Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक कार्यों को करने हेतु किस ऊर्जा की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
पेशीय ऊर्जा।

प्रश्न 2.
उत्तम ईधन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जो ईधन प्रति एकांक द्रव्यमान अधिक कार्य करे, सरलता से प्राप्त हो, भंडारण तथा परिवहन सरल हो तथा मूल्य में कम हो, उसे उत्तम ईंधन कहते हैं।

प्रश्न 3.
जीवाश्मी ईंधन के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर-
कोयला, पेट्रोलियम ।

प्रश्न 4.
जीवाश्मी ईधन के जलने पर किन-किन । अधातुओं के ऑक्साइड बनते हैं ?
उत्तर-
कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर।

प्रश्न 5.
जिन संयंत्रों में ईधन को जलाकर ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती हैं, उन्हें क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तापीय विद्युत संयंत्र।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 6.
बाँध बनाकर नदियों के पानी की किस ऊर्जा का किसमें रूपान्तरण होता है ?
उत्तर-
गतिज ऊर्जा का स्थितिज ऊर्जा में रूपांतरण।

प्रश्न 7.
किस ईधन को ‘जैव मात्रा’ कहते हैं ? ।
उत्तर-
जो ईंधन पादप और जंतु उत्पाद हो उसे जैव मात्रा कहते हैं।

प्रश्न 8.
चारकोल किस प्रकार बनता है ? .
उत्तर-
लकड़ी को वायु की सीमित मात्रा में जलाकर चारकोल बनाया जाता है।

प्रश्न 9.
पवनों का प्रवाह कैसे होता है ?
उत्तर-
सूर्य के विकिरणों से भूखंडों तथा जलाशयों के असमान तप्त होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है।

प्रश्न 10.
पवन ऊर्जा फार्म किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब किसी विशाल क्षेत्र में अनेक पवन चक्कियाँ लगाई जाती हैं तो उस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फार्म कहते हैं।

प्रश्न 11.
ऊर्जा के अनवीकरणीय व नवीकरणीय स्त्रोत क्या हैं। [राज. 2015]
उत्तर-
अनवीकरणीय-ऐसा ईंधन जिसे प्रयोग करने के पश्चात दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जैसे-पैट्रोल, डीजल आदि। नवीकरणीय स्रोत-ऐसा ईंधन जिसे प्रयोग करने के पश्चात् दोबारा प्राप्त किया जा सकता उसे नवीकरणीय स्रोत कहते हैं। जैसे-जल ऊर्जा, सौर ऊर्जा।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 12.
पवन ऊर्जा के लिए पवनों की चाल कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
15 किमी/घण्टा।

प्रश्न 13.
पवन चक्कियों में टूट-फूट की संभावना किन कारणों से होती है ? |
उत्तर-
अंधड़, चक्रवात, धूप, वर्षा आदि से।

प्रश्न 14.
सौर भट्टियों में किस प्रकार का दर्पण प्रयोग किया जाता है। इस उपकरण में बहुत अधिक उच्च तापमान कैसे प्राप्त किया जाता है?
(CBSE 2016)
उत्तर-
सौर भट्टियों में अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाता है। सूर्य की समांतर किरणें इस अवतल दर्पण पर पड़ती हैं तो यह दर्पण उनको परावर्तित करके फोकस बिंदु पर फोकस कर देता है, इसी कारण इस दर्पण के फोकस बिंदु पर उच्च ताप (लगभग 3000°C तक) प्राप्त कर लिया जाता है। इस उच्च तापमान का उपयोग सौर भट्टी में धातु उपक्रमों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 15.
महासागरों में जल का स्तर किस कारण चढ़ता और गिरता है ? (नमूना प्रश्न पत्र 2013)
उत्तर-
चंद्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण।

प्रश्न 16.
नाभिकीय ऊर्जा किस कारण से उत्पन्न होती है?
उत्तर-
नाभिकीय विखंडन से।

प्रश्न 17.
हमारे देश में नाभिकीय विद्युत संयंत्र कहाँ-कहाँ प्रतिष्ठित हैं ?
उत्तर-
तारापुर (महाराष्ट्र), राणा प्रताप सागर (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरौरा (उत्तर प्रदेश), काकरापार (गुजरात) और कैगा (कर्नाटक)।

प्रश्न 18.
नाभिकीय संलयन के लिए कितना तापमान आवश्यक होता है ?
उत्तर-
107K.

प्रश्न 19.
CNG का पूरा नाम लिखिए। (मा. शि बोर्ड 2012)
उत्तर-
संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas).

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 20.
समाप्य और असमाप्य ऊर्जा स्रोत किस दूसरे नाम से जाने जाते हैं?
उत्तर-
समाप्य-अनवीकरणीय स्रोत, असमाप्यनवीकरणीय स्रोत।

प्रश्न 21.
यदि आप अपने भोजन को गर्म करने के लिए किसी भी ऊर्जा स्त्रोत का उपयोग कर सकते हैं, तो आप किस ऊर्जा स्त्रोत को प्राथमिकता देंगे ?अपने चयन का एक कारण दीजिए। (CBSE 2019)
उत्तर-
प्राकृतिक गैस क्योंकि उसका कैलोरी मान अधिक है तथा इसको जलाने से धुआँ नहीं होता है। यह ऊर्जा का स्वच्छ स्त्रोत है।

प्रश्न 22.
जीवाश्म ईंधन की मुख्यतः रचना क्या है ?
उत्तर-
ऊर्जा युक्त कार्बन यौगिकों के वे अणु जिनका निर्माण मूलतः सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए वनस्पतियों के द्वारा हुआ था उन्हें जीवाश्म ईंधन कहते हैं।

प्रश्न 23.
कोयले को वायु की अनुपस्थिति में जलाने से प्राप्त होने वाले दो उत्पाद लिखो।
उत्तर-

  • कोक,
  • कोलतार।

प्रश्न 24.
तीन शोधित ईधनों के नाम लिखो।
उत्तर-
कोल गैस, पेट्रोल, डीजल।

प्रश्न 25.
जैव द्रव्यमान क्या होता है ?
उत्तर-
पौधों तथा जंतुओं के शरीर में उपस्थित पदार्थों को जैव द्रव्यमान कहते हैं।

प्रश्न 26.
बायोगैस (जैव गैस) को उत्कृष्ट (उत्तम) ईंधन क्यों माना जाता है ? (CBSE 2019)
उत्तर-
बायोगैस को उत्कष्ट (उत्तम) ईंधन इसलिए माना जाता है क्योंकि यह जलने पर धुआँ नहीं छोड़ता तथा यह बिना आवाज किए जलता है।।

प्रश्न 27.
ईंधन के रूप में गोबर के उपलों की कोई दो हानियाँ लिखिए।
उत्तर-

  • इनका अपूर्ण दहन होने के कारण धुआँ उत्पन्न होता है।
  • गोबर में उपस्थित लाभप्रद तत्व नष्ट हो जाते हैं जो मिट्टी की उर्वरकता के लिये आवश्यक होते हैं।

प्रश्न 28.
दो कम ज्वलन ताप वाले द्रवों के नाम बताइए।
उत्तर-
ऐल्कोहॉल तथा पेट्रोल।

प्रश्न 29.
घरों में उपयोग किए जाने वाले ईंधनों के उदाहरण दें।
उत्तर-
लकड़ी, गोबर, कोयला, चारकोल तथा द्रवित पेट्रोलियम गैस (L.P.G.) आदि।

प्रश्न 30.
किन्हीं चार अर्धचालकों के नाम बताइए जिनसे सौर सेल बनाए जाते हैं ? (मा. शि बोर्ड 2012)
उत्तर-
सिलिकॉन, गैलियम, सेलेनियम, जर्मेनियम।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 31.
किस महीने में पवन प्रवाह सबसे कम तथा सबसे तेज होता है ?
उत्तर-
सबसे कम – जनवरी सबसे अधिक – जुलाई

प्रश्न 32.
सबसे पहला व्यापारिक सौर सेल कब बनाया गया है ?
उत्तर-
सन् 1954 में।

प्रश्न 33.
सौर पैनल क्या होते हैं ?
उत्तर-
सौर सेलों के समूह को सौर पैनल कहते हैं। इसमें बड़ी संख्या में सौर सेलों को एक विशेष क्रम में जोड़ दिया जाता है।

प्रश्न 34.
सौर पैनलों के दो लाभ लिखिए।
उत्तर-

  1. सड़कों पर प्रकाश करने में
  2. जल पंप चलाने में।।

प्रश्न 35.
बाँध के एकत्रित पानी में कौन सी ऊर्जा होती है ?
उत्तर-
स्थितिज ऊर्जा।

प्रश्न 36.
ऊर्जा संरक्षण का नियम क्या है ?
उत्तर-
“ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। केवल इसको एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।”

प्रश्न 37.
ऊर्जा के अपरंपरागत स्रोतों के उदाहरण बताइए।
उत्तर-

  • जल,
  • वायु।

प्रश्न 38.
सौर ऊर्जा पर आधारित दो संयंत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • सोलर कुकर,
  • सोलर सैल।

प्रश्न 39.
पवन चक्र की सीमायें क्या हैं। (RBSE 2016)
उत्तर-
पवन चक्र केवल उन्हीं क्षेत्रों में कार्य कर सकता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में पवन बहती है।

प्रश्न 40.
थर्मल पावर स्टेशन पर ऊर्जा प्राप्ति का साधन क्या होता है ?
उत्तर-
कोयला।

प्रश्न 41.
भारत में ज्वारीय तरंगों से ऊर्जा कहाँ-कहाँ प्राप्त की जा रही है ?
उत्तर-
गुजरात, कच्छ की खाड़ी एवं कैम्बे तथा पश्चिम बंगाल के पूर्वी सागरीय तट पर स्थित सुंदर वन।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer type Questions)

प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईंधन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कैसे घटाया जा सकता है?
उत्तर-

  1. अधिक पेड़ों को उगाकर।
  2. दहन प्रक्रिया की दक्षता बढ़ाकर।
  3. कारखानों में ऊँची चिमनियाँ लगाकर।
  4. वाहनों में CNG का प्रयोग अधिकता में करके।
  5. आवासीय बस्तियों से कारखानों और फैक्ट्रियों को दूर स्थापित करके।

प्रश्न 2.
जल ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण प्रतिबन्ध बताइए। इसका एक लाभ भी लिखें।
उत्तर-
जल ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण प्रतिबन्ध यह है कि पन-चक्की को चलाने के लिए बहता हुआ जल प्रत्येक स्थान पर अधिक मात्रा में उपलब्ध नहीं होता। इसलिए कार्य करने के लिए जल ऊर्जा का उपयोग केवल उन्हीं स्थानों पर हो सकता है जहाँ बहता हुआ जल अधिक मात्रा में उपलब्ध हो। जल ऊर्जा का महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसके उपयोग से पर्यावरण का प्रदूषण नहीं होता।

प्रश्न 3.
जल विद्युत संयंत्र में होने वाले ऊर्जारूपान्तरण लिखिए। (CBSE 2018)
उत्तर-
जल विद्युत संयंत्र में किसी ऊँचे स्थान पर जल का भंडारण किया जाता है। यह एकत्रित जल ऊँचाई से अत्यन्त वेग द्वारा टरबाइन को घुमाने के लिए छोड़ा जाता है जिसके परिणामस्वरूप टरबाइन जेनरेटर द्वारा विद्युत का उत्पादन करता है। इस प्रकार जल की स्थितिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा और उसके बाद विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।

जल विद्युत संयंत्र की सीमाएँ-

  • नदी के प्रवाह में परिवर्तन, जिसके कारण बहुत बड़ा क्षेत्र जलमग्न हो जाता है।
  • उस प्रदेश का जल तंत्र तथा वन्य जीवन नष्ट हो सकता है।

प्रश्न 4.
जल ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बनाए गए बाँधों से सम्बन्धित समस्याएँ लिखिए।
उत्तर-

  • जल ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बाँधों का निर्माण कुछ सीमित क्षेत्रों में ही किया जाता है।
  • बाँधों के निर्माण से पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।
  • बाँध के जल में डूबने के कारण बड़े-बड़े परिस्थितिक तन्त्र नष्ट हो जाते हैं।
  • विस्थापन के कारण लोगों के पुनर्वास और क्षतिपूर्ति की समस्या उत्पन्न होती है।
  • जल में डूबे पेड़-पौधों और वनस्पतियों के सड़ने से विघटन के द्वारा विशाल मात्रा में मेथेन गैस उत्पन्न होती है, जो ग्रीन हाउस प्रभाव का कारण बनती है।

प्रश्न 5.
जैव गैस प्लांट में गोबर का प्रयोग करने के दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  • गोबर को उपलों के रूप में जलाने से अत्यधिक , धुआँ उत्पन्न होता है जिससे वायु प्रदूषित होती है। गोबर गैस प्लांट में जैव गैस बनती है जिससे वायु प्रदूषित नहीं होती।
  • गोबर को सीधे ही उपलों के रूप में जलाने से उसमें उपस्थित नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस जैस पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। जैव गैस प्लांट में गोबर को प्रयुक्त करने से साफ-सुथरा ईंधन प्राप्त होने के पश्चात् अवशिष्ट स्लरी को खेतों में खाद के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 6.
तीन ऐसे कारक बताइए जो पवन को गतिशील करने के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर-
पवन को गतिशील करने के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं

  1. पृथ्वी के भूमध्य रेखीय क्षेत्रों तथा ध्रुवीय क्षेत्रों पर आपतित सूर्य की किरणों में तीव्रता में अन्तर का होना,
  2. गर्म वायु तथा ठण्डी वायु के घनत्व में अन्तर का होना तथा
  3. पृथ्वी का घूर्णन।

प्रश्न 7.
भारत में पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ क्या हैं ?
उत्तर-
भारत में पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ-भारत में उपलब्ध पवन ऊर्जा की क्षमता का लाभ उठाने हेतु विस्तृत योजनाएँ बनाई गई हैं। इनमें से कुछ योजनाओं को तो विद्युत उत्पादन हेतु लागू भी किया जा चुका है। भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन हेतु संयन्त्र गुजरात प्रदेश के ओखा नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 1 मेगावॉट (1 M W) है। दूसरा पवन ऊर्जा संयन्त्र गुजरात के पोरबन्दर स्थित लांबा नामक स्थान पर है। यह 200 एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैला हुआ है। इसमें 50 पवन ऊर्जा चालित टर्बाइन लगी हैं जिनकी क्षमता 200 करोड़ यूनिट विद्युत उत्पन्न करने की है।

प्रश्न 8.
(अ) नाभिकीय ऊर्जा प्रदान करने वाले दो तत्वों के नाम बताइए।
(ब) ज्वार-भाटा किसे कहते हैं? [राज. 2015]
उत्तर-
(अ)

  • यूरेनियम
  • प्लूटोनियम।

(ब) ज्वार-भाटा-घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चन्द्रमा के गुरुत्वीय खिचाव के कारण सागरों से जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है। इस घटना को ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 9.
सौर ऊष्मक युक्तियों में काँच की पट्टी का क्या महत्व है?
उत्तर-
ऊष्मारोधी बॉक्स में काली पट्टी की ऊपरी सतह को किसी काँच की पट्टी से ढक दिया जाता है। काँच की पट्टी का यह विशेष गुण है कि यह सौर प्रकाश में विद्यमान अवरक्त किरणों को अपने भीतर से गुजरने देती है। काँच की पट्टी के पार गुजरने के बाद उसकी तरंगदैर्ध्य अधिक हो जाती है। काँच की पटटी उन अवरक्त विकिरणों को बाहर नहीं जाने देती जिनकी तरंगदैर्ध्य अधिक हो तथा जिनका उत्सर्जन उन वस्तुओं से हो रहा हो जो तुलनात्मकता रूप से निम्न ताप परे हैं।

प्रश्न 10.
सौर ऊर्जा का दैनिक कार्यों में प्रमुख पारम्परिक उपयोग बताओ।
उत्तर-
सौर ऊर्जा पारम्परिक रूप में निम्नलिखित दैनिक कार्यों के लिए उपयोग की जा रही है

  • कपड़े सुखाने में।
  • फसल काटने के बाद अनाज में से नमी की मात्रा कम करने में।
  • सब्जियाँ, फल और मछली सुखाने में।

प्रश्न 11.
सौर भट्टी किसे कहते हैं? इसकी बनावट तथा लाभ लिखिए।
उत्तर-
जिस भट्टी को सौर ऊर्जा द्वारा गर्म किया जाता है, उसे सौर भट्टी कहते हैं। बनावट-सौर भट्टी में छोटे-छोटे हजारों दर्पणों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें इस प्रकार लगाया जाता है कि एक बहुत बड़ा अवतल परावर्तक तैयार हो जाए। इसके फोकस पर एक भट्टी रख दी जाती है। सूर्य की किरणें दर्पण से परावर्तित होकर फोकस बिन्दु पर मिल जाती हैं जिस कारण परावर्तन के पश्चात् भट्टी का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है। यह तापमान इतना अधिक बढ़ाया जा सकता है कि इससे लोहा भी पिघल जाता है।

लाभ-

  • धातुओं को पिघलाकर विभिन्न वस्तुएँ तैयार की जा सकती हैं।
  • धातुओं को काटा और जोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 12.
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत क्या है ? ऊर्जा के इस स्रोत को व्यापारिक स्तर पर उपयोग करने की आवश्यकता क्यों हुई ?
उत्तर-
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे विशाल स्रोत सूर्य है। सूर्य द्वारा दी गई ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी पर प्रतिदिन पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश द्वारा दी गई ऊर्जा संसार के सभी देशों द्वारा एक वर्ष में उपयोग की गई कुल ऊर्जा का 50,000 गुना है। व्यापारिक स्तर पर ऊर्जा के इस स्रोत का उपयोग करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि जीवाश्म ईंधनों के ज्ञात भण्डार बहुत कम रह गए हैं जो कुछ ही दशकों में समाप्त हो जायेंगे। इस ऊर्जा के संकट को दूर करने के लिए मानव ने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की खोज की। इनमें से सूर्य की ऊर्जा एक नवीकरणीय स्रोत है।

प्रश्न 13.
भारत में सौर ऊर्जा के उपयोग बढ़ाने हेतु क्या-क्या प्रयास किए गए हैं ? .
उत्तर-
भारत में सौर ऊर्जा को बढ़ाने हेतु प्रयास-भारत में सौर ऊर्जा को बढ़ाने हेतु निम्नलिखित प्रयास किए जा रहे-

  1. भारत में भोजन पकाने के लिए सौर कुकरों के उपयोग को बढ़ाया जा रहा है। भारत सरकार के गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत विभाग (Department of Non-Conventional Energy Sources) अर्थात् DNES द्वारा सोलर कुकरों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  2. भारत में पानी गर्म करने हेतु सोलर जल ऊष्मकों के उपयोग को बढ़ाया जा रहा है। आजकल बहुत से औद्योगिक प्रतिष्ठानों की छतों पर सोलर जल ऊष्मकों को लगाया जा रहा है।

प्रश्न 14.
सौर ऊर्जा तापन युक्तियों के अवगुण बताइए। .
उत्तर-
सभी सौर तापन युक्तियों का एक प्रमुख अवगुण यह है कि इनकी दिशा थोड़ी-थोड़ी देर बाद बदलनी पड़ती है जिससे कि इन पर सूर्य का प्रकाश सीधा पड़े। आजकल ऐसी व्यवस्था की गई है कि ये स्वयं धीरे-धीरे घूमती रहें और इन पर सूर्य का प्रकाश पूरे दिन गिरता रहे। रात के समय सौर ऊर्जा उपलब्ध न होने के कारण इन सौर तापन युक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता। दिन में आसमान में बादल छा जाने के कारण इन सौर तापन युक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 15.
अर्द्धचालक क्या हैं? इनकी चालकता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है?
उत्तर-
अर्धचालक ऐसे पदार्थ हैं जिनमें सामान्यतया विद्युत का प्रवाह नहीं हो सकता है। सिलिकॉन, जर्मेनियम आदि अर्धचालकों के उदाहरण हैं। विद्युतरोधियों की तुलना में अर्धचालकों में कुछ सीमा तक विद्युत का चालन सम्भव है। अर्धचालकों में कुछ अपद्रव्य (अशुद्धि) मिला देने पर उनकी चालकता बहुत अधिक बढ़ जाती है।

प्रश्न 16.
सामान्यतया प्राकृतिक गैस कहाँ पाई जाती है? इसको साफ-सुथरा ईंधन क्यों कहते हैं?
उत्तर-
प्राकृतिक गैस मुख्यतः मीथेन होती है जो कि खनिज तेल के साथ उपस्थित होती है। कई स्थानों पर इनके कूप होते हैं। यह भूमि के नीचे पेट्रोलियम के ऊपर पाई जाती है-

  • यह गैस आसानी से जलती है तथा इससे ऊष्मा भी उत्पन्न होती है।
  • इसके जलाने से कोई धुआँ उत्पन्न नहीं होता और न ही किसी प्रकार की विषैली गैसें निकलती हैं।
  • इसके जलाने पर कुछ भी शेष नहीं रहता।

प्रश्न 17.
सौर सेल महँगे क्यों होते हैं? इनका उपयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है?
उत्तर-
सौर सेल निर्माण हेतु सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है। प्रकृति में सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है। सौर सेलों को परस्पर संयोजित करके पैनेल बनाने में चाँदी का उपयोग किया जाता है जिससे इसकी लागत बढ़ जाती है। उच्च लागत तथा कम दक्षता होने पर भी इनका उपयोग बहुत से वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है। मानव निर्मित उपग्रहों में सौर सेलों का उपयोग प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है। रेडियो, संचार तन्त्रों, टी.वी. रिले केन्द्रों आदि में सौर पैनेल उपयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 18.
एल.पी.जी. को अच्छा इंधन क्यों समझा जाता है?
उत्तर-

  • L.PG का कैलोरी मान अधिक (46kJ/g) है।
  • यह गैस धुआँ रहित ज्वाला के साथ जलती है क्योंकि इसमें कोई विषैली गैस उत्पन्न नहीं होती है अर्थात् इससे वायु प्रदुषण नहीं होता है।
  • यह ऊष्मा उत्पन्न करने का कम खर्च वाला साधन है।

प्रश्न 19.
L.P.G के घटक बताओ। इस ईधन को कोयले से अच्छा क्यों समझा जाता है?
उत्तर-
यह द्रवित ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन का मिश्रण है। इसके रिसाव का पता लगाने के लिए इथाइल मरकेप्टन (C2H5SH) की थोड़ी सी मात्रा इसमें डाली जाती है।

निम्नलिखित गुणों के कारण इसे उत्तम ईंधन माना जाता है।

  • इसमें वाष्पशील न होने वाले पदार्थों की बहुत कम मात्रा होती है।
  • इसका ऊष्मीय कैलोरी मान अधिक होता है तथा इससे वायु प्रदूषण नहीं होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गोलीय परावर्तक युक्त सौर कुकर का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए। (CBSE 2017)
उत्तर-
गोलीय परावर्तक युक्त सौर कुकर (Solar CookerContaining Spherical Reflector) इस प्रकार के सौर कुकर में उच्च ताप प्राप्त करने के लिए सूर्य की किरणों को फोकस किया जाता है। इस कार्य के लिए अवतलाकार दर्पण या परवलयिक दर्पण का प्रयोग किया जाता है। जब सूर्य के प्रकाश की समान्तर किरणें गोलीय परावर्तक के पृष्ठ पर गिरती हैं, तो वे इसके फोकस F पर केन्द्रित हो जाती है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 1
सूर्य की प्रकाश किरणों के एक ही स्थान पर केन्द्रित होने के कारण वहाँ अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण उस स्थान का ताप अधिक हो जाता है, यदि पकने वाली वस्तु को फोकस पर रखा जाए तो बर्तन गर्म हो जाता है तथा भोजन पकना आरम्भ हो जाता है। इसमें सामान्य सौर कुकर से अधिक ताप प्राप्त होता है, इसलिए इसे रोटियाँ सेंकने तथा सब्जियाँ तलने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
(a) सौर सेल पैनल का वर्णन कीजिए।
(b) एक पवन चक्की के कार्य सिद्धान्त के विषय में लिखिए। (CBSE 2017)
उत्तर-
(a) सौर सेल पैनल-जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को एक साथ किसी विशेष प्रकार के बोर्ड पर लगाकर ऊँचे स्थान पर खड़ा कर दिय जाता है तो इस अवस्था को सौर सेल पैनल कहते हैं। इन सभी सौर सेलों से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा काफी अधिक मात्रा में विभवान्तर (voltage) उत्पन्न कर सकते हैं। सौर सेल पैनलों का उपयोग कृत्रिम उपग्रहों में तथा सुदूर (दूर-दराज) के स्थानों पर विद्युत की आपूर्ति के लिए किया जाता है। सौर सेलों को परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में सिल्वर का उपयोग होता है क्योंकि सिल्वर विद्यत का उत्तम चालक है जिसकी प्रतिरोधकता कम होती है। सिल्वर सौर सेलों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 2

(b) पवन चक्की का कार्य सिद्धान्त-पवन चक्की एक संयंत्र है जिससे पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग कर विद्युत बनाई जाती है। इसमें पवन के तेज वेग से पवन चक्की के पंखों को घूर्णन गति दी जाती है। इसलिए पवन का न्यूनतम वेग 15km/h होना चाहिए। इस घूर्णन गति से जनित्र के टरबाईन को घुमाया जाता है। टरबाईन की गतिज ऊर्जा को फिर जनित्र द्वारा विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। पवन चक्की की पंखुड़ियों की घूर्णी गति का उपयोग कुओं से जल खींचने के लिए, आटे की चक्की, पानी के पम्प चलाने आदि में भी किया जाता है। वह विशाल क्षेत्र जहाँ बहुत-सी पवन चक्कियाँ लगाई जाती हैं उसे पवन ऊर्जा फॉर्म कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 3.
सौर जल ऊष्मक का नामांकित चित्र बनाकर उसकी क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सौर जल ऊष्मक (Solar Water Heater)इस युक्ति के द्वारा सौर ऊर्जा का उपयोग करके जल को गर्म किया जाता है। यह एक ऊष्मारोधी बक्से B का बना होता है जिसकी आन्तरिक सतह को काला कर दिया जाता है। इसमें अन्दर की ओर काले रंग की पुती हुई ताँबे की ट्यूबें T कुण्डली के रूप में लगी होती हैं। संवहन तथा विकिरण द्वारा ऊष्मा की हानि को रोकने के लिए बक्से के ऊपर शीशे का एक ढक्कन लगा देते हैं। ताँबे की इन ट्यूबों को मकान की छत के ऊपर लगा देते हैं, जिससे इन्हें पूरे दिन सूर्य का पर्याप्त प्रकाश मिल सके।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 3

कार्यविधि (Working) सबसे पहले ठण्डे पानी को पाइप P के रास्ते भण्डारण टैंक में प्रवेश कराते हैं। इसके पश्चात् यह पानी पाइप M से होकर ताँबे की ट्यूबों T में चला जाता है। ये ताँबे की ट्यूबें सूर्य से आने वाली ऊर्जा का अवशोषण करके गर्म हो जाती हैं। जब यह ठण्डा पानी इन गर्म ताँबे की ट्यूबों से गुजरता है, तो वह भी गर्म हो जाता है। गर्म जल हल्का होने के कारण ताँबे की ट्यूब के दूसरे सिरे से निकल कर पाइप N के रास्ते से होता हुआ पाइप S में चला जाता है जहाँ इस जल का उपयोग कर लिया जाता है।

प्रश्न 4.
सौर तापन युक्तियों के डिजाइन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।।
उत्तर-
सौर तापन युक्तियाँ (Solar Thermal Devices)-सौर तापन यक्तियों को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है कि वे सूर्य की ऊर्जा को अधिक से अधिक संग्रहीत कर सकें।
1. काले रंग की सतह का उपयोग-काले रंग की पुती सतहों का उपयोग करने का कारण यह है कि काली सतहों द्वारा प्रकाश में उपस्थित ऊष्मा का अवशोषण अत्यधिक होता है, इस कारण से सौर कुकर जैसी तापन युक्तियों के अन्दर की सतह काली बनायी जाती हैं।
2. काँच के ढक्कन का उपयोग-सौर कुकर द्वारा अवशोषित ऊष्मीय ऊर्जा जब उस सतह द्वारा उत्सर्जित होती है तब बक्से पर लगा काँच का ढक्कन इन अवरक्त किरणों को बक्से से बाहर नहीं जाने देता, अत: बॉक्स के अन्दर की ऊष्मा अन्दर ही रह जाती है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 4
3. परावर्तक का उपयोग-सौर तापन युक्ति की दक्षता बढ़ाने के लिए इसमें एक परावर्तक तल लगा दिया जाता है जो कि एक समतल दर्पण होता है। इसके कारण अधिक से अधिक ऊष्मीय किरणें सौर तापन युक्ति के अन्दर प्रवेश कर जाती हैं। अधिक ताप प्राप्त करने के लिए इनमें गोलीय परावर्तक का प्रयोग करते हैं।

सौर तापन युक्ति की दक्षता विद्युत प्रचालित युक्ति से कम होती है। इसके निम्नलिखित तीन कारण हैं-

  1. सौर ऊर्जा का केवल कुछ भाग ही पृथ्वी की सतह तक पहुँच पाता है, अधिकांश भाग पृथ्वी की ऊपरी सतह द्वारा अन्तरिक्ष में परावर्तित हो जाता है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित धूल, ओजोन आदि द्वारा अवशोषित हो जाता है, जबकि विद्युत प्रचालित युक्ति में दी गयी विद्युत ऊर्जा पूर्णतः ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है।
  2. सौर तापन युक्ति में उपयोग की जाने वाली कृष्ण सतह अपने ऊपर आपतित सौर ऊर्जा को पूर्णतः अवशोषित नहीं कर पाती हैं क्योंकि आदर्श कृष्ण सतह का होना असम्भव है।
  3. सौर तापन युक्ति में ऊष्मा का कुछ भाग चालन, संवहन तथा विकिरण द्वारा क्षय हो जाता है, जबकि विद्युत प्रचालित युक्ति में यह ऊष्मा क्षय बहुत कम होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अनुच्छेद और संबधित पढ़ी गयी संकल्पनाओं के आधार पर प्रश्न संख्या (a) से (d) के उत्तर दीजिए-
भारत में सौर शक्ति एक तीव्र विकसित होता हुआ उद्योग है। 31 जुलाई, 2019 तक देश की सौर प्रतिष्ठापित क्षमता 30.071 GW तक पहँच गई थी। भारत में प्रतिष्ठापित सौर शक्ति संयंत्रों की प्रति MW पूँजी लागत सबसे कम है। जनवरी 2019 में सौर विद्युत् जनन कुल उपयोग होने वाले विद्युत जनन का लगभग 3.4% रिकॉर्ड की गई। निम्नलिखित तालिका में पिछले छः वर्षों में वार्षिक सौर शक्ति जनन को दर्शाया गया है-
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 5
हमारा देश भाग्यशाली है कि वर्ष के अधिकांश भाग में सौर ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। ऐसा अनुमान है कि भारत 5000 ट्रिलियन kWh के तुल्य ऊर्जा से अधिक ऊर्जा एक वर्ष में सूर्य से प्राप्त करता है।
(a) सौर सेल क्या हैं ? (CBSE 2020)
उत्तर-
सौर सैल वह उपकरण हैं जो सौर ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह सिलिकॉन-बोरॉन और सिलिकॉन आर्सेनिक परत की एक संरचना है।

(b) धूप में रखे जाने पर किसी प्रारूपी सौर सेल से कितनी बोल्टता विकसित और कितनी विद्युत उत्पन्न की जा सकती है?
उत्तर-
0.5-1.0 V तक वोल्टता विकसित होती है तथा 0.7ω विद्युत उत्पन्न होती है।

(c) भारत में सौर ऊर्जा द्वारा शक्ति जनन का भविष्य उज्जवल है। इसका कारण दीजिए।
उत्तर-
भारत में सौर ऊर्जा शक्ति जनन का भविष्य उज्जवल है क्योंकि वर्ष के अधिकांश भाग में सौर ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। ऐसा अनुमान है कि, भारत 5000 ट्रिलियन kWh के तुल्य ऊर्जा से अधिक ऊर्जा एक वर्ष में सूर्य से प्राप्त करता है।

(d) सौर सेलों के दो लाभों को सूचीबद्ध कीजिए।

प्रश्न 6.
जीवाश्मी ईंधन को अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के रूप में क्यों वर्गीकृत किया गया है? इन स्रोतों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
उत्तर-
जीवाश्मी ईंधन आज से लाखों-करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के कारण बने थे। भौगोलिक तथा वातावरणीय परिवर्तनों के कारण जीव-जन्तु एंव पेड़-पौधे मिट्टी की सतह के नीचे दब गए थे। पृथ्वी तल के दबाव और भीतरी गर्मी के कारण वे जीवाश्मी ईंधन में परिवर्तित हो गए थे।

मनुष्य अपने उपयोग हेतु भूमि से लगातार इनका दोहन करते आ रहे हैं। प्रयोग के बाद इन्हें पुनः प्राप्त नही किया जा सकता इसलिए इन्हें जीवाश्मी अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत माना जाता है। भूमि के नीचे निरन्तर इनकी कमी होती जा रही है। पेट्रोल तो हमारे देश में सन् 2020 तक समाप्त हो जाएगा और कोयला लगभग 250 वर्ष पश्चात् नही रहेगा। इस कारण से इनका प्रयोग अत्यन्त सोच-समझकर करना चाहिए।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 7.
सौर सेलों के उपयोग बताइए।
उत्तर-
सौर सेलों के उपयोग-सौर सेलों का उपयोग दुर्गम तथा दूरस्थ स्थानों में विद्युत ऊर्जा उपलब्ध कराने में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। सौर सेलों के महत्वपूर्ण उपयोग निम्नलिखित हैं –

  1. सौर सेलों का उपयोग कृत्रिम उपग्रहों तथा अन्तरिक्ष यानों में विद्युत उपलब्ध करने के लिए किया जाता है। वास्तव में, सभी कृत्रिम उपग्रह तथा अन्तरिक्ष यान मुख्यतः सौर पैनलों के द्वारा उत्पादित विद्युत ऊर्जा पर ही निर्भर करते हैं।
  2. भारत में सौर सेलों का उपयोग सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था करने में, सिंचाई के लिए जलपम्पों को चलाने तथा रेडियो व टेलीविजन सैटों को चलाने में किया जाता है।
  3. सौर सेलों का उपयोग समुद्र में स्थित द्वीप स्तम्भों में तथा तट से दूर निर्मित खनिज तेल के कुएँ खोदने वाले संयन्त्रों को विद्युत शक्ति प्रदान करने में किया जाता है।
  4. आजकल सौर सेलों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों तथा कैलकुलेटरों को चलाने में भी किया जाता है।

प्रश्न 8.
सौर ऊर्जा का दोहन करने की प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सौर ऊर्जा का दोहन करने की विधियाँ-सौर ऊर्जा का दोहन करने की दो विधियाँ हैं-
1. प्रत्यक्ष विधि-सौर ऊर्जा का प्रत्यक्ष रूप में दोहन (उपयोग) या तो ऊष्मा के रूप में एकत्र करके किया जा सकता है (जैसे-सौर कुकर में) या उसे सीधे ही विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके किया जा सकता है (जैसे-सौर सेलों में)। इस प्रकार, सौर ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप में (या सीधे) उपयोग में लाई जा सकती है।

2. अप्रत्यक्ष विधि-सौर ऊर्जा का अप्रत्यक्ष रूप से दोहन (उपयोग) उसे रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करके किया जा सकता है, जैसे-पौधों के द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में।

सौर ऊर्जा को अप्रत्यक्ष रूप में उपयोग करने की विधियाँ निम्नलिखित हैं-

  • पवन ऊर्जा का उपयोग,
  • समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग तथा
  • सागर की विभिन्न गहराइयों पर जल के ताप में अन्तर का उपयोग।

प्रश्न 9.
सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र के कार्य का सिद्धांत लिखिए। वर्णन कीजिए कि यह संयंत्र किस पकार कार्य करता है? इसके ठीक से कार्य करने के लिए एक आवश्यक शर्त लिखिए। (CBSE 2016)
उत्तर-
सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र का सिद्धांत-सागरों या महासागरों के पृष्ठ एवं गहराई में स्थित जल के तापमान के अंतर के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को महासागरीय तापीय ऊर्जा (Ocean Thermal Energy) कहते हैं। (OTEC) ऊर्जा संयंत्र के कार्य-OTEC संयंत्र में पृष्ठ (सतह) के तप्त (गर्म) जल से अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबाला जाता है और इनसे बनी वाष्प से टरबाइन को घुमाया जाता है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव अवस्था में संघनित कर लिया जाता है।

OTEC संयंत्र ठीक से कार्य करें इसके लिए आवश्यक शर्ते निम्न हैं-

  • समुद्री किनारों पर दिन में अच्छी धूप हो।
  • इसके कारण समुद्र के जल के ऊपरी सतह और भीतरी सतह के बीच तापमान में काफी अंतर हो जाता है। इससे संयंत्र को अधिक उष्मीय ऊर्जा मिलती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)

1. बायोगैस में उपस्थित मीथेन गैस का प्रतिशत होता-
(a) 25%
(b) 50%
(c) 75%
(d) 100%.
उत्तर-
(c) 75%.

2. सौर सेल बनाने में प्रयुक्त होता है-
(a) कार्बन
(b) सिलिकॉन
(c) सोडियम
(d) कोबाल्ट।
उत्तर-
(b) सिलिकॉन।

3. निम्नलिखित में से कौन जैव मात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है ?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) कोयला
(d) नाभिकीय ऊर्जा।
उत्तर-
(d) नाभिकीय ऊर्जा।

4. LPG का कैलोरी मान है –
(a) 46kJ/g
(b) 96kJ/g
(c) 146kJ/g
(d) 196k/g.
उत्तर-
(a) 46kJ/g.

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

5. निम्न में से कौन सा अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है ?
(a) पवन ऊर्जा
(b) सौर ऊर्जा
(c) जीवाश्मी ईंधन
(d) जल ऊर्जा ।
उत्तर-
(c) जीवाश्मी ईंधन।

6. परमाणु संयंत्रों में प्रयुक्त ईधन है –
(a) जल
(b) प्लूटोनियम
(c) जीवाश्मी ईंधन
(d) बायो गैस।
उत्तर-
(b) प्लूटोनियम।

7. सौर पैनल में किस धातु के प्रयोग होने के कारण वे महँगे होते हैं?
(a) ताँबा
(b) सोना
(c) चाँदी
(d) प्लेटिनम।
उत्तर-
(c) चाँदी।

8. स्वच्छ ईंधन है-.
(a) CNG
(b) डीजल
(c) जीवाश्मी ईंधन
(d) पेट्रोलियम।
उत्तर-
(a) CNG.

9. महासागरों से हमें कौन सी ऊर्जा प्राप्त होती है?
(a) ज्वारीय ऊर्जा
(b) तरंग ऊर्जा
(c) महासागर तापीय ऊर्जा
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।

10. प्राकृतिक रूप में ठोस ईंधन कौन सा है?
(a) कोक
(b) कोयला
(c) CNG
(d) LPG.
उत्तर-
(b) कोयला।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

11. पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी भाग के प्रत्येक वर्ग मीटर द्वारा कितनी ऊर्जा प्रति सेकंड प्राप्त की जाती है?
(a) 1.36k
(b) 13.6 kJ
(c) 136kJ
(d) 130kJ.
उत्तर-
(a) 1.36 kJ.

12. ऊर्जा का वास्तविक एकमात्र स्रोत क्या है?
(a) सूर्य
(b) जल
(c) यूरेनियम
(d) जीवाश्मी ईंधन।
उत्तर-
(a) सूर्य।

13. सौर सेलों का संयोजन कहलाता है –
(a) सौर प्लेट
(b) सौर पट्टी
(c) सौर पैनल
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) सौर पैनल।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (Fill in the blanks)

1. बायो गैस में …………………………. प्रतिशत मीथेन गैस होती है।
उत्तर-
75%,

2. जीव जन्तुओं व पेड़-पौधों के अवशेष जो लाखों वर्षों से पृथ्वी के अन्दर दबे हुए हैं, …………………………. कहलाते हैं।
उत्तर-
जीवाश्म,

3. सूर्य के प्रकाश की गर्मी से सागर के जल में तापान्तर से प्राप्त ऊर्जा …………………………. कहलाती है।
उत्तर-
महासागरीय तापीय ऊर्जा,

4. किसी बड़े नाभिक का दो छोटे नाभिकों में विखण्डित होना ………………………….कहलाता है।
उत्तर-
नाभिकीय विखण्डन,

5. जिन स्थानों पर अनेक पवन चक्कियाँ लगाई जाती हैं, उस क्षेत्र को …………………………. कहते हैं।
उत्तर-
पवन ऊर्जा फॉर्म।

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न (Matrix Type Questions)

सूची A का सूची B से मिलान कीजिए-

(a)

सूची Aसूची B
1. राकेट ईंधन(i) मीथेन
2. जीवाश्य ईंधन(ii) कोयला
3. मार्श गैस(iii) ऑक्सीजन
4. प्राण वायु(iv) हाइड्रोजन

उत्तर-

सूची Aसूची B
1. राकेट ईंधन(iv) हाइड्रोजन
2. जीवाश्य ईंधन(ii) कोयला
3. मार्श गैस(i) मीथेन
4. प्राण वायु(iii) ऑक्सीजन

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(b)

सूची Aसूची B
1. सेलेनियम(i) फास्फोरस नाइट्रोजन
2. स्लरी(ii) हाइड्रोजन
3. नाभिकीय विखण्डन(iii) सौर सेल
4. नाभिकीय संलयन(iv) यूरेनियम
5. भूतापीय ऊर्जा(v) सूर्य
6. सौर पैनल(vi) तप्त स्थल

उत्तर-

सूची Aसूची B
1. सेलेनियम(iii) सौर सेल
2. स्लरी(i) फास्फोरस नाइट्रोजन
3. नाभिकीय विखण्डन(iv) यूरेनियम
4. नाभिकीय संलयन(ii) हाइड्रोजन
5. भूतापीय ऊर्जा(vi) तप्त स्थल
6. सौर पैनल(v) सूर्य

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

HBSE 12th Class Sociology सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक विषमता व्यक्तियों की विषमताओं से कैसे भिन्न है?
अथवा
सामाजिक असमानता व्यक्तिगत असमानता से भिन्न होती है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
सामाजिक विषमता सामाजिक क्यों है? विस्तृत चर्चा करें।
उत्तर:सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को सामाजिक विषमता कहा जाता है। कुछ सामाजिक विषमताएँ व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक भिन्नता को दर्शाती हैं जैसे कि उनकी योग्यता तथा प्रयासों में अंतर। कोई व्यक्ति असाधारण प्रतिभा का भी हो सकता है तथा कोई अधिक बुद्धिमान भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने अच्छी स्थिति प्राप्त करने के लिए अधिक परिश्रम किया हो। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक विषमता व्यक्तियों के बीच प्राकृतिक अंतरों के कारण नहीं बल्कि उस समाज द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें वह रहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक स्तरीकरण की कुछ विशेषताएं बतलाइए।
अथवा
सामाजिक स्तरीकरण की चार प्रमुख विशेषताएं बताइए।
अथवा
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:

  • सामाजिक स्तरीकरण में समाज को अलग-अलग भागों अथवा स्तरों में विभाजित किया जाता है जिसमें समाज के व्यक्तियों का आपसी संबंध उच्चता निम्नता पर आधारित होता है।
  • सामाजिक स्तरीकरण में अलग-अलग वर्गों की असमान स्थिति होती है। किसी की सबसे उच्च, किसी की उससे कम तथा किसी की बहुत निम्न स्थिति होती है।
  • स्तरीकरण में अंतक्रियाएं विशेष स्तर तक ही सीमित होती हैं। हरेक व्यक्ति अपने स्तर के व्यक्ति से संबंध स्थापित करता है।
  • सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है। यह परिवार और सामाजिक संसाधनों के एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में उत्तराधिकार के रूप में घनिष्ठता से जुड़ा है।
  • सामाजिक स्तरीकरण को विश्वास व विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है।

प्रश्न 3.
आप पूर्वाग्रह और अन्य किस्म की राय अपना विश्वास के बीच कैसे भेद करेंगे?
अथवा
पूर्वग्रह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूर्वाग्रह एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे के बारे में पूर्वकल्पित विचार अथवा व्यवहार होता है। पूर्वाग्रह शब्द के शाब्दिक अर्थ हैं पूर्व निर्णय अर्थात् किसी के बारे वह धारणा जो उसे जाने बिना तथा उसके तथ्यों को परखे बिना शुरू में ही स्थापित कर ली जाती है। एक पूर्वाग्रहित व्यक्ति के पूर्वकल्पित विचार तथ्यों के विपरीत सुनी सुनाई बातों पर ही आधारित होते हैं। चाहे इनके बारे में बाद में नई जानकारी प्राप्त हो जाती है, परंतु फिर भी यह बदलने से मना कर देते हैं।

पर्वाग्रह सकारात्मक भी होता है तथा नकारात्मक भी। वैसे मख्यता इस शब्द को नकारात्मक रूप से लिए गए पूर्वनिर्णयों के लिए ही प्रयोग किया जाता है परंतु इसे स्वीकारात्मक पूर्वनिर्णयों पर भी प्रयोग किया जाता है। जैसे कि कोई व्यक्ति अपने समूह के सदस्यों या जाति के पक्ष में पूर्वाग्रहित हो सकती है तथा उन्हें दूसरी जाति या समूह के सदस्य श्रेष्ठ मान सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

प्रश्न 4.
सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार क्या है?
अथवा
सामाजिक बहिष्कार सामाजिक क्यों है? विस्तृत चर्चा करें।
अथवा
सामाजिक अपवर्जन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
सामाजिक बहिष्कार क्या है?
अथवा
सामाजिक अपवर्जन (बहिष्कार) क्या है?
उत्तर:
सामाजिक अपवर्जन अथवा बहिष्कार वह ढंग हैं जिनकी सहायता से एक व्यक्ति अथवा समूह को समाज में पूर्णतया घुलने मिलने से रोका जाता है तथा पृथक् रखा जाता है। बहिष्कार उन सभी कारकों की तरफ ध्यान दिलाता है जिनसे उस व्यक्ति या समूह को उन मौकों से वंचित किया जाता है जो और जनसंख्या के लिए खुले होते हैं। व्यक्ति को क्रियाशील तथा भरपूर जीवन जीने के लिए मूलभूत ज़रूरतों जैसे कि रोटी, कपड़ा तथा मकान के साथ-साथ अन्य ज़रूरी चीज़ों तथा सेवाओं जैसे कि बैंक, यातायात के साधन, शिक्षा इत्यादि की भी आवश्यकता होती है। सामाजिक भेदभाव अचानक नहीं बल्कि व्यवस्थित ढंग से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का नतीजा है।

परंतु एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक बहिष्कार हमेशा अनैच्छिक होता है अर्थात् बहिष्कार उन लोगों की इच्छा के विरुद्ध होता है जिनका बहिष्कार किया जा रहा हो। उदाहरण के लिए शहरों में हजारों बेघर लोग फुटपाथ या पुलों के नीचे सोते हैं, धनी व्यक्ति नहीं। इसका अर्थ यह नहीं है कि धनी व्यक्ति फुटपाथ का प्रयोग करने से बहिष्कृत हैं। अगर वह चाहें तो वह इनका प्रयोग कर सकते हैं, परंतु वह ऐसा नहीं करते । सामाजिक भेदभाव को कभी-कभी गलत तर्क से ठीक कहा जाता है कि बहिष्कृत समूह स्वयं समाज में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं। इस प्रकार का तर्क इच्छित चीज़ों के लिए बिल्कुल ही गलत है।

प्रश्न 5.
आज जाति और आर्थिक असमानता के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
प्राचीन समय में जाति और आर्थिक असमानता एक-दसरे से गहरे रूप से संबंधित थे। व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तथा आर्थिक स्थिति एक-दूसरे के अनुरूप होती थी। उच्च जातियों के लोगों की आर्थिक स्थिति प्रायः अच्छी होती थी जबकि निम्न जातियों के लोगों की आर्थिक स्थिति काफ़ी निम्न होती थी। परंतु आधुनिक समय अर्थातु 19वीं शताब्दी के बाद से जाति तथा व्यवसाय के संबंधों में काफ़ी परिवर्तन आए हैं।

आज के समय में जाति के व्यवसाय तथा धर्म संबंधी प्रतिबंध लागू नहीं होते। अब व्यवसाय अपनाना पहले की अपेक्षाकृत आसान हो गया है। अब व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है। पिछले 100 वर्षों की तुलना में आज जाति तथा आर्थिक स्थिति का संबंध काफ़ी कमज़ोर हो गया है। आजकल में अमीर तथा निर्धन लोग हरेक जाति में मिल जाएंगे। परंतु मुख्य बात यह है कि जाति-वर्ग परस्पर संबंध वृहत स्तर पर अभी भी पूर्णतया कायम है। जाति व्यवस्था के कमजोर होने से सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति वाली जातियों के बीच अंतर कम हो गया है। परंतु अलग-अलग सामाजिक आर्थिक समूहों के बीच जातीय अंतर अभी भी मौजूद है।

प्रश्न 6.
अस्पृश्यता क्या है?
अथवा
अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में जाति प्रथा का काफ़ी महत्त्व था। उच्च तथा निम्न जातियों को अस्पश्यता की सहायता से अलग किया जाता था। अस्पृश्यता की धारणा यह थी कि निश्चित निम्न जातियों के लोगों के छूने अथवा परछाईं से उच्च जातियों के लोग अपवित्र हो जाएंगे। इसका अर्थ यह है कि यदि उच्च जाति के लोग अछूत जाति के लोगों के नज़दीक भी आ जाएंगे अथवा उनकी छाया भी यदि उन पर पड़ गई तो वह अपवित्र हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें दोबारा पवित्र होने के लिए या तो गंगाजल से नहाना पड़ेगा या विशेष धार्मिक कर्मकांड करने पड़ेंगे। 1955 के अस्पृश्यता अपराध कानून से इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था।

प्रश्न 7.
जातीय विषमता को दूर करने के लिए अपनाई गई कुछ नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जातीय विषमता को दूर करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों ने कुछ नीतियां अपनाई हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • केंद्र सरकार ने कई प्रकार के कानून बनाए हैं जिनसे जातीय निर्योग्यताएं खत्म कर दी गई हैं। इससे जातीय अंतर कम हुआ है।
  • निम्न जातियों के लोगों को गांवों में भूमि वितरित की गई है ताकि वह अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठा सके।
  • निम्न जातियों के लोगों को कम ब्याज पर तथा आसान किश्तों पर अपना धंधा शुरू करने के लिए ऋण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।
  • उनकी बस्तियों में सुधार करने के लिए सरकारें विशेष प्रबंध कर रही हैं तथा उन्हें कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
  • निम्न जातियों के लोगों को कृषि उत्पादन के लिए अच्छे बीज, उवर्रक तथा मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
  • सरकार ने 20 सूत्री आर्थिक कार्यक्रम चलाए हैं जिसमें उन्हें रोज़गार दिलाने की तरफ विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

इन सब कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य जातीय विषमता को दूर करके निम्न जातियों की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाना है।

प्रश्न 8.
अन्य पिछड़े वर्ग, दलितों (या अनुसूचित जातियों) से भिन्न कैसे हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में या तो उच्च जातियों की उच्चता या फिर अनुसूचित जातियों के शोषण को महत्व दिया गया है। परंतु उच्च जातियों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अतिरिक्त भी भारतीय समाज में एक ऐसा बड़ा वर्ग रहा है जो सैंकड़ों वर्षों से उपेक्षित रहा है। अगड़ी जातियों, समुदायों से नीचे तथा अनुसूचित जातियों से ऊपर समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो विभिन्न कारणों से उपेक्षित रहा है तथा भारतीय समाज की विकास यात्रा में निरंतर पिछड़ता गया। इसी वर्ग को अन्य पिछड़ा वर्ग कहते हैं।

इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जातियों से ऊपर भारतीय समाज में बहुसंख्यक ऐसा वर्ग है जो सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक कारणों से कमजोर रह गया है। स्वतंत्रता के बाद इसके लिए अन्य पिछड़ा वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया। यह हिंदुओं के दविजों तथा हरिजनों के बीच की जातियों का समूह है । इसके अतिरिक्त इसमें गैर-हिंदुओं, अनुसूचित जातियों व जनजातियों को छोड़कर अन्य निम्न वर्गों को शामिल किया जाता है।

सुभाष तथा बी०पी० गुप्ता द्वारा तैयार किए गए राजनीति कोष में अन्य पिछड़े वर्ग की परिभाषा दी गई है। उनके अनुसार, “अन्य पिछड़े हुए वर्ग का अर्थ समाज के उस वर्ग से है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निम्न स्तर पर हों।’

1953 में काका कालेलकर आयोग गठित किया गया जिसने पिछड़ेपन की चार कसौटियों पर पिछड़ी जातियों की सूची तैयारी की। यह मानदंड थे-जातीय संस्तरण में निम्न स्थान, शिक्षा का अभाव, सरकारी नौकरियों में कम पार व उदयोगों में कम प्रतिनिधित्व। 1978 में मंडल आयोग गठित किया गया जिसने पिछडे वर्ग निर्धारण के लिए तीन मानदंडों का चयन किया था वह थे सामाजिक, शैक्षणिक तथा आरि में विभाजित किया तथा प्रत्येक मानदंड के लिए महत्त्व अलग-अलग दिया गया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

प्रश्न 9.
आज आदिवासियों से संबंधित बड़े मुद्दे कौन-से हैं?
उत्तर:
जनजातियां हमारे समाज, सभ्यता तथा संस्कृति से बहुत ही दूर रहती हैं जिस कारण यह कुछ समय पहले ही हमारे समाज के संपर्क में आई हैं। इसलिए ही हमारे समाज की अनुसूचित जातियों को जिन निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा है, उन निर्योग्यताओं का सामना जनजातियों को नहीं करना पड़ा है। उनसे संबंधित बड़े मुद्दे अलग ही प्रकृति के हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) जनजातियों का शोषण-अंग्रेज़ों के शासन के समय कबायली लोग हमारे समाज के संपर्क में आना शुरू हुए। असल में कबायली लोग न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने मामलों में हस्तक्षेप करने देते हैं। जब अंग्रेजों ने भारत में अपनी शासन व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए यहां डाक-तार की तारें बिछाने का कार्य शुरू किया तो उन्हें कबायली इलाकों में से अपनी तारें बिछानी पड़ी। इस बात का कबायली लोगों ने हिंसात्मक विरोध किया।

इससे नाराज़ होकर अंग्रेजों ने अपने ज़मींदारों, व्यापारियों तथा सूद पर पैसा देने वाले साहूकारों को कबायली लोगों को शोषित करने के लिए प्रेरित किया। साहूकारों तथा ज़मींदारों ने धीरे-धीरे इनका शोषण करना शुरू किया तथा इनका जम कर शोषण किया। इससे इन लोगों का जीवन स्तर इतना निम्न हो गया कि यह अच्छा जीने के काबिल ही न रहे। इस प्रकार इनमें यह निर्योग्यता आ गई।

(ii) निर्धनता-कबायली लोग हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में रहते हैं। इन लोगों का समाज में कोई वर्ग नहीं पाया जाता है तथा यह बहुत ही साधारण जीवन जीते हैं। इनकी आवश्यकताएं काफ़ी सीमित हैं जिस कारण इन्हें अधिक चीजों की आवश्यकता नहीं होती है।

परंतु धीरे-धीरे यह हमारे समाज के संपर्क में आए जिस कारण इनकी आवश्यकताएं बढ़ती गईं। परंतु काफ़ी समय से कबायली लोगों का साहूकारों तथा जमींदारों से शोषण होता रहा है। इस शोषण के कारण यह निर्धन से और निर्धन हो गए। इस प्रकार निर्धनता के कारण उन्नति न कर पाए तथा पिछड़ते चले गए।

(iii) अलग-थलग करने की नीति-जब अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन का विस्तार करना शुरू किया तो उनके रास्ते में कबायली लोग आ गए। कबायली लोग न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को हस्तक्षेप करने की आज्ञा देते हैं। परंतु जब अंग्रेजों ने अपने शासन का विस्तार करना शुरू किया तो कबायली लोगों ने इसका हिंसात्मक विरोध किया। इस विरोध के कारण अंग्रेजों को अपने इलाकों में विस्तार का कार्य छोड़ना पड़ा।

इसके बाद अंग्रेज़ों ने इन लोगों को अलग-थलग करने की नीति को अपनाया। इसलिए उनके क्षेत्रों को अलग-थलग किया गया ताकि उनके हितों की रक्षा हो सके तथा उनके हिंसात्मक विरोध को भी रोका जा सके। इस प्रकार चाहे अंग्रेजों ने प्रशासनिक कारणों से उन्हें अलग-थलग करने की नीति अपनाई जिससे वह समाज में पिछड़ते ही चले गए तथा निर्धन से और निर्धन हो गए।

(iv) मध्यस्त रास्ता-स्वतंत्रता के बाद संविधान ने देश के सभी नागरिकों तथा समूहों की प्रगति करने का निर्देश सरकार को दिया। इसलिए भारत ने अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए बीच का रास्ता अपनाया। इसके अनुसार उनके क्षेत्र में न केवल प्रगति के अवसर उत्पन्न किए गए बल्कि उनकी संस्कृति का ध्यान भी रखा गया।

इससे कबायली लोग धीरे-धीरे प्रगति करने लगे। चाहे इस नीति से वह प्रगति करने लगे, परंतु इसका उन्हें नुकसान भी हुआ। चाहे कुछ शिक्षा प्राप्त की गई, परंतु वह नौकरी लेने लायक न थी तथा साथ ही वह अपने परंपरागत कार्यों से भी दूर होते चले गए। इस प्रकार वह सामाजिक क्षेत्र में भी पिछड़ते चले गए।

प्रश्न 10.
नारी आंदोलन ने अपने इतिहास के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठाए हैं?
अथवा
महिलाओं की समानता के लिए संघर्षों पर अपने विचार दें।
अथवा
स्त्रियों की समानता और अधिकारों के लिए किए संघर्षों की जानकारी दीजिए।
अथवा स्त्रियों द्वारा समानता के लिए किए गए संघर्षों का वर्णन करें।
उत्तर:
वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी उच्च थी क्योंकि उस समय नारी को देवी समझा जाता था। परंतु समय के साथ-साथ अलग-अलग कालों अथवा युगों में उनकी स्थिति में काफ़ी गिरावट आई। मध्य काल को तो स्त्रियों के लिए काला यग कहा जाता है। चाहे मध्य काल में बहुत से संत महात्माओं ने उनकी सामाजिक स्थिति सधारने का प्रयास किया. परंतु वह अधिक सफल न हो पाए।

मध्य काल के अंत तथा आधुनिक काल की शुरुआत में समाज में महिलाओं से संबंधित बहुत सी बुराइयां व्याप्त थीं जैसे कि बहुविवाह, बाल विवाह, दहेज प्रथा, सती प्रथा, पर्दा प्रथा इत्यादि। आधुनिक समाज सुधारकों ने इन बुराइयों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा महिला आंदोलन को सुदृढ़ता प्रदान की।

कुछ सुधारकों अंग्रेजों की सहायता से कानून भी पास करवाए ताकि इन बुराइयों को खत्म किया जा सके। इसके बाद गाँधी जी ने महिलाओं को घरों से बाहर निकल कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था कि अगर महिलाएं घरों से बाहर निकल आईं तो उनकी निर्योग्यताओं का खात्मा हो जाएगा। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा पर भी काफ़ी बल दिया। इस कारण ही हजारों लाखों महिलाएं घरों से बाहर निकल आई।

स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं के उत्थान से संबंधित कई प्रकार के कानून बनाए गए ताकि उन्हें शिक्षा, मातृत्व लाभ, जायदाद संबंधी अधिकार, अच्छा स्वास्थ्य तथा बुराइयों के विरुद्ध अधिकार प्रदान किया जा सके। समय समय पर महिला आंदोलन चले जिन्होंने समाज का ध्यान उनके कल्याण की तरफ खींचा। महिलाओं के शोषण, बलात्कार, छेड़छाड़, वैवाहिक हिंसा, गर्भपात, प्रतिकुल लिंग अनुपात, दहेज के कारण हत्या इत्यादि जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें आधुनिक समय में उठाया जा रहा है ताकि महिलाओं को इन सबसे मुक्ति दिलाई जा सके।

प्रश्न 11.
हम यह किस अर्थ में कह सकते हैं कि ‘असक्षमता जितनी शारीरिक है उतनी ही सामाजिक भी’?
अथवा
अक्षमता के लक्षण बताएं।
उत्तर:
असक्षमता शब्द के लिए मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त (Mentally challenged) दृष्टि बाधित (Visually impaired) और शारीरिक रूप से बाधित (Physically impaired), जैसे शब्दों का प्रयोग अब पुराने घिसे-पिटे नकारात्मक अर्थ बताने वाले शब्दों जैसे मंदबुद्धि, अपंग अथवा लंगड़ा-लूला इत्यादि के स्थान पर किया जाने लगा है। कोई भी विकलांग जैविक असक्षमता के कारण विकलांग नहीं बनता बल्कि उन्हें समाज द्वारा ऐसा बनाया जाता है।

असक्षमता के संबंध में एक सामाजिक विचारधारा भी है। असक्षमता तथा निर्धनता के बीच गहरा संबंध है। कुपोषण, कई बच्चे पैदा करने से कमजोर हुई माताओं की रोग प्रतिरक्षा के कम कार्यक्रम, भीड़-भाड़ भरे घरों में दुर्घटनाएँ इत्यादि सभी बातें इकट्ठे मिलकर निर्धन लोगों में असक्षमता के ऐसे हालात उत्पन्न कर देते हैं जो आसान हालातों में रहने वाले लोगों की तुलना में बहुत गंभीर होते हैं।

इसके अतिरिक्त असक्षमता, व्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण परिवार के लिए अलगपन और आर्थिक दबाव को बढ़ाते हुए निर्धनता की स्थिति उत्पन्न करके उसे और गंभीर बना देती है। इस बात में कोई शक नहीं है कि निर्धन देशों में असक्षम लोग सबसे निर्धन होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि असक्षमता शारीरिक होने के साथ-साथ सामाजिक भी हैं।

सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारे देश भारत में सामाजिक विषमताओं एवं बहिष्कार के कई स्वरूप देखने को मिल जाएंगे जैसे कि जाति पर आधारित भेदभाव, आदिवासियों तक सुविधाओं का न पहुँच पाना, पिछड़े वर्गों से भेदभाव, स्त्रियों तथा निम्न वर्गों की निर्योग्यताएं तथा अंत में अन्यथा सक्षम व्यक्तियों का संघर्ष।

→ सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को ही सामाजिक विषमता कहा जाता है। सामाजिक विषमता प्राकृतिक भिन्नता की वजह से नहीं बल्कि यह उस समाज द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें हम रहते है।

→ सामाजिक बहिष्कार वह तौर तरीके हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने मिलने से रोका जाता है या अलग रखा जाता है। प्राचीन समय में निम्न तथा अस्पृश्य जातियों के साथ ऐसा ही होता था।

→ जाति व्यवस्था सामाजिक बहिष्कार का ही एक रूप है जिसमें उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों का बहिष्कार करके उन्हें समाज से अलग रखा जाता था। चाहे आजकल यह वैधानिक रूप से प्रतिबंधित है परंतु फिर भी दूरदराज के क्षेत्रों में ऐसा हो रहा है। अस्पृश्यता को छुआछूत भी कहा जाता है। अस्पृश्य जातियों का समाज में कोई स्थान नहीं था। उनके साथ स्पर्श करना पाप समझा जाता था। अस्पृश्यता के तीन आयाम हैं-बहिष्कार, अनादर तथा शोषण। इन लोगों का इतना अधिक शोषण हुआ था कि स्वतंत्रता के 67 वर्षों के बाद भी यह अच्छी तरह प्रगति नहीं कर पाए है।

→ जातियों की तरह जनजातियां भी पिछड़े हुए वर्ग का एक हिस्सा हैं जो सामाजिक प्रगति की दौड़ में काफी पीछे हैं। उन्हें भी बहुत-सी निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा है।

→ निम्न जातियों तथा जनजातियों के प्रति भेदभाव खत्म करने के लिए राज्य तथा अन्य संगठनों द्वारा बहुत से कदम उठाए गए हैं। उनके शोषण, बहिष्कार को गैर-कानूनी घोषित किया गया है। उनकी स्थिति ऊपर उठाने के लिए संविधान में कई प्रावधान रखे गए हैं तथा उन्हें आरक्षण देकर उन्हें ऊँचा उठाने का प्रयास किया जा रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

→ निम्न जातियों की तरह अन्य पिछड़े वर्ग भी भारतीय जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा हैं जिन्हें बहुत सी सामाजिक निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा था। यह न तो उच्च जातियों में आते थे तथा न ही निम्न जातियों में। यह जातियां हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं थे बल्कि सभी प्रमुख भारतीय धर्मों में मौजूद थे।

→ इनके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम बनाए गए। पहले काका कालेलकर आयोग बनाया गया फिर मंडल आयोग की सिफारिशों को मानकर उनके लिए आरक्षण लागू कर दिया गया ताकि यह भी सामाजिक सोपान में अपने आपको ऊँचा उठा सकें।

→ आदिवासी लोगों ने अपने आपको बचा कर रखने के लिए काफ़ी संघर्ष किया। पहले उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किए तथा स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया। सरकार ने भी उनके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए, उन्हें आरक्षण दिया ताकि वह देश की मुख्य धारा में मिलकर अपनी स्थिति सुधार सकें।

→ इन सबके साथ देश का एक और बड़ा वर्ग है जो सदियों से शोषण का शिकार होता रहा है तथा वह है वैदिक काल में उनकी स्थिति बहत अच्छी थी परंत उसके बाद सभी कालों में उनकी स्थिति खराब होती चली गई। मध्य काल तो उनके लिए काला युग था। आधुनिक समय में उनकी स्थिति सुधारने के लिए बहत से समाज सधारकों ने प्रयास किए।

→ सरकार तथा समाज सुधारकों के प्रयासों के फलस्वरूप स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है। उनसे जुड़ी कुप्रथाएँ खत्म हो रही हैं, उनकी शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है तथा उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची हो रही है। उन्हें अब पैर की जूती नहीं बल्कि जीवन साथी समझा जाता है। उन्हें हरेक प्रकार का वह अधिकार प्राप्त है जिससे कि अच्छा जीवन व्यतीत हो सके।

→ अन्यथा सक्षम लोग न केवल शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम होते हैं बल्कि समाज भी कुछ इस रीति से बना है कि वह उनकी ज़रूरतों को पूर्ण नहीं करता। उन्हें भारत में निर्योग्य, बाधित, अक्षम, अपंग, अंधा तथा बहरा भी कहा जाता है।

→ यहां एक बात उल्लेखनीय है कि उनकी स्थिति को सुधारने के प्रयास स्वयं विकलांगों की ओर से ही नहीं किए गए हैं, सरकार को भी अपनी ओर से कार्यवाही करनी पड़ी है। उन्हें शिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में कुछेक प्रतिशत आरक्षण भी दिया गया है ताकि वह किसी पर बोझ न बनकर अपने पैरों पर स्वयं खड़े हो सकें।

→ सामाजिक विषमता-सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को सामाजिक विषमता कहा जाता है।

→ पूर्वाग्रह-एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या व्यवहार।

→ सामाजिक बहिष्कार-वह तौर तरीके जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूर्णतया घुलने मिलने से रोका जाता हो तथा पृथक् रखा जाता हो।

→ अस्पृश्यता-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा समाज की कुछ निम्न जातियों को अछुत अथवा अस्पृश्य समझा जाता था।

→ हरिजन-अस्पृश्य जातियों को महात्मा गांधी द्वारा दिया गया नाम जिसका शाब्दिक अर्थ है परमात्मा के बच्चे।

→ आरक्षण-सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में विशेष जातियों के लिए कुछ स्थान या सीटें निर्धारित करना।

→ आदिवासी-वह पिछड़े हुए लोग जो हमारी सभ्यता से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हुए अविकसित जीवन व्यतीत करते तथा अपनी ही संस्कृति के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Read More »

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Exercise 7.2

प्रश्न 1.
एक समद्विबाहु त्रिभुज ABC में जिसमें AB = AC है, ∠B और ∠C के समद्विभाजक परस्पर बिंदु O पर प्रतिच्छेद करते हैं। A और O को जोड़िए। दर्शाइए कि
(i) OB = OC
(ii) AO कोण A को समद्विभाजित करता है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 1
(i) यहाँ पर ΔABC में,
AB = AC
∠B = ∠C [समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
या \(\frac {1}{2}\)∠B = \(\frac {1}{2}\)∠C
या ∠OBC = ∠OCB …….(i) [∵ OB तथा OC क्रमशः ∠B तथा ∠C के समद्विभाजक हैं] ….(ii)
⇒ OB = OC [समान कोणों की सम्मुख भुजाएँ] [इति सिद्धम]

(ii) अब ΔABO तथा ΔACO में,
AB = AC [दिया है]
∠OBA = ∠OCA [समान कोणों के समद्विभाजक]
OB = OC [प्रमाणित]
ΔABO ≅ ΔACO [भुजा-कोण-भुजा सर्वांगसमता]
∠BAO = ∠CAO [सर्वांगसम त्रिभुजों के संगत भाग]
AO, ∠BAC को समद्विभाजित करता है। [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2

प्रश्न 2.
ΔABC में AD भुजा BC का लंब समद्विभाजक है (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि ΔABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है, जिसमें AB = AC है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 2
हल :
ΔABD और ΔACD में,
DB = DC [दिया है]
∠ADB = ∠ADC [∵ AD ⊥ BC]
AD = AD [उभयनिष्ठ]
⇒ ΔABD ≅ ΔACD [भुजा-कोण-भुजा सर्वांगसमता]
अतः AB = AC [सर्वागसम त्रिभुजों के संगत भाग]
इसलिए ΔABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है। [इति सिद्धम]

प्रश्न 3.
ABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है, जिसमें बराबर भुजाओं AC और AB पर क्रमशः शीर्षलंब BE और CF खींचे गए हैं (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि ये शीर्षलंब बराबर हैं।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 3
हल :
यहाँ पर दिया है BE ⊥ AC तथा CF ⊥ AB
ΔABE और ΔACF में,
∠AEB = ∠AFC [प्रत्येक = 90°]
∠A = ∠A [उभयनिष्ठ]
AB = AC [दिया है]
∴ ΔABE ≅ ΔACF [कोण-कोण-भुजा सर्वांगसमता]
या BE = CF [∵ सर्वागसम त्रिभुजों के संगत भाग]
अतः दिए गए शीर्षलंब बराबर हैं। [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2

प्रश्न 4.
ABC एक त्रिभुज है जिसमें AC और AB पर खींचे गए शीर्षलंब BE और CF बराबर हैं (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि
(i) ΔABE ≅ ΔACF
(ii) AB = AC अर्थात् ΔABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 4
हल :
(i) ΔABE तथा ΔACF में,
∠AEB = ∠AFC [प्रत्येक = 90°]
∠BAE = ∠CAF [उभयनिष्ठ]
BE = CF [दिया है]
∴ ΔABE ≅ ΔACF [कोण-कोण-भुजा सर्वांगसमता] [इति सिद्धम]

(ii) AB = AC
[∵ सर्वांगसम त्रिभुजों के संगत भाग]
अतः ΔABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है। [इति सिद्धम]

प्रश्न 5.
ABC और DBC समान आधार BC पर स्थित दो समद्विबाहु त्रिभुज हैं (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि ∠ABD = ∠ACD है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 5
यहाँ पर ΔABC में,
AB = AC [दिया है]
⇒ ∠ABC = ∠ACB [समान भुजाओं के सम्मुख कोण] …(i)
इसी प्रकार ΔBCD में,
BD = CD [दिया है]
∴ ∠DBC = ∠DCB [समान भुजाओं के सम्मुख कोण] …(ii)
समीकरण (i) व (ii) से,
∠ABC + ∠DBC = ∠ACB + ∠DCB
या ∠ABD = ∠ACD [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2

प्रश्न 6.
ABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है, जिसमें AB = AC है। भुजा BA बिंदु D तक इस प्रकार बढ़ाई गई है कि AD = AB है (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि ∠BCD एक समकोण है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 6
हल :
यहाँ पर ΔABC में,
AB = AC [दिया है]
∠ACB = ∠ABC ………..(i)
[समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
परंतु AB = AD [दिया है]
⇒ AD = AC [∵ AB = AC]
इसीलिए ΔADC में, AD = AC
⇒ ∠ACD = ∠ADC …(ii) [समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
समीकरण (i) व (ii) से,
∠ACB + ∠ACD = ∠ABC + ∠ADC
या ∠BCD = ∠ABC + ∠BDC
[∵ ∠ADC = ∠BDC]
दोनों ओर ∠BCD जोड़ने पर,
∠BCD + ∠BCD = ∠ABC + ∠BDC + ∠BCD
या 2∠BCD = 180° [त्रिभुजों के कोणों का योगफल]
या ∠BCD = 90°
अतः ∠BCD एक समकोण है। [इति सिद्धम]

प्रश्न 7.
ABC एक समकोण त्रिभुज है, जिसमें ∠A = 90° और AB = AC है। ∠B और ∠C ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 7
ΔABC में,
∠A = 90°
AB = AC
⇒ ∠B = ∠C [समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
हम जानते हैं कि, ∠A + ∠B + ∠C = 180°
या 90° + 2∠B = 180° [∵ ∠C = ∠B]
या 2∠B = 180° – 90° = 90°
या ∠B = \(\frac {90°}{2}\) = 45°
अतः ∠C = ∠B = 45° उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2

प्रश्न 8.
दर्शाइए कि किसी समबाहु त्रिभुज का प्रत्येक कोण 60° होता है। (B.S.E.H. March, 2018)
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 - 8
माना ΔABC एक समबाहु त्रिभुज है। अतः AB = AC = BC
अब क्योंकि
AB = AC
∠B = ∠C ………..(i) [समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
इसी प्रकार,
CB = CA
⇒ ∠A = ∠B ……….(ii) [समान भुजाओं के सम्मुख कोण]
समीकरण (i) व (ii) से,
हम जानते हैं कि,
∠A + ∠B + ∠ C = 180°
या ∠A + ∠A + ∠A = 180°
या 3∠A = 180° या ∠A = 60°
∴ ∠A = ∠B = ∠C = 60°
अतः समबाहु त्रिभुज का प्रत्येक कोण 60 होता है। [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.2 Read More »

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक एवं आर्थिक आयामों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक तथा सांस्कतिक आयामों का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के आर्थिक पहलू का वर्णन करें।
उत्तर:
वर्तमान समय में संचार क्रान्ति (Communication Revolution) ने समस्त संसार की दूरियां कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व एक ‘विश्व गांव’ (Global Village) में बदल गया है। विश्व में संचार क्रान्ति की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक नई विचारधारा का जन्म हुआ, जिसे वैश्वीकरण (Globalisation) कहा जाता है। वैश्वीकरण के आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पक्षों का वर्णन इस प्रकार है

1. आर्थिक पक्ष (Economic Manifestations):
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक ज़ोर पकड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण के अन्तर्गत ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व बैंक प्रायः इस प्रकार की नीतियां बनाते हैं, जो विश्व के अधिकांश देशों को प्रभावित करती हैं। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है। इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ है।

विश्व के अधिकांश देशों ने आयात से प्रतिबन्ध हटाकर अपने बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया है। वैश्वीकरण के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना अधिकांश निवेश विकासशील देशों में कर रही हैं। यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा। परन्तु वैश्वीकरण के आलोचक इससे सहमत नहीं हैं, उनके अनुसार विकसित देशों ने अपने वीज़ा नियमों को सरल बनाने की अपेक्षा अधिक कठोर बनाना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है, सभी लोगों को नहीं।

2. सांस्कृतिक पक्ष (Cultural Manifestations):
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। हम विश्व के किसी भी भाग में रहें, वैश्वीकरण के प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकते। वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते, क्या सोचते हैं, इन सभी पर वैश्वीकरण का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है। वैश्वीकरण से विश्व में सांस्कृतिक समरूपता का उदय होना शुरू हुआ है, परंतु यह कोई विश्व संस्कृति नहीं है बल्कि यूरोपीय देशों एवं अमेरिका द्वारा अपनी संस्कृति को विश्व में फैलाने का परिणाम है।

लोगों द्वारा पिज्जा एवं बर्गर खाना तथा नीली जीन्स पहनना अमेरिकी संस्कृति का प्रभाव ही है। विश्व के विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बल पर विकासशील एवं पिछड़े देशों पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि एक देश विशेष की संस्कृति के पतन होने का डर पैदा हो गया है। परन्तु वैश्वीकरण के समर्थकों का कहना है कि संस्कृति के पतन की आशंका नहीं है, बल्कि इससे एक मिश्रित संस्कृति का उदय होता है, जैसे कि आज भारत तथा कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं।

3. राजनीतिक पक्ष (Political Manifestations):
वैश्वीकरण का प्रभाव आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्षों से ही नहीं बल्कि राजनीतिक पक्ष से भी देखा जाना चाहिए। राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है। प्रथम यह कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमजोर हुए हैं। राज्यों के कार्य करने की क्षमता एवं क्षेत्र में कमी आई है।

वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य की धारणा धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही है क्योंकि राज्य कई कल्याणकारी कार्यों से अपना हाथ खींच रहा है। वर्तमान समय में पुन: न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा का विकास हो रहा है अर्थात् राज्य केवल कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यों तक ही अपने आपको सीमित रख रहा है।

दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य आज की विश्व राजनीति में प्रमुख स्थान रखता है। राज्य जिन कार्यों से अपने आपको अलग कर रहा है वह अपनी इच्छा से कर रहा है किसी के दबाव में नहीं। तीसरे यह कहा जा रहा है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं। तकनीक एवं सूचना के प्रभाव से राज्यों को अपने कर्मचारियों की मुश्किलों को जानकर उन्हें दूर करने का अवसर मिला है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 2.
भारत में तथा विश्वस्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध पर एक निबंध लिखें।
अथवा
भारत तथा विश्व स्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध पर एक विस्तृत नोट लिखें।
अथवा
‘विश्व स्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत वैश्वीकरण के अखाड़े के रूप में (India as an arena of Globalisation):
1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। 30 दिसम्बर, 1994 को भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतावादी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। 1 जनवरी,1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई और भारत इस पर हस्ताक्षर करके इसका सदस्य बन गया। समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने अनेक नियमों और औपचारिकताओं को समाप्त करना शुरू कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधा बनी हुई है।

इन सुधारों के परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों एवं बहु राष्ट्रीय कम्पनियों को भारत एक बहुत बड़ी मण्डी के रूप में नज़र आने लगा क्योंकि भारत की जनसंख्या बहुत अधिक है, तथा यहां पर सस्ता श्रम उपलब्ध है। परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों तथा बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में भारत में निवेश करने की होड़-सी लग गई। एनरॉन, कोका कोला, पेप्सी, पास्को, सोनी, पैनासोनिक, इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। चीन जैसे देश ने भी भारत में अपने उत्पाद पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज़ी से उतारे हैं। सभी देश एवं कम्पनियां भारतीय लोगों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं।

भारत में वैश्वीकरण के विरुद्ध संघर्ष (Struggle against Globalisation in India):
वैश्वीकरण के दौर में भारत द्वारा उदारीकरण एवं निजीकरण की प्रक्रिया को अपनाने से जहां कुछ लाभ हुआ है, वहीं कुछ हानि भी हुई है। उदाहरण के लिए वैश्वीकरण का लाभ कुछ थोड़े से लोगों को हुआ है। देश के सभी लोगों विशेषकर ग़रीबों तथा किसानों को इसका लाभ नहीं पहुंचा, इसी कारण समय-समय पर कुछ किसानों द्वारा आत्म-हत्या की खबरें आती रहती हैं।

इसलिए भारत में कुछ संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने वैश्वीकरण की धारणा का विरोध किया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ने वैश्वीकरण का विरोध करते हुए कहा कि, “भारत पर वैश्वीकरण का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कृषि, उद्योग एवं दस्तकारी की कीमत पर घरेलू बाजारों को विदेशी कम्पनियों के दोहन के लिए खोल दिया गया है।” भारत में कुछ स्वयंसेवी संगठनों तथा पर्यावरणवादियों द्वारा वैश्वीकरण का विरोध किया जा रहा है। क्योंकि वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण देश का पर्यावरण खराब हो रहा है, जो कि लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

विश्व स्तर पर वैश्वीकरण का प्रतिरोध (Resistance of Globalisation on world level):
भारत की तरह विश्व स्तर पर भी वैश्वीकरण का विरोध हुआ है। उदाहरण के लिए 1999 में सियाटल, 2001 में कत्तर तथा सन् 2001 में ब्राजील में वैश्वीकरण के विरुद्ध व्यापक रूप में विरोध प्रदर्शन हुए। वामपथियों का कहना है कि वैश्वीकरण पूंजीवाद की ही एक विशेष व्यवस्था है। दक्षिण पंथियों ने भी वैश्वीकरण के कारण राज्यों के कमजोर होने पर इसकी आलोचना की है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिये। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
“वैश्वीकरण” को परिभाषित करें। इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
अथवा
वैश्वीकरण क्या है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में संचार क्रान्ति (Communication Revolution):
ने समस्त संसार की दूरियां कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व एक ‘विश्व गांव’ (Global Village) में बदल गया है। विश्व में संचार क्रान्ति की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक नई विचारधारा का जन्म हुआ, जिसे वैश्वीकरण (Globalization) कहा जाता है। वैश्वीकरण और लोक प्रशासन का परस्पर गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।

वैश्वीकरण का अर्थ एवं परिभाषा-वैश्वीकरण, विश्वव्यापीकरण या भूमण्डलीकरण (Globalization) एक रोमांचक शब्द है जो अर्थव्यवस्था के बाजारीकरण से सम्बन्धित है। यह शब्द व्यापार के अवसरों की जीवन्तता एवं उसके विस्तार का द्योतक है। वैश्वीकरण की अवधारणा को विचारकों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है

1. एन्थनी गिडेन्स (Anthony Giddens):
के अनुसार वैश्वीकरण की अवधारणा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

  • वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्वव्यापी सम्बन्धों के प्रबलीकरण से है।
  • वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जो दूरस्थ प्रदेशों को इस प्रकार जोड़ देती है कि स्थानीय घटनाक्रम का प्रभाव मीलों दूर स्थित प्रदेशों की व्यवस्थाओं एवं घटनाओं पर पड़ता है।

2. राबर्टसन (Robertson):
के मतानुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

3. गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूंजी आंकड़ों तथा विचारों के गतिशील से ही सम्बन्धित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।” साधारण शब्दों में वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक संपदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान। वैश्वीकरण तभी सम्भव हो सकता है जब इस प्रकार के आदान-प्रदान में किसी देश द्वारा कोई अवरोध उत्पन्न न किया जाए। वैश्वीकरण के अंग-विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के चार प्रमुख अंग हैं

  • व्यापार अवरोधकों (Trade Barriers) को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना जिससे विभिन्न देशों में तकनीक (Technology) का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे विभिन्न देशों में पूंजी (Capital) का प्रवाह स्वतन्त्र रूप से हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे श्रम (Labour) का निर्बाध रूप से प्रवाह हो सके।

विशेष रूप से विकसित देशों के समर्थक विचारक वैश्वीकरण का अर्थ निर्बाध व्यापार-प्रवाह, निर्बाध पूंजी-प्रवाह और निर्बाध तकनीक प्रवाह तक सीमित कर देते हैं। परन्तु विकासशील देशों के समर्थक विचारकों का मानना है कि यदि समूचे विश्व को सार्वभौम ग्राम (Global Village) में परिभाषित करना है तो श्रम के निर्बाध-प्रवाह की उपेक्षा नहीं की जा सकती। पिछड़े और विकासशील देशों में श्रम की अधिकता है। अत: इनमें श्रम गतिशीलता को मान्यता देना आवश्यक है।

वैश्वीकरण की विशेषताएं-वैश्वीकरण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वैश्वीकरण के कारण यातायात एवं संचार के साधनों का विकास हुआ है, जिससे भूगौलिक दूरियां समाप्त हो गई हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण श्रम बाज़ार भी विश्वव्यापी हो गया है, क्योंकि अब बहुत अधिक मात्रा में लोग रोज़गार के लिए दूसरे देश में जाते हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण इलैक्ट्रोनिक मीडिया का न्यायक प्रचार एवं प्रसार हुआ है, जिससे एक वैश्विक संस्कृति की स्थापना हुई है।
  • वैश्वीकरण के कारण शिक्षा का भी वैश्विक स्वरूप उभर कर सामने आया है। वैश्वीकरण के अनेक विकासशील देशों के शिक्षा कार्यक्रम भी विश्व स्तरीय हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण वर्तमान समय में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रोज़गार प्रदान कर रही हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण पेशेवरों (Professionals) की आवाजाही बहुत अधिक हो गई है।
  • श्रम बाजार के कारण लोगों को रोजगार के लिए दूसरे देशों में भेजने के लिए जगह-जगह पर ब्रोकर एवं एजेन्ट सक्रिय हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धन का आदान-प्रदान या हस्तान्तर आसान हो गया है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष और विपक्ष में चार-चार तर्क दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के सकारात्मक पक्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के नकारात्मक पक्ष का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के पक्ष व विपक्ष में कोई चार-चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए लिए प्रश्न नं0 3 देखें। पक्ष में तर्क-(सकारात्मक पक्ष)

(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

(3) यद्यपि वैश्वीकरण की प्रक्रिया में कुछ दोष हैं, लेकिन इससे यह प्रक्रिया व्यर्थ नहीं हो जाती। वास्तव में वैश्वीकरण की प्रक्रिया अभी प्रारम्भिक दौर में है। जब एक बार यह प्रक्रिया पूर्ण होकर सच्चे अर्थों में विश्वव्यापी (Global) बन जाएगी तो यह समूचे विश्व के निरन्तर विकास का साधन बनेगी।

(4) विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) को वैश्वीकरण के एक उपकरण के रूप में समझना चाहिए। यदि इस संगठन द्वारा विश्व व्यापार को निष्पक्ष रूप से नियमित किया जाए तो वैश्वीकरण की प्रक्रिया अत्यन्त लाभदायक हो सकती है।

(5) पिछड़े देशों में तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। लेकिन वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।

(6) वैश्वीकरण ने विश्वव्यापी सूचना क्रान्ति को जन्म दिया है। इससे समाज का प्रत्येक वर्ग जुड़ने लगा है। इससे सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिला है।

(7) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फैलाव से रोजगार की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। साथ ही रोज़गार की गतिशीलता में भारी वृद्धि हुई है।

(8) वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने उदारवादी विचारों के प्रसार द्वारा शासन व्यवस्थाओं पर गहन प्रभाव डाला है। चीन जैसा कट्टर साम्यवादी देश भी उदारवाद की प्रक्रिया से प्रभावित हुआ है।

विपक्ष में तर्क (नकारात्मक पक्ष)-वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

(1) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का समर्थन विकसित देश विशेषतया अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जापान, जर्मनी आदि कर रहे हैं। आलोचकों के अनुसार विकसित देशों को अपना तैयार माल बेचने के लिए बड़े-बड़े बाजारों की आवश्यकता है। ये बाज़ार वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त हो सकते हैं।

(2) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

(3) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।

(4) आलोचकों का मत है कि वैश्वीकरण स्वाभाविक रूप से स्वीकृत नहीं बल्कि एक थोपी हुई प्रक्रिया है।

(5) यह अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जो लोकतान्त्रिक पर्दे में चलाई जाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ समाज का उच्च सुविधा सम्पन्न वर्ग उठा रहा है।

(6) सरकार द्वारा निरन्तर सब्सिडी एवं अन्य सहायता राशि में कटौती की जा रही है। इसकी प्रत्यक्ष मार निर्धन वर्ग पर पड़ रही है।

(7) वैश्वीकरण ने एक सांस्कृतिक संकट खड़ा कर दिया है। वैश्वीकरण में बड़ी तेज़ी से उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।

(8) आलोचकों का विचार है कि वैश्वीकरण का शिक्षा व्यवस्था पर भी गम्भीर प्रभाव पड़ा है।

वैश्वीकरण के कारण अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हो गया है जिससे अन्य भाषाओं पर प्रभाव पड़ा है। शिक्षा का तीव्र गति से वाणिज्यीकरण (Commercialization) हो रहा है और बाज़ारोन्मुखी शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था में मूल्यों एवं नैतिकता के स्तर में गिरावट आई है। निष्कर्ष-वैश्वीकरण के पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्कों के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वैश्वीकरण को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

समस्या यह है कि वैश्वीकरण के नाम पर कुछ सम्पन्न देशों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। विकसित देश अपनी अत्याधुनिक तकनीक, पूंजी व व्यापारिक स्थिति के कारण वैश्वीकरण की प्रक्रिया को दोषपूर्ण बना रहे हैं। अभी तीसरी दुनिया के देशों में वैश्वीकरण की प्रक्रिया ठीक से लागू नहीं हुई है। अतः अभी से इसका मूल्यांकन करना उचित भी नहीं है। आज आवश्यकता इस बात की है कि वैश्वीकरण के नाम पर की जाने वाली संकीर्ण राजनीति को रोका जाए और किसी प्रमुख संस्था द्वारा इस प्रक्रिया को निष्पक्ष एवं बिना किसी दबाव के निर्बाध रूप से संचालित किया जाए।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण या भू-मण्डलीयकरण का अर्थ बताएं। भारत द्वारा भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के मुख्य लाभ बताएं।
उत्तर:
वैश्वीकरण या भू-मण्डलीयकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 3 देखें। भारत द्वारा भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के लाभ भारत द्वारा भूमण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए हैं

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत की आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत में बुनियादी एवं ढांचागत सुविधाओं का विकास हुआ है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को आधुनिकतम तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में विदेशी आर्थिक निवेश बढ़ा है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण की अवधारणा के उदय के विभिन्न कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
“वैश्वीकरण”के उदय के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के उद्भव के निम्नलिखित कारण हैं

  • विश्व में बदलते हुए परिवेश में राष्ट्रों में परस्पर अन्तर्निभरता बढ़ी है, जिसके कारण वैश्वीकरण का विकास हुआ।
  • विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक पर बढ़ती हुई निर्भरता को कम करने के लिए वैश्वीकरण का उद्भव हुआ।
  • विश्व में वर्तमान समय में हो रहे निरन्तर विकास के एक साधन की आवश्यकता थी, जिसे वैश्वीकरण ने पूरा किया है।
  • विकासशील एवं पिछड़े देशों को उन्नत किस्म के बीज और औजार देने के लिए भी वैश्वीकरण का उद्भव हुआ है।
  • विश्व व्यापी सूचना क्रान्ति ने भी वैश्वीकरण के उदय में सहयोग दिया है।
  • वैश्वीकरण के उदय का एक अन्य कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का फैलाव है।
  • विश्व में लगातार उदारवादी एवं प्रजातान्त्रिक विचारों के फैलाव ने भी वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 7.
भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण के प्रति भारतीय दृष्टिकोण क्या है ?
अथवा
वैश्वीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारत एक विकासशील देश है। अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अपनाए हुए अधिक समय नहीं हुआ। 30 दिसम्बर, 1994 को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनकर भारत ने आर्थिक उदारीकरण में प्रवेश किया और इसके बाद इस प्रक्रिया को जारी रखा। लेकिन वैश्वीकरण के प्रभावों को इतनी अल्पावधि में स्पष्ट करना अत्यन्त कठिन है।

इसका कारण यह है कि भारत सहित सभी देशों में आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम एक समान लागू नहीं किए गए हैं। सभी देशों की परिस्थितियां एक जैसी नहीं हैं और आर्थिक सुधारों की उपलब्धियों पर सर्वत्र सहमति नहीं है। भारतीय सन्दर्भ में वैश्वीकरण के प्रभाव के सम्बन्ध में तीन विचारधाराएं देखी जा सकती हैं।

प्रथम कुछ कट्टरपंथियों का मत है कि वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में न केवल आर्थिक क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित कर रही हैं, बल्कि यहां के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में भी दखल दे रही हैं। अतः इन कम्पनियों के चंगुल में फंस कर भारत पुनः गुलाम न बन जाए, इसलिए वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को दूर रहना चाहिए।

दूसरा, सुधारवादी विद्वानों के अनुसार भारत में फैली व्यापक गरीबी, निरक्षरता और सामाजिक पिछड़ेपन को तब तक दूर नहीं किया जा सकता जब तक भारत भी स्वयं को विश्व अर्थव्यवस्था से नहीं जोड़ता। यदि भारत स्वयं को वैश्वीकरण की प्रक्रिया से नहीं जोड़ता तो उसकी आर्थिक-समाज की कल्पना कभी पूरी नहीं होगी।

इसके अलावा तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में शामिल होने के अलावा भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय तकनीक, सहयोग व प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाने के लिए भारत को वैश्वीकरण की धारा में प्रवाहित होना होगा। तीसरा विचार जो सार्थक एवं प्रासंगिक है, यह है कि भारत को वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अंगीकार करते हुए घरेलू बाज़ार, सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था व राजनीतिक वातावरण के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण आदि को ध्यान में रखना चाहिए। भारत को वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उसकी एक-तिहाई आबादी अभी निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है।

आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय भी भारत का लक्ष्य होना चाहिए। इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि कहीं विकसित देश भारत को एक विशाल मंडी के रूप में इस्तेमाल न करें। यहां के लघु और कुटीर उद्योग को बढ़ाना भी सरकार का लक्ष्य होना चाहिए। भारत ने 1980 के प्रारम्भिक दौर में ही तकनीकी विकास के लिए वैश्वीकरण की प्रक्रिया के प्रति अपना सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया था।

दिवंगत प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी देश के वैधानिक एवं तकनीकी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी तकनीक के पक्षधर थे। जैसे-जैसे विश्व व्यवस्था में बदलाव आता गया भारत ने भी स्वयं को उदारीकरण और वैश्वीकरण के साथ जोड़ लिया। 1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति अपनाई जो इस बात का प्रमाण है कि भारत वैश्वीकरण की प्रक्रिया से अलग नहीं हो सकता। नई आर्थिक नीति भारत के उदारीकरण और वैश्वीकरण के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है। नई आर्थिक नीति मुख्यतया निम्न विषयों पर बल देती है

1. उद्योग नीति में सुधार (Trade Policy Reforms):
1991 से नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक दक्ष एवं गतिशील तथा प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए कुछ उद्योगों को छोड़कर लगभग सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है।

2. विदेशी निवेश (Foreign Investment):
भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज़ करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश की बिना रोक-टोक और अफसरशाही के नियन्त्रणों के बिना अनुमति दी जाएगी। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

3. द्योगिकी समझौते (Foreign Technology Agreements):
भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है। सरकार ने विदेशी तकनीशियनों की सेवाओं को भाड़े पर लेने की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर दिया है।

4. सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector):
सार्वजनिक क्षेत्र ने भारत के आर्थिक विकास विशेषतया आधारभूत एवं ढांचागत उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नई औद्योगिक नीति में यह कहा गया है कि अब समय आ गया है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में नया दृष्टिकोण अपनाए। इन उद्योगों को अधिक विकासोन्मुखी बनाने तथा तकनीकी रूप से गतिशील बनाने के उपाय किए जाने चाहिएं। नई नीति में इन क्षेत्रों की इजारेदारी को मात्र 8 क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है। नई नीति के अन्तर्गत अब वे क्षेत्र भी जो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे, निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गए हैं।

5. एकाधिकार तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (Monopolistic and Restrictions Trade Practices Act-MRTP):
नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत एकाधिकार तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम लागू कर दिया गया है। इसके अन्तर्गत बड़ी कम्पनियों और औद्योगिक घरानों पर से अधिकतम पूंजी की सीमा समाप्त कर दी गई है। अब औद्योगिक घरानों व कम्पनियों को नए उपक्रम लगाने, किसी उद्योग की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, कम्पनियों के विलय आदि के बारे में सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।

6. विनिमय दर (Exchange Rate):
1992-93 से भारतीय रुपए को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

7. वित्तीय सुधार (Financial Reforms):
निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी संयुक्त उपक्रमों को भी वित्तीय मामलों में अपना कार्य बढ़ाने की स्वीकृति प्रदान की गई है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
अथवा
वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिए तथा इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है ? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 3 देखें। वैश्वीकरण का उद्देश्य

  • वैश्विक स्तर पर पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक स्तर पर श्रम का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक स्तर पर तकनीक एवं प्रौद्योगिकी का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • विश्व को एक गांव के रूप में परिवर्तित करना।
  • संचार साधनों का विकास करके वैश्विक दूरी को कम करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में संचार क्रान्ति ने समूचे विश्व की दूरियाँ कम कर दी और समस्त संसार को ‘सार्वभौमिक ग्राम’ (Global Village) में परिवर्तित कर दिया। इस युग में एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ जिसे वैश्वीकरण (Globalisation) कहा जाता है। यद्यपि भारत इस विचारधारा से अनभिज्ञ नहीं है क्योंकि हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को मान्यता प्रदान करती है, लेकिन आधुनिक युग में वैश्वीकरण का विशेष महत्त्व है।

वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक संपदा का एक देश से दूसरे के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान । वैश्वीकरण तभी सम्भव हो सकता है, जब इस प्रकार के आदान-प्रदान में किसी देश द्वारा कोई अवरोध उत्पन्न न किया जाए।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण को परिभाषित करें।
उत्तर:
1. एन्थनी गिडेन्स (Anthony Giddens) के अनुसार, “वैश्वीकरण की अवधारणा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

  • वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्वव्यापी सम्बन्धों के प्रबलीकरण से है।
  •  वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जो दूरस्थ प्रदेशों को इस प्रकार जोड़ देती है कि स्थानीय घटनाक्रम का प्रभाव मीलों दूर स्थित प्रदेशों की व्यवस्थाओं एवं घटनाओं पर पड़ता है।

2. राबर्टसन (Robertson) के मतानुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

3. गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषत: लोगों, वस्तुओं, पूंजी आंकड़ों तथा विचारों के गतिशीलन से ही सम्बन्धित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।”

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की कोई चार प्रमुख विशेषताएं लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वैश्वीकरण के कारण यातायात एवं संचार के साधनों का विकास हुआ है, जिससे भूगौलिक दूरियां समाप्त हो गई हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण श्रम बाज़ार भी विश्वव्यापी हो गया है, क्योंकि अब बहुत अधिक मात्रा में लोग रोज़गार के लिए दूसरे देश में जाते हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण इलेक्ट्रोनिक मीडिया का न्यायिक प्रचार एवं प्रसार हुआ है, जिससे एक वैश्विक संस्कृति की स्थापना हुई है।
  • वैश्वीकरण के कारण शिक्षा का भी वैश्विक स्वरूप उभर कर सामने आया है। वैश्वीकरण के अनेक विकासशील देशों के शिक्षा कार्यक्रम भी विश्व स्तरीय हो गए हैं।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से जुड़ने के अलावा आज विकासशील राष्ट्रों के पास विकास का कोई अन्य विकल्प नहीं है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

(3) वैश्वीकरण की प्रक्रिया के द्वारा लगातार स्थायी रूप से चलने वाला विकास (Sustainable Development) प्राप्त किया जा सकता है।

(4) पिछड़े देशों में तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

(3) आलोचकों का मत है कि वैश्वीकरण स्वाभाविक रूप से स्वीकृत नहीं बल्कि एक थोपी हुई प्रक्रिया है। वस्तुतः वैश्वीकरण व्यापारोन्मुखी प्रक्रिया है, जो व्यापारिक उद्देश्यों के लिए कार्य करती है। इनमें जन-कल्याण जैसे उद्देश्य गौण होकर रह गए हैं।

(4) यह अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जो लोकतान्त्रिक पर्दे में चलाई जाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ समाज का उच्च सुविधा सम्पन्न वर्ग नहीं उठा रहा है। इसने गैर-योजनाबद्ध प्रभावों द्वारा, श्रम-वेतनों को सीमित रख कर और कल्याणकारी राज्य की भूमिका सीमित करके लोकतन्त्र को कमजोर बना दिया है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के प्रति भारत की प्रतिक्रिया स्वरूप उठाए गए किन्हीं चार कदमों का वर्णन करें।
उत्तर:

1. उद्योग नीति में सुधार-1991 से नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक दक्ष एवं गतिशील तथा प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए कुछ उद्योगों को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है।

2. विदेशी निवेश-भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज़ करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश की बिना रोक-टोक और अफसरशाही के नियन्त्रणों के बिना अनुमति दी जाएगी। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

3. विदेशी प्रौद्योगिकी समझौते-भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है। सरकार ने विदेशी तकनीशियनों को सेवाओं को भाड़े पर लेने की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर दिया है।

4. विनिमय दर-1992-93 से भारतीय रुपये को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के परिणामों की प्रकृति की बहस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण में परिणामों की प्रकृति पर बहस का आधार यह है कि वैश्वीकरण की धारणा को अपनाने से एक देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा है या हानि। दूसरे विश्व के अधिकांश लोगों को इससे लाभ पहुंचा है, या नहीं। वैश्वीकरण के आलोचकों का यह मानना है कि व्यापक संदर्भ में वैश्वीकरण के लाभ कम हैं, जबकि दोष अधिक हैं।

वैश्वीकरण के कारण कल्याणकारी राज्य की धारणा कमजोर पड़ रही है जिससे अधिकांश लोगों को हानि हो रही है। वृद्धों तथा ग़रीबों को इससे सर्वाधिक हानि हुई है। वैश्वीकरण के कारण प्रवासन की प्रक्रिया में भी तेजी आई है, जिससे प्रवासियों के मानवाधिकारों एवं सम्बन्धित देश की सुरक्षा पर भी बहस होनी शुरू हो गई है।

वैश्वीकरण की धारणा के अन्तर्गत अपनाई गई मुक्त व्यापार व्यवस्था से केवल अमीरों को ही लाभ पहुंचा है, ग़रीबों को नहीं। आलोचक वैश्वीकरण को अमेरिकीकरण भी कहते हैं, क्योंकि वैश्वीकरण को सबसे अधिक बढ़ावा अमेरिका से ही मिला है तथा इसके चलते सर्वाधिक लाभ भी अमेरिका को ही हुआ। आलोचकों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन अमेरिकी दिशा-निर्देशों के अनुसार चलकर उसे लाभ पहुंचाते हैं, जबकि इसके नकारात्मक प्रभाव अधिकांश विकासशील देशों को भुगतने पड़ते हैं। अत: वैश्वीकरण के परिणामों की प्रकृति अधिकांशतः नकारात्मक ही रही है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण आशानुरूप सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है। कई उदाहरणों से यह बात बार-बार स्पष्ट हो रही है, कि वैश्वीकरण से केवल अमीर लोगों या देशों को लाभ पहुंच रहा है, विशेषकर अमेरिका को। अधिकांश विकासशील देशों को वैश्वीकरण से हानि ही हुई है। इसी कारण वैश्वीकरण के विरोध में आन्दोलन होने भी शुरू हो गए हैं।

जो लोग वैश्वीकरण का विरोध कर रहे हैं, उन्हें प्रायः एन्टी ग्लोबलाइजेशन कहा जाता है। परन्तु अधिकांश वैश्वीकरण विरोधी स्वयं ही यह शब्द स्वीकार नहीं करते बल्कि इसके स्थान पर ग्लोबल जस्टिस ‘द मूवमैंट ऑफ़ मूवमेन्टस’ तथा ‘द अल्टर ग्लोबलाइज़ेशन शब्द प्रयोग करना उचित समझते हैं।

वैश्वीकरण के विरोध में वस्तुत: 20वीं शताब्दी के अन्त में आन्दोलनों की शुरुआत हुई तथा धीरे-धीरे यह आन्दोलन अधिक तेज़ हो गए। 1999 में ‘सियाटल’ में हुए विश्व व्यापार संगठन के मन्त्री स्तरीय सम्मेलन में वैश्वीकरण के विरोध में तीव्र आन्दोलन हुए। आन्दोलनकारी वैश्वीकरण के प्रभावों को लोगों के लिए तथा पर्यावरण के लिए हानिकारक मानकर इसके विरुद्ध आन्दोलन चलाते हैं।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण के राजनीतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमजोर हुए हैं। वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य की धारणा धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही है। वर्तमान समय में पुन: न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा का विकास हो रहा है। दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य जिन कार्यों से अपने आपको अलग कर रहा है, वह अपनी इच्छा से कर रहा है, किसी के दबाव में नहीं।

तीसरे यह कहा जा रहा है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं। तकनीक एवं सूचना के प्रभाव से राज्यों को अपनी कमजोरियों को जानकर उन्हें दूर करने का अवसर मिला है।

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक जोर पकड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण के अन्तर्गत ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व बैंक प्रायः इस प्रकार की नीतियां बनाते हैं जो विश्व के अधिकांश देशों को प्रभावित करती हैं। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है।

इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ है। विश्व के अधिकांश देशों ने आयात से प्रतिबन्ध हटाकर अपने बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया है। वैश्वीकरण के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना अधिकांश निवेश विकासशील देशों में कर रही हैं।

यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा, परन्तु वैश्वीकरण के आलोचक इससे सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है सभी लोगों को नहीं।

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। हम विश्व के किसी भी भाग में रहें, वैश्वीकरण के प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकते । वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते हैं, क्या सोचते हैं, इन सभी पर वैश्वीकरण का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है। वैश्वीकरण से विश्व में सांस्कृतिक समरूपता का उदय होना शुरू हुआ है, परन्तु यह कोई विश्व संस्कृति नहीं है बल्कि यूरोपीय देशों एव अमेरिका द्वारा अपनी संस्कृति को विश्व में फैलाने का परिणाम है।

लोगों द्वारा पिज्जा एवं बर्गर खाना तथा नीली जीन्स पहनना अमेरिका की. संस्कृति का ही प्रभाव है। विश्व के विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बल पर विकासशील एवं पिछड़े देशों पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि एक देश विशेष की संस्कृति के पतन होने का डर पैदा हो गया है। परन्तु वैश्वीकरण के समर्थकों का कहना है कि संस्कृति के पतन की आशंका नहीं है बल्कि इससे एक मिश्रित संस्कृति का उदय होता है जैसे कि आज भारत तथा कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं। ..

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण की कोई दो आलोचनाएं लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की दो आलोचनाएं निम्नलिखित हैं

(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण के कोई चार नकारात्मक वास्तविक उदाहरण बताएं।
उत्तर:

  • फसल के खराब होने पर कुछ किसानों ने आत्महत्या कर ली।
  • छात्राओं द्वारा पश्चिमी वेशभषा वाले वस्त्र पहनने के कारण कछ संगठनों ने उन्हें धमकी दी।
  • बालीवुड (भारत) के कई निर्माताओं ने हालीवुड (अमेरिका) की फ़िल्मों की नकल की है।
  • भारत में दुकानदारों को यह भय है कि यदि बड़ी कम्पनियों ने अपने उत्पाद यहां बेचने शुरू कर दिये तो उनकी दुकानदारी समाप्त हो जायेगी.!

प्रश्न 14.
एक कल्याणकारी राज्य में कौन-कौन सी विशेषताएं होनी चाहिए, किन्हीं चार का वर्णन करें।
उत्तर:

  • एक कल्याणकारी राज्य को लोगों के कल्याण के लिए सभी प्रकार के कार्य करने चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों के कार्यों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानसिक विकास में सहयोग देना चाहिए।

प्रश्न 15.
वैश्वीकरण के कोई चार महत्त्वपूर्ण अंग लिखें।
उत्तर:
विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के चार प्रमुख अंग हैं

  • व्यापार अवरोधकों (Trade Barriers) को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना जिससे विभिन्न देशों में तकनीक (Technology) का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे विभिन्न देशों में पूंजी (Capital) का प्रवाह स्वतन्त्र रूप से हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे श्रम (Labour) का निर्बाध रूप से प्रवाह हो सके।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को प्राप्त होने वाले कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत की आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत में बुनियादी एवं ढांचागत सुविधाओं का विकास हुआ है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को आधुनिकतम तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में विदेशी आर्थिक निवेश बढ़ा है।

प्रश्न 17.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को होने वाली कोई चार हानियां बताएं।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत के अपने उद्योगों एवं छोटे व्यापारियों को हानि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में निर्धनता एवं बेरोज़गारी बढ़ी है।
  • छात्र-वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत ने कई क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने सरकार के राजनीतिक एवं आर्थिक निर्णयों को प्रभावित किया है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण क्या है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण (Globalisation) से अभिप्राय है किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक सम्पदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ निर्बाध रूप से आदान-प्रदान । वैश्वीकरण के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संचालन निर्बाध रूप से होता है जो एक सर्वसहमत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर:
1. रोबर्टसन के अनुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

2. गाय ब्रायंबंटी के अनुसार, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूंजी, आंकड़ों तथा विचारों के गतिशीलन से ही सम्बन्धित नहीं है, बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।”

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के किन्हीं दो अंगों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • व्यापार अवरोध को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना, जिससे विभिन्न देशों में तकनीक का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष में कोई दो तर्क दें।
उत्तर:
(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से जुड़ने के अलावा आज विकासशील राष्ट्रों के पास विकास का कोई अन्य विकल्प नहीं है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के विपक्ष में कोई दो तर्क दो।
उत्तर:
(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहँच पाया है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में ग़रीब देशों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के राजनीतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है। प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमज़ोर हुए हैं। दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य अपनी इच्छानुसार कार्य को करने या न करने का निर्णय लेते हैं। तीसरे यह कि आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक जोर पकड़ा है। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रयह बढ़ा है। इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ। यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा, परन्तु आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है, सभी को नहीं।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते हैं तथा क्या सोचते हैं ? इन सभी पर वैश्वीकरण का साफ़ प्रभाव देखा जा सकता है। वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण एक देश विशेष की संस्कृति के पतन का खतरा हो गया है, परन्तु समर्थकों के अनुसार इससे मिश्रित संस्कृति का उदय होता है, उदाहरण के लिए भारत एवं कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 9.
भारत की वैश्वीकरण के अखाड़े के रूप में व्याख्या करें।
उत्तर:
1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत, वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। आर्थिक प्रभावों के परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों को भारत एक बड़ी.मण्डी के रूप में नजर आने लगा। अत: अनेक विकसित देशों तथा बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में भारत में निवेश करने की होड़-सी लग गई। एनरॉन, कोका कोला, पेप्सी, सोनी तथा पैनासोनिक इत्यादि इसके उदाहरण हैं। चीन जैसे देश ने भी भारत में अपने उत्पाद पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज़ी से उतारे हैं। अतः सभी देश एवं कम्पनियां भारतीय लोगों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं।

प्रश्न 10.
भारत में वैश्वीकरण के विरुद्ध संघर्ष पर नोट लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ कुछ थोड़े-से लोगों को हुआ, देश के सभी लोगों विशेषकर ग़रीबों तथा किसानों को इसका लाभ नहीं पहुंचा, इसी कारण समय-समय पर कुछ किसानों द्वारा आत्महत्या की ख़बरें आती रहती हैं। इसलिए भारत में कुछ संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने वैश्वीकरण की धारणा का विरोध किया है। भारत में विरोध करने वालों में वामपन्थी दल, पर्यावरणवादी एवं कुछ स्वयंसेवी संगठन शामिल हैं।

प्रश्न 11.
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण का अर्थ यह है कि वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण के कोई दो आर्थिक प्रभाव लिखिए।
उत्तर:

  • विकास शील देशों की आर्थिक व्यवस्था विकसित देशों पर निर्भर हो गई है।
  • वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण एक बहु आयामी धारणा है। व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण को एक बहु आयामी धारणा कहा जा सकता हैं क्योंकि यह कई पक्षों से सम्बन्धित है, जैसे पक्ष, आर्थिक पक्ष एवं सांस्कृतिक पक्ष । वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक कारण नहीं है। यह कुछ समाजों को शेष की अपेक्षा और समाज के एक भाग को शेष हिस्सों की अपेक्षा अधिक प्रभावित करता है।

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण की लहर के कारण राज्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण की लहर के कारण राज्य कमज़ोर हुए हैं, या शक्तिशाली इसके पक्ष में दो तर्क दिये जाते हैं। वैश्वीकरण प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमज़ोर हए हैं। दूसरा मत यह है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हए हैं। क्योंकि इसके कारण राज्यों को आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।

प्रश्न 15.
भारत में नई आर्थिक नीति कब और क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
भारत में नई आर्थिक नीति जुलाई, 1991 में लागू की गई, ताकि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में एक प्रतिस्पर्धात्मक राष्ट्र के रूप में विकसित किया जा सके।

प्रश्न 16.
राज्यों पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • बहराष्ट्रीय कम्पनियों ने राज्यों में अधिक-से-अधिक निवेश करके राज्यों की आर्थिक शक्ति को कम किया है।
  • बहराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपनी आर्थिक शक्ति के कारण राज्यों के राजनीतिक निर्णयों को भी प्रभावित किया है।

प्रश्न 17.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ में कौन-कौन वैश्वीकरण का विरोध करते हैं ?
उत्तर:
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ के अन्तर्गत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण के कारण व्यापारिक गतिविधियों पर पड़ने वाले कोई दो प्रभाव लिखो।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों ने मुक्त बाज़ार व्यवस्था को अपनाया है।
  • वैश्वीकरण के कारण राज्यों की संरक्षणवादी नीति समाप्त हो गई है तथा विश्व व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है।

प्रश्न 19.
विश्व के मैक्डोनॉल्डीकरण से आप क्या समझते हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व के मैक्डोनॉल्डीकरण का अर्थ यह है कि विश्व पर कुछ शक्तिशाली विशेषकर अमेरिका का सांस्कृतिक प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। विश्व में बर्गर तथा नीली जीन्स की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। मैक्डोनॉल्डीकरण के अन्तर्गत विश्व वैसा ही बनता जा रहा है, जैसा अमेरिकी सांस्कृतिक जीवन शैली बनाना चाहती है।

प्रश्न 20.
वैश्वीकरण को पुन:पनिवेशीकरण क्यों कहा जाता है ? व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण विकासशील एवं कमज़ोर राज्यों पर विकसित एवं धनी राज्यों का राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां विकासशील देशों में विकसित देशों के लाभ कार्य कर रही हैं तथा विकासशील देशों को आर्थिक तौर पर अपने अधीन करती जा रही हैं। इसीलिए वैश्वीकरण को पुनर्डपनिवेशीकरण भी कहा जाता है।

प्रश्न 21.
आर्थिक वैश्वीकरण के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों की आर्थिक व्यवस्था विकसित देशों पर निर्भर हो गई है।
  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण विश्व में निर्धनता एवं बेरोज़गारी बढ़ी है।

प्रश्न 22.
भारत में संरक्षणवाद के कोई दो नकारात्मक परिणाम लिखें।।
उत्तर:

  • भारत में संरक्षणवाद की नीति के कारण आर्थिक विकास की दर बहुत कम रही है।
  • संरक्षणवादी नीति के कारण भारत में सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी विकास नहीं हो पाया।

प्रश्न 23.
भारत में वैश्वीकरण के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के कारण भारत में बेरोज़गारी बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारतीय वस्तुओं की मांग कम हुई है।

प्रश्न 24.
वैश्वीकरण के कितने पक्ष हैं ?
उत्तर:
वैश्वीकरण के मुख्यतः तीन पक्ष हैं-

  • आर्थिक पक्ष
  • राजनीतिक पक्ष
  • सांस्कृतिक पक्ष।

प्रश्न 25.
“वर्ल्ड सोशल-फोरम” विश्व व्यापी सामाजिक मंच क्या है?
अथवा
वर्ल्ड सोशल फोरम क्या है ?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करने वाला मंच है। इसकी पहली बैठक 2001 में ब्राजील में हुई थी। वर्ल्ड सोशल फोरम के अंतर्गत एकत्र होकर मानवाधिकार कार्यकर्ता, मज़दूर, युवक, महिलाएं तथा पर्यावरणवादी नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 26.
“सांस्कृतिक समरूपता” का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
लोगों के खाने-पीने एवं पहरावे में समानता को सांस्कृतिक समरूपता कहते हैं। वैश्वीकरण के युग में किसी सांस्कृतिक समरूपता का उदय नहीं हुआ है, बल्कि पश्चिमी संस्कृति को शेष विश्व पर थोपा जा रहा है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. वर्तमान समय में निम्नलिखित विचारधारा विश्व में पाई जाती है
(A) नाजीवादी
(B) फ़ासीवादी
(C) वैश्वीकरण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) वैश्वीकरण।

2. वर्तमान में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का स्थान किस अवधारणा ने ले लिया है ?
(A) अहस्तक्षेपी राज्य
(B) पूंजीवादी राज्य
(C) समाजवादी राज्य
(D) सर्वाधिकारवादी राज्य।
उत्तर:
(B) पूंजीवादी राज्य।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

3. भारत में वैश्वीकरण का आरम्भ कब से माना जाता है
(A) 1995
(B) 1991
(C) 1989
(D) 1987.
उत्तर:
(B)1991.

4. वैश्वीकरण के प्रभाव हैं
(A) राजनीतिक
(B) आर्थिक
(C) सांस्कृतिक
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

5. 1999 में विश्व व्यापार संगठन की मन्त्री स्तरीय बैठक कहां हुई ?
(A) नई दिल्ली
(B) टोकियो
(C) सियाटल
(D) लन्दन।
उत्तर:
(C) सियाटल।

6. भारत में वैश्वीकरण का समय-समय पर किसने विरोध किया है ?
(A) वामपन्थियों ने
(B) स्वयंसेवी संगठनों ने
(C) पर्यावरणवादियों ने
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

7. यह किसका कथन है-“वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक सम्बन्ध अपेक्षाकृत दूरी रहित एवं सीमा रहित बन जाते हैं।”
(A) मारगेन्थो
(B) डेविड मूर
(C) वैपलिस एवं स्मिथ
(D) पं० नेहरू।
उत्तर:
(C) वैपलिस एवं स्मिथ।

8. वैश्वीकरण का कारण है
(A) शीत युद्ध का अन्त
(B) सोवियत संघ का पतन
(C) सूचना क्रांति
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

9. वैश्वीकरण के पक्ष में कौन-सा तर्क दिया जा सकता है ?
(A) वैश्वीकरण के द्वारा राष्ट्र एक-दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं
(B) वैश्वीकरण राष्ट्रों को अधिक-से-अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है
(C) वैश्वीकरण संघर्ष एवं युद्ध की सम्भावनाओं को कम करता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

10. वैश्वीकरण के विपक्ष में कौन-सा तर्क दिया जा सकता है ?
(A) वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है
(B) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ साधारण जनता तक नहीं पहुँच सकता है
(C) वैश्वीकरण एक स्वीकृत नहीं, बल्कि थोपी गई प्रक्रिया है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

11. भारत द्वारा वैश्वीकरण को अपनाया गया
(A) वर्ष 1992 में
(B) वर्ष 1993 में
(C) वर्ष 1991 में
(D) वर्ष 1994 में।
उत्तर:
(C) वर्ष 1991 में।

12. वैश्वीकरण का उद्देश्य है
(A) पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह
(B) श्रम का स्वतंत्र प्रवाह
(C) तकनीक का स्वतंत्र प्रवाह
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

13. वैश्वीकरण (भू-मण्डलीकरण) के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति को नाम दिया गया है
(A) समाजवाद
(B) उदारवाद
(C) नया समाजवाद
(D) नई आर्थिक नीति।
उत्तर:
(D) नई आर्थिक नीति।

14. वैश्वीकरण के युग में कौन-सा संगठन विश्व के देशों के लिए व्यापक नियमावली बनाता है ?
(A) विश्व व्यापार संगठन
(B) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(C) सामाजिक एवं आर्थिक परिषद्
(D) विश्व बैंक
उत्तर:
(A) विश्व व्यापार संगठन।

15. W.S.F. का क्या अर्थ लिया जाता है
(A) World Social Forum
(B) World Sports Forum
(C) World State Fund
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) World Social Forum.

16. W.S.F. की पहली बैठक कहां हुई थी ?
(A) भारत
(B) जापान
(C) ब्राज़ील
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) ब्राज़ील।

17. ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की पहली बैठक कब हुई थी ?
(A) 2001 में
(B) 2005 में
(C) 2007 में
(D) 2009 में।
उत्तर:
(A) 2001 में।

18. वैश्वीकरण कैसी धारणा है ?
(A) बहुआयामी
(B) एक आयामी
(C) द्वि-आयामी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) बहुआयामी।

19. भारत में नई आर्थिक नीति शुरू हुई ?
(A) सन् 1985 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1980 में
(D) सन् 1992 में।
उत्तर:
(B) सन् 1991 में।

रिक्त स्थान भरें

(1) वैश्वीकरण एक ………. अवधारणा है, जिसके राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक आयाम हैं।
उत्तर:
बहुआयामी

(2) कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का स्थान अब …………… राज्य ने ले लिया है।
उत्तर:
न्यूनतम हस्तक्षेपकारी

(3) वर्ल्ड सोशल फोरम की पहली बैठक 2001 में ………………… में हुई। (देश का नाम लिखिए)
उत्तर:
ब्राजील

(4) वैश्वीकरण का सम्बन्ध ……………… पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर:
विश्वव्यापी

(5) वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व एक …………….. में बदल गया है।
उत्तर:
विश्व गांव

(6) विश्व व्यापार संगठन की स्थापना सन् ……………. में हुई।
उत्तर:
1995

(7) सन् 2007 में ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की सातवीं बैठक ………………. में हुई।
उत्तर:
नैरोबी (कीनिया)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वर्ल्ड सोशल फोरम की 2001 में पहली बैठक किस देश में हुई ?
उत्तर:
ब्राजील में।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण की शुरुआत किस वर्ष से मानी जाती है ?
उत्तर:
सन् 1991 से।

प्रश्न 3.
भारत ने किस वर्ष “नई आर्थिक नीति” को अपनाया ?
उत्तर:
सन् 1991 में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 4.
आधुनिक समय में कौन-सी विचारधारा विश्व में पाई जाती है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व में उदारवादी और वैश्वीकरण विचारधारा का बोल-बाला है।

प्रश्न 5.
WSF का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
विश्व सामाजिक फोरम (World Social Forum)।

प्रश्न 6.
कल्याणकारी राज्य की धारणा का स्थान किस अवधारणा ने ले लिया है ?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य की धारणा का स्थान न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ले लिया है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण Read More »

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

HBSE 12th Class Political Science वैश्वीकरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
(ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान हैं।
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।
उत्तर:
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
उत्तर:
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के बारे कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण का सम्बन्ध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 6.
विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ क्या है ? इसके कौन-कौन से घटक हैं ?
अथवा
‘विश्वव्यापी जुड़ाव’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ का अर्थ है, विश्व स्तर पर अधिकांश लोगों का कई पक्षों से सम्बन्ध होना। वैश्वीकरण के कारण विश्व के एक भाग के विचार दूसरे भाग में पहुंच रहे हैं। एक देश विशेष की पूंजी का अनेक देशों में प्रवाह हो रहा है। एक देश विशेष की वस्तुओं का अनेक देशों में पहुँचना तथा खुशहाल जीवन की खोज में विदेशों में जाकर बसना इत्यादि विश्व के पारस्परिक जुड़ाव के अन्तर्गत ही आते हैं। विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ के मुख्य घटक राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्ष हैं।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का बहुत योगदान है। 1990 के दशक में आई प्रौद्योगिकी की क्रान्ति ने विश्व को एक छोटा गांव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टेलीफ़ोन, टेलीग्राफ तथा इन्टरनैट जैसे संचार के साधनों ने विश्व को जोड़ने में मुख्य योगदान दिया है। प्रौद्योगिकी के कारण ही विश्व के अनेक भागों में विचार, पूंजी एवं वस्तुओं की आवाजाही आसान हुई है। अतः कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का बहुत अधिक योगदान है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के सन्दर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
अथवा
वैश्वीकरण क्या है ? वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का मूल्यांकन करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों (निबन्धात्मक प्रश्न) में से प्रश्न नं० 3 देखें। वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका-वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की भूमिका में अवश्य परिवर्तन आया है। वर्तमान वैश्वीकरण के युग में कोई भी विकासशील देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। अतः वैश्वीकरण के युग में प्रत्येक विकासशील देश को इस प्रकार की विदेश एवं आर्थिक नीति का निर्माण करना पड़ता है जिससे कि दूसरे देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये जा सकें। पूंजी निवेश के कारण विकासशील देशों ने भी अपने बाजार विश्व के लिए खोल दिये हैं।

राज्य द्वारा बनाई जाने वाली आर्थिक नीतियों पर भी वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। प्रत्येक देश आर्थिक नीति को बनाते समय विश्व में होने वाले आर्थिक घटनाक्रम तथा विश्व संगठनों जैसे विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन के प्रभाव में रहता है। राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली निजीकरण की नीतियां. कर्मचारियों की छंटनी. सरकारी अनुदानों में कमी तथा कृषि से सम्बन्धित नीतियों पर वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं ? इस सन्दर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है ?
अथवा
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव क्या पड़े हैं ? वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण आर्थिक क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन हुए हैं। वैश्वीकरण के कारण एक देश की पूंजी का प्रवाह अन्य देशों में हुआ। बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने देश से बाहर निकल कर अन्य देशों में निवेश करना शरू कर दिया। रोजगार की तलाश में लोग दसरे देशों में जाकर बसने लगे हैं। वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियों का भारत पर भी प्रभाव पड़ा है। 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। नई औद्योगिक नीति द्वारा भारत ने महत्त्वपूर्ण सुधार करने प्रारम्भ कर दिए।

1992-93 से रुपए को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया है। पूंजी बाज़ार और वित्तीय सुधारों के लिए कदम उठाए गए हैं। आयात-निर्यात नीति को सुधारा गया है और इसमें प्रतिबन्धों को हटाया गया है। 30 दिसम्बर, 1994 को भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतावादी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) की स्थापना हुई और भारत इस पर हस्ताक्षर करके इसका सदस्य बन गया।

समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने अनेक नियमों और औपचारिकताओं को समाप्त करना शुरू कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधक बनी हुई थीं। प्रशासन व्यवस्था । में अनेक सुधार किए गए और नौकरशाही तन्त्र की जटिलताओं को हल्का किया गया। भारतीय प्रशासन अब तेजी से वैश्वीकरण की प्रक्रिया के साथ तादात्म्य स्थापित कर रहा है।

प्रश्न 10.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है ?
उत्तर:
हम इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है। वैश्वीकरण के कारण सांस्कृतिक विभिन्नता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समरूपता बढ़ रही है। यहाँ पर यह बात उल्लेखनीय है कि विश्व में किसी विश्व-संस्कृति का उदय नहीं हो रहा है, बल्कि यूरोपीय देश एवं अमेरिका अपनी तकनीकी एवं आर्थिक शक्ति के बल पर सम्पूर्ण विश्व पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयत्न कर रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है ?
अथवा
वैश्वीकरण ने भारत को और भारत ने वैश्वीकरण को कैसे प्रभावित किया है ? इसको स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण ने भारत जैसे विकासशील देश को भी बहत अधिक प्रभावित किया है। विश्व के अधिकांश विकसित देश भारत को एक बड़ी मण्डी के रूप में देखते हैं। इसलिए यहाँ के लोगों को आकर्षित करने के लिए तरह तरह के उपाय करते हैं। भारतीय लोगों ने भी वैश्वीकरण के चलते आजीविका के लिए विदेशों में बसना शुरू कर दिया है। यूरोप एवं अमेरिका की पश्चिमी संस्कृति बड़ी तेजी से भारत में फैल रही है।

भारत में नीली जीन्स पहनना, पिज्जा खाना तथा टेलीविज़न पर अनेक विदेशी चैनलों को देखना वैश्वीकरण का ही प्रभाव है। दूसरी ओर भारत ने भी वैश्वीकरण को कुछ हद तक प्रभावित किया है। भारत से अधिक लोग विदेशों में जाकर अपनी संस्कृति एवं रीति रिवाजों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व के देशों को इस ओर आकर्षित किया है। भारत ने कम्प्यूटर तथा तकनीकी के क्षेत्र में बड़ी तेज़ी से उन्नति करके विश्व में अपना प्रभुत्व जमाया है।

वैश्वीकरण HBSE 12th Class Political Science Notes

→ 1990 के दशक से वैश्वीकरण की धारणा विश्व में तेजी से फैली है।
→ किसी वस्तु, विचार, सेवा या पूंजी का एक देश से दूसरे देश में निर्बाध आदान-प्रदान वैश्वीकरण कहलाता हैं।
→ वैश्वीकरण के राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्ष होते हैं।
→ वैश्वीकरण का नेता अमेरिका को माना जाता है।
→ वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण से अधिकांश लोगों को लाभ पहुंचा है।
→ वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ केवल एक छोटे से भाग को मिला है, विश्व की – अधिकांश जनता को इससे हानि हुई है।
→ वैश्वीकरण के प्रचार एवं प्रसार के साथ-साथ इसका विरोध भी हआ है।
→ 1999 में सियाटल में हुई विश्व व्यापार संगठन की मन्त्रिस्तरीय बैठक के दौरान व्यापक विरोध हुआ।
→ भारत ने 1991 में आर्थिक सुधारों को लागू करते हुए वैश्वीकरण के युग में प्रवेश किया।
→ अपनी विशाल जनसंख्या के कारण भारत विश्व में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं विकसित देशों के बीच एक अखाड़े के रूप में सामने आया है।
→ भारत में भी वैश्वीकरण का समय-समय पर विरोध हुआ है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण Read More »

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से आप क्या समझते हैं ? नियोजन के लक्षणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
आधुनिक राज्य पुलिस राज्य न होकर कल्याणकारी राज्य है। आधुनिक राज्य अपने नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक आदि की उन्नति में व्याप्त है। राज्य अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नियोजन पद्धति को प्रयोग में ला रहे हैं। आज नियोजन की आवश्यकता को व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया गया है।

आर्थिक नियोजन की विधि को सबसे पहले रूस ने 1928 में लागू किया। इन योजनाओं के फलस्वरूप कुछ वर्षों में ही रूस संसार की महान् शक्तियों में गिना जाने लगा। आर्थिक नियोजन की सफलता को देखकर संसार के सभी देशों विशेषकर अल्पविकसित देशों ने योजनाओं के मार्ग को अपनाया है।

फिफ्नर और प्रिस्थस (Pfiffner and Presthus) ने ठीक ही कहा है, “सभी संगठनों को यदि वे अपने उद्देश्यों की सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो योजना का निर्माण करना All organisations must plan if they are to achieve their end.”) लीविस (Lewis) ने कहा है, “आज मुख्य बात यह नहीं कि नियोजन हो अथवा नहीं अपितु यह है कि नियोजन का रूप क्या होना चाहिए।

नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Planning):
नियोजन निर्माण आम व्यक्ति तथा सामूहिक प्रयत्न का एक स्वाभाविक अंग है। फिफ्नर और प्रिस्थस के अनुसार, “नियोजन एक ऐसी विवेकपूर्ण प्रक्रिया है जो सारे मानव-व्यवहार में पाई जाती है।” साधारण शब्दों में नियोजन का अर्थ कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है। उर्विक (Urwick) के अनुसार, “नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, साधारण रूप से कार्य करने की एक पूर्व निश्चित मानसिक प्रक्रिया है । कार्य करने से पूर्व विचार तथा अनुमानों की अपेक्षा तथ्यों के प्रकाश में कार्य करना है, यह अनुमान लगाने वाली प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया है।”

डिमॉक (Dimock) के शब्दों में, “योजना परिवर्तन के स्थान पर तर्क सम्मत इच्छा का प्रयोग करना है। कार्य करने से पूर्व निर्णय लेना है न कि कार्य आरम्भ करने के बाद सुधारना।” सेक्लर हडसन (Secklar Hudson) के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज ही नियोजन है।” (The process of devising a basis for future course of action.) भारतीय विचारक डॉ० अमरेश के अनुसार, “संक्षेप में नियोजन उन भावी कार्यक्रमों के चयन एवं विकास की विधि है जिसके द्वारा एक घोषित लक्ष्य की सहज प्राप्ति होती है।”

जॉन डी० मिलट (John D. Millett) के शब्दों में, “प्रशासकीय प्रयत्न के उद्देश्यों को निश्चित करने तथा उनको प्राप्त करने के लिए उपयुक्त साधनों की व्यवस्था करना ही नियोजन है।” प्रो० के० टी० शाह (K.T. Shah) के अनुसार, “नियोजन एक लोकतन्त्रीय व्यवस्था में उपभोग, उत्पादन, अनुसन्धान, व्यापार तथा वित्त का तकनीकी समायोजन है। यह उन उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं जिनका निर्धारण राष्ट्र की प्रतिनिधि संस्थाओं द्वारा होता है।”

डॉ० एम० पी० शर्मा (Dr. M.P. Sharma) के अनुसार, “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है। नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” अमरेश महेश्वरी के अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों तथा साधनों के संगठन, संघनन तथा विलीनीकरण की क्रिया को नियोजन कहते हैं। परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को उचित साधनों द्वारा प्राप्त करना ही नियोजन है। व्यापक रूप से नियोजन के अन्तर्गत निम्नलिखित चार क्रम शामिल हैं

  • लक्ष्य का निर्धारण।
  • लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नीति का निर्धारण।
  • निश्चित नीति के अनुसार प्रक्रियाओं तथा साधनों का निर्धारण।
  • नियोजन के परिणामों का समुचित रूप से वर्गीकरण तथा विश्लेषण करना।

अच्छे नियोजन के लक्षण (Characteristics of a Good Plan):
एक अच्छी योजना में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं

1. स्पष्ट उद्देश्य-नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए। नियोजन के लक्ष्य का संक्षिप्त तथा निश्चित होना ज़रूरी है। यदि नियोजन के लक्ष्य स्पष्ट न हों तो अधिकारियों को सफलता नहीं मिलती।

2. साधनों की व्यवस्था- उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. लचीलापन-नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए। नियोजन भविष्य से सम्बन्धित होता है और भविष्य में परिस्थितियां बदल सकती हैं। बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार जिसमें आसानी से परिवर्तन लाया जा सके वही सही नियोजन है।

4. समन्वय-नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए। विभिन्न नियोजनों के बीच समन्वय स्थापित किया जाना ज़रूरी है। विभिन्न नियोजनों के अनुरूप ही मुख्य नियोजन का होना आवश्यक है।

5. व्यावहारिकता-नियोजन में व्यावहारिकता का होना अति आवश्यक है।

6. सिद्धान्त-नियोजन में कार्यों का स्पष्ट विश्लेषण तथा सफलता को मापने के लिए कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन होना चाहिए।

7. स्पष्ट विषय-वस्तु-किसी भी नियोजन की विषय-वस्तु स्पष्ट होनी चाहिए।

8. पद-सोपान-नियोजन में उसके पद-सोपान का रहना ज़रूरी है।

9. निरन्तरता-नियोजन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निरन्तरता हो। निरन्तरता न होने पर नियोजन पर किया गया खर्च, समय और श्रम बेकार हो जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आर्थिक नियोजन 20वीं शताब्दी की देन है। संसार की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं ने दसरे महायद्ध के पश्चात् आर्थिक विकास तथा स्थिरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आर्थिक नियोजन की विधि को अपनाया है। भारत ने भी स्वतन्त्रता के पश्चात् आर्थिक नियोजन को अपनाया है। भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं

1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-भारत में आर्थिक नियोजन का प्रथम उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग आदि का विकास करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। जनसंख्या की वृद्धि की दर में कमी करके प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना भी आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य है।

2. आर्थिक असमानता में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। आर्थिक असमानता क्रान्ति एवं संघर्ष को जन्म देती है। अत: नियोजन का ये उद्देश्य होता है कि सभी वर्गों का विकास किया जाए।

3. क्षेत्रीय असमानताओं में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में क्षेत्रीय असमानताओं में कमी करना होता है। इसके लिए देश के पिछड़े क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

4. पूर्ण रोज़गार-आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसर बढ़ाना है ताकि प्रत्येक व्यक्ति को रोज़गार दिया जा सके।

5. उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग-आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग करना होता है। आर्थिक नियोजन द्वारा वन, जल, भूमि, खनिज पदार्थ आदि प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके देश का आर्थिक विकास करने की कोशिश की जाती है।

6. आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास की बाधाओं को दूर करके देश का आर्थिक विकास करना है।

7. जीवन स्तर में वृद्धि-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करना है और इसके लिए उत्पादन के समस्त क्षेत्रों में वृद्धि की जाती है।

8. उद्योगों का विकास-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मूल तथा भारी उद्योगों का विकास करना तथा इस प्रकार देश का तेजी से औद्योगिकीकरण करना है।

9. आत्म निर्भरता-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश को अधिक से अधिक आत्म-निर्भर बनाना है ताकि देश दूसरे देशों पर कम-से-कम निर्भर रहे।

10. सामाजिक उद्देश्य-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मनुष्य का सम्पूर्ण विकास करना होता है। अत: नियोजन का उद्देश्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना भी है। आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य समाज के निर्धन तथा शोषित वर्ग को सुरक्षा प्रदान करना है।

निष्कर्ष (Conclusion):
संक्षेप में भारत में आर्थिक नियोजन का मूल उद्देश्य लोकतन्त्रीय तथा कल्याणकारी कार्य विधियों द्वारा देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास करना है। योजना आयोग के शब्दों में, “भारत में योजनाकरण का केन्द्रीय उद्देश्य लोगों के जीवन-स्तर को ऊंचा उठाना तथा उन्हें समृद्ध जीवन व्यतीत करने के लिए अधिकाधिक सुविधाओं की व्यवस्था करना है।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
योजना आयोग की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
योजना आयोग के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
रचना (Composition):
योजना आयोग की रचना समय-समय पर बदलती रहती थी। आरम्भ में इसके कुल छः सदस्य थे और इनमें योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे। प्रधानमन्त्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता था और इसके अतिरिक्त आयोग का उपाध्यक्ष भी होता था।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष का कैबिनेट मन्त्री का स्तर होता था और सदस्यों का स्तर मन्त्री का होता था। योजना आयोग का एक स्थायी सचिव भी होता था जो मन्त्रिमण्डल का सचिव भी होता था। पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त वित्त मन्त्री, गृहमन्त्री आदि भी योजना आयोग के अल्पकाल के सदस्य होते थे। योजना आयोग मुख्य रूप से तीन विभागों द्वारा कार्य करते थे-

  • कार्यक्रम सलाहकार समिति,
  • सामान्य सचिवालय तथा
  • तकनीकी विभाग।

कार्य (Functions):
योजना आयोग जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री थे, भारत में एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली परामर्शदात्री अभिकरण के रूप में प्रकट हुए हैं। इसके कार्य इस प्रकार थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों तो उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों के अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृति कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

(5) योजना के लिए विभिन्न यन्त्रों का जुटाना जो उसकी विभिन्न सेवाओं पर काम आ सके।

(6) समय-समय पर योजना की प्रगति का मूल्यांकन करना और नीति तथा उपायों में आवश्यकतालमेल करना।

(7) वर्तमान आर्थिक व्यवस्था, प्रचलित नीतियों, उपायों तथा विकास-कार्यक्रमों के विचार-विमर्श के लिए इसके कर्त्तव्य के पालन को आसान बनाने के लिए आवश्यक सिफ़ारिशें करना अथवा केन्द्रीय या राज्य सरकारों द्वारा सुझावों हेतु भेजी जांच की सिफारिश करना।

(8) राष्ट्र के विकास में लोगों का सहयोग प्राप्त करना।

(9) देश के औद्योगिक विकास के लिए नियोजन करना।

(10) केन्द्र और राज्य सरकारों की विकास योजनाओं का निर्माण करना। (नोट-एक जनवरी 2015 को केन्द्र सरकार ने योजना आयोग को समाप्त करके इसके स्थान पर ‘नीति आयोग’ की स्थापना की थी।)

प्रश्न 4.
नीति आयोग पर एक संक्षिप्त लिखें।
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं। स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है।

यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था। इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने 1998 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था, कि “विकास की बदलती आवश्यकताओं के लिए योजना आयोग का फिर गठन होगा।”

भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमन्त्री थे, तब वे कई बार योजना आयोग की अप्रासंगिकता की बात उठा कर एक नयी संस्था की वकालत कर चुके थे। इसलिए जब वे मई, 2014, में देश के प्रधानमंत्री बने, तभी से उन्होंने योजना आयोग के स्थान पर एक नई संस्था या आयोग को बनाने पर जोर दिया।

7 दिसम्बर, 2014 को नई दिल्ली में मुख्यमन्त्रियों की बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग के स्थान पर नई व्यवस्था बनाने को समय की ज़रूरत बताया तथा उन्होंने कहा, कि अब योजना की प्रक्रिया ‘ऊपर से नीचे’ की बजाय ‘नीचे से ऊपर’ करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो न केवल सृजनात्मक रूप से चिंतन कर सके, बल्कि संघात्मक ढांचे को मजबूत बनाने के साथ ही राज्यों में नई ऊर्जा का संचार भी कर सके। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखकर एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG-NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) क स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष-प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष-इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल-इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य- इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

5 जनवरी, 2015 को प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविन्द पनगड़िया को नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया, जिन्होंने 14 जनवरी, 2015 को अपना कार्यभार संभाल लिया। प्रधानमंत्री ने 11 जनवरी, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर को आयोग का पहला सी०ई०ओ०, (C.E.O. Chief Executive Officer) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया। 31 दिसम्बर, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर की सेवानिवृत्ति के पश्चात् श्री अमिताभ कांत को नीति आयोग का सी० ई० ओ० नियुक्त किया गया। 5 अगस्त, 2017 को श्री राजीव कुमार को श्री अरविन्द पनगड़िया के स्थान पर नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

विभाग (Department):
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

उद्देश्य (Objectives):
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्टीय सरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

नीति आयोग का गठन भी योजना आयोग की तरह मन्त्रिमण्डल के प्रस्ताव से हआ है परन्त दोनों में महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है, कि नीति आयोग की गतिविधियों में मुख्यमन्त्री एवं निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इस प्रकार प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्थापित नीति आयोग ‘टीम इण्डिया तथा सहकारी संघवाद’ के विचार को साकार करेगा, जबकि पं० नेहरू के समय के योजना आयोग की प्रकृति केन्द्रीयकृत थी, इसलिए योजना आयोग को सुपर केबिनेट भी कहा जाने लगा था।

नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करेंगे। इसकी गवर्निंग काऊंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल सदस्य के रूप में शामिल होंगे। नीति आयोग प्रधानमन्त्री तथा सभी मुख्यमन्त्रियों के लिए विकास का राष्ट्रीय एजेण्डा तैयार करने के लिए एक ‘थिंक टैंक’ की तरह काम करेगा। नीति आयोग जन केन्द्रित, सक्रिय तथा सहभागी विकास एजेण्डा के सिद्धान्त पर आधारित है। इससे सहकारी संघवाद की भावना बढ़ेगी। नीति आयोग की मुख्य भूमिका या कार्य राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अलग-अलग नीतिगत विषयों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों को जरूरी रणनीतिक व तकनीकी परामर्श देना है।

नीति आयोग की पहली बैठक 6 फरवरी, 2015 को हुई, जिसमें प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली तथा आयोग के उपाध्यक्ष श्री अरविंद पनगडिया शामिल थे। इनके अतिरिक्त बैठक में विजय केलकर, नितिन देसाई, अशोक गुलाटी, सुबीर गोकर्ण, बिमल जालान, पार्थसारथी सोम, जी०एन० वाजपेयी, राजीव कुमार, राजीव लाल, मुकेश बुरानी, आर० वैद्यनाथन तथा बालाकृष्णन जैसे अर्थशास्त्रियों ने भी भाग लिया। इस बैठक में अर्थव्यवस्था की विकास दर फिर तेज़ करने, रोज़गार के अवसर बढ़ाने तथा ढांचागत संरचना सहित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।

नीति आयोग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बैठक 8 फरवरी, 2015 को हुई, इसमें नीति आयोग के सभी सदस्यों ने भाग लिया। इस बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया

(1) प्रधानमन्त्री ने आर्थिक सुधारों की धीमी गति, विकास की धीमी गति, मेक इन इण्डिया को मिलते कम समर्थन तथा मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों में कमी को देखते हुए राज्यों से सक्रिय सहयोग की अपील की।

(2) प्रधानमन्त्री ने राज्यों को आपसी मतभेद भुलाकर विकास दर को तेज़ करने, निवेश बढ़ाने तथा रोजगार पैदा करने की अपील की।

(3) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों से अपने-अपने राज्यों में एक नोडल अफसर नियुक्त करने की अपील की ताकि, राज्य लम्बित मुद्दों को हल तथा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने के लिए अवश्यक कदम उठा सकें।

(4) उन्होंने विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा ग़रीबी को बताया तथा इसे दूर करने को सबसे बड़ी चुनौती बताया।

(5) उनके अनुसार नीति आयोग सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक नया मॉडल बनायेगा।

(6) नीति आयोग की इस बैठक में प्रधानमन्त्री ने तीन उप-समितियां बनाने की घोषणा की, जोकि केन्द्र की 66 योजनाओं को ठीक से संगठित करने, कौशल विकास तथा स्वच्छ भारत योजना को निरन्तर चलाए रखने के लिए सुझाव देंगी।

(7) उन्होंने कहा, कि केन्द्र सभी के लिए एक ही नीति के सिद्धान्त से हटकर, नीतियों तथा राज्यों की ज़रूरत के उचित समन्वय पर बल देगा।

(8) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों को परियोजनाओं को धीमी करने के कारणों पर खुद ध्यान देने की अपील की। (9) उन्होंने ग़रीबी समाप्त करने के लिए राज्यों से टास्क फोर्स गठित करने की अपील की।

(10) उन्होंने मख्यमन्त्रियों तथा उपराज्यपालों से फ्लैगशिप योजनाओं, ढांचागत योजनाओं, स्वच्छता मिशन, मेक इन इण्डिया अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इण्डिया, स्किल इण्डिया, प्रधानमन्त्री सिंचाई योजना तथा 2022 तक सभी के लिए घर उपलब्ध कराने जैसी केन्द्र की योजनाओं की सफलता के लिए सुझाव मांगे।

स्पष्ट है कि योजना आयोग को समाप्त करके बनाये गये नीति आयोग पर देश के विकास के लिए कारगार नीतियां एवं योजनाएं बनाने का दबाव रहेगा। यह सही है कि योजना आयोग द्वारा पूरे देश के लिए लगभग एक जैसी नीति बनाना सही तरीका नहीं था क्योंकि भारत में कुछ राज्य कृषि प्रधान हैं, तो कुछ राज्यों में उद्योगों की अधिकता है। किसी राज्य की प्रति व्यक्ति आय अधिक है, तो किसी की कम। इसलिए पूरे देश के लिए एक ही तरह की नीति व्यावहारिक सिद्ध नहीं हो रही थी। इसलिए नीति बनाते हुए विभिन्नताओं का सही विचार आवश्यक है। यदि नीति आयोग में ऐसा होना सम्भव हो तो उचित रहेगा।

प्रश्न 5.
खाद्य संकट से आपका क्या अभिप्राय है? खाद्य संकट के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
खाद्य संकट से अभिप्राय खाने पीने की वस्तुओं का कम होना है। 1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया। भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी।

खाद्य संकट के प्रमुख परिणाम

  • खाद्य संकट के कारण भारत में बड़े पैमाने पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने लगीं।
  • खाद्यान्न संकट ने देश की राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रभावित किया।
  • देश को चावल एवं गेहूं का आयात करना पड़ा। जिससे भारत की विदेशी पूंजी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • नियोजन के प्रति नागरिकों का विश्वास हिलने लगा।
  • योजना बनाने वालों को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा ताकि खाद्य संकट को टाला जा सके।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति, राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत के आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया, ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था। हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं या तत्त्व निम्न प्रकार से हैं

1. कृषि का निरन्तर विस्तार (Continued Expansion of Agriculture Sector):
हरित क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य या तत्त्व भारत में कृषि क्षेत्र का निरन्तर विस्तार एवं विकास करना था। यद्यपि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही भारत में कृषि क्षेत्र का विस्तार जारी था परन्तु 1960 के मध्य में इस ओर अधिक ध्यान दिया गया और यह कार्य हरित क्रान्ति के अन्तर्गत किया गया।

2. दोहरी फसल का उद्देश्य (Aim of Double Cropping):
हरित क्रान्ति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व या उद्देश्य यह था कि साल में दो मौसमी फ़सलें बोई जाएं। साधारण रूप से भारत में प्रतिवर्ष एक मौसमी फसल ही काटी जाती थी, इसका प्रमुख कारण यह था कि प्रतिवर्ष भारत में एक ही मौसमी वर्षा होती थी। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अब प्रतिवर्ष दो मौसमी वर्षा करके दो मौसमी फ़सलें काटने का निर्णय लिया गया।

एक फ़सल प्राकृतिक वर्षा के आधार पर होनी तथा दूसरी कृत्रिम वर्षा के आधार होगी। कृत्रिम वर्षा के लिए सिंचाई सुविधाओं एवं यन्त्रों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। प्राकृतिक वर्षा के समय जो पानी व्यर्थ चला जाता है उसे अब एक जगह एकत्र किया जाने लगा तथा नी का प्रयोग उस मौसमी फ़सल के लिए किया जाने लगा जब प्राकृतिक वर्षा नहीं होती थी। इस तरह भारत में अब एक वर्ष में दो मौसमी फ़सलें होने लगीं तथा खाद्यान्न पदार्थों की अधिकाधिक पैदावार होने लगी।

3. अच्छे बीजों का प्रयोग (Use of Good Qualities Seeds):
हरित क्रान्ति का एक तत्त्व या उद्देश्य अच्छे बीजों का प्रयोग करना था ताकि फ़सल ज्यादा हो। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council for Agriculture Research) का 1965 एवं 1973 में पुनर्गठन किया गया। भारत में चावल, गेहूं, मक्का तथा बाजरा की विशेष किस्में तैयार की गईं।

4. भारत में कृषि का मशीनीकरण भी किया गया। इसके अन्तर्गत किसानों को कृषि यन्त्र खरीदने के लिए कृषि ऋण प्रदान किया गया।

5. हरित क्रांति के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था का प्रबन्ध एवं विस्तार किया गया। 6. हरित क्रांति के अन्तर्गत खेतों में कीटानाशक दवाओं एवं रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाने लगा। तीसरी पंचवर्षीय योजना में हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए विशेष जोर दिया गया। तीसरी पंचवर्षीय योजना में अच्छी किस्म के बीजों पर ध्यान दिया गया। सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया। किसानों को कृषि के विषय में और अधिक शिक्षित किया गया।

हरित क्रान्ति की सफलताएं (Achievements of Green Revolution):
भारत में हरित क्रान्ति के कुछ अच्छे परिणाम सामने आए जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि (Record Increasement in Production) हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि (Increasement in Crop Field)-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा (Promotion of Industrial Development) हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है।

4. बांधों का निर्माण (Making of Bandh)हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बांधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

5. जल विद्युत् शक्ति को बढ़ावा (Promotion Water Energy)-बांधों द्वारा संचित किए गए पानी का जल विद्युत् शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।

6. विदेशों में भारतीय किसानों की मांग (Demand of Indian Farmers in Foreign)-भारत की हरित क्रान्ति से कई देश इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने भारतीय किसानों को अपने देश में बसाने के लिए प्रोत्साहित किया। कनाडा जैसे देश ने भारत सरकार से किसानों की मांग की। जिसके कारण पंजाब एवं हरियाणा से कई किसान कनाडा में जाकर बस गए।

7. विदेशी कों की वापसी-हरित क्रान्ति के समय या उससे पहले भारत ने विदेशी संस्थाओं से जो भी कर्जे लिए थे, उन्हें वापिस कर दिया गया।

8. राजनीतिक स्थिति में बढ़ोत्तरी (Increasement of Political Status)-भारत में हरित क्रान्ति का एक सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अच्छी छवि बन गई। हरित क्रान्ति के परिणाम भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो गया, जिससे भारत को अमेरिका पर खाद्यान्न के लिए निर्भर नहीं रहना पडा और इसका प्रभाव 1971 की पाकिस्तान के साथ लडाई में देखा गया।

9. बुनियादी ढांचे में विकास (Development of Infrastructure) हरित क्रान्ति की एक सफलता यह रही कि इसके परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढांचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला। हरित क्रान्ति द्वारा पैदा हुई समस्याएं (Problems Emerged by Green Revolution) हरित क्रान्ति से भारत में जहां विकास के नये द्वार खुले, वहीं इससे सम्बन्धित कई समस्याएं भी पैदा हुईं

  • हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
  • भारत में 1980 के दशक में वर्षा न होने से हरित क्रान्ति से कुछ विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो पाया।
  • हरित क्रान्ति के बावजूद 1998 में भारत को प्याज आयात करना पड़ा।
  • भारत को 2004 में चीनी आयात करनी पड़ी।
  • हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।
  • कालाहाण्डी जैसे क्षेत्रों में लोग आज भी भूख के कारण मर रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति तथा इसके राजनीतिक कुप्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं ? इसके राजनैतिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। हरित क्रान्ति के राजनीतिक प्रभाव-हरित क्रान्ति के निम्नलिखित राजनीतिक प्रभाव पड़े

  • हरित क्रान्ति के कारण पंचवर्षीय योजना को कुछ समय के लिए रोक दिया गया।
  • हरित क्रान्ति के समय भारत में राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा।
  • हरित क्रान्ति के दौरान होने वाले चुनावों के परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में गठबन्धन सरकारों का निर्माण हुआ।
  • हरित क्रान्ति के दौरान दल-बदल को बढ़ावा मिला।
  • हरित क्रांन्ति के दौरान प्रशासनिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 8.
विकास का अर्थ बताइये। विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास का अर्थ (Meaning of Development)-विकास एक व्यापक एवं सार्वभौमिक धारणा है, जिसको विभिन्न सन्दर्भो में विभिन्न अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यक्ति व समाज के विकास की अवधारणा का अर्थ प्रायः आर्थिक विकास से ही लिया जाता है। विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

1. एल्फ्रेड डायमेन्ट (Alfred Diamant) के अनुसार, “राजनीतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनीतिक व्यवस्था के नए प्रकार के लक्ष्यों को निरन्तर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता बनी रहती है।”

2. चुतर्वेदी (Chaturvedi) के अनुसार, “विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। विकास का उद्देश्य है-एक प्राचीन एवं पिछड़ी हुई व्यवस्था को आधुनिक व्यवस्था में बदलना।”

3. लूसियन पाई (Lucian Pye) के अनुसार, “राजनीतिक विकास संस्कृति का वितरण और जीवन के प्रतिमानों के नए भागों के अनुकूल बनाना, उन्हें उनके साथ मिलाना या उनके साथ सामंजस्य बिठाना है।”

विकास के उद्देश्य (Objectives of Development)-विकास के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं

1. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति-विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गरीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। चिकित्सा सुविधाएं, स्वास्थ्य, पेयजल, कपड़ा, मकान, भोजन आदि आवश्यक पदार्थों की सुविधाएं आम जनता को दी जाएंगी।

2. गरीबी व बेरोज़गारी को दूर करना-पिछड़े तथा विकासशील देशों का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य आर्थिक पुनर्निर्माण करके गरीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है। विकसित देश भी बेरोज़गारी की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

3. प्राकृतिक साधनों का विकास-विकासशील देशों का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का शोषण करके देश का आर्थिक विकास करना है।

4.विकास की ऊंची दर-आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए आर्थिक विकास की ऊंची दर को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जाए।

5. आत्म-निर्भरता-अल्पविकसित तथा विकासशील देशों का लक्ष्य अपने देश को आत्म-निर्भर बनाना है।

6. समाज कल्याण के कार्य-विकासशील देश लोगों के आर्थिक तथा समाज कल्याण के कार्यों को निम्न स्तर के लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखते हैं। गरीब वर्गों और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सरकार को भारी निवेश का रास्ता अपनाना पड़ेगा। विश्व के अनेक देशों में बेकारी भत्ता (Unemployment Allowance) दिया जाता है। विश्व के अनेक विकसित देशों में बेरोजगारों को बेकारी भत्ता, नि:शुल्क तथा अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा, वृद्धों को पेंशन इत्यादि अनेक सुविधाएं दी गई हैं और विकासशील देश इन सुविधाओं को देने का प्रयास कर रहे हैं।

7. लोकतन्त्रीय पद्धति से विकास-लोकतन्त्र पद्धति के द्वारा ही विकास कार्य किए जाने चाहिए। लोकतन्त्र विकास का विरोधी नहीं है। यह ठीक है कि अधिनायकवादी देशों में विकास की गति तीव्र होती है और अधिनायक विकास की जो दिशा तय करता है उसी दिशा में विकास होता है।

परन्तु अधिनायकवादी देशों ने जनसहयोग के अभाव में विकास में जनता की न तो रुचि होती है और न ही विकास के लाभ आम जनता तक पहुंचते हैं। उदाहरण के तौर पर साम्यवादी देशों में विकास के प्रतिमानों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता था जबकि वास्तविकता बिल्कुल उसके विपरीत थी। अत: विकास जनसहयोग से ही होना चाहिए ताकि विकास या लाभ आम जनता में समानता के आधार पर वितरित किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।

(2) प्रथम योजना का दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास का प्रारम्भ करना था ताकि राष्ट्रीय आय निरन्तर बढ़ती जाए और लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठ सके। यह आर्थिक विकास, प्रचलित सामाजिक-आर्थिक ढांचे में सुधार लाकर किया जाना था।

(3) योजना का तीसरा मुख्य उद्देश्य उत्पादन-क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।

(4) प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रा-स्फीति के दबाव को कम करना भी था।

प्रश्न 2.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय में पर्याप्त वृद्धि की जाए ताकि लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हो सके।
  • देश का औद्योगिक विकास तीव्र गति से किया जाए और इसके लिए आधारभूत तथा भारी उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया जाए।
  • रोज़गार के अवसरों में अधिक-से-अधिक विस्तार किया जाए।
  • धन तथा आय के बंटवारे में असमानता को कम किया जाए तथा आर्थिक सत्ता को विकेन्द्रित किया जाए।

प्रश्न 3.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक किया जाए तथा विनियोग इस प्रकार हो कि यह विकास दर आगामी पंचवर्षीय योजनाओं में उपलब्ध हो सके।

(2) खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता प्राप्त की जाए तथा कृषि उत्पादन में इतना विकास किया जाए जिससे उद्योगों तथा निर्यात की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

(3) आधारभूत उद्योगों जैसे इस्पात, कैमिकल उद्योग, ईंधन तथा विद्युत् उद्योगों का विस्तार किया जाए तथा मशीन निर्माण की क्षमता को इस प्रकार बढ़ाया जाए कि आगामी दस वर्षों में इस क्षेत्र में लगभग आत्म-निर्भर हो जाएं तथा औद्योगिक विकास के लिए भविष्य में मशीनरी की आवश्यकताएं देश में पूरी हो सकें।

(4) देश की मानव शक्ति का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए तथा रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि की जाए।

प्रश्न 4.
विकास का समाजवादी मॉडल क्या है?
अथवा
विकास के समाजवादी मॉडल का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
(1) विकास का समाजवादी मॉडल उत्पादन तथा वितरण के साधनों को समस्त समाज की सम्पत्ति मानता है। अतः समाजवादी उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हैं।

(2) विकास का समाजवादी मॉडल व्यक्ति की अपेक्षा समाज के विकास को अधिक महत्त्व देता है।

(3) विकास का समाजवादी मॉडल नियोजित अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा ही देश का विकास किया जा सकता है।

(4) विकास का समाजवादी मॉडल आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता समाप्त करके सहयोग की भावना पैदा करने के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
विकास के पूंजीवादी मॉडल से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।
  • विकास का पंजीवादी मॉडल लाइसेंस/परमिशन को समाप्त करने के पक्ष में है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल भौतिक विकास में विश्वास रखता है।

प्रश्न 6.
पांचवीं पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
1. निर्धनता को दूर करना-पांचवीं योजना का मुख्य उद्देश्य निर्धनता को दूर करना था। निर्धनता दूर करने का अभिप्राय यह है कि देशवासियों की कम-से-कम इतनी आय अवश्य होनी चाहिए कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

2. आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति- पांचवीं योजना का एक मुख्य उद्देश्य देशवासियों की आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था करना था।

3. रोज़गार की अधिकाधिक व्यवस्था–उत्पादन बढ़ाने वाले रोजगार का विस्तार करना ताकि अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके।

4. आर्थिक स्वावलम्बन-पांचवीं योजना का एक मुख्य लक्ष्य आर्थिक आत्म-निर्भरता की प्राप्ति है। विदेशी सहायता को 1978-79 तक बिल्कुल शून्य करना इस योजना का लक्ष्य था।

प्रश्न 7.
छठी पंचवर्षीय योजना के मुख्य चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय की विकास दर का लक्ष्य 5.2 % निर्धारित किया गया। प्रति व्यक्ति आय की विकास दर का लक्ष्य 3.3 % रखा गया।
  • कृषि की विकास दर का लक्ष्य 4 प्रतिशत, उद्योगों का 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष तथा निर्यात का 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित किया गया था।
  • बचत की दर 24.5 प्रतिशत तथा निवेश की दर 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित की गई थी।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को 2.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष से कम करके 1.86 प्रतिशत प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य रखा गया।

प्रश्न 8.
सातवीं पंचवर्षीय योजना के चार मुख्य उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • योजना का विकेन्द्रीकरण होगा और विकास के काम में सब लोगों का सहयोग लिया जाएगा।
  • ग़रीबी और बेरोजगारी कम की जाएगी। रोजगार के अवसरों में 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया।
  • क्षेत्रीय असमानता कम की जाएगी।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पोषण की सुविधाएं अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचाई जाएंगी।

प्रश्न 9.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • देश में पर्याप्त रोजगार अवसर पैदा करना।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को कम करना।
  • प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना।
  • कृषि क्षेत्र में विविधता को बढ़ावा देना।

प्रश्न 10.
नौवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • बचत दर को बढ़ाकर 28.6% करना।
  • विकास दर को सात प्रतिशत प्रतिवर्ष करना।
  • कीमतों को स्थिर रखना।
  • जनसंख्या वृद्धि दर को कम करना।

प्रश्न 11.
10वीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • प्रति व्यक्ति आय को दुगुनी करना।
  • विकास दर को 8% प्रतिवर्ष करना।
  • निर्धनता को बढ़ावा देना।
  • कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 12.
नियोजन का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वर्तमान समय में नियोजन का विशेष महत्त्व है। नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विधि निर्धारित करना ही नियोजन कहलाता है। हडसन ने नियोजन की परिभाषा देते हुए कहा है, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज नियोजन है।” मिलेट के अनुसार, “प्रशासकीय कार्य के उद्देश्यों को निर्धारित करना तथा उनकी प्राप्ति के साधनों पर विचार करने को नियोजन कहते हैं।” हैरिस के शब्दों में, “आय तथा कीमत के सन्दर्भ की गति में साधनों के बंटवारे को प्रायः नियोजन कहते हैं।”

प्रश्न 13.
भारत में नियोजन के कोई चार मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है।

2. क्षेत्रीय असन्तुलन में कमी-विभिन्न योजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना रहात अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सके। इस दिशा में भारत सरकार ने योजना अवधि में पिछड़े क्षेत्रों के विकास हेतु विशेष कार्यक्रम लागू किए हैं।

3. आर्थिक असमानता में कमी-नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। रोज़गार-नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोज़गार के अवसर बढ़ाना है।

प्रश्न 14.
भारत में आर्थिक नियोजन को अपनाने के कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से अनुभव की जाती है

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन ‘अति आवश्यक है।
  • नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 15.
अच्छे नियोजन की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अच्छे नियोजन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए।
  • उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए।
  • नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए।

प्रश्न 16.
योजना आयोग के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
योजना आयोग के मख्य कार्य निम्नलिखित थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृत कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

प्रश्न 17.
योजना आयोग की कार्यप्रणाली की आलोचना क्यों की जाती थी ?
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं।

स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था।

प्रश्न 18.
नीति आयोग की स्थापना कब की गई ? इसकी रचना का वर्णन करें।
उत्तर:
एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) की स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष–प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष- इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल- इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य-इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

प्रश्न 19.
नीति आयोग में कितने विभागों की व्यवस्था की गई है ?
उत्तर:
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

प्रश्न 20.
नीति आयोग के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

प्रश्न 21.
विकास के किन्हीं तीन उद्देश्यों का वर्णन करें।
अथवा
विकास के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  • विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना हैं।
  • आर्थिक पुनर्निर्माण करके ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है।
  • विकास का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का विकास करना है।
  • विकास की ऊँची दर प्राप्त करना।

प्रश्न 22.
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
भारत में योजना पद्धति को निम्नलिखित कारणों से अपनाया गया

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन अति आवश्यक है।
  • आर्थिक नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • आर्थिक नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  • समय-समय पर राष्ट्रीय योजना के कार्य की समीक्षा करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक व आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय योजना के अन्तर्गत निश्चित लक्ष्यों और उद्देश्यों की सफलता के लिए उपायों की सिफ़ारिश करना।

इसके अन्तर्गत जनता से सक्रिय सहयोग प्राप्त करना. प्रशासकीय सेवाओं की कार्यकशलता में सधार करना। पिछडे प्रदेशों तथा वर्गों का पूर्ण विकास करना तथा सभी नागरिकों द्वारा समान मात्रा में बलिदान के माध्यम से राष्ट्रीय विकास के लिए साधनों का निर्माण करने के उपायों की सिफ़ारिश करना भी सम्मिलित है।

प्रश्न 24.
सार्वजनिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र से अभिप्राय उन व्यवसायों तथा आर्थिक क्रिया-कलापों से है जिनके साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और जिनका प्रबन्ध व नियन्त्रण सरकार के हाथों में ही होता है। सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक क्रियाओं का संचालन मुख्य रूप से सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत राज्य द्वारा सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना की जाती है। वे सभी उद्योग-धन्धे तथा व्यावसायिक गतिविधियां जिन पर सरकार का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र कहलाता है। प्रो० ए० एच० हैन्सन के अनुसार, “सरकार के स्वामित्व और संचालन के अन्तर्गत आने वाले औद्योगिक, कृषि एवं वित्तीय संस्थानों से है।”

राय चौधरी एवं चक्रवर्ती के अनुसार, “लोक उद्यम या आधुनिक उपक्रम व्यवसाय का वह स्वरूप है जो सरकार द्वारा नियन्त्रित और संचालित होता है तथा सरकार उसकी या तो स्वयं एकमात्र स्वामी होती है अथवा उसके अधिकांश हिस्से सरकार के पास होते हैं।” इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में लोक उद्यमों का वर्णन इस प्रकार मिलता है, “लोक उद्योग का आशय ऐसे उपक्रम से है जिस पर केन्द्रीय, प्रान्तीय अथवा स्थानीय सरकार का स्वामित्व होता है। ये उद्योग अथवा उपक्रम मूल्य के बदले वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति करते हैं तथा सामान्यतया स्वावलम्बी आधार पर चलाए जाते हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 25.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  • सार्वजनिक क्षेत्र एक व्यापक धारणा है जिसमें सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियां शामिल की जाती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत स्थापित किए जाने वाले विभिन्न उद्यमों, निगमों तथा अन्य संस्थाओं पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्ध तथा संचालन होता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है और सार्वजनिक क्षेत्र में एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 26.
हरित क्रान्ति की मुख्य चार विशेषताएं बताइये।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित-क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा-हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोज़गार भी प्राप्त हुआ।

4. बांधों का निर्माण-हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बाँधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

प्रश्न 27.
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था उस व्यवस्था को कहते हैं, जहां पर पूंजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रित रूप पाया जाता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में वैयक्तिक क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों की व्यवस्था की जाती है। सार्वजनिक क्षेत्र वाले उद्योगों का प्रबन्ध राजकीय निगम और व्यक्तिगत क्षेत्र के उद्योगों का प्रबन्ध व्यक्तिगत रूप से उद्योगपतियों द्वारा किया जाता है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति तथा राजनीति बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी, जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था।

प्रश्न 29.
आर्थिक विकास के भारतीय मॉडल की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है।
  • भारत के आर्थिक विकास में नियोजन को महत्त्व प्रदान किया गया है।
  • भारत में आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
  • भारत में कृषि के साथ-साथ औद्योगिकीकरण पर भी बल दिया गया है।

प्रश्न 30.
‘नियोजित विकास’ की कोई चार उपलब्धियां लिखें।
अथवा
भारत में नियोजन की कोई चार उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • नियोजन विकास से देश का संतुलित विकास सम्भव हो पाया है।
  • नियोजित विकास से श्रमिकों एवं कमजोर वर्गों का शोषण कम हुआ है।
  • नियोजित विकास से भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो पाया है।
  • इससे राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं हो पाई है।

प्रश्न 31.
भारत में ‘खाद्य संकट’ के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • खाद्य संकट से भारत में बड़े स्तर पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ गईं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही पिछड़ी अवस्था में थी। भारत की कृषि व्यवस्था खराब अवस्था में थी। स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतनी बुरी तरह से शोषण किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्ध सामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था बन कर रह गई।

प्रश्न 3.
‘हरित क्रान्ति’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है, जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे० जी० हारर के अनुसार, “हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति से न केवल आर्थिक एवं सामाजिक बल्कि राजनीतिक ढांचा भी प्रभावित हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है, ताकि लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके।

प्रश्न 5.
भारत में हरित क्रान्ति को अपनाने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • हरित क्रान्ति अपनाने का प्रथम कारण खाद्य संकट को दूर करना था।
  • हरित क्रान्ति अपनाने का दूसरा कारण कृषि के लिए आधुनिक यन्त्रों एवं साधनों का प्रयोग करना था।

प्रश्न 6.
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता किसे दी जाती है ?
उत्तर:
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि विकास को दी जाती है।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति की कोई दो असफलताएं या सीमाएं लिखें।
उत्तर:
(1) हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
(2) हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 8.
हरित क्रान्ति की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूं का आयात करता था, वह अब गेहूं को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 9.
सन् 2015 में, योजना आयोग की जगह कौन-सा आयोग बनाया गया ? उसके उपाध्यक्ष का नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग बनाया गया तथा इसके पहले उपाध्यक्ष का नाम श्री अरविंद पनगड़िया था। वर्तमान समय में नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार हैं।

प्रश्न 10.
विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
विकास का मुख्य उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, तथा प्राकृतिक संसाधनों का विकास करके देश को आत्मनिर्भर बनाता है।

प्रश्न 11.
मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के प्रायः दो रूप माने जाते हैं। एक रूप पूंजीवादी अर्थव्यवस्था तथा दूसरे को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहा जाता है। जहां अर्थव्यवस्था के इन दोनों रूपों का अस्तित्व हो उस अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 12.
योजना आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।
(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

प्रश्न 13.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गए ?
उत्तर:

  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया।
  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग पर बल दिया गया।

प्रश्न 14.
नियोजन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। हडसन के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिये आधार की खोज नियोजन है।”

प्रश्न 15.
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना कब लागू हुई ? अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं ?
उत्तर:
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना सन् 1951 में लागू हुई। अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक था।

प्रश्न 16.
निजी क्षेत्र में क्या-क्या शामिल है ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र में खेती-बाड़ी, व्यापार एवं उद्योग शामिल हैं।

प्रश्न 17.
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य नियोजित विकास करना था।

प्रश्न 18.
भारत में खाद्य संकट के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • सरकार को गेहूं का आयात करना पड़ा।
  • सरकार को अमेरिका जैसे देशों से विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी।

प्रश्न 19.
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।

प्रश्न 20.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विकास के लिए किस प्रकार की अर्थव्यवस्था का चुनाव किया गया था?
उत्तर:
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था। विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए ? विकास का पूंजीवादी मॉडल या विकास का साम्यवादी मॉडल। पूंजीवादी मॉडल के समर्थक देश के औद्योगीकरण पर अधिक बल दे रहे थे, जबकि साम्यवादी मॉडल के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की ग़रीबी को दूर करना आवश्यक समझते थे। इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमति के बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

प्रश्न 21.
निजी क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र उसे कहा जाता है, जिसे सरकार द्वारा न चलाकर व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा अपने लाभ के लिए चलाया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना किस वर्ष लागू की गई ?
(A) 1951
(B) 1960
(C) 1957
(D) 1962
उत्तर:
(A) 1951

2. अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं ?
(A) 7
(B) 8
(C) 11
(D) 12
उत्तर:
(D) 12

3. 11वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था ?
(A) 1992-1997
(B) 1997-2002
(C) 2002-2007
(D) 2007-2012
उत्तर:
(D) 2007-2012

4. योजनाबद्ध विकास की प्रेरणा भारत को मिली
(A) सोवियत रूस से
(B) अमेरिका से
(C) ब्रिटेन से
(D) पाकिस्तान से।
उत्तर:
(A) सोवियत रूस से।

5. ‘बाम्बे योजना’ कब प्रकाशित की गई ?
(A) वर्ष 1942 में
(B) वर्ष 1944 में
(C) वर्ष 1945 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1944 में।

6. भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था ?
(A) वर्ष 1965-67 में
(B) वर्ष 1967-69 में
(C) वर्ष 1967-71 में
(D) वर्ष 1967-73 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965-67 में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

7. उच्च उत्पादकता के लिए फसल क्षेत्र मांग करता है :
(A) अधिक पानी की
(B) अधिक उर्वरक की
(C) अधिक कीटनाशकों की
(D) उपर्युक्त सभी की।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी की।

8. “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है, नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” यह किसका कथन है ?
(A) प्रो० के० टी० शर्मा
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा
(C) उर्विक
(D) बैंथम।
उत्तर:
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा।

9. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता था ?
(A) राष्ट्रपति
(B) प्रधानमन्त्री
(C) वित्त मन्त्री
(D) योजना मन्त्री।
उत्तर:
(B) प्रधानमन्त्री।

10. भारत में योजना आयोग की कब नियुक्ति की गई थी ?
(A) 1952
(B) 1950
(C) 1956
(D) 1960
उत्तर:
(B) 1950

11. योजना आयोग किस तरह की संस्था थी ?
(A) असंवैधानिक
(B) गैर-संवैधानिक
(C) संवैधानिक
(D) अति-संवैधानिक।
उत्तर:
(D) अति-संवैधानिक।

12. निम्नलिखित में से कौन नियोजन की उपलब्धि है ?
(A) राष्ट्रीय आय में वृद्धि
(B) सामाजिक विकास
(C) उत्पादन में आत्मनिर्भरता
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

13. “समाजवाद हमारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।” ये शब्द किसने कहे थे ?
(A) महात्मा गांधी ने
(B) सरदार पटेल ने
(C) जवाहर लाल नेहरू ने
(D) डॉ० लॉस्की ने।
उत्तर:
(C) जवाहर लाल नेहरू ने।

14. 1992 तक भारत में किस प्रकार की अर्थव्यवस्था थी ?
(A) साम्यवादी अर्थव्यवस्था
(B) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
(C) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर:
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।

15. सोवियत रूस ने विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया था ?
(A) समाजवादी मॉडल
(B) पूंजीवादी मॉडल
(C) मिश्रित मॉडल
(D) कल्याणकारी मॉडल।
उत्तर:
(A) समाजवादी मॉडल।

16. एक जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर किस नये आयोग की स्थापना हुई. ?
(A) नीति आयोग
(B) पानी आयोग
(C) केन्द्र आयोग
(D) राज्य आयोग।
उत्तर:
(A) नीति आयोग।

17. भारत की विकास योजना का उद्देश्य है
(A) आर्थिक विकास
(B) आत्मनिर्भरता
(C) सामाजिक विकास
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. ‘जनता-योजना’ के जनक थे
(A) मोंटेक सिंह
(B) मनमोहन सिंह
(C) मोरारजी देसाई
(D) एम० एन० राय।
उत्तर:
(D) एम० एन० राय।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष विकास के दो ही मॉडल थे, पहला उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल तथा दूसरा . ………… मॉडल था।
उत्तर:
समाजवादी

(2) योजना आयोग की स्थापना मार्च, …………. में की गई।
उत्तर:
1950

(3) योजना आयोग का अध्यक्ष ………… होता है।
उत्तर:
प्रधानमन्त्री

(4) 1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया, जिसे …………. के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:
बाम्बे प्लान

(5) ……….. में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ।
उत्तर:
1951

(6) दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। ………….. के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक समूह ने यह योजना तैयार की थी।
उत्तर:
पी०सी० महालनोबिस

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति किस दशक में हुई ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति 1960 के दशक में हुई।

प्रश्न 2.
भारत में योजना आयोग की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में की गई।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
भारत में कैसी अर्थव्यवस्था लागू की गई ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Read More »

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

HBSE 12th Class Political Science नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है ?
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिन्ट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।
उत्तर:
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

प्रश्न 2.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था ?
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता।
उत्तर:
(ख) उदारीकरण

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार-ग्रहण किया गया था
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देश के अनुभवों से
(ग) समाज के बारे में गांधीवादी विचार से ।
(घ) किसान संगठनों की मांगों से।

(क) सिर्फ ख और घ
(ख) सिर्फ क और ख
(ग) सिर्फ घ और ग
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ख) सिर्फ क और ख

प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें
(क) चरण सिंह – (i) औद्योगीकरण
(ख) पी० सी० महालनोबिस – (ii) जोनिंग
(ग) बिहार का अकाल – (iii) किसान
(घ) वर्गीज कूरियन – (iv) सहकारी डेयरी।
उत्तर:
(क) चरण सिंह – (iii) किसान
(ख) पी० सी० महालनोबिस – (i) औद्योगीकरण
(ग) बिहार का अकाल – (ii) जोनिंग
(घ) वर्गीज कूरियन – (iv) सहकारी डेयरी।

प्रश्न 5.
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे ? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया ?
उत्तर:
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था। विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए? विकास का पूंजीवादी मॉडल या विकास का साम्यवादी मॉडल। पूंजीवादी मॉडल के समर्थक देश के औद्योगीकरण पर अधिक बल दे रहे थे, जबकि साम्यवादी मॉडल के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना आवश्यक समझते थे। इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमति के बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज़ पर सबसे ज्यादा ज़ोर था ? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी ?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया। क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था, अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्त्व दिया। प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहां प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी ? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 6 देखें।

प्रश्न 8.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे ?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया। क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था। अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया। प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहां प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया। आलोचकों का मत था कि नियोजित ढंग से कृषि को पीछे धकेलने के प्रयास किये जा रहे थे।

इन योजनाओं में औद्योगीकरण पर बल देने के कारण कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों को क्षति पहुंचाई गई थी। इस विषय में योजना आयोग के सदस्य और प्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री जे० सी० कुमारप्पा ने अपनी पुस्तक ‘इकॉनोमी ऑफ परमानेस’ (Economy of Permanance) में एक वैकल्पिक योजना का प्रारूप प्रस्तत किया गया था जिसमें उन्होंने ग्रामीण औद्योगीकरण पर अधिक बल दिया। इसी तरह चौधरी चरण सिंह जो कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता थे, ने योजना के अन्तर्गत कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की जोरदार वकालत की थी।

उन्होंने यह विचार प्रकट किया था कि शहरी और औद्योगिक वर्ग को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से ही द्वितीय एवं तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया है, जिसकी कीमत ग्रामीण जनता और कृषकों को चुकानी पड़ रही है। इसके विपरीत औद्योगिकीकरण के समर्थकों का मत था कि औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर को तेज़ किए बिना भारत में विद्यमान ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर नहीं किया जा सकता है। उन विचारकों ने औद्योगिकीकरण को कृषि अपेक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता देने की नीति को निम्नलिखित आधारों पर उचित ठहराया था

(1) राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है।

(2) कृषि की तुलना में औद्योगिक विकास की दर अधिक तीव्र है।

(3) औद्योगिक वस्तुओं की मांग की आय लोच (Income elasticity) बहुत अधिक है और निर्मित वस्तुओं में निर्यात के अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।

(4) विदेशी निवेशक, कृषि की अपेक्षा उद्योगों में निवेश को प्राथमिकता देते हैं।

(5) भारत में विद्यमान ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर करने में औद्योगिकीकरण महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

(6) कृषि के क्षेत्र में हम अभी आत्मनिर्भर नहीं है और इससे अभी हम अपनी आवश्यकता के लिए ही अनाज नहीं कर पाते हैं तो विदेशी में खाद्यान्न का निर्यात करके कैसे विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।” इस विंचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर:
आजादी के समय अर्थव्यवस्था पर राज्य की भूमिका पर अधिक ज़ोर दिया गया था, अर्थात् आर्थिक गतिविधियों को राज्य नियन्त्रित करता था, अत: कई विद्वानों द्वारा यह तर्क दिया जाता है, कि भारत निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जानी चाहिए थी, परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि आजादी के समय देश की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं कि सरकार निजी क्षेत्र को खुली छूट दे देती। उस समय कृषि क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम सर्वप्रथम था तथा कृषि क्षेत्र का विकास राज्य के नियन्त्रणाधीन ही अधिक ढंग से हो सकता है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें आज़ादी के बाद के आरम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियां पनपीं। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेन्द्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियन्त्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियां अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर ज़ायज़ ठहराया गया। फ्रैंकिन फ्रैंकल

(क) यहां लेखक किस अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है ? ऐसे अन्तर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे ?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएं कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी ? क्या इसका सम्बन्ध विपक्षी दलों की प्रकृति से था ?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व और इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच भी कोई अन्तर्विरोध था ?
उत्तर:
(क) लेखक कांग्रेस पार्टी के अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है कि जहां कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समाजवादी सिद्धान्तों में विश्वास रखती थी, वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार निजी निवेश को बढ़ावा दे रही थी। इस प्रकार के अन्तर्विरोध से देश में राजनीतिक अस्थिरता फैलने की सम्भावना रहती है।

(ख) कांग्रेस इस नीति पर इसलिए चल रही थी, कि कांग्रेस में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे तथा सभी लोगों के विचारों को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का कार्य कर रही थी। इसके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकार की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि विपक्षी दलों के पास आलोचना का कोई मुद्दा न रहे। केन्द्रीय नेतत्व एवं प्रान्तीय नेताओं में कछ हद तक अन्तर्विरोध पाया जाता था, जहां केन्द्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को महत्त्व देता था, वही प्रान्तीय नेता प्रान्तीय एवं स्थानीय मुद्दों को महत्त्व देते थे।

नियोजित विकास की राजनीति HBSE 12th Class Political Science Notes

→ नियोजन का अर्थ कम-से-कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है।
→ अच्छे नियोजन के लक्षण स्पष्ट उद्देश्य, साधनों की व्यवस्था, लचीलापन, समन्वय व्यावहारिकता, पद सोपान तथा निरन्तरता हैं।
→ भारत में सर्वांगीण विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं अपनाई गई हैं।
→ भारत में अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी हैं।
→12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल अप्रैल, 2012 से मार्च, 2017 तक था।
→ भारत में नये सार्वजनिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ है और नये आर्थिक हितों की उत्पत्ति हुई हैं।
→ भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों के उदय के कई कारण रहे हैं, जैसे-राज्य के बढ़ते हुए दायित्व, मिश्रित अर्थव्यवस्था, निजी क्षेत्र से लाभ प्राप्ति की प्रेरणा, सन्तुलित आर्थिक विकास तथा मांग और पूर्ति में सन्तुलन इत्यादि।
→ भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों ने विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
→ सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ समस्याएं भी हैं; जैसे-कुशल प्रबन्ध की समस्या, कर्मचारियों में अनुशासनहीनता, कार्यकुशलता में कमी, प्रतिस्पर्धा का अभाव तथा उत्तरदायित्व की कमी इत्यादि।
→ भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत 1960 के दशक में हुई।
→ हरित क्रान्ति पद्धति के तीन तत्त्व थे-कृषि का निरन्तर विस्तार, दोहरी फसल का उद्देश्य तथा अच्छे बीजों का प्रयोग।
→ हरित क्रान्ति से उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि, फसल क्षेत्र में वृद्धि हुई तथा औद्योगिक विकास एवं बुनियादी ढांचे में विकास हुआ।
→ हरित क्रान्ति की कुछ कमियां भी रही हैं जैसे खाद्यान्न संकट का बने रहना तथा केवल उत्तरी राज्यों को ही लाभ मिलना इत्यादि।
→ जनवरी 2015 में योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग की स्थापना की गई थी।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Read More »

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

→ अपररूप (Allotropes)-किसी तत्व के वे भिन्न-भिन्न रूप जिनके रासायनिक गुणधर्म एक समान होते हैं जबकि भौतिक गुणधर्म भिन्न होते हैं, अपररूप कहलाते हैं। उदाहरण-कार्बन के दो अपररूप होते हैं, जैसे-हीरा एवं ग्रेफाइट।

→ सहसंयोजक आबन्ध (Covalent Bond)-सहसंयोजक आबन्ध इलेक्ट्रॉनों के साझे के द्वारा बनते हैं। कार्बन के यौगिक बहुत बड़ी संख्या में पाये जाते हैं इसका कारण सहसंयोजी आबन्ध है। यह आबन्ध दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉन युग्म की सहभागिता के कारण बनता है।

→ संतृप्त यौगिक (Saturated Compound)-कार्बन परमाणुओं के मध्य जब केवल एकल बन्ध ही उपस्थित होते हैं, तो । ऐसे यौगिकों को संतृप्त यौगिक कहते हैं। संतृप्त हाइड्रोकार्बनों को ऐल्केन (alkane) कहते हैं।

→ असंतृप्त यौगिक (Unsaturated Compounds)-ऐसे यौगिक जिनमें कार्बन परमाणुओं के मध्य द्वि या त्रि-बन्ध पाये जाते हैं, असंतृप्त यौगिक कहलाते हैं। असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों में द्विबन्ध वाले यौगिक एल्कीन (Alkene) जबकि त्रि-बन्ध वाले यौगिक एल्काइन (Alkyne) कहलाते हैं।

→ संरचनात्मक यौगिक (Structural Compounds)-एक समान रासायनिक सूत्र परन्तु विभिन्न संरचनाओं वाले यौगिकों को संरचनात्मक यौगिक कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

→ ताप भंजन (Thermal Cracking)-बहुत अधिक संख्या वाले कार्बन परमाणु युक्त किसी ऐल्केन को गर्म करने पर उसके अणु टूटकर निम्नतर हाइड्रोकार्बन बनाते हैं जिनके. अणुओं में कार्बन परमाणुओं की संख्या कम होती है। इस प्रक्रिया को ताप भंजन (Thermal Cracking) कहते हैं।

→ उत्प्रेरक भंजन (Catalytic Cracking) – यदि ताप भंजन की प्रक्रि कसी उत्प्रेरक की उपस्थिति में की जाती है तो इसे उत्प्रेरक भंजन (Catalytic Cracking) कहते हैं।

→ क्रियात्मक समूह (Functional Group)-किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित वह समूह जो यौगिक के गुणों का निर्धारण करता है तथा जो किसी यौगिक में हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करने पर लगता है, क्रियात्मक समूह या प्रकार्यात्मक समूह या अभिलक्षणीय समूह कहलाता है।

→ प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ (Displacement Reactions)-वे अभिक्रियाएँ जिनमें किसी यौगिक के सभी परमाणु एक-एक करके अन्य परमाणुओं से विस्थापित हों, विस्थापन या प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ कहलाती हैं।

कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बिन्दु (Some Other Important Points) –

→सभी सजीव संरचनाएँ कार्बन पर आधारित हैं। भूमण्डल एवं वायुमण्डल में कार्बन की मात्रा अत्यन्त अल्प होती | है। यह क्रमशः 0.2% व 0.3% है।

→कार्बन का परमाणु क्रमांक 6 है। इसके सबसे बाहरी कक्ष में चार इलेक्ट्रॉन होते हैं। इस प्रकार कार्बन चतु:संयोजक होता है।

→ मीथेन (Methane) कार्बन का यौगिक है। यह बायो गैस एवं कम्प्रैस्ड नेचुरल गैस (CNG) का प्रमुख घटक है। यह कार्बन के सरलतम यौगिकों में से एक है।

→ कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, सल्फर, क्लोरीन तथा अनेक अन्य तत्वों के साथ यौगिक बनाता है।

→ कार्बन एवं हाइड्रोजन के संतृप्त यौगिक मीथेन, एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन, पेन्टेन आदि हैं।

→ सभी हाइड्रोकार्बन ऑक्सीजन की उपस्थिति में दहन करके ताप एवं प्रकाश के साथ CO2 उत्सर्जित करते हैं।

→ कोयला तथा पेट्रोलियम जीवाश्मी ईंधन हैं जिनका निर्माण लाखों वर्ष पूर्व विभिन्न जैविक और भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप हुआ था।

→ उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया प्रभावित हुए बिना एक भिन्न दर से आगे बढ़ती है|

→ जन्तु वसा में संतृप्त वसा युक्त अम्ल होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं। असंतृप्त वसायुक्त अम्लों वाले तेल स्वास्थ्यवर्धक होते हैं।

→ वायु की अनुपस्थिति में लकड़ी को गर्म करने पर मेथेनॉल बनता है जो विषाक्त होता है। इसे एथेनॉल में मिलाने पर विकृत स्पिरिट बनती है जिसका उपयोग स्पिरिट लैम्पों, लकड़ी की पॉलिश करने के लिए विलायक के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग विलायक के रूप में, परफ्यूम बनाने में भी होता है।

→ समस्त ऐल्कोहॉलों में से, एथेनॉल सबसे अधिक उपयोगी होता है। इसे एंजाइमों की उपस्थिति में शक्कर या स्टार्च के किण्वन द्वारा बनाया जाता है।

→ एथिल ऐल्कोहॉल, बीयर, वाइन तथा अन्य शराबों का एक घटक है। इसका उपयोग घावों तथा सिरिंजों को रोगाणु रहित करने में भी होता है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

→ एथेनोइक अम्ल को ऐसीटिक अम्ल कहते हैं। इसके 3.4% विलयन को सिरका कहते हैं।

→ अम्ल एवं ऐल्कोहॉल की अभिक्रिया द्वारा एस्टर तैयार होते हैं।

→ साबुन के अणु सोडियम तथा पोटैशियम लवण होते हैं जो लम्बी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्ल से बनते हैं।

→ साबुन ऐसे अणु होते हैं जिसके दोनों सिरों के गुणधर्म अलग-अलग होते हैं। जल में विलयशील एक सिरे को जलरागी (हाइड्रोफिलिक) तथा हाइड्रोकार्बन में विलयशील दूसरे सिरे को जलविरागी (हाइड्रोफोबिक) कहते |

→ कठोर जल में साबुन मैग्नीशियम और कैल्सियम लवणों से अभिक्रिया करता है जिससे इस प्रकार के पानी में झाग कम बनता है। इस समस्या का समाधान अपमार्जक जो कि लम्बी कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रृंखला के अमोनियम या सल्फेट लवण होते हैं, का प्रयोग करके किया जाता है। इनका उपयोग शैम्पू और डिटरजेंट आदि में होता है।

→ कुछ समय पूर्व रसायनशास्त्रियों द्वारा कार्बन के यौगिकों की गणना की गई है जो लगभग 3 मिलियन है। सभी तत्वों के यौगिकों की कुल संख्या भी इससे कम है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक Read More »

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं
1. भारत में बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली है।

2. एक दल के प्रभुत्व युग का अन्त-भारत में लम्बे समय तक विशेषकर 1977 तक कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा, परन्तु वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है और उसकी जगह अन्य दलों ने ले ली है।

3. सैद्धान्तिक आधारों का अभाव-राजनीतिक दलों का सैद्धान्तिक आधारों पर संगठित होना अनिवार्य है, परन्तु हमारे देश में ऐसे दलों का अभाव है जो ठोस राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धान्तों पर संगठित हों।

4. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों की महत्ता निरन्तर बढ़ती जा रही है।

5. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-भारतीय दलीय प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें क्षेत्रीय दलों की महत्ता लगातार बढ़ती जा रही है।

6. व्यक्तित्व का प्रभाव-लगभग प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल में किसी विशेष प्रतिनिधित्व की अति महानता है। कांग्रेस में सर्वप्रथम पण्डित जवाहर लाल नेहरू, फिर श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा बाद में श्री राजीव गांधी दल का केन्द्र बिन्दु बने हुए थे तथा वर्तमान में श्रीमती सोनिया गांधी एवं श्री राहुल गांधी दल का केन्द्र बिन्दु हैं। भारतीय जनता पार्टी में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवाणी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान समय में यह पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी एवं श्री अमित शाह के नेतृत्व में चल रही है। भारतीय राजनीतिक दलों में सिद्धान्तों की अपेक्षा व्यक्तित्व की अधिक महत्ता है।

7. दलों में गुटबन्दी-कोई भी ऐसा भारतीय राजनीतिक दल नहीं है, जो गुटबन्दी का शिकार न हो। दलों में यह गुटबन्दी विभिन्न राजनीतिक के व्यक्तित्व की महानता का कारण है।

8. घोषित सिद्धान्तों का बलिदान-भारतीय राजनीतिक दल अपने सिद्धान्तों को कोई अधिक महत्ता नहीं देते। राजनीतिक लाभ के लिए ये दल अपने घोषित सिद्धान्तों का शीघ्र ही बलिदान कर देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में विरोधी दल की क्या भमिका है? इसका संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में विरोधी दल निम्नलिखित भूमिका निभाता है

1. आलोचना-भारत में विरोधी दल का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों की आलोचना करना है। विरोधी दल संसद् के अन्दर और संसद के बाहर सरकार की आलोचना करते हैं। विरोधी दल यह आलोचना मन्त्रिमण्डल सदस्यों से विभिन्न प्रश्न पूछ कर, वाद-विवाद तथा अविश्वास प्रस्ताव पेश करके करते हैं।

2. वैकल्पिक सरकार- भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण विरोधी दल वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए तैयार रहता है। यद्यपि विरोधी दल को सरकार बनाने के ऐसे अवसर बहुत ही कम मिलते हैं।

3. शासन नीति को प्रभावित करना-विरोधी दल सरकार की आलोचना करके सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है। कई बार सत्तारूढ़ दल विरोधी दल के सुझावों को ध्यान में रखकर अपनी नीति में परिवर्तन
करते हैं।

4. लोकतन्त्र की रक्षा-विरोधी दल सरकार के तानाशाह बनने से होकर लोकतन्त्र की रक्षा करता है।

5. उत्तरदायी आलोचना-विरोधी दल केवल सरकार की आलोचना करने के लिए आलोचना नहीं करते बल्कि सरकार को विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए सुझाव भी देते हैं। आवश्यकता पड़ने पर विरोधी दल सरकार को पूर्ण सहयोग देता है।

6. अस्थिर मतदाता को अपील करना-विरोधी दल सत्तारूढ़ दल को आम चुनाव में हराने का प्रयत्न करता है। इसके लिए विरोधी दल सत्तारूढ़ दल की आलोचना करके मतदाताओं के सामने यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है कि यदि उसे अवसर दिया जाए तो वह देश का शासन सत्तारूढ़ दल की अपेक्षा अच्छा चला सकता है। विरोधी दल अस्थायी मतदाताओं को अपने पक्ष में करके चुनाव जीतने का प्रयत्न करता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता के कारण लिखें।
उत्तर:
प्रारम्भिक वर्षों में भारत में एक दल की प्रधानता के निम्नलिखित कारण थे

1. कांग्रेस में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था (Congress as Respresentative of all Shades of Opinion):
कांग्रेस पार्टी की प्रधानता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था, कि इसमें देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। वास्तव में कांग्रेस स्वयं में एक ‘महान् गठबन्धन’ (Grand Alliance) था। कांग्रेस पार्टी उग्रवादी, उदारवादी, दक्षिण पंथी, साम्यवादी तथा मध्यमार्गी नेताओं का एक महान् मंच था, जिसके कारण लोग इसी पार्टी को मत दिया करते थे।

2. विरोधी दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे (Opposition Parties as Disgruntled children of the Congress Party):
स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में जितने भी विरोधी राजनीतिक दल थे, उनमें से अधिकांश राजनीतिक दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे। समाजवादी पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी, 29 जनसंघ, राम राज्य परिषद् तथा हिन्दू महासभा जैसी पार्टियों के सम्बन्ध कभी-न-कभी कांग्रेस से ही रहे हैं। अत: लोगों ने उस समय कांग्रेस से अलग हुए दलों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस को ही वोट देना उचित समझा।

3. 1967 के पश्चात् भी केन्द्र में कांग्रेस की प्रधानता (Dominance of Congress at the Centre level even after 1967 Elections):
यद्यपि 1967 के चुनावों के पश्चात् राज्यों में से कांग्रेस की प्रधानता समाप्त हो गई, परन्तु केन्द्र में अभी भी कांग्रेस की शक्तिशाली सरकार थी, जो राज्यों की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका रखती थी।

4. राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में समानता (Similarity of Programmes of all Parties):
कांग्रेस एवं उसकी विरोधी पार्टियों के कार्यक्रमों एवं नीतियों में कोई बहुत अधिक अन्तर नहीं था, बल्कि उनमें समानताएं अधिक थीं। जिसके कारण मतदाताओं ने अन्य पार्टियों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देना उचित समझा।

5. गठबन्धन सरकारों की असफलता (Failure of Coalition govt.):
कांग्रेस की प्रधानता का एक कारण राज्यों में गठबन्धन सरकारों की असफलता थी। 1967 के आम चुनावों के पश्चात् आधे राज्यों में गैर-कांग्रेसी गठबन्धन सरकारें बनीं, परन्तु गैर-कांग्रेसी नेता अपने निजी स्वार्थों के लिए आपस में ही उलझते रहे, जिस कारण गठबन्धन सरकारें सफल न हो सकी तथा लोगों का गैर-कांग्रेसी सरकारों से मोहभंग हो गया।

6. राजनीतिक दल-बदल (Political Defection):
1967 के आम चुनावों के पश्चात् जो राजनीतिक दल-बदल हुए, उससे परोक्ष रूप में आगे चलकर कांग्रेस पार्टी ही अधिक शक्तिशाली हुई।

प्रश्न 4.
भारत में ‘एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली’ किसी दूसरे देश की एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है ? एक दल के प्रभुत्व का अर्थ क्या यह है कि भारत में वास्तविक प्रजातन्त्र नहीं है ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
भारत में एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली किसी दूसरे देश की इसी तरह की प्रणाली से सर्वथा भिन्न है। क्योंकि भारत में उस दल में भी प्रजातान्त्रिक तत्त्व पाये जाते हैं तथा भारत में एक दल के प्रभुत्व के होते हुए भी वास्तविक तौर पर प्रजातन्त्र पाया जाता है, जिसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  • भारत में निर्धारित तौर पर चुनाव होते रहे हैं।
  • भारत में सभी दलों को चुनावों में भाग लेने का अधिकार है।
  • भारत के सभी वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार प्राप्त है।
  • भारत में विरोधी दल पाया जाता है।
  • विरोधी दलों एवं लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त है।
  • चुनावों के पश्चात् उसी दल की सरकार बनती है, जिसे बहुमत प्राप्त हो।
  • भारतीय नागरिकों को संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं।
  • मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 5.
भारत में 1952 के आम चुनाव पूरी दुनिया के लोकतंत्र के लिए किस प्रकार मील का पत्थर साबित हुए ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में 1952 के प्रथम आम चुनाव दुनिया के लोकतन्त्र के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए, क्योंकि यह चुनाव कई पक्षों से अनूठा तथा इसको सफलतापूर्वक करवाने में कई बाधाएं थीं। स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची का होना आवश्यक था तथा चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन भी आवश्यक था। भारतीय चुनाव आयोग ने इन कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। 1952 में लगभग 17 करोड़ मतदाताओं ने 3200 विधायक और लोकसभा के 489 सांसदों का चुनाव करना था। इस प्रकार का कार्य हिमालय पर चढ़ाई करने जैसा था।

भारतीय मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत मतदाता ही साक्षर थे। अतः चुनाव आयोग को विशेष मतदान पद्धति के बारे में सोचना पड़ा। भारत में चुनाव करवाने केवल इसलिए ही मुश्किल नहीं थे, बल्कि अधिकांश भारतीय मतदाता अनपढ़ ग़रीब एवं प्रजातान्त्रिक प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ थे, जबकि जिन देशों में लोकतान्त्रिक चुनाव सफलतापूर्वक होते थे, वे अधिकांश विकसित देश थे और उन विकसित देशों में भी महिलाओं को मताधिकार प्राप्त नहीं था।

जबकि भारत में 1952 में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया था। अतः भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाना बहुत मुश्किल कार्य था। एक भारतीय सम्पादक ने “इस चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा जुआ कहा था। आर्गनाइजर पत्रिका के अनुसार, “पं. जवाहर लाल नेहरू अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे कि सार्वभौम मताधिकार का सिद्धान्त असफल रहा है।”

1952 में हुए प्रथम चुनाव की सम्पूर्ण प्रक्रिया पूरे होने में लगभग छ: महीने लगे। अधिकांश सीटों पर मुकाबला भी हुआ तथा हराने वाले उम्मीदवारों ने भी माना, कि चुनाव निष्पक्ष हुए। विदेशी आलोचकों ने भी चुनावों की निष्पक्षता को स्वीकार किया। चुनावों के बाद हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा कि “सर्वत्र यह बात स्वीकृत की जा रही है, कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतन्त्र के सबसे बड़े प्रयोग को सफलतापूर्वक पूरा किया।” इसीलिए कहा जाता है. कि 1952 के चुनाव दुनिया के लोकतन्त्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1. भारत में बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली है।

2. एक दल के प्रभुत्व युग का अन्त-भारत में लम्बे समय तक विशेषकर 1977 तक कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा, परन्तु वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है और उसकी जगह अन्य दलों ने ले ली है।

3. सैद्धान्तिक आधारों का अभाव-राजनीतिक दलों का सैद्धान्तिक आधारों पर संगठित होना अनिवार्य है, परन्तु हमारे देश में ऐसे दलों का अभाव है जो ठोस राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धान्तों पर संगठित हों।

4. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों की महत्ता निरन्तर बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 2.
एक प्रजातन्त्रीय राज्य के लिए राजनीतिक दल क्यों अनिवार्य हैं ?
उत्तर:
आधुनिक युग राष्ट्रीय राज्यों का युग है। आधुनिक समय के ऐसे राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र असम्भव है क्योंकि इन राज्यों की जनसंख्या तथा आकार अत्यधिक है। आधुनिक समय में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र अथवा प्रतिनिधि लोकतन्त्र ही सम्भव है। राजनीतिक दलों के बिना इस प्रकार के लोकतन्त्र की सम्भावना नहीं हो सकती। संयुक्त कार्यक्रम के आधार पर चुनाव लड़ने के लिए, सरकार का निर्माण करने के लिए और विपक्षी दल की भूमिका अभिनं करने के लिए राजनीतिक दलों की आवश्यकता है। इसी कारण कहा जा सकता है “राजनीतिक दल नहेंद्र नहीं।” (No political parties, no democracy.)

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार चुनाव में भाग लेना।
  • शासक दल अथवा विपक्षी दल के रूप में भूमिका निभाना।
  • लोगों को राजनीतिक रूप में जागृत करना।
  • सरकार तथा लोगों में एक योजक का काम करना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 4.
91वें संशोधन द्वारा दल-बदल को रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं ?
उत्तर:
दल-बदल को रोकने के लिए 52वें संशोधन द्वारा बनाया गया कानून पूरी तरह दल-बदल रोकने में सफल नहीं रहा। इसी कारण दल-बदल कानून को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए दिसम्बर, 2003 में संविधान में 91वां संशोधन किया गया।

इस कानून (संवैधानिक संशोधन) द्वारा यह व्यवस्था की गई, कि दल-बदल करने वाला कोई सांसद या विधायक सदन की सदस्यता खोने के साथ-साथ अगली बार चुनाव जीतने तक अथवा सदन के शेष कार्यकाल तक (जो भी पहले हो), मन्त्री पद या लाभ का कोई अन्य पद प्राप्त नहीं कर सकेगा। इस कानून के अन्तर्गत सांसदों या विधायकों के दल-बदल करने के लिए एक तिहाई सदस्य संख्या की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 5.
कांग्रेस पार्टी को ‘छतरी संगठन’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में की गई। कांग्रेस पार्टी की स्थापना के समय भारत में राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी थीं, कि समाज का प्रत्येक वर्ग भारत को स्वतन्त्र देखना चाहता था। इसीलिए जब 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना की गई, तब समाज का प्रत्येक वर्ग अपने छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर कांग्रेस के मंच पर आ गया। कांग्रेस में सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं, क्षेत्रों तथा समुदायों के लोग शामिल थे। इसीलिए पामर (Palmer) ने कांग्रेस पार्टी को एक ‘छाता संगठन’ कहा है। आगे चलकर डॉ० अम्बेदकर ने कांग्रेस पार्टी की तुलना एक सराय से की थी जिसके द्वार समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हुए थे।

प्रश्न 6.
भारत में एक दल के प्रभुत्व के किन्हीं चार कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
1. सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व-कांग्रेस पार्टी की प्रधानता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि इसमें देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था।

2. विरोधी दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे-स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में जितने भी विरोधी दल थे उनमें से अधिकांश दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे। अत: लोगों ने अलग हुए गुटों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देना उचित समझा।

3. राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में समानता-कांग्रेस एवं उसकी विरोधी पार्टियों के कार्यक्रमों में काफ़ी समानता पाई जाती थी। इसलिए भी मतदाता अन्य दलों की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देते थे।

4. गठबन्धन सरकारों की असफलता-कांग्रेस की प्रधानता का एक कारण राज्यों में गठबन्धन सरकारों की असफलता थी। जिसके कारण लोगों का गैर-कांग्रेसी सरकारों से मोह भंग हो गया।

प्रश्न 7.
कांग्रेस पार्टी की राज्य स्तर पर असमान प्रधानता की व्याख्या करें।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की राज्य स्तर पर असमान प्रधानता का अर्थ यह है, कि केन्द्र की तरह राज्यों में कांग्रेस पार्टी . सदैव प्रधान नहीं रही। 1977 तक कांग्रेस पार्टी की केन्द्र स्तर पर प्रधानता बनी रही। परन्तु इसी दौरान राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की पूरी प्रधानता नहीं रही। क्योंकि कुछ राज्यों में क्षेत्रीय या अन्य दलों का उदय हो चुका था।

जैसे, भारतीय साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल, अकाली दल, द्रविड़ कड़गम, क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक तथा नेशनल कान्फ्रेंस। इन दलों ने समय-समय पर अपने-अपने राज्यों में सरकार बनाकर राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की प्रधानता को चुनौती थी। इसीलिए कहा जाता है, कि राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की असमान प्रधानता थी।

प्रश्न 8.
कांग्रेस के गठबन्धनवादी स्वरूप की व्याख्या करें।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी यद्यपि 1977 तक केन्द्र में शासन करती रही। परन्तु राज्यों में कांग्रेस की पूरी प्रधानता नहीं रही तथा समय-समय पर क्षेत्रीय तथा अन्य दलों ने कांग्रेस पार्टी को चुनावों में पराजित भी किया। इसी कारण कांग्रेस पार्टी ने कई राज्यों में अन्य दलों से समझौता करके अपनी सरकारें बनवाने का प्रयास किया।

1954 में कांग्रेस पार्टी ने कोचीन में पी० एस० पी० की अल्पमत सरकार भी बनवाई। 1957 में उड़ीसा में कांग्रेस पार्टी ने दूसरे आम चुनावों में एक स्थानीय दल गणतन्त्र परिषद् से गठबन्धन किया। 1970 के अन्त में केन्द्र में भी कांग्रेस ने अपनी सरकार को चलाने के लिए साम्यवादी दलों का सहारा लिया। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है, कि यद्यपि कांग्रेस की प्रधानता रही है, परन्तु समय-समय पर उसे गठबन्धन राजनीति को स्वीकार करना पड़ा है।

प्रश्न 9.
भारत में एक पार्टी का प्रभत्व विश्व के और देशों में एक पार्टी के प्रभत्व से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर:
भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व विश्व के और देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से सर्वथा भिन्न था। उदाहरण के लिए भारत और मैक्सिको में दोनों देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था, जहां भारत में लोकतान्त्रिक आधार पर एक दल का प्रभुत्व कायम था, वहीं मैक्सिको में एक दल की तानाशाही पाई जाती थी तथा लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था।

इसी प्रकार सोवियत संघ एवं चीन में भी एक पार्टी का प्रभुत्व पाया जाता था, परन्तु इन देशों में भी राजनीतिक दल प्रजातान्त्रिक आधारों पर संगठित नहीं हुए थे, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रजातान्त्रिक आधार पर संगठित हुई थी।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के शुरू के वर्षों में विपक्षी दलों को यद्यपि कहने भर का प्रतिनिधित्व मिल पाया, फिर भी इन दलों ने हमारी शासन-व्यवस्था के लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाये रखने में किस प्रकार निर्णायक भूमिका निभाई ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के शुरू के वर्षों में विपक्षी दलों को यद्यपि कहने भर का प्रतिनिधित्व मिल पाया फिर भी इन दलों ने हमारी शासन-व्यवस्था को लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाये रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के शुरुआती वर्षों में सी०पी०आई०, जनसंघ, स्वतन्त्र पार्टी तथा सोशलिस्ट पार्टी जैसी पार्टियां भारत में विपक्षी दल की भूमिका निभाती थीं।

इन दलों ने समयानुसार एवं आवश्यकतानुसार सत्ताधारी कांग्रेस दल की अनुचित नीतियों एवं कार्यक्रमों की आलोचना की। ये आलोचनाएं सैद्धान्तिक तौर पर सही होती थीं। इन विपक्षी दलों ने अपनी सक्रिय गतिविधियों से कांग्रेस दल पर अंकुश बनाये रखा तथा लोगों को राजनीतिक स्तर पर एक विकल्प प्रदान करते रहे।

प्रश्न 11.
प्रथम तीन चुनावों में मुख्य विपक्षी दल कौन-से थे ?
उत्तर:
प्रथम तीन आम चुनावों में मुख्य विपक्षी दलों में सी० पी० आई०, एस० पी०, प्रजा समाजवादी पार्टी, जनसंघ तथा स्वतंत्र पार्टी शामिल हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 12.
‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सन् 1924 में हुई। इस पार्टी को 1952 के लोकसभा चुनावों में 16 सीटें, 1957 के चुनावों में 27 सीटें एवं 1962 के चुनावों में 29 सीटें प्राप्त हुईं। इस पार्टी ने 1957 में केरल में विश्व की पहली लोकतांत्रिक साम्यवादी सरकार का निर्माण किया। 1959 में चीन के साथ सम्बन्ध के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 में चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया।

एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार के देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा, परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एक तिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी दल की स्थापना की।

प्रश्न 13.
‘भारतीय जनसंघ’ पार्टी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना सन् 1951 में हुई थी। इसके संस्थापक श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। जनसंघ अपनी विचारधारा, सिद्धांत एवं कार्यक्रम के आधार पर अन्य दलों से भिन्न था। यह दल एक देश, एक संस्कृति एवं राष्ट्र पर जोर देता था। जनसंघ का कहना था, कि भारत एवं पाकिस्तान को मिलाकर ‘अखण्ड भारत’ बनाया जाए।

यह दल अंग्रेज़ी को हटाकर हिन्दी को राजभाषा बनाने के पक्ष में था। इस दल ने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को ‘विशेष सुविधाएं देने का विरोध किया। सन् 1952 के चुनावों में इस दल को 3 सीटें मिली, 1957 के चुनावों में इस दल को 4 सीटें मिलीं। इस दल के मुख्य नेताओं में श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी, श्री दीनदयाल उपाध्याय एवं श्री बलराम मधोक शामिल थे।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
राजनीतिक दल ऐसे नागरिकों का समूह है जो सार्वजनिक मामलों पर एक-से विचार रखते हों और संगठित होकर अपने मताधिकार द्वारा सरकार पर अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हों ताकि अपने सिद्धान्तों को लागू कर सकें। गिलक्राइस्ट के शब्दानुसार, “राजनीतिक दल ऐसे नागरिकों का संगठित समूह है जिनके राजनीतिक विचार एक से हों और एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करके सरकार पर नियन्त्रण रखने का प्रयत्न करते हों।”

प्रश्न 2.
भारत में कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब हुई ? इसके मुख्य संस्थापक का नाम लिखिए।
उत्तर:
कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में हुई तथा इसके संस्थापक का नाम ए० ओ० ह्यूम था।

प्रश्न 3.
भारत में साम्यवादी दल की स्थापना कब हुई? इसका विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
भारत में साम्यवादी दल की स्थापना सन् 1924 में हुई और इसका विभाजन सन् 1964 में हुआ।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के बाद भारत द्वारा किस शासन प्रणाली को चुना गया था ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद भारत द्वारा संसदीय शासन प्रणाली को चुना गया था।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में चुनाव कराने की जिम्मेवारी किसे सौंपी गई है ?
अथवा
भारत में चुनाव कराने की जिम्मेवारी किसे सौंपी गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में चुनाव कराने की जिम्मेवारी चुनाव आयोग को सौंपी गई है।

प्रश्न 6.
भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी का 1964 में विभाजन हआ। इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना 1924 में की गई थी। 1959 में चीन के साथ सम्बन्ध के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 के चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया। एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को पूरी सहायता देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा। परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एक तिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी दल की स्थापना की।

प्रश्न 7.
भारतीय जनसंघ की स्थापना कब हुई ? इसके संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
भारतीय जनसंघ की स्थापना सन् 1951 में हुई। इसके संस्थापक श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।

प्रश्न 8.
किस विद्वान् ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय कहा और क्यों ?
उत्तर:
डॉ० भीम राव अम्बेदकर ने कांग्रेस पार्टी को सराय कहा था, क्योंकि कांग्रेस पार्टी के द्वार समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हुए थे। डॉ० अम्बेदकर के अनुसार कांग्रेस पार्टी के द्वार मित्रों, दुश्मनों, चालाक व्यक्तियों, मूों तथा यहां तक कि सम्प्रदायवादियों के लिए भी खुले हुए थे।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 9.
भारतीय जनसंघ ने किस विचारधारा पर जोर दिया था ?
उत्तर:

  • भारतीय जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।
  • जनसंघ का विचार था कि भारतीय संस्कृति और परम्परा के आधार पर भारत आधुनिक प्रगतिशील और ताकतर बन सकता है।

प्रश्न 10.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मौलाना अबुल कलाम का पूरा नाम अबुल कलाम मोहियुद्दीन अहमद था। इनका जन्म 1888 में हुआ तथा निधन 1958 में हुआ। अबुल कलाम इस्लाम के प्रसिद्ध विद्वान् थे। वे प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, कांग्रेसी नेता तथा हिन्दू मुस्लिम एकता के समर्थक थे। उन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया। वे संविधान सभा के सदस्य थे, तथा स्वतन्त्र भारत के पहले शिक्षा मन्त्री थे।

प्रश्न 11.
भारत की दलीय व्यवस्था के कोई दो लक्षण दीजिए।
उत्तर:

  • भारत में बहुदलीय व्यवस्था पाई जाती है।
  • भारत में राजनीतिक दलों का चुनाव आयोग के पास पंजीकरण होता है।

प्रश्न 12.
डॉ० भीम राव अम्बेदकर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
डॉ० भीम राव अम्बेदकर का जन्म महाराष्ट्र में 1891 में हुआ। डॉ० अम्बेदकर कानून के विशेषज्ञ एवं संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। डॉ० अम्बेदकर जाति विरोधी आन्दोलन के नेता तथा पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने के संघर्ष के प्रेरणा स्रोत माने जाते थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् नेहरू मन्त्रिमण्डल में मन्त्री बने, परन्तु 1951 में हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर असहमति जताते हुए पद से इस्तीफा दिया। 1956 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 13.
राजकुमारी अमृतकौर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
राजकुमारी अमृतकौर गांधीवादी स्वतन्त्रता सेनानी थीं, उनका जन्म 1889 में कपूरथला के राजपरिवार में हुआ। उन्होंने अपनी माता के अनुसार ईसाई धर्म अपनाया। वह संविधान सभी की सदस्य भी रहीं तथा नेहरू मन्त्रिमण्डल में स्वास्थ्य मन्त्री का कार्यभार सम्भाला। सन् 1964 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 14.
सी० राजगोपालाचारी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।।
उत्तर:
सी० राजगोपालाचारी का जन्म 1878 में हुआ। सी० राजगोपालाचारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे संविधान सभा के सदस्य थे, वे भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल बने। वे केन्द्र सरकार में मन्त्री तथा मद्रास के मुख्यमन्त्री भी रहे। उन्होंने 1959 में स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना की। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1972 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 15.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 1901 में हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे। वे हिन्द महासभा के महत्त्वपूर्ण नेता तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्होंने 1950 में पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को लेकर मतभेद होने पर नेहरू मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दिया। वे कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 1953 में हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 16.
चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चुनाव एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा मतदाता अपने प्रतिनिधि चुनते हैं। चुनाव प्रत्यक्ष भी हो सकते हैं, और अप्रत्यक्ष भी हो सकते हैं।

प्रश्न 17.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आय राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी, परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है।

प्रश्न 18.
साम्यवादी दल, सन् 1964 में हुए विभाजन के बाद किन दो राजनीतिक दलों में बंटा था ?
उत्तर:
साम्यवादी दल, सन् 1964 में हुए विभाजन के भारतीय साम्यवादी दल तथा भारतीय साम्यवादी (मार्क्सवादी) दल में बंटा हुआ था।

प्रश्न 19.
गठबन्धन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
गठबन्धन सरकार का साधारण अर्थ है, कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। चुनावों से पूर्व या चुनावों के बाद कई दल मिलकर अपना साझा कार्यक्रम तैयार करते हैं। उसके आधार पर वे मिलकर चुनाव लड़ते . हैं अथवा अपनी सरकार बनाते हैं। भारत में सबसे पहले केन्द्र में 1977 में गठबन्धन सरकार बनी।

प्रश्न 20.
‘एक दलीय प्रभत्व’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था उसे कहते हैं, जहां बहुदलीय पद्धति के अन्तर्गत किसी एक दल की प्रधानता होती है। एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था में यद्यपि अन्य भी कई दल होते हैं, परंतु उनका राजनीतिक महत्व अधिक नहीं होता, क्योंकि लोगों का उन्हें अधिक समर्थन प्राप्त नहीं होता। ऐसी व्यवस्था में मतदाता केवल एक ही दल को अधिक महत्त्व देते हैं। भारत एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था का एक प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है।

प्रश्न 21.
‘एक दल की प्रधानता का युग’ कौन-से काल को कहा जाता है ?
उत्तर:
एक दल की प्रधानता का युग सन् 1952 से 1962 तक के काल को कहा जाता है, क्योंकि इन तीनों चुनावों में केन्द्र एवं राज्य स्तर पर कांग्रेस का ही प्रभुत्व था।

प्रश्न 22.
भारत में एक दल की प्रधानता का युग कब समाप्त हुआ ?
उत्तर:
भारत में एक दल की प्रधानता का युग सन् 1967 में हुए चौथे आम चुनाव के बाद समाप्त हुआ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. दूसरा आम चुनाव कब हुआ?
(A) 1950 में
(B) 1952 में
(C) 1957 में
(D) 1962 में।
उत्तर:
(C) 1957 में।

2. निम्नलिखित में से किसने कांग्रेस को छाता संगठन (Umbrella organisation) की संज्ञा दी ?
(A) महात्मा गांधी ने
(B) जवाहर लाल नेहरू ने
(C) पामर ने
(D) बाल गंगाधर तिलक ने।
उत्तर:
(C) पामर ने।

3. किसने कांग्रेस की तुलना सराय से की है ?
(A) गोपाल कृष्ण गोखले
(B) लाला लाजपत राय
(C) डॉ० अम्बेदकर
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(C) डॉ० अम्बेदकर।

4. निम्न में से एक दल को ‘छाता संगठन’ के नाम से सम्बोधित किया गया।
(A) सोशलिस्ट पार्टी
(B) कांग्रेस दल
(C) भारतीय जनसंघ
(D) हिन्दू महासभा।
उत्तर:
(B) कांग्रेस दल।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

5. भारत में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है
(A) राष्ट्रपति को
(B) संसद् को
(C) मुख्य न्यायाधीश को
(D) चुनाव आयोग को।
उत्तर:
(D) चुनाव आयोग को।

6. निम्नलिखित में से किस नेता ने कांग्रेस को जन-आन्दोलन का रूप दिया ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू ने
(B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने
(C) विनोबा भावे
(D) महात्मा गांधी ने।
उत्तर:
(D) महात्मा गांधी ने।

7. भारत के प्रथम मुख्य चुनाव उपयुक्त कौन थे ?
(A) टी० एन० शेषन
(B) सुकुमार सेन
(C) एम० एस० गिल
(D) हुकुम सिंह।
उत्तर:
(B) सुकुमार सेन।

8. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई ?
(A) 1885 में
(B) 1886 में
(C) 1905 में
(D) 1895 में।
उत्तर:
(A) 1885 में।

9. भारत में एक दल की प्रधानता का युग किस नेता से जुड़ा है ?
(A) सरदार पटेल
(B) पं० नेहरू
(C) महात्मा गांधी
(D) लाल बहादुर शास्त्री
उत्तर:
(B) पं० नेहरू।

10. प्रथम तीन आम चुनावों में किस राजनीतिक दल का प्रभुत्व बना रहा ?
(A) कम्युनिस्ट पार्टी का
(B) समाजवादी पार्टी का
(C) कांग्रेस पार्टी का
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) कांग्रेस पार्टी का।

11. स्वतन्त्र भारत में एक दल की प्रधानता का युग निम्नलिखित वर्ष से आरम्भ होता है
(A) 1952 में
(B) 1957 में
(C) 1950 में
(D) 1951 में।
उत्तर:
(A) 1952 में।

12. प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस को लोकसभा में कितने स्थान प्राप्त हुए थे?
(A) 361
(B) 401
(C) 364
(D) 370
उत्तर:
(C) 364

13. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन कब हुआ ?
(A) 1962 में
(B) 1964 में
(C) 1975 में
(D) 1970 में।
उत्तर:
(B) 1964 में।

14. 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ निम्न के लिए भी चुनाव कराए गए थे
(A) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
(B) राज्य विधानसभा का चुनाव
(C) राज्य सभा का चुनाव
(D) प्रधानमन्त्री का चुनाव।
उत्तर:
(B) राज्य विधानसभा का चुनाव।

15. भारतीय जनसंघ के संस्थापक कौन थे ?
(A) सी० राजगोपालाचारी
(B) डॉ० श्यामा प्रसाद
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(B) डॉ० श्यामा प्रसाद।

16. राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई ?
(A) महात्मा गांधी
(B) गोपाल कृष्ण गोखले
(C) डॉ० अम्बेदकर
(D) पं० नेहरूं।
उत्तर:
(A) महात्मा गांधी।

17. भारतीय जनता पार्टी की जड़ें किस पार्टी में पाई जाती हैं ?
(A) साम्यवादी पार्टी
(B) स्वतन्त्र पार्टी
(C) भारतीय जनसंघ
(D) कांग्रेस पाटी।
उत्तर:
(C) भारतीय जनसंघ।

18. सन् 1957 के चुनावों के बाद निम्नलिखित किस राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ ?
(A) राजस्थान में
(B) मद्रास में
(C) आन्ध्र प्रदेश में
(D) केरल में।
उत्तर:
(D) केरल में।

19. भारतीय जनसंघ की स्थापना निम्नलिखित वर्ष में हुई :
(A) 1950 में
(B) 1951 में
(C) 1952 में
(D) 1949 में।
उत्तर:
(B) 1951 में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

20. स्वतन्त्र भारत में पहला आम चुनाव कब हुआ ?
(A) 1952 में
(B) 1957 में
(C) 1948 में
(D) 1950 में।
उत्तर:
(A) 1952 में।

21. सन् 1952 से 1966 तक भारत के राजनीतिक मंच पर
(A) एक दल की प्रधानता रही
(B) दो-दलीय प्रधानता रही
(C) तीन दलीय प्रधानता रही
(D) बहु-दलीय प्रधानता रही।
उत्तर:
(A) एक दल की प्रधानता रही।

22. भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना निम्नलिखित किस वर्ष में हुई-
(A) 1950 में
(B) 1924 में
(C) 1964 में
(D) 1934 में।
उत्तर:
(B) 1924 में।

23. ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना किस वर्ष हुई ?
(A) 1950 में
(B) 1951 में
(C) 1957 में
(D) 1960 में।
उत्तर:
(B) 1951 में।

24. प्रथम आम चुनाव में लोकसभा में 16 स्थान प्राप्त करके कौन-सा दल कांग्रेस के बाद दूसरे स्थान पर रहा ?
(A) जनसंघ
(B) समाजवार्दी पार्टी
(C) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(D) हिन्दू महासभा।
उत्तर:
(C) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।

25. 1957 में केरल विधानसभा में किस दल की सरकार बनी ?
(A) साम्यवादी दल
(B) कांग्रेस पार्टी
(C) स्वतन्त्र पार्टी
(D) जनसंघ
उत्तर:
(A) साम्यवादी दल।

26. भारत में तीसरा आम चुनाव सम्पन्न हुआ
(A) 1961 में
(B) 1962 में
(C) 1960 में
(D) 1963 में।
उत्तर:
(B) 1962 में।

27. भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी में विभाजन कब हुआ ?
(A) 1962 में
(B) 1964 में
(C) 1957 में
(D) 1970 में।
उत्तर:
(B) 1964 में।

28. विश्व में सबसे पहले कहां पर निर्वाचित ढंग से साम्यवादी दल की सरकार बनी ?
(A) केरल
(B) मास्को
(C) हवाना
(D) गुजरात।
उत्तर:
(A) केरल।

29. भारत में वयस्क मताधिकार की आयु निश्चित की गई है
(A) 20 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 19 वर्ष।
उत्तर:
(C) 18 वर्ष।

30. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस स्थान पर हुई ?
(A) दिल्ली में
(B) बम्बई में
(C) लखनऊ में
(D) कलकत्ता में।
उत्तर:
(B) बम्बई में।

31. 1984 में कांग्रेस ने लोकसभा का चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा?
(A) इंदिरा गांधी
(B) मोरार जी देसाई
(C) राजीव गांधी
(D) देवराज अर्स।
उत्तर:
(C) राजीव गांधी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

32. भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त थे :
(A) बलराम जाखड़
(B) हुकुम सिंह
(C) सुकुमार सेन
(D) शिवराज पाटिल।
उत्तर:
(C) सुकुमार सेन।

33. मुख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय निम्नलिखित को जाता है
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) राजेन्द्र प्रसाद
(C) गोपाल कृष्ण गोखले
(D) ए० ओ० ह्यम।
उत्तर:
(D) ए० ओ० ह्यूम।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) साम्यवादी पार्टी की स्थापना वर्ष ………… में हुई।
उत्तर:
1924

(2) भारत में एक दल की प्रधानता का युग ……….. भारतीय नेता से जुड़ा हुआ है।
उत्तर:
पं० जवाहर लाल नेहरू

(3) केन्द्र स्तर पर कांग्रेस पार्टी की प्रधानता वर्ष …………… में समाप्त हो गई।
उत्तर:
1977

(4) पामर ने कांग्रेस को एक …………. संगठन कहा।
उत्तर:
छाता

(5) एस० ए० डांगे …………… पार्टी के नेता थे।
उत्तर:
साम्यवादी

(6) भारत के चुनाव आयोग का गठन ………… में हुआ।
उत्तर:
1950

(7) स्वतंत्र भारत में पहला आम चुनाव सन् …………….. में हुआ।
उत्तर:
1952

(8) सन् 1957 के चुनावों के पश्चात् पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन ……….. राज्य में हुआ।
उत्तर:
केरल

(9) भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष ……………… थे।
उत्तर:
श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार की दलीय प्रणाली पाई जाती है ?
उत्तर:
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है।

प्रश्न 2.
मख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय किस व्यक्ति को जाता है ?
उत्तर:
मुख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय ए० ओ० ह्यूम को जाता है।

प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता किस दल से सम्बन्धित रही है ?
उत्तर:
भारत में एक दल की प्रधानता कांग्रेस दल से सम्बन्धित रही है।

प्रश्न 4.
किस युग में कांग्रेस पार्टी ने मध्यवर्गीय व्यापारियों, पाश्चात्य शिक्षित व्यापारियों, वकीलों एवं भू-स्वामियों को एक मंच प्रदान किया ?
उत्तर:
उदारवादी युग में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 5.
कांग्रेस दल किस सन् में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया ?
उत्तर:
कांग्रेस दल 1905 से 1918 तक के काल में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई ?
उत्तर:
राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई।

प्रश्न 7.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन सन् 1964 में हुआ।

प्रश्न 8.
प्रथम आम चुनावों के समय कितने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल विद्यमान थे ?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में 14 राष्ट्रीय स्तर एवं 52 राज्य स्तर के दल विद्यमान थे।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी की स्थापना किस वर्ष हुई ?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई।

प्रश्न 10.
भारत में मतदाता दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर:
भारत में मतदाता दिवस 25 जनवरी को मनाया जाता है।

प्रश्न 11.
भारत में चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसे सौंपी गई है ?
उत्तर:
चुनाव आयोग को।

प्रश्न 12.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
ए० ओ० ह्यम।

प्रश्न 13.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
सन् 1964 में।

प्रश्न 14.
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।

प्रश्न 15.
श्री एस० ए० डांगे किस दल के प्रमुख नेता थे ?
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Read More »

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु

→ धातु (Metals)-ऐसे तत्व, जिनमें चमक होती है, जो तार तथा पतली चादरों के रूप में परिवर्तित किये जा सकें तथा जो ऊष्मा के चालक होते हैं, धातु कहलाते हैं। उदाहरण-आयरन, कॉपर, सोना, चाँदी आदि।

→ अधातु (Non-metals)-वे तत्व, जिनमें चमक नहीं होती है, जो तार तथा पतली चादरों के रूप में परिवर्तित नहीं किये जा सकते एवं जो ऊष्मा के कुचालक होते हैं, अधातु कहलाते हैं। उदाहरण- सल्फर, फॉस्फोरस, कार्बन इत्यादि।

→ तन्यता (Ductility) धातुओं का वह लाक्षणिक गुण जिसके कारण धातुओं को तार के रूप में खींचा जा सकता है, तन्यता कहलाता है।

→ आघातवर्ध्यता (Malleability) धातुओं का वह लाक्षणिक गुण जिसके कारण धातुओं को हथौड़े से पीटकर बहुत पतली चादरों के रूप में ढाला जा सकता है, आघातवऱ्याता कहलाता है।

→ चालकता (Conductivity)-धातुओं में ऊष्मा तथा विद्युत् का प्रवाह हो सकता है। इसी गुण को चालकता कहते हैं। चाँदी ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक होती है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु

→ ऑक्साइड (Oxides)-ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर धातुएँ क्षारकीय ऑक्साइड (Basic Oxides) बनाती हैं। जबकि अधातुएँ ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अम्लीय ऑक्साइड (Acidic Oxides) बनाती हैं। ऐल्युमीनियम जिंक के ऑक्साइड क्षारकीय व अम्लीय दोनों प्रकार के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। अतः ये उभयधर्मी ऑक्साइड | (Amphoteric Oxides) कहलाते हैं।

→ ध्वनिक धातुएँ (Sonorous metals)-ऐसी धातुएँ जो किसी कठोर सतह से टकराने पर आवाज उत्पन्न करती हैं,ध्वनिक (Sonorous) धातुएँ कहलाती हैं, जैसे- सोना, चाँदी, लोहा आदि।

→ द्रव अवस्था (Liquid state) कमरे के ताप पर पारा (मरकरी) द्रव रूप में होता है जबकि गैलियम व सीजियम | ! का गलनांक काफी कम होता है। हथेली पर रखने पर ये धातुएँ द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं।

→ अपररूप (Allotropes)-किसी तत्व के एक से अधिक रूपों में विद्यमान रहने के गुण को अपररूपता (Allotropy); न कहते हैं। उदाहरण-कार्बन के विभिन्न अपररूप पाये जाते हैं, जैसे-ग्रेफाइट, हीरा, चारकोल, फुलेरीन आदि।

→ ऐक्वारेजिया (Aquaregia)-यह 3 : 1 के अनुपात में सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल. (HCl) तथा सान्द्र नाइट्रिक अम्ल (HNO3) का मिश्रण होता है। यह सोना एवं प्लेटिनम को गलाने में भी समर्थ होता है।

→ सक्रियता श्रेणी (Activity series)-वह श्रेणी जिसमें धातुओं को उनकी क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, सक्रियता श्रेणी कहलाती है। इस श्रेणी में सबसे ऊपर सर्वाधिक क्रियाशील धातु पोटैशियम तथा सबसे नीचे सबसे कम क्रियाशील धातु सोना होती है।

→ खनिज (Minerals) भू-पर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं।

→ अयस्क (Ores). जिन खनिजों में किसी विशेष धातु की मात्रा अधिक रूप से होती है, जिसे निकालना लाभकारी | | होता है उन्हें अयस्क कहते हैं।

→ गैंग या मैट्रिक्स (Gangue or Matrix)-पृथ्वी से प्राप्त खनिज, अयस्कों में मिट्टी, रेत जैसी अनेक अशुद्धियाँ होती ।
है, इन्हें गैंग या मैट्रिक्स कहते हैं |

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु

→ ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड (Amphoteric oxide) कहलाते हैं।

→ आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीली होती है।

→ सोना तथा चाँदी अधिक ताप पर भी ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं।

→ सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं की प्राप्ति प्रायः कार्बोनेट या सल्फेट के रूप में होती है जिसके लिये भर्जन एवं निस्तापन अभिक्रियाएँ करनी पड़ती हैं।

→ रेल की पटरी और मशीन के पुों की दरारों को थर्मिट अभिक्रिया (Thermite Reaction) द्वारा जोड़ा जाता है।

→ अशुद्ध धातु में से अपद्रव्य हटाकर शुद्ध धातुएँ प्राप्त की जाती हैं।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु

→ यदि कोई एक धातु पारद है तो इसके मिश्रातु (मिश्रधातु) को अमलगम (amalgum) कहते हैं।

→ दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रातु (Alloys) कहते हैं।

→ लम्बे समय तक आई वायु में रहने पर लोहे पर भूरे रंग के पदार्थ की पर्त चढ़ जाती है जिसे जंग लगना (Corrosion) कहते हैं।

→ लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिये उन पर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाने की विधि को यशद लेपन (Galvanisation) कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु Read More »

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Exercise 8.2

प्रश्न 1.
ABCD एक चतुर्भुज है जिसमें P, Q, R और S क्रमशः भुजाओं AB, BC, CD और DA के मध्य-बिंदु हैं (देखिए आकृति)। AC उसका एक विकर्ण है। दर्शाइए कि :
(i) SR || AC और SR = \(\frac {1}{2}\)AC है।
(ii) PQ = SR है।
(iii) PQRS एक समांतर चतुर्भुज है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 1
हल :
दिया है : एक चतुर्भुज ABCD में, P, Q, R व S क्रमशः भुजाओं AB, BC, CD व DA के मध्य-बिंदु है। AC इसका विकर्ण है।
सिद्ध करना है : (i) SR || AC व SR = \(\frac {1}{2}\)AC (ii) PQ = SR (iii) PQRS एक समांतर चतुर्भुज है।
प्रमाण : (i) ΔACD में S व R क्रमशः AD ब CD के मध्य-बिंदु हैं।
∴ SR || AC [∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने बाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आधा होता है।]
व SR = \(\frac {1}{2}\)AC …(1) [इति सिद्धम]

(ii) ΔABC में P व Q क्रमशः AB ब BC के मध्य-बिंदु हैं।
∴ PQ || AC [∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने वाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आधा होता है।]
व PQ = \(\frac {1}{2}\)AC …(2)
समीकरण (1) व (2) की तुलना से, PQ = SR [इति सिद्धम]

(ii) समीकरण (1) व (2) की तुलना से,
SR || PQ
व SR = PQ
अर्थात सम्मुख भुजाओं का एक युग्म बराबर व समांतर है।
∴ PQRS एक समांतर चतुर्भुज है। [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2

प्रश्न 2.
ABCD एक समचतुर्भुज है और P, Q, R और S क्रमशः भुजाओं AB, BC, CD और DA के मध्य-बिंदु हैं। दर्शाइए कि चतुर्भुज PQRS एक आयत है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 2
दिया है : एक समचतुर्भुज ABCD में P, Q, R व S क्रमशः भुजाओं AB, BC, CD व DA के मध्य-बिंदु है।
सिद्ध करना है : P, Q, R व 5 को मिलाने से बना चतुर्भुज PQRS एक आयत है।
रचना : AC व BD को मिलाओ।
प्रमाण : ΔACD में S व R क्रमशः AD a CD के मध्य-बिंदु हैं।
∴ SR || AC व SR = \(\frac {1}{2}\)AC
[∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने बाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आथा होता है।]
इसी प्रकार ΔABC में P व Q क्रमशः AB व BC के मध्य-बिंदु हैं।
∴ PQ || AC व PQ = \(\frac {1}{2}\)AC ….(ii)
[∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने वाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आधा होता है।]
समीकरण (i) व (ii) की तुलना से,
∴ SR || PQ व SR = PQ
अर्थात चतुर्भुज PQRS में सम्मुख भुजाओं का एक युग्म समांतर व बराबर है।
∴ PQRS एक समांतर चतुर्भुज है।
PM || LO [∵ PQ ||AC प्रमाणित] …(iii)
इसी प्रकार हम सिद्ध कर सकते हैं ।
PL || MO ……….(iv)
समीकरण (iii) व (iv) की तुलना से,
PMOL एक समांतर चतुर्भुज है। परंतु समांतर चतुर्भुज के सम्मुख कोण बराबर होते हैं।
∴ ∠1 = ∠2
परंतु ∠1 = 90° [∵ समचतुर्भुज के विकर्ण परस्पर समकोण पर समद्विभाजित करते हैं।]
⇒ ∠2 = ∠P = 90°
∴ PQRS एक आयत है। [इति सिद्धम]

प्रश्न 3.
ABCD एक आयत है, जिसमें P, Q, R और S क्रमशः भुजाओं AB, BC, CD और DA के मध्य-बिंदु हैं। दर्शाइए कि चतुर्भुज PQRS एक समचतुर्भुज है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 3
दिया है : ABCD एक आयत है, जिसमें P, Q, R व S क्रमशः
भुजाओं AB, BC, CD और DA के मध्य-बिंदु हैं।
सिद्ध करना है : P, Q, R व S को मिलाने से बना चतुर्भुज एक समचतुर्भुज है।
रचना : AC को मिलाओ।
प्रमाण : ΔADC में S व R क्रमशः AD तथा CD के मध्य-बिंदु हैं।
∴ SR || AC व SR = \(\frac {1}{2}\) AC
[∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने वाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आधा होता है]
इसी प्रकार, ΔABC में,
PQ || AC व PQ = \(\frac {1}{2}\)AC ………..(ii)
समीकरण (i) व (ii) की तुलना से,
SR || PQ व SR = PQ
क्योंकि चतुर्भुज PQRS की सम्मुख भुजाओं का एक युग्म बराबर व समांतर है।
∴ PQRS एक समांतर चतुर्भुज है।
अब ΔSAP तथा ΔQBP में,
SA = QB [समान भुजाओं के आधे खंड]
AP = PB [दिया है]
∠SAP = ∠QBP [प्रत्येक 90°]
∴ ΔSAP ≅ ΔQBP [भुजा-कोण-भुजा सर्वांगसमता]
⇒ SP = PQ [सांगसम त्रिभुजों के संगत भाग]
क्योंकि समांतर चतुर्भुज PQRS की दो आसन्न भुजाएं SP तथा PQ समान हैं।
∴ PQRS एक समचतुर्भुज है। [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2

प्रश्न 4.
ABCD एक समलंब है, जिसमें AB || DC है। साथ ही, BD एक विकर्ण है और E भुजा AD का मध्य-बिंदु है। Eसे होकर एक रेखा AB के समांतर खींची गई है, जो BC को F पर प्रतिच्छेद करती है (देखिए आकृति) । दर्शाइए कि F भुजा BC का मध्य-बिंदु है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 4
हल :
दिया है : समलंब ABCD में AB || DC तथा E, भुजा AD का मध्य-बिंदु है व EF || AB है। BD समलंब का विकर्ण है।
सिद्ध करना है : F, BC का मध्य-बिंदु है।
रचना : माना EF विकर्ण BD को G पर काटती है।
प्रमाण : ΔABD में,
E, AD का मध्य-बिंदु है तथा EG || AB (दिया है)
∴ G, BD का मध्य-बिंदु है।
अब, EF || AB [दिया है]
AB || CD [दिया है]
∴ EF || CD
ΔBCD में,
G, BD का मध्य-बिंदु है। [प्रमाणित]
GF || CD [प्रमाणित]
∴ F, BC का मध्य-बिंदु है। [इति सिद्धम]

प्रश्न 5.
एक समांतर चतुर्भुज ABCD में E और F क्रमशः भुजाओं AB और CD के मध्य-बिंदु है (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि रेखाखंड AF और EC विकर्ण BD को समत्रिभाजित करते हैं।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 5
हल :
दिया है। समांतर चतुर्भुज ABCD में E व F क्रमशः भुजाओं AB तथा CD के मध्य-बिंदु हैं। AF व CE रेखाखंड विकर्ण BD को क्रमशः P व Q पर प्रतिच्छेदित करते हैं।
सिद्ध करना है : BQ = QP = PD
प्रमाण : समांतर चतुर्भुज ABCD में,
AB = CD [सम्मुख भुजाएं]
या \(\frac {1}{2}\)AB = \(\frac {1}{2}\)CD
⇒ AE = FC व AE || FC
अतः AECF एक समांतर चतुर्भुज है।
⇒ AF || CE [दिया है]
अब ΔCDQ में, F, CD का मध्य-बिंदु है।
तथा PF || CQ [प्रमाणित]
∴ DP = PQ ……..(i)
इसी प्रकार, ΔABP में,
PQ = BQ
समीकरण (i) व (ii) की तुलना से,
BQ = QP = PD [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2

प्रश्न 6.
दर्शाइए कि किसी चतुर्भुज की सम्मुख भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने वाले रेखाखंड परस्पर समद्विभाजित करते हैं।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 6
दिया है : एक चतुर्भुज ABCD में, P, Q, R और S क्रमशः भुजा AB, BC, CD और DA के मध्य-बिंदु हैं। PR और QS एक-दूसरे को O प्रतिच्छेदित करते हैं।
सिद्ध करना है : OP = OR, OQ = OS
रचना : PQ, QR, RS, SP, AC और BD को मिलाया।
प्रमाण : ΔABC में, P और Q क्रमशः AB और BC के मध्य-बिंदु हैं।
∴ PQ || AC व PQ = \(\frac {1}{2}\)AC
[∵ त्रिभुज की किन्हीं दो भुजाओं के मध्य-बिंदुओं को मिलाने वाला रेखाखंड तीसरी भुजा के समांतर व उसका आधा होता है।]
इसी प्रकार हम सिद्ध कर सकते हैं कि,
ΔADC में,
∴ RS || AC व RS = \(\frac {1}{2}\)AC …………..(ii)
समीकरण (i) व (ii) की तुलना में,
∴ PQ || SR व PQ = SR
अतः चतुर्भुज PQRS की सम्मुख भुजाओं का एक युग्म समांतर और बराबर है।
∴ चतुर्भुज PQRS एक समांतर चतुर्भुज है।
क्योंकि समांतर चतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।
∴ समांतर चतुर्भुज PQRS के विकर्ण PR और QS एक दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।
⇒ OP = OR व OQ = OS [इति सिद्धम]

प्रश्न 7.
ABC एक त्रिभुज है जिसका कोण C समकोण है। कर्ण AB के मध्य-बिंद M से होकर BC के समांतर खींची गई रेखा AC को D पर प्रतिच्छेद करती है। दर्शाइए कि :
(i) D भुजा AC का मध्य-बिंदु है।
(ii) MD ⊥ AC है।
(iii) CM = MA = \(\frac {1}{2}\)AB है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 - 7
दिया है : त्रिभुज ABC में, ∠C = 90°। कर्ण AB के मध्य-बिंदु M से होकर BC || MD खींची गई है जो रेखा AC को D पर प्रतिच्छेदित करती है।
सिद्ध करना है : (i) D भुजा AC का मध्य-बिंदु है।
(ii) MD ⊥ AC
(iii) CM = MA = \(\frac {1}{2}\)AB
रचना : MC को मिलाओ।
प्रमाण : (i) ΔABC में,
M, AB का मध्य-बिंदु है।
तथा MD || BC (दिया है)
∴ D, AC का मध्य-बिंदु है। [इति सिद्धम]

(ii) MD || BC [दिया है]
∴ ∠1 = ∠ACB [संगत कोण]
परंतु ∠ACB = 90° [दिया है]
⇒ ∠1 = 90°
∴ MD ⊥ AC [इति सिद्धम]

(iii) अब ∠1 + ∠2 = 180° [रैखिक युग्म]
या 90° + ∠2 = 180°
या ∠2 = 180° – 90° = 90°
ΔADM तथा ΔCDM में,
AD = DC [∵ D, AC का मध्य-बिंदु प्रमाणित]
DM = DM [उभयनिष्ठ]
∠1 = ∠2 [प्रत्येक 90°]
∴ ΔADM ≅ ΔCDM [भुजा-कोण-भुजा सर्वांगसमता]
∴ CM = MA [सर्वांगसम त्रिभुजों के संगत भाग] …(i)
परंतु MA = \(\frac {1}{2}\)AB [दिया है]…(ii)
समीकरण (i) व (ii) की तुलना से,
CM = MA = \(\frac {1}{2}\)AB [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 8 चतुर्भुज Ex 8.2 Read More »