Author name: Prasanna

HBSE 6th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अहह आः च

Haryana State Board HBSE 6th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अहह आः च Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Sanskrit Solutions रुचिरा Chapter 14 अहह आः च

अभ्यासः

अहह आः च HBSE 6th Class Sanskrit प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानां समुचितान् अर्थान् मेलयत

हस्तेअकस्मात्
सघा:पृथ्वीम्
सहसागगनम्
धनम्शीघ्रम्
आकाशम्करे
धराम्द्रविणम्

उत्तरम्:

हस्तेकरे
सघा:शीघ्रम
सहसाअकस्मात्
धनम्द्रविणम्
आकाशम्गगनम्
धराम्पृथ्वीम्

HBSE 6th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अहह आः च

Class 6 Sanskrit Chapter 14 Pdf HBSE प्रश्न 2.
मञ्जूषातः उचितं विलोमपदं चित्वा लिखत
प्रविशति, सेवकः, मूर्खः, नेतुम् नीचैः दुःखितः।
(क) चतुरः – …………
(ख) आनेतुम् – …………
(ग) निर्गच्छति – …………
(घ) स्वामी – …………
(ङ) प्रसन्नः – …………
(च) उच्चैः – …………
उत्तरम्:
(क) चतुरः – मूर्खः
(ख) आनेतुम् – नेतुम्
(ग) निर्गच्छति – प्रविशति
(घ) स्वामी – सेवकः
(ङ) प्रसन्नः – दुःखितः
(च) उच्चैः – नीचैः

Class 6 Sanskrit Chapter 14 अहह आः च HBSE प्रश्न 3.
मञ्जूषातः उचितम् अव्ययपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
इव, अपि, एव, च, उच्चैः।
(क) बालकाः बालिकाः …………………. क्रीडाक्षेत्रे क्रीडन्ति।
(ख) मेघाः …………………. गर्जन्ति ।
(ग) बकः हंसः ……………….. श्वेतः भवति।
(घ) सत्यम् ………………… जयते।
(ङ) अहं पठामि, त्वम् …………….. पठ।
उत्तरम्:
(क) च
(ख) उच्चैः
(ग) इव
(घ) एव
(ङ) अपि

HBSE 6th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अहह आः च

Class 6th Sanskrit Chapter 14 अहह आः च HBSE प्रश्न 4.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं लिखत
(क) अजीजः गृहं गन्तुं किं वाञ्छति?
(ख) स्वामी मूर्खः आसीत् चतुरः वा?
(ग) अजीजः कां व्यथां श्रावयति?
(घ) अन्या मक्षिका कुत्र दशति?
(ङ) स्वामी अजीजाय किं दातुं न इच्छति?
उत्तरम्:
(क) अजीजः गृहं गन्तुम् अवकाशं वाञ्छति।
(ख) स्वामी चतुरः आसीत्।
(ग) अजीजः वृद्धां व्यथां श्रावयति।
(घ) अन्या मक्षिका मस्तके दशति।
(ङ) स्वामी अजीजाय धनं दातुं न इच्छति।

Class 6 Chapter 14 Sanskrit अहह आः च HBSE प्रश्न 5.
निर्देशानुसारं लकारपरिवर्तनं कुरुत
यथा- अजीजः परिश्रमी आसीत्- (लट्लकारे) – अजीजः परिश्रमी अस्ति।
(क) अहं शिक्षकाय धनं ददामि। (लुट्लकारे) ………………….
(ख) परिश्रमी जनः धनं प्राप्स्यति। (लट्लकारे) ………………….
(ग) स्वामी उच्चैः वदति। (लङ्लकारे) ………………….
(घ) अजीजः पेटिकां गृह्णाति। (लुट्लकारे) ………………….
(ङ) त्वम् उच्चैः पठसि। (लोट्लकारे) ………………….
उत्तरम्:
(क) अहं शिक्षकाय धनं दास्यामि।
(ख) परिश्रमी जनः धनं प्राप्नोति।
(ग) स्वामी उच्चैः अवदत्।
(घ) अजीजः पेटिकां ग्रहीष्यति।
(ङ) त्वम् उच्चैः पठ।

HBSE 6th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अहह आः च

Sanskrit Class 6 Chapter 14 अहह आः च HBSE प्रश्न 6.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं लिखत
(क) स्वामी अजीजाय अवकाशस्य पूर्णं धनं ददाति।
(ख) अजीजः सरलः परिश्रमी च आसीत्।
(ग) अजीजः पेटिकाम् आनयति।
(घ) एकदा सः गृहं गन्तुम् अवकाशं वाञ्छति।
(ङ) पीडितः स्वामी अत्युच्चैः चीत्करोति।
(च) मक्षिके स्वामिनं दशतः।
उत्तरम्:
(i) (ख) अजीजः सरलः परिश्रमी च आसीत्।
(ii) (घ) एकदा सः गृहं गन्तुम् अवकाशं वाञ्छति।
(iii) (ग) अजीजः पेटिकाम् आनयति।
(iv) (च) मक्षिके स्वामिनं दशतः।
(v) (ङ) पीडितः स्वामी अत्युच्चैः चीत्करोति।
(vi) (क) स्वामी अजीजाय अवकाशस्य पूर्णं धनं ददाति।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें।
अथवा
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण की अवधारणा की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति का व्यक्ति सांस्कृतिक रूप से प्रसिद्ध समूहों के रीति रिवाजों तथा नाम का अनुकरण करके अपनी स्थिति ऊँची करता है। जिनका अनुकरण किया जा रहा होता है वह आर्थिक रूप से बेहतर होते हैं। जब अनुकरण करने वाले व्यक्ति या समूह की आर्थिक स्थित अच्छी होने लग जाए तो उसे भी प्रतिष्ठित समूह का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

आलोचना-
(i) सबसे पहले तो इसमें कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उर्ध्वगामी परिवर्तन करती है, इस बात को काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है। इस प्रक्रिया से केवल कुछ व्यक्तियों की स्थिति परिवर्तित होती है संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता है। इससे कुछ व्यक्ति तो असमानता वाली संरचना में अपनी स्थिति सुधार लेते हैं परंतु समाज में से भेदभाव तथा असमानता खत्म नहीं होते।

(ii) इस प्रक्रिया की आलोचना का दूसरा तथ्य यह है कि इस प्रक्रिया में उच्च जाति की जीवन शैली ऊँची तथा निम्न जाति की जीवन शैली निम्न होती है। इसलिए उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली अपनाने की इच्छा को प्राकृतिक ही मान लिया जाता है जो सभी में होती है।

(iii) तीसरी आलोचना यह है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ऐसी व्यवस्था को ठीक मानती है जो असमानता तथा भेदभाव पर आधारित है। इससे यह संकेत मिलता है कि पवित्रता तथा अपवित्रता के पक्षों को ठीक मान लिया जाए तथा उच्च जातियों द्वारा निम्नजातियों के प्रति भेदभाव उनका विशेषाधिकार है। इस प्रकार के दृष्टिकोण वाले समाज में समानता की कल्पना तो की ही नहीं जा सकती है। इस प्रकार असमानता पर आधारित समाज लोकतंत्र विरोधी ही है।

(iv) चौथी आलोचना में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से उच्च जातियों के रिवाजों, अनुष्ठानों तथा व्यवहार को स्वीकृति मिल जाती है तथा लड़कियों, महिलाओं की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। इस कारण ही कन्या मूल्य की जगह दहेज प्रथा तथा और समूहों के साथ जातिगत भेदभाव बढ़ गए है।

(V) इस प्रक्रिया के कारण निम्न जातियों की संस्कृति तथा समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ा हुआ मान लिया जाता था। जैसे कि उन द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्न, शर्मनाक माना जाता था तथा सभ्य नहीं माना जाता था। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे कि शिल्प तकनीकी योग्यता, अलग-अलग दवाओं की जानकारी, पर्यावरण तथा कृषिका ज्ञान इत्यादि को औद्योगिक युग में उपयोगी नहीं माना जाता।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है? चर्चा करें।
उत्तर:
भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण का संकल्प दिया है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में भारतीय समाज तथा संस्कृति में लगभग 150 वर्षों के अंग्रेज़ी शासन के परिणाम स्वरूप आए परिवर्तन है जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं …………….. जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा तथा मूल्य।”

पश्चिमीकरण के कई प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का अर्थ उस पाश्चात्य उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे से समूह ने अपनाया जो पहली बार पाश्चात्य संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय लोगों की उपसंस्कृति भी शामिल थी। इन्होंने पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों तथा जीवन शैली को अपनाने के साथ-साथ इनका समर्थन तथा विस्तार भी किया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछेक लोग ही थे जिन्होंने पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया तथा पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्ति नए उपकरणों का प्रयोग, कपड़ों, खाने पीने की चीज़ों, आदतों तथा तौर तरीकों में भी परिवर्तन थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि संपूर्ण भारत के मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा पश्चिमी चीज़ों का प्रयोग करता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमीकरण में किसी विशेष संस्कृति के बाहरी तत्त्वों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है। परंतु यह आवश्यक नहीं है कि वह प्रजातंत्र तथा सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों को भी मानते हों।

पश्चिमी संस्कृति का भारतीयों की जीवनशैली तथा चिंतन के अतिरिक्त भारतीय कला तथा साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा। बहुत से कलाकार जैसे कि रवि वर्मा, अविंद्रनाथ टैगोर, चंदूमेनन तथा बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने औपनिवेशिक स्थितियों के साथ कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कीं।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक परिवर्तन हआ तथा औपनिवेशिक काल में हमारा पश्चिम से संपर्क स्थापित हुआ। अगर हम कहें कि आज के समय में दो पीढ़ियों के विचारों में अंतर पाया जाता है तो यह पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।पश्चिमीकरण के कारण हमारे जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आया।

पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण पूर्व में भी हो सकता है परंतु पश्चिमीकरण का अर्थ केवल पश्चिम के कारण आए परिवर्तनों से है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
लघु निबंध लिखें

  • संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण
  • जाति और पंथीनिरपेक्षीकरण।

उत्तर:
(i) संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण-आजकल के आधुनिक समय में हम सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार को आमतौर पर परंपरा तथा आधुनिकता का मिश्रण कह देते हैं परंतु इसके अपने ही निर्धारित तत्त्व है। इस जटिल कार्य को आसान बनाने की आदत ठीक नहीं है।

असल में इससे यह भ्रांति भी पैदा हो जाती है कि भारत में एक ही प्रकार की परंपराएं पाई जाती है या थी। भारत में इन परंपराओं को दो प्रकार के गुणों से पहचाना जाता है-बाहुलता तथा तर्क-वितर्क की परंपरा। भारतीय परंपराओं तथा संस्कारों में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं तथा उन्हें बार-बार दोबारा परिभाषित किया जाता है। ऐसा 19वीं सदी के समाज सुधारकों ने किया तथा आज भी यह प्रक्रियाएं मौजूद है।

आधुनिक समाजों में पश्चिमीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से ही जिससे धर्म का प्रभाव कम हो जाता है। आधुनिकीकरण में सभी विचारक यह कहते हैं किस आधुनिक समाज अधिक पंथनिरपेक्ष होते है । में धार्मिक विचारों का ह्रास हो जाता है, धार्मिक संस्कारों में कमी आ जाती है तथा भौतिकता का प्रभाव बढ़ जाता है। यह कहा जाता है कि आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों तथा लोगों के बीच दूरी बढ़ रही है।

(ii) जाति और पंथनिरक्षीकरण-अगर ध्यान से देखा जाए तो जाति तथा पंथनिरपेक्षीकरण एक-दूसरे के विरोधी हैं। जाति प्रथा में धार्मिक विचारों को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। यह कहा जाता है कि धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों ने ही व्यक्तियों के कार्यों तथा समूहों को बाँट दिया था जिस कारण जाति प्रथा अस्तित्व में आयी। जाति प्रथा में जो व्यक्ति धार्मिक कार्यों को करता था उसे समाज में सबसे उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा निम्न जातियों को धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता था।

इस प्रकार अगर हम कहें कि जाति प्रथा के आधार ही धर्म तथा व्यवसाय थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। परंतु पंथनिरपेक्षीकरण में धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है बल्कि धार्मिक संस्कारों में काफ़ी कमी आ जाती है। इसमें लोग धार्मिक कार्यों को समय देने की अपेक्षा अपने कार्य तथा पैसे कमाने को समय देना अधिक पसंद करते हैं।

सांस्कृतिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ पिछले अध्याय में हमने उपनिवेशवाद के बारे में पढ़ा। उपनिवेशवाद के शुरू होने के बाद से ही भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन आने शुरू हो गए। विदेशियों की संस्कृति का हमारी संस्कृति पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि हमारे समाज का सामाजिक परिवर्तन तेज़ी से शुरू हो गया।

→ प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं जैसे कि सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, जाति प्रथा, बहुविवाह, पर्दा प्रथा, उच्च शिक्षा की कमी, निम्न जातियों का शोषण इत्यादि। इन सबके विरुद्ध देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आवाजें उठीं जिन्हें समाज सुधार आंदोलन का नाम दिया गया।

→ भारत में समाज सुधार आंदोलनों की 19वीं शताब्दी में शुरुआत राजा राम मोहन राय ने की जिन्हें ‘आधनिक भारत का पिता’ भी कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को समझा तथा इस अमानवीय प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया।

→ ज्योतिबा फूले जाति प्रथा के विरुद्ध थे तथा साथ ही साथ स्त्रियों के शोषण के भी विरुद्ध थे। इसलिए ही उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की तथा कई कन्या विद्यालय खोले।

→ सर सैय्यद अहमद खान मुसलमानों में सुधारों के काफ़ी बड़े पक्षधर थे। वह मुसलमानों में प्रचलित कई बुराइयों जैसे कि बहुविवाह, प्रर्दा प्रथा, स्त्रियों की निम्न स्थिति, अशिक्षा इत्यादि के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने मुस्लिम समाज से इन बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने तो अलीगढ़ में एक कॉलेज भी स्थापित किया जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।

→ इन सब के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, विरेश लिंगम, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद इत्यादि ने भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों की कड़ी आलोचना की तथा इनके विरुद्ध कार्य करने के लिए कई संगठन बनाए जैसे कि ब्रह्म समाज, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज इत्यादि।

→ चाहे सभी समाज सुधारक देश के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित थे तथा इन सभी ने अलग-अलग बुराइयों का विरोध किया परंतु इन सभी सुधारकों का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों को दूर करना था।

→ अगर हमारे देश में सामाजिक परिवर्तन हुआ है तो इसमें सांस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण अथवा धर्म निष्पक्षता तथा पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं का काफ़ी बड़ा हाथ है। चाहे सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में पहले से ही व्याप्त थी परंतु और प्रक्रियाएं अंग्रेजों के समय में सामने आयी तथा इन्होंने भारतीय समाज का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

→ संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति प्रथा से संबंधित है। जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति के रहने सहने के ढंग, उठन बैठने के ढंग तथा उनका नाम अपानाकर अपने आपको उच्च जाति का कहना शुरू कर दें अथवा उच्च जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करना शुरू कर दें तो इसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। यह जाति प्रथा के कारण सामने आयी।

→ पश्चिमीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी समाज के अनुकरण से संबंधित है। श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमी समाज के साथ लगभग 150 सालों के संपर्क के बाद कई परिवर्तन हमारे सामने आए और जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा, मूल्य इत्यादि। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को ही पश्चिमीकरण कहा जाता है।

→ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के दौरान सामने आयी। इसके अनुसार यह विकास का वह ढंग है जो पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका ने अपनाया। इसके अनुसार व्यक्ति के विचार, व्यवहार के ढंग, जीवन के सभी पहलू बदल जाते हैं तथा व्यक्ति अपने आपको पूर्णतया आधुनिक महसूस करता है।

→ धर्म निष्पक्षता अथवा पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है तथा आधुनिक विचार धार्मिक विचारों को दबा लेते हैं। व्यक्ति का दृष्टिकोण धार्मिक न होकर आधुनिक हो जाता है। वह धार्मिक संस्थाओं से दूर हो जाता है तथा उसके पास धार्मिक कार्यों के लिए समय ही नहीं होता।

→ सांस्कृतिकरण-वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत निम्न समूह उच्च समूहों के विचारों, आदर्शों, जीवन जीने के ढंगों का अनुकरण करके उनका नाम तक अपना लेते हैं।

→ धर्मनिरपेक्षीकरण अथवा पंथनिरपेक्षीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक जीवन में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा आधुनिकता का प्रभाव बढ़ जाता है।

→ पश्चिमीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें भारतीय समाज के सभी आदर्श विचार, संस्थाएं इत्यादि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के अधीन आ गए।

→ आधुनिकीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें प्राचीन पंरपराओं का त्याग करके नए तथा आधुनिक विचारों को ग्रहण किया जाता है।

→ सती प्रथा-वह प्रथा जिसमें विधवा स्त्री अपने पति की चिता के साथ जीवित ही जला दी जाती थी।

→ बहुविवाह-विवाह का वह प्रकार जिसमें एक पति की कई पत्नियां अथवा एक पत्नी के कई पति होते हैं।

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HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

HBSE 11th Class Political Science चुनाव और प्रतिनिधित्व Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सबसे नजदीक बैठता है?
(क) परिवार की बैठक में होने वाली चर्चा
(ख) कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव
(ग) किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन
(घ) मीडिया द्वारा करवाये गये जनमत-संग्रह
उत्तर:
(ख) कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव

प्रश्न 2.
इनमें कौन-सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता?
(क) मतदाता-सूची तैयार करना
(ख) उम्मीदवारों का नामांकन
(ग) मतदान केंद्रों की स्थापना
(घ) आचार-संहिता लागू करना
(ङ) पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण
उत्तर:
(ङ) पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सी राज्य सभा और लोक सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है?
(क) 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है।
(ख) विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसंद को वरीयता क्रम में रख सकता है।
(ग) प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है।
(घ) विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिएँ।
उत्तर:
(क) 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है।

प्रश्न 4.
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो
(क) सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
(ख) देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो।
(ग) चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
(घ) 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है।
उत्तर:
(ग) चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।

प्रश्न 5.
पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव-क्षेत्र के बीच क्या अंतर है? संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया?
उत्तर:
पृथक निर्वाचन-मंडल एक ऐसी व्यवस्था को कहते हैं जिसके अंतर्गत किसी जाति-विशेष के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी वर्ग के लोग मतदान कर सकते हैं। भारत में अंग्रेजों के शासन काल में 1909 के एक्ट द्वारा मुसलमानों के लिए यह व्यवस्था लागू की गई थी। जबकि दूसरी तरफ आरक्षित चुनाव-क्षेत्र का अर्थ है कि चुनाव में सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, प्रत्याशी उसी वर्ग-विशेष अथवा समुदाय का होगा परंतु मतदान का अधिकार समाज के सभी वर्गों को प्राप्त होगा।

अब प्रश्न यह उठता है कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया तो इस संदर्भ में सबसे विशेष तर्क यह है कि यह अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति पर आधारित थी। यह राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को चुनौती देने में सहायक सिद्ध हो रही थी। इसके अतिरिक्त यह व्यवस्था पूरे देश को जाति के आधार पर विभाजित करने वाली थी इस व्यवस्था में प्रत्याशी अपने समुदाय के हितों का ही प्रतिनिधित्व करता है।

इसके विपरीत, आरक्षित निर्वाचन व्यवस्था में प्रत्याशी समाज के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और पूरे समाज के विकास पर बल देता है। इसलिए भारतीय संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल व्यवस्था में व्याप्त दोषों को देखते हुए देश विभाजन के साथ ही इस व्यवस्था को ही अस्वीकार कर दिया और आरक्षित चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था करते हुए संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था को लागू किया।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें।
(क) एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली का पालन भारत के हर चुनाव में होता है।
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिका के चुनावों का पर्यवेक्षण नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
उत्तर:
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता। यह कथन गलत है, क्योंकि भारत का राष्ट्रपति चुनाव आयुक्त को अपने पद से हटा सकता है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 7.
भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमजोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या केवल 12 प्रतिशत तक पहुँची है। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझायेंगे?
उत्तर:
भारतीय संविधान में आरक्षण की व्यवस्था को समाज के विशेष पिछड़े वर्गों को समाज के अन्य वर्गों के बराबर लाने के उद्देश्य से की गई है। संविधान के अनुसार किसी भी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि वह वर्ग सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हो तथा उसे राज्याधीन पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व न प्राप्त हो। यदि उपर्युक्त सन्दर्भ में देखा जाए तो राजनीतिक क्षेत्र में संघ एवं राज्यों के स्तर पर महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है। देश की जनसंख्या के अनुपात में इनकी स्थिति बहुत खराब है।

संघीय संसद जो देश की कानून निर्मात्री संस्था है। वहाँ इतनी बड़ी जनसंख्या की उपेक्षा करना, राष्ट्र के विकास की दृष्टि से अनुचित है। इसके अतिरिक्त यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान में समानता के अधिकार पर बल दिया गया है और स्त्री-पुरुष में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। इसलिए भारत में पिछले कई वर्षों से महिला संगठनों द्वारा माँग की जा रही है कि महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान किया जाए ताकि देश के कानून निर्माण में उन्हें भी भागीदार बनाया जा सके। महिला एवं पुरुषों की जब समान भागीदारी होगी तभी कोई समाज अथवा राष्ट्र पूर्ण रूप से विकसित एवं समृद्ध हो सकता है।

प्रश्न 8.
एक नये देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएं कि उनके लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली)प्रणाली उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली?
(क) लोगों को इस बात की साफ-साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।
(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक-ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
(ग) विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए।
(घ) लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसंद न करते हों।
उत्तर:
उपर्युक्त कथनों में
(क) इसके लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली उचित होगी।
(ख) इसके लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी।
(ग) इसके लिए समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली उचित होगी।
(घ) इसके लिए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली उचित होगी।

प्रश्न 9.
एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आये। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने से चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत विश्व का सबसे बड़ा एक लोकतांत्रिक देश है। इस लोकतंत्र को सफल एवं सुचारू रूप से चलाने के लिए समय-समय पर चुनाव आयोग द्वारा एक निश्चित अवधि के पश्चात् चुनाव कराने की व्यवस्था की गई है। हमारा वर्तमान चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं। देश में चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र वातावरण में हों, यह चुनाव आयोग के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की सफलता की आवश्यकता शर्त है। चुनाव प्रणाली को पारदर्शी बनाने में मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त छः वर्ष का कार्यकाल या अधिकतम 65 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या सेवानिवृत्ति के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति देनी चाहिए या नहीं? ऐसी स्थिति में इस संदर्भ में ऊपर दिए गए कथनों में पहला कथन उचित एवं सही है। मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति मिलनी चाहिए, क्योंकि वह भी देश का अन्य नागरिकों की तरह एक स्वतंत्र नागरिक है। इसलिए एक साधारण नागरिक को चुनाव लड़ने के जो अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त हैं, उन्हें भी होने चाहिएँ। यद्यपि राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ने से जनसाधारण में यह भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होती है, परंतु ऐसी कोई बात नहीं होती। उसकी स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता पर कोई आँच नहीं आएगी क्योंकि चुनाव लड़ने वाला मुख्य चुनाव आयुक्त अपना कार्यकाल पूरा करके ही चुनाव लड़ता है।

उसके पास एक लंबा कार्य-अनुभव तथा व्यावहारिक ज्ञान होता है। निर्वाचित होने पर संसद सदस्य के रूप में वह अपने बहुमूल्य सुझावों के द्वारा चुनाव सुधारों एवं राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसलिए भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति देनी चाहिए और इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यिात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
भारतीय संविधान सभा द्वारा जब भारत के संविधान का निर्माण किया जा रहा था तभी इस विषय पर विवाद उत्पन्न हो गया था जिसके परिणामस्वरूप स्थिति का अवलोकन करते हुए भारत के चुनाव में ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ अर्थात् सर्वाधिक मत से विजय वाली प्रणाली को स्वीकार किया गया। इस प्रणाली के अन्तर्गत एक निर्वाचन-क्षेत्र में एक उम्मीदवार जिसे अन्य उम्मीदवारों की अपेक्षा सबसे अधिक मत मिलते हैं, चाहे उसे कुल मतों का एक छोटा-सा भाग ही मिले, को विजयी घोषित कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, विजय स्तम्भ (Post) चुनावी दौड़ का अन्तिम बिन्दु बचता है और जो उम्मीदवार इसे पहले पार कर लेता है, वही विजेता होता है।

पक्ष में तर्क (Arguments in Favour)-इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क हैं

(1) यह प्रणाली बहुत ही सरल है, जिसे सभी मतदाता आसानी से समझ सकते हैं। एक मतदाता किसी भी दल अथवा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सकता है, जिसे वह सबसे अच्छा समझता है। इस प्रणाली पर आधारित निर्वाचन-क्षेत्रों में मतदाता जानते हैं कि उनका प्रतिनिधि कौन है और उसे उत्तरदायी ठहरा सकते हैं।

(2) इस प्रणाली के अन्तर्गत सदन में किसी एक दल के पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के अवसर बढ़ जाते हैं, जिससे एक स्थायी सरकार की स्थापना करना सम्भव हो जाता है।

(3) इस प्रणाली में द्वि-दलीय प्रणाली के विकास को बल मिलता है, लेकिन भारत में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।
विपक्ष में तर्क (Arguments in Against)-कई विद्वानों द्वारा चुनाव की इस प्रणाली की आलोचना की जाती है। उनका कहना है कि यह प्रणाली अलोकतान्त्रिक और अनुचित है क्योंकि इसके अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि निर्वाचित व्यक्ति उस निर्वाचन-क्षेत्र के मतदाताओं का बहुमत प्राप्त करने वाला हो। उदाहरणस्वरूप, चुनाव में चार उम्मीदवार खड़े होते हैं और उन्हें मत प्राप्त हुए-
(क) एक लाख,
(ख) 80,000,
(ग) 70,000 तथा
(घ) 50,000
इस चुनाव में ‘क’ को निर्वाचित घोषित कर दिया जाएगा, जिसे केवल एक-तिहाई मतदाताओं ने अपना मत दिया है। उदाहरणस्वरूप, सन् 1984 में हुए लोकसभा चुनावों में काँग्रेस पार्टी को कुल 48.1 प्रतिशत वोट मिले, परन्तु उसने लोकसभा के 76 प्रतिशत स्थानों पर विजय प्राप्त की। इस चुनाव में भाजपा 7.4 प्रतिशत मत लेकर दूसरे स्थान पर रही, परन्तु लोकसभा की 542 सीटों में से उसे केवल 2 स्थानों पर ही विजय प्राप्त हुई।

इसके विपरीत मार्क्सवादी साम्यवादी दल को 5.8 प्रतिशत मत मिले और उसे लोकसभा में 22 स्थान प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि यह अल्पसंख्यकों तथा छोटे और कम शक्तिशाली राजनीतिक दलों के हितों के विरुद्ध है, क्योंकि इसके अन्तर्गत, उन्हें जितने मत प्राप्त होते हैं, उस अनुपात में उन्हें स्थान (सीटें) प्राप्त नहीं होते। अत: उपर्युक्त पक्ष एवं विपक्ष के तर्कों के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि समानुपातिक प्रणाली की जटिल व्यवस्था को भारत में अपनाना कठिन है इसलिए सरलता की दृष्टि से फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली ही उपयुक्त है।

चुनाव और प्रतिनिधित्व HBSE 11th Class Political Science Notes

→ आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र में शासनाधिकार जनता के हाथों में होता है। वास्तविक प्रभुसत्ता जनता के हाथों में होती है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन में भागीदार होती है।

→ प्राचीन समय में छोटे-छोटे नगर-राज्य होते थे जिनकी जनसंख्या बहुत कम होने के कारण सभी नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासन में भाग लिया जाता था। धीरे-धीरे नगर-राज्यों के स्थान पर बड़े-बड़े राष्ट्र-राज्यों का निर्माण हुआ जिनकी जनसंख्या अरबों तक पहुंच गई है।

→ इसके परिणामस्वरूप सभी नगारिकों के लिए प्रत्यक्ष रूप से शासन चलाने में भाग लेना सम्भव नहीं रहा और प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के स्थान पर प्रतिनिधिक लोकतन्त्र (Representative Democracy) प्रणाली का उदय हुआ।

→ इस प्रणाली में जनता शासन में अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेती है। इस शासन-प्रणाली के दो आधार होते हैं। प्रथम, मताधिकार जिसके आधार पर जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है।

→ जिन व्यक्तियों को मतदान करने का अधिकार होता है, उन्हें मतदाता (Voter) कहते हैं। प्रतिनिधियों को चुनने की विधि को चुनाव अथवा निर्वाचन-व्यवस्था कहते हैं।

→ मतदान करने की व्यवस्था को निर्वाचन-व्यवस्था (Election System) कहा जाता है। वोट किसे दिया जाए और इसका प्रयोग किस प्रकार से किया जाए, यह विषय राजनीति-विज्ञान के विद्वानों के बीच वाद-विवाद का विषय रहा है।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों का उत्तर दें।
अयनबीद्या में मजदूरों की कठिन कार्य दशा, मालिकों की एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, राज्य के विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?
उत्तर:
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए प्रयोग कर सकते थे क्योंकि उनकी सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह था कि वह राज्य के अलग-अलग अंगों को अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता रखते थे।

(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन थी क्योंकि मालिकों के पास आर्थिक शक्ति थी तथा वह प्रबल जाति से संबंध रखते थे। इसलिए मालिक मजदूरों का शोषण करते थे तथा मजदूरों के पास इसको सहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।

प्रश्न 2.
भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पहले भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों की दशा काफ़ी दयनीय थी। स्वतंत्रता के बाद सरकार ने इनकी स्थिति सुधारने तथा इनके हितों की रक्षा करने के लिए प्रयास करने शुरू किए। इसलिए सरकार ने कई प्रकार के भूमि सुधार कार्यक्रम शुरू किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • जिन ज़मीनों पर भूमिहीन किसान कृषि करते थे, उन्हें उस भूमि का स्वामित्व प्रदान किया गया तथा उन्हें ज़मीन का मालिक बना दिया गया।
  • ज़मींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई तथा ज़मींदारों की अतिरिक्त भूमि जब्त करके उसे भूमिहीन किसानों तथा मज़दूरों में बांट दिया गया।
  • बिचौलियों तथा मध्यस्थों को समाप्त कर दिया गया।
  • भूमि की चकबंदी कर दी गई तथा हरेक किसान के लिए जोतने वाली भूमि की सीमा निर्धारित कर दी गई।
  • भूमि से संबंधित रिकार्डों को दुरुस्त किया गया तथा उन्हें ठीक ढंग से बनाकर रखा गया। इस प्रकार सरकार ने भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवास करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई उपाय किए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

प्रश्न 3.
कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उध्वर्गामी गतिशीलता के अभाव के बीच सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर:
निर्धनता, बेरोजगारी, ऋणग्रस्तता, प्रवास करना, भूमि का न होना, सरकारी नीतियों की जानकारी का अभाव, नई तकनीक का पता न होना इत्यादि ऐसे कारक हैं जो कषि मज़दरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक आर्थिक उर्ध्वगामी गतिशीलता के बीच रुकावटें हैं।

प्रश्न 4.
वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर:
1960 के दशक में हरित क्रांति आयी जिसके बहुत से दूरगामी परिणाम सामने आए। हरित क्रांति से न केवल खाद्यान उत्पादन बढ़ा बल्कि इससे बहुत से परिवर्तन भी आए। हरित क्रांति के कारण भारत में ग्रामीण समाज में आर्थिक असमानता बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण नई मशीनें, नई तकनीक, नए बीज, उवर्रक, सिंचाई के साधन, कीटनाशक दवाएं सामने आयी परंतु यह छोटे किसानों की पहुंच से बाहर थी।

अमीर किसानों ने तो इन सभी चीज़ों को अपना लिया परंतु छोटे और सीमांत किसान इन्हें न अपना सकें क्योंकि इनको अपनाने की उनमें क्षमता नहीं थी। इसलिए हरित क्रांति के कारण अमीर तथा छोटे किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ गई। अमीर किसानों ने उन्नत तकनीक अपना कर अधिक लाभ कमाने का ढंग पता कर लिया जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता तथा अंसतोष बढ़ गया। इस कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में संघर्ष शुरू हो गए।

इस असंतोष के कारण कृषि की नई व्यवस्था सामने आ रही है। हरित क्रांति के लाभ निर्धन किसानों, भूमिहीन कृषि मजदूरों इत्यादि को प्राप्त न हुए। इस प्रकार जब तक सभी को उस क्रांति का लाभ नहीं मिलेगा तब तक समाज के सभी वर्गों की आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति नहीं हो पाएगी। यह ठीक है कि हरित क्रांति के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु यह उत्पादन देश के सभी क्षेत्रों में एक समान न बढ़ा।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि जैसे प्रदेशों में तो खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु देश के और भागों में हरित क्रांति का प्रभाव कम ही पड़ा। इस कारण ही राज्यों की आर्थिक असमानता भी बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजीपूति किसानों का एक वर्ग सामने आया जो कृषि क्षेत्र में पैसा निवेश करके अधिक पैसा कमाने लगा। हरित क्रांति से लाभांवित हुए प्रदेशों में स्त्री पुरुष अनुपात में

प्रश्न 5.
हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अक्सर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाएं गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए दृश्य कितने वास्तविक है? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित कोई फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भारतीय सिनेमा की बहुत-सी फिल्मों में ग्रामीण भारत अर्थात् गांवों के दृश्य देखने को मिल जाते हैं। इन फिल्मों में ग्रामीण समाज की संस्कृति को ठीक ढंग से दिखाने का प्रयास किया जाता है। चाहे फिल्म निर्माता किसी गांव में शूटिंग न करके मुंबई के किसी स्टूडियो में ही गांव का सैट लगाकर उसे वास्तविक बनाने का प्रयास करते हैं। परंतु हम यह कह सकते हैं कि जो गाँव फिल्मों में दिखाया जाता है वह वास्तविक गाँव से तो भिन्न होता ही है।

पूरे भारत में गाँव अलग-अलग प्रकृति के हैं। कोई छोटे गाँव, कोई मध्यम प्रकार के तथा कई गाँव तो इतने बड़े हैं कि किसी छोटे-मोटे कस्बे का रूप ही ले लें। इन गांवों में सुविधाएं भी अलग प्रकार की ही मिलती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में कृषि करने के ढंग अभी भी प्राचीन ही हैं। परंतु उत्तर भारत के प्रदेशों, पंजाब, हरियाणा इत्यादि में कृषि करने के आधुनिक सामान मिल जाते हैं।

इन गाँवों में साफ़-सफ़ाई का भी अधिक ध्यान रखा जाता है। इसके अतिरिक्त किसानों के जीवन जीने के ढंगों का भी अंतर होता है। हमने हाल ही में ग्रामीण परिवेश से संबंधित कई फिल्में देखी हैं जैसे कि अमिताभ बच्चन तथा धर्मेंद्र की शोले, आमिर खान की लगान इत्यादि। इन फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाया गया है। इन फिल्मों में जो मुद्दे दिखाए गए हैं वह वास्तविक ग्रामीण समाज से बिल्कुल ही अलग हैं। इसलिए अगर फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाना है तो उसका वास्तविक चित्रण ही दिखाना चाहिए न कि कृत्रिम चित्रण।

प्रश्न 6.
अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं जहाँ आपको प्रवासी मज़दूरों के मिलने की सम्भावना हो, पता लगाइए कि वे मज़दूर कहां से आए हैं? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर:
अगर हम अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं तो हमें हरेक स्थान पर प्रवासी मज़दूर मिल जाएंगे। इनसे बातचीत करके पता चलता है कि यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेशों से आए हैं जहां पर जीवन जीने के साधन इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वहां पर मज़दूरी काफ़ी कम है इसलिए वह अपने प्रदेशों को छोड़कर हमारे प्रदेश में आए हैं ताकि अधिक धन कमा कर अपने परिवार का पालन-पोषण किया जा सके।

यह लोग स्वयं ही अपने मित्रों रिश्तेदारों के साथ हमारे प्रदेश में आए हैं। मुख्यतः यह लोग ग्रामीण क्षेत्रों से ही हैं तथा उनके गाँवों में जीवनयापन के लिए पैसा कमाना काफ़ी कठिन है। इसका सबसे पहला कारण यह है कि उनके पास कृषि करने योग्य भूमि या तो है ही नहीं, अगर है तो वह भी काफ़ी कम है। उससे गुजारा चलाना काफ़ी कठिन है। दूसरा इनके क्षेत्रों में मजदूरी करने के लिए बहुत अधिक लोग हैं जिस कारण मजदूरी काफ़ी कम है।

इन लोगों का खाना-पीना काफ़ी साधारण होता है। यह लोग तो नमक तथा प्याज़ के साथ रोटी खाकर भी गुजारा कर लेते हैं। कृषि करने के प्राचीन साधन हैं जिस कारण उत्पादन काफ़ी कम है। उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर जाना पड़ता है क्योंकि उनके यहाँ पर प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि व्यक्ति का घर का गुजारा चलाना काफ़ी मुश्किल होता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

प्रश्न 7.
अपने स्थानीय फल विक्रेता के पास जाएँ और उससे पूछे कि वे फल जो वह बेचता है, कहाँ से आते हैं, और उनका मूल्य क्या है? पता लगाइए कि भारत के बाहर में फलों के आयात (जैसे कि ऑस्ट्रेलिया से सेब) के बाद स्थानीय उत्पाद के मूल्यों का क्या हुआ? क्या कोई ऐसा आयतित फल है जो भारतीय फलों से सस्ता है?
उत्तर:
अगर हम अपनी फलों की मार्कीट में जाएं तो हमें फलों की दुकानों पर कई प्रकार के फल मिल जाते हैं। इनमें से बहुत से ऐसे फल होते हैं जो मौसमी होते हैं अर्थात् उस विशेष मौसम में ही पाए जाते हैं। परंतु आजकल तो बहुत-से बेमौसमी फल भी मिल जाते हैं। अगर फल विक्रेता से पूछे तो उसका जवाब होता है कि यह फल बाहर का है अर्थात् यह आयातित फल है। उदाहरण के लिए सर्दियों में वैसे तो आम उपलब्ध नहीं होता परंतु फिर भी आम मौजूद होता है जोकि आयातित होता है।

इसी प्रकार बाज़ार में सेब, अंगूर, नाशपाती, कीवी फल, तरबूज़ इत्यादि ऐसे फल हैं जो आयात किए जाते हैं तथा हरेक मौसम में उपलब्ध होते हैं। वैसे तो इनका मूल्य स्थानीय फलों की तुलना में काफ़ी अधिक होता है परंतु जब मौसमी फल सस्ते हो जाते हैं तो इनके दामों में भी कमी आ जाती है। हमारे ख्याल में शायद कोई ऐसा आयातित फल नहीं है जो कि भारतीय फलों से सस्ता हो।

प्रश्न 8.
ग्रामीण भारत में पर्यावरण स्थिति के विषय में जानकारी एकत्र पर एक रिपोर्ट लिखें। उदाहरण के लिए विषय, कीटनाशक, घटता जल स्तर, तटीय क्षेत्रों में झींगें की खेती का प्रभाव, भूमि का लवणीकरण तथा नहरी सिंचित क्षेत्रों में पानी का जमाव, जैविक विविधता का ह्रास।
उत्तर:
ग्रामीण भारत में पर्यावरण की स्थिति काफ़ी चिंताजनक बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र संपूर्ण देश के लिए खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं। इसके लिए वह नए बीजों, उन्नत उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग करते हैं ताकि अधिक-से-अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। परंतु इसका पर्यावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कैमिकल उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि खाद्यान्न को दूषित कर देते हैं। यूरिया के प्रयोग के बिना फ़सल नहीं होती परंतु यूरिया का व्यक्ति के शरीर पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे न केवल भूमि की उत्पादन क्षमता कम होती है बल्कि इनका शरीर पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है। किसान अधिक पानी प्राप्त करने के लिए भूमिगत जल स्रोत का प्रयोग करते हैं जिससे भूमिगत जल स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे जा रहा है। यह सब कुछ खरीदने के लिए किसानों को कर्जा उठाना पड़ता है।

एक किसान अगर एक बार कर्जे के चक्कर में पड़ गया तो उस चक्कर से वह तमाम आयु निकल नहीं सकता। आजकल तो कर्जे से डर कर किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। रोज़ अखबार में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की ख़बरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि जोकि एक चिंता का विषय है।

ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारा देश भारत मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश है जहां पर 68% के जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा 70% के लगभग जनसंख्या कृषि या उससे संबंधित कार्यों में लगी हुई है। इसलिए ही बहुत से भारतीयों के लिए भूमि उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन तथा संपत्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रकार है।

→ हमारे देश में कृषि तथा संस्कृति का काफ़ी गहरा संबंध है। अलग-अलग क्षेत्रों में कृषि की संस्कृति तथा ढंग अलग-अलग पाए जाते हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों को दर्शाते हैं। ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक तथा सामाजिक संरचना दोनों ही कृषि से जुड़े हुए हैं।

→ हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में केवल कृषि ही नहीं बल्कि उससे संबंधित कार्य भी साथ जुड़े हुए हैं जैसे कि कुम्हार, कृषक, जुलाहे, लोहार, सुनार इत्यादि। यह भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है।

→ ग्रामीण भारत की कृषक संरचना कुछ अलग सी है। बहुत से लोगों के पास या तो कृषि योग्य भूमि है ही नहीं या फिर बहुत ही कम है। मध्य वर्ग के किसानों के पास थोड़ी बहुत भूमि तो होती है परंतु उससे उनका केवल गुज़ारा ही चलता है। अमीर या उच्च वर्गीय किसान अपनी अनंत ज़मीनों को किराए पर देकर स्वयं ऐश करते हैं। गांवों में प्रबल जाति काफ़ी महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली होती है।

→ औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने भूमि से अधिक-से-अधिक कर उगाहने के लिए कई प्रकार के प्रबंध चलाए जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, रैय्यतवाड़ी प्रथा, महलवारी प्रथा। इन प्रबंधों के कारण किसानों का ज़मींदारों तथा विदेशी सरकार द्वारा इतना अधिक शोषण हुआ कि आज तक किसान उस कर्जे से उबर नहीं सके हैं।

→ भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के नेताओं ने कृषि की उन्नति के लिए बहुत से महत्त्वपूर्ण सुधार किए। सभी भूमि प्रबंधों को खत्म कर दिया गया। पट्टेदारी का उन्मूलन कर दिया गया, मध्यस्थ खत्म कर दिए गए तथा भूमि की हदबंदी की गई। चाहे इन कानूनों में कुछ कमियां थी तथा बहुत से लोगों ने इन कमियों का फायदा भी उठाया परंतु फिर भी इन सुधारों से किसानों के जीवन में काफ़ी खुशहाली आई।

→ 1960-70 के दशक में देश को खाद्यानों के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति का कार्यक्रम चलाया गया जिसमें कृषि को आधुनिक मशीनों, नए बीजों, उर्वरकों इत्यादि की सहायता से करवाना शुरू किया गया। इससे कृषि उत्पादकता बढ़ गई तथा बहुत से किसान खुशहाल हो गए। चाहे हरित क्रांति जहाँ-जहाँ आई वहां पर काफ़ी खुशहाली आई परंतु जहाँ पर हरित क्रांति न आ पाई वहां पर स्थिति जस की तस ही रही। कृषि के ढंग वहां पर अविकसित रहे तथा गाँव की संरचना वैसी ही बनी रही। छोटे किसानों का अमीर किसानों द्वारा शोषण जारी रहा।

→ देश में स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण समाज में बहुत से परिवर्तन आए। कृषि मजदूर बढ़ गए, अनाज का नगद भुगतान होने लगा, प्राचीन जजमानी संबंध बदलने लग गए, मुक्त दिहाड़ीदार मज़दूर सामने आए। किसान सीधे विश्व बाज़ार से जुड़ गए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा बहुत-सी सुविधाएं दी गईं। इस समय में ही मज़दूरों का संचार भी शुरू हुआ। पिछड़े हुए प्रदेशों के लोग कार्य की तलाश में उन क्षेत्रों की ओर जाने लगे जहाँ पर कृषि क्षेत्र में कार्य उपलब्ध था। लाखों की तादाद में मज़दूर एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ गए जिससे जनसंख्या संरचना में काफी दिक्कतें आईं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

→ इस समय में ही भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण की प्रक्रियाएं शुरू हुईं जिनका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ा। कृषि का भूमंडलीकरण शुरू हुआ जिससे संविदा खेती पद्धति सामने आई।

→ कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से एक तरफ तो बहुत से किसान खुशहाल हो गए परंतु दूसरी तरफ सूखे, अकाल तथा ऋण वापिस न कर पाने के कारण किसानों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में अनुभव किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण संकट की तरफ संकेत करता है।

→ प्रबल जाति : ग्रामीण क्षेत्रों का समूह जो काफी शक्तिशाली होता है तथा आर्थिक और राजनीतिक रूप से वह स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बना कर रखता है।

→ बेगार : मुफ्त मज़दूरी करने की प्रथा से बेगार कहा जाता है।

→ रैय्यतवाड़ी व्यवस्था : कृषि के भूमि प्रबंध की वह व्यवस्था जिसमें कृषक स्वयं ही सरकार को टैक्स चुकाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

→ जीविका : व्यक्ति के जीवन जीने के लिए जरूरी कार्य या रोज़गार जिससे कि धन की प्राप्ति हो सके।

→ विभेदीकरण : हरित क्रांति की अंतिम परिणीत जिसमें अमीर और अमीर हो गए तथा कई निर्धन पूर्ववत रहे या अधिक निर्धन हो गए।

→ संविदा खेती : कृषि करने का वह ढंग जिसमें कंपनियाँ उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करती हैं, बीज तथा अन्य वस्तुएँ निवेश के रूप में उपलब्ध करवाती हैं तथा साथ ही जानकारी और अक्सर कार्यकारी पूँजी भी देती हैं।

→ कृषि का भूमंडलीकरण : कृषि को विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शामिल किए जाने की प्रक्रिया।

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक देश के नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार को मताधिकार कहा जाता है। भारत में प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान करने का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
निर्वाचकगण (Electorate) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे व्यक्ति जिन्हें मतदान करने का अधिकार होता है, उनके सामूहिक रूप को निर्वाचकगण कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जिस चुनाव-प्रणाली में साधारण मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, उसे प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली कहा जाता है। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव इसी प्रणाली द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऐसे प्रतिनिधि जो जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जाकर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों, उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली कहा जाता है। राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव इस प्रणाली द्वारा कराए जाते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • यह लोकतान्त्रिक सिद्धांतों के अनुसार है,
  • लोगों को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • यह अलोकतांत्रिक है,
  • इसमें भ्रष्टाचार की संभावना होती है।

प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक विशेष आयु प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को यदि वोट का अधिकार दिया जाए तो उसे वयस्क मताधिकार कहते हैं। वोट देने की आयु विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होती है। भारत में मतदान की आयु 18 वर्ष निश्चित की गई है।

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प्रश्न 8.
वयस्क मताधिकार के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  • यह समानता पर आधारित है,
  • इसमें सभी को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
वयस्क मताधिकार के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार गुणों की अपेक्षा संख्या को महत्त्व देता है और अशिक्षित तथा अज्ञानियों का, जिनकी संख्या अधिक है, शासन स्थापित हो जाता है,
  • यह अप्राकृतिक है क्योंकि प्रकृति ने सबको समान न बनाकर कुछ को बुद्धिमान तथा कुछ को कम बुद्धिमान बनाया है।

प्रश्न 10.
एक-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र का अर्थ है कि एक निर्वाचन-क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाएगा।

प्रश्न 11.
एक-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र के दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • यह तरीका बड़ा सरल है और आम व्यक्ति इसे समझ सकता है,
  • प्रतिनिधि और मतदाता के बीच सीधा संपर्क होता है क्योंकि चुनाव-क्षेत्र छोटा होता है।

प्रश्न 12.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बह-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र से तात्पर्य उस निर्वाचन-क्षेत्र से है, जहाँ से एक से अधिक सदस्य निर्वाचित होते हैं।

प्रश्न 13.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र के दो अवगुण बताइए।
उत्तर:

  • यह खर्चीली प्रणाली है,
  • प्रतिनिधियों व मतदाताओं में संपर्क का अभाव रहता है।

प्रश्न 14.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र के दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • मतदाता की पसंद सीमित नहीं होती और वह अपनी पसंद के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकता है,
  • इस प्रकार से एक योग्य प्रतिनिधि का चयन होता है।

प्रश्न 15.
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली में सारे देश को समान प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक चुनाव-क्षेत्र विधानमंडल में अपने प्रतिनिधि को चुनकर भेजता है।

प्रश्न 16.
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • यह साधारण प्रणाली है,
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 17.
प्रादेशिक चुनाव क्षेत्र के दो अवगुण लिखिए।
अथवा
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व की दो मूलभूत सीमा लिखिए।
उत्तर:

  • क्षेत्रीयवाद को बढ़ावा मिलता है,
  • विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व नहीं होता।

प्रश्न 18.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का अर्थ बताइए।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से तात्पर्य है कि प्रत्येक वर्ग, राजनीतिक दल व अल्पसंख्यक वर्ग आदि को उनके मतों की संख्या अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करना।

प्रश्न 19.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की दो विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  • इकहरी परिवर्तनीय मत प्रणाली तथा
  • सूची प्रणाली।

प्रश्न 20.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • प्रत्येक वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व का मिलना,
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित।

प्रश्न 21.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • यह जटिल प्रणाली है,
  • बड़े देशों में लागू नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 22.
संग्रहीत मत-प्रणाली (Cumulative Vote System) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इस प्रणाली के लिए बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र अनिवार्य है। एक मतदाता को उतने वोट दिए जाते हैं, जितने स्थान भरे जाने हैं। मतदाता अपने सारे मत एक उम्मीदवार को दे सकता है और यदि वह चाहे तो अपने मत अलग-अलग उम्मीदवारों को भी दे सकता है।

प्रश्न 23.
क्षेत्रीय (Territorial) और कार्यात्मक प्रतिनिधित्व (Functional Representation) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाता है जबकि कार्यात्मक प्रतिनिधित्व का आधार व्यवसाय होता है,
  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कार्यात्मक प्रतिनिधित्व व्यवसाय के लोगों का ही प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 24.
उप-चुनाव (Bye-Election) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विधानपालिका के रिक्त स्थान को भरने के लिए करवाए गए चुनाव को उप-चुनाव कहा जाता है।

प्रश्न 25.
मध्यावधि चुनाव (Mid-Term Election) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यदि लोकसभा व विधानसभा को उसके निश्चित कार्यकाल से पहले ही भंग कर दिया जाए तो उस स्थिति में जो चुनाव करवाने पड़ते हैं, उसे मध्यावधि चुनाव कहा जाता है।

प्रश्न 26.
भारत में मतदाता कौन हो सकता है?
उत्तर:
भारत में प्रत्येक नागरिक को, जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मताधिकार प्राप्त है। चुनाव में उसी नागरिक को मत डालने दिया जाता है जिसका नाम मतदाता सूची में हो।।

प्रश्न 27.
भारतीय मतदाता में कौन-कौन-सी दो योग्यताएँ होनी चाहिएँ?
उत्तर:

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए,
  • उसकी आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिए।

प्रश्न 28.
चुनाव आयोग क्या है?
उत्तर:
भारत एक लोकतंत्रीय राज्य है जिसमें समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं। यह चुनाव निष्पक्ष रूप से हों, इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं।

प्रश्न 29.
चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कैसे की जाती है?
उत्तर:
संविधान में की गई व्यवस्था के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों (वर्तमान स्थिति में दो) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 30.
चुनाव आयुक्त को अथवा मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से कैसे हटाया जा सकता है?
उत्तर:
चुनाव आयुक्त को संसद में महाभियोग चलाकर उसके पद से हटाया जा सकता है।

प्रश्न 31.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
चुनाव आयोग के आयुक्तों (सदस्यों) का कार्यकाल साधारणतः 6 वर्ष होता है, लेकिन राष्ट्रपति द्वारा इस कार्यकाल को बढ़ाया भी जा सकता है।

प्रश्न 32.
भारतीय चुनाव आयोग के सदस्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है। इसके मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुशील चंद्रा तथा अन्य दो चुनाव आयुक्त हैं।

प्रश्न 33.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की तीन मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार,
  • एक-सदस्यीय चुनाव-प्रणाली,
  • गुप्त मतदान।

प्रश्न 34.
गुप्त मतदान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
गुप्त मतदान का अर्थ है कि चुनाव अधिकारियों द्वारा मतदान के समय ऐसा प्रबंध किया जाता है कि यह मालूम न पड़े कि मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किसके पक्ष में किया है या नहीं किया है।

प्रश्न 35.
चुनाव आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • चुनाव आयोग संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनावों की व्यवस्था करता है,
  • चुनाव आयोग को चुनाव संबंधी सभी मामलों पर निरीक्षण तथा निर्देशन का अधिकार है।

प्रश्न 36.
चुनाव याचिका का वर्णन करें। अथवा भारत में चुनाव-याचिका की सुनवाई कौन करता है?
उत्तर:
चुनावों के समय यदि किसी उम्मीदवार के द्वारा कोई अनियमितता बरती गई है, या कोई उम्मीदवार कानून के विरुद्ध कार्य करके चुनाव जीत गया है, तो उसका चुनाव रद्द करवाने के लिए कोई भी अन्य उम्मीदवार या कोई भी मतदाता याचिका दायर कर सकता है। यह याचिका सीधे उच्च न्यायालय में दी जाती है और वह स्वयं इसे सुनता है। यदि निर्वाचित उम्मीदवार के विरुद्ध लगाए गए आरोप सही सिद्ध हो जाएँ तो उच्च न्यायालय उसका चुनाव रद्द कर सकता है तथा संबंधित आरोपों के आधार पर उसे चुनाव के अयोग्य भी ठहरा सकता है।

प्रश्न 37.
भारतीय संविधान में निर्वाचन क्षेत्रों के आरक्षण के प्रावधान पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत के संविधान में सांप्रदायिक चुनाव-प्रणाली को समाप्त करके संयुक्त चुनाव-प्रणाली की व्यवस्था की गई है परंतु अनुच्छेद 330 के द्वारा समाज के पिछड़े वर्गों अनुसूचित जातियों (SC) तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के सदस्यों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इस समय लोकसभा में 84 सीटें अनुसूचित जातियों तथा 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। 104वें संशोधन द्वारा आरक्षित स्थानों की अवधि सन् 2030 तक बढ़ा दी गई है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 38.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार,
  • एक सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र,
  • गुप्त मतदान,
  • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्थान सुरक्षित रखना।

प्रश्न 39.
भारतीय चुनाव-प्रणाली के दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका,
  • चुनाव में बाहुबल तथा हिंसा का प्रयोग।

प्रश्न 40.
भारतीय चुनाव-प्रणाली में सुधार के दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  • चुनाव आयोग को अधिक शक्तिशाली तथा प्रभावी बनाया जाना चाहिए। उन्हें चुनावों में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अधिक शक्तियाँ दी जाएँ,
  • सभी मतदाताओं को परिचय-पत्र (Identity Cards) दिए जाने चाहिएँ ताकि गलत (Bogus) मतदान को रोका जा सके।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली तथा अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली साधारण शब्दों में, प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली उस चुनाव व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से (स्वयं) अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। प्रत्येक मतदाता चुनाव-स्थान पर जाकर स्वयं अपनी पसन्द के उम्मीदवार के पक्ष में, अपने मत का प्रयोग करता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा किया जाता है। अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली-अप्रत्यक्ष चुनाव वह चुनाव व्यवस्था है जिसमें साधारण मतदाता कुछ प्रतिनिधियों (निर्वाचकों) का चुनाव करते हैं और वे निर्वाचक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। प्रतिनिधि के चुनाव में साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने मत का प्रयोग नहीं करते। भारत में राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इस चुनाव-प्रणाली को अपनाया जाता है।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में चार तर्क (लाभ) लिखें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं

1. अधिक लोकतन्त्रीय प्रणाली-इस प्रणाली में जनता को स्वयं प्रत्यक्ष रूप से मतदान करके अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलता है। अतः यह प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।

2. मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क-इस प्रणाली में मतदाता तथा उम्मीदवार सीधे रूप से सम्पर्क में आते हैं तथा मतदाता उम्मीदवारों को भली-भांति जान सकते हैं। उम्मीदवार भी अपनी नीतियाँ तथा कार्यक्रम जनता के सामने रख सकते हैं।

3. राजनीतिक शिक्षा-इस प्रणाली में मतदाताओं तथा उम्मीदवारों में सीधा सम्पर्क होता है। इससे मतदाताओं को राजनीतिक शिक्षा मिलती है और उनमें राजनीतिक जागरूकता की भावना का भी उदय होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान-इस प्रणाली के अन्तर्गत सामान्य जनता को मताधिकार तथा अन्य अधिकारों का ज्ञान प्राप्त होता है तथा कर्तव्यों की भी जानकारी मिलती है।

प्रश्न 3.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व किसे कहते हैं?
उत्तर:
लोकतन्त्रीय राज्यों में चुनाव के लिए निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन भौगोलिक आधार पर किया जाता है। समस्त राज्य को एक-सदस्य अथवा बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को उस चुनाव-क्षेत्र का निवासी होने के नाते अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को ही प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। संक्षेप में, सामान्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन जब प्रादेशिक आधार पर हो, तो उस प्रणाली को प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। भारत, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका आदि राज्यों में इसी प्रणाली को लागू किया गया है।

प्रश्न 4.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है? इसकी दो पद्धतियों के नाम लिखें।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का अर्थ है प्रत्येक जाति या वर्ग को उसकी जनसंख्या के अनुपात में संसद या प्रतिनिधि सभा में प्रतिनिधित्व का मिलना। जैकी का कहना है, “अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व देने का महत्त्व अतिशय महान है। यदि किसी निर्वाचन-क्षेत्र के दो तिहाई मतदाता एक दल को मत दें और शेष मतदाता किसी दूसरे दल को, तो स्पष्ट है कि बहुसंख्यक वर्ग को दो-तिहाई और अल्पसंख्यक वर्ग को एक-तिहाई प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए।” अर्थात प्रत्येक वर्ग, जाति या दल को उसके समर्थकों के अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व का मिलना ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व कहलाता है।

प्रश्न 5.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार गुण बताइए। उत्तर-आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार गुण निम्नलिखित हैं
1. सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व इस प्रणाली का यह गुण है कि समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है। कोई वर्ग प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रहता और सबको संतुष्टि मिलती है।

2. अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना-इस प्रणाली का यह गुण है कि सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिलने से उनके हितों की रक्षा होती है और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग स्वयं को सुरक्षित समझते हैं। वे स्वयं को बहुसंख्यक वर्ग की तानाशाही का शिकार नहीं समझते।

3. मतदाताओं को मतदान में अधिक सुविधा इस प्रणाली में मतदाता को अपनी पसन्द के कई उम्मीदवारों के पक्ष में मत डालने का अवसर मिलता है। उसे एक ही व्यक्ति के पक्ष में मत डालने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। इससे उसे अपनी पसन्द के उम्मीदवार को मत देने में सुविधा हो जाती है।

4. निर्वाचन के लिए निर्धारित मत प्राप्त करना आवश्यक है इस प्रणाली में यह सम्भावना नहीं रहती कि कोई उम्मीदवार थोड़े-से प्रतिशत मत लेकर भी चुन लिया जाएगा। इस प्रणाली में चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करना आवश्यक होता है अर्थात् चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या के मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।

प्रश्न 6.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. जटिल प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण मतदाता इसे समझ नहीं सकता।

2. राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियाँ भी अपनी भिन्नता बनाए रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बँट जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।

3. राजनीतिक दलों को अधिक महत्त्व आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक होता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है क्योंकि इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।

4. उत्तरदायित्व का अभाव इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन-क्षेत्र बहु-सदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।

प्रश्न 7.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व समस्या का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आधुनिक युग प्रजातान्त्रिक युग है और वास्तविक प्रजातन्त्र वही होता है जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व मिले। समुचित प्रतिनिधित्व से हमारा तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्ग, धर्म या जाति के प्रतिनिधि विधानमण्डल में होने चाहिएँ, ताकि वे भी अपना पक्ष रख सकें। यदि इस प्रकार का प्रतिनिधित्व नहीं होता तो विधानमण्डल को ‘जनमत का दर्पण’ नहीं कहा जा सकेगा। परन्तु आधुनिक लोकतन्त्र प्रणाली इस प्रकार की है कि उसमें अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।

साधारणतः आजकल प्रायः सभी देशों में एक-सदस्यीय चुनाव क्षेत्रों के आधार पर होने वाले चुनावों में बहुमत प्राप्त वर्ग को अधिकतर क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व मिलता है और अल्पसंख्यक वर्गों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर प्राप्त नहीं होता। परिणामस्वरूप बहुसंख्यक वर्ग को अपनी जनसंख्या के अनुपात में काफी अधिक स्थान विधानमण्डन में मिल जाते हैं और अल्पसंख्यक बिना प्रतिनिधित्व के रह जाते हैं; जैसे एक दल को 60% मत प्राप्त होते हैं तो उस दल को 60% स्थान प्राप्त हो जाते हैं और उनकी सरकार बन जाती है परन्तु 40% लोग बिना किसी प्रतिनिधित्व के रह जाते हैं और उनके हितों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इसी को अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की समस्या कहते हैं।

प्रश्न 8.
सीमित मत प्रणाली पर नोट लिखें।
उत्तर:
सीमित मत-प्रणाली (Limited Vote System) के अन्तर्गत सारा देश बहुत-से निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित होता है। प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र में से कम-से-कम 3 प्रतिनिधियों का निर्वाचन हो सकता है। इस प्रणाली में मतदाताओं को उम्मीदवारों की निश्चित संख्या से कम वोट देने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि हिसार निर्वाचन-क्षेत्र में से 5 उम्मीदवार चुने जाने हैं तो प्रत्येक मतदाता को 3 या 4 वोट देने का अधिकार होगा, परन्तु एक मतदाता एक उम्मीदवार को एक से अधिक मत नहीं दे सकता।

मतों की संख्या सीमित होने के कारण सभी स्थान बहुसंख्यक दल द्वारा पूरित नहीं होंगे, परिणामस्वरूप अल्पसंख्यकों को भी प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। लेकिन जनसंख्या के अनुपात में उन्हें प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो पाता। इसके द्वारा बड़े तथा सुसंगठित अल्पमत वर्गों को ही प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

प्रश्न 9.
वयस्क मताधिकार के पक्ष में चार तर्क (गुण) दीजिए।
उत्तर:
व्यस्क मताधिकार के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं

1. लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के अनुकूल लोक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है। लोकतन्त्र तब तक वास्तविक लोकतन्त्र नहीं हो सकता जब तक कि प्रतिनिधियों के चुनाव में प्रत्येक नागरिक का योगदान न हो। अतः प्रतिनिधियों का चुनाव सामान्य जनता द्वारा किया जाना चाहिए।

2. यह समानता पर आधारित है लोकतन्त्र का मुख्य आधार है-समानता। सभी व्यक्ति समान हैं और विकास के लिए सभी को मताधिकार देना भी आवश्यक है। जिन नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं होता, उनके हितों तथा अधिकारों की सरकार तनिक भी परवाह नहीं करती। इसलिए प्रत्येक वयस्क को मत देने का अधिकार होना चाहिए। नों का प्रभाव सभी पर पड़ता है-राज्य के कानूनों तथा नीतियों का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर पड़ता है। उसे निश्चित करने में भी सबका भाग होना चाहिए।

4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है वयस्क मताधिकार होने से सभी नागरिक समय-समय पर देश में होने वाले चुनावों में भाग लेते रहते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने दल की नीति का लोगों में प्रचार करते हैं और देश की समस्याओं के बारे में उनको जानकारी देते रहते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 10.
वयस्क मताधिकार के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
व्यस्क मताधिकार के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना अनुचित है-प्रत्येक देश में अधिकतर जनता अशिक्षित तथा अज्ञानी होती है। वे उम्मीदवार के गुणों को न देखकर जाति, धर्म तथा मित्रता आदि के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक नेताओं के जोशीले भाषणों से भी शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। अतः अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना उचित नहीं है।

2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा-वयस्क मताधिकार प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। निर्धन व्यक्ति थोड़े-से लालच में पड़कर अपना मत स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों के हाथों में बेच देते हैं।

3. प्रशासन तथा देश की समस्याएँ जटिल- आधुनिक युग में शासन संबंधी प्रश्न तथा समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं, जिन्हें समझ पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। प्रायः साधारण मतदाता अयोग्य व्यक्ति को चुन लेते हैं क्योंकि उनके पास देश की समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें समझने के लिए समय ही नहीं होता।

4. साधारण जनता रूढ़िवादी होती है वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि साधारण जनता रूढ़िवादी होती है। उनके द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियों का विरोध किया जाता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही मिलना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हों।

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग के कोई चार कार्य लिखें।
उत्तर:
चुनाव आयोग के चार कार्य निम्नलिखित हैं

1. चुनाव प्रबन्धन, निर्देशन व नियन्त्रण चुनाव आयोग का प्रमुख कार्य निष्पक्ष चुनाव करवाना है, इसलिए सम्पूर्ण चुनाव व्यवस्था चुनाव आयोग के अधीन है। यह चुनावों का प्रबन्ध, निर्देशन व नियन्त्रण करता है तथा चुनावों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करता है।

2. मतदाता सूचियाँ तैयार करना चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूचियाँ तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।

3. राजनीतिक दलों को निर्वाचन में ठीक व्यवहार रखने के निर्देश-चुनाव आयोग चुनाव के समय उचित वातावरण बनाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों और साधारण जनता के लिए आचार संहिता बना सकता है; जैसे मत प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दल जातिवाद या सांप्रदायिकता की भावना को नहीं भड़काएँगे तथा भ्रष्ट तरीकों को नहीं अपनाएँगे।

4. चुनाव की तिथि की घोषणा करना-चुनाव आयोग उम्मीदवारों के लिए नामांकन-पत्र भरने, नाम वापस लेने तथा नामांकन-पत्रों की जांच करने की तिथि निश्चित करता है। यह आयोग उस तिथि की भी घोषणा करता है, जिस दिन आम चुनाव होने होते हैं और नागरिकों को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करना होता है।

प्रश्न 12.
चुनाव आयोग का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय चुनाव आयोग की महत्ता का विवरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है

1. भारतीय लोकतन्त्र के लिए आवश्यक-भारत में लोकतन्त्र की स्थापना की गई है। लोकतन्त्र स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनावों पर आधारित है। भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत में स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग का गठन किया। अतः चुनाव आयोग स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव करवाकर भारतीय लोकतन्त्र की सुरक्षा करता है।

2. राजनीतिक दलों पर नियन्त्रण के लिए आवश्यक-चुनाव आयोग चुनाव के दिनों में राजनीतिक दलों के कार्यों को निर्देशित व नियंत्रित करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चुनाव आयोग ही विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है एवं उनकी मान्यता को रद्द भी करता है। इसके साथ ही चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता को निश्चित करता है। आचार संहिता की अवहेलना करने वाले दलों के या उनके सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई भी करता है।

3. भारतीय चुनाव राजनीति को प्रदूषित होने से बचाने वाली संस्था के रूप में चुनाव आयोग भारतीय चुनाव राजनीति को प्रदूषित होने से बचाने वाली संस्था के रूप में अहम भूमिका निभाता है। चुनाव आयोग समय-समय पर सन् 1951 के भारतीय प्रतिनिधित्व अधिनियम के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न आदेश देता है जिससे चुनाव प्रक्रिया को भ्रष्ट होने से बचाया जा सकता है; जैसे प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव के बाद चुनाव में हुए खर्च का ब्यौरा देना होता है, शासक दल सरकारी मशीनरी का प्रयोग नहीं कर सकता, चुनाव के दौरान कोई घोषणा नहीं की जा सकती आदि।

4. सरकारों पर नियन्त्रण की भूमिका चुनाव आयोग केंद्र सरकार व राज्य सरकारों पर नियन्त्रण रखने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में बहुमत प्राप्त दल सरकार का निर्माण करता है। सत्तारूढ़ दल अपनी शक्ति का प्रयोग करके चुनाव के लिए धन एकत्रित कर सकता है, जबकि विरोधी दल ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए आयोग आदर्श आचार संहिता के अन्तर्गत सरकारों को निर्देश देता है और उन पर नियन्त्रण रखता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 13.
भारतीय चुनाव प्रणाली की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव प्रणाली की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. वयस्क मताधिकार-भारतीय चुनाव व्यवस्था की प्रमुख विशेषता वयस्क मताधिकार है। इसका अर्थ यह है कि देश के प्रत्येक नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक है, को मतदान में भाग लेने का अधिकार है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 61वें संवैधानिक संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी। इसके अतिरिक्त भारत में जाति, धर्म, वर्ण, लिंग, शिक्षा आदि के आधार पर किसी भी व्यक्ति को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

2. अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा एंग्लो-इंडियन जाति के सदस्यों के लिए स्थान सुरक्षित रखना भारतीय संविधान के अनुसार संसद, राज्यों के विधानमण्डलों तथा स्थानीय स्वशासन की इकाइयों में पिछड़ी हुई जातियों, अनुसूचित जातियों तथा एंग्लो-इंडियन जाति के सदस्यों के लिए स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। आरंभ में यह व्यवस्था केवल 10 वर्ष के लिए अर्थात् 1960 तक थी, परन्तु दस-दस वर्ष के लिए बढ़ाकर इसे लागू रखा गया है। अब यह व्यवस्था 104वें संवैधानिक संशोधन द्वारा सन् 2030 तक कर दी गई है।

3. एक-सदस्यीय चनाव क्षेत्र भारतीय चनाव व्यवस्था की एक अन्य विशेषता एक-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र का होना है। चुनाव के समय प्रत्येक राज्य को लगभग बराबर जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व चुनाव में कुछ क्षेत्र दो सदस्यों वाले भी होते थे-एक साधारण जनता के लिए और दूसरा आरक्षित स्थान से । परन्तु अब इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है।

4. गुप्त मतदान स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव के लिए गुप्त मतदान आवश्यक है। भारत में भी लोकसभा, विधानसभा आदि के चुनाव के लिए गुप्त मतदान प्रणाली को अपनाया गया है। मत डालने वाले के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात का पता नहीं लगता कि उसने अपना मतदान किस उम्मीदवार को दिया है। इससे भ्रष्टाचार में भी कमी होती है।

प्रश्न 14.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की कोई चार त्रुटियाँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव-प्रणाली की चार त्रुटियाँ निम्नलिखित हैं

1. मतदाता सूचियों के बनाने में लापरवाही यह भी देखा गया है कि भारत में मतदाता सूचियों के बनाने में बड़ी लापरवाही से काम लिया जाता है और कई बार जान-बूझकर तथा कई बार अनजाने में पूरे-के-पूरे मोहल्ले सूचियों से गायब हो जाते हैं। मतदाता सूचियाँ अधिकतर राज्य सरकार के कर्मचारियों द्वारा बनाई जाती हैं और वे इसे फिजूल का काम समझते हैं।

विभिन्न विभागों के सामान्य कर्मचारियों विशेषतः पटवारियों तथा स्कूल के अध्यापकों से यह काम करवाया जाता है। प्रायः यह भी देखने में आता है कि नई मतदाता सूची बनाते समय नए मतदाताओं के नाम तो जोड़ दिए जाते हैं परन्तु स्वर्गवासी हो चुके मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस प्रकार मतदाता सूचियों में अंकित नामों एवं वास्तविक नामों में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। अतः मतदाता सूचियों को समय-समय पर संशोधित करने एवं चुनावी प्रक्रिया के प्रथम कार्य को सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है।

2. सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग भारतीय चुनाव व्यवस्था की एक और गम्भीर त्रुटि सामने आई है। मन्त्रियों द्वारा दलीय लाभ के लिए सरकारी तंत्र का प्रयोग किया जाता है। वोट बटोरने के लिए मन्त्रियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के आश्वासन दि हैं। विभिन्न वर्गों के लिए अनेकानेक रियायतें और सुविधाओं की घोषणा की जाती है।

अनेक प्रकार की विकास योजनाओं की घोषणा की जाती है; जैसे कारखानों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों व पुलों के शिलान्यास आदि की घोषणा करना। सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते आदि में वृद्धि की जाती है। कर्जे माफ किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी गाड़ियों तथा अन्य सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है। यद्यपि चुनाव सम्बन्धी अधिनियम के अनुसार ऐसा करना भ्रष्ट व्यवहार में सम्मिलित है परन्तु फिर भी चुनावी प्रक्रिया के दौरान यह सब देखने को मिलता है।

3. राजनीतिक दलों को मतों के अनुपात से स्थानों की प्राप्ति न होना यह भी देखा गया है कि चुनावों में राजनीतिक दलों को उस अनुपात में विधानमण्डलों में स्थान प्राप्त नहीं होते, जिस अनुपात में उन्हें मत प्राप्त होते हैं। जैसे भारत में 13वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी को 182 स्थान मिले और मतों का प्रतिशत 23.70 प्रतिशत रहा, जबकि काँग्रेस को 28.42 प्रतिशत मत मिलने के पश्चात् भी 114 स्थान ही प्राप्त हुए, फिर भी काँग्रेस का मत-प्रतिशत भाजपा से 5 प्रतिशत अधिक है। इससे दलों में मायूसी का पैदा होना स्वाभाविक है। इस प्रकार एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत इस स्थिति को न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

4. चुनाव नियमों में दोष यह भी देखा गया है कि चुनाव सम्बन्धी नियमों में बड़ी कमियाँ हैं और इसी कारण चुनाव में बरती गई अनियमितताओं को न्यायालय के सामने सिद्ध करना बड़ा कठिन हो जाता है। लगभग सभी दल धर्म और जाति के आधार पर अपने उम्मीदवार चुनते हैं तथा इसी के नाम पर वोट माँगते हैं, परन्तु इसको सिद्ध करना कठिन है। सभी उम्मीदवार मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह बात चुनाव-याचिका की सुनवाई के समय सिद्ध नहीं हो पाती।

प्रश्न 15.
भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए कोई तीन सुझाव दें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए तीन सुझाव निम्नलिखित हैं

1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली शुरू करना-भारत में चुनाव-प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि कई बार राजनीतिक दल कम मत प्राप्त करते हैं, परन्तु उन्हें अधिक स्थान प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरणतः सन् 1980 में काँग्रेस को लोकसभा के लिए केवल 42.6% मत मिले, परन्तु संसद में 67% स्थान मिले। इस बुराई को समाप्त करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया गया है। यद्यपि भारत में इसे लागू करना कठिन कार्य है।

2. चुनाव याचिकाओं के बारे में सुझाव-गत अनेक वर्षों से चुनाव याचिकाएँ उच्च न्यायालयों के समक्ष आई हैं, जिनका निपटारा करने में कई वर्ष लगे हैं। चुनाव याचिकाएँ चुनावों से भी अधिक खर्चीली तथा कष्टमय बन गई हैं। इसलिए इन याचिकाओं का निपटारा शीघ्र होना चाहिए, ताकि इसके दोनों पक्षों को बेकार की मुसीबत तथा खर्च से छुटकारा मिल सके।

3. निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक-निर्दलीय उम्मीदवार निष्पक्ष चुनावों के लिए एक समस्या हैं। इसलिए निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगनी चाहिए। यद्यपि कानून द्वारा स्वतन्त्र उम्मीदवारों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ अवश्य होना चाहिए कि मजाक के लिए चुनाव लड़ने वालों पर रोक लगे। इस संबंध में यह सुझाव दिया है कि एक तो जमानत की राशि को बढ़ा देना चाहिए। दूसरे यह व्यवस्था होनी चाहिए कि जिस निर्दलीय उम्मीदवार को निश्चित प्रतिशत से कम वोट प्राप्त होते हैं उसे अगले चुनाव में भाग लेने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार की व्यवस्था से निश्चित रूप से निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगेगी।

प्रश्न 16.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार गुण लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार गुण निम्नलिखित हैं
1. प्रतिनिधियों का उत्तरदायित्व प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है। एक क्षेत्र के सभी मतदाताओं का प्रतिनिधि होने के कारण वह अपने उत्तरदायित्व से इन्कार नहीं कर सकता।

2. क्षेत्रीय हितों की रक्षा प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में क्षेत्रीय हितों की अच्छी तरह पूर्ति होती है। प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझते हैं क्योंकि उनका अपने मतदाताओं व क्षेत्र से समीप का संबंध होता है। अतः प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। यदि प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के हितों की रक्षा नहीं करता, तो ऐसे प्रतिनिधि को मतदाता दोबारा नहीं चुनते। इसलिए प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता।

3. अधिक विकास की सम्भावना प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है। इसका कारण यह है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक प्रतिनिधि अपने क्षेत्र का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहता है क्योंकि भावी चुनाव में वह अपनी सीट को सुनिश्चित कर लेना चाहता है। सभी क्षेत्रों के विकास से देश का विकास होना स्वाभाविक है।

4. कम खर्चीली इस प्रणाली में चुनाव कम खर्चीला होता है और उम्मीदवार को भी चुनाव में कम खर्च करना पड़ता है।

प्रश्न 17.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. क्षेत्रीयवाद की भावना-इस प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। प्रतिनिधि अपने को एक क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधि समझने लगते हैं और उसी क्षेत्र के विकास की बात सोचते तथा करते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों की अवहेलना होने लगती है।

2. सीमित पसन्द-कई बार मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले प्रायः उसी क्षेत्र के निवासी होते हैं और यदि उस क्षेत्र में अच्छे उम्मीदवार न हों तो मतदाताओं को इच्छा न होते हुए भी किसी-न-किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत डालना ही पड़ता है।

3. भ्रष्ट होना मतदाताओं को भ्रष्ट किए जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि मतदाता कम होते हैं और धनी उम्मीदवार धन के बल पर वोट खरीदने का प्रयत्न करने लगते हैं।

4. अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलना-इस प्रणाली में अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व आसानी से नहीं मिलता। एक क्षेत्र से एक उम्मीदवार चुना जाता है और स्वाभाविक है कि बहुमत वर्ग का उम्मीदवार ही चुना जाता है। इस प्रकार अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधि लगभग सभी चुनाव क्षेत्रों में हार जाते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
साधारण शब्दों में, प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली उस चुनाव व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। प्रत्येक मतदाता चुनाव-स्थान पर जाकर स्वयं अपनी पसन्द के उम्मीदवार के पक्ष में, अपने मत का प्रयोग करता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Direct Method of Election)-प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली .. की पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

1. अधिक लोकतन्त्रीय प्रणाली (More Democratic System):
इस प्रणाली में जनता को स्वयं प्रत्यक्ष रूप से मतदान करके अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलता है। अतः यह प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।

2. मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क (Direct link between the voters and their Representatives):
इस प्रणाली में मतदाता तथा उम्मीदवार सीधे रूप से सम्पर्क में आते हैं तथा मतदाता उम्मीदवारों को भली-भांति जान सकते हैं। उम्मीदवार भी अपनी नीतियाँ तथा कार्यक्रम जनता के सामने रख सकते हैं।

3. राजनीतिक शिक्षा (Political Education):
इस प्रणाली में मतदाताओं तथा उम्मीदवारों में सीधा सम्पर्क होता है। इससे मतदाताओं को राजनीतिक शिक्षा मिलती है और उनमें राजनीतिक जागरूकता की भावना का भी उदय होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties):
इस प्रणाली के अन्तर्गत सामान्य जनता को मताधिकार तथा अन्य अधिकारों का ज्ञान प्राप्त होता है तथा कर्तव्यों की भी जानकारी मिलती है।

5. राजनीतिक दलों के लिए आसानी (Convenient for Political Parties):
इस प्रणाली में राजनीतिक दलों के लिए भी आसानी होती है और जो राजनीतिक दल अधिक प्रभावशाली होता है उसके लिए अधिक मत प्राप्त करना तथा बहुमत प्राप्त करना सरल हो जाता है।

6. मतदाताओं में आत्म-सम्मान की भावना आती है (It brings sense of Self-respect among the Voters):
प्रत्येक चुनाव-प्रणाली के अनुसार प्रत्येक मतदाता को निर्वाचन में भाग प्राप्त होता है, जिसके फलस्वरूप मतदाताओं में आत्म-सम्मान की भावना जन्म लेती है। वे अपने-आप को शासन-तन्त्र का अंश अनुभव करते हैं और राजनीतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

7. प्रतिनिधि सभी लोगों के सामने उत्तरदायित्व निभाते हैं (Representatives owe Responsibility to All):
वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधि अपने-आपको जनता के सामने अधिक उत्तरदायी महसूस करते हैं क्योंकि वे कुछ मतदाताओं द्वारा नहीं, बल्कि सभी मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।

प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के विपक्ष में तर्क (Arguments Against of Direct Method of Election) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली . के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

1. साधारण मतदाताओं में मतं का उचित प्रयोग करने की क्षमता का अभाव (Ordinary Voters cannot exercise the Right to Vote Properly): प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के आलोचकों का कहना है कि साधारण मतदाताओं में अपने मत का उचित प्रयोग करने की क्षमता नहीं होती। वे झूठे प्रचारों और जोशीले भाषणों के प्रभाव में बह जाते हैं और अयोग्य उम्मीदवारों को अपना वोट डाल देते हैं।

2. अनुचित प्रचार (False Propaganda):
इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन अभियान में झूठे प्रचार का सहारा लिया जाता है। उम्मीदवार एक-दूसरे की निन्दा करते हैं और एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगाते हैं जिसके परिणामस्वरूप मतदाता पथ-भ्रष्ट हो सके।

3. अधिक खर्चीली प्रणाली (More Expensive System):
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली अधिक खर्चीली मानी गई है। इसके अन्तर्गत चुनाव कराने वाले अभिकरण को भी बहत खर्चा करना पड़ता है और उम्मीदवारों को भी बहत खर्चा करना पड़ता है।

4. अव्यवस्थाजनक (Causes Disruption):
यह चुनाव-प्रणाली एक ऐसी चुनाव-प्रणाली है जिसमें अव्यवस्था हो जाती है। अधिक जोश-खरोश के कारण दंगे-फसाद और अन्य प्रकार की अव्यवस्थाजनक स्थितियाँ सामने आ जाती हैं जिनका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

5. दलगत भावना को बढ़ावा (Encourages Partisan Spirit):
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली राजनीतिक दलों का अखाड़ा बन जाती है, जिसमें राजनीतिक दल एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं।

प्रश्न 2.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विभिन्न तरीकों या रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए यह प्रणाली सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसकी विशेषता यह है कि इसका उद्देश्य प्रत्येक दल को कुछ प्रतिनिधित्व दिलाना है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक दल को उसके मतदान की शक्ति के अनुपात में ही प्रतिनिधित्व दिया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के मुख्य दो रूप हैं-

  • एकल संक्रमणीय मत-प्रणाली (Single Transferable Vote System) और
  • सूची-प्रणाली (List System)। ये दोनों प्रणालियाँ अल्पसंख्यकों को उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व दिलाती हैं।

1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) इस प्रणाली को हेयर प्रणाली (Hare System) भी कहा जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम इसका वर्णन एक अंग्रेज़ विद्वान थॉमस हेयर (Thomas Hare) ने सन् 1851 में अपनी पुस्तक ‘प्रतिनिधियों का चुनाव’ (Election of Representatives) में किया था।

सन् 1855 में डेनमार्क के एक मन्त्री एंड्रे (Andrae) द्वारा इसे पहली बार लागू किया गया। इसे अधिमान्य प्रणाली (Preferential System) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें मतदाता मत-पत्र (Ballot-Paper) पर अपने अधिमानों (Preferences) का संकेत दे सकता है। भारतवर्ष में राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव इसी प्रणाली के द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार चुनाव जीतने के लिए जितने मत प्राप्त करने आवश्यक हैं, उनकी संख्या एक सूत्र (Formula) के अनुसार निश्चित की जाती है। इसे कोटा (Quota) कहा जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 Img 1
मतदान-पत्र (Ballot Paper) में निर्वाचन के लिए खड़े सभी उम्मीदवारों के नाम लिखे हुए होते हैं। निर्वाचन के लिए जितने उम्मीदवार खड़े होते हैं, मतदाता को उतने ही अधिमान या पूर्वाधिकार (Preferences) देने का अधिकार होता है। उसे अपने अधिमानों (Preferences) को 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि के रूप में लिखना पड़ता है। . जब मतदान की प्रक्रिया (Polling) समाप्त हो जाती है तो सभी उम्मीदवारों को प्राप्त हुए प्रथम अधिमानों (First Preferences) को गिन लिया जाता है।

जो उम्मीदवार निश्चित कोटा प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें शीघ्र ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। ऐसे उम्मीदवार निश्चित कोटे से कुछ अधिक वोट भी प्राप्त कर सकते हैं। इन अतिरिक्त (Additional) वोटों का उनके लिए कुछ भी महत्त्व नहीं होता। इसीलिए इन अतिरिक्त (Additional) वोटों को मत-पत्र (Ballot Paper) में लिखे गए अधिमानों (Preferences) के क्रम के अनुसार दूसरे उम्मीदवारों को दे दिया जाता है अर्थात् हस्तांतरित कर दिया जाता है।

इस प्रकार का हस्तांतरण उस समय तक जारी रहता है, जब तक कोटा प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों की संख्या निर्वाचन-क्षेत्र से चुने जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या के बराबर न हो जाए। जिस समय यह संख्या समान हो जाती है तो उस समय हस्तांतरण की प्रक्रिया बन्द कर दी जाती है और निर्वाचन परिणाम घोषित कर दिया जाता है।

2. सूची प्रणाली (List System)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व का दूसरा रूप सूची प्रणाली है। यह प्रणाली बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र में, जिसमें कम-से-कम तीन सीटें हों, लागू की जा सकती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत चुनाव में जो उम्मीदवार खड़े होते हैं, उनकी अपने-अपने दलों के अनुसार अनुसूचियाँ बना ली जाती हैं। प्रत्येक मतदाता को उतने मत देने का अधिकार होता है जितने कि सदस्य उस निर्वाचन-क्षेत्र से चुने जाते हैं, परन्तु वह एक उम्मीदवार को एक से अधिक मत नहीं दे सकता।

उदाहरणस्वरूप, यदि किसी निर्वाचन-क्षेत्र में 4 सीटें हैं तो प्रत्येक मतदाता को 4 मत देने का अधिकार होगा। इस प्रणाली में चुनाव का परिणाम अलग-अलग उम्मीदवारों को प्राप्त हुए मतों के अनुसार नहीं निकाला जाता, बल्कि प्रत्येक सूची के उम्मीदवारों के मत इकट्ठे जोड़ लिए जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मतदाता अपना मत उम्मीदवार को नहीं देते, बल्कि सूची को देते हैं।

इसके अन्तर्गत भी उपर्युक्त एकल संक्रमणीय प्रणाली में दिए गए फार्मूले के अनुसार कोटा (Quota) निकाला जाता है और एक स्थान से चुनाव जीतने के लिए न्यूनतम मतों की संख्या को निश्चित किया जाता है, इसके पश्चात प्रत्येक सूची को कितने स्थान मिलने चाहिएँ, यह उस सूची को दिए गए मतों की कुल संख्या को कोटा से विभाजित करके निकाल लिया जाता है। उदाहरणस्वरूप, एक आएगा।
HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 Img 2
यदि चुनाव में तीन दल भाग ले रहे हैं और उनको मत इस प्रकार मिले हैं जनता दल 4,200, काँग्रेस 3,000 और साम्यवादी दल 2,800 तो उस समय जनता दल को दो स्थान, काँग्रेस को एक स्थान तथा साम्यवादी दल को एक स्थान प्राप्त हो जाएगा। यदि इसमें किसी दल को कोटे से कम मत प्राप्त होते हैं तो बची हुई सीट उस दल को दी जाएगी, जिसके शेष मतों की संख्या सबसे अधिक है। इस प्रकार प्रत्येक दल को उसकी मत-संख्या के अनुपात से प्रतिनिधित्व मिल जाता है। यह प्रणाली नार्वे, स्वीडन तथा बेल्जियम आदि देशों में अपनाई गई है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 3.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of System of Proportional Representation)-आधुनिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं

1. सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व (Representation to All Classes):
इस प्रणाली का यह गुण है कि समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है। कोई वर्ग प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रहता और सबको संतुष्टि मिलती है।

2. अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना (Feeling of Protection among Minorities):
इस प्रणाली का यह गुण है कि सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिलने से उनके हितों की रक्षा होती है और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग स्वयं को सुरक्षित समझते हैं। वे स्वयं को बहुसंख्यक वर्ग की तानाशाही का शिकार नहीं समझते।

3. मतदाताओं को मतदान में अधिक सुविधा (More Scope of Choice for Voters):
इस प्रणाली में मतदाता को अपनी पसन्द के कई उम्मीदवारों के पक्ष में मत डालने का अवसर मिलता है। उसे एक ही व्यक्ति के पक्ष में मत डालने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। इससे उसे अपनी पसन्द के उम्मीदवार को मत देने में सुविधा हो जाती है।

4. निर्वाचन के लिए निर्धारित मत प्राप्त करना आवश्यक है (Quota is Necessary to Win the Election):
इस प्रणाली भावना नहीं रहती कि कोई उम्मीदवार थोड़े-से प्रतिशत मत लेकर भी चुन लिया जाएगा। इस प्रणाली में चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करना आवश्यक होता है, अर्थात् चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या के मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।

5. मत व्यर्थ नहीं जाते (Votes do not go Waste):
इस प्रणाली का यह भी गुण है कि इसमें कोई भी मत व्यर्थ नहीं जाता। मतदाता का मत यदि पहली पसन्द के अनुसार काम नहीं आता है, तो वह दूसरी या तीसरी या चौथी पसन्द के पक्ष में अवश्य काम आता है। मतदाता को भी यह तसल्ली रहती है कि. उसके मत का मूल्य है।

6. विधानमण्डल जनमत का सही प्रतिनिधित्व करता है (Legislature becomes Real Mirror of Public Opinion):
इस प्रणाली से विधानमण्डल जनमत का सही प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि इसमें सभी वर्गों और जातियों के लोग अपने अनुपात से विधानमण्डल में स्थान प्राप्त कर लेते हैं।

7. बहु-दलीय प्रणाली के लिए उपयोगी (Useful in case of Multi-party System):
जिस देश में कई राजनीतिक दल हैं, उसमें यह प्रणाली बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है क्योंकि इसके अन्तर्गत सभी राजनीतिक दलों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है और किसी एक दल की तानाशाही स्थापित नहीं हो पाती।

8. लोगों को अधिक राजनीतिक शिक्षा (More Political Education to People):
इस प्रणाली का यह भी गुण है कि इससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है। लोगों को मत डालते समय काफी सोच-विचार के बाद अपनी पसन्द का प्रयोग करना पड़ता है और मतगणना के समय भी काफी सोच-समझ से काम लेना पड़ता है, इसलिए यह प्रणाली लोगों को अधिक राजनीतिक शिक्षा देती है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विपक्ष में तर्क (Arguments Against the System of Proportional Representation) आधुनिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं

1. जटिल प्रणाली (Complicated System):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण मतदाता इसे समझ नहीं सकता। वोटों पर पसन्द अंकित करना, कोटा निश्चित करना, वोटों की गिनती करना और वोटों को पसन्द के अनुसार हस्तांतरित करना आदि ये सब बातें एक साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति समझ नहीं पाते।

2. राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध (Against National Unity):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियाँ भी अपनी भिन्नता बनाए रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बँट जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।

3. राजनीतिक दलों को अधिक महत्त्व (More Importance to Political Parties):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक होता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है क्योंकि इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।

4. उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility):
इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन-क्षेत्र बहु-सदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।

5. मतदाता और प्रतिनिधि में सम्पर्क का अभाव (Lack of Contact between Voters and Representatives):
इस प्रणाली में चुनाव-क्षेत्र बड़े-बड़े होते हैं, जिस कारण से मतदाताओं को उम्मीदवारों की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं होती और उनमें घनिष्ठ संबंध होना असम्भव-सा हो जाता है। परिणाम यह निकलता है कि प्रतिनिधियों का लोगों के साथ सम्पर्क नहीं हो पाता।

6. मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है (Voter’s Choice is Limited):
कई बार मतदाता की पसन्द का व्यक्ति नहीं चुना जाता। मान लो कि एक मतदाता ने किसी सूची में चौथे नंबर पर लिखे हुए उम्मीदवार के कारण अपना मत उस सूची के पक्ष में डाला, परन्तु उस सूची के हिस्से में केवल दो सीटें आईं तो ऐसी दशा में उस मतदाता की पसन्द अर्थहीन हो गई।

7. सरकार की अस्थिरता (Government is Unstable):
इस प्रणाली के अन्तर्गत देश में बहुत-से दल बन जाते हैं और सभी दल विधानमण्डल में कुछ-न-कुछ सीटें प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। जिन देशों में इस चुनाव-प्रणाली को अपनाया गया है, उनके विधानमण्डलों में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता और प्रायः मिली-जुली सरकार बनती है जो अधिक देर तक स्थिर नहीं रहती।

8. उप-चुनाव करवाने में कठिनाई (Difficulty in holding By-election):
इस प्रणाली के अधीन निर्वाचन-क्षेत्र का बहु-सदस्यीय होना बहुत आवश्यक है, परन्तु यदि आम चुनाव के बाद किसी क्षेत्र में एक सीट खाली हो जाए तो उसका उप-चुनाव कैसे किया जाए, यह एक ऐसी समस्या है, जिसे आसानी से सुलझाया नहीं जा सकता।

निष्कर्ष (Conclusion)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व के पक्ष और विपक्ष का अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि यह प्रणाली केवल ऐसे देश में लागू हो सकती है जहाँ लोग अधिक पढ़े-लिखे हों, साथ ही यह प्रणाली ऐसे राज्य के लिए कदाचित उचित नहीं ठहराई जा सकती, जहाँ पर संसदीय शासन लागू हो। इस चुनाव-प्रणाली का एक गुण तो सराहनीय है कि यह अल्पसंख्यक जातियों को प्रतिनिधित्व दिलाने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है। भारत में विधानपालिका के ऊपरी सदनों के चुनाव इसी प्रणाली के अनुसार होते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का विवरण निम्नलिखित है

1. वयस्क मताधिकार (Adult Franchise):
भारतीय चुनाव-प्रणाली की प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ वयस्क मत्तधिकार प्रणाली को लागू किया गया है। 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले प्रत्येक नागरिक को संसद, विधानमण्डल, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों में मत डालने का अधिकार दिया गया है।

मताधिकार के लिए जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। हाँ, मतदान क्षेत्र (Constituency) में एक निश्चित अवधि तक रहने, मतदाता-सूची में नाम होने आदि की शर्ते निश्चित की गईं हैं, परन्तु अमीर-गरीब, छूत-अछूत, हिन्दू-मुसलमान आदि के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया गया है।

वयस्क मताधिकार में लोकतान्त्रिक सहभागिता के सिद्धान्त को लागू किया गया है और लगभग 50% से अधिक जनसंख्या को मत डालने का अधिकार मिला हुआ है। सितम्बर-अक्तूबर, 1999 के लोकसभा चुनाव के समय भारत में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 62.04 करोड़ थी, जो 14वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2004) के समय बढ़कर लगभग 67.5 करोड़ हो गई थी।

15वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2009) में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 71 करोड़ 40 लाख, 16वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2014) में लगभग 83.41 करोड़ थी जो अप्रैल-मई, 2019 में हुए 17वीं लोकसभा में बढ़कर लगभग 89 करोड़ 78 लाख हो गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में जनता के एक बहुत बड़े भाग को चुनावों में अपनी सहभागिता निभाने का अधिकार प्राप्त है।

2. प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election):
भारतीय चुनाव-प्रणाली की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ जनता के प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। केवल राज्यसभा तथा विधान परिषदों के सदस्य ही अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं और ये संस्थाएँ इतनी शक्तिशाली नहीं हैं। वास्तविक शक्ति-प्राप्त संस्थाएँ लोकसभा, राज्य विधानसभा, पंचायत, नगरपालिका हैं और इन सबके प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। इनमें मनोनीत किए जाने की व्यवस्था भी नाममात्र है।

3. संयुक्त निर्वाचन (Joint Election):
भारत में चुनाव अब पृथक् निर्वाचन के आधार पर नहीं होते, बल्कि संयुक्त निर्वाचन के आधार पर होते हैं। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता, चाहे वे किसी भी जाति या धर्म से सम्बन्ध रखते हैं, अपना एक प्रतिनिधि चुनते हैं। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार प्रत्येक प्रादेशिक चुनाव के लिए संसद के सदस्य चुनने के लिए एक सामान्य निर्वाचक सूची होगी और कोई भी भारतीय धर्म, जाति तथा लिंग के आधार पर सूची में नाम लिखवाने के अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक निर्वाचन क्षेत्र के समस्त मतदाता मिलकर संयुक्त रूप से अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं।

4. गुप्त मतदान (Secret Voting):
भारत में गुप्त मतदान की व्यवस्था की गई है। निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव के लिए गुप्त मतदान की व्यवस्था आवश्यक है। इस व्यवस्था में मत डालने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात का पता नहीं चलता कि उसने अपना मत किसको दिया है। इस प्रकार आपसी झगड़े और शत्रुता की सम्भावना कम हो जाती है तथा देश में शान्ति और व्यवस्था बनी रहती है।

5. एक-सदस्यीय चुनाव-क्षेत्र (Single-Member Constituencies):
भारत में एक-सदस्यीय चुनाव-क्षेत्र बनाए जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि चुनाव के समय सारे भारत या उस राज्य को, जिसमें कि चुनाव होना हो, बराबर जनसंख्या वाले चुनाव-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र में से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। पहले चुनावों में कुछ क्षेत्र दो सदस्यों वाले भी होते थे एक सदस्य साधारण जनता में से और दूसरा सुरक्षित स्थान से, परन्तु अब जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों अथवा जनजातियों की संख्या अधिक होती है, उस इलाके से उस जाति का एक ही सदस्य चुना जाता है और उसे सभी मतदाता चुनते हैं। इस प्रकार अब सभी चुनाव-क्षेत्र एक-सदस्यीय हैं। वर्तमान में भारतीय संघ को 543 संसदीय क्षेत्रों में बाँटा गया है।

6. आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Proportional Representation and Single Transferable Vote System):
भारत में इस प्रकार की चुनाव-प्रणाली का प्रयोग भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए किया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार संसद व राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को अनुपात के अनुसार समान मूल्य के मत देने का अधिकार होता है।

एकल संक्रमणीय प्रणाली के अनुसार मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसन्द लिखनी होती है। मतगणना के समय यदि प्रथम पसन्द वाला कोई व्यक्ति नहीं चुना जाता तो द्वितीय या उससे अगली पसन्द वालों के नाम मतों का संक्रमण हो जाता है। इस प्रकार किसी मतदाता का कोई मत व्यर्थ नहीं जाता।

7. चुनाव आयोग (Election Commission):
भारतीय संविधान द्वारा चुनावों के सुचारू रूप से संचालन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है, जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वर्तमान में श्री सुशील चंद्रा मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं एवं अन्य दो चुनाव आयुक्त बहु-सदस्यीय आयोग में कार्यरत हैं। इसी तरह भारत में बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग कार्य कर रहा है।

8. स्थानों का आरक्षण (Reservation of Seats):
भारत में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है। इसके साथ ही पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए संसद, विधानसभाओं, नगरपालिकाओं तथा पंचायतों में स्थान आरक्षित किए गए हैं। कुछ निर्वाचन-क्षेत्र ऐसे रखे जाते हैं, जिनसे किसी पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति का सदस्य ही चुनाव लड़ सकता है।

आरम्भ में यह व्यवस्था केवल 10 वर्ष के लिए अर्थात् 1960 तक थी, परन्तु दस-दस वर्ष बढ़ाकर इसे लागू रखा गया। वर्तमान में 104वें संशोधन के द्वारा इसे बढ़ाकर 2030 तक कर दिया गया। यह व्यवस्था समाज के पिछड़े वर्ग को सुविधा प्रदान करके उन्हें शेष वर्गों के समान स्तर पर लाने के अभिप्राय से की गई है। यह व्यवस्था लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसे वास्तविक व व्यावहारिक बनाने के लिए की गई है।

9. चनाव याचिका (Election Petition):
भारत में चनाव सम्बन्धी झगडों को निपटाने के लिए चनाव याचिका की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार कोई भी उम्मीदवार या मतदाता यदि किसी चुनाव से सन्तुष्ट नहीं है या वह महसूस करता है कि किसी चुनाव-विशेष में भ्रष्ट साधन अपनाए गए हैं, तो वह अपनी याचिका सीधे उच्च न्यायालय के पास भेज देता है। यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी प्रतिनिधि ने चुनाव के समय भ्रष्ट साधन अपनाए हैं, तो न्यायालय उसके चुनाव को रद्द घोषित कर सकता है।

10. परिणाम साधारण बहुमत के आधार पर (Result on the basis of Simple Majority):
भारत के संविधान निर्माताओं , ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के लिए ब्रिटेन में 16वीं शताब्दी में प्रचलित चुनाव प्रणाली, जिसे ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ (First Past the Post System) या एकल बहुमत प्रणाली (Single Plurality System) कहा जाता है, को अपनाना अधिक उचित समझा। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों में से सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार लोकसभा/राज्यसभा विधानसभा विधान-परिषद्/स्थानीय नगर निकायों/पंचायत राज संस्थाओं के लिए निर्वाचित हो जाता है।

11. ऐच्छिक मतदान (Optional Voting):
चुनावों में प्रत्येक मतदाता द्वारा अपने मत का प्रयोग करना एवं न करना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। वह कानून द्वारा वोट डालने के लिए बाध्य नहीं है। यद्यपि गुजरात सरकार द्वारा स्थानीय स्तर (पंचायती राज संस्थाओं) पर मतदान के अनिवार्य सम्बन्धी कानून पास करके भारत में एक बार पुनः चर्चा का विषय बना दिया गया है कि . मतदान की अनिवार्यता के कानून को लागू करना कितना व्यावहारिक एवं सार्थक है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन् 2014 में लागू किए गए मतदान की अनिवार्यता सम्बन्धी कानून को लागू करने वाला गुजरात राज्य भारत का प्रथम राज्य बन गया है।

12. नोटा का प्रावधान (Provision of NOTA):
भारतीय चुनाव प्रणाली में नोटा (None of the Above) के प्रावधान को लागू करके चुनाव में एक नए विकल्प को भी जनता के लिए प्रदान किया गया है। इस विकल्प द्वारा मतदाता चुनाव में खड़े हुए सभी प्रत्याशियों को नकार सकता है। इस तरह यदि मतदाता चुनाव में खड़े हुए सभी प्रत्याशियों को अयोग्य या भ्रष्ट प्रवृत्ति का समझते हैं तो वे अपनी भावना को व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार रखते हैं।

भारत में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव, 2014 में प्रथम बार नकारात्मक मतदान के लिए नोटा (NOTA) विकल्प मतदाताओं को उपलब्ध करवाया गया। 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल 59,97,054 मतदाताओं ने इस विकल्प का प्रयोग किया। यह सभी 543 लोकसभा सीटों के लिए पड़े कुल मतों का लगभग 1.1% है। यह व्यवस्था निश्चित जन-प्रतिनिधियों को जहाँ उत्तरदायित्वपूर्ण बना सकती है, वहाँ उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित कर सकती है कि वे वास्तव में समाज में एक सच्चे जन-सेवक के आदर्श के रूप में अपने-आपको प्रस्तुत करें, अन्यथा जनता उन्हें नकार भी सकती है।

प्रश्न 5.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य त्रुटियों (दोषों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। अब यहाँ लगभग 89 करोड़ 78 लाख से अधिक मतदाता अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार रखते हैं और आने वाली सरकार का निर्णय करते हैं। भारत में अब तक लोकसभा के 17 चुनाव हो चुके हैं तथा विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों की आम प्रशंसा भी हुई है, परन्तु भारतीय चुनाव-प्रणाली में कुछ उभरे दोषों सम्बन्धी तथ्य अब छिपे हुए नहीं हैं।

सामान्य तौर पर उम्मीदवारों की अपराधिक पृष्ठभूमि, अवैध तरीके से जमा की गई प्रत्याशियों की अचूक सम्पत्ति, अपराधिक व्यक्तियों से प्रत्याशियों की साँठ-गाँठ, मतदान केन्द्रों पर जबरन कब्जा कर लेने, फायरिंग करके या डरा-धमका कर वैध मतदाताओं को मतदान करने से रोकने पर फर्जी मतदान करने जैसी घटनाएँ एवं दोष भारतीय चुनाव प्रणाली में प्रायः देखी जा सकती है।

इसलिए भारत में चुनाव सुधार का मुद्दा सबसे अधिक चर्चित विषय रहता है। यद्यपि इस सम्बन्ध में भारतीय चुनाव आयोग, सरकार एवं न्यायपालिका ने समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार अपना-अपना सहयोग दिया है, परन्तु अब भी चुनाव-सुधार के लिए वास्तविक क्रिया चयन हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। यहाँ हम चुनाव-सुधार सम्बन्धी सुझावों पर चर्चा करने से पूर्व भारतीय चुनाव प्रणाली के दोषों पर दृष्टिपात कर रहे हैं जो निम्नलिखित हैं

1. चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका (The Increasing Role of Money in Elections):
भारतीय चुनाव-प्रणाली का सबसे बड़ा दोष चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका है। भारतीय चुनावों में धन के अन्धाधुन्ध प्रयोग और दुरुपयोग ने भारत की राजनीति को काफी भ्रष्ट किया है। भारत में काले धन का बड़ा बोलबाला है और उसका चुनावों में दिल खोलकर प्रयोग किया जाता है।

मतदाताओं के लिए शराब के दौर चलाए जाते हैं, मत खरीदे जाते हैं, उम्मीदवारों को धनी लोगों द्वारा खड़ा किया जाता है और पैसे के बल पर उम्मीदवारों को बैठाया जाता है तथा मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग किया जाता है। आज का चुनाव पैसे के बल पर ही जीता जा सकता है और इस धन ने मतदाताओं, राजनीतिक दलों तथा प्रतिनिधियों आदि सबको भ्रष्ट बना दिया है।

सार्वजनिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों का कहना है कि लोकसभा के एक उम्मीदवार ने 2 से 10 करोड़ रुपए तक खर्च किए हैं अर्थात् इतना चुनाव खर्च राजनीतिक व आर्थिक स्थिति को दूषित कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार, समय के साथ भारत में लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनावों की लागत (राजकोष पर भारित) तथा उम्मीदवारों एवं राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च का परिमाण सन् 1952 के खर्चों की तुलना में सन् 2014 में बढ़कर लगभग 328 गुना हो गया।

यहाँ तक कि राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले व्यय में तो 500 गुना से भी अधिक वृद्धि हो गई है। एक तथ्य के अनुसार सन् 1952 के लोकसभा चुनावों पर मात्र 10.45 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे जिससे प्रति व्यक्ति चुनाव खर्च लगभग 0.60 रुपए था तथा सन् 2019 के 17वीं लोकसभा चुनाव में कुल खर्च लगभग 70 हजार करोड़ रुपए अनुमानित है जिससे प्रति व्यक्ति खर्च बढ़कर लगभग 60 रुपए हो गया है।

भारतीय लोकतन्त्र धीरे-धीरे ऐसे दौर में पहुंच गया है जहाँ किसी भी सामान्य पृष्ठभूमि के कार्यकर्ता के लिए किसी राजनीतिक दल का टिकट प्राप्त करना तथा चुनाव लड़ना लगभग असम्भव हो गया है। एक तथ्य के अनुसार, 17वीं लोकसभा में 88 प्रतिशत सांसदों की सम्पत्ति औसतन एक-एक करोड़ रुपए से अधिक थी जबकि सन् 2004, 2009 एवं 2014 में करोड़पति सांसदों का औसत क्रमशः लगभग 30 प्रतिशत एवं 82 प्रतिशत था।

इस तरह स्पष्ट है कि राजनीति में धनाढ्य लोगों का ही प्रभुत्व बनता जा रहा है जो भारतीय लोकतन्त्र एवं चुनाव प्रणाली के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। निश्चित ही चुनाव प्रबंधन में काले धन के उपयोग से भारतीय चुनाव परिदृश्य अत्यन्त भ्रष्ट, कलुषित, फिजूलखर्ची एवं हिंसक होता जा रहा है।

2. जाति और धर्म के नाम पर वोट (Voting on the basis of Caste and Religion):
भारत में साम्प्रदायिकता का बड़ा प्रभाव है। जाति और धर्म के नाम पर खुले रूप से मत माँगे और डाले जाते हैं। राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार खड़े करते समय इस बात को ध्यान में रखते हैं और उसी जाति और धर्म का उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं, जिस जाति का उस निर्वाचन-क्षेत्र में बहुमत हो। भारत में अब तक जो चुनाव हुए हैं, उनके आँकड़े भी इस बात का समर्थन करते हैं।

यद्यपि 16वीं एवं 17वीं लोकसभा चुनाव में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व को मिला अपार जनसमर्थन यह दर्शा रहा है कि भारत में भ्रष्टाचार को समाप्त करने एवं विकास तथा सुशासन के लिए आम जनता ने जाति एवं धर्म के आधार से ऊपर उठकर मतदान किया है। यही कारण है कि 16वीं लोकसभा चुनाव के बाद लगभग 30 वर्षों के बाद भारत में एक दल वाली स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। वहाँ 17वीं लोकसभा चुनाव के बाद मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को पुनः पूर्णतः स्पष्ट जनसमर्थन मिला।

3. राजनीतिक दलों को मतों के अनुपात से स्थानों की प्राप्ति न होना (Political Parties not get the seats in Proportion to Votes):
यह भी देखा गया है कि चुनावों में राजनीतिक दलों को उस अनुपात में विधानमण्डलों में स्थान प्राप्त नहीं होते, जिस अनुपात में उन्हें मत प्राप्त होते हैं। जैसे भारत में 13वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी को 182 स्थान मिले और मतों का प्रतिशत 23.70 प्रतिशत रहा, जबकि काँग्रेस को 28.42 प्रतिशत मत मिलने के पश्चात् भी 114 स्थान ही प्राप्त हुए, फिर भी काँग्रेस का मत-प्रतिशत भाजपा से 5 प्रतिशत अधिक है। इससे दलों में मायूसी का पैदा होना स्वाभाविक है। इस प्रकार एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत इस स्थिति को न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

4. मतदाताओं की अनुपस्थिति (Absence of the Voters):
चुनावों में बहुत-से मतदाता चुनावों में रुचि लेते ही नहीं। उनके लिए वोट डालना एक समस्या बन गई है। वे मतपत्र का प्रयोग करते ही नहीं। मत का प्रयोग न करना एक प्रकार से लोकतन्त्र को धोखा देना ही है। अक्सर देखने में आता है कि मतदान लगभग 60% होता है। मतदान का प्रतिशत कई चुनावों में तो 60% से भी कम रहता है।

इससे यह होता है कि कम वोट प्राप्त करने वाले दल को अधिक सीटें मिल जाती हैं; जैसे 13वीं लोकसभा के चुनाव, जो सन् 1999 में हुए, में 59.30 प्रतिशत मतदाताओं ने 14वीं लोकसभा चुनाव में 58 प्रतिशत मतदाताओं ने, 15वीं लोकसभा चुनाव, 2009 में भी 71 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से केवल 42 करोड़ 80 लाख मतदाताओं ने, 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल पंजीकृत 83.41 करोड़ मतदाताओं में से केवल 66.4 प्रतिशत मतदाताओं ने तथा 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 में 89.78 करोड़ मतदाताओं में से 67.11 प्रतिशत मतदाताओं ने ही भाग लिया।

यानि चुनाव आयोग एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद आज भी लगभग 33 प्रतिशत मतदाता अपने पवित्र एवं अमूल्य मताधिकार के प्रति जागरूक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना बहत कठिन है कि जीतने वाला प्रत्याशी लोकतान्त्रिक भावना के अनुरूप बहमत

5. चुनाव नियमों में दोष (Defective Election Rules):
यह भी देखा गया है कि चुनाव सम्बन्धी नियमों में बड़ी कमियाँ हैं और इसी कारण चुनाव में बरती गई अनियमितताओं को न्यायालय के सामने सिद्ध करना बड़ा कठिन हो जाता है। लगभग सभी दल धर्म और जाति के आधार पर अपने उम्मीदवार चुनते हैं तथा इसी के नाम पर वोट माँगते हैं, परन्तु इसको सिद्ध करना कठिन है। सभी उम्मीदवार मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह बात चुनाव-याचिका की सुनवाई के समय सिद्ध नहीं हो पाती।

6. राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics):
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय चुनाव-प्रणाली में एक और दोषपूर्ण मोड़ आया है। प्रायः सभी राजनीतिक दलों ने ऐसे बहुत-से उम्मीदवार चुनाव में खड़े किए, जिनका अपराधों की दनिया में नाम था। ऐसे व्यक्तियों ने राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने का काम किया और लोगों को भय दिखाकर वोट माँगे। जब अपराधी, तस्कर और लुटेरे पहले किसी दल के सक्रिय सदस्य तथा बाद में विधायक बन जाएँ तो उस देश के भविष्य के उज्ज्वल होने की आशा नहीं की जा सकती।

यदि एक तथ्य पर नजर डाली जाए तो राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है; जैसे 14वीं लोकसभा में 128 सांसद ऐसे थे जिन पर विभिन्न मामलों पर अपराधिक मामले चल रहे थे जबकि 15वीं लोकसभा में यह संख्या बढ़कर 162 हो गई। जो कुल सांसदों का 30 प्रतिशत थी। एक तथ्य के अनुसार 162 में से 78 सांसदों के विरुद्ध गम्भीर अपराधिक मामले दर्ज थे।

इसके अतिरिक्त 16वीं लोकसभा, (2014) के निर्वाचित सांसदों पर ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्स’ के द्वारा निर्वाचित सांसदों के दिए गए शपथ पत्रों के विश्लेषण के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष के अनुसार 34 प्रतिशत सांसदों (185) के विरुद्ध विभिन्न न्यायालयों में अपराधिक मामले लम्बित हैं। इनमें से 112 सांसदों के विरुद्ध तो हत्या, हत्या का प्रयास, आगजनी, अपहरण जैसे गम्भीर प्रवृत्ति के मामले दर्ज हैं।

सन् 2019 में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव में लगभग 233 सांसदों के विरुद्ध आपराधिक मामले लम्बित हैं जिनमें बीजेपी के 116, कांग्रेस के 29, जनता दल के 13, डी.एम.के. के 10 एवं टी०एम०सी० के 9 सांसद सम्मिलित हैं जो कुल सांसदों का 43 प्रतिशत हैं। इनमें से 29 प्रतिशत सांसदों पर गम्भीर जुर्म (हत्या, घर में घुसना, डकैती, फिरौती की मांग, धमकाने आदि) के आरोप हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है जो कि चिन्तनीय है।

7. जाली वोट की समस्या (Problem of Impersonation):
भारतीय चुनाव-प्रणाली का एक और महत्त्वपूर्ण दोष है जाली मतदान। चुनावों में जाली मतदान किया जाता है। यहाँ तक कि मृत व्यक्तियों के वोटों का भुगतान भी होता है। वास्तविकता यह है कि जाली मतदान भारतीय लोकतन्त्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। इससे बड़ा खतरा तो यह है कि जाली मतदान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा संगठित तौर पर करवाया जाता है।

8. बहुत अधिक चुनाव प्रत्याशी (Too many Candidates for Election):
भारतीय चुनाव-प्रणाली में एक और दोष है उम्मीदवारों की बढ़ती हुई संख्या। सन् 1996 के लोकसभा के चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या 13,952 थी, जो फरवरी-मार्च, 1998 के आम चुनावों में बढ़कर 47,501 हो गई।

1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में भी कुल प्रत्याशियों की संख्या 4,648 थी जोकि 15वीं लोकसभा चुनाव में कुल प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 8070 हो गई और अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 8251 हो गई। यद्यपि 17वीं लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या 8040 ही रही जो कि 16वीं लोकसभा से कम है।

17वीं लोकसभा चुनाव के समय 7 राष्ट्रीय एवं 59 राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल थे परन्तु अत्यधिक प्रत्याशियों के कारण जनमत का ठीक प्रदर्शन नहीं हो पाता। वोटें अधिक भागों में बंट जाती हैं। बहुत कम वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की जीतने की संभावना रहती है। इस समस्या को निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़ती हुई संख्या ने और भी जटिल बना दिया है। यद्यपि सन् 1999, 2004, 2009, 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या में कमी अवश्य हुई है फिर भी निर्दलीय प्रत्याशियों का अस्तित्व जनमत विभाजन की दृष्टि से निश्चित ही हानिकारक माना जाता है।

9. प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की व्यवस्था का न होना (No Provision for Recall of Representatives):
प्रतिनिधियों को अपने उत्तरदायित्व का आभास करवाने के लिए उन्हें वापस बुलाने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे प्रतिनिधि वापस बुलाए जाने के भय से अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन करेंगे। इस प्रकार की व्यवस्था स्विट्ज़रलैण्ड में है, जबकि भारत में .इस व्यवस्था का अभाव है।

10. अत्यधिक राजनीतिक दल (Too many Political Parties):
भारत एक बहुदलीय प्रणाली वाला देश है। भारत की बहुदलीय प्रणाली के कारण हुए जनमत विभाजन के परिणामस्वरूप सन् 2014 के 16वीं लोकसभा से पूर्व तक पिछले तीन दशकों से भारत में गठबन्धन सरकार का युग रहा ।

यद्यपि 17वीं लोकसभा चुनाव में गठबन्धन सरकार के बावजूद एन०डी०ए० गठबन्धन का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी को अकेले. ही 303 लोकसभा सीटों पर स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ, परन्तु फिर भी भारतीय राजनीति में अत्यधिक राजनीतिक दलों का होना जिनमें से अधिकांश राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय भी नहीं होते कोई अधिक शुभ संकेत नहीं है।

एक तथ्य के अनुसार 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 के समय चुनाव आयोग के पास लगभग 2293 राजनीतिक दल पंजीकृत थे, जिसमें केवल 7 राष्ट्रीय स्तर एवं 59 राज्य स्तरीय राजनीतिक दल थे। शेष राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग की मान्यता प्राप्त नहीं थी। इससे स्पष्ट है कि भारत में बने अधिकांश राजनीतिक दल ऐसे हैं जो राजनीतिक सक्रियता नहीं रखते हैं। अतः भारतीय चुनाव प्रणाली की यह अपनी ही ऐसी व्यवस्था बन गई है जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त दल भी चुनावों में भाग लेते हैं।

11. चुनावों में हिंसा का प्रयोग (Use of Violence in Elections):
भारतीय चुनाव प्रणाली का एक अन्य महत्त्वपूर्ण दोष . यह भी है कि चुनावी प्रक्रिया में हिंसा की घटनाएँ होती रहती हैं। हिंसा एवं शारीरिक बल से कई जगह मतदान केन्द्रों पर जबरन कब्जे की कोशिश की जाती है जिसके कारण कई बार कुछ मतदान केन्द्रों पर पुनर्मतदान भी करवाना पड़ता है। इस तरह हिंसक घटनाओं से जहाँ राजनीतिक वातावरण दूषित होता है वहाँ आम जनता का भी लोकतन्त्रीय प्रणाली से मोह भंग होता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 6.
भारतीय चुनाव प्रणाली की त्रुटियों को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्तमान चुनाव पद्धति 1952 से कार्य करती चली आ रही है। इस चुनाव पद्धति में अनेक दोष देखने को मिले हैं। समय-समय पर राजनीतिक विद्वानों व राजनीतिज्ञों ने विभिन्न सुधार एवं सुझाव प्रस्तुत किए हैं। भारतीय चुनावों के दोषों को दूर करने के लिए दिए गए सुझावों का ब्यौरा अग्रलिखित है

1. चुनाव आयोग को अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बनाया जाना (Making Election Commission more Powerful and Effective):
चुनावी अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग को अधिक प्रभावी और शक्तिशाली बनाया जाए। सरकार इस सुझाव पर विचार कर रही है कि चुनाव आयोग को दीवानी न्यायालयों (Civil Courts) द्वारा प्रयुक्त निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की जाएँ

(1) ऐसी शक्ति जिससे वह यह निर्णय दे सके कि चुनावी भ्रष्टाचार के कारण कोई व्यक्ति संसद या विधानसभा का सदस्य बना रहने के योग्य नहीं है।

(2) चुनावी अनियमितताओं की जांच-पड़ताल करने का अधिकार ।

(3) चुनावी अपराध सिद्ध हो जाने पर लोगों को दंडित करने का अधिकार, जिसमें जुर्माना वसूल करना या हर्जाना दिलाना शामिल है। एक सुझाव यह दिया जा सकता है कि ‘चुनाव आयोग’ के पास अपनी ‘स्वतन्त्र निधि’ होनी चाहिए जिससे हर छोटी-बड़ी बात के लिए उसे राज्य सरकारों का मुंह न ताकना पड़े।

2. चुनाव आयोग का पुनर्गठन (Reorganization of Election Commission):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय हो सकता है; परन्तु काफी समय तक चुनाव आयोग एक-सदस्यीय रहा। इसे बहु-सदस्यीय बनाने की माँग जोर पकड़ती गई और इसे अब बहु-सदस्यीय बना दिया गया है। वर्तमान चुनाव आयोग के सदस्य मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित तीन हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री के परामर्श पर की जाती है।

इसके लिए सुझाव दिया गया है कि चुनाव आयोग का गठन वैसे ही किया जाए, जैसे संघ लोक सेवा आयोग का होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक समिति बनाई जाए, जिसमें प्रधानमन्त्री, मुख्य न्यायाधीश व संसद में प्रतिपक्ष का नेता हो। मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की योग्यताएँ संविधान में निर्धारित की जाएँ। मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों का कार्यकाल पांच वर्ष निर्धारित किया गया है।

इनकी पुनः नियुक्ति राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री पर आधारित है। वे जितनी बार चाहें, उन्हें पुनः नियुक्त कर सकते हैं। संविधान में यह धारा चुनाव आयोग की स्वतन्त्रता के विरुद्ध है। इसके कारण मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की ईमानदारी पर सन्देह किया जा सकता है। इस कारण सुझाव दिया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों का निश्चित कार्यकाल हो।

3. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली शुरू करना (To Start Proportional Representation System):
भारत में चुनाव प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि कई बार राजनीतिक दल कम मत प्राप्त करते हैं, परन्तु उन्हें अधिक स्थान प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरणतः सन् 1980 में काँग्रेस को लोकसभा के लिए केवल 42.6% मत मिले, परन्तु संसद में 67% स्थान मिले। इस बुराई को समाप्त करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया गया है। यद्यपि भारत में इसे लागू करना कठिन कार्य है।

4. मतदाता पहचान-पत्र (Identity Cards for the Voters):
चुनाव आयोग के द्वारा 28 अगस्त, 1993 को मतदान हेतु अनिवार्य पहचान-पत्र बनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्बन्ध में मुख्य चुनाव आयुक्त ने राज्य सरकारों से कहा है कि मतदाताओं को पहचान-पत्र जारी कर दें। इस सुझाव के सम्बन्ध में सभी पार्टियाँ सहमत हैं जैसे कि पूर्व चुनावों की भाँति 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 में भी पहचान-पत्र मतदाता के लिए अनिवार्य कर दिया गया, हालांकि चुनाव आयोग द्वारा पहचान-पत्र सभी मतदाताओं को उपलब्ध न कराए जाने के कारण पहचान के लिए नए प्रमाण-पत्र; जैसे राशन-कार्ड, बस-पास, विद्यार्थी पहचान पत्र, अंक तालिका आदि को भी मान्य कर दिया गया है।

17वीं लोकसभा चुनाव में इसका आशातीत परिणाम सामने आया और फर्जी मतदान रोकने में विशेष सहायता मिली। पहचान-पत्र की उपयोगिता मतदान केन्द्रों तक ही सीमित नहीं। बैंक, अदालत, सरकारी सेवा और सरकारी कार्य व्यवहार में भी इससे अनुकूल सहायता मिल सकती है और नागरिकों की कई कठिनाइयाँ दूर हो सकती हैं। अतः भारतीय लोकतन्त्र की सुरक्षा एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने की दृष्टि से हमें सभी मतदाताओं के फोटोयुक्त पहचान-पत्र बनाने के लिए निरन्तर सरकारी तन्त्र की ओर से सार्थक प्रयास करना बहुत आवश्यक है जिससे प्रत्येक मतदाता की चुनाव में निष्पक्ष एवं सही सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।

5. सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए (There should not be misuse of the Official Machinery):
चुनावों के अवसर पर प्रायः शासन-तन्त्र का दुरुपयोग किया जाता है। वोट बटोरने के लिए मन्त्रियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के आश्वासन दिए जाते हैं तथा उद्घाटन और शिलान्यास के बहाने सरकारी गाड़ियों और दूरदर्शन सुविधाओं का दुरुपयोग किया जाता है।

सन् 1968 में उच्चतम न्यायालय ने ‘घासी बनाम दलसिंह’ नामक केस में यह कहा था कि चुनाव से पूर्व पानी, बिजली, सड़कों की सफाई आदि पर राजकोष से व्यय करके चुनावों को प्रभावित करना ‘बुरा आचरण’ (Bad Practice) है। सरकारी खर्च से विज्ञापन छपवाना या सरकारी तन्त्र का चुनाव-कार्य के लिए प्रयोग पूरी तरह से निषिद्ध किया जाए।

6. चुनावों के व्यय के बारे में सुझाव (Suggestions about the Expenditure of Elections):
चुनाव आयोग ने समय-समय पर होने वाले चुनाव पर होने वाले व्यय को निर्धारित किया है। पहले दो चुनावों में विधानसभा के लिए अधिकतम सात हजार व लोकसभा के लिए 25 हजार रुपए निर्धारित किए गए थे।

जबकि समय-समय किए गए संशोधनों के पश्चात् वर्तमान में 1 मार्च, 2014 से प्रभावी नवीन संशोधन के अनुसार व्यय राशि को बढ़ाकर लोकसभा चुनाव हेतु इन राज्यों; जैसे आंध्र प्रदेश, असम बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु तथा दिल्ली आदि के लिए 70 लाख रुपए जबकि राज्य विधानसभा चुनाव के लिए उपर्युक्त राज्यों के अतिरिक्त उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश के लिए 28 लाख रुपए की व्यय राशि निर्धारित की गई।

शेष राज्यों के लोकसभा चुनावों के लिए 54 लाख रुपए, जबकि शेष राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए 20 लाख रुपए की व्यय राशि निर्धारित की गई इसके अतिरिक्त इस चुनाव खर्च को रोकने के लिए विभिन्न सुझाव दिए गए हैं

(1) राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव पर किया गया खर्च उम्मीदवार के खर्चे की सीमा में शामिल किया जाना चाहिए।

(2) राजनीतिक दलों के आय-व्यय विवरण की विधिवत जांच की जानी चाहिए। प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए आय-व्यय का समस्त विवरण रखा जाना अनिवार्य किया जाए और उसकी जांच मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा नियुक्ति किए गए लेखा परीक्षक द्वारा होनी चाहिए।

(3) चुनाव प्रचार की अवधि में कमी करनी चाहिए, ताकि चुनाव खर्च कम हो सके। सुझाव है कि अवधि 10 दिन से भी कम होनी चाहिए।

(4) संसद और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होने चाहिएँ। सन् 1996 के चुनावों में यह प्रयत्न किया गया था कि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हों।

(5) चुनाव अवधि में सार्वजनिक संस्थाओं को अनुदान देने पर रोक लगानी चाहिए।

(6) चुनाव खर्च का कुछ भाग राज्य द्वारा वहन किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में विश्व के कुछ देशों के राज्य चुनाव के सारे खर्च वहन करते हैं; जैसे स्वीडन, फ्राँस आदि में। कुछ देशों में मिश्रित चुनाव व्यय की व्यवस्था है जिसमें सरकार खर्च का कुछ भाग देती है।

(7) पार्टियों को चन्दा मात्र चैक द्वारा दिया जाना चाहिए।

7. चुनाव याचिकाओं के बारे में सुझाव (Suggestions about the Election Petitions):
गत अनेक वर्षों से चुनाव याचिकाएँ उच्च न्यायालयों के समक्ष आई हैं, जिनका निपटारा करने में कई वर्ष लगे हैं। चुनाव याचिकाएँ चुनावों से भी अधिक खर्चीली तथा कष्टमय बन गई हैं। इसलिए इन याचिकाओं का निपटारा शीघ्र होना चाहिए, ताकि इसके दोनों पक्षों को बेकार की मुसीबत तथा खर्च से छुटकारा मिल सके।

8. निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक (Restrictions on Independent Candidates):
निर्दलीय उम्मीदवार निष्पक्ष चुनावों के लिए एक समस्या हैं, इसलिए निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगनी चाहिए। यद्यपि कानून द्वारा स्वतन्त्र उम्मीदवारों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ अवश्य होना चाहिए कि मज़ाक के लिए चुनाव लड़ने वालों पर रोक लगे।

इस सम्बन्ध में यह सुझाव दिया है कि एक तो जमानत की राशि को बढ़ा देना चाहिए। जुलाई, 1996 में चुनाव आयोग की एक बैठक हुई, जिसमें जमानत की राशि बढ़ाने का फैसला लिया गया और लोकसभा के लिए यह राशि बढ़ाकर 25,000 रुपए और विधानसभा के लिए 10,000 रुपए कर दी गई है।

दूसरे यह व्यवस्था होनी चाहिए कि जिस निर्दलीय उम्मीदवार को निश्चित प्रतिशत से कम वोट प्राप्त होते हैं उसे अगले चुनाव में भाग लेने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार की व्यवस्था से निश्चित रूप से निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगेगी। जैसे 15वीं लोकसभा चुनाव में केवल 9 सदस्य, 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनावों में भी केवल 3-3 प्रत्याशी ही निर्दलीय तौर पर विजयी रहे। स्पष्ट है कि निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रति जनता का रुझान कम हुआ है।

9. वोटिंग मशीनों का प्रयोग (Use of Voting Machines):
सामान्यतः देखा गया है कि तस्कर, माफ़िया और गुंडा तत्त्व को तथाकथित कुछ जन-प्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त होता है और वे शासन पर हावी हो जाते हैं। इस स्थिति को दूर करने के लिए सुझाव दिया गया है कि संवेदनशील केंद्रों पर सुरक्षा को बढ़ा दिया जाना चाहिए और चुनाव में वोटिंग मशीनों का प्रयोग किया ।

जा सकता है। सन् 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनावों में राज्यों के 46 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग मशीन का प्रयोग कर सफल मतदान सम्भव करवाया गया। 22 फरवरी, 2000 को हुए हरियाणा राज्य के विधानसभा चुनावों में भी 90 निर्वाचन क्षेत्रों में से 45 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग मशीन का प्रयोग किया गया। ऐसे में हरियाणा भारत का पहला राज्य बन गया, जहाँ वोटिंग मशीन द्वारा चुनाव सम्पन्न हुआ। 14वीं, 15वीं, 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनाव भी पूर्णतः वोटिंग मशीन द्वारा सम्पन्न हुए थे।

10. अपराधीकरण पर अंकुश (Check on Criminalization):
भारतीय राजनीति में बढ़ती अपराधीकरण की प्रवृत्ति ने भारतीय लोकतन्त्र को सबसे अधिक प्रभावित किया है। इसलिए लोकतन्त्र की रक्षा हेतु आवश्यक है कि ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश हेतु तुरन्त कानून बनाया जाए। पूर्व राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन ने भी कहा था कि, “आपराधिक पृष्ठभूमि और माफिया से संबंध रखने वाले लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखने के लिए कानून बनाया जाए।” अतः ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश आवश्यक है।

11. अन्य प्रयास (Other Efforts):
भारतीय चुनाव-प्रणाली में सुधार किए जाने का सिलसिला जारी है। इस संबंध में तारकुंडे समिति, गोस्वामी समिति तथा चुनाव आयुक्त आर०के० द्विवेदी ने कुछ सुझाव दिए। इसके अतिरिक्त 23 जुलाई, 1996 को चनाव आयोग और राजनीतिक दलों की एक बैठक हुई, जिसमें कछ सधारों पर विचार किया गया तथा कछ सुधारों पर सहमा हो गई।

इस बैठक में कुछ निर्णय लिए गए और चुनाव संशोधन किए गए। जन-प्रतिनिधि अधिनियम (The Representation of the People Act) में संशोधन किया गया है। इस संशोधन को राष्ट्रपति ने 1 अगस्त, 1996 को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। कुछ मुख्य संशोधन निम्नलिखित प्रकार से हैं-

(1) इस चुनाव सुधार संशोधन द्वारा चुनाव प्रचार का समय 21 दिन से घटाकर 14 दिन कर दिया गया है। उम्मीदवारों के लिए जमानत की राशि बढ़ा दी गई है,

(2) लोकसभा के उम्मीदवार के लिए जमानत की राशि बढ़ाकर 25,000 रुपए और विधानसभा के उम्मीदवार के लिए 10,000 रुपए कर दी गई है। आरक्षित लोकसभा चुनाव क्षेत्र के लिए जमानत की राशि 12,500 रुपए तथा विधानसभा चुनाव क्षेत्र के लिए 5,000 रुपए निश्चित की गई है,

(3) इसके साथ ही अरुचिकर उम्मीदवारों (Non-serious Candidates) की संख्या कम करने के लिए नाम पेश करने वालों की संख्या बढ़ाकर 10 कर दी गई है,

(4) चुनाव अधिकारियों या चुनाव पर्यवेक्षकों को मतदान केंद्र के कब्जे के मामले में गिनती रोकने के अधिकार दे दिए गए हैं,

(5) नए कानून के अधीन चुनाव से 48 घंटे पहले शराब के बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है तथा मत के पास शस्त्र लेकर घूमना अपराध घोषित कर दिया गया है।

12. चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए नए दिशा-निर्देश (New Guidelines issued by the Election Commission):
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर 1 अप्रैल, 2003 को चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी किया है जिसके अनुसार संसद तथा विधानसभाओं के चुनावों में उम्मीदवार को नामांकन-पत्र के साथ एक हलफ़नामा (Affidavit) देना जरूरी होगा जिसमें उसे अपने क्रिमिनल बैकग्राऊंड (Criminal Background) का भी उल्लेख करना होगा।

नामांकन-पत्र के साथ ही उसे अपनी सम्पत्ति और देनदारी तथा शैक्षिक योग्यता की जानकारी भी हलफनामे में देनी होगी। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि कोई उम्मीदवार नामांकन के समय यह जानकारी हलफनामे में नहीं देगा तो यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा और चुनाव अधिकारी को जांच के समय उस नामांकन-पत्र को रद्द करने का अधिकार होगा।

आयोग ने यह भी कहा कि प्रत्येक उम्मीदवार को यह शपथ-पत्र प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, नोटरी पब्लिक (Notary Public) अथवा शपथ आयुक्त (Oath Commissioner) के समक्ष विधिवत शपथ लेकर प्रस्तुत करना होगा।

13. निर्वाचन एवं अन्य सम्बन्धित अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2003 (Election and Other Related Laws Amendment Bill, 2003)-राजनीतिक दलों द्वारा चन्दा लिए जाने की प्रक्रिया के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को भी अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से निर्वाचन एवं अन्य सम्बन्धित अधिनियम संशोधन विधेयक, 2003 (Election and Other Related laws Amendment Bill, 2003) को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया है। वरिष्ठ काँग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति की सिफारिशों को विधेयक में समाहित कर लिया गया। विधेयक के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-

(1) राजनीतिक दलों के लिए 20 हजार रुपए या अधिक राशि के चन्दों की रिपोर्टिंग अनिवार्य (अभी यह सीमा 10 हजार रुपए थी),

(2) रिपोर्टिंग न करने वाले दलों को इन राशियों पर आयकर में छूट नहीं होगी,

(3) राजनीतिक दलों को प्रदत्त चन्दे पर सम्बन्धित कंपनी को आयकर अधिनियम के तहत छूट। लाभांश का अधिकतम 5 प्रतिशत ही चन्दे के रूप में देने की अनुमति होगी,

(4) मतदाताओं व मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को कुछेक सामग्री चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराने का प्रावधान। दूसरे शब्दों में, चुनावों के आंशिक सरकारी वित्तीय सहायता की शुरुआत।

प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
वयस्क मताधिकार से तात्पर्य मतदान करने की ऐसी व्यवस्था से हैं जिसमें प्रत्येक नागरिक को, बिना किसी प्रकार के भेदभाव के, एक निश्चित आयु पूरी करने पर मतदान का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस प्रणाली में शिक्षा, लिंग, सम्पत्ति, जन्म-स्थान अथवा अन्य आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं किया जा सकता। केवल पागल, दिवालिए तथा कुछ विशेष प्रकार के अपराधी व विदेशियों को ही मतदान के अधिकार से वंचित किया जाता है। संसार के विभिन्न देशों में वयस्क होने की आयु भिन्न-भिन्न है। भारत, अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में यह 18 वर्ष, नार्वे में 23 वर्ष तथा जापान में यह 25 वर्ष है। वयस्क मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

पक्ष में तर्क (Arguments in Favour)-वयस्क मताधिकार के पक्ष में प्रायः निम्नलिखित तर्क पेश किए जाते हैं

1. लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के अनुकूल (In Harmony with the Principle of Popular Sovereignty):
लोक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है। लोकतन्त्र तब तक वास्तविक लोकतन्त्र नहीं हो सकता जब तक कि प्रतिनिधियों के चुनाव में प्रत्येक नागरिक का योगदान न हो। अतः प्रतिनिधियों का चुनाव सामान्य जनता द्वारा किया जाना चाहिए।

2. यह समानता पर आधारित है (It is based on Equality):
लोकतन्त्र का मुख्य आधार है-समानता। सभी व्यक्ति समान हैं और विकास के लिए सभी को मताधिकार देना भी आवश्यक है। जिन नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं होता, उनके हितों तथा अधिकारों की सरकार तनिक भी परवाह नहीं करती। इसलिए प्रत्येक वयस्क को मत देने का अधिकार होना चाहिए।

3. कानूनों का प्रभाव सभी पर पड़ता है (Laws AffectAll):
राज्य के कानूनों तथा नीतियों का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर पड़ता है। उसे निश्चित करने में भी सबका भाग होना चाहिए।

4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है (Citizens get Political Education):
वयस्क मताधिकार होने से सभी नागरिक समय-समय पर देश में होने वाले चुनावों में भाग लेते रहते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने दल की नीति का लोगों में प्रचार करते हैं और देश की समस्याओं के बारे में उनको जानकारी देते रहते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

5. सभी के अधिकार सुरक्षित रहते हैं (Rights of all are Safeguarded):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में देश के सभी नागरिकों के लिए अपने अधिकारों की रक्षा करना सम्भव होता है। मतदाता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं तथा उन पर नियन्त्रण बनाए रखते हैं। सरकार नागरिकों के भय से उनके अधिकारों को छीन नहीं सकती।

6. यह स्वाभिमान जागृत करती है (It awakens Self-respect):
वयस्क मताधिकार नागरिकों में स्वाभिमान की भावना को जागृत करता है। जब बड़े-बड़े नेता उनके पास वोट माँगने के लिए आते हैं तो उन्हें अपनी वास्तविक शक्ति का ज्ञान होता है और उनकी सोई हुई आत्मा जागती है। उन्हें इस बात का अनुभव होता है कि देश के शासन में उनका भी योगदान है। इससे उनके मन में स्वाभिमान की भावना जागृत होती है।

7. सार्वजनिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करती है (It creates Interest in Public Matters):
वयस्क मताधिकार प्रणाली नागरिकों में सार्वजनिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करती है। उन्हें यह अनुभव होता है कि शासन में उनका भी कुछ हाथ है और वे भी देश के कानून तथा नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। वे राष्ट्रहितों के कार्यों का समर्थन करते हैं तथा राष्ट्र-विरोधी कार्यों का विरोध करते हैं। इससे नागरिकों में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना जागृत होती है।

8. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा (Protection of the Interests of the Minorities):
यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें अल्पसंख्यकों को भी अपने प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिल जाता है। उनके द्वारा वे अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।

9. धन का प्रभाव बहुत कम होता है (Less Influence of Money):
इस प्रणाली में सभी वयस्क नागरिकों को मतदान करने का अधिकार होता है, मतों का खरीदना सम्भव नहीं होता। इस प्रकार यह प्रणाली चुनाव में धन के प्रभाव को बहुत कम कर देती है।

10. क्रांति की कम सम्भावना (Less Chance of Revolution):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना की सम्भावना अधिक रहती है क्योंकि नागरिक अपने द्वारा चुनी गई सरकार के विरुद्ध क्रांति नहीं करते।

11. सार्वजनिक हित की दृष्टि से वांछनीय (Necessary for Welfare of All):
लोकतन्त्र का शुद्ध रूप वही होता है जिसमें सार्वजनिक हित की कामना की जाती है। सब वर्गों के हितों और उनके अधिकारों का उचित संरक्षण तभी हो सकता है, जब प्रत्येक वर्ग के लोगों को अपने मत द्वारा शासन की नीतियों और उसके कार्यों को प्रभावित करने का अवसर प्राप्त हो। ऐसा अवसर अधिक-से-अधिक वर्गों को केवल वयस्क मताधिकार द्वारा ही प्राप्त करवाया जा सकता है। अतः वयस्क मताधिकार वर्ग हित की दृष्टि से वांछनीय है।

12. इससे राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है (It Increases National Unity):”
प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार देने से राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति अपने-आप को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझता, क्योंकि सब व्यक्तियों को जीवन का विकास करने के लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं।

यदि किसी एक विशेष वर्ग या जाति को मताधिकार दिया जाए तो राष्ट्रीय एकता के नष्ट होने की सम्भावना हो सकती है। राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ यह नागरिकों में देश-प्रेम की भावना को भी जागृत करता है क्योंकि प्रत्येक नागरिक स्वयं को सरकार का अंग समझता है और उसके मन में अपने देश के प्रति सम्मान पैदा होता है।

विपक्ष में तर्क (Arguments Against)-वयस्क मताधिकार के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं

1. अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना अनुचित है (It is not proper to give Right to Vote to the Ignorants):
प्रत्येक देश में अधिकतर जनता अशिक्षित तथा अज्ञानी होती है। वे उम्मीदवार के गुणों को न देखकर जाति, धर्म तथा मित्रता आदि के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक नेताओं के जोशीले भाषणों से भी शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। अतः अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना उचित नहीं है।

2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा (Encourages Corruption):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। कुछ निर्धन व्यक्ति थोड़े-से लालच में पड़कर अपना मत स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों के हाथों में बेच देते हैं।

3. प्रशासन तथा देश की समस्याएँ जटिल (Administration and Problems of the Country are Complicated):
आधुनिक युग में शासन संबंधी प्रश्न तथा समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं, जिन्हें समझ पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। प्रायः साधारण मतदाता अयोग्य व्यक्ति को चुन लेते हैं क्योंकि उनके पास देश की समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें समझने के लिए समय ही नहीं होता।

4. साधारण जनता रूढ़िवादी होती है (Masses are Conservative):
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि साधारण जनता रूढ़िवादी होती है। उनके द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियों का विरोध किया जाता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही मिलना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हों।

5. मताधिकार प्राकृतिक अधिकार नहीं है (Right to Vote is not a Natural Right):”
वयस्क मताधिकार के आलोचकों द्वारा यह तर्क पेश किया जाता है कि मताधिकार कोई प्राकृतिक अधिकार नहीं है जो प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होना चाहिए। उनके अनुसार मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही दिए जाने चाहिएँ जो उनका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हैं। मताधिकार के बारे में तो यह बात और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसा अधिकार है जो देश के भविष्य को उज्ज्वल भी बना सकता है और मिट्टी में भी मिला सकता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए, जो इसके योग्य हों।

6. सभी नागरिक समान नहीं होते (AIICitizens are not Equal):
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह दिया जाता है कि सभी नागरिक किसी भी दृष्टि से समान नहीं होते, इसलिए उन सभी को समानता के आधार पर मतदान का अधिकार देना उचित नहीं है।

प्रश्न 8.
भारत के चुनाव आयोग (Election Commission) पर नोट लिखें।
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव व्यवस्था के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियन्त्रण का कार्य भारत में संवैधानिक मान्यता प्राप्त, स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोग को सौंपा है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। संविधान के अनुच्छेद 324 में यह भी प्रावधान है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह के लिए राष्ट्रपति द्वारा अन्य आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है।

भारत में 1951 में पहली बार संविधान के अन्तर्गत एक सदस्यीय निर्वाचन आयोग का गठन किया गया, परन्तु केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने 16 अक्तूबर, 1989 को राष्ट्रपति वेंकटरमन द्वारा अन्य चुनाव और प्रतिनिधित्व दो निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करवाते हुए निर्वाचन आयोग को पहली बार बहु-सदस्यीय आयोग बनाते हुए इसे व्यापक स्वरूप प्रदान किया, लेकिन 2 जनवरी, 1990 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने चुनाव आयोग को फिर से एक-सदस्यीय बना दिया।

2 अक्तूबर, 1993. में भारत के राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करके चुनाव आयोग में दो अन्य सदस्यों (एम०एस० गिल एवं जी०वी०जी० कृष्णामूर्ति) की नियुक्ति कर दी। 20 दिसम्बर, 1993 में संसद ने एक विधेयक पास करके चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बना दिया और दो अन्य आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के बराबर दर्जा प्रदान किया गया।

14 जुलाई, 1995 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अन्य दो आयुक्तों की स्थिति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की स्थिति के बराबर दर्जा देने को वैध ठहराया। अतः इस समय चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है और मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य दो चुनाव आयुक्तों की स्थिति बराबर है। इस समय चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुशील चंद्रा हैं। इसके अतिरिक्त दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं।

नियुक्ति (Appointment)-संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति एवं संसद द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार की जाती है। प्रान्तीय व क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती है।

योग्यताएँ (Qualifications) भारतीय संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति सम्बन्धी योग्यताओं का संविधान में कोई उल्लेख नहीं किया गया है अर्थात् इस सम्बन्ध में हमारा संविधान मौन है।

कार्यकाल (Term)-भारतीय संसद ने सन् 1995 में चुनाव आयोग के कार्यकाल सम्बन्धी एक कानून पास किया है, जिसके अनुसार चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष होगा। इस कानून में यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि चुनाव आयुक्त की आयु 6 वर्ष की अवधि से पहले 65 वर्ष की हो जाती है, तो वह अपने पद से अवकाश ग्रहण कर लेता है अर्थात् 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु दोनों में से जो पहले पूरी हो, तब तक चुनाव आयुक्त अपने पद पर बने रहते हैं। विशेष परिस्थितियों में मुख्य चुनाव आयुक्तों की अवधि को बढ़ाया जा सकता है, जैसा कि श्री सुकुमार सेन व श्री एस०पी० सेन वर्मा का कार्यकाल 6 वर्ष से अधिक बढ़ाया गया था।

चुनाव आयुक्तों को पदच्युत करना (Removal of Election Commissioners) भारतीय संविधान में चुनाव आयुक्तों को पद से हटाने की व्यवस्था भी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की विधि द्वारा ही हटाया जा सकता है अर्थात् चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाए जाने की विधि को ही अपनाया गया है।

इसका अभिप्राय यह है कि मुख्य चुनाव आयुक्तों को तभी हटाया जा सकता है, जब संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल सदस्यों के बहुमत से तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से महाभियोग को पारित कर दें। अन्य चुनाव आयुक्तों या क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों को तो राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह से ही उनके पद से हटाता है अर्थात् मुख्य चुनाव की मंजूरी के बिना चुनाव आयुक्तों या क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाया नहीं जा सकता।

सन् 2009 में मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एन० गोपालास्वामी द्वारा चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पक्षपात करने के आधार पर पद से हटाने की सिफारिश की गई थी, परन्तु डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया और उसने राष्ट्रपति को इसके लिए कोई सलाह नहीं भेजी। इसके बावजूद श्री नवीन चावला को नया मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था।

वेतन तथा सेवा शर्ते (Salary and Terms of Service)-चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते व सेवा शर्ते समय-समय पर संसद द्वारा निश्चित की जाती हैं। इनके वेतन व भत्ते भारत सरकार की संचित निधि में से दिए जाते हैं। निर्वाचन आयुक्तों के वेतन, भत्तों व सेवा शर्तों में इनके कार्यकाल में कटौती नहीं की जा सकती। 1 अक्तूबर, 1993 में संसद द्वारा पास किए गए एक विधेयक द्वारा चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के समान वेतन दिए जाने की व्यवस्था कर दी गई अर्थात् वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को 2,50,000 रुपए मासिक वेतन दिया जाता है।

चुनाव आयोग के लिए कर्मचारी (Staff for Election Commission) संविधान के अनुच्छेद 324 (6) के अनुसार चुनाव आयोग अपने कार्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति एवं राज्यों के मुखिया राज्यपालों से आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की माँग कर सकता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति तथा राज्यपालों का यह कर्त्तव्य है कि वे चुनाव आयुक्तों व क्षेत्रीय आयुक्तों की प्रार्थना पर

उचित स्टाफ का प्रबन्ध करें। चुनाव आयोग को अपने दायित्व का पालन करने के लिए राज्य व जिला स्तर पर बहुत-से कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। मतदान केन्द्रों के लिए प्रधान पदाधिकारी (Presiding Officers) व पोलिंग अधिकारी (Polling Officers) चाहिए। इसके अतिरिक्त मतदान केन्द्रों की सुरक्षा एवं व्यवस्थित रूप से संचालन के लिए आवश्यक पुलिस बल चाहिए। अतः केन्द्र में राष्ट्रपति तथा राज्यों में राज्यपाल का कर्त्तव्य है कि चुनाव आयोग की सिफारिश पर आवश्यकतानुसार सुविधाएँ जुटाई जाएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 9.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का अर्थ (Meaning of Territorial Representation)-लोकतन्त्रीय राज्यों में चुनाव के लिए निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन भौगोलिक आधार पर किया जाता है। समस्त राज्य को एक-सदस्य अथवा बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को उस चुनाव-क्षेत्र का निवासी होने के नाते अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को ही प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है।

संक्षेप में, सामान्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन जब प्रादेशिक आधार पर हो, तो उस प्रणाली को प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। भारत, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका आदि राज्यों में इसी प्रणाली को लागू किया गया है। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण अथवा पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Territorial Representation) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं

1. सरल चुनाव-प्रणाली (Simple Electoral System):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यह प्रणाली अति सरल है। इस प्रणाली में मतदाताओं की सूचियाँ बड़ी सरलता से तैयार की जाती हैं और प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की एक मतदाता सूची होती है। एक चुनाव-क्षेत्र में कई उम्मीदवार खड़े होते हैं, मतदाता को किसी एक उम्मीदवार को मत डालना होता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। साधारण जनता के लिए भी इस प्रणाली को समझना आसान होता है।

2. लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित (Based on Democratic Principles):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित है। लोकतन्त्र का मुख्य सिद्धान्त यह है कि सभी व्यक्ति समान हैं तथा उनमें जाति, धर्म, रंग तथा लिंग आदि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए। इस प्रणाली में एक निर्वाचन-क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता समानता के आधार पर अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। वह प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

3. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा (Promotes National Unity):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। देश के विधानमण्डल में समस्त राष्ट्र के प्रतिनिधि होते हैं न कि विभिन्न वर्गों या व्यवसायों के। ऐसे प्रतिनिधि अपने-आपको किसी वर्ग अथवा व्यवसाय का प्रतिनिधि न मानकर समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधि मानते हैं और राष्ट्रीय हितों को प्रधानता देते हैं। इसका प्रभाव जनता पर भी पड़ता है। उनका दृष्टिकोण भी राष्ट्रीय बनता है तथा राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है।

4. प्रतिनिधियों तथा मतदाताओं में निकटता का संबंध (Close Relation between Representatives and Voters):
प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र प्रायः छोटे होते हैं और एक निर्वाचन-क्षेत्र से प्रायः एक ही सदस्य चुना जाता है, जिससे मतदाताओं और प्रतिनिधियों में निकटता का संबंध स्थापित होने की अधिक सम्भावना रहती है। प्रतिनिधि प्रायः उसी निर्वाचन-क्षेत्र का निवासी होता है, जिस क्षेत्र का वह प्रतिनिधित्व कर रहा होता है।

मतदाता और प्रतिनिधि प्रायः एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते होते हैं। अतः प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं की इच्छाओं और आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझता है और उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करता है।

5. प्रतिनिधियों का उत्तरदायित्व (Fixed Responsibility):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है। एक क्षेत्र के सभी मतदाताओं का प्रतिनिधि होने के कारण वह अपने उत्तरदायित्व से इन्कार नहीं कर सकता।

6. क्षेत्रीय हितों की रक्षा (Safeguards Territorial Interests):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में क्षेत्रीय हितों की अच्छी तरह पूर्ति होती है। प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझते हैं क्योंकि उनका अपने मतदाताओं व क्षेत्र से समीप का संबंध होता है। अतः प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। यदि प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के हितों की रक्षा नहीं करता, तो ऐसे प्रतिनिधि को मतदाता दोबारा नहीं चुनते। इसलिए प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता।

7. अधिक विकास की सम्भावना (Possibility of Greater Development):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है। इसका कारण यह है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक प्रतिनिधि अपने क्षेत्र का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहता है क्योंकि भावी चुनाव में वह अपनी सीट को सुनिश्चित कर लेना चाहता है। सभी क्षेत्रों के विकास से देश का विकास होना स्वाभाविक है।

8. कम खर्चीली (Less Expensive):
इस प्रणाली में चुनाव कम खर्चीला होता है और उम्मीदवार को भी चुनाव में कम खर्च करना पड़ता है। क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोष अथवा विपक्ष में तर्क (DemeritsArguments against of Territorial Representation) कई विद्वानों ने क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली की कड़ी आलोचना की है। ड्यूगी (Duguit), जी०डी०एच० कोल (GD.H. Cole) और ग्राहम वालास (Graham Wallas) ने इस प्रणाली की कटु आलोचना की है। इस प्रणाली में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं

1. क्षेत्रीयवाद की भावना (Feeling of Regionalism):
इस प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। प्रतिनिधि अपने को एक क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधि समझने लगते हैं और उसी क्षेत्र के विकास की बात सोचते तथा करते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों की अवहेलना होने लगती है।

2. सीमित पसन्द (Limited Choice):
कई बार मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले प्रायः उसी क्षेत्र के निवासी होते हैं और यदि उस क्षेत्र में अच्छे उम्मीदवार न हों तो मतदाताओं को इच्छा न होते हुए भी किसी-न-किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत डालना ही पड़ता है।

3. भ्रष्ट होना (Corruption):
मतदाताओं को भ्रष्ट किए जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि मतदाता कम होते हैं और धनी उम्मीदवार धन के बल पर वोट खरीदने का प्रयत्न करने लगते हैं।

4. अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलना (Minorities fail to get proper Representation):
इस प्रणाली में अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व आसानी से नहीं मिलता। एक क्षेत्र से एक उम्मीदवार चना जाता है और स्वाभाविक है कि बहमत वर्ग का उम्मीदवार ही चुना जाता है। इस प्रकार अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधि लगभग सभी चुनाव क्षेत्रों में हार जाते हैं।

वस्तु निष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. निम्न में से कौन-सा अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का गुण है?
(A) यह अधिक लोकतांत्रिक है
(B) खर्च अधिक होता है।
(C) केवल योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों को चुना जाता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) केवल योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों को चुना जाता है

2. भारत में अपनाई गई है
(A) वयस्क मताधिकार प्रणाली
(B) धर्म पर आधारित मत प्रणाली
(C) शिक्षा पर आधारित मत प्रणाली
(D) जाति के आधार पर मत प्रणाली
उत्तर:
(A) वयस्क मताधिकार प्रणाली

3. भारत में निम्न का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली द्वारा किया जाता है
(A) राष्ट्रपति
(B) उप-राष्ट्रपति
(C) राज्यपाल
(D) लोकसभा के सदस्य
उत्तर:
(D) लोकसभा के सदस्य

4. वह चुनाव-प्रणाली जिसमें साधारण मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं, कहलाती है
(A) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली
(B) अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली
(C) सीमित मत प्रणाली
(D) सूची प्रणाली
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली

5. वयस्क मताधिकार प्रणाली में मतदान के अधिकार का आधार होता है
(A) शिक्षा
(B) संपत्ति
(C) आयु
(D) व्यवसाय
उत्तर:
(C) आयु

6. भारत की चुनाव-प्रणाली की विशेषता है
(A) वयस्क मताधिकार
(B) एक-सदस्य निर्वाचन क्षेत्र
(C) सीटों का आरक्षण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. निम्न वयस्क मताधिकार का अवगुण है
(A) राजनीतिक शिक्षा मिलती है
(B) भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है
(C) इस प्रणाली में महिलाओं को भी मतदान का
(D) इस प्रणाली में गरीबों को भी मतदान का अधिकार अधिकार होता है होता है।
उत्तर:
(B) भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है

8. भारत में मतदान के लिए न्यूनतम आयु निश्चित की गई है
(A) 18 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 25 वर्ष
(D) 20 वर्ष
उत्तर:
(A) 18 वर्ष

9. निम्न वयस्क मताधिकार का गुण है
(A) यह समानता पर आधारित है ।
(B) नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है
(C) सभी के अधिकार सुरक्षित रहते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. भारत में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु होनी चाहिए
(A) 21 वर्ष
(B) 30 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष
उत्तर:
(D) 25 वर्ष

11. निम्न में से कौन-सा प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का गुण है?
(A) अधिक लोकतांत्रिक है
(B) योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों का चुनाव
(C) खर्च कम होता है
(D) राजनीतिक दलों का प्रभाव कम होता है।
उत्तर:
(A) अधिक लोकतांत्रिक है

12. भारत में निम्न का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली से किया जाता है
(A) लोकसभा के सदस्य
(B) राज्य विधानसभा के सदस्य
(C) राष्ट्रपति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) राष्ट्रपति

13. भारत में पहला आम चनाव निम्न वर्ष में हआ था
(A) सन् 1947
(B) सन् 1950
(C) सन् 1952
(D) सन् 1955
उत्तर:
(C) सन् 1952

14. निम्न प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का गुण है
(A) सरल चुनावे-प्रणाली
(B) मतदाताओं की सीमित पसंद
(C) अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरल चुनाव-प्रणाली

15. देश में चुनाव करवाने संबंधी निर्णय लेने का अधिकार है
(A) राष्ट्रपति के पास
(B) प्रधानमंत्री के पास
(C) चुनाव आयोग के पास
(D) उप-राष्ट्रपति के पास
उत्तर:
(C) चुनाव आयोग के पास

16. चुनाव आयोग में आजकल कितने सदस्य (मुख्य चुनाव आयुक्त सहित) हैं
(A) 4
(B) 3
(C) 2
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

17. निम्न चुनाव आयोग का कार्य नहीं है
(A) चुनाव कराना
(B) राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना
(C) मतदाता सूचियाँ तैयार करना
(D) चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़े करना
उत्तर:
(D) चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़े करना

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

18. भारत में सांप्रदायिक चुनाव-प्रणाली निम्न वर्ष में लागू हुई
(A) सन् 1906
(B) सन् 1909
(C) सन् 1935
(D) सन् 1952
उत्तर:
(B) सन् 1909

19. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को मासिक वेतन मिलता है
(A) 1,50,000
(B) 2,00,000
(C) 1,00,000
(D) 2,50,000
उत्तर:
(D) 2,50,000

20. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एक शर्त है
(A) एक-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र
(B) बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र
(C) शहरी निर्वाचन-क्षेत्र
(D) ग्रामीण निर्वाचन-क्षेत्र
उत्तर:
(B) बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र

21. भारत में अब तक लोकसभा के कितने चुनाव हो चुके हैं?
(A) 10
(B) 12
(C) 15
(D) 17
उत्तर:
(D) 17

22. भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त हैं
(A) श्री नवीन चावला
(B) हरिशंकर ब्रह्मा
(C) श्री सुशील चंद्रा
(D) श्री ओमप्रकाश रावत
उत्तर:
(C) श्री सुशील चंद्रा

23. निम्न भारतीय चुनाव-प्रणाली का दोष है
(A) चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका
(B) सरकारी तंत्र का दुरुपयोग
(C) जाति तथा धर्म के नाम पर मतदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्न निर्वाचन आयोग का कार्य है
(A) चुनावों का प्रबंध करना
(B) मतदाता सूचियां तैयार करना
(C) चुनाव तिथि की घोषणा करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. 17वीं लोकसभा के चुनाव कब हुए?
उत्तर:
अप्रैल-मई, 2019 में।

2. 17वीं लोकसभा चुनाव में कितनी महिला सांसद निर्वाचित हुईं?
उत्तर:
78 महिलाएँ।

3. 17वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 89.78 करोड़।

4. 17वीं लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत कितना रहा?
उत्तर:
67.11 प्रतिशत।

5. 17वीं लोकसभा चुनाव के बाद महिला सांसदों का प्रतिशत कितना हो गया?
उत्तर:
17वीं लोकसभा चुनाव के बाद महिला सांसदों का 14.4 प्रतिशत हो गया है।

6. 17वीं लोकसभा में सर्वाधिक महिला सांसद किस राजनीतिक दल से हैं एवं कितनी हैं?
उत्तर:
सर्वाधिक महिला सांसद भाजपा से हैं जिनकी संख्या 42 है।

7. वर्तमान में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त कौन हैं?
उत्तर:
श्री सुशील चंद्रा।

8. मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को कितना मासिक वेतन मिलता है?
उत्तर:
2,50,000 रुपए मासिक।

9. भारत में मतदान के अधिकार के लिए न्यूनतम आयु कितनी निश्चित की गई है?
उत्तर:
18 वर्ष।

रिक्त स्थान भरें

1. भारत में अब तक ……………. लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके है।
उत्तर:
17

2. ……… को भारत में 17वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए।
उत्तर:
अप्रैल-मई, 2019

3. ………… भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं।
उत्तर:
श्री सुशील चंद्रा

4. भारत में 61वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार मताधिकार की आयु वर्ष निचित की गई।
उत्तर:
18

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

5. भारत में प्रथम आम चुनाव सन् ……………. में हुआ।
उत्तर:
1952

6. भारतीय चुनाव आयोग में कुल …………… सदस्य हैं।
उत्तर:
3

7. 17वीं लोकसभा चुनाव में …………… प्रतिशत मतदान हुआ।
उत्तर:
67.11

8. 16वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के नए विकल्प के रूप ……………. का प्रयोग प्रारम्भ हुआ था।
उत्तर:
नोटा (Nota)

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वप्रथम मानवाधिकारों की घोषणा कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर:
सर्वप्रथम मानवाधिकारों की घोषणा 1789 ई० में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा में हुई थी।

प्रश्न 2.
भारत में सर्वप्रथम कब और किसके द्वारा मौलिक अधिकारों की माँग की गई?
उत्तर:
भारत में सर्वप्रथम 1895 ई० में बाल गंगाधर तिलक के द्वारा मौलिक अधिकारों की माँग की गई।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान द्वारा दिए अधिकारों को मौलिक कहने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) अधिकारों को मौलिक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्हें देश की मौलिक विधि अर्थात् संविधान में स्थान दिया गया है और इनमें विशेष संशोधन प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से परिवर्तन नहीं किया जा सकता,

(2) ये अधिकार – व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, जिनके अभाव में उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।

प्रश्न 4.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में वर्णित किन्हीं दो मूल अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • गरिमा का अधिकार,
  • स्वास्थ्य की रक्षा, रोटी, पानी तथा सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।

प्रश्न 5.
मूल अधिकारों को संविधान में रखने के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • सत्तारूढ़ दल के अत्याचार से सुरक्षा करने हेतु तथा,
  • अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मौलिक अधिकार पूर्ण तथा निरंकुश नहीं हैं,
  • संसद मूल अधिकारों को निलम्बित कर सकती है।

प्रश्न 7.
‘कानून के समक्ष समानता’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कानून के समक्ष समानता का तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होता और समस्त व्यक्ति कानून के सामने बराबर होते हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 8.
‘कानून के समक्ष संरक्षण’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कानून के समक्ष संरक्षण से तात्पर्य है कि समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के साथ कानून का एक-समान व्यवहार होना।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान में वर्णित ‘समानता के अधिकार’ के कोई दो अपवाद लिखिए।
उत्तर:

  • विदेशी राज्यों के मुखियाओं और राजनायिकों के विरुद्ध भारतीय कानून के अंतर्गत कार्रवाई नहीं की जा सकती,
  • राष्ट्रपति तथा राज्यपालों के विरुद्ध उनके कार्यकाल के दौरान कोई फौजदारी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान में उल्लेखित स्वतंत्रता के अधिकार के किन्हीं दो अपवादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • ये अधिकार शत्रु-देश के नागरिकों को प्राप्त नहीं होंगे,
  • निवारक नजरबन्दी के अधीन की गई गिरफ्तारी के सन्दर्भ में भी स्वतंत्रता संबंधी अधिकार की व्यवस्थाएँ लागू नहीं होंगी।

प्रश्न 11.
‘बन्दी प्रत्यक्षीकरण’ (Habeas Corpus) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
हैबियस कॉरपस’ लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘शरीर हमारे सामने पेश करो।’ इस लेख द्वारा न्यायालय बन्दी बनाने वाले अधिकारी को यह आदेश देता है कि बन्दी बनाए गए व्यक्ति को एक निश्चित तिथि और स्थान पर न्यायालय में उपस्थित किया जाए, जिससे न्यायालय यह निर्णय कर सके कि किसी व्यक्ति को बन्दी बनाए जाने के कारण वैध हैं या अवैध । यदि बन्दी बनाने के कारण अवैध हैं तो उसे मुक्त करने संबंधी लेख जारी किया जाता है।

प्रश्न 12.
‘परमादेश लेख (Writ of Mandamus) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘मेण्डेमस’ शब्द लेटिन भाषा का है जिसका अर्थ है ‘हम आज्ञा देते हैं। यह लेख न्यायालय उस समय जारी करता है, जब कोई व्यक्ति या संस्था अपने सार्वजनिक दायित्व का निर्वाह न कर रही हो और जिसके फलस्वरूप व्यक्तियों के मूल अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की आलोचना के कोई दो आधार लिखिए।
उत्तर:

  • संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों पर बहुत अधिक प्रतिबंध हैं, जिसके फलस्वरूप साधारण व्यक्ति इन्हें समझने में प्रायः असमर्थ-सा रहता है,
  • मौलिक अधिकारों की भाषा कठिन एवं अस्पष्ट है जिसे साधारण एवं अशिक्षित व्यक्ति समझ नहीं पाता।

प्रश्न 14.
मौलिक अधिकारों की कोई दो उपयोगिताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं,
  • मौलिक अधिकारों द्वारा समाज में सामाजिक समानता की स्थापना होती है।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को कब और कौन-से भाग में जोड़ा गया?
उत्तर:
भारतीय संविधान में सन् 1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान के भाग चार में अनुच्छेद 51-A में जोड़ा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में दिए गए किन्हीं दो मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, इसकी संस्थाओं, राष्ट्रीय झण्डे तथा गान का सम्मान करना,
  • भारत की प्रभुसत्ता, एकता तथा अखण्डता को बनाए रखना और सुरक्षित रखना।।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान में सम्मिलित मौलिक कर्तव्यों के कोई दो महत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • मौलिक कर्तव्य व्यक्ति के आदर्श एवं पथ-प्रदर्शक हैं,
  • मौलिक कर्त्तव्य मूल अधिकारों की प्राप्ति में सहायक हैं।

प्रश्न 18.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच करता है,
  • यह मानवाधिकारों के क्षेत्र में अनुसन्धान को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 19.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का तात्पर्य यह है कि ये सिद्धान्त संविधान के द्वारा आगामी सरकारों के लिए कुछ नैतिक निर्देश हैं। ये सिद्धान्त इस प्रकार के आदेश हैं जिन पर आगामी सरकारों को जनता के हित में कार्य करने के लिए प्रेरणा दी गई है।

प्रश्न 20.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  • ये राज्य की शासन-व्यवस्था के आधारभूत सिद्धान्त हैं,
  • ये सिद्धान्त न्याय योग्य नहीं हैं।

प्रश्न 21.
राज्य-नीति के कोई दो समाजवादी निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • राज्य ऐसा प्रयास करें कि सम्पत्ति और उत्पादन के साधनों का इस प्रकार केंद्रीयकरण न हो कि सार्वजनिक हित को किसी प्रकार की बाधा पहुँचे,
  • स्त्री और पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।

प्रश्न 22.
राज्य-नीति के कोई दो गाँधीवादी निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए प्रयत्न करेगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ तथा प्राधिकार प्रदान करेगा जिनसे कि वे स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें,

(2) अनुच्छेद 46 के अनुसार राज्य समाज के दुर्बल वर्गों विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा कबीलों की शिक्षा और आर्थिक उन्नति के लिए प्रयत्न करेगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण से बचाएगा।

प्रश्न 23.
राज्य-नीति के कोई दो उदारवादी निदेशक सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:

  • राज्य समस्त भारत में समान आचार-संहिता लागू करने का प्रयत्न करेगा,
  • राज्य ऐतिहासिक एवं कलात्मक महत्त्व रखने वाले स्मारकों, स्थानों तथा वस्तुओं की रक्षा करेगा और उनको नष्ट होने से बचाएगा।

प्रश्न 24.
राज्य-नीति के किन्हीं दो अंतर्राष्ट्रीय निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • राज्य द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करना,
  • राष्ट्रों के मध्य उचित व सम्मानपूर्वक संबंध बनाए रखने का प्रयास करना।

प्रश्न 25.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की आलोचना के कोई दो आधार बताइए।
उत्तर:

  • निदेशक सिद्धान्तों के पीछे कानूनी शक्ति का अभाव है,
  • 20वीं शताब्दी में लागू होने वाले निदेशक सिद्धान्त 21वीं शताब्दी में भी उपयोगी होंगे, यह आवश्यक नहीं है।

प्रश्न 26.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों के कोई दो महत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • ये सिद्धान्त कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक सिद्ध होंगे,
  • इन सिद्धान्तों से सरकार की नीतियों में निरन्तरता तथा स्थिरता सम्भव होगी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकार का क्या अर्थ है? भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को कौन-से मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकार उन सुविधाओं, स्वतन्त्रताओं तथा अधिकारों को कहते हैं जो एक व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए अति आवश्यक हैं। ये वे मूल अधिकार हैं जिनका प्रयोग किए बिना व्यक्ति अपना शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास नहीं कर सकता। प्रत्येक लोकतन्त्रीय राज्य अपने सभी नागरिकों को बिना किसी भेद-भाव के कुछ मौलिक अधिकार देता है। भारतीय संबिधान द्वारा भी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं जो इस प्रकार हैं-

  • समानता का अधिकार,
  • स्वतन्त्रता का अधिकार,
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार,
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का बहुत महत्त्व है। ये देश के सभी नागरिकों को समान रूप से विकास के अवसर प्रदान करते हैं। ये सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा कानून के सामने समानता पर बल देते हैं। ये नागरिकों को अनेक प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान करते हैं जिनके प्रयोग से वे अपने जीवन की उन्नति तथा विकास कर सकते हैं।

इन अधिकारों से भारत के एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का भी संकेत मिलता है। मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं और उसे मनमानी करने से रोकते हैं। ये अधिकार सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देते हुए भारत में सामाजिक-आर्थिक लोकतन्त्र के विकास में सहायता करते हैं। मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करते हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ।।
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार बहुत ही व्यापक तथा विस्तृत हैं,
  • मौलिक अधिकार न्याय-संगत हैं। इसका अर्थ यह है कि इनका उल्लंघन होने पर नागरिकों को न्यायालय में जाकर न्याय माँगने का अधिकार है,
  • मौलिक अधिकार सीमित हैं। इनके प्रयोग पर कुछ सीमाएँ लगी हुई हैं,
  • मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हैं,
  • संकटकाल में मौलिक अधिकारों को निलम्बित (Suspend) किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकार की व्याख्या करो।
अथवा
भारतीय संविधान के अनच्छेद 14-18 में दिए गए समानता के अधिकार का वर्णन करो।
उत्तर:
‘समानता का अधिकार’ का वर्णन संविधान की धारा 14-18 में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 15 के अनुसार नागरिकों में जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा जन्म-स्थान आदि के आधार पर सभी प्रकार के भेद-भावों को समाप्त कर दिया गया है।
अनुच्छेद 16 के अनुसार सभी नागरिकों को सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में समानता प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 17 के अनुसार देश में छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है और इसके प्रयोग को कानून द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है।
अनुच्छेद 18 द्वारा सैनिक तथा शिक्षा-सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

प्रश्न 5.
संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत नागरिकों को कौन-कौन-सी स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं? अथवा भारतीय संविधान में दी गई विभिन्न मूल स्वतन्त्रताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत नागरिकों को दी गई स्वतन्त्रताएँ इस प्रकार हैं-

  • भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता,
  • शान्तिपूर्ण तथा बिना हथियारों के सभा करने की स्वतन्त्रता,
  • समुदाय अथवा संघ बनाने की स्वतन्त्रता,
  • देश के किसी भी भाग में घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता,
  • देश में किसी भी स्थान पर बसने की स्वतन्त्रता,
  • कोई भी व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता।

प्रश्न 6.
मौलिक स्वतन्त्रताओं पर किन आधारों पर तार्किक प्रतिबन्ध (Reasonable Restrictions) लगाए जा सकते हैं?
उत्तर:
अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत दी गई स्वतन्त्रताओं पर निम्नलिखित तार्किक प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं-

(1) संसद भारत की प्रभुसत्ता, अखण्डता तथा सुरक्षा को बनाए रखने के लिए इन स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगा सकती है,
(2) संसद विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने के लिए इन स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगा सकती है,
(3) संसद सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता अथवा नैतिकता, न्यायालय का अपमान, मान-हानि व हिंसा के लिए उत्तेजित करना आदि के आधारों पर इन स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगा सकती है,
(4) राज्य जनता के हितों और अनुसूचित कबीलों के हितों की सुरक्षा के लिए इन स्वतन्त्रताओं पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकते हैं।

प्रश्न 7.
शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 के अनुसार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के अनुसार व्यक्तियों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता है। किसी भी व्यक्ति से बेगार नहीं ली जा सकती। किसी भी व्यक्ति की आर्थिक दशा से अनुचित लाभ नहीं उठाया जा सकता और उसे कोई भी काम उसकी इच्छा के विरुद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी ऐसे कारखाने या खान में नौकर नहीं रखा जा सकता, जहाँ उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो।

प्रश्न 8.
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भारतीय संविधान में की गई व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) संविधान के अनुच्छेद 13 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बना सकता जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीमित अथवा समाप्त करता हो।

(2) मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं और हम उनकी रक्षा के लिए न्यायालयों में जा सकते हैं। न्यायालय अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी कर सकते हैं।

(3) सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के पास पुनर्निरीक्षण की शक्ति है। इस शक्ति के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय संसद तथा राज्य विधानमण्डल के कानूनों को और राष्ट्रपति तथा राज्यपालों के आदेश को रद्द कर सकते हैं, यदि वे कानून या आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों।

प्रश्न 9.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की प्राप्ति की रक्षा का अधिकार है। अनुच्छेद 32 के अनुसार प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति और रक्षा के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकता है।

यदि सरकार हमारे किसी मौलिक अधिकार को लागू न करे या उसके विरुद्ध कोई काम करे तो उसके विरुद्ध न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया जा सकता है और न्यायालय द्वारा उस अधिकार को लागू करवाया जा सकता है या उस कानन को रद्द कराया जा सकता है। उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में कई प्रकार के लेख (Writs) जारी करने का अधिकार है।

प्रश्न 10.
सवैधानिक उपचारों के अधिकार के अन्तर्गत न्यायपालिका किस प्रकार के आदेशों को जारी कर सकती है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए न्यायपालिका निम्नलिखित आदेश जारी कर सकती है-

  • बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख,
  • परमादेश का आज्ञा-पत्र,
  • मनाही आज्ञा-पत्र,
  • उत्प्रेषण लेख तथा
  • अधिकार-पृच्छा लेख।

प्रश्न 11.
‘बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख’ (Writ of Habeas Corpus) तथा ‘परमादेश लेख’ (Writ of Mandamus) पर नोट लिखिए।
उत्तर:
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख-‘बन्दी प्रत्यक्षीकरण’ शब्द लेटिन भाषा के शब्द ‘हेबियस कॉर्पस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है-‘हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो’ (Let us have the body.) इस आदेश के अनुसार न्यायालय किसी अधिकारी को जिसने किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी ढंग से बन्दी बना रखा हो, आज्ञा दे सकता है कि कैदी को समीप के न्यायालय में उपस्थित किया जाए, ताकि उसकी गिरफ्तारी के कानून के औचित्य या अनौचित्य का निर्णय किया जा सके। अनियमित गिरफ्तारी की दशा में न्यायालय उसको स्वतन्त्र करने का आदेश दे सकता है।

2. ‘परमादेश’ लेख-‘परमादेश लेख’ लेटिन भाषा के शब्द ‘मैण्डमस’ से लिया गया है। जिसका अर्थ है-‘हम आदेश देते हैं। (We Command.) इस आदेश द्वारा न्यायालय किसी अधिकारी, संस्था अथवा निम्न न्यायालय को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाधित कर सकता है। इस आदेश द्वारा न्यायालय राज्य के कर्मचारियों से ऐसे कार्य करवा सकता है जिनको वे किसी कारण से न कर रहे हों तथा जिनके न किए जाने से किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो।

प्रश्न 12.
अधिकार-पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अधिकार-पृच्छा लेख का अर्थ है ‘किसके आदेश से’ अथवा ‘किस अधिकार से’। यह आदेश उस समय जारी किया जाता है, जब कोई व्यक्ति ऐसे कार्य को करने का दावा करता हो, जिसको करने का उसको अधिकार न हो। इस आदेश के अनुसार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को कोई पद ग्रहण करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी कर सकता है और उक्त पद के रिक्त होने की तब तक के लिए घोषणा कर सकता है, जब तक कि न्यायालय द्वारा कोई निर्णय न दिया जाए।

प्रश्न 13.
संकटकाल में मौलिक अधिकारों के स्थगन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
संविधान राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि जब अनुच्छेद 352 तथा 356 के अन्तर्गत संकटकालीन व्यवस्था की जाए तो संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है। मौलिक अधिकार तभी स्थगित किए जा सकते हैं, जब संकटकाल की घोषणा युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण हो, न कि शस्त्र-विद्रोह के आधार पर।

राष्ट्रपति संकटकाल में मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय का सहारा लेने के अधिकार को समस्त भारत या उसके किसी भाग में स्थगित कर सकता है, परन्तु अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन या व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार को लागू करवा अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 14.
‘निवारक नजरबन्दी’ (Preventive Detention) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति को राज्य की सुरक्षा को भंग किए जाने के सन्देह पर बन्दी बनाया जा सकता है। ऐसे व्यक्ति को किसी भी प्रकार की ‘निजी स्वतन्त्रता’ प्राप्त नहीं होती, परन्तु यदि उसे दो महीने से अधिक नजरबन्द रखना हो, तो ऐसा सलाहकार बोर्ड के परामर्श पर ही किया जा सकता है। निवारक नजरबन्दी में बन्दी बनाए गए व्यक्ति को उसके बंदी बनाए जाने का कारण बताया जाना आवश्यक है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 15.
सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 29 तथा 30 में किया गया है। इसके अन्तर्गत-
(1) सभी नागरिकों को अपनी भाषा, धर्म व संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा उसका विकास करने का पूरा अधिकार है,

(2) भाषा अथवा धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी इच्छानुसार शिक्षा-संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार है। इस प्रकार की संस्थाओं को अनुदान देने में राज्य किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करेगा,

(3) किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा स्थापित अथवा सहायता से चलाए जाने वाले शिक्षा-संस्थान में प्रवेश देने में जाति, धर्म, वंश, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर मनाही नहीं की जा सकती।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में दिए गए पाँच मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या कीजिए। उत्तर भारतीय संविधान में दिए गए पाँच मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं

  • प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान, राष्ट्रीय झण्डे तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करे।
  • नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन के उद्देश्यों को स्मरण तथा प्रफुल्लित करें।
  • प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह भारत की प्रभुसत्ता, एकता व अखण्डता का समर्थन और रक्षा करे।
  • नागरिकों का कर्तव्य है कि वे देश की रक्षा करें तथा राष्ट्रीय सेवाओं में आवश्यकता के समय भाग लें।
  • लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण फैलाना।

प्रश्न 17.
मौलिक कर्तव्यों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मौलिक कर्तव्यों का विशेष महत्त्व है। मौलिक कर्त्तव्य नागरिक को आदर्श बनाते हैं तथा उनमें जागरूकता उत्पन्न करते हैं। मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों का दृष्टिकोण व्यापक बनाते हैं और नागरिकों में संविधान का पालन, देश की रक्षा, एकता तथा अखण्डता को बनाए रखने की भावना पैदा करते हैं। मौलिक कर्तव्यों का पालन करके लोकतन्त्र को सफल बनाया जा सकता है।

इसके फलस्वरूप व्यक्ति की व्यक्तिगत उन्नति तथा विकास के साथ-साथ समाज और देश भी प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। इन मौलिक कर्तव्यों के बारे में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था कि यदि लोग मौलिक कर्तव्यों को अपने दिमाग में रख लेंगे तो हम शीघ्र ही एक शान्तिपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण क्रान्ति देख सकेंगे। अतः मौलिक कर्तव्यों को संविधान में अंकित किए जाने से नागरिकों को यह ध्यान में रहेगा कि अधिकारों के साथ-साथ उनके कुछ कर्त्तव्य भी हैं।

प्रश्न 18.
संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों की आलोचना कीजिए।
उत्तर:
संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों की आलोचना निम्नलिखित तथ्यों के अन्तर्गत की जा सकती है

1. कुछ मौलिक कर्त्तव्य अस्पष्ट हैं-मौलिक कर्तव्यों का विवरण देते हुए संविधान में कुछ अस्पष्ट शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिनकी मनमाने ढंग से व्याख्या की जा सकती है; जैसे मिली-जुली संस्कृति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अन्वेषण व सुधार की भावना।

2. दण्ड की भावना का अभाव मौलिक कर्त्तव्यों के पीछे दण्ड की भावना का अभाव है। इसी संदर्भ में स्वर्ण सिंह समिति ने यह सुझाव दिया था कि मौलिक कर्तव्यों की अवहेलना करने वालों को दण्ड दिया जाना चाहिए और इसके लिए संसद द्वारा उचित कानून का निर्माण करना चाहिए।

3. केवल उच्च आदर्श मौलिक कर्तव्यों की आलोचना तीसरे स्थान पर की जा सकती है कि ये मात्र उच्च आदर्श प्रस्तुत करते. हैं। भारत की अंधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जो इन उच्च आदर्शों को समझने में असमर्थ है।

4. संविधान के तीसरे अध्याय में सम्मिलित होने चाहिएँ मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान के अध्याय चार में शामिल किया गया है, जबकि इन्हें मौलिक अधिकारों वाले अध्याय तीन में ही रखा जाना चाहिए, व कर्तव्य अच्छे लगते हैं।

प्रश्न 19.
भारतीय संविधान में दिए गए राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का स्वरूप (प्रकृति) क्या है?
रतीय संविधान के निर्माता भारत को एक आदर्श कल्याणकारी राज्य बनाना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने सरकार की नीति तथा शासन को सही दिशा देने के लिए संविधान में राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों को शामिल किया। ये सिद्धान्त सरकार का मार्गदर्शन करने के लिए हैं और ये न्यायसंगत नहीं हैं।

यदि सरकार इनमें से किसी भी सिद्धान्त को लागू नहीं करती, तो भी नागरिकों को न्यायालय में जाकर सरकार के विरुद्ध न्याय माँगने का अधिकार नहीं है। ये सरकार को सकारात्मक निर्देश हैं और यदि सरकार इन्हें लागू नहीं करती तो जनमत उस सरकार के विरुद्ध हो जाएगा। ऐसी सरकार के अगले चुनावों में जीतने की सम्भावना नहीं होगी।

प्रश्न 20.
हमारे संविधान में राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों से सम्बन्धित अध्याय का क्या महत्त्व है? अथवा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का महत्त्व इस प्रकार है-
(1) संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा इन सिद्धान्तों के लागू करने से भारत एक कल्याणकारी राज्य बन सकता है,

(2) संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक न्याय प्रदान करने की जो घोषणा की गई है, ये सिद्धान्त उस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता करते हैं,

(3) ये सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा की स्थापना में सहायता करते हैं,

(4) सरकारें जब इन सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर अपनी नीति का निर्माण करेंगी, तो समान कानूनों का निर्माण होगा, जिससे राष्ट्रीय एकता की स्थापना होगी,

(5) ये सिद्धान्त जनता के पास सरकार की सफलताओं को जाँचने की कसौटी है।

प्रश्न 21.
42वें संशोधन द्वारा निदेशक सिद्धान्तों में कौन-से नए सिद्धान्त जोड़े गए हैं ?
उत्तर:

  • राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि बच्चों को स्वतंत्र और प्रतिष्ठापूर्ण वातावरण में अपने विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों,
  • राज्य ऐसी कानून प्रणाली के प्रचलन की व्यवस्था करेगा जो समान अवसर के आधार पर न्याय का विकास करे,
  • राज्य कानून या अन्य ढंग से श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्ध में भागीदारी बनाने के लिए पग उठाएगा,
  • राज्य वातावरण की सुरक्षा और विकास करने के लिए देश के वन तथा वन्य जीवन को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा।

प्रश्न 22.
कोई ऐसे पाँच निदेशक सिद्धान्त बताएँ जिनका सम्बन्ध कल्याणकारी राज्य की स्थापना से है?
उत्तर:
(1) राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि राज्य के सभी नागरिकों, पुरुषों तथा स्त्रियों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों,

(2) बेकारी, बुढ़ापे, बीमारी तथा अंगहीन होने की अवस्था में ओर से आर्थिक सहायता पाने का अधिकार हो,

(3) राज्य काम करने वालों के लिए न्यायपूर्ण मानवीय परिस्थितियों में काम करने की व्यवस्था का प्रबन्ध करेगा और स्त्रियों के लिए प्रसूति सहायता देने का प्रबन्ध करेगा,

(4) संविधान के लागू होने से दस वर्ष के भीतर राज्य 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध करेगा,

(5) राज्य अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के हितों की रक्षा की व्यवस्था करेगा।

प्रश्न 23.
राज्य-नीति के नीति निदेशक सिद्धान्तों के पीछे कौन-सी शक्ति कार्य कर रही है?
उत्तर:
राज्य-नीति के नीति निदेशक सिद्धान्त न्यायसंगत नहीं हैं अर्थात् इनके पीछे कानून की शक्ति नहीं है, परन्तु इन सिद्धान्तों के पीछे जनमत (Public Opinion) की शक्ति है। लोकतन्त्र में जनमत का बहुत महत्त्व होता है और कोई भी सरकार जनमत की अवहेलना करके अधिक समय तक पद पर बनी नहीं रह सकती।

चूँकि ये सिद्धान्त कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने में सहायता करते हैं, अतः कोई भी सरकार अपनी नीति का निर्माण करते समय इन्हें अपनी आँखों से ओझल नहीं कर सकती। इनकी अवहेलना करने वाली सरकार के लिए अगले चुनावों में जीतने की सम्भावना नहीं होती। अतः निदेशक सिद्धान्तों के पीछे जनमत की शक्ति है।

प्रश्न 24.
भारतीय संविधान में दिए गए निदेशक सिद्धान्तों में से कोई पाँच सिद्धान्त लिखें।
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिए गए पाँच निदेशक सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

  • राज्य ऐसे समाज का निर्माण करेगा, जिसमें लोगों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्राप्त होगा,
  • स्त्रियों और पुरुषों को आजीविका कमाने के समान अवसर दिए जाएँगे,
  • देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून तथा समान न्याय संहिता की व्यवस्था होनी चाहिए,
  • बच्चों और नवयुवकों की नैतिक पतन तथा आर्थिक शोषण से रक्षा हो,
  • राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा।

प्रश्न 25.
नीति निदेशक सिद्धान्त भारत में किस प्रकार एक धर्म-निरपेक्ष और समाजवादी समाज की नींव डालते हैं?
उत्तर:
नीति निदेशक सिद्धान्त धर्म-निरपेक्ष और समाजवादी समाज की आधारशिला रखते हैं। निदेशक सिद्धान्त राज्य सरकार को भारत में एक समान व्यवहार संहिता लागू करने का निर्देश देते हैं। निदेशक सिद्धान्तों के अनुसार राज्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा, जिसमें सभी नागरिकों को राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय प्राप्त होगा।

प्रश्न 26.
भारत की विदेश नीति से सम्बन्धित निदेशक सिद्धान्त लिखें। अथवा अन्तर्राष्ट्रीय नीति सम्बन्धी सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर:
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त राष्ट्रीय नीति के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीति से भी सम्बन्धित हैं। अनुच्छेद 51 में कहा गया है कि राज्य-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देगा,
  • राष्ट्रों के मध्य उचित व सम्मानपूर्वक सम्बन्ध बनाए रखेगा,
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि व कानूनों को सम्मान देगा,
  • अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का मध्यस्थता द्वारा निपटारा करने का प्रयास करेगा।

प्रश्न 27.
किन बातों के आधार पर राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की आलोचना की गई है?
उत्तर:
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की आलोचना दी गई बातों के आधार पर की गई है

  • राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त न्याय-संगत नहीं हैं,
  • राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों में उचित वर्गीकरण तथा स्पष्टता का अभाव है,
  • निदेशक सिद्धान्त केवल आश्वासन मात्र हैं,
  • राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त अव्यावहारिक हैं,
  • निदेशक सिद्धान्तों में स्थायित्व की कमी है।

प्रश्न 28.
मौलिक अधिकारों तथा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों में कोई पाँच अन्तर बताएँ।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों तथा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों में अन्तर इस प्रकार हैं-

  • मौलिक अधिकार न्याय-योग्य हैं, जबकि राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त न्याय-योग्य नहीं हैं,
  • मौलिक अधिकारों का स्वरूप निषेधात्मक है, जबकि निदेशक सिद्धान्त अधिकतर सकारात्मक हैं,
  • मौलिक अधिकार नागरिकों के लिए हैं, जबकि निदेशक सिद्धान्त सरकार के लिए हैं,
  • मौलिक अधिकार राजनीतिक लोकतन्त्र का आधार हैं, जबकि निदेशक सिद्धान्त सामाजिक तथा आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना में सहायक हैं,
  • मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है, जबकि निदेशक सिद्धान्तों को स्थगित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 29.
मौलिक अधिकारों व राज्य-नीति के निदेशक तत्त्वों में टकराव की स्थिति में प्राथमिकता का क्या प्रश्न है?
उत्तर:
संविधान में स्पष्ट रूप से इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया है। इस प्रश्न का उत्तर सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्णयों में दिया है। सर्वप्रथम चम्पाकम दोराय राजन बनाम चेन्नई राज्य, 1951 के मुकद्दमे में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों में वाद-योग्य होने के कारण माना कि यदि मौलिक अधिकारों व राज्य-नीति के निदेशक तत्त्वों में टकराव पाया जाता है तो मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन शीघ्र ही सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी गलती को महसूस किया और इनरी केरल एजुकेशन विधेयक, चन्द्रभवन बोर्डिंग केस, विजय कॉटन मिल्स केस इत्यादि अनेक मामलों में दोनों को समान धरातल पर माना और निदेशक तत्त्वों को मौलिक अधिकारों पर युक्ति-युक्त प्रतिबन्ध के रूप में स्वीकार किया।

संसद ने सन् 1971 में संविधान के 25वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 39 (b) व (c) में निहित निदेशक तत्त्वों की अनुच्छेद 14, 19 व 31 में निहित मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता स्थापित की। इस संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारती केस, सन् 1973 में संविधान के मूलभूत ढाँचे के अन्तर्गत नहीं माना, लेकिन इसके बाद सन् 1976 में संसद ने जब 42वें संविधान संशोधन के द्वारा सभी नीति-निदेशक तत्त्वों की अनुच्छेद 14, 19 व 31 में निहित समानता, स्वतन्त्रता व सम्पत्ति के मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता स्थापित की तो सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 1980 में मिनर्वा मिल्स केस में इस संशोधन को संविधान के मूलभूत ढाँचे के विरुद्ध मानते हुए अवैध घोषित कर दिया और प्रतिपादित किया कि संविधान का मूलभूत ढाँचा मौलिक अधिकारों व नीति-निदेशक तत्त्वों के मध्य सन्तुलन पर आधारित है।

दोनों एक-दूसरे के पूरक व सम्पूरक हैं। दोनों में से किसी एक को प्राथमिकता देना संविधान के मूलभूत ढाँचे को विकृत तथा नष्ट करना होगा। … इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों को समान माना है जिसमें केवल एक अपवाद अनुच्छेद 39 (b) व (c) की अनुच्छेद 14 व 19 में निहित समानता व स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता है, क्योंकि अनुच्छेद 31 को सन् 1978 के 44वें समाप्त कर दिया गया है। इस प्रकार मौलिक अधिकार और राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त एक-दूसरे के पूरक हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 30.
राष्ट्रीय आपात का मौलिक अधिकारों पर प्रभाव पर नोट लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में ऐसी व्यवस्था है कि राष्ट्रीय आपात् का भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत का संविधान भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान करता है कि जब देश पर किसी विदेशी शक्ति का आक्रमण हुआ हो या आक्रमण होने की सम्भावना हो या देश में सशस्त्र विद्रोह फैल गया हो या ऐसा विद्रोह फैलने की सम्भावना हो तो वह देश में राष्ट्रीय आपात् की घोषणा कर सकता है।

राष्ट्रीय आपात् काल की घोषणा करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर सकता है। यहाँ तक कि संवैधानिक उपचारों के अधिकार को भी स्थगित किया जा सकता है। नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय में भी शरण नहीं ले सकते। ऐसी स्थिति में कार्यपालिका अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकती है, जैसा कि सन् 1975 में आपातकालीन घोषणा के बाद प्रशासन ने मनमाने तरीके से शक्ति का प्रयोग किया। इस प्रकार से मौलिक अधिकारों का स्थगित किया जाना प्रजातन्त्र की भावना के विपरीत है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों से क्या अभिप्राय है? मौलिक अधिकारों की प्रकृति अथवा विशेषताओं का वर्णन कीजिए। अथवा मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं? भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रो० लास्की के अनुसार, “मूल अधिकार जीवन की उन आवश्यक अवस्थाओं को कहते हैं, जिनके बिना व्यक्ति के जीवन का विकास असम्भव है।” (Rights are those conditions of Social Life without which no man can seek in general, to be himself at his best.), अर्थात् प्रो० लास्की के अनुसार ये आवश्यक अवस्थाएँ व्यक्ति के चरित्र के विकास के लिए अनिवार्य हैं, क्योंकि व्यक्ति और राज्य की उन्नति एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई है,

अतः अधिकार एक प्रकार से राज्य के विकास और उन्नति के लिए भी अनिवार्य हैं। लगभग सभी राज्य अपने नागरिकों के लिए इन आवश्यक अवस्थाओं अथवा सुविधाओं की संविधान में व्यवस्था करते हैं। इंग्लैण्ड जैसे अलिखित संविधान में मौलिक अधिकार अलिखित हैं, परन्तु अमेरिका जैसे राज्यों में, जहां लिखित संविधान है, मौलिक अधिकार लिखित संविधान का भाग हैं।

भारतीय संविधान लिखित संविधान है, अतः भारत में मूल अधिकार लिखित संविधान का भाग हैं। संविधान के तीसरे भाग के 12 से 35 अनुच्छेदों में मूल अधिकार दिए गए हैं। भारत में मौलिक अधिकार केवल लिखित ही नहीं, बल्कि न्याय-योग्य भी हैं। मौलिक अधिकारों को न्याय-योग्य इसलिए ठहराया गया है कि विधानमण्डल और कार्यकारिणी के सदस्य नागरिकों को सताने न लगें।

कहने का तात्पर्य यह है कि न्यायपालिका पर लोगों के अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व है अर्थात् न्यायपालिका का यह कर्तव्य है कि वह देखे कि मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण न होने पाए, अतएव न्यायपालिका के पास यह शक्ति है कि वह विधानमण्डल द्वारा बनाए गए उन सब कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकती है जो मौलिक अधिकारों का हनन् करते हैं। मौलिक अधिकारों के तत्त्व या विशेषताएँ (Characteristics or Features of Fundamental Rights)-मौलिक अधिकारों के कुछ विशेष तत्त्व निम्नलिखित हैं

1. मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं (Fundamental Rights are Justiciable):
मौलिक अधिकार केवल नाममात्र के ही नहीं हैं, बल्कि इनको अदालत के द्वारा संरक्षित किया गया है। यदि किसी मनुष्य का अधिकार सरकार द्वारा या किसी और द्वारा छीना जाए तो वह अदालत की शरण ले सकता है और उसको न्याय मिलेगा। हम मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे ही उच्चतम तथा उच्च न्यायालय में जा सकते हैं।

2. मौलिक अधिकार सीमित हैं (Fundamental Rights are Limited):
ये मौलिक अधिकार सीमित हैं। नागरिक इनका प्रयोग मनमानी से नहीं कर सकता। इनके ऊपर उचित प्रतिबन्ध लगाए हुए हैं। सुरक्षा, शान्ति बनाए रखने के लिए इन पर प्रतिबन्ध लगाए गए हैं।

3. अति विस्तृत (Most Elaborate):
संविधान के तृतीय भाग में 24 अनुच्छेद (अनुच्छेद 12 से 35) नागरिक के मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित हैं। अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 में ऐसे साधारण उपबन्ध हैं, जिनका सम्बन्ध सभी अधिकारों से है। अनुच्छेद 14 से 30 और अनुच्छेद 32 में नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं। मौलिक रूप में अनुच्छेद 31 द्वारा नागरिकों को ‘सम्पत्ति का अधिकार’ दिया गया था, परन्तु 44वें संशोधन द्वारा इस अनुच्छेद को संविधान में से निकाल दिया गया है।

4. मौलिक अधिकार निलम्बित किए जा सकते हैं (Fundamental Rights can be Suspended):
अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 द्वारा राष्ट्रपति को आपात्काल की स्थिति की घोषणा करने का अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति आपात्काल की घोषणा. द्वारा इन अधिकारों को निलम्बित कर सकता है। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 32 में वर्णित सवैधानिक उपचारों के अधिकार पर भी राष्ट्रपति आपातकालीन स्थिति में प्रतिबन्ध लगा सकता है।

यहाँ यह वर्णन करने योग्य है कि नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार को लागू करवाने के लिए किसी आपात्कालीन अवस्था में भी नागरिकों के अदालत में शरण लेने के अधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता। यह व्यवस्था भारतीय संविधान में 44वें संवैधानिक संशोधन द्वारा की गई है।

5. संसद मौलिक अधिकारों को सीमित कर सकती है (Parliament can Curtail the Fundamental Rights):
संसद मौलिक अधिकारों में हर प्रकार का परिवर्तन कर सकती है। यह व्यवस्था 1971 में 24वें संशोधन द्वारा संविधान में की गई थी। 42वें संविधान संशोधन द्वारा भी यह व्यवस्था की गई है कि संसद मौलिक अधिकारों वाले प्रकरण सहित सम्पूर्ण संविधान में परिवर्तन कर सकती है तथा संसद द्वारा किए गए संशोधन को किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। इसका अभिप्रायः यह हुआ कि संसद संविधान संशोधनों द्वारा मौलिक अधिकारों को कम या सीमित कर सकती है।

6. सकारात्मक व नकारात्मक प्रकृति (Positive and Negative Nature):
मौलिक अधिकारों की सकारात्मक प्रकृति से तात्पर्य है कि मौलिक अधिकार राज्य को कुछ कार्य करने का अधिकार प्रदान करते हैं और नकारात्मक प्रकृति से अर्थ है कि मौलिक अधिकार राज्य को कुछ कार्य करने से रोकते हैं।

भारतीय मौलिक अधिकारों में ये दोनों ही प्रवृतियाँ पाई जाती हैं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण समानता का अधिकार है, जिसमें नागरिकों को ‘कानून के समक्ष समानता’ (Equality before Law) के साथ-साथ ‘कानून का समान संरक्षण’ (Equal Protection of Law) का अधिकार दिया गया है।

‘कानून के समक्ष समानता’ की प्रकृति नकारात्मक है, क्योंकि यह राज्य को नागरिकों में भेद-भाव करने से रोकती है और इसके विपरीत ‘कानून का समान संरक्षण’ की प्रकृति सकारात्मक है, क्योंकि इसके अन्तर्गत राज्य नागरिकों में भेद-भाव कर सकता है, ताकि गरीब व पिछड़े वर्गों का समान संरक्षण मिल सके।

7. मौलिक अधिकार संविधान द्वारा दिए गए हैं, प्राकृतिक अधिकार नहीं (Fundamental Rights are conferrred by the Constitution, not Natural Rights):
भारत में केवल वे ही मौलिक अधिकार हैं जो संविधान में दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य किसी अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। अमेरिका की भाँति भारत में भी प्राकृतिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। न्यायपालिका का संरक्षण संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को ही प्राप्त है।

8. भारतीय पृष्ठभूमि (Indian Background):
भारत में मौलिक अधिकार किसी अन्य देश की नकल नहीं हैं, बल्कि विशिष्ट भारतीय पृष्ठभूमि के अनुसार प्रदान किए गए हैं, जैसे छुआछूत का निषेध । छुआछूत भारतीय समाज में ही पाया जाता था, इसलिए इसका निषेध एक मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। इसी प्रकार से धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार भारतीय समाज के बहुधर्मी रूप को देखते हुए दिया गया है।

9. सभी पर लागू होते हैं (Binding upon Everybody):
मौलिक अधिकार राज्य की सभी संस्थाओं, जिनमें विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, सरकारी संस्थाएँ और यहाँ तक कि भारतीय नागरिक भी शामिल हैं, पर समान रूप से लागू होते हैं। कोई भी इनको मानने से इन्कार नहीं कर सकता और न ही किसी को इनके उल्लंघन का अधिकार है।

10. मुख्यतया राजनीतिक प्रकृति के (Primarily of Political Nature):
भारत में मौलिक अधिकार मुख्य रूप से राजनीतिक प्रकृति के हैं, सामाजिक और आर्थिक अधिकार राज्य-नीति के निदेशक तत्त्वों में दिए गए हैं। संविधान सभा का विचार था कि चूंकि अभी भारत के पास इतने अधिक साधन नहीं हैं कि नागरिकों को सामाजिक व आर्थिक अधिकार भी सुलभ कराए जा सकें। अतः राजनीतिक अधिकार ही प्रदान कर दिए गए, ताकि राजनीतिक दृष्टि से लोकतन्त्र स्थापित किया जा सके।

11. नागरिक व व्यक्ति में अन्तर किया गया है (Difference between Citizen and People):
भारत में कुछ मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त हैं तो कुछ अधिकार व्यक्तियों को प्राप्त हैं। व्यक्तियों को दिए गए अधिकार नागरिकों व विदेशियों दोनों को प्राप्त हैं, जब कि नागरिकों को दिए गए अधिकार विदेशियों को प्राप्त नहीं हैं। उदाहरणार्थ, स्वतन्त्रता का अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त है, जबकि वैयक्तिक स्वतन्त्रता का अधिकार व्यक्तियों को प्राप्त है। समानता का अधिकार यदि नागरिकों को प्राप्त है तो शोषण के विरुद्ध अधिकार व्यक्तियों को प्राप्त है।

12. केन्द्र तथा राज्य सरकारों की शक्तियों पर प्रतिबन्ध (Limitations on the Powers of the Centre and the State Governments):
मौलिक अधिकार केन्द्र तथा राज्य सरकारों की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं अर्थात् केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों तथा स्थानीय सरकारों को मौलिक अधिकारों के अनुसार ही कानून बनाने पड़ते हैं और ये सरकारें कोई ऐसा कानून नहीं बना सकतीं जो मौलिक अधिकारों की प्रकृति के विरुद्ध हो। यदि ये सरकारें मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कानून बना दें तो न्यायालय उन्हें अवैध घोषित कर सकता है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का उन पर लगी सीमाओं सहित विवेचन कीजिए।
अथवा
हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों पर एक लेख लिखिए।
अथवा
निम्नलिखित पर नोट लिखिए
(1) समानता का अधिकार, अनुच्छेद 14 से 18 तक,
(2) स्वतन्त्रता का अधिकार, अनुच्छेद 19 से 22 तक,
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 23 से 24 तक,
(4) संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार, अनुच्छेद 29 से 30 तक।
उत्तर:
सन् 1979 से पहले भारतीय नागरिकों को 7 प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त थे, परन्तु इसके पश्चात् इन अधिकारों की संख्या 6 हो गई है। 30 अप्रैल, 1979 को 44वाँ संविधान संशोधन राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत किया गया था। इस संशोधन के अन्तर्गत नागरिकों का ‘सम्पत्ति का अधिकार’ (Right to Property) मौलिक अधिकारों की सूची में से निकाल दिया गया और अब यह अधिकार एक साधारण अधिकार (Ordinary Right) बन गया है। 44वें संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार सम्बन्धी यह व्यवस्था 19 जून, 1979 को लागू की गई थी। भारतीयों के शेष छः अधिकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन निम्नलिखित है

1. समानता का अधिकार, अनुच्छेद 14 से 18 तक [Right to Equality, Articles 14 to 18|-अनुच्छेद 14 से 18 में वर्णित अधिकारों द्वारा भारतीयों को समानता का अधिकार दिया गया है। समानता के अधिकार के कई पक्ष हैं, जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

(i) कानून के सामने समानता (Equality before Law):
अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी व्यक्ति कानून के सामने समान हैं। कानून की दुनिया में ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, रंग या नस्ल, जाति, जन्म, धर्म आदि के आधार पर कोई मतभेद नहीं है। राष्ट्रपति से लेकर साधारण नागरिक तक सभी कानून की दृष्टि में समान समझे जाते हैं तथा कानून समान रूप से ही सबकी रक्षा करता है।

(ii) कोई भेदभाव नहीं (No Discrimination) संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी नागरिक के साथ जाति, धर्म, नस्ल, लिंग, रंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। सार्वजनिक स्थानों, जैसे होटल, तालाब, कुएँ, सिनेमा घर, दुकानों आदि, के प्रयोग के लिए किसी को मनाही नहीं होगी। अपवाद (Exceptions) अनुच्छेद 15 के दो अपवाद हैं-(क) राज्य बच्चों व महिलाओं के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान कर सकता है, (ख) पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उत्थान के लिए राज्य विशेष प्रकार की व्यवस्था कर सकता है।

(iii) अवसर की समानता (Equality of Opportunity):
अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर होगी। नियुक्ति करते समय सरकार किसी व्यक्ति के साथ रंग, नस्ल, जाति, जन्म, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। किसी व्यक्ति को इन बातों के आधार पर उसके पद से पदच्युत नहीं किया जा सकता, परन्तु सरकार को संविधान की ओर से अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित रखने की छूट है।

अपवाद (Exceptions) इस व्यवस्था के तीन अपवाद हैं-प्रथम, कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी आवश्यक शर्ते लगाई जा सकती हैं। द्वितीय, पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है। तृतीय, किसी धार्मिक अथवा साम्प्रदायिक संस्था से सम्बन्धित पदों पर एक विशेष धर्म अथवा सम्प्रदाय के लोगों की नियुक्ति की जा सकती है।।

(iv) अस्पृश्यता का अन्त (Abolition of Untouchability):
अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता को अवैध घोषित किया गया है। जो व्यक्ति अस्पृश्यता को किसी भी तरीके से लागू करने का यत्न करता है, अथवा प्रोत्साहित करता है उसको कानून द्वारा दण्ड दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सभी सार्वजनिक स्थान मन्दिर, होटल, कुएँ, स्कूल, कॉलेज आदि हरिजन लोगों के लिए खुले हैं। उनको इनके प्रयोग से रोकना कानूनी अपराध है।

(v) उपाधियों की समाप्ति (Abolition of Titles):
अंग्रेज़ सरकार भारत में नागरिकों को कई प्रकार की उपाधियाँ प्रदान करती थी। ये उपाधियाँ हमारे भारतीय समाज में भेदभाव की भावना पैदा करती थीं। ऐसी स्थिति की समाप्ति के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 द्वारा शैक्षणिक अथवा सैनिक उपाधियों के अलावा राज्य को अन्य किसी प्रकार की उपाधियाँ देना वर्जित किया गया है।

2. स्वतन्त्रता का अधिकार, अनुच्छेद 19 से 22 तक (Right to Freedom,Articles 19 to 22):
संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 19 से 22 तक किया गया है। यह अधिकार ‘मौलिक अधिकारों की आत्मा’ है, क्योंकि इस अधिकार के बिना अन्य अधिकारों का कोई महत्त्व नहीं रहता। इस अधिकार के आधार पर ही प्रजातन्त्रीय समाज की कल्पना की जा सकती है। इस विषय में पायली महोदय का कथन महत्त्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा है, “संविधान निर्माताओं ने इन अधिकारों को मौलिक अधिकारों के अध्याय में शामिल करके ठीक ही किया है तथा इस प्रकार प्रजातन्त्रीय समाज के विकास में सहायता की है।”

(1) अनुच्छेद 19 के द्वारा निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं…
(क) भाषण तथा लेखन की स्वतन्त्रता,
(ख) शान्तिपूर्वक तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठा होने की स्वतन्त्रता,
(ग) संघ तथा समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता,
(घ) भारत के किसी भी क्षेत्र में आने-जाने की स्वतन्त्रता,
(ङ) भारत के किसी भाग में रहने या निवास करने की स्वतन्त्रता,
(च) कोई भी व्यवसाय करने, पेशा अपनाने या व्यापार करने की स्वतन्त्रता।

इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(क) भाषण एवं लेखन की स्वतन्त्रता (Freedom of Speech and Expression)-सभी नागरिकों को भाषण देने और अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। वे बोलकर या लिखकर और छपवाकर अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। लोकतन्त्र में इस अधिकार का बड़ा महत्त्व होता है, क्योंकि इसी के द्वारा जनमत का निर्माण और अभिव्यक्ति हो सकती है।

परन्तु इस अधिकार पर राज्य न्यायालय के अपमान, सदाचार तथा नैतिकता, राज्य की सुरक्षा आदि के आधार पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है। कोई भी नागरिक इस अधिकार का प्रयोग दूसरे का अपमान करने के लिए नहीं कर सकता।

(ख) शान्तिपूर्वक तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठा होने की स्वतन्त्रता (Freedom to Assemble Peacefully and without Arms) नागरिकों को बिना हथियार और शान्तिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होने, सभा करने तथा जुलूस निकालने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। इन सभाओं और जुलूसों में नागरिक अपने विचार प्रकट कर सकते हैं तथा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के प्रयत्न कर सकते हैं।

इस स्वतन्त्रता पर भी राज्य उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है। सार्वजनिक शांति और व्यवस्था, भारत की अखण्डता व सुरक्षा की दृष्टि से इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 144 का लगाया जाना इसी प्रतिबन्ध का एक उदाहरण है।

(ग) संघ तथा समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता (Freedom to form Associations and Unions)-नागरिकों को अपने विभिन्न लक्ष्यों की पूर्ति के लिए संगठित होने और संघ तथा समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता दी गई है। इन संघों और समुदायों को भी अपना कार्य स्वतन्त्रता-पूर्वक करने का अधिकार है। परन्तु कोई समुदाय या संघ ऐसा कार्य नहीं कर सकता, जिससे देश की अखण्डता व सुरक्षा को खतरा पैदा हो, जो अनैतिक हो अथवा शान्ति व व्यवस्था में बाधक बने।

(घ) भारत के किसी भी क्षेत्र में आने-जाने की स्वतन्त्रता (Freedom to Move freely Throughout the Territory of India)- सभी नागरिकों को भारत के समस्त क्षेत्र में घूमने-फिरने और आने-जाने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने के लिए किसी भी तरह का आज्ञा-पत्र लेने की आवश्यकता नहीं है।

नागरिक भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक बिना रोक-टोक के आ-जा सकते हैं, परन्तु इस स्वतन्त्रता पर भी सार्वजनिक शांति, सुरक्षा, व्यवस्था तथा अनुसूचित कबीलों के हितों की दृष्टि से उचित सीमा लगाई जा सकती है और नागरिकों के घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाए जाते रहे हैं।

(ङ) भारत के किसी भाग में रहने और निवास करने की स्वतन्त्रता (Freedom to Reside and Settle in any part of the Territory of India)-भारतीय नागरिकों को भारत के किसी भी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतन्त्रता दी गई है। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर रहने और निवास करने पर कोई अंकुश नहीं है, नागरिक जहाँ उचित समझे रह सकता है, परन्तु राज्य इस पर भी उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।

(च) कोई भी व्यवसाय करने, पेशा अपनाने या व्यापार करने की स्वतन्त्रता (Freedom to practise any Profession or carry on any Occupation, Trade or Business)- सरकार किसी नागरिक को कोई कार्य विशेष करने या न करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। अपनी आजीविका कमाने के लिए नागरिकों को कोई भी व्यवसाय, पेशा या व्यापार करने की स्वतन्त्रता है, जिसे वे उचित समझें।

इस स्वतन्त्रता पर भी उचित प्रतिबन्ध है। सरकार जन-हित में किसी भी व्यापार, काम-धन्धे और व्यवसाय पर प्रतिबन्ध लगा सकती है और अनैतिक व्यापार को रोक सकती है। सरकार किसी व्यवसाय के लिए व्यावसायिक योग्यताएँ भी निश्चित कर सकती है, जैसे चिकित्सा, व्यवसाय, वकालत आदि के लिए योग्यताएँ। सरकार कानून द्वारा किसी भी व्यापार को अपने स्वामित्व में ले सकती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सभी स्वतन्त्रताओं को असीमित रूप में नहीं दिया गया, बल्कि उन पर उचित प्रतिबन्ध लगाए गए हैं और लगाए जा सकते हैं। अधिकतर सार्वजनिक शांति और व्यवस्था, राज्य की सुरक्षा और अखण्डता, सार्वजनिक नैतिकता, लोक-हित, अनुसूचित जातियों और कबीलों के हितों आदि के आधार पर ही ये प्रतिबन्ध लगे हुए हैं और लगाए जा सकते हैं। जब नगर में अशांति हो तो कयूं भी लगाया जाता है और घर से निकलने पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

(2) अनुच्छेद 20 के अनुसार-

(क) व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने पर दण्ड नहीं दिया जा सकता जो उसके अपराध करते समय लागू नहीं था।
(ख) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध की एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती।
(ग) किसी अपराधी को स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।

(3) अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित विधि के अतिरिक्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 44वें संशोधन द्वारा संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि नागरिकों के इस अधिकार को आपातकाल के समय भी समाप्त नहीं किया जा सकता। इसका भाव यह हुआ कि आपात्कालीन स्थिति के दौरान अन्य स्वतन्त्रताएँ तो समाप्त की जा सकती हैं, परन्तु नागरिकों की ‘जीवन या व्यक्तिगत स्वतन्त्रता’ को ऐसी स्थिति में भी समाप्त नहीं किया जा सकता।

(4) अनुच्छेद 22 विशेष रूप से बन्दियों के अधिकारों की घोषणा करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार,
(क) किसी भी व्यक्ति को उसके अपराध से अवगत कराए बिना बन्दी नहीं बनाया जा सकता।
(ख) अपराधी को उसकी इच्छानुसार किसी वकील से परामर्श लेने की छूट है।
(ग) अपराधी को गिरफ्तार करने के 24 घण्टे के अन्दर-अन्दर किसी निकटतम मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करना आवश्यक है।
(घ) न्यायालय की अनुमति के बिना किसी दोषी को 24 घण्टे से अधिक बन्दी नहीं रखा जा सकता।

अपवाद इस अधिकार के निम्नलिखित अपवाद भी हैं-
(क) ये अधिकार शत्रु-देश के नागरिकों को प्राप्त नहीं होंगे,

(ख) निवारक नजरबन्दी (Preventive Detention) के अधीन की गई गिरफ्तारी के सन्दर्भ में उपर्युक्त व्यवस्थाएँ लागू नहीं होंगी, निवारक नजरबन्दी के सम्बन्ध में 44वें संविधान संशोधन द्वारा व्यवस्थाएँ की गई हैं कि-
(क) नजरबन्दी का मामला दो महीने के अन्दर सलाहकार मण्डल (Advisory Board) के पास जाना आवश्यक है,
(ख) सलाहकार मण्डल का गठन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा,
(ग) सलाहकार मण्डल का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का वर्तमान न्यायाधीश होगा, लेकिन उसके अन्य सदस्य वर्तमान अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश हो सकते हैं,
(घ) नजरबन्द किए गए व्यक्ति को शीघ्र-से-शीघ्र उसकी नजरबन्दी का कारण बताया जाएगा।

उपर्युक्त व्यवस्थाएँ 1975-77 की आपात स्थिति के कटु अनुभवों को ध्यान में रखकर ही की गई थीं। वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (N.S.A.) इसी अनुच्छेद के अन्तर्गत बनाया गया है। आलोचना (Criticism)-स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार की निम्नलिखित अनुच्छेदों पर आलोचना की जाती है

(क) नागरिकों की स्वतन्त्रताओं पर अनेक सीमाएँ लगा दी गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप राज्य-सत्ता के सम उपर्युक्त स्वतन्त्रताएं अर्थहीन होकर रह जाती हैं। ये स्वतन्त्रताएं यदि एक हाथ से दी गई हैं तो दूसरे हाथ से छीन ली गई हैं।

(ख) सीमाएँ अत्यधिक व्यापक होने के कारण अस्पष्टता से ग्रसित हो जाती हैं। परिणामस्वरूप विधायिका व न्यायपालिका में टकराव की सम्भावना बनी रहती है।

(ग) निवारक नजरबन्दी का अधिकार राज्य को प्राप्त है जिसके कारण शान्ति काल में भी जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता का अधिकार अर्थहीन हो जाता है। न्यायाधीश मुखर्जी के शब्दों में, “जहाँ तक मुझे मालूम है संसार के किसी भी देश में निवारक नज़रबन्दी को संविधान का अटूट भाग नहीं बनाया गया है, जैसा कि भारत में किया गया है, यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।”

यद्यपि. उपर्युक्त आलोचनाएँ सही हैं और लोकतन्त्र पर प्रश्न-चिह्न लगाती हैं, नागरिक स्वतन्त्रताओं को दुष्प्रभावित करती हैं, लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारतीय गणराज्य का जन्म साम्प्रदायिक हिंसा, हत्या तथा लूट-पाट के वातावरण में हुआ है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए प्राथमिक अनिवार्यता राष्ट्र व गणराज्य की राष्ट्र-विरोधी असामाजिक तत्त्वों से सुरक्षा है।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 23 से 24 तक (RightAgainst Exploitation,Articles 23 to 24)-शोषण के विरुद्ध अधिकार का उद्देश्य है-समाज के निर्बल वर्गों को शक्तिशाली वर्ग के अन्याय से बचाना। इस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्थाएँ हैं

(1) मनुष्यों के क्रय-विक्रय और उनके शोषण पर प्रतिबन्ध (Prohibition of Sale and Purchase of Human beings and their Exploitation): हजारों वर्ष गुलाम रहने के बाद भारतीय समाज में बहुत-सी कुरीतियाँ उत्पन्न हो गई थीं जिनमें से एक थी-स्त्रियों व बच्चों का क्रय-विक्रय। मनुष्यों का पशुओं के समान क्रय-विक्रय किया जाता था और उन्हें दास बनाकर मनमाने तरीके से उनका प्रयोग किया जाता था। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने अनुच्छेद 23 के अनुसार, मानव के इस शोषण के विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाया है और इस प्रकार अब भारत में स्त्रियों, पुरुषों के क्रय-विक्रय पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। इस व्यवस्था का उल्लंघन करना एक दण्डनीय अपराध घोषित कर दिया गया है।

(2) बेगार लेने पर प्रतिबन्ध (Prohibition on Forced Labour)-भारत के मध्य काल में जमींदार लोग तथा राजा और नवाब अपने अधीनस्थ लोगों से बेगार लेते थे। अपने निजी कार्य उनसे कराकर उनके बदले में उन्हें कुछ नहीं देते थे, परन्तु अब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी से बेगार नहीं ले सकता अर्थात् बिना मजदूरी दिए किसी व्यक्ति से कोई काम नहीं लिया जा सकता और न ही किसी व्यक्ति से उसकी इच्छा के विपरीत कोई काम कराया जा सकता है। अब ये दोनों ही बातें एक दण्डनीय अपराध घोषित हो चुकी हैं।

अपवाद (Exceptions)-संविधान के अनुच्छेद 23 में दिए गए अधिकारों पर एक प्रतिबन्ध लगा दिया गया है और वह यह है कि सरकार को जनता के हितों के लिए अपने नागरिकों से आवश्यक सेवा करवाने का अधिकार है। उदाहरणस्वरूप, सरकार नागरिकों को अनिवार्य सैनिक-सेवा तथा अनिवार्य सामाजिक सेवा करने के लिए कानून बना सकती है, परन्तु ऐसा करते हुए सरकार धर्म, वंश, जाति, वर्ग अथवा इनमें से किसी के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकती।

(3) कारखानों आदि में छोटी आयु के बच्चों को काम करने की मनाही (Prohibition of Employment of Children in Factories etc.)-कारखानों व खानों के मालिक छोटी आयु के बच्चों को काम पर लगाना अति लाभदायक समझते थे क्योंकि उन्हें कम मजदूरी देनी पड़ती थी, परन्तु अब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 में स्पष्ट उल्लेख कर दिया गया है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों या खानों में कार्य करने के लिए नहीं लगाया जा सकता। ऐसा करना अब एक दण्डनीय अपराध है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े।

4. साँस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार, अनुच्छेद 29 से 30 तक (Cultural and Educational Rights, Articles 29 to 30)
(1)अनुच्छेद 29 तथा 30 के अन्तर्गत नागरिकों को, विशेषतया अल्पसंख्यकों को, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार निम्नलिखित हैं अनुच्छेद 29 के अनुसार, भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग या उसके किसी भाग को, जिसकी अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति हो, यह अधिकार है कि वह अपने संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों की रक्षा करे। अनुच्छेद 29 के अनुसार, केवल अल्पसंख्यकों को ही अपनी भाषा, संस्कृति इत्यादि को सुरक्षित रखने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह अधिकार नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को प्राप्त है।

(2) किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा या उसकी सहायता से चलाई जाने वाली शिक्षा संस्था में प्रवेश देने से धर्म, जाति, वंश, भाषा या इनमें से किसी भी आधार पर इन्कार नहीं किया जा सकता। 1951 में मद्रास (चेन्नई) सरकार ने एक मैडिकल कॉलेज में सीटों का विभाजन भिन्न-भिन्न जातियों के आधार पर कर दिया था जिसके कारण चम्पाकम नामक एक ब्राह्मण लड़की को उस कॉलेज में दाखिला न मिल सका, क्योंकि उस जाति को दिए गए

सभी स्थान पूर्ण हो गए थे। चम्पाकम ने अपने अधिकार की प्राप्ति के लिए न्यायालय में रिट (Writ) की। उच्च न्यायालय ने सरकार के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया।

(3) अनुच्छेद 30 के अनुसार, सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म पर आधारित हों या भाषा पर, यह अधिकार प्राप्त है कि वे अपनी इच्छानुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करें तथा उनका प्रबन्ध करें।

(4) अनुच्छेद 30 के अनुसार, राज्य द्वारा शिक्षा संस्थाओं को सहायता देते समय शिक्षा संस्था के प्रति इस आधार पर भेदभाव नहीं होगा कि वह अल्पसंख्यकों के प्रबन्ध के अधीन है, चाहे वे अल्पसंख्यक भाषा के आधार पर हों या धर्म के आधार पर। 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 30 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गई है कि राज्य अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित की गई व चलाई जा रही शिक्षा संस्थाओं की सम्पत्ति को अनिवार्य रूप से लेने के लिए कानून का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखेगा कि कानून के अन्तर्गत निर्धारित की गई रकम से अल्पसंख्यकों के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस प्रकार अनुच्छेद 29 तथा 30 द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है। भारत में इस अधिकार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि भारत में विभिन्न जातियों, धर्मों तथा भाषाओं वाले लोग रहते हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 3.
धार्मिक स्वतन्त्रता पर एक नोट लिखिए। अथवा भारतीय संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इसके अनुसार प्रत्येक भारतीय को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है, जिसकी व्याख्या निम्नलिखित है

1. अन्तःकरण की स्वतन्त्रता तथा किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता (Freedom of Conscience and Freedom to Profess and Propagate any Religion)-अनुच्छेद 25 के द्वारा सभी को अन्तःकरण की स्वतन्त्रता है। इसका अभिप्रायः है कि प्रत्येक व्यक्ति जैसी चाहे पूजा-पद्धति को अपना सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की स्वतन्त्रता है। राज्य किसी धर्म विशेष को मानने के लिए किसी भी व्यक्ति को बाध्य नहीं कर सकता। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म का प्रचार कर सकता है, परन्तु उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार, “छल, कपट, प्रलोभन या बल-प्रयोग द्वारा किसी भी व्यक्ति का धर्म-परिवर्तन कराना संविधान के विरुद्ध है।”

प्रतिबन्ध (Limitations) अनुच्छेद 25 में दी गई धार्मिक स्वतन्त्रता पर जिस आधार पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
(1) यदि धर्म-प्रचार या धर्म-परिवर्तन लोक व्यवस्था, सदाचार और जन स्वास्थ्य के विरुद्ध है तो राज्य द्वारा उसमें हस्तक्षेप किया जा सकता है,

(2) अनुच्छेद 25 में दी गई धार्मिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत किसी भी धार्मिक स्थल का प्रयोग राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता है,

(3) प्रचार के नाम पर धर्म-परिवर्तन की मनाही है,

(4) समाज सुधार एवं कल्याण के लिए विभिन्न धार्मिक परम्पराओं और अन्धविश्वासों को दूर किया जा सकता है अर्थात् धर्म के नाम पर सामाजिक कुरीतियों और अन्धविश्वासों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता,

(5) हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों को सभी वर्गों के लिए खोल दिया गया है।

2. धार्मिक मामलों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता (Freedom to Manage Religious Affairs):
संविधान के अनुच्छेद 26 के द्वारा धार्मिक मामलों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ हैं

  • धार्मिक व लोकोपकारी संस्थाएँ चलाना,
  • अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबन्ध करना,
  • चल व अचल सम्पत्ति प्राप्त करना,
  • कानून के अनुसार उपर्युक्त सम्पत्ति का प्रबन्ध करना।

धार्मिक मामलों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि धार्मिक संस्थाओं का दुरुपयोग राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा सके। उदाहरणतः जून 1984 में ऑप्रेशन ब्लू स्टार के द्वारा स्वर्ण मन्दिर अमृतसर में सेना को इसलिए प्रवेश करना पड़ा था क्योंकि उसमें राष्ट्र-विरोधी असामाजिक तत्त्वों का जमाव हो चुका था।

3. किसी धर्म विशेष को बढ़ाने के लिए कर की अदायगी से छूट (Freedom from Payment of Taxes for Promotion of any Particular Religion) संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जिसको किसी धर्म को बढ़ावा देने के लिए व्यय किया जाना हो। राज्य कर के रूप में लिए गए धन को किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए प्रयोग नहीं करेगा, परन्तु यदि राज्य बिना किसी भेदभाव के धार्मिक एवं अन्य संस्थाओं को समान रूप से सहायता प्रदान करता है तो उस स्थिति में अनुच्छेद लागू नहीं होगा।

4. राजकीय शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर प्रतिबन्ध (No Religious Teachings in Educational Institutions maintained by State Funds) अनुच्छेद 28 के अन्तर्गत उन राजकीय शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती, जिनका सारा खर्च राज्य करता हो, लेकिन यह प्रतिबन्ध उन शिक्षण संस्थाओं पर लागू नहीं होता जिन्हें राज्य की ओर से मान्यता प्राप्त है तथा आर्थिक सहायता भी मिलती है, लेकिन सारा खर्च राज्य न करता हो। किन्तु ऐसी शिक्षा संस्थाओं में भी किसी व्यक्ति को उसकी व उसके अभिभावकों की इच्छा के विरुद्ध धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। राज्य द्वारा प्रशासित तथा धर्मस्व व न्यास के अधीन शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने के बारे में कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

इस प्रकार धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार मौलिक अधिकारों की प्रस्तावना में घोषित उद्देश्यों-धर्म-निरपेक्षता व अंतःकरण की स्वतन्त्रता को निश्चित बनाता है जिसके अन्तर्गत राज्य का कोई सरकारी धर्म नहीं है और न ही राज्य किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर सकता है। धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार पर निम्नलिखित तीन सीमाएँ हैं

(1) राज्य शान्ति और व्यवस्था, नैतिकता तथा जन-स्वास्थ्य के आधार पर इस अधिकार पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है। सती-प्रथा तथा देवदासी प्रथा पर रोक इसी आधार पर लगा दी गई है।

(2) धार्मिक समुदायों की आर्थिक तथा राजनीतिक गतिविधियों पर नियन्त्रण रखने वाले कानून बनाए जा सकते हैं।

(3) हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिन्दू समाज के सभी वर्गों के लिए खोला जा सकता है। हिन्दू संस्थाओं के अन्तर्गत सिक्ख, जैन तथा बौद्ध समुदायों की संस्थाएँ भी सम्मिलित हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में लिखित संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार का विवेचन कीजिए। अथवा संवैधानिक उपचार के अधिकार का विश्लेषण करें।
उत्तर:
सवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)-भारतीय संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, संविधान में ही उन अधिकारों की रक्षा भी की गई है। मौ की रक्षा की इस व्यवस्था के अभाव में सरकार अथवा कोई अन्य नागरिक इन अधिकारों के उपयोग में बाधा पैदा कर सकता था और इस प्रकार ये मौलिक अधिकार नागरिकों के लिए महत्त्वहीन हो जाते।

संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अनुसार यदि सरकार या कोई नागरिक मौलिक अधिकारों से किसी को वंचित करता है तो वह व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की में न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों में कर सकता है। संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुसार-

  • भारत के उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न आदेश जारी करने के अधिकार दिए गए हैं,
  • उच्चतम न्यायालय को विभिन्न आदेश या निर्देश जारी करने का अधिकार है,
  • संसद कानून बनाकर किसी भी न्यायालय को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए आदेश (writ) जारी करने की शक्ति दे सकती है,
  • उन परिस्थितियों को छोड़कर, जिनका संविधान में वर्णन किया गया है, संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता।

इसीलिए डॉ० अम्बेडकर ने संविधान सभा में बोलते हुए इस अधिकार को संविधान की आत्मा कहा था। उन्होंने इस अनुच्छेद के सन्दर्भ में लिखा था, “यदि मुझे कोई पूछे कि संविधान का कौन-सा महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद है जिसके बिना संविधान प्रभाव शून्य हो जाएगा तो मैं इस अनुच्छेद के अतिरिक्त किसी और अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं कर सकता। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान का हृदय है।” मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित आदेश जारी करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को प्राप्त है

(1) बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख (Writ of Habeas Corpus):
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है-‘हमें शरीर दो’ (Let us have the body), अर्थात् शरीर हमारे सामने पेश करो। इस आदेश के अन्तर्गत न्यायपालिका को अधिकार है कि वह सरकार को बन्दी बनाए गए किसी भी व्यक्ति को अपने सामने प्रस्तुत करने का आदेश दे सकती है।

ऐसे लेख का प्रार्थना-पत्र बन्दी स्वयं या उसका कोई रिश्तेदार न्यायालय के सामने प्रस्तुत कर सकता है, यदि वह महसूस करे कि उसे गैर-कानूनी ढंग से बन्दी बनाया गया है।

बन्दी जब न्यायालय के सामने प्रस्तुत होता है तो न्यायालय उसके मामले पर विचार करता है और यदि न्यायालय यह समझे कि बन्दी को वास्तव में ही गैर-कानूनी ढंग से बन्दी रखा गया है तो वह उसके मुक्त किए जाने का आदेश जारी कर सकता है। इस प्रकार पुलिस किसी व्यक्ति को मनमाने ढंग से बन्दी नहीं बनाए रख सकती। इस अधिकार को आपातकाल में भी निलम्बित नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका ने इस अधिकार का प्रयोग करके नागरिकों को पुलिस के अत्याचार से बचाया है। राजनीतिक कैदियों को भी कई बार न्यायालय ने इसका प्रयोग करके मुक्त किया है। इस प्रकार यह लेख नागरिक की दैहिक स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण साबित हुआ है।

(2) परमादेश लेख (Writ of Mandamus):
इस आदेश द्वारा न्यायालय किसी व्यक्ति या अधिकारी या संस्था को अपना कर्त्तव्य-पालन करने के आदेश दे सकता है। लैटिन भाषा के इन शब्दों का अर्थ है “हम आदेश देते हैं” (We Command)। यदि कोई व्यक्ति यह महसूस करे कि कोई अधिकारी या संस्था अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करती तो वह न्यायालय को ऐसा आदेश जारी करने का प्रार्थना-पत्र दे सकता है।

इस प्रार्थना पर विचार करने के बाद न्यायालय यदि यह अनुभव करे कि वास्तव में ही उस अधिकारी या संस्था द्वारा अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं हो रहा है तो न्यायालय उसे आदेश दे सकता है और उस आदेश को मानना उस अधिकारी या संस्था का कर्तव्य है।

(3) प्रतिषेध लेख (Writ of Prohibition):
इस आदेश या लेख का अर्थ है-‘रोकना’ या ‘मनाही करना’ । यदि कोई कर्मचारी या संस्थान कोई ऐसा कार्य कर रहा हो जिसका उसे अधिकार नहीं है और इससे किसी के मौलिक अधिकार का हनन होता हो तो वह व्यक्ति न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दे सकता है और यदि न्यायालय यह अनुभव करे कि कर्मचारी या अधिकारी या संस्था अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर जा रहा है या कानून की प्रक्रिया के विरुद्ध जा रहा है तो वह प्रतिषेध लेख जारी करके उसे ऐसा करने से रोक सकता है।

(4) अधिकार पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto):
इन शब्दों का अर्थ है-“किस अधिकार से” (Under What Authority)। यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करने का दावा करता है, जिसे करने का उसे अधिकार नहीं या किसी व्यक्ति ने कानून के विरुद्ध कोई पद-ग्रहण कर लिया हो या किसी के पास पद की योग्यता न हो तो कोई भी नागरिक न्यायालय में प्रार्थना-पत्र देकर उसे ऐसा करने से रोकने की प्रार्थना कर सकता है।

न्यायालय यह आदेश जारी करके उस अधिकारी या कर्मचारी को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कह सकता है और यदि वह गैर-कानूनी ढंग से पद ग्रहण किए हुए है तो उसे पदच्युत भी कर सकता है।

(5) उत्प्रेषण लेख (Writof Certiorari):
इसका अर्थ है-“पूर्णतः सूचित करो।” (Be More Fully Informed)। यह आदेश उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालय को दिया जाता है, जिसके द्वारा उच्च न्यायालय निम्न न्यायालय में चल रहे किसी भी मुकद्दमे का पूर्ण ब्यौरा तथा रिकार्ड अपने पास मॅगवा सकता है और यदि उच्च न्यायालय अनुभव करे कि निम्न न्यायालय ने अपने अधि का उल्लंघन किया है

या कानन की प्रक्रिया का समचित पालन नहीं किया है तो वह उस मकद्दमे को स्वयं भी सन सकता है और उसे कुछ निर्देश सहित निम्न न्यायालय को वापस भेज सकता है। इसके द्वारा नागरिकों को न्यायपालिका के अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने की व्यवस्था की गई है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार सभी व्यक्तियों को प्रदान किया गया है। प्रभावित व्यक्ति, अर्थात् जिसके अधिकार का उल्लंघन हुआ हो या जिसके साथ अत्याचार हुआ हो, उसके अतिरिक्त अन्य व्यक्ति तथा संस्थाएँ भी इन उपचारों का प्रयोग कर सकते हैं। न्यायपालिका ने लोगों द्वारा लिखे गए साधारण पत्रों, समाचार-पत्रों में छपी खबरों आदि को भी प्रार्थना-पत्र (Writ Petition) मानकर कार्रवाई की है और लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास किया है जो कि अत्यन्त सराहनीय है।

निष्कर्ष (Conclusion)-निःसन्देह भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की कई पक्षों से आलोचना की गई है। कुछ विद्वानों का कहना है कि मौलिक अधिकारों के अध्याय में सामाजिक और आर्थिक अधिकार सम्मिलित न करना एक बहुत बड़ी भूल है और इससे मौलिक अधिकार खोखले बनकर रह गए हैं। इन अधिकारों की आलोचना इसलिए भी की जाती है कि सरकार को मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने की शक्तियाँ बहुत दी गई हैं, परन्तु इन सब बातों के बावजूद भी हमें मानना पड़ता है कि मौलिक अधिकार लोकतन्त्र की नींव हैं। अधिकार कभी असीमित नहीं होते।

संसार में कोई भी देश ऐसा नहीं है जहाँ मूल अधिकारों पर बन्धन न लगाए गए हों। मौलिक अधिकारों द्वारा नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा की गई है और कार्यपालिका और संसद की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगा दिया गया है। हम एम०वी० पायली (M.V. Paylee) के इस कथन से ‘सहमत हैं, “सम्पूर्ण दृष्टि में संविधान में अंकित मौलिक अधिकार भारतीय प्रजातन्त्र को दृढ़ तथा जीवित रखने का अधिकार हैं।”

प्रश्न 5.
किन अनुच्छेदों पर मौलिक अधिकारों की आलोचना की गई है? व्याख्या करें। अथवा भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की आलोचना किन-किन आधारों पर की जाती है?
उत्तर:
हमारे संविधान-निर्माताओं ने भारत को प्रभुतासम्पन्न प्रजातन्त्रीय गणराज्य घोषित किया है। प्रजातन्त्रीय व्यवस्थाओं के अनुरूप ही भारतीय संविधान के भाग III में मौलिक अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनके अध्ययन से स्पष्ट है कि व्यवस्था में कछ दोष पाए जाते हैं। विद्वानों ने इन दोषों को देखते हए यहाँ तक कह दिया है कि मौलिक अधिकार नामक भाग को ‘मौलिक अधिकार तथा उनकी सीमाएँ’ नाम दे दिया जाए। मौलिक अधिकारों की अग्रलिखित अनुच्छेदों पर आलोचना की गई है

1. आर्थिक अधिकारों का न होना (Omission of Economic Rights):
आलोचकों का कहना है कि यद्यपि भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया गया है, परन्तु इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों, जैसे कार्य पाने का अधिकार (Right to Work), ‘आराम तथा विश्राम का अधिकार’, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार (Right to Social Securities) भारतीयों को प्रदान नहीं किए गए। साम्यवादी देशों; जैसे रूस आदि में इन अधिकारों को प्रमुख स्थान दिया गया है।

2. भारतीयों को केवल वे ही अधिकार प्राप्त हैं, जो संविधान में दिए गए हैं (Only Enumerated Rights are granted to Indians):
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की इस आधार पर भी आलोचना की गई है कि भारतीय नागरिकों को केवल वही अधिकार दिए गए हैं, जिनका कि संविधान में उल्लेख किया गया है।

इसके अलावा उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं, परन्तु अमेरिका के नागरिकों को संविधान में वर्णित अधिकारों के अलावा वे अधिकार भी प्राप्त हैं, जो साधारण कानून (Common Law) तथा प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) पर आधारित हैं। भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

3. मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्धों का होना (Limitations on Fundamental Rights):
मौलिक अधिकारों की इस आधार पर भी आलोचना की गई है कि संविधान ने एक हाथ से मौलिक अधिकार देकर उन पर प्रतिबन्धों तथा अपवादों का घेरा लगाकर दूसरे हाथ से उन्हें वापस ले लिया है। इस व्यवस्था से मौलिक अधिकारों की वास्तविकता ही समाप्त हो जाती है।

परन्तु यह आलोचना पूरी तरह से ठीक नहीं है। कोई भी मौलिक अधिकार असीमित नहीं हो सकता तथा देश की बदलती हई राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार उनमें संशोधन भी करना पड़ता है। इस व्यवस्था के लिए आवश्यक है कि मौलिक अधिकारों के बारे में अन्तिम सत्ता संसद के हाथों में होनी चाहिए। यही व्यवस्था भारतीय संविधान में अपनाई गई है।

4. निवारक नजरबन्दी व्यवस्था (Preventive Detention Provision):
अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की व्यवस्था की गई है, इसके साथ ही संविधान में निवारक नजरबन्दी की भी व्यवस्था की गई है। जिन व्यक्तियों को निवारक नज़रबन्दी कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया हो, उनको अनुच्छेद 22 में दिए गए अधिकार प्राप्त नहीं होते। निवारक नज़रबन्दी के अधीन सरकार कानून बनाकर किसी भी व्यक्ति को बिना मुकद्दमा चलाए अनिश्चित काल के लिए जेल में बन्द कर सकती है तथा उसकी स्वतन्त्रता का हनन कर सकती है।

5. मौलिक अधिकारों पर संसद का नियन्त्रण (Control of Parliament Over Fundamental Rights):
भारतीय संविधान के अनुसार, कानून द्वारा निर्धारित ढंग (Procedure Established by Law) की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार मौलिक अधिकारों के बारे में अन्तिम निर्णय संसद के हाथों में है।

संसद जो भी कानून बनाती है, यदि वह संविधान के अनुकूल है, तो उच्चतम न्यायालय उसे वैध मानेगा। इस व्यवस्था की बजाय ‘उचित कानूनी प्रक्रिया’ (Due Process of Law) को अपनाया जाना चाहिए था, जिससे कि मौलिक अधिकारों के बारे में अन्तिम सत्ता उच्चतम न्यायालय के हाथों में होती, परन्तु भारत में कानून द्वारा निर्धारित ढंग अपनाने का मुख्य कारण मुकद्दमेबाजी को कम करना था।

6. न्यायपालिका के निर्णय संसद के कानूनों द्वारा निरस्त (Decisions of Judiciary struck by Parliament):
उच्चतम न्यायालय ने अनेक बार संसद के कानूनों को इस आधार पर निरस्त किया है कि वे कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, परन्तु संसद ने संविधान में संशोधन करके न्यायपालिका द्वारा निरस्त घोषित किए गए कानूनों को वैध तथा सवैधानिक घोषित कर दिया।

7. कठिन भाषा (Difficult Language):
सर आइवर जेनिंग्स (Sir Ivor Jennings) के अनुसार, भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख बहुत कठिन भाषा में किया गया है। इसको साधारण व्यक्ति समझ नहीं सकता। उनका कहना है कि भारतीय मौलिक अधिकारों की भाषा अमेरिका के संविधान की तरह सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए थी।

8. न्याय का महँगा होना (Costly Judicial Remedies):
भारत में न्याय-व्यवस्था वैसे ही महँगी है। इधर मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए व्यक्ति या तो उच्च न्यायालय में या उच्चतम न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दे। इसका अर्थ है-बहुत अधिक धन खर्च करना, जो कि साधारण नागरिक के लिए असहनीय है। न्याय-व्यवस्था सरल तथा सस्ती होनी चाहिए। उपर्युक्त मौलिक अधिकारों की आलोचना तथा उसके उत्तर से स्पष्ट है कि जो प्रतिबन्ध इन अधिकारों पर लगाए गए हैं, वे उचित हैं।

प्रश्न 6.
सम्पत्ति के अधिकार पर संक्षिप्त नोट लिखिए। अथवा भारतीय संविधान के अनुसार राज्य किन शर्तों पर व्यक्तिगत सम्पत्ति को ग्रहण कर सकता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 के अनुसार किसी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार (Authority of Law) के बिना उसकी सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। इस अनुच्छेद के अनुसार ही सार्वजनिक हित के अतिरिक्त किसी सम्पत्ति पर अधिकार नहीं किया जा सकता और ऐसे कानून द्वारा उस सम्पत्ति के प्रति मुआवज़ा देने की व्यवस्था होनी चाहिए अथवा उन सिद्धान्तों का वर्णन होना चाहिए, जिनके आधार पर मुआवजा दिया जाता हो।

प्रथम संशोधन (1951) द्वारा अनुच्छेद 31-A तथा 31-B को अनुच्छेद 31 में जोड़ा गया। अनुच्छेद 31-A द्वारा यह निर्धारित किया गया कि यदि किसी राज्य का कोई कानून (पिछला या भविष्य में) किसी भी सम्पत्ति या जमींदारी प्रथा के मौलिक अथवा मध्यस्थ अधिकार पर प्रभाव डाले या कुछ समय के लिए किसी के अधिकारों को नियन्त्रित करे या उन अधिकारों को समाप्त करे या सार्वजनिक हित में उस सम्पत्ति का उचित प्रबन्ध करने के लिए, कुछ काल के लिए किसी की सम्पत्ति पर कब्जा करे तो ऐसी किसी भी अवस्था में न्यायालय उस राज्य के अधिकार को केवल इस आधार पर अवैध घोषित नहीं करेंगे कि यह अधिकार या कब्जा संविधान के उन अधिकारों के विरुद्ध है जो अनुच्छेद 14, 19 तथा 31 में प्रदान किए गए हैं।

अनुच्छेद 31-B ने संविधान के साथ 9वीं अनुसूची जोड़ी जिसमें जमींदारी प्रथा समाप्त करने सम्बन्धी 13 जमींदारी उन्मूलन कानून दर्ज किए, जिन्हें 31-A उपबन्ध के अभाव में अनुच्छेद 31 के अन्तर्गत न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती थी। इस सूची के लिए व्यवस्था हुई कि ये कानून इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किए जाएँगे कि इनका कोई उपबन्ध संविधान के भाग 3 में दिए गए मूल अधिकारों में से किसी के उलट है। अनुच्छेद 31 (B) द्वारा विधानमण्डल (Competent Legislature) की 9वीं सूची में दर्ज किसी भी अधिनियम को समाप्त अथवा संशोधित करने की शक्ति भी मिली।

25वें संशोधन द्वारा ‘मुआवज़ा’ (Compensation) शब्द के स्थान पर ‘रांशि’ (Amount) शब्द का प्रयोग किया गया। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि सार्वजनिक हित के लिए प्राप्त सम्पत्ति के बदले दी जाने वाली राशि को इस न्यायालय में चुनौती न दी जा सके कि राशि अपर्याप्त है। 25वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31-C को जोड़ा गया।

44वें संशेधन द्वारा अनुच्छेद 31 को संविधान में से निकाल दिया गया है परन्तु 31-A, 31-B, 31-C को वही रहने दिया गया है। अतः इस संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय में से निकाल दिया गया है और सम्पत्ति का अधिकार केवल कानूनी अधिकार बन गया है। परन्तु इस बात का ध्यान रखा गया है कि सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से निकालने का प्रभाव अल्पसंख्यकों की संस्थाओं की स्थापना तथा उनके संचालन के अधिकार पर नहीं पड़ना चाहिए। 44वें संशोधन द्वारा संविधान में एक अनुच्छेद 300-A शामिल किया गया है जो यह घोषणा करता है कि कानून के आदेश के बिना किसी को भी उसकी सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का महत्त्व बताइए।
अथवा
नागरिकों की उन्नति और विकास के लिए मौलिक अधिकार क्यों आवश्यक हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों का महत्त्व (Importance of Fundamental Rights)-व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए मौलिक अधिकारों का बहुत महत्त्व है। यदि व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्रदान न किए जाएँ, तो उसके जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा का कोई उपाय न रहे। मौलिक अधिकार सरकार तथा विधानमण्डल को तानाशाह बनने से रोकते हैं. और व्यक्ति को आत्म-विकास का अवसर प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकारों का व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के सम्बन्ध में विशेष महत्त्व है। मौलिक अधिकार वास्तव में लोकतन्त्र की आधारशिला हैं। मौलिक अधिकारों के महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है

1. मौलिक अधिकारों द्वारा सामाजिक समानता की स्थापना होती है (Social Equality is Established by the Fundamental Rights):
मौलिक अधिकारों द्वारा सामाजिक समानता की स्थापना होती है। मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के प्रदान किए गए हैं। धर्म, जाति, भाषा, रंग-लिंग आदि के आधार पर सबको सामाजिक समानता प्राप्त हो तथा जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा हो।

मौलिक अधिकार विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं तथा जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा की व्यवस्था करते हैं। समानता, स्वतन्त्रता तथा भ्रातृत्व लोकतन्त्र की नींव हैं। भारतीय संविधान द्वारा ये तीनों प्रकार के मौलिक अधिकार नागरिकों को प्रदान किए गए हैं। अतः इस तरह से भारत में मौलिक अधिकार यहाँ के लोकतन्त्र की आधारशिला हैं।

2. मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं (Fundamental Rights Establish Rule of Law):
भारत में मौलिक अधिकार कानून के शासन की स्थापना करते हैं। मौलिक अधिकारों में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हैं और सभी को कानून का समान संरक्षण प्राप्त है।

जो व्यक्ति कानून को तोड़ता है, उसे कानून के अनुसार दण्ड दिया जाता है। कानून जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई मतभेद नहीं करता। किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना जीवन और निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। शासन कानून के अनुसार चलाया जाता है, न कि किसी व्यक्ति की इच्छानुसार।

3. मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं (Fundamental Rights check the Despotism of the Government):
मौलिक अधिकारों का महत्त्व इस बात में भी निहित है कि ये अधिकार एक ओर तो कार्यकारिणी तथा व्यवस्थापिका को उनके निश्चित अधिकार क्षेत्रों में रहने का निर्देश देते हैं और इस प्रकार अधिकारों को उनके अनुचित हस्तक्षेप से सुरक्षित रखते हैं।

दूसरी ओर ये अधिकार नागरिकों को सरकार के निरंकुश शासन के विरुद्ध जनमत को संगठित करने का अवसर प्रदान करते हैं। श्री ए०एन० पालकीवाला के अनुसार, “मौलिक अधिकार राज्य के निरंकुश स्वरूप से साधारण नागरिकों की रक्षा करने वाले कवच होते हैं।” हमारे देश में केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारें शासन चलाने के लिए अपनी इच्छानुसार कानून नहीं बना सकतीं, बल्कि उन्हें संविधान के अनुसार कार्य करना पड़ता है।

4. मौलिक अधिकार व्यक्तिगत हितों तथा सामाजिक हितों में उचित सामञ्जस्य स्थापित करते हैं (Co-ordinate Individual and Social Interests) मौलिक अधिकारों द्वारा व्यक्तिगत हितों तथा सामाजिक हितों में उचित सामंजस्य स्थापित करने के लिए काफी सीमा तक सफल प्रयास किया गया है।

5. मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं (Fundamental Rights Establish Rule of Law):
मौलिक अधिकारों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि ये कानून के शासन की स्थापना करते हैं, जिससे सबको समान न्याय प्राप्त होता है।

6. मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं (Fundamental Rights Protect the interests of Minorities):
अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। अल्पसंख्यक अपनी पसन्द की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं और उनका संचालन करने का अधिकार भी उनको प्राप्त है।

सरकार अल्पसंख्यकों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगी। निष्कर्ष (Conclusion) यह कहना कि मौलिक अधिकारों का कोई महत्त्व नहीं है, एक बड़ी मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। सन् 1950 में लीनर नामक पत्रिका ने मौलिक अधिकारों के विषय में कहा था, “व्यक्तिगत अधिकारों पर लेख जनता को कार्यपालिका की स्वेच्छाचारिता की सम्भावना के विरुद्ध आश्वासन देता है। इन मौलिक अधिकारों जिसकी कोई भी बुद्धिमान राजनीतिज्ञ उपेक्षा नहीं कर सकता।” मौलिक अधिकारों का व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के सम्बन्ध में विशेष महत्त्व है। मौलिक अधिकार वास्तव में लोकतन्त्र की आधारशिला हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में लिखित मौलिक कर्तव्यों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मौलिक कर्तव्यों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में 42वें संशोधन द्वारा सम्मिलित किए गए मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं? इनकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। आप किन अनुच्छेदों पर इनकी आलोचना कर सकते हैं?
उत्तर:
मौलिक रूप में भारतीय संविधान में अधिकारों सम्बन्धी अनुच्छेद 14 से 32 तक सात प्रकार के मौलिक अधिकार अंकित किए गए थे, परन्तु इन अधिकारों के साथ भारतीय नागरिकों के किसी भी प्रकार के कर्तव्य निश्चित नहीं किए गए थे। काँग्रेस दल के प्रधान श्री डी०के० बरुआ द्वारा सवैधानिक परिवर्तनों के सम्बन्ध में विचार करने के लिए फरवरी, 1976 में एक 9 सदस्यीय समिति नियुक्त की गई थी। इस समिति के अध्यक्ष भारत के भूतपूर्व रक्षा मन्त्री सरदार स्वर्ण सिंह थे।

काफी तर्को के बाद इस समिति ने अपनी रिपोर्ट मई, 1976 में पेश की। अपनी रिपोर्ट में स्वर्ण समिति ने यह सिफारिश की कि भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का भी एक अध्याय शामिल किया जाए। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही संविधान के 42वें संशोधन द्वारा भारतीय संविधान में एक नया भाग 4-A मौलिक कर्तव्य (Part IV-A, Fundamental Duties) अंकित किया गया है। इस नए भाग में भारतीय नागरिकों के दस प्रकार के मौलिक कर्त्तव्य अंकित किए गए हैं। इन दस प्रकार के कर्तव्यों का वर्णन निम्नलिखित है

1. संविधान का पालन तथा राष्ट्र-थ्वज व राष्ट्र-गान का आदर करना (To abide by the Constitution and Respect its Ideals and Institutions like National Flag and National Anthem):
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान में निहित आदर्शों का पालन करे और देश की सर्वोच्च संस्थाओं, राष्ट्र-ध्वज तथा राष्ट्र-गान का आदर करे। संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और इसका पालन करना सरकार का ही नहीं, नागरिकों का भी कर्तव्य है। इसी प्रकार राष्ट्र-गान तथा राष्ट्र-ध्वज का आदर करना भी प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

2. भारतीय प्रभुसत्ता, एकता व अखण्डता का समर्थन तथा रक्षा करना (To Uphold and protect the Sovereignty unity and Integrity of India): प्रत्येक नागरिक के लिए यह कर्त्तव्य बड़ा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि हम इस पर नहीं चलेंगे तो कड़े संघर्ष और बलिदान के बाद प्राप्त हुई स्वतन्त्रता और प्रभुसत्ता खतरे में पड़ सकती है। राष्ट्रीय एकता, देश की अखण्डता और राज्य की प्रभुसत्ता की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

3. देश की रक्षा करना तथा आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवाओं में भाग लेना (To defend the Country and render National Service when called upon to do so):
जिस देश के नागरिक देश की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहेंगे, वह देश कभी गुलाम नहीं बन सकता। सबका कर्त्तव्य है कि देश की रक्षा करें और समय आने पर अनिवार्य सेवा के लिए सबको तैयार रहना चाहिए।

4. भारत में सब नागरिकों में भ्रातृत्व की भावना विकसित करना (To promote Spirit of Brotherhood amongest all citizens):
राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए यह लिखा गया है, “प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह धार्मिक, भाषायी तथा क्षेत्रीय या वर्गीय भिन्नताओं से ऊपर उठकर भारत के सब लोगों में समानता तथा भ्रातृत्व की भावना विकसित करे।” नारियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए मौलिक कर्तव्यों के अध्याय में अंकित किया गया है कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह उन प्रथाओं का त्याग करे जिनसे नारियों का अनादर होता है।

5. स्वतन्त्रता के लिए किए गए राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को मानना तथा उनका प्रसार करना (To accept and follow the Noble Ideals which Inspired our National Struggle for the freedom):
प्रत्येक नागरिक का परम कर्त्तव्य है कि जिन आदर्शों, जैसे स्वतन्त्रता, धर्म-निरपेक्षता, लोकतन्त्र, अहिंसा, राष्ट्रीय एकता, विश्व-बन्धुत्व आदि, के लिए स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा गया और जिनके लिए शहीदों ने अपना बलिदान किया, उन्हें अपनाएँ और उन पर चलते हुए राष्ट्र का विकास करें।

6. लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण फैलाना (To Develop Scientific Attitude in the People):
आधुनिक युग विज्ञान का युग है, परन्तु भारत की अधिकांश जनता आज भी अन्धविश्वासों के चक्कर में फंसी हुई है। उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी है जिस कारण वे अपने व्यक्तित्त्व तथा अपने जीवन का ठीक प्रकार से विकास नहीं कर पाते। इसलिए अब व्यवस्था की है, “प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वैज्ञानिक स्वभाव, मानववाद तथा जाँच करने और सुधार करने की भावना विकसित करे।”

7. प्राचीन संस्कृति की देन को सुरक्षित रखना (To Preserve the Rich Heritage of Composite Culture):
आज आवश्यकता इस बात की है कि युवकों को भारतीय संस्कृति की महानता के बारे में बताया जाए ताकि युवक अपनी संस्कृति पर गर्व अनुभव कर सकें। इसलिए मौलिक कर्तव्यों के अध्याय में यह अंकित किया गया है, “प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह सम्पूर्ण संस्कृति तथा शानदार विरासत का सम्मान करे और उसको स्थिर रखे।”

8. व्यक्तिगत तथा सामूहिक यत्नों के द्वारा उच्च राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के यत्न करना (To Strive towards excellence in spheres of Individual and Collective Activities):
कोई भी समाज तथा देश तब तक उन्नति नहीं कर सकता, जब तक कि उसके नागरिकों में प्रत्येक कार्य को करने की लगन तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने की इच्छा न हो। अतः प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियों के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करने का यत्न करे, ताकि उसका उच्च स्तरों के प्रति ज्ञान निरन्तर बढ़ता रहे और राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर हो।

9. वनों, झीलों, नदियों तथा जंगली जानवरों की रक्षा करना तथा उनकी उन्नति के लिए प्रयत्न करना (To protect and improve the National Environment including Forests, Lakes, Rivers and Wildlife and to have compossion for living creatures):
प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वनों, झीलों, नदियों तथा वन्य-जीवन सहित प्राकृतिक वातावरण की रक्षा और सुधार करें तथा जीव-जन्तुओं के प्रति दया की भावना रखें।

10. हिंसा को रोकना तथा राष्ट्रीय सम्पत्ति की रक्षा करना (To safeguard Public Property and Adjure Vio lence) सार्वजनिक सम्पत्ति देश के धन, शक्ति और सम्पन्नता का स्रोत होती है। इसको हानि पहुँचाना एक प्रकार से अपनी सम्पत्ति को हानि पहुँचाना है। हिंसा से नैतिक और मानवीय मूल्यों का पतन होता है तथा देश की प्रगति में बाधा पड़ती है। इसलिए सभी भारतीय नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें तथा हिंसा का त्याग करें।

संविधान में मौलिक कर्तव्यों का अंकित किया जाना एक प्रगतिशील कदम है। संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों की व्याख्या न होना संविधान की महत्त्वपूर्ण कमी थी, जिसे 42वें संशोधन ने मौलिक कर्तव्यों के अध्याय को शामिल करके दूर किया। कोई देश तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक उसके नागरिक अपने अधिकार की अपेक्षा अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक जागृत न हों।

महात्मा गाँधी अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक जोर देते थे। उनका कहना था कि अधिकार कर्तव्यों का पालन करने से प्राप्त होते हैं। मौलिक कर्तव्यों की उपयोगिता एवं महत्त्व (Utility and Importance of the Fundamental Duties) मौलिक कर्त्तव्यों की उपयोगिता एवं महत्त्व निम्नलिखित है

1. मौलिक कर्त्तव्य व्यक्ति के आदर्श व पथ-प्रदर्शक हैं (The Fundamental Duties are the Ideals and Guidelines for the Individual)-भारत के संविधान में सम्मिलित किए गए मौलिक कर्त्तव्य आदर्शात्मक हैं। इन कर्त्तव्यों का उद्देश्य कोई स्वार्थ न होकर नागरिकों के दिलों में देश-हित की भावना जागृत करना है। इसके साथ ही ये कर्तव्य नागरिकों का पथ-प्रदर्शन करते हैं।

आज समाज के चारों तरफ स्वार्थ और भ्रष्टाचार का वातावरण फैला हुआ है तथा व्यक्ति व समाज के हितों में उचित सामंजस्य नहीं है। इसके अतिरिक्त जहाँ व्यक्ति स्वहित को प्राथमिक और समाज के हितों को गौण मानता है तो ऐसे समाज के लिए ये मौलिक कर्तव्य जनता का मार्गदर्शन करते हैं और उनके व्यवहार के लिए आदर्श उपस्थित करते हैं, ताकि वे निजी स्वार्थ की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर सामूहिक हित के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करें।

2. मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों में चेतना उत्पन्न करेंगे (The Fundamental Duties will Create Consciousness Among the People):
मौलिक कर्तव्यों को संविधान में सम्मिलित करने से नागरिकों में अपने कर्तव्यों के प्रति चेतना जागृत होगी और लोगों का श्रेष्ठ आचरण सम्भव हो सकेगा। इसके फलस्वरूप व्यक्तिगत उन्नति तथा विकास के साथ-साथ समाज और देश भी प्रगति के पथ पर अग्रसर होंगे।

मौलिक कर्तव्यों को संविधान में सम्मिलित करते समय हमारी स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था कि अगर लोग मौलिक कर्तव्यों को अपने दिमाग में रख लेंगे तो हम तुरन्त एक शान्तिपूर्ण तथा मैत्रीपूर्ण क्रान्ति देख सकेंगे। अतः इस प्रकार हम देखते हैं कि संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के अंकित किए जाने से ये नागरिकों को सदैव याद दिलाते रहेंगे कि उनके अधिकारों के साथ-साथ कुछ कर्त्तव्य भी हैं।

3. मौलिक अधिकारों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in Attaining the Fundamental Rights):
कर्त्तव्यों की तीसरी महत्ता है कि ये भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होंगे क्योंकि कई ऐसे अधिकार हैं जो कर्त्तव्यों को निभाने मात्र से ही प्राप्त हो जाएँगे।

4. मौलिक कर्त्तव्य का नैतिक महत्त्व (Moral Importance of Fundamental Duties):
यद्यपि यह ठीक है कि इन कर्तव्यों के पीछे किसी प्रकार की कानूनी शक्ति नहीं है, फिर भी इनकी नैतिक महत्ता है। कर्तव्यों का नैतिक स्वरूप अपना विशेष महत्त्व रखता है।

5. कमी को पूरा करते हैं (Remove Deficiency):
भारतीय संविधान में मूल रूप से मौलिक कर्तव्यों को शामिल नहीं किया गया था, जिसके कारण भारतीय नागरिक केवल अपने अधिकारों के प्रति ही जागरूक थे तथा अपने कर्तव्यों को भूल गए थे। अतः इन मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान में 42वें संशोधन द्वारा शामिल करके इस कमी को पूरा कर दिया गया है। मौलिक कर्त्तव्य प्रारम्भिक कमी को पूरा करते हैं।

6. कर्त्तव्य विवाद रहित हैं (Duties are Non-controversial):
भारतीय संविधान में सम्मिलित किए गए मौलिक कर्त्तव्य विवाद रहित हैं। इस पर विभिन्न विद्वानों में कोई मतभेद नहीं है। सभी विद्वानों ने इन कर्त्तव्यों को भारतीय संस्कृति के अनुकूल बताया है। सभी विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि इन कर्तव्यों का पालन भारतीय विकास में सहायक होगा। मौलिक कर्तव्यों की आलोचना (Criticism of the Fundamental Duties) मौलिक कर्तव्यों की आलोचना इस प्रकार हैं

1. कुछ मौलिक कर्त्तव्य अस्पष्ट हैं (Some of the Fundamental Duties are not Clearly Defined):
आलोचकों का कहना है कि संविधान में ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिनका अर्थ एकदम स्पष्ट हो। परन्तु ‘कर्तव्यों’ वाले भाग में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनका मनमाना अर्थ लगाया जा सकता है, जैसे मिली-जुली संस्कृति (Composite Culture), वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Temper), अन्वेषण और सुधार की भावना (Spirit of Enquiry and Reform) तथा मानववाद आदि।

कर्तव्यों को लागू करने के लिए कोई दण्डात्मक व्यवस्था नहीं है (There is no Coercive Machinery for the Enforcement of the Duties): स्वर्णसिंह समिति ने यह सुझाव दिया था कि मौलिक कर्तव्यों की अवहेलना करने वालों को दण्ड दिया जाए और उसके लिए संसद उचित कानूनों का निर्माण करे, परन्तु अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया गया है। वास्तव में कर्तव्यों के वर्तमान रूप को देखते हुए दण्ड की व्यवस्था की ही नहीं जा सकती। जैसा कि पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है, कर्तव्यों के स्वरूप नितान्त अस्पष्ट हैं, अतः नागरिकों को किस आधार पर दण्ड दिया जा सकता है।।

3. केवल उच्च आदर्श (High Ideals Only):
मौलिक कर्तव्यों की आलोचना तीसरे स्थान पर की जा सकती है कि ये केवल मात्र उच्च आदर्श प्रस्तुत करते हैं। भारत की अधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जो इन उच्च आदर्शों को समझने में असमर्थ है।

4. संविधान के तीसरे अध्याय में सम्मिलित होने चाहिएँ (Should have been Included in Chapter No. Three):
मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान के अध्याय चार में शामिल किया गया है, जबकि इन्हें मौलिक अधिकारों वाले अध्याय तीन में ही रखा जाना चाहिए क्योंकि अधिकारों के साथ ही कर्तव्य अच्छे लगते हैं।

5. महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्यों का छोड़ा जाना (Some Important Duties have been Left):
मौलिक कर्तव्यों की आलोचना आलोचकों के द्वारा इस आधार पर की गई है कि कई महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्यों को कर्तव्यों की सूची में लिखा नहीं गया है, जैसे अनिवार्य मतदान, अनिवार्य सैनिक सेवा, दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना आदि को संविधान में शामिल किया जाना चाहिए था। इन कर्तव्यों को सूची से बाहर रखा जाना विचित्र-सा लगता है।

प्रश्न 9.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। अथवा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों से क्या अभिप्राय है? निदेशक सिद्धान्तों के स्वरूप का विवेचन कीजिए। अथवा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का अर्थ लिखकर उनके स्वरूप की व्याख्या कीजिए। अथवा राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्तों की प्रकृति का वर्णन करें।
उत्तर:
हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस बात को पूरी तरह से ध्यान में रखा और संविधान के चौथे अध्याय (Chapter IV) में कुछ ऐसे सिद्धान्तों का वर्णन किया जो राज्य के पथ-प्रदर्शन का कार्य करते रहें। इन सिद्धान्तों के पीछे कानून की शक्ति नहीं है अर्थात् इन सिद्धान्तों को न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता, परन्तु यह बात हमारे संविधान में स्पष्ट शब्दों में कह दी गई है कि राज्य की नीति के इन निदेशक सिद्धान्तों का शासन-व्यवस्था में मौलिक रूप से पालन किया जाएगा। भले ही ये सिद्धान्त कानूनी रूप में लागू न किए जा सकते हों, परन्तु इन्हें व्यवहार में लागू करने के लिए जनमत (Public Opinion) का हाथ अधिक मात्रा में होगा।

हमारे संविधान में इन सिद्धान्तों को राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों (Directive Principles of State Policy) का नाम दिया गया है। इनके नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि ये सिद्धान्त राज्य का पथ-प्रदर्शन करने के लिए बनाए गए हैं। भारतीय संविधान के निर्माताओं का कथन था कि देश में राजनीतिक प्रजातन्त्र के साथ आर्थिक तथा सामाजिक प्रजातन्त्र का होना भी आवश्यक है, तभी राष्ट्र उन्नति कर सकता है।

राज्य-नीति निदेशक सिद्धान्त उन साधनों तथा नीतियों को बताते हैं, जिनका पालन करके भविष्य में भारत में एक क-कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की स्थापना की जा सके। एम०बी० पायली के शब्दों में, “सामूहिक रूप से सिद्धान्त लोकतन्त्रात्मक भारत का शिलान्यास करते हैं। ये भारतीय जनता के आदर्शों एवं आकांक्षाओं का वह भाग है जिन्हें वह एक सीमित अवधि के भीतर प्राप्त करना चाहती है।”

दूसरे शब्दों में, राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त वे आदेश-पत्र हैं, जिनको राज्य की व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका को कोई भी कानून या नीति बनाते समय ध्यान में रखना पड़ता है। डॉ० अम्बेडकर (Dr. Ambedkar) ने संविधान सभा में कहा था, “संविधान के इस भाग को अधिनियमित कर भविष्य में सभी व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका को यह निर्देश दिया गया है कि वे किस प्रकार से अपनी शक्तियों का प्रयोग करें।”
निदेशक सिद्धान्तों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित (Inspired from Irish Constitution):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त आयरलैण्ड के संविधान से प्रेरित कहे जा सकते हैं। आयरलैण्ड के संविधान में भी राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त पाए जाते हैं, परन्तु भारतीय व्यवस्था आयरिश व्यवस्था से कुछ भिन्न; जैसे भारत और आयरलैण्ड में निदेशक तत्त्वों की प्रकृति समान नहीं है तथा भारत में निदेशक तत्त्व राज्य के लिए निर्देश हैं, जबकि आयरलैंड में केवल विधायकों के लिए निर्देश हैं।

2. शासन-व्यवस्था के आधारभूत सिद्धान्त (Fundamental Principles for Governance of the State):
राज्य के निदेशक तत्त्व शासन-व्यवस्था के आधारभूत सिद्धान्त हैं। संविधान की अनुच्छेद 37 में स्पष्ट कहा गया है कि यद्यपि ये सिद्धान्तवाद योग्य नहीं हैं तो भी राज्य के प्रशासन हेतु आधारभूत हैं, जिनके आधार पर राज्य को कानून बनाने चाहिएँ।।

3. समाजवादी व्यवस्था के आधार (Basis of Socialist System):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त समता पर आधारित समाजवादी व्यवस्था की स्थापना करते हैं जिसमें आर्थिक विषमता व असमानता को दूर करने की बात कही गई है। इसलिए आइवर जेनिंग्स (Ivor Jennings) ने नीति-निदेशक सिद्धान्तों के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा, “संविधान के ये पन्ने समाजवाद शब्द का प्रयोग किए बिना ही लोकतान्त्रिक समाजवाद की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हैं।”

4. भारतीय सामाजिक पृष्ठभूमि के अनुरूप (In accordance with Indian Social Background):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त भारतीय सामाजिक पृष्ठभूमि के अनुरूप हैं, जैसे इनमें बहुधर्मी समाज होने के नाते समान नागरिक आचार संहिता. गरीबी के दृष्टिकोण से मुफ्त कानूनी सहायता, अनुसूचित जातियों व जनजातियों के विकास के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रबन्ध इत्यादि को लागू करने के लिए कहा गया है।

5. व्यापक क्षेत्र (Wide Scope):
निदेशक सिद्धान्तों का क्षेत्र व्यापक है, जिसमें सामाजिक-आर्थिक न्याय से सम्बन्धित तत्त्वों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय, गाँधीवादी पंचायत व्यवस्था, मद्य-निषेध, जंगली जीवों व पर्यावरण की रक्षा सम्बन्धी तत्त्व भी पाए जाते हैं। इस प्रकार निदेशक सिद्धान्त समाज के सभी पक्षों सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, पर्यावरण तथा इतिहास से सम्बन्धित हैं।

6. सकारात्मक प्रकृति (Positive Nature):
निदेशक सिद्धान्त की प्रकृति सकारात्मक है जो राज्य को निदेशक तत्त्वों के अनुसार कार्य करने का निर्देश देती है, जैसे राज्य गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करे, राज्य ऐसी नीतियाँ बनाए, जिनसे सभी नागरिकों को, स्त्री व पुरुषों को समान रूप से जीवनयापन के उचित साधन उपलब्ध हो सकें, इत्यादि।

7. मौलिक अधिकारों के पूरक (Complementary of Fundamental Rights):
नागरिकों को मौलिक अधिकार यथार्थ में तभी प्राप्त हो सकते हैं, जबकि नीति-निदेशक तत्त्वों को लागू किया जाए। राज्य-नीति के निदेशक तत्त्वों में निहित व्यवस्था के अन्तर्गत ही मौलिक अधिकारों की प्राप्ति सम्भव है। इसलिए न्यायपालिका ने बार-बार अनेक निर्णयों में कहा है कि नीति-निदेशक सिद्धान्त मौलिक अधिकारों के पूरक हैं।

8. आदर्शवादी (Idealistic):
नीति-निदेशक सिद्धान्त यथार्थवादी ही नहीं हैं, बल्कि उनमें आदर्श भी निहित हैं, जैसे विश्व-शान्ति का आदर्श, वन्य जीवों की रक्षा का आदर्श इत्यादि।

9. लोक-कल्याणकारी राज्य के आधार (Basis of Welfare State):
अनुच्छेद 38 में प्रतिपादित नीति-निदेशक सिद्धान्त में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य लोगों के कल्याण हेतु ऐसी सामाजिक व्यवस्था करे, जिसमें लोगों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय मिल सके। अनुच्छेद 39 का सम्बन्ध उन नीतियों से है जो लोक-कल्याणकारी राज्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं।

10. न्याय-योग्य नहीं (Non-Justiceable):
अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि ये निदेशक सिद्धान्त वाद-योग्य नहीं हैं अर्थात् नागरिक इन तत्त्वों को लागू करवाने के लिए न्यायालय में नहीं जा सकते। न्यायालय सरकार को इन सिद्धान्त को लागू करने लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता, लेकिन वाद-योग्य न होने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि नागरिक इन सिद्धान्त के आधार पर किसी कानून तथा शासकीय कार्य को चुनौती नहीं दे सकते और न्यायालय इन सिद्धान्त के आधार पर निर्णय नहीं दे सकते।

नागरिक इन सिद्धान्त के आधार पर कानूनों तथा प्रशासकीय कार्यों को न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं और न्यायालय इन सिद्धान्त के आधार पर निर्णय दे सकते हैं, केवल इन सिद्धान्त को लागू करने के लिए निर्देश नहीं दे सकते।

11. ये सिद्धान्त किसी विशेष राजनीतिक विचारअनुच्छेद से सम्बन्धित नहीं हैं (These Principles are not connected with any particular theory):
नीति-निदेशक सिद्धान्तों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि ये किसी विशेष विचारअनुच्छेद से बँधे हुए नहीं हैं। ये सिद्धान्त बहुत लचीले हैं और किसी भी विचारअनुच्छेद के माध्यम से इनकी पूर्ति हो सकती है। वास्तव में राजनीतिक लोकतन्त्र के माध्यम से कल्याणकारी राज्य की स्थापना के प्रयास के कारण इन्हें विचारअनुच्छेदों के बन्धन से मुक्त रखा गया है।

प्रश्न 10.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त क्या हैं? हमारे संविधान में दिए गए राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए। इन्हें कैसे मनवाया जा सकता है?
अथवा
भारतीय संविधान में दिए गए किन्हीं पाँच राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अध्याय IV में अनुच्छेद 36 से लेकर 51 तक कुल 16 अनुच्छेदों में निदेशक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। अध्ययन के लिए इन्हें प्रायः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • समाजवादी सिद्धान्त (Socialist Principles),
  • गाँधीवादी सिद्धान्त (Gandhian Principles),
  • उदारवादी लोकतन्त्रीय सिद्धान्त (Liberal Democratic Principles)। इन तीन वर्गों में एक और वर्ग भी जोड़ा जा सकता है-
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी सिद्धान्त (Principles Relating to International Relations) स्मरण रहे कि संविधान में इनका वर्णन इन विभिन्न रूपों में विभाजित करके नहीं किया गया है

1. समाजवादी सिद्धान्त (Socialist Principles)- इस वर्ग के अधीन ऐसे सिद्धान्त रखे जा सकते हैं जिनका उद्देश्य भारत में समाजवादी कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। ऐसे सिद्धान्त हैं-

(1) राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा जिससे
(क) सभी व्यक्तियों को समान रूप से जीविका उपार्जन के पर्याप्त साधन प्राप्त हो सकें,
(ख) समान काम के लिए सभी को समान वेतन मिले,
(ग) देश के भौतिक तथा उत्पादन के साधनों का विभाजन इस प्रकार हो कि सार्वजनिक हित का पालन हो,
(घ) धन का उचित वितरण हो तथा केवल कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में धन का केन्द्रीयकरण न हो,
(ङ) मजदूरों, स्त्रियों तथा बालकों की परिस्थितियों का दुरुपयोग न हो और वे अपनी आर्थिक आवश्यकताओं से मजबूर होकर कोई ऐसा कार्य न करें जो उनकी शक्ति से बाहर हो तथा जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो,

(2) मजदूरों को काम करने की न्यायपूर्ण तथा मानवीय परिस्थितियाँ प्राप्त हों तथा स्त्रियों को प्रसति सहायता मिले। राज्य हर प्रकार से यह प्रयत्न करे कि राज्य से बेकारी और बीमारी दूर हो। बूढ़ों और दिव्यांगों को सार्वजनिक सहायता दी जाए,

(3) राज्य में अधिक-से-अधिक नागरिकों के लिए शिक्षा प्राप्त करने की व्यवस्था की जाए,

(4) राज्य यह प्रयत्न करेगा कि सभी कर्मचारियों, जो किसी भी उद्योग, कृषि अथवा धन्धे में लगे हों, को काम का उचित वेतन तथा काम की उचित व्यवस्थाएँ उपलब्ध हों, जिनसे वे अपना जीवन-स्तर ऊँचा कर सकें।

2. गाँधीवादी सिद्धान्त (Gandhian Principles)-संविधान-निर्माताओं ने गाँधी जी के विचारों को व्यवहार में लाने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्त निदेशक सिद्धान्तों में शामिल किए हैं-
(1) राज्य गाँवों में पंचायतों को संगठित करे तथा उनको इतनी शक्तियाँ दे जिनसे कि वे प्रशासनिक इकाइयों के रूप में सफलतापूर्वक कार्य कर सकें,

(2) राज्य समाज के दुर्बल वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा कबीलों की शिक्षा और आर्थिक उन्नति के लिए प्रयत्न करेगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषप

(3) गाँवों में घरेलू दस्तकारियों की उन्नति के लिए प्रयत्न करेगा,

(4) राज्य नशीली वस्तुओं के सेवन को रोकने का प्रयत्न करेगा,

(5) राज्य कृषि तथा पशुपालन उद्योग का संगठन वैज्ञानिक अनुच्छेदों पर करने का प्रयत्न करेगा। दूध देने वाले पशुओं को मारने पर रोक लगाएगा और पशुओं की नस्ल सुधारने का प्रयत्न करेगा।

3. उदारवादी लोकतन्त्रीय सिद्धान्त (Liberal Democratic Principles)

  • राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए उचित कदम उठाएगा,
  • संविधान के लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर-अन्दर राज्य 14 वर्ष के बालकों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध करेगा,
  • राज्य समस्त भारत में सामान्य व्यवहार नियम (Uniform Civil Code) लागू करने का प्रयत्न करेगा,
  • राज्य लोगों के जीवन-स्तर तथा आहार-स्तर को ऊँचा उठाने तथा उनके स्वास्थ्य में सुधार करने का यत्न करेगा,
  • राज्य ऐतिहासिक अथवा कलात्मक दृष्टि से महत्त्व रखने वाले स्मारकों, स्थानों तथा वस्तुओं की रक्षा करेगा और उनको नष्ट होने अथवा कुरूप होने से बचाएगा।

4. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों से सम्बन्धित सिद्धान्त (Principles Relating to International Relations)- नीति-निदेशक सिद्धान्त राष्ट्रीय नीति के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीति से भी सम्बन्धित हैं। अनुच्छेद 51 में कहा गया है कि राज्य-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देगा,
  • राष्ट्रों के मध्य उचित व सम्मानपूर्वक सम्बन्ध बनाए रखेगा,
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि व कानून को सम्मान देगा,
  • अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का मध्यस्थता द्वारा निपटारा करने का प्रयास करेगा।

42वें संशोधन द्वारा राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों में वृद्धि (Accretion in Directive Principles of State Policy through 42nd Amendment)42वें संशोधन द्वारा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों में निम्नलिखित नए सिद्धान्त शामिल किए गए हैं

(1) राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार से करेगा जिससे कि बच्चों को स्वस्थ, स्वतन्त्र और प्रतिष्ठापूर्ण वातावरण में अपने विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों,

(2) राज्य ऐसी कानून प्रणाली के प्रचलन की व्यवस्था करेगा जो समान अवसरों के आधार पर न्याय का विकास करे। राज्य आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता की व्यवस्था करने का प्रयत्न करेगा,

(3) राज्य कानून द्वारा या अन्य ढंग से श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्ध में भागीदार बनाने के लिए पग उठाएगा,

(4) राज्य पर्यावरण की सुरक्षा और विकास करने तथा देश के वन और वन्य जीवन को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा।

44वें संशोधन द्वारा राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों का विस्तार किया गया है। 44वें संशोधन के अन्तर्गत अनुच्छेद 38 के अन्तर्गत एक और निदेशक सिद्धान्त जोड़ा गया है। 44वें संशोधन के अनुसार राज्य, विशेषकर आय की असमानता को न्यूनतम करने और न केवल व्यक्तियों में, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों अथवा व्यवसायों में लगे लोगों के समूहों में स्तर, सुविधाओं और अवसरों की असमानता को दूर करने का प्रयास करेगा।

इस तरह राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त जीवन के पहलू के साथ सम्बन्धित हैं, क्योंकि ये सिद्धान्त कई विषयों के साथ सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए स्वाभाविक ही है कि इनको परस्पर किसी विशेष तर्कशास्त्र के साथ नहीं जोड़ा गया है। यह तो एक तरफ का प्रयत्न था कि इन सिद्धान्तों द्वारा सरकार को निर्देश दिए जाएँ, ताकि सरकार उन कठिनाइयों को दूर कर सके जो उस समय समाज में विद्यमान थीं।

प्रश्न 11.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की आलोचना किस आधार पर की जाती है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अध्याय IV में दिए गए निदेशक सिद्धान्तों की आलोचकों द्वारा कटु आलोचना की गई है। इन्हें व्यर्थ व अनावश्यक कहा गया है। संविधान में केवल उन्हीं बातों का वर्णन होता है जिनको व्यवहार में लाया जा सके, परन्तु निदेशक सिद्धान्त ऐसे तत्त्व हैं जिनको तुरन्त व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। सरकार को इन पर चलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

ये कोरे वायदे हैं जो जनता को धोखा देने के लिए संविधान में रखे गए हैं तथा इनकी वास्तविक उपयोगिता कुछ नहीं है। इनका महत्त्व राजनीतिक घोषणाओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। प्रो० व्हीयर (Prof. Wheare) ने इन्हें केवल उद्देश्यों व आकांक्षाओं का घोषणा-पत्र कहा है।

श्री के०टी० शाह (K.T. Shah) के अनुसार, “निदेशक सिद्धान्त उस चैक के समान हैं जिसका बैंक ने अपनी सुविधा के अनुसार भुगतान करना है।” (Directive Principles are like a cheque payable by the bank at its convenience.)

श्री नसीरुद्दीन (Sh. Nasiruddin) ने इनकी तुलना “नए वर्ष के उन प्रस्तावों से की है जो जनवरी के दूसरे दिन ही तोड़े जा सकते हैं।” (New years resolutions which can be broken on the second of January.) आलोचना निम्नलिखित अनुच्छेदों पर की गई है

1. इनके पीछे कानूनी शक्ति नहीं है (They are not backed by Legal Sanctions):
निदेशक सिद्धान्तों के पीछे कोई कानूनी शक्ति नहीं है तथा सरकार को इन पर चलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इन्हें मौलिक अधिकारों की तरह न्यायालयों द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता। ये न्यायसंगत नहीं हैं। इनको व्यावहारिक रूप देना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है।

2. ये अप्राकृतिक हैं (They are Unnatural):
संविधान में इन सिद्धान्तों का सम्मिलित किया जाना अप्राकृतिक प्रतीत होता है। कोई भी प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य अपने आपको इस प्रकार के निर्देश नहीं दे सकता। निर्देश सदा सर्वोच्च सत्ता द्वारा अधीनस्थ सत्ता को दिए जाते हैं, न कि अपने आपको।

3. ये व्यर्थ हैं (They are Superfluous):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं। इनका पृथक् वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है। इससे संविधान की जटिलता बढ़ती है।

4. ये स्थाई नहीं हैं (They are not Permanent):
इस प्रकार के सिद्धान्त स्थाई नहीं हो सकते। देश की आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं तथा समय और स्थिति की आवश्यकता के अनुसार सिद्धान्तों को बदलना पड़ता है। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि जो सिद्धान्त 20वीं शताब्दी में उपयोगी समझे गए हैं, वे 21वीं शताब्दी में भी उपयोगी सिद्ध होंगे।

5. कुछ सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं हैं (Some Principles are not Practicable):
निदेशक तत्त्वों में कुछ सिद्धान्त ऐसे हैं, जिनको व्यावहारिक रूप देना कठिन है। उदाहरणतया नशाबन्दी के सिद्धान्त को लागू करने से कई कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। एक ओर सरकार का राजस्व बहुत कम हो जाता है और दूसरी ओर अवैध शराब का निकालना बढ़ जाता है तथा कई कानूनी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। आलोचकों का कहना है कि राज्य द्वारा लागू की गई नैतिकता कोई नैतिकता नहीं होती।

6. ये प्रकृति में विदेशी हैं (They are Foreigner in Nature):
इन सिद्धान्तों पर विदेशी विचारअनुच्छेद का प्रभाव है। सर आइवर जेनिंग्स (Sir Ivor Jennings) के अनुसार, “इन पर इंग्लैण्ड के 19वीं शताबी के फेबियन समाजवाद (Fabian Socialism) का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। जिन सिद्धान्तों को 19वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में ठीक माना जाता था, उन्हें 20वीं शताब्दी के भारतीय संविधान में स्थान देना प्रगतिशील व्यवस्था नहीं थी। ये सिद्धान्त भारतीय संस्कृति व परम्परा के अनुकूल नहीं हैं।”

इनका सही ढंग से वर्गीकरण नहीं किया गया है (They are not Properly Classified):
डॉ० श्रीनिवासन (Dr. Srinivasan) के अनुसार, “निदेशक सिद्धान्तों का उचित ढंग से वर्गीकरण नहीं किया गया है और न ही उन्हें क्रमबद्ध रखा गया है। इस घोषणा में अपेक्षाकृत कम महत्त्व वाले विषयों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आर्थिक व सामाजिक प्रश्नों के साथ जोड़ दिया गया है। इसमें आधुनिकता का प्राचीनता के साथ बेमेल मिश्रण किया गया है। इसमें तर्कसंगत और वैज्ञानिक व्यवस्थाओं को भावनापूर्ण और द्वेषपूर्ण समस्याओं के साथ जोड़ा गया है।”

8. वे अस्पष्ट व दोहराए गए हैं (They are Vague and Repetitive):
ये सिद्धान्त अस्पष्ट व अनिश्चित हैं। इन्हें बार-बार दोहराया गया है। ये सिद्धान्त संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं। डॉ० श्रीनिवासन के अनुसार, “इन्हें उत्साहपूर्ण नहीं कहा जा सकता। ये अस्पष्ट व दोहराए गए सिद्धान्त हैं।” ।

9. ये कोरे वायदे हैं (They are Unused Promises):
आलोचकों का कहना है कि निदेशक सिद्धान्त जनता को धोखा देने का साधन मात्र हैं। ये कोरे आश्वासन हैं जिनसे जनसाधारण को सन्तुष्ट रखने का प्रयास किया गया है। इनके द्वारा भोली-भाली जनता को झुठलाने की कोशिश की गई है।

10. इनमें राजनीतिक दार्शनिकता अधिक है व व्यावहारिक राजनीति कम (They are more a Political Philoso phy than a Practical Politics) ये सिद्धान्त शुद्ध आदर्शवाद प्रस्तुत करते हैं। इनका व्यावहारिक राजनीति से बहुत कम सम्बन्ध है।

प्रश्न 12.
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की उपयोगिता तथा महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की उपयोगिता तथा महत्त्व (Utility and Importance of Directive Principles of State Policy)-राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों की काफी आलोचना हुई है और बहुत-से लोगों ने इन्हें केवल नव वर्ष की शुभ कामनाएँ मात्र कहा है, क्योंकि इन्हें लागू करवाने के लिए न्यायालय का द्वार नहीं खटखटाया जा सकता।

ये सरकार की इच्छा पर निर्भर करते हैं, परन्तु इनकी उपयोगिता से इन्कार नहीं किया जा सकता। निदेशक सिद्धान्तों में निहित सामाजिक व आर्थिक लोकतन्त्र के उद्देश्यों को प्राप्त किए बिना भारत में लोकतन्त्र सफल हो ही नहीं सकता। निदेशक सिद्धान्तों की उपयोगिता निम्नलिखित बातों से स्पष्ट होती है

1. ये मौलिक अधिकारों के पूरक हैं (These are Supplement of the Fundamental Rights):
मौलिक अधिकार देश में केवल राजनीतिक लोकतन्त्र (Political Democracy) को स्थापित करते हैं, परन्तु राजनीतिक लोकतन्त्र की सफलता के लिए देश में आर्थिक लोकतन्त्र की व्यवस्था करनी आवश्यक है। आर्थिक लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक लोकतन्त्र अधूरा रह जाता है। राजनीतिक लोकतन्त्र में लोगों को राजनीतिक स्वतन्त्रताएँ तो प्राप्त होती हैं, परन्तु उन्हें आर्थिक चिन्ताओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।

उन्हें वे सुविधाएँ प्राप्त नहीं होतीं, जिनसे उनका जीवन-स्तर ऊपर उठ सके और वे आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो सकें। निदेशक सिद्धान्त भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की कमी को दूर करते हैं और उन तत्त्वों को अपनाने के लिए कहते हैं जिन पर चलते हुए इस देश में राजनीतिक लोकतन्त्र के साथ-साथ आर्थिक लोकतन्त्र की भी स्थापना की जा सके।

2. ये सरकारों के लिए निर्देश हैं (They are Directives to Governments):
ये सिद्धान्त केन्द्रीय, राज्य व स्थानीय सरकारों का मागदर्शन करते हैं और उन्हें बतलाते हैं कि संविधान में निश्चित किए गए उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उन्हें क्या-क्या कार्य करने हैं। इन सिद्धान्तों की तुलना 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत गवर्नर जनरल व गवर्नरों को जारी किए गए उन निर्देश-पत्रों से की जा सकती है जिनमें उन्हें अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के बारे में निर्देश दिए जाते थे।

अन्तर केवल इतना है कि इन निर्देश-पत्रों में निर्देश विधानपालिका व कार्यपालिका दोनों को दिए गए हैं, जबकि नीति निदेशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत निर्देश केवल कार्यपालिका को ही दिए जाते हैं। श्री एम०सी० सीतलवाद (M.C. Setalvad) के अनुसार, “वे संघ में समस्त अधिकारी वर्ग को दिए गए निर्देश-पत्र या सामान्य सिफारिशों के समान प्रतीत होते हैं जो उन्हें उन आधारभूत सिद्धान्तों की याद दिलाते हैं जिनके आधार पर संविधान का उद्देश्य नई सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करना है।”

3. ये राज्य के सकारात्मक दायित्व हैं (They are Positive Obligations of State):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त राज्य की सकारात्मक ज़िम्मेदारियाँ बतलाते हैं। ग्रेनविल ऑस्टिन (Granville Austin) के शब्दों में, “राज्य के सकारात्मक दायित्व निश्चित करते हुए संविधान सभा के सदस्यों ने भारत की भावी सरकारों को यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सार्वजनिक भलाई के बीच तथा कुछ व्यक्तियों की सम्पत्ति व विशेषाधिकार और सभी लोगों को लाभ पहुँचाने के बीच का मार्ग निकालें, ताकि सभी लोगों की शक्तियों को समान रूप से सभी लोगों की भलाई के लिए प्रयोग किया जा सके।”

4. ये सामाजिक क्रांति का आधार हैं (These are basis of Social Revolution):
राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्त नई सामाजिक दशा के सूचक हैं। वे सामाजिक क्रांति का आधार हैं। ग्रेनविल ऑस्टिन (Granville Austin) के अनुसार, “निदेशक सिद्धान्तों में सामाजिक क्रांति का स्पष्ट विवरण मिलता है। वे भारतीय जनता को सकारात्मक अर्थ में स्वतन्त्र करते हैं। वे उन्हें समाज और प्रकृति द्वारा उत्पन्न की गई शताब्दियों की निष्क्रियता से मुक्ति दिलाते हैं। वे उन्हें उन घृणित शारीरिक परिस्थितियों से मुक्त कराते हैं जिन्होंने उन्हें अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास करने से रोके रखा था।”

5. इन सिद्धान्तों के पीछे जनमत की शक्ति है (These Principles are backed by Public Opinion):
ये सिद्धान्त न्याय-संगत नहीं हैं, परन्तु इनके पीछे लोकमत की शक्ति है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कोई भी सरकार लोकमत की अवहेलना नहीं कर सकती। यदि वह ऐसा करेगी तो वह लोगों का विश्वास खो बैठेगी और अगले आम चुनाव में उसकी हार अवश्य होगी।

प्रो० पायली के अनुसार, “ये निर्देश राष्ट्र की आत्मा का आधारभूत स्तर हैं तथा जो इनका उल्लंघन करेंगे, वे अपने आप को जिम्मेदार स्थान (Position of Responsibility) से हटाने का खतरा मोल लेंगे जिसके लिए उन्हें चुना गया है।”

6. ये सरकार की नीतियों में स्थिरता बनाए रखते हैं (These maintain stability in the Policies of Govt.):
संसदीय शासन-प्रणाली में सरकारें बदलती रहती हैं, परन्तु जो भी सरकार सत्तारूढ़ होगी, वह इन सिद्धान्तों पर चलने के लिए बाध्य होगी। इस प्रकार सरकार की मूल नीतियों में निरन्तरता व स्थिरता बनी रहेगी।

7. ये सिद्धान्त शैक्षणिक महत्त्व रखते हैं (These Principles have an Educative Value):
ये सिद्धान्त आने वाली पीढ़ियों के नवयुवकों को इस बात की शिक्षा देंगे कि हमारे संविधान-निर्माता देश में किस प्रकार की सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे तथा इस बारे में क्या कछ किया जा चका है और क्या कछ करना बाकी है। प्रो० एम०वी० पायली (Prof. M.V. Pylee) के अनुसार, “वे भविष्य के नवयुवकों के मन व विचारों में स्थिर व गतिशील राजनीतिक व्यवस्था के मूल तत्त्वों को स्थान देंगे।” .

8. कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक (Helpful for Establishment of a Welfare State):
आज कल्याणकारी राज्य का युग है और इन सिद्धान्तों में ही कल्याणकारी राज्य के आदर्शों की घोषणा की गई है। इन्हें लागू करके ही भारत को एक वास्तविक कल्याणकारी राज्य बनाया जा सकता है। न्यायमूर्ति संपू (Justice Sapru) ने कहा है कि राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों में वे सभी बातें विद्यमान हैं जिनके आधार पर किसी भी आधुनिक जाति में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की. जा सकती है।

9. आर्थिक लोकतन्त्र हेत (For Economic Democracy):
आर्थिक लोकतन्त्र के अभाव में राजनीतिक लोकतन्त्र अर्थहीन है। आर्थिक लोकतन्त्र को निदेशक तत्त्वों के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। डॉ० अम्बेडकर के शब्दों में, “प्रत्येक सरकार आर्थिक प्रजातन्त्र की स्थापना के लिए प्रयास करेगी। इसी उद्देश्य से संविधान के चौथे भाग में कुछ सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है।”

10. संविधान का पालन (Enforcement of Constitution):
संविधान का पालन निदेशक तत्त्वों के पालन में ही हेत है। डॉ० अल्लादि कृष्णास्वामी का कथन है, “यदि राज्य इन आदर्शों की उपेक्षा करता है तो व्यावहारिक रूप से यह स्वयं संविधान की उपेक्षा करने के समान होगा।”

11. न्यायपालिका के लिए मार्गदर्शक (Guide for Judiciary):
भारतीय न्यायपालिका ही कानूनों तथा संविधानों की व्यवस्था का अधिकार रखती है। बेशक ये सिद्धान्त न्यायालयों के माध्यम से लागू नहीं करवाए जा सकते, परन्तु इन्होंने कानूनों तथा संविधान की व्याख्या में न्यायपालिका का मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णयों में इनका उल्लेख भी कर दिया है।

12. सरकार की नीति में निरन्तरता तथा स्थिरता (Continuity and Stability in Policies of the Government):
वैसे तो जब भी सत्ता में परिवर्तन होता है और दूसरे दल के हाथ में सत्ता आती है तो वह अपनी नीति निश्चित करता है, परन्तु इन सिद्धान्तों के कारण सरकार की नीति में निरन्तरता काफी मात्रा में बनी रहती है और उसे स्थिरता मिलती है क्योंकि प्रत्येक दल जन-कल्याण की नीति अवश्य अपनाता है और ऐसा करते समय उसे इनका सहारा लेना ही पड़ता है।

13. शासकीय कार्यों के मूल्याँकन हेतु मापदण्ड (Measurement for Evaluation of Government’s Functions):
नीति-निदेशक तत्त्व जनता को शासकीय कार्यों के मूल्यांकन के लिए मापदण्ड प्रदान करते हैं जिनके आधार पर जनता शासकीय कार्यों का मूल्यांकन कर सकती है। डॉ० अम्बेडकर के शब्दों में, “यदि कोई सरकार इनकी अवहेलना करती है तो उसे निर्वाचन के समय निर्वाचकों को निश्चित रूप से जवाब देना होगा।”

निष्कर्ष (Conclusion)-निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान में लिखित उद्देश्यों-लोक-कल्याण, लोकतन्त्र, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा इत्यादि को नीति-निदेशक तत्त्वों को लागू करके ही प्राप्त किया जा सकता है। वाद-योग्य न होने से इनका महत्त्व कम नहीं हो जाता।

वर्तमान में तो न्यायपालिका भी अपने निर्णय इन सिद्धान्तों के आधार पर देने लगी है। इन्हें उसी प्रकार से भारतीय जनता का समर्थन प्राप्त है, जिस प्रकार इंग्लैण्ड में प्रथाओं को प्राप्त है। भारत का भविष्य इन निदेशक सिद्धान्तों पर ही निर्भर है। एम०सी० छागला (M.C. Chagla) के अनुसार, “यदि इन सिद्धान्तों को ठीक प्रकार से अपनाया जाए तो हमारा देश वास्तव में धरती पर स्वर्ग बन जाएगा।

भारतीयों के लिए लोकतन्त्र तब केवल राजनीतिक अर्थ में ही नहीं होगा, बल्कि यह भारत के नागरिकों के कल्याण के लिए बना एक ऐसा कल्याणकारी राज्य होगा जिसमें कि प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने के लिए शिक्षा प्राप्त करने और अपने श्रम का उचित प्रतिफल पाने का समान अवसर प्राप्त होगा।”

वस्तु निष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है-
(A) राष्ट्रपति के द्वारा
(B) संसद के द्वारा
(C) विधानमंडलों के द्वारा
(D) प्रधानमंत्री के द्वारा
उत्तर:
(B) संसद के द्वारा

2. संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की व्यवस्था है
(A) अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत
(B) अनुच्छेद 19 से 22 के अंतर्गत
(C) अनुच्छेद 23 से 25 के अंतर्गत
(D) अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत
उत्तर:
(D) अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत

3. कौन-से संवैधानिक संशोधन द्वारा मौलिक कर्त्तव्य संविधान में अंकित किए गए हैं
(A) 42वें संशोधन द्वारा
(B) 44वें संशोधन द्वारा
(C) 45वें संशोधन द्वारा
(D) 47वें संशोधन द्वारा
उत्तर:
(A) 42वें संशोधन द्वारा

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

4. संविधान के कौन-से भाग में मौलिक कर्त्तव्य अंकित हैं
(A) भाग तृतीय में
(B) भाग चतुर्थ में
(C) भाग चतुर्थ-ए में
(D) भाग पांचवें में
उत्तर:
(C) भाग चतुर्थ-ए में

5. भारतीय नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं
(A) अनुच्छेद 14 से 31
(B) अनुच्छेद 12 से 35
(C) अनुच्छेद 12 से 35
(D) अनुच्छेद 1 से 32
उत्तर:
(C) अनुच्छेद 12 से 35

6. ‘समानता का अधिकार’ (Right to Equality) में सम्मिलित नहीं है
(A) कानून के समक्ष समानता
(B) अवसर की समानता
(C) सामाजिक समानता
(D) आर्थिक समानता
उत्तर:
(D) आर्थिक समानता

7. कौन-से अनुच्छेद द्वारा संसद को मौलिक अधिकारों को सीमित करने की मनाही की गई है?
(A) अनुच्छेद 13 द्वारा
(B) अनुच्छेद 33 द्वारा
(C) अनुच्छेद 35 द्वारा
(D) अनुच्छेद 18 द्वारा
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 13 द्वारा

8. निम्नलिखित आदेशों में से कौन-सा आदेश न्यायालय द्वारा गैर-कानूनी ढंग से नजरबन्द किए गए व्यक्ति को छोड़ने के लिए दिया जाता है?
(A) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(B) परमादेश
(C) उत्प्रेषण लेख
(D) अधिकार पृच्छा
उत्तर:
(A) बंदी प्रत्यक्षीकरण

9. ‘समानता के अधिकार’ (Right to Equality) की व्यवस्था है
(A) अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत
(B) अनुच्छेद 19 से 22 के अंतर्गत
(C) अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत
(D) अनुच्छेद 29 से 32 के अंतर्गत
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत

10. मौलिक अधिकारों वाले अध्याय में स्पष्ट वर्णन नहीं है
(A) विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का
(B) धार्मिक स्वतंत्रता का
(C) कानून के समक्ष समानता का
(D) प्रेस की स्वतंत्रता का
उत्तर:
(D) प्रेस की स्वतंत्रता का

11. सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकारों की भारतीय संविधान में व्यवस्था है
(A) अनुच्छेद 31 व 32 के अंतर्गत.
(B) अनुच्छेद 23 व 24 के अंतर्गत
(C) अनुच्छेद 29 व 30 के अंतर्गत
(D) अनुच्छेद 33 व 34 के अंतर्गत
उत्तर:
(C) अनुच्छेद 29 व 30 के अंतर्गत

12. ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ (Right to Freedom) में सम्मिलित नहीं है
(A) भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता
(B) समुदाय बनाने की स्वतंत्रता
(C) कोई कारोबार करने की स्वतंत्रता
(D) हथियारों सहित एकत्र होने और सभा करने की स्वतंत्रता
उत्तर:
(D) हथियारों सहित एकत्र होने और सभा करने की स्वतंत्रता

13. निम्नलिखित में से कौन-सा मौलिक कर्त्तव्य नहीं है?
(A) संविधान का पालन करना
(B) भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखंडता का समर्थन व रक्षा करना
(C) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना
(D) माता-पिता की सेवा करना
उत्तर:
(D) माता-पिता की सेवा करना

14. निम्नलिखित में से किस आदेश के द्वारा किसी व्यक्ति को उस कार्रवाई को करने से रोक दिया जाता है जिसके लिए वह कानूनी रूप से उपयुक्त नहीं है?
(A) परमादेश
(B) प्रतिषेध
(C) उत्प्रेषण
(D) अधिकार पृच्छा
उत्तर:
(D) अधिकार पृच्छा

15. किसके सुझावानुसार निदेशक सिद्धांत संविधान में अंकित किए गए थे?
(A) डॉ० बी०आर० अंबेडकर
(B) डॉ० राजेंद्र प्रसाद
(C) पं० जवाहरलाल नेहरू
(D) सर वी०एन० राव
उत्तर:
(D) सर वी०एन० राव

16. यह किसने कहा था कि “राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत एक चैक की तरह हैं जिसका भुगतान बैंक की सुविधा पर छोड़ दिया है।”
(A) केन्टी० शाह ने
(B) नसीरुद्दीन ने
(C) डॉ० राजेंद्र प्रसाद ने
(D) श्रीमती इंदिरा गांधी ने
उत्तर:
(A) के०टी० शाह ने

17. संविधान में निदेशक सिद्धांत अंकित करने की प्रेरणा मिली थी
(A) 1935 के भारत सरकार कानून से
(B) ऑस्ट्रेलिया के संविधान से
(C) आयरलैंड के संविधान से
(D) अमेरिका के संविधान से
उत्तर:
(C) आयरलैंड के संविधान से

18. निम्नलिखित में से नीति-निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य कौन-सा है?
(A) पुलिस-राज्य की स्थापना करना
(B) सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना
(C) राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना
(D) समाजवादी राज्य की स्थापना करना
उत्तर:
(B) सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना

19. निम्नलिखित निदेशक सिद्धांतों में से कौन-सा उदारवादी है?
(A) काम देने का अधिकार
(B) विश्व-शांति एवं सुरक्षा
(C) समान व्यवहार संहिता
(D) धन केंद्रीकरण पर रोक
उत्तर:
(C) समान व्यवहार संहिता

20. निम्नलिखित निदेशक सिद्धांत सरकार द्वारा अभी तक लागू नहीं किया गया है
(A) पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए समान
(B) ग्राम पंचायतों की स्थापना करना कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था
(C) शराब-बंदी लागू करना
(D) कृषि तथा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्न करना
उत्तर:
(C) शराब-बंदी लागू करना

21. निम्नलिखित में से किसने नीति-निदेशक सिद्धांतों को संविधान की अनोखी विशेषता कहा है?
(A) श्री वी०एन० राय ने
(B) पंडित जवाहरलाल नेहरू ने
(C) डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने

22. कौन-से निदेशक सिद्धांतों में भारतीय विदेश नीति के कुछ मूल आधार मिलते हैं?
(A) अनुच्छेद 36 में अंकित निदेशक सिद्धांत में
(B) अनुच्छेद 48 में अंकित निदेशक सिद्धांत में
(C) अनुच्छेद 51 में अंकित निदेशक सिद्धांत में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(C) अनुच्छेद 51 में अंकित निदेशक सिद्धांत में

23. “निदेशक सिद्धांतों का कोई महत्त्व नहीं है” यह कथन है
(A) डॉ० बी०आर० अंबेडकर
(B) जैनिंग्स
(C) डॉ० श्रीनिवासन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(D) इनमें से कोई नहीं ।

24. निम्नलिखित में से कौन-सा सिद्धांत गांधीवादी सिद्धांत है ?
(A) ग्राम पंचायतों और स्वशासन की समाप्ति
(B) स्त्री तथा पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन
(C) देश के सभी नागरिकों के लिए आचार संहिता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ग्राम पंचायतों और स्वशासन की समाप्ति

25. “राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत नौ वर्षों के प्रस्तावों का संग्रह है।” यह कथन किस विद्वान् का है?
(A) के०सी० ह्वीयर का
(B) नसीरुद्दीन
(C) डॉ० अंबेडकर का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नसीरुद्दीन

26. निदेशक सिद्धांतों की आलोचना के संबंध में निम्नलिखित ठीक है
(A) अनिश्चित तथा अस्पष्ट
(B) वैधानिक शक्ति का अभाव
(C) पर्याप्त साधनों का अभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

27. निम्नलिखित निदेशक सिद्धांतों में एक अंतर्राष्ट्रीयवाद संबंधी सिद्धांत है
(A) विश्व-शांति एवं सुरक्षा
(B) ग्राम पंचायतों का संगठन
(C) समान व्यवहार संहिता
(D) समान कार्य, समान वेतन
उत्तर:
(A) विश्व-शांति एवं सुरक्षा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य या एक शब्द में दीजिए-

1. भारतीय संविधान के कौन-से भाग या अध्याय में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
अध्याय तीन में।

2. मूल अधिकारों का उल्लेख संविधान के किन अनुच्छेदों में किया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 12 से 35 तक।

3. भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ का उल्लेख है?
उत्तर:
अनुच्छेद 19 से 22 तक।

4. भारतीय संविधान में वर्णित संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख कौन-से अनुच्छेद में किया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 32 में।

5. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
अक्तूबर, 1993 में।

6. कौन-से सवैधानिक संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से निकाला गया?
उत्तर:
44वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा।

7. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं?
उत्तर:
पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एच०एल० दत्तू।

8. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान महासचिव कौन हैं?
उत्तर:
श्री जयदीप गोविंद।

9. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले पूर्ण हो।

10. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपना त्यागपत्र किसे सौंपते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति को।

11. राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख संविधान के कौन-से अध्याय में किया गया है?
उत्तर:
अध्याय IV में।

रिक्त स्थान भरें

1. भारतीय संविधान के अध्याय ………… में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
उत्तर:
III

2. भारतीय संविधान का अध्याय …………. राज्य नीति के निर्देशक सिद्धान्तों से सम्बन्धित है।
उत्तर:
IV

3. भारतीय संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्त ………….. के संविधान से प्रेरित होकर सम्माहित किए गए है।
उत्तर:
आयरलैण्ड

4. वर्तमान में ………….. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं।
उत्तर:
श्री एच०एल० दत्तू

5. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल ……………. या अधिकतर ……………. तक की आयु तक है।
उत्तर:
5 वर्ष, 70 वर्ष

6. वर्तमान में संविधान में अंकित मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या …………. है।
उत्तर:
11

7. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन ………….. में हुआ।
उत्तर:
1993

8. दक्षिण अफ्रीका का संविधान सन् …………. में लागू हुआ।
उत्तर:
1996

9. भारत में शिक्षा के मूल अधिकार के रूप में …………. संवैधानिक संशोधन द्वारा संवैधानिक रूप दिया गया।
उत्तर:
86वें

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

10. संविधान के भाग ……………. में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया।
उत्तर:
IV क (अनुच्छेद 51क)

11. वर्तमान में ……….. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव हैं।
उत्तर:
जयदीप गोविंद

12. …………. ने सवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान की आत्मा एवं हृदय कहा है।
उत्तर:
डॉ० बी.आर. अम्बेडकर

13. भारतीय संविधान का अनुच्छेद ………….. किसी भी रूप में अस्पृश्यता का निषेध करता है।
उत्तर:
अनुच्छेद 17

14. भारतीय संविधान का अनुच्छेद ………… सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों हेतु आरक्षण का प्रावधान करता है।
उत्तर:
अनुच्छेद 151

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HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

HBSE 11th Class Political Science भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार-पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिकों को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है-नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को, दंडित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।

(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।

(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।

(घ) आंध्र-सोसायटी आंध्र प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम के विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को, दंडित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था। इस स्थिति में महिला सहकर्मियों के समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14 के द्वारा सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समक्ष समान संरक्षण प्रदान किया गया है।

इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 15 (1) में इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के धर्म, लिंग, मूलवंश, जाति, जन्म-स्थान या इनमें किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत सभी को अवसर की समानता का अधिकार प्रदान किया गया है तथा राज्य के अधीन किसी पद के सम्बन्ध में किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। उपर्युक्त घटना में महिला कर्मियों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है और उन्हें पदोन्नति से वंचित किया गया। इस प्रकार इनके संविधान द्वारा दिए गए समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है और इसके माध्यम से वह सरकार की नीतियों की आलोचना करता है। उक्त घटना में एक निर्देशक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के अन्तर्गत दिए गए विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करता है। स्पष्ट है कि इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के सभी नागरिकों को अपने विचारों को प्रकट प्रकाशित, प्रचारित एवं आलोचना करने का पूर्ण अधिकार है। अतः उक्त स्थिति में निर्देशक द्वारा मूल अधिकारों का सही उपयोग किया जा रहा है।

(ग) इस घटना में एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं। स्पष्ट है कि यहाँ पर विस्थापितों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ख) के अन्तर्गत प्रत्याभूत शांतिपूर्ण एवं निरस्र सम्मेलन की स्वतंत्रता का उपयोग किया गया है। अतः विस्थापितों की रैली मूल अधिकारों के अधीन है।

(घ) आंध्र-सोसायटी द्वारा आंध्र प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम से विद्यालय के चलाए जाने की घटना में अनुच्छेद 30 (1) द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार का उपयोग किया गया है। यहाँ यह स्पष्ट है कि इस अनुच्छेद द्वारा धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षा संस्था का गठन करने तथा उनके प्रबन्ध एवं प्रशासन का अधिकार प्राप्त है। अतः आंध्र-सोसायटी द्वारा विद्यालय का संचालन मूल अधिकारों का उपयोग है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे इस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।

(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक-वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।

(ग) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।

(घ) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढेंगे।
उत्तर:
(क) उपर्युक्त कथनों में से

(ग) में दिया गया कथन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या करता है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 29 (1) अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु उन्हें अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है एवं अनुच्छेद 30 (1) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि एवं संस्कृति के विकास के लिए शिक्षण संस्थाओं का गठन और प्रशासन का अधिकार देता है। ऐसी शिक्षण संस्थाओं को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देते समय किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 5.
इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड-स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) न्यूनतम मज़दूरी न देना ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ का उल्लंघन है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा मानव के दुर्व्यापार और बेगार तथा इस प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया जाने वाला श्रम प्रतिबंधित किया गया है। इसका उद्देश्य दुराचारी व्यक्तियों तथा राज्य द्वारा समाज के दुर्बल वर्गों के शोषण की रक्षा करना है।

(ख) इस घटना में मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है। यद्यपि किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाए जाने से उस व्यक्ति के विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो होता है, परंतु संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अनुसार यदि इससे किसी वर्ग या समुदाय-विशेष की भावनाएँ आहत होती हैं या राष्ट्र विरोधी विचार हैं तो सदाचार, शिष्टाचार एवं देशहित के दृष्टिकोण से उन पर प्रतिबंध लगाया जाना कानून के अनुसार सही है।

(ग) उक्त घटना से भी मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है क्योंकि रात 9 बजे के बाद लाऊड-स्पीकर पर प्रतिबंध लगाने में भी समाज के व्यापक हितों को ध्यान में रखा जा रहा है। हमें किसी भी कार्य द्वारा दूसरों की स्वतंत्रता में बाधा पहुँचाने का अधिकार नहीं है।

(घ) किसी नागरिक द्वारा भाषण तैयार करना किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है क्योंकि नागरिकों को अपने विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है।

प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की ज़रूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाए। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि मौलिक अधिकारों द्वारा जहाँ एक ओर राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास किया गया है, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्वों द्वारा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास किया गया है। यद्यपि दोनों का उद्देश्य जनकल्याण एवं न्याय की स्थापना करना है। इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकारों के पीछे कानून की शक्ति है, जबकि नीति-निर्देशक सिद्धांतों के पीछे कानून की शक्ति न होकर केवल जनमत एवं नैतिक शक्ति है।

चूँकि नीति-निर्देशक सिद्धांतों में समाज के व्यापक हित एवं जनकल्याण का उद्देश्य निहित है। ऐसी स्थिति में इन्हें कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाकर इन लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सकती है। अत: इनके प्रभावी क्रियान्वयन द्वारा राज्य के गरीब लोगों संबंधी आदर्शों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करना अधिक सरल होगा।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं उन्हें अब भी मज़बूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार-पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक-अधिकार का उल्लंघन हो रहा है?
उत्तर:
उपर्युक्त घटना के सन्दर्भ में वर्णित जातियों के कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, जिन्हें हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं

1. समानता का अधिकार-उक्त स्थिति में इनके समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि अधिकार-पद पर बैठे लोग उन्हें कोई और काम नहीं देते हैं। अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार-उक्त घटना में इन जातियों को विवश होकर वही कार्य करना पड़ रहा है, क्योंकि वे इसी व्यवसाय को अपनाने के लिए बाध्य हैं। ऐसी स्थिति में उनकी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार वृत्ति, व्यवसाय, व्यापार, आजीविका की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। अतः उपर्युक्त घटना के अन्तर्गत उन जातियों के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

3. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार-इस घटना में बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने से हतोत्साहित किया जाता है जो संविधान में दिए गए उनके सांस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार का उल्लंघन है। यहाँ यह स्पष्ट है कि संविधान के अनुच्छेद 29 (2) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, मूलवंश, लिंग, जाति, भाषा के आधार पर राज्य द्वारा घोषित या राज्य विधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश से वंचित या भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार-समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भूखमरी की स्थिति की तरफ खींचा। भारतीय खाद्य-निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था।शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन-कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित-मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक-वितरण-प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौन से अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त वर्णित घटनाओं में संवैधानिक उपचार का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार एवं सूचना का अधिकार सम्मिलित हैं। मानवाधिकार समूह द्वारा अदालत में याचिका दायर करना संवैधानिक उपचार का अधिकार है। भूख से होने वाली मौत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। राशन कार्डधारी को उचित मूल्य की दुकान से मिलने वाली अनाज की मात्रा का न मालूम होना, उनके सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) ये सभी अधिकार अलग-अलग हैं। परंतु इस घटना में ये सभी जीवन के अधिकार के अंग के रूप में जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धत सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान-सभा में दिए गए वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि हाँ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि नहीं तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान सभा में दिए गए वक्तव्य का विश्लेषण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को जो भी मौलिक अधिकार दिए गए हैं, वे अपर्याप्त हैं। कई ऐसी बातों की उपेक्षा की गई है जिन्हें मूल अधिकारों में स्थान दिया जाना चाहिए था; जैसे आजीविका का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चिकित्सा-सुविधा का अधिकार इत्यादि यद्यपि इनमें शिक्षा एवं सूचना के अधिकार को तो मौलिक अधिकारों का रूप दे दिया गया है, लेकिन चिकित्सा-सुविधा के अधिकार इत्यादि को नहीं। जबकि चिकित्सा-सुविधा का अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है वहाँ राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की आधारशिला भी है।

आलोचकों की दृष्टि में इस अधिकार की उपेक्षा करना गलत है। लाहिड़ी के असंतोष का अन्य कारण यह है कि प्रत्येक मौलिक अधिकार के साथ प्रतिबंध का प्रावधान किया गया है। आलोचकों का मत है कि भारतीय संविधान एक हाथ से मौलिक अधिकार देता हैं तो दूसरे हाथ से इसे छीन लेता है। संविधान द्वारा जिस प्रकार विशेष परिस्थितियों में अलग-अलग प्रतिबंध लगाए गए हैं, उसने मौलिक अधिकारों को एक तरह से व्यर्थ बना दिया है।

सोमनाथ लाहिड़ी का यह कथन है कि-“अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है।” संक्षेप में सोमनाथ लाहिड़ी के वक्तव्य से सहमति व्यक्त कर सकते हैं जैसे कि विष्णु कामथ ने मौलिक अधिकारों की आलोचना करते हुए संविधान सभा में कहा था कि-“इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।”

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अध्याय तीन में मौलिक अधिकारों की प्रारम्भिक संख्या 7 थी जोकि बाद में 44वें संशोधन द्वारा सन् 1978 में संपत्ति के अधिकार को समाप्त करने पर मौलिक अधिकारों की संख्या 6 रह गई। इस प्रकार वर्तमान में संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं-

  • समानता का अधिकार,
  • स्वतंत्रता का अधिकार,
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,
  • सांस्कृतिक और शिक्षा का अधिकार,
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

यहाँ यह स्पष्ट है कि किसी भी अधिकार की उपयोगिता तथा सार्थकता तभी है जब उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाए। इस क्रम में संवैधानिक उपचारों का अधिकार इस दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 32 में वर्णित किया गया है। यह अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्रदान करता है।

राज्य द्वारा अन्य मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में उच्चतम न्यायालय को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई का अधिकार दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 32 द्वारा दिए गए संवैधानिक उपचारों के अधिकार के तहत कोई भी नागरिक अपने अधिकारों की अवहेलना होने पर न्यायालय में प्रार्थना-पत्र देकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

ऐसी स्थिति में न्यायपालिका को मूल अधिकारों की रक्षा करने के लिए पाँच प्रकार के लेख जारी करने का अधिकार है जो बंदी-प्रत्यक्षीकरण लेख, परमादेश लेख, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा लेख हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। इसी कारण से इस अधिकार को डॉ० भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान की मूल आत्मा कहा है। २७ मा अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न मार कर सकता ।

भारतीय संविधान में अधिकार HBSE 11th Class Political Science Notes

→ राज्य तथा व्यक्ति के आपसी संबंधों की समस्या सदा से ही एक जटिल समस्या रही है और वर्तमान समय की लोकतंत्रीय व्यवस्था में इस समस्या ने विशेष महत्त्व प्राप्त कर लिया है।

→ यदि एक ओर शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए नागरिकों के जीवन पर राज्य का नियन्त्रण आवश्यक है तो दूसरी ओर राज्य की शक्ति पर भी कुछ सीमाएँ लगाना आवश्यक है, ताकि राज्य मनमाने तरीके से कार्य करते हुए नागरिकों की स्वतंत्रता तथा अधिकारों के विरुद्ध कार्य न कर सके।

→ अधिकारों की व्यवस्था राज्य की स्वेच्छाचारी शक्ति पर प्रतिबंध लगाने का एक श्रेष्ठ उपाय है।

→ मानव इतिहास में सर्वप्रथम 1789 को फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने ‘मानवीय अधिकारों की घोषणा करके राजनीति विज्ञान को क्रांतिकारी सिद्धान्त दिया था।

→ तब से मानवीय अधिकारों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि आधुनिक युग में शायद ही कोई ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था हो जहाँ के संविधान में इन मानवीय अधिकारों को स्थान नहीं दिया गया हो। भारतीय संविधान निर्माता भी इससे वंचित नहीं रहे।

→ भारत में मौलिक अधिकारों की माँग 1895 ई० में बाल गंगाधर तिलक द्वारा की गई थी। – इसके बाद 1918 में काँग्रेस के अधिवेशन में यह माँग की गई थी कि भारतीय अधिनियम 1919 के द्वारा भारतवासियों को मौलिक अधिकार दिए जाएँ, जिसकी ओर ब्रिटिश शासन ने कोई ध्यान नहीं दिया।

→ सन 1925 में श्रीमती ऐनी बेसेण्ट ने ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के लिए अनेक मौलिक अधिकारों की माँग की थी। सन 1928 में नेहरू समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारतीयों के लिए ब्रिटिश शासन से अनेक मौलिक अधिकारों की माँग की थी।

→ इन अधिकारों के विषय में विचार लन्दन में हुई गोलमेज कान्फ्रेंस में हुआ। भारत सरकार अधिनियम, 1935 में कुछ अधिकारों को सीमित रूप में मान्यता दी गई।

→ 1946 में जब संविधान सभा गठित हो गई तो मौलिक अधिकारों के संबंध में, सप्रू समिति (Sapru Committee) ने अपने प्रतिवेदन में कहा था, “हमारे विचार से भारत की विशेष परिस्थितियों में यह बहुत जरूरी है कि नए संविधान में मौलिक अधिकार अवश्य शामिल किए जाएँ जिससे देश के अल्पसंख्यक वर्गों को सुरक्षा की गारण्टी देने के साथ-साथ देश के विधानमंडलों, प्रशासनिक विभागों और न्यायालयों में एक समान कार्रवाई की जा सके।”

→ फिर भी भारत के स्वतंत्र होने से पहले मौलिक अधिकार देश के नागरिकों को प्राप्त नहीं थे और भारतीय संविधान द्वारा अपने तीसरे भाग (Part III) में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है।

→ ये अधिकार व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास के लिए बहुत जरूरी समझकर सभी नागरिकों को दिए गए हैं। अतः सर्वप्रथम यहाँ मौलिक अधिकारों का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है।

→ तत्पश्चात् भारतीय संविधान में दिए मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण एवं अध्याय चार में दिए गए राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों पर प्रकाश डालेंगे।

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत को धर्म निष्पक्षता किसने प्रदान की है?
(A) राज्य
(B) सरकार
(C) जनता
(D) संविधान।
उत्तर:
संविधान।

2. उस देश को क्या कहते हैं जो किसी विशेष धर्म का नहीं बल्कि सभी धर्मों का सम्मान करता है?
(A) कल्याणकारी राज्य
(B) धर्म निष्पक्ष
(C) लोकतांत्रिक
(D) तानाशाही।
उत्तर:
धर्म निष्पक्ष।

3. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का आवश्यक तत्त्व है?
(A) धार्मिक कट्टरवाद का बढ़ना
(B) धार्मिक गतिविधियों का बढ़ना
(C) धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा
(D) धार्मिक गतिविधियां का खात्मा।
उत्तर:
धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

4. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का मुख्य आधार है?
(A) धर्म
(B) तार्किकता तथा विज्ञान
(C) धार्मिक कट्टरवाद
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
तार्किकता तथा विज्ञान।

5. हमारा देश ………………… संस्कृति से काफी प्रभावित हुआ है।
(A) उत्तरी
(B) दक्षिणी
(C) पूर्वी
(D) पश्चिमी।
उत्तर:
पश्चिमी।

6. किसने कहा था कि धर्म निष्पक्षता का अर्थ है सभी धर्मों का सम्मान तथा समानता?
(A) गाँधी
(B) नेहरू
(C) मौलाना अबुल कलाम
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
गाँधी।

7. भारत में पर्दा प्रथा किसने शुरू की थी?
(A) हिंदुओं ने
(B) मुसलमानों ने
(C) सिक्खों ने
(D) पारसियों ने।
उत्तर:
मुसलमानों ने।

8. 2011 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या मुसलमान है?
(A) 10%
(B) 13%
(C) 14%
(D) 16%
उत्तर:
13%

9. इनमें से कौन-सी किताब एम० एन० श्रीनिवास ने लिखी है?
(A) Cultural change in India
(B) Social change in Modern India
(C) Geographical change in Modern India
(D) Regional change in Modern India.
उत्तर:
Social change in Modern India

10. प्राचीन भारत में कौन-सी धार्मिक भाषा प्रयुक्त होती थी?
(A) पाली
(B) हिंदी
(C) संस्कृत
(D) पंजाबी।
उत्तर:
संस्कृत।

11. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों की नकल करना शुरू कर देते हैं?
(A) पश्चिमीकरण
(B) संस्कृतिकरण
(C) धर्म निष्पक्षता
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
संस्कृतिकरण।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

12. जब किसी देश का समाज अथवा संस्कृति परिवर्तित होना शुरू हो जाए तो उसे क्या कहते हैं?
(A) सामाजिक परिवर्तन
(B) धार्मिक परिवर्तिन
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन
(D) उद्विकासीय परिवर्तन।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तन।

13. प्राचीन समय से आज तक मनुष्य ने जो भी प्राप्त किया है उसे क्या कहते हैं?
(A) सभ्यता
(B) संस्कृति
(C) समाज
(D) चीजों का एकत्र।
उत्तर:
संस्कृति।

14. संस्कृति किस प्रकार का व्यवहार है?
(A) पैतृक
(B) सामाजिक
(C) समाज
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
सामाजिक।

15. इस्लाम ने हमारे समाज को किस प्रकार प्रभावित किया है?
(A) हमारे समाज में पर्दा प्रथा आई
(B) जाति व्यवस्था की पाबंदियां अधिक कठोर हो गई
(C) विवाह से संबंधित पाबंदियां और कठोर हो गईं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

16. धर्म निष्पक्षता को अपनाने का क्या कारण है?
(A) कम होते धार्मिक संस्थान
(B) आधुनिक शिक्षा
(C) पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

17. धर्म निष्पक्षता ने किस प्रकार हमारे देश के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है?
(A) पवित्रता तथा अपवित्रता के संकल्पों में परिवर्तन
(B) परिवार की संस्था में परिवर्तन।
(C) ग्रामीण समुदाय में बहुत से परिवर्तन आए हैं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

18. परिवार की संस्था में धर्म निष्पक्षता के कारण किस प्रकार के परिवर्तन आये हैं?
(A) संयुक्त परिवारों का टूटना
(B) एकांकी परिवारों का बढ़ना
(C) परिवार में बड़ों का कम होता नियंत्रण
(D) a + b + c.
उत्तर:
a + b + c

19. धर्म निष्पक्षता के कारण ग्रामीण समुदाय में किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
(A) चुनी हुई पंचायतों का सामने आना
(B) समृद्धि पर आधारित सम्मान
(C) अंतर्जातीय विवाहों का बढ़ना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

20. भारत में इस्लाम का प्रभाव पड़ना कब शुरू हुआ?
(A) 13वीं शताब्दी
(B) 14वीं शताब्दी
(C) 15वीं शताब्दी
(D) 16वीं शताब्दी।
उत्तर:
13वीं शताब्दी।

21. The Caste Disability Prohibition Act कब पास हुआ था?
(A) 1842
(B) 1846
(C) 1850
(D) 1854
उत्तर:
1850

22. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का कारण है?
(A) नगरीकरण
(B) यातायात तथा संचार के साधन
(C) आधुनिकी शिक्षा
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

23. इनमें से कौन-सा अधिकार नागरिकों को भारतीय संविधान ने दिया है?
(A) संपत्ति का अधिकार
(B) साधारण अधिकार
(C) मौलिक अधिकार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
मौलिक अधिकार।

24. पश्चिमीकरण का सिद्धांत किसने दिया था?
(A) श्रीनिवास
(B) मजूमदार
(C) घुर्ये
(D) मुखर्जी।
उत्तर:
श्रीनिवास।

25. पश्चिमीकरण का हमारे देश पर क्या प्रभाव पड़ा?
(A) जाति प्रथा कमजोर हो गई
(B) तलाक बढ़ गए
(C) केंद्रीय परिवार सामने आए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

26. इनमें से कौन-सा पश्चिमीकरण का परिणाम है?
(A) संस्थाओं में परिवर्तन
(B) शिक्षा का फैलना
(C) मूल्यों में परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

27. इनमें से कौन-सी संस्कृतिकरण की विशेषता है?
(A) स्थिति परिवर्तन
(B) उच्च जातियों की नकल
(C) कई माडल
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

28. संस्कृतिकरण का निम्न जातियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(A) निम्न जातियों में गतिशीलता
(B) निम्न जातियों की स्थिति में सुधार
(C) निम्न जातियों के पेशे में परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

29. इनमें से कौन-सा देश भारत में पश्चिमीकरण का माडल है?
(A) ब्रिटेन
(B) अमेरिका
(C) जर्मनी
(D) फ्रांस।
उत्तर:
ब्रिटेन।

30. इनमें से कौन-सा पश्चिमीकरण का लक्षण है?
(A) आधुनिकीकरण से अलग
(B) भारतीय समाज पर ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव
(C) केवल शहरियों तक ही सीमित नहीं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

31. आधुनिकीकरण का मुख्य आधार क्या है?
(A) अच्छाई
(B) बुराई
(C) अच्छाई तथा बुराई
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अच्छाई तथा बुराई।

32. कोई चीज़ जो पहले से नईं तथा अच्छी हो उसे क्या कहते हैं?
(A) आधुनिक
(B) औद्योगिक
(C) प्राचीन
(D) नगरीय।
उत्तर:
आधुनिक।

33. धर्म-निष्पक्षता, शिक्षा, नगरीकरण, नए अधिकार, मशीनें इत्यादि ……………. के लिए आवश्यक है।
(A) औद्योगिकरण
(B) आधुनिकीकरण
(C) संस्कृतिकरण
(D) नगरीकरण।
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

34. भारत में कौन-सा उद्योग आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से प्रभावित हुआ है?
(A) कपड़ा उद्योग
(B) लोहा उद्योग
(C) चीनी उद्योग
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

35. भारत में आधुनिकीकरण लाने के लिए कौन उत्तरदायी है?
(A) मुगल शासक
(B) भारत सरकार
(C) ब्रिटिश सरकार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार।

36. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जो परिवर्तन पर आधारित है तथा जो किसी चीज़ की अच्छाई तथा बुराई के बारे में बताती है?
(A) संस्कृतिकरण
(B) औद्योगीकरण
(C) नगरीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

37. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जातियाँ उच्च जातियों में मिल जाती हैं?
(A संस्कृतिकरण
(B) नगरीकरण
(C) औद्योगीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
संस्कृतिकरण।

38. आधुनिकीकरण के लिए क्या आवश्यक है?
(A) शिक्षा का उच्च स्तर
(B) यातायात तथा संचार के साधनों में विकास
(C) उद्योगों को प्राथमिकता देना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

39. 19वीं सदी के सुधार आंदोलनों में किन कुरीतियों को रोकने के लिए विशेष बल दिया गया?
(A) सती प्रथा
(B) बाल विवाह
(C) विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

40. इनमें से कौन-सी संकल्पना श्री एम. एन. श्रीनिवास की देन है?
(A) संस्कृतिकरण
(B) पश्चिमीकरण
(C) प्रबल जाति
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की अवधारणा किस ने दी है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा एम० एन० श्रीनिवास ने दी है।

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण की अवधारणा किस ने दी है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण की अवधारणा एम० एन० श्रीनिवास ने दी है।

प्रश्न 3.
भारत किस प्रकार का राज्य है?
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है तथा धर्म-निरपेक्षता उसे संविधान ने दी है।

प्रश्न 4.
धर्म-निरपेक्ष देश किसे कहते हैं?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्ष देश वह होता है जहां किसी एक खास धर्म का आदर न होकर बल्कि सभी धर्मों का आदर हो तथा देश का अपना कोई धर्म न हो। सारे धर्म उसके लिए बराबर हों।

प्रश्न 5.
धर्म-निरपेक्षता का ज़रूरी तत्त्व क्या है?
उत्तर:
धार्मिक कट्टरता (संकीर्णता) का खात्मा धर्म-निरपेक्षता का ज़रूरी तत्त्व होता है।

प्रश्न 6.
धर्म-निरपेक्षता से किस जाति का प्रभाव कम हुआ है?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्षता से ब्राह्मण जाति का प्रभाव कम हुआ है क्योंकि अब सभी धर्म तथा जातियां बराबर हैं।

प्रश्न 7.
धर्म-निरपेक्षता का मुख्य आधार क्या होता है?
उत्तर:
विज्ञान तथा तार्किकता धर्म-निरपेक्षता का मुख्य आधार होता है।

प्रश्न 8.
कहां की संस्कृति ने हमारे देश को प्रभावित किया है?
उत्तर:
पश्चिम की संस्कृति ने हमारे देश को प्रभावित किया है।

प्रश्न 9.
गांधी जी के अनुसार धर्म-निरपेक्ष क्या होता है?
उत्तर:
गांधी जी के अनुसार सभी धर्मों का आदर तथा बराबरी धर्म-निरपेक्ष का अर्थ होता है।

प्रश्न 10.
भारत में पर्दा प्रथा किसने शुरू की थी?
उत्तर:
भारत में पर्दा प्रथा मुसलमानों ने शुरू की थी।

प्रश्न 11.
भारत में कितने मुस्लिम रहते हैं?
उत्तर:
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 13% मुसलमान रहते हैं।

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक बताओ।
उत्तर:
औद्योगीकरण तथा नगरवाद संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक हैं।

प्रश्न 13.
श्रीनिवास ने किस किताब में संस्कृतिकरण की व्याख्या की है?
अथवा
आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन नामक पुस्तक किस विचारक से संबंधित है?
उत्तर:
श्रीनिवास ने किताब लिखी थी Social Change in Modern India जिस में उन्होंने संस्कृतिकरण की व्याख्या की है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 14.
आधुनिकीकरण के मुख्य आधार क्या होते हैं?
उत्तर:
आधुनिकीकरण के मुख्य आधार अच्छाई और बुराई होते हैं।

प्रश्न 15.
कौन-सी चीज़ आधुनिक होती है?
उत्तर:
जो चीज़ पुरानी चीज़ की जगह नयी तथा अच्छी हो उस चीज़ को आधुनिक कहते हैं।

प्रश्न 16.
आधुनिकीकरण के लिए क्या ज़रूरी है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता, शिक्षा, नगरीयकरण, नयी मशीनें, नए आविष्कार आधुनिकीकरण के लिए जरूरी हैं।

प्रश्न 17.
भारत में आधुनिकीकरण कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
भारत में आधुनिकीकरण अंग्रेज़ों के आने के बाद शुरू हुआ जब उन्होंने यहां पर पश्चिमी शिक्षा का प्रसार तथा नयी फैक्टरियां लगानी शुरू की।

प्रश्न 18.
भारत में आधुनिकीकरण से प्रभावित तीन उद्योगों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. कपड़ा उद्योग
  2. लोहा उद्योग
  3. चीनी उद्योग।

प्रश्न 19.
संस्कृतिकरण से किस में परिवर्तन होता है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण से जाति व्यवस्था की संरचना में परिवर्तन होता है जब छोटी जाति के लोग बड़ी जाति में मिलने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 20.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1897 में की थी।

प्रश्न 21.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
अथवा
ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय ने 1820 में की।

प्रश्न 22.
सत्य शोधक समाज किसने चलाया था?
उत्तर:
सत्य शोधक समाज ज्योतिबा फूले ने ब्राह्मणों के खिलाफ चलाया था।

प्रश्न 23.
ज्योतिबा फूले ने पहला स्कूल कहाँ खोला था?
उत्तर:
ज्योतिबा फूले ने पहला स्कूल पूना में खोला था।

प्रश्न 24.
किसने लड़कियों के लिए सबसे पहला स्कूल खोला था?
उत्तर:
1851 में ज्योतिबा फूले ने सबसे पहले लड़कियों के लिए स्कूल खोला था।

प्रश्न 25.
D.A.V. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
D.A.V. का पूरा नाम दयानंद ऐंग्लो वैदिक है।

प्रश्न 26.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
उत्तर:
जनजातीय आंदोलन अपनी संस्कृति को बचाने के लिए शुरू हुए थे ताकि वह औरों की संस्कृति में न मिल जाएं।

प्रश्न 27.
आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) कहा जाता है।

प्रश्न 28.
समाज सुधार क्या होता है?
उत्तर:
जब समाज में चल रही कुरीतियों के विरुद्ध समाज के समझदार व्यक्ति कोई आंदोलन करें तथा उन कुरीतियों को बदलने का प्रयास करें तो उसे समाज सुधार कहते हैं।

प्रश्न 29.
समाज सुधार में गतिशीलता क्यों होती है?
उत्तर:
समाज सुधार में गतिशीलता इसलिए होती है क्योंकि समाज सुधार सभी समाजों तथा सभी युगों में एक समान नहीं होता। इसलिए यह गतिशील है।

प्रश्न 30.
समाज कल्याण क्या होता है?
उत्तर:
समाज कल्याण में उन संगठित सामाजिक कोशिशों या प्रयासों को शामिल किया जाता है जिनकी मदद से समाज के सारे सदस्यों को अपने आप को ठीक तरीके से विकसित करने की सुविधाएं मिलती हैं। समाज कल्याण के कार्यों में निम्न तथा पिछड़े वर्गों की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि समाज का हर तरफ से विकास तथा कल्याण हो सके।

प्रश्न 31.
समाज कल्याण के क्या उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  1. पहला उद्देश्य यह है कि समाज के सदस्यों के हितों की पूर्ति उनकी ज़रूरतों के अनुसार होती रहे।
  2. ऐसे सामाजिक संबंध स्थापित करना जिससे लोग अपनी शक्तियों का पूरी तरह विकास कर सकें।

प्रश्न 32.
भारत के आज़ादी के आंदोलन से हमें क्या मिला?
उत्तर:
भारत के आजादी के आंदोलन से हमें आजादी मिली। इस आंदोलन में भारत की सारी जनता बगैर किसी भेदभाव के एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी जिस वजह से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। निम्न जातियों में भी चेतना आई तथा वह उच्च जातियों के समान खड़े हो गए।

प्रश्न 33.
किन्हीं तीन समाज सुधारकों के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. राजा राममोहन राय
  2. सर सैयद अहमद खान
  3. स्वामी दयानंद सरस्वती
  4. स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 34.
बेसिक शिक्षा की धारणा किसने दी थी?
उत्तर:
बेसिक शिक्षा की धारणा महात्मा गांधी ने 1937 में दी थी।

प्रश्न 35.
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में कोई मुख्य फर्क बताओ।
उत्तर:
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में मुख्य फर्क यह है कि समाज कल्याण में समाज की निम्न जातियों, पिछड़े वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य किए जाते हैं जबकि समाज सुधार में समाज में फैली हुई कुरीतियों को दर कर उनमें बदलाव लाने के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 36.
स्वदेशी आंदोलन के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. भारत की विरासत को महत्त्व देना तथा उसे स्पष्ट करना।
  2. देश के रचनात्मक निर्माण के प्रयास करने।

प्रश्न 37.
रामकृष्ण मिशन का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:

  1. आत्मत्याग करने वाले साधु-संतों को बाहर भेजना ताकि वे वेदों का प्रचार कर सकें।
  2. मानवीयता के लिए बगैर किसी जात-पात, धर्म, रंग, स्थान के भेदभाव के कार्य करना।

प्रश्न 38.
थियोसोफिकल सोसाइटी के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. हिंदू धर्म में पुनः चेतना जगाना ताकि सोए हुए हिंदू जाग सकें।
  2. विश्व भ्रातरी भाव का तथा विश्व के सभी धर्मों की एकता का प्रचार करना।

प्रश्न 39.
सत्यशोधक समाज के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. उस समय समाज में चली आ रही ब्राह्मणों की उच्चता या श्रेष्ठता को चुनौती देना।
  2. शिक्षा, समानता, स्त्रियों की आजादी के प्रयास करने।

प्रश्न 40.
आर्य समाज का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:

  1. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य गुरुकुल प्रथा पर आधारित हिंदुओं की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को दोबारा – जीवित करना।
    वेदों के प्रचार पर ज़ोर देना।
  2. उच्च स्तर पर अंग्रेज़ी शिक्षा को महत्त्व देना।

प्रश्न 41.
राजनीतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए चलाए जाएं उन्हें राजनीतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे भारत की आज़ादी का आंदोलन।

प्रश्न 42.
सांस्कृतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए चलाया जाए उसे सांस्कृतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे जनजातीय आंदोलन।

प्रश्न 43.
आज़ादी से पहले जाति आंदोलन क्यों चलाए गए थे?
उत्तर:

  1. आज़ादी से पहले जाति आंदोलन इसलिए चलाए गए थे ताकि ब्राह्मणों की और जातियों के ऊपर श्रेष्ठता का विरोध किया जा सके।
  2. जाति स्तरीकरण में अपनी जाति की स्थिति को ऊपर उठाया जा सके।

प्रश्न 44.
स्वामी विवेकानंद के जीवन का क्या मकसद था?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद के जीवन का मकसद आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना तथा दैनिक जीवन के बीच की खाई को खत्म करना था।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 45.
आर्य समाज की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. आर्य समाज ने विधवा विवाह का प्रचार तथा बाल विवाह का विरोध किया।
  2. आर्य समाज ने अस्पृश्यता को समाप्त करने तथा सभी को वेदों को पढ़ने की स्वतंत्रता पर जोर दिया।

प्रश्न 46.
पारसियों के सुधार आंदोलन के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. पारसी स्त्री शिक्षा पर जोर दे रहे थे।
  2. पारसियों के सुधार आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य विवाह संबंधी रूढ़िवादिता को खत्म करना था।

प्रश्न 47.
मद्रास में भारतीय संघ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
डॉ० ऐनी बेसेंट तथा श्रीमती काडसिस ने मद्रास में भारतीय संघ की स्थापना की थी।

प्रश्न 48.
भगत आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
भारत में निम्न जातियां उच्च जातियों के विचारों, तौर-तरीकों, व्यवहारों का अनुसरण करती हैं। इस प्रकार की रुचि तथा अनुसरण की प्रक्रिया को भगत आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 49.
सुधार आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
असल में सुधार आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करना था इसलिए इन आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 50.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हुए?
उत्तर:
अंग्रेजों के आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार हुआ। इस शिक्षा को ग्रहण करते-करते समाज के बहुत से सुलझे हुए लोगों को पता चला कि उनके समाज में जो रीतियां, जैसे सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि चल रही हैं वह असल में रीतियां नहीं बल्कि कुरीतियां हैं। उन्हें पश्चिमी देशों में जाने तथा वहां के लोगों से बातें करने का मौका मिला जिससे उनकी आँखें खुल गईं तथा अपने समाज में फैली कुरीतियों, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों को दूर करने के लिए सुधार आंदोलन चल पड़े।

प्रश्न 51.
सर्वोदय शब्द किसने दिया था?
उत्तर:
सर्वोदय शब्द महात्मा गांधी ने दिया था। उनके अनुसार सिद्धांतों वाला व्यक्ति और लोगों को जीवित रखने के लिए खुद मर जाता है।

प्रश्न 52.
हमारे समाज में सती प्रथा क्यों प्रचलित थी?
उत्तर:

  1. हमारे समाज में सती प्रथा इसलिए प्रचलित थी क्योंकि विवाह को जन्मों का संबंध माना जाता था। इसलिए पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी को भी मरना पड़ता था।
  2. इसके साथ एक और भी भावना थी कि ऐसा करने से भगवान् खुश हो जाएंगे तथा सती को मोक्ष प्राप्त हो जाएगा।

प्रश्न 53.
विवेकानंद के प्रचार के मुख्य अंश क्या थे?
उत्तर:

  1. जीवन ही धर्म है। इसलिए जीवन को धर्म मानकर जीना चाहिए।
  2. जीव की सेवा करना शिव की सेवा करने के समान है।
  3. ईश्वर मनुष्य के अंदर ही वास करता है।
  4. मनुष्यों की सेवा करने के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग ज़रूरी है।

प्रश्न 54.
पुराने समय में किस धार्मिक भाषा का प्रयोग होता था?
उत्तर:
पुराने समय में संस्कृत का धार्मिक भाषा के रूप में प्रयोग होता था।

प्रश्न 55.
संस्कृतिकरण क्या है?
उत्तर:
जब निम्न हिंदू जातियों के लोग उच्च हिंदू जातियों की नकल करने लग जाएं तथा अपने आप को उच्च जाति में मिलाने की कोशिश करें तो उस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 56.
सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब किसी समाज या देश की संस्कृति में परिवर्तन होने लग जाएं तो उसे सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 57.
धर्म-निरपेक्षता का अर्थ दीजिए।
अथवा
धर्म-निरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
पंथ निरपेक्षीकरण क्या है?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्षता को लौकिकीकरण भी कहते हैं। इसका मतलब यह है कि जो पहले धार्मिक था वह अब धार्मिक नहीं रहा। अब सभी धर्म बराबर हो गए हैं तथा कोई धर्म छोटा-बड़ा नहीं है। धर्म-निरपेक्षता में विचारों परंपराओं, धर्म इत्यादि में विज्ञान या तार्किकता लाने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 58.
पश्चिमीकरण से आप क्या समझते है?
अथवा
पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब हमारे देश में पश्चिम के देशों के विचारों, तौर-तरीकों इत्यादि को अपनाया जाता है तो उसे पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 59.
असंस्कृतिकरण क्या होता है?
उत्तर:
यह संस्कृतिकरण का बिल्कुल उल्टा है। जब उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों के कार्य अपना लें तो उसे असंस्कृतिकरण कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी ब्राह्मण का जूतों की दुकान खोलना। यह आजकल ही मुमकिन है।

प्रश्न 60.
संस्कृति क्या होती है?
उत्तर:
जो कुछ भी मनुष्य ने प्राचीन समय से लेकर आज तक अपनी बुद्धिमता से हासिल किया है वह उसकी संस्कृति होती है। यह ऐसे विचारों, भावों, तरीकों का जोड़ है जो एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है। संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है।

प्रश्न 61.
पुनः संस्कृतिकरण क्या होता है?
उत्तर:
जब एक निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के हाव-भाव, रहने-सहने के तरीके या संस्कृति अपनाते हैं तो वह संस्कृतिकरण होता है। पर जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति की संस्कृति को छोड़ कर दोबारा अपनी संस्कृति या तौर-तरीकों को अपना लेते हैं तो उसे पुनः संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 62.
इस्लाम धर्म ने हमारे समाज पर क्या प्रभाव डाले हैं?
उत्तर:

  1. इस्लाम धर्म से ही परदा प्रथा हमारे समाज में आई।
  2. इस्लाम धर्म ने ही हमारी जाति प्रथा पर प्रभाव डाला उसके प्रतिबंध और सख्त हो गए।
  3. इस्लाम धर्म की वजह से हमारे विवाह संबंधी बंधन और सख्त हो गए।

प्रश्न 63.
संस्कृतिकरण की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. संस्कृतिकरण में निम्न जाति द्वारा उच्च जाति का अनुसरण किया जाता है।
  2. यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
  3. इसमें निम्न वर्गों का सामाजिक परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 64.
पश्चिमीकरण ने हमारे समाज पर क्या प्रभाव डाले?
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के कोई दो प्रभाव बताइये।
उत्तर:

  1. पश्चिमीकरण की वजह से जाति प्रथा कमजोर हुई।
  2. इस की वजह से विवाह संबंध-विच्छेद तथा तलाक बढ़ने लगे।
  3. इस की वजह से औरतों ने घर से बाहर निकलना शुरू कर दिया।

प्रश्न 65.
प्रभु जाति क्या होती है?
उत्तर:
वह जाति जिसके पास कृषि योग्य भूमि ज्यादा होती है तथा जिसका निम्न जातियां अनुसरण करती हैं वह प्रभु जाति होती है।

प्रश्न 66.
आधुनिकीकरण किसे कहते हैं?
अथवा
आधुनिकीकरण का क्या अर्थ है?
अथवा
आधुनिकीकरण क्या है?
अथवा
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह प्रक्रिया जो परिवर्तन की प्रक्रिया पर आधारित होती है तथा जिसमें अच्छे बुरे, नई पुरानी इत्यादि भावनाओं का आभास होता है, वह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया होती है। धर्म निरपेक्षता, शिक्षा, नगरीकरण, नई मशीनें, नए अधिकार इत्यादि आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 67.
आधुनिकीकरण के तीन नकारात्मक प्रभाव बताएं।
उत्तर:

  1. आधुनिकीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के संयुक्त परिवार टूट रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार सामने आ रहे हैं।
  2. भोग विलास की चीजें बढ़ रही हैं जिसका नई पीढ़ी पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
  3. इस कारण लोगों में अनैतिकता बढ़ रही है तथा समाज में अनैतिक कार्य बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 68.
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए कौन-सी प्रमुख परिस्थितियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए सरकार की दृढ़ शक्ति, जनता की राय, उच्च शिक्षा का होना, धन की बहुतायत, उद्योगों का होना इत्यादि अति आवश्यक है।

प्रश्न 69.
आधुनिकता की परिभाषा एस० सी० दूबे के अनुसार बताएं।
उत्तर:
दूबे के अनुसार, “आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है जो परंपरागत या अर्ध परंपरागत व्यवस्था से किन्हीं इच्छित प्रारूपों तथा उनसे जुड़ी हुई सामाजिक संरचना के स्वरूपों, मूल्यों, प्रेरणाओं तथा सामाजिक आदर्श नियमों की ओर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।

प्रश्न 70.
आधुनिकीकरण के लिए क्या ज़रूरी है?
अथवा
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए कौन-सी प्रमुख परिस्थितियां आवश्यक हैं?
उत्तर:

  1. इसके लिए शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए।
  2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास होना चाहिए।
  3. संचार के माध्यमों का भी विकास होना चाहिए।
  4. कृषि की जगह उद्योग ज्यादा होने चाहिएं।

प्रश्न 71.
भारत एक ………………. देश है।
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

प्रश्न 72.
संस्कृति के मूर्त भाग को ……………….. कहते हैं।
उत्तर:
संस्कृति के मूर्त भाग को भौतिक संस्कृति कहते हैं।

प्रश्न 73.
शिक्षा की परिभाषा दें।
उत्तर:
ब्राउन तथा रासेक के अनुसार, “शिक्षा अनुभव की वह संपूर्णता है जो किशोर और वयस्क दोनों की अभिवृत्तियों को प्रभावित करती है तथा उनके व्यवहारों का निर्धारण करती है।”

प्रश्न 74.
शिक्षा के दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  1. शिक्षा व्यक्ति को घटनाओं का सही विश्लेषण करने का ज्ञान देकर उसे समाज का अंग बना देती है।
  2. शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य समाज में से अनैतिकता, हिंसा, संघर्ष, स्वार्थ इत्यादि बुराइयों को दूर करना तथा इसके स्थान पर नैतिकता, प्यार इत्यादि का विकास करना है।

प्रश्न 75.
औपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा होती है जो हम औपचारिक तौर पर स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय इत्यादि में जाकर प्राप्त करते हैं। इस तरह की शिक्षा में स्पष्ट पाठ्यक्रम निश्चित किया जाता है तथा उसके अनुसार ही शिक्षा दी जाती है।

प्रश्न 76.
अनौपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनौपचारिक शिक्षा वह होती है जो व्यक्ति स्कूल, कॉलेज में नहीं बल्कि अपने रोजाना के अनुभव, अन्य व्यक्तियों के विचारों, परिवार, पड़ोस इत्यादि से प्राप्त करता है। व्यक्ति जो कुछ भी अपने रोज़ाना जीवन से सीखता है उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 77.
संस्कृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ मनुष्य ने प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है। विचार, फिलासफी, भावनाएं, मशीनें, कारें, बसें, शिक्षा इत्यादि सब कुछ संस्कृति का हिस्सा है।

प्रश्न 78.
सभ्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
संस्कृति के विकसित रूप को सभ्यता कहते हैं अर्थात् जब संस्कृति विकसित हो जाती है तो सभ्यता की स्थिति सामने आती है।

प्रश्न 79.
ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:
ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि को दूर करता था।

प्रश्न 80.
वेद ………………….. का धार्मिक ग्रंथ है।
अथवा
वेद किस धर्म के धार्मिक ग्रंथ हैं?
उत्तर:
वेद हिंदुओं का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 81.
कुरान ………………….. का धार्मिक ग्रंथ है।
उत्तर:
करान मसलमानों का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 82.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
आर्य समाज में संस्थापक दयानंद सरस्वती थे।

प्रश्न 83.
संस्कृतिकरण का प्रभुजाति मॉडल क्या है?
उत्तर:
ब्राह्मण संस्कृतिकरण का प्रभुजाति मॉडल है।

प्रश्न 84.
बाइबल …………………. का धार्मिक ग्रंथ है।
उत्तर:
बाइबल इसाइयों का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 85.
संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर:
संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एम० एन० श्रीनिवास ने किया था।

प्रश्न 86.
संस्कृतिकरण का वर्ण मॉडल क्या है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण का वर्ण मॉडल ब्राह्मण वर्ण है।

प्रश्न 87.
‘गुरुग्रंथ साहिब’ किस धर्म के अनुयायियों की धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
‘गुरुग्रंथ साहिब’ सिक्ख धर्म के अनुयायियों की धार्मिक पुस्तक है।

प्रश्न 88.
संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रो० एम० एन० श्रीनिवासन ने दी है। यह कथन सही है या गलत।
उत्तर:
यह कथन सही है कि संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रो० एम० एन० श्रीनिवासन ने दी है।

प्रश्न 89.
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है या नहीं?
उत्तर:
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है।

प्रश्न 90.
स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की या ‘ब्रह्म समाज’ की?
उत्तर:
स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।

प्रश्न 91.
भारत पर पश्चिमीकरण के अंतर्गत किस देश का प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत पर पश्चिमीकरण के अंतर्गत इंग्लैंड का प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 92.
भारत के किसी प्रमुख धार्मिक अल्पसंख्यक का नाम बताएँ।
उत्तर:
मुस्लिम समुदाय भारत का प्रमुख धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है।

प्रश्न 93.
भारत में उपनिवेशवाद का अंत कब हुआ?
उत्तर:
भारत में उपनिवेशवाद का अंत 15 अगस्त, 1947 को हुआ जब भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

प्रश्न 94.
गीता किस धर्म से संबंधित धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
गीता हिंदू धर्म से संबंधित धार्मिक पुस्तक है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 95.
संस्कृतिकरण का संबंध किसमें परिवर्तन होने से है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण का संबंध जाति में परिवर्तन होने से है।

प्रश्न 96.
भारत सरकार किस धर्म को मान्यता प्रदान करती है?
उत्तर:
भारत सरकार किसी एक धर्म को नहीं बल्कि सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता प्रदान करती है।

प्रश्न 97.
पश्चिमीकरण का संबंध किससे है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण का संबंध पश्चिमी देशों की संस्कृति अपनाने से है।

प्रश्न 98.
राजा राममोहन राय को किस व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को भारतीय परिवर्तन के जनक या पितामह के रूप में जाना जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार आंदोलनों की मदद से हम क्या परिवर्तन ला सकते हैं?
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसमें हर किसी को समान अवसर उपलब्ध होते हैं। पर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के जीवन को सुखमय बनाना है। पर यह तभी संभव है अगर समाज में फैली हुई कुरीतियों तथा अंध-विश्वासों को दूर कर दिया जाए। इन को दूर सिर्फ समाज सुधारक आंदोलन ही कर सकते हैं। सिर्फ कानून बनाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में सुधार ज़रूरी हैं। कानून बना देने से सिर्फ कुछ नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बच्चों से काम न करवाना। इन सभी के लिए कानून हैं पर ये सब चीजें आम हैं। दहेज लिया दिया, यहां तक कि मांग कर लिया जाता है, बाल विवाह होते हैं, विधवा विवाह को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। हमारे समाज के विकास में यह चीजें सबसे बड़ी बाधाएं हैं। अगर हमें समाज का विकास करना है तो हमें समाज सुधार आंदोलनों की आवश्यकता है। इसलिए हम समाज सुधार आंदोलनों के महत्त्व को भूल नहीं सकते।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलन की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन हमेशा समाज विरोधी होते हैं।
  2. सामाजिक आंदोलन हमेशा नियोजित तथा जानबूझ कर किया गया प्रयत्न है।
  3. इसका उद्देश्य समाज में सुधार करना होता है।
  4. इसमें सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत होती है क्योंकि एक व्यक्ति समाज में परिवर्तन नहीं ला सकता।

प्रश्न 3.
सामाजिक आंदोलन की किस प्रकार की प्रकृति होती है?
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन संस्थाएं नहीं होते हैं क्योंकि संस्थाएं स्थिर तथा रूढ़िवादी होती हैं तथा संस्कृति का ज़रूरी पक्ष मानी जाती हैं। यह आंदोलन अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद खत्म हो जाते हैं। सामाजिक आंदोलन समितियां भी नहीं हैं क्योंकि समितियों का
  2. एक विधान होता है। यह आंदोलन तो अनौपचारिक, असंगठित तथा परंपरा के विरुद्ध होता है।
  3. सामाजिक आंदोलन दबाव या स्वार्थ समूह भी नहीं होते बल्कि यह आंदोलन सामाजिक प्रतिमानों में बदलाव की मांग करते हैं।

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  1. इनका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि को दूर करना था।
  2. यह समाज स्त्रियों को शिक्षा देकर समाज में ऊँचा दर्जा दिलाने के पक्ष में था।
  3. ब्रह्म समाज अंतर्जातीय विवाहों को भी करवाने के पक्ष में था।
  4. ब्रह्म समाज के प्रयत्नों से ही सती प्रथा निरोधक कानून 1829 तथा विधवा पुनर्विवाह कानून 1856 . बना था।

प्रश्न 5.
19वीं तथा 20वीं शताब्दी के कुछ संगठनों के नाम बताओ जिन्होंने समाज सुधार के कार्य किए थे।
उत्तर:

  1. आर्य समाज
  2. ब्रह्म समाज
  3. प्रार्थना समाज
  4. संगत सभा
  5. रामकृष्ण मिशन
  6. हरिजन सेवक संघ
  7. विधवा विवाह संघ
  8. आर्य महिला समाज।

प्रश्न 6.
मुसलमानों में जो सुधार कार्य किए गए उनका वर्णन करो।
उत्तर:
मुसलमानों में सुधार आंदोलन चलाने का श्रेय सर सैय्यद अहमद खान को जाता है। 1857 के पश्चात उन्होंने देखा कि मुसलमान अंग्रेजों के विरोधी हैं तथा अंग्रेज़ उन पर अत्याचार कर रहे हैं तथा इन्हें दबा रहे हैं। इसलिए मुस्लिमों को ऊपर उठाने के लिए उन्होंने सुधार कार्य शुरू किए। उन्होंने मुस्लिमों में फैली बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने एक पत्रिका निकाली जिसमें मुसलमानों को नई तकनीकें अपनाने के लिए उत्साहित किया।

उन्हीं की कोशिशों से 1875 में अलीगढ़ में एक स्कूल खोला गया जो 1918 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तबदील हो गया। उन्होंने बहु-पत्नी विवाह, पर्दा प्रथा, बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया। वह स्त्री शिक्षा के समर्थक थे। इसी तरह कई और मुस्लिम समाज सुधारकों ने मुस्लिमों में जागृति लाने के प्रयास किए। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई जिनके प्रयासों के फलस्वरूप पाकिस्तान की स्थापना हुई।

प्रश्न 7.
स्वदेशी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
स्वदेशी आंदोलन का अर्थ है लोगों के दवारा देश में ही बनी चीज़ों का उपयोग करना, अपने देश की संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना, राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहन देना, देसी उद्योगों की स्थापना करना। इस के साथ साथ विदेशी चीजों, शैक्षणिक संस्थानों, बैंकों, दुकानों आदि का बहिष्कार करना। यह शुरू हुआ था 1905 के बाद जब अंग्रेजों ने भारतीयों में फूट डालने की नीयत से बंगाल को दो भागों में बांट दिया।

इसके विरोध में लोगों ने बंगाल में स्वदेशी आंदोलन शुरू कर दिया जो कि शीघ्र ही पूरे देश में फैल गया। इसमें स्वदेशी चीज़ों को बढ़ावा दिया गया तथा विदेशी चीज़ों का बहिष्कार किया गया। आम जनता ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसके परिणामस्वरूप स्वदेशी चीज़ों की खपत बढ़ गई, भारतीय उद्योगों का विकास हुआ, राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहन मिला तथा सरकार के विरुदध व्यापक जनाधार बन गया।

प्रश्न 8.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
उत्तर:
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सैंकड़ों जनजातियों के लोग रहते हैं। इनकी अपनी विशिष्ट जीवन शैली होती है। उनकी ज़रूरतें भी कम होती हैं। वह अपनी संस्कृति व अलग जनजातीय पहचान बनाए रखने के प्रति बहुत सचेत होते हैं। यदि जनजाति के सदस्यों को लगे कि उनकी संस्कृति से छेड़छाड़ की जा रही है, इसमें परिवर्तन करने की कोशिश की जा रही है या उनकी मांगों की अनदेखी की जा रही है या उनकी अपनी अलग पहचान बनाए रखने में कोई खतरा है तो वे आंदोलन का रास्ता अपना लेते हैं।

इसके अलावा अन्य समदायों, धर्मों तथा वर्गों के लोगों के प्रभाव के कारण निश्चित तरह के परिवर्तन की इच्छा से भी जनजातियों के लोग आंदोलन करने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर बिहार से झारखंड राज्य अलग करने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ। बिरसा मुंडा ने मुंडा जनजाति में ईसाइयत के विरुद्ध आंदोलन चलाया। बिरसा को मुंडा जनजाति के लोग बिरसा भगवान् कहते थे। उसके कहने के फलस्वरूप इस जनजाति के उन लोगों, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, ने हिंदू धर्म को पुनः अपना लिया तथा मूर्ति पूजा, हिंदू कर्म-कांडों तथा रीति-रिवाजों का पालन करने लगे।

प्रश्न 9.
पारसियों में सुधार आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में भारतीय समाज के अलग-अलग समुदायों तथा वर्गों के लोगों ने सामाजिक तथा धार्मिक आंदोलन चलाए। पारसी भी समाज सुधार आंदोलनों में पीछे नहीं रहे। सन् 1851 में पारसी नेताओं दादा भाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji), नौरोजी फुरदोंजी (Naoroji Furdonji) तथा जे० बी० बाचा (J.B. Bacha) इत्यादि ने मिलकर ‘रेहनुमाइ मजदयासन सभा’ या धार्मिक सुधार सभा का गठन किया।

पारसी धर्म में सुधार लाना तथा इस धर्म के सदस्यों को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ जोड़ना इस सभा का प्रमुख उद्देश्य था। 1900 में पारसियों ने धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया। इन सब गतिविधियों के अलावा पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों में लेखों, भाषणों तथा बैठकों के माध्यम से पारसी नेताओं ने पारसी धर्म के अनुयायियों को धार्मिक रूढ़ियों व अंध-विश्वासों को छोड़ने के लिए प्रेरित किया। स्त्रियों की दशा सुधारने तथा उनकी शिक्षा के लिए उन्होंने विशेष प्रयत्न किए। इन सब प्रयासों के कारण पारसी आज भारतीय समाज के सबसे पश्चिमीकृत वर्ग बन गए हैं।

प्रश्न 10.
राजा राममोहन राय ने भारत के समाज सुधारों में क्या योगदान दिया था?
अथवा
समाज, धर्म और स्त्रियों की परिस्थिति में सुधार करने के लिए राजा राममोहन राय ने क्या प्रयास किया?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता भी कहते हैं। उन्होंने भारतीय समाज सुधार आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

  • राजा राममोहन राय की कोशिशों के फलस्वरूप भारतीय समाज में चली आ रही बहुत बड़ी कुरीति सती प्रथा को 1829 में कानून बनाकर ब्रिटिश सरकार ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया था।
  • राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रहमो समाज की स्थापना की जो काफी समय तक भारतीय समाज की कुरीतियों को दूर करने में लगा रहा।
  • राजा राममोहन राय ने पश्चिमी शिक्षा का समर्थन किया क्योंकि उन्होंने खुद भी पश्चिमी शिक्षा ग्रहण की थी तथा उन्होंने युवाओं को भी पश्चिमी शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया।
  • उन्होंने जाति प्रथा, जो कि भारतीय समाज को काफ़ी हद तक खोखला कर चुकी थी, के विरुद्ध भी जमकर आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने स्त्रियों को ऊपर उठाने के काफी प्रयास किए। वह सती प्रथा, बाल विवाह के विरोधी तथा विधवा विवाह और स्त्रियों की शिक्षा के बहुत बड़े समर्थक थे।

प्रश्न 11.
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • सभी जातियों व संप्रदायों के लोगों को दयायुक्त, दानयुक्त तथा मानवीय कार्य करवाना।
  • सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वासों को खत्म करना।
  • स्त्रियों का स्थान उच्च करने के लिए कार्य करना।
  • सब जीवमात्र की सेवा का प्रचार करना।
  • मनुष्य की शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना।
  • आत्मत्यागी तथा व्यावहारिक अध्यात्मवादी साधुओं को रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों के प्रचार तथा प्रसार के लिए तैयार करना।

प्रश्न 12.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हुए?
उत्तर:
भारत में समाज सुधार आंदोलन निम्नलिखित कारणों से शुरू हुए-

  • भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को धर्म के साथ जोड़ा हुआ था।
  • समाज का जातीय आधार पर विभाजन था तथा जाति धर्म के आधार पर बनी हुई थी। जाति के नियमों को तोड़ना पाप माना जाता था।
  • भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा काफ़ी निम्न थी जिस वजह से उनका कोई महत्त्व नहीं रह गया था।
  • भारतीय समाज में अशिक्षा का बोलबाला था।
  • जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि बहुत-सी कुरीतियां समाज में फैली हुई थीं।

इन सब कारणों की वजह से शिक्षित समाज सुधारकों ने समाज सुधार करने की ठानी तथा समाज सुधार आंदोलन शुरू हो गए।

प्रश्न 13.
समाज में फैली कुरीतियों के बारे में गांधी जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
समाज में फैली बहुत-सी बुराइयों या कुरीतियों पर गांधी जी के निम्नलिखित विचार थे-

  • गांधी जी के अनुसार निम्न जातियों को उच्च जातियों के बराबर होना चाहिए। इसलिए उन्होंने निम्न जातियों के लोगों को हरिजन का नाम दिया तथा उनके उत्थान के कई कार्य किए।
  • स्त्रियां भी उनके अनुसार पुरुषों के समान हैं। इसलिए गांधी जी ने स्त्रियों को भी राष्ट्रीय आंदोलन में आमंत्रित किया जिस वजह से लाखों स्त्रियां इस आंदोलन में कूद पड़ी।
  • गांधी जी नशाखोरी के भी विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने 1926 में इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया था।
  • उनके अनुसार जब तक भारतीय समाज से अस्पृश्यता खत्म नहीं हो जाती तब तक आजादी का कोई फायदा नहीं है।
  • गांधी जी दहेज प्रथा के भी विरुद्ध थे। उनके अनुसार दहेज लेने वाले देश के गद्दार हैं।

प्रश्न 14.
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की विशेषताएं क्या थी?
उत्तर:
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की निम्नलिखित विशेषताएं थीं-

  • आजादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की पहली विशेषता यह थी कि हिंदू धर्म को तार्किक रूप से स्थापित करना क्योंकि इसने मुस्लिम शासकों तथा अंग्रेजों के कई थपेड़ों को झेला था।
  • महिलाओं, हरिजनों तथा शोषित वर्गों को ऊपर उठाना ताकि यह वर्ग भी और वर्गों की तरह सर उठाकर जी सकें।
  • ये आंदोलन परंपरागत रूढ़िवादी विचारधाराओं को समाप्त करके उनकी जगह नयी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन जाति व्यवस्था की असमानता की बेड़ियों को तोड़कर समानता तथा भाईचारे की भावना को स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन भारतीय जनता में प्यार, भाईचारे, सहनशीलता, त्याग आदि भावनाओं का विकास करना चाहते थे।

प्रश्न 15.
क्रांतिकारी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
क्रांतिकारी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • क्रांतिकारी आंदोलन प्रचलित पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर उसकी जगह नयी व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन में हिंसात्मक तथा दबाव वाले तरीके अपनाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा तभी चलाए जाते हैं जब सामाजिक बुराइयों को दूर करना हो।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा निरंकुश शासन में तथा उसे खत्म करने के लिए चलाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलनों में हमेशा उग्रता तथा तीव्रता पाई जाती है।

प्रश्न 16.
सुधारवादी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
सुधारवादी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • सुधारवादी आंदोलन प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना चाहता है।
  • सुधारवादी आंदोलनों की गति हमेशा धीमी होती है।
  • सुधारवादी आंदोलनों में हमेशा शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाते हैं तथा यह समाज में शांतिपूर्ण परिवर्तन के लिए चलाए जाते हैं।
  • यह आम तौर पर प्रजातांत्रिक देशों में पाया जाता है।

प्रश्न 17.
सिंह सभा आंदोलन के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सिंह सभा आंदोलन के निम्नलिखित उद्देश्य थे-

  • सिक्ख धर्म में पवित्रता पुनः स्थापित करना।
  • सिक्ख धर्म तथा संस्कृति संबंधी साहित्य का विकास करना।
  • धर्म परिवर्तित सिक्खों को वापिस सिक्ख धर्म में वापस लाना।
  • सिक्खों में प्रचलित अंधविश्वासों तथा कुरीतियों को दूर करना।
  • शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करना।
  • स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार दिलवाना
  • सिक्ख धर्म के प्रचार तैयार कर इसके प्रचार के लिए कार्य करना।

प्रश्न 18.
ब्रहम समाज तथा आर्य समाज में अंतर बताओ।
उत्तर:
ब्रह्म समाज तथा आर्य समाज में अंतर निम्नलिखित हैं-

  • आर्य समाज का एक पवित्र ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है जबकि ब्रह्म समाज का कोई ग्रंथ नहीं है।
  • आर्य समाज में वेदों को ही हर चीज़ का मूल माना गया है जबकि ब्रह्म समाज में ऐसा कुछ नहीं है।
  • आर्य समाजी स्वदेशी भाषा को पढ़ने पर जोर देते थे पर ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई पर जोर देते थे।
  • आर्य समाज ने स्त्री शिक्षा पर विशेष जोर दिया पर राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने पर जोर दिया।
  • आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती वैदिक संस्कृति अपनाने पर जोर देते थे पर राजा राममोहन राय को पश्चिमी संस्कृति अपनाने में कोई परेशानी नहीं थी।

प्रश्न 19.
पश्चिमीकरण के क्या परिणाम हो सकते हैं?
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के परिणाम निम्नलिखित हैं-
(i) संस्थाओं में परिवर्तन-पश्चिमीकरण की वजह से हमारे समाज में चल रही कई प्रकार की संस्थाओं में बहुत से परिवर्तन आ गए हैं। विवाह, परिवार, जाति प्रथा, धर्म इत्यादि संस्थाओं में जो रूढ़िवादिता पहले देखने को मिलती थी वह अब देखने को नहीं मिलती।

(ii) मूल्यों में परिवर्तन-इस वजह से मूल्यों में परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा प्राप्त करके सभी को समानता के अधिकार के बारे में पता चल रहा है। अब हर कोई अपने बारे में पहले सोचता है परिवार के बारे में वह बाद में सोचता है। अब व्यक्तिवादिता तथा रस्मी संबंध बढ़ रहे हैं।

(iii) अब धर्म का उतना महत्त्व नहीं रह गया है जितना पहले था। पहले हर व्यक्ति धर्म से डरता था, सारे धार्मिक काम किया करता था पर अब व्यक्ति धर्म का प्रयोग सिर्फ उतना ही करता है जितनी ज़रूरत होती है। यह सब पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।

(iv) पश्चिमीकरण की वजह में हमारे समाज में शिक्षा का प्रसार हो रहा है। आज हमारे देश की साक्षरता दर 65% से ऊपर है तथा यह आगे भी बढ़ेगी। इसके साथ ही स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त होने लग गई है तथा उनकी आजादी बढ़ गई है।

प्रश्न 20.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के बारे में बताएं।
अथवा
संस्कृतिकरण की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रो० एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिंदू जाति या जनजाति या अन्य समूह अपनी प्रथाओं, कर्म-कांड, विचारधारा तथा जीवन शैली को उच्च समूह की दिशा में बदल लेता है। साधारणतया ऐसे परिवर्तनों के बाद वह जाति स्थानीय समुदाय द्वारा जातीय सोपान में उच्च स्थान का दावा करने लगती है। आम तौर पर ऐसा दावा करने के एक-दो पीढ़ियों के बाद उसे स्वीकृति मिल जाती है।

कभी-कभी कोई जाति ऐसे स्थान का दावा करती है जिसे मानने के लिए पड़ोसी जाति सहमत नहीं होती है।” इस तरह संस्कृतिकरण निम्न जाति या समूह की परंपराओं, कर्म-कांडों, विचारधारा तथा जीवन शैली में उच्च जाति की दिशा में परिवर्तनों की प्रक्रिया है। ऐसे परिवर्तनों के कुछ समय के बाद उक्त समूह जातीय संस्तरण में प्राप्त पारंपरिक स्थान से उच्च स्थान प्राप्ति का दावा करते हैं।

प्रश्न 21.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का अर्थ समझाएं।
अथवा
पश्चिमीकरण क्या है?
अथवा
पश्चिमीकरण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साधारणतया पश्चिमीकरण का अर्थ पश्चिमी देशों के भारत पर प्रभाव से लिया जाता है। पश्चिमी देशों में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी तथा अमेरिका ऐसे राष्ट्र हैं जिनका भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव रहा है। एम० एन० श्रीनिवास ने इसी पश्चिमीकरण की व्याख्या की है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण शब्द को मैंने ब्रिटिश के 150 से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्वरों-प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा मूल्यों आदि में परिवर्तनों से संबंधित है।”

प्रश्न 22.
धर्म-निरपेक्षता का क्या अर्थ है?
अथवा
धर्म-निरपेक्षतावाद पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज 20वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज से एक धर्म निरपेक्ष समाज में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों ने यह महसूस किया कि धर्म निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म-निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखता है तथा किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

प्रश्न 23.
संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण में भेद बताएं।
उत्तर:

संस्कृतिकरणपशिचमीकरण
(i) संस्कृतिकरण में कई प्रकार की चीज़ें खाने-पीने पर प्रतिबंध लगाया जाता है।(i) पश्चिमीकरण में किसी चीज़ के खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है।
(ii) यह एक रूढ़िवादी प्रक्रिया है।(ii) यह एक तार्किक प्रक्रिया है।
(iii) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया स्वदेशी तथा आंतरिक है।(iii) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया विदेशी तथा बाहरी है।
(iv) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पुराने समय से चली आ रही है।(iv) पशिचमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेज़ों के भारत आने के काफ़ी देर बाद शुरू हुई है।
(v) संस्कृतिकरण करने वाली जाति गतिशीलता करके उच्च स्थिति पर पहुंच जाती है।(v) पश्चिमीकरण में जाति की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता।
(vi) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया समाज की कुछ निम्न जातियों तक ही सीमित होती है।(vi) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में सभी जातियां समान रूप से हिस्सा लेती हैं।

प्रश्न 24.
आप पश्चिमी, आधुनिक, पंथनिरपेक्ष तथा सांस्कृतिक प्रकार के व्यवहार को किस रूप में परिभाषित करेंगे क्या आप इन शब्दों के सामान्य अर्थ एवं समाजशास्त्रीय अर्थ में कोई अंतर पाते हैं?
उत्तर:
जब कोई पश्चिम के देशों के विचारों, तौर-तरीकों इत्यादि को अपनाता है तो उसे पश्चिमी कहा जाता है। इस तरह पश्चिमी देशों के प्रभाव को पश्चिमी कहते हैं। आधुनिक वह होता है जिसमें परिवर्तन आ रहा होता है तथा जिसमें अच्छे बुरे, नये पुराने का आभास होता है जो व्यक्ति पश्चिमी देशों की संस्कृति के प्रभाव में आकर कार्य करता है तथा जो प्राचीन परंपराओं को छोड़कर नई परंपराओं को अपनाता है उसे आधुनिक कहते हैं।

पंथ निरपेक्ष को धर्म निरपेक्षता भी कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जो पहले धार्मिक था वह अब धार्मिक नहीं रहा। अब सभी धर्म बराबर हो गए हैं तथा कोई धर्म छोटा बड़ा नहीं है। धर्म-निरपेक्षता में विचारों, परंपराओं, धर्म इत्यादि में विज्ञान या तार्किकता लाने का प्रयास किया जाता है। पंथनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा । धर्म का प्रभाव बढ़ जाता है। इस तरह ही सांस्कृतिक शब्द का अर्थ जीवन के स्वीकृत ढंगों में होने वाले परिवर्तन से है चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो।

अगर हम ध्यान से देखें तो इन शब्दों के समाजशास्त्रीय अर्थ तथा सामान्य अर्थ में कोई विशेष अंतर नहीं है। इसका कारण यह है कि यह संकल्प समाजशास्त्रियों द्वारा दिए गए हैं तथा उन्होंने इनकी व्याख्या जीवन की साधारण दशाओं के अनुसार ही की है।

प्रश्न 25.
आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण के कुछ उदाहरणों के बारे में बताएं जो आप दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में और व्यापक स्तर पर पाते हैं।
उत्तर:
संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-भौतिक तथा अभौतिक। आधुनिकता के साधन भौतिकता के भाग हैं तथा परंपरा अभौतिक संस्कृति का हिस्सा है। हमारे जीवन में आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण की बहुत-से उदाहरण मिल जाएंगे। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति ने टी० वी०, फ्रिज बेचने का शोरूम बनाया है, यह आधुनिकता है, परंतु वह अपनी दुकान को बुरी नजर से बचाने के लिए या तो नींबू मिर्चे या फिर हंडिया (नज़रबट्ट) लटका देता है।

यह आधुनिकता तथा परंपरा का मिश्रण है। हम नई कार लेकर आते हैं परंतु घर जाने की बजाए पहले मंदिर जाते हैं ताकि कार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। आमतौर पर ट्रकों, बसों, ट्रैक्टरों इत्यादि के पीछे लिखा होता है ‘बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला’। यह भी आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण के उदाहरण हैं। हम लोगों ने पश्चिमी समाज के रहन सहन, कपड़े पहनने घर बनाने के ढंग तो अपना लिए हैं, परंतु हमारे विचार अभी भी वहीं पर अटके हुए हैं जहां पर यह 100 साल पहले थे। यह भी आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण की उदाहरणें हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अंग्रेजों के आने के पश्चात् हमने आधुनिकता या फिर कहें कि पश्चिमी समाज के तौर तरीकों, जीवन जीने के ढंगों को अपनाना तो शुरू कर दिया है। परंतु हम अभी भी अपने जाति संबंधी विचारों या धार्मिक विचारों को छोड़ नहीं पाये हैं। हमारे विचार अभी भी प्राचीन समाज में ही अटके पड़े हैं तथा यही कारण है कि आने वाली पीढ़ी तथा जाने वाली पीढ़ी के विचारों में हमेशा ही अंतर रहता है।

प्रश्न 26.
क्या आपको संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव के सबूत दिखते हैं?
उत्तर:
अगर हम संस्कृतिकरण की प्रक्रिया तथा भारतीय समाज की संरचना की तरफ देखें तो हमें लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव में बहुत से सबूत मिल जाएँगे। हम उदाहरण ले सकते हैं प्राचीन समाज की जब स्त्रियों को शिक्षा नहीं प्रदान की जाती थी। उन्हें किसी प्रकार में अधिकार प्राप्त नहीं थे। स्त्रियों के साथ-साथ निम्न जातियों के लोगों को भी शोषण से भरपूर जीवन व्यतीत करना पड़ता था। इन लोगों का जीवन नर्क के समान था।

सदियों से इनके साथ ऐसा व्यवहार होता चला आ रहा था। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय संविधान बना तथा इन सभी शोषित वर्गों तथा अन्य वर्गों को समान अधिकार दिए गए। 1955 के अस्पृश्यता अपराध कानून से निम्न वर्गों की निर्योग्यताएं समाप्त कर दी गई। स्त्रियों की समाज में स्थिति को ऊपर उठाने के लिए कई प्रकार के विधानों का निर्माण किया गया। इनके कल्याण के कई कार्यक्रम चलाए गए।

इन सब प्रयासों के फलस्वरूप स्त्रियों तथा निम्न जातियों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त हुए तथा उन्हें अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने का अवसर प्राप्त हुआ। निम्न जातियों में लोगों ने सामाजिक संस्तरण में अपनी स्थिति को ऊँचा किया। स्त्रियों ने उच्च शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा उसके बाद वह आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर होना शुरू हो गई।

अगर हम आज के समाज पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं। चाहे समाज में लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव के सबूत आज भी मिल जाते हैं, परंतु अब यह लैंगिक भेदभाव धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है तथा स्त्रियाँ अपने आपको ऊँचा उठाने के भरसक प्रयास कर रही हैं ताकि यह लैंगिक भेदभाव खत्म हो जाए।

प्रश्न 27.
उन सभी छोटे-बड़े तरीकों का अवलोकन करें जहां पश्चिमीकरण से हमारा जीवन प्रभावित होता है।
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अगर हम अपने रोजाना के जीवन का अवलोकन करें तो हम देख सकते हैं कि हमारे जीवन का हरेक पक्ष पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है। हम हरेक पक्ष के बारे में अलग-अलग देख सकते हैं। पहले हम धोती-कुर्ता, कुर्ता पायजामा इत्यादि पहना करते थे, परंतु अब पैंट, शर्ट, कोट, पैंट, जीन्स, टी शर्ट, टाई, ट्रैक सूट इत्यादि पहनते हैं जो कि पश्चिमी देन है। पहले हम नीचे बैठ कर साधारण खाना जैसे कि सब्जी, रोटी, दाल इत्यादि खाते थे परंतु अब हम डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं।

खाने के प्रकार भी बदल गए हैं। रोटी का स्थान सैंडविच, बर्गर, पिज्जा, हॉट डाग इत्यादि ने ले लिया है। पहले चाय तथा मदिरा का सेवन होता था, परंतु अब चाय, कॉफी, व्हिसकी, जिन, कोल्ड ड्रिंक, शेक इत्यादि का सेवन होता है। पहले मनोरंजन के साधनों में बड़े बजुर्गों की कहानियाँ होती थीं परंतु अब उनके स्थान पर रेडियो, टेलीविज़न, कम्प्यूटर, इंटरनेट इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। गर्मी में फ्रिज का ठंडा पानी तथा ए० सी० प्रयोग होता है और सर्दी में गीज़र का गर्म पानी तथा गर्म हवा वाला ब्लोअर प्रयोग होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे जीवन का प्रत्येक पक्ष पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

प्रश्न 28.
उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों। क्या नृजातीय नहीं बनना कठिन नहीं है?
उत्तर:
हम भारतीय सस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति के वाकिफ हैं। भारतीय संस्कति धर्म से प्रेरित है तथा पाश्चात्य संस्कृति विज्ञान तथा तर्क से प्रेरित है। भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति एक दूसरे से विपरीत हैं जहां के संस्कार रूढ़ियां, व्यवहार के ढंग, रहन-सहन, खाने-पीने कपड़े पहनने के ढंग एक-दूसरे से बिल्कुल ही अलग हैं।

हम कह सकते हैं कि नृजातीय बनना कठिन है क्योंकि हम दूसरी संस्कृति के भौतिक हिस्से को तो तेजी से अपना लेते हैं परन्तु अभौतिक संस्कृति को अपनाना बहुत मुश्किल होता है जिस कारण हम दूसरी संस्कृति को पूर्णतया अपना नहीं सकते हैं तथा नृजातीय नहीं बन सकते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 29.
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए प्राकृतिक परिवर्तन का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि प्राकृतिक परिवर्तन किसी भी स्थान की सांस्कृति को पूर्णतया परिवर्तित कर सकते हैं। बाढ़, सूखा, भूकम्प, गर्मी, सर्दी इत्यादि किसी भी स्थान की संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इसके साथ ही क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन भी बहुत आवश्यक है।

जब किसी संस्कृति में तेज़ी से परिवर्तन आथा है तो उस संस्कृति के मूल्यों तथा अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन आते हैं। क्रान्तिकारी परिवर्तन राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ही आते हैं जिससे उस समाज की संस्कृति में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार सांस्कृतिक परिवर्तनों के अध्ययन के लिए प्राकृतिक परिवर्तनों तथा क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 30.
आधुनिकीकरण की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:
1. सामाजिक भिन्नता-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के कारण समाज के विभिन्न क्षेत्र काफ़ी Complex हो गए तथा व्यक्तिगत प्रगति भी पाई गई। इस वजह से विभेदीकरण की प्रक्रिया भी तेज हो गई।

2. सामाजिक गतिशीलता-आधुनिकीकरण के द्वारा प्राचीन सामाजिक, आर्थिक तत्त्वों का रूपांतरण हो जाता है, मनुष्यों के आदर्शों की नई कीमतें स्थापित हो जाती हैं तथा गतिशीलता बढ़ जाती है।

प्रश्न 31.
आधुनिकीकरण द्वारा लाए गए दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:
1. धर्म-निरपेक्षता-भारतीय समाज में धर्म-निरपेक्षता का आदर्श स्थापित हुआ। किसी भी धार्मिक समूह का सदस्य देश के ऊंचे से ऊंचे पद को प्राप्त कर सकता है। प्यार, हमदर्दी, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों का विकास समाज में समानता पैदा करता है। यह सब आधुनिकीकरण के कारण है।

2. औद्योगीकरण-औद्योगीकरण की तेजी के द्वारा भारत की बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतें पूरी करनी काफ़ी आसान हो गईं। एक तरफ बड़े पैमाने के उद्योग शुरू हुए तथा दूसरी तरफ घरेलू उद्योग तथा संयुक्त परिवारों का खात्मा हुआ।

प्रश्न 32.
आधुनिकीकरण तथा सामाजिक गतिशीलता का क्या संबंध है?
उत्तर:
सामाजिक गतिशीलता आधुनिक समाजों की मुख्य विशेषता है। शहरी समाज में कार्य की बांट, विशेषीकरण, कार्यों की भिन्नता, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन तथा संचार के साधनों इत्यादि ने सामाजिक गतिशीलता को काफ़ी तेज़ कर दिया। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, बुद्धि के साथ गरीब से अमीर बन जाता है।

जिस कार्य से उसे लाभ प्राप्त होता है वह उस कार्य को करना शुरू कर देता है। कार्य के लिए वह स्थान भी परिवर्तित कर लेता है। इस तरह सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया के द्वारा परंपरावादी कीमतों की जगह नई कीमतों का विकास हुआ। इस तरह निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि आधुनिकीकरण से सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है।

प्रश्न 33.
आधुनिकीकरण से नए वर्गों की स्थापना होती है। कैसे?
उत्तर:
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति को प्रगति करने के कई मौके प्रदान करती है। इस वजह से कई नए वर्गों की स्थापना होती है। समाज में यदि सिर्फ एक ही वर्ग होगा तो वह वर्गहीन समाज कहलाएगा। इसलिए आधुनिक समाज में कई नये वर्ग अस्तित्व में आए हैं।

आधुनिक समाज में सबसे ज्यादा महत्त्व पैसे का होता है। इसलिए लोग जाति के आधार पर नहीं बल्कि राजनीति तथा आर्थिक आधारों पर बंटे हुए होते हैं। वर्गों के आगे आने का कारण यह है कि अलग-अलग व्यक्तियों की योग्यताएं समान नहीं होतीं। मजदूर संघ अपने हितों की प्राप्ति के लिए संघर्ष का रास्ता भी अपना लेते हैं। अलग-अलग कार्यों के लोगों ने तो अलग-अलग अपने संघ बना लिए हैं।

प्रश्न 34.
धर्म-निरपेक्षता में ज़रूरी तत्त्व क्या है?
उत्तर:

  1. धार्मिक विघटन-धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन पाया गया, व्यावहारिक लाभों को महत्ता प्राप्त हुई। अर्थात् किसी भी धार्मिक क्रिया के बिना आजकल लोगों को प्रभावित किया जा सकता है।
  2. तार्किकता-प्रत्येक कार्य तथा समस्या के ऊपर तर्क के आधार पर विचार किया जाता है जिससे प्राचीन अन्ध-विश्वासों में कमी हो जाती है।
  3. विभेदीकरण-समाज के अलग-अलग हिस्से जैसे आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक इत्यादि एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं तथा धर्म का प्रभाव इन सभी क्षेत्रों में कम हो गया है।

प्रश्न 35.
धर्म-निरपेक्षता के दो कारण बताएं।
उत्तर:

  1. आधुनिक शिक्षा-आधुनिक शिक्षा के द्वारा उच्च तथा निम्न की भावना खत्म हुई तथा व्यक्ति को स्थिति भी उसकी योग्यता के आधार पर प्राप्त हुई। लोगों की भावना में भी बढ़ोत्तरी हुई।
  2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास-यातायात तथा संचार के साधनों के विकास के साथ लोग एक दूसरे के नजदीक आए, अस्पृश्यता, उच्च निम्न के भेदभाव में कमी आई तथा बराबरी वाले संबंध स्थापित हुए।

प्रश्न 36.
धर्म-निरपेक्षता द्वारा लाए गए दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:

  1. पवित्र तथा अपवित्र के संकल्प में परिवर्तन-प्राचीन समय से चले आ रहे पवित्रता तथा अपवित्रता के विचारों में कमी आयी। हर तरह का तथा प्रत्येक जाति का खाना पवित्र माना गया। सभी धर्मों में बराबरी के संबंध स्थापित हुए।
  2. संस्कारों में परिवर्तन-हिन्दू धर्म से संबंधित संस्कार जैसे बच्चे के जन्म से सम्बन्धित, विधवा से संबंधित इत्यादि संस्कार खत्म हो गए। व्यक्तिगत योग्यता महत्त्वपूर्ण हो गई।

प्रश्न 37.
धर्म-निरपेक्षता का परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भारत में शुरू से ही संयुक्त परिवार प्रणाली प्रमुख रही है क्योंकि ज्यादातर लोग कृषि के ऊपर निर्भर करते थे जिसमें ज्यादा व्यक्तियों की ज़रूरत होती थी। विकास के पक्ष से भी भारत काफ़ी पीछे था। परंतु धर्म-निरपेक्षता के प्रभाव में प्राचीन परंपराओं के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदला। परिवार के कई तरह के कार्य दूसरी संस्थाओं के पास चले गए। संयुक्त परिवार प्रथा बिल्कुल ही कमज़ोर पड़ गई है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आंदोलनों ने भारतीय समाज में क्या परिवर्तन लाए? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय समाज में 19वीं सदी आते-आते बहुत-सी कुरीतियां फैली हुई थीं। इन कुरीतियों ने भारतीय समाज को बुरी तरह जकड़ा हुआ था। इसी समय भारत के ऊपर अंग्रेज़ कब्जा कर रहे थे। इसके साथ-साथ वह पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी कर रहे थे। बहुत से अमीर भारतीय पश्चिमी शिक्षा ले रहे थे।

शिक्षा लेने के बाद जब वह भारत पहुंचे तो उन्होंने देखा कि भारतीय समाज बहुत-सी कुरीतियों में जकड़ा हुआ है। इसलिए उन्होंने सामाजिक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया ताकि इन कुरीतियों को दूर किया जा सके। इन सामाजिक आंदोलनों की जगह जो परिवर्तन भारतीय समाज में आए उनका वर्णन निम्नलिखित है-

(i) सती-प्रथा का अंत (End of Sati System)-भारत में सती प्रथा सदियों से चली आ रही थी। अगर किसी औरत के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जिंदा ही पति की चिता में जलना पड़ता था। इस अमानवीय प्रथा को ब्राह्मणों ने चलाया हुआ था। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध हो गई तथा उसने 1829 में सती प्रथा विरोधी अधिनियम पास कर दिया तथा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इस तरह सदियों से चली आ रही यह प्रथा खत्म हो गई। यह सब सामाजिक आंदोलन के कारण ही हुआ।

(ii) बाल-विवाह का खात्मा (End of Child Marriage)-बहुत-से कारणों की वजह से भारतीय समाज में बाल विवाह हो रहे थे। पैदा होते ही या 4-5 साल की उम्र में ही बच्चों का विवाह कर दिया जाता था चाहे उन को विवाह का अर्थ पता हो या न हो। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने विवाह की न्यूनतम आयु निश्चित कर दी। 1860 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बना कर विवाह की न्यूनतम आयु 10 वर्ष निश्चित कर दी।

(iii) विधवा-पुनर्विवाह (Widow Remarriage)-सदियों से हमारे समाज में विधवाओं को पुनर्विवाह की इजाजत नहीं थी। विधवाओं की स्थिति बहुत बद्तर थी। उनको किसी पारिवारिक समारोह में भाग लेने की इजाजत नहीं थी। वह घुट-घुट कर मरती रहती थीं। उनको अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार नहीं था।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कोशिशों की वजह से अंग्रेजों ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास किया जिससे विधवाओं को दोबारा विवाह करने की इजाजत मिल गई। इस तरह विधवाओं को कानूनी रूप से विवाह करने तथा अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार मिल गया।

(iv) पर्दा-प्रथा की समाप्ति (End of Purdah System)-मुस्लिमों में बरसों से पर्दा प्रथा चली आ रही थी। औरतों को हमेशा पर्दे के पीछे रहना पड़ता था। वही कहीं आ जा भी नहीं सकती थीं। यह प्रथा धीरे-धीरे सारे भारत में फैल गई। बड़े-बड़े समाज सुधारकों ने पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी। यहां तक कि सर सैय्यद अहमद खान ने भी इसके विरुद्ध आवाज़ उठायी। इस तरह धीरे-धीरे पर्दा प्रथा कम होने लग गई तथा समय आने के साथ यह भी खत्म हो गई।

(v) दहेज-प्रथा में परिवर्तन (Change in Dowry System)-दहेज वह होता है जो विवाह के समय लड़की का पिता अपनी खुशी से लड़के वालों को देता था। धीरे-धीरे इसमें भी बुराइयां आनी शुरू हो गईं। लड़के वाले दहेज मांगने लगे जिस वजह से लड़की वालों को बहुत तकलीफें उठानी पड़ती थीं। इसके विरुद्ध भी आंदोलन चले जिस वजह से ब्रिटिश सरकार ने तथा आज़ादी के बाद 1961 में सरकार ने दहेज लेने या देने को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

(vi) भारतीय समाज में बहुत समय से अस्पृश्यता चली आ रही थी। इसमें छोटी जातियों को स्पर्श भी नहीं किया जाता था। इन सामाजिक आंदोलनों में अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज़ उठी। जिस वजह से इसे गैर-कानूनी घोषित करने के लिए वातावरण तैयार हो गया तथा आजादी के बाद इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।

(vii) भारतीय समाज में अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध था। इन सामाजिक आंदोलनों की वजह से अंतर्जातीय विवाह को बल मिला जिस वजह से आजादी के बाद इसे भी कानूनी मंजूरी मिल गई।

(viii) इन आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज के आधार जाति व्यवस्था पर गहरी चोट लगी। सभी आंदोलनों ने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी जिस वजह से धीरे-धीरे जाति व्यवस्था खत्म होने लगी तथा आज भारत में जाति व्यवस्था अपनी आखिरी कगार पर खड़ी है।

(ix) सभी सामाजिक आंदोलन एक बात पर तो ज़रूर सहमत थे तथा वह थी स्त्री शिक्षा। हमारे समाज में स्त्रियों का स्तर काफ़ी निम्न था। उनको किसी भी चीज़ का अधिकार प्राप्त नहीं था। इन सभी आंदोलनों ने स्त्री शिक्षा के लिए कार्य किए जिस वजह से स्त्री शिक्षा को विशेष बल मिला। आज उसी वजह से स्त्री-पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है।

इन सब चीजों को देखकर यह स्पष्ट है कि भारत में 19वीं सदी से शुरू हुए सामाजिक आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज में बहुत-से परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
भारत में समाज सुधारक आंदोलन चलाने के लिए क्या सहायक हालात थे?
उत्तर:
भारत में सदियों से बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं। भारतीयों को इन कुरीतियों में पिसते-पिसते सदियां हो चली थी पर भारतीय इनमें पिसते ही जा रहे थे तथा इनके खिलाफ कोई आवाज़ भी उठ नहीं रही थी। 18वीं सदी के आखिरी दशकों में अंग्रेजों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की। इसके साथ-साथ उन्होंने भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू किया।

भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा धीरे-धीरे उन्हें समझ आनी शुरू हो गई कि भारतीय समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं वह सब बेफिजूल की हैं जो कि ब्राहमणों ने अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिए चलाई थीं। जब अंग्रेज़ों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की तो उस समय भारत में कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए जिनकी वजह से भारत में समाज सुधारक आंदोलनों की शुरुआत हुई। इन हालातों का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) पश्चिमी शिक्षा (Western Education)-अंग्रेजों के भारत आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू हुआ। पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ उन्हें विज्ञान के बारे में यूरोप की प्रगति के बारे में भी पता चला। इस पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने का यह असर हुआ कि उनको पता चलने लग गया कि उनके समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं उनका कोई अर्थ नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने देश में सामाजिक आंदोलन चलाने शुरू किए और सामाजिक परिवर्तन आने शुरू हो गए।

(ii) यातायात के साधनों का विकास (Development of Means of Transport)-अंग्रेजों ने भारत में चाहे अपने फायदे के लिए यातायात के साधनों का विकास किया पर उससे भारतीयों को भी बहुत फायदा हुआ। भारतीय इन यातायात के साधनों की वजह से एक-दूसरे के आगे आए तथा एक-दूसरे से मिलने लगे।

पश्चिमी शिक्षा ग्रहण चुके भारतीय भी देश के कोने-कोने पहुंचे तथा उन्होंने लोगों को समझाया कि यह सब प्रथाएं उनके फायदे के लिए नहीं बल्कि नुकसान के लिए हैं जिससे लोगों को यह समझ आने लग गया। इस तरह यातायात के साधनों के विकास के साथ भी आंदोलनों के लिए हालात विकसित हुए।

(iii) भारतीय प्रेस की शुरुआत (Indian Press)-अंग्रेजों के आने के बाद भारत में प्रेस की शुरुआत हुई। आंदोलनों के संचालकों ने लोगों को समझाने के साथ छोटे-छोटे अखबार तथा पत्रिकाएं निकालनी भी शुरू की ताकि भारतीय इनको पढ़ कर समझ सकें कि ये बुराइयां हमारे समाज में कितनी गहरी पैठ बना चुकी हैं तथा इनको यहां से निकालना बहुत ज़रूरी है। इस तरह प्रेस की शुरुआत ने भारतीयों को यह समझा दिया कि इन कुरीतियों को दूर करना कितना ज़रूरी है।

(iv) मिशनरियों का बढ़ता प्रभाव (Increasing Effect of Missionaries)-जब से अंग्रेज़ भारत में आए रियों को भी सहायता देनी शरू की। अंग्रेज़ों ने इनको आर्थिक सहायता के साथ राजनीतिक सहायता भी देनी शुरू की। इन मिशनरियों का कार्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था पर इनका प्रचार करने का तरीका अलग था। वह पहले समाज कल्याण का कार्य करते थे। लोगों की तकलीफ दूर करते थे फिर इनमें ईसाई धर्म का प्रचार करते थे।

धीरे-धीरे लोग ईसाई धर्म को अपनाने लग गए। इससे समाज सुधारकों को बड़ी निराशा हुई क्योंकि भारतीय लोग अपना धर्म छोड़ कर विदेशी धर्म अपनाने लग गए थे। इन समाज सुधारकों ने भारतीयों को मिशनरियों के प्रभाव से बचाने के लिए समाज सुधारक आंदोलन चलाने शुरू कर दिए। इस तरह ईसाई मिशनरियों के प्रभाव की वजह से भी यह आंदोलन शुरू हो गए।

कुप्रथाएं (So many ills in Indian Society)-जिस समय भारत में सुधार आंदोलन शुरू हुए उस समय भारतीय समाज में बहुत-सी कुप्रथाएं फैली हुई थीं। सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, दहेज प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि कुप्रथाएं तथा इनके साथ जुड़े हुए बहुत से अंधविश्वास भी भारतीय समाज में फैले हुए थे। लोग भी इन सब से तंग आ चुके थे। जब यह आंदोलन शुरू हुए तो लोगों ने इन सुधारों को हाथों हाथ लिया जिस वजह से इन आंदोलनों को अच्छे हालात मिल गए तथा यह समाज सुधार के आंदोलन सफल हो गए।

प्रश्न 3.
भारतीय समाज सुधार आंदोलनों के नेताओं के बारे में आप क्या जानते हैं? उनका वर्णन करें।
उत्तर:
वैसे तो भारत में समाज सुधार के बहुत से आंदोलन चले। इन आंदोलनों में बहुत से महान् व्यक्तियों ने भाग लिया। इन महान व्यक्तियों में से कुछ प्रमुख सुधारकों का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy)-राजा राममोहन राय का नाम समाज सुधारकों में सबसे अग्रणी है। वह आधुनिक भारत में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने समाज सुधार के कार्य प्रारम्भ किए। इसलिए आधुनिक भारत का पिता भी कहते हैं। उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का गठन किया था। इसमें उन्होंने दनिया के अलग-अलग धर्मों को छोड़कर दुनिया के एक धर्म की स्थापना का विचार पेश किया। उस समय भारत में अमानवीय सती प्रथा प्रचलित थी।

उन्होंने अंग्रेजों को इस प्रथा के बारे में अवगत करवाया तथा उन्हीं के यत्नों से 1829 में सती प्रथा विरोधी कानून पास किया। इसमें सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। इस तरह यह दर्दनाक प्रथा खत्म हो गई। उन्होंने मूर्ति पूजा तथा धार्मिक अंध-विश्वासों के कारण इनके खिलाफ आवाज़ उठाई।

उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ जम कर आवाज़ उठाई। अपने अंतिम वर्षों में वह इंग्लैंड चले गए जहाँ 1833 में उनकी मृत्यु हो गई। भारतीय समाज के लिए उनका दिया योगदान अविस्मरणीय है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता।

(ii) देवेंद्रनाथ ठाकुर (Devendera Nath Thakur)-राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ऐसा लगा कि ब्रह्म समाज खत्म हो जाएगा पर 1845 में ब्रह्म समाज का भार देवेंद्रनाथ ठाकुर ने अपने हाथों में ले लिया तथा वह इसके लिए प्रेरणा स्रोत बन गए। 1839 में उन्होंने तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना की तथा इस सभा का लक्ष्य उन्होंने सत्य की शिक्षा देना रखा।

वह तत्त्वबोधिनी पत्रिका के संपादक भी रहे। 1847 में इस सभा ने ऋग्वेद का अनुवाद भी किया। 1847 में ही वह बनारस गए तथा उन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त करके ब्रह्म धर्म नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई। उन्होंने राजा राममोहन राय की तरह विधवा विवाह तथा स्त्री शिक्षा पर काफ़ी ज़ोर दिर इनकी मृत्यु हो गई थी।

(iii) केशवचंद्र सेन (Keshav Chandra Sen) केशवचंद्र सेन ने 1861 में ब्रह्म समाज के कार्यों में ध्यान देना शुरू किया तथा संगीत सभा की स्थापना की। आपने 1861 में Indian Mirror नामक पत्रिका प्रकाशित की। इस पत्रिका की मदद से ही उन्होंने अपने समाज सुधार के आंदोलन को आगे बढ़ाया।

आपने 1863 में ‘वामा बोधिनी’ नामक पत्रिका प्रकाशित की जिसमें उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए तथा अंतर्जातीय विवाह का प्रचार किया। 1868 में आपने ब्रह्म समाज के संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए ‘भारतवर्ष ब्रहम समाज’ की स्थापना की। 1884 में आपका देहांत हो गया।

(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati)-आपका जन्म सन् 1824 में हुआ था। आपका पहला या असली नाम मूलशंकर था। आपने 24 वर्ष की उम्र में ही संन्यास ले लिया तथा अलग-अलग शहरों में घूमकर अपने उपदेशों का प्रचार किया।

1871 से 1873 आप गंगा किनारे घूमते रहे तथा स्कूलों का प्रब करते रहे। 1874 में आपने मूर्ति पूजा का सख्त विरोध किया तथा 1875 में उन्होंने बंबई में आर्य समाज की स्थापना की। 1877 में आपने पंजाब में जगह-जगह आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने जाति प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर रोक, धर्म परिवर्तन को रोकने के विरुद्ध आवाज़ उठाई।

आपके द्वारा दयानंद वैदिक संस्थाओं की स्थापना की गई तथा इसमें सिर्फ भारतीय ही पढ़ा सकते थे। इन संस्थाओं में नैतिक शिक्षा के महत्त्व पर जोर दिया गया। आपने जाति प्रथा का विरोध किया। आपके यत्नों से ही हिंदू धर्म छोड़ चुके लोग वापस हिंदू धर्म को अपनाने लग गए। आपके यत्नों से ही अंतर्जातीय विवाह शुरू हो गए। 1883 में आपका निधन हो गया।

(v) स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)-आप स्वामी रामकृष्ण के परम शिष्य थे। आपने 1883 में शिकागो में हई Parliament of Religion में भाग लिया। वहां पर आपने जो अपने विचार प्रस्तुत किए उनसे उनकी काफ़ी प्रसिद्धि हो गई। आपने उस सभा में वेदों की शिक्षा संबंधी बात की तथा आपकी बातें सुनने के पश्चात् लोगों को लगने लग गया कि उस सभा में आप ही श्रेष्ठ व्यक्ति हैं।

आप कहते थे कि ईश्वर एक है तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक जीव में ईश्वर बसता है। जब मनुष्य अपने आप पर काबू पा लेता है तो वह पूर्ण हो जाता है तथा भगवान् को प्राप्त कर लेता है। सारा संसार धर्म के ऊपर तथा धर्म के अनुसार ही चलता है। आपने राजा राममोहन राय की तरह विश्व धर्म की बात की जिसने भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों को भी प्रभावित किया। आपके विचारों से प्रभावित होकर आपके शिष्यों की गिनती बढ़ती चली गई।

आपने अस्पृश्यता तथा जाति प्रथा के विरुद्ध जम कर प्रचार किया तथा आप चाहते थे कि अलग-अलग धर्मों तथा जातियों में एकता बनी रहे। आपने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की ताकि धार्मिक भेदभाव को समाप्त किया जा सके। इस मिशन की मदद से आपने शिक्षा का प्रसार, बाढ़ पीड़ितों की सहायता, पशु पालन, अनाथालय, स्कूलों कॉलेजों की स्थापना की तथा देशवासियों को पुनर्जीवित करने तथा जाति-पाति के भेदभाव मिटाने के प्रयास किए। आपकी मृत्यु 1902 में हो गई थी।

प्रश्न 4.
भारत में महिलाओं में चले सुधार आंदोलन का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय समाज में समय-समय पर अनेक ऐसे आंदोलन शुरू हुए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य स्त्रियों की दशा में सुधार करना रहा है। भारतीय समाज एक पुरुष-प्रधान समाज है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने अपने शोषण, उत्पीड़न इत्यादि के लिए अपनी स्थिति में सुधार के लिए आवाज़ उठाई है। पारंपरिक समय से ही महिलाएं बाल-विवाह, सती–प्रथा, विधवा विवाह पर रोक, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती आई हैं।

महिलाओं को इन सब शोषणात्मक कुप्रथाओं से छुटकारा दिलवाने के देश के समाज सुधारकों ने समय-समय पर आंदोलन चलाये हैं। इन आंदोलनों में समाज सुधारक तथा उनके द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय रहे हैं। इन आंदोलनों की शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही हो गई थी। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, ऐनी बेसेंट इत्यादि का नाम इन समाज सुधारकों में अग्रगण्य है।

सन् 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना तथा 1829 में सती प्रथा अधिनियम का बनाया जाना उन्हीं का प्रयास रहा है। स्त्रियों के शोषण के रूप में पाये जाने वाले बाल-विवाह पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रचलित कराने का जनमत भी उन्हीं का अथक प्रयास रहा है। इसी तरह महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र, विदयासागर जी ने भी कई ऐसे ही प्रयास किये जिनका प्रभाव महिलाओं के जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ा है।

महर्षि कर्वे स्त्री-शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के समर्थक रहे । इसी प्रकार केशवचंद्र सेन एवं ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों के अंतर्गत ही 1872 में ‘विशेष विवाह अधिनियम’ तथा 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बना। इन अधिनियमों के आधार पर ही विधवा पुनर्विवाह एवं अंतर्जातीय विवाह को मान्यता दी गई। इनके साथ ही कई महिला संगठनों ने भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए कई आंदोलन शुरू किये।

महिला आंदोलनकारियों में ऐनी बेसेंट, मैडम कामा, रामाबाई रानाडे, मारग्रेट नोबल आदि की भूमिका प्रमुख रही है। भारतीय समाज में महिलाओं को संगठित करने तथा उनमें अधिकारों के प्रति साहस दिखा सकने का कार्य अहिल्याबाई व लक्ष्मीबाई ने प्रारंभ से किया था। भारत में कर्नाटक में पंडिता रामाबाई ने 1878 में स्वतंत्रता से पूर्व पहला आंदोलन शुरू किया था तथा सरोज नलिनी की भी अहम् भूमिका रही है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व प्रचलित इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही अनेक ऐसे अधिनियम पास किये गए जिनका महिलाओं की स्थिा स्थति सधार में योगदान रहा है। इसी प्रयास के आधार पर स्वतंत्रता पश्चात अनेक अधिनियम जिनमें 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 का हिंदू उत्तराधिकार का अधिनियम एवं 1961 का दहेज निरोधक अधिनियम प्रमुख रहे हैं।

इन्हीं अधिनियमों के तहत स्त्री-पुरुष को विवाह के संबंध में समान अधिकार दिये गए तथा स्त्रियों को पृथक्करण, विवाह-विच्छेद एवं विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय समाज में समय-समय पर और भी ऐसे कई आंदोलन चलाए गए हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य स्त्रियों को शोषण का शिकार होने से बचाना रहा है।

वर्तमान समय में स्त्री-पुरुष के समान स्थान व अधिकार पाने के लिए कई आंदोलनों के माध्यम से एक लंबा रास्ता तय करके ही पहुंच पाई है। समय-समय पर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा महिला संगठनों के प्रयासों के आधार पर ही वर्तमान महिला जागृत हो पाई है। इन सब प्रथाओं के परिणामस्वरूप ही 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया गया।

इसके साथ ही विभिन्न राज्यों में महिला विकास निगम [Women Development Council (WDC)] का निर्माण किया गया है जिसका उद्देश्य महिलाओं को तकनीकी सलाह देना तथा बैंक या अन्य संस्थाओं से ऋण इत्यादि दिलवाना है। वर्तमान समय में अनेक महिलाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। आज स्त्री सभी वह कार्य कर रही है जो कि एक पुरुष करता है।

महिलाओं के अध्ययन के आधार पर भी वह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में महिला की परिस्थिति, परिवार में भूमिका, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं कानूनी भागीदारी में काफ़ी परिवर्तन आया है। आज महिला स्वतंत्र रूप से किसी भी आंदोलन, संस्था एवं संगठन से अपने आप को जोड़ सकती है। महिलाओं की विचारधारा में इस प्रकार के परिवर्तन अनेक महिला स्थिति सुधारक आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही संभव हो पाये हैं।

आज महिला पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती हैं तथा इसके साथ ही महिला सभाओं एवं गोष्ठियों का भी संचालन किया जा रहा है जिसका प्रभाव महिला की स्थिति पर पूर्ण रूप से सकारात्मक पड़ रहा है। विभिन्न महिला आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की स्थिति सुधार में ही भूमिका निभाई है, बल्कि इन आंदोलनों के आधार पर समाज में अनेक परिवर्तन भी आये हैं, अतः महिला आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का भी एक उपागम रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
ब्रह्म समाज के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके उद्देश्यों एवं उपलब्धियों का वर्णन करो।
अथवा
ब्रह्म समाज के प्रमुख उद्देश्यों एवं उपलब्धियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ब्रह्म समाज (Brahmo Smaj)-ब्रह्म समाज की स्थापना आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण के जनक राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त, 1828 ई० में की। ब्रह्म समाज का शाब्दिक अर्थ है “एक ईश्वर समाज” यह समाज मूल रूप से ब्राह्मणों का समाज था जिसमें अन्य जातियों के लोग नहीं जा सकते थे। लेकिन इसके कार्यकाल में निरंतर वृधि होती गई जिसके कारण ब्रह्म समाज के कार्यक्रमों में अन्य जातियों के लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लेना आरंभ कर दिया।

राजा राममोहन राय के पश्चात् देवेंद्र नाथ टैगोर तथा केशवचंद्र सेन आदि समाज सुधारकों ने ब्रह्म समाज को सशक्त नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने देश के विभिन्न भागों में लघु पुस्तिकाओं, पत्रिकाओं, सभाओं एवं गोष्ठियों के माध्यम से इसका प्रचार एवं प्रसार किया। परिणामस्वरूप पहले 1866 तक केवल 54 ब्रह्म समाज स्थापित हुए थे जिनकी संख्या 1911 में बढ़कर 184 हो गई।

उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में भारतीय समाज में अनेक बुराइयां, कुरीतियां, अंध-विश्वास एवं कुसंस्कार प्रचलित थे। बाल-विवाह की संख्या अधिक थी। विधवा विवाह पर रोक थी। सती प्रथा प्रचलित थी, जिसके कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति काफ़ी निम्न व कमज़ोर थी। जाति प्रथा, छुआछूत, जाति के आधार पर उच्च जातियों को विशेषाधिकार तथा निम्न जाति व वर्गों के लोगों को कम ही सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने दिया जाता था।

यह उस समय भारतीय समाज की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा थी। विभिन्न वर्गों के सदस्यों को इन कुरीतियों से छुटकारा दिलवाना आवश्यक था। ब्रह्म समाज की स्थापना तथा इसके सिद्धांतों को कार्यांवित कर निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति इसी दिशा में एक बड़ा कदम था।

ब्रह्म समाज के उद्देश्य (Objectives of Brahmo Smaj)-ब्रह्म समाज के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • नारी वर्ग का उत्थान करना।
  • बाल विवाह एवं बहु-विवाह को समाप्त करना।
  • सती प्रथा का अंत करना।
  • पर्दा प्रथा का अंत करना।
  • नारी शिक्षा तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करना।
  • अस्पृश्यता तथा जाति प्रथा के अन्य दोषों को समाप्त करना।
  • ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन करना।
  • मानवतावाद को बढ़ावा देना।
  • सेना तथा न्यायपालिका का भारतीयकरण करने के लिए कार्य करना।

ब्रहम समाज के कार्य एवं उपलब्धियां (Works and Achievements of Brahmo Smaj) विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ब्रह्म समाजी मुख्यतः तीन स्तरों पर अपनी गतिविधियां संचालित करते थे। प्रथम, देश के विभिन्न भागों में ब्रह्म समाजों की स्थापना कर, उनमें संगठन के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के ऊपर विचार करना, द्वितीय, अपने सिद्धांतों का लोगों में प्रचार एवं प्रसार करते थे।

तृतीय, विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ब्रिटिश सरकार से सहयोग पाते थे। ब्रह्म समाजी के लोग विभिन्न स्थानों पर बैठकें करते थे। सम्मेलनों व संगोष्ठियों का आयोजन करते थे। अपने सिद्धांतों को जन-जन में पहुँचाने के लिए लघु पुस्तिकाएं छपवा कर उनमें बांटते थे। अपने सुधारवादी कार्यों के बारे में अधिक-से-अधिक जागरूकता का विकास करते थे। सन् 1829 में अपने अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार से ‘सती प्रथा’ के विरुद्ध कानून पास करवाया।

इसी तरह 1872 ई० में बहु विवाह प्रथा पर भी प्रतिबंध लगवाने हेतु कानून पारित करवाया। इसी तरह बाल-विवाह व पर्दा प्रथा को कम करने के लिए सफल प्रयास करवाया। लोगों में जातीय आधार पर भेदभाव कम करने के प्रति जनसमर्थन को बढ़ावा दिया। नारी शिक्षा हेतु ब्रह्म समाज ने सराहनीय कार्य किये। इसी तरह लोगों को भाईचारे का संदेश दिया। लोगों को आध्यात्मिक विकास हेतु प्रेरणा दी। इसी तरह भारतीय समाज में पाई जाने वाली कई सामाजिक बुराइयों को कम करने में ब्रह्म समाज का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 6.
आर्य समाज के बारे में आप क्या जानते हैं? इसकी उपलब्धियों का वर्णन करो।
अथवा
आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्यों एवं उपलब्धियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आर्य समाज (Arya Smaj)-सन् 1875 ई० में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना मुंबई में की। इस समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज में प्रचलित रूढ़िवादिता, आडंबरों, पाखंडों तथा अज्ञानता को दूर करना था। 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज विशेषतः हिंदू समाज में कई प्रकार की बुराइयां विकसित हो गई। उस समय धार्मिक क्षेत्रों में अनेक देवताओं की पूजा की जाती थी।

इस तरह अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा करने वाले लोग आपस में नफरत व द्वेष रखते थे। ईसाई मिशनरी हिंदुओं में धर्म परिवर्तन करवाकर उन्हें ईसाई बनाने में लगी थी। जाति व्यवस्था भी काफ़ी जटिल हो गई थी। समाज सहस्रों जातियों एवं उपजातियों में विभाजित था। जातीय आधार पर विभिन्न वर्गों में भेदभाव बढ़ गया था। स्त्रियों से संबंधित अनेक कुरीतियां जैसे सती प्रथा, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, नवजात लड़कियों की हत्या तथा दहेज के कारण महिलाओं की काफ़ी निम्न अवस्था आदि प्रचलित थीं। इन समस्याओं का निराकरण आवश्यक था।

आर्य समाज के कार्य व उपलब्धियां (Works and Achievements of Arya Smaj)-आर्य समाज ने अपनी स्थापना के 125 वर्षों के भीतर भारतीय समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कई सुधारवादी कार्य किये। समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को कम करने के लिए कार्य किये। इसके लिए ‘कन्या विद्यालयों’ एवं ‘कन्या महाविद्यालयों’ की स्थापना करवाई, ताकि उनमें ज्ञानरूपी प्रकाश जलाकर अज्ञानता रूपी अंधेरे को दूर किया जा सके।

विधवाओं की स्थिति सुधारने हेतु कई ‘विधवा ग्रह’ (Widow Home) खोले गये, ताकि वहाँ पर विधवाएं जिंदगी व्यतीत कर सके। वेदों के अनुसार हवन, यज्ञ करने और करवाने, वेदों को सुनने एवं सुनाने पर बल दिया गया। जाति के आधार पर असमानता का विरोध किया गया। धार्मिक क्षेत्रों में वेदों की वापसी (Back to Vedas) का नारा देकर लोगों को वेदों की महत्ता के बारे में बताया गया।

अनाथों के लिये ‘अनाथालय’ खोले: ऐग्लो वैदिक (Dayanand Anglo Vedic-D.A.V.) पाठशालाएं एवं महाविद्यालय (Universities) की स्थापना की गई। उपरोक्त शिक्षा क्षेत्र में आर्य समाज ने सराहनीय कार्य किये। इससे न केवल देश की साक्षरता दर में बढ़ोत्तरी च शिक्षा प्राप्त करके हज़ारों नवयुवक देश की सेवा के लिये तैयार हो गये। स्वामी दयानंद सरस्वती देश की स्वतंत्रता के पक्षधर थे, इसलिए उन्होंने नारा दिया “भारत, भारतवासियों के लिए है।”

प्रश्न 7.
प्रार्थना समाज के उद्देश्यों तथा उपलब्धियों का वर्णन करो।
उत्तर:
प्रार्थना समाज (Prathna Smaj)-सन् 1867 ई० में मुंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई, यह मूलतः ब्रह्म समाज की एक शाखा ही थी जिसकी स्थापना केशवचंद्र की सहायता से (प्रेरणा से) गोविंद रानाडे के नेतृत्व में की गई। महाराष्ट्र में ब्रह्म समाज के अनेक नेताओं ने प्रार्थना समाज की नींव डालने व इसे निश्चित स्वरूप करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रार्थना समाज के अनुयायी इसे हिंदू धर्म में ही एक आंदोलन मानते थे जिस पर अनेक संतों जैसे ‘तुकाराम’, ‘नामदेव’ व ‘रामदास’ का गहरा प्रभाव था।

प्रार्थना समाज के उद्देश्य (Objectives of Prarthna Smaj):

  • प्रार्थना समाज की शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार करना।
  • स्त्रियों की स्थिति में सुधार करना।
  • जातीय भेदों को दूर करना।
  • अनाथों की स्थिति में सुधार करना।
  • शिक्षा को प्रोत्साहन करना।

प्रार्थना समाज के कार्य व उपलब्धियां-(Works and Achievements of Prarthna Smaj):
प्रार्थना समाज के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने भारतीय समाज के पिछड़े वर्गों को सुधारने तथा कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की गई है। इसके विभिन्न क्षेत्रों में किये कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

  • महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए ‘आर्य महिला समाज’ की स्थापना की। विधवा आश्रम खोले, कन्या पाठशालाओं की स्थापना की।
  • विधवा पुनर्विवाह व अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देने के लिए कार्य किये।
  • निम्न जाति के लोगों की सामाजिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से दलित वर्ग मिशन की स्थापना की।
  • अनाथों एवं बेसहारा बच्चों की देखभाल के लिए पंठरपुर में अनाथालय खोले गये। बाल विवाह को कम करने के लिये निरंतर प्रयास किये गये हैं।
  • मुंबई में रात्रि-विद्यालय (Night School) खोला गया ताकि मजदूर वर्ग शिक्षा ग्रहण कर सके। इस तरह प्रार्थना समाज ने अंतर्जातीय भेदभाव दूर करने के लिये अंतर्जातीय खान-पान को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 8.
राम कृष्ण मिशन के उद्देश्यों तथा कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
रामकृष्ण मिशन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
राम कृष्ण मिशन (Ram Krishna Mission)-सन् 1897 ई० में स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के निकट वैलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण परमहंस के परम भक्त एवं प्रिय शिष्य थे। विवेकानंद ने अपने गुरु के आध्यात्मिक ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए इस मिशन की स्थापना की। कुशाग्र बुद्धि, मन-मोहक व्यक्तित्व, मधुर वाणी तथा धारा प्रवाह वक्ता दयानंद ने देश व विदेश में इस मिशन की शाखाओं की स्थापना की।

कुशल प्रचारक व संगठक (Organisor) होने के कारण उन्होंने सन् 1902 में अपनी मृत्यु से पहले ही इस मिशन की नींव काफ़ी मज़बूत कर दी थी। उनके पश्चात् भी मिशन के कार्यकर्ताओं ने इसके प्रचार व प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि सन् 1961 में इस मिशन की भारत में 102 शाखाएं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, सिंगापुर, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यनमार (बर्मा), फिजी तथा मोरिशस आदि विश्व के विभिन्न देशों में 36 शाखाएँ थीं।

राम कृष्ण मिशन के उद्देश्य (Objectives of Ram Krishna Mission)-इस मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • आत्मत्यागी तथा व्यावहारिक अध्यात्मवादी साधुओं को रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों के प्रचार व प्रसार के लिये तैयार करना।
  • सभी जाति व संप्रदायों के लोगों से दयायुक्त, दानयुक्त तथा मानवीय कार्य करवाना।
  • सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वासों को समाप्त करना।
  • स्त्रियों का स्थान उच्च करने के लिए कार्य करना।
  • सेवा के सिद्धांत (सब जीवन मात्र की सेवा) का प्रचार करना।
  • मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना।

राम कृष्ण मिशन के कार्य, उपलब्धियां एवं योगदान (Works, Achievements and Contribution of Ram Krishna Mission)-राम कृष्ण मिशन के कार्यों एवं समाज सुधार में इसके योगदान का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

  • शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जगह-जगह पाठशालाएं एवं महाविद्यालय खोले गये। सन् 1961 में मिशन द्वारा खोले गये शैक्षणिक संस्थाओं में लगभग 65 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
  • स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए अनेक अस्पताल खोले। सन् 1961 ई० में मिशन द्वारा संचालित बारह शैयायुक्त अस्पताल तथा 68 बाह्य रोगी (Outdoor Patient) अस्पताल थे।
  • मिशन के सिद्धांतों के प्रचार के लिये अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में लगभग एक दर्जन पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।
  • मिशन द्वारा सभाओं, संगोष्ठियों, लेखों तथा पत्रिकाओं के माध्यम से बाल-विवाह, बाल हत्या, पर्दा प्रथा, जातीय आधार पर भेदभाव तथा स्त्री-पुरुष में असमानता का कड़ा विरोध किया जाता है। फलतः लोगों में समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, आत्मत्याग, आत्मसम्मान, परोपकार आदि भावनाओं का संचार हुआ।
  • लोगों में अंधविश्वासों, कुरीतियों, पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण के विरुद्ध जागृति आई। देशवासियों में देश प्रेम व राष्ट्रवाद की भावना भी विकसित हुई।
  • मिशन ने समय-समय पर बाढ़ पीड़ितों, भूकंप प्रभावित तथा सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में लाखों लोगों की सहायता की।

राम कृष्ण मिशन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के बारे में डॉ० के० के० दत्ता कहते हैं, “राम कृष्ण मिश आध्यात्मिक उत्थान, आत्मा की जागृति और आधुनिक भारत के सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, इस संसार को मानव समाज में धर्म के सही महत्त्व का ज्ञान प्राप्त हुआ तथा विभिन्न देशों को प्यार, स्वतंत्रता तथा एक सूर का संदेश मिला।”

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण के भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
पश्चिमीकरण के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या करें।
अथवा
पश्चिमीकरण के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण ने भारतवर्ष को काफ़ी ज्यादा प्रभावित किया है। भारत का शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जो पश्चिमीकरण से प्रभावित न हुआ होगा। इस तरह भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. परिवार पर प्रभाव-पारंपरिक रूप से भारत में संयुक्त परिवार पाए जाते रहे हैं जिनमें तीन-चार पीढ़ियां इकट्ठी रहती थीं। पश्चिमीकरण से भारत में व्यक्तिवाद, भौतिकवाद तथा तर्कवाद को बढ़ावा मिला। इससे परिवार में समूहवाद में कमी आई। परिवार के सदस्यों में बलिदान तथा त्याग की भावना कम हुई। शिक्षित युवाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना बढ़ी।

उन्होंने कर्ता के आदेशों को मानना कम किया। महिलाओं में भी अपने लिए पहचान बनाए रखने के लिए चेतना बढ़ी है। महिलाओं तथा युवाओं में आई चेतना की वजह से संयुक्त परिवार तेज़ गति से टूटने लगे। इनकी जगह केंद्रीय परिवार लने लगे। इस तरह पश्चिमीकरण से परिवार व्यवस्था पर संरचनात्मक तथा प्रकार्यात्मक प्रभाव पड़े। परिवार के सदस्यों के संबंधों के स्वरूप, अधिकारों तथा दायित्व में परिवर्तन हुआ।

2. विवाह पर प्रभाव-इंग्लैंड के निवासियों के विचारों, मूल्यों और आदर्शों ने भारतीय विवाह प्रणाली को काफ़ी प्रभावित किया। इनके भारत आने से पहले अंतर्विवाही प्रथा, विधवा विवाह की मनाही, बाल विवाह, कुलीन विवाह तथा कन्यादान का प्रथा थी। विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता था। विवाह में सपिंड, सगोत्र व सप्रवर के नियमों का पालन होता था तथा तलाक नाम की कोई चीज़ नहीं थी।

परंतु पश्चिम के विचारों, मूल्यों तथा आदर्शों की वजह से विवाह के कई नियमों में परिवर्तन हुए। बाल विवाह पर रोक लगाना तथा देरी से विवाह करना, विधवाओं को दोबारा विवाह की छूट, प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ा तथा कोर्ट मैरिज होने लगी, तलाकों की गिनती में बढ़ोत्तरी हुई तथा कुलीन तथा बहुविवाह की संख्या में कमी आई। एक विवाह को ही ठीक माना जाने लगा। पश्चिमीकरण के कारण विवाह अब एक समझौता मात्र बन कर रह गया है। प्रेम विवाह तथा कोर्ट मैरिज के बढ़ने के साथ-साथ तलाकों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

3. नातेदारी पर प्रभाव (Impact on Kinship)-भारतीय समाज में नातेदारी की मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका रहती है। मगर पश्चिमीकरण के कारण व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, गतिशीलता तथा समय धन है, आदि अवधारणाओं का भारतीय संस्कृति में तीव्र विकास हआ। इससे ‘विवाह मलक’ तथा ‘रक्त मूलक’ (Affinal & Consaguineoun) दोनों प्रकार की नातेदारियों पर प्रभाव पड़ा।

द्वितीयक एवं तृतीयक (Secondary & Tertiary) संबंध शिथिल पड़ने लगे।प्रेम विवाहों तथा कोर्ट विवाहों में विवाहमूलक नेतादारी कमज़ोर पड़ने लगी। विवाह, जन्म दिवस तथा उत्सवों पर नातेदारी का स्थान मित्र मंडली एवं सहकर्मी लेने लगे। पश्चिमी समाजों में नातेदारी को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।

इसलिए अनेक समानांतर संबंधियों को एक ही शब्द से संबोधित किया जाता है। इन शब्दों का भारतीय समाज में बढ़ता प्रचलन नातेदारी के महत्त्व में परिवर्तनों का द्योतक है, जैसे चाचा, ताया, फूफा, मौसा तथा मामा पांच अलग-अलग संबंधी हैं, जिनके लिये अंकल (Uncle) शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है। इस तरह चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई-बहिनों को (Cousin) कहा जाने लगा है।

4. जाति प्रथा पर प्रभाव (Impact on Caste System) सहस्त्रों वर्षों से भारतीय समाज की प्रमुख संस्था, जाति में पश्चिमीकरण के कारण अनेक परिवर्तन हुए। अंग्रेजों ने भारत में आने के बाद बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये और यातायात तथा संचार के साधनों जैसे-बस, रेल, रिक्शा, ट्राम इत्यादि का विकास व प्रसार किया। इसके साथ-साथ भारतीयों को डाक, तार, टेलीविज़न, अखबारों, प्रेस, सड़कों व वायुयान आदि सुविधाओं को परिचित कराया।

बड़े साथ उद्योगों की स्थापना की गई। इनके कारण विभिन्न जातियों के लोग एक स्थान पर उद्योग में कार्य करने लग गए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए आधुनिक यातायात के साधनों का प्रयोग होने लगा। इससे उच्चता व निम्नता की भावना में भी कमी आने लगी। एक जाति के सदस्य दूसरी जाति के व्यवसाय को अपनाने लग गए। सेवाओं के बदले अनाज के स्थान पर पैसे दिये जाने लगे और पैसे के आधार पर दूसरी जाति के सदस्यों की सेवाएं ली जाने लगीं।

एक साथ काम करने के कारण खान-पान संबंधी जातीय प्रतिबंध भी कमज़ोर पड़ने लगे। भारतीय समाज में जातीय आधार पर पंचायतों के गठन के स्वरूप में भी कमी आई। पश्चिम के समानता के मूल्यों एवं वैज्ञानिक ज्ञान ने भारतीय समाज में जातीय भेदभाव को कम किया तथा समानता के विचारों का प्रसार किया।

5. अस्पृश्यता (Untouchability)-अस्पृश्यता भारतीय जाति व्यवस्था का अभिन्न अंग रही थी। मगर समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व पर आधारित पश्चिमी मूल्यों ने जातीय भेदभाव को कम किया। जाति तथा धर्म पर भेदभाव किये बिना सभी के लिये शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश की अनुमति, सभी के लिये एक जैसी शिक्षा व्यवस्था, समान योग्यता प्राप्त व्यक्तियों के लिये समान नौकरियों पर नियुक्ति आदि कारकों से अस्पृश्यता में कमी आई। अंग्रेज़ों ने औद्योगीकरण व नगरीयकरण को बढ़ावा दिया। विभिन्न जातियों के लोग रेस्टोरेंट, क्लबों में एक साथ खाने-पीने एवं बैठने लग गए। अतः पश्चिमीकरण के कारण भारत में अस्पृश्यता में कमी आई।

6. धार्मिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Religious life)-भारत में अंग्रेज़ी शासन से पूर्व अनेक धार्मिक अंधविश्वासों, कर्मकांडों, पाखंडों आदि का प्रचलन था। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव एवं इसाई धर्म प्रचारकों के धर्म प्रचार के कारण धार्मिक एवं सुधारवादी अंदोलन आरंभ किये गए। इन सबके कारण बहुत से धार्मिक अंधविश्वास एवं धार्मिक बुराइयां समाप्त हो गईं।

कई लोगों ने धर्म परिवर्तन कर अपने आपको ईसाई बना लिया। हिंदू धर्म में भी समानतावाद व मानवतावाद आदि तत्त्वों को बढ़ावा मिला। अतः पश्चिमी प्रभाव के कारण कई बुराइयों का अंत हुआ। इसके साथ ही लोगों में धार्मिक विश्वासों एवं प्रभाव में कमी आई। हिंदू धर्म में धर्मांधता में कमी आई तथा धर्म में तर्कवाद तथा ईसाई धर्म का भारतीयकरण हुआ।

7. स्त्रियों की प्रस्थिति में परिवर्तन (Change in Status of Women)-अंग्रेजों के भारत में आगमन के समय भारत में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न थी। सती प्रथा पर्दा प्रथा तथा बाल-विवाह का प्रचलन था तथा विधवा पनर्विवाह पर रोक होने के कारण महिलाओं की स्थिति काफ़ी दयनीय थी। अंग्रेजों ने सती प्रथा को अवैध घोषित किया तथा विधवा विवाह को पुनः अनुमति दी। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार व प्रचार के माध्यम से चूंघट प्रथा में कमी आई।

पश्चिमीकृत महिलाओं ने पैंट-कमीज़ पहननी आरंभ की। लाखों महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना आई और उन्होंने केवल घर को संभालने की पारंपरिक भूमिका को त्यागकर पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर दफ्तरों में विभिन्न पदों पर नौकरी करनी आरंभ कर दी। इस तरह स्त्रियां अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफ़ल हुई।

8. शिक्षा के क्षेत्र में प्रभाव (Impact in the field of Education)-भारत की परंपरागत शिक्षा प्रणाली पर भी पश्चिम का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। अंग्रेजों के भारतवर्ष में आने से पूर्व यहां शिक्षा में गुरुकुल प्रणाली प्रचलित थी तथा शिक्षा सभी लोगों के लिये उपलब्ध नहीं थी। शैक्षणिक संस्थाओं में संस्थाओं में साधारणतया उच्च जाति के लोग ही प्रवेश कर सकते थे, निम्न जाति के लोगों को पाठशालाओं में शिक्षा की अनुमति नहीं थी, अगर पिछड़ी जाति के लोग शैक्षणिक संस्थाओं में दाखिला ले भी लेते थे तो उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता था।

लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद अंग्रेजी संस्थाएं स्थापित की गई तथा साथ ही सार्वभौमिक शिक्षा प्रणाली आरंभ की गई जिसमें सभी जातियों एवं वर्गों के लोग शिक्षा ग्रहण करने लगे। लार्ड मैकाले ने 1835 में भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव रखी। अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को राजकीय एवं प्रशासनिक सेवा में प्राथमिकता दी जाने लगी।

इस शिक्षा ग्रहण उपरांत भारतीयों के विचारों, मूल्यों, आदर्शों व जीवन शैली में अभूतपूर्व परिवर्तन आये। अंग्रेजी शिक्षा ने ही भारतीयों में राष्ट्रीयता एकता व समानता की भावना विकसित की। वर्तमान समय में कृषि, विज्ञान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून आदि की दी जाने वाली शिक्षा व परीक्षण अंग्रेज़ी शिक्षा की ही देन है।

9. सामाजिक आदर्श व मूल्यों पर प्रभाव (Impact on Social Norms and Values) लोक रीतियों, रूढ़ियों, परंपराओं, प्रथाओं, नियमों, कानूनों एवं व्यवहारों के तरीकों, विश्वासों, शिष्टाचारों, अनुष्ठानों, मूल्यों, कलाओं तथा साहित्य के रूप में भारतीय समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है। अंग्रेज़ों के भारत में शासन स्थापित करने तथा ब्रिटेन वासियों के भारतवासियों के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष संपर्क बढ़ने से इन सांस्कृतिक तत्त्वों में काफ़ी परिवर्तन आये।

इनका पश्चिमीकरण हुआ। अभिवादन करने में चरण-स्पर्श व प्रणाम का स्थान हाथ मिलाना, गुड मार्निंग करना ले रहे हैं। प्रथाओं को कानून का चोला पहनाया जा रहा है। जैसे-सती प्रथा को कानूनी अवैध करार दिया गया। विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी गई। विवाह, जन्म दिन तथा अन्य उत्सवों पर नातेदारियों, सगे संबंधियों, मित्रों तथा अन्य लोगों को उनके घर स्वतः जाकर आमंत्रित करने को अपेक्षा निमंत्रण कार्ड (Invitation-Card) देकर निमंत्रण दिया जाने लगा।

10. जीवन शैली पर प्रभाव (Impact on Way of life)-भारत की जीवन पद्धति पर पश्चिम का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। बड़े-बड़े नगरों व शहरों में रिक्शाचालकों तक अंग्रेजी बोलते हुए देखे गये हैं। पहले यहां पर धोती-कुर्ता या पजामा पहना जाता था, वहीं आजकल कोट, पैंट, बुशर्ट, टाई, मौजा ही पहनने लगे। अंग्रेज़ी फ़ैशन ने भारतीय फैशन पर अपना काफ़ी रंग चढ़ाया। महिलाओं में ऊंची ऐड़ी के सैंडिल, साड़ी, ब्लाऊज, जीन तथा मैकसी, इत्यादि का प्रयोग होता है।

समाज में शिक्षित लोग मकानों की सजावट व बनावट-रहन सहन के ढंग तथा उत्सवों या पार्टियों आदि में पश्चिमी मान्यताओं का अनुकरण करते हुए देखे जाते हैं। सौंदर्य प्रसाधनों का भी अधिकाधिक प्रयोग प्रतिष्ठा का सूचक माना जाता है। अब लोग विलासता को वस्तुएं, टेलीविज़न, फ्रिज, टेप रिकार्ड, कपड़े धोने की मशीन, कार आदि को भी अपने जीवन का अंग बना रहे हैं। अंग्रेजी संगीत में बढ़ती हुई रुचि, क्लब संस्कृति का प्रसार, पश्चिमी तरीकों से पार्टियों का आयोजन, छुरी और कांटों से मेज पर बैठकर भोजन करना, पश्चिमी जीवन शैली के बढ़ते हुए प्रभाव को दर्शाता

11. भाषाओं पर प्रभाव (Impact on Languages)-सन् 1835 में लार्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में लागू किया। तत्पश्चात् ब्रिटिश शासन के दौरान तथा स्वतंत्रोपरांत भारत में निरंतर अंग्रेजी भाषा का प्रचार-प्रसार बढ़ता गया। यद्यपि अंग्रेज़ी-संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 18 भाषाओं में से नहीं है। इसे संपर्क भाषा (link language) के रूप में अपनाया गया है।

मगर वर्तमान समय में देश की अच्छी शैक्षणिक संस्थाओं तथा विशेषतः विश्वविद्यालयों तथा महाविश्वविद्यालयों में या तो अंग्रेजी विषय पढ़ाया जाता है या फिर विज्ञान, इंजीनियरिंग मैडीकल तथा व्यावसायिक कोरों में अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम है। आधुनिक प्रजातंत्र, संसदीय प्रणाली तथा वर्तमान नौकरशाही तथा नागरिकों को दिये गये मौलिक अधिकार अंग्रेजों की ही देन हैं।

12. विश्वास एवं शिष्टाचार (Beliefs and Etiquettes)-प्राचीन काल से भारतीय समाज के अपने विशिष्ट विश्वास एवं शिष्टाचार रहे है। पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क में आने से इनमें अंतर आया है। पौराणिक काल से भारतीय समाज में चंद्रमा एवं सूर्य का मानवीकरण करके इन्हें शक्तियों के रूप में माना जाता रहा है। ये विश्वास किया जाता रहा कि राहू और केतू के दोनों तरफ से घेर लेने के कारण सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) लगता है तथा ग्रहण के समय सूर्य घोर संकट में होता है।

मगर पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान के भारत में प्रसार से शिक्षित वर्ग में यह वैज्ञानिक मान्यता के रूप में विकसित हुई है कि सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना मात्र है जिसमें चंद्रमा के सूर्य एवं पृथ्वी की रेखा में आने से सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर आने से रुक जाती है। शिष्टाचारों का भी पश्चिमीकरण हुआ है। चरण-स्पर्श, तथा दंडवत् करने के स्थान पर हाथ मिलाना, अतिथि को दूध-लस्सी के बजाए ठंडा पेय या काफ़ी देना आदि सभ्याचार भारत में पश्चिमीकरण के कारण ही है।

13. नव-प्रौद्योगिकी लागू करना (Introducting of New Technology)-अंग्रेजों ने भारत में नव शिल्पास्त्र लागू किया। उन्नत तकनीक के भारत में लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप एवं लोगों की जीवन-शैली में कई परिवर्तन आये। उन्होंने रेलों का विकास किया (सन् 1853 में प्रथम रेलगाड़ी मुंबई से थाने के बीच प्रारंभ की। सड़कों का निर्माण किया, प्रेस विकसित की। घरेलू उपयोग के लिये स्टील के बर्तन बनाये।

बसों, रेलों, तथा जहाजों का निर्माण तथा डाक-तार एवं छापखाने (Printing press) के विकास से यातायात एवं दूरसंचार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। लोगों ने पारंपरिक रूप से भूमि पर बैठकर पत्ती में खाना खाने की जगह कुर्सी-मेज पर बैठकर स्टील की थाली प्लेट में चम्मच-छुरी-कांटे के साथ खाना आरंभ किया।

औदयोगीकरण (Industrialisation) अंग्रेजों ने भारत में अपने शासनकाल के आरंभ में ही यहां की अमूल्य वस्तुओं तथा कच्चे माल को इंग्लैंड ले जाना प्रारंभ किया। अपने देश में इस कच्चे माल से नई-नई वस्तुओं का निर्माण करके उन्हें भारत में बेचना आरंभ कर दिया। उन्नत तकनीक से मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुएं सस्ती एवं अधिक गुणवत्ता वाली होती थीं। जबकि भारतीयों द्वारा भारत में लघु एवं कुटीर उद्योग में निर्मित वस्तुएं अपेक्षाकृत महंगी तथा कम गुणवत्ता वाली होती थी।

फलस्वरूप भारतीय उद्योग को काफ़ी धक्का लगा। ज़मींदारी व्यवस्था लागू करने एवं उद्योगों पर ब्रिटिश उद्योग व्यापार के विपरीत प्रभाव पड़ने से देश की अर्थव्यवस्था काफ़ी कमज़ोर हो गई। तत्पश्चात् अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर बड़े उद्योग (Heavy Industries) स्थापित किये। इनमें वस्तुओं का निर्माण मशीनों से किया जाने लगा। स्थानीय बाजार की खपत से अधिक वस्तुएं तैयार की गईं जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ा। मगर अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का दोहन कर जो धन एकत्रित किया उसका निरंतर इंग्लैंड को प्रवाह होता गया।

प्रश्न 10.
धर्म निरपेक्षता क्या होती है? धर्म निरपेक्षता के क्या कारण हैं?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण के दो कारक लिखें।
अथवा
पंथनिरपेक्षीकरण पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता का अर्थ (Meaning of Secularism)-भारतीय समाज 20वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज (Sacred Society) से एक धर्म निरपेक्ष समाज (Secular Society) में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों, विचारकों एवं राजनीतिज्ञों ने यह महसूस किया कि धर्म निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों व धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखता है तथा किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है, जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन करने के लिये बाध्य नही किया जाता है।

धर्म निरपेक्षीकरण का अर्थ (Meaning of Secularization) धर्म निरपेक्षीकरण को उस सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है जिनके द्वारा धार्मिक एवं परंपरागत व्यवहारों में धीरे-धीरे तार्किकता या वैज्ञानिकता का समावेश होता जाता है। अनेक विद्वानों ने धर्म निरपेक्षीकरण को अग्रलिखित परिभाषाओं से परिभाषित किया है।

डॉ० एम० एन० श्रीनिवास (Dr. M.N. Srinivas) के शब्दों में “धर्म निरपेक्षीकरण अथवा लौकिकीकरण शब्द का यह अर्थ है कि जो कुछ पहले धार्मिक माना जाता था, वह अब वैसा नहीं माना जा रहा है, इसका अर्थ विभेदीकरण की प्रक्रिया से भी है जो कि समाज के विभिन्न पहलुओं, आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और नैतिक के एक दूसरे से अधिक पृथक होने से दृष्टिगोचर होती है।”

डॉ० राधा कृष्णन (Dr. Radha Krishnan) के अनुसार, “लौकिकीकरण या धर्म निरपेक्षीकरण, धार्मिक निरपेक्षता व धार्मिक सहअस्तित्ववाद है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर धर्म-निरपेक्षीकरण एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें मानव के व्यवहार की व्याख्या धर्म के आधार पर नहीं, अपितु तार्किक आधार पर की गई है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा घटनाओं को कार्य-कारण संबंधों के आधार पर समझा जाता है।

आत्मगतता व भावुकता (Subjectivity and Emotionality) का स्थान वस्तु निष्ठता (Objectivity) एवं वैज्ञानिकता ने ले ली है। अतः धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में, धार्मिकता का ह्रास, बुद्धिवाद के महत्त्व, विभेदीकरण, वैज्ञानिकता, वस्तुनिष्ठता, तथा व्यक्ति को किसी भी धर्म या धार्मिक सोपान की सदस्यता प्राप्त करने की स्वतंत्रता व अधिकार होता है।।

धर्म निरपेक्षीकरण के कारण (Factor of Secularization) धर्म निरपेक्षीकरण से भारतीय समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोणों में काफ़ी परिवर्तन किये गये हैं। इन क्षेत्रों में प्रभाव को देखने से पहले उन कारणों को जानना ज़रूरी है जिन्होंने धर्म निरपेक्षीकरण को संभव बनाया है। धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास के निम्नोक्त कारक हैं-
1. धार्मिक संगठनों में कमी (Lack of Religious Organisations)-धार्मिक निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास धार्मिक संगठनों का अभाव कारण रहा है। भारतीय समाज में अनेक धर्मों के संप्रदाय पाए जाते हैं। इन संप्रदायों में हिंदू धर्म ही एक ऐसा संप्रदाय है जिनके अनेक मत पाये जाते हैं। बाकी धर्मों जैसे सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, इन सभी में एक ही मत व संप्रदाय होता है। इसी कारण ये लोग अपने संप्रदाय के प्रति काफ़ी कठोर विचारधारा के होते हैं।

इसके विपरीत हिंदू धर्म में अनेक मतों के कारण कोई अच्छा संगठन नहीं है। एक हिंदू दूसरे हिंदू की धार्मिक आधार पर निंदा या आलोचना करता है। इस सबका प्रभाव हिंदू धर्म पर पड़ा। एक ओर तो लोग उच्च जातियों के अत्याचारों एवं शोषण से दुखी होकर हिंदू धर्म को अपनाया दूसरी ओर पढ़े-लिखे हिंदू इस धार्मिक कट्टरता से दूर होते चले गये। यह लोग हिंदू धर्म में पाये जाने वाले विश्वासों, अंधविश्वासों, कर्मकांडों, आदर्शों व मूल्य का विरोध कर रहे थे। भारतीय समाज में यह सभी कारण धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में सहयोग देते आ रहे हैं।

2. भारतीय संस्कृति (Indian Culture) भारतीय संस्कृति का अपने आप ही निरपेक्षीकरण हो रहा है क्योंकि भारतवर्ष एक धर्म निरपेक्ष (Secular Republic) गणराज्य है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य होने के कारण अनेक धर्मों व जातियों के संप्रदाय एक-दूसरे के नज़दीक आते रहते हैं तथा एक दूसरे संप्रदाय की अच्छाइयां व बुराइयों का भी ज्ञान अर्जित करते रहते हैं तथा उनका मूल्यांकन करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति ने भी धर्म निरपेक्षीकरण के आधार पर परिवर्तनों में अहम भूमिका निभाई है।

3. यातायात एवं संचार (Transportation and Communications) यातायात व संचार की सुविधाओं में माज में गतिशीलता को बढ़ावा मिला है। इन्हीं साधनों की वजह से नये-नये नगरों, व्यवसायों व उद्योगों का भी विकास हुआ। इन विभिन्न साधनों के द्वारा विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, प्रदेश व देश के लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। संपर्क में आने से ही आपसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ। इससे विभिन्न धर्मों की तार्किक आलोचना की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिला। इससे पवित्र-अपवित्र एवं अस्पृश्यता के विचारों में कमी आई। ये सभी तत्त्व धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास को प्रोत्साहित करते हैं।

4. पाश्चात्य संस्कृति (Western Culture)-भारतीय संस्कृति के ऊपर भी पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय जीवन के सभी पहलुओं पर प्रभाव डाला है। यहां के धर्म, कला, साहित्य, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक जीवन में कई परिवर्तनों को पाश्चात्य संस्कृति के संदर्भ में समझा जा सकता है। वास्तव में धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में पाश्चात्य संस्कृति का ही मूल रूप से सहयोग रहा है।

5. आधुनिक शिक्षा (Modern Education)–वर्तमान समय की शिक्षा पद्धति ने भी धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में सर्वोपरि भूमिका निभाई है। भारतवर्ष में आधुनिक शिक्षा पद्धति पाश्चात्य शिक्षा का ही रूप है। शिक्षा पद्धति में पाश्चात्य मूल्यों के विकास के साथ भारतीय मूल्यों में भी परिवर्तन हुआ। इसका प्रभाव सबसे अधिक धार्मिक विश्वासों व मूल्यों पर पड़ा आधुनिक शिक्षित व्यक्ति केवल मात्र धर्म के आधार पर अंध-विश्वासों, नियमों या बंधनों को नहीं अपनाता।

मूल्यांकन के पश्चात् ही अपने आपको उन बंधनों से बांधता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति ने व्यक्ति की सोच को व्यावहारिकता व वैज्ञानिकता के आधार पर विकसित किया है। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा को भी बढ़ावा मिला है। शिक्षा पद्धति में आये हुए परिवर्तनों के कारण ही भारतीय समाज में लिप्त कई बुराइयों जैसे-छुआछूत, अस्पृश्यता की भावना, जातीय आधार, उच्च शिक्षा आदि में कमी आई है। सहशिक्षा (Co-education) को भी अवसर दिया जाता है।

6. नगरीयकरण (Urbanization)-नगरीयकरण ने धर्म निरपेक्षीकरण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। शहरों व नगरों में ही धर्म निरपेक्षवाद सबसे अधिक विकसित हुआ। नगरों में ऐसे वह सब साधन मौजूद होते हैं, जैसे विकसित यातायात व संचार की सुविधाएं, उच्च शिक्षा, भौतिकवाद, तार्किकतावाद या विवेकवाद, व्यक्तिवादिता, फैशन, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इत्यादि जो मिलकर धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास करते हैं।

प्रश्न 11.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण के भारतीय समाज पर प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक, जीवन पर धर्म निरपेक्षता के प्रभाव (Impact of Secularization on Indian Social and Cultural Life)-डॉ० एम० एन० श्रीनिवास ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति Social change in Modern India में धर्म-निरपेक्षीकरण के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर पड़े अनेक प्रभावों एवं परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का सविस्तार उल्लेख किया जिसका वर्णन अग्रलिखित है-
1. पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा में परिवर्तन (Change in the Concept of Purity and Pollution)-धर्म रण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा काफ़ी परिवर्तित हई है। इसके प्रभाव के कारण, जाति, व्यवसाय, खान-पान, विवाह, पूजा-अर्चना, संबंधी अनेक धारणाओं में धर्म का प्रभाव कम हुआ है तथा अपवित्रता संबंधी कट्टर विचारों में भी कमी आई है।

विभिन्न जातियों के व्यक्ति आपस में इकट्ठे होकर रेल, बस आदि में यात्रा करते हैं। मिलकर रैस्टोरैंट या रेस्तरां आदि में खाते-पीते हैं। एक जाति दूसरी जाति के व्यवसाय को अपना रही है। निम्न जाति के व्यक्ति उच्च जाति के व्यवसायों को अपना रहे हैं जिससे उनकी सामाजिक स्थिति भी पहले से बेहतर हुई है।

संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के आधार पर भी निम्न जातियों ने उच्च जाति की उच्च जीवन-शैली को अपनाया है। वर्तमान समय में परंपरागत पवित्रता एवं अपवित्रता संबंधी विचारधारा में परिवर्तन हुआ है। अब लोग किसी भी चीज़ को तार्किकता व स्वास्थ्य नियमों के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करने लगे हैं। इन सब तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि धर्म निरपेक्षीकरण ने भारतीयों की विचारधारा में अनेक आधारों पर परिवर्तन किये।

2. जीवन चक्र एवं संस्कार में परिवर्तन (Change in Life Cycle and Rituals)-संस्कार हिंदू धर्म का मूल आधार माने जाते हैं। भारतीय समाज में मुख्यतः हिंदू धर्म में प्रत्येक कार्य का आरंभ संस्कारों के आधार पर ही होता है। हिंदू धर्म के अंतर्गत जब एक बच्चा अपनी मां के गर्भ में आता है, तभी ही गर्भदान संस्कार पूरा कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर दूसरे संस्कार जैसे-चौल, नामकरण, उपनयन (जनेऊ संस्कार), समावर्तन, विवाह आदि किए जाते हैं। जब व्यक्ति अपना शरीर त्याग देता है तो भी अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) किया जाता है अर्थात् हिंदू समाज
की नींव संस्कारों के बीच ही गडी हई है।

वर्तमान समय में बढ़ते धर्म-निरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण इन संस्कारों का संक्षिप्तिकरण हो रहा है। कुछ एक संस्कारों को ही पूरा किया जाता है तथा अन्य संस्कार जैसे-नामकरण, चौथ एवं उपाकर्म इत्यादि को पूरा नहीं किया जाता। ब्राह्मणों एवं उच्च जातियों में विधवा का मुंडन संस्कार किया जाता था जो अब लगभग न के बराबर है। इसके साथ ही कुछ एक संस्कारों को एक साथ ही मिला दिया गया है; जैसे-उपनयन संस्कार विवाह के आरंभ में ही संपन्न करवा दिया जाता है। वर्तमान समय में दैनिक जीवन के कर्मकांड जैसे-स्नान, पूजा, अर्चना, वेद, पाठ, भजन-कीर्तन इत्यादि के लिये भी व्यक्ति नाम मात्र समय देता है। ये सब परिवर्तन बढ़ते धार्मिक निरपेक्षीकरण के कारण ही हैं।

3. परिवार में परिवर्तन (Change in Family) भारतीय समाज में संयुक्त परिवार (Joint family) पारिवारिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण रूप है। सामाजिक जीवन में परिवार एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था माना जाता है। कृषि मुख्य व्यवसाय होने के कारण भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था को ही उचित व्यवस्था माना जाता था।

परिवार में सभी सदस्य मिलकर साझे रूप से ज़मीन पर खेती करते तथा साझे रूप से ही अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिये अपनी आय का खर्च करते थे। संयुक्त परिवार में संपूर्ण पारिवारिक सदस्य सामान्य हित के लिये कार्य करते थे। संयुक्त परिवार में एक साथ तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे एक ही घर में ही रहते थे।

वर्तमान में बदलती परिस्थितियों के अनुसार संयुक्त परिवार में भी परिवर्तन हुआ। आज संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है। इनकी जगह एकाकी परिवार विकसित हो रहे हैं। संयुक्त परिवारों में जो कार्य पारिवारिक सदस्य मिल-जुल कर एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते थे, आज वही कार्य अनेक दूसरी समितियों व संस्थाओं को हस्तांतरित हो रहे हैं।

वर्तमान समय में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के विचारों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इसके साथ अब बड़े बूढ़े भी अपनी विचारधारा को नयी पीढ़ी के साथ परिवर्तित कर रहे हैं। परिवारों में जिन त्यौहारों को धार्मिकता के आधार पर परंपरागत रूप से मनाया जाता था। उन त्यौहारों को धार्मिक तथा सामाजिक अवसर अधिक माना जाता है। इन सब आधारों पर स्पष्ट हो जाता है कि पारिवारिक संस्था को धर्म निरपेक्षीकरण ने पूर्णतः प्रभावित किया है।

4. ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन (Change in Rural Community)-धर्म निरपेक्षीकरण का प्रभाव नगरों के साथ-साथ ग्रामीण समुदाय में भी देखने को मिलता है। ग्रामीण समुदायों में जातीय पंचायतों के स्थान पर निर्वाचित पंचायतों का विकास हो रहा है। जहां पर भी ये जातीय पंचायतें अगर हैं भी तो वहां पर ये धार्मिक लक्ष्यों के आधार पर नहीं बल्कि राजनैतिक उद्देश्यों को लेकर संगठित की गई हैं।

ग्रामीण समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान जातीय या धार्मिकता के आधार पर होता था, वहां अब धन व संपत्ति के आधार पर होने लगा है। वर्तमान समय में निम्न जातियों के व्यक्तियों को भी धन के आधार पर उच्च जाति के व्यक्तियों से अधिक सम्मान दिया जाने लगा है। ग्रामीण समाजों पर परिवार व विवाह संबंधों में भी धर्म निरपेक्षीकरण के परिणामस्वरूप अंतर्विवाह (Intercaste-marriage) का प्रचलन बढ़ा है।

ग्रामों में धार्मिक उत्सव को धार्मिकता के आधार पर कम तथा सामाजिक उत्सवों के रूप में अधिक मनाया जाने लगा है। उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को मूल रूप से प्रभावित किया है। इस प्रक्रिया ने एक और नये सांस्कृतिक मूल्यों के विकास में योगदान दिया है तो दूसरी ओर भारतीय प्रथागत अथवा परंपरागत मूल्यों, आदर्शों को भी विघटित करने में अपनी भूमिका निभाई है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
संस्कृतिकरण पर निबंध लिखें।
अथवा
संस्कृतिकरण के अर्थ और विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
संस्कृतिकरण की परिभाषा दें तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
संस्कृतिकरण की परिभाषा दीजिए। संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
संस्कृतिकरण पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization)-प्रो० श्रीनिवास ने भारतीय समाज में विभिन्न व्यक्तियों से संबंधित निश्चित पहलुओं में परिवर्तनों की प्रक्रिया को संस्कृतिकरण का नाम दिया। उन्होंने, अपनी पुस्तक ‘Social Change in Modern India’ में लिखा है कि भारतीय इतिहास में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही है और अब भी यह जारी है।

प्रो० एम० एन० श्रीनिवास ने ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ नामक कृति में संस्कृतिकरण के अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिंदू जाति या जनजाति या अन्य समूह अपनी प्रथाओं, कर्मकांड, विचारधारा तथा जीवन शैली के उच्च व बहुधा ‘द्विज’ की दिशा में बदल लेता है”

श्रीनिवास उसके आगे लिखते हैं, “साधारण तथा ऐसे परिवर्तनों के पश्चात् वह जाति स्थानीय समुदाय द्वारा जातीय सोपान में प्रदत्त स्थान से उच्च स्थान का दावा करने लगती है। सामान्यतः ऐसा दावा कुछ समय के पश्चात् बल्कि एक-दो पीढ़ियों के पश्चात् किया जाता है जिसकी उसे स्वीकृति मिल जाती है। कभी-कभी कोई जाति ऐसे स्थान का दावा करती है जिसे मानने के लिए पड़ोसी जाति सहमत नहीं होती है।”

उपरोक्त सत्र दवारा स्पष्ट है कि संस्कतिकरण निम्न जाति, जनजाति एवं अन्य समह की परंपराओं. कर्मकांडों. विचारधारा तथा जीवन शैली में उच्च व्यक्ति व द्विज की दिशा में परिवर्तनों की प्रक्रिया है। ऐसे परिवर्तनों के कुछ समय के पश्चात उक्त समूह जातीय संस्कृति में प्राप्त पारंपरिक स्थान से उच्च स्थान प्राप्ति का दावा करते हैं।

संस्कृतिकरण की विशेषताएं
(Characteristics of Sanskritization)
1. पदमूलक परिवर्तन (Positional Changes)-संस्कृतिकरण द्वारा निम्न जातियों, जनजातियों में केवल पदमूलक परिवर्तन होते हैं। इस संबंध में श्रीनिवास लिखते हैं, “संस्कृतिकरण से व्यवस्था में पदमूलक परिवर्तन होते हैं। इसके कारण संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होते। इससे अभिप्राय यह है कि एक जाति अपनी पड़ोसी जाति से ऊपर जाती है व दूसरी नीचे आ जाती है परंतु ऐसा केवल स्थिर सोपानात्मक व्यवस्था के अंतर्गत ही होता है। इससे व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होता है।”

2. संस्कृतिकरण केवल ब्राह्मणीकरण नहीं है। (Sanskritization is not Merely Brahmani-zation) श्रीनिवास ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि ‘कुर्ग’ ब्राह्मणों की जीवन पद्धति का अनुकरण कर रहे हैं। मगर श्रीनिवास के अतिरिक्त योगेंद्र सिंह ने भी इस बात के माना है कि संस्कृतिकरण केवल ब्राह्मणीकरण नहीं है। यह ब्राह्मणीकरण से वृहद् अवधारणा है जिसमें क्षत्रियकरण तथा वैश्यकरण भी सम्मिलित है। क्योंकि निम्न जातियां क्षत्रियों व वैश्य की परंपराओं व विचारधाराओं का भी अनुसरण करती हैं।

3. संस्कृतिकरण के कई प्रारूप हैं (Sanskritization has many Models)-संस्कृतिकरण का वर्ण ही केवल एक प्रारूप नहीं है, कई प्रारूप हैं। मिल्टन सिंगर (Milton Singer) ने कहा है, “संस्कृतिकरण के एक या दो नहीं बल्कि कम से कम तीन या चार आदर्श मौजूद हैं।”

4. उच्च जातियों का अनुकरण (Imitation of High Castes) निम्न जातियां, जनजातियां तथा अन्य समूह हिंदू जातियों की परंपराओं, लोक रीतियों, विचारधाराओं एवं व्यवहार के तरीकों को अपनाती हैं। वे द्विजों द्वारा किए जाने वाले कर्मकांडों को करती हैं। यद्यपि जाति व्यवस्था के अंतर्गत निम्न जातियों को ऐसा करने की मनाही है। संस्कृति निम्न वर्गों द्वारा उच्च जातियों की जीवन शैली के अनुकरण की प्रक्रिया है।

संतिकरण का संबंध समह से है (Sanskritization is Related to Group)-संस्कतिकरण के दवारा समूह की स्थिति में परिवर्तन आता है। यह अकेले व्यक्ति व परिवार से संबंधित नहीं है क्योंकि यदि व्यक्ति संस्कृतिकरण द्वारा उच्च जातीय स्थिति का दावा करने लगे तो संभव है कि उसे अपनी जाति के अन्य सदस्यों के विरोध, हास्य व व्यंग्य, निंदा व चर्चा कर सामना करना पड़े।

6. निरंतर प्रक्रिया (Continuous Process)-संस्कृतिकरण एक निरंतर प्रक्रिया है जो अविरुद्ध जारी रहती है। श्रीनिवास का मानना है कि केवल दक्षिण भारत के वर्गों में ही संस्कृतिकरण नहीं पाया जाता बल्कि देश को विभिन्न भागों, ग्रामीण, जनजातीय तथा नगरीय समुदाय में भी यह प्रक्रिया पाई जाती है।

7. गैर-हिंदुओं का भी संस्कृतिकरण होता है (There is also Sanskritization of Non-Hindu) केवल हिंदू जातियों का ही नहीं बल्कि गैर-हिंदू जातियों का भी संस्कृतिकरण होता है। भारत की जनजातियों; जैसे भील, गोंड, औगज आदि का संस्कृतिकरण हुआ। उसके बाद वह हिंदू कहलाईं।

8. संस्कृतिकरण विरोध रहित नहीं है (Sanskritization is not without Opposition)-संस्कृतिकरण विरोध रहित नहीं है, जब निम्न जाति पूर्व प्राप्त सामाजिक स्थिति से उच्च स्थिति का दावा करती है तब उच्च जातियों द्वारा उसका विरोध होता है। क्योंकि निम्न जातियों के ऐसा करने से उनका स्थान पड़ोसी जाति से ऊपर (उच्च) हो जाता है। फलस्वरूप पड़ोसी उच्च जाति की कथित जाति से सामाजिक दूरी तो घटती ही है बल्कि उसका अपना स्थान पहले से निम्न हो जाता है। श्रीनिवास का मानना है कि उत्तरी बिहार में जब राजपूतों और ब्राह्मणों ने अहीरों को विजों के प्रतीक चिन्हों को अपनाने से रोका तो उनके बीच संघर्ष आरंभ हो गया।

निम्न वर्गों में सामाजिक परिवर्तन (Social Changes Among Lower Classes)-संस्कृतिकरण निम्न वर्गों, निम्न जातियों, जनजातियों तथा ऐसे अन्य समूहों में सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत निम्न जातियों की लोक रीतियों, रूढ़ियों, परंपराओं, प्रथाओं, मूल्यों, शिष्टाचारों, विश्वासों, कर्मकांडों तथा मान्यताओं में परिवर्तन आता है।

10. उच्चतर स्थिति का दावा (Claim of Higher Status)-संस्कृतिकरण के द्वारा निम्न जातियां तथा जनजातियां, जातीय सोपान में उन्हें जो स्थान प्राप्त होता है, उससे उच्च स्थान होने का दावा करती हैं। श्रीनिवास लिखते हैं. “हमें भारत की 1921 की जनगणना रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर भारत के अहीरों ने उपनयन डालकर क्षत्रिय कहलाना आरंभ कर दिया।”

प्रश्न 13.
संस्कृतिकरण के निम्न जातियों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण से जाति व्यवस्था पर कई प्रभाव पड़े। इस प्रक्रिया के चलते जाति एवं वर्ग नहीं रह पाया विशेषतः निम्न जातियों में अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयास जारी हैं। इससे उनके पारंपरिक जातीय प्रतिबंध शिथिल होते हैं। संस्कृतिकरण से निम्न जातियों पर पड़ने वाले प्रभावों व इससे निम्न जातियों में होने वाले परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(1) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों में गतिशीलता बढ़ी।

(2) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों की प्रस्थिति में सुधार हुआ है। उच्च जातियों की परंपराओं, कर्मकांडों, विचारधारा व जीवन शैली को अपनाने के कुछ समय के पश्चात् निम्न जातीय समूह अपने से तुरंत ऊपर जाति से उच्च स्थान होने का दावा करने लगी हैं। जब वे स्थानीय जातीय सोपान (Local Caste Hierarchy) में वांच्छित स्थान ग्रहण कर लेती हैं तो उससे उनमें पदमूलक सुधार (Positional) होता है।

(3) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों की व्यावसायिक स्थिति में परिवर्तन आए हैं। उन्होंने अशुद्ध एवं अपवित्र समझे जाने वाले अपने पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने प्रारंभ किए तथा शुद्ध व्यवसायों को अपनाया। यद्यपि पवित्र व्यवसायों को अपनाने की उनको मनाही है मगर पवित्रता के प्रति उनकी बढ़ती चेतना के कारण उन्होंने उच्च कहे जाने वाले व्यवसायों को अपनाना प्रारंभ किया है।

(4) संस्कृतिकरण से उनकी संस्कृति-लोक रीतियां, परंपराएं, प्रथाएं, विश्वास, मूल्य, व्यवहार व शिष्टाचार के तरीकों में परिवर्तन हुआ। उन्होंने उच्च जातियों की जीवन शैली का अनुकरण करना प्रारंभ किया जिससे उनकी जीवन पद्धति प्रभावित हुई।

(5) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों के धार्मिक जीवन पर भी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उच्च जातियों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को अपनाना प्रारंभ किया है। यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ करना प्रारंभ किया हैं। अशुद्धता का परित्याग तथा शुद्ध कार्यों को अपनाया है। हिंदू त्योहारों को मानने लगे हैं।

(6) उनकी आर्थिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। उद्योगों में व सरकारी नौकरियों में उनके प्रवेश से उनकी आय में वृद्धि हुई। वह शैक्षणिक, तकनीकी व व्यावसायिक योग्यता प्राप्त कर उच्च पदों पर कार्यरत होने लगे। आधुनिक व्यवसायों से उनकी आय बढ़ी जिससे उनकी आर्थिक स्थित में सुधार हुआ।

(7) निम्न जातियों के सामाजिक जीवन में भी काफ़ी परिवर्तन आए हैं। जातीय प्रतिष्ठा में सुधार करने के लिए इनके सदस्यों ने शिक्षा प्राप्त करनी प्रारंभ की है। उद्योगों, कार्यालयों व प्रशासन में नौकरियां प्राप्त की हैं। इससे उनकी समाज के उच्च वर्गों से अंतःक्रिया होने लगी। फलस्वरूप जातीय सामाजिक दूरी में कमी आई।

(8) आर्थिक स्थिति में सुधार, शिक्षा ग्रहण करने, नगरों के लिए स्थानांतरण व आवागमन और संचार साधनों के उपयोग से निम्न जातियों के रहन-सहन में परिवर्तन आया। उन्होंने पक्के भवन बनाने आरंभ किए। घर में फर्नीचर, मेज-कुर्सियां, दीवान, टी०वी०, फ्रिज, पंखे, रसोई-गैस आदि सुख-सुविधा की प्रत्येक वस्तु रखना प्रारंभ की।

(9) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों के अपने मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़े हैं। उनमें गतिशीलता के बढ़ने, पवित्र व्यवसायों को अपनाने, उच्च शिक्षा ग्रहण करने, धार्मिक स्थलों पर भ्रमण करने से हीनता की भावना (Inferiority Complex) में कमी आई।

प्रश्न 14.
पश्चिमीकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
पाश्चात्यकरण की चार विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
पश्चिमीकरण का अर्थ बताएँ तथा इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
पश्चिमीकरण क्या है? पश्चिमीकरण के प्रमुख तत्वों एवं विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
पश्चिमीकरण की कोई तीन विशेषताएँ लिखें।
अथवा
पश्चिमीकरण को परिभाषित करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ (Meaning of Westernization) आम तौर पर पश्चिमीकरण का अर्थ पश्चिमी देशों के भारत पर प्रभाव से लिया जाता है। पश्चिमी देशों में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी व अमेरिका ऐसे राष्ट्र हैं जिनका भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव रहा है। भारत में विशेषतयः शिक्षित वर्ग इन देशों के लोगों की जीवन शैली का अनुकरण करते रहे हैं। प्रो० एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की बहुपक्षीय विवेचना की है।

अन्य समाजशात्रियों ने भी अत्र-कुत्र पश्चिमीकरण के अर्थ की व्याख्या की है हालांकि अधिकांश विद्वानों ने अपना ध्यान भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या करने पर केंद्रित किया है। एम० एन० श्रीनिवास ने अपनी कृति ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ में लिखा है, “पश्चिमीकरण शब्द के मैंने ब्रिटिश के डेढ़ सौ से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्तरों संस्थाओं, प्रौद्योगिकी, विचारधाराओं व मूल्यों आदि में होने वाले परिवर्तनों से संबंधित है।”

श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के अंतर्गत केवल ब्रिटिश शासन या इंग्लैंड के भारत पर प्रभावों को ही सम्मिलित किया है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं
(Characteristics of Westernization)
1. स्वतंत्रता उपरांत जारी (Continue After Independence)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों के भारत से चले जाने के साथ समाप्त नहीं हुई। मगर यह देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी निरंतर जारी है। भार के लगातार बढ़ते प्रचार-प्रसार, ब्रिटिश की तरह खाने-पीने की आदतों, शिष्टाचारों (चरण-स्पर्श के स्थान पर गुड मार्निंग, गुड-इवनिंग, स्वीट ड्रीमज़ आदि अभिव्यक्तियों का प्रयोग करना) विचारधाराओं (भारतीय राष्ट्रपति का ब्रिटिश रानी की तरह संवैधानिक मुखिया होना तथा मंत्रिमंडल के पास वास्तविक शक्तियों का होना) से पता चलता है कि भारत का वर्तमान समय में भी पश्चिमीकरण हो रहा है।

2. पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण से भिन्न है (Westernization is Different from Modernization) यद्यपि पश्चिमीकरण से आधुनिकीकरण की बढ़ावा मिलता है परंतु यह दोनों एक-दूसरे से भिन्न धारणाएं है। पश्चिमीकरण का संबंध ब्रिटिश संपर्क में आने के पश्चात् भारत समाज पर पड़ने वाले अच्छे-बुरे सभी प्रकार के प्रभावों से है जबकि आधुनिकीकरण के अंतर्गत पश्चिमी देशों इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, रूस व अमेरिकी गैर-पश्चिमी राष्ट्रों जापान एवं चीन आदि के भारत पर सकारात्मक प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के प्रभाव तथा भारत में ज्ञान-विज्ञान तथा भारत में ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीक के विकास के कारण हुए परिवर्तन का भी आधुनिकीकरण कहा जाता है।

3. ब्रिटिश संस्कृति का भारतीय समाज पर प्रभाव (Impact of British Culture on Indian Society) पश्चिमीकरण भारतीय समाज पर ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव है। यद्यपि भारत पर अनेक अन्य पश्चिमी समाजों का काफ़ी प्रभाव रहा है मगर पश्चिमीकरण के अंतर्गत अन्य पश्चिमी देशों की संस्कृतियों का प्रभाव सम्मिलित नहीं है। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए श्रीनिवास ने कहा है, “पश्चिमीकरण शब्द की मैंने ब्रिटिश के डेढ़ सौ से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज एवं संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है।”

4. पश्चिमीकरण शहरी लोगों तक ही सीमित नहीं है। (Westernization is not Confined to Urbanites) ब्रिटिश काल के दौरान पश्चिमीकरण के प्रभाव उन शहरी लोगों या बड़े नगरों तक सीमित नहीं थे जिनके संपर्क में अंग्रेज़ आये बल्कि हज़ारों ग्रामीण श्रमिक, छोटे कर्मचारी सैनिकों के रूप में अंग्रेजों के संपर्क में आये तथा जिससे सुदूर स्थित गांवों का पश्चिमीकरण हुआ।

5. जटिल प्रक्रिया (Complex Process)-पश्चिमीकरण काफ़ी जटिल प्रक्रिया है। भारतीय समाज में विभिन्न क्षेत्रों, जातियों, समुदायों, वर्गों तथा समूहों पर पश्चिमीकरण के एक जैसे प्रभाव नहीं पड़े। सुशिक्षित ब्रिटिश प्रशासन, सेनाओं में कार्यरत तथा शहरी लोग अशिक्षित तथा ग्रामीणों से अधिक पश्चिमीकृत हो गये। जैन धर्म के अनुयायी अधिक तथा मुसलमान कम पश्चिमीकृत हुए।

श्रीनिवास ने अपनी कृति ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ में लिखा है “पश्चिमीकरण का स्वरूप व गति एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तथा जनसंख्या एक भाग से दूसरे भाग में भिन्न रही है। कुछ लोगों की वेषभूषा, भोजन के तरीके, भाषा, खेलकूद तथा उपयोग की जाने वाली वस्तुएं पश्चिमीकृत हो गईं जबकि अन्य समूहों ने पश्चिमी ज्ञान, विज्ञान, कलाओं तथा साहित्य को अपना लिया।”

6. चेतन एवं अचेतन प्रक्रिया (Conscious and Unconscious Process)-पश्चिमीकरण चेतन एवं अचेतन प्रक्रिया है। संस्कृति के कुछ पहलुओं जैसे-भाषा व तकनीक इत्यादि को सोच-समझा कर भारतवर्ष में लागू किया गया। भारतीयों द्वारा चेतन रूप में इन्हें अपनाया गया। मगर पश्चिमीकरण के तरीकों, मूल्यों, शिष्टाचारों, खान-पान की आदतों तथा विश्वासों को अचेतन रूप में भारतीयों ने ग्रहण किया। चरण स्पर्श के स्थान पर हाथ मिलाकर तथा गुड मार्निंग करके अभिवादन करना, भूमि पर आसन बिछा कर हाथ से भोजन ग्रहण करने के स्थान पर कुर्सी-मेज पर चम्मच से खाना-खाना इसके उदाहरण हैं।

7. नैतिक रूप से तटस्थ (Ethically Neutral)—पश्चिमीकरण द्वारा भारतीय समाज में कई प्रकार के अच्छे व बुरे, नकारात्मक एवं सकारात्मक तथा संगठनात्मक एवं विघटनात्मक परिवर्तन आये। पश्चिमीकरण का संबंध परिवर्तनों के सकारात्मक व नकारात्मक पहलओं से नहीं है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के परिवर्तन आते हैं। अर्थात पश्चिमीकरण नैतिक रूप से तटस्थ है।

8. इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव सम्मिलित (It Includes Direct and Indirects Impacts) ब्रिटिश के भारत पर शासन के दौरान अंग्रेज़ों का सहस्त्रों भारतीयों से प्रत्यक्ष संपर्क हुआ। लेकिन करोड़ों ऐसे भारतीय भी हैं जिनके साथ कभी भी प्रत्यक्ष संपर्क नहीं हुआ। फिर भी उन पर काफ़ी ब्रिटिश प्रभाव पड़ा।

कई लोग ब्रिटिश काल में विभिन्न पदों पर कार्यरत थे। अंग्रेजों के संपर्क में उन पर कई प्रभाव पड़े। इन लोगों ने ब्रिटिश संस्कृति का अपने पारिवारिक सदस्यों में बीजारोपण किया। ऐसे परिवारों से ब्रिटिश संस्कृति उनके संपर्क में आई तथा अन्य लोगों में फैलती गई। अतः पश्चिमीकरण के अंतर्गत ब्रिटिश के भारतीय समाज पर सभी प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव सम्मिलित हैं।

प्रश्न 15.
भारत में आधुनिकीकरण के कौन-से लक्षण देखे जा सकते हैं? उनका विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर:
चाहे अंग्रेजों ने भारत में आधुनिकीकरण की नींव रखी थी तथा उसके लिए कुछ प्रयास भी किए थे पर वे इतने काफ़ी नहीं थे कि उन से देश आधुनिक हो जाए। आजादी के पश्चात् सरकार ने देश को विकसित करने की ठानी तथा बहुत से प्रयास किए गए ताकि भारत को भी पश्चिमी देशों की तरह आधुनिक बनाया जा सके।

आज हमारे सामने कुछ ऐसे लक्ष्ण हैं जिनको देखकर हम कह सकते हैं कि भारत आधुनिकता की तरफ बढ़ रहा है चाहे वह पूरी तरह आधुनिक नहीं हुआ है। आधुनिकीकरण के इन लक्षणों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) औद्योगीकरण-आज़ादी से पहले हमारे देश में गिनती के ही कुछ उद्योग थे पर आज़ादी के बाद तेज़ी से उद्योग बढ़े हैं क्योंकि उद्योग लगाने के लिए जो हालात चाहिए वे मिल गए थे। चाहे औद्योगीकरण आधुनिकीकरण का लक्षण नहीं है फिर भी यह आधुनिकीकरण के लिए जरूरी है क्योंकि देश में उद्योग लगने से पैसा आएगा, देश का आर्थिक विकास होगा. जनता को रोजगार मिलेगा।

आज भारत में उदयोग तेजी से बढ़ रहे हैं। दनिया में उदयोगों के मामले में हम काफी पीछे हैं। इस तरह आधुनिकीकरण के लिए पहली शर्त ज्यादा उद्योग की होती है, वह हमारे देश में तेज़ी से अब बढ़ रही है।

(ii) धर्म निरपेक्षता-जब भारत पर राजाओं-महाराजाओं का राज था तो वह किसी एक धर्म को प्रोत्साहित किया करते थे तथा बाकी धर्मों को नफ़रत की दृष्टि से देखा जाता था। अंग्रेजों के आने के बाद स्थिति बदल गई। उन्होंने किसी भी धर्म को विशेष महत्त्व नहीं दिया क्योंकि वो तो यहां पर पैसा कमाने आए थे।

अंग्रेजों के पश्चात् आज़ादी के बाद भारत सरकार तथा संविधान में भी धर्म निरपेक्षता की नीति अपनायी गई ताकि किसी विशेष धर्म को महत्त्व न मिले तथा सभी धर्मों को बराबर मौका मिले। आजकल के समय में आधुनिकीकरण की यह शर्त है कि देश धर्म होना चाहिए तथा यही नीति भारत में अपनायी गई। इस तरह हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण की अगली शर्त यानि कि धर्म-निरपेक्षता, हमारा देश पूरी कर रहा है।

(iii) नगरीयकरण-आधुनिकीकरण का अगला लक्षण नगरीयकरण या नगरों का बढ़ना है। हमारे देश पर यह बात लागू होती है। आज से तकरीबन 100 साल पहले हमारी तकरीबन 90% जनसंख्या गांवों में रहती थी पर आज़ादी के पश्चात् इसमें तेजी से कमी आयी। 1991 की जनगणना के अनुसार 25% जनता तथा 2001 की जनगणना के अनुसार 29% जनता शहरों में रहती है।

इसका यह अर्थ हुआ कि जनसंख्या तेजी से गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ जा रही है तथा शहरों का तेजी से विकास हो रहा है। अगर हम शहरों के आकार की तरफ देखें तो पिछले दो-तीन दशकों में शहरों के आकार दगने हो गए हैं। इसका अर्थ है कि नगरीयकरण में बढ़ोत्तरी हो रही है। इस तरह हमारा देश आधुनिकीकरण का यह लक्षण भी पूरा करता है।

(iv) शिक्षा-यह कहा जाता है कि जितना ज्यादा कोई देश साक्षर होगा उतना ज्यादा वह आधुनिक होगा क्योंकि शिक्षा का सीधा संबंध आधुनिकता से होता है। अगर हम पश्चिमी देशों की तरफ देखें तो वह आज के समय में आधुनिक माने जाते हैं पर इसके साथ हमें वहां की साक्षरता दर भी देखनी चाहिए। जापान की साक्षरता दर 100%, इंग्लैंड की 99%, रूस की 99.2%, अमरीका की 98% है। इनके अलावा यूरोपीय देशों की साक्षरता-दर काफ़ी ऊँची है क्योंकि ये लोग शिक्षा पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च करते हैं।

ये लोग कुल बजट का 19-20% पैसा शिक्षा पर खर्च करते हैं जबकि हमारा देश सिर्फ 3-3.5% ही खर्च करता है पर अब इसमें धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी हो रही है। हमारे देश की साक्षरता दर में भी काफ़ी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है। 1991 की जनगणना के अनुसार हमारी साक्षरता दर 52% थी जो 2001 में बढ़कर 65% तक पहुँच गई है। इस तरह हम आधुनिकता की यह शर्त भी पूरी करते हैं।

(v) पश्चिमीकरण-अगर हम ध्यान से देखें तो पश्चिमीकरण को ही आधुनिकीकरण मान लिया जाता है। हमारे देश के ऊपर अंग्रेजों ने 150 सालों से ज्यादा राज किया था तथा यहां पर पश्चिमीकरण की नींव भी उन्होंने रखी थी। उन्होंने ही यहां पर पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत की, पश्चिम की तर्ज पर यहां पर उद्योग लगवाने शुरू किए, यातायात जैसे ट्रेन तथा संचार जैसे तार-डाक इत्यादि की शुरुआत की।

इसके अलावा उन्होंने यहां की शासन पद्धति में भी बदलाव किया तथा इसे भी पश्चिम की तर्ज पर चलाया। आधुनिकीकरण की वजह से जो क्रांति यातायात तथा संचार के साधनों, शिक्षा तथा और कई क्षेत्रों में आयी है, आज़ादी के पश्चात् वह हमारे देश में भी आयी है। हमारे देश में भी पश्चिम की तर्ज पर यातायात, संचार, शिक्षा के साधन विकसित हो गए हैं जिनको देख कर हम कह सकते हैं कि भारत आधुनिकता की तरफ बढ़ रहा है।

(vi) सामाजिक परिवर्तन-आधुनिकीकरण का एक और ज़रूरी लक्षण सामाजिक परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन से मतलब न सिर्फ देखने वाली चीजों में बदलाव बल्कि हमारे सोचने के तरीकों, विचारों में भी परिवर्तन होना चाहिए। यह सब भारत में हो रहा है। भारत के सामाजिक ढाँचे, उसकी संरचना में काफ़ी हद तक परिवर्तन आ गए हैं तथा आ रहे हैं।

यह सब भारत सरकार की कोशिशों का नतीजा है। जाति प्रथा जो हमारे समाज का मुख्य आधार हुआ करती थी अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसकी जगह तरह-तरह के वर्ग ले रहे हैं। इसके अलावा हमारे समाज में कई प्रकार की समस्याएं थीं जो खत्म हो गयी है या हो रही हैं। लोगों के सोचने, रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन आ रहे हैं जो कि आधुनिकता की निशानी है।

(vii) गतिशीलता तथा नए वर्गों का विकास-आधुनिकता की एक और निशानी गतिशीलता भी होती है। गतिशीलता का मतलब होता है एक जगह को छोड़ कर दूसरी जगह जाना तथा यह सब भारत में हो रहा है। लोग गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ जा रहे हैं, अपनी पुरानी नौकरियां छोड़कर नई नौकरियां तलाश कर रहे हैं। यह सब गतिशीलता है।

इस गतिशीलता की वजह से जाति प्रथा में बंधन टूट रहे हैं तथा समाज में नए नए वर्गों का उदय हो रहा है। अब कुछ लोग अगर किसी बात में समानता रखते हैं तो वह एक वर्ग का निर्माण करते हैं चाहे वे किसी भी जाति से हों। इस तरह सामाजिक गतिशीलता तथा नए वर्गों का विकास सामाजिक समृद्धि को बढ़ाता है जोकि आधुनिकीकरण का एक लक्षण है।

प्रश्न 16.
आधुनिकीकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना करें।
अथवा
आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
आधुनिकता क्या है?
उत्तर:
आधुनिकीकरण का अर्थ (Meaning of Modernization)-आधुनिकीकरण एक वृहद् अवधारणा है। यह सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। आधुनिकीकरण अंग्रेजी के शब्द मॉडर्नाइजेशन (Modernization) का हिंदी रूपांतर है जिसका प्रादुर्भाव लैटिन भाषा के मोडो (Modo) शब्द से हुआ। मोडो का अर्थ है प्रचलन अर्थात् जो वस्तु धारणा तकनीक तथा व्यवस्था प्रचलित है, अपेक्षाकृत नवीन एवं श्रेष्ठ है। वह आधुनिक है तथा आधुनिक होने की प्रक्रिया को आधुनिकीकरण कहते हैं।

अर्थात् पारंपरिक में आधुनिकता की और परिवर्तनों की प्रक्रिया आधुनिकीकरण है।” अनेक विद्वानों ने आधुनिकीकरण का अर्थ स्पष्ट करने के लिये निम्नलिखित परिभाषाएं परिभाषित की हैं, आइजनस्टेड (Eisenstadt) ने अपनी कृति आधुनिकीकरण प्रक्रिया एवं परिवर्तन में लिखा है, “आधुनिकीकरण उन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक स्वरूपों की दिशा में परिवर्तन है, जो सतारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप व उत्तरी अमेरिका में तत्पश्चात् अन्य यूरोपीय देशों में तथा उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में दक्षिण अमरीकी, एशियाई तथा अफ्रीकन देशों में हुए।”

यह परिभाषा आधुनिकीकरण की ऐतिहासिक दृष्टिकोण से व्याख्या करती है। इसमें 17वीं से 20वीं शताब्दी के दौरान विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों को आधुनिकीकरण का नाम दिया है।

दूबे के शब्दों में, “आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है जो परंपरागत या अर्ध परंपरागत व्यवस्था से किन्हीं इच्छित प्रारूपों तथा उनसे जुड़ी हुई सामाजिक संरचना के स्वरूपों, मूल्यों, प्रेरणाओं तथा सामाजिक आदर्श नियमों की ओर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।” दूबे ने प्रौद्योगीकरण तथा सामाजिक संरचना के विभिन्न पहलुओं में होने वाले परिवर्तनों को आधुनिकीकरण कहा है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएं / तत्त्व
(Characteristics/Elements of Modernization)
1. नगरीयकरण (Urbanization)-नगरीयकरण आधुनिकीकरण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। मानव समुदाय जनजातीय से ग्रामीण तथा जनजातीय एवं ग्रामीण से नगरीय जीवन की ओर परिवर्तित होता है। समाज में जितना अधिक नगरीयकरण होगा वह उतना ही अधिक आधुनिक कहलाएगा। स्विट्ज़रलैण्ड, अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस आदि आधुनिक समाजों में विकासशील समाजों की अपेक्षा कहीं अधिक आधुनिक समाज नगरीकरण हुआ है।

2. औद्योगीकरण (Industrialization)-औद्योगीकरण का अर्थ है-उद्योगों का विकास। औद्योगीकरण से . समाज में गुणात्मक परिवर्तन आता है। औद्योगीकरण समाज में प्रगति का परिणाम है। इसमें प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त होता है। विज्ञान एवं तकनीकी के विकास से उद्योगों की स्थापना में सहायता मिलती है तथा उद्योगों में बड़े पैमानों पर उत्तम गुणवत्ता वाली अपेक्षाकृत सस्ती वस्तुओं के निर्माण से प्रबल प्रगति को बढ़ावा मिलता है। अतः औद्योगीकरण आधुनिकीकरण का आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

3. धर्म निरपेक्ष शिक्षा (Secular Education) शिक्षा जाति, धर्म व समुदाय, लिंग, रंग तथा जन्म के स्थान के पार पर निर्मित समूहों तक सीमित न होकर सबके लिये उपलब्ध हो। अर्थात् समाज के सभी वर्गों को शिक्षा ग्रहण करने का समान अवसर प्राप्त हो उसी को आधुनिकीकरण कहा जा सकता है।

4. शिक्षा का प्रसार (Expansion of Education) शिक्षा के प्रसार से आधुनिकीकरण के द्वार खुलते हैं। किसी भी समाज शिक्षा का जितनी गति से प्रसार व प्रचार होगा उस समाज में उतनी गति से आधनिकीकरण होगा। अमरीका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी एवं इटली तथा स्विट्ज़रलैंड आदि सब देशों में साक्षरता दर लगभग शतप्रतिशत है। उच्च शिक्षा का भी काफ़ी प्रसार हुआ। फलस्वरूप यह समाज आधुनिकीकृत हो पाए हैं।

5. वैज्ञानिक प्रकृति (Scientific Temper)-वैज्ञानिक प्रकृति से अभिप्राय है मनुष्य में कार्य-कारण के आधार पर घटनाओं को समझने की प्रवृत्ति का विकास। वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास आधुनिकीकरण का लक्षण है। इस विकास से व्यक्ति तथ्यों का विश्लेषण तर्क, विवेकशीलता एवं वृद्धि के आधार पर करता है। वह किसी भी चीज़ का अंधानुकरण नहीं करता है। किसी भी समाज में आधुनिकीकरण की गति इस बात से प्रभावित होती है कि वहां पर कितने लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पाया जाता है।

6. संचार एवं यातायात साधनों का विकास (Development of Means of Communication and Transportation) संचार एवं यातायात के साधनों में विकास के कारण लोगों में आपसी संबंध बढ़ते हैं। इससे विभिन्न कार्य अपेक्षाकृत कम समय में पूर्ण किये जाते हैं। औद्योगीकरण को गति मिलती है। संचार एवं यातायात के साधनों के उन्नत का अर्थ है कि संबंधित समाज उन्नत है। वर्तमान समय में मोबाइल, टेलीफोन, ई-मेल (E Mail), फैक्स (Fax) से संचार व्यवस्था में क्रांति आई है तथा बस, रेल व हवाई संपर्क से मानव जीवन में सकारात्मक गुणात्मक (Positive qualitative) परिवर्तन आए हैं।

7. एकाकी परिवारों का विकास (Development of Nuclear Family)-अनेक समाजशास्त्रियों का यह मानना है कि संयुक्त परिवार परंपरा का तथा एकाकी परिवार आधुनिकता का प्रतीक है। आधुनिकीकरण से एकाकी परिवारों का विकास हो रहा है तथा एकाकी परिवार आधुनिकीकरण को दर्शाते हैं जिसमें पति-पत्नि व अनेक अविवाहित बच्चे एक साथ रहते हैं। ऐसे परिवारों के सदस्यों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

8. विशिष्ट भूमिकाएं (Specialization Roles)-किसी भी क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त करके विशिष्ट भूमिका अभिनीत करना आधुनिकीकरण का एक तत्त्व है। व्यक्ति द्वारा विशेष शिक्षा ग्रहण करके डॉक्टर वैज्ञानिक, मैनेजर, वकील या अन्य व्यावसायिक (Professional) की भूमिका निभाना व्यक्ति की विशिष्ट भूमिकाएं हैं।

9. शक्ति के निर्जीव स्रोतों का दोहन (Exploitation of Inanimate Sources of Power) लेवी (Levi) ने अपनी कृति ‘Modernization of Structure and Society’ में इस बात पर बल दिया है। शक्ति तथा अधिकाधिक दोहन (Exploitation) आधुनिकीकरण का संकेत चिन्ह है। निर्जीव स्रोतों का दोहन करके उसको समाज की प्रगति के लिये उपयोग आधुनिकीकरण है।

10. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in per Capita Income)-प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आधुनिकीकरण का सूचक है। समाज में कितना आधुनिकीकरण हुआ है। वहां की प्रति व्यक्ति आय से इस बात का अनुमान लगाया जाता है। पश्चिमी समाजों का पूर्वी समाजों से अधिक आधुनिकीकरण हुआ है। पूर्व में भी भारत की अपेक्षा जापान का कहीं अधिक आधुनिकीकरण हआ है।

11. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International Co-operation)-भूमंडलीकरण के चलते विश्व का कोई भी समाज अन्य समाजों से अलग नहीं रह सकता। प्रगति, विकास तथा विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अन्य देशों का सहयोग आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र [United Nation(U.N.)], विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), यूनेस्को (Unesco), सार्क (Saarc), नाटो (Nato), आई० एम० एफ० (I.M.F) तथा विश्व बैंक (World Bank) आदि का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से आधुनिकीकरण को गति मिलती है।

12. लोकतंत्रीकरण (Democratization)-लोकतंत्रीकरण का अर्थ है लोगों की, लोगों के लिये तथा लोगों के द्वारा सरकार की स्थापना करना। सभी नागरिकों को मौलिकाधिकार प्रदान करना। सरकार की लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना, मौलिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना करना, लोगों की राजनीति में भागीदारी बढ़ाना, जीवन में आगे बढ़ने के लिये समान अवसर प्रदान करना इत्यादि। वर्तमान समय में विश्व के अधिकतर राष्ट्रों में लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था अपनाई गई है। जो आधुनिकीकरण के विभिन्न चरणों से गुजर रही है। अब भारतीय लोकतंत्र में परिपक्वता आ रही है।

13. राष्ट्रीयता की भावना का विकास (Development of feeling of Nationality)-जाति, धर्म क्षेत्र, रंग तथा लिंग आदि संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता की भावना का विकास आधुनिकीकरण है। ऐसे समाज में स्थानीय निष्ठाओं की अपेक्षा राष्ट्रीयता की भावना को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

14. तार्किक नौकरशाही (Rational Bureaucracy)-नौकरशाही किसी भी समाज के प्रशासनिक ढांचे की रीड़ की हड्डी होती है। नौकरशाही के तार्किक होने से प्रशासनिक कुशलता बढ़ती है। यह आधुनिकीकरण का प्रतीक है।

15. लोगों की राजनैतिक भागीदारी में वृद्धि (Increasing Political Participation of the People) लोगों का राजनीतिक व्यवस्था के बारे में ज्ञान तथा उनका राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता अंतः संबंधित है। राजनीतिक गतिविधियों में वोट डालना, विभिन्न राजनीतिक दलों की विचारधाराओं का ज्ञान रखना, देश के सम्मुख प्रमुख समस्याओं के बारे में विचार-विमर्श करना, सरकार के कार्यों का विशलेषण करना इत्यादि लोगों में क्रियाशीलता से देश के शासन में परिपक्वता, कुशलता तथा जवाबदेही विकसित होती है। इसलिये राजनीतिक जनसहभागिता आधुनिकीकरण का कारक है।

16. पश्चिमीकरण (Westernization)-पश्चिमीकरण भी आधुनिकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसमें मानवतावाद, व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, तर्कवाद, लौकिकीकरण (Secularisation) तथा कर्मवाद पर विशेष बल दिया जाता है। जो समाज पश्चिमीकृत है वह काफ़ी सीमा तक आधुनिक भी है। क्योंकि पश्चिमी देशों में आधुनिकीकरण हुआ है। हालाकि जापान जैसे ही कुछ देशों में पश्चिमीकरण के बिना ही आधुनिकीकरण हुआ है।

प्रश्न 17.
भारत पर आधुनिकीकरण के प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
आधुनिकीकरण के कारण भारत में आए परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
आधुनिकीकरण तथा पश्चिमीकरण से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन हुए? उदाहरण देकर वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय समाज में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् आधुनिकीकरण और आधुनिकीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव निम्नलिखित है-
1. शहरीकरण (Urbanization) भारतीय समाज में निरंतर शहरीकरण हो रहा है। सन् 1901 में कुल ख्या के 11% लोग शहरों में रहा करते थे। सन् 2011 की जनसंख्या की गणना के अनुसार शहरों में 32% लोग रहते थे। इसी प्रकार स्वतंत्रोपरांत 1951 में हुई देश में प्रथम जनगणना के अनुसार कल शहर 2844 थे जो कि 1991 में बढ़कर 3696 हो गये।

इसी प्रकार 1951 की गणना के अनुसार देश में 74 ऐसे शहर थे जिनकी जनसंख्या एक लाख या उससे अधिक थी जबकि 1991 में यह संख्या 300 के ऊपर तक चली गई। 10 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले शहरों की तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। 1901 में केवल एक शहर इस श्रेणी में था, 1951 में यह पांच हो गये। 1991 में 23 नगरों की जनसंख्या 10 लाख या उससे अत्यधिक हो गई। 33% जनसंख्या इन्हीं 23 शहरों में निवास करती है। 25.7 लाख आबादी के साथ मुंबई सबसे बड़ा शहर है।

2. औद्योगीकरण (Industrialization)-स्वतंत्रता के उपरांत भारत में अभूतपूर्व गति से औद्योगीकरण हुआ। उद्योगों का विकास दूसरी पंचवर्षीय योजना का प्रमुख लक्ष्य था। इस अवधि में देश में औद्योगिक क्रांति आ गई। बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की गई। जिसमें उत्पादन घरेलू खपत के लिए ही नहीं बल्कि विदेशी व्यापार के लिये किया जाने लगा। जुलाई, 1991 से निजीकरण, उदारीकरण, भूमंडलीकरण (Privatization, libralization, Globalization) को विशेष बढ़ावा दिया गया। उद्योगों में पूंजीनिवेश के लिये नियमों का सरलीकरण किया गया। निवेशों को अधिक सुरक्षा प्रदान की गई।

3. पश्चिमीकरण (Westernization)-ब्रिटिश काल के दौरान भारतीय समाज में हुए परिवर्तनों को पश्चिमीकरण कहते हैं। अंग्रेजों के प्रभावाधीन भारत में सामंतवाद, लौकिकीकरण तथा तर्कवाद का विकास हुआ। देश में नववर्ग का उदय हुआ। यातायात एवं संचार साधनों तथा उद्योगों का विकास हुआ। लोकतंत्रीकरण का विकास हुआ। प्रशासनिक, वैधानिक, न्यायिक ढांचे तथा बैंकिंग, बीमा आदि वित्तीय संस्थाओं का विकास हुआ। भारतीय समाज में पश्चिमीकरण से आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला।

4. प्रौद्योगिक विकास (Technological Development)-भारत में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी का विकास बड़ी तीव्र गति से हो रहा है। देश में हवाई जहाज़, समुद्री जहाज़, रेल, टैंक, सुपर कंप्यूटर , प्रक्षेपास्त्र, (Missile), उपग्रहों का विकास भारत में बढती प्रौदयोगिकी का स्वयं ही सिदध प्रमाण है। अंतरिक्ष प्रौदयोगिकी (Space Technology) में तो भारत सुपर पावर (Super Power) बन गया है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने तो देश को एक परिवार के रूप में परिवर्तित कर दिया है।

मोबाइल पर अगम्य क्षेत्रों, पहाड़ों, जंगलों से व्यक्ति मोबाइल पर भारत में ही नहीं विश्व के किसी भी क्षेत्र में लोगों से बात कर सकता है। इंटरनैट (Internet) से सूचना क्रांति आ गई है। बायो-प्रौद्योगिकी (Bio-Technology) के क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है।

5. लोकतंत्रीकरण (Democratization)-“भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है” धर्म, प्रजाति, जाति व जन्म, स्थान के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी भारतीयों को समान रूप से मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। किसी भी व्यवसाय को अपनाने, देश के किसी भी भाग में घूमने-फिरने, वयस्क मताधिकार, चुने जाने का सभी नागरिकों को अधिकार है। प्रदेश की सरकारें जनता द्वारा 5 वर्ष के लिये चुनी जाती है।

जो सरकार जनता के हितों की अनदेखी करती है। जनता उसे आगामी चुनावों में वोट न डालकर बदल देती है। स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र प्रैस, संवैधानिक शक्तियां प्राप्त नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) तथा चुनाव आयोग देश के लोकतंत्र को सशक्त आधार प्रदान करते हैं। लेकिन देश के लगभग एक तिहाई लोग निरक्षर तथा ग़रीबी रेखा के नीचे होने के कारण विशेषतः ऐसे लोग अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाते।

नित नये क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के गठन के कारण, पुराने दलों में विभाजन के कारण तथा राजनीतिज्ञों की वाक्-पटुता के कारण सांसद् और विधान सभाओं में कई अपराधी जीत कर चुने जाते हैं। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण तथा. अपराध के बढ़ते राजनीतिकरण के कारण भारत की लोकतंत्र की गरिमा को आघात पहुंचता है।

6. शिक्षा का प्रसार (Expansion of Education)-स्वतंत्रोपरांत साक्षरता दर बढ़ाने के उद्देश्य से देश में विभिन्न स्तरों के लाखों शैक्षिक संस्थान खोले गये। 20वीं शताब्दी विशेषतः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। सन् 1901 में देश की साक्षरता दर मात्र 5 प्रतिशत थी, जिसमें स्त्रियों एवं पुरुषों में साक्षरता दर क्रमशः 0.60 प्रतिशत तथा 9.83 प्रतिशत थी अर्थात् 500 महिलाओं में से केवल 1 महिला शिक्षित थी।

1951 में देश में साक्षरता दर 18 प्रतिशत थी लेकिन सन 2011 में जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 75 प्रतिशत है। पुरुष और महिला में साक्षरता दर लगभग 82% तथा 65% है। केरल, मिज़ोरम, गोआ, महाराष्ट्र तथा हिमाचल प्रदेश सबसे अधिक साक्षर राज्य हैं। बिहार तथा झारखण्ड सबसे कम साक्षरता दर वाले राज्य हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में लक्ष्यद्वीप तथा दिल्ली में सबसे अधिक साक्षर है।

7. आवागमन एवं संचार साधनों का विकास (Development of Transportation and Communication) भारत में स्वतंत्रोपरांत यातायात एवं दूरसंचार के साधनों में काफ़ी विकास हुआ है। देश के कोने-कोने को राष्ट्रीय उच्चमार्गों (National Highways) तथा रेलमार्गों (Railways Lines) से जोड़ा गया है। बसों, रेलों, कारों, टैक्सियों, हवाई जहाजों, नावों तथा समुद्री जहाजों से यातायात के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं। डाक एवं तार, दूरभाष, (Telephone) मोबाइल फोन, पेज़र, फैक्स, ई-मेल तथ इंटरनैट इत्यादि संचार माध्यमों से संचार क्षेत्र में क्रांतिकारी विकास हुआ है। अतः यातायात एवं संचार साधनों से भारतीय समाज के आधुनिकीकरण की गति बढी

8. जनभागीदारी में वृद्धि (Increase in People Participation)-स्वतंत्रोपरांत देश में कई लोकसभा तथा अनेक बार राज्यों की विधान-सभाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं के चुनाव हो चुके हैं जिसमें लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश की जनता की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक गतिविधियों में बढ़ती भागीदारी भारतीय समाज के आधुनिकीकरण का सूचक है।

9. मानवतावाद (Humanitarianism)-आज़ादी के पश्चात् भारत में मानवतावाद को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया। जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी भारतीयों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गये। पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों (SCs, STs and OBCs) के उत्थानार्थ अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए गये हैं।

10. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विकास (Development of International Cooperation)-भारत के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में निरंतर वदधि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सरक्षा स्थापित करने के उददेश्य से 24 अक्तबर, 1945 को गठित विश्व के सबसे बड़े संगठन संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का भारत मूल सदस्यों में से है। भारत विश्व व्यापार संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन तथा दक्षेस (SAARC) आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है जिसमें वह सक्रिय रूप से भाग लेता है। विश्व के विभिन्न देशों में संघर्षों के समाधान हेतु भी भारत शांति सेनाएं भेजकर महत्पूर्ण योगदान देता है।

11. विशिष्ट भूमिकाएं (Specialized Roles)-विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट भूमिकाएं अभिनीत करने के लिये बल दिया जाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, वैज्ञानिक, या व्यावसायिक पेशेवर (Professionals) अपनी अलग अलग भूमिका निभाते हैं। विभिन्न विषयों समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अंग्रेजी, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, इत्यादि के अलग-अलग प्राध्यापक होते हैं। अपने-अपने क्षेत्र में विशेषीकरण (Specialization) प्राप्त व्यक्तियों द्वारा भूमिका अभिनीत करना आधुनिकीकरण को दर्शाता है।

12. मशीनी सैन्यीकरण (Mechanical Militarization) स्वतंत्रता के समय भारतीय सेना मुख्यतः पैदल सेना (Marching army) थी। वर्तमान समय में तीनों सेनाओं, थल सेना, वायसेना, जलसेना, (Army, Airforce and Navy) के पास आधुनिकतम हथियार एवं संयंत्र हैं। स्वचालित हथियार टैंक, लड़ाकू जहाज़, मिग 21, 27 व 29 मिराज तथा जगुआर) युद्धपोत, पनडुब्बियां प्रेक्षपास्त्र (अग्नि, पृथवी, त्रिशूल तथा नाग इत्यादि) परमाणु हथियारों तथा अन्य उपकरणों से युक्त भारतीय सेनाएं विश्व की आधुनिक सेनाओं में से एक है। जिनमें लगभग 14 लाख सैनिक देश की सीमाओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

13. कृषि विकास (Agricultural Development)-भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि का विकास हुआ है। आजादी के बाद कुछ वर्षों तक खाद्यान्न आपूर्ति के लिये विदेशों से अनाज आयात करता था। मगर उन्नत बीजों (High Yield Variety Seeds) उर्वरकों (Fertilizers) तथा कीटनाशकों (Insecticides) के विकास, वैज्ञानिक कृषि उपकरणों में उपयोग तथा सिंचाई व्यवस्था के विकास के कारण 1960 के दशक के मध्य 1965-66 में देश में हरित क्रांति आई।

खाद्यान्न उत्पादन तथा उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने, हल के स्थान पर ट्रैक्टरों का प्रयोग आदि से जहां 1950 में देश में लगभग 5 करोड़ टन का उत्पादन होता था। वर्तमान समय में 20 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न उत्पन्न होने लगा। अब भारत खाद्यान्नों का निर्यात करने लगा है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि विकास से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है तथा विभिन्न उद्योगों के लिये पर्याप्त सस्ता कच्चा माल मिलने लगा है।

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HBSE 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

Haryana Board 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

HBSE 9th Class Civics संस्थाओं का कामकाज Textbook Questions and Answers

संस्थाओं का कामकाज कक्षा 9 प्रश्न-उत्तर HBSE  प्रश्न 1.
अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाएं तो आप निम्नलिखित में से कौन-सा फैसला खुद कर सकते हैं?
(क) अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।
(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं।
(ग), दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
(घ) मंत्रिपरिषद् में अपनी पंसद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर-
(ग)।

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संस्थाओं का कामकाज Class 9 Questions And Answers HBSE प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?
(क) जिलाधीश
(ख) गृहमंत्रालय का सचिव
(ग) गृहमंत्री
(घ) पुलिस महानिदेशक।
उत्तर-
(ग)।

अध्याय 5 संस्थाओं का कामकाज के प्रश्न-उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 3.
न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा बयान गलत है?
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।
(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायापालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है।
(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती
(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर-
(क)

संस्थाओं का कामकाज Class 9 Notes HBSE प्रश्न 4.
निम्नलिखित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन-सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है?
(क) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) संसद।
उत्तर-
(घ)

संस्थाओं का कामकाज के प्रश्न-उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 5.
उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा

क. देश से जुट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। — 1. रक्षा मंत्रालय
ख. ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ करायी जाएंगी। — 2. स्वास्थ्य मंत्रालय
ग. सार्वजनिक वितरण के तहत — 3. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक बिकने वाले चावल और गेहूँ वितरण मंत्रालय की कीमतें कम हो जाएंगी।
घ. पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा।– 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
ङ. ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएंगे। — 5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय जाएँगे।
उत्तर-
(क) (4), (ख) (5), (ग) (3), (घ) (2), (ङ) (1)।

प्रश्न 6.
देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनीतिक संस्था का नाम बताइए जो निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है-
(क) सड़क, सिंचाई जैसे बुनियादी ढाँचों के विकास और नागरिकों की विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा।
(ख) स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने संबंधी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर विचार-विमर्श करती हैं।
(ग) दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।
(घ) भूकंप पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना माँगती है।
उत्तर-
(क) वित्त मंत्रालय।
(ख) विधि मंत्रालय।
(ग) सर्वोच्च न्यायालय।
(घ) सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय।

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प्रश्न 7.
भारत का प्रधानमंत्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता? निम्नलिखित चार जवाबों में सबसे सही को चुनकर अपनी पसंद के पक्ष में कारण दीजिए
(क) संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है।
(ख). लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का कार्यकाल पूरा होन से पहले ही उन्हें हटा सकती है।
(ग) चूँकि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है लिहाजा, उसे जनता द्वारा चुने जाने की जरूरत ही नहीं है।
(घ) प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।
उत्तर-
संवैधानिक दृष्टि से, प्रधानमंत्री का पद एक नियुक्त पद होता है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है। संसदीय प्रणाली (जो हमने अपनायी हुई है) में प्रधानमंत्री राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 8.
तीन दोस्त एक ऐसी फिलम देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाता है और राज्य में बहुत से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इसी चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक है। शंकर ने काह कि यह तो एक कल्पना है। कोई भी मंत्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर-
वस्तुतः कोई भी मुख्यमंत्री कोई बड़ा परिवर्तन नहीं कर सकता विशेषताया एक दिन में। यह और बात है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में कुछेक परिवर्तन कर सकता है। एक दिन कुछ मूल व बड़े परिवर्तन संभव होते हैं।

प्रश्न 9.
एक शिक्षिका छात्रों की संसद के आयोजन की तैयारी कर रही थी। उसने दो छात्राओं से अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे चाहें तो राज्य सभा में बहुमत प्राप्त दल की नेता हो सकती थीं और अगर चाहें तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको यह विकल्प दिया गया तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
उत्तर-
मैं छात्रों की लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने के विकल्प का चयन करता। दोनों सदनों में लोकसभा न केवल एक प्रतिनिध्यात्मक सदन हैं, अपितु राज्य सभा से अधिक शक्तिशाली सदन भी हैं। लोक सभा मंत्रिमंडल में खासा योगदान देता है।

प्रश्न 10.
आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका की भूमिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कौन-सी प्रतिक्रिया न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह स समझता है
(क) श्रीनिवास का तर्क है कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है लिहाजा वह स्वतंत्र नहीं है।
(ख) अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन का निर्देश दिया।
(ग) विजया का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है न ही किसी के अनुसार चलने वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया। आपकी राय में कौन-सा विचार सबसे सही है?
उत्तर-
(ग) सही उत्तर-है। न्यापालिका स्वतंत्र है। इसे सरकार के विरुद्ध निर्णय लेने का अधिकार है। वास्तव में, वह सरकार को यह आदेश देश सकती है कि वह अपने निर्णय/आदेश को बदले।

HBSE 9th Class Civics संस्थाओं का कामकाज Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े – वर्गों के लिए किसने प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था 6.
उत्तर-27% (सेवाओं में)।

प्रश्न 2.
द्वितीय पिछड़े वर्ग आयोग को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
मण्डल आयोग के नाम से।

प्रश्न 3.
किस कार्यालय आदेश द्वारा प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में सेवाओं पर प्रभाव पड़ता हैं?
उत्तर-
कार्यालय आदेश क्रम संख्या : 36012/31/90 ई.एस.टी. तिथि : 13/8/19901

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प्रश्न 4.
मण्डल आयोग कब बनाया गया था?
उत्तर-
1978 में।

प्रश्न 5.
कार्यालय आदेश क्रम 36012/31/90 के : संदर्भ में निम्न लोगों द्वारा निभायी गयी भूमिका के विषय में एक-एक वाक्य लिखिए।
(1) संयुक्त सचिव
(2) बी.पी मडल
(3) वी.पी. सिंह
(4) इन्दिरा साहनी।
उत्तर-
(1) संयुक्त सचिव वह अधिकारी था जिसने कार्यालय आदेश क्रम संख्या 36012/31/90 पर हस्ताक्षर किए थे।
(2) मण्डल वह व्यक्ति या जिसने द्वितीय पिछडे वर्ग आयोग की अध्यक्षता की थी। .
(3) जब यह कार्यालय आदेश जारी किया गया था, तब प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह थे।
(4) इन्दिरा साहनी ने संघीय सरकार के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया था।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र कैसे काम करता हैं? उत्तर-लोकतंत्र राजनीतिक संस्थाओं द्वारा काम करता हैं। प्रश्न 7. मंत्रिमंडल क्या करता हैं?
उत्तर-
मंत्रिमंडल देश से संबंधित बड़े-बड़े निर्णय करता है।

प्रश्न 8.
सर्वोच्च न्यायालय का क्या काम हैं?
उत्तर-
वह संस्था जो कानूनों, नीतियों तथा उनके कार्यरूप से जुड़े विवादों का समाधान करती हैं।

प्रश्न 9.
भारत की संसद का क्या काम हैं?
उत्तर-
देश के लिए कानून बनाना।

प्रश्न 10.
किस संस्था की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता हैं?
उत्तर-
मंत्रिपरिषद्।

प्रश्न 11.
अमेरिका की राष्ट्रीय विधानपालिका का नाम बताइए।
उत्तर-
कांग्रेस/निम्न सदन को प्रतिनिधि सदन तथा ऊपरीय सदन को सीनेट कहा जाता हैं।

प्रश्न 12.
ब्रिटिश विधानपालिका को क्या कहते
उत्तर-
संसद/निम्न सदन कामन सदन है तथा ऊपरीय सदल लॉर्ड सदन।

प्रश्न 13.
भारत के राष्ट्रपति राज्यसभा में कितने सदस्य मनोनीत करता है तथा किस आधार पर।
उत्तर-
(क) 12 सदस्य, (ख) कला, विज्ञान, साहित्य, समाजसेवा के आधार पर।

प्रश्न 14.
राज्यसभा का कार्यकाल बताइए।
उत्तर-
राज्यसभा एक स्थायी सदन हैं। परंतु इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष पश्चात् अवकाश प्राप्त कर लेते हैं। इसका एक सदस्य छः वर्ष के लिए चुना जाता है।

प्रश्न 15.
कौन निर्णय करता है कि एक अमुक साधारण प्रस्ताव है अथवा धन प्रस्ताव।
उत्तर-
लोकसभा के स्पीकर (अध्यक्ष)।

प्रश्न 16.
लोकसभा से पास होकर धन प्रस्ताव कहाँ जाता है?
उत्तर-
राज्यसभा में।

प्रश्न 17.
संसद की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर-
लोकसभा स्पीकर।

प्रश्न 18.
किसके हस्ताक्षर के पश्चात् प्रस्ताव कानून बनता है?
उत्तर-
राष्ट्रपति।

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प्रश्न 19.
आरक्षण के मामले में किसने क्या किया?
(क) सर्वोच्च न्यायालय — 1. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की औपचारिक घोषणा की।
(ख) कैबिनेट — 2. आदेश जारी कारके घोषणा को लागू किया।
(ग) राष्ट्रपति — 3. 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया।
(घ) सरकारी अधिकारी — 4. आरक्षण को वैध करार दिया।
उत्तर-
(क) (4), (ख) (3), (ग) (1), (घ) (2)।।

प्रश्न 20.
इलियम्मा, अन्नाकुट्टी और मेरीमॉल राष्ट्रपति के विषय वाले हिस्से को पढ़ती हैं। वे तीनों एक-एक सवाल का जवाब जानना चाहती हैं। क्या आप उन्हें उनके सवालों के जवाब दे सकते हैं?

इलियम्मा : अगर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री किसी नीति पर सहमत हों तो क्या होगा? क्या प्रधानमंत्री का विचार हमेशा प्रभावी होगा?
अन्नाकुट्टी : मुझे यह बेतुका लगता है कि सशस्त्र बलों की सुप्रतीम कमांडर राष्ट्रपति हो। वह तो एक भारी बंदूक भी नहीं उठा सकता। उसे कमांडर बनाने
में क्या तुक हैं?
मेरीमॉल : मेरा सवाल यह है कि अगर असली अधिकार प्रधानमंत्री के पास ही हैं तो राष्ट्रपति की जरूरत ही क्या हैं?
उत्तर-
(1) प्रधानमंत्री का विचार हमेशा प्रभावी होता हैं।
(2) राज्य के अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति सभी विभागों के मुखिया होते हैं।
(3) भारत में ससंदीय प्रणाली अपनायी गयी हैं। इस प्रणाली में एक संवैधानिक मुखिया होता हैं।

प्रश्न 21.
राष्ट्रपति पद के निर्वाचन के लिए योग्यताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया हैं। ये योग्याताएँ इस प्रकार हैं
(1) वह भारत का नागरिक हो;
(2) वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो;
(3) वह लोकसभा के लिए सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो; ,
(4) उसके पास लाभ का पद न हो।

प्रश्न 22.
राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने से पूर्व कौन-सी शपथ ली जाती हैं?
उत्तर-
राष्ट्रपति पद-ग्रहण करने से पूर्व जो शपथ ली जाती है उसका वर्णन संविधान की धारा 60 में किया गया है। राष्ट्रपति पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति में ज्येष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलायी जाती है।
राष्ट्रपति पद की शपथ निम्न हैं
‘मैं……….ईश्वर की शपथ लेता हूँ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति-पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वाहन) करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान तथा विधि का परिक्षण, संरक्षण तथा प्रतिरक्षण करूँगा तथा मैं भारत की जनता की सेवा तथा कल्याण करूँगा।”

प्रश्न 23.
संवैधानिक अध्यक्ष से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संवैधानिक अध्यक्ष का अर्थ है संविधान द्वारा निश्चित किया गया अध्यक्ष। भारतीय संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका की शक्तियों के स्वामी हैं। परंतु यह आवश्यक नहीं कि जो संवैधानिक अध्यक्ष हों, वे वास्तविक अध्यक्ष भी हों। भारत में संवैधानिक अध्यक्ष का पद राष्ट्रपति के पास है। राष्ट्रपति राज्य के अध्यक्ष हैं, सरकार के नहीं। संसदीय अथवा मंत्रिमंडल व्यवस्था के अंतर्गत राज्य-अध्यक्ष तथा सरकार-अध्यक्ष में भेद किया जाता है। संवैधानिक अध्यक्ष के नाम पर चलने वाली शक्तियों का प्रयोग वास्तवक कार्यपालिका (जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं) द्वारा किया जता हैं।

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प्रश्न 24.
राष्ट्रपति के निर्वाचन से संगठित निर्वाचन मंडल की रचना कीजिए।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के लिए संविधान की धारा 54 तथा 55 में एक निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया है जिसमें (1) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा (2) राज्यों की विधानसभाओं तथा केन्द्रीय प्रशासित क्षेत्रों में स्थापित मंडलों के चुने हुए सदस्य होते हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत एकल संक्रमणीय मत-पद्धति के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता हैं।

प्रश्न 25.
भारत के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। ऐसे अध्यादेश की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
संविधान की धारा 123 में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। उस समय जबकि संसद की बैठक न हो रही हो, राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है। परंतु, जब संसद की बैठक बुलाई जाती है तो उस बैठक के प्रथम दिन से लेकर छः सप्ताह के बीच राष्ट्रपति को उस अध्यादेश की स्वीकृति संसद से प्राप्त करनी पड़ती है। यदि संसद अध्यादेश को स्वीकार नहीं करती, तो अध्यादेश वापिस ले लिया जाता है और यदि संसद द्वारा अध्यादेश स्वीकार कर लिया जाता है तो वह अध्यादेश कानून बन जाता है।

प्रश्न 26.
“सामूहिक उत्तरदायित्व” का अर्थ व उसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय पद्धति की आधारशिला है। इसका अर्थ यह है कि सभी मंत्री साँझे रूप से एक-दूसरे के विभागों के संचालन के लिए विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी हैं। भारतीय संविधान में ‘सामूहिक उत्तरदायित्व का उल्लेख संविधान की धारा 75
के तीसरे उपभाग में किया गया है। जिसमें कहा गया है कि मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तदायी होगा। यदि मंत्रिपरिषद् का सामूहिक उत्तरदायित्व न हो तो संसदीय प्रणाली कार्य नहीं कर सकती।

प्रश्न 27.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति कैसे होती हैं?
उत्तर-
प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। उस व्यक्ति को जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो, राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है लोकसभा में बहुमत वाले राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना स्वाभाविक होता है, क्योंकि ऐसी नेता ही मंत्रिपरिषद् को लोकसाभ के प्रति सामूहिक दायित्व निभाने में सहायक हो सकता है।

प्रश्न 28.
उपराष्ट्रपति को कैसे चुना जाता है? उसे कैसे हटाया जाता है?
उत्तर-
संविधान की धारा 66 के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के चुनाव हेतु निर्वाचन मण्डल का प्रावधान मिलता है। इस निर्वाचन मण्डल में ससंद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। आनुपातिक प्रतिनिवित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा उपराष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। उपराष्ट्रपति को राज्यसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर, जिसे लोकसभा भी स्वीकार कर ले, हटाया जा सकता है।

प्रश्न 29.
उपराष्ट्रपति के कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उपराष्ट्रपति मुख्यतः दो प्रकार के कार्य करते हैं-

(1) राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना, इस सम्बन्ध में उन्हें लगभग वही कार्य करने होते हैं जो लोकसभा के अध्यक्ष करते हैं।
(2) राष्ट्रपति की अनुपास्थिति में कार्यवाही; राष्ट्रपति के रूप में उपराष्ट्रपति कोवे सभी शक्तियाँ तथा सुविधाएँ प्राप्त होती हैं जो राष्ट्रपति को प्राप्त होती है।

राष्ट्रपति की मृत्यु पर उपराष्ट्रपति अधिक से अधिक छः महीने तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकते प्रधानमंत्री और कैबिनेट ऐसी संस्थाएँ हैं जो महत्त्वपूर्ण नीतिगत फैसले करती हैं। मंत्रियों द्वारा किए गए फैसले को लागू करने के उपयोग के लिए एक निकाय के रूप में नौकरशाह जिम्मेदार होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय वह संस्था है, जहाँ नागरिक और सरकार के बीच विवाद अंतत: सुलझाए जाते हैं। .

प्रश्न 30.
मंत्रिपरिषद् तथा मंत्रिमंडल में भेद कीजिए।
उत्तर-

(1)मंत्रिपरिषद् मंत्रियों की एक विशाल संस्था होती है। जिसमें लगभग 82-90 सदस्य होते है। मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या 15-20 के आसपास होती है।
(2)मंत्रिपरिषद् में कई प्रकार के मंत्री होते हैं कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री उपमंत्री; मंत्रिमंडल मे केवल कैबिनेट मंत्री होते हैं।
(3)मंत्रिपरिषद् में महत्त्वपूर्ण व शक्तिशाली संस्था मंत्रिमंडल होती है, अन्य मंत्री तो मात्र सलाहकार होते हैं।

प्रश्न 31.
एक तालिका द्वारा लोकसभा व राज्यसभा के सदस्यों की योग्यताओं, का तुलनात्मक अध्यय कीजिए।
उत्तर-
लोकसभा – राज्य सभा
1. भारत का नागरिक हो। — 1. भारत का नागरिक हो।
2. न्यूनतम आयु 25 वर्ष हो। — 2. न्यूनतम आयु 30 वर्ष हो।
3. संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार — 3. संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार उसमें योग्यताएँ हों।
4. उसके पास लाभ का पद न हो। — 4. उसेक पास लाभ का पद न हो।

प्रश्न 32.
लोकसभा व राज्यसभा के विषय में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर-दीजिए।
उत्तर-
HBSE 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज 1

प्रश्न 33.
संसद किस प्रकार कार्यपालिका पर नियंत्रण करती है?
उत्तर-
संसद कार्यपालिका पर अनेक तरीकों से नियंत्रण रखती है। (1) इनमें मंत्रियों से प्रश्न व पूरक पूछना; (2) ‘काम रोको’ प्रस्ताव करना; (3) नीतियों की आलोचना करना; (4) मंत्रियों के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास करना; (5) वित्तीय समितियों द्वारा सरकार के व्यय की जांच करना; (6) जाँच व संरक्षण समितियों द्वारा मंत्रियों के विभागों पर नियंत्रण।

प्रश्न 34.
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर-
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वार की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति करते समय संबंधित राज्य के . मुख्यमंत्री से प्रायः सलाह ली जाती है। वस्तुतः राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री तथा उसके मंत्रिमंडल की इच्छा पर ही की जाती है। प्रायः राज्यपाल उस राज्य का नागरिक नहीं होता जहाँ वे राज्यपाल नियुक्त किये जाते हैं।

HBSE 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

प्रश्न 35.
राज्यपाल की विवेकीय शक्तियो का विवचेन कीजिए।
उत्तर-
राज्यपाल की विवेकीय शक्तियों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित किया जा सकता है।
(1) मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना, जब विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो पाए।
(2) राज्य प्रशासन का राष्ट्रपति को सूचना/प्रतिवेदन देना।
(3) राज्य विधानसभा संग करना। जब कोई मुख्यमंत्री विधानसभा का विश्वास खो बैठता है तब राज्यपाल अपनी इच्छा से विधानसभा भंग करता है, न कि मुख्यमंत्री की सलाह पर।
(4) किसी विचारधीन विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना।

प्रश्न 36.
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति किस प्रकार होती हैं?
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश हैं। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श लेता है। उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति मुख्य * न्यायाधीश से परामर्श लेता है।

प्रश्न 37.
उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता हैं?
उत्तर-
उच्चतम/सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा जाता है इसके पीछे मुख्य तर्क यह है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून/अध्यादेश को जिसे वह संविधान के विरुद्ध मानता है उसे असंवैधानिकता घोषित कर सकता है। क्योंकि संविधान की व्याख्या व किसी कानून की संवैधानिकता का अंतिम निर्णय लेने का का अधिकार उच्चतम न्यायालक को हैं, इसलिए उसे ही संविधान का संरक्षक कहा जाता है।

प्रश्न 38.
अधीनस्थ न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
अधीनस्थ न्यायालय उच्च न्यायालयों की देखरेख में काम करते हैं। इन न्यायालयों में जिला स्तर पर दीवानी व फौजदारी अदालतें होती हैं जो अपने विवादों से संबंधित सुनवाई करती हैं। जिले का न्यायाधीश जब दीवानी मामलों की सुनवाई करता है। तो उसे जिला न्यायाशील कहा जाता है और जब फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे ‘सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। इन न्यायालयों के अतिरिक्त उप न्यायाधीश (सब जज), मुंसिफ के न्यायालय तथा – लघुवाद सम्बन्धी न्यायालय भी होते हैं। जिले में द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के भी दंड-अधिकारी होते हैं।

प्रश्न 39.
भारत की संसद के मुख्य कार्य क्या
उत्तर-
भारत की संसद के मुख्य कार्य निम्नलिखित
1. किसी भी देश में कानून बनाने का सबसे बड़ा अधिकार संसद को होता है। कानून बनाने या विधि निर्माण का यह काम इतना महत्त्वपूर्ण होता है कि इन सभाओं को विधायिका कहते हैं। दुनिया भर की संसदे नए कानून बना सकती हैं, मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकती हैं या मौजूदा कानून को खत्म कर उसकी जगह नये कानून बना सकती हैं।
2. दुनिया भर में संसद सरकार चलाने वालों को नियंत्रित करने के लिए कुछ अधिकारों का प्रयोग करती हैं __ भारत जैसे देश में उसे सीधा और पूर्ण नियंत्रण हासिल है।
संसद के पूर्ण समर्थन की स्थिति में ही सरकार चलाने वाले फैसले कर सकते हैं।
3. सरकार के हर पैसे पर संसद का नियंत्रण होता है। अधिकांश देशों में संसद की मंजूरी के बाद ही सार्वजनिक पैसे को खर्च किया जा सकता है।
4. सार्वजनिक मसलों और किसी देश की राष्ट्रीय नीति पर चर्चा और बहस के लिए संसद ही सर्वोच्च संघ है। संसद किसी भी मामले में सूचना माँग करती हैं। .

प्रश्न 40.
आप कैसे कहते हैं कि लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हैं?’
उत्तर-
निम्नलिखित तथ्यों की दृष्टि से यह स्पष्ट हो जाता है कि लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है।

1. किसी भी सामान्य कानून को पारित करने के लिए दोनों सदनों की जरूरत होती है। लेकिन अगर दोनों सदनों के बीच कोई मतभेद हो तो अंतिम फैसला दोनों के संयुक्त अधिवेशन में किया जाता है। इसमें दोनों सदनों के सदस्य एक साथ बैठते हैं। सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण इस तरह की बैठक में लोकसभा के विचार को प्राथमिकता मिलने की संभावना रहती है।

2. लोकसभा पैसे के मामलों में अधिक अधिकारों का प्रयोग करती है। लोकसभा में सरकार का बजट या पैसे संबधिति कोई कानून पारित हो जाए तो राज्यसभा उसे खारिज नहीं कर सकती। राज्यसभा उसे पारित करने मे केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है या उसमें संशोधन के सुझाव दे सकती है। यह लोकसभा का अधिकार है कि वह उन सुझावों को माने या न माने।

3. सबसे बड़ी बात को यह है कि लोकसभा मंत्रिपरषिद् को नियंत्रित करता है। सिर्फ वही व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है जिसे लोकसभा में बहुमत हासिल हो। अगर आधे से अधिक लोकसभा सदस्य यह कह दें कि उन्हें मंत्रिपरिषद् पर विश्वास नहीं है तो प्रधानमंत्री .समेत सभी मंत्रियों को पद छोड़ना होगा। राज्यसभा को यह अधिकार हासिल नहीं हैं।

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प्रश्न 41.
राष्ट्रपति की कार्यपालिका, विधायी व न्यायिक शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-संविधान द्वारा प्राप्त भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों व कार्यों का वर्णन निम्नलिखित किया जा सकता कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ:

  • संघीय सरकार की सभी कार्यकारी शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं। इन शक्तियों व कार्यों को राष्ट्रपति के नाम पर लागू किया जाता है।
  • संघीय सरकार की सभी नियुक्तियाँ द्वारा की जाती हैं। इन नियुक्तियों में प्रधानमंत्री व उनकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति सम्मिलित हैं; सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ, संघीय लोक सेवा के सभापाति व उसके अन्य सदस्यों की नियुक्तियाँ; राज्यपालों की नियुक्ति; मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य आयुक्तों की नियुक्तियाँ आदि।
  • केन्द्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों की नियुक्ति; इन क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति के नाम चलाया जाता है।
  • राष्ट्रपति सेना की तीन शाखाओं का सर्वोच्च कमाण्डर होता है।

विधायी शक्तियाँ:

  • राष्ट्रपति लोकसभा में दो ऐंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को मनोनीत करते हैं, यदि लोकसभा में इस समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न हो।
  • राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को साहित्य, कला, विज्ञान व समाजसेवा के आधार पर मनोनीत करते
  • वह संसद के. सदनों की बैठक बुला सकते हैं, इनके अधिवेशनों को स्थगित कर सकते हैं, लोकसभा को भंग कर सकते हैं।
  • वह हर वर्ष व आम चुनावों के बाद ससंद की पहली बैठक को संबोधित कर सकते हैं।
  • वह दोनों सदनों में साधारण प्रस्ताव पर उत्पन्न मतभेद को दूर करने हेतु संयुक्त बैठक बुला सकते हैं।
  • दोनों सदनों से पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। तब ही वह प्रस्ताव कानून बनता है। राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत को वापस उस सदन में जहां पहले वह प्रस्तुत होता है, सुझावों सहित अथवा बिना सुझावों के वापस भेजा जा सकता है। राष्ट्रपति प्रस्ताव पर हस्ताक्षर रोक भी सकते हैं। यह राष्ट्रपति प्रस्ताव को वापस भेज दें तो संसद द्वारा दूसरी बार पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करेन पड़ते हैं। . .
  • संसद की बैठकों के अंतराल में राष्ट्रपति अध्यादेश भी जारी कर सकते हैं, परंतु संसद की बैठक बुलाए जाने छः सप्ताह में ऐसे अध्यादेश की स्वीकृति संसद से लेना आवश्यक हैं, अन्यक्षा ऐसा अध्यादेश वापस ले लिया जाता है।

न्यायिक शक्तियाँ:

  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
  • राष्ट्रपति संघीय कानून के अंतर्गत किसी अपराधी के दंड को पूर्णतयाः माफ कर सकते हैं, दण्ड में कमी कर सकते हैं तथा दंड का रूप बदल सकते हैं।

प्रश्न 42.
प्रधानमंत्री की शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारत में संसदात्मक प्रणाली अपनायी गयी है। ऐसी शासन प्रणाली में राष्ट्रपति राज्य अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री अव्यक्ष होते है।। संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति के नाम पर चलने वाली सभी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् (जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं) द्वारा किया जाता है। संविधान स्वयं कहता है कि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों व कार्यों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् (जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगें) की सलाह व सुझाव पर करेंगे और जो सलाह-सुझाव राष्ट्रपति पर बाध्य होगी। संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री का पद अति महत्त्वपूर्ण होता है। प्रधानमंत्री की शक्तियों व कार्यों का वर्णन निम्नलिखित. किया जा सकता है-

  • प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् की रचना करता है। उसकी सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • मंत्रियों में विभागों की बांट भी प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है तथा उनके विभागों में फेरबदल भी प्रधानमंत्री करते हैं।
  • प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति के बीच कड़ी का कार्य करते हैं।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रपति का प्रमुख सलाहकार होता है। मंत्रिपरिषद् के निर्णय प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति तक पहुँचाए जाते हैं।
  • प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख वक्ता होता है। सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ व नीतियाँ प्रधानमंत्री द्वारा घोषित की जाती हैं।

प्रश्न 43.
संसद की शक्तियों और कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारत की संसद की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन निम्नलिखित किया जा सकता है।

  • वैधानिक शक्तियाँ-कानून-निर्माण का अधिकार संसद में निहित है। संसद संघीय सूची के 97 विषयों पर काननू बना सकती है।
  • वित्तीय संस्था-बजट संबंधी विषयों पर ससंद का पूर्ण अधिकार है संसद मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत बजट में कटौती भी कर सकती है और ऐसी स्थिति में मंत्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है। कोई भी धन-संबंधी प्रस्ताव बिना संसद की सहमति के लागू नहीं किया जा सकता। – दूसरे शब्दों में, खर्च आमदनी संबंधी मदों को संसद ही स्वीकृति देती हैं।
  • प्रशासनीय अधिकार-संसद का मंत्रियों पर नियंत्रण संसद का प्रशासनीय क्षेत्राधिकार है। संसद सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव पास करके तथा मंत्रियों द्वारा स्थापित नीतियों की आलोचना करके अपने प्रशासनीय अधिकारों का प्रयोग करते हैं।
  • निर्वाचन-संबंधी कार्य-संसद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा अपने-अपने सदन के अनेक अधिकारियों के चुनाव में भाग लेती है।
  • न्यायिक कार्य-अनेक प्रशासकीय अधिकारियों को महाभियोग के अपराध के आधार पर पदमुक्त करने का अधिकार संसद में निहित किया गया है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, महान्यायिक अधिकारी आदि को संसद हटाने की शक्ति रखती हैं।
  • संशोधनीय शक्तियाँ-ससंद को संविधान की किसी धारा में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है कुछ एक महत्त्वपूर्ण धाराओं के संशोधन के लिए राज्यों का समर्थन भी प्राप्त करना आवश्यक है। संशोधनीय नियमों पर जनमत लेने का प्रस्ताव संसद के विचारधीन है।
  • संकटकालीन उपबंध-संकटकाल की उद्घोषणा के फलस्वरूप जो अधिकार केन्द्रीय सरकार के बढ़ जाते हैं. उनके अधिकांश अधिकार संसद को प्राप्त होते है। भले ही ऐसे अधिकार अस्थायी समय के लिए संसद को दिये जाते हैं। परंतु इनसे संसद के प्रभाव में वृद्धि हो जाती है।

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प्रश्न 44.
उपराष्ट्रपति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
(1) उपराष्ट्रपति-राष्ट्रपति के बाद संघीय कार्यपालिका में उपराष्ट्रपति का स्थान आता है। उसका चुनाव संसद के दोनों सदन द्वारा किया जाता है। उसकी कार्य अवधि पांच वर्ष है। उससे पूर्व उपराष्ट्रपति स्वंय त्याग-पत्र दे सकते हैं अथवा संसद उसे. पर मुक्त भी कर सकती है।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। जब राष्ट्रपति किसी कारणवश अपने कार्य को न कर रहा हो, तो उपराष्ट्रपति उसकी जगह पर कार्य करते हैं। राष्ट्रपति की मृत्यु पर उपराष्ट्रपति छः महीने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकते हैं। छः महीने की अवधि में ही नए राष्ट्रपति का चयन करना पड़ता हैं।

प्रश्न 45.
राज्यपाल की शक्तियों व कार्यो का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
राज्यपाल की शक्तियों व कार्यो का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित हैं

  • राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्तियाँ करता है तथा उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी करता है।
  • राज्य की सभी प्रमुख नियुक्तियाँ राज्यपाल द्वारा होती हैं।
  • राज्यपाल के नाम पर सभी कार्यपालिकों संबंधी शक्तियाँ लागू की जाती है।
  • राज्यपाल विधानमंडल का अधिवेशन बुलाता है, स्थगित करता है तथा विधानसभा को भंग कर सकता है।
  • राज्य विधान मंडल द्वारा पारित प्रस्ताव राज्यपाल के हस्ताक्षरों के बिना कानून नहीं बन सकता। राज्यपाल किसी विधेयक पर हस्ताक्षर रोक भी सकते हैं तथा विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के लिए आरक्षित भी कर सकते हैं। वह विधेयक को वापस भेज सकते है।
  • राज्यविधान मंडल के अधिवेशन के अंतराल में राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति है। परन्तु विधानमंडल की बैठक शुरू होते ही छः सप्ताह में अध्यादेश का अनुमोदन अनिवार्य है।
  • कोई भी धन सम्बन्धी विधेयक विधानसभा में राज्यपाल की पूर्वाज्ञा के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर वहाँ राष्ट्रपति के शासन के काल में सभी कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल द्वारा संचालित की जाती है।

प्रश्न 46.
उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार की विवेचना निम्नलिखित की जा सकती है।
(1) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार-उच्चतम न्यायालय के निम्नलिखित विवादों में प्रारंभिक. क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं।
(क) भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद
(ख) एक ओर भारत सरकार तथा एक या अधिक राज्यों की सरकारों तथा दूसरी ओर एक या अधिक राज्यों की सरकारों के बीच विवाद; ___ (ग) दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद।

(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार-अपीलीय क्षेत्राधिकार तीन प्रकार का है संवैधानिक, दीवानी, फौजदारी।
(क) उच्च न्यायालय के किसी निर्णय के विरुद्ध उस दशा में अपील की जा सकती है जब उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण-पत्र दे दे कि उस प्रकरण में संविधान की व्याख्या से संबंधित प्रश्न निहित हैं।
(ख) दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय के किसी निर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकती है। यदि उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण-पत्र दे दे कि संबंधित मामले में सारगर्भित कानूनी प्रश्न निहित हैं।
(ग) फौजदारी मामलों में भी उच्चतम न्यायालय में – उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकती है यदि किसी फौजदारी मामले मे नीचे के न्यायपाल ने अभियुक्त को निर्देष घोषित करके छोड़ने का आदेश दिया · हो परंतु अपील होने पर उसी मामले में उच्च न्यायालय ने उसे मृत्युदंड की सजा दे दी हो या उच्च न्यायालय ने किसी फौजदारी मामले को अपने पास मंगा कर मृत्यु दंड दे दिया हो।
(3) अपील की अनुमति का क्षेत्राधिकार-उच्चतम न्यायालय स्वयं निचले न्यायालय के किसी निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत किए जाने की अनुमति दे सकता है
(4) उच्चतम न्यायालय अपने निर्णयों पर पुनर्विचार भी कर सकता है।

प्रश्न 47.
सर्वोच्च न्यायालय न्यापालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए किन्हीं तीन शर्तों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय न्यायापालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अनेक शर्तो में निम्नलिखित तीन .. की विवेचना इस प्रकार है। ____ (1) कार्यावधि की सुरक्षा-न्यायाधीशों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उनकी कार्यावधि की सुरक्षा है। न्यायाधीश को. केवल कदाचार अथवा अयोग्यता के आधार पर ही संसद के उपस्थिति तथा मत दे रहे दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत पर ही हटाया जा सकता है। धारा 124 (4) स्वयं में एक ऐसी सख्त शर्त है जिसे व्यावहारिक रूप देना कठिन है।
(2) अवकाश-प्राप्ति के पश्चात् वकालत पर प्रतिबंध-एक अन्य उपबन्ध, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा प्रदान करता है, वह यह है कि न्यायाधीशों के अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें वकालत करने की आज्ञा नहीं दी जाती। परंतु अवकाश प्राप्ति के पश्चात् न्यायाधीशों को कुछ विशेष प्रकार की जिम्मेदारियाँ सौंपी जा सकती हैं, उदाहरणार्थ, उन्हें जांच-पड़ताल कमीशन का सभापति बनाया जा सकता हैं, किसी विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया जा सकता है, किसी अन्य देश में राजदूत बनाकर भेजा जा सकता है।
(3) उच्च योग्यताएँ-एक उच्च योग्यता वाला न्यायाधीश ही निष्पक्ष तथा पक्षपातरहित होकर न्याय दे सकता है। इसे हेतु संविधान में ऐसे उपबंध मिलते हैं जिनके फलस्वरूप योग्य न्यायाधीशों की नियुक्ति संभव हो पाती है। संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के लिए पाँच वर्ष तक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश होने अथवा उच्च न्यायालय में दस वर्ष तक अधिवक्ता होने का अनुभव आवश्यक समझा गया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों को उपयुक्त शब्दों में भरें :

(i) कानून के सुझाव को……………कहा जाता
(ii) …………..के हस्ताक्षर के पश्चात् एक प्रस्ताव कानून बन जाता है।
(iii) राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता…………….करता हैं
(iv) लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता…… करता है।
(v) प्रधानमंत्री…………..की अध्यक्षता करता है।
उत्तर-
(i) प्रस्ताव,
(ii) राष्ट्रपति,
(iii) छ:,
(iv) स्पीकर,
(v) मंत्रिपरिषद्।

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों से सही व गलत का चयन करें।

(i) राज्यसभा एक धन प्रस्ताव को 14 दिन तक रोक सकती हैं।
(ii) लोकसभा में कुल 500 सदस्य हो सकते हैं।
(iii) राज्य सभा को राष्ट्रपति भंग कर सकता है।
(iv) हमारे देश में राष्ट्रपति प्रणाली अपनायी गयी
(v) सर्वोच्च न्यायालय में कुल सदस्य संख्या 28 हैं।
उत्तर-
(i) √,
(ii) x,
(iii) x,
(iv) x,
(v) √

HBSE 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

प्रश्न 3. निम्नलिखित विकल्पों में सही विकल्प का चयन करें।

(i) मंडल आयोग को निम्न वर्ष निमांकित किया गया था
(a) 1976
(b) 1977
(c) 1978
(d) 1979
उत्तर-
(c) 1978

(ii) प्रधानमंत्री को निम्न नियुक्त करता है।
(a) राष्ट्रपति
(b) सर्वोच्च न्यायालय
(c) जनता
(d) लोकसभा स्पीकर
उत्तर-
(a) राष्ट्रपति

(iii) भारत में निम्न न्यायालय सबसे ऊपर है
(a) जिला अदालतें
(b) उच्च न्यायालय
(c) सर्वोच्च न्यायालय
(d) लोक अदालत
उत्तर-
(c) सर्वोच्च न्यायालय

(iv) प्रधानमंत्री किसकी अध्यक्षता करता है
(a) लोकसभा
(b) राज्यसभा ।
(c) मंत्रिपरिषद
(d) विधानसभा
उत्तर-
(c) मंत्रिपरिषद

(v) राज्यसभा के कुल सदस्य हो सकते हैं
(a) 240
(b) 250
(c) 260
(d) 270
उत्तर-
(b) 250

संस्थाओं का कामकाज Class 9 HBSE Notes in Hindi

अध्याय का सार

संघात्मक व्यवस्था होने के कारण भारत में एक ओर केंद्र की सरकार तथा दूसरी ओर राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारें हैं। सरकार के प्रत्येक स्तर पर उसके तीन अंग हैं-कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा विधायिका। केंद्र की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित मंत्रिपरिषद् है। उसकी विधायिका में संसद है जिसके दो सदन हैं-लोकसभा व राज्यसभा। केन्द्र की न्यायपालिका में सर्वोच्च न्यायालय है। राज्यों में कार्यपालिका राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद्ध है और विधायिका में राज्य विधानमंडल है जिसमें कुछ प्रांतों/राज्यों (उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार कर्नाटक, जम्मू कश्मीर) में द्विसदनीय विधानपालिका (विधान सभा तथा विधान परिषद्) है जबकि अन्य में एक-सदनीय विधानपालिका (विधानसभा) है। राज्यों में न्यायपालिका के शिखर पर उच्च न्यायालय है। केन्द्रशासित प्रदेशों का शासन केंद्र की सरकार की देख-रेख में चलाया जाता है। केन्द्र की कार्यपालिका (जिसे संघीय कार्यपालिका भी कहते हैं) में राज्य अध्यक्ष राष्ट्रपति हैं तथा सरकार के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। संसदात्मक प्रणाली के अनुरूप राष्ट्रपति नाममात्र अर्थात् संवैधानिक मुखिया है और प्रधानमंत्री तथा उनकी अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका है। राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल करता है। इसको अवधि पाँच वर्ष है। उसे केवल महाभियोग के अपराध पर ही हटाया जा सकता है।

HBSE 9th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों में बड़ी-बड़ी नियुक्तियाँ करना (जैसे प्रधानमंत्री, अन्य मंत्री, मुख्य न्यायाधीश, अन्य न्यायाधीश, राज्यपाल, राजदूत आदि) हैं। वह तीनों सेनाओं का प्रमुख सेनापति हैं । केंद्र सरकार का समस्त प्रशासन उसके नाम पर चलता है।
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों में संसद के सदनों का अधिवेशन बुलाना, लोकसभा भंग करना, संसद द्वारा पास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना, अध्यादेश जारी करना आदि हैं।

उसको न्यायिक शक्तियों में अपराधी को दिए हुये दण्ड को माफ करना व कम करना है। वह किसी मामले पर सर्वोच्च न्यायालय की सलाह भी ले सकता है जब (क) राष्ट्र की सुरक्षा आक्रमण, आक्रमण के भय अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में हो, (ख) किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र द्वारा प्रशासन न चल रहा हो, (ग) वित्तीय संकट आ जाए। इन आपातकालीन परिस्थितियों में केन्द्र सरकार की शक्तियों में काफी वृद्धि हो जाती है और हमारा संघीय ढाँचा एकात्मक ढाँचे में बदला जा सकता है।

राष्ट्रपति के नाम पर चलने वाली शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री तथा उसकी अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद् करता है। मंत्रिपरिषद्, प्रधानमंत्री सहित, संसद से लिया जाता है तथा लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है। आम चुनावों के पश्चात संसद के बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री तथा उसकी सलाह पर मंत्रियों की नियुक्तियाँ की जाती हैं।

केन्द्र की विधायिका में संसद है। संसद के दो सदन होते हैं-लोकसभा व राज्यसभा। लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुना हुआ सदन होता है जिसकी अवधि पाँच वर्ष की होती है और जिसे आपातकालीन समय में अधिकाधिक एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 550 होती है। राज्य सभा (कुल सदस्य 250) संसद का ऊपरीय सदन है जो राज्यों . व केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्थायी सदन है, परंतु इसके सदस्य छः वर्ष के लिए चुने होते हैं और जिसमें 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष पश्चात् अवकाश प्राप्त कर लेते हैं।

संसद के दोनों सदनों में लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली सदन है-कानून निर्माण मामलों में, वित्तीय प्रस्तावों के मामलों में व कार्यपालिका पर नियंत्रण के मामलों में। दोनों सदनों की संशोधनीय शक्तियाँ, न्यायिक शक्तियाँ व निर्वाचन शक्तियाँ एक समान हैं। राज्यसभा को किसी नयी अखिल भारतीय सेवा के निर्माण तथा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीयहित का घोषित करने से संबंधित प्रस्ताव पास करने का अधिकार है। लोकसभा अपनी सभी कार्यवाही स्पीकर की अध्यक्षता में करती है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा की अध्यक्षता करते हैं।

राज्यों में भी प्रशासन की शैली केन्द्र की भाँति है। राज्यपाल राज्य की कार्यपाणिका का संवैधानिक मुखिया होता है जो आपातकालीन परिस्थितियों में विशेष रूप से राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के अंतर्गत राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में कार्य करता है। राज्य की वास्तविक कार्यपालिका मुख्यमंत्री तथा उसको अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

राज्यों में विधायिका को राज्य विधानमंडल कहा जाता है। किन्हीं राज्यों में राज्य विधानमंडल के दो सदन होते हैं-विधानसभा तथा विधान परिषद्। ऐसे राज्यों में विधानसभा विधान परिषद् की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है। शेष राज्यों में विधानसभा ही होती है और वह ही शक्तिशाली होती है और उसके प्रति ही राज्य की वास्तविक कार्यपालिका सामूहिक रूप से उत्तरदायी रहती है।

केन्द्रशासित प्रदेशों में शासकीय इकाइयों पर केन्द्र की सरकार का नियंत्रण होता है। भारत में स्थापित संघीय व्यवस्था के अनुरूप न्यायपालिका की एक विशेष भूमिका रही है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय संघीय व राज्य सरकारों के बीच विवादों का निर्णय करता है। वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय यह भी देखता है कि सरकारें अपने-अपने क्षेत्राधिकार में रहकर कार्य करती हैं। भारत की न्यायपालिका संघीय ढाँचे, नागरिकों के अधिकारों व संविधान की रक्षा का दायित्व निभाती है।

सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश हैं। इन न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । अपनी आयु के 65 वर्ष तक न्यायाधीश कार्य करता है। उससे पूर्व न्यायाधीश त्याग-पत्र भी दें सकता है अथवा उसे महाभियोग अपराध पर हटाया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय को प्रारंभिक व अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है। केन्द्र व राज्य, राज्यों के बीच विवाद सीधे सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए जाते हैं। अपीलें संवैधानिक भी हो सकती हैं, दीवानी भी तथा फोजदारी भी। सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय के रूप में काम करता है। राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से कानूनी सलाह माँग सकता है। परंतु वह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं होती। . प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गयी है। कुछ राज्यों का एक उच्च न्यायालय भी हो सकता है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। इन न्यायालयों में न्यायाधीश अपनी आयु के 62 वर्ष तक अपने पद पर रह सकते हैं। इससे पूर्व कोई न्यायाधीश त्याग-पत्र भी दे सकता है अथवा महाभियोग अपराध पर हटाया भी जा सकता है। उच्च-न्यायालय के पास प्रारंभिक, अपीलीय व प्रशासनिक क्षेत्राधिकार हैं। सर्वोच्च न्यायपलय की भाँति उच्च-न्यायालय ब्रिटिश जारी कर सकती है। उच्च न्यायालय के अधीन स्थानीय स्तर पर अधीनस्थ न्यायालय कार्य करती हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए सभी उपाय किए गए हैं।

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HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo

HBSE 12th Class English Indigo Textbook Questions and Answers

Question 1.
Why do you think Gandhi considered the Champaran episode to be a turning-point in his life? (आपके विचार से गाँधी चम्पारन की घटना को अपने जीवन का अहम् मोड़ क्यों मानते थे ?)
Or
[2018 (Set-B)] The Champaran episode was a turning point in Gandhiji’s life. Elucidate. (चम्पारन की घटना से गाँधी जी के जीवन में अहम मोड़ आया। स्पष्ट करें।)[H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)]
Answer:
In 1917, Mahatma Gandhi went to Champaran. There he saw the miserable condition of the peasants. He fought against the injustice being done to the peasants by the British landlords. The peasants had been cheated by the landlords. They had taken money from them in the name of freeing them from the 15 percentage arrangements. Now the peasants wanted their money back. Gandhi took up their case. The police ordered him to leave Champaran. But he did not obey the orders.

He fought for the rights of the peasants. He had long meetings with the authorities. In the end, the landlords agreed to give back 25 percentage money to the farmers. According to Gandhi, money was not important. It was important that the British landlords had lost the case and their prestige. That incident was a turning point in Gandhi’s life. This was the first victory of satyagraha and non-violent movement in India. This episode taught Gandhi the power of satyagraha.

(1917 में, महात्मा गाँधी चम्पारन गए। वहाँ उन्होंने किसानों की दुर्दशा देखी। उन्होंने ब्रिटिश जमींदारों द्वारा किसानों के प्रति किए जाने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ाई की। किसानों को जमींदारों ने धोखा दिया था। उन्होंने किसानों से उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से मुक्त करने के नाम पर पैसा लिया था। अब किसान अपना पैसा वापिस माँगते थे। गाँधी ने उनके मामले को अपने हाथ में लिया। पुलिस ने उन्हें चम्पारन छोड़ने का आदेश दिया। मगर उस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया। वे किसानों के अधिकारों के लिए लड़े। उन्होंने अफसरों के साथ लम्बी सभाएं की। अन्त में जमींदार 25 प्रतिशत पैसा किसानों को देने के लिए राजी हो गए। गाँधी के अनुसार, पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं था। यह महत्त्वपूर्ण था कि ब्रिटिश जमींदार केस और सम्मान हार गए थे। यह घटना गाँधी के जीवन में एक मोड़ साबित हुई। यह सत्याग्रह और अहिंसक आन्दोलन की पहली जीत थी। इस घटना ने गाँधी को सत्याग्रह की शक्ति की शिक्षा दी।)

Question 2.
How was Gandhi able to influence lawyers? Give instances. (गाँधी वकीलों को प्रभावित करने में कैसे सफल हो गए ? उदाहरण दो।)
Answer:
Gandhi proceeded to Champaran to see for himself the pitiable condition of the farmers. On the way he stopped at Muzzafarpur in order to obtain information about the peasants. The news of Gandhi’s coming spread among the lawyers of Muzzafarpur. They came to meet Gandhi. They gave him information about the peasants of Champaran. They told Gandhi that they frequently represented peasant groups in courts. Gandhi rebuked the lawyers for collecting big fee from the poor peasants. He told that in places like Bihar and Champaran, people were very poor. So the law courts were useless for them.

Gandhi received summons to appear in the court. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. Thousands of peasants had gathered round the courthouse. Rajendra Prasad, Brijkishor Babu, Maulana Mazharul Huq and several other lawyers had come from Bihar. They conferred with Gandhi. They told him that they had come to advise him. But if he were put into prison they would not be able to advise him. Gandhi asked him to think of the plight of the poor peasants. The lawyers saw that Gandhi was totally a stranger, yet he was fighting for the peasants of that area. Now the lawyers said that they would follow Gandhi to jail. Gandhi was satisfied. He said that the battle of Champaran had been won.

(गाँधी किसानों की दयनीय हालत स्वयं देखने के लिए चम्पारन को चल दिए। रास्ते में किसानों के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए मुज़फ्फरपुर में रुके। गाँधी के आने की खबर मुजफ्फरपुर के वकीलों में फैल गई। वे गाँधी से मिलने आए। उन्होंने उन्हें चम्पारन के किसानों के बारे में सूचना दी। उन्होंने गाँधी को बताया कि वे अक्सर किसानों के समूहों का कचहरियों में प्रतिनिधित्व करते हैं। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। उन्होंने वकीलों को बताया कि बिहार और चम्पारन जैसे स्थानों पर लोग बहुत गरीब हैं। इसलिए कानूनी कचहरियाँ उनके लिए बेकार हैं। गाँधी को कचहरी में हाजिर होने के लिए कोर्ट का आदेश प्राप्त हुआ। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजा कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाए। कचहरी के आस-पास हजारों किसान इकट्ठे हो गए थे। राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मजहरूल हक और कई वकील बिहार से आए थे। उन्होंने गाँधी से विचार-विमर्श किया।

उन्होंने उनसे कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए तो वे उन्हें सलाह नहीं दे पाएँगे। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा। वकीलों ने देखा कि गाँधी पूरी तरह से अजनबी हैं, फिर भी वे उस इलाके के किसानों के लिए लड़ रहे थे। अब वकीलों ने कहा कि वे गाँधी के पीछे जेल के अन्दर तक जाएँगे। गाँधी सन्तुष्ट हो गए। उन्होंने कहा कि चम्पारन की लड़ाई जीत ली गई है।)

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Question 3.
What was the attitude of the average Indian in smaller localities towards advocates of ‘home rule’? (छोटी बस्तियों में सामान्य भारतीय का ‘होमरूल’ के पक्षधरों के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?)
Answer:
Home rule means the right of a country and its people to govern itself. In those days India was governed by Britain. The people of India wanted to be free from the foreign rule. However, before the coming of Gandhi, there was no mass movement against the British. The condition of people, especially the peasants, was really pitiable. They were exploited by the landlords and the officials. The average people wanted to get rid of the British rule. But they needed someone to motivate and encourage them.

Gandhi went to Champaran to alleviate the suffering of the peasants. He asked for the help of common people. Before going to Champaran, he spent two days at Muzzafarpur. There he stayed in the house of Professor Malkani, a teacher in a government school. Gandhi commented that it was an extraordinary thing in those days for a government professor to give shelter to a man like him. A number of lawyers like Dr. Rajendra Prasad also reached there and helped Gandhi. Thus the average Indian was in favour of the home rule. But he needed a good leader to guide him.

(होमरूल का अर्थ है कि किसी देश और उसके लोगों के द्वारा स्वयं पर शासन करना। उन दिनों में भारत पर ब्रिटेन का शासन था। भारत के लोग विदेशी शासन से मुक्त होना चाहते थे। लेकिन, गाँधी के आने से पहले, अंग्रेजों के खिलाफ कोई विशाल जन-आन्दोलन नहीं था। लोगों की, विशेष तौर पर किसानों की, हालत सचमुच दयनीय थी। जमींदार और उनके एजेन्ट उनका शोषण करते थे। आम व्यक्ति ब्रिटिश शासन से छुटकारा पाना चाहता था। मगर उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो उन्हें उकसा और प्रेरित कर सके। गाँधी किसानों के कष्टों को कम करने के लिए चम्पारन गए। उन्होंने आम व्यक्ति से सहायता की माँग की। चम्पारन जाने से पहले उन्होंने दो दिन मुज़फ्फरपुर में बिताए। वहाँ सरकारी स्कूल में एक प्राध्यापक मलकानी के घर में रुके। गाँधी ने कहा कि उन दिनों में यह एक असाधारण बात थी कि कोई सरकारी प्राध्यापक उस जैसे व्यक्ति को अपने घर में शरण दें। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जैसे कई वकील भी वहाँ पर आए और उन्होंने गाँधी की सहायता की। इस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति भी होमरूल के पक्ष में था। मगर नेतृत्व के लिए किसी अच्छे नेता की आवश्यकता थी।)

Question 4.
How do we know that ordinary people too contributed to the freedom movement? (हमें कैसे मालूम होता है कि सामान्य लोगों ने भी स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान दिया ?)
Answer:
Gandhi’s biggest contribution to the freedom movement is that he awakened the common people. He had realized that no freedom movement can be successful until the common people are involved in it. Leaders can only give guidance and direction to the people. Before the coming of Gandhi, the common people were indifferent to the freedom movement. They wanted to get rid of the foreign rule. But they were fear ridden. They were afraid of the police and the landlords. But with the coming of Gandhi, everything changed. Gandhi came to know of the plight of the peasants of Champaran. He went there and told the peasants that there was nothing to fear.

He taught them to be fearless and to raise their voice against their oppression. His words had immediate effect. When Gandhi was tried in a court, more than ten thousand peasants surrounded the courts. In the end, the peasants won and the British landlord returned their estates to them. Such mass movements had their effect in the others parts of India also. In the end the people won and the British had to leave the country.

(आज़ादी की लड़ाई में गाँधी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने आम व्यक्ति को जागृत किया। उन्होंने यह महसूस किया था कि कोई भी स्वतन्त्रता आन्दोलन तब तक कामयाब नहीं हो सकता जब तक लोग उसमें शामिल न हो। नेता तो केवल लोगों को दिशा-निर्देश दे सकते हैं। गाँधी के आने से पहले, आम व्यक्ति आजादी के संघर्ष के प्रति उदासीन थे। वे विदेशी शासन से छुटकारा पाना चाहते थे। मगर वे भय से ग्रस्त थे। वे पुलिस और जमींदारों से डरते थे। मगर गाँधी के आने से, हर चीज बदल गई। गाँधी को चम्पारन के किसानों की दुर्दशा के बारे में पता चला। वे वहाँ गए और किसानों को कहा कि डरने की कोई बात नहीं है। उन्होंने उन्हे निडर होने और शोषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाना सिखाया। उनके शब्दों का फौरन प्रभाव हुआ। जब गाँधी का कचहरी में मुकद्दमा चला, तो दस हजार से अधिक लोगों ने कचहरी को घेर लिया। अन्त में किसान जीत गए और ब्रिटिश जमींदार ने उनकी जमीने उन्हें लौटा दी। इस प्रकार के विशाल जन-आन्दोलनों का भारत के अन्य भागों पर भी असर हुआ। आखिर लोग जीत गए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।)

Think As You Read
Question 1.
Strike out what is not true in the following: (निम्नलिखित में से जो सही नहीं है उसे छाँटो-)
(a) Rajkumar Shukla was
(i) a sharecropper,
(ii) a politician,
(iii) delegate,
(iv) a landlord.

(b) Rajkumar Shukla was
(i) poor,
(ii) physically strong,
(iii) illiterate.
Answer:
(a) (ii) a politician, (iv) a landlord.
(b) (ii) physically strong.

Question 2.
Why is Rajkumar Shukla described as being ‘resolute’ ? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-B)] (राजकुमार शुक्ला का वर्णन ‘दृढ़-निश्चयी’ के रूप में क्यों किया गया है ?)
Answer:
Rajkumar Shukla was a poor farmer of Champaran. The poor peasants of his area were being exploited by the British landlords. He wanted that Gandhi should fight against that injustice. He met Gandhi at the Lucknow session. But Gandhi was not free. So Shukla accompanied Gandhi wherever he went and repeated his request. He even went to Gandhi’s ashram at Ahmedabad. He went to Calcutta also. Gandhi was impressed by his tenacity and finally went with him to Champaran. Thus, Rajkumar Shukla was a resolute man.

(राजकुमार शुक्ला चम्पारन का एक गरीब किसान था। उसके इलाके के गरीब किसानों का ब्रिटिश जमींदारों द्वारा शोषण किया जा रहा था। वह चाहता था कि गाँधी उस अन्याय के विरुद्ध लड़ाई करें। वह गाँधी को लखनऊ के अधिवेशन में मिला। मगर गाँधी व्यस्त थे। इसलिए जहाँ भी गाँधी गए शुक्ला वहीं गया और अपनी प्रार्थना को दोहराया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। वह कलकत्ता भी गया। गाँधी उसके निश्चय से प्रभावित हो गए और आखिर उसके साथ चम्पारन गए। इस प्रकार, राजकुमार शुक्ला एक दृढ़-निश्चय वाला व्यक्ति था।)

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Question 3.
Why do you think the servants thought Gandhi to be another peasant ? (आपके विचार से नौकरों ने गाँधी को कोई अन्य किसान क्यों समझा ?)
Or
How was Gandhiji treated at Rajendra Prasad’s house? [H.B.S.E. 2019 (Set-B), 2020 (Set-D)] (राजेन्द्र प्रसाद के घर में गाँधी जी के साथ कैसा व्यवहार किया गया था ?)
Answer:
In Patna, Rajkumar Shukla took Gandhi to the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. At that time Rajendra Prasad was not at home. The servants knew Rajkumar Shukla as he often visited their master. They thought that Gandhi was also a peasant.
(पटना में, राजकुमार शुक्ला गाँधी को राजेन्द्र प्रसाद के घर ले गया जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। उस समय राजेन्द्र प्रसाद घर पर नहीं थे। नौकर राजकुमार शुक्ला को जानते थे क्योंकि वह अक्सर उनके मालिक के पास आता था। उन्होंने सोचा कि गाँधी भी कोई किसान है।)

Question 4.
List the places that Gandhi visited between his first meeting with Shukla and his arrival at Champaran. (शुक्ला से अपनी पहली मुलाकात एवं चम्पारन पहुँचने के बीच जिन स्थानों पर गाँधी गए उनकी सूची बनाइए।)
Answer:
Rajkumar met Gandhi in Lucknow. From there Gandhi went to Kanpur and Shukla went with him. After that Gandhi returned to his ashram at Ahmedabad. Shukla visited Gandhi even there. From there Gandhi visited Calcutta. Shukla came there also. Here, Gandhi and Shukla boarded a train for Patna. Then he came to Muzzafarpur. From there he went to Motihari. Finally he came to Champaran.
(राजकुमार शुक्ला गाँधी को लखनऊ में मिला। वहाँ से गाँधी कानपुर गए और शुक्ला उनके साथ गया। उसके बाद गाँधी अहमदाबाद में अपने आश्रम में लौट आए। शुक्ला गाँधी को वहाँ पर भी मिलने आया। वहाँ से गाँधी कलकत्ता आए। शुक्ला वहाँ भी आया। यहाँ पर, गाँधी और शुक्ला ने पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। फिर वे मुज़फ्फरपुर आए। वहाँ से वे मोतीहारी गए। अन्त में वे चम्पारन आए।)

Question 5.
What did the peasants pay the British landlords as rent? What did the British now want instead and why? What would be the impact of synthetic indigo on the prices of natural indigo? (किसान ब्रिटिश जमींदारों को लगान के रूप में क्या देते थे ? अब इसके बदले अंग्रेज क्या और क्यों चाहते थे ? कृत्रिम नील का प्राकृतिक नील की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ता ?)
Answer:
The peasants planted indigo on 15 per cent of their land. They surrendered the entire indigo harvest as rent of their land. Then the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they agreed to free the peasants from the 15% agreement. But they wanted compensation for this. With the arrival of the synthetic indigo in the market, the prices of the natural indigo would fall sharply. When the peasants learnt this, they wanted their money back.

(किसान अपनी धरती के 15 प्रतिशत भाग पर नील की खेती करते थे। वे नील की पूरी फसल को लगान के रूप में जमींदार को देते थे। तब जमींदारों को पता चला कि जर्मनी में कृत्रिम नील का अविष्कार हो गया है। अब वे किसानों को 15 प्रतिशत के अनुबन्ध से आजाद करने के लिए राजी हो गए। मगर वे इसके लिए मुआवज़ा चाहते थे। बाजार में कृत्रिम नील के आने से, प्राकृतिक नील के दाम तेजी से गिर जाएँगे। जब किसानों को इस बात का पता चला, तो वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे।)

Question 6.
The events in this part of the text illustrate Gandhi’s method of working. Can you identify some instances of this method and link them to his ideas of satyagraha and non-violence? (पाठ के इस भाग की घटनाएँ गाँधी के काम करने के तरीके को दर्शाती हैं। क्या आप इस तरीके के कुछ उदाहरणों को पहचान सकते हैं और उन्हें उनके सत्याग्रह और अहिंसा के तरीकों से जोड़ सकते हैं ?)
Answer:
Gandhi respected the legal authority. So he obeyed the order of the police to return to town. But for the sake of natural justice and human values, he could defy the authorities. He received an official order to leave Champaran immediately. Gandhi declared that he would not obey that order. But he believed in nonviolence. When the big crowds surrounded the court, he pacified the people. But he did not admit defeat. These instances are linked with Gandhi’s ideas of satyagraha and non-violence.

(गाँधी कानूनी सत्ता का आदर करते थे। इसलिए उन्होंने पुलिस के शहर में लौट जाने के आदेश का पालन किया। मगर प्राकृतिक न्याय और मानवीय मूल्यों के लिए, वे सत्ता का विरोध कर सकते थे। उन्हें चम्पारन फौरन छोड़ देने का सरकारी आदेश मिला। गाँधी ने कहा है कि वे उस आदेश का पालन नहीं करेंगे। मगर वे अहिंसा में विश्वास करते थे। जब बहुत बड़ी भीड़ ने कचहरी को घेर लिया, तो उन्होंने लोगों को शान्त करवाया। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। ये उदाहरण गाँधी के सत्याग्रह और अहिंसा के विचारों से जुड़े हुए हैं।)

Question 7.
Why did Gandhi agree to a settlement of 25 per cent refund to the farmers? (गाँधी किसानों के लिए 25 प्रतिशत पैसा लौटाने पर सहमत क्यों हो गए ?)
Answer:
Gandhi thought that the amount of refund was less important than the fact that the landlords had agreed to surrender a part of their money. It was a moral victory for the farmers and the loss of prestige for the British landlords. The peasants learnt to be courageous and were freed from fear. That is why, Gandhi agreed to a settlement of 25 per cent refund to the farmers.

(गाँधी ने सोचा कि पैसा वापिसी की राशि इस बात से कम महत्त्वपूर्ण है कि जमींदार अपने पैसे का कुछ भाग देने के लिए राजी हो गए थे। यह किसानों की नैतिक जीत थी और ब्रिटिश जमींदारों के सम्मान का नुक्सान था। किसानों ने हिम्मती होना सीखा और भय से मुक्त हो गए। इसलिए, गाँधी किसानों को 25 प्रतिशत पैसा वापसी पर राजी हो गए।)

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Question 8.
How did the episode change the plight of the peasants? (इस घटना ने किसानों की दुर्दशा को कैसे बदल दिया ?)
Answer:
This episode changed the condition of the peasants of Champaran. Now they realized that they had legal rights. They attained confidence because they knew that there were people to defend them. Within a few years, the British landlords abandoned their estates. These were given back to the peasants. Now the peasants were their own masters.

(इस घटना ने चम्पारन के किसानों की हालत को बदल दिया। अब उन्होंने महसूस किया कि उनके कानूनी अधिकार हैं। उनमें विश्वास आ गया क्योंकि वे जान गए कि उनका बचाव करने वाले लोग भी हैं। कुछ सालों में, ब्रिटिश जमींदारों ने अपनी जमीन को छोड़ दिया। ये जमीन किसानों को वापिस कर दी गई। अब किसान अपनी जमीन के खुद मालिक थे।)

Talking About The Text

Discuss the following:
Question 1.
“Freedom from fear is more important than legal justice for the poor.” Do you think that the poor of India are free from fear after Independence? (“गरीबों के लिए कानूनी न्याय से अधिक महत्त्वपूर्ण है भय से मुक्ति।” क्या आपके अनुसार आजादी के बाद भारत के गरीब लोग भय से मुक्त हैं ?)
Answer:
Gandhi believed that freedom from fear is more important than legal justice. Gandhi went from village to village throughout India. He told the poor people not to fear the police, the landlords and the British. He told them that fear was their worst enemy. His words had magic effect on the people. The poor and unarmed people became ready to face the lathis and bullets of the British. In the end, the people won and the British had to leave the country.

After the independence, Indians are politically free and do not have to fear any foreign rule. Yet it is wrong to say that they are totally free from fear. There are other kinds of fear. For example, for the poor, the biggest fear is to keep the body and the soul together. Poor peasants are not economically free. They are exploited by landlords and government officials. Those who don’t have any land and work as labourers are also not free from the fear of hunger. They don’t have security of service. Thus the poor people of India are still not free from fear.

(गाँधी का मानना था कि भय से मुक्ति कानूनी न्याय से अधिक आवश्यक है। गाँधी पूरे भारत में गाँव-गाँव गए। उन्होंने गरीब लोगों से कहा कि वे पुलिस, जमीदारों और अंग्रेजों से न डरे। उन्होंने उन्हे कहा कि भय उनका सबसे बड़ा शत्रु है। उनके शब्दों का लोगों पर जादू वाला प्रभाव हुआ। गरीब निहत्थे लोग अंग्रेजों की लाठियों और गोलियों का सामना करने के लिए तैयार हो गए। अन्त में लोग जीत गए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।

आजादी के बाद, भारतीय लोग राजनीतिक रूप से आजाद हैं और उन्हे किसी विदेशी शासन का भय नहीं है। मगर फिर भी यह कहना गलत है कि वे भय से पूरी तरह मुक्त हैं। अन्य कई प्रकार के भय भी होते हैं। उदाहरण के लिए, गरीबों के लिए, सबसे बड़ा भय है अपना पेट भरना। गरीब किसान आर्थिक रूप से आजाद नहीं हैं। जमींदार और सरकारी कर्मचारी उनका शोषण करते हैं। वे लोग जिनके पास कोई ज़मीन नहीं है और वे मजदूरी करते हैं, वे भी भूख के डर से मुक्त नहीं हैं। उनके पास नौकरी की सुरक्षा नहीं है। इस प्रकार भारत के गरीब लोग अभी भी भय से मुक्त नहीं हैं।)

Question 2.
The qualities of a good leader. (एक अच्छे नेता के गुण।)
Answer:
A leader must have the qualities of head and heart. He has the power and understanding of leading the people. A good leader does not only preach. He practices whatever he preaches. He leads from the front. He inspires the others by his own example. A good leader has the quality to change the prevalent flow of ideas with his or her great thoughts. Like Mahatma Gandhi, he should be an apostle of truth and non-violence. He must have moral courage. The today’s world is full of so-called leaders. But most of them are not true leaders. They only mislead the people and ruin their lives. A writer says that the words of a false leader ring like a film song. These words delight us when we hear. But they put us in the back gear. A true leader is selfless. He rises above petty religious, communal or political gains. A true leader is simple in living but has high thoughts. Such leaders are rare these days.

(एक नेता में दिमाग और दिल के गुण अवश्य होने चाहिएँ। उसमें लोगों का मार्ग-दर्शन करने की शक्ति और समझ होती है। एक अच्छा नेता केवल उपदेश नहीं देता। जो कुछ वह उपदेश देता है उस पर खुद भी अमल करता है। वह आगे से नेतृत्त्व करता है। वह अपने उदाहरण से लोगों को प्रेरित करता है। एक अच्छे नेता में अपने विचारों से प्रचलित विचारों के प्रवाह को रोकने का गुण होता है। महात्मा गाँधी की तरह, उसे सच्चाई और अहिंसा का मसीहा होना चाहिए। उसमें नैतिक साहस अवश्य होना चाहिए। आजकल का संसार तथाकथित नेताओं से भरा हुआ है।

मगर उनमें से अधिकतर सच्चे नेता नहीं हैं। वे केवल लोगों को गुमराह करते हैं और उनका जीवन नष्ट कर देते हैं। एक लेखक कहता है कि एक गलत नेता के शब्द फिल्म के गानों की तरह होते हैं। ये शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं। मगर ये हमें उल्टे रास्ते में डाल देते हैं। एक सच्चा नेता निःस्वार्थ होता है। वह छोटे धार्मिक, साम्प्रदायिक और राजनीतिक फायदों से ऊपर उठा होता है। एक सच्चा नेता रहन-सहन में सादा मगर विचारों में ऊँचा होता है। आजकल ऐसे नेता दुर्लभ हैं।)

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Working With Words

List the words used in the text that are related to legal procedures.
List other words that you know that fall into this category.
Answer:
For example: deposition Other words which fall into this category :
prosecutor – judgement – trial – sentence – pleading – penalty – evidence-bail – document.

Thinking About Language

Question 1.
Notice the sentences in the text which are in direct speech. Why does the author use quotations in his narration?
Answer:
The author uses the direct speech to describe the direct experience of the incidents mentioned in the lesson. He uses the direct speech to enhance the effect of narration.

Question 2.
Notice the use or non-use of the comma in the following sentences :
(a) When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, he told me what happened in Champaran.
(6) He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him.
(c) When the court reconvened, the judge said he would not deliver the judgment for several days.
Answer:
In sentences (a) and (c) the comma indicates a pause or a short interval between two actions. In sentence
(a) the interval is between the visit of the author and the telling of Gandhi. In sentence
(c) the interval is between the reconvening of the court and the statement of the judge. As there is no pauses between the two activities described in sentence (b), no comma has been used.

Things To Do
1. Choose an issue that has provoked a controversy like the Bhopal Gas Tragedy or the Narmada
Dam Project in which the lives of the poor have been affected.
2. Find out the facts of the case.
3. Present your arguments.
4. Suggest a possible settlement.
Answer:
For self-attempt, with the help of the teacher.

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Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 

Question 1.
Who was Louis Fischer? What did Gandhi tell him? [H.B.S.E. 2017 (Set-A)] (लुई फिशर कौन था ? गाँधी ने उसे क्या बताया ?)
Answer:
Louis Fischer was an American writer. He was a friend and follower of Gandhi. In 1942, Louis Fischer visited Mahatma Gandhi at his ashram in Sevagram. Gandhi told him how in 1917, he decided to fight for the departure of the British from India.
(लुई फिशर एक अमेरिकी लेखक था। वह गाँधी का मित्र एवं अनुयायी था। 1942 में, लुई फिशर गाँधी से मिलने उनके आश्रम सेवाग्राम में गया। गाँधी ने उसे बताया कि किस प्रकार 1917 में, उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निकालने के लिए संघर्ष करने का इरादा किया।)

Question 2.
Where did Rajkumar Shukla meet Gandhi? [H.B.S.E. 2017, 2020 (Set-B)] (राजकुमार शुक्ला गाँधी को कहाँ मिला ?)
Or
Why did Gandhiji go to Lucknow in December 1916 ? Who met him there and why? (दिसंबर 1916 में गांधीजी लखनऊ क्यों गए? वहां उनसे कौन मिला और क्यों?) [H.B.S.E. 2019 (Set-A)]
Answer:
In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress Party. There were 2301 delegates. Apart from the delegates, there were number of visitors also. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar.

(1916 में, महात्मा गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ पर 2,301 प्रतिनिधि थे। प्रतिनिधियों के अलावा, वहाँ पर बहुत-से अतिथि भी थे। वहाँ, राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उन्होंने गाँधी जी से अनुरोध किया कि वे उसके जिले में चले और गरीब किसानों की समस्या का कोई समाधान निकाले। उसने गाँधी जी को बिहार के जमींदारों द्वारा किए गए अन्याय के विषय में शिकायत की।)

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Question 3.
What did Gandhi tell Rajkumar Shukla when he requested him to visit Champaran? (जब राजकुमार शुक्ला ने गाँधी से चम्पारन जाने की प्रार्थना की तो उन्होंने क्या कहा ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-D)]
How did Gandhi express his inability to accompany Rajkumar Shukla? (गाँधी जी ने अपनी असमर्थता राजकुमार शुक्ला के साथ कैसे व्यक्त की?) [H.B.S.E. 2019 (Set-D)]
Answer:
Rajkumar Shukla requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

(राजकुमार शुक्ला ने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आएँ और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्याय की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला से उन्हें कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।)

Question 4.
How did Rajkumar Shukla succeed in persuading Gandhiji to visit Champaran? (राजकुमार शुक्ला ने गाँधी जी को चम्पारन ले जाने के लिए कैसे सफलता हासिल की ?)
Or
Why did Gandhiji ultimately go with Shukla to Bihar ? (आखिरकार गाँधी जी राजकुमार शुक्ला के साथ बिहार क्यों गए?)
Answer:
Rajkumar Shukla was a poor farmer of Champaran. The poor peasants of his area were being exploited by the British landlords. He wanted that Gandhi should fight against that injustice. He met Gandhi at the Lucknow session. But Gandhi was not free. So Shukla accompanied Gandhi wherever he went and repeated his request. He even went to Gandhi’s ashram at Ahmedabad. Gandhi was impressed by his determination. He agreed to visit Champaran.

(राजकुमार शुक्ला चम्पारन का एक गरीब किसान था। उसके इलाके के गरीब किसानों का ब्रिटिश जमींदारों द्वारा शोषण हो रहा था। वह चाहता था कि गाँधी उस अन्याय के खिलाफ लड़ें। वह गाँधी को लखनऊ अधिवेशन में मिला। मगर गाँधी के पास समय नहीं था। इसलिए जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। गाँधी उसके पक्के इरादे से प्रभावित हुए। वे चम्पारन आने के लिए राजी हो गए।)

Question 5.
Why was Shukla considered a yeoman? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] (शुक्ला को छोटा किसान क्यों मानते थे?)
Answer:
Shukla met Gandhi ji in Lucknow in 1916. Shukla asked Gandhi ji to come in his district Champaran in Bihar. Gandhi ji consider him a yeoman because he looked like any other peasant in India. (शुक्ला गांधी जी से 1916 में लखनऊ में मिले थे। शुक्ला ने गांधी जी को बिहार में अपने ज़िले चम्पारन में आने के लिए कहा। गांधी जी उसे एक छोटा किसान मानते क्योंकि वह भारत के अन्य दूसरे किसानों जैसा दिखता था।)

Question 6.
Where did Gandhiji go first and why? [H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (गाँधी जी पहले कहाँ गए और क्यों?)
Answer:
Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur which was on the way to Champaran. Gandhi sent a telegram to Professor J.B.Kripalani whom he had seen at the Shantiniketan. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani.

(गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुज़फ्फरपुर गए जो चम्पारन के रास्ते में था। गाँधी ने प्राध्यापक जे. बी. कृपलानी को तार भेजा जिन्हें वह शान्ति निकेतन में मिला था। मुजफ्फरपुर में, वे दो दिन के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके।)

Question 7.
Why did Gandhi rebuke the lawyers? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)] (गाँधी ने वकीलों को क्यों डाँटा ?)
Answer:
The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their Messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless.

(गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा । महात्मा गाँधी ने कहा कि किसान दबे एवं भयभीत थे, इसलिए उनके केसों को कचहरी में ले जाना बेकार था।)

Question 8.
Why were peasants compelled to surrender their indigo crop to the British landlords? (किसान अपनी नील की फसल अंग्रेज जमींदारों को देने के लिए क्यों बाध्य थे ?)
Answer:
Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on them. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen percent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent.

(चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य वाणिज्यिक फ़सल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फसल लगान के रूप में दे देने के लिए बाध्य किया जाता था।)

Question 9.
What did the British landlords do when they came to know that Germany had developed synthetic (artificial) indigo? (जब अंग्रेज जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है तो उन्होंने क्या किया ?)
Answer:
At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers.

(उस समय ज़मींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबंध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए मुआवज़ा देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबंधों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। जिन्होंने विरोध किया उन्होंने अपने वकील कर लिए।)

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Question 10.
At what point did Mahatma Gandhi reach Champaran? (महात्मा गाँधी चम्पारन में किस समय पहुँचे ?)
Answer:
The British landlords took compensation from the peasants for freeing them from surrendering the indigo crop. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.
(ब्रिटिश जमींदारों ने किसानों को नील की फसल देने की शर्त से उन्हें आजाद करने के लिए किसानों से मुआवज़ा लिया। इस बीच, कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुंच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।)

Question 11.
Which two British officials did Gandhi meet soon after reaching Champaran? What was the outcome of these meetings? (चम्पारन पहुँचने के फौरन बाद गाँधी किन दो अंग्रेज अधिकारियों से मिले ? इन मुलाकातों का क्या परिणाम रहा ?)
Answer:
Gandhi decided to get the facts first. He met the Secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. After that, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut.

(गाँधी ने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताए। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन जिला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा।)

Question 12.
What order did Gandhi receive from the police superintendent? Did he obey that order? (पुलिस अधीक्षक से गाँधी को क्या आदेश मिला ? क्या उसने उस आदेश का पालन किया ?)
Answer:
Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately. But Gandhi refused to obey him.

(गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के एक बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में, गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।)

Question 13.
Why did thousands of peasants came to Motihari? (हजारों किसान मोतीहारी में क्यों आए ?)
Answer:
The police ordered Gandhi to leave Champaran at once. But Gandhi disobeyed that order. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large number of farmers came to Motihari.

(पुलिस ने गाँधी को फौरन चम्पारन छोड़ने के लिए आदेश दिया। मगर गाँधी ने उस आदेश का पालन नहीं किया। गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएँ। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं इसलिए अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए।)

Question 14.
Why did the British authorities ask him to help them in controlling the crowd? (अंग्रेज अधिकारियों ने गाँधी से भीड़ को नियन्त्रित करने में उनकी सहायता करने को क्यों कहा ?)
Answer:
The peasants of Champaran demonstrated in thousands around the courthouse at Motihari. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial, as they wanted to consult their superiors.

(चम्पारन के किसानों ने मोतीहारी में कचहरी के चारों ओर हजारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार के भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विचार-विमर्श करना चाहते हैं।)

Question 15.
Gandhi was not a law-breaker. Then why did he disobey the government order to leave Champaran? (गाँधी कानून तोड़ने वाला नहीं था। फिर उसने चम्पारन छोड़ने के सरकारी आदेश की अवहेलना क्यों की ?)
Answer:
Gandhi said that he did not want to be a law-breaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which he had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran. But it was because he heeded the voice of his conscience. (गाँधी ने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया।)

Question 16.
What did Gandhi tell Rajendra Prasad and other lawyers? [H.B.S.E. 2017 (Set-C)] (गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद एवं अन्य वकीलों से क्या कहा ?)
Answer:
Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived at Champaran to help Gandhi. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked them to think about the plight of the poor farmers. Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail.

(राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील गाँधी की मदद करने चम्पारन पहुँच गए थे। उन्होंने कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए, वहाँ उन्हें सलाह देने के लिए कोई नहीं होगा। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा। अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे भी उनके पीछे जेल में जाएँगे।)

Question 17.
How did civil disobedience triumph in India? (भारत में सविनय अवज्ञा की जीत किस प्रकार हुई?)
Answer:
Gandhi divided the groups of lawyers into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. Thus his fight against injustice started. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in Modern India.

(गाँधी ने वकीलों के समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। इस प्रकार अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई शुरु हो गई। कुछ दिनों के बाद, गाँधी को लेफ्टिनेन्ट-गर्वनर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध केस को खत्म कर दिया गया है। यह आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी।)

Question 18.
What happened after four meetings between Gandhi and Sir Edward Gait ? (गाँधी एवं सर एडवर्ड गेट के बीच चार मुलाकातों के बाद क्या हुआ ?)
Answer:
Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. After four meetings an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials and Gandhi, who was the sole representative of the peasants.

(गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। जून में, लेफ्टिनेन्ट-गर्वनर सर एडवर्ड गेट, ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। चार मुलाकातों के बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे जोकि किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे।)

Question 19.
Why did Gandhi agree to the refund of 25 per cent of money? (गाँधी 25 प्रतिशत पैसा वापिस लेने को क्यों मान गए ?)
Answer:
The British landlords agreed to make refunds to the peasants. Gandhi asked for 50 percent refund. But the landlords insisted on twenty-five percent refund. In order to break the deadlock, Gandhi agreed. Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated.

(अंग्रेज ज़मींदार किसानों को मुआवजा देने के लिए राजी हो गए। गाँधी ने 50 प्रतिशत मुआवज़ा देने की बात की। मगर जमींदारों ने पच्चीस प्रतिशत पर जोर दिया। गतिरोध को तोड़ने के लिए, गाँधी सहमत हो गए। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि ज़मींदार हार गए थे।)

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Question 20.
How did future events prove that Gandhi had been right to agree to 25% refund? (भविष्य की घटनाओं ने किस प्रकार साबित कर दिया कि 25% पैसा वापिसी के बारे में गाँधी सही थे ?)
Answer:
Gandhi said that money was not important. It was important that the British landlords had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years, the British planters gave up their estates, which were returned to the peasants.

(गाँधी ने कहा कि पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं था। यह महत्त्वपूर्ण था कि अंग्रेज जमींदारों की साख खो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों ने महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों में, अंग्रेज जमींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।)

Question 21.
What did Gandhi do to give education to the children of Champaran area? (चम्पारन क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा देने के बारे में गाँधी ने क्या किया ?)
Answer:
Gandhi was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there was cultural and social backwardness in Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got an immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages.

(गाँधी राजनीतिक या आर्थिक हल से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवो में प्राइमरी स्कूल खोले गए।)

Question 22.
What did Gandhi do to improve the health conditions at Champaran? (चम्पारन में स्वास्थ्य स्थिति को सुधारने के लिए गाँधी ने क्या किया ?)
Answer:
Gandhi found that health conditions were also miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others, rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment. These medicines were used to cure most of the patients.

(गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी बहुत खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों और अन्य लोगों को, व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया। वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं कैस्टर ऑयल, कुनीन और गन्धक का मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा।)

Question 23.
What did Gandhi say about the Champaran episode? (गाँधी ने चम्पारन की घटना के बारे में क्या कहा ?)
Answer:
The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. But he modestly said that what he did was an ordinary thing. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people.

(चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन का अहम मोड़ था। मगर उन्होंने विनम्रता से कहा कि जो कुछ उन्होंने किया वह तो एक साधारण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था। उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की व्यवहारिक समस्याओं से मिली हुई थी।)

Question 24.
Why did Gandhi oppose taking help from C.F.Andrews? (गाँधी ने सी०एफ० एन्ड्रयूज से सहायता लेने का विरोध क्यों किया ?)
Answer:
C.F. Andrews was a friend and follower of Gandhi. He was an influential person. Some people wanted that C.F.Andrews should stay in Champaran and help them. But Gandhi did not want to take the help of an Englishman. He wanted Indians to become self-reliant and fearless.
(सी. एफ. एन्ड्रयूज़ गाँधी के मित्र एवं अनुयायी थे। वह एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। कुछ लोग चाहते थे कि सी. एफ. एन्ड्रयूज़ चम्पारन में रहें और उनकी सहायता करें। गाँधी किसी अंग्रेज की सहायता नहीं लेना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतीय आत्मनिर्भर और निर्भय बनें।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
Describe the circumstances which forced Gandhi to come to Champaran for the help of the peasants? (उन परिस्थितियों का वर्णन करो जिन्होंने गाँधी को किसानों की सहायता के लिए चम्पारन आने को मजबूर किया?)
Answer:
In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s Ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

When Gandhi reached Calcutta, Shukla was waiting for him. They boarded a train for Patna in Bihar. There they stayed at the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. He was out of the city. Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur, which was on the way to Champaran. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani. From there Gandhi went to Champaran and fought against the injustice being done to the peasants.

(1916 में, गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ, पर राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उसने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आएँ और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्यायों की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला को कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।

जब गाँधी कलकत्ता पहुंचे, तो शुक्ला उनका इंतजार कर रहा था। उन्होंने बिहार में पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। वहाँ वह राजेन्द्र प्रसाद के घर पर रुके, जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वे शहर से बाहर थे, गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुजफ्फरपुर गए, जो चम्पारन के रास्ते में था। मुज़फ्फरपुर में, वे दो दिन के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके। वहाँ से गाँधी चम्पारन गए और किसानों के साथ किए जा रहे अन्याय के खिलाफ लड़ाई की।)

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Question 2.
What was the condition of the peasants of Champaran when Mahatma Gandhi reached there? (जब महात्मा गाँधी वहाँ पहुँचे तो चम्पारन के किसानों की अवस्था कैसी थी ?)
Answer:
The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless. He believed that the real relief for them was to be free from fear.

Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on them. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen per cent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent. At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.

(गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। गाँधी ने कहा कि किसान दबे हुए एवं भयभीत हैं। इसलिए उनके केसों को कचहरी में ले जाना बेकार है। उन्होंने कहा कि किसानों को सही राहत तब मिलेगी जब वे भय से मुक्त हो जाएँगे।

चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज जमींदार थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य वाणिज्यिक फ़सल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फ़सल लगान के रूप में देने के लिए बाध्य किया जाता था। उस समय, जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबन्ध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए हर्जाना देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबन्धों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। इस बीच कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुँच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।)

Question 3.
What happened when Gandhi came to Champaran? Why did thousands of peasants surround the courthouse? (जब गाँधी चम्पारन आए तो क्या हुआ ? हजारों किसानों ने कचहरी को क्यों घेर लिया ?)
Answer:
Gandhi visited Champaran in order to alleviate the sufferings of the peasants. He decided to get the facts first. He met the Secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. Next, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut. But Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately.

But Gandhi refused to obey him. Gandhi telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He wired a full report to the Viceroy. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large numbers of farmers came to Motihari. They demonstrated in thousands around the courthouse. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial as they wanted to consult their superiors.

(गाँधी किसानों के कष्टों को दूर करने के लिए चम्पारन पहुँच गए। उन्होंने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताया। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन जिला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा। मगर गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के एक बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।

गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएं। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी, जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं इसलिए अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए। उन्होंने कचहरी के चारों ओर हजारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार से भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विचार-विमर्श करना चाहते हैं।)

Question 4.
How was the Champaran episode the first victory of civil disobedience in modern India? (चम्पारन की घटना किस प्रकार से सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-B)]
Answer:
Gandhi fought for the rights of the peasants of Champaran. He was ordered to leave that area. But Gandhi disobeyed the order. He said that he could not be ordered about in his own country. Gandhi said that he did not want to be a lawbreaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran. But it was because he heeded the voice of his conscience. The magistrate asked Gandhi to arrange bail for himself within two hours, but he refused. The judge said that he would deliver the judgment after a few days.

Meanwhile, he allowed Gandhi to be at liberty. Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived there. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked him to think about the plight of the poor farmers. Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail. Then Gandhi divided the groups into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in Modern India.

(गाँधी ने चम्पारन के किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई की। उन्हें उस इलाके को छोड़ देने का आदेश दिया गया। मगर गाँधी ने उस आदेश की अवज्ञा की। उन्होंने कहा कि उन्हें उनके अपने ही देश में इधर-उधर आने-जाने के बारे में आदेश नहीं दिए जा सकते। गाँधी ने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया। जज ने गाँधी को अपने लिए दो घंटे के अन्दर जमानत का इंतजाम करने के लिए कहा, मगर उन्होंने इन्कार कर दिया। जज ने कहा कि वह अपना निर्णय कुछ दिनों बाद सुनाएगा।

इस बीच उसने गाँधी को आजाद कर दिया। राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील वहाँ पर पहुंच गए थे। उन्होंने गाँधी को कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए तो वे सलाह किसे देंगे। तब वे घर चले जाएंगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे उनके पीछे जेल के अन्दर तक जाएंगे। तब गाँधी ने उनके समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। कुछ दिनों के बाद गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध मुकद्दमें को खत्म कर दिया गया है। यह भारत में नागरिक अवज्ञा की जीत थी।)

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Question 5.
What was the outcome of Gandhi’s meetings with the British landlords? How did the future events proved Gandhi right? (अंग्रेज जमींदारों से गाँधी की मुलाकातों का क्या परिणाम हुआ ? बाद की घटनाओं ने गाँधी को किस प्रकार सही साबित किया ?)
Answer:
The case against Gandhi was dropped. The government agreed to look into the matter of the injustice being done to the peasants. Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. They also collected the relevant documents. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. There were four prolonged meetings. After that an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials, and Gandhi, who was the sole representative of the peasants.

They agreed to make refunds to the peasants. But now the question arose as to how much refund should be made. Gandhi said that at least 50 percent refund should be made to the peasants. But the landlords insisted on twenty-five percent refund. Gandhi wanted to break the deadlock. So he agreed to 25 percent refund. Some people objected to that. But Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated.

They had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years, the British planters gave their estates, which were returned to the peasants.

(गाँधी के खिलाफ मुकद्दमा वापिस ले लिया गया। सरकार किसानों के साथ किए जाने वाले अन्याय की जाँच करने के लिए राजी हो गई। गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। उन्होंने सम्बन्धित दस्तावेज़ भी इकट्ठे किए। जून में, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, सर एडवर्ड गेट ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। वहाँ चार लम्बी मुलाकातें हुईं। इसके बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे, जो किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे। वे किसानों को मुआवजा देने के लिए राजी हो गए।

परंतु अब प्रश्न यह था कि कितना मुआवज़ा वापिस किया जाए। गाँध जी ने कहा कि कम-से-कम 50 प्रतिशत मुआवज़ा किसानों को वापिस करना चाहिए। मगर जमींदारों ने 25 प्रतिशत मुआवज़ा देने पर ज़ोर दिया। कुछ लोग इसके खिलाफ थे। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि जमींदार हार गए थे। उनकी साख समाप्त हो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों को महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों के बाद, अंग्रेज जमींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।)

Question 6.
What social work did Gandhi undertake in Champaran to improve the condition of the poor peasants? How did the Champaran incident prove to be a turning point in his life? (गरीब किसानों की हालत सुधारने के लिए गाँधी ने चम्पारन में क्या सामाजिक कार्य आरम्भ किया ? चम्पारन की घटना किस प्रकार से गाँधी के जीवन का अहम मोड़ बन गई ?)
Answer:
Gandhi won a legal victory in Champaran. But he was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there wa Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages. Gandhi found that health conditions were also miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others’ rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment.

These medicines were used to cure stay in Champaran, Gandhi kept a long-distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail. Gradually, the condition of the people of that area improved. The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people. Not only did he fight for the rights of the peasants, he worked for their social upliftment also.

(गाँधी ने चम्पारन में कानूनी लड़ाई जीत ली। मगर वे राजनीतिक या आर्थिक हल से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवों में प्राइमरी स्कूल खोले गए। गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों और अन्य लोगों को व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया।

वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं-कैस्टर ऑयल, कुनीन और गन्धक का मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा। चम्पारन में अपने रहने के दौरान, गाँधी ने अपने आश्रम पर भी दूर से नजर रखी। वे डाक से नियमित रूप से निर्देश भेजते रहे। धीरे-धीरे, उस इलाके के लोगों की हालत सुधरने लगी। चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था।

उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की रोजाना की व्यावहारिक समस्याओं से मिली हुई थी। गाँधी ने न केवल किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई की अपितु उन्होंने उनके सामाजिक उत्थान के लिए भी काम किया।)

Indigo MCQ Questions with Answers

1. Who is the author of the essay ‘Indigo’?
(A) William Douglas
(B) Louis Fischer
(C) Fouis Lischer
(D) Mahatma Gandhi
Answer:
(B) Louis Fischer

2. Where did Mahatma Gandhi go to attend the annual convention of the Indian National Congress?
(A) Patna
(B) Kanpur
(C) Lucknow
(D) Gorakhpur
Answer:
(C) Lucknow

3. At the Lucknow Conference, a peasant came to meet Mahatma Gandhi. What was his name?
(A) Rajkumar Shukla
(B) Kaj Kumar Shukla
(C) Maj Jumar Shukla
(D) Shaj Kumar Rukla
Answer:
(A) Rajkumar Shukla

4. From where had the peasant Rajkumar Shukla come to meet Mahatma Gandhi?
(A) Champaran
(B) Pancharan
(C) Ramcharan
(D) Kanpur
Answer:
(A) Champaran

5. Rajkumar Shukla asked Gandhi to visit Champaran. What did he complain about?
(A) electricity problem
(B) shortage of water
(C) injustice of the landlords
(D) environmental pollution
Answer:
(C) injustice of the landlords.

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6. Who came to Calcutta to meet Mahatma Gandhi?
(A) Sardar Patel
(B) Pardar Satel
(C) Maulana Azad
(D) Rajkumar Shukla
Answer:
(D) Rajkumar Shukla

7. In Patna, Mahatma Gandhi met Rajendra Prasad. What did he later become?
(A) the first Prime Minister of India
(B) the first king of India
(C) the first President of India
(D) the first Field Marshal of India
Answer:
(C) the first President of India

8. Where did Mahatma Gandhi stay in Muzzafarpur?
(A) in a hotel
(B) at Prof. Malkani’s house
(C) in the railway rest house
(D) in the house of the Viceroy
Answer:
(B) at Prof. Malkani’s house

9. Who owned most of the fertile land in Champaran?
(A) Indian farmers
(B) labourers
(C) shopkeepers
(D) English landlords
Answer:
(D) English landlords

10. What was the chief commercial crop of Champaran?
(A) Indigo
(B) Tea
(C) Cashew nuts
(D) Almonds
Answer:
(A) Indigo

11. Which country had developed the synthetic. indigo?
(A) Japan
(B) Germany
(C) Pakistan
(D) Iraq
Answer:
(B) Germany

12. How did British Commissioner of Tirhut behave with Mahatma Gandhi?
(A) He met Gandhi cordially
(B) He was happy to meet Gandhi
(C) He invited Gandhi to lunch
(D) He asked Gandhi to leave Tirhut
Answer:
(D) He asked Gandhi to leave Tirhut

13. What was the capital of Champaran?
(A) Jhotihari
(B) Hotihari
(C) Motihari
(D) Rotihari
Answer:
(C) Motihari

14. What did people of Motihari do when they learnt that Gandhi was in trouble with the British authorities?
(A) they surrounded the courthouse
(B) they did not help him
(C) they remained in their houses ok the side of the British
Answer:
(A) they surrounded the courthouse

15. Did Gandhi obey the government order to leave Champaran?
(A) yes
(B) no
(C) maybe
(D) may not be
Answer:
(B) no

16. What did the Lieutenant-Governor tell Gandhi in his communication?
(A) he asked Gandhi to leave Champaran
(B) he said that Gandhi would be arrested
(C) he threatened to deport Gandhi
(D) that the case against him had been dropped
Answer:
(D) that the case against him had been dropped

17. Who summoned Gandhi for negotiations about the complaints of indigo farmers?
(A) the Lieutenant-Governor
(B) the Dy. Commissioner
(C) the Governor
(D) the chief Minister
Answer:
(A) the Lieutenant-Governor

18. How much refund did the British landlords agree to make to the indigo farmers?
(A) fifty percent
(B) forty percent
(C) twenty-five percent
(D) ten percent
Answer:
(C) twenty-five percent

19. What kind of change did Gandhi want to bring?
(A) political change
(B) social change
(C) economic change
(D) military change
Answer:
(B) social change

20. What did Gandhi want Indians to become?
(A) self-reliant and fearless
(B) weak and miserable
(C) greedy
(D) corrupt
Answer:
(A) self-reliant and fearless

Indigo Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1
When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, in central India, he said, “I will tell you how it happened that I decided to urge the departure of the British. It was in 1917.” He had gone to the December 1916 annual convention of the Indian National Congress party in Lucknow. There were 2,301 delegates and many visitors. During the proceedings, Gandhi recounted, “a peasant came up to me looking like any other peasant in India, poor and emaciated, and said, ‘I am Rajkumar Shukla. I am from Champaran and I want you to come to my district !” Gandhi had never heard of the place. It was in the foothills of the towering Himalayas, near the kingdom of Nepal. [H.B.S.E. March 2019 (Set-D)]

Word-meanings :
Departure = going away (प्रस्थान);
convention = conference (सभा);
recounted = remembered (याद किया)।

Questions :
(i) Where was Gandhiji’s ashram situated?
(A) Champaran
(B) Sevagram
(C) Khera
(D) New Delhi
Answer:
(B) Sevagram

(ii) Where was the ashram of Gandhiji situated?
(A) Central India
(B) Sevagram
(C) British India
(D) Lucknow
Answer:
(B) Sevagram

(iii) When was the annual convention of the Congress party held?
(A) 1942
(B) 1917
(C) 1916
(D) 2301
Answer:
(C) 1916

(iv) What was the name of the peasant?
(A) Sevagram
(B) Champaran
(C) Gandhi
(D) Rajkumar Shukla
Answer:
(D) Rajkumar Shukla

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(v) Rajkumar Shukla was :
(A) An illiterate
(B) A modern educated young man
(C) An officer
(D) A landlord
Answer:
(A) An illiterate

Passage 2
Months passed. Shukla was sitting on his haunches at the appointed spot in Calcutta when Gandhi arrived; he waited till Gandhi was free. Then the two of them boarded a train for the city of Patna in Bihar. There Shukla led him to the house of a lawyer named Rajendra Prasad who later became President of the Congress party and of India. Rajendra Prasad was out of town, but the servants knew Shukla as a poor yeoman who pestered their master to help the indigo sharecroppers.

So they let him stay on the grounds with his companion, Gandhi, whom they took to be another peasant. But Gandhi was not permitted to draw water from the well lest some drops from his bucket pollute the entire source; how did they know that he was not an untouchable?

Word-meanings :
Sitting on haunches = squatting (पैरों पर बैठना);
indigo = a crop नील की फसल);

Questions :
(i) Where was Shukla waiting for Gandhiji?
(A) Patna
(B) Calcutta (Kolkata)
(C) Sevagram
(D) Mumbai
Answer:
(B) Calcutta (Kolkata)

(ii) Where did Gandhiji and Shukla board a train for?
(A) New Delhi
(B) Calcutta
(C) Mumbai
(D) Patna
Answer:
(D) Patna

(iii) Whose house did they go?
(A) The lawyer’s
(B) The Magistrate’s
(C) Shukla’s
(D) all of the above
Answer:
(A) The lawyer’s

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(iv) Why was Gandhiji not permitted to draw water from the well?
(A) he was a guest
(B) he was considered untouchable by the servant
(C) both (A) and (B)
(D) neither (A) nor (B)
Answer:
(B) he was considered untouchable by the servant

(v) Which of the following was both the President of the Congress Party and of India.
(A) Mahatma Gandhi
(B) Jawaharlal Nehru
(C) Rajendra Prasad
(D) all of the above
Answer:
(C) Rajendra Prasad

Passage 3
Next, Gandhi called on the British Official Commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. “The Commissioner” Gandhi reports, “proceeded to bully me and advised me forthwith to leave Tirhut.” Gandhi did not leave. Instead, he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawyers accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house, and using it as headquarters, continued his investigations.

Word-meanings :
Proceeded = moved forwards (आगे बढ़े);
vast =huge (विशाल);
multitude = crowd (भीड़)।

Questions :
(i) What did the British Official Commissioner ask Gandhiji to do?
(A) to leave Tirhut
(B) to live in Tirhut
(C) Both (A) and (B)
(D) None of these
Answer:
(A) to leave Tirhut

(ii) Where did Gandhiji go from Tirhut?
(A) Sevagram
(B) Motihari
(C) Patna
(D) All of the above
Answer:
(B) Motihari

(iii) Who accompanied Gandhiji?
(A) Several Doctors
(B) Several Teachers
(C) Several Lawyers
(D) Several Managers
Answer:
(C) Several Lawyers

(iv) What investigations did Gandhiji keep continue?
(A) about the system of share-farming
(B) about the system of sharecropping
(C) about the system of share producers
(D) none of these
Answer:
(B) about the system of sharecropping

(v) Motihari was the ……….. of champaran.
(A) District
(B) state
(C) capital
(D) both (B) and (C)
Answer:
(C) capital

Passage 4
Gandhi chided the lawyers for collecting big fee from the sharecroppers. He said, “I have come to the conclusion that we should stop going to law courts. Taking such cases to the courts does little good. Where the peasants are so crushed and fear-stricken, law courts are useless. The real relief for them is to be free from fear.”

Most of the arable land in the Champaran district was divided into large estates owned by Englishmen and worked by Indian tenants. The chief commercial crop was indigo. The landlords compelled all tenants to plant three twentieths or 15 percent of their holdings with indigo and surrender the entire indigo harvest as rent. This was done by a long-term contract. [H.B.S.E. 2020 (Set-A)]

Word-meanings :
Chided = rebuked (डॉँटना);
relief = help (सहायता);
surrender = give up (हार मानना)।

Questions :
(i) Why did Gandhi rebuke the lawyer?
(A) he was not expert
(B) he was having nexus with the British
(C) he was collecting big fee from
(D) all of the above the sharecroppers
Answer:
(C) he was collecting big fee from the sharecroppers

(ii) According to Gandhiji what was the real relief for the farmers?
(A) going to law courts
(B) free from fear
(C) both (A) and (B)
(D) neither (A) nor (B)
Answer:
(B) free from fear

(iii) Who owned the most of the arable land in Champaran?
(A) Englishmen
(B) Indian tenants
(C) Gandhiji
(D) none of the above
Answer:
(A) Englishmen

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(iv) What was the commercial crop in Champaran?
(A) Rice
(B) Tea
(C) Coffee
(D) Indigo
Answer:
(D) Indigo

(v) What do you mean by ‘arable land’?
(A) Land suitable for growing crops.
(B) Land suitable for giving on rent.
(C) Land suitable for developing a park.
(D) Land suitable for using as a playground.
Answer:
(A) Land suitable for growing crops.

Passage 5
Gandhi did not leave. Instead he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawyers accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house and, using it as headquarters, continued his investigations. A report came in that a peasant had been maltreated in a nearby village. Gandhi decided to go and see; the next morning he started out on the back of an elephant. He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him and ordered him to return to town in his carriage. Gandhi complied. The messenger drove Gandhi home where he served him with an official notice to quit Champaran immediately. Gandhi signed a receipt for the notice and wrote on it that he would disobey the order.

Word-meanings :
Multitude = a big crowd (बड़ी भीड़);
maltreated = treated badly (बुरा व्यवहार करना);
complied = obeyed (कहना मानना) ।

Questions :
(i) From which chapter have these lines been taken?
(A) Indigo
(B) Poets and Pancakes
(C) The Interview
(D) Going Places
Answer:
(A) Indigo

(ii) What was the capital of Champaran?
(A) Calcutta
(B) Patna
(C) Motihari
(D) none of the above
Answer:
(C) Motihari

(iii) Who greeted Gandhiji at Motihari station?
(A) Several lawyers
(B) A vast multitude
(C) The Police superintendent’s messenger
(D) A peasant
Answer:
(B) A vast multitude

(iv) What order was given to Gandhiji?
(A) to quit Champaran
(B) to remain only at Motihari
(C) not to meet the tenants
(D) to meet the police superintendent
Answer:
(A) to quit Champaran

(v) Why did Gandhiji decide to visit the nearby village?
(A) to address a big gathering
(B) to sit on a fast
(C) to meet the lawyer
(D) to meet a maltreated tenant
Answer:
(D) to meet a maltreated tenant

Type (ii)
Passage 6
Morning found the town of Motihari black with peasants. They did not know Gandhi’s record in South Africa. They had merely heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities. Their spontaneous demonstration, in thousands, around the courthouse was the beginning of their liberation from fear of the British. The officials felt powerless without Gandhi’s co-operation. He helped them regulate the crowd. He was polite and friendly. He was giving them concrete proof that their might, hitherto dreaded and unquestioned, could be challenged by Indians.

Word-meanings :
Regulate = control (नियन्त्रित करना);
concrete =solid (ठोस)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) How is the morning of Motihari town described?
(iii) What had the peasants of Motihari heard about Mahatma Gandhi?
(iv) What did their spontaneous demonstration, in thousands, mark?
(v) How was the power of the Britishers so far?
Answers :
(i) Chapter : Indigo.
Author: Louis Fischer.
(ii) The morning of Motihari town was black with peasants.
(iii) They had heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities.
(iv) Their spontaneous demonstration in thousands marked the beginning of their liberation from fear of the British
(v) So far the power of the Britishers was dreaded and unquestioned.

Passage 7
Gandhi decided to go first to Muzzafarpur, which was en route to Champaran, to obtain more complete information about conditions than Shukla was capable to imparting. He accordingly sent a telegram to Professor J. B. Kripalani, of the Arts College in Muzzafarpur, whom he had seen at Tagore’s Shantiniketan school. The train arrived at midnight, 15 April 1917.

Kripalani was waiting at the station with a large body of students. Gandhi stayed there for two days in the home of Professor Malkani, a teacher in a government school. “It was an extraordinary thing in those days,” Gandhi commented, “for a government professor to harbour a man like me”. In smaller localities, the Indians were afraid to show sympathy for advocates of home rule. [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A), 2019 (Set-C)]

Word-meanings :
Imparting = to pass knowledge (ज्ञान प्रदान करना);
extraordinary = very unusual (असाधारण)।

Questions :
(i) Where did Gandhiji decide to go first?
(A) Sevagram
(B) Lucknow
(C) Patna
(D) Muzzafarpur
Answer:
(D) Muzzafarpur

(ii) Why did Gandhiji decide to stay there briefly?
(A) to meet old friends
(B) to meet the sharecroppers
(C) to obtain complete information
(D) to find the official version
Answer:
(C) to obtain complete information

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(iii) Whom had Gandhiji informed telegraphically?
(A) Professor J.B. Kriplani
(B) Rajendra Prasad
(C) Professor Malkani
(D) Brij Kishor Babu
Answer:
(A) Professor J.B. Kriplani

(iv) When did Gandhiji’s train arrive there?
(A) at noon
(B) at midnight
(C) at sunset
(D) at sunrise
Answer:
(B) at midnight

(v) Who were waiting at the station with Kriplani Ji?
(A) Sharecroppers
(B) Home-rule supporters
(C) Lawyers
(D) College students
Answer:
(D) College students

Indigo Summary in English and Hindi

Indigo Introduction to the Chapter

Louis Fischer was an American writer. He started his career as a journalist and wrote for ‘The New York Times’ and a number of other publications. He came to India and was influenced by Mahatma Gandhi. This essay has been taken from his book “The Life of Mahatma Gandhi’. In this essay he tells us how Gandhi fought against the injustice done to the peasants of Champaran by the British landlords. He fought against the authorities using satyagraha and non-violence. He was successful in his fight against the authorities.

(लुई फिशर एक अमेरिकन लेखक था। उसने अपना जीवन एक पत्रकार के रूप में आरम्भ किया और ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ तथा अन्य कई प्रकाशनों के लिए लिखता रहा। वह भारत आया और महात्मा गाँधी से प्रभावित हुआ। यह लेख उसकी पुस्तक ‘द लाइफ ऑफ महात्मा गाँधी’ से लिया गया है। इस लेख में वह बताता है कि किस प्रकार गाँधी ने अंग्रेजी भूमिपतियों द्वारा चम्पारन के किसानों पर किए गए अन्याय के खिलाफ लड़ाई की। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा का तरीका अपनाकर सत्ता के विरुद्ध लड़ाई की। सत्ता के खिलाफ इस युद्ध में वह सफल रहे ।)

Indigo Summary
In 1942, Louis Fischer visited Mahatma Gandhi at his Ashram in Sevagram. Gandhi told him how in 1917, he decided to fight for the departure of the British from India. In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s Ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

When Gandhi reached Calcutta, Shukla was waiting for him. They boarded a train for Patna in Bihar. There Shukla took him to the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. He was out of town but his servant let them stay there. Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur which was on the way to Champaran. Gandhi sent a telegram to Professor J.B.Kripalani whom he had seen at the Shantiniketan. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani.

The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their Messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless. He believed that the real relief for peasants was to be free from fear.

Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on their land. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen percent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent. At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.

Gandhi decided to get the facts first. He met the secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. Next, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut. But Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately. But Gandhi refused to obey him.

Gandhi telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He wired a full report to the Viceroy. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large numbers of farmers came to Motihari. They demonstrated in thousands around the courthouse. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial as they wanted to consult their superiors.

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Gandhi protested against the delay. He pleaded guilty. He said that he did not want to be a lawbreaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran, But it was, because, he heeded the voice of his conscience. The magistrate asked Gandhi to arrange bail for himself within two hours, but he refused. The judge said that he would deliver the judgment after a few days. Meanwhile he allowed Gandhi to be at liberty.

Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived there. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked him to think about the plight of the poor farmers.

Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail. Then Gandhi divided the groups into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in modern India.

Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. They also collected the relevant documents. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. After four meetings an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials and Gandhi, who was the sole representative of the peasants. They agreed to make refunds to the peasants. Gandhi asked for 50 percent refund. But the landlords insisted on twenty-five percent refund.

In order to break the deadlock, Gandhi agreed. Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated. They had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years the British planters gave up their estates, which were returned to the peasants.

Gandhi was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there was cultural and social backwardness in Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages. Gandhi found that health conditions were miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others, rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment.

These medicines were used to cure most of the patients. During his long stay in Champaran, Gandhi kept a long distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail. Gradually, the condition of the people of that area improved.

The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. But he modestly said that what he did was an ordinary thing. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people. Some people wanted that C.F.Andrews should stay in Champaran and help them. But Gandhi did not want to take the help of an Englishman. He wanted Indians to become self-reliant and fearless.

(1942 में, लुई फिशर गाँधी से मिलने उनके आश्रम सेवाग्राम में गया। गाँधी ने उसे बताया कि किस प्रकार 1917 में उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निकालने के लिए संघर्ष करने का इरादा किया। 1916 में, गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ पर, राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उसने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आए और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्याय की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला से उन्हे कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।

जब गाँधी कलकत्ता पहुंचे, तो शुक्ला उनका इंतजार कर रहा था। उन्होंने बिहार में पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। वहाँ शुक्ला उन्हें राजेन्द्र प्रसाद के घर ले गया जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वे शहर से बाहर थे मगर उनके नौकर ने उन्हें वहाँ ठहरने दिया। गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुजफ्फरपुर गए जो चम्पारन के रास्ते में था। गाँधी ने प्राध्यापक जे. बी. कृपलानी को तार भेजा जिन्हें वह शान्ति निकेतन में मिला था। मुजफ्फरपुर में, वे दो दिनों के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके।

गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। गाँधी ने कहा कि किसान दबे हुए एवं भयभीत हैं। इसलिए उनके मामलों को कचहरी में ले जाना बेकार है। उनका मानना था कि किसानों के लिए सही राहत भय से मुक्त होना था।

चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज जमींदार थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य व्यापारिक फसल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फसल लगान के रूप में देने के लिए बाध्य किया जाता था। उस समय जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबन्ध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए हर्जाना देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबन्धों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। जिन्होंने मना किया, वह वकीलों के पास गए। इस बीच, कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुँच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।

गाँधी ने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताए। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन ज़िला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा। मगर गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।

गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएं। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी, जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं। इसलिए, अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए। उन्होंने कचहरी के चारों ओर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार से भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विमर्श करना चाहते हैं।
गाँधी ने देरी पर विरोध जताया।

उन्होंने माफी माँगने को कहा। उन्होंने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ पर आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया, क्योंकि, उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया। जज ने गाँधी को अपने लिए दो घंटे के अन्दर जमानत का इंतजाम करने के लिए कहा, मगर उन्होंने इन्कार कर दिया। जज ने कहा कि वह अपना निर्णय कुछ दिनों बाद सुनाएगा। इस बीच उसने गाँधी को आजाद कर दिया।

राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील वहाँ पर पहुँच गए थे। उन्होंने गाँधी को कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए, तो वहाँ पर उन्हें सलाह देने के लिए कोई नहीं होगा। वे सलाह किसे देंगे। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा।

अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे उनके पीछे जेल के अन्दर तक जाएंगे। तब गाँधी ने उनके समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। कुछ दिनों के बाद, गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध मुकद्दमें को खत्म कर दिया गया है। यह आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी। गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। उन्होंने सम्बन्धित दस्तावेज भी इकट्ठे किए। जून में, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, सर एडवर्ड गेट ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। चार मुलाकातों के बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया।

इस कमीशन में ज़मींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे जोकि किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे। वे किसानों को मुआवज़ा देने के लिए राजी हो गए। गाँधी ने 50 प्रतिशत मुआवजा देने की बात की। मगर ज़मींदारों ने 25 प्रतिशत पर जोर दिया। गतिरोध को तोड़ने के लिए, गाँधी राजी हो गए। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि ज़मींदार हार गए थे। उनकी साख समाप्त हो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों ने महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों के बाद अंग्रेज ज़मींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।

गाँधी राजनीतिक एवं आर्थिक समाधान से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवों में प्राइमरी स्कूल खोले गए। गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों, और अन्य लोगों को व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया।

वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं – कैस्टर ऑयल, कुनीन और गंधक की मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा। चम्पारन में एक लंबे समय तक रहने के दौरान, गाँधी ने अपने आश्रम पर भी दूर से नजर रखी। वे डाक द्वारा नियमित रूप से निर्देश भेजते रहे। धीरे-धीरे, उस इलाके के लोगों की हालत सुधरने लगी।

चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन का अहम मोड़ था। मगर उन्होंने विनम्रता से कहा कि जो कुछ उन्होंने किया वह तो एक साधारण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था। उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की प्रतिदिन की व्यावहारिक समस्याओं से मिली हुई थी। कुछ लोग चाहते थे कि सी. एफ. एन्ड्रयूज चम्पारन में रहें और उनकी सहायता करें। मगर गाँधी किसी अंग्रेज की सहायता नहीं लेना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतीय आत्मनिर्भर और निडर बनें।)

Indigo Word Meanings

[Page 46] :
Volunteer (one who offers his services willingly) = स्वयं सेवक;
excerpt (part) = भाग;
review (examine)= जाँचना;
urge (to request) = आग्रह करना;
delegates (representatives)= प्रतिनिधि;
departure (leaving) =जाना;
annual(yearly) = वार्षिक;
recounted (narrated) = वर्णन किया;
peasant (farmer)= किसान;
emaciated (weak and thin)=कमजोर एवं पतला;
foothills (base of hills)= पहाड़ियों की तलहटी;
towering (high)= ऊँचा;
sharecroppers (tenant farmers who get a share of the crop) = बँटाईदार;
illiterate (not educated) = निरक्षर;
resolute (determined) = दृढ़-निश्चयी।

[Page 47] :
Probably (perhaps)=शायद;
committed (consigned) =सुपुर्द;
begged (requested) प्रार्थना की;
tenacity (firmness) = दृढ़ता;
haunches (buttocks) = नितम्ब;
yeoman (a small farmer) = छोटा किसान;
spot (place) = स्थान;
pestered (troubled)=तंग किया;
took (thought) = सोचा;
indigo (a blue dye)= नील;
permitted (allowed) = अनुमति दी;
draw (take out) = निकाला;
capable (able to)= समर्थ;
imparting (giving) = देना।

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[Page 48] :
Commented (passed comments) = टिप्पणी की;
harbour (to shelter) = आश्रय देना;
localities ((settlements) बस्तियाँ;
advocates (takes the side of)= पक्ष लेना;
advent (arrival) = आना;
nature (kind)= प्रकार;
mission (work)=कार्य;
conveyance (transport)= यातायात;
frequently (often) =अकसर;
chided (rebuked)= डाँटा;
crushed (very poor) = बहुत गरीब;
fear stricken (frightened) = भयभीत;
arable (cultivable) = कृषि योग्य।

[Page 49]:
Estates (landed property)=भू-सम्पत्ति;
tenants (tillers as tenants)=मुजाहिरे;
compelled (forced) = मजबूर किया;
holdings (fields) = खेत;
entire (the whole) = सारा;
synthetic (artificially prepared) = कृत्रिम;
compensation (makinggood the loss) क्षतिपूर्ति करना;
resist (oppose)=विरोध करना;
thugs (musclemen/robbers) =गुण्डे/लुटेरे;
proceeded (moved forwards)=आगे बढ़े;
vast(huge)=विशाल;
multitude (crowd)=भीड़;
investigation (looking into)= जाँचना;
maltreated (ill treated) = दुर्व्यवहार किया।

[Page 50]:
Complied (obeyed)=कहा माना;
quit (leave) =छोड़ जाना;
immediately (at once) = फौरन;
summons (court’s orders) = कोर्ट के आदेश;
merely (only)=केवल;
authorities (officials in power)=ससरकारी अफसर;
spontaneous (come naturally) = सहज;
demonstration (show/march)= दिखावा प्रदशन;
liberation (freedom) = आजादी;
regulate (control) = नियन्त्रित करना;
concrete(solid) = ठोस;
dreaded (feared) = डरना;
might(force) = शक्ति;
hitherto (until now)= अब तक;
apparently (evidently) = स्पष्टतया;
protest (oppose) = विरोध करना;
delay (procrastination) = देरी;
conflict(dispute)= झगड़ा;
render (do )= करना;
want(lack )= कमी;
conscience ( the inner self)= अन्तरात्मा;
pronounce (declare)= घोषणा करना;
sentence (verdict of a judge)= निर्णय;
recess (break)= अन्तराल;
reconvened (started again) = फिर से बुलाया।

[Page 51] :
Prominent (important) = प्रमुख;
conferred (conversed) = बातचीत की;
upshot (conclusion) = निष्कर्ष;
desertion (abandonment) = छोड़ देना;
residents (dwellers) = निवासी;
communication (message) = सूचना;
triumphed (became victorious) = जीत जाना;
far flung (remote) = दूर के;
grievances (complaints) = शिकायतें;
depositions (giving evidence) = गवाही देना;
evidence (proof) =सबूत;
throbbed (quivered) = काँपने लगा;
vehement (forceful) = शक्तिशाली;
summoned (sent for) = बुलाया।

[Page 52]:
Protracted (prolonged)=लम्बा खींचना;
sole(only)= केवल;
initial (early)=शुरु का;
uninterrupted (without interruption) = लगातार;
undertaken (taken up) = लिया;
entreaty (request) = प्राथना;
unlettered (illiterate) = अनपढ़;
assembled (gathered)= इकट्रे हुए;
deceitfully (by deception)= धोखे से;
extorted(taken by force)= जबरदस्ती, वसूलना;
adamant(stubborn)= जिद्दी;
episode (event)=घटना;
give way (surrender) =हार मानना;
amazement (surprise) = हैरानी;
deadlock (stalemate)= गतिरोध;
prestige (honour)= सम्मान;
lords (masters) = मालिक।

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[Page 53]:
Defender (one who defends)= बचाने वाला;
abandoned (given up)=त्याग दिया;
reverted (given back) = वापिस दिया;
contented (satisfied)= सन्तुष्ट;
eruptions(rashes) = फोड़े;
filthy (dirty) = गन्दा;
trenches (ditches) = खाइयाँ।

[Page 54]:
Defiance(disobedience) = अवज्ञा;
attempt (effort) = प्रयत्न;
alleviate(remove) =दूर करना;
distress (trouble) = मुसीबत;
pattern (method) = तरीका;
intertwined (mixed up) = जुड़ना;
pacifist (one who is against war) = जो यद्ध का विरोध करता है;
vehemently (very strongly) = जोश से;
rely (depend on) =निर्भर होना;
prop (support)= सहारा;
self-reliance (self-dependence) = आत्मनिर्भरता;
bound (joined)= जुड़ा होना ।

Indigo Translation in Hindi

When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, in central India, he said, “I will tell you how it happened that I decided to urge the departure of the British. It was in 1917.”

(जब मैं पहली बार सन 1942 में गाँधी से मिलने उनके सेवाग्राम के आश्रम में गया, जो मध्य भारत में था, तो उन्होंने कहा था, “मैं तुम्हें बताऊँगा कि ऐसा कैसे हुआ कि मैंने अंग्रेजों के चले जाने का आग्रह करने का निशचय किया। यह घटना 1917 की है।”)

He had gone to the December 1916 annual convention of the Indian National Congress party in Lucknow. There were 2,301 delegates and many visitors. During the proceedings, Gandhi recounted, “a peasant came up to me looking like any other peasant in India, poor and emaciated, and he said, ‘I am Rajkumar Shukla. I am from Champaran, and I want you to come to my district’!” Gandhi had never heard of the place. It was in the foothills of the towering Himalayas, near the kingdom of Nepal.

(वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी के दिसम्बर, 1916 के वार्षिक अधिवेशन में लखनऊ गए हुए थे। वहाँ 2,301 प्रतिनिधि और बहुत-से अतिथि थे। गाँधी ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान, एक किसान मेरे पास आया, वह देखने में अन्य किसी भारतीय किसान जैसा ही गरीब और कमजोर लगता था, और उसने कहा, ‘मैं राजकुमार शुक्ला हूँ। मैं चम्पारन से आया हूँ, और मैं चाहता हूँ कि आप मेरे जिले में आएँ’!” गाँधी ने कभी उस जगह का नाम नहीं सुना था। यह विशाल हिमालय की निचली पहाड़ियों में, नेपाल की राजधानी के निकट स्थित था।)

Under an ancient arrangement, the Champaran peasants were sharecroppers. Rajkumar Shukla was one of them. He was illiterate but resolute. He had come to the Congress session to complain about the injustice of the landlord system in Bihar, and somebody had probably said, “Speak to Gandhi.”

(एक पुराने प्रबंध के अनुसार, चम्पारन के किसान बँटाई पर खेती करते थे। राजकुमार शुक्ला उन्हीं में से एक था। वह निरक्षर लेकिन दृढ़-निश्चयी था। वह कांग्रेस सम्मेलन में बिहार में ज़मींदारी प्रथा के अन्याय के विरुद्ध शिकायत करने आया था, और शायद किसी ने उससे कहा था, “गाँधी से बात करो।”)

Gandhi told Shukla he had an appointment in Cawnpore and was also committed to go to other parts of India. Shukla accompanied him everywhere. Then Gandhi returned to his ashram near Ahmedabad. Shukla followed him to the ashram. For weeks he never left Gandhi’s side. “Fix a date,” he begged. Impressed by the sharecropper’s tenacity and story Gandhi said, “I have to be in Calcutta on such-and-such a date. Come and meet me and take me from there.”

(गाँधी ने शुक्ला को बताया कि कानपुर में उनका पूर्वनिश्चित कार्यक्रम है और भारत के अन्य भागों में जाने का भी उन्होंने वायदा कर रखा है। शुक्ला उनके साथ हर स्थान पर गया। फिर गाँधी अहमदाबाद के निकट अपने आश्रम में लौट आए। शुक्ला उनके पीछे-पीछे आश्रम तक आया। हफ्तों तक उसने गाँधी का साथ न छोड़ा। “मिलने की तारीख पक्की कर लो,” उसने प्रार्थना की। उस बँटाई पर काम करने वाले किसान के धैर्य और इरादे से प्रभावित होकर गाँधी ने कहा, “फलां तारीख को मुझे कलकत्ता में जाना है। वहाँ आकर मुझसे मिलो और मुझे वहाँ से ले जाना।”)

Months passed. Shukla was sitting on his haunches at the appointed spot in Calcutta when Gandhi arrived; he waited till Gandhi was free. Then the two of them boarded a train for the city of Patna in Bihar. There Shukla led him to the house of a lawyer named Rajendra Prasad who later became President of the Congress party and of India. Rajendra Prasad was out of town, but the servants knew Shukla as a poor yeoman who pestered their master to help the indigo sharecroppers. So they let him stay on the grounds with his companion, Gandhi, whom they took to be another peasant. But Gandhi was not permitted to draw water from the well lest some drops from his bucket pollute the entire source; how did they know that he was not an untouchable?

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(महीने बीत गए। जब गाँधी कलकत्ता पहुँचे, शुक्ला अपने नितम्बों पर निश्चित स्थान पर बैठा हुआ था; उसने गाँधी के कार्य-मुक्त होने तक प्रतीक्षा की। फिर उन दोनों ने बिहार में पटना शहर के लिए ट्रेन पकड़ी। वहाँ शुक्ला उन्हें राजेन्द्र प्रसाद नामक एक वकील के पास ले गया जो बाद में काँग्रेस पार्टी के प्रधान और भारत के राष्ट्रपति बने। राजेन्द्र प्रसाद शहर में नहीं थे, परन्तु नौकर शुक्ला को एक ऐसे गरीब किसान के रूप में जानते थे जो नील की बँटाई पर खेती करने वाले किसानों की मदद के लिए उनके मालिक के पीछे लगा रहता था। इसलिए उन्होंने उसे जमीन पर अपने साथी गाँधी के साथ ठहरने दिया, जिन्हें उन्होंने कोई अन्य किसान मान लिया था। परन्तु गाँधी को कुएँ से पानी निकालने की अनुमति नहीं थी क्योंकि कहीं उनकी बाल्टी से निकली कुछ बूंदें पूरे कुएँ को खराब न कर दें, उन्हें कैसे पता होता कि वे अछूत नहीं थे।)

Gandhi decided to go first to Muzzafarpur, which was en route to Champaran, to obtain more complete information about conditions than Shukla was capable of imparting. He, accordingly, sent a telegram to Professor J.B. Kripalani, of the Arts College in Muzzafarpur, whom he had seen at Tagore’s Shantiniketan school. The train arrived at midnight, 15 April 1917. Kripalani was waiting at the station with a large body of students. Gandhi stayed there for two days in the home of Professor Malkani, a teacher in a government school. “It was an extraordinary thing in those days,” Gandhi commented, “for a government professor to harbour a man like me.” in smaller localities, the Indians were afraid to show sympathy for advocates of home

(स्थिति के बारे में शुक्ला से भी अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गाँधी ने पहले मुज़फ्फरपुर जाने का फैसला किया, जो चम्पारन के रास्ते में पड़ता था। इसलिए उन्होंने मुज़फ्फरपुर के आर्टस कॉलेज के प्राध्यापक जे०बी० कृपलानी के पास तार भेजा, जिनको वे टैगोर के शान्ति निकेतन स्कूल में मिले थे। गाड़ी 15 अप्रैल, 1917 की आधी रात को आई। कृपलानी बहुत-से विद्यार्थियों के साथ स्टेशन पर इन्तजार कर रहे थे। गाँधी वहाँ प्राध्यापक मलकानी के घर दो दिन रुके, जो सरकारी स्कूल में एक अध्यापक गे। गाँधी ने कहा, “एक सरकारी प्राध्यापक के लिए, मेरे जैसे आदमी को पनाह देना उन दिनों में एक असामान्य बात थी।” छोटी हों में भारतीय लोग होमरूल के समर्थकों के लिए सहानुभूति दिखाने से डरते थे।)

The news of Gandhi’s advent and of the nature of his mission spread quickly through Muzzafarpur and Champaran. Sharecroppers from Champaran began arriving on foot and by conveyance to see their champion. Muzaffarpur lawyers called on Gandhi to brief him; they frequently represented peasant groups in court; they told him about their cases and reported the size of their fee.

(गाँधी के आगमन और उनके आने के अभिप्राय का समाचार शीघ्र ही मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गया। अपने मसीहा को देखने के लिए बँटाईदार किसान पैदल और गाड़ियों में चम्पारन से आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील गाँधी को जानकारी देने के लिए उनसे मिलने आए; वे प्रायः किसानों के समूहों के मुकद्दमे कचहरी में लड़ा करते थे; उन्होंने अपने मुकद्दमों और अपनी फीस की रकम के बारे में बताया।)

Gandhi chided the lawyers for collecting big fee from the sharecroppers. He said, “I have come to the conclusion that we should stop going to law courts. Taking such cases to the courts does little good. Where the peasants are so crushed and fear-stricken, law courts are useless. The real relief for them is to be free from fear.”

(बँटाईदार किसानों से मोटी फीस लेने के लिए गाँधी ने वकीलों को डाँटा। वह बोले, “मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हमें कचहरी जाना बन्द कर देना चाहिए। ऐसे मामलों को कचहरी में ले जाने का कोई लाभ नहीं है। जहाँ किसान इतने दबे हुए और डरे हुए हों, वहाँ कचहरियाँ बेकार हैं। उनके लिए वास्तविक राहत तो भय से छुटकारा पाने में है।”)

Most of the arable land in the Champaran district was divided into large estates owned by Englishmen and worked by Indian tenants. The chief commercial crop was indigo. The landlords compelled all tenants to plant three twentieths or 15 percent of their holdings with indigo and surrender the entire indigo harvest as rent. This was done by long-term contract.

Presently, the landlords learned that Germany had developed synthetic indigo. They, thereupon, obtained agreements from the sharecroppers to pay them compensation for being released from the 15 per cent arrangement.

(चम्पारन जिले की अधिकांश कृषि योग्य भूमि को बड़े-बड़े हिस्सों में बाँट दिया गया था जिन पर अंग्रेजों का अधिकार था और भारतीय कृषक उन पर मुजाहिरों के रूप में कार्य करते थे। मुख्य व्यापारिक फसल नील थी। जमींदार सभी किसानों को मजबूर करते थे कि वे अपनी जमीन के एक-तिहाई या 15 प्रतिशत भाग पर नील की खेती करें और सारी नील की फसल लगान के रूप में दे दें। ऐसा एक लम्बे समय के अनुबन्ध द्वारा किया गया। तभी जमींदारों को पता लगा कि जर्मनी ने कृत्रिम नील पैदा कर लिया है। तब उन्होंने बँटाईदारों से ऐसे इकरारनामें कर लिए जिनसे उन्हें 15 प्रतिशत के बंधन से मुक्ति देने के लिए जमींदारों को हर्जाना देना था।)

The sharecropping arrangement was irksome to the peasants, and many signed willingly. Those who resisted, engaged lawyers; the landlords hired thugs. Meanwhile, the information about synthetic indigo reached the illiterate peasants who had signed, and they wanted their money back. At this point Gandhi arrived in Champaran.

(फसल बँटाई का प्रबंध किसानों को परेशान करता था, और बहुतों ने इच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। विरोध करने वालों ने वकीलों का सहारा लिया; जमींदारों ने ठगों (गुण्डों) को किराए पर रखा। इस बीच, कृत्रिम नील का समाचार अनपढ़ किसानों तक पहुँच गया, जो हस्ताक्षर कर चुके थे और वे अपने पैसे वापिस चाहते थे। इस समय पर गाँधी चम्पारन में आए।)

He began by trying to get the facts. First he visited the secretary of the British landlord’s association. The secretary told him that they could give no information to an outsider. Gandhi answered that he was no outsider. Next, Gandhi called on the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. “The commissioner,” Gandhi reports, “proceeded to bully me and advised me forthwith to leave Tirhut.”

(उन्होंने अपना कार्य तथ्यों की जानकारी लेने के प्रयत्न से प्रारम्भ किया। पहले वे ब्रिटिश ज़मींदार संगठन के सचिव से मिले। सचिव ने उनसे कहा कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को कोई सूचना नहीं दे सकते। गाँधी ने कहा कि वह बाहरी व्यक्ति नहीं है। इसके बाद गाँधी तिरहुत डिविज़न के ब्रिटिश सरकारी कमिश्नर से मिलने गए जिसके अन्तर्गत चम्पारन जिला पड़ता था “कमिश्नर ने,” गाँधी बताते हैं, “मुझे डराना-धमकाना प्रारम्भ किया और सलाह दी कि मैं तुरन्त तिरहुत से चला जाऊँ।”)

Gandhi did not leave. Instead he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawy accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house and, using in headquarters, continued his investigations. A report came in that a peasant had been maltreated in a nearby villa Gandhi decided to go and see; the next morning he started out on the back of an elephant. He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him and ordered him to return to town in his carriage. Gandhi complied. The messenger drove Gandhi home where he served him with an official notice to quite Champaran immediately. Gandhi signed a receipt for the notice and wrote on it that he would disobey the order.

(गाँधी नहीं गए। इसके बजाय वे चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी की तरफ चल पड़े। कई वकील उनके साथ चले। रेलवे स्टेशन पर एक विशाल जनसमूह ने गाँधी का स्वागत किया। वे एक घर में गए और उसका उपयोग हैडक्वार्टर के रूप में करते हुए अपनी खोजबीन जारी रखी। एक खबर आई कि पास के एक गाँव में एक किसान के साथ दुर्व्यवहार हुआ है। गाँधी ने जाकर देखने का निश्चय किया; अगले दिन प्रातः वे एक हाथी पर सवार होकर चल पड़े। वे अधिक दूर नहीं गए थे जब पुलिस सुपरिन्टेंडेंट का एक सन्देशवाहक उनके पास आ पहुँचा और उन्हें आज्ञा दी कि वे उसकी गाड़ी में बैठकर शहर वापिस लौटें। गाँधी ने आज्ञा मान ली। सन्देशवाहक गाँधी को लेकर घर आया जहाँ उसने उन्हें तुरन्त चम्पारन छोड़ने का सरकारी नोटिस दिया। गाँधी ने नोटिस की रसीद पर हस्ताक्षर किए और इस पर लिखा कि वे आज्ञा का उल्लंघन करेंगे।)

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In consequence, Gandhi received a summons to appear in court the next day. All night Gandhi remained awake. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He sent instructions to the ashram. He wired a full report to the Viceroy.

(परिणामस्वरूप, अगले दिन गाँधी को कचहरी में उपस्थित होने का कोर्ट का आदेश मिला। गाँधी रात भर जागते रहे। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को तार किया कि वे बिहार से अपने प्रभावशाली मित्रों को लेकर आ जाएँ। उन्होंने आश्रम को हिदायतें भेजीं। उन्होंने वाइसराय को तार से पूरी रिपोर्ट भेजी।)

Morning found the town of Motihari back with peasants. They did not know Gandhi’s record in South Africa. They had merely heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities. Their spontaneous demonstration, in thousands, around the courthouse was the beginning of their liberation from fear of the British.

The officials felt powerless without Gandhi’s cooperation. He helped them regulate the crowd. He was polite and friendly. He was giving them concrete proof that their might, hitherto dreaded and unquestioned, could be challenged by Indians.

(सुबह के समय मोतीहारी नगर किसानों से भर चुका था। वे गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते थे। उन्होंने सिर्फ इतना सुना था कि एक महात्मा जो उनकी सहायता करना चाहता था, अधिकारियों के कारण मुसीबत में था। हजारों की संख्या में कचहरी के चारों ओर उनका सहज विरोध प्रदर्शन, अंग्रेजों से उनके भय-मुक्त होने की शुरुआत थी। गाँधी के सहयोग के बिना अफसरों ने अपने-आपको कमजोर पाया। भीड़ को नियन्त्रित करने में उन्होंने उनकी सहायता की। वे विनम्र और मैत्रीपूर्ण बने रहे। वे उन्हें इस बात का ठोस प्रमाण दे रहे थे कि उनकी शक्ति को जो अभी तक भयपूर्ण और निर्विवाद थी, भारतीयों द्वारा चुनौती दी जा सकती थी।)

The government was baffled. The prosecutor requested the judge to postpone the trial. Apparently, the authorities wished to consult their superiors. Gandhi protested against the delay. He read a statement pleading guilty. He was involved, he told the court, in a “conflict of duties” – on the one hand, not to set a bad example as a lawbreaker; on the other hand, to render the “humanitarian and national service” for which he had come. He disregarded the order to leave, “not for want of respect for lawful authority, but in obedience to the higher law of our being, the voice of conscience”. He asked the penalty due.

(सरकार घबराई हुई थी। सरकारी वकील ने जज से मुकद्दमें को टालने का आग्रह किया। स्पष्ट था कि अधिकारी अपने से बड़े अधिकारियों से सलाह लेना चाहते थे। गाँधी ने देरी के विरुद्ध विरोध किया। उन्होंने (अपना) अपराध स्वीकार करते हुए एक बयान पड़ा। उन्होंने कचहरी को बताया कि वे “कर्त्तव्यों के संघर्ष” में उलझे हुए थे एक तरफ (वे) कानून तोड़ने वाला बुरा उदाहरण नहीं बनना चाहते थे; दूसरे ओर (वे) वह “मानवी और राष्ट्रीय सेवा” करना चाहते थे जिसके लिए वे आए थे। उन्होंने वहाँ से जाने की आज्ञा का उल्लंघन, “कानूनी अधिकार के प्रति आदर की कमी के कारण नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के उच्चतर कानून, आत्मा की आवाज के पालन के कारण” किया है। उन्होंने उचित दण्ड दिए जाने का आग्रह किया।)

The magistrate announced that he would pronounce sentence after a two-hour recess and asked Gandhi to furnish bail for those 120 minutes. Gandhi refused. The judge released him without bail. When the court reconvened, the judge said he would not deliver the judgment for several days. Meanwhile he allowed Gandhi to remain at liberty.

(जज ने घोषणा की कि वह दो घण्टे के अन्तराल के बाद सजा सुनाएगा और गाँधी को 120 मिनट की जमानत लेने को कहा। गाँधी ने इन्कार कर दिया। जज ने उन्हें बिना जमानत के ही मुक्त कर दिया। जब अदालत फिर से लगी तब, जज ने कहा कि वह कई दिनों तक निर्णय नहीं देगा। इस बीच उसने गाँधी को मुक्त रहने दिया।)

Rajendra Prasad, Brijkishor Babu, Maulana Mazharul Huq and several other prominent lawyers had arrived from Bihar. They conferred with Gandhi. What would they do if he was sentenced to prison, Gandhi asked. Why, the senior lawyer replied, they had come to advise and help him, if he went to jail there would be nobody to advise and they would go home.

What about the injustice to the sharecroppers, Gandhi demanded. The lawyers withdrew to consult. Rajendra Prasad has recorded the upshot of their consultations – “They thought, amongst themselves, that Gandhi was totally a stranger, and yet he was prepared to go to prison for the sake of the peasants; if they, on the other hand, being not only residents of the adjoining districts but also those who claimed to have served these peasants, should go home, it would be shameful desertion.”

(राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मजहरूल हक और कई अन्य प्रसिद्ध वकील बिहार से आए हुए थे। उन्होंने गाँधी से विचार-विमर्श किया। अगर उन्हें (गाँधी को) सजा हुई तो वे लोग क्या करेंगे, गाँधी ने पूछा। क्यों वरिष्ठ वकील ने कहा, वे लोग तो उन्हें सलाह और सहायता देने के लिए आए थे, अगर उन्हें जेल हो गई तो कोई व्यक्ति नहीं होगा जिसे सलाह दी जाए और वे घर चले जाएँगे। बँटाईदारों के प्रति होने वाले अन्याय का क्या, गाँधी ने पूछा।

आपसी सलाह के लिए वकील अलग चले गए। राजेन्द्र प्रसाद ने उनके आपसी विचार-विमर्श के परिणाम के बारे में लिखा है-“उन लोगों ने परस्पर विचार किया कि गाँधी पूर्णतः एक अजनबी थे, फिर भी वे किसानों के लिए जेल जाने को तैयार थे; दूसरी ओर, अगर वे लोग जो न केवल पड़ोसी जिलों के निवासी थे बल्कि उन किसानों की सेवा करने का दावा भी करते थे, घर चले गए तो यह शर्मनाक भगोड़ापन होगा।”)

They accordingly went back to Gandhi and told him they were ready to follow him into jail. “The battle of Champaran is won,” he exclaimed. Then he took a piece of paper and divided the group into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest.

. (इस प्रकार वे गाँधी के पास वापिस गए और कहा कि वे उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार हैं। “चम्पारन की लड़ाई जीत ली है”, वह उत्साह से बोले। फिर उन्होंने कागज़ का एक टुकड़ा लिया और समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम लिख दिया जिसके अनुसार हर जोड़े को गिरफ्तारी देनी थी।)

Several days later, Gandhi received a written communication from the magistrate informing him that the Lieutenant-Governor of the province had ordered the case to be dropped. Civil disobedience had triumphed, the first time in modern India.

(कई दिन बाद, गाँधी को मजिस्ट्रेट से एक लिखित सन्देश मिला कि प्रान्त के लेफ्टिनेंट-गवर्नर ने मुकद्दमें को खारिज करने की आज्ञा दी है। आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की यह पहली विजय थी।)

Gandhi and the lawyers now proceeded to conduct a far-flung inquiry into the grievances of the farmers. Depositions by about ten thousand peasants were written down, and notes made on other evidence. Documents were collected. The whole area throbbed with the activity of the investigators and the vehement protests of the landlords. In June, Gandhi was summoned to Sir Edward Gait the Lieutenant-Governor. Before he went he met leading associates and again laid detailed plans for civil disobedience if he should not return.

(गाँधी और वकील अब दूर-दूर के इलाकों से किसानों की शिकायतों के बारे में जाँच-पड़ताल करने लगे। लगभग दस हजार किसानों के बयान लिखे गए और दूसरे प्रमाणों के बारे में नोट्स बनाए गए। बयान इकट्ठे किए गए। सारा इलाका पड़ताल करने वालों के क्रिया-कलापों और जमींदारों के तीव्र विरोध से धड़कने लगा। जून में गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर सर एडवर्ड गेट ने बुलाया। अपने जाने से पहले वे अपने प्रमुख साथियों से मिले और फिर से अपने न लौटने की स्थिति में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की विस्तृत योजना बनाई।)

Gandhi had four protracted interviews with the Lieutenant-Governor who, as a result, appointed an official commission of inquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials, and Gandhi as the sole representative of the peasants. Gandhi remained in Champaran for an initial uninterrupted period of seven months and then again for several shorter visits. The visit, undertaken casually on the entreaty of an unlettered peasant in the expectation that it would last a few days, occupied almost a year of Gandhi’s life.

(लेफ्टिनेंट-गवर्नर के साथ गाँधी की चार लम्बी मुलाकातें हुईं जिनके परिणामस्वरूप उसने नील बँटाईदारों की स्थिति की जानकारी की जाँच-पड़ताल के लिए एक सरकारी कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी अफसर और किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी थे। चम्पारन में पहली बार गाँधी लगातार सात महीनों तक रहे और फिर कई बार वहाँ की छोटी-छोटी यात्राएँ की। वह यात्रा जो एक निरक्षर किसान की प्रार्थना पर बड़े हल्के ढंग से इस आशा से की गई थी कि इसमें कुछ ही दिन लगेंगे, गाँधी के जीवन का लगभग एक वर्ष ले गई।)

The official inquiry assembled a crushing mountain of evidence against the big planters, and when they saw this they agreed, in principle, to make refunds to the peasants. “But how much must we pay?” they asked Gandhi.
(सरकारी पड़ताल ने जमींदारों के विरुद्ध पहाड़ जैसे मजबूत प्रमाण एकत्रित कर लिए, और जब उन्होंने देखा तो वे सिद्धान्ततः किसानों को धन वापस देने को मान गए। “पर हमें कितना देना होगा?” उन्होंने गाँधी से पूछा।)

They thought he would demand repayment in full of the money which they had illegally and deceitfully extorted from the sharecroppers. He asked only 50 percent. “There he seemed adamant,” writes Reverend J.Z. Hodge, a British missionary in Champaran who observed the entire episode at close range, “Thinking probably that he would not give way, the representative of the planters offered to refund to the extent of 25 percent, and to his amazement Mr. Gandhi took him at his word, thus breaking the deadlock.”

(उन्होंने सोचा था कि वे उस धन की पूरी वापसी माँगेंगे जो उन्होंने बँटाईदारों से गैर-कानूनी और बेईमानी से वसूला था। उन्होंने केवल आधा ही माँगा। “इस पर वे अडिग दिखते थे,” चम्पारन का एक ब्रिटिश मिशनरी जे०जैड० हौज जिसने इस सारे घटनाक्रम को नजदीकी से देखा था, लिखता है “यह सोचकर कि शायद वे अडिग रहेंगे, जमींदारों के प्रतिनिधि ने 25 प्रतिशत की सीमा तक लौटाने का प्रस्ताव किया, और उसे हैरानी हुई कि मि० गाँधी ने उसकी बात मान ली, इस प्रकार गतिरोध दूर हो गया।”)

This settlement was adopted unanimously by the commission. Gandhi explained that the amount of the refund was less important than the fact that the landlords had been obliged to surrender part of the money and, with it, part of their prestige. Therefore, as far as the peasants were concerned, the planters had behaved as lords above the law. Now the peasant saw that he had rights and defenders. He learned courage. Events justified Gandhi’s position. Within a few years the British planters abandoned their estates, which reverted to the peasants. Indigo sharecropping disappeared.

(इस समझौते को कमीशन ने एक मत से स्वीकार कर लिया। गाँधी ने कहा कि रिफण्ड की रकम का महत्त्व कम है, इस तथ्य की तुलना में कि जमींदारों को धन का एक भाग और उसी के साथ अपनी इज्जत का भाग लौटाना पड़ा। इस प्रकार जहाँ तक किसानों का सवाल था, जमींदारों ने ऐसा व्यवहार किया मानों वे कानून के ऊपर कोई स्वामी हों। अब किसानों को पता लगा कि उनके अधिकार हैं और रक्षक भी। उनमें साहस आया। घटनाओं ने गाँधी की बात को सही साबित किया। कुछ ही सालों में अंग्रेज जमींदारों ने जमीनें छोड़ दी जो वापिस किसानों के पास आ गई। नील की खेती की बँटवाई का काम समाप्त हो गया।)

Gandhi never contented himself with large political or economic solutions. He saw the cultural and social backwardness in the Champaran villages and wanted to do something about it immediately. He appealed for teachers. Mahadev Desai and Narhari Parikh, two young men who had just joined Gandhi as disciples, and their wives, volunteered for the work. Several more came from Bombay, Poona and other distant parts of the land. Devadas, Gandhi’s youngest son, arrived from the ashram and so did Mrs. Gandhi. Primary schools were opened in six villages. Kasturbai taught the ashram rules on personal cleanliness and community sanitation.

(गाँधी बड़े राजनीतिक एवं आर्थिक समाधानों से कभी सन्तुष्ट नहीं थे। उसने चम्पारन के गाँवों का सांस्कृतिक एवं सामाजिक पिछड़ापन देखा, और वह इसके बारे में तुरन्त कुछ करना चाहते थे। उसने अध्यापकों से प्रार्थना की। महादेव देसाई और नरहरी पारिख, दो नौजवान जो अभी गाँधी से उनके शिष्यों के रूप में जुड़े थे और उनकी पत्नियों ने स्वेच्छा से काम हाथ में लिया। कुछ और लोग बम्बई, पूना और दूसरी जगहों से आए। देवदास, गाँधी का सबसे छोटा लड़का आश्रम से और ऐसे ही श्रीमती गाँधी भी आई। छः गाँवों में प्राथमिक पाठशालाएँ खोली गईं। कस्तूरबा ने व्यक्तिगत सफाई और सामुदायिक सफाई के आश्रम के नियम पढ़ाएँ।)

Health conditions were miserable. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available: castor oil, quinine and sulphur ointment. Anybody who showed a coated tongue was given a dose of castor oil; anybody with malaria fever received quinine plus castor oil; anybody with skin eruptions received ointment plus castor oil.

(स्वास्थ्य की स्थिति बुरी थी। गाँधी ने एक डॉक्टर की सेवाएँ छः महीने तक ली। तीन दवाएँ उपलब्ध थीं कैस्टर ऑयल, कुनीन और गंधक की मलहम। जिस किसी की भी जीभ परत से ढकी होती थी उसे कैस्टर ऑयल की एक खुराक दी जाती थी; मलेरिया बुखार से पीड़ित व्यक्ति को कैस्टर और कुनीन मिलती थी; फोड़े-फुन्सी वाले किसी भी व्यक्ति को मलहम और कैस्टर ऑयल मिलता था।)

Gandhi noticed the filthy state of women’s clothes. He asked Kasturbai to talk to them about it. One woman took Kasturbai into her hut and said, “Look, there is no box or cupboard here for clothes. The sari I am wearing is the only one I have.” During his long stay in Champaran, Gandhi kept a long-distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail and asked for financial accounts. Once he wrote to the residents that it was time to fill in the old latrine trenches and dig new ones otherwise the old ones would begin to smell bad.

(गाँधी ने औरतों के कपड़ों की गन्दी हालत पर ध्यान दिया। उन्होंने कस्तूरबा से कहा कि इस बारे में वे उनसे बात करे। एक औरत कस्तूरबा को अपनी झोंपड़ी में ले गई और बोली, “देखो, यहाँ कोई सन्दूक या अलमारी नहीं है जिसमें कपड़े रखे जा सकें। मैंने जो साड़ी पहनी है, वही एक साड़ी मेरे पास है।” चम्पारन में अपने लम्बे निवास के दौरान गाँधी आश्रम पर दूर से नजर रखे हुए थे। वे डाक से लगातार हिदायतें भेजते रहते थे और वित्तीय हिसाब पूछते थे। एक बार उन्होंने निवासियों को लिखा कि पाखाने के पुराने गड्ढों को भरने का और नए गड्ढे खोदने का समय आ गया है वरना पुराने गड्ढे बदबू देना प्रारम्भ कर देंगे।)

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The Champaran episode was a turning-point in Gandhi’s life. “What I did,” he explained, “was a very ordinary thing. I declared that the British could not order me about in my own country.”(चम्पारन का घटनाक्रम गाँधी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था। “जो कुछ मैंने किया,” उन्होंने समझाया, “बड़ी साधारण बात थी”। मैंने यह घोषणा की थी कि ब्रिटिश मुझे अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते थे।”)

But Champaran did not begin as an act of defiance. It grew out of an attempt to alleviate the distress of large numbers of poor peasants. This was the typical Gandhi pattern – his politics were intertwined with the practical, day-to-day problems of the millions. His was not a loyalty to abstractions; it was a loyalty to living, human beings. In everything Gandhi did, moreover, he tried to mould a new free Indian who could stand on his own feet and thus make India free.

(परन्तु चम्पारन का प्रारम्भ अवज्ञा के कार्य से नहीं हुआ। इसका प्रारम्भ अनेकानेक गरीब किसानों की परेशानी दुःख दूर करने के प्रयत्न से हुआ। यह विशेष गाँधीवादी तरीका था-उनकी राजनीति व्यवहारिकता से जुड़ी हुई थी, लाखों लोगों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के साथ। उनकी निष्ठा विचारों के प्रति नहीं थी; यह निष्ठा जीते-जागते मानवों के प्रति थी। जो कुछ गाँधी ने किया उसमें उसने एक स्वतन्त्र भारतीय को आकार देने की कोशिश की जो अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था और इस प्रकार भारत को स्वतन्त्र करा सकता था।)

Early in the Champaran action, Charles Freer Andrews, the English pacifist who had become a devoted follower of the Mahatma, came to bid Gandhi farewell before going on a tour of duty to the Fiji Islands. Gandhi’s lawyer friends thought it would be a good idea for Andrews to stay in Champaran and help them. Andrews was willing if Gandhi agreed. But Gandhi was vehemently opposed. He said, “You think that in this unequal fight it would be helpful if we have an Englishman on our side. This shows the weakness of your heart. The cause is just and you must rely upon yourselves to win the battle. You should not seek a prop in Mr. Andrews because he happens to be an Englishman”.

(चम्पारन आन्दोलन के प्रारम्भिक दौर में चार्ल्स फरीर एन्ड्रयूज जो एक अंग्रेज शान्तिवादी था, जो महात्मा का अनुयायी बन गया था, फिजी टापू पर अपनी ड्यूटी की यात्रा पर जाने से पहले गाँधी को अलविदा कहने आया। गाँधी के वकील दोस्त सोचते थे कि एन्ड्रयूज का चम्पारन में रहकर उनकी सहायता करने का विचार अच्छा था। यदि गाँधी सहमत होते तो एन्ड्रयूज तैयार था। परन्तु गाँधी ने एकदम विरोध किया। उसने कहा, “आप सोचते हैं कि इस असमान लड़ाई में हमारी तरफ़ एक अंग्रेज का होना सहायक होगा। यह आपके दिल की कमजोरी को दिखाता है। यह उद्देश्य न्याय संगत है और इस लड़ाई को जीतने में आपको अपने आप पर विश्वास करना चाहिए। आपको मि० एन्ड्रयूज के रूप में एक आश्रय नहीं ढूँढना चाहिए क्योंकि वह एक अंग्रेज है।”

“He had read our minds correctly,” Rajendra Prasad comments, “and we had no reply… Gandhi in this way taught us a lesson in self-reliance”. Self-reliance, Indian independence, and help to sharecroppers were all bound together.
(“वह हमारे मन को ठीक तरह से पढ़ चुका था,” राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं, “और हमारे पास कोई जवाब नहीं था….गाँधी ने इस तरह से हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया।” आत्मनिर्भरता, भारत की स्वतन्त्रता और सांझी खेती करने वालों की सहायता, सभी एक साथ बंधे हुए थे।)

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

HBSE 12th Class Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें
(क) सिंडिकेट – (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदल – (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नारा – (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) ग़ै-कांग्रेसवाद – (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह ।
उत्तर:
(क) सिंडिकेट – (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदल – (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नारा – (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद – (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) ग़रीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) श्री लाल बहादुर शास्त्री
(ख) सिंडीकेट
(ग) श्रीमती इन्दिरा गांधी।

प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायन्स’ के बारे में कौन-सा कथन ठीक है ?
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अन्दरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए ? यहां कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फ़ायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए पार्टी अध्यक्ष के बताए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन बना रहेगा, परन्तु इससे एक व्यक्ति की तानाशाही स्थापित होने का खतरा बना रहता है।

(ख) मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश सदस्यों की राय का पता चलेगा, परन्तु बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी।

(ग) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा, परन्तु गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।

(घ) पार्टी मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं, परन्तु वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क कीजिए
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबन्दी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता तथा कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण है। 1967 के चुनावों में अधिकांश विपक्षी दलों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद बने हुए थे।

प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गांधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 4 देखें।

प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में ‘सिंडिकेट’ का क्या अर्थ है ? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 6 देखें।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 3 देखें।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें इन्दिरा गांधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी।
नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियां भी बनानी थीं-1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गांधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था ?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’ ?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा ?
उत्तर:
(क) पं. नेहरू पार्टी के नेताओं से विचार-विमर्श करके अपनी रणनीतियां बनाते थे, जबकि श्रीमती गांधी कई बार बिना किसी से कोई परामर्श किये ही रणनीतियां बनाती थीं।

(ख) लेखक ने इसलिए कहा कि कांग्रेस पार्टी मर गई, क्योंकि श्रीमती गांधी के समय पार्टी संगठन को महत्त्व नहीं दिया जाता था।

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों से दूसरी पार्टियों को एकजुट होने में सहायता मिली।

 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना HBSE 12th Class Political Science Notes

→ पं० जवाहर लाल नेहरू 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे।

→ मई, 1964 में पं. नेहरू की मृत्यु के पश्चात् श्री लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमन्त्री बने।

→ जनवरी, 1966 में श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमन्त्री बनी।

→ 1967 के चौथे आम चुनाव में चुनावी बदलाव हुआ और राज्य स्तर पर गैर कांग्रेसवाद की शुरुआत हुई।

→ 1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे दक्षिण-पंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी देसाई से वित्त विभाग वापिस लेना इत्यादि।

→ 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई।

→ श्रीमती इन्दिरा गांधी की जीत के कई कारण थे-जैसे–श्रीमती गांधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियां, कांग्रेस दल पर श्रीमती गांधी की पकड, श्रीमती गांधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा ग़रीबी हटाओ का नारा।

→ ग़रीबी हटाओ का नारा 1971 के चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने दिया।

→ 1971 के चुनावों में जहां श्रीमती गांधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गांधी के पक्ष में मतदान किया।

→ श्रीमती गांधी की सरकार द्वारा ग़रीबी हटाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए।

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