HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक देश के नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार को मताधिकार कहा जाता है। भारत में प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान करने का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
निर्वाचकगण (Electorate) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे व्यक्ति जिन्हें मतदान करने का अधिकार होता है, उनके सामूहिक रूप को निर्वाचकगण कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जिस चुनाव-प्रणाली में साधारण मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, उसे प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली कहा जाता है। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव इसी प्रणाली द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऐसे प्रतिनिधि जो जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जाकर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों, उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली कहा जाता है। राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव इस प्रणाली द्वारा कराए जाते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • यह लोकतान्त्रिक सिद्धांतों के अनुसार है,
  • लोगों को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • यह अलोकतांत्रिक है,
  • इसमें भ्रष्टाचार की संभावना होती है।

प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक विशेष आयु प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को यदि वोट का अधिकार दिया जाए तो उसे वयस्क मताधिकार कहते हैं। वोट देने की आयु विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होती है। भारत में मतदान की आयु 18 वर्ष निश्चित की गई है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 8.
वयस्क मताधिकार के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  • यह समानता पर आधारित है,
  • इसमें सभी को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
वयस्क मताधिकार के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार गुणों की अपेक्षा संख्या को महत्त्व देता है और अशिक्षित तथा अज्ञानियों का, जिनकी संख्या अधिक है, शासन स्थापित हो जाता है,
  • यह अप्राकृतिक है क्योंकि प्रकृति ने सबको समान न बनाकर कुछ को बुद्धिमान तथा कुछ को कम बुद्धिमान बनाया है।

प्रश्न 10.
एक-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र का अर्थ है कि एक निर्वाचन-क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाएगा।

प्रश्न 11.
एक-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र के दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • यह तरीका बड़ा सरल है और आम व्यक्ति इसे समझ सकता है,
  • प्रतिनिधि और मतदाता के बीच सीधा संपर्क होता है क्योंकि चुनाव-क्षेत्र छोटा होता है।

प्रश्न 12.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बह-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र से तात्पर्य उस निर्वाचन-क्षेत्र से है, जहाँ से एक से अधिक सदस्य निर्वाचित होते हैं।

प्रश्न 13.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र के दो अवगुण बताइए।
उत्तर:

  • यह खर्चीली प्रणाली है,
  • प्रतिनिधियों व मतदाताओं में संपर्क का अभाव रहता है।

प्रश्न 14.
बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र के दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • मतदाता की पसंद सीमित नहीं होती और वह अपनी पसंद के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकता है,
  • इस प्रकार से एक योग्य प्रतिनिधि का चयन होता है।

प्रश्न 15.
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली का क्या अर्थ है?
उत्तर:
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली में सारे देश को समान प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक चुनाव-क्षेत्र विधानमंडल में अपने प्रतिनिधि को चुनकर भेजता है।

प्रश्न 16.
प्रादेशिक चुनाव-प्रणाली के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • यह साधारण प्रणाली है,
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 17.
प्रादेशिक चुनाव क्षेत्र के दो अवगुण लिखिए।
अथवा
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व की दो मूलभूत सीमा लिखिए।
उत्तर:

  • क्षेत्रीयवाद को बढ़ावा मिलता है,
  • विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व नहीं होता।

प्रश्न 18.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का अर्थ बताइए।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से तात्पर्य है कि प्रत्येक वर्ग, राजनीतिक दल व अल्पसंख्यक वर्ग आदि को उनके मतों की संख्या अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करना।

प्रश्न 19.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की दो विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  • इकहरी परिवर्तनीय मत प्रणाली तथा
  • सूची प्रणाली।

प्रश्न 20.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • प्रत्येक वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व का मिलना,
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित।

प्रश्न 21.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • यह जटिल प्रणाली है,
  • बड़े देशों में लागू नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 22.
संग्रहीत मत-प्रणाली (Cumulative Vote System) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इस प्रणाली के लिए बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र अनिवार्य है। एक मतदाता को उतने वोट दिए जाते हैं, जितने स्थान भरे जाने हैं। मतदाता अपने सारे मत एक उम्मीदवार को दे सकता है और यदि वह चाहे तो अपने मत अलग-अलग उम्मीदवारों को भी दे सकता है।

प्रश्न 23.
क्षेत्रीय (Territorial) और कार्यात्मक प्रतिनिधित्व (Functional Representation) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाता है जबकि कार्यात्मक प्रतिनिधित्व का आधार व्यवसाय होता है,
  • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कार्यात्मक प्रतिनिधित्व व्यवसाय के लोगों का ही प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 24.
उप-चुनाव (Bye-Election) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विधानपालिका के रिक्त स्थान को भरने के लिए करवाए गए चुनाव को उप-चुनाव कहा जाता है।

प्रश्न 25.
मध्यावधि चुनाव (Mid-Term Election) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यदि लोकसभा व विधानसभा को उसके निश्चित कार्यकाल से पहले ही भंग कर दिया जाए तो उस स्थिति में जो चुनाव करवाने पड़ते हैं, उसे मध्यावधि चुनाव कहा जाता है।

प्रश्न 26.
भारत में मतदाता कौन हो सकता है?
उत्तर:
भारत में प्रत्येक नागरिक को, जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मताधिकार प्राप्त है। चुनाव में उसी नागरिक को मत डालने दिया जाता है जिसका नाम मतदाता सूची में हो।।

प्रश्न 27.
भारतीय मतदाता में कौन-कौन-सी दो योग्यताएँ होनी चाहिएँ?
उत्तर:

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए,
  • उसकी आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिए।

प्रश्न 28.
चुनाव आयोग क्या है?
उत्तर:
भारत एक लोकतंत्रीय राज्य है जिसमें समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं। यह चुनाव निष्पक्ष रूप से हों, इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं।

प्रश्न 29.
चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कैसे की जाती है?
उत्तर:
संविधान में की गई व्यवस्था के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों (वर्तमान स्थिति में दो) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 30.
चुनाव आयुक्त को अथवा मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से कैसे हटाया जा सकता है?
उत्तर:
चुनाव आयुक्त को संसद में महाभियोग चलाकर उसके पद से हटाया जा सकता है।

प्रश्न 31.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
चुनाव आयोग के आयुक्तों (सदस्यों) का कार्यकाल साधारणतः 6 वर्ष होता है, लेकिन राष्ट्रपति द्वारा इस कार्यकाल को बढ़ाया भी जा सकता है।

प्रश्न 32.
भारतीय चुनाव आयोग के सदस्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है। इसके मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुशील चंद्रा तथा अन्य दो चुनाव आयुक्त हैं।

प्रश्न 33.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की तीन मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार,
  • एक-सदस्यीय चुनाव-प्रणाली,
  • गुप्त मतदान।

प्रश्न 34.
गुप्त मतदान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
गुप्त मतदान का अर्थ है कि चुनाव अधिकारियों द्वारा मतदान के समय ऐसा प्रबंध किया जाता है कि यह मालूम न पड़े कि मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किसके पक्ष में किया है या नहीं किया है।

प्रश्न 35.
चुनाव आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • चुनाव आयोग संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनावों की व्यवस्था करता है,
  • चुनाव आयोग को चुनाव संबंधी सभी मामलों पर निरीक्षण तथा निर्देशन का अधिकार है।

प्रश्न 36.
चुनाव याचिका का वर्णन करें। अथवा भारत में चुनाव-याचिका की सुनवाई कौन करता है?
उत्तर:
चुनावों के समय यदि किसी उम्मीदवार के द्वारा कोई अनियमितता बरती गई है, या कोई उम्मीदवार कानून के विरुद्ध कार्य करके चुनाव जीत गया है, तो उसका चुनाव रद्द करवाने के लिए कोई भी अन्य उम्मीदवार या कोई भी मतदाता याचिका दायर कर सकता है। यह याचिका सीधे उच्च न्यायालय में दी जाती है और वह स्वयं इसे सुनता है। यदि निर्वाचित उम्मीदवार के विरुद्ध लगाए गए आरोप सही सिद्ध हो जाएँ तो उच्च न्यायालय उसका चुनाव रद्द कर सकता है तथा संबंधित आरोपों के आधार पर उसे चुनाव के अयोग्य भी ठहरा सकता है।

प्रश्न 37.
भारतीय संविधान में निर्वाचन क्षेत्रों के आरक्षण के प्रावधान पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत के संविधान में सांप्रदायिक चुनाव-प्रणाली को समाप्त करके संयुक्त चुनाव-प्रणाली की व्यवस्था की गई है परंतु अनुच्छेद 330 के द्वारा समाज के पिछड़े वर्गों अनुसूचित जातियों (SC) तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के सदस्यों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इस समय लोकसभा में 84 सीटें अनुसूचित जातियों तथा 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। 104वें संशोधन द्वारा आरक्षित स्थानों की अवधि सन् 2030 तक बढ़ा दी गई है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 38.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वयस्क मताधिकार,
  • एक सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र,
  • गुप्त मतदान,
  • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्थान सुरक्षित रखना।

प्रश्न 39.
भारतीय चुनाव-प्रणाली के दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका,
  • चुनाव में बाहुबल तथा हिंसा का प्रयोग।

प्रश्न 40.
भारतीय चुनाव-प्रणाली में सुधार के दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  • चुनाव आयोग को अधिक शक्तिशाली तथा प्रभावी बनाया जाना चाहिए। उन्हें चुनावों में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अधिक शक्तियाँ दी जाएँ,
  • सभी मतदाताओं को परिचय-पत्र (Identity Cards) दिए जाने चाहिएँ ताकि गलत (Bogus) मतदान को रोका जा सके।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली तथा अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली साधारण शब्दों में, प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली उस चुनाव व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से (स्वयं) अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। प्रत्येक मतदाता चुनाव-स्थान पर जाकर स्वयं अपनी पसन्द के उम्मीदवार के पक्ष में, अपने मत का प्रयोग करता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा किया जाता है। अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली-अप्रत्यक्ष चुनाव वह चुनाव व्यवस्था है जिसमें साधारण मतदाता कुछ प्रतिनिधियों (निर्वाचकों) का चुनाव करते हैं और वे निर्वाचक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। प्रतिनिधि के चुनाव में साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने मत का प्रयोग नहीं करते। भारत में राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इस चुनाव-प्रणाली को अपनाया जाता है।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में चार तर्क (लाभ) लिखें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं

1. अधिक लोकतन्त्रीय प्रणाली-इस प्रणाली में जनता को स्वयं प्रत्यक्ष रूप से मतदान करके अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलता है। अतः यह प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।

2. मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क-इस प्रणाली में मतदाता तथा उम्मीदवार सीधे रूप से सम्पर्क में आते हैं तथा मतदाता उम्मीदवारों को भली-भांति जान सकते हैं। उम्मीदवार भी अपनी नीतियाँ तथा कार्यक्रम जनता के सामने रख सकते हैं।

3. राजनीतिक शिक्षा-इस प्रणाली में मतदाताओं तथा उम्मीदवारों में सीधा सम्पर्क होता है। इससे मतदाताओं को राजनीतिक शिक्षा मिलती है और उनमें राजनीतिक जागरूकता की भावना का भी उदय होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान-इस प्रणाली के अन्तर्गत सामान्य जनता को मताधिकार तथा अन्य अधिकारों का ज्ञान प्राप्त होता है तथा कर्तव्यों की भी जानकारी मिलती है।

प्रश्न 3.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व किसे कहते हैं?
उत्तर:
लोकतन्त्रीय राज्यों में चुनाव के लिए निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन भौगोलिक आधार पर किया जाता है। समस्त राज्य को एक-सदस्य अथवा बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को उस चुनाव-क्षेत्र का निवासी होने के नाते अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को ही प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। संक्षेप में, सामान्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन जब प्रादेशिक आधार पर हो, तो उस प्रणाली को प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। भारत, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका आदि राज्यों में इसी प्रणाली को लागू किया गया है।

प्रश्न 4.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है? इसकी दो पद्धतियों के नाम लिखें।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व का अर्थ है प्रत्येक जाति या वर्ग को उसकी जनसंख्या के अनुपात में संसद या प्रतिनिधि सभा में प्रतिनिधित्व का मिलना। जैकी का कहना है, “अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व देने का महत्त्व अतिशय महान है। यदि किसी निर्वाचन-क्षेत्र के दो तिहाई मतदाता एक दल को मत दें और शेष मतदाता किसी दूसरे दल को, तो स्पष्ट है कि बहुसंख्यक वर्ग को दो-तिहाई और अल्पसंख्यक वर्ग को एक-तिहाई प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए।” अर्थात प्रत्येक वर्ग, जाति या दल को उसके समर्थकों के अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व का मिलना ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व कहलाता है।

प्रश्न 5.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार गुण बताइए। उत्तर-आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार गुण निम्नलिखित हैं
1. सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व इस प्रणाली का यह गुण है कि समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है। कोई वर्ग प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रहता और सबको संतुष्टि मिलती है।

2. अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना-इस प्रणाली का यह गुण है कि सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिलने से उनके हितों की रक्षा होती है और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग स्वयं को सुरक्षित समझते हैं। वे स्वयं को बहुसंख्यक वर्ग की तानाशाही का शिकार नहीं समझते।

3. मतदाताओं को मतदान में अधिक सुविधा इस प्रणाली में मतदाता को अपनी पसन्द के कई उम्मीदवारों के पक्ष में मत डालने का अवसर मिलता है। उसे एक ही व्यक्ति के पक्ष में मत डालने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। इससे उसे अपनी पसन्द के उम्मीदवार को मत देने में सुविधा हो जाती है।

4. निर्वाचन के लिए निर्धारित मत प्राप्त करना आवश्यक है इस प्रणाली में यह सम्भावना नहीं रहती कि कोई उम्मीदवार थोड़े-से प्रतिशत मत लेकर भी चुन लिया जाएगा। इस प्रणाली में चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करना आवश्यक होता है अर्थात् चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या के मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।

प्रश्न 6.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. जटिल प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण मतदाता इसे समझ नहीं सकता।

2. राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियाँ भी अपनी भिन्नता बनाए रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बँट जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।

3. राजनीतिक दलों को अधिक महत्त्व आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक होता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है क्योंकि इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।

4. उत्तरदायित्व का अभाव इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन-क्षेत्र बहु-सदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।

प्रश्न 7.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व समस्या का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आधुनिक युग प्रजातान्त्रिक युग है और वास्तविक प्रजातन्त्र वही होता है जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व मिले। समुचित प्रतिनिधित्व से हमारा तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्ग, धर्म या जाति के प्रतिनिधि विधानमण्डल में होने चाहिएँ, ताकि वे भी अपना पक्ष रख सकें। यदि इस प्रकार का प्रतिनिधित्व नहीं होता तो विधानमण्डल को ‘जनमत का दर्पण’ नहीं कहा जा सकेगा। परन्तु आधुनिक लोकतन्त्र प्रणाली इस प्रकार की है कि उसमें अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।

साधारणतः आजकल प्रायः सभी देशों में एक-सदस्यीय चुनाव क्षेत्रों के आधार पर होने वाले चुनावों में बहुमत प्राप्त वर्ग को अधिकतर क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व मिलता है और अल्पसंख्यक वर्गों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर प्राप्त नहीं होता। परिणामस्वरूप बहुसंख्यक वर्ग को अपनी जनसंख्या के अनुपात में काफी अधिक स्थान विधानमण्डन में मिल जाते हैं और अल्पसंख्यक बिना प्रतिनिधित्व के रह जाते हैं; जैसे एक दल को 60% मत प्राप्त होते हैं तो उस दल को 60% स्थान प्राप्त हो जाते हैं और उनकी सरकार बन जाती है परन्तु 40% लोग बिना किसी प्रतिनिधित्व के रह जाते हैं और उनके हितों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इसी को अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की समस्या कहते हैं।

प्रश्न 8.
सीमित मत प्रणाली पर नोट लिखें।
उत्तर:
सीमित मत-प्रणाली (Limited Vote System) के अन्तर्गत सारा देश बहुत-से निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित होता है। प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र में से कम-से-कम 3 प्रतिनिधियों का निर्वाचन हो सकता है। इस प्रणाली में मतदाताओं को उम्मीदवारों की निश्चित संख्या से कम वोट देने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि हिसार निर्वाचन-क्षेत्र में से 5 उम्मीदवार चुने जाने हैं तो प्रत्येक मतदाता को 3 या 4 वोट देने का अधिकार होगा, परन्तु एक मतदाता एक उम्मीदवार को एक से अधिक मत नहीं दे सकता।

मतों की संख्या सीमित होने के कारण सभी स्थान बहुसंख्यक दल द्वारा पूरित नहीं होंगे, परिणामस्वरूप अल्पसंख्यकों को भी प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। लेकिन जनसंख्या के अनुपात में उन्हें प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो पाता। इसके द्वारा बड़े तथा सुसंगठित अल्पमत वर्गों को ही प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

प्रश्न 9.
वयस्क मताधिकार के पक्ष में चार तर्क (गुण) दीजिए।
उत्तर:
व्यस्क मताधिकार के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं

1. लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के अनुकूल लोक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है। लोकतन्त्र तब तक वास्तविक लोकतन्त्र नहीं हो सकता जब तक कि प्रतिनिधियों के चुनाव में प्रत्येक नागरिक का योगदान न हो। अतः प्रतिनिधियों का चुनाव सामान्य जनता द्वारा किया जाना चाहिए।

2. यह समानता पर आधारित है लोकतन्त्र का मुख्य आधार है-समानता। सभी व्यक्ति समान हैं और विकास के लिए सभी को मताधिकार देना भी आवश्यक है। जिन नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं होता, उनके हितों तथा अधिकारों की सरकार तनिक भी परवाह नहीं करती। इसलिए प्रत्येक वयस्क को मत देने का अधिकार होना चाहिए। नों का प्रभाव सभी पर पड़ता है-राज्य के कानूनों तथा नीतियों का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर पड़ता है। उसे निश्चित करने में भी सबका भाग होना चाहिए।

4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है वयस्क मताधिकार होने से सभी नागरिक समय-समय पर देश में होने वाले चुनावों में भाग लेते रहते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने दल की नीति का लोगों में प्रचार करते हैं और देश की समस्याओं के बारे में उनको जानकारी देते रहते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 10.
वयस्क मताधिकार के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
व्यस्क मताधिकार के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना अनुचित है-प्रत्येक देश में अधिकतर जनता अशिक्षित तथा अज्ञानी होती है। वे उम्मीदवार के गुणों को न देखकर जाति, धर्म तथा मित्रता आदि के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक नेताओं के जोशीले भाषणों से भी शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। अतः अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना उचित नहीं है।

2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा-वयस्क मताधिकार प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। निर्धन व्यक्ति थोड़े-से लालच में पड़कर अपना मत स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों के हाथों में बेच देते हैं।

3. प्रशासन तथा देश की समस्याएँ जटिल- आधुनिक युग में शासन संबंधी प्रश्न तथा समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं, जिन्हें समझ पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। प्रायः साधारण मतदाता अयोग्य व्यक्ति को चुन लेते हैं क्योंकि उनके पास देश की समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें समझने के लिए समय ही नहीं होता।

4. साधारण जनता रूढ़िवादी होती है वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि साधारण जनता रूढ़िवादी होती है। उनके द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियों का विरोध किया जाता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही मिलना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हों।

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग के कोई चार कार्य लिखें।
उत्तर:
चुनाव आयोग के चार कार्य निम्नलिखित हैं

1. चुनाव प्रबन्धन, निर्देशन व नियन्त्रण चुनाव आयोग का प्रमुख कार्य निष्पक्ष चुनाव करवाना है, इसलिए सम्पूर्ण चुनाव व्यवस्था चुनाव आयोग के अधीन है। यह चुनावों का प्रबन्ध, निर्देशन व नियन्त्रण करता है तथा चुनावों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करता है।

2. मतदाता सूचियाँ तैयार करना चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूचियाँ तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।

3. राजनीतिक दलों को निर्वाचन में ठीक व्यवहार रखने के निर्देश-चुनाव आयोग चुनाव के समय उचित वातावरण बनाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों और साधारण जनता के लिए आचार संहिता बना सकता है; जैसे मत प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दल जातिवाद या सांप्रदायिकता की भावना को नहीं भड़काएँगे तथा भ्रष्ट तरीकों को नहीं अपनाएँगे।

4. चुनाव की तिथि की घोषणा करना-चुनाव आयोग उम्मीदवारों के लिए नामांकन-पत्र भरने, नाम वापस लेने तथा नामांकन-पत्रों की जांच करने की तिथि निश्चित करता है। यह आयोग उस तिथि की भी घोषणा करता है, जिस दिन आम चुनाव होने होते हैं और नागरिकों को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करना होता है।

प्रश्न 12.
चुनाव आयोग का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय चुनाव आयोग की महत्ता का विवरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है

1. भारतीय लोकतन्त्र के लिए आवश्यक-भारत में लोकतन्त्र की स्थापना की गई है। लोकतन्त्र स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनावों पर आधारित है। भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत में स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग का गठन किया। अतः चुनाव आयोग स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव करवाकर भारतीय लोकतन्त्र की सुरक्षा करता है।

2. राजनीतिक दलों पर नियन्त्रण के लिए आवश्यक-चुनाव आयोग चुनाव के दिनों में राजनीतिक दलों के कार्यों को निर्देशित व नियंत्रित करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चुनाव आयोग ही विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है एवं उनकी मान्यता को रद्द भी करता है। इसके साथ ही चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता को निश्चित करता है। आचार संहिता की अवहेलना करने वाले दलों के या उनके सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई भी करता है।

3. भारतीय चुनाव राजनीति को प्रदूषित होने से बचाने वाली संस्था के रूप में चुनाव आयोग भारतीय चुनाव राजनीति को प्रदूषित होने से बचाने वाली संस्था के रूप में अहम भूमिका निभाता है। चुनाव आयोग समय-समय पर सन् 1951 के भारतीय प्रतिनिधित्व अधिनियम के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न आदेश देता है जिससे चुनाव प्रक्रिया को भ्रष्ट होने से बचाया जा सकता है; जैसे प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव के बाद चुनाव में हुए खर्च का ब्यौरा देना होता है, शासक दल सरकारी मशीनरी का प्रयोग नहीं कर सकता, चुनाव के दौरान कोई घोषणा नहीं की जा सकती आदि।

4. सरकारों पर नियन्त्रण की भूमिका चुनाव आयोग केंद्र सरकार व राज्य सरकारों पर नियन्त्रण रखने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में बहुमत प्राप्त दल सरकार का निर्माण करता है। सत्तारूढ़ दल अपनी शक्ति का प्रयोग करके चुनाव के लिए धन एकत्रित कर सकता है, जबकि विरोधी दल ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए आयोग आदर्श आचार संहिता के अन्तर्गत सरकारों को निर्देश देता है और उन पर नियन्त्रण रखता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 13.
भारतीय चुनाव प्रणाली की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव प्रणाली की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. वयस्क मताधिकार-भारतीय चुनाव व्यवस्था की प्रमुख विशेषता वयस्क मताधिकार है। इसका अर्थ यह है कि देश के प्रत्येक नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक है, को मतदान में भाग लेने का अधिकार है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 61वें संवैधानिक संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी। इसके अतिरिक्त भारत में जाति, धर्म, वर्ण, लिंग, शिक्षा आदि के आधार पर किसी भी व्यक्ति को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

2. अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा एंग्लो-इंडियन जाति के सदस्यों के लिए स्थान सुरक्षित रखना भारतीय संविधान के अनुसार संसद, राज्यों के विधानमण्डलों तथा स्थानीय स्वशासन की इकाइयों में पिछड़ी हुई जातियों, अनुसूचित जातियों तथा एंग्लो-इंडियन जाति के सदस्यों के लिए स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। आरंभ में यह व्यवस्था केवल 10 वर्ष के लिए अर्थात् 1960 तक थी, परन्तु दस-दस वर्ष के लिए बढ़ाकर इसे लागू रखा गया है। अब यह व्यवस्था 104वें संवैधानिक संशोधन द्वारा सन् 2030 तक कर दी गई है।

3. एक-सदस्यीय चनाव क्षेत्र भारतीय चनाव व्यवस्था की एक अन्य विशेषता एक-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र का होना है। चुनाव के समय प्रत्येक राज्य को लगभग बराबर जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व चुनाव में कुछ क्षेत्र दो सदस्यों वाले भी होते थे-एक साधारण जनता के लिए और दूसरा आरक्षित स्थान से । परन्तु अब इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है।

4. गुप्त मतदान स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव के लिए गुप्त मतदान आवश्यक है। भारत में भी लोकसभा, विधानसभा आदि के चुनाव के लिए गुप्त मतदान प्रणाली को अपनाया गया है। मत डालने वाले के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात का पता नहीं लगता कि उसने अपना मतदान किस उम्मीदवार को दिया है। इससे भ्रष्टाचार में भी कमी होती है।

प्रश्न 14.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की कोई चार त्रुटियाँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव-प्रणाली की चार त्रुटियाँ निम्नलिखित हैं

1. मतदाता सूचियों के बनाने में लापरवाही यह भी देखा गया है कि भारत में मतदाता सूचियों के बनाने में बड़ी लापरवाही से काम लिया जाता है और कई बार जान-बूझकर तथा कई बार अनजाने में पूरे-के-पूरे मोहल्ले सूचियों से गायब हो जाते हैं। मतदाता सूचियाँ अधिकतर राज्य सरकार के कर्मचारियों द्वारा बनाई जाती हैं और वे इसे फिजूल का काम समझते हैं।

विभिन्न विभागों के सामान्य कर्मचारियों विशेषतः पटवारियों तथा स्कूल के अध्यापकों से यह काम करवाया जाता है। प्रायः यह भी देखने में आता है कि नई मतदाता सूची बनाते समय नए मतदाताओं के नाम तो जोड़ दिए जाते हैं परन्तु स्वर्गवासी हो चुके मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस प्रकार मतदाता सूचियों में अंकित नामों एवं वास्तविक नामों में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। अतः मतदाता सूचियों को समय-समय पर संशोधित करने एवं चुनावी प्रक्रिया के प्रथम कार्य को सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है।

2. सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग भारतीय चुनाव व्यवस्था की एक और गम्भीर त्रुटि सामने आई है। मन्त्रियों द्वारा दलीय लाभ के लिए सरकारी तंत्र का प्रयोग किया जाता है। वोट बटोरने के लिए मन्त्रियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के आश्वासन दि हैं। विभिन्न वर्गों के लिए अनेकानेक रियायतें और सुविधाओं की घोषणा की जाती है।

अनेक प्रकार की विकास योजनाओं की घोषणा की जाती है; जैसे कारखानों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों व पुलों के शिलान्यास आदि की घोषणा करना। सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते आदि में वृद्धि की जाती है। कर्जे माफ किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी गाड़ियों तथा अन्य सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है। यद्यपि चुनाव सम्बन्धी अधिनियम के अनुसार ऐसा करना भ्रष्ट व्यवहार में सम्मिलित है परन्तु फिर भी चुनावी प्रक्रिया के दौरान यह सब देखने को मिलता है।

3. राजनीतिक दलों को मतों के अनुपात से स्थानों की प्राप्ति न होना यह भी देखा गया है कि चुनावों में राजनीतिक दलों को उस अनुपात में विधानमण्डलों में स्थान प्राप्त नहीं होते, जिस अनुपात में उन्हें मत प्राप्त होते हैं। जैसे भारत में 13वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी को 182 स्थान मिले और मतों का प्रतिशत 23.70 प्रतिशत रहा, जबकि काँग्रेस को 28.42 प्रतिशत मत मिलने के पश्चात् भी 114 स्थान ही प्राप्त हुए, फिर भी काँग्रेस का मत-प्रतिशत भाजपा से 5 प्रतिशत अधिक है। इससे दलों में मायूसी का पैदा होना स्वाभाविक है। इस प्रकार एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत इस स्थिति को न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

4. चुनाव नियमों में दोष यह भी देखा गया है कि चुनाव सम्बन्धी नियमों में बड़ी कमियाँ हैं और इसी कारण चुनाव में बरती गई अनियमितताओं को न्यायालय के सामने सिद्ध करना बड़ा कठिन हो जाता है। लगभग सभी दल धर्म और जाति के आधार पर अपने उम्मीदवार चुनते हैं तथा इसी के नाम पर वोट माँगते हैं, परन्तु इसको सिद्ध करना कठिन है। सभी उम्मीदवार मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह बात चुनाव-याचिका की सुनवाई के समय सिद्ध नहीं हो पाती।

प्रश्न 15.
भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए कोई तीन सुझाव दें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए तीन सुझाव निम्नलिखित हैं

1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली शुरू करना-भारत में चुनाव-प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि कई बार राजनीतिक दल कम मत प्राप्त करते हैं, परन्तु उन्हें अधिक स्थान प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरणतः सन् 1980 में काँग्रेस को लोकसभा के लिए केवल 42.6% मत मिले, परन्तु संसद में 67% स्थान मिले। इस बुराई को समाप्त करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया गया है। यद्यपि भारत में इसे लागू करना कठिन कार्य है।

2. चुनाव याचिकाओं के बारे में सुझाव-गत अनेक वर्षों से चुनाव याचिकाएँ उच्च न्यायालयों के समक्ष आई हैं, जिनका निपटारा करने में कई वर्ष लगे हैं। चुनाव याचिकाएँ चुनावों से भी अधिक खर्चीली तथा कष्टमय बन गई हैं। इसलिए इन याचिकाओं का निपटारा शीघ्र होना चाहिए, ताकि इसके दोनों पक्षों को बेकार की मुसीबत तथा खर्च से छुटकारा मिल सके।

3. निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक-निर्दलीय उम्मीदवार निष्पक्ष चुनावों के लिए एक समस्या हैं। इसलिए निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगनी चाहिए। यद्यपि कानून द्वारा स्वतन्त्र उम्मीदवारों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ अवश्य होना चाहिए कि मजाक के लिए चुनाव लड़ने वालों पर रोक लगे। इस संबंध में यह सुझाव दिया है कि एक तो जमानत की राशि को बढ़ा देना चाहिए। दूसरे यह व्यवस्था होनी चाहिए कि जिस निर्दलीय उम्मीदवार को निश्चित प्रतिशत से कम वोट प्राप्त होते हैं उसे अगले चुनाव में भाग लेने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार की व्यवस्था से निश्चित रूप से निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगेगी।

प्रश्न 16.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार गुण लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार गुण निम्नलिखित हैं
1. प्रतिनिधियों का उत्तरदायित्व प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है। एक क्षेत्र के सभी मतदाताओं का प्रतिनिधि होने के कारण वह अपने उत्तरदायित्व से इन्कार नहीं कर सकता।

2. क्षेत्रीय हितों की रक्षा प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में क्षेत्रीय हितों की अच्छी तरह पूर्ति होती है। प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझते हैं क्योंकि उनका अपने मतदाताओं व क्षेत्र से समीप का संबंध होता है। अतः प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। यदि प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के हितों की रक्षा नहीं करता, तो ऐसे प्रतिनिधि को मतदाता दोबारा नहीं चुनते। इसलिए प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता।

3. अधिक विकास की सम्भावना प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है। इसका कारण यह है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक प्रतिनिधि अपने क्षेत्र का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहता है क्योंकि भावी चुनाव में वह अपनी सीट को सुनिश्चित कर लेना चाहता है। सभी क्षेत्रों के विकास से देश का विकास होना स्वाभाविक है।

4. कम खर्चीली इस प्रणाली में चुनाव कम खर्चीला होता है और उम्मीदवार को भी चुनाव में कम खर्च करना पड़ता है।

प्रश्न 17.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के चार अवगुण निम्नलिखित हैं

1. क्षेत्रीयवाद की भावना-इस प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। प्रतिनिधि अपने को एक क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधि समझने लगते हैं और उसी क्षेत्र के विकास की बात सोचते तथा करते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों की अवहेलना होने लगती है।

2. सीमित पसन्द-कई बार मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले प्रायः उसी क्षेत्र के निवासी होते हैं और यदि उस क्षेत्र में अच्छे उम्मीदवार न हों तो मतदाताओं को इच्छा न होते हुए भी किसी-न-किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत डालना ही पड़ता है।

3. भ्रष्ट होना मतदाताओं को भ्रष्ट किए जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि मतदाता कम होते हैं और धनी उम्मीदवार धन के बल पर वोट खरीदने का प्रयत्न करने लगते हैं।

4. अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलना-इस प्रणाली में अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व आसानी से नहीं मिलता। एक क्षेत्र से एक उम्मीदवार चुना जाता है और स्वाभाविक है कि बहुमत वर्ग का उम्मीदवार ही चुना जाता है। इस प्रकार अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधि लगभग सभी चुनाव क्षेत्रों में हार जाते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
साधारण शब्दों में, प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली उस चुनाव व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें साधारण मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। प्रत्येक मतदाता चुनाव-स्थान पर जाकर स्वयं अपनी पसन्द के उम्मीदवार के पक्ष में, अपने मत का प्रयोग करता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Direct Method of Election)-प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली .. की पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

1. अधिक लोकतन्त्रीय प्रणाली (More Democratic System):
इस प्रणाली में जनता को स्वयं प्रत्यक्ष रूप से मतदान करके अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलता है। अतः यह प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।

2. मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क (Direct link between the voters and their Representatives):
इस प्रणाली में मतदाता तथा उम्मीदवार सीधे रूप से सम्पर्क में आते हैं तथा मतदाता उम्मीदवारों को भली-भांति जान सकते हैं। उम्मीदवार भी अपनी नीतियाँ तथा कार्यक्रम जनता के सामने रख सकते हैं।

3. राजनीतिक शिक्षा (Political Education):
इस प्रणाली में मतदाताओं तथा उम्मीदवारों में सीधा सम्पर्क होता है। इससे मतदाताओं को राजनीतिक शिक्षा मिलती है और उनमें राजनीतिक जागरूकता की भावना का भी उदय होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties):
इस प्रणाली के अन्तर्गत सामान्य जनता को मताधिकार तथा अन्य अधिकारों का ज्ञान प्राप्त होता है तथा कर्तव्यों की भी जानकारी मिलती है।

5. राजनीतिक दलों के लिए आसानी (Convenient for Political Parties):
इस प्रणाली में राजनीतिक दलों के लिए भी आसानी होती है और जो राजनीतिक दल अधिक प्रभावशाली होता है उसके लिए अधिक मत प्राप्त करना तथा बहुमत प्राप्त करना सरल हो जाता है।

6. मतदाताओं में आत्म-सम्मान की भावना आती है (It brings sense of Self-respect among the Voters):
प्रत्येक चुनाव-प्रणाली के अनुसार प्रत्येक मतदाता को निर्वाचन में भाग प्राप्त होता है, जिसके फलस्वरूप मतदाताओं में आत्म-सम्मान की भावना जन्म लेती है। वे अपने-आप को शासन-तन्त्र का अंश अनुभव करते हैं और राजनीतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

7. प्रतिनिधि सभी लोगों के सामने उत्तरदायित्व निभाते हैं (Representatives owe Responsibility to All):
वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधि अपने-आपको जनता के सामने अधिक उत्तरदायी महसूस करते हैं क्योंकि वे कुछ मतदाताओं द्वारा नहीं, बल्कि सभी मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।

प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के विपक्ष में तर्क (Arguments Against of Direct Method of Election) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली . के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

1. साधारण मतदाताओं में मतं का उचित प्रयोग करने की क्षमता का अभाव (Ordinary Voters cannot exercise the Right to Vote Properly): प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली के आलोचकों का कहना है कि साधारण मतदाताओं में अपने मत का उचित प्रयोग करने की क्षमता नहीं होती। वे झूठे प्रचारों और जोशीले भाषणों के प्रभाव में बह जाते हैं और अयोग्य उम्मीदवारों को अपना वोट डाल देते हैं।

2. अनुचित प्रचार (False Propaganda):
इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन अभियान में झूठे प्रचार का सहारा लिया जाता है। उम्मीदवार एक-दूसरे की निन्दा करते हैं और एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगाते हैं जिसके परिणामस्वरूप मतदाता पथ-भ्रष्ट हो सके।

3. अधिक खर्चीली प्रणाली (More Expensive System):
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली अधिक खर्चीली मानी गई है। इसके अन्तर्गत चुनाव कराने वाले अभिकरण को भी बहत खर्चा करना पड़ता है और उम्मीदवारों को भी बहत खर्चा करना पड़ता है।

4. अव्यवस्थाजनक (Causes Disruption):
यह चुनाव-प्रणाली एक ऐसी चुनाव-प्रणाली है जिसमें अव्यवस्था हो जाती है। अधिक जोश-खरोश के कारण दंगे-फसाद और अन्य प्रकार की अव्यवस्थाजनक स्थितियाँ सामने आ जाती हैं जिनका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

5. दलगत भावना को बढ़ावा (Encourages Partisan Spirit):
प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली राजनीतिक दलों का अखाड़ा बन जाती है, जिसमें राजनीतिक दल एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं।

प्रश्न 2.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विभिन्न तरीकों या रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए यह प्रणाली सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसकी विशेषता यह है कि इसका उद्देश्य प्रत्येक दल को कुछ प्रतिनिधित्व दिलाना है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक दल को उसके मतदान की शक्ति के अनुपात में ही प्रतिनिधित्व दिया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के मुख्य दो रूप हैं-

  • एकल संक्रमणीय मत-प्रणाली (Single Transferable Vote System) और
  • सूची-प्रणाली (List System)। ये दोनों प्रणालियाँ अल्पसंख्यकों को उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व दिलाती हैं।

1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) इस प्रणाली को हेयर प्रणाली (Hare System) भी कहा जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम इसका वर्णन एक अंग्रेज़ विद्वान थॉमस हेयर (Thomas Hare) ने सन् 1851 में अपनी पुस्तक ‘प्रतिनिधियों का चुनाव’ (Election of Representatives) में किया था।

सन् 1855 में डेनमार्क के एक मन्त्री एंड्रे (Andrae) द्वारा इसे पहली बार लागू किया गया। इसे अधिमान्य प्रणाली (Preferential System) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें मतदाता मत-पत्र (Ballot-Paper) पर अपने अधिमानों (Preferences) का संकेत दे सकता है। भारतवर्ष में राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव इसी प्रणाली के द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार चुनाव जीतने के लिए जितने मत प्राप्त करने आवश्यक हैं, उनकी संख्या एक सूत्र (Formula) के अनुसार निश्चित की जाती है। इसे कोटा (Quota) कहा जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 Img 1
मतदान-पत्र (Ballot Paper) में निर्वाचन के लिए खड़े सभी उम्मीदवारों के नाम लिखे हुए होते हैं। निर्वाचन के लिए जितने उम्मीदवार खड़े होते हैं, मतदाता को उतने ही अधिमान या पूर्वाधिकार (Preferences) देने का अधिकार होता है। उसे अपने अधिमानों (Preferences) को 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि के रूप में लिखना पड़ता है। . जब मतदान की प्रक्रिया (Polling) समाप्त हो जाती है तो सभी उम्मीदवारों को प्राप्त हुए प्रथम अधिमानों (First Preferences) को गिन लिया जाता है।

जो उम्मीदवार निश्चित कोटा प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें शीघ्र ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। ऐसे उम्मीदवार निश्चित कोटे से कुछ अधिक वोट भी प्राप्त कर सकते हैं। इन अतिरिक्त (Additional) वोटों का उनके लिए कुछ भी महत्त्व नहीं होता। इसीलिए इन अतिरिक्त (Additional) वोटों को मत-पत्र (Ballot Paper) में लिखे गए अधिमानों (Preferences) के क्रम के अनुसार दूसरे उम्मीदवारों को दे दिया जाता है अर्थात् हस्तांतरित कर दिया जाता है।

इस प्रकार का हस्तांतरण उस समय तक जारी रहता है, जब तक कोटा प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों की संख्या निर्वाचन-क्षेत्र से चुने जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या के बराबर न हो जाए। जिस समय यह संख्या समान हो जाती है तो उस समय हस्तांतरण की प्रक्रिया बन्द कर दी जाती है और निर्वाचन परिणाम घोषित कर दिया जाता है।

2. सूची प्रणाली (List System)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व का दूसरा रूप सूची प्रणाली है। यह प्रणाली बहु-सदस्यीय निर्वाचन-क्षेत्र में, जिसमें कम-से-कम तीन सीटें हों, लागू की जा सकती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत चुनाव में जो उम्मीदवार खड़े होते हैं, उनकी अपने-अपने दलों के अनुसार अनुसूचियाँ बना ली जाती हैं। प्रत्येक मतदाता को उतने मत देने का अधिकार होता है जितने कि सदस्य उस निर्वाचन-क्षेत्र से चुने जाते हैं, परन्तु वह एक उम्मीदवार को एक से अधिक मत नहीं दे सकता।

उदाहरणस्वरूप, यदि किसी निर्वाचन-क्षेत्र में 4 सीटें हैं तो प्रत्येक मतदाता को 4 मत देने का अधिकार होगा। इस प्रणाली में चुनाव का परिणाम अलग-अलग उम्मीदवारों को प्राप्त हुए मतों के अनुसार नहीं निकाला जाता, बल्कि प्रत्येक सूची के उम्मीदवारों के मत इकट्ठे जोड़ लिए जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मतदाता अपना मत उम्मीदवार को नहीं देते, बल्कि सूची को देते हैं।

इसके अन्तर्गत भी उपर्युक्त एकल संक्रमणीय प्रणाली में दिए गए फार्मूले के अनुसार कोटा (Quota) निकाला जाता है और एक स्थान से चुनाव जीतने के लिए न्यूनतम मतों की संख्या को निश्चित किया जाता है, इसके पश्चात प्रत्येक सूची को कितने स्थान मिलने चाहिएँ, यह उस सूची को दिए गए मतों की कुल संख्या को कोटा से विभाजित करके निकाल लिया जाता है। उदाहरणस्वरूप, एक आएगा।
HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 2 Img 2
यदि चुनाव में तीन दल भाग ले रहे हैं और उनको मत इस प्रकार मिले हैं जनता दल 4,200, काँग्रेस 3,000 और साम्यवादी दल 2,800 तो उस समय जनता दल को दो स्थान, काँग्रेस को एक स्थान तथा साम्यवादी दल को एक स्थान प्राप्त हो जाएगा। यदि इसमें किसी दल को कोटे से कम मत प्राप्त होते हैं तो बची हुई सीट उस दल को दी जाएगी, जिसके शेष मतों की संख्या सबसे अधिक है। इस प्रकार प्रत्येक दल को उसकी मत-संख्या के अनुपात से प्रतिनिधित्व मिल जाता है। यह प्रणाली नार्वे, स्वीडन तथा बेल्जियम आदि देशों में अपनाई गई है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 3.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of System of Proportional Representation)-आधुनिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं

1. सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व (Representation to All Classes):
इस प्रणाली का यह गुण है कि समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है। कोई वर्ग प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रहता और सबको संतुष्टि मिलती है।

2. अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना (Feeling of Protection among Minorities):
इस प्रणाली का यह गुण है कि सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिलने से उनके हितों की रक्षा होती है और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग स्वयं को सुरक्षित समझते हैं। वे स्वयं को बहुसंख्यक वर्ग की तानाशाही का शिकार नहीं समझते।

3. मतदाताओं को मतदान में अधिक सुविधा (More Scope of Choice for Voters):
इस प्रणाली में मतदाता को अपनी पसन्द के कई उम्मीदवारों के पक्ष में मत डालने का अवसर मिलता है। उसे एक ही व्यक्ति के पक्ष में मत डालने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। इससे उसे अपनी पसन्द के उम्मीदवार को मत देने में सुविधा हो जाती है।

4. निर्वाचन के लिए निर्धारित मत प्राप्त करना आवश्यक है (Quota is Necessary to Win the Election):
इस प्रणाली भावना नहीं रहती कि कोई उम्मीदवार थोड़े-से प्रतिशत मत लेकर भी चुन लिया जाएगा। इस प्रणाली में चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करना आवश्यक होता है, अर्थात् चुने जाने के लिए उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या के मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।

5. मत व्यर्थ नहीं जाते (Votes do not go Waste):
इस प्रणाली का यह भी गुण है कि इसमें कोई भी मत व्यर्थ नहीं जाता। मतदाता का मत यदि पहली पसन्द के अनुसार काम नहीं आता है, तो वह दूसरी या तीसरी या चौथी पसन्द के पक्ष में अवश्य काम आता है। मतदाता को भी यह तसल्ली रहती है कि. उसके मत का मूल्य है।

6. विधानमण्डल जनमत का सही प्रतिनिधित्व करता है (Legislature becomes Real Mirror of Public Opinion):
इस प्रणाली से विधानमण्डल जनमत का सही प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि इसमें सभी वर्गों और जातियों के लोग अपने अनुपात से विधानमण्डल में स्थान प्राप्त कर लेते हैं।

7. बहु-दलीय प्रणाली के लिए उपयोगी (Useful in case of Multi-party System):
जिस देश में कई राजनीतिक दल हैं, उसमें यह प्रणाली बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है क्योंकि इसके अन्तर्गत सभी राजनीतिक दलों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है और किसी एक दल की तानाशाही स्थापित नहीं हो पाती।

8. लोगों को अधिक राजनीतिक शिक्षा (More Political Education to People):
इस प्रणाली का यह भी गुण है कि इससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है। लोगों को मत डालते समय काफी सोच-विचार के बाद अपनी पसन्द का प्रयोग करना पड़ता है और मतगणना के समय भी काफी सोच-समझ से काम लेना पड़ता है, इसलिए यह प्रणाली लोगों को अधिक राजनीतिक शिक्षा देती है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विपक्ष में तर्क (Arguments Against the System of Proportional Representation) आधुनिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं

1. जटिल प्रणाली (Complicated System):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण मतदाता इसे समझ नहीं सकता। वोटों पर पसन्द अंकित करना, कोटा निश्चित करना, वोटों की गिनती करना और वोटों को पसन्द के अनुसार हस्तांतरित करना आदि ये सब बातें एक साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति समझ नहीं पाते।

2. राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध (Against National Unity):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियाँ भी अपनी भिन्नता बनाए रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बँट जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।

3. राजनीतिक दलों को अधिक महत्त्व (More Importance to Political Parties):
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक होता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है क्योंकि इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।

4. उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility):
इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचन-क्षेत्र बहु-सदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।

5. मतदाता और प्रतिनिधि में सम्पर्क का अभाव (Lack of Contact between Voters and Representatives):
इस प्रणाली में चुनाव-क्षेत्र बड़े-बड़े होते हैं, जिस कारण से मतदाताओं को उम्मीदवारों की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं होती और उनमें घनिष्ठ संबंध होना असम्भव-सा हो जाता है। परिणाम यह निकलता है कि प्रतिनिधियों का लोगों के साथ सम्पर्क नहीं हो पाता।

6. मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है (Voter’s Choice is Limited):
कई बार मतदाता की पसन्द का व्यक्ति नहीं चुना जाता। मान लो कि एक मतदाता ने किसी सूची में चौथे नंबर पर लिखे हुए उम्मीदवार के कारण अपना मत उस सूची के पक्ष में डाला, परन्तु उस सूची के हिस्से में केवल दो सीटें आईं तो ऐसी दशा में उस मतदाता की पसन्द अर्थहीन हो गई।

7. सरकार की अस्थिरता (Government is Unstable):
इस प्रणाली के अन्तर्गत देश में बहुत-से दल बन जाते हैं और सभी दल विधानमण्डल में कुछ-न-कुछ सीटें प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। जिन देशों में इस चुनाव-प्रणाली को अपनाया गया है, उनके विधानमण्डलों में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता और प्रायः मिली-जुली सरकार बनती है जो अधिक देर तक स्थिर नहीं रहती।

8. उप-चुनाव करवाने में कठिनाई (Difficulty in holding By-election):
इस प्रणाली के अधीन निर्वाचन-क्षेत्र का बहु-सदस्यीय होना बहुत आवश्यक है, परन्तु यदि आम चुनाव के बाद किसी क्षेत्र में एक सीट खाली हो जाए तो उसका उप-चुनाव कैसे किया जाए, यह एक ऐसी समस्या है, जिसे आसानी से सुलझाया नहीं जा सकता।

निष्कर्ष (Conclusion)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व के पक्ष और विपक्ष का अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि यह प्रणाली केवल ऐसे देश में लागू हो सकती है जहाँ लोग अधिक पढ़े-लिखे हों, साथ ही यह प्रणाली ऐसे राज्य के लिए कदाचित उचित नहीं ठहराई जा सकती, जहाँ पर संसदीय शासन लागू हो। इस चुनाव-प्रणाली का एक गुण तो सराहनीय है कि यह अल्पसंख्यक जातियों को प्रतिनिधित्व दिलाने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है। भारत में विधानपालिका के ऊपरी सदनों के चुनाव इसी प्रणाली के अनुसार होते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का विवरण निम्नलिखित है

1. वयस्क मताधिकार (Adult Franchise):
भारतीय चुनाव-प्रणाली की प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ वयस्क मत्तधिकार प्रणाली को लागू किया गया है। 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले प्रत्येक नागरिक को संसद, विधानमण्डल, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों में मत डालने का अधिकार दिया गया है।

मताधिकार के लिए जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। हाँ, मतदान क्षेत्र (Constituency) में एक निश्चित अवधि तक रहने, मतदाता-सूची में नाम होने आदि की शर्ते निश्चित की गईं हैं, परन्तु अमीर-गरीब, छूत-अछूत, हिन्दू-मुसलमान आदि के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया गया है।

वयस्क मताधिकार में लोकतान्त्रिक सहभागिता के सिद्धान्त को लागू किया गया है और लगभग 50% से अधिक जनसंख्या को मत डालने का अधिकार मिला हुआ है। सितम्बर-अक्तूबर, 1999 के लोकसभा चुनाव के समय भारत में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 62.04 करोड़ थी, जो 14वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2004) के समय बढ़कर लगभग 67.5 करोड़ हो गई थी।

15वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2009) में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 71 करोड़ 40 लाख, 16वीं लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2014) में लगभग 83.41 करोड़ थी जो अप्रैल-मई, 2019 में हुए 17वीं लोकसभा में बढ़कर लगभग 89 करोड़ 78 लाख हो गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में जनता के एक बहुत बड़े भाग को चुनावों में अपनी सहभागिता निभाने का अधिकार प्राप्त है।

2. प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election):
भारतीय चुनाव-प्रणाली की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ जनता के प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। केवल राज्यसभा तथा विधान परिषदों के सदस्य ही अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं और ये संस्थाएँ इतनी शक्तिशाली नहीं हैं। वास्तविक शक्ति-प्राप्त संस्थाएँ लोकसभा, राज्य विधानसभा, पंचायत, नगरपालिका हैं और इन सबके प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। इनमें मनोनीत किए जाने की व्यवस्था भी नाममात्र है।

3. संयुक्त निर्वाचन (Joint Election):
भारत में चुनाव अब पृथक् निर्वाचन के आधार पर नहीं होते, बल्कि संयुक्त निर्वाचन के आधार पर होते हैं। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता, चाहे वे किसी भी जाति या धर्म से सम्बन्ध रखते हैं, अपना एक प्रतिनिधि चुनते हैं। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार प्रत्येक प्रादेशिक चुनाव के लिए संसद के सदस्य चुनने के लिए एक सामान्य निर्वाचक सूची होगी और कोई भी भारतीय धर्म, जाति तथा लिंग के आधार पर सूची में नाम लिखवाने के अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक निर्वाचन क्षेत्र के समस्त मतदाता मिलकर संयुक्त रूप से अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं।

4. गुप्त मतदान (Secret Voting):
भारत में गुप्त मतदान की व्यवस्था की गई है। निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव के लिए गुप्त मतदान की व्यवस्था आवश्यक है। इस व्यवस्था में मत डालने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात का पता नहीं चलता कि उसने अपना मत किसको दिया है। इस प्रकार आपसी झगड़े और शत्रुता की सम्भावना कम हो जाती है तथा देश में शान्ति और व्यवस्था बनी रहती है।

5. एक-सदस्यीय चुनाव-क्षेत्र (Single-Member Constituencies):
भारत में एक-सदस्यीय चुनाव-क्षेत्र बनाए जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि चुनाव के समय सारे भारत या उस राज्य को, जिसमें कि चुनाव होना हो, बराबर जनसंख्या वाले चुनाव-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र में से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। पहले चुनावों में कुछ क्षेत्र दो सदस्यों वाले भी होते थे एक सदस्य साधारण जनता में से और दूसरा सुरक्षित स्थान से, परन्तु अब जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों अथवा जनजातियों की संख्या अधिक होती है, उस इलाके से उस जाति का एक ही सदस्य चुना जाता है और उसे सभी मतदाता चुनते हैं। इस प्रकार अब सभी चुनाव-क्षेत्र एक-सदस्यीय हैं। वर्तमान में भारतीय संघ को 543 संसदीय क्षेत्रों में बाँटा गया है।

6. आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Proportional Representation and Single Transferable Vote System):
भारत में इस प्रकार की चुनाव-प्रणाली का प्रयोग भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए किया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार संसद व राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को अनुपात के अनुसार समान मूल्य के मत देने का अधिकार होता है।

एकल संक्रमणीय प्रणाली के अनुसार मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसन्द लिखनी होती है। मतगणना के समय यदि प्रथम पसन्द वाला कोई व्यक्ति नहीं चुना जाता तो द्वितीय या उससे अगली पसन्द वालों के नाम मतों का संक्रमण हो जाता है। इस प्रकार किसी मतदाता का कोई मत व्यर्थ नहीं जाता।

7. चुनाव आयोग (Election Commission):
भारतीय संविधान द्वारा चुनावों के सुचारू रूप से संचालन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है, जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वर्तमान में श्री सुशील चंद्रा मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं एवं अन्य दो चुनाव आयुक्त बहु-सदस्यीय आयोग में कार्यरत हैं। इसी तरह भारत में बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग कार्य कर रहा है।

8. स्थानों का आरक्षण (Reservation of Seats):
भारत में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है। इसके साथ ही पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए संसद, विधानसभाओं, नगरपालिकाओं तथा पंचायतों में स्थान आरक्षित किए गए हैं। कुछ निर्वाचन-क्षेत्र ऐसे रखे जाते हैं, जिनसे किसी पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति का सदस्य ही चुनाव लड़ सकता है।

आरम्भ में यह व्यवस्था केवल 10 वर्ष के लिए अर्थात् 1960 तक थी, परन्तु दस-दस वर्ष बढ़ाकर इसे लागू रखा गया। वर्तमान में 104वें संशोधन के द्वारा इसे बढ़ाकर 2030 तक कर दिया गया। यह व्यवस्था समाज के पिछड़े वर्ग को सुविधा प्रदान करके उन्हें शेष वर्गों के समान स्तर पर लाने के अभिप्राय से की गई है। यह व्यवस्था लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसे वास्तविक व व्यावहारिक बनाने के लिए की गई है।

9. चनाव याचिका (Election Petition):
भारत में चनाव सम्बन्धी झगडों को निपटाने के लिए चनाव याचिका की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार कोई भी उम्मीदवार या मतदाता यदि किसी चुनाव से सन्तुष्ट नहीं है या वह महसूस करता है कि किसी चुनाव-विशेष में भ्रष्ट साधन अपनाए गए हैं, तो वह अपनी याचिका सीधे उच्च न्यायालय के पास भेज देता है। यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी प्रतिनिधि ने चुनाव के समय भ्रष्ट साधन अपनाए हैं, तो न्यायालय उसके चुनाव को रद्द घोषित कर सकता है।

10. परिणाम साधारण बहुमत के आधार पर (Result on the basis of Simple Majority):
भारत के संविधान निर्माताओं , ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के लिए ब्रिटेन में 16वीं शताब्दी में प्रचलित चुनाव प्रणाली, जिसे ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ (First Past the Post System) या एकल बहुमत प्रणाली (Single Plurality System) कहा जाता है, को अपनाना अधिक उचित समझा। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों में से सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार लोकसभा/राज्यसभा विधानसभा विधान-परिषद्/स्थानीय नगर निकायों/पंचायत राज संस्थाओं के लिए निर्वाचित हो जाता है।

11. ऐच्छिक मतदान (Optional Voting):
चुनावों में प्रत्येक मतदाता द्वारा अपने मत का प्रयोग करना एवं न करना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। वह कानून द्वारा वोट डालने के लिए बाध्य नहीं है। यद्यपि गुजरात सरकार द्वारा स्थानीय स्तर (पंचायती राज संस्थाओं) पर मतदान के अनिवार्य सम्बन्धी कानून पास करके भारत में एक बार पुनः चर्चा का विषय बना दिया गया है कि . मतदान की अनिवार्यता के कानून को लागू करना कितना व्यावहारिक एवं सार्थक है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन् 2014 में लागू किए गए मतदान की अनिवार्यता सम्बन्धी कानून को लागू करने वाला गुजरात राज्य भारत का प्रथम राज्य बन गया है।

12. नोटा का प्रावधान (Provision of NOTA):
भारतीय चुनाव प्रणाली में नोटा (None of the Above) के प्रावधान को लागू करके चुनाव में एक नए विकल्प को भी जनता के लिए प्रदान किया गया है। इस विकल्प द्वारा मतदाता चुनाव में खड़े हुए सभी प्रत्याशियों को नकार सकता है। इस तरह यदि मतदाता चुनाव में खड़े हुए सभी प्रत्याशियों को अयोग्य या भ्रष्ट प्रवृत्ति का समझते हैं तो वे अपनी भावना को व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार रखते हैं।

भारत में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव, 2014 में प्रथम बार नकारात्मक मतदान के लिए नोटा (NOTA) विकल्प मतदाताओं को उपलब्ध करवाया गया। 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल 59,97,054 मतदाताओं ने इस विकल्प का प्रयोग किया। यह सभी 543 लोकसभा सीटों के लिए पड़े कुल मतों का लगभग 1.1% है। यह व्यवस्था निश्चित जन-प्रतिनिधियों को जहाँ उत्तरदायित्वपूर्ण बना सकती है, वहाँ उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित कर सकती है कि वे वास्तव में समाज में एक सच्चे जन-सेवक के आदर्श के रूप में अपने-आपको प्रस्तुत करें, अन्यथा जनता उन्हें नकार भी सकती है।

प्रश्न 5.
भारतीय चुनाव-प्रणाली की मुख्य त्रुटियों (दोषों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। अब यहाँ लगभग 89 करोड़ 78 लाख से अधिक मतदाता अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार रखते हैं और आने वाली सरकार का निर्णय करते हैं। भारत में अब तक लोकसभा के 17 चुनाव हो चुके हैं तथा विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों की आम प्रशंसा भी हुई है, परन्तु भारतीय चुनाव-प्रणाली में कुछ उभरे दोषों सम्बन्धी तथ्य अब छिपे हुए नहीं हैं।

सामान्य तौर पर उम्मीदवारों की अपराधिक पृष्ठभूमि, अवैध तरीके से जमा की गई प्रत्याशियों की अचूक सम्पत्ति, अपराधिक व्यक्तियों से प्रत्याशियों की साँठ-गाँठ, मतदान केन्द्रों पर जबरन कब्जा कर लेने, फायरिंग करके या डरा-धमका कर वैध मतदाताओं को मतदान करने से रोकने पर फर्जी मतदान करने जैसी घटनाएँ एवं दोष भारतीय चुनाव प्रणाली में प्रायः देखी जा सकती है।

इसलिए भारत में चुनाव सुधार का मुद्दा सबसे अधिक चर्चित विषय रहता है। यद्यपि इस सम्बन्ध में भारतीय चुनाव आयोग, सरकार एवं न्यायपालिका ने समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार अपना-अपना सहयोग दिया है, परन्तु अब भी चुनाव-सुधार के लिए वास्तविक क्रिया चयन हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। यहाँ हम चुनाव-सुधार सम्बन्धी सुझावों पर चर्चा करने से पूर्व भारतीय चुनाव प्रणाली के दोषों पर दृष्टिपात कर रहे हैं जो निम्नलिखित हैं

1. चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका (The Increasing Role of Money in Elections):
भारतीय चुनाव-प्रणाली का सबसे बड़ा दोष चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका है। भारतीय चुनावों में धन के अन्धाधुन्ध प्रयोग और दुरुपयोग ने भारत की राजनीति को काफी भ्रष्ट किया है। भारत में काले धन का बड़ा बोलबाला है और उसका चुनावों में दिल खोलकर प्रयोग किया जाता है।

मतदाताओं के लिए शराब के दौर चलाए जाते हैं, मत खरीदे जाते हैं, उम्मीदवारों को धनी लोगों द्वारा खड़ा किया जाता है और पैसे के बल पर उम्मीदवारों को बैठाया जाता है तथा मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग किया जाता है। आज का चुनाव पैसे के बल पर ही जीता जा सकता है और इस धन ने मतदाताओं, राजनीतिक दलों तथा प्रतिनिधियों आदि सबको भ्रष्ट बना दिया है।

सार्वजनिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों का कहना है कि लोकसभा के एक उम्मीदवार ने 2 से 10 करोड़ रुपए तक खर्च किए हैं अर्थात् इतना चुनाव खर्च राजनीतिक व आर्थिक स्थिति को दूषित कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार, समय के साथ भारत में लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनावों की लागत (राजकोष पर भारित) तथा उम्मीदवारों एवं राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च का परिमाण सन् 1952 के खर्चों की तुलना में सन् 2014 में बढ़कर लगभग 328 गुना हो गया।

यहाँ तक कि राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले व्यय में तो 500 गुना से भी अधिक वृद्धि हो गई है। एक तथ्य के अनुसार सन् 1952 के लोकसभा चुनावों पर मात्र 10.45 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे जिससे प्रति व्यक्ति चुनाव खर्च लगभग 0.60 रुपए था तथा सन् 2019 के 17वीं लोकसभा चुनाव में कुल खर्च लगभग 70 हजार करोड़ रुपए अनुमानित है जिससे प्रति व्यक्ति खर्च बढ़कर लगभग 60 रुपए हो गया है।

भारतीय लोकतन्त्र धीरे-धीरे ऐसे दौर में पहुंच गया है जहाँ किसी भी सामान्य पृष्ठभूमि के कार्यकर्ता के लिए किसी राजनीतिक दल का टिकट प्राप्त करना तथा चुनाव लड़ना लगभग असम्भव हो गया है। एक तथ्य के अनुसार, 17वीं लोकसभा में 88 प्रतिशत सांसदों की सम्पत्ति औसतन एक-एक करोड़ रुपए से अधिक थी जबकि सन् 2004, 2009 एवं 2014 में करोड़पति सांसदों का औसत क्रमशः लगभग 30 प्रतिशत एवं 82 प्रतिशत था।

इस तरह स्पष्ट है कि राजनीति में धनाढ्य लोगों का ही प्रभुत्व बनता जा रहा है जो भारतीय लोकतन्त्र एवं चुनाव प्रणाली के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। निश्चित ही चुनाव प्रबंधन में काले धन के उपयोग से भारतीय चुनाव परिदृश्य अत्यन्त भ्रष्ट, कलुषित, फिजूलखर्ची एवं हिंसक होता जा रहा है।

2. जाति और धर्म के नाम पर वोट (Voting on the basis of Caste and Religion):
भारत में साम्प्रदायिकता का बड़ा प्रभाव है। जाति और धर्म के नाम पर खुले रूप से मत माँगे और डाले जाते हैं। राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार खड़े करते समय इस बात को ध्यान में रखते हैं और उसी जाति और धर्म का उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं, जिस जाति का उस निर्वाचन-क्षेत्र में बहुमत हो। भारत में अब तक जो चुनाव हुए हैं, उनके आँकड़े भी इस बात का समर्थन करते हैं।

यद्यपि 16वीं एवं 17वीं लोकसभा चुनाव में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व को मिला अपार जनसमर्थन यह दर्शा रहा है कि भारत में भ्रष्टाचार को समाप्त करने एवं विकास तथा सुशासन के लिए आम जनता ने जाति एवं धर्म के आधार से ऊपर उठकर मतदान किया है। यही कारण है कि 16वीं लोकसभा चुनाव के बाद लगभग 30 वर्षों के बाद भारत में एक दल वाली स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। वहाँ 17वीं लोकसभा चुनाव के बाद मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को पुनः पूर्णतः स्पष्ट जनसमर्थन मिला।

3. राजनीतिक दलों को मतों के अनुपात से स्थानों की प्राप्ति न होना (Political Parties not get the seats in Proportion to Votes):
यह भी देखा गया है कि चुनावों में राजनीतिक दलों को उस अनुपात में विधानमण्डलों में स्थान प्राप्त नहीं होते, जिस अनुपात में उन्हें मत प्राप्त होते हैं। जैसे भारत में 13वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी को 182 स्थान मिले और मतों का प्रतिशत 23.70 प्रतिशत रहा, जबकि काँग्रेस को 28.42 प्रतिशत मत मिलने के पश्चात् भी 114 स्थान ही प्राप्त हुए, फिर भी काँग्रेस का मत-प्रतिशत भाजपा से 5 प्रतिशत अधिक है। इससे दलों में मायूसी का पैदा होना स्वाभाविक है। इस प्रकार एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत इस स्थिति को न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

4. मतदाताओं की अनुपस्थिति (Absence of the Voters):
चुनावों में बहुत-से मतदाता चुनावों में रुचि लेते ही नहीं। उनके लिए वोट डालना एक समस्या बन गई है। वे मतपत्र का प्रयोग करते ही नहीं। मत का प्रयोग न करना एक प्रकार से लोकतन्त्र को धोखा देना ही है। अक्सर देखने में आता है कि मतदान लगभग 60% होता है। मतदान का प्रतिशत कई चुनावों में तो 60% से भी कम रहता है।

इससे यह होता है कि कम वोट प्राप्त करने वाले दल को अधिक सीटें मिल जाती हैं; जैसे 13वीं लोकसभा के चुनाव, जो सन् 1999 में हुए, में 59.30 प्रतिशत मतदाताओं ने 14वीं लोकसभा चुनाव में 58 प्रतिशत मतदाताओं ने, 15वीं लोकसभा चुनाव, 2009 में भी 71 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से केवल 42 करोड़ 80 लाख मतदाताओं ने, 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल पंजीकृत 83.41 करोड़ मतदाताओं में से केवल 66.4 प्रतिशत मतदाताओं ने तथा 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 में 89.78 करोड़ मतदाताओं में से 67.11 प्रतिशत मतदाताओं ने ही भाग लिया।

यानि चुनाव आयोग एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रयास के बावजूद आज भी लगभग 33 प्रतिशत मतदाता अपने पवित्र एवं अमूल्य मताधिकार के प्रति जागरूक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना बहत कठिन है कि जीतने वाला प्रत्याशी लोकतान्त्रिक भावना के अनुरूप बहमत

5. चुनाव नियमों में दोष (Defective Election Rules):
यह भी देखा गया है कि चुनाव सम्बन्धी नियमों में बड़ी कमियाँ हैं और इसी कारण चुनाव में बरती गई अनियमितताओं को न्यायालय के सामने सिद्ध करना बड़ा कठिन हो जाता है। लगभग सभी दल धर्म और जाति के आधार पर अपने उम्मीदवार चुनते हैं तथा इसी के नाम पर वोट माँगते हैं, परन्तु इसको सिद्ध करना कठिन है। सभी उम्मीदवार मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह बात चुनाव-याचिका की सुनवाई के समय सिद्ध नहीं हो पाती।

6. राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics):
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय चुनाव-प्रणाली में एक और दोषपूर्ण मोड़ आया है। प्रायः सभी राजनीतिक दलों ने ऐसे बहुत-से उम्मीदवार चुनाव में खड़े किए, जिनका अपराधों की दनिया में नाम था। ऐसे व्यक्तियों ने राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने का काम किया और लोगों को भय दिखाकर वोट माँगे। जब अपराधी, तस्कर और लुटेरे पहले किसी दल के सक्रिय सदस्य तथा बाद में विधायक बन जाएँ तो उस देश के भविष्य के उज्ज्वल होने की आशा नहीं की जा सकती।

यदि एक तथ्य पर नजर डाली जाए तो राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है; जैसे 14वीं लोकसभा में 128 सांसद ऐसे थे जिन पर विभिन्न मामलों पर अपराधिक मामले चल रहे थे जबकि 15वीं लोकसभा में यह संख्या बढ़कर 162 हो गई। जो कुल सांसदों का 30 प्रतिशत थी। एक तथ्य के अनुसार 162 में से 78 सांसदों के विरुद्ध गम्भीर अपराधिक मामले दर्ज थे।

इसके अतिरिक्त 16वीं लोकसभा, (2014) के निर्वाचित सांसदों पर ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्स’ के द्वारा निर्वाचित सांसदों के दिए गए शपथ पत्रों के विश्लेषण के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष के अनुसार 34 प्रतिशत सांसदों (185) के विरुद्ध विभिन्न न्यायालयों में अपराधिक मामले लम्बित हैं। इनमें से 112 सांसदों के विरुद्ध तो हत्या, हत्या का प्रयास, आगजनी, अपहरण जैसे गम्भीर प्रवृत्ति के मामले दर्ज हैं।

सन् 2019 में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव में लगभग 233 सांसदों के विरुद्ध आपराधिक मामले लम्बित हैं जिनमें बीजेपी के 116, कांग्रेस के 29, जनता दल के 13, डी.एम.के. के 10 एवं टी०एम०सी० के 9 सांसद सम्मिलित हैं जो कुल सांसदों का 43 प्रतिशत हैं। इनमें से 29 प्रतिशत सांसदों पर गम्भीर जुर्म (हत्या, घर में घुसना, डकैती, फिरौती की मांग, धमकाने आदि) के आरोप हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है जो कि चिन्तनीय है।

7. जाली वोट की समस्या (Problem of Impersonation):
भारतीय चुनाव-प्रणाली का एक और महत्त्वपूर्ण दोष है जाली मतदान। चुनावों में जाली मतदान किया जाता है। यहाँ तक कि मृत व्यक्तियों के वोटों का भुगतान भी होता है। वास्तविकता यह है कि जाली मतदान भारतीय लोकतन्त्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। इससे बड़ा खतरा तो यह है कि जाली मतदान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा संगठित तौर पर करवाया जाता है।

8. बहुत अधिक चुनाव प्रत्याशी (Too many Candidates for Election):
भारतीय चुनाव-प्रणाली में एक और दोष है उम्मीदवारों की बढ़ती हुई संख्या। सन् 1996 के लोकसभा के चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या 13,952 थी, जो फरवरी-मार्च, 1998 के आम चुनावों में बढ़कर 47,501 हो गई।

1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में भी कुल प्रत्याशियों की संख्या 4,648 थी जोकि 15वीं लोकसभा चुनाव में कुल प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 8070 हो गई और अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव में कुल प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 8251 हो गई। यद्यपि 17वीं लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या 8040 ही रही जो कि 16वीं लोकसभा से कम है।

17वीं लोकसभा चुनाव के समय 7 राष्ट्रीय एवं 59 राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल थे परन्तु अत्यधिक प्रत्याशियों के कारण जनमत का ठीक प्रदर्शन नहीं हो पाता। वोटें अधिक भागों में बंट जाती हैं। बहुत कम वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की जीतने की संभावना रहती है। इस समस्या को निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़ती हुई संख्या ने और भी जटिल बना दिया है। यद्यपि सन् 1999, 2004, 2009, 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या में कमी अवश्य हुई है फिर भी निर्दलीय प्रत्याशियों का अस्तित्व जनमत विभाजन की दृष्टि से निश्चित ही हानिकारक माना जाता है।

9. प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की व्यवस्था का न होना (No Provision for Recall of Representatives):
प्रतिनिधियों को अपने उत्तरदायित्व का आभास करवाने के लिए उन्हें वापस बुलाने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे प्रतिनिधि वापस बुलाए जाने के भय से अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन करेंगे। इस प्रकार की व्यवस्था स्विट्ज़रलैण्ड में है, जबकि भारत में .इस व्यवस्था का अभाव है।

10. अत्यधिक राजनीतिक दल (Too many Political Parties):
भारत एक बहुदलीय प्रणाली वाला देश है। भारत की बहुदलीय प्रणाली के कारण हुए जनमत विभाजन के परिणामस्वरूप सन् 2014 के 16वीं लोकसभा से पूर्व तक पिछले तीन दशकों से भारत में गठबन्धन सरकार का युग रहा ।

यद्यपि 17वीं लोकसभा चुनाव में गठबन्धन सरकार के बावजूद एन०डी०ए० गठबन्धन का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी को अकेले. ही 303 लोकसभा सीटों पर स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ, परन्तु फिर भी भारतीय राजनीति में अत्यधिक राजनीतिक दलों का होना जिनमें से अधिकांश राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय भी नहीं होते कोई अधिक शुभ संकेत नहीं है।

एक तथ्य के अनुसार 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 के समय चुनाव आयोग के पास लगभग 2293 राजनीतिक दल पंजीकृत थे, जिसमें केवल 7 राष्ट्रीय स्तर एवं 59 राज्य स्तरीय राजनीतिक दल थे। शेष राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग की मान्यता प्राप्त नहीं थी। इससे स्पष्ट है कि भारत में बने अधिकांश राजनीतिक दल ऐसे हैं जो राजनीतिक सक्रियता नहीं रखते हैं। अतः भारतीय चुनाव प्रणाली की यह अपनी ही ऐसी व्यवस्था बन गई है जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त दल भी चुनावों में भाग लेते हैं।

11. चुनावों में हिंसा का प्रयोग (Use of Violence in Elections):
भारतीय चुनाव प्रणाली का एक अन्य महत्त्वपूर्ण दोष . यह भी है कि चुनावी प्रक्रिया में हिंसा की घटनाएँ होती रहती हैं। हिंसा एवं शारीरिक बल से कई जगह मतदान केन्द्रों पर जबरन कब्जे की कोशिश की जाती है जिसके कारण कई बार कुछ मतदान केन्द्रों पर पुनर्मतदान भी करवाना पड़ता है। इस तरह हिंसक घटनाओं से जहाँ राजनीतिक वातावरण दूषित होता है वहाँ आम जनता का भी लोकतन्त्रीय प्रणाली से मोह भंग होता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 6.
भारतीय चुनाव प्रणाली की त्रुटियों को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्तमान चुनाव पद्धति 1952 से कार्य करती चली आ रही है। इस चुनाव पद्धति में अनेक दोष देखने को मिले हैं। समय-समय पर राजनीतिक विद्वानों व राजनीतिज्ञों ने विभिन्न सुधार एवं सुझाव प्रस्तुत किए हैं। भारतीय चुनावों के दोषों को दूर करने के लिए दिए गए सुझावों का ब्यौरा अग्रलिखित है

1. चुनाव आयोग को अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बनाया जाना (Making Election Commission more Powerful and Effective):
चुनावी अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग को अधिक प्रभावी और शक्तिशाली बनाया जाए। सरकार इस सुझाव पर विचार कर रही है कि चुनाव आयोग को दीवानी न्यायालयों (Civil Courts) द्वारा प्रयुक्त निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की जाएँ

(1) ऐसी शक्ति जिससे वह यह निर्णय दे सके कि चुनावी भ्रष्टाचार के कारण कोई व्यक्ति संसद या विधानसभा का सदस्य बना रहने के योग्य नहीं है।

(2) चुनावी अनियमितताओं की जांच-पड़ताल करने का अधिकार ।

(3) चुनावी अपराध सिद्ध हो जाने पर लोगों को दंडित करने का अधिकार, जिसमें जुर्माना वसूल करना या हर्जाना दिलाना शामिल है। एक सुझाव यह दिया जा सकता है कि ‘चुनाव आयोग’ के पास अपनी ‘स्वतन्त्र निधि’ होनी चाहिए जिससे हर छोटी-बड़ी बात के लिए उसे राज्य सरकारों का मुंह न ताकना पड़े।

2. चुनाव आयोग का पुनर्गठन (Reorganization of Election Commission):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय हो सकता है; परन्तु काफी समय तक चुनाव आयोग एक-सदस्यीय रहा। इसे बहु-सदस्यीय बनाने की माँग जोर पकड़ती गई और इसे अब बहु-सदस्यीय बना दिया गया है। वर्तमान चुनाव आयोग के सदस्य मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित तीन हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री के परामर्श पर की जाती है।

इसके लिए सुझाव दिया गया है कि चुनाव आयोग का गठन वैसे ही किया जाए, जैसे संघ लोक सेवा आयोग का होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक समिति बनाई जाए, जिसमें प्रधानमन्त्री, मुख्य न्यायाधीश व संसद में प्रतिपक्ष का नेता हो। मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की योग्यताएँ संविधान में निर्धारित की जाएँ। मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों का कार्यकाल पांच वर्ष निर्धारित किया गया है।

इनकी पुनः नियुक्ति राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री पर आधारित है। वे जितनी बार चाहें, उन्हें पुनः नियुक्त कर सकते हैं। संविधान में यह धारा चुनाव आयोग की स्वतन्त्रता के विरुद्ध है। इसके कारण मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की ईमानदारी पर सन्देह किया जा सकता है। इस कारण सुझाव दिया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों का निश्चित कार्यकाल हो।

3. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली शुरू करना (To Start Proportional Representation System):
भारत में चुनाव प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि कई बार राजनीतिक दल कम मत प्राप्त करते हैं, परन्तु उन्हें अधिक स्थान प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरणतः सन् 1980 में काँग्रेस को लोकसभा के लिए केवल 42.6% मत मिले, परन्तु संसद में 67% स्थान मिले। इस बुराई को समाप्त करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया गया है। यद्यपि भारत में इसे लागू करना कठिन कार्य है।

4. मतदाता पहचान-पत्र (Identity Cards for the Voters):
चुनाव आयोग के द्वारा 28 अगस्त, 1993 को मतदान हेतु अनिवार्य पहचान-पत्र बनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्बन्ध में मुख्य चुनाव आयुक्त ने राज्य सरकारों से कहा है कि मतदाताओं को पहचान-पत्र जारी कर दें। इस सुझाव के सम्बन्ध में सभी पार्टियाँ सहमत हैं जैसे कि पूर्व चुनावों की भाँति 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 में भी पहचान-पत्र मतदाता के लिए अनिवार्य कर दिया गया, हालांकि चुनाव आयोग द्वारा पहचान-पत्र सभी मतदाताओं को उपलब्ध न कराए जाने के कारण पहचान के लिए नए प्रमाण-पत्र; जैसे राशन-कार्ड, बस-पास, विद्यार्थी पहचान पत्र, अंक तालिका आदि को भी मान्य कर दिया गया है।

17वीं लोकसभा चुनाव में इसका आशातीत परिणाम सामने आया और फर्जी मतदान रोकने में विशेष सहायता मिली। पहचान-पत्र की उपयोगिता मतदान केन्द्रों तक ही सीमित नहीं। बैंक, अदालत, सरकारी सेवा और सरकारी कार्य व्यवहार में भी इससे अनुकूल सहायता मिल सकती है और नागरिकों की कई कठिनाइयाँ दूर हो सकती हैं। अतः भारतीय लोकतन्त्र की सुरक्षा एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने की दृष्टि से हमें सभी मतदाताओं के फोटोयुक्त पहचान-पत्र बनाने के लिए निरन्तर सरकारी तन्त्र की ओर से सार्थक प्रयास करना बहुत आवश्यक है जिससे प्रत्येक मतदाता की चुनाव में निष्पक्ष एवं सही सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।

5. सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए (There should not be misuse of the Official Machinery):
चुनावों के अवसर पर प्रायः शासन-तन्त्र का दुरुपयोग किया जाता है। वोट बटोरने के लिए मन्त्रियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के आश्वासन दिए जाते हैं तथा उद्घाटन और शिलान्यास के बहाने सरकारी गाड़ियों और दूरदर्शन सुविधाओं का दुरुपयोग किया जाता है।

सन् 1968 में उच्चतम न्यायालय ने ‘घासी बनाम दलसिंह’ नामक केस में यह कहा था कि चुनाव से पूर्व पानी, बिजली, सड़कों की सफाई आदि पर राजकोष से व्यय करके चुनावों को प्रभावित करना ‘बुरा आचरण’ (Bad Practice) है। सरकारी खर्च से विज्ञापन छपवाना या सरकारी तन्त्र का चुनाव-कार्य के लिए प्रयोग पूरी तरह से निषिद्ध किया जाए।

6. चुनावों के व्यय के बारे में सुझाव (Suggestions about the Expenditure of Elections):
चुनाव आयोग ने समय-समय पर होने वाले चुनाव पर होने वाले व्यय को निर्धारित किया है। पहले दो चुनावों में विधानसभा के लिए अधिकतम सात हजार व लोकसभा के लिए 25 हजार रुपए निर्धारित किए गए थे।

जबकि समय-समय किए गए संशोधनों के पश्चात् वर्तमान में 1 मार्च, 2014 से प्रभावी नवीन संशोधन के अनुसार व्यय राशि को बढ़ाकर लोकसभा चुनाव हेतु इन राज्यों; जैसे आंध्र प्रदेश, असम बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु तथा दिल्ली आदि के लिए 70 लाख रुपए जबकि राज्य विधानसभा चुनाव के लिए उपर्युक्त राज्यों के अतिरिक्त उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश के लिए 28 लाख रुपए की व्यय राशि निर्धारित की गई।

शेष राज्यों के लोकसभा चुनावों के लिए 54 लाख रुपए, जबकि शेष राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए 20 लाख रुपए की व्यय राशि निर्धारित की गई इसके अतिरिक्त इस चुनाव खर्च को रोकने के लिए विभिन्न सुझाव दिए गए हैं

(1) राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव पर किया गया खर्च उम्मीदवार के खर्चे की सीमा में शामिल किया जाना चाहिए।

(2) राजनीतिक दलों के आय-व्यय विवरण की विधिवत जांच की जानी चाहिए। प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए आय-व्यय का समस्त विवरण रखा जाना अनिवार्य किया जाए और उसकी जांच मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा नियुक्ति किए गए लेखा परीक्षक द्वारा होनी चाहिए।

(3) चुनाव प्रचार की अवधि में कमी करनी चाहिए, ताकि चुनाव खर्च कम हो सके। सुझाव है कि अवधि 10 दिन से भी कम होनी चाहिए।

(4) संसद और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होने चाहिएँ। सन् 1996 के चुनावों में यह प्रयत्न किया गया था कि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हों।

(5) चुनाव अवधि में सार्वजनिक संस्थाओं को अनुदान देने पर रोक लगानी चाहिए।

(6) चुनाव खर्च का कुछ भाग राज्य द्वारा वहन किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में विश्व के कुछ देशों के राज्य चुनाव के सारे खर्च वहन करते हैं; जैसे स्वीडन, फ्राँस आदि में। कुछ देशों में मिश्रित चुनाव व्यय की व्यवस्था है जिसमें सरकार खर्च का कुछ भाग देती है।

(7) पार्टियों को चन्दा मात्र चैक द्वारा दिया जाना चाहिए।

7. चुनाव याचिकाओं के बारे में सुझाव (Suggestions about the Election Petitions):
गत अनेक वर्षों से चुनाव याचिकाएँ उच्च न्यायालयों के समक्ष आई हैं, जिनका निपटारा करने में कई वर्ष लगे हैं। चुनाव याचिकाएँ चुनावों से भी अधिक खर्चीली तथा कष्टमय बन गई हैं। इसलिए इन याचिकाओं का निपटारा शीघ्र होना चाहिए, ताकि इसके दोनों पक्षों को बेकार की मुसीबत तथा खर्च से छुटकारा मिल सके।

8. निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक (Restrictions on Independent Candidates):
निर्दलीय उम्मीदवार निष्पक्ष चुनावों के लिए एक समस्या हैं, इसलिए निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगनी चाहिए। यद्यपि कानून द्वारा स्वतन्त्र उम्मीदवारों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ अवश्य होना चाहिए कि मज़ाक के लिए चुनाव लड़ने वालों पर रोक लगे।

इस सम्बन्ध में यह सुझाव दिया है कि एक तो जमानत की राशि को बढ़ा देना चाहिए। जुलाई, 1996 में चुनाव आयोग की एक बैठक हुई, जिसमें जमानत की राशि बढ़ाने का फैसला लिया गया और लोकसभा के लिए यह राशि बढ़ाकर 25,000 रुपए और विधानसभा के लिए 10,000 रुपए कर दी गई है।

दूसरे यह व्यवस्था होनी चाहिए कि जिस निर्दलीय उम्मीदवार को निश्चित प्रतिशत से कम वोट प्राप्त होते हैं उसे अगले चुनाव में भाग लेने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार की व्यवस्था से निश्चित रूप से निर्दलीय उम्मीदवारों पर रोक लगेगी। जैसे 15वीं लोकसभा चुनाव में केवल 9 सदस्य, 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनावों में भी केवल 3-3 प्रत्याशी ही निर्दलीय तौर पर विजयी रहे। स्पष्ट है कि निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रति जनता का रुझान कम हुआ है।

9. वोटिंग मशीनों का प्रयोग (Use of Voting Machines):
सामान्यतः देखा गया है कि तस्कर, माफ़िया और गुंडा तत्त्व को तथाकथित कुछ जन-प्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त होता है और वे शासन पर हावी हो जाते हैं। इस स्थिति को दूर करने के लिए सुझाव दिया गया है कि संवेदनशील केंद्रों पर सुरक्षा को बढ़ा दिया जाना चाहिए और चुनाव में वोटिंग मशीनों का प्रयोग किया ।

जा सकता है। सन् 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनावों में राज्यों के 46 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग मशीन का प्रयोग कर सफल मतदान सम्भव करवाया गया। 22 फरवरी, 2000 को हुए हरियाणा राज्य के विधानसभा चुनावों में भी 90 निर्वाचन क्षेत्रों में से 45 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग मशीन का प्रयोग किया गया। ऐसे में हरियाणा भारत का पहला राज्य बन गया, जहाँ वोटिंग मशीन द्वारा चुनाव सम्पन्न हुआ। 14वीं, 15वीं, 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनाव भी पूर्णतः वोटिंग मशीन द्वारा सम्पन्न हुए थे।

10. अपराधीकरण पर अंकुश (Check on Criminalization):
भारतीय राजनीति में बढ़ती अपराधीकरण की प्रवृत्ति ने भारतीय लोकतन्त्र को सबसे अधिक प्रभावित किया है। इसलिए लोकतन्त्र की रक्षा हेतु आवश्यक है कि ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश हेतु तुरन्त कानून बनाया जाए। पूर्व राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन ने भी कहा था कि, “आपराधिक पृष्ठभूमि और माफिया से संबंध रखने वाले लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखने के लिए कानून बनाया जाए।” अतः ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश आवश्यक है।

11. अन्य प्रयास (Other Efforts):
भारतीय चुनाव-प्रणाली में सुधार किए जाने का सिलसिला जारी है। इस संबंध में तारकुंडे समिति, गोस्वामी समिति तथा चुनाव आयुक्त आर०के० द्विवेदी ने कुछ सुझाव दिए। इसके अतिरिक्त 23 जुलाई, 1996 को चनाव आयोग और राजनीतिक दलों की एक बैठक हुई, जिसमें कछ सधारों पर विचार किया गया तथा कछ सुधारों पर सहमा हो गई।

इस बैठक में कुछ निर्णय लिए गए और चुनाव संशोधन किए गए। जन-प्रतिनिधि अधिनियम (The Representation of the People Act) में संशोधन किया गया है। इस संशोधन को राष्ट्रपति ने 1 अगस्त, 1996 को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। कुछ मुख्य संशोधन निम्नलिखित प्रकार से हैं-

(1) इस चुनाव सुधार संशोधन द्वारा चुनाव प्रचार का समय 21 दिन से घटाकर 14 दिन कर दिया गया है। उम्मीदवारों के लिए जमानत की राशि बढ़ा दी गई है,

(2) लोकसभा के उम्मीदवार के लिए जमानत की राशि बढ़ाकर 25,000 रुपए और विधानसभा के उम्मीदवार के लिए 10,000 रुपए कर दी गई है। आरक्षित लोकसभा चुनाव क्षेत्र के लिए जमानत की राशि 12,500 रुपए तथा विधानसभा चुनाव क्षेत्र के लिए 5,000 रुपए निश्चित की गई है,

(3) इसके साथ ही अरुचिकर उम्मीदवारों (Non-serious Candidates) की संख्या कम करने के लिए नाम पेश करने वालों की संख्या बढ़ाकर 10 कर दी गई है,

(4) चुनाव अधिकारियों या चुनाव पर्यवेक्षकों को मतदान केंद्र के कब्जे के मामले में गिनती रोकने के अधिकार दे दिए गए हैं,

(5) नए कानून के अधीन चुनाव से 48 घंटे पहले शराब के बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है तथा मत के पास शस्त्र लेकर घूमना अपराध घोषित कर दिया गया है।

12. चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए नए दिशा-निर्देश (New Guidelines issued by the Election Commission):
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर 1 अप्रैल, 2003 को चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी किया है जिसके अनुसार संसद तथा विधानसभाओं के चुनावों में उम्मीदवार को नामांकन-पत्र के साथ एक हलफ़नामा (Affidavit) देना जरूरी होगा जिसमें उसे अपने क्रिमिनल बैकग्राऊंड (Criminal Background) का भी उल्लेख करना होगा।

नामांकन-पत्र के साथ ही उसे अपनी सम्पत्ति और देनदारी तथा शैक्षिक योग्यता की जानकारी भी हलफनामे में देनी होगी। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि कोई उम्मीदवार नामांकन के समय यह जानकारी हलफनामे में नहीं देगा तो यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा और चुनाव अधिकारी को जांच के समय उस नामांकन-पत्र को रद्द करने का अधिकार होगा।

आयोग ने यह भी कहा कि प्रत्येक उम्मीदवार को यह शपथ-पत्र प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, नोटरी पब्लिक (Notary Public) अथवा शपथ आयुक्त (Oath Commissioner) के समक्ष विधिवत शपथ लेकर प्रस्तुत करना होगा।

13. निर्वाचन एवं अन्य सम्बन्धित अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2003 (Election and Other Related Laws Amendment Bill, 2003)-राजनीतिक दलों द्वारा चन्दा लिए जाने की प्रक्रिया के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को भी अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से निर्वाचन एवं अन्य सम्बन्धित अधिनियम संशोधन विधेयक, 2003 (Election and Other Related laws Amendment Bill, 2003) को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया है। वरिष्ठ काँग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति की सिफारिशों को विधेयक में समाहित कर लिया गया। विधेयक के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-

(1) राजनीतिक दलों के लिए 20 हजार रुपए या अधिक राशि के चन्दों की रिपोर्टिंग अनिवार्य (अभी यह सीमा 10 हजार रुपए थी),

(2) रिपोर्टिंग न करने वाले दलों को इन राशियों पर आयकर में छूट नहीं होगी,

(3) राजनीतिक दलों को प्रदत्त चन्दे पर सम्बन्धित कंपनी को आयकर अधिनियम के तहत छूट। लाभांश का अधिकतम 5 प्रतिशत ही चन्दे के रूप में देने की अनुमति होगी,

(4) मतदाताओं व मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को कुछेक सामग्री चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराने का प्रावधान। दूसरे शब्दों में, चुनावों के आंशिक सरकारी वित्तीय सहायता की शुरुआत।

प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार प्रणाली के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
वयस्क मताधिकार से तात्पर्य मतदान करने की ऐसी व्यवस्था से हैं जिसमें प्रत्येक नागरिक को, बिना किसी प्रकार के भेदभाव के, एक निश्चित आयु पूरी करने पर मतदान का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस प्रणाली में शिक्षा, लिंग, सम्पत्ति, जन्म-स्थान अथवा अन्य आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं किया जा सकता। केवल पागल, दिवालिए तथा कुछ विशेष प्रकार के अपराधी व विदेशियों को ही मतदान के अधिकार से वंचित किया जाता है। संसार के विभिन्न देशों में वयस्क होने की आयु भिन्न-भिन्न है। भारत, अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में यह 18 वर्ष, नार्वे में 23 वर्ष तथा जापान में यह 25 वर्ष है। वयस्क मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

पक्ष में तर्क (Arguments in Favour)-वयस्क मताधिकार के पक्ष में प्रायः निम्नलिखित तर्क पेश किए जाते हैं

1. लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के अनुकूल (In Harmony with the Principle of Popular Sovereignty):
लोक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है। लोकतन्त्र तब तक वास्तविक लोकतन्त्र नहीं हो सकता जब तक कि प्रतिनिधियों के चुनाव में प्रत्येक नागरिक का योगदान न हो। अतः प्रतिनिधियों का चुनाव सामान्य जनता द्वारा किया जाना चाहिए।

2. यह समानता पर आधारित है (It is based on Equality):
लोकतन्त्र का मुख्य आधार है-समानता। सभी व्यक्ति समान हैं और विकास के लिए सभी को मताधिकार देना भी आवश्यक है। जिन नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं होता, उनके हितों तथा अधिकारों की सरकार तनिक भी परवाह नहीं करती। इसलिए प्रत्येक वयस्क को मत देने का अधिकार होना चाहिए।

3. कानूनों का प्रभाव सभी पर पड़ता है (Laws AffectAll):
राज्य के कानूनों तथा नीतियों का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर पड़ता है। उसे निश्चित करने में भी सबका भाग होना चाहिए।

4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है (Citizens get Political Education):
वयस्क मताधिकार होने से सभी नागरिक समय-समय पर देश में होने वाले चुनावों में भाग लेते रहते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने दल की नीति का लोगों में प्रचार करते हैं और देश की समस्याओं के बारे में उनको जानकारी देते रहते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

5. सभी के अधिकार सुरक्षित रहते हैं (Rights of all are Safeguarded):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में देश के सभी नागरिकों के लिए अपने अधिकारों की रक्षा करना सम्भव होता है। मतदाता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं तथा उन पर नियन्त्रण बनाए रखते हैं। सरकार नागरिकों के भय से उनके अधिकारों को छीन नहीं सकती।

6. यह स्वाभिमान जागृत करती है (It awakens Self-respect):
वयस्क मताधिकार नागरिकों में स्वाभिमान की भावना को जागृत करता है। जब बड़े-बड़े नेता उनके पास वोट माँगने के लिए आते हैं तो उन्हें अपनी वास्तविक शक्ति का ज्ञान होता है और उनकी सोई हुई आत्मा जागती है। उन्हें इस बात का अनुभव होता है कि देश के शासन में उनका भी योगदान है। इससे उनके मन में स्वाभिमान की भावना जागृत होती है।

7. सार्वजनिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करती है (It creates Interest in Public Matters):
वयस्क मताधिकार प्रणाली नागरिकों में सार्वजनिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करती है। उन्हें यह अनुभव होता है कि शासन में उनका भी कुछ हाथ है और वे भी देश के कानून तथा नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। वे राष्ट्रहितों के कार्यों का समर्थन करते हैं तथा राष्ट्र-विरोधी कार्यों का विरोध करते हैं। इससे नागरिकों में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना जागृत होती है।

8. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा (Protection of the Interests of the Minorities):
यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें अल्पसंख्यकों को भी अपने प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिल जाता है। उनके द्वारा वे अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।

9. धन का प्रभाव बहुत कम होता है (Less Influence of Money):
इस प्रणाली में सभी वयस्क नागरिकों को मतदान करने का अधिकार होता है, मतों का खरीदना सम्भव नहीं होता। इस प्रकार यह प्रणाली चुनाव में धन के प्रभाव को बहुत कम कर देती है।

10. क्रांति की कम सम्भावना (Less Chance of Revolution):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना की सम्भावना अधिक रहती है क्योंकि नागरिक अपने द्वारा चुनी गई सरकार के विरुद्ध क्रांति नहीं करते।

11. सार्वजनिक हित की दृष्टि से वांछनीय (Necessary for Welfare of All):
लोकतन्त्र का शुद्ध रूप वही होता है जिसमें सार्वजनिक हित की कामना की जाती है। सब वर्गों के हितों और उनके अधिकारों का उचित संरक्षण तभी हो सकता है, जब प्रत्येक वर्ग के लोगों को अपने मत द्वारा शासन की नीतियों और उसके कार्यों को प्रभावित करने का अवसर प्राप्त हो। ऐसा अवसर अधिक-से-अधिक वर्गों को केवल वयस्क मताधिकार द्वारा ही प्राप्त करवाया जा सकता है। अतः वयस्क मताधिकार वर्ग हित की दृष्टि से वांछनीय है।

12. इससे राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है (It Increases National Unity):”
प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार देने से राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति अपने-आप को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझता, क्योंकि सब व्यक्तियों को जीवन का विकास करने के लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं।

यदि किसी एक विशेष वर्ग या जाति को मताधिकार दिया जाए तो राष्ट्रीय एकता के नष्ट होने की सम्भावना हो सकती है। राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ यह नागरिकों में देश-प्रेम की भावना को भी जागृत करता है क्योंकि प्रत्येक नागरिक स्वयं को सरकार का अंग समझता है और उसके मन में अपने देश के प्रति सम्मान पैदा होता है।

विपक्ष में तर्क (Arguments Against)-वयस्क मताधिकार के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं

1. अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना अनुचित है (It is not proper to give Right to Vote to the Ignorants):
प्रत्येक देश में अधिकतर जनता अशिक्षित तथा अज्ञानी होती है। वे उम्मीदवार के गुणों को न देखकर जाति, धर्म तथा मित्रता आदि के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक नेताओं के जोशीले भाषणों से भी शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। अतः अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना उचित नहीं है।

2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा (Encourages Corruption):
वयस्क मताधिकार प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। कुछ निर्धन व्यक्ति थोड़े-से लालच में पड़कर अपना मत स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों के हाथों में बेच देते हैं।

3. प्रशासन तथा देश की समस्याएँ जटिल (Administration and Problems of the Country are Complicated):
आधुनिक युग में शासन संबंधी प्रश्न तथा समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं, जिन्हें समझ पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। प्रायः साधारण मतदाता अयोग्य व्यक्ति को चुन लेते हैं क्योंकि उनके पास देश की समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें समझने के लिए समय ही नहीं होता।

4. साधारण जनता रूढ़िवादी होती है (Masses are Conservative):
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि साधारण जनता रूढ़िवादी होती है। उनके द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियों का विरोध किया जाता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही मिलना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हों।

5. मताधिकार प्राकृतिक अधिकार नहीं है (Right to Vote is not a Natural Right):”
वयस्क मताधिकार के आलोचकों द्वारा यह तर्क पेश किया जाता है कि मताधिकार कोई प्राकृतिक अधिकार नहीं है जो प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होना चाहिए। उनके अनुसार मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को ही दिए जाने चाहिएँ जो उनका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखते हैं। मताधिकार के बारे में तो यह बात और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसा अधिकार है जो देश के भविष्य को उज्ज्वल भी बना सकता है और मिट्टी में भी मिला सकता है। अतः मताधिकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए, जो इसके योग्य हों।

6. सभी नागरिक समान नहीं होते (AIICitizens are not Equal):
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक तर्क यह दिया जाता है कि सभी नागरिक किसी भी दृष्टि से समान नहीं होते, इसलिए उन सभी को समानता के आधार पर मतदान का अधिकार देना उचित नहीं है।

प्रश्न 8.
भारत के चुनाव आयोग (Election Commission) पर नोट लिखें।
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव व्यवस्था के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियन्त्रण का कार्य भारत में संवैधानिक मान्यता प्राप्त, स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोग को सौंपा है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। संविधान के अनुच्छेद 324 में यह भी प्रावधान है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह के लिए राष्ट्रपति द्वारा अन्य आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है।

भारत में 1951 में पहली बार संविधान के अन्तर्गत एक सदस्यीय निर्वाचन आयोग का गठन किया गया, परन्तु केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने 16 अक्तूबर, 1989 को राष्ट्रपति वेंकटरमन द्वारा अन्य चुनाव और प्रतिनिधित्व दो निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करवाते हुए निर्वाचन आयोग को पहली बार बहु-सदस्यीय आयोग बनाते हुए इसे व्यापक स्वरूप प्रदान किया, लेकिन 2 जनवरी, 1990 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने चुनाव आयोग को फिर से एक-सदस्यीय बना दिया।

2 अक्तूबर, 1993. में भारत के राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करके चुनाव आयोग में दो अन्य सदस्यों (एम०एस० गिल एवं जी०वी०जी० कृष्णामूर्ति) की नियुक्ति कर दी। 20 दिसम्बर, 1993 में संसद ने एक विधेयक पास करके चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बना दिया और दो अन्य आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के बराबर दर्जा प्रदान किया गया।

14 जुलाई, 1995 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अन्य दो आयुक्तों की स्थिति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की स्थिति के बराबर दर्जा देने को वैध ठहराया। अतः इस समय चुनाव आयोग बहु-सदस्यीय है और मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य दो चुनाव आयुक्तों की स्थिति बराबर है। इस समय चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुशील चंद्रा हैं। इसके अतिरिक्त दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं।

नियुक्ति (Appointment)-संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति एवं संसद द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार की जाती है। प्रान्तीय व क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती है।

योग्यताएँ (Qualifications) भारतीय संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति सम्बन्धी योग्यताओं का संविधान में कोई उल्लेख नहीं किया गया है अर्थात् इस सम्बन्ध में हमारा संविधान मौन है।

कार्यकाल (Term)-भारतीय संसद ने सन् 1995 में चुनाव आयोग के कार्यकाल सम्बन्धी एक कानून पास किया है, जिसके अनुसार चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष होगा। इस कानून में यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि चुनाव आयुक्त की आयु 6 वर्ष की अवधि से पहले 65 वर्ष की हो जाती है, तो वह अपने पद से अवकाश ग्रहण कर लेता है अर्थात् 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु दोनों में से जो पहले पूरी हो, तब तक चुनाव आयुक्त अपने पद पर बने रहते हैं। विशेष परिस्थितियों में मुख्य चुनाव आयुक्तों की अवधि को बढ़ाया जा सकता है, जैसा कि श्री सुकुमार सेन व श्री एस०पी० सेन वर्मा का कार्यकाल 6 वर्ष से अधिक बढ़ाया गया था।

चुनाव आयुक्तों को पदच्युत करना (Removal of Election Commissioners) भारतीय संविधान में चुनाव आयुक्तों को पद से हटाने की व्यवस्था भी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की विधि द्वारा ही हटाया जा सकता है अर्थात् चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाए जाने की विधि को ही अपनाया गया है।

इसका अभिप्राय यह है कि मुख्य चुनाव आयुक्तों को तभी हटाया जा सकता है, जब संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल सदस्यों के बहुमत से तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से महाभियोग को पारित कर दें। अन्य चुनाव आयुक्तों या क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों को तो राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह से ही उनके पद से हटाता है अर्थात् मुख्य चुनाव की मंजूरी के बिना चुनाव आयुक्तों या क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाया नहीं जा सकता।

सन् 2009 में मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एन० गोपालास्वामी द्वारा चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पक्षपात करने के आधार पर पद से हटाने की सिफारिश की गई थी, परन्तु डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया और उसने राष्ट्रपति को इसके लिए कोई सलाह नहीं भेजी। इसके बावजूद श्री नवीन चावला को नया मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था।

वेतन तथा सेवा शर्ते (Salary and Terms of Service)-चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते व सेवा शर्ते समय-समय पर संसद द्वारा निश्चित की जाती हैं। इनके वेतन व भत्ते भारत सरकार की संचित निधि में से दिए जाते हैं। निर्वाचन आयुक्तों के वेतन, भत्तों व सेवा शर्तों में इनके कार्यकाल में कटौती नहीं की जा सकती। 1 अक्तूबर, 1993 में संसद द्वारा पास किए गए एक विधेयक द्वारा चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के समान वेतन दिए जाने की व्यवस्था कर दी गई अर्थात् वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को 2,50,000 रुपए मासिक वेतन दिया जाता है।

चुनाव आयोग के लिए कर्मचारी (Staff for Election Commission) संविधान के अनुच्छेद 324 (6) के अनुसार चुनाव आयोग अपने कार्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति एवं राज्यों के मुखिया राज्यपालों से आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की माँग कर सकता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति तथा राज्यपालों का यह कर्त्तव्य है कि वे चुनाव आयुक्तों व क्षेत्रीय आयुक्तों की प्रार्थना पर

उचित स्टाफ का प्रबन्ध करें। चुनाव आयोग को अपने दायित्व का पालन करने के लिए राज्य व जिला स्तर पर बहुत-से कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। मतदान केन्द्रों के लिए प्रधान पदाधिकारी (Presiding Officers) व पोलिंग अधिकारी (Polling Officers) चाहिए। इसके अतिरिक्त मतदान केन्द्रों की सुरक्षा एवं व्यवस्थित रूप से संचालन के लिए आवश्यक पुलिस बल चाहिए। अतः केन्द्र में राष्ट्रपति तथा राज्यों में राज्यपाल का कर्त्तव्य है कि चुनाव आयोग की सिफारिश पर आवश्यकतानुसार सुविधाएँ जुटाई जाएँ।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

प्रश्न 9.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का अर्थ (Meaning of Territorial Representation)-लोकतन्त्रीय राज्यों में चुनाव के लिए निर्वाचन-क्षेत्रों का गठन भौगोलिक आधार पर किया जाता है। समस्त राज्य को एक-सदस्य अथवा बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को उस चुनाव-क्षेत्र का निवासी होने के नाते अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को ही प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है।

संक्षेप में, सामान्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन जब प्रादेशिक आधार पर हो, तो उस प्रणाली को प्रादेशिक प्रतिनिधित्व कहा जाता है। भारत, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका आदि राज्यों में इसी प्रणाली को लागू किया गया है। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण अथवा पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Territorial Representation) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं

1. सरल चुनाव-प्रणाली (Simple Electoral System):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यह प्रणाली अति सरल है। इस प्रणाली में मतदाताओं की सूचियाँ बड़ी सरलता से तैयार की जाती हैं और प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की एक मतदाता सूची होती है। एक चुनाव-क्षेत्र में कई उम्मीदवार खड़े होते हैं, मतदाता को किसी एक उम्मीदवार को मत डालना होता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। साधारण जनता के लिए भी इस प्रणाली को समझना आसान होता है।

2. लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित (Based on Democratic Principles):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित है। लोकतन्त्र का मुख्य सिद्धान्त यह है कि सभी व्यक्ति समान हैं तथा उनमें जाति, धर्म, रंग तथा लिंग आदि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए। इस प्रणाली में एक निर्वाचन-क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता समानता के आधार पर अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। वह प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

3. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा (Promotes National Unity):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। देश के विधानमण्डल में समस्त राष्ट्र के प्रतिनिधि होते हैं न कि विभिन्न वर्गों या व्यवसायों के। ऐसे प्रतिनिधि अपने-आपको किसी वर्ग अथवा व्यवसाय का प्रतिनिधि न मानकर समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधि मानते हैं और राष्ट्रीय हितों को प्रधानता देते हैं। इसका प्रभाव जनता पर भी पड़ता है। उनका दृष्टिकोण भी राष्ट्रीय बनता है तथा राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है।

4. प्रतिनिधियों तथा मतदाताओं में निकटता का संबंध (Close Relation between Representatives and Voters):
प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र प्रायः छोटे होते हैं और एक निर्वाचन-क्षेत्र से प्रायः एक ही सदस्य चुना जाता है, जिससे मतदाताओं और प्रतिनिधियों में निकटता का संबंध स्थापित होने की अधिक सम्भावना रहती है। प्रतिनिधि प्रायः उसी निर्वाचन-क्षेत्र का निवासी होता है, जिस क्षेत्र का वह प्रतिनिधित्व कर रहा होता है।

मतदाता और प्रतिनिधि प्रायः एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते होते हैं। अतः प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं की इच्छाओं और आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझता है और उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करता है।

5. प्रतिनिधियों का उत्तरदायित्व (Fixed Responsibility):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है। एक क्षेत्र के सभी मतदाताओं का प्रतिनिधि होने के कारण वह अपने उत्तरदायित्व से इन्कार नहीं कर सकता।

6. क्षेत्रीय हितों की रक्षा (Safeguards Territorial Interests):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में क्षेत्रीय हितों की अच्छी तरह पूर्ति होती है। प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझते हैं क्योंकि उनका अपने मतदाताओं व क्षेत्र से समीप का संबंध होता है। अतः प्रतिनिधि अपने निर्वाचन-क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। यदि प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के हितों की रक्षा नहीं करता, तो ऐसे प्रतिनिधि को मतदाता दोबारा नहीं चुनते। इसलिए प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता।

7. अधिक विकास की सम्भावना (Possibility of Greater Development):
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है। इसका कारण यह है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक प्रतिनिधि अपने क्षेत्र का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहता है क्योंकि भावी चुनाव में वह अपनी सीट को सुनिश्चित कर लेना चाहता है। सभी क्षेत्रों के विकास से देश का विकास होना स्वाभाविक है।

8. कम खर्चीली (Less Expensive):
इस प्रणाली में चुनाव कम खर्चीला होता है और उम्मीदवार को भी चुनाव में कम खर्च करना पड़ता है। क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोष अथवा विपक्ष में तर्क (DemeritsArguments against of Territorial Representation) कई विद्वानों ने क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली की कड़ी आलोचना की है। ड्यूगी (Duguit), जी०डी०एच० कोल (GD.H. Cole) और ग्राहम वालास (Graham Wallas) ने इस प्रणाली की कटु आलोचना की है। इस प्रणाली में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं

1. क्षेत्रीयवाद की भावना (Feeling of Regionalism):
इस प्रणाली द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। प्रतिनिधि अपने को एक क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधि समझने लगते हैं और उसी क्षेत्र के विकास की बात सोचते तथा करते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों की अवहेलना होने लगती है।

2. सीमित पसन्द (Limited Choice):
कई बार मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले प्रायः उसी क्षेत्र के निवासी होते हैं और यदि उस क्षेत्र में अच्छे उम्मीदवार न हों तो मतदाताओं को इच्छा न होते हुए भी किसी-न-किसी उम्मीदवार के पक्ष में मत डालना ही पड़ता है।

3. भ्रष्ट होना (Corruption):
मतदाताओं को भ्रष्ट किए जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि मतदाता कम होते हैं और धनी उम्मीदवार धन के बल पर वोट खरीदने का प्रयत्न करने लगते हैं।

4. अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलना (Minorities fail to get proper Representation):
इस प्रणाली में अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व आसानी से नहीं मिलता। एक क्षेत्र से एक उम्मीदवार चना जाता है और स्वाभाविक है कि बहमत वर्ग का उम्मीदवार ही चुना जाता है। इस प्रकार अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधि लगभग सभी चुनाव क्षेत्रों में हार जाते हैं।

वस्तु निष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. निम्न में से कौन-सा अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का गुण है?
(A) यह अधिक लोकतांत्रिक है
(B) खर्च अधिक होता है।
(C) केवल योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों को चुना जाता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) केवल योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों को चुना जाता है

2. भारत में अपनाई गई है
(A) वयस्क मताधिकार प्रणाली
(B) धर्म पर आधारित मत प्रणाली
(C) शिक्षा पर आधारित मत प्रणाली
(D) जाति के आधार पर मत प्रणाली
उत्तर:
(A) वयस्क मताधिकार प्रणाली

3. भारत में निम्न का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली द्वारा किया जाता है
(A) राष्ट्रपति
(B) उप-राष्ट्रपति
(C) राज्यपाल
(D) लोकसभा के सदस्य
उत्तर:
(D) लोकसभा के सदस्य

4. वह चुनाव-प्रणाली जिसमें साधारण मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं, कहलाती है
(A) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली
(B) अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली
(C) सीमित मत प्रणाली
(D) सूची प्रणाली
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली

5. वयस्क मताधिकार प्रणाली में मतदान के अधिकार का आधार होता है
(A) शिक्षा
(B) संपत्ति
(C) आयु
(D) व्यवसाय
उत्तर:
(C) आयु

6. भारत की चुनाव-प्रणाली की विशेषता है
(A) वयस्क मताधिकार
(B) एक-सदस्य निर्वाचन क्षेत्र
(C) सीटों का आरक्षण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. निम्न वयस्क मताधिकार का अवगुण है
(A) राजनीतिक शिक्षा मिलती है
(B) भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है
(C) इस प्रणाली में महिलाओं को भी मतदान का
(D) इस प्रणाली में गरीबों को भी मतदान का अधिकार अधिकार होता है होता है।
उत्तर:
(B) भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है

8. भारत में मतदान के लिए न्यूनतम आयु निश्चित की गई है
(A) 18 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 25 वर्ष
(D) 20 वर्ष
उत्तर:
(A) 18 वर्ष

9. निम्न वयस्क मताधिकार का गुण है
(A) यह समानता पर आधारित है ।
(B) नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है
(C) सभी के अधिकार सुरक्षित रहते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. भारत में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु होनी चाहिए
(A) 21 वर्ष
(B) 30 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष
उत्तर:
(D) 25 वर्ष

11. निम्न में से कौन-सा प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली का गुण है?
(A) अधिक लोकतांत्रिक है
(B) योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों का चुनाव
(C) खर्च कम होता है
(D) राजनीतिक दलों का प्रभाव कम होता है।
उत्तर:
(A) अधिक लोकतांत्रिक है

12. भारत में निम्न का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली से किया जाता है
(A) लोकसभा के सदस्य
(B) राज्य विधानसभा के सदस्य
(C) राष्ट्रपति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) राष्ट्रपति

13. भारत में पहला आम चनाव निम्न वर्ष में हआ था
(A) सन् 1947
(B) सन् 1950
(C) सन् 1952
(D) सन् 1955
उत्तर:
(C) सन् 1952

14. निम्न प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का गुण है
(A) सरल चुनावे-प्रणाली
(B) मतदाताओं की सीमित पसंद
(C) अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरल चुनाव-प्रणाली

15. देश में चुनाव करवाने संबंधी निर्णय लेने का अधिकार है
(A) राष्ट्रपति के पास
(B) प्रधानमंत्री के पास
(C) चुनाव आयोग के पास
(D) उप-राष्ट्रपति के पास
उत्तर:
(C) चुनाव आयोग के पास

16. चुनाव आयोग में आजकल कितने सदस्य (मुख्य चुनाव आयुक्त सहित) हैं
(A) 4
(B) 3
(C) 2
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

17. निम्न चुनाव आयोग का कार्य नहीं है
(A) चुनाव कराना
(B) राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना
(C) मतदाता सूचियाँ तैयार करना
(D) चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़े करना
उत्तर:
(D) चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़े करना

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

18. भारत में सांप्रदायिक चुनाव-प्रणाली निम्न वर्ष में लागू हुई
(A) सन् 1906
(B) सन् 1909
(C) सन् 1935
(D) सन् 1952
उत्तर:
(B) सन् 1909

19. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को मासिक वेतन मिलता है
(A) 1,50,000
(B) 2,00,000
(C) 1,00,000
(D) 2,50,000
उत्तर:
(D) 2,50,000

20. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एक शर्त है
(A) एक-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र
(B) बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र
(C) शहरी निर्वाचन-क्षेत्र
(D) ग्रामीण निर्वाचन-क्षेत्र
उत्तर:
(B) बहु-सदस्य निर्वाचन-क्षेत्र

21. भारत में अब तक लोकसभा के कितने चुनाव हो चुके हैं?
(A) 10
(B) 12
(C) 15
(D) 17
उत्तर:
(D) 17

22. भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त हैं
(A) श्री नवीन चावला
(B) हरिशंकर ब्रह्मा
(C) श्री सुशील चंद्रा
(D) श्री ओमप्रकाश रावत
उत्तर:
(C) श्री सुशील चंद्रा

23. निम्न भारतीय चुनाव-प्रणाली का दोष है
(A) चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका
(B) सरकारी तंत्र का दुरुपयोग
(C) जाति तथा धर्म के नाम पर मतदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्न निर्वाचन आयोग का कार्य है
(A) चुनावों का प्रबंध करना
(B) मतदाता सूचियां तैयार करना
(C) चुनाव तिथि की घोषणा करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. 17वीं लोकसभा के चुनाव कब हुए?
उत्तर:
अप्रैल-मई, 2019 में।

2. 17वीं लोकसभा चुनाव में कितनी महिला सांसद निर्वाचित हुईं?
उत्तर:
78 महिलाएँ।

3. 17वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 89.78 करोड़।

4. 17वीं लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत कितना रहा?
उत्तर:
67.11 प्रतिशत।

5. 17वीं लोकसभा चुनाव के बाद महिला सांसदों का प्रतिशत कितना हो गया?
उत्तर:
17वीं लोकसभा चुनाव के बाद महिला सांसदों का 14.4 प्रतिशत हो गया है।

6. 17वीं लोकसभा में सर्वाधिक महिला सांसद किस राजनीतिक दल से हैं एवं कितनी हैं?
उत्तर:
सर्वाधिक महिला सांसद भाजपा से हैं जिनकी संख्या 42 है।

7. वर्तमान में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त कौन हैं?
उत्तर:
श्री सुशील चंद्रा।

8. मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को कितना मासिक वेतन मिलता है?
उत्तर:
2,50,000 रुपए मासिक।

9. भारत में मतदान के अधिकार के लिए न्यूनतम आयु कितनी निश्चित की गई है?
उत्तर:
18 वर्ष।

रिक्त स्थान भरें

1. भारत में अब तक ……………. लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके है।
उत्तर:
17

2. ……… को भारत में 17वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए।
उत्तर:
अप्रैल-मई, 2019

3. ………… भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं।
उत्तर:
श्री सुशील चंद्रा

4. भारत में 61वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार मताधिकार की आयु वर्ष निचित की गई।
उत्तर:
18

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

5. भारत में प्रथम आम चुनाव सन् ……………. में हुआ।
उत्तर:
1952

6. भारतीय चुनाव आयोग में कुल …………… सदस्य हैं।
उत्तर:
3

7. 17वीं लोकसभा चुनाव में …………… प्रतिशत मतदान हुआ।
उत्तर:
67.11

8. 16वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के नए विकल्प के रूप ……………. का प्रयोग प्रारम्भ हुआ था।
उत्तर:
नोटा (Nota)

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