Author name: Prasanna

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.3

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Exercise 8.3

प्रश्न 1.
कौन-सी संख्या बड़ी है? कारण भी लिखिए :
(a) 0.3 या 0.4
(b) 0.07 या 0.02
(c) 3 या 0.8
(d) 0.5 या 0.05
(e) 1.23 या 1.2
(f) 0.099 या 0.19
(g) 1.5 या 1.50
(h) 1.431 या 1.490
(i) 3.3 या 3.300
(j) 5.64 या 5.603
(k) पाँच ऐसे ही उदाहरण लिखकर उनमें से बड़ी संख्या ज्ञात कीजिए।
हल :
(a) 0.3 = \(\frac{3}{10}\) और 0.4 = \(\frac{4}{10}\)
0.3 का दसवाँ हिस्सा 0.4 से छोटा है।
∴ 0.3 < 0.4 या 0.4 > 0.3 उत्तर

(b) 0.07 = \(\frac{0}{10}\) + \(\frac{7}{100}\) और 0.02 = \(\frac{0}{10}\) + \(\frac{2}{100}\)
0.07 का सौवाँ हिस्सा 0.02 से बड़ा है।
0.07 > 0.02 उत्तर

(c) 3 = 3 + \(\frac{0}{10}\) और 0.8 = 0 + \(\frac{8}{10}\)
3 का पूर्ण हिस्सा 0.8 से बड़ा है।
3 > 0.8 उत्तर

(d) 0.5 = 0 + \(\frac{5}{10}+\frac{0}{100}\)
और 0.05 = 0 + \(\frac{0}{10}+\frac{5}{100}\)
0.5 का दसवाँ हिस्सा 0.05 से बड़ा है।
0.5 > 0.05 उत्तर

(e) 1.23 = 1 + \(\frac{2}{10}+\frac{3}{100}\)
और 1.2 = 1 + \(\frac{2}{10}+\frac{0}{100}\)
दोनों संख्याओं में दशांश स्थान तक अंक समान हैं। 1.23 का शतांश भाग 1.2 से बड़ा है।
1.23 > 1.2 उत्तर

(f) 0.099 = \(\frac{0}{10}+\frac{9}{100}+\frac{9}{1000}\)
और 0.19 = \(\frac{1}{10}+\frac{9}{100}+\frac{0}{1000}\)
इस स्थिति में, 0.099 का दसवाँ हिस्सा 0.19 से कम है।
0.099 < 0.19
अर्थात 0.19 > 0.099 उत्तर

(g) 1.5 = 1 + \(\frac{5}{10}+\frac{0}{100}\)
और 1.50 = 1 + \(\frac{5}{10}+\frac{0}{100}\)
दोनों संख्याओं का हिस्सा पूर्णतः समान है।
अतः 1.5 और 1.50 एक समान हैं। उत्तर

(h) 1.431 = 1 + \(\frac{4}{10}+\frac{3}{100}+\frac{1}{1000}\)
और 1.490 = 1 + \(\frac{4}{10}+\frac{9}{100}+\frac{0}{1000}\)
दोनों संख्याओं के दसवें स्थान तक समान भाग हैं। 1.431 का सौवाँ भाग 1.490 से छोटा है।
1.431 < 1.490
अर्थात् 1.490 > 1.431 उत्तर

(i) 3.3 = 3 + \(\frac{3}{10}+\frac{0}{100}+\frac{0}{1000}\)
और 3.300 = 3 + \(\frac{3}{10}+\frac{0}{100}+\frac{0}{1000}\)
दोनों संख्याओं का हिस्सा पूर्णतः समान है।
अत: 3.3 और 3.300 एक समान हैं। उत्तर

(j) 5.64 = 5 + \(\frac{6}{10}+\frac{4}{100}+\frac{0}{1000}\)
और 5.603 = 5 + \(\frac{6}{10}+\frac{0}{100}+\frac{3}{1000}\)
दोनों संख्याओं में दशांश स्थान तक अंक समान हैं।
5.64 का शतांश भाग 5.603 से बड़ा है।
5.64 > 5.603 उत्तर

(k) पाँच और उदाहरण :
(i) 0.2 या 0.8
(ii) 3.0 या 0.7
(iii) 0.042 या 0.23
(iv) 2.012 या 2.99
(v) 0.055 या 0.15
हल :
(i) 0.2 = 0 + \(\frac{2}{10\) और 0.8 = 0 + \(\frac{8}{10}\)
0.2 का दसवाँ हिस्सा 0.8 से छोटा है।
∴ 0.2 < 0.8 अर्थात 0.8 > 0.2 उत्तर

(ii) 3.0 = 3 + \(\frac{0}{10}\) और 0.7 = 0 + \(\frac{7}{10}\)
3 का पूर्ण भाग 0.7 से बड़ा है।
3 > 0.7 उत्तर

(iii) 0.042 = 0 + \(\frac{0}{10}+\frac{4}{100}+\frac{2}{1000}\)
और 0.23 = 0 + \(\frac{2}{10}+\frac{3}{100}+\frac{0}{1000}\)
0.042 का दसवाँ भाग 0.23 से छोटा है।
∴ 0.042 < 0.23 अर्थात् 0.23 > 0.042 उत्तर

(iv) 2.012 = 2 + \(\frac{0}{10}+\frac{1}{100}+\frac{2}{1000}\)
और 2.99 = 2 + \(\frac{9}{10}+\frac{9}{100}+\frac{0}{1000}\)
2.99 का दसवाँ भाग 2.012 से बड़ा है।
∴ 2.99 > 2.012 या 2.012 < 2.99 उत्तर

(v) 0.055 = 0 + \(\frac{0}{10}+\frac{5}{100}+\frac{5}{1000}\)
और 0.15 = 0 + \(\frac{1}{10}+\frac{5}{100}+\frac{0}{1000}\)
0.055 का दसवाँ भाग 0.15 से छोटा है।
∴ 0.055 < 0.15 या 0.15 > 0.055 उत्तर

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

HBSE 12th Class History विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
निःसंदेह नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचार उपनिषदों के दार्शनिकों से भिन्न थे। उपनिषदों में आत्मिक ज्ञान पर बल दिया गया था, जिसका अर्थ था आत्मा और परमात्मा के संबंधों को जानना। परमात्मा ब्रह्म है, जिससे संपूर्ण जगत पैदा हुआ है। जीवात्मा अमर है और ब्रह्म का ही अंश है। जीवात्मा ब्रह्म में लीन होकर मुक्ति प्राप्त करती है। इसके लिए सद्कर्मों और आत्मिक ज्ञान की जरूरत है। उपनिषदों के इस ज्ञान से नियतिवादियों और भौतिकवादियों के विचार भिन्न थे जो निम्नलिखित तर्कों से स्पष्ट हैं

  • नियतिवादियों का मानना था कि प्राणी नियति यानी भाग्य के अधीन है। मनुष्य उसी के अनुरूप सुख-दुख भोगता है। सद्कर्मों अथवा आत्मज्ञान से नियति नहीं बदलती।
  • भौतिकवादियों का मानना था कि मानव का शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु से बना है। आत्मा और परमात्मा कोरी कल्पना है। मृत्यु के पश्चात् शरीर में कुछ शेष नहीं बचता। अतः भौतिकवादियों के विचार भी आत्मा-परमात्मा या अन्य विचार भी उपनिषदों के दार्शनिकों से बिल्कुल भिन्न थे।

प्रश्न 2.
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जैन धर्म की मुख्य शिक्षाएँ इस प्रकार हैं
1. अहिंसा-जैन धर्म की शिक्षाओं का केंद्र-बिंदु अहिंसा का सिद्धांत है। जैन दर्शन के अनुसार संपूर्ण विश्व प्राणवान है अर्थात् पेड़-पौधे, मनुष्य, पशु-पक्षियों सहित पत्थर और पहाड़ों में भी जीवन है। अतः किसी भी प्राणी या निर्जीव वस्तु को क्षति न पहुँचाई जाए। यही अहिंसा है। इसे मन, वचन और कर्म तीनों रूपों में पालन करने पर जोर दिया गया।

2. तीन आदर्श वाक्य-जैन शिक्षाओं में तीन आदर्श वाक्य हैं सत्य विश्वास, सत्य ज्ञान तथा सत्य चरित्र। इन तीनों वाक्यों को त्रिरत्न कहा गया है।

3. पाँच महाव्रत-जैन शिक्षाओं में मनुष्य को पापों से बचाने के लिए पाँच महाव्रतों के पालन पर जोर दिया गया है। ये ब्रत हैं। अहिंसा का पालन, चोरी न करना, झूठ न बोलना, धन संग्रह न करना तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना।

4. कठोर तपस्या-जैन धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए और पिछले जन्मों के बरे कर्मों के फल को समाप्त करने के लिए कठोर तपस्या पर बल दिया गया है।

प्रश्न 3.
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भोपाल की दो शासिकाओं शाहजहाँ बेगम और सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप को बनाए रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने इसके संरक्षण के लिए धन भी दिया और इसके पुरावशेषों को भी संरक्षित किया। 1818 में इस स्तूप की खोज के बाद बहुत-से यूरोपियों का इसके पुरावशेषों के प्रति विशेष आकर्षण था। फ्रांसीसी और अंग्रेज़ अलंकृत पत्थरों को ले जाकर अपने-अपने देश के संग्रहालयों में प्रदर्शित करना चाहते थे।

फ्रांसीसी विशेषतया पूर्वी तोरणद्वार, जो सबसे अच्छी स्थिति में था, को पेरिस ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने शाहजहाँ बेगम से इजाजत माँगी। ऐसा प्रयत्न अंग्रेज़ों ने भी किया। बेगम ने सूझ-बूझ से काम लिया। वह इस मूल कृति को भोपाल राज्य में अपनी जगह पर ही संरक्षित रखना चाहती थी। सौभाग्यवश कुछ पुरातत्ववेत्ताओं ने भी इसका समर्थन कर दिया। इससे यह स्तूप अपनी जगह सुरक्षित रह पाया। भोपाल की बेगमों ने स्तूप के रख-रखाव के लिए धन भी उपलब्ध करवाया। सुल्तानजहाँ बेगम ने स्तूप स्थल के पास एक संग्रहालय एवं अतिथिशाला भी बनवाई।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 4.
निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और उत्तर दीजिए महाराज हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।

(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?
(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं?
(ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?
उत्तर:
(क) धनवती ने तत्कालीन कुषाण शासक हुविष्क के शासनकाल के तैंतीसवें वर्ष के गर्म मौसम के प्रथम महीने के आठवें दिन का उल्लेख करके अपने अभिलेख की तिथि को निश्चित किया।

(ख) उन्होंने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था प्रकट करने और स्वयं को सच्ची भिक्खुनी सिद्ध करने के लिए मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति की स्थापना की।

(ग) वह अभिलेख में अपनी मौसी (माता की बहन) बुद्धमिता तथा उसके गुरु बल और अपने माता-पिता का नाम लेती है।

(घ) धनवती त्रिपिटक (सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्म पिटक) बौद्ध ग्रंथों को जानती थी।

(ङ) उन्होंने यह पाठ बल की शिष्या बुद्धमिता से सीखे थे। प्रश्न 5. आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए महात्मा बुद्ध ने बौद्ध संघ की स्थापना की। बौद्ध संघ महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित एक धार्मिक व्यवस्था भी थी। अतः इसमें स्त्री-पुरुष निम्नलिखित कारणों से शामिल हुए

(1) बौद्ध संघ की व्यवस्था समानता पर आधारित थी। इसमें किसी वर्ण, जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता था। संघ का संगठन गणतंत्रात्मक प्रणाली पर आधारित था।

(2) शुरू में संघ में स्त्रियों को शामिल नहीं किया गया था परंतु बाद में स्त्रियों को भी संघ की सदस्या बनाया गया। वे भी बौद्ध धर्म की ज्ञाता बनीं।

(3) बौद्ध धर्म के शिक्षक-शिक्षिकाएँ बनने के लिए स्त्री-पुरुष संघ के सदस्य बनते थे। वे बौद्ध धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन करते थे ताकि वे संघ की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर सकें।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है ?
उत्तर:
साहित्यिक ग्रंथों के व्यापक अध्ययन से प्राचीन मूर्तिकला के अर्थ को समझा जा सकता है। यह बात साँची स्तूप की मूर्तिकला के संदर्भ में भी लागू होती है। इसलिए इतिहासकार साँची की मूर्ति गाथाओं को समझने के लिए बौद्ध साहित्यिक परंपरा के ग्रंथों का गहन अध्ययन करते हैं। बहुत बार तो साहित्यिक गाथाएँ ही पत्थर में मूर्तिकार द्वारा उभारी गई होती हैं। साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य काफी हद तक सहायक है; जैसे कि नीचे दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट होता है

1. वेसान्तर जातक की कथा साँची के उत्तरी तोरणद्वार के एक हिस्से में एक मूर्तिकला अंश को देखने से लगता है कि उसमें एक ग्रामीण दृश्य चित्रित किया गया है। परंतु यह दृश्य वेसान्तर जातक की कथा से है, जिसमें एक राजकुमार अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को सौंपकर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वनों में रहने के लिए जा रहा है।
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अतः स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति को जातक कथाओं का ज्ञान नहीं होगा वह मूर्तिकला के इस अंश को नहीं जान पाएगा।

2. प्रतीकों की व्याख्या-मूर्तिकला में प्रतीकों को समझना और भी कठिन होता है। इन्हें तो बौद्ध परंपरा के ग्रंथों को पढ़े बिना समझा ही नहीं जा सकता। साँची में कुछ एक प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बौद्ध वृक्ष के नीचे ज्ञान-प्राप्ति वाली घटना को प्रतीकों के रूप में दर्शाने का प्रयत्न किया है। बहुत-से प्रतीकों में वृक्ष दिखाया गया है, लेकिन कलाकार का तात्पर्य संभवतया इनमें एक पेड़ दिखाना नहीं रहा, बल्कि पेड़ बुद्ध के जीवन की एक निर्णायक घटना का प्रतीक था।

इसी तरह साँची की एक और मूर्ति में एक वृक्ष के चारों ओर बौद्ध भक्तों को दिखाया गया है। परंतु बीच में जिसकी वे पूजा कर रहे हैं वहाँ महात्मा बुद्ध का मानव रूप में चित्र नहीं है, बल्कि एक खाली स्थान दिखाया गया है यही रिक्त स्थान बुद्ध की ध्यान की दशा का प्रतीक बन गया।

अतः स्पष्ट है कि मूर्तिकला में प्रतीकों अथवा चिह्नों को समझने के लिए बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन होना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान रहे कि केवल बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन से ही साँची की सभी मूर्तियों को नहीं समझा जा सकता। इसके लिए तत्कालीन अन्य धार्मिक परंपराओं और स्थानीय परंपराओं का ज्ञान होना भी जरूरी है, क्योंकि इसमें लोक परंपराओं का समावेश भी हुआ है। उत्कीर्णित सर्प, बहुत-से जानवरों की मूर्तियाँ तथा शालभंजिका की मूर्तियाँ इत्यादि इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 7.
चित्र I और II में साँची से लिए गए दो परिदृश्य दिए गए हैं। आपको इनमें क्या नज़र आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को पहचान कर यह बताइए कि इनमें से कौन-से ग्रामीण और कौन-से शहरी परिदृश्य हैं?
उत्तर:
साँची के स्तूप में मूर्तिकला के उल्लेखनीय नमूने देखने को मिलते हैं। इनमें जातक कथाओं को उकेरा गया है, साथ ही बौद्ध परंपरा के प्रतीकों को भी उभारा गया है, यहाँ तक कि अन्य स्थानीय परंपराओं को शामिल किया गया है।
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चित्र I और II में भी बौद्ध परंपरा से जुड़ी धारणाओं को उकेरा गया है। चित्र को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसमें अनेक पेड़-पौधे और जानवरों को दिखाया गया है। दृश्य ग्रामीण परिवेश का लगता है। लेकिन बौद्ध धर्म की दया, प्रेम और अहिंसा की धारणाएँ इसमें स्पष्ट झलकती हैं। चित्र के ऊपरी भाग में जानवर निश्चिंत भाव से सुरक्षित दिखाई दे रहे हैं, जबकि निचले भाग में कई जानवरों के कटे हुए सिर और धनुष-बाण लिए हुए मनुष्यों के चित्र हैं, जो बलि प्रथा और शिकारी-जीवन, हिंसा को प्रकट करते हैं।

चित्र-II बिल्कुल अलग परिदृश्य को व्यक्त कर रहा है। संभवतः यह कोई बौद्ध संघ का भवन है जिसमें बौद्ध भिक्षु ध्यान और प्रवचन जैसे कार्यों में व्यस्त हैं। चित्र में उकेरा गया भव्य सभाकक्ष और उसके स्तंभों में भी बौद्ध धर्म के प्रतीक दिखाई दे रहे हैं। स्तंभों के ऊपर हाथी और दूसरे जानवर बने हैं। ध्यान रहे इनसे जुड़े साहित्य का यदि हम अध्ययन करें तो संभवतः इन चित्रों का और भी गहन अर्थ निकालने में सक्षम हो पाएँगे।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 8.
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
लगभग 600 ईसा पूर्व से 600 ई० के मध्य वैष्णववाद और शैववाद का विकास हुआ। इसे हिंदू धर्म या पौराणिक हिंदू धर्म भी कहा जाता है। इन दोनों नवीन विचारधाराओं की अभिव्यक्ति मूर्तिकला और वास्तुकला के माध्यम से भी हुई। इस संदर्भ में मूर्तिकला और वास्तुकला के विकास का परिचय निम्नलिखित है

1. मूर्तिकला–बौद्ध धर्म की महायान शाखा की भाँति पौराणिक हिंदू धर्म में भी मूर्ति-पूजा का प्रचलन शुरू हुआ। भगवान् विष्णु व उनके अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया। अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियाँ बनाई गईं। प्रायः भगवान् शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन कई बार उन्हें मानव रूप में भी दिखाया गया। विष्णु की प्रसिद्ध प्रति देवगढ़ दशावतार मंदिर में मिली है। इसमें उन्हें शेषनाग की शय्या पर लेटे हुए दिखाया गया है।

वे कुण्डल, मुकुट व माला आदि पहने हैं। इसके एक ओर शिव तथा दूसरी ओर इन्द्र की प्रतिमाएँ हैं। नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा विराजमान हैं। लक्ष्मी विष्णु के चरण दबा रही हैं। वराह पृथ्वी को प्रलय से बचाने के लिए दाँतों पर उठाए हुए हैं। पृथ्वी को भी नारी रूप में दिखाया गया है। गुप्तकालीन शिव मंदिरों में एक-मुखी और चतुर्मुखी शिवलिंग मिले हैं।

2. वास्तुकला- वैष्णववाद और शैववाद के अंतर्गत मंदिर वास्तुकला का विकास हुआ। संक्षेप में, शुरुआती मंदिरों के स्थापत्य (वास्तुकला) की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(i) मंदिरों का प्रारंभ गर्भ-गृह (देव मूर्ति का स्थान) के साथ हुआ। ये चौकोर कमरे थे। इनमें एक दरवाजा होता था, जिससे उपासक पूजा के लिए भीतर जाते थे। गर्भ-गृह के द्वार अलंकृत थे।

(ii) धीरे-धीरे गर्भ-गृह के ऊपर एक ऊँचा ढांचा बनाया जाने लगा, जिसे शिखर कहा जाता था।
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 Img 6

(iii) शुरुआती मंदिर ईंटों से बनाए गए साधारण भवन हैं, लेकिन गुप्तकाल तक आते-आते स्मारकीय शैली का विचार उत्पन्न हो चुका था, जो आगामी शताब्दियों में भव्य पाषाण मंदिरों के रूप में अभिव्यक्त हुआ। इनमें ऊँची दीवारें, तोरण, तोरणद्वार और विशाल सभास्थल बनाए गए, यहाँ तक कि जल आपूर्ति का प्रबंध भी ‘किया गया।

(iv) पूरी एक चट्टान को तराशकर मूर्तियों से अलंकृत पूजा-स्थल बनाने की शैली भी विकसित हुई। उदयगिरि का विष्णु मंदिर इसी शैली से बनाया गया। इस संदर्भ में महाबलीपुरम् (महामल्लपुरम्) के मंदिर भी विशेष उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 9.
स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्तूप बौद्ध धर्म के अनुयायियों के पूजनीय स्थल हैं। यह क्यों और कैसे बनाए गए, इसका वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है

1. स्तूप क्यों बनाए गए?-स्तूप का शाब्दिक अर्थ टीला है। ऐसे टीले, जिनमें महात्मा बुद्ध के अवशेषों (जैसे उनकी अस्थियाँ, दाँत, नाखून इत्यादि) या उनके द्वारा प्रयोग हुए सामान को गाड़ दिया गया था, बौद्ध स्तूप कहलाए। ये बौद्धों के लिए पवित्र स्थल थे।

यह संभव है कि स्तूप बनाने की परंपरा बौद्धों से पहले रही हो, फिर भी यह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। इसका कारण वे पवित्र अवशेष थे जो स्तूपों में संजोकर रखे गए थे। इन्हीं के कारण वे पूजनीय स्थल बन गए। महात्मा बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद ने बार-बार आग्रह करके बुद्ध से उनके अवशेषों को संजोकर रखने की अनुमति ले ली थी। बाद में सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों के हिस्से करके उन पर मुख्य शहर में स्तूप बनाने का आदेश दिया। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक सारनाथ, साँची, भरहुत, बौद्ध गया इत्यादि स्थानों पर बड़े-बड़े स्तूप बनाए जा चुके थे। अशोक व कई अन्य शासकों के अतिरिक्त धनी व्यापारियों, शिल्पकारों, श्रेणियों व बौद्ध भिक्षुओं व भिक्षुणियों ने भी स्तूप बनाने के लिए धन दिया।

2. स्तूप कैसे बनाए गए?-प्रारंभिक स्तूप साधारण थे, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इनकी संरचना जटिल होती गई। इनकी शुरुआत कटोरेनुमा मिट्टी के टीले से हुई। बाद में इस टीले को अंड (Anda) के नाम से पुकारा जाने लगा। अंड के ऊपर बने छज्जे जैसा ढांचा ईश्वर निवास का प्रतीक था। इसे हर्मिका कहा गया। इसी में बौद्ध अथवा अन्य बोधिसत्वों के अवशेष रखे जाते थे। हर्मिका के बीच में एक लकड़ी का मस्तूल लगा होता था। इस पर एक छतरी बनी होती थी। अंड (टीले) के चारों ओर एक वेदिका होती थी। यह पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से पृथक् रखने का प्रतीक थी।

परियोजना कार्य 

(क) इस अध्याय में चर्चित धार्मिक परंपराओं में से क्या कोई परंपरा आपके अड़ोस-पड़ोस में मानी जाती है? आज किन धार्मिक ग्रंथों का प्रयोग किया जाता है? उन्हें कैसे संरक्षित और संप्रेषित किया जाता है? क्या पूजा में मूर्तियों का प्रयोग होता है? यदि हाँ, तो क्या ये मूर्तियाँ इस अध्याय में लिखी गई मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं या अलग हैं? धार्मिक कृत्यों के लिए प्रयुक्त इमारतों की तुलना प्रारंभिक स्तूपों और मंदिरों से कीजिए।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

(ख) इस अध्याय में वर्णित धार्मिक परंपराओं से जुड़े अलग-अलग काल और इलाकों की कम से कम पाँच मूर्तियों और चित्रों की तस्वीरें इकट्ठी कीजिए। उनके शीर्षक हटाकर प्रत्येक तस्वीर दो लोगों को दिखाइए और उन्हें इसके बारे में बताने को कहिए। उनके वर्णनों की तुलना करते हुए अपनी खोज की रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
परियोजना (क) के लिए संकेत :

  • पौराणिक हिंदू धर्म (वैष्णववाद, शैववाद) की परंपरा वर्तमान में हिंदू धर्म के नाम से सर्वाधिक प्रचलन में है-इसमें मूर्ति पूजा है। इन मूर्तियों की तुलना आप अध्याय में वर्णित मूर्तियों से कर सकते हैं। मंदिरों की वास्तुकला की तुलना कर सकते हैं।
  • जैन मंदिर भी प्रायः मिल जाते हैं। इनकी मूर्तियों और वास्तुकला की तुलना की जा सकती है।
  • कुरुक्षेत्र में प्राचीन बौद्ध स्तूप के अवशेष भी हैं।

परियोजना (ख) के लिए संकेत :
इसके लिए विद्यार्थी स्तूप, साँची व अमरावती से प्राप्त मूर्तियों के चित्रों तथा वैष्णववाद व शैववाद से जुड़े विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र ले सकते हैं। जैन धर्म से संबंधित चित्रों का उपयोग भी कर सकते हैं। इस संदर्भ में इंटरनेट से भी चित्र ‘डाऊनलोड’ करके उपयोग में लाए जा सकते हैं।

विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास HBSE 12th Class History Notes

→ श्रमण-शिक्षक और विचारक जो स्थान-स्थान पर घूमकर अपनी विचारधाराओं से लोगों को अवगत करवाते थे तथा तर्क-वितर्क करते थे।

→ कुटागारशालाएँ–’नुकीली छत वाली झोंपड़ी’, जहाँ घुमक्कड़ श्रमण आकर ठहरते थे और विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद करते थे।

→ स्तूप-ढेर या टीला जहाँ महात्मा बुद्ध या अन्य किसी पवित्र भिक्षु के अवशेष (दाँत, अस्थियाँ, नाखून) आदि रखे जाते थे।

→ संतचरित्र-किसी संत या धार्मिक नेता की जीवनी जिसमें उस संत की उपलब्धियों का गुणगान होता है।

→ चैत्य ऐसे टीले जहाँ शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष सुरक्षित रख दिए जाते थे।

→ थेरवाद-महायान परंपरा के लोग दूसरी बौद्ध परंपरा के लोगों को हीनयान के अनुयायी कहते थे, लेकिन ये लोग (हीनयान के अनुयायी) अपने आपको थेरवादी कहते थे। इसका मतलब है वे लोग जो पुराने, प्रतिष्ठित शिक्षकों (जिन्हें थेर कहते थे) के बनाए रास्ते पर चलने वाले हैं।

→ तीर्थंकर-जैन परंपरा के अनुसार ऐसे महापुरुष जो लोगों को संसार रूपी सागर से पार उतार सकें।

→ निर्ग्रन्थ-बिना ग्रन्थि के अर्थात् बंधन मुक्त। जैन परंपरा में जैन मुनि और संन्यासी को निर्ग्रन्थ कहा गया।

→ वैष्णव-विष्णु की उपासना करने वाले।

→ शैव-शिव के उपासक।

→ महाभिनिष्क्रिमण-महात्मा बुद्ध द्वारा गृह त्याग की घटना को बौद्ध मत में महाभिनिष्क्रिमण कहा गया।

→ महापरिनिर्वाण-महात्मा बुद्ध के देहावसान को बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण कहा गया।

→ उपसंपदा-बौद्ध संघ में प्रवेश करना।

→ बोधिसत्त बौद्ध धर्म के अनुयायी जो अपने सत्त कर्मों से पुण्य कमाते थे।

समकालीन बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में 60 से भी अधिक नए संप्रदाय उभरकर आए। इन संप्रदायों के संन्यासी घूम-घूमकर अपने विचारों का जन-समुदाय में प्रचार करते थे और साथ ही विरोधी मत वालों के साथ वाद-विवाद भी करते थे। उनके विचार मौखिक व लिखित परंपराओं में संगृहीत हुए। कलाकारों ने उन्हें अपनी कला-कृतियों में अभिव्यक्ति दी। इन संन्यासी मनीषियों में महावीर और महात्मा बुद्ध सबसे विख्यात हुए।

→ जैन और बौद्ध धर्मों का उदय उत्तर वैदिक काल (लगभग 1000 ई०पू० से 600 ई० तक) के दौरान विकसित हुई परिस्थितियों से हुआ। इस अवधि में आर्थिक स्तर पर कृषि की नई व्यवस्था विकसित हुई, सामाजिक विषमता में वृद्धि हुई। साथ ही धर्म में कई तरह की बुराइयाँ व दिखावा बढ़ चुका था। इस दौरान नए राजनीतिक परिवर्तन भी हुए। विशेषतः राजतन्त्र प्रणाली का विस्तार हुआ। सामूहिक तौर पर यही वह पृष्ठभूमि है, जिसने पूर्वोत्तर भारत में नए धार्मिक संप्रदायों को जन्म दिया।

→ उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में बलि व यज्ञादि कर्मकांडों के खिलाफ जबरदस्त प्रतिक्रिया शुरू हुई। विशेष तौर पर धर्म व दर्शन पर नए प्रश्न उठ रहे थे। उपनिषदों में नए सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया। इन सिद्धांतों में कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष थे। लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के बाद जीवन की संभावना तथा पुनर्जन्म के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे। परंतु उपनिषदों का गूढ़ ज्ञान सामान्य जनता की समझ से बाहर था।

→ इस वैदिक परंपरा को नकारने वाले दार्शनिक सत्य के स्वरूप पर बहस कर रहे थे। सत्य, अहिंसा, तपस्या, पुनर्जन्म, कर्मफल तथा आत्मा-परमात्मा इत्यादि विषयों पर वाद-विवाद और चर्चाएँ कर रहे थे। वे अपनी-अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत कर रहे थे। इनमें से यदि कोई अपने प्रतिद्वन्द्वी को अपना ज्ञान समझाने में सफल हो जाता था तो वह प्रतिद्वन्द्वी अपने अनुयायियों के साथ उसका शिष्य बन जाता था। इनमें से कई मनीषियों ने ब्राह्मणवादी समझ से अपनी अलग समझ प्रस्तुत की।

→ ‘जैन’ शब्द संस्कृत के ‘जिन्’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘विजेता’ अर्थात् वह व्यक्ति जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो। जैन परंपरा के अनुसार महावीर स्वामी से पहले 23 तीर्थंकर (आचाय) हो चुके थे और महावीर स्वामी 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ है ऐसा महापुरुष जो लोगों (स्त्री व पुरुष दोनों) को संसार रूपी सागर से पार उतार सके।
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→ जैन विचारधारा को व्यापक बनाने का श्रेय महात्मा महावीर स्वामी का है। इसलिए उन्हें इस धर्म का वास्तविक संस्थापक .. भी कहा जाता है। उनका मूल नाम वर्धमान था एवं जन्म वैशाली के पास कुड़ीग्राम में 540 ई० पू० में हुआ। उनके पिता सिद्धार्थ जातृक क्षत्रियगण के मुखिया थे तथा माता त्रिशला लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी। महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोधा तथा पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था। 30 वर्ष की आयु में इन्होंने अपने बड़े भाई नंदीवर्धन से आज्ञा लेकर घर त्याग दिया। 12/2 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें केवल्य अथवा परम ज्ञान की प्राप्ति हुई।

→ तब वह केवलीन या केवली कहलाए। अपनी इंद्रियों पर विजय पा लेने के कारण उन्हें ‘जिन’ अथवा जैन कहा गया। वे महावीर (अतुल पराक्रमी) भी कहलाए।

→ बौद्ध धर्म का प्रभाव जैन धर्म से भी अधिक व्यापक रहा। इस धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध उस युग के सबसे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक थे। महात्मा बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्यगण के मुखिया और कपिलवस्तु के शासक थे। उनकी माता माया कोलियागण से थीं। नेपाल की तराई के लुम्बिनी वन में बुद्ध का जन्म हुआ। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। माता का निधन हो जाने पर सिद्धार्थ का पालन-पोषण सौतेली माँ गौतमी ने किया, इसी कारण ये गौतम कहलाए।

→ बौद्ध दर्शन में संसार की समस्त वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। ये प्रवाह के रूप में स्थायी दिखती हैं; जैसे किनारे से देखने वाले को बहता हुआ पानी ठहरा हुआ दिखता है। उनके अनुसार किसी वस्तु या जीव में कोई आत्मा नहीं है। सब कुछ हर क्षण बदल रहा है। कुछ भी स्थायी एवं शाश्वत् नहीं है।

→ महात्मा बुद्ध का निष्कर्ष था कि मनुष्य अष्ट मार्ग का अनुसरण करके पुरोहितों के फेर से व मिथ्या आडम्बरों से बच जाएगा तथा अपना लक्ष्य (मुक्ति) भी प्राप्त करेगा। उन्होंने निर्वाण के लिए व्यक्ति केंद्रित प्रयास पर बल दिया जिसमें गुरु की आवश्यकता नहीं थी। अपने शिष्यों के लिए उनका अंतिम संदेश आत्मज्ञान का था : “तुम सब अपने लिए स्वयं ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हें स्वयं ही अपनी मुक्ति का रास्ता खोजना है।”

→ बुद्ध के मतानुसार जन्म व मृत्यु का चक्र आत्मा से नहीं, बल्कि अहंकार (अहम्) के कारण चलता है अर्थात् पुनर्जन्म आत्मा का नहीं, बल्कि अहंकार का होता है। यदि इस पर विजय पा ली जाए तो मनुष्य को मुक्ति (निर्वाण) मिल जाएगी। बौद्ध चिंतन में आत्मा व परमात्मा जैसे विषय अप्रासंगिक हैं।

→ बौद्ध संघ की कार्य-प्रणाली गणों की परंपरा पर आधारित थी। इस प्रणाली में जनवाद अधिक था। संघ के सदस्य परस्पर बातचीत से सहमति की ओर बढ़ते थे। सभी सदस्यों के अधिकार समान थे। यदि किसी विषय पर सहमति न बन पाती तो मतदान करके बहुमत से निर्णय लिया जाता जो सभी को स्वीकार्य होता। अपराधी अथवा नियमों की उल्लंघना करने वाले भिक्षु को जो दण्ड मिलता, वह उसे अनिवार्य तौर पर भोगना पड़ता था। कालान्तर में भिक्षुओं में तीखे मतभेद पैदा हो गए, जिनके समाधान के लिए बौद्धों की चार महासभाएँ हुईं।

→ बहुत-से लोग प्राचीन मूर्तियों को पाने के लिए लालायित रहते हैं, क्योंकि वे खूबसूरत और अनुपम होती हैं। परंतु कला इतिहासकार के लिए वे ज्ञान का स्रोत होती हैं। वे उनका गहन अध्ययन करके इतिहास की कुछ लुप्त कड़ियों को जोड़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन यह तभी संभव हो पाता है जब इतिहासकार को अन्य स्रोतों (साहित्य) का भी व्यापक ज्ञान हो। उदाहरण के लिए, बौद्ध स्तूपों पर उत्कीर्ण की हुई मूर्तियों का ऐतिहासिक अर्थ वही कर सकता है जिसने बौद्ध ग्रंथों का भी गहरा अध्ययन कर रखा हो। क्योंकि बहुत बार साहित्यिक गाथाएँ ही पत्थर में मूर्तिकार द्वारा उभारी गई होती हैं।
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→ अमरावती के स्तूप से प्राप्त एक मूर्ति को देखें जिसमें एक दूसरी जातक कथा को प्रदर्शित किया गया है। यह बुद्ध द्वारा अपनी विनम्रता (करुणा) से एक मतवाले हाथी (गजराज) को वश में किए जाने की है। दृश्य कुछ यूँ है महात्मा बुद्ध की ओर एक मतवाला हाथी आगे बढ़ रहा है; स्त्री-पुरुष सब भयभीत हैं, पुरुषों के हाथ खड़े हैं और औरतें भय से उनके साथ चिपकी हुई हैं। तभी बुद्ध विनम्रता की मुद्रा में हाथी की ओर बढ़ते हैं और हाथी नतमस्तक हो जाता है। इस घटना को लोग अपने घरों के झरोखों से भी देख रहे हैं।

→ कालान्तर में बौद्ध धर्म दो शाखाओं में विभाजित हो गया। ये शाखाएँ थीं-महायान और हीनयान। इनका शाब्दिक अर्थ है क्रमशः ‘बड़ा जहाज’ और ‘छोटा जहाज’। अर्थात् जो अनुयायी बहुमत में थे, उन्होंने अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए स्वयं को महायान कहा और अल्पसंख्यकों को हीनयान के नाम से पुकारा। लेकिन पुरातन परंपरा के अनुयायियों ने स्वयं को थेरवादी माना जिसका अर्थ था कि वे पुराने, प्रतिष्ठित शिक्षकों (जिन्हें थेर कहा जाता था) के अनुयायी हैं।
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पौराणिक हिंदू धर्म में भी बौद्ध धर्म की महायान शाखा की भाँति मुक्तिदाता की कल्पना उभरकर आई। विशेषतया हिंदू धर्म में ‘मुक्तिदाता’ वाली परिकल्पना में वैष्णव और शैव परंपराएँ शामिल हैं। हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा में विष्णु को परमेश्वर माना
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गया है, जबकि शैव परंपरा में शिव परमेश्वर है अर्थात् दोनों में एक विशेष देवता की आराधना को महत्त्व दिया गया। उल्लेखनीय है कि इस पूजा पद्धति में उपासना और परम देवता के बीच का संबंध समर्पण और प्रेम का स्वीकारा गया। इसलिए यह भक्ति कहलाया।

काल-रेखा

कालघटना का विवरण
प्राचीन इमारतों व मूर्तियों की खोज व संरक्षण

(आधुनिक काल)

1796 ईअमरावती स्तूप के अवशेष मिले
1814 ई०इण्डियन म्यूज़ियम, कलकत्ता की स्थापना
1818 ई०साँची के स्तूप की खोज
1834 ई०रामराजा द्वारा रचित एसेज़ ऑन द आकिटैक्वर ऑफ़ द हिंदूज का प्रकाशन; कनिंघम ने सारनाथ के स्तूप का सर्वेक्षण किया।
1835-42 ई०जेम्स फर्गुसन ने भारत के महत्त्वपूर्ण प्राचीन महत्त्व के स्थलों का सर्वेक्षण किया।
1851 ईमद्रास में गवर्नमेंट म्यूज़ियम की स्थापना हुई।
1854 ई०गुंदूर के कमिश्नर एलियट ने अमरावती के स्तूप स्थल की यात्रा की; अलेक्जैंडर कनिंघम ने भिलसा टोप्स नामक पुस्तक लिखी। यह साँची पर सबसे प्रारंभिक रचनाओं में से एक है।
1876 ई०एच०डी० बारस्टो ने शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ताज-उल-इकबाल तारीख भोपाल (भोपाल का इतिहास) का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।
1878 ई०राजेन्द्र लाल मित्र द्वारा लिखित बुद्ध गया : द हेरिटेज़ ऑफ़ शाक्य मुनि का प्रकाशन हुआ।
1880 ई०प्राचीन भवनों का संग्रहाध्यक्ष एच०एच०कोल को बनाया गया।
1888 ई०ट्रेजरर-ट्रोव एक्ट पास हुआ जिसके अनुसार सरकार पुरातात्विक महत्त्व की किसी भी चीज को अपने अधिकार में ले सकती थी।
1914 ई०जॉन मार्शल और अल्फ्रेड फूसे की रचना ‘द मॉन्युमेंट्स ऑफ़ साँची  का प्रकाशन हुआ।
1923 ई०जॉन मार्शल द्वारा तैयार कंजर्वेशन मैनुअल का प्रकाशन।
1955 ई०भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली की स्थापना।
1989 ई०साँची को एक ‘वर्ल्ड हेरिटेज़ साइट’ घोषित किया गया।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 114 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

HBSE 12th Class History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?
उत्तर:
1937 के चुनावों में असफलता के बाद जिन्ना ने उग्र-साम्प्रदायिक राजनीति को अपना लिया था। 1940 में उन्होंने द्विराष्ट्रों का सिद्धांत मुस्लिम जनता के सामने रखा। इस सिद्धांत की दो मान्यताएँ थीं। पहली मान्यता के अनुसार “हिंदू और मुसलमान बिल्कुल दो समाज थे। धर्म, दर्शन, सामाजिक प्रथा और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से दोनों अलग-अलग थे. ……..इसलिए ये दोनों कौमें एक राष्ट्र नहीं बन सकती थीं।”

दूसरी मान्यता यह थी कि यदि भारत एक राज्य रहता है तो बहुमत के शासन के नाम पर सदा हिंदू शासन रहेगा। इसका अर्थ होगा इस्लाम के बहुमूल्य तत्त्व का पूर्ण विनाश और मुसलमानों के लिए स्थायी दासता। धीरे-धीरे पाकिस्तान की स्थापना की माँग ठोस रूप ले रही थी। 23 मार्च, 1940 को लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव ही ‘पाकिस्तान’ प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है।

इसमें कहा गया कि भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए कि हिंदुस्तान के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे जिन हिस्सों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, उन्हें इकट्ठा करके ‘स्वतंत्र राज्य’ बना दिया जाए जिनमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन और स्वायत्त होंगी।

प्रश्न 2.
कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ?
उत्तर:
कुछ लोगों का विचार है कि भारत का विभाजन एक बहुत ही अचानक लिया गया निर्णय है। ध्यान देने योग्य तथ्य है कि 1940 में लीग ने ‘लाहौर प्रस्ताव’ या ‘पाकिस्तान प्रस्ताव पास किया था। इसमें अस्पष्ट शब्दों में एक मुस्लिम बहुल इलाके में स्वायत्त राज्य की स्थापना की माँग रखी गई थी। इस प्रस्ताव के रखने के बाद अगले सात वर्षों में ही विभाजन हो गया। यहाँ तक कि किसी को मालूम नहीं था कि पाकिस्तान के निर्माण का अर्थ क्या होगा, इससे भविष्य में लोगों की जिंदगी किस तरह तय होगी।

यहाँ तक कि 1947 में घर-बार छोड़कर गए लोगों को भी लगता था कि वे शांति स्थापित होने पर वापस अपने घरों में लौट सकेंगे। नेताओं ने भी लोगों के भविष्य के बारे में न ही सोचा और न ही जनसंख्या की पारस्परिक अदला-बदली पर कोई विचार किया।

यहाँ तक कि स्वयं लीग ने भी एक संप्रभु राज्य की माँग ज्यादा स्पष्ट और जोरदार ढंग से नहीं उठाई थी। ऐसा लगता है कि माँग सौदेबाजी में एक पैंतरे के रूप में उठाई गई थी ताकि मुस्लिमों के लिए अधिक रियायतें ली जा सकें। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इसकी समाप्ति के बाद सरकार को भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण की बातचीत करनी पड़ी, जिसमें अन्ततः भारत का विभाजन अचानक स्वीकार करना पड़ा। इससे लगता है कि भारत का विभाजन अचानक हुई घटना है।

प्रश्न 3.
आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
यह भी अनुमान लगाया जाता है कि विभाजन के कारण लगभग 1 करोड़ 50 लाख लोग अगस्त, 1947 से अक्तूबर, 1947 के बीच सीमा पार करने पर विवश हुए। विश्व इतिहास में ऐसा कष्टदायक विस्थापन नहीं मिलता। विस्थापन का अर्थ था लोगों का अपने घरों से उजड़ जाना। पलक झपकते ही इन लोगों की संपत्ति, घर, दुकानें, खेत, रोजी-रोटी के साधन उनके हाथों से निकल गए। वे अपनी जड़ों से उखाड़ दिए गए। उनसे उनकी बचपन की यादें छीन ली गईं। लाखों लोगों के प्रियजन मारे गए या बिछुड़ गए। अपनी स्थानीय एवं क्षेत्रीय संस्कृति से वंचित होकर शरणार्थी बने लोगों को तिनका-तिनका जोड़कर नए सिरे से जीवन शुरू करना पड़ा।

यह मात्र सम्पत्ति और क्षेत्र का विभाजन नहीं था, बल्कि एक महाध्वंस था। 1947 में जो लोग सीमा पार से जिंदा बचकर आ रहे थे, वे विभाजन के फैसले को ‘सरकारी नज़रिए’ से नहीं देख रहे थे। उनके अनुभव भयानक थे और वे उसे ‘मार्शल लॉ’ ‘मारामारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’ जैसे शब्दों से व्यक्त करते थे। वस्तुतः जनहिंसा, आगजनी, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार को देखते हए अनेक प्रत्यक्षदर्शियों और विद्वानों ने इसे ‘महाध्वंस’ (होलोकॉस्ट) कहा है।

1947 का हादसा इतना जघन्य था कि ‘विभाजन’ या ‘बँटवारा’ या, ‘तकसीम’ कह देने मात्र से इसके सारे पहलू प्रकट नहीं होते। मानवीय पीड़ा और दर्द का अहसास नहीं होता। महाध्वंस से सामूहिक नरसंहार की भयानकता और अन्य प्रभावों की भीषणता को कुछ हद तक समझा जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आम लोग विभाजन को एक ऐसी घटना समझते थे जिसमें उनका सब कुछ नष्ट हो गया था तथा उनके परिजन मर गए थे या बिछुड़ गए थे।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

प्रश्न 4.
विभाजन के खिलाफ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने विभाजन का जोरदार विरोध किया था। उन्होंने विभाजन के खिलाफ यहाँ तक कह दिया था कि विभाजन उनकी लाश पर होगा। गाँधी जी को विश्वास था कि देश में सांप्रदायिक नफरत शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी तथा पुनः

आपसी भाईचारा स्थापित हो जाएगा। लोग घृणा और हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे तथा सभी आपस में मिलकर अपनी समस्याओं का हल खोज लेंगे। विभाजन के अवसर पर भड़की हिंसा को शांत करने के लिए वे 77 वर्ष की आयु में भी दंगाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचे। उन्होंने सभी स्थानों पर हिंदुओं और मुसलमानों को शांति बनाए रखने और परस्पर स्नेह और एक-दूसरे की रक्षा करने की बात कही। उनका मानना था कि दोनों समुदाय सैकड़ों सालों से एक-साथ रहते आए हैं।

7 सितंबर, 1946 को उन्होंने प्रार्थना सभा में कहा था, “मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जले जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी-से-जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें……….। हिंदू और मुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं और एक ही जबान बोलते हैं।

26 सितंबर, 1946 को गाँधीजी ने इसी प्रकार की बात ‘हरिजन’ नामक साप्ताहिक में दोहराई। उन्होंने लिखा, “लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है, न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का। जो तत्त्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं, वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, किंतु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिसे मैं गलत मानता हूँ।”

प्रश्न 5.
विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में ऐतिहासिक मोड़ की संज्ञा दी जाती है। इसके कारण देश दो सम्प्रभु राज्यों (भारत और पाकिस्तान) में बँट गया। विभाजन ने तात्कालिक रूप से करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। साथ ही विभाजन की स्मृतियों और कहानियों ने रूढ़छवियों (Stereotypes) का निर्माण किया जो आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को प्रभावित कर रही हैं। यहाँ तक कि भारत में आतंकवाद जैसी समस्या की जड़ें भी कुछ हद तक विभाजन के परिणामों से जुड़ी हैं।

1. जनसंहार और विस्थापन (Massacre and Displace ment)-विभाजन सांप्रदायिक हिंसा, जनसंहार, आगजनी, लूटपाट, अराजकता, अपहरण, बलात्कार आदि का पर्याय बन गया था। ‘दंगाई भीड़ों’ ने दूसरे समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर मारा। गाँव के गाँव जला दिए। ट्रेनों में सफर कर रहे लोगों पर हिंसक
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हमले हुए। ट्रेनें मौत का पिंजरा बन गईं। यद्यपि हिंसा में पाकिस्तान और हिंदुस्तान में मारे गए लोगों की ठीक-ठीक संख्या बता पाना असंभव है, तथापि अनुमान लगाया जाता है कि 2 लाख से 2.5 लाख गैर-मुस्लिम तथा इतने ही मुस्लिम विभाजन की हिंसा में मारे गए।

यह भी अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 1 करोड़ 50 लाख लोग अगस्त, 1947 से अक्तूबर, 1947 के बीच सीमा पार करने पर विवश हुए। विश्व इतिहास में ऐसा कष्टदायक विस्थापन नहीं मिलता। विस्थापन का अर्थ था लोगों का अपने घरों से उजड़ जाना। लाखों लोगों के प्रियजन मारे गए या बिछुड़ गए। अपनी स्थानीय एवं क्षेत्रीय संस्कृति से वंचित होकर शरणार्थी बने लोगों को तिनका-तिनका जोड़कर नए सिरे से जीवन शुरू करना पड़ा।

2. महाध्वंस (Holocaust)-यह मात्र सम्पत्ति और क्षेत्र का विभाजन नहीं था, बल्कि एक महाध्वंस था। 1947 में जो लोग सीमा पार से जिंदा बचकर आ रहे थे, वे विभाजन के फैसले को ‘सरकारी नज़रिए’ से नहीं देख रहे थे। उनके अनुभव भयानक थे और वे उसे ‘मार्शल लॉ’, ‘मारामारी’, ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’ जैसे शब्दों से व्यक्त करते थे। वस्तुतः जनहिंसा, आगजनी, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार को देखते हुए अनेक प्रत्यक्षदर्शियों और विद्वानों ने इसे ‘महाध्वंस’ कहा है।

3. रूढ़छवियों का निर्माण (Formation of Stereotypes)-बँटवारे की वजह से दोनों देशों में रूढ़छवियों का निर्माण हुआ। इन रूढछवियों ने लोगों की मानसिकता को गहरा प्रभावित किया है। इन छवियों का दुरुपयोग सांप्रदायिक ताकतों के द्वारा तक भी किया जा रहा है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत का बँटवारा निम्नलिखित कारणों से किया गया

1. अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति (British Policy of Divide and Rule)-अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को भारत में सांप्रदायिकता के उदय व विकास और अन्ततः विभाजन के लिए जिम्मेदार माना गया है। अंग्रेज़ों ने हिंदुओं और मुसलमानों में घृणा पैदा करने को राजनीतिक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया। अंग्रेज़ों ने कांग्रेस को हिंदू आंदोलन बताया तथा सर सैयद अहमद के साथ मिलकर मुसलमानों को कांग्रेस के आंदोलन से दूर रखने का प्रयास किया। साथ ही उच्चवर्गीय मुसलमानों को अपना संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया। 1906 में मुस्लिम लीग का निर्माण करवाया। इस नीति पर चलते हुए उन्होंने आगे बहुत से और कदम उठाए जो विभाजन का कारण बने।

2. सांप्रदायिक संगठनों की स्थापना (Formation of Communal Organisations)-20वीं सदी के प्रथम दशक के मध्य से साम्प्रदायिक संगठन बनने लगे। सरकार ने उन्हें प्रोत्साहन दिया। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। लीग का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों के राजनीतिक हितों की रक्षा करना तथा मुसलमानों में अंग्रेज़ सरकार के प्रति निष्ठा पैदा करना था। प्रारंभ के वर्षों में लीग ने पृथक् निर्वाचन प्रणाली की मांग की तथा बंगाल विभाजन का समर्थन किया।

इसी समय 1909 ई० में लाल चंद और बी० एन मुखर्जी के प्रयासों से पंजाब हिंदू महासभा की स्थापना हुई। इनका मूल मंत्र था कि ‘हिंदू पहले हैं और भारतीय बाद में।’ इन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह हिंदुओं के हितों को नजरअंदाज कर रही है और मुसलमानों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपना रही है। 1915 में अखिल भारतीय हिंदू सभा की स्थापना हुई जो हिंदू सांप्रदायिकता को संगठित रूप देने की दिशा में अगला कदम था।

3. सांप्रदायिक तनाव व कलह (Communal Tensions and Conflicts)-1922 में असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद सांप्रदायिक तनावों में वृद्धि हुई। इस समय में मुसलमानों की नाराजगी के प्रमुख कारण हिंदुओं द्वारा त्योहार (होली) पर ‘मस्जिद के सामने संगीत बजाना’, ‘गो रक्षा आंदोलन’ और आर्य समाज का शुद्धि आंदोलन होते थे। हिंदू मुसलमानों के तबलीग (प्रचार) और तंजीम (संगठन) जैसे कार्यक्रमों के विस्तार से उत्तेजित होते थे। ये सांप्रदायिक तनाव इन समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ लामबंद करने का अवसर प्रदान करते थे जिससे आसानी से दंगे भड़क उठते थे।

4. ‘पाकिस्तान’ प्रस्ताव (‘Pakistan’ Resolution)-1937 के बाद जिन्ना की राजनीति पूरी तरह से उग्र-सांप्रदायिकता की राजनीति थी। उन्होंने कांग्रेस और राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया। 1940 में जिन्ना ने अपने ‘द्विराष्ट्रों के सिद्धांत’ को मुस्लिम जनता के समक्ष रखा। इस सिद्धांत की दो मान्यताएँ थीं। पहली मान्यता के अनुसार “हिंदू और मुसलमान बिल्कुल दो समाज थे। धर्म, दर्शन, सामाजिक प्रथा और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से दोनों अलग-अलग थे………इसलिए ये दोनों कौमें एक राष्ट्र नहीं बन सकती थीं।”

दूसरी मान्यता यह थी कि यदि भारत एक राज्य रहता है तो बहुमत के शासन के नाम पर सदा हिंदू शासन रहेगा। धीरे-धीरे पाकिस्तान की स्थापना की माँग ठोस रूप ले रही थी। 23 मार्च, 1940 को लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया।

5. वेवल योजना की विफलता (Failure of Wavell Plan)-1945 में वेवल योजना के तहत शिमला कांफ्रेंस हुई जिसमें वेवल ने मुख्य योजना ‘नयी कार्यकारी परिषद्’ के निर्माण को लेकर रखी। नयी कार्यकारिणी में वायसराय और मुख्य सेनापति को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होने थे तथा सभी समुदायों को संतुलित प्रतिनिधित्व दिया जाना था। हिंदू-मुस्लिम सदस्यों की संख्या बराबर होनी थी। परंतु नई परिषद् के निर्माण को लेकर भारतीय दलों में कोई सहमारे नहीं बन पाई।

कांग्रेस ने लीग की असहमति को योजना की असफलता का मुख्य कारण बताया। इससे कांग्रेस व लीग में कटुता बढ़ी तथा योजना की असफलता से देश में निराशा फैली। इस घटना ने देश को विभाजन की ओर धकेला।

6. कैबिनेट मिशन की असफलता (Failure of the Cabinet Mission)-15 मार्च, 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत को जल्दी ही स्वतंत्रता देने की बात कही। अतः मार्च, 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया। इसका लक्ष्य भारत में एक राष्ट्रीय सरकार बनाना तथा भावी संविधान के लिए रास्ता तैयार करना था। इस समय सबसे कठिन समस्या सांप्रदायिक समस्या बन गई थी। मुस्लिम लीग ने इसके लिए एकमात्र हल पाकिस्तान की माँग को बताया था, परंतु कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की माँग को अस्वीकार कर एक भारतीय संघ का प्रस्ताव रखा।

लीग और कांग्रेस में इस पर प्रारंभ में सहमति बनी, परंतु अन्ततः दोनों ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया। कैबिनेट मिशन योजना की अस्वीकृति दुर्भाग्यपूर्ण थी। यह भारत को एक बनाए रखने का अंतिम प्रयास था। इसकी अस्वीकृति और असफलता के बाद विभाजन लगभग अपरिहार्य हो गया था। कांग्रेस के ज्यादातर नेता विभाजन को एक त्रासद परंतु अवश्यम्भावी परिणाम मान चुके थे। केवल महात्मा गाँधी और खान अब्दुल गफ्फार ख़ान ही अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे।

7. सीधी कार्रवाई तथा साम्प्रदायिक दंगे (Direct Action and Communal Riots)-कैबिनेट योजना की असफलता के बाद लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ घोषित किया तथा ‘लड़कर लेंगे पाकिस्तान’ का नारा दिया। इसके साथ ही कलकत्ता में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए जो 20 अगस्त तक चलते रहे। दंगे अन्य स्थानों पर भी भड़कने लग गए। पूर्वी बंगाल में नोआखली जिले में 10 अक्तूबर को दंगे शुरू हो गए।

इन दंगों का असर अन्य स्थानों पर भी हुआ। पंजाब के अनेक नगरों और गाँवों में भी खतरनाक दंगे भड़क गए। साथ ही हजारों लोग विस्थापित हो गए। दंगों ने सारे देश को दहला दिया। कानून और व्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई तथा देश में गृह-युद्ध की स्थिति पैदा होती जा रही थी।
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8. माऊन्टबेटेन योजना तथा ब्रिटिश भारत का बँटवारा (Mountbatten plan and Division of British India)-भारत में सांप्रदायिक समस्या का कोई हल नहीं निकल पा रहा था। देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। उधर 20 फरवरी, 1947 को एटली ने भारत की सत्ता 30 जून, 1948 तक भारतीयों को सौंपने की घोषणा की।

साथ ही वेवल के स्थान पर माऊन्टबेटेन को भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा। माऊन्टबेटेन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की योजना की घोषणा की। इस योजना के अनुसार भारत और पाकिस्तान नाम के दो राज्यों को सत्ता का हस्तांतरण किया गया।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

प्रश्न 7.
बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
उत्तर:
विभाजन के समय सबसे अधिक पीड़ा महिलाओं को उठानी पड़ी। ‘दूसरे समुदाय’ के सम्मान को रौंदने एवं ठेस पहुँचाने के लिए महिलाओं को ही ‘सॉफ्ट टारगेट’ बनाया गया। उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया, उन्हें बार-बार बेचा-खरीदा गया। उनसे जबरदस्ती विवाह किया गया और उन्हें ‘अजनबी’ व्यक्तियों के साथ रहने को मजबूर होना पड़ा। महिलाएँ मूक एवं निरीह प्राणियों की तरह इन अत्याचारों से गुजरती रहीं। उन्हें गहरे सदमे झेलने पड़े।

इन सदमों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने बदली हुई स्थितियों में नए पारिवारिक बंधन स्थापित किए। किंतु जब भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने गुमशुदा औरतों की ‘बरामदगी’ की मुहिम चलाई तो महिलाओं को पुनः संकट का सामना करना पड़ा। इस बरामदगी की प्रक्रिया में मानवीय संबंधों की जटिलता के विषय पर किसी प्रकार की संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई।

दोनों सरकारों के बीच समझौता हुआ था कि “जबरन धर्म परिवर्तन तथा बलपूर्वक विवाहों को मान्यता नहीं दी जाएगी। सरकारों द्वारा अपहरण की गई औरतों को ढूँढ़ने तथा बरामद करने का हर प्रयत्न किया जाएगा तथा उन्हें उनके परिवारों के सुपुर्द किया जाएगा।”

इस बरामदगी की पूरी प्रक्रिया में इन ‘प्रभावित औरतों’ से उनकी किसी प्रकार की राय नहीं ली गई। उन्हें अपनी जिंदगी के संबंध में फैसला लेने के अधिकार से वंचित किया गया। सरकार यह मानकर चल रही थी कि इन महिलाओं को बलपूर्वक बैठा लिया गया था। इसलिए उन्हें उनके नए परिवारों से छीनकर पुराने परिवारों के पास अथवा पुराने स्थान पर भेज दिया गया।

एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की बरामदगी के अभियान में कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को बरामद किया गया। इनमें से 8000 हिंदू व सिक्ख औरतों को पाकिस्तान से तथा 22,000 मुस्लिम औरतों को भारत से बरामद किया गया। यह अभियान 1954 तक जारी रहा।

1. ‘इज्जत’ की रक्षा के लिए औरतों की हत्या-बँटवारे के दौरान ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जब परिवार के पुरुषों ने ही परिवार की ‘इज्जत’ की रक्षा के नाम पर अपने परिवार की स्त्री सदस्यों को स्वयं ही मार दिया या आत्महत्या के लिए प्रेरित किया। इन पुरुषों को भय होता था कि शत्रु उनकी औरतों-माँ, बहन, बेटी को नापाक कर सकता था। इसलिए परिवार की मान-मर्यादा को बचाने के लिए खुद ही उनको मार डाला। उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक दि अदर साइड ऑफ साइलेंस (The Other Side of Silence) में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा नामक गाँव की एक इसी प्रकार की दर्दनाक घटना का विवरण दिया है।

2. वे बताती हैं कि बँटवारे के समय सिक्खों के इस गाँव की 90 औरतों ने ‘दुश्मनों’ के हाथों में पड़ने की बजाय ‘अपनी इच्छा से’ एक कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी थी। इस गाँव के लोग इसे आत्महत्या नहीं शहादत मानते हैं और आज भी दिल्ली के एक गुरुद्वारे में हर वर्ष 13 मार्च को उनकी शहादत की याद में कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तथा इस घटना को मर्दो, औरतों व बच्चों को विस्तार से सुनाया जाता है। अंतः स्पष्ट है कि बँटवारे के समय औरतों के अनुभव पुरुषों से भिन्न थे। उन्हें असहनीय पीड़ा और संताप से गुजरना पड़ा।

प्रश्न 8.
बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
उत्तर:
कांग्रेस ने 1940 के दशक के प्रारंभ से ही पाकिस्तान के निर्माण या ब्रिटिश भारत के बँटवारे का विरोध किया था। परंतु सांप्रदायिक समस्या का हल न निकलने, सांप्रदायिक दंगे भड़कने तथा लीग की हठधर्मिता के चलते उसकी सोच में बदलाव आने लगा था। अंग्रेजों द्वारा 1946 के बाद भारत को जल्दी छोड़ने के फैसले से भी कांग्रेस के विचारों में बदलाव आया। कांग्रेस की सोच में बदलाव के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. कांग्रेस मंत्रिमण्डल व लीग से मतभेद (Conflicts in Congress Ministries and League)-1937 के चुनावों में सफलता के बाद कांग्रेस ने प्रांतों में सरकार बनाई परन्तु कुछ प्रांतों (विशेषतः यू०पी० व बिहार) में स्थिति यह थी कि कांग्रेस सत्ता पक्ष में तथा मुस्लिम लीग के सदस्य विपक्ष में थे। ये लीग के सदस्य प्रांतों में कांग्रेसी शासन के पूरे 27 महीनों के काल में कांग्रेस के खिलाफ जोरदार प्रचार करते रहे। आरोप लगाया गया कि काँग्रेसी शासन में मुसलमानों पर अत्याचार किए जा रहे हैं। फलतः लीग व कांग्रेस में दूरियाँ भी बढ़ीं। यहाँ तक कि जब 22 अक्तूबर, 1939 को कांग्रेस सरकारों ने त्यागपत्र दिया तो लीग ने मुक्ति दिवस (Day of Deliverance) मनाया।

2. ‘पाकिस्तान’ प्रस्ताव (‘Pakistan’ Resolution)-1937 के बाद जिन्ना की राजनीति पूरी तरह से उग्र-सांप्रदायिकता की राजनीति थी। उन्होंने कांग्रेस और राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया। उन्होंने दुष्प्रचार किया कि कांग्रेस का आला कमान दूसरे सभी समुदायों और संस्कृतियों को नष्ट करने तथा हिंदू राज्य कायम करने के लिए पूरी तरह दृढ़ प्रतिज्ञ है।

उन्होंने मुस्लिम जनता को भयभीत करना शुरू किया कि स्वतंत्र भारत में मुस्लिम और इस्लाम दोनों के ही अस्तित्व को खतरा पैदा हो जाएगा। 1940 में जिन्ना ने अपने ‘द्विराष्ट्रों के सिद्धांत’ को मुस्लिम जनता के समक्ष रखा। लीग का कहना था कि यदि भारत एक राज्य रहता है तो बहुमत के शासन के नाम पर सदा हिंदू शासन रहेगा। इसका अर्थ होगा इस्लाम के बहुमूल्य तत्त्व का पूर्ण विनाश और मुसलमानों के लिए स्थायी दासता। 1940 में लीग ने लाहौर में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव पास किया। इससे स्थितियों में बदलाव आया।

3. वेवल योजना की विफलता (Failure of Wavell Plan)-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वायसराय वेवल ने अपनी कार्यकारिणी में भारतीयों को शामिल करने के लिए शिमला में सम्मेलन बुलाया। परंतु लीग की हठधर्मिता के कारण यह योजना असफल हो गई। लीग चाहती थी कि परिषद के सभी मुस्लिम सदस्य उसके द्वारा चुने जाएँ। इससे कांग्रेस व लीग में कटुता बढ़ी तथा निराशा फैली।

4. कैबिनेट मिशन की असफलता (Failure of the Cabinet Mission)-15 मार्च, 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत को जल्दी ही स्वतंत्रता देने की बात कही। अतः मार्च, 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया। इसका लक्ष्य भारत में एक राष्ट्रीय सरकार बनाना तथा भावी संविधान के लिए रास्ता तैयार करना था। इस समय सबसे कठिन समस्या सांप्रदायिक समस्या बन गई थी। मुस्लिम लीग ने इसके लिए एकमात्र हल पाकिस्तान की माँग को बताया था, परंतु कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की माँग को अस्वीकार कर एक भारतीय संघ का प्रस्ताव रखा।

इस योजना को कांग्रेस तथा लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया। यह विभाजन का एक संभावित विकल्प था। परन्तु बाद में मतभेद उभर गए तथा लीग ने इसे अस्वीकार कर दिया। कैबिनेट मिशन योजना की अस्वीकृति दुर्भाग्यपूर्ण थी। इसकी अस्वीकृति और असफलता के बाद विभाजन लगभग अपरिहार्य हो गया था। कांग्रेस के ज्यादातर नेता विभाजन को एक त्रासद परंतु अवश्यम्भावी परिणाम मान चुके थे।

5. सीधी कार्रवाई तथा साम्प्रदायिक दंगे (Direct Action and Communal Riots)-कैबिनेट योजना की असफलता के बाद लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ घोषित किया तथा ‘लड़कर लेंगे पाकिस्तान’ का नारा दिया। इसके साथ ही कलकत्ता में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए जो 20 अगस्त तक चलते रहे। साथ ही हजारों लोग विस्थापित हो गए। दंगों ने सारे देश को दहला दिया। कानून और व्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई तथा देश में गृह-युद्ध की स्थिति पैदा होती जा रही थी। इससे कांग्रेस की सोच में पूरी तरह बदलाव आ गया।

6. माऊन्टबेटेन योजना तथा पाकिस्तान का निर्माण (Mountbatten Plan and the Creation of Pakistan)-भारत में सांप्रदायिक समस्या का कोई हल नहीं निकल पा रहा था। देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। अन्तरिम सरकार भी लीग की रोड़ा अटकाने की नीति के कारण काम नहीं कर पा रही थी। उधर 20 फरवरी, 1947 को एटली ने भारत की सत्ता 30 जून, 1948 तक भारतीयों को सौंपने की घोषणा की। साथ ही वेवल के स्थान पर माऊन्टबेटेन को भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा।

माऊन्टबेटेन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की योजना की घोषणा की। इस योजना के अनुसार भारत और पाकिस्तान नाम के दो राज्यों को सत्ता का हस्तांतरण करने का फैसला हुआ। कांग्रेस अब तक लीग की नीतियों के कारण बँटवारे के पक्ष में हो चुकी थी। अतः उसने बँटवारे को स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 9.
मौखिक इतिहास के फायदे व नकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?
उत्तर:
विभाजन को समझने के लिए हम मौखिक इतिहास का प्रयोग करते हैं। ये स्रोत हमें विभाजन के दौर में सामान्य लोगों के कष्टों और संताप को समझने में मदद करते हैं। लाखों लोगों ने विभाजन को पीडा और चनौती के दौर के रूप में देखा। उनके लिए यह मात्र सवैधानिक बँटवारा या मुस्लिम लीग और कांग्रेस की दलगत राजनीति का मामला नहीं था। उनके लिए यह एक ऐसी घटना थी जिसने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया; बुरी तरह से झकझोर डाला था।

हमें विभाजन को मात्र राजनीतिक घटना के रूप में ही नहीं समझना चाहिए वरन् इस रूप में भी देखना चाहिए कि जिन लोगों ने इस त्रासदी को भुगता वे इसके क्या अर्थ लगा रहे थे। इस घटना की उनकी स्मृतियाँ और अनुभव किस प्रकार के थे। उन स्मृतियों और अनुभवों की तह तक पहुँचकर ही हम विभाजन जैसी घटना के मानवीय आयामों (Human dimensions) को समझ सकते हैं और इसमें मौखिक इतिहास बहुत कारगर है।

1. मौखिक इतिहास के फायदे-मौखिक स्रोत के रूप में व्यक्तिगत स्मृतियों का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इनसे हमें लोगों के अनुभवों और स्मतियों को गहराई से समझने में सहायता मिलती है। इन स्मतियों के माध्यम से इतिहासकारों को विभाजन जैसी दर्दनाक घटना के दौरान लोगों को किन-किन शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को झेलना पड़ा, का बहुरंगी एवं सजीव वृत्तांत लिखने में सहायता मिलती है। यहाँ यह उल्लेख करना भी उपयुक्त है कि सरकारी दस्तावेज़ों में इस तरह की जानकारी नहीं मिलती। ये दस्तावेज नीतिगत और दलगत या विभिन्न सरकारी योजनाओं से संबंधित होते हैं।

इन फाइलों व रिपोर्टों में बँटवारे से पहले की वार्ताओं, समझौतों या दंगों और विस्थापन के आँकड़ों, शरणार्थियों के पुनर्वास इत्यादि के बारे में काफी जानकारी मिलती है। परंतु इनसे देश के विभाजन से प्रभावित होने वाले लोगों के रोजाना के हालात, उनकी अंतीड़ा और कड़वे अनुभवों के बारे में विशेष पता नहीं लगता। यह तो मौखिक स्रोतों से ही जाना जा सकता है।

2. मौखिक इतिहास के नुकसान-बहुत-से इतिहासकार मौखिक इतिहास के बारे में शंकालु हैं। वे इसे यह कहकर खारिज़ करते हैं कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती। इन जानकारियों से जो क्रम (Choronology) उभरता है. : होता। मौखिक इतिहास के खिलाफ यह भी तर्क दिया जाता है कि निजी अनुभवों की विशिष्टता के सहारे सामान्य नतीजों पर पहुँचना कठिन होता है।

मौखिक वृत्तांतों के छोटे-छोटे अनुभवों से पूरी तस्वीर सामने नहीं आती। कई इतिहासकारों को लगता है कि मौखिक वृत्तांत सतही मुद्दों (Surfacial Issues) से संबंध रखते हैं और यादों में बने रहे छोटे-छोटे अनुभव इतिहास की बड़ी प्रक्रियाओं (Larger Processes) का कारण ढूँढ़ने में असफल होते हैं।

3. विभाजन के बारे में हमारी समझ का विस्तार-मौखिक इतिहास से विभाजन के बारे में हमारी समझ का विस्तार संभव है। मौखिक स्रोतों से इतिहासकारों को जन इतिहास को उजागर करने में मदद मिलती है। वे गरीबों और कमजोरों (जन सामान्य, स्त्रियों, बच्चों, दलितों आदि) के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से बाहर निकाल पाते हैं। ऐसा करके वे इतिहास जैसे विषय की सीमाओं को और फैलाने का अवसर प्रदान करते हैं।

उदाहरण के लिए मौखिक स्रोत से हमने अब्दल लतीफ की भावनाएँ, थुआ गाँव की औरतों की कहानी व सद्भावनापूर्ण प्रयासों की कहानियों को जाना। डॉ० खुशदेव सिंह के प्रति कराची में गए मुसलमान अप्रवासियों की मनोदशा को समझ पाए। शरणार्थियों के द्वारा किए गए संघर्ष को भी मौखिक स्रोतों से समझा जा सकता है। इस प्रकार इस स्रोत से इतिहास में समाज के ऊपर के लोगों से आगे जाकर सामान्य लोगों की पड़ताल करने में सफलता मिलती है।

सामान्यतः आम लोगों के वजूद को नज़र-अंदाज कर दिया जाता है या इतिहास में चलते-चलते ज़िक्र कर दिया जाता है। संक्षेप में, ये स्रोत हमें जन इतिहास को समझने में मदद प्रदान करते हैं।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
दक्षिणी एशिया के नक्शे पर कैबिनेट मिशन प्रस्तावों में उल्लिखित भाग क, ख और ग को चिह्नित कीजिए। यह नक्शा मौजूदा दक्षिण एशिया के राजनैतिक नक्शे से किस तरह अलग है?
उत्तर:
संकेत-1947 से पूर्व के अविभाजित भारत के मानचित्र पर कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को दर्शाइए।
क समूह-संयुक्त प्रांत, मध्यप्रांत, बंबई, मद्रास, बिहार व उड़ीसा (हिंदू बहुल प्रांत)।
ख समूह-पंजाब, सिंध व उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (पश्चिम के मुस्लिम बहुल प्रांत)।
ग समूह-असम व बंगाल (पूर्व के मुस्लिम बहुल प्रांत)!

परियोजना कार्य

प्रश्न 11.
यूगोस्लाविया के विभाजन को जन्म देने वाली नृजातीय हिंसा के बारे में पता लगाइए। उसमें आप जिन नतीजों पर पहुँचते हैं उनकी तुलना इस अध्याय में भारत विभाजन के बारे में बताई गई बातों से कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूगोस्लाविया राज्य का उदय हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहाँ कम्युनिस्ट शासन स्थापित हुआ। इसका 1990 में अंत हुआ। 1992 तक आते-आते यह देश पाँच स्वतंत्र राज्यों में विभाजित हो गया। इस क्षेत्र में नृजातीय हिंसा भी हुई। पाँच राज्य थे-यूगोस्लाविया (सर्विया व मॉनटेनेग्रो को मिलाकर), क्रोशिया, मैकेडोनिया, स्लोवेनिया व बोस्निया-हर्जेगोविना। परंतु बोस्निया-हर्जेगोविना में हिंसा समाप्त नहीं हुई। यहाँ के तीन समुदायों (सर्व, क्रोर व मुसलमान) में आपस में लड़ाई चलती रही। इससे वहाँ की जनता को भारी कष्ट झेलने पड़े हैं। भारत विभाजन में हिंदू, सिक्ख और मुसलमान समुदाय आपस में लड़े। फलतः लाखों लोग मारे गए व करोड़ के करीब लोग उजड़ गए। (भारत विभाजन की हिंसा व विस्थापन पर विस्तार से लिखें।)

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

प्रश्न 12.
पता लगाइए कि क्या आपके शहर, कस्बे, गाँव या आस-पास के किसी स्थान पर दूर से कोई समुदाय आकर बसा है (हो सकता है आपके इलाके में बँटवारे के समय आए लोग भी रहते हों)। ऐसे समुदायों के लोगों से बात कीजिए और अपने निष्कर्षों को एक रिपोर्ट में संकलित कीजिए। लोगों से पूछिए कि वे कहाँ से आए हैं, उन्हें अपनी जगह क्यों छोड़नी पड़ी और उससे पहले व बाद में उनके कैसे अनुभव रहे। यह भी पता लगाइए कि उनके आने से क्या बदलाव पैदा हुए।
उत्तर:
संकेत-आपके शहर/कस्बे/गाँव में पाकिस्तान से आकर बसे पंजाबी समुदाय या सिक्ख समुदाय के लोगों का पता लगाइए और उनसे एक प्रश्नावली बनाकर उसके उत्तर जानिए। प्रश्नावली प्रश्न में दिए गए सवालों को शामिल कीजिए। अन्य प्रश्न भी डालें; जैसे वे यहाँ कब आए, पहले कहाँ आए, क्या व्यवसाय शुरू किया, अब आर्थिक स्थिति क्या है? आदि।

विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव HBSE 12th Class History Notes

→ विभाजन-1947 ई० में ब्रिटिश भारत का दो स्वतंत्र राज्यों (भारत और पाकिस्तान) में विभाजित होना।

→ शरणार्थी-अपने घरों से बेघर होकर, अपने मकानों, खेतों एवं कारोबार को छोड़कर 1947 में बनी सीमा को पार कर अजनबी जमीन/स्थान पर पहुंचने वाले लोग।

→ मौखिक इतिहास-साक्षात्कार और बातचीत के द्वारा अतीत को समझना।

→ विस्थापन-एक स्थान देश से दूसरे स्थान देश को जाना।

→ महाध्वंस (होलोकॉस्ट)-युद्ध जैसी स्थितियों में बहुत कुछ नष्ट होना तथा बड़े पैमाने पर लोगों का मारा जाना।

→ जर्मन होलोकॉस्ट-हिटलर के अधीन नाजी शासन के दौर में यहूदियों पर हुए अत्याचार।

→ नस्ली सफाया-किसी क्षेत्र से एक जाति या समुदाय के लोगों को मार देना या भगा देना।

→ रूढ़ छवियाँ (Stereotypes)-किसी गलत धारणा को निजी लाभ के उद्देश्य से बार-बार दोहराना तथा धीरे-धीरे उसका सच प्रतीत होना।

→ लखनऊ समझौता-1916 में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में हुआ समझौता। इसके अनुसार कांग्रेस ने पृथक चुनाव क्षेत्रों को स्वीकार किया।

→ आर्य समाज-स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित (1875 ई० में) एक संस्था। यह पंजाब में विशेष सक्रिय था। आर्य समाज वैदिक ज्ञान का पुनरुत्थान कर उसको विज्ञान की आधुनिक शिक्षा से जोड़ना चाहता था।

→ मस्जिद के सामने संगीत-किसी धार्मिक जुलूस के द्वारा अपने त्योहार (जैसे होली) पर नमाज के समय मस्जिद के सामने संगीत का बजाया जाना। इससे हिंदू-मुस्लिम हिंसा भड़क उठती थी क्योंकि संगीत को रूढ़िवादी मुसलमान अपनी नमाज में खलल समझते थे।

→ साम्प्रदायिकता-धार्मिक अस्मिता (पहचान) का विशेष तरह से राजनीतिकरण जो धार्मिक समुदायों में झगड़े पैदा करवाने की कोशिश करता है।

→ मुस्लिम लीग-1906 में ढाका में स्थापित संगठन, जो मुस्लिमों के राजनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए बनाया गया। 1940 में इसने ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव रखा।

→ हिंदू महासभा-एक हिंदू पार्टी, जिसकी स्थापना 1915 में हुई, उत्तर भारत तक सीमित रही। यह हिंदुओं में जाति व संप्रदाय के भेद खत्म कर हिंदू समाज में एकता स्थापित करने की कोशिश करती थी।

→ यूनियनिस्ट पार्टी यह पंजाब में हिंदू, मुस्लिम और सिक्ख भू-स्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टी थी। यह 1923 से 1947 तक काफी शक्तिशाली रही।

→ महासंघ या परिसंघ-आधुनिक राजनीतिक शब्दावली के अनुसार एक ऐसा संघ जिसमें राज्यों की स्वायत्तता होती है और केन्द्रीय सरकार के पास केवल सीमित शक्तियाँ होती हैं।

→ प्रत्यक्ष कार्यवाही-पाकिस्तान की माँग को पूरा करने के लिए वार्ताएँ असफल होने पर मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही अर्थात् हिंसात्मक तरीका अपनाने का फैसला लिया। 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप कलकत्ता में दंगे भड़क उठे।

→ एक अकेली फौज-गाँधी जी जहाँ भी गए वहाँ सांप्रदायिक दंगे (1947 में) शांत हो जाते थे। दंगों पर काबू पाने में फौज नाकाम रही थी। गाँधी जी ने अकेले ही सांप्रदायिक सद्भाव स्थापना का कार्य किया।

→ औरतों की बरामदगी-1947 के दौरान अपहरण की गई औरतों का भारत-पाकिस्तान समझौते के अनुसार तलाश का कार्य शुरू हुआ। इसे ‘बरामदगी’ के नाम से जाना गया।

→ इज्जत की रक्षा-विभाजन के दौर में जब पुरुषों को यह भय होता था कि उनकी औरतों-पत्नी, बेटी, बहन….. को शत्रु नापाक कर सकता है तो वे अपनी इज्जत की रक्षा के लिए स्वयं ही उन्हें मार देते थे या औरतें स्वयं ही आत्महत्या कर लेती थीं।

→ विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में ऐतिहासिक मोड़ की संज्ञा दी जाती है। इसके कारण देश दो सम्प्रभु राज्यों (भारत और पाकिस्तान) में बँट गया। विभाजन ने तात्कालिक रूप से करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। साथ ही विभाजन की . स्मृतियों और कहानियों ने रूढ़छवियों (Stereotypes) का निर्माण किया जो आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को प्रभावित कर रही हैं। विभाजन सांप्रदायिक हिंसा, जनसंहार, आगजनी, लूटपाट, अराजकता, अपहरण, बलात्कार आदि का पर्याय बन गया था।

→ यद्यपि हिंसा में पाकिस्तान और हिंदुस्तान में मारे गए लोगों की ठीक-ठीक संख्या बता पाना असंभव है. तथापि अनुमान लगाया जाता है कि 2 लाख से 2.5 लाख गैर-मुस्लिम तथा इतने ही मुस्लिम विभाजन की हिंसा में मारे गए। यह मात्र सम्पत्ति और क्षेत्र का विभाजन नहीं था बल्कि एक महाध्वंस था। 1947 में जो लोग सीमा पार से जिंदा बचकर आ रहे थे, वे विभाजन के फैसले को ‘सरकारी नज़रिए’ से नहीं देख रहे थे। उनके अनुभव भयानक थे और वे उसे ‘मार्शल लॉ’, ‘मारामारी’ ‘रौला’ या ‘हुल्लड़’ जैसे शब्दों से व्यक्त करते थे।

→ बँटवारे की वजह से दोनों देशों में रूढ़छवियों का निर्माण हुआ। जैसे कि कुछ लोगों को लगता है कि मुसलमान क्रूर, कट्टर और गंदे होते हैं। वे हमलावरों के वंशज हैं। दूसरी ओर ऐसा समझा जाता है कि हिंदू दयालु, उदार और शुद्ध होते हैं और वे सदैव हमले सहते आए हैं। कुछ पाकिस्तानियों को लगता है कि मुसलमान निष्पक्ष, बहादुर, एकेश्वरवादी और मांसाहारी होते हैं, जबकि हिंदू काले, कायर, बहुदेववादी तथा शाकाहारी होते हैं।

→ कुछ भारतीय और पाकिस्तानी इतिहासकार यह मानते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना का यह सिद्धांत ठीक था कि भारत में हिंदू और मुस्लिम दो पृथक् राष्ट्र विद्यमान थे। उनके अनुसार यह विचार मध्यकालीन भारत पर भी लागू होता है। ये इतिहासकार इस बात पर बल देते हैं कि 1947 की घटनाएँ (विभाजन) मध्यकाल तथा आधुनिक काल में हुए हिंदू-मुस्लिम झगड़ों के लंबे इतिहास से जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार वे विभाजन को हिंदू-मुस्लिम झगड़ों का चरम बिंदु या अंतिम चरण मानते हैं।

→ कुछ विद्वानों का यह मानना है कि देश का विभाजन एक ऐसी सांप्रदायिक राजनीति का शिखर था जो 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में शुरू हुई। इन विद्वानों का तर्क है कि अंग्रेज़ों ने मुसलमानों की आरक्षण की माँग को स्वीकार किया। 1909 के भारत सरकार अधिनियम में मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण किया तथा आगे (1919, 1935 में) इसका विस्तार किया। अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को भारत में सांप्रदायिकता के उदय व विकास और अन्ततः विभाजन के लिए जिम्मेदार माना गया है। अंग्रेज़ों ने हिंदुओं और मुसलमानों में घृणा पैदा करने को राजनीतिक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया।

→ 1922 में असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद सांप्रदायिक तनावों में वृद्धि हुई। यह सांप्रदायिक तनाव इन समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ लामबंद करने का अवसर प्रदान करते थे जिससे आसानी से दंगे भड़क उठते थे। 1935 के एक्ट की व्यवस्था के अनुसार 1937 में प्रांतों में विधानमंडलों के चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। परंतु कांग्रेस को मुस्लिम आरक्षित सीटों पर कोई सफलता नहीं मिली। वह 492 आरक्षित सीटों में से 58 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार चुनाव में खड़ा कर पाई तथा उसे 26 सीटों पर जीत प्राप्त हुई। दूसरी ओर मुस्लिम लीग की स्थिति इन चुनावों में काफी खराब रही।

→ 1940 में जिन्ना ने अपने ‘द्विराष्ट्रों के सिद्धांत’ को मुस्लिम जनता के समक्ष रखा। इस सिद्धांत की दो मान्यताएँ थीं। पहली मान्यता के अनुसार “हिंदू और मुसलमान बिल्कुल दो समाज थे। धर्म, दर्शन, सामाजिक प्रथा और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से दोनों अलग-अलग थे………इसलिए ये दोनों कौमें एक राष्ट्र नहीं बन सकती थीं।” दूसरी मान्यता यह थी कि यदि भारत एक राज्य रहता है तो बहुमत के शासन के नाम पर सदा हिंदू शासन रहेगा। इसका अर्थ होगा इस्लाम के बहुमूल्य तत्त्व का पूर्ण विनाश और मुसलमानों के लिए स्थायी दासता।

→ 23 मार्च, 1940 को लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए स्वायत्तता की माँग का प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव ही ‘पाकिस्तान’ प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। 1946 के प्रांतीय चुनावों ने भारतीय राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी। इन चुनावों में भी कांग्रेस को सामान्य सीटों पर महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई। परंतु मुस्लिम सीटों पर उसे कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। अब की बार मुस्लिम लीग को मुस्लिम सीटों पर भारी सफलता प्राप्त हुई। उसे कुल मुस्लिम वोटों का 86.6 प्रतिशत प्राप्त हुई। अब वह भारत में मुसलमानों की ‘एकमात्र प्रवक्ता’ होने का दावा कर सकती थी। इस रूप में 1946 के प्रांतीय चुनाव ‘विभाजन’ पर ‘जनमत संग्रह’ थे।

→ कैबिनेट मिशन योजना की अस्वीकृति दुर्भाग्यपूर्ण थी। यह भारत को एक बनाए रखने का अंतिम प्रयास था। इसकी अस्वीकृति और .. असफलता के बाद विभाजन लगभग अपरिहार्य हो गया था। कांग्रेस के ज्यादातर नेता विभाजन को एक त्रासद परंतु अवश्यम्भावी परिणाम मान चुके थे। केवल महात्मा गाँधी और खान अब्दुल गफ्फार ख़ान ही अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। कैबिनेट योजना की असफलता के बाद लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ घोषित किया तथा ‘लड़कर लेंगे पाकिस्तान’ का नारा दिया। माऊंटबेटेन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की योजना की घोषणा की। इस योजना के अनुसार भारत और पाकिस्तान नाम के को सत्ता का हस्तांतरण किया गया।
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→ 1947 की इस भयावह स्थिति में महात्मा गाँधी ही थे जो अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी देश में सांप्रदायिक सद्भावना के प्रयासों में लगे थे। 77 वर्ष के बुजुर्ग महात्मा गाँधी ने अहिंसा के अपने सिद्धांत को एक बार फिर परखने के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया। उनका विश्वास था कि सत्य और अहिंसा के द्वारा लोगों का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। सचमुच इस संकट की घड़ी में गाँधीजी के नेतृत्व का चरमोत्कर्ष देखा जा सकता है। जहाँ पर गाँधी जी हिंसा को रोकने और सद्भावना की स्थापना के लिए जाते थे वहाँ पर ‘बिजली’ की गति से असर होता था। लोग अपने हथियार गाँधीजी को समर्पित कर देते थे। जहाँ बड़ी सेना भी शांति

→ बहाल करने में सक्षम नहीं होती थी वहाँ गाँधीजी के पहुँचते ही शान्ति स्थापित हो जाती थी। इसी वजह से माऊंटबेटेन ने महात्मा गाँधी को ‘One man boundary by force’ कहकर संबोधित किया था। विभाजन के समय सबसे अधिक पीड़ा महिलाओं को उठानी पड़ी। ‘दूसरे समुदाय’ के सम्मान को रौंदने एवं ठेस पहुँचाने के लिए महिलाओं को ही ‘सोफ्ट टारगेट’ बनाया गया। उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अगवा किया गया। बार-बार बेचा-खरीदा गया। उनसे जबरदस्ती विवाह किया गया और उन्हें ‘अजनबी’ व्यक्तियों के साथ रहने को मजबूर होना पड़ा।

→ बँटवारे के दौरान ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जब परिवार के पुरुषों ने ही परिवार की ‘इज्जत’ की रक्षा के नाम पर अपने परिवार की स्त्री सदस्यों को स्वयं ही मार दिया या आत्महत्या के लिए प्रेरित किया। इन पुरुषों को भय होता था कि शत्रु उनकी औरतों-माँ, बहन, बेटी को नापाक कर सकता था। इसलिए परिवार की मान-मर्यादा को बचाने के लिए खुद ही उनको मार डाला। विभाजन के दौरान सर्वाधिक जनसंहार और रक्तपात पंजाब में देखा गया। भारत के अन्य प्रदेश (बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि) भी विभाजन से अत्यधिक प्रभावित हुए।

→ उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों से बहुत सारे मुस्लिम परिवार पलायन कर पाकिस्तान जाकर बस गए। इनमें से अधिकांश लोग सिंध प्रांत के कराची-हैदराबाद क्षेत्र में जाकर बसे। इन्हें मुहाजिर (अप्रवासी) कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि सिंध प्रांत में आज भी ‘मुहाजिरों’ की समस्याएँ समाप्त नहीं हुई हैं। वे लोग वहाँ पर आंदोलनरत हैं। भारत-विभाजन के समय बंगाल प्रांत का भी विभाजन हुआ। परंतु यहाँ पंजाब के समान एक ही बार में बड़े पैमाने पर पलायन नहीं हुआ। वहाँ से शरणार्थी धीरे-धीरे कई वर्षों तक आते रहे।

→ विभाजन के दौर के एक पक्ष का हमने अध्ययन किया कि लोग सांप्रदायिक उन्माद में अंधे होकर खून-खराबे, आगजनी, लूटपाट, बलात्कार जैसे घृणित कृत्यों में संलग्न थे; वहीं एक दूसरा पक्ष, मदद, मानवता और सद्भावना का उज्ज्वल पक्ष, भी हमारे सामने आता है। इतिहासकारों ने ऐसी अनेक घटनाएँ उजागर की हैं जिनसे पता चलता है कि महाध्वंस के उस दौर में बहुत सारे लोग अपनी जान पर खेलकर दूसरे समुदायों के लोगों की रक्षा कर रहे थे। डॉ० खुशदेव सिंह पेशे से डॉक्टर थे तथा तपेदिक के विशेषज्ञ थे।

→ विभाजन के समय वे हिमाचल प्रदेश में धर्मपुर नामक स्थान पर नियुक्त थे। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के असंख्य शरणार्थियों (हिंदू, सिक्ख, मुसलमान सहित) को भोजन, आश्रय और सुरक्षा प्रदान की। विभाजन को समझने के लिए मौखिक वृत्तांत, संस्मरण, डायरियाँ, पारिवारिक इतिहास, स्वलिखित ब्योरे आदि का प्रयोग किया गया है। ये स्रोत हमें विभाजन के दौर में सामान्य लोगों के कष्टों और संताप को समझने में मदद करते हैं।

→ मौखिक स्रोत के रूप में व्यक्तिगत स्मृतियों की एक महत्त्वपूर्ण खूबी यह है कि इनसे हमें लोगों के अनुभवों और स्मृतियों को गहराई से समझने में सहायता मिलती है। मौखिक स्रोतों से इतिहासकारों को जन इतिहास को उजागर करने में मदद मिलती है। वे गरीबों और कमजोरों (जन सामान्य, स्त्रियों, बच्चों, दलितों आदि) के अनुभवों को उपेक्षा के अंधकार से बाहर निकाल पाते हैं। ऐसा करके वे इतिहास जैसे विषय की सीमाओं को और फैलाने का अवसर प्रदान करते हैं।

→ बहुत से इतिहासकार मौखिक इतिहास के बारे में शंकालु हैं। वे इसे यह कहकर खारिज करते हैं कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती। इन जानकारियों से जो क्रम (Choronology) उभरता है, वह अकसर सही नहीं होता। विभाजन जैसी घटना के मानवीय आयामों को समझने के लिए मौखिक स्रोतों के महत्त्व से इंकार नहीं किया जा सकता। मौखिक वृत्तांतों या बयानों से निकलने वाले निष्कर्षों की तुलना अन्य स्रोतों से मिलने वाले साक्ष्यों और उनके निष्कर्षों से करनी चाहिए।

काल-रेखा

कालघटना का विवरण
1905 ई०बंगाल का विभाजन
1906 ईoमुस्तिम लीग की स्थापना
1909 ई०पृथक् निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत व भारत सरकार अधिनियम
1915 ईहिंदू महासभा की स्थापना
1916 ई०लखनऊ समझौता
1930 ई०उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल द्वारा भारतीय संध के भीतर एक ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता पर जोर।
1933 ई०चौधरी रहमत अली (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में छात्र) द्वारा ‘पाकिस्तान’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग भारत सरकार अधिनियम में प्रांतों को स्वायत्त शासन
1935 ई०प्रांतों में चुनाव तथा कांग्रेस द्वारा 11 में से 7 प्रांतों में सरकार का निर्माण
1937 ईoकांग्रेस लीग द्वारा संयुक्त प्रांत में साझा सरकार बना पाना
1937 ई०दूसरा विश्व युद्ध प्रारंभ; कांग्रेस के मंत्रिभण्डलों द्वारा नवंबर में त्यागपत्र
1939 ईoघटना का विवरण
22 दिसंबर, 1939लीग द्वारा ‘मुक्ति दिवस’ मनाना
मार्च, 1940मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ पारित करना
जुलाई, 1945वेवल योजना के तहत शिमला काँफ्रेंस
1946प्रांतीय सभाओं का चुनाव, कांग्रेस को सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों तथा लीग को मुस्लिम आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भारी सफलता
मार्च, 1946कैबिनेट मिशन का भारत आना
16 अगस्त, 1946लीग द्वारा ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया जाना
मार्च, 1947कांग्रेस हाईकमान द्वारा पंजाब को मुस्लिम-बहुल और हिंदू/सिक्ख बहुल दो भागों में बाँटने के प्रस्ताव को मंजूरी
मार्च, 1947पंजाब में सांप्रदायिक दंगों का प्रारंभ; अमृतसर में लूटपाट, आगजनी व रक्तपात
14 अगस्त, 1947पाकिस्तान का निर्माण
15 अगस्त, 1947भारत को स्वतंत्रता मिलना

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अंतर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. “स्वराज की गंध से मेरे नथुने फटने लगे हैं।” ये शब्द निम्नलिखित में से किसने कहे?
(A) जवाहरलाल नेहरू ने
(B) महात्मा गाँधी ने
(C) लाला लाजपतराय ने
(D) गोपाल कृष्ण गोखले ने
उत्तर:
(B) महात्मा गाँधी ने

2. “कानून तोड़ने वाले तुम्हारा स्वागत है।” ये शब्द किसने, किसके लिए कहे?
(A) जवाहरलाल नेहरू ने जनरल डायर के लिए
(B) सरोजिनी नायडू ने गाँधी जी के लिए
(C) महात्मा गाँधी ने लाला लाजपतराय के लिए
(D) लॉर्ड इर्विन ने गाँधी जी के लिए
उत्तर:
(B) सरोजिनी नायडू ने गाँधी जी के लिए

3. ‘खुदाई खिदमतगार सेना’ का गठन किया
(A) महात्मा गाँधी ने
(B) अब्दुल गफ्फार खाँ ने
(C) सर सैयद अहमद खाँ ने
(D) दादा भाई नौरोजी ने
उत्तर:
(B) अब्दुल गफ्फार खाँ ने

4. गाँधी जी ने कपड़ा मिल मजदूरों का समर्थन किया
(A) श्रीनगर में
(B) लखनऊ में
(C) अहमदाबाद में
(D) कलकत्ता में
उत्तर:
(C) अहमदाबाद में

5. गाँधी जी का प्रसिद्ध दांडी मार्च कितने दिनों तक चला?
(A) 21 दिन
(B) 24 दिन
(C) 30 दिन
(D) 8 दिन
उत्तर:
(B) 24 दिन

6. महात्मा गांधी की डांडी यात्रा कब आरम्भ हुई?
(A) 12 मार्च, 1930 ई०
(B) 12 अप्रैल, 1931 ई०
(C) 13 मार्च, 1931 ई०
(D) 14 मार्च, 1932 ई०
उत्तर:
(A) 12 मार्च, 1930 ई०

7. महात्मा गाँधी निम्नलिखित में से किससे प्रभावित हुए?
(A) हैनरी डेविड थोरो
(B) रस्किन
(C) टॉलस्टॉय
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. जलियाँवाला बाग हत्याकांड किया गया
(A) जनरल डायर द्वारा
(B) हार्डिंग द्वारा
(C) आकलैंड द्वारा
(D) कर्जन द्वारा
उत्तर:
(A) जनरल डायर द्वारा

9. सर की उपाधि का त्याग किसने किया?
(A) रवींद्रनाथ टैगोर ने
(B) सेठ जमनादास बजाज ने
(C) महात्मा गाँधी ने
(D) मोतीलाल नेहरू ने
उत्तर:
(A) रवींद्रनाथ टैगोर ने

10. गाँधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन समाप्त करने के कारण असंतुष्ट काँग्रेसियों ने निम्नलिखित संगठन बनाया
(A) साम्यवादी दल
(B) स्वराज्य दल
(C) काँग्रेसी समाजवादी दल
(D) उदारवादी दल
उत्तर:
(B) स्वराज्य दल

11. जलियाँवाला बाग हत्याकांड निम्नलिखित में से किस तिथि को घटित हुआ?
(A) 13 अप्रैल, 1919 को
(B) 14 अप्रैल, 1920 को
(C) 13 अप्रैल, 1921 को
(D) 1 जनवरी, 1923 को
उत्तर:
(A) 13 अप्रैल, 1919 को

12. जनरल डायर को उपाधि दी गई
(A) ब्रिटिश राज्य को नष्ट करने वाला
(B) ब्रिटिश राज्य का रक्षक
(C) देशद्रोही
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) ब्रिटिश राज्य का रक्षक

13. चौरी-चौरा की घटना घटित हुई
(A) 5 फरवरी, 1922 को
(B) 10 जनवरी, 1921 को
(C) 15 जुलाई, 1923 को
(D) 5 जनवरी, 1932 को
उत्तर:
(A) 5 फरवरी, 1922 को

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

14. तुर्की के खलीफा के अधिकारों को प्राप्त करने हेतु कौन-सा आंदोलन चलाया गया?
(A) खिलाफ़त आंदोलन
(B) असहयोग आंदोलन
(C) होमरूल आंदोलन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) खिलाफ़त आंदोलन

15. लाला लाजपतराय का निधन हुआ
(A) 1940 ई० में
(B) 1952 ई० में
(C) 1928 ई० में
(D) 1927 ई० में
उत्तर:
(C) 1928 ई० में

16. 1937 के आम चुनाव में कांग्रेस को कितने प्रान्तों में पूर्ण बहुमत मिला था?
(A) 7
(B) 9
(C) 8
(D) 11
उत्तर:
(A) 7

17. साइमन कमीशन के अध्यक्ष थे
(A) महात्मा गाँधी
(B) क्रिप्स
(C) सुभाषचंद्र बोस
(D) सर जॉन साइमन
उत्तर:
(D) सर जॉन साइमन

18. पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित हुआ
(A) लाहौर अधिवेशन में
(B) बंबई अधिवेशन में
(C) पूना अधिवेशन में
(D) रांची अधिवेशन में
उत्तर:
(A) लाहौर अधिवेशन में

19. सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया
(A) पं० जवाहरलाल नेहरू ने
(B) पं० मोतीलाल नेहरू ने
(C) जिन्ना ने
(D) महात्मा गाँधी ने
उत्तर:
(D) महात्मा गाँधी ने

20. 1929 ई० के काँग्रेस अधिवेशन (लाहौर) की अध्यक्षता की
(A) पं जवाहरलाल नेहरू ने
(B) बाल गंगाधर तिलक ने
(C) लाला लाजपतराय ने
(D) महात्मा गाँधी ने
उत्तर:
(A) पं जवाहरलाल नेहरू ने

21. सांप्रदायिक निर्णय घोषित करने वाले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे
(A) चर्चिल
(B) माउंटबेटन
(C) एटली
(D) मैकडोनाल्ड
उत्तर:
(D) मैकडोनाल्ड

22. साइमन कमीशन भारत कब आया?
(A) 1928 ई० में
(B) 1927 ई० में
(C) 1935 ई० में
(D) 1930 ई० में
उत्तर:
(A) 1928 ई० में

23. साइमन कमीशन को दो वर्ष पूर्व भेजा गया क्योंकि
(A) 1929 ई० में आम चुनाव होने वाले थे
(B) सरकार द्वारा दिखावे के लिए भारतीयों की माँगों की जाँच के लिए
(C) हिंदू-मुस्लिम झगड़ों का सरकार लाभ उठाना चाहती थी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. गाँधी जी ने डांडी यात्रा कहाँ से आरम्भ की?
(A) साबरमती आश्रम
(B) डांडी
(C) काठियावाड़
(D) सूरत
उत्तर:
(A) साबरमती आश्रम

25. प्रथम गोलमेज सम्मेलन प्रारंभ हुआ
(A) 12 नवंबर, 1930
(B) 14 जनवरी, 1931
(C) 15 अगस्त, 1932
(D) 13 जुलाई, 1931
उत्तर:
(A) 12 नवंबर, 1930

26. गाँधी-इर्विन समझौता कब हुआ?
(A) 5 मार्च, 1931
(B) 4 मार्च, 1932
(C) 4 जुलाई, 1945
(D) 5 अगस्त, 1931
उत्तर:
(A) 5 मार्च, 1931

27. दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ
(A) 7 सितंबर, 1931
(B) 8 दिसंबर, 1933
(C) 4 मई, 1934
(D) 7 सितंबर, 1930
उत्तर:
(A) 7 सितंबर, 1931

28. सरहदी गाँधी किसे कहा जाता है?
(A) महात्मा गाँधी को
(B) पं० जवाहरलाल नेहरू को
(C) सुभाषचंद्र बोस को
(D) अब्दुल गफ्फार खाँ को
उत्तर:
(D) अब्दुल गफ्फार खाँ को

29. सविनय अवज्ञा आंदोलन की पुनरावृत्ति हुई
(A) 1932 ई० में
(B) 1934 ई० में
(C) 1936 ई० में
(D) 1944 ई० में
उत्तर:
(A) 1932 ई० में

30. सांप्रदायिक निर्णय लिया गया
(A) 1932 ई० में
(B) 1934 ई० में
(C) 1935 ई० में
(D) 1936 ई० में
उत्तर:
(A) 1932 ई० में

31. तीसरा गोलमेज सम्मेलन प्रारंभ हुआ
(A) 17 नवंबर, 1932
(B) 24 दिसंबर, 1932
(C) 26 सितंबर, 1932
(D) 16 अगस्त, 1932
उत्तर:
(A) 17 नवंबर, 1932

32. सर्वदलीय सम्मेलन (1928) के अध्यक्ष थे
(A) पं० मोतीलाल नेहरू
(B) पं० जवाहरलाल नेहरू
(C) जिन्ना
(D) महात्मा गाँधी
उत्तर:
(A) पं० मोतीलाल नेहरू

33. 8 अगस्त, 1940 की घोषणा निम्नलिखित द्वारा की गई
(A) लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा
(B) लॉर्ड माऊंटबेटन द्वारा
(C) लॉर्ड वेवल द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा

34. ब्रिटिश सरकार ने भारत में क्रिप्स मिशन भेजा
(A) 1942 ई० में
(B) 1943 ई० में
(C) 1944 ई० में
(D) 1946 ई० में
उत्तर:
(A) 1942 ई० में

35. ‘करो या मरो’ का नारा दिया
(A) जवाहरलाल नेहरू ने
(B) सुभाषचन्द्र बोस ने
(C) महात्मा गाँधी ने
(D) सी०आर० दास ने
उत्तर:
(C) महात्मा गाँधी ने

36. काँग्रेस कार्य समिति के सदस्यों को गिरफ्तार किया गया
(A) 9 अगस्त, 1942 को
(B) 10 जुलाई, 1942 को
(C) 9 अगस्त, 1943 को
(D) 16 दिसंबर, 1943 को
उत्तर:
(A) 9 अगस्त, 1942 को

37. खिलाफत आंदोलन के नेता थे
(A) गाँधी जी और नेहरू
(B) मोहम्मद अली और जिन्ना
(C) शौकत अली और मुहम्मद अली
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शौकत अली और मुहम्मद अली

38. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे?
(A) दादाभाई नौरोजी
(B) चितरंजन दास
(C) गोपाल कृष्ण गोखले
(D) सरदार पटेल
उत्तर:
(C) गोपाल कृष्ण गोखले

39. लाल कुर्ती दल का नेतृत्व किया
(A) मौलाना आजाद ने
(B) खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने
(C) गाँधी जी ने
(D) नेहरू जी ने
उत्तर:
(B) खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने

40. ‘स्वराज पार्टी का गठन किसने किया था?
(A) महात्मा गाँधी
(B) सरदार पटेल
(C) सी० आर० दास
(D) पंडित जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(C) सी० आर० दास

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

41. महात्मा गाँधी जी ने किन प्रस्तावों को ‘असफल हो रहे बैंक का उत्तर तिथीय चैक’ बताया

(A) कैबिनेट मिशन प्रस्ताव को
(B) वेवल प्रस्ताव को
(C) क्रिप्स प्रस्ताव को
(D) सी०आर० प्रस्ताव को
उत्तर:
(C) क्रिप्स प्रस्ताव को

42. किस दल ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का विरोध किया?
(A) समाजवादी
(B) सी० पी० एम०
(C) मुस्लिम लीग
(D) कांग्रेस
उत्तर:
(C) मुस्लिम लीग

43. महात्मा गाँधी किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने के पक्ष में थे?
(A) हिन्दी
(B) उर्दू
(C) संस्कृत
(D) इंग्लिश
उत्तर:
(A) हिन्दी

44. माउंटबेटन ने विभाजन योजना की घोषणा की
(A) 3 मार्च, 1947
(B) 3 जून, 1947
(C) 3 जनवरी, 1947
(D) 3 अप्रैल, 1947
उत्तर:
(B) 3 जून, 1947

45. भारत ‘एक राष्ट्र नहीं, दो राष्ट्र हैं’ यह कथन किसका है?
(A) मुहम्मद इकबाल का
(B) जिन्ना का
(C) सर सैय्यद अहमद खाँ का
(D) मौलाना आजाद का
उत्तर:
(B) जिन्ना का

46. भारत छोड़ो का प्रस्ताव कहाँ पारित किया गया?
(A) बंबई
(B) दिल्ली
(C) नागपुर
(D) कलकत्ता
उत्तर:
(A) बंबई

47. कौन-सा आंदोलन चौरी-चौरा की घटना के बाद समाप्त किया गया?
(A) भारत छोड़ो आंदोलन
(B) सविनय अवज्ञा आंदोलन
(C) असहयोग आंदोलन
(D) रॉलेट एक्ट
उत्तर:
(C) असहयोग आंदोलन

48. कम्युनल अवार्ड का निर्णय देते समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री कौन था?
(A) चर्चिल
(B) रेम्जे मैकडोनाल्ड
(C) एटली
(D) पामस्टोन
उत्तर:
(B) रेम्जे मैकडोनाल्ड

49. असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम किस अधिवेशन में स्वीकार किया गया?
(A) अमृतसर अधिवेशन
(B) कलकत्ता अधिवेशन
(C) गया अधिवेशन
(D) नागपुर अधिवेशन
उत्तर:
(B) कलकत्ता अधिवेशन

50. महात्मा गाँधी कितनी बार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए?
(A) एक बार भी नहीं
(B) दो बार
(C) एक बार
(D) चार बार
उत्तर:
(C) एक बार

51. गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका कब पहँचे?
(A) 1890 ई० में
(B) 1893 ई० में
(C) 1895 ई० में
(D) 1899 ई० में
उत्तर:
(B) 1893 ई० में

52. गाँधी जी का जन्म कब हुआ?
(A) 1860 ई० में
(B) 1869 ई० में
(C) 1879 ई० में
(D) 1866 ई० में
उत्तर:
(B) 1869 ई० में

53. महात्मा गाँधी ने ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ कब आरम्भ किया?
(A) 1942 ई० में
(B) 1940 ई० में
(C) 1941 ई० में
(D) 1943 ई० में
उत्तर:
(B) 1940 ई० में

54. गाँधी जी को 9 अप्रैल, 1919 को किस स्थान पर गिरफ्तार किया गया?
(A) बंबई में
(B) अमृतसर में
(C) दिल्ली में
(D) पलवल में
उत्तर:
(D) पलवल में

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी ने अपना राजनीतिक जीवन कहाँ से प्रारंभ किया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका से।

प्रश्न 2.
1906 में दक्षिणी अफ्रीका में ‘एशियाई’ रजिस्ट्रेशन एक्ट के विरोध में गाँधी जी ने कौन-सी एसोसिएशन की स्थापना की?
उत्तर:
पैसिव रजिस्ट्रेशन एसोसिएशन।

प्रश्न 3.
भारत में गाँधी जी ने पहला सत्याग्रह कब और कहाँ किया?
उत्तर:
1917 में, चंपारन में।

प्रश्न 4.
‘अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी’ का गठन कब और कहाँ किया गया?
उत्तर:
सितंबर, 1919 में लखनऊ में।

प्रश्न 5.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए किस कमेटी का गठन किया गया?
उत्तर:
1919 में हंटर कमेटी का गठन किया गया।

प्रश्न 6.
‘करो या मरो’ का नारा कब, किसने और किस प्रस्ताव में दिया था?
उत्तर:
8 अगस्त, 1942 को गाँधी जी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव में यह नारा दिया था।

प्रश्न 7.
पूना समझौता कब व किनके मध्य हुआ?
उत्तर:
सितंबर, 1932 में गाँधी जी व डॉ० अंबेडकर के मध्य हुआ।

प्रश्न 8.
गाँधी जी ने अपना राजनीतिक गुरु किसे माना?
उत्तर:
गोपाल कृष्ण गोखले को।

प्रश्न 9.
सविनय अवज्ञा आंदोलन कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
1930 ई० में।

प्रश्न 10.
संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने हेतु लॉर्ड लिनलिथगो ने कौन-सी घोषणा की?
उत्तर:
अगस्त घोषणा, 1940

प्रश्न 11.
व्यक्तिगत सत्याग्रह कब आरंभ किया गया?
उत्तर:
अक्तूबर, 1940 में।

प्रश्न 12.
क्रिप्स मिशन भारत कब आया?
उत्तर:
22 मार्च, 1942 में।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

प्रश्न 13.
क्रिप्स मिशन का अध्यक्ष कौन था?
उत्तर:
सर स्टेफर्ड क्रिप्स।

प्रश्न 14.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड कहाँ हुआ था?
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकांड अमृतसर में हुआ था।

प्रश्न 15.
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव कब तथा कहाँ पारित किया गया?
उत्तर:
8 अगस्त, 1942 को ऑल इंडिया काँग्रेस कमेटी (A.I.C.C.) द्वारा मुंबई में।

प्रश्न 16.
भारत छोड़ो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
अंग्रेज़ों को भारत से निकालना।

प्रश्न 17.
भारत छोड़ो आंदोलन का किस दल ने खुल्लमखुल्ला विरोध किया?
उत्तर:
मुस्लिम लीग ने।

प्रश्न 18.
दो समाजवादी नेताओं के नाम लिखें जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया।

प्रश्न 19.
“महिलाओं को कमज़ोर कहना उनका अपमान है। यह पुरुषों का महिलाओं के प्रति अन्याय है।” ये शब्द किस महान् राष्ट्रवादी नेता के हैं?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने।

प्रश्न 20.
स्वराज पार्टी का गठन कब और किसने किया?
उत्तर:
1 जनवरी, 1923 को सी०आर० दास (प्रधान) और मोतीलाल नेहरू (महामंत्री) ने।

प्रश्न 21.
गाँधी जी को ‘अर्धनंगा फकीर’ इंग्लैंड के किस राजनेता ने कहा?
उत्तर:
चर्चिल ने।

प्रश्न 22.
‘इंडियन ओपिनीयन’ नामक अखबार 1903 में दक्षिण अफ्रीका में किस भारतीय नेता ने निकाला?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने।

प्रश्न 23.
गाँधी जी द्वारा निकाले गए भारत के दो प्रमुख समाचार-पत्रों के नाम बताओ।
उत्तर:
‘हरिजन’ और ‘यंग-इंडिया’।

प्रश्न 24.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात् इंग्लैंड में जनरल डायर की पैरवी के लिए 30 हज़ार पौंड किस समाचार-पत्र ने इकट्ठा करवाया?
उत्तर:
मार्निंग पोस्ट ने।

प्रश्न 25.
असहयोग आंदोलन के दौरान नेशनल कॉलेज कलकत्ता (कोलकात्ता) का प्रधानाचार्य किसको बनाया गया?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस को।

प्रश्न 26.
10 फरवरी, 1943 को सरकारी हिंसा के विरोध में गाँधी द्वारा 21 दिन के लिए उपवास शुरू करने पर वायसराय की कार्यकारिणी के कौन-से तीन सदस्यों ने त्याग-पत्र दे दिया?
उत्तर:
एम०एम० सेनी, एन०आर० सरकार और ए०पी० मोदी ने।

प्रश्न 27.
“जब दुनिया में हम हर कहीं जीत रहे हैं, ऐसे वक्त में हम एक कमबख्त बूढ़े के सामने कैसे झुक सकते हैं, जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा है।” ये शब्द इंग्लैंड के किस प्रधानमंत्री ने किसके संबंध में कहे?
उत्तर:
विंसटन चर्चिल ने, महात्मा गाँधी के बारे में सन् 1943 में कहे।

प्रश्न 28.
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान ‘काँग्रेस रेडियो’ का गुप्त रूप से संचालन किस शहर से किया गया था, जिसकी पहली उद्घोषिका ऊषा मेहता थी?
उत्तर:
बंबई (मुंबई) से। प्रश्न 29. “मैं देश की बालू से ही काँग्रेस से बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा” ये शब्द किसने और कब कहे? उत्तर-गाँधी जी ने 1942 ई० में।

प्रश्न 30.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1921 में कितनी हड़तालें हुईं?
उत्तर:
सरकारी आँकड़ों के अनुसार 1921 में 396 हड़तालें हुईं।

प्रश्न 31.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का उद्घाटन समारोह कब हुआ?
उत्तर:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का उद्घाटन समारोह फरवरी, 1916 में हुआ।

प्रश्न 32.
गाँधी जी द्वारा 1918 ई० में गुजरात में चलाए गए दो सत्याग्रहों के नाम लिखो।
उत्तर:
1918 में गाँधी जी ने गुजरात अहमदाबाद मिलों के मजदूरों की माँग तथा खेड़ा में किसानों की माँगों के लिए सत्याग्रह किया।

प्रश्न 33.
भारत में गाँधी जी ने पहला देशव्यापी सत्याग्रह कौन-सा चलाया?
उत्तर:
1919 ई० में रॉलेट सत्याग्रह चलाया।

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प्रश्न 34.
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पहला ‘स्वतंत्रता दिवस’ कब मनाया गया?
उत्तर:
पहला स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 को मनाया गया।

प्रश्न 35.
गाँधी जी ने नमक कानून कब तोड़ा?
उत्तर:
गाँधी जी ने नमक कानून 6 अप्रैल, 1930 को तोड़ा।

प्रश्न 36.
नमक को विरोध प्रतीक चुनने का एक कारण बताओ।
उत्तर:
क्योंकि नमक कर समस्त भारतीयों से जुड़ा था।

प्रश्न 37.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र में किस स्थान पर स्वतंत्र सरकार बनी?
उत्तर:
महाराष्ट्र के सतारा में स्वतंत्र सरकार बनी।

प्रश्न 38.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पूर्वी संयुक्त प्रांत में किस क्षेत्र में स्वतंत्र सरकार बनी?
उत्तर:
पूर्वी संयुक्त प्रांत में बलिया में स्वतंत्र सरकार बनी।

प्रश्न 39.
भारत छोड़ो आंदोलन के समय मिदनापुर में बनी सरकार का नाम लिखें।
उत्तर:
मिदनापुर में बनी सरकार का नाम ‘तमलुक’ था।

प्रश्न 40.
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार कब बनी?
उत्तर:
1945 में लेबर पार्टी की सरकार बनी।

प्रश्न 41.
15 अगस्त, 1947 को गाँधी जी कहाँ पर थे?
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को गाँधी जी कलकत्ता में थे।

प्रश्न 42.
महात्मा गाँधी कब शहीद हुए?
उत्तर:
30 जनवरी, 1948 को।

प्रश्न 43.
महात्मा गाँधी की आत्मकथा का क्या नाम है?
उत्तर:
महात्मा गाँधी की आत्मकथा का नाम ‘सत्य के साथ मेरे अनुभव’ (My Experiments with Truth) है।

प्रश्न 44.
महात्मा गाँधी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था।

प्रश्न 45.
नमक सत्याग्रह किस समझौते के बाद स्थगित किया गया?
उत्तर:
गाँधी-इर्विन समझौते के बाद।

प्रश्न 46.
गाँधी जी ने अपने विचार सबसे पहले कौन-सी पुस्तक में रखे?
उत्तर:
गाँधी जी ने अपने विचार सबसे पहले ‘हिंदू स्वराज’ नामक पुस्तक में रखे।

प्रश्न 47.
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार जलियाँवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग मारे गए?
उत्तर:
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार जलियाँवाला बाग हत्याकांड में 379 लोग मारे गए।

प्रश्न 48.
असहयोग आंदोलन शुरू होने पर टैगोर ने कौन-सी उपाधि त्यागी?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन शुरू होने पर टैगोर ने ‘नाइट हुड’ की उपाधि त्यागी।

प्रश्न 49.
फरवरी, 1924 में जेल से रिहा होने पर गाँधी जी ने किस बात पर जोर दिया?
उत्तर:
फरवरी, 1924 में जेल से रिहा होने पर गाँधी जी ने रचनात्मक कार्यक्रमों पर जोर दिया।

प्रश्न 50.
गाँधी जी ने केवल एक बार काँग्रेस के किस वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की थी?
उत्तर:
गाँधी जी ने केवल एक बार 1925 ई० में काँग्रेस के बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं?
उत्तर:
भारतीयों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने में महात्मा गाँधी का सबसे अधिक योगदान है, इसलिए उन्हें भारत का ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
19वीं तथा 20वीं सदी के शुरू में भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। उन्हें कुली बुलाया जाता था। उन्हें फुटपाथ पर चलने की अनुमति नहीं थी। वे प्रथम श्रेणी (रेलवे) में यात्रा नहीं कर सकते थे। उनका होटलों में प्रवेश वर्जित था। उन्हें वहाँ अपना पंजीकरण करवाना पड़ता था तथा तीन पौंड सालाना कर देना पड़ता था।

प्रश्न 3.
सत्याग्रह का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है-सत्य पर दृढ़तापूर्वक अड़े रहना। यह विरोध करने का अहिंसात्मक मार्ग था। गाँधी जी के अनुसार, “सत्य पर अटल रहना ही सत्याग्रह है। सत्याग्रह असत्य का सत्य से और हिंसा को अहिंसा से जीतने का एक नैतिक शस्त्र है।”

प्रश्न 4.
साधन और साध्य की श्रेष्ठता क्या है?
उत्तर:
गाँधी जी साधन और साध्य की पवित्रता में विश्वास रखते थे। इसका अभिप्राय यह है कि आपका लक्ष्य (object) या साध्य भी उत्तम होना चाहिए और उसे प्राप्त करने के साधन भी शुद्ध होने चाहिएँ। स्वतंत्रता श्रेष्ठ लक्ष्य है तो उसे सत्याग्रह जैसे श्रेष्ठ साधन से ही प्राप्त किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
‘बाल-पाल-लाल’ कौन थे?
उत्तर:
20वीं सदी के आरंभ में काँग्रेस में उग्रराष्ट्रवाद का उदय होने लगा था। महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक इसके नेता थे। बंगाल में बिपिनचंद्र पाल यह कार्य कर रहे थे तथा पंजाब में लाला लाजपत राय इस धारा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इन तीनों नेताओं को सारे देश में ‘बाल-पाल-लाल’ के नाम से जाना जाने लगा था।

प्रश्न 6.
गाँधी जी का 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में भाषण क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर:
गाँधी जी ने इस समारोह में उपस्थित अमीर और भद्रजनों को भारत के गरीबों, किसानों और मजदूरों की तरफ ध्यान न देने के लिए लताड़ा था जो उस समारोह में उपस्थित नहीं थे। वस्तुतः वे इस भाषण में यह बता रहे थे कि. राष्ट्रीय आंदोलन में आम लोग नहीं हैं और वे इसे अब सच्चे मायने में लोगों का आंदोलन बनाना चाहते थे।

प्रश्न 7.
अहमदाबाद मिल हड़ताल पर नोट लिखें।
उत्तर:
1918 ई० में गाँधी जी ने अहमदाबाद के फैक्ट्री मालिकों तथा मजदूरों के बीच विवाद में हस्तक्षेप किया। उन्होंने मजदूरों को हड़ताल पर जाने की सलाह दी। स्वयं उन्होंने आमरण अनशन भी रखा। इसका प्रभाव मिल-मालिकों पर पड़ा तथा उन्होंने मज़दूरों का 35% मेहनताना बढ़ाना मान लिया।

प्रश्न 8.
खेड़ा किसान सत्याग्रह पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1918 में खेड़ा के किसानों की फसल समाप्त हो गई थी परंतु सरकार पूरा लगान वसूल करना चाहती थी। गाँधी जी ने किसानों से कहा कि वे लगान न दें। इस पर सरकार ने आदेश निकाले कि लगान उन्हीं से वसूला जाए जो उसे देने में समर्थ हों। इसके बाद संघर्ष वापिस ले लिया गया।

प्रश्न 9.
असहयोग से गाँधी जी का क्या अर्थ था?
उत्तर:
गाँधी जी के अनुसार असहयोग का अर्थ यह है कि यदि सरकार जनता की आशाओं के अनुसार काम नहीं करती है या जनता के कष्टों और शिकायतों को दूर करने की कोशिश नहीं करती है या सरकार भ्रष्ट हो चुकी है तो ऐसी सरकार के साथ सहयोग न करना।

प्रश्न 10.
रॉलेट एक्ट क्या था?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सरकार ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा प्रावधान किया था कि किसी भी व्यक्ति को सरकार विरोधी होने की शंका के आधार पर ही जेल में डाला जा सकता था। विश्वयुद्ध के बाद के लिए सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जिसमें सिफारिश की गई कि शान्ति बनाए रखने के लिए प्रथम विश्वयुद्ध के समय के कानून ही जारी रहें। इसके आधार पर बने एक्ट को रॉलेट एक्ट कहते हैं। भारतीयों ने इसका विरोध किया तथा इसे ‘काला कानून’ करार दिया।

प्रश्न 11.
असहयोग आंदोलन के नकारात्मक कार्यक्रम क्या थे?
उत्तर:
इस आंदोलन में अहिंसात्मक ढंग से असहयोग करना था। अतः नकारात्मक कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण थे। इसमें सरकारी स्कूलों, कॉलेजों का बहिष्कार, सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार, चुनावों का बहिष्कार, सरकारी अलंकरणों, पदों का बहिष्कार, सरकारी समारोहों का बहिष्कार तथा विदेशी माल का बहिष्कार मुख्य थे।

प्रश्न 12.
असहयोग आंदोलन को स्थगित क्यों किया गया? अथवा महात्मा गांधी ने “असहयोग आंदोलन” वापिस क्यों लिया?
उत्तर:
यह एक अहिंसात्मक आंदोलन था परंतु 5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा नामक स्थान पर भीड़ ने थाने में आग लगा दी, जिससे 22 पुलिसकर्मी मारे गए। गाँधी जी को लगा कि आंदोलन में हिंसा प्रवेश कर चुकी है। अतः उन्होंने तत्काल आंदोलन स्थगित कर दिया।

प्रश्न 13.
लोग गाँधी जी में चमत्कारिक शक्तियों की कल्पना करते थे। स्पष्ट करें।
उत्तर:
गाँधी जी जहाँ-जहाँ गए उनके बारे में अनेक अफवाहें फैलती थीं। लोगों का मानना था कि गाँधी जी में चमत्कारिक शक्तियाँ हैं। जैसे संयुक्त प्रान्त में गोरखपुर जिले के लोगों का मानना था कि गाँधी जी को राजा ने किसानों के कष्ट समाप्त करने के लिए भेजा है। वे अंग्रेज़ शासकों से भी ऊँचे हैं। उनके आने से अंग्रेज़ शासक जिले से भाग जाएँगे। गाँधी जी की आलोचना पर अनिष्ट होता है।

प्रश्न 14.
साइमन कमीशन पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1928 ई० में अंग्रेज़ सरकार ने सर साइमन की अध्यक्षता में एक 7 सदस्यों का कमीशन भारत की तात्कालिक शासन व्यवस्था के कार्यों की जाँच करने के लिए भारत भेजा। इसके सभी सदस्य गोरे थे। इसका भारत में व्यापक विरोध हुआ। मार्च, 1928 में कमीशन वापिस चला गया।

प्रश्न 15.
लाहौर अधिवेशन (1929) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
1929 में आयोजित लाहौर अधिवेशन का महत्त्व यह है कि इस अधिवेशन के अध्यक्ष युवा जवाहरलाल नेहरू थे तथा इस अधिवेशन में काँग्रेस ने ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ को अपना लक्ष्य घोषित किया तथा इस संबंध में प्रस्ताव पास किया।

प्रश्न 16.
पूना पैक्ट क्या था?
उत्तर:
गोलमेज सम्मेलनों के बाद अंग्रेज़ सरकार ने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा करते हुए 1932 में निर्णय दिया कि आगे से दलितों को भी पृथक् निर्वाचन का अधिकार दिया जाएगा। गाँधी जी ने इस निर्णय का विरोध करते हुए आमरण अनशन रखा। अंततः गाँधी जी व अम्बेडकर में समझौता हुआ। इसी समझौते को पूना समझौता कहा जाता है। इस समझौते के अनुसार दलित वर्ग ने पृथक् निर्वाचन की बात समाप्त कर दी तथा इसके स्थान पर सामान्य सीटों में आरक्षण की बात को मान लिया गया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत सत्याग्रह क्या था?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर भारत सरकार ने भारत को भी युद्ध में धकेल दिया था। इसका काँग्रेस ने जोरदार विरोध किया। अक्तूबर, 1939 में काँग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिया। काँग्रेस चाहती थी कि सरकार आश्वासन दे कि युद्ध के बाद भारत को आजादी दे दी जाएगी व युद्ध काल में युद्ध विभाग भारतीयों के हाथों में सौंपेगी। सरकार ने उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाया तो अपनी बातों पर विश्व का ध्यान खींचने तथा देश की जनता को जगाने के लिए काँग्रेस ने 1940-41 में व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया।

प्रश्न 18.
अंतरिम सरकार की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
केबिनेट मिशन योजना के अनुसार देश में संविधान सभा के चुनाव हुए तथा जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार की स्थापना हुई।

प्रश्न 19.
वेवल योजना क्या थी?
उत्तर:
भारत के वायसराय लार्ड वेवल ने मार्च, 1945 में प्रस्ताव रखा कि वायसराय तथा प्रधान सेनापति को छोड़कर वायसराय की काऊंसिल के अन्य सदस्य भारतीय होंगे जिनका चुनाव भारतीय राजनीतिक दलों में से धार्मिक समता के आधार (अर्थात् हिंदू व मुसलमान सदस्य बराबर-बराबर होंगे) पर किया जाएगा।

प्रश्न 20.
दांडी मार्च पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
मार्च, 1930 में महात्मा गाँधी ने 240 मील की पैदल यात्रा करके समुद्र तट पर दांडी नामक स्थान पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। इसके पश्चात् नमक घर-घर में बनने लगा और अंग्रेज़ सरकार को भारतीयों को नमक बनाने की अनुमति देनी पड़ी।

प्रश्न 21.
असहयोग आंदोलन के बाद गाँधी जी पर चले मुकद्दमे का निर्णय करते हुए अंग्रेज़ जज़ ने क्या टिप्पणी दी?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन के बाद 10 मार्च, 1922 को गाँधी जी को भी बंदी बना लिया गया। उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। सजा सुनाने वाले जज सी०एन० ब्रूमफील्ड (C.N. Broomfield) ने आश्चर्यजनक टिप्पणी की। जज ने कहा, “इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि मैंने आज तक जितनी जाँच की है अथवा करूँगा आप उनसे भिन्न श्रेणी के हैं। इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता हैं।

यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे भिन्न मत रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन जीने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं।” कानून की अवहेलना करने के कारण उन्हें 6 वर्ष की सजा दी गई परंतु साथ ही जज ब्रूमफील्ड ने कहा, “यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों में कमी और आपको मुक्त करना संभव हुआ तो इससे मुझसे ज़्यादा कोई प्रसन्न नहीं होगा।”

प्रश्न 22.
गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष में गरीब लोगों से क्या प्रेरणा मिली?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को गरीब मजदूरों का नेतृत्व करने का मौका मिला। वे उन लोगों की बलिदान करने की क्षमता व साहस को देखकर अचंभित हुए। दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष के संदर्भ में उन्होंने लिखा कि वे (मजदूर) श्रद्धा से कार्य करते थे तथा उसके बदले में कभी भी वह कोई भी ईनाम पाने की अपेक्षा नहीं करते थे। उन्होंने मुझे प्रेरणा दी। उन्होंने अपने बलिदान, श्रद्धा, महान ईश्वर में गहरी आस्था से वह करने योग्य बनाया जो मैं कर सका। उन्होंने गरीब और अनपढ़ लोगों को सत्याग्रह और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और भारत में अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन चलाया।

प्रश्न 23.
चंपारन सत्याग्रह पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
चंपारन सत्याग्रह चंपारन के किसानों का यूरोप के ‘बागान मालिक’ अत्यधिक शोषण करते थे। किसानों के स्थानीय नेताओं ने 1916 की लखनऊ में हुई काँग्रेस की वार्षिक बैठक के समय गाँधी जी को चंपारन आने के लिए मना लिया। 1917 में गाँधी जी ने चंपारन पहुँचकर किसानों की स्थिति जानने के लिए विस्तृत पूछताछ शुरू कर दी। इस पर नाराज होकर जिला प्रशासन ने गाँधी जी को चंपारन छोड़ने का आदेश दे दिया परंतु गाँधी जी ने इन आदेशों की पालना करने से साफ मना कर दिया।

इसके लिए वे किसी भी तरह का परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो गए। इस पर सरकार को अपने आदेश को रद्द करना पड़ा। अब सरकार ने एक जाँच कमेटी बनाई जिसका गाँधी जी को सदस्य बनाया गया। अंततः गाँधी जी के प्रयासों से चंपारन के किसानों का शोषण कम हो गया। भारत में गाँधी जी की यह पहली जीत थी।

प्रश्न 24.
प्रथम विश्वयुद्ध का भारतीयों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों ने अंग्रेज़ों का तन, मन व धन से साथ दिया था। इस आशा में कि उन्हें युद्ध के बाद आत्म-निर्णय का अधिकार दिया जाएगा। इस काल में भारत का कर्ज 411 करोड़ से 781 करोड़ हो गया। अनाज महँगा हो गया। वस्तुओं के दाम बढ़ गए। अनाज व कपड़े में कमी आ गई। युद्ध के बाद सरकार ने सैनिकों व मजदूरों की छंटनी कर दी। साथ ही अकाल-प्लेग से लगभग 120-130 लाख लोग मर गए। इन सबसे भारतीयों में जन-असंतोष पनपा।

प्रश्न 25.
सार्वजनिक भाषण राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत कैसे हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन में लोगों को संगठित करने और जनमत तैयार करने के लिए गाँधी जी और अन्य राष्ट्रीय नेता सार्वजनिक मंचों पर भाषण देते थे। इन बड़े नेताओं के भाषण संकलित होते तथा समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होते थे। इतिहासकार के लिए यह भाषण बड़े महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं क्योंकि इनसे उनकी नीतियों, कार्यक्रमों तथा लोगों को संगठित करने के तरीकों की झलक मिलती है।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आंदोलन का महत्त्व लिखें। इसका उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन में देश के सभी वर्गों व समुदायों के लोगों ने भाग लिया। अतः अब राष्ट्रीय आंदोलन सही अर्थों में जन-आंदोलन बन गया। यह देश के सारे भागों में फैल गया। काँग्रेस अब मात्र वाद-विवाद वाली संस्था नहीं रही। वह कार्यशील संगठन बन गई। इससे हिंदू-मुस्लिम एकता भी आई। इस आंदोलन से लोगों में अंग्रेजी राज का डर कम हुआ। उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी पाठ भी सीखा। असहयोग आंदोलन के मुख्य तीन उद्देश्य थे

  1. रॉलेट एक्ट रद्द करवाना तथा पंजाब की गलतियों को ठीक करवाना।
  2. खिलाफ़त से जुड़ी गलतियों को ठीक करवाना।
  3. स्वराज की माँग स्वीकार करवाना।

प्रश्न 2.
गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन क्यों छेड़ा?
उत्तर:
1942 में क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे

  1. क्रिप्स मिशन की विफलता से सिद्ध हो गया था कि अंग्रेज़ सरकार भारतीयों की (काँग्रेस की) युद्ध के दौरान तथा युद्ध के बाद की माँगों (युद्ध के बाद स्वतंत्रता का वायदा) को स्वीकार करने वाली नहीं थी।
  2. इसी समय में भारत पर जापानी हमले के खतरे की आशंका बन गई थी। लोगों में जापानी हमले का भय पैदा हो रहा था। गाँधी जी का विश्वास था कि, “भारत में अंग्रेज़ों की उपस्थिति जापान के लिए भारत पर आक्रमण का आमंत्रण है और उनकी वापसी द्वारा यह संताप भी समाप्त हो जाएगा।”
  3. युद्ध के कारण वस्तुओं के अभाव और बढ़ती हुई कीमतों ने लोगों के असंतोष को विस्फोटक स्थिति में पहुँचा दिया था। गाँधी जी इस स्थिति से परिचित थे।

प्रश्न 3.
जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकांड-प्रथम विश्वयुद्ध से पंजाब ज्यादा प्रभावित हुआ था। वहाँ पर बहुत-से लोगों ने युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दिया था, परंतु इसके बदले रॉलेट एक्ट मिला। गाँधी जी के सत्याग्रह शुरू करने पर पंजाब से भारी समर्थन मिला। लाहौर, गुजरांवाला, अमृतसर, मुल्तान, कसूर आदि स्थानों पर सभाएँ हुई। 30 मार्च, 1919 व 6 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हड़ताल हुईं। सरकार ने स्थानीय नेताओं-डॉ० सत्यपाल और डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। गाँधी जी बंबई से पंजाब के लिए रवाना हुए तो 9 अप्रैल, 1919 को उन्हें पलवल में गिरफ्तार कर वापिस भेज दिया गया। लोग उत्तेजित हो गए।

विरोध में जलसे-जुलूस हुए, जिसमें हिंसा भी हुई। 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग में 20 हजार लोग एकत्रित हुए। इन पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी के (रास्ता रोक कर) गोली चलाने के आदेश दे दिए। लगभग 1650 गोलियाँ चलाई गईं। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 लोग मारे गए। मरने वालों की संख्या वास्तव में कहीं ज्यादा थी। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने सारे देश को स्तब्ध कर दिया।

प्रश्न 4.
खिलाफत आंदोलन क्या था?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की का खलीफा हार गया तथा 1920 में उसके साथ अपमानजनक संधि की गई। भारतीय मुसलमानों में इससे असंतोष था। उन्होंने मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में अंग्रेज सरकार विरोधी और खलीफा के समर्थन में आंदोलन चलाया। यह आंदोलन ‘खिलाफत आंदोलन’ कहलाता है। इस आंदोलन की तीन प्रमुख माँगें थीं-एक पहले के ऑटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थलों पर खलीफा का अधिकार बने रहने दिया जाए। दो, जज़ीरात-अल-अरब (अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन) इस्लामी प्रभुसत्ता (यानी खलीफा) के अधीन रहे तथा तीन, खलीफा के अधीन इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी जगत के विश्वास को सुरक्षित बनाए रखने में समर्थ हों।’

आंदोलन चलाने के लिए 1918 में खिलाफत कमेटी का गठन हुआ। महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग को खिलाफत के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय हिन्दू और मुस्लिम मिलकर औपनिवेशिक शासन का खात्मा कर देंगे। गाँधी जी हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्वराज की प्राप्ति के लिए आवश्यक मानते थे।

प्रश्न 5.
गाँधी जी की जीवन-शैली कैसी थी?
उत्तर:
गाँधी जी की जीवन-शैली से लोगों को लगता था कि वे उनके स्वाभाविक नेता हैं। गाँधी जी उन्हीं की तरह वस्त्र पहनते थे व उन्हीं की तरह रहते थे। वे जन-सामान्य की भाषा बोलते थे। गाँधी जी दूसरे नेताओं की तरह जनसमूह से अलग खड़े नहीं होते थे, बल्कि वे उनसे गहरी सहानुभूति रखते थे और उनसे घनिष्ठ संबंध भी बनाते थे। उल्लेखनीय है कि 1921 में दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान गाँधी जी ने अपना सिर मुंडवा लिया था और गरीबों के साथ अपना तादात्म्य (Identity) स्थापित करने के लिए सूती वस्त्र पहनने शुरू कर दिए थे। इस प्रकार उनके वस्त्रों से जनता के साथ उनका नाता झलकता था। जहाँ दूसरे राष्ट्रवादी नेता पश्चिमी शैली के सूट या भारतीय बन्द गले के कोट जैसे वस्त्र पहनते थे, वहीं गाँधी जी लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आंदोलन के लिए उत्तरदायी कारणों का विवरण दें।
अथवा
‘असहयोग आन्दोलन’ महात्मा गाँधी ने क्यो चलाया था? हालातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध से पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयों, रॉलेट एक्ट, खिलाफत आंदोलन तथा जलियाँवाला बाग हत्याकांड जैसे कारणों ने गाँधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह चलाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हें विश्वास हो गया था कि “ब्रिटिश साम्राज्य आज शैतानियत का प्रतीक है।” परिणामस्वरूप गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन के रूप में देशव्यापी आंदोलन चलाया।

1. कारण (Causes)
1. प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव (Effects of the First World War) प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों ने अंग्रेज़ों का तन, मन व धन से साथ दिया था। इस आशा में कि उन्हें युद्ध के बाद आत्म-निर्णय का अधिकार दिया जाएगा। इस काल में भारत का कर्ज 411 करोड़ से 781 करोड़ हो गया। अनाज महँगा हो गया। वस्तुओं के दाम बढ़ गए। अनाज व कपड़ों में कमी आ गई। युद्ध के बाद सरकार ने सैनिकों व मजदूरों की छंटनी कर दी। साथ ही अकाल-प्लेग से लगभग 120-130 लाख लोग मारे गए। इस सबसे जन-असंतोष पनपा।

2. रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act)-1919 में अंग्रेज़ी सरकार ने गाँधी जी की झोली में ऐसा मुद्दा डाल दिया था जिससे वे देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर सकते थे। 1914-18 के विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिए थे और किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर जेल में डाला जा सकता था। युद्ध के बाद भी सरकार ने सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशों पर इन कठोर उपायों को जारी रखने का फैसला लिया। असेंबली में सभी भारतीयों ने इसका विरोध किया। इसे काला कानून (BlackAct) करार दिया गया। साधारण लोगों के लिए इस एक्ट का अर्थ था, “कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं, कोई अपील नहीं।”

रॉलेट एक्ट के जवाब में गाँधी जी ने सत्याग्रह सभा का गठन किया तथा देशभर में एक्ट के खिलाफ अभियान चलाने का निश्चय किया। एक्ट के विरोध में पहले 30 मार्च, 1919 तथा बाद में 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। 30 मार्च और 6 अप्रैल दोनों ही दिन देश के उत्तरी और पश्चिमी नगरों व कस्बों में हड़ताल रही। चारों ओर बंद के समर्थन में दुकानों । और स्कूलों के बंद होने के कारण जनजीवन ठप्प हो गया। पंजाब, गुजरात और बंगाल में हिंसा की घटनाएँ भी हुईं। परंतु रॉलेट सत्याग्रह से जुड़ी घटनाओं की प्रतिक्रिया आगे बढ़ चुकी थी जिसकी परिणति जलियाँवाला बाग हत्याकांड में हुई।।

3. जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)-विश्वयुद्ध से पंजाब ज्यादा प्रभावित हुआ था। वहाँ पर बहुत-से लोगों ने युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दिया था। जब वह अपनी सेवा के बदले इनाम की अपेक्षा करते थे, परंतु इसके विपरीत रॉलेट एक्ट मिला। गाँधी जी द्वारा सत्याग्रह शुरू करने पर पंजाब से भारी समर्थन मिला। लाहौर, गुजरांवाला, अमृतसर, मुल्तान, कसूर आदि स्थानों पर सभाएँ हुईं। 30 मार्च, 1919 व 6 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हड़ताल हुई। सरकार ने दमन का सहारा लिया।

स्थानीय नेताओं डॉ० सत्यपाल और डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधी जी बंबई से पंजाब के लिए रवाना हुए तो 9 अप्रैल, 1919 को उन्हें पलवल में गिरफ्तार कर वापिस भेज दिया गया। लोग उत्तेजित हो गए। विरोध में जलसे-जुलूस हुए, जिसमें हिंसा भी हुई। 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग में 20 हजार लोग एकत्रित हुए। इस पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी के (रास्ता रोक कर) गोली चलाने के आदेश दे दिए।

लगभग 1650 गोलियाँ चलाई गईं। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 लोग मारे गए। मरने वालों की संख्या वास्तव में इससे भी कहीं ज्यादा थी। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने सारे देश को स्तब्ध कर दिया।

4. खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)-प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की का खलीफा हार गया तथा 1920 में उसके साथ अपमानजनक संधि की गई। भारतीय मुसलमानों में इससे असंतोष था। उन्होंने मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में अंग्रेज़ सरकार विरोधी और खलीफा के समर्थन में आंदोलन चलाया। यह आंदोलन ‘खिलाफत आंदोलन’ कहलाता है। आंदोलन चलाने के लिए 1918 में खिलाफ़त कमेटी का गठन हुआ।

गाँधी जी असहयोग आंदोलन चलाने की तैयारी में थे। उन्होंने इस आशा से खिलाफत मुद्दे पर अपना सहयोग दिया कि असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय-हिंदू और मुस्लिम मिलकर औपनिवेशिक शासन का खात्मा कर देंगे। गाँधी जी हिंदू-मुस्लिम एकता को स्वराज की प्राप्ति के लिए आवश्यक मानते थे।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों का विवरण दें।
उत्तर:
1922 में असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया। गाँधी जी को जेल की सजा दी गई व 1924 में रिहा हुए। 1928 ई० में गाँधी जी पुनः सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने पर विचार करने लगे थे। इसी बीच सरकार ने भारत में साइमन कमीशन भेजकर भारतीय राजनीति को एक मुद्दा सौंप दिया, जिसका विरोध करते हुए काँग्रेस और गाँधी जी को अंततः नमक सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना पड़ा। सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए उत्तरदायी कारणों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. साइमन कमीशन (Simon Commission)-साइमन कमीशन को इंग्लैंड की सरकार ने भारत में 1919 के अधिनियम की कार्य-प्रणाली की समीक्षा करने के लिए भेजा था ताकि आगे के सुधारों पर विचार किया जा सके, परंतु इस कमीशन के सभी सदस्य श्वेत थे। परिणामस्वरूप भारत के सभी दलों ने इसका जोरदार विरोध किया। आयोग जहाँ पर भी गया लोगों ने ‘साइमन वापिस जाओ’ (Simon go back) के नारे लगाए। कई स्थानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया तथा गोलियाँ भी चलाईं। अमृतसर में साइमन का विरोध कर रही भीड़ का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे थे। उन पर लाठियों से प्रहार किए गए। उन्हें घातक चोटें आईं। इस कारण 17 नवंबर, 1928 को लाला जी का निधन हो गया।

2. लाहौर अधिवेशन तथा पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव (Lahore Session and Complete Independence Resolution) 1928 में काँग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में काँग्रेस द्वारा गठित नेहरू समिति ने भारत के लिए संविधान के प्रस्ताव रखे। इस प्रस्ताव में भारत के लिए अधिराज्य (Dominion States) की माँग की थी। इसका युवा सदस्यों (सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू आदि) ने विरोध किया था। तब गाँधी जी ने बचाव करते हुए प्रस्ताव इस शर्त पर पास करवाए थे कि एक वर्ष में अंग्रेज़ सरकार इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करेगी तो काँग्रेस पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास करेगी।

1929 में दिसंबर के अंत में काँग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से अति महत्त्वपूर्ण था। इसका अध्यक्ष युवा नेता जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया जो इस बात का प्रतीक था कि काँग्रेस में युवाओं की भूमिका बढ़ती जा रही थी और इसका नेतृत्व अब युवाओं को सौंपा जाएगा। दूसरा, काँग्रेस ने अपना लक्ष्य ‘पूर्ण स्वराज्य’ अथवा ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ को घोषित किया।

3. स्वतंत्रता दिवस मनाना (Celebration of Independence Day) काँग्रेस ने तय किया कि 26 जनवरी, 1930 का दिन सारे देश में एक साथ स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस अवसर पर देशभक्ति के गीत गाए जाएँगे तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा। स्वयं गाँधी जी ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की रूपरेखा के बारे में सुस्पष्ट निर्देश जारी किए थे। गाँधी जी ने निर्देश दिए कि “यदि (स्वतंत्रता की) उद्घोषणा सभी गाँवों और सभी शहरों में व्यापक स्तर पर की जाए तो अच्छा होगा। अगर सभी जगहों पर एक ही समय में संगोष्ठियाँ हों तो अच्छा होगा।”

26 जनवरी को सारे देश में अति जोश-खरोश से स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। इस दिन लोगों ने प्रतिज्ञा ली कि, “अन्य लोगों की तरह भारतीय लोगों को भी स्वतंत्रता और अपने कठिन परिश्रम के फल का आनंद लेने का अहरणीय अधिकार है और यह कि यदि कोई भी सरकार लोगों को इन अधिकारों से वंचित रखती है या उनका दमन करती है तो लोगों को इन्हें बदलने अथवा समाप्त करने का भी अधिकार है।”

4. गाँधी जी द्वारा आंदोलन की तैयारी (Preparation for the Movement by Gandhiji)-धीरे-धीरे गाँधी जी सत्याग्रह करने का मन बना रहे थे। इसलिए उन्होंने 1929 में यूरोप जाने का विचार त्याग कर सारे देश का दौरा किया। इस जनसंपर्क अभियान से उन्होंने लोगों में अपने रचनात्मक कार्यक्रमों तथा अहिंसा के संदेश को पहुँचाया। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार पर जोर दिया। स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए भी उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए ताकि लोगों को जगाया जा सके। इस बीच फरवरी, 1930 में साबरमती आश्रम में काँग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई। इसमें ‘स्वतंत्रता प्राप्ति’ के लिए गाँधी जी का आंदोलन चलाने की बागडोर सौंप दी गई।

आंदोलन शुरू करने से पूर्व गाँधी जी सरकार को एक बार आगाह करना चाहते थे तथा साथ ही सरकार को निरुत्तर भी करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने वायसराय को 11 माँगें प्रस्तुत की। इन माँगों में प्रमुख थीं-पूर्ण शराब बंदी, नमक कानून हटाना, भू-राजस्व में कमी, सैनिक व्यय को आधा करना, विदेशी वस्त्रों पर तटकर, भारतीय वस्त्र उद्योग रक्षा, राजनीतिक बंदियों की रिहाई आदि ।

गाँधी जी ने वायसराय को यह भी सूचित किया कि उनकी माँगें न माने जाने पर वह नमक कानून तोड़कर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू कर देंगे। वायसराय से उत्तर न मिलने पर 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा शुरू की तथा 5 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुंचे। उन्होंने 6 अप्रैल, 1930 को नमक कानून तोड़कर आंदोलन शुरू किया।

प्रश्न 3.
दांडी यात्रा पर संक्षिप्त लेख लिखें।
उत्तर:
दांडी यात्रा तथा नमक कानून तोड़ने की योजना गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार करके बनाई थी। इस योजना के अनुसार 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से गाँधी जी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ 241 मील दूर दांडी नामक स्थान के लिए पद यात्रा शुरू की। यात्रा के दौरान मार्ग में पड़ने वाले गाँवों में लोगों का उत्साह अद्भुत था। लोगों ने गाँधी जी का झंडियों, बंदनवारों तथा पुष्पों से स्वागत किया। उन्होंने यात्रियों को फूल-मालाएँ पहनाईं, पांव छुए तथा ‘गाँधी जी की जय’ के नारों का उद्घोष किया।

जैसे-जैसे कारवाँ आगे बढ़ता चला गया हज़ारों लोग आकर यात्रा में शामिल होते चले गए। एक अनोखा दृश्य था एक दुबला, पतला आदमी, केवल घुटनों तक धोती पहने, कंधे पर एक लंबा थैला लटकाकर, हाथ में छड़ी पकड़े, तेज कदमों के साथ पगडंडियों पर, चौड़ी सड़कों पर चला जा रहा था और अपार भीड़ उसके साथ मिलने का प्रयास कर रही थी।

प्रारंभ में अंग्रेज़ समर्थक समाचार-पत्रों ने गाँधी जी की इस योजना का बड़ा मजाक उड़ाया था। उसे ‘बाल विहार’ की संज्ञा दी तथा कहा कि, “क्या समुद्र के पानी को केतली में उबालकर महामहिम सम्राट को सिंहासन से हटाया जा सकता है।” वायसराय इर्विन ने भी 20 फरवरी, 1930 को भारत मंत्री को लिखा था कि वर्तमान में नमक आंदोलन से उसकी रात की नींद नहीं उड़ी है, परंतु सरकार तथा उसके समर्थकों का अनुमान गलत था। यात्रा शुरू होने से पहले ही हज़ारों लोग साबरमती आश्रम में जमा होने लगे थे। 11 मार्च सायं को आश्रम में 75,000 हज़ार लोग मौजूद थे जिन्हें गाँधी जी ने अहिंसा का महत्त्व समझाया।

यात्रा शुरू होने पर सफलता की खबरें समाचार-पत्रों में आने लगीं। गुजरात के गाँवों के 300 अधिकारियों ने त्याग पत्र दे दिया। जब तक गाँधी जी दांडी पहुंचे तब तक 24 दिनों में सारे देश में हलचल पैदा हो गई तथा सारा देश आंदोलन शुरू करने के लिए गाँधी जी के इशारे का इंतज़ार करने लगा। सुभाषचंद्र बोस ने इस यात्रा की तुलना इल्बा से लौटने पर नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनी से सत्ता प्राप्त करने हेतु रोम मार्च से की।

24 दिनों में यात्रा पूरी करके गाँधी जी व उनके सहयोगी 5 अप्रैल को दांडी पहुँचे व 6 अप्रैल को प्रातःकाल में गाँधी जी समुद्र तट पर पहुंचे। वहाँ उन्होंने नमक एकत्र कर नमक कानून को भंग कर दिया और इस प्रकार 6 अप्रैल, 1930 को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया।

प्रश्न 4.
भारत छोड़ो आंदोलन की प्रगति का विवरण दीजिए।
उत्तर:
1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के साथ ही सरकार व काँग्रेस में गतिरोध पैदा हो गया था। काँग्रेस ने मंत्रिमंडलों से त्याग-पत्र दे दिया था। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया। 1942 में गाँधी जी को विश्वास हो गया था कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ देना चाहिए। 7 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी (AICC) की बैठक शुरू हुई। इस बैठक में वर्धा में पास किए ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ का अनुमोदन कर दिया गया।

साथ ही गाँधी जी ने अहिंसक संघर्ष छोड़ने की मंजूरी दी। 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के बाद अपने भाषण में महात्मा गाँधी ने कहा, “आप लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति को अब से स्वयं को स्वतंत्र व्यक्ति समझना चाहिए तथा इस प्रकार का कार्य करना चाहिए कि मानो आप स्वतंत्र हो….. मैं स्वतंत्रता से कम किसी भी वस्तु से संतुष्ट नहीं होऊँगा। हम करेंगे या मरेंगे। हम या तो भारत को स्वतंत्र कराएँगे या इस प्रयास में मर मिटेंगे।”

महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन ने गाँधी जी के दिल्ली आगमन (9 सितंबर, 1947) को “बड़ी लंबी और कठोर गर्मी के बाद बरसात की फुहारों के आने” जैसा महसूस किया। सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने के लिए गाँधी जी ने “सिक्खों, हिंदुओं और मुसलमानों से आह्वान किया कि वे अतीत को भुलाकर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने की बजाय एक-दूसरे के प्रति भाईचारे का हाथ बढ़ाने और शांति से रहने का संकल्प लें ….”

उल्लेखनीय है कि सद्भाव स्थापना में गाँधी जी के व्यापक असर को रेखांकित करते हुए माऊंटबेटन ने उन्हें ‘एक अकेली फौज’ (One man Boundary Force) कहा। गाँधी जी की धर्म में गहरी आस्था थी, किन्तु साथ ही वे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत में भी दृढ़ आस्था रखते थे। उन्होंने दो राष्ट्र सिद्धांत’ (अर्थात हिंदू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र हैं) को कभी भी स्वीकार नहीं किया। गाँधी जी और नेहरू के आग्रह पर काँग्रेस ने विभाजन के बाद “अल्पसंख्यकों के अधिकारों” पर एक प्रस्ताव पास किया।

इसमें भारत को बहुधर्मों और बहुत सारी नस्लों का देश स्वीकार किया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान में जो भी स्थिति हो, भारत “एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य की ओर से संरक्षण का अधिकार होगा।” गाँधी जी विभाजन के बाद भारत में मुसलमानों को पूर्ण सम्मानजनक स्थान देने के पक्ष में थे।

पंजाब में जब वे दंगे-तबाही मचा रहे थे तब उन्होंने एक लीगी नेता से कहा था कि, “मैं अपने प्राण देकर भी इसका सामना करना चाहता हूँ। मैं मुसलमानों को भारत की सड़कों पर रेंगने नहीं दूंगा। वे आत्मसम्मान के साथ चलेंगे।”

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. ‘भगवद्गीता’ किस धार्मिक पुस्तक का अंग है?
(A) रामायण
(B) ऋग्वेद
(C) महाभारत
(D) मनुस्मृति
उत्तर:
(C) महाभारत

2. रामायण और महाभारत का संस्कृत भाषा में रचनाकाल
(A) लगभग 1000 ई० पू० से 600 ई० पू०
(B) लगभग 600 ई० पू० से 100 ई० पू०
(C) लगभग 500 ई० पू० से 400 ई० पू०
(D) लगभग 200 ई० पू० से 200 ई०
उत्तर:
(C) लगभग 500 ई० पू० से 400 ई० पू०

3. महाभारत का युद्ध किस स्थान पर हुआ था?
(A) इंद्रप्रस्थ
(B) कुरुक्षेत्र
(C) वैशाली
(D) राजगृह
उत्तर:
(B) कुरुक्षेत्र

4. वेदों की संख्या थी
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) आठ
उत्तर:
(A) चार

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

5. रुद्रदामन किस वंश का था?
(A) कण्व
(B) सातवाहन
(C) मौर्य
(D) शक
उत्तर:
(D) शक

6. प्राचीनतम ग्रन्थों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्तव्य होता था
(A) ब्राह्मणों की सेवा
(B) वैश्यों की सेवा
(C) क्षत्रियों की सेवा
(D) तीन उच्च वर्गों की सेवा
उत्तर:
(D) तीन उच्च वर्गों की सेवा

7. पांडवों की सहपत्नी थी
(A) प्रभावती
(B) सीता
(C) गौतमी
(D) द्रौपदी
उत्तर:
(D) द्रौपदी

8. बहुपति प्रथा प्रचलित थी
(A) कौरवों में
(B) पांडवों में
(C) सातवाहनों में
(D) शकों में
उत्तर:
(B) पांडवों में

9. ‘मनुस्मृति’ का संकलन कब हुआ था ?
(A) 200 ई० पूर्व – 200 ई० में
(B) 200 ई० पूर्व – 50 ई० में
(C) 100 ई० पूर्व – 100 ई० में
(D) 200 ई०- 300 ई० में
उत्तर:
(A) 200 ई० पूर्व – 200 ई० में

10. एकलव्य की कथा निम्नलिखित में से कौन-से ग्रंथ में मिलती है?
(A) महाभारत
(B) रामायण
(C) मनुस्मृति
(D) जातक कथा
उत्तर:
(A) महाभारत

11. पाणिनि द्वारा लिखित ग्रन्थ का नाम बताएँ
(A) रामायण
(B) महाभारत
(C) अष्टाध्यायी
(D) महावंश
उत्तर:
(C) अष्टाध्यायी

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

12. निम्नलिखित में से किस अभिलेख में रेशम बुनकरों की एक श्रेणी द्वारा (437-38 ई० में) सूर्य मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है?
(A) मंदसौर अभिलेख
(B) गढ़वा अभिलेख
(C) समुद्रगुप्त के प्रयाग अभिलेख
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मंदसौर अभिलेख

13. हस्तिनापुर गाँव कहाँ स्थित है?
(A) उत्तर:प्रदेश में
(B) मध्यप्रदेश में
(C) बिहार में
(D) बंगाल में
उत्तर:
(A) उत्तर:प्रदेश में

14. महाभारत के लेखक का नाम
(A) महर्षि वेदव्यास
(B) महर्षि वाल्मीकि
(C) महर्षि तुलसीदास
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि वेदव्यास

15. गौतमी-पुत्र-सिरी-सातकणि किस वंश का था?
(A) शक
(B) सातवाहन
(C) मौर्य
(D) कण्व
उत्तर:
(B) सातवाहन

16. ‘अष्टाध्यायी’ का लेखक है
(A) मनु
(B) चरक
(C) पाणिनि
(D) शूद्रक
उत्तर:
(C) पाणिनि

17. मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् सम्पत्ति का अधिकार किसको दिया जाता था?
(A) ज्येष्ठ पुत्र को
(B) सबसे बड़ी पुत्री को
(C) सबसे छोटे पुत्र को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ज्येष्ठ पुत्र को

18. ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक का लेखक था
(A) मनु
(B) पाणिनि
(C) शूद्रक
(D) एकलव्य
उत्तर:
(C) शूद्रक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गोत्र बहिर्विवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को गोत्र बहिर्विवाह कहा गया है।

प्रश्न 2. अंतर्विवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक ही गोत्र, कुल या जाति में विवाह-संबंध को अंतर्विवाह कहा गया है।

प्रश्न 3.
बहुपत्नी प्रथा क्या होती है?
उत्तर:
एक ही पुरुष द्वारा एक से अधिक पत्नियाँ रखना, बहुपत्नी प्रथा कहलाती है।

प्रश्न 4.
एकलव्य की कथा कौन-से ग्रंथ में मिलती है?
उत्तर:
एकलव्य की कथा ‘महाभारत’ में मिलती है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 5.
संस्कृत अभिलेखों व ग्रंथों में व्यापारियों के लिए क्या शब्द प्रयुक्त किया गया है?
उत्तर:
संस्कृत अभिलेखों व ग्रंथों में व्यापारियों के लिए वणिक शब्द प्रयुक्त किया गया है।

प्रश्न 6.
विवाह-संस्कार में वर-वधू द्वारा हाथ पकड़ने की प्रथा को क्या कहा गया?
उत्तर:
विवाह-संस्कार में वर-वधू द्वारा हाथ पकड़ने की प्रथा को पाणिग्रहण कहा गया।

प्रश्न 7.
वर-वधू द्वारा अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने को क्या संज्ञा दी गई?
उत्तर:
वर-वधू द्वारा अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने को सप्तपदी कहा गया।

प्रश्न 8.
वर्ण-व्यवस्था में असंस्कृतभाषी लोगों को क्या कहकर पुकारा गया?
उत्तर:
वर्ण-व्यवस्था में असंस्कृतभाषी लोगों को म्लेच्छ या असभ्य कहकर पुकारा गया।

प्रश्न 9.
वर्ण-व्यवस्था में चाण्डाल किसे कहा गया?
उत्तर:
शवों की अंत्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा गया।

प्रश्न 10.
पितृवंशिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पितृवंशिकता से अभिप्राय वह वंश-परंपरा है जो पिता से पुत्र, फिर पौत्र और प्रपौत्र आदि से चलती है। इसमें पैतृक संपत्ति पुत्रों में विभाजित होती है।

प्रश्न 11.
वर्ण-व्यवस्था वाले समाज में चाण्डाल एवं अपवित्र समझे गए लोगों को कौन-सा स्थान प्राप्त था?
उत्तर:
इनको सबसे निम्न कोटि में रखा गया था।

प्रश्न 12.
मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का बँटवारा किस प्रकार बताया गया है?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार, माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक जायदाद का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना. चाहिए, किंतु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था।

प्रश्न 13.
मनुस्मृति के अनुसार पैतृक संपत्ति में स्त्रियों के क्या अधिकार थे?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियाँ पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 14.
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रीधन क्या था?
उत्तर:
विवाह के समय मिले उपहार तथा पति द्वारा दिए गए उपहार स्त्रीधन था, जिस पर स्त्रियों का स्वामित्व माना। जाता था।

प्रश्न 15.
मातृवंशिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मातृवंशिकता से अभिप्राय वह वंश-परंपरा है, जो माँ से जुड़ी होती है। ऐसी परंपराओं के उदाहरण अति प्राचीन काल में ही मिलते हैं।

प्रश्न 16.
ब्राह्मणीय ग्रंथों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्त्तव्य क्या था?
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रंथों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्त्तव्य तीन उच्च वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) की सेवा थी।

प्रश्न 17.
मनुस्मृति (संस्कृत में) की रचना का काल कौन-सा है?
उत्तर:
मनुस्मृति की रचना लगभग 200 ई० पू० से लेकर 200 ई० के बीच की गई।

प्रश्न 18.
पाणिनि की अष्टाध्यायी (संस्कृत व्याकरण) कब लिखी गई?
उत्तर:
लगभग 500 ई०पू० में पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी लिखी गई।

प्रश्न 19.
प्रारंभिक अभिलेख किस भाषा में खुदे हुए हैं?
उत्तर:
प्राकृत भाषा में।

प्रश्न 20.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का अंग्रेज़ी अनुवाद किसने और कब शुरू किया?
उत्तर:
जे०ए०बी० वैन बियुटेनेन (J.A.B. Van Buitenen) ने महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का अंग्रेजी अनुवाद सन् 1973 में शुरू किया।

प्रश्न 21.
महाभारत की मूल कथा के रचयिता किसे माना जाता है?
उत्तर:
महाभारत की मूल कथा के रचयिता भाट सारथी थे जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था।

प्रश्न 22.
हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के कौन-से जिले में है?
उत्तर:
हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में स्थित एक गाँव है।

प्रश्न 23.
‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक का लेखक कौन है?
उत्तर:
शूद्रक ने ‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक की रचना की।

प्रश्न 24.
‘मृच्छकटिकम्’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘मृच्छकटिकम्’ का शाब्दिक अर्थ है ‘मिट्टी की गाड़ी’।

प्रश्न 25.
सातवीं शताब्दी में कौन-सा बौद्ध-यात्री चीन से भारत आया?
उत्तर:
ह्यूनसांग नामक चीनी-यात्री राजा हर्षवर्धन के काल में भारत आया।

प्रश्न 26.
‘कुन्ती ओ निषादी’ की लेखिका का नाम बताएँ।
उत्तर:
‘कुन्ती ओ निषादी’ की लेखिका (बांग्ला लेखिका) महाश्वेता देवी हैं।

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प्रश्न 27.
यायावर (घुमन्तु) पशुपालक कबीलों के लोगों को ब्राह्मण ग्रंथों में क्या कहा गया है?
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसे लोगों को, जिन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था, म्लेच्छ कहा गया।

प्रश्न 28.
वेदों की भाषा क्या थी?
उत्तर:
संस्कृत।

प्रश्न 29.
महाभारत में कुल कितने पर्व व अध्याय हैं?
उत्तर:
महाभारत में कुल 18 पर्व एवं 1948 अध्याय हैं।

प्रश्न 30.
सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार किसने करवाया?
उत्तर:
सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार शक शासक रूद्रदामन ने करवाया था।

प्रश्न 31.
महाभारत की प्राप्त पांडुलिपियों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
महाभारत की पांडुलिपियों को दो भागों, उत्तरी व दक्षिणी भागों में बाँटा गया है।

प्रश्न 32.
विशिष्ट परिस्थितियों में किस स्त्री ने सत्ता का उपभोग किया?
उत्तर:
विशिष्ट परिस्थितियों में प्रभावति गुप्त ने सत्ता का उपभोग किया।

प्रश्न 33.
भारतीय विद्वान् एस०एन० बैनर्जी ने महाभारत पर कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर:
एस०एन० बैनर्जी ने महाभारत पर ‘Parties, Politics and the Political ideas of Mahabharata’ नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 34.
श्रीमद्भगवद् गीता में कितने श्लोक हैं?
उत्तर:
श्रीमद्भगवद् गीता में लगभग 700 श्लोक हैं।

प्रश्न 35.
धर्मशास्त्र (आश्वलायन) में विवाह के कितने प्रकार बताए गए हैं?
उत्तर:
आश्वलायन में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं।

प्रश्न 36.
रामायण व महाभारत महाकाव्यों की मुख्य कथा का संबंध किससे है?
उत्तर:
रामायण व महाभारत महाकाव्यों की मुख्य कथा का संबंध परिवार में पितृवंशिकता के आदर्श को मजबूत करने से है।

प्रश्न 37.
विवाह संस्कार में ‘पाणिग्रहण’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर द्वारा वधू का हाथ पकड़ने की प्रथा को ‘पाणिग्रहण’ संस्कार कहा गया।

प्रश्न 38.
धर्मशास्त्रों में किन ग्रंथों को शामिल किया गया है?
उत्तर:
धर्मसूत्र, स्मृतियाँ और टीकाएँ तीन तरह के ग्रंथों को धर्मशास्त्रों में शामिल किया गया है।

प्रश्न 39.
धर्मशास्त्र का संकलन काल क्या है?
उत्तर:
धर्मशास्त्रों का संकलन काल 500 ई०पू० से 600 ई० के बीच का है।

प्रश्न 40.
आश्वलायन गृहसूत्र के अनुसार ब्रह्म विवाह किसे माना गया?
उत्तर:
ऐसा विवाह जिसमें वेदों को जानने वाले शीलवान वर को घर बुलाकर वस्त्र व आभूषण आदि से सुसज्जित कन्या को पिता द्वारा दान दिया जाता था।

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प्रश्न 41.
पैशाच विवाह किसे माना गया?
उत्तर:
ऐसा विवाह जिसमें सोई हुई, घबराई हुई कन्या के साथ बलात्कार या धोखा देकर विवाह किया जाता था।

प्रश्न 42. ‘फा-शियन’ किस देश का रहने वाला था?
उत्तर:
‘फा-शियन’ चीन का रहने वाला था।

प्रश्न 43.
श्रीमद्भगवद् गीता की शिक्षा का सार क्या है?
उत्तर:
श्रीमद्भगवद् गीता के अनुसार वर्ण व जाति के अनुरूप जिसका जो कर्त्तव्य निर्धारित हुआ है, उसे उस कर्त्तव्य को बिना किसी प्रतिफल की कामना से करना चाहिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध परंपरा में सामाजिक अनुबंध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बौद्ध परंपरा में ‘सामाजिक अनुबंध’ के अनुसार राजपद दैवीय या पैतृक नहीं था, बल्कि एक सामाजिक समझौते का परिणाम था। ऐसे किसी भी उपयुक्त व्यक्ति को राजा चुना जा सकता था जो न्यायप्रिय हो तथा शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षमता रखता हो।

प्रश्न 2.
फाहियान (Fa-xian) ने चाण्डालों की स्थिति के बारे में क्या बताया है?
उत्तर:
फाहियान एक चीनी यात्री था जो ईसा की पाँचवीं सदी के शुरू में भारत आया। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में बताया है कि चाण्डाल शहर और गाँव से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे। जब कभी वे नगर या गाँव में आते थे तो उन्हें अपने आने की सूचना किसी वस्तु से आवाज़ करके देनी पड़ती थी।

प्रश्न 3.
लगभग 600 ई०पू० से 600 ई० की अवधि के मध्य भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति में आए बदलावों के प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर:
लगभग 600 ई०पू० से 600 ई० के बीच आर्थिक व राजनीतिक जीवन में कई तरह के परिवर्तन हुए, जिनका तत्कालीन समाज पर भी अपना प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए वन क्षेत्रों में कृषि विस्तार से वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन-शैली में परिवर्तन आया। बहुत-से कारीगर समूहों का उदय हुआ। इसके अतिरिक्त संपत्ति के असमान वितरण ने सामाजिक भेदभावों को अधिक प्रखर बनाया।

प्रश्न 4.
कौरव और पांडव कौन थे? उनके बंधुत्व संबंधों में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
कौरव व पांडव बांधव जन (Cousins) थे अर्थात् वे चचेरे भाइयों के समूह थे। यह परिवार कुरु राजवंश का था। महाभारत से पता चलता है कि चचेरे भाइयों में संपत्ति व सत्ता को लेकर युद्ध हुआ। स्पष्ट है कि दोनों समूहों में बंधुत्व के संबंधों में राजसत्ता को लेकर बड़ा भारी परिवर्तन हो गया।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पदों की संक्षिप्त व्याख्या करें (क) बहिर्विवाह, (ख) अंतर्विवाह, (ग) बहुपति प्रथा, (घ) बहुपत्नी प्रथा।
उत्तर:
(क) बहिर्विवाह-बहिर्विवाह से अभिप्राय था, गोत्र से बाहर विवाह करना। (ख) अंतर्विवाह-अंतर्विवाह से अभिप्राय था, वर्ण अथवा जाति के अंदर ही विवाह करना। (ग) बहुपति प्रथा-इस प्रथा में एक स्त्री के एक से अधिक पति होने की प्रथा है। (घ) बहुपत्नी प्रथा-बहुपत्नी प्रथा से अर्थ है एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ होने की परिपाटी।

प्रश्न 6.
कौरवों और पांडवों में बंधुत्व मामले का अंततः समाधान कैसे हुआ? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
कौरवों और पांडवों में बंधुत्व का मसला अंततः एक युद्ध के द्वारा तय हुआ। यह युद्ध महाभारत का युद्ध कहलाया। इसमें पांडवों की विजय हुई। युद्ध के बाद ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर को शासक बनाया गया। इस प्रकार पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृढ़ किया गया।

प्रश्न 7.
महाभारत के रचनाकाल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
महाभारत की रचना लगभग 1000 वर्षों में हुई। शुरू में इसमें मात्र 8800 श्लोक थे और यह ‘जयस’ यानी विजय संबंधी ग्रंथ कहलाया था। कालान्तर में यह 24000 श्लोकों के साथ ‘भारत’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंततः यह महाभारत कहलाया और अब इसमें एक लाख श्लोक हैं।

प्रश्न 8.
बौद्ध ग्रंथों में सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण लिखें।
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथों में कई स्थानों पर क्षत्रियों या वैश्यों द्वारा दर्जी, कुम्हार, टोकरी बनाने वाले शिल्पी, माली और रसोइए का पेशा अपनाए जाने के उदाहरण मिलते हैं। इस सामाजिक गतिशीलता से उनकी प्रतिष्ठा में कमी नहीं आती थी।

प्रश्न 9.
एकलव्य कथा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
एकलव्य कथा के माध्यम से निषादों (जंगल में रहने वाली जनजाति) को धर्म का संदेश दिया जा रहा था। धर्म से अभिप्राय था, अपने-अपने वर्ण कर्त्तव्य का पालन। किसी और जाति/वर्ण के काम को मत अपनाओ। ऐसा करना धर्म विरोधी कार्य होगा।

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प्रश्न 10.
एकलव्य कौन था?
उत्तर:
एकलव्य एक निषाद जनजाति का युवक था जो गुरु द्रोणाचार्य से धनुष चलाने की विद्या सीखना चाहता था। गुरु द्रोण केवल क्षत्रियों (विशेषतः कुरु राजवंश) को ही यह विद्या दे रहे थे, इसलिए उन्होंने एक वनवासी निषाद को यह शिक्षा देने से मना कर दिया, लेकिन एकलव्य ने मन से द्रोण को अपना गुरु मानकर प्रतिदिन अभ्यास किया और निपुण धनुर्धर बन गया।

उसने कुत्ते के भौंकने की आवाज पर उस कुत्ते के मुँह को बाणों से भर दिया जिसे देखकर अर्जुन और आचार्य द्रोण दोनों को आश्चर्य हुआ। द्रोणाचार्य ने जब एकलव्य से उसके गुरु का नाम पूछा तो उसने स्वयं को उन्हीं का शिष्य बताया। इस बात का पता चलने पर द्रोण ने गुरु-दक्षिणा के रूप में एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा। एकलव्य ने अपना अंगूठा देकर अपना कर्त्तव्यपालन किया, परंतु वह पहले जैसा धनुर्धर नहीं रहा।

प्रश्न 11.
‘भारतीय समाज में लिंग भेदभाव था।’ इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज में भी लिंग के आधार पर लड़कियों के प्रति भेदभाव विद्यमान था। ‘ऋग्वेद’ में पुत्र कामना को प्राथमिकता दी गई। विशेषतः इंद्र जैसे वीर पुत्र की कामना की गई है। पैतृक पारिवारिक संपत्ति में भी भेदभाव का आभास मिलता है। पैतृक संपत्ति का वारिस पुत्र ही था। लड़की की इसमें हिस्सेदारी नहीं स्वीकारी गई।

प्रश्न 12.
मनुस्मृति के अनुसार पुरुष के धन अर्जन के साधन कौन-से थे?
उत्तर:
औरत के अधिकार में मात्र उपहार से प्राप्त धन ही शामिल था परंतु पुरुष, मनु के अनुसार, सात तरीकों से धन अर्जित कर सकता था। ये तरीके थे- उत्तराधिकार, खोज, खरीद, विजित करके, निवेश करके, कार्य द्वारा तथा सज्जन मित्रों से उपहारस्वरूप भेंट स्वीकार करके।

प्रश्न 13.
कुलीन परिवारों में स्त्री की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
कुलीन परिवारों में स्त्रियों के लिए भौतिक सुविधाएं तो अधिक थीं, परंतु स्वतंत्रता कम थी। उन पर पुरुष का नियंत्रण अपेक्षाकृत अधिक था, यहाँ तक कि उसे ‘वस्तु-सम’ ही समझा जाता था।

प्रश्न 14.
किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को दानशीलता कैसे प्रभावित करती थी?
उत्तर:
दानशीलता धनी व्यक्ति के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रही है। समाज में कंजूस व्यक्ति का सम्मान नहीं था। चारण/कवि दानी व्यक्तियों की प्रतिष्ठा में गीत-काव्य रचते थे। इससे धनी दानदाता की जय-जयकार होती थी।

प्रश्न 15.
विवाह संस्कार में ‘मधुपर्क’ किसे कहा गया?
उत्तर:
वर-वधू की चुनाव की प्रक्रिया के बाद वधू का पिता वर को बारात सहित आमंत्रित करता और उसका सम्मान करता था जिसे ‘मधुपर्क’ कहा गया।

प्रश्न 16.
धर्म-ग्रंथों में विवाह के कितने प्रकार बताए गए हैं?
उत्तर:
धर्म-ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं-

  1. ब्रह्म विवाह,
  2. प्रजापत्य विवाह,
  3. आर्ष विवाह,
  4. दैव विवाह,
  5. असुर विवाह,
  6. गांधर्व विवाह,
  7. राक्षस विवाह,
  8. पैशाच विवाह ।

प्रश्न 17.
‘गोत्र’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘गोत्र’ से अभिप्राय है एक ही पूर्वज की संतान या उत्तराधिकारियों का समूह । ऐसा समूह रक्त संबंधों पर आधारित माना जाता है। इसके सदस्य स्वयं को एक ही पूर्वज की संतान स्वीकारते हैं। ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसे समूहों के सदस्यों में विवाह संबंधों के वर्जित होने के प्रमाण मिलते हैं।

प्रश्न 18.
महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार कैसे बाँटते हैं?
उत्तर:
महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार मुख्यतः दो भागों में बाँटते हैं। पहला आख्यान, जिसके अंतर्गत कहानियों का संग्रह है। दूसरा उपदेशात्मक, जिसके अंतर्गत सामाजिक व्यवहार के मानदंड आते हैं।

प्रश्न 19.
स्त्रीधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मनु के अनुसार स्त्रीधन में शामिल था-

  1. कन्यादान के समय मिला धन;
  2. माता-पिता व भाई से मिले उपहार;
  3. विदाई के समय मिली भेंट;
  4. विवाह के बाद पति से मिलने वाले उपहार; और
  5. विभिन्न अवसरों पर मिलने वाली भेंट अर्थात् उपहार।

प्रश्न 20.
‘वर्ण’ शब्द के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
‘वर्ण’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘वरी’ धातु से हुई बताई गई है, जिसका अर्थ है वरण (चयन) करना। यानी व्यवसाय का चयन करना। कुछ विद्वान ‘वर्ण’ शब्द की उत्पत्ति का संबंध ‘रंग’ से भी जोड़ते हैं। उनके अनुसार वर्ण (रंग) का प्रयोग गौण वर्ण के आर्यों को श्याम वर्णीय अनार्यों से अलग करने के संदर्भ में आया।

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प्रश्न 21.
वैदिक कालीन ‘यज्ञ परम्परा’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
‘यज्ञ’ एक वैदिक कर्मकांड है जिसमें अग्नि के हवन कुंड के समक्ष बैठकर मंत्रोच्चारण के साथ किसी निश्चित उद्देश्य . की प्राप्ति के लिए हवन कुंड में आहुतियाँ डाली जाती हैं।

प्रश्न 22.
‘आश्रम प्रणाली’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
उत्तर वैदिक काल में व्यक्ति की आयु 100 वर्ष मानकर उसे निम्नलिखित चार भागों (आश्रमों) में बाँटा गया है

  • ब्रह्मचर्य आश्रम पहले 25 वर्ष की आयु तक।
  • गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्ष की आयु तक।
  • वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्ष की आयु तक।
  • संन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष की आयु तक।

प्रश्न 23.
महाभारत का रचनाकार किसे माना जाता है?
उत्तर:
महाभारत का रचनाकार महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार मुनि वेदव्यास ने यह ग्रंथ श्रीगणेश जी से लिखवाया था।

प्रश्न 24.
ऋग्वेद के ‘दसवें मंडल’ के ‘पुरुषसूक्त’ में दिए वर्ण विभाजन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘पुरुषसूक्त’ के एक मंत्र में कहा गया है कि देवताओं ने आदि पुरुष के चार भाग किए। ब्राह्मण उसका मुख, राजन्य बाहु और जंघा वैश्य थे तथा शूद्र उसके पाँव से उत्पन्न हुए।

प्रश्न 25.
जाति-व्यवस्था की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
जाति-व्यवस्था की. दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • किसी जाति में सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित थी, जिन्होंने उसी जाति में जन्म लिया हो।
  • एक जाति के सदस्यों का विवाह उसी जाति में अनिवार्य था।

प्रश्न 26.
मौर्य काल में श्रेणियों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
उत्तर:
मौर्य काल में श्रेणियाँ सरकार के नियंत्रण में काम करती थीं। इन्हें सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था। लगभग प्रत्येक श्रेणी पर एक सरकारी अधिकारी होता था, जिसे श्रेणी का अध्यक्ष कहा जाता था। श्रेणी में शिल्पकारों के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।

प्रश्न 27.
भारत में परिवार व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • परिवार के सदस्यों का वैवाहिक या रक्त-संबंधों का होना अनिवार्य है।
  • परिवार के सदस्य प्रायः पारिवारिक परंपरा और रीति-रिवाज़ों में बँधे होते हैं। वे धार्मिक अनुष्ठानों (यज्ञ, पूजा, अर्चना आदि) को मिलकर संपादित करते हैं।

प्रश्न 28.
मातृवंशीय परंपरा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मातवंशीय परिवारों में वंश परंपरा माँग से जुड़ी होती है। परिवार में लड़की का महत्त्व अधिक होता है।

प्रश्न 29.
भारत में विवाह संस्था का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
विवाह संस्था का मूल उद्देश्य विवाह-संबंधों में स्थायित्व कायम करना और पितृवंश को आगे बढ़ाना था। साथ ही भारत में जातीय-व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने में भी इस संस्था की मुख्य भूमिका रही है।

प्रश्न 30.
गांधारी द्वारा अपने सबसे बड़े पुत्र दुर्योधन को दिए गए परामर्श का उल्लेख करें। इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
गांधारी कौरवों की माँ थी। वह अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने का परामर्श देती है और युद्ध न करने की विनती भी करती है। उसने कहा, “शांति की संधि करके तुम अपने पिता, मेरा और अपने शुभइच्छकों का सम्मान करोगे…….. विवेकी पुरुष जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है वही अपने राज्य की रखवाली करता है।

लालच और क्रोध आदमी को लाभ से दूर खदेड़ ले जाते हैं। इन दोनों शत्रुओं को पराजित कर राजा समस्त पृथ्वी को जीत सकता है …………. युद्ध में कुछ भी शुभ नहीं होता, न धर्म और न अर्थ की प्राप्ति होती है, और न ही प्रसन्नता की; युद्ध के अंत में सफलता मिले यह भी जरूरी नहीं …………… अपने मन को युद्ध में लिप्त मत करो।” स्पष्ट है कि अपनी माँ की इस सलाह को दुर्योधन ने नहीं माना, फलतः युद्ध हुआ और कौरव परिवार का समूल नाश हो गया।

प्रश्न 31.
‘परिवार’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक संगठनों में परिवार समाज की एक महत्त्वपूर्ण मूल इकाई है। संस्कृत ग्रंथों में इसके लिए ‘कल’ शब्द का प्रयोग किया गया है। सामान्यतया रक्त संबंधों पर आधारित परिवार को एक स्वाभाविक सामाजिक इकाई मान लिया जाता है, जो कि ठीक नहीं होता क्योंकि रक्त संबंधों की परिधि में कौन-कौन से सगे-संबंधी शामिल हैं, इस बात से परिवार की परिभाषा भिन्न हो जाती है। आज भी हम देखते हैं कि कुछ लोग चचेरे या मौसेरे भाई-बहनों को रक्त-संबंधों में शामिल करते हैं जबकि कुछ अन्य उन्हें शामिल नहीं करते।

प्रश्न 32.
रामायण महाकाव्य के दो प्रमुख नैतिक तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:
रामायण महाकाव्य के दो नैतिक तत्त्व हैं

  • भलाई की बुराई पर विजय। कथा में राम भलाई के और रावण बुराई के प्रतीक हैं।
  • परिवार रूपी संस्था का आदर्श।

इसमें किसी भी परिस्थिति में पुत्र को पिता की आज्ञा तथा छोटे भाई को बड़े भाई की आज्ञा का पालन करना और स्त्री को पति के प्रति निष्ठावान होना है।

प्रश्न 33.
प्राचीन भारत में पितृवंशिक आदर्श के अपवाद किन स्थितियों में मिलते हैं?
उत्तर:
पितृवंशिक आदर्श को लेकर यदा-कदा अपवाद भी मिलते हैं। पुत्र के न होने पर कई बार तो एक भाई दूसरे का धेकारी हो जाता था तो कभी चचेरे भाई भी राजगद्दी पर अपना अधिकार कर लेते थे। कई बार कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ भी सत्ता की उत्तराधिकारी बनीं। प्रभावती गुप्त का शासिका बनने का उदाहरण मिलता है।

प्रश्न 34.
उत्तर भारत में नगरीकरण के विकास का धर्मशास्त्रों से क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्तर भारत में 600 ई०पू० से 600 ई० के मध्य नगरों का विकास हुआ। नए नगर हस्तशिल्प उत्पादन व व्यापार के केंद्र थे। इस कारण से यह नगर दूर एवं निकट से आने वाले व्यापारी व अन्य अनेक लोगों के मिलन-स्थल बन गए। फलतः इनमें वस्तुओं के क्रय-विक्रय व उत्पादन के साथ-साथ लोगों में परस्पर विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी चली।

इससे परंपरागत विचारों एवं विश्वासों पर कई तरह के सवाल उठे। इस कारण से समाज में उथल-पुथल मची। पारिवारिक बंधन कमजोर होने लगे। वर्ण-संकर विवाह (जाति से बाहर दूसरी जाति में) होने लगे तथा प्रेम-विवाह (गांधर्व विवाह) होने लगे। समाज में बढ़ रही इस उथल-पुथल को रोकने के लिए धर्मशास्त्र रचे गए, जिनमें सामाजिक परंपराओं को बनाए रखने पर जोर दिया गया।

प्रश्न 35.
मनुस्मृति में चाण्डालों के क्या कर्त्तव्य बताए गए हैं?
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के ‘कर्तव्यों’ (Duties) पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। जिन कामों को घृणित माना गया उन्हें करना मनुस्मृति में चाण्डालों के लिए ‘कर्त्तव्य’ बताया गया; जैसे कि वधिक कार्य, चर्म कार्य, मृत पशु उठाना, सफाई, श्मशान कर्म इत्यादि। उनके लिए नियम था कि वे मृतकों के वस्त्र, लोहे के आभूषण व बर्तनों का प्रयोग करें। रात के समय नगर व गाँवों में उनका प्रवेश वर्जित था। नगर व गाँव में उनका निवास भी वर्जित था।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्मशास्त्र में कितने प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है? इनमें से चार उत्तम विवाह कौन-से थे?
उत्तर:
आश्वलायन नामक ग्रंथ में प्राचीन भारत में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

  • ब्रह्म विवाह में वेदों को जानने वाले शीलवान वर को घर बुलाकर वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुसज्जित कन्या को पिता द्वारा दान दिया जाता था।
  • दैव विवाह में यज्ञ करने वाले पुरोहित को यजमान अपनी कन्या का दान करता था।
  • आर्ष विवाह में लड़की का पिता वर पक्ष से गाय और बैल का एक जोड़ा लेकर अपनी कन्या का विवाह करता था।
  • प्रजापत्य विवाह में लड़की का पिता यह आदेश देता था तुम दोनों (वर-वधू) एक साथ रहकर आजीवन धर्म का आचरण करो। इसके बाद कन्यादान करता था।
  • असुर विवाह में वर कन्या के पिता को धन देकर विवाह करता था।
  • गांधर्व विवाह एक प्रकार से युवक-युवती में पारस्परिक प्रेम के आधार पर हुआ विवाह था।
  • राक्षस विवाह में कन्या को जबरन उठाकर विवाह किया जाता था अर्थात् उसे जीतकर अपने अधिकारों में लाया जाता था।
  • पैशाच विवाह में सोई हुई, प्रमत्त, घबराई हुई कन्या के साथ बलात्कार कर या धोखा देकर विवाह किया जाता था।

विवाह के इन आठ प्रकारों में से पहले चार विवाहों-ब्रह्म, प्रजापत्य, आर्ष व दैव को उत्तम माना गया। इन्हें धर्मानुकूल और आदर्श बताया गया है क्योंकि यह ब्राह्मणीय नियमों के अनुकूल थे। जबकि असुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच विवाहों को अच्छा नहीं माना गया परंतु ये प्रचलन में थे। यह इस बात का प्रमाण है कि ब्राह्मणीय नियमों से बाहर विवाह प्रथाएँ अस्तित्व में थीं।

प्रश्न 2.
ब्राह्मणीय पद्धति ‘गोत्र’ के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या यह सर्वत्र समान रूप से लागू थी?
उत्तर:
लगभग 1000 ई०पू० के आस-पास से एक ब्राह्मणीय पद्धति अस्तित्व में आई जिसके अनुसार लोगों की पहचान गोत्रों से भी होने लगी। विशेष रूप से यह ब्राह्मणों में पहले प्रचलन में आई। गोत्र का नामकरण किसी वैदिक ऋषि के नाम से होता था। उस गोत्र के सदस्य उस ऋषि के वंशज समझे जाते थे। गोत्र व्यवस्था की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ थीं

  • विवाह के पश्चात् महिला को पिता के गोत्र का नहीं, अपितु पति के गोत्र का माना जाता था।
  • एक ही गोत्र के सदस्य परस्पर विवाह संबंध नहीं कर सकते थे।

उपर्युक्त इन दोनों नियमों का अनुसरण भी अन्य ब्राह्मणीय नियमों की तरह, सभी लोगों द्वारा हर स्थान पर नहीं होता था। व्यवहार में यहाँ भी भिन्नता थी। उदाहरण के लिए यदि हम अभिलेखों से सातवाहन नरेशों के नामों का अध्ययन करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है। इन शासकों की रानियों के नामों से यह प्रतीत होता है कि उनके नाम गौतम और वशिष्ठ गोत्रों से जुड़े थे जो उनके पिता के गोत्र थे।

विवाह के बाद भी उन्होंने संभवतः अपने पिता का गोत्र नाम ही कायम रखा। जैसे कि राजा गोतमी-पुत्त सिरी-सातकनि, राजा वसिथि-पुत सिरी-पुलुमायि। संभवतः इन्होंने अपने पति का गोत्र नहीं अपनाया जैसा कि ब्राह्मणीय व्यवस्था में अपेक्षित था। इन नामों के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं अर्थात बहिर्विवाह पद्धति की बजाय एक अन्य विवाह पद्धति यहाँ प्रचलन में थी। .

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 3.
धर्मशास्त्रों ने ‘जाति व्यवस्था’ को किस प्रकार स्थायित्व प्रदान किया? स्पष्ट करें।
उत्तर:
धर्मशास्त्रों ने वर्ण और जाति-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में विशेष भूमिका निभाई, उसे ‘उचित’ सामाजिक कर्तव्य बताया। उसे व्यवहार में लाने के लिए सामाजिक नियम बनाए। साथ ही उपदेशात्मक शैली में लोक-कथाओं की रचना की। संक्षेप में, धर्मशास्त्रों ने मुख्यतः निम्नलिखित उपायों का अनुसरण किया

1. दैवीय उत्पत्ति-इस सिद्धांत से जन-सामान्य को यह विश्वास दिलाया गया कि जातियों की उत्पत्ति का कारण ईश्वर है। ब्राह्मण ग्रंथों में पुरुष सूक्त को बार-बार दोहराया गया ताकि लोग अपनी-अपनी जातियों में अपना कर्त्तव्य बिना किसी विरोध के निभाते रहें।

2. आत्मा, कर्म व पुनर्जन्म का सिद्धांत-उपनिषद ग्रंथों में आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ। इसने जाति-व्यवस्था के लिए एक धार्मिक औचित्य प्रस्तुत किया। किसी विशेष जाति (ऊँची या नीची) में जन्म को पूर्व जन्म के कर्मों का फल बताया गया।

3. राजा का कर्त्तव्य-शास्त्रों में वर्ण-व्यवस्था की रक्षा करना राजा का एक प्रमुख कर्त्तव्य बताया गया। साथ ही इस व्यवस्था की आचार-संहिता दी और शासकों को अपने-अपने राज्य में इसका अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया। मनुस्मृति में विभिन्न वर्गों के संबंध में न्याय व दंड-विधान मिलता है।

4. उपदेशात्मक उपाय-वर्णाश्रम धर्म को विभिन्न कथा-गाथाओं के माध्यम से भी व्यवहार में बनाए रखने का प्रयास किया गया। साहित्यिक परंपरा के ग्रंथों में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। गुरु द्रोण व एकलव्य की कथा इस संदर्भ में उल्लेखनीय है।

प्रश्न 4.
‘जाति व्यवस्था’ की कोई पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
‘जाति व्यवस्था’ की निम्नलिखित सामान्य विशेषताएँ हैं …

1. पैतृक व्यवसाय-जाति की पहचान व्यवसाय से हुई। ये व्यवसाय वंशानुगत थे अर्थात् ये पिता से पुत्र तक पहुँचते रहते थे। इसीलिए जाति को आनुवंशिकता (Hereditary) पर आधारित एक वर्ग (Class) बताया गया है।

2. सदस्यता-किसी जाति में सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित थी, जिन्होंने उसी जाति में जन्म लिया। किसी एक जाति से दूसरी जाति में सदस्यता संभव नहीं थी।

3. सजातीय विवाह-एक जाति के सदस्यों का विवाह उसी जाति में अनिवार्य था। जाति से बाहर विवाह पर रोक थी। यद्यपि अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों का उल्लेख मिलता है, परंतु इन्हें अच्छा नहीं समझा जाता था। ऐसे विवाहों से अनेक वर्णसंकर जातियों का भी वर्णन ग्रंथों में आया है।

4. श्रेणीबद्धता-जाति-व्यवस्था श्रेणीबद्ध (सोपानात्मक) संगठन है अर्थात् यह सीढ़ीनुमा है, जिसमें ऊपर से नीचे की ओर प्रत्येक जाति का स्थान निर्धारित होता है।

5. पवित्रता व अपवित्रता की धारणा-जाति-व्यवस्था में पवित्रता तथा अपवित्रता की धारणा निहित थी। निचले स्तर की जातियों को अपवित्र माना गया। चर्म कर्म, मरे पशुओं को उठाना तथा साफ़-सफाई करने वाली जातियों को अपवित्र माना गया। यहाँ तक कि उन्हें अछूत कहा गया। उनके स्पर्श और दर्शन-मात्र से अपवित्र होने की बात कही गई।

प्रश्न 5.
क्या जाति व्यवस्था वाले भारतीय समाज में किसी तरह की सामाजिक गतिशीलता थी? यदि थी, तो उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वर्ग अथवा जाति-व्यवस्था पूर्णतयाः एक जड़-व्यवस्था नहीं रही। इसमें आवश्यकतानुसार कुछ गतिशीलता भी रही है। उदाहरण के लिए, शुरू में वैश्य पशुचारक और किसान थे और शूद्र सेवक थे। धीरे-धीरे उन्नति करके वैश्य व्यापारी व जमींदार हो गए और शूद्र कृषक बन गए, परंतु इस पर भी उन्हें वर्ण-व्यवस्था में द्विज का दर्जा नहीं मिला। विचाराधीन काल के अंत तक आते-आते उन्हें रामायण, महाभारत और पुराण जैसे ग्रंथों को सुनने का अधिकार मिला। उनकी स्थिति में कुछ सुधार आया।

बौद्ध ग्रंथों में सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण-बौद्ध-ग्रंथों में कई स्थानों पर क्षत्रियों व वैश्यों द्वारा दर्जी, कुम्हार, टोकरी बनाने वाले शिल्पी, माली और रसोइए आदि का पेशा अपनाए जाने का उल्लेख मिलता है। इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी नहीं आती थी।

श्रेणी व्यवस्था व सामाजिक गतिशीलता-श्रेणी-व्यवस्था सामाजिक गतिशीलता का एक अन्य उल्लेखनीय उदाहरण है। सामान्य व्यवसाय करने वाली जातियाँ स्वयं को कई बार अपनी ज़रूरतों के अनुरूप श्रेणियों में संगठित कर लेती थीं। ये श्रेणियाँ शिल्पकारों को समाज में प्रतिष्ठा का स्थान प्रदान करती थीं। लगभग पाँचवीं सदी के मंदसौर (मध्य प्रदेश) अभिलेख से रेशम बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है।

इस श्रेणी के बुनकर पहले मूलतः गुजरात के लता (Lata) नाम स्थान के रहने वाले थे फिर वे मंदसौर चले आए। इतिहास के इस तथ्य से यह पता चलता है कि श्रेणी जैसे व्यावसायिक संगठन अधिक लाभ की इच्छा से स्थानांतरण भी करते थे अर्थात् इस दृष्टि से भी उनमें गतिशीलता थी।

प्रश्न 6.
वर्ण व्यवस्था का वनवासियों से संपर्क की प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वर्ण व जाति की विचारधारा का प्रभाव भारत में बड़े स्तर पर पड़ा। फिर भी ऐसे बहुत-से वनवासी कबीले थे जो इसके प्रभाव से वंचित थे। संस्कृत ग्रंथों में ऐसे लोगों का उल्लेख प्रायः विचित्र, असभ्य और यहाँ तक कि पशुवत् जैसे विशेषणों के साथ किया गया। मुख्यतः ये ऐसे समुदाय थे जो इसके प्रभाव से वंचित थे। वे पशुपालन और खेतीबाड़ी के व्यवसाय से नहीं जुड़े थे। इनका जीवन मुख्यतः शिकार और कंद-मूल पर निर्भर था।

उदाहरण के लिए निषाद इसी वर्ग के अंतर्गत आते थे। एकलव्य संभवतः इसी समुदाय से संबंधित था। इन कबीलों के लोगों की जीवन-शैली भी अलग थी। उनकी भाषा भिन्न थी। ग्रामीण और शहरी लोग प्रायः इन्हें शंका की दृष्टि से देखते थे।

इन लोगों का यदा-कदा ‘सभ्य समाज के लोगों से भी संपर्क होता था। महाभारत व रामायण की कुछ कथाओं से विद्वान ऐसा निष्कर्ष निकालते हैं कि कई बार वर्ण-व्यवस्था के दायरे में आने वाले लोगों तथा जंगल में रहने वाली जनजातियों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान होता था। उदाहरण के लिए महाभारत के आदिपर्वन में हिडिंबा और भीम गाथा से यही निष्कर्ष निकाला जाता है।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारत में स्त्री के संपत्ति संबंधी अधिकार पर चर्चा करते हुए उसकी स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्राचीन भारत में रचे गए अधिकांश धर्मशास्त्र पति व पिता की संपत्ति में औरत की हिस्सेदारी को स्वीकार नहीं करते। समाज पुरुष प्रधान था। इसमें लैंगिक आधार पर भेदभाव था। पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र थे। स्वाभाविक तौर पर इससे समाज में स्त्री की स्थिति पुरुष की तुलना में गौण हो गई।

मनुस्मृति में पिता की मृत्यु के बाद पैतृक संपत्ति में सभी पुत्रों का समान अधिकार स्वीकारा गया है। लेकिन पुत्री को पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं दिया है। यहाँ तक कि पुत्र के अभाव व कोई उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में भी यह अधिकार पुत्री को नहीं दिया गया है। मनु ने तो ऐसी संपत्ति को धार्मिक संस्थाओं को देने की बात कही है। सामान्यतया इन शास्त्रकारों ने पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में विधवा के अधिकार को भी नहीं माना है।

केवल मात्र स्त्रीधन यानी उपहार के रूप में मिलने वाले धन पर स्त्री के अधिकार को स्वीकृति दी गई है। राजपरिवारों तथा अन्य कुलीन परिवारों में औरतों के पास सुविधाओं की कमी नहीं थी, परंतु इस पर भी पुरुष की तुलना में उनकी स्थिति गौण ही रहती थी, क्योंकि सामान्य रूप से धन अर्जन के साधनों (औज़ार, भूमि, पशु, खान, जंगल इत्यादि) पर त्रण पुरुषों का ही रहता था। विद्वानों का मानना है कि जनसाधारण में स्त्रियों की स्थिति’ (Status) कुलीन परिवारों की महिलाओं की तुलना में अच्छी थी, क्योंकि साधारण परिवारों की औरतें अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ मिलकर खेत-खलिहानों में काम करती थीं। उन पर ‘पुरुष-नियंत्रण’ अपेक्षाकृत कम था। वे अधिक स्वतंत्र थीं।

प्रश्न 8.
भारत में दानशीलता और सामाजिक प्रतिष्ठा के बीच क्या संबंध रहा है? तमिल साहित्य से कुछ उदाहरणों से स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारत में दान देने की परंपरा रही है। धनी व्यक्तियों के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करने का यह एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रही है। समाज में कंजूस व्यक्ति का सम्मान नहीं था। उसके पास धन होने के बावजूद भी लोग उसे महत्त्व नहीं देते थे, बल्कि उनसे घृणा करते थे। दानशील व्यक्ति की प्रशंसा की जाती थी। यह काम मुख्यतः उनके चारण एवं कवि करते थे। दानशील व्यक्तियों की प्रतिष्ठा में गीत-काव्य रचे गए।

प्राचीन तमिल साहित्य में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन तमिलकम् क्षेत्र में (लगभग 2000 वर्ष पहले) अनेक सरदारियाँ (Chiefdoms) थीं। इनके सरदारों ने चारणों एवं कवियों को आश्रय दिया और उन्होंने अपने आश्रयदाताओं का खूब बखान किया।

कुछ गीत/कविताएँ इनमें से संगम साहित्य में शामिल हुईं जो प्राचीन दक्षिण भारत के सामाजिक व आर्थिक संबंधों को समझने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण हैं। दानशीलता पर रचे गए प्राचीन चारण साहित्य से दो बातें स्पष्ट होती हैं-पहली, समाज में व्यापक विषमता उत्पन्न हो चुकी थी। कुछ लोग काफी धनी थे तो कुछ भुखमरी से ग्रस्त थे। दूसरी बात यह स्पष्ट होती है कि समृद्ध लोग निर्धन लोगों की कुछ सहायता करते थे। लोगों की कुछ भूख मिटती थी तो धनवान को जय-जयकार मिलती थी।

प्रश्न 9.
एक साहित्यिक स्रोत के तौर पर इतिहासकार महाभारत को कैसे पढ़ते हैं?
उत्तर:
इतिहासकार साहित्यिक स्रोतों का उपयोग बड़ी सावधानी से करते हैं। वे इस बात का ध्यान करते हैं कि अमुक ग्रंथ का लेखक कौन है, उसका सामाजिक दृष्टिकोण क्या है, क्योंकि इनका लेखक भी अपने पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकता है। वे ग्रंथ की भाषा पर भी विचार करते हैं। इतिहासकारों को महाभारत जैसे विशाल और जटिल ग्रंथ के सामाजिक इतिहास के पुनर्निर्माण में इस्तेमाल करते हुए इन सभी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। दो तथ्य उल्लेखनीय हैं
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  • भाषा-महाभारत मूलतः संस्कृत में लिखा गया है, परंतु इसकी संस्कृत वेदों और प्रशस्तियों की भाँति जटिल नहीं है। यह उनकी अपेक्षा काफी सरल है।
  • विषय-वस्तु-महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार सामान्यतः दो भागों में बाँटते हैं-आख्यान तथा उपदेशात्मक। आख्यान के अंतर्गत कहानियों का संग्रह रखा गया है। जबकि उपदेशात्मक के अंतर्गत सामाजिक आचार-विचार के मानदंड आते हैं। महाभारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश भगवद्गीता है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाभारत की ऐतिहासिकता के संदर्भ में ‘हस्तिनापुर की खोज’ पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
संस्कृत साहित्य परंपरा में महाभारत को ‘इतिहास’ (ऐसा ही हुआ) माना गया है। अतः विद्वानों ने इसकी ऐतिहासिकता के पहलुओं पर विचार किया है, यहाँ तक कि उत्खनन के माध्यम से भी साक्ष्यों की तलाश की। आओ ‘हस्तिनापुर की खोज’ पर विचार करें-

सदृश्यता के आधार पर महाभारत में वर्णित जिन स्थानों की पहचान की जाती है उनमें ‘हस्तिनापुर’ नामक आधुनिक उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित ग्राम भी है। दावा यह किया जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ कभी कुरु राज्य की राजधानी होती थी। ऐसा मानने वालों का यह भी तर्क है कि नाम का तो संयोग संभव है लेकिन इसका कुरु राज्य क्षेत्र में पड़ना मात्र संयोग नहीं हो सकता।

‘हस्तिनापुर’ की ऐतिहासिकता की जाँच के लिए (1951-52) प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता बी.बी. लाल के नेतृत्व में उत्खनन कार्य शुरू किया गया। उन्हें यहाँ आबादी के बसावट के पाँच स्तर मिले। जिनमें दूसरा और तीसरा स्तर विचाराधीन विषय पर महत्त्वपूर्ण है। दूसरे स्तर का काल निर्धारण 12वीं से 7वीं शताब्दी ई०पू० के बीच किया गया है। यह लगभग वही अवधि है जिसमें कभी ‘सूत रचनाकारों’ ने महाभारत की मूल गाथा रची थी। इस दूसरे ‘स्तर’ पर तैयार अपनी रिपोर्ट में प्रो० बी.बी. लाल लिखते हैं, “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से घरों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती किंतु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं।

सरकंडे की छाप वाले पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकंडे की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।” तीसरे स्तर, जिसका काल छठी से तीसरी शताब्दी ई०पू० माना गया, के विषय में बी.बी. लाल निष्कर्ष निकालते हैं, “इस स्तर के घर कच्ची ईंटों तथा पक्की ईंटों से बने हुए थे। गंदे पानी की निकासी के लिए शोषक-घट (Soakage Jar) तथा ईंटों के नालों का प्रयोग किया जाता था। वलय-कूपों (Ring-Wells) का उपयोग कुओं (पीने के पानी के लिए) और मल की निकासी वाले गों, दोनों ही रूपों में किया जाता था।”
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बी.बी. लाल के इन दोनों निष्कर्षों को यदि हम ध्यान से पढ़ें तो पाते हैं कि 7वीं शताब्दी ई०पू० तक तो इस स्थान पर पक्की ईंटों का प्रयोग ही नहीं था। ऐसे में जिस भव्य नगर का वर्णन साहित्य में मिलता है, उसकी संभावना पुरातात्विक साक्ष्यों में दिखाई नहीं पड़ती। या तो यह वर्णन कवियों की कल्पना मात्र था या फिर यह मूल गाथा के साथ बाद के काल (ईसा पूर्व छठी शताब्दी के बाद) में जोड़ा गया जब इस क्षेत्र में नगरीय विकास हुआ।

प्रश्न 2.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का परिचय देते हुए इसकी दो मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
शुरू में महाभारत की गाथा मौखिक तौर पर एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में चलती रही। कालांतर में इसे ब्राह्मण विद्वानों ने लिखित रूप दिया। वर्तमान में महाभारत के संपूर्ण आदिपर्वन् की कुल 235 हस्तलिपियाँ हैं। इनमें 107 देवनागरी और 26 कन्नड़ लिपि में हैं। शेष कश्मीरी, मैथिली (नेपाल से) बांग्ला, तेलुगु व मलयालम आदि में हैं। इन हस्तलिपियों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं और कोई भी दो हस्तलिपियाँ एक जैसी नहीं हैं। इसीलिए इस ग्रंथ के एक समालोचनात्मक संस्करण की जरूरत पड़ी।

संस्कृत साहित्य में समालोचनात्मक कार्य मूलकथा के निकट पहुँचने का प्रयास होता है। महाभारत के मूल पाठ (शुद्ध रूप) को स्थापित करने का कार्य साधारण नहीं था। यह एक भारी चुनौती थी।

इस चुनौती को सन् 1919 में संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान वी.एस. सुकथांकर ने स्वीकार किया। एकत्रित ग्रंथों का वर्गीकरण किया गया और फिर संपूर्ण उपलब्ध साक्ष्यों का अध्ययन करके 13000 पृष्ठों का एक समालोचनात्मक संस्करण तैयार किया गया। इन्हें 19 खंडों में प्रकाशित किया। इसे पूरा होने में 47 वर्ष लगे। इस परियोजना से महाभारत की निम्नलिखित दो विशेषताएँ उभरकर सामने आईं

  • समानता-संस्कृत के मूल पाठों (ग्रंथों) के बहुत से अंशों में समानता थी।
  • क्षेत्रीय प्रभेद-समानता के साथ इन पांडुलिपियों में काफी अंतर भी हैं। वस्तुतः यह ग्रंथ जैसे-जैसे भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसारित हुआ तो धीरे-धीरे इसमें क्षेत्रीय लोक परंपराओं और विश्वासों का समावेश होता गया।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

HBSE 10th Class Science धातु एवं अधातु Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में कौन-सा युगल विस्थापन अभिक्रिया प्रदर्शित करता है
(a) NaCl विलयन एवं कॉपर धातु
(b) MgCl2, विलयन एवं ऐल्युमिनियम धातु
(c) FeSO4, विलयन एवं सिल्वर धातु
(d) AgNO3, विलयन एवं कॉपर धातु।
उत्तर-
(d) AgNO3, विलयन एवं कॉपर धातु।

प्रश्न 2.
लोहे के फ्राइंग पैन (Frying pan) को जंग से बचाने के लिए निम्न में से कौन-सी विधि उपयुक्त है
(a) ग्रीज़ लगाकर
(b) पेण्ट लगाकर
(c) जिंक की परत चढ़ाकर
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(c) जिंक की परत चढ़ाकर।

प्रश्न 3.
कोई धातु ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर उच्च गलनांक वाला यौगिक निर्मित करती है। यह यौगिक जल में विलेय है। यह तत्व क्या हो सकता है –
(a) कैल्सियम
(b) कार्बन
(c) सिलिकन
(d) लोहा।
उत्तर-
(a) कैल्सियम।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थ के डिब्बों पर जिंक की बजाए टिन का लेप होता है क्योंकि
(a) टिन की अपेक्षा जिंक महँगा है
(b) टिन की अपेक्षा जिंक का गलनांक अधिक है
(c) टिन की अपेक्षा जिंक अधिक अभिक्रियाशील है
(d) टिन की अपेक्षा जिंक कम अभिक्रियाशील है।
उत्तर-
(c) टिन की अपेक्षा जिंक अधिक अभिक्रियाशील

प्रश्न 5.
आपको एक हथौड़ा, बैटरी, बल्ब, तार एवं स्विच दिया गया है :
(a) इसका उपयोग कर धातुओं एवं अधातुओं के नमूनों के बीच आप विभेद कैसे कर सकते हैं?
(b) धातुओं एवं अधातुओं में विभेदन के लिए इन परीक्षणों की उपयोगिताओं का आकलन कीजिए। . .
उत्तर-
(a)
(i) हथौड़े के उपयोग से यदि दिया गया नमूना हथौड़े की चोट करने से टूट जाए तो वह अधातु है, इसके विपरीत यदि नमूना एक पतली चादर के रूप में आ जाए तो वह आघातवर्ध्य है तथा वह धातु होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 1
(ii) दिए गए उपकरणों को चित्र की तरह जोड़कर नमूनों को क्लिप्स के बीच में रखें। स्विच ऑन करने पर यदि बल्ब जलता है तो नमूना धातु है क्योंकि धातु विद्युत सुचालक होते हैं और यदि बल्ब नहीं जलता है तब दिया गया नमूना अधातु है।

(b)
(i) यह पाया जाता है कि हथौड़े से पीटने पर धातुएँ पतली चादरों में बदल जाती हैं, जबकि अधातुएँ भंगुर होती हैं अर्थात् हथौड़े से पीटने पर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। अतः धातुएँ आघातवर्ध्य होती हैं, जबकि अधातुएँ नहीं होती हैं।
(ii) दूसरे परीक्षण द्वारा यह पाया जाता है कि जब धातुएँ A तथा B के बीच रखी जाती हैं तो बल्ब जलने लगता है तथा अधातुओं को रखने पर बल्ब नहीं जलता है। इस प्रकार धातुएँ विद्युत की सुचालक होती हैं, जबकि अधातुएँ विद्युत की कुचालक होती हैं।

प्रश्न 6.
उभयधर्मी ऑक्साइड क्या होते हैं? दो उभयधर्मी ऑक्साइडों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जो धातु ऑक्साइड अम्लीय और क्षारीय दोनों प्रकार के व्यवहार प्रकट करते हैं, उन्हें उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं। इन ऑक्साइडों का लिटमस पत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) तथा नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उभयधर्मी ऑक्साइड हैं।
उदाहरण, ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al2O3) का व्यवहार क्षारीय व अम्लीय दोनों प्रकार का होता है,
Al2O3 + 6HCl → 2AlCl3, +3H2O (क्षारीय व्यवहार)
Al2O3, + 2NaOH → 2NaAlO2 + H2O (अम्लीय व्यवहार)

प्रश्न 7.
दो धातुओं के नाम बताएँ जो तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर देंगी तथा दो धातुएँ जो ऐसा नहीं कर सकती हैं।
उत्तर-
जिंक (Zn) एवं लोहा (Fe) जैसी धातुएँ हाइड्रोजन से अधिक अभिक्रियाशील होने के कारण उसे तनु अम्ल से विस्थापित कर सकती हैं | इसके विपरीत गोल्ड (Au) व सिल्वर (Ag) जैसी धातुएँ हाइड्रोजन से कम अभिक्रियाशील होने के कारण ऐसा नहीं कर सकती।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 8.
किसी धातु M के विद्युत-अपघटनी परिष्करण में आप ऐनोड-कैथोड एवं विद्युत-अपघट्य किसे बनाएँगे?
उत्तर-
ऐनोड-धातु M की अशुद्ध मोटी प्लेट। कैथोड-धातु M की शुद्ध पतली प्लेट। अपघट्य- धातु M के लवण का विलयन।

प्रश्न 9.
प्रत्यूष ने सल्फर चूर्ण को स्पैचुला में लेकर उसे गर्म किया तथा परखनली को उल्टाकर उसने उत्सर्जित गैस को एकत्र किया।
(a) गैस की क्रिया क्या होगी
(i) सूखे लिटमस पत्र पर?
(ii) आर्द्र लिटमस पत्र पर?
(b) ऊपर की अभिक्रियाओं के लिए सन्तुलित रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 2
उत्तर-
(a)
(i) सूखे लिटमस पत्र पर गैस की कोई अभिक्रिया नहीं होगी। .
(ii) गैस नीले आर्द्र लिटमस पत्र को लाल कर देगी।
(b) S(s) +O2 (g) → SO2 (g)
SO2 (g) + H2O(l) → H2SO3 (aq) हाइड्रोजन सल्फाइट

प्रश्न 10.
लोहे को जंग से बचाने के लिए दो तरीके बताइए।
उत्तर-

  • तेल या ग्रीस की तह जमाकर।
  • पेण्ट करके।

प्रश्न 11.
ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अधातुएँ कैसा ऑक्साइड बनाती हैं?
उत्तर-
अधातुएँ ऑक्सीजन से संयोग करके दो प्रकार के ऑक्साइड बनाती हैं-अम्लीय व उदासीन।
उदाहरण,
(i) अधातुएँ ऑक्सीजन से संयोग करके सहसंयोजक ऑक्साइड बनाती हैं, जो पानी में घुलकर अम्ल बनाते हैं।
C+O2 → CO2
CO2 + H2O → H2CO3 कार्बोनिक अम्ल

(ii) कुछ अधातुएँ ऑक्सीजन से संयोग करके उदासीन ऑक्साइड का निर्माण करती हैं, जैसे-कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), जल (H2O) आदि।

प्रश्न 12.
कारण बताइए
(a) प्लैटिनम, सोना एवं चाँदी का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है।
(b) सोडियम, पोटैशियम एवं लीथियम को तेल के अन्दर संग्रहित किया जाता है।
(c) ऐलुमिनियम अत्यंत अभिक्रियाशील धातु है, फिर भी इसका उपयोग खाना बनाने वाले बर्तन के लिए किया जाता है।
(d) निष्कर्षण प्रक्रम में कार्बोनेट एवं सल्फाइड अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है।
उत्तर-
(a) प्लैटिनम, सोना एवं चाँदी का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है, क्योंकि ये धातुएँ सक्रियता श्रेणी में निम्नतम स्थान पर होती हैं तथा जल, ऑक्सीजन अथवा अम्लों से अभिक्रिया नहीं करती। ये संक्षारित भी नहीं होतीं। ये धातुएँ आघातवर्ध्यनीय तथा तन्य होती हैं; इसलिए इनसे आभूषणों के विभिन्न डिजाइन सरलतापूर्वक बनाए जा सकते हैं।

(b) सोडियम, पोटैशियम एवं लीथियम को तेल के अन्दर संग्रहित किया जाता है, क्योंकि यदि इन्हें वायु के सम्पर्क में रखा जाता है तो ये आग पकड़ लेते हैं क्योंकि इन धातुओं का ज्वलन ताप (Ignition Temperature) अत्यन्त कम होता है। ये धातुएँ अधिक क्रियाशील होती हैं।

(c) ऐलुमिनियम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध एक सस्ती व शक्तिशाली धातु है, यह न तो ठण्डे जल के साथ और न ही
गर्म जल के साथ अभिक्रिया करती है। यह ऊष्मा की अच्छी सुचालक भी है।

(d) धातु कार्बोनेट एवं धातु सल्फाइड को धातु में बदलना कठिन होता है इसलिए उन्हें पहले धातु ऑक्साइड में बदलना आवश्यक होता है। धातु कार्बोनेटों तथा सल्फाइडों की तुलना में धातु ऑक्साइडों का अपचयन करना अधिक सरल है।

प्रश्न 13.
आपने ताँबे के मलिन बर्तन को नींबू या इमली के रस से साफ करते अवश्य देखा होगा। ये खट्टे पदार्थ बर्तन को साफ करने में क्यों प्रभावी हैं?
उत्तर-
खट्टे पदार्थ ताँबे के बर्तन को साफ करने में प्रभावी होते हैं। खट्टे पदार्थों (नींबू) में सिट्रिक अम्ल पाया जाता है। यह सिट्रिक अम्ल कॉपर के बदरंगे बर्तन में पाए जाने वाले कॉपर कार्बोनेट को घुलनशील बनाकर कॉपर को उसकी शुद्ध चमक प्रदान कर देते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 14.
रासायनिक गुणधर्मों के आधार पर धातुओं एवं अधातुओं में विभेद कीजिए।
उत्तर-
धातु एवं अधातु में भेद

धातुअधातु
1. धातुएँ तनु अम्लों से क्रिया करके हाइड्रोजन विस्थापित कर देती हैं।1. अधातुएँ तनु अम्लों से क्रिया नहीं करती, इसलिए इनसे हाइड्रोजन विस्थापित नहीं होती है।
2. धातुएँ अपचायक होती हैं।2. अधातुएँ ऑक्सीकारक होती हैं (कार्बन को छोड़कर)
3. धातुएँ क्षारीय ऑक्साइड उदासीन ऑक्साइड बनाती हैं।3. अधातुएँ अम्लीय या बनाती हैं।
4. धातु क्लोराइड वैद्युत अपघट्य होते हैं।4. अधातु क्लोराइड वैद्युत अपघट्य नहीं होते हैं।

प्रश्न 15.
एक व्यक्ति प्रत्येक घर में सुनार बनकर जाता है। उसने पुराने एवं मलिन सोने के आभूषणों में पहले जैसी चमक पैदा करने का ढोंग रचाया। कोई सन्देह किए बिना ही एक महिला अपने सोने के कंगन उसे देती है जिसे वह एक विशेष विलयन में डाल देता है। कंगन नए की तरह चमकने लगते हैं लेकिन उनका वजन अत्यन्त कम हो जाता है। वह महिला बहुत दुःखी होती है तथा तर्क-वितर्क के पश्चात् उस व्यक्ति को झुकना पड़ता है। एक जासूस की तरह क्या आप उस विलयन की प्रकृति के बारे में बता सकते हैं?
उत्तर-
विलयन का नाम एक्वा-रेजिया (अम्लराज) है। एक्वा-रेजिया सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं सान्द्र नाइट्रिक अम्ल का ताजा मिश्रण होता है जो 3 : 1 के अनुपात में इन्हें क्रमशः मिलाने पर बनता है। सोना एक्वा-रेजिया में घुलनशील है इसलिए महिला के कंगन का भार कम हो जाता है।

प्रश्न 16.
गर्म जल का टैंक बनाने में ताँबे का प्रयोग होता है परन्तु इस्पात (लोहे का मिश्र धातु) का नहीं इसका कारण बताएँ।
उत्तर-
कॉपर बहुत कम अभिक्रियाशील धातु है। यह ठण्डे व गर्म जलों से अभिक्रिया नहीं करती है और न ही यह ऑक्सीजन व खनिज लवणों से अभिक्रिया करती है। कॉपर इस्पात की अपेक्षा ताप का अच्छा चालक भी है। इसके विपरीत इस्पात में आसानी से जंग लग जाती है तथा यह कॉपर की अपेक्षा ऊष्मा का कम चालक है। इन कारणों से गर्म जल के टैंक को बनाने में ताँबे का प्रयोग किया जाता है।

HBSE 10th Class Science धातु एवं अधातु InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 45)

प्रश्न 1.
ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए
(i) जो कमरे के ताप पर द्रव होती है।
(ii) जिसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
(iii) जो ऊष्मा की सबसे अच्छी सुचालक होती है।
(iv) जो ऊष्मा की कुचालक होती है।
उत्तर-
(i) पारा कमरे के ताप पर द्रव रूप में होता है।
(ii) सोडियम को चाकू द्वारा आसानी से काटा जा सकता
(iii) चाँदी ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक होती है।
(iv) लैड (Pb) धातु ऊष्मा की कुचालक होती है।

प्रश्न 2.
आघातवर्थ्य तथा तन्य का अर्थ बताइए।
उत्तर-
आघातवयं-आघातवर्ध्य का अर्थ है कि धातुओं को हथौड़े से पीटकर पतली चादरों के रूप में ढाला जा सकता है। तन्य-तन्य का अर्थ है कि धातुओं को खींचकर पतला तार बनाया जा सकता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं.51)

प्रश्न 1.
सोडियम को केरोसिन में डुबोकर क्यों रखा जाता है?
उत्तर-
सोडियम धातु का ज्वलन ताप (Ignition Temperature) अत्यन्त ही कम होता है, वायु के सम्पर्क में आते ही यह आग पकड़ लेता है। सोडियम का वायु से सम्पर्क रोकने के लिए सोडियम को केरोसिन में डुबोकर रखा जाता है।

प्रश्न 2.
इन अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए
(i) भाप के साथ आयरन।।
(ii) जल के साथ कैल्सियम तथा पोटैशियम।
उत्तर- .
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 8

प्रश्न 3.
A, B, C एवं D चार धातुओं के नमूनों को लेकर एक-एक करके निम्न विलयन में डाला गया इससे प्राप्त परिणाम को निम्न प्रकार से सारणीबद्ध किया गया है –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 9
इस सारणी का उपयोग कर धातु A, B,C एवं D के सम्बन्ध में निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(i) सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु कौन-सी है?
(ii) धातु Bको कॉपर (II) सल्फेट के विलयन में डाला जाए तो क्या होगा?
(iii) धातु A, B, C एवं D को अभिक्रियाशीलता के घटते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर-
(i) धातु B सबसे अधिक क्रियाशील है। .
(ii) जब B धातु को कॉपर सल्फेट (II) के घोल में डाला जाता है तो विस्थापन अभिक्रिया होती है। B धातु कॉपर को विस्थापित कर देती है। कॉपर सल्फेट का नीला रंग समाप्त हो जाता है।
(iii)B>A>C>D

प्रश्न 4.
अभिक्रियाशील धातु को तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में डाला जाता है तो कौन-सी गैस निकलती है? आयरन के साथ तनु H2SO4 की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
जब एक अभिक्रियाशील धातु को तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में डाला जाता है तो हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित होती है।
आयरन के साथ तनु H2SO4 की रासायनिक अभिक्रिया
Fe+ H2SO2 → FeSO4, + H2

प्रश्न 5.
जिंक को आयरन (II) सल्फेट के विलयन में डालने से क्या होता है? इसकी रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
जिंक को आयरन (II) सल्फेट के विलयन में मिलाने पर आयरन (II) सल्फेट विलयन का हरा रंग फीका पड़ जाता है तथा आयरन निक्षेपित हो जाता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 10

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 54)

प्रश्न 1.
(i) सोडियम, ऑक्सीजन एवं मैग्नीशियम के लिए इलेक्ट्रॉन-बिन्दु संरचना लिखिए।
(ii) इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण के द्वारा Na2O एवं Mgo का निर्माण दर्शाइए।
(iii) इन यौगिकों में कौन-से आयन उपस्थित हैं?
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 11

Mgo का बनना
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 12
(iii) Na2O में उपस्थित आयन
‘धनायन – Na+ (सोडियम धनायन)
ऋणायन – O2- (ऑक्सीजन ऋणायन)

Mgo में उपस्थित आयन
धनायन – Mg2+ (मैग्नीशियम धनायन)
ऋणायन – O2- (ऑक्सीजन ऋणायन)

प्रश्न 2.
आयनिक यौगिकों का गलनांक उच्च क्यों होता है?
उत्तर-
आयनिक यौगिकों के क्रिस्टल जालक में धनायन एवं ऋणायन निश्चित क्रम में संयोजित होते हैं तथा इनमें अन्तर-आयनिक बल अधिक होता है। अन्तर आयनिक आकर्षण के कारण, आयनिक यौगिकों का गलनांक उच्च होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 59)

प्रश्न 1.
निम्न पदों की परिभाषा दीजिए
(i) खनिज
(ii) अयस्क
(iii) गैंग।
उत्तर-
(i) खनिज-धातु युक्त पदार्थों को खनिज कहते हैं, जिनसे धातुओं को विभिन्न विधियों द्वारा प्राप्त किया जाता है।
(ii) अयस्क-उन खनिजों को जिनसे लाभप्रद ढंग से धातुओं का निष्कर्षण किया जा सकता है, अयस्क (ore) कहते हैं, जैसे-लैड का अयस्क गैलेना (PbS) है।
(iii) गैंग-अयस्क को पृथ्वी में से निकालने पर अयस्क बालू एवं चट्टानी पदार्थों से दूषित होते हैं। खनिजों में बालू यां चट्टानी पदार्थों की जो अशुद्धियाँ उपस्थित होती हैं, उन्हें गैंग कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 2.
दो धातुओं के नाम बताइए जो प्रकृति में मुक्त अवस्था में पायी जाती हैं?
उत्तर-
सोना, चाँदी।

प्रश्न 3.
धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करने के लिए किस रासायनिक प्रक्रम का उपयोग किया जाता है?
उत्तर-
किसी धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त रासायनिक प्रक्रम अपचयन कहलाता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 61)

प्रश्न 1.
जिंक, मैग्नीशियम एवं कॉपर के धात्विक ऑक्साइडों को निम्न धातुओं के साथ गर्म किया गया-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 13
उत्तर-
विस्थापन अभिक्रियाएँ
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 14

प्रश्न 2.
कौन-सी धातु आसानी से संक्षारित नहीं होती
उत्तर-
वे धातुएँ जो वायु, जल तथा अम्लों से अभिक्रिया नहीं करती, शीघ्रता से संक्षारित नहीं होती जैसे-सोना।

प्रश्न 3.
मिश्रातु क्या होते हैं?
उत्तर-
दो या दो से अधिक धातुओं के मिलाने से प्राप्त समांगी मिश्रण को मिश्रातु कहते हैं। इसमें एक धातु व दूसरी अधातु भी हो सकती है। मिश्रातु के गुणधर्म मूल धातुओं से भिन्न होते हैं तथा मिश्रातु की विद्युत चालकता शुद्ध धातु की अपेक्षा कम होती है।

HBSE 10th Class Science धातु एवं अधातु InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 3.1 (पा. पु. पृ. सं. 41)

प्रश्न 1.
आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम और मैग्नीशियम के नमूने लीजिए। प्रत्येक नमूना कैसा दिखाई देता है?
उत्तर-
आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम और मैग्नीशियम के नमूने हल्के चमकदार दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
रेगमाल से रगड़कर प्रत्येक नमूने की सतह को साफ करके उसके स्वरूप पर फिर से ध्यान दीजिए।
उत्तर-
रेगमाल से रगड़ने पर प्रत्येक नमूने की सतह को साफ करने पर इन नमूनों की चमक बढ़ जाती है। धातु के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं। .

क्रियाकलाप  3.2 (पा.पु. पृ.सं. 42)

प्रश्न 1.
आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम तथा मैग्नीशियम धातुओं को तेज धार वाले चाकू से काटने का प्रयास करें तथा अपने प्रेक्षणों को दर्ज करें।
उत्तर-
ये धातुएँ काटने में बहुत कठोर हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 2.
सोडियम को चाकू से काटिए। आपने क्या देखा?
उत्तर-
सोडियम को चाकू की सहायता से आसानी से काटा जा सकता है।

क्रियाकलाप 3.3 (पा. पु. पृ.सं. 42)

प्रश्न 1.
इन धातुओं के आकार में हुए परिवर्तन को लिखिए।
उत्तर-
ये धातुएँ पीटने पर पतली चादर में बदल जाती

प्रश्न 2.
आघातवर्ध्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
धातु के टुकड़े को हथौड़े से पीटने पर उसके चादर में परिवर्तित हो जाने का गुण आघातवर्ध्यता (Malleability) कहलाता है।

क्रियाकलाप  3.4 (पा.पु.पृ.सं.42)

प्रश्न 1.
इनमें कौन सी धातुएँ तार के रूप में उपलब्ध हैं?
उत्तर-
सोना, चाँदी, आयरन, कॉपर व ऐल्युमिनियम – आदि तार के रूप में उपलब्ध हैं।

प्रश्न 2.
तन्यता (ductility) किसे कहते हैं?
उत्तर-
धातुओं को पतले तार के रूप में परिवर्तित करने का गुण तन्यता कहलाता है।

क्रियाकलाप  3.5 (पा. पु. प्र. सं. 43)

प्रश्न 1.
थोड़ी देर बाद आप क्या देखते हैं?
उत्तर-
थोड़ी देर बाद हम देखते हैं कि तार पर लगा मोम पिघल कर गिर रहा है।

प्रश्न 2.
क्या धातु का तार द्रवित होता है?
उत्तर-
नहीं, धातु का तार द्रवित नहीं होता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

क्रियाकलाप  3.6 (पा. पु. पृ. सं. 43)

प्रश्न 1.
क्या बल्ब जलता है?
उत्तर-
हाँ, बल्ब जलता है।

प्रश्न 2.
इससे क्या पता चलता है?
उत्तर –
इससे यह पता चलता है कि धातुएँ विद्युत की चालक जबकि अधातुएँ विद्युत की कुचालक होती हैं।

क्रियाकलाप  3.7 (पा. पु. पृ.सं. 44)

प्रश्न-धातुओं एवं अधातुओं से सम्बन्धित अपने प्रेक्षणों को सारणी में संकलित कीजिए।
उत्तर –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 3

क्रियाकलाप  3.8 (पा. पु. पृ. सं. 44)

प्रश्न 1.
मैग्नीशियम के दहन से जो उत्पाद मिला है वह अम्लीय है या क्षारकीय?
उत्तर-
मैग्नीशियम ऑक्साइड की जल से क्रिया क्षारकीय प्रकृति का है।

प्रश्न 2.
सल्फर के दहन से जो उत्पाद मिला है वह अम्लीय है या क्षारकीय?
उत्तर-
सल्फर के दहन से जो उत्पाद मिला है वह सल्फर का दहन अम्लीय प्रकृति का है।

प्रश्न 3.
अभिक्रियाओं के रासायनिक समीकरण लिखें।
उत्तर-
2Mg(s) + O2(g) → 2MgO(s) मैग्नीशियम ऑक्साइड

Mgo + H2O(1) →Mg(OH)2 मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड
S(s) + O2(g) → SO2(g) सल्फर डाइ ऑक्साइड
उत्पाद की जल से क्रिया
SO2 (g) + H2O(l) → H2SO3(aq) सल्फ्यूरिस अम्ल

क्रियाकलाप  3.9 (पा. पु. पृ. सं. 45)

प्रश्न 1.
किस धातु का दहन आसानी से होता है ?
उत्तर-
आयरन धातु का दहन कॉपर की तुलना में आसानी से होता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 2.
जब धातु का दहन हो रहा था तो ज्वाला का रंग क्या था?
उत्तर-
ज्वाला का रंग हल्का नीला था।

प्रश्न 3.
दहन के पश्चात् धातु की सतह कैसी थी?
उत्तर-
दहन के पश्चात् आयरन की सतह भूरी (Brown) हो गयी थी जबकि कॉपर की सतह काले रंग (Black Colour) की हो गयी थी।

प्रश्न 4.
अभिक्रिया के समीकरण लिखें।
उत्तर-
आयरन का दहन
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 4
कॉपर का दहन
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 5

प्रश्न 5.
धातुओं को ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया– शीलता के आधार पर घटते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर-
Na > Mg >Al-Zn – Fe > Pb> Cu

प्रश्न 6.
क्या इनके उत्पाद जल में घुलनशील हैं?
उत्तर-
नहीं।

क्रियाकलाप  3.10 (पा. पु. पृ. सं. 47)

प्रश्न 1.
कौन-सी धातु ठण्डे जल से अभिक्रिया करती
उत्तर-
सोडियम, धातु ठण्डे जल से अभिक्रिया करती
2Na (s) + 2H2O(l) → 2NaOH (aq) + H2 (g) +ऊष्मा

प्रश्न 2.
क्या कोई धातु जल में आग उत्पन्न करती है?
उत्तर-
हाँ, सोडियम धातु जल में आग उत्पन्न करती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 3.
थोड़ी देर बाद क्या कोई धातु जल में तैरने लगती है?
उत्तर-
हाँ, कैल्सियम तथा मैग्नीशियम धातु जल में तैरने लगती हैं। जब कैल्सियम या मैग्नीशियम धातु जल से क्रिया करती है तो अभिक्रिया थोड़ी धीमी होती है जोकि प्रज्वलित होने के लिये पर्याप्त नहीं होती तथा हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्सियम या मैग्नीशियम की सतह पर चिपक जाते हैं और यह जल में तैरना प्रारम्भ कर देते हैं।
Ca(s) + 2H2O(l) → Ca(OH)2 (aq) + H2 (g)

प्रश्न 4.
कौन-सी धातुएँ भाप के साथ भी अभिक्रिया नहीं करती हैं?
उत्तर-
लेड, कॉपर, सिल्वर तथा गोल्ड जैसी धातुएँ जल के साथ बिल्कुल अभिक्रिया नहीं करती हैं।

प्रश्न 5.
जल के साथ अभिक्रियाशीलता के आधार पर धातुओं को अवरोही क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर-
जल के साथ अभिक्रियाशीलता के आधार पर धातुओं का अवरोही क्रम K>Na>Ca>Mg > Al> Fe> Pb>Cu>Ag>Au> Pt

क्रियाकलाप  3.11 (पा. पु. पृ. सं. 48)

प्रश्न 1.
कौन सी धातुएँ तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ तेजी से अभिक्रिया करती हैं?
उत्तर-
मैग्नीशियम, कैल्सियम, ऐल्युमिनियम, जिंक आदि धातुएँ तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ तेजी से अभिक्रिया करती हैं।

प्रश्न 2.
आपने किस धातु के साथ सबसे अधिक ताप रिकॉर्ड किया।
उत्तर-
मैग्नीशियम धातु के साथ अभिक्रिया सर्वाधिक ऊष्माक्षेपी थी। अतः सर्वाधिक ताप रिकॉर्ड किया गया।

प्रश्न 3.
तनु अम्ल के साथ अभिक्रियाशीलता के आधार पर धातुओं को अवरोही क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर-
अभिक्रियाशीलता का क्रम निम्न है
Mg>Al>Zn> Fe

प्रश्न 4.
क्या कॉपर धातु तनु अम्ल से क्रिया करती
उत्तर-
कॉपर धातु की क्रिया तनु अम्ल से करने पर न तो बुलबुले बनते हैं और न ही ताप में कोई परिवर्तन होता है। इससे पता चलता है कि कॉपर धातु तनु अम्लों से क्रिया नहीं करती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

क्रियाकलाप  3.12 (पा. पु. पृ. सं. 49)

प्रश्न 1.
आपको किस परखनली में कोई अभिक्रिया हुई है, इसका पता कैसे चलता है? . .
उत्तर-
जिस परखनली में आयरन की कील, कॉपर सल्फेट विलयन में डाली गयी है उस परखनली में अभिक्रिया हुई है क्योंकि कॉपर सल्फेट विलयन का नीला रंग हल्का होता जा रहा है।

प्रश्न 2.
किस आधार पर आप कह सकते हैं कि वास्तव में कोई अभिक्रिया हुई है?
उत्तर-
क्योंकि कॉपर सल्फेट का नीला रंग हल्का पड़ने लगा, इस आधार पर हम कह सकते हैं कि अभिक्रिया हुई है।

प्रश्न 3.
इस अभिक्रिया के लिये संतुलित रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 6

प्रश्न 4.
यह किस प्रकार की अभिक्रिया है?
उत्तर-
यह एक रेडॉक्स अभिक्रिया है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु 7

प्रश्न 5.
क्या आप अपने प्रेक्षणों का क्रियाकलाप 3.9, 3.10 3.11 से कोई सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं?
उत्तर-
तीनों क्रियाकलाप 3.9, 3.10 व 3.11 से यह निष्कर्ष निकलता है कि धातुओं की क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार है’ –
K> Na> Ca> Mg>Al>Zn> Fe> Pb> [H] > Cu> Hg>Ag>Au

क्रियाकलाप  3. 13 (पा. पु. पृ. सं. 53)

प्रश्न 1.
लवणों की भौतिक अवस्था क्या है?
उत्तर-
लवणों की भौतिक अवस्था. ठोस है।

प्रश्न 2.
आप क्या देखते हैं? क्या ये नमूने ज्वाला को रंग प्रदान करते हैं?
उत्तर-
ज्वाला में जलाने पर ये नमूने जलते हैं एवं ज्वाला को भिन्न-भिन्न रंग प्रदान करते हैं, जैसे-सोडियम क्लोराइड पीला व बेरियम क्लोराइड हरा रंग प्रदान करते हैं।

प्रश्न 3.
क्या यौगिक पिघलते हैं ?
उत्तर-
नहीं, ये यौगिक गर्म करने पर पिघलते नहीं हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 3 धातु एवं अधातु

प्रश्न 4.
नमूने को जल में घोलने पर क्या ये जल में घुलनशील है?
उत्तर-
हाँ, ये जल में घुलनशील है।

प्रश्न 5.
नमूने को पेट्रोल या केरोसिन में घोलने पर क्या ये घुलनशील है?
उत्तर-
नमूने को पेट्रोल या केरोसिन में घोलने पर यह नहीं घुलता है।

प्रश्न 6.
लवणों के जलीय विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर क्या विद्युत धारा प्रवाहित होती है?
उत्तर-
आयनिक लवणों का जलीय विलयन विद्युत का सुचालक होता है।

प्रश्न 7.
इन यौगिकों की प्रकृति के सम्बन्ध में आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर-
इन यौगिकों की प्रकृति आयनिक होती है।

क्रियाकलाप  3.14 (पा. पु. पृ. सं. 59)

प्रश्न विभिन्न परखनलियों को कुछ दिन छोड़ने के बाद क्या प्रेक्षण निकलते हैं?
उत्तर-
हम यह पाते हैं कि परखनली A में रखी लोहे की कीलों पर जंग लग गया है परन्तु परखनली B एवं C में रखी कीलों पर जंग नहीं लगता है। परखनली A की कील वायु व जल दोनों में रहती है। परखनली B वाली कील केवल जल के सम्पर्क में रहती है एवं परखनली C की कील शुष्क वायु के सम्पर्क में रहती है। इस कारण इन पर जंग नहीं लगती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि लोहे पर जंग लगने के लिए वायु व नमी दोनों की आवश्यकता होती है।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

HBSE 12th Class History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
गाँधी जी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए अनेक बातें अपने जीवन में अपनाईं-सर्वप्रथम सामान्य जन की दशा को जानने के लिए 1915 में (अफ्रीका से आगे के बाद) सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने भारत में अपना सार्वजनिक फरवरी, 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दिया। इस भाषण से स्पष्ट होता है कि वे आम जनता से जुड़ना चाहते थे। समारोह में बोलते हुए उन्होंने भारत के गरीबों, किसानों, मजदूरों की ओर ध्यान न देने पर भारतीय धनी और विशिष्ट वर्ग को लताड़ा। उन्होंने समारोह में धनी और सजे-सँवरे भद्रजनों की उपस्थिति और गरीब भारतीयों की अनुपस्थिति को लेकर चिंता प्रकट की।

गाँधी जी ने कहा कि, “हमारे लिए स्वशासन का तब तक कोई अभिप्राय नहीं है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग संपूर्ण लाभ स्वयं या अन्य लोगों को ले लेने की अनुमति देते रहेंगे। हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है। न तो वकील, न डॉक्टर, न जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं।” इस प्रकार गाँधी जी ने इस अवसर पर भारत के किसानों और मजदूरों को याद किया। असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक जन-आंदोलन बना दिया था। किसानों, श्रमिकों और कारीगरों ने इसमें भाग लेना शुरू कर दिया था। गाँधी जी उनके प्रिय नेता बन गए थे। गाँधी जी के प्रति आदर व्यक्त करते हुए लोग उन्हें अपना ‘महात्मा’ कहने लगे।

गाँधी जी ने अपनी जीवन-शैली में भी बदलाव किया। गाँधी जी आम लोगों की तरह वस्त्र पहनते थे वे उन्हीं की तरह रहते थे। वे जन-सामान्य की भाषा बोलते थे। गाँधी जी दूसरे नेताओं की तरह जनसमूह से अलग खड़े नहीं होते थे, बल्कि वे उनसे गहरी सहानुभूति रखते थे और उनसे घनिष्ठ संबंध भी बनाते थे। उल्लेखनीय है कि 1921 में दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान गाँधी जी ने अपना सिर मुंडवा लिया था और गरीबों के साथ अपना तादात्म्य (Identity) स्थापित करने के लिए सूती वस्त्र पहनने शुरू कर दिए थे। इस प्रकार उनके वस्त्रों से जनता के साथ उनका नाता झलकता था।

प्रश्न 2.
किसान महात्मा गाँधी जी को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
भारत कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ की जनसंख्या के अधिकांश लोग किसान थे। किसानों में असहयोग आंदोलन के बाद गाँधी जी, ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराजा’ अथवा सामान्य ‘महात्मा जी’ जैसे नामों से लोकप्रिय हुए। किसान उन्हें अपने उद्धारक के रूप में देखते थे। किसानों का मानना था कि महात्मा गाँधी उन्हें लगान की कठोर दरों और अंग्रेज़ अधिकारियों के जुल्मों से बचा सकते हैं। वे उनके मान-सम्मान की रक्षा कर सकते हैं और उन्हें उनकी स्वायत्तता दिला सकते हैं।

भारत की गरीब जनता विशेष तौर पर किसान गाँधी जी की सात्विक जीवन-शैली और उनके द्वारा अपनाई गई धोती तथा चरखा जैसी चीजों से अत्यधिक प्रभावित थे। गाँधी जी ने स्वयं एक व्यापारी और पेशे से वकील होने पर भी यह सादी जीवन-शैली अपनाई थी तथा नित्य चरखा कातने जैसे हाथ के काम के प्रति उनका लगाव था। उनमें गरीब श्रमिकों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। वे उनके जीवन की दशा को बदलना चाहते थे।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि गरीब लोग भी गाँधी जी में आस्था व सहानुभूति रखते थे व दूसरे नेता गरीबों को कृपा की दृष्टि से देखते थे। गाँधी जी न केवल उनके जैसा दिखते थे, बल्कि वे गरीब किसानों, मजदूरों को अच्छी प्रकार से समझना चाहते थे तथा स्वयं को उनके जीवन के साथ जोड़कर उनका उत्थान करना चाहते थे।

वस्तुतः किसानों में गाँधी जी की जनछवियों में यह मान्यता बन रही थी कि राजा ने उन्हें किसानों के कष्टों को दूर करने तथा उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए भेजा है और उनके पास इतनी शक्ति थी कि वे सभी अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत कर सकते थे।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

प्रश्न 3.
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर:
नमक हमारे राष्ट्र की संपदा थी जिस पर विदेशी सरकार ने शोषण करने के लिए एकाधिकार जमा लिया था। यह कानून द्वारा स्थापित एकाधिकार भारतीय जनता के लिए एक अभिशाप के समान था। जन-सामान्य तथा प्रत्येक भारतीय से जुड़े हुए इस कानून को गाँधी जी ने अंग्रेज़ शासन के विरोध प्रतीक के रूप में चुना। शीघ्र ही यह मुद्दा, नमक कानून, स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया। . नमक कानून के चुनाव के निम्नलिखित कारण थे

1. यह कानून भारत में सर्वाधिक घृणित कानून था। इसके अनुसार हमारे देश में नमक के उत्पादन और बेचने पर राज्य का एकाधिकार था।

2. भारतीय विशेषतः जन-साधारण इस कानून को घृणा की नजर से देखते थे। प्रत्येक घर में नमक भोजन में अनिवार्य रूप से प्रयोग किया जाता था, परंतु सरकार ने लोगों के घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने पर प्रतिबंध लगा रखा था। इस कारण सभी को ऊँचे मूल्यों पर दुकानों से नमक खरीदना पड़ता था।

3. जहाँ एक ओर सरकार जनता को नमक उत्पादन से रोकती, वहीं नमक अनेक स्थानों पर बिना श्रम के प्राकृतिक रूप से तैयार होता था। उसे सरकार नष्ट कर देती थी। यह एक प्रकार से राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करना था। इस बात से गाँवों के लोग भी परिचित थे।

4. नमक उत्पादन पर राज्य का एकाधिकार लोगों को बहुमूल्य सुलभ ग्राम उद्योग से वंचित करना था।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
19वीं सदी के अंत तथा 20वीं सदी के प्रारंभ तक भारत में अनेक भाषाओं में अखबार प्रकाशित होने लगे थे। इनमें से बहुत से समाचार-पत्र अब भी पुस्तकालयों व अभिलेखागारों में सुरक्षित हैं। इन अखबारों में राष्ट्रीय घटनाओं, राष्ट्रीय नेताओं के भाषणों, सरकार की नीतियों तथा जन-सामान्य की दशा पर टिप्पणियाँ और लेख प्रकाशित होते थे। इस रूप में ये अखबार राष्ट्रीय आंदोलन को समझने तथा इसका अध्ययन करने के लिए इतिहासकारों के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं

1. इनमें राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी सभी घटनाओं का विवरण मिल जाता है।

2. इन समाचार-पत्रों में राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं (राष्ट्रीय, प्रांतीय, स्थानीय स्तर के) के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

3. इन अखबारों से राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति ब्रिटिश सरकार के रुख का भी पता लगता है।

4. ये अखबार महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर नजर रखते थे तथा उनसे संबंधित समाचारों को विशेषतः जन-आंदोलनों से जुड़े समाचारों को प्रमुखता से छापते थे। इनसे गाँधी जी व उनके जन-आंदोलन के स्वरूप का पता चलता है।

5. जनता की राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी के अध्ययन के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेकिन इनके अध्ययन में भी सावधानी की जरूरत होती है। इसके लिए विशेषतः हमें दो बातों का ध्यान रखना चाहिए

समाचारों का संकलन एवं रिपोर्टिंग किसी अखबार के लिए, उसके संवाददाता करते हैं। इसलिए संवाददाता की भाषा, उसकी समझ व विचार से यह निर्धारित हुआ है कि उसे गाँधी जी की कौन-सी बात सबसे अहम् लगी, जिसे उसने अखबार में छपने के लिए भेजा होगा।

संकलित समाचारों को संपादक फिर काट-छाँट करके (यानी संपादित करके) प्रकाशित करता है। यहाँ संपादक की समझ और दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण था। उदाहरण के लिए गाँधी जी के विचारों से सहमति और मतभेद रखने वाले संपादकों ने गाँधी जी के भाषणों/वक्तव्यों को अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत किया। किसी ने निंदा करते हुए छापा तो किसी ने प्रशंसा करते हुए सरकार समर्थक व सरकार विरोधी समाचार-पत्रों की रिपोर्टिंग एक-जैसी नहीं थी। लंदन से निकलने वाले समाचार-पत्रों के विवरण भारतीय राष्ट्रवादी समाचार-पत्रों के छपने वाले विवरणों से अलग हैं।

प्रश्न 5.
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर:
चरखा जन-सामान्य से संबंधित था और स्वदेशी व आर्थिक प्रगति का प्रतीक था। अतः गाँधी जी ने इसे राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में चुना। गाँधी जी स्वयं प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। वे आधुनिक युग के आलोचक थे, जिसमें मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रम को हटा दिया था। गाँधी जी का मानना था कि चरखा गरीबों को पूरक आमदनी प्रदान कर सकता था तथा उन्हें स्वावलंबी बना सकता था। वे मशीनों के प्रति सनक के आलोचक थे।
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वस्तुतः चरखा स्वदेशी तथा राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। पारंपरिक भारतीय समाज में सूत कातने के काम को अच्छा नहीं समझा जाता था। गाँधी जी द्वारा सूत कातने के काम ने मानसिक श्रम एवं शारीरिक श्रम की खाई को कम करने में भी सहायता की। * निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध था यह बात दो तरह से स्पष्ट होती है। प्रथम, अगर हम इसके कारणों पर दृष्टि डालें तो यह स्पष्ट होता है कि यह औपनिवेशिक सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ संघर्ष था। दूसरा, आंदोलन के स्वरूप तथा जन-सामान्य की भागीदारी से भी यह स्पष्ट है कि आंदोलन लोगों के प्रतिरोध को भी अभिव्यक्त कर रहा था। आंदोलन के कारणों तथा जनभागीदारी का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

A. कारण :
1. प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव (Effects of the First World War)-प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था। युद्धकाल में भारत का कर्ज 411 करोड़ से 781 करोड़ हो गया। अनाज महँगा हो गया। वस्तुओं के दाम बढ़ गए। अनाज व कपड़े में कमी आ गई। युद्ध के बाद सरकार ने सैनिकों व मजदूरों की छंटनी कर दी। साथ ही अकाल-प्लेग से लगभग 120-130 लाख लोग मारे गए। इन सब परिस्थितियों से जन-असंतोष पनपा।

2. रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act)-विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिए थे और किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर जेल में डाला जा सकता था। युद्ध के बाद भी सरकार ने रॉलेट एक्ट पास किया। भारतीयों ने इसका विरोध किया। इसे काला कानून (Black Act) करार दिया गया। साधारण लोगों के लिए इस एक्ट का अर्थ था, “कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं, कोई अपील नहीं।” गाँधी जी ने देशभर में एक्ट के खिलाफ अभियान चलाने का निश्चय किया। एक्ट के विरोध में पहले 30 मार्च तथा बाद में 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।

3. जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)-गाँधी जी के सत्याग्रह शुरू करने पर पंजाब से भारी समर्थन मिला। 30 मार्च व 6 अप्रैल को अमृतसर में हड़ताल हुई। सरकार ने दमन का सहारा लिया। स्थानीय नेताओं-डॉ० सत्यपाल और डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। लोग उत्तेजित हो गए। 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग में 20 हज़ार लोग एकत्रित हुए। इस पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी के (रास्ता रोककर) गोली चलाने के आदेश दे दिए। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 लोग मारे गए। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने सारे देश को स्तब्ध कर दिया।

4. खिलाफत आंदोलन–प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की का खलीफा हार गया तथा 1920 में उसके साथ अपमानजनक संधि की गई। भारतीय मुसलमानों में इससे असंतोष था। उन्होंने मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में अंग्रेज सरकार विरोधी और खलीफा के समर्थन में आंदोलन चलाया। गाँधी जी ने खिलाफ़त मुद्दे पर अपना सहयोग दिया। गाँधी जी हिंदू-मुस्लिम एकता को स्वराज की प्राप्ति के लिए आवश्यक मानते थे।

B. आंदोलन की प्रगति (Progress of Mass-Movement)-असहयोग आंदोलन ने शीघ्र ही जन-आंदोलन का रूप धारण कर लिया। आंदोलन शुरू करते हुए गाँधी जी ने स्वयं ‘केसरी-ए-हिंद’ की उपाधि तथा अन्य पदों का परित्याग कर दिया। टैगोर ने ‘नाइट हुड’ की उपाधि त्याग दी। अनेक अन्य लोगों ने भी अपनी उपाधियाँ और पदवियाँ त्याग दी। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों में जाना छोड़कर आंदोलन में भाग लिया।

सरकारी कोर्ट के स्थान पर राष्ट्रीय पंचायती अदालतों की स्थापना हुई। राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान; जैसे काशी विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ, अलीगढ़ विद्यापीठ, जामिया मिलिया आदि स्थापित हुईं। कई कस्बों और नगरों में मजदूरों ने हड़तालें कीं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सन् 1921 में 396 हड़तालें हुईं जिनमें 6 लाख मज़दूर शामिल हुए तथा 70 लाख कार्य दिवसों (Working Days) का नुकसान हुआ। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार काफी उत्साहवर्धक रहा। हिंदू-मुस्लिम एकता का व्यापक प्रदर्शन हुआ। चुनावों का बहिष्कार हुआ।

देहातों में आंदोलन फैलने लगा। आंध्र प्रदेश में जनजातियों ने वन कानून की अवहेलना कर दी। राजस्थान में किसानों और जनजातियों ने आंदोलन किया। अवध में किसानों ने कर नहीं चुकाया। आसाम-बंगाल रेलवे के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। पंजाब में गुरुद्वारा आंदोलन शुरू हुआ। यद्यपि नवंबर, 1921 में बंबई में प्रिंस ऑफ वेल्स के बहिष्कार के समय हिंसा हुई थी तथापि दिसंबर, 1921 में (आंदोलन में उत्साह को देखते हुए) गाँधी जी को अधिकार दिया गया कि वे सविनय अवज्ञा आंदोलन छेडे, परंतु फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा घटना के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य औपनिवेशिक शासन का प्रतिरोध करना था। इस प्रतिरोध में जन-सामान्य ने पहली बार व्यापक पैमाने पर भाग लिया।

प्रश्न 7.
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर:
1930 से 1932 की अवधि में ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्या पर बातचीत करने तथा नया एक्ट पास करने के लिए लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन बुलाए, परंतु इन सम्मेलनों में किसी मुद्दे पर आम राय नहीं बन पाई। फलतः इन सम्मेलनों में कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय न हो सका। तीनों सम्मेलनों की कार्रवाई का संक्षिप्त ब्यौरा अग्रलिखित प्रकार से है

1. प्रथम गोलमेज सम्मेलन इसका आयोजन 12 नवंबर, 1930 को हुआ। इसका उद्देश्य साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करना था। इस समय काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया हुआ था। अतः उसने इसका बॉयकाट किया। इसके प्रमुख नेताओं को सरकार ने पहले ही जेलों में डाला हुआ था। सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई। फलतः यह सम्मेलन असफल रहा।

2. दूसरा गोलमेज सम्मेलन–प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद सरकार ने काँग्रेस को अगले सम्मेलन में शामिल करने का प्रयास किया। फलतः गाँधी-इर्विन समझौता हुआ। काँग्रेस ने सम्मेलन में भाग लेने का फैसला किया।
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काँग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सितंबर, 1931 में लंदन पहुँचे। मुहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मेलन में शामिल हुए। सम्मेलन में गाँधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बताया, परंतु गाँधी जी के इस दावे को तीनों तरफ से चुनौती दी गई। मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह भारत में मुस्लिम हितों के लिए काम करने वाली एकमात्र पार्टी है।

भारतीय राज्यों (Indian States) के शासकों का कहना था कि उनके क्षेत्रों पर काँग्रेस का कोई अधिकार नहीं है और न ही वह इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है। महान् विद्वान और विधिवेत्ता डॉ० बी०आर० अंबेडकर ने भी गाँधी जी के दावे को चुनौती देते हुए जोर देकर कहा कि काँग्रेस निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। डॉ० अम्बेडकर ने हरिजन वर्ग के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व की माँग रखी। गाँधी जी ने इस माँग का विरोध किया। सांप्रदायिक समस्या को लेकर सम्मेलन में एक राय नहीं बन पाई। इस कारण दूसरा गोलमेज सम्मेलन बिना किसी नतीजे पर पहुँचे ही समाप्त हो गया।

3. 17 नवंबर, 1932 को तीसरा सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका इंग्लैंड के ही मज़दूर दल ने बहिष्कार किया। भारत में काँग्रेस ने पुनः आंदोलन छेड़ दिया था। अतः काँग्रेस ने भी इसका बहिष्कार किया। इसमें केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें से अधिकतर ब्रिटिश सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि इन सम्मेलनों की वार्ताओं से कोई महत्त्वपूर्ण नतीजा नहीं निकला। हाँ, ब्रिटिश सरकार ने स्वयं ही कुछ निर्णय लिए। सम्मेलनों पर श्वेत-पत्र छापा तथा 1935 में भारत सरकार अधिनियम पास किया।

प्रश्न 8.
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर:
भारतीय राजनीति में प्रवेश से पूर्व गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में जातीय भेदभाव के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी थी। दक्षिण अफ्रीका के आंदोलनों में ही उन्होंने अपने सत्याग्रह के अनूठे राजनीतिक शस्त्र का सफल प्रयोग किया। दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष में यह भी जाना कि जन-सामान्य में संघर्ष तथा बलिदान की अदम्य क्षमता होती है। 1915 में भारत आने पर उन्होंने सारे भारत का दौरा किया।

1917-18 में उन्होंने स्थानीय आंदोलनों-चंपारन, अहमदाबाद व खेड़ा में सत्याग्रह का सफल परीक्षण किया। 1920 से काँग्रेस का नेतृत्व गाँधी जी के हाथों में आ गया। अपने नेतृत्व में गाँधी जी ने अपनी नीतियों, विचारों, कार्यक्रमों और जन-आंदोलनों द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को बहुत हद तक बदल दिया। अब इसे वास्तव में जन-आंदोलन का स्वरूप प्राप्त हुआ।

A. गाँधी जी का तरीका और विचार

1. सत्याग्रह (Satyagraha)-गाँधी जी के राजनीतिक विचारों और उनके दर्शन का केंद्र बिंदु सत्याग्रह है। सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है-सत्य पर दृढ़तापूर्वक अड़े रहना। यह विरोध करने का अहिंसात्मक मार्ग था। जन-आंदोलन के लिए इसके कई रूप हो सकते थे; जैसे हड़ताल, प्रार्थना सभा, उपवास, धरना, असहयोग, कानून की अवज्ञा (नागरिक अवज्ञा), पद-यात्रा आदि।

2. अहिंसा (Ahimsa)-सत्याग्रह दो प्रमुख सिद्धांतों पर टिका था- सत्य और अहिंसा। इसलिए गाँधी जी ने संघर्ष में सत्य के साथ-साथ अहिंसा और अहिंसात्मक तरीकों पर बल दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि सशस्त्र हमले का भी सत्याग्रह द्वारा विरोध किया जा सकता है।

3. लोक शक्ति में विश्वास (Faith in the Masses)-गाँधी जी की जन-शक्ति में अटूट श्रद्धा थी। उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन जन-आंदोलन बन गया। वस्तुतः दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष ने गाँधी जी को जन-शक्ति में विश्वास करना सिखाया। उन्हें वहाँ पर गरीब मजदूरों का नेतृत्व करने का मौका मिला। वे उन लोगों की बलिदान करने की क्षमता व साहस को देखकर अचंभित हुए। यह अति महत्त्वपूर्ण बात थी कि उन्होंने गरीब और अनपढ़ लोगों को सत्याग्रह और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन चलाया।

4. साधन और साध्य की श्रेष्ठता में विश्वास (Faith in the Purity of Means and Objects)-गाँधी जी साधन और साध्य की श्रेष्ठता में विश्वास रखते थे। देश में स्वराज की स्थापना ही उनका लक्ष्य था और इस पवित्र लक्ष्य की प्राप्ति को वह सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर प्राप्त करना चाहते थे।

B. गाँधी जी और काँग्रेस का विस्तार (Gandhiji and Expansion of the Congress)-गाँधी जी ने राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को सच्चे मायनों में जन आधार वाला संगठन बनाया। उन्होंने इसके लिए सावधानीपूर्वक काँग्रेस का पुनर्गठन किया। भारत के विभिन्न भागों में काँग्रेस की नई शाखाएँ खोली गईं। ग्राम स्तर की काँग्रेस कमेटियाँ भी बनाई गईं। राष्ट्रवादी संदेश को फैलाने के लिए मातृभाषा का प्रयोग करना तय किया गया। इसके साथ ही काँग्रेस की प्रांतीय समितियों का भाषायी क्षेत्रों के आधार पर पुनर्गठन किया गया। काँग्रेस का दिन-प्रतिदिन का कार्य देखने के लिए काँग्रेस कार्य समिति (CWC) का गठन किया गया।

B. रचनात्मक कार्य (Constructive Work)-जन-सामान्य को राष्ट्रीय आंदोलन में लाने में उनके रचनात्मक कार्य की अहम् भूमिका है। रचनात्मक कार्यों को मुख्यतः खादी व चरखा कातना, ग्रामोद्योग, राष्ट्रीय शिक्षा, हिंदू-मुस्लिम एकता, हरिजन कल्याण, महिला उत्थान जैसे कार्यक्रमों के रूप में संगठित किया। फरवरी, 1924 में जेल से रिहा होने पर गाँधी जी ने अपना सारा ध्यान रचनात्मक कार्यों पर लगाया। उन्होंने खादी को बढ़ावा देने तथा छुआछूत को समाप्त करने पर ध्यान दिया। वे भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। वस्तुतः रचनात्मक कार्यक्रम उनकी व्यापक रणनीति का हिस्सा थे। सक्रिय आंदोलन के अभाव में कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखने तथा सत्याग्रह में समर्पण के भाव पैदा करने में ये कार्यक्रम अति महत्त्व के थे। इससे भविष्य के आंदोलन को बड़ी संख्या में सत्याग्रही मिले थे।

C. तीन बड़े जन-आंदोलन-गाँधी जी ने 1920 से 1945 के मध्य तीन बड़े आंदोलन अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ चलाए। इन आंदोलनों में भारतीय जनता के सभी वर्गों ने भाग लिया। इन जन-आंदोलनों ने ही राष्ट्रीय आंदोलन को सही मायने में राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। इन आंदोलनों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. असहयोग आंदोलन-अगस्त, 1920 में आंदोलन शुरू करते हुए गाँधी जी ने स्वयं ‘केसरी-ए हिंद’ की उपाधि तथा अन्य पदों का परित्याग कर दिया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों में जाना छोड़कर आंदोलन में भाग लिया। इनमें प्रमुख थे सी०आर०दास, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, पटेल राजा जी, राजेन्द्र प्रसाद, आसफ अली आदि।

सरकारी कोर्ट के स्थान पर राष्ट्रीय पंचायती अदालतों की स्थापना हुई। राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान जैसे काशी विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ, अलीगढ़ विद्यापीठ, जामिया मिलिया आदि स्थापित हुए। कई कस्बों और नगरों में मजदूरों ने हड़तालें कीं। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार काफी उत्साहवर्धक रहा। हिंदू-मुस्लिम एकता का व्यापक प्रदर्शन हुआ। चुनावों का बहिष्कार हुआ। देहातों में आंदोलन फैलने लगा। आंध्र प्रदेश में जनजातियों ने वन कानून की अवहेलना कर दी।

राजस्थान में किसानों और जनजातियों ने आंदोलन किया। अवध में किसानों ने कर नहीं चुकाया। आसाम-बंगाल रेलवे के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। पंजाब में गुरुद्वारा आंदोलन चला। नवंबर, 1921 में बंबई में प्रिंस ऑफ वेल्स का बहिष्कार हुआ, परंतु 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया। इस आंदोलन ने 1857 के बाद पहली बार अंग्रेज़ी राज की नींव को हिलाया।

2. सविनय अवज्ञा आंदोलन-12 मार्च, 1930 को आंदोलन की शुरूआत गाँधी जी ने दांडी मार्च से की। उनके द्वारा नमक कानून तोड़ने के साथ ही यह आंदोलन सारे देश में फैल गया। राजगोपालाचारी ने त्रिचिनापल्ली से तंजौर तक यात्रा करके नमक सत्याग्रह किया। सरोजिनी नायडू ने 2000 सत्याग्रहियों के साथ धरासान में आंदोलन किया। मालाबार व सिलहट में भी ऐसे आंदोलन हुए। उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने अनुयायी खुदाई खिदमतगार (Servant of God) के साथ आंदोलन की अगुवाई की। पेशावर में सत्याग्रहियों पर गढ़वाल सैनिकों ने गोली चलाने से मना कर दिया।

मध्य प्रांत, कर्नाटक व महाराष्ट्र में लोगों ने ‘जंगल कानून’ का उल्लंघन किया। उत्तर प्रदेश में किसानों ने लगान देने से मना किया। शोलापुर में मजदूरों ने जोरदार हड़ताल की। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया। विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सरकारी शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार किया। बड़े पैमाने पर विदेशी वस्त्रों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन आयोजित हुए। महिलाओं ने आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

सरकारी दमन इस आंदोलन के जवाब में सरकार ने दमन चक्र चलाया। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गाँधी जी को भी हिरासत में ले लिया गया। 1930 ई० तक लगभग 90 हज़ार लोग जेलों में थे। काँग्रेस को गैर-कानूनी संगठन घोषित कर दिया गया। अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पुलिस द्वारा निहत्थे सत्याग्रहियों और औरतों पर लाठियाँ बरसाना, गोली चलाना तथा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करना आम बात थी।

1931 में गाँधी-इर्विन समझौते के बाद आंदोलन स्थगित किया गया तथा गाँधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परंतु इसका कोई नतीजा नहीं निकला। अतः आंदोलन पुनः शुरू किया गया। आंदोलन 1934 में स्थगित कर दिया गया।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

3. भारत छोड़ो आंदोलन-दूसरे विश्वयुद्ध के मुद्दे पर सरकार व काँग्रेस में गतिरोध पैदा हो गया था। अंग्रेज़ सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वतंत्रता नहीं देना चाहती थी। अंततः 8 अगस्त, 1942 को गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। उन्होंने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। सरकार ने गाँधी जी व अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 9 अगस्त से 13 अगस्त तक सारे देश में प्रमुख नगरों; जैसे बंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, पुणे, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, पटना आदि पर व्यापक उपद्रव हुए, हड़तालें हुईं एवं प्रदर्शन हुए। सरकारी प्रतीकों पर हमले हुए।

संचार साधनों, सेना और पुलिस के खिलाफ तोड़-फोड़ और विध्वंस किए गए। छात्रों ने शहरों से आकर कृषक विद्रोहों को नेतृत्व प्रदान किया। इस दौर में अनेक स्थानों पर अंग्रेजी राज समाप्त हो गया तथा उन स्थानों पर समानांतर राष्ट्रीय सरकारों की स्थापना हुई। इनमें तमलुक (मिदनापुर), तलचर (उड़ीसा), सतारा (महाराष्ट्र), बलिया (पूर्वी संयुक्त प्रांत) की राष्ट्रीय सरकारें प्रमुख थीं। इसके बाद भूमिगत आंदोलन चला। इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे–जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अचुत्य प्रवर्धन, अरुणा आसफ अली आदि। आंदोलन आतंकवादी गतिविधियों और छापामार संघर्षों से चलाया गया।

सरकारी दमन-आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने क्रूरता और जंगलीपन की सभी सीमाओं को तोड़ दिया। निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं। सेना ने हवाई जहाजों से गोलियाँ बरसाईं। मशीनगनों का प्रयोग किया गया। अनेक गाँवों को जलाकर राख कर दिया गया।

निष्कर्ष-स्पष्ट है कि गाँधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया। उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन चलाया जो विश्व में अपने प्रकार का अनूठा आंदोलन था। उन्होंने अपने विचारों, कार्यक्रमों व आंदोलनों से राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को नई दिशा प्रदान की।

प्रश्न 9.
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर:
1. निजी पत्र (Private Letterts)-निजी पत्र में व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार तथा दैनिक डायरी इत्यादि से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसमें प्रायः वे बातें भी मिल जाती हैं जिन्हें सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं किया गया होता। निजी पत्रों में बहुत-सी अन्य बातों के अतिरिक्त लिखने वाले की पीड़ा, आक्रोश, बेचैनी और असंतोष, आशा और हताशा इत्यादि की झलक भी मिल जाती है। राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में निजी पत्राचार में ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जाएँगे। उदाहरण के लिए 1936 के वर्ष के कुछ पत्रों को ले सकते हैं जो राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू और गाँधी जी द्वारा लिखे गए।

इन पत्रों से स्पष्ट होता है कि काँग्रेस में रूढ़िवादियों और समाजवादियों के बीच एक खाई पैदा हो गई थी। नेहरू जी 1928 में यूरोप से लौटने के बाद से ही समाजवादी विचारों से प्रभावित थे। 1936 में काँग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद वे किसान-मजदूरों के समर्थन में तथा विश्व में पैदा हो रहे फासीवाद के खिलाफ जमकर बोले। नेहरू जी का यह व्यवहार रूढ़िवादियों के लिए असहनीय हो गया।

यहाँ तक कि राजेंद्र प्रसाद और सरदार पटेल सहित काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सात सदस्यों ने त्याग-पत्र की धमकी तक दे डाली थी। इसके बाद सरदार पटेल और नेहरू जी दोनों वर्धा में गाँधी जी से मिले। गाँधी जी ने अंततः बीच-बचाव करते हुए राष्ट्रीय आंदोलन को पहले की तरह एक बार फिर बिखरने से बचा लिया।

निजी लेखन की सीमाएँ (Limits of Private Writing) –निजी लेखन की भी अपनी कुछ सीमाएँ होती हैं। यद्यपि यह व्यक्तिगत लेखन होता है लेकिन कई बार इसमें भी निजी और सार्वजनिक की सीमा खत्म हो जाती है। निजी पत्र या डायरी लिखते समय भी लोगों को यह अहसास रहता है कि संभवतः यह भी प्रकाशित हो सकते हैं। इसी अहसास से बहुत बार इन पत्रों की भाषा और विचारों की सीमाएँ तय होती हैं।

उल्लेखनीय है कि गाँधी जी के पास जो पत्र आते थे उन्हें वह अपने हरिजन समाचार-पत्र में प्रकाशित करते रहते थे। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि नेहरू जी ने भी अपने पुराने पत्रों को पुस्तक के रूप में सार्वजनिक किया। अतः निजी लेखन का भी अध्ययन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। उनके महत्त्व और सीमाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

2. आत्मकथाएँ (Autobiographies)-एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत है आत्मकथाएँ जिनमें मानवीय गतिविधियों का विविध विवरण मिलता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, परिवार की पृष्ठभूमि, शिक्षा, वैचारिक प्रभाव, जीवन में कठिनाइयों का उतार-चढ़ाव, प्रमुख घटनाओं आदि से जुड़ी होती हैं। आत्मकथाओं में व्यक्ति की रुचियों और प्राथमिकताओं का भी पता लगता है। इससे व्यक्ति के बौद्धिक स्तर तथा जीवन में सत्यनिष्ठ होने का भी पता लगता है। गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा का नाम ही ‘सत्य के साथ मेरे अनुभव’ रखा।
लेकिन आत्मकथा के लेखन को भी आँख मूंद कर स्वीकार नहीं किया जा सकता। विशेषतः इन्हें पढ़ते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

  1. आत्मकथाएँ प्रायः स्मृति के आधार पर लिखी जाती हैं। अतः इनसे पता चलता है कि लेखक को क्या याद रहा था या फिर उसने क्या याद रखा।
  2. आत्मकथा में प्रायः लेखक वह ही लिखता है जिससे वह स्वयं को दूसरों की नज़रों में दिखाना चाहता है।
  3. आत्मकथा वस्तुतः एक तरह से अपनी छवि गढ़ने (पिक्चर बनाने) के समान होती है। इसमें अकसर लोग अपनी कमियों को इच्छा या अनिच्छा से छुपाने का प्रयास करते हैं।
  4. आत्मकथा पढ़ते समय हमें उन बातों या चुप्पियों को ढूँढना चाहिए जिन्हें लेखक ने इच्छा या अनिच्छा से अभिव्यक्त नहीं किया होता।

3. सरकारी ब्यौरे से भिन्नता-निजी पत्र और आत्मकथाएँ इतिहास के स्रोत के रूप में सरकारी ब्यौरों से पूरी तरह से भिन्न हैं। सरकार राष्ट्रीय आंदोलन और इसके नेताओं पर कड़ी नजर रखती थी। पुलिस और सी०आई०डी० के द्वारा इन पर पाक्षिक रिपोर्ट तैयार की जाती थी।

यह ब्यौरा गुप्त रखा जाता था। इन रिपोर्टों को तैयार करने वाले सरकार और स्वयं अपने पूर्वाग्रहों, नीतियों दृष्टिकोण आदि से प्रभावित होते थे। इसके विपरीत निजी पत्रों में दो व्यक्तियों के मध्य आपसी विचारों का आदान-प्रदान और निजी स्तर पर जुड़ी बातों का विवरण होता था। स्पष्ट है कि इन दोनों प्रकार के स्रोतों के विवरण की विशेषता तथा प्रकृति भिन्न होती है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
दांडी मार्च के मार्ग का पता लगाइए। गुजरात के नक्शे पर इस यात्रा के मार्ग को चिह्नित कीजिए और उस पर पड़ने वाले मुख्य शहरों व गाँवों को चिह्नित कीजिए।
उत्तर:
संकेत-दांडी मार्च; साबरमती आश्रम अहमदाबाद से शुरू हुआ तथा बड़ोदरा, सूरत आदि से होता हुआ समुद्र तट पर स्थित दांडी पहुँचा।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
दो राष्ट्रवादी नेताओं की आत्मकथाएँ पढ़िए। देखिए कि उन दोनों में लेखकों ने अपने जीवन और समय को किस तरह अलग-अलग प्रस्तुत किया है और राष्ट्रीय आंदोलन की किस प्रकार व्याख्या की है। देखिए कि उनके विचारों में क्या भिन्नता है। अपने अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
संकेत-अपने प्राध्यापक से गाँधी जी व नेहरू जी की आत्मकथा के संबंध में जानकारी प्राप्त कर स्वयं रिपोर्ट लिखें।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान घटी कोई एक घटना चुनिए। उसके विषय में तत्कालीन नेताओं द्वारा लिखे गए पत्रों और भाषणों को खोज कर पढ़िए। उनमें से कुछ अब प्रकाशित हो चुके हैं। आप जिन नेताओं को चुनते हैं उनमें से कुछ आपके इलाके के भी हो सकते हैं। उच्च स्तर पर राष्ट्रीय नेतृत्व की गतिविधियों को स्थानीय नेता किस तरह देखते थे इसके बारे में जानने की कोशिश कीजिए। अपने अध्ययन के आधार पर आंदोलन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आंदोलन की दांडी मार्च से जुड़ी घटना पर सरकार की गोपनीय रिपोर्ट से स्थानीय नेताओं के विचारों को जाना जा सकता है। कुछ रिपोर्टों के अंश प्रस्तुत हैं मार्च, 1930 के पहले पखवाड़े की रिपोर्ट के कुछ अंश पढ़ें-गुजरात-इस प्रांत की राजनीतिक परिस्थितियों पर किस हद तक और क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। रबी की फसल अच्छी हुई है इसलिए फिलहाल किसान फसलों की कटाई में व्यस्त हैं। विद्याथी आने वाली परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं।

मद्रास-गाँधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने से बाकी मुद्दे हाशिये पर चले गए हैं। आम लोग उनकी यात्रा को नाटकीय और उनके कार्यक्रम को अव्यावहारिक मानते हैं क्योंकि हिंदू जनता उन्हें अगाध श्रद्धा की दृष्टि से देखती है, इसलिए गिरफ्तारी की संभावना, जिसके बारे में वे खुद बहुत उत्सुक हैं और उसके राजनीतिक प्रभावों के बारे में बहुत-सी गलतफहमियाँ हैं।

बंगाल-गाँधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत विगत पखवाड़े की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना रही। श्री जे०एम० सेनगुप्ता ने अखिल बंगाल सविनय अवज्ञा परिषद् का गठन किया है। बंगाल प्रांतीय काँग्रेस कमेटी ने अखिल बंगाल अवज्ञा परिषद् बनाई है। इन परिषदों के गठन के अलावा बंगाल में सविनय अवज्ञा के प्रश्न पर और कोई सक्रिय कदम अभी नहीं उठाया गया है। जिलों से मिली रिपोर्टों से पता चलता है कि जो बैठकें आयोजित की गईं उनमें लोगों ने कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया और आम जनता पर कोई गहरा असर नहीं छोड़ा है। गौरतलब बात यह है कि इन बैठकों में महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।

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बंबई-केसरी प्रेस ने आक्रामक भाषा और हमेशा की तरह आग उगलने के अंदाज में लिखा है “अगर सरकार सत्याग्रह की ताकत परखना चाहती है तो उसे पता होना चाहिए कि सत्याग्रह की सक्रियता और निष्क्रियता, दोनों से सरकार को ही नुकसान पहुँचेगा। यदि सरकार गाँधी जी को गिरफ्तार करती है तो उसे राष्ट्र के कोप का भाजन बनना पड़ेगा और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो सविनय अवज्ञा आंदोलन फैलता जाएगा। इसलिए हमारा मानना है कि अगर सरकार श्री गाँधी को दंडित करती है तो भी राष्ट्र की विजय होगी और अगर सरकार उन्हें अपने रास्ते पर चलने देती है तो राष्ट्र की और भी बड़ी विजय होगी।”

दूसरी ओर विविध वृत्त नामक मध्यमार्गी अखबार ने इस आंदोलन की व्यर्थता की ओर संकेत किया है और कहा है कि यह आंदोलन अपना घोषित उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाया है लेकिन उसने सरकार को भी चेतावनी दी है कि दमन का रास्ता उसके उद्देश्य को कमजोर कर देगा। मार्च 1930 में दूसरे पखवाड़े की रिपोर्ट के कुछ अंश बंगाल-सबका ध्यान समुद्र तट तक गाँधी जी की यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के लिए उनकी तैयारी पर केंद्रित है।

चरमपंथी अखबार उनकी गतिविधियों और भाषणों के बारे में विस्तार से लिख रहे हैं और पूरे बंगाल में हो रही बैठकों तथा उनमें पारित होने वाले प्रस्तावों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है परंतु गाँधी जिस सविनय अवज्ञा की वकालत कर रहे हैं उसके प्रति विशेष उत्साह नहीं दिखाई देता…. ।

सामान्य रूप से लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि गाँधी जी के साथ क्या किया जाता है और संभावना यही है कि अगर उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई की गई तो बंगाल के ज्वलनशील हालात में चिंगारी भड़क उठेगी। लेकिन फिलहाल ऐसी आग भड़कने के कोई गंभीर आसार दिखाई नहीं देते।

इन रिपोर्टों से विभिन्न क्षेत्रों में मार्च के बारे में जानकारी मिलती है परंतु इन्हें सावधानी से अध्ययन करना चाहिए। इनमें कई बार आशंकाएँ और गलत विचार भी दिए होते हैं। ये रिपोर्ट पूर्वाग्रह युक्त भी हैं। फिर भी इनमें उपयोगी जानकारी है।

महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे HBSE 12th Class History Notes

→ राष्ट्रपिता-भारतीयों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने तथा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सर्वाधिक योगदान के कारण महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहा जाता है।

→ जातीय भेदभाव-दक्षिण अफ्रीका में रंग के आधार पर भारतीयों से नसली भेदभाव किया जाता था। उन पर अनेक प्रतिबंध थे। गाँधी जी ने वहाँ पर जातीय-भेद विरोधी आंदोलन चलाया।

→ सत्याग्रह इसका शाब्दिक अर्थ है-सत्य पर दृढ़तापूर्वक अड़े रहना। अहिंसात्मक तरीके से विरोध करना। गाँधी जी के अनुसार सत्य पर अटल रहना ही सत्याग्रह है।

→ अहिंसा किसी भी प्रकार (मन, कर्म, वचन) से विरोधी को आहत न करना या हानि न पहुँचाना अहिंसा है। अहिंसा वीर और निडर का शस्त्र है न कि कायर और दुर्बल का। सत्याग्रह का आधार सत्य और अहिंसा थे।

→ लोकशक्ति-सामान्य लोगों (किसानों, मज़दूरों, गरीब अनपढ़ लोगों) की असीम बलिदान करने की क्षमता में विश्वास होना। गाँधी जी की लोकशक्ति से अटूट श्रद्धा थी।

→ साधन और साध्य-साध्य वह है जिसे प्राप्त करना होता है; जैसे भारत की स्वतंत्रता साध्य थी। साधन अर्थात् वह तरीका जिसके द्वारा साध्य (object) को प्राप्त किया जाए। गाँधी जी साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास रखते थे।

→ उदारवादी काँग्रेस के प्रथम दौर (1885 से 1905) के आंदोलन और नेताओं को उदारवादी कहा जाता है। वे सवैधानिक और क्रमिक सुधारों की माँग तथा प्रार्थना की नीति/तरीके पर चल रहे थे।

→ उग्रराष्ट्रवादी-1905 के आस-पास काँग्रेस में उग्रराष्ट्रवादी आंदोलन और नेता प्रभावशाली होने लगे। वे स्वराज्य की माँग में विश्वास रखते थे तथा स्वदेशी और बॉयकाट को शस्त्र के रूप में अपनाना चाहते थे।

→ चंपारन सत्याग्रह-1917 में गाँधी जी द्वारा चंपारण (बिहार) में किसानों की मांगों को लेकर चलाया गया आंदोलन।

→ खेड़ा सत्याग्रह-1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों से लगान वसूली के विरुद्ध गाँधी जी द्वारा चलाया गया सत्याग्रह। खेड़ा में किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी, तब भी सरकार लगान की माँग कर रही थी।

→ रॉलेट विरोधी सत्याग्रह-1919 में रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह सभा का गठन कर देशव्यापी अभियान गाँधी जी ने चलाया।

→ असहयोग आंदोलन-ब्रिटिश साम्राज्य की शैतानियत के खिलाफ अहिंसात्मक रूप से असहयोग आंदोलन अर्थात् सरकार से सहयोग न करना। गाँधी जी ने 1920 में असहयोग आंदोलन चलाया।

→ खिलाफत आंदोलन-1920 में अंग्रेज़ सरकार ने (इंग्लैंड की) तुर्की के खलीफा को अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया। इसके विरुद्ध भारतीय मुसलमानों में असंतोष था। मुहम्मद अली और शौकत अली ने अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध इस मुद्दे पर आंदोलन चलाया जो खिलाफत आंदोलन कहलाता है।

→ चौरी-चौरा की घटना-5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा (गोरखपुर) में लोगों की भीड़ ने एक थाने पर हमला कर आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए। इसके तत्काल बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया।

→ चरखा-हाथ से सूत कातने का एक यंत्र। गाँधी जी प्रतिदिन कुछ समय चरखा कातते थे। चरखा स्वदेशी और राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया था।

→ रचनात्मक कार्य-जनता की सेवा करने, जनता को जगाने तथा कार्यकत्ताओं में उत्साह पैदा करने के लिए गाँधी जी ने रचनात्मक कार्य चलाए। इसमें मुख्यतः खादी व चरखा कातना, ग्रामोद्योग, राष्ट्रीय शिक्षा, हिंदू-मुस्लिम एकता, हरिजन कल्याण, महिला उत्थान जैसे कार्यक्रम शामिल थे।

→ साइमन कमीशन-1919 के अधिनियम की समीक्षा के लिए इंग्लैंड सरकार द्वारा 1928 में साइमन के नेतृत्व में साइमन कमीशन भेजा गया। कमीशन में सभी सदस्य श्वेत थे। भारत में इसका जोरदार विरोध हुआ। ‘Simon go back’ के नारे लगे थे।

→ दांडी यात्रा-नमक कानून तोड़ने के लिए 12 मार्च, 1930 से 5 अप्रैल, 1930 के मध्य साबरमती आश्रम से दांडी तक गाँधी जी द्वारा आयोजित यात्रा।

→ खुदाई खिदमतगार-उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खान द्वारा बनाया गया संगठन, जिसने गाँधी जी के अहिंसात्मक आंदोलनों में भाग लिया।

→ गाँधी-इर्विन समझौता-गाँधी-इर्विन समझौता या दिल्ली समझौता भारत के वायसराय इर्विन तथा गाँधी जी के मध्य 5 मार्च, 1931 को हुआ।

→ गोलमेज सम्मेलन-भारत की समस्या पर बातचीत करने तथा नया सुधार कानून पास करने के लिए लंदन में इंग्लैंड की सरकार ने 1930, 1931 व 1932 में तीन गोलमेज सम्मेलन बुलाए। गाँधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।

→ प्रांतीय स्वायत्तता-1935 के एक्ट के अनुसार प्रांतों का शासन भारतीयों के हाथों में दे दिया गया। यह प्रांतीय स्वायत्तता’ के नाम से जाना जाता है।

→ पाकिस्तान प्रस्ताव-लीग द्वारा 1940 के लाहौर अधिवेशन में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ पास किया गया, जिसमें मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों की स्वतंत्र’ इकाई गठित करने के लिए कहा गया।

→ व्यक्तिगत सत्याग्रह-द्वितीय विश्वयुद्ध के मुद्दे पर सरकार के विरुद्ध काँग्रेस ने 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया।

→ भारत छोड़ो आंदोलन-क्रिप्स मिशन (1942) की असफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया तथा अंग्रेज़ों को तत्काल भारत छोड़कर चले जाने को कहा। अगस्त, 1942 में छेड़े गए इस आंदोलन को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है।

→ निजी लेखन-निजी लेखन में व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार तथा दैनिक डायरी इत्यादि शामिल होते हैं। इसमें प्रायः वे बातें भी मिल जाती हैं जिन्हें सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं किया गया होता।

→ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं में महात्मा गाँधी का शीर्ष स्थान है। भारतीयों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने में उन्होंने सबसे अधिक योगदान दिया, इस कारण उन्हें “राष्ट्र-पिता’ माना गया है। राष्ट्र-निर्माण के इस कार्य में हम उन्हें इटली के गैरीबाल्डी, अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के नेता जार्ज वाशिंगटन और वियतनाम के मुक्ति संघर्ष के नेता हो ची मिन्ह के समकक्ष रख सकते हैं।

→ महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात के काठियावाड़ जिले में स्थित पोरबंदर नामक स्थान पर 1869 ई० में हुआ। उनके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। 1888 ई० में कानून की पढ़ाई करने के लिए गाँधी जी इंग्लैंड गए। जल्दी ही वह गुजराती व्यापारी दादा अब्दुला (Dada Abudlla) के कानूनी प्रतिनिधि बनकर 1893 में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। यहाँ पर गाँधी को जातीय (नसली) भेदभाव का सामना करना पड़ा।

→ गोरे लोगों के हाथों अपमानित होने पर गाँधी जी ने अन्याय के विरुद्ध लड़ना तय किया। यद्यपि गाँधी जी वहाँ पर अपने कार्य के लिए एक वर्ष के लिए गए थे तथापि जातीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए उन्हें 20 वर्ष रुकना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के विरुद्ध भेदभाव वाले कानूनों के खिलाफ ‘सत्याग्रह’ चलाया। लंबे संघर्ष के दौरान गाँधी जी और उनके साथियों को अनेक बार जेल जाना पड़ा।

अंततः आंदोलन से मजबूर होकर सरकार को गाँधी जी से वार्ता करनी पड़ी। सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना पड़ा तथा दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर से अनेक प्रतिबंध समाप्त करने पड़े।

→ गाँधी के राजनीतिक विचारों और उनके दर्शन का केंद्र-बिंदु सत्याग्रह है। सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है-सत्य पर दृढ़तापूर्वक अड़े रहना। यह विरोध करने का अहिंसात्मक मार्ग था। गाँधी जी के अनुसार, “सत्य पर अटल रहना ही सत्याग्रह है। सत्याग्रह असत्य को सत्य से और हिंसा को अहिंसा से जीतने का एक नैतिक शस्त्र है।” सत्याग्रह दो प्रमुख सिद्धांतों पर टिका था-सत्य और अहिंसा। इसलिए गाँधी जी ने संघर्ष में सत्य के साथ-साथ सत्य और अहिंसात्मक तरीकों पर बल दिया।

गाँधी जी का जन-शक्ति संगठन में अटूट श्रद्धा थी। उनके नेतृत्व में यह राष्ट्रीय आंदोलन जन-आंदोलन बन गया। भारत में आने पर गोखले ने गाँधी जी को भारत की यात्रा करने की सलाह दी। गाँधी जी जहाँ भी जाते थे, उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट जाती थी। भारत में गाँधी जी ने अपने ‘सत्याग्रह’ के तरीके का प्रथम अनुभव 1917 में चंपारन (बिहार) में किया। दूसरी बार सत्याग्रह का प्रयोग 1918 में अहमदाबाद (गुजरात) तथा उसी वर्ष तीसरी बार खेड़ा (गुजरात) में ‘सत्याग्रह’ आयोजित किया।

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→ ये तीनों ही स्थानीय समस्याओं से जुड़े आंदोलन थे। प्रथम विश्वयुद्ध से पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयों, रॉलेट एक्ट, खिलाफत आंदोलन तथा जलियाँवाला बाग हत्याकांड जैसे कारणों ने गाँधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह चलाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हें विश्वास हो गया था कि “ब्रिटिश साम्राज्य आज शैतानियत का प्रतीक है।” परिणामस्वरूप गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन के रूप में देशव्यापी आंदोलन चलाया। असहयोग आंदोलन ने शीघ्र ही जन-आंदोलन का रूप धारण कर लिया। इस आंदोलन ने जन कार्रवाइयों के लिए रास्ता खोल दिया और यह ब्रिटिश भारत में अभूतपूर्व बात थी।

इस आंदोलन से देशभर में उत्साह था। सभी वर्गों ने इसमें भाग लिया था। परंतु इसी बीच 5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना घटी। इस घटना में 22 पुलिसकर्मी मारे गए। गाँधी जी को इस घटना से गहरा आघात लगा। उन्होंने तत्काल आंदोलन वापिस ले लिया। असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक जन-आंदोलन बना दिया था। अब यह सारे देश के सभी भागों में तथा देश के सभी वर्गों व तबकों का आंदोलन बन चुका था। किसानों, श्रमिकों और कारीगरों ने भी इसमें भाग लेना शुरू कर दिया था।

→ गाँधी जी उनके प्रिय नेता बन गए थे। गाँधी जी की जीवन-शैली से लोगों को लगता था कि वे उनके स्वाभाविक नेता हैं। गाँधी जी उन्हीं की तरह वस्त्र पहनते थे व उन्हीं की तरह रहते थे। वे जन-सामान्य की भाषा बोलते थे। गाँधी जी दूसरे नेताओं की तरह जनसमूह से अलग खड़े नहीं होते थे, बल्कि वे उनसे गहरी सहानुभूति रखते थे। गाँधी जी प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ की जनसंख्या के अधिकांश लोग किसान थे।

→ किसानों में असहयोग आंदोलन के बाद गाँधी जी, ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराजा’ अथवा सामान्य ‘महात्मा जी’ जैसे नामों से लोकप्रिय हुए। किसानों में उनकी छवि एक उद्धारक के समान थी। गाँधी जी को जन-सामान्य के समीप ले जाने में उनके रचनात्मक कार्य की अहम् भूमिका है। रचनात्मक कार्यों को मुख्यतः खादी व चरखा कातना, ग्रामोद्योग, राष्ट्रीय शिक्षा, हिंदू-मुस्लिम एकता, हरिजन कल्याण, महिला उत्थान; जैसे कार्यक्रमों के रूप में संगठित किया। साइमन कमीशन को इंग्लैंड की सरकार ने भारत में 1919 के अधिनियम की कार्य-प्रणाली की समीक्षा करने के लिए भेजा था ताकि आगे सुधारों पर विचार किया जा सके, परंतु इस कमीशन के सभी सदस्य श्वेत थे।

→ भारत के सभी दलों ने इसका जोरदार विरोध किया। 1929 में दिसंबर के अंत में काँग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर में किया। इसका अध्यक्ष युवा नेता जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया। काँग्रेस ने अपना लक्ष्य ‘पूर्ण स्वराज्य’ अथवा ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ को घोषित किया। दांडी यात्रा तथा नमक कानून तोड़ने की योजना गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार करके बनाई थी। इस योजना के अनुसार 12 मार्च, 1930 को प्रातः 6 बजकर 30 मिनट पर साबरमती आश्रम से गाँधी जी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ 241 मील दूर दांडी नामक स्थान के लिए पद यात्रा शुरू की।

→  24 दिनों में यात्रा पूरी करके गाँधी जी व उनके सहयोगी 5 अप्रैल को दांडी पहुँचे व 6 अप्रैल को प्रातःकाल में गाँधी जी समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने नमक एकत्र कर नमक कानून को भंग कर दिया और इस प्रकार 6 अप्रैल, 1930 को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया। गाँधी जी द्वारा नमक कानून तोड़ने के साथ ही यह आंदोलन देश के सभी भागों में फैल गया। इस आंदोलन के जवाब में सरकार ने दमन चक्र चलाया।

→ नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गाँधी जी को भी हिरासत में ले लिया गया। सर तेज बहादुर सञ्जु तथा डॉ० जयकर की मध्यस्थता से गाँधी जी और वायसराय इर्विन के बीच फरवरी-मार्च 1931 में लंबी बैठकें हुईं। अंत में दोनों में 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ जो ‘गाँधी-इर्विन’ समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

→ काँग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सितंबर, 1931 में लंदन पहुँचे। साइमन कमीशन रिपोर्ट तथा गोलमेज सम्मेलनों के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को प्रशासन में भागीदारी के लिए 1935 का अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के तहत प्रांतों में स्वायत्त शासन की स्थापना की गई थी। भारतीय दल 1935 के एक्ट से संतुष्ट नहीं थे तथापि उन्होंने इस एक्ट के तहत 1937 में प्रांतीय सभाओं के लिए चुनाव हुए तो इनमें भाग लिया। इन चुनावों में काँग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। 1937 के चुनावों में मुस्लिम लीग को भारी असफलता हाथ लगी थी।

→ वह संयुक्त प्रांत में सांझी सरकार भी नहीं बना पाई। अब उसे लग रहा था कि पृथक् निर्वाचिका से भी उसे सत्ता नहीं मिलने वाली है तो उसने उग्र रूप अपना लिया। इसके साथ ही मार्च, 1940 में अपने लाहौर अधिवेशन में लीग ने ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ को पारित किया, जिसमें मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों की ‘स्वतंत्र’ इकाई गठित करने के लिए कहा गया। 1942 ई० में ब्रिटेन ने भारतीय नेताओं से बातचीत करने तथा भारतीय समस्या को हल करने के लिए क्रिप्स मिशन भारत भेजा।

→  स्टैफर्ड क्रिप्स 22 मार्च, 1942 को भारत पहुँचे तथा अपने प्रस्ताव भारतीयों के समक्ष रखे। क्रिप्स प्रस्ताव अपर्याप्त और असंतोषजनक थे। इसमें सभी दलों को खुश करने का प्रयास किया गया, परंतु सभी भारतीय दलों ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।

→ क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। अगस्त, 1942 में छेड़े गए इस आंदोलन को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। 7 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी (AICC) की बैठक शुरू हुई। इस बैठक में वर्धा में पास किए ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ का अनुमोदन कर दिया गया। साथ ही गाँधी जी को अहिंसक संघर्ष छोड़ने की मंजूरी दी।

→  8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के बाद अपने भाषण में महात्मा गाँधी ने कहा, “आप लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति को अब से स्वयं को स्वतंत्र व्यक्ति समझना चाहिए तथा इस प्रकार का कार्य करना चाहिए कि मानो आप स्वतंत्र हो….. मैं स्वतंत्रता से कम किसी भी वस्तु से संतुष्ट नहीं होऊँगा। हम करेंगे या मरेंगे। हम या तो भारत को स्वतंत्र कराएँगे या इस प्रयास में मर मिटेंगे।” भारत छोड़ो आंदोलन सही मायनों में एक जनांदोलन था। इसमें लाखों आम लोगों ने स्वयं की प्रेरणा से भाग लिया। इतिहासकार बिपिन चंद्र का मानना है कि, “भारत छोड़ो आंदोलन में आम जनता की हिस्सेदारी तथा समर्थन एक नई सीमा तक पहुँचा।”

→ 1945-47 के मध्य तेजी से वार्ताओं का दौर शुरू हुआ। गाँधी जी सत्ता की इन वार्ताओं से लगभग दूर रहे। उन्होंने आखिर तक विभाजन का विरोध किया। गाँधी जी 15 अगस्त को दिल्ली में उपस्थित नहीं थे। वे कलकत्ता में सांप्रदायिक सद्भाव को बहाल करने के दुष्कर कार्य में लगे हुए थे। उन्होंने 24 घंटे का उपवास रखा। वे अकेले ही स्थान-स्थान पर जाकर हिंदू-मुस्लिमों के आपसी वैर-भाव को समाप्त करने में लगे थे। गाँधी जी की धर्म में गहरी आस्था थी, किंतु साथ ही वे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत में भी दृढ़ आस्था रखते थे।

→ नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 की शाम को दैनिक प्रार्थना के समय गाँधी जी पर गोली चलाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया। गाँधी जी एक धर्मांध के हाथों शहीद हो गए। गाँधी जी की शहादत से सारे देश में गहरे शोक की लहर दौड़ गई। उनकी शहादत पर भारत में ही नहीं, विश्वभर में उन्हें भाव-भीनी श्रद्धांजलि दी गई।

→ इतिहासकार समस्त स्रोतों का अध्ययन और विवेचन करते हुए गाँधी जी के राजनीतिक सफर और राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं। इतिहासकार के लिए यह भाषण बड़े महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं क्योंकि इनसे उनकी नीतियों, कार्यक्रमों तथा लोगों को संगठित करने के तरीकों की झलक मिलती है। निजी लेखन में व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार तथा दैनिक डायरी इत्यादि शामिल होते हैं।

→ इसमें प्रायः वे बातें भी मिल जाती हैं जिन्हें सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं किया गया होता। आत्मकथाएँ एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। आत्मकथाओं में मानवीय गतिविधियों का विविध विवरण मिलता है। भारतीयों की राजनीतिक गतिविधियों के बारे में अंग्रेज़ सरकार कड़ी नज़र रखती थी। इन गतिविधियों के बारे में पुलिस व अन्य अधिकारी अपनी रिपोर्टों और पत्रों से सरकार को अवगत करवाते थे।

→ इन दस्तावेजों को पढ़कर हम जान पाते हैं कि पुलिस व अधिकारियों की नजर में गाँधी जी और उसके सहयोगियों की गतिविधियाँ कैसी थीं। 20वीं सदी के दूसरे दशक के अंत में गाँधी जी राष्ट्रीय नेता बनकर उभरे। इस समय बड़ी संख्या में अंग्रेजी और हिंदी में समाचार-पत्र प्रकाशित हो रहे थे जिन्होंने गाँधी जी की गतिविधियों को प्रमुखता से प्रकाशित किया। गाँधी जी को समझने के लिए ये महत्त्वपूर्ण साधन हैं।

काल-रेखा

कालघटना का विवरण
2 अक्तूबर, 1869 ई०गाँधी जी का जन्म।
1893 ई०गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका जाना।
जनवरी, 1915गाँधी जी का भारत आगमन।
1916 ई०प० मदन मोहन मालवीय द्वारा बनारस विश्वविद्यालय की स्थापना तथा गाँधी जी द्वारा समारोह में भाषण।
अप्रैल, 1917चंपारन सत्याग्रह का प्रारंभ ।
1918 ई०अहमदाबाद और खेड़ा (गुजरात में सत्याग्रह)
6 अप्रैल, 1919रॉलेट एक्ट पर अखिल भारतीय
13 अप्रैल, 1919जलियाँवाला बाग हत्याकांड।
1918 ई०खिलाफ़त कमेटी का गठन।
1 अगस्त, 1920गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया।
5 फरवरी, 1922चौरी-चौरा की घटना
12 फरवरी, 1922असहयोग आंदोलन का संगठन।
1928 ई०साइमन कमीशन का भारत आना।
31 दिसंबर, 1929लाहौर अधिवेशन में पूर्व स्वतंत्रता प्रस्ताव पास
26 जनवरी, 1930प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
12 मार्च, 1930गाँधी जी द्वारा दांडी यात्रा का प्रारंभ
6 अप्रैल, 1930गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ा।
5 मार्च, 1931गाँधी-इर्विन पैक्ट हुआ।
1931 ई०दूसरा गोलमेज सम्मेलन तथा गाँधी का लंदन जाना।
1937 ई०प्रांतीय सभाओं के चुनाव
3. सितंबर, 1939वायसराय द्वारा भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में झोंकना
22 अक्तूबर, 1939काँग्रेस सरकारों का त्याग-पत्र देना।
22 दिसंबर, 1939लीग द्वारा ‘मुक्ति दिवस मनाना’।
मार्च, 1940लीग का पाकिस्तान प्रस्ताव।
8 अगस्त, 1940लिनलिथगों द्वारा ‘अगस्त प्रस्ताव’ रखना।
8 अगस्त, 1942भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया।
9 अगस्त, 1942भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ।
14 जून, 1945‘वेवल योजना’ प्रस्ताव प्रस्तुत।
16 अगस्त, 1946लीग द्वारा कार्रवाई दिवस मनाना।
15 अगस्त, 1947भारत का स्वतंत्र होना।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

HBSE 12th Class History बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?
उत्तर:
पितृवंशिकता वह पारिवारिक परंपरा है जिसमें वंश परंपरा पिता से पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि की ओर चलती है। इसमें परिवार की संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र ही होते हैं। राजाओं के संदर्भ में सिंहासन के उत्तराधिकारी पुत्र ही थे।

ब्राह्मण ग्रंथों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में पितृवंशिकता का ‘आदर्श’ स्थापित हो चुका था। ऋग्वेद में भी इन्द्र जैसे वीर पुत्र की कामना की गई है। विशिष्ट उच्च परिवारों में पितृवंशिकता और भी अधिक महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि उनमें भूमि और सत्ता के स्वामित्व का प्रश्न महत्त्वपूर्ण होता था। महाभारत का युद्ध सत्ता और साधनों के प्रश्न को लेकर ही हुआ था। इस युद्ध में पांडव और कौरव दोनों चचेरे परिवार थे। जीत पांडवों की हुई तो ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर को शासक घोषित किया गया।

इससे पितृवंशिकता का आदर्श और भी सुदृढ़ हुआ। पितृवंशिकता के अपवाद यदा-कदा ही मिलते हैं। जैसे कि पुत्र के न होने पर भाई या फिर चचेरा भाई राजगद्दी पर अपना अधिकार कर लेता था। कुछ विशेष परिस्थितियों में औरतें भी सत्ता की उत्तराधिकारी बनीं।

प्रश्न 2.
क्या आरंभिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वर्ण व्यवस्था के अनुसार समाज की रक्षा का दायित्व और शासक बनने का अधिकार क्षत्रियों के पास था। परंतु हम देखते हैं कि आरंभिक राज्यों में सभी शासक क्षत्रिय वंश से नहीं थे। बहुत-से गैर-क्षत्रिय शासक वंशों का भी पता चलता है। उदाहरण के लिए ह्यूनसांग के समय उज्जैन व महेश्वरपुर के शासक ब्राह्मण थे। चन्द्रगुप्त मौर्य को भी ब्राह्मण ग्रंथों (पुराणों) में शूद्र बताया गया जबकि बौद्ध ग्रंथ उसे क्षत्रिय मानते हैं। मौर्यों के बाद शुंग व कण्व ब्राह्मण शासक बने। गुप्तवंश के शासक तथा हर्षवर्धन भी संभवतः वैश्य थे। इनके अतिरिक्त प्राचीन काल में बाहर से आने वाले बहुत-से आक्रमणकारी शासक (शक, कुषाण इत्यादि) भी क्षत्रिय, नहीं थे। दक्कन भारत के सातवाहन शासक भी स्वयं को ब्राह्मण मानते थे। अतः स्पष्ट है कि भारत में आरम्भिक राज्यों में सभी शासक संभवतः क्षत्रिय नहीं थे।

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प्रश्न 3.
द्रोण, हिडिम्बा और मातंग की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना कीजिए तथा उनके अंतर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महाभारत के आदिपर्व में द्रोण व हिडिम्बा की तथा जातक ग्रंथ में बोधिसत्त्व मातंग की कथा मिलती है। तीनों कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना बड़ी रुचिकर है। भारतीय संदर्भ में धर्म की व्याख्या वर्ण-कर्त्तव्य पालन के संदर्भ में की गई है। ब्राह्मण ग्रंथों में वर्ण-धर्म के पालन पर अत्यधिक बल दिया गया है। उसे ‘उचित’ सामाजिक कर्त्तव्य बताया गया है।

द्रोण की कथा में एकलव्य निषाद जाति से था जिसे वर्ण-धर्म के अनुसार धनुर्विद्या सीखने का अधिकार नहीं था। इसलिए ने उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया था। फिर भी एकलव्य ने यह विद्या अपनी लगन से प्राप्त की। गुरु द्रोण ने गुरु दक्षिणा में दायें हाथ का अंगूठा लिया। स्पष्ट है कि इस कथा के माध्यम से निषादों को धर्म का संदेश दिया जा रहा था। दूसरी कथा हिडिम्बा-भीम की है जिसमें भीम ने वर्ण-धर्म का पालन करते हए वनवासी लड़की (हिडिम्बा) के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया था।

लेकिन इसमें भी प्रचलित परंपरा से हटने का आभास मिलता है जब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई भीम (उच्च कुल) को निम्न कुल से संबंधित हिडिम्बा के साथ विवाह की अनुमति दे दी थी। – तीसरी कथा मातंग की है जिसका जन्म चाण्डाल के घर में हुआ था।

जिसे देखकर मांगलिक नामक व्यापारी की बेटी (दिथ्थ) चिल्लाने लगी कि उसने ‘अशुभ’ देख लिया है। मातंग को मारा पीटा गया परंतु उसने हार मानने की बजाय विरोध स्वरूप ‘मरण व्रत’ धारण कर लिया। वस्तुतः यह कथा ब्राह्माणिक धर्म परंपरा के विरोध का उदाहरण है। यह विरोध मातंग के इन शब्दों में स्पष्ट झलकता है, “जिन्हें अपने जन्म पर गर्व है पर अज्ञानी हैं, वे भेंट के पात्र नहीं हैं। इसके विपरीत जो दोषमुक्त हैं, वे भेंट के योग्य हैं।” अतः तीनों कथाओं में वर्ण-धर्म के पालन करने पर बल दिया गया है, परंतु ाथ ही इस धर्म के विरुद्ध विरोध का स्वर स्पष्ट झलकता है।

प्रश्न 4.
किन मायनों में सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी जो ‘पुरुषसूक्त’ पर आधारित था।
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रंथों में ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ पर आधारित सामाजिक विषमताओं की व्याख्या मिलती है। इस व्याख्या में वर्ण व जाति को ईश्वरीय बताया गया है। इसमें सामाजिक भेदभाव निहित था। बौद्ध ग्रंथों में इसके विपरीत सामाजिक विषमताओं (भेदभावों) को ईश्वर की देन या पुनर्जन्म का परिणाम नहीं माना गया है। उनके अनुसार ये भेदभाव सदैव से नहीं थे। प्रारम्भ में मानव सहित सभी जीव शान्ति की अवस्था में रहते थे। इनमें कोई मेरा-तेरा नहीं था, न कोई अमीर व न कोई गरीब था। संग्रह की प्रवृत्ति भी नहीं थी। यह व्यवस्था पतन की ओर तब बढ़ने लगी जब मानव में लालसा, मक्कारी और संचय जैसी भावनाएँ पैदा हुईं। ऐसी स्थिति में सामाजिक भेदभावों का उदय हुआ।

सामाजिक भेदभावों को दूर करने के लिए बौद्ध ग्रंथों में एक सामाजिक अनुबंध की व्याख्या मिलती है, जिसके अनुसार सब लोगों ने मिलकर राजपद स्थापित किया। ऐसे व्यक्ति (राजा) को यह अधिकार दिया कि वह अपराधी को सजा दे। इस प्रकार बौद्ध व्याख्या में राजपद ईश्वरीय नहीं माना गया, जैसा कि ब्राह्मण ग्रंथ मानते हैं, बल्कि इसे एक सामाजिक समझौता (अनुबंध) माना गया।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अवतरण महाभारत से है जिसमें ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर दूत संजय को संबोधित कर रहे हैं :
संजय धृतराष्ट्र गृह के सभी ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को मेरा विनीत अभिवादन दीजिएगा। मैं गुरु द्रोण के सामने नतमस्तक होता हूँ….. मैं कृपाचार्य के चरण स्पर्श करता हूँ….. (और) कुरु वंश के प्रधान भीष्म के। मैं वृद्ध राजा (धृतराष्ट्र) को नमन करता हूँ। मैं उनके पुत्र दुर्योधन और उनके अनुजों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता हूँ तथा उनको शुभकामनाएँ देता हूँ, … मैं उन सब युवा कुरु योद्धाओं का अभिनंदन करता हूँ जो हमारे भाई, पुत्र और पौत्र हैं…. सर्वोपरि मैं उन महामति विदुर को (जिनका जन्म दासी से हुआ है) नमस्कार करता हूँ जो हमारे पिता और माता के सदृश हैं…. मैं उन सभी वृद्धा स्त्रियों को प्रणाम करता हूँ जो हमारी माताओं के रूप में जानी जाती हैं।

जो हमारी पत्नियाँ हैं उनसे यह कहिएगा कि, “मैं आशा करता हूँ कि वे सुरक्षित हैं”….. मेरी ओर से उन कुलवधुओं का जो उत्तम परिवारों में जन्मी हैं और बच्चों की माताएँ हैं, अभिनंदन कीजिएगा तथा हमारी पुत्रियों का आलिंगन कीजिएगा….. सुंदर, सुगंधित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीजिएगा। दासियों और उनकी संतानों तथा वृद्ध, विकलांग और असहाय जनों को भी मेरी ओर से नमस्कार कीजिएगा….

इस सूची को बनाने के आधारों की पहचान कीजिए-उम्र, लिंग, भेद व बंधुत्व के संदर्भ में। क्या कोई अन्य आधार भी हैं? प्रत्येक श्रेणी के लिए स्पष्ट कीजिए कि सूची में उन्हें एक विशेष स्थान पर क्यों रखा गया है?
उत्तर:
इस अवतरण में ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर आयु, लिंग-भेद और बंधुत्व के अतिरिक्त समाज में स्थिति, ज्ञान के आधार पर संबोधन करते हैं। संबोधन की इस सूची में वर्ण व्यवस्था द्वारा स्थापित मानदंडों का विशेष ध्यान रखा गया है। उदाहरण के लिए सबसे पहले ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित का अभिवादन किया गया है। गुरु द्रोण व कृपाचार्य को चरण स्पर्श कहा गया है फिर कुरु वंश के प्रमुख भीष्म पितामह और फिर धृतराष्ट्र के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है। दुर्योधन और अन्य कुरु योद्धाओं को शुभकामनाएँ दी गई हैं। तत्पश्चात् महामति विदुर (दासीपुत्र) का आदरपूर्वक अभिवादन किया गया है।

इसके बाद महिलाओं को सूची में शामिल किया गया है जो पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता को दर्शाता है। इसके बाद गणिकाओं और सबसे अंत में वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर स्थित दास-दासियों को शामिल किया गया है। इनके साथ विकलांग व असहायों को रखा गया है। स्पष्ट है कि सामाजिक स्थिति के अनुरूप बनाए गए मानदंडों के कारण ही इस सूची में विभिन्न लोगों को स्थान दिया गया है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

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प्रश्न 6.
भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार मौरिस विंटरविट्ज़ ने महाभारत के बारे में लिखा था कि : चूँकि महाभारत संपूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है………….. बहुत सारी और अनेक प्रकार की चीजें इसमें निहित हैं …. (वह) भारतीयों की आत्मा की अगाध गहराई को एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
महाभारत एक विस्तृत महाकाव्य है। इसकी मूल कथा कौरवों और पांडवों के बीच सत्ता और साधनों को लेकर लड़े गए युद्ध से संबंधित है। चूंकि यह एक गतिशील ग्रंथ रहा है इसलिए इसमें इस मूल कथा के साथ-साथ अन्य कथाएँ, मिथक और घटनाक्रम जुड़ते गए। इसमें बहुत-से उपदेश भी हैं। विद्वानों का विचार है कि लगभग 1000 वर्षों (500 ई→पू→ से 500 ई→) में यह ग्रंथ संपूर्ण हुआ है। शुरू में इसमें मात्र 8800 श्लोक थे और जयस यानी विजय संबंधी ग्रंथ कहलाता था। कालांतर में यह लगभग 24000 श्लोकों के साथ भारत नाम से जाना गया। अन्ततः यह महाभारत कहलाया। अब इसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं।

चूँकि महाभारत दीर्घ अवधि में रचा और लिखा गया है, इसलिए इसमें भारतीय समाज के अनेक पक्ष शामिल होते गए। आर्यों के उत्तर भारत में विस्तार के बाद मध्य और दक्षिणी भारत में उनका फैलाव हुआ तो उनके इस ग्रंथ में भी अनेक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक पक्ष जुड़ते गए। यह ग्रंथ मात्र आर्यों का नहीं रह गया। आर्य लोगों का भारत में बसने वाले अन्य जन-जातियों और कबीलों से समायोजन हुआ, तो इन लोगों के सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्ष भी इसमें जुड़ते गए। इस प्रकार मौरिस विन्टरविट्ज़ का यह निष्कर्ष उचित है कि ‘महाभारत संपूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है।

उनका यह वाक्य और भी सारगर्भित है कि यह ग्रंथ ‘भारतीयों की आत्मा की अगाध गहराई को एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।’ इसका अर्थ है कि इस ग्रंथ में मात्र सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पक्षों का ही वर्णन नहीं है बल्कि नैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और गहन दार्शनिक विवेचन भी है। उदाहरण के लिए इस ग्रंथ का महत्त्वपूर्ण भाग श्रीमद्भगवद् गीता को लें जो संपूर्ण भारतीय दर्शन का निचोड़ है। इसमें मोक्ष प्राप्ति के तीनों मार्गों-ज्ञान, कर्म और भक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है।

भारतीय समाज की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता वर्ण व जाति व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था के नैतिक और सामाजिक आदर्शों को महाभारत ग्रंथ ने विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। यहाँ तक कि उपदेशों के माध्यम से भी उन्हें व्यक्त किया है। उदाहरण के लिए एकलव्यगाथा, जिसमें वर्ण-धर्म की पालना का उपदेश दिया गया है। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि महाभारत में भारतीयों के सामाजिक जीवन का सार मिलता है। इसलिए यह संपूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 7.
क्या यह संभव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
महाभारत के रचनाकार के विषय में भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। जनश्रुतियों के अनुसार.महर्षि व्यास ने इस ग्रंथ को श्रीगणेश जी से लिखवाया था। परंतु आधुनिक विद्वानों का विचार है कि इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा नहीं हुई। वर्तमान में इस ग्रंथ में एक लाख श्लोक हैं लेकिन शुरू में इसमें मात्र 8800 श्लोक ही थे। दीर्घकाल में रचे गए इन श्लोकों का रचयिता कोई एक लेखक नहीं हो सकता। इतिहासकार मानते हैं कि इसकी मूल गाथा के रचयिता भाट सारथी थे, जिन्हें सूत कहा जाता था। यह ‘सूत’ क्षत्रिय योद्धाओं के साथ रणक्षेत्र में जाते थे और उनकी विजयगाथाएँ रचते थे। विजयों का बखान करने वाली यह कथा परंपरा मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलती रही।

इतिहासकारों का अनुमान है कि पाँचवीं शताब्दी ई→पू→ से इस कथा परंपरा को ब्राह्मण लेखकों ने अपनाकर इसे और विस्तार दिया। साथ ही इसे लिखित रूप भी दिया। यही वह समय था जब उत्तर भारत में क्षेत्रीय राज्यों और राजतंत्रों का उदय हो रहा था। कुरु और पांचाल, जो महाभारत कथा के केंद्र बिंदु हैं, भी छोटे सरदारी राज्यों से बड़े राजतंत्रों के रूप में उभर रहे थे। संभवतः इन्हीं नई परिस्थितियों में महाभारत की कथा में कुछ नए अंश शामिल हुए। यह भी संभव है कि नए राजा अपने इतिहास को नियमित रूप से लिखवाना चाहते हों।

जैसे-जैसे आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती गईं, महाभारत की मूल गाथा में उनके अनुरूप नए अंश .. जुड़ते गए। महाभारत ज्ञान का एक अपूर्व खजाना बनता गया। धर्म, दर्शन और उपदेश इत्यादि अंश मूल कथा के साथ जुड़कर महाभारत एक विशाल ग्रंथ बनता गया।

इस ग्रंथ की रचना का एक और महत्त्वपूर्ण चरण लगभग 200 ई→पू→ से 200 ईसवी के बीच शुरू हुआ। यह वही चरण था जिसमें आराध्य देव के रूप में विष्णु की महत्ता बढ़ रही थी। श्रीकृष्ण, जो इस महाकाव्य के महानायकों में से एक थे, को भगवान श्री विष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार किया गया। इस प्रकार लगभग 1000 वर्ष से भी अधिक अवधि में यह ग्रंथ अपना वृहत् रूप धारण कर पाया। इससे यह भी स्पष्ट है कि इसकी रचना करने में एक से अधिक विद्वानों का योगदान है।

प्रश्न 8.
आरंभिक समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों की विषमताएँ कितनी महत्त्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
आरंभिक भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों में भेदभाव (विषमताएँ) था। ब्राह्मण ग्रंथों से यह स्पष्ट है कि समाज में पितृवंशिकता का ‘आदर्श’ स्थापित हो चुका था। इसमें वंश परंपरा पिता से पुत्र फिर पौत्र और प्रपौत्र आदि की ओर चलती थी। प्रारंभिक वैदिक साहित्य में औरत के प्रति सम्मान तो झलकता है, फिर भी पुरुषों को समाज में अधिक महत्त्व प्राप्त था। ऋग्वेद में पुत्र-कामना को प्राथमिकता दी गई। विशेषतः इंद्र जैसे वीर पुत्र की कामना की गई। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है कि ‘मैं इसे (बेटी) यहाँ से यानी पिता के घर से मुक्त करता हूँ किंतु वहाँ (पति के घर) से नहीं। मैंने इसे वहाँ मजबूती से स्थापित किया है जिससे इंद्र के अनुग्रह से इसके उत्तम पुत्र हों और पति के प्रेम का सौभाग्य इसे प्राप्त हो।

शासक वर्गों में सिंहासन के उत्तराधिकारी भी पुत्र थे। उपनिषदों में पिता के आध्यात्मिक पुण्य का उत्तराधिकारी पुत्र को बताया गया अर्थात् पुत्र की उत्पत्ति किसी परिवार के लिए धर्म के अनुसार भी आवश्यक हो गई। फलतः सामान्य लोग भी इसी परंपरा से जुड़ते गए। पितृवंशिक परंपरा समाज की एक आदर्श पंरपरा बन गई। महाभारत के युद्ध में भी पांडवों के विजयी होने के उपरांत युधिष्ठिर को शासक घोषित किया गया। इससे पितृवंशिकता का आदर्श और भी सुदृढ़ हुआ। वस्तुतः इस आदर्श के अपवाद यदा-कदा ही मिलते हैं। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही कुछ महिलाएँ सत्ता की उत्तराधिकारी बनी हैं। जैसे कि प्रभावती गुप्त का शासिका बनने का उदाहरण मिलता है।

विवाह प्रणाली में भी स्त्री-पुरुष के संबंधों में भेदभाव स्पष्ट झलकता है। गोत्र-बहिर्विवाह प्रणाली में पिता अपनी पुत्री का विवाह एक ‘योग्य’ युवक से कन्यादान संस्कार को संपन्न करता हुआ करता था। ‘कन्यादान’ का अर्थ कहीं-न-कहीं चेतन या अचेतन रूप में स्त्री को वस्तुसम मान लेना रहा है। प्रायः छोटी उम्र में ही लड़कियों का विवाह कर दिया जाता था। विशेषतः ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों (ब्राह्मण, क्षत्रिय इत्यादि) में स्त्री की स्थिति पुरुष की तुलना में और भी खराब थी। उच्च या शासक परिवारों में बहु-पत्नी विवाह का प्रचलन था।

अधिकांश धर्मशास्त्र पति व पिता की संपत्ति में औरत की हिस्सेदारी को स्वीकार नहीं करते हैं। पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र थे। स्वाभाविक तौर पर इससे समाज में स्त्री की स्थिति पुरुष की तुलना में गौण हो गई। परिवार में औरत का अधिकार केवल उसे उपहार से प्राप्त धन (स्त्रीधन) पर ही था। अन्य किसी तरीके से अर्जित धन पर औरत का स्वामित्व नहीं था। कुलीन परिवारों में भी, जहाँ साधनों की कमी नहीं थी, औरत की स्थिति गौण ही रही, बल्कि पुरुष नियंत्रण ऐसे परिवारों में और भी अधिक होता था। सातवाहन (दक्कन में) शासकों की सूची से आभास मिलता है कि उनमें पिता की अपेक्षा माताएँ अधिक महत्त्वपूर्ण थीं क्योंकि शासकों को मातृनाम से (जैसे गौतमी-पुत्त सिरी-सातकणि) जाना गया। परंतु हमें यहाँ इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि सातवाहन शासकों में भी राजसिंहासन की उत्तराधिकारी महिलाएँ नहीं बल्कि पुरुष ही बनें।

प्रश्न 9.
उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था।
उत्तर:
बंधुत्व और विवाह संबंधी नियम ब्राह्मण ग्रंथों में मिलते हैं। इन ग्रंथों के लेखकों का यह विश्वास था कि इन नियमों के निर्धारण में उनका दृष्टिकोण सार्वभौमिक (सर्वत्र अनुसरण होने वाला) था। इन नियमों का पालन सभी स्थानों पर सभी के द्वारा होना चाहिए परंतु व्यवहार में ऐसा नहीं था। व्यवहार में तो जब इन नियमों की उल्लंघना होने लगी थी तभी तो ब्राह्मण विधि ग्रंथों (जैसे कि मनुस्मृति, नारदस्मृति या अन्य ग्रंथ) की जरूरत महसूस हुई और उनकी रचना की गई। इन ग्रंथों में बंधुत्व व विवाह संबंधी नियमों की उल्लंघना करने वालों के लिए दंड का विधान बताया गया था।

भारत एक उपमहाद्वीप है। इसके विशाल भू-भाग में अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ विद्यमान थीं। सामाजिक संबंधों में अनेक जटिलताएँ थीं। संचार के साधन अविकसित थे। एक स्थान से दूसरे स्थान पर आना-जाना आसान नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में ब्राह्मणीय नियम सार्वभौमिक नहीं बन सकते थे। ब्राह्मणीय नियमों के अनुसार चचेरे, मौसेरे व ममेरे आदि भाई-बहनों में रक्त संबंध होने के कारण विवाह वर्जित था। परंतु यह नियम दक्षिण भारत के अनेक समुदायों में प्रचलित नहीं था।

उत्तर भारत में भी सर्वत्र रूप से इनका अनुसरण नहीं होता था। आश्वलायन गृहसूत्र में विवाह के आठ प्रकारों के बारे में पता चलता है। स्पष्ट है कि विवाह के नियम एक जैसे नहीं थे। इन विवाहों में से पहले चार विवाहों (ब्रह्म, देव, आर्ष व प्रजापत्य) को ही उत्तम माना गया। उन्हें धर्मानुकूल और आदर्श बताया गया। जबकि असुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच विवाहों को अच्छा नहीं माना गया, परंतु ये प्रचलन में तो थे। यह इस बात का प्रमाण है कि ब्राह्मणीय नियमों से बाहर विवाह प्रथाएँ अस्तित्व में थीं।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
मानचित्र को देखकर कुरु-पांचाल क्षेत्र के पास स्थित महाजनपदों और नगरों की सूची बनाइए।
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उत्तर:
संकेत

  • महाजनपदों के नाम–गांधार, कंबोज, कुरु, शूरसेन, मत्स्य, अवन्ती, चेदी वत्स, अश्मक, मगध, अंग, लिच्छवी, शाक्य, पांचाल, मल्ल, कोशांबी।
  • नगरों के नाम हस्तिनापुर, मथुरा, विराट, उज्जैन, अयोध्या, कपिलवस्तु, पावा, वैशाली, कुशीनगर, सारनाथ, वाराणसी, पाटलिपुत्र, श्रावस्ती।

परियोजना कार्य

प्रश्न 11.
अन्य भाषाओं में महाभारत की पुनर्व्याख्या के बारे में जानिए। इस अध्याय में वर्णित महाभारत के किन्हीं दो प्रसंगों का इन भिन्न भाषा वाले ग्रंथों में किस तरह निरूपण हुआ है उनकी चर्चा कीजिए। जो भी समानता और विभिन्नता आप इन वृत्तांत में देखते हैं। उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वयं अध्ययन करके निष्कर्ष निकालें।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 12.
कल्पना कीजिए कि आप एक लेखक हैं और एकलव्य की कथा को अपने दृष्टिकोण से लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं सामाजिक स्थितियों का गहन अध्ययन करते हुए एकलव्य कथा को अपने दृष्टिकोण से लिखें।

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज HBSE 12th Class History Notes

→ बहिर्विवाह किसी समूह से बाहर विवाह; जैसे कि गोत्र-बहिर्विवाह, ग्राम-बहिर्विवाह या फिर सपिंड-बहिर्विवाह।

→ अंतर्विवाह-अपने ही वर्ण, जाति, जनजाति में विवाह करना। धर्मशास्त्रों में अपने वर्ण अथवा जाति में ही विवाह पर बल दिया गया है।

→ सपिंड-बहिर्विवाह-स्मृतियों में एक ही पूर्वज को पिंडदान करने वाले तथा एक ही माता-पिता से उत्पन्न संतानों में विवाह निषेध बताया गया है। उन्हें ऐसे समूह से बाहर विवाह पर जोर दिया गया, जिन्हें सपिंड-बहिर्विवाह कहा गया।

अनुलोम विवाह-ऐसा अंतर्जातीय विवाह, जिसमें पुरुष उच्च वर्ण अथवा जाति का होता था, जबकि स्त्री निम्न वर्ण या जाति की होती थी।

→ प्रतिलोम विवाह ऐसा अंतर्जातीय विवाह जिसमें स्त्री उच्च वर्ण या जाति से होती थी जबकि पुरुष निम्न वर्ण या जाति से होता था।

→ पितृसत्तात्मक-ऐसे परिवार जिनमें वंश-परंपरा पिता से पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि की ओर चलती हो।

→ मातृसत्तात्मक-ऐसे परिवार जिनमें वंश-परंपरा माँ से जुड़ी हो। इसमें लड़की का महत्त्व अधिक होता है।

→ बांधव समूह भाई-बंधुओं का एक बड़ा समूह जिसे समाज विज्ञान की भाषा में जाति समूह (Kinfolk) कहा गया है।

→ बहु-पत्नी प्रथा-एक पुरुष द्वारा एक से अधिक पत्नियाँ रखने की प्रथा।

→ धर्मशास्त्र-इनमें धर्मसूत्र, स्मृतियाँ और उन पर लिखी गई टीकाएं शामिल हैं। ये मुख्यतः प्राचीन भारत के सामाजिक कानूनों के ग्रंथ हैं।

→ वर्ण–’वर्ण’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘वरी’ धातु से मानी जाती है, जिसका अर्थ है वरण (चयन) करना। कुछ विद्वान वर्ण का अर्थ ‘रंग’ मानते हैं।

→ समालोचनात्मक कार्य संस्कृत साहित्य के संदर्भ में समालोचनात्मक कार्य मूलकथा को खोजने का प्रयास होता है।

→ बहुपति प्रथा-एक स्त्री के एक से अधिक पति होना।

→ गोत्र-ऐसा समूह जो स्वयं को एक ही पूर्वज की संतान होने का दावा करता है।

→ श्रेणी-गिल्ड अथवा संगठन को श्रेणी कहा गया है। प्राचीन भारत में प्रायः शिल्पकार और व्यापारियों की श्रेणियाँ होती थीं।

→ स्त्रीधन-एक स्त्री को विवाह के समय पिता, पति, भाई इत्यादि से प्राप्त होने वाले उपहार अथवा भेंट। इन पर स्त्री का निजी अधिकार माना जाता था।

→ महाकाव्य-ऐसा विशाल काव्य-ग्रंथ जो किसी देश अथवा संप्रदाय के जीवन के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालता हो।

प्रस्तुत अध्याय में लगभग एक हजार वर्षों (लगभग 600 ई→ पू→ से 600 ईसवी) के दौरान भारत में हुए सामाजिक परिवर्तनों और सामाजिक संस्थाओं पर प्रकाश डाला गया है। हम जानते हैं कि वैदिक युग में पशुचारी कबीलाई समाज धीरे-धीरे रूपांतरित होता हुआ कृषक समाज में बदला। खेती के विकास के साथ-साथ दस्तकारियों की संख्या भी बढ़ती गई। समय बीतने के साथ अपने-अपने व्यवसाय में दक्ष कारीगरों के विभिन्न सामाजिक समूह उभरकर सामने आए। पुश्तैनी व्यवसाय करते-करते ये समूह कारीगर जातियों में बदलते गए। लेकिन यह सामाजिक विकास समानता पर आधारित नहीं था। इसमें संपत्ति का वितरण असमान होने के कारण आर्थिक एवं सामाजिक विषमताओं में वृद्धि होने लगी।

→ हम यहाँ बंधुत्व (परिवार) व विवाह नियमों का अध्ययन करते हुए इन आर्थिक व सामाजिक विभेदों का अध्ययन भी करेंगे। साथ ही यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि सामाजिक इतिहास लेखन में इतिहासकार साहित्यिक परंपराओं; जैसे कि महाभारत या रामायण का उपयोग कैसे करते हैं?

→ भारत में पितृवंशिक व्यवस्था का आदर्श ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा था। शासक वर्ग ही नहीं, धनी वर्ग के लोग और ब्राह्मण भी संभवतः ऐसा ही दृष्टिकोण रखते थे। इस आदर्श को लेकर यदा-कदा अपवाद भी मिलते हैं। पुत्र के न होने पर कई बार तो एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु-बांधव (kinsmen) राजगद्दी पर अपना अधिकार कर लेते थे। कई बार कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ भी सत्ता की उत्तराधिकारी बनीं।

→ विवाह संस्था का स्वरूप धार्मिक संस्कारों और नियमों से निर्धारित हुआ। इसका मूल उद्देश्य विवाह संबंधों में स्थायित्व कायम करना और पितृवंश को आगे बढ़ाना था। साथ ही भारत में जातीय व्यवस्था (Caste System) को स्थायित्व प्रदान करने में भी इसकी मुख्य भूमिका रही। यहाँ हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पितृवंशिक व्यवस्था के अंतर्गत पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र का विशेष महत्त्व था, जबकि पुत्रियों को भिन्न दृष्टि से देखा गया। उन्हें पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिला। साथ ही रक्त संबंधों से बाहर के परिवारों में उनका विवाह जरूरी माना गया। जबकि अंतर्विवाह प्रणाली (Endogamy) के अंतर्गत वर्ण अथवा जाति के अंदर ही विवाह को उत्तम माना गया। अतः वर्ण व जाति से बाहर विवाह वर्जित होता गया।

→ भारत में ‘जाति’ एक अनोखी व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति का समाज में ऊपर से नीचे तक स्थान निर्धारित था। अतः सामाजिक विषमता इसके इस स्वरूप में ही थी। ‘जाति’ का शाब्दिक अर्थ ‘जन्म’ है अर्थात् जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसकी सदस्यता जन्मजात थी। एक जाति के सदस्यों का एक पुश्तैनी (वंशागत) व्यवसाय था और उस जाति के सदस्य अपनी ही जाति में विवाह करते थे। अन्य जातियों के साथ संबंधों में उच्च-निम्न तथा पवित्र-अपवित्रता के भावों का अहम स्थान रहा। जाति संबंधी आचार-संहिता धर्मशास्त्रों में स्पष्ट हुई, जिसे व्यवहार में बनाए रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जाते रहे।

→ फिर भी वर्ण अथवा जाति-व्यवस्था पूर्णतः एक जड़-व्यवस्था नहीं रही है। इसमें आवश्यकतानुसार गतिशीलता रही है। उदाहरण के लिए, शुरू में वैश्य (विश के साधारण सदस्य) पशुचारक और किसान थे और शूद्र सेवक थे। धीरे-धीरे उन्नति करके वैश्य व्यापारी व जमींदार हो गए और शद्र कृषक बन गए, परंतु इस पर भी उन्हें वर्ण-व्यवस्था में द्विज का दर्जा नहीं मिला। विचाराधीन काल के अंत तक आते-आते उन्हें रामायण, महाभारत और पुराण जैसे ग्रंथों को सुनने का अधिकार मिला। उनकी स्थिति में कुछ सुधार आया।

→ वर्ण-व्यवस्था वाले समाज में सबसे निचले स्तर पर जो लोग थे, उन्हें चांडाल कहा जाता था। प्रायः धर्म-ग्रंथों में इनका वर्णन बहुत ही अपमानजनक है। उन्हें चोर, झूठे, झगड़ालू, लोभी, क्रोधी व अपवित्र बताया गया है। सामान्यतः इनका काम मृत-पशुओं को उठाना, उनकी खाल उतारना और उससे कई तरह का सामान बनाना, शवों का अंतिम संस्कार करना तथा सड़कों-गलियों की सफाई करना आदि था। इन कामों को दूषित और अपवित्र माना जाता था। यद्यपि ये सभी काम ‘सभ्य’ समाज के लिए निहायत ज़रूरी थे। धर्म-कर्म करने वाले ब्राह्मण स्वयं को सबसे पवित्र मानते थे।

→ उनका कहना तक उच्च वर्ण के लोगों को अपवित्र कर देता है। उन्हें ‘अस्पृश्य’ अथवा ‘अछूत’ बताया गया। वस्तुतः इस दृष्टिकोण ने सामाजिक विषमता को अमानवीय-स्तर तक पहुँचा दिया। फाहियान के विवरण से पता चलता है कि चाण्डाल शहर और गाँवों से बाहर अलग बस्तियों में रहते थे। ये लोग माँस का व्यवसाय करते थे। जब कभी वे नगर या गाँव में आते तो उन्हें अपने आने की सूचना किसी वस्तु से आवाज़ करके देनी पड़ती थी, ताकि स्वयं को पुनीत कहने वाले लोग उनके साये से बच सकें।

→ विचाराधीन काल में दास, भूमिहीन कृषि मज़दूर, शिकारी, मछुआरे, पशुपालक, किसान, ग्राम मुखिया, कारीगर-दस्तकार, व्यापारी तथा अधिकारी और राजा सभी भारत उप-महाद्वीप के विभिन्न भागों में समाज के अंग थे। इन सभी सामाजिक समुदायों एवं वर्गों का किसी-न-किसी रूप में आर्थिक क्रिया-कलापों में योगदान था, परंतु इनकी सामाजिक स्थिति एक समान नहीं थी। वस्तुतः समाज में उनका स्थान आर्थिक साधनों पर उनके नियंत्रण पर निर्भर करता था, जिनके पास भी ये साधन जितने अधिक थे उनकी समाज में स्थिति उतनी ही ऊँची थी। अधिकांश धर्मशास्त्र पति व पिता की संपत्ति में औरत की हिस्सेदारी को स्वीकार नहीं करते थे। स्वाभाविक तौर पर इससे समाज में स्त्री की स्थिति पुरुष की तुलना में गौण रही।

→ बौद्ध व्याख्या में सामाजिक विषमताओं को ईश्वर की देन या पूर्वजन्म का परिणाम नहीं बताया गया है, बल्कि इसके लिए लालसा को दोषी ठहराया। अतः बौद्ध व्याख्याकारों ने सामाजिक अंतर्विरोधों को दूर करने के लिए एक सामाजिक समझौते की व्याख्या दी। इसके अनुसार सामाजिक विषमता सदैव से नहीं थी। शुरू में न तो मानव पूर्ण रूप में विकसित था और न ही वनस्पति जगत। तब सभी जीव शांति की अवस्था में निवास करते थे। कोई तेरा-मेरा नहीं था। संचय की कोई प्रवृत्ति नहीं थी। यह व्यवस्था पतन की ओर तब बढ़ने लगी, जब मानव में लालसा, कपट, प्रतिहिंसा, मक्कारी और संचय जैसी भावनाएँ बलवती होने लगीं। स्पष्ट है कि इन भावनाओं से सामाजिक विषमताओं ने जन्म लिया। तब सब लोगों ने मिलकर विचार करके राजपद को मान्यता दी।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

→ भारत की मूलकथा कौरवों व पांडवों के बीच लड़े गए संहारक युद्ध की है। ये दोनों चचेरे परिवार थे। इनमें यह युद्ध राजगद्दी व भू-क्षेत्र को लेकर हुआ। इस मुख्य कथा के अतिरिक्त महाभारत में कई तरह के मिथक, कथाएँ, वर्णन और उपदेश भी हैं। ग्रंथ तात्कालिक सामाजिक समुदायों के सामाजिक व्यवहार को भी दर्शाता है। शुरू में महाभारत की गाथा मौखिक तौर पर एक पीढ़ी से अलग पीढ़ी में चलती रही। कालांतर में इसे ब्राह्मण विद्वानों ने लिखित रूप दिया। फिर यह हस्तलिखित परंपरा में संप्रेषित होती रही।

→ इतिहासकार इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए साहित्यिक स्रोतों का उपयोग बड़ी सावधानी और विवेकपूर्ण तरीके से करते हैं। वे इस बात का ध्यान करते हैं कि अमुक ग्रंथ का लेखक कौन है, उसका सामाजिक दृष्टिकोण क्या है, क्योंकि लेखक भी अपने पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकता है। वे ग्रंथ की भाषा पर भी विचार करते हैं। उदाहरण के लिए क्या वे ग्रंथ संस्कृत में हैं या फिर पालि, प्राकृत या तमिल जैसी भाषाओं में हैं। उल्लेखनीय है कि संस्कृत ब्राह्मण विद्वानों की भाषा थी तो जनसामान्य की भाषा पालि व प्राकृत थी।

→ इसलिए भाषा से संकेत मिलता है कि अमुक ग्रंथ किसी वर्ग विशेष में प्रचलित था अथवा सामान्य लोगों में। संस्कृत भी जटिल है या सरल, पद्य है या गद्य, यह पहलू भी विचारणीय होता है। इतिहासकार किसी ग्रंथ का अध्ययन करते समय उसके संभावित संकलन या रचना काल तथा उसके रचना क्षेत्र पर भी ध्यान देते हैं।

III. काल-रेखा

कालघटना का विवरण
लगभग 500 ई० पू०पाणिनि की (संस्कृत व्याकरण) अष्टाध्यायी की रचना
लगभग 500 से 200 ई० पू०धर्मसूत्रों का संस्कृत भाषा में रचनाकाल
लगभग 500 से 100 ई० पू०आरंभिक बौद्ध-ग्रंथों (त्रिपिटक सहित) का पालि भाषा में रचनाकाल
लगभग 500 ई० पू० से 400 ई०रामायण और महाभारत का संस्कृत भाषा का रचनाकाल
लगभग 200 ई० पू० से 200 ई०मनुस्मृति का रचनाकाल
405 से 411 ई०फाहियान भारत में रहा
630 से 643 ई०ह्यूनसांग भारत में रहा
1919 से 1966 ई०महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण परियोजना का काल
1973 ई०जे०ए०बी० वैन बियुटेनेन द्वारा महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण

के अंग्रेज़ी अनुवाद की शुरुआत

1978 ई०जे०ए०बी० वैन बियुटेनेन की मृत्यु

 

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Exercise 8.2

प्रश्न 1.
इन बॉक्सों की सहायता से सारणी को पूरा कर दशमलव रूप में लिखिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 1
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 2
हल :
दी गई तालिका को पूरा करने पर-

इकाईदशांशशतांशअंक
0260.26
1381.38
1281.28

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2

प्रश्न 2.
स्थानीय मान सारणी को देखकर दशमलव रूप में लिखिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 3
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 4
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 5
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 6

प्रश्न 3.
निम्न दशमलवों को स्थानीय मान सारणी बनाकर लिखिए :
(a) 0.29
(b) 2.08
(c) 19.60
(d) 148.32
(e) 200.812
हल :
स्थानीय मान सारणी :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 7

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2

प्रश्न 4.
निम्न में से प्रत्येक को दशमलव रूप में लिखिए :
(a) 20 + 9 + \(\frac{4}{10}\) + \(\frac{1}{100}\)
(b) 137 + \(\frac{5}{100}\)
(c) \(\frac{7}{10}\) + \(\frac{6}{100}\) + \(\frac{4}{1000}\)
(d) 23 + \(\frac{2}{10}\) + \(\frac{6}{1000}\)
(e) 700 + 20 + 5 + \(\frac{9}{100}\)
हल :
(a) 20 + 9 + \(\frac{4}{10}\) + \(\frac{1}{100}\)
= 20 + 9 + 0.4 + 0.01
= 29.41

(b) 137 + \(\frac{5}{100}\)
= 137 + 0.05
= 137.05 उत्तर

(c) \(\frac{7}{10}\) + \(\frac{6}{100}\) + \(\frac{4}{1000}\)
= 0.7 + 0.06 + 0.004 = 0.764 उत्तर

(d) 23 + \(\frac{2}{10}\) + \(\frac{6}{1000}\)
= 23 + 0.2 + 0.006
= 23.206 उत्तर

(e) 700 + 20 + 5 + \(\frac{9}{100}\)
= 700 + 20 + 5 + 0.09
= 725.09 उत्तर

प्रश्न 5.
निम्न दशमलवों को शब्दों में लिखिए :
(a) 0.03
(b) 1.20
(c) 108.56
(d) 10.07
(e) 0.032
(f) 5.008
हल :
(a) 0.03 = शून्य दश लव शून्य तीन तीन शतांश
(b) 1.20 = एक दशमलव दो शून्य
(c) 108.56 = एक सौ आठ दशमलव पाँच छः
(d) 10.07 = दस दशमलव शून्य सात
(e) 0.032 = शून्य दशमलव शून्य तीन दो
(f) 5.008 = पाँच दशमलव शून्य शून्य आठ उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2

प्रश्न 6.
संख्या रेखा के किन दो बिन्दुओं के बीच निम्न संख्याएँ स्थित हैं ?
(a) 0.06
(b) 0.45
(c) 0.19
(d) 0.66
(e) 0.92
(f) 0.57
हल :
ये सभी बिन्दु 0 और 1 के बीच स्थित हैं :

क्र. सं.संख्यासंख्याओं के बीच में स्थितसंख्या के निकट
(a)0.060.0 और 0.10.1
(b)0.450.4 और 0.50.5
(c)0.190.1 और 0.20.2
(d)0.660.6 और 0.70.7
(e)0.920.9 और 1.00.9
(f)0.570.5 और 0.60.6

प्रश्न 7.
न्यूनतम रूप में भिन्न बनाकर लिखिए :
(a) 0.60
(b) 0.05
(c) 0.75
(d) 0.18
(e) 0.25
(f) 0.125
(g) 0.066
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 8 दशमलव Ex 8.2 8

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

HBSE 12th Class History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
ग्रामीण बंगाल के बहुत-से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था?
उत्तर:
जोतदार बंगाल के गाँवों में संपन्न किसानों के समूह थे। गाँव के मुखिया भी इन्हीं में से होते थे। संक्षेप में इन जोतदारों की ताकत में वृद्धि होने के निम्नलिखित मुख्य कारण थे

1. ज़मीनों के वास्तविक मालिक-जोतदार गाँव में ज़मीनों के वास्तविक मालिक थे। कईयों के पास तो हजारों एकड़ भूमि थी। वे बटाइदारों से खेती करवाते थे। जो फसल का आधा भाग अपने पास और आधा जोतदार को दे देते थे। इससे जोतदारों की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती चली गई।

2. व्यापारी तथा साहूकार-जोतदार केवल भू-स्वामी ही नहीं थे। उनका स्थानीय व्यापार व साहूकारी पर भी नियंत्रण था। वे एक व्यापारी, साहूकार तथा भूमिपति के रूप में अपने क्षेत्र के प्रभावशाली लोग थे।

3. भू-राजस्व भुगतान में जान-बूझकर देरी-जोतदार जान-बूझकर गाँव में ऐसा माहौल तैयार करवाते थे कि ज़मींदार के अधिकारी (अमला) गाँव से लगान न एकत्रित कर पाए। यह विलंब ज़मींदार के लिए कुड़की लेकर आता था। इससे जोतदार को लाभ मिलता था।

4. ज़मीन की खरीद-ज़मींदार की ज्यों ही ज़मीन की नीलामी होती थी, उसे प्रायः जोतदार ही खरीदता था। इससे उनकी शक्ति में और वृद्धि होती जाती थी और ज़मींदारों की शक्ति का दुर्बल होना स्वाभाविक था।

प्रश्न 2.
जमींदार लोग अपनी ज़मींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे? उत्तर:ज़मींदारों ने अपनी सत्ता और ज़मींदारी बचाने के लिए निम्नलिखित तिकड़मबाजी लगाई

1. बेनामी खरीददारी-ज़मींदारों ने अपनी ज़मींदारी को बचाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण हथकंडा बेनामी खरीददारी का अपनाया। इसमें प्रायः ज़मींदार के अपने ही आदमी नीलाम की गई संपत्तियों को महँगी बोली देकर खरीद लेते थे। फिर वे देय राशि सरकार को नहीं देते थे। सरकार को पुनः उस ज़मीन को नीलाम करना पड़ता था और इस बार भी ज़मींदार के दूसरे एजेंट वैसा ही करते और सरकार को फिर राशि जमा नहीं करवाते।

यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती जब तक सरकार और बोली लगाने वाले दोनों हार न जाते। बोली लगाने वाले नीलामी के समय आना ही छोड़ जाते थे। अन्ततः सरकार को वह ज़मींदारी पुराने ज़मींदार को देनी पड़ती थी।

2. ज़मीन का कब्जा न देना-यदि बाहर के शहरी धनी लोग अधिक बोली देकर ज़मीन खरीदने में सफल हो जाते थे तो ऐसे लोगों को कई बार ज़मींदार के लठैत (लठियाल) ज़मीन में प्रवेश ही नहीं करने देते थे। कई बार ज़मींदार अपनी रैयत को नए ज़मींदार के विरुद्ध भडका देते थे। या फिर रैयत की पुराने जमींदार के साथ लगाव व सहानुभूति होती थी। इस कारण से वह नए जमींदार को ज़मीन में घुसने ही नहीं देती थी।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 3.
पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई?
उत्तर:
बाहरी लोगों का आगमन पहाड़िया लोगों के लिए जीवन का संकट बन गया था। उनके पहाड़ व जंगलों पर कब्जा करके खेत बनाए जा रहे थे। पहाड़िया लोगों में इसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। पहाड़ियों के आक्रमणों में तेजी आती गई। अनाज व पशुओं की लूट के साथ इन्होंने अंग्रेजों की कोठियों, ज़मींदारों की कचहरियों तथा महाजनों के घर-बारों पर अपने मुखियाओं के नेतृत्व में संगठित हमले किए और लूटपाट की।

दूसरी ओर ब्रिटिश अधिकारियों ने दमन की क्रूर नीति अपनाई। उन्हें बेरहमी से मारा गया परंतु पहाड़िया लोग दुर्गम पहाड़ी गों में जाकर बाहरी लोगों (ज़मींदारों व जोतदारों) पर हमला करते रहे। ऐसे क्षेत्रों में अंग्रेज़ों के सैन्य बलों के लिए भी इनसे निपटना आसान नहीं था।

ऐसे में ब्रिटिश अधिकारियों ने शांति संधि के प्रयास शुरू किए। जिसमें उन्हें वार्षिक भत्ते की पेशकश की गई। बदले में उनसे यह आश्वासन चाहा कि वे शांति व्यवस्था बनाए रखेंगे। उल्लेखनीय है कि अधिकतर मुखियाओं ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जिन कुछ मुखियाओं ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था, उन्हें पहाड़िया लोगों ने पसंद नहीं किया।

प्रश्न 4.
संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
अथवा
संथालों के विद्रोह के क्या कारण थे?
उत्तर:
संथालों के विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे
(1) उनकी ज़मीनें धीरे-धीरे उनके हाथों से निकलकर ज़मींदारों और साहूकारों के हाथों में जाने लगीं। साहूकार और ज़मींदार उनकी ज़मीनों के मालिक बनने लगे। महेशपुर और पाकुड़ के पड़ोसी राजाओं ने संथालों के गाँवों को आगे छोटे ज़मींदारों व साहूकारों को पट्टे पर दे दिया। वे मनमाना लगान वसूल करने लगे।

(2) इससे शोषण व उत्पीड़न का चक्र शुरू हुआ। लगान अदा न कर पाने की स्थिति में संथाल किसान साहूकारों से ऋण लेने के लिए विवश हुए। साहूकार ने 50 से 500 प्रतिशत तक सूद वसूल किया।

(3) किसान की दरिद्रता बढ़ने लगी। वे ज़मींदारों के अर्ध-दास व श्रमिक बनने लगे।

(4) सरकारी अधिकारी, पुलिस, थानेदार सभी महाजनों का पक्ष लेते थे। वे स्वयं भी संथालों से बेगार लेते थे। यहाँ तक कि संथाल कृषकों की स्त्रियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं थी। अतः दीकुओं (बाहरी लोगों) के विरुद्ध संथालों का विद्रोह फूट पड़ा।

प्रश्न 5.
दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे?
उत्तर:
1870 ई० के आसपास दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति अत्यधिक क्रुद्ध थे। विद्रोह के दौरान उन्होंने उनके बही-खाते और कई जगह तो घरों को भी जला डाला था। वास्तव में अमेरिकी गृह युद्ध के बाद उनके लिए ऋण का स्रोत सूख गया था। उन्हें ऋण मिलना बंद हो गया था।

जब साहूकारों ने उधार देने से मना किया तो किसानों को बहुत गुस्सा आया। क्योंकि परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था में न तो अधिक ब्याज लिया जाता था और न ही मुसीबत के समय उधार से मनाही की जाती थी। किसान विशेषतः इस बात पर अधिक नाराज़ थे कि साहूकार वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनके हालात पर रहम नहीं खा रहा है। सन् 1874 में साहूकारों ने भू-राजस्व चुकाने के लिए किसानों को उधार देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था।

वे सरकार के इस कानून को नहीं मान रहे थे कि चल-सम्पत्ति की नीलामी से यदि उधार की राशि पूरी न हो तभी साहूकार जमीन की नीलामी करवाएँ। अब उधार न मिलने से मामला और भी जटिल हो गया। किसान विद्रोही हो उठे।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत-सी ज़मींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गईं?
उत्तर:
इस्तमरारी बंदोबस्त यानी ज़मींदारी प्रथा के कारण बहुत-से ज़मींदारों की ज़मींदारियाँ नीलाम कर दी गई थीं क्योंकि वे समय पर सरकार को देय राशि का भुगतान नहीं कर पाते थे। इस प्रणाली के अंतर्गत राजस्व की दर बहुत ऊँची निर्धारित की गई थी। जिस दशक में यह बंदोबस्त लागू किया गया था, उसी दशक में मंदी का दौर चल रहा था। इसलिए रैयत (किसान) अपने लगान को चुकाने की स्थिति में ही नहीं था। दूसरी ओर, कंपनी सरकार ने ज़मींदारों की सैनिक व प्रशासनिक शक्तियों को कम कर दिया था।

उनके सैनिक दस्ते भंग कर दिए थे। पुलिस और न्याय के अधिकार भी छीन लिए थे। अब वे किसानों से डंडे के बल पर लगान वसूल नहीं कर सकते थे। वे लगान न देने वाले किसानों के खिलाफ न्यायालय में तो जा सकते थे परंतु न्यायालयों में न्याय की प्रक्रिया काफी लंबी थी। उदाहरण के लिए बर्दवान जिले में ही 1798 में 30,000 से अधिक मुकद्दमें बाकीदारों के विरुद्ध लम्बित थे।

सरकार का राजस्व वसूली का रवैया बहुत ही कठोर था। इसके लिए सूर्यास्त विधि (Sunset Law) का अनुसरण किया गया था अर्थात् निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि का भुगतान न करने वाले ज़मींदारों की ज़मींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि संपन्न ग्रामीण वर्ग (जोतदार और धनी किसान) भी ज़मींदार की नीलामी से खुश होता था। वह सामान्य किसानों (रैयत) को ज़मींदार के विरुद्ध लगान न देने के लिए प्रोत्साहित भी करता था।

कई बार तो फसल न होने पर और कई बार तो जान-बूझकर भी वह ज़मींदार को लगान नहीं देता था। उसे यह पता था कि ज़मींदार सैनिक कार्रवाई नहीं कर सकता और न्यायालय में मुकद्दमों का आसानी से निर्णय नहीं हो सकता। अतः यही वे परिस्थितियाँ थीं जिनमें इस्तमरारी प्रथा के चलते बहुत-सी ज़मींदारियाँ 18वीं सदी के अंतिम दशक में नीलाम कर दी गई थीं।

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प्रश्न 7.
पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?
उत्तर:
पहाड़िया और संथाल दो जनजातियाँ थीं। लेकिन दोनों की आजीविका के साधनों में अंतर था। संथाल पहाड़ियों की. अपेक्षा अग्रणी बाशिंदे थे।
दोनों जनजातियों की आजीविका के साधनों में अंतर को निम्नलिखित तरीके से स्पष्ट किया जा सकता है

पहाड़िया लोगों की आजीविकासंथालों की आजीविका
1. पहाड़िया लोगों की खेती कुदाल (Hoe) पर आधारित थी। ये राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहते थे। वे हल को हाथ लगाना पाप समझते थे।1. संथाल हल (Plough) की खेती यानी स्थायी कृषि सीख रहे थे। ये गंजुरिया पहाड़ियों की तलहटी में रहने वाले लोग थे।
2. पहाड़िया लोग झूम की खेती करते थे। वे झाड़ियों को काटकर व घास-फूँस को जलाकर एक छोटा-सा ज़मीन का टुकड़ा निकाल लेते थे। यह छोटा-सा खेत पर्याप्त उपजाऊ होता था। घास व झाड़ियों के जलने से बनी राख उसे और भी उपजाऊ बना देती थी। ये लोग साधारण कृषि औजार-कुदाल से ज़मीन को थोड़ा खुरचकर खेती करते थे। कुछ वर्षों तक उसमें खाने के लिए विभिन्न तरह की दालें और ज्वार-बाजरा उगाते और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे खाली (परती) छोड़ देते, ताकि यह पुनः उर्वर हो जाए।2. यह अपेक्षाकृत स्थायी प्रवृत्ति के थे। ये परिश्रमी थे और इन्हें खेती की समझ थी। इसलिए जमींदार लोग इन्हें नई भूमि निकालने तथा खेती करने के लिए मजदूरी पर रखते थे।
3. कृषि के अतिरिक्त शिकार व जंगल के उत्पाद पहाड़िया लोगों की आजीविका के साधन थे। वे काठ कोयला बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ एकत्र करते थे। खाने के लिए महुआ नामक पौधे के फूल एकत्र करते थे। जंगल से रेशम के कीड़े के कोया (Silkcocoons) एवं राल (Resin) एकत्रित करके बेचते थे।3. संथाल जंगल तोड़कर अपनी जमीनें निकालकर खेती करने लगे। वे पहाड़िया लोगों के क्षेत्रों में घुसे आ रहे थे। वे नए निकाले खेतों में तम्बाकू सरसों, कपास तथा चावल की खेती करते थे।
4. पहाड़िया लोग जंगलों को बर्बाद करके उस क्षेत्र में हल नहीं चलाना चाहते थे। वे बाजार के लिए खेती नहीं चाहते थे।4. ये जंगलों को तोड़कर खेती कसने में परहेज नहीं करते थे।

प्रश्न 8.

अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
अमेरिका में गृहयुद्ध सन् 1861 से 1865 के बीच हुआ। इस गृहयुद्ध के दौरान भारत की रैयत को खूब लाभ मिला। कपास की कीमतों में अचानक उछाल आया क्योंकि इंग्लैंड के उद्योगों को अमेरिका से कपास मिलना बंद हो गया था। भारतीय कपास की माँग बढ़ने के कारण कपास उत्पादक रैयत को ऋण की भी समस्या नहीं रही। कपास सौदागरों ने बंबई दक्कन के जिलों में कपास उत्पादन का आँकलन किया।

किसानों को अधिक कपास उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। कपास निर्यातकों ने शहरी साहकारों को पेशगी राशियाँ दी ताकि वे ये राशियाँ ग्रामीण ऋणदाताओं को उपलब्ध करवा सकें और वे आगे किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें उधार दे सकें।

निर्यातक, साहूकार, व्यापारी तथा किसान सभी अपने-अपने मुनाफे के लिए कपास की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयत्न करने लगे। ऋण की समस्या अब किसानों के लिए नहीं थी। साहूकार भी अपनी उधार राशि की वापसी के लिए आश्वस्त था।

दक्कन के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। किसानों को लंबी अवधि के ऋण प्राप्त हुए। कपास उगाई जाने वाली प्रत्येक एकड़ भूमि पर सौ रुपए तक की पेशगी राशि किसानों को दी गई। चार साल के अंदर ही कपास पैदा करने वाली ज़मीन दो गुणी हो गई। 1862 ई० तक स्थिति यह थी कि इंग्लैंड में आयात होने वाले कुल कपास आयात का 90% भाग भारत से जा रहा था। बंबई में दक्कन में कपास उत्पादक क्षेत्रों में इससे समृद्धि आई।

यद्यपि इस समृद्धि का लाभ मुख्य तौर पर धनी किसानों को ही हुआ। गरीब किसान इस तेजी के दौर में भी साहूकार के कर्ज से निकल नहीं पाए। परंतु ज्यों ही गृहयुद्ध समाप्त हुआ। पुनः अमेरिका से कपास ब्रिटेन में आयात होने लगी। भारतीय रैयत का माल बिकना कम हो गया। साथ में उनका ऋण स्रोत भी सूख गया। इससे उनमें आक्रोश बढ़ा।

प्रश्न 9.
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों को किसानों संबंधी इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के दौरान कई तरह की समस्याएँ आती हैं; जैसे कि ये स्रोत निष्पक्ष नहीं होते। राजस्व अभिलेख, विभिन्न दंगा आयोग की रिपोर्ट, सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं की रिपोर्ट, प्रशासनिक पत्राचार, अधिकारियों के निजी कागज-पत्र तथा उनकी डायरी वृत्तांत इत्यादि सभी दस्तावेज सरकारी स्रोत कहे जाते हैं।

इन सरकारी स्रोतों के आधार पर किसानों संबंधी इतिहास लिखने में सबसे बड़ी समस्या होती है उन स्रोतों के ‘उद्देश्य एवं दृष्टिकोण’ की खोज-बीन करना। क्योंकि वे किसी-न-किसी रूप में सरकारी दृष्टिकोण एवं अभिप्राय के पक्षधर होते हैं। वे निष्पक्ष नहीं होते। उदाहरण के लिए ‘दक्कन दंगा आयोग’ नियुक्ति का उद्देश्य यह पता लगाना था कि सरकारी राजस्व की माँग का विद्रोह के साथ क्या संबंध था अर्थात् क्या किसान राजस्व की ऊँची दर के कारण विद्रोही हुए थे या फिर इसके अन्य कारण थे। जाँच-पड़ताल के बाद रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट किया कि सरकारी माँग किसानों के आक्रोश का कारण बिल्कुल नहीं थी।

इसके लिए साहूकार तथा उनके हथकंडे ही उत्तरदायी थे। परन्तु साहूकार की शरण में किसान क्यों जाने के लिए विवश हुआ, यहाँ आयोग निष्पक्ष नहीं रहा। राजस्व की ऊँची दर और उसे वसूलने के तरीके, विशेषतः मंदी व प्राकृतिक आपदाएँ (अकालों आदि) ही किसान को साहूकार के चंगुल में फंसाती थीं। आयोग ने इन सब बातों को उत्तरदायी नहीं माना। अतः स्पष्ट है कि आयोग सरकार का पक्ष ले रहा था। औपनिवेशिक सरकार अपने दोष को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। ध्यान रहे सरकारी रिपोर्ट इतिहास-लेखन में बहुमूल्य स्रोत तो होते हैं, लेकिन उन्हें सदैव सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए। साथ ही समाचार-पत्रों, गैर सरकारी वृत्तांतों, वैधिक अभिलेखों तथा यथासंभव मौखिक स्रोतों के साक्ष्यों से मिलान करना चाहिए।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
उपमहाद्वीप के बाह्यरेखा मानचित्र (खाके) में इस अध्याय में वर्णित क्षेत्रों को अंकित कीजिए। यह भी पता लगाइए कि क्या ऐसे भी कोई इलाके थे जहाँ इस्तमरारी बंदोबस्त और रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू थी। ऐसे इलाकों को मानचित्र में भी अंकित कीजिए।
उत्तर:
उपमहाद्वीप में कई ऐसे क्षेत्र थे जहाँ दोनों प्रणालियाँ लागू की गई थीं जैसे कि बंगाल (बिहार, उड़ीसा सहित), मद्रास . प्रेजीडेंसी, सूरत, बंबई प्रेजीडेंसी, मद्रास के कुछ इलाके, उत्तर पूर्वी भारत में पड़ने वाले पहाड़िया और संथाल लोगों के स्थान।

इस्तमरारी बंदोबस्त मुख्यतः बंगाल बिहार व उड़ीसा क्षेत्र में लागू किया गया था। यह ब्रिटिश भारत के लगभग 19% भाग पर लागू थी।

रैयतवाड़ी प्रणाली को सन् 1820 तक मद्रास, बंबई के कुछ भागों, बर्मा तथा बरार, आसाम व कुर्ग के कुछ क्षेत्रों में लागू किया गया। इसमें कुल मिलाकर ब्रिटिश भारत की कुल भूमि के 51 प्रतिशत हिस्से को शामिल किया गया।

परियोजना कार्य

प्रश्न 11.
फ्रांसिस बुकानन ने पूर्वी भारत के अनेक जिलों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थीं। उनमें से एक रिपोर्ट पढ़िए और इस अध्याय में चर्चित विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उस रिपोर्ट में ग्रामीण समाज के बारे में उपलब्ध जानकारी को संकलित कीजिए। यह भी बताइए कि इतिहासकार लोग ऐसी रिपोर्टों का किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक के दिशा निर्देश में परियोजना रिपोर्ट तैयार करें।

प्रश्न 12.
आप जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ के ग्रामीण समदाय के वद्धजनों से चर्चा कीजिए और उन खेतों में जाइए जिन्हें वे अब जोतते हैं। यह पता लगाइए कि वे क्या पैदा करते हैं, वे अपनी रोजी-रोटी कैसे कमाते हैं, उनके माता-पिता क्या करते थे, उनके बेटे-बेटियाँ अब क्या करती हैं और पिछले 75 सालों में उनके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं। अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी इसके लिए गाँव के सरपंच, नंबरदार तथा वृद्धजनों से सूचना प्राप्त करें। यथासंभव गाँव संबंधी रिकॉर्ड को देखें। साक्षात्कारों और विभिन्न रिकॉर्डस के आधार पर अपने अध्यापक के निर्देशन में ‘प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ बनाएँ।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन HBSE 12th Class History Notes

→ उपनिवेशवाद-यह वह विचारधारा है जिसके अंतर्गत किसी देश, राष्ट्र या संप्रदाय को अन्य राष्ट्र या समुदाय के लोगों द्वारा अधीन बनाकर विभिन्न क्षेत्रों (आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक) को प्रभावित करने के लिए प्रेरित करती है।

→ साम्राज्यवाद-जब कोई एक राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र या उसके किसी भू-क्षेत्र पर राजनीतिक अधिकार स्थापित करके अपने हितों की पूर्ति करता है, तो उसे साम्राज्यवाद कहते हैं। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का परस्पर गहरा संबंध होता है।

→ औपनिवेशिक व्यवस्था-ऐसी व्यवस्था जिसका विकास उपनिवेशवाद की विचारधारा के तहत हुआ हो। उदाहरण के लिए भारत में अंग्रेजों की व्यवस्था औपनिवेशिक थी। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए उन्होंने भारत में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन किए।

→ अभिलेखागार-उस स्थान को कहा जाता है जहाँ पुराने दस्तावेज, सरकारी रिपोर्ट, फाइलें, वैधिक निर्णय, अभियोग, याचिकाएँ, डायरियाँ, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ इत्यादि सुरक्षित रखे जाते हैं जिन्हें शोधकर्ता उपयोग करते हैं और अपने निष्कर्षों के साथ इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।

→ ताल्लकेदार-यह शब्द ज़मींदारों के लिए प्रयोग में आता है। लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक (संबंध) हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया था।

→ राजा-बंगाल में 18वीं सदी में ‘राजा’ शब्द का प्रयोग प्रायः शक्तिशाली ज़मींदारों के लिए किया जाता था। इनके पास अपने न्यायिक और सैनिक अधिकार होते थे। ये नवाब को अपना ज़मींदारी-राजस्व देते थे। वैसे काफी सीमा तक ये स्वायत्त थे।

→ ज़मींदार-बंगाल के ‘राजाओं’ तथा ‘ताल्लुकेदारों को इस्तमरारी बंदोबस्त (Permanent Settlement) के तहत ‘जमींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया। उन्हें सरकार को निर्धारित राजस्व निश्चित समय पर देना होता था। इस परिभाषा के अनुसार वे गाँव में भू-स्वामी नहीं थे, बल्कि भू-राजस्व समाहर्ता यानी संग्राहक मात्र थे।

→ जोतदार-उत्तरी बंगाल में जोतदार धनी किसानों को कहा जाता था। कुछ जोतदार तो हजारों एकड़ के मालिक थे। वे अपनी खेती बटाईदारों (बरगादारों या अधियारों) से करवाते थे।

→ रैयत-अंग्रेज़ों के विवरणों में रैयत’ शब्द का प्रयोग किसानों के लिए किया जाता था। गाँव का प्रत्येक छोटा या बड़ा रैयत ज़मींदार को लगान अदा करता था।

→ शिकमी रैयत-रैयत (किसान) कुछ ज़मीन तो स्वयं जोतते थे और कुछ आगे बटाईदारों को जोतने के लिए दे देते थे। ये बटाईदार किसान शिकमी रैयत कहलाते थे। ये रैयत को फसल का हिस्सा (लगान) देते थे।

→ अमला-ज़मींदार का वह अधिकारी जो गाँव में रैयत से लगान एकत्र करने आता था।

→ जमा-गाँव की भूमि का कुल लगान।

→ लठियाल-लाठीवाला। बंगाल में ज़मींदार के लठैतों को लठियाल कहा जाता था।

→ बेनामी-इसका शाब्दिक अर्थ है ‘गुमनाम’, किसी फर्जी व्यक्ति के नाम से किए जाने वाले सौदे। इसमें असली फायदा उठाने वाले व्यक्ति का नाम सामने नहीं आता।

→ हवलदार या गाँटीदार या मंडल-उत्तरी बंगाल में जोतदार गाँवों में मुखिया (मुकद्दम) बनकर उभरे, लेकिन अन्य भागों में ऐसे धनी प्रभावशाली मुखियाओं को हवलदार या गाँटीदार (Gantidars) या मंडल कहा जाता था।

→ महालदारी-भूमि बंदोबस्त, जिसमें महाल अथवा गाँव को इकाई मानकर राजस्व की माँग निर्धारित की गई। यह मुख्यतः उत्तर भारत में लागू किया गया।

→ साहूकार-यह ऐसा व्यक्ति होता था जो पैसा ब्याज पर उधार देता था और साथ ही व्यापार भी करता था।

→ किरायाजीवी-यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग में लाया गया जो अपनी सम्पत्ति की आय पर जीवनयापन करते हैं।

→ योमॅन कंपनी के शासनकाल के रिकॉर्ड में छोटे किसान को ‘योमॅन’ कहा गया।

→ ताम्रपट्टोत्कीर्णन या एक्वाटिंट-ऐसी तस्वीर होती है जो ताम्रपट्टी में अम्ल (Acid) की सहायता से चित्र के रूप में कटाई करके बनाई जाती है।

→ इस अध्याय का संबंध औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था के उन प्रभावों से है, जो भारत के गाँवों पर पड़े। उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश राज के कारण देहाती समाज की परंपरागत व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। कुछ लोग धनवान और कुछ गरीब हो गए। बहुत-से लोगों के हाथों से गुजर-बसर के साधन तक छिन गए। राजस्व की ऊँची दर निर्धारित करने से किसानों के जीवन पर काफी बुरा असर हुआ। वे साहूकारी के जाल में फँसते गए।

→ अन्यायपूर्ण सरकारी कानूनों के प्रति किसानों की प्रतिक्रिया विद्रोहों के रूप में हुई। इस अध्याय में बंगाल तथा बंबई दक्कन के देहात में हुए परिवर्तनों को ही अध्ययन का आधार बनाया गया है।

→ सन् 1793 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भू-राजस्व की एक नई प्रणाली अपनाई, जिसे ‘ज़मींदारी प्रथा’, ‘स्थायी बंदोबस्त’ अथवा ‘इस्तमरारी-प्रथा’ कहा गया। यह प्रणाली बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा बनारस व उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई थी। इस व्यवस्था से सरकार की आय निश्चित हो गई और प्रशासन व व्यापार दोनों को नियमित करने में लाभ हुआ। परन्तु यह बंगाल की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं कर सकी।

→ कालांतर में यह प्रणाली कंपनी के लिए भी आर्थिक तौर पर घाटे की सिद्ध हुई। साथ ही इसमें रैयत को ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। उनके हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई। शीघ्र ही कंपनी अधिकारियों को इसमें एक आर्थिक बुराई और भी नज़र आने लगी। इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमिकर में वृद्धि का अधिकार सरकार के पास नहीं था।

→ प्रारंभ में स्थाई बंदोबस्त ज़मींदारों के लिए काफी हानिप्रद सिद्ध हुआ। बहुत-से ज़मींदार सरकार को निर्धारित भूमि-कर का भुगतान समय पर नहीं कर सके। परिणामस्वरूप उन्हें उनकी ज़मींदारी से वंचित कर दिया गया। समकालीन स्रोतों से ज्ञात होता है कि बर्दवान के राजा (शक्तिशाली ज़मींदार) की ज़मींदारी के अनेक महाल (भू-संपदाएँ) सार्वजनिक तौर पर नीलाम किए गए थे।

→ ध्यान रहे ये ज़मींदार अपनी ज़मींदारियों को बचाने के लिए तरह-तरह की तिकड़मबाजी भी लगाते थे। इस व्यवस्था के चलते गाँवों के संपन्न किसान समूहों एवं जोतदारों को शक्तिशाली होने का अवसर मिला।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

→ बंगाल में जिस अवधि के परिवर्तनों पर हम विचार कर रहे हैं उसका एक प्रमुख समकालीन स्रोत 1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट है। यह पाँचवीं रिपोर्ट’ के नाम से जानी गई। इसमें 1002 पृष्ठ थे जिनमें से 800 से अधिक पृष्ठों में परिशिष्ट लगाए गए थे। इन परिशिष्टों में भू-राजस्व से संबंधित आंकड़ों की तालिकाएँ, अधिकारियों की बंगाल व मद्रास में राजस्व व न्यायिक प्रशासन पर लिखी गई टिप्पणियाँ, जिला कलेक्टरों की अपने अधीन भू-राजस्व व्यवस्था पर रिपोर्ट तथा ज़मींदारों एवं रैयतों के आवेदन पत्रों को सम्मिलित किया गया था।

→ ये साक्ष्य इतिहास लेखन के लिए बहुमूल्य हैं। लेकिन यह कोई निष्पक्ष रिपोर्ट नहीं कही जा सकती। इसका अध्ययन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। जो प्रवर समिति के सदस्य इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले थे उनका प्रमुख उद्देश्य कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करना था। राजस्व प्रशासन की कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया।

→ इस अध्याय के एक भाग में ‘पहाड़िया’ और ‘संथालों’ के जीवन पर पड़े प्रभावों को बहुत ही गम्भीरता से वर्णित किया गया है। राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहने वाले पहाड़िया लोगों की खेती तो अभी कुदाल (Hoe) पर आधारित ही थी। जबकि गंजुरिया पहाड़ियों की तलहटी में रहने वाले संथाल हल (Plough) की खेती यानी स्थायी कृषि सीख रहे थे। अंग्रेजों ने अपने हितों के लिए पहाड़िया और संथालों के जीवन में हस्तक्षेप करके उनके परंपरागत जीवन को बदला दिया था। फिर पहाड़िया और संथालों की प्रतिक्रिया काफी तीखी हुई।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 10 Img 1

→ सन् 1855-56 में तो संथालों का आक्रोश एक ज़बरदस्त सशस्त्र विद्रोह के रूप में फूट पड़ा। जून को भगनीडीट गाँव में लगभग 400 आदिवासी गाँवों से करीब 6,000 आदिवासी प्रतिनिधियों की सभा हुई जिसमें एक स्वर से खले विद्रोह का आह्वान किया गया। विद्रोह के नेता सीदो, कान्ह, चाँद और भैरव थे। ये चारो भाई थे। सीदो (सिधू मांझी) ने स्वयं को देवीपुरुष बताया और संथालों के भगवान् ‘ठाकुर’ का अवतार घोषित किया। संथालों को विश्वास था कि भगवान् उनके साथ हैं। ये नेता हाथी, घोड़े और पालकी पर चलते थे।

→ गाँव-गाँव में ढोल, नगाड़ों के साथ जुलूस निकालकर विद्रोह का आह्वान किया गया। एक अनुमान के अनुसार लगभग 60,000 सशस्त्र संथाल संगठित हो गए थे। इन्होंने महाजनों, ज़मींदारों के घरों को जला दिया, जमकर लूटपाट की तथा उन बही-खातों को भी बर्बाद कर दिया जिनके कारण वे गुलाम हो गए थे।

→  चूंकि अंग्रेज़ सरकार महाजनों और ज़मींदारों का पक्ष ले रही थी। अतः संथालों ने सरकारी कार्यालयों, पुलिस कर्मचारियों पर हमले किए। थानों में आग लगा दी। भागलपुर और राजमहल के बीच रेल, डाक और तार सेवा को तहस-नहस कर दिया।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 10 Img 2
→ विद्रोहियों को कुचलने के लिए सेना ने कत्लेआम मचा दिया। गाँव-के-गाँव जलाकर राख कर दिए। निःसंदेह संथालों ने वीरतापूर्वक अंग्रेज़ी सेना का मुकाबला किया, परन्तु सीधे तीर-धनुष और छापामार युद्ध के सहारे तोपों और गोलियों के सामने अधिक समय तक नहीं टिक सके। लगभग 15,000 संथाल मारे गए। 1855 ई० में सीदो को पकड़कर मार डाला गया। 1856 ई० में कान्हू को भी पकड़ लिया गया।

→ 1875 का दक्कन विद्रोह-यह विद्रोह 12 मई, 1875 को महाराष्ट्र के एक बड़े गाँव सूपा (Supe) से शुरू हुआ। दो महीनों के अंदर यह पूना और अहमदनगर के दूसरे बहुत-से गाँवों में फैल गया। 100 कि०मी० पूर्व से पश्चिम तथा 65 कि०मी० उत्तर से दक्षिण के बीच लगभग 6500 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। हर जगह गुजराती और मारवाड़ी महाजनों और साहूकारों पर आक्रमण हुए।

→ उन्होंने साहूकारों से उनके ऋण-पत्र (debt bonds) और बही-खाते (Account books) छीन लिए और उन्हें जला दिया। जिन साहूकारों ने बही-खाते और ऋण-पत्र देने का विरोध किया, उन्हें मारा-पीटा गया। उनके घरों को भी जला दिया गया। इसके अलावा अनाज की दुकानें लूट ली गईं।

→ यह विद्रोह मात्र अनाज के लिए दंगा’ (Grain Riots) नहीं था। किसानों का निशाना साफ तौर पर ‘कानूनी दस्तावेज’ (Legal Documents) थे। इस विद्रोह के फैलने से ब्रिटिश अधिकारी भी घबराए। उन्होंने इस इलाके को सेना के हवाले करना पड़ा। 95 किसानों को गिरफ्तार करके दंडित किया गया।

→ विद्रोह पर नियंत्रण के बाद भी स्थिति पर नज़र रखी गई। किसानों के इन विद्रोहों का संबंध देहाती अर्थव्यवस्था में उन परिवर्तनों से है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों से आए। विशेषतः इन नीतियों के चलते साहकास और कृषकों के मध्य परंपसुगत संबंध समाप्त हो गए।

→ ऋण-प्राप्ति और उसकी वापसी दोनों ही दक्कन के किसानों के लिए एक जटिल प्रक्रिया थी। परंपरागत साहूकारी कारोबार में कानूनी दस्तावेजों का इतना झंझट नहीं था। जुबान अथवा वायदा ही पर्याप्त था। क्योंकि किसी सौदे के लिए परस्पर सामाजिक दबाव रहता था। ब्रिटिश अधिकारी वर्ग बिना विधिसम्मत अनुबंधों को संदेह की दृष्टि से देखते थे। जुबानी लेन-देन कानून के दायरे में कोई महत्त्व नहीं रखता था जबकि परंपरागत प्रणाली में गाँव की पंचायत महत्त्व देती थी।

→ कर्ज में डूबे किसान को जब और उधार की जरूरत पड़ती तो केवल एक ही तरीके से यह संभव हो पाता कि वह ज़मीन, गाड़ी, हल-बैल ऋण दाता को दे दे। फिर भी जीवन के लिए तो उसे कुछ-न-कुछ साधन चाहिए थे। अतः वह इन साधनों को साहूकार से किराए पर लेता था जो वास्तव में उसके अपने ही होते थे।

क्रम संख्याकालघटना का विवरण
1 .1757अंग्रेज़ों व सिराजुद्दौला के मध्य प्लासी की लड़ाई हुई।
2 .1764बक्सर की लड़ाई।
3 .1765इलाहाबाद की संधि हुई।
4 .1772वारेन हेस्टिग्स बंगाल का गवर्नर बनकर आया जिसे 1773 में गवर्नर जनरल बनाया गया।
5 .1773कंपनी की सैनिक व राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए रेग्यूलेटिंग एक्ट पास किया गया।
6 .1784रेग्यूलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ पास किया गया।
7 .1793स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी अथवा ज़मींदारी) लॉर्ड कार्नवालिस ने लागू किया।
8 .1780 का दशकसंथाल बंगाल में आए और ज़मींदारों के खेतों में काम करने लगे।
9 .1800 का दशकसंथाल जनजाति के लोग राजमहल की पहाड़ियों में आकर बसने लगे।
10 .1813‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई।
11 .1818पहला भू-राजस्व बंदोबस्त, बंबई दक्कन में।
12 .1820 के दशककृषि उत्पादों के मूल्यों में गिरावट का प्रारंभ।
13 .1832-34
14 .1855-56बंबई दक्कन में भयंकर अकाल। आधी जनसंख्या समाप्त हो गई। संथालों का विद्रोह।
15 .1855संथाल नेता सीदो की हत्या की गई।
16 .1861-65अमेरिका गह यद्ध।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकंपीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुंबकत्व
उत्तर:
(C) ज्वालामुखी

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुंड
उत्तर:
(C) प्रवाह

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचला मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड
उत्तर:
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल

4. निम्न में भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) धरातलीय तरंगें
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ‘P’ तरंगें

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूगर्भीय तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं की तरफ आगे बढ़ती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें और ‘S’ तरंगें भी कहा जाता है।

  • ‘P’ तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें होती हैं जो धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
  • ‘S’ तरंगें इन्हें द्वितीयक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय के अंतराल के बाद पहुँचती हैं।

प्रश्न 2.
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) भूगर्भ की जानकारी का सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं। ये चट्टानें हमें खनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त होती हैं। खनन प्रक्रिया द्वारा हम भूगर्भ में स्थित जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

(2) खनन के अलावा भू-वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर भी काम कर रहे हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  • गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना
  • समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना

(3) ज्वालामुखी उद्गार भी प्रत्यक्ष जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 3.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें अभिलेखित नहीं होती। वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों (S या P) तरंगों का छाया क्षेत्र होगा।

105° के परे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं। ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ फैला है, ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र विस्तार में बड़ा अर्थात् पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1

प्रश्न 4.
भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है। पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के अप्रत्यक्ष साधन उल्काएँ हैं, जो कभी-कभी धरती पर पहुँच जाती हैं। इन्हीं ठोस उल्काओं से हमारी पृथ्वी का गठन हुआ है। गुरुत्वाकर्षण तथा चुबकीय स्रोतों का अध्ययन करना भी अप्रत्यक्ष साधनों के अंतर्गत आता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर ये तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-भूगर्भिक तरंगें व धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगों और धरातलीय शैलों के मध्य अन्योय क्रिया के कारण कई तरंगें उत्पन्न होती हैं। अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने के कारण इन तरंगों के वेग में परिवर्तन आता रहता है। इन परिवर्तनों के कारण परावर्तन (Reflection) एवं आवर्तन (Refraction) होता है, जिस कारण तरंगों की दिशा में बदलाव आता रहता है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भी भिन्न-भिन्न होती है, जैसे ही ये संचरित होती हैं, तो शैलों में कंपन पैदा होती है। ‘P’ तरंगें-‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती है। ये तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इसके फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।

‘S’ तरंगें-ये तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। ये तरंगें जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। ये तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।

प्रश्न 2.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृति (Intrusive Landform)-ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती है और जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं इन्हें ही अंतर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं।

विभिन्न अंतर्वेधी आकृति (Various Intrusive Landform)-विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियाँ इस प्रकार हैं-
1. बैथोलिथ (Batholiths) यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है, इसे ही बैथोलिथ कहते हैं। ये अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हटने पर धरातल पर उभर आते हैं। ये ग्रेनाइट के बने पिंड होते हैं।

2. लैकोलिथ (Lacoliths)-ये गंबदनुमा विशाल चट्टानें हैं, जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक-नली से नीचे से जडा होता है और गहराई में पाया जाता है। इनक कृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मिलती है।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapoliths, Phacoliths and sills) ऊपर उठते लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है और यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए तो लैपोलिथ कहलाता है। यदि यह लहरदार आकृति में जम जाए तो फैकोलिथ कहलाता है।

अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है। कम मोटाई वाली जमाव को “शीट” व घने मोटाई वाले जमाव को “सिल” कहा जाता है।

4. डाइक (Dyke)-जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और यदि इसी अवस्था में ठण्डा हो जाए तो दीवार की भाँति संरचना बनती है। यही संरचना डाइक कहलाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप इसी प्रकार की स्थलाकृति के उदाहरण हैं।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना HBSE 11th Class Geography Notes

→ भू-पर्पटी (Crust of the Earth) यह अवसादी शैलों से बने धरातलीय आवरण के नीचे पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जो लगभग 5 से 50 किलोमीटर चौड़ी है। इस पतली परत की तुलना अण्डे के छिलके से की जा सकती है।

→ श्यानता (Viscosity)-किसी तरल पदार्थ का वह गुण जो इसके तत्त्वों के आन्तरिक घर्षण के कारण इसे धीरे बहने देता है। एस्फाल्ट, लाख, शहद, लावा इत्यादि ऐसे ही विस्कासी पदार्थ हैं।

→ उल्कापिण्ड (Meteorites)-उल्का का वह हिस्सा जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमंडल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह जल नहीं पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले ऐसे पिण्डों को उल्कापिण्ड कहते हैं। वायुमंडल में पहुंचने से पहले उल्का को उल्काभ कहते हैं।

→ स्थलमंडल (Lithosphere)-वायुमण्डल और जलमंडल से भिन्न भू-पर्पटी का वह भाग, जो सियाल, साइमा तथा ऊपरी मैंटल के कुछ भाग से मिलकर बना है, उसे स्थलमंडल कहते हैं।

→ तरंगदैर्ध्य (Wave Length)-किसी एकांतर तरंग (Alternating wave) के क्रमिक समान बिंदुओं के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। उदाहरणतः दो समुद्री तरंगों के शीर्षों के बीच की दूरी।

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→ गुरुमंडल (Barysphere)-पृथ्वी के अभ्यंतर का वह सारा भाग, जो स्थलमंडल के नीचे है। इसमें क्रोड, मैंटल तथा दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) तीनों शामिल होते हैं। केवल क्रोड या मैंटल को गुरुमंडल नहीं कहना चाहिए।

→ पटलविरूपणी बल (Diastrophic Forces)-पृथ्वी के भीतर होने वाली वे धीमी, किंतु दीर्घकालीन हलचलें जो भू-पटल में विक्षोभ, मुड़ाव, झुकाव व टूटन (Fracture) लाकर धरातल पर विषमताएं लाती हैं, उन्हें पटलविरूपणी बल कहा जाता है। इन बलों से महाद्वीप बनते हैं।

→ सुनामी (Tsunamis) भूकंप-जनित समुद्री लहरों के लिए सारे संसार में प्रयुक्त किया जाने वाला सुनामी एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है-Great Harbour Wave भूकंप, विशेष रूप से समुद्री तली पर पैदा होने वाले भूकंप, 15 मीटर या इससे ऊंची लहरों को जन्म देते हैं, जिसकी गति 640 से 960 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। सुनामी बहुत दूर तक जा सकती हैं और तटों पर विनाशलीला करती हैं। सुनामी भूकंपों के साथ-साथ विस्फोटक ज्वालामुखी से भी पैदा होती हैं; जैसे क्राकाटोआ (1883) ज्वालामुखी से सुनामी उत्पन्न हुई थी। ऐसी तरंगों को ज्वारीय तरंगें कहना सर्वथा गलत है।

→ प्रशांत अग्नि वलन (Pacific Ring of Fire)-प्रशांत महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर दुर्बल भू-पटल के कारण वहां अधिकतर होने वाली ज्वालामुखी क्रिया और भूकंपों के आगमन के कारण इस क्षेत्र को प्रशांत अग्नि वलय कहा जाता है।

→ भूकंप मूल (Seismic Focus) पृथ्वी के अन्दर वह स्थान जहाँ भूकंप उत्पन्न होता है अर्थात् जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्गम केन्द्र या भूकंप मूल कहलाता है।

→ अधिकेन्द्र (Epicentre)-धरातल का वह बिन्दु जो उद्गम केन्द्र के सबसे निकट होता है अर्थात् जहाँ भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहलाता है।

→ भूकंपलेखी (Seismograph or Seismometre)-भूकंपीय तरंगों को दर्ज (Record) करने वाला स्वचालित यंत्र भूकंपलेखी कहलाता है।

→ समभूकंप रेखाएँ (Iso-seismal lines) समान तीव्रता अथवा आघात वाली भूकंप-रेखाओं को समभूकंप रेखाएँ कहते हैं।

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