HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

HBSE 11th Class Political Science भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार-पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिकों को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है-नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को, दंडित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।

(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।

(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।

(घ) आंध्र-सोसायटी आंध्र प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम के विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-Crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है नौकरी में तरक्की दी गई लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को, दंडित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था। इस स्थिति में महिला सहकर्मियों के समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14 के द्वारा सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समक्ष समान संरक्षण प्रदान किया गया है।

इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 15 (1) में इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के धर्म, लिंग, मूलवंश, जाति, जन्म-स्थान या इनमें किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत सभी को अवसर की समानता का अधिकार प्रदान किया गया है तथा राज्य के अधीन किसी पद के सम्बन्ध में किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। उपर्युक्त घटना में महिला कर्मियों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है और उन्हें पदोन्नति से वंचित किया गया। इस प्रकार इनके संविधान द्वारा दिए गए समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है और इसके माध्यम से वह सरकार की नीतियों की आलोचना करता है। उक्त घटना में एक निर्देशक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के अन्तर्गत दिए गए विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करता है। स्पष्ट है कि इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के सभी नागरिकों को अपने विचारों को प्रकट प्रकाशित, प्रचारित एवं आलोचना करने का पूर्ण अधिकार है। अतः उक्त स्थिति में निर्देशक द्वारा मूल अधिकारों का सही उपयोग किया जा रहा है।

(ग) इस घटना में एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं। स्पष्ट है कि यहाँ पर विस्थापितों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ख) के अन्तर्गत प्रत्याभूत शांतिपूर्ण एवं निरस्र सम्मेलन की स्वतंत्रता का उपयोग किया गया है। अतः विस्थापितों की रैली मूल अधिकारों के अधीन है।

(घ) आंध्र-सोसायटी द्वारा आंध्र प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम से विद्यालय के चलाए जाने की घटना में अनुच्छेद 30 (1) द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार का उपयोग किया गया है। यहाँ यह स्पष्ट है कि इस अनुच्छेद द्वारा धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षा संस्था का गठन करने तथा उनके प्रबन्ध एवं प्रशासन का अधिकार प्राप्त है। अतः आंध्र-सोसायटी द्वारा विद्यालय का संचालन मूल अधिकारों का उपयोग है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे इस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।

(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक-वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।

(ग) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।

(घ) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढेंगे।
उत्तर:
(क) उपर्युक्त कथनों में से

(ग) में दिया गया कथन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या करता है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 29 (1) अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु उन्हें अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है एवं अनुच्छेद 30 (1) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि एवं संस्कृति के विकास के लिए शिक्षण संस्थाओं का गठन और प्रशासन का अधिकार देता है। ऐसी शिक्षण संस्थाओं को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देते समय किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 5.
इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाऊड-स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) न्यूनतम मज़दूरी न देना ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ का उल्लंघन है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा मानव के दुर्व्यापार और बेगार तथा इस प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया जाने वाला श्रम प्रतिबंधित किया गया है। इसका उद्देश्य दुराचारी व्यक्तियों तथा राज्य द्वारा समाज के दुर्बल वर्गों के शोषण की रक्षा करना है।

(ख) इस घटना में मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है। यद्यपि किसी पुस्तक पर प्रतिबंध लगाए जाने से उस व्यक्ति के विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो होता है, परंतु संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अनुसार यदि इससे किसी वर्ग या समुदाय-विशेष की भावनाएँ आहत होती हैं या राष्ट्र विरोधी विचार हैं तो सदाचार, शिष्टाचार एवं देशहित के दृष्टिकोण से उन पर प्रतिबंध लगाया जाना कानून के अनुसार सही है।

(ग) उक्त घटना से भी मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है क्योंकि रात 9 बजे के बाद लाऊड-स्पीकर पर प्रतिबंध लगाने में भी समाज के व्यापक हितों को ध्यान में रखा जा रहा है। हमें किसी भी कार्य द्वारा दूसरों की स्वतंत्रता में बाधा पहुँचाने का अधिकार नहीं है।

(घ) किसी नागरिक द्वारा भाषण तैयार करना किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है क्योंकि नागरिकों को अपने विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है।

प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की ज़रूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति-निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाए। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि मौलिक अधिकारों द्वारा जहाँ एक ओर राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास किया गया है, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्वों द्वारा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास किया गया है। यद्यपि दोनों का उद्देश्य जनकल्याण एवं न्याय की स्थापना करना है। इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकारों के पीछे कानून की शक्ति है, जबकि नीति-निर्देशक सिद्धांतों के पीछे कानून की शक्ति न होकर केवल जनमत एवं नैतिक शक्ति है।

चूँकि नीति-निर्देशक सिद्धांतों में समाज के व्यापक हित एवं जनकल्याण का उद्देश्य निहित है। ऐसी स्थिति में इन्हें कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाकर इन लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सकती है। अत: इनके प्रभावी क्रियान्वयन द्वारा राज्य के गरीब लोगों संबंधी आदर्शों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करना अधिक सरल होगा।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं उन्हें अब भी मज़बूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार-पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक-अधिकार का उल्लंघन हो रहा है?
उत्तर:
उपर्युक्त घटना के सन्दर्भ में वर्णित जातियों के कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, जिन्हें हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं

1. समानता का अधिकार-उक्त स्थिति में इनके समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि अधिकार-पद पर बैठे लोग उन्हें कोई और काम नहीं देते हैं। अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार-उक्त घटना में इन जातियों को विवश होकर वही कार्य करना पड़ रहा है, क्योंकि वे इसी व्यवसाय को अपनाने के लिए बाध्य हैं। ऐसी स्थिति में उनकी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार वृत्ति, व्यवसाय, व्यापार, आजीविका की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। अतः उपर्युक्त घटना के अन्तर्गत उन जातियों के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

3. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार-इस घटना में बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने से हतोत्साहित किया जाता है जो संविधान में दिए गए उनके सांस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार का उल्लंघन है। यहाँ यह स्पष्ट है कि संविधान के अनुच्छेद 29 (2) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, मूलवंश, लिंग, जाति, भाषा के आधार पर राज्य द्वारा घोषित या राज्य विधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश से वंचित या भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार-समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भूखमरी की स्थिति की तरफ खींचा। भारतीय खाद्य-निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था।शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन-कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित-मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक-वितरण-प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौन से अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त वर्णित घटनाओं में संवैधानिक उपचार का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार एवं सूचना का अधिकार सम्मिलित हैं। मानवाधिकार समूह द्वारा अदालत में याचिका दायर करना संवैधानिक उपचार का अधिकार है। भूख से होने वाली मौत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। राशन कार्डधारी को उचित मूल्य की दुकान से मिलने वाली अनाज की मात्रा का न मालूम होना, उनके सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) ये सभी अधिकार अलग-अलग हैं। परंतु इस घटना में ये सभी जीवन के अधिकार के अंग के रूप में जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धत सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान-सभा में दिए गए वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि हाँ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि नहीं तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान सभा में दिए गए वक्तव्य का विश्लेषण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को जो भी मौलिक अधिकार दिए गए हैं, वे अपर्याप्त हैं। कई ऐसी बातों की उपेक्षा की गई है जिन्हें मूल अधिकारों में स्थान दिया जाना चाहिए था; जैसे आजीविका का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चिकित्सा-सुविधा का अधिकार इत्यादि यद्यपि इनमें शिक्षा एवं सूचना के अधिकार को तो मौलिक अधिकारों का रूप दे दिया गया है, लेकिन चिकित्सा-सुविधा के अधिकार इत्यादि को नहीं। जबकि चिकित्सा-सुविधा का अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है वहाँ राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की आधारशिला भी है।

आलोचकों की दृष्टि में इस अधिकार की उपेक्षा करना गलत है। लाहिड़ी के असंतोष का अन्य कारण यह है कि प्रत्येक मौलिक अधिकार के साथ प्रतिबंध का प्रावधान किया गया है। आलोचकों का मत है कि भारतीय संविधान एक हाथ से मौलिक अधिकार देता हैं तो दूसरे हाथ से इसे छीन लेता है। संविधान द्वारा जिस प्रकार विशेष परिस्थितियों में अलग-अलग प्रतिबंध लगाए गए हैं, उसने मौलिक अधिकारों को एक तरह से व्यर्थ बना दिया है।

सोमनाथ लाहिड़ी का यह कथन है कि-“अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है।” संक्षेप में सोमनाथ लाहिड़ी के वक्तव्य से सहमति व्यक्त कर सकते हैं जैसे कि विष्णु कामथ ने मौलिक अधिकारों की आलोचना करते हुए संविधान सभा में कहा था कि-“इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।”

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प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अध्याय तीन में मौलिक अधिकारों की प्रारम्भिक संख्या 7 थी जोकि बाद में 44वें संशोधन द्वारा सन् 1978 में संपत्ति के अधिकार को समाप्त करने पर मौलिक अधिकारों की संख्या 6 रह गई। इस प्रकार वर्तमान में संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं-

  • समानता का अधिकार,
  • स्वतंत्रता का अधिकार,
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार,
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,
  • सांस्कृतिक और शिक्षा का अधिकार,
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

यहाँ यह स्पष्ट है कि किसी भी अधिकार की उपयोगिता तथा सार्थकता तभी है जब उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाए। इस क्रम में संवैधानिक उपचारों का अधिकार इस दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 32 में वर्णित किया गया है। यह अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्रदान करता है।

राज्य द्वारा अन्य मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में उच्चतम न्यायालय को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई का अधिकार दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 32 द्वारा दिए गए संवैधानिक उपचारों के अधिकार के तहत कोई भी नागरिक अपने अधिकारों की अवहेलना होने पर न्यायालय में प्रार्थना-पत्र देकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

ऐसी स्थिति में न्यायपालिका को मूल अधिकारों की रक्षा करने के लिए पाँच प्रकार के लेख जारी करने का अधिकार है जो बंदी-प्रत्यक्षीकरण लेख, परमादेश लेख, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा लेख हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। इसी कारण से इस अधिकार को डॉ० भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान की मूल आत्मा कहा है। २७ मा अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न मार कर सकता ।

भारतीय संविधान में अधिकार HBSE 11th Class Political Science Notes

→ राज्य तथा व्यक्ति के आपसी संबंधों की समस्या सदा से ही एक जटिल समस्या रही है और वर्तमान समय की लोकतंत्रीय व्यवस्था में इस समस्या ने विशेष महत्त्व प्राप्त कर लिया है।

→ यदि एक ओर शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए नागरिकों के जीवन पर राज्य का नियन्त्रण आवश्यक है तो दूसरी ओर राज्य की शक्ति पर भी कुछ सीमाएँ लगाना आवश्यक है, ताकि राज्य मनमाने तरीके से कार्य करते हुए नागरिकों की स्वतंत्रता तथा अधिकारों के विरुद्ध कार्य न कर सके।

→ अधिकारों की व्यवस्था राज्य की स्वेच्छाचारी शक्ति पर प्रतिबंध लगाने का एक श्रेष्ठ उपाय है।

→ मानव इतिहास में सर्वप्रथम 1789 को फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने ‘मानवीय अधिकारों की घोषणा करके राजनीति विज्ञान को क्रांतिकारी सिद्धान्त दिया था।

→ तब से मानवीय अधिकारों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि आधुनिक युग में शायद ही कोई ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था हो जहाँ के संविधान में इन मानवीय अधिकारों को स्थान नहीं दिया गया हो। भारतीय संविधान निर्माता भी इससे वंचित नहीं रहे।

→ भारत में मौलिक अधिकारों की माँग 1895 ई० में बाल गंगाधर तिलक द्वारा की गई थी। – इसके बाद 1918 में काँग्रेस के अधिवेशन में यह माँग की गई थी कि भारतीय अधिनियम 1919 के द्वारा भारतवासियों को मौलिक अधिकार दिए जाएँ, जिसकी ओर ब्रिटिश शासन ने कोई ध्यान नहीं दिया।

→ सन 1925 में श्रीमती ऐनी बेसेण्ट ने ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के लिए अनेक मौलिक अधिकारों की माँग की थी। सन 1928 में नेहरू समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारतीयों के लिए ब्रिटिश शासन से अनेक मौलिक अधिकारों की माँग की थी।

→ इन अधिकारों के विषय में विचार लन्दन में हुई गोलमेज कान्फ्रेंस में हुआ। भारत सरकार अधिनियम, 1935 में कुछ अधिकारों को सीमित रूप में मान्यता दी गई।

→ 1946 में जब संविधान सभा गठित हो गई तो मौलिक अधिकारों के संबंध में, सप्रू समिति (Sapru Committee) ने अपने प्रतिवेदन में कहा था, “हमारे विचार से भारत की विशेष परिस्थितियों में यह बहुत जरूरी है कि नए संविधान में मौलिक अधिकार अवश्य शामिल किए जाएँ जिससे देश के अल्पसंख्यक वर्गों को सुरक्षा की गारण्टी देने के साथ-साथ देश के विधानमंडलों, प्रशासनिक विभागों और न्यायालयों में एक समान कार्रवाई की जा सके।”

→ फिर भी भारत के स्वतंत्र होने से पहले मौलिक अधिकार देश के नागरिकों को प्राप्त नहीं थे और भारतीय संविधान द्वारा अपने तीसरे भाग (Part III) में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है।

→ ये अधिकार व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास के लिए बहुत जरूरी समझकर सभी नागरिकों को दिए गए हैं। अतः सर्वप्रथम यहाँ मौलिक अधिकारों का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है।

→ तत्पश्चात् भारतीय संविधान में दिए मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण एवं अध्याय चार में दिए गए राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों पर प्रकाश डालेंगे।

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