगा। मानवीय क्रियाओं की छाप हर जगह दिखाई देने लगी जैसे; ऊँचे पर्वतों पर सड़कें बनाना, नगरीय प्रसार, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी-पठारी भूमि पर रेलमार्ग विकसित करना इत्यादि।
(1) पहले के विद्वानों ने इसे संभववाद का नाम दिया। विद्वानों ने बताया कि कैसे मनुष्य अपनी बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति इत्यादि के बल पर प्रकृति का मानवीकरण करता है और अपने प्रयासों की छाप प्रकृति पर छोड़ने लगता है।

(2) परन्तु कुछ अन्य भूगोलवेत्ताओं ने एक नई संकल्पना प्रस्तुत की, जो पर्यावरणीय निश्चयवाद तथा संभववाद की चरम सीमाओं के बीच का दर्शन करवाती है। इसे “नव निश्चयवाद” कहा जाता है।

इसका अर्थ है कि मानव प्रकृति का आज्ञापालक बनकर ही इस पर विजय प्राप्त कर सकता है। उन्हें लाल संकेतों पर प्रत्युत्तर देना होगा और जब प्रकृति रूपांतरण की स्वीकृति दे तो वे अपने विकास के प्रयत्नों में आगे बढ़ सकते हैं।

निष्कर्ष – नवनिश्चयवाद संकल्पनात्मक ढंग से एक संतुलन बनाने का प्रयास करता है जो सम्भावनाओं के बीच अपरिहार्य चयन द्वैतवाद को निष्फल करता है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 2.
मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र-मानव भूगोल का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत तथा व्यापक है। भौगोलिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में मानव के उद्यम द्वारा बनाए गए सांस्कृतिक दृश्य-भूमि का अध्ययन ही मानव भूगोल की विषय-वस्तु है। इसमें मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं के अतिरिक्त मनुष्यों की अन्य क्रियाएँ; जैसे जनसंख्या और उसका वितरण, नगर व उनके आकार तथा प्रकार, मनुष्य की संस्कृति आदि भी सम्मिलित हैं अर्थात् मनुष्य एक स्वतन्त्र भौगोलिक कारक है।

इस कारण वह भौतिक पर्यावरण के संसाधनों का उपयोग करते हुए खेत, घर और गाँव बनाता है। वह सड़क, नहर, रेलमार्ग, नगर, हवाई अड्डे और बन्दरगाह आदि बनाता है। मनुष्य कहीं पर बाढ़ को रोकता है तो कहीं पर रेगिस्तान को, कहीं पर मनुष्य समुद्र की छाती को भेदकर तेल निकालता है और कहीं पर संचार-तन्त्र का विकास करता है। मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र में पदार्थ, कर्म, विचार आदि तत्त्व शामिल होते हैं। ये सभी तत्त्व मनुष्य तथा पर्यावरण से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं।

पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश ने अपनी पुस्तक ‘Principles de Geographie Humaine’ में जनसंख्या तथा बस्तियों के विश्व तरण तथा सभ्यता को प्रभावित करने वाले कारकों के विकास का विवेचन किया है। ब्लाश ने मानव भूगोल की विषय-सामग्री को तीन भागों में बाँटा है

  • जनसंख्या इसमें जनसंख्या का वितरण, उसका घनत्व एवं प्रभाव, प्रमुख जन-समूह, जीविका के साधन, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्रवास तथा मानव प्रजातियों को सम्मिलित किया जाता है।
  • सांस्कृतिक कारक-इसमें पौधों, पशुओं, कच्चा माल तथा औजार आदि आजीविका के साधन, विनिर्माण की सामग्री आदि सम्मिलित किए जाते हैं।
  • परिवहन-इसमें गाड़ियाँ, सड़कें, रेलें तथा समुद्री परिवहन आदि को सम्मिलित किया जाता है।

इसके अतिरिक्त मानव जातियों और नगरों का वर्णन करना मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र है।

प्रो० जीन बूंश के अनुसार, मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र को तीन भागों में बाँटा जा सकता है जो निम्नलिखित हैं-

  • मिट्टी के गैर-कृषि उत्पादक व्यवसाय; जैसे मकान तथा सड़क।
  • जीव-जगत् पर मानव की जीत से सम्बन्धित तत्त्व; जैसे कृषि करना तथा पशुपालन आदि।
  • मिट्टी का ह्रासमयी प्रयोग; जैसे पौधों को काटना तथा विभिन्न खनिज पदार्थों का अवशोषण आदि।

एल्सवर्थ हंटिंग्टन द्वारा वर्णित मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र बहुत ही व्यापक और विशाल है। इनके अनुसार भौतिक अवस्थाओं का सामूहिक प्रभाव जीवन के विभिन्न रूपों; जैसे मानव, पेड़-पौधों इत्यादि पर होता है। जीवन के ये सभी रूप आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। हंटिंग्टन ने मानव भूगोल के इन तत्त्वों को तीन निम्नलिखित भागों में बाँटा है-
1. भौतिक दशाएँ इनके अन्तर्गत पृथ्वी की ग्लोबीय स्थिति अर्थात् पृथ्वी का स्वरूप, आकार, मिट्टी, खनिज तथा जलवायु इत्यादि को शामिल किया जाता है।

2. जीवन के रूप-जीवन के रूप के अन्तर्गत पौधे, पशु और मनुष्य सम्मिलित किए गए हैं।

3. मानवीय अनुक्रियाएँ-इस श्रेणी के अन्तर्गत-

  • भौतिक आवश्यकताएँ; जैसे जल, वस्त्र, औजार आदि आते हैं
  • मौलिक व्यवसाय; जैसे परिवहन के साधन, आखेट, कृषि, पशुचारण आदि आते हैं।

कुछ दशकों से मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र में बहुत अधिक विस्तार हुआ है और यह विस्तार अभी भी जारी है। मानव भूगोल एक गत्यात्मक विज्ञान है। जिस तरह तकनीक के विकास के साथ मनुष्य और पर्यावरण का सम्बन्ध बदलता जा रहा है उसी प्रकार मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र में भी समय के साथ-साथ वृद्धि और विस्तार होता जा रहा है। नई समस्याओं तथा चुनौतियों का अध्ययन करने के लिए मानव भूगोल की अनेक नई शाखाओं का विकास हुआ है। इस प्रक्रिया में मानव भूगोल में एकीकरण तथा अन्तर्विषयक गुणों को समाहित किया है।

आधुनिक समय में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में कई नए प्रकरणों को शामिल किया गया है-राजनीतिक आयाम, सामाजिक सम्बद्धता, लिंग असमानता, जन-नीति, नगरीय प्रणाली इत्यादि। मानव भूगोल ने सामाजिक विज्ञानों में आवश्यक आयाम या क्षेत्र सम्बन्धी विचारों को समाहित करने का कार्य किया है। वे सामाजिक विज्ञान मानव भूगोल के उपक्षेत्रों के रूप में जाने जाते हैं; जैसे व्यावहारिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल तथा सामाजिक भूगोल इत्यादि। मानव भूगोल का सम्बन्ध सामाजिक विज्ञानों के साथ-साथ प्राकृतिक विज्ञानों से भी है।

मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र HBSE 12th Class Geography Notes

→ निश्चयवाद (Determinism) : मानव-शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन। इस विचारधारा के अनुसार मानव-जीवन और उसके व्यवहार को विशेष रूप से भौतिक वातावरण के तत्त्व प्रभावित और यहाँ तक कि निर्धारित करते हैं।

→ संभववाद (Possibilism) : प्राकृतिक शक्तियों की अपेक्षा मानव-शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन, जिसके अनुसार वातावरण मानव क्रियाओं को नियंत्रित तो करता है किंतु उन सीमाओं में कुछ संभावनाएँ और अवसर प्रस्तुत करता है जिसमें मानवीय छांट महत्त्वपूर्ण होती है।

→ कार्य-कारण संबंध (Cause and Effect Relationship) : मानव द्वारा किया गया कोई उद्यम और उसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव या परिणाम के बीच संबंधों का होना। उदाहरणतया, अर्जित शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार, सामाजिक व आर्थिक स्तर में होने वाले परिवर्तन में शिक्षा कारण है और बदलाव कार्य है। इसी प्रकार सिंचाई व्यवस्था होने से कृषि क्षेत्र में होने वाला सकारात्मक आर्थिक बदलाव कार्य-कारण का उदाहरण है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

→ क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) : भूगोल की वह शाखा, जिसके अंतर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

→ प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography) : भू-पृष्ठ पर विभिन्न प्राकृतिक प्रदेशों; जैसे मानसून प्रदेश, टुंड्रा प्रदेश आदि का भौगोलिक अध्ययन।

→ सामान्य भूगोल (General Geography) : भूगोल की वह शाखा जिसमें संपूर्ण पृथ्वी को एक इकाई मानकर इसके लक्षणों का विवेचन किया जाता है।

→ विशिष्ट भूगोल (Special Geography) : भूगोल की वह शाखा जिसमें अलग-अलग प्रदेशों की संरचना के अध्ययन पर बल दिया जाता है।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Upapad Vibhakti उपपद विभक्ति Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

उपपद विभक्ति ज्ञान

कर्ता, कर्म, करण आदि कारकों से प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों का निर्देश पहले बताया गया है। संस्कृत में कुछ ऐसे अव्यय एवं निपात हैं, जिनके योग से विशेष विभक्ति का प्रयोग होता है। भाव यह है कि उसमें साधारण विभक्ति न होकर विशेष विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। उन शब्दों को ‘उपपद’ कहते हैं और उसमें निर्दिष्ट होने वाली विभक्ति को ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। जैसे ‘रामः ग्रामे वसति’ यहाँ गाँव में अधिकरण कारक होने से सप्तमी विभक्ति है, किन्तु यदि यहाँ वस्’ धातु से पूर्व ‘उप’ का प्रयोग किया जाए, तो पद में सप्तमी विभक्ति न हो कर द्वितीया विभक्ति हो जाती है. रामः ग्रामम् उपवसति। यहां कुछ प्रमुख उप पद विभक्तियों का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्रथमा उपपद विभक्ति

‘इति’ शब्द के साथ प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे –
(क) ‘संस्कृत भाषा देवभाषा’ इति कथयन्ति।
(ख) दशरथस्य ज्येष्ठपुत्रः राम इति नामधेयः आसीत्।
(ग) अमुं नारदः इति अबोधि। (उनको नारद ऐसा जाना)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

द्वितीया उपपद विभक्ति

सूत्र (i) अधिशीस्थासां कर्म – अधि उपसर्ग से युक्त शीङ् स्था और आस् धातु का आधार कर्मकारक होता है। यथा –
हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते (हरि वैकुण्ठ में सोते हैं)।
हरिः वैकुण्ठम् अधितिष्ठति (हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरिः वैकुण्ठम् अध्यास्ते (हरि वैकुण्ठ में बैठते हैं)।

सूत्र (ii) अभिनिविशश्च-अभि + नि-पूर्वक विश् धातु का भी आधार कर्म होता है। यथा – स अभिनिविशते सन्मार्गम् (वह अच्छे मार्ग में प्रवेश करता है।)
सूत्र (iii) उपान्वध्याड्वसः – उप, अनु, अधि और आङ् उपसर्ग से युक्त वसु धातु का आधार कर्मकारक होता है। यथा –

हरि वैकुण्ठम् उपवसति (हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (अनुवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (अधिवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं) ।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (आवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।

यदि ‘उप + वस्’ का उपवास करना अर्थ हो तो आधार कर्म नहीं अधिकरण होता है और अधिकरण में सप्तमी होती है। यथा-तपस्वी वने उपवसति (तपस्वी वन में उपवास करता है)। गाँधी कारायाम् उपावसत् (गाँधी जी ने जेल में उपवास किया था)।

सूत्र (iv) गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ – निम्न धातुओं के अण्यन्त कर्ता ण्यन्त में कर्मकारक बन जाते हैं –

(i) गत्यर्थक धातु – माता पुत्रं गृहं गमयति (माता पुत्र को घर भेजती है)।
(ii) बुद्धयर्थक धातु – गुरुः शिष्यं धर्मं बोधयति (गुरु शिष्य को धर्म बतलाता है)।
(iii) प्रत्यवसानार्थक (भक्षणार्थक) धातु – माता पुत्रम् ओदनम् आशयति (माता पुत्र को भात खिलाती है)।
(iv) शब्दकर्मक धातु – गुरुः छात्रं वेदम् अध्यापयति (गुरु छात्र को वेद पढ़ाते हैं)।
(v) अकर्मक धातु – माता शिशुं शाययति (माता शिशु को सुलाती है)।

सूत्र (v) कर्मज्ञप्रवचनीयुक्ते द्वितीया – जो उपसर्ग कर्मप्रवचनीयसंज्ञक होते हैं, उनके योग में द्वितीया विभक्ति होती है। यथा-जपम् अनु प्रावर्षत् मेघः (जप करने के बाद मेघ बरसा)। जप के कारण वर्षा हुई।
रामम् अनुगतः लक्ष्मणः वनम् (राम के पीछे लक्ष्मण वन गये)। राम के कारण लक्ष्मण वन गये।

सूत्र (vi) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे (अत्यन्तसंयोगे द्वितीया) – अत्यन्त संयोग में काल और मार्ग के वाचक शब्दों में द्वितीया होती है। यथा – स मासम् अधीते वेदम् (वह महीना भर वेद पढ़ता है)। पुरा द्वादशवर्षाणि व्याकरणं पठन्ति स्म (पहले लगातार बारह साल तक व्याकरण पढ़ते थे)। क्रोशं कुटिला नदी वर्तते (लगातार कोस भर नदी टेढ़ी है)।

क्रिया की पूर्णता में तृतीया होती है (अपवर्गे तृतीया) – मासेन वेदम् अध्यैत (महीने भर में वेद पढ़ लिया)। क्रोशेन श्लोकान् अस्मरत् (कोस भर में श्लोकों को याद कर लिया)।

सूत्र (vii)
उभसर्वतसोः कार्या धिगुपर्यादिषु त्रिषु।
द्वितीयानेडितान्तेषु ततोऽन्यत्रापि दृश्यते।

निम्नलिखित शब्दों के योग में द्वितीया होती है –
(i) उभयत: – प्रयागम् उभयत: नद्यौ स्तः (प्रयाग के दोनों ओर दो नदियाँ हैं)।
(ii) सर्वतः – विद्यालयं सर्वतः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के सब ओर पेड़ हैं)।
(ii) धिक् – धिक् तं पापकारिणम् (उस पापकारी को धिक्कार है)।
(iv) उपर्यपरि – मेघम् उपर्युपरि विमानं गतम् (मेघ के ऊपर-ऊपर हवाई जहाज गया)
(v) अध्यधि – वनम् अध्यधि मार्ग: गतः (वन के बीचोबीच राह गयी है)
(vi) अधोऽधः – मेघम् अधोऽधः गच्छति विमानम् (मेघ के नीचे-नीचे हवाई जहाज जाता है।
सूत्र (viii) अभितः-परितः समया-निकषा-हा-प्रति-योगेऽपि-अभितः आदि के योग में भी द्वितीया होती है।

यथा –
(i) अभित: – विद्यालयम् अभितः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के सब ओर पेड़ हैं)।
(ii) परितः – विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के चारों ओर पेड़ हैं)।
(iii) समया – नगरं समया पर्वतः वर्तते। (शहर के पास पहाड़ है।)
(iv) निकषा – नगरं निकषा पर्वतः वर्तते (शहर के पास पहाड़ है।)
(v) हा – हा नास्तिकम् (नास्तिक पर अफसोस है)।
(vi) प्रति – दीनं प्रति कुरु दयाम् (गरीब पर दया करो)।
सत्र (ix) अन्तरा अन्तरेण यक्त – अन्तरा और अन्तरेण के योग में द्वितीया होती है। यथा-त्वां मां च अन्तरा विष्णुः (तेरे और मेरे बीच में विष्णु है)। अन्तरेण ज्ञानं न सुखम् (बिना ज्ञान के सुख नहीं मिलता)।
सूत्र (x) क्रियाविशेषणे द्वितीया – क्रियाविशेषण में द्वितीया होती है। वैसे क्रिया विशेषण अव्यय होते हैं, किन्तु अन्य शब्द भी जब क्रियाविशेषण के समान प्रयुक्त होते हैं तो वे भी अव्यय कम बन जाते हैं किन्तु उनमें द्वितीया विभक्ति लगती है और शब्द नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। ये सभी क्रियाविशेषण सदा एक ही रूप में रहते हैं। यथा –
मन्दधी: सुखं स्वपिति (मूर्ख मौज से सोता है)।
मधुरं गायति सा बाला (वह लड़की मधुर गाती है)।
अधिकं शब्दायतेऽ? घटः (आधा भरा घड़ा अधिक शोर करता है)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

तृतीया उपपद विभक्ति

कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
सूत्र (i) गम्यमानाऽपि क्रिया कारकविभक्तौ प्रयोजिका – क्रिया यदि स्पष्टतः न कही भी गई हो किन्तु उसका भाव प्रतीत होता हो तो भी कारकों की विभक्तियाँ हो जाया करती हैं। यथा-अलं महीपाल ! तव श्रमेण (हे राजन् ! बस कीजिए, आपके परिश्रम से कुछ होना-जाना नहीं है)। यहाँ तव श्रमेण’ के बाद ‘न किञ्चित् साध्यम्’ यह बात बिना कहे भी समझ में आ जाती है, अत: ‘साध्य’ के साधन ‘श्रम’ में करण-कारक की तृतीया लगी है।

सूत्र (ii) प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् – प्रकृति आदि शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
प्रकृत्या चारु: अयं बालक: (यह लड़का स्वभाव से सुन्दर है)।
गोत्रेण गार्ग्य: अयं ब्राह्मणः (यह ब्राह्मण गोत्र से गार्य है)।
नाम्ना यज्ञदत्तः अयं छात्रः (यह छात्र नाम से यत्रदत्त है)।
अहं वर्णेन ब्राह्मणः (मैं वर्ण से ब्राह्मण हूँ)।
मम सुखेन याति कालः (सुख से मेरा समय बीतता है)।

सूत्र (ii) अपवर्गे तृतीया – अपवर्ग में – क्रिया की सिद्धि में कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में अत्यन्तसंयोग रहने पर तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
स मासेन  अधीतवान् (उसने महीने-भर में व्याकरण पढ़ लिया)। अयं चतुर्भि: वर्षेः गृहं निर्मितवान् (इसने
चार वर्षों में घर बना लिया)। योजनेन भवान् कथां समाप्तवान् (आपने योजन-भर में कथा समाप्त की)।
सूत्र (iv) सहयुक्तेऽप्रधाने (सहार्थे तृतीया)-‘सह’ के अर्थ वाले शब्दों के योग में अप्रधान में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –

पुत्रेण सह आगतः पिता (पुत्र के साथ पिता आया)।
छात्रेण समं गतः गुरु: (छात्र के साथ गुरुजी गये)।

गुरुणा सार्धम् एकासने न आसीत् (गुरु के साथ एक आसन पर कोई न बैठे)। मया साकं तिष्ठ (मेरे साथ ठहरो)।

सूत्र (v) येनाङ्गविकार: – जिस अंग के विकृत होने से अंगी में विकार ज्ञात हो उस अंग के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –

अक्ष्णा काणः सः (वह आँख से काना है)।
कर्णेन बधिरः त्वम् (तुम कान से बहरे हो)।
अयं पादेन खञ्जः (यह पैर से लंगड़ा है)।

सूत्र (vi) इत्थंभूतलक्षणे – जिस चिह्न के कारण कोई व्यक्ति किसी विशेष प्रकार का लगता हो, उस चिह्न के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
अयं जटाभिः तापसः प्रतीयते (यह जटाओं से तपस्वी लगता है।)
सः पुस्तकेन छात्रः (वह पुस्तक से छात्र है)।

सूत्र (vii) हेतौ (हेतो तृतीया) – हेतु में अर्थात् किसी भी कार्य के कारण या प्रयोजन तृतीया होती है। यथा –
दण्डेन घटः भवति (दण्ड से घड़ा होता है)।
श्रमेण धनं भवति (श्रम से धन होता है)।
पुण्येन सुखं मिलति (पुण्य से सुख मिलता है)।
विद्यया बुद्धिः वर्धते (विद्या से बुद्धि बढ़ती है)।
अध्ययनेन वसति (अध्ययन के निमित्त रहता है)।

सूत्र (viii) ऊन-वारण-प्रयोजनार्थश्च – ऊनार्थक, वारणार्थक और प्रयोजनार्थक शब्दों के योग में तृतीया होती है। यथा –
(क) ऊनार्थक-एकेन ऊनं शतम् (एक कम सौ)।
धनेन हीनः सः (वह धन से हीन है)।
गर्वेण शून्यः भव (गर्व से शून्य होओ)।
क्रोधेन रहितः सुखी भवति (क्रोध से रहित सुखी होता है)।

(ख) वारणार्थक – अलं विवादेन (विवाद न करो)।
अलं कलहेन (कलह मत करो)।

(ग) प्रयोजनार्थक – धनेन किं प्रयोजनम् (धन से क्या मतलब) ?
नास्ति मम सेवकेन प्रयोजनम् (मुझे सेवक से प्रयोजन नहीं है)।
कोऽर्थः पुत्रेण (पुत्र से क्या लाभ) ?

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

चतुर्थी उपपद विभक्ति

सूत्र (i) दाने चतुर्थी – जिसे कोई वस्तु दी जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा-विप्राय गां ददाति।
सूत्र (ii) अशिष्टव्यवहारे दाणः प्रयोगे चतुर्थ्यर्थे तृतीया-अशिष्ट-व्यवहार के लिए दाण् धातु के प्रयोग में चतुर्थी के अर्थ में तृतीया होती है। यथा –
दास्या संयच्छते कामुकः (कामी पुरुष दासी को देता है)। शिष्ट-व्यवहार में-भार्यायै संयच्छति (पत्नी को देता है)।
सूत्र (ii) रुच्यर्थानां प्रीयमाण:-‘रुचना’ अर्थ वाले धातुओं के योग में जिसे कोई वस्तु रुचती है वह सम्प्रदानकारक होता है। उस सम्प्रदान में चतुर्थी होती है। यथा –
हरये रोचते भक्तिः (हरि को भक्ति अच्छी लगती है)।
मह्यं रोचते संस्कृतम् (मुझे संस्कृत अच्छी लगती है)।
सूत्र (iv) धारेरुत्तमर्ण:-धारि धातु के योग में उत्तमर्ण (साहूकार) में सम्प्रदानकारक होता है। उसमें चतुर्थी होती है। यथा – देवदत्ताय शतं धारयति सः (वह देवदत्त के लिए सौ रुपए धारता है)।
सूत्र (v) स्पृहेरीप्सतः-स्पृह धातु के योग में ईप्सित (अभीष्ट वस्तु) सम्प्रदान होता है। यथा पुष्पेभ्य स्पृह्यति मालाकारः (माली फूलों को चाहता है)। अहं संस्कृतस्य प्रचाराय स्पृह्यामि (मैं संस्कृत का प्रचार चाहता हूँ)।
सूत्र (vi) क्रुद्रुहेासूयार्थानां यं प्रति कोप:-क्रुध्, द्रुह, ईर्ष्या और असूया अर्थ वाले धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध आदि भाव होते हैं वह सम्प्रदानकारक होता है। यथा –
कृष्णाय क्रुध्यति कंसः (कंस कृष्ण पर क्रोध करता है)। कृष्णाय द्रुह्यति कंसः (कंस कृष्ण से द्रोह करता है)। कृष्णाय ईय॑ति कंसः (कंस कृष्ण से ईर्ष्या करता है)। कृष्णाय असूयति कंसः (कंस कृष्ण से असूया करता है)।
सूत्र (vii) क्रुधद्रुहोरुपसृष्टयोः कर्म-क्रुध और द्रुह्य धातु यदि उपसर्ग से युक्त हों, उसके प्रति क्रोध हो वह कर्मकारक होता है। कर्म में द्वितीया होती है। यथा –
कृष्णम् अभिक्रुध्यति कंसः (कंस कृष्ण पर क्रोध करता है)। कृष्णम् अभिद्रुह्यति कंसः (कंस कृष्ण से विद्रोह करता है)।
सूत्र (vii) तादर्थ्य चतुर्थी वाच्या-जिस प्रयोजन के लिए कोई क्रिया की जाती है, कोई वस्तु होती है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा –
मुक्तये हरि भजति (मुक्ति के लिए हरि को भजता है)। भवति काव्यं यशसे (काव्यं यश के लिए होता है)। कुण्डलाय सुवर्णम् (कुण्डल के लिए सोना है)। मोदकाय क्रन्दति बाल: (बच्चा लड्डू के लिए रोता है)।
सूत्र (ix) नमः स्वस्ति-स्वाहा-स्वधालं-वषड्योगाच्च-नमः, स्वस्ति आदि शब्दों के चतुर्थी होती है। यथा नमः-तस्मै श्रीगुरवे नमः (उस श्रीगुरु को नमः है)। स्वस्ति-अस्तु स्वस्ति प्रजाभ्यः (प्रजा का कल्याण हो।) स्वाहा-अग्नये स्वाहा (अग्नि को स्वाहा है)। स्वधा-पितृभ्यः स्वधा (पितरों को समर्पित है)। अलम्-अलं मल्लो मल्लाय (यह पहलवान उस पहलवान के लिए काफी) निषेध में तृतीया-अलं विवादेन। वषड्-वषड् इन्द्राय (इन्द्र को अर्पित है)।
सूत्र (x) उपपदविभक्तेः कारकविभक्तिर्बलीयसी – उपपदविभक्ति से कारक विभक्ति बलवती होती है। इसलिए कारक विभक्ति उपपदविभक्ति को रोकती है।
नमस्करोति देवान् भक्तः (भक्त देवों को नमस्कार करता है)। इस वाक्य में कर्मणि द्वितीया से कर्मकारक में होने वाली द्वितीया विभक्ति नमः, स्वस्ति से होने वाली उपपदविभक्ति चतुर्थी को रोक देती है।
सूत्र (xi) निम्नलिखित शब्दों के योग में भी चतुर्थी विभक्ति होती है –

(i) हितम्-भवतु लोकाय हितम् (लोक के लिए कल्याण हो)।
(ii) सुखम्-अस्तु लोकाय हितम् (लोक के लिए सुख हो)।
(iii) स्वागतम्-स्वागतं रामाय (राम के लिए स्वागत है)।
(iv) कुशलम्-तुभ्यं भूयात् कुशलम् (तेरा कुशल हो)। आदि।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

पञ्चमी उपपद विभक्ति

सूत्र (i) जुगुप्सा – विराम-प्रमादार्थानामुपसंख्यानम्-जुगुप्सा (घृणा), विराम और प्रमाद (लापरवाही) अर्थ वाले धातुओं के योग,में पञ्चमी विभक्ति होती है जैसे –
पापात् जुगुप्सते (पाप से घृणा करता है)।
अधर्मात् विरमति (अधर्म से विरत होता है)।
धर्मात् प्रमाद्यति (धर्म से प्रमाद करता है)।
सूत्र (ii) भीत्रार्थानां भयहेतुः – भय और त्राण अर्थ वाले धातुओं के योग में अपादान कारक होता है यथा-व्याघ्रात् बिभेति (बाघ से डरता है) सात् त्रायते (साँप से बचता है)।
सूत्र (iii) पराजेरसोढः – परा उपसर्गपूर्वक जि धातु के योग में असोढ (जो सहने योग्य न हो, जेता) अपादानकारक होता है। यथा-रामात् रावणः पराजयते (राम से रावण हारता है)।
सूत्र (vi) आख्यातोपयोगे – उपयोग (नियमपूर्वक साथ रहकर विद्या पढ़ने) से आख्याता राम पढ़ाने वाला) अपादानकारक होता है। यथा-आचार्यात् अधीते रामः (आचार्य से राम पढ़ता है)।
सूत्र (v) जनिकर्तुः प्रकृतिः – जन् धातु के कर्ताकारक की प्रकृति अपादान कारक होती है। यथा-ब्राह्मणः प्रजाः प्रजायन्ते (ब्रह्मा से प्रजा उत्पन्न होती है)। क्रोधाद् भवति संमोहः (क्रोध से मोह उत्पन्न होता है)।
सूत्र (vi) भुवः प्रभवः – भू धातु ने कर्ता का प्रभव (उत्पत्ति-स्थान) अपादानकारक होता है। यथा-हिमवतः गङ्गा प्रभवति। (हिमवान् से गङ्गा प्रकट होती है।) लोभात् क्रोधः प्रभवति (लोभ से क्रोध प्रकट होता है)।
सूत्र (vii) पञ्चमी विभक्तेः – विभाग करने में, किसी को अच्छा-बुरा धनी-गरीब आदि बताने में इससे भेद बताया जाये उसमें पंचमी होती है। यथा –
माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्यः आढ्यतराः (मथुरा के लोग पटनावालों से अधिक धनी हैं)। रामः श्यामात् सुन्दरतरः (राम श्याम से अधिक सुन्दर है)। मौनात् सत्यं विशिष्यते (चुप रहने से सत्य बोलना अच्छा है)। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बड़ी है)। धनाद् विद्या गरीयसी (धन से विद्या बड़ी है)।
सूत्र (viii) अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तपदाजाहि युक्त – अन्य आदि शब्दों के योग में पंचमी होती है।

यथा –
(i) अन्य: – रामचन्द्रात् अन्य: बलरामः आसीत् (रामचन्द्र से दूसरे (भिन्न) थे बलराम)।
(ii) आरात् – आरात् वनाद् ग्रामः (वन से गाँव निकट है)। देहली आरात् पाटलिपुत्रात् (दिल्ली पटना से निकट है)।
(iii) इतर, भिन्न, अतिरिक्त आदि –
श्रीहर्षात् इतरः (भिन्नः, अतिरिक्तः वा) आसीत् श्रीहर्षवर्धनः(श्रीहर्ष से भिन्न था श्रीहर्षवर्धन)।
(iv) ऋते – ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः (ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती)।
(v) दिक्शब्द – बिहारात् पूर्वः असमः (बिहार से पूरब है आसाम)। चैत्रात् पूर्वः फाल्गुनः (चैत से पहले फाल्गुन पड़ता है)।
(vi) अञ्चुत्तरपद – प्राक् सोमः भौमात् (मंगल से पहले है सोमवार)।
(vii) आच् (प्रत्यय) – दक्षिणा ग्रामात् पाठशाला (गाँव से दक्षिण ओर पाठशाला है)।
(viii) आहि (,,) – दक्षिणाहि भारतात् समुद्रः (समुद्र भारत के दक्षिण ओर है)।
सूत्र (ix) प्रभृत्यादियोगे पंचमी – प्रभृति आदि शब्दों के योग में पंचमी होती विभक्ति है। यथा –
(i) प्रभृति – शैशवात् प्रभृति (वचपन से आज तक)।
(ii) आरभ्य – ज्येष्ठात् आरभ्य (बड़े से लेकर)।
(iii) बहिः – सः ग्रामाद् बहिष्कार्यः (वह गाँव से बाहर करने योग्य है)।
(iv) अनन्तरम् – अध्ययनात् अनन्तरं ग्रामं गतः (पढ़ने के बाद गाँव चला गया)।
(v) परम् – अस्मात् परं किं जातम् (इसके बाद क्या हुआ)।
(vi) ऊर्ध्वम् – को जानीते क्षणाद् ऊर्ध्व किं भावि (कौन जानता है कि क्षणभर के बाद क्या होगा?

सूत्र (x) पृथग-विना-नानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्-पृथक, विना और नाना शब्दों के योग में द्वितीया, तृतीया और पंचमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
(i) पृथक्-आत्मानम् पृथक् (आत्मना पृथक् अथवा आत्मनः पृथक्) नास्ति परमात्मा (आत्मा से अलग परमात्मा नहीं है)।
(ii) विना-धर्म विना (धर्मेण विना अथवा धर्मात् विना) सुखं न मिलति (धर्म के बिना सुख नहीं मिलता)।
(iii) नाना-नाना नारी निष्फला लोकयात्रा (नारी के बिना लोक-जीवन व्यर्थ है)।
नाना फलैः फलति कल्पलतेव विद्या (विद्या कल्पलता के समान अनेक फल देती है)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

षष्ठी उपपद विभक्ति
(सम्बन्ध)

सूत्र (i) षष्ठी शेषे – प्रथमा से सप्तमी तक ही कही गई सभी विभक्तियों से शेष अर्थ में अर्थात् सम्बन्ध में (क्योंकि सम्बन्ध में कोई विभक्ति नहीं बताई गई है)। षष्ठी विभक्ति होती है। यथा-राज्ञः पुरुषः (राजा का पुरुष)। पितुः पुत्रः (पिता का पुत्र) । स्वामिनः भृत्यः (मालिक का नौकर)। वसिष्ठस्य पत्नी (वसिष्ठ की पत्नी)।
कूपस्य जलम् (कुएँ का पानी)। तस्य धनम् (उसका धन)।

सूत्र (ii) षष्ठी हेतु-प्रयोगे हेतु शब्द के प्रयोग में कारण या प्रयोजन और हेतु, दोनों में षष्ठी होती है। यथा –
कस्य हेतोः वसति (किसलिए रहता है)?
अध्ययनस्य हेतोः वसति (पढ़ने के लिए रहता है)।
अल्पस्य हेतोः बहु न त्यज (थोड़े के लिए बहुत मत छोड़ो)।

सूत्र (iii) अधीगर्थदयेशां कर्मणि-अधीगर्त (अधि + इक् + अर्थ, अधिपूर्वक, ‘इक्’ धातु के अर्थ वाले अर्थात् स्मरण अर्थ वाले) धातु, दय, और ईश् धातु के कर्मकारक में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा –
मातुः स्मरति कृष्णः (माता को कृष्णजी याद करते हैं)।
दीनानां दयते रामः (राम गरीबों पर दया करते हैं)।
गात्राणामनीशोऽस्मि संवृत्तः (मैं अङ्गों से असमर्थ हो गया हूँ-अंग मेरे वश में नहीं हैं)।

सूत्र (iv) कर्तृकर्मणोः कृति-कृदन्त शब्दों के योग में अनुक्त कर्ता और कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा ईश्वरः जगतः कर्ता (ईश्वर जगत् का कर्ता है)। शाकुन्तलम् कालिदासस्य कृतिः (शाकुन्तल कालिदास की कृति है)। अहम् पुस्तकस्य पाठकः (मैं पुस्तक को पढ़ने वाला हूँ)।

सूत्र (v) तुल्यार्थरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम् (तुल्यार्थे तृतीया षष्ठी च)-तुला और उपमा शब्दों को छोड़कर सभी तुल्यार्थक शब्दों के योग में तृतीया और षष्ठी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
आसीद् भरतः रामेण समः (भरत राम के समान थे)।
आसीद् भरतः रामस्य समः (भरत राम के समान थे)।
धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः (धर्म से हीन लोग पशुओं के जैसे हैं)।
धर्मेण हीनाः पशूनां समानाः (धर्म से हीन लोग पशुओं के जैसे हैं)।

सूत्र (vi) यतश्च निर्धारणम् (निर्धारणे षष्ठी सप्तमी च)-समुदाय से किसी की पृथक् विशिष्टता आने में जिससे वह विशिष्ट हो उसमें षष्ठी और सप्तमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
नृणां विप्रः श्रेष्ठः (नरों में विप्र श्रेष्ठ है)।
नृषु विप्रः श्रेष्ठः (नरों में विप्र श्रेष्ठ है)।
गवां कृष्णा बहुक्षीरा (गायों में काली गाय विशेष दूधवाली है)।
गोषु कृष्णा बहुक्षीरा (गायों में काली गाय विशेष दूधवाली है)।
कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है)।
कविषु कालिदासः श्रेष्ठः। (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

सप्तमी उपपद विभक्ति
(अधिकरणकारक)

सूत्र (i) सप्तम्यधिकरणे च – अधिकरणकारक में और दूर तथा अन्तिक अर्थवाले शब्दों में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
(i) अधिकरण-वने वसति सिंहः (शेर वन में रहता है)।
(ii) दूरार्थक-ग्रामस्य दूरे नदी (गाँव से दूर है नदी)।
(iii) अन्तिकार्थक-ग्रामस्य अन्तिके विपणिः (गाँव के पास बाज़ार है)।
सूत्र (ii) अधिकरणे सप्तमी – अधिकरणकारक में सप्तमी होती है। यथा-सिंह: वने वसति (सिंह वन में रहता है)।

सूत्र (iii) आधारोऽधिकरणम् – कर्ता या कर्म कारक के द्वारा क्रिया का आधार अधिकरणकारक होता है। उस अधिकरण में सप्तमी होती है। आधार तीन प्रकार का होता है।
(क) औपश्लेपिक (ऊपर से आधार), यथा-कटे आस्ते मुनिः (मुनि चटाई पर बैठता है)।
(ख) अभिव्यापक (भीतर से आधार), यथा-पात्रे वर्तते जलम् (जल पात्र में है)।
(ग) वैषयिक (विषय के आधार, , यथा-मोक्षं इच्छास्ति (मोक्ष में मेरी चाह है)।

सूत्र (iv) साध्वसाधुप्रयोगे च-साधु और असाधु शब्दों के प्रयोग में सप्तमी होती है। यथा –
साधुः कृष्णो मातरि (कृष्णजी माता के लिए अच्छे थे)।
असाधुः कृष्णो मातुले (कृष्णजी मामा (कंस) के लिए बुरे थे)।

सूत्र (v) निमित्तात् कर्मयोगे – जिस निमित्त के लिए कर्मकारक से युक्त क्रिया की जाती है, उसमें सप्तमी होती है। यथा –
चर्मणि द्वीपिनं हन्ति (चाम के लिए चीते को मारता है)।
दन्तयोः हन्ति कुञ्जरम् (दाँतो के लिए हाथी को मारता है)।
केशेषु चमरी हन्ति (केशों के लिए चमरी (चँवरी गाय) को मारता है।
सीम्नि पुष्कलक: हतः (अण्डकोष के लिए कस्तूरीमृग मारा गया)।

सूत्र (vi) यस्य च भावे भावलक्षणम् (भावे सप्तमी) – जिसकी क्रिया से दूसरी क्रिया जाती जाय, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
गोषु दुह्यमानासु गतः (वह गौवों को दुहते समय गया)।
अस्तंगते सूर्ये छात्राः गताः (सूर्य के डूब जाने पर छात्र गए)।
रामे वनं गते-मृतो दशरथ: (राम के वन जाने पर दशरथ मर गए)।

सूत्र (vii) षष्ठी चानादरे (अनादरे षष्ठी-सप्तम्यौ) – जिसकी क्रिया से दूसरी क्रिया जानी जाय और वहाँ अनादर का भाव हो तो उसमें षष्ठी और सप्तमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा-रुदतः पुत्रस्य पिता वनं गतः (रोते पुत्र का अनादर कर पिता वन चला गया)। अथवा-रुदति पुत्रे पिता वनं गतः।

पितरि निवारयति अपि पुत्रः त्यक्तवान् अध्ययनम्, पितुः निवारयतः अपि पुत्रः त्यक्तवान् अध्ययनम् (पिता के मना करते रहने पर भी पुत्र ने पढ़ना छोड़ दिया)।

सूत्र (viii) आयुक्त कुशलाभ्यां चासेवायाम् आयुक्त (काम में संलग्न) तथा कुशल शब्द के योग में षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे –
(i) छात्रः पठने आयुक्तः (संलग्नः)
(ii) भक्तः हरिपूजने आसक्तः।
(iii) छात्रः अध्ययने कुशलः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

अभ्यासार्थम् :

निर्देश: – अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतेषु शब्देषु उपपदविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत –

1. उपार्जितानां वित्तं ….. ….. बिना सफलं न भवति। (दानभोग)
2. तस्मै …………….. व्ययार्थं रत्नचतुष्टयं दास्यामि। (राजन्)
3. त्वम् एतेषां रत्नानां मध्ये यत् ……………… रोचते तद् गृहाण। (युष्मद्)
4. दृढसङ्कल्पोऽयम् अश्वारोही …………….. न विरमति। (स्वकार्य)
5. श्रीनायारः स्वराज्यं ……………… प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्। (केरल)
6. तस्य ……………. सह कश्चित् सम्पर्कः अस्ति। (राज्य)
7. न स्वल्पमपि ……………. बिभ्यति। (पापाचार)
8. …………… मुखेन कथमेतत् कथयितुं शक्नुमः। (अस्मद्)
उत्तराणि :
1. दानभोगैः
2. राजे
3. तुभ्यं
4. स्वकार्यात्
5. केरलं
6. राज्येन
7. पापाचारेभ्यः
8. वयं।

बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न –

प्रश्न I.
कर्ताकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
कर्ता कारक – क्रिया का प्रधानभूत कारक कर्ता कहलाता है अर्थात् जो क्रिया के सम्पादन में प्रधान होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता का अर्थ है-करने वाला। वाक्य में क्रिया को करने में जो स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता होता है। कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण – देवदत्तः पठति। यहाँ पढ़ने की क्रिया का प्रधानभूत । स्वतन्त्र कारक देवदत्त है, अतः वह कर्ता है।

प्रश्न II.
करणकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
करणकारक – वाक्य में कर्ता अपने कार्य की सिद्धि के लिए जिसकी सबसे अधिक सहायता लेता है, उसे करणकारक कहते हैं। करणकारक में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण – गौरवः कलमेन लिखति। यहाँ गौरव कर्ता है, कलम करण है और लिखति क्रिया है। गौरव लिखने के लिए कलम की सबसे अधिक सहायता लेता है, अतः कलम करणकारक है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

प्रश्न III.
अपादानकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
अपादानकारक – अलग होने में स्थिर या अचल कारक को अपादान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जब दो वस्तुओं का अलगाव हो, तब जो वस्तु अपने स्थान पर स्थिर रहती है, उसी को अपादान कहते हैं। अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
उदाहरण –
(i) गौरवः ग्रामात् आयाति (गौरवः गांव से आता है)-यहाँ गांव अपने स्थान पर स्थिर रहता है। अतः वह अपादान कारक है।
(ii) धावतः अश्वात् बालकः पतति (दौड़ते हुए घौड़े से बालक गिरता है)-यहाँ पतन क्रिया में अश्व स्थिर है, अतः अपादान कारक है।

प्रश्न IV.
सम्प्रदानकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
सम्प्रदानकारक – दान के कर्म द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि दान क्रिया जिसके लिए होती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं। सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।
उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है)-यहाँ गोदान रूपी कर्म के द्वारा कर्ता विप्र से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है अतः विप्र सम्प्रदान कारक है।

प्रश्न V.
कर्मकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
कर्मकारक – कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिसे विशेष रूप से प्राप्त करना चाहता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।
उदाहरण –
दिनेश: ग्रामं गच्छति। (दिनेश गाँव जाता है) – यहाँ कर्ता दिनेश जाने की क्रिया द्वारा ग्राम को प्राप्त करना चाहता है इसीलिए वाक्य में ग्राम कर्म है।
हरीशः फलं खादति। (हरीश फल खाता है) – यहाँ कर्ता हरीश खाने की क्रिया द्वारा फल को प्राप्त करना चाहता है इसीलिए वाक्य में फल कर्म है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

प्रश्न VI.
अधिकरण-कारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
अधिकरण-कारक- वाक्य में क्रिया या कर्म के आधार को अधिकरण कारक कहा जाता है। यह आधार तीन प्रकार का होता है – 1. औपश्लेषिक, 2. वैषयिक, 3. अभिव्यापक।
अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।

उदाहरण –
आसने तिष्ठति। (आसन पर बैठता है) – यहाँ बैठने की क्रिया का आधार आसन है इसीलिए वाक्य में आसन अधिकरण है। यह औपश्लेषिक (भौतिक संयोग वाला) आधार है। मोक्षे इच्छा अस्ति। (मोक्ष में इच्छा है) – यहाँ क्रिया का आधार मोक्ष है इसीलिए वाक्य में मोक्ष अधिकरण है। यह वैषयिक (बौद्धिक संयोग वाला) आधार है।
तिलेषु तैलम्। (तिलों में तेल है।) – यहाँ तेल का आधार तिल है इसीलिए वाक्य में तिलअधिकरण है। तेल पूरे तिल में व्यापक है इसीलिए यह अभिव्यापक आधार है।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Karak-Parichayah कारक-परिचयः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

कारक ज्ञान :

क्रिया के सम्पादन में जिन शब्दों का प्रयोग होता है वे कारक कहलाते हैं। “क्रिया जनकं” अथवा क्रियां करोति इति कारकम्। इसी प्रकार ‘क्रियान्वयि कारकम्’ अर्थात् क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो उसे कारक कहते हैं। जिसका क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं हो वे कारक नहीं माने जाते। संस्कृत में कारक छः हैं कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण। इन छ: कारकों का क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध रहता है जैसे-‘राजा ने हरिद्वार’ में यश पाने के लिए अपने हाथ से रुपये ब्राह्मणों को दान दिए। इस वाक्य में दान क्रिया को सम्पादन करने में जिन शब्दों का प्रयोग हुआ है वे सभी कारक हैं।

1. यहाँ दान (क्रिया) करने वाला राजा है – अतः राजा कारक हुआ।
2. दान का स्थान हरिद्वार है – अतः हरिद्वार कारक हुआ।
3. दान लेने वाला ब्राह्मण है – अतः ब्राह्मण कारक हुआ।
4. क्रिया हाथ से हुई – अतः हाथ कारक हुआ
5. रुपए दिए गए – अतः रुपए कारक हुआ।
6. दान का प्रयोजन यश प्राप्ति है – अत: यश कारक हुआ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

इस प्रकार क्रिया को पूरा करने में छ: सम्बन्ध स्थापित होते हैं जिन्हें कारक कहा जाता है और उन्हीं कारकों के चिहनों (प्रत्यय) को विभक्ति कहते हैं। जैसे –

  1. कर्ता कारक – प्रथमा विभक्ति-ने अर्थ में।
  2. कर्म कारक – द्वितीया विभक्ति-को अर्थ में।
  3. करण कारक – तृतीया विभक्ति-से, के, द्वारा अर्थ में। (with)
  4. सम्प्रदान कारक – चतुर्थी विभक्ति-के, लिए अर्थ में।
  5. अपादान कारक – पंचमी विभक्ति-से (अलग होना अर्थ में) (From)
  6. अधिकरण – सप्तमी विभक्ति में, पर, अर्थ में।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिसका क्रिया के निर्माण में कोई सम्बन्ध नहीं है, वह कारक नहीं होता।

उपर्युक्त सूची में सम्बन्ध कारक अर्थात् षष्ठी विभक्ति को कारक नहीं माना गया है क्योंकि उसका क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता। जैसे-‘राज्ञः पुरुषः गच्छति।’ इस वाक्य में राजा का जाना क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है। राजा के होने या न होने से क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यहाँ ‘राजा’ सम्बन्ध कारक नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी षष्ठी को कारक नहीं माना जाता है। परन्तु, सम्बन्ध अर्थ को बताने वाली षष्ठी विभक्ति का, के, की, के अतिरिक्त कुछ विशेष अर्थों (संख्या आदि) में भी प्रयुक्त होती है। अतः उसे दिखाने के लिए षष्ठी विभक्ति का भी कारक प्रकरण में विवेचन किया जाता है।

कारक और उपपद विभक्ति में भेद इस प्रकार जिस शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है उसे कारक विभक्ति कहते हैं और क्रिया से भिन्न नमः, स्वस्ति, सह, विना इत्यादि कुछ अव्यय शब्दों एवं पद विशेष के योग में जो विभक्ति होती है उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे-‘रामः पुस्तकं पठति’ कारक विभक्ति है और ‘सीता रामेण सह गच्छति’ में ‘रामेण’ उपपद विभक्ति है क्योंकि रामेण में ततीया गमन क्रिया के कारण नहीं हई किन्त ‘सह’ के कारण हई है।

जहाँ कारक विभक्ति और उपपद विभक्ति दोनों की उपस्थिति हो वहाँ कारक विभक्ति ही होती है। जैसे ‘देवं नमस्करोति’ में नम: के योग में चतुर्थी उपपद विभक्ति भी प्रयुक्त है और नमस्करण क्रिया के योग में द्वितीया कारक विभक्ति भी प्रयुक्त है। किन्तु चतुर्थी के स्थान पर नियमानुसार द्वितीया ही होगी।

प्रथमा विभक्ति :

सूत्र-प्रादिपदिकार्थ-लिंग-परिमाण-वचनमात्रे प्रथमा

अर्थ – प्रातिपादिकार्थ (व्यक्ति और जाति-Crude form) मात्र में, लिंग (स्त्रीलिंग, पुंल्लिंग-नपुंसकलिंग) मात्र में, परिणाम (वचन) मात्र में, और वचन (संख्या) (एकत्व-द्वित्व-बहुत्व) मात्र में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण –
(क) प्रातिपदिकार्थ मात्र में उच्चैः, नीचैः, कृष्णः, श्रीः, ज्ञानम्।
(ख) लिंग मात्र में – तट: (पुंल्लिंग), तटी (स्त्रीलिंग), तटम् (नपुंसकलिंग)।
(ग) परिणाम मात्र में – द्रोणः ब्रीहिः। द्रोण-वजन जितना नपा-तुला हुआ धान। यहाँ द्रोण-किसी, आदि परिणाम का सूचक है।
(घ) वचन मात्र में – एक: (एकवचन), द्वौ (द्विवचन), बहवः (बहुवचन)।
सूचना – कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग वास्तव में प्रातिपदिकार्थ मात्र में होता है। जैसे-रामः पाठं पठति।
इसी प्रकार कर्तवाच्य के कर्म में भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग प्रातिपादक का अर्थमात्र कहने में होता है। जैसे-रामेण पाठः पठ्यते।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

प्रथमा विभक्ति-सम्बोधन

सूत्र-सम्बोधने च

अर्थ – सम्बोधन अर्थ में भी प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण – हे राम ! हे नदि ! हे ज्ञान ! यहां सम्बोधन अर्थ में ‘राम’ से प्रथमा विभक्ति हुई है।

द्वितीया विभक्ति-कर्मकारक

सूत्र-कर्तुरीप्सिततमं कर्म

अर्थ – किसी वाक्य में प्रयोग किए गए पदार्थों में जिसमें कर्ता सबसे अधिक चाहता है, उसे कर्म कहते हैं अर्थात् कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा विशेष रूप से जिसे प्राप्त करना चाहता है, उसे कर्म कहते हैं।

उदाहरण – देवदत्तः पयसा ओदनं खादति, देवदत्त दूध से भात खाता है, इस वाक्य में भात की तरह यद्यपि दूध भी कर्ता को प्रिय है, परन्तु कर्त्ता खादन क्रिया द्वारा भात (ओदन) को विशेष रूप में प्राप्त करना चाहता है, अत: ओदन अत्यन्त इष्ट होने से कर्म हुआ, दूध नहीं।

सूत्र-कर्मणि द्वितीया

अर्थ – अनुक्त कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। (कर्तृवाच्य में कर्म अनुक्त होता है, और कर्मवाच्य में उक्त।) कर्तृवाच्य में ही कर्म में द्वितीया होती है। उक्त (अभिहित) कर्म में तो प्रथमा होती है।

उदाहरण – कर्तृवाच्य कर्म (अनुक्त कर्म) में द्वितीया-हरिं भजति।
भजन क्रिया का कर्म हरि है अतः उसमें द्वितीया हुई है।
कर्मवाच्य कर्म में प्रथमा – हरिः सेव्यते, लक्ष्म्या हरिः सेवितः। यहाँ कर्म के अनुसार प्रत्यय (क्रिया) होने से कर्म उक्त है अत: यहाँ हरि में द्वितीया न होकर प्रथमा विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –

  1. छात्रः विद्यालयं गच्छति।
  2. क्षुधातः भोजनं भुंक्ते।
  3. परीक्षार्थी पुस्तकं पठति।
  4. अहं पत्रम् लिखामि।
  5. भक्तः भक्तिं लभते।
  6. पाचकः तण्डुलं पचति।
  7. भृत्यः भारं वहति।

नोट – उपर्युक्त उदाहरणों में स्थूलाक्षर कर्म हैं।

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सूत्र-अकथितं च

अर्थ – जिस कारक की अपादान, सम्प्रदान, करण या अधिकरण आदि विवक्षा न करना चाहे, उसका कर्म संज्ञा हो जाती है। भाव यह है कि अपादान आदि कारकों के स्थान पर उनकी विवक्षा न होने पर कर्मकारक का प्रयोग होता है। किन्तु यह नियम निम्नलिखित सोलह धातुओं या उनकी समानार्थक धातुओं में ही सम्भव है –

उदाहरण – क्रम से नीचे दिए जा रहे हैं –

1. गां दोग्धि पयः (गाय से दूध दुहता है) यहाँ गाय अपादान कारक (गोः) है, किन्तु उसकी विवक्षा न होने पर गाय में पंचमी न होकर द्वितीया हुई है।
2. बलिम् याचते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी मांगता है)-यहाँ बलि अपादान कारक (बलेः) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. तण्डुलान् ओदनं (क्षीरम्) पचति (चावलों से भात पकाता है)-यहाँ ताण्डुल करण कारक (ताण्डुलैः) है, उसकी अविवक्षा होने पर उसमें द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. गर्गान् शतं दण्डयति (गर्गों को सौ रुपए जुर्माना करता है)-यहाँ गर्गान् अपादान कारक (गर्गेभ्यः) है, अविवक्षा होने पर, कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
5. व्रजं अवरुणद्वि गाम् (व्रज (बाड़े) में गाय को रोकता है)-यहाँ व्रज अधिकरण कारक (व्रज) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई।
6. माणवकं (बालकम्) पन्थानं पृच्छति (लड़के से मार्ग पूछता है)-यहाँ ‘माणवक’ करण-कारक (माणवकेन) है, उसकी अविवक्षा हों पर कर्म संज्ञा होकर, द्वितीया विभक्ति हुई है।
7. वृक्षम् अवचिनोति (चिनोति) फलानि (वृक्ष से फलों को चुनता है)-यहाँ वृक्ष अपादान कारक (वृक्षात्) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हई है।
8. माणवकं (बालकम्) धर्मं ब्रूते (लड़के के लिए धर्म कहता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) है। उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
9. माणवकं धर्म शास्ति (लड़के के लिए धर्म की शिक्षा देता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) कारक है, उसके अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
10. शतं जयति देवदत्तम् (देवदत्त से सौ रुपए जीतता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
11. सुधां क्षीरनिधिं मनाति (अमृत के लिए समुद्र को मथता है)-यहाँ सुधा सम्प्रदान कारक (सुधायै) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
12. देवदत्तं शतं मुष्णाति (देवदत्त से सौ रुपए चुराता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
13. ग्रामं अजां नयति (गाँव में बकरी को ले जाता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
14. ग्रामं अजां हरति (गाँव में बकरी को हर कर ले जा रहा है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
15. ग्रामं अजां कर्षति (गाँव में बकरी को खींचता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
16. ग्रामं अजां वहति (ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

समानार्थक धातुओं के उदाहरण –

1. बलिं भिक्षते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी माँगता है) – यहाँ याच धातु की समानार्थक भिक्ष् धातु है। अतः बलि में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
2. माणवकं धर्मं भाषते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ब्रू धातु की समानार्थक भाष् धातु है। अत: माणवक में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. माणवकं धर्मं अभिधत्ते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ की समानार्थक अभि + धा धातु है। अतः माणवक में अपादान की विवक्षा न होने से द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. माणवकं धर्मं वक्ति – (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ धातु की समानार्थक ‘वच्’ धातु है। अत: माणवक में सम्प्रदान कारक की विवक्षा न होने के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है।

कर्ता कारक
सूत्र-स्वतन्त्रः कर्ता

अर्थ – क्रिया का प्रधान भूत कारक कर्ता कहलाता है अर्थात् जो क्रिया के सम्प्रदान में प्रधान होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता का अर्थ है करने वाला। वाक्य में क्रिया को करने में जो स्वतन्त्र होता है वह कर्ता होता है। कर्तवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण – देवदत्तः गच्छति, यहाँ जाता है, क्रिया का प्रधान भूत कारक देवदत्त है, अत: वह कर्ता है।

तृतीया विभक्ति-करणकारक

सूत्र-साधकतमं करणम्

अर्थ – अपने कार्य को सिद्धि में कर्ता जिसकी सबसे अधिक सहायता लेता है, उसे करण कारक कहते हैं।
उदाहरण – रामेण बाणेन हतो बालि:-(राम ने बाण से बालि को मारा)। इस वाक्य में हनन क्रिया में बाण अत्यन्त सहायक होने से करण कारक है।

सूत्र-कर्तृकरणयोस्तृतीया

अर्थ – अनुक्त कर्ता (कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता अनुक्त होता है) तथा करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण – ‘रामेण बाणेन हतो बालिः’ (राम ने बाण से बाली को मारा)-इस वाक्य में करण ‘बाण’ में तृतीया विभक्ति हुई है। कर्मवाच्य में होने से यहाँ कर्ता ‘राम’ अनुक्त है, अत: राम में भी तृतीया विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –
सः स्व हस्तेन लिखति
दना भोजनं कुरु।
अहं यानेन ग्रामम् अगच्छम्।
रामः बाणेन रावणं हतवान्।
नोट – मोटे काले पदों में करण (साधन) होने से तृतीया विभक्ति हुई है।

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चतुर्थी विभक्ति-सम्प्रदान कारक

सूत्र-कर्मणा यमभि प्रैतिस सम्प्रदानम्

अर्थ – दान के कर्म द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि दान क्रिया जिसके लिए होती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है)-यहाँ गोदान कर्म के द्वारा कर्त्ता विप्र से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, अतः ‘विप्र’ सम्प्रदान कारक है।

सूत्र-चतुर्थी सम्प्रदाने

अर्थ – सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है) यहाँ ‘विप्र’ के सम्प्रदान संज्ञक होने के कारण उसमें चतुर्थी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-माता पुत्राय भोजनं ददाति।
गुरुः शिष्येभ्यः विद्यां प्रयच्छति।
‘के लिये’ अर्थ में भी चतुर्थी का प्रयोग होता है, जैसे –

1. स पूजनाय मन्दिरं गच्छति।
2. बालकाः पठनाय अत्र आगच्छन्ति।
3. लेखनी लेखनाय भवति।

सूत्र-नमः स्वस्ति-स्वाहा-स्वधाऽलं-वषड्योगाच्च

अर्थ – नमः स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् (पर्याप्त, समर्थ) और वषट् (देवताओं को आहुति देना)-इन छ: अव्ययों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ‘अलम् यहाँ पर्याप्त, समर्थ अर्थ का सूचक है।’ अतः अलम् अर्थ वाचक-प्रभुः समर्थः, शक्तः-इन पदों का भी अलम् में ग्रहण होता है और उस समर्थ वाचक शब्दों के योग में भी चतुर्थी होती है।

उदाहरण –

  1. हरये नमः (हरि को नमस्कार) – यहाँ हरि में नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति हुई है।
  2. प्रजाभ्यः स्वस्ति (प्रजा का कल्याण हो) – यहाँ प्रजा में चतुर्थी है।
  3. अग्नये स्वाहा (अग्नि में आहुति है) – यहाँ अग्नि में चतुर्थी है।
  4. पितृभ्यः स्वधा (पितरों को आहुति है) – यहाँ पितृ में चतुर्थी है।
  5. दैत्येभ्यः हरि अलम् (हरि दैत्यों के लिए काफी है) – यहाँ दैत्य में चतुर्थी हुई है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

अन्य उदाहरण –

(i) दैत्येभ्यः हरिः प्रभुः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(i) दैत्येभ्यः हरिः समर्थः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(ii) दैत्येभ्यः हरिः शक्तः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)। यहाँ दैत्य में चतुर्थी विभक्ति हुई है। नोट-यहाँ अलम का अर्थ काफी है, निषेध नहीं।

5. इन्द्राय वषट् – (इन्द्र के लिए आहुति)-यहाँ इन्द्र में चतुर्थी हुई है। वषट् का प्रयोग वेद में ही मिलता है, लोक में नहीं।

पञ्चमी विभक्ति-अपादानकारक

सूत्र-ध्रुवमपायेऽपादानम्

अर्थ – अलग होने में स्थिर या अचल कारक को अपादान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि दो वस्तुओं का अलगाव हो, तब जो वस्तु अपने स्थान से अलग नहीं होती, उसी को अपादान कहते हैं।

उदाहरण –
(i) ग्रामात् आयाति (गाँव से वह आता है) – यहाँ गाँव अपने ही स्थान पर स्थिर रहता है। अतः वह अपादान कारक है।
(ii) धावतः अश्वात् पतति-(दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है)-यहाँ पतन क्रिया में अश्व स्थिर है अतः अपादान संज्ञक है।

नोट – दौड़ता हुआ भी घोड़ा पतन क्रिया स्थिर में रहता है अर्थात् सवार गिरता है घोड़ा नहीं, अतः अश्व के अपादान कारक बनने में कोई बाधा नहीं।

सूत्र-अपादाने पंचमी

अर्थ-अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।
उदाहरण –

1. ग्रामात् आयाति (गाँव से आता है) – यहाँ ग्राम में अपादान संज्ञक होने से पंचमी विभक्ति हुई है।
2. धावतः अश्वात् पतति (दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है) – यहाँ अश्व में अपादान संज्ञा होने से पंचमी विभक्ति हुई है। धावतः अश्व का विशेषण है, अतः उसमें भी पंचमी हुई है।
3. वृक्षात् पत्रं पतति (वृक्ष से पत्ता गिरता है) – यहाँ वृक्ष में अपादान होने से पंचमी विभक्ति हुई है।

षष्ठी विभक्ति

सूत्र-षष्ठी शेषे

अर्थ – प्रतिपादिकार्थ, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण इन सम्बन्धों को छोड़ कर शेष-अर्थात् स्वामी-सेवक, जन्य-जनक तथा कार्य-कारण आदि अन्य सम्बन्धों में षष्ठी विभक्ति होती है।

इसके अतिरिक्त कर्म, करण आदि कारकों की सम्बन्ध क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध) मात्र विवक्षा की षष्ठी विभक्ति होती है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

उदाहरण –

1. राज्ञः पुरुषः (राजा का आदमी)। यहाँ स्वामी-सेवक सम्बन्ध होने से राजन् में षष्ठी विभक्ति हुई है।
2. बालकस्य माता (बालक की मां)-यहाँ जन्य-जनक भाव होने से बालक में षष्ठी हुई है।
3. मृत्तिकायाः घटः (मिट्टी का घड़ा)-यहाँ कार्य-कारण सम्बन्ध होने से मृत्तिका में षष्ठी विभक्ति हुई है।
4. सतां गतम् (सत्पुरुष सम्बन्धि गमन)-यहाँ कर्ता ‘सत्’ की सम्बन्ध मात्र विवक्षा होने से उसमें षष्ठी विभक्ति हुई है।
5. सर्पिषो जानीते-(घी के सम्बन्ध से प्रवृत्त होता है) (सर्पिष: सम्बन्धित उपायेन प्रवर्तते) यहाँ भी सम्बन्ध मात्र की विवक्षा में करण कारण ‘सर्पिष्’ में षष्ठी विभक्ति हुई है।
6. मातुः स्मरति (माता सम्बन्धी स्मरण करता है)-हाँ सम्बन्ध को विवक्षा में कर्म कारक ‘मातृ’ में षष्ठी विभक्ति है।
7. एधः उदकस्य उपस्कुरुते (लकड़ी जल-सम्बन्धी गुणों को धारण करती है)-यहाँ कर्म कारक “दक” में सम्बन्ध विवक्षा के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
8. भजे शंभोश्चरणयोः (शम्भू के चरणों के विषय (सम्बन्ध में) भेजता हूँ)-यहाँ सम्बन्ध मात्र की विवक्षा होने से कर्मकारक चरण में षष्ठी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-सतां चरितम् (सज्जनों का चरित्र)।

रामस्य भ्राता लक्ष्मणः अस्ति।
यहां रेखांकित में षष्ठी सम्बन्ध के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
टिप्पणी (i) शेष – शेष का अर्थ है कर्म करण आदि की अविवक्षा।
(ii) सम्बन्ध–सम्बन्ध का अर्थ है क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध)।

सप्तमी विभक्ति-अधिकरण कारक

सूत्र-आधारोऽधिकरणम्

अर्थ – कर्ता और कर्म के द्वारा किसी भी क्रिया के आधार कारक को अधिकरण कहते हैं। जिसमें क्रिया रहती है, उसे आधार कहते हैं। यह आधार तीन प्रकार का होता है –
औपश्लेषिक, वैषयिक तथा अभिव्यापक।

उदाहरण –

1. औपश्लेषिक आधार – जिसके साथ आधेय का भौतिक संयोग (संश्लेष) होता है, उसे औपश्लेषिक आधार कहते हैं।
जैसे – (i) कटे आस्ते – (चटाई पर है) – यहाँ चटाई (कट) से बैठने वाले का प्रत्यक्ष भौतिक मेल है। अतः ‘कट’ औपश्लेषिक आधार है।
(ii) स्थाल्यां पचति – (पतीली में पकाता है) – यहाँ ओदन कर्म (आधेय) का पतीली (स्थली) से भौतिक संयोग है, अतः स्थाली औपश्लेषिक आधार है।

2. वैषयिक आधार – जिसके साथ आधेय का बौद्धिक संयोग (सम्बन्ध) रहता है, वह वैषयिक आधार कहलाता है।
जैसे – मोक्षे इच्छा अस्ति – मोक्ष के विषय में इच्छा है) – यहाँ मोक्ष वैषयिक आधार है, क्योंकि यह इच्छा का विषय है। जैसे –

3. अभिव्यापक आधार – जिसके साथ आधेय का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध हो उसे अभिव्यापक आधार कहते हैं। जैसे
(i) तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ ‘तिल’ अभिव्यापक आधार है, क्योंकि उसके सभी अवयवों में तेल व्याप्त है उसके किसी एक हिस्से में नहीं।
(ii) सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (विराजते) – (सब में आत्मा है)-यहाँ ‘सर्व अभिव्यापक आधार क्योंकि आत्मा का सब में सर्वात्मना संयोग है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

सूत्र-सप्तम्यधिकरणे च

अर्थ – अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है और दूर तथा अन्तिक (पास) अर्थवाचक शब्दों से भी सप्तमी विभक्ति होती है।

उदाहरण –

  1. कटे अस्ति (चटाई पर है) – यहाँ अधिकरण कट में सप्तमी है।
  2. स्थाल्यां पचति (पतीली में पकाता है) – यहाँ अधिकरण स्थाली में सप्तमी है।
  3. मोक्षे इच्छा अस्ति (मोक्ष में इच्छा है) – यहाँ अधिकरण मोक्ष में सप्तमी हुई है।
  4. तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ अधिकरण तिल में सप्तमी है।
  5. सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (सब में आत्मा है) – यहाँ अधिकरण ‘सर्व’ में सप्तमी विभक्ति है।
  6. वनस्य दूरे (वन से दूर) – यहाँ दूर अर्थवाची दूर शब्द में सप्तमी विभक्ति है।
  7. वनस्य अन्तिके (वन के पास) – यहाँ पास अर्थवाची अन्तिक शब्द में सप्तमी विभक्ति हुई है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः Read More »