Class 12

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य

प्रश्न 1.
समाज में जनन स्वास्थ्य के महत्व के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
समाज में जनन स्वास्थ्य के महत्व के बारे में मेरे विचार निम्न हैं-जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य जनन के सभी पहलुओं जैसे शारीरिक, भावनात्मक, व्यावहारिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य से है दुनिया / संसार में भारत पहला ऐसा देश है, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्य-योजनाएँ बनाई हैं। इन कार्यक्रमों को परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है। इनकी शुरुआत 1951 में परिवार नियोजन से हुई थी। जनन संबंधित और आवधिक क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित करते हुए बहुत उन्नत व व्यापक कार्यक्रम फिलहाल जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम (Reproductive and Child Health Care) के नाम से प्रसिद्ध है। इन कार्यक्रमों के तहत जनन संबंधी विभिन्न पहलुओं के बारे में लोगों में जागरूकता उत्पन्न करते हुए और जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने के लिए अनेक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।

प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य के उन पहलुओं को सुझाएँ, जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
उत्तर:
आज हमें अनियन्त्रित जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याओं तथा सामाजिक उत्पीड़नों जैसे कि यौन दुरुपयोग एवं यौन सम्बन्धी अपराधों आदि के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है ताकि लोग इन्हें रोकने एवं जननात्मक रूप से जिम्मेदार एवं सामाजिक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने में विचार करें और आवश्यक कदम उठाएँ। लोगों को जनन संबंधी समस्याओं जैसे कि सगर्भता (Pregnancy), प्रसव ( Delivery), यौन संचारित रोगों (STDs), गर्भपात (Abortions), गर्भनिरोधकों (Contraception), ऋतुस्राव (Menstrual ) संबंधी समस्याओं, बंध्यता/बांझपन ( Infertility) आदि के बारे में चिकित्सा सहायता एवं देखभाल उपलब्ध कराना आवश्यक है। समय-समय पर अच्छी तकनीकों और नई कार्य नीतियों को क्रियान्वित करने की भी आवश्यकता है ताकि लोगों की अधिक सुचारु रूप से देखभाल और सहायता की जा सके। बढ़ती मादा भ्रूण हत्या पर कानूनी रोक तथा लिंग परीक्षण (Amniocentesis) आदि पर वैधानिक प्रतिबंध लगाना जरूरी है। बाल प्रतिरक्षीकरण (टीका) आदि कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

प्रश्न 3.
क्या विद्यालयों में यौन शिक्षा आवश्यक है? यदि हाँ, तो क्यों ?
उत्तर:
हाँ, विद्यालयों में यौन शिक्षा आवश्यक है । क्योंकि छात्र / छात्राओं को यौन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं के बारे में फैली हुई भ्रान्तियों एवं यौन संबंधी गलत धारणाओं से छुटकारा मिल सके। बच्चों को जनन अंगों, किशोरावस्था एवं उससे संबंधित परिवर्तनों, सुरक्षित और स्वच्छ यौन क्रियाओं, यौन संचारित रोगों एवं एड्स के बारे में जानकारी विशेष रूप से किशोर आयु वर्ग में जनन संबंधी स्वस्थ जीवन बिताने में सहायक होती है।

प्रश्न 4.
क्या आप जानते हैं कि पिछले 50 वर्षों के दौरान हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है? यदि हाँ, तो इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश में सन् 1951 में जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कार्य-योजना और कार्यक्रमों की शुरुआत हुई थी। पिछले दशकों में समय-समय पर इनका आवधिक मूल्यांकन भी किया गया। जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम (Reproductive and Child Health Care) के नाम से प्रसिद्ध है। श्रव्य तथा दृश्य (Audio Visual) और मुद्रित सामग्री की सहायता से सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठन जनता के बीच जनन संबंधी पहलुओं के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं।

इन सबके परिणामस्वरूप यौन संबंधित मामलों के बारे में बेहतर जागरूकता, अधिकाधिक संख्या में चिकित्सा सहायता प्राप्त प्रसव तथा बेहतर प्रसवोत्तर देखभाल से मातृ एवं शिशु मृत्युदर में गिरावट आई है। लघु परिवार वाले जोड़ों की संख्या बढ़ी है। यौन संचारित रोगों (Sexually Transmitted Diseases – STDs) की सही जाँच- पड़ताल तथा देखभाल और कुल मिलाकर सभी यौन समस्याओं हेतु बढ़ी हुई चिकित्सा सुविधाओं का होना आदि समाज के बेहतर जनन स्वास्थ्य की ओर संकेत देते हैं।

प्रश्न 5.
जनसंख्या विस्फोट के कौनसे कारण हैं?
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) के निम्न कारण हैं –
1. जनन आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि होना।
2. मृत्युदर में तीव्र गिरावट।
3. मातृ मृत्युदर (Maternal mortality rate) एवं शिशु मृत्युदर (Infant mortality rate) में कमी।
4. महिलाओं का अशिक्षित होना ।
5. परिवार नियोजन के तरीकों को पूरी तरह से न अपनाया जाना। 6. अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जीवन स्तर में आए सुधार के कारण आदि ।

प्रश्न 6.
क्या गर्भ निरोधकों का उपयोग न्यायोचित है? कारण बताएँ ।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि दर अत्यधिक होने के कारण यह राष्ट्रीय संकट है अतः गर्भनिरोधकों का उपयोग न्यायोचित है। क्योंकि इनसे परिवारों को सीमित किया जा सकता है एवं उनकी सुविधाओं में वृद्धि की जा सकती है। इन गर्भनिरोधकों के उपयोग से यौन संचारित रोगों (STDs) से बचा जा सकता है। इसके साथ ही दो संतानों के बीच अन्तराल भी रखा जा सकता है। जनसंख्या वृद्धि को कम करके परिवार, समाज व देश की समृद्धि में सहयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
जनन ग्रंथि को हटाना, गर्भ निरोधकों का विकल्प नहीं माना जा सकता है, क्यों?
उत्तर:
जनन ग्रन्थियाँ संतान उत्पन्न करने वाले अंग हैं। पुरुष में पाई जाने वाली जनन ग्रन्थि को वृषण (Testis) कहते हैं। इसी प्रकार स्त्री में पाई जाने वाली ग्रन्थि को अण्डाशय (ovary) कहते हैं। वृषण में शुक्राणुओं का तथा अण्डाशय में अण्डों का निर्माण होता है। गर्भ निरोधक के प्रयोग के लिए स्वस्थ अंगों का शरीर से हटाना उचित नहीं है। इससे मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं जबकि गर्भनिरोधक विधियाँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं और उनका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है एवं न ही वे महँगी होती हैं तथा आसानी से इनका प्रयोग भी किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर हटाया भी जा सकता है। जनन ग्रन्थि को हटाना एक जटिल प्रक्रिया है। कानून भी हमें इसकी आज्ञा नहीं देता है। इसलिए इसे हटाना गर्भ निरोधकों का विकल्प नहीं माना जा सकता। है।

प्रश्न 8.
उल्बवेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है। क्या यह आवश्यक होना चाहिए? टिप्पणी करें।
उत्तर:
बढ़ती मादा भ्रूण हत्या की कानूनी रोक के लिए उल्बवेधन (Amniocentesis) जाँच (भ्रूणीय लिंग निर्धारण) लिंग परीक्षण पर वैधानिक प्रतिबंध उचित है क्योंकि यह खतरना प्रवृत्ति है। इससे शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्बवेधन ( Amniocentesis) का दुरुपयोग होता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि यह पता चलने पर कि भ्रूण मादा (लड़की) है, चिकित्सीय सगर्भता समापन (Medical Terminatian of Pregnancy) कराया जाता है, जो पूरी तरह से गैर-कानूनी है।

इस प्रकार की प्रवृत्ति से बचना चाहिये क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। इससे समाज में पुरुष एवं महिलाओं की संख्या का अनुपात भी बिगड़ सकता है जिसके कारण वैवाहिक समस्याएँ तथा स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। इस कारण से इस विधि ( उल्बवेधन) पर हमारे देश में प्रतिबंध है, जो कि उचित है।

प्रश्न 9.
बंध्य दंपतियों को संतान पाने हेतु सहायता देने वाली कुछ विधियाँ बताएँ।
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता कहते हैं। ऐसे निःसंतान दंपतियों को कुछ विशेष तकनीकों द्वारा संतान पैदा करने में मदद की जाती है, ये तकनीकें सहायक जनन प्रौद्योगिकियाँ (Assisted Reproductive Technologies) कहलाती हैं। पात्रे निषेचन (In vitro fertilization ) – इन विट्रो फर्टिलाइजेशन अर्थात् शरीर से बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियों में निषेचन के द्वारा भ्रूण स्थानान्तरण (Embryo transfer) एक ऐसा उपाय हो सकता है।

इस विधि में, जिसे लोकप्रिय रूप से टेस्ट ट्यूब बेबी (Test tube baby) कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है, इसमें प्रयोगशाला में पत्नी (wife) का या दाता स्त्री ( donor female) के अण्डे (ova) से पति अथवा दाता पुरुष ( donor male) से प्राप्त किए गए शुक्राणुओं (Sperms) को एकत्रित करके प्रयोगशाला में अनुकूल परिस्थितियों (Simulted Conditions) में युग्मनज (Zygote) बनने के लिए प्रेरित किया जाता है।

इस युग्मनज (Zygote) या प्रारम्भिक भ्रूण (8 ब्लास्टोमियर तक) को फैलोपियन नलिकाओं (Fallopian tubes) में स्थानान्तरित किया जाता है जिसे युग्मनज अंतः डिम्बवाहिनी स्थानान्तरण (Zygote intra fallopian transfer) कहते हैं। भ्रूण जब 8 ब्लास्टोमियर से अधिक का होता है, तो उसे परिवर्धन हेतु गर्भाशय (Uterus) में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इसे इन्द्रा यूटेराइन ट्रांसफर (Intra Uterine Transfer) कहते हैं। जिन स्त्रियों / महिलाओं में गर्भधारण की समस्या रहती है उनकी सहायता के लिए जीवे निषेचन ( इन विवो फर्टीलाइजेशन स्त्री के. भीतर ही युग्मकों का संलयन) से बनने वाले भ्रूणों को भी स्थानान्तरण के जिन स्त्रियों/महिलाओं में गर्भधारण की समस्या रहती है उनकी सहायता के लिए जीवे निषेचन ( इन विवो फर्टीलाइजेशन स्त्री के भीतर ही युग्मकों का संलयन) से बनने वाले भ्रूणों को भी स्थानान्तरण के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अण्डाणु (egg) उत्पन्न नहीं कर सकतीं लेकिन जो निषेचन और भ्रूण परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं, उनके लिए एक अन्य तरीका अपनाया जा सकता है। इसमें दाता से अण्डाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube ) में स्थानान्तरित कर दिया जाता है।

प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने के लिए अन्तः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (Intra cytoplasmic sperm injection) वह दूसरी विशेष प्रक्रिया है जिसमें शुक्राणु को सीधे ही अण्डाणु में अन्तःक्षेपित (injected) किया जाता है। बंध्यता के ऐसे मामलों में जिनमें पुरुष साथी स्त्री को वीर्य संचित कर सकने के योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण कृत्रिम वीर्य सेचन ( Artificial inseminatin) तकनीक से किया जा सकता है। इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) अथवा उसके गर्भाशय ( Uterus) में प्रविष्ट किया जा सकता है। इसे अंतः गर्भाशय वीर्य सेचन (Intra-Uterine Insemination) कहते हैं।

प्रश्न 10.
किसी व्यक्ति को यौन संचारित रोगों के सम्पर्क में आने से बचने के लिए कौन-से उपाय अपनाने चाहिए?
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – यौन संबंधों द्वारा संचारित होने वाले रोगों या संक्रमणों को यौन संचारित रोग (STD) कहा जाता है। इन्हें रतिज रोग (Veneral diseases) अथवा जनन मार्ग (Reproductive tract infections) संक्रमण भी कहा जाता है। ये रोग निम्न हैं- सुजाक (Gonorrhoea), सिफिलिस (Syphilis), हर्पीस (Herpes), जननिक हर्पिस ( Genital herpes), क्लेमिडियता (Chlamydiasis), ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis), यकृत शोथ-बी (Hepatitis B ), लैंगिक मस्से ( Genital warts), एड्स (AIDS) आदि।

इनसे बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिये –
(i) मैथुन के समय हमेशा कंडोम (Condoms ) का उपयोग करना चाहिये।
(ii) किसी अनजान व्यक्ति अथवा बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।
(iii) यदि कोई आशंका है तो तत्काल ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराना चाहिए।

प्रश्न 11.
निम्न वाक्य सही है या गलत, व्याख्या सहित बताएँ –
(क) गर्भपात स्वत: भी हो सकता है। (सही / गलत )
उत्तर:
गलत। सामान्य परिस्थितियों में गर्भपात नहीं होता। किसी दुर्घटनावश या स्वैच्छिक रूप से गर्भ समापन (गर्भपात) होता है। स्वैच्छिक गर्भपात को चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) कहते हैं।

(ख) बंध्यता को जीवनक्षम संतति न पैदा कर पाने की अयोग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है और यह सदैव स्त्री की असामान्यताओं / दोषों के कारण होती है । ( सही / गलत )
उत्तर:
गलत। बंध्यता हमेशा स्त्री की असामान्यताएँ / दोषों के कारण नहीं होती, कभी-कभी पुरुष भी बंध्यता के लिए दोषी होता है।

(ग) एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक उपाय के रूप में शिशु को पूर्णरूप से स्तनपान कराना सहायक होता है । (सही / गलत )
उत्तर:
सही। शिशु को पूर्णरूप से स्तनपान कराने से अण्डोत्सर्ग नहीं होता है अत: आर्तव चक्र (Menstrual cycle) भी नहीं होता है, जिसके कारण गर्भ की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। किन्तु यह विधि शिशु के जन्म के अधिकतम 6 माह तक ही कारगर है।

(घ) लोगों के जनन स्वास्थ्य के सुधार हेतु यौन संबंधित पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करना एक प्रभावी उपाय है। ( सही / गलत )
उत्तर:
सही। क्योंकि ऐसा करने से लोगों के जनन स्वास्थ्य की समस्याएँ समाप्त अथवा कम से कम हो जायेंगी।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित कथनों को सही करें –
(क) गर्भनिरोध के शल्यक्रियात्मक उपाय युग्मक बनने को रोकते हैं।
उत्तर:
गर्भनिरोध के शल्यक्रिया उपाय युग्मक बनने से रोकते नहीं हैं बल्कि युग्मक ( Gamee) परिवहन को रोकते हैं।

(ख) सभी प्रकार के यौन संचारित रोग पूरी तरह से उपचार योग्य हैं।
उत्तर:
यकृतशोथ – बी, जननिक हर्पिस (Genital Herpes) तथा एच.आई.वी. संक्रमण को छोड़कर बाकी सभी यौन रोग पूरी तरह से उपचार योग्य हैं, बशर्ते कि इन्हें शुरुआती अवस्था में पहचाना एवं इनका उचित ढंग से पूरा इलाज कराया जाए।

(ग) ग्रामीण महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक के रूप में गोलियाँ (पिल्स) बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
उत्तर:
महिलाओं के द्वारा खाया जाने वाला एक अन्य गर्भनिरोधक प्रोजेस्टोजन और एस्ट्रोजन का संयोजन है। यह मुँह से टिकिया के रूप में ली जाती है और ये गोलियाँ पिल्स के नाम से सभी महिलाओं में लोकप्रिय हैं, न कि केवल ग्रामीण महिलाओं के बीच।

(घ) ई. टी. तकनीकों में भ्रूण को सदैव गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।
उत्तर:
ई.टी. तकनीकों में 8 ब्लास्टोमीयर से ज्यादा अवस्था वाले भ्रूण को गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जाता है। जबकि 8 ब्लास्टोमीयर से कम अवस्था वाले भ्रूण को अण्डवाहिनी में स्थानान्तरित किया जाता है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र (a) a मूल बिंदु से होकर गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। (b) a समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर:
(a) माँग वक्र एक सीधी, सरल, समस्तरीय व x-अक्ष के समानांतर रेखा होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र मूल बिंदु से गुजरता हुआ धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

(b) माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाला वक्र होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र समस्तरीय रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
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प्रश्न 2.
नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत-लोच की गणना कीजिए

मात्रा12345678910
सीमांत संप्राप्ति (आगम)1062222000-5

हल:

मात्रासीमांत संप्राप्ति (आगम)कुल संप्राप्ति
(रुपए)
औसत संप्राप्ति (रुपए)माँग की कीमत-ल्लोच
1101010
261684
321861.5
422051.67
52224.41.83
60223.671
70223.141
80222.751
9-5171.890.27

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) कुल संप्राप्ति = सीमांत संप्राप्ति, + सीमांत संप्राप्ति, +…… + सीमांत संप्राप्तिn
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प्रश्न 3.
जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 3
जब माँग वक्र लोचदार हो तो इस वक्र के प्रत्येक बिंदु पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) धनात्मक होगी, लेकिन औसत संप्राप्ति से कम (\(\frac { e-1 }{ e }\))
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

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प्रश्न 4.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए और निम्नलिखित माँग सारणी है

मात्रा12345678910
कीमत100907060504030302010

अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन क्या होगा? जब कुल लागत 1000 रु० हो, तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करें।

मात्राकीमतकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिकुल लागतलाभ
11001001000
2901808010080
38024060100140
47028040100180
56030020100200
6503000100200
740280– 20100180
830240– 40100140
920180– 6010080
1010100– 801000

उपर्युक्त तालिका के अनुसार एक एकाधिकारी फर्म का संतुलन 6 मात्रा पर होगा क्योंकि यहाँ पर TR और TC का अंतर अधिकतम है।
यहाँ संतुलन कीमत = 50 रु०
लाभ = 300 – 100 = 200 रु०

प्रश्न 5.
यदि अभ्यास प्रश्न 4 की एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकारकर्ता है और इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाज़ार में माँग
और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर:
यदि सरकार सरकारी स्थिर कीमत स्वीकार करने के लिए नियम बनाती है और ऐसी कीमत निर्धारित करती है जिससे बाज़ार में माँग और पूर्ति समान हो तो उस स्थिति में निम्नलिखित तथ्य होंगे
संतुलन कीमत = 10 रु०
संतुलन मात्रा = 10
लाभ = शून्य;
क्योंकि कुल संप्राप्ति = कुल लागत।

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प्रश्न 6.
उस स्थिति में सीमांत संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र (i) धनात्मक प्रवणता (ढलान) वाली सरल रेखा हो, (ii) समस्तरीय सरल रेखा हो।
उत्तर:
(i) जब कुल संप्राप्ति वक्र धनात्मक प्रवणता (ढाल) वाली सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र एक समस्तरीय सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (i) में दर्शाया गया है।

(ii) जब कुल संप्राप्ति वक्र समस्तरीय सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 7.
नीचे दी गई सारणी में वस्तु की बाज़ार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें-

मात्राकीमतमात्राकुल लागत
052010
144160
237290
3313100
4264102
5225105
6196109
7167115
8138125

(a) सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी।
(b) वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
(c) निर्गत (उत्पादन) की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ।
हल-
(a) लागत और संप्राप्ति सारणी

मात्राकीमत
(रुपए)
कुल संप्राप्ति (रुपए)सीमांत संप्राप्ति (रुपए)कुल लागत (रुपए)सीमात लागत (रुपए)लाभ
052001000
14444446050-16
23774309040-16
331931910010-7
4261041110282
522110610535
619114410945
716112-21156-3
813104-812510-21

(b) 6 इकाइयों पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर होगी।
(c) उत्पादन वस्तु की संतुलन मात्रा 6 इकाइयाँ हैं और वस्तु की संतुलन कीमत 19 रु० है।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति (आगम) = 114 रुपए
संतुलन में कुल लागत = 109 रु०
संतुलन में कुल लाभ = 114-109 = 5 रुपए

प्रयोग किए गए सूत्र-
(a) कुल संप्राप्ति = मात्रा कीमत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 5
(d) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत

प्रश्न 8.
निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो रहा हो तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन जारी रखेगी?
उत्तर:
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अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म (Monopoly Firm) को उस समय हानि उठानी पड़ती है जब उसकी औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) उसकी औसत लागत (AC) से कम होती है। एकाधिकारी फमैं उस समय तक उत्पादन करती रहेगी जब तक, कि उसकी औसत परिवर्ती (AVC) लागत पूरी हो रही है। यदि उसकी औसत परिवर्ती लागत पूरी नहीं होती है तो वह उत्पादन बंद कर देगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

रेखाचित्र में एकाधिकारी फर्म का संतुलन बिंदु E है जहाँ MC = MR है तथा MC वक्र MR को नीचे से काट रही है। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP है जो औसत लागत OT से कम है जिसके कारण फर्म को PTCR की हानि उठानी पड़ती हैं। यदि एकाधिकारी फर्म उत्पादन बंद कर देती है तो उसे प्रति इकाई CV हानि उठानी पड़ेगी। इस प्रकार फर्म उत्पादन करके RV प्रति इकाई हानि को बचा रही है।

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प्रश्न 9.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक होती है क्योंकि प्रत्येक फर्म को अधिक वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। माँग वक्र की ऋणात्मक प्रवणता कीमत और माँग के विपरीत संबंध को ही दर्शाती है।

प्रश्न 10.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होगा अर्थात् सामान्य लाभ पर होगा। इसका कारण यह है कि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा बाजार से बहिर्गमन करने की स्वतंत्रता होती है। यदि अल्पकाल में फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है तो दीर्घकाल में नई फर्मे बाज़ार में प्रवेश कर जाएँगी, जिससे वर्तमान फर्मों का असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और उन्हें केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। यदि अल्पकाल में फर्मों को हानि हो रही है तो दीर्घकाल में कुछ वर्तमान फर्मे बाज़ार से बहिर्गमन कर जाएँगी, जिससे उत्पादन कम होगा, कीमत बढ़ेगी और हानि समाप्त हो जाएगी अर्थात् फर्मों को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा।

प्रश्न 11.
तीन विभिन्न विधियों की सची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकती है।
उत्तर:
एक अल्पाधिकारी फर्म निम्नलिखित विधियों में व्यवहार कर सकती है-
(i) अल्पाधिकारी फर्मे आपस में साठ-गाँठ कर यह निर्णय ले सकती हैं कि वे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी। इस प्रकार वे फर्मे बाज़ार का उचित बँटवारा कर लेंगी और प्रत्येक फर्म अपने-अपने बाज़ार में एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करेंगी।

(ii) अल्पाधिकारी फर्मे यह निर्णय ले सकती हैं कि लाभ को अधिकतम करने के लिए वे उस वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करें। इस प्रकार उनकी वस्तु की मात्रा की पूर्ति को अन्य फर्मे प्रभावित नहीं करेंगी।

(iii) अल्पाधिकारी फर्मे वस्तु अनम्य कीमत/कीमत स्थिरता (Price-Rigidity) की नीति अपना सकती हैं। इस नीति के अंतर्गत माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप कीमत में परिवर्तन नहीं होगा।

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प्रश्न 12.
यदि द्वि-अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार के जैसा हो, तो बाज़ार माँग वक्र को समीकरण q=200-4p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन कीमत और संतुलन बाज़ार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
बाज़ार माँग वक्र समीकरण
q = 200 – 4p
200 – 4p = 0
4p = 200
संतुलन कीमत (p) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 50 रु०
संतुलन मात्रा (q) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 4
फर्मों की संख्या = 2
प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा = \(\frac { 4 }{ 2 }\) = 2 उत्तर

प्रश्न 13.
आय अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर:
आय अनम्य कीमत का अभिप्राय यह है कि अल्पाधिकार बाज़ार में फर्मे वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं करेंगी। अनम्य कीमत नीति के अंतर्गत अल्पाधिकारी फर्मों का माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाज़ार कीमत में निर्बाध संचलन नहीं होता। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा प्रारंभ की गई कीमत में परिवर्तन के प्रति अल्पाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। यदि एक फर्म अपने लाभ में वृद्धि करने के लिए वस्तु की कीमत में वृद्धि करती है और अन्य फर्मे ऐसा नहीं करती तो उस फर्म की बिक्री कम हो जाएगी और अंततः उसका लाभ भी कम हो जाएगा। इसलिए किसी फर्म के लिए कीमत में वृद्धि करना उचित नहीं होगा। दूसरी ओर, यदि एक फर्म वस्तु की कम कीमत पर बिक्री में वृद्धि करती है तो अन्य फर्मे भी अपनी कीमत कम कर देंगी। इससे सभी फर्मों की कीमतें कम हो जाएँगी और कीमत में कमी का लाभ सभी फर्मों को मिलेगा। अतः कीमत में कमी करना किसी के हित में नहीं है। इसलिए अल्पाधिकारी फर्मों का हित अनभ्य कीमत में होता है।

प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार HBSE 12th Class Economics Notes

→ बाज़ार-अर्थशास्त्र में बाज़ार से अभिप्राय किसी विशेष स्थान से नहीं बल्कि एक वस्तु के बाज़ार से होता है; जैसे कपड़े का बाज़ार, चाय का बाज़ार, चीनी का बाज़ार आदि।

→ बाजार के मख्य रूप-

  • पर्ण प्रतिस्पर्धा
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा

→ एकाधिकार-जिस बाज़ार संरचना में किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता हो, वस्तु का कोई स्थानापन्न नहीं हो तथा उद्योग में अन्य फर्मों का प्रवेश वर्जित हो तो उस वस्तु बाज़ार की संरचना एकाधिकार कहलाता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा यह वह बाज़ार संरचना है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या तो बहुत होती है लेकिन उनके द्वारा बेचे जाने वाली वस्तु सजातीय नहीं होता।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

→ औसत संप्राप्ति (आगम) वक्र वस्तु की बाज़ार कीमत एकाधिकार फर्म की पूर्ति की मात्रा पर निर्भर करती है। एकाधिकार फर्म के लिए बाज़ार माँग वक्र ही औसत संप्राप्ति वक्र कहलाती है।

→ कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र कुल संप्राप्ति वक्र का आकार औसत आगम वक्र के आकार पर निर्भर करता है। ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखीय माँग वक्र की स्थिति में कुल संप्राप्ति वक्र प्रतिलोमित उर्ध्वाधर परवलय के रूप में होता है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए औसत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर उद्गम से संबद्ध बिंदु की ओर जाती हुई – रेखा की प्रवणता से की जाती है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए सीमांत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर स्थित संबद्ध बिंदु की स्पर्शज्या (Tangent) की प्रवणता से की जाती है।

→ ऋणात्मक प्रवणता वाला माँग वक्र अति प्रवण होता है और यह सीमांत आगम वक्र के नीचे होता है। माँग वक्र तब लोचदार होता है, जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक होता है और यह तब लोचहीन होता है जब सीमांत आगम का मूल्य ऋणात्मक होता है।

→ यदि एकाधिकारी फर्म की लागत शून्य हो अथवा केवल स्थिर लागत हो तो संतुलन से पूर्ति की मात्रा को उस बिंदु द्वार दर्शाया जाता है, जिस पर सीमांत आगम शून्य होती है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतिस्पर्धा में संतुलन की मात्रा उस बिंदु द्वारा दर्शाया जाता है, जिस पर औसत आगम शून्य होता है।

→ एकाधिकार के संतुलन को उस बिंदु से परिभाषित किया जाता है जिस पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) = सीमांत लागत और सीमांत लागत वृद्धि की स्थिति में होती है। यह बिंदु उत्पादन की संतुलन मात्रा को बताती है। दी हुई संतुलन मात्रा से माँग वक्र के द्वारा संतुलन कीमत को दर्शाया जाता है।

→ वस्तु बाज़ार में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा असजातीय वस्तु के कारण उत्पन्न होती है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्था में AR वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है। यह इसलिए क्योंकि एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु की अधिक मात्रा केवल कीमत को कम करके ही बेची जा सकती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि वस्तु की कीमत तथा फर्म के उत्पादन के लिए माँग के बीच विपरीत संबंध है। इसीलिए फर्म के माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में AR के कम होने की प्रवृत्ति होती है। जब AR गिरता है तो MR उससे अधिक तेजी से गिरता है अर्थात् AR > MR। गिरते हुए MR से अभिप्राय है कि TR घटती दर पर बढ़ता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अल्पकालीन संतुलन के परिणामस्वरूप पूर्ण प्रतिस्पर्धा की तुलना में उत्पादन की मात्रा कम होती है और कीमत अधिक होती है। यह स्थिति दीर्घकाल में भी यथावत रहती है, लेकिन दीर्घकाल में लाभ शून्य होता है।

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.1.
किसी n प्रकार के सिलिकॉन में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(b) इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(c) होल (विवर) अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(d) होल (विवर) बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
उत्तर:
(c) होल (विवर) अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.2.
अभ्यास 14.1 में दिए गए कथनों में से कौन-सा p- प्रकार के अर्धचालकों के लिए सत्य है?
उत्तर:
(d) होल (विवर) बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।

प्रश्न 14.3.
कार्बन, सिलिकॉन और जर्मेनियम, प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन हैं। इनकी विशेषता ऊर्जा बैंड अंतराल द्वारा पृथक्कृत संयोजकता और चालन बैंड द्वारा दी गई हैं, जो क्रमशः (Eg)C (Eg) si तथा (Eg)Ge के बराबर हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) (Eg)si < (Eg)Ge < (Eg)C
(b) (Eg)C < (Eg)Ge > (Eg)si
(c) (Eg)C > (Eg)si > (Eg)Ge
(d) (Eg)C = (Eg)si = (Eg) Ge
उत्तर:
(c) (Eg)C > (Eg)si > (Eg)Ge

प्रश्न 14.4.
बिना बायस p-n संधि से होल p- क्षेत्र में n क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं, क्योंकि
(a) n क्षेत्र में मुक्त इलेक्ट्रॉन उन्हें आकर्षित करते हैं।
(b) ये विभवांतर के कारण संधि के पार गति करते हैं।
(c) p- क्षेत्र में होल-सांद्रता 1- क्षेत्र में इनकी सांद्रता से अधिक है।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) p- क्षेत्र में होल सांद्रता n क्षेत्र में इनकी सांद्रता से अधिक है।

प्रश्न 14.5.
जब p-n संधि पर अग्रदिशिक बायस अनुप्रयुक्त किया जाता है, तब यह
(a) विभव रोधक बढ़ाता है।
(b) बहुसंख्यक वाहक धारा को शून्य कर देता है।
(c) विभव रोधक को कम कर देता है।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) विभव रोधक को कम कर देता है।

प्रश्न 14.6.
अर्ध-तरंगी दिष्टकरण में, यदि निवेश आवृत्ति 50 Hz है तो निर्गम आवृत्ति क्या है? समान निवेश आवृत्ति हेतु पूर्ण तरंग दिष्टकारी की निर्गम आवृत्ति क्या है?
उत्तर:
अर्ध-तरंगी दिष्टकरण केवल आधा निवेशी A. C. को दिष्ट में करती है।
∴ निर्गत A. C. की आवृत्ति = निवेशी AC की आवृत्ति = 50 Hz
पूर्ण तरंगी दिष्टकरण, AC निवेशी के दोनों अद्धों को दिष्ट करता है।
∴ निर्गत AC की आवृत्ति = 2 x निवेशी AC की आवृत्ति
= 2 × 50 = 100 Hz

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.7.
कोई p-n फोटोडायोड 2.8eV बैंड अंतराल वाले अर्धचालक से संविरचित है। क्या यह 6000 nm की तरंगदैर्ध्य का संसूचन कर सकता है?
उत्तर:
बैण्ड अंतराल Eg = 2.8 ev
6000 nm की तरंगदैर्ध्य संगत ऊर्जा बैण्ड अन्तराल माना E
∴ हम जानते हैं:
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 1
बैण्ड अन्तराल Eg का मान E से अधिक ही है। अतः यह 6000 nm की तरंगदैर्घ्य का संसूचन नहीं कर सकता है।

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 14.8.
सिलिकॉन परमाणुओं की संख्या 5 x 1028 प्रति m” है। यह साथ ही साथ आर्सेनिक के 5 x 1022 परमाणु प्रति ms और इंडियम के 5 x 1020 परमाणु प्रतिm से अपमिश्रित किया गया है। इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या का परिकलन कीजिए दिया है कि n = 1.5 x 1016 m ” दिया गया पदार्थ n प्रकार का या p प्रकार का?
उत्तर:
दिया गया है:
ND = 5 x 1022 परमाणु / मीटर3
Na = 5 × 1020 परमाणु / मीटर3
ni = 1.5 x 1016 प्रति / मीटर3
यहाँ पर स्पष्ट है कि ni << ND और भी << NA
ND – NA = ne – nh और nenh = ni2
या
nh = ni2/ne
या
ND – NA = ne – ni2/ne
(ND – NA) x ne = ne2 – ni2
या ne2 – (ND – NA ) ne – ni2 = 0
उपर्युक्त समीकरण (ne) में द्विघात है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 2
(ND – NA) की अपेक्षा बहुत छोटा है अतः और भी छोटा होगा। अतः इसको छोड़ा जा सकता है।
= 1/2 [4.95 × 1022 + 4.95 × 1022]
ne = 4.95 x 1022
और
nh = ni2/ne
= \(\frac{2.25 \times 10^{32}}{4.95 \times 10^{22}}\)
nh = 4.55 x 109
चूँकि ne >> nh, इसलिए दिया गया पदार्थ n – प्रकार का है।

प्रश्न 14.9.
किसी नैज अर्धचालक में ऊर्जा अंतराल Eg का मान 1.2ev है। इसकी होल गतिशीलता इलेक्ट्रॉन गतिशीलता की तुलना में काफी कम है तथा ताप पर निर्भर नहीं है। तथा 300 K पर चालकताओं का क्या अनुपात है? नैज वाहक सांद्रता की ताप निर्भरता इस प्रकार इसकी 600 K यह मानिए कि व्यक्त होती है:
ni = noexp(-E/2KBT)
जहाँ no एक स्थिरांक है।
उत्तर:
दिया गया है:
नैज अर्धचालक का ऊर्जा अन्तराल =
Eg = 1.2 ev
T = 600 K
T2 = 300 K
माना अर्धचालक T1 व T2 की चालकतायें क्रमशः σ1 व σ2
σ1/σ2 = ?
हम जानते हैं:
σ = 1/P
= e(neμe + nnμn) ………….(1)
नैज अर्धचालक के लिए
∴ समीकरण (1) से
σ = e niμe …………. (2)
यह भी दिया गया है कि
nj = nge Eg/2KAT …………… (3)
समीकरण (2) व (3) से हम
σ = e n0μ0 e-Eg/2KAT
σ = e-Eg/2KAT ………….(4)
जहाँ पर
K = 1.38 x 10-23 JK-1
= 8.62 x 10-5 eVK-1
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 3
= exp[11.600928] = e11.600928
σ1/σ2 = e11.6
दोनों तरफ log लेने पर
loge(σ1/σ2) = 11.6 loge
2.303log(σ1/σ2) = 11.6
log(σ1/σ2) = 11.6/2.303 = 5.3069 = 5.307
σ1/σ2 = Antilog(5.3037) = 1.1 x 105
इससे हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि नैज अर्धचालक की चालकता ताप से बहुत प्रभावित होती है।

प्रश्न 14.10.
किसी p-n संधि डायोड में धारा I को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
I = Io exp(ev/2kT – 1)
जहाँ Io को उत्क्रमित संतृप्त धारा कहते हैं, V डायोड के सिरों पर वोल्टता है तथा यह अग्रदिशिक बायस के लिए धनात्मक तथा पश्चदिशिक बायस के लिए ऋणात्मक है। I डायोड से प्रवाहित धारा है, kp बोल्ट्जमान नियतांक ( 8.6 x 10-5 eV/K) है तथा T परम ताप है। यदि किसी दिए गए डायोड के लिए I = 5 x 10-12 A तथा T = 300 K है, तब
(a) 0.6 V अग्रदिशिक वोल्टता के लिए अग्रदिशिक धारा क्या होगी?
(b) यदि डायोड के सिरों पर वोल्टता को बढ़ाकर 0.7 V कर दें तो धारा में कितनी वृद्धि हो जाएगी?
(c) गतिक प्रतिरोध कितना है?
(d) यदि पश्चदिशिक वोल्टता को 1 V से 2 V कर दें तो धारा का मान क्या होगा?
उत्तर:
(a) HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 4
= 5 × 10-12 [exp (11.6279 ) – 1]
= 5 x 10-12 [1.119 × 105 – 1]
(11.6279) 1.119 x 105
= 5 x 10-12 x 1.119 x 105
= 5.595 x 10-7
= 0.5595 μA
= 0.6 μA

(b) प्रश्नानुसार V = 0.7 वोल्ट
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 5
= 5 x 10-2 [exp (13.5658) – 1]
= 5 x 102 [7.811 x 105 – 1]
= 5 x 102 x 7.811 × 105
∵exp (13.5658) = 7.811 x 105
= 39.055 x 107
= 3.9055 μA
∵ धारा में वृद्धि∆l = I – I
= (3.9055 – 0.5595) μA
= 3.3460 PA
= 3.3460 x 10-6A

(c) गतिक प्रतिरोध
R = ∆V/∆I = \(\frac{0.7-0.6}{3.3460 \times 10^{-6}}\)
= \(\frac{0.1}{3.3460 \times 10^{-6}}\)
= 0.2988 × 105 ओम
= 0.3 x 105 ओम

(d) पश्च बायस में V ऋणात्मक तथा उच्च होने से
exp(ev/2KT – 1)
जिससे धारा सम्बन्ध ऋणात्मक हो जाता है।
अतः 1 वोल्ट या 2 वोल्ट के पश्च विभव के लिए धारा 1 का मान I के बराबर होगा, जिससे
R = \(\frac{2-1}{5 \times 10^{-12}-5 \times 10^{-12}}\)
अर्थात् गतिक प्रतिरोध अनन्त हो जाएगा।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.11.
आपको चित्र में दो परिपथ दिए गए हैं। यह दर्शाइए कि परिपथ (a) OR गेट की भाँति व्यवहार करता है जबकि परिपथ (b) AND गेट की भाँति कार्य करता है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 6
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 7

ABY = \(\overline{A+B}\)Y = \(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\)
0010
0101
1001
1101

अतः परिपथ OR गेट की भाँति कार्य करता है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 8

ABABY
00100
01010
10010
11011

अतः परिपथ AND गेट की भाँति कार्य करता है।

प्रश्न 14.12.
नीचे दिए गए चित्र में संयोजित NAND गेट. संयोजित परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 9
अतः इस परिपथ द्वारा की जाने वाली यथार्थ तर्क संक्रिया का अभिनिर्धारण कीजिए ।
उत्तर:
दिये गये NAND द्वार के दोनों निवेशी समान हैं अर्थात् A हैं अतः निर्गत
Y = A.B = A.A = A
(∵ A.A = A )
अतः सत्यता सारणी

निवेशी Aनिर्गत Y = A
01
10

इस प्रकार यह परिपथ एक NOT द्वार का कार्य करता है।

प्रश्न 14.13.
आपको निम्न चित्र में दर्शाए अनुसार परिपथ दिए गए हैं जिनमें NAND गेट जुड़े हैं। इन दोनों परिपथों द्वारा की जाने वाली तर्क संक्रियाओं का अभिनिर्धारण कीजिए।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 10
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 11

ABYYY
00110
01101
10011
11001

अतः परिपथ AND संक्रिया को प्रस्तुत करता है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 12

ABYY
0010
0110
1010
1101

अतः परिपथ OR संक्रिया प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 14.14.
चित्र में दिए गए NOR गेट युक्त परिपथ की सत्यमान सारणी लिखिए और इस परिपथ द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
(संकेत – A = 0, B = 1 तब दूसरे NOR गेट के निवेश A और B 0 होंगे और इस प्रकार Y = 1 होगा। इसी प्रकार A और B के दूसरे संयोजनों के लिए Y के मान प्राप्त कीजिए । OR, AND, NOT द्वारों की सत्यमान सारणी से तुलना कीजिए और सही विकल्प प्राप्त कीजिए।)
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 13
उत्तर:
यहाँ उपर्युक्त चित्र एक NOT द्वारा अनुसरित NOR द्वार दर्शाता है जो NOR द्वार से ( NOT द्वार) प्राप्त किया गया है। इस प्रकार निर्गम Y NOR द्वार का निर्गम दर्शाता है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 14
जिसे NOT द्वार को पुष्ट करने के काम लाया जाता है। इस प्रकार हम एक OR द्वार प्राप्त करते हैं जैसा कि सत्य तालिका में दर्शाया गया है तथा बुलियन संक्रिया भी यहाँ दर्शाई गई है, जो इन पर की
गई है।

ABY = \(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\)Y = \(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\)
0010
0101
1001
1101

इस प्रकार A, B और Y OR द्वार की तालिका दर्शाते हैं अतः यह परिपथ OR द्वार के तुल्य है अर्थात् जब A = B = O तब Y’ उच्च होगा क्योंकि NOR द्वार संक्रिया में यदि दोनों निवेश निम्न हैं तो निर्गम उच्च होगा और निर्गम निम्न होगा। यदि एक या दोनों निवेश उच्च हों
इसी प्रकार जब
A = 0, B = 1 Y = 0
A = 1, B = 0, Y = 0
A = B = 1, Y’ = 0

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.15.
चित्र में दर्शाए गए केवल NOR गेटों से बने परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए। दोनों परिपथों द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 15
उत्तर:
(a) NOR गेट की सत्य सारणी नीचे दी गई है:

ABY
001
010
100
110

दिए गए परिपथ में दो इनपुटों को साथ-साथ जोड़ा गया है। NOR द्वार के लिए यदि एक या दोनों निवेश उच्च हों तो निर्गम निम्न होगा और यदि दोनों निवेश निम्न हों तो निर्गम उच्च
(b)

ABABY
00110
01100
10010
11001

इस प्रकार निवेश A व B तथा निर्गम Y के साथ हटा AND द्वार की सत्य मान तालिका प्राप्त करते हैं।

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 13.1.
(a) लीथियम के दो स्थायी समस्थानिकों 63Li एवं 22Li की बहुलता का प्रतिशत क्रमशः 7.5 एवं 92.5 हैं। इन समस्थानिकों के द्रव्यमान क्रमश: 6.01512 u एवं 7.01600 u हैं। लीथियम का परमाणु द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
(b) बोरॉन के दो स्थायी समस्थानिक 105B एवं 115B हैं। उनके द्रव्यमान क्रमशः 10.01294 u एवं 11.00931 u एवं बोरॉन का परमाणु भार 10.811 u है। 105B एवं 115B की बहुलता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है
Li का द्रव्यमान = 6.01512 u तथा बहुलता प्रतिशत = 7.5%
3Li का द्रव्यमान =7.01600 u तथा बहुलता प्रतिशत = 92.5%
(a) लीथियम का परमाणु द्रव्यमान
= \(\frac{7.5 \times 6.01512 \mathrm{u}+92.5 \times 7.016004 \mathrm{u}}{7.5+92.5}\)
= \(\left(\frac{45.1134+648.98}{100}\right) \mathrm{u}\)
= 6.941 u

(b) यहाँ पर दिया गया है – B का परमाणु भार = 10.811 u माना B और B समस्थानिकों की b% व (100 – b)% क्रमशः बहुलतायें हैं।
∴ 10.811 = \(\frac{\mathrm{b} \times 10.01294+(100-\mathrm{b}) \times 11.00931}{100}\)
या
10.811 x 100 = 10.01294b + 1100.931 – 11.00931b
(11.00931 – 10.01294)b = 1100.931 – 1081.1
या 0.99637b = 19.831
या b = 19.831/0.99637
या b = 19.831/0.99637 = 1983100/99637
b = 19.9%
100 – b = 80.1%
B10 की बहुलता = 19.9%
SB11 की बहुलता = 80.1%

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 13.2.
नियॉन के तीन स्थायी समस्थानिकों की बहुलता क्रमश: 90.51%, 0.27% एवं 9.22% है। इन समस्थानिकों के परमाणु द्रव्यमान क्रमश: 19.99 u, 20.99u एवं 21.99u हैं। नियॉन का औसत परमाणु द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना नियॉन का माध्य परमाणु द्रव्यमान m(Ne) है।
m(Ne) = \(\frac{90.51 \times 19.99+0.27 \times 20.99+9.22 \times 21.99}{90.51+0.27+9.27}\)
= \(\left(\frac{1809.29+5.67+202.75}{100}\right) \mathrm{u}\)
= 20.18u

प्रश्न 13.3.
नाइट्रोजन नाभिक (N) की बंधन-ऊर्जा Mev में ज्ञात कीजिए mN = 14.00307 u.
उत्तर:
दिया गया है:
Z = 7
तथा
A = 14
A – Z= 14 – 7 = 7
7 प्रोटॉनों का द्रव्यमान = 7 x 1.007825
= 7.054775 u
7 न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान = 7 x 1.008665 u
= 7.060655 u
नाभिक का द्रव्यमान 7.054775 u + 7.060655
= 14.11543 u
बंधन ऊर्जा = (14.11543u – 14.00307u ) × 931.5 MeV
= (0.11236) × 931.5 Mev
= 104.66 Mev
= 104.7 MeV

प्रश्न 13.4.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर 5626Fe एवं 20983Bi नाभिकों की बंधन-ऊर्जा Mev में ज्ञात कीजिए।
m(5626Fe) = 55.934939 u
m(20983Bi) = 208.980388u
उत्तर:
(i) 5626Fe नाभिक में 26 प्रोटॉन तथा 56 – 26 = 30
न्यूट्रॉन होते हैं।
26 प्रोटॉन का द्रव्यमान = 26 × 1.007825
= 26.20345 a.m.u.
30 न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 30 x 1.008665
= 30.25995 a.m.u.
25 न्यूक्लिऑन का कुल द्रव्यमान = 26.20345 + 30.25995 = 56.46340 a.m.u.

5626Fe नाभिक का द्रव्यमान = 55.934939 a.m.u.
इसलिए द्रव्यमान क्षति ∆m = 56.46340 – 55.934939
= 0.528461 a.m.u.
∴ कुल बंधन ऊर्जा = 0.528461 × 931.5 Mev
= 492.26 Mev
प्रतिन्यूक्लिऑन माध्य बंधन ऊर्जा
B = ∆E/V = \(\frac{492.26}{56}\)
= 8.790Me V

(ii) 20983Bi नाभिक में 83 प्रोटॉन तथा (209 – 83) = 126 न्यूट्रॉन होते हैं।
83 प्रोटॉन का द्रव्यमान = 83 x 1.007825
= 83.64975 a.m.u.
126 न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 126
1.008665
= 127.09190 a.m.u.
न्यूक्लिऑन का कुल द्रव्यमान = 210.741260 am.u
20983Bi नाभिक का द्रव्यमान 208.980388 amu.
∴ द्रव्यमान क्षति ∆m = 210.741260 amu – 208.980388 a.m.u.
= 1.760872 a.m.u.
कुल बंधन ऊर्जा = 1.760872 x 9315 Mev
= 1640.26 Mev
प्रति न्यूक्लिऑन माध्य बंधन ऊर्जा
B = ∆E/V = \(\frac{1640.26}{209} \mathrm{MeV}\)
= 7.84 Mev
अतः 5626Fe की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा 20983Bi से अधिक है।

प्रश्न 13.5.
एक दिए गए सिक्के का द्रव्यमान 3.0g है। उस ऊर्जा की गणना कीजिए जो इस सिक्के के सभी न्यूट्रॉनों एवं प्रोटॉनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए आवश्यक हो सरलता के लिए मान लीजिए कि सिक्का पूर्णतः 6329CU परमाणुओं का बना है (6329Cu का द्रव्यमान = 62.92960u)।
उत्तर:
परमाणु का द्रव्यमान = 62.92960 u
29 इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = 29 x 0.000548 u
= 0.015892 u
नाभिक का द्रव्यमान = (62.92960 – 0.015892)u = 62.913708 u
29 प्रोटॉन का द्रव्यमान = 29 x 1.007825 u
= 29.226925 u
(63 – 29 = 34) न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान
= 34 × 1.008665 u
= 34.29461 u
प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन का कुल द्रव्यमान
= (29.226925 +34.29461) u = 63.521535 u
बंधन ऊर्जा = (63.521535 – 62.913708) × 931.5 Mev
= 0.607827 × 931.5 Mev
1 कॉपर नाभिक के लिए बंधन ऊर्जा की मात्रा
= 0.607827 x 931.5 Mev
63g कॉपर में, कॉपर परमाणुओं की संख्या आवोगाद्रो संख्या
N = 6.023 x 1023
1g कॉपर में 6.023 x 1023/63
अतः
3g कॉपर में 6.023 x 1023/23 x 3
अतः बंधन ऊर्जा की आवश्यकता होगी
= \(\frac{6.023 \times 10^{23}}{63}\)
x 0.607827 x 931.5 Mev
= 1.584 × 1025 MeV
= 1.584 × 1025 x 10 x 1.6 × 10-19
= 2.535 x 1012J

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 13.6.
निम्नलिखित के लिए नाभिकीय समीकरण लिखिए:
(1) 22688Ra का Q-क्षय
(ii) 242 94Pu का C-क्षय
(iii) 3215P का -क्षय
(iv) 21083Bi का B -क्षय
(v) 116C का B+ क्षय
(vi) 9743Te का B+ क्षय
(vii) 12054xe का इलेक्ट्रॉन अभिग्रहण।
उत्तर:
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 1

एक रेडियोएक्टिव समस्थानिक की अर्धायु T वर्ष है। कितने समय के
(a) 3.125% तथा
(b) 1% रह जाएगी?
उत्तर:
माना आरम्भिक सक्रियता = No
t समय के पश्चात् सक्रियता = N
रेडियो समस्थानिक का अर्ध जीवनकाल = T
विखण्डन नियतांक = λ
दिया गया है:
N = 3.125% (No का )
N = 3.125/100
No = 1/32 No
हम जानते हैं:
N = No e-λt
∴ 1/32 No = No e-λt
1/32 = e–λt
e-λt = 32 = 25
logeλt = loge 25
λt = 5 loge 2 …..(1)
हम जानते हैं:
λ = 0.693/T …..(2)
समीकरण (1) में λ का मान समीकरण (2) से रखने पर
या (0.693/T)t = 5 x 0.693
या t = 5 T वर्ष
(b) N = 1/100 No
N = No eλt
100 = eλt
λt = loge 100
∵ loge = 1
λt = loge (10)2 = 2loge 10
λt = 2 × 2.303 log10 10
= 4.606 × 1
या (0.693/T)t = 4.606
या t = 4.606T/0.693 = 6.65Tवर्ष

प्रश्न 13.8.
जीवित कार्बनयुक्त द्रव्य की सामान्य ऐक्टिवता प्रति ग्राम कार्बन के लिए 15 क्षय प्रति मिनट है। यह ऐक्टिवता, स्थायी समस्थानिक 146C के साथ-साथ अल्प मात्रा में विद्यमान रेडियोऐक्टिव 126C के कारण होती है। जीव की मृत्यु होने पर वायुमंडल के साथ इसकी अन्योन्य क्रिया (जो उपर्युक्त संतुलित ऐक्टिवता को बनाए रखती है) समाप्त हो जाती है, तथा इसकी ऐक्टिवता कम होनी शुरू हो जाती है। 146C की ज्ञात अर्धायु (5730 वर्ष) और नमूने की मापी गई ऐक्टिवता के आधार पर इसकी सन्निकट आयु की गणना की जा सकती है। यही पुरातत्व विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली 146C कालनिर्धारण (dating) पद्धति का सिद्धांत है। यह मानकर कि मोहनजोदड़ो से प्राप्त किसी नमूने की ऐक्टिवता 9 क्षय प्रति मिनट प्रति ग्राम कार्बन है। सिंधु घाटी सभ्यता की सन्निकट आयु का आकलन कीजिए।
उत्तर:
माना t = 0 पर C14 के परमाणुओं की संख्या (प्रति ग्राम) No थी जबकि इसका क्षय 15 क्षय प्रति मिनट प्रति ग्राम की सक्रियता पर, t समय के बाद, आज C14 के शेष परमाणु प्रति ग्राम माना N है और यह एक क्षय प्रति मिनट प्रति ग्राम की सक्रियता दर्शाता है। हम यह जानते हैं कि उपस्थित रेडियोधर्मी परमाणुओं की संख्या के सक्रियता अनुक्रमानुपाती होती है।
अतः N/N0 = 9/15
हम यह भी जानते हैं कि
N/N0 = e-λt
या 9/15 = e-λt
या 15/9 = e-λt
या 5/3 = eλt
या loge(5/3) = logeλt = λtloge
या loge(5/3) = λt × 1
या t = 1/λloge(5/3) = 1/λ × 2/303 log10(5/3)
= 1/λ × 2.303 log10(1.6667)
या t = 1/λ × 2.303 × 0.2219
= 1/λ × 0.5109
या t = 0.5110/λ …………. (1)
हम यह भी जानते हैं कि
क्षय स्थिरांक λ = 0.693/T1/2
λ = 0.693/5730 ….(2)
समीकरण (1) तथा (2) से
t = 0.5110/0.693/5730
= \(\frac{0.5110 \times 5730}{0.693}\)
= 4225.15 वर्ष
= 4225 वर्ष

प्रश्न 13.9.
8.0mCi सक्रियता का रेडियोऐक्टिव स्रोत प्राप्त करने के लिए 6027Co की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी? 6027Co की अर्धायु 5.3 वर्ष है।
उत्तर:
दिया गया है:
रेडियोधर्मी स्रोत की शक्ति
8.0mCi
= 8.0 × 103 Ci
= 8 × 103 × 3.7 x 1010 विखण्डन / सेकण्ड
= 29.6 × 107 विखण्डन / सेकण्ड
1 Ci = 3.7 x 1010 विखण्डन / सेकण्ड
dN/dt =- 29.6 x 107
किन्तु dN/dt = – λN
-λN = – 29.6 × 107
N = 29.6 × 107
लेकिन
λ = 0.693/T
∴ N = 29.6 ×107 x T/0.693
6027Co का अर्धजीवनकाल = T1/2 = 5.3 वर्ष
= 5.3 × 365 × 24 x 60 x 60
= 1.67 x 108 सेकण्ड
अतः
N = \(\frac{29.6 \times 10^7 \times 1.67 \times 10^8}{0.693}\)
= 7.133 × 1016
6027Co की मात्रा = ?
हम जानते हैं कि कोबाल्ट के 60g में 6.023 x 1023 के परमाणु या नाभिक होते हैं।
अर्थात् 6.023 x 1023 Co के परमाणुओं का द्रव्यमान = 60g
∴ Co के 1 परमाणु का द्रव्यमान = \(\frac{60}{6.023 \times 10^{23}} \mathrm{~g}\)
7.133 x 1016 Co के परमाणुओं का द्रव्यमान
= \(\frac{60}{6.023 \times 10^{23}}\) x 7.133 x 1016
अर्थात् आवश्यक 6027CO की मात्रा = 7.11 g है
या = 7.11 x 10-6 g

प्रश्न 13.10.
9038Sr की अर्धायु 28 वर्ष है। इस समस्थानिक के 15 mg की विघटन दर क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
9038Sr का अर्धकाल = T1/2 = 28.0 वर्ष
= 28 × 365 × 24 x 3600 Second
= 88.3 × 107 S
9038Sr की मात्रा = 15 mg = 15 x 1023 g
90g के Sr में परमाणुओं की
संख्या = 6.023 x 1023
∴ Sr के 1g में परमाणुओं की संख्या = imm
∴ 15 mg में 90Sr के परमाणुओं की संख्या
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 2
∵ 1 Ci = 3.7 x 1010 विखण्ड प्रति सेकण्ड
= 2.13 Ci
विखण्डन दर
= 2.13 Ci या 7.879 x 1010 (Bq)

प्रश्न 13.11.
स्वर्ण के समस्थानिक 19779Au एवं रजत के समस्थानिक 10747Ag की नाभिकीय त्रिज्या के अनुपात का सन्निकट मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
हम जानते हैं, गोलीय नाभिक के लिए R = Ro A1/3 होता है।
जहाँ A = नाभिक की द्रव्यमान संख्या है R0 = प्रयोगाश्रित स्थिरांक है।
माना 19779Au की द्रव्यमान संख्या व उसकी त्रिज्या क्रमशः A1, R1 है।
और हमने यहाँ पर यह भी माना है कि 197Ag समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या व त्रिज्या A2, R2 है, तब
R1 = A0 (197)1/3 ……(1)
और इसी तरह से
R2 = Ag (107)1/3 ……..(2)
समीकरण (1) तथा (2) से
\(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\frac{A_0(197)^{1 / 3}}{A_0(107)^{13}}\)
या \(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\left(\frac{197}{107}\right)^{1 / 3}\) = (1.841)1/3
R1/R2 = 1.23

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 13.12.
(a) 22688Ra एवं (b) 22086Rn नाभिकों के C-क्षय में उत्सर्जित Q कणों का Q-मान एवं गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
दिया है:
m (22688Ra) = 226.02540 u
m (22286Rn) = 222.01750 u,
m (22086Rn) = 220.01137 u,
m (21684Po) =216.00189 u.
उत्तर:
(a) मूल नाभिक और क्षय नाभिक के द्रव्यमान में अन्तर
= 226.02540 u – (222.01750 u + 4.00260 u )
= 226.02540 u – 226.02010
= + 0.00530
तुल्य ऊर्जा का मान = 0.0053 x 931.5 Mev
= 4.93695 MeV = 4.94 Mev
उत्सर्जित α कण की K. E
= 222/222+4 x 4.94
= 222/226 x 4.94
= 4.85 Mev

(b) मूल नाभिक और क्षय नाभिक के द्रव्यमान में अन्तर
= 220.01137 u- (216.00189 u + 4.00260u )
= 220.01137 u – (220.00449)
= + 0.00688 u
तुल्य ऊर्जा का मान 0.00688 931.5 Mev
= 6.41 Mev
माना उत्सर्जित – कणों की गतिज ऊर्जा (K. E) = Eα
Eα = (216/216 + 4) × 6.14Mev
= 6.289
= 6.29 MeV

प्रश्न 13.13.
रेडियोन्यूक्लाइड “C का क्षय निम्नलिखित समीकरण के अनुसार होता है,
116C → 115B + e+ + v T1/2 = 20.3 min
उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की अधिकतम ऊर्जा 0.960 Mev है। द्रव्यमानों के निम्नलिखित मान दिए गए हैं-
m (116C ) = 11.011434 u तथा m (116B) = 11.009305u, Q-मान की गणना कीजिए एवं उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की अधिकतम ऊर्जा के मान से इसकी तुलना कीजिए।
उत्तर:
क्षय प्रक्रम का समीकरण
116C → 115B + e+ + v + Q
जहाँ प्रक्रिया का Q मान या α कण की KE = a.m.u. में द्रव्यमान त्रुटि
= [m(116C) – 6me] [m(115B) – 5me + me
= m (116C) – m(115B) – 2me
= 11.011434 u – 11.009305 u – 2 x 0.000548 u
= 0.001033 u
Q = 0.001033 × 931.5 Mev
= 0.962 Mev …..(1)
उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा
(K.E) = 0.960Mev …..(2)
समीकरण (1) तथा (2) से हम निष्कर्ष निकालते हैं कि प्रक्रिया का Q मान क्षय प्रक्रम में निकली वास्तविक ऊर्जा के समकक्ष है।
∴ Q = Ed + Ee + Ev
e+ व v की तुलना में पुत्री नाभिक बहुत भारी है अतः यह नगण्य ऊर्जा वाहक (Ed = 0) यदि न्यूट्रॉनों (v) द्वारा ले जाई जाने वाली गतिज ऊर्जा (Ev) न्यूनतम है ( अर्थात् शून्य) पॉजिट्रॉन अधिकतम ऊर्जा ले जाता है और यही वास्तव में समस्त ऊर्जा Q है, अतः अधिकतम
E = Q = 0.962 Mev

प्रश्न 13.14.
2310Ne का नाभिक, B उत्सर्जन के साथ क्षयित होता है। इस B-क्षय के लिए समीकरण लिखिए और उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए। m (2310Ne) = 22.994466 u; m (2511Na) = 22.089770 u.
उत्तर:
Q = [(2310Ne) – m(2511Na) – mc]c2
जब न्यूट्रॉन का विराम द्रव्यमान को अपेक्षित किया गया है।
∴ Q = [m(2310Ne) – 10m – m(2511Na) + 11mc – mc]c2
= [(2310Ne) – m(2511Na) – mc]c2
= (22.094466 uc2
= 0.004696 × 931.5 Mev
= 4.374 Mev
यह गतिज ऊर्जा e युग्म द्वारा मुख्यतः सहभाजित होती है। चूँकि 23 Na इस युग्म से कांफी अधिक भारी है और इसलिए इसकी प्रतिक्षेप ऊर्जा नगण्य है।
उत्सर्जन की अधिकतम ऊर्जा e – v युग्म की कुल गतिज ऊर्जा के बराबर है। जब इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा होती है, न्यूट्रॉनों की कोई ऊर्जा नहीं होती है। इस प्रकार B उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा 4.374 MeV है।

प्रश्न 13.15.
किसी नाभिकीय अभिक्रिया A + b ⇒ C + d का Q-मान निम्नलिखित समीकरण द्वारा परिभाषित होता है, Q = [mA + mb – mC – md]C2
जहाँ दिए गए द्रव्यमान नाभिकीय विराम द्रव्यमान (rest mass) हैं। दिए गए आँकड़ों के आधार पर बताइए कि निम्नलिखित अभिक्रियाएँ ऊष्माक्षेपी हैं या ऊष्माशोषी-
(i) 11H + 31H → 21H + 21H
(ii) 126C + 126C → 2010Ne + 42He
दिए गए परमाणु द्रव्यमान इस प्रकार हैं:
m(21H) = 2.014102 u
m (31H) = 3.016049_u
m(126C) = 12.000000
m (2010Ne) = 19.992439 u
उत्तर:
(i) अभिक्रिया का Q मान
Q= [m(126C) + m(31H) – 2m (21H) ]c2
Q = (1.007825 + 3.016049 2 x 2.014102) uc2
(4.023874 – 4.028204)u c2
= (- 0.004330) uc2
= – 0.00433 x 931.5 Mev
= – 4.03 Mev
चूँकि Q ऋणात्मक है, अतः अभिक्रिया ऊष्माशोषी है।

(ii) Q= [2m(126C) – m (2010Ne) – m (42He) ] c2
= (2 x 12.000000 19.992439 – 4.002603)u c2
= (24.000000 – 23.995042)u c2
= (0.0049584) uc2
= 0.0049584 x 931.5 Mev
= 4.6175 MeV
= 4.62 Mev
चूँकि Q धनात्मक है अतः अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी है।

प्रश्न 13.16.
माना कि हम 5626Fe नाभिक के दो समान अवयवों 2813Al में विखंडन पर विचार करें क्या ऊर्जा की दृष्टि से यह विखंडन संभव है? इस प्रक्रम का Q-मान ज्ञात करके अपना तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
दिया है : m (5626Fe ) = 55.93494 u
एवं m (2813Al) = 27.98191 u
हल-Q = [m (5626Fe) – 2m (2813Al) ]C2
= (55.93494 u – 2 x 27.98191)uc2
= (55.93494 – 55.96382)u c2
= – 0.02888u × 931.5 Mev/u
= – 0.02888 x 931.5 Mev
= – 26.90 Mev
स्पष्टतः 56Fe26 के दो समान अवयव 13Al28 में विखण्डन के लिए बाह्य रूप से 26.9 Mev ऊर्जा देनी होगी। अतः 56Fe26 का इस प्रकार विखण्डन सम्भव नहीं है।

प्रश्न 13.17.
23994Pu के विखंडन गुण बहुत कुछ 23592U से मिलते-जुलते हैं प्रति विखंडन विमुक्त औसत ऊर्जा 180 Mev है। यदि 1 kg शुद्ध 23994Pu के सभी परमाणु विखंडित हों तो कितनी Mev ऊर्जा विमुक्त होगी?
उत्तर:
239g 23994Pu में 6.023 x 1023 नाभिक है।
∴ 1000 g 23994Pu में होंगे = \(\frac{6.023 \times 10^{23} \times 1000}{239}\)
= 2.52 x 1024 नाभिक
प्रत्येक नाभिक के प्रति विखण्डन द्वारा विमुक्त ऊर्जा
= 180 Mev
∴ कुल विमुक्त ऊर्जा = 180 x 2.52 x 1024 Mev
= 4.54 x 1026 Mev

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प्रश्न 13.18.
किसी 1000 MW विखंडन रिएक्टर के आधे ईंधन का 5.00 वर्ष में व्यय हो जाता है। प्रारंभ में इसमें कितना 23592U था? मान लीजिए कि रिएक्टर 80% समय कार्यरत रहता है, इसकी संपूर्ण ऊर्जा 23592U के विखंडन से ही उत्पन्न हुई है तथा 23592U न्यूक्लाइड केवल विखंडन प्रक्रिया में ही व्यय होता है।
उत्तर:
शक्ति = P = 1.000 MW
= 103 × 106 w = 109 J s-1
समय = T = 5 वर्ष 5 x 365 x 24 x 3600
= 1.577 x 108 s
जब अणु भट्टी 80% समय तक कार्य करती है, यदि इसके द्वारा दी जाने वाली ऊर्जा E है तब
E = PT1 लेकिन T1 = 80/100T
= 109 x 80/100T
= \(\frac{10^9 \times 80}{100}\) x 1.577 × 108 J
= 1.2616 × 1017 J
23592U के प्रति विखण्डन में उत्पन्न ऊर्जा जो अणु भट्टी से
= 200 Mev
= 200 × 106 × 1.6 x 10-19 J = 3.2 x 10-11 J
माना 5 वर्ष में n विखण्डन होते हैं
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 3
= \(\frac{1.2616 \times 10^{17}}{3.2 \times 10^{-11}}\)
अब 23592U के 235 g विखण्डन में 6.0 x 1023 परमाणु उत्पन्न
पाँच वर्ष में 23592U का उपयुक्त द्रव्यमान
m = \(\frac{235}{6.0 \times 10^{23}}\) × n
= \(\frac{235}{6.0 \times 10^{23}}\) × \(\frac{1.2616 \times 10^{17}}{3.2 \times 10^{-11}}\)
= 15.4415 × 105 g
= 1544.15 x 103 g = 1544.15 kg
या
m’ = 5g में आधा उपयुक्त ईंधन
23592U का आरम्भिक द्रव्यमान M है, तब
M = 2m
= 2 × 1544.15
= 3088.3 kg

प्रश्न 13.19.
2.0 kg ड्यूटीरियम के संलयन से एक 100 वाट का विद्युत लैंप कितनी देर प्रकाशित रखा जा सकता है? संलयन अभिक्रिया निम्नवत् ली जा सकती है:
21H + 21H → 32He + n + 3.27 Mev
उत्तर:
ड्यूटीरियम के 2 नाभिकों के संलयन में विमुक्त ऊर्जा की मात्रा = 3.2 Mev
उपयोग में ड्यूटीरियम की मात्रा = 2 kg
21H ( ड्यूटीरियम) के 2kg में ड्यूटीरियम परमाणु या नाभिक की संख्या
= 6.023 x 1023
21H के 2 kg या 2000 g में ड्यूटीरियम परमाणु या नाभिक की संख्या
= \(\frac{6.023 \times 10^{23}}{2}\) × 200
= 6.023 x 1026
2 नाभिकों के संलयन में विमुक्त ऊर्जा = 3.2 Mev
6.023 x 1026 नाभिकों के संलयन में विमुक्त ऊर्जा
= 32/2 × 6.023 x 1026
= 9.6368 × 1026 Mev
= 9.6368 × 1026 x 1.6 x 10-13 J
= 15.42 × 1013 J
= 15.42 × 1013 WS
शक्ति P = 100 W
माना इस ऊर्जा से t सेकण्ड तक प्रकाशित रखा जा सकता है।
अतः उपर्युक्त विद्युत शक्ति = 100 t
100 t = 15.42 x 1013
या
t = 15.42 x 1013/100
या
= 15.42 × 1011 सेकण्ड
= \(\frac{15.42 \times 10^{11}}{365 \times 60 \times 60 \times 24}\)
t = 4.9 x 104 वर्ष

प्रश्न 13.20
दो ड्यूट्रॉनों के आमने-सामने की टक्कर के लिए कूलॉम अवरोध की ऊँचाई ज्ञात कीजिए।
(संकेत- कूलॉम अवरोध की ऊँचाई का मान इन ड्यूट्रॉन के बीच लगने वाले उस कूलॉम प्रतिकर्षण बल के बराबर होता है जो एक-दूसरे को संपर्क में रखे जाने पर उनके बीच आरोपित होता है। यह मान सकते हैं कि ड्यूट्रॉन 2.0 fm प्रभावी त्रिज्या वाले दृढ़ गोले हैं।)
उत्तर:
आमने-सामने की टक्कर के लिए दो ड्यूट्रॉनों के केन्द्रों के बीच की दूरी = r = 2 x त्रिज्या
= 2 × (2 fm)
= 4 fm = 4 × 10-15 m
प्रत्येक ड्यूट्रॉन का आवेश (e) = 1.6 x 10-19 C
दो ड्यूट्रॉन को परस्पर सम्पर्क में रखने पर इनके मध्य प्रभावी
दूरी R = 2r = 4 x 10-15 m
अतः स्थितिज ऊर्जा का मान = \(\frac{e^2}{4 \pi \epsilon_0 r}\)
= \(\frac{9 \times 10^9 \times\left(1.6 \times 10^{-19}\right)^2}{4 \times 10^{-15}}\) जूल
= 360 Kev
स्थितिज ऊर्जा (P.E) = 2 x प्रत्येक ड्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा = 360 Kev
इस प्रकार ड्यूट्रॉन के कूलॉम अवरोध की ऊँचाई = दो ड्यूट्रॉन परमाणुओं के बीच स्थितिज ऊर्जा
= 360 Kev

प्रश्न 13.21.
समीकरण R = RoA1/3 के आधार पर दर्शाइए कि नाभिकीय द्रव्य का घनत्व लगभग अचर है ( अर्थात् A पर निर्भर नहीं करता है) यहाँ Ro एक नियतांक है द्रव्यमान संख्या है। एवं A नाभिक की जाता है।
उत्तर:
नामिक की त्रिज्या का व्यंजक R = Ro A1/3 से दिया …..(1)
यदि नामिक का आयतन V है, तब
V = 4/3πr1/3
= 4/3π(R0A1/3)1/3
(समीकरण 1 से मान रखने पर)
= 4/3π(R1/30A …………..(2)
यदि नाभिक का घनत्व p है, तब
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इस प्रकार समीकरण (3) से हम देख सकते हैं कि p घनत्व A से स्वतंत्र है। अतएव हम यह निष्कर्ष ले सकते हैं कि P नाभिकों के लिए लगभग स्थिर है।

प्रश्न 13.22.
किसी नाभिक से B+ (पॉजिट्रॉन) उत्सर्जन की एक अन्य प्रतियोगी प्रक्रिया है जिसे इलेक्ट्रॉन परिग्रहण (Capture) कहते हैं (इसमें परमाणु की आंतरिक कक्षा, जैसे कि K-कक्षा, से
नाभिक एक इलेक्ट्रॉन परिगृहीत कर लेता है और एक न्यूट्रिनो, उत्सर्जित करता है) ।
e+ + ZAX → Z-1AY + v
दर्शाइए कि यदि B+ उत्सर्जन ऊर्जा विचार से अनुमत है तो इलेक्ट्रॉन परिग्रहण भी आवश्यक रूप से अनुमत है, परंतु इसका विलोम अनुमत नहीं है।
उत्तर:
प्रतियोगी प्रक्रमों पर विचार करने पर
AZX → AZ-1Y + e+ + Ve + Q1 (पॉजिट्रॉन उत्सर्जन से )
e + AZx → AZ-1Y + Ve + Q2 (इलेक्ट्रॉन अभिग्रहण से)
Q1 = [mN(AZX) – mN(AZ-1Y) – me]C2
= [mN(AZX) – me – m(AZ-1Y) – (Z – 1) me – me]C2
= [mN(AZX) – m(AZ-1Y) – 2me]C2
यहाँ पर mN नाभिक का द्रव्यमान तथा m परमाणु का द्रव्यमान प्रदर्शित करते हैं।
Q2 = [mN(AZX) + me – mN(AZ-1Y)]C2
= [mN(AZX) – me – m(AZ-1Y) – (Z – 1) me – me]C2
= [mN(AZX) – m(AZ-1Y)]C2 …………… (2)
यदि Q1 > 0 तब Q2 > 0
अर्थात् यदि ऊर्जीय रूप से पॉजिट्रॉन उत्सर्जन अनुमत है, इलेक्ट्रॉन अभिग्रहण (परिग्रहण) अनिवार्य रूप से अनुमत होगा। Q2 > 0 का अनिवार्य अर्थ यह नहीं है कि Q1 > 0 अतः विलोम असत्य है अर्थात् यह अनुमत नहीं है।

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 13.23
आवर्त सारणी में मैग्नीशियम का औसत परमाणु द्रव्यमान 24.312 u दिया गया है। यह औसत मान, पृथ्वी पर इसके समस्थानिकों की सापेक्ष बहुलता के आधार पर दिया गया है। मैग्नीशियम के तीनों समस्थानिक तथा उनके द्रव्यमान इस प्रकार हैं: 2412Mg (23.98504 u ), 2512Mg (24. 98584) एवं 2612Mg (25.98259 u)। प्रकृति में प्राप्त मैग्नीशियम में 2412Mg की (द्रव्यमान के अनुसार) बहुलता 78.99% है। अन्य दोनों समस्थानिकों की बहुलता का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
मैग्नीशियम का औसत परमाण्विक द्रव्यमान = 24.312u
समस्थानिक
2412Mg
2512Mg
2612Mg
परमाणु द्रव्यमान (Z)
23.98504
24.98584
25.98259
बहुलता
7.899%
x%
100 – (7.899 + x)%
हम जानते हैं कि औसत परमाणु द्रव्यमान सम्बन्ध
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240.312 x 100 = 1894.58 + 24.98584 x + 545.89 – 25.98259 x
2431.2 = 2440.47 – 0.99675 x
या
0.99675 x = 9.27
या
x = \(\frac{9.27}{0.99675}\) = 9.30
या
21.01 – x = 21.01 – 9.30 = 11.71
2412Mg की आपेक्षिक प्रबलता = 9.30%
2612Mg की आपेक्षिक प्रबलता = 11.71%

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प्रश्न 13.24.
न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा (Separation energy), परिभाषा के अनुसार, वह ऊर्जा है जो किसी नाभिक से एक न्यूट्रॉन को निकालने के लिए आवश्यक होती है। नीचे दिए गए आँकड़ों का इस्तेमाल करके #Ca एवं HAI नाभिकों की न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
m(4020Ca) = 39.962591 u
m(4120Ca) = 40.962278 u
m(2613Al) = 25.986895 u
m(2713Al) = 26.981541 u
उत्तर:
(i) 4120Ca न्यूट्रॉन पृथक्करण की ऊर्जा जब 4020CaCa से एक न्यूट्रॉन पृथक हो जाता है तब हमारे पास4020Ca रह जाता है।
इस प्रकार नाभिकीय अभिक्रिया
4020Ca → 4020Ca + 10n द्वारा दी जाती है।
∴ द्रव्यमान में त्रुटि ∆m = m (4020Ca) + mn – m (4120Ca)
द्वारा दी जाती है।
= 39.962591 + 1.008665 – 40.962278
= 40.971256 – 40.962278
= 0.008978a.m.u.
इस प्रकार न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा का मान
= 0.008978 × 931.5 Mev
= 8.363 MeV

(ii) 2713Al का न्यूट्रॉन पृथक्करण: जब 2713Al से एक न्यूट्रॉन पृथक् किया जाता है तो हमारे पास 2713AI शेष रह जाता है। इस प्रकार
नाभिकीय अभिक्रिया:
2713Al → 2613Al + 10n से दी जाती है।
∴ द्रव्यमान त्रुटि ∆m = m (2613Al) + mn – m) (2713Al) से दी जाती है।
= 25.986895 + 1.008665 – 26.981541
= 26.99556 – 26.981541
= 0.014019 a.m.u.
अतएव न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा
= ∆m x 931.5 Mev
= 0.014019 x 931.5 Mev
= 13.06 MeV

प्रश्न 13.25.
किसी स्रोत में फॉस्फोरस के दो रेडियो न्यूक्लाइड निहित हैं 3215P (T1/2 = 14.3 d) एवं 3315P (T 1/2 = 25.3 d)। प्रारंभ 3315P से 10% क्षय प्राप्त होता है। इससे 90% क्षय प्राप्त करने के लिए कितने समय प्रतीक्षा करनी होगी?
उत्तर:
माना 3315P व 3215P की आरम्भिक सक्रियता क्रमश: Ro1 व Ro2 है।
हमने यहाँ पर यह भी माना है कि किसी क्षण पर उनकी सक्रियता क्रमश: R1 व R2 है।
∴ कुल आरम्भिक सक्रियता = R01 + R02 …..(1)
t समय पर कुल सक्रियता = R1 + R2
दिया गया है:
R01 = कुल सक्रियता का 10%
R01 = 10/100 × (R01 + R02
या 10R01 = R01 + R02
या 9R01 = R02 ……….. (3)
t समय पर
R1 =
R1 = 90% (R1 + R2) भी
R1 = 90/100 (R1 + R2)
R1 = 9/10 (R1+R2)
10 R1 = 9R + 9R2
R1 = 9R2
∴ R2 = 1/9R1 …………. (4)
समीकरण (3) तथा (4) से
\(\frac{\mathrm{R}_2}{\mathrm{R}_{02}}\) = \(\frac{\frac{1}{9} R_1}{9 R_{01}}\) = \(\frac{1}{81} \frac{R_1}{R_{01}}\)
\(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(81 \frac{R_{01}}{R_{02}}\) ………(5)
हम यह भी जानते हैं:
R = R01e-λ1t
∴ R1 = R01e-λ1t …………. (6)
और R2 = R02e-λ1t ………… (7)
समीकरण (6) में (7) का भाग देने पर
\(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\frac{\mathrm{R}_{01}}{\mathrm{R}_{02}}\) × \(\frac{e^{-\lambda_1 t}}{e^{-\lambda_2 t}}\)
या
\(81 \frac{R_{01}}{R_{02}}\) = \(\frac{R_{01}}{R_{02}}\) × \(\frac{e^{-\lambda_1 t}}{e^{-\lambda_2 t}}\)
[समीकरण (5) का प्रयोग करने पर
\(\frac{e^{-\lambda_1 t}}{e^{-\lambda_2 t}}\) = 81
या
e(λ1 – λ2)t = 81
दोनों तरफ लघुगणक लेने पर
loge(λ1 – λ2)t = loge 81
या
2 – λ1)t loge = 2.303 log 1081
2 – λ1)t = 2.303 log 1081 ….. (8)
हम यह भी जानते हैं:
λ = 0.693/t1/2
माना (t1/2) 1 और (t1/2)2. 3315P व 3215P को क्रमशः अर्धकाल है
(t1/2) = 25.3 दिन
(t1/2) = 14.3 दिन
λ1 = 0.693/(t1/2) = 0.693/25.3
इसी तरह से
λ2 = 0.693/(t1/2) = 0.693/14.3
समीकरण (8) में मान रखने पर
(0.693/14.3 – 0.693/25.3) t= 2.303 log1081
या 0.693 \(\left(\frac{25.3-14.3}{14.3 \times 25.3}\right)\) t = 2.303 log1081
या
t = \(\frac{2.303 \log _{10} 81 \times 14.3 \times 25.3}{0.693 \times 11}\)
= \(\frac{2.303 \times 1.9085 \times 14.3 \times 25.3}{0.693 \times 11}\)
= \(\frac{1590.167}{7.623}\)
= 208.601 दिन
= 209 दिन

प्रश्न 13.26.
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में, एक नाभिक, α-कण से अधिक द्रव्यमान वाला एक कण उत्सर्जित करके क्षयित होता है। निम्नलिखित क्षय प्रक्रियाओं पर विचार कीजिए:
22388Ra → 20982Pb + 146C
22388Ra → 21986Rn + 42He
इन दोनों क्षय प्रक्रियाओं के लिए Q-मान की गणना कीजिए और दर्शाइए कि दोनों प्रक्रियाएँ ऊर्जा की दृष्टि से संभव हैं।
उत्तर:
22388Ra के क्षय से 146C उत्सर्जन के लिए
जहाँ पर प्रक्रम में 22388Ra → 20982Pb + 146C + Q है।
Q = [mN(22388Ra) – mN(20982Pb) – mN(146C)]C2
Q = [m(22388Ra) – m(20982Pb) – m(146C)]C2
= [223.01850 u – 222.984314 u]C2
= 0.034186uC2
= 0.034186 u x 931.5/u
= 0.034186 × 931.5 Mev
= 31.85 MeV
Ra के क्षय प्रक्रम He प्राप्त करने के लिए
Ra→ 3 Rn + / He + Q अभिक्रिया होती है। जहाँ अभिक्रिया का Q मान
Q = [mN(22388Ra) – mN(21986Rn) – mN(42He)]C2
= [mN(22388Ra) – mN(21986Rn) – mN(42He)]C2
= [223.01850 u – 219.00948 u – 4.00260 u]C2
= [223.01850 u – 219.01208 u]C2
= [4.00642 u] × 931.5 MeV
= 5.98 Mev
∵ दोनों ही क्षय प्रक्रियाओं के लिए Q धनात्मक है। अतः ये प्रक्रियायें ऊर्जा दृष्टि से सम्भव हैं।

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प्रश्न 13.27.
तीव्र न्यूट्रॉनों द्वारा m23892U के विखंडन पर विचार कीजिए। किसी विखंडन प्रक्रिया में प्राथमिक अंशों (Primary fragments) के बीटा क्षय के पश्चात् कोई न्यूट्रॉन उत्सर्जित नहीं होता तथा 14058Ce तथा 9944Ru अंतिम उत्पाद प्राप्त होते हैं। विखंडन प्रक्रिया के लिए Q के मान का परिकलन कीजिए आवश्यक आँकड़े इस प्रकार हैं:
m (23892U) = 238.05079 u
m(14058Ce) = 139.90543 u
m(9944Ru) = 98.90594 u
उत्तर:
विखण्डन अभिक्रिया को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है:
23892U + 10n → 14058Ce + 9944Ru + Q
अभिक्रिया के Q का मान
Q= [m(23892U) + m(10n) – m(14058Ce) – m(9944Ru)]C2
= [238.05079 u + 1.00867u – 139.90543 u – 98.90594 u]C2
= [239.05946 u – 238.81137 u]C2
= [0.24809 u] × 931.5/U Mev
= 231.1 MeV

प्रश्न 13.28.
D-T अभिक्रिया ( ड्यूटीरियम-ट्रीटियम संलयन),
21H + 31H → 42He + n पर विचार कीजिए।
(a) नीचे दिए गए आँकड़ों के आधार पर अभिक्रिया में विमुक्त ऊर्जा का मान MeV में ज्ञात कीजिए।
m(21H) = 2.014102 u
m(31H) = 3.016049 u
(b) ड्यूटीरियम एवं ट्राइटियम दोनों की त्रिज्या लगभग 1.5 fm मान लीजिए। इस अभिक्रिया में, दोनों नाभिकों के मध्य कूलॉम प्रतिकर्षण से पार पाने के लिए कितनी गतिज ऊर्जा की आवश्यकता है ? अभिक्रिया प्रारंभ करने के लिए गैसों (D तथा T गैसें) को किस ताप तक ऊष्मित किया जाना चाहिए?
(संकेत- किसी संलयन क्रिया के लिए आवश्यक गतिज ऊर्जा = संलयन क्रिया में संलग्न कणों की औसत तापीय गतिज ऊर्जा = 2 (3kT/2); k : बोल्ट्जमान नियतांक तथा T = परम ताप)
उत्तर:
(a) DT संलयन अभिक्रिया
21H + 31H → 42He + 1nn + Q से दी जाती है। जहाँ अभिक्रिया
में Q का मान
Q= [m (H) + m (H) – m(He) – ml c2
= [2.014102 u + 3.016049u 4.002603 u – 1.008665u]c2
= [5.030151 u – 5.011268 u] c2
= [0.018883 u] c2
= (0.018883 u) x 931.5/uMev
= 17.59 MeV

(b) यहाँ 21H या 31H की त्रिज्या = r = 1.5 fm
r= 1.5 x 10-15 m
21H या 31H के बीच जब दोनों नाभिक एक-दूसरे से छूने
तक के सम्पर्क में आते हैं
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प्रत्येक पर आवेश अर्थात्
q1 = 1.6 x 10-19 c
q2= 1.6 x 10-19 c
D-T निकाय की P.E जब दोनों कण लगभग एक-दूसरे के
सम्पर्क में आ जाते हैं।
P.E = 1/4 πe0 q1q2/2r से दी जाती है।
= \(\frac{9 \times 10^9 \times 1.6 \times 10^{-19} \times 1.6 \times 10^{-19}}{2 \times 1.5 \times 10^{-15}}\)
= 7.68 × 10-14 J
कूलॉम प्रतिकर्षण को पार पाने के लिए आवश्यक गतिज ऊर्जा (KE) स्थितिज ऊर्जा (P.E) के तुल्य है।
आवश्यक (K.E) = 7.68 x 10-14J
(किसी संलयन क्रिया के लिए आवश्यक गतिज ऊर्जा = संलयन क्रिया में संलग्न कणों की औसत तापीय गतिज ऊर्जा =
k: बोल्ट्जमान नियतांक तथा T = परम ताप )
3kT = 7.68 × 10-14
यहाँ पर बोल्ट्ज़मान k का मान = 1.38 x 10-23 JK-1 होता है।
T = \(\frac{7.68 \times 10^{-14}}{3 \mathrm{k}}\) = \(\frac{7.68 \times 10^{-14}}{3 \times 1.38 \times 10^{-23}}\)
T = 1.86 × 109K

प्रश्न 13.29.
नीचे दी गई विकिरण आवृत्तियाँ एवं β कणों की कीजिए दिया है :
क्षय-योजना में, y-क्षयों की अधिकतम गतिज ऊर्जाएँ ज्ञात
m(198Au) = 197.968233 u
m(198Hg) =197.966760 u
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उत्तर:
माना उत्सर्जित y-किरण फोटॉन की क्रमशः आवृत्तियाँ v2 तथा v3 हैं।
न्यूनतम अवस्था में ऊर्जा
E1 = 0
प्रथम उत्तेजित अवस्था की ऊर्जा
= E2 = 0.412 Mev
= 0.412X × 1.6 x 10-13
द्वितीय उत्तेजित अवस्था की ऊर्जा
= E3 = 1.088 Mev
E3 = 1.088 × 1.6 x 10-13
∴ Y1 के लिए
v1 = E3 – E1/h
= \(\frac{1.088 \times 1.6 \times 10^{-13}-0}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= 2.626 × 1020 Hz
Y2 के लिए
v2 = E2 – E1/h
= \(\frac{0.412 \times 1.6 \times 10^{-13}-0}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= 0.994 × 1020 Hz
Y3 के लिए
v3 = E3 – E2/h
= \(\frac{1.088 \times 1.6 \times 10^{-13}-0.412 \times 1.6 \times 10^{-13}}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= 1.631 × 1020 Hz
अब Q1 (β1-) = [m(19879Au) – m(19880Hg)]c2 – 1.088 MeV
= [197.968233 u – 197.966760 u]c2 – 1.088 MeV
= [0.001473 u] c2 – 1.088 Mev
= [0.001473 u] x 931.5/u Mev – 1.088 Mev
= 1.372 Mev – 1.088 MeV
= 0.284 MeV ≈ Emax (B1)

Q (B2)= [m(19879Au) – m(19880Hg)]c2 – 0.412 Mev
= [197.968233 u – 197.966760 u]c2 – 0.412 Mev
= [0.001473 u]C2 – 0.412 Mev
= [0.001473 u] x 931.5/u Mev – 0.412 MeV
= 1.372 Mev – 0.412 Mev
= 0.960 MeV = Emax(β2)

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प्रश्न 13.30.
सूर्य के अभ्यंतर में (a) 1 kg हाइड्रोजन के संलयन के समय विमुक्त ऊर्जा का परिकलन कीजिए। (b) विखंडन रिएक्टर में 1.0 kg 235 के विखंडन में विमुक्त ऊर्जा का परिकलन कीजिए। (a) तथा (b) प्रश्नों में विमुक्त ऊर्जाओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
(a) सूर्य में होने वाली संलयन अभिक्रिया
41H → 24He + 2e2 + 2 + 26 Mev
अर्थात् 4 हाइड्रोजन परमाणु प्रति घटना में मिलकर 26 Mev ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।
हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान = 1 kg लिया
अब हाइड्रोजन के 1g में 6.023 x 1023
= 1,000 g नाभिक है।
1,000 g हाइड्रोजन में 6.023 x 1023 x 103 नाभिक होंगे।
= 6.023 x 1026 नाभिक यदि Q इन सभी नाभिकों के संलयन से मुक्त ऊर्जा
Q1 = \(\frac{26 \times 6.023 \times 10^{26}}{4}\)
= 39.15 × 1026 Mev
(b) 235U के एकल नाभिक के विखण्डन में = 200 Mev ऊर्जा मुक्त होती है, जो BU की अभिक्रिया
23592U + 0 1n → 92 36Kr + 30 1n + Q2 = 200 Mev
यदि Q2 इन सभी नाभिकों के विखण्डन से मुक्त ऊर्जा हो तब
Q2 = \(\frac{1000 \times 6.023 \times 10^{23} \times 200}{235}\)
= 5.1 x 1026 Mev
\(\frac{\mathrm{Q}_1}{\mathrm{Q}_2}\) = \(\frac{39.15 \times 10^{26}}{5.1 \times 10^{26}}\)
= 7.68≈ 8
Q1 = 8Q2
अर्थात् 1 kg हाइड्रोजन के संलयन में विमुक्त ऊर्जा, 1 kg, U235 के विखण्डन में विमुक्त ऊर्जा से लगभग 8 गुना अधिक है।

प्रश्न 13.31.
मान लीजिए कि भारत का लक्ष्य 2020 तक 200,000 MW विद्युत शक्ति जनन का है इसका 10% नाभिकीय शक्ति संयंत्रों से प्राप्त होना है। माना कि रिएक्टर की औसत उपयोग दक्षता (ऊष्मा को विद्युत में परिवर्तित करने की क्षमता) 25% है। 2020 के अंत तक हमारे देश को प्रति वर्ष कितने विखंडनीय यूरेनियम की आवश्यकता होगी? 235U प्रति विखंडन उत्सर्जित ऊर्जा 200 Mev है।
उत्तर:
कुल लक्ष्यित विद्युत शक्ति
P = 200,000 MW = 2 x 1011 W
कुल नाभिकीय शक्ति लक्ष्य
= 2 × 1011 W का 10%
= 10/100 x 2 x 1011 = 2 x 1010 w
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 8
n = 25%
कुल उत्पादित शक्ति
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 9
= 8 × 1010 W = 8 × 1010 Js-1
∴2020 तक प्रतिवर्ष वांछित ऊर्जा
E = P x t
E = 8 × 1010 × 365 x 24 x 60 x 60
= 2.523 x 1018J
235U के विखण्डन से उत्पन्न ऊर्जा
= 200 Mev
= 200 x 106 x 1.6 x 10-19 J
= 3.2 × 10-11 J
Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 13 नाभिक 10
= 7.884 x 1028
अब 23592U के 6.023 x 1023 परमाणुओं का द्रव्यमान
= 235g = 235 x 10-3 kg
∴ 7.884 x 1028 उत्पन्न करने के लिए आवश्यक PU के द्रव्यमान में नामिक
=\(\frac{235 \times 10^{-3}}{6.023 \times 10^{23}}\) × 7.884 × 1028 kg
= \(\frac{235 \times 7.884 \times 10^{25}}{6.023 \times 10^{23}}\)
= 307.61 × 102 kg
= 3.0761 x 104 kg

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु

प्रश्न 12.1.
प्रत्येक कथन के अंत में दिए गए संकेतों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
(a) टॉमसन मॉडल में परमाणु का साइज, रदरफोर्ड मॉडल में परमाणवीय साइज से ………… होता है।
( अपेक्षाकृत काफी अधिक भिन्न नहीं, अपेक्षाकृत काफ़ी कम )
(b) ……….. में निम्नतम अवस्था में इलेक्ट्रॉन स्थायी साम्य . में इलेक्ट्रॉन, सदैव नेट बल अनुभव करते में होते हैं जबकि हैं।
(टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल)
(c) ……….. पर आधारित किसी क्लासिकी परमाणु का नष्ट (टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल) में लगभग संतत होना निश्चित है।
(d) किसी परमाणु के द्रव्यमान का वितरण होता है लेकिन होता है।
(e) …………… में अत्यंत असमान द्रव्यमान वितरण (टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल) में परमाणु के धनावेशित भाग का द्रव्यमान सर्वाधिक होता है।
उत्तर:
(a) भिन्न नहीं।
( रदरफोर्ड मॉडल, दोनों मॉडलों)
(b) टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल।
(c) रदरफोर्ड मॉडल।
(d) टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल।
(e) दोनों मॉडलों।

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प्रश्न 12.2.
मान लीजिए कि स्वर्ण पन्नी के स्थान पर ठोस हाइड्रोजन की पतली शीट का उपयोग करके आपको ऐल्फा-कण प्रकीर्णन प्रयोग दोहराने का अवसर प्राप्त होता है। (हाइड्रोजन 14 K से नीचे ताप पर ठोस हो जाती है।) आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर:
हाइड्रोजन परमाणु का नाभिक प्रोटॉन है । इसका द्रव्यमान 1.67 x 10-27 kg है, जबकि आपतित ऐल्फा कण का द्रव्यमान 6.64 × 10-27 kg है। क्योंकि प्रकीर्ण होने वाले कण का द्रव्यमान लक्ष्य नाभिक (प्रोटॉन) से अत्यधिक है इसलिए प्रत्यक्ष संघट्ट में भी ऐल्फा- कण वापस नहीं आएगा। यह ऐसा ही है जैसे कि कोई फुटबाल, विरामावस्था में टेनिस की गेंद से टकराए। इस प्रकार प्रकीर्णन बड़े कोणों पर नहीं होगा।

प्रश्न 12.3.
पाश्चन श्रेणी में विद्यमान स्पेक्ट्रमी रेखाओं की लघुतम तरंगदैर्ध्य क्या है?
उत्तर:
हम जानते हैं पाश्चन श्रेणी के लिए n1 = 3, n2 = ∞
आवृत्ति v = Rc(1/3-2 – 1/n2)
n = 4, 5, 6, ….
लघुतम तरंगदैर्घ्य के लिए n2 = ∞
∴ v = Rc(1/3-2 – 1/∞ -2)
या
v/c = R(1/9 – 0) = R/9
∴ 1/λmin = R/9
या λmin = 9/R = 9/1.097 x 10-7
या
= 8.204 × 10-7m
= 820.4 nm

प्रश्न 12.4.
2.3 eV ऊर्जा अंतर किसी परमाणु में दो ऊर्जा स्तरों को पृथक कर देता है। उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति क्या होगी यदि परमाणु में इलेक्ट्रॉन उच्च स्तर से निम्न स्तर में संक्रमण करता है?
उत्तर:
दिया गया है:
∆E = E2 – E1 = 2.3 ev
= 2.3 × 1.6 × 10-19 J
प्लांक नियतांक h = 6.63 × 10-34 JS
उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति = v = ?
हम जानते हैं:
सम्बन्ध ∆E = hv
या v = ∆E/h
मान रखने पर
= \(\frac{2.3 \times 1.6 \times 10^{-19}}{6.63 \times 10^{-34}}\)
~ 5.6 x 104 Hz

प्रश्न 12.5.
हाइड्रोजन परमाणु की निम्नतम अवस्था में ऊर्जा -13.6 eV है। इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज और स्थितिज ऊर्जाएँ क्या होंगी?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा दी जाती है:
Ep = -1/4πE0 . e2/r
तथा गतिज ऊर्जा EK = 1/2 × 1/4πE0 . e2/r = 1/2EP
दिया है
Ep+ Ek =- 13.6 ev
निम्नतम अवस्था में कुल ऊर्जा E = – 13.6 ev
Ep – 1/2Ep= = -13.6 ev
या
1⁄2 EP = – 13.6 ev
या
Ep = – 27.2 ev
Ek = -1/2 Ep = 272/2
= 13.6 eV

प्रश्न 12.6.
निम्नतम अवस्था में विद्यमान एक हाइड्रोजन परमाणु एक फोटॉन को अवशोषित करता है जो इसे n = 4 स्तर तक उत्तेजित कर देता है। फोटॉन की तरंगदैर्ध्य तथा आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यहाँ पर हाइड्रोजन परमाणु एक फोटॉन को अवशोषित करता है, जो इसे n = 4 स्तर तक उत्तेजित कर देता है। अतः फोटॉन की तरंगदैर्ध्य का मान निम्न होगा
1/λ = R(1/12 – 1/42)
= R(1 – 1/16) = 15/16R
या तरंगदैर्ध्य λ = 16/15R = \(\frac{16}{15 \times 1.097 \times 10^7}\)
हम जानते हैं c = vλ
∴ आवृत्ति v = c/λ = \(\frac{3 \times 10^8}{97.24 \times 10^{-9}}\)
= 3.1 x 1015 Hz

प्रश्न 12.7.
(a) बोर मॉडल का उपयोग करके किसी हाइड्रोजन परमाणु में n = 1, 2 तथा 3 स्तरों पर इलेक्ट्रॉन की चाल परिकलित कीजिए। (b) इनमें से प्रत्येक स्तर के लिए कक्षीय अवधि परिकलित कीजिए।
उत्तर:
(a) हम जानते हैं कि बोर मॉडल का उपयोग करके nth कक्षा में कक्षा की त्रिज्या एवं इलेक्ट्रॉन की चाल
rn = \(\frac{n^2 h^2}{4 \pi^2 K m e^2}\) ………….. (i)
और
vn = \(\frac{\mathrm{nh}}{2 \pi \mathrm{mr}_{\mathrm{n}}}\) = \(\frac{\mathrm{nh}}{2 \pi \mathrm{m}}\) × \(\frac{4 \pi^2 \mathrm{Kme^{2 }}}{\mathrm{n}^2 \mathrm{~h}^2}\)
vn = \(\frac{2 \pi \mathrm{Ke}^2}{\mathrm{nh}}\) = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_0}\) \(\frac{2 \pi \mathrm{e}^2}{\mathrm{~h}}\) 1/n
हम जानते हैं
e = 1.6 × 10-19 C
h = 6.63 × 10-34 JS
K = 1/4πe0
= 9 × 109 Nm2C2
ये सभी मान समीकरण (2) में रखने पर
vn = \(\frac{9 \times 10^9 \times 2 \times 3.14 \times\left(1.6 \times 10^{-19}\right)^2}{6.63 \times 10^{-34}}\)
vn = \(\frac{21.871 \times 10^5}{\mathrm{n}} \mathrm{m} / \mathrm{s}\)
माना n = 1, 2 तथा 3 में इलेक्ट्रॉन की चाल V1. V2 तथा v3 हैं
V1 = 21.871/1 x 105
= 21.871 × 105 m/s
= 2.19 × 106 m/s
V2 = 21.871/2 x 105 m/s
= 10.935 × 105 m/s
= 1.094 × 106 m/s
v3 = 21,871/3 x 105 m/s
= 7.290 × 105 m/s
= 0.729 × 106 m/s

(b) माना स्तर 1, 2 व 3 में कक्षीय आवर्तकाल क्रमश: T1. T2 और T3 है।
इलेक्ट्रॉन की कक्षा की त्रिज्या (हाइड्रोजन परमाणु के लिए )
अतः
rn = (0.529 × 10-10) n2 मीटर
r1 = 0.529 × 10-10 मीटर
r2 = 4 x 0.529 x 10-10 मीटर
तथा r3 = 9 x 0.529 x 10-10 मीटर
अतः कक्षीय चाल
T = 2πr/v से
T1 = \(\frac{2 \times 3.14 \times 0.529 \times 10^{-10}}{2.19 \times 10^6}\)
= 1.52 x 10-16 सेकण्ड
T2 = \(\frac{2 \times 3.14 \times 4 \times 0.529 \times 10^{-10}}{1.094 \times 10^6}\)
= 12.16 × 10-16 सेकण्ड
तथा T3 = \(\frac{2 \times 3.14 \times 9 \times 0.529 \times 10^{-10}}{0.729 \times 10^6}\)
= 41.01 × 10-16 सेकण्ड

प्रश्न 12.8.
हाइड्रोजन परमाणु में अंतरतम इलेक्ट्रॉन-कक्षा की त्रिज्या 5.3 x 10-11m है। कक्षा n = 2 और n = 3 की त्रिज्याएँ क्या हैं?
उत्तर:
हम जानते हैं:
rn α n2 और दिया गया है:
r1 = 5.3 x 10-11 m
r2/r1 = (2/1) = 4
या r2 = 4r1 = 4 x 5.3 x 10-11 m
= 2.12 × 10-11 m
= 2.12 A
पुनः
r3/r1 = (3/1)2 = 9/1
r3 = 9r1
= 9 x 5.3 x 10-11 m
= 4.77 x 10-10 m
= 4.77 A

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प्रश्न 12.9.
कमरे के ताप पर गैसीय हाइड्रोजन पर किसी 12.5 eV की इलेक्ट्रॉन पुंज की बमबारी की गई। किन तरंगदैयों की श्रेणी उत्सर्जित होगी ?
उत्तर:
दिया है इलेक्ट्रॉन पुंज की ऊर्जा = 12.5 ev
मूल अवस्था में हाइड्रोजन के इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
= – 13.6 ev
अतः इलेक्ट्रॉन पुंज की बमबारी से हाइड्रोजन के कक्षीय
इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
= – 13.6 + 12.5
= – 1.1 ev
यह ऊर्जा n = 3 में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
E3 = -136/9 = – 1.5 eV से अधिक है।
अतः इलेक्ट्रॉन पुंज की बमबारी से इलेक्ट्रॉन तृतीय कक्षा तक उत्तेजित होगा तथा चित्रानुसार निम्न संक्रमण सम्भव है-
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु 1
(i) n2 = 3 से n = 1 में
(ii) n 2 = 2 से n1 = 1 में
उपरोक्त में लाइमन श्रेणी तथा
(iii) n3 = 3 से n1 = 2 में बामर श्रेणी
पुनः चूँकि hv = hc/λ = ∆E
अतः उत्सर्जित विकिरण की तरंगदैर्ध्य
λ = hc/∆E (जूल में)
अत: (i) n2 = 3 से n1 = 1 संक्रमण के लिए
λ1 = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{[-1.5-(-13.6)] \times 1.6 \times 10^{-19}}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{12.1 \times 1.6}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{19.36}\)
या = 1.027 × 10-7 मीटर
= 102.7 x 10-9 मीटर
λ2 = 102.6nm

(ii) n2 = 2 से n1 = 1 संक्रमण के लिए
λ2 = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{[-3.4-(-13.6)] \times 1.6 \times 10^{-19}}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{10.2 \times 1.6}\) = \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{16.32}\) मीटर
= 1.219 × 10-7 = 121.9 x 10-9 मीटर
= 121.9 nm

(iii) n2 = 3 से n1 = 2 संक्रमण के लिए
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{[-1.5-(-3.4)] \times 1.6 \times 10^{-19}}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{1.9 \times 1.6}\) मीटर
= \(\frac{19.89 \times 10^{-7}}{3.040}\) मीटर
= 6.543 × 10-7 मीटर
या
= 654.3 × 10-9 मीटर
λ = 654.3nm

प्रश्न 12.10.
बोर मॉडल के अनुसार सूर्य के चारों ओर 1.5 x 1011 m त्रिज्या की कक्षा में, 3 x 104 m/s के कक्षीय वेग से परिक्रमा करती पृथ्वी की अभिलाक्षणिक क्वांटम संख्या ज्ञात कीजिए ( पृथ्वी का द्रव्यमान = 6.0 x 1024 kg)
उत्तर:
दिया गया है:
r = 1.5 x 1011 m
v = 3 x 104 m/s
पृथ्वी का द्रव्यमान m. = 6.0 x 1024 kg
बोर की परिकल्पनाओं का प्रयोग करते हैं
mvr = nh/2π
या
n = 2n mvr/h
मान रखने पर:
n = \(\frac{2 \times 3.14 \times 6 \times 10^{24} \times 3 \times 10^4 \times 1.5 \times 10^{11}}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= \(\frac{6.28 \times 27 \times 10^{39}}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= 2.557 x 1074
= 2.6 x 1074

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 12.11.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए जो आपको टॉमसन मॉडल और रदरफोर्ड मॉडल में अंतर समझने हेतु अच्छी तरह से सहायक हैं।
(a) क्या टॉमसन मॉडल में पतले स्वर्ण पन्नी से प्रकीर्णित co- कणों का पूर्वानुमानित औसत विक्षेपण कोण, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यंत कम लगभग समान अथवा अत्यधिक बड़ा है?
(b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता (अर्थात् कणों का 90° से बड़े कोणों पर प्रकीर्णन ) रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यंत कम लगभग समान अथवा अत्यधिक है?
गया है कि कम मोटाई
(c) अन्य कारकों को नियत रखते हुए, प्रयोग द्वारा यह पाया के लिए मध्यम कोणों पर प्रकीर्णित ca-कणों की संख्या के अनुक्रमानुपातिक है। पर यह रैखिक निर्भरता क्या संकेत देती है?
(d) किस मॉडल में Q-कणों के पतली पन्नी से प्रकीर्णन के पश्चात् औसत प्रकीर्णन कोण के परिकलन हेतु बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा करना पूर्णतया गलत है?
उत्तर:
(a) लगभग समान इसलिए कि हम विक्षेपण कोण का औसत मान लेते हैं।
(b) काफी कम क्योंकि थॉमसन परमाणु प्रतिरूप (मॉडल) में केन्द्रीय भारी क्रोड (नाभिक) का अभाव है जैसा कि रदरफोर्ड मॉडल में माना गया है।
(c) यह संकेत मिलता है कि प्रकीर्णन मुख्यतः एक संघट्ट के कारण है क्योंकि एक संघट्ट की संभावना लक्ष्य परमाणुओं की संख्या के साथ रैखिकत बढ़ती है और इसलिए मोटाई के साथ रैखिकतः बढ़ती है।
(d) टॉमसन मॉडल में गोलीय परमाणु पर धनात्मक आवेश एकसमान रूप से वितरित होता है इसलिए एकल संघट्ट के कारण बहुत कम विक्षेप होता है। अतः प्रेक्षित औसत प्रकीर्णन कोण की व्याख्या केवल बहुप्रकीर्णन को ध्यान में रखकर ही की जा सकती है। इसलिए टॉमसन मॉडल में बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा गलत है। रदरफोर्ड मॉडल में अधिकतर प्रकीर्णन एक संघट्ट के कारण होता है और बहुप्रकीर्णन प्रभाव की प्रथम सन्निकटन पर उपेक्षा की जा सकती है।

प्रश्न 12.12.
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन के मध्य गुरुत्वाकर्षण, कूलॉम-आकर्षण से लगभग 100 के गुणक से कम है। इस तथ्य को देखने का एक वैकल्पिक उपाय यह है कि यदि इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन गुरुत्वाकर्षण द्वारा आबद्ध हों तो किसी हाइड्रोजन परमाणु में प्रथम बोर कक्षा की त्रिज्या का अनुमान लगाइए। आप मनोरंजक उत्तर पाएँगे।
उत्तर:
यदि इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन के मध्य गुरुत्वाकर्षण कूलॉम आकर्षण है, तब
F = Gmemp/r2
लेकिन
F = mev2/r गोलाकार कक्षा के लिए
∴ mev2/r = Gmemp/r2
या
mev2r = Gmemp ………… (1)
बोर की परिकल्पना से
mevr = nh/2π
दोनों ओर का वर्ग करने पर me2v2r2 = \(\) ……………. (2)
समीकरण (2) में समीकरण (1) से भाग देने पर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु 2
पहली कक्षा के लिए
n = 1 होने पर r = r1 =a0
G = 6.67 x 10-11 Nm2kg-2
me = 9.1 × 10-31 kg
तथा mp = 6.67 × 10-27kg
मान रखने पर
a0 = \(\frac{(1)^2 \times\left(6.63 \times 10^{-34}\right)^2}{4 \times 9.87 \times 6.67 \times 10^{-11} \times\left(9.1 \times 10^{-31}\right) \times 1.67 \times 10^{-27}}\)
ag = 1.21 × 1029 m
यह मान सम्पूर्ण विश्व के आकलित आकार से कहीं अधिक है।

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प्रश्न 12.13.
जब कोई हाइड्रोजन परमाणु स्तर n से स्तर (n – 1) पर व्युत्तेजित होता है तो उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति हेतु व्यंजक प्राप्त कीजिए n के अधिक मान हेतु दर्शाइए कि यह आवृत्ति, इलेक्ट्रॉन की कक्षा में परिक्रमण की क्लासिकी आवृत्ति के बराबर है।
उत्तर:
हाइड्रोजन परमाणु की nth कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
En = \(\frac{-2 \pi^2 m e^4 K^2}{n^2 h^2}\) व्यंजक से प्राप्त होती है।
जहाँ पर K एक स्थिरांक है, जिसका मान 1/4πe0 होता है।
हाइड्रोजन की (n – 1)th कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा भी होगी
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु 3

n के विशाल मान के लिए 2n – 1 = 2n और n – 1 – n लेने पर
= \(\frac{2 \pi^2 \mathrm{~K}^2 m e^4}{\mathrm{~h}^3}\) × \(\frac{2 n}{n^2 \times n^2}\)
= \(\frac{4 \pi^2 \mathrm{~K}^2 m \mathrm{e}^4}{\mathrm{n}^3 \mathrm{~h}^3}\) ……… (1)
इलेक्ट्रॉन की परिक्रमण की चिरसम्मत ( क्लासिकी) आवृत्ति निम्न होती है
vc = v/2πr …………. (2)
बोर के कोणीय संवेग के प्रतिबन्ध के अनुसार
mvr = nh/2π
या
v = nh/2πmr …..(3)
समीकरण (3) का मान समीकरण (2) में रखने पर
vc = nh/4π2mr2 ……….. (4)
लेकिन इलेक्ट्रॉन की nवीं कक्षा की त्रिज्या
r = \(\frac{n^2 h^2}{4 \pi^2 m K e^2}\)
समीकरण (4) में का मान रखने पर
vc = \(\frac{\mathrm{nh}}{4 \pi^2 \mathrm{~m}\left(\frac{\mathrm{n}^2 \mathrm{~h}^2}{4 \pi^2 \mathrm{mKe}^2}\right)^2}\)
= \(\frac{\mathrm{nh}}{4 \pi^2 \mathrm{~m}}\) × \(\left(\frac{4 \pi^2 \mathrm{mKe}}{\mathrm{n}^2 \mathrm{~h}^2}\right)^2\)
vc = \(\frac{4 \pi^2 \mathrm{mK}^2 \mathrm{e}^4}{\mathrm{n}^3 \mathrm{~h}^3}\) ………….. (5)
∴ समीकरण (1) व (5) से हम देखते हैं कि v = vc अर्थात् n के बृहद् मान के लिए, nth कक्षा में इलेक्ट्रॉन चक्रण की चिरसम्मत आवृत्ति उतनी ही है जितनी हाइड्रोजन परमाणु से nth स्तर से (n – 1)th स्तर पर अनुसेजन के कारण उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति इसे बोर का संगत सिद्धान्त कहते हैं।

प्रश्न 12.14.
क्लासिकी रूप में किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर किसी भी कक्षा में हो सकता है। तब प्ररूपी परमाण्वीय साइज किससे निर्धारित होता है? परमाणु अपने प्ररूपी साइज की अपेक्षा दस हजार गुना बड़ा क्यों नहीं है? इस प्रश्न ने बोर को अपने प्रसिद्ध परमाणु मॉडल जो आपने पाठ्यपुस्तक में पढ़ा है, तक पहुँचने से पहले बहुत उलझन में डाला था। अपनी खोज से पूर्व उन्होंने क्या किया होगा, इसका अनुकरण करने के लिए हम मूल नियतांकों की प्रकृति के साथ निम्न गतिविधि करके देखें कि क्या हमें लंबाई की विमा वाली कोई राशि प्राप्त होती है, जिसका साइज, लगभग परमाणु के ज्ञात साइज (~10-10m) के बराबर है।
(a) मूल नियतांकों e, m, और c से लंबाई की विमा वाली राशि की रचना कीजिए। उसका संख्यात्मक मान भी निर्धारित कीजिए।
(b) आप पाएँगे कि (a) में प्राप्त लंबाई परमाण्वीय विमाओं के परिमाण की कोटि से काफी छोटी है। इसके अतिरिक्त इसमें c सम्मिलित है। परंतु परमाणुओं की ऊर्जा अधिकतर अनापेक्षिकीय क्षेत्र (non-relativisitic domain) में है जहाँ c की कोई अपेक्षित भूमिका नहीं है। इसी तर्क ने बोर को c का परित्याग कर सही परमाण्वीय साइज को प्राप्त करने के लिए कुछ अन्य’ देखने के लिए प्रेरित किया। इस समय प्लांक नियतांक h का कहीं और पहले ही आविर्भाव हो चुका था। बोर की सूक्ष्मदृष्टि ने पहचाना कि h, me और e के प्रयोग से ही सही परमाणु साइज प्राप्त होगा। अतः h me और e से ही लंबाई की विमा वाली किसी राशि की रचना कीजिए और पुष्टि कीजिए कि इसका संख्यात्मक मान, वास्तव में सही परिमाण की कोटि का है।
उत्तर:
(a) राशि \(\left(\frac{\mathrm{e}^2}{4 \pi \in_0 \mathrm{~m}_{\mathrm{e}} \mathrm{c}^2}\right)\) की विमा लंबाई की विमा है
राशि का संख्यात्मक मान
= \(\frac{\left(1.6 \times 10^{-19}\right)^2}{\left(\frac{1}{9 \times 10^9}\right) \times 9.1 \times 10^{-31} \times\left(3 \times 10^8\right)^2}\)
= 2.82 × 10-15 m
यह मान परमाणु की ज्ञात साइज (- 1010 मीटर) से बहुत अधिक कम है।
(b) c का त्याग करके नियतांक h me एवं e की सहायता से ऐसी राशि जिसकी विमा लम्बाई के समान है, \(\) \(\)
प्राप्त होती है अतः इस राशि का संख्यात्मक मान
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु 4
= 0.529 × 10-10 मीटर
यह मान परमाणु के आकार की कोटि का है।

प्रश्न 12.15.
हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम उत्तेजित अवस्था में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा लगभग – 3.4 eV है।
(a) इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा क्या है?
(b) इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा क्या है?
(c) यदि स्थितिज ऊर्जा के शून्य स्तर के चयन में परिवर्तन कर दिया जाए तो ऊपर दिए गए उत्तरों में से कौन-सा उत्तर परिवर्तित होगा?
उत्तर:
दिया गया है – यहाँ, H परमाणु की प्रथम उत्तेजित अवस्था में कुल ऊर्जा n = 2 के लिए
E = – 3.4 ev
इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा
(K.E.) = Khe2/2r जहाँ पर
K = 1/4πe0
और स्थितिज ऊर्जा
(P.E.) = -Kze2/r
= – 2 (K.E.)
प्रथम उत्तेजित अवस्था में कुल ऊर्जा का मान
E = K.E. + P.E.
= K.E. + [- 2 (K.E.)]
= – K.E.
(a) K.E. = – E = – (- 3.4) eV = + 3.4 eV

(b) P.E = – 2 (KE.) = – 2 × 3.4
= – 6.8 eV

(c) यदि स्थितिज ऊर्जा के शून्य स्तर का भिन्न तरीके से चयन किया जाता है तो गतिज ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है गतिज ऊर्जा का मान + 3.4 eV, स्थितिज ऊर्जा के शून्य स्तर के चयन पर निर्भर नहीं करता है। यदि स्थितिज ऊर्जा का शून्य स्तर भिन्न ढंग से चयनित किया जाता है तो इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा एवं कुल ऊर्जा अवस्था परिवर्तित हो जाएगी।

प्रश्न 12.16.
यदि बोर का क्वांटमीकरण अभिगृहीत (कोणीय संवेग = nh/2r) प्रकृति का मूल नियम है तो यह ग्रहीय गति की दशा में भी लागू होना चाहिए। तब हम सूर्य के चारों ओर ग्रहों की कक्षाओं के क्वांटमीकरण के विषय में कभी चर्चा क्यों नहीं करते?
उत्तर:
ग्रहीय गति से संबद्ध कोणीय संवेग के सापेक्ष अद्वितीय रूप से बड़ा है। उदाहरणार्थ, अपनी कक्षीय गति में पृथ्वी का कोणीय संवेग 1070 A कोटि का है। बोर के क्वांटमीकरण अभिगृहीत के पदों में, यह n के बहुत बड़े (1070 की कोटि का) मान के संगत है। ॥ के इतने बड़े मान के लिए बोर मॉडल के क्वांटित स्तरों के उत्तरोत्तर ऊर्जाओं और कोणीय संवेगों के अंतर व्यावहारिक उद्देश्यों के संतत स्तरों की क्रमशः ऊर्जाओं और कोणीय संवेगों की तुलना में बहुत कम हैं।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु

प्रश्न 12.17.
प्रथम बोर-त्रिज्या और म्यूओनिक हाइड्रोजन परमाणु [अर्थात् कोई परमाणु जिसमें लगभग 207 m, द्रव्यमान का ऋणावेशित म्यूऑन (p) प्रोटॉन के चारों ओर घूमता है] की निम्नतम अवस्था ऊर्जा को प्राप्त करने का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 12 परमाणु 5

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

प्रश्न 11.1.
30 kV इलेक्ट्रॉनों के द्वारा उत्पन्न X – किरणों की (a) उच्चतम आवृत्ति तथा (b) निम्नतम तरंगदैर्ध्य प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
(a) दिया गया है:
V = 30 KV = 30 × 1000 = 30,000 v
= 3 × 104
हम जानते हैं- E = hv = eV
∴ Vmax = ev/h
जहाँ पर
h = 6.63 × 10-34 Js
e = 1.6 x 10-19 C
Umax = \(\frac{1.6 \times 10^{-19} \times 3 \times 10^4}{6.63 \times 10^{-34}}\)
= 7.24 × 1018 Hz

(b) माना उत्पन्न न्यूनतम X – किरण तरंगदैर्घ्य = λmin = ?
∴ λmin = c/vmax
मान रखने पर λmin = \(\frac{3 \times 10^8}{7.24 \times 10^{18}}\)
= 4.14 × 1011 m
= 4.14 × 10-11 x 1010A
= 4.14 × 10-1 A
= 0.414 A = 0.0414 nm

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

प्रश्न 11.2.
सीजियम धातु का कार्य फलन 2.14ev है। जब 6 × 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश धातु-पृष्ठ पर आपतित होता है, इलेक्ट्रॉनों का प्रकाशिक उत्सर्जन होता है।
(a) उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा,
(b) निरोधी विभव, और
(c) उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम चाल कितनी
उत्तर:
दिया गया है:
सीजियम धातु का कार्य फलन Φ = 2.14 ev
तथा
= 2.14 × 1.6 x 10-19 J
आवृत्त = 0 = 6 × 1014 Hz
h = 6.63 Js
(a) उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा = Kmax = ?
आइन्सटीन के प्रकाश विद्युत समीकरण से
hv = Kmax + Φ0
∴ kmax = hv – Φ0
मान रखने पर
Kmax = 6.63 × 1034 x 6 x 104 – 2.14
× 1.6 × 10-19
= 6.63 × 6 × 10-20 – 2.14 x 1.6 x 10-19
= 39.78 × 10-20 – 3.424 x 10-19
= 3.978 x 10-19 – 3.424 x 10-19
= 0.554 × 10-19 J
∴ Kmax = \(\frac{0.554 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}ev\)
= 0.34 ev/e

(b) निरोधी विभव Vo = HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 1
= 0.34 eV
= 0.34V

(c) उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन की अधिकतम चाल = V
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = m = 9.1 x 10-31 kg
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 2
= 3.44 x 105 m/s
= \(\frac{3.44 \times 10^5}{10^3}km/s\)
= 344 km/s

प्रश्न 11.3.
एक विशिष्ट प्रयोग में प्रकाश-विद्युत प्रभाव की अंतक वोल्टता 1.5 V है। उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा कितनी है?
उत्तर:
अंतक वोल्टता या निरोधी विभव
Vo= 1.5 V
एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश = Kmax = ?
उत्सर्जित अधिकतम गतिज ऊर्जा = e= 1.6 x 10-19 C
सम्बन्ध
K.E = Kmax = eVo से
Kmax = 1.6 x 10-19 x 1.5 V J
= 2.40 × 10-19 J
= \(\frac{2.40 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}ev\)
= 1.5 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट

प्रश्न 11.4.
632.8 nm तरंगदैर्घ्य का एकवर्णी प्रकाश एक हीलियम-नियॉन लेसर के द्वारा उत्पन्न किया जाता है। उत्सर्जित शक्ति 9.42mW है।
(a) प्रकाश के किरण-पुंज में प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा तथा संवेग प्राप्त कीजिए,
(b) इस किरण-पुंज के द्वारा विकिरित किसी लक्ष्य पर औसतन कितने फोटॉन प्रति सेकंड पहुँचेंगे? (यह मान लीजिए कि किरण-पुंज की अनुप्रस्थ काट एकसमान है जो लक्ष्य के क्षेत्रफल से कम है), तथा
(c) एक हाइड्रोजन परमाणु को फोटॉन के बराबर संवेग प्राप्त करने के लिए कितनी तेज चाल से
उत्तर:
दिया गया है:
चलना होगा ?
λ = 632.8 nm
= 632.8 x 10-9 m
शक्ति P = 9.42 mW
= 9.42 × 10-3 W

(a) प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा
= K= ?
प्रत्येक फोटॉन का संवेग = p= ?
h = 6.63 × 10-34 J
c= 3 x 10-8 m/s
सम्बन्ध E = hv = hc/λ का उपयोग करने पर
मान रखने पर
= \(\frac{2.40 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}ev\)
= 3.14 × 10-19 J
= \(\frac{3.14 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}\)
= 1.96eV

तथा संवेग (p) = h/λ से
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{632.8 \times 10^{-9}}\)
= 1.05 x 10-27 kg m/s

(b) फोटॉन प्रति सेकण्ड उत्सर्जित की दर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 3
= 3 x 1016 फोटॉन/s

(c) माना हाइड्रोजन परमाणु की चाल = VH = ?
हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान = my = 1.67 x 10-27 kg
माना हाइड्रोजन परमाणु का संवेग p’ = MHVн
प्रश्नानुसार p = p = फोटॉन का संवेग
या mHVH = 1.05 x 10-27
∴ VH = \(\frac{1.05 \times 10^{-27}}{\mathrm{~m}_{\mathrm{H}}}\)
= \(\frac{1.05 \times 10^{-27}}{1.67 \times 10^{-27}}\)
= 0.628m/s
= 0.63 m/s

प्रश्न 11.5.
पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने वाला सूर्य प्रकाश का ऊर्जा – अभिवाह (फ्लक्स) 1.388 x 10 W/m2 है। लगभग कितने फोटॉन प्रति वर्ग मीटर प्रति सेकंड पृथ्वी पर आपतित होते हैं? यह मान लें कि सूर्यप्रकाश में फोटॉन का औसत तरंगदैर्घ्य 550 nm है।
उत्तर:
दिया गया है:
ऊर्जा फ्लक्स Φ = = 1.388 x 103 W/m2
फोटॉन का औसत तरंगदैर्घ्य
λ = 550nm
A = 550 x 10-9 m
h = 6.23 x 10-34 Js
c = 3 x 108 m/s2
∴ प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा E = hc/λ से
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{550 \times 10^{-9}}\)
= 3.62 × 10-19 J
∴ प्रोटॉन प्रति वर्ग मीटर प्रति सेकण्ड पृथ्वी पर
n = Φ/E
= \(\frac{1.388 \times 10^3}{3.62 \times 10^{-19}}\)
= 3.8 × 1021
= 4 x 1021
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

प्रश्न 11.6.
प्रकाश – विद्युत प्रभाव के एक प्रयोग में, प्रकाश आवृत्ति के विरुद्ध अंतक वोल्टता की ढलान 4.12 x 10-15 V s प्राप्त होती है। प्लांक स्थिरांक का मान परिकलित कीजिए।
उत्तर:
VS = V की प्रवणता
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 4
हम जानते हैं:
eV0 = h (v – v0)
=> h = \(\frac{\mathrm{eV}_0}{v-v_0}\) = \(\left(\frac{V_0}{v-v_0}\right)\)
h = 1.6 × 10-19 x 4.12 x 10-15
= 6.592 × 1034 Js

प्रश्न 11.7.
एक 100 W सोडियम बल्ब (लैंप) सभी दिशाओं में एकसमान ऊर्जा विकिरित करता है। लैंप को एक ऐसे बड़े गोले के केंद्र पर रखा गया है जो इस पर आपतित सोडियम के संपूर्ण प्रकाश को अवशोषित करता है। सोडियम प्रकाश का तरंगदैर्ध्य 589 nm है। (a) सोडियम प्रकाश से जुड़े प्रति फोटॉन की ऊर्जा कितनी है ? (b) गोले को किस दर से फोटॉन प्रदान किए जा रहे हैं?
उत्तर:
दिया गया है:
सोडियम लैम्प की शक्ति P = 100 W
सोडियम प्रकाश का तरंगदैर्घ्य
λ = 589nm
A = 589 x 10-9 m

(a) फोटॉन की ऊर्जा
E = hc/λ
मान रखने पर
E = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{589 \times 10^{-9}}\)
= 3.38 × 10-19 J
= 2.11 eV

(b) गोले को किस दर से फोटॉन प्रदान किये जा रहे हैं ?
n = p/E
= \(\frac{100}{3.38 \times 10^{-19}}\)
= 2.96 × 1020
= 3.0 x 1020 फोटॉन/s

प्रश्न 11.8.
किसी धातु की देहली आवृत्ति 3.3 x 1014 Hz है। यदि 8.2 x 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश धातु पर आपतित हो, तो प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए अंतक वोल्टता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
आवृत्ति v = 8.2 x 1014 Hz
देहली आवृत्ति vo = 3.3 x 1014 Hz
h = 6.63 × 10-34 Js
इलेक्ट्रॉन पर आवेश
e = 1.6 x 10-19 C
आइन्सटीन के प्रकाश विद्युत प्रभाव के समीकरण से
hv – hv0 = eVo
∴ h(v – v0) = ev0
v0 = h(v – v0)/e
मान रखने पर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 5

प्रश्न 11.9.
किसी धातु के लिए कार्य फलन 4.2 ev है। क्या यह धातु 330nm तरंगदैर्घ्य के आपतित विकिरण के लिए प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन देगा?
उत्तर:
दिया गया है:
कार्यफलन 40 = 4.2 ev
= 4.2 x 1.6 × 10-19 J
= 6.72 x 10-19 J
तरंगदैर्घ्य A = 330 nm = 330 x 10-9 nm
कार्यफलन Φo = hov0 का उपयोग करने पर
∴ देहली आवृत्ति v0 = Φo/h
मान रखने पर
vo = \(\frac{6.72 \times 10^{-19}}{6.63 \times 10^{-34}}\)
Vo = 1 x 1015 Hz
c = vλ का भी उपयोग करने पर
आपतित विकिरण की आवृत्ति
v = c/λ
मान रखने पर
v = \(\frac{3 \times 10^8}{330 \times 10^{-9}}\)
= 9 × 1014 Hz …………. (ii)
अब समीकरण (i) व (ii) से यह स्पष्ट है कि आपतित विकिरण की आवृत्ति 1 देहली आवृत्ति 00 से कम है अतः इस विकिरण के लिए प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन नहीं हो सकता।

प्रश्न 11.10.
7.21 × 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश एक धातु-पृष्ठ पर आपतित है इस पृष्ठ से 6.0 x 105 m/s की उच्चतम गति से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनों के प्रकाश उत्सर्जन के लिए देहली आवृत्ति क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
प्रकाश की आवृत्ति
= 7.21 × 1014 Hz
पृष्ठ से निकले इलेक्ट्रॉन की अधिकतम चाल
Vmax = 6.0 x 10 m/s
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = m = 9.1 x 10-31 kg
देहली आवृत्ति = Up = ?
प्लांक का नियतांक = h = 6.63 × 10-34 Js
आइन्सटीन के प्रकाश-वैद्युत समीकरण का उपयोग करने पर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 6

प्रश्न 11.11.
488 nm तरंगदैर्ध्य का प्रकाश एक ऑर्गन लेसर से उत्पन्न किया जाता है, जिसे प्रकाश-विद्युत प्रभाव के उपयोग में लाया जाता है जब इस स्पेक्ट्रमी रेखा के प्रकाश को उत्सर्जक पर आपतित किया जाता है तब प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का निरोधी (अंतक) विभव 0.38 V है। उत्सर्जक के पदार्थ का कार्य-फलन ज्ञात करें।
उत्तर:
तरंगदैर्ध्य λ = 488 nm
= 488 × 109 m
निरोधी विभव Vo = 0.38 V
उत्सर्जक के पदार्थ का कार्यफलन Φ0 = ?
प्रकाश-विद्युत समीकरण को इस प्रकार से उपयोग करने पर
eV0 = ho – po
∴ Φo = ho – eVo
= hc/λ – evo
मान रखने पर
Φo = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{488 \times 10^{-9}}\) – 1.6×10-19 × 0.38
= 4.08 × 10-19 – 0.608 × 10-19
= 3.472 × 10-19 J
= \(\frac{3.472 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 2.17 eV

प्रश्न 11.12.
56 V विभवांतर के द्वारा त्वरित इलेक्ट्रॉनों का
(a) संवेग, और
(b) दे- बॉली तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए।
उत्तर:
(a) दिया गया है:
लगाया गया विभवांतर = V = 56 V
इलेक्ट्रॉन का संवेग = p = ?
दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य = λ = ?
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m = 9.1 x 10-31 kg
हम जानते हैं:
संवेग p = √2meV
मान रखने पर
\(\sqrt{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times 1.6 \times 10^{-19} \times 56}\)
या p= 4.04 x 10-24 kg m/s

(b) दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = h/p = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{4.04 \times 10^{-24}}\)
= 1.64 x 10-10 mn
= 0.164 nm
= 1.64 Å

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

प्रश्न 11.13.
एक इलेक्ट्रॉन जिसकी गतिज ऊर्जा 120 ev है, उसका
(a) संवेग, (b) चाल और (c) दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
K = 120 ev
(a) अतः संवेग
P = √2mK
= \(\sqrt{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times 120 \mathrm{eV}}\)
= \(\sqrt{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times 120 \times 1.6 \times 10^{-19}}\)
= \(\sqrt{2 \times 9.1 \times 120 \times 1.6 \times 10^{-50}}\)
= 5.91 × 10-24 kg m/s

(b) चाल v = imm
v = \(\frac{5.91 \times 10^{-24}}{9.1 \times 10^{-31}}\)
= 6.5 × 106 m/s

(c) डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य λ = h/p
= 1.12 × 10-10m
= 1.12Å
= 0.112 nm

प्रश्न 11.14.
सोडियम के स्पेक्ट्रमी उत्सर्जन रेखा के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य 589 nm है। वह गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए जिस पर
(a) एक इलेक्ट्रॉन, और (b) एक न्यूट्रॉन का दे-बॉली तरंगदैर्घ्य समान होगा।
उत्तर:
दिया गया है:
प्रकाश का तरंगदैर्घ्य = λ = 589nm
λ = 589 x 10-9 m
हम जानते हैं:
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = mc = 9.1 x 10-31 kg
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = mg = 1.67 x 10-27 kg
प्लांक का नियतांक = h = 6.63 x 10-34 Js

(a) माना इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा (K.E) = K1 = ?
सम्बन्ध λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{~m}_{\mathrm{c}} \mathrm{K}_1}}\) का उपयोग करके
हम
λ2 = \(\frac{\mathbf{h}^2}{2 \mathrm{~m}_{\mathrm{e}} \mathbf{K}_1}\) प्राप्त करते हैं।
∴ K1 = \(\frac{h^2}{2 m_e \lambda^2}\)
मान रखने पर
K1 = \(\frac{\left(6.63 \times 10^{-34}\right)^2}{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times\left(589 \times 10^{-9}\right)^2}\)
= 6.94 × 10-25 J
= \(\frac{6.94 \times 10^{-25}}{16 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
K1 = 4.34 × 10-6 eV
= 4.34 HeV

(b) न्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा (KE) = K2 = ?
K2 = \(\frac{h^2}{2 m_n \lambda^2}\)
मान रखने पर
= \(\frac{\left(6.63 \times 10^{-34}\right)^2}{2 \times 1.67 \times 10^{-27} \times\left(589 \times 10^{-9}\right)^2}\)
= 3.79 × 10-28 J
= \(\frac{3.79 \times 10^{-28}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 2.36 × 10-9 eV
= 2.36 neV

प्रश्न 11.15.
(a) एक 0.040 kg द्रव्यमान का बुलेट जो 1.0km/s की चाल से चल रहा है, (b) एक 0.060 kg द्रव्यमान की गेंद जो 1.0 km/s की चाल से धूल-कण जिसका द्रव्यमान 1.0 x 10-9 kg चल रही है, और (c) एक kg और जो 2.2 m/s की चाल से अनुगमित हो रहा है, का दे-बॉग्ली तरंगदैर्ध्य कितना होगा?
उत्तर:
दिया गया है:
(a) बुलेट का द्रव्यमान = mg = 0.040 kg
बुलेट का वेग = Vo = 1.0 km/s = 1000 m/s
माना बुलेट का दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य = λb = ?
हम जानते हैं।
λ = h/p = h/mv का उपयोग करने पर
∴ λb = h/mbvb
समीकरण के मान रखने पर λb = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{0.040 \times 1000}\)
= 1.655 x 10-35
= 1.7 x 10-35 m

(b) यहाँ पर दिया गया है ( गेंद के लिए)
m = 0.060 kg = 60 x 10-13 kg
v = 1.00 m/s
λ = ?
∴ λ = h/mv = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{60 \times 10^{-3} \times 1.0}\)
= 1.1 x 10-2m

(c) दिया गया है: ( धूल कण के लिए)
m = 1.0 × 10-9 kg
v = 2.2m/s
दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य λ = ?
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{1.0 \times 10^{-9} \times 2.2}\)
= 3.01 × 10-25m

प्रश्न 11.16.
एक इलेक्ट्रॉन और एक फोटॉन प्रत्येक का तरंगदैर्घ्य 1.00nm है।
(a) इनका संवेग,
(b) फोटॉन की ऊर्जा, और
(e) इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
= λc = 1.0nm
∴ λc = 1 × 10-9 m
फोटॉन का तरंगदैर्घ्य = λp = 10-9 m
हम जानते हैं:
प्लांक नियतांक h = 6.63 x 10-34 Js
c = 3 x 108 m/s

(a) माना इलेक्ट्रॉन का संवेग = Pe = ?
हम जानते हैं
λ = h/p = सूत्र से
∴ Pc = h/λe
मान रखने पर
Pe = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{10^{-9}}\)
= 6.63 × 10-25 kg m/s
इलेक्ट्रॉन और फोटॉन के लिए समान है।

(b) फोटॉन की ऊर्जा
Ep = \(\frac{\mathrm{hc}}{\lambda_P}\)
या
Ep = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{10^{-9}}\)
= 1.99 × 10-16 J
= \(\frac{1.99 \times 10^{-16}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 1.24 × 103 ev
= 1.24 Kev
1KeV = 10 eV

(c) इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा = Kc = ?
सूत्र λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{mK}}}\)q से
या λ2 = \(\frac{h^2}{2 \mathrm{mK}}\)
∴ K = \(\frac{h^2}{2 m \lambda^2}\)
चूँकि इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा के लिए है।
∴ Ke = \(\frac{\mathrm{h}^2}{2 m_e \lambda_e^2}\)
मान रखने पर
Ke = \(\frac{\left(6.63 \times 10^{-34}\right)^2}{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times\left(10^{-9}\right)^2}\)
= \(\frac{43.9569 \times 10^{-68}}{18.2 \times 10^{-49}}\)
= 2.415 x 10-19 ev
= \(\frac{2.415 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 1.51 ev

प्रश्न 11.17.
(a) न्यूट्रॉन की किस गतिज ऊर्जा के लिए दे- बॉली तरंगदैर्घ्य 1.40 x 10-10 m होगा?
(b) एक न्यूट्रॉन, जो पदार्थ के साथ तापीय साम्य में है और जिसकी 300 K पर औसत गतिज ऊर्जा 3/2KT है, का भी दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(a) दिया गया है:
दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य = λ = 1.40 x 10-10 m
न्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा = K = ?
हम जानते हैं
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = mg = 1.67 x 10-27 kg
h = 6.63 x 1034 Js
सूत्र: λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 \mathrm{mK}}}\) का उपयोग करने पर
हम K = \(\frac{h^2}{2 \mathrm{~m} \lambda^2}\) प्राप्त करते हैं।
न्यूट्रॉन के लिए K = \(\frac{h^2}{2 m_n \lambda_n^2}\)
मान रखने पर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 7

(b) यहाँ पर परम ताप = T = 300K.
वोल्ट्जमान नियतांक = k = 1.38 x 10-23 JK-1
दिया गया है औसत गतिज ऊर्जा
Kaverage = 3/2KT
= 1.5 × 1.38 × 10-23 x 300
Kaverage = 6.21 × 10-21 J.
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = m = 1.67 x 10-27 kg
माना न्यूट्रॉन का तरंगदैर्घ्य = λn = ?
सम्बन्ध सूत्र:
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प्रश्न 11. 18.
यह दर्शाइए कि वैद्युतचुंबकीय विकिरण का तरंगदैर्ध्य इसके क्वांटम ( फोटॉन) के तरंगदैर्घ्य के बराबर है।
उत्तर:
वैद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए
c = Uλ
या
λ = c/v …..(i)
तथा फोटॉन के लिए
λ = h/p
लेकिन
E = pc होता है
p = E/c से λ का
λ = h/Ec = hc/E
λ = hc/hv
E = hv
λ = c/v ………(ii)
इस प्रकार डी ब्रोग्ली सम्बन्ध से तथा वैद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए A का मान समान है।

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प्रश्न 11.19.
वायु में 300 K ताप पर एक नाइट्रोजन अणु का दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य कितना होगा? यह मानें कि अणु इस ताप पर अणुओं के चाल वर्ग माध्य से गतिमान है (नाइट्रोजन का परमाणु द्रव्यमान = 14.0076 u )
उत्तर:
दिया गया है:
तापमान T = 300 K
नाइट्रोजन के अणु का द्रव्यमान = m = 2 x 14.0076 u
= 2 × 14.0076 × 1.6606 x 10-27 kg
= 46.52 × 10-27 kg
डी- ब्रोग्ली तरंगदैर्घ्य =
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अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 11.20.
(a) एक निर्वात नली के तापित कैथोड से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उस चाल का आकलन कीजिए जिससे वे उत्सर्जक की तुलना में 500V के विभवांतर पर रखे गए एनोड से टकराते हैं इलेक्ट्रॉनों के लघु प्रारंभिक चालों की उपेक्षा कर दें। इलेक्ट्रॉन का आपेक्षिक आवेश अर्थात् e/m = 1.76 x 1011 Ckg-1 है।
(b) संग्राहक विभव 10MV के लिए इलेक्ट्रॉन की चाल ज्ञात करने के लिए उसी सूत्र का प्रयोग करें, जो (a) में काम में लाया गया है। क्या आप इस सूत्र को गलत पाते हैं? इस सूत्र को किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
उत्तर:
(a) दिया गया है:
विभवान्तर V = 500 Volt
e/m = 1.76 x 1011 C kg-1
हम जानते हैं
वेग \(\sqrt{\frac{2 \mathrm{eV}}{\mathrm{m}}}\)
∵ 1/2 mv2 = eV
मान रखने पर
वेग v = \(\sqrt{2 \times 1.76 \times 10^{11} \times 500}\)
= 1.33 × 107 m/s
V = 10 MV = 10 x 106 v
= 107 V

(b) दिया गया है:
वेग v = \(\sqrt{2 \times\left(\frac{\mathrm{e}}{\mathrm{m}}\right) \mathrm{V}}\)
= \(\sqrt{2 \times 1.76 \times 10^{11} \times 10^7}\)
= \(\sqrt{3.52 \times 10^{18}}\)
= 1.88 x 109 m/s
यदि हम V = 107 V के लिए उसी सूत्र का प्रयोग करें, तो “v = 1.88 × 109 ms-1 आता है। यह स्पष्ट रूप से गलत है, क्योंकि कोई भी द्रव्य कण प्रकाश के वेग ( c = 3 x 108 ms-1) से अधिक वेग से नहीं चल सकता। वस्तुतः गतिज ऊर्जा के लिए उपर्युक्त सूत्र (mv2/ 2 ) केवल (v/c) << 1 के लिए वैध है। बहुत अधिक चाल पर, जब (v/c) के लगभग तुल्य (यद्यपि हमेशा 1 से कम ) होता है, तो आपेक्षिकीय प्रभाव क्षेत्र के कारण निम्नलिखित सूत्र वैध होते हैं
आपेक्षिकीय संवेग p = mv
कुल ऊर्जा E = mc2
गतिज ऊर्जा K = mc72 – moc2
जहाँ आपेक्षिकीय द्रव्यमान ॥ निम्नानुसार दिया जाता है:
m = m0\(m_0\left(1-\frac{v^2}{c^2}\right)^{-1 / 2}\)
m0 कण का विराम द्रव्यमान कहलाता है। इन संबंधों से प्राप्त होता है:
E = \(\left(p^2 c^2+m_0^2 c^4\right)^{1 / 2}\)
ध्यान दीजिए कि आपेक्षिकीय प्रभाव क्षेत्र में, जब V/c लगभग 1 के बराबर होता है, तो कुल ऊर्जा E > m0c2 (विराम द्रव्यमान ऊर्जा)। इलेक्ट्रॉन की विराम द्रव्यमान ऊर्जा लगभग 0.51 Mev होती है। इसलिए 10 MeV की गतिज ऊर्जा, जो इलेक्ट्रॉन की विराम द्रव्यमान ऊर्जा से बहुत अधिक है, आपेक्षिकीय प्रभाव क्षेत्र को व्यक्त करती है। आपेक्षिकीय सूत्रों के प्रयोग से (10 Mev गतिज ऊर्जा के लिए) = 0.999 c

प्रश्न 11.21.
(a) एक समोर्जी इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज जिसमें इलेक्ट्रॉन की चाल 5.20 x 106 ms-1 है, पर एक चुंबकीय क्षेत्र 1.30 x 10-4 T किरण-पुंज की चाल के लंबवत् लगाया जाता है। किरण-पुंज द्वारा आरेखित वृत्त की त्रिज्या कितनी होगी, यदि इलेक्ट्रॉन के e/m का मान 1.76 x 1011 Ckg है?
(b) क्या जिस सूत्र को (a) में उपयोग में लाया गया है। वह यहाँ भी एक 20 Mev इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज की त्रिज्या परिकलित करने के लिए युक्तिपरक है? यदि नहीं तो किस प्रकार इसमें संशोधन किया जा सकता है?
उत्तर:
(a) दिया गया है:
इलेक्ट्रॉन की चाल = v = 5.20 x 106 m/s
चुम्बकीय क्षेत्र = B = 1.30 × 10-4 T
तथा
m = 1.76 x 1011 C kg-1
θ = 90°
इलेक्ट्रॉन पर चुम्बकीय क्षेत्र B द्वारा आरोपित बल
या
= qvB sin θ
= qvB × 1
∵ θ = 90°
F= qvB
यह बल वृत्त खींचने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।
∴ qvB = mv2/r
या
r = mv2/qvB
या
r = mv/qB
या
r = mv/eB
∵ q = e
या
r = \(\frac{v}{\left(\frac{e}{m}\right) \times B}\)
मान रखने पर
r = \(\frac{5.20 \times 10^6}{1.76 \times 10^{11} \times 1.30 \times 10^{-4}}\)
= 0.227 m = 22.7 cm

(b) यहाँ पर दिया गया है
K = ऊर्जा = 20 Mev
K = 20 × 1.6 × 10-19 J
सम्बन्ध K = 1/2mv2 का उपयोग करने पर
या v = \(\) = \(\)
= 2.65 x 109 m/s
जो कि प्रकाश के वेग से अधिक है।
इसलिए 20 Mev इलेक्ट्रॉन किरण पुंज के r का आकलन करने के लिए स्थिति (a) में प्रयुक्त सूत्र अर्थात् r = mv/eB मान्य नहीं है या प्रामाणिक नहीं है; क्योंकि इतनी अधिक ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन का वेग आपेक्षिकता क्षेत्र में है अर्थात् प्रकाश वेग के तुलनीय है तथा द्रव्यमान वेग बढ़ने के साथ परिवर्तित होता है; परन्तु हमने इसे स्थिर लिया है।
∴ m = \(\frac{\mathrm{m}_0}{\sqrt{1-\frac{\mathrm{v}^2}{\mathrm{c}^2}}}\) पर विचार किया जाना है।
अतएव रूपान्तरित किया हुआ समीकरण
r = \(\left(\frac{m_0}{\sqrt{1-\frac{v^2}{c^2}}}\right) \frac{v}{e B}\) हो जाता है।

प्रश्न 11.22.
एक इलेक्ट्रॉन गन जिसका संग्राहक 100 v विभव पर है, एक कम दाब (~10-2mm Hg) पर हाइड्रोजन से भरे गोलाकार बल्ब में इलेक्ट्रॉन छोड़ती है। एक चुंबकीय क्षेत्र जिसका मान 2.83 x 10-4 T है, इलेक्ट्रॉन के मार्ग को 12.0 cm त्रिज्या के वृत्तीय कक्षा में वक्रित कर देता है (इस मार्ग को देखा जा सकता है क्योंकि मार्ग में गैस आयन किरण-पुंज को इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करके और इलेक्ट्रॉन प्रग्रहण के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करके फोकस करते हैं: इस विधि को ‘परिष्कृत किरण-पुंज नली’ विधि कहते हैं।) आँकड़ों से e/m का मान निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
V = 100 Volt
B = 2.83 × 10-4 T
r = 12.0 cm = 12 x 10-2 m
अब
K = 1⁄2mv-2 = eV
∴ mv-2 = 2eV
v 2 = 2ev/m ………… (i)
तथा वृत्ताकार पथ के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल
mv2/r = evB
या
V = eBr/m
v2 = e2b2r2/m2 ………….. (ii)
समीकरण (i) व (ii) से
e2b2r2/m2 = 2ev/m
= e/m = 2v/b2r2 = \(\frac{2 \times 100}{\left(2.83 \times 10^{-4}\right) \times\left(12 \times 10^{-2}\right)^2}\)
= 1.734 × 1011 कूलॉम / किग्रा.

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प्रश्न 11.23.
(a) एक X-किरण नली विकिरण का एक संतत स्पेक्ट्रम जिसका लघु तरंगदैर्घ्य सिरा 0.45 पर है, उत्पन्न करता है। विकिरण में किसी फोटॉन की उच्चतम ऊर्जा कितनी है? (b) अपने (a) के उत्तर से अनुमान लगाइए कि किस कोटि की त्वरक वोल्टता (इलेक्ट्रॉन के लिए) की इस नली में आवश्यकता है?
उत्तर:
(a) दिया गया है:
λmin = 0.45 A
= 0.45 x 10-10 m
∴ Emax = hc/λmin
लेकिन हम जानते हैं:
h= 6.63 × 10-4 Js.
c = 3 x 108 m/s
मान रखने पर
Emax = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{0.45 \times 10^{-10}}\)
= \(\frac{6.63 \times 3 \times 10^{-16}}{0.45}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-15}}{4.5}\)
= 4.42 × 10-15 J
= \(\frac{4.42 \times 10^{-15}}{1.6 \times 10^{-16}} \mathrm{KeV}\)
= 27.6 KeV

(b) Kmax = eV
∴ V = kmax/e
= \(\frac{4.42 \times 10^{-15}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{~V}\)
= 27.61 × 103‘ v
= 27.61 KV
∴ त्वरण विभव की कोटि = 30 KV है।

प्रश्न 11.24.
एक त्वरित्र (accelerator) प्रयोग में पाजिट्रॉनों (e) के साथ इलेक्ट्रॉनों के उच्च ऊर्जा संघट्टन पर, एक विशिष्ट घटना की व्याख्या कुल ऊर्जा 10.2 Bev के इलेक्ट्रॉन- पाजिट्रॉन युग्म के बराबर ऊर्जा की दो -किरणों में विलोपन के रूप में की जाती है। प्रत्येक y-किरण से संबंधित तरंगदैघ्यों के मान क्या होंगे? (1 BeV = 109 ev)
उत्तर:
y – किरणों के युग्म द्वारा ले जाने वाली ऊर्जा की मात्रा
= 10.2 BeV
∴ प्रत्येक किरण की ऊर्जा है।
E = 102/2 = 5.1 BeV
= 5.1 × 109 ev
= 5.1 x 109 x 1.6 x 10-19 J = 8.16 × 10-10 J
हम जानते हैं:
E = hc/λ का उपयोग करने पर
λ = hc/E
मान रखने पर
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{8.16 \times 10^{-10}}\)
= \(\frac{19.89 \times 10^{-16}}{8.16}\)
= 2.44 x 10-16m

प्रश्न 11.25
आगे आने वाली दो संख्याओं का आकलन रोचक हो सकता है। पहली संख्या यह बताएगी कि रेडियो अभियांत्रिक फोटॉन की अधिक चिंता क्यों नहीं करते। दूसरी संख्या आपको यह बताएगी कि हमारे नेत्र ‘फोटॉनों की गिनती क्यों नहीं कर सकते, भले ही प्रकाश साफ-साफ संसूचन योग्य हो।
(a) एक मध्य तरंग (medium wave) 10 kW सामर्थ्य के प्रेषी, जो 500m तरंगदैर्ध्य की रेडियो तरंग उत्सर्जित करता है, के द्वारा प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या।
(b) निम्नतम तीव्रता का श्वेत प्रकाश जिसे हम देख सकते हैं (~10-10 Wm2) के संगत फोटॉनों की संख्या जो प्रति सेकंड हमारे नेत्रों की पुतली में प्रवेश करती है। पुतली का क्षेत्रफल लगभग 0.4 cm2 और श्वेत प्रकाश की औसत आवृत्ति को लगभग 6 x 1014 Hz मानिए।
उत्तर:
दिया गया है;
P = 10 kW = 10 x 1000 W
= 104 W
λ = 500m
(a) प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉन की संख्या
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∴ n = p/E
हम जानते हैं:
E = hc/λ
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{500}\)
= 3.98 × 10-28 J
∴ n = p/E = \(\frac{10^4}{3.98 \times 10^{-28}}\)
= 10/3.98 × 1031
= 2.52 × 1031 = 3 x 1031 S-1

हम देखते हैं कि रेडियोफोटॉन की ऊर्जा बहुत कम है और रेडियो पुंज में प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए यहाँ ऊर्जा के न्यूनतम क्वांटम ( फोटॉन) के अस्तित्व को उपेक्षित करने और रेडियो तरंग की कुल ऊर्जा को सतत मानने में नगण्य त्रुटि आती है।
(b) न्यूनतम तीव्रता का मान 1= 10-10 Wm-2
आँख की पुतली का क्षेत्रफल = A = 0.4 cm2
∴ A = 0.4 x 10-4 m-2
माध्य आवृत्ति V = 6 × 1014 Hz
∴ प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा का मान = E = hv
E = 6.63 × 1034 x 6 × 1014
= 39.78 x 10-20
= 3.98 × 10-19 J = 4 x 10-19 J
आवृत्ति v = 6 × 1014 Hz के लिए E = 4 x 10-19 J
न्यूनतम तीव्रता के संगत फोटॉनों का अभिवाह (फ्लक्स)
Φ = T/E = \(\frac{10^{-10}}{4 \times 10^{-19}}\) = 25 x 108
4 = 2.5 x 108 m-2 S-1
आँख की पुतली में प्रवेश करने वाले फोटॉनों की संख्या प्रति सेकंड sal 10ts- यद्यपि यह फोटॉनों = 2.5 × 108 x 0.4 x 10-4 S-1 की संख्या (a) की तरह अत्यधिक नहीं है, फिर भी हमारे लिए यह काफी अधिक है, क्योंकि हम कभी भी अपनी आँखों से फोटॉनों को न तो अलग-अलग देख सकते हैं, न ही गिन सकते हैं।

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प्रश्न 11.26.
एक 100 W पारद (Mercury) स्रोत से उत्पन्न 2271 Å तरंगदैर्घ्य का पराबैंगनी प्रकाश एक मालिब्डेनम धातु से निर्मित प्रकाश सेल को विकिरित करता है। यदि निरोधी विभव 1.3 V हो, तो धातु के कार्य फलन का आकलन कीजिए। एक He Ne लेसर द्वारा उत्पन्न 6328 A के उच्च तीव्रता (10<sup5 w m2 ) के लाल प्रकाश के साथ प्रकाश सेल किस प्रकार अनुक्रिया करेगा?
उत्तर:
दिया गया है:
शक्ति P = 100 W
निरोधी विभव Vo = 1.3 V (परिमाण)
अवरक्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य = 6328 x 10-10 m
प्लांक नियतांक = h = 6.63 × 10-4 JS
c = 3 × 108m/s
UV प्रकाश का तरंगदैर्घ्य = u = 2271 Å
= 2271 × 10-10 m
धातु का कार्यफलन = Φo = ?
आइन्सटीन का प्रकाश विद्युत समीकरण का उपयोग करने पर
hv = Φ0 + ev0
∴ Φ0 = hv – ev0
या
Φ0 = hc/λ – eV0
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{2271 \times 10^{-10}}\) – 1.6 × 10-19 × 1.3
= 8.76 x 10-19 – 2.08 x 10-19
= 6.68 × 10-19 J
= \(\frac{6.68 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 4.175 eV = 4.2 ev
पुनः तरंगदैर्घ्य λ1 = 6328 A = 6328 x 10-10 मी. के संगत
फोटॉन ऊर्जा
E1 = hc/λ1 = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{6328 \times 10^{-10}}\)
= 3.14 × 10-19 J
= \(\frac{3.14 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}\)
= 1.97 ev

स्पष्टतः E1 < Φ0 अतः इस लाल प्रकाश के लिए प्रकाश सेल, फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं करेगा चाहे इसकी तीव्रता कितनी ही क्यों न हो।

प्रश्न 11.27.
एक नियॉन लैंप से उत्पन्न 640.2nm (1nm = 10-9 m ) तरंगदैर्घ्य का एकवर्णी विकिरण टंग्स्टन पर सीजियम से निर्मित प्रकाशसंवेदी पदार्थ को विकिरित करता है। निरोधी वोल्टता 0.54 मापी जाती है। स्रोत को एक लौह-स्रोत से बदल दिया जाता है। इसकी 427.2nm वर्ण-रेखा उसी प्रकाश सेल को विकिरित करती है। नयी निरोधी बोल्टता ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
दिया गया है:
A = 640.2 nm
= 640.2 × 10-9m
निरोधी वोल्टता = Vo = 0.54 V
आइन्सटीन का विद्युत प्रभाव समीकरण से
पहले स्रोत के लिए eV0 = ho – Φ0 का उपयोग करने पर
या
Φ0 = hv – eVo
= hc/λ – eVo
मान रखने पर =
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{640.2 \times 10^{-9}}\) – 1.6 x 10-19 × 0.54
= 3.10 x 10-19 – 8.64 × 10-20
= 3.10 × 10-19 – 0.864 x 10-19
= 2.236 × 10-19 = 2.24 × 10-19 J
∴ Φo = \(\frac{2.24 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)eV = 1.40 V
दूसरे स्रोत के लिए
λ = 427.2nm
= 427.2 × 10-9 m
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प्रश्न 11. 28.
एक पारद लैंप, प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन की आवृत्ति निर्भरता के अध्ययन के लिए एक सुविधाजनक स्रोत है, क्योंकि यह दृश्य – स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी (UV) से लाल छोर तक कई वर्ण-रेखाएँ उत्सर्जित करता है। रूबीडियम प्रकाश सेल के हमारे प्रयोग में, पारद (Mercury) स्रोत की निम्न वर्ण-रेखाओं का प्रयोग किया गया:
λ1 = 3650Å, λ2 = 4047 Å, λ3 = 4358 Å. λ4 = 5461 Å, λ5 = 6907 Å,
निरोधी वोल्टताएँ, क्रमशः निम्न मापी गई:
V01 = 1.28 V, Vo2 = 0.95 V, Vo3 = 0.74 V, V04 = 0.16 V, Vo5 = 0V
(a) प्लॅक स्थिरांक h का मान ज्ञात कीजिए।
(b) धातु के लिए देहली आवृत्ति तथा कार्य-फलन का आकलन कीजिए।
[नोट-उपर्युक्त आँकड़ों से h का मान ज्ञात करने के लिए आपको e = 1.6 x 10-19 C की आवश्यकता होगी। इस प्रकार के प्रयोग Na, Li, K आदि के लिए मिलिकन ने किए थे। मिलिकन ने अपने तेल बूँद प्रयोग से प्राप्त के मान का उपयोग कर आइंस्टाइन के प्रकाश-विद्युत समीकरण को सत्यापित किया तथा इन्हीं प्रेक्षणों से h के मान के लिए पृथक् अनुमान लगाया।]
उत्तर:
(a) दिये गये तरंगदैर्घ्य के मान से विकिरण आवृत्ति ज्ञात करने पर
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प्रकाश विद्युत समीकरण से
eV0 = ho – ¢o ………… (1)
∴ Vo = hv/e – ¢o/e
यह एक सरल रेखा का समीकरण है अतः v तथा Vo बीच ग्राफ सरल रेखा प्राप्त होगी, जिसका ढाल होगा
h/e = ∆v0/∆v = \(\frac{V_{01}-V_{04}}{v_1-v_4}\)
= \(\frac{1.28-0.16}{(8.219-5.493) \times 10^{14}}\)
= 4.15 × 10-15 Vs
h = 4.15 × 10-15 x e
= 4.15 × 10-15 x 1.6 x 10-19
= 6.64 × 10-34 Js

(b) समीकरण (1) का उपयोग करने पर कार्यफलन
¢o = hv – eVo
= hc/λ – eVo
या
¢o = hc/λ2 – ev02
= \(\frac{6.64 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{4047 \times 10^{-10}}\) – 1.6 x 10-19 × 0.95
= 4.89 × 10-19 – 1.52 x 10-19
= 3.37 × 10-19J = \(\frac{3.37 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}}\) = 2.11ev
देहली आवृत्ति vo = ¢o/h = \(\frac{3.37 \times 10^{-19}}{6.64 \times 10^{-34}}\)
= 5.11 × 1014 Hz

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प्रश्न 11.29.
निम्न धातुओं के कार्य-फलन निम्न प्रकार दिए गए हैं:
Na: 2.75 eV; K: 2.30 eV; Mo: 4.17 eV; Ni: 5.15 EV इनमें धातुओं में से कौन प्रकाश सेल से 1m दूर रखे गए He Cd लेसर से उत्पन्न 3300 À तरंगदैर्ध्य के विकिरण के लिए प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नहीं देगा? लेसर को सेल के निकट 50 cm दूरी पर रखने पर क्या होगा?
उत्तर:
दिया गया है:
λ = 3300 A = 3300 x 10-10 m
= 33 × 10-8 m
दूरी r = 1m
तथा r’ = 50 cm = 1/2
E = hv = उपयोग करने पर
E = hc/λ
मान रखने पर
E = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{33 \times 10^{-8}}\)
= 663/11 × 10-18
= 6.02 × 10-19 J
= \(\frac{6.02 \times 10^{-19}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
E = 3.76 eV

जो Na और K के से छोटा इसलिए Na और r’ = 50 cm = 0.50m लिए 40 से बड़ा है और Mo और Ni K में उत्सर्जन होगा। अब r = 1m, यदि लेसर को निकट लाया जाये, आपतित विकिरण की तीव्रता बढ़ जाती है। यह Mo और Ni धातुओं के परिणामों को प्रभावित नहीं करता, जबकि Na और K से उत्सर्जित प्रकाश वैद्युत बढ़ जायेगा जो तीव्रता के अनुपाती है।
∵ I α 1/R2 होता है।
और 4 गुना हो जाता है जबकि r1 = 1⁄2r

प्रश्न 11.30
10-5 Wm-2 तीव्रता का प्रकाश एक सोडियम प्रकाश सेल के 2 cm2 क्षेत्रफल के पृष्ठ पर पड़ता है। यह मान लें कि ऊपर की सोडियम की पाँच परतें आपतित ऊर्जा को अवशोषित करती हैं, तो विकिरण के तरंग चित्रण में प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए आवश्यक समय का आकलन कीजिए धातु के लिए कार्य फलन लगभग 2 ev दिया गया है। आपके उत्तर का क्या निहितार्थ है?
उत्तर:
दिया गया है:
I = 10-3 Wm-2
A = 2 cm2 = 2 x 10-4m2
Φ0 = 2ev
= 2 × 1.6 × 10-19 J
= 3.2 × 10-19 J
परमाणु की लगभग त्रिज्या 10-10 m लेने पर सोडियम परमाणु
का प्रभावी क्षेत्रफल r2 = 10-20 m
∴ Na की 5 परतों में परमाणुओं की संख्या
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= \(\frac{5 \times 2 \times 10^{-4}}{10^{-20}}\)
आपतित शक्ति P = IA
P = 105 × 2 × 104
= 2 × 10-9 w
तरंग चित्रण (प्रकृति) में आपतित शक्ति सभी इलेक्ट्रॉनों द्वारा सतत रूप से एकसमान अवशोषित होती है। परिणामस्वरूप प्रति इलेक्ट्रॉन प्रति सेकण्ड अवशोषित ऊर्जा
= \(\frac{2 \times 10^{-9}}{10^{17}}\) = 2 ×10-26 W
प्रकाश विद्युत उत्सर्जन के लिए आवश्यक समय
= \(\frac{3.2 \times 10^{-19}}{2 \times 10^{-26}}\)
= 1.6 x 107 S
जो कि लगभग आधा (0.5) वर्ष है।
महत्त्व – प्रायोगिक रूप से, प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन लगभग तात्क्षणिक (-109 S) प्रेक्षित होता है। इसलिए तरंग प्रकृति प्रयोग से पूर्ण असहमति में है। फोटॉन-चित्रण में, ऊपरी सतह में विकिरण की ऊर्जा सभी इलेक्ट्रॉनों द्वारा समान रूप से साझित नहीं होती है बल्कि ऊर्जा असतत ‘क्वांटा’ के रूप में आती है और ऊर्जा का अवशोषण धीरे- धीरे नहीं होता। फोटॉन या तो अवशोषित नहीं होता है, या लगभग तात्क्षणिक रूप से इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित होता है।

प्रश्न 11.31.
X – किरणों के प्रयोग अथवा उपयुक्त वोल्टता से त्वरित इलेक्ट्रानों से क्रिस्टल- विवर्तन प्रयोग किए जा सकते हैं। कौन-सी जाँच अधिक ऊर्जा संबद्ध है? [परिमाणिक तुलना के लिए, जाँच के लिए तरंगदैर्घ्य को 1 Å लीजिए, जो कि जालक (लेटिस) में अंतर- परमाणु अंतरण की कोटि का है ] (me = 9.11 x 10-31 kg )।
उत्तर:
दिया गया है:
तरंगदैर्घ्य = λ = 1 Å = 10-10 m
mc = 9.11 x 10-31 kg
फोटॉन की ऊर्जा
= E = hv = hc/λ
E = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{10^{-10}}\)
= 19.89 × 10-16 J
= \(\frac{19.89 \times 10^{-16}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 12.43 Kev
इलेक्ट्रॉन की स्थिति में
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 14
λ = 1 Å के लिए, इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा = 150 ev समान तरंगदैर्ध्य के लिए फोटॉन की ऊर्जा, इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा से काफी अधिक होती है।

प्रश्न 11.32.
(a) एक न्यूट्रॉन, जिसकी गतिज ऊर्जा 150 ev है, का दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य प्राप्त कीजिए। जैसा कि आपने अभ्यास 11.31 में देखा है, इतनी ऊर्जा का इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज क्रिस्टल विवर्तन प्रयोग के लिए उपयुक्त है क्या समान ऊर्जा का समान रूप में उपयुक्त एक न्यूट्रॉन किरण-पुंज इस प्रयोग के लिए होगा? स्पष्ट कीजिए। (ma = 1.675 × 10-27kg )
(b) कमरे के सामान्य ताप (27 °C) पर ऊष्मीय न्यूट्रॉन से जुड़े दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए। इस प्रकार स्पष्ट कीजिए कि
क्यों एक तीव्रगामी न्यूट्रॉन को न्यूट्रॉन-विवर्तन प्रयोग में उपयोग में लाने से पहले वातावरण के साथ तापीकृत किया जाता है।
हल
दिया गया है:
न्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा =
K = 150eV = 150 x 1.6 x 109 J
λ = ?
m, = 1.675 x 10-27 kg
T = (27 + 273 ) K = 300K
(a) हम जानते हैं
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 15
= 2.34 x 10-12 m

अंतरापरमाण्विक (Interatomic) दूरियाँ इससे लगभग सौ गुना बड़ी हैं। इसलिए 150eV ऊर्जा का न्यूट्रॉन-पुंज विवर्तन प्रयोगों के लिए उपयुक्त नहीं है।
(b) T = (27 + 273) K = 300K
न्यूट्रॉन की ऊर्जा (कक्ष ताप पर )
गतिज ऊर्जा (K) = E = 3/2KT
E = 3/2KT
λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{mK}}}\)
λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{3 \mathrm{mkT}}}\)
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{\sqrt{3 \times 1.675 \times 10^{-27} \times 1.38 \times 10^{-23} \times 300}}\)
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 10^{24}}{\sqrt{9 \times 1.675 \times 1.38}}\)
= 1.45 × 10-10 m = 1.45 A
यह तरंगदैर्घ्य, परमाण्वीय दूरी 1 (10-10 मी.) की कोटि की है। अतः विवर्तन प्रयोग में ये तापीय ऊर्जा के न्यूट्रॉन उपयुक्त हैं यही कारण है कि उच्च ऊर्जा के न्यूट्रॉन पुंज से विवर्तन प्रयोग के लिए पहले उन्हें वातावरण के साथ तापीकृत किया जाता है।

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प्रश्न 11.33.
एक इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में 50kV वोल्टता के द्वारा त्वरित इलेक्ट्रॉनों का उपयोग किया जाता है। इन इलेक्ट्रॉनों से जुड़े दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए। यदि अन्य बातों (जैसे कि संख्यात्मक द्वारक, आदि) को लगभग समान लिया जाए, इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता की तुलना पीले प्रकाश का प्रयोग करने वाले प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से किस प्रकार होती है?
उत्तर:
दिया गया है:
त्वरण विभव = V = 50 kV
= 50 x 103 V = 5 x 104 v
mg = 9.1 × 10-31 kg
e = 1.6 x 10-19 C
h = 6.63 × 10-34 J
इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य = λ = ?
इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा = K = ?
K = 1⁄2mv2 = eV
द्वारा इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा दी जाती है।
K = 1.6 x 10-19 x 5 x 104
= 8 × 10-15 J
सूत्र λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{mK}}}\) का उपयोग करने पर
λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{~m}_{\mathrm{e}} \mathrm{K}}}\) प्राप्त करते हैं।
या
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{\sqrt{2 \times 9.1 \times 10^{-31} \times 8 \times 10^{-15}}}\)
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{12.07 \times 10^{-23}}\)
= 5.5 x 10-12 m
पीले प्रकाश के लिए भी λy = 5990A
= 5990 x 10-10 m
हम जानते हैं कि सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता उपयुक्त प्रकाश विकिरण के तरंगदैर्घ्य के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
अर्थात् R.P. (Resolving Power) α 1/λ
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 16
= 1.1 × 105
अर्थात् इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता (Resolving Power) प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता से 105 गुणा अधिक होती है।

प्रश्न 11.34.
किसी जाँच की तरंगदैर्घ्य उसके द्वारा कुछ विस्तार में जाँच की जा सकने वाली संरचना के आकार की लगभग आमाप है। प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की क्वार्क (quark) संरचना 10-15m या इससे भी कम लंबाई के लघु पैमाने की है। इस संरचना को सर्वप्रथम 1970 के दशक के प्रारंभ में, एक रेखीय त्वरित्र (Linear accelerator) से उत्पन्न उच्च ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों के किरण-पुंजों के उपयोग द्वारा, स्टैनफोर्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका में जाँचा गया था। इन इलेक्ट्रॉन किरण-पुंजों की ऊर्जा की कोटि का अनुमान लगाइए (इलेक्ट्रॉन की विराम द्रव्यमान ऊर्जा 0.511 Mev है।)
उत्तर:
दिया गया है:
A = 10-15 m
इलेक्ट्रॉन की विराम द्रव्यमान ऊर्जा = mc2 = 0.511
M0C2 = 0.511 × 100 × 1.6 x 10-19 J
= 8.18 x 10-14J
सूत्र λ = h/p का उपयोग करने पर
या
p = h/λ

= 6.63 x 10-19 kgms-1
कण के लिए ऊर्जा का आपेक्षिक सूत्र का उपयोग करने पर
E2 = m02c4 + p2c2
E2 = (m0c2 )2 + p2c2
= (8.18 x 10-14) 2 + ( 6.63 x 10-19)2 x (3 × 108)2
= 66.91 × 10-28 + 43.96 x 10-38 x 9 x 1016
= 0.6691. x 10-26 + 3.96 x 10-20
प्रथम पद, द्वितीय पंद की तुलना में नगण्य है अतः
E2= 3.96 × 10-20
E = \(\sqrt{3.96 \times 10^{-20}}\)
= 1.99 × 10-10 J
= \(\frac{1.99 \times 10^{-10}}{1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
= 1.24 × 109 ev
∴ E = 1.24 BeV
( ∵ 1 BeV = 109 eV)
अतः त्वरक (Accelerator) से निकले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा कुछ BeV की कोटि की अवश्य होनी चाहिए।

प्रश्न 11.35.
कमरे के ताप (27 °C) और 1 atm दाब पर He परमाणु से जुड़े प्रारूपी दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए और इन परिस्थितियों में इसकी दूरी से कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
T = (27 + 273) K = 300K
तुलना दो परमाणुओं के बीच औसत
He परमाणु के लिए
m = 4mg
जहाँ mn एक न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान है।
mg = 1.675 x 10-27 kg
∴ m = 4 × 1.675 × 10-27 kg
= 6.67 x 10-27 kg
गतिज ऊर्जा
K = 3/2kT
= 3/2 x 1.38 × 1023 x 300 J
हम जानते हैं:
λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 \mathrm{mK}}}\) = \(\frac{h}{\sqrt{2 m \times \frac{3}{2} k T}}\)
मान रखने पर
λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{\sqrt{2 \times 6.67 \times 10^{-27} \times \frac{3}{2} \times 1.38 \times 10^{-23} \times 300}}\)
= \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 10^{24}}{\sqrt{6.67 \times 9 \times 1.38}}\)
= \(\frac{6.63 \times 10^{-10}}{\sqrt{82.84}}\)
= 0.73 Å
अब PV = RT = kNT
या V/N = KT/P
परमाणुओं के बीच माध्य पृथक्करण
r0 = (V/N)1/3 = (kT/P)1/3
यहाँ पर P = 1.01 x 105 Nm2 (परमाणुक दाब है)
ro = 3.4 x 109 m
ro = 34 A
समीकरण (i) तथा (ii) से
ro/λ = 34/0.73 = 3400/73 46.58
= 46.58
स्पष्टतः हीलियम परमाणुओं के बीच की दूरी, डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य की तुलना में बहुत अधिक होती है।

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प्रश्न 11.36.
किसी धातु में (27 °C) पर एक इलेक्ट्रॉन का प्रारूपी दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए और इसकी तुलना धातु में दो इलेक्ट्रॉनों के बीच औसत पृथक्य से कीजिए जो लगभग 2 x 10-10 m दिया गया है।
[नोट- अभ्यास 11.35 और 11.36 प्रदर्शित करते हैं कि जहाँ सामान्य परिस्थितियों में गैसीय अणुओं से जुड़े तरंग पैकेट अ- अतिव्यापी हैं किसी धातु में इलेक्ट्रॉन तरंग पैकेट प्रबल रूप से एक-दूसरे से अतिव्यापी हैं। यह सुझाता है कि जहाँ किसी सामान्य गैस में अणुओं की अलग पहचान हो सकती है, किसी धातु में इलेक्ट्रॉन की एक-दूसरे से अलग पहचान नहीं हो सकती। इस अप्रभेद्यता की कई मूल निहितार्थताएँ हैं जिन्हें आप भौतिकी के अधिक उच्च पाठ्यक्रमों में जानेंगे ।]
उत्तर:
दिया गया है:
t = 27 °C
T = 27 + 273 = 300 K
धातु में दो इलेक्ट्रॉनों के बीच औसत पृथक्कीकरण
r0 = 2 × 10-10 m
= 2 A
दे- ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य = λ = ?
हम जानते हैं
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = mc = 9.1 x 10-31 kg
h = 6.63 × 10-34 JS
वोल्ट्जमान नियतांक k = 1.38 x 10-23 JK-1 mol-1
T पर इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा = K = 3/2T
∴ इलेक्ट्रॉन का दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 m K}}\) के उपयोग से
λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{~m}_{\mathrm{c}} \times \frac{3}{2} \mathrm{kT}}}\) = \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{3 m_{\mathrm{e}} \mathrm{kT}}}\)
मान रखने पर λ = \(\frac{6.63 \times 10^{-34}}{\sqrt{3 \times 9.1 \times 10^{-31} \times 1.38 \times 10^{-23} \times 300}}\)
= 6.2 × 10-9 m
= 62 × 10-10 m
∴ λ/r0 = \(\frac{62 \times 10^{-10}}{2 \times 10^{-10}}\)
अतः λ >> ro
अर्थात् धातुओं में तरंग पैकेट एक-दूसरे को अतिव्यापित करते हैं। गैसीय परमाणुओं में यह नहीं होता है।

प्रश्न 11.37.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a) ऐसा विचार किया गया है कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन भीतर क्वार्क पर आंशिक आवेश होते हैं [ ( +2/3)e; (-1/3)e ]। यह मिलिकन तेल-बूँद प्रयोग में क्यों नहीं प्रकट होते?
(b) e / m संयोग की क्या विशिष्टता है? हम e तथा m के विषय में अलग-अलग विचार क्यों नहीं करते?
(c) गैसें सामान्य दाब पर कुचालक होती हैं परंतु बहुत कम दाब पर चालन प्रारंभ कर देती हैं। क्यों?
(d) प्रत्येक धातु का एक निश्चित कार्य फलन होता है। यदि आपतित विकिरण एकवर्णी हो तो सभी प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन समान ऊर्जा के साथ बाहर क्यों नहीं आते हैं? प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का एक ऊर्जा वितरण क्यों होता है?
(e) एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा इसका संवेग इससे जुड़े पदार्थ तरंग की आवृत्ति तथा इसके संबंधित होते हैं
तरंगदैर्घ्य के साथ निम्न प्रकार
E = ho, p = h/v
परंतु 2 का मान जहाँ भौतिक महत्त्व का है, 0 के मान (और इसलिए कला चाल 02 का मान ) का कोई भौतिक महत्त्व नहीं है। क्यों?
उत्तर:
(a) क्वार्क, न्यूट्रॉन या प्रोटॉन में ऐसे बलों से बँधे माने जाते हैं, जो उनको दूर खींचने पर प्रबल होते हैं। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि यद्यपि प्रकृति में भिन्नात्मक आवेश हो सकते हैं, तथापि प्रेक्षणीय आवेश के पूर्ण गुणज होते हैं।
(b) विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के लिए क्रमशः दोनों मूल सम्बन्ध eV = (1/2) mv2 या eE = ma तथा eBv=mv2 / r, प्रदर्शित करते हैं कि इलेक्ट्रॉन की गतिकी एवं m दोनों द्वारा अलग-अलग निर्धारित नहीं होती, बल्कि e/m द्वारा निर्धारित होती है।
(c) निम्न दाबों पर आयनों की उनके संगत इलेक्ट्रोडों पर पहुँचने और धारा की रचना करने की सम्भावना होती है। सामान्य दाबों पर, गैस अणुओं से टक्कर और पुनर्संयोजन के कारण आयनों की ऐसी कोई सम्भावना नहीं होती।
(d) कार्य फलन, इलेक्ट्रॉन को चालन बैंड के ऊपरी स्तर से धातु से बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा मात्र है। धातु के सभी इलेक्ट्रॉन इस स्तर (ऊर्जा अवस्था) में नहीं होते। वे स्तरों की संतत बैंड में रहते हैं। परिणामस्वरूप एक ही आपतित विकिरण के लिए विभिन्न स्तरों से निकले इलेक्ट्रॉन, विभिन्न ऊर्जाओं के साथ निर्गत होते हैं।
(e) किसी कण की ऊर्जा E (न कि संवेग p) का परम मान एक योगात्मक स्थिरांक के अधीन स्वतंत्र है इसलिए जहाँ भौतिक रूप से महत्वपूर्ण है, वहीं एक इलेक्ट्रॉन की द्रव्य तरंग के लिए के परम मान का कोई सीधा भौतिक महत्व नहीं होता है। इसी तरह कला चाल vi भी भौतिक कण से महत्वपूर्ण नहीं है समूह चाल भौतिक रूप से अर्थपूर्ण है।

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

प्रश्न 1.
589 nm तरंगदैघ्र्य का एकवर्णिय प्रकाश वायु से जल की सतह पर आप्तित होता है।
(a) परावर्तित तथा
(b) अपरवार्तित प्रकाश की तरंगदैघ्र्य, आवृत्ति तथा चाल क्या होगी? जल का आवरत्नांक 1.33 है।
उत्तर:
दिया गया है:
एकवर्णीय प्रकाश का तरंगदैर्घ्य = 589nm
A = 589 × 109 m
प्रकाश की चाल c = 3 x 108 m/s,
वायु का अपवर्तनांक = n = 1

(a) परावर्तित प्रकाश के लिए:
परावर्तित प्रकाश का तरंगदैर्घ्य = 1
परावर्तित प्रकाश की आवृत्ति = v
परावर्तित प्रकाश की चाल = v
(i) चूँकि परावर्तित प्रकाश का तरंगदैर्घ्य अपरिवर्तित रहता है। चूँकि वायु का अपवर्तनांक 1 है इसलिए अपवर्तित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य
चाल
λ1 = λ/n
= 589 × 10-9/1
λ1 = 589 x 10-9 m
(ii) चूँकि परावर्तन एक ही माध्यम में होता है अतः प्रकाश की
= v = c = 3 x 108 m/s
(iii) अपवर्तित प्रकाश की आवृत्ति =0
आवृत्ति v = c/λ
= \(\frac{3 \times 10^8 \mathrm{~m} / \mathrm{s}}{589 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 5.09 × 1014 Hz

(b) अपवर्तित प्रकाश के लिए:
जल का अपवर्तनांक = 1.33
अपवर्तित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य λ = λ/n
= \(\frac{589 \times 10^{-9}}{1.33}\)
= 442.857 nm
≈ 443 nm

अपवर्तित प्रकाश की आवृत्ति आपतित प्रकाश की आवृत्ति के समान होती है।
अतः आवृत्ति v’ = 0 = 5.09 × 1014 Hz
अपवर्तित प्रकाश की चाल (Vg) = c/n = \(\frac{3 \times 10^8}{1.33}\)
= 2.26 × 108m/s

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प्रश्न 10.2.
निम्नलिखित दशाओं में प्रत्येक तरंगाय की आकृति क्या है?
(a) किसी बिंदु स्रोत से अपसरित प्रकाश।
(b) उत्तल लेन्स से निर्गमित प्रकाश, जिसके फोकस बिंदु पर कोई बिंदु स्रोत रखा है।
(c) किसी दूरस्थ तारे से आने वाले प्रकाश तरंगाय का पृथ्वी द्वारा अवरोधित (intercepted) भाग।
उत्तर:
(a) तरंगाग्र गोलीय अभिसारी प्रकार का होता है।
(b) जब बिन्दु स्रोत को उत्तल लेंस के फोकस पर रखा जाता है तब लेंस से निर्गत प्रकाश किरणें एक-दूसरे के समान्तर होती हैं तथा तरंगाग्र समतल होगा।
(c) तरंगा की आवृत्ति लगभग समतल होती है क्योंकि प्रकाश स्रोत अर्थात् पृथ्वी से दूरस्थ है तारा। अतः बड़े गोले की सतह का एक छोटा क्षेत्र लगभग समतलीय होता है।

प्रश्न 10.3.
(a) काँच का अपवर्तनांक 1.5 है। काँच में प्रकाश की चाल क्या होगी ? (निर्वात में प्रकाश की चाल 3.0 x 108 ms-1 है।)
(b) क्या काँच में प्रकाश की चाल, प्रकाश के रंग पर निर्भर करती है? यदि हाँ, तो लाल तथा बैंगनी में से कौन-सा रंग काँच के प्रिज्म में धीमा चलता है?
उत्तर:
(a) दिया गया है:
काँच का अपवर्तनांक= 1.5
n = 1.5
निर्वात में प्रकाश की चाल = c = 3.0 x 108 m/s
काँच में प्रकाश की
चाल = Vg (माना)
= \(\mathrm{v}_{\mathrm{g}}\) = \(\frac{\mathrm{c}}{\mathrm{n}}\) = \(\frac{3.0 \times 10^8}{1.5}\)
Vg = 2 × 108 m/s.

(b) हाँ, काँच में प्रकाश की चाल इसके रंग से स्वतंत्र नहीं है। कोची सूत्र से अपवर्तनांक का मान रंग पर निर्भर करता है। अर्थात्
अपवर्तनांक (n) = a + b/ λ2 + c/λ4 + …………….
या c/vg = a + b/ λ2 + c/ λ4 + ……………..
यहाँ पर a, b तथा c स्थिरांक हैं।
∴ vg or λ2 स्पष्टतः है कि प्रकाश की चाल तरंगदैर्घ्य के वर्ग के अनुक्रमानुपाती है। हम जानते हैं कि
अर्थात् बैंगनी रंग का तरंगदैर्ध्य लाल रंग के तरंगदैर्ध्य से कम है। इसलिए काँच में से बैंगनी प्रकाश लाल रंग की अपेक्षा धीमे चलेगा।

प्रश्न 10.4.
यंग के द्विझिरी प्रयोग में झिरियों के बीच की दूरी 0.28mm है तथा परदा 1.4m की दूरी पर रखा गया है। केंद्रीय दीप्त फ्रिंज एवं चतुर्थ दीप्त फ्रिंज के बीच की दूरी 1.2cm मापी गई है। प्रयोग में उपयोग किए गए प्रकाश की तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
झिरियों के बीच की दूरी = d = 0.28mm
d = 0.28 × 103 m
झिरियों और पर्दे के बीच
दूरी = D= 1.4m
धारी की कोटि = n = 4
x = 1.2 cm = 1.2 x 102 m
सम्बन्ध सूत्र
x = nλD/d से हम प्राप्त करते हैं
या
λ = xd/nD
मान रखने पर
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 1
= 600 × 109 m
= 6000 Å

प्रश्न 10.5.
यंग के द्विझिरी प्रयोग में, λ तरंगदैर्ध्य का एकवर्णीय प्रकाश उपयोग करने पर परदे के एक बिंदु पर जहाँ पथांतर λ है, प्रकाश की तीव्रता K इकाई है। उस बिंदु पर प्रकाश की तीव्रता कितनी होगी जहाँ पथांतर λ/3 है?
उत्तर:
एकवर्णीय प्रकाश के लिये
I1 = I2 = l0
तथा पथान्तर
∆ = λ
तब कलान्तर ¢ = 2π/λ .∆
¢ = 2π/λ .λ = 2π
परिणामी तीव्रता
= K
अतः
K = I1 + I2 + 2 √I1, √I2 cos ¢
= Io + I0 + 2√I0√I0 cos 2π
= 2I0 + 2I0 × 1 (∵ cos 2π = 1)
K = 4lo
⇒ Io = 1/4K
जब ∆ = λ/3
कलान्तर ¢ = 2π/λ × λ/3 = 2π/3
परिणामी तीव्रता I = – 1/4k + 1/4k + 2K/4 cos 2π/3
I = 1/2k + 1/2K(-1/2)
I = 1/4K

प्रश्न 10.6
यंग के द्विझिरी प्रयोग में व्यतिकरण फ्रिजों को प्राप्त करने के लिए 650 nm तथा 520 nm तरंगदैयों के प्रकाश-पुंज का उपयोग किया गया।
(a) 650nm तरंगदैर्घ्य के लिए परदे पर तीसरे दीप्त फ्रिज की केंद्रीय उच्चिष्ठ से दूरी ज्ञात कीजिए।
(b) केंद्रीय उच्चिष्ठ से उस न्यूनतम दूरी को ज्ञात कीजिए जहाँ दोनों तरंगदैघ्यों के कारण दीप्त फ्रिज संपाती (coincide) होते हैं।
दोनों झिरियों के बीच की दूरी 2 mm तथा झिरियों से पर्दे की दूरी 12m है।
उत्तर:
दिया गया है:
λ1 = 650 nm = 650 x 109 m.
= 650 x 107 cm.
= 65 × 10-6 cm.
n = 3, D = 1.2 m = 120 cm.
d = 2 mm = 2 × 10-1 cm.
λ2 = 520 nm
= 520 x 10-9 m.
= 520 × 10-7 cm.
= 52 × 10-6 cm.

(a) केन्द्रीय फ्रिंज से nवीं दीप्त फ्रिंज की दूरी x = nλD/d
X = \(\frac{3 \times 65 \times 10^{-6} \times 120}{2 \times 10^{-1}}\)
∵ n = 3
= 117 × 103 cm.
= 0.117 cm = 1.17 mm.

(b) प्रश्नानुसार न्यूनतम दूरी वह होगी, जहाँ पर एक तरंगदैर्घ्य के कारण वें क्रम की दीप्त फ्रिंज दूसरे तरंगदैर्घ्य के कारण (n + 1)d वें क्रम की दीप्त फ्रिज के सम्पाती होगी।
अतः
x = \(\frac{\mathrm{n} \lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)
\(\frac{\mathrm{n} \lambda_1 \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\) = \(\frac{(n+1) \lambda_2 D}{d}\)
nλ1 = (n + 1)λ2
या n × 65 × 10-6 = (n + 1) × 52 × 10-6
या 5n = (n + 1) × 4 = 4n + 4
या n = 4
अतः न्यूनतम दूरी x = \(\frac{\mathrm{n} \lambda_1 \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\) = \(\frac{4 \times 65 \times 10^{-6} \times 120}{2 \times 10^{-1}}\)
x = 0.156 cm = 1.56mm.

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प्रश्न 10.7.
एक द्विझिरी प्रयोग में एक मीटर दूर रखे परदे पर एक फ्रिज की कोणीय चौड़ाई 0.2° पाई गई। उपयोग किए गए प्रकाश की तरंगदैर्ध्य 600 nm है। यदि पूरा प्रायोगिक उपकरण जल में डुबो दिया जाए तो फ्रिज की कोणीय चौड़ाई क्या होगी? जल का अपवर्तनांक 4/3 लीजिए।
उत्तर:
कोणीय चौड़ाई θ = λ/d
या θ α λ
जहाँ
θ = 0.2°
nw = 4/3
\(\frac{\theta_w}{\theta}\) = \(\frac{\lambda_w}{\lambda}\)
∵ n = v1/v2 = λ1/λ2
अतः
nw = \(\frac{\lambda}{\lambda_w}\)
या = \(\frac{\lambda}{\mathrm{n}_{\mathrm{w}}}\)
\(\frac{\theta_w}{\theta}\) = \(\frac{\lambda}{\mathrm{n}_{\mathrm{w}} \lambda}\) = \(\frac{1}{\mathrm{n}_{\mathrm{w}}}\)
∴ θw = \(\frac{\theta}{n_w}\)
मान रखने पर
θ = \(\frac{0.2^{\circ}}{4 / 3}\) = \(\frac{0.2^{\circ} \times 3}{4}\)
θ = 0.15°

प्रश्न 10.8.
वायु से काँच में संक्रमण (transition ) के लिए ब्रूस्टर कोण क्या है? (काँच का अपवर्तनांक = 1.5 )।
उत्तर:
वायु से काँच में संक्रमण के लिए n = tan iB
यहाँ पर iB = ब्रूस्टर कोण है जिसे ध्रुवण कोण भी कहते हैं।
1.5 = tan iB
या
iB = tan-1 (1.5)
= 56.3°

प्रश्न 10.9
5000 À तरंगदैर्घ्य का प्रकाश एक समतल परावर्तक सतह पर आपतित होता है। परावर्तित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य एवं आवृत्ति क्या है? आपतन कोण के किस मान के लिए परावर्तित किरण आपतित किरण के लंबवत् होगी?
उत्तर:
दिया गया है
λ = 5000 A = 5000 x 10-10m
λ = 5 x 107 m
c = 3 × 108 m/s.
∴ परावर्तित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य = आपतित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य
अतः परावर्तित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य
= 5000 A
अब आवृत्ति v = c/λ से
= \(\frac{3 \times 10^8}{5 \times 10^{-7}}\) = \(\frac{3 \times 10^8}{5 \times 10^{-7}}\)
= 6 × 1014 Hz
अब परावर्तन के नियमानुसार i = r
अब i + r = 90°
∴ i + i = 90°
या 2i = 90°
या i = 45°

प्रश्न 10.10.
उस दूरी का आकलन कीजिए जिसके लिए किसी 4 mm के आकार के द्वारक तथा 400 nm तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के लिए किरण प्रकाशिकी सन्निकट रूप से लागू होती है।
उत्तर:
दिया गया है:
प्रकाश का तरंगदैर्ध्य = λ = 400 nm
λ = 400 x 10-9 m
= 4 × 10-7 m
छिद्र के द्वारक का आकार a = 4 mm
= 4 × 10-3 m
Zf = फ्रेनेल दूरी = वह दूरी जिसके लिए रेखा प्रकाशिकी एक अच्छा निकटतम है।
किरण प्रकाशिकी की वैधता
सूत्र
Zf = a2/λ से
= \(\frac{\left(4 \times 10^{-3}\right)^2}{4 \times 10^{-7}}\) = \(\frac{16 \times 10^{-6}}{4 \times 10^{-7}}\)
= 4 × 10 = 40m

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 10.11.
एक तारे में हाइड्रोजन से उत्सर्जित 6563 A की Hg लाइन में 15 का अभिरक्त विस्थापन ( red-shift) होता है। पृथ्वी से दूर जा रहे तारे की चाल का आकलन कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
∆λ = 15 x 10-10
m
λ = 6563
Å = 6563 x 10-10 m
c = 3 × 108 m/s.
हम जानते हैं λ – λ = vλ/c
या v = \(\frac{\left(\lambda^{\prime}-\lambda\right) \times c}{\lambda}\) = \(\frac{\Delta \lambda \times c}{\lambda}\)
= \(\frac{15 \times 10^{-10} \times 3 \times 10^8}{6563 \times 10^{-10}}\)
= \(\frac{15 \times 3 \times 10^8}{6563}\)
= 6.86 × 105 m/s

प्रश्न 10.12.
किसी माध्यम (जैसे जल में प्रकाश की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल से अधिक है। न्यूटन के कणिका सिद्धांत द्वारा इस आशय की भविष्यवाणी कैसे की गई? क्या जल में प्रकाश की चाल प्रयोग द्वारा ज्ञात करके इस भविष्यवाणी की पुष्टि हुई ? यदि नहीं, तो प्रकाश के चित्रण का कौन-सा विकल्प प्रयोगानुकूल है?
उत्तर:
न्यूटन के कणिका सिद्धान्त के अनुसार अपवर्तन में, विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करते समय आपतित कण सतह के लम्बवत् आकर्षण बल का अनुभव करता है। यह परिणाम वेग के अभिलम्ब घटक की वृद्धि में होगी लेकिन पृष्ठ के अनुदिश घटक अपरिवर्तित रहता है। इसका तात्पर्य
c sin i = v sin r
या v/c = sini/sinr
चूँकि n > 1 ∴ v > c
यह अवधारणा प्रायोगिक परिणाम के विरुद्ध है (v< c) प्रकाश का तरंग सिद्धान्त प्रयोग संगत है।

प्रश्न 10.13.
आप मूल पाठ में जान चुके हैं कि हाइगेंस का सिद्धांत परावर्तन और अपवर्तन के नियमों के लिए किस प्रकार मार्गदर्शक है। इसी सिद्धांत का उपयोग करके प्रत्यक्ष रीति से निगमन (deduce ) कीजिए कि समतल दर्पण के सामने रखी किसी वस्तु का प्रतिबिंब आभासी बनता है, जिसकी दर्पण से दूरी, बिंब से दर्पण की दूरी के बराबर होती है।
उत्तर:
बिन्दु बिम्ब (वस्तु) को केन्द्र लेकर दर्पण को स्पर्श करते हुए एक वृत्त खींचिये यह गोलीय तरंगाग्र का बिम्ब से दर्पण पर पहुँचने वाला समतलीय भाग है। अब दर्पण की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति में समय के बाद उसी तरंगाग्र की इन्हीं स्थितियों को आलेखित कीजिए। आप दर्पण के दोनों ओर स्थित दो एक जैसे चाप पायेंगे। सरल ज्यामिति के उपयोग से परावर्तित तरंगाग्र का केन्द्र ( वस्तु का प्रतिबिम्ब) दर्पण से वस्तु की बराबर दूरी पर दिखाई देगा।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

प्रश्न 10.14
तरंग संचरण की चाल को प्रभावित कर सकने वाले कुछ संभावित कारकों की सूची है:
(i) स्रोत की प्रकृति,
(ii) संचरण की दिशा,
(iii) स्रोत और / या प्रेक्षक की गति,
(iv) तरंगदैर्घ्य, तथा
(v) तरंग की तीव्रता।
बताइए कि:
(a) निर्वात में प्रकाश की चाल,
(b) किसी माध्यम ( माना काँच या जल) में प्रकाश की चाल इनमें से किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
(a) निर्वात में प्रकाश की चाल एक सार्वभौमिक स्थिरांक है जो सूचीबद्ध कारकों में से किसी पर भी निर्भर नहीं है। यह स्रोत तथा प्रेक्षक की सापेक्ष गति पर भी निर्भर नहीं करता है। यह तथ्य आइंसटाइन के आपेक्षिकता के विशिष्ट सिद्धान्त का मूल अभिगृहीत है।

(b) माध्यम में प्रकाश की चाल की निर्भरता:
(i) माध्यम में प्रकाश की चाल स्रोतों की प्रकृति से स्वतंत्र है। प्रकाश की चाल का निर्धारण माध्यम के संचरण गुणों से है। यह तथ्य अन्य तरंगों के लिए भी सत्य है, जैसे ध्वनि तरंगों एवं जल तरंगों आदि के लिए।
(ii) समदैशिक माध्यम के लिए संचरण दिशा पर निर्भर नहीं है।
(iii) माध्यम की अपेक्षा स्रोत की चाल से उसमें प्रकाश की चाल स्वतंत्र है परन्तु माध्यम की अपेक्षा प्रेक्षक की चाल पर निर्भर है।
(iv) किसी माध्यम में प्रकाश की चाल तरंगाग्र पर निर्भर है। अर्थात् तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है।
(v) किसी माध्यम में प्रकाश की चाल उसकी तीव्रता से स्वतंत्र है अर्थात् तीव्रता पर निर्भर नहीं करती (यद्यपि अधिक तीव्र किरण पुंज के लिए यह स्थिति अधिक जटिल है तथा यहाँ हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है)।

प्रश्न 10.15
ध्वनि तरंगों में आवृत्ति विस्थापन के लिए डॉप्लर का सूत्र निम्नलिखित दो स्थितियों में थोड़ा-सा भिन्न है:
(i) स्रोत विरामावस्था में तथा प्रेक्षक गति में हो, तथा
(ii) स्रोत गति में परंतु प्रेक्षक विरामावस्था में हो जबकि प्रकाश के लिए डॉप्लर के सूत्र निश्चित रूप से निर्वात में इन दोनों स्थितियों में एकसमान हैं। ऐसा क्यों है? स्पष्ट कीजिए क्या आप समझते हैं कि ये सूत्र किसी माध्यम में प्रकाश गमन के लिए भी दोनों स्थितियों में पूर्णतः एकसमान होंगे?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों के संचरण के लिए माध्यम आवश्यक है। यद्यपि (i) तथा (ii) स्थिति में संगत समान सापेक्ष गति (स्रोत तथा प्रेषक के मध्य) भौतिक रूप से समरूपी नहीं है क्योंकि माध्यम के सापेक्ष प्रेषक की गति इन दोनों स्थितियों में भिन्न है। अतः (i) तथा (ii) स्थितियों में हम ध्वनि के लिए डॉप्लर के सूत्रों की समानता की अपेक्षा नहीं कर सकते निर्वात में प्रकाश तरंगों के लिए स्पष्टतया (i) तथा (ii) स्थिति के बीच कोई भेद नहीं है। यहाँ मात्र स्रोत तथा प्रेक्षक की सापेक्ष गतियाँ ही अर्थ रखती हैं तथा आपेक्षिकीय डॉप्लर का सूत्र (i) तथा (ii) स्थिति के लिए समान है। माध्यम में प्रकाश संचरण के लिए पुनः ध्वनि तरंगों के समान दोनों स्थितियाँ समान नहीं हैं तथा (i) तथा (ii) स्थितियों के लिए हमें डॉप्लर के सूत्र के भिन्न होने की अपेक्षा रखनी चाहिए।

प्रश्न 10.16.
द्विझिरी प्रयोग में 600 nm तरंगदैर्घ्य का प्रकाश करने पर, एक दूरस्थ परदे पर बने फ्रिज की कोणीय चौड़ाई 0.1° है। दोनों झिरियों के बीच कितनी दूरी है?
उत्तर:
दिया गया है:
धारी की कोणीय
चौड़ाई = β = 0.1°
β = 0.1 x π/180 रेडियन
= π/1800 रेडियन
प्रकाश की तरंगदैर्ध्य
= λ = 600nm
λ = 600 x 10-9 m
= 6 × 10-7 m
झिरियों में दूरी = d = ?
∴ सूत्र β = λ/d का उपयोग करने पर
या
d = λ/β = \(\frac{6 \times 10^{-7} \times 1800}{\pi}\)
= \(\frac{108 \times 10^{-5}}{3.14}\)
= 3.44 x 10-4 m

प्रश्न 10.17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a) एकल झिरी विवर्तन प्रयोग में झिरी की चौड़ाई मूल चौड़ाई से दोगुनी कर दी गई है। यह केंद्रीय विवर्तन बैंड के साइज तथा तीव्रता को कैसे प्रभावित करेगी?
(b) द्विझिरी प्रयोग में, प्रत्येक झिरी का विवर्तन, व्यतिकरण पैटर्न से किस प्रकार संबंधित है?
(c) सुदूर स्रोत से आने वाले प्रकाश के मार्ग में जब एक लघु वृत्ताकार वस्तु रखी जाती है तो वस्तु की छाया के मध्य एक प्रदीप्त बिंदु दिखाई देता है। स्पष्ट कीजिए क्यों?
(d) दो विद्यार्थी एक 10m ऊँची कक्ष विभाजक दीवार द्वारा 7m के अंतर पर हैं। यदि ध्वनि और प्रकाश दोनों प्रकार की तरंगें वस्तु के किनारों पर मुड़ सकती हैं तो फिर भी वे विद्यार्थी एक-दूसरे को देख नहीं पाते यद्यपि वे आपस में आसानी से वार्तालाप किस प्रकार कर पाते हैं?
(e) किरण प्रकाशिकी, प्रकाश के सीधी रेखा में गति करने की संकल्पना पर आधारित है। विवर्तन प्रभाव (जब प्रकाश का संचरण एक द्वारक / झिरी या वस्तु के चारों ओर प्रेक्षित किया जाए) इस संकल्पना को नकारता है तथापि किरण प्रकाशिकी की संकल्पना प्रकाशकीय यंत्रों में प्रतिबिंबों की स्थिति तथा उनके दूसरे अनेक गुणों को समझने के लिए सामान्यतः उपयोग में लाई जाती है। इसका क्या औचित्य है?
उत्तर:
(a) आकार – Md सूत्र के अनुसार, आकार आधा रह जाता है तीव्रता चार गुनी बढ़ जाती है।

(b) द्वि-झिरी समायोजन में व्यतिकरण फ्रिजों की तीव्रता प्रत्येक झिरी के विवर्तन पैटर्न द्वारा माडुलित (modulated) होती है।

(c) वृत्तीय अवरोध के किनारों से विवर्तित तरंगें छाया के केंद्र पर संपोषी व्यतिकरण द्वारा प्रदीप्त बिंदु उत्पन्न करती हैं। अतः छाया केंन्द्र पर चमकीला धब्बा दिखाई देता है।

(d) तरंगों के बड़े कोण पर विवर्तन अथवा मुड़ने के लिए अवरोधों / द्वारकों का आकार तरंग की तरंगदैर्घ्य के समकक्ष होना चाहिए। यदि अवरोध / द्वारक का आकार तरंगदैर्घ्य की तुलना में बहुत बड़ा है तो विवर्तन छोटे कोण से होगा। यहाँ आकार कुछ मीटरों की कोटि का होता है। प्रकाश की तरंगदैर्घ्य लगभग 5 x 107m है, जबकि ध्वनि- तरंगों; जैसे lk Hz आवृत्ति वाली ध्वनि की तरंगदैर्घ्य लगभग 0.3m है। इस प्रकार ध्वनि तरंगें विभाजक के चारों ओर मुड़ सकती हैं जबकि प्रकाश तरंगें नहीं मुड़ सकतीं। अतः ध्वनि तरंगें विवर्तित हो जाती हैं जिससे दोनों विद्यार्थी एक-दूसरे की आवाज सुन लेते हैं।

(e) प्रकाशीय यन्त्रों में द्वारकों के आकार प्रकाश के तरंगदैर्ध्य की तुलना में बहुत बड़े होते हैं विवर्तन के लिये द्वारक के आकार को तरंगदैर्ध्य की कोटि का होना चाहिये। अतः विभिन्न प्रकाशीय यन्त्रों में बने प्रतिबिम्बों की स्थितियों और गुणों का अध्ययन करने के लिये ज्यामितीय प्रकाशिकी की परिकल्पना को ही प्रयुक्त करते हैं।

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प्रश्न 10.18.
दो पहाड़ियों की चोटी पर दो मीनारें एक-दूसरे से 40km की दूरी पर हैं। इनको जोड़ने वाली रेखा मध्य में आने वाली किसी पहाड़ी के 50m ऊपर से होकर गुजरती है। उन रेडियो तरंगों की अधिकतम तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए, जो मीनारों के मध्य बिना पर्याप्त विवर्तन प्रभाव के भेजी जा सकें। हल दिया गया है:
a = 50m
ZF = 40/2 = 20 km.
ZF = 20 x 103 = 2 x 104m.
तरंगदैर्ध्य λ = ?
हम जानते हैं:
ZF = a2/λ से
या
λmax = \(\frac{(50)^2}{2 \times 10^4}\) = \(\frac{(50)^2}{2 \times 10^4}\)
= \(\frac{50 \times 50}{2 \times 10^4}\)

प्रश्न 10.19.
500nm तरंगदैर्घ्य का एक समांतर प्रकाश-पुंज एक पतली झिरी पर गिरता है तथा 1m दूर परदे पर परिणामी विवर्तन पैटर्न देखा जाता है। यह देखा गया कि पहला निम्निष्ठ परदे के केंद्र से 2.5 mm कीजिए।
उत्तर:
दिया है:
दूरी पर है। झिरी की चौड़ाई ज्ञात
λ = 500nm
= 5 × 107 m
D = 1 m, n = 1 x = 2.5 mm
= 2.5 × 104 m
झिरी की चौड़ाई = ?
केन्द्रीय उच्चिष्ठ की चौड़ाई
2x = \(\frac{2 \mathrm{D} \lambda}{\mathrm{a}}\)
a = \(\frac{D \lambda}{x}\)
= \(\frac{1 \times 5 \times 10^{-7}}{25 \times 10^{-4}}\)
= 2 × 104m
= 0.2 mm

प्रश्न 10.20.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a) जब कम ऊँचाई पर उड़ने वाला वायुयान ऊपर से गुजरता है तो हम कभी-कभी टेलीविजन के परदे पर चित्र को हिलते हुए पाते हैं। एक संभावित स्पष्टीकरण सुझाइए।
(b) जैसा कि आप मूल पाठ में जान चुके हैं कि विवर्तन तथा व्यतिकरण पैटर्न में तीव्रता का वितरण समझने का आधारभूत सिद्धांत तरंगों का रेखीय प्रत्यारोपण है। इस सिद्धांत की तर्कसंगति क्या है?
उत्तर:
(a) ऐंटीना द्वारा प्राप्त सीधे संकेत तथा गुजरने वाले वायुयान से परावर्तित संकेतों का व्यतिकरण के कारण होता है। अर्थात् कम ऊँचाई पर उड़ता हुआ वायुयान T.V. सिग्नल को परावर्तित कर देता है। सीधे आने वाले सिग्नल और परावर्तित सिग्नल में व्यतिकरण के कारण T.V. स्क्रीन पर चित्र कुछ हिलते हुए दिखाई देते हैं।

(b) अध्यारोपण का सिद्धांत तरंगगति को नियंत्रित करने वाली अवकल (differential) समीकरण के रेखीय चरित्र से प्रतिपादित है। यदि Y1 और Y2 इस समीकरण के हल हैं, तो Y1 और Y2 का रेखीय योग भी उनका हल होगा। जब आयाम बड़े हों (उदाहरण के लिए उच्च तीव्रता का लेजर किरण पुंज) तथा अरैखिक प्रभाव महत्वपूर्ण हो तो यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है, जिसका समझना यहाँ आवश्यक नहीं है।

प्रश्न 10.21.
एकल झिरी विवर्तन पैटर्न की व्युत्पत्ति में कथित है कि n/a कोणों पर तीव्रता शून्य है। इस निरसन (cancellation) को, झिरी को उपयुक्त भागों में बाँटकर सत्यापित कीजिए।
उत्तर:
किसी एकल झिरी को n छोटी झिरियों में बाँटिए जिनमें प्रत्येक की चौड़ाई a = a/n है। कोण θ = nλ/a = λa प्रत्येक छोटी झिरी से कोण 6 की दिशा में तीव्रता शून्य है। इनका संयोजन भी शून्य तीव्रता प्रदान करता है।

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 9.1.
2.5 cm साइज की कोई छोटी मोमबत्ती 36 cm वक्रता त्रिज्या के किसी अवतल दर्पण से 27 cm दूरी पर रखी है। दर्पण से किसी परदे को कितनी दूरी पर रखा जाए कि उसका सुस्पष्ट प्रतिबिंब परदे पर बने वर्णन कीजिए। यदि मोमबत्ती को को किस ओर हटाना पड़ेगा?
उत्तर:
दिया गया है
प्रतिबिंब की प्रकृति और साइज का दर्पण की ओर ले जाएँ, तो परदे
h= वस्तु का आकार = 2.5 cm
अवतल दर्पण से वस्तु की दूरी u = -27cm
अवतल दर्पण से वक्रता त्रिज्या = R = -36 cm
∴ अवतल दर्पण की फोकस दूरी f = 1⁄2R
=> R = -36/2 = -18cm
(i) दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी = v = ?
सूत्र 1/u + 1/v = 1/f का उपयोग करने पर
1/v = 1/f – 1/u
1/v = 1/-18 – 1/-27
= -1/18 + 1/27 = -3+2/54
1/v = -1/54
∴ v = -54 cm
ऋण चिन्ह दर्शाता है कि प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने बना है और उसी तरफ बना है जिस तरफ वस्तु रखी है। अतः पर्दा दर्पण के सामने 54 cm की दूरी पर रखा जाना चाहिए।
(ii) प्रतिबिम्ब की प्रकृति और आकार ज्ञात करना है।
m = HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 1
= -v/u का उपयोग करने पर
या
\(\frac{h^{\prime}}{2.5}\)=\(-\left(\frac{-54}{-27}\right)\) =\(\frac{-2}{1}\)
h’= – 2.5 x 2 = – 5 cm
इससे स्पष्ट होता है कि प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा व बड़ा और आवर्धित है।
(iii) यदि मोमबत्ती को दर्पण के पास लाया जाये तब पर्दे को दूर और अधिक दूर चलाना होगा अर्थात् पर्दा अनन्त पर रखना होगा। परन्तु जब मोमबत्ती की दूरी, दर्पण की फोकस दूरी से कम हो जैसे u → f, v →∞, u < f के लिए, उस स्थिति में प्रतिबिम्ब काल्पनिक (आभासी) होगा।

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प्रश्न 9.2.
4.5 cm साइज की कोई सुई 15 cm फोकस दूरी के किसी उत्तल दर्पण से 12cm दूर रखी है। प्रतिबिंब की स्थिति तथा आवर्धन लिखिए क्या होता है जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
उत्तल दर्पण से वस्तु की दूरी (नीडिल) u = – 12 cm
उत्तल दर्पण की फोकस दूरी f = + 15 cm
वस्तु का आकार h = 4.5 cm
प्रतिबिम्ब की स्थिति = V = ?
सूत्र
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\)=\(\frac{1}{\mathrm{u}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) का उपयोग करने पर
या
\(\frac{1}{v}\)= \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\)
=\(\frac{1}{15}\) – \(\left(-\frac{1}{12}\right)\)
=\(\frac{1}{15}\) + \(\frac{1}{12}\) = \(\frac{4+5}{60}\)
\(\frac{1}{v}\) = \(\frac{9}{60}\) = \(\frac{3}{20}\)
V = 20/3cm = 6.67cm = 6.7.cm
v का मान यहाँ पर धनात्मक है। इससे ज्ञात होता है कि प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बना है।
और प्रतिबिम्ब आभासी छोटा व सीधा बनेगा।
\(\mathrm{m}\) = \(-\frac{\mathrm{v}}{\mathrm{u}}\) = \(\frac{\mathrm{h}^{\prime}}{\mathrm{h}}\) का उपयोग करने पर
∴ \(h^{\prime}\) = \(\left(-\frac{v}{u}\right) \times h\)
अब आवर्धन \(\mathrm{h}^{\prime}\) = \(\left(-\frac{20 / 3}{-12}\right) \times 4.5\)

मान रखने पर = \(\frac{20}{3}\) \(\times\) \( \frac{1}{12}\) \(\times\)  \(\frac{9}{2}\)= \(+2.5 \mathrm{~cm}\)
= \(\frac{20}{3}\) \(\times\) \(\frac{1}{12}\) \(\times\) \( \frac{9}{2}\) = \(+2.5 \mathrm{~cm}\)
अतः प्रतिबिम्ब की साइज h’ = + 2.5 cm
आवर्धन
\(\mathrm{m}\) = \(\frac{\mathrm{h}^{\prime}}{\mathrm{h}}\) = \(\frac{2.5}{4.5}\) = \(\frac{5}{9}\)
जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं तब प्रतिबिम्ब फोकस की ओर पास आता है, लेकिन फोकस तक और आकार में छोटा और छोटा होता जाता है। अर्थात् जैसे u → ∞ v → f (परन्तु फोकस से आगे कभी नहीं बढ़ता) जबकि m → 0

प्रश्न 9.3.
कोई टैंक 12.5 cm ऊँचाई तक जल से भरा है। किसी सूक्ष्मदर्शी द्वारा बीकर की तली पर पड़ी किसी सुई की आभासी गहराई 9.4 cm मापी जाती है। जल का अपवर्तनांक क्या है? बीकर में उसी ऊँचाई तक जल के स्थान पर किसी 1.63 अपवर्तनांक के अन्य द्रव से प्रतिस्थापन करने पर सुई को पुनः फोकसित करने के लिए सूक्ष्मदर्शी को कितना ऊपर / नीचे ले जाना होगा?
उत्तर:
स्थिति I. जब टैंक पानी से भरा हो:
वास्तविक गहराई = 12.5 cm
आभासी गहराई = 9.4 cm
पानी का अपवर्तनांक= n = ?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 2
= \(\frac{12.5}{9.4}\) = \(1.33\)
स्थिति II. जब टैंक को द्रव से भरा जाता है:
द्रव का अपवर्तनांक= n = 1.63
वास्तविक गहराई = 12.5 cm
आभासी गहराई = ?
∴ द्रव का अपवर्तनांक = 1.63
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 3
∴ आभासी गहराई = \(\frac{12.5}{1.63}\) = 7.67cm
अतः वह दूरी जिससे सूक्ष्मदर्शी को ऊपर चलाना है,
= 9.4 – 7.67
= 1.73 cm
= 1.70 cm

प्रश्न 9.4.
चित्र (a) तथा (b) में किसी आपतित किरण का अपवर्तन दर्शाया गया है जो वायु में क्रमशः काँच वायु तथा जल-वायु अंतरापृष्ठ के अभिलंब से 60° का कोण बनाती है। उस आपतित किरण का अपवर्तन कोण ज्ञात कीजिए, जो जल में जल-काँच अंतरापृष्ठ के अभिलंब से 45° का कोण बनाती है [ चित्र (c ) ] |
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 4
उत्तर:
चित्र (a) से:
आपतन कोण = i = 60°
अपवर्तन कोण= r = 35°
ang = वायु की अपेक्षा काँच का अपवर्तनांक = ?
सम्बन्ध
\({ }_{\mathrm{a}} \mathrm{n}_{\mathrm{g}}\)= \(\frac{\sin i}{\sin r}\) = \(\frac{\sin 60^{\circ}}{\sin 35^{\circ}}\)
\(\frac{0.8660}{0.5736}\) = \(1.51\)
चित्र (b) से:
हम जानते हैं:
i = 60°, r = 47°
anw = वायु की अपेक्षा पानी का अपवर्तनांक = ?
हम जानते हैं-

चित्र (c) से:
आपतन कोण = i = 45°
अपवर्तन कोण = r = ?
wng = पानी की अपेक्षा काँच का अपवर्तनांक
हम जानते हैं:
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प्रश्न 9.5.
जल से भरे 80 cm गहराई के किसी टैंक की तली पर कोई छोटा बल्ब रखा गया है। जल के पृष्ठ का वह क्षेत्र ज्ञात कीजिए जिससे बल्ब का प्रकाश निर्गत हो सकता है जल का अपवर्तनांक 1.33 है। (बल्ब को बिंदु प्रकाश स्रोत मानिए । )
उत्तर:
माना प्रकाश स्रोत 0 पानी के पृष्ठ से 80 cm नीचे है। अर्थात् चित्र
\(\mathrm{OA}\) = \(80 \mathrm{~cm}\) = \(\frac{80}{100} \mathrm{~m}\)
anw = 1.33
O से उत्सर्जित प्रकाश किरण केवल वायु में अपवर्तित होती है, यदि आपतन कोण क्रान्तिक Ic से छोटा है, तब प्रकाश पानी के पृष्ठ के साथ वायु में अपवर्तित नहीं होगा, परन्तु यह वायु-पानी के अन्तरापृष्ठ पर संस्पर्श करेगा। इस प्रकार प्रकाश शंकु के शिरोबिन्दु कोण, जो 2Ic है, से आता प्रतीत होगा। यदि पानी वायु अन्तरापृष्ठ पर आपतन कोण Ic से अधिक है, तब प्रकाश किरण पूर्ण आन्तरिक परावर्तित होगी।
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हम जानते हैं:
\(\sin \mathbf{I}_{\mathrm{C}}\) = \( \frac{1}{{ }_a n_w} \)
⇒ \(\sin \mathbf{I}_{\mathrm{C}}\) = \(\frac{1}{{ }_a n_w}\)
\(\sin \mathbf{I}_{\mathrm{C}}\) = \(\sin ^{-1}\left(\frac{1}{1.33}\right)\) =\(\sin ^{-1}(0.75)\)
Ic = 48.6°
अब
tan Ic = \(\frac{\mathrm{AB}}{\mathrm{OA}}\)
या
AB = OA tan Ic
\(\frac{80}{100}\) \(\times\) \(\tan 48.6^{\circ}\) = \(\frac{80}{100}\) \(\times\) 1.1345
= 0.907m = 90.7 cm
∴ पानी के उस पृष्ठ का क्षेत्रफल जिसमें से प्रकाश निकलेगा
= πr2 = 3.14 x (0.907)2
= 3.14 x 0.823
= 2.584m2 = 2.6m2

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 9.6.
कोई प्रिज्म अज्ञात अपवर्तनांक के कांच का बना है। कोई समांतर प्रकाश-पुंज इस प्रिज्म के किसी फलक पर आपतित होता है। प्रिज्म का न्यूनतम विचलन कोण 40° मापा गया। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक क्या है? प्रिज्म का अपवर्तन कोण 60° है। यदि प्रिज्म को जल (अपवर्तनांक 1.33) में रख दिया जाए तो प्रकाश के समांतर पुंज के लिए नए न्यूनतम विचलन कोण का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
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प्रश्न 9.7.
अपवर्तनांक 1.55 के काँच से दोनों फलकों की समान वक्रता त्रिज्या के उभयोत्तल लेन्स निर्मित करने हैं। यदि 20 cm फोकस दूरी के लेन्स निर्मित करने हैं तो अपेक्षित वक्रता त्रिज्या क्या होगी?
उत्तर:
दिया गया है:
n = 1.55, R1 = R और R2 = R (उभयोत्तल के लिए)
f = + 20 cm
हम जानते हैं:
\( \frac{1}{f}\) = \( (\mathrm{n}-1)\) \(\left(\frac{1}{R_1}-\frac{1}{R_2}\right)\)
⇒ \( \frac{1}{20}\) = \( (\mathrm{5}-1)\) \( \left(\frac{1}{R}+\frac{1}{R}\right)\)
⇒ \(\frac{1}{20}\) = \(0.55\) × \( \frac{2}{R}\)
⇒ R = 0.55 x 2 x 20
= 0.55 x 40
∴ R = 22 cm
∴ अपेक्षित वक्रता त्रिज्या R = 22cm

प्रश्न 9.8.
कोई प्रकाश-पुंज किसी बिंदु P पर अभिसरित होता है। कोई लेन्स इस अभिसारी पुंज के पथ में बिंदु P से 12 cm दूर रखा जाता है। यदि यह (a) 20 cm फोकस दूरी का उत्तल लेन्स है, (b) 16 cm फोकस दूरी का अवतल लेन्स है, तो प्रकाश-पुंज किस बिंदु पर अभिसरित होगा?
उत्तर:
इस समस्या में लेन्स के RHS की ओर बिन्दु एक काल्पनिक वस्तु की तरह कार्य करता है।
u = + 12 cm, v = ?
(a) उत्तल लेन्स के लिए:
f = + 20 cm
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सूत्र \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) का उपयोग करने पर
या
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
मान रखने पर
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{20}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{12}}\) = \(\frac{3+5}{60}\)
⇒ \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{8}{\mathrm{60}}\) = \(\frac{2}{\mathrm{15}}\)
या V = 15/2
= 7.5 cm

प्रतिबिम्ब वास्तविक है और लेन्स से R.HS की तरफ 7.5 cm पर स्थित है।
(b) अवतल लेन्स के लिए:
f= – 16 cm, u = + 12 cm
V = ?
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सूत्र \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) का उपयोग करके,
हम \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{16}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{12}}\) = \(\frac{-3+4}{48}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{48}}\)
प्रतिबिम्ब वास्तविक बनेगा जो कि लेन्स के दाहिनी तरफ 48 cm दूरी पर बनेगा।

प्रश्न 9.9.
3.0 cm ऊँची कोई बिंब 21 cm फोकस दूरी के अवतल लेन्स के सामने 14 cm दूरी पर रखी है लेन्स द्वारा निर्मित प्रतिबिंब का वर्णन कीजिए क्या होता है जब बिंब लेन्स से दूर हटती जाती है?
उत्तर:
दिया गया है:
वस्तु का आकार = h = 3.0cm
अवतल लेन्स वस्तु की दूरी = u = – 14 cm
अवतल लेन्स की फोकस दूरी = f =
प्रतिबिम्ब की दूरी = ?
प्रतिबिम्ब का आकार = h’ = ?
(i) सम्बन्ध = का उपयोग करने पर
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प्रतिबिम्ब काल्पनिक और सीधा बनेगा और लेन्स से 8.4 cm की दूरी पर वस्तु की तरफ ही बनेगा।
हम जानते हैं:
आवर्धन HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 11
लेकिन

अतः प्रतिबिम्ब आकार में छोटा आभासी व सीधा बनेगा।

(ii) जब u → ∞ तब v = f लेकिन f से आगे नहीं जाता जबकि
m = v/u = 0
जब बिम्ब (वस्तु) लेन्स से दूर हटता है।
माना u = f = -21 cm
तब \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{21}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{21}}\) = \(\frac{-2}{\mathrm{21}}\)
तब v = \(\frac{-21}{\mathrm{2}}\) = -10.5 cm
परन्तु अनन्त पर नहीं बनेगा।

प्रश्न 9.10.
किसी 30 cm फोकस दूरी के उत्तल लेन्स के संपर्क में रखे 20 cm फोकस दूरी के अवतल लेन्स के संयोजन से बने संयुक्त लेन्स (निकाय) की फोकस दूरी क्या है? यह तंत्र अभिसारी लेन्स है अथवा अपसारी? लेन्सों की मोटाई की उपेक्षा कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
उत्तल लेन्स की फोकस दूरी = f = + 30 cm
अवतल लेन्स की फोकस दूरी = f2 = – 20cm
माना दोनों लेन्सों के संयोजन की फोकस दूरी = f = ?
हम जानते हैं:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f1}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{f2}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-20}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{20}}\) = \(\frac{2-3}{60}\)
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{-1}{\mathrm{60}}\)
या
= – 60 cm
चूँकि दोनों लेन्सों के संयोजन की फोकस दूरी ऋणात्मक है। अतः संयोजन एक अपसारी लेन्स की तरह व्यवहार करता है अर्थात् अवतल लेन्स की तरह व्यवहार करता है।

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प्रश्न 9.11.
किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में 2.0cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक लेन्स तथा 6.25 cm फोकस दूरी का नेत्रिका लेन्स एक-दूसरे से 15 cm दूरी पर लगे हैं। किसी बिंब को अभिदृश्यक से कितनी दूरी पर रखा जाए कि अंतिम प्रतिबिंब (a) स्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी (25 cm) तथा (b) अनंत पर बने? दोनों स्थितियों में सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता ज्ञात कीजिए।
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हल दिया गया है:
fo = 2 cm, fc = 6.25 cm
L = 15 cm, D = 25 cm
(a) vc = – 25 cm, uc = ?
लेन्स सूत्र से
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(b) जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है:
यहाँ
L = Vo + fe
ue = fe
Vo = L – fe
= 15 – 6.25
Ve = ∞
Vo = + 8.75 cm
\(\frac{1}{f_0}\) = \(\frac{1}{v_o}\) – \(\frac{1}{u_o}\)
\(\frac{1}{u_o}\) = \(\frac{1}{v_o}\) – \(\frac{1}{f_o}\) = \(\frac{1}{8.75}\) – \(\frac{1}{2}\) = \(\frac{100}{875}\) – \(\frac{1}{2}\)
\(\frac{1}{u_o}\) = \(\frac{200-875}{1750}\) = \(\frac{-675}{1750}\)
\(\frac{-1750}{675}\) = – 2.59cm
∴ u0 = 2.59 cm
आवर्धन क्षमता m = \(\frac{-v_0}{u_o}\) \(\left[\frac{D}{f_e}\right]\)
= \(\frac{-8.75}{2.59}\) x \(\frac{25}{6.25}\) = \(\frac{-875}{259}\) x 4
m = – 13.5 = | 13.5 |
= 13.5

प्रश्न 9.12.
25 cm के सामान्य निकट बिंदु का कोई व्यक्ति ऐसे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी जिसका अभिदृश्यक 8.0mm फोकस दूरी तथा नेत्रिका 2.5 cm फोकस दूरी की है, का उपयोग करके अभिदृश्य से 9.0mm दूरी पर रखे बिंब को सुस्पष्ट फोकसित कर लेता है। दोनों लेन्सों के बीच पृथक्कन दूरी क्या है? सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
D = 25 cm
अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी = f = 8.0mm
∴ fo = 0.8cm
नेत्रक की फोकस दूरी fc = 2.5 cm
u0 = – 9.0mm = – 0.9cm
दोनों लेन्सों के बीच की दूरी = L = ?
m = ?
नेत्रक के लिए लेन्स सूत्र:
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प्रश्न 9.13.
किसी छोटी दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 144 cm तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 6.0 cm है। दूरबीन की आवर्धन क्षमता कितनी है? अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
दूरदर्शी के अभिदृश्यक की फोकस दूरी = fo
∴fo = 144 cm.
दूरदर्शी के नेत्रक की फोकस दूरी fc = 2.5 cm
u0 = – 9.0 mm = – 0.9 cm
दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता = m = ?
अभिदृश्यक और नेत्रक की बीच की दूरी = L = ?
हम जानते हैं:
दूरबीन की आवर्धन क्षमता = m = -f0/fc
m = – 144/6
= -24
= L = f0 + fc
= 144 + 6 = 150 cm

प्रश्न 9.14.
(a) किसी वेधशाला की विशाल दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 15m है। यदि 1.0cm फोकस दूरी की नेत्रिका प्रयुक्त की गयी है, तो दूरबीन का कोणीय आवर्धन क्या है?
(b) यदि इस दूरबीन का उपयोग चन्द्रमां का अवलोकन करने में किया जाए तो अभिदृश्यक लेन्स द्वारा निर्मित चन्द्रमा के प्रतिबिंब का व्यास क्या है? चन्द्रमा का व्यास 3.48 x 106m तथा चन्द्रमा की कक्षा की त्रिज्या 3.8 x 108 m है।
उत्तर:
दिया गया है:
दूरदर्शक के अभिदृश्यक की फोकस दूरी = fo = 15 m
नेत्रक की फोकस दूरी = fc = 1.0cm
= 10<sup>2</sup> m
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प्रश्न 9.15.
दर्पण- सूत्र का उपयोग यह व्युत्पन्न करने के लिए कीजिए कि
(a) किसी अवतल दर्पण के f तथा 25 के बीच रखे बिंब का वास्तविक प्रतिबिंब 25 से दूर बनता है।
(b) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आभासी प्रतिबिंब बनता है जो बिंब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता ।
(c) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आकार में छोटा प्रतिबिंब, दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता है।
(d) अवतल दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच रखे बिंब का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिंब बनता है।
(नोट: यह अभ्यास आपकी बीजगणितीय विधि द्वारा उन प्रतिबिंबों के गुण व्युत्पन्न करने में सहायता करेगा जिन्हें हम किरण आरेखों द्वारा प्राप्त करते हैं।)
उत्तर:
(a)
\(\frac{1}{v}\) + \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)(अवतल दर्पण के सूत्र से )
या
\(\frac{1}{v}\) = \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\)
f < 0 ( अवतल दर्पण)
u < 0 (वस्तु बायीं तरफ रखी है)
2f < u< f के लिए या \(\frac{1}{2 f}\) > \(\frac{1}{u}\) > \(\frac{1}{f}\)
या \(\frac{-1}{2f}\) < \(\frac{-1}{u}\) < \(\frac{-1}{f}\)
या \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{-1}{2f}\) < \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\) < \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{f}\)
जिससे \(\frac{1}{2f}\) < \(\frac{1}{v}\) > 0
अर्थात् v ऋणात्मक होगा तथा प्रतिबिम्ब वास्तविक व 2f से आगे बनेगा।
(b) उत्तल दर्पण के दर्पण सूत्र से
\(\frac{1}{u}\) + \(\frac{1}{v}\) = \(\frac{1}{f}\)
यहाँ u < 0 तथा f > 0
अर्थात् सदैव कम होने से प्रतिबिम्ब दर्पण के दाईं ओर व आभासी होगा।

(c) ∵ आवर्धन m = \(\frac{f}{f-u}\)
∵ उत्तल दर्पण के लिए u < 0 तथा f < 0 अतः f – u > f
जिससे m < 1 अर्थात् प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा होगा।

(d) अवतल दर्पण के लिए u < 0 तथा f < 0 प्रश्नानुसार
f < u < 0 = \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\) > 0
लेकिन दर्पण सूत्र \(\frac{1}{v}\) = \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\) से
\(\frac{1}{v}\) > 0, जिसमें v धनात्मक तथा ध्रुव के दाईं ओर स्थित है।
प्रतिबिम्ब आभासी है और आवर्धन
m = \(\frac{-v}{u}\) = \(\frac{v}{| u |}\)
परन्तु \(\frac{1}{v}\) < \(\frac{1}{| u |}\) या v > | u |
अर्थात् धनात्मक है तथा m > 1 जिससे प्रतिबिम्ब बड़ा बनता है।

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प्रश्न 9.16.
किसी मेज के ऊपरी पृष्ठ पर जड़ी एक छोटी पिन को 50 cm ऊँचाई से देखा जाता है। 15 cm मोटे आयताकार काँच के गुटके को मेज के पृष्ठ के समांतर पिन व नेत्र के बीच रखकर उसी बिंदु से देखने पर पिन नेत्र से कितनी दूर दिखाई देगी? काँच का अपवर्तनांक 1.5 है। क्या उत्तर गुटके की अवस्थिति पर निर्भर करता है?
उत्तर:
दिया गया है:
काँच की पट्टी की मोटाई = t = 15 cm
काँच का अपवर्तनांक = n = 1.5
पिन की स्थिति में नॉरमल बदलाव = d
d = 1(1 – 1/n) से दिया जाता है।
यहाँ पर t = पिन की वास्तविक गहराई पट्टी की मोटाई
माना पिन की आभासी गहराई = y
अभिलम्ब बदलाव (विस्थापन का मान )t – y = ? = d
n = t/y या y = t/n
∴ d = अभिलम्ब विस्थापन = t – t/n
= t(1 – 1/n)
= 15(1 – 1/1.5) = 15(1 – 2/3)
= 15 × 1/3 = 5cm
अर्थात् पिन 5 cm उठा हुआ प्रतीत होगा।
नहीं, छोटे आपतन कोणों के लिए उत्तर काँच के गुटके की स्थिति पर निर्भर नहीं है।

प्रश्न 9.17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
(a) निम्न चित्र में अपवर्तनांक 1.68 तंतु काँच से बनी किसी ‘प्रकाश नलिका’ (लाइट पाइप) का अनुप्रस्थ परिच्छेद दर्शाया गया है। नलिका का बाह्य आवरण 1.44 अपवर्तनांक के पदार्थ का बना है। नलिका के अक्ष से आपतित किरणों के कोणों का परिसर, जिनके लिए चित्र में दर्शाए अनुसार नलिका के भीतर पूर्ण परावर्तन होते हैं, ज्ञात कीजिए।
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(b) यदि पाइप पर बाह्य आवरण न हो तो क्या उत्तर होगा?
उत्तर:
(a) sin Ic = n = \(\frac{\sin I}{\sin r}\) = \(\frac{1.44}{1.68}\)
= 0.8571
∴ Ic = sin-1 (0.8571) = 59°
Ic = 590
जब I > Ic अर्थात् I > 59 चूँकि I का मान 590 से 90° के बीच में है। यहाँ पर पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होगा और कोण का मान 0° से 31° के बीच में होगा।
∴ rmax = 31°
अब वायु की अपेक्षा काँच तन्तु का अपवर्तनांक sin Imax स्नेल नियम से

या
n = \(\frac{\sin I_{\max }}{\sin r_{\max }}\) = स्नेल नियम से
⇒ 1.68 = \(\frac{\sin I_{\max }}{\sin 31^{\circ}}\)
⇒ sin Imax = 1.68 sin 31°
= 1.68 x 0.515 = 0.8652
Imax = sin-1 (0.8652 ) = 59.9°= 60°
अतः 0 < I < 60° परास में आपतित सभी किरणें पाइप में पूर्ण आन्तरिक परावर्तन में होंगी। (b) यदि पाइप पर कोई बाह्य लेपन नहीं है, तब पाइप के अन्दर अपवर्तन काँच से वायु में होगा- ∴ sinIc = 1/1.68= 0.5952 ∴ Ic = sin-1 (0.5952) Ic = 36.5° अतः पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए I > 36.5° होना चाहिए।
अब
I = 90° से r = 36.5° होगा।
∴ sinI/sinr = n = 1.68
∴ rmax = 90° – 36.5° = 53.5°
जो कि Ic से अधिक हैं।
∴ अक्ष 0 से 90° के परास में आपतित सभी किरणें पाइप के अन्दर से पूर्ण आन्तरिक में होंगी।

प्रश्न 9.18.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
(a) आपने सीखा है कि समतल तथा उत्तल दर्पण सदैव आभासी प्रतिबिंब बनाते हैं। क्या ये दर्पण किन्हीं परिस्थितियों में वास्तविक प्रतिबिंब बना सकते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(b) हम सदैव कहते हैं कि आभासी प्रतिबिंब को परदे पर केंद्रित नहीं किया जा सकता। यद्यपि जब हम किसी आभासी प्रतिबिंब को देखते हैं तो हम इसे स्वाभाविक रूप में अपनी आँख की स्क्रीन ( अर्थात् रेटिना) पर लाते हैं क्या इसमें कोई विरोधाभास है?
(c) किसी झील के तट पर खड़ा मछुआरा झील के भीतर किसी गोताखोर द्वारा तिरछा देखने पर अपनी वास्तविक लंबाई की तुलना में कैसा प्रतीत होगा-छोटा अथवा लंबा?
(d) क्या तिरछा देखने पर किसी जल के टैंक की आभासी गहराई परिवर्तित हो जाती है? यदि हाँ, तो आभासी गहराई घटती है अथवा बढ़ जाती है?
(e) सामान्य काँच की तुलना में हीरे का अपवर्तनांक काफी अधिक होता है? क्या हीरे को तराशने वालों के लिए इस तथ्य का कोई उपयोग होता है?
उत्तर:
(a) हाँ, किसी समतल अथवा उत्तल दर्पण के पीछे’ किसी बिन्दु पर अभिसरित किरणें दर्पण के सामने परदे पर किसी बिन्दु पर परावर्तित हो जाती हैं। दूसरे शब्दों में कोई समतल दर्पण अथवा उत्तल दर्पण आभासी बिंब के लिए वास्तविक प्रतिबिंब उत्पन्न कर सकता है।

(b) नहीं, कोई विरोधाभास नहीं है। यह इस सत्य के कारण है। कि जब परावर्तित अथवा अपवर्तित किरणें अपसारी होती हैं तो प्रतिबिंब आभासी होता है। अपसारी किरणों को उचित अभिसारी लेन्स की सहायता से परदे पर अभिसरित किया जा सकता है। नेत्र का आभासी लेन्स ठीक यही करता है। यहाँ आभासी प्रतिबिंब लेन्स के लिए बिंब की भाँति कार्य करता है और वास्तविक प्रतिबिंब बनता है।

(c) गोताखोर को, व्यक्ति जो है उससे लम्बा प्रतीत होगा क्योंकि व्यक्ति वायु में है, अतः प्रकाश विरल से सघन माध्यम में चलता है और लम्ब की ओर झुक जाता है जैसा चित्र में दिखाया गया है। अधिक दूरी आता प्रतीत होता है। मछुआरे AB के सिरे B से प्रकाश का आकार BP और BQ पानी वायु अन्तरापृष्ठ से अपवर्तन के पश्चात् अभिलम्ब की और बिन्दु P तथा Q पर झुकने के बाद चालक के B’ से आता प्रतीत होता है। स्पष्टत: AB’ > AB जहां AB’ मछुआरे AB का प्रतिबिम्ब है।
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(d) यदि हम पानी से भरे हुए टैंक को तिरछा देखते हैं तो उसकी आभासी गहराई परिवर्तित होगी, इसकी आभासी गहराई वास्तविक गहराई से कम दिखेगी क्योंकि अपवर्तन के कारण उसका पैदा ऊपर उठता हुआ प्रतीत होता है।

(e) हाँ, हीरे का अपवर्तनांक लगभग 2.42 होता है, जो सामान्य काँच के अपवर्तनांक (n = 1.5) से काफी क्रान्तिक कोण लगभग 24 है जो काँच के अधिक होता है हीरे का क्रान्तिक कोण की अपेक्षा काफी कम है। एक हीरे को तराशने वाला इसके ऊपर अधिक परास के आपतन कोण 24° से 90° का लाभ उठाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रकाश हीरे के पटल पर 24° से अधिक कोण पर आपतित हो. यह पूर्ण आन्तरिक परावर्तन इसके बहुत से पटलों से निकलने से पहले भुगतता है। इससे हीरे में चमकने का प्रभाव उत्पन्न होता है।

प्रश्न 9.19.
किसी कमरे की एक दीवार पर लगे विद्युत बल्ब का किसी बड़े आकार के उत्तल लेन्स द्वारा 3m दूरी पर स्थित सामने की दीवार पर प्रतिबिंब प्राप्त करना है। इसके लिए उत्तल लेन्स की अधिकतम फोकस दूरी क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
लेन्स के सूत्र से
\(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\) …………. (I)
दिया गया है:
– u + v = 3 चिन्ह परिपाटी के अनुसार
∴ v = 3 + u …..(ii)
समीकरण (i) से
\(\frac{1}{3+u}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
या \(\frac{u-3-u}{(3+u)(u)}\) = \(\frac{1}{f}\)
या f = \(\frac{u^2+3 u}{-3}\)
f के अधिकतम के लिए df/du = 0

या -1/3(u2+3) = 0
या (2u+3) = 0
या u = -3/2
समीकरण (ii) से v = 3 – 3/2 = 3/2
u तथा v का मान समीकरण (i) में रखने पर
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∴ इस कार्य के लिए लेन्स की वांछित अधिकतम फोकस दूरी 3/4m अर्थात् fmax = 0.75m
द्वितीय विधि; माना लेन्स की फोकस दूरी है, तो
f = a2-b2/4a
जहाँ पर a = v + u (वस्तु और प्रतिबिम्ब की बीच की दूरी)
b = (v – u) (लेन्स की दोनों स्थितियों के मध्य दूरी)
अधिकतम फोकस दूरी के लिए
∴ fmax = \(\frac{\mathrm{a}^2-0}{4 \mathrm{a}}\) = \(\frac{a^2}{4 a}\) = \(\frac{a}{4}\)
fmax = \(\frac{3}{4}\) = 0.75m
या fmax = 0.75m

प्रश्न 9.20.
किसी परदे को बिंब से 90 cm दूर रखा गया है। परदे पर किसी उत्तल लेन्स द्वारा उसे एक-दूसरे से 20 cm दूर स्थितियों पर रखकर दो प्रतिबिंब बनाए जाते हैं। लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
– u + v = 90
=> v = 90 + u
चिन्ह परिपाटी के अनुसार …..(i)
लेन्स का सूत्र
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)
समीकरण (i) तथा (ii) से
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या – 90f = 90u + u
या u2 + 90u + 90f = 0 ……… (iii)
समीकरण (iii) u में द्विघात समीकरण है। माना इस समीकरण के मूल u1 तथा u2 है।
∴ मूलों का योग
u1 + u2 = – 90 …..(iv)
मूलों का गुणनफल
u1u2 = 90f ……(V)
दिया गया है:
U1 – U2 = 20 …..(vi)
समीकरण (iv) तथा (vi) को हल करने पर (जोड़ने पर)
2u1 = – 90 + 20 = -70
⇒ u1 = -70/2 = -35 cm
घटाने पर
2u2 = – 90 – 20 = – 110
या
U2 = -110/2 = -55cm
अब
u1u2 = 90f
(-35) × (-55 ) = 90f
या
f = \(\frac{35 \times 55}{90}\) = 21.4cm
अतः लेन्स की फोकस दूरी 21.4 cm
द्वितीय विधि:
दिया है:
a = 90cm, b = 20
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अतः फोकस दूरी f = 21.4 cm

प्रश्न 9.21.
(a) प्रश्न 9.10 के दो लेन्सों के संयोजन की प्रभावी फोकस दूरी उस स्थिति में ज्ञात कीजिए जब उनके मुख्य अक्ष संपाती हैं, तथा ये एक-दूसरे से 8 cm दूरी पर रखे हैं क्या उत्तर आपतित समांतर प्रकाश पुंज की दिशा पर निर्भर करेगा ? क्या इस तंत्र के लिए प्रभावी फोकस दूरी किसी भी रूप में उपयोगी है?
(b) उपरोक्त व्यवस्था (a) में 1.5 cm ऊँचा कोई बिंब उत्तल लेन्स की ओर रखा है। बिंब की उत्तल लेन्स से दूरी 40 cm है। दो लेन्सों के तंत्र द्वारा उत्पन्न आवर्धन तथा प्रतिबिंब का आकार ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(a) (i) माना कि कोई समान्तर प्रकाश पुंज बायीं ओर से पहले उत्तल लेन्स पर आपतित होता है। तब
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तथा समान्तर प्रकाश पुंज दो बायीं ओर से (420 – 4 = 416 cm) प्रतीत होता है।
लेन्सों में तंत्र के मध्य बिन्दु की दूर स्थित बिन्दु से अपसरित होता इस प्रकार हम निष्कर्ष निकालते हैं कि उत्तर इस बात पर निर्भर है कि समान्तर किरण पुंज किस दिशा में आपतित है; क्योंकि दोनों स्थितियों में दूरियाँ भिन्न हैं। इस स्थिति में प्रभावी फोकस दूरी का विचार भी उपयोगी नहीं है।
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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 9.22.
60° अपवर्तन कोण के प्रिज्म के फलक पर किसी प्रकाश किरण को किस कोण पर आपतित कराया जाए कि इसका दूसरे फलक से केवल पूर्ण आंतरिक परावर्तन ही हो? प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.524 है।
उत्तर:
दिया गया है:
प्रिज्म का कोण = A = 60°
प्रिज्म के द्रव्य का अपवर्तनांक= n = 1.524
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 23
जब प्रकाश किरण PQ फलक AB पर आपतित होती है तो यह फलक AC पर पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है और फलक AC पर कोण पर आपतित होगी जो प्रिज्म के पदार्थ के क्रान्तिक कोण के तुल्य है।
अब 60° + 90° – r + 90° i = 180°
या 240° – r – ic = 180°
या r = 60° – ic
अब
sin ic = 1/n = 1/1.524
ic = sin-1(1/1524) = sin-1(0.6562) = 41°
r = 60° – 41° = 19°
स्नेल नियम का प्रयोग करने
n = sini/sinr
∴ sin i = sin 19° x 1.524
= 0.3256 x 1.524
= 0.4962
या i = sin-1 (0.4962 ) = 29.75°
∴ i = 30°

प्रश्न 9.23.
कोई कार्ड शीट जिसे 1mm साइज के वर्गों में विभाजित किया गया है, को 9 cm दूरी पर रखकर किसी आवर्धक लेन्स (9 cm फोकस दूरी का अभिसारी लेन्स) द्वारा उसे नेत्र के निकट रखकर देखा जाता है।
(a) लेन्स द्वारा उत्पन्न आवर्धन (प्रतिबिंब – साइज / वस्तु-साइज) क्या है? आभासी प्रतिबिंब में प्रत्येक वर्ग का क्षेत्रफल क्या है?
(b) लेन्स का कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) क्या है?
(c) क्या (a) में आवर्धन क्षमता (b) में आवर्धन के बराबर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(a) दिया गया है:
u = – 9 cm.
v = ?
f= 10cm.
लेन्स सूत्र से \(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)से
या \(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{-9}\) = \(\frac{1}{10}\)
या \(\frac{1}{v}\) + \(\frac{1}{9}\) = \(\frac{1}{10}\)
या \(\frac{1}{v}\) = \(\frac{1}{10}\) – \(\frac{1}{9}\) = \(\frac{9-10}{10 \times 9}\) = \(\frac{-1}{90}\)
या v = – 90cm.
लेन्स में उत्पन्न आवर्धन m = v/-u = -90/90
m = + 10 आभासी प्रतिबिम्ब
आभासी प्रतिबिम्ब में प्रत्येक वर्ग का क्षेत्रफल = 1mm2
अर्थात्
1mm x 1 mm.
चूँकि लेन्स 10 का रैखिक आवर्धन उत्पन्न करता है, अतएव काल्पनिक प्रतिबिम्ब में प्रत्येक वर्ग का आकार (10 x 1 mm) x (10 x 1 mm) प्रतीक होगा।
या A = 100mm 2 = 1 cm2
(b) सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D = -25cm
∴ m = कोणीय आवर्धन = आवर्धन क्षमता
∴ आवर्धन क्षमता = D/u = -25/-9
= 25/9 = 2.8

(c) नहीं, किसी लेन्स द्वारा आवर्धन तथा किसी प्रकाशिक यंत्र की ..कोणीय आवर्धन (अथवा आवर्धन क्षमता) दो भिन्न अभिधारणाएँ हैं। कोणीय आवर्धन वस्तु के कोणीय आकार (जो कि प्रतिबिम्ब के आवर्धित होने पर प्रतिबिम्ब के कोणीय आकार के बराबर होता है) तथा उस स्थिति में वस्तु के कोणीय आकार ( जबकि उसे निकट बिन्दु 25 cm पर रखा जाता है) का अनुपात होता है, इस प्रकार, आवर्धन का परिमाण होता है तथा आवर्धन क्षमता (v/u) होती है। केवल तब जब प्रतिबिम्ब निकट बिन्दु पर (25/u) = 25 cm पर है तो केवल तभी दोनों राशियाँ समान होती हैं।

प्रश्न 9.24.
(a) अभ्यास 9.23 में लेन्स को चित्र से कितनी दूरी पर रखा जाए ताकि वर्गों को अधिकतम संभव आवर्धन क्षमता के साथ सुस्पष्ट देखा जा सके?
(b) इस उदाहरण में आवर्धन ( प्रतिबिंब साइज / वस्तु-साइज) क्या है?
(c) क्या इस प्रक्रम में आवर्धन, आवर्धन क्षमता के बराबर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(a) यहाँ, जब काल्पनिक प्रतिबिम्ब सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है तब अधिकतम आवर्धन क्षमता प्राप्त की जा सकती है।
v = – 25 cm, f = + 10cm, u = ?
लेन्स सूत्र से \(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\) से
\(\frac{1}{25}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{10}\)
या \(\frac{1}{25}\) – \(\frac{1}{10}\) = \(\frac{1}{u}\)
या \(\frac{-2-5}{50}\) = \(\frac{1}{u}\)
या u = -50/7 = -7.14cm = |7.14| cm

(b) आवर्धन m = v/u = ?
सूत्र m = v/u का उपयोग करने पर
m = v/u
= \(\frac{-25}{-50 / 7}\) = \(\frac{25 \times 7}{50}\) = \(\frac{7}{2}\)
या m = 3.5

(c) आवर्धन क्षमता M = ?
जब वस्तु को इस प्रकार रखा जाये कि प्रतिबिम्ब सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने
m = 1 + D/f द्वारा दिया जाता है।
m = 1 + 25/10 = 1 + 25 = 3.5
m = \(\frac{D}{|\mathrm{u}|}\) = \(\frac{25}{50 / 7}\) = \(\frac{25 \times 7}{50}\)
m = 3.5
हाँ, इस स्थिति में आवर्धन, आवर्धन क्षमता के तुल्य है, क्योंकि- प्रतिबिम्ब सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है।

प्रश्न 9.25.
अभ्यास 9.24 में वस्तु तथा आवर्धक लेन्स के बीच. कितनी दूरी होनी चाहिए ताकि आभासी प्रतिबिंब में प्रत्येक वर्ग 6.25 mm 2 क्षेत्रफल का प्रतीत हो? क्या आप आवर्धक लेन्स को नेत्र के अत्यधिक निकट रखकर इन वर्गों को सुस्पष्ट देख सकेंगे?
[नोट- अभ्यास 9.23 से 9.25 आपको निरपेक्ष साइज में आवर्धन तथा किसी यंत्र की आवर्धन क्षमता (कोणीय आवर्धन) के बीच अंतर को स्पष्टतः समझने में सहायता करेंगे।]
हल
दिया गया है:
वस्तु का क्षेत्रफल = 1mm2
∴ h = वस्तु का आकार = 1mm
प्रतिबिम्ब का क्षेत्रफल = 6.25 mm2
∴ h’ = प्रतिबिम्ब का आकार
= √6.25 = 2.5mm
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 24
लेकिन 2v = 5u
∴ 2v = 5 × (-6)
v = -30/2 = -15 cm
आभासी प्रतिबिम्ब सामान्य निकट बिन्दु (25 cm) से भी पास बनता है तथा इसे नेत्र स्पष्ट नहीं देख सकता।

प्रश्न 9.26.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(a) किसी वस्तु द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण आवर्धक लेन्स द्वारा उत्पन्न आभासी प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण के बराबर होता है। तब फिर किन अर्थों में कोई आवर्धक लेन्स कोणीय आवर्धन प्रदान करता है?
(b) किसी आवर्धक लेन्स से देखते समय प्रेक्षक अपने नेत्र को लेन्स से अत्यधिक सटाकर रखता है। यदि प्रेक्षक अपने नेत्र को पीछे ले जाए तो क्या कोणीय आवर्धन परिवर्तित हो जाएगा ?
(c) किसी सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है तब हमें अधिकाधिक आवर्धन क्षमता प्राप्त करने के लिए कम से कम फोकस दूरी के उत्तल लेन्स का उपयोग करने से कौन रोकता है?
(d) किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स तथा नेत्रिका लेन्स दोनों ही की फोकस दूरी कम क्यों होनी चाहिए ?
(e) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखते समय सर्वोत्तम दर्शन के लिए हमारे नेत्र, नेत्रिका पर स्थित न होकर उससे कुछ दूरी पर होने चाहिए। क्यों ? नेत्र तथा नेत्रिका के बीच की यह अल्प दूरी कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:
(a) यदि प्रतिबिंब का निरपेक्ष आकार वस्तु के आकार से बड़ा भी है, तो भी प्रतिबिंब का कोणीय आकार वस्तु के कोणीय आकार के समान होता है। कोई आवर्धक लेन्स हमारी इस रूप में सहायता करता है : यदि आवर्धक लेन्स नहीं है तो वस्तु 25 cm से कम दूरी पर नहीं रखी जा सकती; आवर्धक लेन्स होने पर हम वस्तु को अपेक्षाकृत बहुत निकट रख सकते हैं। वस्तु निकट हो तो उसका कोणीय आकार 25 cm दूर रखने की तुलना में कहीं अधिक होता है। हमारे कोणीय आवर्धन पाने या उपलब्ध करने का यही अर्थ है।

(b) हाँ, यह थोड़ा कम होता है, क्योंकि नेत्र पर अंतरित कोण लेन्स पर अंतरित कोण से थोड़ा छोटा होता है। यदि प्रतिबिंब बहुत दूर हो तो यह प्रभाव नगण्य होता है (जब नेत्र को लेन्स से पृथक् रखते हैं, तो प्रथम वस्तु द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण तथा इसके प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण समान नहीं होते।)

(c) प्रथम, अत्यंत छोटे फोकस दूरी के लेन्सों की घिसाई आसान नहीं है। इससे अधिक महत्त्वपूर्ण बात है कि यदि आप फोकस दूरी कम करते हैं तो इससे विपथन ( गोलीय तथा वर्ण) बढ़ जाता है। अतः व्यवहार में, आप किसी सरल उत्तल लेन्स से 3 या अधिक की आवर्धन क्षमता नहीं प्राप्त कर सकते हैं। तथापि, किसी विपथन संशोधित लेन्स प्रणाली के उपयोग से इस सीमा को 10 या इसके सन्निकट कारक से बढ़ा सकते हैं।

(d) किसी नेत्रिका का कोणीय आवर्धन [ (25/fc) +1] (fecm में) होता है जिसके मान में के घटने पर वृद्धि होती है। पुनः अभिदृश्यक का आवर्धन से प्राप्त होता है जो अधिक होता है यदि |u0||f0| से कुछ अधिक हो सूक्ष्मदर्शी का उपयोग अति निकट की वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है। अतः |u0| कम होता है और तदनुसार भी

(e) नेत्रिका के अभिदृश्यक के प्रतिबिंब को निर्गम द्वारक’ कहते हैं। वस्तु से आने वाली सभी किरणें अभिदृश्यक से अपवर्तन के पश्चात् निर्गम द्वारक से गुजरती हैं। अतः हमारे नेत्र से देखने के लिए यह एक आदर्श स्थिति है। यदि हम अपने नेत्र को नेत्रिका के बहुत ही निकट रखें तो त्रिका बहुत अधिक प्रकाश का अधिग्रहण नहीं कर पाएगी तथा दृष्टि- क्षेत्र भी घट जाएगा। यदि हम अपने नेत्र को निर्गम द्वारक पर रखें तथा हमारे नेत्र की पुतली का क्षेत्रफल निर्गम द्वारक के क्षेत्रफल से अधिक या समान हो तो हमारे नेत्र अभिदृश्यक से अपवर्तित सभी किरणों को अभिगृहीत कर लेंगे। निर्गम द्वारक का सटीक स्थान सामान्यतः अभिदृश्यक एवं नेत्रिका के अंतराल पर निर्भर करता है जब हम किसी सूक्ष्मदर्शी से, इसके एक सिरे पर अपने नेत्र को लगाकर देखते हैं तो नेत्र एवं नेत्रिका के मध्य आदर्श दूरी यंत्र के डिजाइन में अंतर्निहित होती है।

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प्रश्न 9.27.
1.25 cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक तथा 5 cm फोकस दूरी की नेत्रिका का उपयोग करके वांछित कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता ) 30 X होता है। आप संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का समायोजन कैसे करेंगे?
उत्तर:
दिया गया है:
अभिदृश्यक की फोकस दूरी f0 = 1.25cm
नेत्रिका की फोकस दूरी = fc = 5 cm
कोणीय आवर्धन ( आवर्धन क्षमता) = m = 30
मान लीजिए कि सूक्ष्मदर्शी सामान्य उपयोग में है अर्थात् प्रतिबिम्ब 25 cm पर है। नेत्रिका का कोणीय आवर्धन
(m) = (1 + D/fe) = (1 + 25) = 6
माना अभिदृश्यक का कोणीय आवर्धन = mo
∴ m = m x me
m0 = m/me = 30/6 = 5
∴ mo = \(\frac{v_0}{-u_0}\)
5 = \(\frac{v_0}{-u_0}\)
या
Vo = – 5 uo
अभिदृश्यक के लिए लेन्स सूत्र का उपयोग करने पर
\(\frac{1}{v_0}\) – \(\frac{1}{u_o}\) = \(\frac{1}{f_o}\)
\(-\frac{1}{5 u_o}\) – \(\frac{1}{u_0}\) = \(\frac{1}{1.25}\)
या \(-\frac{6}{5 u_o}\) = \(\frac{100}{125}\) = \(\frac{4}{5}\)
या \(-\frac{30}{20}\) = -1.5cm
अर्थात् बिम्ब को अभिदृश्यक के सामने 1.5 cm दूरी पर रखना चाहिए।
∵ Vo = – 5 uo
= – 5 (- 1.5) = 7.5 cm
नेत्रक के लिए लेन्स सूत्र:
ve = – 25 cm, f = 5 cm
\(\frac{1}{v_e}\) – \(\frac{1}{u_e}\) = \(\frac{1}{f_c}\)
या \(\frac{1}{u_e}\) = \(\frac{1}{v_e}\) – \(\frac{1}{f_c}\)
= \(-\frac{1}{25}\) – \(-\frac{1}{5}\) = \(-\frac{6}{25}\)
∴ uc = \(-\frac{6}{25}\)
= -4.17 cm
∴ यौगिक सूक्ष्मदर्शी को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए कि अभिदृश्यक और नेत्र के बीच की दूरी
= |Vo| + |ue |
= 7.5 + 4.17
= 11.67 cm
अभिदृश्यक एवं नेत्रिका के बीच दूरी 11.67 cm होनी चाहिए। अपेक्षित आवर्धन प्राप्त करने के लिए वस्तु को अभिदृश्यक से 1.5 cm दूर रखना होगा।

प्रश्न 9.28.
किसी दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 140 cm तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 5.0 cm है। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए दूरबीन की आवर्धन क्षमता क्या होगी जब:
(a) दूरबीन का समायोजन सामान्य है (अर्थात् अंतिम प्रतिबिंब अनंत पर बनता है)।
(b) अंतिम प्रतिबिंब स्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी (25 cm) पर बनता है।
उत्तर:
दिया गया है:
अभिदृश्यक की फोकस दूरी = fo
∴ fo = 140cm
नेत्रिका की फोकस दूरी = fc
∴ fc = 5.0cm
(a) आवर्धन क्षमता का मान दूरदर्शी की सामान्य अवस्था में अर्थात् अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है।
m = fo/|fc| – 140 = 28
(b) जब प्रतिबिम्ब सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी पर बनता है। तब आवर्धन क्षमता का मान
m = \(\frac{f_o}{\left|f_e\right|}\) = \(\left(1+\frac{f_e}{D}\right)\)
= \(\frac{140}{5}\) \(\left(1+\frac{5}{25}\right)\)
28 × 6/5 = 33.6

प्रश्न 9.29.
(a) अभ्यास 9.28 ( a) में वर्णित दूरबीन के लिए अभिदृश्यकलेन्स तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी क्या है?
(b) यदि इस दूरबीन का उपयोग 3 km दूर स्थित 100m ऊँची मीनार को देखने के लिए किया जाता है तो अभिदृश्यक द्वारा बने मीनार के प्रतिबिंब की ऊँचाई क्या है?
(c) यदि अंतिम प्रतिबिंब 25 cm दूर बनता है तो अंतिम प्रतिबिंब में मीनार की ऊँचाई क्या है?
उत्तर:
(a) अभिदृश्यकलेन्स तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी
L = fc + fe
= 140 + 5 = 145 cm
(b) माना कि 100 in ऊँची मीनार AB द्वारा प्रेक्षण बिन्दु o पर बनाया गया कोण θ है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 25
h = 100m
b = 3 km = 3,000m
θ = h/b सम्बन्ध को प्रयोग करने पर
θ = 100/3,000 = 1/30 रेडियन ……………. (i)
माना अभिदृश्यक द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब की ऊँचाई x है।
∴ अभिदृश्यक द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब से बनाया कोण
= x/fo
= -x/140 ……………. (ii)
समीकरण (i) व (ii) को बराबर करने पर
1/30 = x/140
⇒ x = 140/30 = 14/3cm = 4.7cm
(c) नेत्रिका का आवर्धन me है।
me= 1 + D/fe
= 1 + 25/5 = 1 + 5 = 6
हम जानते हैं:
me = h/h = HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 26
∴ अन्तिम प्रतिबिम्ब की ऊँचाई = mc x x
= 6 x 14/3 = 28 cm

प्रश्न 9.30.
किसी कैसेग्रेन दूरबीन में चित्र में दर्शाए अनुसार दो दर्पणों का प्रयोग किया गया है। इस दूरबीन में दोनों दर्पण एक-दूसरे से 20mm दूर रखे गए हैं। यदि बड़े दर्पण की वक्रता त्रिज्या 220 mm हो तथा छोटे दर्पण की वक्रता त्रिज्या 140mm हो तो अनंत पर रखे किसी बिंब का अंतिम प्रतिबिंब कहाँ बनेगा?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 27
उत्तर:
अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या (अर्थात् बड़े दर्पण की) = R1
∴ R1 = – 220mm = -22cm
उत्तल दर्पण की वक्रता त्रिज्या (अर्थात् छोटे दर्पण की) = R2
∴ R2 = 140mm = 14 cm
यदि बड़े और छोटे दर्पणों की फोकस दूरी क्रमशः f1 तथा f2 हो तब
f1 = R1/2 = -22/2 = -11cm
और
f2 = R2/2 = 14/2 = 7cm.
बड़े दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब छोटे दर्पण के लिए आभासी बिम्ब का कार्य करता है।
दर्पणों के बीच पृथक्कीकरण d = 20 mm
= 2 cm.
चिन्ह परिपाटी के अनुसार यहाँ पर f1, R को vc लिया गया है।
∵ वस्तु अनन्त पर है ∴ u = ∞
जैसा कि रेखाचित्र में दिखाया गया है। वस्तु का अन्तिम प्रतिबिम्ब अभिदृश्यक दर्पण के पीछे बनता है, जिसे हम नेत्रक में से देखते हैं। अनन्त पर स्थित वस्तु से आती किरणें अभिदृश्यक के मुख्य फोकस पर मिलने को होती हैं, लेकिन इससे पहले ही कम फोकस दूरी का अवतल दर्पण बीच में आ जाता है।
अभिदृश्यक के लिए:
u = – ∞
फोकस दूरी f1 = 11 cm
v = ?
दर्पण समीकरण से
या \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
= \(-\frac{1}{11}\) – \(\frac{1}{∞}\) = \(-\frac{1}{11}\) + \(-\frac{1}{∞}\)
= \(-\frac{1}{11}\) + 0 = –\(-\frac{1}{11}\)
या v = – 11 cm = अभिदृश्यक से दूरी
उत्तल दर्पण से दूरी
= – (v + d)
= – (- 11 + 2) = + 9 cm.
यह उत्तल दर्पण के लिए काल्पनिक वस्तु का कार्य करता है।
अर्थात्
u’= 9cm.
f’ = 7 cm.
v’= ?
\(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\)
= \(\frac{1}{7}\) – \(=\frac{1}{9}\) = \(\frac{9-7}{63}\) =2/63
v’= 63/2 = 31.5 cm.
अर्थात् प्रतिबिम्ब 31.5 cm उत्तल दर्पण (छोटे वाले से) दूर बनता है।

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प्रश्न 9.31.
किसी गैल्वेनोमीटर की कुंडली से जुड़े समतल दर्पण पर लंबवत् आपतित प्रकाश (चित्र), दर्पण से टकराकर अपना पथ पुनः अनुरेखित करता है। गैल्वेनोमीटर की कुंडली में प्रवाहित कोई धारा दर्पण में 3.5° का परिक्षेपण उत्पन्न करती है। दर्पण के सामने 1.5m दूरी पर रखे परदे पर प्रकाश के परावर्ती चिन्ह में कितना विस्थापन होगा?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 28
उत्तर:
यहाँ पर हम जानते हैं कि परावर्तित किरणें दर्पण के घूर्णन कोण से दुगुने कोण पर विक्षेपित होती हैं। चित्र से हम देखते हैं कि जब दर्पण M से M’ स्थिति पर θ = 3.5° कोण से मोड़ा जाता है। परावर्तित किरण OB
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 29
∠2θ = 2 × 3.5° = 7° = ∠AOB से मुड़ जाती है।
समकोण त्रिभुज AOB में
tan 2θ = AB/AO
या tan 7° = d/1.5
या d = 1.5 × tan 7°
= 1.5 x 0.1228
= 0.1842 m
= 18.42 cm.

प्रश्न 9.32.
चित्र में कोई समोत्तल लेन्स (अपवर्तनांक 1.50) किसी समतल दर्पण के फलक पर किसी द्रव की परत के संपर्क में दर्शाया गया है। कोई छोटी सुई जिसकी नोक मुख्य अक्ष पर है, अक्ष के अनुदिश ऊपर-नीचे गति करादर इस प्रकार समायोजित की जाती है कि सुई की नोक का उलटा प्रतिबिंब सुई की स्थिति पर ही बने। इस स्थिति में सुई की लेन्स से दूरी 45.0 cm है। द्रव को हटाकर प्रयोग को दोहराया जाता है। नयी दूरी 30.0 cm मापी जाती है। द्रव का अपवर्तनांक क्या है?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 30
उत्तर:
दिया गया है कि
द्विउत्तल लेन्स की फोकस दूरी L1 f1 = 30 cm.
द्वि- उत्तल लेन्सों के संयोजन और समतल उत्तल द्रव लेन्स की
फोकस दूरी L2 F = 45 cm.
यदि L2 की फोकस दूरी f2 है तब
\(\frac{1}{f2}\) = \(-\frac{1}{F}\) – \(-\frac{1}{f1}\)
= \(\frac{1}{45}\) – \(\frac{1}{30}\) = \(\frac{2-3}{90}\) = \(-\frac{1}{90}\)
या f2 = – 90cm.
L1 लेन्स के लिए (काँच के लेन्स के लिए) R1 = R तथा R2
\(\frac{1}{30}\) = (15 – 1) \(\left(\frac{1}{R}-\frac{1}{-R}\right)\)
\(\frac{1}{30}\) = 0.5 x \(\frac{2}{R}\) = \(\frac{1}{R}\)
R = 30cm.
L2 लेन्स के लिए (द्रव लेन्स के लिए)
R1 = – R = – 30 cm
R2 = ∞
\(-\frac{1}{90}\) = (n – 1) \(\left(\frac{1}{-30}-\frac{1}{\infty}\right)\)
\(-\frac{1}{90}\) = (n – 1) \(\left(\frac{1}{-30}-0\right)\) = \(\frac{-(n-1)}{30}\)
⇒ 30/90 = n – 1
⇒ 1/3 = n – 1
⇒ 1/3 + 1 = n
⇒ 0.33 + 1 = n
n = 1.33

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें

प्रश्न 8.1.
चित्र में एक संधारित्र दर्शाया गया है जो 12 cm त्रिज्या की दो वृत्ताकार प्लेटों को 5.0 cm की दूरी पर रखकर बनाया गया है। संधारित्र को एक बाह्य स्रोत (जो चित्र में नहीं दर्शाया गया है) द्वारा आवेशित किया जा रहा है। आवेशकारी धारा नियत है और इसका मान 0.15A है।
(a) धारिता एवं प्लेटों के बीच विभवान्तर परिवर्तन की दर का परिकलन कीजिए।
(b) प्लेटों के बीच विस्थापन धारा ज्ञात कीजिए।
(c) क्या किरखोफ का प्रथम नियम संधारित्र की प्रत्येक प्लेट पर लागू होता है? स्पष्ट कीजिए।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें 1
उत्तर:
संधारित्र की वृत्तीय प्लेट की त्रिज्या
r = 12 cm
= 12 × 102 m
प्लेटों के बीच की दूरी d = 5 cm
= 5 × 102 m
आवेशकारी धारा
I = 0.15 A
∴ प्लेट का क्षेत्रफल
A = πr2
A = π × (12 × 102)2
= 144 x × 10-4 m2
(a) समान्तर प्लेट संधारित्र के लिए
C = ∈A/d
मान रखने पर
= \(\frac{8.85 \times 10^{-12} \times 144 \pi \times 10^{-4}}{5 \times 10^{-2}}\)
= \(\frac{8.85 \times 144 \times 3.14 \times 10^{-14}}{5}\)
= 80.03 × 10-13 F
= 8.01 × 10-12F
= 8.01 pF
हम जानते हैं:
Q = CV
∴ dQ/dt = Cdv/dt
या
I = C dV/dt
या
dV/dt = I/C
मान रखने पर:
dV/dt = \(\frac{0.15}{8.01 \times 10^{-12}}\)
= 1.87 × 1010 V/s

(b) प्लेटों पर विस्थापन धारा = ID = ?
हमें ज्ञात है कि
ID = d/dt (∈0 Φ)
= \(\epsilon_0 \frac{\mathrm{d} \phi_{\mathrm{E}}}{\mathrm{dt}}\)
जहाँ ΦE = लूप पर विद्युत अभिवाह है
= EA = q/∈0
∴ ID = ∈0d/dt (q/∈0)
= 0.15 A
अर्थात्
विस्थापन धारा = चालन धारा
(c) हाँ. संधारित्र की प्रत्येक प्लेट पर किरखोफ का पहला नियम सत्य है। धारा, चालन धारा और विस्थापन धारा के योग के बराबर है।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें

प्रश्न 8.2.
एक समान्तर प्लेट संधारित्र (चित्र) R = 6.0 cm त्रिज्या की दो वृत्ताकार प्लेटों से बना है और इसकी धारिता C = 100 pF है। संधारित्र को 230 V, 300 rad s-1 की (कोणीय) आवृत्ति के किसी स्रोत से जोड़ा गया है।
(a) चालन धारा का rms मान क्या है?
(b) क्या चालन धारा विस्थापन धारा के बराबर है?
(c) प्लेटों के बीच अक्ष से 3.0 cm की दूरी पर स्थित बिन्दु पर B का आयाम ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें 2
R = 6.0cm = 6 x 102 m F
C = 100 pF = 100 x 10-12
Vrms = 230 V
= 300 rad s-1
(a) चालन धारा का rms मान= Irms = ?
हम जानते हैं
Irms = Vrms/XC
या
मान रखने पर
Irms = 230 x 300 × 100 x 10-12
= 69 × 7
= 6.9 × 10-6 A
Irms = 6.9 A

(b) हाँ, एक समान्तर संधारित्र के लिए सदैव I= ID चाहे I (d.c.) या a.c. (समय में दोलनी) हो जिसे निम्न प्रकार से सिद्ध किया जा सकता है
ID = ∈0 d/dt (ΦE)
∈0 d/dt (ΦE)
या
ID = ∈0 dE/dt
= ∈0 d/dt(Q/∈0)
∵E = σ/∈0 = Q/∈0A
या ID = ∈0A × 1/∈0A dQ/dt = dQ/dt = I

(c) हम जानते हैं B = μ/2π r/R2 × ID
यदि
I = ID तब B = μ/2π r/R2I
यदि I = I0 = धारा का शीर्ष मान है, तब
B का आयाम = B का अधिकतम मान
B = μ/2π r/R2 × I0 = μ/2π r/R2 × √2 Irms
∵ Io = √2 Irms
यहाँ पर
Irms = 6.9 x 106 A
r = प्लेटों के बीच अक्ष से बिन्दु की दूरी = 3.0 cm = 3 × 102 m
मान रखने पर B = \(\frac{4 \pi \times 10^{-7} \times 1.414 \times 6.9 \times 10^{-6} \times 3 \times 10^{-2}}{2 \times 3.14 \times\left(6 \times 10^{-2}\right)^2}\)
= 1.63 x 10-11 T

प्रश्न 8.3.
10-10m तरंगदैर्घ्य की X- किरणों, 6800 Å तरंगदैर्ध्य के प्रकाश तथा 500 m की रेडियो तरंगों के लिए किस भौतिक राशि का मान समान होगा?
उत्तर:
तीनों ही विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं। निर्वात में इनका वेग एक समान होगा तथा यह प्रकाश के वेग c = 3 x 108 m/s मी./से. होगा।

प्रश्न 8.4.
एक समतल वैद्युतचुम्बकीय तरंग निर्वात में 2-अक्ष के अनुदिश चल रही है। इसके विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के सदिशों की दिशा के बारे में आप क्या कहेंगे? यदि तरंग की आवृत्ति 30 MHz हो, तो उसकी तरंगदैर्ध्य कितनी होगी?
उत्तर:
हम जानते हैं कि विद्युत चुम्बकीय तरंगें प्रकृति में अनुप्रस्थ होती हैं। यहाँ पर E है और Bxy तल में स्थित है और आपस में लम्बवत् है।
दिया है- तरंग की आवृत्ति
V = 30MHz
= 30 × 106 Hz
तरंग का वेग = c = 3 x 108 m/s
λ = ?
हम जानते हैं
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अतः तरंगदैर्घ्य का मान = 10m

प्रश्न 8.5.
एक रेडियो 7.5 MHz से 12 MHz बैंड के किसी स्टेशन से समस्वरित हो सकता है। संगत तरंगदैर्ध्य बैंड क्या होगा?
उत्तर:
दिया गया है – आवृत्ति v1 = 7.5 MHZ
= 7.5 × 106 Hz
V2 = 12 MHz
= 12 × 106 Hz
तरंग का वेग c = 3 x 108 m/s
माना संगत तरंगदैर्ध्य λ1 व λ2 है।
∴ λ1 = c/v1 = \(\frac{3 \times 10^8}{7.5 \times 10^6}\) =40 m
इसी तरह से
λ2 = c/v2 = \(\frac{3 \times 10^8}{12 \times 10^6}\) = 25cm
अतः तरंगदैर्घ्य बैंड स्टेशन 25m से 40m बैंड में है।

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प्रश्न 8.6.
एक आवेशित कण अपनी माध्य साम्यावस्था के दोनों ओर 109 Hz आवृत्ति से दोलन करता है। दोलक द्वारा जनित वैद्युत चुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति कितनी है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि एक त्वरित कण वैद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करता है। एक निश्चित कम्पन आवृत्ति से कम्पित आवेशित कण (त्वरित आवेश) कम्पनी विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है जो कम्पनशील चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह दोनों कम्पनशील क्षेत्र एक-दूसरे को उत्पन्न करते हैं। वैद्युत चुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति कम्पनशील आवेशित कण की आवृत्ति के बराबर है जिसका मान 109 Hz है।

प्रश्न 8.7.
निर्वात में एक आवर्त वैद्युत चुम्बकीय तरंग के चुम्बकीय क्षेत्र वाले भाग का आयाम Bg = 510 nT है विद्युत क्षेत्र वाले भाग का आयाम क्या है?
उत्तर:
दिया गया है:
Bo = 510nT निर्वात में चुम्बकीय क्षेत्र वाले भाग का आयाम
= 510 × 109 T
निर्वात में तरंग का वेग = c = 3 x 108 m/s
निर्वात में तरंग के विद्युत क्षेत्र वाले भाग का आयाम = E0 = ?
हम जानते हैं कि वैद्युत चुम्बकीय तरंगों के लिए
c = E0/B0
या
मान रखने पर
Eg c= Bo
Eg = cBo
Eg = 3 x 108 x 510 x 10-9
= 153 V/m

प्रश्न 8.8.
कल्पना कीजिए कि एक वैद्युतचुम्बकीय तरंग के विद्युत क्षेत्र का आयाम E = 120 N/C है तथा इसकी आवृत्ति v = 50.0 MHz है। (a) Boo, k तथा 2 ज्ञात कीजिए (b) E तथा B के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
विद्युत क्षेत्र का आयाम
= Eg = 120N/C
आवृत्ति v = 500MHz
= 50 × 106 Hz
तरंग का वेग = c = 3 x 108 m/s

(a) B0. ω k तथा λ का मान
(i) B0 का मान
c = E0/B0
∴ B0 = E0/c
मान रखने पर
B0 = \(\frac{120}{3 \times 10^8}\)
B0 = 4 x 10-7 T
= 400 x 109 T
= 400 nT

(ii) का मान
ω = 2πv
= 2π x 50 x 106
= 3.14 x 108 रेडियन / से.

(iii) k का मान
k = 2π/λ = 2πv/vλ = 2πv/c = ω/c
k = \(\frac{3.14 \times 10^8}{3 \times 10^8}\)
= 1.05 रेडियन / मी.

(iv) λ का मान
c = vλ
λ = c/v = \(\frac{3 \times 10^8}{50 \times 10^6}\) = 300/50m
λ = 6m

(b) माना वैद्युत चुम्बकीय तरंग x अक्ष की ओर गति करती है और है E और B y-अक्ष तथा 2-अक्ष की तरफ है। तब
E = Eosin(kx – ωt)j
= 120sin(1.05x – 3.14 x 108)j N / C
Bz = B0sin (kx – ωt)K
= 4 × 107 sin (1.05x – 3.14 x 108)t) KT

प्रश्न 8.9.
वैद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों की पारिभाषिकी पाठ्यपुस्तक में दी गई है। सूत्र E = hv ( विकिरण के एक क्वांटम की ऊर्जा के लिए फोटॉन) का उपयोग कीजिए तथा em वर्णक्रम के विभिन्न भागों के लिए eV के मात्रक में फोटॉन की ऊर्जा निकालिए। फोटॉन ऊर्जा के जो विभिन्न परिमाण आप पाते हैं वे वैद्युतचुम्बकीय विकिरण के स्रोतों से किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
सूत्र E = hv
उपर्युक्त सूत्र से फोटॉन की ऊर्जा ज्ञात करते हैं।
या
E = hc/λ
∴ आवृत्ति v = c/λ
फोटॉन ऊर्जा (λ = 1m के लिए)
E = \(\frac{6.63 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{1 \times 1.6 \times 10^{-19}} \mathrm{eV}\)
E = 1.243 x 10-6 ev
λ के अन्य मानों के लिए
E = \(\frac{1.243 \times 10^{-6}}{\lambda} \mathrm{eV}\)

(a) γ-किरणों के लिए
λ → 10-12 m
∴ E = \(\frac{1.243 \times 10^{-6}}{10^{-12}} \mathrm{eV}\)
E= 1.243 × 10-6
= 1.243 Mev

(b) X-किरणों के लिए λ → 10-9 m
∴ E = \(\frac{1.243 \times 10^{-6}}{10^{-9}} \mathrm{eV}\)
eV = 1.243 Kev

(c) दृश्य तरंगों के लिए
λ = 0.5 pum(5 x 10-7 m )
∴ E = \(\frac{1.243 \times 10^{-6}}{5 \times 10^{-7}}\)
= 2.48 ev

(d) सूक्ष्म तरंगों के लिए λ → 1 cm = (10-2m)
∴ E = \(\frac{1.243 \times 10^{-6}}{10^{-2}}\)
= 1.243 × 10-4 ev

(e) रेडियो तरंगों के लिए λ → 100
∴ E = 1.243 x 10-8 ev
y – किरणों का उत्सर्जन नाभिकीय अभिक्रियाओं में होता है अतः नाभिकीय ऊर्जा स्तरों में अन्तराल 1 MeV की कोटि का होता है। X-किरणें व दृश्य किरणें परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों के विभिन्न स्तरों में संक्रमण से उत्पन्न होती हैं। X किरणों के लिए संक्रमण भारी परमाणुओं के बाह्य ऊर्जा स्तरों से आन्तरिक ऊर्जा स्तरों में होता है जिनमें ऊर्जा अन्तराल 1 keV की कोटि का होता है। दृश्य तरंगों के लिए संक्रमण 2.5 eV ऊर्जा अन्तराल के स्तरों के मध्य होता है।

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें

प्रश्न 8.10.
एक समतल em तरंग में विद्युत क्षेत्र 2.0 x 1010 Hz आवृत्ति तथा 48 Vm 1 आयाम से ज्यावक्रीय रूप में दोलन करता है।
(a) तरंग की तरंगदैर्ध्य कितनी है?
(b) दोलनशील चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम क्या है ?
(c) यह दर्शाइए कि E क्षेत्र का औसत ऊर्जा घनत्व, B क्षेत्र के औसत ऊर्जा घनत्व के बराबर है।
[c = 3 x 108 m s-1]
उत्तर:
दिया गया है:
आवृत्ति v = 20 x 1010 Hz
E0 = 48V/m
λ = ?
Bo = ? और
c = 3 x 108 m/s
(a) तरंगदैर्ध्य
λ = c/v
= \(\frac{3 \times 10^8}{2 \times 10^{10}}\)
= 1.5 x 10-2m

(b)
Bo = E0/c
मान रखने पर Bo = \(\frac{48}{3 \times 10^8}T\)
B0 = 16 × 108 T = 1.6 x 107 T

(c) वैद्युत क्षेत्र में ऊर्जा घनत्व UE = 1/2∈0E2
चुम्बकीय क्षेत्र में ऊर्जा घनत्व UB = 1/2μ0 B2
ऊर्जा घनत्व UE = 1⁄2 ∈0 (CB)2
UE = 1⁄2∈0c2B2 = c2(1/2∈0B2)
लेकिन
c = \(\frac{1}{\sqrt{\mu_0 \epsilon_0}}\)
c2 = 1/μ0∈0
∴ UE = 1/μ0∈0 ((1/2∈0B2)
= 1/2μ0B2 = UB
∴ UE = UB
अतः E क्षेत्र का औसत ऊर्जा घनत्व B क्षेत्र के औसत ऊर्जा घनत्व के बराबर है।

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT):

प्रश्न 8.11.
कल्पना कीजिए कि निर्वात में एक वैद्युतचुम्बकीय तरंग का विद्युत क्षेत्र
E = { ( 3.1 N/C) cos [ ( 1.8rad/m) y + (5.4 x 106 rad/s) t]}} i है।
(a) तरंग संचरण की दिशा क्या है?
(b) तरंगदैर्घ्य λ कितनी है?
(c) आवृत्ति v कितनी है?
(d) तरंग के चुम्बकीय क्षेत्र सदिश का आयाम कितना है?
(e) तरंग के चुम्बकीय क्षेत्र के लिए व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
(a) निर्वात में एक वैद्युत चुम्बकीय तरंग का विद्युत क्षेत्र
E = {(3.1 N/C) cos [ ( 1.8 rad/m) y + (5.4 x 106 rad/s) × t]} i
E के लिए यह व्यंजक है जिसका प्रकार
E = E0 cos (ky + ωt)i प्रकार का है।
जहाँ वैद्युत क्षेत्र i के अनुदिश है अर्थात् x अक्ष के अनुदिश है। E की समीकरण में cos कारक के अन्दर (ky + ωt) का प्रकार है
जो कि तरंग संचरण, ऋणात्मक y-अक्ष के अनुदिश प्रदर्शित करता है।
अर्थात् – j

(b) É = E0 cos (ky + ω t) i से दिए गए समीकरण की तुलना करने पर
E0 = 3.1 N/C, k = 1.8rad/m
ω = 5.4 × 106 rad/s
k = 2π/λ , λ = 2π/k
= 2 x 3314/18
λ = 3.5 m

(c) आवृत्ति v = ω/2π = \(\frac{5.4 \times 10^6}{2 \times 3.14}\)Hz
= 859.87 kHz = 860 kHz

(d) B0 = E0/C = \(\frac{3.1}{3 \times 10^8}\) = 1.03 × 10T

(e) B = Bo cos (ky + ωt) k
B = 10.3 × 109 cos (1.8y + 54 x 106t) T

प्रश्न 8.12.
100 W विद्युत बल्ब की शक्ति का लगभग 5% दृश्य विकिरण में बदल जाता है।
(a) बल्ब से 1m की दूरी पर,
(b) 10m की दूरी पर दृश्य विकिरण की औसत तीव्रता कितनी है?
यह मानिए कि विकिरण समदैशिकतः उत्सर्जित होता है और परावर्तन की उपेक्षा कीजिए।
उत्तर:
विद्युत शक्ति दृश्य विकिरण में बदलती है
शक्ति = P = 5/100 × 100 W = 5W
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें 4
तीव्रता = p/4πr2
(a) तीव्रता = \(\frac{5}{4 \times 3.14 \times 1 \times 1}\)
= 0.4Wm-2
(b) तीव्रता = \(\frac{5}{4 \times 3.14 \times 10 \times 10}\) Wm-2
= 0.004 Wm-2

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें

प्रश्न 8. 13.
em वर्णक्रम के विभिन्न भागों के लिए लाक्षणिक ताप परिसरों को ज्ञात करने के लिए T = 0.29cm K सूत्र का उपयोग कीजिए जो संख्याएँ आपको मिलती हैं, वे क्या बताती हैं? हल- हम जानते हैं कि प्रत्येक वस्तु किसी क्षेत्र में T ताप पर सभी तरंगदैर्घ्य के विकिरण उत्सर्जित करती है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि यह तरंगदैयों का सतत स्पेक्ट्रम उत्पन्न करती है।
हल:
हम जानते हैं कि प्रत्येक वस्तु किसी क्षेत्र में T ताप पर सभी तरंगदैर्घ्य के विकिरण उत्सर्जित करती है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि यह तरंगदैर्घ्यों का सतत स्पेक्ट्रम उत्पन्न करती है। एक कृष्णिका के लिए तीन विस्थापन नियमानुसार दिए गए ताप T विकिरण की अधिकतम तीव्रता के संगत तरंगदैर्घ्य
एक कृष्णिका के लिए तीन विस्थापन नियमानुसार दिए गए ताप T विकिरण की अधिकतम तीव्रता के संगत तरंगदैर्ध्य
λm T = 0.29 cm K से दी जाती है।
या
T = 0.29/λ
यहाँ पर λm सेमी. में है।
λm = 1 μm = 10-6 m = 10-4 cm के लिए T
T = 0.29/10-4 2900K द्वारा दिया जाता है।
इसी प्रकार से दूसरी तरंगदैर्घ्य के लिए ताप को ज्ञात कर सकते हैं।
माना
λ = 5000 Å = 5000 × 10-10 m
= 5 x 10-5 cm तरंगदैर्घ्य के लिए
T = \(\frac{0.29}{5 \times 10^{-5}}\) = 29/5 × 1000
= 5800 K होना चाहिए।
नोट- पिण्ड कम ताप पर भी यह तरंगदैर्ध्य उत्पन्न करेगा परन्तु अधिकतम तीव्रता की नहीं।

प्रश्न 8. 14.
वैद्युतचुम्बकीय विकिरण से सम्बन्धित नीचे कुछ प्रसिद्ध अंक, भौतिकी में किसी अन्य प्रसंग में वैद्युतचुम्बकीय दिए गए हैं। स्पेक्ट्रम के उस भाग का उल्लेख कीजिए जिससे इनमें से प्रत्येक सम्बन्धित है।
(a) 21 cm (अंतरातारकीय आकाश में परमाण्वीय हाइड्रोजन द्वारा उत्सर्जित तरंगदैर्ध्य )
(b) 1057 MHz (लैंब – विचलन नाम से प्रसिद्ध, हाइड्रोजन में, पास जाने वाले दो समीपस्थ ऊर्जा स्तरों से उत्पन्न विकिरण की आवृत्ति)
(c) 2.7K [ सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को भरने वाले समदैशिक विकिरण से सम्बन्धित ताप ऐसा विचार जो विश्व में बड़े धमाके ‘बिग बैंग’ के उद्भव का अवशेष माना जाता है ]।
(d) 5890 – 5896 À (सोडियम की द्विक् रेखाएँ)
(e) 14.4 kev [5Fe नाभिक के एक विशिष्ट संक्रमण की ऊर्जा जो प्रसिद्ध उच्च विभेदन की स्पेक्ट्रमी विधि से संबंधित है ( मॉसबौर स्पेक्ट्रोस्कॉपी)]।
उत्तर:
(a) दिया गया है:
λ = 21 cm
वैद्युत चुम्बकीय तरंगों का यह तरंगदैर्घ्य रेडियो तरंगों के संगत है (जो कि कम तरंगदैर्घ्य अथवा उच्च आवृत्ति सिरे की ओर है ।) (b) दिया गया है
आवृत्ति v = 1057 MHz
v = 1057 × 106 Hz
अतः संगत तरंगदैर्ध्य
λ = c/v = \(\frac{3 \times 10^{10} \mathrm{~cm} / \mathrm{s}}{1057 \times 10^6 \mathrm{~Hz}}\)
λ = 28.4cm
अतः संगत तरंगदैर्घ्य λ = 28.4 cm से दी जाती है।
(c) T = 2.7 K
∴ वीन के विस्थापन के नियम
λmT = 0.29cm K
λm = 0.29/T = 0.29/2.7
λm = 0.11 cm.
यह क्षेत्र वैद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम की सूक्ष्म तरंग के संगत है।

(d) दिया गया है λ = 5890A – 5896 À जो सोडियम प्रकाश की द्विक् रेखाएँ हैं और यह दृश्य विकिरण (पीला) प्रकाश क्षेत्र में है।

(e) E = 14.4 Kev
= 14.4 × 103 ev
= 14.4 × 103 × 1.6 x 10-19J
1 eV = 1.6 × 10-19 J
हम जानते हैं:
E = hv
आवृत्ति v = E/h
मान रखने पर V = \(\frac{14.4 \times 1.6 \times 10^3 \times 10^{-19}}{6.62 \times 10^{-34}}\)
v = 3 x 1017 Hz
= 3 x 1011 MHz
यह आवृत्ति जो कि X – किरणों की कोटि की है (अथवा सॉफ्ट Y-किरण) क्षेत्र

प्रश्न 8. 15.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
(a) लम्बी दूरी के रेडियो प्रेषित्र लघु-तरंग बैंड का उपयोग करते हैं। क्यों?
(b) लम्बी दूरी के TV प्रेषण के लिए उपग्रहों का उपयोग आवश्यक है क्यों?
(c) प्रकाशीय तथा रेडियो दूरदर्शी पृथ्वी पर निर्मित किए जाते हैं किन्तु X- किरण खगोलविज्ञान का अध्ययन पृथ्वी का परिभ्रमण कर रहे उपग्रहों द्वारा ही संभव है। क्यों?
(d) समतापमंडल के ऊपरी छोर पर छोटी-सी ओजोन की परत मानव जीवन के लिए निर्णायक है। क्यों?
(e) यदि पृथ्वी पर वायुमंडल नहीं होता तो उसके धरातल का औसत ताप वर्तमान ताप से अधिक होता या कम?
(f) कुछ वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि पृथ्वी पर नाभिकीय विश्व युद्ध के बाद ‘प्रचण्ड नाभिकीय शीतकाल’ होगा जिसका पृथ्वी के जीवों पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ेगा। इस भविष्यवाणी का क्या आधार होगा ?
उत्तर:
(a) लम्बी दूरी के रेडियो प्रेषित्र लघु तरंग बैंड का उपयोग इसलिए करते हैं चूँकि आयनमण्डल इन बैंडों की तरंगें परावर्तित करता है।
(b) लम्बी दूरी के TV प्रेषण के लिए उपग्रहों का उपयोग आवश्यक है क्योंकि दूरदर्शन संकेत आयन मण्डल द्वारा समुचित रूप से परावर्तित नहीं होते हैं, अतः परावर्तन उपग्रहों द्वारा किया जाता है।
(c) प्रकाशीय तथा रेडियो दूरदर्शी पृथ्वी पर निर्मित किए जाते हैं, किन्तु X – किरण खगोल विज्ञान का अध्ययन पृथ्वी का परिभ्रमण कर रहे उपग्रहों द्वारा ही संभव है क्योंकि वायुमंडल X-किरणों को अवशोषित करता है जबकि दृश्य और रेडियो तरंगें इन्हें बेध सकती हैं।
(d) समतापमण्डल के ऊपरी छोर पर छोटी-सी ओजोन की परत मानव जीवन के लिए निर्णायक है क्योंकि यह सूर्य से उत्सर्जित पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर लेती है और पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने से रोकती है और जीवन को नष्ट होने से बचाती है।

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HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा

प्रश्न 7.1.
एक 100 52 का प्रतिरोधक 220 V 50Hz आपूर्ति से संयोजित है।
(a) परिपथ में धारा का rms मान कितना है?
(b) एक पूरे चक्र में कितनी नेट शक्ति व्यय होती है?
उत्तर:
हल दिया गया है-
R = 10052
Erms = 220 V
आवृत्ति f = 50 Hz
(a) परिपथ में धारा का mms मान होगा
Irms = \(\frac{E_{\text {mws }}}{R}\)
= \(\frac{220}{100}\) = 2. 2A

(b) शक्ति व्यय (P) हुई = ?
P= Irms × Erms
= 2.2 x 220
= 484 W प्रति चक्र

प्रश्न 7.2.
(a) ac आपूर्ति का शिखर मान 300v है। rms वोल्टता कितनी है?
(b) ac परिपथ में धारा का rms मान 10 A है शिखर धारा कितनी है?
उत्तर:
हल दिया गया है- E0 = 300 V
Erms = ?
Irms= 10 A
I0 = ?

(a) हम जानते हैं – Erms = \(\frac{E_0}{\sqrt{2}}\)
= 0.707 × 300
= 212.100
= 212.1 V प्राप्त करते हैं।

(b) Irms = \(\frac{\mathrm{I}_0}{\sqrt{2}}\)
∴ I0 = \(\sqrt{2} I_{\mathrm{rms}}\)
= √2 × 10
= 1.414 × 10 = 14.14 A

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.3.
एक 44 mH की प्रेरक कुण्डली को 220 V, 50 परिपथ में धारा के rms मान को ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
हल दिया गया है-
L = 44 mH = 44 x 10-3 H
Erms = 220 V
f = 50 Hz
Irms = ?
XL = Lω
= L × 2πf
XL = 44 × 10-3 × 2 × \(\frac{22}{7}\) × 50Ω
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 1

प्रश्न 7.4.
एक 60 µF का संधारित्र 110 V, 60 Hz ac आपूर्ति से जोड़ा गया है। परिपथ में धारा के rms मान को ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
हल दिया गया है-
C = 60 µF = 60 × 10-6 F
Erms = 110 V
f = 60 Hz
Irms = ?
\(I_{\mathrm{rms}}=\frac{\mathrm{E}_{\mathrm{rms}}}{X_{\mathrm{C}}}=\omega C \mathrm{E}_{\mathrm{rms}}\)
Irms = 2πfC Erms
= 2 × 3.14 × 60 x 60 x 10 x 110
= 2.49 A

प्रश्न 7.5
प्रश्न 7.3 व 7.4 में एक पूरे चक्र की अवधि में प्रत्येक परिपथ में कितनी नेट शक्ति अवशोषित होती है? अपने उत्तर का विवरण दीजिए।
उत्तर:
हल – संधारित्र एवं प्रेरण कुण्डली के लिये वोल्टता और धारा के
मध्य कलान्तर Φ = ± \(\frac{\pi}{2}\) अतः एक पूरे चक्र में शक्ति व्यय
P = Erms Irms cos Φ
P = Erms Irms cos \(\left( \pm \frac{\pi}{2}\right)\) = 0
यहाँ पर Φ = \(\frac{\pi}{2}\)
∴ cos Φ = cos \(\frac{\pi}{2}\) = 0
∴ Pav = 0 प्रत्येक स्थिति के लिए

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.6.
एक LCR परिपथ की, जिसमें L=2.0 H, C = 32 µF तथा R = 10 Ω अनुनाद आवृत्ति ωr परिकलित कीजिए। इस परिपथ के लिए Q का क्या मान है?
उत्तर:
हल-दिया गया है-
L = 2.0 H
C = 32 µF = 32 × 10-6F
तथा R = 10 Ω
अनुनाद आवृत्ति ωr = ?
इस परिपथ के लिए आवेश = Q = ?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 2

प्रश्न 7.7.
30 µF का एक आवेशित संधारित्र 27 mH की प्रेरण कुण्डली से जोड़ा गया है। परिपथ के मुक्त दोलनों की कोणीय आवृत्ति कितनी है?
उत्तर:
हल-दिया गया है-
c = 30 µF = 30 × 10-6F
L = 27 mH = 27 × 10-3 H
हम जानते हैं-
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 3

प्रश्न 7.8.
कल्पना कीजिए कि अभ्यास 7.7 में संधारित्र पर प्रारम्भिक आवेश 6 mC है। प्रारम्भ में परिपथ में कुल कितनी ऊर्जा संचित होगी? बाद में कुल ऊर्जा कितनी होगी?
उत्तर:
हल-दिया गया है-
q = 6 mC = 6 × 10-3C
C = 30 µF = 30 × 10-6F
फुल ऊर्जा संचित UE = ?
अतः प्रारम्भ में संचित ऊर्जा UE = [/latex]\frac{\mathrm{q}^2}{2 \mathrm{C}}[/latex]
मान रखने पर UE = \(\frac{1}{2}\left(\frac{\left(6 \times 10^{-3}\right)^2}{30 \times 10^{-6}}\right)\)
= \(\frac{36}{2 \times 30}=\frac{6}{10}\)
UE = 0.6 J
यदि हम परिपथ में ऊर्जा हास को शून्य मानें तो यह ऊर्जा बाद में प्रेरकत्व एवं संधारित्र में संचित ऊर्जाओं में विभक्त हो जायेगी, जिसका कुल मान एक समान रहेगा अर्थात् 0.6 जूल ही रहेगा।

प्रश्न 7.9.
एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ को, जिसमें R = 20 Ω, L=1.5 H तथा C = 35 µF, एक परिवर्ती आवृत्ति की 200 V ac आपूर्ति से जोड़ा गया है। जब आपूर्ति की आवृत्ति परिपथ की मूल आवृत्ति के बराबर होती है, तो एक पूरे चक्र में परिपथ को सथानान्तरित की गई माध्य शक्ति कितनी होगी?
उत्तर:
हल-दिया गया है
R = 20 Ω,
L = 1.5 H
C = 35 µF = 35 × 10-6 F
Erms = 200 V
आवृत्ति f = परिवर्ती
जब आपूर्ति की आवृत्ति परिपथ की प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर होती है तब अनुनाद होता है और उस स्थिति में XL =XC इस स्थिति में Z= R = 20 ओम होगा और Φ = 0°
चूँकि Z = \(\sqrt{R^2+\left(X_L-X_C\right)^2}\) होता है।
Ir.m.s = \(\frac{E_{\text {sms }}}{Z}=\frac{200}{20}\) = 10 A
एक पूरे चक्र में शक्ति स्थानान्तरित की गई है
= Erms × Irms
P = 200 V × 10 A
= 2000 W = 2 kW

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.10.
एक रेडियो को MW प्रसारण बैंड के एक खण्ड के आवृत्ति परास के एक ओर से दूसरी ओर (800 kHz से 1200 kHz) तक समस्वरित किया जा सकता है। यदि इसके LC परिपथ का प्रभावकारी प्रेरकत्व 200 µH हो, तो उसके परिवर्ती संधारित्र की परास कितनी होनी चाहिए? (संकेत-समस्वरित करने के लिए मूल आवृत्ति अर्थात् LC परिपथ के मुक्त दोलनों की आवृत्ति रेडियो तरंग की आवृत्ति के समान होनी चाहिए।)
उत्तर:
हल-दिया गया है-
आवृत्ति f1 = 800 kHz
= 8 × 10-5
आवृत्ति f2 = 1200 kz
= 12 × 105 Hz
L = 200 μH = 200 × 10-6H
= 2 × 10-4H, C = ?
हम जानते हैं कि अनुनाद की आवृत्ति
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 4

प्रश्न 7.11.
चित्र में एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ दिखाया गया है जिसे परिवर्ती आवृत्ति के 230 V के स्रोत से जोड़ा गया है। L = 5.0 H, C = 80 μF, R = 40 Ω
(a) ख्रोत की आवृत्ति निकालिए जो परिफ्थ में अनुनाद उत्पन्न करे।
(b) परिपथ की प्रतिबाधा ε तथा अनुनादी आवृत्ति पर धारा का आयाम निकालिए।
(c) परिपथ के तीनों चित्र अवयवों के सिरों पर विभवपात के rms मानों को निकालिए। दिखलाइए कि अनुनादी आवृत्ति पर LC संयोग के सिरों पर विभवपात शन्य है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 5
उत्तर:
हल-दिया गया है L = 50. H
C = 80 μF = 80 × 10-6F
R = 40 Ω
Erms = 230 V
(a) स्रोत की आवृत्ति f जो परिपथ में अनुनाद fr उत्पन्न करे
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 6

(b) माना अनुनाद पर परिपथ प्रतिबाधा Z है और Im धारा का आयाम = धारा का शीर्षमान तब
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 7

∴ I0 = Irms√2
= 5.75 × √2A
= 8. 13 A = 8.1 A
(c) प्रतिरोध के सिरों पर विभवपात का मान होगा
VR = Irms R
= 5. 75 × 50 × 5.0
Vrms 1437.5 V
इसी तरह से C के सिरों पर विभवपात का मान निकालने पर

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 8

C के सिरों पर विभवपात = L के सिरों पर विभवपात EL, EC के बराबर व विपरीत है। अतः अनुनादी आवृत्ति पर LC संयोग के सिरों पर विभवान्तर का मान शून्य होता है।

अतिरिक्त अभ्यास प्रश्न (NCERT)

प्रश्न 7.12
किसी LC परिपथ में 20 mH का एक प्रेरक तथा 50 μF का एक संधारित्र है जिस पर प्रारम्भिक आवेश 10 mC है। परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है। मान लीजिए कि वह क्षण जिस पर परिपथ बन्द किया जाता है t = 0 है।
(a) प्रारम्भ में कुल कितनी ऊर्जा संचित है? क्या यह LC दोलनों की अवधि में संरक्षित है?
(b) परिपथ की मूल आवृत्ति क्या है?
(c) किस समय पर संचित ऊर्जा
(i) पूरी तरह से वैद्युत है (अर्थात् वह संधारित्र में संचित है?
(ii) पूरी तरह से चुंबकीय है (अर्थात् प्रेरक में संचित है?
(d) किन समयों पर सम्पूर्ण ऊर्जा प्रेरक एवं संधारित्र के मध्य समान रूप से विभाजित है?
(e) यदि एक प्रतिरोधक को परिपथ में लगाया जाए तो कितनी ऊर्जा अंततः ऊष्मा के रूप में क्षयित होगी?
उत्तर:
हल-दिया गया है
L = 20 mH = 20 × 10-3 H
C = 50 μF = 50 × 10-6 F
q0 = 10 mC = 10 × 10-3 C
t = 0 पर q = q0
q0 = 10 × 10-3 C (प्रारम्भिक आवेश है)
तथा q = q0 cos ωt
(a) प्रारम्भ में कुल ऊर्जा का मान
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 9
हाँ L तथा C में संचित ऊर्जाओं का योग संरक्षित है यदि R = 0
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 10

(c) किसी भी क्षण, धारित्र पर आवेश
q = q0 cos ωt
= q0 cos \(\left(\frac{2 \pi}{T} \cdot t\right)\) से व्यक्त किया जाता है।

(i) t = 0, \(\frac{\Gamma}{2}\), T, \(\frac{3 \mathrm{~T}}{2}\) समयों पर
q = q0 (आरम्भ में दत्त अधिकतम आवेश)
∴ ऊर्जा धारित्र में संचित होती है। अतः यह पूर्णरूपेण वैद्युत ऊर्जा है क्योंकि इसका अधिकतम मान इन्हीं समयों पर होता है जहाँ
T = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = 6. 28 × 10-3 s
= 6. 28 ms

(ii) L में संचित ऊर्जा उस समय अधिकतम होगी जब C में वैद्युत ऊर्जा शून्य होगी।
अर्थात् q = 0
q उस समय शून्य होगा जब
cos ωt = cos \(\frac{\pi}{2}\) = 0
∴ t = \(\frac{T}{4}, \frac{3 \mathrm{~T}}{4}, \frac{5 \mathrm{~T}}{4}\) ……………… आदि समय पर q शून्य है।
अतः संचित ऊर्जा पूर्णरूपेण चुम्बकीय ऊर्जा है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 11
(e) यदि एक प्रतिरोधक को परिपथ में लगाया जाये तो LC दोलनों को अवमंदित कर देता है। उनका आयाम कम हो जाता है और अन्त में मर जाते हैं। इस स्तर पर कुल प्रारम्भिक ऊर्जा = 1.0 J ऊष्मा के रूप में क्षयित हो जाती है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.13.
एक कुण्डली को जिसका प्रेरण 0.50 H तथा प्रतिरोध 100 Ω है, 240 V व 50 Hz की एक आपूर्ति से जोड़ा गया है।
(a) कुण्डली में अधिकतम धारा कितनी है?
(b) वोल्टेज शीर्ष व धारा शीर्ष के बीच समय-पश्चता (time lag) कितनी है?
उत्तर:
हल-दिया गया है-
L = 0.50 H
R = 100 Ω
a.c. आपूर्ति की आवृत्ति f = 50 Hz
a.c. आपूर्ति का rms का मान = Erms = 240 V
∴ कोणीय आवृत्ति = ω = 2πf
= 2π × 50
= 100 π rad s-1
और E0 = √2Erms
= √2 × 240 V
(a) कुण्डली में अधिकतम धारा = I0 = ?

HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 12
(b) LR परिपथ के लिए
यदि E = E0 cos ωt
तब I = I0 cos ( ωt – Φ)
स्पष्ट है कि E अधिकतम t = 0 पर होगा और I अधिकतम ωt = Φ पर होगा
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 14

प्रश्न 7.14.
यदि परिपथ को उच्च आवृत्ति की आपूर्ति ( 240 V, 10 kHz ) से जोड़ा जाता है तो अभ्यास 7.13 (a) तथा (b) के उत्तर निकालिए। इससे इस कथन की व्याख्या कीजिए कि अति उच्च आवृत्ति पर किसी परिपथ में प्रेरक लगभग खुले परिपथ के तुल्य होता है। स्थिर अवस्था के पश्चात् किसी dc परिपथ में प्रेरक किस प्रकार का व्यवहार करता है?
उत्तर:
हल-दिया गया है-
Erms = 240 V
a. c. की आवृत्ति = f = 10 kHz
f = 10 × 103 Hz
f = 104 Hz
∴ ω = 2πf
= 2π × 104 rad s-1
और E0 = √2Erms
= √2 × 240V
L = 0.50 H, R = 100 Ω
∴ LR परिपथ की प्रतिबाधा.
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 15
स्पष्टतः उच्च आवृत्ति पर प्रेरणिक प्रतिघात XL = ωL अत्यधिक हो जाता है जिससे परिपथ में अत्यल्प मान की धारा प्रवाहित होती है तथा परिपथ लगभग खुले परिपथ के तुल्य होता है। dc परिपथ में ω = 0 अतः XL = 0 अतः प्रेरक एक शुद्ध चालक की तरह व्यवहार करता  है।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 16

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.15.
40 Ω प्रतिरोध के श्रेणीक्रम में एक 100 µF के संधारित्र को 110 V, 60 Hz की आपूर्ति से जोड़ा गया है।
(a) परिपथ में अधिकतम धारा कितनी होगी?
(b) धारा शीर्ष व वोल्टेज शीर्ष के बीच समय-पश्चता कितनी होगी?
उत्तर:
हल-CR परिपथ के लिए यदि E = E0 cos ωt तब
I = I0 cos (ωt – Φ)
जहाँ पर I0 = \(\frac{E_0}{\sqrt{R^2+\frac{1}{\omega^2 C^2}}}\)
और tan Φ = \(\frac{1}{\omega C R}\)
(a) दिया गया है – R = 40 Ω
C = 100 μF = 100 × 10-6 F
C = 10-4 F
Erms = 110 V, f = 60 Hz
ω = 2πf
= 2π × 60 = 120 π rad s-1
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 16

प्रश्न 7.16.
यदि परिपथ को 110 V, 12 kHz आपूर्ति से जोड़ा जाए तो प्रश्न. 7.15 (a) और (b) का उत्तर निकालिए। इससे इस कथन की व्याख्या कीजिए कि अति उच्च आवृत्तियों पर एक संधारित्र चालक होता है। इसकी तुलना उस व्यवहार से कीजिए जो किसी dc परिपथ में एक संधारित्र प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
हल-दिया गया है-
Erms = 110V, R = 40 Ω
C = 100 μF = 100 × 10-6 F = 10-4 F
f = 12 kHz = 12 × 103 Hz
∴ ω = 2πf
= 2π × 12 × 103 rad s-1
= 24π × 103 rad s-1
E0 = √2Erms
= √2 × 110V
(a) अधिकतम धारा I0
I0 = [/latex]\frac{E_0}{Z}[/latex] द्वारा दी जाती है।
यहाँ पर CR परिपथ के लिए Z का मान होगा-
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 17
(b) एक RC परिपथ में वोल्टता की कला, धारा की कला से Φ कोण से पीछे होती है
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 18
स्पष्टतः उच्च आवृत्ति पर संधारित्र एक चालक की तरह व्यवहार करता है जबकि दिष्ट धारा के लिये ω = 0 होने के कारण XC = \(\frac{1}{\omega C}\) = ∞ तथा दिष्ट धारा के लिये संधारित्र युक्त परिपथ एक खुला परिपथ होता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.17.
र्रोत की आवृत्ति को एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ के अनुनादी आवृत्ति के बराबर रखते हुए तीन अवयवो L,C तथा R को समान्तर क्रम में लगाते हैं। यह दर्शाइए कि समान्तर LCR परिपथ में इस आवृत्ति पर कुल धारा न्यूनतम है। इस आवृत्ति के लिए अभ्यास 7.11 में निर्दिष्ट र्रोत तथा अवयवों के लिए परिपथ की हर शाखा में धारा के rms मान को परिकलित कीजिए।
उत्तर:
हल-दिया गया है L = 5.0 H
C = 80 μF = 80 × 10-6 F
= 8 × 10-5 F
R = 40 Ω
समान्तर LCR परिपथ की प्रभावी प्रतिबाधा
\(\frac{1}{\mathrm{Z}}=\sqrt{\frac{1}{\mathrm{R}^2}+\left(\omega \mathrm{C}-\frac{1}{\omega \mathrm{L}}\right)^2}\) से प्रदर्शित करते हैं
जो कि ω = ω0 = \(\frac{1}{\sqrt{\mathrm{LC}}}\) पर न्यूनतम होगी
∴ω = ωr पर |Z| अधिकतम होगा। इसलिए कुल धारा का आयाम न्यूनतम होगा ।
समान्तर LCR परिपथ में I धारा IL, IC व IRके योग के बराबर होगी।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 19

प्रश्न 7.18.
एक परिपथ को जिसमें 80 mH का एक प्रेरक तथा 60 μF का संधारित्र श्रेणीक्रम में है, 230 V, 50 Hz की आपूर्ति से जोड़ा गया है। परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है।
(a) धारा का आयाम तथा rms मानों को निकालिए।
(b) हर अवयव के सिरों पर विभवपात के rms मानों को निकालिए।
(c) प्रेरक में स्थानान्तरित माध्य शक्ति कितनी है?
(d) संधारित्र में स्थानान्तरित माध्य शक्ति कितनी है?
(e) परिपथ द्वारा अवशोषित कुल माध्य शक्ति कितनी है?
(‘माध्य में यह समाविष्ट है’ कि इसे ‘पूरे चक्र’ के लिए लिया गया है।)
उत्तर:
हल-दिया गया है-
L = 80 mH = 80 × 10-3 H
= 8 × 10-2 H
C = 60 μF = 60 × 10-6 F
= 6 × 10-5 F
Erms = 230 V, f = 50 Hz
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 20

(b) L के सिरों पर Erms = Irms × ωL
= 8. 24 × 25. 14
= 207 V
C के सिरों पर Erms = Irms × \(\frac{1}{\omega C}\)
= 8. 24 × 53. 03
= 436.8 V
= 437 V
(c) L में धारा I चाहे कुछ भी हो, वास्तविक वोल्टता धारा से \(\frac{\pi}{2}\) अग्र है अतः C द्वारा उपभुक्त माध्य शक्ति शून्य है।
(d) C हेतु वोल्टता धारा के \(\frac{\pi}{2}\) पश्च है। पुनः C द्वारा उपभुक्त माध्य शक्ति शून्य है।

(e) चूँकि परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है। कुल औसत उपभुक्त
शक्ति =L द्वारा उपभुक्त माध्य शक्ति +C द्वारा उपभुक्त माध्य शक्ति = 0 शुन्य

प्रश्न 7.19.
कल्पना कीजिए कि अभ्यास 7.18 में प्रतिरोध 15 Ω है। परिपथ के हर अवयव को स्थानान्तरित माध्य शक्ति तथा सम्पूर्ण अवशोषित शक्ति को परिकलित कीजिए।
उत्तर:
हल-दिया गया है-R = 15 Ω
L = 80 mH = 8 × 10-2 H
C = 60 μF = 6 × -5 F
Erms = 230 V
f = 50 Hz
∴ ω 2πf = 2π × 50 = 100 π
∴LCR परिपथ की प्रतिबाधा = Z
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 21

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

प्रश्न 7.20. एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ को जिसमें
L = 0.12 H, C = 480 nF, R = 23 Ω, 230 V परिवर्ती आवृत्ति वाले स्रोत से जोड़ा गया है।
(a) र्रोत की वह आवृत्ति कितनी है जिस पर धारा आयाम अधिकतम है। इस अधिकतम मान को निकालिए।
(b) स्रोत की वह आवृत्ति कितनी है जिसके लिए परिपथ द्वारा अवशोषित माध्य शक्ति अधिकतम है।
(c) स्रोत की किस आवृत्ति के लिए परिपथ को स्थानान्तरित शक्ति अनुनादी आवृत्ति की शक्ति की आधी है?
उत्तर:
(d) दिए गए परिपथ के लिए Q कारक कितना है?
हल-दिया गया है- L = 0.12 H
C = 480 nF = 480 × 10-9 F
R = 23 Ω
Erms = 230 V
(a) जब धारा आयाम अधिकतम है, स्रोत आवृत्ति, अनुनादी आवृत्ति के बराबर होती है = ?
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 22
(b) जब आवृत्ति अनुनादी आवृत्ति के बराबर है परिपथ द्वारा अवशोषित माध्य शक्ति अधिकतम है और दी जाती है।
\(\mathrm{P}_{\max }=\frac{1}{2} \mathrm{I}_0^2 \mathrm{R}\)
= \(\frac{1}{2}\) × (14.14)2 × 23
= 2300 वाट (लगभग)
(c) ω = ωr + ∆ω
अवशोषित ऊर्जा, [/latex]\frac{1}{2}[/latex] शिखर मान के बराबर है अर्थात् 663 Hz पर ।
हम यह सिद्ध कर सकते हैं।
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 23

प्रश्न 7.21.
एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ के लिए जिसमें L = 3.0 H, C = 27 μF तथा R = 7.4 Ω अनुनादी आवृत्ति तथा Q कारक निकालिए। परिपथ के अनुनाद की तीक्ष्णता को सुधारने की इच्छा से ‘अर्द्ध उच्चिष्ठ पर पूर्ण चौड़ाई’ को 2 गुणक द्वारा घटा दिया जाता है। इसके लिए उचित उपाय सुझाइए।
उत्तर:
हल-दिया गया है- L = 3.0 H
C = 27 μF = 27 × 10-6 F
R = 7.4 Ω
आवृत्ति fr = ?, Q = ?
आवृत्ति fr = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{\mathrm{LC}}}\)
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 24

प्रश्न 7.22.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(a) क्या किसी ac परिपथ में प्रयुक्त तात्क्षणिक वोल्टता परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़े गए अवयवों के सिरों पर तात्क्षणिक वोल्टताओं के बीजगणितीय योग के बराबर होता है? क्या यही बात rms वोल्टताओं में भी लागू होती है?
(b) प्रेरण कुण्डली के प्राथमिक परिपथ में एक संधारित्र का उपयोग करते हैं।
(c) एक प्रयुक्त वोल्टता संकेत एक de वोल्टता तथा उच्च आवृत्ति के एक ac वोल्टता के अध्यारोपण से निर्मित है। परिपथ एक श्रेणीबद्ध प्रेरक तथा संधारित्र से निर्मित है। दर्शाइए कि dc संकेत C तथा ac संकेत L के सिरे पर प्रकट होगा ।
(d) एक लैंप से श्रेणीक्रम में जुड़ी चोक को एक de लाइन से जोड़ा गया है। लैंप तेजी से चमकता है। चोक में लोहे के क्रोड को प्रवेश कराने पर लैंप की दीप्ति में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। यदि एक ac लाइन से लैंप का संयोजन किया जाए तो तदनुसार प्रेक्षणों की प्रामुक्ति कीजिए ।
(e) ac मेंस के साथ कार्य करने वाली फ्लोरोसेंट ट्यूब में प्रयुक्त चोक कुण्डली की आवश्यकता क्यों होती है? चोक कुण्डली के स्थान पर सामान्य प्रतिरोधक का उपयोग क्यों नहीं होता है?
उत्तर:
(a) हाँ, यह rs वोल्टता के लिए सत्य नहीं है। चूँकि विभिन्न अवयवों के सिरों पर वोल्टता का मान समान कला में नहीं हो सकता है।
(b) जब परिपथ खण्डित किया जाता है तो उच्च प्रेरित धारा संधारित्र को आवेशित करने के लिए प्रयुक्त की जाती है जो चिंगारी (स्पार्क) का परिवर्जन करती है।
(c) दिष्ट धारा के लिए L की प्रतिबाधा उपेक्षणीय है और C की प्रतिबाधा बहुत अधिक (अनन्त) है। अतः दिष्ट धारा C के सिरे पर होती है। उच्च आवृत्ति प्रत्यावर्ती धारा के लिए L की प्रतिबाधा उच्च हो और C की बहुत कम अतः प्रत्यावर्ती धारा संकेत L के सिरे पर होता है।
(d) स्थायी अवस्था दिष्ट धारा के लिए L का कोई प्रभाव नहीं है, चाहे इसे लौह क्रोड के प्रयोग से क्यों न बढ़ाया जाए। प्रत्यावर्ती धारा के लिए लैम्प चोक की अतिरिक्त प्रतिबाधा के कारण धूमिल दिखाई पड़ेगा। यहाँ लौह क्रोड के विवेशन से चोक की प्रतिबाधा में वृद्धि होगी जिसके कारण बल्ब और अधिक धूमिल हो जाएगा।
(e) शक्ति का क्षय किए बिना एक चोक कुण्डली ट्यूब के परितः वोल्टेज को कम करता है। प्रतिरोधक ऊष्मा के रूप में शक्ति का क्षय करता है।

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प्रश्न 7.23.
एक शक्ति संप्रेषण लाइन अपचयी ट्रांसफार्मर में जिसकी प्राथमिक कुण्डली में 4000 फेरे हैं, 2300 वोल्ट पर शक्ति निवेशित करती है। 230 V की निर्गत शक्ति प्राप्त करने के लिए द्वितीयक में कितने फेरे होने चाहिए?
उत्तर:
हल- Vp = V निवेशित = 2300 V
Np =4000
Vs = 230 V
Ns = ?
हम जानते हैं- \(\frac{V_s}{V_p}=\frac{N_s}{N_p}\)
या Ns = \(\frac{V_S N_P}{V_P}\)
मान रखने पर- Ns = [/latex]\frac{230 \times 4000}{2300}[/latex] = 400
अतः द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या = 400

प्रश्न 7.24.
एक जल विद्युत शक्ति संयंत्र में जल दाब शीर्ष 300 m की ऊँचाई पर है तथा उपलब्ध जल प्रवाह 100 mg है। यदि टर्बाइन जनित्र की दक्षता 60% हो, तो संयंत्र से उपलब्ध विद्युत शक्ति का आकलन कीजिए, g= 9.8 m s-2
उत्तर:
हल दिया गया है-
दाब शीर्ष (h) = 300m
दक्षता η = 60%
प्रवाहित जल का आयतन प्रति सेकण्ड = 100 m3 s-1
अर्थात् v = 100 m3/s
8 = 9.8 m/s2
जल का घनत्व = 1000 kg/m3
प्रति सेकण्ड प्रवाहित जल का द्रव्यमान
m = आयतन x घनत्व
= 100 × 1000
= 105 kg/s
जल की स्थितिज ऊर्जा (p.E) = mgh
जहाँ पर m = 105 kg/s
P.E = 105 × 9.8 × 300
= 29.4 × 107 Js-1 या वाट
η = 60%
संयंत्र से उपलब्ध विद्युत शक्ति = 29.4 × 107 × \(\frac{60}{100}\)
= 17.64 × 107 वाट
= 176.4 MW

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प्रश्न 7.25.
440 V पर शक्ति उत्पादन करने वाले किसी विद्युत संयंत्र से 15 km दूर स्थित एक छोटे से कस्बे में 220 V पर 800 kW शक्ति की आवश्यकता है। विद्युत शक्ति ले जाने वाली दोनों तार की लाइनों का प्रतिरोध 0.5 Ω प्रति किलोमीटर है। कस्बे को उप-स्टेशन में लगे 4000 – 220 V अपचयी ट्रांसफार्मर से लाइन द्वारा शक्ति पहँचती है।
(a) ऊष्मा के रूप में लाइन से होने वाली शक्ति के क्षय का आकलन कीजिए।
(b) संयंत्र से कितनी शक्ति की आपूर्ति की जानी चाहिए, यदि क्षरण द्वारा शक्ति का क्षय नगण्य है।
(c) संयंत्र के उच्चायी ट्रांसफार्मर की विशेषता बताइए। हल-दिया गया है- दो तारों की लाइन की लम्बाई
उत्तर:
हल-दिया गया है- दो तारों की लाइन की लम्बाई = l = 15 × 2
l = 30 km.
तार की लाइन की इकाई लम्बाई का प्रतिरोध = 0.5 Ω/km.
दो तारों वाली लाइन का प्रतिरोध = R
R = 30 × 0.5
= 15 Ω
p = 800 kW
= 8 × 105 W
चूँकि 4000-220 V अपचायी परिणामित्र से शक्ति प्रदत्त है।
Erms = 4000 V = लाइन की प्राप्ति सिरे पर वोल्टता
माना लाइन धारा का मान = Irms = ?
p = Erms × Irms
⇒ Irms = \(\frac{\mathrm{P}}{\mathrm{E}_{\mathrm{rms}}}=\frac{8 \times 10^5}{4000}\)
⇒ Irms = 200 A
(a) लाइन में शक्ति हानि = \(\mathrm{I}_{\mathrm{rms}}^2 \mathrm{R}\)
= (200)2 × 15
= 40000 × 15
= 60 × 104 = 6 × 105
= 600 kW

(b) प्लान्ट द्वारा प्रदत्त शक्ति जबकि क्षरण के कारण कोई हानि नहीं है
= p + शक्ति हानि
= [ 800 + 600] × 103
= 1400 kW

(c) लाइन में वोल्टता-पात = Irms × R
= 20 × 15 = 300 V
∴ संयंत्र द्वारा विद्युत प्रदाय = प्राप्ति सिरे पर वोल्टता + लाइन में विभवपात
= 40000 + 300
= 7000 V

प्लान्ट 440 V पर शक्ति जनित करता है और इसे उपचायी भी करनी है जिससे लाइन में 3000 V पात के बाद भी शहर के विद्युत उपकेन्द्र में शक्ति 4000 V पर प्राप्त की जा सके।
∴ प्लान्ट पर उच्चायी परिणामित्र 440 V – 7000 V तक का उपलब्ध होना चाहिए।

प्रश्न 7.26.
ऊपर किए गए अभ्यास को पुन: कीजिए। इसमें पहले के ट्रांसफार्मर के स्थान पर 40,000-220 V का अपचयी ट्रांसफार्मर है। [पूर्व की भाँति क्षरण के कारण हानियों को नगण्य मानिए। यद्यपि अब यह सन्निकटन उचित नहीं है क्योंकि इसमें उच्च वोल्टता का संप्रेषण होता है]। अतः समझाइए कि क्यों उच्च वोल्टता संप्रेषण अधिक वरीय है?
हल-दिया गया है
Erms = 40000 V = 4 × 104 V
लाइन धारा = Irms = ?
शक्ति p = 800 kW = 8 × 105 W
∴Irms = \( \frac{P}{E_{\mathrm{rms}}}=\frac{8 \times 10^5}{4 \times 10^4}=20 \mathrm{~A}\)
(a) ऊष्मा के रूप में लाइन से होने वाली शक्ति का क्षय
= \(I_{\mathrm{rms}}^2 \times R\)
= (20)2 × 15
= 400 × 15 = 6000 w
= 6 kW
(b) संयंत्र द्वारा विद्युत प्रदाय = आवश्यक शक्ति + लाइन में शक्ति हानि
= 800 + 6 = 806 kW
(c) लाइन में विभवपात = Irms × R
= 20 × 15 = 300 V
प्रसारण के लिए वोल्टता = प्राप्ति सिरे पर वोल्टता + लाइन में विभवपात
= 40000 + 300
= 40300 V
संयंत्र के लिए उच्चायी ट्रांसफार्मर चाहिए 440 – 40300 V
स्पष्टीकरण-उच्च विभव पर \% शक्ति क्षय
HBSE 12th Class Physics Solutions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा 25
स्पष्टतः उच्च वोल्टता पर संचरण से शक्ति क्षय कम होती है अतः संप्रेषण में उच्च वोल्टता संप्रेषण को वरीयता दी जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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