Class 12

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को क्या कहते हैं?
(A) कुल उपयोगिता
(B) सीमांत उपयोगिता
(C) प्रारंभिक उपयोगिता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता

2. सीमांत उपयोगिता से आशय है-
(A) कुल उपयोगिता-औसत उपयोगिता
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा
(C) कुल उपयोगिता-कुल वस्तुओं की मात्रा
(D) पहली इकाई से प्राप्त उपयोगिता
उत्तर:
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

3. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति होती है-
(A) X. अक्ष के समानांतर
(B) Y- अक्ष के समानांतर
(C) ऋणात्मक ढाल वाली
(D) धनात्मक ढाल वाली
उत्तर:
(C) ऋणात्मक ढाल वाली

4. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है जब-
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है
(B) सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है
(C) सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है

5. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोतर इकाई का उपभोग करता है, तो-
(A) सीमांत उपयोगिता बढ़ती जाती है
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है
(C) कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है।
(D) कुल उपयोगिता घटती जाती है
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है

6. एक उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ पर-
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत
(B) सीमांत उपयोगिता > कीमत
(C) सीमांत उपयोगिता < कीमत
(D) कुल उपयोगिता = कीमत
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत

7. सीमांत उपयोगिता धनात्मक होने पर कुल उपयोगिता-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है।
(C) ऋणात्मक होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बढ़ती है

8. कुल उपयोगिता घटनी कब प्रारंभ होती है?
(A) सीमांत उपयोगिता के धनात्मक होने पर
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर
(C) सीमांत उपयोगिता के शून्य होने पर
(D) सीमांत उपयोगिता की संतुष्टि होने पर
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर

9. यदि उपभोक्ता अपनी आय को X और Y पर व्यय करता है, तो उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी जब-
(A) MUX = MUY
(B) MUX > MUY
(C) MUX ÷ MUY
(D) MUX + MUY
उत्तर:
(A) MUX = MUY

10. सीमांत उपयोगिता हो सकती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. उपयोगिता विश्लेषण के संदर्भ में, दो वस्तुओं के लिए उपभोक्ता संतुलन की शर्त है-
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
(B) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{x}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}\)
(C) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}}\)
(D) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}+\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)

12. उपभोग की इकाइयाँ 1 व 2 हैं तथा कुल उपयोगिता 10 व 18 हैं, सीमांत उपयोगिता क्या होगी?
(A) 6
(B) 8
(C) 9
(D) 12
उत्तर:
(B) 8

13. सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होने पर कुल उपयोगिता
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) शून्य होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती है

14. कुल उपयोगिता से सीमांत उपयोगिता का आकलन किया जाता है
(A) MU = TU
(B) MU x TU
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)
(D) MU ÷ TU
उत्तर:
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)

15. अनधिमान/तटस्थता वक्र प्रदर्शित करता है
(A) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है
(B) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता पसंद करता है
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है
(D) उपभोक्ता का संतुलन
उत्तर:
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है

16. अनधिमान (तटस्थता) वक्र
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है
(B) दायें से बायें एवं ऊपर की ओर मुड़ता है
(C) दायें से बायें किंतु X-अक्ष के समानांतर होता है
(D) नीचे से ऊपर की ओर किन्तु Y. अक्ष के समानांतर होता है
उत्तर:
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है

17. अनधिमान वक्र-
(A) मूल बिंदु से नतोदर होते हैं
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं
(C) एक सीधी रेखा की भांति होते हैं
(D) कोई निश्चित आकृति नहीं होती
उत्तर:
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं

18. अनधिमान वक्र प्रत्येक बिंदु पर-
(A) घटती हुई संतुष्टि बताता है
(B) समान संतुष्टि बताता है
(C) असमान संतुष्टि बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समान संतुष्टि बताता है

19. अनधिमान वक्र प्राथमिकता विश्लेषण पर आधारित है जिसका दृष्टिकोण
(A) क्रमवाचक है
(B) संख्यात्मक है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) क्रमवाचक है

20. दायीं ओर का अनधिमान वक्र संतुष्टि के
(A) समान स्तर को बताता है
(B) ऊँचे स्तर को बताता है
(C) निम्न स्तर को बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऊँचे स्तर को बताता है

21. एक उपभोक्ता जब अनधिमान वक्र पर दायें नीचे की ओर चलता है, तो X वस्तु की सीमांत प्रतिस्थापन दर Y वस्तु के लिए
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) समान रहती है
(D) उपर्युक्त कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) घटती है

22. कुछ घटिया वस्तुओं (Inferior Goods) की कीमत गिराने पर प्रायः उनकी माँग बढ़ने के बजाय घटती है, इसका कारण है-
(A) माँग का नियम
(B) गिफ्फन का विरोधाभास
(C) आय प्रभाव
(D) प्रतिस्थापन प्रभाव
उत्तर:
(B) गिफ्फन का विरोधाभास

23. वस्तु की कीमत तथा उसकी माँग के बीच विपरीत संबंध का कारण है-
(A) सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. माँग का नियम बताता है-
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(B) कीमत, माँग से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(C) कीमत, पूर्ति से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(D) पूर्ति, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
उत्तर:
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है

25. माँग में विस्तार एवं संकुचन में-
(A) माँग वक्र में परिवर्तन हो जाता है
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है
(C) माँग वक्र ऊपर की ओर स्थानांतरित हो जाता है
(D) माँग वक्र नीचे की ओर स्थानांतरित हो जाता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है

26. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) कोई संबंध नहीं होता है
(D) उपर्युक्त तीनों कथन गलत हैं
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

27. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग वक्र के नीचे की ओर झुके होने का कारण है?
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

28. गिफ्फन के विरोधाभास (Giffen’s Paradox) से अभिप्राय है-
(A) माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होना
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना
(C) माँग वक्र का OX-अक्ष के समानांतर होना
(D) माँग वक्र का OY-अक्ष के समानांतर होना
उत्तर:
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना

29. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग के नियम का अपवाद नहीं है?
(A) प्रतिष्ठासूचक वस्तु
(B) गिफ्फन पदार्थ
(C) अज्ञानता
(D) सामान्य वस्तु
उत्तर:
(D) सामान्य वस्तु

30. निम्नकोटि की वस्तुओं से क्या अभिप्राय है?
(A) कीमत बढ़ने पर माँग कम होती है।
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है
(C) कीमत में परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(D) कीमत कम होने से माँग बढ़ती है
उत्तर:
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

31. कीमत में कमी होने से माँग के बढ़ने को कहा जाता है
(A) माँग का विस्तार
(B) माँग का संकुचन
(C) माँग में वृद्धि
(D) माँग में कमी
उत्तर:
(A) माँग का विस्तार

32. पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) माँग बढ़ेगी
(B) माँग घटेगी
(C) माँग वही रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) माँग बढ़ेगी

33. माँग में वृद्धि की स्थिति में-
(A) माँग वक्र में नीचे बाईं ओर खिसकाव होता है
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है
(C) माँग वक्र पर नीचे की ओर चलन होता है
(D) माँग वक्र पर ऊपर की ओर चलन होता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है

34. बाज़ार माँग व्यक्त करती है-
(A) बहुत-से व्यक्तियों की माँग को
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को
(C) दो व्यक्तियों की माँग को
(D) एक व्यक्ति की माँग को
उत्तर:
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को

35. माँग का नियम संबंध व्यक्त करता है-
(A) माँग और कीमत में
(B) माँग और आय में
(C) माँग और अन्य वस्तुओं की कीमत में
(D) माँग और व्यय राशि में
उत्तर:
(A) माँग और कीमत में

36. किन वस्तुओं की माँग आय के साथ प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है?
(A) अनिवार्य वस्तुओं की।
(B) निकृष्ट वस्तुओं की
(C) विलासिता की वस्तुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अनिवार्य वस्तुओं की

37. माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान का कारण है-
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम

38. माँग में परिवर्तन किससे होता है?
(A) उपभोक्ता की आय से
(B) संबंध अथवा अन्य वस्तुओं की कीमत से
(C) अभिरुचियों एवं कीमत संभावना से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

39. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन का कारण है-
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन
(C) जनसंख्या में परिवर्तन
(D) अन्य वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन

40. किन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है?
(A) गिफ्फन वस्तुओं पर
(B) सामान्य वस्तुओं पर
(C) स्थानापन्न वस्तुओं पर
(D) प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं पर
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तुओं पर

41. सामान्य वस्तुओं के माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) स्थिर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक

42. यदि आय वृद्धि के परिणामस्वरूप X वस्तु की माँग बढ़ जाती है, तो वस्तु का स्वरूप बताइए
(A) घटिया वस्तु
(B) सामान्य वस्तु
(C) स्थानापन्न वस्तु
(D) पूरक वस्तु
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तु

43. माँग में कमी का कारण है
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
(B) पूरक वस्तु की कीमत में कमी
(C) उपभोक्ता की आय में वृद्धि
(D) निकट भविष्य में कीमत में वृद्धि की संभावना
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी

44. यदि x वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण Y वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, तो इन वस्तुओं के बीच किस प्रकार का संबंध है?
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का
(B) पूरक वस्तुओं का
(C) सामान्य वस्तुओं का
(D) घटिया वस्तुओं का
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का

45. गिफ्फन वस्तु के लिए माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) सामान्य
(B) ऋणात्मक
(C) धनात्मक
(D) स्थिर
उत्तर:
(C) धनात्मक

46. माँग की कीमत लोच से अभिप्राय है-
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन
(B) माँग में परिवर्तन
(C) वास्तविक आय में परिवर्तन
(D) कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन

47. एक ऐसा माँग वक्र जो X-अक्ष के समानांतर होता है। यह किस प्रकार की लोच प्रदर्शित करता है?
(A) अनंत
(B) इकाई से कम
(C) शून्य
(D) बेलोचदार माँग
उत्तर:
(A) अनंत

48. कीमत लोच गुणांक की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(B) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(C) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{q^{0}}{p^{0}}\)
(D) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{p^{0}}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)

49. यदि कीमत में कमी के परिणामस्वरूप माँग में परिवर्तन न हो तो लोच गुणांक निम्नलिखित होगा
(A) शून्य
(B) अनंत
(C) इकाई के बराबर
(D) इकाई से अधिक
उत्तर:
(A) शून्य

50. निम्नलिखित सूत्र में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 1
रिक्त-स्थान में लिखा जाएगा-
(A) माँग में परिवर्तन
(B) मूल कीमत
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
(D) मूल माँग
उत्तर:
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन

51. यदि माँग में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम हो तो माँग की लोच ……………. होगी।
(A) इकाई
(B) इकाई से अधिक
(C) इकाई से कम
(D) शून्य
उत्तर:
(C) इकाई से कम

52. माँग की लोच प्रदर्शित करती है-
(A) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर
(C) कीमत में परिवर्तन
(D) आय में परिवर्तन
उत्तर:
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर

53. माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ कितनी होती हैं?
(A) सात
(B) पाँच
(C) बारह
(D) दो
उत्तर:
(B) पाँच

54. माँग की मूल्य लोच से अभिप्राय है
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(B) कीमत तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(C) कीमत तथा संबंधित वस्तु की माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(D) कीमत के बढ़ने से माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
उत्तर:
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात

55. जो वस्तुएँ बहुत सस्ती तथा महँगी होती हैं, उनकी माँग होती है-
(A) लोचदार
(B) पूर्ण लोचदार
(C) पूर्ण बेलोचदार
(D) बेलोचदार
उत्तर:
(D) बेलोचदार

56. ‘कार तथा पेट्रोल की माँग’ कहलाती है-
(A) पूरक
(B) स्थानापन्न
(C) इकाई
(D) शून्य
उत्तर:
(A) पूरक

57. जब वस्तु की 50 रुपए प्रति इकाई कीमत पर माँग 1,000 इकाइयाँ हैं तथा 30 रुपए कीमत पर माँग बढ़कर 4,000 इकाइयाँ हो जाती हैं, तो आनुपातिक विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता होगी-
(A) 7.5 (> 1)
(B) 1/2 (< 1)
(C) 0 (शून्य)
(D) 1 (= 1)
उत्तर:
(A) 7.5 (> 1)

58. नीचे एक रेखाचित्र दिखाया गया है, जिसमें माँग वक्र AB बिंदु विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता की मात्राएँ लिखी गई हैं, इनमें से कौन-सी गलत है?
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 2
(A) C
(B) D
(C) E
(D) B
उत्तर:
(B) D

59. संलग्न रेखाचित्र व्यक्त करता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 3
(A) कम लोचदार माँग
(B) अधिक लोचदार माँग
(C) पूर्णतया लोचदार माँग
(D) इकाई लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया लोचदार माँग

60. एक सरल माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की लोच होगी-
(A) 2
(B) 1/2
(C) 1
(D) 4
उत्तर:
(C) 1

61. जब माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है, तो इससे प्रकट होता है-
(A) माँग की इकाई लोच
(B) पूर्णतया लोचदार माँग
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग
(D) अपेक्षाकृत अधिक लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग

62. पूर्णतया बेलोचदार माँग वक्र पर माँग की कीमत लोच क्या होगी?
(A) अनंत
(B) इकाई
(C) शून्य
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शून्य

63. माँग की कीमत लोच मापने की कौन-सी विधि है?
(A) प्रतिशत विधि
(B) कुल व्यय विधि
(C) ज्यामितीय विधि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

64. निम्नलिखित में से कौन-सी जोड़ी प्रतिस्थापन वस्तुओं का उदाहरण है?
(A) कार और पेट्रोल
(B) कॉफी और दूध
(C) लिम्का, पेप्सी कोला
(D) ये सभी
उत्तर:
(C) लिम्का, पेप्सी कोला

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर ……………. होता है। (नतोदर/उन्नतोदर)
उत्तर:
उन्नतोदर

2. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति …….. ढाल वाली होती है। (ऋणात्मक/धनात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

3. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है, जब सीमांत उपयोगिता ………… होती है। (धनात्मक/शून्य)
उत्तर:
शून्य

4. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाई का उपभोग करता है, तो ……… घटती जाती है। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

5. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को …………….. कहते हैं। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

6. तटस्थता वक्र तकनीक का प्रतिपादन …………. द्वारा किया गया। (हिक्स/मार्शल)
उत्तर:
हिक्स

7. बजट रेखा को …………….. रेखा कहा जाता है। (लागत कीमत)
उत्तर:
कीमत

8. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया ………… संबंध होता है। (विपरीत/सीधा)
उत्तर:
सीधा

9. जब सीमांत उपयोगिता (MU) घट रही होती है, तब कुल उपयोगिता…… दर से बढ़ती है। (घटती हुई/बढ़ती हुई)
उत्तर:
घटती हुई

10. जब माँग वक्र Ox-अक्ष के समानान्तर होती है, तब माँग की लोच ………… होती है। (शून्य/अनन्त)
उत्तर:
अनन्त

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. किसी वस्तु की मात्रा और उसके तुष्टिगुण में सीधा संबंध होता है।
  2. किसी वस्तु की जितनी अधिक मात्रा हमारे पास होती है उतनी ही हम उसकी कम मात्रा प्राप्त करना चाहते हैं।
  3. माँग के विस्तार में चलन एक माँग वक्र से दूसरे माँग वक्र पर होता है।
  4. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन और माँग में परिवर्तन एक नहीं होता।
  5. माँग की कीमत लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
  6. जब माँग पूर्णतया लोचदार होती है तो लोच का गुणांक शून्य होता है।
  7. जब कीमत के कम होने पर कुल व्यय बढ़ता है तो माँग की लोच इकाई से अधिक कहलाती है।
  8. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम मुद्रा पर लागू नहीं होता।
  9. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम प्रगतिशील कर-प्रणाली का आधार है।
  10. बजट रेखा को सम-उत्पाद रेखा भी कहते हैं।
  11. तटस्थता वक्र पर उपयोगिता समान रहती है।
  12. उपयोगिता विचारधारा को गणनावाचक विचारधारा (Cardinal Approach) भी कहते हैं।
  13. तटस्थता वक्र वह वक्र है जिसके विभिन्न बिंदु अधिकतम सन्तुष्टि व्यक्त करते हैं।
  14. गिफ्फन वस्तु माँग के नियम का अपवाद है।
  15. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि माँग में वृद्धि का कारण होती है।
  16. हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त होती है जब कुल उपयोगिता बराबर होती है।
  17. गणनावाचक तुष्टिगुण विश्लेषण का संबंध घटते सीमांत तुष्टिगुण से है।
  18. दो तटस्थता वक्र एक-दूसरे को काट सकते हैं।
  19. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से यदि कुल उपयोगिता स्थिर रहती है तो सीमांत उपयोगिता शून्य होगी।
  20. गिफ्फन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. सही
  15. सही
  16. गलत
  17. सही
  18. गलत
  19. सही
  20. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग का नियम क्या है?
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर, माँग का नियम, वस्तु की कीमत और उसकी माँग में विपरीत संबंध बताता है।

प्रश्न 2.
माँग वक्र पर चलने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र पर चलने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को उसी माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 3.
माँग वक्र के खिसकने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को दूसरे माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 4.
माँग की मूल्य लोच से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन के माप को माँग की मूल्य लोच कहते हैं।

‘प्रश्न 5.
माँग के विस्तार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग के विस्तार का अर्थ माँग में होने वाली उस बढ़ोतरी से है, जो उस वस्तु की कीमत में कमी के फलस्वरूप होती है।

प्रश्न 6.
माँग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
माँग वस्तु की वह मात्रा है जिसे विशेष कीमत व विशेष समय में क्रेता खरीदने को तैयार होता है।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मॉग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता का संतुलन क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता का संतुलन वह स्थिति है जहाँ एक उपभोक्ता को एक दी हुई निश्चित आय और वस्तुओं की दी हुई कीमत परं अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और जहाँ से वह हटना नहीं चाहता।

प्रश्न 9.
बजट रेखा क्या है?
उत्तर:
बजट रेखा वह रेखा है जो दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडलों को दिखाती है, जिन्हें उपभोक्ता दी हई कीमतों और दी हुई आय पर खरीद सकता है।

प्रश्न 10.
एक बजट सेट कब परिवर्तित होता है?
उत्तर:

  • जब दो वस्तुओं में से किसी एक या दोनों वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है।
  • जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन हो।

प्रश्न 11.
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) क्या मापती है?
उत्तर:
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) उस दर को मापती है जिस पर उपभोक्ता X-वस्तु के बदले Y-वस्तु खरीदता है, जबकि वह अपनी पूरी आय व्यय कर देता है।

प्रश्न 12.
कुल उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वस्तु की कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमांत उपयोगिताओं के योग को कुल उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़

प्रश्न 13.
सीमांत उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। वैकल्पिक रूप में इसे ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं-वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में होने वाली वृद्धि को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
सीमांत उपयोगिता = अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 14.
सीमांत उपयोगिता से कुल उपयोगिता का आकलन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़ अर्थात्
TU = ∑ MU. 378121
TU = MU1 + MU2 + MU3 + ……….. + MUn

प्रश्न 15.
किसी वस्तु की कीमत में 7% कमी के कारण उसकी माँग में 3.5% वृद्धि हो गई, उस वस्तु की माँग की लोच के बारे में आप किस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे?
उत्तर:
मांग की लोच (eD)= IMGG
अतः वस्तु की माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 16.
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम क्या है?
उत्तर:
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम, “अन्य बातें स्थिर रहने पर जैसे-जैसे किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे उनसे प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है।”

प्रश्न 17.
तटस्थता (अनधिमान) वक्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
तटस्थता वक्र से अभिप्राय उस वक्र से है जो दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जो बराबर संतुष्टि प्रदान करते हैं और जिनके बीच उपभोक्ता चयन करते समय तटस्थ रहता है।

प्रश्न 18.
तटस्थता वक्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • तटस्थता वक्र सदैव मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
  • इसका ढलान ऋणात्मक होता है।

प्रश्न 19.
एकदिष्ट अधिमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकदिष्ट अधिमान का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम-से-कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की मात्रा भी कम न हो।

प्रश्न 20.
स्थानापन्न वस्तु से क्या अभिप्राय है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग भी बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर स्थानापन्न वस्तु की माँग घट जाती है। उदाहरण के लिए, चाय और कॉफी, कार और स्कूटर, कोका कोला और लिम्का आदि स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 21.
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) क्या है?
उत्तर:
प्रतिस्थापन की सीमांत दर ‘Y’ वस्तु की वह मात्रा है जिसे उपभोक्ता ‘X’ वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई पाने के लिए छोड़ने को तैयार है। संक्षेप में,
MRS = (-) \(\frac { ∆Y }{ ∆Y }\)
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) की प्रवृत्ति सदैव ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 22.
निम्न कोटि या घटिया वस्तुएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
निम्नस्तरीय या निम्न कोटि वस्तुएँ (Inferior Goods) ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग घटती है और आय घटने पर इनकी माँग बढ़ती है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज, मोटा कपड़ा, घटिया मार्क वाली वस्तुएँ, टोंड दूध आदि।

प्रश्न 23.
माँग फलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
माँग फलन किसी वस्तु की माँग और उसको निर्धारित करने वाले विभिन्न कारकों के बीच संबंध को व्यक्त करने का गणितीय रूप है। दूसरे शब्दों में, माँग फलन से अभिप्राय है कि किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा किन-किन कारकों का फल है अर्थात किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है।

प्रश्न 24.
बजट रेखा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दो वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर और उपभोक्ता की निश्चित आय पर दोनों वस्तुओं के ऐसे बंडलों या संयोगों को दर्शाता है, जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है।
  2. बजट रेखा को कीमत रेखा भी कहा जाता है। यह बाएँ से दाएँ झुकती हुई एक सीधी रेखा होती है। वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन या उपभोक्ता की आय में परिवर्तन से कीमत रेखा की स्थिति अथवा ढाल बदलती है।।

प्रश्न 25.
“यदि वस्तु की कीमत बढ़ती है तो परिवार को उस पर व्यय बढ़ाना ही पड़ेगा।” पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वस्तु की कीमत बढ़ने पर परिवार का वस्तु पर व्यय बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है। व्यय उस स्थिति में बढ़ेगा, जब वस्तु की eD < 1 हो, लेकिन जब वस्तु की eD > 1 हो तो वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय कम होगा। अतः वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय आवश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता क्या है? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उपयोगिता का अर्थ-किसी वस्तु या सेवा में मानव-आवश्यकता को संतुष्ट करने की शक्ति को उपयोगिता कहते हैं। अन्य शब्दों में, पदार्थ का वह गुण जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की संतुष्टि होती है, अर्थशास्त्र में उपयोगिता कहलाती है; जैसे रोटी में भूख मिटाने का गुण, पानी में प्यास बुझाने का गुण एवं अध्यापक में पढ़ाने का गुण उपयोगिता कहलाते हैं अर्थात् वस्तु या सेवा की आवश्यकतापूरक शक्ति को उपयोगिता कहते हैं।

उपयोगिता की विशेषताएँ-उपयोगिता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • उपयोगिता व्यक्तिगत है अर्थात् व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला संतुष्टि गुण है।
  • वस्तु की उपयोगिता उपभोग की तीव्रता पर निर्भर करती है; जैसे प्यासे व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता बहुत अधिक है, जबकि प्यास-रहित व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता न के बराबर है।
  • उपयोगिता हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संतुलन का क्या अर्थ है? एक वस्तु की स्थिति में इसकी शर्त बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन का अर्थ-उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी निश्चित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो और वह उपभोग के इस तरीके में कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहता हो।

एक वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की शर्त-उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन पर होगा, जब वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता हो। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता की संतुलन स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4

प्रश्न 3.
तालिका की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध (Inverse or Negative Relationship) को व्यक्त करता है। माँग के नियम के अनुसार यदि अन्य बातें समान रहें तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

सेबों की कीमत (रु०) मेंसेबों की माँग (कि०ग्रा०) में
15200
14300
13500
12800
111200

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि जब सेबों की कीमत 15 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 200 किलोग्राम है। यदि सेबों की कीमत घटकर 14 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 300 किलोग्राम हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँग के कोई तीन निर्धारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग के तीन निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की कीमत-साधारणतया ‘अन्य बातें समान रहने पर’ वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग तथा अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-एक वस्तु विशेष की माँग अन्य संबंधित वस्तुओं की कीमतों पर भी निर्भर करती है। संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) पूरक वस्तुएँ तथा (2) स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ। पूरक वस्तुएँ वे हैं, जिनकी माँग एक साथ की जाती है; जैसे पेट्रोल तथा कार की माँग। इनका संबंध इस प्रकार का होता है कि एक की कीमत में वृद्धि से दूसरे की माँग कम हो जाती है तथा एक की कीमत में कमी होने से दूसरे की माँग बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कारों की कीमत कम हो जाती है तो पेट्रोल की माँग बढ़ जाती है। स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ वे हैं, जो कि एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं; जैसे चाय के स्थान पर कॉफी। ऐसी दशा में यदि एक वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो इसकी प्रतियोगी वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

3. उपभोक्ताओं की रुचि तथा प्राथमिकताएँ-उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, आदत (Taste, Fashion and Habits) आदि का माँग पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन वस्तुओं के लिए उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ जाती है उनकी माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत रुचि कम होने पर माँग कम हो जाती है। यदि लोग चाय की अपेक्षा कॉफी पसंद करने लगते हैं तो कॉफी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग कम हो जाएगी। इसी प्रकार फैशन में परिवर्तन होने पर पुराने डिज़ाइन वाले कपड़ों की माँग कम हो जाती है और नए डिज़ाइन वाले कपड़ों की मांग बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर निम्नलिखित हैं

माँग का संकुचनमाँग में कमी
1. यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे उपभोक्ता की आय में कमी, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में कमी आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक ही माँग वक्र के नीचे वाले बिंदु से ऊपर वाले बिंदु की ओर संचलन द्वारा प्रकट होता है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के पीछे या बाईं ओर खिसकाव द्वारा प्रकट होती है।

प्रश्न 6.
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तारमाँग में वृद्धि
1. यह केवल वस्तुं की अपनी कीमत में कमी होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे कि उपभोक्ता की आय में वृद्धि, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में वृद्धि आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के दाईं या आगे की ओर खिसकाव द्वारा व्यक्त होती है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक माँग वक्र के ऊपर के बिंदु से नीचे के बिंदु की ओर संचलन द्वारा व्यक्त होता है।

प्रश्न 7.
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर बताइए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तार तथा संकुचनमाँग में वृद्धि तथा कमी
1. कीमत में परिवर्तन के कारण होता है।1. कीमत की अपेक्षा अन्य तत्त्वों; जैसे आय, फैशन, रीति-रिवाज, मौसम, जनसंख्या आदि में परिवर्तन के कारण होती है।
2. इसे ‘माँगी गई मात्रा में परिवर्तन’ कहते हैं।2. इसे ‘माँग में परिवर्तन’ कहते हैं।
3. चलन एक ही माँग वक्र पर होता है।3. माँग वक्र में खिसकाव होता है अर्थात चलन भिन्न माँग वक्र पर होता है।

प्रश्न 8.
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में वृद्धि
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि
  3. पूरक वस्तु की कीमत में कमी
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद तथा प्राथमिकता में वृद्धि
  5. क्रेताओं की संख्या में वृद्धि
  6. भविष्य में कीमत वृद्धि की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय बढ़ने की संभावना।

प्रश्न 9.
“माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी।” समझाइए।
उत्तर:
जब माँग वक्र एक ही बिंदु से निकल रही हो, तब माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी। इस स्थिति को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4a
रेखाचित्र में एक ही बिंदु P से निकल रही माँग वक्र D2 चपटी है इसलिए माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है। यह इसलिए होता है कि यदि वस्तु की कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है, तब माँग वक्र D1 शून्य (Zero) से OQ1 तक माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। जबकि माँग वक्र D2 शून्य से OQ2 माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। इसका अभिप्राय यह है कि कीमत में दिए हुए परिवर्तन के कारण D1 की तुलना में D2 में परिवर्तन D2 माँग की मात्रा अधिक है। अतः माँग वक्र D2 माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 10.
सीमांत उपयोगिता ह्रासमान नियम को तालिका व रेखाचित्र द्वारा संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता हासमान नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। इसे निम्नांकित तालिका एवं रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है-
तालिका : सीमांत उपयोगिता हासमान नियम

उपभोग की गईकुल उपयोगिता
(TU)
सीमांत उपयोगिता
(MU)
188
2146
3184
4202
5200
618-2

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5
रेखाचित्र में ox-अक्ष पर वस्तु की इकाइयों को तथा 0Y-अक्ष पर उपयोगिता को दर्शाया गया है। MU वक्र सीमांत उपयोगिता को प्रकट करता है। यह वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुका है। इसका तात्पर्य यह है कि अगली इकाई की सीमांत उपयोगिता (MU) घटती जाती है।।

प्रश्न 11.
अनधिमान मानचित्र से क्या अभिप्राय है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
संतुष्टि के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करने वाले अनधिमान वक्रों के समूह को अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र कहते हैं। प्रत्येक अनधिमान वक्र विभिन्न संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। इस प्रकार यह अनधिमान वक्रों का एक ऐसा परिवार है जो उपभोक्ता की दो वस्तुओं की संतुष्टि की पूर्ण तस्वीर पेश करता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5a
संलग्न रेखाचित्र में दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों (संयोगों) की सहायता से तीन अनधिमान वक्र IC1, IC2, IC3 बनाए गए हैं। तीनों अनधिमान वक्रों को संयुक्त रूप से एक-साथ दर्शाने वाला रेखाचित्र अनधिमान मानचित्र कहलाएगा। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि सबसे ऊँचा अनधिमान वक्र (जैसे कि रेखाचित्र में वक्र IC3) सर्वाधिक संतुष्टि का स्तर दर्शाता है, जबकि सबसे नीचा अनधिमान वक्र (जैसेकि रेखाचित्र में वक्र IC1) सबसे कम संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, अनधिमान वक्र उद्गम बिंदु O से जैसे-जैसे दूर होता जाएगा वैसे-वैसे उनका संतुष्टि स्तर बढ़ता जाएगा क्योंकि ऊँचे वक्र पर वस्तु-X और वस्तु-Y की इकाइयों का उपभोग अधिक हो रहा है।

प्रश्न 12.
किसी वस्तु की आवश्यकता और माँग के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की आवश्यकता से अभिप्राय यह होता है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है। वस्तु की आवश्यकता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उस व्यक्ति के पास उस वस्तु को खरीदने के लिए क्रय-शक्ति भी हो। एक वस्तु की माँग से अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है, जिसे खरीदने के लिए उसके पास पर्याप्त क्रय-शक्ति है तथा खरीदने के लिए वह क्रय-शक्ति का त्याग करने के लिए तैयार है। इस प्रकार वस्तु की आवश्यकता माँग को जन्म देती है, परंतु आवश्यकता वस्तु की माँग नहीं बनाती।
वस्तु की माँग = वस्तु की आवश्यकता + व्यक्ति के पास समुचित क्रय-शक्ति होना + क्रय-शक्ति के त्याग की तत्परता

प्रश्न 13.
माँग वक्र का स्थानांतरण या माँग वक्र का खिसकाव या माँग में परिवर्तन क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकाव से अभिप्राय है कि माँग वक्र प्रारंभिक माँग वक्र के ऊपर या नीचे खिसक जाती है। इस प्रकार का परिवर्तन तब आता है जब कीमत के अतिरिक्त अन्य कारकों; जैसे आय, फैशन आदि में परिवर्तन होने से माँग कम या अधिक हो जाती है। इसे माँग के स्तर में होने वाला परिवर्तन कहा जाता है। इन तत्त्वों में परिवर्तन आने से माँग के घटने को माँग में कमी तथा माँग के बढ़ने को माँग में वृद्धि कहा जाता है।

प्रश्न 14.
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं-
1. आय में वृद्धि-जब किसी उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में अधिक हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में अधिक मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी दाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के पक्ष में होता है, तो उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है, जिसके कारण माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-यदि एक वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में गिरावट होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 15.
रेखाचित्रों की सहायता से माँग का संकुचन तथा माँग में कमी को समझाइए।
उत्तर:
माँग का संकुचन-जब कीमत में वृद्धि के कारण वस्तु की माँग में गिरावट आती है, तो इसे माँग का संकुचन कहते हैं। माँग के संकुचन में उसी माँग वक्र पर नीचे से ऊपर की ओर संचलन होता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (i) में दश कि जब वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से कम होकर OQ1 रह जाती है। अतः QQ1 वस्तु की माँग में संकुचन है।

माँग में कमी-जब वस्तु की कीमत में वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कारणों से वस्तु की माँग में गिरावट होती है, तो इसे माँग , में कमी कहते हैं। माँग में कमी से माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है माँग में कमी को संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा स्पष्ट किया गया है। रेखाचित्र में, हम देखते हैं कि माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो गया है अर्थात् माँग OQ से घटकर OQ1 हो गई है। अतः QQ1 माँग में कमी है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 6

प्रश्न 16.
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं
1. आय में कमी-जब किसी उपभोक्ता की आय में कमी होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में कम हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में कम मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी बाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के विरोध में होता है, तो उस वस्तु की माँग घट जाती है, जिसके कारण माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें यदि एक स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 17.
यदि दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव (प्रतिच्छेदन) बिंदु पर किस वक्र की लोच अधिक होगी?
उत्तर:
जब दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव बिंदु पर कम ढाल वाले माँग वक्र की लोचशीलता अधिक होगी। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है। रेखाचित्र में DD तथा D1D1 दो माँग वक्र हैं और ये C बिंदु पर काट रहे हैं। इस बिंदु के अनुरूप कीमत P0 और दोनों वक्रों पर माँग की मात्रा Q0 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 7
जब कीमत बढ़कर P1 हो जाती है तो कम ढाल वाले माँग वक्र DD पर माँग की मात्रा में गिरावट Q0Q2 के बराबर आती है जबकि अधिक ढाल वाले माँग वक्र D1D1 पर गिरावट Q0Q0 है। अतः दोनों माँग वक्रों के लिए कीमत में प्रतिशत वृद्धि तो समान है, परंतु माँग की मात्रा में गिरावट कम ढाल वाले माँग वक्र पर अधिक है। स्पष्ट है कि कम ढाल वाले माँग वक्र के प्रतिच्छेदन (कटाव) बिंदु पर लोचशीलता अधिक होती है।

प्रश्न 18.
नीचे ढालू सीधी माँग-वक्र पर कीमत लोच Y-अक्ष पर (∞) से आरंभ होकर X-अक्ष पर शून्य (0) हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग की लोच को मापने का सूत्र है- \(e_{\mathrm{D}}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 8
नीचे दाईं ओर ढालू माँग वक्र का ढाल (Slope) \(\frac { ∆p }{ ∆q }\) के समान है और यह सारी माँग वक्र पर एक समान रहता है। इसका ये भी अर्थ है कि ढाल का उल्टा (Reciprocal of the Slope) अर्थात् \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) भी समान रहेगा। इसलिए, माँग की लोच \(\frac { p }{ q }\) में परिवर्तन को में परिवर्तन के आधार पर जाना जा सकता है। जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है, जहाँ DD रेखा Y-अक्ष पर मिलती है वहाँ माँग (q) शून्य है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\)(∞) के समान है। इसके विपरीत जहाँ DD रेखा X-अक्ष पर मिलती है, वहाँ कीमत शून्य (0) है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\) शून्य (0) के समान है।

प्रश्न 19.
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु क्या स्पष्ट करते हैं?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 9
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु अनधिमान वक्र के ऊपर के बिंदु उन बंडलों को दर्शाते हैं, जिन्हें अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदुओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की अपेक्षा अधिमानता (Preference) दी गई है। अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों को अनधिमान वक्र के नीचे स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की तलना में अधिमानता दी जाती है।

प्रश्न 20.
एक तालिका की सहायता से एक व्यक्ति की माँग और बाज़ार माँग के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति की माँग अर्थात् व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है, जबकि बाज़ार माँग से अभिप्राय एक वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाज़ार के सभी व्यक्तिगत उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है। इस प्रकार सभी व्यक्तियों की माँग का जोड़ बाज़ार माँग है। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-
तालिका

आइसक्रीम की कीमत (रु०)अजय की माँगरोहित की माँगगौरव की माँगबाज़ार की माँग
170150130350
260100100260
3506080190
4403070140
5301060100
620005070

प्रश्न 21.
माँग का नियम बताइए और इसकी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध (Inverse Relationship) को व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध होता है।

मान्यताएँ माँग के नियम की परिभाषा में ‘अन्य बातें समान रहें’ वाक्यांश का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ यह है कि माँग का नियम कुछ मान्यताओं पर आधारित है; जैसे-

  • उपभोक्ताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं अर्थात् रुचि, फैशन तथा आदत आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु की निकट भविष्य में कीमत परिवर्तन की संभावना नहीं होती।
  • संबंधित वस्तुओं जैसे स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु सामान्य (Normal Goods) होनी चाहिए।

प्रश्न 22.
एक माँग वक्र की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच के संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग के नियम के अनुसार, यदि अन्य बातें समान रहें, तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इस प्रकार माँग का नियम वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अथवा ऋणात्मक संबंध व्यक्त करता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 10
इस चित्र में वस्तु की OP कीमत पर वस्तु की माँग OQ है। जब कीमत घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 23.
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ क्यों होता है?
उत्तर:
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ होता है जो वस्तु की कीमत और वस्तु की माँग के ऋणात्मक संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग वक्र के दाहिनी ओर ढलवाँ होने का मुख्य कारण ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम है। ह्रासमान सीमांत उपयोगिता के अनुसार जैसे-जैसे व्यक्ति एक वस्तु की इकाइयों का उपभोग करता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी ही इकाइयाँ खरीदेगा जितनी इकाइयाँ खरीदने पर उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान तथा वस्तु की कीमत बराबर हो। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा, जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। चूँकि सीमांत उपयोगिता वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है और माँग वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है।

प्रश्न 24.
माँग के नियम के अपवाद. बताइए।
उत्तर:

  1. माँग का नियम गिफ्फन वस्तुओं पर लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुएँ निकृष्ट वस्तुएँ होती हैं; जैसे मोटा अनाज, मोटा कपड़ा, डालडा घी, इमली आदि।
  2. माँग का नियम जीवनोपयोगी वस्तुओं (रोटी, नमक) आदि पर लागू नहीं होता।
  3. माँग का नियम उस समय लागू नहीं होगा जब उपभोक्ताओं को भविष्य में कीमत बढ़ने या घटने की आशंका हो।
  4. माँग का नियम दिखावे और प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं पर लागू नहीं होता।

प्रश्न 25.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्त की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(1) अनिवार्य वस्तुएँ वे हैं जो मानव जीवन के लिए अति आवश्यक हैं; जैसे भोजन, वस्त्र, मकान आदि। आय में वृद्धि होने पर कुछ समय तक तो इनकी माँग बढ़ेगी और उसके पश्चात् स्थिर हो जाएगी।

(2) आरामदायक और विलासिताओं में उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है जो हमारे जीवन को आनंदमय बनाती हैं। आय में वृद्धि होने के साथ ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ती है।

(3) निकृष्ट अथवा घटिया वस्तुएँ वे हैं जिनको उपभोग के क्रम में सबसे निम्न स्थान मिलता है; जैसे मोटा कपड़ा, मोटा अनाज आदि । उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर निकृष्ट वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, क्योंकि वह इन वस्तुओं का प्रतिस्थापन उत्कृष्ट वस्तुओं से करना चाहेगा।

प्रश्न 26.
संबंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए।
उत्तर:
एक परिवार द्वारा एक वस्तु की माँग व अन्य वस्तुओं की कीमतों के बीच संबंधों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं, तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोत्तरी से चाय की माँग में बढ़ोत्तरी होगी।

(2) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, पेन की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ ही साथ स्याही की मांग भी बढ़ जाएगी।

(3) यदि वस्तुएँ असंबंधित हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट या बढ़ोत्तरी परिवार की वस्तु विशेष की माँग को प्रभावित नहीं कर पाती। उदाहरण के लिए, कपड़ों की कीमत में कमी से बॉल पेनों की माँग अप्रभावित रहेगी।

प्रश्न 27.
कॉफी की कीमत में वृद्धि का चाय की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कॉफी और चाय स्थानापन्न (Substitute) वस्तुएँ हैं। कॉफी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग चाय की ओर जाने की प्रवृत्ति को जन्म देगी, जिसके कारण चाय की माँग में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 11
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो चाय की माँग जाती है, तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 28.
चाय की कीमत में वृद्धि का चीनी की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 12
चाय और चीनी पूरक (Complementary) वस्तुएँ हैं। चाय की कीमत में वृद्धि से चाय की माँग कम हो जाएगी। फलस्वरूप चाय की माँग में कमी से चीनी की मांग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। – रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 रह जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और पूरक वस्तु चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 29.
सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं के अर्थ समझाइए।
उत्तर:
सामान्य वस्तुओं अथवा श्रेष्ठ वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में सीधा संबंध होता है। घटिया (निकृष्ट) वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में विपरीत संबंध होता है। सामान्य वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं के आय माँग वक्र निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 13
आय में वृद्धि से सामान्य और अच्छी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, लेकिन घटिया वस्तुओं की माँग में कमी होती है। घटिया वस्तु का आय-माँग वक्र नीचे दायीं ओर ढाल वाला होता है, जबकि सामान्य/श्रेष्ठ वस्तु का आय-माँग वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर ढाल वाला होता है।

प्रश्न 30.
मान लीजिए कि वस्तु A वस्तु Bकी स्थानापन्न है। Bकी कीमत में वृद्धि का Aकी माँग वक्र पर क्या प्रभाव B की कीमत में वृद्धि होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 14
वस्तु A, वस्तु B की स्थानापन्न है जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और B दोनों एक ही प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि करते हैं अर्थात् वस्तु A को वस्तु B के स्थान पर D(नई माँग वक्र वस्तु A) प्रयोग में लाया जा सकता है। जब वस्तु B की कीमत में वृद्धि होती है, तो वह वस्तु A की तुलना में महँगी हो जाती है। उपभोक्ता वस्त B के स्थान पर वस्त A की ओर आकर्षित A की माँग होंगे। परिणामस्वरूप वस्तु B की कीमत में वृद्धि से वस्तु A का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाएगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र वृद्धि द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 31.
वस्तु A तथा वस्तु B के उपभोग में पूरकता है। A की कीमत में वृद्धि का B के माँग वक्र पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 15
वस्तु A तथा वस्तु B पूरक वस्तुएँ हैं जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और वस्तु B दोनों का उपभोग साथ-साथ किया जाता है। जब वस्तु A की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु A की माँग में कमी होना स्वाभाविक है। वस्तु A की माँग में कमी से वस्तु B की मांग भी हो जाएगी। परिणामस्वरूप वस्तु B का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से माँग के विस्तार को समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 16
माँग का विस्तार-किसी वस्तु की कीमत में कमी होने से यदि वस्तु की माँग पहले से अधिक हो जाती है, तो इसे माँग का विस्तार कहते हैं। माँग के विस्तार की स्थिति में उपभोक्ता उसी माँग वक्र पर ऊपर से नीचे दायीं ओर संचलन करता है, जैसे कि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब वस्तु की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। QQ1 माँग का विस्तार है।

प्रश्न 33.
माँग में कमी के कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में कमी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में कमी
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
  3. पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद व प्राथमिकता में कमी
  5. क्रेताओं की संख्या में कमी
  6. भविष्य में कीमत के कम होने की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय कम होने की संभावना।

प्रश्न 34.
एक वक्रीय माँग वक्र के किन्हीं दो बिंदुओं पर माँग की लोच की गणना करके दर्शाएँ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17a
संलग्न रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है। यदि हम वक्रीय माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात करते हैं, तो उस बिंदु को स्पर्श करती हुई एक स्पर्श रेखा (Tangent line) खींचेंगे। अब माँग की लोच निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके आसानी से निकाली जा सकती है
सूत्र के रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17
स्पर्श रेखा का ऊपरी भाग रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है, जिस पर दो बिंदु P और P1 स्थित हैं।
अब हम इन बिंदुओं को स्पर्श करती हुई दो सीधी रेखाएँ AB व A1B1 खींचते हैं। AB स्पर्श रेखा माँग वक्र DD पर स्थित P बिंदु को स्पर्श करती है, जबकि A1B1 रेखा P1 बिंदु को स्पर्श करती है। अब रेखा के निचले भाग को ऊपरी भाग से (\(\frac { PB }{ PA }\)) विभाजित करने पर P1 बिंदु पर माँग की लोच इकाई से अधिक प्राप्त होगी। इसी प्रकार P, बिंदु पर भी माँग की लोच ज्ञात की जा सकती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बजट रेखा की अवधारणा समझाइए। किन परिस्थितियों में बजट रेखा खिसक जाती है? रेखाचित्रों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
बजट रेखा का अर्थ-बजट रेखा दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों या संयोगों (Combinations) को दर्शाती है जिन्हें उपभोक्ता निश्चित आय और कीमतों पर अपनी समस्त आय से खरीद सकता है। दूसरे शब्दों में, बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दी हुई कीमतों और आय के आधार पर दो वस्तुओं पर व्यय की सभी संभावनाएँ दर्शाती है। इस प्रकार बजट रेखा उन संभावनाओं को प्रकट करती है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय से खरीद सकता है। बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित है
P1x1 + P2 x2 = M
उदाहरण-उदाहरण के लिए, मान लो एक उपभोक्ता की आय (या बजट) 40 रु० है जिसे वह संतरों और सेबों के उपभोग पर व्यय करना चाहता है, जबकि सेब और संतरे की प्रति इकाई कीमत 10 रु० है। दी हुई आय और
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 18
कीमतों के आधार पर उपभोक्ता दो वस्तुओं के निम्नलिखित पाँच बंडलों या संयोगों को खरीद सकता है (0, 4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0) जिन पर व्यय, उसकी आय (40 रु०) के बराबर है।

जब ऐसे सभी बंडलों या संयोगों को ग्राफ पर अंकित कर जो बिंदु प्राप्त होते हैं उनको मिलाने से बजट रेखा निकल आती है; जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपभोक्ता बजट रेखा सीमा पर या इसके भीतर ही खरीद सकता है बाहर नहीं क्योंकि बजट रेखा उपभोक्ता के बजट (आय) से नियन्त्रित होती है। उपभोक्ता की आय या वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर बजट रेखा का ढाल (Slope) या स्थिति बदल .. जाती है। ध्यान से देखें तो उक्त संयोजनों में सेबों की इकाइयाँ घटाकर ही संतरों की इकाइयाँ बढ़ाई गई हैं। इसे हम रेखाचित्र में । संतरों को X-अक्ष पर और सेबों को Y-अक्ष पर मापकर दिखा सकते हैं। दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों/संयोगों के प्रतीक A, B, C, D, E बिंदुओं को मिलाने से एक सरल रेखा बन गई है जिसे बजट रेखा कहते हैं। ध्यान रहे बजट रेखा को कीमत रेखा (Price Line) या आय रेखा भी कहा जाता है।

बजट रेखा में खिसकाव-बजट रेखा में खिसकाव निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर करता है-

  • उपभोक्ता की आय
  • दोनों वस्तुओं की कीमतें।

जब उपर्युक्त दोनों कारकों अथवा उनमें से किसी एक कारक में कोई परिवर्तन होता है, तो बजट रेखा खिसक जाती है। उपभोक्ता की आय में कमी होने पर बजट रेखा बाईं ओर और उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर बजट रेखा दाईं ओर खिसक जाती है। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

जब उपभोक्ता की आय स्थिर है लेकिन X-वस्तु की कीमत में गिरावट आती है, तो बजट रेखा में परिवर्तन होगा क्योंकि. अब उपभोक्ता X-वस्तु की अधिक इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसी प्रकार यदि X-वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो बजट रेखा .. में परिवर्तन होगा क्योंकि अब उपभोक्ता X-वस्तु की कम इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 19

प्रश्न 2.
यह समझाइए कि उपभोक्ता संतुलन वहीं क्यों होता है जहाँ उसकी किसी वस्तु से प्राप्त सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की बाज़ार कीमत के समान है?
अथवा
एक ही वस्तु की स्थिति में, उपयोगिता तालिका (अनुसूची) की सहायता से उपभोक्ता के संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता के संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी दी हुई आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो। उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार, एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन की स्थिति में होगा जब सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility – MU) का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता होगी। उपभोक्ता के संतुलन की स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए अग्रलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 20
एक रुपए की सीमांत उपयोगिता और वस्तु की कीमत को स्थिर तथा दिया हुआ मान लिया जाता है, लेकिन वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटती हुई होती है। उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में उनकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। यदि वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता को प्राप्त उपयोगिता अधिक होगी और उपभोक्ता उस समय तक उपभोग करता रहेगा जब तक कि सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की कीमत के बराबर न हो।

उपभोक्ता के संतुलन को एक उदाहरण द्वारा भी समझाया जा सकता है। एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रुपए है – और 1 रुपए की सीमांत उपयोगिता 4 है। मोहिनी एक उपभोक्ता है जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता
160
240
320
410
500
610

मोहिनी तीसरी बोतल पर संतुलन की स्थिति में है और वह चौथी बोतल का उपयोग नहीं करेगी। तीसरी बोतल पर उपर्युक्त शर्त पूरी होती है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 21

प्रश्न 3.
माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं? माँग की कीमत लोच की विभिन्न श्रेणियों की चित्र सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग की मात्रा में जिस अनुपात या दर से परिवर्तन होता है, उसे माँग की कीमत लोच कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 22
संक्षेप में, कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिक्रिया का माप माँग की लोच कहलाती है। माँग की लोच के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि माँग की लोच सदैव ऋणात्मक होती है क्योंकि कीमत और माँग में विपरीत संबंध पाया जाता है। किंतु इसके लिए व्यवहार में ऋणात्मक चिह्न (-) का प्रयोग नहीं किया जाता।
माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ माँग की कीमत लोच की मुख्य रूप से निम्नलिखित पाँच श्रेणियाँ हैं-
1. पूर्णतया लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुए बिना अथवा नाममात्र का परिवर्तन होने पर उस वस्तु की माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाए, तो वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e = ∞ कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OX-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि DD माँग वक्र पर OP कीमत में परिवर्तन हुए बिना कभी माँग बढ़कर OQ1 और कभी घटकर OQ2 हो जाती है। इस प्रकार की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition) में देखने को मिलती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 24
2. पूर्णतया बेलोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी माँगी जाने वाली मात्रा में कोई परिवर्तन न हो, तो वस्तु की माँग पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e= 0 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि, DD माँग वक्र पर जब कीमत OP से बढ़कर OP1 या घटकर OP2 हो जाती है, तो माँग OQ ही रहती है। ऐसी स्थिति व्यवहार में बहुत कम देखने को मिलती है, हाँ यदि किसी वस्तु की माँग अत्यधिक आवश्यक हो; जैसे किसी विशेष दुर्लभ दवाई (Rare Medicine) की माँग अथवा किसी अत्यधिक व्यसनी की किसी अवांछनीय पदार्थ जैसे अफीम (Opium) आदि की माँग के लिए माँग वक्र उदग्र (Vertical) हो सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 25
3. इकाई लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की माँग में ठीक उसी अनुपात में परिवर्तन होता है जिस अनुपात में वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुआ है, तो उसे वस्तु की इकाई लोचदार माँग कहा जाता है। यदि किसी वस्तु की कीमत में 25% परिवर्तन होने पर उसकी माँग में भी 25% परिवर्तन आता है, तो उसे इकाई लोचदार माँग कहा जाएगा। गणित की भाषा में इसे e = 1 कहा जाता है। इस स्थिति में माँग वक्र 45° का कोण बनाता हुआ होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1, माँग में होने वाले परिवर्तन QO1 के बराबर है अर्थात् ∆ P = ∆Q।
कीमत
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 26
माँग में % परिवर्तन = कीमत में % परिवर्तन
साधारणतया सुविधाओं (Comforts) के संदर्भ में माँग आनुपातिक लोचदार होती है।

4. अधिक लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में थोड़ा परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में अधिक परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग अधिक लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e > 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्थ लेटी (Semi-Horizontal) अवस्था में होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP, थोड़ा है तथा माँग में होने वाला परिवर्तन QQ. अधिक है अर्थात् ∆P < ∆ Q। माँग में % परिवर्तन > कीमत में % परिवर्तन
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 27
साधारणतया विलासिताओं (Luxuries) के संदर्भ में माँग अधिक लोचदार होती है।

5. कम लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में अधिक परिवर्तन आने से वस्तु की माँग में थोड़ा परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग कम लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e < 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्ध-उदग्र (Semi-Vertical) सा होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1 अधिक है जबकि माँग में होने वाला परिवर्तन QQ1 कम है अर्थात् ∆P > ∆Q1
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 28
माँग में % परिवर्तन < कीमत में %
परिवर्तन – साधारणतया अनिवार्यताओं (Necessaries) के संबंध में माँग कम लोचदार होती है।

प्रश्न 4.
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक माग निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की प्रकृति-किसी वस्तु की माँग की लोच अधिक होगी या कम, यह वस्तु विशेष की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि वस्तु अनिवार्य है; जैसे गेहूँ, तो उसकी कीमत में बहुत अधिक परिवर्तन आने से भी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। अतः अनिवार्य वस्तु की माँग कम लोचदार होती है। इसके विपरीत, विलासिता की वस्तुओं; जैसे एयरकंडीशन की माँग प्रायः अधिक लोचदार होती है। जैसे ही विलासिता की वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है, उनकी माँग में कीमत में परिवर्तन के अनुपात से अधिक परिवर्तन होता है।

2. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता-किसी वस्तु की यदि स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हैं, तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। उदाहरण के लिए, यदि ब्रुक बांड चाय की कीमत बढ़ जाती है, तो उपभोक्ता लिप्टन चाय का प्रयोग करना आरंभ कर देंगे तथा ब्रुक बांड चाय की माँग में काफी कमी आ जाएगी। दूसरी ओर, यदि एक वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं है; जैसे कि नमक, तो इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी।

3. वस्तु के कई उपयोग-यदि किसी वस्तु का एक ही उपयोग संभव हो तो उसकी कीमत में परिवर्तन होने से उसकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा। अतः इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी। दूसरी ओर, जिस वस्तु के कई उपयोग हैं; जैसे बिजली का उपयोग रोशनी के लिए, कमरा गर्म करने के लिए और भोजन पकाने के लिए किया जाता है, तो ऐसी वस्तु की कीमत के बढ़ने से माँग काफी कम हो जाती है तथा कीमत कम होने से माँग बढ़ जाती है। अतः इसकी माँग अधिक लोचदार मानी जाएगी।

4. उपभोग का स्थगित होना-यदि किसी वस्तु के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाए तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। गर्म कपड़े, टेलीविज़न, जूते आदि अनेक वस्तुओं के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव होता है। इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने से इनकी माँग कम हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता कुछ समय के लिए इन वस्तुओं को नहीं खरीदेगा। फलस्वरूप इनकी माँग लोचदार होगी, लेकिन अनिवार्य वस्तुओं; जैसे अनाज, नमक, दवाइयाँ इत्यादि का उपभोग कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव नहीं होता। अतः इनकी माँग बेलोचदार होती है।

5. कीमतें-किसी वस्तु की माँग की लोच उस वस्तु की कीमत द्वारा भी प्रभावित होती है, जिन वस्तुओं की कीमतें बहुत अधिक या बहुत कम होती हैं; जैसे डायमंड तथा माचिस । इनकी माँग सामान्यतः बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से इनकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। सामान्य कीमत वाली वस्तुओं; जैसे बिजली का पंखा आदि की माँग लोचदार होती है क्योंकि इनकी कीमत में होने वाले परिवर्तनों का माँग पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ता है।

6. वस्तु पर व्यय की जाने वाली आय का अनुपात-माँग की लोच इस बात से भी प्रभावित होती है कि उपभोक्ता अपनी कुल आय का कितना भाग वस्तु पर व्यय करता है। जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता की आय का बहुत थोड़ा भाग व्यय होता है; जैसे माचिस, ब्लेड, साबुन आदि, तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से उपभोक्ता द्वारा व्यय किए जाने वाले अनुपात में परिवर्तन नहीं आता और वस्तुओं की मांग भी कम नहीं होती। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का अधिक भाग व्यय करता है; जैसे मकान का किराया, कपड़ों पर व्यय आदि, तो उनकी माँग अधिक लोचदार होती है।

7. आदतें माँग की लोच उपभोक्ता की आदतों पर भी निर्भर करती है। जिन वस्तुओं के उपभोग की उपभोक्ता को आदत पड़ जाती है; जैसे पान, सिगरेट, चाय इत्यादि तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है क्योंकि आदत संबंधी वस्तुओं की कीमत में कितनी भी वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं आती।

8. समयावधि-माँग की लोच पर समयावधि का भी प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में वस्तु की माँग प्रायः कम लोचदार होती है, जबकि दीर्घकाल में माँग अधिक लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में वस्तु की माँग को कीमत के अनुरूप ढालने का काफी समय मिल जाता है, जबकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि वस्तु की माँग को कीमतों के अनुरूप नहीं ढाला जा सकता।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 5.
एक वस्तु की माँग संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तनों से कैसे प्रभावित होती है? रेखाचित्रों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु की माँग और संबंधित वस्तुओं की कीमतों के संबंध को हम निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
1. स्थानापन्न अथवा प्रतियोगी वस्तुएँ-यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोतरी से चाय की मांग में भी बढ़ोतरी होगी।

इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं- रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।।
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2. पूरक वस्तुएँ यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं तो अन्य वस्तुओं की | कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, कार की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ-ही-साथ पेट्रोल की माँग भी बढ़ जाएगी। इसी प्रकार चाय की कीमत में वृद्धि के कारण चाय की माँग में कमी से चीनी की माँग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्रों स्पष्ट कर सकते हैं
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रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है कि जब कार की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो पेट्रोल की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसी प्रकार रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध है।

प्रश्न 6.
उदाहरण की सहायता से माँग की कीमत लोच को मापने की कुल व्यय विधि बताइए।
उत्तर:
कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच का माप वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु पर किए गए कुल व्यय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर किया जाता है। कुल व्यय की गणना वस्तु की कीमत को उसकी माँग की मात्रा से गुणा करके की जाती है अर्थात् TE = P x D । कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
1. इकाई से अधिक लोच-यदि कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय बढ़ जाए और कीमत के बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए, तो माँग की लोच इकाई से अधिक होती है। सांकेतिक रूप में
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2. इकाई के बराबर लोच-यदि वस्तु की कीमत घटने अथवा बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय स्थिर रहता है, तो माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। सांकेतिक रूप में
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3. इकाई से कम लोच यदि वस्तु की कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए और कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाए तो माँग की लोच इकाई से कम होती है। सांकेतिक रूप में
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कुल व्यय विधि को निम्नलिखित तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका
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तालिका में स्पष्ट किया गया है कि जब कीमत 10 रुपए प्रति इकाई है तो वस्तु पर कुल व्यय 10 रुपए किया जाता है, परंतु जब कीमत कम होकर 9 रुपए हो जाती है तो इस वस्तु पर कुल व्यय बढ़कर 18 रुपए तथा जब कीमत 8 रुपए हो जाती है तो – कुल व्यय 24 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से अधिक है। जब कीमत 6 रुपए प्रति इकाई से कम होकर 5 रुपए हो जाती है तो कुल व्यय 30 रुपए ही रहता है। अतः माँग की.

कुल व्यय वक्र कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई के बराबर है। जब कीमत 4 रुपए से 3 रुपए तथा 3 रुपए से 2 रुपए हो जाती है, तो कुल व्यय 28 रुपए से कम होकर 24 रुपए तथा फिर 18 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से कम है।
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कल व्यय विधि को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र में OX-अक्ष पर कुल व्यय तथा OY-अक्ष पर कीमत मापी गई है। ABCD कुल व्यय रेखा है। इसका AB भाग इकाई से अधिक कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) को प्रकट करता है, क्योंकि इस स्थिति में कीमत के कम होने से कुल व्यय बढ़ता है। कुल व्यय रेखा का BC भाग इकाई लोचदार माँग को व्यक्त करता है, कुल व्यय क्योंकि कीमत परिवर्तन से कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं होता। CD भाग इकाई से कम लोचदार माँग को व्यक्त करता है, क्योंकि इस अवस्था में कीमत के कम होने से कुल व्यय भी कम हो जाता है।

प्रश्न 7.
अनधिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता के इष्टतम चयन को समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
अथवा
अनधिमान/तटस्थता वक्र की सहायता से उपभोक्ता तटस्थता की इष्टतम या संतुलन स्थिति को समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन की अवस्था को तब प्राप्त करता है, जब वह दी हुई आय और वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर अपनी संतुष्टि को अधिकतम करता है। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात दो वस्तुओं के उस संयोग (Combination) का चयन करना है जो उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करता है। इसके लिए तीन जानकारियाँ जरूरी हैं-(i) उपभोक्ता की आय, (ii) वस्तुओं की कीमतें (इन दोनों सूचनाओं का प्रतिनिधित्व बजट रेखा करती है) और (iii) अधिमान सारणी (Preference Schedule) जिसे अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र दर्शाता है। उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ बजट रेखा उच्चतम प्राप्य (Highest attainable) अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है अर्थात् स्पर्श रेखा (Tangent) बन जाती है। इस बिंदु पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल (Slope) बजट रेखा के ढाल के बराबर होता है।

संलग्न अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र (Indifference Map) में हम बजट रेखा (कीमत रेखा) M खींचते हैं। उपभोक्ता का लक्ष्य अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र में सबसे ऊँचा वह बंडल (संयोग) (Combination) उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करना है जो बजट रेखा के अंतर्गत संभव हो। वह केवल उस बिंदु प संतुलन प्राप्त करेगा जो बजट रेखा और सर्वोच्च प्राप्य अनधिमान (तटस्थता) वक्र में साझा (Common) बिंदु हो। दूसरे शब्दों में, जिस बिंदु पर बजट रेखा ऊँचे-से-ऊँचे अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है वही संतुलन बिंदु होगा। रेखाचित्र में बिंदु P संतुलन बिंदु है जहाँ बजट रेखा M उच्चतम प्राप्य (Attainable) वक्र IC2 को स्पर्श करती है। अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC3 पर स्थित बंडल (संयोग) बजट रेखा की सीमा से बाहर (ऊपर) होने के कारण अप्राप्य है, जबकि IC1 वक्र पर बंडल (संयोग) वक्र IC2 के बंडल (संयोग) से निश्चित रूप से घटिया है। अतः आदर्शतम या इष्टतम (Optimum) बंडल (संयोग) उस बिंदु पर स्थित है जिस पर बजट रेखा अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC2 को स्पर्श (Tangent) करती है। यहाँ वह बिंदु P है।
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संक्षेप में, उपभोक्ता संतुलन की दो शर्ते हैं-
(i) बजट रेखा को अनधिमान (तटस्थता) वक्र पर स्पर्श रेखा (Tangent) होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल = बजट रेखा का ढाल।
(ii) संतुलन बिंदु (यहाँ बिंदु P) पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र उद्गम (Origin) बिंदु O की ओर उन्नतोदर (Convex) होना चाहिए अर्थात् सीमांत प्रतिस्थापन दर (Marginal Rate of Substitution) घटती हुई होनी चाहिए।

प्रश्न 8.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान किन परिस्थितियों में धनात्मक होता है?
अथवा
माँग के नियमों के अपवादों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माँग वक्र-माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है। कई विशेष परिस्थितियों में माँग का नियम लागू नहीं होता अर्थात् कीमत और माँग में विपरीत संबंध देखने को नहीं मिलता। इन परिस्थितियों में कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है और कीमत कम होने पर माँग कम हो जाती है। माँग के नियम के अपवाद की स्थिति में माँग वक्र का ढाल दाईं ओर ऊपर उठता हुआ होता है। जैसा कि संलग्न चित्र में दिखाया गया है।
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माँग के नियम के अपवाद अथवा माँग वक्र के धनात्मक ढलान के कारण-माँग के नियम के कुछ महत्त्वपूर्ण अपवाद अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. अनिवार्य वस्तुएँ -बेन्हम (Benham) के अनुसार जीवन की अनिवार्य वस्तुओं; जैसे गेहूँ, चावल, दालें, घी, आटा, नमक, चीनी, तेल, साबुन आदि पर यह नियम लागू नहीं होता। आटे की कीमत चाहे अधिक हो या कम, फिर भी उपभोक्ता उसकी माँग पहले जितनी ही करता है।

2. वस्तुओं की दुर्लभता का डर-बेन्हम (Benham) के अनुसार जब किसी वस्तु की आने वाले समय में (आपात्कालीन स्थिति; जैसे युद्ध, अकाल आदि) के कारण कमी (Scarcity) हो जाने का डर हो, तो वर्तमान में उसकी कीमत बढ़ने पर भी उसकी माँग बढ़ती जाती है; जैसे भारत में मिट्टी का तेल, डीजल, सीमेंट, रासायनिक खाद, कोयला आदि वस्तुओं की दुर्लभता का डर प्रत्येक समय बना रहता है। यदि इन वस्तुओं की कीमत बढ़ जाए, तो भी इनकी माँग बढ़ जाती है।

3. गिफ्फन वस्तुएँ सर रॉबर्ट गिफ्फन (Sir Robert Giffen) के अनुसार गिफ्फन वस्तुओं (Giffen Goods) पर माँग का नियम लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुओं की कीमतें बढ़ने पर उनकी अधिक माँग और कीमत गिरने पर उनकी कम माँग की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज की कीमतें कम हो जाती हैं तो आवश्यक नहीं कि उ अधिक मात्रा खरीदें। कीमत कम होने से उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है, जिसका वह उत्तम अनाज-गेहूँ, चावल, आदि खरीदने में उपयोग करता है, जिससे मोटे अनाज की माँग कम हो जाएगी। इस प्रकार घटिया वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता।

भी घटिया वस्तुएँ माँग के नियम का अपवाद नहीं हैं अर्थात सभी घटिया वस्तुएँ गिफ्फन वस्तएँ नहीं हैं। वे सभी वस्तुएँ घटिया होती हैं जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक होता है अर्थात् आय में परिवर्तन होने से जिनकी माँग में विपरीत दिशा में परिवर्तन होता है। परंतु माँग का नियम केवल उन घटिया वस्तुओं पर लागू नहीं होता जिनका धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव, ऋणात्मक आय-प्रभाव से कम है। जिन घटिया वस्तुओं का ऋणात्मक आय प्रभाव धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव से कम है, उन पर माँग का नियम लागू होता है।

4. उपभोक्ता की अज्ञानता-उपभोक्ता की अज्ञानता के कारण भी यह नियम लागू नहीं होता। कभी-कभी उपभोक्ता अज्ञानता के कारण यह सोचता है कि महँगी वस्तुएँ श्रेष्ठ और सस्ती वस्तुएँ निम्नकोटि की होती हैं। ऐसी स्थिति में वे कीमतें बढ़ने पर ही वस्तु की अधिक माँग करते हैं; जैसे क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक आदि कॉस्मेटिक्स की बिक्री ऊँची कीमत के आधार पर होती है। सस्ती कीमत पर उपभोक्ता इन्हें घटिया समझकर नहीं खरीदता, परंतु महँगी कीमतों पर वह इन्हें बढ़िया समझकर खरीद लेता है।

5. प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ यह नियम मिथ्या आकर्षण (Snob Appeal) वाली वस्तुओं पर भी लागू नहीं होता। कुछ वस्तुएँ; जैसे आयातित कार, बहुमूल्य हीरे-जवाहरात, कीमती कालीन इत्यादि ऐसी होती हैं जो केवल दिखावे के लिए प्रयोग की जाती हैं और जिन्हें धनी व्यक्ति केवल मान-सम्मान पाने के लिए अपने पास रखना चाहते हैं। जैसे-जैसे इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जाती हैं, उनकी माँग घटने के स्थान पर अधिक हो जाती है।

प्रश्न 9.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर क्यों झुका होता है?
अथवा
माँग का नियम क्या है? यह नियम क्यों लागू होता है?
उत्तर:
माँग का नियम अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। माँग का नियम कीमत तथा माँग में विपरीत संबंध (Inverse Relationship) व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। सांकेतिक रूप में माँग का नियम स्पष्ट करता है कि
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माँग के नियम को निम्नलिखित समीकरण द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 39
इसे ऐसे भी पढ़ा जाता है कि X वस्तु की माँग X वस्तु की कीमत का फलन है जबकि संबंधित वस्तुओं की कीमत (P1), उपभोक्ता की आय (Y) तथा रुचि (T) आदि स्थिर रहते हैं अर्थात् किसी वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत फलनात्मक संबंध (Inverse Functional Relationship) पाया जाता है। वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की अधिक मात्रा और वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है।

माँग के नियम को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
तालिका

चीनी की कीमत
प्रति किलो
(र० में)
चीनी की माँग
(किलो में)
50100
40120
30150
20200
10300

रेखाचित्र-माँग के नियम को संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

रेखाचित्र में DD वस्तु का बाज़ार माँग वक्र है जो तालिका में दिए गए आँकड़ों के आधार पर खींचा गया है। DD माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुक रहा है, जो यह स्पष्ट करता है कि वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 40
माँग वक्र माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है।

माँग के नियम के लागू होने के कारण अथवा माँग वक्र के दाईं ओर झुकने के कारण-माँग के नियम के लागू होने अथवा माँग वक्र के माँग (किलोग्राम में) दाईं ओर नीचे झुकने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1.हासमान सीमांत उपयोगिता का नियम-इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति के पास एक विशेष वस्तु का स्टॉक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है, क्योंकि u = f (s)। उपयोगिता (u) स्टॉक (s) का फलन होती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी इकाइयाँ खरीदता है जितनी इकाइयाँ खरीदने से उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता तथा कीमत बराबर हो जाए। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। इसलिए कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. आय प्रभाव आय प्रभाव के कारण भी माँग का नियम लागू होता है। एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उपभोक्ता की वास्तविक आय (Real Income) पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे आय प्रभाव कहते हैं। जब वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता की वास्तविक आय (अर्थात् मौद्रिक आय की क्रय-शक्ति) बढ़ती है क्योंकि अब उपभोक्ता को पहले जितनी वस्तु की मात्रा खरीदने के लिए कम खर्च करना पड़ता है और इसी बची हुई राशि से उसके लिए अधिक मात्रा खरीदना संभव हो जाता है। अतः कीमत के गिरने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग बढ़ेगी और कीमत के बढ़ने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग गिरेगी।

3. स्थानापन्न प्रभाव-स्थानापन्न प्रभाव का संबंध दो वस्तुओं की सापेक्षिक कीमतों (Relative Prices) में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव से है; जैसे चाय और कॉफी में से किसी एक वस्तु जैसे कॉफी की कीमत बढ़ जाने पर, जो लोग कॉफी के स्थान पर चाय की जितनी अधिक मात्रा खरीदेंगे, उसे प्रतिस्थानापन्न प्रभाव कहते हैं। जब दो संबंधित वस्तुओं की कीमत में ऐसा परिवर्तन होता है कि एक वस्तु सस्ती और दूसरी महँगी होती है, तो उपभोक्ता सस्ती वस्तु को महँगी वस्तु के लिए प्रतिस्थापित करेगा क्योंकि सस्ती वस्तु महँगी वस्तु की तुलना में अधिक मूल्य आकर्षक (Price Attractive) हो जाती है। परिणामस्वरूप जिस वस्तु की कीमत गिरती है, उसकी माँग बढ़ जाती है। अतः स्थानापन्न प्रभाव के कारण कम कीमत वाली वस्तु की अधिक माँग और अधिक कीमत वाली वस्तु की कम माँग की जाती है।

4. विभिन्न प्रयोग कुछ वस्तुओं के विभिन्न प्रयोग होते हैं। ऐसी वस्तु की कीमत गिरने से उसकी माँग अधिक होगी। उदाहरण के लिए, यदि बिजली की कीमत प्रति यूनिट गिर जाए तो लोग बिजली को अनेक प्रयोगों; जैसे प्रैस करने, कपड़े धोने की मशीन चलाने, पानी गर्म करने, हीटर जलाने इत्यादि में प्रयुक्त करेंगे। इससे बिजली की माँग बढ़ेगी। यदि बिजली महँगी हो तो लोग केवल रोशनी करने और पंखा चलाने में ही बिजली का प्रयोग करेंगे। इससे बिजली की माँग घटेगी। अतः विभिन्न प्रयोगों वाली । वस्तुओं की कीमत गिरने पर अधिक माँग और कीमत बढ़ने पर कम माँग की जाती है।

5. बाज़ार में नए उपभोक्ताओं का प्रवेश-किसी वस्तु की कीमत कम होने पर कई नए उपभोक्ता, जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे, खरीदने लगते हैं और वस्तु की माँग बढ़ जाती है। मान लीजिए जब अंगूर रु० 50 प्रति किलो होता है तो केवल कुछ धनी व्यक्ति ही अंगूर खरीदेंगे और अंगूर की माँग कम होगी। यदि अंगूर की कीमत कम होकर रु० 10 प्रति किलो हो जाती है, तो कुछ नए उपभोक्ता भी अंगूर की माँग करने लगते हैं और अंगूर की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत, वस्तु की कीमत बढ़ने पर पुराने उपभोक्ता भी उसे खरीदना बंद कर देते हैं और वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 10.
माँग की कीमत लोच के माप की प्रतिशत विधि अथवा आनुपातिक विधि को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
इस विधि के द्वारा माँग की लोच का माप वस्तु की माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को वस्तु की कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन से भाग देकर किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 41
यदि प्रतिशत परिवर्तन के स्थान पर आनुपातिक परिवर्तन ले लिए जाए तो भी माँग की कीमत लोच को मापा जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 42
[यहाँ q0 = वस्तु की आरंभिक माँग, q1 = वस्तु की नई माँग, p0 = वस्तु की आरंभिक कीमत, p1 = वस्तु की नई कीमत, ∆q = q1 – q0 (माँग में परिवर्तन), ∆p = p1 – p0 (कीमत में परिवर्तन) ∆ = डेल्टा (परिवर्तन का चिह्न)]
or eD = \(\frac{\Delta q}{q^{0}} \div \frac{\Delta p}{p^{0}}=\frac{\Delta q}{q^{0}} \times \frac{p^{0}}{\Delta p}\)
or eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
प्रतिशत और आनुपातिक विधियाँ दोनों एक हैं। यह निम्नलिखित विश्लेषण से स्पष्ट है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 43
इस प्रकार इस विधि के अनुसार, माँग की लोच को मापने का सूत्र है- eD = \(\frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}} \times \frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}}\)

उदाहरण 

मान लीजिए चीनी की कीमत 10 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो चीनी की माँग 100 किलोग्राम है। यदि चीनी की कीमत बढ़कर 11 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो माँग घटकर 80 किलोग्राम रह जाती है। इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच … क्या है?
हल:

चीनी की कीमत माँग
(प्रति किलोग्राम)।
माँग
(किलोग्राम में)
10 रु०100
11 रु०80

(यहाँ, p0 = 10, p1 = 11, ∆p = 11 – 10 = 1
q0 = 100, q1 = 80, ∆q = 80 – 100 = – 20)
eD = \(\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}}=\frac{-20}{1} \times \frac{10}{100}\)
इस उदाहरण में माँग की लोचशीलता -2 है, (-) ऋणात्मक चिह्न हम छोड़ देते हैं। यह केवल कीमत और माँग में विपरीत संबंध का प्रतीक है। अतः माँग की लोच इकाई से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
माँग की कीमत लोच के माप की ज्यामितीक विधि समझाइए।
अथवा
माँग की मूल्य लोच के माप की बिंदु विधि को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बिंदु लोच विधि अथवा ज्यामितीक विधि-माँग की लोच को मापने की बिंदु विधि को रेखा गणितीय विधि (Geometrical Method) भी कहा जाता है। जब किसी वस्तु की कीमत एवं माँग में बहुत सूक्ष्म परिवर्तन हो तो ऐसी स्थिति में माँग वक्र के किसी एक विशेष बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात की जाती है। इस विधि के अनुसार माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच का माप निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 44
यदि Lower Sector > Upper Sector हो तो e > 1 होगी।
यदि Lower Sector < Upper Sector हो तो e < 1 होगी।
यदि Lower Sector = Upper Sector हो तो e = 1 होगी।

इस सूत्र के द्वारा माँग की कीमत लोच का माप निम्न स्पष्ट है- संलग्न चित्र में AB एक सीधी रेखा है। इस माँग वक्र के P बिंदु पर माँग की लोच =\(\frac { PB }{ PA }\) होगी। यहाँ चूंकि PB = PA है इसलिए माँग की लोच इकाई के बराबर अर्थात् e = 1 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 45
बिंदु विधि की सहायता से माँग वक्र के विभिन्न बिंदुओं पर माँग की लोच को मापा जा सकता है। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।

चित्र में AB माँग वक्र की लंबाई मान लो 4″ है। माँग वक्र पर तीन बिंदु N, M, L एक-दूसरे से एक-एक इंच की दूरी पर हैं। अतः

M बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{MB}}{\mathrm{MA}}=\frac{2^{\prime \prime}}{2^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 1 होगी।

N बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{NB}}{\mathrm{NA}}=\frac{3^{\prime \prime}}{1^{\prime \prime}}\) अर्थात् e > 1 होगी।

L बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{LB}}{\mathrm{LA}}=\frac{1^{\prime \prime}}{3^{\prime \prime}}\) अर्थात् e < 1 होगी।

बिंदु A पर माँग का निचला हिस्सा AB होगा तथा ऊपर का शून्य होगा, इसलिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 46
e = \(\frac{\mathrm{AB}}{0}=\frac{4^{\prime \prime}}{0}\)
अर्थात् e = ∞ (अनंत होगी)।
B बिंदु पर निचला हिस्सा शून्य है तथा ऊपर का हिस्सा AB है। इसलिए e = \(\frac{0}{\mathrm{AB}}=\frac{0}{4^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 0 होगी।
संक्षेप में, सीधी माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर होगी। मध्य-बिंदु के बाईं ओर के बिंदुओं पर यह इकाई से अधिक होगी, जबकि उसके दाईं ओर स्थित बिंदुओं पर कीमत लोच इकाई से कम होगी। जिस बिंदु पर माँग वक्र OX-अक्ष को स्पर्श करता है, उस बिंदु पर कीमत लोच शून्य होगी, जबकि माँग वक्र के OY-अक्ष पर स्पर्शीय बिंदु पर कीमत लोच अनंत होगी।
संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी उपभोक्ता की कुल उपयोगिता सूची निम्नांकित तालिका में दिखाई जा रही है। उसकी सीमांत उपयोगिता सची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ012345
कुल उपयोगिता (TU)01025384855

हल:

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
000
11010 – 0 = 10
22525 – 10 = 15
33838 – 25 = 13
44848 – 38 = 10
55555 – 48 = 7

प्रश्न 2.
निम्नांकित तालिका में एक उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता सूची दी गई है। यदि शून्य उपभोग की दशा में कुल उपयोगिता भी शून्य हो तो उसकी कुल उपयोगिता सूची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ123456
सीमांत उपयोगिता (MU)7108630

हल:

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
000
177
2107 + 10 = 17
3817 + 8 = 25
4625 + 6 = 31
5331 + 3 = 34
6034 + 0 = 34

प्रश्न 3.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
15050
290?
3?30
4140?
5150?

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 50, 90, 120, 140, 150
सीमांत उपयोगिता (MU) : 50, 40, 30, 20, 10

प्रश्न 4.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
19
2
36
427
52
627

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 9, 16, 27, 27, 29, 27
सीमांत उपयोगिता (MU) : 9, 7, 6, 5, 2, -2

प्रश्न 5.
नीचे एक उपभोक्ता की वस्तु-X के लिए उपयोगिता तालिका दी हुई है। वस्तु-X की कीमत 6 रु० है। अपनी संतुष्टि को अधिकतम करने के लिए वह कितनी इकाइयों का उपभोग करेगा? (यह मान लीजिए कि उपयोगिता यूटिल्स में मापी जाती है और 1 यूटिल = 1 रु०) अपने उत्तर के लिए कारण दें।

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता
(यूटिल्स)
सीमांत उपयोगिता
(यूटिल्स)
11010
2188
3257
4316
5343
6340

हल:
उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 47
उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए 4 इकाइयाँ खरीदेगा।

प्रश्न 6.
एक आइसक्रीम 20 रु० की बेची जाती है। रोहन जिसे आइसक्रीम पसंद है, 7 आइसक्रीम का उपभोग कर चुका है। उसके 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 7 है। क्या वह आइसक्रीम का और उपभोग करेगा या उपभोग बंद कर देगा ?
हल:
एक उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{X}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}\)
अथवा
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}\)
यदि रोहन के लिए 1 रु० मूल्य की संतुष्टि 7 है तो वह 7वीं आइसक्रीम के उपभोग से 140 (=20 x 7) इकाइयों के बराबर संतुष्टि प्राप्त करेगा। अन्यथा वह आइसक्रीम नहीं खरीदेगा। मान लीजिए कि आइसक्रीम की 7वीं इकाई से रोहन को 140 इकाइयों की संतुष्टि प्राप्त होती है तब-
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}=\frac{140}{7}=20\)
जो यह दर्शाता है कि संतुलन प्राप्त हो चुका है। अतः रोहन को और आइसक्रीम का उपभोग नहीं करना चाहिए। परंतु यदि MUx > 140, तो वह और अधिक आइसक्रीम का उपभोग करेगा तथा आइसक्रीम का उपभोग तब बंद करेगा जब MUx = 140।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित व्यक्ति-A की कुल उपयोगिता तालिका है
(यह मान लो कि शून्य इकाइयों के उपभोग की कुल उपयोगिता शून्य है)

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)
1150
2280
3380
4430
5430
6370

(i) सीमांत उपयोगिता तालिका ज्ञात करें।
(ii) व्यक्ति-A का उपभोग स्तर ज्ञात करें जिस पर वह पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है।
(iii) क्या इस स्थिति में व्यक्ति-A के लिए 6वीं इकाई का उपभोग उचित है।।
उत्तर:
(i) सीमांत उपयोगिता : 150, 130, 100, 50, 0, -60।

(ii) वस्तु की 5वीं इकाई के उपभोग पर व्यक्ति-A पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है, चूंकि यहाँ पर सीमांत उपयोगिता शून्य है और कुल उपयोगिता अधिकतम है।

(iii) व्यक्ति-A 6वीं इकाई का उपभोग नहीं करेगा, चूँकि व्यक्ति-A को 6वीं इकाई से ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
मान लीजिए एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रु० है और 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 4 है। निधि एक उपभोक्ता है, जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता (MU)
160
240
320
410
50
6-10

बताइए की निधि शीतल पेय की कौन-सी बोतल पर संतुलन अवस्था में होगी?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 48

प्रश्न 9.
मान लो वस्तु Y की कीमत (P) 10 रुपये प्रति इकाई है। यह भी मान लो कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता (MUM) 8 है (और स्थिर है)। उपभोक्ता की निम्नलिखित सीमांत उपयोगिता तालिका का प्रयोग करते हुए उपभोक्ता के उपभोग का संतुलन स्तर तथा वस्तु Y पर होने वाला कुल व्यय ज्ञात करें।

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)
1170
2130
3110
480
530
60

हल:
उपभोक्ता संतुलन की शर्त है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 49
(i) यहाँ उपभोग का संतुलन स्तर, वस्तु Y की 4 इकाइयाँ हैं-
\(\frac { 80 }{ 10 }\) = 8 अथवा \(\frac { 80 }{ 8 }\) = 10

(ii) वस्तु Y पर कुल व्यय 10×4 = 40 रुपए होगा।

प्रश्न 10.
एक उपभोक्ता के पास वस्तु X तथा वस्तु Y पर खर्च करने के लिए 200 रु० हैं। x की कीमत 10 रु० तथा Yकी कीमत 20 रु० है। दी हुई आय से x तथा Y के खरीदे जाने वाले संभावित संयोगों का ग्राफ बनाइए।
हल:
(0, 10), (2,9), (4,8), (6, 7), (8,6), (10,5), (12, 4), (14,3), (16, 2), (18, 1),(20,0)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
मान लीजिए कि उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है जो केवल पूर्णांक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 रु० के बराबर है तथा उपभोक्ता की आय 40 रु० है।
(i) वे सभी बंडल लिखिए जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं उनमें से वे बंडल कौन-से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय हो जाएँगे?
हल:
(i) जो बंडल उपभोक्ता खरीद सकता है, वे हैं-(0, 0), (0, 1), (0, 2), (0, 3), (0, 4), (1, 0), (1, 1), (1, 2), (1,3), (2,0), (2, 1), (2, 2) (3,0), (3, 1) तथा (4,0)।
(ii) वे बंडल जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय होंगे, वे हैं-(0,4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0)।

प्रश्न 12.
मान लीजिए बाज़ार में अनार फल के लिए चार उपभोक्ता हैं। वे हैं-A, B, C, और D । अनार फल के लिए उनके माँग वक्र निम्नलिखित तालिका में दिए गए हैं। बाज़ार माँग वक्र बनाइए।

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

1167158
2116126
37594
44462
52330
61200

हल:

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी
गई मात्रा
‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

बाज़ार

माँग

116715846
211612635
3759425
4446216
5233008
6120003

चारों उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्रा को जोड़कर हम बाज़ार माँग का निर्माण करते हैं और विभिन्न कीमतों पर बाज़ार माँग को चित्र में DM वक्र द्वारा दर्शाया जा सकता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 50

प्रश्न 13.
मान लीजिए कि एक बाज़ार विशेष में तीन उपभोक्ता हैं- X, Y और Z। उनकी माँग अनुसूची निम्नलिखित तालिका में दी गई है

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा
1605524
2504013
340255
430100
52000

(a) बाज़ार माँग अनुसूची बनाइए तथा बाज़ार माँग वक्र खींचिए।
(b) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार से हट जाता है तब बाज़ार अनुसूची बनाइए।
(c) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार में टिका रहता है और अन्य व्यक्ति ‘K’ बाज़ार में प्रवेश करता है, जिसके द्वारा माँगी गई मात्रा किसी विशेष कीमत पर ‘x’ की आधी है। नया बाज़ार माँग वक्र बनाइए।
हल:
(a)

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
1605524139
2504013103
34025570
43010040
5200020

बाज़ार माँग वक्र (Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 51

(b) जब ‘Y’ इस बाज़ार को छोड़ जाता है तो नयी बाज़ार अनुसूची निम्नलिखित होगी

कीमत (रु०)‘x’ की माँग‘Z’ की माँगबाजार माँग
1602484
2501363
340545
430030
520020

(c) जब नया ग्राहक ‘K’ बाज़ार में आता है तो नई बाजार अनुसूची निम्नलिखित होगी-

कीमत (रु०)‘X’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘K’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
160552430169
250401325128
3402552090
4301001555
520001030

नया बाज़ार मांग वक्र (New Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 52

प्रश्न 14.
चॉकलेट के लिए मोहिनी के माँग वक्र को निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है। कीमत 5 रु०, 8 रु० तथा 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा का निर्धारण करें।
हल:
माँग वक्र DD के अनुसार कीमत तथा मात्रा के संयोग निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 53
10 रु० पर 2 इकाइयाँ
9 रु० पर 4 इकाइयाँ
8 रु० पर 6 इकाइयाँ
7 रु० पर 8 इकाइयाँ
6 रु० पर 10 इकाइयाँ
5 रु० पर 12
इकाइयाँ इस प्रकार कीमत 5 रु०, 8 रु०, 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा क्रमशः 12, 6 एवं 2 इकाइयाँ है।

प्रश्न 15.
यदि मूल्य 2 रुपए प्रति इकाई से 3 रुपए हो जाए और माँगी गई मात्रा 300 इकाइयाँ प्रति सप्ताह से कम होकर 270 इकाइयाँ हो जाए तो माँग की कीमत लोच क्या होगी?
हल:
माँग की लोच(eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
यहाँ p0 = 2 ∆p = 3 – 2 = 1
q0 = 300 ∆q = 300 – 270 = 30
∴ = \(\frac{30}{1} \times \frac{2}{300}\) = \(\frac { 60 }{ 300 }\) = 0.2
इस उदाहरण में माँग की लोच 0.2 या इकाई से कम (eD < 1) या कम लोचदार है।

प्रश्न 16.
कीमत में 40% की वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप माँग 70 इकाइयों से घटकर 35 इकाइयाँ रह जाती है, माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 54
\(\frac{\frac{35}{70} \times 100}{40}\) = \(\frac { 50 }{ 40 }\) = 1.25
इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक (eD > 1) है।

प्रश्न 17.
एक उपभोक्ता उस वस्तु की 10 इकाइयाँ क्रय करता है जब उसकी कीमत 5 रु० प्रति इकाई थी। जब उस वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई हो गई तो उसने उस वस्तु की 12 इकाइयाँ खरीदीं। उस वस्तु की उस कीमत पर माँग की लोचक्या है ?
हल:
माँग की लोच (eD) = \((-) \frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
P0 = 5, p1 = 4, ∆p = 4 – 5 = -1
q0 = 10, q1 = 12, ∆q = 12 – 10 = 2
eD = (-) \(\frac { 5 }{ 10 }\) × \(\frac { 2 }{ -1 }\) = 1 (इकाई)
माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 18.
एकं वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई होने पर एक उपभोक्ता उस वस्तु की 50 इकाइयाँ क्रय करता है। कीमत 25 प्रतिशत गिर जाने पर माँग बढ़कर 100 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
प्रारंभिक कीमत (p0) = 4 रु०
कीमत में कमी = 4 × \(\frac { 25 }{ 100 }\) = 1 रु०
नई कीमत (p1) = 4 रु० – 1 रु० = 3 रु०
कीमत में परिवर्तन (∆p) = p1 – p0 = 3 रु० – 4 रु० = -1 रु०
प्रारंभिक माँग (q0) = 50, नई माँग (q1) = 100,
माँग में परिवर्तन (∆q) = q1 – q0
= 100 – 50 = 50
माँग की लोच (eD) = (-) \(\frac { p^0 }{ q^0 }\) × \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) = (-) \(\frac { 4 }{ 50 }\) × \(\frac { 50 }{ -1 }\) = \(\frac { 4 }{ 1 }\) = 4
माँग की लोच = 4 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 19.
कीमत 18 रुपए प्रति इकाई से घटकर 12 रुपए प्रति इकाई रह जाती है जिसके कारण माँग 30 इकाइयों से बढ़कर 45 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 18, ∆p = 6, q0 = 30, ∆q = 15
eD = \(\frac{15}{6} \times \frac{18}{30}=\frac{3}{2}\) = 1.5
माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 20.
कीमत में 5 रुपए प्रति इकाई की वृद्धि होने से कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति इकाई हो गई जिसके फलस्वरूप माँग में 12 इकाइयों की कमी हुई और घटकर 52 इकाइयाँ हो गई। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 15, ∆p = 5, q0 = 64, ∆q = 12
∴ \(\frac{12}{5} \times \frac{15}{64}=\frac{9}{16}\) = 0.562
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 21.
एक वस्तु की कीमत 10 प्रतिशत गिर जाने से इसकी माँग 100 इकाइयों से बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
माँग में प्रतिशत परिवर्तन = (\(\frac { 120-100 }{ 100 }\) × 100)
= \(\frac { 20 }{ 100 }\) × 100 = 20%
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 55
माँग की लोच = 2 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 22.
यदि किसी वस्तु की कीमत 10 रु० से घटकर 8 रु० हो जाती है, परिणामस्वरूप इसकी माँग 80 इकाई से बढ़कर 100 इकाई हो जाती है। कुल व्यय विधि के आधार पर इसकी कीमत माँग लोच के बारे में क्या कह सकते हैं?
हल:

कीमतमाँगकुल व्यय
10 रु०80800 रु०
8 रु०100800 रु०

क्योंकि कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं आया, इसलिए माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 23.
एक उपभोक्ता किसी वस्तु पर 80 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 1 रु० प्रति इकाई है तथा 96 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 2 रु० प्रति इकाई है। वस्तु की माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:

कीमत (रु०)कुल व्यय (रु०)माँग की लोच
180
296इकाई से कम

चूँकि कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 24.
एक वस्तु की कीमत 5% गिर जाने के कारण उसकी माँग में 12% की वृद्धि हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए और बताइए कि माँग लोचदार है या बेलोचदार।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 56

माँग की लोच इकाई से अधिक 2.4 है अर्थात् माँग लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 25.
एक वस्तु की कीमत 10 रु० प्रति इकाई से बढ़कर 12 रु० प्रति इकाई हो गई। परिणामस्वरूप उसकी माँग 120 इकाइयों से घटकर 100 इकाइयाँ रह जाती है। माँग की कीमत लोच निकालिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 10, p1 = 12, ∆p = 12 – 10 = 2
q0 = 120, q1 = 100, ∆q = 120 – 100 = 20
माँग की लोच (eD) = \(\frac{10}{120} \times \frac{20}{64}=\frac{5}{6}\)
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका में तीन वस्तुओं की कीमतें और उन पर कुल व्यय के आँकड़े दिए गए हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार उनकी कीमत माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

कीमत प्रति किलोग्राम (रुपयों में)कुल व्यय (रुपयों में)
वस्तु ‘अ’वस्तु ‘ब’वस्तु ‘स’
4121212
6121014
812816

हल:
(i) वस्तु ‘अ’ की कीमत में वृद्धि होने पर कुल व्यय अपरिवर्तित रहता है, इसलिए माँग की लोच इकाई के समान है।
(ii) वस्तु ‘ब’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में कमी होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से अधिक है।
(iii) वस्तु ‘स’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में वृद्धि होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 27.
वस्तु X और Y की माँग सारणियाँ नीचे दी गई हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार X और Y वस्तुओं की माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

वस्तु Xवस्तु Y
कीमतमात्राकीमतमात्रा
100 रु०1000200 रु०1000
102 रु०900198 रु०1010

दिए गए उदाहरण में माँग की लोच के अनुमान के लिए कुल व्यय को ज्ञात कीजिए।
हल:

कीमत (रु०)मात्राकुल व्यय (रु०)माँग लोच
वस्तु X 1001000100000इकाई से अधिक
10290091800
वस्तु Y 2001000200000इकाई से कम
1981010199980

प्रश्न 28.
एक वस्तु की कीमत 4 रु० से बढ़कर 5 रु० हो जाती है। परिणामस्वरूप, उसकी माँग 50 इकाइयों से घटकर 40 इकाइयाँ रह जाती है। प्रतिशत विधि द्वारा माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 57
= 20/25 = 0.8 अर्थात् बेलोचदार माँग

प्रश्न 29.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर माँग की लोच ज्ञात कीजिए-

कीमत (रु०)वस्तु की माँग (किलोग्राम)
1020
2015

हल:
इसमें प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की मूल्य सापेक्षता निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात की जा सकती है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 58

[यहाँ माँग की लोच इकाई से कम है अर्थात् eD < 1]

प्रश्न 30.
नीचे दी गई सूचना से (i) कुल व्यय विधि तथा (ii) प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की लोच ज्ञात करें-

कीमत (रुपए)कुल व्यय (रुपए)
101000
81200

हल:
(i) कुल व्यय विधि-इस विधि के अनुसार, यहाँ माँग की लोच इकाई से अधिक है, क्योंकि कीमत में कमी होने पर कुल व्यय में वृद्धि हुई है अर्थात् कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है। अतः यहाँ eD > 1 है।

(ii) प्रतिशत विधि-यहाँ हमें सर्वप्रथम कुल व्यय को कीमत से भाग देकर माँगी गई मात्रा ज्ञात करनी होगी-

कीमत (रु०) (p)माँगी गई मात्रा q = TE/Pकुल व्यय (रु०) TE
101001000
81501200

eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}=\frac{50}{2} \times \frac{10}{100}\) = 2.5
[ep = 2.5 अर्थात् eD > 1 है।]

प्रश्न 31.
माँग की कीमत लोच 2 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन 5% रहा है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन का आकलन करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 59
माँग की मात्रा में % परिवर्तन = कीमत लोच गुणांक × कीमत में % परिवर्तन
= 2 × 5 = 10
अतः माँग की मात्रा में % परिवर्तन = 10 है।

प्रश्न 32.
माँग की कीमत लोच 0.5 है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन 4 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन क्या होगा?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 60
अतः कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 8% है।

प्रश्न 33.
जब मूंगफली के पैकटों की कीमत में 5% की वृद्धि होती है तो मूंगफली के पैकटों की माँग में 8% की कमी होती है। मूंगफली के पैकटों की माँग की लोच क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 61
माँग की लोच इकाई से अधिक है अर्थात् (eD > 1).

प्रश्न 34.
जब एक पदार्थ की कीमत में 7% की कमी होती है, तो इस पदार्थ पर किए जाने वाले कुल व्यय में 3.5% की वृद्धि होती है। हम इस पदार्थ की माँग की लोच के संबंध में क्या कहेंगे?
हल:
जैसा कि यहाँ पर कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है, तो वस्तु की माँग की लोच इकाई से अधिक होगी।
P ↓17% कुल व्यय ↑ 3.5%
∴ eD > 1 अर्थात् माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 35.
फूलगोभी की बाज़ार कीमत 8% बढ़ती है तथा एक परिवार द्वारा फूलगोभी पर किए जाने वाले कुल व्यय में भी 8% वृद्धि होती है। हम इस परिवार की फूलगोभी की माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे?
हल:
फूलगोभी की कीमत के बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का कुल व्यय भी बढ़ा है, अतः यहाँ माँग की लोच इकाई से कम होगी (अर्थात् e < 1)। क्योंकि यहाँ कीमत वृद्धि और कुल व्यय वृद्धि में सीधा संबंध पाया जाता है।

प्रश्न 36.
एक दांतों का डॉक्टर दांतों की सफाई के लिए 300 रुपए लेता था और वह प्रतिमास 30,000 रुपए की आय प्राप्त करता था। उसने पिछले महीने से दांतों की सफाई का रेट 350 रुपए कर दिया है। परिणामस्वरूप अब दांतों की सफाई के लिए कुछ कम ग्राहक आने लगे हैं। लेकिन अब उसकी कुल आय 33,250 रुपए है। इस उदाहरण से हम डॉक्टर की दांतों की सफाई सेवा की माँग की लोच के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेंगे?
हल:

दांत सेवा की कीमत (रुपए)ग्राहकों का कुल व्यय (रुपए)ग्राहकों की संख्या TE/P
30030,000100
35033,25095

यद्यपि ग्राहकों की संख्या में (100 से 95) कमी आई है, लेकिन डॉक्टर की फीस बढ़ने पर ग्राहकों के कुल व्यय में (30,000 से 33250 रु० की) वृद्धि हो जाती है। इसलिए, चूँकि हमारे उदाहरण में कीमत में वृद्धि से कुल व्यय में वृद्धि हुई है, अतः यहाँ माँग की लोचशीलता इकाई से कम है।

प्रश्न 37.
मान लो, शुरु में 10 रु० कीमत पर किसी वस्तु की 1000 इकाइयाँ बिक रही थीं। कीमत 14 रु० होने पर उपभोक्ता केवल 500 इकाइयाँ खरीद रहे हैं। माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 10 रुपए
p1 = 14 रुपए

q0 = 1000 इकाइयाँ
q1 = 500 इकाइयाँ

∆p = p1 – p0
= 14–10 = 4 रुपए

∆q = q1 – q0 इकाइयाँ
= 500 – 1000 = – 500
\(\frac{-500}{4} \times \frac{10}{1000}=\frac{-5000}{4000}=\frac{-5}{4}=-1.25\)
ऋणात्मक चिह्न (-) छोड़ देने पर माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होगी।

प्रश्न 38.
एक वस्तु की कीमत में 10% की वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप इसकी माँग 4% गिर जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए। माँग लोचदार है या बेलोचदार?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 62
अर्थात् माँग कम लोचदार है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी दोनों ही आधुनिक सोच से दूर हैं, परंतु यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का पक्ष लेते-लेते आधुनिक बन गई है। जब वह विवाह के बाद ससुराल में आई थी, तो उस समय यशोधर बाबू का परिवार संयुक्त परिवार था। घर में ताऊ जी एवं ताई जी की चलती थी। इसलिए उनकी पत्नी के मन में एक बहुत बड़ा दुख था। वह समझती थी कि उसे आचार-विचार के बंधनों में रखा जाता है। मानो वह जवान न होकर बूढ़ी औरत हो। जो नियम बुढ़िया ताई पर लागू होते थे, वे सभी उस पर भी लागू होते थे। इसलिए वह अपनी अतप्त इच्छाओं को पूरा करना चाहती है। इसलिए वह अपने पति से कहती है कि-“तुम्हारी ये बाबा आदम के जमाने की बातें, मेरे बच्चे नहीं मानते तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं। मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता-साफ बात।” ।

इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी इस उम्र में भी बिना बाँह का ब्लाऊज पहनती है। होंठों पर लाली लगाती है और सिल्वर वैडिंग में खुलकर भाग लेती है। परंतु यशोधर बाबू एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को चाय पान के लिए तीस रुपये तो दे देते हैं परंतु वे आयोजन में भाग नहीं लेते। वे पूजा के लिए मंदिर जाते हैं। सुख-दुख में संयुक्त परिवार के लोगों से मिलना चाहते हैं। परंतु किसी अच्छे मकान में रहने के लिए नहीं जाते। यहाँ तक कि वे डी०डी०ए० का फ़्लैट लेने का भी प्रयास नहीं करते। जब उनके लड़के घर पर उनकी सिल्वर वैडिंग का आयोजन करते हैं, तो वे उससे भी बचने की कोशिश करते हैं। वे अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों का ही अनुसरण करते हैं। परिणाम यह होता है कि वे परिस्थितियों के आगे झुक तो जाते हैं, परंतु उनका मन पुरानी परंपराओं से ही चिपका हुआ है। वे नए जमाने की सुविधाओं; जैसे गैस, फ्रिज आदि को अच्छा नहीं समझते। फिर भी वे सोचते हैं कि ये चीजें हैसियत बढाने वाली हैं। सच्चाई तो यह है कि वे समय के साथ ढल नहीं पाते और बार-बार किशनदा के संस्कारों को याद कर उठते हैं।

प्रश्न 2.
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?
उत्तर:
‘जो हुआ होगा’ वाक्य का पाठ में अनेक बार प्रयोग हुआ है। पहली बार इसका तब प्रयोग होता है, जब यशोधर बाबू ने किशनदा के किसी जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा था। उत्तर में उसने कहा था ‘जो हआ होगा’ अर्थात पता नहीं क्या हुआ और किस कारण से उनकी मृत्यु हुई। किशनदा ने विवाह नहीं किया था। इसलिए उनके बच्चे नहीं थे। इसलिए जाति भाई उनके प्रति उदासीन थे। उन्होंने यह आवश्यक नहीं समझा कि किशनदा की मृत्यु के कारणों का पता लगाया जाए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मानव के लिए विवाह संस्कार आवश्यक है। बाल-बच्चों से ही वृद्धावस्था में सुरक्षा हो सकती है। यदि किशनदा की संतान होती, तो उनके रिश्तेदार उनकी मृत्यु के कारणों की जानकारी रखते और उनके प्रति इतने उदासीन न होते।

किशनदा ने भी इस वाक्य का प्रयोग किया है। अपनों से मिली उपेक्षा के लिए, वे इस वाक्य का प्रयोग करते हैं। किशनदा भी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ। यहाँ इस वाक्य का अर्थ अन्य संदर्भ में देखा जा सकता है अर्थात् किसी-न-किसी कारण से ही सबकी मृत्यु होती है। पाठ के आखिर में जब बच्चे यशोधर बाबू पर व्यंग्य करते हैं, तो उनको यह निश्चय हो गया कि किशनदा की मृत्यु ‘जो हुआ होगा’ से ही हुई होगी। भाव यह है कि बच्चे जब अपने माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं, तो उनके प्राण जल्दी निकल जाते हैं।

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प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर:
‘समहाउ इंप्रापर’ यशोधर बाबू का तकिया कलाम है। जिसका अर्थ यह है कि फिर भी यह अनुचित है। इस पाठ में एक दर्जन से अधिक बार इस वाक्यांश का प्रयोग हुआ है। इससे यशोधर बाबू का व्यक्तित्व झलकता है। वस्तुतः वे सिद्धांत प्रिय व्यक्ति हैं। जब उन्हें कोई बात अनुचित लगती है, तब उनके मुख से यह वाक्य निकल पड़ता है। उदाहरण के रूप में सर्वप्रथम ‘सिल्वर वैडिंग’ के लिए, वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को तीस रुपये चाय पान के लिए देते हैं, परंतु इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। यही नहीं, वे अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं।

अन्यत्र उन्होंने अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने, डी०डी०ए० के फ्लैट के लिए पैसे न चुकाने, अपनी वृद्धा पत्नी द्वारा आधुनिका का स्वरूप धारण करने, बेटे द्वारा अपने पिता को वेतन न देने, संपन्नता में सगे-संबंधियों की उपेक्षा करने, बेटी द्वारा विवाह का निर्णय न लेने आदि को भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहा है। इसी प्रकार जब उसकी बेटी जींस तथा सैंडो ड्रैस पहनती है, घर में गैस, फ्रिज लाया जाता है। सिल्वर वैडिंग पर भव्य पार्टी दी जाती है। छोटा साला ओछापन दिखाता है और केक काटा जाता है, तब भी वे इसी वाक्यांश का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति हैं। यही नहीं, वे भारतीय मूल्यों और मान्यताओं में विश्वास रखते हैं। लगभग ऐसे ही विचार आजकल के बुजुर्गों के हैं।

वाक्यांश कहानी के मूल कथ्य से जुड़ा हुआ है। लेखक यह दिखाना चाहता है कि आज पुरानी और नई पीढ़ी में एक खाई उत्पन्न हो चुकी है। प्रत्येक पुरानी पीढ़ी नवीन परिवर्तनों को अनुचित मानती है। इस नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण ही उनके बच्चे तथा परिजन उनकी उपेक्षा करने लगते हैं, परंतु उनकी पत्नियाँ नए ज़माने के साथ स्वयं को अनुकूल बना लेती हैं। यही कारण है कि ‘समहाउ इंप्रापर’ एक प्रश्न चिह्न बनकर रह गया है। लेखक इस पाठ द्वारा यह कहना चाहता है कि यदि वृद्ध लोगों को अपने बच्चों के साथ सम्मानपूर्वक जीना है तो उन्हें नए परिवर्तनों को स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा उनकी हालत यशोधर बाबू जैसी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर:
यशोधर बाबू का जीवन किशनदा और उनके सिद्धांतों से प्रभावित रहा है। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति जो व्यवहार करते थे, वह किशनदा के ही समान था। भारतीय मूल्यों में आस्था, सादी जीवन-प्रणाली तथा धन-दौलत के प्रति अनासक्ति आदि प्रवृत्तियाँ किशनदा से ही प्रभावित हैं। हर आदमी जीवन में किसी-न-किसी से प्रेरणा अवश्य प्राप्त करता है। मेरे जीवन को प्रेरणा देने वाली मेरी अपनी माँ है। वे आज महाविद्यालय की एक सफल प्राध्यापिका हैं। उन्होंने प्रत्येक क की थी। इसके साथ-साथ वे बहुपठित एवं बहुश्रुत भी हैं। अपने विषय में प्रवीण होने के साथ-साथ उन्होंने अन्य विषयों का भी गहन अध्ययन किया है।

वे निरंतर मुझे पढ़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती हैं। परंतु मेरी माता जी का रहन-सहन बड़ा सादा और सरल है। वे बाहरी ताम-झाम में विश्वास नहीं करतीं। फलस्वरूप मैं आरंभ से ही पढ़ने-लिखने में ठीक हूँ। दसवीं की परीक्षा में मैंने नगर में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए थे। यही नहीं, मैं विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता हूँ और अपने गुरुजनों का हमेशा आदर करता हूँ। मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करके किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्राप्त करना चाहता हूँ। यदि ईश्वर की कृपा रही और मेरी माँ की मुझे नियमित प्रेरणा मिलती रही, तो मैं निश्चय से ही इस लक्ष्य को प्राप्त करूँगा।

प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग में संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। भले ही यशोधर बाबू अपने ताऊ और ताई के साथ रहे हों। परंतु आज भौतिकवादी युग के कारण लोगों की आकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। प्रायः परिवार छोटे बनते जा रहे हैं। बेटा अपनी आय को स्वयं खर्चना चाहता है और अपनी पत्नी के साथ अलग रहना चाहता है। इधर पत्नी भी अपने पति की सलाह को नहीं मानती। बच्चे भी अपने कैरियर के बारे में माँ-बाप की सलाह को नहीं मानते हैं। इधर बेटियाँ भड़कीले वस्त्र पहनकर अपने मित्रों के साथ घूमना चाहती हैं। उनके पहनावे को देखकर माँ-बाप और बड़े बुजुर्गों को शर्म आती है। प्रत्येक लड़की अपने विवाह का निर्णय स्वयं लेना चाहती है। फलस्वरूप घर में गृहस्वामी की उपेक्षा की जाती है। इस प्रकार पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक दरार उत्पन्न हो गई है।

परंतु सामंजस्य के द्वारा हम इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। पुराने लोगों को थोड़ा आधुनिक बनना पड़ेगा और नए लोगों को थोड़ा पुराना। हमारे मूल्य आज भी हमारी धरोहर हैं, उनमें बहुत-सी ऐसी बातें हैं जो हमारे समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। घर की साग-सब्जी, दूध, राशन आदि लाने में घर के सभी लोगों को सहयोग करना होगा। यदि आज के बच्चे आधुनिक युग की सुख-सुविधाओं को पाना चाहते हैं तो उन्हें यशोधर बाबू जैसे पिता को अपमानित नहीं करना चाहिए। पत्नी का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पति की सलाह को मानती हुई अपनी संतान की देखभाल करे, बल्कि वह एक माँ के रूप में अपने पति और बच्चों के बीच सेतु का काम कर सकती है। इसके साथ-साथ यशोधर बाबू के समान अधिक परंपरावादी बनना भी अच्छा नहीं है।

इधर घर की बेटियों और नारियों का यह कर्त्तव्य बनता है कि वे शालीनता का ध्यान रखते हुए वस्त्र धारण करें। अधिक मॉड बनने के दुष्परिणाम तो हम हर रोज़ देखते ही रहते हैं। इस कहानी में यशोधर बाबू ने तीस रुपये देकर, घर में गैस एवं फ्रिज के प्रति नरम रुख रखकर, केक काटकर तथा मेहमानों का स्वागत करके सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। घर के अन्य लोगों का भी कर्त्तव्य बनता है कि वे यशोधर बाबू जैसे गृहस्वामियों की भावनाओं को समझें। दोनों पक्षों में सामंजस्य स्थापित करने से ही आधुनिक युग को सफल बनाया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों? (क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य (ख) पीढ़ी का अंतराल (ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर:
इस कहानी में मानवीय मूल्यों को हाशिए पर धकेले जाते हुए ही दिखाया गया है। उदाहरण के रूप में यशोधर बाबू के बच्चे, भाईचारा एवं रिश्तेदारी का ध्यान नहीं रखते और न ही बुजुर्गों का उचित सम्मान करते हैं। इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी देखा जा सकता है। यशोधर बाबू के बच्चे तो आधुनिक बनना ही चाहते हैं, परंतु उनकी पत्नी भी आधुनिका बनी हुई है, और वह अपने पति को आधुनिक रंग-ढंग में देखना चाहती है।

परंतु यदि गहराई से इस कहानी का अध्ययन किया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कहानी की मूल संवेदना पीढ़ी का अंतराल है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं। वे भारतीय संस्कृति को मानते हैं। पूजा-पाठ करते हैं। रामलीला देखने जाते हैं। रिश्तेदारी को निभाने का प्रयास करते हैं और सादा तथा सरल जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, परंतु उनके बच्चे तथा पत्नी आधुनिक रंग-ढंग में ढल गए हैं। इस कहानी का कथानक इसी द्वंद्व पर टिका हुआ है। पीढ़ी-अंतराल के कारण जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, उसका शिकार यशोधर बाबू बनते हैं। वे अपने-आप में किशनदा से प्रभावित होने के कारण पुरानी व्यवस्था को अपनाते हैं।

यही नहीं, वह पुरानी परंपराओं को सही तथा नई परंपराओं को ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। इसीलिए सर्वत्र उपेक्षा होती है। घर के बच्चे उनकी वेशभूषा, चाल-ढाल, आचार-विचार आदि का विरोध करते हैं। उनका विचार है कि उनके पिता की सादगी वस्तुतः फटीचरी है। यही नहीं, उनके विचारानुसार रिश्तेदारी निभाना घाटे का सौदा है। धीरे-धीरे यशोधर बाबू उपेक्षित होते चले जाते हैं। बच्चे उनके लिए नया गाउन इसलिए लाते हैं कि ताकि वे फटा हुआ पुलओवर पहनकर समाज में उनकी बेइज्जती न कराएं। बच्चों को अपने मान-सम्मान की तो चिंता है, परंतु वे अपने पिता की मनःस्थिति को नहीं समझ पाते। अतः पीढ़ी अंतराल की समस्या ही इस कहानी की मुख्य समस्या है।

प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर:
आज का युग वैज्ञानिक युग है। प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। प्रायः अधिकांश आविष्कार मानव को सुख-सुविधाएँ देने में अत्यधिक सहायक हैं। जहाँ तक हमारे देश का प्रश्न है, यहाँ पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिक प्रगति हुई है। आज प्रत्येक घर में बिजली के पंखे, ए०सी०, रसोई गैस के चूल्हे, टेलीफोन, इंटरनेट आदि अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं जो लोगों के जीवन को सुविधाजनक बना रही हैं। लेकिन हमारे बड़े-बूढ़े अभी तक पुरानी बातों को याद कर उठते हैं।

वे प्रायः कहते रहते हैं कि चूल्हे की रोटी का कोई मुकाबला नहीं है। इसी प्रकार उनका कहना है कि फ्रिज के कारण हम बासी भोजन करते हैं, टी०वी० अश्लीलता फैला रहा है और मोबाइल का अधिक प्रयोग लड़के-लड़कियों को बिगाड़ रहा है। इसी प्रकार इंटरनेट के प्रयोग के कारण युवक-युवतियाँ अश्लील फिल्में देखते हैं और वे चरित्रहीन बन रहे हैं। यद्यपि सच्चाई है कि बुजुर्गों के विचार पुराने हो सकते हैं, परंतु आधुनिक सुविधाओं का अधिक प्रयोग हमारी जीवन-शैली को जटिल बनाता जा रहा है, परंतु सुविधाओं की ऐसी आँधी बुजुर्गों के रोकने पर रुकने वाली नहीं है।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर:
ऊपर जो तीन कथन दिए गए हैं, उनमें से दूसरा कथन ही मुझे उचित लगता है। यशोधर बाबू एक द्वंद्व ग्रस्त व्यक्ति हैं। कभी नया उन्हें अपनी ओर खींचता है, परंतु पुराना उन्हें छोड़ नहीं पाता। वे स्वयं यह निर्णय नहीं कर पाते कि उन्हें नवीन मूल्यों को अपनाना चाहिए अथवा पुराने मूल्यों से चिपका रहना चाहिए। इसलिए हमें उनके बारे में सहानुभूतिपूर्वक सोचना चाहिए। मेरे दादा जी प्रायः नई वस्तुओं की आलोचना करते रहते हैं। एक बार हमने घर पर ए०सी० लगवाया। दादा जी ने इस सुविधा की न केवल आलोचना की, बल्कि इसका विरोध भी किया। यहाँ तक की उन्होंने मेरे पिता जी को डाँटते हुए कहा कि तुम आधुनिक चीज़ों पर पैसा खराब करते रहते हो, परंतु अगले दिन वे ए०सी० की ठंडी हवा में काफी देर तक सोते रहे। जब मैंने उन्हें चाय के लिए गाया तो वे मुझे कहने लगे–“बेटे ए०सी० पर खर्चा तो बहुत आ गया, परंतु इसकी ठंडी हवा बहुत सुख देती है। मैं तो गहरी नींद में सो गया था।”

इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर बाबू का द्वंद्व स्वाभाविक है। वे पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्र से महानगर में आए हैं। अभी तक उनके मन पर ग्रामीण अंचल का प्रभाव बना पड़ा है, परंतु उनके बच्चे दिल्ली महानगर में जन्मे एवं पले हैं। वे आधुनिक परिवेश से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे अपने घर में सब प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ चाहते हैं। ये नयापन यशोधर बाबू को भी यदा-कदा आकर्षित करता है। उदाहरण के रूप में गैस तथा फ्रिज के बारे में उनकी सोच अथवा भूषण से हाथ मिलाना, अतिथियों को अंग्रेज़ी में अपना परिचय देना आदि नएपन के सूचक हैं। ऐसी स्थिति में यशोधर बाबू के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना उचित होगा। यदि यशोधर बाबू के परिवार के लोग उन्हें पहले से ही सिल्वर वैडिंग की सूचना दे देते तो वे समय पर घर आते और अतिथियों का भरपूर स्वागत करते। इसके साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि घर के बड़े बुजुर्गों के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उनकी उपेक्षा कभी नहीं की जानी चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Important Questions and Answers

बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं, परंतु वे एक परंपरावादी व्यक्ति होने के कारण आधुनिक परिवेश में मिसफिट दिखाई देते हैं। वे किशनदा के आदर्श व्यक्तित्व से कुछ प्रभावित हैं। वे पुराने संस्कारों को छोड़ नहीं पाते और नए परिवेश को ग्रहण करके उसकी आलोचना करते हैं। उनके व्यक्तित्व की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(क) कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति-यशोधर बाब एक कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति हैं। वे प्रतिदिन समय पर कार्यालय जाते हैं और दिन-भर मेहनत से काम करते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा देते हैं तथा प्रतिदिन का काम पूरा करके ही लौटते हैं।

(ख) एक संस्कारवान व्यक्ति-किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू प्रतिदिन मंदिर जाकर प्रवचन सुनते हैं और सुबह-शाम घर पर पूजा करते हैं। यही नहीं, वे अपने घर पर ‘जन्यो-पुन्यू’ तथा रामलीला शिक्षा का काम भी समाज-सेवा के रूप में करते हैं। यही नहीं, वे यह भी चाहते हैं कि सगे-संबंधियों की सुख-दुख में सहायता करनी चाहिए। वे सरल वेशभूषा पहनते हैं और समय पर घूमने जाते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं।

(ग) सफल गहस्थी-उनको हम एक सफल गहस्थी कह सकते हैं। वे प्रतिदिन घर का राशन और साग-सब्जी खरीदकर लाते हैं तथा बच्चों का मन देखकर साइकिल छोड़कर पैदल जाते हैं। अनाथ होते हुए भी उन्होंने संयुक्त परिवार परंपरा को निभाया।

(घ) आधुनिकता के आलोचक-यशोधर बाबू आधुनिकता के नाम पर मनमानी करना, कम कपड़े पहनना, नए उपकरणों का प्रयोग करना यह सब पसंद नहीं करते हैं। विवाह की रजत जयंती मनाने को एक अनावश्यक खर्च मानते हैं। इसी प्रकार वे अपनी बेटी और पत्नी द्वारा आधुनिक कपड़ों को अपनाने का भी विरोध करते हैं। वस्तुतः किशनदा से अत्यधिक प्रभावित होने के बाद वे नवीन मूल्यों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। फिर भी यशोधर बाबू ने पिता के कर्त्तव्य को अच्छी तरह निभाया। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और उन्हें मानवीय मूल्यों तथा समाज संस्कृति से यथासंभव जोड़ने का प्रयास किया। लेकिन उनके बच्चे नए ज़माने से अत्यधिक प्रभावित हुए।

प्रश्न 2.
किशनदा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कहानी में किशनदा के चरित्र का वर्णन पृष्ठभूमि के रूप में किया गया है। इस कहानी के प्रत्येक संदर्भ में वे हस्तक्षेप करते दिखाई देते हैं। भले ही उनकी मृत्यु हो चुकी है, परंतु वे अपने मानस पुत्र यशोधर बाबू के रूप में अब भी जिंदा हैं। यशोधर बाबू के व्यक्तित्व पर उनका गहरा प्रभाव है। वे हर समय उनकी विशेषताएँ याद करते रहते हैं।

किशनदा एक सरल हृदय व्यक्ति हैं जो कुमाऊँ क्षेत्र से दिल्ली आकर सरकारी नौकरी करते हैं। उन्होंने कई पहाड़ी युवकों को अपने यहाँ शरण देकर उन्हें नौकरी प्राप्त करने में सहायता की। वे आजीवन कुँवारे रहे। यशोधर बाबू को उन्होंने न केवल नौकरी दिलवाने में सहायता की, बल्कि अनेक बार उन पर अपनी जेब से पैसे भी खर्च किए। किशनदा एक संस्कारवान तथा ग्रामीण संस्कृति से जुड़े व्यक्ति हैं।

यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का निर्माण करने में उनका अत्यधिक सहयोग रहा। उन्होंने ही यशोधर बाबू को सुबह सैर पर जाने, सवेरे-शाम पूजा-पाठ करने, रामलीला वालों को एक कमरे की सुविधा देने तथा पहाड़ी क्षेत्रों की परंपराओं का निर्वाह करने की आदत डाल दी। यही कारण है कि यशोधर बाबू किशनदा की मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा बताए गए संस्कारों का पालन करते रहे।

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प्रश्न 3.
यशोधर बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
यशोधर बाबू की पत्नी मुख्यतः पुराने संस्कारों वाली होते हुए भी किन कारणों से आधुनिका बन गई?
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी एक सामान्य भारतीय नारी है। वह पहले पुराने संस्कारों को मानती थी, परंतु बदलते वक्त के साथ-साथ उसने अपने-आपको भी बदल दिया। इसका कारण यह है कि वह समय की गति को अच्छी प्रकार से जानती है।

उसका विवाह एक अनचाहे संयुक्त परिवार में हुआ। घर के बड़ों की शर्म के कारण वह न तो मन चाहा ओढ़-पहन सकी और न ही खा सकी। वह स्वच्छंद होकर जीवन को जीना चाहती थी। परंतु संयुक्त परिवार में होने के कारण ऐसा नहीं कर पाई। इसलिए एक स्थल पर वह अपने पति को कहती भी है-“किशनदा तो थे ही जन्म के बूढ़े, तुम्हें क्या सुर लगा कि जो उनका बुढ़ापा खुद ओढ़ने लगे हो?” वह आधुनिक रंग-ढंग से जीना चाहती थी। इसलिए अधेड़ अवस्था में आते ही उसने होंठों पर लाली तथा बालों में खिज़ाब लगाना आरंभ कर दिया। उसने अपनी बेटी पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई तथा उसे जींस तथा टॉप पहनने की खुली छूट दी।

यही नहीं, वह एक ऐसी नारी है जो आधुनिक सुविधाओं की दीवानी है। अपने पति के प्रति उसके मन में कोई सहानुभूति नहीं है। उसका मानना है कि उसका पति समय से पहले बूढ़ा हो गया है। इसलिए वह पूर्णतः आधुनिकता के रंग में रंगे बच्चों का साथ देने लगती है।

प्रश्न 4.
किशनदा का बुढ़ापा सुख से क्यों नहीं बीता? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर:
किशनदा ने आजीवन विवाह नहीं किया और वे सदैव समाज सेवा करते रहे। उनके साथियों ने दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में ज़मीन लेकर अपने मकान बनवाए, लेकिन उन्होंने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सेवानिवृत्त होने तक तो वे सरकारी क्वार्टर में रहे, बाद में कुछ समय के लिए किराए के क्वार्टर में भी रहे। अन्ततः वे अपने गाँव लौट गए। वहीं कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया। यह किसी को नहीं पता कि उनकी मृत्यु कैसे हुई। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गाँव में उनकी कोई सेवा गा। इस कहानी के आधार पर कहा जा सकता है कि किशनदा एकाकी और बेघर रहते हुए सबकी सेवा करते रहे। परंतु उन्होंने अपने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा।

प्रश्न 5.
यशोधर बाबू का अपने बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार था? ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू लोकतंत्रीय मूल्यों पर विश्वास करते थे। उन्होंने अपने बच्चों पर कोई बात थोपने का प्रयास नहीं किया। उनका कहना था कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर न माने। उन्होंने अपने बच्चों को अपनी इच्छानुसार काम करने की आज़ादी दी। उनका मानना था कि आज के बच्चों को अधिक ज्ञान है, लेकिन अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता। उनकी केवल यही छोटी-सी इच्छा थी कि बच्चे कुछ भी करने से पहले उनसे पूछ लें, भले ही हम यशोधर बाबू को एक परंपरावादी पात्र कहें, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा स्वतंत्र जीवन जीने दिया।

प्रश्न 6.
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार क्या आपको उचित लगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार बड़ा ही विचित्र था। उन्होंने इस पार्टी को इंप्रापर कहा। क्योंकि उनका मानना था कि यह सब अंग्रेज़ों के चोंचले हैं। यही नहीं, उन्होंने पत्नी तथा बेटी के कपड़ों पर भी प्रश्न चिह्न लगाया। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि इसमें अंडा होता है। हालांकि वे पहले मांसाहारी रह चुके थे। उन्होंने लड्ड भी इसलिए नहीं खाया, क्योंकि उन्होंने शाम की पूजा नहीं की। वे शाम की पूजा में अधिक देर तक इसलिए बैठे रहे, ताकि मेहमान वहाँ से चले जाएँ। यशोधर बाबू की अधिकांश हरकतें अनुचित ही लगती हैं। यदि वे परिवार के साथ थोड़ा-बहुत समझौता करके चलते तो शायद यह अधिक अच्छा होता।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
यशोधर बाबू किशनदा के मानस-पुत्र हैं। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
इस कहानी को पढ़ने से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि यशोधर बाबू का जीवन किशनदा से अत्यधिक प्रभावित रहा है। वे दिल्ली में आकर किशनदा की छत्र-छाया में रहने लगे थे। इसलिए उनके आदर्शों का अनुकरण करते हुए वे ऑफिस के कर्मचारियों के साथ वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा किशनदा करते थे। वे किशनदा के समान मंदिर जाते थे और घंटा भर बैठकर प्रवचन सुनते थे। किशनदा ने जीवन भर यदि मकान नहीं बनाया तो यशोधर बाबू ने भी डी०डी०ए० फ्लैट के पैसे जमा नहीं करवाए। उन्होंने किशनदा के इस वाक्य को हमेशा याद रखा कि मूर्ख घर बनाते हैं और बुद्धिमान उसमें रहते हैं। किशनदा के समान वे जन्यो-पुन्यूं, रामलीला आदि के धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते रहें। सही अर्थों में यशोधर बाबू किशनदा के सकते हैं। संध्या-पूजा करते समय उन्हें भगवान के स्थान पर किशनदा के ही दर्शन होते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू ने शुरू से ही किशनदा को अपना गुरु, माता-पिता और मार्गदर्शक माना तथा जीवन भर उनके आदर्शों का अनुकरण करते रहे।

प्रश्न 8.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ मनोहर श्याम जोशी की एक उल्लेखनीय लंबी कहानी है। इसका अपना भाषिक अंदाज है। लेखक यहाँ पर यह कहना चाहता है कि आधुनिकता की ओर अग्रसर होता हमारा समाज नवीन उपलब्धियों को समेट लेना चाहता है, परंतु हमारे मानवीय मूल्य नष्ट होते जा रहे हैं।

यशोधर बाबू के जीवन में ‘जो हुआ होगा’ तथा ‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांशों का अधिक महत्त्व है। पहले में तो यथा स्थिति वाद की सोच है, दूसरे में अनिर्णय की स्थिति। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि आधुनिकता के कारण जो बदलाव आ रहा है, उसे बड़े-बुजुर्ग लोग स्वीकार करने में द्वंद्व ग्रस्त दिखाई देते हैं। लगभग यही स्थिति यशोधर बाबू की है जो अ तरक्की से खुश होते हैं और इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ भी कहते हैं। लेखक यशोधर बाबू बुजुर्ग लोगों के द्वंद्व को रेखांकित करना चाहता है।

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प्रश्न 9.
‘यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन के पक्षधर हैं।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
किशनदा के आदर्शों से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के काम-काज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू सामाजिक और पारिवारिक जीवन-शैली जीना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विवाह के बाद यशोधर बाबू संयुक्त परिवार में रहते थे। दूसरा, किशनदा ने उनकी जीवन-शैली को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसलिए वह न केवल अपने परिवार के लोगों से, बल्कि अन्य रिश्तेदारों से भी मिलना-जुलना चाहते हैं। वे हर माह अपनी बहन के पास कुछ पैसे भेजते रहते हैं। वे अपने बीमार जीजा का पता करने के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं। उनकी यह भी इच्छा है कि उनके बच्चे सभी रिश्तेदारों का मान करें। रिश्तेदारों से जुड़ने में उन्हें विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है। परंतु उनकी पत्नी तथा बच्चे इसे एक मूर्खतापूर्ण कार्य कहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि उनकी पत्नी तथा बच्चे हर बात में उनकी सलाह लें और अपनी कमाई लाकर पिता के हाथों में रखें। इससे स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू की अपने परिवार के प्रति गहरी आसक्ति है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू का व्यवहार आपको कैसा लगा? ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू भले ही नए ज़माने के व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन वे ज़माने की चाल को अवश्य पहचानते हैं। वे सरल और सादी जिंदगी जीना चाहते हैं। साथ ही अधेड़ आयु होने के कारण उनमें शिथिलता आ चुकी है, परंतु फिर भी वे मजबूर होकर नए परिवर्तन को अपना लेते हैं। ऐसा करने से उनके पुराने संस्कार ट जाते हैं। नई चीज को अपनाने में वे हमेशा सं परंतु वे उसका विरोध भी नहीं करते हैं। कारण यह है कि उनकी आयु अब ढल चुकी है। हमारे विचार में यशोधर बाबू जैसे व्यक्ति से थोड़े-बहुत परिवर्तन की ही आशा की जा सकती है।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू अपने ही घर में बेचारे तथा असहाय बन चुके हैं। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
इसमें दो मत नहीं हैं कि यशोधर बाबू अपने घर में ही बेचारे, मजबूर और असहाय-से लगते हैं। उनके बच्चे उनका कहना नहीं मानते। वे न तो अपने पिता का सम्मान करते हैं, न ही उनसे कोई सलाह लेते हैं और न ही उनसे अधिक बात करते हैं। घर के सभी लोग उन्हें उपेक्षा तथा तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। मजबूर होकर वे साइकिल चलाना छोड़ देते हैं। फ्रिज और गैस को अपना लेते हैं। उपहार में मिले गाउन को पहन लेते हैं। अब उनमें बच्चों का विरोध करने की शक्ति नहीं रही। उनकी अपनी बेटी उनका अपमान करती है और उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर बच्चों के साथ मिल जाती है। ऐसा लगता है कि वे अपने बच्चों से हार चुके हैं। यही कारण है कि उनके मन में ‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश बार-बार उभरकर आता है।

प्रश्न 13.
एक सैक्शन आफिसर के रूप में यशोधर बाबू का दफ्तर में कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
यशोधर बाबू एक सरकारी कार्यालय में सैक्शन आफिसर हैं वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। वे समय पर कार्यालय पहुँचते हैं और साढ़े पाँच बजे तक वहाँ कार्य करते हैं। मजबूर होकर अन्य कर्मचारियों को भी साढ़े पाँच बजे तक बैठना पड़ता है। अधीनस्थ कर्मचारियों से वे प्रायः सख्ती से निपटते हैं। परंतु आफिस से प्रस्थान करते समय वे एकाध चुटीली बात कहकर माहौल के तनाव को कम कर देते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से थोड़ी-बहुत दूरी बनाए रखते हैं और उनके साथ अधिक घुलते-मिलते नहीं हैं। यही कारण है कि वे अपनी सिल्वर वैडिंग पार्टी के लिए तीस रुपये तो देते हैं, लेकिन उसमें शामिल नहीं होते। जब चड्डा उनके साथ बदतमीज़ी का व्यवहार करता है तो वे उसकी बात को मज़ाक में उड़ा देते हैं। इससे यह पता चलता है कि वे एक व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं।

प्रश्न 14.
यशोधर बाबू अपनी भाषा में कार्यालयी मुहावरों का प्रयोग करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की भाषा पर दफ़्तर की भाषा का अत्यधिक प्रभाव है। वे प्रायः बोलते समय सरकारी दफ्तरों में बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा के वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं। इस पाठ से दो-एक उदाहरण देखिए-
(i) आप लोग चाय पीजिए’ दैट’. तो ‘आई ड नाट माइंड’ लेकिन जो हमारे लोगों में ‘कस्टम’ नहीं है, उस पर ‘इनसिस्ट’ करना दैट’ मैं ‘समहाउ इंप्रॉपर फाइंड करता हूँ।

(ii) “मुझे तो वे ‘समहाउ इंप्रापर’ ही मालूम होते हैं। ‘एनीवे’ मैं तुम्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा। देयरफोर तुम लोगों को भी मेरे जीने के ढंग पर कोई एतराज नहीं होना चाहिए।”

प्रश्न 15.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में चड्डा का यशोधर बाबू के प्रति कैसा व्यवहार है और क्यों?
उत्तर:
चड्ढा यशोधर बाबू का अधीनस्थ कर्मचारी है। वह असिस्टेंट ग्रेड की परीक्षा पास करके नया-नया कर्मचारी नियुक्त हुआ है। उसमें अपनी योग्यता का घमंड है और वह हर बात में यशोधर बाबू को नीचा दिखाना चाहता है। वह यशोधर बाबू की पुरानी घड़ी को चूनेदानी अथवा बाबा आदम के ज़माने की घड़ी बताता है। वह यशोधर बाबू को डिजीटल घड़ी खरीदने के लिए कहता है। जब यशोधर बाबू अपना हाथ उससे मिलाने के लिए आगे बढ़ाते हैं तो वह उनका अपमान कर देता है। यही नहीं, यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग की पार्टी के लिए उनसे तीस रुपये ले लेता है। इससे पता चलता है कि उसमें न तो गरिमा है, और न ही अपने से बड़ों की इज्जत करने की सभ्यता है। उसमें धृष्टता देखी जा सकती है।

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प्रश्न 16.
यशोधर बाबू के बच्चों का उज्ज्वल पक्ष कौन-सा है?
उत्तर:
यशोधर बाबू के बच्चे बड़े प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। वे अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर आगे बढ़े हैं। बड़ा लड़का एक विज्ञापन कंपनी में पंद्रह सौ रुपये पर काम कर रहा है। दूसरा लड़का एलाइड सर्विसेज़ में चुना गया है। लेकिन वह और अच्छी नौकरी पाने के लिए दोबारा पढ़ रहा है। तीसरा लड़का स्कॉलरशिप लेकर पढ़ने के लिए अमरीका गया है। उनकी बेटी डॉक्टरी अमरीका जाना चाहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी बच्चे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हैं। वे अपने घर में गैस, फ्रिज, सोफा, कालीन आदि सुविधाएँ जुटाना चाहते हैं।

प्रश्न 17.
यशोधर बाबू के बच्चों का पक्ष मलिन कौन-सा है?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू के बच्चे बड़े ही प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। लेकिन उनका व्यवहार अधिक अच्छा नहीं है। वे न तो पिता का मान करते हैं, न रिश्तेदारी का और न ही धर्म और समाज का। बल्कि वे बात-बात पर अपने पिता का अपमान करते हैं। वे पिता की सलाह लिए बिना ही उनकी सिल्वर वैडिंग की पार्टी का आयोजन कर देते हैं। साथ ही वे चाहते हैं कि उनके पिता हर बात में उनका सहयोग करें। भूषण अच्छी नौकरी पाकर भी घर में कुछ नहीं देता। वह हमेशा अपने घर में अपने पैसों की धौंस जमाता रहता है। वह पिता को अपमानित करते हुए कहता है कि वह घर में कोई नौकर रख लें, जिसका वेतन वह स्वयं देगा।

उपहार के रूप में एक गाउन देकर वह कहता है कि उनके पिता फटा हुआ गाउन पहनकर दूध लेने न जाएँ। इसी प्रकार उनकी लड़की स्वयं बेढंगे कपड़े पहनती है और पिता द्वारा टोकने पर उसे झिड़क देती है। यही नहीं, बच्चों के मन में अपने रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के प्रति भी कोई लगाव नहीं है। बुआ को पैसे भेजने के बारे में वे आनाकानी करते हैं और धर्म तथा समाज के कामों में भाग नहीं लेते। उनमें न तो अच्छे संस्कार हैं और न ही मानव मूल्य। उनके मन में केवल पद, प्रतिष्ठा और पैसे का ही मोह है।

प्रश्न 18.
यशोधर बाबू की पत्नी अपने पति से प्रतिकूल व्यवहार क्यों करती है?
उत्तर:
आरंभ में यशोधर बाबू की पत्नी को संयुक्त परिवार के बंधन में रहना पड़ा था। वह न तो जीवन के सुखों को भोग सकी और न ही जीवन का आनंद ले सकी। यशोधर बाबू ने अपनी बूढ़ी ताई के समान उसे भी अच्छा खाने-पहनने को नहीं दिया। वह अपने यौवन को खुलकर नहीं भोग पाई। इसलिए वह अपने पति के परंपरावादी विचारों का विरोध करती है। उसे इस बात का दुख है कि उसका पति बूढ़ों जैसी बातें करने लग गया है। एक स्थल पर वह उसे कहती भी है कि ‘तुम शुरू में तो ऐसे नहीं थे, शादी के बाद मैंने तुम्हें देख जो क्या नहीं रखा है! हफ्ते में दो-दो सिनेमा देखते थे। गज़ल गाते थे गज़ल! इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर की पत्नी आधुनिक सुख-सुविधाओं को भोगना चाहती है और यशोधर पुराने मूल्यों से चिपका हुआ है। अतः वह अपने पति का विरोध करती है।

प्रश्न 19.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के यशोधर बाबू समय के साथ ढल सकने में असफल रहते हैं, ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू आजीवन किशनदा के आदर्शों का अनुसरण करते रहे। वे अपने परिवार को भी उन्हीं संस्कारों में ढालना चाहते थे, परंतु वे सच्चाई को भूल गए कि अब ज़माना बदल गया है। उनकी पत्नी तथा बच्चे नए ज़माने के अनुसार चलना चाहते यशोधर बाबू अपने पुराने संस्कारों तथा प्रौढावस्था के कारण नए जमाने का स्वागत नहीं करते। उन्हें लगता है कि आधनिक पहनावा पश्चिमी रंग-ढंग से प्रभावित है। इसलिए वे समय के साथ ढल सकने में असमर्थ रहते हैं।

प्रश्न 20.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है।
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी अपने यौवनकालीन जीवन से असंतुष्ट रही है। उसे संयुक्त परिवार के बंधनों में रहना पड़ा था। वह न तो मनमर्जी का खा सकी थी और न पहन सकी थी। उसका कोई शौक पूरा नहीं हुआ था। इसलिए जब उसके बच्चे नए ज़माने की ओर अग्रसर होते हैं तो वह भी उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर देती है। वह अपने सफेद बालों में खिज़ाब लगाती है। होंठों पर लाली लगाती है और ऊँची एड़ी के सैंडिल पहनती है। इस प्रकार वह समय के अनुसार ढल जाती है। यहाँ तक कि घर के सभी बच्चे भी उसका साथ देते हैं।

प्रश्न 21.
क्या पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना कहा जा सकता है। तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
निश्चय से इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को चित्रित किया गया है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि पश्चिमी सभ्यता का अंधा अनुकरण करने के कारण हम भारतवासी अपनी संस्कृति को त्याग चुके हैं। हमारे लिए रिश्तेदारी, परंपरा, भारतीय वेशभूषा तथा तीज-त्योहार का कोई मूल्य नहीं है। यही नहीं, मंदिर जाना या संध्या वंदना करना आदि भी हम पसंद नहीं करते। इसके स्थान पर हम सिल्वर वैडिंग पार्टी करना, केक काटना, जींस और टॉप पहनना आदि उचित मानते हैं, परंतु यशोधर बाबू अभी भी भारतीय संस्कृति का पक्ष लेते हैं और पाश्चात्य परंपरा का विरोध करते हैं। प्रस्तुत कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से उत्पन्न संघर्ष को दर्शाया गया है। अतः यह भी कहानी की मूल संवेदना हो सकती है।

प्रश्न 22.
क्या पीढ़ी के अंतराल को सिल्वर वैडिंग की मूल संवेदना कहा जा सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
वस्तुतः पीढ़ी का अंतराल ही इस कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके बच्चे नई पीढ़ी का। यशोधर बाब परानी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि होली, रामलीला, रिश्तेदारी आदि को निभाया जाए। वे सादा और सरल जीवन जीना चाहते हैं और बच्चों से यह चाहते हैं कि वे भी अपने बड़ों का सम्मान करें।

इसके विपरीत नई पीढ़ी भौतिकता को महत्त्व देती है। वह रिश्तेदारी की अपेक्षा आर्थिक विकास को श्रेयस्कर कर मानती है। उनके लिए पुराने संस्कार और परंपराएँ व्यर्थ हैं। यहाँ तक कि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को भी अपने रंग-ढंग में ढालना चाहती है। अतः सिल्वर वैडिंग में इन दो पीढ़ियों के संघर्ष का सजीव वर्णन किया गया है।

प्रश्न 23.
सिल्वर वैडिंग के कथानायक यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है-इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
किसी भी दृष्टि से यशोधर बाबू का व्यक्तित्व आदर्श नहीं है। वे भले ही पुराने संस्कारों एवं परंपराओं से चिपके हुए तो उनकी पत्नी उनकी बात सुनती है और न ही उनके बच्चे। यहाँ तक कि वे अपने घर-परिवार, दफ्तर तथा समाज में अकेले पड़ जाते हैं। वे किशनदा के आदर्शों पर चलना चाहते हैं और नए युग के तौर-तरीकों को अपनाने में पूर्णतया असमर्थ रहते हैं। वस्तुतः उनका आचरण और व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली नहीं है कि वे अपने बच्चों में अपनी सोच को भर सकें। वे समय से पिछड़ चुके हैं और प्राचीन तथा नवीन में सामंजस्य नहीं बैठा सके। यदि वे ऐसा करने में सफल होते तो फिर यशोधर बाबू एक आदर्श कथानायक कहलाते।

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प्रश्न 24.
यशोधर बाबू की वाहन से सम्बद्ध विचारधारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सदा ही दिखावे की दुनिया से दूर रहे और सहज जीवन जीने के पक्षधर रहे। वाहन के प्रति भी उनका यही दृष्टिकोण रहा है। यशोधर बाबू सवारी पर अधिक खर्च नहीं करते थे। जहाँ तक हो सकता था, वे पैदल चलना पसन्द करते थे। वे अपने क्वार्टर गोल मार्केट से सेक्रेट्रिएट तक पैदल ही आते-जाते थे। वे साग-सब्जी लेने भी पैदल ही जाते थे। आरम्भ में वे कार्यालय में साइकिल पर जाते थे, किन्तु अब उनके बच्चे युवा हो गए थे। उन्हें लगता था कि साइकिल तो चपरासी भी चलाते हैं। बच्चे चाहते थे कि उनके पिता जी अब स्कूटर ले लें। किन्तु उनका मानना था कि स्कूटर तो एक बेहूदा सवारी है और कार जब अफोर्ड नहीं कर सकते, तब उसकी बात सोचना ही क्यों?

प्रश्न 25.
यशोधर पंत के स्वभाव को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के कामकाज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण बुआ को पैसे भेजने से मना क्यों करता है?
उत्तर:
यशोधर के अतिरिक्त घर के किसी सदस्य का अपने रिश्तेदारों से कोई लगाव नहीं है। विशेषकर भूषण यह समझता है कि बुआ उसके पिता की बहन है। इसलिए उसे पैसे भेजना उसका दायित्व नहीं है। वह इसे अनावश्यक संबंध मानता है।

प्रश्न 2.
यशोधर बाबू अपने घर देर से क्यों आते हैं?
उत्तर:
घर का कोई भी सदस्य यशोधर बाबू का आदर-मान नहीं करता, बल्कि सभी उनकी उपेक्षा एवं तिरस्कार करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर उनका अपनी पत्नी से मतभेद हो जाता है। इसलिए जितना हो सकता है, वे घर से दूर ही रहते हैं।

प्रश्न 3.
यशोधर बाबू को अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद क्यों नहीं थी?
उत्तर:
भले ही यशोधर सेक्शन आफिसर थे, लेकिन वे भी डेढ़ हज़ार के मासिक वेतन तक नहीं पहुँच पाए थे। उनके बेटे को छोटी आयु में ही इतना बड़ा वेतन मिल रहा था। वे सोचते थे कि इसमें कोई-न-कोई गड़बड़ अवश्य है। वे बेटे की नौकरी के रहस्य को नहीं समझ पाए। इसलिए उनको अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद नहीं थी।

प्रश्न 4.
उपहार में मिले यशोधर के ड्रेसिंग गाउन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग के अवसर पर घर पर परिवार के सदस्यों ने एक पार्टी का आयोजन किया था। बच्चों ने उन्हें अनेक उपहार दिए थे। उनके एक बेटे ने उन्हें ड्रेसिंग गाउन उपहार में दिया था। यशोधर बाबू ने कभी गाउन का प्रयोग नहीं किया था, किन्तु उपहार में दिए गए गाउन को स्वीकार करना पड़ा। उन्होंने उसे अपने कमीज-पाजा पर पहन लिया था।

प्रश्न 5.
किशनदा की मृत्यु का कारण क्या रहा होगा?
उत्तर:
किशनदा रिटायर होकर दिल्ली छोड़कर अपने गाँव चले गए। वहाँ भी उन्हें उपेक्षा और तिरस्कार प्राप्त हुआ। वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। इस कारण शायद उनकी मृत्यु शीघ्र हो गई होगी।

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प्रश्न 6.
यशोधर ने किशनदा को अपने घर पर आश्रय क्यों नहीं दिया?
उत्तर:
यशोधर बाबू का क्वार्टर बहुत छोटा था। उसमें केवल दो कमरे थे, जिसमें तीन परिवार रहते थे। इसलिए यशोधर बाबू किशनदा को अपने घर आश्रय नहीं दे पाए।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान क्यों नहीं बनाया?
उत्तर:
किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू भी मानते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं। वे आजीवन सरकारी क्वार्टर में रहे। फिर उन्हें यह भी उम्मीद थी कि जब उनका बेटा सरकारी नौकरी पर लग जाएगा तो उनके रिटायर होने के बाद यह क्वार्टर उन्हें फिर से मिल जाएगा। इस कारण यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान नहीं बनाया।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू का प्रवचन में मन क्यों नहीं लगा?
उत्तर:
पहली बात तो यह है कि यशोधर अधिक धार्मिक तथा कर्मकांडी नहीं है। वे केवल किशनदा के कहने पर प्रवचन सुनने के लिए जाते हैं। दूसरा, घर से मिली उपेक्षा और तिरस्कार उनको चैन से जीने नहीं देती। धार्मिक प्रवचन सुनकर भी उनके मन की बेचैनी दूर नहीं होती। इसलिए यशोधर बाबू का प्रवचन में मन नहीं लगा।

प्रश्न 9.
यशोधर बाबू की सामाजिकता को उनकी पत्नी और बच्चे पसंद क्यों नहीं करते?
उत्तर:
यशोधर की पत्नी तथा बच्चे नहीं चाहते थे कि ‘जन्यो पुन्यूं की परंपरा का निर्वाह करने के लिए लोगों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला की तैयारी के लिए घर का एक कमरा दिया जाए। इससे एक तो धन भी खर्च होता है तथा दूसरा समय भी नष्ट होता है। इन परंपराओं में बच्चों का कोई विश्वास नहीं था।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू को ऐसा क्यों लगा कि उनके क्वार्टर पर अब उनके बेटे का अधिकार हो गया है?
उत्तर:
यशोधर बाबू ने अनुभव किया कि उनका बेटा उनके क्वार्टर में मन माना परिवर्तन कर रहा है। वह घर के लिए पर्दे, कालीन, सोफा, डबल बेड और टी०वी० ले आया। फिर उसने यह भी निर्देश जारी कर दिया कि उसके टी०वी० को कोई हाथ न लगाए। इन बातों से यशोधर बाबू को यह महसूस हुआ कि उसके बेटे ने उसके ही क्वार्टर पर अधिकार जमा लिया है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू गिरीश को बिगडैल क्यों कहते हैं?
उत्तर:
गिरीश यशोधर का साला है। वह महत्त्वाकांक्षी होने के साथ येन-केन-प्रकारेण उन्नति प्राप्त करने में विश्वास करता है। वह लड़कों को शार्ट-कट द्वारा तरक्की प्राप्त करने के उपाय बताता रहता है। यह सब यशोधर बाबू के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अतः वे उसे बिगडैल कहते हैं।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी की ड्रेस के बारे में अलग-अलग राय क्यों है?
उत्तर:
यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे सरल और साधारण वेशभूषा पहनने में विश्वास करते हैं, लेकिन उनकी पत्नी नए ज़माने से प्रभावित होने के कारण बालों में खिज़ाब लगाती है, ऊँची एड़ी के सैंडल पहनती है और होंठों पर लाली लगाती है। वह अपनी बेटी को भी जींस, पतलून तथा बिना बाँह का ब्लाऊज पहनाती है।

प्रश्न 13.
किशनदा ने यशोधर बाबू की सहायता किस प्रकार से की?
उत्तर:
यशोधर. बाबू रेम्जे स्कूल अल्मोड़ा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके नौकरी की तलाश में दिल्ली आए थे। उस समय उनकी आयु नौकरी के लायक नहीं थी। ऐसी दशा में किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, किशनदा ने यशोधर बाबू को पचास रुपये उधार भी दिए ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भिजवा सके। बाद में किशनदा ने अपने ही ऑफिस में नौकरी दिलवाई और दफ्तरी जीवन में भी मार्ग-दर्शन किया।

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प्रश्न 14.
यशोधर बाबू ने अपनी सिल्वर वैडिंग पर केक क्यों नहीं खाया?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू पहले यदा कदा माँस खा लेते थे। लेकिन इस समय वे पूर्णतया निरामिष भोजी थे। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि उसमें अंडा होता है। दूसरा वे विलायती परंपरा को भी नहीं निभाना चाहते थे।

प्रश्न 15.
घर बनाने के विषय में यशोधर बाबू के दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू घर बनाने के विषय में ‘मूरख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं’ कहावत से सहमत है। उसका मत है कि जब तक सरकारी नौकरी में है तो सरकारी क्वार्टर। फिर बच्चों में से किसी की सरकारी नौकरी लग गई तो उसे सरकारी क्वार्टर मिल जाएगा। उसमें रह लेंगे। यशोधर बाबू ने कभी भी मकान बनाने के विषय में गम्भीरता से सोचा ही नहीं था।

प्रश्न 16.
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता ही नहीं थी, अपितु दोनों में गहरा सम्बन्ध भी था। यशोधर पंत को किशनदा का मानस पुत्र कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किशनदा और यशोधर बाबू दोनों अच्छे मित्र थे। दोनों एक-दूसरे के काम आते थे अर्थात् एक-दूसरे का सहयोग करके अपनी अच्छी मित्रता का प्रमाण भी देते थे। किशनदा का यशोधर पंत के व्यक्तित्व निर्माण में अत्यधिक सहयोग रहा है। यशोधर पंत को किशनदा की मृत्यु के समाचार से बहुत शौक हुआ था। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि दोनों में गहन मित्रता थी।

प्रश्न 17.
क्या यशोधर बाबू द्वारा बैठक में गमछा पहनकर आना उचित कहा जा सकता है?
उत्तर:
यशोधर बाबू का यह कार्य सर्वथा अनुचित कहा जाएगा। भारतीय अथवा विलायती दोनों परंपराओं की दृष्टि से इसे हम उचित नहीं कह सकते।

प्रश्न 18.
यशोधर बाब की बेटी की आधुनिकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की बेटी परम्परागत जीवन जीना पसन्द नहीं करती थी। वह हमेशा जींस और बगैर बाँह का टॉप पहने रहती है। वह अपने पिता की 25वीं वर्षगाँठ के समय इसी ड्रैस में मेहमानों को विदाई देती है। यशोधर बाबू भी उसे कई बार ऐसी ड्रैस न पहनने के लिए कह चुके थे। किन्तु उस पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। यशोधर बाबू की पत्नी बेटी का पक्ष लेती है वह स्वयं भी आधुनिक बनने व दिखने के पक्ष में है। किन्तु यशोधर बाबू को उनकी बात पसन्द नहीं थी।

सिल्वर बैंडिग Summary in Hindi

सिल्वर बैंडिग लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री मनोहर श्याम जोशी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में हुआ। वे हिंदी साहित्य में एक कथाकार, व्यंग्यकार, संपादक, पत्रकार तथा दूरदर्शन धारावाहिक लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने विज्ञान में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने ‘दिनमान’ पत्रिका के सहायक संपादक के रूप में साहित्य जगत् में प्रवेश किया। बाद में वे ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिका का संपादन करने लगे। सन् 1984 में उन्होंने दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले ‘हम लोग’ धारावाहिक का लेखन किया। आम लोगों में यह धारावाहिक अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। उनके द्वारा लिखित पटकथाओं पर ‘बुनियाद’, ‘हमराही’, ‘कक्का जी कहिन’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ आदि लोकप्रिय धारावाहिक बने। सन् 2006 में इस साहित्यकार का निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

  • कहानी-संग्रह-‘कुरू कुरू स्वाहा’, ‘कसम’, ‘हरिया’, ‘हरक्यूलीज़ की हैरानी’, ‘हमजाद’, ‘क्याप’ आदि।
  • व्यंग्य-संग्रह ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे किस्सागो’, ‘मंदिर घाट की पौड़ियाँ’, ‘ट-टा प्रोफेसर षष्ठी वल्लभ पंत’, ‘नेताजी कहिन’, ‘इस देश का यारो क्या कहना’ आदि।
  • साक्षात्कार-संग्रह ‘बातों बातों में’, ‘इक्कीसवीं सदी’।
  • संस्मरण-संग्रह-‘लखनऊ मेरा लखनऊ’, ‘पश्चिमी जर्मनी पर एक उड़ती नज़र’।
  • दूरदर्शन धारावाहिक ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’। सन् 2005 में ‘क्याप’ के लिए उनको ‘साहित्य अकादमी’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-मनोहर श्याम जोशी एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने असंख्य कहानियाँ, संस्मरण, व्यंग्य लेख, साक्षात्कार तथा दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लिखे। वे मूलतः आधुनिक युग बोध के साहित्यकार थे। उन्होंने आज की पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक समस्याओं पर अपने मौलिक विचार व्यक्त किए। ‘हम लोग’ तथा ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिकों में उन्होंने समाज की नब्ज़ को पकड़ने का सफल प्रयास किया है। उदाहरण के रूप में ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच उत्पन्न खाई की ओर संकेत किया है जिसके फलस्वरूप आज संयुक्त परिवार टूटकर बिखर रहे हैं। अपने व्यंग्यात्मक लेखों में उन्होंने आज के राजनीतिज्ञों, तथाकथित साहित्यकारों एवं सामाजिक नेताओं पर करारे व्यंग्य किए हैं। उनकी कुछ कहानियाँ सामाजिक समस्याओं का उद्घाटन करती हैं और पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। उनकी अधिकांश रचनाएँ शिक्षा जगत् के लिए काफी उपयोगी हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

4. भाषा-शैली-मनोहर श्याम जोशी ने प्रायः साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है, जिसमें अंग्रेज़ी तथा उर्दू शब्दों का मिश्रण खुलकर देखा जा सकता है। कहीं-कहीं तो वे अंग्रेजी भाषा के पूरे वाक्य का ही प्रयोग कर देते हैं। वस्तुतः उनकी भाषा पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल कही जा सकती है। आवश्यकतानुसार वे पंजाबी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग कर लेते हैं। ‘दिनमान’ तथा ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिकाओं में उन्होंने पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है।

इसके साथ-साथ उनकी शैली साहित्यिक विधा के अनुसार बदल जाती है। व्यंग्य लेखों में उनका व्यंग्य बड़ा ही तीखा और चुभने वाला है। इस पाठ से उनकी भाषा-शैली का एक उदाहरण देखिए “अपनी सिल्वर वैडिंग की यह भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को समहाउ इंप्रापर ही लगी तथापि उन्हें इस बात से संतोष हुआ कि जिस अनाथ यशोधर बाबू के जन्मदिन पर कभी लह नहीं आए, जिसने अपना विवाह भी कोऑपरेटिव से दो-चार हज़ार कर्जा निकालकर किया बगैर किसी खास धूमधाम के, उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय सब कुछ मौजूद है।”

सिल्वर बैंडिग पाठ का सार

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी द्वारा रचित ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सिल्वर वैडिंग’ पाठ के रचयिता श्री मनोहर श्याम जोशी हैं। इसमें लेखक ने यशोधर पंत की 25वीं वर्षगाँठ का सजीव वर्णन किया है। यशोधर बाबू अपने विभाग के सेक्शन आफिसर के पद पर नियुक्त थे। वे अपने कार्यालय में एक निश्चित समय तक काम करते थे। दिनभर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार प्रायः रूखा था। लेकिन अपने गुरु कृष्णानंद (किशनदा) की परंपरा का अनुसरण करते हुए वे प्रायः सांयकाल को दफ्तर से जाते समय अपने कर्मचारियों के साथ हल्का-फुलका मज़ाक भी कर लेते थे। कभी-कभी वे अपने अधीनस्थ असिस्टेंट ग्रेड के लिपिक चड्डा की धृष्टता की भी अनदेखी कर देते थे।

एक बार यशोधर बाबू को अपने पूर्ववर्ती अधिकारी किशनदा की याद आ गई। वे उनके साथ बिताए हुए कुछ क्षणों की याद में डूब से गए। चड्ढा द्वारा पुनः बोलने पर उनके मुख से अचानक निकल पड़ा “नाव लैट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फरवरी नाइंटिन फोर्टी सेवन।” आफिस के एक अन्य बाबू ने तत्काल हिसाब लगाकर कहा-“मैनी हैप्पी रिटर्नुस आफ द डे सर! आज तो आपका सिल्वर वैडिंग है। शादी को पूरा पच्चीस साल हो गया।” परंतु यशोधर बाबू सिल्वर वैडिंग को गोरे साहबों का चोंचला मानते थे। इधर चड्डा तथा मेनन ने चाय-मट्ठी तथा लड्डु की माँग प्रस्तुत की। यशोधर बाबू ने इसे ‘समहाउ इंप्रॉपर’ कहकर दस रुपये दे दिए। सारे सेक्शन के कहने पर भी वे इस दावत में शामिल नहीं हुए। हाँ, उन्होंने दस-दस के दो नोट और अवश्य दे दिए।

यशोधर बाबू ‘बॉय सर्विस से उन्नति प्राप्त करके सेक्शन ऑफिसर बने। किशनदा हमेशा उनके आदर्श बने रहे। वे उनके पूर्ववर्ती अधिकारी थे। इसलिए वे हमेशा उन्हीं का अनुकरण करते रहे और तरक्की करते हुए सेक्शन ऑफिसर बन गए। यशोधर बाबू किशनदा के समान सिद्धांतों के पक्के हैं। ऑफिस से छुट्टी मिलने के बाद हर रोज़ बिड़ला मंदिर जाते, प्रवचन सुनते और स्वयं ध्यान भी लगाते। वहाँ से निकलकर वे पहाड़गंज से साग-सब्जी खरीद कर लाते थे। इसी समय में वे लोगों से मिल-जुल लेते थे। वे पैदल घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते थे। यद्यपि ऑफिस से पाँच बजे छुट्टी मिल जाती थी, परंतु वे रात के आठ बजे ही घर पहुँचते थे। आज जब यशोधर बाबू बिड़ला मंदिर जा रहे थे, तो उन्होंने तीन बैडरूम वाले उस क्वार्टर को देखा, जिसमें किशनदा रहते थे। अब वह क्वार्टर नहीं रहा था। वहाँ पर एक छह मंजिला मकान खड़ा था। एक मंज़िल के क्वार्टर को तोड़कर छह मंजिला मकान बनाना यशोधर बाबू को अच्छा नहीं लगा।

भले ही उन्हें पद के अनुसार एंड्रयूज़गंज, लक्ष्मीबाई नगर, पंडारा रोड पर डी-2 टाइप का अच्छा क्वार्टर मिल रहा था। परंतु उन्होंने स्वीकार नहीं किया। जब उनका अपना क्वार्टर तोड़ा जाने लगा तब उन्होंने बचे क्वार्टरों में से एक क्वार्टर अपने नाम अलाट करवा लिया। इसका कारण यह था कि वे किशनदा की यादों को मन में लिए वहीं रहना चाहते थे। किशनदा को याद करते-करते वे मन-ही-मन सोचने लगे। अच्छा तो यह होता कि वह भी किशनदा के समान शादी न करता और जीवन भर समाज की सेवा करता।

फिर उन्हें याद आया कि किशनदा का बढ़ापा ठीक से व्य हुआ। जब सेवानिवृत्त होने के बाद किशनदा को क्वार्टर खाली करना पड़ा, तो किसी ने भी उन्हें आश्रय नहीं दिया। स्वयं यशोधर बाबू उन्हें अपने यहाँ रहने के लिए नहीं कह पाए। क्योंकि उस समय उनका विवाह हो गया था और उनके दो कमरों वाले क्वार्टर में तीन परिवार रह रहे थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे। किंतु मजबूर होकर वे अपने गाँव लौट गए और साल भर बाद स्वर्ग सिधार गए। यशोधर बाबू ने किशनदा से जो कुछ सीखा था, वह सब यशोधर बाबू को याद था।

यशोधर बाबू को याद आया कि हर रोज़ भ्रमण करने के बाद लौटते समय किशनदा अपने इस मानस पुत्र यशोधर बाबू के घर आते थे। किशनदा ने उन्हें जल्दी उठना सिखाया था। किशनदा ने ‘अरली टू बैड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी एंड वाइज़!’ का मंत्र यशोधर बाबू को दिया था। इसलिए वे भी जल्दी उठने और सैर करने जाने लगे। आज भी यशोधर बाबू उस दृश्य को नहीं भूला पाते, जब किशनदा कुरते-पजामे में सैर को निकलते थे।

वे कुर्ते-पजामे के ऊपर ऊनी गाऊन पहनते थे, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँव में देसी खड़ाऊँ तथा छड़ी हाथ में लेकर चलते थे। यही कारण है कि जब तक किशनदा दिल्ली में रहे, तब तक यशोधर बाबू उनके शिष्य बने रहे। उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की नाराज़गी की परवाह नहीं की। किशनदा से उन्होंने यह सीखा कि अपने घर पर होली गवाई जाए, जनेऊ बदलने के लिए कुमाऊँ वासियों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला वालों को क्वार्टर का एक कमरा दिया जाए।

सिद्धांतों का पालन करने वाले यशोधर बाबू की पिछले कुछ वर्षों से अपनी पत्नी तथा बच्चों से छोटी-छोटी बात पर तकरार होती रहती थी। इसलिए शायद वे घर जल्दी लौटकर नहीं आते। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनकी पत्नी आधुनिक नारी बने। यह उनके मूल संस्कारों के विरुद्ध था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का साथ देते हुए ‘मॉड’ बन गई थी। यशोधर बाबू को इस बात का दुख है कि संयुक्त परिवार में रहते हुए उसकी पत्नी ने उसका साथ नहीं दिया। कारण यह था कि यशोधर बाबू परंपरावादी थे और उनके बच्चे आधुनिकवादी थे। पत्नी पुरानी परंपराओं को ढकोसला मानती थी और बच्चों का साथ देती थी। अपनी पत्नी के शृंगार को देखकर मज़ाक करते हुए कहते थे-शानयल बुढ़िया, चटाई का लहँगा, बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’।

जब उनका बड़ा बेटा एक विज्ञापन संस्था में डेढ़ हज़ार रुपये मासिक का कर्मचारी बन गया, तो उन्हें ऐसा लगा कि उनके साधारण पत्र को असाधारण वेतन वाली नौकरी मिल गई है। उन्हें इस बात का भी दुख था कि उनका मंझला पुत्र ‘एलाइड सर्विसेज़’ में नहीं गया और बेटी विवाह के लिए तैयार न हुई, परंतु उन्हें अपने बच्चों की बातें उचित भी लगीं। उदाहरण के रूप में डी०डी०ए० के फ्लैट में पैसा न भरना, उन्होंने अपनी भूल ही मानी। उनके बच्चे बात-बात पर तर्क देते थे। उन्होंने यह भी सोचा कि पुश्तैनी घर में जाकर मरम्मत की जिम्मेवारी लेने से बेकार का झगड़ा लेना पड़ेगा। वे हमेशा किशनदा की बात को याद रखते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। उनका सोचना था जब तक सरकारी नौकरी है, तब तक क्वार्टर है। बाद में गाँव का पुश्तैनी घर है। उनका यह विचार भी था कि उनके रिटायर होने से पहले उनके बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाएगी और यह सरकारी क्वार्टर उन्हीं के पास रहेगा।

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आज प्रवचन सुनने में यशोधर बाबू का मन नहीं लगा। वे मन से न धार्मिक हैं, न कर्मकांडी। वे तो केवल अपने आदर्श किशनदा की परंपरा का पालन कर रहे थे। जैसे उनकी उम्र ढलने लगी तो वे किशनदा के समान मंदिर जाने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकें पढ़ने लगे और संध्या वंदना करने लगे, परंतु उनका मन कहीं टिकता नहीं था। कभी-कभी यह भी सोचते कि उन्हें आसक्ति को छोड़कर परलोक के बारे में सोचना चाहिए। अचानक प्रवचन में जनार्दन शब्द सुनकर उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उनकी तबीयत बहुत खराब थी और उनका हाल-चाल जानने के लिए उन्हें अहमदाबाद जाना होगा। परंतु उनके बीवी और बच्चे इसका विरोध करेंगे, जबकि यशोधर बाबू सुख अथवा दुख में सगे-संबंधियों के यहाँ जाना आवश्यक समझते थे। वस्तुतः यशोधर बाबू की पत्नी को उनका परंपरावादी होना बिल्कुल पसंद नहीं था।

उसका कहना था कि उसके पति ने स्वयं कुछ नहीं देखा। माँ के मरने के बाद यशोधर बाबू को अपनी विधवा बुआ के पास रहना पड़ा, जिसका लंबा-चौड़ा परिवार नहीं था। जब मैट्रिक करके दिल्ली पहुंचे तो किशनदा की छत्रछाया में रहने लगे। किशनदा के पास केवल गवई लोगों का ज्ञान था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी बगैर बाँह का ब्लाऊज पहनती थी, रसोई से बाहर दाल-भात खाती थी और ऊँची हील की सैंडल पहनती थी। यशोधर बाबू इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते थे। यशोधर बाबू चाहते थे कि समाज उन्हें एक आदरणीय बुजुर्ग समझे, बच्चे उनका आदर करें और उनसे सलाह लें। उनका यह भी विचार था कि बच्चे उनकी हर बात को पत्थर की लकीर न समझें, परंतु वे मनमानी तो न करें। वे चाहते थे कि बच्चे उनसे कहें कि बब्बा अब दूध लाना, सब्जी लाना, दालें लाना, राशन लाना, दवा लाना, कोयला लाना आदि सब काम छोड़ दें। उनकी यह इच्छा थी कि उनका बेटा वेतन लाकर उन्हीं को दे। लेकिन घर का कोई सदस्य उनकी इच्छाओं की ओर ध्यान नहीं देता था।

यशोधर बाबू टूटी-फूटी सड़कों से गुजरते हुए हाथ में सब्जी का झोला लटकाए जब घर पहुँचते हैं तो उनकी दशा द्वारका से लौटे सुदामा की तरह प्रतीत हो रही थी। घर के बाहर नेम प्लेट पर उनका अपना ही नाम वाई.डी. पंत लिखा है, परंतु उन्हें लगता ही नहीं कि यह घर उनका है। उनके क्वार्टर के बाहर एक कार, कुछ स्कूटर और मोटर-साइकिलें खड़ी थीं। लोग एक-दूसरे को विदा ले-दे रहे थे। उनके घर के बाहर गुब्बारे और कागज़ से बनी रंगीन झालरें और रंग-बिरंगी रोशनियों वाली लाइटें लगी हुई थीं। उनके बड़े बेटे भूषण को कार में बैठा व्यक्ति हाथ मिलाकर कह रहा था-“गिव माई वार्म रिगार्ड्स टू योर फादर।” यशोधर बाबू को यह सब देखकर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि बाहर क्या हो रहा है? यशोधर बाबू ने देखा कि उसकी पत्नी एवं बेटी कुछ मेहमानों को विदा कर रही हैं।

लड़की ने जींस और बगैर बाँह का टॉप पहना हआ था और पत्नी ने बालों में खिजाब और होंठों पर लाली लगा रखी थी। यशोधर बाबू को यह सब ‘समहाउ इंप्रापर’ लगा। जब वे घर पहुँचे तो बड़े बेटे ने झिड़कते हुए कहा-“बब्बा, आप भी हद करते हैं। “सिल्वर वैडिंग के दिन साढ़े आठ बजे घर पहुंच रहे हैं। अभी तक मेरे बॉस आपकी राह देख रहे थे।” इस पर यशोधर बाबू ने कहा कि-“हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है।” तब यशोधर बाबू के भांजे चंद्रदत्त तिवारी ने कहा कि जब से आपका बेटा डेढ़ हज़ार रुपये महीना कमाने लगा है।

यशोधर बाबू को सिल्वर वैडिंग का आयोजन ठीक नहीं लगा, जिसमें केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय आदि सर्व की जा रही थी। उनको इस बात का दुख है कि आफिस जाते समय उन्हें किसी बात की सूचना नहीं दी गई थी। यही कारण है कि उनके पुत्र भूषण ने अपने मित्रों तथा सहयोगियों से अपने पिता का परिचय करवाया तो उन्होंने केवल बैंक्यू कहकर सबका जवाब दिया। आखिर बच्चों ने केक काटने का आग्रह किया। बेटी के आग्रह पर उन्होंने केक तो काटा पर साथ यह भी कहा “समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” वे केक खाने को भी राजी नहीं हुए, क्योंकि उसमें अंडा होता है। उन्होंने अन्य सब लोगों को खाने के लिए कहा और खुद पूजा करने चले गए।

आज यशोधर बाबू ने संध्याकालीन पूजा में अधिक समय लगाया। वे चाहते थे कि अधिकांश मेहमान चले जाएँ, तो वे अपनी पूजा को समाप्त करेंगे। पूजा करते समय उन्हें किशनदा दिखाई दिए। यशोधर बाबू ने उनसे पूछा कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए। किशनदा ने उत्तर दिया-“भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं।” शुरू और आखिर में सब अकेले ही होते हैं। वे चाहते थे कि काश किशनदा उनका आज भी मार्ग दर्शन करते। इसी बीच यशोधर बाबू की पत्नी ने आकर उन्हें डाँटा, तो वे आसन से खड़े हो गए।

सब रिश्तेदारों के जाने की बात मालूम होने पर यशोधर बाबू गमछा पहने ही बैठक में आ गए। यह देखकर उनकी बेटी क्रोधित हो उठी। तब यशोधर बाबू ने उसकी जींस पर व्यंग्य किया। अन्ततः यशोधर बाबू को प्रेजेंट खोलने के लिए कहा गया परंतु उन्होंने बच्चों से कहा कि तुम ही इसे खोलो और इसका इस्तेमाल करो। इस पर उनके बेटे भूषण ने प्रेजेंट को खोला और कहा कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है, मैं आपके लिए लाया हूँ। जब आप सवेरे दूध लेने जाएँ तो फटे हुए पुलोवर के स्थान पर इसे पहनकर जाएँ। उनकी बेटी कुर्ता-पजामा ले आई, तब यशोधर बाबू ने कुर्ता-पजामा पहन कर गाउन धारण कर लिया। परंतु यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि भूषण द्वारा कही गई दूध लाने की बात उन्हें चुभी या गाउन पहनकर उन्हें किशनदा बनना पसंद आया। परंतु इतना निश्चित था कि यशोधर बाबू की आँखें नम हो गईं।

कठिन शब्दों के अर्थ

सिल्वर वैडिंग = विवाह की रजत जयंती जो कि विवाह के पच्चीस वर्ष बाद मनाई जाती है। निगाह = दृष्टि। सुस्त = धीमी। मातहत = अधीन। जूनियर = अधीन काम करने वाला। शुष्क = रूखा। निराकरण = समाधान । छोकरा = लड़का। पतलून = पैंट। बदतमीज़ी = अभद्र व्यवहार। चूनेदानी = पान खानों वालों द्वारा चूना रखने का बर्तन । धृष्टता = अशिष्टता। करेक्ट = सही। बाबा आदम का ज़माना = पुराना समय। नहले पर दहला = जैसे को तैसा, जवाब देना। दाद = प्रशंसा। वक्ता = बोलने वाले। ठठाकर = ज़ोर से हँसते हुए। ठीक-ठिकाना = सही व्यवस्था। चोंचले = बनावटी व्यवहार। इनसिस्ट = आग्रह। चुग्गे भर = पेट भरने योग्य । जुगाड़ = अस्थायी व्यवस्था। नगण्य = महत्त्वहीन। सेक्रेट्रिएट = सचिवालय। नागवार = अनुचित।

निहायत = सर्वथा, एकदम। बेहूदा = अनुचित। अफोर्ड करना = सहन करना। इसरार = आग्रह। गप्प-गप्पाष्टक = बेकार की बातें। प्रवचन = धार्मिक व्याख्यान। रीत = प्रणाली। सिद्धांत के धनी = विचारों के पक्के। फिकरा = वाक्यांश। वजह = कारण । मदद = सहायता। पेंच = कारण। स्कॉलरशिप = छात्रवृत्ति। वर = विवाह के योग्य युवक। तरक्की = उन्नति। खुशहाली = संपन्नता। उपेक्षा = तिरस्कार का भाव। दिलासा देना = सांत्वना देना। तरफदारी करना = पक्ष लेना। मातृसुलभ = माताओं की स्वाभाविक मनोदशाएँ। मॉड = आधुनिक। गज़ब = आश्चर्यजनक। ताई = पिता के बड़े भाई की पत्नी। ढोंग-ढकोसला = आडंबरपूर्ण व्यवहार। अनदेखा करना = ध्यान न करना।

कुल = वंश। परंपरा = मान्यताएँ। निःश्वास = लंबी साँस । डेडीकेट = समर्पित। रिटायर = सेवानिवृत्त। विरासत = उत्तराधिकार। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया है। प्रस्ताव = पेशकश। बिरादर = जाति भाई। किस्म = तरह। खुराफात = विघ्न डालने वाले काम। सर = सिर। दुनियादारी = सांसारिकता। पुश्तैनी = पैतृक। बिरादरी = जाति। बाध्य करना = मजबूर करना। कर्मकांडी = पूजा-पाठ करने वाला। राजपाट = राजसिंहासन। बाट = पगडंडी। जनार्दन = ईश्वर। तबीयत खराब होना = अस्वस्थ होना। एकतरफा लगाव = एक तरफ की आसक्ति। गम = दुख। गवाई = गाँव के। निभ = निर्वाह करना। बुजुर्गियत = वृद्धावस्था का बड़प्पन । बुढ़याकाल = वृद्धावस्था। एनीवे = किसी तरह। प्रवचन = भाषण। इरादा = निश्चय । लहजा = ढंग, तरीका। हाज़िरी = उपस्थिति।

भाऊ = बच्चा। अनुरोध = आग्रह। पट्टशिष्य = प्रिय शिष्य। निष्ठा = विश्वास, आस्था। जन्यो पुन्यूं = जनेऊ परिवर्तित करने वाली पूर्णिमा। कुमाउँनियों = कुमायूँ क्षेत्र के निवासियों। सख्त नापसंद = अत्यधिक अप्रिय लगना। बदतर = बुरी हालत। दुराग्रह = अनुचित हठ। बुजुर्ग = वृद्ध व्यक्ति। हरगिज़ = बिल्कुल। एक्सपीरिएंस = अनुभव। सबस्टीट्यूट = विकल्प। कुहराम = कोलाहल । नुक्ताचीनी = आलोचना। कारपेट = फर्श की दरी। कारोबार = धंधा। चौपट = नष्ट होना। कई मर्तबा = अनेक बार। इंप्रापर = अनुचित। तरफदारी करना = पक्ष लेना। खिजाब = सफेद बालों को काला करने वाला द्रव्य । एल.डी.सी. = लोअर डिवीजन क्लर्क। कदम = डग। माह = मासिक। नए दौर = नया युग। मिसाल = उदाहरण। भव्य = सुंदर। चचेरा भाई = चाचे का पुत्र। संपन्न = धनवान। हरचंद = बहुत अधिक। जताना = बताना, परिचित कराना। अनमनी = उदासी से भरा हुआ। आखिर = अंत। रवैया = व्यवहार। आमादा = तैयार। खिलाफ = विरुद्ध । लिमिट = सीमा। प्रेजेंट = तोहफा। इस्तेमाल = प्रयोग।

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HBSE 12th Class Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Hindi Apathit Bodh Apathit Gadyansh अपठित गद्यांश Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

अपठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

[1] हमारी संस्कृति में नारी की बड़ी महत्ता रही है। हमारी संस्कृति मातृसत्ता की रही है। हमारे यहाँ ज्ञान और विवेक की अधिष्ठात्री सरस्वती, शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी मानी गई हैं। स्त्री को इन तीनों रूप में रखकर भारतीय मनीषियों ने पूरी संस्कृति को बाँध दिया है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(iii) भारतीय संस्कृति में नारी की क्या स्थिति रही है ?
(iv) भारतीय चिंतकों ने नारी को किन-किन रूपों में माना है ?
उत्तर:
(i) भारतीय संस्कृति में नारी का बहुत महत्त्व है। सरस्वती को ज्ञान और विवेक की दुर्गा को शक्ति की और लक्ष्मी को ऐश्वर्य की देवी माना गया है। भारतीय विद्वानों ने संपूर्ण संस्कृति को इन तीनों रूपों में संगठित कर दिया है।
(ii) शीर्षक-नारी का महत्त्व।
(iii) भारतीय संस्कृति में नारी को अत्यंत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। उसकी माता और देवी के रूप में पूजा की जाती है।
(iv) भारतीय चिंतकों ने नारी को सरस्वती, दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में माना है।

[2] भारत एक विशाल देश है। यहाँ पर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलकर ही एकता बनाए रखी जा सकती है। यदि प्रशासन अपने नागरिकों को समभाव से नहीं देखता, उनमें भेदभाव करता है, तो साम्प्रदायिक द्वेष बढ़ेगा ही। तुष्टिकरण की नीति राष्ट्र के लिए घातक है। साम्प्रदायिकता बहुसंख्यक वर्ग की हो अथवा अल्पसंख्यक वर्ग की, दोनों से कठोरतापूर्वक निपटा जाना चाहिए। कुछ लोग बहुसंख्यक समाज की साम्प्रदायिकता को तो कुचलने की बात करते हैं परंतु अल्पसंख्यकों की साम्प्रदायिकता को साम्प्रदायिकता ही नहीं मानते। इस प्रकार का दृष्टिकोण राष्ट्र-निर्माण में सहायक नहीं हो सकता। धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि धर्म और राजनीति को अलग किया जाए। भारत का अधिकतर मतदाता अशिक्षित है जो धार्मिक अपील में बहकर ही प्रायः मतदान करता है। यह स्वस्थ राजनीति का लक्षण नहीं है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) भारत में किस प्रकार के सिद्धांत पर चलकर एकता बनाए रखी जा सकती है ?
(iii) साम्प्रदायिकता से क्यों कठोरतापूर्वक निपटा जाना चाहिए ?
(iv) धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने के लिए क्या करना होगा ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म और राजनीति।
(ii) भारतवर्ष में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलकर ही एकता बनाए रखी जा सकती है।
(iii) साम्प्रदायिकता की भावना से देश कमज़ोर होता है, इसलिए इससे कठोरता से निपटा जाना चाहिए।
(iv) धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने के लिए धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए।

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[3] लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर सम्प्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। सम्प्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्त्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है। उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। सम्प्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाँति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है ?
(iii) धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है ?
(iv) सम्प्रदाय क्या सिखाता है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म और सम्प्रदाय।
(ii) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है क्योंकि उसकी आड़ में वे अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(iii) धर्म हृदय के किवाड़ों को खोलता है।
(iv) सम्प्रदाय ऊँच-नीच, जाति-पाँति का भेदभाव सिखाता है।

[4] जो शिव की सेवा करना चाहता है, उसे पहले उसकी संतानों की और इस संसार के सारे जीवों की सेवा करनी चाहिए। शास्त्रों ने कहा है कि जो भगवान के सेवकों की सहायता करते हैं, वे भगवान के सबसे बड़े सेवक हैं। निःस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है जिसमें निःस्वार्थता की मात्रा अधिक है, वह अधिक आध्यात्मिकता-संपन्न है और शिव के अधिक निकट है। यदि कोई स्वार्थी है तो उसने फिर चाहे सारे मंदिरों के ही दर्शन क्यों न किए हों, सारे तीर्थों में ही क्यों न घूमा हो, अपने को चीते के समान क्यों न रंग डाला हो, फिर भी वह शिव से बहुत दूर है। जो शिव को दीन-हीन में, दुर्बल में और रोगी में देखता है, वही वास्तव में शिव की उपासना करता है और जो शिव को केवल मूर्ति में देखता है, उसकी उपासना तो केवल प्रारंभिक है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) शिव को मूर्ति में देखने वाले कैसे उपासक होते हैं ?
(ii) शिव की सेवा करने वाले को क्या करना चाहिए ?
(iv) भगवान का सबसे बड़ा सेवक कौन है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-शिव का सच्चा सेवक।
(ii) शिव को मूर्ति में देखने वाले केवल आरंभिक शिव-उपासक होते हैं।
(iii) शिव की सेवा करने वाले को पहले शिव की संतानों की सेवा करनी चाहिए।
(iv) भगवान के सेवकों की सहायता करने वाला भगवान का सबसे बड़ा सेवक होता है।

[5] आतंकवाद मस्तिष्क का फितूर है जिसकी चपेट में कोई भी विवेकहीन व्यक्ति आ सकता है। इसको दूर करना एक माह या एक साल का काम नहीं है। निरंतर कोशिशों से ही इसे मिटाया जा सकता है। इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता राष्ट्रीय एकता की है। समस्त व्यक्तिगत, जातिगत, धर्मगत, नीतिगत स्वार्थों को त्यागकर राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ बनाने में प्रत्येक व्यक्ति को रचनात्मक सहयोग देना होगा।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) आतंकवाद का शिकार आसानी से कौन हो जाता है?
(iv) आतंकवाद को समाप्त कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
(i) आतंकवाद मानव-मस्तिष्क का जुनून है। कोई भी विवेकहीन व्यक्ति इसकी पकड़ में आ जाता है। आतंकवाद को मिटाने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। सभी व्यक्तियों को अपनी जातिगत, धार्मिक एवं नीतिगत स्वार्थों को छोड़कर राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में सहयोग देना होगा।
(ii) आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता।
(iii) कोई भी विवेकहीन व्यक्ति आसानी से इसका शिकार हो जाता है।
(iv) आतंकवाद को समाप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जातिगत, धर्मगत और नीतिगत स्वार्थों का त्याग करना होगा और राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ बनाने में अपना सहयोग देना होगा।

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[6] स्वतंत्र भारत का संपूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ही ऊपर है क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने समाज, अपने धर्म, अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) कैसे विद्यार्थी राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं ?
(iii) स्वतंत्र भारत का दायित्व किस पर है ?
(iv) विद्यार्थियों को भारत की उन्नति के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-राष्ट्र-निर्माण में विद्यार्थियों की भूमिका।
(ii) जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं।
(iii) स्वतंत्र भारत का दायित्व विद्यार्थियों पर है।
(iv) विद्यार्थियों को भारत की उन्नति के लिए अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सावधानी एवं सतर्कता से करना चाहिए।

[7] राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य युवकों द्वारा ही संभव है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को चुनौती देने वाली शक्तियों का सामना करने के लिए युवकों का पहला कर्तव्य है कि शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक दृष्टि से मज़बूत बनें। स्वामी विवेकानंद सौ-दो सौ कर्तव्यनिष्ठ युवकों के सहारे पूरे विश्व को बदलने का स्वप्न देखते रहे। युवक नशों के शिकार न हों, वे संयम और सदाचार को अपनाएँ तथा स्वास्थ्य का ध्यान रखें तो देश के काम आ सकते हैं। मानसिक रूप से यदि वे तेज़ हैं, समस्याओं को समझते हैं, उन पर विचार करते हैं तो वे अवसरवादी नेताओं, राष्ट्र विरोधी तत्त्वों की चालों को समझ सकेंगे। स्वस्थ लोकमत का निर्माण कर पाएँगे। भावात्मक अथवा आत्मिक दृष्टि से यदि वे उदार हैं, सर्वधर्म समभाव के आदर्श से प्रेरित हैं, मानव मात्र की एकता के समर्थक हैं और भारतमाता से प्यार करते हैं तो वे राष्ट्र की एकता और अखंडता में साधक हो सकते हैं। पश्चिम की भौतिकवादी-भोगवादी सभ्यता का विरोध युवकों को करना चाहिए।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) राष्ट्र का पुनर्निर्माण किनके द्वारा संभव है ?
(iii) युवकों का पहला कर्तव्य क्या होना चाहिए ?
(iv) युवकों में किन-किन गुणों का समावेश होना चाहिए ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-राष्ट्र का पुनर्निर्माण एवं युवक।
(ii) राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य युवकों द्वारा ही संभव है।
(iii) युवकों का पहला कर्तव्य है कि वे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टि से अपने आपको मज़बूत बनाएँ।
(iv) युवकों में नशे की आदत नहीं होनी चाहिए। वे संयमशील, उदार, विचारवान तथा देशप्रेमी होने चाहिएँ।

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[8] एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तभी बनती है जब समाचार संगठन बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। लेकिन निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। इसलिए पत्रकारिता सही
और गलत, अन्याय और न्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती, बल्कि यह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) निष्पक्षता से क्या तात्पर्य है?
(iv) पत्रकारिता की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) एक पत्रकार को सदैव निष्पक्ष रहकर सच्चाई को सामने लाना चाहिए तभी उसके समाचार संगठन की साख बनती है। पत्रकारिता राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका निभाती है। एक पत्रकार को तटस्थता छोड़कर सही और न्याय का साथ देना चाहिए।
(ii) पत्रकार की निष्पक्षता।
(iii) निष्पक्षता से तात्पर्य है कि बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई को सामने लाना।
(iv) पत्रकारिता का लोकतंत्र से सीधा संबंध है। यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में यह सदैव सही और न्याय के साथ होती है।

[9] देशभक्त अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्रेम करता है। यदि एक ओर उसे अपने अतीत के गौरव का गर्व है, तो दूसरी ओर वह अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहता है। वह सदैव समाज में क्रांति चाहता है किंतु वह क्रांति न विशृंखला कही जा सकती है और न नागरिकता के प्रतिकूल। समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों तथा उन परंपराओं एवं परिपाटियों के विरुद्ध वह क्रांति करता है, जो देश की उन्नति के पथ की बाधाएँ हैं। लोगों में एकता, प्रेम और सहानुभूति उत्पन्न करना, उनमें राष्ट्रीय, सामाजिक एवं नैतिक चेतना जागृत करना, उन्हें कर्तव्यपरायणता और अध्यवसायी बने रहने के लिए प्रोत्साहित करना ही देशभक्ति है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) सच्चा देशभक्त कौन है ?
(iii) देश की उन्नति के लिए क्या बाधक है ?
(iv) सच्ची देशभक्ति क्या है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-सच्चा देशभक्त।
(ii) जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्रेम करता है वही सच्चा देशभक्त होता है।
(iii) अंध-विश्वास, रूढ़िगत परंपराएँ एवं परिपाटियाँ देश की उन्नति में बाधक हैं।
(iv) लोगों में एकता, प्रेम, जागृति, सहानुभूति उत्पन्न करना तथा लोगों को उनके कर्तव्य के प्रति प्रोत्साहित करना सच्ची देशभक्ति है।

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[10] मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर होती है। जिस मनुष्य की इच्छाशक्ति जितनी बलवती होगी, उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होगा। इसी इच्छाशक्ति के द्वारा मनुष्य वह दैवी शक्ति प्राप्त कर लेता है, जिसके आगे करोड़ों व्यक्ति नतमस्तक होते हैं। प्रबल इच्छाशक्ति के द्वारा मानव एक बार मृत्यु के क्षणों को भी टाल सकता है। विघ्न-बाधाएँ, मार्ग की रुकावटें सभी के मार्ग में व्यवधान बनकर आती हैं, चाहे वह साधारण व्यक्ति हो या महान। अंतर केवल इतना है कि साधारण मनुष्य का मन विपत्तियों को देखकर जल्दी हार मान लेता है जबकि महान एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के आधार पर उन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। विषम परिस्थितियाँ और उन पर दृढ़तापूर्वक विजय-प्राप्ति ही मनुष्य को महान बनाती हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) मनुष्य दैवी शक्ति कैसे प्राप्त कर सकता है ?
(iii) मन की दृढ़ता तथा संकल्पशक्ति किस पर निर्भर करती है ?
(iv) जीवन में आने वाली बाधाओं पर कौन और कैसे विजय प्राप्त कर लेते हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-दृढ़ इच्छाशक्ति।
(ii) बलवान इच्छाशक्ति से मानव दैवी शक्ति प्राप्त कर सकता है।
(iii) मन की दृढ़ता तथा संकल्पशक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है।
(iv) जीवन में आने वाली बाधाओं पर प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के द्वारा विजय प्राप्त कर सकता है।

[11] लोकतंत्र की सफलता का एक मापदंड यह भी है कि हर नागरिक को न्याय मिले और उसके साथ समता का व्यवहार हो। जिस व्यवस्था में मनुष्य की गरिमा खंडित होती हो, मानवीय अधिकारों का हनन होता हो, उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता।

लोकतंत्र वही सफल है, जहाँ सबको न्याय पाने का अधिकार है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। जहाँ मनुष्य के साथ उसकी जाति, लिंग, रंग अथवा आर्थिक दशा के आधार पर भेदभाव किया जाता हो, वहाँ लोकतंत्र असफल है। जहाँ मनुष्य को मनुष्य के नाते विकास के साधन प्राप्त न हों, वहाँ लोकतंत्र असफल है। शिक्षित व्यक्ति ही ऐसे अधिकारों के प्रति जागरूक होता है और उनकी माँग कर सकता है। शिक्षित व्यक्ति न्याय पाने के लिए संघर्ष करने में अधिक सक्षम होता है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) लोकतंत्र की सफलता का एक मापदंड बताइए।
(iii) असफल लोकतंत्र की क्या पहचान है ?
(iv) व्यक्ति का शिक्षित होना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक लोकतंत्र।
(ii) लोकतंत्र की सफलता का मापदंड यह है कि वहाँ प्रत्येक नागरिक को न्याय मिले व सबके साथ समानता का व्यवहार हो।
(iii) जहाँ व्यक्ति के अधिकारों का हनन हो, उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाए, मनुष्य को विकास के साधन उपलब्ध न हों, वही असफल लोकतंत्र की मुख्य पहचान है।
(iv) व्यक्ति का शिक्षित होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही न्याय पाने के लिए संघर्ष करने में अधिक सक्षम हो सकता है।

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[12] भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देर नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतार-चढ़ाव, तथ्य और आँकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) भाषणकर्ता के प्रमुख गुण कौन-से हैं ?
(iii) श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं ?
(iv) कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-भाषणकर्ता के गुण।
(ii) सादगी, असलियत और जोश भाषणकर्ता के तीन श्रेष्ठ गुण हैं।
(iii) भाषणकर्ता की बनावटी भाषा में बनावटी बातों को श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
(iv) बनावटी भाषा में असत्य पर आधारित भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।

[13] सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) अनुशासन किसे कहा जाता है ?
(ii) मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता ?
(iv) विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक अनुशासन।
(ii) सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है।
(iii) अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता।
(iv) विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।

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[14] मैंने देखा कि बेडौल अक्षर होना अधूरी शिक्षा की निशानी है। अतः मैंने पीछे से अपना खत सुधारने की कोशिश भी की परंतु पक्के घड़े पर कहीं मिट्टी चढ़ सकती है ? जवानी में जिस बात की अवहेलना मैंने की, उसे मैं फिर आज तक न सुधार सका। अतः हरेक नवयुवक मेरे इस उदाहरण को देखकर चेते और समझे कि सुलेख शिक्षा का एक आवश्यक अंग है। सुलेख के लिए चित्रकला आवश्यक है। मेरी तो यह राय बनी है कि बालकों को आलेखन कला पहले सिखानी चाहिए। जिस प्रकार पक्षियों और वस्तुओं आदि को देखकर बालक याद रखता है और उन्हें आसानी से पहचान लेता है, उसी प्रकार अक्षरों को भी पहचानने लगता है और जब आलेखन या चित्रकला सीखकर चित्र इत्यादि निकालना सीख जाता है, तब यदि अक्षर लिखना सीखे तो उसके अक्षर छापे की तरह हो जाएँ।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) गांधी जी की दृष्टि में सुलेख के लिए क्या आवश्यक है ?
(iii) बेडौल अक्षर किसकी निशानी हैं ?
(iv) ‘पक्के घड़े पर मिट्टी न चढ़ने’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) शीर्षक-सुलेख और शिक्षा।
(ii) गांधी जी की दृष्टि में सुलेख के लिए चित्रकला आवश्यक है।
(iii) बेडौल अक्षर अधूरी शिक्षा की निशानी हैं।
(iv) ‘पक्के घड़े पर मिट्टी न चढ़ने’ का भाव यह है कि परिपक्व होने पर व्यक्ति की आदतों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

[15] वर्तमान शिक्षा-प्रणाली ने भारतवासियों को कहीं का न छोड़ा। पिता अपने पुत्र को विद्यालय इसलिए भेजता है कि वह शिक्षित होकर सभ्य बने किंतु वह बनता है-पढ़ा-लिखा बेकार। इतना ही नहीं, वह भ्रष्ट होकर समय खराब करता है। किसान का पुत्र शिक्षित होकर कृषि से नाता तोड़ लेता है। बढ़ई का पुत्र स्कूल में पढ़कर बढ़ईगिरि को भूल जाता है। कर्मकांडी पंडित का पुत्र विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त करके अपने पिता को ही पाखंडी की उपाधि देने लगता है। देश में शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या सुरसा के मुँह की भाँति फैल रही है। नैतिक भावना से विहीन शिक्षा विद्यार्थियों में श्रद्धा और आस्था के भाव उत्पन्न नहीं कर पाती। वर्तमान युग में छात्रों की उच्छंखलता और अराजकता की स्थिति नैतिकता रूपी बीज से उत्पन्न वृक्ष के कटु और शुष्क फल हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) पिता पुत्र को विद्यालय किस उद्देश्य से भेजता है ?
(ii) किसान का बेटा शिक्षित होकर क्या करता है ?
(iv) वर्तमान युग में छात्रों की कैसी स्थिति है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-वर्तमान दूषित शिक्षा-प्रणाली।
(ii) पिता पुत्र को विद्यालय में पढ़-लिखकर सभ्य बनने के लिए भेजता है।
(iii) किसान का बेटा शिक्षित होकर कृषि से नाता तोड़ लेता है।
(iv) वर्तमान युग में छात्र नैतिक शिक्षा के अभाव में उच्छृखलता की स्थिति में पहुंच गए हैं।

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[16] विश्व के किसी कोने में घटित घटना का प्रभाव तत्काल अन्य देशों पर पड़ता है, आज सभी देश एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर हैं। यदि विकसित राष्ट्रों के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है तो विकासशील और अविकसित राष्ट्रों के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम। आज सभी विकासात्मक कार्यों और समस्याओं की व्याख्या विश्व स्तर पर होती है, इसलिए विश्व-बन्धुत्व की भावना को बढ़ावा मिल रहा है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(ii) विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में क्या अंतर है?
(iv) संसार में भाईचारे की भावना क्यों बढ़ रही है?
उत्तर:
(i) सभी राष्ट्र परस्पर सहयोगी हैं क्योंकि किसी के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है तो किसी के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम है। सभी राष्ट्रों की समस्याओं और विकासात्मक कार्यों का विश्व स्तर पर प्रभाव पड़ता है।
(ii) विश्व-बन्धुत्व।
(iii) विकसित राष्ट्रों के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है और विकासशील राष्ट्रों के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम है।
(iv) आजकल सभी विकासात्मक कार्यों और समस्याओं की व्याख्या विश्व स्तर पर होती है इसलिए भाईचारे की भावना बढ़ रही है।

[17] आज के प्रगतिशील संसार में मनुष्य, समाज और राष्ट्र के अस्तित्व का विकास करने वाली जो वस्तुएँ-सुविधाएँ उपलब्ध हैं वे सभी विज्ञान की ही देन हैं। यह विज्ञान की ही देन है कि आज सारा संसार सिमट आया है। कोई देश, समाज अब एक-दूसरे से बहुत दूर नहीं रह गया है। रेल, मोटर तथा वायुयान जैसे अनेक साधन उपलब्ध हैं जिनसे हम कम समय में बहुत दूर की यात्रा सुविधापूर्वक कर सकते हैं।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) संसार के सिमटने से क्या तात्पर्य है?
(iv) यातायात के साधनों से क्या लाभ हुआ है?
उत्तर:
(i) आधुनिक युग में उपलब्ध सभी सुख-सुविधाएँ विज्ञान की देन हैं। सारा संसार छोटा हो गया है। यातायात के विकसित साधनों द्वारा कम समय में बहुत दूर की यात्रा की जा सकती है।
(ii) विज्ञान का सुख।
(iii) आज घर बैठे ही सारे संसार की खबरों का मिनटों में पता लगाया जा सकता है। विज्ञान की उन्नति से सारा संसार सिमट गया है।
(iv) यातायात के साधनों से कम समय में बहुत दूर की यात्रा आसानी से की जा सकती है।

[18] जल जीवन का आधार है। मनुष्य बिना भोजन के कुछ दिन, बिना जल के कुछ घंटे तथा बिना वायु के कुछ मिनटों तक ही जीवित रह सकता है। मनुष्य के जीवन में जल का विशेष महत्त्व है। जल की उपयोगिता अनेक हैं-घरेलू कामों, सिंचाई और औद्योगिक कामों में इसकी विशेष भूमिका रहती है। जल प्रदूषित न हो-इसके प्रति हम सभी को कठोरता से सचेत और जागरूक रहना चाहिए।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) जीवन में जल का क्या महत्त्व है?
(iv) जल के प्रति हमें सचेत रहना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
(i) मानव-जीवन में जल का बहुत महत्त्व है। जल के बिना मनुष्य का जीवन असम्भव है। जल का प्रयोग घरेलू कामों के अतिरिक्त सिंचाई और औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है। अतः हमें जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
(ii) शीर्षक-जल ही जीवन है।
(iii) जल हमारे घरेलू कार्यों के अलावा कृषि, उद्योग-धंधों एवं जैविक क्रियाओं में भी महत्त्वपूर्ण सहयोग देता है। अतः जीवन में जल का अत्यंत महत्त्व है।
(iv) जल के प्रति हमें सचेत रहना इसलिए अनिवार्य है क्योंकि जल का प्रयोग हमारे दैनिक कार्यों के अतिरिक्त सिंचाई और औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है।

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[19] विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ कुसंगति के प्रभाव से ही उत्पन्न होती हैं। विद्यार्थी पहले पढ़ाई में खूब रुचि लेता था किंतु अब वह सिनेमा देखने में मस्त रहता है, निश्चित ही यह कुसंगति का प्रभाव है। शुरू में उसे कोई विद्यार्थी सिनेमा दिखाना प्रारंभ करता है, बाद में उसे सिनेमा देखने की आदत पड़ जाती है। यही हालत धूम्रपान करने वालों की होती है। जब उन्हें धूम्रपान करने की आदत पड़ जाती है तो छूटने का नाम तक नहीं लेती। प्रारंभ में कुछ लोग शौकिया तौर पर बीड़ी-सिगरेट पीना आरंभ कर देते हैं। अंत में उसके आदी बन जाते हैं और लाख यत्न करने पर भी उससे पीछा नहीं छुड़ा पाते। इसलिए तो पं० रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। वह न केवल मान-मर्यादा का विनाश करता है बल्कि सात्विक चित्तवृत्ति को भी नष्ट कर देता है। जो भी कभी कुसंग के चक्र में फँसा है, नष्ट हुए बिना नहीं रहा। कुमार्गगामी दूसरे को अपने जैसा बना लेता है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) विद्यार्थी जीवन में बुराइयाँ उत्पन्न होने का प्रमुख कारण क्या हो सकता है ?
(iii) कुसंग के ज्वर से क्या-क्या नष्ट हो जाता है ?
(iv) “कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।” ये शब्द किसके द्वारा कहे गए हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक कुसंगति का प्रभाव।
(ii) कुसंगति के कारण विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(iii) कुसंग का ज्वर मान-मर्यादा एवं सात्विक चित्तवृत्ति को नष्ट कर देता है।
(iv) ये शब्द पं० रामचंद्र शुक्ल ने कहे हैं।

[20] संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज नहीं है। धर्म एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अन्तर ही क्या है। धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने की आवश्यकता है। त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक रूप निहित है। त्याग एक से लेकर प्राणि-मात्र के लिए भी हो सकता है। इसी से भेद की सारी दीवारें चकनाचूर हो जाती हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) धर्म की क्या विशेषता है?
(iii) धर्म का वास्तविक स्वरूप किसमें निहित है ?
(iv) भेद की सारी दीवारें कब ध्वस्त हो जाती हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म का महत्त्व।
(ii) धर्म ही मनुष्य को पशुओं से अलग करता है।
(iii) त्याग और कर्तव्यपरायणता में धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है।
(iv) त्याग से भेद की सारी दीवारें ध्वस्त हो जाती हैं।

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[21] नारी नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है किन्तु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियाँ समाहित हैं।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) नारी को फूल-सी कोमल क्यों कहा गया है?
(iii) नारी दुर्गा का रूप कब बन जाती है?
(iv) नारी किन-किन रूपों में कर्तव्य की भावना जगाती है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-नारी की शक्ति।
(ii) नारी ममता की भावना से भरी हुई है, इसलिए उसे फूल-सी कोमल कहा गया है।
(iii) जब नारी के आत्म-सम्मान पर आघात होता है या उस पर अत्याचार होता है तो वह दुर्गा का रूप धारण कर लेती है।
(iv) नारी माता, बहिन, पत्नी आदि रूपों में कर्तव्य की भावना जगाती है।

[22] मनोरंजन का मानव जीवन में विशेष महत्त्व है। दिन भर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है-मनोरंजन। मनोरंजन मानव-जीवन में संजीवनी-बूटी का काम करता है। यही आज के मानव के थके हारे शरीर को आराम सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस बनकर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी नहीं रहता।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) मनोरंजन क्या है?
(iii) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसा होता?
(iv) नीरस मानव जीवन की सबसे बड़ी हानि क्या होती है?
उत्तर:
(i) शीर्षक-मनोरंजन।
(ii) काम करने के पश्चात् जब मनुष्य दिनभर थका-मांदा रात को आराम के साधन खोजता है, उसे मनोरंजन कहते हैं।
(ii) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन नहीं होते तो उसका जीवन नीरस बनकर रह जाता।
(iv) नीरसता मानव-जीवन को चक्की की भाँति पीस डालती है और वह संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य नहीं रहता।

[23] आधुनिक मानव-समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव-मूल्यों का ह्रास होने की समस्या उत्तरोतर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्यागकर भौतिक स्तर से ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य के पाने की प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नए-नए रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध-वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपरायणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) आज के मानव की प्रबल इच्छा क्या है ?
(iii) आधुनिक समाज में कौन-सी समस्या बढ़ रही है ?
(iv) आज के मानव की समस्याओं का क्या कारण है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-आधुनिक सभ्यता।
(ii) आज के मानव की प्रबल इच्छा साध्य प्राप्त करने की है।
(iii) आधुनिक समाज में मानव-मूल्यों का हास होने की समस्या निरंतर बढ़ रही है।
(iv) विवेक और ईमानदारी को त्यागकर भौतिक स्तर को ऊँचा उठाने की कामना ही मानव की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का कारण है।

HBSE 12th Class Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

[24] विज्ञान ने मनुष्य को अधिक बुद्धिमान बना दिया है। अब वह अपने समय का हर क्षण पूरी तरह भोग लेना चाहता है। विज्ञान ने मनुष्य को बतलाया कि असली सुख तो सुविधाओं को जुटाने में है और सुविधाएँ पैसे से इकट्ठी की जा सकती हैं। पैसा कमाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। आज का मनुष्य आत्मकेंद्रित, सुखलिप्सू, सुविधाभोगी और आलसी हो गया है। विज्ञान ने उसे निकम्मा बना दिया। अब गृहिणी के पास करने के लिए कोई काम नहीं बचा। जब विज्ञान ने अपेक्षाकृत कम प्रगति की थी, तब लोग प्रायः सरल जीवन व्यतीत करते थे। वे अधिक भावनासंपन्न थे। लोग परोपकार, सेवा, संयम, त्याग आदि गुणों का सम्मान करते थे परंतु अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि जीवन-संगीत विज्ञान की आँच में सूख गया है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) आज का मनुष्य कैसा बन गया है ?
(iii) विज्ञान ने मनुष्य को किस प्रकार बुद्धिमान बनाया है ?
(iv) विज्ञान की आँच में जीवन-संगीत क्यों सूख गया है ?
उत्तर-
(i) शीर्षक-विज्ञान और मानव-जीवन।
(ii) आज का मनुष्य आलसी, आत्मकेंद्रित और सुविधाभोगी बन गया है।
(iii) विज्ञान ने मनुष्य को बताया है कि असली सुख तो सुविधाओं को जुटाने में है और सुविधाएँ पैसे से प्राप्त की जा सकती हैं।
(iv) वैज्ञानिक उन्नति के कारण मानव-जीवन में से सेवा, त्याग, परोपकार आदि की भावना समाप्त हो गई है। इसलिए ऐसा लगता है कि विज्ञान की आँच में जीवन-संगीत सूख गया है।

[25] श्रीराम, श्रीकृष्ण, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिन्द सिंह आदि जितने भी महापुरुष हुए हैं उनको सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय किनको है ? उनकी माताओं को। अमर रहने वाली संतान माताओं के शुभ संस्कारों द्वारा ही बनती हैं। आज सब यह चाहते हैं कि दोनों स्त्री-पुरुष कमाएँ। घर में नौकर-चाकर हों। बच्चों के लिए आया हो, परंतु इससे संतान को श्रेष्ठ बनाने के लिए जितना समय माँ को देना चाहिए, वह नहीं दे सकेगी। स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र तो घर ही है। भारत का कल्याण तभी हो सकता है जबकि नर-नारी निज कर्त्तव्य का पालन करते हुए अपनी भारतीय सभ्यता, मान, मर्यादा तथा संस्कृति की रक्षा के लिए अग्रसर हों। स्त्री ऊँची से ऊँची शिक्षा प्राप्त करे। इसमें कोई बुराई नहीं, पर अपने असली उद्देश्य से विचलित न हो।
प्रश्न-
(i) महापुरुषों को सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय किनको है ?
(ii) स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र कौन-सा है ?
(iii) भारत का कल्याण कैसे हो सकता है ?
(iv) नारी का असली उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
(i) महापुरुषों को सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय उनकी माताओं को है।
(ii) स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र उनका घर ही है।
(iii) भारत का कल्याण तभी हो सकता है जबकि नर-नारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी भारतीय सभ्यता, मान, मर्यादा तथा संस्कृति की रक्षा के लिए अग्रसर हों।
(iv) नारी का असली उद्देश्य यह है कि वह ऊँची-से-ऊँची शिक्षा प्राप्त करके अपने कर्त्तव्य का पालन करें।

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HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Alankar अलंकार Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अलंकार

प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलंकार शब्द का अर्थ है-आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्त्री के सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थों में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे-
“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”
साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्त्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए।

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प्रश्न 2.
अलंकार के कितने भेद होते हैं ? सबका एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं-
1. शब्दालंकार,
2. अर्थालंकार,
3. उभयालंकार।

1. शब्दालंकार-जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है; जैसे.
“चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल-थल में।”

2. अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे
“चरण-कमल बंदौं हरि राई।”

3. उभयालंकार-जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; जैसे
“नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ।
जेतौ नीचौ है चले, तेतौ ऊँचौ होइ ॥”

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

प्रमुख अलंकार-

1. अनुप्रास

प्रश्न 3.
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; यथा-
(क) मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
यहाँ ‘मुदित’, ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’, ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) भगवान भक्तों की भूरि भीति भगाइए।

यहाँ ‘भगवान’, ‘भक्तों’, ‘भूरि’, ‘भीति’ तथा ‘भगाइए’ में ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है।
(ग) कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बिराजति है।

(घ) जौं खग हौं तो बसेरो करौं मिलि-
कालिंदी कूल कदंब की डारनि।

यहाँ दोनों उदाहरणों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) “कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥”
यहाँ ‘क’ तथा ‘न’ वर्गों की आवृत्ति के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(च) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

2. यमक

प्रश्न 4.
यमक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे
(क) कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरातु है, इहिं पाएँ बौराई ॥
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ है-सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है-धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।

(ख) माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है-माला फेरना और दूसरा अर्थ है-भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ का अर्थ है-हृदय और माला का दाना। अतः यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(ग) काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है।
घटा = वर्षा काल में आकाश में उमड़ने वाली मेघमाला
घटा = कम हआ।

(घ) कहैं कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
इस पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में आवृत्तिपूर्वक प्रयोग हुआ है। प्रथम ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है और दूसरा ‘बेनी’ (बेणी) चोटी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

(ङ) गुनी गुनी सब कहे, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोतु ॥
‘अरक’ शब्द यहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक बार अरक के पौधे के रूप में तथा दूसरी बार सूर्य के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहाँ यमक अलंकार सिद्ध होता है।

(च) ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
यहाँ ‘मंदर’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है-भवन तथा दूसरा अर्थ है-पर्वत, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

3. श्लेष

प्रश्न 5.
श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकलें, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे-
1. नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोय।
जेते नीचो है चले, तेतो ऊँचो होय ॥
मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने नीचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागू होता है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

2. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन पूर्व की अवस्था।

3. रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय ॥
इस दोहे में ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष अलंकार है।

4. उपमा

प्रश्न 6.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति के गुण, रूप, दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी लोक-प्रचलित या लोक-प्रसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
1. ‘उसका हृदय नवनीत सा कोमल है।’
इस वाक्य में ‘हृदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है।

2. लघु तरण हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसिनी के साथ की गई है। अतः ‘तरण’ उपमेय, ‘हंसिनी’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारों अंग हैं।

3. हाय फूल-सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय और ‘कोमल’ साधारण धर्म है। ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

4. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
इस पंक्ति में ‘अरविंद से शिशुवृंद’ में साधारण धर्म नहीं है, इसलिए यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

5. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी
बहती हैं अब भी निशि-वासर ॥
यहाँ ‘नदियाँ’ उपमेय, ‘यशधारा’ उपमान, ‘बहना’ साधारण धर्म और ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

5. रूपक

प्रश्न 7.
रूपक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-
1. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है।

2. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है।

3. बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही।
तारा-घट ऊषा नागरी।
इन पंक्तियों में नागरी में ऊषा का, अंबर में पनघट का और तारों में घट का आरोप हुआ है, अतः रूपक अलंकार है।

4. मेखलाकार पर्वत अपार,
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा था बार-बार,
नीचे जल में निज महाकार।
यहाँ दृग (आँखों) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

प्रश्न 8.
उपमा और रूपक अलंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है जबकि ‘रूपक’ में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद स्थापित किया जाता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मनं डोला (उपमा)
यहाँ ‘मन’ उपमेय तथा ‘पीपर पात’ उपमान में समानता बताई गई है। अतः उपमा अलंकार है।

उदाहरण-
चरण कमल बंदौं हरि राई।” (रूपक)
यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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6. उत्प्रेक्षा

प्रश्न 9.
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है; जैसे-
1. सोहत ओ पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमणि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातःकालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

2. उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ॥
यहाँ क्रोध से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमेय है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है।

3. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता।
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही ॥
यहाँ आँसुओं से पूर्ण उत्तरा के नेत्र उपमेय है जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पड़े हुए ओस के कणों की कल्पना की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. मानवीकरण

प्रश्न 10.
मानवीकरण अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
“लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।”
यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अतः लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ। अन्य उदाहरण हैं

(i) दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे,

(ii) “मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।”

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

8. अतिशयोक्ति

प्रश्न 11.
अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसे-
1. हनुमान की पूँछ में, लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग ॥
हनुमान की पूँछ में अभी आग लगी भी नहीं थी कि सारी लंका जल गई और सारे राक्षस वहाँ से भाग गए। यहाँ हनुमान की वीरता का वर्णन लोक-सीमा से भी अधिक बढ़कर है, अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है।

2. आगे नदिया बड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ॥
यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घोड़े का नदी के पार पहुँचना लोक-सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

3. देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही ॥
यहाँ कवि ने साकेत नगरी की सुख-सुविधाओं का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

4. वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।
यहाँ कारण और कार्य के बीच के अंतर को मिटा देने के कारण अतिशयोक्ति अलंकार है। अर्जुन के धनुष से बाण छूटते ही जयद्रथ का सिर धड़ से अलग हो गया। ऐसा होना असंभव है।

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9. अन्योक्ति

प्रश्न 12.
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
जहाँ उपमान (अप्रस्तुत) के वर्णन के माध्यम से उपमेय (प्रस्तुत) का वर्णन किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
1. जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार ॥
यहाँ अलि के माध्यम से एक ऐसे गुणी की ओर संकेत किया गया है, जिसका आश्रयदाता पत्रहीन शाखा (धनहीन) गुलाब जैसा रह गया हो।

2. नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ, आनें कौन हवाल ॥
प्रस्तुत दोहे में अप्रस्तुत अर्थ कली और भ्रमर के वर्णन से प्रस्तुत अर्थ राजा जयसिंह और उनकी नवोढ़ा रानी की प्रतीति कराई गई है, अतः यह अन्योक्ति अलंकार का सुंदर उदाहरण है।

10. पुनरुक्ति प्रकाश

प्रश्न 13.
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
जब कवि एक शब्द की आवृत्ति काव्य में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए करता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।

पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के उदाहरण-
1. “किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।”
2. “कवि-करि प्रतिपद प्रतिमनि वसुधा कमल बैठकी साजती।”
3. झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर!
राग अमर! अंबर में भर निज रोर!
4. ‘हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से’।

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण-

1. शब्द के अंकुर फूटे।
उत्तर:
रूपक

2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर।
प्रतिघट-कटक कटीले कोते कोटि-कोटि।
उत्तर:
अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश

3. हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार।
उत्तर:
मानवीकरण

4. नृत्य करने लगी डालियाँ।
उत्तर:
मानवीकरण

5. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती मानुस चून ॥
उत्तर:
श्लेष

6. तारों की सी छाँह साँवली।
उत्तर:
रूपक

7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरन की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
उत्तर:
उपमा

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8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

9. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास ॥
उत्तर:
अनुप्रास

10. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर:
अनुप्रास और यमक

11. बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन सरोज बढ़ जाई।
घटत-घटत सु न फिरि घटे, बरु समूल कुम्हिलाई ॥
उत्तर:
रूपक

12. चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन, मादक मधुहिं पिए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा, अनुप्रास एवं रूपक

13. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिल काल बस निज कुल घालकु।
भानु बंस-राकेस-कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥
उत्तर:
अनुप्रास

14. यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या?
भू काँप उठे तो ढह जाए, बाढ़ आ जाए, बह जाए ॥
उत्तर:
उपमा

15. या अनुराग चित की, गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होइ ॥
उत्तर:
श्लेष

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

16. मेरे अंतर में आते हो देव, निरंतर,
कर जाते हो व्यथा भार लघु,
बार-बार कर कंज बढ़ाकर।
उत्तर:
रूपक एवं यमक

17. भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उत्तर:
अनुप्रास
यमक

18. पी तुम्हारी मुख बात तरंग
आज बौरे भौंरे सहकार।
उत्तर:
यमक

19. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
उत्तर:
यमक

20. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।
उत्तर:
अनुप्रास

21. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

22. ऊँचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल।
उत्तर:
अनुप्रास

23. थर-थर काँपहिं नर-नारी।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

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24. सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ॥
उत्तर:
यमक

25. रघुपति राघव राजा राम।
उत्तर:
अनुप्रास

26. तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।
उत्तर:
अनुप्रास

27. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
उत्तर:
रूपक

28. यह तेरी रण-तरी।
उत्तर:
रूपक

29. भव-सागर तरने को नाव बनाए।
उत्तर:
रूपक

30. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
उत्तर:
अनुप्रास

31. जेहि विधि तबहिं ताहि लइ आवा।
उत्तर:
अनुप्रास

32. बार-बार गर्जन,
वर्षण है मूसलाधार।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

33. भजन कह्यो तातें, भज्यों ने एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कयो, सो तू भज्यो गँवार ॥
उत्तर:
यमक

34. महा महा जोधा संघारे।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

35. ऐ जीवन के पारावार।
उत्तर:
उपमा।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

HBSE 12th Class Hindi श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
उत्तर:
लेखक जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का एक रूप इसलिए नहीं मानता क्योंकि यह विभाजन स्वाभाविक नहीं है। पुनः यह मानव की रुचि पर भी आधारित नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें व्यक्ति की क्षमता और योग्यता की उपेक्षा की जाती है। यह माता-पिता के सामाजिक स्तर को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है। जन्म से पूर्व ही मनुष्य के लिए श्रम विभाजन करना पूर्णतया अनुचित है। जाति-प्रथा आदमी को आजीवन एक ही व्यवसाय से जोड़ देती है जोकि सर्वथा अनुचित है। जाति-प्रथा के कारण मनुष्य को उचित तथा अनुचित किसी भी व्यवसाय को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यहाँ तक कि यदि मनुष्य को भूखा मरना पड़ा तो भी वह अपना पेशा नहीं बदल सकता। यह स्थिति समाज के लिए बड़ी भयावह है।

प्रश्न 2.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तर:
जाति-प्रथा किसी भी आदमी को अपनी रुचि के अनुसार पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती। उसे केवल पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है। वह किसी अन्य पेशे को नहीं अपना सकता। भले ही वह उस पेशे में पारंगत क्यों न हो। आज उद्योग-धंधों की प्रक्रिया और तकनीक में लगातार विकास हो रहा है, जिससे कभी-कभी भयानक परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पेशा बदलने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि मनुष्य को पेशा न बदलने दिया जाए तो वह बेरोज़गारी और भुखमरी का शिकार हो जाएगा।

आज भले ही समाज में भयंकर जाति-प्रथा है, लेकिन उसके बाद भी कोई ऐसी मजबूरी नहीं है कि वह अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर नए पेशे को न अपना सके। आज जो लोग पैतृक व्यवसाय से जुड़े हैं वे अपनी इच्छा से जुड़े हुए हैं अथवा किसी अन्य व्यवसाय में योग्यता की कमी के कारण पैतृक व्यवसाय को अपनाए हुए हैं।

प्रश्न 3.
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कह सकते। दासता की एक अन्य स्थिति यह भी है जिसके अनुसार कुछ लोगों को अन्य लोगों द्वारा निर्धारित किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पाल होना पड़ता है। कानूनी पराधीनता न होने पर भी समाज में इस प्रकार की दासता देखी जा सकती है। उदाहरण के रूप में जाति-प्रथा के समान समाज में ऐसे लोगों का वर्ग भी संभव है जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी पेशे को अपनाना पड़ सकता है। उदाहरण के रूप में सफाई करने वाले कर्मचारी इसी प्रकार के कहे जा सकते हैं।

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प्रश्न 4.
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर:
डॉ० आंबेडकर यह जानते हैं कि शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से लोगों में असमानता हो सकती है, परंतु फिर भी वे क्षमता के व्यवहार्य सिद्धांत को अपनाने की सलाह देते हैं। इस संदर्भ में लेखक का यह तर्क है कि यदि हमारा समाज अपने सदस्यों का अधिकतम प्रयोग प्राप्त करना चाहता है, तो इसे समाज के सभी लोगों को आरंभ से ही समान अवसर और समान व्यवहार प्रदान करना होगा। विशेषकर हमारे राजनेताओं को सब लोगों के साथ एक-समान व्यवहार करना चाहिए। समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का उचित अवसर मिलना चाहिए। लेखक का यह भी तर्क है कि जन्म लेना या सामाजिक परंपरा प्राप्त करना व्यक्ति के अपने वश में नहीं है। अतः इस आधार पर किसी के व्यवसाय का निर्णय करना उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है; जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर:
इस बात को लेकर हम लेखक से पूरी तरह सहमत हैं। कारण यह है कछ लोग किसी उच्च वंश में उत्पन्न होने के फलस्वरूप उत्तम व्यवहार के अधिकारी बन जाते हैं। यदि हम गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि इसमें उनका कोई अपना योगदान नहीं है। सामाजिक परिवेश व्यक्ति को सम्मान प्रदान कर सकता है लेकिन उस व्यक्ति के सामर्थ्य का मूल्यांकन नहीं कर सकता है। मनुष्य के कार्यों तथा उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही उसकी महानता का निर्णय होना चाहिए और आदमी के प्रयत्नों की सही जाँच तब हो सकती है जब सभी को समान अवसर प्राप्त हों। उदाहरण के रूप में गाँव के विद्यालयों तथा सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों का पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ मुकाबला नहीं किया जा सकता। अतः समय की माँग यह है कि जातिवाद का उन्मूलन किया जाए और सभी को समान भौतिक स्थितियाँ और सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। तब उनमें जो श्रेष्ठ व्यक्ति सिद्ध होता है, वही उत्तम व्यवहार का अधिकारी हो सकता है।

प्रश्न 6.
आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/समझेंगी।
उत्तर:
आदर्श समाज के तीसरे तत्त्व (भ्रातृता) भाईचारे पर विचार करते समय लेखक ने अलग से स्त्रियों का उल्लेख नहीं किया, परंतु लेखक ने समाज की बात कही है और स्त्रियाँ समाज से अलग नहीं होतीं, बल्कि स्त्री और पुरुष दोनों के मिलने से समाज बनता है। अतः यह कहना कि आदर्श समाज में स्त्रियों को सम्मिलित किया गया है अथवा नहीं; यह सोचना ही व्यर्थ है। समाज में स्त्रियाँ स्वतः सम्मिलित हैं। भ्रातृता भले ही संस्कृतनिष्ठ शब्द है परंतु यह अधिक प्रचलित नहीं है। अतः यदि इसके स्थान पर भाईचारा शब्द का प्रयोग होता तो वह उचित होता।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
आंबेडकर ने जाति-प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है, उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से इस कहानी को स्वयं पढ़ें और विचार करें।

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प्रश्न 2.
‘कार्य कुशलता’ पर जाति-प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से इस कहानी को स्वयं पढ़ें और विचार करें।

इन्हें भी जानें

आंबेडकर की पुस्तक जातिभेद का उच्छेद और इस विषय में गांधी जी के साथ उनके संवाद की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

हिंद स्वराज नामक पुस्तक में गांधी जी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 12th Class Hindi श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने जाति-प्रथा की किन-किन बुराइयों का वर्णन किया है?
उत्तर:
जाति-प्रथा द्वारा किया गया श्रम विभाजन स्वाभाविक नहीं है क्योंकि यह श्रमिकों में भेद उत्पन्न करती है और उनमें ऊँच-नीच की भावना पैदा करती है। पुनः जाति-प्रथा पर आधारित श्रम विभाजन श्रमिकों की रुचि के अनुसार नहीं होता। जाति-प्रथा के फलस्वरूप श्रम विभाजन माँ के गर्भ में ही तय हो जाता है। जन्म लेने के बाद व्यक्ति की रुचि और क्षमता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यही नहीं, जाति-प्रथा मनुष्य को हमेशा के लिए एक ही व्यवसाय से जोड़ देती है। यदि विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँ तो भी व्यक्ति अपना व्यवसाय नहीं छोड़ सकता जिससे उसे भूखों मरना पड़ सकता है। जाति-प्रथा के कारण कुछ काम घृणित माने गए हैं, जो लोग मजबूरी में इन कार्यों को करते हैं उन्हें लोग हीन समझते हैं।

प्रश्न 2.
आदर्श समाज के बारे में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए हैं?
उत्तर:
लेखक जिस आदर्श समाज की बात करता है वह स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित होगा। लेखक का कहना है कि आदर्श समाज में जो परिवर्तन होगा उसका लाभ सभी को होगा किसी एक को नहीं। इस प्रकार के समाज में अनेक प्रकार के हितों में सभी लोगों की भागीदारी होगी। यही नहीं, सभी लोग समाज के कल्याण के लिए जागरूक रहेंगे। ऐसी स्थिति में सामाजिक जीवन में सबको निरंतर संपर्क के अनेक साधन और अवसर प्राप्त होंगे। समाज में भाईचारा इस प्रकार का होगा जैसे दूध और पानी का मिश्रण होता है। अतः आदर्श समाज समाज के सभी लोगों के लिए उपयोगी होगा।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र से लेखक का क्या आशय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक का विचार है कि लोगों में जो दूध-पानी के मिश्रण के समान भाईचारा विकसित होगा वही तो लोकतंत्र है। इसमें समाज के सभी लोगों में स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की भावना विकसित होगी। लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, बल्कि लोकतंत्र सामूहिक जीवन-चर्या की एक नीति है। समाज के सम्मिलित अनुभवों का आदान-प्रदान ही लोकतंत्र है। इस प्रकार के लोकतंत्र की स्थापना होने से लोगों को अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव उत्पन्न होगा।

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प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि मनुष्यों की क्षमता शारीरिक वंश-परंपरा, सामाजिक उत्तराधिकार और मनुष्य के अपने प्रयत्नों पर निर्भर करती है। शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार जन्मजात होते हैं। ये दोनों मनुष्य के वश में नहीं हैं। अतः इनके आधार पर किसी का वर्ग और कार्य निश्चित नहीं किया जाना चाहिए और न ही जन्म के कारण किसी को श्रेष्ठ या निम्न मानना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य के प्रयत्न उसके अपने वश में हैं। अतः सभी मनुष्यों को प्रयत्न करने के समान अवसर दिए जाने चाहिएँ। प्रयत्न करने पर जो मनुष्य उत्तम है, उसे उत्तम ही कहेंगे।

प्रश्न 5.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोज़गारी और भुखमरी का एक कारण कैसे रही है? भीमराव आंबेडकर के विचारों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति-प्रथा भारतीय समाज के लिए एक कलंक है। यह हमेशा बेरोज़गारी और भुखमरी का कारण बनती रही है। जब समाज किसी व्यक्ति को जाति के आधार पर एक विशेष पेशे से जोड़ देता है और यदि वह पेशा उस आद अथवा अपर्याप्त होता है तो उसके समक्ष भुखमरी की स्थिति उपस्थित हो जाती है। जाति-प्रथा उस व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती अथवा उसे पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में उसके सामने भूखों मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता। भारतीय समाज हमेशा व्यक्ति को पैतृक पेशा अपनाने को मजबूर करता है। भले ही वह उसे पेशे में प्रवीण हो अथवा नहीं। पेशा बदलने की अनुमति न देना बेरोज़गारी का प्रमुख कारण बनता है। परंतु स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद इस स्थिति में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। जाति-प्रथा के बावजूद आज व्यक्ति को अपना पेशा चुनने अथवा बदलने का पूरा अधिकार है। सरकार द्वारा लागू की गई आरक्षण नीति से भी इस स्थिति में काफी परिवर्तन आया है।

प्रश्न 6.
‘जाति-प्रथा’ के आधार पर श्रम विभाजन को स्वाभाविक क्यों नहीं माना गया?
उत्तर:
जाति-प्रथा श्रम का जो विभाजन करती है वह मनुष्य की रुचियों तथा उसकी क्षमताओं पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह विभाजन जन्म और जाति के आधार पर किया जाता है। जाति-प्रथा द्वारा किया गया श्रम विभाजन अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें व्यक्ति बंधनों में जकड़ लिया जाता है। सही श्रम विभाजन वही हो सकता है जिसमें मानव की रुचियों और क्षमताओं का ध्यान रखा जाए। रोज़गार के उचित अवसर सभी को प्राप्त होने चाहिएँ । दुःख की बात तो यह है कि जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम विभाजन ऊँच-नीच और छोटे-बड़े के भेदभाव को उत्पन्न करता है। यह विभाजन पूर्णतया अस्वाभाविक है।

प्रश्न 7.
जाति-प्रथा आर्थिक विकास के लिए किस प्रकार हानिकारक है?
उत्तर:
आर्थिक विकास के लिए यह जरूरी है कि लोगों को उनकी रुचि, क्षमता तथा योग्यता के अनुसार पेशा अपनाने और श्रम करने की स्वतंत्रता हो, बल्कि सभी को समान अवसर भी मिलने चाहिएँ। जाति-प्रथा सबको समान अवसर देने से रोकती है। वह व्यक्ति की अपनी रुचि, क्षमता और इच्छा की ओर कोई ध्यान नहीं देती। जो लोग जन्मजात पेशे को अपनाने के लिए मजबूर किए जाते हैं वे न चाहते हुए मजबूर होकर काम करते हैं। पेशे में न उनका दिल लगता है, न दिमाग। वे अपनी शक्तियों और क्षमताओं का समुचित प्रयोग नहीं कर पाते जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 8.
आंबेडकर ने किसके लिए दासता शब्द का प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर:
आंबेडकर ने जाति-प्रथा के आधार पर पेशा अपनाने की परंपरा को ‘दासता’ की संज्ञा दी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मनुष्य इस परंपरा के कारण अपनी इच्छानुसार पेशा नहीं चुन सकता। उसे वही काम करना पड़ता है जो जन्म से उसके लिए निर्धारित कर दिया जाता है। उसकी अपनी इच्छा की परवाह नहीं की जाती। जाति-प्रथा के कारण समाज उसके लिए जो काम निर्धारित कर लेता है, आजीवन उसे वही काम करना पड़ता है। भले ही उसमें उसकी अपनी रुचि हो या न हो। ऐसा जीवन ‘दासता’ नहीं तो और क्या कहा जाएगा।

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प्रश्न 9.
जन्मजात धंधों में लगे हुए लोग कार्यकुशल क्यों नहीं बन पाते?
उत्तर:
जिन लोगों को जाति-प्रथा के कारण जन्मजात धंधों को अपनाना पड़ता है, उनमें कभी भी कार्य-कुशलता नहीं आ पाती। उस कार्य में उनकी रुचि नहीं होती लेकिन फिर भी उन्हें मजबूर होकर वह काम करना पड़ता है। यही नहीं, ऐसा व्यक्ति दुर्भावना से ग्रस्त हो जाता है। वह काम करने की बजाय टाल-मटोल की नीति को अपनाता है। जाति-प्रथा द्वारा निर्धारित काम में उसका दिल और दिमाग नहीं लगता, जिसके फलस्वरूप वह अपनी क्षमता की अपेक्षा बहुत कम काम करता है।

प्रश्न 10.
लेखक ने किस आधार पर असमान व्यवहार को उचित माना और क्यों?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि असमान प्रयत्न के आधार पर असमान व्यवहार उचित है। कहने का भाव यह है कि यदि कोई आदमी अपनी इच्छा से बहुत थोड़ा प्रयत्न करता है और ठीक से काम नहीं करता तो उसे कम सम्मान मिलना चाहिए। जो व्यक्ति अधिक प्रयत्न करता है उसे अधिक सम्मान मिलना चाहिए। इस प्रकार से व्यक्ति को प्रोत्साहित करना या दंडित करना सर्वथा उचित है। ऐसा करने से मनुष्य अपनी क्षमताओं का विकास कर सकेगा और अयोग्य लोगों को योग्य स्थानों पर काम करने को नहीं मिलेगा।

प्रश्न 11.
लेखक ने आदर्श समाज के बारे में क्या कहा है?
अथवा
आदर्श समाज की कल्पना का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
लेखक आदर्श समाज की चर्चा करते हुए कहता है कि उसका आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता और भ्रातृता पर आधारित होगा। यह किसी प्रकार से भी गलत नहीं है। भाईचारे में किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता अवश्य होनी चाहिए कि समाज में किया गया कोई भी परिवर्तन सर्वत्र व्याप्त हो जाए। ऐसे समाज में सार्वजनिक हितों में सबकी भागीदारी होनी चाहिए। सामाजिक जीवन में निरंतर संपर्क के अनेक साधन और अवसर सभी को प्राप्त होने चाहिएँ। लेखक इस तुलना दूध और पानी के मिश्रण से करता है। इसी को लोकतंत्र कहा जाता है। लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवन-चर्या की एक नीति है जिसमें सभी को अनुभवों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
लेखक ने समता को काल्पनिक वस्तु क्यों माना है? फिर भी वह समता क्यों चाहता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार लोगों के बीच में समता प्राकृतिक नहीं है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही सामाजिक स्तर से अपने प्रयत्नों के कारण असमान होता है। सभी एक-समान नहीं हो सकते। अतः पूर्ण समता एक काल्पनिक वस्तु है। फिर भी लेखक का कहना है कि समाज के सभी लोगों को पढ़ने-लिखने और फलने-फूलने के बराबर अवसर मिलने चाहिएँ। किसी प्रकार का भेदभाव मानव के विकास में बाधा का काम करता है और उसकी कार्य-कुशलता को हानि पहुँचाता है। भले ही समाज विविध प्रकार का है और विशाल भी है, लेकिन फिर भी सभी मनुष्य समान होने चाहिएँ। तभी हमारा समाज वर्गहीन, जातिहीन और श्रेणीहीन होगा।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ के लेखक का नाम क्या है?
(A) डॉ० भीमराव आंबेडकर
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) विष्णु खरे
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(A) डॉ० भीमराव आंबेडकर

2. डॉ० भीमराव आंबेडकर का जन्म कब हुआ?
(A) 14 अप्रैल, 1890 को
(B) 12 अप्रैल, 1891 को
(C) 14 अप्रैल, 1891 को
(D) 14 अप्रैल, 1881 को
उत्तर:
(C) 14 अप्रैल, 1891 को

3. भीमराव आंबेडकर का जन्म कहाँ पर हुआ?
(A) महू में
(B) मेद्या में
(C) बहू में
(D) भाण्डू में
उत्तर:
(A) महू में

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4. महू किस राज्य में स्थित है?
(A) उत्तरप्रदेश में
(B) राजस्थान में
(C) हरियाणा में
(D) मध्यप्रदेश में
उत्तर:
(D) मध्यप्रदेश में

5. डॉ० भीमराव का जन्म किस परिवार में हुआ?
(A) ब्राह्मण परिवार में
(B) क्षत्रिय परिवार में
(C) अस्पृश्य परिवार में
(D) वैश्य परिवार में
उत्तर:
(C) अस्पृश्य परिवार में

6. डॉ० भीमराव ने आरंभिक शिक्षा कहाँ प्राप्त की?
(A) पाकिस्तान में
(B) भारत में
(C) श्रीलंका में
(D) जापान में
उत्तर:
(B) भारत में

7. उच्चतर शिक्षा के लिए सर्वप्रथम वे कहाँ गए?
(A) न्यूयार्क में
(B) लंदन में
(C) पेरिस में
(D) हांगकांग में
उत्तर:
(A) न्यूयार्क

8. न्यूयॉर्क के बाद भीमराव ने कहाँ पर उच्च शिक्षा प्राप्त की?
(A) वाशिंगटन में
(B) दिल्ली में
(C) मुंबई में
(D) लंदन में
उत्तर:
(D) लंदन में

9. किन विश्वविद्यालयों ने डॉ. आंबेडकर को विधि, अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान में डिग्रियाँ प्रदान की?
(A) पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने
(B) कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नॉमिक्स ने
(C) कोलकाता विश्वविद्यालय और मुंबई विश्वविद्यालय ने
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय और मेरठ विश्वविद्यालय ने
उत्तर:
(B) कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इक्नॉमिक्स ने

10. किस समाज से डॉ० आंबेडकर का मोह भंग हो गया?
(A) हिंदू समाज से
(B) ब्राह्मण समाज से
(C) जैन समाज से
(D) वैश्य समाज से
उत्तर:
(A) हिंदू समाज से

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11. डॉ० आंबेडकर कब बौद्ध धर्म के मतानुयायी बने?
(A) 12 अक्तूबर, 1952 को
(B) 14 अक्तूबर, 1956 को
(C) 12 अक्तूबर, 1955 को
(D) 16 अक्तूबर, 1957 को
उत्तर:
(B) 14 अक्तूबर, 1956 को

12. डॉ. आंबेडकर के साथ और कितने लोग बौद्ध धर्म के मतानुयायी बने?
(A) 2 लाख
(B) 3 लाख
(C) 5 लाख
(D) 7 लाख
उत्तर:
(C) 5 लाख

13. डॉ. आंबेडकर किस महान कवि से प्रभावित हुए थे?
(A) गुरुनानक देव से
(B) कबीरदास से
(C) रविदास से
(D) धर्मदास से
उत्तर:
(B) कबीरदास से

14. डॉ० भीमराव आंबेडकर का देहांत कब हुआ?
(A) 6 दिसंबर, 1956 को
(B) 5 दिसंबर, 1955 को
(C) 12 दिसंबर, 1956 को
(D) 6 दिसंबर, 1951 को
उत्तर:
(A) 6 दिसंबर, 1956 को

15. डॉ० भीमराव आंबेडकर ने किसके निर्माण में योगदान दिया?
(A) हिंदू समाज
(B) दलित समाज
(C) भारतीय संविधान
(D) भारतीय समाज
उत्तर:
(C) भारतीय संविधान

16. भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय ने बाबा साहेब आंबेडकर के संपूर्ण वाङ्मय को कितने खंडों में विभाजित किया है?
(A) 22
(B) 23
(C) 24
(D) 21
उत्तर:
(D) 21

17. बाबा भीमराव की रचना ‘जेनेसिस एंड डवेलपमेंट’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1927 में
(B) सन् 1928 में
(C) सन् 1917 में
(D) सन् 1930 में
उत्तर:
(C) सन् 1917 में

18. ‘द अनटचेबल्स, हू आर दे? का प्रकाशन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1946 में
(C) सन् 1947 में
(D) सन् 1948 में
उत्तर:
(D) सन् 1948 में

19. बाबा भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1957 में
(B) सन् 1958 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1960 में
उत्तर:
(A) सन् 1957 में

20. ‘हू आर द शूद्राज़’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1947 में
(B) सन् 1946 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1951 में
उत्तर:
(B) सन् 1946 में

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21. ‘थॉट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1950 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1955 में
(D) सन् 1960 में
उत्तर:
(C) सन् 1955 में

22. बाबा भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘द प्रॉबल्म ऑफ़ द रुपी’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1919 में
(B) सन् 1920 में
(C) सन् 1922 में
(D) सन् 1923 में
उत्तर:
(D) सन् 1923 में

23. ‘द राइज़ एंड फॉल ऑफ द हिंदू वीमैन’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1965 में
(B) सन् 1960 में
(C) सन् 1921 में
(D) सन् 1930 में
उत्तर:
(A) सन् 1965 में

24. ‘एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1930 में
(B) सन् 1936 में
(C) सन् 1920 में
(D) सन् 1940 में
उत्तर:
(B) सन् 1936 में

25. डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित ‘लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी’ किस वर्ष प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1941 में
(B) सन् 1942 में
(C) सन् 1943 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(C) सन् 1943 में

26. सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान को लेखक ने क्या कहा है?
(A) स्वतंत्रता
(B) तानाशाही
(C) दासता
(D) लोकतंत्र
उत्तर:
(D) लोकतंत्र

27. जाति-प्रथा व्यक्ति को जीवन भर के लिए किससे बाँध देती है?
(A) एक ही व्यवसाय से
(B) अनेक व्यवसायों से
(C) व्यवसाय बदलने से
(D) व्यवसाय छोड़ने से
उत्तर:
(A) एक ही व्यवसाय से

28. लेखक ने भारतीय समाज में बेरोज़गारी और भुखमरी का क्या कारण बताया है?
(A) गरीबी
(B) पूँजीवाद
(C) जाति-प्रथा
(D) सांप्रदायिकता
उत्तर:
(C) जाति-प्रथा

29. आंबेडकर ने दूध और पानी के मिश्रण की तुलना किससे की है?
(A) स्वतंत्रता से
(B) समता से
(C) भाईचारे से
(D) सम्पन्नता से
उत्तर:
(C) भाईचारे से

30. लेखक ने काल्पनिक जगत की वस्तु किसे कहा है?
(A) राजनीति को
(B) सिद्धांत को
(C) समता को
(D) जातिवाद को
उत्तर:
(C) समता को

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31. लेखक के अनुसार हिन्दू धर्म की जाति-प्रथा व्यक्ति को कौन-सा पेशा चुनने की अनुमति देती है?
(A) पैतृक पेशा
(B) स्वतंत्र पेशा
(C) कर्मानुसार
(D) कार्य-कुशलता के अनुसार
उत्तर:
(A) पैतृक पेशा

32. कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना क्या कहलाता है?
(A) स्वतंत्रता
(B) आज्ञा पालन
(C) दासता
(D) गरीबी
उत्तर:
(C) दासता

33. कौन-सा धर्म व्यक्ति को जाति-प्रथा के अनुसार पैतृक-काम अपनाने को मजबूर करता है?
(A) हिन्दू
(B) मुस्लिम
(C) सिक्ख
(D) ईसाई
उत्तर:
(A) हिन्दू

34. स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित समाज को आंबेडकर ने कैसा समाज कहा है?
(A) अच्छा
(B) महत्त्वपूर्ण
(C) आदर्श
(D) स्वीकार्य
उत्तर:
(C) आदर्श

35. लेखक के अनुसार इस युग में किसके पोषकों की कमी नहीं है?
(A) श्रमवाद
(B) जातिवाद
(C) धर्मवाद
(D) राजनीति
उत्तर:
(B) जातिवाद

36. माता-पिता के आधार पर श्रम विभाजन करना किसकी देन है?
(A) धर्म की
(B) समाज की
(C) जाति-प्रथा की
(D) बेरोज़गारी की
उत्तर:
(C) जाति-प्रथा की

37. आदर्श समाज की विशेषता है
(A) विघटन
(B) अलगाव
(C) गतिशीलता
(D) विद्वेष
उत्तर:
(C) गतिशीलता

38. इस युग में ‘जातिवाद’ क्या है ?
(A) गुण
(B) विडम्बना
(C) श्रेष्ठ व्यवस्था
(D) ईश-विधान
उत्तर:
(B) विडम्बना

39. बाबा साहेब आंबेडकर ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?
(A) स्वतंत्र समाज की
(B) समान समाज की
(C) आदर्श समाज की
(D) गतिशील समाज की
उत्तर:
(C) आदर्श समाज की

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

40. लेखक ने भाईचारे के वास्तविक रूप को किसके मिश्रण की भाँति बताया है?
(A) आटा-नमक
(B) दूध-पानी
(C) दूध-घी
(D) घी-शक्कर
उत्तर:
(B) दूध-पानी

41. लेखक के अनुसार दासता का संबंध किससे नहीं है?
(A) समाज से
(B) कानून से
(C) शिक्षा से
(D) धन से
उत्तर:
(B) कानून से

42. किस क्रांति में ‘समता’ शब्द का नारा लगाया गया था?
(A) रूसी क्रांति में
(B) फ्रांसीसी क्रांति में
(C) जर्मन क्रांति में
(D) जापानी क्रांति में
उत्तर:
(B) फ्रांसीसी क्रांति में

43. बाबा साहेब के अनुसार किसके आधार पर समानता अनुचित है?
(A) वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के
(B) रोज़गार और धन के
(C) जाति और धर्म के
(D) धर्म और शिक्षा के
उत्तर:
(A) वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के

44. जाति-प्रथा के पोषक लोग किन जातियों से संबंधित हैं?
(A) छोटी जातियों से
(B) उच्च जातियों से
(C) राजनेताओं से
(D) धार्मिक नेताओं से
उत्तर:
(B) उच्च जातियों से

45. आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा का परिणाम कैसा है?
(A) हानिकारक
(B) लाभकारी
(C) उपयोगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) हानिकारक

46. श्रम के परंपरागत तरीकों में किस कारण से परिवर्तन हो रहा है?
(A) शिक्षा के कारण
(B) गरीबी के कारण
(C) बेरोज़गारी के कारण
(D) आधुनिक तकनीक के कारण
उत्तर:
(D) आधुनिक तकनीक के कारण

47. पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में किसका प्रमुख एवं प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है?
(A) मजदूरी का
(B) बेरोजगारी का
(C) असमानता का
(D) छुआछूत का
उत्तर:
(B) बेरोजगारी का

48. आधुनिक युग में विडम्बना की बात क्या है?
(A) साम्यवाद
(B) जातिवाद
(C) अद्वैतवाद
(D) प्रयोगवाद
उत्तर:
(B) जातिवाद

49. लेखक के अनुसार किस पहलू से जाति-प्रथा हानिकारक प्रथा है?
(A) राजनैतिक
(B) धार्मिक
(C) सामाजिक
(D) आर्थिक
उत्तर:
(D) आर्थिक

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50. जाति-प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा-रुचि व आत्म-शक्ति को दबाकर उसे क्या बना देती है?
(A) निष्क्रिय
(B) सक्रिय
(C) कर्मशील
(D) गतिशील
उत्तर:
(A) निष्क्रिय

51. आधुनिक सभ्य समाज कार्य-कुशलता के लिए किसे आवश्यक मानता है?
(A) जाति-प्रथा
(B) शिक्षा
(C) श्रम-विभाजन
(D) प्रोत्साहन
उत्तर:
(C) श्रम-विभाजन

52. फ्रांसीसी क्रांति के नारे में कौन-सा शब्द विवाद का विषय रहा है?
(A) राजतंत्र
(B) समता
(C) स्वतंत्रता
(D) श्रम-विभाजन
उत्तर:
(B) समता

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] यह विडंबना की ही बात है, कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है, कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति-प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है, कि जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है। श्रम विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंत किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता [पृष्ठ-153]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक,भारतीय संविधान के निर्माता ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। इस गद्यांश में लेखक यह कहना चाहता है कि जाति-प्रथा को श्रम विभाजन से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि हमारे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आधुनिक युग में लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं। जातिवाद का समर्थन करने वाले इसके लिए अनेक आधारों को खोजने की कोशिश करते हैं। उनके द्वारा जातिवाद का समर्थन करने का एक आधार यह बताया जाता है कि आज हमारा समाज सभ्य हो चुका है और कार्य-कुशलता के लिए श्रम का विभाजन नितांत आवश्यक है। जहाँ तक जाति-प्रथा का प्रश्न है यह श्रम विभाजन का ही एक अन्य रूप है। अतः जाति-प्रथा में कोई बुराई नज़र नहीं आती। भाव यह है कि जाति-प्रथा का समर्थन करने वाले लोग जाति-प्रथा को श्रम विभाजन से जोड़ने का प्रयास करते हैं। परंतु लेखक ने उनके इस मत के बारे में अनेक विपत्तियाँ उठाई हैं।

उनका कहना है कि जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का रूप ले चुकी है। जहाँ तक श्रम विभाजन का प्रश्न है यह सभ्य समाज के लिए नितांत आवश्यक है परंतु संसार के किसी भी सभ्य समाज में श्रम के विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों के भिन्न-भिन्न वर्गों में बनावटी विभाजन नहीं करती। हमारे लिए दुःख की बात है कि जाति-प्रथा को हम श्रम विभाजन का आधार मान चुके हैं। यह समाज के लिए घातक है। भारत में प्रचलित जाति-प्रथा की एक अन्य विशेषता यह है कि यह न केवल श्रमिकों का अस्वाभाविक रूप से विभाजन करती है, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के मुकाबले में ऊँचा और नीचा घोषित कर देती है। परंतु ऊँच-नीच की यह प्रथा संसार के किसी भी समाज में प्रचलित नहीं है। केवल हमारे देश में ही श्रमिकों को विभिन्न वर्गों में बाँटकर ऊँच-नीच की खाई पैदा कर दी जाती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि हमारे देश में जाति-प्रथा को ही श्रम विभाजन का आधार माना गया है जो कि सर्वथा अनुचित है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस बात को विडंबना कहा है?
(ग) किस कारण से लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं?
(घ) श्रम विभाजन का क्या अर्थ है?
(ङ) क्या जाति-प्रथा एक बुराई है?
(च) भारत में ऐसी कौन-सी व्यवस्था है जो दूसरे देशों से अलग है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम–‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’, लेखक का नाम-बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ।

(ख) लेखक ने इस बात को विडंबना कहा है कि आज के वैज्ञानिक युग में हमारे देश में जातिवाद का समर्थन करने वालों की कमी नहीं है। वे लोग कार्य-कुशलता के लिए जाति-प्रथा को आवश्यक मानते हैं।

(ग) लोगों का विचार है कि कार्य-कुशलता के लिए जातिवाद आवश्यक है। उनका कहना है कि जातियाँ कर्म के आधार पर बनाई गई हैं और ये कर्म का विभाजन करती हैं। अतः श्रम विभाजन के लिए जाति-प्रथा आवश्यक है।

(घ) श्रम विभाजन का अर्थ है-मानव के लिए उपयोगी कामों का वर्गीकरण करना अर्थात प्रत्येक काम को कशलता से करने के लिए काम-धंधों का विभाजन करना । जैसे कोई खेती करता है, मजदूरी करता है, कोई फैक्ट्री चलाता है, कोई चिकित्सा करता है।

(ङ) निश्चय ही जाति-प्रथा एक बुराई है क्योंकि यह श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है। जाति-प्रथा मानव को जन्म से ही किसी व्यवसाय से जोड़ देती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मानव अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाता। यह इसलिए भी बुराई है क्योंकि इससे समाज में ऊँच-नीच का भेद-भाव उत्पन्न हो जाता है।

(च) जन्म के आधार पर काम-धंधा तय करना, केवल भारत में ही प्रचलित है। यह व्यवस्था ऊँच-नीच को जन्म देती है। भारत के अतिरिक्त यह पूरे संसार में कहीं भी प्रचलित नहीं है।

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[2] जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व एकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है। [पृष्ठ-153-154]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि जाति-प्रथा मानव को जीवन भर के लिए एक ही पेशे से बाँध देती है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि जाति-प्रथा मनुष्य के पेशे का दोषपूर्ण निर्धारण पहले से ही निश्चित कर देती है और वह आजीवन उस पेशे से बँध जाता है। भले ही वह पेशा उसके लिए उचित न हो, पर्याप्त न हो। यह भी संभव है कि वह व्यक्ति उस पेशे के कारण भूखा मर जाए। आज के युग में यह स्थिति अकसर देखी जाती है। कारण यह है कि देश में उद्योग-धंधों और तकनीक का या तो लगातार विकास होता रहता है अथवा कभी उसमें अचानक बदलाव आ जाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को मजबूर होकर अपना पेशा बदलना पड़ता है। इसके विपरीत हालातों में भी मनुष्य को अपना व्यवसाय बदलने की आज़ादी न हो तो उसके पास भूखा मरने की बजाय कोई अन्य रास्ता नहीं रह जाता। हिंदू धर्म में जाति-प्रथा का बोल-बाला है। किसी भी आदमी को ऐसा पेशा चुनने की आजादी नहीं दी जाती जो उसे पिता से प्राप्त न हुआ हो। भले ही वह उस पेशे में कितना भी प्रवीण क्यों न हो फिर भी वह उस पेशे को नहीं अपना सकता। जब जाति-प्रथा व्यक्ति को पेशा बदलने की आज्ञा नहीं देती तो भारत में बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही। अतः जाति-प्रथा भारत में बढ़ती बेरोज़गारी का एक प्रमुख कारण है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने जाति-प्रथा की आलोचना इसलिए की है क्योंकि वह व्यक्ति को एक पेशे से बाँध देती है।
  2. जाति-प्रथा बेरोज़गारी फैलाने का एक प्रमुख कारण है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जाति-प्रथा में लेखक को क्या दोष दिखाई देता है?
(ख) मानव को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता कब और क्यों पड़ती है?
(ग) पेशा बदलने की आज़ादी न मिलने के क्या परिणाम होते हैं?
(घ) कौन-सा धर्म मनुष्य को पैतृक पेशे के अतिरिक्त अन्य किसी पेशे को चुनने की आज़ादी नहीं देता?
(ङ) जाति-प्रथा बेरोजगारी का प्रमुख कारण कैसे है?
उत्तर:
(क) जाति-प्रथा में लेखक को अनेक दोष दिखाई देते हैं। पहली बात यह है कि जाति-प्रथा जन्म से मनुष्य के पेशे को निर्धारित कर देती है और वह जीवन-भर उस पेशे से बँध जाता है। यदि पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त हो तो मनुष्य भूखा भी मर सकता है।

(ख) जब उद्योग-धंधों की प्रक्रिया या तकनीक में अचानक परिवर्तन आ जाए या उसका विकास अवरुद्ध हो जाए तो मनुष्य को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है।

(ग) यदि मनुष्य को पेशा बदलने की आज़ादी न हो और उसके पेशे की माँग में कमी आ जाए तो उसे भूखा मरना पड़ सकता है।

(घ) हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी मनुष्य को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती जो उसका पैतृक पेशा न हो। यह व्यवस्था सर्वथा अनुचित है।

(ङ) भारत में जाति-प्रथा मनुष्य को पेशा परिवर्तन की अनुमति नहीं देती। अतः यह जाति-प्रथा बेरोज़गारी को बढ़ावा देती है और यह बेरोज़गारी का प्रमुख कारण भी है।

[3] श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति-प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। जाति-प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं रहता। ‘पूर्व लेख’ ही इसका आधार है। इस आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न इतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी यह कि बहुत से लोग ‘निर्धारित’ कार्य को ‘अरुचि’ के साथ केवल विवशतावश करते हैं। ऐसी स्थिति स्वभावतः मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसी स्थिति में जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो न दिमाग, कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। [पृष्ठ-154]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से अवतरित है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा में अनेक दोष देखे जा सकते हैं क्योंकि जाति-प्रथा के द्वारा बनाया गया श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा व रुचि को नहीं देखता।

व्याख्या-लेखक पुनः कहता है कि जहाँ तक श्रम विभाजन का प्रश्न है, इसकी दृष्टि से भी जाति-प्रथा में अनेक गंभीर दोष देखे जा सकते हैं। जाति-प्रथा जो श्रम का विभाजन करती है, उसमें मनुष्य की इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। मनुष्य के अपने निजी विचार क्या हैं; उसकी अपनी रुचि किस काम में है? इसके बारे में जाति-प्रथा में किया गया श्रम विभाजन कुछ नहीं करता। भाव यह है कि मनुष्य की व्यक्तिगत भावनाओं और रुचियों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता, बल्कि जाति-प्रथा पूर्व जन्म य में लिखे हए को अधिक महत्त्व देती है। लेखक पनः कहता है कि आज हमारे देश में उद्योगों में गरीबी और शोषण इतनी गंभीर समस्या नहीं है जितनी कि अनेक लोगों को मजबूर होकर ऐसे काम करने पड़ते हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं है और ये काम समाज द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

इन हालातों में मनुष्य में बुरी भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वह या तो टाल-मटोल करता है या बहुत कम काम,करता है। इन हालातों में काम करने वालों का न तो उस काम में दिल लगता है और न ही वे दिमाग लगाकर काम करते हैं। अतः वे अपने काम में प्रवीणता प्राप्त नहीं कर सकते। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि जाति-प्रथा आर्थिक दृष्टि से समाज के लिए घातक है। कारण यह है कि जाति-प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक बढ़ावा देने वाली रुचि और अंदर की शक्ति को दबा देती है और मानव अस्वाभाविक नियमों में बँध जाता है और वह बेकार हो जाता है। अतः जाति-प्रथा समाज के लिए सबसे बड़ी हानिकारक प्रथा है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा को दोषयुक्त घोषित किया है। क्योंकि जाति-प्रथा मनुष्य की व्यक्तिगत भावना और व्यक्तिगत रुचि को कोई महत्त्व नहीं देती।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक ने श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा को दोषपूर्ण क्यों माना है?
(ख) पूर्व लेख के आधार पर श्रम विभाजन का तात्पर्य क्या है?
(ग) लेखक के अनुसार श्रम के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या कौन-सी है?
(घ) कार्य निर्धारित होने के दुष्परिणाम क्या हैं?
(ङ) कार्य-कुशलता कैसे बढ़ायी जा सकती है?
(च) क्या आर्थिक दृष्टि से जाति-प्रथा हानिकारक है?
उत्तर:
(क) श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा निश्चय से दोषपूर्ण है। पहली बात तो यह है कि मनुष्य की इच्छा और रुचि को न देखकर पूर्व लेख के आधार पर उसके पेशे को निर्धारित करती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मनुष्य इस काम में कोई रुचि नहीं लेता और काम को अनावश्यक बोझ समझता है।

(ख) पूर्व लेख के आधार पर श्रम विभाजन का अभिप्राय है कि जन्म के आधार पर मनुष्य के पेशे का निर्णय करना अर्थात् यह सोचना कि मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ही प्रतिफल मिलना चाहिए।

(ग) श्रम के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को अपनी इच्छा व रुचि के अनुसार काम नहीं दिया जाता। उन्हें मजबूर होकर वह काम करना पड़ता है जो वे नहीं करना चाहते। इससे काम की उत्पादक शक्ति घट जाती है।

(घ) कार्य निर्धारित होने का सबसे बुरा परिणाम यह होता है कि श्रमिक काम में रुचि नहीं लेता। वह काम को बोझ समझता है इसलिए काम के प्रति उसके मन में दुर्भावना उत्पन्न हो जाती है। वह टाल-मटोल की नीति को अपनाता है तथा दिल-दिमाग से उस काम को नहीं करता।

(ङ) कार्य-कुशलता को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक मनुष्य को उसकी रुचि के अनुसार काम दिया जाए बल्कि उसे अपनी इच्छा से व्यवसाय ढूँढने का मौका दिया जाए।

(च) आर्थिक दृष्टि से जाति-प्रथा अत्यधिक हानिकारक है। इस प्रथा के फलस्वरूप लोगों को पैतृक काम-धंधा करना पड़ता है जिसमें उनकी रुचि नहीं होती। वे दिल और दिमाग से उस काम को नहीं करते, जिससे न तो कार्य में कुशलता आ सकती है और न ही उत्पादकता बढ़ सकती है।

[4] मेरा आदर्श-समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होगा। क्या यह ठीक नहीं है, भ्रातृता अर्थात भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? किसी भी आदर्श-समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह है कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है। क्योंकि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इनमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो। [पृष्ठ-154-155]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। इस लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। इस गद्यांश में लेखक ने आदर्श समाज की चर्चा की है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि मेरा आदर्श समाज ऐसा होगा जिसमें स्वतंत्रता, समानता और आपसी भाई-चारा होगा। लेखक का विचार है कि भाई-चारे में किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह कुछ सीमा तक उचित भी है। आदर्श समाज में इतनी अधिक गतिशीलता होनी चाहिए ताकि उसमें आवश्यक परिवर्तन समाज के एक किनारे से दूसरे किनारे तक व्याप्त हो सके अर्थात् गतिशीलता से ही समाज में परिवर्तन आता है। इस प्रकार के आदर्श समाज के अनेक प्रकार के लाभों में सबको योगदान देना चाहिए। सभी को उन लाभों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में बिना किसी बाधा के आपसी संबंध होने चाहिएँ।

इसके लिए सभी को साधन और अवसर प्राप्त होने चाहिएँ। भाव यह है कि भाईचारा दूध और पानी की तरह होना चाहिए। सच्चा भाईचारा ऐसा ही होता है। इसे हम लोकतंत्र भी कहते हैं। लेखक का कहना है कि लोकतंत्र शासन की एक व्यवस्था नहीं है, बल्कि लोकतंत्र सामाजिक जीवन जीने की एक पद्धति है और समाज के सभी अनुभवों के आदान-प्रदान का तरीका है। परंतु इसमें यह भी जरूरी है कि इसमें लोगों की अपने मित्रों के प्रति श्रद्धा और आदर की भावना भी उत्पन्न हो। नहीं तो भाईचारा सफल नहीं हो पाएगा और न ही लोकतंत्र।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने आदर्श समाज की व्याख्या करते हुए भाईचारे की भावना को विकसित करने पर बल दिया है।
  2. लेखक ने लोकतंत्र पर समुचित प्रकाश डाला है।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक ने किस समाज को आदर्श समाज माना है?
(ख) लेखक ने समाज में किस प्रकार के भाईचारे का समर्थन किया है?
(ग) लेखक ने लोकतंत्र की क्या परिभाषा बताई है?
(घ) समाज में किस प्रकार की गतिशीलता की बात की गई है?
(ङ) गतिशीलता, अबाध संपर्क तथा दूध-पानी के मिश्रण में कौन-सी समानता है?
उत्तर:
(क) लेखक ने उस समाज को आदर्श माना है जिसमें स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा हो। उसमें इस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए कि सभी आवश्यक परिवर्तन संपूर्ण समाज में व्याप्त हो जाएँ।

(ख) लेखक समाज में इस प्रकार का भाईचारा चाहता है जिसमें लोगों के बीच बिना बाधा के संपर्क हो। उस भाईचारे में न तो कोई बंधन हो, न जड़ता और न ही रूढ़िवादिता, बल्कि गतिशीलता होनी चाहिए। जैसे दूध और पानी मिलकर एक हो जाते हैं वैसे लोगों को मिलकर एक हो जाना चाहिए।

(ग) लेखक भाईचारे का दूसरा नाम लोकतंत्र को मानता है। उसका विचार है कि लोकतंत्र केवल शासन पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवन जीने का ढंग है। सच्चा लोकतंत्र वही है जिसमें लोग परस्पर अनुभवों का आदान-प्रदान करते हैं और दूसरे का उचित सम्मान करते हैं।

(घ) लेखक ने समाज में गतिशीलता का मत यह लिया है कि लोगों में परस्पर निर्बाध संपर्क हो, सहभागिता हो और सबकी रक्षा करने की जागरूकता हो। लोग दूध-पानी के समान मिले हुए हों और एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा तथा सम्मान का भाव रखते हों।

(ङ) गतिशीलता, अबाध संपर्क तथा दूध-पानी के मिश्रण में सबसे बड़ी समानता यह है कि लोगों में उदारतापूर्वक मेल-मिलाप हो। जिस प्रकार दूध और पानी मिलकर एक हो जाते हैं उसी प्रकार लोग जाति-पाँति के बंधनों को त्यागकर गतिशील रहते हुए परस्पर संपर्क करें और एक-दूसरे का सम्मान करें।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

[5] जाति-प्रथा के पोषक, जीवन, शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मनुष्य के सक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगे, क्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता किसी को नहीं है, तो उसका अर्थ उसे ‘दासता’ में जकड़कर रखना होगा, क्योंकि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थ, जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव है, जहाँ कुछ लोगों की अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं। [पृष्ठ-155]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से अवतरित है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता, बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक कहता है कि जाति-प्रथा के पोषक जीवन, शारीरिक सुरक्षा और संपत्ति के अधिकार को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मानव की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करेंगे।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि जो लोग जाति-प्रथा का समर्थन करते हैं, वे जीवन की शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेंगे। इस प्रवृत्ति के प्रति उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन मानव के समर्थ तथा प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए वे आसानी से तैयार नहीं होंगे अर्थात् जाति-प्रथा के पोषक यह कदापि नहीं मानेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति को मानव समझकर उसे स्वतंत्रता का प्रभावशाली प्रयोग करने दिया जाए। कारण यह है कि इस प्रकार की स्वतंत्रता का मतलब यह है कि अपना व्यवसाय चुनने की आजादी किसी को नहीं है, बल्कि इसका मतलब है समाज के छोटे वर्ग को गुलामी में जकड़कर रखना।

लेखक का कथन है कि केवल कानूनी पराधीनता को दासता नहीं कहा जा सकता । दासता में वो स्थिति भी शामिल है जिसमें कुछ लोगों को अन्य लोगों के द्वारा निश्चित किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भाव यह है कि समाज का उच्च वर्ग निम्न वर्ग के लिए व्यवहार को निर्धारित करने और कुछ कार्यों का पालन करने के लिए मजबूर करे तो यह भी दासता ही कही जाएगी। समाज में इस प्रकार की स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी समाज में उपलब्ध हो सकती है।।

उदाहरण के रूप में जाति-प्रथा के समाज में लोगों का ऐसा वर्ग भी हो सकता है जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने दासता अर्थात गुलामी की विभिन्न स्थितियों का गंभीर विवेचन किया है और जाति-प्रथा का खंडन – किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले क्या स्वीकार करते हैं और क्या अस्वीकार करते हैं?
(ख) दासता का क्या अर्थ है?
(ग) कानूनी पराधीनता न होने पर भी लोगों को इच्छा के विरुद्ध पेशे क्यों अपनाने पड़ते हैं?
(घ) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग किस स्वतंत्रता का विरोध करते हैं और क्यों?
उत्तर:
(क) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग शारीरिक सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेते हैं, परंतु मनुष्य के सक्षम और प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करते।

(ख) कुछ लोगों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना ही दासता कहलाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जाति-प्रथा के आधार पर जो कर्त्तव्य लोगों के निर्धारित किए जाते हैं वे दासता के ही लक्षण हैं।

(ग) जाति-प्रथा के कारण समाज में कुछ ऐसे वर्ग भी हैं जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं, परंतु यह कानूनी पराधीनता न होकर भी सामाजिक पराधीनता तो अवश्य है। उदाहरण के रूप में सफाई कर्मचारियों को सफाई का काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें कोई और काम नहीं दिया जाता।

(घ) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग मानव को पेशा (व्यवसाय) चुनने की स्वतंत्रता देने के विरुद्ध हैं। विशेषकर उच्च जाति के लोग इसका निरंतर विरोध करते रहते हैं। वे स्वयं तो ऊँचे कार्य करना चाहते हैं और समाज में श्रेष्ठ कहलाना चाहते हैं, परंतु छोटी जातियों को ऊपर उठने का अवसर प्रदान नहीं करते।

[6] ‘समता’ का औचित्य यहीं पर समाप्त नहीं होता। इसका और भी आधार उपलब्ध है। एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय, राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी ही होती है, जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के आधार पर वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, ‘मानवता’ के दृष्टिकोण से समाज दो वर्गों व श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता। ऐसी स्थिति में, राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है, कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। राजनीतिज्ञ यह व्यवहार इसलिए नहीं करता कि सब लोग समान होते, बल्कि इसलिए कि वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण संभव होता। [पृष्ठ-156]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता, बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक ने समता के औचित्य पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि समता का औचित्य बहुत व्यापक है। यह यहीं पर समाप्त नहीं हो जाता। इसके अन्य आधार भी देखे जा सकते हैं। एक राजनेता को असंख्य लोगों से मिलना पड़ता है। अपने हलके के लोगों से मिलते समय, व्यवहार करते समय.उसके पास इतना अधिक समय नहीं होता कि वह प्रत्येक व्यक्ति के विषय की जानकारी प्राप्त करे। न ही वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं और क्षमताओं को जान सकता है और न ही सबके साथ अलग-अलग आवश्यक व्यवहार कर सकता है। यदि गहराई से देखा जाए तो लोगों की आवश्यकताओं और क्षमताओं को आधार बनाकर भिन्न-भिन्न व्यवहार करना उचित नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करने से हम मानवता की दृष्टि से समाज को दो वर्गों तथा श्रेणियों में विभक्त कर देंगे जोकि किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता।

ऐसी स्थिति में राजनेता को अपने व्यवहार में एक ऐसे सिद्धांत को अपनाना होता है जो सबके लिए उपयोगी और व्यवहार्य हो और वह सिद्धांत यही है कि एक क्षेत्र के सभी लोगों के साथ एक-सा व्यवहार किया जाए। राजनेता यह व्यवहार इसलिए नहीं करता कि सभी लोग समान होते हैं, बल्कि इसलिए करता है कि उसके लिए लोगों का वर्गीकरण तथा श्रेणीकरण संभव होता है। लेखक के कहने का भाव यह है कि राजनेता को अपने सभी मतदाताओं के साथ एक-सा व्यवहार करना चाहिए, उसे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने समता के औचित्य पर विशेष बल दिया है।
  2. लेखक ने सिद्धांत और व्यवहार को व्यवहार्य कहा है।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) समता के कौन-से औचित्य पर बल दिया गया है?
(ख) राजनीतिज्ञ को सबके साथ समान व्यवहार क्यों करना पड़ता है?
(ग) लेखक ने किस सिद्धांत और व्यवहार को व्यवहार्य कहा है?
(घ) राजनीतिज्ञ सब मनुष्यों के साथ एक समान व्यवहार क्यों नहीं कर पाता?
उत्तर:
(क) समता के औचित्य पर बल देने से लेखक का अभिप्राय यह है कि असंख्य लोगों की अलग-अलग आवश्यकताओं को जानकर उनके साथ अलग-अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता। अतः मनुष्य को सबके साथ एक-समान व्यवहार करना चाहिए।

(ख) राजनीतिज्ञ को सबके साथ इसलिए समान व्यवहार करना पड़ता है क्योंकि उसका संपर्क असंख्य लोगों के साथ होता है। उसके लिए सबकी क्षमताओं और आवश्यकताओं को जान पाना संभव नहीं है। इसलिए उसे मजबूर होकर सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करना पड़ता है।

(ग) सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार को ही लेखक ने व्यवहार्य कहा है क्योंकि इस सिद्धांत के द्वारा वह सबके साथ एक जैसा व्यवहार कर सकता है।

(घ) राजनीतिज्ञ सबके साथ एक-समान व्यवहार इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि सभी लोग समान नहीं होते, बल्कि उनमें वर्गीकरण और श्रेणीकरण की संभावना बनी रहती है।

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Summary in Hindi

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज लेखिका-परिचय

प्रश्न-
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-डॉ० भीमराव का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्यप्रदेश के महू ज़िले में हुआ। आरंभिक शिक्षा उन्होंने भारत में प्राप्त की। क्योंकि उनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार में हुआ था, इसलिए उन्हें आजीवन हिंदू धर्म की वर्ण-व्यवस्था तथा भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरुद्ध लंबा संघर्ष करना पड़ा। बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर वे पहले उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयार्क गए। बाद में लंदन चले गए। उन्होंने वैदिक साहित्य को अनुवाद के माध्यम से पढ़ा और सामाजिक क्षेत्र में मौलिक कार्य किया। परिणामस्वरूप वे एक इतिहास-मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे। कुछ समय तक उन्होंने अपने देश में वकालत की और अछूतों, स्त्रियों तथा मजदूरों को मानवीय अधिकार तथा सम्मान दिलाने के लिए लंबा संघर्ष किया। स्वयं दलित होने के कारण उन्हें सामाजिक समता पाने के लिए भी लंबा संघर्ष करना पड़ा। भारत लौटकर उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नॉमिक्स से अनेक डिग्रियाँ भी प्राप्त की।

डॉ० आंबेडकर ने अपने चिंतन तथा रचनात्मकता के लिए बुद्ध एवं कबीर से प्रेरणा प्राप्त की। जातिवाद से संघर्ष करते हुए उनका हिंदू समाज से मोह-भंग हो गया। अतः 14 अक्तूबर, 1956 को अपने पाँच लाख अनुयायियों के साथ वे बौद्ध धर्म के मतानुयायी बन गए। वे भारतीय संविधान के निर्माता थे। यही कारण है कि उनको ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली में इस महान समाजशास्त्री का देहांत हो गया।

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2. प्रमुख रचनाएँ-‘दें कास्ट्स इन इंडिया’, ‘देयर मेकेनिज्म’, ‘जेनेसिस एंड डेवलपमेंट’ (1917, प्रथम प्रकाशित कृति), ‘द अनटचेबल्स’, ‘हू आर दे?’ (1948), ‘हू आर द शूद्राज़’ (1946), ‘बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ (1957), ‘थाट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स’ (1955), ‘द प्रॉब्लम ऑफ़ द रुपी’ (1923), ‘द एबोलुशन ऑफ़ प्रोविंशियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया’ (पीएच.डी. की थीसिस, 1916), ‘द राइज़ एंड फॉल ऑफ़ द हिंदू वीमैन’ (1965), ‘एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ (1936), ‘लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी’ (1943), ‘बुद्धिज्म एंड कम्युनिज्म’ (1956), (पुस्तकें व भाषण) ‘मूक नायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘जनता’ (पत्रिका-संपादन), हिंदी में उनका संपूर्ण वाङ्मय भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय से बाबा साहब आंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय नाम से 21 खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-डॉ० भीमराव आंबेडकर लोकतंत्रीय शासन-व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त जाति-प्रथा तथा छुआछूत का उन्मूलन करने का भरसक प्रयास किया। यही नहीं, उन्होंने जाति-प्रथा का विरोध करते हुए समाज में व्याप्त शोषण का भी विरोध किया। अछूतों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सहानुभूति की भावना थी। वे आजीवन समाज के निचले तबके के लोगों के हक के लिए संघर्ष करते रहे।

महात्मा बुद्ध, संत कबीर और ज्योतिबा फुले ने उनकी विचारधारा को अत्यधिक प्रभावित किया। वस्तुतः वे इस प्रकार के लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे जिसमें न तो जाति-पाँति का भेदभाव हो और न ही कोई छोटा-बड़ा हो, बल्कि सभी समान हों। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में समकालीन समाज की विसंगतियों, विडंबनाओं, छुआछूत, जाति-प्रथा का यथार्थ वर्णन किया। प्रस्तुत निबंध ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ उनकी निबंध-कला का श्रेष्ठ उदाहरण है जिसमें उन्होंने जाति-प्रथा जैसे विषय को स्वतंत्रता, समता और भाईचारे से जोड़कर देखने का प्रयास किया है।

4. भाषा-शैली-डॉ० आंबेडकर ने अंग्रेज़ी तथा हिंदी दोनों भाषाओं में उच्चकोटि के साहित्य का निर्माण किया है। जहाँ तक हिंदी भाषा का प्रश्न है उसमें उन्होंने तत्सम एवं तद्भव शब्दों के अतिरिक्त उर्दू, फारसी तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। उनकी भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य है। जहाँ कहीं वे गंभीर विषय का वर्णन करते हैं, वहाँ उनकी भाषा भी गंभीर बन जाती है। शब्द-चयन एवं वाक्य-विन्यास पूर्णतया भावानुकूल तथा प्रसंगानुकूल है। उन्होंने प्रायः विचारात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। जहाँ कहीं वे सामाजिक विसंगतियों का खंडन करते हैं, वहाँ उनका व्यंग्य तीखा और चुभने वाला बन गया है।

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज पाठ का सार

प्रश्न-
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ जातिवाद के आधार पर की जाने वाली असमानता का वर्णन है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अनेक तर्क देकर इस जातिवाद का विरोध करते हैं। आधुनिक युग में भी अनेक लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि कार्य-कुशलता के आधार पर श्रम-विभाजन जरूरी है। परंतु दुःख इस बात का है कि जातिवाद श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन भी करता है जो कि लेखक को स्वीकार्य नहीं है। किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन तो होना चाहिए, परंतु भारत में जाति-प्रथा का प्रचलन श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करता है और वर्गभेद के कारण लोगों को ऊँच-नीच घोषित करता है। यदि हम जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का कारण मान लें तो भी यह मानव की रुचि पर आधारित नहीं है। एक विकसित और सक्षम समाज को व्यक्तियों को अपनी-अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय चुनने के योग्य बनाना चाहिए परंतु हमारे समाज में ऐसा नहीं हो रहा। लोग आज भी जाति-प्रथा में विश्वास रखते हैं और जाति के आधार पर मनुष्य को माता-पिता के सामाजिक स्तर पर पेशा अपनाने के लिए मजबूर करते हैं जो कि गलत है।

बसे बडा दोष यह है कि यह लोगों को एक पेशे से जोड देती है। इसके कारण यदि किसी उद्योग-धंधे में तकनीकी विकास के कारण परिवर्तन हो जाता है तो लोगों को भूखा मरना पड़ता है समाज में पेशा न बदलने के कारण बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न होती है। जाति-प्रथा के आधार पर जो श्रम-विभाजन किया जाता है, वह स्वेच्छा पर निर्भर नहीं होता। न ही इसमें व्यक्ति की रुचि को देखा जाता है, बल्कि माता-पिता के सामाजिक स्तर और पूर्व लेख को महत्त्व दिया जाता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि लोगों को मजबूर होकर वे काम करने पड़ते हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं होती। ऐसे लोगों में टालू मानसिकता उत्पन्न हो जाती है। जो काम उनकी रुचि के अनुसार नहीं होता उसमें उनका दिल-दिमाग नहीं लगता। इसलिए हम कह सकते हैं कि जाति-प्रथा मनुष्य की प्रेरणा, रुचि को दबाती है और उन्हें निष्क्रिय बनाती है।

बाबा साहेब एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं। वे ऐसा समाज विकसित करना चाहते हैं जिसमें स्वतंत्रता, समता तथा भ्रातृभाव हो। भ्रातभाव में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हमारा समाज गतिशील होना चाहिए ताकि वांछित परिवर्तन समाज में तत्काल व्याप्त हो जाएँ। इस प्रकार के समाज में सभी लोगों का सभी कार्यों में समभाग होना चाहिए। ऐसा होने पर सब सबके प्रति सजग होंगे और सबको सामाजिक साधन और अवसर प्राप्त होंगे। लेखक का कहना है कि भाईचारा दूध और पानी की तरह मिला होना चाहिए। इसी को वे लोकतंत्र का नाम देते हैं। उनका विचार है कि लोकतंत्र शासन की पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवनचर्या और अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम ही लोकतंत्र है। इसमें अपने साथी मनुष्यों के प्रति सम्मान तथा श्रद्धा की भावना होनी चाहिए।

यह आदान-प्रदान जीवन और शारीरिक सुरक्षा का विरोध नहीं करता। हम संपत्ति अर्जित कर सकते हैं, आजीविका के लिए औजार बना सकते हैं तथा घर के लिए जरूरी सामान रख सकते हैं। इस अधिकार पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। दुःख इस बात का है कि मानव को सुखी बनाने के लिए प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के अधिकार के लिए सभी लोग तैयार नहीं होते। क्योंकि इसी के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता मिल जाती है। यदि यह स्वतंत्रता नहीं मिलती तो मनुष्य अभावों के कारण दास बन जाता है। दासता का संबंध कानून से नहीं है। यदि मनुष्य को दूसरों द्वारा निर्धारित व्यवहार तथा कर्तव्यों का पालन करना पड़े तो वह भी दासता कही जाएगी। जाति-प्रथा का सबसे बड़ा दोष यह है कि मनुष्य को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशा अपनाना पड़ता है।

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फ्रांसीसी क्रांति में ‘समता’ शब्द का नारा लगाया गया था। परंतु यह शब्द काफी विवादास्पद रहा है। जो लोग समता की आलोचना करते हैं कि सभी मनुष्य एक-समान नहीं होते भले ही यह एक सच्चाई है, परंतु यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। समता भले ही असंभव सिद्धांत है, लेकिन यह एक नियामक सिद्धांत भी है। मनुष्य की क्षमता शारीरिक वंश-परंपरा, सामाजिक उत्तराधिकार तथा मनुष्य के अपने प्रयत्नों पर निर्भर है। इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते। यदि ऐसी स्थिति है तो भी समाज को ऐसे लोगों के साथ असमान व्यवहार नहीं करना चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता विकसित करने के लिए नए प्रयास करने चाहिएँ।

बाबा साहेब का यह भी कहना है कि वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर असमानता अनुचित है। यदि यह असमानता की जाएगी तो उसमें केवल सुविधाभोगी लोगों को ही लाभ पहुँचेगा। ‘प्रयत्न’ मानव के अपने वश में हैं। परंतु वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा उसके हाथ में नहीं है। इसलिए वंश-परम्परा और सामाजिक उत्तराधिकार के नाम पर असमान व्यवहार करना सरासर गलत है। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि समाज के सभी सदस्यों को अपनी-अपनी योग्यतानुसार अवसर प्राप्त होने चाहिएँ और समान अवसरों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। जहाँ तक राजनेताओं का प्रश्न है, उनका वास्ता अनेक लोगों से पड़ता है, परंत उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे सबके बारे में जानकारी प्राप्त करें तथा आवश्यकताओं और क्षमताओं को जानें। राजनेताओं के लिए यह व्यवहार्य सिद्धांत उपयोगी है कि वे मानवता का पालन करते हुए समाज को दो वर्गों और श्रेणियों में विभाजित न करें। उन्हें सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए, परंतु व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाता। राजनीतिज्ञों को सबके साथ एक-सा व्यवहार इसलिए करना चाहिए क्योंकि वर्गीकरण तथा श्रेणीकरण करने में न केवल उनकी व्यक्तिगत हानि है, बल्कि समाज की भी हानि है। भले ही समता एक काल्पनिक वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए समता का पालन करना चाहिए। यह व्यावहारिक भी है और उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।

कठिन शब्दों के अर्थ

श्रम-विभाजन = मानवकृत कामों के लिए अलग-अलग श्रेणियाँ बनाना। विडंबना = दुर्भाग्य । पोषक = पुष्ट करने वाला। अस्वाभाविक = कृत्रिम (बनावटी)। श्रमिक = मज़दूर। समर्थन = सहमति। करार देना = घोषित करना। सक्षम = समर्थ । पेशा = धंधा। अनुपयुक्त = जो उचित नहीं है। प्रतिकूल = विपरीत। दूषित = दोषपूर्ण। प्रशिक्षण = शिक्षण देना। निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। निजी = अपना। स्तर = श्रेणी (अवस्था)। निर्धारित करना = तय करना। निष्क्रिय = क्रियाहीन । प्रक्रिया = पद्धति। अकस्मात = अचानक। अनुमति = सहमति। पैतक = पिता से प्राप्त। प्रत्यक्ष = आँखों के समक्ष । स्वेच्छा = अपनी इच्छा से। पूर्वलेख = जन्म से पहले भाग में लिखा हुआ। उत्पीड़न = शोषण। दुर्भावना = बुरी भावना। प्रेरणा = रुचि (बढ़ावा देने वाली रुचि)। खेदजनक = दुखदायी। नीरस गाथा = उबाने वाली कथा या प्रसंग। भ्रातृता = भाईचारा। छोर = किनारा । गतिशीलता = आगे बढ़ने की प्रवृत्ति । बहुविध = अनेक प्रकार का। हित = स्वार्थ। सजग = सचेत। अबाध = बिना किसी बाधा के। पद्धति = तरीका। जीवनचर्या = जीवन जीने की पद्धति । गमनागमन = आना-जाना। स्वाधीनता = स्वतंत्रता। जीविकोपार्जन = जीवन के साधन जुटाना। समक्ष = सामने। पराधीनता = गुलामी। तथ्य = सच्चाई। नियामक सिद्धांत = दिशा देने वाला विचार। उत्तराधिकार = पूर्वजों से मिला अधिकार। ज्ञानार्जन = ज्ञान प्राप्त करना। निःसंदेह = बिना शक के। बाजी मार लेना = विजय प्राप्त करना। उत्तम = श्रेष्ठ । कुल = परिवार । ख्याति = प्रसिद्धि । पैतृक संपदा = पिता से प्राप्त संपत्ति। व्यावसायिक प्रतिष्ठा = व्यवसाय सम्बन्धी सम्मान। निष्पक्ष निर्णय = बिना पक्षपात के फैसला। तकाज़ा = आवश्यकता। व्यवहार्य = व्यावहारिक। वर्गीकरण = वर्गों में विभक्त करना। कसौटी = जाँच का आधार।

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HBSE 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

प्रश्न 1.
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ बताइए।
उत्तर:
जनसंचार माध्यमों का हमारे जीवन से गहरा संबंध होता है, परंतु प्रत्येक व्यक्ति की रुचि अलग होती है। किसी को समाचारपत्र पढ़ना अच्छा लगता है, किसी को दूरदर्शन देखना अथवा किसी को रेडियो सुनना अच्छा लगता है। कुछ लोग इंटरनेट से चैटिंग करना पसंद करते हैं। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक जनसंचार माध्यम की कुछ खूबियाँ हैं। जो व्यक्ति समाचारपत्र पढ़कर संतुष्ट होता है, उसे रेडियो या दूरदर्शन में कुछ कमियाँ नज़र आएँगी। इसी प्रकार जो व्यक्ति दूरदर्शन देखने का आदी है, उसे समाचारपत्र व्यर्थ प्रतीत होगा। इतना निश्चित है कि हमें समाचारपत्र को पढ़कर एक अलग प्रकार की संतुष्टि प्राप्त होती है। समाचारपत्र के समाचार हमें सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। इसका प्रभाव स्थायी होता है। परंतु रेडियो तथा दूरदर्शन के समाचारों का प्रभाव अस्थायी होता है। दूसरा दूरदर्शन में विज्ञापन इतना अधिक होता है कि दर्शक तंग आकर चैनल बदल लेता है। तीसरा दूरदर्शन या रेडियो पर समाचारों का व्यापक भंडार नहीं होता। इसके विपरीत इंटरनेट पर सूचनाओं तथा समाचारों का विशाल भंडार होता है। एक बटन दबाने मात्र से सूचनाओं का विशाल भंडार हमारे सामने प्रस्तुत हो जाता है। अतः यह कहना उचित होगा कि प्रत्येक जनसंचार माध्यमं की यदि अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, तो कुछ त्रुटियाँ भी हैं।

प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट माध्यम पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रिंट माध्यम को हिंदी में छपाई वाले माध्यम अर्थात् मुद्रित माध्यम कहा जाता है। यह जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सर्वाधिक प्राचीन है। वस्तुतः आधुनिक युग में ही मुद्रण का आविष्कार हुआ। यूँ तो मुद्रण का प्राचीनतम इतिहास चीन से संबंधित है, परंतु आधुनिक युग में जर्मनी के जोनिस गुटेनबर्ग ने इसका आविष्कार किया। छापाखाना अर्थात् प्रेस के आविष्कार से जनसंचार के माध्यमों को विशेष लाभ प्राप्त हुआ। यूरोप में जब पुनर्जागरण काल के रेनेसाँ का आरंभ हुआ, तो उस समय छापेखाने ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में स्थापित हुआ। वस्तुतः तत्कालीन मिशनरियों ने धर्म-प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए इसकी स्थापना की थी। धीरे-धीरे मद्रण की इस प्रक्रिया में काफी बदलाव आया। आगे चलकर तथा लेजर प्रिंटिंग ने तकनीक में गुणात्मक परिवर्तन कर दिया, जिससे मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हु मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि समाहित की जाती हैं।

हमारे जीवन में इनका विशेष महत्त्व है। मुद्रित माध्यम की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें छपे शब्द स्थायी होते हैं, जिन्हें हम आराम से पढ़ सकते हैं। यदि कोई बात हमारी समझ में नहीं आती तो उसे हम दोबारा भी पढ़ सकते हैं। समाचारपत्र अथवा पत्रिका पढ़ते समय हम उसके किसी भी पृष्ठ को पढ़ सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि समाचारपत्र के पहले पृष्ठ को ही पहले पढ़ा जाए। पुनः मुद्रित माध्यमों में समाचारपत्र अथवा पुस्तक को लंबे समय तक सुरक्षित भी रख सकते हैं। इन माध्यमों में लिखित भाषा का विस्तार होता है और ये लिखित सामग्री लोगों तक अधिकाधिक पहुँचाई जा सकती हैं। चिंतन, विचार-विमर्श तथा विश्लेषण के लिए मुद्रित माध्यम सर्वाधिक उपयोगी है।।

पढ़े-लिखे लोगों के लिए मुद्रित माध्यम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु अनपढ़ लोगों के लिए इनका कोई उपयोग नहीं है। मुद्रित माध्यम के लेखकों के भाषा ज्ञान तथा उनकी शैक्षिक योग्यता को ध्यान में रखकर ही सामग्री लिखनी पड़ती है। परंतु ये माध्यम दूरदर्शन, तथा इंटरनेट, रेडियो आदि की तरह तत्काल घटी घटनाओं को दोबारा प्रस्तुत नहीं कर सकते। समाचारपत्र चौबीस घंटे के बाद पाठकों के पास पहुँचता है। इसी प्रकार साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार छपती है और मासिक पत्रिका महीने में एक बार छपती है। यदि हम समाचारपत्र के समाचारों की तुलना रेडियो अथवा दूरदर्शन के समाचारों के साथ करें, तो ये समाचार बासी कहे जाएंगे। इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों तथा पत्रकारों को प्रकाशन की सीमा को ध्यान में रखकर ही सामग्री तैयार करनी पड़ती है।

मुद्रित माध्यम में जो भी सामग्री छापी जाती है, उसमें सभी प्रकार की गलतियों तथा अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक होता है। जो भी आलेख, समाचारपत्र में छापा जाता है, वह व्याकरण तथा वर्तनी की दृष्टि से पूर्णतया शुद्ध होना चाहिए। इस बात की कोशिश की जाती है कि समाचारपत्र अथवा पत्रिका में कोई भाषागत अशुद्धियाँ न हों।

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प्रश्न 3.
प्रिंट माध्यमों (मुद्रित माध्यमों) में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
प्रिंट माध्यमों में ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं-

  1. प्रिंट माध्यम लेखन की भाषा-शैली की ओर पूरा ध्यान रखना चाहिए। भाषा के व्याकरण, वर्तनी का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  2. पाठकों के अनुसार ही ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे पाठक आसानी से समझ सकें।
  3. प्रिंट माध्यमों के लेखन और प्रकाशन के मध्य गलतियों एवं अशुद्धियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  4. लेखन में समय-सीमा का भी ध्यान रखना चाहिए।
  5. लेखन में सहज प्रवाहमयता के लिए तारतम्यता बनाए रखना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
मुद्रित माध्यम में रेडियो समाचार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर तथा शब्दों के मेल से श्रोताओं तक समाचार पहुँचाया जाता है। रेडियो-पत्रकारों का कर्त्तव्य बनता है कि वे अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखें। कारण यह है कि समाचारपत्र के पाठक अपनी पसंद और इच्छा से कहीं से भी समाचार पढ़ सकते हैं, परंतु रेडियो के श्रोताओं के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वे समाचारपत्र के समान रेडियो समाचार बुलेटिन को कहीं से भी नहीं सुन सकते। इसलिए उन्हें तो हमेशा बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें आरंभ से अंत तक एक के बाद एक समाचार सुनना होता है। इस काल में न तो वे कहीं आ-जा सकते हैं और न ही किसी कठिन शब्द का अर्थ समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग कर सकते हैं। यदि वे कठिन शब्द का अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का प्रयोग करने लगें तो बुलेटिन आगे चला जाएगा।

इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि रेडियो में समाचारपत्र की तरह पीछे लौटकर बुलेटिन सुनने की व्यवस्था नहीं है। यदि श्रोताओं को रेडियो के बुलेटिन में कुछ अरुचिकर या भ्रामक लगेगा, तो वे रेडियो के उस चैनल को तत्काल बंद कर देंगे। रेडियो एक यम है। अतः रेडियो समाचार बुलेटिन पत्र का ढाँचा एवं शैली इसी के अनुसार तैयार किया जाता है। रेडियो के समान टेलीविज़न भी एक एकरेखीय माध्यम है, परंतु उसमें शब्दों तथा ध्वनि की तुलना में दृश्यों या तस्वीरों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। जहाँ रेडियो में शब्द और आवाज़ का विशेष महत्त्व होता है, वहाँ दूरदर्शन में शब्द दृश्यों के साथ सहयोगी बनकर चलते हैं।

प्रश्न 5.
रेडियो समाचार की संरचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखना एक विशेष प्रकार की कला है। यह समाचार पत्रों के समाचार लिखने की विधि से सर्वथा अलग है। इसका कारण है कि दोनों माध्यमों की प्रकृति अलग-अलग है। अतः रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रेडियो का प्रयोग शिक्षित अथवा अशिक्षित सभी प्रकार के लोग करते हैं। दूसरा रेडियो केवल श्रव्यता पर आधारित है और समाज के सभी वर्गों के लोग इसका अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। समाचार लेखन में उल्टा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है। नब्बे प्रतिशत खबरें या कहानियाँ इसी शैली में लिखी जाती हैं।

उलटा पिरामिड-शैली में समाचार को तीन भागों में बाँटा जाता है-इंट्रो, बॉडी तथा समापन। इंट्रो को लीड भी कहते हैं। हिंदी में इसे मुखड़ा कहा जाता है। इसमें खबर के मूल तत्त्व को एक-दो पक्तियों में बता दिया जाता है। यह समाचार का महत्त्वपूर्ण भाग माना गया है। इसके बाद बॉडी में समाचार का विस्तृत ब्यौरा क्रमानुसार दिया जाता है। यद्यपि इस शैली में समापन जैसा कोई तत्त्व नहीं होता तथापि इसमें प्रासंगिक तथ्य तथा सूचनाएँ भी दी जाती हैं। उलटा पिरामिड-शैली में समापन होता ही नहीं। यदि समय और स्थान की कमी हो जाए, तो अंतिम पैराग्राफ या पंक्तियों को काटकर समाचार छोटा कर दिया जाता है। इस प्रकार समाचार समाप्त कर दिया जाता है।

रेडियो समाचार के इंट्रो का एक उदाहरण देखिए-

  1. लोकसभा के बाहर विरोधी पार्टियों द्वारा महँगाई के लिए प्रदर्शन। एक दिन के लिए संसद का सत्र स्थगित।
  2. प्रधानमंत्री ने बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की। पाकिस्तान द्वारा चलाए जा रहे उग्रवाद के प्रति प्रधानमंत्री ने चिंता जताई।
  3. वित्तमंत्री द्वारा डीज़ल तथा पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि की घोषणा। लोगों में मूल्य वृद्धि के विरुद्ध असंतोष।
  4. हरियाणा के हिसार जिले में एक बस और ट्रक के बीच हुई दुर्घटना में आठ लोगों की मौत हो गईं। मृतकों में तीन महिलाएँ, तीन बच्चे तथा दो पुरुष शामिल हैं।

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प्रश्न 6.
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। रेडियो एक ऐसा जनसंचार माध्यम है जो केवल श्रव्यता पर आधारित है। दूसरा यह माध्यम समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उपयोगी है। पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों रेडियो के समाचार सुन सकते हैं।
(क) साफ-सुथरी और टाइप्ड-कॉपी-रेडियो समाचार को वाचक एवं वाचिका दोनों ही पढ़ते हैं। उनके लिए समाचार की ऐसी कॉपी तैयार करनी चाहिए, ताकि उन्हें पढ़ने में कोई कठिनाई न हो। यदि समाचार कॉपी साफ-सुथरी टाइप्ड नहीं होगी, तो वाचक एवं वाचिका पढ़ते समय कुछ गलतियाँ कर सकते हैं। इससे या तो श्रोताओं का ध्यान भ्रमित हो जाएगा या उनका ध्यान बँट जाएगा। इसके लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है
(i) प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।

(ii) कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोडा जाना चाहिए। एक पंक्ति में अधिक-से-अधिक 12 या 13 शब्द होने चाहिएँ। पंक्ति के अंत में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए। पृष्ठ के अंत में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। समाचार की कॉपी में कठिन शब्दों तथा संक्षिप्त अक्षरों और अंकों से बचना चाहिए। एक से दस तक के अंक शब्दों में लिखे जाएँ और ग्यारह से नौ सौ निन्यानवे तक के अंक अंकों में लिखे जाएँ, परंतु इनसे बड़ी संख्या शब्दों में ही लिखी जानी चाहिए; जैसे तीन लाख अठारह हजार आठ सौ बीस (318820)।

(iii) समाचार लिखने वाले व्यक्ति को % या $ जैसे संकेतों का प्रयोग न करके प्रतिशत या डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

(iv) दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए।

(v) खेलों का स्कोर तथा मुद्रास्फीति संबंधी आंकड़े सही लिखे जाने चाहिएँ।

(vi) यथासंभव रेडियो समाचारों में आंकड़ों तथा संख्याओं का प्रयोग कम-से-कम होना चाहिए।

(vii) रेडियो समाचार कभी भी संख्या से आरंभ नहीं होना चाहिए।

समाचारपत्र अथवा पत्रिका के प्रकाशन के लिए संपादक के लिए एक संपादकीय विभाग होता है। ये सभी इस बात का ध्यान रखते हैं कि प्रकाशन के लिए जो भी सामग्री भेजी जा रही है, उसमें गलतियाँ या अशुद्धियाँ न हों। एक निर्दोष पत्र अथवा पत्रिका ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष के 60 लाख टन से घटकर 50 लाख टन हो गया है।” इस वाक्य के स्थान पर हमें यह वाक्य लिखना चाहिए। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में सोलह फीसदी घटकर पचास लाख टन रह गया है।”

(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग-रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं होती, बल्कि वह समाचार में ही गुंथी होती है। रेडियो समाचार में समय-संदर्भ का विशेष ध्यान रखा जाता है। समाचार पत्र दिन में एक बार प्रकाशित होकर लोगों के पास पहुँचता है, परंतु रेडियो पर समाचार चौबीस घंटे चलते रहते हैं। इसलिए श्रोता के लिए समय का फ्रेम हमेशा आज होता है। इसलिए रेडियो समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार …… बैठक कल होगी या कल हुई बैठक में …………. शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

रेडियो समाचारों में संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग न ही किया जाए। केवल लोकप्रिय संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग ही किया जाए तो अच्छा है; जैसे यूएनओ, यूनिसेफ, सार्क, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, डब्ल्यूटीओ आदि शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
जनसंचार माध्यम में टेलीविज़न के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में रेडियो के अतिरिक्त टेलीविज़न भी हमारे जीवन का अंग बन चुका है। यह देखने और सुनने का मा यम है। इसके लिए समाचार या स्क्रिप्ट लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि लिखित सामग्री परदे पर दिखाई जाने वाली सामग्री के सर्वथा अनुकूल हो। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट प्रिंट माध्यम तथा रेडियो माध्यम से अलग प्रकार की होती है। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट में कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करते हुए अधिक-से-अधिक खबर दिखानी होती है।

अतः टेलीविज़न के लिए खबरें लिखने की मूलभूत शर्त यह है कि लेखन दृश्य के साथ मेल खाए। कैमरे द्वारा लिए गए शॉट्स (दृश्य) को आधार बनाकर ही खबर लिखी जाती है। उदाहरण के रूप में, यदि शॉट्स वन प्रदेश के हैं, तो हम वन प्रदेश की ही खबर देंगे, गाँव या नगर की नहीं। इसी प्रकार यदि किसी फैक्ट्री में आग लगी हुई है, तो उससे संबंधित समाचार लिखेंगे, पानी की बाढ़ का नहीं। अखबार के लिए इस खबर का इंट्रो इस प्रकार होगा

“दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल क्षेत्र की एक फैक्ट्री में आज सवेरे आग लगने से चार मजदूर घायल हो गए और लाखों की संपत्ति जल कर राख हो गई। आग के कारणों का पता लगाया जा रहा है।”

परंतु दूरदर्शन पर इस खबर का आरंभ कुछ अलग प्रकार का होगा। टेलीविज़न पर खबर दो तरह से प्रस्तुत की जाती है। इसका प्रारंभिक हिस्सा मुख्य समाचार होता है। दृश्य के बिना इसे न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरे हिस्से में एंकर के स्थान पर से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं। इस प्रकार टेलीविजन की खबर दो भागों में विभक्त होती है। टेलीविजन दिल्ली की एक फैक्ट्री में लगी आग की प्रारंभिक खबर को एंकर इस प्रकार से पढ़ सकता है।

आग की लपटें सवेरे सात बजे दिखाई दी। शीघ्र ही आग सारी फैक्ट्री में फैल गई….।
वस्तुतः दूरदर्शन के लिए खबरें लिखने के अनेक तरीके हो सकते हैं। यही कारण है कि टेलीविज़न पर खबरें पेश करने के तरीकों में निरंतर बदलाव होता रहता है। इस बात को हम टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाली खबरों को देख और सुनकर समझ सकते हैं, लेकिन इतना निश्चित है कि दूरदर्शन की खबरों का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 8.
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दूरदर्शन चैनल पर समाचार देने का मूल आधार वही है जो प्रिंट मीडिया अथवा रेडियो में होता है। यह आधार है सबसे पहले सूचना देना। परंतु दूरदर्शन पर ये सूचनाएँ अनेक चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये हैं

  1. फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
  2. ड्राई-एंकर
  3. फ़ोन-इन
  4. एंकर-विजुअल
  5. एंकर-बाइट
  6. लाइव
  7. एंकर-पैकेज

(1) फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़-फ्लैश अथवा ब्रेकिंग न्यूज़ वह बड़ी खबर होती है जो दर्शकों तक तत्काल पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महत्त्वपूर्ण खबर दी जाती है।

(2) ड्राई-एंकर-इसमें एंकर समाचारों के बारे में दर्शकों को यह बताता है कि कहाँ, कब, कैसे और क्या हुआ। जब तक समाचार के दृश्य स्टूडियों में नहीं पहँचते, तब तक एंकर संवाददाता से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।

(3) फोन-इन-ड्राई-एंकर के बाद फोन-इन द्वारा विस्तृत समाचार दर्शकों तक पहुँचाए जाते हैं। इसमें एंकर संवाददाता फोन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करता है और दर्शकों तक पहुँचाता है। संवाददाता घटना वाले स्थान पर विद्यमान रहता है और वहीं से एंकर को सूचनाएँ मिलती रहती हैं।

(4) एंकर-विजुअल-जब घटना से संबंधित दृश्य प्राप्त हो जाते हैं, तब उन दृश्यों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है एंकर उसे पढ़कर दर्शकों को सुनाता है। इस खबर का आरंभ पहले सूचना से होता है और बाद में घटनाओं से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं।

(5) एंकर-बाइट-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविज़न मीडिया में बाइट का विशेष महत्त्व होता है। टी०वी० की किसी खबर को पुष्ट करने के लिए घटना के दृश्य दिखाए जाते हैं और प्रत्यक्षदर्शियों अथवा संबंधित व्यक्तियों के कथन दिखाए व सुनाए जाते हैं। इससे खबर की प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है।

(6) लाइव-लाइव का अर्थ है-किसी समाचार या घटना का घटनास्थल से सीधा प्रसारण करना। लगभग सभी टी०वी० चैनलों की यह कोशिश होती है कि घटनास्थल से घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक पहुँचाए जाएँ। इसके लिए घटनास्थल पर संवाददाता तथा कैमरामैन ओ०बी० वैन का प्रयोग करके घटना को सीधे दर्शकों को दिखाते व बताते हैं। उदाहरण के रूप में, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी के मैच लाइव ही दिखाए जाते हैं।

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(7) एंकर-पैकेज-एंकर-पैकेज द्वारा समाचार को संपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, उनसे जुड़े लोगों के कथन तथा ग्राफिक द्वारा सूचनाएँ दी जाती हैं।
उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर टेलीविज़न लेखन तैयार किया जाता है और आवश्यकतानुसार वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इसमें इस प्रकार के दृश्यों का प्रयोग किया जाता है जो एक दृश्य को दूसरे दृश्य से जोड़ सके, ताकि निहित अर्थ दर्शकों तक पहुँच सके।

टी०वी० पर खबर लिखने की प्रायः एक प्राचीनतम शैली है। इसमें प्रथम वाक्य दृश्य के वर्णन से आरंभ होता है। जैसे पार्लियामैंट स्टेट में महंगाई के विरुद्ध विशाल जनसमूह का जमावड़ा अथवा दिल्ली की सड़कों पर लंबे-लंबे जाम इस प्रकार के समाचार दृश्य के अनुसार होते हैं, परंतु इनमें शब्दों की भूमिका व्यर्थ सी लगती है, क्योंकि दर्शक जिसे अपनी आँखों से देख रहा है, इसलिए उसे भाषा के द्वारा दोहराना नहीं चाहिए। एक कल्पनाशील संवाददाता उन दृश्यों को सार्थकता प्रदान कर सकता है; जैसे दिल्ली के पार्लियामैंट स्टेट में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो गए हैं। चुनाव रैलियों के समान इनको लाया नहीं गया, बल्कि ये महँगाई से तंग आकर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं। टी०वी० में दृश्य और श्रव्य दोनों का एक साथ प्रयोग किया जाता है। प्रायः कथन अथवा बाइट का प्रयोग खबर को सफल बनाने के लिए किया जाता है। इसलिए खबर लिखते समय दो प्रकार की आवाज़ों को ध्यान में रखना आवश्यक है-एक तो बाइट अथवा कथन की आवाज़ और दूसरी दृश्य की आवाज़ । प्रायः टी०वी० की खबर बाइटस के आसपास ही तैयार की जाती है। परंतु यह कार्य बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों की भाषा और शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो और टेलीविज़न का संबंध देश के प्रत्येक वर्ग से है। इनके श्रोता और दर्शक सुशिक्षित अर्ध-शिक्षित और अनपढ़ लोग भी होते हैं। यदि महानगरों के उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के लोग इनको देखते और सुनते हैं तो किसान लोग और मज़दूर भी रेडियो और टी०वी० सुनते और देखते हैं। इसलिए रेडियो और टेलीविज़न की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सबको आसानी से समझ आ जाए, परंतु साथ ही भाषा के स्तर तथा गरिमा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः यह कोशिश करनी चाहिए कि सामान्य बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया जाए, ताकि वह श्रोताओं को समझ में आ सके। रेडियो, टेलीविज़न में प्रयुक्त होने वाली भाषा तथा शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

(ii) वाक्य छोटे-छोटे, सीधे तथा स्पष्ट लिखे जाने चाहिए।

(iii) भाषा में प्रवाहमयता एवं लयात्मकता भी होनी चाहिए।

(iv) तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इनके स्थान पर और, लेकिन, या, आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(v) इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग न किया जाए जो संदेहयुक्त हों।

(vi) समाचारपत्रों में जिन शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है, रेडियो, टी०वी० में उनका प्रयोग नहीं किया जाता। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित तथा क्रमांक इत्यादि शब्द।

(vii) गैर जरूरी विशेषणों, सामासिक, तत्सम शब्दों तथा अतिरंजित उपमाओं का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भाषा बोझिल हो जाती है।

(viii) मुहावरों का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए, परंतु इनका प्रयोग आवश्यकतानुसार तथा स्वाभाविक होना चाहिए।

(ix) एक वाक्य में एक ही बात कहीं जानी चाहिए।

(x) शिथिल वाक्यों से बचना चाहिए।

(xi) भाषा में प्रयुक्त वाक्यों से यह न लगे कि कुछ छूटता या टूटता हुआ है।

(xii) प्रायः प्रचलित एवं सहज शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(xiii) उदाहरण के रूप में क्रय-विक्रय के स्थान पर खरीद-बिक्री, स्थानांतरण की जगह तबादला तथा पंक्ति की जगह कतार आदि शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 10.
जनसंचार माध्यमों में इंटरनेट की भूमिका और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता तथा साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है। नई पीढ़ी में यह पत्रकारिता काफी लोकप्रिय हो चुकी है। जो लोग इंटरनेट का प्रयोग करने के आदी हो चुके हैं, उन्हें अब कागज़ पर छपे समाचार बासी लगते हैं। वे घंटे-घंटे बाद स्वयं को अपडेट करते रहते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर बड़ी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष 50 से 55 प्रतिशत इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ जाती है। क्योंकि यह एक ऐसा जनसंचार माध्यम है, जिसमें हम विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक की खबरें पढ़ सकते हैं। यही नहीं, हम संपूर्ण संसार की चर्चाओं तथा परिचर्चाओं में भाग ले सकते हैं और समाचारपत्रों की फाइलों की जाँच-पड़ताल कर सकते हैं।

परंतु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इंटरनेट केवल एक औज़ार है, जिसके द्वारा हम सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं, अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं, मनोरंजन प्राप्त करने के साथ-साथ व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं। परंतु यह अश्लीलता, दुष्प्रचार तथा गंदगी फैलाने का भी माध्यम है।

इंटरनेट पर पत्रकारिता के दो रूप देखे जा सकते हैं। एक तो इंटरनेट को औज़ार के रूप में प्रयोग करके खबरों का संप्रेषण करना और दूसरा संवाददाता अपनी खबर को दूसरे स्थान तक ई-मेल द्वारा भेज सकता है तथा समाचारों का संकलन भी कर सकता है। वह इंटरनेट का प्रयोग खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण के लिए भी कर सकता है। शोध कार्य के लिए इंटरनेट अत्यधिक उपयोगी है। पहले किसी समाचार की बैकग्राउंडर तैयार करने के लिए अखबारों की फाइलों को खोजना पड़ता था, परंतु अब चंद मिनटों में ही इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल में से समाचार की पृष्ठभूमि आसानी से खोजी जा सकती है। एक समय था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर भेजे जाते थे, परंतु आज एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात् 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
इंटरनेट पत्रकारिता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसके इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचारपत्र को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना ही इंटरनेट पत्रकारिता कहलाती है। हम इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचरों, झलकियों तथा डायरियों द्वारा विभिन्न समस्याओं को जान सकते हैं तथा अपना मत व्यक्त कर सकते हैं। इसे ही हम इंटरनेट पत्रकारिता कहते हैं। आज लगभग सभी प्रमुख समाचारपत्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कुछ प्रकाशन संस्थानों तथा निजी कंपनियों ने स्वयं को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ा हुआ है। इंटरनेट एक जनसंचार माध्यम है। अतः इसकी पत्रकारिता की विधि थोड़ी अलग प्रकार की है।

इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास अधिक लंबा नहीं है। आज विश्वस्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। प्रथम दौर 1982 से 1992 तक चला। दूसरा दौर 1993 से 2001 तक चला। इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर सन् 2002 से आरंभ होकर अब तक सक्रिय है। प्रथम चरण में यह स्वयं प्रयोग के धरातल पर काम कर रहा था। अतः बड़े-बड़े प्रकाशन समूह यह प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस प्रकार अखबारों की उपस्थिति को ‘सुपर इंफॉर्मेशन’ हाइवे’ पर दर्ज करवाया जा सके। उस समय अमेरिका ऑनलाइन जैसी बहुचर्चित कंपनियाँ आगे आईं। परंतु इंटरनेट पत्रकारिता का आरंभ तो सन् 1983 से 2002 तक के मध्यकाल में ही हुआ। इस काल में तकनीक की दृष्टि से इंटरनेट में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।

नई वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज) सामने आई। इंटरनेट ई-मेल का प्रयोग होने लगा। इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेट स्केप नाम के ब्राउजर ने न केवल इंटरनेट को सुविधाजनक बनाया, बल्कि इसकी गति को भी तीव्र कर दिया। शीघ्र ही न्यूज़ मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियाँ अस्तित्व में आ गईं। इंटरनेट और डॉटकॉम की बहुत चर्चा होने लगी। लोगों को लगने लगा कि वे रातों-रात अमीर बन जाएँगे। फलतः तीव्र गति से कंपनियाँ अस्तित्व में आईं और तीव्र गति से ही बंद हो गईं। सन् 1996 से 2002 के मध्यकाल में अमेरिका के पाँच लाख लोग डॉटकॉम नौकरियों से हाथ धो बैठें। वस्तुतः डॉटकॉम कंपनियों के बंद होने का कारण था, पर्याप्त आर्थिक आधार की कमी तथा विषय-सामग्री का अभाव। परंतु बड़े-बड़े प्रकाशन समूह मैदान में डटे रहे। जनसंचार के क्षेत्र में परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों या अनुकूल सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में इंटरनेट की भूमिका हमेशा बनी रहेगी। लगता है कि आज पत्रकारिता का तीसरा चरण काफ़ी सुदृढ़ है।

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प्रश्न 12.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में दूसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता सक्रिय है। हमारे देश में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रथम दौर सन् 1993 से शुरू हुआ और दूसरा दौर सन् 2003 से। इंटरनेट पत्रकारिता के प्रथम दौर में जहाँ विश्व में अनेक प्रयोग हुए, वहीं हमारे यहाँ भी अनेक प्रयोग हुए। डॉटकॉम तूफान के समान आया, लेकिन बुलबुले के समान फूट गया। केवल वही टिक पाए जो मीडिया उद्योग से पहले अस्तित्व में थे। आज इंटरनेट पत्रकारिता में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, हिंदू’ ‘ट्रिब्यून’ ‘पॉयनियर’, ‘स्टेट्समैन’, ‘एनडीटी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘ज़ी न्यूज़’, ‘आजतक’, ‘आउटलुक’ आदि साइटें ही सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। परंतु ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’ ‘इंडियाइंफोलाइन’ तथा ‘सीफी’ जैसी कुछ साइटें सही अर्थों में काम कर रही हैं। रीडिफ भारत की प्रथम साइट है जो गंभीरतापूर्वक इंटरनेट पत्रकारिता का काम करने में संलग्न है। ‘तहलका डॉटकॉम’ ने ही वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता का काम करने का श्रेय प्राप्त किया है।

प्रश्न 13.
हिंदी नेट संसार पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ से आरंभ हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया समूह’ ने हिंदी का संपूर्ण पोर्टल आरंभ किया। इसके बाद हिंदी के कुछ समाचारपत्रों ने अपने-अपने पोर्टल शुरू किए। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, ‘राजस्थान पत्रिका’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि के वेब संस्करण आरंभ हो चुके हैं। ‘प्रभासाक्षी’ नाम का अखबार केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट केवल ‘बीबीसी’ की है, क्योंकि यह साइट इंटरनेट के मानदंडों के अनुसार काम कर रही है। शुरू-शुरू में वेब साइट बड़े उत्साह के साथ आरंभ हुई थी, लेकिन अब स्टाफ तथा अपडेटिंग में कटौती के फलस्वरूप इंटरनेट पत्रकारिता में वह ताज़गी नहीं रही।

हिंदी वेबजगत में ‘अनुभूति’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘हिंदी नेस्ट’ तथा ‘सराय’ आदि साहित्यिक पत्रिकाएँ सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इसके साथ-साथ भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम तथा बैंकों ने भी अपने-अपने हिंदी अनुभाग आरंभ कर दिए हैं। आशा है कि भविष्य में इनके द्वारा तैयार किया गया डाटाबेस ऑनलाइन पत्रकारिता को बढ़ावा देगा परंतु इतना निश्चित है कि हिंदी की वेब पत्रकारिता का पूर्णतया विकास नहीं हो पाया है। हिंदी के फौंट की समस्याएँ सबसे बड़ी बाधा है। दूसरा हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’, नहीं है। डायनमिक फौंट प्राप्त न होने के कारण हिंदी की अधिकांश साइटें खुल ही नहीं पातीं, काम करना तो दूर की बात है। जब तक हिंदी के बेलगाम फौंट पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जाता और ‘की-बोर्ड’ का मानवीकरण नहीं होता, तब तक यह समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (√) का निशान लगाइए
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि
(i) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है। ( )
(ii) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं। ( )
(iii) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है। ( )
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )
उत्तर:
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )

(ख) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्त्वपूर्ण है
(i) विजुअल
(ii) नेट
(iii) बाइट
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो
(i) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो
(ii) जो समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो
(iv) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो
उत्तर:
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो

प्रश्न 2.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर:
जनसंचार प्रिंट

खूबियाँखामियाँ
(1) छपे हुए शब्द स्थाई होते हैं।(1) ये शब्द अनपढ़ लोगों के लिए बेकार हैं। केवल पढ़े-लिखे लोगों के काम आते हैं।
(2) इन्हें हम धीरे-धीरे आराम से पढ़ सकते हैं।(2) समाचारों की समय सीमा होती है।
(3) पढ़ते-पढ़ते हम चिंतन, विचार तथा विश्लेषण भी कर सकते हैं।(3) स्पेस का ध्यान रखना पड़ता है।
(4) बार-बार पढ़कर समझ सकते हैं।(4) अशुद्धियों को ठीक करना पड़ता है।
(5) इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं।(5) तत्काल घटित घटनाओं को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

रेडियो

(1) यह केवल श्रव्य माध्यम है।(1) पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती।
(2) अनपढ़ भी सुन सकते हैं।(2) कठिन शब्द समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(3) यह उल्टा पिरामिड-शैली में होता है।(3) प्रसारण समय के लिए इंतज़ार करना पड़ता है।
(4) भ्रामक और अरुचिकर कार्यक्रम बंद किएजा सकते हैं।(4) यह एक रेखीय माध्यम है।
(5) शब्दों के साथ-साथ संगीत का प्रयोग किया जा सकता है।(5) टी०वी० की तुलना में कम आकर्षक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions विभिन्न माध्यमों के लिए लेखने

टी०वी०

(1) यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है। अधिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।(1) कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है।
(2) अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं।(2) व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है।
(3) ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है।(3) किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है।
(4) कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं।(4) कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(5) लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है।(5) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।

इंटरनेट

(1) इससे मनोरंजन तथा ज्ञान की वृद्धि होती है।(1) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।
(2) चौबीसों घंटे समाचार तथा सूचनाएँ प्राप्त होती रहती हैं।(2) दुष्प्रचार का माध्यम है।
(3) सर्वाधिक तीव्र माध्यम है।(3) महंगा माध्यम है।
(4) पूरे-का-पूरा अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जा सकता है।(4) छोटे बच्चों को खेल-कूद से दूर करने वाला माध्यम।
(5) कोई भी पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।(5) आम लोगों के लिए दुष्प्राप्य माध्यम।
(6) रिपोर्ट का सत्यापन और पुष्टिकरण उपलब्ध है।(6) आम आदमी इसका प्रयोग नहीं कर सकता। निरक्षर लोगों के लिए यह अप्राप्य है।

प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंटरनेट शिक्षित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यही है कि इंटरनेट पत्रकारिता से तत्काल सूचनाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं।

  • यह कच्ची बुद्धि के युवक-युवतियों में अश्लीलता, नग्नता तथा अनैतिकता फैला रहा है।
  • युवा वर्ग के संस्कार विकृत हो रहे हैं।
  • अपराध तथा उग्रवादी इसकी सहायता से संसार भर में आतंक फैला रहे हैं। विशेषकर, भारत में होने वाली आतंकवादी घटना के पीछे इंटरनेट का बहुत बड़ा हाथ है।
  • इंटरनेट के द्वारा काले धन का लेन-देन आसान हो गया है। पुस्तकीय ज्ञान की चोरी सहज हो गई है।

प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन-सा है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से टी०वी० अधिक सशक्त माध्यम है। इसके पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित बातें कही जा सकती हैं
टी०वी०

पक्षविपक्ष
1. यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है।1. कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है।
2. अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं।2. व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है।
3. ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है।3. किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है।
4. कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं।4. कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
5. लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है।5. अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।
6. छोटे बच्चों के लिए हानिकारक है।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
HBSE 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन 1
उत्तर:
1. पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण-दूर पर्वतों की चोटियाँ बर्फ से ढकी हुई हैं। तलहटी में एक विशाल झील है, जहाँ प्रतिवर्ष असंख्य सैलानी नौका-विहार के लिए आते हैं। वे इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाते हैं, परंतु ऐसा लगता है कि उन्हें पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है। झील की स्वच्छता की ओर वे तनिक भी ध्यान नहीं देते। यही कारण है कि झील के पानी में कागज़ के टुकड़े, पॉलीथीन तथा खाने के टुकड़े तैरते हुए नज़र आ रहे हैं। हम लोग यह भी नहीं सोचते कि हमें पर्यटन स्थलों को स्वच्छ तथा साफ-सुथरा रखना चाहिए। यदि पर्वतीय क्षेत्रों का पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तो पुनः नौका विहार का आनंद प्राप्त कर सकेंगे।

2. जल का अपव्यय-हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए कि जल ही जीवन है। परंतु जल की कमी चारों ओर महसूस की जा रही है। महानगर हो चाहे गाँव, सर्वत्र पानी की कमी अनुभव की जा रही है। भले ही सरकार इस समस्या की ओर ध्यान दे रही है, लेकिन नागरिकों का भी कर्त्तव्य बनता है कि पानी की बर्बादी को रोका जाए। अकसर देखने में आता है कि घंटों तक नलों से पानी निकलता रहता है और हम नल को बंद नहीं करते। पानी के इस अपव्यय को रोकना नितान्त आवश्यक है। प्रत्येक भारतीय को पानी के अपव्यय की ओर ध्यान देना चाहिए।

3. छोटे बच्चे भारी बस्ते-ये छोटे-छोटे बच्चे बस्तों के भारी बोझ तले दबे जा रहे हैं। जब भी हमारी नजर स्कूल की ओर जाती है तो इस प्रकार के दृश्य दिखाई देते हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि यह आयु तो हँसने-खेलने तथा खाने-पीने की है, परंतु ये बेचारे अपने शरीर के वज़न से अधिक पुस्तकों से भरे बैग को पीठ पर लादे हुए स्कूल में प्रवेश करते हैं। संसार के विकसित देशों के बच्चों की पढ़ाई खिलौनों, गाने, नाचने तथा खेलने कूदने से आरंभ होती है। लेकिन हमारे देश में शुरू में ही बच्चों को पुस्तकों तथा कॉपियों का बोझ उठाना पड़ता है। इससे उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। शिक्षाशास्त्रियों तथा अभिभावकों को मिलकर इन भारी बस्तों को हल्का करने में सहयोग देना चाहिए। सरकार का शिक्षा विभाग भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

HBSE 12th Class Hindi डायरी के पन्ने Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
“यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलनेवाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें।
उत्तर:
ऐन फ्रैंक की डायरी में उसके निजी जीवन का वर्णन नहीं किया गया, बल्कि साठ लाख यहूदियों पर जो अत्याचार किए गए थे उनकी यह जीती-जागती कहानी है। यह लड़की न कोई संत थी, न कवि बल्कि हिटलर के अत्याचारों के द्वारा भूमिगत रहने वाले परिवार की एक आम सदस्या थी। वह कोई विशेष लड़की नहीं थी, परंतु वह एक ऐसी आवाज थी जिसमें अत्याचार सहन करने वाले लोगों की आवाज को बुलंद किया। अतः इल्या इहरनबुर्ग की टिप्पणी पूर्णतया सही है। दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर ने यहूदियों पर अत्यंत अत्याचार किए। यहूदी भूमिगत जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए।

हिटलर की सेना का इतना डर बैठा हुआ था कि यहूदी लोग भूमिगत होकर अभावग्रस्त जीवन जी रहे थे। वे लोग न दिन का सूरज देख सकते थे और न ही रात का चंद्रमा। सड़क पर सूटकेस लेकर निकलना निरापद नहीं था। ब्लैक कोड वाले पर्दे लगाकर जैसे-तैसे दिन और रात व्यतीत करते थे। राशन की बहुत कमी रहती थी और बिजली का कोटा निर्धारित था। चोर-उच्चके उनके सामान को उठा लेते थे। यहूदी लोग फटे-पुराने कपड़े तथा घिसे-पिटे जूते पहनकर समय काट रहे थे। जब कभी हवाई आक्रमण होता था तो बेचारे काँप जाते थे। इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है कि डायरी के पन्ने में वर्णित कहानी किसी एक परिवार की नहीं है बल्कि यह साठ लाख लोगों की कहानी है।

प्रश्न 2.
“काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला…..।” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है?
उत्तर:
यह एक सच्चाई है कि लेखक अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए कविता, कहानी या कोई लेख लिखता है। यदि लिखने वाला व्यक्ति किसी के सामने अपनी बात को प्रकट कर देता है तो उसे लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु यदि उसे कोई गंभीर श्रोता न मिले तो वह किसी कल्पित पात्र अथवा पाठकों के लिए अपनी अभिव्यक्ति करता है। ऐन फ्रैंक के साम यही स्थिति थी। वह भूमिगत रहने वाले सदस्यों में सबसे छोटी थी। कोई भी उसकी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं था। मिसेज वान दान तथा मिस्टर डसेल उसकी कमियाँ निकालते रहते थे। इसलिए वह उनसे घृणा करती थी।

उसकी मम्मी हमेशा केवल एक उपदेशिका की भूमिका निभाती रही। उसने कभी भी अपनी बेटी की व्यथा नहीं सुनी। केवल पीटर से ही ऐन की बनती थी लेकिन उसके साथ संवाद करना सरल न था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि भूमिगत आवास में वह क्या करे। वह बाहर की प्रकृति को देखना चाहती थी, सूरज तथा चाँद को निहारना चाहती थी परंतु यह वर्जित था। वह निर्णय नहीं कर पाई कि वह किसके सामने अपनी भावनाएँ प्रकट करें। सच्चाई तो यह है कि उसकी भावनाओं को और उसकी बातों को सुनने वाला कोई नहीं था। इसलिए उसने अपने उद्गार इस डायरी में व्यक्त किए हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

प्रश्न 3.
‘प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें इस की स्वतंत्रता स्त्री से छीन कर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व-विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की है।’ ऐन की डायरी के 13 जून, 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढ़ें।।
उत्तर:
ऐन का विचार है कि पुरुष शारीरिक दृष्टि से सक्षम होता है और नारियाँ कमज़ोर होती हैं इसलिए पुरुष नारियों पर शासन करते हैं। उसका कहना है कि नारियों को समाज में उचित सम्मान नहीं मिलता। बच्चे को जन्म देते समय नारी जो पीड़ा व व्यथा भोगती है, वह युद्ध में घायल हुए सैनिक से कम नहीं है। सच्चाई तो यह है कि नारी अपनी बेवकूफी के कारण अपमान व उपेक्षा को सहन करती रहती हैं, परंतु नारियों को समाज में उचित सम्मान मिले यह जरूरी है। परंतु ऐन का यह अभिप्राय नहीं है कि महिलाएँ बच्चा पैदा करने बंद कर दें। प्रकृति चाहती है कि महिलाएँ बच्चों को जन्म दें। समाज में औरतों का योगदान विशेष महत्त्व रखता है। ऐन का यह भी विचार है कि आने वाले काल में औरतों के लिए बच्चे पैदा करना कोई जरूरी नहीं होगा।

अब समय काफी बदल चुका है। हमारा देश परंपरावादी है। इसलिए यहाँ महिलाओं की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा सकता है। जहाँ तक अशिक्षित ग्रामीण समाज का प्रश्न है वहाँ पर पुरुष स्त्रियों पर हावी रहते हैं। शिक्षित समाज में स्त्रियाँ पुरुषों से बेहतर हैं। उन्हें घर-परिवार, समाज, समूह, राष्ट्र सभी स्थानों पर सम्मान मिल रहा है। अब बच्चा पैदा करना या न करना अब नारी के हाथ में है। इसलिए ऐन फ्रैंक की डायरी में वर्णित नारी की स्थिति की तुलना में भारतीय स्थिति की हालत काफी बेहतर है। हमारे यहाँ नारियाँ सरकारी व गैर-सरकारी विभागों में नौकरियाँ कर रही हैं जिनमें से कुछ नारियाँ डॉक्टर हैं तो कुछ इंजीनियर हैं। शिक्षा जगत में तो नारियों ने अपना आधिपत्य जमा लिया है।

प्रश्न 4.
“ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है।” इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त करें।
उत्तर:
डायरी लेखक जब अपने जीवन का वर्णन करता है तब वह अपने आसपास के वातावरण पर भी प्रकाश डालता है। ऐन एक सामान्य लड़की है वह कोई साहित्यकार नहीं है। फिर भी उसने अपने निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का संवेदनात्मक वर्णन किया है। जिस परिवेश में वह रहने को मजबूर है वह असाधारण है। जर्मनी ने हॉलैंड पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया था, परंतु ब्रिटेन हॉलैंड को मुक्त कराने के लिए युद्ध लड़ रहा था। दूसरी तरफ यहूदियों पर अत्याचार हो रहे थे। वे भूमिगत होकर अभावमय और कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। ऐन भी उन्हीं में से एक है। इसलिए ऐन ने व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का संवेदनात्मक वर्णन किया है।

लेकिन ऐन तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करती है; जैसे अज्ञातवास जाने के कारण का बुलावा, आवास में जर्मनों के डर के कारण दिन-रात अंधकार में छिपकर रहना, युद्ध के अवसर पर राशन तथा बिजली की कमी होना, लड़की द्वारा तटस्थता की घोषणा करना, ब्रिटेन द्वारा हॉलैंड को मुक्त कराने का प्रयास करना, प्रतिदिन 350 वायुयानों द्वारा 550 टन गोले बारूद की वर्षा करना, हिटलर के सैनिकों द्वारा दिए गए साक्षात्कार का रेडियो पर विवरण आदि तत्कालीन ऐतिहासिक दौर के जीवंत दस्तावेज कहे जा सकते हैं। ऐन ने निजी जीवन की व्यथा के साथ-साथ इन ऐतिहासिक तथ्यों का यदा-कदा वर्णन किया है जिससे दोनों का अंतर मिट गया है।

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प्रश्न 5.
ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की ज़रूरत क्यों महसूस की होगी?
उत्तर:
आठ सदस्य अज्ञातवास में रह रहे थे। इनमें ऐन सबसे छोटी आयु की लड़की थी। इस आयु की लड़कियाँ किसी से बात करना चाहती हैं। परंतु आठ सदस्यों में से कोई भी उसकी भावनाओं को नहीं समझता। भूमिगत आवास में से बाहर निकलना संभव नहीं है। उसकी माँ केवल उपदेश देती है। मिसेज वान दान और मिस्टर डसेल उसकी हर बात की नुक्ता-चीनी करती रहती थीं। सात सदस्यों की बातें वही हजारों बार सुन चुकी है। इसलिए वह अपनी गुड़िया किट्टी से बातचीत करती है। यही बातचीत उसके डायरी के पन्ने बन गए हैं। इसमें वे पत्र भी हैं जो उसने अपनी गुड़िया किट्टी को लिखे थे। किट्टी को संबोधित करके चिट्ठियाँ लिखना उसकी मजबूरी थी।

इसे भी जानें

नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में ऐन फ्रैंक का नाम केवल एक बार आया है लेकिन अपने लेखन के कारण आज ऐन हज़ारों पन्नों में दर्ज हैं जिसका एक नमूना यह खबर भी है
उत्तर:
नाज़ी अभिलेखागार के दस्तावेजों में महज़ एक नाम के रूप में दफन है ऐन फ्रैंक बादरोलसेन, 26 नवंबर (एपी)। नाज़ी यातना शिविरों का रोंगटे खड़े करने वाला चित्रण कर दुनिया भर में मशहूर हुई ऐनी फ्रैंक का नाम हॉलैंड के उन हज़ारों लोगों की सूची में महज़ एक नाम के रूप में दर्ज है जो यातना शिविरों में बंद थे।

नाज़ी नरसंहार से जुड़े दस्तावेज़ों के दुनिया के सबसे बड़े अभिलेखागार एक जीर्ण-शीर्ण फाइल में 40 नंबर के आगे लिखा हुआ है-ऐनी फ्रैंक। ऐनी की डायरी ने उसे विश्व में खास बना लिया लेकिन 1944 में सितंबर माह के किसी एक दिन वह भी बाकी लोगों की तरह एक नाम भर थी। एक भयभीत बच्ची जिसे बाकी 1018 यहूदियों के साथ पशुओं को ढोने वाली गाड़ी में पूर्व में स्थित एक यातना शिविर के लिए रवाना कर दिया गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डच रेडक्रास ने वेस्टरबोर्क ट्रांजिट कैंप से यातना शिविरों में भेजे गए लोगों संबंधी सूचना एकत्र कर इंटरनेशनल ट्रेसिंग सर्विस (आईटीएस) को भेजे थे। आईटीएस नाज़ी दस्तावेजों का एक ऐसा अभिलेखागार है जिसकी स्थापना युद्ध के बाद लापता हुए लोगों का पता लगाने के लिए की गई थी।

इस युद्ध के समाप्त होने के छह दशक से अधिक समय के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रास समिति विशाल आईटीएस अभिलेखागार को युद्ध में जिंदा बचे लोगों, उनके रिश्तेदारों व शोधकर्ताओं के लिए पहली बार सार्वजनिक करने जा रही है। एक करोड़ 75 लाख लोगों के बारे में दर्ज इस रिकार्ड का इस्तेमाल अभी तक परिजनों को मिलाने, लाखों विस्थापित लोगों के भविष्य का पता लगाने और बाद में मुआवजे के दावों के संबंध में प्रमाण पत्र जारी करने में किया जाता रहा है। लेकिन आम लोगों को इसे देखने की अनुमति नहीं दी गई है।

मध्य जर्मनी के इस शहर में 25.7 किलोमीटर लंबी अलमारियों और कैबिनेटों में संग्रहीत इन फाइलों में उन हज़ारों यातना शिविरों, बंधुआ मजदूर केंद्रों और उत्पीड़न केंद्रों से जुड़े दस्तावेजों का पूर्ण संग्रह उपलब्ध है।

किसी ज़माने में थर्ड रीख के रूप में प्रसिद्ध इस शहर में कई अभिलेखागार हैं। प्रत्येक में युद्ध से जुड़ी त्रासदियों का लेखा-जोखा रखा गया है। आईटीएस में एनी फ्रैंक का नाम नाज़ी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में केवल एक बार आया है। वेस्टरबोर्क से 19 मई से 6 सितंबर 1944 के बीच भेजे गए लोगों से जुड़ी फाइल में फ्रैंक उपनाम से दर्जनों नाम दर्ज हैं।

में ऐनी का नाम, जन्मतिथि. एम्सटर्डम का पता और यातना शिविर के लिए रवाना होने की तारीख दर्ज है। इन लोगों को कहाँ ले जाया गया वह कालम खाली छोड़ दिया गया है। आईटीएस के प्रमुख यूडो जोस्त ने पोलैंड के यातना शिविर का जिक्र करते हुए कहा यदि स्थान का नाम नहीं दिया गया है तो इसका मतलब यह आशविच था। ऐनी, उनकी बहन मार्गोट व उसके माता-पिता को चार अन्य यहूदियों के साथ 1944 में गिरफ्तार किया गया था। ऐनी डच नागरिक नहीं जर्मन शरणार्थी थी। यातना शिविरों के बारे में ऐनी की डायरी 1952 में ‘ऐनी फ्रैंक दी डायरी ऑफ़ द यंग गर्ल’ शीर्षक से छपी थी।
-साभार जनसत्ता 27 नवंबर, 2006

HBSE 12th Class Hindi डायरी के पन्ने Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘डायरी के पन्ने’ नामक पाठ के आधार पर सेंधमारों वाली घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
युद्ध काल में सेंधमारों ने आम जीवन को कष्टमय बना दिया था। बेचारे डॉक्टर अपने मरीजों को देख नहीं पाते थे। जैसे ही वे अपनी पीठ मोड़ते थे, उनकी कारें व मोटर साइकिलें चुरा ली जाती थीं। चोरी-चकारी निरंतर बढ़ती जा रही थी। डच लोगों ने हाथों में अंगूठी पहनना बंद कर दिया था। आठ-दस साल के छोटे बच्चे भी खिड़कियाँ तोड़कर घरों में घुस जाते थे और जो कुछ मिलता था, उसे उठाकर ले जाते थे। कोई भी आदमी पाँच मिनट के लिए अपना घर खाली नहीं छोड़ सकता था। टाइपराइटर, ईरानी कालीन, बिजली से चलने वाली घड़ियाँ, कपड़े आदि चोरी हो जाते थे। उन्हें वापिस पाने के लिए लोग अपने विज्ञापन देते रहते थे। सेंधमार गली व नुक्कड़ों पर लगी हुई बिजली से चलने वाली घड़ियाँ उतार लेते थे और सार्वजनिक टेलीफोनों का पुर्जा-पुर्जा अलग कर देते थे। मालिकों के उठने तक वे भाग जाते थे। उसके हटते ही पुनः आ जाते थे। गोदाम में जब वे सेंधमारी कर रहे थे, तब पुलिस की आवाज़ सुनकर भाग गए। पर फाटक बंद करते ही वे पुनः वापस आ गए। जब दरवाजे पर कुल्हाड़ी से वार किया गया, तब सेंधमार भाग गए।

प्रश्न 2.
हजार गिल्डर के नोट अवैध मुद्रा घोषित करने से उत्पन्न कठिनाइयों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हजार गिल्डर के नोट को अवैध मुद्रा घोषित किए जाने के पीछे ब्लैक मार्किट का काम करने वाले और उन जैसे लोगों के लिए एक भारी झटका तो था, किन्तु जन-साधारण के लिए तो एक बड़ा संकट भी था। क्योंकि जो लोग भूमिगत थे या जो अपने धन का हिसाब-किताब नहीं दे सकते ये उनके लिए भी संकट का समय था। हजार गिल्डर का नोट बदलवाने के लिए आप इस स्थिति में हों कि यह नोट आपके पास आया कैसे और इसका सबूत भी देना पड़ता था। इन्हें कर अदा करने के लिए ही उपयोग में लाया जा सकता है। वह भी केवल एक सप्ताह तक ही। इस प्रकार हजार गिल्डर के नोट को अवैध मुद्रा घोषित करने से भूमिगत लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई थी।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

प्रश्न 3.
अपने मददगारों के बारे में ऐन ने क्या लिखा है?
उत्तर:
अपने मददगारों के बारे में ऐन ने लिखा है कि ये लोग अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की रक्षा करते हैं। ऐन आशावान है कि ये उन्हें सुरक्षित बचा लेंगे। उनके बारे में वे लिखती भी हैं, “उन्होंने कभी नहीं कहा कि हम उनके लिए मुसीबत हैं। वे रोज़ाना ऊपर आते हैं, पुरुषों से कारोबार और राजनीति की बात करते हैं, महिलाओं से खाने और युद्ध के समय की मुश्किलों की बात करते हैं, बच्चों से किताबों और अखबारों की बात करते हैं। वे हमेशा खुशदिल दिखने की कोशिश करते हैं, जन्मदिनों और दूसरे मौकों पर फूल और उपहार लाते हैं। हमेशा हर संभव मदद करते हैं। हमें यह बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए। ऐसे में जब दूसरे लोग जर्मनों के खिलाफ युद्ध में बहादुरी दिखा रहे हैं, हमारे मददगार रोज़ाना अपनी बेहतरीन भावनाओं और प्यार से हमारा दिल जीत रहे हैं।”

प्रश्न 4.
‘डायरी के पन्ने पढ़कर आपके मन पर कैसी प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर:
‘डायरी के पन्ने’ ऐन फ्रैंक की एक सफल डायरी कही जा सकती है। यद्यपि ऐन फ्रैंक कोई साहित्यकार नहीं थी लेकिन जिस प्रकार उसने विश्वयुद्ध के काल में जर्मनी द्वारा यहूदियों पर किए गए अत्याचारों का वर्णन किया है, वह यथार्थपरक बन पड़ा है। हिटलर सचमुच एक क्रूर शासक था। वह यहूदियों से अत्यधिक घृणा करता था। उसने लाखों नागरिकों को यातनाएँ देकर मार डाला। इस डायरी को पढ़कर हमारे मन पर यह प्रतिक्रिया होती है कि युद्ध और कट्टर जातिवाद दोनों ही भयानक हैं। जातीय अहंकार का शिकार बना हुआ शासक हिंसक पशु बन जाता है और वह अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद कर देना चाहता है। यही कुछ हिटलर और उसके सैनिकों ने किया। डायरी पढ़ने से हमारे मन में उन लोगों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होती है जो बेकसूर होते हुए भी अत्याचारों के शिकार बनें। उन्हें छिपकर रहना पड़ा और लंबे काल तक सर्य चंद्रमा, खली हवा, धूप आदि से वंचित रहना पड़ा। यह डायरी हमारे मन में करुणा की भावनाएँ जगाती है और पाठकों को यह संदेश देती है कि अत्याचारी शासकों का डटकर विरोध करना चाहिए।

प्रश्न 5.
मिसेज बान दान की प्रकृति का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
मिसेज बान दान ऐन के परिवार की मित्र महिला है। इसके पति और ऐन के पिता में मित्रता थी। इनका परिवार भी ऐन के परिवार के साथ अज्ञातवास में रहता है। मिसेज बान दान ऐन के परिवार के लिए बहुत-सी जरूरत की वस्तुएँ लाकर देती है। कहने का तात्पर्य है कि मिसेज बान दान दूसरों की कठिनई एवं दुःख-दर्द भली-भाँति अनुभव ही नहीं करती, अपितु उनकी सहायता भी करती है। इससे पता चलता है कि मिसेज बान-दान एक भली, दयावान और सहयोगी नारी है।

प्रश्न 6.
लेखिका के पिता किस कारण से नर्वस हो गए थे?
उत्तर:
लेखिका के पिता एक दिन बहुत-ही घबराए हुए थे। एक रात उनके घर के नीचे वाले गोदाम में चोरी और लूट-मार करने के लिए कुछ सेंधमार घुस गए। उन्होंने गोदाम के दरवाजे का फट्टा गिरा दिया और लूट-माट करने लगे। लेखिका के पिता और वान दान परिवार ऊपर छिपकर रह रहे थे। वे चोरों के सामने नहीं आना चाहते थे, तब अचानक वान दान पुलिस कहकर चिल्लाया। पुलिस शब्द सुनते ही सेंधमार भाग गए। अगले ही क्षण फट्टा फिर गिरा दिया गया और सेंधमार फिर से चोरी करने लगे। यह सब देखकर लेखिका का पिता घबरा गया। उसे डर था कि यदि पुलिस आ गई तो उन्हें हिटलर के यातना शिविरों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए वे नर्वस हो गए थे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

प्रश्न 7.
मिस्टर डसेल के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मिस्टर डसेल एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था। वह बड़ा सनकी, झक्की, ऊबाने वाला और अनुशासन प्रिय व्यक्ति था। वह पुराने जमाने के अनुशासन में विश्वास करता था और बात-बात पर लंबे भाषण देने लगता था। यदि कोई व्यक्ति उनके कहे अनुसार काम नहीं करता था तो वह उन्हें फटकारने लगता था। उनके चरित्र की बड़ी कमज़ोरी यह थी कि वह चुगलखोर था। वह अकसर लेखिका की चुगली उसकी माँ से कर देता था। फिर ऐन को माँ के लंबे उपदेश सुनने पड़ते थे। वह बड़ा ही क्रोधी और असहनशील व्यक्ति भी था। एक बार जब किसी ने उसका कुशन उठा लिया तो वह बहुत-ही व्याकुल और बेचैन हो उठा। सारा घर सिर पर उठा लिया।

प्रश्न 8.
ऐन फ्रैंक के फिल्मी प्रेम पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऐन फ्रैंक तेरह-चौदह वर्ष की किशोरी थी। इस आयु में फिल्मों व फिल्मी कलाकारों के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है। किन्तु ऐन फ्रैंक ऐसी नहीं थी, अपितु वह बहुत गम्भीर स्वभाव वाली थी। वह रविवार को अपने प्रिय फिल्मी कलाकारों की तस्वीरें अलग करने और देखने में गुजारती थी। यद्यपि उसके परिवार वाले फिल्मी सिनेमा की पत्रिका आदि को पैसों की बरबादी मानते थे। उसे फिल्म व फिल्मी कलाकारों के प्रति इतना प्रेम था कि वह एक वर्ष बाद भी किसी फिल्म के से सकती थी। जब बेप उसे बताती थी कि शनिवार को वह फलां फिल्म देखने जाना चाहती है तो वह उस फिल्म के मुख्य नायक-नायिकाओं के नाम एवं समीक्षा फर्राटे से बता देती थी। उसकी माँ ने तो व्यंग्य में यहाँ तक कह डाला इसे फिल्में देखने जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी क्योंकि ऐन को सारी फिल्मों की कहानियाँ, नायकों के नाम तथा समीक्षाएँ ज़बानी याद हैं। अतः इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐन फ्रैंक को फिल्मों के प्रति अत्यधिक प्रेम था।

प्रश्न 9.
ऐसी कौन-सी घटना हुई जिससे ऐन को लगा कि उसकी पूरी दुनिया उलट-पुलट गई है?
उत्तर:
8 जुलाई, 1942 को ऐन फ्रैंक के परिवार को यह संदेश मिला कि ऐन की बहन मार्गोट का ए०एस०एस० से बुलावा आया था। इसका मतलब था उसे यातना शिविर में भेजना और उसे जर्मन सेना के हवाले करना। यह समाचार पाकर ऐन अत्यधिक घबरा गई थी। उसके माता-पिता किसी भी शर्त पर मार्गोट को यातना शिविर पर नहीं भेजना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तत्काल भूमिगत होने का फैसला कर लिया। इस घटना से ऐन को ऐसा लगा कि जैसे उसकी पूरी दुनिया उलट-पुलट हो गई हो।

प्रश्न 10.
‘डायरी के पन्न’ नामक पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए एन बहुत ही प्रतिभाशाली तथा परिपक्व युवती थी।
अथवा
‘डायरी के पन्ने के आधार पर ऐन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘डायरी के पन्ने’ से हमें पता चलता है कि ऐन एक प्रतिभावान और धैर्यवान युवती थी। उसमें सहजता और शालीनता थी। किशोरावस्था की चंचलता उसमें बहुत कम दिखाई देती थी। वह बहुत कम अवसरों पर विचलित और बेचैन होती थी। उसने अपने स्वभाव पर नियंत्रण पा लिया था। उसकी सोच सकारात्मक, परिपक्व और सुलझी हुई थी। उसमें अत्यधिक सहनशीलता और संवेदनशीलता थी। वह बड़ों की गलत बातों को भी बड़ी शालीनता से सुनती थी और उनके प्रति सम्मान की भावना रखती थी। पीटर के प्रति भले ही उसके मन में प्रेम हो परंतु वह अपनी भावनाओं को डायरी में ही लिखती थी। किशोरावस्था। सराहनीय है। अपनी परिपक्व सोच के कारण ही उसने अपने मन के भाव और उद्गार डायरी में व्यक्त किए। यदि उसके चरित्र में धैर्य, शालीनता और परिपक्वता न होती तो शायद हमें इतनी उत्कृष्ट डायरी पढ़ने को न मिलती।

प्रश्न 11.
ऐन के स्त्री-पुरुष अधिकारों पर क्या विचार थे?
उत्तर:
ऐन का विचार है कि पुरुष शारीरिक दृष्टि से सक्षम होता है और नारियाँ कमज़ोर होती हैं इसलिए पुरुष नारियों पर शासन करते हैं। उसका कहना है कि नारियों को समाज में उचित सम्मान नहीं मिलता। बच्चे को जन्म देते समय नारी जो पीड़ा व व्यथा भोगती है, वह युद्ध में घायल हुए सैनिक से कम नहीं है। सच्चाई तो यह है कि नारियाँ अपनी बेवकूफी के कारण अपमान व उपेक्षा को सहन करती रहती हैं, परन्तु नारियों को समाज में उचित सम्मान मिले यह जरूरी है। परंतु ऐन का यह अभिप्राय नहीं है कि महिलाएँ बच्चे पैदा करने बंद कर दें। प्रकृति चाहती है कि महिलाएँ बच्चों को जन्म दें। समाज में औरतों का योगदान विशेष महत्त्व रखता है। ऐन का यह भी विचार है कि आने वाले काल में औरतों के लिए बच्चे पैदा करना कोई जरूरी नहीं होगा।

अब समय काफी बदल चुका है। अब महिलाओं की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा सकता है। शिक्षित समाज में स्त्रियाँ पुरुषों से बेहतर हैं। उन्हें घर-परिवार, समाज, समूह, राष्ट्र सभी स्थानों पर सम्मान मिल रहा है। बच्चा पैदा करना या न करना अब नारी के हाथ में है। इसलिए ऐन फ्रैंक की डायरी में वर्णित नारी की स्थिति की तुलना में भारतीय नारी की हालत काफी बेहतर है। हमारे यहाँ नारियाँ सरकारी व गैर-सरकारी विभागों में नौकरियाँ कर रही हैं जिनमें से कुछ नारियाँ डॉक्टर हैं तो कुछ इंजीनियर हैं। शिक्षा जगत में तो नारियों ने अपना आधिपत्य जमा लिया है।

प्रश्न 12.
हिटलर अपने सैनिकों से मुख्य रूप से क्या पूछा करता था?
उत्तर:
हिटलर और उसके सैनिकों की बात को अकसर रेडियो पर प्रसारित किया जाता था। बातों का मुख्य विषय युद्ध में घायल हुए सैनिकों का हाल-चाल जानना होता था। हिटलर अपने घायल सैनिकों का हाल-चाल जानकर उनका उत्साह बढ़ाते थे। वे अकसर घायल सैनिकों के युद्ध-स्थान का नाम और उनके घायल होने के कारण के बारे में पूछते थे। घायल सैनिक उत्साहपूर्वक अपना नाम, घायल होने का स्थान तथा घायल होने के कारण भी बताते थे। वे बड़े गर्व के साथ अपनी वीरता का बखान करते थे।

प्रश्न 13.
ऐन की अज्ञातवास के समय क्या रुचियाँ थीं?
उत्तर:
अज्ञातवास के समय ऐन अपने-आपको व्यस्त रखने के लिए दूसरों से बातें करती रहती थी। वह उस समय के क्रूर शासन की गतिविधियों में भी रुचि रखती थी। आर्थिक संकट के विषय में सोचकर ऐन चिंतित हो जाती थी। ऐन की रेडियो सुनने में भी रुचि थी। वह तत्कालीन क्रूर शासक हिटलर की गतिविधियों में भी रुचि रखती थी तथा उस समय चल रहे युद्ध में भी ऐन रुचि रखती थी। जो लोग अज्ञातवास में उनकी सहायता कर रहे थे ऐन उनके प्रति दिल से शुक्रिया का भाव रखती थी। वह अपने साथी पीटर से बातचीत करने में भी रुचि रखती थी। ऐन युद्ध के समय तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भी रुचि रखती थी। अज्ञातवास के समय महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के प्रति भी विरोध जताती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

प्रश्न 14.
ऐन ने अपने थैले में क्या-क्या भरा और क्यों?
उत्तर:
ऐन ने अपने थैले में एक डायरी, कर्लर, रूमाल, स्कूली किताबें, एक कंघी, कुछ पुरानी चिट्टियाँ आदि भर ली थीं। क्योंकि जहाँ वह जा रही थी, वहाँ से वस्तुएँ नहीं मिल सकती थीं।

प्रश्न 15.
ऐन फ्रैंक के नारी सम्बद्ध विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऐन फ्रैंक भले ही आयु में कम थी, किन्तु उसकी सामाजिक सोच बहुत गम्भीर थी। उसने तत्कालीन नारी समाज की वस्तु स्थिति की ओर भी संकेत किए हैं। वह नारी की स्वतन्त्रता के पक्ष में थी। ऐन को यह बात पंसद नहीं है कि पुरुष कमा कर लाता है और परिवार का पालन-पोषण करता है। इस आधार पर वह नारियों पर रौब जमाता रहे। अब हालात ब अब तक पुरुष की ज्यादतियों को सहती चली आ रही थीं। सौभाग्य से अब शिक्षा तथा प्रगति ने औरतों की आँखें खोल दी हैं। कुछ पुरुषों ने भी अब इस बात को महसूस किया है कि इतने लम्बे अरसे तक इस तरह की स्थिति को झेलते जाना गलत ही था। आधुनिक महिलाएँ पूरी तरह स्वतन्त्र होने का हक चाहती हैं।

प्रश्न 16.
कैबिनेट मंत्री मिस्टर बोल्के स्टीन ने क्या घोषित किया था कि जिससे ऐन को खुशी मिली थी?
उत्तर:
कैबिनेट मंत्री मिस्टर बोल्के स्टीन ने लंदन में एक उच्च प्रसारण में घोषणा की थी कि युद्ध के बाद युद्ध का वर्णन करने वाली डायरियों व पत्रों का संग्रह किया जाएगा। ऐन ने कहा था कि मुझे प्रसन्नता है कि जब मैं इस गुप्त एनेक्सी के बारे में छपवाऊँगी तो लोग इसे जासूसी कहानी समझेंगे। यहूदियों के रूप में अज्ञातवास में रहते हुए हम लोगों के बारे में जानने की लोगों में उत्सुकता होगी।

प्रश्न 17.
जॉन और मिस्टर क्लीमेन के व्यवहार का परिचय दीजिए।
उत्तर:
जॉन और मिस्टर क्लीमेन ऐन के पिता के कार्यालय में काम करते थे। उन दोनों का व्यवहार बहुत ही सहज, सरल, और मानवीय था। वे दूसरों के दुःख-दर्द को अनुभव कर यथासम्भव सहायता व सहयोग करने वाले लोग थे। जब सब लोग अज्ञातवास में थे, उस समय भी उन्होंने ऐन के परिवार की सहायता की थी।

डायरी के पन्ने Summary in Hindi

डायरी के पन्ने लेखक-परिचय

प्रश्न-
ऐन फ्रैंक का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
ऐन फ्रैंक का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय-ऐन फ्रैंक का जन्म 12 जून, 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट नगर में हुआ। उसकी मृत्यु नाज़ियों के यातनागृह में सन् 1945 के फरवरी या मार्च महीने में हुई। अज्ञातवास काल में ही ऐन फ्रैंक ने अपनी प्यारी किट्टी को संबोधित करते हुए डायरी लिखी थी। यह डायरी संसार की सर्वाधिक पढ़ी गई किताबों में से एक है। मूलतः इसका प्रकाशन सन् 1947 में डच भाषा में हुआ। सन् 1952 में यह डायरी ‘दी डायरी ऑफ़ द यंग गर्ल’ के नाम से अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई। तब से ले संपादित, असंपादित तथा आलोचनात्मक अनेक रूपों में प्रकाशित हो चुकी है। यह संसार की बहुचर्चित तथा बहुपठित डायरी मानी गई है जिसमें एक किशोर युवती की संवेदनशील भावनाओं का यथार्थ वर्णन किया गया है। इस पर फिल्म, नाटक तथा धारावाहिक भी बन चुके हैं।

डायरी के पन्ने पाठ का सार

प्रश्न-
ऐन फ्रैंक द्वारा रचित ‘डायरी के पन्ने’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के शासकों के अत्याचारों के फलस्वरूप हॉलैंड के यहूदी परिवारों को असंख्य यातनाओं तथा पीड़ाओं को सहन करना पड़ा। यहूदियों ने गुप्त तहखानों में छिपकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास किया। उन्हें शारीरिक तथा मानसिक यातनाएँ सहन करनी पड़ी। उन्होंने भूख, गरीबी और बीमारी को झेला। सरकार ने उनके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया। जर्मनी के शासकों ने गैस चैंबरों तथा फायरिंग स्कॉवओडों द्वारा लाखों यहूदियों को मृत्यु की नींद में सुला दिया। ऐसे काल में दो यहूदी परिवार ऐसे भी थे, जिन्होंने एक गुप्त आवास में दो वर्ष तक छिपकर जीवन व्यतीत किया। पहला, ऐन फ्रैंक का परिवार था, जिसमें माता-पिता के अतिरिक्त तेरह वर्षीय ऐन तथा सोलह वर्षीय उसकी बड़ी बहन मार्गोट थी। दूसरा परिवार वान दान दंपति का था। उनका सोलह साल का लड़का भी उनके साथ था। आठवाँ व्यक्ति मिस्टर डसेल था। फ्रैंक के ऑफिस में काम करने वा ईसाई कर्मचारियों ने उनकी खूब सहायता की।

ऐन फ्रैंक ने गुप्त आवास में जो दो वर्ष व्यतीत किए थे, उसकी जीवन-चर्या को डायरी में लिपिबद्ध किया। किंतु 4 अगस्त, 1944 को किसी ने आठों व्यक्तियों के बारे में सरकार को सूचित कर दिया और वे पकड़े गए। परंतु यह डायरी पुलिस के हाथों नहीं लगी। सन् 1945 में ऐन अकाल मृत्यु का शिकार हो गई। बाद में उसके पिता ओरो फ्रैंक ने सन् 1948 में इस डायरी को प्रकाशित करवाया। डायरी में ऐन ने अपनी किट्टी नामक गुड़िया को संबोधित करते हुए चिट्ठियाँ लिखी हैं। इसमें 13 वर्षीय ऐन फ्रैंक ने गुप्त आवासकाल के भय, आतंक, भूख, प्यास, मानवीय संवेदनाएँ, घृणा, हवाई हमले का भय, अकेलेपन की व्यथा, मानसिक और शारीरिक जरूरतों का यथार्थ वर्णन किया है। वस्तुतः यह डायरी यहूदियों पर किए गए अत्याचारों का जीवंत दस्तावेज कही जा सकती है। ‘डायरी के पन्ने’ का सार इस प्रकार है

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

बुधवार, 8 जुलाई, 1942-मेरी प्यारी किट्टी, रविवार से मेरे जीवन में जो परिवर्तन हुआ है, उसे तुम नहीं जानती। भले ही मैं जीवित हूँ, परंतु मेरी परिस्थितियों के बारे में कुछ मत पूछो। रविवार की दोपहर को मैं तीन बजे के लगभग बाल्कनी में धूप में अलसाई सी बैठी कुछ पढ़ रही थी। उसी समय मार्गोट ने धीमी आवाज से कहा कि पापा को ए०एस०एस०द्वारा बुलाए जाने का नोटिस मिला है, परंतु माँ पापा के बिजनेस पार्टनर तथा प्रिय मित्र वान दान को मिलने जा चुकी है। बुलावे का समाचार पाकर मैं हक्की-बक्की रह गई। इसका मतलब है यातना शिविर में नारकीय जीवन भोगना। माँ वान दान से यह पूछने गई थी कि कल ही दोनों परिवार छिपने वाले स्थान पर चले जाएँ। उधर पापा यहूदी अस्पताल में किसी मरीज को देखने गए हैं। उसी समय वान दान और माँ घर में आए और उन्होंने तत्काल दरवाजा बंद कर दिया। मैं और मार्गोट बेडरूम में बैठे बातें कर रहे थे। उस समय माँ और वान दान अकेले में वार्तालाप करना चाहते थे। इसलिए उनके कमरे में किसी और को नहीं जाने दिया।

तब मार्गोट ने कहा कि बुलावा पापा के लिए नहीं आया, बल्कि स्वयं उसके लिए आया है। यह सुनकर मैं चीख उठी। उस समय मेरी बहन की उम्र सोलह वर्ष की थी। मेरे मन में यह शंका थी कि हम कहाँ जाकर छिपेंगे। हम दोनों बहनों ने शीघ्र ही आवश्यक सामान थैले में डालना शुरू कर दिया। मैंने एक डायरी, कर्लर, रूमाल, स्कूली किताबें, एक कंघी, कुछ पुरानी चिट्ठियाँ थैले में रख ली थीं। बाद में हमने मिस्टर क्लिीमेन को फोन करके सांयकाल को अपने घर पर बुलाया। उधर मिस्टर वान मिएप को लेने चले गए। मिएप आ तो गई लेकिन वह रात को पुनः आने का वचन देकर चली गई। रात को वे दोनों सामान से भरा थैला लेकर आ गए। हम सभी इतने डरे हुए थे कि किसी ने खाना तक नहीं खाया। मिएप और जॉन गिएज रात के ग्यारह बजे पहुँचे। ये दोनों पति-पत्नी पापा के अच्छे मित्र थे। रात मुझे गहरी नींद आ गई। हम सबने अपने-अपने शरीर पर बहुत कपड़े पहने, क्योंकि कोई भी यहूदी सूटकेस लेकर नहीं आ सकता था। मिएप ने अपने थैले में स्कूली किताबें भर ली और अज्ञात स्थान के लिए चली गई। साढ़े सात बजे हम भी अज्ञात स्थान की ओर चल पड़े।

तुम्हारी ऐन गुरुवार, 9 जुलाई, 1942-प्यारी किट्टी, मैं और मम्मी-पापा थैले तथा शॉपिंग बैग लेकर तेज बारिश में भीगते हुए घर से निकल पड़े थे। सुबह-सुबह काम पर जाने वाले लोग हमें ध्यान से देख रहे थे। जब हम गली में प्रवेश कर गए तब मैंने मम्मी-पापा को बातें करते सुना कि हम सबको 16 जुलाई को अज्ञातवास में चले जाना होगा, परंतु अचानक मार्गोट के लिए बुलावा आ गया है। इसलिए हमें कुछ समय पहले जाना पड़ेगा। पापा के ऑफिस की इमारत में ही छिपने का स्थान बनाया गया था। इस इमारत के भू-तल में एक गोदाम था, जहाँ काली मिर्च, लौंग, इलायची की पिसाई होती थी। इस ऑफिस में बेप, मिएप, मिस्टर क्लीमेन काम करते थे। छोटे-से गलियारे में एक छोटा-सा बैंक ऑफिस था, जहाँ दम घोटने वाला अंधकार था, वहाँ मिस्टर कुगलर और वान दान बैठते थे। इस ऑफिस से बाहर निकलकर बंद गलियारे में चार सीढ़ियाँ चढ़कर एक ऑफिस बनाया गया था। जहाँ फर्नीचर, फर्श, कालीन, रेडियो, लैंप आदि सब कुछ था। ये सभी उत्तम दरजे की वस्तुएँ थीं। रसोईघर में दो हीटर तथा चूल्हे भी थे। पास ही एक शौचालय था। निचले गलियारे की सीढ़ियों के पास दूसरी मंजिल का रास्ता था। सीढ़ियों के ऊपर हमारी गुप्त एनेक्सी थी। उसके ऊपर फ्रैंक परिवार का कमरा था। एक छोटा-सा कमरा हम दोनों बहनों के लिए बना था।

ऊपर गुसलखाना, शौचालय, एक बिना खिड़कियों वाला कमरा था जिसमें एक वॉस बेसिन भी लगा हुआ था। ऊपर के एक कमरे में वान दान तथा उसकी पत्नी थी, जिसमें एक गैस चूल्हा तथा सिंक भी थी। तुम्हारी ऐन शुक्रवार, 10 जुलाई, 1942-मेरी प्यारी किट्टी, मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि हम कहाँ पर आ गए हैं। मिएप हमें लंबे गलियारे से सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर ले गई और फिर वह हमें एनेक्सी में ले गई। मार्गोट वहाँ पहले से ही थी। हमारी बैठक तथा दूसरे कमरे सामान से भरे पड़े थे। छोटा कमरा फर्श से लेकर छत तक कपड़ों से भरा पड़ा था। मैं और पापा सफाई करने लगे। माँ और मार्गोट थककर गद्दियों पर ही सो गईं। हम दिन-भर काम करते रहे। जब हम थक गए तो हम भी साफ बिस्तरों पर सो गए। अगले दिन हमने अधूरे काम को पूरा किया। बेप और मिएप हमारे राशन कुपन लेकर सामान लेने गए। इधर पापा ने ब्लैक कोड वाले पर्दे लगा दिए। बुधवार तक मैं इस घर की सफाई करने में लगी रही।

तुम्हारी ऐन शनिवार, 28 नवंबर, 1942-मेरी प्यारी किट्टी, इन दिनों हमारे घर में बिजली बहुत खर्च हो रही है। इसलिए अब हमें थोड़ी किफायत करनी होगी। साढ़े चार बजे अँधेरा हो जाता है, इसलिए हम पढ़ नहीं सकते। अनेक प्रकार की हरकतें करके हम समय काटते हैं। दिन में हम पर्दे को एक इंच भी नहीं हटा सकते थे। अंधकार हो जाने के बाद हम पर्दे हटाकर पड़ोसियों के घरों की ताका-झाँकी कर लेते हैं। मैं मिस्टर डसेल के साथ एक कमरे में रहती हूँ, जो एक अनुशासन-प्रिय व्यक्ति है, परंतु वह चुगलखोर भी है। वह अकसर मेरी मम्मी से शिकायत कर देता है जिससे मुझे मम्मी का उपदेश सुनना पड़ता है, जिससे पाँच मिनट बाद मम्मी मुझे अपने पास बुला लेती है। यदि परिवार वाले घर के किसी सदस्य को दुत्कारते तथा फटकारते रहें तो उन्हें सहन करना कठिन हो जाता है और मैं दिन-भर अपने कामों के बारे में सोचती हूँ। तब मैं हँसती भी हूँ और रोती भी हूँ। मैं चाहती हूँ कि मैं अपने-आपको बदलूँ। अब मैं और नहीं लिख सकती क्योंकि कागज खत्म हो गया है।

शुक्रवार, 19 मार्च, 1943-मेरी प्यारी किट्टी, हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि टर्की इंग्लैंड के साथ मिल गया है, परंतु दुख का समाचार यह है कि हजार गिल्डर का नोट अवैध मुद्रा घोषित किया जा चुका है। अगले हफ्ते तक पाँच सौ गिल्डर के नोट भी अवैध घोषित हो,जाएँगे। इन नोटों को बदलने के लिए जरूरी है कि उनका प्रमाण दिया जाए। जो लोग ब्लैक मार्किट का धंधा करते हैं, उनके लिए तो यह मुसीबत बन गई है क्योंकि उन लोगों के पास अपने धन का कोई हिसाब-किताब नहीं है। गिएज एंड कंपनी के पास जो हजार गिल्डर के नोट थे, वे अगली अदायगी में खर्च किए जा चुके थे। इसलिए अभी चिंता की कोई बात नहीं है। हमने
वितान (भाग 2) (डायरी के पन्ने]

रेडियो पर घायल हिटलर और उसके साथियों की बातें सुनीं जो अपने घावों की चर्चा कर रहे थे। वे अपने जख्म दिखाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। उनमें से एक हिटलर से हाथ मिलाने को इतना उत्साहित हो रहा था कि बोल भी नहीं पाया। मिसेज डसेल के साबुन पर मेरा पैर पड़ गया, जिससे वह पूरा साबुन ही नष्ट हो गया। उन्हें प्रति माह घटिया साबुन की एक ही बट्टी मिलती थी। मैंने अपने पापा से कहा कि उस साबुन की भुगताई कर दें।

तुम्हारी ऐन शुक्रवार, 23 जनवरी, 1944 मेरी प्यारी किट्टी, मुझे कुछ सप्ताहों से अपने परिवार के वंशजों और राजसी परिवारों के वंशजों की तालिकाओं में गहरी रुचि हो गई। मैं खोज करके अधिक-से-अधिक जानकारी हासिल करना चाहती थी। साथ ही मैं स्कूल का काम भी नियमित रूप से करती थी और रेडियो पर बी०बी०सी० की होम सर्विस को समझती थी।

रविवार को खाली बैठे मैं अपने प्रिय फिल्मी कलाकारों की तस्वीरें इकट्ठी करती थी और सोमवार को मिस्टर कुगलर जो पत्रिका देते थे उसे पढ़ती और देखती थी। परिवार के सभी सदस्य समझते थे कि मैं इन पत्र-पत्रिकाओं पर पैसा खराब कर रही हूँ। छुट्टी के दिन बेप अकसर अपने बॉयफ्रेंड के साथ फिल्म देखने जाती, लेकिन मैं पहले से ही उनको उस फिल्म के बारे में सब कुछ बता देती। इस पर मम्मी कहती कि इसे तो फिल्म देखने की कोई जरूरत नहीं है। जब मैं नई केश-सज्जा बनाकर बाहर आती हूँ तो घरवाले मुझे अवश्य ही टोकते हैं कि मैं फलाँ फिल्म स्टार की नकल कर रही हूँ। मेरा जवाब होता है कि यह स्टाइल मेरा अपना बनाया हुआ है। जब मैं सबकी बातें सुन-सुनकर बोर हो जाती हूँ तो गुसलखाने में जाकर अपने बाल फिर से खोल लेती हूँ। इससे मेरे बाल पहले जैसे धुंघराले बन जाते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

तुम्हारी ऐन बुधवार, 28 जनवरी, 1944 मेरी प्यारी किट्टी, मैं तुम्हें हर रोज बासी खबरें सुनाती हूँ। तुम्हें मेरी बातें नाली के पानी की तरह नीरस लगेंगी। मैं क्या करूँ, मैं मजबूर हूँ। मुझे हर रोज वही बातें सुनानी पड़ती हैं। खाने के समय कभी-कभी राजनीति वाली बातें हो जाती हैं। कभी-कभी मझे अपनी मम्मी और वान दान की बचपन की बातें सननी पडती हैं जो हम हजार बा हैं। उधर डसेल हमें महँगे चॉकलेट, लीक करने वाली नौकाएँ, चार वर्षीय तैरने वाले बच्चे, रेस वाले घोड़े, पीड़ित माँसपेशियाँ और भयभीत मरीजों की कहानियाँ सुनाते हैं। हमें सभी किस्से याद हो गए हैं। अब कुछ नया सुनाने के लिए नहीं है। जब कोई बात करता है तो मैं बीच में टोकने का प्रयास नहीं करती। जॉन और मिस्टर क्लीमेन अज्ञातवास में छिपे लोगों की तकलीफें हमें सुनाते हैं।

जो लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, उनके प्रति हमारी सहानुभूति है। जो लोग कैद से मुक्त हो जाते हैं, उनकी खुशी में हम भी खुश हो जाते हैं। अज्ञातवास में रहना अब सामान्य-सी बात हो गई है। फ्री नीदरलैंड्स के लोग अपनी जान खतरे में डालकर अज्ञातवास में रहने वालों को धन की सहायता देते हैं। उनके लिए नकली पहचान-पत्र बनवाते हैं और ईसाई युवकों के लिए काम करते हैं। कुछ लोग हमारी भी सहायता कर रहे हैं। कुछ लोग जर्मनों के विरुद्ध युद्ध में भाग ले रहे हैं। कुछ हम जैसों की मदद कर रहे हैं। कुछ दिलचस्प बातें सुनने को मिली हैं। क्लीमेन ने बताया कि गेल्डरलैंड में पुलिसकर्मियों और भूमिगत लोगों के साथ फुटबॉल मैच हुआ। खुशी की बात है कि हिल्वरसम में भूमिगत लोगों को राशनकार्ड दिए गए। पर ये सब काम छिपकर किए जाते हैं।

तुम्हारी ऐन बुधवार, 29 मार्च, 1944-मेरी प्यारी किट्टी, कैबिनेट मंत्री मिस्टर बोल्के स्टीन ने लंदन में डच प्रसारण में यह घोषणा की कि युद्ध समाप्त होने के बाद उन डायरी तथा पत्रों का संग्रह किया जाएगा, जिसमें युद्ध का वर्णन किया गया है। मुझे यह जानकर खुशी है कि जब यह गुप्त एनेक्सी की कहानी छपेगी तो लोग इसे जासूसी कहानी समझेंगे। हम लोगों के बारे में जानकारी पाकर लोग उत्सुक हो जाएँगे। मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूँ कि हवाई हमले के समय औरतें काफी डर जाती हैं। पिछले रविवार ब्रिटिश वायुसेना के 350 ब्रिटिश वायुयानों ने इज्मुईडेन पर 550 टन बारूद के गोले बरसाए। उस समय हमारा मकान घास की पत्तियों के समान काँपता दिखाई पड़ रहा था। मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूँ कि यहाँ लोग लाइन बनाकर सामान खरीदते हैं।

चोरी का भय हमेशा बना रहता है। लोग हाथों में अंगूठियाँ नहीं पहनते। छोटे बच्चे भी चोरी करने लगे हैं। लोग चौराहे की घड़ियाँ तथा सार्वजनिक टेलीफोन भी उतार लेते हैं। डच लोग नैतिकता को छोड़ चुके हैं। सभी लोग भूख से परेशान हैं। हफ्ते का राशन सिर्फ दो दिन चलता है। बच्चे बीमारी तथा भूख से व्याकुल हो रहे हैं। फटे कपड़े तथा फटे-पुराने जूते पहनने पड़ते है। जूतों की मरम्मत के लिए चार-पाँच महीनों तक मोची की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। लोगों को जर्मनी भेजा जा रहा है। सरकारी अधिकारियों पर भी हमले बढ़ते जा रहे हैं। खाद्य कार्यालय और पुलिस अधिकारी लोगों की सहायता कर रहे हैं। यह गलत बात है कि लोग डच में गलत काम करते हैं।

तुम्हारी ऐन मंगलवार, 11 अप्रैल, 1944-मेरी प्यारी किट्टी, शनिवार का दिन है। 2 बजे के लगभग तेज गोलाबारी होने लगी। मशीनगर्ने भी चलने लगीं। रविवार को मेरे बुलाने पर पीटर साढ़े चार बजे मुझसे मिलने आया। हम ऊपर अटारी पर चले गए। उस समय रेडियो पर मोत्ज़ार्ट संगीत बज रहा था। हम दोनों एक पेटी पर सटकर बैठे हुए थे। मोश्ची भी हमारे साथ थी। पौने नौ बजे मिस्टर मिस्टर डसेल का कशन लेकर नीचे आ गए। इस पर डसेल हमसे नाराज हो गया। साढ़े नौ बजे पीटर ने पापा को ऊपर बुलाया। पिताजी, वान दान और पीटर जल्दी से नीचे गए और मैं, माँ, मार्गोट और मिसेज वान दान ऊपर इंतजार करने लगीं। एक जोरदार धमाके से हम सभी औरतें डर गई। दस बजे जब पापा ऊपर आए, तब वह घबराए हुए थे।

तब उन्होंने आज्ञा दी कि हम बत्तियाँ बुझाकर ऊपर चली जाएँ। डर था कि पुलिस आ रही है। सभी आदमी नीचे थे। घर में घना काला अंधकार था। फिर से दो जोरदार धमाके हुए। पता चला कि गोदाम का आधा फाटक गायब था। होम गार्ड्स को सावधान कर दिया। वे चारों धीरे-धीरे नीचे गए। उन्होंने देखा कि गोदाम में सेंधमार अपने काम में लगे हुए थे। पुलिस के डर के कारण सेंधमार भाग गए थे। किसी प्रकार फाटक फिर से बंद कर दिया गया। इसी बीच एक आदमी और एक औरत पुलिस वहाँ पहुँच गए। सभी आदमी ऊपर बुककेस के पीछे छिप गए थे।

मंगलवार, 13 जून, 1944 मेरी प्यारी किट्टी, अब मैं पंद्रह वर्ष की हो गई हूँ। जन्मदिन पर मुझे कलात्मक इतिहास की पुस्तक, चड्डियों का एक सेट, बैल्टें, जैम की शीशी, रूमाल, दही के दो कटोरे, ब्रेसलेट, मिठाई, मीठे मटर, वनस्पति विज्ञान की पुस्तक, लिखने की कापियाँ, चीज के स्लाइस, मारिया लेरेसा की एक किताब और गुलदस्ता मिला है। इधर मौसम बड़ा खराब है। हमले अभी भी जारी हैं। जो फ्रांसीसी गाँव ब्रिटिश कब्जे से मुक्त हो गए हैं, उन्हें देखने के लिए चर्चिल, स्मट्स आइजनहाबर तथा आर्मोल्ड आदि गए। इनमें चर्चिल बहुत ही बहादुर व्यक्ति है। ब्रिटिश सैनिक अपना उद्देश्य पूरा कर रहे हैं, परंतु हॉलैंड के लोग इस पक्ष में नहीं हैं कि वे ब्रिटिश पर कब्जा करें। वे चाहते हैं कि ब्रिटिश सैनिक लड़ाई करें और हॉलैंड को स्वतंत्र कराने के लिए खुद का बलिदान करें तथा आजादी मिलने पर माफी माँगते हुए हॉलैंड को छोड़कर चले जाएँ। इन्हें यह नहीं पता कि ब्रिटेन जर्मनी के साथ सुलह कर लेता तो हॉलैंड जर्मनी बन गया होता।

डच लोगों को यह समझाना जरूरी है कि जर्मन हमारे हमलावर हैं और ब्रिटेन हमारे रक्षक हैं। मैं हर समय विचारों में डूबी रहती हूँ। मुझ पर आरोप लगाए जाते हैं तथा डाँट-फटकार भी सुननी पड़ती है। मुझे अपनी कमजोरियों और खामियों का पता है। मैं स्वयं को बदलना चाहती हूँ। सभी मुझे अक्खड़ मानते हैं। मिसेज वान दान और डसेल मुझ पर आरोप लगाते रहते हैं, लेकिन मैं जानती हूँ कि मिसेज वान दान मुझसे भी अधिक अक्खड़ हैं। उनका कहना है कि मेरी पोशाकें छोटी हैं। उनकी अपनी पोशाकें भी छोटी पड़ गई हैं। वे मुझे तीसमारखाँ कहती हैं, जबकि वे मुझसे अधिक तीसमारखाँ हैं।

वे अकसर उन विषयों के बारे अधिक बोलती हैं, जिनके बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है लेकिन मैं बहुत कुछ जानती हूँ जब मैं अपनी तुलना किसी से करती हूँ तो अपने आप को धिक्कारने लगती हूँ। माँ के उपदेश सुन-सुनकर मैं तंग आ चुकी हूँ। इससे मेरी कब मुक्ति होगी। मेरा विचार है कि मुझे कोई नहीं समझता, मेरी भावनाओं को कोई नहीं समझता। मैं चाहती हूँ कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो मेरी भावनाओं को समझ सके। मेरा विचार है कि पीटर मुझे दोस्त समझकर प्यार करता है, गर्लफ्रेंड समझकर नहीं। उसका प्रेम हर दिन बढ़ता चला जा रहा है पर कोई रहस्यात्मक शक्ति हमें पीछे धकेल रही है।

मैं कई बार सोचती हूँ कि मैं पीटर के पीछे प्रेम में दीवानी हो चुकी हूँ। जब मैं उससे नहीं मिलती तो परेशान हो जाती हूँ। पीटर एक भला लड़का है, पर उसके धर्म के प्रति विचार उचित नहीं हैं। वह हर समय खाने की बातें करता रहता है इसलिए हम दोनों ने निर्णय किया है कि हम आपस में कभी झगड़ा नहीं करेंगे। वह बहुत शांतिप्रिय, सहनशील तथा बहुत-ही सहज आत्मीय व्यक्ति है। वह मेरी गलत बातों को भी सहन कर लेता है। वह चाहता है कि काम-काज में सही तरीका व सही सलीका हो। कोई उस पर आरोप न लगाए। परंतु वह अपने दिल की बात मुझसे नहीं बताता है। वह एक घुन्ना व्यक्ति है।

मैंने और पीटर ने कुछ दिन इकट्ठे एनेक्सी में बिताए हैं। हमने वर्तमान, भविष्य तथा भूतकाल की बातें की हैं। मैं बहुत दिनों से घर से बाहर नहीं निकली। मैं प्रकृति का आनंद लेना चाहती हूँ। एक दिन गर्मी की रात के साढ़े ग्यारह बजे थे। मैं चाँद को देखना चाहती थी। बाहर चाँदनी की तीव्रता थी। इसलिए मैं खिड़की नहीं खोल पाई। अन्ततः एक दिन मैंने बरसात के समय खिड़की खोलकर रात में तेज हवाओं और बादलों को देखा। डेढ़ बरस में पहली बार मुझे यह मौका मिला था। .

आसमान, बादलों, चाँद, तारों को देखकर मुझे शांति मिलती है और आशा की भावना ने मुझको बोर कर दिया। शांति तो रामबाण दवा के समान है। प्रकृति के वरदान की समता कोई नहीं कर सकता। मेरा विचार है कि पुराणों में शारीरिक क्षमता अधिक होती है। इसलिए वे औरतों पर आरंभ से शासन करते हैं। पुरुष कमाकर लाता है, बच्चों का पालन-पोषण करता है और जो मन में आए वही करता है। औरतें इस बेवकूफी का शिकार बनती हैं। परंतु यह प्रथा बहुत पुरानी पड़ चुकी है। अब शिक्षा, प्रगति और काम ने औरतों को जागृत कर दिया है। कुछ देशों में औरतों को पुरुषों के बराबर हक मिल चुके हैं, परंतु औरत आज पूर्ण स्वतंत्रता चाहती है। मेरा विचार है कि औरतों को भी पुरुषों को समान उचित सम्मान मिलना चाहिए।

औरतों को सैनिकों-सा कहीं अधिक यंत्रणा को सहन क दर्जा मिलना चाहिए। युद्ध में लड़ते समय सैनिक जिस पीड़ा और यत्रंणा को सहन करते हैं औरतें बच्चे को जन्म देते समय उससे को सहन करती हैं, ऐसा मैंने पढ़ा है। परंत बच्चा पैदा करने के बाद औरत की संदरता नष्ट हो जाती है। औरत के कारण ही मानव जाति आगे बढ़ रही है। वह बहुत अधिक मेहनत करती है, पर पुरुष उसे उचित सम्मान नहीं देता। मेरा कहना है कि औरतों को बच्चे पैदा नहीं करने चाहिएँ। मैं ऐसे पुरुषों की निंदा करती हूँ जो समाज में औरतों के योगदान को महत्त्व नहीं देते। मैं इस पुस्तक के लेखक श्री पोल दे क्रुइफ से पूरी तरह सहमत हूँ कि सभ्य समाज में औरतों द्वारा बच्चे पैदा करना अनिवार्य काम नहीं है क्योंकि औरत के समान पुरुष को इस तरह गुजरना नहीं पड़ता। मेरा विचार है कि अगली सदी तक यह धारणा बदल जाएगी कि औरतों का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है। आने वाले समय में औरतों को अधिक सम्मान तथा आदर प्राप्त होगा।
तुम्हारी
ऐन फ्रैंक

कठिन शब्दों के अर्थ

अलसाई सी = आलस्य से युक्त। बिजनेस पार्टनर = व्यापार का साँझीदार। नज़ारे = दृश्य। हर्गिज़ = बिल्कुल। अज्ञातवास = छिपकर रहना। आतंकित = डरे हुए। कुलबुलाना = उथल-पुथल मचाना, व्याकुल होना। अफसोस = पछतावा। अजीबो-गरीब = विचित्र आश्चर्यजनक। स्मृति = यादें। पोशाक = पहनने वाले वस्त्र। मायने = अर्थ। स्टॉकिंग्स = लंबी जुराबें जो पूरी टाँगों को ढक लेती हैं। सन्नाटा = चुप्पी, मौन। अजनबी = अपरिचित। घोड़े बेचकर सोना = चिंता रहित सोना। किस्मत = भाग्य। बदन = शरीर। वजह = कारण। परवाह = चिंता करना। दिलचस्पी = रुचि । अरल्लम-गरल्लम = उल्टी-सीधी। बेचारगी = मजबूरी, लाचारी। निगाह = नज़र। वाहन = सवारी। दास्तान = विवरण, कथा। दौरान = मध्य, बीच में। यानी = अर्थात। गलियारा = संकरा रास्ता। दमघोंटू = साँस को रोकने वाला। पैसज = गलियारा। जरिया = द्वारा। सपाट = साधारण। बेडरूम = सोने का कमरा। स्टडीरूम = पढ़ने का कमरा। गुसलखाना = नहाने का कमरा। गरीबखाना = रहने का मकान। बखान = वर्णन। किस्सा = कहानी, वर्णन। राह देखना = इंतजार करना। अटा पड़ा = भरा हुआ। तरतीब = ढंग से, क्रमानुसार। पस्त = निढाल, थकी हुई।

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ढह गए = गिर गए। फुर्सत = समय की कमी। इस्तेमाल = प्रयोग करना। किफायत = कम खर्चा करना। पखवाड़े = पंद्रह दिन का समय। अरसा = समय, वक्त। तरीका = उपाय। डिनर = रात का भोजन। दरअसल = वास्तव में। शेयर करना = भाग लेना। खरादेमाग = उल्टा-सीधा सोचने वाला, अक्खड़। तुनकमिजाज = जल्दी क्रोध करने वाला। वाकई = सचमुच। मीनमेख निकालना = कमियाँ निकालना। दुत्कारना-फटकारना = धमकाना। खामी = कमी। आसान = सरल। अजीब = विचित्र । ख्याल = विचार । तटस्थता = निष्पक्षता। भूमिगत = छिपकर रहना। अफवाह = झूठी बात। सुबूत = प्रमाण। हफ्ता = सत्ता। अनुमानित = लगभग। अदा करना = चुकाना। अदायगी = चुकाने की प्रक्रिया। फिलहाल = इस समय। गर्दन पानी के ऊपर होना = सुरक्षित होना, कुशलमंगल होना। कायदे-नियम = पत्राचार, पत्र-व्यवहार। कारोबार = व्यापार। सवाल-जवाब = प्रश्नोत्तर। सिलसिला = क्रम। महसूस करना = अनुभव करना। वंश वृक्ष = परिवार की वंशावली। खासी = अधिक। अतीत = गुजरा हआ समय। मेहरबान = दयाल । फरटि = तेजी से। फिकरा कसना = ताने म न होना। टोक देना = बीच में रोकना। फलाँ = अमुक। कान पकना = सुनने की इच्छा न होना।

जुगाली = बार-बार चबाने की प्रक्रिया। जरा = तनिक। हिमाकत = अशिष्टता। दिवाला पिटना = सारा धन समाप्त हो जाना। तकलीफ = कष्ट। हमदर्दी = सहानुभूति। प्रतिरोधी दल = मुकाबला करने वाला दल। वित्तीय = आर्थिक। रोजाना = हर रोज, प्रतिदिन। मनि खुशदिल = प्रसन्नचित्त। उपहार = भेंट। मदद = सहायता। दिलचस्प = रोचक। आग्रह = अनुरोध। मोची = जूतों की मरम्मत करने वाला व्यक्ति। मर्द = पुरुष। आमंत्रण = बुलावा। अटारी = मकान की ऊपर की मंजिल का कमरा। खूबसूरत = सुंदर। दिव्य = अलौकिक। सटकर बैठना = पास-पास। खफा = नाराज। प्रहसन = हास्य नाटक। दाल में काला = कुछ गड़बड़ होना। सेंधमारी = चोरी करना। आशंका = डर। निगाह = नजर। ताला जड़ना = ताला लगाना। थरथराना = काँपना। निष्फल = बेकार। ढिठाई = धृष्टता। फटाफट = जल्दी, शीघ्र । जुटा नहीं पाना = व्यवस्था न कर पानी। उपहार = भेंट। जन्मजात = जन्म से, पैदायशी। ब्रिटिश = ब्रिटेन की सरकार। नफरत = घृणा। वाहियात = बेकार की बातें, बकवास। बुढ़ाते = वृद्ध व्यक्ति। प्रताड़ित करना = मारना, कष्ट देना। ताकत = शक्ति। सांत्वना = दिलासा देना, संतोष। आत्मीय = अपनापन। इल्ज़ाम = आरोप। घुन्ना = चुप रहने वाला। मंत्रमुग्ध = ध्यान में मग्न, वशीभूत । साक्षात्कार = भेंट, इंटरव्यू। उत्कट चाह = तीव्र अभिलाषा। सराबोर = पूर्ण करना। विनम्रता = शालीनता से। वाहियात = बेकार की बातें। स्वतंत्र = आजाद। सानी = मुकाबला। अलंकृत = सुशोभित। जनना = पैदा करने वाली। भर्त्सना = निंदा, चुगली। डींग हाँकना = झूठी प्रशंसा करना। हकदार = असली मालिक।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर अतीत में दबे पाँव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था, कैसे?
उत्तर:
सिंधु सभ्यता का नगर सुनियोजित था जिसमें पानी की समुचित व्यवस्था थी। मुख्य सड़कें चौड़ी थीं और अन्य छोटी थीं। इस सभ्यता के लोगों का मुख्य काम खेती करना था। इन्हें ताँबे और काँसे का पता था। यहाँ की खुदाई में मिले काँसे के बर्तन, चाक पर बने विशाल मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, चौपड़ की गोटियाँ, कंघी, ताँबे का दर्पण, मनके के हार, सोने के आभूषण आदि यह सिद्ध करते हैं कि सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी। ये लोग अपने यहाँ से निर्यात भी करते थे और बाहर से ऊन के वस्त्र आयात भी करते थे। यातायात के लिए वे बैलगाडियों का प्रयोग करते थे। उनके भंडार हमेशा अनाज से भरे रहते थे। गेहूँ, ज्वार, बाजरा, कपास आदि इनकी मुख्य फसलें थीं। उनके घरों में गृहस्थी की सभी आवश्यक सुविधाएँ थीं। वे साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते थे।

उनकी कला-कृतियों से पता चलता है कि वे सुरुचि संपन्न लोग थे और उन्हें सौंदर्य-बोध का समुचित ज्ञान था। उनकी कला संस्कृति राज-पोषित व धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित थी। साधन-संपन्न होने के बावजूद इस सभ्यता में भव्यता का आडंबर नहीं था। न ही वहाँ कोई भव्य प्रसाद था और न ही मंदिर। यहाँ तक कि राजाओं और महंतों की समाधियाँ भी यहाँ नहीं थीं। यहाँ के मूर्तिशिल्प या औजार छोटे थे। मकान भी छोटे थे और उनके कमरे भी छोटे थे। राजा का मुकुट भी छोटा और नाव भी छोटी थी। किसी भी वस्तु से इस सभ्यता में आडंबर का एहसास नहीं होता। इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है कि सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।

प्रश्न 2.
“सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?
उत्तर:
उस काल के मनुष्यों की दैनिक प्रयोग की वस्तुओं को देखकर यह प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी के लोग कला प्रिय थे। वास्तुकला में वे अत्यधिक प्रवीण थे। वहाँ पर धातु तथा मिट्टी की मूर्तियाँ मिली हैं तथा चाक के बने बर्तन मिले हैं जिन पर चित्र बने हुए हैं। वनस्पति, पशु-पक्षी की छवियाँ, मुहरें, खिलौने, आभूषण, केश-विन्यास, ताँबे का बर्तन, कंघी तथा सुघड़ लिपि भी प्राप्त हुई है। ये सब उपलब्धियाँ इस सभ्यता के सौंदर्य-बोध को प्रमाणित करती हैं। यहाँ भव्य मंदिरों, स्मारकों आदि के कोई अवशेष नहीं मिले। ऐसा कोई चित्र या मूर्ति प्राप्त नहीं हुई जिससे पता चले कि ये लोग प्रभुत्व तथा आडंबर प्रिय हों। यहाँ से प्राप्त सौंदर्य-बोध जन-सामान्य से जुड़ा प्रतीत होता है। लगता है कि यहाँ की कला-संस्कृति को राजा तथा धर्म का कोई प्रश्रय नहीं मिला। इसलिए यह कहना समीचीन होगा कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य-बोध राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 3.
पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में जिन वस्तुओं तथा कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है, उनमें औजार तो हैं परंतु हथियार नहीं हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मुअनजो-दड़ो हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक संपूर्ण सिंधु सभ्यता में किसी भी जगह हथियार के अवशेष नहीं मिले। इससे पता चलता है कि वहाँ कोई राजतंत्र नहीं था, बल्कि समाजतंत्र था। यदि इस सभ्यता में शक्ति का कोई केंद्र होता तो उसके चित्र अवश्य मिलते। इस सभ्यता के नरेश का मुकुट भी बहुत छोटा मिला है। राजमहल, मंदिर, समाधि के कोई चिह्न नहीं मिले हैं। इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि इस सभ्यता में सत्ता का कोई केंद्र नहीं था। यह सभ्यता स्वतः अनुशासित थी, ताकत के बल पर नहीं। इसलिए पुरातत्त्ववेत्ताओं का यह विचार है कि शायद इस सभ्यता में कोई सैन्य सत्ता न हो। यहाँ के लोग अपनी सोच-समझ के अनुसार ही अनुशासित थे।

प्रश्न 4.
‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उस के पार झाँक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि मुअनजो-दड़ो की सभ्यता पाँच हजार वर्ष पुरानी है। जबकि हमारे पास लिपिबद्ध इतिहास चौथी शताब्दी ई०पू० से ही उपलब्ध हो जाता है। इससे पता चलता है कि सिंधु सभ्यता वर्तमान इतिहास के काल से दुगुने काल की है। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में मिली टूटी-फूटी सीढ़ियों पर पैर रखकर हम किसी छत पर नहीं पहुँच सकते परंतु जब हम इन सीढ़ियों पर पैर रखते हैं तो हमें गर्व होता है कि हमारी सभ्यता उस समय सुसंस्कृत तथा उन्नत सभ्यता थी जबकि शेष संसार में उन्नति का सूर्य अभी प्रकट भी नहीं हुआ था। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता संसार की शिरोमणि सभ्यता है। हम इतिहास के पार देखते हैं कि इस सभ्यता के विकास में एक लंबा समय लगा होगा। मुअनजो-दड़ो की वास्तुकला आज के सुनियोजित नगरों के लिए आदर्श नमूना है। यदि आज के महानगरों में चौड़ी सड़कें हों तो आज यातायात में कोई बाधा नहीं आएगी। उन लोगों की सोच कितनी उत्तम थी कि उनके घरों के दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर नहीं खुलते थे, जबकि आज सब कुछ विपरीत है।

प्रश्न 5.
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज़ होते हैं इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो तथा हड़प्पा के टूटे-फूटे खंडहरों को देखने से हमारे मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों की सभ्यता कितनी विकसित तथा साधन संपन्न थी। ये खंडहर हमें सिंधु घाटी सभ्यता तथा संस्कृति से परिचित कराते हैं। हमारे मन में यह विचार पैदा होता है कि हम लोग उन्हीं लोगों की संतान हैं जो यहाँ रहते थे। हम किसी-न-किसी प्रकार से इस सभ्यता से जुड़े हैं। ये हमारे ही पूर्वजों के घर थे। परंतु हमारा दुर्भाग्य है कि हम आज केवल दर्शक बनकर रह गए हैं। इन खंडहरों को देखकर हम ये कल्पना कर सकते हैं कि यहाँ हजारों साल पहले कितनी चहल-पहल रही होगी और लोगों के मन में कितनी खुश-शांति रही होगी। काश हम भी उनके पद-चिह्नों का अनुसरण कर पाते। ये खंडहर हमारे उस प्राचीन सभ्यता के प्रमाण हैं जिन्हें हम कभी नहीं भुला पाएँगे।

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प्रश्न 6.
इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परन्तु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
इस पाठ में मुअनजो-दड़ो के अवशेषों का चित्रात्मक वर्णन किया गया है। भले ही हमने इस स्थान को न देखा हो पर पाठ को पढ़ने से वहाँ के मकानों, बौद्ध स्तूप, चौड़ी सड़कों, नालियों, चित्रकारी, कलाकारी आदि के चित्र हमारी आँखों के सामने झूल जाते हैं। सचमुच मुअनजो-दड़ो की सभ्यता संसार की सर्वाधिक विकसित सभ्यता कही जा सकती है।

कुछ महीने पहले हमारे विद्यालय के शिक्षकों ने दिल्ली के ऐतिहासिक स्थानों पर घूमने का कार्यक्रम बनाया था। मैंने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इतिहास का विद्यार्थी होने के कारण मैं ऐतिहासिक स्थल देखने की अधिक रुचि रखत हम सबसे पहले लालकिला देखने गए। प्रस्तुत पाठ को पढ़ने के बाद मैं लालकिले के बारे में एक बार यह हमारे देश का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इस किले का निर्माण करवाया था। इसकी भव्यता दूर से ही व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है। यमुना नदी के किनारे पर बने इस किले में लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है।

इसके मुख्य द्वार की शोभा तो अत्यधिक आकर्षक है। इसी द्वार की छत पर हमारे प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा झंडा फहराते हैं। किले में अनेक महल बने हैं जिनमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है। शाहजहाँ के काल में महलों की दीवारों पर सोने की नक्काशी की गई थी। दीवाने-आम तथा दीवाने-खास को देखकर दर्शकों की आँखें भौचक्की हो जाती हैं। परंतु लालकिले की सभ्यता भव्यता लिए हुए है और यह राजशक्ति का प्रमाण है। इसके मुकाबले में सिंधु घाटी सभ्यता राज-पोषित न होकर समाज-पोषित है। इसलिए मन में कभी-कभी ख्याल आता है कि शाहजहाँ ने तत्कालीन जनता का कितना शोषण किया होगा।

प्रश्न 7.
नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो सिंधु नदी के समीप बसा था। नगर में लगभग सात सौ कएँ थे। प्रत्येक घर में स्नानागार व जल निकासी की बेजोड़ व्यवस्था थी। अतः लेखक द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कहना उचित है। इस संदर्भ में निम्नलिखित प्रमाण दिए जा सकते हैं

  • आज भी संसार में बड़े-बड़े नगर तटों के पास बसे हैं। मुअनजो-दड़ो के पास ही सिंधु नदी थी।
  • पीने के पानी के लिए नगर में लगभग सात सौ कुओं की व्यवस्था थी। प्रत्येक घर में स्नानागार था।
  • जल निकासी की व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि आज भी विकसित नगरों में ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। प्रत्येक नाली पक्की ईंटों से निर्मित थी और ईंटों से ढकी थी।
  • आज के नगरों तथा कस्बों में बदबू छोड़ती नालियाँ व गंदे नाले देखे जा सकते हैं।
  • यहाँ के मकान छोटे थे तथा कमरे भी छोटे-छोटे थे ताकि अधिकाधिक लोगों को आवासीय सुविधा प्राप्त हो सके। मुअनजो-दड़ो में जल की समुचित व्यवस्था को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता जल-संस्कृति का श्रेष्ठ उदाहरण है।

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है।
नजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पुरातत्त्ववेत्ताओं ने काफी कुछ लिखा है। यह निश्चित है कि इस सभ्यता के बारे में लिखित प्रमाण नहीं मिला। हमें केवल अवशेषों के आधार पर अवधारणा बनानी पड़ी है। लेखक ने मुअनजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की है वह काफी हद तक सही प्रतीक होती है क्योंकि हमें मुअनजो-दड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई करने पर जो अवशेष मिले हैं उस आधार पर सिंधु घाटी का अनुमान लगाया गया है। भले ही कुछ लोग इन अनुमानों की सत्यता पर शंका व्यक्त करें, पर शंका व्यक्त करने का कोई तर्कसंगत प्रमाण नहीं मिलता। हमें तो केवल अवशेषों को ही प्रमाण मानना है। यहाँ से प्राप्त अवशेषों के काल का निर्धारण
रे पास कई वैज्ञानिक उपकरण हैं और पुरातत्त्ववेत्ताओं ने उनकी आवश्यक सहायता लेकर इस सभ्यता का काल निर्णय किया है। जहाँ तक आलोचकों का प्रश्न है वे अनेक तर्क देकर अपनी विभिन्न धारणाएँ व्यक्त कर सकते हैं।

HBSE 12th Class Hindi अतीत में दबे पाँव Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुअनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ था? इसे विशेष प्रकार से क्यों बसाया गया था?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि यह नगर अपने समय में सभ्यता का केंद्र रहा होगा। ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र 200 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला था और इसकी जनसंख्या 85 हजार के लगभग रही होगी। पाँच हजार वर्ष पूर्व यह नगर महानगर की परिभाषा को स्पष्ट करता है। भले ही सिंधु घाटी एक मैदानी संस्कृति थी परंतु सिंधु नदी को सैलाब से बचाने के लिए उसे छोटे-छोटे टीलों पर बनाया गया था। विद्वानों का विचार था कि ये टीले प्राकृतिक नहीं थे बल्कि पक्की व कच्ची ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाकर उस पर बनाए गए थे। यह वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण था। भले ही यहाँ की इमारतें खंडहर बन चुकी हैं, नगर व गलियों के विस्तार से यह स्पष्ट हो जाता है कि नगर का नियोजन पूर्णतया सुनियोजित था। यह नगर सिंधु नदी से पाँच किलोमीटर की दूरी पर बना था। स्तूप वाले चबूतरे के पीछे ‘गढ़’ और सामने ‘उच्च’ वर्ग की बस्ती तथा दक्षिण की ओर के खंडहरों में कामगारों की बस्ती है।

सामूहिक स्थान के लिए 40 फुट लंबा, 25 फुट चौड़ा, 7 फुट गहरा कुंड था जिसमें उत्तर तथा दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती थीं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने थे। कुंड के पानी की निकासी के लिए नालियाँ भी थीं। कुंड के दूसरी ओर विशाल कोठार था। कुंड उत्तर:पूर्व में एक लंबी इमारत थी जिसमें दालान तथा बरामदे बने थे। दक्षिण में 20 कमरों वाला एक विशाल मकान था। नगर की मुख्य सड़कों की चौड़ाई 33 फुट तक थी। परंतु गलियों की सड़कें 9 फुट से 12 फुट तक चौड़ी थीं। प्रत्येक घर में एक स्नानघर था और घरों के भीतर पानी की निकासी की व्यवस्था भी थी। बस्ती के भीतर छोटी सड़कें व गलियाँ थीं। इस नगर में कुओं का उचित प्रबंध था जोकि पक्की ईंटों से निर्मित थे। नगर में यदि छोटे घर थे, तो बड़े घर भी थे। पर सभी पंक्तिबद्ध थे। घर के कमरे छोटे थे ताकि आवास की समस्या का हल निकाला जा सके। संपूर्ण नगर की वास्तुशैली एक ही प्रकार की प्रतीत होती है। इसलिए यह नगर वास्तुकला की दृष्टि से सुनियोजित और सुव्यवस्थित रहा होगा।

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प्रश्न 2.
‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बौद्ध स्तूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के जो खंडहर प्राप्त हुए हैं उनमें सबसे ऊँचे चबूतरे पर एक बौद्ध स्तूप के अवशेष मिले हैं। इसका चबूतरा 25 फुट ऊँचा है। लेखक का कथन है कि इसका निर्माणकाल 26 सौ वर्ष पहले का है। चबूतरे पर भिक्षुओं के लिए अलग-अलग कमरे बने हुए हैं। यह बौद्ध स्तूप भारत का प्राचीनतम लैंडस्केप कहा जा सकता है। इसे देखकर दर्शक आश्चर्यचकित रह जाता है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार, मुअनजो-दड़ो के स्तूप वाला भाग ‘गढ़’ है जिसके सामने एक बस्ती है जिसका संबंध शायद उच्च वर्ग से है। इसके पीछे पाँच किलोमीटर की दूरी पर सिंधु नदी है।

प्रश्न 3.
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर महाकुंड का वर्णन करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में एक तालाब भी मिला है। इसे पुरातत्त्वविदों ने महाकुंड का नाम दिया है। इसकी लंबाई 40 फुट, चौड़ाई 25 फुट तथा गहराई 7 फुट है। उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ कुंड में उतरती हैं। उत्तर दिशा में दो पंक्तियों में 8 स्नानघर भी बने हुए हैं। इसके बारे में लेखक लिखता है-‘वह अनुष्ठानिक महाकंड भी है जो सिंधु घाटी सभ्यता के अद्वितीय वास्तुकौशल को स्थापित करने के लिए अकेला ही काफी माना जाता है। कुंड से पानी को बाहर निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई हैं। ये सभी नालियाँ ईंटों से बनी हैं तथा ईंटों से ढकी हुई हैं। कुंड के तीन तरफ साधुओं के कक्ष हैं। इस कुंड की विशेष बात यह है कि इसमें पक्की ईंटों का जमाव है। कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है। पार्श्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है। कुंड के पानी के प्रबंध के लिए एक तरफ कुआँ है। दोहरे घेरे वाला यह अकेला कुआँ है। कुंड के पानी को बाहर बहाने के लिए नालियाँ बनी हुई हैं।

प्रश्न 4.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की फसलों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में पहले यह विचार था कि यहाँ के लोग अनाज पैदा नहीं करते थे, बल्कि आयात करते थे। परंतु हाल की खोज ने इस विचार को गलत सिद्ध कर दिया है। अब विद्वान यह मानते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता खेतीहर और पशुपालक सभ्यता थी। आरंभ में लोहे का प्रयोग नहीं होता था परंतु पत्थर और ताँबे का खूब प्रयोग होता था। पत्थर तो सिंध में ही होता था और ताँबे की खानें राजस्थान में थीं। इनसे बनाए गए उपकरण खेती-बाड़ी के काम में लाए जाते थे। इतिहासकार इरफान हबीब ने यह सिद्ध किया है कि यहाँ पर कपास, गेहूँ, जौ, सरसों तथा चने की खेती होती थी। आरंभ में यहाँ की सभ्यता तट युग की सभ्यता थी लेकिन बाद में यह सूखे में बदल गई। विद्वानों का यह भी विचार है कि यहाँ के लोग ज्वार, बाजरा और भी पाप्त हए हैं।

रागी की भी खेती करते थे। यही नहीं, यहाँ खरबूजे, खजूर और अंगूर भी उगाए जाते थे। झाड़ियों से बेर इकट्ठे किए जाते थे। भले ही कपास के बीज नहीं मिले परंतु सूती कपड़ा मिला है। जिससे सिद्ध होता है कि ये लोग कपास की खेती भी करते थे। यहाँ से सूत का निर्यात किया जाता था।

प्रश्न 5.
निम्न वर्ग के मकानों के बारे में लेखक ने क्या लिखा है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता में समाज का निम्न वर्ग भी था क्योंकि यहाँ उच्च वर्ग की बस्ती के साथ-साथ कामगारों की बस्ती भी मिली है। इस बस्ती के घर टूटे-फूटे हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निम्न वर्ग के मकान अधिक मजबूत नहीं रहे होंगे। दूसरी बात यह भी है कि निम्न वर्ग के मकान मुख्य बस्ती से दूर बसे हुए थे। हल्के मकान होने के कारण ये पाँच हजार साल तक नहीं टिक पाए। यदि मुअनजो-दड़ो के दूसरे टीलों की खुदाई की जाए तो निम्न वर्ग के मकानों के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिल सकती है।

प्रश्न 6.
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में खुदाई के समय मिली कौन-कौन सी चीजें रखी हुई हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खदाई में निकली हई पंजीकत वस्तओं की संख्या 50 हजार से भी अधिक है, लेकिन बहत कम वस्तएँ ही अजायबघर में प्रस्तुत की गई हैं। ये वस्तुएँ सिंधु घाटी की सभ्यता की झलक दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। अजायबघर में काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मोहरें, आटे चाक पर बने हुए विशाल मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, वाद्य, माप-तोल के पत्थर, चौपड़ की गोटियाँ, ताँबे के बर्तन, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटों वाली चक्की, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनके वाले हार और मिट्टी के कंगन आदि अनेक वस्तुएँ देखी जा सकती हैं। अजायबघर के अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी थे जो बाद में चोरी हो गए। हैरानी की बात यह है कि यहाँ औजारों का तो प्रदर्शन किया गया है लेकिन कोई हथियार नहीं मिला। इसी प्रकार ताँबे और काँसे की बहुत-सी सुईयाँ हैं। नर्तकी और दाढ़ी वाले नरेश की मूर्तियाँ भी प्राप्त हैं। इसके अतिरिक्त हाथी दाँत और ताँबे के सुए भी प्रा प्राप्त हुए हैं।

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प्रश्न 7.
मुअनजो-दड़ो के सामूहिक स्नानागार को धार्मिक स्थल माना जा सकता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के सामूहिक स्नानागार को महाकुंड का नाम दिया गया है। यह कुंड करीब 40 फुट लंबा, 25 फुट चौड़ा और 7 फुट गहरा है। इसमें उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ नीचे उतरती हैं। महाकुंड की तीन दिशाओं में साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पंक्तियों में स्नानागार हैं जिसमें से किसी का दरवाजा भी दूसरे के सामने नहीं खुलता। कुंड में पक्की ईंटों का जमाव है। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि कुंड के पानी का रिसाव न हो पाए और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आए। इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों में ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है। महाकुंड के लिए पानी का प्रबंध करने के लिए दोहरे घेरे वाला एक कुआँ बनाया गया है। कुंड के पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नाली बनाई गई है। महाकुंड की विशेषताओं से पता चलता है कि यह कुंड किसी धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ा हुआ रहा होगा।

प्रश्न 8.
‘अतीत में दबे पाँव’ के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ओम थानवी ने अतीत में दबे पाँव की रचना यात्रा वृत्तांत के रूप में की है परंतु यह रिपोर्ट से मिलता-जुलता लेख है। इसमें लेखक ने अतीत काल की सिंधु घाटी सभ्यता का रोचक और सजीव वर्णन किया है। यह सभ्यता दो महानगरों मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा में बसी हुई थी। इस लेख में मुअनजो-दड़ो शहर और वहाँ की सभ्यता व संस्कृति पर समुचित प्रकाश डाला गया है। लेखक ने यहाँ की बड़ी बस्ती का वर्णन करते हुए महाकुंड का भी परिचय दिया है। सिंधु घाटी सभ्यता में स्तूप, गढ़, स्नानागार, टूटे-फूटे घर, चौड़ी और कम चौड़ी सड़कें, बैलगाड़ियाँ, सूईयाँ, छोटी-छोटी नौकाएँ, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ और औजार प्राप्त हुए हैं। ये सब वस्तुएँ यहाँ की सभ्यता पर समुचित प्रकाश डालती हैं। मुअनजो-दड़ो से प्राप्त अवशेषों के आधार पर पाँच हजार वर्ष पहले की सिंधु घाटी सभ्यता की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन से भी कहीं अधिक सौंदर्य-बोध देखा जा सकता है। ‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर विवेचन करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खुदाई से यहाँ जो वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं वे उस समय के लोगों के सौंदर्य-बोध की परिचायक हैं। इन वस्तुओं में धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, सुंदर मोहरें, उन पर बारीकी से की गई आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण आदि हिंदू सभ्यता के सौंदर्य-बोध का परिचय देती हैं। यहाँ की सुघड़ लिपि और आश्चर्यचकित करने वाली वास्तुकला तथा नगर नियोजन आदि भी सौंदर्य-बोध के परिचायक हैं। सिंधु सभ्यता में आवास की सुंदर व्यवस्था थी। अन्न का सही भंडारण किया जाता था और सबसे बढ़कर सुंदर कलाकृतियाँ भी बनाई जाती थीं। इन सब बातों से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन के साथ-साथ सौंदर्य-बोध के भी दर्शन होते हैं।

प्रश्न 10.
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर सिंधु सभ्यता में प्राप्त वस्तुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खदाई में प्राप्त वस्तओं का जो पंजीकरण किया गया. उनकी संख्या 50 हजार से भी अधिक है। इनमें से अधिकांश वस्तुएँ कराची, लाहौर, लंदन तथा दिल्ली में रखी हुई हैं। केवल कुछ वस्तुएँ ही यहाँ के अजायबघर में हैं जिनमें काला पड़ गया गेहूँ, चौपड़ की गोटियाँ, माप-तोल के पत्थर, ताँबे के बर्तन, दीपक, मिट्टी की बैलगाड़ी, कुछ खिलौने, कंघी, दो पाटों वाली चक्की, रंग-बिरंगे पत्थर के मनकों के हार तथा पत्थर के औजार गिनवाए जा सकते हैं। अजायबघर के चौकीदार के अनुसार यहाँ पर सोने के आभूषण भी थे जो कि चोरी हो चुके हैं। यही नहीं यहाँ काँसे के बर्तन, मोहरें, चाक पर बने विशाल मिट्टी के बर्तन, कुछ लिपिबद्ध चिह्न आदि वस्तुएँ भी प्राप्त हुई हैं। यहाँ की उल्लेखनीय वस्तु दाढ़ी वाले नरेश की मूर्ति है जिसके शरीर पर एक सुंदर गुलकारी वाला दुशाला है। यही नहीं, हाथी दाँत और ताँबे की सुइयाँ भी मिली हैं। खुदाई में प्राप्त नर्तकी की मूर्ति एक अद्वितीय कला का नमूना है। इतिहासकारों का कहना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता संसार की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता कही जा सकती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुअनजो-दड़ो के नगर की दशा आज कैसी है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो का प्राचीनतम नगर एक पुराने खंडहर में बदल चुका है। इस नगर के मकानों की छतें गायब हैं परंतु अंदर के कमरे, रसोई, अधूरी सीढ़ियाँ, चौड़ी सड़कें और गलियाँ ज्यों-की-त्यों हैं। वहाँ जाकर दर्शक यह अनुभव करता है कि मानो अभी यह नगर नींद में से जागकर उठ जाएगा और यहाँ रहने वाले लोग फिर से अपने काम में लग जाएँगे।

प्रश्न 2.
रईसों की बस्ती का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
‘अतीत में दबे पाँव पाठ में सिंधु घाटी की खुदाई से प्राप्त तथ्यों का वर्णन किया गया है। इस खुदाई से उस समय के घरों की बनावट से ही अनुमान लगाया गया है कि वहाँ गरीबों व रईसों की अलग-अलग बस्तियाँ थीं। रईसों की बस्ती यानी बड़े घर, चौडी सड़कें ज्यादा कुएँ हैं। इन घरों में स्नानघरों की भी सुन्दर व्यवस्था थी। यहाँ सड़क के दोनों ओर ढकी हुई नालियाँ भी मिली हैं जिससे वहाँ पानी की निकासी के प्रबन्धन का पता चलता है। वहाँ की बस्ती के भीतर छोटी सड़कें हैं और उनसे छोटी गलियाँ थीं। गलियों से ही घरों तक पहुँचा जाता है। यहाँ कुँओं का प्रबन्धन भी बहुत आकर्षक है।

प्रश्न 3.
‘देखना अपनी आँख का देखना है। बाकी सब आँख का झपकना है’ आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के इस कथन का अर्थ यह है कि किसी भी दृश्य अथवा वस्तु को आँखों से देखकर ही उसे जाना जा सकता है। मुअनजो-दड़ो नगर की भी यही स्थिति थी। उसे आँखों से देखकर ही मनुष्य पर सही और स्थायी प्रभाव पड़ सकता है। चित्रों, सही कल्पना साकार नहीं हो सकती।

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प्रश्न 4.
मुअनजो-दड़ो के नगर नियोजन का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
नगर नियोजन में मुअनजो-दड़ो की अपनी पहचान है भले ही इमारतें खंडहरों में बदल गई हों किन्तु शहर के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए सड़कों और गलियों के ये खंडहर काफी हैं। यहाँ की सड़कें सीधी या आड़ी हैं। वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आजकल की सैक्टरनुमा कालोनियों में सीधा-आड़ा नियोजन बहुत देखने को मिलता है। अतः मुअनजो-दड़ो की नगर नियोजन उत्तम है।

प्रश्न 5.
पुरातत्त्ववेत्ताओं ने किस भवन को देखकर ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ की कल्पना की है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के महाकुंड के उत्तर:पूर्व में एक लंबी इमारत के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिसके बीचो-बीच एक खुला दालान है। उसके तीन तरफ बरामदे भी बने हुए हैं। संभवतः इनके साथ कुछ छोटे-छोटे कमरे भी रहे होंगे। कुछ पुरातत्त्ववेत्ताओं का यह भी कहना है कि इस इमारत में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते होंगे क्योंकि इसके दक्षिण में एक अन्य इमारत के खंडहर प्राप्त हुए हैं। यहाँ बीस खंभों वाला एक विशाल हाल है। विद्वानों का यह विचार है कि यह राज्य सचिवालय, सभा भवन अथवा कोई सामुदायिक केंद्र रहा होगा। इस लंबी इमारत और साथ की खंडहर इमारत के आधार पर विद्वानों का कहना है कि यहाँ निश्चित से धर्म और विज्ञान पर विचार-विमर्श होता होगा। इसीलिए इसके लिए ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ की कल्पना की गई है।

प्रश्न 6.
मुअनजो-दड़ो और चंडीगढ़ की नगर-योजना में कौन-सी समानता देखी जा सकती है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो और चंडीगढ़ के नगर-निर्माण शिल्प में एक महत्त्वपूर्ण समानता है। दोनों नगरों की मुख्य सड़कों पर किसी भी मकान का दरवाजा नहीं खुलता। नगर के घरों में जाने के लिए पहले चौड़ी सड़क पर जाना पड़ता है। वहाँ से गली में प्रवेश करके घर में जाया जा सकता है। मुख्य सड़कों की ओर मकानों की पीठ है।

प्रश्न 7.
मुअनजो-दड़ो की सभ्यता सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूक थी। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की सभ्यता सफाई और स्वच्छता के प्रति विशेष रूप से जागरूक थी। नगर में पानी की निकासी का विशेष प्रबंध था। प्रत्येक घर में स्नानघर था। घरों के अंदर का मैला पानी नाली के द्वारा बाहर की हौदी में गिरता था जो कि नालियों के जाल से जुड़ा हुआ था। सभी नालियाँ पत्थर से ढकी हुई थी जिससे मक्खी-मच्छर के बैठने की संभावना नहीं थी।

प्रश्न 8.
मुअनजो-दड़ो में रंगरेज का कारखाना भी था। सिद्ध करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में एक ऐसा भवन मिला है जिसकी जमीन में ईंटों के गोल गड्ढे बनाए गए हैं। पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि इनमें वे बर्तन रखे जाते होंगे जो रंगाई के काम आते हैं। इस भवन में सोलह छोटे-छोटे मकान भी हैं। एक पंक्ति मुख्य सड़क पर है और दूसरी पंक्ति पीछे की सड़क पर है। ये सभी मकान एक मंजिले और छोटे हैं। प्रत्येक मकान में दो कमरे हैं और सभी घरों में स्नानघर भी हैं। ऐसा लगता है कि यहाँ पर रंगरेज रहते होंगे और रंगाई का काम भी करते होंगे।

प्रश्न 9.
‘जूझ’ पाठ में बचपन में लेखक के मन में पढ़ने के प्रति क्या विचार थे?
उत्तर:
बचपन में लेखक के मन में पढ़ने की प्रबल इच्छा थी। इसलिए वह सोचता था कि खेत में काम करने से उसके हाथ कुछ नहीं लगेगा, उसे किसी भी कीमत पर पढ़ना चाहिए।

प्रश्न 10.
मुअनजो-दड़ो को देखकर लेखक को राजस्थान के कुलधरा गाँव की याद क्यों आ गई?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के उजड़े हुए वीरान नगर को देखकर लेखक अचानक राजस्थान के कुलधरा गाँव को याद कर उठा। यह गाँव भी लंबे काल से वीरान पड़ा हुआ है। कहा जाता है कि लगभग 150 साल पहले यहाँ के राजा तथा गाँववासियों के बीच झगड़ा हो गया था। गाँव के लोग बड़े स्वाभिमानी थे। वे रातो-रात अपने घर छोड़कर कहीं ओर चले गए। तब से इस गाँव के घर खंडहर हो गए हैं। वे आज भी मानो अपने बाशिंदों के इंतजार में खड़े हुए हैं।

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प्रश्न 11.
‘कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ किसे कहा गया है? इसका निर्माण क्यों हुआ होगा?
उत्तर:
महाकुंड के उत्तर:पूर्व में एक बड़ी इमारत के अवशेष हैं। इसके बिल्कुल बीच में खुला और बड़ा दालान है। इसके तीनों तरफ बरामदे हैं। पुरातत्व जानकार के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों में ज्ञानशालाएँ साथ-साथ होती थीं, उस नजरिये से इसे ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ माना जा सकता है। कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ उस कॉलेज को कहा गया है, जहाँ प्रीस्टस को धार्मिक शिक्षा दी जाती है। इसका निर्माण प्रीस्टस को शिक्षित करने हेतु किया गया होगा।

प्रश्न 12.
मुअनजो-दड़ो में जल की निकासी की व्यवस्था कैसे की गई थी?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में जल की निकासी की अत्यन्त कुशल व्यवस्था थी। मुअनजो-दड़ो के समीप सिन्धु नदी बहती थी। निश्चय ही लोग उसका पानी अपने विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते होंगे। इसके अतिरिक्त नगर में कुएँ, स्नानघर आदि थे। इनके पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था थी। पानी की निकासी के लिए पक्की इंटों से बनी नालियों की व्यवस्था थी। ये नालियाँ ईंटों से ढकी हुई थीं। आज की जल-निकासी की व्यवस्था उसके मुकाबले में तुच्छ प्रतीत होती है।

प्रश्न 13.
मुअनजो-दड़ो से प्राप्त बैलगाड़ी और आज की बैलगाड़ी में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में ठोस लकड़ी के पहियों वाली बैलगाड़ियाँ काम में लाई जाती थीं। संभव है उससे पहले कमानी या आरे वाले पहियों का प्रयोग भी किया जाता हो परंतु बाद में बैलगाड़ियों में काफी परिवर्तन हुआ। जीप के उतरे हुए पहिए लगाकर बैलगाड़ी चलाई जाने लगी। ऊँटगाड़ी में हवाई जहाज के उतरे पहिए लगाए जाने लगे। आज की बैलगाड़ियों में बैलों पर अधिक बोझ नहीं पड़ता।

प्रश्न 14.
मुअनजोदड़ो के अजायबघर में हथियारों के न होने से क्या संकेत मिलता है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में अनेकानेक वस्तुएँ हैं, किन्तु हथियार एक भी नहीं है। इससे पता चलता है कि वहाँ कोई राजतंत्र नहीं था, अपितु समाजतंत्र था। यदि इस सभ्यता में शक्ति का कोई केन्द्र होता तो उसके चित्र अवश्य मिलते। इस सभ्यता के नरेश का मुकुट भी बहुत छोटा मिला है। यहाँ राजमहल, मन्दिर, समाधि आदि के कोई चिहन नहीं मिले। इससे स्पष्ट है कि इस सभ्यता में सत्ता का कोई केन्द्र नहीं था। यह सभ्यता स्वतः अनुशासित थी, ताकत के बल पर नहीं थी। यहाँ के लोग अपनी सोच-समझ के अनुसार ही अनुशासित थे।

प्रश्न 15.
मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा किस कारण से प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा सिंधु घाटी के स्मारक नगर कहे जा सकते हैं। इसे संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में गिना जाता है। खुदाई में मिले यहाँ के नगर प्राचीनतम नियोजित नगर हैं। इन नगरों का निर्माण आज के उन्नत नगरों के समान पूर्णतया व्यवस्थित है।

प्रश्न 16.
क्या मुअनजोदड़ो को सिंधु घाटी का महानगर कह सकते हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो आज के सुनियोजित नगरों के समान है। यह नगर लगभग 200 हैक्टेयर में फैला हुआ है। यह अनुमान कि इसकी आबादी 85 हजार के लगभग रही होगी। इस नगर के मकान, गलियाँ, जल निकासी आदि का प्रबंध पूर्णतया व्यवस्थित है। अवश्य ही यह उस समय का महानगर रहा होगा।

अतीत में दबे पाँव Summary in Hindi

अतीत में दबे पाँव लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री ओम थानवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
ओम थानवी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-ओम थानवी का जन्म सन् 1957 में हुआ। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा बीकानेर में प्राप्त की और बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय से व्यावसायिक प्रशासन में एम. कॉम. की। मूलतः ओम थानवी एक सफल पत्रकार कहे जा सकते हैं। 1980-89 तक वे ‘राजस्थान पत्रिका’ में कार्यरत रहे। बाद में इन्होंने ‘इतवारी पत्रिका’ का संपादन किया और इस साप्ताहिक पत्रिका को विशेष प्रतिष्ठा दिलाई। ओम थानवी के प्रयासस्वरूप ‘इतवारी पत्रिका’ ने सजग और बौद्धिक समाज में अपना विशेष स्थान बनाया।

ओम थानवी सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े रहे हैं। यही नहीं, एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में भी इन्होंने सफलता प्राप्त की है। साहित्य, सिनेमा, कला, वास्तुकला, पुरातत्त्व और पर्यावरण में इनकी गहन रुचि रही है। 80 के दशक में ‘सेंटर फॉर साइंस एनवायरमेंट’ को फेलोशिप प्राप्त करने के बाद इन्होंने राजस्थान के पारंपरिक जल-स्रोतों पर खोज करके विस्तारपूर्वक लिखा। पत्रकारिता के लिए इन्हें अनेक पुरस्कार मिले। इनकी मुख्य उपलब्धि गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार है। 1999 में इन्होंने दैनिक जनसत्ता दिल्ली और कलकत्ता के संस्करणों के संपादन का कार्यभार संभाला। पिछले 17 वर्षों से वे इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक जनसत्ता’ में संपादक के रूप में काम कर रहे हैं।

2. साहित्यिक विशेषताएँ मूलतः ओम थानवी एक पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। परंतु साहित्य और कला में भी इनकी विशेष रुचि रही है। इन्होंने विभिन्न विषयों पर लेखन कार्य किया है जो समय-समय पर समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहा है। उन्होंने प्रायः सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर सफल निबंध लिखें। इनके द्वारा लिखित संपादकीय बड़े ही रोचक और प्रभावशाली रहे।

3. भाषा-शैली-ओम थानवी की भाषा-शैली सहज, सरल और साहित्यिक है। भाषा के बारे में इनका दृष्टिकोण बड़ा उदार रहा है। यही कारण है कि इन्होंने अपनी भाषा में हिंदी के तत्सम, तद्भव शब्दों के अतिरिक्त अंग्रेज़ी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। इनका वाक्य विन्यास भावानुकूल और प्रसंगानुकूल है। इन्होंने प्रायः वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, विचारात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया है। आज भी वे अपनी लेखनी के द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।

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अतीत में दबे पाँव पाठ का सार

प्रश्न-
ओम थानवी द्वारा रचित ‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अखंड भारत में बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्राचीन सभ्यता की खोज हेतु दो स्थानों पर खुदाई करवाई गई थी। आज ये दोनों स्थान पाकिस्तान में हैं। पहला स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रांत मुअनजो-दड़ो के नाम से प्रसिद्ध है, दूसरा पंजाब प्रांत में हड़प्पा के नाम से जाना जाता है। पुरातत्त्व विभाग के विद्वानों ने इन दोनों स्थानों की खुदाई करके सिंधुकालीन सभ्यता की जानकारी प्राप्त की।
(1) मुअनजोदड़ो का संक्षिप्त परिचय-मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा विश्व के प्राचीनतम नियोजित नगर माने गए हैं। मुअनजो-दड़ो का अर्थ है-मुर्दो का टीला। मानव जाति ने छोटे-छोटे टीलों पर इस नगर का निर्माण किया था। किंतु इस नगर के नष्ट होने के बाद इसे मुअनजो-दड़ो नाम दिया गया। यह नगर सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ नगर माना जाता है। पुरातत्त्व विभाग ने जब इसकी खुदाई की, तब यहाँ असंख्य इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि प्राप्त हुए हैं। ये नगर अपने समय में सभ्यता का केंद्र था। विद्वानों का विचार यह है कि यह नगर शायद उस क्षेत्र की राजधानी थी। पूरा नगर दो सौ हैक्टेयर में फैला हुआ था। पाँच हजार वर्ष पूर्व यह एक बड़ा महानगर रहा होगा। इस नगर से सैकड़ों मील दूर हड़प्पा नगर था। परंतु रेललाइन बिछाने के कारण इसके अनेक प्रमाण नष्ट हो गए हैं।।

मुअनजो-दड़ो नगर मैदान में नहीं अपितु टीलों पर बसाया गया था। ये टीले प्राकृतिक न होकर मानव निर्मित थे। यहाँ कच्ची-पक्की ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाया गया था। ताकि सिंधु नदी के पानी से नगर को बचाया जा सके। भले ही यह नगर आज खंडहर बन चुका है। फिर भी इसके स्वरूप के बारे में आसानी से अनुमान लगा सकते हैं। इस नगर में गलियाँ, सड़कें, रसोई, खिड़की, चबूतरे, आँगन, सीढ़ियाँ आदि सुनियोजित ढंग से बनाई गई हैं। नगर की सभी सड़कें सीधी व आड़ी हैं। आधुनिक वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ की संज्ञा देते हैं। सिरे पर बौद्धस्तूप बना हुआ है और उसके पीछे ‘गढ़’ है। सामने ‘उच्च’ वर्ग की बस्ती है। उसके पीछे पाँच किलोमीटर दूर सिंधु नदी बहती है। दक्षिण में कामगारों की बस्ती बनी हुई है। यही नहीं, नगर में महाकुंड नाम का तालाब भी है जो चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है।

इसकी गहराई लगभग सात फुट है। कुंड में उत्तर:दक्षिण से सीढ़ियाँ नीचे उतर रही हैं। इसके तीन ओर साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर दिशा में आठ स्नानघर हैं। इसमें किसी भी स्नानघर का दरवाजा किसी दूसरे के सामने नहीं खुलता। महाकुंड का तल तथा दीवारें चूने और पक्की ईंटों को मिलाकर बनाई गई हैं। कुंड में बाहर का गंदा पानी न आए, इसका विशेष ध्यान रखा गया है। कुंड में पानी भरने के लिए एक कुआँ भी है जो दोहरे घेरे वाला है। कुंड के पानी को निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ बनाई गई हैं जो ऊपर से ढकी हुई हैं। पानी की निकासी की ऐसी सुंदर व्यवस्था पूर्व कालीन इतिहास में कहीं नहीं मिलती। कुंड के दूसरी ओर एक विशाल कोठार है जिसमें अनाज रखा जाता था। यही नहीं यहाँ नौ-नौ चौकियों की तीन-तीन हवादार कतारें हैं। इसके उत्तर में एक गली है जिससे संभवतः बैलगाड़ियों में भरकर अनाज लाया जाता होगा। एक ऐसा ही कोठार हड़प्पा में भी मिला है।

(2) बौद्ध स्तूप के अवशेष-मुअनजो-दड़ो सभ्यता के नष्ट होने के बाद एक जीर्ण-शीर्ण टीले के सबसे ऊँचे चबूतरे पर बहुत बड़ा बौद्ध स्तूप बना हुआ है जोकि पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। इसका निर्माणकाल छब्बीस सौ वर्ष पहले का है। चबूतरे पर भिक्षुओं के लिए कमरे बनाए गए हैं। राखालदास बनर्जी का कहना है कि ये अवशेष ईसवी पूर्वकाल के हैं। तत्पश्चात भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल ने खुदाई का कार्य आरंभ करवाया, जिसके फलस्वरूप भारतीय सभ्यता की गिनती मिस्र और मेसोपोटामिया (इराक) की प्राचीन सभ्यता के साथ की जाने लगी।

यह बौद्ध स्तूप भारत का प्राचीनतम लैंडस्केप कहा जा सकता हैं जिसे देखकर दर्शक भी रोमांचित हो उठते हैं। स्तूप का यह चबूतरा मुअनजो-दड़ो के एक विशेष भाग के सिरे पर स्थित है जिसे विद्वानों ने ‘गढ’ कहा है। तत्कालीन धार्मिक तथा राजनीतिक सत्ता के केंद्र चारदीवारी के अंदर ही होते थे। शहर ‘गढ़’ से कुछ दूरी पर स्थित हैं। मुअनजो-दड़ो में ऐसी इमारत है जो अपने स्वरूप को आज भी बनाए हुए है। मुअनजो-दड़ो की शेष इमारतें लगभग खंडहर हो चुकी हैं।

(3) सिंधु घाटी का परिचय-सिंधु घाटी में व्यापार और खेती दोनों काफी उन्नत स्थिति में थे। वस्तुतः उस समय के लोग खेती करते थे अथवा पशुओं को पालते थे। यहाँ कपास, गेहूँ, जौ, सरसों और चने आदि की फसलें उगाई जाती थीं। कुछ विद्वानों का मत है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की फसलें भी होती थीं। यही नहीं खजूर, अंगूर, खरबूजे भी यहाँ उगाए जाते थे। मुअनजो-दड़ो में जहाँ एक ओर सूत की कताई-बुनाई होती थी वहीं दूसरी ओर रंगाई भी होती थी। खुदाई में रंगाई का छोटा-सा कारखाना भी मिला है। इस सभ्यता के लोग सुमेर से ऊन का आयात करते थे और सूती कपड़े का निर्यात करते थे। इन्हें ताँबे का समुचित ज्ञान था। उस समय सिंध में काफी मात्रा में पत्थर थे, वहीं राजस्थान में ताँबे की खानें थीं। खुदाई से खेती-बाड़ी के उपकरण भी मिले हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

महाकुंड के आस-पास उत्तरपूर्व में एक बहुत लंबी इमारत के अवशेष मिले हैं जिसमें दालान, बरामदे तथा छोटे-छोटे कमरे बने हुए हैं। दक्षिण में एक छोटी इमारत भी है जिसमें बीस कमरों वाला एक हाल भी था। यह शायद राज्य सचिवालय या सभा भवन या सामुदायिक केंद्र होगा। ‘गढ़’ की चारदीवारी के बाहर छोटे-छोटे टीले हैं। इन पर जो बस्ती बनी है उसे ‘नीचा नगर’ कहा गया है। पूर्व में ‘रईसों की बस्ती’ है जिसमें बड़े-बड़े घर, चौड़ी सड़कें और काफी मात्रा में कुएँ हैं। जिन पुरातत्त्ववेत्ताओं ने मुअनजो-दड़ो की खुदाई करवाई थी उनके नाम से यहाँ मुहल्ले बनाए गए है; जैसे ‘डीके’ हलका-दीक्षित काशीनाथ की खुदाई आदि।

‘डीके’ के नाम से दो हलके हैं। यह क्षेत्र दोनों बस्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हलका माना गया है क्योंकि यहाँ शहर की मुख्य सड़क है जोकि बहुत लंबी है। आज तो केवल आधा मील बची है। इस सड़क की चौड़ाई तैंतीस फीट है। भले ही सड़क के दोनों ओर मकान बने हैं जिनमें से किसी का भी दरवाजा बीच सड़क पर नहीं खुलता। घरों के दरवाजे अंदर की गलियों में खुलते हैं। मुख्य सड़क से गली में जाकर ही किसी घर में पहुँचा जा सकता है। प्रत्येक घर में स्नानघर है। खुली नालियाँ भीतर बस्ती में भी नहीं हैं। घर का पानी पहले हौदी में आता है फिर सड़क की नाली में। बस्ती के भीतर की गलियाँ नौ से बारह फीट चौड़ी हैं। बस्ती में कुओं का प्रबंध भी है। संपूर्ण नगर में लगभग सात सौ कुएँ हैं। मुअनजो-दड़ो को जल संस्कृति का नगर कहा गया है क्योंकि इसमें नदी, कुंड, तालाब, स्नानघर, कुएँ और पानी निकासी की व्यवस्था भी है।

बड़ी बस्ती में पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम पर ‘डीके-जी’ का हलका है। यहाँ की दीवारें ऊँची और मोटी हैं। संभवतः यहाँ दो मंजिल वाले मकान रहे होंगे। कुछ दीवारों में छेद हैं। वे शायद शहतीरों के छेद होंगे। सभी घर भट्ठे की पक्की ईंटों के बने हैं जिनका अनुपात 1:2:4 है। इन घरों में पत्थर का उपयोग नहीं किया गया है। छोटे तथा बड़े घर एक ही पंक्ति में बनाए गए हैं। अधिकतर घर 30 जरबे 30 फुट के हैं। इनमें से कुछ दुगुने तथा कुछ तिगुने आकार के भी हैं। सभी घरों की वास्तुकला एक जैसी है। नगर में एक मुखिया का घर भी है जिसमें 20 कमरे तथा दो आँगन हैं। बड़े घरों में ऊपर की मंजिल होने के प्रमाण मिले हैं। घर चाहे छोटे हों या बड़े, पर कमरों का आकार बहुत छोटा है। इससे पता चलता है कि जनसंख्या काफी अधिक होगी। छोटे घरों में सीढ़ियाँ संकरी हैं तथा पायदान ऊँचे हैं। घरों की खिड़कियों तथा दरवाजों पर छज्जों के कोई सबूत नहीं मिले। ऐसा लगता है कि इस नगर में नहर नहीं थी। हो सकता है कि बारिश खूब होती हो, क्योंकि कुओं का तो कोई अभाव नहीं था।

(4) राजस्थान संबंधी सूचना-मुअनजो-दड़ो की गलियों और घरों को देखकर लेखक को राजस्थान के घरों की याद आ जाती है। क्योंकि यहाँ पर भी ज्वार, बाजरे की खेती होती थी। बेर भी होते थे। जैसलमेर का कुलधरा गाँव मुअनजो-दड़ो से मिलता-जुलता है। इस गाँव में लोगों का राजा से झगड़ा हो गया। इसलिए वे सभी गाँव खाली करके चले गए। पीले पत्थरों से बना यह सुंदर गाँव आज भी अपने बाशिंदों की राह देख रहा है। राजस्थान के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, गुजरात में भी कुएँ, कुंड, गली-कूचे तथा कच्ची-पक्की ईंटों के कई घर वैसे ही मिलते हैं जैसे हज़ारों साल पहले थे। जॉन मार्शल ने मुअनजो-दड़ो पर तीन खंडों का एक विशद प्रबंध प्रकाशित करवाया है जिसमें सिंधु घाटी में सौ वर्ष पहले तथा खुदाई में मिली लोहे के पहियों वाली गाड़ी के चित्र दिखाए हैं। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता की परंपरा निरंतर आगे चलती रहती है। गाड़ी में जो कमानी या आरे वाले पहिए लगे हैं, वे परिवर्ती हैं। अब तो किसान बैलगाड़ियों में जीप से उतरे पहिए भी लगाने लग गए हैं। ऊँटगाड़ी में तो हवाई जहाज से उतरे पहिए भी लगाए जाते हैं।

(5) मुअनजो-दड़ो का अजायबघर-मुअनजो-दड़ो भले ही आज खंडहर हैं परंतु यह सिंधु घाटी सभ्यता का अजायबघर कहा जा सकता है। यह किसी कस्बाई स्कूल के छोटे-से कमरे के समान है। परंतु यह अजायबघर छोटा-सा है और इसमें सामान भी कम है। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली हुई वस्तुओं का पंजीकरण भी किया गया था। उनकी संख्या पचास हजार से अधिक है। इसकी मुख्य वस्तुएँ दिल्ली, कराची, लाहौर और लंदन में हैं। परंतु यहाँ जो चीजें दिखाई गई हैं वे विकसित सिंधु घाटी की सभ्यता को दिखाने में सक्षम हैं। इन वस्तुओं में काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, चाक पर बने मिट्टी के बर्तन, वाद्य, चौपड़ की गोटियाँ, दीपक, माप-तोल के पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, अन्य खिलौने, दो पाटों वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थर के मनकों वाले हार तथा पत्थर के औजार हैं। इस अजायबघर में अली नवाज़ नाम का व्यक्ति तैनात किया गया है जो बताता है कि पहले यहाँ सोने के आभूषण भी थे जो कि चोरी हो गए। अजायबघर को देखकर हैरानी की बात यह लगती है कि यहाँ कोई हथियार नहीं मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ की सभ्यता में शक्ति के बल पर अनुशासन कायम नहीं किया जाता था। यहाँ पर कोई सेना भी नहीं थी। यह सभ्यता सांस्कृतिक तथा सामाजिक व्यवस्था पर टिकी थी। इसलिए यह अन्य सभी सभ्यताओं से भिन्न प्रतीत होती है।

(6) मुअनजो-दड़ो-हड़प्पा सभ्यता-इस संस्कृति में न कोई सुंदर राजमहल है, न मंदिर और न ही राजाओं और महंतों की समाधियाँ हैं। मूर्तिशिल्प बड़े-छोटे आकार के हैं। राजा का मुकुट भी छोटे आकार का है। नावें भी छोटी हैं। लगता है कि उस काल में लोगों में लघता का विशेष महत्त्व था। मुअनजो-दडो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर रहा होगा। दृष्टि से समृद्ध प्रतीत होता है कि इसमें न भव्यता थी और न ही आडंबर। यहाँ से प्राप्त हुई लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी। इसलिए यहाँ की सभ्यता का समुचित ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता। सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में लेखक लिखता भी है-“सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज़्यादा था।

वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, ‘ मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति, पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध ज़ाहिर करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है, जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।”

प्रस्तुत अजायबघर में ताँबे और काँसे की बहुत सारी सुइयाँ मिली हैं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयां मिलीं जिनमें से एक तो दो इंच लंबी थी। हो सकता है कि यह सुई काशीदेकारी के काम आती हो। खुदाई में मुअनजो-दड़ो के नाम से प्रसिद्ध जो दाड़ी वाले ‘नरेश’ की मूर्ति प्राप्त हुई है, उसके शरीर पर आकर्षक गुलकारी वाला दुशाला भी है। खुदाई में हाथी दाँत तथा ताँबे के सुए भी मिले हैं। विद्वान मानते हैं कि इनसे शायद दरियों की बुनाई की जाती थी। मुअनजो-दड़ो में सिंधु के पानी का निकास होने लगा है जिसके कारण मुअनजो-दड़ो की खुदाई का काम रोकना पड़ा है। पानी का रिसाव होने के कारण क्षार और दलदल की समस्याएँ सामने आ गई हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुअनजो-दड़ो की सभ्यता के खंडहरों को किस प्रकार बचाया जाए।

कठिन शब्दों के अर्थ

अतीत के दबे पाँव = प्राचीन काल के अवशेष। मुअनजो-दड़ो = पाकिस्तान के सिंधु प्रांत में स्थित एक पुरातात्त्विक स्थान जिसका अर्थ है-मुर्दो का टीला। हड़प्पा = पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का पुरातात्त्विक स्थान। परवर्ती = बाद का। परिपक्व दौर = समृद्धि का समय। ताम्र = ताँबा। उत्कृष्ट = सर्वश्रेष्ठ। व्यापक = विस्तृत। तदात = सरका। भाडे = बर्तन। साक्ष्य = प्रमाण। आबाद = बसा हुआ। टीले = मिट्टी के छोटे-छोटे उठे हुए स्थान। खूबी = विशेषता। आदम = अत्यधिक प्राचीन। सहसा = अचानक। सहम = भय। महसूस = अनुभव करना। इलहाम = अनुभूति। निर्देश = आज्ञा। अभियान = तीव्रता से काम करना। पर्यटक = यात्री। सर्पिल = टेढ़ी-मेढ़ी। पगडंडी = संकीर्ण रास्ता। नागर = नगर की सभ्यता। लैंडस्केप = पृथ्वी का दृश्य। आलम = संसार। बबूल = कीकर जैसे वृक्ष। वक्त = समय। निहारना = देखना। जेहन = दिमाग। ज्ञानशाला = विद्यालय (स्कूल)। कोठार = भंडार। अनुष्ठानिक = पर्व से संबंधित। महाकुंड = विशालकुंड। वास्तुकौशल = भवन निर्माण की कुशलता। अंदाजा = अनुमान। नगर-नियोजन = नगर-निर्माण की विधि। अनूठी = अनुपम । मिसाल = उदाहरण। मतलब = आशय। भाँपना = अनुमान लगाना। कमोबेश = थोड़ी-बहुत। अराजकता = अशांति। प्रतिमान = मानक। कामगार = मज़दूर (श्रमिक)। साक्षर = पढ़े-लिखे। इत्तर = भिन्न (अलग)। संपन्न = धनवान (पूँजीपति)। विहार = बौद्धों का आश्रम । सायास = प्रयत्नपूर्वक। धरोहर = उत्तराधिकार में प्राप्त। अनुष्ठान = आयोजन।

पाँत = पंक्ति। पार्श्व = पास या अगल-बगल। समरूप = समान। धूसर = मटमैला रंग। निकासी = निकालना। बंदोबस्त = प्रबंध। परिक्रमा = चक्कर लगाना। जगजाहिर = जिसका सबको पता हो। निर्मूल = बिना शंका के। साबित = प्रमाणित। बहुतायत = अधिकता। आयात = विदेशों से मँगवाना। निर्यात = विदेशों को भेजना। अवशेष = चिह्न। सटी = नजदीक। भग्न = टूटी-फूटी। हलका = क्षेत्र। वास्तुकला = भवन का निर्माण करने की कला। चेतन = मस्तिष्क का वह भाग जिसके सहयोग से मानव काम करता है। अवचेतन = मस्तिष्क का वह भाग, जिसमें भाव सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। मैल = गंदगी। बाशिदें = वासी (रहने वाले)। सरोकार = प्रयोजन (मतलब)। बेहतर = अच्छा। . मुताबिक = अनुसार। तकरीबन = लगभग। कायदा = नियम। याजक-नरेश = यज्ञ करने वाला राजा। शिल्प = कलाकारी। संग्रहालय = अजायबघर। ध्वस्त = टूटी-फूटी। चौकोर = चार भुजाओं वाला। अचरज = आश्चर्य। साज-सज्जा = सजावट। संकरी = तंग। प्रावधान = व्यवस्था। जानी-मानी = प्रसिद्ध। रोज़ = दिन। अंतराल = मध्य। अजनबी = अनजान व्यक्ति। चहलकदमी = टहलना। अनधिकार = अधिकार के बिना। अपराध बोध = गलती की अनुभूति। विशद प्रबंध = विशाल ग्रंथ। इज़हार = प्रकट करना। अहम = मुख्य। मेज़बान = यजमान। पंजीकृत = सूचीबद्ध। मृद्-भांड = मिट्टी के बर्तन। आईना = दर्पण (शीशा)। प्रदर्शित = दिखाई गई। ताकत = शक्ति। राजप्रसाद = राजमहल। समृद्ध = संपन्न। आडंबर = दिखावा। उत्कीर्ण = खोदी हुई। वजह = कारण। केशविन्यास = बालों की साज-सज्जा। सुघड़ = सुंदर बनी हुई। नरेश = कशीदाकारी। साक्ष्य = प्रमाण। हासिल करना = प्राप्त करना। क्षार = नमक।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 2 जूझ

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 2 जूझ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 2 जूझ

HBSE 12th Class Hindi जूझ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
उत्तर:
इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ संपूर्ण कथानक का केंद्र-बिंदु है। ‘जूझ’ का अर्थ है-‘संघर्ष’ । कथानायक आनंद इस पाठ में हमें आदि से अंत तक संघर्ष करता दिखाई देता है। पाठशाला जाने के लिए आनंद को एक लंबे संघर्ष इस संघर्ष में उसकी माँ तथा दत्ता जी राव देसाई का सहयोग भी उल्लेखनीय है। पाठशाला में प्रवेश लेने के बाद अपने अस्तित्व के लिए आनंद को जूझना पड़ा। तब कहीं जाकर वह कक्षा का मॉनीटर बना। उसने कवि बनने के लिए भी निरंतर संघर्ष किया। वह कागज़ के छोटे टुकड़े अथवा पत्थर की शिला या भैंस की पीठ पर कविता लिखा करता था। उसके संघर्ष में मराठी अध्यापक न.वा.सौंदलगेकर ने साथ दिया। वस्तुतः कथानायक के दादा के अतिरिक्त अन्य सभी पात्रों ने उसका साथ दिया। अतः यह कहना सर्वथा उचित है कि इस उपन्यास का शीर्षक ‘जूझ’ एकदम तर्कसंगत है।

उपन्यास का यह शीर्षक कथानायक की संघर्षमयी प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है। जब दादा ने उसे पाठशाला जाने से रोक दिया तो वह चुपचाप नहीं बैठता। सर्वप्रथम वह अपनी माँ को अपने पक्ष में करता है और उसके बाद वह दत्ता जी राव देसाई का सहयोग प्राप्त करता है। यही नहीं, वह अपनी बात को दृढ़तापूर्वक रखते हुए दादा द्वारा लगाए गए आरोपों का डटकर उत्तर देता है और अन्ततः दादा को आश्वस्त करने के बाद पाठशाला में प्रवेश लेता है। पाठशाला की परिस्थितियाँ भी उसके सर्वथा विपरीत थीं, परंतु उसने हार नहीं मानी। अपने जुझारूपन के कारण वह कक्षा का मॉनीटर बन जाता है और स्वयं कविता भी लिखने लग जाता है। यह सब कुछ कथानायक की जूझ का ही परिणाम है।

प्रश्न 2.
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर:
लेखक मराठी भाषा के अध्यापक न.वा.सौंदलगेकर से अत्यधिक प्रभावित हुआ। वे स्वयं कविता लिखते थे और कक्षा में कविता पढ़ाते समय कविता का सस्वर पाठ करते थे। उन्हें लय, छंद, यति-गति, आरोह-अवरोह आदि का समुचित ज्ञान था। जब वे कविता पाठ करते थे तो उनके मुख पर कविता के भाव झलकने लग जाते थे। जिसका कथानायक पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। जब उसे पता चला कि अध्यापक ने अपने घर के दरवाजे पर लगी मालती नामक लता पर कविता लिख दी है, तब उसे अनुभव हुआ कि कवि भी अन्य मनुष्यों के समान ही हाड़-माँस, क्रोध, लोभ आदि प्रवृत्तियों का दास होता है। कथानायक ने वह मालती लता देखी थी और उस पर लिखी कविता को भी पढ़ा था। इसके बाद उसे यह महसूस हुआ कि वह अपने गाँव, खेत तथा आसपास के अनेक दृश्यों पर कविता लिख सकता है। शीघ्र ही वह तुकबंदी करने लगा और अध्यापक ने भी उसका उत्साह बढ़ाया। अध्यापक से छठी-सातवीं के विद्यार्थियों के सामने कविता पाठ करने का मौका मिला। यही नहीं, उसने विद्यालय के एक समारोह में कविता का गान भी किया। इससे उसके मन में यह आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ कि वह भी कवि बन सकता है।

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प्रश्न 3.
श्री सौंदलगेकर की अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
उत्तर:
श्री सौंदलगेकर लेखक की कक्षा में मराठी पढ़ाते थे। वे बड़े सुचारु ढंग से कविता पढ़ाया करते थे। उनका गला बड़ा सुरीला था उन्हें छंद की यति, कविता की गति, आरोह-अवरोह का समुचित ज्ञान था। वे प्रायः कविता गाकर सुनाते थे और साथ-साथ अभिनय भी करते थे। उन्होंने कुछ अंग्रेज़ी कविताएँ भी कंठस्थ कर रखी थीं। मराठी के अनेक कवियों के साथ उनका निकट का संबंध था। अतः कविता पढ़ाते समय कवि यशवंत, बा.भ.बोरकर, भा.रा ताँबे, गिरीश, केशव कुमार, आदि के साथ हुई अपनी मुलाकातों के संस्मरण भी सुनाया करते थे। कभी-कभी स्वरचित कविता को कक्षा में भी सुनाते थे।

कविता सुनाते समय उनके चेहरे पर भावों के अनुकूल हाव-भाव देखे जा सकते थे। श्री सौंदलगेकर ने लेखक की तुकबंदी का अनेक बार संशोधन किया और बार-बार उसे प्रोत्साहित भी किया। वे लेखक को यह बताते थे कि कविता की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का प्रयोग कविता के लिए किस प्रकार होता है और छंद की जाति कैसे पहचानी जाती है। यही नहीं, उन्होंने लेखक को अलंकार ज्ञान से भी परिचित करवाया और शुद्ध लेखन पर भी बल दिया। वे कभी-कभी लेखक को पुस्तकें तथा कविता-संग्रह भी दे देते थे। इस प्रकार सौंदलगेकर कथानायक को कविता लिखने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहे और लेखक भी कविता लेखन में रुचि लेने लगा।

प्रश्न 4.
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की अवधारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर:
कविता के प्रति लगाव से पहले कथानायक को ढोर चराते समय, खेत में पानी लगाते समय अथवा कोई दूसरा काम करते समय अकेलापन अत्यधिक खटकता था। यही नहीं, किसी के साथ बातचीत करना, गपशप करना, हँसी मज़ाक करना भी उसे अच्छा लगता था, परंतु अब अकेलापन उसे खटकता नहीं था। कविता लिखते समय वह अपने-आप से खेलता था। अब वह अकेला रहना पसंद करता था। इस अकेलेपन के कारण वह ऊँची आवाज़ में कविता का गान करता था। कभी-कभी वह कविता पाठ करते समय अभिनय करता था और थुई-थुई करके नाचता भी था। इस अकेलेपन के लगाव के कारण उसने अनेक बार नाचकर कविता का गान किया।

प्रश्न 5.
आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर:
हमारे विचार में पढ़ाई-लिखाई के संबंध में दत्ता जी राव का रवैया बिल्कुल सही था और लेखक के पिता का रवैया गलत था। लेखक का यह सोचना बिल्कुल सही है कि पढ़ लिखकर कोई नौकरी मिल जाएगी और चार पैसे हाथ में आने से विठोबा आण्णा के समान कोई व्यापार किया जा सकता है। उसका सोचना यह भी सही था कि जन्म भर खेत में काम करने से कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। इसी प्रकार दत्ता जी राव का रवैया बिल्कुल सही कहा जा सकता है। उसी ने लेखक के पिता को धमकाया तथा लेखक को पढ़ने के लिए पाठशाला भिजवाया। लेखक के पिता का यह कहना-“तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होनेवाला है तू?” यह सर्वथा अनुचित है, परंतु आज के हालात को देखते हुए आज का पढ़ा-लिखा व्यक्ति वैज्ञानिक ढंग से खेती करके अच्छे पैसे कमा सकता है और समाज के निर्माण में समुचित योगदान दे सकता है।

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प्रश्न 6.
दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।।
उत्तर:
कथानायक और उसकी माँ दत्ता जी राव के पास इसलिए गए थे कि वे लेखक के पिता पर दबाव डालकर लेखक को पाठशाला भिजवाया जा सके। उठते समय माँ ने दत्ता जी राव से कहा था-“हमने यहाँ आकर ये सभी बातें कहीं हैं, यह मत बता देना, नहीं तो हम दोनों की खैर नहीं है। माँ अकेली साग-भाजी देने आई थी। यह बता देंगे तो अच्छा होगा।” ऐसा ही झूठ लेखक की माँ ने अपने पति से बोला और उसे दत्ता जी राव के यहाँ मिलने के लिए भेजा।

यदि लेखक की माँ यह झूठ नहीं बोलती तो लेखक के दादा (पिता) बहुत नाराज़ हो जाते और माँ-बेटे की खूब पिटाई करते। दत्ता जी राव को इस बात का पता नहीं चलता कि लेखक का पिता स्वयं अय्याशी करने के लिए बेटे को खेत में झोंके हुए है। इसी प्रकार लेखक ने यह झूठ न बोला होता कि दादा (पिता) को बुलाने आया हूँ, उन्होंने अभी खाना नहीं खाया है। तब लेखक वहाँ जा नहीं पाता और दादा (पिता) लेखक पर झूठे आरोप लगाकर दत्ता जी राव को चुप करा देता। यदि माँ-बेटे यह तीन झूठ न बोलते तो इसका दुष्परिणाम यह होता कि लेखक जीवन-भर पढ़ाई न कर पाता और कोल्हू के बैल के समान खेती में पिसता रहता।

HBSE 12th Class Hindi जूझ Important Questions and Answers

बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आनंद अर्थात् कथानायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
कथानायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कथानायक में पाठशाला जाकर पढ़ने की बड़ी ललक थी। लेकिन वह अपने दादा के डर से यह नहीं कह पाता कि वह पढ़ने जाएगा। अतः अपनी पढ़ाई को लेकर वह अपनी माँ के सामने अपने मन की इच्छा को प्रकट करता है और माँ को यह सुझाव देता है कि उसे दत्ता जी राव सरकार की सहायता लेनी चाहिए। वस्तुतः यह बालक बड़ा ही दूरदर्शी और बुद्धिमान है। वह इस बात को अच्छी प्रकार जानता है कि उसके दादा न तो उसकी माँ की सुनेंगे और न लेखक की। लेकिन वह दत्ता जी राव के आदेश का पालन अवश्य करेंगे। इसलिए वह माँ को साथ लेकर दत्ता जी राव के सामने सारी सच्चाई खोल देता है।

इसके लिए वह माँ के सहयोग से झूठ का सहारा भी लेता है। गाँव का यह छोटा-सा लड़का इस तथ्य को भली प्रकार जानता है कि पढ़ाई-लिखाई करके कोई नौकरी प्राप्त की जा सकती है अथवा कोई व्यापार भी किया जा सकता है। इसके साथ-साथ यह बालक बड़ा ही परिश्रमी है। सवेरा होते ही वह खेत में जाता है और ग्यारह बजे तक खेत में काम करने के बाद पाठशाला जाता है। यही नहीं, पाठशाला से लौटकर वह ढोर भी चराता है। यद्यपि कक्षा में उसे अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ता है, लेकिन वह खेती तथा पढ़ाई दोनों को बड़ी मेहनत एवं लगन के साथ करता है।

शीघ्र ही कक्षा के होशियार बच्चों में उसकी गिनती होने लग जाती है तथा मॉनीटर के समान वह दूसरे बच्चों के सवाल जाँचने लगता है। शीघ्र ही यह बालक अध्यापकों को प्रभावित करने लगता है तथा गणित के मास्टर उसे मॉनीटर का कार्य सौंप देते हैं। मराठी अध्यापक के संपर्क में आने के बाद कविता लेखन में उसकी रुचि उत्पन्न होती है। वह छठी-सातवीं के बालकों के सामने कविता गान करता है तथा पाठशाला के समारोह में भी भाग लेता है। मराठी अध्यापक के सहयोग से शुरू में वह तुकबंदी करता है, लेकिन बाद में वह अच्छी कविता लिखने लग जाता है।

प्रश्न 2.
‘जूझ’ कहानी के आधार पर दत्ता जी राव का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
दत्ता जी राव गाँव का एक सफल ज़मींदार है। गाँव वाले उनका बड़ा आदर करते हैं। एक समय लेखक के दादा उन्हीं के खेतों पर काम करते थे। वे बड़े ही नेकदिल तथा प्रभावशाली व्यक्ति हैं। दूसरों के दुख में वे सहायता करने वाले व्यक्ति हैं। बच्चों तथा स्त्रियों के प्रति उनका व्यवहार बड़ा ही कोमल और अनुकूल है। जो भी व्यक्ति उनके दरवाजे पर सहायता के लिए आता है वे उसकी सहायता करते हैं। कथानायक उनकी इस प्रवृत्ति से पूरी तरह परिचित है। इसलिए वह अपनी माँ के साथ उनकी सहायता लेने जाता है।

दत्ता जी राव साम, दाम, दंड, भेद आदि सभी तरीके अपनाकर काम निकालना जानते हैं। इसलिए लेखक तथा उसकी माँ के कहने पर दादा को अपने पास बुलाया। लेखक भी बहाने से वहाँ पहुँच गया। इस अवसर पर हुई बातचीत से दादा की सारी कलई खुल गई। राव जी ने उसे खूब फटकारा और खरी-खोटी सुनाई। उसे इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि वह लेखक को पढ़ने के लिए पाठशाला अवश्य भेजे। वस्तुतः दत्ता जी राव एक कुशल कुम्हार की भाँति पहले तो उसे खूब ठोकते-पीटते हैं, बाद में अपनी उदारता एवं करुणा द्वारा उसे प्यार से अच्छी प्रकार से समझाते हैं। इसलिए वह लेखक के दादा को सही रास्ते पर ले आता है।

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प्रश्न 3.
लेखक के दादा की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लेखक का दादा इस उपन्यास का खल पात्र है। वह एक आलसी, निकम्मा तथा ऐय्याश व्यक्ति है। उसकी पत्नी के अनुसार वह दिन भर एक वेश्या के घर पर पड़ा रहता है तथा एक आवारा साँड की तरह गाँव की गलियों में घूमता रहता है। अपने पुत्र के भावी जीवन के बारे में उसके मन में कोई चिंता नहीं है। उसने अपने छोटे-से लड़के को पाठशाला से हटाकर खेती में डाल दिया है। न उसे घर-परिवार की चिंता है और न अपनी पत्नी एवं बेटे की। वह हमेशा आवारागर्दी करता रहता है। बात-बात पर पत्नी को डाँटना एवं मारना उसके लिए एक सामान्य बात है। उसकी पत्नी उसे बरहेला सूअर कहती है।

यदि कोई घर का आदमी उसकी आवारागर्दी में बाधा उत्पन्न करता है तो वह उसे कुचल देता है। वस्तुतः दादा गाँव के आम शराबियों तथा मक्कारों के समान है। अपनी रक्षा के लिए वह बड़े-से-बड़ा झूठ बोल सकता है। यही नहीं, वह अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए अपने मेहनती तथा होनहार बालक पर आरोप लगाने से बाज नहीं आता। लेकिन दादा एक बुरा व्यक्ति होते हुए भी दत्ता जी राव का पूरा आदर-मान करता है और उसकी डाँट-फटकार को सुनकर सीधे रास्ते पर आ जाता है।

प्रश्न 4.
डेढ़ साल तक घर बैठे रहने के बाद भी कथानायक फिर से पाठशाला कैसे पहुँचता है?
उत्तर:
कथानायक जब पाँचवीं कक्षा में था, तब उसके दादा ने उसे पाठशाला से हटाकर खेती के काम में लगा दिया। परंतु कथानायक के मन में पढ़ाई के लिए बड़ी ललक थी। वह सोचता था कि मैं अब भी पाठशाला चला गया तो पाँचवीं कक्षा अवश्य पास कर लूँगा। परंतु वह दादा से अपने मन की बात नहीं कर सकता। इसीलिए उसने माँ की सहायता ली और दोनों माँ-बेटे दत्ता जी राव के पास गए। साथ ही दोनों ने दत्ता जी राव से यह भी कहा कि उनके यहाँ आने की बात दादा से न कहे। उधर माँ ने भी यह बहाना बनाया कि वह दत्ता जी के यहाँ साग-भाजी देने गई थी। इस प्रकार झूठ का सहारा लेकर कथानायक ने अपने दादा पर दत्ता जी राव का दबाव डलवाया। अन्ततः दादा इन शर्तों पर कथानायक को पाठशाला भेजने को तैयार हो गया कि वह सवेरे ग्यारह बजे तक खेत में काम करेगा, फिर पाठशाला जाएगा और पाठशाला से लौटकर उसे खेत में पशु भी चराने पड़ेंगे। इन सब संघर्षों से जूझने के बाद लेखक पाठशाला जा सका।

प्रश्न 5.
पाठशाला जाने पर लेखक को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
कक्षा में गली के केवल दो लड़के ही लेखक के परिचित थे, बाकी सभी अपरिचित थे। लेखक को कमजोर बच्चों के साथ बैठने के लिए मजबूर किया गया। उसके कपड़े पाठशाला के अनुकूल नहीं थे। लट्टे के थैले में पिछली कक्षा की कुछ किताबें और कापियाँ थीं। उसने सिर पर गमछा पहना था और लाल रंग की मटमैली धोती पहनी थी। शरारती लड़के उसका मज़ाक उड़ाने लगे। एक शरारती लड़के ने उसका गमछा छीन लिया और मास्टर जी की मेज पर रख दिया। छुट्टी के मध्यकाल में उसकी धोती की लाँग को भी खींचने का प्रयास किया गया। कक्षा के एक किनारे पर वह एक अपरिचित तथा उपेक्षित विद्यार्थी के समान बैठा था।

छुट्टी के बाद जब वह घर लौटा तो मन-ही-मन सोचा कि लड़के यहाँ मेरा मज़ाक उड़ाते हैं, मेरा गमछा उतारते हैं, मेरी धोती खींचते हैं। इस तरह मैं कैसे निर्वाह कर पाऊँगा। इससे तो खेत का काम ही अच्छा है। परंतु अगले दिन वह पुनः उत्साहित होकर पाठशाला पहुँच गया। उसे आठ दिन तक एक नई टोपी तथा दो नई नाड़ी वाली मैलखाऊ रंग की चड्डियाँ मिलीं। वस्तुतः यही स्कूल की ड्रेस थी। अन्ततः मंत्री नामक कक्षा के अध्यापक के डर के कारण लेखक शरारती लड़कों के अत्याचार से बच पाया और वह मन लगाकर पढ़ाई करने लगा।

प्रश्न 6.
कथानायक की माँ की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लेखक की माँ एक शोषित तथा प्रताड़ित नारी है। उसके पति ने उसे डरा-धमका कर कुंठित कर दिया है। पति की हिंसक प्रवृत्ति के समक्ष वह हार चुकी है। मन से तो वह अपने पुत्र का कल्याण चाहती है, लेकिन पति के डर के कारण कुछ कर नहीं पाती। वह भी चाहती है कि उसका बेटा पढ़ाई करे, लेकिन वह लाचार है। पुत्र द्वारा पढ़ाई करने का प्रस्ताव रखने पर वह कहती है-“अब तू ही बता, मैं क्या करूँ? पढ़ने-लिखने की बात की तो वह बरहेला सूअर की तरह गुर्राता है।”

अन्ततः लेखक द्वारा दत्ता जी राव के पास चलने के प्रस्ताव को वह स्वीकार कर लेती है। फिर भी उसे विश्वास नहीं है कि उसका पति आनंदा को पाठशाला जाने देगा। परंतु वहाँ जाकर उसकी हिम्मत बढ़ जाती है और वह सारी सच्चाई दत्ता जी राव को बता देती है। लेकिन वह दत्ता जी राव को यह भी कहती है कि वह उसके आने के बारे में उसके पति से कुछ न कहे।

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प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि आनंदा एक जुझारू बालक है।
उत्तर:
‘जूझ’ कथांश को पढ़ने से पता चलता है कि आनंदा अर्थात् लेखक एक सच्चा जुझारू है। उसमें निरंतर संघर्ष करने की प्रवृत्ति है। वह प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करता है। वह अपनी मेहनत के द्वारा असंभव काय वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करके माँ को दत्ता जी राव का सहयोग लेने के लिए कहता है और सफल भी होता है। पाठशाला में प्रवेश लेने के बाद उसे पुनः घोर निराशा तथा तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। लेकिन वह घबराता नहीं। शरारती बच्चों से बचता हुआ वह न केवल अध्यापक का प्रिय विद्यार्थी बन जाता है, बल्कि कवि भी बन जाता है। लेकिन यह सब करने के लिए वह पाठशाला की पढ़ाई तथा खेतों में निरंतर जूझता रहता है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि आनंदा एक जुझारू बालक है।

प्रश्न 8.
सिद्ध कीजिए कि लेखक एक बुद्धिमान और प्रतिभा संपन्न बालक है।
उत्तर:
बचपन से ही लेखक में एक बुद्धिमान व्यक्ति के लक्षण देखे जा सकते हैं। अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए वह अपनी माँ को समझाता है और उसे दत्ता जी राव के पास ले जाता है। यही नहीं, वह राव साहब को विश्वास दिलाकर अपने पिता को बाध्य कर लेता है। पाठशाला की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह अपनी बुद्धि के बल पर अध्यापकों का प्रिय छात्र बन जाता है और गणित तथा साहित्य में अग्रणी स्थान पा लेता है। उसे कक्षा का मॉनीटर भी बना दिया जाता है। मराठी-अध्यापक का सहयोग पाकर वह अच्छी कविता लिखने और गाने लगता है। लेकिन पढ़ाई के काम के साथ-साथ वह अपने पिता द्वारा रखी गई शर्तों के अनुसार खेत के कार्य को पूरी ईमानदारी से संपन्न करता है। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि आनंदा एक प्रतिभाशाली तथा बुद्धिमान बालक है।

प्रश्न 9.
‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। क्या ऐसा कहना ठीक है? क्यों?
उत्तर:
‘जूझ’ कहानी में एक पिता अपने बेटे को पढ़ाने की बजाए खेती के काम में लगाता है और स्वयं दिन भर गाँव में आवारागर्दी करता है। यदि उसे बेटे को पढ़ाने के लिए कहा जाए तो वह बरहेला सूअर की तरह गुर्राता है। लेखक अपनी माँ के साथ मिलकर दत्ता जी राव की शरण में जाता है। तीनों ने मिलकर एक ऐसा उपाय निकाला, ताकि कथानायक की पढ़ाई आरंभ हो सके। यदि यह उपाय न अपनाया जाता तो लेखक आजीवन अनपढ़ ही रहता। अतः इस उपाय को चाल नहीं कह सकते, क्योंकि ‘चाल’ शब्द से षड्यंत्र की बू आती है। इसे युक्ति या उपाय कह सकते हैं।

प्रश्न 10.
किस घटना से पता चलता है कि लेखक की माँ उसके मन की पीड़ा समझ रही थी? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर:
लेखक ने अपनी माँ से निवेदन किया कि वह आगे पढ़ाई करना चाहता है। पहले तो उसने अपनी लाचारी दिखाई, लेकिन जब लेखक ने माँ को दत्ता जी राव के पास चलने का सुझाव दिया तो वह लेखक की बात को मान गई। उसे लगा कि बेटे की पढ़ाई आरंभ कराने का यही सही रास्ता है। वह तत्काल पुत्र को साथ लेकर राव साहब के पास गई और उसने बड़ी हिम्मत जुटाकर सारी बात उनके सामने रखी। इस घटना से पता चलता है कि माँ अपने बेटे के मन की पीड़ा को समझती थी।

प्रश्न 11.
लेखक को पढ़ाने के लिए उसके पिता ने क्या शर्ते रखी?
उत्तर:
लेखक के पिता ने उसकी पढ़ाई के लिए अनेक शर्ते रखीं। उसने कहा कि पाठशाला जाने से पूर्व वह ग्यारह बजे तक खेत में काम करेगा, पानी लगाएगा और वहीं से पाठशाला जाएगा। सवेरे ही बस्ता लेकर पहले वह खेत में जाएगा। पाठशाला से छुट्टी होने के बाद वह घर पर बस्ता छोड़कर सीधा खेत में आएगा और घंटा भर ढोर चराएगा। जिस दिन खेत में काम अधिक होगा, वह पाठशाला नहीं जाएगा। आखिर लेखक ने दादा की सभी शर्ते मान लीं और पाठशाला जाना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 12.
पाठशाला में पहले ही दिन लेखक के साथ कक्षा में क्या शरारतें हुईं? लेखक ने यह क्यों सोचा कि वह आगे से स्कूल नहीं जाएगा?
उत्तर:
पहले ही दिन कक्षा में लेखक को खूब तंग किया गया। चह्वाण नाम के लड़के ने लेखक का गमछा छीनकर अपने सिर पर लपेट लिया और फिर उसे अध्यापक की मेज पर रख दिया। बीच की छुट्टी में उसकी धोती की लाँग को भी खोलने का प्रयास किया। अन्य बच्चों ने उसकी खूब खिल्ली उड़ाई और मनमानी छेड़खानी की। उसकी हालत कौओं की चोंचों से घायल किसी खिलौने जैसी हो गई, जिससे लेखक का मन निराश हो गया। इसलिए उसने मन-ही-मन सोचा कि वह आगे से स्कूल नहीं जाएगा। इससे तो खेती का काम ही ठीक होगा।

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प्रश्न 13.
दत्ता जी राव की सहायता के बिना कहानी का ‘मैं पात्र वह सब नहीं पा सकता था जो उसे मिला। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सर्वथा सही है कि दत्ता जी राव की सहायता के बिना कथानायक न तो आगे पढ़ सकता था और न ही कवि बन सकता था। लेखक और उसकी माँ के कहने पर दत्ता जी राव समझ गए कि ‘मैं’ पात्र में आगे पढ़ने की लगन है। अतः उसने ही उसके पिता (दादा) को डाँट फटकारकर लेखक को आगे पढ़ने के लिए तैयार किया। अतः लेखक के लिए दत्ता जी राव की सहायता का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 14.
दुबारा पाठशाला जाने पर लेखक का पहले दिन का अनुभव किस प्रकार का था?
उत्तर:
दुबारा पाठशाला जाने पर लेखक का पहले दिन का अनुभव कोई अच्छा नहीं था क्योंकि एक तो उसे कम उम्र के साथ बैठना पड़ा। दूसरा, वह इन बालकों को अपने से कम अक्ल का मानता था। कक्षा के सबसे शरारती लड़के चाण ने उसकी खिल्ली उड़ाई और उसका गमछा छीनकर मास्टर की मेज पर रख दिया। वह यह सोचकर डर गया कि कहीं उसका गमछा फट न जाए। बीच की छुट्टी में उसी शरारती लड़के ने उसकी धोती के लंगोट को भी खींचने का प्रयास किया। उसे कक्षा में बेंच के एक कोने पर अलग बैठना पड़ा। इस प्रकार लेखक का दुबारा पाठशाला जाने का पहला दिन कोई खास नहीं था।

प्रश्न 15.
पाँचवीं कक्षा में पास न होने के बाद लेखक को कैसा लगा? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
जो लड़के चौथी कक्षा पास करके पाँचवीं में आए थे, उनमें से गली के दो लड़कों को छोड़कर लेखक किसी को नहीं जानता था। जो लड़के कक्षा में उसके साथ थे, वे कम अक्ल तथा मंद बुद्धि के थे। अपनी पुरानी कक्षा का विद्यार्थी होकर भी वह अजनबी के रूप में कक्षा में बैठा था। पुराने सहपाठी उसे अच्छी तरह जानते थे, परंतु नए लड़के उसकी खिल्ली उड़ा रहे थे। कोई उसका गमछा छीन रहा था, कोई उसकी धोती की लाँग को खींचने की कोशिश कर रहा था, कोई उसके थैले का मज़ाक उड़ा रहा था। उसे पश्चाताप हो रहा था कि अवसर मिलने पर वह पाँचवीं कक्षा पास न कर सका और उसे फिर से पढ़ना पड़ रहा है।

प्रश्न 16.
लेखक का पाठशाला में विश्वास कैसे बढ़ा? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लेखक के लिए दो घटनाओं का विशेष महत्त्व है। उसने कक्षा के मॉनीटर के समान गणित के सवाल निकालने आरंभ कर दिए। इससे मास्टर जी ने उसे भी अन्य लड़कों के सवाल जाँचने पर लगा दिया। इससे लेखक का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। दूसरी घटना यह हुई कि वह भी मराठी अध्यापक के समान लय तथा गति के साथ कविता का गान करने लगा। इससे उसे प्रार्थना सभा में कविता गान करने का अवसर प्राप्त हुआ। उसका विश्वास अब इतना बढ़ गया कि वह स्वयं भी कविता लिखने लगा।

प्रश्न 17.
कथानायक को मास्टर की छड़ी की मार अच्छी क्यों लगती थी?
उत्तर:
लेखक कोई भी कीमत चुका कर पढ़ना चाहता था। इसीलिए वह अपने पिता की सभी शर्ते मान लेता है। वह जानता है कि खेती में उसका भविष्य अंधकारमय है। पढ़-लिख कर वह कोई नौकरी पा सकता है अथवा कोई व्यवसाय भी कर सकता है। इसीलिए वह अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए पिता की सभी शर्ते मान लेता है। खेती के काम की अपेक्षा वह मास्टर की छड़ी की मार को सहन करना अच्छा समझता है। छड़ी की मार से कम-से-कम उसका भविष्य तो सुधर जाएगा। यही सोच कर वह छड़ी की मार को सहना श्रेयस्कर समझता है।

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प्रश्न 18.
कथानायक ने बचपन में किस प्रकार की कविताएँ लिखने का प्रयास किया?
उत्तर:
कथानायक को जब यह पता चला कि उसके मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर ने अपने घर के दरवाज़े पर लगी मालती की लता पर कविता लिखी है, तो उसे लगा कि वह भी अपने आस-पास, अपने खेतों तथा अपने गाँव पर कविता बना सकता है। वह ढोर चराते समय फसलों पर या जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। इस कार्य के लिए वह अपने पास कागज़ का टुकड़ा तथा पैंसिल रखने लगा। कभी-कभी वह कंकड़ से पत्थर की शिला पर या लकड़ी से भैंस की पीठ पर कविता लिख लेता था। फिर उसे याद करके लिखकर अपने मास्टर को दिखाता था।

प्रश्न 19.
मराठी के अध्यापक से कविता पढ़कर कथानायक को क्या लाभ प्राप्त हुआ?
उत्तर:
मराठी के अध्यापक से कविता पढ़ने के बाद कथानायक में कविता के प्रति अत्यधिक रुचि जागृत हुई। वह गति, लय, आरोह-अवरोह तथा अभिनय के साथ काव्य पाठ करने लगा। धीरे-धीरे वह इस काम में इतना पारंगत हो गया कि उसका काव्य पाठ अध्यापक से अधिक आकर्षक था। फलतः उसे कक्षा के सामने कविता गाने का अवसर मिला और स्कूल के समारोह में भाग लेने का मौका मिला। इससे कथानायक उत्साहित हो गया। वह अकेले में ऊँचे स्वर में कविता का गान करता था, नाचता था और अभिनय करता था। धीरे-धीरे उसे स्वयं कविता लिखने का शौक लग गया।

प्रश्न 20.
लेखक को अकेलेपन में आनंद क्यों आता था?
उत्तर:
जब लेखक अपने खेत में अकेला लय, गीत और ताल के साथ कविता का गान करता था और अभिनय करता था तो अकेलेपन में उसे अत्यधिक आनंद प्राप्त होता था। अकेलेपन में वह खुलकर गा सकता था, अभिनय कर सकता था और नाच भी सकता था। ऐसा करने में उसे बड़ा आनंद मिलता था।

प्रश्न 21.
‘जूझ’ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या सीख दी है?
अथवा
‘जूझ’ कहानी का उद्देश्य (प्रतिपाद्य) स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘जूझ’ कहानी पाठकों को निरंतर संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। मानव-जीवन में चाहे परिस्थितियाँ कितनी ही प्रतिकूल क्यों न हों अथवा कितनी बाधाएँ और संकट क्यों न हों, उसे निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि धैर्य, हिम्मत तथा संघर्ष के साथ मुसीबतों का सामना करना चाहिए। इस कहानी का कथानायक पढ़ना चाहता है, लेकिन उसका पिता उसे पढ़ने नहीं देता। लेखक इस बाधा का हल निकालता है। वह अपनी माता का सहयोग लेकर दत्ता जी राव के पास जाता है और अन्ततः अपने पिता को राजी कर लेता है। इसके बाद भी बाधाएँ समाप्त नहीं होतीं। स्कूल के शरारती बच्चे उसे तंग करते हैं तथा उसकी खिल्ली उड़ाते हैं। परंतु वह धैर्यपूर्वक उनका भी सामना करता है। अन्त में वह अपने अध्यापकों का चहेता बन जाता है और कक्षा में मॉनीटर बन जाता है।

प्रश्न 22.
‘जूझ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस कहानी का शीर्षक ‘जूझ’ पूर्णतया सार्थक है। यह शीर्षक कहानी की मूल भावना के सर्वथा अनुकूल है। कहानी का नायक आनंदा कहानी के आदि से अंत तक लगातार संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है। अन्ततः वह सफलता प्राप्त करता है। लेखक ने कथानायक की जुझारू प्रवृत्ति का उद्घाटन करने के लिए यह कहानी लिखी है और उसका नामकरण ‘जूझ’ किया है। दूसरा यह शीर्षक संक्षिप्त, सटीक तथा सार्थक है। यह शीर्षक जिज्ञासावर्धक होने के कारण पाठकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। अतः यह शीर्षक सर्वथा तर्कसंगत एवं सार्थक है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कथानायक पढ़ना क्यों चाहता था?
उत्तर:
कथानायक को लगा कि खेती में उसके लिए कोई भविष्य नहीं है। यदि वह सारा जीवन खेती-बाड़ी में लगा रहा तो उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाएगा। पढ़-लिखकर वह नौकरी कर सकता है या कारोबार कर सकता है। यही सोचकर वह खेती छोड़कर पढ़ना चाहता था।

प्रश्न 2.
लेखक का दादा कोल्हू जल्दी क्यों चलाता था?
उत्तर:
लेखक का दादा खेती के धंधे को अच्छी तरह समझता था। वह इस बात को अच्छी तरह समझता था कि यदि उसके द्वारा बनाया गया गुड़ जल्दी बाज़ार में आएगा तो उसे अच्छे पैसे मिल जाएँगे। इसलिए दादा जल्दी से कोल्हू चलाता था।

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प्रश्न 3.
लेखक का पिता (दादा) राव साहब का नाम सुनते ही उनसे मिलने के लिए क्यों गया?
उत्तर:
पूरे गाँव में दत्ता जी राव का अत्यधिक मान सम्मान था। दादा जी उनके बुलावे को कैसे ठुकरा सकता था, बल्कि वह तो यह जानकर प्रसन्न हो गया कि उन्होंने उसे अपने घर बुलाया है। अतः वह रोटी खाए बिना ही दत्ता जी राव से मिलने के लिए चल दिया।

प्रश्न 4.
कथानायक ने दत्ता जी राव को क्या विश्वास दिलाया?
उत्तर:
कथानायक ने अपनी पढ़ाई के बारे में दत्ता जी राव को विश्वास दिलाया। उसने कहा कि अभी जनवरी का महीना है और दो महीने में वह परीक्षा की पूरी तैयारी कर लेगा और परीक्षा में अवश्य पास हो जाएगा। इस तरह उसका एक साल बच जाएगा। उसने यह भी विश्वास दिलाया कि उसकी पढ़ाई का खेती के काम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

प्रश्न 5.
लेखक ने दत्ता जी राव की उपस्थिति में अपने दादा से निडर होकर बातचीत क्यों की?
उत्तर:
लेखक पहले अपनी माँ के साथ दत्ता जी राव के पास गया था। तब माँ ने अपने पति की आवारागर्दी की सारी बात दत्ता जी राव को बता दी थी। उस समय दत्ता जी राव ने लेखक से कहा कि वह उसके दादा के आने के थोड़ी देर बाद ही वहाँ आ जाए और निडर होकर अपनी सारी बात कहे। इसलिए लेखक ने बड़ी निडरता के साथ अपने पढ़ने की बात को रखा।

प्रश्न 6.
लेखक के पिता ने दत्ता जी राव के समक्ष उसकी पढ़ाई बंद करने के क्या कारण बताए?
उत्तर:
लेखक के पिता ने दत्ता जी राव से झूठ बोलते हुए कहा कि लेखक (कथानायक) को गलत आदतें पड़ गई हैं। वह कंडे बेचता है, चारा बेचता है और सिनेमा देखने जाता है। यही नहीं, वह खेती और घर के काम की ओर उसकी पढ़ाई रोक दी गई है और उसे खेत के काम पर लगा दिया है।

प्रश्न 7.
मंत्री नामक मास्टर के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मंत्री नामक मास्टर गणित पढ़ाते थे। लड़कों के मन में उनकी दहशत बैठी हुई थी। वे छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। हाथ से गरदन पकड़कर पीठ पर घूसा मारते थे। पढ़ने वाले लड़कों को शाबाशी भी मिलती थी। एकाध सवाल गलत हो जाते तो उसे वे समझा देते थे। किसी लड़के की कोई मूर्खता दिखाई दे तो उसे वहीं ठोंक देते। इसलिए सभी का पसीना छूटने लगता और सभी छात्र घर से पढ़ाई करके आने लगे।

प्रश्न 8.
पाठशाला जाते ही लेखक का मन खट्टा क्यों हो गया?
उत्तर:
पाठशाला जाते ही लेखक को पता चला कि वहाँ का सारा वातावरण बदल चुका है। उसके सभी साथी अगली कक्षा में चले गए थे। उसकी कक्षा के सभी बच्चे उससे कम उम्र के थे और कुछ मंद बुद्धि के थे। गली के दो लड़कों के सिवाय कोई भी कक्षा में उसका परिचित नहीं था। यह सब देखकर उसका मन खट्टा हो गया।

प्रश्न 9.
लेखक को पाँचवीं कक्षा में ही दाखिला क्यों लेना पड़ा?
उत्तर:
जब लेखक पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था तो दादा ने उसका स्कूल जाना बंद कर दिया और उसे खेती के काम में लगा दिया। अतः पाँचवीं में पास न होने के कारण लेखक को फिर से उसी कक्षा में दाखिला लेना पड़ा।

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प्रश्न 10.
वसंत पाटील के व्यक्तित्व अथवा विद्यार्थी जीवन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
वसंत पाटील लेखक का सहपाठी था। वह पतला-दुबला, किन्तु पढ़ने में होशियार था। उसका स्वभाव शांत था। उसके गणित के सभी सवाल ठीक निकलते थे। गणित के अध्यापक ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया था। लेखक भी उसे देखकर खूब मेहनत करने लगा था। लेखक पर वसंत पाटील का गहरा प्रभाव पड़ा था।

प्रश्न 11.
वसंत पाटिल की नकल करने से कथानायक को क्या लाभ प्राप्त हुआ?
उत्तर:
वसंत पाटील कक्षा में सबसे होशियार विद्यार्थी था। वह कक्षा का मॉनीटर भी था। उसकी नकल करने से कथानायक भी गणित के सवाल हल करने लगा। धीरे-धीरे वह भी कक्षा में वसंत पाटील के समान सम्मान प्राप्त करने लगा। यही नहीं, अध्यापक भी उसका उत्साह बढ़ाने लगे।

प्रश्न 12.
मास्टर सौंदलगेकर की साहित्यिक चेतना/काव्य-ज्ञान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मास्टर सौंदलगेकर मराठी भाषा का अध्यापक था। वह बहुत तन्मय होकर कक्षा में बच्चों को पढ़ाता था। उस में साहित्य के प्रति गहन आस्था थी। उसे मराठी व अंग्रेज़ी की बहुत-सी कविताएँ कण्ठस्थ थीं। उसका गला बहुत सुरीला था। उसे छंद और लय का भी पूर्ण ज्ञान था। वह कविता के साथ ऐसे जुड़ता कि अभिनय करके भाव बोध करा देता। वह स्वयं भी बहुत सुन्दर कविता रचना करता था। वह कभी-कभी अपनी कविताएँ भी कक्षा में सुनाता था। लेखक ऐसे क्षणों में बहुत तन्मय हो जाता

प्रश्न 13.
गुड़ के विषय में दादा के व्यापारिक ज्ञान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
दादा के अनुसार अगर कोल्हू जल्दी शुरू किया जाता तो ईख की अच्छी-खासी कीमत मिल जाती और उनकी यह सोच सही थी। क्योंकि जब चारों ओर कोल्हू चलने शुरू हो जाते तब बाज़ार में गुड़ की अधिकता हो जाती और भाव नीचे उतर आते। अच्छी कीमत वसूलने के लिए दादा गाँव भर से पहले अपना कोल्हू शुरू करवाते।

प्रश्न 14.
आनंदा के दादा की क्रूरता का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:’
जूझ’ कहानी को पढ़ने से पता चलता है कि आनंदा के दादा (पिता) एक क्रूर व्यक्ति हैं। उसे अपने छोटे-से बालक के प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं है। वह उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजने की अपेक्षा खेत मे काम करवाना चाहता है। वह उसकी पढ़ाई का विरोध करता है। वह दत्ता जी राव के कहने से आनंदा को स्कूल भेजने के लिए मान जाता है। उसके लिए भी कई कड़ी शर्ते रखता है। वह आप काम न करके बालक से खेत का काम करवाना चाहता है। यह उसकी क्रूरता का ही प्रमाण है।

प्रश्न 15.
लेखक को यह कब लगा मानो उसके पंख लग गए हों?
उत्तर:
मराठी, अध्यापक के कहने पर लेखक ने अपने द्वारा बनाई गई मनोरम लय को बच्चों के सामने गाया। यही नहीं, उसने स्कूल के समारोह में भी गीत को गाकर सुनाया, जिसे सभी ने पसंद किया। इससे लेखक का उत्साह बढ़ गया। इस प्रकार लेखक को लगा मानो उसके पंख लग गए हों।

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प्रश्न 16.
लेखक के कवियों के बारे में क्या विचार थे? अब वह उन्हें आदमी क्यों समझने लगा?
उत्तर:
पहले लेखक कवियों को किसी अन्य लोक के प्राणी समझता था। किंतु जब उसने देखा कि मराठी के मास्टर जी भी कविता लिखते हैं तब लेखक को समझ में आया कि ये कवि भी उसी के समान हाड़-माँस के आदमी होते हैं। अतः उसके मन का भ्रम दूर हो गया।

प्रश्न 17.
लेखक को मास्टर जी से किन विषयों पर कविताएँ लिखने की प्रेरणा मिली?
उत्तर:
मास्टर जी के घर के द्वार पर मालती की एक लता थी। उन्होंने उस पर एक अच्छी कविता लिखी थी। उसे सुनकर लेखक को भी प्रेरणा मिली। उसने अपने आस-पास के वातावरण, गाँव, खेत, फसल, फल-फूल और पशुओं आदि पर कविताएँ लिखनी आरंभ कर दी।

प्रश्न 18.
आनंदा के काव्य-प्रेम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आनंदा एक होनहार छात्र था। वह अपने मराठी भाषा के अध्यापक सौंदलगेकर से बहुत प्रभावित था। वह मराठी भाषा में काव्य रचना करता था। आनन्दा ने अपने अध्यापक से प्रेरित होकर काव्य रचना आरम्भ की थी। वह कभी-कभी अपनी कविता को कक्षा में भी पढ़कर सुना देता था। उसे कविता के प्रति इतना प्रेम था कि वह भैंस को चराते समय भैंस की कमर पर भी कविता लिख देता था। कभी-कभी जमीन पर भी कविता लिखने का अभ्यास करता था। बाद में बड़ा होकर उसने अपने परिश्रम से अनेक कविताओं की रचना की थी। इससे उसके काव्य-प्रेम का बोध होता है।

जूझ Summary in Hindi

जूझ लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री आनंद यादव का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री आनंद यादव का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्री आनंद यादव का पूरा नाम आनंद रतन यादव है। इनका जन्म सन् 1935 में कागल कोल्हापुर में हुआ जो कि महाराष्ट्र में स्थित है। पाठकों में वे आनंद यादव के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने मराठी तथा संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधियाँ प्राप्त की और बाद में पी.एच.डी. भी की। बहुत समय तक आनंद यादव पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में कार्यरत रहे। अब तक आनंद यादव की लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास के अतिरिक्त इनके कविता-संग्रह तथा समालोचनात्मक निबंध भी प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी रचना ‘नटरंग’ का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा किया गया। सन 1990 में साहित्य अकादमी ने इनके द्वारा रचित उपन्यास ‘जूझ’ को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। आनंद यादव की साहित्यिक रचनाएँ मराठी साहित्यकारों तथा पाठकों में काफी लोकप्रिय हैं।।

‘जूझ’ एक बहुचर्चित एवं बहुप्रशंसित आत्मकथात्मक उपन्यास है। इसमें एक किशोर के देखे और भोगे हुए गंवई जीवन के खुरदरे यथार्थ की विश्वसनीय गाथा का वर्णन है। इसके साथ-साथ लेखक ने अस्त-व्यस्त निम्न मध्यवर्गीय ग्रामीण समाज तथा संघर्ष करते हुए किसान-मजदूरों के जीवन की यथार्थ झांकी प्रस्तुत की है।

उपन्यास के इस अंश की भाषा सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा है, जिसमें तत्सम, तदभव तथा देशज शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है। आत्मकथात्मक शैली के प्रयोग के कारण उपन्यास का यह अंश काफी रोचक एवं प्रभावशाली बन पड़ा है।

जूझ पाठ का सार

प्रश्न-
आनंद यादव द्वारा रचित ‘जूझ’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जूझ’ मराठी के प्रसिद्ध कथाकार आनंद यादव के बहुचर्चित उपन्यास का एक अंश है। इसमें एक संघर्षशील किशोर के जीवन का यथार्थ वर्णन किया गया है। किशोर के पिता ने उसे कक्षा चार के बाद पाठशाला नहीं जाने दिया और खेती के काम में लगा लिया। किशोर को खेतों पर पानी लगाने और कोल्हू पर कार्य करना पड़ता है। दिनभर वह खेतों और घर के काम में जुटा रहता है। उसे पता है कि खेतों में कार्य करने से उसे कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। पढ़कर उसे नौकरी मिल सकती है। परंतु वह यह बात अपने दादा से कह नहीं पाता। यदि दादा को इस बात का पता लगेगा तो दादा उसकी बुरी तरह से पिटाई करेंगे। आखिर किशोर अपनी माँ के सहयोग से एक योजना बनाता है। कोल्हू का कार्य लगभग समाप्त हो चुका था। उसकी माँ कंडे थाप रही थी और किशोर बाल्टी में पानी भर-भर कर माँ को दे रहा था। उसने सोचा कि माँ से अकेले में बात करना उचित होगा। आखिर उसने हौंसला करके माँ से बात की। परंतु माँ ने कहा कि जब भी तेरी पढ़ाई की बात चलती है तो तुम्हारे दादा जंगली सूअर के सामान गुर्राने लगता है।

तब किशोर ने अपनी माँ से कहा कि वह दत्ता जी राव देसाई से इस बारे में बात करे। अन्ततः यह तय हुआ कि माँ-बेटा रात को उनसे बात करने जाएँगे। माँ चाहती थी कि उसका पुत्र सातवीं तक पढ़ाई तो अवश्य कर ले। इसलिए दोनों माँ-बेटा दत्ता जी राव के घर गए। दीवार के साथ बैठकर माँ ने दत्ता जी राव को घर की सभी बातें बता दी। उसने यह भी कहा कि उसका पति सारा दिन रखमाबाई के पास रहता है और खेत में खुद काम करने की बजाय उसके लड़के को इस काम पर लगा रखा है। इसलिए उसने उसके पुत्र की पढ़ाई बंद करवा दी है। दत्ता जी का रुख काफी अनुकूल था। यह देखकर किशोर ने कहा कि अब जनवरी का महीना चल रहा है, यदि उसे पाठशाला भेज दिया गया तो वह दो महीने में अच्छी तरह से पढ़कर पाँचवीं कक्षा पास कर लेगा। इस प्रकार उसका एक साल बच जाएगा। किशोर के पिता के काले कारनामे सुनकर राव जी क्रोधित हो उठे और कहा कि वह उसे आज ही ठीक कर देंगे।

राव ने किशोर से यह भी कहा कि जैसे ही तुम्हारे दादा घर पर आएँ तो उसे मेरे यहाँ भेज देना और घड़ी भर बाद तुम भी कोई बहाना करके यहाँ आ जाना। माँ-बेटा दोनों ने मिलकर यह भी निवेदन किया कि उनके यहाँ आने की बात दादा जी को पता न चले। इस पर दत्ता जी राव ने कहा कि तुमसे जो कुछ पूछूगा वह तुम बिना डर के बता देना। आखिर माँ-बेटे घर लौट गए। माँ ने दादा को राव साहब के यहाँ भेज दिया। साथ ही यह बहाना बनाया कि वह उनके यहाँ साग-भाजी देने गई थी। किशोर का दादा राव के बुलावे को अपना सम्मान समझकर तत्काल पहुँच गया। लगभग आधे घंटे बाद माँ ने बच्चे को यह कहकर भेजा कि दादा को खाने पर घर बुलाया है। दत्ता जी ने किशोर को देखकर कहा कि तू कौन-सी कक्षा में पढ़ता है। इस पर किशोर ने उत्तर दिया कि पहले वह पाँचवीं में पढ़ता था। अब पाठशाला नहीं जाता। क्योंकि दादा ने उसे स्कूल जाने से मना कर दिया है और खेतों में पानी देने के काम पर लगा दिया है। दादा ने रतनाप्पा राव को अपनी सारी बात बता दी।

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इस पर राव साहब ने दादा को फटकारते हुआ कहा “खुद खुले साँड की तरह घूमता है, लुगाई और बच्चों को खेती में जोतता है, अपनी मौज-मस्ती के लिए लड़के की बलि चढ़ा रहा है । इसके बाद दत्ता जी ने किशोर से कहा-“तू कल से पाठशाला जा, मास्टर को फीस दे दे, मन लगाकर पढ़, साल बचाना है। यदि यह तुझे पाठशाला न जाने दे, तो मेरे पास चले आना, मैं पढ़ाऊँगा तुझे।” इसके बाद दादा ने किशोर पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह दिन भर जुआ खेलता है, कंडे बेचता है, चारा बेचता है, सिनेमा देखता है, खेती और घर का काम बिल्कुल भी नहीं करता है। परंतु यह सब आरोप झूठे थे। अन्ततः दत्ता जी ने दादा को संतुष्ट कर दिया और किशोर को अच्छी प्रकार समझाया। इस पर दादा ने यह स्वीकार कर लिया कि वह अपने बेटे को पाठशाला भेजेगा। परंतु दादा ने यह भी शर्त लगा दी कि वह सुबह ग्यारह बजे तक खेत में काम करेगा और सीधा खेत से ही पाठशाला जाएगा। यही नहीं, छुट्टी के बाद वह घंटा भर पशु चराएगा।

यदि खेत में अधिक काम हुआ तो वह कभी-कभी स्कूल से छुट्टी भी ले लेगा। किशोर ने यह सभी शर्ते मान लीं।। किशोर पाठशाला की पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठ गया। कक्षा में दो लड़के उसकी गली के थे और बाकी सब अपरिचित थे। वे किशोर से कम उम्र के थे। वह बैंच के एक कोने पर जाकर बैठ गया। कक्षा के एक शरारती लड़के ने उसका मजाक उड़ाया। यही नहीं, उसका गमछा छीनकर मास्टर जी की मेज पर रख दिया। छुट्टी के समय उस शरारती लड़के ने किशोर की धोती की लाँग खोल दी। यह सब देखकर किशोर घबरा गया और उसका मन निराश हो गया। उसने अपनी माँ से कह कर बाज़ार से नई टोपी और चड्डी मंगवा ली, जिन्हें पहनकर वह स्कूल जाने लगा। इधर अध्यापक कक्षा के शरारती बच्चों को खूब मारते थे, इससे कक्षा का वातावरण कुछ सुधर गया। कक्षा का वसंत पाटील नाम का लड़का उम्र में छोटा था, परंतु पढ़ने में बहुत होशियार था। वह स्वभाव से शांत था और घर से पढ़कर आता था। इसलिए शिक्षक ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया। किशोर भी उसी के समान मन लगाकर पढ़ने लगा। धीरे-धीरे गणित उसकी समझ में आने लगा। अब वह भी वसंत पाटील के समान बच्चों के सवाल जांचने लगा। यही नहीं वसंत अब उसका दोस्त बन चुका था। अध्यापक खुश होकर उसे ‘आनंदा’ के नाम से पुकारते थे। अध्यापक के अपनेपन और वसंत की दोस्ती के कारण धीरे-धीरे उसका मन पढ़ाई में लगने लगा।

पाठशाला में न.वा.सौंदलगेकर नाम के मराठी के अध्यापक थे। उन्हें बहुत-सी मराठी और अंग्रेज़ी कविताएँ आती थीं। वे स्वर में कविताएँ गाते थे और छंदलय के साथ कविता का पाठ करते थे। कभी-कभी वे स्वयं भी अपनी कविता लिखते थे और कक्षा में सुनाते थे। धीरे-धीरे किशोर लेखक को उससे प्रेरणा मिलने लगी। जब भी वह खेत पर पानी लगाता या ढोर चराता, तब वह मास्टर के ही हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह आदि के साथ कविता का गान करता था। यही नहीं, वह स्वयं भी कविताएँ लिखने लगा। अब उसे खेत का अकेलापन अच्छा लगता था। वह ऊँची आवाज़ में कविता का गान करता, अभिनय करता और कभी-कभी नांचने भी लगता। मास्टर जी को भी किशोर लेखक का कविता ज्ञान बहुत अच्छा लगा। उनके कहने पर ही किशोर लेखक ने छठी-सातवीं के बालकों के सामने कविता का गान किया। पाठशाला के एक समारोह में उसे कविता पाठ करने का अवसर मिला।

मास्टर सौंदलगेकर भी स्वयं कविता करते थे और उनके घर में भी कुछ कवियों के काव्य-संग्रह रखे हुए थे। वे अकसर लेखक को कवियों के संस्मरण भी सुनाते रहते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि किशोर लेखक को यह पता चल गया कि कवि भी हमारे समान एक मानव है। वह भी हमारे समान कविता कर सकता है। लेखक ने मास्टर जी के घर के दरवाजे पर लगी मालती की लता और उस पर लिखी कविता भी देखी थी।

उसे लगा कि वह भी अपने खेतों पर, गाँव पर, गाँव के लोगों पर कविताएँ लिख सकता है। इसलिए भैंस चराते समय वह पशुओं तथा जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। कभी-कभी वह अपनी लिखी हुई कविता मास्टर जी को दिखा देता था। इस काम के लिए वह अपने पास एक कागज़ और पैन रखने लगा। जब भी कागज़ और पैल न होती तो वह कंकर से पत्थर की शिला पर या छोटी लकड़ी से भैंस की पीठ पर कविता लिख देता था। कभी-कभी वह अपनी लिखी हुई कविता मास्टर जी को दिखाने के लिए उनके घर पहुँच जाता था। मास्टर जी भी उसे अच्छी कविता लिखने की प्रेरणा देने लगे और छंद, लय तथा अलंकारों का ज्ञान देने लगे। यही नहीं, वे किशोर युवक को पढ़ने के लिए पुस्तकें भी देने लगे। धीरे-धीरे मास्टर जी और किशोर लेखक में समीपता बढ़ती गई और उसकी मराठी भाषा में सुधार होने लगा। अब किशोर लेखक को शब्द के महत्त्व का पता लगा और वह अलंकार छंद, लय आदि को समझने लगा।

कठिन शब्दों के अर्थ

मन तड़पना = व्याकुल होना। हिम्मत = हौंसला। गड्ढे में धकेलना = पतन की ओर ले जाना। कोल्हू = एक ऐसी मशीन जिसके द्वारा गन्नों का रस निकाला जाता है। बहुतायत = अत्यधिक। मत = विचार। भाव नीचे उतरना = कीमत घटना। अपेक्षा तुलना। जन = मनुष्य। कडे = गोबर के उपले या गौसे। स्वर = वाणी। मन रखना = ध्यान देना। तड़पन = बेचैनी। जोत देना = लगा देना। छोरा = लड़का। निडर = निर्भीक। मालिक = स्वामी। बाड़ा = अहाता। जीमने = खाना खाने। राह देखना = प्रतीक्षा करना। जिरह = बहस । हजामत बनाना = डाँटना, फटकारना। श्रम = मेहनत। लागत = खर्च। लुगाई = स्त्री, पत्नी। काम में जोतना = खूब काम लेना। खुद = स्वयं । बर्ताव = व्यवहार। गलत-सलत = उल्टा-सीधा। ज़रा = तनिक। ना पास = फेल, अनुतीर्ण । वक्त = समय। ढोर = पशु। बालिस्टर = वकील। रोते-धोते = जैसे-तैसे। अपरिचित = अनजान। इंतज़ार = प्रतीक्षा। खिल्ली उड़ाना = मज़ाक उड़ाना। पोशाक = तन के कपड़े। मटमैली = गंदगी। गमछा = पतले कपड़े का तौलिया। काछ = धोती का लाँग।

चोंच मार-मार कर घायल करना = बार-बार पीड़ा पहुँचाना। निबाह = गुज़ारा। उमंग = उत्साह । मैलखाऊ = जिसमें मैल दिखाई न देता हो। दहशत = डर । ऊधम = कोलाहल मचाना। शाबाशी = प्रशंसा। ठोंक देना = पिटाई करना। पसीना छूटना = भयभीत होना। होशियार = चतुर। सवाल = प्रश्न। सही = ठीक। जाँच = परीक्षण। सम्मान = आदर। मुनासिब = उचित। व्यवस्थित = ठीक तरह से। एकाग्रता = ध्यानपूर्वक। मुलाकात = भेंट। दोस्ती जमना = मित्रता होना। कंठस्थ = जबानी याद होना। संस्मरण = पुरानी घटनाओं को याद करना। दम रोककर = तन्मय होकर। मान = आभास। यति-गति = कविता में रुकने तथा आगे बढ़ने के नियम। आरोह-अवरोह = स्वर का ऊँचा-नीचा होना। खटकना = महसूस होना। गपशप = इधर-उधर की बातें। समारोह = उत्सव। तुकबंदी = छंद में बंधी हुई कविता। महफिल = सभा। कविता का शास्त्र = कविता के नियम। ढर्रा = शैली। अपनापा = अपनापन, अपनत्व। सूक्ष्मता = बारीकी से।

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HBSE 12th Class Hindi कैसे बनता है रेडियो नाटक

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions कैसे बनता है रेडियो नाटक Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi कैसे बनता है रेडियो नाटक

प्रश्न 1.
रेडियो नाटक का आरंभ कैसे हुआ?
उत्तर:
एक ज़माना था, जब दुनिया में न तो टेलीविज़न था, न ही कंप्यूटर। सिनेमा हॉल और थिएटर भी बहुत कम थे। अगर थे तो आज की तुलना में उनकी संख्या बहुत ही कम थी। किसी भी व्यक्ति को वे आसानी से उपलब्ध नहीं होते थे। ऐसी स्थिति में आम आदमी घर में बैठे मनोरंजन करने के लिए रेडियो का ही सहारा लेता था। रेडियो से ही खबरें सुनी जा सकती थीं, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम तथा खेलों का आँखों देखा हाल भी प्रसारित होता था। उस समय एफ.एम. चैनल नहीं थे, लेकिन गीत-संगीत खूब सुनने को मिलता था। उस समय प्रसारित होने वाले रेडियो नाटक ही टी०वी० धारावाहिकों और टेलीफिल्मों की कमी को पूरा करते थे।

हिंदी साहित्य के बड़े-बड़े साहित्यकार साहित्य रचना भी करते थे और रेडियो के लिए नाटक भी लिखते थे। उस समय रेडियो के साथ जुड़ना बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी। हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हिंदी में कुछ ऐसे नाटक भी हैं जो मूलतः रेडियो के लिए लिखे गए थे लेकिन बाद में साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय हुए। इस संदर्भ में धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘अंधा युग’ (गीति नाटक) तथा मोहन राकेश द्वारा रचित ‘आषाढ़ का एक दिन’, सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। इस प्रकार रेडियो नाटक का इतिहास रेडियो से ही आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
रेडियो नाटक और सिनेमा/रंगमंचीय नाटक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रेडियो नाटक और सिनेमा/रंगमंचीय नाटक में निम्नलिखित अन्तर हैं-

रेडियो नाटकसिनेमा/रंगमंचीय नाटक
1. सिनेमा/रंगमंचीय नाटक दृश्य माध्यम है।1. रेडियो नाटक एक श्रव्य माध्यम है।
2. इनमें दृश्य होते हैं।2. इसमें दृश्य नहीं होते।
3. रेडियो नाटक में साज-सज्जा का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि वहाँ इसका प्रयोग नहीं होता।3. सिनेमा/रंगमंचीय नाटक में साज-सज्जा का अत्यधिक महत्त्व होता है।
4. रेडियो नाटक में भाव भंगिमा का महत्त्व नहीं होता।4. सिनेमा/रंगमंच में भाव भंगिमा का बहुत महत्त्व होता है।
5. कहानी का विकास संवादों के माध्यम से ही होता है।5. इनमें कहानी का विकास पात्रों की भावनाओं और गतिविधियों तथा संवादों द्वारा किया जाता है।
6. रेडियो नाटक में दृश्य एवं अंक नहीं होते।6. जबकि रंगमंचीय नाटक में दृश्य व अंक होते हैं।

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प्रश्न 3.
सिनेमा, रंगमंच और रेडियो नाटक में क्या समानताएँ और विषमताएँ हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
मूलतः रेडियो नाटक सिनेमा तथा रंगमंच से मिलती-जुलती विधा है। इसमें सिनेमा तथा रंगमंच की तरह चरित्र होते हैं और इन्हीं चरित्रों द्वारा संवाद बोले जाते हैं तथा संवादों के कारण ही कथानक आगे बढ़ता है। सिनेमा और रंगमंच के समान रेडियो नाटक के कथानक में आरंभ, मध्य और अंत होता है। यही नहीं, इनमें पात्रों के परिचय, द्वंद्व के साथ-साथ अंत में समाधान भी दिया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि रेडियो नाटक सतही तौर पर सिनेमा और रंगमंच के समान है।

लेकिन इनमें कुछ विषमताएँ भी हैं। पहली बात तो यह है कि सिनेमा और रंगमंच में दृश्य होते हैं, परंतु रेडियो नाटक में दृश्य नहीं होते। रेडियो नाटक एक श्रव्य माध्यम है, परंतु सिनेमा और रंगमंच में अभिनेता की भावनाओं द्वारा कथानक प्रस्तुत किया जाता है। रेडियो नाटक में ध्वनि प्रभावों का विशेष महत्त्व होता है और इन्हीं के द्वारा सब कुछ संप्रेषित किया जाता है। सिनेमा और रंगमंच में कथानक के साथ-साथ मंच सज्जा तथा वेश सज्जा का भी ध्यान रखना पड़ता है। रेडियो नाटक में इनका कोई महत्त्व नहीं होता है, क्योंकि वह दृश्य नाटक न होकर श्रव्य नाटक होता है।

प्रश्न 4.
रेडियो नाटक के कथानक में किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
रेडियो नाटक का कथानक संवादों और ध्वनि प्रभावों पर ही निर्भर रहता है। इसलिए कथानक का चुनाव करते समय अग्रलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
(1) रेडियो नाटक का कथानक केवल एक घटना पर आधारित नहीं होना चाहिए। उदाहरण के रूप में, यदि रेडियो नाटक के कथानक का आधार पुलिस द्वारा डाकुओं का पीछा करना है, तो यह कथानक अधिक देर तक नहीं रहना चाहिए, अन्यथा यह उबाऊ हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि रेडियो नाटक के कथानक में अत्यधिक संवाद होने चाहिए तथा एक-से-अधिक घटनाएँ भी होनी चाहिए।

(2) सामान्य तौर पर रेडियो नाटक की अवधि 15 से 30 मिनट तक होनी चाहिए। इससे अधिक की अवधि के नाटक को श्रोता सुनना पसंद नहीं करेगा। कारण यह है कि श्रोता की एकाग्रता 15 से 30 मिनट तक ही बनी रहती है। यदि रेडियो नाटक की अवधि लंबी होगी, तो श्रोता की एकाग्रता भंग हो जाएगी और उसका ध्यान भी भटक जाएगा।

(3) रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या बहुत कम होनी चाहिए। तीन-चार पात्रों का नाटक आदर्श नाटक कहा जा सकता है। यदि रेडियो नाटक में बहुत अधिक पात्र होंगे, तो श्रोताओं को पात्रों को याद रखना कठिन होगा, क्योंकि श्रोता केवल आवाज़ के माध्यम से रेडियो के पात्रों को याद रखता है।

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प्रश्न 5.
रेडियो नाटक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो नाटक की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. रेडियो नाटक में संकलनत्रय के लिए कोई स्थान नहीं है। इसकी घटनाएँ गौ द्ध से लेकर गांधी युग की यात्रा कर सकती हैं, क्योंकि इसमें केवल प्रभावान्विति पर बल दिया जाता है।
  2. रेडियो नाटक में मनोवैज्ञानिक चित्रण की सुविधाएँ विद्यमान हैं। रेडियो नाटक के पात्रों के मन की गहराई में उतरना सरल है।
  3. रेडियो नाटक में वाद्य संगीत, ध्वनि प्रभाव अथवा शांति के द्वारा दश्य परिवर्तन किया जा सकता है और इस कार्य में बहुत कम समय लगता है।
  4. रेडियो नाटक में सभी प्रकार के दृश्य उपस्थित किए जा सकते हैं; जैसे समुद्र की ऊँची, लहरों पर डूबती-उतरती नौका अथवा कारखानों में काम करते मज़दूर।
  5. रंगमंच पर अस्वाभाविक लगने वाले प्रतीकात्मक पात्र रेडियो नाटक में सजीव एवं स्वाभाविक प्राणी बन जाते हैं। यही नहीं, भाव और विचार भी मानव शरीर धारण कर लेते हैं।
  6. रंगमंच का अस्वाभाविक स्वगत कथन माइक्रोफोन का स्पर्श पाकर रेडियो नाटक पर स्वाभाविक बन जाता है।

प्रश्न 6.
रेडियो नाटक के तत्वों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
रेडियो नाटक का आधार ध्वनि है और ध्वनि ही भावाभिव्यक्ति का सबसे बड़ा साधन है। एक ही शब्द का हम अलग-अलग उच्चारण करके प्रेम, घृणा, क्रोध आदि विभिन्न भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। रेडियो नाटक में ध्वनि का प्रयोग तीन प्रकार से होता है और यही तीन ही रेडियो नाटक के तत्त्व हैं। ये हैं

  • भाषा
  • ध्वनि प्रभाव
  • संगीत

(1) भाषा-भाषा रेडियो नाटक का मूल आधार है। यही बोलने और सुनने के काम आती है, परंतु रेडियो नाटक में सहज, सरल, स्वाभाविक भाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। जटिल भाषा रेडियो नाटक को असफल बनाती है, क्योंकि रेडियो नाटक सुनने वाले आम लोग होते हैं। रेडियो नाटक में भाषा का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है

  • कथोपकथन,
  • नैरेशन (प्रवक्ता का कथन)

कथोपकथन रेडियो नाटक के पात्रों की मानसिक स्थितियों से परिचित करवाता है। कथानक को गति देता है, श्रोता को अपनी ओर आकर्षित करता है।

नैरेशन का अर्थ है-नाटक का वह अंश, जिसके द्वारा पात्र नाटक के क्रिया-कलापों के वातावरण का निर्माण करता है, आवश्यक विवरण देता है और घटनाओं की श्रृंखला को जोड़ता है। इस प्रकार के पात्र को सूत्रधार प्रवक्ता, वाचक, वाचिका, आलोचक, उद्घोषक, स्त्री स्वर, पुरुष स्वर आदि नाम दिए जाते हैं।

नैरेटर भी दो प्रकार के होते हैं

  • प्रथम कोटि के नैरेटर का व्यक्तिगत जीवन के नाटक की घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता और वह नाटक के क्रिया-कलाप का तटस्थ दर्शक तथा प्रवक्ता होता है।
  • दूसरी कोटि का नैरेटर नाटक का पात्र होता है, जिसके जीवन की घटनाएँ नाटक से प्रत्यक्ष रूप से संबंध रखती हैं। उसके कथन काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं।

(2) ध्वनि प्रभाव ध्वनि का अर्थ है-रेल, तूफ़ान, कारखाना, वर्षा, बादल, बाज़ार आदि की ध्वनियाँ, जिनका प्रयोग नाटक प्रसारित करते समय किया जाता है। इन ध्वनियों के प्रयोग से रेडियो नाटक में वातावरण का निर्माण होता है।

(3) संगीत-ध्वनि और वाद्य संगीत का प्रयोग पात्रों के कार्यों के लिए पृष्ठभूमि तथा वातावरण निर्माण के लिए किया जाता है। यही नहीं, इसके द्वारा भावाभिव्यंजना, दृश्य परिवर्तन तथा देशकाल का परिचय भी दिया जाता है। संगीत के प्रयोग से रेडियो नाटक सजीव एवं प्रभावशाली बन जाता है।

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प्रश्न 7.
रेडियो नाटकों में ध्वनि तथा संवादों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो एक श्रव्य माध्यम है। रेडियो रूपक रेडियो से प्रसारित किया जाता है। अतः यह भी श्रव्य विधा है। इसमें संवादों का विशेष महत्त्व रहता है। श्रोता ध्वनि तथा संवादों को सुनकर ही कथानक को समझता है और आनंद उठाता है। नाटक के पात्रों की जानकारी भी संवादों से मिलती है, जिन्हें सुनकर श्रोता अपने मन में पात्र का बिंब बना लेता है। संवादों से ही पात्रों के नाम, उनके काम तथा उनकी चारित्रिक विशेषताओं का परिचय मिलता है। संवाद भाषा पर निर्भर होते हैं। भाषा से ही पता चलता है कि नाटक संवाद शहरी हैं अथवा ग्रामीण। यही नहीं, भाषा से पात्रों की आयु तथा व्यवसाय का भी पता चल जाता है। जब पात्र एक-दूसरे को नाम लेकर बुलाते हैं, तो श्रोता को उसकी जानकारी मिल जाती है। संवाद ही कथानक को गतिशील बनाते हैं और पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन करते हैं।

जहाँ तक ध्वनि का प्रश्न है, उसके बिना रेडियो नाटक प्रभावहीन होता है। ध्वनि अनुकूल देशकाल तथा वातावरण का निर्माण करती है। आँधी, तूफान, सड़क, वर्षा, बादल, कारखाना, बाज़ार आदि की जानकारी भी ध्वनि से मिलती है। पुनः ध्वनि का सहयोग पाकर ही संवाद गतिशील होते हैं और कथानक को आगे बढ़ाते हैं। अतः संवादों के साथ-साथ ध्वनि प्रभाव का भी रेडियो नाटक में विशेष महत्त्व है।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
दृश्य-श्रव्य माध्यमों की तुलना में श्रव्य माध्यम की क्या सीमाएँ हैं? इन सीमाओं को किस तरह पूरा किया जा सकता है?
उत्तर:
दृश्य-श्रव्य माध्यम में हम नाटक को अपनी आँखों से देख भी सकते हैं और पात्रों द्वारा बोले गए विभिन्न संवादों को सुन भी सकते हैं। नाटक निर्देशक संपूर्ण नाटक को रंगमंच पर प्रस्तुत करता है। नाटक में अनेक दृश्य होते हैं, जिन्हें मंच पर सजाया जाता है। जब प्रत्येक दृश्य को अभिनय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तब हम अभिनेताओं के हाव-भाव को देखते हैं, उनके वार्तालाप को सुनते हैं इस प्रकार से हम संपूर्ण नाटक का आनंद लेते हैं। सिनेमा और टी०वी० सीरियल में भी यही स्थिति होती है। परंतु श्रव्य माध्यम की कुछ सीमाएँ हैं। इसमें हम कुछ भी देख नहीं सकते, केवल सुन सकते हैं। रेडियो नाटक में निर्देशक नाटक को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि ध्वनियों के माध्यम से ही सब-कुछ समझना पड़ता है। उदाहरण के रूप में, यदि नदी के किनारे पर दो पात्र वार्तालाप कर रहे हैं, तो नदी के बहने की ध्वनि उत्पन्न की जाएगी और फिर वहाँ पात्र बात करते सुनाई देंगे।

इससे श्रोता अनुमान लगा लेगा कि पात्र नदी के किनारे आपस में बातें कर रहे हैं। इसी प्रकार यदि जंगल का दृश्य प्रस्तुत करना हो, तो जंगल देने वाला संगीत उत्पन्न किया जाता है। कभी-कभी पात्र वातावरण की सृष्टि करने के लिए स्वयं वार्तालाप द्वारा इसे प्रस्तुत करते हैं; जैसे-“ओह! बड़ी सर्दी पड़ रही है। ठंड के मारे हाथ काँप रहे हैं।” यदि वर्षा का वातावरण उत्पन्न करना हो, तो बरसात होने की ध्वनि प्रस्तुत की जाएगी तथा जल्दी-जल्दी चलने की आवाज़ों को उनके वार्तालाप के साथ जोड़ा जाएगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि दृश्य-श्रव्य माध्यम की तुलना में श्रव्य माध्यम में साधन बहुत सीमित होते हैं। इसमें केवल ध्वनि द्वारा ही वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। इसके विपरीत, नाटक अथवा सिनेमा में दृश्य-श्रव्य दोनों माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
नीचे कुछ दृश्य दिए गए हैं। रेडियो नाटक में इन दृश्यों को आप किस-किस तरह से प्रस्तुत करेंगे, विवरण दीजिए।
(क) घनी अँधेरी रात
(ख) सुबह का समय
(ग) बच्चों की खुशी
(घ) नदी का किनारा
(ङ) वर्षा का दिन
उत्तर:
(क) घनी अँधेरी रात-साँय-साँय की आवाज़, किसी पात्र द्वारा यह कहना कि घना काला अँधेरा है, हाथ-को-हाथ नहीं सूझ रहा, चौकीदार की सीटी और जागते रहो का स्वर आदि द्वारा घनी अँधेरी रात के दृश्य को प्रस्तुत किया जा सकता है।

(ख) सुबह का समय-चिड़ियों के चहचहाने का स्वर, मुर्गे द्वारा बाँग देना, किसी पात्र द्वारा प्रातःकालीन भजन का स्वर आदि साधनों से सुबह के समय को प्रस्तुत किया जा सकता है।

(ग) बच्चों की खुशी-बच्चों के कोलाहल का स्वर, उनकी किलकारियाँ, उनकी हँसी तथा उनके खिलौनों की ध्वनियों द्वारा बच्चों की खुशी का दृश्य प्रस्तुत किया जा सकता है।

(घ) नदी का किनारा-नदी के बहते पानी की आवाज़, हवा का स्वर, पक्षियों का कलरव, किसी पात्र द्वारा यह कहना कि नदी का पानी बहुत ठंडा है आदि स्वरों द्वारा नदी के किनारे का दृश्य प्रस्तुत किया जा सकता है।

(ङ) वर्षा का दिन-निरंतर वर्षा होने की ध्वनि, किसी पात्र का यह कहना कि ‘आज तो वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही’, छाता खोल लो, पानी बहने का स्वर, परनाले से पानी गिरने का स्वर आदि के माध्यम से वर्षा के दिन का दृश्य प्रस्तुत किया जा सकता है।

HBSE 12th Class Hindi कैसे बनता है रेडियो नाटक

प्रश्न 3.
रेडियो नाटक लेखन का प्रारूप बनाइए और अपनी पुस्तक की किसी कहानी के एक अंश को रेडियो नाटक में रूपांतरित कीजिए।
उत्तर:
‘ईदगाह’ कहानी के आरंभ में एक ऐसा दृश्य है, जिसमें गाँव के कछ लड़के मिलकर ईदगाह जाने लगते हैं। वे हामिद को बुलाने के लिए उसके घर जाते हैं। हामिद भी ईदगाह के मेले में जाना चाहता है। हामिद की दादी उसे मेले में जाने से थोड़ा सावधान करती है। वह हामिद को मेले के लिए तीन पैसे देती है। रेडियो नाटक के लिए यह दृश्य इस प्रकार हो सकता है
(कुछ बच्चों की मिली-जुली आवाजें आ रही हैं। उनके पैरों की आवाज़ हामिद के घर के समीप आती जा रही हैं। वे हामिद के घर का दरवाज़ा खटखटाते हैं।)

  • एक स्वर-अरे ओ हामिद! हम सब मेले में जा रहे हैं। क्या तुम आ रहे हो?
  • हामिद-रुको! ‘मैं भी चल रहा हूँ।
    (चलने की आवाज़)
  • दादी-बेटे हामिद! थोड़ा रुको।
  • हामिद-(ऊँचे स्वर में) दादी जान क्या है?
  • दादी-मेले में सावधान होकर चलना कहीं……….
  • हामिद-(बीच में टोककर) हाँ! दादी मुझे सारा पता है। चिंता मत करो।
  • दादी-बेटे! मेले में कोई गंदी चीज़ न खाना।
  • हामिद हाँ, दादी ठीक है। ऐसा ही करूँगा।
    (बाहर बच्चों की आवाजें तीव्र हो जाती हैं।)
  • हामिद-(दरवाजा खोलते हुए) चलो! मैं भी साथ चल रहा हूँ।
    (धीरे-धीरे बच्चों की आवाजें मंद पड़ जाती हैं और पैरों की आवाजें भी लुप्त हो जाती हैं।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

HBSE 12th Class Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने क्या हैं?
उत्तर:
“सब घर एक कर देने का अभिप्राय है-आपसी भेदभाव तथा ऊँच-नीच के भेद को समाप्त कर देना और एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता का अनुभव करना। गली-मोहल्ले में खेलते बच्चे अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। वे अन्य घरों को अपने घर जैसा मानने लगते हैं। इसी प्रकार कवि भी काव्य रचना करते समय सामाजिक भेदभाव को भूलकर कविता के माध्यम से अपनी बात कहता है।

प्रश्न 2.
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?
उत्तर:
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से गहरा संबंध है। कवि कल्पना की उड़ान द्वारा नए-नए भावों की अभिव्यंजना करता है परंतु कवि की उड़ान पक्षियों की उड़ान से अधिक ऊँची होती है। उसकी उड़ान अनंत तथा असीम होती है। जिस प्रकार फूल कर अपनी सुगंध और रंग को चारों ओर फैलाता है, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता के भावों के आनंद को सभी पाठकों में बाँटता है। कवि की कविता सभी पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करती है।

प्रश्न 3.
कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
कवि कल्पना के संसार की सृष्टि करके आनंद प्राप्त करता है और बच्चे आनंद प्राप्त करने के लिए क्रीड़ा करते हैं। खेलते समय सभी बच्चे आपस में जुड़ जाते हैं और छोटे-बड़े तथा अपने-पराए के भेद को भूल जाते हैं। कवि भी भेदभाव को भूलकर सबके कल्याणार्थ कविता की रचना करता है। खेल खेलते समय बच्चों का संसार बड़ा हो जाता है और साहित्य-रचना करते समय कवि का। इसीलिए कविता और बच्चे को समानांतर रखा गया है।

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प्रश्न 4.
कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
उत्तर:
फूल कुछ समय अपनी सुगंध और रंग का सौंदर्य बिखेरता है, फिर वह मुरझा जाता है। उसकी कोमल पत्तियाँ सूख कर बिखर जाती हैं, लेकिन कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता। कविता की महक अनंतकाल तक पाठकों को आनंद विभोर करती रहती है। हम हज़ारों साल पूर्व रचे गए साहित्य का आज भी आनंद प्राप्त करते रहते हैं।

प्रश्न 5.
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने का अभिप्राय है-सहज, सरल तथा बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना ताकि श्रोता भावाभिव्यक्ति को आसानी से ग्रहण कर सके। कवि को कृत्रिम तथा चमत्कृत करने वाली भाषा से बचना चाहिए। सरल बात, सरल भाषा में कही गई ही अच्छी लगती है।

प्रश्न 6.
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे?
उत्तर:
बात और भाषा का गहरा संबंध होता है। मानव अपने मन की भावनाएँ शब्दों के द्वारा ही व्यक्त करता है। यदि हम अपनी अनुभूति को सहज और सरल भाषा में व्यक्त कर दें तो किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती। परंतु कवि प्रायः अपनी बात को कहने के लिए सुंदर भाषा और चमत्कृत करने वाली भाषा का प्रयोग करने लगते हैं जिससे कवि का कथ्य अस्पष्ट हो जाता है। कवि जो कुछ कहना चाहता है, वह ठीक से कह नहीं पाता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हम उन शब्दों को पढ़ रहे होते हैं जो हमारी समझ के बाहर होते हैं अर्थात् कविता का मूल भाव हमारी समझ में नहीं आ पाता। हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों ने प्रायः कविता के कलापक्ष को अधिक महत्त्व दिया है जिससे उनकी कविता के भाव अस्पष्ट होकर रह गए।

प्रश्न 7.
बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/महावरों से मिलान करें।

बिंब/मुहावराविशेषता
(क) बात की चूड़ी मर जानाकथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
(ख) बात की पेंच खोलनाबात का पकड़ में न आना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलनाबात का प्रभावहीन हो जाना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देनाबात में कसावट का न होना
(ङ) बात का बन जानाबात को सहज और स्पष्ट करना

उत्तर:

बिंब/मुहावराविशेषता
(क) बात की चूड़ी मर जानाबात का पकड़ में न आना
(ख) बात की पेंच खोलनाबात का प्रभावहीन हो जाना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलनाबात में कसावट का न होना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देनाबात को सहज और स्पष्ट करना
(ङ) बात का बन जानाकथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।
उत्तर:

  1. बातें बनाना केवल बातें बनाते रहोगे या मेरा काम भी करोगे।
  2. बात का धनी होना-यह अधिकारी बात का धनी है। यह जरूर हमारा काम करेगा।
  3. बात का बतंगड़ बनाना हमारा पड़ोसी तो हमेशा बात का बतंगड़ बना देता है। कभी-कभी तो झगड़े की नौबत भी आ जाती है।
  4. बात से मुकर जाना-जो लोग बात से मुकर जाते हैं, उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
  5. बात-बात पर मुँह बनाना तुम्हारी पत्नी तो बात-बात पर मुँह बनाने लगती है। यह कोई अच्छी बात नहीं है।

व्याख्या करें

“ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
उत्तर:
जब कोई कवि अपनी भावाभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए जटिल भाषा का प्रयोग करने लगता है तो उसकी व्यंजना कुंद हो जाती है। कवि द्वारा प्रयुक्त जटिल भाषा के कारण कविता का मूल कथ्य नष्ट हो जाता है। अन्ततः कवि-कथ्य कृत्रिम भाषा में फँसकर रह जाता है और श्रोता कवि के भाव को समझ नहीं पाता।

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चर्चा कीजिए

आधुनिक युग में कविता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक युग में कविता की रचना करना काफी कठिन हो गया है, क्योंकि भौतिकवादी दृष्टिकोण को अपनाने के कारण आधुनिक युग अत्यधिक बेचैन और व्याकुल रहता है। ऐसी स्थिति में केवल कविता ही मानव-मन को सुख-शांति प्रदान कर सकती है। आज भी हमारे समक्ष प्रकृति का विशाल प्रांगण है। आज समाज में अनेक समस्याएँ जटिल होती जा रही हैं। अतः कविता की संभावनाएँ काफी बढ़ चुकी हैं। आज प्रेम, मोहब्बत पर कविता लिखना व्यर्थ है, बल्कि जन-जीवन से जुड़ी कविता कवि-सम्मेलनों में वाह-वाही लूटती है। एक अच्छी कविता को पढ़कर आज का उलझा हुआ मानव कुछ राहत महसूस करता है। केवल आवश्यकता इस बात की है कि कविता हमारे जीवन से संबंधित होनी चाहिए।

चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें।
उत्तर:
कविता के बहाने’ कविता में चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों का प्रयोग किया है तथा कथ्य की अमूर्तता को साकार करने का प्रयास किया है इस पर यह संवाद कुछ इस प्रकार आयोजित किया जा सकता है
(क) आज के कवि सहज, सरल भाषा में अपनी बात क्यों नहीं कहते? वे कील, चूड़ी, पेंच आदि मूर्त उपमानों को माध्यम क्यों बनाते हैं?

(ख) एक सफल कवि अपनी बात को हमेशा सरल तथा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में समर्थ होता है। कभी-कभी वह प्रतीकों, उपमानों तथा बिंबों का प्रयोग भी करता है। ऐसा करने से कविता के अर्थ में गंभीरता उत्पन्न हो जाती है।

(ग) कवि को जटिल प्रतीकों तथा उपमानों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका यह प्रयास रहना चाहिए कि कविता में कही गई बात उलझकर न रह जाए।

आपसदारी

1. सुंदर है सुमन, विहग सुंदर
मानव तुम सबसे सुंदरतम।
पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुंदर और समर्थ, बताया गया है। ‘कविता के बहाने’ कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिंदुओं की तलाश करें।
उत्तर:
कविता के बहाने में कवि ने बच्चे को चिड़िया और फूल की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास किया है। इसके लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ उद्धृत हैं –
“कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।”

2. प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘बात’ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढ़ कर पढ़ें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर इन दोनों रचनाओं को पढ़ें।

HBSE 12th Class Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

कविता के बहाने

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने?
उत्तर:

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कविता और चिड़िया की उड़ान की तुलना करते हुए यह स्पष्ट किया है कि चिड़िया की उड़ान कविता की उड़ान की उपेक्षा ससीम है, जबकि कविता की उड़ान अनंत और असीम है।
  2. ‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में वक्रोक्ति अलंकार है।
  3. ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्नालंकार के साथ-साथ मानवीकरण का भी पुट है।
  4. ‘कविता के पंख लगा उड़ने’ में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  5. ‘बाहर-भीतर इस घर, उस घर’ में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
  6. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हआ है तथा शब्द-चयन सर्वथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए –
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
उत्तर:

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बच्चों के सरल स्वभाव पर प्रकाश डाला है। बच्चे आपस में खेलते समय अपने-पराए के भेदभाव को नहीं जानते।
  2. बच्चे की क्रीड़ाओं तथा कवियों की काव्य रचनाओं में काफी समानता होती है, क्योंकि न तो बच्चे भेदभाव को समझते हैं और न ही कवि। इसीलिए कवि ने कहा है कि सब घर एक कर देना।।
  3. ‘बाहर भीतर’, ‘इस घर, उस घर’ तथा ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. प्रस्तुत पद्य में सहज, सरल तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-योजना सार्थक व सटीक है।
  6. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

बात सीधी थी पर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए –
1. बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फंस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
उत्तर:
(1) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने इस बात पर बल दिया है कि कथ्य के अनुसार कविता की अभिव्यंजना होनी चाहिए। ऐसा करने से अभिव्यक्ति बड़ी सरलता के साथ स्वयं प्रकट हो जाती है।

(2) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है। ये शब्द भाषा की कृत्रिमता और जटिलता पर व्यंग्य करते हैं।

(3) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।

(4) भाषा का चक्कर’ तथा ‘टेढ़ी-फँसी’, जैसे लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है जोकि अभिव्यंजना-शिल्प को सौंदर्य प्रदान करते हैं।

(5) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।

(6) शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं सटीक है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए –
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने भाषा के द्वारा भाव को सजाने का प्रयास किया है लेकिन वह भाव स्पष्ट नहीं हो पाया।
  2. यहाँ बात का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  3. कवि द्वारा ‘पसीना पोंछना’ एक सुंदर दृश्य बिंब है जो परिश्रम की व्यर्थता को सिद्ध करता है।
  4. ‘शरारती बच्चे की तरह’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. ‘पसीना पोंछते’ में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  6. इस पद्य में संवादात्मक शैली का बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग हुआ है।
  7. सहज, सरल, बोधगम्य तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  8. शब्द-योजना सार्थक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कविता के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि कविता की उड़ान आकाश में उड़ने वाली चिड़िया तथा फूल की सुगंध से भी अधिक ऊँची और विस्तृत होती है। चिड़िया की उड़ान ससीम है तथा फूल की महक भी ससीम है। पुनः ये दोनों नश्वर हैं तथा इनके क्रियाकलाप भी नश्वर हैं। परंतु कविता का प्रभाव अनंत और स्थाई होता है। कविता बच्चों के खेल के समान भेदभाव से मुक्त होती है और श्रोता को असीम आनंद प्रदान करती है। इसलिए कविता का प्रभाव अनंत, व्यापक तथा आनंदपूर्ण माना गया है।

प्रश्न 2.
कविता और चिड़िया की उड़ान में क्या अंतर है स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता और चिड़िया दोनों ऊँची उड़ान भर सकते हैं, परंतु चिड़िया की अपेक्षा कविता की उड़ान अनंत तथा असीम होती है। चिड़िया एक सीमित दायरे में ही उड़ सकती है, परंतु कवि अपनी कल्पना द्वारा कहीं भी पहुंच सकता है। इसलिए कहा भी गया है
“जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि”।

प्रश्न 3.
कविता और फूल की तुलना करें।
उत्तर:
फूल और उसकी महक ससीम है। पुनः ये दोनों ही नश्वर हैं। फूल क्षण भर के लिए खिलकर अपनी महक फैलाता है और फिर नष्ट हो जाता है, परंतु कवि की कल्पना, उसका भाव और सौंदर्य अनंत काल तक श्रोताओं को आनंद दे सकते हैं।

प्रश्न 4.
बच्चों और कविता में क्या समानता है?
उत्तर:
बच्चे आपसी भेदभाव तथा अपने-पराए के अंतर को भूलकर खेलते हुए आनंद प्राप्त करते हैं। कविता भी अपने-पराए की भावना को भूलकर भावों को ग्रहण करती है। जिस प्रकार बच्चों को खेल से आनंद मिलता है, उसी प्रकार कविता भी आनंदानुभूति के लिए लिखी जाती है।

प्रश्न 5.
‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य)/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘बात सीधी थी पर कविता के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि हमें सहज, सरल तथा बोधगम्य भाषा द्वारा अपनी बात को कहना चाहिए। यदि कवि अपनी बात को जटिल तथा चमत्कृत करने वाली भाषा के द्वारा कहता है तो उसकी बात श्रोता तक ठीक से नहीं पहुँच पाती। प्रायः कुछ कवि अपने कथ्य को चमत्कारी बनाने के लिए भाषा को जान-बूझकर तोड़ते-मरोड़ते और घुमाते-फिराते हैं। इससे कविता का भाव-सौंदर्य तथा कलागत सौंदर्य दोनों नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
‘बात की चूड़ी मरने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘बात की चूड़ी मरने’ का यह अभिप्राय है कि बेवजह बात को घुमाने-फिराने से उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। जिस प्रकार पेंच की चूड़ी मरने के बाद उसका कसाव ढीला पड़ जाता है, उसी प्रकार भाषा के अनावश्यक विस्तार से मूल बात शब्द-जाल में उलझ जाती है। वह श्रोता तक ठीक से नहीं पहुँच पाती।

प्रश्न 7.
‘बात और अधिक पेचीदा’ क्यों होती चली गई?
उत्तर:
कवि ने भाषा को अनावश्यक विस्तार देते हुए अपनी बात को कहने का प्रयास किया। उसने चमत्कृत करने वाली कृत्रिम भाषा का अधिक प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप बात और भी पेचीदा होती चली गई।

प्रश्न 8.
कवि ने हारकर उसे कील की तरह उसी जगह क्यों ठोंक दिया?
उत्तर:
पहले तो कवि ने चमत्कृत भाषा के प्रयोग द्वारा अपनी बात को प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया परंतु इससे कवि का कथ्य उलझकर रह गया। वस्तुतः कवि अपना धैर्य खो बैठा। इसलिए उसने निराश होकर अपनी बात को उसी कृत्रिम भाषा में प्रकट कर दिया।

प्रश्न 9.
कवि को पसीना क्यों आ रहा था?
उत्तर:
कवि अपनी बात को सरलता से नहीं कह पा रहा था। वह प्रभावशाली भाषा के प्रयोग में उलझकर रह गया। कवि जो कुछ कहना चाहता था, वह कह नहीं पाया। वह बार-बार काव्य भाषा को बदल रहा था। इस कारण उसकी बात जटिल भाषा में उलझकर रह गई। इसलिए उसे थकावट के कारण पसीना आ रहा था।

प्रश्न 10.
बात ने एक शरारती बच्चे की तरह कवि से क्या कहा?
उत्तर:
बात एक शरारती बच्चे की तरह कवि से क्रीड़ा कर रही थी। वह जानती थी कि कवि उसे ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है। इसलिए उसने कवि से कहा कि तुम अभी तक यह भी नहीं सीख पाए कि भाषा का सहज प्रयोग किस प्रकार किया जाता है? अर्थात् कवि को यह समझना चाहिए था कि सहज शब्दावली में भी सहज विचारों को व्यक्त किया जा सकता है। उसके लिए जटिल अथवा उलझी हुई शब्दावली की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 11.
आखिर कवि को डर किस बात का था?
उत्तर:
कवि अपनी ओर से बात को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना चाहता था। इसके लिए उसने आडंबर प्रधान भाषा का या। लेकिन बलपूर्वक कृत्रिम भाषा का प्रयोग करने से कवि का कथ्य इस प्रकार प्रभावहीन हो गया जैसे जोर जबरदस्ती करने से चूड़ी मर जाती है।

प्रश्न 12.
बात पेचीदा क्यों होती चली गई?
उत्तर:
कवि सहज एवं सरल भाषा में अपनी बात को कह सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह भाषा को तोड़ने-मरोड़ने लगा ताकि उसका कथन अधिक प्रभावशाली हो सके। इसका परिणाम यह हुआ कि उस कृत्रिम भाषा के फलस्वरूप कवि का कथन उलझता चला गया और बात पेचीदा होती चली गई।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. कुँवर नारायण का जन्म कब हुआ?
(A) 19 सितंबर, 1927
(B) 19 सितंबर, 1937
(C) 19 दिसंबर, 1927
(D) 19 अक्तूबर, 1927
उत्तर:
(A) 19 सितंबर, 1927

2. कुँवर नारायण का जन्म कहाँ पर हुआ?
(A) मुरादाबाद
(B) मेरठ
(C) बरेली
(D) फैज़ाबाद
उत्तर:
(D) फैज़ाबाद

3. कुँवर नारायण ने किस विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय

4. कुँवर नारायण ने चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड, रूस तथा चीन का भ्रमण कब किया?
(A) सन् 1954 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1956 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(B) सन् 1955 में

5. सन् 1956 में कुँवर नारायण किस पत्रिका के संपादक मंडल से जुड़ गए?
(A) धर्म युग
(B) दिनमान
(C) नवनीत
(D) युग चेतना
उत्तर:
(D) युग चेतना

6. भारतेंदु नाटक अकादमी में वे किस पद पर नियुक्त हुए?
(A) सचिव
(B) उपाध्यक्ष
(C) अध्यक्ष
(D) सलाहकार
उत्तर:
(C) अध्यक्ष

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

7. कुँवर नारायण को ‘हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1971 में
(B) सन् 1973 में
(C) सन् 1969 में
(D) सन् 1968 में
उत्तर:
(A) सन् 1971 में

8. कुँवर नारायण को ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1973 में
(B) सन् 1975 में
(C) सन् 1976 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर:
(A) सन् 1973 में

9. कुँवर नारायण को मध्य प्रदेश का ‘तुलसी पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1981 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1984 में
(D) सन् 1984 में
उत्तर:
(B) सन् 1982 में

10. ‘कविता के बहाने’ के कवि का नाम क्या है?
(A) आलोक धन्वा
(B) रघुवीर सहाय
(C) कुँवर नारायण
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) कुँवर नारायण

11. ‘कविता के बहाने कविता कवि के किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(A) चक्रव्यूह
(B) अपने सामने
(C) इन दिनों
(D) आत्मजयी
उत्तर:
(C) इन दिनों

12.
‘बात सीधी थी पर कविता के कवि का नाम क्या है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) मुक्तिबोध
(C) आलोक धन्वा
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

13. ‘बात सीधी थी पर’ किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(A) इन दिनों
(B) कविता के बहाने
(C) कोई दूसरा नहीं
(D) चक्रव्यूह
उत्तर:
(C) कोई दूसरा नहीं

14. ‘तीसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1958 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(C) सन् 1959 में

15. ‘परिवेश : हम तुम’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) हरिवंश राय बच्चन
(B) रघुवीर सहाय
(C) आलोक धन्वा
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

16. ‘परिवेश : हम तुम’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(A) सन् 1961 में

17. ‘इन दिनों का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1962 में
(B) सन् 1963 में
(C) सन् 1965 में
(D) सन् 1964 में
उत्तर:
(D) सन् 1964 में 18. ‘अपने सामने के रचयिता का नाम क्या है?

18. ‘अपने सामने’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) कुँवर नारायण
(C) मुक्तिबोध
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) कुँवर नारायण

19. ‘अपने सामने का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1996 में
(B) सन् 1995 में
(C) सन् 1997 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(C) सन् 1997 में

20. ‘आकारों के आस-पास’ के रचयिता कौन हैं?
(A) आलोक धन्वा
(B) रघुवीर सहाय
(C) मुक्ति बोध
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

21. ‘आकारों के आस-पास’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य-संग्रह
(B) कहानी संग्रह
(C) निबंध संग्रह
(D) कविता संग्रह
उत्तर:
(B) कहानी संग्रह

22. ‘आज और आज से पहले किस विधा की रचना है?
(A) निबंध संग्रह
(B) उपन्यास
(C) एकांकी संग्रह
(D) समीक्षा
उत्तर:
(D) समीक्षा

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

23. ‘कविता के पंख लगाने में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) उत्प्रेक्षा
(D) उपमा
उत्तर:
(B) रूपक

24. सीधी बात भी किसके चक्कर में फंस गई थी?
(A) निपुणता
(B) शैतानी
(C) भाषा
(D) भय
उत्तर:
(C) भाषा

25. ‘कवि की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) उपमा
(C) श्लेष
(D) काकुवक्रोक्ति
उत्तर:
(A) रूपक

26. ‘कविता के बहाने’ कविता में किस छंद का प्रयोग हआ है?
(A) कवित्त छंद
(B) सवैया छंद
(C) मुक्त छंद
(D) दोहा छंद
उत्तर:
(C) मुक्त छंद

27. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) श्लेष
(B) यमक
(C) अनुप्रास
(D) वक्रोक्ति
उत्तर:
(C) अनुप्रास

28. भाषा के क्या करने से बात और अधिक पेचीदा हो गई?
(A) तोड़ने-मरोड़ने
(B) उलटने-पलटने
(C) घुमाने-फिराने
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

29. ‘बात की चूड़ी मर जाना’ का अर्थ है
(A) स्पष्ट होना
(B) प्रभावहीन होना
(C) प्रभावपूर्ण होना
(D) तर्कपूर्ण होना
उत्तर:
(B) प्रभावहीन होना

30. ‘बात की पेंच खोलना’ का अर्थ है
(A) बात उलझा देना
(B) बात का प्रभावहीन होना
(C) बात को सहज और स्पष्ट करना
(D) बात को घुमाकर कहना
उत्तर:
(B) बात का प्रभावहीन होना

31. ‘बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना’ का अर्थ है
(A) बात का प्रभावहीन होना
(B) कोई ठीक उत्तर न देना
(C) बात द्वारा शरारत करना
(D) बात को सहज स्पष्ट करना
उत्तर:
(B) कोई ठीक उत्तर न देना

32. बिन मुरझाए महकना का अर्थ है
(A) कविता का प्रभाव अनंत काल तक रहता है
(B) कविता कभी नहीं मुरझाती
(C) कविता का प्रभाव शीघ्र नष्ट हो जाता है
(D) कविता को लोग पढ़ना नहीं चाहते
उत्तर:
(A) कविता का प्रभाव अनंत काल तक रहता है

33. बात कवि के साथ किसके समान खेल रही थी?
(A) शरारती बच्चे के
(B) खिलौने के
(C) भाषा के
(D) पेंच के
उत्तर:
(A) शरारती बच्चे के

34. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई थी?
(A) पेचीदा
(B) सरल
(C) वक्र
(D) व्यर्थ
उत्तर:
(A) पेचीदा

35. ‘बात सीधी थी पर’ नामक कविता में कवि ने किस पर बल दिया है?
(A) भाषा की जटिलता
(B) भावों की सरसता
(C) भाषा की सहजता
(D) भावों की गरिमा
उत्तर:
(C) भाषा की सहजता

36. ‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने कौन-सी कोशिश नहीं की थी?
(A) उलटा पलटा
(B) तोड़ा मरोड़ा
(C) हिलाया सरकाया
(D) घुमाया फिराया
उत्तर:
(C) हिलाया सरकाया

37. भाषा को घुमाने फिराने से बात कैसी हो जाती है?
(A) पेचीदा
(B) सरल
(C) दिव्य
(D) सौम्य
उत्तर:
(A) पेचीदा

कविता के बहाने पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

[1] कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने? [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-सरल हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है तथा इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि स्पष्ट करता है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का अस्तित्व समाप्त हो गया है

व्याख्या-कवि कविता की शक्ति का वर्णन करता हुआ कहता है कि कविता एक उड़ान है। जहाँ चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, परन्तु कविता की उड़ान असीमित होती है। उसमें नए-नए भाव, नए-नए रंग तथा नए-नए विचार उत्पन्न होते रहते हैं। कविता की उड़ान बड़ी ऊँची होती है। चिड़िया भी कविता की उड़ान के उस छोर तक नहीं पहुँच पाती। कविता के भाव असीम होते हैं। कविता न केवल घर के भीतर की गतिविधियों का वर्णन करती है, बल्कि वह बाहर के क्रियाकलापों को भी व्यक्त करती है। भाव यह है कि कभी तो कविता घर-परिवार की समस्याओं का उद्घाटन करती है तो कभी घर के बाहर के वातावरण का मार्मिक वर्णन करती है। कविता के साथ कल्पना के पंख लगे होते हैं। इसलिए उसकी उड़ान असीम है। बेचारी चिड़िया कविता की असीम शक्ति को कैसे पहचान सकती है। जहाँ प्रकृति का क्षेत्र ससीम है, वहाँ कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने कविता और चिड़िया की उड़ान की मनोहारी तुलना की है। चिड़िया एक सीमित क्षेत्र में ही उड़ान भर सकती है, परंतु कविता की उड़ान असीमित है।
  2. ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्नालंकार है तथा इसमें मानवीकरण का भी पुट है।
  3. ‘कविता के पंख’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-योजना सार्थक व सटीक है।
  7. वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
(ग) कविता चिड़िया के बहाने एक उड़ान क्यों है?
(घ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि-कुँवर नारायण कविता- कविता के बहाने’

(ख) इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि चिड़िया तो प्रकृति के प्रांगण में ही उड़ान भरती है। उसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं। वह केवल आकाश में ही उड़ सकती है, परंतु वह मानव-मन की सूक्ष्म भावनाओं में प्रवेश नहीं कर पाती। इसलिए वह कविता की उड़ान को नहीं जान सकती।

(ग) जिस प्रकार चिड़िया खुले आकाश में उड़ान भरती है, उसी प्रकार कवि की कल्पना चिड़िया की ऊँची उड़ान को देखकर कल्पना लोक में विचरण करने लगती है। कवि केवल प्राकृतिक सौंदर्य का ही वर्णन नहीं करता, बल्कि वह मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं का वर्णन भी करता है। अतः चिड़िया की उड़ान कविता के लिए प्रेरणा का काम करती है।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान की तुलना की है। चिड़िया की उड़ान की अपेक्षा कविता की उड़ान अधिक प्रभावशाली, शक्तिशाली तथा व्यापक है। कविता की उड़ान का संबंध मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं से भी है।

[2] कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने? [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-महकना = सुगंध बिखेरना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इस पद्य में कवि कविता की तुलना फूल के साथ करता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि कविता फूलों को देखकर खिलती है और पुष्पित होती है। फूलों के समान कविता में भी नए-नए रंग भर जाते हैं। कविता का खिलना असीम है, जबकि फूल का खिलना ससीम है। फल केवल खिलकर अपने चारों ओर स तथा सुंदरता को बिखेर देता है, परंतु फूल कविता के खिलने को ठीक से समझ नहीं पाता। फूल का क्षेत्र सीमित है। एक समय ऐसा आता है जब फूल मुरझाकर नष्ट हो जाता है। उसके साथ-साथ उसकी सुगंध तथा सुंदरता भी समाप्त हो जाती है, परंतु कविता की सुगंध तथा सुंदरता कभी समाप्त नहीं होती। वह न केवल घर के बाहर तथा भीतर अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरती है, बल्कि वह प्रत्येक घर में अपने भाव-सौंदर्य को बिखेरती रहती है। फूल तो केवल इतना जानता है कि बस सुगंध उत्पन्न करना तथा एक दिन झर जाना। फूल बिना मुरझाए महकने के अर्थ को नहीं जान सकता। कविता हमेशा अपने भावों की सुगंध बिखेरती रहती है। उसका भाव शाश्वत होता है तथा वह कभी नष्ट नहीं होता।

विशेष –

  1. इस पद्यांश में कवि ने कविता तथा फूल की तुलना बहुत सुंदर ढंग से की है। कविता की तुलना में फूल ससीम है परंतु कविता अनंत और असीम है।
  2. ‘कविता का खिलना फूल क्या जाने’ इस पद्य पंक्ति में काकूवक्रोक्ति अलंकार का वर्णन हुआ है।
  3. ‘फूल क्या जाने’ में प्रश्नालंकार है तथा मानवीकरण अलंकार का पुट भी है।
  4. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कविता का खिलना फूल क्या जाने-पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है?
(ख) कविता और फूल के खिलने में क्या अंतर है?
(ग) कविता बिना मुरझाए बाहर भीतर कैसे महकती है?
(घ) इस पद्य का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि फूल की सीमाओं पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि भले ही वह खिलकर चारों ओर सुगंध बिखेरता है, परंतु उसका खिलना सीमित होता है। वह कविता के मर्म को नहीं जान पाता। निश्चय से कविता फूल से अधिक मूल्यवान है। उसकी प्रभावोत्पादकता असीम है।

(ख) फूल खिलकर एक सीमित क्षेत्र में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। परंतु कविता का क्षेत्र असीमित होता है। कविता की कल्पना सर्वत्र पहुँच सकती है। फूल कविता के समान व्यापक नहीं है। इसलिए कहा भी गया है
“जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।”

(ग) कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता और हमेशा अपनी महक को बिखेरता रहता है। कविता बाह्य प्रकृति और आंतरिक प्रकृति दोनों का वर्णन करने में समर्थ है। वह अनंत काल तक अपनी सुगंध को बिखेरती रहती है। कविता का प्रभाव अनंत तथा असीम है।

(घ) इस पद्यांश द्वारा कवि कविता और फूल की तुलना करते हुए कहता है कि फूल एक सीमित दायरे में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। कुछ समय के बाद शीघ्र ही वह नष्ट हो जाता है। परंतु कविता मानव मन के बाहर तथा भीतर दोनों को सुगंधित करती है। इसलिए फूल की शक्ति ससीम है, परंतु कविता की शक्ति असीम है।

[3] कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने। [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-सरल हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इसमें कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता और निष्कलुषता का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि का कथन है कि कवि बच्चों की क्रीड़ाओं को देखकर अपनी कविता द्वारा शब्द-क्रीड़ा करता है। वह शब्दों के माध्यम से नए-नए भावों तथा विचारों के खेल खेलता है। जिस प्रकार बच्चे कभी घर में खेलते हैं, कभी बाहर खेलते हैं और अपने-पराए का भेदभाव नहीं करते, उसी प्रकार कवि भी कविता के द्वारा सभी के भावों का वर्णन करता है। बच्चों के खेल कवि को भी प्रेरणा देते हैं। खेल-खेल में बच्चे एक-दूसरे को अपना बना लेते हैं और वे एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। कवि भी बच्चों के समान बाहर और भीतर के मनोभावों का वर्णन करता है। वह समान भाव से सभी लोगों की सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण करता है। भाव यह है कि जिस प्रकार बच्चे एक-दूसरे को जोड़ते हैं, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता द्वारा जोड़ने का प्रयास करता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता तथा निष्कलुषता का उद्घाटन किया है।
  2. कवि यह स्पष्ट करता है कि बच्चे आपस में खेलते हुए अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं।
  3. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित व सटीक है।
  6. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है तथा मुक्त छंद है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि ने कविता को खेल क्यों कहा है?
(ख) बच्चे खेल-खेल में कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं?
(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में क्या समानता है?
(घ) इस पद्य से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:
(क) बच्चे मनोरंजन तथा आत्माभिव्यक्ति के लिए आपस में खेलते हैं। खेलों के पीछे उनका कोई गंभीर उद्देश्य नहीं होता, परंतु क्रीड़ाएँ बच्चों को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं। इसी प्रकार कविता की रचना करना भी एक खेल है। कविता के द्वारा कवि न केवल श्रोताओं का मनोरंजन करता है, बल्कि उन्हें आनंदानुभूति भी प्रदान करता है।

(ख) बच्चे खेल-खेल में अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। खेलों द्वारा उनमें आत्मीयता की भावना उत्पन्न होती है। बच्चे खेलों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।

(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही आनंदानुभूति प्रदान करते हैं। दोनों ही समाज को जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं। दूसरा, दोनों से ही मनोरंजन होता है।

(घ) इस पद्यांश से हमें यह संदेश मिलता है कि बच्चों के समान कविता भी हमें आपस में जोड़ती है। कविता अपने-पराए के भेदभाव को भूलकर सबकी अनुभूतियों को व्यक्त करती है। कविता का क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत व व्यापक है। इसका प्रभाव भी शाश्वत और अनंत है।

बात सीधी थी पर पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

[1] बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई। [पृष्ठ-18]

शब्दार्थ-चक्कर = प्रभाव दिखाने की कोशिश। टेढ़ा फँसना = बुरी तरह फँसना। पेचीदा = जटिल, उलझी हुई।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। सीधी बात को हम सहज एवं सरल भाषा द्वारा प्रभावशाली बना सकते हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि मैं कविता द्वारा एक सहज, सरल बात कहना चाहता था। एक बार ऐसा करते समय मैं भाषा के भ्रम का शिकार बन गया। मैंने सोचा कि मैं बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करूँ, परंतु ऐसा करते समय मेरा कथ्य उलझकर रह गया और बात की सरलता और स्पष्टता नष्ट हो गई। सरल-सी बात भी सुलझकर रह गई। तब मैंने एक बड़ी भारी भूल की। मैंने भाषा के शब्दों को काटना-छाँटना तथा तोड़ना-मरोड़ना आरंभ कर दिया। उसे कभी इधर घुमाया, कभी उधर घुमाया। वस्तुतः मैं अपनी मूल बात को सहज तथा सरल रूप से व्यक्त करना चाहता था, परंतु मेरी बात उलझकर रह गई। तब मैंने यह कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या मेरी बात को भाषा के उलट-फेर से स्वतंत्रता मिल जाए। परंतु दोनों काम नहीं हो सके। इस प्रयास में भाषा जटिल से जटिलतर होती चली गई और मेरी मूल बात भी सरलता खोकर जटिल बन गई। भाव यह है कि कविता का कथ्य और माध्यम दोनों उलझकर रह गए।

विशेष-

  1. इस पद्य में कवि ने सहज, सरल कथ्य को सहज और सरल माध्यम (भाषा) द्वारा अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया पर बल दिया है। ऐसा करने से अभिव्यक्ति की सरलता का भाव स्वतः प्रकट हो जाता है।
  2. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसे लयात्मक गद्य कहा जा सकता है।
  3. प्रस्तुत पद्य में उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा, घुमाया-फिराया आदि शब्दों का सटीक प्रयोग किया गया है। इन शब्द-युग्मों में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
  5. ‘भाषा का चक्कर’ तथा ‘टेढ़ी फँसी’ आदि लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  6. ज़रा, पेचीदा आदि उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।
  7. मुक्त छंद है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘भाषा के चक्कर’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) कवि द्वारा भाषा के तरोड़ने-मरोड़ने का क्या दुष्परिणाम हुआ?
(घ) कवि भाषा के चक्कर में क्यों फँस गया?
(ङ) इस पद्यांश का संदेश क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-कुँवर नारायण कविता-बात सीधी थी पर (ख) जब कवि कविता की भाषा में अलंकार-सौंदर्य, शब्द-शक्तियों आदि को बलपूर्वक लूंसने का प्रयास करता है तो भाषा में जटिलता उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप मूल संदेश शब्दों में उलझकर रह जाता है। कवि कथ्य के चारों ओर भाषा का ऐसा जंजाल खड़ा हो जाता है कि सीधी बात भी नहीं कही जा सकती।

(ग) कवि द्वारा भाषा को तरोड़ने-मरोड़ने तथा उलटने-पलटने के फलस्वरूप बात और उलझकर रह गई और कवि-कथ्य जटिल और पेचीदा बन गया।

(घ) कवि अपनी सीधी बात को प्रभावशाली ढंग से कहना चाहता था। इसलिए उसने बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करने का प्रयास किया, परंतु उसकी बात और उलझकर रह गई।

(ङ) इस पद्य द्वारा कवि यह संदेश देना चाहता है कि कवि को जान-बूझकर भाषा जटिल नहीं बनानी चाहिए, बल्कि सीधी बात सरल शब्दों में व्यक्त करनी चाहिए। भाषा की जटिलता कथ्य को उलझाकर रख देती है और कविता पाठक को आनंदानुभूति नहीं दे पाती।

[2] सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह। [पृष्ठ-18]

शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई। बेतरह = बुरी तरह। करतब = चमत्कार। तमाशबीन = तमाशा देखने वाले (पाठक)। शाबाशी = प्रशंसा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। इसमें कवि स्पष्ट करता है कि जटिल भाषा का प्रयोग करने वाला कवि लोगों की वाह-वाही तो लूट लेता है, परंतु वह अपने भाव तथा भाषा को जटिल बना देता है

व्याख्या कवि कहता है कि मेरी सहज, सरल बात भाषा के चक्कर में फंस गई थी। मैं इस कठिनाई को धैर्यपूर्वक समझ नहीं पाया, बल्कि मैं समस्या के कारण को समझे बिना ही उसे और जटिल बनाता चला गया। जिस प्रकार कोई कारीगर पेंच को खोलने की बजाए उसे बुरी तरह कसता चला जाता है, उसी प्रकार मैं भी भाषा के साथ ज़बरदस्ती करने लगा। मेरी इस बेवकूफी पर वाह-वाही करने वाले लोग भी अधिक थे जो मुझे शाबाशी दे रहे थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मेरी कविता के भाव और भाषा दोनों जटिल बनते चले गए और कविता का कथ्य उलझकर रह गया।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कवि का कथ्य जब जटिल भाषा में उलझकर रह जाता है तो वह अपना धैर्य खो बैठता है तब वह जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करने लगता है।
  2. ‘तमाशबीन’ शब्द में व्यंग्य छिपा हुआ है। प्रायः दर्शक, श्रोता अथवा प्रशंसक अकारण प्रशंसा द्वारा कवि को भ्रमित कर देते हैं और वह कविता में जटिल भाषा का प्रयोग करने का आदी बन जाता है।
  3. ‘करतब’ शब्द में व्यंग्यात्मकता है। जान-बूझकर भाषा को जटिल बनाना करतब ही कहा जाएगा।
  4. पेंच कसने के बिंब द्वारा कवि अपनी बात को स्पष्ट करता है। यहाँ उद्देश्य बिंब के साथ रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-योजना सर्वथा उचित व सटीक है।
  7. मुश्किल, करतब, साफ, तमाशबीन, शाबाशी आदि उर्दू के शब्दों का सफल प्रयोग है जिससे इस पद्यांश की भाषा लोक प्रचलित हिंदी बन गई है।
  8. पेंच खोलने की बजाए उसे कसने में दृश्य बिंब की योजना सुंदर बन पड़ी है।
  9. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) पेंच खोलने का क्या अर्थ है?
(ख) कवि सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना पेंच को खोलने की बजाए कसता क्यों चला गया?
(ग) तमाशबीन वाह-वाह क्यों कर रहे थे?
(घ) कवि के कार्य को करतब क्यों कहा गया है?
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
(क) यहाँ पेंच खोलने से अभिप्राय अभिव्यक्ति की जटिलता को और अधिक बढ़ाना है। कवि अपना धैर्य खो चुका था। इस कारण वह मूल समस्या को समझे बिना जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करता चला गया।

(ख) कवि अपने कथ्य को अत्यधिक प्रभावशाली बनाना चाहता था। इसलिए वह धैर्यपूर्वक समस्या को नहीं समझ पाया और कविता के अभिव्यक्ति पक्ष को जटिल बनाता चला गया।

(ग) तमाशबीन कवि की प्रशंसा करके उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। वे अभिव्यक्ति के सौंदर्य को जानते नहीं थे। वे तो केवल कवि की जटिल भाषा से प्रभावित होकर कवि की पीठ ठोंक रहे थे।

(घ) कवि ने सोचे-समझे बिना अपनी बात को उलझाने तथा जटिल बनाने का प्रयास किया। इसलिए कवि के कार्य को करतब कहा गया है।

(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि कवि को धैर्यपूर्वक सरल अभिव्यक्ति का ही प्रयोग करना चाहिए। सरल भाषा में कही गई बात श्रोता की समझ में शीघ्र आ जाती है और वह कवि की अभिव्यंजना शिल्प से प्रभावित भी होता है। परंतु जो कवि सोचे-समझे बिना बात को उलझाकर जटिल बना देते हैं, उनकी कविता वांछित प्रभाव

[3] आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?” [पृष्ठ-18-19]

शब्दार्थ- ज़ोर ज़बरदस्ती = बलपूर्वक। चूड़ी मरना = पेंच कसने के लिए बनाई गई चूड़ी का नष्ट होना (कथ्य की प्रभावोत्पादकता)। कसाव = कसावट। ताकत = शक्ति। सहूलियत = आसानी, सरलता। बरतना = प्रयोग करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश के कवि कुँवर नारायण हैं। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

व्याख्या कवि स्पष्ट करता है कि यहाँ अन्ततः वही परिणाम निकला जिसका कवि को भय था। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने तथा जटिल बनाने से कविता की भावाभिव्यक्ति का प्रभाव ही नष्ट हो गया। उसकी अभिव्यंजना कंद हो र भाषा भावहीन होकर पीड़ा करने लगी अर्थात् कविता का मूल कथ्य तो नष्ट हो गया, केवल भाषा की उछल-कूद ही दिखाई देने लगी। अंत में कवि तंग आ गया। उसने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से बलपूर्वक लूंस दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऊपर से वह कविता ठीक लग रही थी, परंतु उसका कथ्य पक्ष बड़ा ही कमज़ोर तथा प्रभावहीन बनकर रह गया। कवि के कथन में न कोई प्रभाव था और न ही भावों की गंभीरता थी। कवि की कविता पूर्णतः प्रभावहीन बनकर रह गई थी।

अंत में कविता के कथ्य ने (बात ने) बच्चे की तरह कवि के साथ क्रीड़ा करते हुए उससे कहा कि तुम मुझ पर व्यर्थ में ही मेहनत कर रहे थे और अपनी इस मूर्खता पर पसीना बहा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि तुम्हें आज तक सहज तथा सरल भाषा का प्रयोग करना ही नहीं आया। इससे पता चलता है कि तुम एक अयोग्य और बेकार कवि हो। तुम इस तथ्य को नहीं जान पाए कि सहज तथा सरल भाषा में कही बात ही प्रभावशाली सिद्ध होती है।

विशेष-

  1. कवि ने स्वीकार किया है कि जटिल तथा चमत्कारी भाषा का प्रयोग करने से कविता का मूल भाव प्रभावहीन हो जाता है।
  2. पेंच कसने में दृश्य बिंब की योजना सजीव बन पड़ी है। यहाँ रूपकातिशयोक्ति अलंकार का भी प्रयोग हुआ है।
  3. ‘बात की चूड़ी मरना’ में भी रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘कील की तरह ठोंकना’ से अभिप्राय है भाषा का बलपूर्वक प्रयोग करना।
  5. प्रस्तुत पद्य में बात का सुंदर और प्रभावशाली मानवीकरण हुआ है।
  6. ‘कील की तरह’, ‘शरारती बच्चे की तरह’ दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
  7. ‘पसीना पोंछना’, ‘ज़ोर-ज़बरदस्ती’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  8. ‘कवि का पसीना पोंछना’ में सुंदर बिंब योजना है। यह पद परिश्रम की व्यर्थता को सिद्ध करता है।
  9. इसमें कवि ने सहज, सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। इसमें आखिर, ज़ोर-ज़बरदस्ती, ताकत, पसीना, सहूलियत आदि उर्दू शब्दों का बड़ा ही सुंदर मिश्रण किया गया है।
  10. शब्द-योजना बड़ी सार्थक व सटीक है।
  11. मुक्त छंद तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि को किस बात का डर था?
(ख) कवि के सामने कथ्य तथा माध्यम की क्या समस्या थी?
(ग) क्या कवि इस समस्या का हल निकाल सका?
(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से क्या कहा?
(ङ) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि को इस बात का डर था कि जटिल भाषा का प्रयोग करने से कविता का मुख्य भाव प्रभावहीन तथा अस्पष्ट हो जाएगा और अंत में ऐसा ही हुआ।

(ख) कवि अपने कथ्य को प्रभावशाली माध्यम के द्वारा व्यक्त करना चाहता था। परंतु कवि इस सच्चाई से अनभिज्ञ था कि सहज तथा बोधगम्य भाषा में कही गई बात ही अधिक प्रभावशाली और गंभीर होती है।

(ग) कवि इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण कवि की बात उलझकर रह गई। अंततः कवि ने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से लूंस दिया।

(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से कहा कि तुम व्यर्थ में ही परिश्रम कर रहे हो और अपनी बेवकूफी की मेहनत पर पसीना बहा रहे हो। तुम आज तक समझ नहीं पाए कि कविता में हमेशा सहज, सरल, बोधगम्य भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।

(ङ) इस पद्यांश में कवि स्वीकार करता है कि वह अपने कथ्य को सहज, सरल भाषा के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण उसकी बात उलझकर रह गई और प्रभावहीन हो गई।

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary in Hindi

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कवि-परिचय

प्रश्न-
श्री कुँवर नारायण का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री कुँवर नारायण का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-कुँवर नारायण उत्तर शती के एक महत्त्वपूर्ण नए कवि हैं। उनका जन्म 19 सितंबर, 1927 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इंटर तक उन्होंने विज्ञान विषय में शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्हें आरंभ से ही घूमने-फिरने का शौक था। उन्होंने सन् 1955 में चेकोस्लोवाकिया, पौलैंड, रूस तथा चीन का भ्रमण किया। वे सन् 1956 में ‘युग चेतना’ के संपादक मंडल से जुड़ गए। बाद में ‘नया प्रतीक’ तथा ‘धायानट’ के संपादक मंडल में भी रहे तथा उत्तर प्रदेश नाटक मंडली के अध्यक्ष भी बने। कालांतर में वे भारतेंदु नाटक अकादमी के अध्यक्ष बन गए। आरंभ में उन्होंने अंग्रेज़ी में कविताएँ लिखीं। परंतु बाद में हिंदी में कविता लिखने लगे। उनको सन् 1971 में हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1973 में ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ तथा 1982 में मध्यप्रदेश का ‘तुलसी पुरस्कार’ तथा केरल का ‘कुमारन आशान पुरस्कार’ भी प्राप्त हुए। उनके इस काम के लिए उत्तर प्रदेश संस्थान ने भी सम्मानित किया तथा 1955 में ‘व्यास सम्मान’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शतदल’ पुरस्कार मिले। इन्हें ‘कबीर’ सम्मान भी मिला।

2. प्रमुख रचनाएँ-अज्ञेय के संपादन में निकले ‘तीसरा सप्तक’ 1959 में संकलित कविताएँ ‘चक्रव्यूह’ (1956), ‘परिवेश : हम तुम’ (1961), ‘आत्मजयी’ (1965), ‘इन दिनों अपने सामने’ (1997), ‘कोई दूसरा नहीं’ (1993) आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’ (सामान्य) उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कुँवर नारायण जी की काव्य-यात्रा निरंतर विकास की ओर हुई है। ‘तार सप्तक’ की कविताओं के बाद कवि ने व्यक्ति के मन की स्थिति के चित्रों का अंकन किया है। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) सामाजिक चेतना-कुँवर नारायण की कविताओं में सामाजिक चेतना का विकास देखा जा सकता है। ‘चक्रव्यूह’ में जहाँ जीवन के प्रति सामाजिक जीवन का प्रवाह है, वहाँ जीवन-संघर्षों के अनेक प्रश्नों की तलाश भी दिखाई देती है। इस काव्य रचना में कवि ने जीवन व जगत की अनेक स्थितियों का वर्णन किया है। जीवन के संघर्षों को कवि अपनी नियति नहीं मानता, बल्कि वह टुकड़ों में बँटी हुई जिंदगी के सुनहरे क्षणों को देखता है; यथा
जरा ठहरो, जिंदगी के इन टुकड़ों को फिर से सँवार लूँ,
और उन सुनहले क्षणों को जो भागे जा रहे हैं।
पुकार लू …………….
आगे चलकर कवि मानव के अस्तित्व का चित्रण करते हुए उसके सामने उपस्थित भयानक स्थितियों का वर्णन करता है। कवि स्वीकार करता है कि विषम परिस्थितियों में आदमी जानवर बन जाता है। इसका कारण यह है कि परिस्थितियों की जकड़न से बाहर निकलकर उसके स्वभाव में बदलाव आ जाता है। ‘तब भी कुछ नहीं हुआ’, ‘पूरा जंगल’ आदि कविताएँ इसी तथ्य को उजागर करती हैं।

(ii) क्रूर व्यवस्था का वर्णन- कवि ‘अपने सामने’, काव्य-संग्रह में उस क्रूर व्यवस्था का वर्णन करता है जो मनुष्य की स्वतंत्रता, उसके अस्तित्व को जकड़ लेना चाहती है। लेकिन इसके साथ-साथ वह मुक्ति की भी चर्चा करता है। कवि आस्थाशील है। उसके विचारानुसार सत्ता की यह क्रूरता सार्वकालिक नहीं है, इसे हटाया भी जा सकता है। इसके लिए कवि नैतिकता से जुड़ने की सलाह देता है। कवि का विचार है कि हमें क्रूर व्यवस्था का डट कर विरोध करना चाहिए, अन्यथा यह संपूर्ण मानवता को निगल जायेगी।
उनके अफसर, सिपाही और कोतवाल-
उनके सलाहकार, मसखरे और नक्काल-
…………………………………………………
छा गये हैं।
वे सबके सब वापस आ गये हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

(iii) सही मार्ग की खोज-कवि चारों ओर फैली हुई छीना-झपटी और दुनियादारी में विश्वास नहीं करता। वह मानव-जीवन को अंधकारमय होने से बचाना चाहता है। वह एक ऐसा मार्ग खोजना चाहता है जो जीवन को गतिशील बनाए रखे और बाधाओं का सामना कर सके। कवि कहता है
मुझको इस छीना-झपटी में विश्वास नहीं।
मुझको इस दुनियादारी में विश्वास नहीं
……………………………………………………….
एक दृष्टि चाहिए मुझे –
भौतिक जीवन बच सके।

(iv) प्रकृति-वर्णन-कवि ने ‘जाड़े की एक सुबह’, ‘बसंत की लहर’, ‘बसंत आ’, ‘सूर्यास्त’ आदि कविताओं में प्रकृति के पूरे निखार का वर्णन किया है। कवि प्रकृति-वर्णन द्वारा उपदेश नहीं देना चाहता, बल्कि उसके सौंदर्य का स्वाभाविक वर्णन करना चाहता है; यथा
नदी की गोद में नादान शिशु-सा
अर्द्ध सोया द्वीप।
झिलमिल चाँदनी में नाचती परियाँ
लहर पर लहर लहराती
बजाकर तालियाँ गाती।

(v) प्रेम के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण-प्रेम के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण पूर्णतया स्वस्थ एवं वैयक्तिक है। उनके विचारानुसार प्रेम मनुष्य के लिए शक्ति का काम करता है। यह निराश तथा कुचले जीवन में भी सजीवता उत्पन्न करता है। इसलिए प्रेम को आत्मा में स्थान देना चाहिए।
जिंदा रहने के लिए
प्यार एक खूबसूरत वजह है
लेकिन जिंदगी के लिए
दिल से कहीं अधिक आत्मा में जग है।

4. भाषा-शैली-कुँवर नारायण ने खड़ी बोली के स्वाभाविक रूप का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने न तो बलपूर्वक लोक भाषा का प्रयोग किया है और न ही संस्कृतनिष्ठ पदावली का। कवि ने सहज, सरल तथा भावानुकूल छंदों, बिंबों, प्रतीकों तथा अलंकारों का ही प्रयोग किया है। उनकी कविता को पढ़कर पाठक आत्मीयता का अनुभव करता है। छंदों के बारे में उनकी दृष्टि खुली है, क्योंकि वे सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग करते हैं। यही नहीं उनकी कविताओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का भी सहज प्रयोग हुआ है; यथा-
उपमा –
जहरीली फफूंदी-सी उदासी
छीलकर मन से अलग कर दो।
मानवीकरण-धूप चुपचाप एक कुर्सी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कुँवर नारायण नयी कविता के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। भाव और भाषा दोनों दृष्टिकोणों से उनका काव्य आधुनिक युगबोध से जुड़ा हुआ है।

कविता के बहाने कविता का सार 

प्रश्न-
कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता आधुनिक कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित एक छोटी-सी कविता है। यह कविता कवि के काव्य-संग्रह ‘इन दिनों में संकलित है। आज के वैज्ञानिक युग में कविता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यद्यपि पाश्चात्य काव्यशास्त्री आई०ए० रिचर्डस् ने आज के भौतिकवादी युग के लिए कविता को आवश्यक माना है, लेकिन काव्य प्रेमियों में एक डर-सा समा गया है कि आज के यांत्रिक युग में कविता का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इस संदर्भ में प्रस्तुत कविता अपार संभावनाओं को टटोलने का प्रयास करती है। ‘कविता के बहाने’ कविता चिड़िया की यात्रा से आरंभ होती है और फूल का स्पर्श करते हुए बच्चे पर आकर समाप्त हो जाती है। कवि कविता के महत्त्व का प्रतिपाद्य करते हुए कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित है। वह एक निश्चित समय में निश्चित दायरे में ही उड़ान भर सकती है। इसी प्रकार फूल भी एक निश्चित समय के बाद मुरझा जाता है। परंतु बालक के मन और मस्तिष्क में असीम सपने होते हैं। बच्चों के खेलों की कोई सीमा नहीं होती। इसी प्रकार कविता के शब्दों का खेल भी अनंत और शाश्वत है। कवि जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी को स्पर्श करता हुआ अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है। कविता में एक रचनात्मक ऊर्जा होती है। इसलिए वह घर, भाषा तथा समय के बंधनों को तोड़कर प्रवाहित होती है। कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है।

बात सीधी थी पर कविता का सार 

प्रश्न-
कुँवर नारायण द्वारा रचित ‘बात सीधी थी पर कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि हमें काव्य के विषय को सहज तथा सरल भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करना चाहिए। परंतु प्रायः कवि कविता में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए उसे पेचीदा बना देते हैं। इस प्रकार के कवि इस भ्रम के शिकार हो जाते हैं कि इस क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करने से उन्हें अधिकाधिक लोकप्रियता प्राप्त होगी। कुछ क्षणों के लिए ऐसा हो भी जाता है। पाठक अथवा श्रोता भी कवि के भ्रम का शिकार हो जाते हैं, परंतु बाद में कवि द्वारा कही गई बात प्रभावहीन हो जाती है क्योंकि चमत्कार के चक्कर में कवि की भाषा पर पकड़ ढीली पड़ जाती है। इस संदर्भ में कवि उदाहरण भी देता है। वह कहता है कि पेंच को निर्धारित चूड़ियों पर ही कसा जाना चाहिए। यदि चूड़ियाँ समाप्त होने पर पेंच को घूमाएँगे तो चूड़ियाँ मर जाएँगी और उसकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी। भले ही उसे बलपूर्वक ठोक दिया जाए, पर वह पहली जैसी बात नहीं रहती। सहज शब्दावली में सहजता के साथ ही भावों की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सहजता की पकड़ मजबूत और स्थाई होती है। इसमें न अधिक परिश्रम करना पड़ता है और न ही अधिक दवाब डालना पड़ता है। इसलिए कवि को अपनी सहज एवं सीधी बात को सहज भाषा के साथ अभिव्यक्त करना चाहिए।

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