Class 9

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

HBSE 9th Class Sanskrit प्रत्यभिज्ञानम् Textbook Questions and

प्रत्यभिज्ञानम् के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भाव हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः ।
(ख) तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः।
(ग) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
(घ) नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। दुर्योधनादि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु भी युद्ध के मैदान में जाता है। अभिमन्यु बृहन्नला (अर्जुन) के मुखमण्डल की आभा को देखकर कहता है कि यह दूसरा कौन है जिसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे महादेव भगवान् शिव ने उमा का वेश धारण किया हो। अर्जुन के मुखमण्डल का तेज भगवान् शिव के मुखमण्डल से मिल रहा था। परन्तु उनकी वेशभूषा पार्वती से मिलती थी। इसी कारण अभिमन्यु को शिव एवं पार्वती की आभा दिखाई पड़ रही थी।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। युद्ध के मैदान में बृहन्नला के रूप में अर्जुन को बहुत समय बाद पुत्र-मिलन का अवसर प्राप्त हुआ। वे अपने पुत्र अभिमन्यु से बात करना चाहते हैं। परन्तु अपने अपहरण से क्षुब्ध अभिमन्यु उनके साथ बात करना नहीं चाहता। तब अर्जुन उसे उत्तेजित करने की भावना से इस प्रकार व्यंग्यात्मक वचन कहते हैं – तुम्हारे पिता अर्जुन हैं, मामा श्रीकृष्ण हैं तथा तुम शस्त्रविद्या से सम्पन्न होने के साथ-ही-साथ तरुण भी हो, ऐसे तुम्हारे लिए युद्ध में परास्त होना क्या उचित है? अर्थात् ऐसे गुणों वाले तुम्हें युद्ध में बन्दी बनाया जाना उचित नहीं है।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। अभिमन्यु क्षुब्ध है कि उसे धोखे से शस्त्रविहीन भीम ने पकड़ लिया है। भीम इसका स्पष्टीकरण करते हैं कि अस्त्र-शस्त्र तो दुर्बल व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं-“मेरी तो भुजा ही मेरा शस्त्र है।” अर्थात् मेरी भुजाओं में ही इतनी ताकत है कि उसके सामने सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बेकार हैं। अतः मुझे किसी अन्य आयुध को धारण करने की आवश्यकता नहीं है।

(घ) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। श्रीकृष्ण ने जरासंध के जामाता (दामाद) कंस का वध किया था। इससे क्रुद्ध जरासन्ध ने यदुवंशियों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए उसने बार-बार मथुरा पर आक्रमण भी किया था। उसने श्रीकृष्ण को कई बार पकड़ा भी परन्तु किसी-न-किसी प्रकार श्रीकृष्ण वहाँ से निकल गए। वस्तुतः उचित अवसर पाकर ही श्रीकृष्ण जरासन्ध को मारना चाहते थे, परन्तु भीम ने जरासन्ध का वध करके उसकी पात्रता स्वयं ले ली। जो कार्य श्रीकृष्ण द्वारा करणीय था उसे भीमसेन ने कर दिया और श्रीकृष्ण को जरासन्ध के वध का अवसर ही नहीं दिया।

प्रत्यभिज्ञानम् HBSE 9th Class

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

II. अधोलिखितान् नाट्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित नाट्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः। (प्रकाशम्) इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।।
(क) रथम् आसाद्य काभ्याम् अवतारितः?
(ख) निश्शङ्कः कस्मात् अवतारितः?
(ग) अत्र ‘महादेवः’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) अयम् अपरः कः विभाति?
(ङ) भुजैकनियन्त्रितः बलाधिकेनापि कः पीडितः अस्ति?
उत्तराणि:
(क) रथम् आसाद्य बाहुभ्यामवतारितः।
(ख) निश्शङ्कः रथात् अवतारितः।
(ग) अत्र ‘महादेवः’ इति पदस्य ‘हरः’ पर्यायपदं प्रयुक्तम्।
(घ) अयम् अपरः उमावेषमिवाश्रितः हरः विभाति।
(ङ) भुजैकनियन्त्रितः बलाधिकेन अपि अभिमन्युः पीडितः अस्ति।

(2) अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।
बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम् । किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
(क) अस्माकं कुले किम् अनुचितम्?
(ख) रणभूमौ कान् पश्य?
(ग) अत्र ‘मातरम्’ इति पदस्य किं विलोमपदं प्रयुक्तम्?
(घ) अशस्त्रोऽयं कथं गृहीतवान्?
(ङ) मादृशाः किं न कुर्वन्ति?
उत्तराणि:
(क) अस्माकं कुले आत्मस्तवं अनुचितम्।
(ख) रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य।
(ग) अत्र ‘मातरम्’ इति पदस्य ‘पितरम्’ विलोमपदं प्रयुक्तम्।
(घ) अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
(ङ) मादृशाः अशस्त्रेषु प्रहारं न कुर्वन्ति।

3. उत्तरः – अथ किम् श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके। नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः॥
राजा – एवमेतत्।
उत्तरः – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम् । अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
(क) के भग्नाः ?
(ख) श्मशानात् किं आदाय वयं परिरक्षिताः?
(ग) अत्र ‘अर्जुन’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) यदि अहं अर्जुनः तर्हि अयं कः अस्ति?
(ङ) अयम् एव कः अस्ति?
उत्तराणि:
(क) भीष्मादयो नृपाः भग्नाः।
(ख) श्मशानात् तूणीराक्षयसायके धनुः आदाय वयं परिरक्षिताः।
(ग) अत्र ‘अर्जुन’ इति पदस्य ‘बृहन्नला’ पर्यायपदं प्रयुक्तम्।
(घ) यदि अहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः अस्ति।
(ङ) अयम् एव धनुर्धरः धनञ्जयः अस्ति।

Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 7 Solutions HBSE

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III. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायता रिक्तस्थानानि पूरयत
(निम्नलिखित अव्ययों की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
तर्हि, अलं, एव, खलु, अपि।
(क) धनुस्तु दुर्बलैः …………….. गृह्यते।
(ख) यदि अहम् अर्जुनः …………… अयं भीमसेनः।
(ग) …………….. कुशली देवकीपुत्रः केशवः?
(घ) भोः को न …………….. एषः?
(ङ) …………….. स्वच्छन्द प्रलापेन?
उत्तराणि:
(क) एव,
(ख) तर्हि,
(ग) अपि,
(घ) खलु,
(ङ) अलं।

IV. स्थूलपदमावृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) भटः सौभद्रस्य ग्रहणम् अकरोत् ।
(ख) अयम् उमावेषमिव आश्रितः हरः विभाति।
(ग) उत्सिक्तः खलु अयं क्षत्रियकुमारः।
(घ) अहं अस्य दर्पप्रशमनम् करोमि।
(ङ) धनुः तु दुर्बलैः एव गृह्यते।
उत्तराणि:
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?
(ख) अयम् उमावेषमिव आश्रितः कः विभाति?
(ग) उसिक्तः खलु अयं कः?
(घ) अहं अस्य किं करोमि?
(ङ) धनुः तु कैः एव गृह्यते?

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v. अपोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुसरं वित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. सौभद्रस्य ग्रहणं कः अकरोत्?
(i) अर्जुनः
(ii) भीमः
(iii) भटः
(iv) उत्तरः
उत्तरम्:
(iii) भटः

2. भुजी एवं कस्य प्रहरणम् ?
(i) अर्जुनस्य
(ii) भीमस्य
(iii) वीरस्य
(iv) भटस्य
उत्तरम्:
(ii) भीमस्य

3. जरासन्यस्य वध केन कृतम्?
(i) अर्जुनेन
(ii) श्रीकृष्णेन
(iii) भीमेन
(iv) उत्तरेण
उत्तरम्:
(iii) भीमेन

4. पदातिना कः गृहीतः?
(i) अभिमन्युः
(ii) बृहन्नला
(iii) उत्तरः
(iv) भीमसेनः
उत्तरम्:
(i) अभिमन्युः

5. दिष्ट्रया किं स्वन्तम् अस्ति?
(i) युद्धः
(ii) पराजयः
(iii) गोग्रहणम्
(iv) अभिमन्यु ग्रहणम्
उत्तरम:
(iii) गोग्रहणम्

6. ‘यदि + अहम्’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) यदिअहम्
(ii) अदीहम्
(iii) यदिऽहम्
(iv) यद्यहम्
उत्तरम्:
(iv) यद्यहम्

7. ‘खल्वयं इति पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) खल् + अयं
(ii) खलु + अयं
(iii) खल्व + यं
(iv) खलौ + अयं
उत्तरम्:
(ii) खलु + अयं

8. ‘बञ्चयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) ल्यप्
(ii) शत्र
(iii) क्त
(iv) क्त्वा
उत्तरम्:
(iv) क्त्वा

9. ‘अभिमन्युः’ इति पदस्य किं पर्यायपदम्?
(i) धनुर्धरः
(ii) केशवः
(iii) धनञ्जयः
(iv) सौभद्रः
उत्तरम्:
(iv) सौभद्रः

10. ‘अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः।’ इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) अपि
(ii) केशवः
(iii) कुशली
(iv) देवकीपुत्रः
उत्तरम्
(i) अपि

योग्यताविस्तारः

प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित कर, लिया गया है। दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वहीं भगवान राम से कहे जाने वाले पाण्डवाग्रज युधिष्ठिर भी उपस्थित है। अभिमन्यु उन्हें प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का उद्घाटन हो जाता है।

कवि परिचय-संस्कृत नाटककारों में “महाकवि भास” का नाम अग्रगण्य है। भास रचित तेरह रूपक निम्नलिखित हैंदूतवाक्यम्, कर्णभारम्, उरुभङ्गम्, दूतघटोत्कचम्, मध्यमव्यायोगः, पञ्चरात्रम्, अभिषेकनाटकम्, बालचरितम्, अविमारकम्, प्रतिमानाटकम्, प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, स्वप्नवासवदत्तम् तथा चारुदत्तम्।

ग्रन्थ परिचय–पञ्चरात्रम् की कथावस्तु महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। पाण्डवों के अज्ञातवास के समय दुर्योधन एक यज्ञ करता है और यज्ञ की समाप्ति पर आचार्य द्रोण को गुरुदक्षिणा देना चाहता है। द्रोण गुरुदक्षिणा के रूप में पाण्डवों का राज्याधिकार चाहते हैं। दुर्योधन कहता है कि यदि गुरु द्रोणाचार्य पाँच रातों में पाण्डवों का पता लगा दें तो उनकी पैतृक सम्पत्ति का भाग उन्हें दिया जा सकता है। इसी आधार पर इस नाटक का नाम ‘पञ्चरात्रम्’ है।

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भावविस्तारः

तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः-अज्ञातवास में बृहन्नला के रूप में अर्जुन को बहुत समय के बाद पुत्र-मिलन का अवसर प्राप्त हुआ। वह अपने पुत्र से बात करना चाहता है, परन्तु (अपने अपहरण से) क्षुब्ध अभिमन्यु उनके साथ बात करना ही नहीं चाहता। तब अर्जुन उसे उत्तेजित करने की भावना से इस प्रकार के व्यंग्यात्मक वचन कहते हैं

तुम्हारे पिता अर्जुन हैं, मामा श्रीकृष्ण हैं तथा तुम शस्त्रविद्या से सम्पन्न होने के साथ ही साथ तरुण भी हो, तुम्हारे लिए युद्ध में परास्त होना क्या उचित है। अर्थात् उपरोक्त विशेषताओं वाले तुम्हें युद्ध में कदापि पराजित नहीं होना चाहिए।

मम तु भुजौ एव प्रहरणम्-अभिमन्यु क्षुब्ध है कि उसे धोखे से शस्त्रविहीन भीम ने निगृहीत किया है। भीम इसका स्पष्टीकरण करता है कि अस्त्र-शस्त्र तो दुर्बल व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं। मेरी तो भुजा ही मेरा शस्त्र है। अतः मुझे किसी अन्य आयुध की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार का भाव अन्य नाटकों में भी उपलब्ध है; जैसे
(क) अयं तु दक्षिणो बाहुरायुधं सदृशं मम। (मध्यमव्यायोगः)
(ख) भीमस्यानुकरिष्यामि शस्त्रं बाहुभविष्यति। (मृच्छकटिकम्)
(ग) वयमपि च भुजायुद्धप्रधानाः। (अविमारकम्)

नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्-श्रीकृष्ण ने जरासन्ध के जामाता (दामाद) कंस का वध किया था। इससे क्रुद्ध जरासन्ध ने यदुवंशियों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। इसीलिए उसने बार-बार मथुरा पर आक्रमण भी किया था। उसने श्रीकृष्ण को कई बार पकड़ा भी परन्तु किसी-न-किसी प्रकार श्रीकृष्ण वहाँ से निकल गए। वस्तुतः उचित अवसर पाकर श्रीकृष्ण जरासन्ध को मारना चाहते थे, परन्तु भीम ने जरासन्ध का वध करके उनकी पात्रता स्वयं ले ली। जो कार्य श्रीकृष्ण द्वारा करणीय था उसे भीमसेन ने कर दिया और श्रीकृष्ण को जरासन्ध के वध का अवसर ही नहीं दिया।

प्रत्यय से बने शब्द विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-1
‘क्तवतु’ भी भूतकालिक प्रत्यय है। इसका प्रयोग सदैव कर्तृवाच्य में होता है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द भी तीनों लिङ्गों में होते हैं।
यथा-पठ् + क्तवतु = पठितवत्
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वाच्यपरिवर्तनम्
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HBSE 9th Class Sanskrit प्रत्यभिज्ञानम् Important Questions and Answers

प्रत्यभिज्ञानम् नाट्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ 
1.
भटः – जयतु महाराजः।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केनासि विस्मितः?
भटः – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः ॥
राजा – कथमिदानीं गृहीतः?
भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः।
राजा – केन?
भट – यः किल एष नरेन्द्रेण विनियुक्तो महानसे। (अभिमन्युमुद्दिश्य) इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।
बृहन्नला – आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत् । वाचालयत्वेनमार्यः।
वल्लभः – (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो !
अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम?
वल्लभः – रुष्यत्येष मया, त्वमेवैनमभिभाषय।
बृहन्नला – अभिमन्यो!
अभिमन्युः – कथं कथम्। अभिमन्यु माहम्। भोः! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोभूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गतः। अतएव तिरस्क्रियते।

शब्दार्थ-अपूर्व = अद्भुत । ब्रूहि = बताइए। अश्रद्धेयं = अविश्वसनीय। सौभद्रः = सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु। ग्रहणं गतः = बन्दी बना लिया गया है, पकड़ लिया गया है। कथम् = कैसे। आसाद्य = पास पहुँचकर। बाहुभ्यामवतारितः (बाहुभ्याम् + अवतारितः) = भुजाओं द्वारा उतार लिया गया है। निःशङ्कं = बिना किसी संकोच के। भुजैकनियन्त्रितः = एक भुजा से पकड़ा हुआ। बलाधिकेन = अधिक बलशाली होकर। न पीडितः अस्मि = मुझे पीड़ित नहीं किया। विभाति = ऐसा प्रतीत होता है। हरः = भगवान् शिव ने। अपवार्य = एक ओर को। अभिभाषण = बात करने की। कौतूहलम् = उत्सुकता। बाढम् = ठीक है। रुष्यति = क्रुद्ध होता है। अभिभाषय = बात करने के लिए प्रेरित करो। नामभिः = नाम लेकर। अभिभाष्यन्ते = पुकारे जाते हैं। शत्रुवशं = शत्रुओं के वश में। तिरस्क्रियते = अपमान किया जाता है, उपेक्षा की जाती है।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस नाट्यांश में बताया गया है कि छद्मवेषधारी भीम युद्ध के मैदान से अभिमन्यु को पकड़कर विराट के महल में लाता है।
सरलार्थ
भटः – महाराज की जय हो।
राजा – तुम्हारी प्रसन्नता अद्भुत-सी प्रतीत हो रही है, अतः बताओ किस कारण से प्रसन्न हो?
भट – अविश्वसनीय प्रिय (समाचार) प्राप्त हो गया है, सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु पकड़ लिया गया है।
राजा – किस प्रकार से पकड़ लिया गया है?
भट – रथ के पास पहुँचकर बिना किसी संकोच के भुजाओं के द्वारा रथ से उतार लिया गया है। राजा
राजा – किसके द्वारा?
भट – जो इस राजा के द्वारा रसोईघर में नियुक्त किया गया है (अभिमन्यु की तरफ इशारा करके) कुमार इधर से, इधर से
अभिमन्यु – अरे! यह कौन है? जिसने एक हाथ से पकड़कर अधिक बलशाली होकर भी मुझे पीड़ित नहीं किया।
बृहन्नला – कुमार इधर से, इधर से।
अभिमन्यु – अरे! यह दूसरा कौन है, ऐसा लग रहा है जैसे भगवान् शिव ने उमा (पार्वती) का वेश ग्रहण किया हो।
बृहन्नला – आर्य! मुझे इससे बात करने की बहुत उत्सुकता हो रही है। आप इसे बोलने के लिए प्रेरित कीजिए।
वल्लभ – (एक ओर मुँह करके) अच्छा (प्रकट रूप से) अभिमन्यु!
अभिमन्यु – अभिमन्यु नाम?
वल्लभ – यह मुझसे चिढ़ता है, आप ही इसे बात करने के लिए प्रेरित कीजिए।
बृहन्नला – अभिमन्यु!
अभिमन्यु – क्यों, क्यों मेरा नाम अभिमन्यु है। अरे! क्या यहाँ विराटनगर में क्षत्रियकुल में उत्पन्न होने वाले कुमारों को नीच लोगों द्वारा (नौकर-चाकरों के द्वारा) भी नाम के द्वारा अर्थात् नाम लेकर बुलाया जाता है अथवा मैं शत्रुओं के अधीन हो गया हूँ, इसलिए मुझे अपमानित किया जा रहा है।

भावार्थ-भीमसेन युद्ध के मैदान से अभिमन्यु को पकड़कर महाराज विराट के महल में लाते हैं। भीम तथा अर्जुन दोनों अज्ञातवास के कारण अपने वास्तविक रूप में नहीं हैं। इसलिए अभिमन्यु उन्हें नीच शब्द से सम्बोधित करता है। अर्जुन की अभिमन्यु के प्रति पुत्र-प्रेम की भावना को भी दिखाया गया है।

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2.
बृहन्नला – अभिमन्यो! सुखमास्ते ते जननी?
अभिमन्युः – कथं कथम्? जननी नाम? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्यः? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति?
बृहन्नला – अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः?
अभिमन्युः – कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना। अथ किम् अथ किम्? (बृहन्नलावल्लभौ परस्परमवलोकयतः)
अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते?
बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम् ।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः॥
अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम् । रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।
बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम् । किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः।
बृहन्नला – इत इतः कुमारः। एष महाराजः। उपसर्पतु कुमारः।
अभिमन्युः – आः| कस्य महाराजः?
राजा – एह्येहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि? (आत्मगतम्) अहो! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीतः?

अन्वय-पितरम् पार्थं मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।

शब्दार्थ-सुखमास्ते (सुखम् + आस्ते) = सुख से हैं। पितृव्यः = चाचा। पितृवद् = पिता की तरह। आक्रम्य = अधिकार, दिखाकर। स्त्रीगतां कथां = माता के विषय में प्रश्न । कुशली = सकुशल । तत्रभवन्तम् = आदरणीय को भी। अथ किम् अथ किम् = और क्या और क्या अर्थात् निश्चित रूप से। परस्परमवलोकयतः = एक-दूसरे को देखते हुए। मातुलं = मामा। जनार्दनम् = श्रीकृष्ण को। उद्दिश्य = याद करके। तरुणस्य = युवक के। कृतास्त्रस्य = धनुर्विद्या में निपुण। आत्मस्तवं = अपनी प्रशंसा। मद्रते (मद् + ऋते) = मेरे सिवाय। वाक्यशौण्डीर्यम् = वाणी की वीरता। पदातिना = पैदल । त्वर्यताम् = शीघ्र बुलाइए। उपसर्पतु = समीप आएँ। एह्येहि (एहि + एहि) = आओ, आओ। न अभिवादयसि = प्रणाम नहीं करते। उत्सिक्तः = घमंडी। दर्पप्रशमनं = घमंड का नाश।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस नाट्यांश में बताया गया है कि बृहन्नला (वेशधारी अर्जुन) अभिमन्यु से उसके माता-पिता तथा श्रीकृष्ण का समाचार पूछ रहे हैं।

सरलार्थ:
बृहन्नला – हे अभिमन्यु! क्या तुम्हारी माता कुशलपूर्वक हैं?
अभिमन्यु – क्या, क्या? माता? क्या आप मेरे पिता या चाचा हैं? आप क्यों मुझ पर पिता की तरह अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में पूछ रहे हैं?
बृहन्नला – हे अभिमन्यु ! क्या देवकी-पुत्र केशव सकुशल हैं?
अभिमन्यु – क्या आदरणीय कृष्ण को भी नाम से…..? और क्या और क्या (कुशल हैं) (बृहन्नला और वल्लभ दोनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं)
अभिमन्य – ये मेरे ऊपर तिरस्कार की भाँति क्यों हँस रहे हैं? बृहन्नला क्या कुछ ऐसा ही नहीं है। पिता अर्जुन तथा मामा श्रीकृष्ण वाला युवक धनुर्विद्या में निपुण होकर भी युद्ध में परास्त कैसे हो जाता है।

भावार्थ भाव यह है कि हे अभिमन्यु! तुम्हारे पिता अर्जुन हैं तथा मामा श्रीकृष्ण हैं। तुम धनुर्विद्या में निपुण भी हो फिर तुम युद्ध में कैसे पराजित हो गए, जिसके कारण बन्दी बनाकर तुम्हें यहाँ लाया गया है।

अभिमन्यु – स्वच्छन्द बकवास करना बन्द करो। हमारे कुल में अपनी प्रशंसा करना अनुचित है। युद्धभूमि में मेरे बाणों से मारे हुए सैनिकों के शरीरों को देखिए (बाणों पर) मेरे अतिरिक्त दूसरा नाम नहीं होगा।
बृहन्नला – अरे बाणों की ऐसी वीरता! फिर उन्होंने तुम्हें पैदल ही क्यों पकड़ लिया?
अभिमन्यु – वे मेरे सामने बिना शस्त्र के आए। पिता अर्जुन को याद करके मैं उन्हें कैसे मारता। शस्त्रहीनों पर मुझ जैसे लोग प्रहार नहीं करते। अतः इस शस्त्रहीन ने मुझे धोखा देकर पकड़ लिया।
राजा – तुम अभिमन्यु को शीघ्र बुला लाओ।
बृहन्नला – कुमार इधर आइए। ये महाराज (विराट) हैं। राजकुमार इनके पास जाइए।
अभिमन्यु – आह! किसके महाराज? ।
राजा – आओ, आओ पुत्र! मेरा अभिवादन क्यों नहीं करते हो? (मन में)
अरे! यह क्षत्रिय कुमार बहुत घमण्डी है। मैं इसका घमण्ड शान्त करता हूँ। (प्रकट रूप से) तो इसे किसने पकड़ा?

भावार्थ-अभिमन्यु क्षत्रिय कुमार है। क्षत्रियों की मर्यादा रही है कि वे शस्त्रहीनों पर प्रहार नहीं करते। इसी कारण युद्ध के मैदान में उसने शस्त्रों से रहित छद्मवेषधारी भीम पर बाण नहीं चलाया। भीम ने उसे अपनी भुजाओं से पकड़ लिया।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

3. भीमसेनः – महाराज! मया।
अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।
भीमसेनः – शान्तं पापम् । धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
अभिमन्युः – मा तावद् भोः! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति।
भगवान् – पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम?
अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतः कृष्णोऽतदर्हताम् ॥
राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति ॥
अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्यः
पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः।
बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति ॥
(ततः प्रविशत्युत्तरः)
उत्तरः – तात! अभिवादये!
राजा – आयुष्मान् भव पुत्र। पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषाः।
उत्तरः – पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।
राजा – पुत्र! कस्मै?
उत्तरः – इहात्रभक्ते धनञ्जयाय।
राजा – कथं धनञ्जयायेति?
उत्तरः – अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके।
नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः॥ _
राजा – एवमेतत्।
उत्तरः . – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः। तेन खलु …..
न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम् ।
दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः॥
(इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति।)

अन्वय–(1) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यम् कर्म कृत्वा (भीमसेनः) कृष्णः अदर्हतां नीतः।
(2) पादयोः निग्रहः उचितः समुदाचारः क्रियताम्, बाहुभ्याम् आहृतं भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
(3) मया क्षिप्ता न रुष्यन्ति, हसन्तः च माम् क्षिपन्ति। दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तम् येन पितरः दर्शिताः।

शब्दार्थ-इत्यभिधीयताम् (इति + अभिधीयताम्) = ऐसा कहिए। भुजौ = दोनों भुजाएँ। प्रहरणम् = शस्त्र। योक्त्रयित्वा = बाँधकर । क्षेपेण = अपमान के द्वारा। रमे = मैं आनन्दित होता हूँ। अपराद्धः = अपराधी। अनुग्राह्यः = कृपा करने योग्य। निग्रहः = बंधन। योधपुरुषाः = योद्धा। पूज्यतमस्य = सबसे अधिक पूज्य । तूणीर = तरकश। भग्नाः = परास्त किए गए। व्यपनयतु = दूर करें। क्षिप्ता = आक्षेपयुक्त होने पर। दिष्ट्या = सौभाग्य से। गोग्रहणम् = गायों का अपहरण । स्वन्तं = सुखान्त। आलिङ्गन्ति = आलिंगन करते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत,नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि भास द्वारा रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस नाट्यांश में बताया गया है कि विराट नगर में पाण्डवों का अज्ञातवास पूरा होता है और सभी पाण्डव अपने पूर्व रूप में आ जाते हैं, जिन्हें अभिमन्यु तथा महाराज विराट आदि सभी पहचान लेते हैं।

सरलार्थ
भीमसेन – महाराज! मैंने।
अभिमन्यु – ‘शस्त्रहीन होकर पकड़ा’ ऐसा कहना चाहिए।
भीमसेन – शान्त हो जाइए। धनुष तो दुर्बलों के द्वारा उठाया जाता है। भुजाएँ ही मेरा शस्त्र हैं।
अभिमन्यु – नहीं, तो अरे! क्या आप हमारे मध्यम (मझले) तात (भीम) हैं, जो उनके समान वचन बोल रहे हैं।
भगवान् – पुत्र! यह मध्यम तात कौन हैं?
अभिमन्यु – (जिसने) अपनी भुजाओं से जरासंध को गले से पकड़कर बाँध करके जोकि कृष्ण के लिए भी उचित अवसर न आने के कारण असम्भव कर्म था, उसे करके लाए थे।
भावार्थ – जरासंध को मारने का कार्य श्रीकृष्ण को करना था, परन्तु उनके द्वारा करणीय कार्य को भीमसेन ने अपनी भुजाओं से पकड़कर पूरा किया।
राजा – तुम्हारे निन्दापूर्ण वचनों से मैं कुपित नहीं हूँ। तुम्हारे कुपित होने से मुझे आनन्द प्राप्त होता है। तुम यहाँ क्यों खड़े हो। जाओ यहाँ से अगर मैं ऐसा कहूँ तो क्या मैं अपराधी नहीं होऊँगा?
अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हैं तो मेरे पैर बाँधकर मुझे उचित दण्ड दीजिए। मैं हाथों से पकड़कर लाया गया हूँ। मेरे मध्यम तात भीम मुझे हाथों से ही छुड़ाकर ले जाएँगे। (इसके बाद ‘उत्तर’ का प्रवेश)
उत्तर – तात! मैं प्रणाम करता हूँ।
राजा – दीर्घायु हो पुत्र! युद्ध में वीरता दिखाने वाले वीरों का सत्कार कर दिया गया है।
उत्तर – अब सबसे अधिक पूज्य की पूजा कीजिए। राजा
राजा – किसकी पूजा पुत्र?
उत्तर – यहाँ उपस्थित अर्जुन की।
राजा – क्या अर्जुन यहाँ आए हैं?
उत्तर – और क्या? पूज्य अर्जुन नेश्मशान से अपना धनुष तथा अक्षय तरकश लेकर भीष्म आदि राजाओं को पराजित कर दिया तथा हम लोगों की रक्षा की।
राजा – ऐसी बात है?
उत्तर – आप अपना सन्देह दूर करें। धनुर्विद्या में प्रवीण अर्जुन यही हैं।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ तो यह भीमसेन हैं और यह राजा युधिष्ठिर हैं।
अभिमन्यु – आप मेरे पिता हैं, इसीलिए-
मेरे निन्दापूर्ण वचनों से ये क्रोधित नहीं होते और हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं। गौ-अपहरण की यह घटना सौभाग्य से सुखांत हुई है। इसी के कारण मुझे अपने सभी पिताओं के दर्शन हो गए। (ऐसा कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन करते हैं।)

भावार्थ-कौरवों द्वारा विराट की गौओं के अपहरण का एक विशेष प्रयोजन था। इसके माध्यम से दुर्योधन पाण्डवों के अज्ञातवास का पता लगाना चाहता था। इसी कारण इस घटना को अभिमन्यु अपने लिए सौभाग्यकारक मानता है क्योंकि इसी घटना के माध्यम से उसे अपने पिताओं (अर्जुन, भीम आदि) के दर्शन होते हैं।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) कः उमावेषमिवाश्रितः भवति?
(ख) कस्याः अभिभाषणकौतूहलं महत् भवति?
(ग) अस्माकं कुले किमनुचितम्?
(घ) कः दर्पप्रशमनं कर्तुमिच्छति?
(ङ) कः अशस्त्रः आसीत्?
(च) कया गोग्रहणम् अभवत् ?
(छ) कः ग्रहणं गतः आसीत्?
उत्तराणि:
(क) बृहन्नला/अर्जुनः,
(ख) बृहन्नलायाः,
(ग) आत्मस्तवं,
(घ) अभिमन्युः,
(ङ) अभिमन्युः,
(च) दिष्ट्या,
(छ) सौभद्रः

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2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत्?
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत्?
(ग) कः वल्लभ-बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति?
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् आत्मानं वञ्चितम् अनुभवति?
(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते?
उत्तराणि:
(क) भटः सौभद्रस्य ग्रहणम् अकरोत्।
(ख) अभिमन्युः अशस्त्रः वञ्चयित्वा गृहीतः।
(ग) , अभिमन्युः वल्लभ-बृहन्नलयोः प्रश्नस्य उत्तरं न ददाति।
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे आत्मानं वञ्चितम् इव अनुभवति यतः सः अशस्त्रः वञ्चयित्वां गृहीतः।
(ङ) अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते यतः अनेनैव तस्य पितरः दर्शिताः ।

3. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत
(निम्नलिखित वाक्यों में से प्रकटितभाव चुनिए)
(क) भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि। (विस्मयः, भयम्, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं! अभिमन्यु माहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः, प्रसन्नता)
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्। (अन्धविश्वासः, शौर्यम्, उत्साहः)
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्संयमः)
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः। (क्षमा, हर्षः, धैर्यम्) ।
उत्तराणि:
(क) विस्मयः
(ख) स्वाभिमानः
(ग) क्रोधः,
(घ) शौर्यम्,
(ङ) आत्मविश्वासः,
(च) हर्षः।

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4. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत
(यथास्थान रिक्तस्थान की पूर्ति कीजिए)
(क) खलु + एषः = …………………..
(ख) बल + ……….. + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् + इव + आश्रितः = बिभात्युमावेषम्
(घ) …………. + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = …………………..
(छ) यातु + …………. = यात्विति
(ज) …………. + इति = धनञ्जयायेति।
उत्तराणि:
(क) खलु + एषः = खल्वेषः
(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् = भात्युमावेषम्
(घ) वाचालयत् + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम्
(छ) यातु + इति = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति

5. अधोलिखितानि वचनानि कः कं प्रति कथयति
(निम्नलिखित वाक्यों में कौन किसे कह रहा है)
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-4
उत्तराणि:
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम् img-5

6. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि
(निम्नलिखित स्थूल सर्वनाम शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं)
(क) वाचालयतु एनम् आर्यः।
(ख) किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
(ङ) अपूर्व इव अत्र ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मितः असि?
उत्तराणि:
(क) अभिमन्यवे,
(ख) भीमाय,
(ग) राजे,
(घ) भीमसेनाय,
(ङ) भटाय।

7. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः। पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(श्लोकों का अपूर्ण अन्वय नीचे दिया गया है। पाठ के आधार पर रिक्त स्थान पूरे कीजिए)
(क) पार्थं पितरं मातुलं ………… च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य ……….. युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन …………. जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं …………. कृत्वा। (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता …………. रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं …………. अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः …………. । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) ………….. बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
उत्तराणि:
(क) पार्थं पितरम् मातुले जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा। (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुष्यता भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं उक्त्वा अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम्। बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति।

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(अ) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत
(नीचे लिखे पदों से उपसर्ग चुनकर लिखिए)
पदानि यथा- आसाद्य
(क) अवतारितः – ………………….
(ख) विभाति – ………………….
(ग) अभिभाषय – ………………….
(घ) उद्भूताः – ………………….
(ङ) उसिक्तः – ………………….
(च) प्रहरन्ति – ………………….
(छ) उपसर्पतु – ………………….
(ज) परिरक्षिताः – ………………….
(झ) प्रणमति – ………………….
उत्तराणि:
पदानि – उपसर्गः
(क) अवतारितः – अव
(ख) विभाति – वि
(ग) अभिभाषय – अभि
(घ) उद्भूताः – उत्
(ङ) उत्सिक्तः – उत्
(च) प्रहरन्ति – प्र
(छ) उपसर्पतु – उप
(त) परिरक्षिताः – परि
(झ) प्रणमति – प्र

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प्रत्यभिज्ञानम् (पहचान) Summary in Hindi

प्रत्यभिज्ञानम् पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ भासरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित किया गया है। संस्कृत के नाटककारों में महाकवि ‘भास’ का नाम अग्रगण्य है। ‘पञ्चरात्रम्’ की कथावस्तु महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। पाण्डवों के अज्ञातवास के समय दुर्योधन एक यज्ञ करता है और यज्ञ की समाप्ति पर आचार्य द्रोण को गुरु-दक्षिणा देना चाहता है। द्रोणाचार्य गुरु-दक्षिणा के रूप में पाण्डवों का राज्याधिकार चाहते हैं। इसके लिए दुर्योधन पाँच रातों में पाण्डवों को ढूँढने की शर्त रखता है। इसी कारण इस नाटक का नाम ‘पञ्चरात्रम्’ रखा गया है।

पाठ में वर्णित कथा के अनुसार दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने युद्धभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है। अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। अभिमन्यु महाराज विराट को भी प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है, जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का पता चल जाता है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

HBSE 9th Class Sanskrit सूक्तिमौक्तिकम् Textbook Questions and

सूक्तिमौक्तिकम् HBSE 9th Class

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
(ख) परोपकाराय सतां विभूतयः।
(ग) छायेव मैत्री खल सज्जनानाम् ।
(घ) आस्वायतोयाः प्रवहन्ति नद्यः।
उत्तराणि
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘चाणक्यनीति’ से संकलित श्लोक ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ में से उद्धृत है। मधुर वचन बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं। अतः हर मनुष्य को मृदुभाषी होना चाहिए। उसकी वाणी में इतनी मिठास हो कि उसे सुनते ही उसके शत्रु का हृदय भी पिघल जाए। मधुर बोली में एक ऐसा जादू होता है जो हर एक को अपना बना लेता है। अतः मनुष्य को सदैव मधुर वचन ही बोलने चाहिएँ।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘सुभाषितरत्नभाण्डागारम्’ नामक ग्रन्थ से संकलित श्लोक ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ में से उद्धृत है। सज्जनों की सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं। सज्जन पुरुष अपनी सम्पत्ति स्वयं पर न खर्च करके जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए खर्च करते हैं। जिस प्रकार नदियाँ अपने जल को स्वयं नहीं पीतीं, वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते तथा बादल अपनी वर्षा के जल से उत्पन्न किए गए फसलों के अनाज स्वयं नहीं खाते अपितु इन सबका उपयोग जरूरतमंद समाज के लोग ही करते हैं, उसी प्रकार सज्जन पुरुष अपनी सम्पत्ति से जरूरतमंदों की सहायता करते हैं।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति ‘नीतिशतकम्’ से संकलित श्लोक ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ में से उद्धृत है। दुष्ट एवं सज्जनों की मित्रता छाया के समान होती है। दुष्ट व्यक्ति भी मित्रता करता है और सज्जन व्यक्ति भी मित्रता करता है। परन्तु दोनों की मैत्री, दिन के पूर्वार्द्ध एवं परार्द्ध कालीन छाया की भाँति होती है। जिस प्रकार छाया दिन की शुरुआत में बड़ी होती है तथा फिर आहिस्ता-आहिस्ता छोटी होती जाती है, उसी प्रकार दुष्टों की मित्रता पहले गहरी होती है और धीरे-धीरे कम हो जाती है। इसके विपरीत जिस प्रकार दोपहर में छाया छोटी होती है, धीरे-धीरे बढ़ती है, इसी प्रकार सज्जनों की मित्रता पहले कम तथा धीरे-धीरे दूसरे के गुण-स्वभाव आदि समझकर बढ़ती है।

(घ) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति ‘हितोपदेश’ नामक ग्रन्थ से संकलित श्लोक ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ नामक पाठ में से उद्धृत है। खारे समुद्र में मिलने पर स्वादिष्ट जल वाली नदियों का जल अपेय हो जाता है। जैसी संगति होती है वैसे ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यदि मनुष्य गुणवानों के बीच में रहता है तो उनके गुणों के प्रभाव से गुणवान बन जाता है। परन्तु यदि गुणहीनों के बीच गुणयुक्त व्यक्ति भी चला जाए तो उसके गुण दुर्गुण में बदल जाते हैं। इसी बात को समझाने के लिए कहा गया है कि नदियों का जल पीने योग्य होता है परन्तु खारे जल वाले समुद्र में नदियाँ मिल जाती हैं तो उनका स्वादिष्ट जल भी खारा हो जाता है।

सूक्तिमौक्तिकम् प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

II. अधोलिखितान् श्लोकान् पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥ -मनुस्मृतिः
(क) यत्नेन किं रक्षेत्?
(ख) किम् एति याति च?
(ग) कस्मात् क्षीणः अक्षीणः?
उत्तराणि:
(क) यत्नेन वृत्तं रक्षेत्।
(ख) वित्तम् एति याति च।
(ग) वित्ततः क्षीणः अक्षीणः।

(2) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥
(क) प्रियवाक्येन के तुष्यन्ति?
(ख) सर्वे जन्तवः केन तुष्यन्ति?
(ग) तस्मात् किम् एव वक्तव्यम्?
उत्तराणि:
(क) प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे जन्तवः तुष्यन्ति।
(ख) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे जन्तवः तुष्यन्ति।
(ग) तस्माद् प्रियवाक्यम् एव वक्तव्यम्।

(3) गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥
(क) सदा गुणेषु कैः प्रयत्नः कर्तव्यः?
(ख) सदा पुरुषैः केषु प्रयत्नः कर्तव्यः?
(ग) ईश्वरैः अगुणैः समः कः न अस्ति?
उत्तराणि:
(क) सदा गुणेषु पुरुषैः प्रयत्नः कर्तव्यः।
(ख) सदा पुरुषैः गुणेषु प्रयत्नः कर्तव्यः ।
(ग) दरिद्रः अपि गुणयुक्तः ईश्वरैः अगुणैः समः न अस्ति।

Sanskrit 9 Class Chapter 5 HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत.
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) यत्नेन वृत्तं रक्षेत्।
(ख), पुरुषैः गुणेषु प्रयत्नः कर्तव्यः।
(ग) मरालैः वियोगेण सरोवराणां हानिः भवति।
(घ) नद्यः आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति।
(ङ) सतां विभूतयः परोपकाराय भवन्ति।
उत्तराणि:
(क) यत्नेन किं रक्षेत?
(ख) पुरुषैः केषु प्रयत्नः कर्तव्यः?
(ग) कैः वियोगेण सरोवराणां हानिः भवति?
(घ) काः आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति?
(ङ) केषां विभूतयः परोपकाराय भवन्ति?

Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 5 Solutions HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

IV. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. यत्नेन किं रक्षेत?
(i) वित्तं
(ii) वृन्तं
(iii) वृत्तं
(iv) विन्तं
उत्तरम्:
(iii) वृत्तं

2. पुरुषैः केषु प्रयत्नः कर्तव्यः?
(i) धनेषु
(ii) वित्तेषु
(iii) वृत्तेषु
(iv) गुणेषु
उत्तरम्:
(iv) गुणेषु

3. गुणज्ञेषु के गुणाः भवन्ति?
(i) गुणाः
(ii) धनाः
(iii) जनाः
(iv) नराः
उत्तरम्:
(i) गुणाः

4. कैः सह सरोवराणां हानिः भवति?
(i) विद्वानैः
(ii) शृगालैः
(iii) मरालैः
(iv) श्वानैः
उत्तरम्
(iii) मरालैः

5. जन्तवः केन तुष्यन्ति?
(i) प्रियवाक्येन
(ii) प्रियफलेन
(iii) प्रियधनेन
(iv) प्रियमित्रेण
उत्तरम्
(i) प्रियवाक्येन

6. ‘कुत्रापि’ इति पदे कः सन्धिविच्छेदः?
(i) कु + त्रापि
(ii) कुत्र + आपि
(iii) कुत्रा + पि
(iv) कुत्र + अपि
उत्तरम्
(iv) कुत्र + अपि

7. ‘छाया + इव’ इति पदे सन्धियुक्त पदम्
(i) छायाय
(ii) छायाऽइव
(iii)छायेव
(iv) छायैव
उत्तरम्:
(iii) छायेव

8. ‘खलसज्जनानाम्’ इति पदे कः समासः?
(i) तत्पुरुषः
(ii) द्वन्द्वः
(iii) द्विगुः
(iv) बहुव्रीहिः
उत्तरम्:
(ii) द्वन्द्वः

9. ‘सह’ पदस्य योगे का विभक्तिः ?
(i) चतुर्थी
(ii) तृतीया
(iii) पञ्चमी
(iv) द्वितीया
उत्तरम्:
(ii) तृतीया

10. ‘वृत्तं पदस्य पर्यायवाची पदं लिखत
(i) वित्तं
(ii) चरित्रं
(iii) धनमं
(iv) दुर्गुणं
उत्तरम्:
(ii) चरित्रं

Class 9 Sanskrit Chapter 5 Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

योग्यताविस्तारः

संस्कृत साहित्य में नीति-ग्रन्थों द्वारा नैतिक शिक्षाएँ दी गई हैं, जिनका उपयोग करके मनुष्य अपने जीवन को सफल और समृद्ध बना सकता है। ऐसे ही बहुमूल्य सुभाषित यहाँ संकलित हैं, जिनमें सदाचरण की महत्ता, प्रियवाणी की आवश्यकता, परोपकारी पुरुष का स्वभाव, गुणार्जन की प्रेरणा, मित्रता का स्वरूप और उत्तम पुरुष के सम्पर्क से होने वाली शोभा की प्रशंसा और सत्संगति की महिमा आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। संस्कृत-साहित्य में सारगर्भित, लौकिक पारलौकिक एवं नैतिकमूल्यों वाले सुभाषितों की बहुलता है जो देखने में छोटे प्रतीत होते हैं, किन्तु गम्भीर भाव वाले होते हैं। मानव-जीवन में इनका अतीव महत्त्व है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

भावविस्तारः
(क) आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाथ भवन्त्यपेयाः।
खारे समुद्र में मिलने पर स्वादिष्ट जलवाली नदियों का जल अपेय हो जाता है। इसी भावसाम्य के आधार पर कहा गया है कि “संसर्गजाः दोषगुणाः भवन्ति।”

(ख) छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ।
दुष्ट व्यक्ति मित्रता करता है और सज्जन व्यक्ति भी मित्रता करता है। परन्तु दोनों की मैत्री, दिन के पूर्वार्द्ध एवं परार्द्ध कालीन छाया की भाँति होती है। वास्तव में दुष्ट व्यक्ति की मैत्री के लिए श्लोक का प्रथम चरण “आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण” कहा गया है तथा सज्जन की मैत्री के लिए द्वितीय चरण ‘लम्वीपुरा वृद्धिमती च पश्चात्’ कहा गया है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 सूक्तिमौक्तिकम्

भाषिकविस्तारः
(1) वित्ततः वित्त शब्द से तसिल् प्रत्यय किया गया है। पंचमी विभक्ति के अर्थ में लगने वाले तसिल् प्रत्यय का तः ही शेष रहता है। उदाहरणार्थ-सागर + तसिल् = सागरतः, प्रयाग + तसिल = प्रयागतः, देहली + तसिल = देहलीतः आदि। इसी प्रकार वृत्ततः शब्द में भी तसिल् प्रत्यय लगा करके वृत्ततः शब्द बनाया गया है। .

(2) उपसर्ग-क्रिया के पूर्व जुड़ने वाले प्र, परा आदि शब्दों को उपसर्ग कहा जाता है। जैसे-‘ह’ धातु से उपसर्गों का योग होने पर निम्नलिखित रूप बनते हैं
प्र + ह – प्रहरति, प्रहार (हमला करना)
वि + ह – विहरति, विहार (भ्रमण करना)
उप + हृ – उपहरति, उपहार (भेंट देना)
सम् + हृ – संहरति, संहार (मारना)

(3) शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिए स्त्री प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इन प्रत्ययों में टापू व ङीप् । मुख्य हैं।
जैसे- बाल + टाप् – बाला
अध्यापक + टाप् – अध्यापिका
लघु + ङीप् – लघ्वी
गुरु + ङीप् – गुर्वी

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HBSE 9th Class Sanskrit सूक्तिमौक्तिकम् Important Questions and Answers

(क) परोपकारविषयकं श्लोकद्वयम् अन्विष्य स्मृत्वा च कक्षायां सस्वरं पठ।
1. परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः।
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः।
परोपकारार्थमिदं शरीरम् ॥

2.श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन,
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन।
विभाति कायः करुणापराणां,
परोपकारेण न चन्दनेन।

उत्तरम् छात्र इन श्लोकों को याद करें तथा अध्यापक के सहयोग से उनका कक्षा में सस्वर पाठ करें।

(ख) नद्याः एकं सुन्दरं चित्रं निर्माय संकलय्य वा वर्णयत यत् तस्याः तीरे मनुष्याः पशवः खगाश्च निर्विघ्नं जलं पिबन्ति।

उत्तरम् छात्र अध्यापक की सहायता से नदी का चित्र बनाएँ तथा वर्णन करें कि उसके तट पर मनुष्य, पशु, पक्षी सभी बिना कष्ट के पानी पी रहे हैं।

सूक्तिमौक्तिकम्  श्लोकों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥ -मनुस्मृतिः

अन्वय-वृत्तं यत्नेन संरक्षेत वित्तम् एति च याति च, वित्ततः क्षीणः अक्षीणः वित्तः हतः तु हतः।

शब्दार्थ-वृत्तं = चरित्र। यत्नेन = प्रयत्नपूर्वक। संरक्षेद् = रक्षा करनी चाहिए। वित्तमेति (वित्तम् + एति) = पैसा आता है। याति = जाता है। क्षीणः = नष्ट हुआ। अक्षीणः = नष्ट न हुआ।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ से उद्धृत है। इस श्लोक का संकलन ‘मनुस्मृति’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस सूक्ति में चरित्र की रक्षा के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-चरित्र की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए क्योंकि धन तो आता-जाता रहता है। धन से हीन (नष्ट) व्यक्ति तो सम्पन्न (नष्ट न हुआ) हो सकता है, परन्तु चरित्र से हीन व्यक्ति तो पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

भावार्थ-इस जीवन में मनुष्य के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु उसका चरित्र है। क्योंकि अन्य वस्तुएँ तो जाने या विनष्ट होने के बाद पुनः प्राप्त हो सकती हैं। परन्तु चरित्र के नष्ट होने पर उसकी पुनः प्राप्ति नहीं हो सकती। अतः मनुष्य को अपने चरित्र की रक्षा हर स्थिति में करनी चाहिए।

2. श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ॥ -विदुरनीतिः

अन्वय-धर्मसर्वस्वं श्रूयतां श्रुत्वा च अवधार्यताम् एव। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।

शब्दार्थ धर्मसर्वस्वं = धर्म का सार। अवधार्यताम् = ग्रहण करो, पालन करो। आत्मनः = अपने से। प्रतिकूलानि = प्रतिकूल व्यवहार का। परेषां = दूसरों के प्रति। समाचरेत् = आचरण नहीं करना चाहिए।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम’ से उद्धृत है। इस सूक्ति का संकलन महान् नीतिज्ञ विदुर द्वारा रचित ‘विदुरनीति’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में अपने प्रतिकूल दूसरों के प्रति आचरण न करने के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-धर्म का सार सुनो और सुनकर उसे ग्रहण करो अर्थात् उसका पालन करो। अपने से प्रतिकूल व्यवहार का आचरण दूसरों के प्रति कभी नहीं करना चाहिए।

भावार्थ धर्म का सार यही है कि हमें कभी भी दूसरों के प्रति अपने से विपरीत आचरण नहीं करना चाहिए।

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3. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ -चाणक्यनीतिः

अन्वय सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति तद् तस्माद् एव वक्तव्यं, वचने का दरिद्रता।

शब्दार्थ-प्रियवाक्यप्रदानेन = प्रिय वाक्य बोलने से। तुष्यन्ति = सन्तुष्ट होते हैं। वक्तव्यम् = कहने चाहिए। वचने = बोलने में। दरिद्रता = कंजूसी, निर्धनता।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ सूक्तिमौक्तिकम्’ से उद्धृत है। यह श्लोक ‘चाणक्यनीति’ नामक ग्रन्थ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में बताया गया है कि हमें मधुर वाणी ही बोलनी चाहिए।

सरलार्थ-सभी प्राणी मधुर वाक्य बोलने से सन्तुष्ट होते हैं, अतः मधुर वचन ही बोलने चाहिएँ तथा बोलने में कैसी दरिद्रता या निर्धनता।

भावार्थ-प्रत्येक मानव को मृदुभाषी होना चाहिए। उसकी वाणी में इतनी मिठास हो कि उसे सुनते ही उसके शत्रु का हृदय भी पिघल जाए। मीठे बोल में एक ऐसा जादू होता है जो हर एक को अपना बना लेता है। मधुर वाणी बोलने में कुछ भी धन नहीं लगता। मीठी वाणी का मूल्य तो केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही लगा सकता है।

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4. पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः ॥ -सुभाषितरत्नभाण्डागारम्

अन्वय-नद्यः स्वयमेव अम्भः न पिबन्ति, वृक्षाः स्वयं फलानि न खादन्ति। वारिवाहाः खलु सस्यं न अदन्ति, सतां विभूतयः परोपकाराय (भवन्ति)।

शब्दार्थ-नाम्भः (न + अम्भः) = पानी नहीं। खादन्ति = खाते हैं। अदन्ति = खाते हैं। सस्यम् = अन्न, फसल। वारिवाहाः = । बादल । सतां = सज्जनों की। विभूतयः = सम्पत्तियाँ।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ से उद्धृत है। यह श्लोक ‘सुभाषितरत्नभाण्डागारम’ से संकलित है।
सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में परोपकारी पुरुष के स्वभाव के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-नदियाँ स्वयं जल नहीं पीती हैं, वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते हैं। बादल निश्चय ही फसल का भक्षण नहीं करते। इसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्तियाँ भी दूसरों के उपकार के लिए होती हैं।

भावार्थ-नदियों में बहता हुआ जल नदी के काम न आकर देश और समाज के काम आता है। वृक्ष में लगे हुए फल स्वयं वृक्ष के उपयोग नहीं आता अपितु कोई अन्य ही उसका उपयोग करता है। इसी प्रकार बादल की वर्षा से जो अनाज पैदा होता है उसे बादल नहीं खाते। समाज के लोग ही उस अनाज को खाते हैं। इसी प्रकार सज्जनों की जो भी सम्पत्ति होती है, उसका उपयोग सज्जन स्वयं न करके समाज के लोगों की सहायता में लगा देते हैं। क्योंकि सज्जनों की सबसे बड़ी सम्पत्ति तो दूसरों का उपकार करना है।

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5. गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥ -मृच्छकटिकम्

अन्वय पुरुषैः सदा गुणेषु एव हि प्रयलः कर्त्तव्यः । गुणयुक्त दरिद्रः अपि अगुणैः ईश्वरैः समः न (अपितु तेभ्योऽधिक इति भावः)

शब्दार्थ-गुणेष्वेव (गुणेषु + एव) = गुणों में ही। अगुणैः = गुणहीनों से। ईश्वरैः = ऐश्वर्यशाली। समः = समान।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम् से उद्धत है। यह श्लोक महाकवि शूद्रक विरचित ‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में गुणों को प्राप्त करने की प्रेरणा के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-मनुष्य को सदा गुणों को प्राप्त करने का ही प्रयास करना चाहिए। दरिद्र होता हुआ भी गुणवान व्यक्ति ऐश्वर्यशाली गुणहीन के समान नहीं हो सकता।

भावार्थ मनुष्यों को सदा गुणों के अर्जन में ही प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि गुणवान् निर्धन व्यक्ति भी गुणहीन धनिकों से बढ़कर है। अर्थात् निर्धन गुणवान् व्यक्ति धनवान् गुणहीन व्यक्ति से श्रेष्ठ है। क्योंकि गुणवान् व्यक्ति अपने गुणों से धन एकत्रित कर सकता है, जबकि गुणहीन व्यक्ति धन का नाश करता है।

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6. आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ॥ -नीतिशतकम्

अन्वय-खल सज्जनानाम् मैत्री आरम्भगुर्वी, क्रमेण क्षयिणी पुरा लध्वी पश्चात् वृद्धिमती च दिनस्य पूर्वार्द्ध-परार्द्ध भिन्ना छाया इव (भवति)।

शब्दार्थ खल सज्जनानाम् = दुर्जनों और सज्जनों की। मैत्री = मित्रता। आरम्भगुर्वी = आरम्भ में बड़ी, क्रमेण । क्षयिणी = क्रम से क्षीण होने वाली। पुरा लघ्वी = पहले छोटी। पश्चात् वृद्धिमती च = और पीछे बढ़ने वाली। दिनस्य = दिन के। पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना = पूर्वार्द्ध और अपरार्द्ध में भिन्न रूप वाली। छाया इव = छाया की तरह होती है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ से उद्धृत है। यह ‘भर्तृहरि’ द्वारा रचित ‘नीतिशतकम्’ नामक ग्रन्थ से संकलित है। .

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत श्लोक में दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता में अन्तर के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-दुर्जनों की मित्रता प्रारम्भ में अधिक दिन के पूर्वार्द्ध के समान तथा क्रम से क्षीण होने वाली तथा सज्जनों की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली दिन के उत्तरार्द्ध की छाया की तरह होती है।

भावार्थ-दुर्जनों की मित्रता दिन के प्रथम आधे भाग में रहने वाली छाया की तरह प्रारम्भ में अधिक और फिर धीरे-धीरे कम होती जाती है एवं सज्जनों की मित्रता उत्तरार्ध की छाया की तरह पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है।

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7. यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु
हँसा महीमण्डलमण्डनाय।
हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां
येषां मरालैः सह विप्रयोगः ॥ -भामिनीविलासः

अन्वय महीमण्डलमण्डनाय हंसाः यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुः हि हानिः तु तेषां सरोवराणाम् येषां मरालैः सह विप्रयोगः (भवति)।

शब्दार्थ-मण्डनाय = सुशोभित करने के लिए। हंसा = हंस। मराला = हंस । सरोवराणां = तालाबों का। विप्रयोगः = वियोग, अलग होना। हानि = हानि।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ से उद्धृत है। यह श्लोक पं० जगन्नाथ द्वारा रचित ‘भामिनीविलास’ नामक ग्रन्थ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में उत्तम पुरुष के सम्पर्क से होने वाली शोभा की प्रशंसा के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ पृथ्वीमण्डल को सुशोभित करने के लिए हंस जहाँ-कहीं भी अर्थात् सभी जगह प्रवेश करने में समर्थ हैं, हानि तो उन सरोवरों की ही है जिनका उन हंसों से वियोग हो जाता है।

भावार्थ-इस श्लोक में कवि ने हंसों के माध्यम से उत्तम पुरुष की प्रशंसा की है। हंस जिस सरोवर में रहते हैं, उस सरोवर की शोभा अपने-आप बढ़ जाती है। उसी प्रकार उत्तम पुरुष जिस स्थान पर रहते हैं उस स्थान का महत्त्व अपने-आप ही बढ़ जाता है। परिस्थितिवश जब हंस तालाब को छोड़कर जाता है तो उसके जाने का दुःख तालाब को सहन करना पड़ता है। उसी प्रकार जब उत्तम पुरुष किसी अन्य स्थान पर जाने लगते हैं तो उनके जाने का दुःख उस स्थान के लोगों को सहना पड़ता है। हंस के समान उत्तम पुरुष पृथ्वी पर सभी जगह अपना स्थान बना लेते हैं।

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8. गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ।
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥ -हितोपदेशः

अन्वय-गुणज्ञेषु गुणाः गुणाः भवन्ति, निर्गुणं प्राप्य ते दोषाः भवन्ति। नद्यः आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति।

शब्दार्थ-गुणज्ञेषु = गुणों को जानने वालों में । दोषाः = दुर्गुण । आस्वायतोयाः = स्वादयुक्त जल वाली। आसाद्य = प्राप्त करके। अपेयाः = न पीने योग्य।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘सूक्तिमौक्तिकम्’ से लिया गया है। इस श्लोक का संकलन पं० नारायण द्वारा रचित ‘हितोपदेश’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में गुणवान लोगों के सम्पर्क में रहने के लाभ के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ गुणों को जानने वाले लोगों में रहने के कारण ही गुण, गुण होते हैं। गुणहीनों को प्राप्त करके वे (गुण) दोष बन जाते हैं। नदियाँ स्वादयुक्त जल वाली होती हैं, परन्तु समुद्र को प्राप्त करके न पीने योग्य हो जाती हैं।

भावार्थ-दोष और गुण संसर्ग से ही उत्पन्न होते हैं। गुणवानों के बीच में यदि कोई निर्गुण व्यक्ति भी रहता है तो वह उनके सम्पर्क से गुणवान बन जाता है। दूसरी ओर, निर्गुणों के सम्पर्क में आकर गुणवान् व्यक्ति भी निर्गुण बन जाता है। जैसे स्वादिष्ट जल वाली नदियों का पानी जब समुद्र में मिलता है तो उसके सम्पर्क में स्वादिष्ट जल भी खारा बन जाता है।

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) वित्ततः क्षीणः कीदृशः भवति?
(ख) कस्य प्रतिकूलानि कार्याणि परेषां न समाचरेत्?
(ग) कुत्र दरिद्रता न भवेत्?
(घ) वृक्षाः स्वयं कानि न खादन्ति?
(ङ) का पुरा लघ्वी भवति?
उत्तराणि:
(क) अक्षीणः,
(ख) आत्मनः,
(ग) वचने,
(घ) फलानि,
(ङ) दिनस्य छाया।

2. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषयां लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) यत्नेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा?
(ख) अस्माभिः (किं न समाचरेत्) कीदृशम् आचरणं न कर्त्तव्यम्?
(ग) जन्तवः केन तुष्यन्ति?
(घ) सज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति?
(ङ) सरोवराणां हानिः कदा भवति?
उत्तराणि:
(क) यत्नेन वृत्तं रक्षेत्।
(ख) अस्माभिः आत्मनः प्रतिकूलम् आचरणं न कर्त्तव्यम्।
(ग) जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति।
(घ) सज्जनानां मैत्री पुरा लध्वी पश्चात् च वृद्धिमती भवति।
(ङ) मरालैः सह वियोगेण सरोवराणां हानिः भवति।

3. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि, तानि यथोचितं योजयत
(स्तम्भ ‘क’ में विशेषण शब्द व स्तम्भ ‘ख’ में विशेष्य शब्द दिए गए हैं, उन्हें यथोचित जोडिए)
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) आस्वायतोयाः (1) खलानां मैत्री
(ख) गुणयुक्तः (2) सज्जनानां मैत्री
(ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना (3) नद्यः
(घ) दिनस्य परार्द्धभिन्ना (4) दरिद्रः
उत्तराणि:
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) आस्वाद्यतोयाः (3) नद्यः
(ख) गुणयुक्तः (4) दरिद्रः
(ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना (1) खलानां मैत्री
(घ) दिनस्य परार्द्धभिन्ना (2) सज्जनानां मैत्री

4. अधोलिखितयोः श्लोकद्वयोः आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(निम्नलिखित दो श्लोकों के आशय (भावार्थ) हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए)
(क) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ॥

(ख) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥
उत्तराणि:

(क) भावार्थ प्रस्तुत श्लोक में आचार्य भर्तृहरि ने दुष्टों और सज्जनों की मित्रता में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा है कि जिस प्रकार छाया दिन की शुरुआत में बड़ी होती है तथा फिर आहिस्ता-आहिस्ता छोटी होती जाती है, उसी प्रकार दुष्टों की मित्रता पहले गहरी होती है और धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसके विपरीत जिस प्रकार दोपहर में छाया छोटी होती है, धीरे-धीरे बढ़ती है, इसी प्रकार सज्जनों की मित्रता पहले कम तथा धीरे-धीरे दूसरे के गुण-स्वभाव आदि समझकर बढ़ती है।

(ख) भावार्थ-प्रस्तुत श्लोक में आचार्य चाणक्य ने वचन के महत्त्व के विषय में कहा है कि मधुर वचन बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं, अतः मनुष्य को सदैव मधुर वचन बोलने में कृपणता नहीं करनी चाहिए।

5. अधोलिखितपदेभ्यः भिन्नप्रकृतिकं पदं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों से भिन्न प्रकृति वाले शब्द चुनकर लिखें)
(क) वक्तव्यम्, कर्तव्यम्, सर्वस्वम्, हन्तव्यम्।
(ख) यत्नेन, वचने, प्रियवाक्यप्रदानेन, मरालेन।
(ग) श्रूयताम्, अवधार्यताम्, धनवताम्, क्षम्यताम्।
(घ) जन्तवः, नद्यः, विभूतयः, परितः।
उत्तराणि:
(क) सर्वस्वम्,
(ख) मरालेन,
(ग) धनवताम्,
(घ) परितः।

6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्नवाक्यनिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न वाक्य का निर्माण कीजिए)
(क) वृत्ततः क्षीणः हतः भवति।
(ख) धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा अवधार्यताम्।
(ग) वृक्षाः फलं न खादन्ति।
(घ) खलानाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति।
उत्तराणि:
(क) कस्मात् क्षीणः हतः भवति?
(ख) किं श्रुत्वा अवधार्यताम् ?
(ग) के फलं न खादन्ति?
(घ) केषाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति?

7. अधोलिखितानि वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयत
(निम्नलिखित वाक्यों का लोट्लकार में परिवर्तन कीजिए)
यथा-सः पाठं पठति। – सः पाठं पठतु।
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति। ……………………………..
(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदति। ……………………………..
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि। ……………………………..
(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति। ……………………………..
(ङ) अहम् परोपकाराय कार्यं करोमि। ……………………………..
उत्तराणि:
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति। नद्यः आस्वाधतोयाः सन्तु।
(ख) · सः सदैव प्रियवाक्यं वदति। सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु।
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि। त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचर।
(घ) . ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति। ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु।
(ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करोमि। अहं परोपकाराय कार्यं करवाणि।

सूक्तिमौक्तिकम् (सुन्दर वचन रूपी मोती) Summary in Hindi

सूक्तिमौक्तिकम् पाठ-परिचय 

प्रस्तुत पाठ का संकलन संस्कृत साहित्य के विभिन्न नीतिग्रन्थों से किया गया है। संस्कृत साहित्य में नीतिग्रन्थों की समृद्ध परम्परा रही है। इनमें सारगर्भिता और सरल रूप में नैतिक शिक्षाएँ दी गई हैं, जिनका उपयोग करके मनुष्य अपने जीवन को समृद्ध बना सकता है। ऐसे ही मनोहारी और बहुमूल्य सुभाषित यहाँ संकलित हैं।

इस पाठ में कुल आठ सूक्तियों का संकलन किया गया है। पहली सूक्ति ‘मनुस्मृति’ से संकलित है। इस सूक्ति में चरित्र के संरक्षण पर बल दिया गया है। दूसरी सूक्ति ‘विदुरनीति’ से संकलित है, जिसमें अपने से प्रतिकूल आचरण न करने के विषय में बताया गया है। मधुर वचन बोलने की शिक्षा देने वाली तीसरी सूक्ति ‘चाणक्यनीति’ से संकलित है। परोपकार के महत्त्व की शिक्षा देने वाली चौथी सूक्ति ‘सुभाषितरत्नभाण्डागारम्’ से ली गई है।

पाँचवीं सूक्ति में गुण के महत्त्व के विषय में बताया गया है जिसका संकलन ‘मृच्छकटिकम्’ से किया गया है। सज्जनों एवं दुर्जनों की मित्रता में अन्तर बताने वाली छठी सूक्ति ‘नीतिशतकम्’ से ली गई है। सातवीं सूक्ति ‘भामिनीविलास’ से संकलित है। इस सूक्ति में सज्जनों की तुलना हंस से की गई है। अन्तिम सूक्ति ‘हितोपदेश’ से संकलित है। इस सूक्ति में गुणवान् लोगों के पास रहने पर बल दिया गया है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

HBSE 9th Class Sanskrit कल्पतरूः Textbook Questions and Answers

Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 4 Solutions HBSE

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) संसारसागरे आशरीरमिदं सर्वं धन वीचिवच्चञ्चलम्।
(ख) एकः परोपकार एवास्मिन् संसारेऽनश्वरः। .
(ग) यथा पृथ्वीमदरिद्रां पश्यामि, तथा करोतु देव।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ में से उद्धृत है। महापुरुषों ने इस संसार को समुद्र कहा है। इस संसार में शरीर सहित जो कुछ धन-धान्यादि है, वह नाशवान है। जिस प्रकार समुद्र में लहरें उठती हैं और थोड़ी देर बाद उसी में विलीन हो जाती हैं; उसी प्रकार इस संसार रूपी समुद्र में मनुष्य का शरीर, उसकी धन-सम्पत्ति आदि लहरों की भाँति नाशवान है। संसार की प्रत्येक वस्तु नश्वर है। केवल मनुष्य के द्वारा किया गया सत्कर्म ही स्थिर है।

(ख) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ में से उद्धृत है। इस संसार में एक परोपकार ही अनश्वर है, जो युग के अन्त तक यश फैलाता है। दूसरों की भलाई के लिए किया गया कार्य परोपकार है। मनुष्य द्वारा एकत्रित की गई धन-सम्पत्ति, सुख-ऐश्वर्य आदि सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। न तो मनुष्य इन वस्तुओं को साथ लेकर पैदा होता है और न ही मृत्यु
के समय इन्हें साथ लेकर जाता है। जो मनुष्य दूसरों की भलाई के लिए कोई कार्य करता है, वह कार्य अमर हो जाता है। उस कार्य को याद करके लोग युगों तक उस परोपकारी मनुष्य को याद करते हैं। इसलिए परोपकार की भावना से किए गए कार्यों के द्वारा मनुष्य की ख्याति युगों-युगों तक बनी रहती है।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ में से उद्धृत है। जीमूतवाहन ने अपने पिता की आज्ञा से अपने पूर्वजों द्वारा सुरक्षित कल्पवृक्ष से प्रार्थना की कि हे देव! तुमने हमारे पूर्वजों की अभीष्ट इच्छाएँ पूरी की हैं। इसलिए मेरी प्रार्थना के अनुसार इस पृथ्वी को निर्धनों से रहित कर दो। पौराणिक मान्यता के अनुसार कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जिसके नीचे बैठकर की जाने वाली कल्पना पूरी होती है। जीमूतवाहन ने सारी पृथ्वी की निर्धनता मिटाने के लिए कल्पवृक्ष से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना को सुनकर कल्पवृक्ष ने इतने धन की वर्षा की कि इस पृथ्वी पर कोई भी निर्धन नहीं रहा।

9 Class Sanskrit Chapter 4 HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

II. अधोलिखितान् गद्यांशान् पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानोः उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति?
(ख) हिमालयस्य सानोः उपरि किं नाम नगरं विभाति?
(ग) ‘विद्याधरपतिः’ इति पदस्य समास विग्रहं कुरुत।
(घ) तत्र कः वसति स्म?
(ङ) राजा कस्मात् प्रसादात् जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत् ?
उत्तराणि:
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं हिमवानस्य सानोः उपरि विभाति।
(ख) हिमालयस्य सानोः उपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति।
(ग) विद्याधराणां पतिः।
(घ) तत्र जीमूतकेतुः इति नाम श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
(ङ) राजा कल्पतरुम् आराध्य तत् प्रसादात् जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।

(2) “अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत् ।
(क) अस्माकं पूर्वजैः किं प्राप्यापि किमपि न प्राप्तम्?
(ख) अस्माकं कैः तादृशं फलं न प्राप्तम् ?
(ग) ‘अर्थोऽर्थितः’ इति पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत।
(घ) अस्मात् अहं किं साधयामि?
(ङ) सः जीमूतवाहनः कुत्र आगच्छत् ?
उत्तराणि:
(क) अस्माकं पूर्वजैः ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि किमपि न प्राप्तम्।
(ख) अस्माकं पूर्वः पुरुषैः तादृशं फलं न प्राप्तम्।
(ग) अर्थः + अर्थः
(घ) अहं अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि।
(ङ) जीमूतवाहनः पितुः अन्तिकम् आगच्छत् ।

Chapter 4 कल्पतरूः 9 Class Sanskrit HBSE

(3) “देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम्
पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्।
(क) दरिद्रा का अस्ति?
(ख) त्वया केषाम् अभीष्टाः पूरिताः?
(ग) ‘करोतु’, इति पदे कः लकारः?
(घ) जीमूतवाहनः कल्पतरुना किम् अयाचत्?
(ङ) कल्पतरुः किम् उक्त्वा उद्भूत?
उत्तराणि:
(क) दरिद्रा पृथ्वी अस्ति।
(ख) त्वया अस्मत् पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः ।
(ग) लोट् लकार, प्रथमपुरुषैकवचनः।
(घ) जीमूतवाहनः कल्पतरुना अयाचत् यत्-“यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव।”
(ङ) त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि इति उक्त्वा कल्पतरुः उद्भूत्।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) उद्याने कल्पतरुः स्थितः।
(ख) अस्मान् शक्रः अपि बाधितु न शक्नुयात्।
(ग) परोपकारः एव संसारे अनश्वरः।
(घ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच।
(ङ) कल्पतरुः भुवि वसूनि अवर्षत्।
उत्तराणि:
(क) कुत्र कल्पतरुः स्थितः?
(ख) अस्मान् कः अपि बाधितु न शक्नुयात् ?
(ग) कः एव संसारे अनश्वरः?
(घ) जीमूतवाहनः कम् उपगम्य उवाच?
(ङ) कल्पतरुः कुत्र वसूनि अवर्षत् ?

IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ)
(क) तत्र जीमूतकेतुः श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
(ख) स्वसचिवैः प्रेरितः राजा तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्।
(ग) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत् ।
(घ) हिमवानस्य उपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति।
(ङ) सः बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत् ।
उत्तराणि:
(घ) ‘हिमवानस्य उपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति।
(क) तत्र जीमूतकेतुः श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म।
(ङ) सः बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
(ग) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
(ख) स्वसचिवैः प्रेरितः राजा तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्।

(ब)
(क) जीमूतकेतुः कल्पतरोः प्रासादात् जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।
(ख) कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि वसूनि अवर्षत्।
(ग) जीमूतकेतोः गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
(घ) ततः जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।
(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव।
उत्तराणि:
(ग) जीमूतकेतोः गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
(क) जीमूतकेतुः कल्पतरोः प्रासादात् जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्।।
(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव।
(ख) कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि वसूनि अवर्षत्।
(घ) ततः जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

v. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. हिमवानस्य सानोरुपरि किं नाम नगरं विभाति?
(i) सज्जनपुरम्
(ii) चन्दनपुरम्
(iii) कञ्चनपुरम्
(iv) अमरपुरम्
उत्तरम्:
(iii) कञ्चनपुरम्

2. कुलक्रमागत् कल्पतरुः कुत्र स्थितः?
(i) राजप्रासादे
(ii) गृहोद्याने
(iii) राजोपवने
(iv) देवोद्याने
उत्तरम्:
(ii) गृहोद्याने

3. संसारसागरे किं वीचिवच्चञ्चलम् ?
(i) वनम्
(ii) जनम्
(iii) धनम्
(iv) सर्वम्
उत्तरम्:
(iii) धनम्

4. अस्मिन् संसारे एकः कः अनश्वरः?
(i) परोपकारः
(ii) जीवनः
(iii) नामः
(iv) शरीरः
उत्तरम्:
(i) परोपकारः

5. कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि कानि अवर्षत् ?
(i) जलानि
(ii) वसूनि
(iii) हिमानि
(iv) अन्नानि
उत्तरम्:
(ii) वसूनि

6. ‘परोपकारः’ अत्र किं विग्रहपदम्?
(i) परषाम् उपकारः
(ii) परेषाम् अपकारः
(iii) परेषा उपकारः
(iv) परेषाम् उपकारः
उत्तरम्:
(iv) परेषाम् उपकारः

7. ‘गृहोद्याने’ इति पदे कः समासः?
(i) तत्पुरुषः
(ii) कर्मधारयः
(iii) द्वन्द्वः
(iv) अव्ययीभावः
उत्तरम्:
(i) तत्पुरुषः

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8. ‘गुण + मतुप्’ इति संयोगे किं रूपम्?
(i) गुणवान्
(ii) गूणवान्
(iii) गणवान्
(iv) गुणवानः
उत्तरम्:
(i) गुणवान्

9. ‘स्वस्ति’ शब्दस्य योगे का विभक्तिः स्यात् ?
(i) तृतीया
(ii) चतुर्थी
(iii) पञ्चमी
(iv) षष्ठी
उत्तरम्:
(ii) चतुर्थी

10. ‘इन्द्रः’ इति पदस्य पर्यायपदं किम्?
(i) देवः
(ii) शिवः
(iii) शक्रः
(iv) शुक्रः
उत्तरम्:
(ii) शक्रः

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11. ‘विद्याधराणां पतिः’ अत्र किं समस्तपदम?
(i) विद्यधरापतिः
(ii) विद्यधारापतिः
(iii) विद्याधारपतिः
(iv) विद्याधरपतिः
उत्तरम्:
(iv) विद्याधरपतिः

12. ‘अनश्वरः’ इति पदस्य विशेष्य पदं किम्?
(i) कल्पतरुः
(ii) परोपकारः
(iii) दानवीरः
(iv) राजा
उत्तरम्:
(ii) परोपकारः

13. ‘जीमूतवाहनः’ इति पदस्य विशेषणपदं किम्?
(i) परोपकारः
(ii) दानवीरः
(iii) अनश्वरः
(iv) कल्पतरुः
उत्तरम्:
(i) दानवीरः

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योग्यताविस्तारः

यह पाठ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ नामक कथा संग्रह से लिया गया है, जिसमें मनोरञ्जक एवम् आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से जीवनमूल्यों का निरूपण किया गया है। इस कथा में जीमूतवाहन अपने पूर्वजों के काल से गृहोद्यान में आरोपित कल्पवृक्ष से सांसारिक द्रव्यों को न माँगकर संसार के प्राणियों के दुःखों को दूर करने का वरदान माँगता है क्योंकि, धन तो पानी की लहर के समान चंचल है, केवल परोपकार ही इस संसार का सर्वोत्कृष्ट तथा चिरस्थायी तत्त्व है।

(क) ग्रन्थ परिचय “वेतालपञ्चविंशतिका” पच्चीस कथाओं का संग्रह है। इस नाम की दो रचनाएँ पाई जाती हैं। एक शिवदास (13वीं शताब्दी) द्वारा लिखित ग्रन्थ है जिसमें गद्य और पद्य दोनों विधाओं का प्रयोग किया गया है। दूसरी जम्भलदत्त की रचना है जो केवल गद्यमयी है। इस कथा में कहा गया है कि राजा विक्रम को प्रतिवर्ष कोई तान्त्रिक सोने का एक फल देता है। उसी तान्त्रिक के कहने पर राजा विक्रम श्मशान से शव लाता है। जिस पर सवार होकर एक वेताल मार्ग में राजा के मनोरंजन के लिए कथा सुनाता है। कथा सुनते समय राजा को मौन रहने का निर्देश देता है। कहानी के अन्त में वेताल राजा से कहानी पर आधारित एक प्रश्न पूछता है। राजा उसका सही उत्तर देता है। शर्त के अनुसार वेताल पुनः श्मशान पहुँच जाता है। इस तरह पच्चीस बार ऐसी ही घटनाओं की आवृत्ति होती है और वेताल राजा को एक-एक करके पच्चीस कथाएँ सुनाता है। ये कथाएँ अत्यन्त रोचक, भाव-प्रधान और विवेक की परीक्षा लेने वाली हैं।

(ख) क्त क्तवतु प्रयोगः
क्त-इस प्रत्यय का प्रयोग सामान्यतः कर्मवाच्य में होता है।
क्तवतु इस प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है।
क्त प्रत्ययः
जीमूतवाहनः हितैषिभिः मन्त्रिभिः उक्तः।
कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः।
त्वया अस्मत्कामाः पूरिताः।
तस्य यशः प्रथितम् (कर्तृवाच्य में क्त)
क्तवतु प्रत्ययः
सा पुत्रं यौवराज्यपदेऽभिषिक्तवान्।
एतदाकर्ण्य जीमूतवाहनः चिन्तितवान्।
स सुखासीनं पितरं निवेदितवान्।
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उक्तवान्।

(ग) लोककल्याण-कामना-विषयक कतिपय श्लोक
(1) सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
अर्थात् सभी सुखी हों, सभी नीरोग रहें, सभी कल्याण को देखें, किसी को भी दुःख की प्राप्ति न हो।

(2) सर्वस्तरतु दुर्गाणि, सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु, सर्वः सर्वत्र नन्दतु ॥
अर्थात् सभी दुर्ग को पार कर जाएँ, सभी कल्याण देखें, सभी की कामनाएँ पूरी हों, सभी सब जगह प्रसन्न रहें।

(3) न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥
अर्थात् न तो मुझे राज्य की इच्छा है, न स्वर्ग की और न ही पुनः जन्म लेने की। मैं तो केवल यही कामना करता हूँ कि दुःख से सन्तप्त प्राणियों के दुखों का विनाश हो जाए।
अध्येतव्यः ग्रन्थःवेतालपञ्चविंशतिकथा, अनुवादक, दामोदर झा, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, 1968

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

HBSE 9th Class Sanskrit कल्पतरूः Important Questions and Answers

कल्पतरूः  गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानोः उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम् । तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्। सः जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान् । कदाचित् हितैषिणः पितृमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमूतवाहनं उक्तवन्तः–“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्थ-हिमवान = हिमालय। नगेन्द्रः = पर्वतों का राजा। सानोः उपरि = चोटी के ऊपर। विभाति = सशोभित है। कुलक्रमागतः = कुल परंपरा से प्राप्त हुआ। आराध्य = आराधना करके। दानवीरः = दानी। सर्वभूतानुकम्पी = सब प्राणियों पर दया करने वाला। सचिवैः = मन्त्रियों द्वारा। प्रेरितः = प्रेरणा से। अभिषिक्तवान् = अभिषेक कर दिया। यौवराज्ये = युवराज के पद पर। हितैषिणः = हित चाहने वालों के द्वारा। सर्वकामदः = सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला। शक्रः = इन्द्र। न शक्नुयात् = समर्थ नहीं होगा। बाधितुं = कष्ट पहुँचाने में।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ में से उद्धृत है। यह पाठ संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में जीमूतवाहन के घर के उद्यान में स्थित कल्पवृक्ष के महत्व के विषय में बताया गया है।

सरलार्थ-सभी रत्नों की भूमि पर्वतों का राजा हिमालय है। उसकी चोटी पर कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ श्रीमान् विद्याधरपति जीमूतकेतु रहता था। उसके घर के उद्यान में वंश परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष लगा हुआ था। राजा जीमूतकेतु ने उस कल्पवृक्ष की पूजा करके तथा उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया। वह महानु,

दानवीर तथा सब प्राणियों पर दया करने वाला था। उसके गुणों से प्रसन्न तथा मन्त्रियों से प्रेरित राजा ने उचित समय पर यौवन सम्पन्न अपने पुत्र जीमूतवाहन का युवराज के पद पर अभिषेक कर दिया। युवराज के पद पर स्थित उस जीमूतवाहन से उसके हितैषी पिता एवं मन्त्रियों ने कहा-“हे युवराज! जो यह सारी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला कल्पवृक्ष तुम्हारे उद्यान में स्थित है, वह तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। इसके अनुकूल रहने पर इन्द्र भी हमें कोई बाधा नहीं पहुँचा सकता।”

भावार्थ-पौराणिक मान्यता के अनुसार कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष है, जो याचकों (माँगने वालों) की इच्छा की पूर्ति करता है। जीमूतवाहन के उद्यान में भी वही कल्पवृक्ष स्थित था। वह देवतुल्य था। इसलिए जीमूतवाहन के पिता ने कहा कि यह वृक्ष तुम्हारे लिए सदा पूजनीय है। इस वृक्ष की कृपा से इन्द्र भी तुम्हें पराजित नहीं कर सकते।

2 एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत्-“अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्-“तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्वं धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानी कुत्र गताः?” तेषां कस्यायम? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमं कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थ-आकर्ण्य + एतत् = यह सुनकर। प्राप्यापि (प्राप्य + अपि) = प्राप्त करके भी। अमरपादपं = अमर वृक्ष को। पूर्वैः पुरुषैः = पूर्वजों के द्वारा । नासादितम् = नहीं प्राप्त किया। कृपणैः = कंजूस लोगों के द्वारा । साधयामि = मैं सिद्ध करता हूँ। अर्थितः = मांगा गया। अन्तिकम् = समीप। वीचिवत् = लहरों की भाँति । चञ्चलम् = नश्वर, क्षणिक। परोपकार = दूसरों का उपकार । यशः = यश। आराधयामि = मैं पूजा करता हूँ।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ से उद्धृत है। यह पाठ संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि अपने पूर्वजों से प्राप्त कल्पतरु के द्वारा जीमूतवाहन ने परोपकार करने की इच्छा व्यक्त की।

सरलार्थ यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में विचार किया-“अरे! आश्चर्य है। ऐसे अमर वृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने ऐसा कोई भी फल प्राप्त नहीं किया और सिर्फ कुछ कंजूस लोगों के द्वारा थोड़ा धन ही माँगा गया। अतः मैं इस वृक्ष से अभीष्ट मनोरथ सिद्ध करता हूँ।” ऐसा सोचकर वह पिता के पास आया। आकर सुखपूर्वक बैठे हुए पिता से एकान्त में निवेदन किया-“पिता जी! आप तो जानते हैं कि इस संसार रूपी सागर में शरीर सहित सारा धन लहरों की भाँति चंचल (नश्वर) होता है। इस संसार में एक परोपकार ही अनश्वर है, जो युग के अन्त तक यश फैलाता है। यदि ऐसा है तो हम ऐसे कल्पवृक्ष की रक्षा क्यों कर रहे हैं?” जिन पूर्वजों ने ‘मेरा मेरा’ कहकर इस वृक्ष की रक्षा की, वे अब कहाँ गए? उनमें से यह किसका है? या इसके वे कौन हैं? तो आपकी आज्ञा से ‘परोपकार’ की फल सिद्धि के लिए मैं इस कल्पवृक्ष की आराधना करता हूँ।

भावार्थ-यह संसार समुद्र के समान है। इसमें धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य आदि लहरों की तरह क्षणभंगुर हैं। इस संसार में केवल परोपकार ही एक ऐसी वस्तु है जो कभी समाप्त नहीं होती। प्रत्येक युग में परोपकारी मनुष्य का यश फैलता रहता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथ्वीम् अदरिदाम् पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्। क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्थ-अभ्यनुज्ञातः (अभि + अनुज्ञातः) = अनुमति प्राप्त कर। कामाः = कामनाएँ, इच्छाएँ। पूरिताः = पूरी की गईं। अदरिद्राम् = दरिद्रता से रहित, सम्पन्न। वाक् = वाणी, शब्द। दिवम् = स्वर्ग में। समुत्पत्य = उड़कर। भुवि = पृथ्वी पर। वसूनि = धन। अवर्षत् = बरसाया। दुर्गत = पीड़ित। सर्वजीवानुकम्पया = सब जीवों पर दया करने से। प्रथितम् = प्रसिद्ध हो गया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘कल्पतरुः’ से उद्धृत है। यह पाठ संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि जीमूतवाहन की प्रार्थना से कल्पवृक्ष ने स्वर्ग की ओर उड़ते हुए पृथ्वी पर अत्यधिक धन की वर्षा की।

सरलार्थ-पिता के द्वारा ‘अच्छा ठीक है’ इस प्रकार अनुमति पाकर कल्पवृक्ष के पास पहुँचकर जीमूतवाहन ने कहा-“हे देव! तुमने हमारे पूर्वजों की अभीष्ट इच्छाएँ पूरी की हैं तो मेरी एक इच्छा भी पूरी कर दो। आप इस पृथ्वी को निर्धनों से रहित कर दो देव।” जीमूतवाहन के ऐसा कहते ही उस वृक्ष से वाणी निकली, “तुम्हारे द्वारा इस तरह त्यागा हुआ मैं जा रहा हूँ।” उस कल्पवृक्ष ने क्षणभर में ही स्वर्ग की ओर उड़ कर पृथ्वी पर इतने धन की वर्षा की कि कोई भी निर्धन नहीं रहा। इस प्रकार सब प्राणियों पर दया करने से उस जीमूतवाहन का यश सब जगह फैल गया।

भावार्थ-दयालु एवं परोपकारी व्यक्ति सदा-सदा के लिए अमर हो जाता है। जीमूतवाहन ने परोपकार एवं निर्धनों पर दया करके अपने पूर्वजों की धरोहर कल्पवृक्ष का त्याग किया जिससे उसका यश सर्वत्र फैल गया।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः अस्ति?
(ख) संसारेऽस्मिन् कः अनश्वरः भवति?
(ग) जीमूतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कम् आराधयति?
(घ) जीमूतवाहनस्य सर्वभूतानुकम्पया सर्वत्र किं प्रथितम्?
(ङ) कल्पतरुः भुवि कानि अवर्षत् ?
उत्तराणि:
(क) जीमूतकेतोः,
(ख) परोपकारः,
(ग) कल्पपादपम्,
(घ) यशः,
(ङ) वसूनि

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति स्म?
(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत्?
(ग) कल्पतरोः वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत्?
(घ) हितैषिणः मन्त्रिणः जीमूतवाहनं किम् उक्तवन्तः?
(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच?
उत्तराणि:
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं हिमालय पर्वतस्य सानोः उपरि विभाति स्म।
(ख) जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्।
(ग) कल्पतरोंः वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत्-‘परोपकारैकफलसिद्धये इमं कल्पपादपम् आराधयामि।’
(घ) हितैषिणः मन्त्रिणः जीमूतवाहनं उक्तवन्तः यत्-‘युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव
सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्।’
(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-‘यत्-“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः तन्ममैकं कामं ..
पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव”।

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3. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
(निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पद किसके लिए प्रयुक्त किए गए हैं)
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्।
(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्।
(ग) अयं तव सदा पूज्यः।।
(घ) तात! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम् ।
उत्तराणि:
(क) हिमवते,
(ख) जीमूतवाहनाय,
(ग) कल्पवृक्षाय,
(घ) जीमूतकेतवे।

4. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखिए)
(क) पर्वतः = …………………………….
(ख) भूपतिः = = …………………………….
(घ) धनम् = …………………………….
(ङ) इच्छितम् = …………………………….
(च) समीपम् = …………………………….
(छ). धरित्रीम् = …………………………….
(ज) कल्याणम् = …………………………….
(झ) वाणी = …………………………….
(ञ) वृक्षः = …………………………….
उत्तराणि:
(क) पर्वतः . = नगेन्द्रः
(ख) भूपतिः = राजा
(ग) इन्द्रः = शक्रः
(घ) धनम् = अर्थ
(ङ). इच्छितम् = अर्थित
(च) समीपम् = अन्तिकम्
(छ) धरित्रीम् = पृथ्वीम्
(ज): कल्याणम् = हितम्
(झ) वाणी = वाक्
(ञ) वृक्षः = तरुः

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5. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि। तानि समुचितं योजयत
(स्तम्भ ‘क’ में विशेषण व ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य पद दिए गए हैं, उन्हें उचित ढंग से जोड़िए)
‘क’ स्तम्भ – ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः = परोपकारः
दानवीरः = मन्त्रिभिः
हितैषिभिः = जीमूतवाहनः
वीचिवच्चञ्चलम् = कल्पतरुः
अनश्वरः = धनम्
उत्तराणि:
‘क’ स्तम्भ – ‘ख’ स्तम्भ
कुलक्रमागतः – कल्पतरुः
दानवीरः – जीमूतवाहनः
हितैषिभिः – मन्त्रिभिः
वीचिवच्चञ्चलम् – धनम्
अनश्वरः – परोपकारः

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6. स्थूल पदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूलपदों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए)
(क). तरोः कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ।
(ख) सः कल्पतरवे न्यवेदयत्।
(ग) धनवृष्ट्या कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्।
(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत्।
(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत् ।
उत्तराणि:
(क) कस्य कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत्?
(ख) सः कस्मै न्यवेदयत्?
(ग) कया कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्?
(घ) कल्पतरुः कुत्र धनानि अवर्षत् ?
(ङ) कया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत् ?

7. “स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता। एवमेव (कोष्ठकगतेषु पदेषु) चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(“स्वस्ति तुभ्यम्” स्वस्ति शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। यहाँ इस नियम में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। इसी प्रकार (कोष्ठक में दिए शब्दों में) चतुर्थी विभक्ति प्रयोग करके रिक्त स्थान पूर्ण कीजिए)
(i) स्वस्ति …………….. (राजा)
(ii) स्वस्ति ……………… (प्रजा)
(iii) स्वस्ति …………….. (छात्र)
(iv) स्वस्ति …………….. (सर्वजन)
उत्तराणि:
(i) स्वस्ति राजे
(ii) स्वस्ति प्रजायै
(iii) स्वस्ति छात्राय
(iv) स्वस्ति सर्वजनाय

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः

(ख) , कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(कोष्ठक में दिए शब्दों में छठी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थान पूरे कीजिए)
(i) तस्य …………….. उद्याने कल्पतरुः आसीत्। (गृह)
(ii) सः …………….. अन्तिकम् अगच्छत् । (पित)
(iii) ……………. सर्वत्र यशः प्रथितम् । (जीमूतवाहन)
(iv). अयं …………….. तरुः? (किम्)
उत्तराणि:
(i) तस्य गृहस्य उद्याने कल्पतरुः आसीत्।
(ii) सः पितुः अन्तिकम् अगच्छत्।
(iii) जीमूतवाहनस्य सर्वत्र यशः प्रथितम्।
(iv) अयं कस्य तरुः?

कल्पतरुः (कल्प का वृक्ष) Summary in Hindhi

कल्पतरुः पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ ‘वेतालपञ्चविंशतिः’ से संकलित है। यह ग्रन्थ पच्चीस कथाओं का संग्रह है। इस कथा में वेताल राजा विक्रम को एक-एक करके पच्चीस कथाएँ सुनाता है। ये कथाएँ अत्यन्त रोचक, भाव प्रधान और विवेक की परीक्षा लेने वाली हैं।

पाठ में वर्णित कथा के अनुसार विद्याधरपति जीमूतकेतु के घर के उद्यान में एक कल्पवृक्ष लगा हुआ था। जीमूतकेतु ने अपने पुत्र जीमूतवाहन को युवराज के पद पर बैठा दिया और कहा कि उद्यान में स्थित कल्पवृक्ष तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। परोपकारी ‘जीमूतवाहन ने सोचा मैं इस वृक्ष से अभीष्ट मनोरथ सिद्ध करूँगा। कल्पवृक्ष के पास पहुँचकर उसने कहा हे देव! तुमने हमारे पूर्वजों

की अभीष्ट इच्छाएँ पूरी की हैं, तो मेरी भी एक इच्छा पूरी कर दो। आप इस पृथ्वी को निर्धनों से रहित कर दो। उस कल्पवृक्ष ने पलभर में ही स्वर्ग की ओर उड़कर पृथ्वी पर इतने धन की वर्षा की कि कोई भी निर्धन नहीं रहा। इस प्रकार जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष से सांसारिक द्रव्यों को न माँगकर संसार के प्राणियों के दुःखों को दूर करने का वरदान माँगा। क्योंकि धन तो पानी की लहर के समान चंचल है, केवल परोपकार ही इस संसार का सर्वोत्कृष्ट तथा चिरस्थायी तत्त्व है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

HBSE 9th Class Sanskrit भ्रान्तो बालः Textbook Questions and

भ्रान्तो बालः प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति।
(ख) रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि।
(ग) अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ में संकलित पाठ ‘प्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। भटका हुआ बालक भँवरे एवं चिड़े (पक्षी) के व्यवहार से खिन्न होकर कहता है कि ये पक्षी मनुष्यों के निकट नहीं आते। भँवरा फूलों से पराग एकत्रित करने के कार्य में व्यस्त है। पक्षी बरगद के पेड़ पर घोंसला बनाने के काम में व्यस्त है। अतः इन पक्षियों से मेरी मित्रला नहीं हो सकती। दूसरी तरफ पक्षी स्वभाववश मनुष्यों से दूर ही रहना चाहते हैं। पेड़-पौधों से निकटता होने के कारण ये मनुष्यों से दूर रहते हैं।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ में संकलित पाठ ‘प्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति के माध्यम से कुत्ते में भी कर्त्तव्य-परायणता की भावना को दर्शाया गया है। जहाँ उसे पुत्र के जैसा प्रेम मिला है और उसका पालन-पोषण हुआ है, वहाँ उसे रक्षा के कर्त्तव्य से तनिक भी पीछे नहीं हटना चाहिए। कुत्ते की इसी भावना से प्रभावित होकर बालक विद्याध्ययन की ओर आकृष्ट होता है।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ में संकलित पाठ ‘प्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति में बताया गया है कि इस संसार में हर एक प्राणी अपने-अपने कर्तव्य में व्यस्त है। कोई भी प्राणी अपना समय व्यर्थ में नष्ट नहीं करता। उदाहरण के लिए भँवरा फूलों से पराग के संचय में, चिड़ा तिनकों से घोंसले के निर्माण में तथा कुत्ता अपने स्वामी के घर की रक्षा के कार्य में व्यस्त है। इसी प्रकार सभी प्राणी अपने-अपने कार्य में तत्पर हैं। अतः हमें भी व्यर्थ में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

भ्रान्तो बालः सारांश HBSE 9th Class

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

II. अधोलिखितान् गद्यांशान् पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत् । किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत् । यतः ते सर्वेपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन् । तन्द्रालुः बालः लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।
(क) बालः कदा क्रीडितुम् अगच्छत् ?
(ख) भ्रान्तः बालः किमर्थं अगच्छत् ?
(ग) ‘क्रीडितुम्’ इति पदे कः प्रत्ययः?
(घ) एकाकी कः उद्यानः प्राविशत् ?
(ङ) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणाः अभवन् ?
उत्तराणि:
(क) बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत् ।
(ख) भ्रान्तः बालः क्रीडितुं अगच्छत्।
(ग) तुमुन् प्रत्ययः।
(घ) तन्द्रालुः बालः एकाकी उद्यानं प्राविशत्।
(ङ) बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनार्थं त्वरमाणाः अभवन् ।

(2) “अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति। स तु “मया वटदुमस्य शाखायां नीडं कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।
(क) “एतत् शुष्कं तृणं त्यज्’ इति कः कथयति?
(ख) चटकपोतः कस्य मित्रं भविष्यति?
(ग) ‘तद्यामि’ इति पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत।
(घ) अहं ते कानि दास्यामि?
(ङ) चटकपोतः किम् उक्त्वा स्वकर्मव्यग्रः अभवत्?
उत्तराणि:
(क) इति भ्रान्तः बालः कथयति।
(ख) चटकपोतः मानुषस्य मित्रं भविष्यति।
(ग) तद् + यामि।
(घ) अहं ते स्वादूनि भक्ष्यकवलानि दास्यामि।
(ङ) ‘मया वटदुमस्य शाखायां नीडं कार्येम्’ इति उक्त्वा चटकपोतः स्वकर्मव्यग्रः अभवत्।

(3) सर्वैः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्-‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैः मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ: स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत् ।
(क) सः बालः केन कारणेन भग्नमनोरथः अभवत् ?
(ख) अस्मिन् जगति प्रत्येकं कस्मिन् निमग्नो भवति?
(ग) ‘विनितमनोरथः’ इति पदे कः समासः?
(घ) न कोऽपि अहम् इव किं न सहते?
(ङ) सः किं विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत् ?
उत्तराणि:
(क) सर्वैः एवं निषिद्धः एतस्मात् कारणात् सः बालः भग्नमनोरथः अभवत्।
(ख) अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति।
(ग) बहुव्रीहिः समासः।
(घ) न कोऽपि अहम् इव वृथा कालक्षेपं सहते।
(ङ) अहम् अपि स्वोचितम् करोमि इति विचार्य पाठशालाम् अगच्छत् ।

Class 9 Sanskrit Chapter 6 Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) भ्रान्तः बालः क्रीडितुम् अगच्छत् ।
(ख) मम मानुषस्य मित्रं भविष्यसि।
(ग) पक्षिणः मानुषेषु नोपगच्छन्ति।
(घ) मधुकरः मधुसंग्रहे व्यग्रः आसीत्।
(ङ) भग्नमनोरथः बालः अचिन्तयत्।
उत्तराणि:
(क) कः क्रीडितुम् अगच्छत्?
(ख) मम कस्य मित्रं भविष्यसि?
(ग) पक्षिणः केषु नोपगच्छन्ति?
(घ) कः मधुसंग्रहे व्यग्रः आसीत्?
(ङ) कः अचिन्तयत्?

Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 6 Solutions HBSE

IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ)
(क) सः मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्।
(ख) स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालामुपजगाम।
(ग) सर्वैः एवं निषिद्धः स बालः भग्नमनोरथः अभवत्।
(घ) भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्।
(ङ) अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।
उत्तराणि:
(घ) भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्।
(क) सः मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्।
(ङ) अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि।
(ग) सर्वैः एवं निषिद्धः स बालः भग्नमनोरथः अभवत्।
(ख) स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालामुपजगाम।

(ब)
(क) मधुकरः बालकेन अगायत-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा।
(ख) अन्यतः दत्तदृष्टिः बालकः एकं चटकम् अपश्यत्।
(ग) बालकेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
(घ) चटकः तु बटद्रुशाखायां तद्यामि कार्येण इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।
(ङ) स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्।
उत्तराणि:
(ग) बालकेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्।
(ङ) स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्।
(क) मधुकरः बालकेन अगायत्-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा।
(ख) अन्यतः दत्तदृष्टिः बालकः एक चटकम् अपश्यत्।
(घ) चटकः तु बद्रुशाखायां तद्यामि कार्येण इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।

(स)
(क) कुक्कुरः प्रत्याह-स्वामिनः गृहे रक्षानियोग कार्यात् मया न भ्रष्टव्यम्।
(ख) बालकः कुक्कुरं प्रत्यवदत् अहं क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामि।
(ग) अथ अहमपि स्वोचितम् करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
(घ) खिन्नः बालक पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्।
(ङ) सः बालः भग्नमनोरथः सन्-कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति।।
उत्तराणि:
(घ) खिन्नः बालक पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्।
(ख) बालकः कुक्कुरं प्रत्यवदत् अहं क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामि।
(क) कुक्कुरः प्रत्याह-स्वामिनः गृहे रक्षानियोग कार्यात् मया न भ्रष्टव्यम्।
(ङ) सः बालः भग्नमनोरथः सन्-कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति।
(ग) अथ अहमपि स्वोचितम् करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।

Class 9th Sanskrit Chapter 6 Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

v. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. क्रीडितुम् कः अगच्छत्?
(i) कुक्कुरः
(ii) श्वानः
(iii)भ्रान्तः बालः
(iv) मधुकरः
उत्तरम्:
(iii) भ्रान्तः बालः

2. चटकपोतः कस्य मित्रं भविष्यति?
(i) भ्रान्त बालस्य
(ii) मानुषस्य
(iii)श्वानस्य
(iv) कुक्कुरस्य
उत्तरम्:
(i) मानुषस्य

3. अस्मिन् जगति प्रत्येक कस्मिन् निमग्नो भवति?
(i) स्व-स्वकृत्ये
(ii) अन्यस् कार्य
(iii) मित्र कार्य
(iv) गृह कार्य
उत्तरम्:
(i) स्व-स्वकार्ये

4. बालः कदा क्रीडितुम् अगच्छत् ?
(i). भ्रमणाय
(iii) अन्यस् कार्य
(iii) गृह कार्य
(iv) पाठशालागमन
उत्तरम्:
(iv) पाठशालागमन

5. सर्वैः निषिद्धः कः भग्नमनोरथः अभवत् ?
(i) बालः
(ii) चटका
(iii) कपोतः
(iv) श्वानः
उत्तरम्:
(i) बालः

6. ‘कोऽपि’ इति पदे कः सन्धिविच्छेदः?
(i) को + ऽपि
(ii) कः + अपि
(iii) का + अपि
(iv) को + पि
उत्तरम्:
(ii) कः + अपि

7. ‘दत्तदृष्टिः’ इति पदे कः समासः?
(i) कर्मधारयः
(ii) अव्ययीभावः
(iii) बहुव्रीहिः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(iii) बहुव्रीहिः

8. ‘नमः’ इति पदस्य योगे का विभक्तिः ?
(i) प्रथमा
(ii) पञ्चमी
(iii) तृतीया
(iv) चतुर्थी
उत्तरम्:
(iv) चतुर्थी

9. ‘पुस्तकदासाः’ इति पदे कः समासः?
(i) कर्मधारयः
(ii) बहुव्रीहिः
(iii) तत्पुरुषः
(iv) अव्ययीभावः
उत्तरम्:
(iii) तत्पुरुषः

10. ‘कुसुमानां’ पदस्य पर्यायवाची पदं लिखत
(i) पादपानाम्
(ii) पुष्पाणाम्
(iii) वृक्षाणाम्
(iv) वनानाम्
उत्तरम्:
(ii) पुष्पाणाम्

Class 9 Sanskrit Chapter 6 HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit भ्रान्तो बालः Important Questions and Answers

(क) एकस्मिन् स्फोरकपने (Chart-Paper) एकस्य उद्यानस्य चित्रं निर्माय संकलय्य वा पञ्चवाक्येषु तस्य वर्णनं कुरुत।
उत्तरम्:
छात्र अध्यापक की सहायता से चार्ट पेपर पर उद्यान का चित्र बनाएं तथा उद्यान के वर्णन में पाँच वाक्य लिखें
(1) इदम् उद्यानस्य चित्रम् अस्ति।
(2) अस्मिन् उद्याने वृद्धाः परस्परं वार्तालापं कुर्वन्ति।
(3) केचन बालकाः अस्मिन् उद्याने क्रीडन्ति।
(4) अत्र पुरुषाः महिलाः च व्यायामं कर्तुमपि आगच्छन्ति। केचन बालकाः अत्र धावन्ति।

(ख) “परिश्रमस्य महत्त्वम्” इति विषये हिन्दी भाषया आङ्ग्लभाषया वा पञ्च वाक्यानि लिखत।
(‘परिश्रम का महत्त्व’ इस विषय पर हिन्दी भाषा अथवा आंग्ल भाषा में पाँच वाक्य लिखिए।)
उत्तरम्:
1. परिश्रम का महत्त्व
2. परिश्रम से शरीर में स्फूर्ति रहती है।
3. परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
4. परिश्रम से आत्म-संतुष्टि मिलती है।
5. परिश्रम से मनुष्य के शरीर में आलस्य नहीं आता।

Sanskrit Class 9 Chapter 6 Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

भाषिकविस्तारः

प्रस्तुत पाठ ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इस कथा में एक ऐसे बालक का चित्रण है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में लगा रहता है। यहाँ तक कि वह खेलने के लिए पशु-पक्षियों तक का आवाहन (आह्वान) करता है किन्तु कोई उसके साथ खेलने के लिए तैयार नहीं होता। इससे वह बहुत निराश होता है। अन्ततः उसे बोध होता है कि सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं। केवल वही बिना किसी काम के इधर-उधर घूमता रहता है। वह निश्चय करता है कि अब व्यर्थ में समय गँवाना छोड़कर अपना कार्य करेगा।

(1) यस्य च भावेन भावलक्षणम् जहाँ एक क्रिया के होने से दूसरी क्रिया के होने का ज्ञान हो तो पहली क्रिया के कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है। इसे ‘सति सप्तमी’ या ‘भावे सप्तमी’ भी कहते हैं।
यथा- उदिते सवितरि कमलं विकसित।
गर्जति मेघे मयूरः अनृत्यत्।
नृत्यति शिवे नृत्यन्ति शिवगणाः।
हठमाचरति बाले भ्रमरः अगायत्।
उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः।

(2) अन्यपदार्थ प्रधानो बहुब्रीहिः-जिस समास में पूर्व और उत्तर पदों से भिन्न किसी अन्य पद के अर्थ का प्राधान्य होता है, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
यथा- पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः (विष्णुः)।
नीलकण्ठः – नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।
अनुचिन्तितपूर्वदिनपाठाः – अनुचिन्तताः पूर्वदिनस्य पाठाः यैः ते।
विनितमनोरथः – विघ्नितः मनोरथः यस्य सः।
दत्तदृष्टिः – दत्ता दृष्टिः येन सः।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

भ्रान्तो बालः  गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत् । किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन् । तन्द्रालुः बालः लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।।

सः अचिन्तयत्-“विरमन्तु एते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु इति। अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आस्वयत्। तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य आस्वानं तिरस्कृतवान् । ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकरः अगायत्-“वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा” इति।

शब्दार्थ प्रान्तः = भटका हुआ। वेलायां = समय पर । क्रीडितुम् = खेलने के लिए। केलिभिः = खेल द्वारा। कालं क्षेप्तुं = समय बिताने के लिए। वयस्येषु = मित्रों में से। यतः + ते = क्योंकि वे। त्वरमाणाः = शीघ्रता करते हुए। तन्द्रालुः = आलसी। एकाकी = अकेला । प्राविशत् = घुस गया। पुस्तकदासाः = पुस्तकों के दास। विनोदयिष्यामि = मैं मनोरंजन करूँगा। उपाध्यायस्य = गुरु के। निष्कुटवासिनः = वृक्ष के कोटर में रहने वाले। मधुकरं = भौंरा । क्रीडितुम् = खेलने के निमित्त। आस्वयत् = बुलाया। भूयो भूयः = बार-बार । हठमाचरति = हठ करने पर। मधुसंग्रहव्यग्रा = पराग को संग्रह करने में लगे हुए।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘प्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बताया गया है कि भटका हुआ बालक मित्रों के मना कर देने पर खेलने के लिए भौरे को बुलाता है।

सरलार्थ-एक भटका हुआ बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चला गया। किन्तु उसके साथ खेलों में समय बिताने के लिए कोई भी मित्र उपस्थित नहीं था। वे सभी पहले दिन के पाठों को स्मरण करके विद्यालय जाने की शीघ्रता से तैयारी कर . रहे थे। आलसी बालक लज्जावश उनकी दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही उद्यान में घुस गया।

वह सोचने लगा ये बेचारे पुस्तक के दास वहीं रुकें। मैं तो अपना मनोरजंन करूँगा। क्रोधित गुरुजी का मुख मैं बाद में देखूगा। वृक्ष के खोखलों में रहने वाले ये प्राणी (पक्षी) मेरे मित्र बन जाएँगे।

तब उसने उस उपवन में घूमते हुए भँवरे को देखकर दो-तीन बार खेलने के लिए पुकारा। उस भँवरे ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। तब बार-बार हठ करने वाले उस बालक के प्रति उसने गुनगुनाया-‘हम तो पराग एकत्र करने में व्यस्त हैं।

भावार्थ-भटका हुआ बालक पढ़ाई से मुख मोड़कर प्रसन्न रहने की कोशिश करता है। मित्रों के मना कर देने पर वह भँवरे को अपने साथ खेलने के लिए बुलाता है, परन्तु वह अपनी व्यस्तता के कारण आने से मना कर देता है।

2. तदा स बालः ‘अतं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टिः चञ्चा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च-“अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति। स तु “मया ववमस्य शाखायां नीड कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्। तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत्रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत्
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥ इति।

अन्वय यः मां पुत्रप्रीत्या पोषयति तस्य स्वामिनः गृहे रक्षानियोग कारणात् मया ईषदपि न भ्रष्टव्यम्।

शब्दार्थ-मिथ्यागवितेन = झूठे गर्व वाले । अन्यत्र दत्तदृष्टिः = दूसरी ओर देखते हुए। चञ्च्वा = चोंच से। आददानम् = ग्रहण करते हुए। अवदत् = कहा। अयि = आओ। चटकम् = चिड़िया। स्वादूनि = स्वादिष्ट। भक्ष्यकवलानि = खाने के ग्रास । ते = तुम्हें। नीडं = घोंसला। वटदुमस्य शाखायां = बरगद के पेड़ की शाखा पर। यामि = मैं जा रहा हूँ। स्वकर्मव्यग्रः = अपने काम में व्यस्त। खिन्नः = दुःखी। अन्वेषयामि = मैं ढूँढता हूँ। विनोदयितारम् = मनोरंजन करने वाले को। पलायमानं = भागते हुए को। श्वानम् = कुत्ते को। समबोधयत् = सम्बोधित किया। पर्यटसि = घूम रहे हो। निदाघदिवसे = गर्मी के दिन में। आश्रयस्व = आश्रय लो। क्रीडासहायं = खेल में सहयोगी। कुक्कुरः = कुत्ते ने। अनुरूपम् = अपने अनुरूप। रक्षानियोगकरणान्न = रक्षा के कार्य में लगे होने से। ईषदपि = थोड़ा-सा भी। भ्रष्टव्यम् = हटना चाहिए।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भ्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बताया गया है कि उस बालक ने अपने साथ खेलने के लिए चटका एवं कुत्ता दोनों को बुलाया परन्तु उन्होंने मना कर दिया।

सरलार्थ तब उस बालक ने अपने मन में ‘व्यर्थ में घमण्डी इस कीड़े (भौरे) को छोड़ो” ऐसा सोचकर दूसरी तरफ देखते हुए एक चिड़े को चोंच से घास-तिनके आदि उठाते हुए देखा। वह उससे बोला-“अरे चिड़िया के शावक! (बच्चे) तुम मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ हम खेलते हैं। इस सूखे तिनके को छोड़ो। मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने वाली वस्तुओं के ग्रास दूंगा।” मुझे बरगद के पेड़ की शाखा पर घोंसला बनाना है। अतः मैं काम से जा रहा हूँ। ऐसा कहकर वह (चिड़ा) अपने काम में व्यस्त हो गया।

तब दुःखी बालक ने कहा ये पक्षी मनुष्यों के निकट नहीं आते। अतः मैं मनुष्यों के योग्य किसी अन्य मनोरंजन करने वाले को खोजता हूँ। ऐसा सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रसन्न होकर उस बालक ने कहा हे मनुष्यों के मित्र! इतनी गर्मी के दिन में व्यर्थ क्यों घूम रहे हो। इस घनी और शीतल छाया वाले वृक्ष का आश्रय ले लो। मैं भी खेल में तुम्हें उचित साथी समझता हूँ। कुत्ते ने कहा

जो पुत्र के समान मेरा पोषण करता है। उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्य में लगे होने से मुझे थोड़ा-सा भी नहीं हटना चाहिए।

भावार्थ-पक्षी एवं कुत्ते के अपने-अपने कार्य में लगे रहने की भावना इस बात की शिक्षा देती है कि सभी प्राणी किसी-न-किसी कार्य में व्यस्त रहते हैं।

3. सर्वैः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्–’कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैः मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता।
अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषर्षी प्रथां सम्पदं च अलभत।

शब्दार्थ-सर्वैः एवं = सभी के द्वारा, इस प्रकार। निषिद्धः = मना किया गया। भग्नमनोरथः = टूटी हुई इच्छाओं वाला। कालक्षेपं = समय की हानि । तन्द्रालुतायां = आलस्य में। कुत्सा = घृणा का भाव । समापादिता = उत्पन्न कर दी। त्वरितं = जल्दी से। विद्याव्यसनी = विद्या में रुचि रखने वाला। वैद्वर्षी = विद्वत्ता की। प्रथां = प्रसिद्धि। सम्पदं = सम्पत्ति। अलभत = प्राप्त कर ली।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भ्रान्तो बालः’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन ‘संस्कृत प्रौढपाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि भ्रमर, चिड़ा एवं कुत्ते की भावनाओं से प्रभावित होकर बालक विद्याध्ययन की ओर आकृष्ट होता है।

सरलार्थ-सभी के द्वारा इस प्रकार मना कर दिए जाने पर टूटे हुए मनोरथ वाला वह बालक सोचने लगा-इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कर्त्तव्य में व्यस्त है। कोई भी मेरी तरह समय नष्ट नहीं कर रहा है। इन सबको प्रणाम, जिन्होंने आलस के प्रति मेरी घृणाभाव उत्पन्न कर दिया। अतः मैं भी अपना उचित कार्य करता हूँ। ऐसा सोचकर वह शीघ्र ही पाठशाला चला गया। तब से विद्या में रुचि रखने वाला होकर उसने विद्वत्ता, कीर्ति तथा धन को प्राप्त किया।

भावार्थ भँवरे, चिड़े एवं कुत्ते ने अपने-अपने कर्त्तव्य के प्रति रुचि दिखाकर भटके हुए बालक के मन में आलस्य के प्रति घृणा का भाव भर दिया। इस कारण वह बालक इन तीनों प्राणियों को प्रणाम करता है। विद्याव्यसनी बनकर वह विद्वान् यश तथा धन को प्राप्त करता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) कः तन्द्रालुः भवति?
(ख) बालकः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्?
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अवभवन्?
(घ) चटकः कया तृणशलाकादिकम् आददाति?
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति?
(च) बालकः कीदृशं श्वानं पश्यति?
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि?
उत्तराणि:
(क) बालः,
(ख) पुष्पोद्यानम्,
(ग) मधुकराः,
(घ) चञ्च्चा,
(ङ) वटदुमस्य,
(च) पलायमानम्,
(छ) निदाघदिवसे।

2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्? ।
(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्?
(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान्?
(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्?
(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्?
(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
(छ) भग्नमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तराणि:
(क) बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं अगच्छत्।
(ख) बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनार्थं त्वरमाणा अभवन् ।
(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं तिरस्कृतवान् यतः सः मधुसंग्रहे व्यग्रः आसीत्।
(घ) बालकः चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानं चटकम् अपश्यत्।
(ङ) बालकः चटकाय स्वादूनि भक्ष्यकवलानि दानस्य लोभं दत्तवान्।
(च) खिन्नः बालकः श्वानम् अकथयत् मित्र! त्वम् अस्मिन् निदाघदिवसे किं पर्यटसि? प्रच्छायशीतलमिदं तरुमूलं आश्रयस्व । अहं त्वामेव अनुरूपं क्रीडासहायं पश्यामि।
(छ) भग्नमनोरथः बालः अचिन्तयत् अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नः भवति। कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं न सहते। अतः अहमपि स्वोचितं करोमि।

3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(निम्नलिखित श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेज़ी भाषा में लिखिए)
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥
उत्तराणि:
प्रस्तुत श्लोक में कुत्ते में भी कर्त्तव्य-पालन की भावना को बताया गया है। जहाँ उसे पुत्र के समान प्रेम मिलता है और उसका भली-भांति पालन-पोषण होता है, वहाँ उसे रक्षा के कर्त्तव्य से जरा भी पीछे नहीं हटना चाहिए। कुत्ते की इसी भावना से प्रभावित होकर बालक विद्याध्ययन की ओर आकृष्ट होता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

4. “भ्रान्तो बालः” इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत।
(भ्रान्तो बालः’ इस कथा का सारांश हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए।)
उत्तराणि:
एक भटका हुआ बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चल पड़ा। उसने अपने मित्रों से भी खेलने आने को कहा, परन्तु सभी मित्र विद्यालय जाने की शीघ्रता में थे। इसलिए किसी ने भी उसकी बात न मानी। उपवन में जाकर सबसे पहले उसने भौरे से खेलने के लिए कहा, किन्तु उसने पराग एकत्रित करने में अपनी व्यस्तता बताई। तब उसने चिड़े को स्वादिष्ट खाद्य वस्तुएँ देने का लालच देकर खेलने को कहा, किन्तु उसने भी घोंसला बनाने के कार्य में अपनी व्यस्तता बताकर खेलने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उस बालक ने कुत्ते से खेलने को कहा। कुत्ते ने भी रक्षा कार्य में लगे होने के कारण अपनी व्यस्तता प्रकटे की। इस प्रकार नष्ट मनोरथ वाले उस बालक ने अन्त में यह समझ लिया कि समय नष्ट करना उचित नहीं है। सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं। अतः उसे भी अपनी पढ़ाई का कर्त्तव्य पूरा करना चाहिए। तभी से वह पढ़ाई के कार्य में जुट गया। वह शीघ्र पाठशाला चला गया।

5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यमि।
(ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति।
(घ) स महती वैदुषीं लब्धवान्।
(ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
उत्तराणि:
(क) कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि?
(ख) चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत?
(ग), कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति?
(घ) स कीदृर्शी लब्धवान् ?
(ङ) कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति?

6. “एतेभ्यः नमः” इति उदाहरणमनुसत्य नमः इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
(‘एतेभ्य नमः’ इस उदाहरण का अनुसरण करके नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाओ।)
उत्तराणि:
1. सूर्याय नमः।
2. देवाय नमः।
3. गुरवे नमः।
4. मात्रे नमः।
5. पित्रे नमः।

7. ‘क’ स्तम्भे समस्तपदानि ‘ख’ स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत
(स्तम्भ ‘क’ में समस्तपद व स्तम्भ ‘ख’ में उनका विग्रह दिया गया है, उन्हें यथोचित जोड़िए।)
‘क’ स्तम्भ – ‘ख’ स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम् (1) पुष्पाणाम् उद्यानम्
(ख) पुस्तकदासाः (2) विद्यायाः व्यसनी
(ग) विद्याव्यसनी (3) दृष्टेः पन्थाः
(घ) पुष्पोद्यानम् (4) पुस्तकानां दासाः
उत्तराणि:
‘क’ स्तम्भ – ‘ख’ स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम् (1) दृष्टेः पन्थाः
(ख) पुस्तकदासाः (2) पुस्तकानां दासाः
(ग) विद्याव्यसनी (3) विद्यायाः व्यसनी
(घ) पुष्पोद्यानम् (4) पुष्पाणाम् उद्यानम्

(अ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित पदयुग्मों में एक विशेष्य शब्द व एक विशेषण शब्द है। विशेषण शब्द व विशेष्य शब्द अलग-अलग चुनकर लिखिए)
पदयुग्म – विशेषणम् – विशेषण
(i) खिन्नः बालः – ………………….., ………………………
(ii) पलायमानं श्वानम् – ………………….., ………………………
(iii) प्रीतः बालकः – ………………….., ………………………
(iv) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि – ………………….., ………………………
(v) त्वरमाणाः वयस्याः – ………………….., ………………………
उत्तराणि:

पदयुग्मविशेषणम्विशेषण
(i) खिन्नः बालःखिन्न:बालः
(ii) पलायमानं श्वानम्पलायमानम्श्वानम्
(iii) प्रीतः बालकःप्रीतःबालक:
(iv) स्वादूनि भक्ष्यकवलानिस्वादूनिभक्ष्यकवलानि
(v) त्वरमाणाः वयस्याःत्वरमाणा:वयस्याः

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

भ्रान्तो बाल: (भटका हुआ बालक) Summary in Hindi

भ्रान्तो बाल: पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ “संस्कृत-प्रौढपाठावलिः’ नामक ग्रन्थ से सम्पादित किया गया है। इस कथा में एक ऐसे बालक का चित्रण है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में लगा रहता है।

एक भटका हुआ बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चल पड़ा। उसने अपने मित्रों से भी खेलने आने को कहा, .. परन्तु सभी मित्र विद्यालय जाने की शीघ्रता में थे। इसलिए किसी ने भी उसकी बात न मानी। उपवन में जाकर सबसे पहले उसने

भौरे से खेलने के लिए कहा, किन्तु उसने पराग एकत्रित करने में अपनी व्यस्तता बताई। तब उसने चिड़े को स्वादिष्ट खाद्य वस्तुएँ देने का लालच देकर खेलने को कहा, किन्तु उसने भी घोंसला बनाने के कार्य में अपनी व्यस्तता बताकर खेलने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उस बालक ने कुत्ते से खेलने को कहा। कुत्ते ने भी रक्षा कार्य में लगे होने के कारण अपनी व्यस्तता प्रकट की।

इस प्रकार नष्ट मनोरथ वाले उस बालक ने अन्त में यह समझ लिया कि समय नष्ट करना उचित नहीं है। सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं। अतः उसे भी अपनी पढ़ाई का कर्त्तव्य पूरा करना चाहिए। तभी से वह पढ़ाई के कार्य में जुट गया। वह शीघ्र पाठशाला चला गया।

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HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पदार्थ कैसे बनते हैं?
उत्तर:
पदार्थ परमाणुओं एवं अणुओं से मिलकर बनते हैं।

प्रश्न 2.
परमाणु किसे कहते हैं?
उत्तर:
परमाणु पदार्थ का सूक्ष्मतम अविभाज्य कण होता है जिसका स्वतंत्र अस्तित्व होता है।

प्रश्न 3.
डॉल्टन ने किस शताब्दी में परमाणु को अविभाज्य माना था?
उत्तर:
डॉल्टन ने 19वीं शताब्दी में परमाणु को अविभाज्य माना था।

प्रश्न 4.
परमाणु के मूल कण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
परमाणु के मूल कण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन हैं।

प्रश्न 5.
क्या परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित प्रकाश में अभिलाक्षणिक वर्ण या तरंगदैर्ध्य होती है?
उत्तर:
हाँ, परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित प्रकाश में अभिलाक्षणिक वर्ण या तरंगदैर्ध्य होती है।

प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
परमाणु में नाभिक के चारों ओर घूमने वाला ऋण आवेशित कण जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का \(\frac { 1 }{ 2000 }\) वां भाग होता है, इलेक्ट्रॉन कहलाता है।

प्रश्न 7.
इलेक्ट्रॉन की खोज का श्रेय किस वैज्ञानिक को दिया जाता है?
उत्तर:
जेजे० टॉमसन को।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

प्रश्न 8.
इलेक्ट्रॉन पर कौन-सा आवेश उपस्थित होता है?
उत्तर:
ऋणं आवेश।

प्रश्न 9.
किस वैज्ञानिक ने केनाल किरणों की खोज की?
उत्तर:
जर्मन वैज्ञानिक ई० गोल्डस्टीन (E. Goldstein) ने।

प्रश्न 10.
केनाल किरणों को किस अन्य नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर:
केनाल किरणों को धनात्मक किरणों के नाम से भी पुकारा जाता है।

प्रश्न 11.
वैद्युत क्षेत्र में केनाल किरणें किस इलेक्ट्रॉड की ओर आकर्षित होती हैं?
उत्तर:
ऋण इलेक्ट्रॉड की ओर।

प्रश्न 12.
इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन को कैसे दर्शाया जाता है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन को e तथा प्रोटॉन को p+ द्वारा दर्शाया जाता है।

प्रश्न 13.
प्रोटॉन का द्रव्यमान और आवेश कितना होता है?
उत्तर:
प्रोटॉन का द्रव्यमान 1 इकाई और आवेश +1 होता है।

प्रश्न 14.
इलेक्ट्रॉन पर कितना आवेश होता है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन पर -1 आवेश होता है।

प्रश्न 15.
परमाणु विद्युत उदासीन क्यों होता है?
उत्तर:
क्योंकि परमाणु में प्रोटॉनों व इलेक्ट्रॉनों की संख्या परस्पर आवेशों को संतुलित कर देती है।

प्रश्न 16.
जे.जे. टॉमसन को किस खोज के कारण भौतिक शास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन की खोज के कारण।

प्रश्न 17.
जे.जे. टॉमसन का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
जे.जे. टॉमसन का जन्म 18 दिसंबर, 1856 को हुआ।

प्रश्न 18.
अल्फा कण का द्रव्यमान कितना होता है?
उत्तर:
अल्फा कण का द्रव्यमान 4u होता है।

प्रश्न 19.
अल्फा कण क्या होते हैं?
उत्तर:
अल्फा कण द्वि-आवेशित हीलियम कण होते हैं।

प्रश्न 20.
किस वैज्ञानिक को नाभिकीय भौतिकी का जनक माना जाता है?
उत्तर:
ई० रदरफोर्ड को नाभिकीय भौतिकी का जनक माना जाता है।

प्रश्न 21.
ई० रदरफोर्ड का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
ई० रदरफोर्ड का जन्म 30 अगस्त, 1871 को हुआ।

प्रश्न 22.
रदरफोर्ड के अनुसार परमाणु का समस्त द्रव्यमान कहाँ स्थित होता है?
उत्तर:
परमाणु के सूक्ष्म नाभिक में।

प्रश्न 23.
नाभिक के आकार की परमाणु के आकार से तुलना कीजिए।
उत्तर:
नाभिक का आकार परमाणु के आकार से 10 गुना छोटा होता है।

प्रश्न 24.
परमाणु-नाभिक पर कौन-सा आवेश होता है?
उत्तर:
धनावेश।

प्रश्न 25.
कौन-से तत्त्व के नाभिक को प्रोटॉन कहा जाता है?
उत्तर:
हाइड्रोजन के नाभिक को।

प्रश्न 26.
इलेक्ट्रॉन के घूर्णन के बारे में नील्स बोर का क्या प्रस्ताव था?
उत्तर:
नील्स बोर के अनुसार इलेक्ट्रॉन निश्चित ऊर्जा कक्ष में गति करता है।

प्रश्न 27.
नील्स बोर के मॉडल अनुसार जब एक इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से एक निम्न ऊर्जा स्तर की कक्षा में आता है तो ऊर्जा का अंतर किस रूप में विकरित होता है?
उत्तर:
विद्युत् चुंबकीय विकिरण अथवा प्रकाश के रूप में।

प्रश्न 28.
परमाणु के नाभिक में कौन-कौन से कण होते हैं?
उत्तर:
प्रोटॉन व न्यूट्रॉन।

प्रश्न 29.
परमाणु के प्रथम व द्वितीय कोश में अधिकतम कितने इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं?
उत्तर:
प्रथम कोश में दो तथा द्वितीय कोश में अधिकतम आठ इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं।

प्रश्न 30.
सबसे हल्के परमाणु का नाम लिखें।
उत्तर:
हाइड्रोजन।

प्रश्न 31.
उस परमाणु का नाम लिखिए जिसमें कोई न्यूट्रॉन नहीं होता।
उत्तर:
प्रोटियम (H) जोकि हाइड्रोजन का समस्थानिक है।

प्रश्न 32.
हीलियम के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन की संख्या लिखें।
उत्तर:
हीलियम के नाभिक में दो प्रोटॉन तथा दो न्यूट्रॉन होते हैं।

प्रश्न 33.
न्यूट्रॉन की खोज कब और किसने की?
उत्तर:
न्यूट्रॉन की खोज सन् 1932 में चैडविक ने की।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

प्रश्न 34.
परमाणु संरचना में किस कोश के इलेक्ट्रॉन परमाणुओं के रासायनिक गुणधर्म निर्धारित करते हैं?
उत्तर:
अंतिम कोश के इलेक्ट्रॉन।

प्रश्न 35.
जल के एक अणु में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के कितने परमाणु होते हैं?
उत्तर:
जल के एक अणु में हाइड्रोजन के दो तथा ऑक्सीजन का एक परमाणु होता है।

प्रश्न 36.
कौन-से परमाणु रासायनिक रूप से सक्रिय होते हैं?
उत्तर:
जिन परमाणुओं के बाह्य कोश पूर्ण नहीं होते, वे परमाणु रासायनिक रूप से सक्रिय होते हैं।

प्रश्न 37.
कौन-से परमाणु रासायनिक रूप से उदासीन होते हैं?
उत्तर:
वे परमाणु जिनके बाह्य कोश पूर्ण होते हैं, रासायनिक रूप से उदासीन होते हैं; जैसे हीलियम व निऑन।

प्रश्न 38.
दो संयोजकता वाले दो परमाणुओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. कैल्शियम (Ca)
  2. बेरिलियम (Be)।

प्रश्न 39.
क्लोरीन की संयोजकता कितनी है?
उत्तर:
एक।

प्रश्न 40.
उस तत्त्व के परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या क्या होगी जिस तत्त्व की परमाणु संख्या 19 तथा द्रव्यमान संख्या 39 है।
उत्तर:
न्यूट्रॉन = द्रव्यमान संख्या – परमाणु संख्या
= 39 – 19 = 20

प्रश्न 41.
परमाणु M तथा उसके आयन M+ का द्रव्यमान क्यों समान होता है?
उत्तर:
क्योंकि दोनों में न्यूट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्या समान होती है।

प्रश्न 42.
यूरेनियम के दो समस्थानिक लिखिए।
उत्तर:
\({ }_{92}^{235} \mathrm{U}\) व \({ }_{238}^{92} \mathrm{U}\).

प्रश्न 43.
निम्नलिखित में से कौन-से दो नाभिक परस्पर समस्थानिक हैं?
\({ }_{90} Z^{231},{ }_{91} Z^{230},{ }_{88} Z^{230},{ }_{90} Z^{233}\)
उत्तर:
\({ }_{90} Z^{231}\) तथा \({ }_{90} Z^{233}\)

प्रश्न 44.
कार्बन के कितने समस्थानिक हैं?
उत्तर:
कार्बन के दो समस्थानिक \({ }_6^{12} \mathrm{C}\) व \({ }_6^{14} \mathrm{C}\) ।

प्रश्न 45.
एक ही तत्त्व के ऐसे परमाणु जिसकी परमाणु संख्या समान लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
समस्थानिक।

प्रश्न 46.
क्लोरीन के समस्थानिकों का औसत द्रव्यमान कितना होता है?
उत्तर:
क्लोरीन के समस्थानिकों का औसत द्रव्यमान 35.5u होता है।

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में से कौन-से नाभिक समस्थानिक हैं?
\({ }_{88} \mathrm{Z}^{226},{ }_{87} \mathrm{Z}^{236},{ }_{88} \mathrm{Z}^{238},{ }_{82} \mathrm{Z}^{238}\)
उत्तर:
\({ }_{88} Z^{226},{ }_{88} Z^{238}\)

प्रश्न 48.
कैंसर के उपचार के लिए किस रेडियोऐक्टिव समस्थानिक का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
द्रव्यमान संख्या 60 वाले कोबाल्ट समस्थानिक का।।

प्रश्न 49.
परमाणु भट्टी में किस ईंधन का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
परमाणु भट्टी में यूरेनियम के समस्थानिक (U-235) का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 50.
पेंघा रोग के इलाज में किस तत्त्व के समस्थानिक का उपयोग होता है?
उत्तर:
पेंघा रोग के इलाज में आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग होता है।

प्रश्न 51.
समभारिक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
समभारिक वे परमाणु होते हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या समान लेकिन परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न होती है; जैसे कैल्शियम (\({ }_{20} \mathrm{Ca}^{40}\)) तथा ऑर्गन (\({ }_{18} \mathrm{Ar}^{40}\)) समभारिक हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
केनाल किरणों को धनावेशित किरणें क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
केनाल किरणों का वैद्युत् क्षेत्र में ऋण इलेक्ट्रॉड की ओर विक्षेपण दर्शाता है कि ये किरणें धनावेशित कणों से मिलकर बनी हैं, इसलिए इन्हें धनावेशित किरणें भी कहा जाता है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 1

प्रश्न 2.
केनाल किरणों के गुण लिखिए।
उत्तर:
केनाल किरणों के गुण निम्नलिखित हैं-

  • ये किरणें सीधी रेखा में चलती हैं।
  • ये किरणें वैद्युत् तथा चुंबकीय क्षेत्र में ऋण इलेक्ट्रॉड की ओर विचलित होती हैं।
  • इनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से कई गुना होता है।

प्रश्न 3.
परमाणु में इलेक्ट्रॉनों को नक्षत्रीय इलेक्ट्रॉन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
परमाणु में इलेक्ट्रॉन अपनी-अपनी निश्चित दीर्घ वृत्तीय कक्षाओं में ठीक उसी प्रकार चक्कर लगाते हैं जिस प्रकार आकाश में नक्षत्र सूर्य के चारों ओर दीर्घ वृत्तीय कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। इसलिए इलेक्ट्रॉनों को नक्षत्रीय इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

प्रश्न 4.
प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन में समानताएँ एवं असमानताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन में समानताएँ-

  • प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन दोनों का भार लगभग एक परमाणु द्रव्यमान इकाई (a.m.u) के बराबर होता है।
  • प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन दोनों परमाणु के नाभिक में विद्यमान होते हैं।

प्रोटॉन और न्यूट्रॉन में असमानताएँ-

  • प्रोटॉन धनावेशित कण होते हैं, जबकि न्यूट्रॉन उदासीन कण हैं।
  • न्यूट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान से थोड़ा-सा अधिक होता है।

प्रश्न 5.
इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन में अंतर लिखें।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन में निम्नलिखित अंतर हैं-

इलेक्ट्रॉनन्यूट्रॉन
1. इलेक्ट्रॉन पर ऋण आवेश होता है।1. न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नहीं होता।
2. ये नाभिक के बाहर भिन्न-भिन्न कक्षाओं में घूमते हैं।2. ये नाभिक में रहते हैं।
3. इनका भार हाइड्रोजन के एक परमाणु के भार का 1/2000 वाँ भाग होता है।3. इसका भार हाइड्रोजन के एक परमाणु के भार के लगभग समान होता है।

प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन में अंतर लिखें।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन में निम्नलिखित अंतर हैं-

इलेक्ट्रॉनप्रोटॉन
1. इन पर इकाई ऋण आवेश होता है।1. इन पर इकाई धन आवेशं होता है।
2. इनका भार हाइड्रोजन के परमाणु के भार का 1/2000 वाँ भाग होता है।2. इनका भार हाइड्रोजन के परमाणु के भार के समान होता है।
3. ये नाभिक के बाहर भिन्न-भिन्न कक्षाओं में घूमते हैं।3. ये नाभिक में रहते हैं।

प्रश्न 7.
परमाणु नाभिक के आवश्यक गुण धर्मों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परमाणु नाभिक के आवश्यक गुणधर्म निम्नलिखित हैं-

  • परमाणु नाभिक का आकार परमाणु के आकार से 10 गुना छोटा होता है अर्थात इसका आकार 10-5A या 10-15m होता है।
  • परमाणु नाभिक धन-आवेशित होता है।
  • परमाणु का संपूर्ण द्रव्यमान उसके नाभिक में स्थित होता है।
  • परमाणु नाभिक के आस-पास अधिकतम स्थान खाली होता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

प्रश्न 8.
परमाणु नाभिक व इलेक्ट्रॉन के गुण धर्मों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
परमाणु नाभिक व इलेक्ट्रॉन के गुणधर्मों की तुलना निम्नलिखित प्रकार से है-

परमाणु नाभिकइलेक्ट्रॉन
1. इस पर धन आवेश होता है।1. इस पर ऋण आवेश होता है।
2. यह केंद्रीय भाग में स्थित होता है।2. यह नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता है।
3. इसका द्रव्यमान परमाणु के द्रव्यमान के लंभग बराबर होता है।3. इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन के परमाणु के \(\frac{1}{2000}\) वां भाग के बराबर होता है।

प्रश्न 9.
परमाणु की संरचना को समझने में ई० रदरफोर्ड के क्या-क्या आधारभूत योगदान हैं?
उत्तर:
परमाणु की संरचना को समझने में ई० रदरफोर्ड ने परमाणु का एक मॉडल दिया जिसके अनुसार इलेक्ट्रॉन को नाभिक के चारों ओर पूर्व नियोजित कक्षाओं में ऐसे घूमते हुए माना गया था जिस प्रकार कि हमारे सौरमंडल में ग्रह सूर्य के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में घूमते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि परमाणु का संपूर्ण द्रव्यमान उसके धन-आवेशित नाभिक में होता है जिसका आकार 10-15m होता है।

प्रश्न 10.
परमाणु के विभिन्न कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या सीमित होती है या असीमित? कृपया उदाहरण सहित विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
परमाणु के विभिन्न कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या सीमित होती है। विभिन्न कोशों में इलेक्ट्रॉनों का वितरण क्वांटम समीकरण 2n- के आधार पर किया जाता है जहाँ n कोश के क्रमांक को दर्शाता है; जैसे-

क्वांटम क्रमांककक्षअधिकतम इलेक्ट्रॉन
1K2 x 1² = 2
2L2 x 2² = 8
3M2 x 3² = 18
4N2 x 4² = 32

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 2a
इलेक्ट्रॉन का यह वितरण बोर व बरी ने किया था। उनके अनुसार परमाणु के सबसे बाहरी कोश में आठ से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं समा सकते और बाह्यतम कोश से पहले कोश में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं समा सकते।

उदाहरण – हाइड्रोजन का एक ही कोश होता है जिसमें 1 इलेक्ट्रॉन होता है। हीलियम के 2 इलेक्ट्रॉन प्रथम कोश में चक्कर लगाते हैं। लीथियम के 3 इलेक्ट्रॉन हैं जिनमें से तीसरा इलेक्ट्रॉन दूसरे कोश में चला जाता है। इसी प्रकार कैल्शियम के परमाणु में 20 इलेक्ट्रॉन होते हैं जिनमें से प्रथम कोश में 2, दूसरे व तीसरे कोश में 8-8 तथा चौथे कोश में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं।

प्रश्न 11.
संयोजकता को परिभाषित कीजिए। यह परमाणु संरचना से कैसे संबंधित है?
उत्तर:
संयोजकता (Valency)-संयोजकता-इलेक्ट्रॉनों की संख्या परमाणु की संयोजकता कहलाती है, जबकि संयोजकता इलेक्ट्रॉन किसी परमाणु के बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉन होते हैं। किसी तत्त्व की संयोजकता और उसके बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संयोजकता में निम्नलिखित संबंध हैं

  • जिन तत्त्वों के बाह्यतम कोश में 1 से 4 इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनकी संयोजकता बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है।
  • जिन तत्त्वों के बाह्यतम कोश में 5 से 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनकी संयोजकता (8-तत्त्व के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों) की संख्या के बराबर होती है।
  • हीलियम के बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन होने के कारण इसका बाह्य कोश पूर्ण रूप से भरा होता है इसलिए हीलियम की संयोजकता शून्य होती है। इसी प्रकार अन्य सक्रिय गैसों की संयोजकता बाह्यतम कोश भरे होने के कारण शून्य है।

साधारणतः धातुओं की संयोजकता = बाह्य कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या तथा अधातुओं की संयोजकता = B–बाह्य कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या।

अतः हम कह सकते हैं कि संयोजकता परमाणु संरचना से संबंधित होती है, क्योंकि बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संयोजकता केवल परमाणु संरचना द्वारा पता चलती है।

प्रश्न 12.
संयोजी इलेक्ट्रॉन क्या होते हैं? Mg और AI में कितने संयोजी इलेक्ट्रॉन हैं?
उत्तर:
बाह्यतम कोश में विद्यमान इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं।
Mg तथा A1 के परमाणु क्रमांक क्रमशः 12 तथा 13 हैं। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास हैं-
Mg  2, 8, 2
Al    2, 8, 3
अतः हमें ज्ञात होता है कि Mg तथा A1 में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्रमशः 2 तथा 3 है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित परमाणुओं के विभिन्न कोशों में इलेक्ट्रॉनों के वितरण का वर्णन कीजिए-
लीथियम, नाइट्रोजन, निऑन, मैग्नीशियम और सिलिकन।
उत्तर:

तत्त्वपरमाणु संख्याविभिन्न कोर्शों में इलेक्ट्रॉन वितरण
KLMN
लीथियम (Li)321
नाइट्रोजन (N)725
निऑन (Ne)1028
मैग्नीशियम (Mg)12282
सिलिकन (Si)14284

प्रश्न 14.
दिए गए संकेत \({ }_{20}^{40} \mathrm{Ca}\) में कैल्शियम की द्रव्यमान संख्या, परमाणु संख्या, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा नाभिक की संरचना लिखिए।
उत्तर:
द्रव्यमान संख्या = 40
परमाणु संख्या = 20
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 8, 2
नाभिक की संरचना-
प्रोटॉनों की संख्या = 20
न्यूट्रॉनों की संख्या = 40 – 20 = 20

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में कितने प्रोटॉन तथा कितने न्यूट्रॉन हैं?
(i) \({ }^{14} \mathrm{~N}_7\)
(ii) \({ }^{14} \mathrm{~C}_6\)
(iii) \({ }^{31} \mathbf{P}_{15}\)
उत्तर:
(i) \({ }^{14} \mathrm{~N}_7\)
परमाणु द्रव्यमान = 14
परमाणु क्रमांक = 7
प्रोटॉनों की संख्या = 7
न्यूट्रॉनों की संख्या = परमाणु द्रव्यमान – परमाणु क्रमांक
= 14 – 7 = 7

(ii) \({ }^{14} \mathrm{~C}_6\)
परमाणु द्रव्यमान = 14
परमाणु क्रमांक = 6
प्रोटॉनों की संख्या = 6
न्यूट्रॉनों की संख्या = परमाणु द्रव्यमान – परमाणु क्रमांक
= 14 – 6 = 8

(iii) \({ }^{31} \mathbf{P}_{15}\)
परमाणु द्रव्यमान = 31
परमाणु क्रमांक = 15
प्रोटॉनों की संख्या = 15
न्यूट्रॉनों की संख्या = परमाणु द्रव्यमान-परमाणु क्रमांक
31 – 15 = 16

प्रश्न 16.
परमाणु की रासायनिक उदासीनता तथा रासायनिक क्रियाशीलता का वर्णन करो।
उत्तर:
किसी परमाणु के रासायनिक गुण इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसमें इलेक्ट्रॉन किस प्रकार व्यवस्थित हैं। जब किसी तत्त्व के परमाणु का बाह्यतम कोश पूर्ण रूप से भरा हुआ होता है तो वह तत्त्व रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेता अर्थात परमाणु रासायनिक रूप से उदासीन होता है; जैसे निऑन, आर्गन आदि।

जब किसी तत्त्व के परमाणु का बाह्यतम कोश पूर्ण रूप से भरा हुआ नहीं होता तो वह रासायनिक दृष्टि से क्रियाशील होता है। रासायनिक क्रियाशीलता का नियम इलेक्ट्रॉन वितरण प्रणाली पर निर्भर करता है।

प्रश्न 17.
उत्कृष्ट गैसें (निष्क्रिय गैसें) व्यवहार में निष्क्रिय क्यों होती हैं?
उत्तर:
निष्क्रिय गैसों का बाह्यतम कोश पूर्ण होता है। हीलियम में यह प्रथम कोश होने के कारण दो इलेक्ट्रॉनों के साथ पूर्ण हो जाता है। शेष उत्कृष्ट गैसों में यह 8-इलेक्ट्रॉनों से पूर्ण हो जाता है। इस प्रकार उत्कृष्ट गैसों की इलेक्ट्रॉन संरचना स्थायी होती है। इन तत्त्वों की निष्क्रियता का कारण इलेक्ट्रॉन के प्रवेश अथवा इलेक्ट्रॉन के निकलने में कठिनाई का होना है। इनमें से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अत्यधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है तथा इनकी इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने की क्षमता भी नहीं होती।

प्रश्न 18.
अगर बोरॉन परमाणु दो समस्थानिकों \({ }_5 \mathbf{B}^{\mathbf{1 0}}\) (19%) तथा \({ }_5 \mathbf{B}^{\mathbf{1 1}}\) (81%) के रूप में है, तो बोरॉन के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।
उत्तर:
बोरॉन परमाणु दो समस्थानिकों \({ }_5 \mathbf{B}^{\mathbf{1 0}}\) (19%) तथा \({ }_5 \mathbf{B}^{\mathbf{1 1}}\) (81%) के रूपों में पाया जाता है जिनका द्रव्यमान क्रमशः 19% व 81% है।
इसलिए बोरॉन का औसत परमाणु द्रव्यमान होगा
= \(\left[10 \times \frac{19}{100}+11 \times \frac{81}{100}\right]\)
= \(\left[\frac{190}{100}+\frac{891}{100}\right]\)
= [1.90 + 8.91]
= [10.81] = 11

प्रश्न 19.
समस्थानिकों के मुख्य अभिलक्षण क्या-क्या हैं?
उत्तर:
समस्थानिकों के मुख्य अभिलक्षण-

  • समस्थानिकों में प्रोटॉनों व इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, परंतु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न होती है।
  • समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान होते हैं।
  • समस्थानिकों के भौतिक गुण भिन्न होते हैं जो परमाणु द्रव्यमान पर निर्भर करते हैं।
  • समस्थानिकों के नाभिक पर समान आवेश होता है।

प्रश्न 20.
प्रकृति में क्लोरीन के समस्थानिक किस अनुपात में पाए जाते हैं तथा इनका औसत द्रव्यमान कैसे ज्ञात किया जाएगा?
उत्तर:
प्रकृति में क्लोरीन दो समस्थानिक रूपों में पाया जाता है, जिसका द्रव्यमान 35u और 37u, जो 3 : 1 के अनुपात में होते हैं।
क्लोरीन का औसत परमाणु द्रव्यमान होगा,
\(\left[\left(35 \times \frac{75}{100}+37 \times \frac{25}{100}\right)=\left(\frac{105}{4}+\frac{37}{4}\right)=\frac{142}{4}=35.5 \mathrm{u}\right]\)
इसका मतलब यह नहीं होता है कि क्लोरीन के परमाणु का द्रव्यमान एक भिन्नात्मक संख्या 35.5u है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अगर आप क्लोरीन की कुछ मात्रा लेते हैं, तो इसमें क्लोरीन के समस्थानिक होंगे और औसत द्रव्यमान 35.5u होगा।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परमाणु के नाभिक की खोज किसने व कैसे की?
उत्तर:
परमाणु के नाभिक की खोज अरनेस्ट रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने अल्फा-कणों के प्रकीर्णन प्रयोग द्वारा की। इस प्रयोग में रदरफोर्ड ने सोने (स्वण) की पतली पन्नी पर तीव्रगामी अल्फा-कणों की बौछार की तथा उन्होंने पाया कि पत्ती से निकलकर अल्फा-कण सामान्यतः अपने मार्ग से एक डिग्री के चाप से विक्षेपित हो जाते हैं। अल्फा-कणों का एक छोटा भाग बड़े कोणीय विक्षेपण (चित्र में C1 व C2) से प्रकीर्णित होता है और बहुत कम प्रकीर्णित होकर वापस आ जाता है। यह सर्वविदित है
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 2
कि अल्फा-कण अत्यधिक ऊर्जावान कण हैं। उनका बड़े कोण का प्रकीर्णन यह प्रदर्शित करता है कि उनका प्रदार्थ के परमाणु के संपूर्ण द्रव्यमान से टकराव हुआ। इस प्रदर्शन के आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि-

  • परमाणु का केंद्रीय भाग ठोस है तथा धन आवेशित है। नाभिक में परमाणु का लगभग संपूर्ण द्रव्यमान होता है।
  • परमाणु के इस केंद्रीय भाग का आकार परमाणु की तुलना में बहुत कम है। रदरफोर्ड ने इस केंद्रीय भाग को नाभिक (केंद्रक) का नाम दिया।

प्रश्न 2.
नील्स बोर द्वारा प्रस्तावित परमाणु के मॉडल में उसके द्वारा कौन-सी नई संकल्पना स्थापित की गई?
उत्तर:
नील्स बोर ने सन् 1912 में परमाणु का एक मॉडल प्रस्तावित किया, जोकि मूल रूप से नई संकल्पना पर आधारित था। ये संकल्पनाएँ हैं-
1. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षों में चक्कर लगाते हैं तथा प्रत्येक कक्ष का अर्धव्यास भिन्न होता है।

2. प्रत्येक कक्ष की एक निश्चित ऊर्जा होती है। इसके अनुसार नाभिक के पास वाले कोश में न्यूनतम तथा सबसे दूर वाले कोश में अधिकतम ऊर्जा होती है।

3. जब एक इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से एक निम्न ऊर्जा स्तर की कक्षा में आता है तो ऊर्जा का अंतर विद्युत् चुंबकीय विकिरण अथवा प्रकाश के रूप में विकरित होता है।

4. नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं अथवा कोशों (Shells) में भरने के लिए इलेक्ट्रॉनों की संख्या निश्चित होती है; जैसे प्रथम में दो, दूसरे में आठ व तीसरे में अठारह इत्यादि।

5. इलेक्ट्रॉन विदुयत् चुंबकीय तरंगों के रूप में लगातार ऊर्जा विकिरण किए बिना स्थायी कक्षा में घूम सकता है।

6. एक निश्चित ऊर्जा स्तर वाले इलेक्ट्रॉन को यदि ऊर्जा प्रदान की जाए तो वह उच्च ऊर्जा स्तर वाले कक्ष या कोश में जा सकता है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 3

प्रश्न 3.
निम्नलिखित परमाणुओं की इलेक्ट्रॉनिक संरचनाओं में क्या-क्या समानताएं हैं?
(i) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम
(ii) हीलियम, निऑन, ऑर्गन
(iii) बेरिलियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम।
उत्तर:
(i) लीथियम, सोडियम व पोटैशियम-
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 4

उपर्युक्त इलेक्ट्रॉन वितरण से पता चलता है कि लीथियम, सोडियम व पोटैशियम तीनों तत्त्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में केवल 1 इलेक्ट्रॉन पाया जाता है जिस कारण इन सब तत्त्वों की संयोजकता 1 है।

(ii) हीलियम, निऑन व ऑर्गन
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 5
उपर्युक्त इलेक्ट्रॉन वितरण से पता चलता है कि हीलियम, निऑन व ऑर्गन तीनों तत्त्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश पूर्ण भरे हुए हैं जिस कारण इनकी संयोजकता शून्य है अर्थात ये तीनों तत्त्व निष्क्रिय हैं।

(iii) बेरिलियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 6
उपर्युक्त इलेक्ट्रॉन वितरण से पता चलता है कि बेरिलियम, मैग्नीशियम व कैल्शियम तीनों तत्त्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं, जिस कारण इन सब तत्त्वों की संयोजकता 2 है।

प्रश्न 4.
रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों के प्रायोगिक अनुप्रयोगों को विशिष्ट उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों के प्रायोगिक अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं-

  • इनसे पृथ्वी, चट्टान, पर्वत, उल्काओं आदि की आयु निर्धारित की जा सकती है।
  • पेपर, काँच, प्लास्टिक आदि की मोटाई ज्ञात करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।
  • पाइपों में दरारों का पता लगाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
  • मशीनों में टूट-फूट का पता लगाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
  • चिकित्सा क्षेत्र में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए समस्थानिकों का प्रयोग किया जाता है; जैसे Co-60 कैंसर के लिए; आयोडीन का समस्थानिक थायरॉइड के लिए, फॉस्फोरस का समस्थानिक रक्त कैंसर के लिए आदि।
  • रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों से निकले विकिरणों को उच्च बीमारी प्रतिरोधक के रूप में गेहूँ, धान, पटसन तथा मूंगफली की खेती में प्रयोग किया जाता है।
  • उर्वरकों को सुधारने के लिए समस्थानिकों का प्रयोग किया जाता है। Fe-59 समस्थानिक का प्रयोग अरक्तता की जाँच के लिए किया जाता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

प्रश्न 5.
आवर्त सारणी के प्रथम 20 तत्त्वों का इलेक्ट्रॉनिक वितरण दर्शाइए।
उत्तर:
आवर्त सारणी के प्रथम 20 तत्त्वों का इलेक्ट्रॉनिक वितरणइलेक्ट्रॉनों
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना 7

प्रयोगात्मक कार्य

क्रियाकलाप 1.
दो उदाहरण देकर स्पष्ट करें कि दो वस्तुओं को रगड़ने पर आवेश उत्पन्न होता है?
कार्य-विधि-
(i) एक कंघी लेकर उसे सूखे बालों से रगड़ो। अब कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों के पास उसे ले जाने पर आप देखेंगे कि वह कागज के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इससे सिद्ध होता है कि दो वस्तुओं को आपस में रगड़ने पर आवेश उत्पन्न होता है।

(ii) एक काँच की छड़ को सिल्क के कपड़े पर रगड़िए और उस छड़ को हवा के गुब्बारे के पास लाने पर वह उसकी ओर आकर्षित हो जाएगा। इससे सिद्ध होता है कि काँच की छड़ को सिल्क के कपड़े पर रगड़ने से काँच की छड़ आवेशित हो जाती है।

क्रियाकलाप 2.
रदरफोर्ड के अल्फा कण-प्रकीर्णन को एक क्रियाकलाप द्वारा समझाएँ।
कार्य-विधि-रदरफोर्ड के अल्फा कण-प्रकीर्णन को समझने के लिए खुले मैदान में एक क्रियाकलाप करते हैं। मान लें कि एक बच्चा अपनी आँखों को बंद किए हुए एक दीवार के सामने खड़ा है। उसे दीवार पर कुछ दूरी से पत्थर फेंकने को कहें। प्रत्येक पत्थर के दीवार से टकराने के साथ ही वह एक आवाज सुनेगा।

अगर वह इसे दस बार दोहराएगा तो वह दस बार आवाज़ सुनेगा। लेकिन जब आँख बंद किया हुआ बच्चा तार से घिरी हुई चारदीवारी पर पत्थर फेंकेगा, तो अधिकतर पत्थर उस घेरे पर नहीं टकराएंगे और कोई आवाज़ सुनाई नहीं पड़ेगी। क्योंकि घेरे के बीच में बहुत सारे खाली स्थान हैं, जिनके बीच से पत्थर निकल जाता है।

अध्याय का तीव्र अध्ययन

1. केनाल रे की खोज किस वैज्ञानिक ने की?
(A) डाल्टन
(B) जे.जे. टॉमसन
(C) ई. गोल्डस्टीन ने
(D) बोर ने
उत्तर:
(C) ई. गोल्डस्टीन ने

2. इलेक्ट्रॉन की खोज किस वैज्ञानिक ने की?
(A) टॉमसन ने
(B) डाल्टन ने
(C) गोल्डस्टीन ने
(D) नील्स बोर ने
उत्तर:
(A) टॉमसन ने

3. जे.जे. टॉमसन को नोबेल पुरस्कार कब मिला?
(A) 1878 में
(B) 1902 में
(C) 1906 में
(D) 1912 में
उत्तर:
(C) 1906 में

4. यह किस वैज्ञानिक ने प्रस्तावित किया कि परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें फँसे होते हैं?
(A) रदरफोर्ड ने
(B) टॉमसन ने
(C) डाल्टन ने
(D) नील्स बोर ने
उत्तर:
(B) टॉमसन ने

5. ई. रदरफोर्ड ने ………………….. की खोज की।
(A) परमाणु
(B) नाभिक
(C) प्रोटॉन
(D) न्यूट्रॉन
उत्तर:
(B) नाभिक

6. नाभिक की त्रिज्या, परमाणु की त्रिज्या से ………………….. गुणा छोटी होती है।
(A) 105
(B) 104
(C) 103
(D) 102
उत्तर:
(A) 105

7. किस वैज्ञानिक ने बताया कि जब इलेक्ट्रॉन विविक्त कक्षा में चक्कर लगाते हैं तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता?
(A) नील्स बोर ने
(B) रदरफोर्ड ने
(C) डाल्टन ने
(D) टॉमसन ने
उत्तर:
(A) नील्स बोर ने

8. ‘एटॉमिक थ्योरी’ नामक पुस्तक का लेखक कौन है?
(A) रदरफोर्ड
(B) टॉमसन
(C) नील्स बोर
(D) (A) और (B) दोनों
उत्तर:
(C) नील्स बोर

9. परमाणु के नाभिक पर पाया जाने वाला आवेश होता है-
(A) शून्य आवेश
(B) ऋण आवेश
(C) धन आवेश
(D) कोई आवेश नहीं
उत्तर:
(C) धन आवेश

10. न्यूट्रॉन की खोज कब हुई?
(A) सन् 1902 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1922 में
(D) सन् 1932 में
उत्तर:
(D) सन् 1932 में

11. न्यूट्रॉन की खोज किसने की?
(A) जे. चैडविक ने
(B) रदरफोर्ड ने
(C) टॉमसन ने
(D) नील्स बोर ने
उत्तर:
(A) जे. चैडविक ने

12. न्यूट्रॉन का गुण नहीं है-
(A) अनावेशित
(B) द्रव्यमान प्रोटॉन के समान
(C) नाभिक में पाया जाता है
(D) इस पर ऋणावेश होता है
उत्तर:
(D) इस पर ऋणावेश होता है

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 4 परमाणु की संरचना

13. इलेक्ट्रॉन का गुण नहीं है-
(A) धनावेशित
(B) e के द्वारा दर्शाया जाता है
(C) ऋणावेशित
(D) द्रव्यमान नगण्य होता है
उत्तर:
(A) धनावेशित

14. प्रोटॉन का गुण नहीं है-
(A) नाभिक में पाया जाता है
(B) p+ के द्वारा दर्शाया जाता है
(C) द्रव्यमान 1 इकाई
(D) ऋणावेशित
उत्तर:
(D) ऋणावेशित

15. परमाणु के पहले इलेक्ट्रॉन कक्ष में अधिक से अधिक ………………….. इलेक्ट्रॉन समा सकते हैं।
(A) 2
(B) 8
(C) 18
(D) 32
उत्तर:
(A) 2

16. तीसरे इलेक्ट्रॉन कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या हो सकती है-
(A) 8
(B) 12
(C) 18
(D) 32
उत्तर:
(C) 18

17. चौथे इलेक्ट्रॉन कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या हो सकती है-
(A) 8
(B) 18
(C) 32
(D) 2
उत्तर:
(C) 32

18. उस तत्त्व की परमाणु संख्या क्या होगी जिसके M कोश में 6 इलेक्ट्रॉन हैं?
(A) 8
(B) 16
(C) 24
(D) 34
उत्तर:
(B) 16

19. निऑन के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्या होती है?
(A) 2
(B) 8
(C) 18
(D) 32
उत्तर:
(B) 8

20. निम्न में से कौन-सा तत्त्व उत्कृष्ट गैस है-
(A) निऑन
(B) ऑर्गन
(C) क्रिप्टॉन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. फ्लोरीन के सबसे बाहरी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या होती है-
(A) 2
(B) 5
(C) 7
(D) 17
उत्तर:
(C) 7

22. सबसे बाहरी कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या हो सकती है-
(A) 2
(B) 8
(C) 18
(D) 32
उत्तर:
(B) 8

23. हाइड्रोजन में न्यूट्रॉनों की संख्या कितनी होती है?
(A) शून्य
(B)
(C) दो
(D) चार
उत्तर:
(A) शून्य

24. प्रोटियम किस तत्त्व का समस्थानिक है?
(A) हीलियम का
(B) हाइड्रोजन का
(C) लीथियम का
(D) नाइट्रोजन का
उत्तर:
(B) हाइड्रोजन का

25. ट्राइटियम का प्रतीक है-
(A) \({ }_1^1 \mathrm{H}\)
(B) \({ }_2^1 \mathrm{H}\)
(C) \({ }_3^1 \mathrm{H}\)
(D) \({ }_4^1 \mathrm{H}\)
उत्तर:
(C) \({ }_3^1 \mathrm{H}\)

26. ड्यूटीरियम किस तत्त्व का समस्थानिक है?
(A) यूरेनियम का
(B) लीथियम का
(C) हीलियम का
(D) हाइड्रोजन का
उत्तर:
(D) हाइड्रोजन का

27. …………………. का उपयोग परमाणु भट्ठी में ईंधन के रूप में किया जाता है।
(A) लीथियम
(B) हीलियम
(C) यूरेनियम
(D) बेरिलियम
उत्तर:
(C) यूरेनियम

28. किस तत्त्व के समस्थानिक का उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है?
(A) कोबाल्ट
(B) आयोडीन
(C) क्लोरीन
(D) बोरॉन
उत्तर:
(A) कोबाल्ट

29. …………………… रोग के इलाज में आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग होता है।
(A) कैंसर
(B) थैलीसिमिया
(C) अरक्तता
(D) घेघा
उत्तर:
(D) घेघा

30. किसी परमाणु का K और L कोश भरा हो तो इसमें इलेक्ट्रॉन होंगे
(A) 2
(B) 8
(C) 10
(D) 18
उत्तर:
(C) 10

31. रदरफोर्ड का अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग किसकी खोज के लिए उत्तरदायी है?
(A) परमाणु केंद्रक
(B) इलेक्ट्रॉन
(C) प्रोटॉन
(D) न्यूट्रॉन
उत्तर:
(A) परमाणु केंद्रक

32. CF आयन में इलेक्ट्रॉनों की संख्या है-
(A) 16
(B) 8
(C) 17
(D) 18
उत्तर:
(D) 18

33. ‘दि डिस्क्रिप्शन ऑफ नेचर’ नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(A) ई० रदरफोर्ड
(B) जेजेन्टॉमसन
(C) नील्स बोर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) नील्स बोर

34. परमाणु का मूल कण नहीं है-
(A) इलेक्ट्रॉन
(B) पोजिट्रॉन
(C) प्रोटॉन
(D) न्यूट्रॉन
उत्तर:
(B) पोजिट्रॉन

35. क्लोरीन का सही इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न में से कौन-सा है?
(A) 2, 7, 8
(B) 2, 8, 7
(C) 7, 8, 2
(D) 1, 8, 8
उत्तर:
(B) 2, 8, 7

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

HBSE 9th Class Sanskrit गोदोहनम् Textbook Questions and Answers

गोदोहनम् HBSE Class 9

1. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) काशी विश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
(ख) कार्यमद्यतनीयं यत् तमद्यैव विधीयताम्।
(ग) क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबतितद्रसम।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति में भारतीय संस्कृति एवं पौराणिक आस्था के विषय में बताया गया है। जब मल्लिका तीर्थ यात्रा से वापस आती है तो चन्दन कहता है कि काशी विश्वनाथ की कृपा से मैं तुम्हें शुभ समाचार देना चाहता हूँ। यहाँ भगवान शिव की प्रशंसा की गई है। चन्दन का मानना है कि तीस लीटर दूध की जो माँग ग्राम प्रधान के द्वारा की गई है उनमें भगवान शिव की कृपा है। उनकी कृपा से मैं तीस लीटर दूध बेचकर भरपूर धन प्राप्त कर लूँगा।

(ख) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतु!हम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति में बताया गया है कि अपना कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को प्रत्येक कार्य सोच-विचार कर करना चाहिए। व्यक्ति यदि बिना सोचे-विचारे कार्य करता है तो उसका वही हाल होता है जैसा कि चन्दन व मल्लिका का हुआ। कहा भी गया है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए। यदि चन्दन यह सोचता कि यदि समय पर गाय का दूध नहीं निकाला जाएगा तो उसका दूध थन में सूख जाएगा तो उसकी ऐसी स्थिति ही होगी।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। लेन-देन का कार्य हमेशा उचित समय पर करना चाहिए। यदि किए जाने वाले कार्य में शीघ्रता नहीं की जाएगी तो उस कार्य को करने का कोई भी फायदा नहीं है। क्योंकि इस सूक्ति में यह बताया गया है कि कार्य यदि शीघ्रता से न किया जाए तो समय उस कार्य के रस को पी जाता है। अर्थात् किए जाने वाले कार्य का लाभ कार्य करने वाले को नहीं होता।

Sanskrit Class 9 Chapter 3 Godohanam Solutions Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

II. अधोलिखितान् नाट्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित नाट्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
1. मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलायाः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।
चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव । अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि।। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
(क) मया सह तवागमनस्य किं नास्ति?
(ख) वयं कदा प्रत्यागमिष्यामः?
(ग) मल्लिका चन्दनं किम् आदिशति?
(घ) मल्लिका सह काः-काः गच्छन्ति?
(ङ) ‘अहं सर्वमपि’ अत्र अहं सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि:
(क) मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति।
(ख) वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः।
(ग) मल्लिका चन्दनं आदिशति यत् गृहं व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहन व्यवस्थाञ्च परिपालय।
(घ) मल्लिकया सह चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः गच्छन्ति।
(ङ) ‘अहं’ सर्वनामपदं चन्दनाम प्रयुक्तम्।

Class 9 Sanskrit Chapter 3 Godohanam Question Answer HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

2. चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धोदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः। मल्लिका – स्वामिन् ! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः।
(क) किं सुरक्षितं न तिष्ठति?
(ख) अत एव किं न क्रियते?
(ग) अधुना किं करिष्यावः?
(घ) अनेन मासान्ते किं प्राप्स्यावः?
(ङ) तिष्ठति’ क्रियापदे कः लकारः?
उत्तराणि:
(क) दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति।
(ख) अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते।
(ग) अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः।
(घ) अनेन मासान्ते अधिकाधिकं दुग्धं प्राप्स्यावः।
(ङ) ‘तिष्ठति’ क्रियापदे लट्लकारः अस्ति।

गोदोहनम् पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE Class 9

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

3. चन्दनः
(यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा, धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनच पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आशर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)
(क) धेनुः चन्दनं केन प्रहरति?
(ख) पात्रेण सह कः पतति?
(ग) नन्दिनी पादप्रहारेण चन्दनं कीदृशं करोति?
(घ) चीत्कारं कुर्वन कः पतति? ।
(ङ) ‘ताडयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः?
उत्तराणि:
(क) धेनुः चन्दनं पृष्ठपादेन प्रहरति।
(ख) पात्रेण सह चन्दनः पतति।
(ग) नन्दिनी पादप्रहारेण चन्दनं रक्तरअितं करोति।
(घ) चीत्कारं कुर्वन चन्दनः पतति।
(ङ) ‘ताडयित्वा’ इति पदे क्त्वा प्रत्ययः।

Shemushi Sanskrit Class 9 Solutions Chapter 3 Godohanam HBSE

III. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत
(निम्नलिखित अव्ययों की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
च, यथा, विना, अपि, प्रति
(क) मल्लिके! आगच्छ कुम्भकारं ……….. चलावः ।
(ख) दुग्धार्थं पात्र प्रबन्धः ………. करणीयः।
(ग) मूल्यं ………… तु एकमपि घटं न दास्यामि।
(घ) जीवनं भङ्गरं सर्वं ……. एष मृत्तिका घटः।
(ङ) आदानस्य प्रदानस्य कर्त्तव्यस्य ………… कर्मणः।
उत्तराणि:
(क) प्रति,
(ख) अपि,
(ग) विना,
(घ) यथा,
(ङ) च।

Godohanam Sanskrit Class 9 Solutions HBSE

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

IV. विशेषणपदम्-विशेष्य पदम् च पृथक् कृत्वा लिखत
(विशेषण-विशेष्य पदों को पृथक् करके लिखिए)
(क) मन्दस्वरेण शिवस्तुति
(ख) महोत्सवः
(ग) त्रिंशत सेटकानि
(घ) अत्युत्तमः विचारः
(ङ) अधिकाधिकं दुग्धं
उत्तराणि:
विशेषण – विशेष्य
मन्दस्वरेण – शिवस्तुति
महा – उत्सवः
त्रिंशत् – सेटकानि
अत्युत्तमः – अत्युत्तमः
अधिकाधिकं – दुग्धम्

Class 9th Sanskrit Chapter 3 HBSE

V. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुर्पु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. मल्लिका सखीभिः सह कुत्र गच्छति?
(i) गृह यात्रां
(ii) मन्दिरयात्रां
(iii) तीर्थायात्रां
(iv) धर्मयात्रां
उत्तरम्:
(iv) धर्मयात्रां

2. घटान् कः रचयति?
(i) दुग्धकारः
(ii) दधिकारः
(iii) कुम्भकारः
(iv) घटकारः
उत्तरम्:
(iii) कुम्भकारः

3. नन्दन्याः पादप्रहारैः चन्दनः कीदृशः अभवत्?
(i) पङ्गः
(ii) खञ्जः
(iii)रुग्णः
(iv) रक्तरञ्जितः
उत्तरम्:
(iv) रक्तरञ्जितः

4. ते के शिवाः सन्तु?
(i) पन्थानः
(ii) यात्रा
(iii) धेनुः
(iv) दुग्धः
उत्तरम्:
(i) पन्थानः

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

5. सुविचार्य किं विधातव्यम् ?
(i) फलं
(ii) धनं
(iii) कार्य
(iv) जनं
उत्तरम्:
(iii) कार्य

6. ‘नास्ति’ पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) ना + स्ति
(ii) न + अस्ति
(iii) न + अस्ति
(iv) ना + अस्ति
उत्तरम्:
(ii) न + अस्ति

7. ‘सह’ इति उपपदयोगे का विभक्तिः ?
(i) पञ्चमी
(ii) चतुर्थी
(iii) द्वितीया
(iv) तृतीया
उत्तरम्
(iv) तृतीया

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

8. ‘प्रतिदिन’ इति पदे कः समासः?
(i) द्विगुः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) बहुव्रीहिः
उत्तरम्:
(iii) अव्ययीभावः

9. ‘शोभनम्’ इति पदस्य विलोमपदं किम्?
(i) सुन्दरम्
(ii) अशोभनम्
(iii) अशान्तम्
(iv) नशान्तम्
उत्तरम्:
(ii) अशोभनम्

10. ‘क्षिप्रम्’ इति पदस्य पर्यायपदम् किम् ?
(i) शीघ्रम्
(ii) विलम्बम्
(iii) अशीघ्रम्
(iv) अक्षिप्रम्
उत्तरम्:
(i) शीघ्रम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

योग्यताविस्तारः

‘गोदोहनम्’ एकांकी में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान और सुखी बनने की इच्छा से अपनी गाय से एक महीने तक दूध निकालना बन्द कर देता है, ताकि महीने भर के दूध को एक साथ निकालकर बेचकर धनवान बन सके। इस प्रकार एक मास पश्चात् जब वह गाय को दुहने का प्रयास करता है तब अत्यधिक दूध का तो कहना ही क्या। उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिलती, एक साथ दूध के स्थान पर उसे मिलते हैं गाय के पैरों से प्रहार जिससे आहत और रक्तरञ्जित होने पर वह ज़मीन पर गिर पड़ता है। इस घटना से वहाँ उपस्थित सभी यह समझ जाते हैं कि यथासमय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

भाव-विस्तारः

उपायं चिन्तयेत् प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत् ।
पश्यतो बकमूर्खस्य नकुलेन हताः बकाः॥

बुद्धिमान व्यक्ति उपाय पर विचार करते हुए अपाय अर्थात् उपाय से होने वाली हानि के विषय में भी सोचे हानिरहित उपाय ही कार्य सिद्ध करता है। अपाय युक्त उपाय नहीं जैसे कि अपने बच्चों को साँप द्वारा खाए जाते हुए देखकर एक बगुले ने नेवले का प्रबन्ध साँप को खाने के लिए किया जो कि साँप को खाने के साथ-साथ सभी बगुलों को भी बच्चों सहित खा गया। अतः ऐसा , उपाय सदैव हानिकारक होता है, जिसके अपाय पर विचार न किया जाए।

“अविवेकः परमापदां पदम”
गोदोहनम्-एकांकी पढ़ाते समय आधुनिक परिवेश से जोड़ें तथा छात्रों को समझाएँ कि कोई भी कार्य यदि नियत समय पर न करके कई दिनों के पश्चात् एक साथ करने के लिए संगृहित किया जाता रहता है तो उससे होने वाला लाभ-हानि में परिवर्तित हो सकता है।

अतः हमें सदैव अपने सभी कार्य यथासमय करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाठ की कथा नाटकीयता के साथ ही छात्रों को यह भी बताएँ कि इस नाटक से तात्कालिक समाज का परिचय भी मिलता है कि घर की व्यवस्था स्त्री-पुरुष मिलकर ही करते थे तथा स्त्री को स्वतन्त्र निर्णय लेने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

HBSE 9th Class Sanskrit गोदोहनम् Important Questions and Answers

कल्पतरूः  गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ
(प्रथमं दृश्यम्)
(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्ततिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)
1. चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम्) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिवालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्? ।
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।
मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलायाः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्थ-गो = गाय। मन्दस्वरेण = धीमी आवाज़ में। सुगन्धः = खुशबू। मनोहरः = मनमोहक। मोदकानि = लड्डुओं को। विरम = रुको। क्रुध्यसि = नाराज हो रहे हो। जिवालोलुपतां = जीभ का लालच। अक्षमः = असमर्थ। सम्यग् = अच्छी प्रकार से। धर्मयात्रा = तीर्थयात्रा। विषादं = दुख का। दुग्धदोहनम् = दूध दूहना।।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस नाट्यांश में चन्दन तथा मल्लिका की आपसी बातचीत से पता चलता है कि मल्लिका तीर्थयात्रा पर जाना चाहती है तथा चन्दन घर पर रुकेगा।

(पहला दृश्य)

सरलार्थ-(मल्लिका लड्डुओं को बनाते हुए धीमी आवाज में शिवस्तुति कर रही है।) (इसके बाद लड्डू की खुशबू का अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन मञ्च पर प्रवेश करता है।)
चन्दन-अरे! खुशबू तो बहुत मनमोहक है (देखकर) अरे! क्या लड्डू बनाए जा रहे हैं। (प्रसन्न होकर) तो इनका स्वाद लेता हूँ। (लड्डु लेने की इच्छा करता है।) __

मल्लिका–(क्रोध के साथ) रुको! रुको! स्पर्श मत करो। ये लड्डू हैं।

चन्दन क्यों नाराज़ होती हो। तुम्हारे हाथों से बने हुए इन लड्डुओं को देखकर मैं जीभ के स्वाद को रोकने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती? ।

मल्लिका अच्छी प्रकार से जानती हूँ स्वामी! परन्तु ये लड्डु पूजा के लिए हैं।

चन्दन-तो शीघ्र ही पूजा सम्पन्न करो और प्रसाद दो।

मल्लिका-अरे! यहाँ पूजन नहीं होगा। मैं कल सुबह अपनी सखियों के साथ काशी विश्वनाथ मन्दिर जा रही हूँ, हम वहाँ गङ्गा स्नान व तीर्थयात्रा करेंगे।

चन्दन-सखियों के साथ। मेरे साथ नहीं (दुःखी होने का नाटक करता है।)

मल्लिका–हाँ। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी तथा कपिला आदि सभी जा रही हैं। इसलिए मेरे साथ तुम्हारे जाने का औचित्य नहीं है। हम लोग सप्ताह के अन्त में वापस आ जाएंगे। तब तुम घर की व्यवस्था तथा गाय के दूहने आदि की व्यवस्था करोगे।

भावार्थ-मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थ यात्रा पर जा रही है तथा चन्दन घर पर रुककर गाय के लिए चारा, पानी तथा दूध दूहने आदि का कार्य करेगा।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

(द्वितीयं दृश्यम्)
2. चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थ काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् ! शोभनम् । दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्थ-स्वप्रातराशस्य = अपने नाश्ते (सुबह) की। मातुलानि = मामी। मातुल = मामा। मासानन्तरम् = एक महीने के बाद। त्रिशत-सेटकमितं = तीस लीटर। याम्यधुना (यामि + अधुना) = अब जा रही हूँ। निर्गता = निकल जाती है। .

प्रसंगप्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर चली जाती है। उधर उमा चन्दन से तीस लीटर दूध की व्यवस्था करने के लिए कहती है।

(दूसरा दृश्य)

सरलार्थ-चन्दन ठीक है। तुम अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाओ और खुश रहो। मैं सारा कुछ कर लूँगा। तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो। अर्थात् तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो।

चन्दन-मल्लिका तो तीर्थयात्रा पर चली गई। तो अब मैं दूध दूहने के बाद सुबह के नाश्ते की व्यवस्था करूँगा। (स्त्री का वेश धारण करके, दूध का बर्तन हाथ में लेकर नन्दिनी (गाय) के पास जाता है।)

उमा-मामी! मामी!

चन्दन हे उमा! मैं तो मामा हूँ। तुम्हारी मामी तो गङ्गा स्नान करने के लिए काशी गई है। बताओ तुम्हारा क्या प्रिय कार्य करूँ? अर्थात् तुम्हारे लिए क्या करूँ।

उमा-मामा! दादा जी ने कहा है कि इस महीने के अन्त में मेरे घर महोत्सव होगा। उसमें तीस लीटर दूध की आवश्यकता है। यह व्यवस्था आपको करनी चाहिए।

चन्दन-(प्रसन्न मन से) तीस लीटर दूध। बहुत अच्छा। दूध की व्यवस्था हो जाएगी, ऐसा तुम अपने दादा जी से कह देना। उमा-धन्यवाद मामाजी। अब मैं जाती हूँ। (वह निकल जाती है।)

भावार्थ-उमा ने चन्दन (मामा) से बताया कि महीने के अन्त में उसके घर उत्सव होने वाला है जिसमें तीस लीटर दूध की व्यवस्था करनी है। दूध की व्यवस्था की बात सुनकर चन्दन को खुशी होती है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

(तृतीयं दृश्यम्)
3. चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गुलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयांसि! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये (नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि।
(प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति)
चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन् ! प्रत्यागता अहम् । आस्वादय प्रसादम्।
(चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम्) एवम् । धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम् ?

शब्दार्थ-अङ्गुलिषु = अङ्गुलियों पर। पयांसि = दूध । लप्स्ये = प्राप्त कर लूँगा। दोहनं = दूध दूहने का कार्य। करवाणि = करूँ। प्रत्यागच्छति (प्रति + आगच्छति) = वापस आ जाती है। साश्चर्यम् = आश्चर्य के साथ।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश तीस लीटर दूध प्राप्त करने के लिए चन्दन नन्दिनी की खूब सेवा करता है। एक सप्ताह के बाद मल्लिका वापस आती है। इसी प्रसंग का वर्णन करते हुए इस नाट्यांश में कहा गया है कि

(तीसरा दृश्य)

सरलार्थ चन्दन-(प्रसन्न होकर अङ्गुलियों पर गिनते हुए) अरे! तीस लीटर दूध! इससे तो मैं बहुत-सा धन प्राप्त करूँगा। (नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से मैं धनवान हो जाऊँगा। (खुश होकर वह नन्दिनी की खूब सेवा करता है।)

चन्दन-(सोचकर) महीने के अन्त में ही दूध की आवश्यकता होगी। यदि मैं प्रतिदिन दूध दूहूँगा तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। इस समय क्या करूँ। ठीक है, महीने के अन्त में ही पूरी तरह से दूध दूहूँगा। अर्थात् रोज-रोज दूध दूहने से दूध रखने पर खराब हो जाएगा इसलिए महीने के अन्त में एक बार में सारा दूध दूह लूँगा।
(इस प्रकार से सात दिन बीत जाते हैं। सप्ताह के अन्त में मल्लिका वापस आ जाती है।)

मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं वापस आ गई हूँ। प्रसाद का स्वाद लीजिए। (चन्दन लड्डुओं को खाता है और बोलता है।)

चन्दन हे मल्लिका! तुम्हारी यात्रा पूरी तरह से सफल हो गई है? काशी विश्वनाथ (शिवजी) की कृपा से तुम्हें बता रहा हूँ।

मल्लिका-(आश्चर्य के साथ) ऐसा। तीर्थ यात्रा के अतिरिक्त और क्या प्रिय हो सकता है।

भावार्थ-चन्दन सोचता है कि यदि मैं रोज-रोज गाय का दूध दूहूँगा तो प्रतिदिन जो दूध होगा उसे कैसे रखूगा क्योंकि दूध तो खराब हो जाएगा। इसलिए उसने सोचा कि तीस दिन के बाद इकट्ठे गाय को दूहूँगा। इसलिए एक सप्ताह तक उसने गाय से दूध दूहा ही नहीं।

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4. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः। (द्धावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)
चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकारं प्रति चलावः। दुग्धार्थं पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (दावेव निर्गतौ)

शब्दार्थ-दातव्यम् = देना है। प्राप्स्यामः = प्राप्त करेंगे। विचारय = विचार करो। धोक्ष्यावः = दुहेंगे। चतुरतमः = बहुत ही चतुर हो। अत्युत्तमः = बहुत ही उत्तम। विहाय = छोड़कर। दावेव (द्वौ + एव) = दोनों ही। निरतौ = जुट गए। घासादिकं = घास आदि को। विषाणयोः = दोनों सींगों पर। नीराजनेन = आरती के द्वारा। पात्र प्रबन्धः = बर्तन की व्यवस्था। निर्गतौ = निकल गए।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका भी चन्दन की सलाह मान लेती है। दोनों गाय की खूब सेवा करते हैं। अन्त में दोनों तीस लीटर दूध रखने के लिए बर्तन लेने कुम्हार के घर जाते हैं।

सरलार्थ-चन्दन-ग्राम प्रमुख (सरपंच) के घर महीने के अन्त में महोत्सव होगा। हमें वहाँ पर तीस लीटर दूध देना है।

मल्लिका-परन्तु इतनी अधिक मात्रा में दूध कहाँ से प्राप्त करेंगे।

चन्दन-मल्लिका विचार करो। यदि प्रतिदिन दूध दूहकर हम उसे रखते हैं तो सुरक्षित नहीं रहेगा इसलिए दूध दूहेंगे ही नहीं। उत्सव के दिन ही सारा दूध दूह लेंगे।

मल्लिका-स्वामी! आप तो बहुत ही चतुर हैं। आपका विचार बहुत ही उत्तम है। अब दूध दूहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। इससे महीने के अन्त में अधिक-से-अधिक दूध प्राप्त करेंगे।
(दोनों ही गाय की सेवा में जुट गए। इस क्रम में घास आदि तथा गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी-कभी सींगों में तेल लगाकर तिलक लगाते हैं तथा आरती भी करते हुए गाय को प्रसन्न करते हैं।)

चन्दन हे मल्लिका! आओ। कुम्हार के पास चलें। दूध के लिए बर्तन का भी प्रबन्ध करना है। (दोनों निकल जाते हैं।)

भावार्थ-चन्दन तथा मल्लिका एक महीने के लिए नन्दिनी (गाय) की खूब सेवा करने लगे। वे उसके सींगों पर तेल लगाते थे तथा तिलक लगाकर उसकी आरती भी करते थे।

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(चतुर्थ दृश्यम्)
5. कुम्भकारः- (घटरचनायां लीनः गायति)
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम् ।
जीवनं भङ्गुरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः॥
चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।
चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

अन्वय-यथा एष मृत्तिकाघटः (तथा) सर्वं जीवनं भङ्गुरं ज्ञात्वाऽपि अहं जीविकाहेतोः घटान् रचयामि।

शब्दार्थ-जीविकाहेतोः = आजीविका के लिए। भङ्गरम् = टूटकर समाप्त होने वाला। पञ्चदश = पन्द्रह। विक्रयणाय = बेचने के लिए। पञ्चशतोत्तर = एक सौ पाँच (105)। क्षम्यताम् = क्षमा करो। स्वाभूषणम् = अपना आभूषण। आभूषण विहीना = आभूषण से रहित। यथाभिलषितान् = जितनी तुम्हारी इच्छा है। धन्योऽसि = आप धन्य हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-चन्दन तथा मल्लिका दोनों कुम्हार के पास से उधार में ही पन्द्रह घड़े लेकर आते हैं।

(चौथा दृश्य)
सरलार्थ कुम्हार-(घड़ा बनाने के कार्य में तल्लीन होकर गाता है) जैसे इस मिट्टी के घड़े का जीवन क्षण भङ्गुर है अर्थात् यह टूटकर समाप्त होने वाला है। इस बात को जानते हुए भी मैं इन घड़ों को बना रहा हूँ। वैसे मनुष्य का जीवन भी क्षणभङ्गर है।

चन्दन हे तात! नमस्कार करता हूँ। मैं पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे?

देवेश-क्यों नहीं? ये सभी बेचने के लिए ही हैं। घड़ों को ले लो और एक सौ पाँच रुपए दे दो।

चन्दन-बहुत अच्छा। परन्तु मूल्य तो दूध बेचकर ही दे सकता हूँ।

देवेश-क्षमा करो पुत्र! मूल्य के बिना तो एक घड़ा भी नहीं दूंगा।

मल्लिका-(अपना आभूषण देना चाहती है) हे तात! यदि अभी मूल्य की आवश्यकता है तो इस आभूषण को ले लो।

देवेश हे पुत्री! मैं पाप कर्म नहीं करता हूँ। मैं तुम्हें किसी भी रूप में आभूषण से रहित नहीं करना चाहता। तुम्हें जितने घड़ों की इच्छा है उतने ले लो। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य चुका देना।

दोनों हे तात! आप धन्य हैं, धन्य हैं।

भावार्थ मल्लिका व चन्दन के पास घड़े खरीदने के लिए रुपए नहीं हैं। इसलिए उधार में ही कुम्हार के यहाँ से घड़ा लेकर आते हैं। दूध बेचकर जो रकम मिलेगी उससे वे घड़ों का मूल्य चुकाएंगे।

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(पञ्चमं दृश्यम्)
6. (मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)
चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)
मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम् ? कथं त्वं रक्तरञ्जितः? ।
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।)

शब्दार्थ-रिक्ताः = खाली। नूतनघटाः = नए घड़े। अपरत्र = दूसरी तरफ। आसीनाः = बैठे हैं। मङ्गलाचरणं = किसी भी कार्य को करने से पहले किया जाने वाला पूजा-पाठ आदि शुभ काम। विधाय = करके। सत्वरम् = तेजी से। आरभस्व = आरंभ करें। पृष्ठपादेन = पिछले पैर से। जातं = हुआ हो गया। रक्तरञ्जितम् = खून से (लथपथ) सना। चीत्कारं = चिल्लाते। अन्योन्यं = आपस में एक-दूसरे को। झटिति = तुरंत। दोहनप्रक्रियाम् = दूहने की प्रक्रिया को। आरभमाणम् = आरंभ करते ही। वात्सल्येन = सन्तान को किए जाने वाले प्यार के भाव से। आकार्य = पुकारकर। दुग्धहीना एव = दूध से रहित ही।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-एक महीना पूरा होने पर चन्दन नन्दिनी की पूजा करके उसे दूध दूहने के लिए जाता है। परन्तु नन्दिनी उसे पैरों से मारकर घायल कर देती है।

(पाँचवां दृश्य)

सरलार्थ (एक महीने के बाद सन्ध्या का समय। एक तरफ खाली नए घड़े हैं। दूसरी तरफ दूध खरीदने वाले तथा अन्य गाँव के निवासी बैठे हैं।).

चन्दन-(गाय को प्रणाम करके मङ्गलाचरण करता है तथा मल्लिका को बुलाता है।) हे

मल्लिका! जल्दी आओ। मल्लिका-आती हूँ नाथ! तब तक आप गाय को दूहना शुरू करें।

चन्दन-(जब गाय के समीप जाकर दूध दूहना चाहता है, तभी गाय अपने पिछले पैर से प्रहार करती है और चन्दन बर्तन के साथ गिर जाता है।) वह कहता है हे नन्दिनी! दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? (फिर से कोशिश करता है।) (नन्दिनी पुनः पुनः पैर से प्रहार करके चन्दन को खून से लथपथ कर देती है।) हाय! मैं मारा गया। (चिल्लाते हुए गिर जाता है।) (सभी आश्चर्य के साथ चन्दन तथा एक-दूसरे को देखते हैं।)

मल्लिका-(चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तुरन्त प्रवेश करती है।) हे नाथ! क्या हो गया? तुम खून से लथपथ कैसे हो गए?

चन्दन-गाय दूध दूहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दूहने की प्रक्रिया को शुरू करने से पहले ही मुझे मार रही है। (मल्लिका गाय को स्नेह के साथ सन्तान के प्रति किए जाने वाले प्रेम भाव से बुलाती है तथा दूध दूहने की कोशिश करती है। किन्तु ग्राय दूध दिए बिना ही चली जाती है।)

भावार्थ-एक महीने के बाद पूजा करने के बाद चन्दन जब गाय को दूहने के लिए जाता है तो गाय चन्दन को अपने पैरों से प्रहार करके घायल कर देती है। क्योंकि एक महीने के बाद गाय ने दूध देना बन्द कर दिया था। प्रतिदिन न दूहे जाने के कारण उसके थनों से दूध सूख गया।

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7. मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दन – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं
न कृतम् । अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम् । सत्यमेव उक्तम्
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम् ॥
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव । मयापि पठितं यत्
सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाटिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः ॥
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।
सर्वे – दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम् । यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।
(जवनिका पतनम्)
(सर्वे मिलित्वा गायन्ति।)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ॥

अन्वय
(i) यत् अद्यतनीयं कार्यं तत् अद्य एव विधीयताम्। यस्य गतिः विपरीते सः ध्रुवं कष्टं लभते।।
(ii) कल्याण काङ्क्षिणा कार्यं सुविचार्य एव विधातव्यम् । यः मानवः एतत् अविचार्य करोति सः विषीदति।
(iii) क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च अकर्मणः तद्रसं कालः पिबति।

शब्दार्थ-पीडम् अनुभवति = पीड़ा का अनुभव करती है। शुष्कम् = सूखा। ध्रुवम् = निश्चित रूप से। मयापि = मैंने भी। कल्याण काक्षिणा = कल्याण चाहने वाले के द्वारा। विषीदति = दुखी होता है। प्रत्यक्षतया = प्रत्यक्ष रूप से। जवनिका = पर्दा। पतनम् = गिरता है। क्षिप्रम् = शीघ्रता से।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका तथा चन्दन को अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि जो कार्य जिस समय करने योग्य हो उसी समय करना चाहिए। इसी बात को प्रस्तुत नाट्यांश में वर्णित किया गया है।

सरलार्थ-मल्लिका-(चन्दन के प्रति) हे स्वामी! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया है कि हमने एक महीने के बाद गाय को दूहा है, इससे वह कष्ट महसूस कर रही है। इसलिए वह मार रही है।

चन्दन हे देवी! मुझे भी पता चल गया कि हमने पूरी तरह अनुचित कार्य किया है। पूरे महीने तक हमने गाय को नहीं दूहा। इसलिए उसका दूध सूख गया। ठीक ही कहा गया है जो कार्य आज करने योग्य है उसे आज ही करना चाहिए जो इसके विपरीत करता है उसे निश्चित रूप से कष्ट.मिलता है अर्थात् जो कार्य जिस समय करने योग्य है उसे उसी समय करना चाहिए। विलम्ब से करने पर दुःख की प्राप्ति होती है।

मल्लिका-हाँ स्वामी! ठीक ही है। मैंने भी पढ़ा है कि जो मनुष्य अपना कल्याण चाहता है उसे हर कार्य को अच्छी तरह से सोच-विचार कर करना चाहिए। इसके विपरीत जो बिना विचार किए कार्य करता है उसे दुःख की प्राप्ति होती है। कहा भी गया है कि “बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए।”
आज ही इस बात की प्रत्यक्ष रूप से अनुभूति हो गई है। सर्वे दिन के कार्य को उसी दिन ही करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चय ही कष्ट पाता है।
(पर्दा गिरता है)
(सभी मिलकर गाते हैं।)

लेने-देने के कार्य में शीघ्रता न करने वाले कामों के रस को समय पी जाता है। अर्थात् लेन-देन के विलम्ब से करने पर समय उस कार्य के महत्व को समाप्त कर देता है। विलम्ब से कार्य करने का कोई फायदा नहीं होता।

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अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) मल्लिका पूजार्थं सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म?
(ख) उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म?
(ग) कुम्भकारः घटान् किमर्थं रचयति? ।
(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वालोलपतां वर्धन्ते स्म?
(ङ) नन्दिन्याः पादप्रहारैः कः रक्तरअितः अभवत्?
उत्तराणि:
(क) धर्मयात्राम्,
(ख) त्रिशत्,
(ग) जीविकाहेतोः,
(घ) मोदकानि,
(ङ) चन्दनः।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) मल्लिका चन्दनच मासपर्यन्तं धेनोः कथम् अकुरुताम्?
(ख) कालः कस्य रसं पिबति?
(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति?
(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम्?
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य किं कारणमासीत्?
उत्तराणि:
(क) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं अत्यनुचितं अकुरुताम् यत् धेनोः दोहनं कृतम्।
(ख) कालः क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य रसं पिबति।
(ग). घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातु प्रयतते तदा कुम्भकारः वदति यत्-पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्।
(घ) मल्लिकया मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविक कारणं ज्ञातम्।
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य सम्पत्तिम् अर्जनंकारणम् अस्ति।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म।
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्वप्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत्।
(ग) मोदकानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्।
(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते।
(ङ) नन्दिनी पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति।
उत्तराणि:
(क). मल्लिका कानिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म?
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत् ?
(ग) कानिः पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्?
(घ) मल्लिका स्वपतिं कीदृशं मन्यते?
(ङ) कां पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति?

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

4. मझूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा की सहायता से रिक्त स्थानों को भरें)
गृहव्यवस्थायै, उत्पादयेत्, समर्थकः, धर्मयात्रायाः, मङ्गलकामनाम्, कल्याणकारिणः
यदा चन्दनः स्वपल्या काशीविश्वनाथं प्रति … विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं …………. कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते ………… कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् ………… भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधाः तव कृते समस्यां न ………… । एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः …………… आसीत्। उत्तराणि-यदा चन्दनः स्वपल्या काशीविश्वनाथं प्रति धर्मयात्रायाः विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं गृहव्यवस्थायै कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते मङ्गलकामनाम् कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् कल्याणकारिणः भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधाः तव कृते समस्यां न उत्पादयेत्। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः समर्थकः आसीत्।

5. घटनाक्रमानुसार लिखत
(घटनाक्रमानुसार लिखें)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति।
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
उत्तराणि:
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थ दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यंन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रा समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धु प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।

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6. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्तस्थाने लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को कौन किसे कहता है, दिए गए स्थानों में लिखिए)
उदाहरणम्                                                             कः/का                 कं/काम्
स्वामिन् ! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्।              मल्लिका              चन्दनं प्रति
(क) धन्यवाद मातुल! याम्यधुना।                                 …………………..       …………………..
(ख) त्रिसेटकमितं दुग्धम्। शोभनम् । व्यवस्था भविष्यति। …………………..        …………………..
(ग) मूल्यं तु दुग्धं विक्रीयैव दातुं शक्यते।                        …………………..      …………………..
(घ) पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि।                                 …………………..      …………………..
(ङ) देवि! मयापि ज्ञातं यदस्माभिः सर्वथानुचितं कृतम्।       …………………..       …………………..
उत्तराणि:
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7. (अ) पाठस्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धिं/सन्धिच्छेदं वा कुरुत
(पाठ के आधार पर दिए गए शब्दों की सन्धि अथवा सन्धिविच्छेद कीजिए)
(क) शिवास्ते = ……………………….. + ………………………….
(ख) मनः हरः = ……………………….. + ………………………….
(ग) सप्ताहान्ते = ……………………….. + ………………………….
(घ) नेच्छामि = ……………………….. + ………………………….
(ङ) अत्युत्तमः = ……………………….. + ………………………….
उत्तराणि:
(क) शिवास्ते = शिवः + ते
(ख) मनः हरः = मनोहरः ।
(ग) सप्ताहान्ते = सप्ताह + अन्ते
(घ) नेच्छामि = न + इच्छामि
(ङ) अत्युत्तमः = अति + उत्तमः

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(आ) पाठाधारेण अधोलिखितपदानां प्रकृति-प्रत्ययं च संयोज्य/विभज्य वा लिखत
(पाठ के आधार पर निम्नलिखित प्रकृति-प्रत्यय को जोड़िए व विभाजित करके लिखिए)
(क) करणीयम् = ……………………….
(ख) वि + क्री + ल्यप् = ……………………….
(ग) पठितम् = ……………………….
(घ) ताडय् + क्त्वा = ……………………….
(ग) दोग्धुम् = ……………………….
उत्तर:
(क) करणीयम् = कृ + अनीयर
(ख) वि + क्री + ल्यप् = विक्रय
(ग) पठितम् = पठ् + क्त
(घ) ताडय् + क्त्वा = ताऽयित्वा
(ग) दोग्धुम् = दुह् + तुमुन्

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गोदोहनम् (गाय का दूहना) Summary in Hindi

पाठ-परिचय 

प्रस्तुत पाठ नाट्य विधा पर आधारित है। इस पाठ का सम्पादन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतु!हम्’ नामक नाटक से किया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा का वर्णन है, जो धनवान् तथा सुखी होने की इच्छा से एक माह तक गाय का दूध दूहने से रुक जाता है, जिससे वह महीने के अन्त में गाय के शरीर में एकत्रित पर्याप्त दूध को एक बार में ही बेचकर सम्पत्ति इकट्ठा करने में समर्थ हो जाए।

परन्तु महीने के अन्त में जब वह गाय के पास दूध दूहने के लिए जाता है तो वह दूध की एक बूंद भी नहीं प्राप्त कर पाता। दूध पाने के बदले में वह गाय के प्रहार (मार) से खून से लथपथ हो जाता है। इसके बाद उसे समझ आता है कि प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को यदि एक महीने के बाद एक साथ किया जाए तो लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

HBSE 9th Class Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Textbook Questions and Answers

भारतीवसन्तगीतिः प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Sanskrit

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्।
(ख) कलिन्दात्मजायास्सवानीस्तीरे नतां पङ्कितमालोक्य मधुमाधवीनाम्।
(ग) मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्ज स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। वसन्त ऋतु में प्रकृति का रोम-रोम खिल उठता है। वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती की पूजा भी की जाती है। सम्भवतः इसी अवसर पर मधुर मञ्जरियों से पीली तथा सरस आम के वृक्षों पर बैठे हुए कोयलों की कूक से पूरा वातावरण शोभायन हो रहा है। अतः कवि माँ सरस्वती से प्रार्थना करता है कि आप अपनी सरस वीणा को बजाओ।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। यमुना नदी का तट बेंत की लताओं से घिरा हुआ है। नदी के जल की फुहारों से मिली हुई मन्द-मन्द बहने वाली वायु से फूलों से खिली हुई माधवी लता झुक गई है। इस कारण यमुना नदी के तट के आस-पास का दृश्य अत्यन्त रमणीय हो गया है। ऐसे मनोरम दृश्य में कवि सरस्वती माँ से वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श से कोमल पत्तों वाले वृक्षों से रमणीय स्थान में काले भ्रमरों के गुनगुनाने की मधुर आवाज गूंज रही है। यह आवाज अत्यन्त मनमोहक तथा आकर्षक है। इस आवाज को सुनकर कवि ने माँ सरस्वती से वीणा बजाने की प्रार्थना की है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

भारतीवसन्तगीतिः HBSE 9th Class Sanskrit

II. अधोलिखितान् श्लोकान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
1. वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्।
(क) सरसा रसालाः कदा लसन्ति?
(ख) वसन्ते के लसन्ति?
(ग) केषां कलापाः विलसन्ति?
उत्तराणि:
(क) सरसा रसालाः वसन्ते लसन्ति।
(ख) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति।
(ग) ललित कोकिला काकलीनां कलापाः विलसन्ति।

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे, नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ।
(क) समीरः कस्याः तीरे वहति?
(ख) केषां पंक्तिम् अवलोक्य वीणां निनादय?
(ग) मन्दं मन्दं वायुः कुत्र वहति?
उत्तराणि:
(क) समीरः कलिन्दात्मजायाः तीरे वहति।
(ख) मधुमाधवीनां नतांपङ्कितंवलोक्य वीणां निनादय।
(ग) मन्द-मन्दं वायुः कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे वहति।

3. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम् तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ।
(क) शान्तिशीलं केषां सुमं चलेत ?
(ख) तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य किं चलेत् ?
(ग) केषां किम् उच्छलेत्?
उत्तराणि:
(क) शान्तिशीलं लतानां सुमं चलेत्।
(ख) तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत्।
(ग) नदीनां कान्तसलिलं उच्छलेत्।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

HBSE 9th Class Sanskrit Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) वसन्ते काकलीनां कलापाः विलसन्ति।
(ख) कविः वीणापाणिं वीणां निनादयितुम् कथयति।
(ग) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति।।
(घ) कलिन्दात्मजायाः तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति।
(ङ) वीणाम् आकर्ण्य समं चलेत्।
उत्तराणि:
(क) कदा काकलीनां कलापाः विलसन्ति?
(ख) कविः वीणापाणिं किं कथयति?
(ग) वसन्ते सरसाः के लसन्ति?
(घ) कस्या तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति?
(ङ) वीणाम् आकर्ण्य किम् चलेत् ?

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IV. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर को चुनकर लिखिए)
1. वसन्ते सरसाः के लसन्ति?
(i) विशालाः
(ii) करालाः
(iii) रसालाः
(iv) मसालाः

2. कस्याः तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति?
(i) यमुनायाः
(ii) गङ्गायाः
(iii) सरस्वत्याः
(iv) नर्मदायाः
उत्तरम्:
(i) यमुनायाः

3. सरस्वती ललित-नीति-लीनां किं मूद्र गाय?
(i) नीतिम्
(ii) गीतिम्
(iii) ततिम्
(iv) पंक्तिम्
उत्तरम्:
(ii) गीतिम्

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4. केषां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य वीणां निनादय?
(i) सखीनाम्
(ii) कलीनाम्
(iii) पतीनाम्
(iv) अलीनाम्
उत्तरम्:
(iv) अलीनाम्

5. वीणाम् आकर्ण्य शान्तिशीलं किं चलेत?
(i) सुमं
(ii) फलं
(iii) वनं
(iv) जनं
उत्तरम्:
(i) सुमं

6. ‘तवाकर्ण्य’ पदे कः सन्धिविच्छेदः?
(i) तवा + कर्ण्य
(ii) त + वाकर्ण्य
(iii) तव + आकर्ण्य
(iv) तवा + वाकर्ण्य
उत्तरम्:
(iii) तव + आकर्ण्य

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7. ‘मलिनामलीनाम्’ इति पदे कः समासः?
(i) तत्पुरुषः
(ii) कर्मधारयः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(ii) कर्मधारयः

8. ‘सरस्वती’ अस्य पर्यायपदं चिनुत
(i) वाणी
(ii) वाणि
(iii) वाणीपाणी
(iv) वणी
उत्तरम्:
(i) वाणी

9. ‘आलोक्य’ इति पदे कः प्रत्ययः?
(i) क्त् + ल्यप्
(ii) क्त्वा + ल्यप्
(iii)शत् + ल्यप्
(iv) त्व + ल्यप्
उत्तरम्:
(i) क्त्वा + ल्यप्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

10. ‘वसन्त’ इति पदस्य सप्तमी एकवचने किं रूपं स्यात?
(i) वसन्ताम्
(ii) वसन्ति
(iii) वसन्ते
(iv) वासन्ते
उत्तरम्:
(iii) वसन्ते

परियोजनाकार्यम् (परियोजना कार्य)

पाठेऽस्मिन वीणायाः चर्चा अस्ति। अन्येषां पञ्चवाद्ययन्त्राणां चित्रं रचयित्वा संकलय्य वा तेषां नामानि लिखत।
उत्तराणि-वीणा के अतिरिक्त पाँच वाद्ययन्त्रों के नाम
(1) ढोल = पटहः, ढक्का।
(2) ढोलकी = लघुपटहः ।
(3) हारमोनियम = मधुरध्वनिष्कम्।
(4) तबला = तबलः।
(5) मंजीरा = मञ्जूरम्।

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योग्यताविस्तारः

अन्वय और हिन्दी भावार्थ
अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय।

अन्वय-अये वाणि! नवीनाम् वीणाम् निनादय, ललित-नीति-लीनाम् गीतिं मृदु गाय।

भावार्थ-हिन्दू संस्कृति के अनुसार वसन्त पञ्चमी का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ सरस्वती की आराधना एवं पूजा की जाती है। कवि ने माँ सरस्वती से यह कामना की है कि आपकी वीणा की ध्वनि से जनमानस के लिए सुन्दर नीतियों का निर्माण हो।

इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललित-कोकिलाकाकलीनां कलापाः (विलसन्ति)। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय ।

अन्वयइह वसन्ते मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत सरसाः रसालाः मालाः, ललित-काकलीनाम्-कोकिला कलापाः लसन्ति। निनादय! निनादय।
भावार्थ-इस वसन्त ऋतु में आम के वृक्षों की माला शोभा दे रही है। आम की मञ्जरियों एवं कोयलों की कूक से प्राकृतिक वातावरण आकर्षक एवं मनोरम बन जाए।

कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति) माधुमाधवीनां नतांपङ्क्तिम् अवलोक्य। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे सनीरे समीरे मन्द-मन्दं वहति नतां मधुमाधवीनाम् पंक्तिम् आलोक्य निनादय।।

भावार्थ कल-कल की ध्वनि करती हुई बहने वाली यमुना नदी के तट पर फूलों से खिली माधवी लता का दृश्य कवि के मन को मोह रहा है। ऐसे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य में कवि वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलय-मारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय-मलयमारुतोच्चुम्बिते ललित-पल्लवे पादपे, पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलिनाम् अलीनाम् स्वनन्तीं ततिं प्रेक्ष्य। निनादय।

भावार्थ-चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श वाले वृक्षों तथा फूलों के समूह पर बैठे भ्रमरों की पंक्ति को देखकर सरस्वती से वीणा बजाने की बात कही गई है।

तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय-तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य नितान्तं शान्तिशीलम् लतानां सुमं चलेत्, नदीनां कान्त सलिलं सलीलम् उच्छलेत्। निनादय।

भावार्थ माँ सरस्वती की वीणा की ध्वनि से न खिलने वाले फूल भी खिल उठे तथा नदियों में स्वच्छ जल प्रवाहित होने लगे, ऐसी कामना कवि द्वारा की गई है।

प्रस्तुत गीत के समानान्तर
गीतवीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र व अमृत मन्त्र नव,
भारत में भर दे। वीणावादिनि वर दे

हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिये प्रार्थना की गई है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की रचना “भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती” भी ऐसे ही भावों से ओतप्रोत है।

पं० जानकी वल्लभ शास्त्री:

पं० जानकी वल्लभ शास्त्री हिन्दी के छायावादी युग के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये संस्कृत के रचनाकार एवं उत्कृष्ट अध्येता रहे। शास्त्री जी की बाल्यकाल में ही काव्य रचना में प्रवृत्ति बन गई थी। अपनी किशोरावस्था में ही इन्हें संस्कृत कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। उन्नीस वर्ष की आयु में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ।

शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं का प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गजल, श्लोक आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। इनकी संस्कृत कविताओं में संगीतात्मकता और लय की विशेषता ने लोगों पर अप्रतिम प्रभाव डाला।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

HBSE 9th Class Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Important Questions and Answers

1. निनादय नवीनामये वाणि!
वीणाम् मृदं गाय गीति ललित-नीति-लीनाम्।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥1॥

अन्वय-अये वाणि! नवीनाम् वीणाम् निनादय, ललित-नीति-लीनाम् गीतिं मृदुं गाय। इह वसन्ते मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत सरसाः रसालाः मालाः, ललित-काकलीनाम्-कोकिला कलापाः लसन्ति। निनादय।

शब्दार्थ-निनादय = बजाओ। अये वाणि = हे वाणी की देवी सरस्वती। ललित = मनोहर, सुन्दर। नीति-लीनाम् = नीतियों से पूर्ण । मूद्रं = कोमल । गाय = गान करो। मञ्जरी = आम्र मञ्जरी। पिञ्जरी-भूत-मालाः = पीले वर्ण से युक्त पंक्तियाँ । लसन्तीह (लसन्ति + इह) = सुशोभित हो रही हैं, यहाँ । सरसाः = मधुर। रसालाः = आम के वृक्ष । काकली = कोयल की कूक। कोकिल = कोयल । कलापाः = समूह।।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गीत में माँ सरस्वती से वीणा बजाने की प्रार्थना की गई है, जिसकी ध्वनि से प्रकृति का रोम-रोम खिल उठे।

सरलार्थ-हे माँ सरस्वती! नवीन वीणा को बजाओ और सुन्दर नीतियों से पूर्ण गीत का मधुर गान करो। इस वसन्त ऋतु में मधुर मञ्जरियों से पीली तथा सरस आम के वृक्षों की पंक्तियाँ एवं आकर्षक कूक वाली कोयलों के समूह सुशोभित हो रहे हैं।

भावार्थ-हिन्दू संस्कृति के अनुसार वसन्त पञ्चमी का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ सरस्वती की आराधना एवं पूजा की जाती है। कवि ने माँ सरस्वती से यह कामना की है कि आपकी वीणा की ध्वनि से जनमानस के लिए सुन्दर नीतियों का निर्माण हो। इस वसन्त ऋतु में आम की मञ्जरियों एवं कोयलों की कूक से प्राकृतिक वातावरण आकर्षक एवं मनोरम बन जाए।

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ॥2॥

अन्वय-कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे सनीरे समीरे मन्द-मन्दं वहति नतां मधुमाधवीनाम् पंक्तिम् आलोक्य निनादय।

शब्दार्थ-कलिन्दात्मजायाः = कलिन्दी की पुत्री यमुना के। सवानीरतीरे = बेंत की लताओं से युक्त तट पर। सनीरे = जल की बिन्दुओं से युक्त। समीरे = वायु के। वहति = बहती है। नतां = झुकी। आलोक्य = देखकर। मधुमाधवीनाम् = मधुर माधवी लताओं पर।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बेंत की लताओं से घिरे यमुना नदी के तट पर वीणा बजाने की प्रार्थना की गई है।

सरलार्थ-यमुना नदी के बेंत की लताओं से घिरे हुए तट पर जल की बिन्दुओं से युक्त वायु के मन्द-मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधु-माधवी लता को देखकर हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-कल-कल की ध्वनि करती हुई बहने वाली यमुना नदी के तट पर फूलों से खिली माधवी लता का दृश्य कवि के मन को मोह रहा है। ऐसे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य में कवि वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

3. ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुजे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुजे,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ॥3॥

अन्वय-मलयमारुतोच्चुम्बिते ललित-पल्लवे पादपे, पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलिनाम् अलीनाम् स्वनन्तीं ततिं प्रेक्ष्य। निनादय।

शब्दार्थ पादपे = पौधों पर। पुष्पपुजे = फूलों के समूह पर। मलय = चन्दन। मारुतोच्चुम्बिते = वायु से स्पर्श किए हुए। मञ्जुकुजे = सुन्दर लताओं से आच्छादित स्थान। स्वनन्ती = ध्वनि करती हुई। ततिं = पंक्ति, समूह को। प्रेक्ष्य = देखकर । मलिनाम् = काले रंग के। अलीनाम् = भ्रमरों की।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-फूलों पर बैठे हुए भ्रमरों की पंक्ति को देखकर माँ सरस्वती से वीणा बजाने के लिए कहा गया है।

सरलार्थ-चन्दन वृक्ष की सुगन्धित वायु के स्पर्श से मन को आकर्षित करने वाले पत्तों वाले वृक्षों पर, पुष्पों के समूह पर तथा सुन्दर लताओं से आच्छरदित स्थान पर काले वर्ण वाले भ्रमरों की गुजार को देखकर हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श वाले वृक्षों तथा फूलों के समूह पर बैठे भ्रमरों की पंक्ति को देखकर सरस्वती से वीणा बजाने की बात कही गई है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

4. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ॥4॥

अन्वय-तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य नितान्तं शान्तिशीलम् लतानां सुमं चलेत्, नदीनां कान्त सलिलं सलीलम् उच्छलेत्। निनादय।

शब्दार्थ-लतानाम् = लताओं के। नितान्तम् = अत्यधिक। सुमं = पुष्प । शान्तिशीलम् = शान्ति से युक्त। कान्तसलिलं = स्वच्छ जल । उच्छलेत् = उछल पड़े। अदीनाम् = ओजस्विनी। आकर्ण्य = सुनकर। सलीलम् = क्रीड़ा करता हुआ, लीलापूर्वक।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में सरस्वती की वीणा को सुनकर फूलों के खिलने तथा नदियों के जल के बहने के विषय में बताया गया है

सरलार्थ हे सरस्वती! तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के अत्यधिक शान्ति से युक्त फूल खिल उठे और नदियों का स्वच्छ जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े। हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-माँ सरस्वती की वीणा की ध्वनि से न खिलने वाले फूल भी खिल उठे तथा नदियों में स्वच्छ जल प्रवाहित होने लगे, ऐसी कामना कवि द्वारा की गई है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) कविः कां सम्बोधयति?
(ख) कविः वाणी कां वादयितुं प्रार्थयति?
(ग) कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति।
(घ) गीति कथं गातुं कथयति?
(ङ) सरसाः रसालाः कदा लसन्ति?
उत्तराणि:
(क) वाणी,
(ख) वीणां,
(ग) नवीनामये,
(घ) मृदुं,
(ङ) वसन्ते।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत
(पूर्णवाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) कविः वीणां किं कथयति?
(ख) वसन्ते किं भवति?
(ग) सलिलं तव वीणामाकर्ण्य कथम् उच्छलेत?
(घ) कविः भगवती भारती कस्याः तीरे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति?
उत्तराणि:
(क) कविः वाणी नवीनां वीणां निनादयितुं कथयति।
(ख) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति काकलीनां कलापाः च विलसन्ति।
(ग) तव वीणाम् आकर्ण्य कान्तसलिलं उच्छलेत्।
(घ) कविः भगवतीं भारती यमुनायाः तीरे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति।

3. ‘क’ स्तम्भे पदानि, ‘ख’ स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि। तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत
(‘क’ स्तम्भ में शब्द व ‘ख’ स्तम्भ में उनके पर्यायवाची शब्द दिए गए हैं। उन्हें चुनकर शब्दों के सामने लिखिए)
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) सरस्वती – तीरे
(ख) आम्रम् – अलीनाम्
(ग) पवनः – समीरः
(घ) तटे – वाणी
(ङ) भ्रमराणाम् – रसालः
उत्तराणि:
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) सरस्वती – वाणी
(ख) आम्रम् – रसालः
(ग) पवनः – समीरः
(घ) तटे – तीरः
(ङ) भ्रमराणाम् – अलीनाम्

4. अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य संस्कृतभाषया वाक्यरचनां कुरुत
(निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके संस्कृत भाषा में वाक्य रचना कीजिए)
(क) निनादय
(ख) मन्दमन्दम्
(ग) मारुतः
(घ) सलिलम्
(ङ) सुमनः
उत्तराणि:
(क) निनादय हे भारती! नवीनां वीणां निनादय।
(ख) मन्दमन्दम् अद्य पवनः मन्द-मन्दं वहति।
(ग) मारुतः-अद्य मारुतः मन्द-मन्दं वहति।
(घ) सलिलम्-ग्रीष्मे नद्याः सलिलं शान्तं भवति।
(ङ) सुमनः-सुमनः सुगन्धितं भवति।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

5. प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(प्रथम श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए)
उत्तराणि-भावार्थ-वसन्त ऋतु में मधुर मञ्जरियों से पीले आम के वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं। उन वृक्षों पर आकर्षक कूक वाले कोयलों के समूह रमणीय प्रतीत हो रहे हैं। उल्लास से परिपूर्ण इस दृश्य में कवि ने सरस्वती माँ से वीणा बजाने की प्रार्थना की है।

6. अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए)
(क) कठोरम्
(ख) कटु
(ग) शीघ्रम्
(घ) प्राचीनम्
(ङ) नीरसः
उत्तराणि:
शब्द – विलोम शब्द
(क) कठोरम् = मृदुम्
(ख) कटु = मधुरं
(ग) शीघ्रम् = मन्दमन्दम्
(घ) प्राचीनम् = सरसः

भारतीवसन्तगीतिः (वाणी (सरस्वती) का वसन्त गीत) Summary in Hindi

भारतीवसन्तगीतिः पाठ-परिचय

प्रस्तुत गीत आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रख्यात कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना ‘काकली’ नामक गीत संग्रह से संकलित है। शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं को प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गज़ल, श्लोक आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। उन्नीस वर्ष की आयु में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ था।

प्रस्तुत गीत में वाणी की देवी माँ सरस्वती की वन्दना करते हुए यह कामना की गई है कि हे माँ सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिसकी ध्वनि से मधुर मञ्जरियों से पीले पंक्ति वाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुजार और नदियों का कल-कल की ध्वनि करता हुआ जल, वसन्त ऋतु में मनमोहक हो उठे। स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गई यह गीतिका जनमानस के लिए नवीन चेतना का आह्वान करती है। इसके साथ ही ऐसे वीणा स्वर की परिकल्पना करती हैं जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जन-समुदाय को प्रेरित करे।

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

HBSE 9th Class Sanskrit स्वर्णकाकः Textbook Questions and Answers

स्वर्णकाकः HBSE 9th Class Sanskrit
I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत

(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे।
(ख) ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ग) कथितमियदेव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्।
(घ) लुब्धया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। रोती हुई निर्धन बालिका से कौए ने कहा कि तुम कल प्रातःकाल पीपल के वृक्ष के पास आना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। कौए की इस बात को सुनकर बालिका के मन में अपार खुशी हुई। उस खुशी के परिणामस्वरूप बालिका सारी रात सो न सकी। क्योंकि अधिक खुशी अथवा गम से मनुष्य अपने स्वाभाविक कार्य को भी नहीं कर पाते हैं। इसी के चलते बालिका सो न सकी।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। जब निर्धन बालिका कौए के बुलाने पर उसके महल में गई तो उसने उससे पूछा कि तुम सोने, चाँदी तथा ताँबे की थालियों में से किस थाली में भोजन करोगी तो बालिका ने कहा कि मैं निर्धन वृद्धा की बेटी हूँ इसलिए मैं ताँबे की थाली में ही भोजन करूँगी। इस कथन के माध्यम से बालिका ने अपने परिवेश एवं स्वभाव का परिचय दिया है। वह बालिका निर्धन परिवार की रहने वाली है। इसलिए उसके घर में सोने, चाँदी का प्रयोग ही नहीं होता इसलिए वह ताँबे की थाली में खाना खाने के लिए कहती है।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। कौआ निर्धन बालिका का आदर-सत्कार करके उसे घर भेजने लगा तो उस बालिका के सामने उसने तीन सन्दूक रख दिए। बालिका ने तीनों सन्दूकों में से जो सबसे छोटी सन्दूक थी उसको ही उठाया और कहा कि-इतना ही है मेरे चावलों का मूल्य! इस कथन के माध्यम से कवि ने बालिका की सन्तोषी प्रवृत्ति का परिचय दिया है।

(घ) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ से संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ में से उद्धृत है। जब लोभी वृद्ध स्त्री की पुत्री स्वर्ण कौए के पास से आने लगी तो उसने सबसे बड़ा सन्दूक उठाया। यहीं पर उसके लोभी व्यक्तित्व का पता चल गया। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उस सन्दूक को खोला उसमें से भयंकर साँप निकला। इस प्रकार उस लालची लड़की को लालच का फल मिल गया। कहाँ तो वह इस उम्मीद से गई थी कि निर्धन बालिका की तरह मुझे भी बहुमूल्य हीरे मिल जाएँगे। परन्तु उसके मन से लोभ की भावना नहीं गई। इसलिए उसे हीरों के स्थान पर भयंकर साँप मिला।

स्वर्णकाकः प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Sanskrit

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

II. अधोलिखितान् गद्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याः च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्-“सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।” किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् अगच्छत्।
(क) माता स्थाल्यां कान् निक्षिप्य आदिदेश?
(ख) वृद्धा कुत्र न्यवसत्?
(ग) ‘आक्षिप्य’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) तस्याः दुहिता कीदृशी आसीत्?
(ङ) माता पुत्रीम् किम् आदिदेश?
उत्तराणि:
(क) माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य आदिदेश।
(ख) वृद्धा कस्मिंश्चिद् ग्रामे न्यवसत्।
(ग) अत्र ‘ल्यप्’ प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) तस्याः दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्।
(ङ) माता पुत्रीम् आदिदेश-सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

(2) नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-“तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, मा शुचः।
(क) काकः कीदृशः अस्ति?
(ख) तं हसन्तं विलोक्य का रोदितुमारब्धाः?
(ग) सा किं प्रार्थयत्?
(घ) तया पूर्व कं न दृष्टः?
(ङ) मा शुचः इति कः उवाच?
उत्तराणि:
(क) काकः स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः अस्ति।
(ख) तं हसन्तं विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।
(ग) सा प्रार्थयत् यत्-‘तण्डुलान् मा भक्षय’ ।
(घ) तया पूर्वं एतादृशः स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः काकं न दृष्टः।
(ङ) मा शुचः इति स्वर्णपक्षः काकः उवाच।

स्वर्णकाक HBSE 9th Class Sanskrit

3. चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः अवदत्- “पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम् उत ताम्रस्थाल्याम्”? बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एव अब-“निर्धना भोजनं करिष्यामि।”
(क) चित्रविचित्रवस्तूनि कुत्र सज्जितानि?
(ख) सज्जितानि कानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता?
(ग) ‘दृष्ट्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः किम् उवाच?
(ङ) बालिका किं अवदत्?
उत्तराणि:
(क) चित्रविचित्रवस्तूनि भवने सज्जितानि।
(ख) चित्रविचित्रवस्तूनि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता।
(ग) ‘दृष्ट्वा’ अत्र क्त्वा प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
(ङ) बालिका अवदत्-अहं निर्धना ताम्रस्थाल्याम् एवं भोजनं करिष्यामि।

स्वर्णकाकः पाठ प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Sanskrit

4. तस्मिन्नेव ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। तस्या अपि एका पुत्री आसीत्। ईjया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्।
(क) स्वर्णकाकस्य रहस्य का ज्ञातवती?
(ख) अपरा लुब्धा वृद्धा कुत्र न्यवसत्?
(ग) ‘सूर्यातपे’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरु।
(घ) ईर्ष्णया सा किम् अभिज्ञातवती?
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वसुतां कस्मिन् कार्ये नियुक्ता?
उत्तराणि:
(क) स्वर्णकाकस्य रहस्यं लुब्धायाः वृद्धायाः पुत्री ज्ञातवती।
(ख) तस्मिन्न एव ग्रामे अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत् ।
(ग) सूर्य + आतपे।
(घ) ईjया सा स्वर्णकाकस्य रहस्यम् अभिज्ञातवती।
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वसुतां सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य रक्षार्थं नियुक्ता।

HBSE 9th Class Sanskrit Chapter 2 स्वर्णकाकः

5. लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत् तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। तदनन्तर सा लोभं पर्यत्यजत्।
(क) सा मञ्जूषायां कः विलोकितः?
(ख) लोभाविष्टा सा किं गृहीतवती?
(ग) ‘बृहत्तमां’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(घ) मञ्जूषायां कः आसीत्?
(ङ) लुब्धया बालिकया किं प्राप्तम्?
उत्तराणि:
(क) सा मञ्जूषायां भीषणः कृष्णसर्पः विलोकितः।
(ख) लोभाविष्टा सां बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती।
(ग) अत्र ‘तमप्’ प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(घ) मञ्जूषायां कृष्णसर्पः आसीत्।
(ङ) लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) तस्याः दुहिता विनम्रा आसीत्।
(ख) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(ग) बालिका स्वर्णसोपानेन भवनम् आससाद।
(घ) बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
(ङ) तस्यां कृष्णसर्पः विलोकितः।
उत्तराणि:
(क) तस्याः दुहिता कीदृशी आसीत् ?
(ख) अहं तुभ्यं किं दास्यामि?
(ग) बालिका केन भवनम् आससाद?
(घ) बालिकया कस्य फलं प्राप्तम्?
(ङ) तस्यां कः विलोकितः?

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ)
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्राम् अपि न लेभे।
(ख) सा पुत्रीम् आदिदेशयत् सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।
(ग) काकः प्रोवाच मा शुचः अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(घ) कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा न्यवसत्।
(ङ) स्वर्णकाकं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय।
उत्तराणि:
(घ) कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा न्यवसत् ।
(ख) सा पुत्रीम् आदिदेशयत् सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।
(ङ) स्वर्णकाकं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय।
(ग) काकः प्रोवाच मा शुचः अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
(क) प्रहर्षिता बालिका निद्राम् अपि न लेभे।

(ब)
(क) प्रबुद्धः काकः तेन स्वर्णगवाक्षात् कथितं हहो बाले! त्वमागता।
(ख) स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्।
(ग) वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं विलोक्य सा आश्चर्यचकिता सजाता।
(घ) बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एवं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ङ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
उत्तराणि:
(ग) वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं विलोक्य सा आश्चर्यचकिता सञ्जाता।
(क) प्रबुद्धः काकः तेन स्वर्णगवाक्षात् कथितं हंहो बाले! त्वमागता।
(ङ) श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्।
(घ) बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एवं निर्धना भोजनं करिष्यामि।
(ख) स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्।

(स)
(क) यावत् सा मञ्जूषाम् उद्घाटयति तावत् तस्यां कृष्ण सर्पः विलोकितः ।
(ख) तस्मिन् ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धाः न्यवसत् ।
(ग) भोजनानन्तरं स्वर्णकाके तत्पुरः तिस्रः मञ्जूषाः समुक्षिप्ता।
(घ) स्वर्णकाकस्य रहस्यं ज्ञात्वा तयापि स्वसुतां तण्डुलानां रक्षार्थं नियुक्ता।
(ङ) स्वर्णकाकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत।
उत्तराणि:
(ख) तस्मिन् ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धाः न्यवसतु।
(घ) स्वर्णकाकस्य रहस्यं ज्ञात्वा तयापि स्वसुतां तण्डुलानां रक्षार्थं नियुक्ता।
(ङ) स्वर्णकाकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत।
(ग) भोजनानन्तरं स्वर्णकाके तत्पुरः तिस्रः मञ्जूषाः समुक्षिप्ता।
(क) यावत् सा मञ्जूषाम् उद्घाटयति तावत् तस्यां कृष्ण सर्पः विलोकितः।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

v. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. माता कान् स्थाल्यां निक्षिप्य पुत्रीम् आदिदेश?
(i) तण्डुलान्
(ii) फलान्
(iii) धनान्
(iv) अन्नान्
उत्तरम्
(i) तण्डुलान्

2. स्वर्णकाकस्य प्रासादः कुत्र आसीत?
(i) वृक्षस्यमध्ये
(ii) वृक्षस्योऽधः
(iii) वृक्षस्यऽन्ते
(iv) वृक्षस्योपरि
उत्तरम्:
(iv) वृक्षस्योपरि

3. स्वर्णकाकेन कस्यां भोजनं परिवेषितम्?
(i) रजतस्थाल्याम्
(ii) लौहस्थाल्याम्
(iii) स्वर्णस्थाल्याम्
(iv) धातु स्थाल्याम्
उत्तरम्:
(iii) स्वर्णस्थाल्याम्
(ii) द्विगुः
4. मञ्जूषायां महार्हाणि कानि विलोक्य सा प्रहर्षिता?
(i) रजतानि
(ii) धनानि
(iii) स्व र्णानि
(iv) हीरकाणि
उत्तरम्:
(iv) हीरकाणि

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

5. लुब्धया बालिका कस्य फलं प्राप्तम्?
(i) परिश्रमस्य
(ii) तण्डुलस्य
(iii) लोभस्य
(iv) काकस्य
उत्तरम्
(iii) लोभस्य

6. ‘इत्युक्त्वा’ पदे कः सन्धिविच्छेदः अस्ति?
(i) इती + उक्त्वा
(ii) इति + उक्त्वा
(iii) इति + क्त्वा
(iv) इति + त्वा
उत्तरम्:
(ii) इति + उक्त्वा

7. ‘वृक्षस्य + उपरि’ अत्र किं सन्धिपदम्?
(i) वृक्षस्योपरि
(ii) वृक्षोपरि
(iii) वृक्षउपरि
(iv) वक्षस्योपरि
उत्तरम्:
(i) वृक्षस्योपरि

8. ‘स्वर्णकाकः’ इति पदे कः समासः?
(i) कर्मधारयः
(iii) तत्पुरुषः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(iii) तत्पुरुषः

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

9. ‘सूर्यास्तः’ इति पदस्य विलोम पदं लिखत
(i) सुर्योदयः
(ii) सूर्योदयः
(iii) सर्वोदयः
(iv) सूयोदयः
उत्तरम्:
(ii) सूर्योदयः

10. ‘हसन्’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययम् अस्ति
(i) हस् + शतृ
(ii) हन् + शतृ
(iii) हस् + क्त
(iv) हन् + ठक्
उत्तरम्:
(i) हस् + शतृ

11. ‘पर्वत’ शब्दस्य पञ्चमी एकवचने किं रूपं स्यात्?
(i) पर्वतस्य
(ii) पर्वतात्
(iii) पर्वते
(iv) पर्वतः
उत्तरम्:
(i) पर्वतात्

12. ‘अधः’ इति पदस्य विलोमपदं किम्?
(i) उपरि
(ii) ऊपरि
(iii) अपरि
(iv) ओपरि
उत्तरम्:
(i) उपरि

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

योग्यताविस्तारः

स्वर्णकाकः पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम’ नामक कथा-संग्रह से लिया गया है जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। यह वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ-साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

लेखक परिचय इस कथा के लेखक पद्म शास्त्री हैं। ये साहित्यायुर्वेदाचार्य, काव्यतीर्थ, साहित्यरत्न, शिक्षाशास्त्री और रसियन डिप्लोमा आदि उपाधियों से भूषित हैं। इन्हें विद्याभूषण व आशुकवि मानद उपाधियाँ भी प्राप्त हैं। इन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार समिति और राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा स्वर्णपदक प्राप्त है। इनकी अनेक रचनाएँ हैं, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं
1. सिनेमाशतकम्
2. स्वराज्यम् खण्डकाव्यम्
3. लेनिनामृतम् महाकाव्यम्
4. मदीया सोवियत यात्रा
5. पद्यपञ्चतन्त्रम्
6. बङ्गलादेशविजयः
7. लोकतन्त्रविजयः
8. विश्वकथाशतकम्
9. चायशतकम्
10. महावीरचरितामृतम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

1. भाषिक-विस्तार-“किसी भी काम को करके” इस अर्थ में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- पठित्वा पठ् + क्त्वा = पढ़कर
गत्वा-गम् + क्त्वा = जाकर
ख़ादित्वा खाद् + क्त्वा = खाकर

इसी अर्थ में यदि धातु (क्रिया) से पहले उपसर्ग होता है तो ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग होता है। धातु से पूर्व उपसर्ग होने की स्थिति में कभी भी ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग नहीं हो सकता और उपसर्ग न होने की स्थिति में कभी भी ‘ल्यप् प्रत्यय नहीं हो सकता है।

यथा- उप + गम् + ल्यप् = उपगम्य
सम् + पूज् + ल्यप् = सम्पूज्य
वि + लोकृ (लोक) + ल्यप् = विलोक्य
आ + दा + ल्यप् = आदाय .
निर् + गम् + ल्यप् = निर्गत्य

2. प्रश्नवाचक शब्दों को अनिश्चयवाचक बनाने के लिए चित् और चन निपातों का प्रयोग किया जाता है। ये निपात जब सर्वनाम पदों के साथ लगते हैं तो सर्वनाम पद होते हैं और जब अव्यय पदों के साथ प्रयुक्त होते हैं तो अव्यय होते हैं।

यथा- कः = कौन
कः + चन + कश्चन = कोई
कः + चित् + कश्चित् = कोई
के + चन + केचन कोई (बहवचन में)
के + चित् + केचित् (बहुवचन में)
का + चन + काचन (कोई स्त्री)
का + चित् + काचित् ( कोई स्त्री)
काः + चन + काश्चन (कुछ स्त्रियाँ बहुवचन)
काः + चित् + काश्चित् (कुछ स्त्रियाँ बहुवचन में)

किम् शब्द के सभी वचनों, लिंगों व सभी विभक्तियों में चित् और चन का प्रयोग किया जा सकता है और उसे अनिश्चयवाचक बनाया जा सकता है।
जैसे
1. किज्चित् – प्रथमा में
2. केनचित् – तृतीया में
3. केषाज्चित् (केषाम् + चित) – षष्ठी में
4. कस्मिंश्चित् – सप्तमी में
5. कस्याज्चित् – सप्तमी (स्त्रीलिङ्ग में)

इसी तरह चित् के स्थान पर चन का प्रयोग होता है। चित् और चन जब अव्ययपदों में लग जाते हैं तो वे अव्यय हो जाते हैं। जैसे-
क्वचित् – क्वचन
कदाचित् – कदाचन

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3. संस्कृत में एक से चतुर (चार) तक संख्यावाची शब्द पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग में अलग-अलग रूपों में होते हैं पर पञ्च (पाँच) से उनका रूप सभी लिड्रों में एक-सा होता है।

पुंलिख्णस्थीलिक्रनपुंसकलिड्न
एक:एकाएकम्
द्वैद्वेद्वे
त्रयःतिस्र:त्रीणि
चत्वारःचतस्र:चत्वारि

पुंल्लिड्

एकबचनद्विवचनबहुबचन
गच्ठनगच्छन्तौगच्छन्तः
गच्छन्तम्गच्छन्तौगच्छतः
गच्छतागच्छद्भ्याम्गच्दिः
गच्छतेगच्छद्भ्याम्गच्ठदूभ्य:
गच्छतःगच्छद्भ्याम्गच्छदूभ्य:
गच्छतःगच्छतो:गच्छताम्
गच्छतिगच्छतो:गच्छत्सु

स्त्रीलिङ्

गच्छन्तीगच्छन्त्यौगच्छन्त्यः
गच्छन्तीम्गच्छन्त्यौगच्छन्ती:
गच्छन्त्यागच्छन्तीभ्याम्गच्छन्तीभिः
गच्छन्तयैगच्छन्तीभ्याम्गच्छन्तीभ्यः
गच्छन्त्या:गच्छन्तीभ्याम्गच्छन्तीभ्यः
गच्छन्त्या:गच्छन्त्यो:गच्छन्तीनाम्
गच्छन्त्याम्गच्छन्त्यो:गन्छन्तीषु

नपुंसक लिक्ग में

गच्छत्गच्छतीगच्छन्ती
गच्छत्गच्छतीगच्छन्ती

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शेष पुंल्लिङ्गवत्
4. तरप् और तमप् प्रत्ययों में तर और तम शेष बचता है।
यथा- बलवत् + तरप् – बलवत्तरं
लघु + तमप् – लघुतम
ये तुलनावाची प्रत्यय हैं। इनके उदाहरण देखें

लघुलघुतरलघुतम
महतमहत्तरमहत्तम
श्रेष्ठश्रेष्ठतरश्रेष्ठतम
मधुरमधुरतरमधुरतम
गुरुगुरुतरगुरुतम
तीव्रतीव्रतरतीव्रतम
प्रियप्रियतरप्रियतम

अध्येतव्यः ग्रन्थः-विश्वकथाशतकम् (भागद्वयम्, 1987, 1988 पद्म शास्त्री, देवनागर प्रकाशन, जयपुर)

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HBSE 9th Class Sanskrit स्वर्णकाकः Important Questions and Answers

स्वर्णकाकः गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याः च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्-“सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो . रक्ष।” किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् अगच्छत।

नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चु स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्- “तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, “मा शुचः। सूर्योदयात्याग ग्रामाबहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वया आगन्तव्यम्। अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।” प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे।

शब्दार्थ निर्धना = गरीब। न्यवसत् (नि + अवसत्) = निवास करती थी। तस्याः च एका दुहिता = उसकी एक पुत्री। विनम्रा = विनम्र। मनोहरा = सुन्दर, आकर्षक। स्थाल्यां = थाली में। तण्डुलान् = चावलों की। आदिशत् = आज्ञा दी। खगेभ्यो = पक्षियों से। किञ्चित् कालादनन्तरम् (किञ्चिद् + कालात् + अनन्तर) = थोड़ी देर के बाद। विचित्रः = अनोखा। समुड्डीय = उड़कर। नैतादृशः = ऐसा। स्वर्णपक्षो = सोने के पंख वाला। रजतचञ्चुः = चाँदी की चोंच वाला। स्वर्णकाकस्तया = सोने का कौआ। खादन्तं = खाता हुआ। हसन्तञ्च = हँसता हुआ। विलोक्य = देखकर। रोदितमारब्धा = रोना। निवारयन्ती = रोकती हुई। प्रार्थयत् = प्रार्थना की। मा भक्षय = मत खाओ। मदीया = मेरी। प्रोवाच = कहा। मा शुचः = दुःख मत करो। सूर्योदयात् = सूर्योदय से। बहिः = बाहर। पिप्पलवृक्षमनु = पीपल का पेड़। प्रहर्षिता = प्रसन्न। निद्रामपि न लेभे = नींद भी नहीं आई।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बालिका द्वारा सूखते हुए चावल की रक्षा एवं कौवे द्वारा बालिका को अपने निवास स्थान पर बुलाने की कथा का वर्णन किया गया है।

सरलार्थ प्राचीन काल में किसी गाँव में एक निर्धन वृद्ध स्त्री रहती थी। उसकी एक बहुत विनम्र तथा सुन्दर पुत्री थी। एक बार उसकी माता ने थाली में चावल रखकर अपनी पुत्री को आदेश दिया-“सूर्य की धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा करो।” कुछ . समय पश्चात् एक अनोखा कौआ उड़कर उसके पास आ गया।

उसने (बालिका ने) सोने के पंख वाला तथा चाँदी की चोंच वाला ऐसा सोने का कौआ पहले नहीं देखा था। उस पक्षी को चावल खाते हुए तथा हँसते हुए देखकर बालिका रोने लगी। उसे रोकती हुई वह प्रार्थना करने लगी-“चावल मत खाओ। मेरी माता बहुत गरीब है।” सोने के पंख वाला कौआ बोला-“दुःखी मत हो। तुम सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे आना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा।” प्रसन्न बालिका को नींद भी नहीं आई।

भावार्थ कौवे ने रोती हुई बालिका से कहा कि मैंने जितना भी चावल खाया है, उसका मूल्य तुम्हें चुका दूँगा। इसके लिए तुम्हें पीपल के वृक्ष के पीछे आना पड़ेगा।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

2. सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता। वृक्षस्योपरि विलोक्य सा च आश्चर्यचकिता सञ्जाता यत् तत्र स्वर्णमयः प्रासादो वर्तते। यदा काकः शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं “हहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयम् ताम्रमयं वा”? कन्या अवदत् “अहं निर्धनमातुः दुहिता अस्मि। ताम्रसोपानेनैव आगमिष्यामि।” परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्ण भवनम् आरोहत।

चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः अवदत्- “पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम उत ताम्रस्थाल्याम्”? बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एव अहं “निर्धना भोजनं करिष्यामि।” तदा सा आश्चर्यचकिता सजाता यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं “परिवेषितम्” । न एतादृशम् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। काकोऽवदत्-बालिके! अहमिच्छामि यत् त्वम् सर्वदा अत्रैव तिष्ठ परं तव माता तु एकाकिनी वर्तते। अतः “त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ।” ।

शब्दार्थ-तत्रोपस्थिता (तत्र + उपस्थिता) = वहाँ पहुँच गई। आश्चर्यचकिता = हैरान, आश्चर्य से चकित। सजाता = हो गई। स्वर्णमयः = सोने का। प्रासादो = महल। स्वर्णगवाक्षात्कथितं = सोने की खिड़की से। प्रबुद्ध = जगा। हहो बाले! = हे बालिके। सोपानमवतारयामि = सीढ़ी मैं उतारता हूँ। तत्कथ्य = तुम्हारे लिए। अवदत् = कहा। चित्रविचित्रवस्तूनि = विभिन्न रंगों की वस्तुएँ। सज्जितानि = तैयार, सजी हुई। विस्मयं गता = हैरान हो गई। श्रान्तां तां = थकी हुई। लघुप्रातराशः = हल्का नाश्ता। परिवेषितम् = परोसा। न एतादृक् = न ऐसा देखा। स्वादु = स्वादिष्ट। भोजनमद्यावधि = आज तक। खादितवती = खाया। अवदत् = बोला। सर्वदा = हमेशा। अत्रैव = यहीं पर। एकाकिनी = अकेली।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस गद्यांश में बताया गया है कि वह बालिका कौवे के पास गई जहाँ उसने उसका आदर-सत्कार किया।

सरलार्थ-वह (बालिका) सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ पहुँच गई। वृक्ष के ऊपर देखकर वह हैरान हो गई कि वहाँ सोने का महल है। जब कौआ सोकर जागा तो उसने सोने की खिड़की में से कहा हे बालिके! तुम आ गई, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। बताओ सोने की, चाँदी की या ताँबे की? बालिका बोली-“मैं निर्धन माता की बेटी हूँ। मैं ताँबे की सीढ़ी से ही आऊँगी।” किन्तु वह सोने की सीढ़ी से महल में पहुंची।

वह बालिका महल में भिन्न-भिन्न रंगों से सजी हुई वस्तुओं को बहुत समय तक देखकर हैरान हो गई। थकी हुई उस बालिका को देखकर कौवे ने कहा-“पहले तुम थोड़ा नाश्ता कर लो” बोलो तुम सोने की थाली में भोजन करोगी, चाँदी की थाली में या फिर ताँबे की थाली में?” बालिका ने कहा-मैं निर्धना ताँबे की थाली में ही भोजन करूँगी। वह बालिका तब आश्चर्यचकित रह गई जब सोने के कौवे ने सोने की थाली में भोजन परोसा। उस बालिका ने ऐसा स्वादिष्ट भोजन पहले कभी नहीं खाया था। कौआ कहने लगा हे बालिके! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं रहो, परन्तु तुम्हारी माता अकेली है, अतः तुम शीघ्र अपने घर चले जाओ।

भावार्थ-बालिका एवं कौवे के आपसी बातचीत में यहाँ बताया गया है कि व्यक्ति को अपने खान-पान, परिवेश एवं वातावरण के अनुसार ही आचरण करना चाहिए। जैसा उस बालिका ने निर्धन होने के कारण सोने-चाँदी की सीढ़ी एवं थाली की जगह ताँबे की ही सीढ़ी एवं थाली माँगी। जबकि कौवे ने उसके आचरण से प्रसन्न होकर सोने की सीढ़ी एवं थाली दी।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

3. इत्युक्त्वा काकः कक्षाभ्यन्तरात् तिस्रः मञ्जूषाः निस्सार्य तां प्रत्यवदत्-“बालिके! यथेच्छं गृहाण
मञ्जूषामेकाम्।” लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितम् इयत् एव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्। गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दिनाद्धनिका च सजाता।

तस्मिन्नेव ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत् । तस्या अपि एका पुत्री आसीत् । ईर्ष्णया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्। प्रातस्तत्र गत्वा सा काकं निर्भर्त्सयन्ती प्रावोचत्-“भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ।”

शब्दार्थ-इत्युक्त्वा (इति + उक्त्वा) = ऐसा कहकर। कक्षाभ्यन्तरात् तिम्रः = कमरे के अन्दर से तीन। मञ्जूषाः = बक्से। निस्सार्य = निकालकर । यथेच्छं (यथा + इच्छ) = इच्छानुसार । प्रगृह्य = लेकर । कथितम् = कहा इतना ही है। समुद्घाटिता = खोला। महार्हाणि (महा + अाणि) = बहुमूल्य । हीरकाणि = हीरों को। तद्दिनाद्धनिका (तद् + दिनात्) = उस दिन से। सजाता = बन गई। एका अपरा = एक दूसरी । लुब्धा = लालची। ईjया = ईर्ष्या से। रहस्यम् = रहस्य। ज्ञातवती = जान लिया। स्वर्णपक्षः = सोने के पंखों वाला। भक्षयन् = खाते हुए। तत्रैवाकारयत् = बुलाया। निर्भर्त्सयन्ती = निन्दा करती हुई। भो नीचकाकः = हे नीच कौवे। अहमागता (अहम् + आगता) = मैं आ गई।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि उस निर्धन बालिका की कहानी किसी अन्य लोभी वृद्धा को पता चल गई। उसकी लड़की भी उसी कौवे के पास सहायता के लिए गई।

सरलार्थ ऐसा कहकर कौआ कमरे के अन्दर से तीन बक्से निकालकर बोला-“हे बालिके! इच्छानुसार एक सन्दूक ले लो।” सबसे छोटा सन्दूक लेकर बालिका ने कहा-इतना ही है मेरे चावलों का मूल्य।

घर आकर उसने सन्दूक खोला। उसमें बहुमूल्य हीरों को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई तथा उस दिन से वह धनवान बन गई।
उसी गाँव में एक दूसरी लोभी वृद्ध स्त्री रहती थी। उसकी भी एक बेटी थी। ईर्ष्या के कारण उसने उस स्वर्ण कौए का रहस्य जान लिया। सूर्य की धूप में चावल रखकर उसने भी अपनी पुत्री को उनकी रक्षा का आदेश दिया। उसी प्रकार सोने के पंख वाले . कौए ने चावल खाते हुए उसे वहीं बुलाया। प्रातःकाल वहाँ जाकर कौवे की निन्दा करते हुए उसने कहा-“हे नीच कौए! मैं आ गई हूँ, मुझे भी चावलों का मूल्य दो।”

भावार्थ “बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख” वाली कहावत इस गद्यांश में चरितार्थ हुई है। निर्धन बालिका ने उस सोने के कौए से कुछ भी नहीं माँगा। उसने अपने परिवार की स्थिति के अनुसार आचरण किया जिससे वह धनवान हो गई। दूसरी तरफ लोभ एवं लालच का परिणाम बुरा होता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

4. काकोऽब्रवीत्-“अहं त्वत्कृते सोपानम् अवतारयामि। तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं वा।” गर्वितया बालिकया प्रोक्तम्-“स्वर्णमयेन सोपानेन अहम् आगच्छामि।” परं स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत् । स्वर्णकाकस्तां भोजनमपि ताम्रभाजने एवं अकारयत्। प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात् त्तिस्रः मञ्जूषाः तत्पुरः समुस्लिप्ताः। लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत् तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम् । तदनन्तर सा लोभं पर्यत्यजत्।

शब्दार्थ सोपानम् अवतारयामि = सीढ़ी उतारता हूँ। गर्वितया = घमण्ड से। प्रायच्छत् = दिया। प्रतिनिवृत्तिकाले = वापिस लौटते समय। तत्पुरः = उसके सामने। बृहत्तमां = सबसे बड़ी। गृहीतवती = ग्रहण की। तर्षिता = उत्सुक। भीषणः = भयङ्कर। विलोकितः = देखा गया। पर्यत्यजत् = त्याग दिया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘स्वर्णकाकः’ से उद्धृत है। यह .. पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ कथा-संग्रह से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि लोभ एवं लालच का परिणाम बुरा होता है।

सरलार्थ कौए ने कहा-“मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तो बोलो सोने की, चाँदी की या ताँबे की कौन-सी उतारूँ?” घमण्डी बालिका ने कहा-“मैं सोने की सीढ़ी से आऊँगी, परन्तु सोने के कौए ने उसे ताँबे की सीढ़ी ही दी। सोने के कौवे ने उसे भोजन भी ताँबे के बर्तन में ही करवाया। वापिस लौटते समय सोने के कौए ने कमरे के अन्दर से तीन पेटियाँ लाकर उसके सामने रखीं। उस लोभी लड़की ने सबसे बड़ी पेटी ली। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उसने उस पेटी को खोला, वैसे ही उसमें भयंकर काला साँप देखा। लोभी लड़की को लालच का फल मिल गया। उसके बाद उसने लोभ का परित्याग कर दिया।

भावार्थ-उस लोभी लड़की ने अपने पारिवारिक परिस्थिति के विपरीत सोने की सीढ़ी तथा बड़ी पेटी की इच्छा की। परन्तु कौए ने उसे ताँबे की सीढ़ी एवं पेटी में भयङ्कर साँप दिया। अतः यह कहना उचित ही है कि लोभ का परिणाम बुरा होता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) माता काम् आदिशत्?
(ख) स्वर्णकाकः कान् अखादत् ?
(ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते?
(घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता?
(ङ) लोभविष्टा बालिका कीदृशी मञ्जूषां नयति?
उत्तराणि:
(क) पुत्रीम्,
(ख) तण्डुलान्,
(ग) स्वर्णमयः,
(घ) मञ्जूषाः,
(ङ) बृहत्तमां।

(अ) अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्?
(ख) बालिकया पूर्व कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्?
(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत्?
(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता?
(ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत् कीदृशं च प्राप्नोत् ?
उत्तराणि
(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा आसीत्।
(ख) बालिकया पूर्वं स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः न दृष्टम् आसीत्।
(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत्।
(घ) बालिका वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता।
(ङ) गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम् अयाचत् परं सा ताम्रमयं सोपानमेव प्राप्नोत् ।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

2.
(क) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखिए)
(i) पश्चात् ……………………….
(ii) हसितुम् ……………………….
(iii) अधः ……………………….
(iv) श्वेतः ……………………….
(v) सूर्यास्तः ……………………….
(vi) सुप्तः ……………………….
उत्तराणि:
(i) पश्चात् – पूर्वम्
(ii) हसितुम् – रोदितुम्
(iii) अधः – उपरि
(iv) श्वेतः – कृष्णः
(v) सूर्यास्तः – सूर्योदयः
(vi) सुप्तः – प्रबुद्धः

(ख) सन्धिं – कुरुत
(सन्धि कीजिए)
(i) नि + अवसत् ……………………….
(ii) सूर्य + उदयः ……………………….
(iii) वृक्षस्य + उपरि ……………………….
(iv) हि + अकारयत् ……………………….
(v) च + एकाकिनी ……………………….
(vi) इति + उक्त्वा ……………………….
(vii) प्रति + अवदत् ……………………….
(vii) प्र + उक्तम् ……………………….
(ix) अत्र + एव ……………………….
(x) तत्र + उपस्थिता ……………………….
(xi) यथा + इच्छम् ……………………….
उत्तराणि:
(i) नि + अवसत् – न्यवसत्
(ii) सूर्य + उदयः – सूर्योदयः
(iii) वृक्षस्य + उपरि – वृक्षस्योपरि
(iv) हि + अकारयत् – ह्यकारयत्
(v) च + एकाकिनी – चैकाकिनी
(vi) इति + उक्त्वा – इत्युक्त्वा
(vii) प्रति + अवदत् – प्रत्यवदत्
(viii) प्र + उक्तम् – प्रोक्तम्
(ix) अत्र + एव – अत्रैव
(x) तत्र + उपस्थिता – तत्रोपस्थित
(xi) यथा + इच्छम् – यथेच्छम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत्।
(ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्।
(ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता।
(घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्।
(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती।
उत्तराणि:
(क) ग्रामे का अवसत्?
(ख) कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्?
(ग) कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता?
(घ) बालिका कस्याः दुहिता आसीत् ? ।
(ङ) लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती?

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत-(पाठात् चित्वा वा लिखत)
(प्रकृति-प्रत्यय-संयोग-कीजिए)
(क) वि + लो + ल्यप् ……………………….
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप् ……………………….
(ग) आ + गम् + ल्यप् ……………………….
(घ) दृश् + क्त्वा ……………………….
(ङ) शी + क्त्वा ……………………….
(च) लघु + तमप् ……………………….
उत्तराणि:
(क) वि + लोकृ + ल्यप् – विलोक्य
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप् – निक्षिप्य
(ग) आ + गम् + ल्यप् – आगम्य
(घ) दृश् + क्त्वा – दृष्ट्वा
(ङ) शी + क्त्वा – शयित्वा
(च) लघु + तमप् – लघुतमम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

5. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं कुरुत
(प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए)
(क) रोदितुम् ……………………….
(ख) दृष्ट्वा ……………………….
(ग) विलोक्य ……………………….
(घ) निक्षिप्य ……………………….
(ङ) आगत्य ……………………….
(च) शयित्वा ……………………….
(छ) लघुतमम् ……………………….
उत्तराणि:
(क) रोदितुम् – रुद् + तुमुन्
(ख) दृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा
(ग) विलोक्य – वि + लोक + ल्यप्
(घ) निक्षिप्य – नि + क्षिप् + ल्यप्
(ङ) आगत्य – आ + गम् + ल्यप्
(च) शयित्वा – शी + क्त्वा
(छ) लघुतमम् – लघु + तमप्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

6. अधोलिखितानि कथनानि कः/का, कं/कां च कथयति
(निम्नलिखित कथनों को कौन व किसे कहता है)
कथनानि                                    कः/का     क/काम्
(क) पूर्वं प्रातराशः क्रियताम्। ………………………., ……………………….
(ख) सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष। ………………………., ……………………….
(ग) तण्डुलान् मा भक्षय। ………………………., ……………………….
(घ) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि। ………………………., ……………………….
(ङ) भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं ………………………., ……………………….
तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ।
उत्तराणि:
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 img-1

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(उदाहरण का अनुसरण करते हुए कोष्ठक में दिए गए शब्दों की पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थान पूर्ण कीजिए)
यथा-मूषकः बिलाद् बहिः निर्गच्छति। (बिल)
(क) जनः …………. बहिः आगच्छति। (ग्राम)
(ख) नद्यः ………….. निस्सरन्ति। (पर्वत)
(ग). …………… पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)
(घ) बालकः ………….. विभेति। (सिंह)
(ङ) ईश्वरः ………….. त्रायते। (क्लेश)
(च) प्रभुः भक्तं ………… निवारयति। (पाप)
उत्तराणि:
(क) जनः ग्रामाद् बहिः आगच्छति।
(ख) नद्यः पर्वतात् निस्सरन्ति।
(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(घ) बालकः सिंहात् विभेति।
(ङ) ईश्वरः क्लेशात् त्रायते।
(च) प्रभुः भक्तं पापात् निवारयति।
(ग) दीपक संस्कृत-नवम

स्वर्णकाकः (सोने का कौआ) Summary in Hindi

स्वर्णकाकः पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ नामक कथा संग्रह से लिया गया है। पद्मशास्त्री साहित्यायुर्वेदाचार्य, काव्यतीर्थ, साहित्य रत्न, शिक्षा शास्त्री और रसियन डिप्लोमा आदि उपाधियों से भूषित हैं। इन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार समिति
और राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा स्वर्ण पदक प्राप्त है।

इन्होंने स्वराज्यम् खण्डकाव्यम्, सिनेमा शतकम्, पद्यपञ्चतन्त्रम् तथा विश्वकथाशतकम् आदि अनेक रचनाओं को लिखा है। ‘विश्वकथाशतकम्’ विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। प्रस्तुत कथा वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें सच्चाई, त्याग और ईमानदारी के साथ-साथ लोभ और उसके दुष्परिणाम का वर्णन एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

प्रस्तुत कथा के अनुसार एक वृद्ध स्त्री ने अपनी पुत्री को आदेश दिया कि धूप में रखे चावलों की पक्षियों से रक्षा करो। कुछ समय पश्चात् सोने के पंख एवं चाँदी की चोंच वाला एक कौआ उस बालिका के पास आकर चावलों को खाने लगा। बालिका ने कहा कि मेरी माता बहुत गरीब है, इसलिए तुम इन चावलों को मत खाओ। कौवे ने कहा कि तुम चिन्ता मत करो। तुम कल प्रातः गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे आना, मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा।

अगले दिन बालिका वहाँ गई तो कौवे ने कहा कि मैं अपने महल में आने के लिए तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तुम बताओ कि सोने, चाँदी अथवा ताँबे की सीढ़ी में से कौन-सी सीढ़ी उतारूँ। बालिका ने कहा कि मैं गरीब हूँ इसलिए ताँबे की सीढ़ी उतार दो। परन्तु कौवे ने उसके लिए सोने की सीढ़ी भेजी। बालिका के कहने के बावजूद कौवे ने उसे सोने की थाली में खाना खिलाया। कौवे के पास सोने, ताँबे एवं चाँदी के संदूक थे। जब लड़की अपने घर आने लगी तौ कौवे ने बालिका से कहा कि तुम अपनी इच्छानुसार कोई एक सन्दूक ले लो। बालिका ने ताँबे के . संदूक को उठाया। जब वह घर आई तो देखा कि वह संदूक बहुमूल्य हीरों से भरा हुआ है।

उसी गाँव में एक लोभी वृद्ध स्त्री ने सारी बात जानने के पश्चात् अपनी पुत्री से वैसा करने के लिए कहा। कौवे ने लोभी स्त्री की लड़की को अपने पास बुलाया और पूछा कि तीनों संदूकों में तुम कौन-सा संदूक चाहती हो । लोभी लड़की ने लालचवश सबसे बड़ा सन्दूक उठाया। घर आकर उत्सुकतावश जैसे ही उसने उसे खोला उसमें से भयंकर काला साँप दिखाई पड़ा। लालची लड़की को लालच का फल मिल गया।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Exercise 7.2

Question 1.
In an isosceles triangle ABC with AB = AC, the bisectors of ∠B and ∠C intersect each other at O. Join A to O Show that:
(i) OB = OC
(ii) AO bisects ∠A.
Solution:
(i) In ΔABC, we have
AB = AC (Given)
⇒ ∠B = ∠C …….(i)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 1
[∵ Angles opposite to equal sides are equal]
Since BO is the bisector of ∠B.
∴ ∠ABO = ∠CBO …(ii)
and CO is the bisector of ∠C.
∴ ∠ACO = ∠BCO …(iii)
From (i), (ii) and (iii), we get
∠ABO = ∠ACO …(iv)
and ∠CBO = ∠BCO
⇒ BO = CO …. (v)
(∵ Sides opposite to equal angles are equal)

(ii) In ΔABO and ΔACO, we have
AB = AC, (Given)
∠ABO = ∠ACO, [From (iv)]
and BO = CO [From (v)]
∴ ΔABO ≅ ΔACO,
(By SAS congruence rule)
⇒ ∠OAB = ∠OAC (CPCT)
OR AO bisects ⇒ A.
Hence Proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2

Question 2.
In ΔABC, AD is the perpendicular bisector of BC (see figure 7.42). Show that ΔABC is an isosceles triangle in which AB = AC
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 2
Solution:
In ΔADB and ΔADC,
we have BD = CD,
(∵ AD is the bisecor of BC)
∠ADB = ∠ADC,
(∵ AD ⊥ BC, ∴ Each = 90°)
and AD = AD, (Common)
∴ ΔADB ≅ ΔADC,
(By SAS congruence rule)
⇒ AB = AC, (CPCT)
Or ABC is an isosceles triangle.
Hence Proved

Question 3.
ABC is an isosceles triangle in which altitudes BE and CF are drawn to equal sides AC and AB respectively (see figure 7.43). Show that these altitudes are equal.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 3
Solution:
In ΔABC, we have
AB = AC, (∵ ΔABC is an isosceles triangle)
⇒ ∠B = ∠C, (∵ Angles opposite to equal sides are equal)
Now, in ΔBFC and ΔCEB, we have
∠B = ∠C, (As proved above)
∠BFC = ∠CEB
(∵ CF ⊥ AB and BE ⊥ AC, ∴ Each = 90°)
and BC = BC, (Common)
∴ ΔBFC ≅ ΔCEB
(By AAS congruence rule)
⇒ CF = BE (CPCT)
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2

Question 4.
ABC is a triangle in which altitudes BE and CF to sides AC and AB are equal (see figure 7.44). Show that:
(i) ΔABE ≅ ΔACF
(ii) AB = AC, i.e., ABC is an isosceles triangle.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 4
Solution:
(i) In ΔABE and ΔACF, we have
∠AEB = ∠AFC
[∵ BE ⊥ AC and CF ⊥ AB
∴ Each = 90°]
∠BAE = ∠CAF (Common)
and BE = CF, (Given)
ΔABE ≅ ΔACF,
(By AAS congruence rule)

(ii) ΔABE ≅ ΔACF
(As proved above)
⇒ AB = AC, (CPCT)
Or ABC is an isosceles triangle.
Hence proved

Question 5.
ABC and DBC are two isosceles triangles on the same base BC (see figure 7.45). Show that ∠ABD = ∠ACD.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 5
Solution:
In ΔABC, we have
AB = AC (∵ ΔABC is an isosceles triangle)
⇒ ∠ABC = ∠ACB ……..(i)
(∵ Angles opposite to equal sides are equal) Again in ΔDBC, we have
DB = DC (∵ ΔDBC is an isosceles triangle)
⇒ ∠DBC = ∠DCB, ……..(ii)
(∵ Angles opposite to equal sides are equal)
Adding (i) and (ii), we get
∠ABC + ∠DBC = ∠ACB +∠DCB
⇒ ∠ABD = ∠ACD. Hence proved.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2

Question 6.
ΔABC is an isosceles triangle in which AB = AC. Side BA is produced to such that AD = AB (see figure 7.46). Show that ∠BCD is a right angle.
[NCERT Exemplar Problems]
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 6
Solution:
Given: ΔABC in which AB = AC. Side BA is produced to D such that
AD = AB
To prove : ∠BCD = 90°.
Construction: Join C to D.
Proof: In ΔABC, we have
AB = AC (Given)
⇒ ∠ABC = ∠ACB …….(i)
(∵ Angles opposite to equal sides are equal)
AB = AD, (Given)
∴ AD = AC (∵ AB = AC)
⇒ ∠ADC = ∠ACD …(ii) (∵ Angles opposite to equal sides are equal)
Adding (i), (ii), we get
∠ABC + ∠ADC = ∠ACB + ∠ACD
∠ABC + ∠ADC = ∠BCD
∠DBC + ∠BDC = ∠BCD (from fig. ∠ABC = ∠DBC and ∠ADC = ∠BDC)
Now in ΔBCD, we have
∠DBC + ∠BDC + ∠BCD = 180°,
(∵ Sum of interior angles of a triangle = 180°)
⇒ ∠BCD + ∠BCD = 180°, [Using (iii)]
⇒ 2∠BCD = 180°
⇒ ∠BCD = \(\frac {180°}{2}\) = 90°
Or ∠BCD is a right angle. Hence Proved

Question 7.
ABC is a right-angled triangle in which ∠A = 90° and AB = AC. Find ∠B and ∠C.
Solution :
In ΔABC, we have
∠A = 90° and
AB = AC
⇒ ∠B = ∠C …(i) (∵ Angles opposite to equal sides are equal)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 7
Now in ΔABC, we have
∠A + ∠B + ∠C = 180°, (∵ Sum of interior angles of a triangle = 180°)
⇒ 90° + ∠B + ∠B = 180°,
[∵ From (i), ∠C = ∠B]
⇒ 2∠B = 180° – 90°,
⇒ 2∠B = 90°
⇒ ∠B = \(\frac {90°}{2}\) = 45°
Hence, ∠B = ∠C = 45°

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2

Question 8.
Show that the angles of an equilateral triangle are 60° each. [NCERT Exemplar Problems]
Solution :
Let ΔABC be an equilateral triangle.
So, AB = BC = AC
Now, AB = AC
⇒ ∠B = ∠C ……..(i)
(Angles opposite to equal sides are equal)
Again, BC = AC
⇒ ∠B = ∠A ……..(ii)
[Angles opposite to equal sides are equal]
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.2 - 8
From (i) and (ii), we get
∠A = ∠B = ∠C …(iii)
Now ∠A + ∠B + ∠C = 180°
[∵ Sum of interior angles of a Δ = 180°]
⇒ ∠A + ∠A + ∠A = 180° [Using (iii)]
⇒ 3∠A = 180°
⇒ ∠A = \(\frac {180°}{3}\) = 60°
∴ ∠A = ∠B = ∠C = 60°
Hence, each angle of an equilateral triangle is 60°
Hence Proved

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Exercise 7.1

Question 1.
In quadrilateral ACBD, AC = AD and AB bisects ∠A (see figure 7.26). Show that ΔABC ≅ ΔABD. What can you say about BC and BD?
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 1
Solution :
In ΔABC and ΔABD, we have
AC = AD, (Given)
∠CAB = ∠DAB, (AB bisects ∠A)
and AB = AB, (Common)
∴ ΔABC ≅ ΔABD,
(By SAS congruence rule)
⇒ BC = BD, (CPCT)
Hence, BC and BD are equal

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1

Question 2.
ABCD is a quadrilateral in which AD = BC and ∠DAB = ∠CBA (see figure 7.27).
Prove that:
(i) ΔABD ≅ ΔBAC
(ii) BD = AC
(iii) ∠ABD = ∠BAC.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 2
Solution :
(i) In ΔABD and ΔBAC,
we have AD = BC, (Given)
∠DAB = ∠CBA, (Given)
and AB = AB, (Common)
ΔABD ≅ ΔBAC (By SAS congruence rule)
Hence proved

(ii) ∵ ΔABD ≅ ΔBAC,
(As proved above)
⇒ BD = AC, (CPCT)
Hence proved

(iii) ∵ ΔABD ≅ ΔBAC
(As proved above)
⇒ ∠ABD = ∠BAC, (CPCT)
Hence proved

Question 3.
AD and BC are equal perpendiculars to a line segment AB (see figure 7.28). Show that CD bisects AB.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 3
Solution:
In ΔAOD and ΔBOC, we have
∠OAD = ∠OBC, (Each = 90°)
∠AOD = ∠BOC,
(Vertically opposite angles)
and AD = BC, (Given)
∴ ΔAOD ≅ ΔBOC,
(By AAS congruence rule)
⇒ OA = OB, (CPCT) or CD bisects AB. Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1

Question 4.
l and m are two parallel lines intersected by another pair of parallel lines p and q (see figure 7.29). Show that ΔABC ≅ ΔCDA.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 4
Solution:
Since two parallel lines l and m intersected by another pair of parallel lines p and q.
Therefore AD || BC and AB || DC
∴ AD || BC and AC is the transversal.
∠ACB = ∠DAC (A pair of alternate interior angles)
Again, AB || DC and AC is the transversal.
∠BAC = ∠ACD, (A pair of alternate interior angles)
Now in ΔABC and ΔCDA, we have Fig. 7.28
∠ACB = ∠DAC,
(As proved above)
AC = AC (common)
and ∠BAC = ∠ACD,
(As proved above)
∴ ΔABC ≅ ΔCDA [By ASA congruence rule]
Hence proved

Question 5.
Line l is the bisector of an angle A and B is any point on l. BP and BQ are perpendiculars from B to the arms of ∠A (see figure 7.30). Show that:
(i) ΔAPB ≅ ΔAQB
(ii) BP = BQ or B is equidistant from the arms of ∠A
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 5
Solution:
(i) In ΔAPB and ΔAQB, we have
∠APB = ∠AQB, (Each = 90°)
∠PAB = ∠QAB,
(Line l bisects ZA) and
AB = AB, (Common)
∴ ΔAPB ≅ ΔAQB, (By AAS congruence rule)
Hence proved

(ii) ∵ ΔAPB ≅ ΔAQB,
(As proved above)
⇒ BP = BQ (CPCT)
or B is equidistant from the arms of ∠A.
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1

Question 6.
In figure 7.31, AC = AE, AB = AD and ∠BAD = ∠EAC. Show that BC = DE.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 6
Solution:
We have
∠BAD = ∠EAC (Given)
⇒ ∠BAD + ∠CAD = ∠EAC + ∠CAD,
(Adding ∠CAD on both sides)
⇒ ∠BAC = ∠DAE ……….(i)
Now in ΔABC and ΔADE, we have
AB = AD (Given)
∠BAC = ∠DAE,
(As proved above)
and AC = AE (Given)
∴ ΔABC ≅ ΔADE,
(By SAS congruence rule)
⇒ BC = DE (CPCT)
Hence proved

Question 7.
AB is a line segment and Pis its mid-point. D and E are points on the same side of AB such that ∠BAD = ∠ABE and ∠EPA = ∠DPB (see figure 7.32). Show that:
(i) ΔDAP ≅ ΔEBP
(ii) AD = BE
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 7
Solution:
(i) We have
∠EPA = ∠DPB (Given)
⇒ ∠EPA + ∠EPD = ∠DPB + ∠EPD.
(Adding ∠EPD on both sides)
⇒ ∠APD = ∠BPE ………….(i)
Now, ΔDAP and ΔEBP, we have
∠BAD = ∠ABE (Given)
⇒ ∠DAP = ∠EBP,
AP = PB,
(P is the midpoint of AB)
and ∠APD = ∠BPE,
(As proved above (i))
∴ ΔDAP ≅ ΔEBP (By ASA congruence rule)
Hence proved

(ii) ∵ ΔDAP ≅ ΔEBP,
(As proved above)
⇒ AD = BE (CPCT)
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1

Question 8.
In right triangle ABC, right-angled at C, M is the mid-point of hypotenuse AB. C is joined to M and produced to a point D such that DM = CM. Point D is joined to point B (see figure 7.33). Show that:
(i) ΔAMC ≅ ΔBMD
(ii) ∠DBC is a right angle
(iii) ΔDBC ≅ ΔACB
(iv) CM = \(\frac {1}{2}\)AB.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.1 - 8
Solution :
(i) In ΔBMD and ΔAMC, we have
BM = AM
(M is the mid point of AB)
DM = CM, (Given)
∠BMD = ∠AMC,
(Vertically opposite angles)
∴ ΔBMD ≅ ΔAMC (By SAS congruence rule)
Hence proved

(ii) ΔBMD ≅ ΔAMC, [As proved above in solution (i)]
⇒ BD = AC, …(1) (CPCT)
and ∠DBM = ∠CAM (CPCT)
But these are alternate interior angles.
DB || AC, [By theorem 6.3]
Now DB || AC and BC is the transversal.
∠DBC + ∠ACB = 180°, (A pair of allied angles are supplementary)
⇒ ∠DBC + 90° = 180°
∵ ∠ACB = 90° (Given)
⇒ ∠DBC = 180° – 90°
⇒ ∠DBC = 90°
⇒ So, ∠DBC is a right angle. Hence proved

(iii) In ΔDBC and ΔACB, we have
DB = AC, (From (i)]
∠DBC = ∠ACB, [Each = 90°] and
BC = BC, (common)
ΔDBC ≅ ΔACB, (By SAS congruence rule)
Hence proved

(iv) ΔDBC ≅ ACB [As proved above in solution (iii)] (CPCT)
⇒ DC = AB,
⇒ \(\frac {1}{2}\)DC = \(\frac {1}{2}\)AB (Multiply by 1/2 on both sides)
⇒ CM = \(\frac {1}{2}\)AB [∵ M is the mid point of DC and AB respectively)
Hence proved

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Exercise 9.3

Question 1.
In figure 9.23, E is any point on median AD of a ΔABC. Show that ar (ABE) = ar (ACE).
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 1
Solution:
In ΔABC, AD is a median and median divides a triangle into two triangles of equal areas.
∴ ar (ΔABD) = ar (ΔACD) …(i)
Again, in ΔEBC, ED is a median.
∴ ar (ΔEBD) = ar (ΔECD) …(ii)
Subtracting (ii) from (i), we get
ar (ΔABD) – ar (ΔEBD) = ar (ΔACD) – ar (ΔECD)
⇒ ar (ΔABE) = ar (ΔACE).
Hence proved

Question 2.
In a triangle ABC, E is the mid point of median AD. Show that ar (BED) = \(\frac{1}{4}\)ar (ABC).
Solution:
Since AD is a median of AABC and median divides a triangle into two triangles of equal areas.
∴ ar (ΔABD) = ar (ΔACD)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 2
⇒ ar (ΔABD) = \(\frac{1}{2}\)ar (ΔABC) …(i)
In ΔABD, BE is the median.
ar (ΔBED) = ar (ΔBAE)
ar (ΔBED) = \(\frac{1}{2}\)ar (ΔABD)
ar (ΔBED) = \(\frac{1}{2} \times \frac{1}{2}\)ar (ΔABC) [using (i)]
ar (ΔBED) = \(\frac{1}{4}\)ar (ΔABC).
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3

Question 3.
Show that the diagonals of a parallelogram divide it into four triangles of equal area.
Solution:
Given: A parallelogram ABCD in which diagonals AC and BD intersect at O.
Prove : ar (ΔAOB) = ar (ΔBOC) = ar (ΔCOD) = ar (ΔDOA).
Proof : Since, diagonals of a parallelogram bisect each other.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 3
OA = OC and OB = OD and a median divides the triangle into two triangles of equal areas.
Now in ΔABC, BO is the median.
ar (ΔAOB) = ar (ΔBOC) …..(i)
In ΔBCD, CO is the median.
ar (ΔCOD) = ar (ΔBOC) ……(ii)
In ΔCDA, DO is the median.
ar (ΔCOD) = ar (ΔAOD) …..(iii)
From (i), (ii) and (iii),
we get ar (ΔAOB) = ar (ΔBOC)
= ar (ΔCOD) = ar(ΔAOD)
Hence proved

Question 4.
In figure 9.24, ABC and ABD are two triangles on the same base AB. If line segment CD is bisected by AB at 0, show that ar (ABC) = ar (ABD).
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 4
Solution:
In ΔACD, we have
OC = OD [∵ given line CD is bisected by AB]
∴ AO is the median.
⇒ ar (AOC) = ar (AOD) …(i)
[median divides a A in two As of equal areas]
Similarly, in ΔBCD, BO is the median.
⇒ ar(BOC) = ar (BOD) ….(ii)
Adding (i) and (ii), we get
ar (AOC) + ar (BOC) = ar (AOD) + ar (BOD)
⇒ ar (ABC) = ar (ABD).
Hence proved

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Question 5.
D, E and F are respectively the mid points of the sides BC, CA and AB of a ΔABC. Show that
(i) BDEF is a parallelogram
(ii) ar (DEF) = \(\frac{1}{4}\)ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = \(\frac{1}{2}\)ar (ABC).
Solution:
Given : A triangle ABC in which D, E and Fare the mid points of the sides BC, CA and AB respectively.
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To prove : (i) BDEF is a parallelogram.
(ii) ar (DEF) = \(\frac{1}{4}\)ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = \(\frac{1}{2}\)ar (ABC).
Proof : (i) In ΔABC, F and E are the mid points of the sides AB and AC respectively.
∴ FE || BC and FE = \(\frac{1}{2}\)BC
⇒ FE || BD and FE = BD [∵ D is the mid point of BC, ∴ BD = CD]
∴ BDEF is a parallelogram.
(ii) Similarly, F and D are the mid points of the sides AB and BC respectively.
∴ FD || AC and FD = \(\frac{1}{2}\)AC
∴ FD || EC and FD = \(\frac{1}{2}\)AC
⇒ FD || EC and FD = EC
∴ FDCE is a parallelogram.
Similarly, we can prove that AFDE is a parallelogram.
Since, FD is a diagonal of parallelogram BDEF
∴ ar(FBD) = ar (DEF) …(i)
[∵ a diagonal divides a || gm into two Δs of equal areas]
Similarly, DE is a diagonal of parallelogram FDCE.
∴ ar(ECD) = ar (DEF) …(ii)
and FE is a diagonal of parallelogram AFDE.
∴ ar (AFE) = ar (DEF) …(iii)
From (i), (ii) and (iii), we have
ar (FBD) = ar (DEF) = ar (ECD)
= ar (AFE) …..(iv)
Now, ar (FBD) + ar (DEF)+ ar (ECD) + ar (AFE) = ar (ABC)
⇒ ar (DEF) + ar (DEF)+ ar (DEF) + ar (DEF)
= ar (ABC) [using (iv)]
⇒ 4 ar (DEF) = ar (ABC)
⇒ ar (DEF) = \(\frac{1}{4}\)ar (ABC)
(iii) ar (DEF) = \(\frac{1}{4}\) a ar (ABC)
(as proved above)
2 ar (DEF) = \(\frac{2}{4}\)ar (ABC)
⇒ ar (DEF) + ar (DEF) = \(\frac{1}{2}\)ar (ABC)
⇒ ar (DEF) + ar (FBD) = \(\frac{1}{2}\)ar (ABC) [using (i)]
⇒ ar (BDEF) = \(\frac{1}{2}\)ar (ABC).
Hence proved.

Question 6.
In figure 9.25, diagonals AC and BD of quadrilateral ABCD intersect at O such that OB = OD. If AB = CD, then show that:
(i) ar (DOC) = ar (AOB)
(ii) ar (DCB) = ar (ACB)
(iii) DA || CB or ABCD is a parallelogram
[Hint : From Dand B, draw perpendiculars to AC]
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Solution:
(i) Draw BM ⊥ AC and DN ⊥ AC.
In ΔDON and ΔBOM, we have
∠DNO = ∠BMO (Each = 90°)
∠DON = ∠BOM
(vertically opposite angles)
and DO = OB (given)
∴ ΔDON ≅ ΔBOM
(By AAS congruecne rule)
⇒ ar (DON) = ar (BOM) ……(i)
⇒ DN = BM (CPCT)
In ΔDCN and ΔBAM, we have
∠DNC = ∠BMA (Each = 90°)
Hyp. DC = Hyp. AB (given)
and DN = BM (as proved above)
∴ ΔDCN ≅ ΔBAM (By RHS congruence rule)
⇒ ar (DCN) = ar (BAM) …(ii)
Adding (i) and (ii), we get
ar (DON) + ar (DCN) = ar (BOM) + ar (BAM)
⇒ ar (DOC) = ar (AOB).
(ii) ar (DOC) = ar (AOB)
⇒ ar (DOC) + ar(COB) = ar (AOB) + ar (COB)
(Adding ar (COB) on both sides)
⇒ ar (DCB) = ar (ACB).
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(ii) Since ΔDCB and ΔACB are on the same base BC and have equal areas.
∴ DA || CB
Now, ΔDON ≅ ΔBOM (as proved above)
∠ODN = ∠OBM(CPCT) … (iii)
ΔDCN ≅ ΔBAM (as proved above)
⇒ ∠CDN = ∠ABM (CPCT) …(iv)
Adding (iii) and (iv), we get
∠ODN + ∠CDN = ∠OBM + ∠ABM
⇒ ∠ODC = ∠OBA
But these are alternate interior angles.
∴ CD || AB
∴ ABCD is a parallelogram. Hence proved

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Question 7.
D and E are points on sides AB and AC respectively of SABC such that ar (DBC) = ar (EBC). Prove that DE || BC.
Solution:
Since ΔDBC and ΔEBC are on the same base BC and have equal areas.
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Therefore ΔDBC and ΔEBC lie between the same parallels.
∴ DE || BC. Hence proved

Question 8.
XY is a line parallel to side BC of a triangle ABC. If BE || AC and CF || AB meet XY at E and F respectively, show that:
ar (ABE) = ar (ACF).
Solution:
XY || BC and EB || YC [∵ BE || AC]
∴ BCYE is a parallelogram.
Again, XY || BC and BX || CF. [∵ AB || CF]
BCFX is a parallelogram.
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Since ΔABE and parallelogram BCYE are on the same base EB and between the same parallels EB and AC.
∴ ar (ABE) = \(\frac{1}{2}\)ar (BCYE) …(i)
Similarly, ΔACF and parallelogram BCFX are on the same base CF and between the same parallels CF and AB.
∴ ar (ACF) = ar (BCFX) ……(ii)
and parallelograms BCYE and BCFX are on the same base BC and between the same parallels BC and EF.
∴ ar(BCYE) = ar (BCFX) …(iii)
From (i), (ii) and (iii), we have
ar (ABE) = ar (ACF).
Hence proved.

Question 9.
The side AB of a parallelogram ABCD is produced to any point P. A line through A and parallel to CP meets CB produced at Q and then parallelogram PBQR is completed (see figure 9.26). Show that ar (ABCD) = ar (PBQR).
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Solution:
Join AC and PQ.
Since ΔAQC and ΔAQP are on the same base AQ and between the same parallels AQ and CP.
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ar (ΔAQC) = ar (ΔAQP)
⇒ ar (ΔAQC) – ar (ΔABQ) = ar (ΔAQP) – ar (ΔABQ)
⇒ ar (ΔABC) = ar (ΔPBQ)
⇒ \(\frac{1}{2}\)ar (||gm ABCD) = \(\frac{1}{2}\)ar (||gm PBQR) [∵ a diagonal divides the ||gm into two Δs of equal areas)
⇒ ar (||gm ABCD) = ar (||gm PBQR).
Hence proved

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Question 10.
Diagonals AC and BD of a trapezium ABCD with AB || DC intersect each other at O. Prove that ar (AOD) = ar (BOC).
Solution:
In a trapezium ABCD,
we have AB || CD
So, ΔABC and ΔABD are on the same base AB and between the same parallels AB and CD.
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∴ ar (ΔABC) = ar (ΔBAD) (by theorem 9.2)
⇒ ar (ΔABC) – ar (ΔAOB) = ar (ΔBAD) – ar (ΔAOB)
⇒ ar (ΔBOC) = ar (ΔAOD).
Hence proved.

Question 11.
In figure 9.27, ABCDE is a pentagon. A line through B parallel to AC meets DC produced at F. Show that:
(i) ar (ACB) = (ar ACF)
(ii) ar (AEDF) = ar (ABCDE).
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Solution:
(i) Since ΔACB and ΔACF are on the same base AC and between the same parallels AC and BF.
∴ ar(ACB) = ar (ACF)
(ii) ar (ACB) = ar (ACF) (as proved above)
⇒ ar (ACB) + ar (ACDE) = ar (ACF) + ar (ACDE)
[Adding ar (ACDE) on both sides]
⇒ ar (ABCDE) = ar (AEDF)
⇒ ar (AEDF) = ar (ABCDE). Hence proved

Question 12.
A villager Itwaari has a plot of land of the shape of a quadrilateral. The Gram Panchayat of the village decided to take over some portion of his plot from one of the corners to construct a Health Centre. Itwaari agrees to the above proposal with the condition that he should be given equal amount of land in lieu of his land adjoining his plot so as to form a triangular plot. Explain how this proposal will be implemented.
Solution:
Let ABCD be the plot of land of villager Itwaari and the Gram Panchayat decided to take some portion of land from corner D (say) of the plot ABCD. Since Itwaari wants to have equal amount of land in the lie of land COD we may proceed it as follows:
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Join AC and draw a line through D parallel to AC to meet BA produced at E. Join EC intersects AD at O.
Now, ΔACD and ΔEAC are on the same base AC and between the same parallels AC and DE.
∴ ar (ΔACD) = ar (ΔEAC)
⇒ ar (ΔACD) – ar (ΔAOC) = ar (EAC) – ar (ΔAOC)
⇒ ar (COD) = ar (ΔAOE) ……(i)
Now, ar (quad. ABCD) = ar (quad. OABC) + ar (ΔCOD)
⇒ ar (quad. ABCD)= ar (quad. OABC) + ar (ΔAOE) [using (i)]
⇒ ar(quad. ABCD) = ar (ACEB)
So, the Gram Panchayat take area (ΔCOD) and provided ar (ΔAOE) to the Itwaari.

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Question 13.
ABCD is a trapezium with AB || CD. A line parallel to AC intersects AB at X and BC at Y. Prove that ar (ADX) = ar (ACY).
Solution:
ABCD is a trapezium in which AB || CD and XY || AC. Join XC and XD. Since, ΔACX and ΔACY are on the same base AC and between the same parallels AC and XY.
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∴ ar (ΔACX) = ar (ΔACY) …(i)
Again, ΔACX and ΔADX are on the same base AX and between the same parallels AX and CD.
∴ ar (ΔACX) = ar (ΔADX) …(i)
From (1) and (2), we get
ar (ADX) = ar (ACY).
Hence proved

Question 14.
In figure 9.28, AP || BQ || CR. Prove that ar (AQC) = ar (PBR).
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 16
Solution:
Since ΔABQ and ΔPQB are on the same base BQ and between the same parallels AP and BQ.
∴ ar (ΔABQ) = ar (ΔPQB) …(i)
Again ΔBCQ and ΔQRB are on the same base BQ and between the same parallels BQ and CR.
∴ ar (ΔBCQ) = ar (ΔQRB) …(ii)
Adding (i) and (ii), we get
ar (ΔABQ) + ar (ΔBCQ) = ar (ΔPQB) + ar (ΔQRB)
⇒ ar (ΔAQC) = ar (ΔPBR).
Hence proved

Question 15.
Diagonals AC and BD of a quadrilateral ABCD intersect at O in such a way that ar (AOD) = ar (BOC). Prove that ABCD is a trapezium.
Solution:
In a quadrilateral ABCD, diagonals AC and BD intersect at O in such a way that
ar (ΔAOD) = ar (ΔBOC)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 9 Areas of Parallelograms and Triangles Ex 9.3 17
⇒ ar (ΔAOD) + ar (ΔAOB) = ar (ΔBOC) + ar (ΔAOB)
[adding ar (ΔAOB) on both sides]
⇒ ar (ΔABD) = ar (ΔABC)
Thus, ΔABD and ΔABC are on the same base AB and having equal area.
∴ AB || CD
Hence ABCD is a trapezium. Proved

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Question 16.
In figure 9.29, ar (DRC) = ar (DPC) and ar (BDP) = ar (ARC). Show that both the quadrilaterals ABCD and DCPR are trapeziums.
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Solution:
аr (ΔDRC) = ar (ΔDPC) …(1) (given)
So, ΔDRC and ΔDPC are on the same base DC and having equal area.
∴ RP || DC
⇒ DCPR is a trapezium.
and ar(ΔBDP) = ar (ΔARC) (given)
ar (ΔARC) = ar (ΔBDP) …….(2)
Subtracting (1) from (2), we get
ar (ΔARC) – ar (DRC) = ar (ΔBDP) – ar (ΔDPC)
⇒ ar (ΔACD) = ar (ΔBDC)
So, ΔACD and ΔBDC are on the same base DC and having equal area.
∴ DC || AB
⇒ ABCD is a trapezium.
Hence, DCPR and ABCD are trapeziums.
Hence proved

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