Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्मनिरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्ष शब्द अंग्रेज़ी भाषा के सेक्युलर (Secular) शब्द का हिन्दी पर्याय है। सेक्युलर शब्द लेटिन भाषा के सरकुलम (Surculum) शब्द से बना है। लेटिन भाषा से उदित इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘साँसारिक’ अर्थात् राजनीतिक गतिविधियों को केवल लौकिक क्षेत्र तक सीमित रखना है।

प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्ष राज्य की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
श्री वैंकटरमन के अनुसार, “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो धार्मिक, न ही अधार्मिक और न ही धर्म विरोधी होता है। वह धार्मिक कार्यों तथा सिद्धान्तों से पूर्णतः अलग है और इस प्रकार धार्मिक विषयों में पूर्ण रूप से निष्पक्ष रहता है।”

प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता के नकारात्मक रूप से क्या तात्पर्य है? ।
उत्तर:
नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के अन्तर्गत राज्य धार्मिक विषयों में पूर्ण तटस्थता की नीति पर चलता है। वह किसी विशेष धर्म को नहीं अपनाता और न ही धर्म-प्रचार के कार्यों तथा धार्मिक संस्थाओं के विकास सम्बन्धी विषयों में भाग लेता। राज्य की नीतियों का निर्माण या कार्यान्वयन भी धार्मिक आधार पर नहीं किया जाता और न ही सार्वजनिक पदों का आधार धर्म होता है।

प्रश्न 4.
धर्मनिरपेक्षता के सकारात्मक रूप से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के अन्तर्गत राज्य समस्त नागरिकों को धार्मिक विश्वास की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी संस्थाएँ स्थापित करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। सभी धर्मावलम्बियों को सार्वजनिक पदों की प्राप्ति हेतु समान अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
धर्मनिरपेक्ष राज्य की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होता।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य, राज्य के सभी धर्मों का बराबर सम्मान करता है।

प्रश्न 6.
धर्मनिरपेक्ष राज्य सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु किस प्रकार माना जाता है?
उत्तर:
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य जहाँ प्रत्येक धर्म के अनुयायी को स्वतन्त्रता प्रदान करता है, वहाँ यह भी स्पष्ट करता है कि प्रत्येक धर्म के अनुयायी द्वारा यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि एकमात्र हमारा धर्म ही सत्य का प्रतिपादन करता है, क्योंकि सभी धर्म आधारभूत रूप में एक ही हैं। इसलिए हमें सभी धर्मों का बराबर सम्मान करना चाहिए।

प्रश्न 7.
आधुनिक समय में हमारे लिए पथ-निरपेक्ष राज्य कैसे सहायक है? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • प्रत्येक देश में पाए जाने वाले अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा प्रदान करने में धर्म-निरपेक्ष राज्य सहायक सिद्ध होता है।
  • एक धर्म-निरपेक्ष राज्य में साम्प्रदायिकता की समस्या को नियन्त्रित करना भी आसान हो जाता है, क्योंकि धर्म-निरपेक्ष राज्य सभी धर्मों के लोगों में एकरसता एवं सद्भाव की भावना को जागृत करता है।

प्रश्न 8.
धर्मनिरपेक्षता की अमेरिकी संकल्पना में राज्यसत्ता एवं धर्म की स्थिति क्या है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की अमेरिकी संकल्पना में राज्यसत्ता एवं धर्म दोनों के क्षेत्र एवं सीमाएँ अलग-अलग हैं, जिसके अनुसार, राज्यसत्ता धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगी और धर्म राज्यसत्ता के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस प्रकार अमेरिकी या यूरोपीय मॉडल धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानता है और इसे राज्यसत्ता की नीति या कानून का विषय नहीं मानता।

प्रश्न 9.
धर्मनिरपेक्षता की भारतीय संकल्पना में राज्यसत्ता एवं धर्म की स्थिति क्या है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की भारतीय संकल्पना ने धार्मिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक अत्यन्त परिष्कृत नीति अपनाई है, जिसके अनुसार वह अमेरिकन या यूरोपीय मॉडल में धर्म से विलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। वास्तव में भारतीय धर्मनिरपेक्षता का ऐसा चरित्र समाज में शान्ति, स्वतन्त्रता एवं समानता के मूल्यों को बढ़ावा देन की ही एक रणनीति का एक भाग है।

प्रश्न 10.
भारत में धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • भारत में किसी धर्म को राज-धर्म की संज्ञा नहीं दी गई है।
  • धर्मनिरपेक्षता भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का मूल सिद्धान्त बन गई है।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द कब जोड़ा गया?
उत्तर:
संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा 1976 ई० में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़कर यह पूर्णतः स्पष्ट किया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।

प्रश्न 12.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के समक्ष उत्पन्न किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • भारतीय समाज में उत्पन्न साम्प्रदायिकता ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौती प्रस्तुत की है।
  • संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों से युक्त राजनीतिक दलों एवं राजनीतिज्ञों ने भी लोगों में धार्मिक कट्टरता पैदा करके भारत के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे के समक्ष चुनौती उत्पन्न की है।

प्रश्न 13.
धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने और कब किया था?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जॉर्ज जैकब होलियॉक ने सन् 1846 में किया था।

प्रश्न 14.
भारतीय संविधान सभा में धर्मनिरपेक्षता पर अपने विचार प्रकट करने वाले किन्हीं दो प्रमुख व्यक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान सभा में प्रो० के०टी० शाह एवं श्री एल०एन० मिश्र ने धर्मनिरपेक्षता पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति बड़े प्रभावी रूप से की थी।

प्रश्न 15.
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के विपक्ष या आलोचना में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का आधार भौतिकवादी होने के कारण उसका नैतिक एवं अध्यात्मिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में मत-पंथ या धर्म की पूरी तरह उपेक्षा किए जाने से धार्मिक एकता का अभाव हो जाता है जिससे राष्ट्र की एकता’ पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 16.
आधुनिक समय में धर्मनिरपेक्ष राज्य की आवश्यकता के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
(1) एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्म को राजनीतिक जीवन से पृथक् करके उसे व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित रखता है जिसके फलस्वरूप राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अनेक कुरीतियों पर स्वतः ही अंकुश लग जाता है।

(2) एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी मत-पंथो के श्रेष्ठ नैतिक आदर्शों को पूर्णतः सम्मान मिलता है जिसके फलस्वरूप नागरिकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास विशेष सामाजिक वातावरण का निर्माण होता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का स्वरूप या व्यवहार विभिन्न धर्मों या धार्मिक समुदायों के सन्दर्भ में कैसा होना चाहिए? संक्षेप में लिखिए।
अथवा
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में राजसत्ता एवं धर्म के मध्य सम्बन्धों के स्वरूप का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्यसत्ता को न केवल धर्मतान्त्रिक होने से इन्कार करना होगा, बल्कि उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से भी परहेज करना होगा। धर्म और राज्यसत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता के लिए जरूरी है, मगर केवल यही पर्याप्त नहीं है।

धर्मनिरपेक्ष राज्य को ऐसे सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए अवश्य प्रतिबद्ध होना चाहिए जो अंशतः ही सही और गैर-धार्मिक स्रोतों से निकलते हों। ऐसे लक्ष्यों में शान्ति, धार्मिक स्वतन्त्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी और साथ ही अन्तर-धार्मिक व अन्तः धार्मिक समानता शामिल रहनी चाहिए। अतः इन लक्ष्यों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य को संगठित धर्म और इसकी संस्थाओं से कुछ मूल्यों के लिए अवश्य ही पृथक् रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्ष राज्य की पश्चिमी या यूरोपीय संकल्पना को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। अथवा धर्म एवं राज्यसत्ता के सम्बन्ध में यूरोपीय मॉडल की अवधारणा को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी संकल्पना (अमेरिकी मॉडल) राज्यसत्ता और धर्म दोनों के क्षेत्र एवं सीमाएँ अलग-अलग मानती है और इस तरह दोनों के सम्बन्ध विच्छेद को पास्परिक निषेध के रूप में समझा जाता है। राज्यसत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और इसी प्रकार धर्म राज्यसत्ता के मामलों से हस्तक्षेप नहीं करेगा। राज्यसत्ता की कोई नीति पूर्णतः धार्मिक तर्क के आधार पर नहीं बन सकती और कोई धार्मिक वर्गीकरण किसी सार्वजनिक नीति की बुनियाद नहीं बन सकता। अगर ऐसा हुआ तो वह राज्यसत्ता के मामले में धर्म की अवैध घुसपैठ मानी जाएगी।

इस प्रकार यूरोपीय मॉडल धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानता है और इसे राज्यसत्ता की नीति या कानून का विषय नहीं मानता। इस पश्चिमी संकल्पना में राज्य न तो किसी धार्मिक संस्था की सहायता करेगा और न ही किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित शिक्षण संस्था की वित्तीय सहायता करेगा। जब तक धार्मिक समुदायों की गतिविधियाँ देश के कानून द्वारा निर्मित व्यापक सीमा के अन्दर होती हैं, वह इन गतिविधियों में व्यवधान नहीं पैदा कर सकता। जैसे कोई विशेष धर्म अपने मुख्य सदस्यों को मन्दिर के गर्भगृह में जाने से रोकता है, तो राज्य के पास मामले को बने रहने देने के लिए अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।

प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी भारतीय अवधारणा को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। अथवा भारतीय धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी दृष्टिकोण पश्चिमी दृष्टिकोण से कैसे भिन्न है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर ही बल नहीं देती है, बल्कि अन्तर-धार्मिक समानता भारतीय संकल्पना के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अन्तःधार्मिक वर्चस्व पर भी अपना बराबर ध्यान केन्द्रित किया है।

इसने हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया है। इसके अतिरिक्त भारतीय धर्मनिरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक स्वतन्त्रता से ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतन्त्रता से भी है।

इसके अन्तर्गत हर आदमी को अपनी पसन्द का धर्म मानने का अधिकार तो है ही, इसके साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी स्वयं की संस्कृति और शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार दिया गया है। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्पित धर्म-सुधार की गुंजाइश भी है। जैसे भारतीय संविधान ने जहाँ छुआछूत पर प्रतिबन्ध लगाया है, वहाँ बाल-विवाह उन्मूलन एवं अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को समाप्त करने हेतु कई कानून बनाए गए हैं।

इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने धार्मिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक अत्यन्त परिष्कृत नीति अपनाई है जिनके अनुरूप वह अमेरिकन या यूरोपीय मॉडल में धर्म से विलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। वास्तव में भारतीय धर्मनिरपेक्षता का ऐसा चरित्र समाज में शान्ति, स्वतन्त्रता एवं समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने की ही रणनीति का एक भाग है।

प्रश्न 4.
धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी नकारात्मक एवं स्वीकारात्मक दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं? अथवा धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी नकारात्मक एवं स्वीकारात्मक दृष्टिकोण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी नकारात्मक रूप से राज्य धार्मिक मामलों में पूर्ण तटस्थता की नीति पर चलता है। वह किसी धर्म-विशेष को नहीं अपनाता और किसी धर्म-विशेष के उत्थान या उसे निरुत्साहित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाता। वह धर्म-प्रचार के कार्यों या धार्मिक संस्थाओं के विकास सम्बन्धी मामलों में भाग नहीं लेता। राज्य की नीतियों का निर्माण या कार्यान्वयन धार्मिक आधार पर नहीं किया जाता। राज्य किसी धर्म के विकास हेतु कोई कर नहीं लगाता। सार्वजनिक सेवाओं व पदों पर नियुक्तियों में धर्म के आधार पर राज्य कोई भेदभाव नहीं करता।

स्वीकारात्मक रूप में राज्य सब नागरिकों को धार्मिक विश्वास की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी संस्थाएँ स्थापित करने की स्वतन्त्रता देता है। सभी धर्मावलम्बियों को सार्वजनिक पदों की प्राप्ति हेतु समान अवसर देता है। राजकीय अनुदान देने में सभी धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित संस्थाओं के साथ समान नीति बरतता है।

इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता के स्वीकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों पक्षों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य अधार्मिक या धर्म-विहीन नहीं है, बल्कि वह सब धर्मों की शिक्षाओं का सम्मान करता है, परन्तु राजनीतिक कार्य-कलापों में ऐसा कुछ नहीं करता जिससे किसी धर्म-विशेष के मानने वालों का अहित हो और किसी अन्य धर्म के मानने वालों का हित हो।

प्रश्न 5.
धर्मनिरपेक्षता की कोई चार परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

1. स्मिथ (Smith) के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसमें व्यक्तिगत अथवा सामूहिक धार्मिक स्वतन्त्रता होती है, जो व्यक्ति के साथ धर्म के विषयों में बिना किसी भेदभाव के नागरिक जैसा व्यवहार रखता है, जो सवैधानिक रूप से किसी को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म से सम्बन्धित नहीं होता तथा न ही किसी धर्म में हस्तक्षेप अथवा उसे बढ़ाने का प्रयत्न करता है।”

2. श्री वेंकटरमन (Venkataraman) ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की परिभाषा देते हुए लिखा है, “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो धार्मिक, न ही अधार्मिक और न ही धर्म विरोधी होता है, वह धार्मिक कार्यों तथा सिद्धान्तों से पूर्णतः अलग है और इस प्रकार धार्मिक विषयों में पूर्ण रूप से निष्पक्ष रहता है।”

3. डॉ० बी०आर० अम्बेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष राज्य का अभिप्राय यह नहीं है कि लोगों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल नहीं किया जाएगा। इसका अर्थ सिर्फ यह होगा कि संसद को जनता पर किसी विशेष धर्म को लादने की शक्ति नहीं होगी। संविधान द्वारा सिर्फ यही नियन्त्रण लगाया जाएगा।”

4. डॉ० के०आर० बम्बवाल (Dr. K.R. Bombwall) के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष प्रबन्ध में राज्य न धार्मिक होता है, न अधार्मिक और न ही धर्म के विरुद्ध होता है, अपितु धार्मिक विश्वासों और गतिविधियों से पूरी तरह अलग होता है और इस तरह धार्मिक मामलों में निष्पक्ष होता है।”

अतः उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य उस राज्य को कहते हैं जो किसी धर्म-विशेष पर आधारित न हो। ऐसे राज्य में सरकार के द्वारा सभी धर्मों को समान समझा जाता है और किसी एक धर्म को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता। कानून की दृष्टि से सभी नागरिक समान माने जाते हैं और धर्म के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार जाता। धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्मों को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

प्रश्न 6.
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होता।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य, राज्य के सभी धर्मों का बराबर सम्मान करता है।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की मनाही होती है।

धर्मनिरपेक्षता के अर्थ, विशेषताओं पर प्रकाश डालने के बाद यहाँ पर यह स्पष्ट करना भी उपयुक्त होगा कि धर्मनिरपेक्षता का भारतीय स्वरूप होता है।

प्रश्न 7.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। अथवा क्या भारत सच्चे अर्थों में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secular) व्यक्ति वह है जो “केवल दुनियावी या लौकिक मामलों से सम्बन्ध रखता है, धार्मिक मामलों से नहीं”। साम्यवादी देशों में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ‘धर्म-विरोधी प्रवृत्ति’ से लिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में धर्म एवं राज्य दोनों को अलग-अलग रखने की नीति अपनाई गई है, जिसके अनुसार, राज्य धर्म के क्षेत्र में न हस्तक्षेप करेगा और न ही किसी तरह का सहयोग करेगा।

अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक निर्णय में कहा था, “हम लोग धर्म के विरुद्ध नहीं हैं, परन्तु राजकोष का पैसा धार्मिक प्रचार हेतु व्यय नहीं किया जा सकता।” भारतीय संविधान की विभिन्न व्यवस्थाओं से पता चलता है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप के निम्नलिखित पहल हैं

(1) भारतीय संविधान ने भारत में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की व्यवस्था की है।

(2) राज्य व्यक्ति के धार्मिक विश्वास एवं क्रिया-कलापों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा, क्योंकि भारत में धर्म को एक व्यक्तिगत मामला माना गया है।

(3) भारतीय संविधान धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव की मनाही करता है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद-14 ‘विधि के समक्ष समानता’ का अधिकार प्रदान करता है।

(4) संविधान के अध्याय तीन में अनुच्छेद-25 से 28 तक सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

(5) भारत में किसी धर्म-विशेष को राज-धर्म की संज्ञा नहीं दी गई है।

(6) भारत में धार्मिक स्वतन्त्रताएँ असीमित नहीं हैं। राज्य द्वारा उन पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त व्यवस्थाएँ भारत में सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करती हैं। इस तरह भारतीय राज्य न तो धार्मिक है, न अधार्मिक और न ही धर्म-विरोधी, किन्तु यह धार्मिक संकीर्णताओं तथा वृत्तियों से दूर है और धार्मिक मामलों में तटस्थ है।

प्रश्न 8.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के समक्ष उत्पन्न किन्हीं चार प्रमुख चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज में उत्पन्न कुछ विकृतियों ने भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के समक्ष कुछ चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी चुनौतियों को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं
(1) भारतीय समाज में उत्पन्न साम्प्रदायिकता ने भारतीय धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के समक्ष एक कड़ी चुनौती प्रस्तुत की है।

(2) हिन्दू एवं मुस्लिम धर्मों में धार्मिक कट्टरता की भावना एवं उन्माद ने भी भारतीय धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को हानि पहुँचाई है।

(3) भारत के साधु-सन्तों, मुल्ला, मौलवियों, इमामों द्वारा अपने धर्म के लोगों में धार्मिक उन्माद फैलाने की नीति ने भारतीय धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुंचाई है।

(4) संकीर्ण स्वार्थों से युक्त राजनीतिक दलों एवं राजनीतिज्ञों ने भी लोगों में धार्मिक कट्टरता पैदा करके भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को ठेस पहुँचाई है।

प्रश्न 9.
क्या भारतीय संविधान में किए गए प्रावधान सच्चे अर्थों में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाते हैं?
अथवा
क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है? क्यों? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
क्या धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए उचित है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निःसन्देह भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारतीय संविधान में किए गए विभिन्न प्रावधान भी भारत को सच्चे रूप में धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान करते हैं। भारतीय संविधान द्वारा धर्मनिरपेक्षता को सैद्धान्तिक स्वरूप प्रदान करना एक तरह से अपरिहार्यता भी थी, क्योंकि भारत की स्वाधीनता के समय भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों एवं सम्प्रदायों के लोग रहते थे और उन्हें एकता के सूत्र में पिरोने के लिए धर्मनिरपेक्षता की नीति सर्वाधिक उपयुक्त लगती थी।

इसीलिए हमने भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधान करके यह सुनिश्चित कर दिया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा। यद्यपि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हमने ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को 42वें संशोधन द्वारा सन् 1976 में जोड़कर स्पष्ट कर दिया कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का मूल आधार है। भारतीय संविधान में किए गए निम्नलिखित प्रावधान भारत के लिए पथ-निरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षता की औचित्यतता को सिद्ध करते हैं

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग करना।
  • भारतीय संविधान द्वारा साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करना।
  • संविधान द्वारा नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता एक मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान करना।
  • भारत राज का अपना कोई राजधर्म न होना आदि।

अतः उपर्युक्त धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधान जहाँ भारत को सच्चे अर्थों में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में स्थापित करते हैं वहाँ भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच एकता और समन्वय की स्थापना में भी सहायक हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्मनिरपेक्षता का क्या अभिप्राय है? आधुनिक समय में हमें धर्मनिरपेक्ष राज्य की क्या आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी यूरोपीय एवं भारतीय मॉडल को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि आधुनिक युग में हमें धर्मनिरपेक्ष राज्य की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
धर्म या पथ-निरपेक्ष शब्द अंग्रेजी भाषा के सेक्युलर (Secular) शब्द का हिन्दी पर्याय है। सेक्युलर शब्द लेटिन भाषा के सरकुलम (Surculam) शब्द से बना है। लेटिन भाषा से उदित इस शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘सांसारिक’ है अर्थात् राजनीतिक गतिविधियों को केवल लौकिक क्षेत्र तक सीमित रखना है। सेक्युलर (Secular) शब्द के प्रथम प्रयोगकर्ता जॉर्ज जैकब हॉलीओक ने स्पष्ट किया है कि, “धर्मनिरपेक्षता का अर्थ, इस विश्व या मानव जीवन से सम्बन्धित दृष्टिकोण, जो धार्मिक या द्वैतवादी विचारों से बंधा हुआ न हो।”

एनसाइकलोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष शब्द का तात्पर्य है-गैर-आध्या वस्त जो धार्मिक तथा आध्यात्मिक तथ्यों की विरोधी तथा उनसे असम्बद्ध होने के कारण स्वयं में पहचान योग्य है, आध्यात्मिक तत्त्वों के विपरीत सांसारिक है।” अतः धर्मनिरपेक्षता को सर्वप्रथम एवं सर्वप्रमुख रूप से ऐसा सिद्धान्त समझा जाना चाहिए जो अन्तर-धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। यद्यपि यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से केवल एक है। धर्मनिरपेक्षता का इतना ही महत्त्वपूर्ण दूसरा पहलू अन्तःधार्मिक वर्चस्व यानि धर्म के अन्दर छुपे वर्चस्व का विरोध करना है।

इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो धर्मनिरपेक्ष समाज अर्थात् अन्तर-धार्मिक तथा अन्तःधार्मिक दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है। यदि इसी बात को सकारात्मक रूप से कहें तो यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है।

परन्तु यहाँ यह प्रश्न पैदा होता है कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को अपनाने वाले किसी राज्य को धर्म और धार्मिक समुदाय से कैसे सम्बन्ध रखने चाहिएँ। इसके साथ-साथ किसी समाज में धार्मिक टकरावों को रोकने एवं धार्मिक समानता को प्रोत्साहित करने के लिए राजसत्ता एवं धर्म के बीच कैसे सम्बन्ध स्थापित होने चाहिएँ? यह जानना भी दिलचस्प होगा।

यहाँ यह स्पष्ट है कि वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्यसत्ता को न केवल धर्मतान्त्रिक होने से इन्कार करना होगा, बल्कि उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से भी परहेज करना होगा। धर्म और राज्यसत्ता के बीच सम्बन्ध विच्छेद धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता के लिए जरूरी है, मगर केवल यही पर्याप्त नहीं है।

धर्मनिरपेक्ष राज्य को ऐसे सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए अवश्य प्रतिबद्ध होना चाहिए जो अंशतः ही सही और गैर-धार्मिक स्रोतों से निकलते हों। ऐसे लक्ष्यों में शान्ति, धार्मिक स्वतन्त्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी और साथ ही अन्तर-धार्मिक व अन्तःधार्मिक समानता शामिल रहनी चाहिए।

अतः इन लक्ष्यों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य को संगठित धर्म और इसकी संस्थाओं से कुछ मूल्यों के लिए अवश्य ही पृथक् रहना चाहिए, परन्तु यहाँ यह भी प्रश्न पैदा होता है कि राज्यसत्ता व धर्म के मध्य पृथक्कता कैसी होनी चाहिए? इस सम्बन्ध में धर्म-निरपेक्षता सम्बन्धी निम्नलिखित दो प्रकार की संकल्पनाएँ मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं

  • धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल,
  • धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल।

1. धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी संकल्पना (अमेरिकी मॉडल) राज्यसत्ता और धर्म दोनों के क्षेत्र एवं सीमाएँ अलग-अलग मानती है और इस तरह दोनों के सम्बन्ध विच्छेद को पास्परिक निषेध के रूप में समझा जाता है। राज्यसत्ता धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और इसी प्रकार धर्म राज्यसत्ता के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। राज्यसत्ता की कोई नीति पूर्णतः धार्मिक तर्क के आधार पर नहीं बन सकती और कोई धार्मिक वर्गीकरण किसी सार्वजनिक नीति की बुनियाद नहीं बन सकता। अगर ऐसा हुआ तो वह राज्यसत्ता के मामले में धर्म की अवैध घुसपैठ मानी जाएगी।

इस प्रकार यूरोपीय मॉडल धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानता है और इसे राज्यसत्ता की नीति या कानून का विषय नहीं मानता। इस पश्चिमी संकल्पना में राज्य न तो किसी धार्मिक संस्था की सहायता करेगा और न ही किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित शिक्षण संस्था की वित्तीय सहायता करेगा। जब तक धार्मिक समुदायों की गतिविधियाँ देश के कानून द्वारा निर्मित व्यापक सीमा के अन्दर होती हैं, वह इन गतिविधियों में व्यवधान नहीं पैदा कर सकता। जैसे कोई विशेष धर्म अपने मुख्य सदस्यों को मन्दिर के गर्भगृह में जाने से रोकता है, तो राज्य के पास मामले को बने रहने देने के लिए अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।

2. धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर ही बल नहीं देती है, बल्कि अन्तर-धार्मिक समानता भारतीय संकल्पना के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अन्तःधार्मिक वर्चस्व पर भी अपना बराबर ध्यान केन्द्रित किया है।

इसने हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया है। इसके अतिरिक्त भारतीय धर्मनिरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक स्वतन्त्रता से ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतन्त्रता से भी है।

इसके अन्तर्गत हर आदमी को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार तो है ही, इसके साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी स्वयं की संस्कृति और शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार दिया गया है। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्पित धर्म-सुधार की गुंजाइश भी है। जैसे भारतीय संविधान ने जहाँ छुआछूत पर प्रतिबन्ध लगाया है, वहाँ बाल-विवाह उन्मूलन एवं अन्तर्जातीय विवाह पर हिन्दू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को समाप्त करने हेतु कई कानून बनाए गए हैं।

इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने धार्मिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक अत्यन्त परिष्कृत नीति अपनाई है जिनके अनुरूप वह अमेरिकन या यूरोपीय मॉडल में धर्म से विलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ सम्बन्ध भी बना सकता है। वास्तव में भारतीय धर्मनिरपेक्ष समाज में शान्ति, स्वतन्त्रता एवं समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने की ही रणनीति का एक भाग है।,

अतः उपर्युक्त धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी अमेरिकन मॉडल एवं भारतीय मॉडल के विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के दो रूप होते हैं-(i) निषेधात्मक तथा (i) स्वीकारात्मक। नकारात्मक रूप से राज्य धार्मिक मामलों में पूर्ण तटस्थता की नीति पर चलता है। वह किसी धर्म-विशेष को नहीं अपनाता और किसी धर्म-विशेष के उत्थान या उसे निरुत्साहित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाता। वह धर्म-प्रचार के कार्यों या धार्मिक संस्थाओं के विकास सम्बन्धी मामलों में भाग नहीं लेता। राज्य की नीतियों का निर्माण या कार्यान्वयन धार्मिक आधार पर नहीं किया जाता।

राज्य किसी धर्म के विकास हेतु कोई कर नहीं लगाता। सार्वजनिक सेवाओं व पदों पर नियुक्तियों में धर्म के आधार पर राज्य भेदभाव नहीं करता। स्वीकारात्मक रूप में राज्य सब नागरिकों को धार्मिक विश्वास की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी संस्थाएँ स्थापित करने की स्वतन्त्रता देता है। सभी धर्मावलम्बियों को सार्वजनिक पदों की प्राप्ति हेतु समान अवसर देता है। राजकीय अनुदान देने में सभी धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित संस्थाओं के साथ समान नीति बरतता है।

इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता के स्वीकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों पक्षों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य अधार्मिक या धर्म-विहीन नहीं है, बल्कि वह सब धर्मों की शिक्षाओं का सम्मान करता है, परन्तु राजनीतिक कार्य-कलापों में ऐसा कुछ नहीं करता जिससे किसी धर्म-विशेष के मानने वालों का अहित हो और किसी अन्य धर्म के मानने वालों का हित हो। इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता के उपर्युक्त अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं को निम्नलिखित रूप में विवेचित किया जा सकता है

1. स्मिथ (Smith) के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसमें व्यक्तिगत अथवा सामूहिक धार्मिक स्वतन्त्रता होती है, जो व्यक्ति के साथ धर्म के विषयों में बिना किसी भेदभाव के नागरिक जैसा व्यवहार रखता है, जो सवैधानिक रूप से किसी को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म से सम्बन्धित नहीं होता तथा न ही किसी धर्म में हस्तक्षेप अथवा उसे बढ़ाने का प्रयत्न करत

2. श्री वैंकटरामन (Venkataraman) ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की परिभाषा देते हुए लिखा है, “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो धार्मिक, न ही अधार्मिक और न ही धर्म विरोधी होता है, वह धार्मिक कार्यों तथा सिद्धान्तों से पूर्णतः अलग है और इस प्रकार धार्मिक विषयों में पूर्ण रूप से निष्पक्ष रहता है।”

3. डॉ० के०आर० बम्बवाल (Dr. K.R. Bombwall) के अनुसार, “धर्मनिरपेक्ष प्रबंध में.राज्य न धार्मिक होता है, न अधार्मिक और न ही धर्म के विरुद्ध होता है, अपितु धार्मिक विश्वासों और गतिविधियों से पूरी तरह अलग होता है और इस तरह धार्मिक मामलों में निष्पक्ष होता है।” रिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य उस राज्य को कहते हैं जो किसी धर्म-विशेष पर आधारित न हो।

ऐसे राज्य में सरकार के द्वारा सभी धर्मों को समान समझा जाता है और किसी एक धर्म को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता। कानून की दृष्टि से सभी नागरिक समान माने जाते हैं और धर्म के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्मों को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। इस प्रकार संक्षेप में धर्मनिरपेक्ष राज्य की मुख्य विशेषताओं को संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं

  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होता,
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है,
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य, राज्य के सभी धर्मों का बराबर सम्मान करता है,
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की मनाही होती है।

आधुनिक समय में हमें धर्मनिरपेक्ष राज्य की क्या आवश्यकता है? वर्तमान युग में प्रायः सभी लोकतान्त्रिक देशों में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा बहुत ही लोकप्रिय एवं राज्य की एक आवश्यक विशेषता बन गई है। इसलिए यहाँ हम आधुनिक समय में एक धर्म-निरपेक्ष राज्य की आवश्यकता के कुछ कारणों का संक्षिप्त उल्लेख कर रहे हैं

(1) वर्तमान युग लोकतान्त्रिक युग है और धर्मनिरपेक्षता लोकतान्त्रिक व्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करती है, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य स्वतन्त्रता की शर्त के रूप में धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल देकर लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देने में मुख्यतः सहयोग देती है।

(2) वर्तमान में समूचा विश्व भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण की प्रक्रिया में से गुजर रहा है, जिसमें विश्व का स्वरूप एक ग्राम विश्व के रूप में उभर रहा है। विश्व के लोगों द्वारा ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी आदान-प्रदान के अतिरिक्त निवेश एवं व्यापार सम्बन्धी प्रक्रियाओं के चलते अब एक क्षेत्र में एक धर्म को मानने वाले ही नहीं, बल्कि विभिन्न धर्मों को मानने वाले व्यक्ति होंगे।

ऐसी स्थिति में प्रत्येक देश में प्रत्येक धर्म को मानने वाले व्यक्ति को उसमें अपनी आस्था रखने, पूजा-अर्चना करने व प्रचार इत्यादि करने का अधिकार देना होगा। इसलिए ऐसी स्थिति में उस राज्य विशेष का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के अतिरिक्त कोई अन्य स्वरूप उसके लिए उचित नहीं हो सकता।

(3) आज प्रत्येक देश में धर्म एवं भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग पाए जाते हैं। इसलिए इन अल्पसंख्यक वर्गों में सुरक्षा रने के लिए राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप सबसे अधिक कारगर सिद्ध होगा। जैसे कि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा द्वारा यहाँ प्रत्येक वर्ग को अपने-अपने धर्म को मानने एवं उसका प्रचार इत्यादि करने का अधिकार दिया गया है। इसीलिए यहाँ बहुसंख्यक हिन्दुओं के आगे अन्य अल्पसंख्यक समुदाय; जैसे जैन, सिख, ईसाई एवं मुस्लिम इत्यादि अपने-आपको असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं।

(4) किसी भी राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप उसके भिन्न-भिन्न धर्मों के साथ सम्बन्धित लोगों में पारस्परिक सहयोग एवं प्रेम की भावना को जन्म देने में बहुत सहायक होगा। आज प्रायः सभी राज्य बहुधर्मी स्वरूप के हैं। ऐसी स्थिति में राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही श्रेष्ठ होगा क्योंकि इससे राज्य में शान्ति, सद्भाव एवं कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भी सहायता मिलेगी।

यहाँ पर, यह भी उल्लेखनीय है कि बहुधर्मी राज्यों में धर्मनिरपेक्षता का अभाव विभिन्न धर्मों के बीच श्रेष्ठता की जंग को जन्म दे सकते है, जिससे वह राज्य साम्प्रदायिकता की समस्या से ग्रस्त हो सकता है। अतः साम्प्रदायिकता की समस्या का एकमात्र निदान उस राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही हो सकता है।

(5) एक राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप राज्य की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में भी सहायक है। जैसे भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के कारण ही विभिन्न धर्मों की मान्यताओं एवं संस्कारों ने मिलकर भारतीय संस्कृति को विकसित स्वरूप प्रदान किया है। आज समूचे विश्व में ‘विभिन्नता में एकता’ के रूप में भारतीय संस्कृति की विशेष पहचान है।

अतः यह कहा जा सकता है कि एक राज्य की संस्कृति एवं सभ्यता के विकास में धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप बहुत सहायक होगा। इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विश्व में राज्यों का लोकतान्त्रिक स्वरूप एवं वैश्वीकरण की प्रक्रिया में धर्म-निरपेक्ष राज्य की अवधारणा की सर्वाधिक उपयुक्त व्यवस्था है।

प्रश्न 2.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि क्या धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए उचित है?
अथवा
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी किए गए प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए यह भी बताएँ कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता के समक्ष कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं?
उत्तर:
ऑक्सफोर्ड शब्दकोष के अनुसार, ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secular) व्यक्ति वह है जो “केवल दुनियावी या लौकिक मामलों से सम्बन्ध रखता है, धार्मिक मामलों से नहीं”। (Concerned with the affairs of this world, worldly, not sacred.)। साम्यवादी देशों में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ‘धर्म-विरोधी प्रवृत्ति’ से लिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में धर्म एवं राज्य दोनों को अलग-अलग रखने की नीति अपनाई गई है, जिसके अनुसार, राज्य धर्म के क्षेत्र में न हस्तक्षेप करेगा और न ही किसी तरह का सहयोग करेगा।

अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक निर्णय में कहा था, “हम लोग धर्म के विरुद्ध नहीं हैं, परन्तु राजकोष का पैसा धार्मिक प्रचार हेतु व्यय नहीं किया जा सकता।” भारतीय संविधान की विभिन्न व्यवस्थाओं से पता चलता है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप के निम्नलिखित पहलू हैं

(1) भारतीय संविधान ने भारत में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की व्यवस्था की है।

(2) राज्य व्यक्ति के धार्मिक विश्वास एवं क्रिया-कलापों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा, क्योंकि भारत में धर्म को एक व्यक्तिगत मामला माना गया है।

(3) भारतीय संविधान धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव की मनाही करता है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद-14 ‘विधि के समक्ष समानता’ का अधिकार प्रदान करता है।

(4) संविधान के अध्याय तीन में अनुच्छेद-25 से 28 तक सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

(5) भारत में किसी धर्म-विशेष को राज-धर्म की संज्ञा नहीं दी गई है।

(6) भारत में धार्मिक स्वतन्त्रताएँ असीमित नहीं हैं। राज्य द्वारा उन पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त व्यवस्थाएँ भारत में सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करती हैं। इस तरह भारतीय राज्य न तो धार्मिक है, न अधार्मिक और न ही धर्म-विरोधी, किन्तु यह धार्मिक संकीर्णताओं तथा वृत्तियों से दूर है और धार्मिक मामलों में तटस्थ है। क्या धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए उचित है? (Is Secularism suitable for India?) उपर्युक्त धर्मनिरपेक्षता के भारतीय स्वरूप की विशेषताओं से यह बात स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।

भारतीय संविधान में किए गए विभिन्न प्रावधान भी भारत को सच्चे रूप में धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान करते हैं। भारतीय संविधान द्वारा धर्मनिरपेक्षता को सैद्धान्तिक स्वरूप प्रदान करना एक तरह से अपरिहार्यता भी थी, क्योंकि भारत की स्वाधीनता के समय भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों एवं सम्प्रदायों के लोग रहते थे और उन्हें एकता के सूत्र में पिरोने के लिए धर्मनिरपेक्षता की नीति सर्वाधिक उपयुक्त लगती थी।

इसीलिए हमने भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधान करके यह सुनिश्चित कर दिया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा। यद्यपि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हमने ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को 42वें संशोधन द्वारा सन् 1976 में जोड़कर स्पष्ट कर दिया कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का मूल आधार है। भारतीय संविधान में किए गए निम्नलिखित प्रावधान भारत के लिए पंथ-निरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षता की औचित्यतता को सिद्ध करते हैं

1. संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का प्रयोग-संविधान के 42वें संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़कर भारत को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। भारत में चाहे किसी भी दल की सरकार हो, उसे धर्मनिरपेक्षता की नीति का ही अनुसरण करना पड़ेगा।

इसके अतिरिक्त प्रस्तावना में यह भी कहा गया है कि भारत में रहने वाले सभी लोगों के लिए न्याय (Justice), स्वतन्त्रता (Liberty) और समानता एवं भ्रातृत्व (Equality and Fraternity) को बढ़ावा देना ही संविधान का उद्देश्य है। इस प्रकार भारत का संविधान किसी एक धर्म अथवा वर्ग के विकास के लिए नहीं है।

2. पृथक तथा साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली का अन्त स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में ब्रिटिश शासकों ने ‘फूट डालो और शासन करो’ (Divide and Rule) की नीति का अनुसरण करते हुए साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली को लागू किया था, परन्तु भारत के नए संविधान द्वारा इस चुनाव-प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और इसके स्थान पर संयुक्त चुनाव-प्रणाली (Joint Election) तथा वयस्क मताधिकार प्रणाली (Adult Franchise) की व्यवस्था की गई। देश के प्रत्येक नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, एक निश्चित आयु तक पहुंचने पर मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया है।

3. राज्य का कोई धर्म नहीं भारत में राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। यद्यपि भारत का विभाजन मुख्य रूप से धर्म के आधार पर ही हुआ था, परन्तु स्वतन्त्र भारत का अपना कोई विशेष धर्म नहीं है। राज्य के कानूनों का निर्माण किसी धर्म के नियमों के आधार पर नहीं किया जाता और न ही राज्य किसी धर्म को कोई विशेष संरक्षण प्रदान करता है।

भारत में किसी भी धर्म का अनुयायी देश के बड़े-से-बड़े पद को ग्रहण कर सकता है। हमारे चार राष्ट्रपति मुसलमान (डॉ० जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद तथा डॉ० ए.पी. जे. अब्दुल कलाम) तथा एक राष्ट्रपति सिक्ख (श्री ज्ञानी जैल सिंह) थे। भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह भी एक सिक्ख हैं। यह स्थिति हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान से सर्वथा भिन्न है।

पाकिस्तान में इस्लाम धर्म, राज्य-धर्म है और वहाँ पर देश के कानूनों तथा नीतियों का निर्माण इस धर्म के नियमों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है। वहाँ पर उच्च पद केवल इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वालों को ही प्राप्त हो सकते हैं।

4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार-नागरिकों के धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को संविधान के द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मान प्रचार करने की स्वतन्त्रता दी गई है। धार्मिक स्वतन्त्रता का यह अधिकार केवल भारत के नागरिकों को ही नहीं, वरन भारत में रहने वाले विदेशियों को भी दिया गया है। संविधान सभी नागरिकों को अपने धर्म का प्रचार करने के लिए अपनी धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने का भी अधिकार देता है।

5. कानून के सामने समानता तथा सरकारी सेवाओं में समान अवसर-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को कानून के सामने समानता प्रदान की गई है। इसका अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद-16 में यह कहा गया है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में नागरिकों में धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

6. सरकारी शिक्षा-संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा की मनाही-भारतीय संविधान के अनुच्छेद-28 के अनुसार सरकारी शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा की मनाही की गई है। ऐसी शिक्षा संस्थाओं में किसी भी धर्म से सम्बन्धित शिक्षा नहीं दी जा सकती और न ही किसी धर्म का प्रचार किया जा सकता है। गैर-सरकारी शिक्षा संस्थाओं, जो सरकार से वित्तीय सहायता अथवा अनुदान लेती हैं, में धार्मिक शिक्षा दी तो जा सकती है, परन्तु उसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता।

7. किसी धर्म के प्रचार के लिए कर नहीं लगाया जा सकता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी भी व्यक्ति के लिए विवश नहीं किया जा सकता जिससे प्राप्त आय किसी धर्म के प्रचार अथवा विकास के लिए खर्च की जानी हो।

8. छुआछूत की समाप्ति-संविधान के अनुसार छुआछूत का अन्त कर दिया है और किसी भी व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना या उसे अछूत मानकर मन्दिरों, होटलों, तालाबों, स्नानगृहों तथा मनोरंजन के सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना कानूनी अपराध घोषित किया गया है। ये सभी बातें भारत के एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का स्पष्ट प्रमाण हैं।

कि भारतीय संविधान के द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है, फिर भी भारतीय राजनीति में धर्म की एक विशेष भूमिका है। वास्तव में, संविधान लागू होने के दिन से लेकर आज तक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के मार्ग में अनेक बाधाएँ खड़ी हुई हैं। जातीय भेदभाव, धार्मिक विभिन्नता एवं क्षेत्रीय संकीर्ण भावनाओं के चलते भारत में सच्चे अर्थ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना आज तक नहीं हो पाई है।

राजनीति ने हिन्दुओं और मुसलमानों को साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं में जकड़ लिया है। धार्मिक विभिन्नता ने समाज में अनेक प्रकार के तनाव उत्पन्न कर दिए हैं। साम्प्रदायिकता का बीज बोने में, सत्ता-प्राप्ति की होड़ में लगे राजनेताओं का भी बड़ा हाथ है। स्वाधीनता के बाद के चुनावों की राजनीति ने धर्म और सम्प्रदाय के नकारात्मक महत्त्व को उभारा है।

यदि हम यह कहें कि सम्प्रदाय आज राजनीतिक दलों के लिए वोट-बैंक बन गए हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। धर्म और संप्रदाय का खुलेआम दुरुपयोग आज राजनीतिक शक्ति के रूप में किया जा रहा है। वास्तव में, संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ हेतु धर्म के प्रयोग ने राष्ट्रीय एकीकरण के लिए चुनौती को खड़ा कर दिया है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारतीय समाज में उत्पन्न कुछ विकृतियों ने भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के समक्ष कुछ चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी चुनौतियों को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

  • भारतीय समाज में उत्पन्न साम्प्रदायिकता ने भारतीय धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के समक्ष एक कड़ी चुनौती प्रस्तुत की है।
  • हिन्दू एवं मुस्लिम धर्मों में धार्मिक कट्टरता की भावना एवं उन्माद ने भी भारतीय धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को हानि पहुंचाई है।
  • भारत के साधु-सन्तों, मुल्ला, मौलवियों, इमामों द्वारा अपने धर्म के लोगों में धार्मिक उन्माद फैलाने की नीति ने भारतीय धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुँचाई है।
  • संकीर्ण स्वार्थों से युक्त राजनीतिक दलों एवं राजनीतिज्ञों ने भी लोगों में धार्मिक कट्टरता पैदा करके भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को ठेस पहुँचाई है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. धर्म-निरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सी धारणा सही नहीं है? ‘
(A) धर्म व्यक्ति का निजी विषय है
(B) राजसत्ता और धर्म दोनों के क्षेत्र एवं सीमाएँ अलग-अलग हैं
(C) राज्य कानून के अधीन की गई गतिविधियों में व्यवधान पैदा नहीं करेगा
(D) राज्य धार्मिक शिक्षण संस्थाओं की वित्तीय सहायता करेगा
उत्तर:
(D) राज्य धार्मिक शिक्षण संस्थाओं की वित्तीय सहायता करेगा

2. धर्म-निरपेक्षता के भारतीय मॉडल के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) पश्चिमी धर्म-निरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है
(B) अन्तः धार्मिक समानता की संकल्पना पर आधारित है
(C) अन्तः धार्मिक वर्चस्व पर भी ध्यान केन्द्रित करते हुए बहुसंख्यक वर्ग के खतरों का विरोध करता है
(D) उपर्युक्त सभी सत्य हैं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी सत्य हैं

3. भारतीय धर्म-निरपेक्षता के नकारात्मक रूप का लक्षण निम्नलिखित में से नहीं है
(A) राज्य का धार्मिक मामलों में तटस्थता का दृष्टिकोण
(B) राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं होता
(C) राज्य में नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन का आधार धर्म पर आधारित होता है।
(D) राज्य में नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन किसी विशेष धर्म पर आधारित नहीं होता है
उत्तर:
(C) राज्य में नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन का आधार धर्म पर आधारित होता है

4. एक धर्म-निरपेक्ष राज्य का लक्षण निम्नलिखित में से है
(A) राज्य का अपना कोई धर्म नहीं
(B) प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतन्त्रता
(C) राज्य द्वारा सभी धर्मों का बराबर सम्मान करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता सम्बन्धी निम्नलिखित में से कौन-सा प्रावधान नहीं किया गया है?
(A) भारतीय संविधान की प्रस्तावना में
(B) धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग
(C) सभी नागरिकों को असीमित धार्मिक स्वतंत्रताएँ
(D) सभी नागरिकों को कानूनी एवं सीमित धार्मिक स्वतंत्रताएँ
उत्तर:
(C) सभी नागरिकों को असीमित धार्मिक स्वतंत्रताएँ

6. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द को कब और कौन-से संशोधन द्वारा जोड़ा गया?
(A) 1985 में 52वें संशोधन द्वारा
(B) 1976 में 42वें संशोधन द्वारा
(C) 1978 में 44वें संशोधन द्वारा
(D) 1994 में 74वें संशोधन द्वारा
उत्तर:
(B) 1976 में 42वें संशोधन द्वारा

7. भारतीय संविधान के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से ठीक है-
(A) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था को अपनाना
(B) वयस्क मताधिकार की प्रणाली को अपनाना
(C) धार्मिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. भारतीय संविधान में छुआछूत की समाप्ति निम्नलिखित में से किस अनुच्छेद द्वारा की गई है?
(A) अनुच्छेद 17
(B) अनुच्छेद 27
(C) अनुच्छेद 37
(D) अनुच्छेद 57
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 17

9. भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता निम्नलिखित में से किस अनुच्छेद में प्रदान की गई है?
(A) अनुच्छेद 14
(B) अनुच्छेद 16
(C) अनुच्छेद 25
(D) अनुच्छेद 26
उत्तर:
(C) अनुच्छेद 25

10. सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए धर्म के आधार पर भारतीय संविधान में भेदभाव की मनाही निम्नलिखित में से किस अनुच्छेद में की गई है?
(A) अनुच्छेद 16
(B) अनुच्छेद 17
(C) अनुच्छेद 27
(D) अनुच्छेद 28
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 16

11. धार्मिक कार्य हेतु किए गए खर्च पर सरकार द्वारा कर में छूट देने सम्बन्धी प्रावधान संविधान के कौन-से अनुच्छेद में वर्णित किया गया है?
(A) अनुच्छेद 25
(B) अनुच्छेद 26
(C) अनुच्छेद 27
(D) अनुच्छेद 28
उत्तर:
(C) अनुच्छेद 27

12. भारतीय धर्म-निरपेक्षता के समक्ष चुनौती निम्नलिखित में से है
(A) साम्प्रदायिकता की प्रवृत्ति का बढ़ना
(B) धार्मिक कट्टरता की भावना में वृद्धि होना
(C) धार्मिक उन्माद फैलाने की प्रवृत्तियों का होना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में

1. सेकुलर (Secular) शब्द का प्रथम प्रयोगकर्ता का श्रेय किसे जाता है?
उत्तर:
जॉर्ज जैकब हॉलीओक को।

2. अंग्रेज़ी भाषा का सेक्युलर (secular) शब्द, सरकुलम (surculam) शब्द से बना है। यह शब्द किस भाषा का है?
उत्तर:
लैटिन भाषा का।

3. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में धर्म विशेष पर आधारित धार्मिक शिक्षा देने की मनाही की गई है?
उत्तर:
अनुच्छेद 28 में।

रिक्त स्थान भरें

1. धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम …………………. ने किया था।
उत्तर:
जॉर्ज जैकब

2. धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही भारतीय संविधान के ……………….. में की गई है।
उत्तर:
अनुच्छेद 14

3. धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग सन् …………………. में किया गया था।
उत्तर:
1846

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अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘राष्ट्र’ या अंग्रेज़ी भाषा का नेशन (Nation) शब्द, लेटिन भाषा के ‘नेशिओ’ (Natio) शब्द से बना है। इसका अर्थ जन्म या नस्ल या जाति से होता है। इस आधार पर एक ही जाति, वंश या नस्ल से जातिगत एकता में जुड़े हुए संगठित जन-समूह को एक राष्ट्र कहा जाता है।

प्रश्न 2.
‘राष्ट्र’ की परिभाषा किन-किन आधारों पर की जाती है?
उत्तर:
विभिन्न विद्वानों द्वारा ‘राष्ट्र’ की परिभाषा जातीय, राजनीतिक एवं भावनात्मक आधारों पर की जाती है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
‘राष्ट्र’ की नस्ल या जातिगत एकता सम्बन्धी परिभाषा देने वाले समर्थक विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
‘राष्ट्र’ की नस्ल या जातीय एकता सम्बन्धी परिभाषा देने वाले समर्थक विद्वान बर्गेस, प्रेडियर-फोडेर और लीकॉक आदि हैं। .

प्रश्न 4.
जातीय एकता सम्बन्धी ‘राष्ट्र’ की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बर्गेस के अनुसार, “वह जन-समूह जिसमें जातीय एकता हो और जो भौगोलिक एकता वाले प्रदेश में बसा हुआ हो, राष्ट्र कहलाता है।”

प्रश्न 5.
क्या वर्तमान में नस्ल या जातीय आधार पर विश्व में कोई राज्य है?
उत्तर:
वर्तमान में विश्व में कोई भी राज्य पूर्णतः नस्ल या जातीय आधार पर नहीं है।

प्रश्न 6.
‘राष्ट्र’ की राजनीतिक एकता सम्बन्धी परिभाषा देने वाले समर्थक विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लॉर्ड ब्राइस, हेज एवं गिलक्राइस्ट आदि विद्वानों ने राष्ट्र की राजनीतिक एकता सम्बन्धी परिभाषा दी है।

प्रश्न 7.
राजनीतिक एकता सम्बन्धी राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “राष्ट्र वह राष्ट्रीयता है जिसने अपने-आपको स्वतन्त्र होने या स्वतन्त्रता की इच्छा रखने वाली राजनीतिक संस्था के रूप में संगठित कर लिया हो।”

प्रश्न 8.
राष्ट्र की भावनात्मक एकता सम्बन्धी परिभाषा देने वाले किन्हीं दो समर्थक विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्र की भावनात्मक आधार पर परिभाषा देने वाले समर्थक विद्वान गार्नर, ब्लंशली, हाऊसर, बार्कर आदि हैं।

प्रश्न 9.
भावनात्मक एकता सम्बन्धी राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
ब्लंशली के शब्दों में, “राष्ट्र ऐसे मनुष्यों के समूह को कहते हैं जो विशेषतः भाषा और रीति-रिवाजों के द्वारा एक समान सभ्यता से बँधे हुए हों जिससे उनमें अन्य सभी विदेशियों से अलग एकता की सुदृढ़ भावना पैदा होती हो।”

प्रश्न 10.
बार्कर ने ‘राष्ट्र’ को कैसे परिभाषित किया है?
उत्तर:
बार्कर के अनुसार, “राष्ट्र लोगों का वह समूह है जो एक निश्चित भू-भाग में रहते हुए आपसी प्रेम और स्नेह की भावना से एक-दूसरे के साथ बँधे हुए हों।”

प्रश्न 11.
राष्ट्रीयता का शाब्दिक अर्थ समझाइए।
उत्तर:
उत्पत्ति की दृष्टि से यह शब्द भी अंग्रेज़ी के नेशनलिटी शब्द का रूपान्तरण है जो लेटिन भाषा के ‘नेट्स’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ जन्म या जाति होता है। इस प्रकार राष्ट्रीयता भी समान नस्ल वाले लोगों का समुदाय है, परन्तु आजकल नस्ल की एकता नहीं पाई जाती। इसलिए यहाँ राष्ट्रीयता की अवधारणा का अर्थ एक मनोवैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक भावना के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीयता की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
ब्राइस के अनुसार, “राष्ट्रीयता वह जनसंख्या है जो भाषा एवं साहित्य, विचार, प्रथाओं और परम्पराओं जैसे बन्धनों में परस्पर इस प्रकार बंधा हुआ हो कि वह अपनी ठोस एकता अनुभव करें तथा उन्हीं आधारों पर बंधी हुई अन्य जनसंख्या से अपने-आपको भिन्न समझे।”

प्रश्न 13.
राष्ट्र राज्य के लिए सहयोगी है कैसे? स्पष्ट करें।
उत्तर:
राष्ट्र ‘एकता’ की भावना का प्रतीक है और यही एकता की भावना न केवल राज्य रूपी संस्था को जन्म देने में सहायक है वरन् राज्य को विश्व में एक शक्तिशाली रूप धारण करने में सहायता देती है।

प्रश्न 14.
राज्य और राष्ट्र में कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
राज्य एवं राष्ट्र में दो प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं

  • राज्य एक राजनीतिक संगठन है जबकि राष्ट्र एक भावनात्मक संगठन है, जिसमें एकता की चेतना होती है।
  • राज्य के लिए निश्चित सीमा का होना अनिवार्य है जबकि राष्ट्र की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।

प्रश्न 15.
राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद जिसे अंग्रेज़ी में ‘Nationalism’ कहते हैं, अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Nation’ से बना है, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द नेशिओ (Natio) से हुई है, जिसका अर्थ है जन्म अथवा जाति। दूसरे शब्दों में एक ही नस्ल या जाति के साथ सम्बन्ध रखने वाले लोगों को राष्ट्र कहा जाता है तथा उन लोगों की अपने राष्ट्र के प्रति श्रद्धा को ‘राष्ट्रवाद’ कहा जाता है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रवाद की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
डॉ० महाजन के अनुसार, “राष्ट्रवाद का अर्थ साधारणतः उस शक्ति से लिया जाता है जो एक निश्चित क्षेत्र में बसने वाले एक जाति के लोगों को इकट्ठा रखती है ताकि वे राज्य में मनमर्जी से प्रयोग की जाने वाली शक्ति के विरुद्ध अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें तथा बाहरी आक्रमण के विरुद्ध अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा कर सकें।”

प्रश्न 17.
राष्ट्रवाद के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर:

  • उदारवादी राष्ट्रवाद एवं
  • लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद।

प्रश्न 18.
राष्ट्रवाद के कोई दो निर्माणक तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के दो निर्माणक तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • नस्ल की समानता तथा
  • भाषा, संस्कृति तथा परम्पराओं की समानता।

प्रश्न 19.
राष्ट्रवाद के रास्ते में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के रास्ते में आने वाली दो बाधाएँ निम्नलिखित हैं

  • लोगों में क्षेत्रीय संकीर्णता की भावना का होना।
  • लोगों में संकुचित एवं निजी स्वार्थ की भावनाएँ होना।

प्रश्न 20.
राष्ट्रवाद के विकास में बाधाओं को दूर करने हेतु कोई दो उपाय लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के विकास में बाधाओं को दूर करने हेतु दो प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं

  • साम्प्रदायिकता तथा जातिवाद का प्रचार करने वाले संगठनों पर पाबन्दी लगा दी जाए।
  • लोगों में क्षेत्रवाद की भावना को समाप्त करने के लिए देश के सभी क्षेत्रों का समान विकास करना चाहिए, प्रान्तीय तथा क्षेत्रीय भावनाओं के प्रचार पर पाबन्दी लगानी चाहिए।

प्रश्न 21.
एक राष्ट्र द्वारा अपने नागरिकों से की जाने वाली किन्हीं दो माँगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक राष्ट्र द्वारा अपने नागरिकों से की जाने वाली दो माँगें निम्नलिखित हैं

  • एक राज्य या राष्ट्र अपने देश के प्रत्येक नागरिक से देश की प्रभुसत्ता, एकता एवं अखण्डता को बनाए रखने की माँग करता है।
  • एक राज्य अपने देश के प्रत्येक नागरिक से देश के संविधान का पालन करने एवं इसके आदर्शों, संस्थाओं एवं राष्ट्रीय झण्डे एवं गान का सम्मान करने की मांग भी करता है।

प्रश्न 22.
आत्म-निर्णय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साधारण अर्थ में, आत्म-निर्णय का अर्थ है ‘स्वतन्त्र राज्य’ । आत्म-निर्णय के अपने दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता या स्वीकार्यता दी जाए।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग प्रायः किस आधार पर की जाती है?
उत्तर:
सामान्यतः ऐसी माँग उन लोगों की ओर से की जाती है जो एक लम्बे समय से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति एवं ऐतिहासिक परम्पराओं के आधार पर साझी समझ एवं पहचान का बोध हो।

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार सम्बन्धी माँग को निरुत्साहित करने का क्या समाधान हो सकता है?
उत्तर:
हमं एक संस्कृति एक राज्य के विचार या विभिन्न राष्ट्रीयताओं के आधार पर नए स्वतन्त्र राज्यों के गठन के विचार को छोड़कर विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों को एक ही देश में उन्नति एवं विकास के लिए उन्हें संवैधानिक संरक्षण सम्बन्धी व्यवस्था की जा सकती है, जैसे भारत में अल्पसंख्यकों को भाषायी, धार्मिक आदि संरक्षण प्रदान किए गए हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र एवं राज्य में कोई चार अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि ये दोनों शब्द एक ही मूल धातु लेटिन शब्द ‘नेशिओ’ (Natio) से निकले हैं, फिर भी इनके अर्थ में वैज्ञानिक भेद है। यह भेद इतना सूक्षम है कि इनकी विभाजन रेखा ढूँढना कठिन हो जाता है। फिर भी हमें इन दोनों में इस प्रकार के भेद को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि आधुनिक राज्य राष्ट्र-राज्य हैं। राज्य राष्ट्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। इसलिए प्रायः राज्य तथा राष्ट्र शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त किया जाता है। परन्तु इन दोनों शब्दों में मौलिक भेद हैं जो निम्नलिखित हैं

(1) राष्ट्र ऐसे लोगों का समूह है जो समान नस्ल, भाषा, रीति-रिवाज़, संस्कृति तथा ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर एकता की भावना में बंधे हुए हैं। राष्ट्र एक भावनात्मक संगठन है। इसके विपरीत राज्य एक राजनीतिक संगठन है। जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है।

(2) एक राज्य के लिए निश्चित प्रदेश अनिवार्य है। मातृभूमि के प्रति बलिदान की भावना निश्चित प्रदेश के कारण ही लोगों में पैदा होती है। परन्तु राष्ट्र की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।

(3) राज्य के निश्चित चार तत्त्व अनिवार्य हैं जनसंख्या, निश्चित प्रदेश, संगठित सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के अनिवार्य तत्त्व
गा तो राज्य नहीं बनेगा। परन्तु राष्ट्र के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं । धर्म, रीति-रिवाज़, जाति, भाषा, भौगोलिक एकता कोई भी अथवा सभी तत्त्व राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकते हैं।

(4) एक राज्य में कई राष्ट्रीयताएँ होती हैं। भारत, स्विट्जरलैण्ड तथा अन्य देशों में एक नहीं कई राष्ट्रीयताओं के लोग बसे हुए हैं। परन्तु राष्ट्र में एक ही राष्ट्रीयता के लोग संगठित होते हैं।

प्रश्न 2.
क्या प्रत्येक राष्ट्र के लिए एक राज्य की अनिवार्यता होनी आवश्यक है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र एक व्यापक शब्द है और इसका सम्बन्ध मुख्यतः आध्यात्मिक भावना से है और इसलिए यह निष्कर्ष हम आसानी से निकाल सकते हैं कि एक राष्ट्र के लिए राज्य की आवश्यकता नहीं है। जैसा कि गार्नर (Garmer) ने कहा है “राष्ट्र के लिए लोगों को राज्य के रूप में संगठित होना जरूरी नहीं है और न ही राज्य के लिए राष्ट्र होना आवश्यक है।”

परन्तु यहाँ यह भी स्पष्ट है कि उपर्युक्त कथन का अभिप्राय हमें यह भी नहीं लेना चाहिए कि इन दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता ही नहीं है। वास्तव में इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध भी पाया जाता है। जैसे राष्ट्र एकता की भावना का प्रतीक है और यही एकता की भावना न केवल राज्य रूपी संस्था को जन्म देने में सहायक है वरन् राज्य को विश्व में एक शक्तिशाली रूप धारण करने में सहायता देती है।

जैसे कि विश्व में बिखरे हुए यहूदियों की एकता की भावना और वर्षों प्रयत्नों के फलस्वरूप उन्होंने इज़राइल नामक राज्य को जन्म दिया और तत्पश्चात् अपनी इसी भावना के फलस्वरूप वह विश्व में एक शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी पहचान रखता है। अतः स्पष्ट है कि दोनों एक-दूसरे के लिए सहायक हैं, परन्तु फिर भी बिना राज्य के राष्ट्र हो सकता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
रूढ़िवादी राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक देश की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है और उसका वर्तमान रूप एक लम्बे ऐतिहासिक विकास का परिणाम होता है। एक देश में कुछ ऐसी परम्पराएँ अथवा संस्थाएँ चली आ रही होती हैं जिनके साथ उस देश के लोगों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं, जिसके कारण वे उन्हें समाप्त नहीं करना चाहते। वे उन्हें जारी रखना चाहते हैं। ऐसी भावनात्मक लगन को रूढ़िवादी राष्ट्रवाद का नाम दिया जाता है। इन्हीं भावनाओं के कारण ही लोकतन्त्र के वर्तमान युग में कई देशों में राजतन्त्र की संस्था बनी हुई है। इंग्लैण्ड में लॉर्ड सदन (House of Lords) का अस्तित्व भी इसी भावना के कारण ही आज तक बना हुआ है।

प्रश्न 4.
उदारवादी राष्ट्रवाद तथा लोकतान्त्रिक राष्ट्रवाद क्या है?
उत्तर:
उदारवादी राष्ट्रवाद-उदारवादी राष्ट्रवाद का विकास 17वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड के संवैधानिक संघर्ष तथा 18वीं शताब्दी में फ्रांस और अमेरिका की क्रान्तियों के सामूहिक प्रभाव के फलस्वरूप हुआ। उदारवादी राष्ट्रवाद के अनुसार, प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है और प्रत्येक राष्ट्र को यह अधिकार होता है कि वह अपने ढंग से अपनी राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक, सांस्कृतिक प्रगति कर सके। एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों पर अपनी इच्छा लादने का कोई अधिकार नहीं है।

अतः उदारवादी राष्ट्रवाद प्रत्येक राष्ट्र की स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। यह साम्राज्यवाद का विरोधी है तथा विभिन्न राष्ट्रों के बीच आपसी प्रेम, भ्रातृत्व तथा सद्भावना का समर्थन करता है। यह ‘कानून का शासन’ (Rule of Law) का समर्थन करता है, लेकिन राष्ट्र तथा सरकार के नाम पर मनमानी करने की अनुमति नहीं देता।

लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद-लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद वास्तव में उदारवादी राष्ट्रवाद का ही सर्वोत्तम रूप है। यह कुछ लोगों को नहीं, बल्कि समस्त जनता को ही राष्ट्र का प्रतीक मानता है। यह रूढ़िवादी राष्ट्रवाद के विरुद्ध है और सामाजिक असमानताओं पर आधारित प्राचीन संस्थाओं के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। इसके अनुसार, सभी व्यक्तियों को राष्ट्रीय सम्पन्नता को भोगने का समान अधिकार होना चाहिए।

लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद लोकतन्त्रीय मूल्यों (Democratic Values) पर आधारित है और स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व भाव को लोकतन्त्र का आधार मानकर उसका समर्थन करता है। इस व्यवस्था में प्रभुसत्ता लोगों के पास होती है तथा राष्ट्रों के आत्म-निर्णय के अधिकार को स्वीकार किया जाता है।

प्रश्न 5.
सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद उदारवादी तथा लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध है। इस राष्ट्रवाद के समर्थक व्यक्ति को साधन तथा राज्य को साध्य (End) मानते हैं और व्यक्ति को राज्य के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने के लिए कहा जाता है। जर्मनी में हिटलर के अधीन राष्ट्रवाद तथा इटली में मुसोलिनी के अधीन राष्ट्रवाद सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद के उदाहरण हैं। ऐसी व्यवस्था एक ही विचारधारा पर आधारित होती है और उसी विचारधारा को सरकारी मान्यता प्राप्त होती है। ऐसी व्यवस्था में अधिकारों के मुकाबले, कर्तव्यों तथा अनुशासन पर अधिक बल दिया जाता है।

ऐसा शासन राष्ट्र के लिए युद्ध को आवश्यक मानता है और राज्य के क्षेत्रीय विस्तार का समर्थन करता है। देश के लोगों में राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रबल बनाने के लिए सर्वसत्तावादी शासक लोगों को यह एहसास करवाने का प्रयत्न करते हैं कि वे श्रेष्ठ जाति एवं नस्ल के लोग हैं तथा उनकी नस्ल विश्व में सबसे उत्तम नस्ल है और उन्हें अन्य लोगों पर शासन करने का अधिकार है। ऐसा राष्ट्रवाद विश्व-शान्ति के लिए बहुत खतरनाक होता है, क्योंकि यह युद्ध का समर्थन करता है तथा उसे बढ़ावा देता है।

प्रश्न 6.
मार्क्सवादी राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मार्क्सवादी राष्ट्रवाद पूँजीवाद राष्ट्रवाद, उदारवादी तथा लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद का विरोधी है। यह मजदूरों की तानाशाही का समर्थन तथा साम्राज्यवाद का विरोध करता है। इस राष्ट्रवाद के अनुसार, रूढ़िवादी और लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद पूँजीवाद का समर्थन करते हैं, क्योंकि उनका उद्देश्य राष्ट्रहित का साधन न होकर पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित रखना होता है। इस व्यवस्था में श्रमिक वर्ग का शोषण किया जाता है और उनके हितों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

मार्क्सवादी राष्ट्रवाद का उद्देश्य वर्ग-रहित समाज की स्थापना करना है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कार्य करे और अपनी आवश्यकतानुसार वेतन प्राप्त करे। मार्क्सवादी राष्ट्रवाद पूँजीवाद को समाप्त करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्ति में विश्वास रखता है। यह प्रत्येक राष्ट्र को आत्म-निर्णय (Self-determination) का अधिकार देने का समर्थन करता है। चीनी राष्ट्रवाद मार्क्सवादी राष्ट्रवाद का मुख्य उदाहरण है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रवाद के विकास में आने वाली किन्हीं चार बाधाओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद की भावना के विकास में आने वाली चार प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं

1. धर्म की भिन्नता-धर्म की एकता जहाँ लोगों में एकता की भावना पैदा करती है, वहाँ धर्म की भिन्नता एकता को नष्ट करती है। धर्म के आधार पर प्रायः लोगों के बीच दंगे-फसाद होते रहते हैं, जिनके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता नष्ट होती है और देश की उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है। भारत में धार्मिक विभिन्नता के कारण समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। सन् 1947 में भारत का विभाजन भी धर्म के ही आधार पर हुआ था।

2. भाषायी भिन्नता-धार्मिक विभिन्नता की भाँति भाषायी भिन्नता भी राष्ट्रवाद के विकास में बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वाले लोग अपने को एक-दूसरे से अलग समझते हैं। भारत की स्थिति इस बात का स्पष्ट उदाहरण है। दक्षिणी भारत के लोग आज भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।

3. संकुचित दलीय वफादारियाँ-आधुनिक लोकतन्त्रीय युग में राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। कई राजनीतिक दल ऐसे होते हैं जिनका दृष्टिकोण बड़ा संकीर्ण होता है, जिसके पारणाम नका दृष्टिकोण बड़ा संकीर्ण होता है, जिसके परिणामस्वरूप लोग अलग-अलग गुटों में बँट जाते हैं। उनमें आपसी ईर्ष्या-द्वेष की भावना बढ़ती है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत हानिकारक होती है। कई बार राजनीतिक दल अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए राष्ट्रीय हितों को बलिदान कर देते हैं। वे दल के हितों को राष्ट्र के हितों से बड़ा समझने लगते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचती है।

4. स्वार्थ की भावना-स्वार्थ की भावना भी राष्ट्रवाद के विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। स्वार्थी व्यक्ति केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं और उन्हें साधने का ही प्रयत्न करते हैं। उन्हें दूसरों के हितों की परवाह नहीं होती। कई बार तो ऐसे व्यक्ति अपने हितों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हितों तक को कुर्बान कर देते हैं। सभी राष्ट्र-विरोधी कार्य; जैसे तस्करी, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट तथा रिश्वतखोरी आदि स्वार्थी लोगों के द्वारा ही किए जाते हैं।

प्रश्न 8.
आत्म- निर्णय के अधिकार का क्या अर्थ है?
अथवा
आत्म-निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आत्म-निर्णय के अधिकार का आधार वास्तव में व्यक्ति का मौलिक अधिकार ही है। साधारण अर्थ में आत्म-निर्णय का अर्थ है ‘स्वतन्त्र राज्य’ । आत्म-निर्णय के अपने दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए। सामान्यतः ऐसी माँग उन लोगों की ओर से आती है जो एक लम्बे समय से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें साँझी पहचान का बोध हो। कुछ मामलों में आत्म-निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतन्त्र राज्य बनाने की उस इच्छा से भी जुड़ जाते हैं।

इन दावों का सम्बन्ध किसी समूह की संस्कृति की सुरक्षा से होता है। डॉ० एच०ओ० अग्रवाल (Dr. H.O. Aggarwal) ने आत्म-निर्णय सिद्धान्त को दो भागों में बाँटा है-बाह्य तथा आन्तरिक। प्रथम बाह्य भाग या पहलू के कारण राष्ट्र की जनसंख्या या तो पृथक् होकर या स्वतन्त्र होकर अथवा स्वतन्त्र राज्य का निर्माण करके अपनी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थिति का निर्धारण करती है।

द्वितीय, आन्तरिक पहलू के कारण उनके आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में उनके अधिकारों को मान्यता देती है। संक्षेप में, आत्म-निर्णय का तात्पर्य एक राज्य में रहने वाले लोगों की जनसंख्या को उसके बाह्य व आन्तरिक पहलुओं पर स्वयं निर्णय लेने के अधिकार से लिया जाता है।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय सिद्धान्त के पक्ष एवं विपक्ष में दो-दो तर्कों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में तर्क-राष्ट्रीय आत्म-निर्णय सिद्धान्त के पक्ष में दो तर्क निम्नलिखित हैं

(1) यह सिद्धान्त लोकतन्त्र एवं प्रतिनिधि शासन के लिए अधिक उपयोगी है, क्योंकि लोकतन्त्र की सफलता राज्य के नागरिकों की एकता पर निर्भर करती है, जबकि एक राष्ट्रीय राज्य में लोगों में एकता की सम्भावना अधिक होने की प्रवृत्ति विद्यमान होती है।

(2) यह सिद्धान्त राज्य की उन्नति या विकास की दृष्टि से भी अधिक उपयुक्त है, क्योंकि एक राष्ट्रीय राज्य में नागरिकों में एकता, पारस्परिक स्नेह एवं सहयोग तथा राष्ट्र के प्रति भक्तिभाव की प्रवृतियाँ अधिक देखने को मिलती हैं। अतः ऐसी प्रवृत्तियाँ प्रत्येक नागरिक को जहाँ राष्ट्र के विकास में भागीदार बनाने में प्रेरित करती हैं, वहाँ राज्य के सम्पूर्ण विकास की सम्भावना स्वतः ही उत्पन्न हो जाती है।

विपक्ष में तर्क-राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के सिद्धान्त के विपक्ष में दो निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

(1) इस सिद्धान्त से तानाशाही की प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलने की अधिक सम्भावना हो जाती है, क्योंकि ऐसे राज्यों में जातीय श्रेष्ठता का झूठा अभिमान आ जाता है।

(2) एक राष्ट्रीय राज्य का संकुचित दृष्टिकोण उस राज्य की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि ऐसे राज्य अपने आप में सीमित रहते हैं और अन्य राज्यों से सम्पर्क स्थापित करने में संकोच करते हैं जिसके फलस्वरूप उनकी उन्नति या प्रगति अवरुद्ध होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रवाद की परिभाषा दीजिए। इसके मुख्य प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद एक विशाल धारणा है, जिसके कारण इसकी कोई निश्चित परिभाषा देना बहुत कठिन है। यह तो एक भावना है जिसे व्यक्ति भिन्न-भिन्न रूप में प्रकट करता है। इसे हम अनुभव तो कर सकते हैं, परन्तु देख नहीं सकते।

राष्ट्रवाद, जिसे अंग्रेजी में (Nationalism’ कहते हैं, अंग्रेजी भाषा के शब्द (Nation’ से बना है, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द ‘नेशिओ’ (‘Natio’) से हुई है, जिसका अर्थ है-जन्म अथवा जाति। अतः राष्ट्र का अर्थ हुआ वह जन-समूह जो वंश अथवा जन्म की एकता से बंधा हुआ है। दूसरे शब्दों में, एक ही नस्ल या जाति के साथ सम्बन्ध रखने वाले लोगों को राष्ट्र कहा जाता है तथा उन लोगों की अपने राष्ट्र के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद (Nationalism) कहा जा सकता है। राष्ट्रवाद की धारणा का विकास राष्ट्रीय-राज्य (Nation-State) की धारणा के विकास के साथ हुआ है।

राष्ट्रीय राज्य के सिद्धान्त का अर्थ है कि प्रत्येक राज्य की सीमाओं का आधार राष्ट्रीय होना चाहिए, भौगोलिक नहीं। अतः राष्ट्र से अभिप्राय लोगों के उस समूह से है जो अपने को एक अनुभव करते हैं तथा अन्य लोगों से भिन्न महसूस करते हैं। ऐसा समूह या तो राजनीतिक रूप से पूर्णतः स्वतन्त्र होता है या स्वतन्त्र होने की इच्छा रखता है। राष्ट्र में रहने वाले लोगों की जो भावना उन्हें राष्ट्र के प्रति वफादार रहने के लिए प्रेरित करती है, उस भावना को हम राष्ट्रवाद कहते हैं। राष्ट्रवाद की परिभाषाएँ (Definitions of Nation)-विभिन्न विद्वानों द्वारा राष्ट्रवाद की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं, जो निम्नलिखित हैं

1. डॉ० महाजन (Dr. Mahajan) के अनुसार, “राष्ट्रवाद का अर्थ साधारणतः उस शक्ति से लिया जाता है जो एक निश्चित क्षेत्र में बसने वाले एक जाति के लोगों को इकट्ठा रखती है, ताकि वे राज्य में मनमर्जी से प्रयोग की जाने वाली शक्ति के विरुद्ध अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें तथा बाहरी आक्रमण के विरुद्ध अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा कर सकें।”

2. सी०डी० बर्नज़ (C.D. Burns) के अनुसार, “यह एक भावात्मक राजनीतिक धारणा है जिसका सीधा सम्बन्ध शक्ति के लिए संघर्ष से है, जो राज्यों के व्यक्तित्व का सम्मान करता है। कानून तथा सरकारों के बीच अन्तरों को स्वीकार करती है तथा आदेशों और विश्वासों के आधार पर एक समूह को दूसरे समूह से अलग करती है।”

3. हांस कोहिन (Hans Kohin) के अनुसार, “राष्ट्रवाद मन की स्थिति तथा सचेत रूप में किया गया कार्य है।”

4. जोसफ डनर (Joseph Dunner) के शब्दों में, “राष्ट्रवाद एक आधुनिक राजनीतिक विचारधारा है जो राष्ट्र को एक सम्पूर्ण सम्प्रदाय या समाज मानती है। इस विचारधारा के अनुसार, राजनीतिक संगठन का आदर्श रूप वह है जिसमें राज्य का अधिकार क्षेत्र उस क्षेत्र तक लागू होता है जिस क्षेत्र में घना राष्ट्र रहता हो।”

राष्ट्रवाद की ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद उस भावना का नाम है जा सकता है कि राष्ट्रवाद उस भावना का नाम है जो व्यक्ति को अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहने के लिए प्रेरणा देती है। दूसरे शब्दों में, अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम तथा भक्ति की लगन को राष्ट्रवाद कहते हैं। यह एक ऐसी भावना है जो राष्ट्र के निर्माण तथा संचालन का आधार होती है।

राष्ट्रवाद के प्रकार (Kinds of Nationalism)-राष्ट्रवाद मुख्य रूप से देश-प्रेम और देश-भक्ति की भावना है, जिसके भिन्न-भिन्न रूप नहीं हो सकते, परन्तु विभिन्न देशों और विभिन्न स्तरों पर राष्ट्रवाद के कई रूप दिखाई देते हैं, जो निम्नलिखित हैं

1. रूढ़िवादी राष्ट्रवाद-प्रत्येक देश की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है और उसका वर्तमान रूप एक लम्बे ऐतिहासिक विकास का परिणाम होता है। एक देश में कुछ ऐसी परम्पराएँ अथवा संस्थाएँ चली आ रही होती हैं जिनके साथ उस देश के लोगों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं, जिसके कारण वे उन्हें समाप्त नहीं करना चाहते। वे उन्हें जारी रखना चाहते हैं। ऐसी भावनात्मक लगन को रूढ़िवादी राष्ट्रवाद का नाम दिया जाता है। इन्हीं भावनाओं के कारण ही लोकतन्त्र के वर्तमान युग में कई देशों में राजतन्त्र की संस्था बनी हुई है। इंग्लैण्ड में लॉर्ड सदन (House of Lords) का अस्तित्व भी इसी भावना के कारण ही आज तक बना हुआ है।

2. उदारवादी राष्ट्रवाद-उदारवादी राष्ट्रवाद का विकास 17वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड के संवैधानिक संघर्ष तथा 18वीं शताब्दी में फ्रांस और अमेरिका की क्रान्तियों के सामूहिक प्रभाव के फलस्वरूप हुआ। उदारवादी राष्ट्रवाद के अनुसार, प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है और प्रत्येक राष्ट्र को यह अधिकार होता है कि वह अपने ढंग से अपनी राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक प्रगति कर सके।

एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों पर अपनी इच्छा लादने का कोई अधिकार नहीं है। अतः उदारवादी राष्ट्रवाद प्रत्येक राष्ट्र की स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। यह साम्राज्यवाद का विरोधी है तथा विभिन्न राष्ट्रों के बीच आपसी प्रेम, भ्रातृत्व तथा सद्भावना का समर्थन करता है। यह ‘कानून का शासन’ ‘Rule of Law’ का समर्थन करता है, लेकिन राष्ट्र तथा सरकार के नाम पर मनमानी करने की अनुमति नहीं देता।

3. लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद-लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद वास्तव में उदारवादी राष्ट्रवाद का ही सर्वोत्तम रूप है। यह कुछ लोगों को नहीं, बल्कि समस्त जनता को ही राष्ट्र का प्रतीक मानता है। यह रूढ़िवादी राष्ट्रवाद के विरुद्ध है और सामाजिक असमानताओं पर आधारित प्राचीन संस्थाओं के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। इसके अनुसार, सभी व्यक्तियों को राष्ट्रीय सम्पन्नता को भोगने का समान अधिकार होना चाहिए।

लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद लोकतन्त्रीय मूल्यों (Democratic Values) पर आधारित है और स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व भाव को लोकतन्त्र का आधार मानकर उसका समर्थन करता है। इस व्यवस्था में प्रभुसत्ता लोगों के पास होती है तथा राष्ट्रों के आत्म-निर्णय के अधिकार को स्वीकार किया जाता है।

4. सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद-सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद उदारवादी तथा लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध है। इस राष्ट्रवाद के र व्यक्ति को साधन तथा राज्य को साध्य (End) मानते हैं और व्यक्ति को राज्य के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने के लिए कहा जाता है। जर्मनी में हिटलर के अधीन राष्ट्रवाद तथा इटली में मुसोलिनी के अधीन राष्ट्रवाद सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद के उदाहरण हैं।

ऐसी व्यवस्था एक ही विचारधारा पर आधारित होती है और उसी विचारधारा को सरकारी मान्यता प्राप्त होती है। ऐसी व्यवस्था में अधिकारों के मुकाबले, कर्तव्यों तथा अनुशासन पर अधिक बल दिया जाता है। ऐसा शासन राष्ट्र के लिए युद्ध को आवश्यक मानता है और राज्य के क्षेत्रीय विस्तार का समर्थन करता है। देश के लोगों में राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रबल बनाने के लिए सर्वसत्तावादी शासक लोगों को यह एहसास करवाने का प्रयत्न करते हैं कि वे श्रेष्ठ जाति एवं नस्ल के लोग हैं तथा उनकी नस्ल विश्व में सबसे उत्तम नस्ल है और उन्हें अन्य लोगों पर शासन करने का अधिकार है। ऐसा राष्ट्रवाद विश्व-शान्ति के लिए बहुत खतरनाक होता है, क्योंकि यह युद्ध का समर्थन करता है तथा उसे बढ़ावा देता है।

5. मार्क्सवादी राष्ट्रवाद-मार्क्सवादी राष्ट्रवाद पूँजीवादी राष्ट्रवाद, उदारवादी तथा लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद का विरोधी है। यह मज़दूरों की तानाशाही का समर्थन तथा साम्राज्यवाद का विरोध करता है। इस राष्ट्रवाद के अनुसार, रूढ़िवादी और लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद पूँजीवाद का समर्थन करते हैं, क्योंकि उनका उद्देश्य राष्ट्रहित का साधन न होकर पूँजीपतियों के हितों को सुरक्षित रखना होता है।

इस व्यवस्था में श्रमिक वर्ग का शोषण किया जाता है और उनके हितों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता । मार्क्सवादी राष्ट्रवाद का उद्देश्य वर्ग-रहित समाज की स्थापना करना है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कार्य करे और अपनी आवश्यकतानुसार वेतन प्राप्त करे। मार्क्सवादी राष्ट्रवाद पूँजीवाद को समाप्त करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्ति में विश्वास रखता है। यह प्रत्येक राष्ट्र को आत्म-निर्णय (Self-determination) का अधिकार देने का समर्थन करता है। चीनी राष्ट्रवाद मार्क्सवादी राष्ट्रवाद का मुख्य उदाहरण है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रवाद के निर्माणात्मक तत्त्वों का वर्णन कीजिए। क्या इनमें से कोई तत्त्व आवश्यक है?
अथवा
राष्ट्रवाद के विभिन्न तत्त्वों या कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रवाद के विकास में सहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के निर्माणात्मक तत्त्व (Determinates of Nationalism)-राष्ट्रवाद के निर्माण में सहायक तत्त्वों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

1. भौगोलिक एकता या सामान्य मातृभूमि-राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले तत्त्वों में भौगोलिक एकता एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो व्यक्ति-समूह काफी लम्बे समय तक एक निश्चित क्षेत्र पर, जिसके सभी भाग आपस में मिले हुए हैं, मिल-जुलकर रहते हैं, तो उनके जीवन में एक ऐसी एकता की उत्पत्ति हो जाती है जो राष्ट्रीयता का सार है।

इसका अभाव राष्ट्रीयता के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा बन सकता है; जैसे पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) तथा पश्चिमी पाकिस्तान में काफी भौगोलिक दूरी के कारण राष्ट्रीयता का अभाव था। एक निश्चित प्रदेश में रहने से वहाँ के निवासियों में भूमि के प्रति काफी मान तथा श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है और वे उस भूमि को अपनी मातृ तथा पितृ-भूमि कहने लगते हैं और सभी मिलकर उसकी रक्षा करने के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने को तैयार रहते हैं।

एक ही स्थान पर रहने वाले लोगों में आपस में एक-जैसे रीति-रिवाज़, समान रहन-सहन तथा खान-पान का विकास होता है जोकि राष्ट्रीयता के निर्माण में बहुत बड़ा सहयोग देता है। उदाहरणस्वरूप, यहूदी लोगों को अरबों के आक्रमण के कारण फिलिस्तीन से भागना पड़ा और वे यूरोप के कई भागों में बिखरे रहे, परन्तु उन्होंने अपने हृदय से अपनी मातृ-भूमि को कभी नहीं निकाला और उसकी स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष जारी रखा।

सन् 1948 में जब अंग्रेजों ने फिलिस्तीन खाली कर दिया तो ये लोग वहाँ आकर बस गए और यहूदी राज्य की स्थापना की। इसी प्रकार पोलैंड निवासियों ने अपने राज्य पोलैंड पर दूसरे देश का कब्जा हो जाने के बाद भी अपनी राष्ट्रीयता को जागृत रखा, अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्न जारी र पश्चात् फिर से वे अपना स्वतन्त्र राज्य (पोलैंड) स्थापित करवाने में सफल हो गए।

2. नस्ल की समानता-एक ही नस्ल में पैदा होने वाले लोगों में स्वाभाविक ही एकता की भावना उत्पन्न हो जाती है। लीकॉक और बर्गेस (Leacock and Burgess) आदि लेखक तो नस्ल को राष्ट्र का मुख्य आधार मानते हैं। इसी प्रकार गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने भी लिखा है, “एक ही नस्ल से उत्पत्ति के प्रति विश्वास-चाहे वह वास्तविक हो या अवास्तविक, राष्ट्रीयता का बन्धन होता है।

प्रत्येक राष्ट्रीयता की ऐतिहासिक उत्पत्ति की पौराणिक कथाएँ होती हैं।” इस प्रकार नस्ल एकता की भावना राष्ट्रीयता को जन्म देने में एक बहुत ही प्रबल शक्ति है, परन्तु यह कहना उचित नहीं है कि इस एकता के बिना राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि आजकल जातियों अथवा नस्लों का ऐसा सम्मिश्रण हो गया है कि कोई भी राष्ट्र अपनी शुद्धता का दावा नहीं कर सकता। लगभग प्रत्येक राष्ट्रीय इकाई में कई जातियों का मिश्रण हो गया है। उदाहरणस्वरूप स्विट्ज़रलैंड, कनाडा, अमेरिका आदि कई देशों में कई नस्लों का सम्मिश्रण मिलता है।

भारत तथा रूस आदि में भी यही बात मिलती है। स्टालिन ने भी लिखा है,“आधुनिक इटालियन राष्ट्र का निर्माण रोमन, ट्रयूटन, इटरस्कन, ग्रीक, अरब आदि लोगों से हुआ था। फ्रांसीसी राज्य का निर्माण गाल, रोमन, ब्रिटिश, ट्यूटन आदि लोगों से हुआ था। यही ब्रिटिश, जर्मन अथवा अन्य राष्ट्रों के विषय में कहा जाना चाहिए, जो अनेक नस्लों तथा कबीलों से मिलकर राष्ट्र बने हैं।”

दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ पर एक ही नस्ल के लोगों ने एक से अधिक राष्ट्रों का निर्माण किया। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश और स्कॉट लोग लगभग एक ही नस्ल के हैं, फिर भी उनकी राष्ट्रीयता भिन्न-भिन्न है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यद्यपि नस्ल राष्ट्रवाद के निर्माण में आवश्यक योग देती है, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि यह निर्णायक तत्त्व है।

3. धर्म की समानता-राष्ट्रवाद के निर्माण में धर्म का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। धर्म की समानता लोगों में एकता की भावना पैदा कर देती है जो राष्ट्रवाद का मुख्य आधार है। उदाहरणस्वरूप, जिस समय मुगल सम्राट् औरंगजेब ने हिन्दुओं पर धर्म के नाम पर अनेक अत्याचार किए और उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया तो हिन्दुओं में राष्ट्रवाद को जीवित रखने वाली एकता की भावना और अधिक मजबूत हुई।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सन् 1947 में भारत का बंटवारा केवल धर्म के नाम पर हुआ और अब भी पाकिस्तान में राष्ट्रवाद की भावना धर्म पर ही आधारित है। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ धार्मिक भेदभाव के कारण राज्य तथा राष्ट्र भिन्न-भिन्न हो गए हैं। सन् 1815 में वियाना काँग्रेस (Congress of Vienna) से बेल्जियम तथा हॉलैंड को मिलाकर एक राज्य नीदरलैंड (Neatherland) की स्थापना की गई, परन्तु धार्मिक भेदभाव के कारण बेल्जियम के लोग रोमन कैथोलिक (Roman Catholic) और हॉलैंड के प्रोटेस्टेंट (Protestant) थे, दोनों इकट्ठे न रह सके.और सन् 1831 में अलग-अलग हो गए।

आधुनिक युग में राष्ट्रीयता के निर्माण में धर्म का महत्त्व काफी कम हो गया है। जैसा कि बर्गेस (Burgess) ने भी लिखा है, “किसी युग में धार्मिक एकता राष्ट्रीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता था, परन्तु आधुनिक काल में धार्मिक स्वतन्त्रता दे दी गई है और मज़हब का प्रभाव काफी कम हो गया है।” आज के युग में धर्म-निरपेक्षता के कारण लोगों के राष्ट्रीय जीवन में धर्म काफी पीछे हटता जा रहा है।

इसके अतिरिक्त कई लोग, विशेष रूप से साम्यवादी धर्म में विश्वास नहीं रखते, जिससे धर्म का महत्त्व काफी कम हो गया है। हम देखते हैं कि भारत, जर्मनी तथा स्विट्जरलैंड आदि राज्यों में लोग धार्मिक भेदभाव होते हुए भी राष्ट्रवाद के सूत्र में बंधे हुए हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि यद्यपि धर्म की समानता राष्ट्रवाद के निर्माण में बहुत सहयोगी होती है, परन्तु यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है।

4. भाषा, संस्कृति तथा परम्पराओं की समानता भाषा की समानता भी राष्ट्रवाद का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। एक ही भाषा बोलने वाले लोगों में बहुत ही जल्दी तथा आसानी से सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं और यदि किसी देश में भाषा की समानता न हो तो वहाँ एक-दूसरे के साथ सम्पर्क स्थापित करने में काफी कठिनाई होती है। इस सम्बन्ध में म्यूर (Muir) ने लिखा है, “विभिन्न जातियों और नस्लों को प्रेम सत्र में बाँधने वाली शक्ति केवल भाषा है। विचारों की एकता तभी आ भाषा आ जाएँ।”

इसी प्रकार स्टालिन (Stalin) ने लिखा है,”राष्ट्रीय एकता की कल्पना समान भाषा के बिना नहीं की जा सकती, जबकि राज्य के लिए समान भाषा का होना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार समान भाषा राष्ट्र की एक मुख्य विशेषता है।” इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि एक ही भाषा बोलने वाले लोगों को एक-दूसरे को समझने में बहुत ही आसानी होती है और भाषा उनको एक-दूसरे के निकट लाकर उनमें राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करने में बहुत सहायता करती है। भारत में अंग्रेज़ी शासनकाल में अंग्रेजी भाषा ने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना के विकास में बहुत ही योगदान दिया।

इसके अतिरिक्त एक-सी संस्कृति अर्थात् समान रहन-सहन, समान रीति-रिवाज, समान खान-पान, समान वेश-भूषा तथा समान कला-साहित्य आदि लोगों में एकता की भावना को, जो राष्ट्रीयता का मुख्य आधार है, पैदा करने में बहुत सहयोग देते हैं। यही कारण है कि जब कोई राज्य दूसरे राज्य को जीतकर अपना कब्जा जमा लेता है तो वहाँ के लोगों पर पहले अपनी भाषा तथा संस्कृति थोपने की कोशिश करता है, ताकि वे लोग अपनी संस्कृति को भूल जाएँ जिससे वह उन पर अपना अधिकार स्थायी रूप से स्थापित कर सकें।

परन्तु ये कहना उचित नहीं है कि भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वाले लोग एक राष्ट्रीयता का निर्माण नहीं कर सकते। हमारे सामने अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ पर भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वालों ने एक राष्ट्र का निर्माण किया है। सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण हमारा अपना ही देश भारतवर्ष है। भारत में 22 भाषाएँ हैं, फिर भी यहाँ राष्ट्रीयता की भावना बलवती और सुदृढ़ है।

इसी प्रकार स्विट्ज़रलैंड में चार भाषाएँ–जर्मन, फ्रेंच, इटालियन तथा रोमन बोली जाती हैं, फिर भी वहाँ एक ही राष्ट्रीयता की भावना है। दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं, जहाँ एक ही भाषा बोलने वाले लोगों ने अपने को अलग-अलग राष्ट्रों में संगठित कर लिया है; जैसे अमेरिका, इंग्लैंड तथा ऑस्ट्रेलिया के लोग एक ही भाषा अर्थात् अंग्रेज़ी बोलते हैं, परन्तु इनकी राष्ट्रीयता अलग-अलग है।

5. समान राजनीतिक आकांक्षाएँ-आजकल समान राजनीतिक आकांक्षाओं को राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए समान धर्म तथा समान भाषा आदि से भी अधिक महत्त्व दिया जाता है। एक ही सरकार के अधीन रहने तथा एक ही प्रकार के कानूनों का पालन करने से लोगों में एकता की भावना पैदा हो जाती है।

यह एकता उस समय और भी अधिक मजबूत होती है जब वह किसी विदेशी सरकार के अधीन रहते हों, क्योंकि अधीनस्थ लोग अपनी स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए और अपने राष्ट्र का निर्माण करने के लिए आसानी से संगठित हो जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, भारत में राष्ट्रवाद की भावना उस समय मजबूत हुई जब इन्होंने मिलकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अपना संघर्ष शुरु किया। एशिया तथा अफ्रीका के कुछ अधीनस्थ देशों में इसी तत्त्व ने राष्ट्रीयता की लहर फैलाई। इसी प्रकार भारतवर्ष पर 1962 ई० में किए गए चीनी आक्रमण ने भारतवासियों में राष्ट्रवाद की भावना को और दृढ़ कर दिया।

6. समान इतिहास समान इतिहास व्यक्तियों में राष्ट्रवाद की भावनाओं को उत्पन्न करने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। लोगों की समान स्मृतियाँ, समान जय-पराजय, समान राष्ट्रीय अभिमान की भावनाएँ, समान राष्ट्रीय वीर, समान लोक गीत आदि उनमें राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल बनाने में बहुत योग देते हैं। किसी देश की जनता का विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध किया गया सामूहिक संघर्ष उनमें राष्ट्रीयता की भावना भर देता है।

श्री जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, भगतसिंह जैसे नेताओं ने भारत के इतिहास में शानदार कार्य किए जिन्हें कोई भी भारतीय भुला नहीं सकता, क्योंकि उन्होंने भारत में राष्ट्रवाद की भावना जागृत की। रैम्जे म्यूर (Ramsey Muir) ने साँझे इतिहास के तत्त्व के महत्त्व को बताते हुए लिखा है, “बहादुरी से प्राप्त की गई उपलब्धियाँ तथा बहादुरी से झेले गए कष्ट, दोनों ही राष्ट्रवाद की भावना के लिए ताकतवर भोजन हैं। भूत में उचित सम्मान, वर्तमान में पूर्ण विश्वास तथा भविष्य की आशा, ये सभी राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत बनाते हैं तथा उन्हें स्थिर करते हैं।”

7. लोक इच्छा-राष्ट्रवाद के निर्माण में सहायता देने वाला एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में ‘राष्ट्रवाद की इच्छा’ का होना है। मैज़िनी (Mazzini) ने लोक-इच्छा को राष्ट्रवाद का आधार बताया है। डॉ० अम्बेडकर (Dr.Ambedkar) ने लोक-इच्छा को भारत में राष्ट्रवाद के विकास में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना है। लोगों में जब तक राष्ट्र बनाने की इच्छा प्रबल नहीं होती, तब तक किसी भी देश में राष्ट्रवाद का निर्माण नहीं हो सकता।

8. समान हित-समान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक हित भी लोगों में एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में सहायता करते हैं। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड के अधीन 13 उपनिवेशों ने अपने समान आर्थिक हितों की रक्षा हेतु संगठन बनाकर इंग्लैंड के विरुद्ध विद्रोह किया और विजयी होकर अपने समान राजनीतिक हितों के कारण ही अपने को संयुक्त राज्य अमेरिका के संघ में गठित किया।

सन् 1707 में इंग्लैंड तथा स्कॉटलैंड के संघ स्थापित होने का मुख्य कारण उनका समान आर्थिक हित था। इसी प्रकार भारत में सन् 1947 से पहले भाषा तथा धर्म आदि की विभिन्नताएँ होते हुए भी राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई, क्योंकि अंग्रेजों के अधीन रहने के कारण उनके आर्थिक तथा राजनीतिक हित एक थे। अतः हम यह कह सकते हैं कि समान हित (आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक) राष्ट्रवाद के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि दिए गए तत्त्व राष्ट्रवाद के निर्माण में सहयोगी हैं, परन्तु उनमें कोई भी तत्त्व अनिवार्य नहीं है। एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना की उत्पत्ति तथा विकास के लिए इन सभी तत्त्वों का एक साथ शामिल होना आवश्यक नहीं है। ऐसा राष्ट्रवाद मिलना बहुत कठिन है जिसमें ये सभी तत्त्व मौजूद हों। इनमें से कुछ तत्त्वों के मिल जाने से ही राष्ट्रवाद का निर्माण हो जाना सम्भव है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
राष्ट्रवाद के रास्ते में आने वाली बाधाओं का उल्लेख करते हुए उन्हें दूर करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित तत्त्व राष्ट्रवाद की भावना के विकास में बाधाएँ हैं

1. धर्म की भिन्नता-धर्म की एकता जहाँ लोगों में एकता की भावना पैदा करती है, वहाँ धर्म की भिन्नता एकता को नष्ट करती है। धर्म के आधार पर प्रायः लोगों के बीच दंगे-फसाद होते रहते हैं, जिनके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता नष्ट होती है और देश की उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है। भारत में धार्मिक विभिन्नता के कारण समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। सन् 1947 में भारत का विभाजन भी धर्म के ही आधार पर हुआ था।

2. भाषायी भिन्नता धार्मिक विभिन्नता की भांति भाषायी भिन्नता भी राष्ट्रवाद के विकास में बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वाले लोग अपने को एक-दूसरे से अलग समझते हैं। भारत की स्थिति इस बात का स्पष्ट उदाहरण हैं। दक्षिणी भारत के लोग आज भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कई बार तो भाषा के नाम पर कुछ क्षेत्र देश से अलग होने की बात भी कर देते हैं।

तमिलनाडु तथा केरल के बीच भी भाषा के आधार पर झगड़े होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले लोग अलग राज्यों की माँग करते हैं। वास्तव में भारत में राज्यों का गठन भाषष के आधार पर ही किया गया है। आज भी भारत में भाषा की समस्या बनी हुई है जो राष्ट्रवाद के मार्ग में मुख्य बाधा है।

3. क्षेत्रवाद-व्यक्ति का जन्म जिस स्थान पर होता है तथा जहाँ पर उसका पालन-पोषण होता है, उस क्षेत्र (भूमि) के साथ व्यक्ति का विशेष भावनात्मक प्यार हो जाता है। ऐसा प्यार अथवा लगन ही क्षेत्रवाद का आधार बनता है। जब विभिन्न क्षेत्रों में बसे लोगों में आपस में टकराव होता है तो वह स्थिति लोगों में क्षेत्रवाद की भावना को जन्म देती है। ऐसी भावना राष्ट्रवाद के विकास के लिए हानिकारक सिद्ध होती है। आज भी भारत में लोग अपने को भारतवासी कम तथा पंजाबी, हरियाणवी, गुजराती, बंगाली, तमिल आदि अधिक समझते हैं।

4. जातिवाद-जातिवाद भी राष्ट्रवाद के विकास में बाधा उत्पन्न करता है। जिस समाज में भिन्न-भिन्न जातियों से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति रहते हैं, वहाँ उनमें भावनात्मक एकता अधिक मजबूत नहीं हो पाती। अपनी जाति के प्रति व्यक्ति की लगन तथा वफादारी उसकी सोच-समझ को सीमित कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप वह राष्ट्र की अपेक्षा जाति के हितों को अधिक महत्त्व देता है। जब कभी विभिन्न जातियों के लोगों में आपस में टकराव होता है, तो यह भावना और अधिक प्रबल हो जाती है। बिहार इसका स्पष्ट उदाहरण है।

5. आर्थिक असमानताएँ-मार्क्सवादियों के अनुसार, आर्थिक असमानताएँ राष्ट्रवाद के विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। जिस समाज में धनी तथा निर्धन में बहुत अधिक आर्थिक अन्तर होगा तथा उनके हितों में विरोध होगा वहाँ लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का कभी विकास नहीं हो सकता। आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली लोगों का राजनीतिक सत्ता पर भी नियन्त्रण रहता है और वे उसका प्रयोग अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए ही करते हैं।

गरीब लोगों के पास राष्ट्र के कार्यों में रुचि लेने के लिए समय ही नहीं होता, वे तो अपनी रोटी-रोज़ी कमाने में ही लगे रहते हैं। समाज का यह शोषित वर्ग शोषण करने वालों (Exploiters) के विरुद्ध संघर्ष करता रहता है। ऐसी स्थिति में लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास होना बहुत ही कठिन होता है।

6. स्वार्थ की भावना-स्वार्थ की भावना भी राष्ट्रवाद के विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। स्वार्थी व्यक्ति केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं और उन्हें साधने का ही प्रयत्न करते हैं। उन्हें दूसरों के हितों की परवाह नहीं होती। कई बार तो ऐसे व्यक्ति अपने हितों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हितों तक को कुर्बान कर देते हैं। सभी राष्ट्र-विरोधी कार्य; जैसे तस्करी, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट तथा रिश्वतखोरी आदि स्वार्थी लोगों के द्वारा ही किए जाते हैं।

7. विशेषाधिकारों वाला वर्ग-राज्य के विशेषाधिकारों वाले वर्ग का होना भी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है और राष्ट्रवाद के विकास के मार्ग में बाधा बनता है। विशेषाधिकारों वाला वर्ग अपने को अन्य लोगों से श्रेष्ठ तथा अन्य लोगों को अपने से निम्न स्तर का मानता है। इससे साधारण लोगों के मन में विशेषाधिकार वर्ग के प्रति ईर्ष्या-द्वेष तथा घृणा की भावना उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच संघर्ष होते रहते हैं और राष्ट्रवाद के विकास के मार्ग में बाधा आती रहती है।

8. संकुचित दलीय वफादारियां-आधुनिक लोकतन्त्रीय युग में राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। कई राजनीतिक दल ऐसे होते हैं जिनका दृष्टिकोण बड़ा संकीर्ण होता है, जिसके परिणामस्वरूप लोग अलग-अलग गुटों में बंट जाते हैं। उनमें आपसी ईर्ष्या-द्वेष की भावना बढ़ती है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत हानिकारक होती है। कई बार राजनीतिक दल अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए राष्ट्रीय हितों को बलिदान कर देते हैं। वे दल के हितों को राष्ट्र के हितों से बड़ा समझने लगते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुंचती है।

9. विदेशी प्रभाव-कई बार विदेशी प्रभाव भी राष्ट्रवाद के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं। विदेशी सहायता पर निर्भर रहने वाले विकासशील देश विदेशी प्रभाव से बच नहीं सकते, क्योंकि आर्थिक सहायता देने वाले देश गरीब तथा विकासशील देशों की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते रहते हैं। इससे सहायता पाने वाले देशों की स्वतन्त्रता सीमित रहती है। भारत में कई विदेशी धर्म प्रचारक, विशेष रूप से ईसाई धर्म के प्रचारक भारतीयों को मामूली प्रलोभन देकर उन्हें राष्ट्रवाद के मार्ग से विचलित करते रहते हैं। भारत के कई विश्वविद्यालय भी विदेशी प्रभाव के केन्द्र बने हुए हैं। भारतीय विद्यार्थी कई बार ऐसे गलत कार्य कर देते हैं जो राष्ट्रवाद के मार्ग में बाधा बन जाते हैं।

10. पक्षपाती प्रेस-आज के युग में प्रेस व्यक्ति के विचारों को प्रभावित करने तथा जनमत का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, परन्तु प्रायः यह देखने को मिलता है कि अधिकतर समाचार-पत्र किसी विशेष विचारधारा, राजनीतिक दल अथवा किसी विशेष वर्ग के हितों के साथ जुड़े हुए हैं और वे समाचार छापते समय विशेष हितों को ध्यान में रखते हैं। वे लोगों तक ठीक समाचार नहीं पहुँचाते और उन्हें तोड़-मरोड़ कर लोगों के सामने रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय विचारधारा का प्रचार ठीक ढंग से नहीं हो पाता, जिससे राष्ट्रवाद के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

11. दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा सर्वोत्तम साधन है, परन्तु जहाँ ठीक शिक्षा-प्रणाली राष्ट्रवाद के विकास में सहायता करती है, वहाँ दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली इस पर बुरा प्रभाव डालती है। यदि शिक्षा का आधार राष्ट्रवादी नहीं है तो वह राष्ट्रवादी भावनाओं को कमजोर करती है। जिस देश की शिक्षा-संस्थाओं में साम्प्रदायिकता तथा प्रान्तीयता का प्रचार किया जाएगा वहाँ राष्ट्रवाद को बहुत हानि पहुँचेगी। जिस शिक्षा-प्रणाली के अधीन देश के लोगों को अपने गौरवमय इतिहास तथा शानदार सभ्य विरासत के बारे में तथा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती, वहाँ पर पढ़े-लिखे लोगों में भी राष्ट्रवादी भावनाओं का अभाव रहेगा।

राष्ट्रवाद के विकास में ऊपर दी गई बाधाओं को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएँ

(1) साम्प्रदायिकता तथा जातिवाद का प्रचार करने वाले संगठनों पर पाबन्दी लगा दी जाए।

(2) लोगों में क्षेत्रवाद की भावना को समाप्त करने के लिए देश के सभी क्षेत्रों का समान विकास करना चाहिए, प्रान्तीय अथवा क्षेत्रीय भावनाओं के प्रचार पर पाबन्दी लगानी चाहिए।

(3) देश में आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए प्रयत्न किया जाए। (4) देश में विशेषाधिकार वर्ग को समाप्त कर देना चाहिए। देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएँ।

(5) राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत करने के लिए तथा लोगों में संकुचित दलीय वफादारियों को समाप्त करने के लिए प्रचार किया जाना चाहिए।

(6) राजनीतिक दलों का गठन धर्म, जाति अथवा क्षेत्र के आधार पर न होकर निश्चित आर्थिक व राजनीतिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाना चाहिए तथा ऐसे राजनीतिक दलों की मान्यता समाप्त कर देनी चाहिए, जो इस प्रकार की भावनाओं को उभारते हैं। सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय मुद्दे उठाने चाहिएँ।

(7) विदेशियों के प्रभाव तथा प्रचार को रोकने के लिए सरकार द्वारा प्रभावशाली कदम उठाए जाएँ।

(8) देश की शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे राष्ट्रवाद के विकास में सहायता मिले। लोगों को अपने गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में जानकारी देनी चाहिए।

प्रश्न 4.
आत्म-निर्णय के अधिकार का क्या अर्थ है? आत्म-निर्णय के अधिकार का आधार क्या हो सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
आज विश्व में आत्म-निर्णय के अधिकार का सिद्धान्त लगभग सभी राज्य सत्ताओं के समक्ष चुनौती बना हुआ है। जैसा कि हम जानते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विश्व के लगभग एक-चौथाई लोग गुलामी का जीवन व्यतीत करते थे। उस स्थिति में एक ऐसे सिद्धान्त की आवश्यकता महसूस की गई जो गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर उन्हें स्वतन्त्र जीवन जीने के मार्ग की ओर आरम्भ कर सके एवं उपनिवेशवादी सिद्धान्तों को पूर्णतः समाप्त कर सके।

इसी उद्देश्य हेतु जब विशेषकर एशिया, अफ्रीका आदि देशों में औपनिवेशिक प्रभुत्व के विरुद्ध राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन चलाए जा रहे थे तो इनमें मुख्यतः राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग एवं घोषणा सबसे प्रमुख थी। राष्ट्रीय आन्दोलनों का यह मानना था कि राजनीतिक स्वाधीनता राष्ट्रीय समूहों को सम्मान एवं मान्यता प्रदान करेगी और साथ ही वहाँ के लोगों के सामूहिक हितों की रक्षा भी करेगी।

अधिकांश राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन के लिए न्याय, अधिकार और समृद्धि हासिल करने के लक्ष्य से प्रेरित थे। लेकिन आज हम उन अनेक राष्ट्रों को विरोधाभासी स्थिति में पाते हैं जिन्होंने संघर्षों की बदौलत स्वाधीनता प्राप्त की, लेकिन अब वे अपने भू-क्षेत्रों में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों का विरोध कर रहे हैं।

अतः ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार का आधार क्या हो? परन्तु यहाँ हम पहले आत्म-निर्णय के अधिकार के अर्थ को स्पष्ट करेंगें। . आत्म-निर्णय का अर्थ-आत्म-निर्णय के अधिकार का आधार वास्तव में व्यक्ति का मौलिक अधिकार ही है।

साधारण अर्थ में आत्म-निर्णय का अर्थ है ‘स्वतन्त्र राज्य’ । आत्म-निर्णय के अपने दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक् राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए। सामान्यतः ऐसी माँग उन लोगों की ओर से आती है जो एक लम्बे समय से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें सांझी पहचान का बोध हो। कुछ मामलों में आत्म-निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतन्त्र राज्य बनाने की उस इच्छा से भी जुड़ जाते हैं। इन दावों का सम्बन्ध किसी समूह की संस्कृति की सुरक्षा से होता है। डॉ० एच०ओ० अग्रवाल (Dr. H.O.Aggarwal) ने आत्म-निर्णय सिद्धान्त को दो भागों में बाँटा है-बाह्य तथा आन्तरिक ।

प्रथम बाह्य भाग या पहलू के कारण राष्ट्र की जनसंख्या या तो पृथक् होकर या स्वतन्त्र होकर अथवा स्वतन्त्र राज्य का निर्माण करके अपनी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थिति का निर्धारण करती है। द्वितीय, आन्तरिक पहलू के कारण उनके आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में उनके अधिकारों को मान्यता देती है। संक्षेप में, आत्म-निर्णय का तात्पर्य एक राज्य में रहने वाले लोगों की जनसंख्या को उसके बाह्य व आन्तरिक पहलुओं पर स्वयं निर्णय लेने के अधिकार से लिया जाता है। इस प्रकार आत्म-निर्णय के अधिकार का अर्थ जानने के पश्चात् इसके आधार के सम्बन्ध में भी विवेचना की जा सकती है।

आत्म-निर्णय के अधिकार का आधार (Basis of Right to Self Determination)-राष्ट्रीयता का मूलभूत अधिकार यह है कि उसे आत्म-निर्णय या स्वभाग्य निर्णय का अवसर हो। जिन लोगों की नस्ल, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति व ऐतिहासिक परम्परा एक हो, जो अपने को एक अनुभव करते हों, जिनमें अपनी राष्ट्रीय एकता की अनुभूति विद्यमान हो, उन्हें यह अधिकार है कि वे अपने भाग्य का स्वयं निर्णय कर सकें। उन्हें यह अवसर होना चाहिए कि यदि वे चाहें, तो अपना पृथक् राज्य बना सकें, या वे किसी अन्य शक्तिशाली राज्य की रक्षा में स्वतन्त्रता के साथ रहते हुए अपनी राष्ट्रीय विशेषताओं का विकास कर सकें।

उन्नीसवीं सदी से पूर्व राष्ट्रीयता के इस मूलभूत अधिकार को संसार में कहीं भी स्वीकार नहीं किया जाता था। फ्रांस की राज्यक्रान्ति ने इस सिद्धान्त का प्रबलता के साथ प्रतिपादन व समर्थन किया था और 1939-45 द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तो एशिया और अफ्रीका के राज्यों को भी राष्ट्रीय दृष्टि से स्वभाग्य निर्णय का अवसर प्राप्त हो गया है। लेकिन यहाँ पर विचारणीय बिन्दु यह है कि जिस आधार पर आज विश्व के विभिन्न भागों में आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग की जा रही है?

क्या इससे शक्तिशाली राज्यों की स्थापना को ठेस नहीं पहुँचेगी? क्या इससे समाज में सभी वर्गों एवं समूहों का समुचित विकास एवं उन्नति हो पाएगी? ऐसे प्रश्नों की जिज्ञासा को हम निम्न विवेचन द्वारा स्पष्ट करते हुए यह समाधान करने का प्रयास करेंगे कि तान्त्रिक तरीके से कैसे विभिन्न संस्कृतियों, भाषायी एवं धार्मिक भिन्नता के साथ कैसे समाज के विभिन्न समूहों का एक साथ समन्वित विकास हो सकता है।

उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक राष्ट्रीयता को स्वभाग्य निर्णय का अधिकार है, यह सिद्धान्त इस समय सर्वमान्य है। यद्यपि इस विचार के विरोधियों की भी कमी नहीं है क्योंकि यदि संसार राष्ट्रीयता के सिद्धान्त पर स्थिर रहता, तो इस समय पृथ्वी पर हजारों राज्य होते। जैसे ग्रेट ब्रिटेन को ही लीजिए, उसमें स्कॉट और वेल्स लोग इंगलिश लोगों से भिन्न हैं।

अतः स्काटलैंड और वेल्स का पृथक् राज्य होना चाहिए था। कनाडा के निवासी फ्रेंच और इंगलिश दो जातियों के हैं, उन्हें भी अपने पृथक् राज्य बनाने का अधिकार होना चाहिए था। दक्षिणी अफ्रीका के गौरे रंग के लोग भी दो भागों में विभक्त हैं, इंगलिश और डच । यदि यूरोप में निवास करने वाले इंगलिश और डच लोगों के दो पृथक् राज्य हैं, तो दक्षिणी अफ्रीका में बसे हुए इंगलिश और डच लोगों के दो पृथक राज्य क्यों नहीं होने चाहिएँ?

स्विट्जरलैंड में फ्रेंच, इटालियन और जर्मन जातियों का निवास है, उनके प्रदेश भी एक-दूसरे से प्रायः पृथक हैं। इस दशा में उन्हें क्या यह अवसर नहीं मिलना चाहिए, कि या तो वे अपने-अपने पृथक राज्य बना लें और या फ्रांस, इटली और जर्मनी के साथ मिल जाएँ।

दिए गए वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यदि इतिहास में राष्ट्रीयता के सिद्धान्त को महत्त्व दिया जाता, तो बड़े व शक्तिशाली राज्यों का विकास सम्भव न हो पाता। किसी समय ग्रीस अनेक छोटे-छोटे नगर-राज्यों में विभक्त था। इन राज्यों का आधार जन (Tribe) की भिन्नता थी। स्पार्टन लोग एथीनियन लोगों से भिन्न थे।

इन विविध ग्रीकस जनों में जहाँ अनेक अंशों में समता थी, वहाँ भिन्नता की भी कमी नहीं थी। परन्तु मैसिडोनियन सम्राटों ने इन सबको विजय कर इन्हें एक विशाल राज्य का अंग बना दिया। एक व्यापक ग्रीक राष्ट्रीयता का विकास भी तभी सम्भव हुआ, जब स्पार्टन, एथीनियन आदि ‘जनों’ के स्वभाग्य निर्णय के अधिकार की उपेक्षा की गई। भारत में भी कभी सैकड़ों-हजारों छोटे-छोटे राज्य थे।

मालव, शिवि, क्षुद्रक, आरट्ट, आग्रेय आदि राज्य पंजाब में और शाक्य, वज्जि, मल्ल, मोरिय, बुलि आदि राज्य उत्तरी बिहार में थे। मगध के सम्राटों ने इन सबको जीत कर अपने अधीन किया। यदि इन सभी राज्यों में निवास करने वाले ‘जनों को स्वभाग्य निर्णय करने का अधिकार रहता, तो एक शक्तिशाली भारतीय राष्ट्र का विकास कभी सम्भव न होता।

विशाल राष्ट्रों के निर्माण के लिए यह आवश्यक है, कि कमजोर जातियों व राष्ट्रीयताओं के स्वभाग्य निर्णय के अधिकार को कुचला जाए और उन्हें एक शक्तिशाली जाति के अधीन करके एक संगठन में संगठित किया जाए।

ऐसा राज्य अधिक शक्तिशाली होता है, जिसमें अनेक जातियों व राष्ट्रीयताओं का सम्मिश्रण हो। प्रत्येक राष्ट्रीयता के अनेक पृथक् गुण व विशेषताएँ होती हैं। किसी में वीरता का गुण अधिक होता है, किसी में बुद्धि का। जिस प्रकार अनेक धातुओं के सम्मिश्रण से अधिक मजबूत धातु बनती है, वैसे ही अनेक जातियों से युक्त राज्य अधिक शक्तिशाली होता है।

लॉर्ड एक्टन का कथन है, कि जातियों के स्वभाग्य निर्णय का सिद्धान्त साम्राज्यवाद की अपेक्षा भी अधिक भंयकर और हानिकारक है। जिस प्रकार समाज का निर्माण विविध व्यक्तियों द्वारा होता है, वैसे ही राज्य का निर्माण विविध जातियों व राष्ट्रीयताओं द्वारा होता है। जब कोई पिछड़ी हुई व अवनत जाति किसी उन्नत जाति के साथ एक राज्य का अंग बनकर रहती है, तो उसे भी उन्नत होने का अवसर मिलता है।

सब जातियाँ एक सदृश योग्य व उन्नत नहीं होती। अवनत जातियों को स्वतन्त्र रूप से पृथक् रहने देने की अपेक्षा यह कहीं अधिक अच्छा है, कि वे उन्नत जाति के साथ एक राज्य में संगठित हों और इस प्रकार अपने को उन्नत करने का स्वर्णावसर प्राप्त करें।

यूरोप के साम्राज्यवादी यह कहा करते थे, कि परमेश्वर ने उन्हें पिछड़े हुए मानव-समुदायों को उन्नत करने का कार्य सुपुर्द किया है और इसलिए यह सर्वथा उचित है, कि वे एशिया और अफ्रीका के विविध देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करें और उन्हें सभ्यता के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता दें। ब्रिटिश लोग भी भारत में अपने प्रभुत्व के समर्थन में यही युक्ति देते थे। परन्तु यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त सिद्धान्त उन राज्यों के सम्बन्ध में तो ठीक हैं, जिनमें विभिन्न जातियों व राष्ट्रीयताओं के लोग स्वेच्छापूर्वक एक राज्य का अंग बन कर मिलकर रहते हैं, वह उनकी अपनी इच्छा का परिणाम है।

यही बात ग्रेट ब्रिटेन के अन्तर्गत स्काटलैंड और वेल्स के विषय में भी कही जा सकती है। परन्तु जहाँ कोई एक उन्नत जाति अन्य जातियों को शक्ति द्वारा जीतकर जबरदस्ती अपने अधीन रखने का प्रयत्न करती है, वहाँ विजेता जाति को चाहे कोई लाभ पहुँचा हो, पर अधीन जाति को उससे नुकसान ही होता है। ऐसे राज्यों में अधीन जाति सदा असन्तुष्ट रहती है, वह अपनी स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर षड्यन्त्र व विद्रोह करती रहती है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि राष्ट्रीयता का यह मूलभूत अधिकार है कि वह अपने भाग्य का निर्णय स्वयं कर सके। यदि वह अपना राष्ट्रीय हित इस बात में समझें, कि उसे किसी अन्य उन्नत जाति के साथ एक संगठन में संगठित होकर रहना है, तो इस प्रकार रहने का उसे पूरा अधिकार होना चाहिए। इसके विपरीत यदि कोई राष्ट्रीयता यह चाहे, कि उसे अपना एक पृथक् राज्य बनाना है, तो उसे राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का पूरा अधिकार होना चाहिए।

आत्म-निर्णय के अधिकार सम्बन्धी समस्या का समाधान यद्यपि वर्तमान में आत्म-निर्णय के अधिकार को संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा भी मान्यता दी जा चुकी है, लेकिन हमें ‘एक संस्कृति एक राज्य’ के विचार या विभिन्न राष्ट्रीयताओं के आधार पर नए स्वतन्त्र राज्यों के गठन के विचार को छोड़कर एक ऐसा समाधान करना होगा जिसमें विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों को एक ही देश में उन्नति एवं विकास करने का अवसर मिल सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अनेक देशों ने सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान को स्वीकार करने और संरक्षित करने के उपायों को शुरु किया है।

भारतीय संविधान में भी इसी बात के अनुरूप धार्मिक, भाषायी एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु विभिन्न प्रकार के अधिकारों के विस्तृत प्रावधान किए हैं। जैसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक तथा अनुच्छेद 29 और 30 में भाषा एवं संस्कृति से सम्बन्धित मूल अधिकार प्रदान करके विभिन्न धर्मों, भाषायी एवं संस्कृतियों के लोगों को अपना-अपना विकास करने का अधिकार प्रदान किया है। इसी उद्देश्य हेतु अन्य देशों की तरह भारत में समाज के कमजोर समूह के लोगों को विधायी संस्थाओं एवं अन्य राजकीय संस्थाओं में सुनिश्चित प्रतिनिधित्व प्रदान करके समाज के समस्त समुदायों का विकास करने का प्रयास किया है।

यद्यपि उपर्युक्त संवैधानिक प्रावधानों से यह उम्मीद की जाती है कि समाज के ऐसे समूहों को विशेष अधिकार एवं सुरक्षा प्रदान करने से उनकी आकांक्षाएँ सन्तुष्ट होंगी, फिर भी यह सम्भव है कि कुछ समूह स्वतन्त्र राष्ट्र एवं पृथक् राज्य की माँग पर आधारित आन्दोलन करेंगे जैसे कि पूर्व में तमिलनाडु एवं उत्तर में पंजाब राज्य देश से अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता एवं धर्म की एकता के आधार पर अलग होने या स्वतन्त्र होने की माँग कर चुके हैं, तो देश में कुछ हिस्सों में पृथक् राज्य बनाने की माँग हुई जिसके परिणामस्वरूप अनेक राज्यों का; जैसे मुम्बई, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ इत्यादि का गठन हुआ।

भारत में अभी भी बोडोलैंड एवं विदर्भ क्षेत्रों से आज भी नए राज्यों के गठन करने के लिए निरन्तर आन्दोलन चल रहे हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि किसी भी समाज में ऐसी माँगों का विभिन्न आधारों पर उठना एक तरह से मानवीय समूहों की स्वाभाविक प्रवृत्ति हो चुकी है। इसलिए इनके समाधान हेतु यह आवश्यक है कि ऐसी समस्याओं को लोकतान्त्रिक ढंग से ही सुलझाने का प्रयास करना चाहिए और विभिन्न संस्कृतियों, भाषायी एवं धार्मिक इत्यादि भिन्नताओं को एक सर्वोच्च कानून (संविधान) के अधीन समन्वित करते हुए उन्हें एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करना चाहिए। एक देश के लोगों में उत्पन्न ऐसी राष्ट्रवाद की भावनाएँ ही उस देश को उन्नति के शिखर की ओर अग्रसर कर सकती हैं।

प्रश्न 5.
राष्ट्र के लिए लोगों को राज्य के रूप में संगठित होना जरूरी नहीं है और न ही राज्य के लिए राष्ट्र होना आवश्यक है गार्नर। इस कथन के सन्दर्भ में राज्य और राष्ट्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राज्य और राष्ट्र में भिन्नता या अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र एक व्यापक शब्द है और इसका सम्बन्ध मुख्यतः आध्यात्मिक भावना से है और इसलिए यह निष्कर्ष हम आसानी से निकाल सकते हैं कि एक राष्ट्र के लिए राज्य की आवश्यकता नहीं है। जैसा कि गार्नर (Garmer) ने कहा है “राष्ट्र के लिए लोगों को राज्य के रूप में संगठित होना जरूरी नहीं है और न ही राज्य के लिए राष्ट्र होना आवश्यक है।”

परन्तु यहाँ यह भी स्पष्ट है कि उपर्युक्त कथन का अभिप्राय हमें यह भी नहीं लेना चाहिए कि इन दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता ही नहीं है। वास्तव में इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध भी पाया जाता है। जैसे राष्ट्र एकता की भावना का प्रतीक है और यही एकता की भावना न केवल राज्य रूपी संस्था को जन्म देने में सहायक है वरन राज्य को विश्व में एक शक्तिशाली रूप धारण करने में सहायता देती है।

जैसे कि विश्व में बिखरे हुए यहूदियों की एकता की भावना और वर्षों प्रयत्नों के फलस्वरूप उन्होंने इज़राइल नामक राज्य को जन्म दिया और तत्पश्चात् अपनी इसी भावना के फलस्वरूप वह विश्व में एक शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी पहचान रखता है। परन्तु इस पक्ष के पश्चात् भी एक राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक है कि वह इन दोनों शब्दों के अन्तर को भी समझे ताकि उनका यथास्थान उचित प्रयोग किया जा सके। इसलिए यहाँ इन दोनों में अन्तर स्पष्ट करना भी हमारे लिए अपरिहार्य हो जाता है।

राज्य और राष्ट्र में भिन्नता आधुनिक राज्य राष्ट्र-राज्य हैं। राज्य राष्ट्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। इसलिए प्रायः राज्य तथा राष्ट्र शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त किया जाता है। परन्तु इन दोनों शब्दों में मौलिक भेद हैं जो निम्नलिखित हैं

1. राज्य राजनीतिक संगठन है, राष्ट्र भावनात्मक-राष्ट्र ऐसे लोगों का समूह है जो समान नस्ल, भाषा, रीति-रिवाज़, संस्कृति तथा ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर एकता की भावना में बंधे हुए हैं। राष्ट्र एक भावनात्मक संगठन है, जिसमें एकता की चेतना होती है। राज्य न तो इस भावना को उत्पन्न कर सकता है और न ही समाप्त कर सकता है। इसके विपरीत राज्य एक राजनीतिक संगठन है। जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखता है। राज्य का सम्बन्ध मनुष्य की आध्यात्मिक व मानसिक भावनाओं से नहीं होता।

2. राज्य की निश्चित सीमा, राष्ट्र की नहीं-एक राज्य के लिए निश्चित प्रदेश अनिवार्य है। मातृभूमि के प्रति बलिदान की भावना निश्चित प्रदेश के कारण ही लोगों में पैदा होती है। परन्तु राष्ट्र की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। सिक्ख, मुसलमान दुनिया के सभी देशों में बसे हुए हैं। यहूदी भी यूरोप के बहुत-से देशों में बसे हुए हैं। चाहे 1948 ई० के पश्चात् उनका अपना एक अलग राष्ट्र स्थापित हो गया है।

3. राज्य के निश्चित तत्त्व, राष्ट्र के नहीं राज्य के निश्चित चार तत्त्व हैं जनसंख्या, निश्चित प्रदेश, संगठित सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के अनिवार्य तत्त्व हैं। यदि एक भी तत्त्व नहीं होगा तो राज्य नहीं बनेगा। परन्तु राष्ट्र के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं। धर्म, रीति-रिवाज़, जाति, भाषा, भौगोलिकता एकता कोई भी अथवा सभी तत्त्व राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकते हैं।

4. प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है, राष्ट्र का नहीं-प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है। यह उसकी आत्मा के समान है। इसके बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रभुसत्ता का तत्त्व ही राज्यों को अन्य समुदायों से भिन्न करता है। जब राज्य से प्रभुसत्ता छिन्न जाती है तो राज्य का अन्त हो जाता है। इसके विपरीत राष्ट्र के लिए प्रभुसत्ता अनिवार्य नहीं है। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि एक संगठन प्रभुसत्ता के अभाव में राष्ट्र तो था पर राज्य नहीं। जैसे सन् 1947 से पूर्व भारत राष्ट्र तो था पर एक राज्य नहीं था।

5. राज्य के पास दण्डनीय शक्ति है, राष्ट्र के पास नहीं-राज्य के पास एक ऐसी शक्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य की आज्ञा न मानने वाले को दण्ड दिया जाता है। अतः राज्य की शक्ति पुलिस शक्ति है। वह आज्ञा देता है। राज्य की दण्ड देने की कोई सीमा नहीं है। इसके विपरीत राष्ट्र के पास इस प्रकार की कोई शक्ति नहीं है। राष्ट्र अपनी बात मनवाने के लिए प्रार्थना, प्रोत्साहन और बहिष्कार जैसे साधनों का प्रयोग करता है। .

6. एक राज्य में कई राष्ट्रीयताएँ-एक राज्य में कई राष्ट्रीयताएँ होती हैं। भारत, स्विट्जरलैंड तथा अन्य देशों में एक नहीं कई राष्ट्रीयताओं के लोग बसे हुए हैं। परन्तु राष्ट्र में एक ही राष्ट्रीयता के लोग संगठित होते हैं।

7. आकार के आधार पर अन्तर-राज्य का आकार राष्ट्र से छोटा भी हो सकता है तथा बड़ा भी। एक राज्य में अनेक राष्ट्र हो सकते हैं तथा एक राष्ट्र अनेक राज्यों में फैला हो सकता है। गार्नर के अनुसार, राज्य की सीमाएँ राष्ट्र की सीमाओं को पार कर सकती हैं, यदि राष्ट्र को जाति तथा भाषा सम्बन्धी समूह मान लिया जाए। इसके विपरीत राष्ट्र की सीमाएँ राज्य की सीमाओं से विस्तृत हो सकती हैं। वास्तव में ये कभी भी आपस में मेल नहीं खातीं।

निष्कर्ष:
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राष्ट्र व राज्य भिन्न-भिन्न हैं। यद्यपि वे एक जैसे प्रतीत होते हैं तथा राष्ट्र का एक रूप में प्रयोग भी किया जाता है। वास्तव में राज्य के स्थान पर राष्ट्र का प्रयोग भ्रमात्मक है। उग्र राष्ट्रवाद से साम्प्रदायिकता की भावना को प्रोत्साहन मिला है। आज भारत को सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषा सम्बन्धी तथा आर्थिक भिन्न का सामना करना पड़ रहा है। समाज का विभिन्न जातियों में विभाजन एक और समस्या है। ये समस्याएँ एक-दूसरे से मिलकर कुछ इलाकों में प्रभावशाली क्षेत्रीय भावना का रूप ले चुकी हैं। कुछ इलाकों में ‘बाहर तथा अन्दर’ के लोगों में भेद किया जा रहा है। इन बहुपक्षीय समस्याओं के सामने राष्ट्रीय एकता एक कठिन समस्या बनी हुई है।

प्रश्न 6.
राष्ट्र का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजनीति-विज्ञान के विद्वानों ने ‘राष्ट्र’ शब्द की परिभाषा अलग-अलग दृष्टिकोण से की है जिन्हें हम क्रमशः जातीय दृष्टिकोण, राजनीतिक दृष्टिकोण और भावनात्मक एकता सम्बन्धी दृष्टिकोण कह सकते हैं। विषय की स्पष्टता के लिए उनका संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित प्रकार है

1. जातीय एकता सम्बन्धी-‘राष्ट्र’ या अंग्रेजी भाषा का ‘नेशन’ (Nation) शब्द, लेटिन भाषा के ‘नेशियो’ (Natio) शब्द से बना है। इसका अर्थ जन्म या नस्ल अथवा जाति से होता है। इस आधार पर एक ही जाति, वंश या नस्ल से जातिगत एकता से जुड़े हुए संगठित जन-समूह को एक राष्ट्र कहा जाता है। बर्गेस (Burgess) के अनुसार, “जातीय एकता से हमारा अर्थ ऐसी जनसंख्या से है जिसकी एक समान भाषा और साहित्य, समान परम्परा या इतिहास, समान रीति-रिवाज़ और उचित-अनुचित की समान चेतना हो।”

परन्तु यह धारणा वर्तमान युग में स्वीकार नहीं की जा सकती। यद्यपि यह धारणा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधती है तथापि कोई भी राष्ट्र ऐसा नहीं है, जिसका आधार पूर्णतया जाति, भाषा या नस्ल हो। आधुनिक युग में रक्त के आधार पर पवित्रता का दावा करना गलत है। अतः यदि वंश की एकता को राष्ट्रवाद का आधार माना जाए तो आज कोई भी राष्ट्र नहीं है।

2. राजनीतिक एकता सम्बन्धी-जाति या वंश की एकता के आधार पर दिए गए ‘राष्ट्र’ के इस दृष्टिकोण को बहुत-से विद्वान सही नहीं मानते हैं। वे राष्ट्र के राजनीतिक स्वरूप को अधिक महत्त्व देते हैं। उनके अनुसार राष्ट्र के लिए राज्यत्व (Statehood) प्राप्त करना जरूरी है। लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) ने कहा है, “राष्ट्र वह राष्ट्रीयता है जिसने अपने-आपको स्वतन्त्र होने या स्वतन्त्रता की इच्छा रखने वाली राजनीतिक संस्था के रूप में संगठित कर लिया है।”
यद्यपि अधिकांश लोग आज राष्ट्र को एक राजनीतिक इकाई के रूप में देखते हैं, तथापि यह दृष्टिकोण उचित नहीं है, क्योंकि एक राज्य में अलग-अलग राष्ट्र हो सकते हैं। अतः राज्यत्व के आधार पर राष्ट्र की धारणा सर्वमान्य नहीं है; क्योंकि इनमें जाति, वंश, भाषा इत्यादि की एकता के अभाव से भी राष्ट्र की स्थापना हो सकती है।

3. भावनात्मक एकता सम्बन्धी दृष्टिकोण बहत-से विद्वान ऊपर बताए गए दोनों आधारों को सही नहीं मानते। उनक कहना है कि अमेरिका आदि देशों के उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि राष्ट्र के लिए जातीय एकता होना अनिवार्य नहीं है। इसी तरह राज्य भी राष्ट्र के अस्तित्व के लिए अनिवार्य तत्त्व नहीं कहा जा सकता। सन् 1947 से पहले भारतवासियों का अपना राज्य नहीं था। फिर भी भारत उस समय भी एक राष्ट्र था और आज भी है। इसलिए ये विद्वान राष्ट्र के लिए भावनात्मक एकता पर बहुत अधिक जोर देते हैं।

उनका कहना है कि राष्ट्र ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जिनमें एकता की भावना मौजूद होने के साथ-साथ इस जन-समूह में अपने-आपको दुनिया के दूसरे जन-समूहों से अलग समझने की प्रबल भावना होती है। वे यह भी मानते हैं कि इस तरह की एकता की भावना समान जाति, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज़, साहित्य, संस्कृति, इतिहास आदि से आसानी के साथ उत्पन्न हो जाती है। लेकिन इन सभी तत्त्वों की अनिवार्यता की बात को वे मंजूर नहीं करते हैं। ब्लंशली (Bluntschli) के शब्दों में, “राष्ट्र ऐसे मनुष्यों के समूह को कहते हैं जो विशेषतया भाषा और रीति रिवाजों के द्वारा एक समान सभ्यता से बंधे हुए हों जिससे उनमें अन्य सभी विदेशियों से अलग एकता की सुदृढ़ भावना पैदा होती हो।”

अतः निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि “राष्ट्र एक ऐसा मानव-समूह है जिसमें भावनात्मक एकता विकसित हुई हो; जिसकी एक निश्चित मातृ-भूमि हो; सम्भवतः एक ही नस्ल, समान ऐतिहासिक अनुभव, समान भाषा, साहित्य, आर्थिक, धार्मिक व सामाजिक तत्त्वों पर आधारित सामान्य संस्कृति हो; समान राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा आदि या इनमें से कुछ बातें पाई जाएँ और जिनमें साथ-साथ रहने और विकसित होने की इच्छा पर आधारित एक सामूहिक व्यक्तित्व हो जिसको साधारणतः आत्म-निर्णय के अधिकार द्वारा अथवा कभी-कभी केवल सांस्कृतिक स्वतन्त्रता द्वारा उन्नत बनाए रखने का उसमें उत्साह हो।”

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पत्ति ‘नेशियो’ (Natio) शब्द से हुई है, जो निम्नलिखित भाषा का शब्द है
(A) यूनानी
(B) लैटिन
(C) इटालियन
(D) फ्रैंच
उत्तर:
(B) लैटिन

2. निम्नलिखित में से कौन-सा राष्ट्र का तत्त्व है?
(A) भौगोलिक एकता
(B) समान भाषा
(C) नस्ल की समानता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

3. निम्नलिखित तत्त्व राष्ट्र-निर्माण को प्रभावित नहीं करता
(A) औद्योगीकरण
(B) शिक्षा का प्रसार
(C) नगरीकरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. भारत में निम्नलिखित में से कौन-सा तत्त्व राष्ट्र-निर्माण में बाधा है?
(A) साम्प्रदायिकता
(B) जातिवाद
(C) भ्रष्टाचार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बाधा है?
(A) जातिवाद
(B) साम्प्रदायिकता
(C) भाषावाद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. निम्नलिखित में से कौन-सा राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग की बाधाओं को दूर करने का उपाय है?
(A) भाषावाद
(B) साम्प्रदायिकता
(C) गरीबी
(D) सामाजिक समानता
उत्तर:
(D) सामाजिक समानता

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद

7. राष्ट्रीय एकीकरण परिषद् की स्थापना निम्नलिखित वर्ष में की गई
(A) 1956 में
(B) 1990 में
(C) 1975 में
(D) 1978 में
उत्तर:
(A) 1956 में

8. भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या का मुख्य कारण है
(A) विभिन्न धर्मों के लोगों का होना
(B) भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वाले लोगों का होना
(C) भारत का एक विशाल देश होना
(D) भारत की जनता का अनपढ़ एवं अज्ञानी होना
उत्तर:
(D) भारत की जनता का अनपढ़ एवं अज्ञानी होना

9. निम्नलिखित में से राष्ट्रीय निर्माण के तत्त्व हैं
(A) राष्ट्रीय स्वतन्त्रता
(B) राष्ट्रीय भावना
(C) विभिन्नता में एकता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) राष्ट्र का क्षेत्र राष्ट्रीयता से बड़ा है
(B) राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता दोनों समानार्थक हैं
(C) राष्ट्र का क्षेत्र राष्ट्रीयता से संकुचित है
(D) राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता में कोई भी नहीं है
उत्तर:
(A) राष्ट्र का क्षेत्र राष्ट्रीयता से बड़ा है

11. राष्ट्रवाद का लक्षण निम्नलिखित में से है
(A) राष्ट्र से संबंधित होने की मनोवैज्ञानिक भावना
(B) राष्ट्रीय राज्य के सिद्धान्त पर आधारित
(C) लोगों की सांझी नस्ल, भाषा, संस्कृति, धर्म, इतिहास एवं हित आदि का होना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

12. निम्नलिखित में से कौन-सा राष्ट्रवाद के रूप का प्रकार है?
(A) लोकतन्त्रीय राष्ट्रवाद
(B) सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद
(C) रूढ़िवादी राष्ट्रवाद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

13. राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्त्व निम्नलिखित में से हैं
(A) भौगोलिक एकता
(B) भाषा, संस्कृति एवं परम्पराओं की समानता
(C) समान राजनीतिक आकांक्षाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. राष्ट्र और राज्य में भेद निम्नलिखित है
(A) राज्य की सीमा निश्चित राष्ट्र की नहीं
(B) राज्य के पास प्रभुसत्ता है, राष्ट्र के पास नहीं
(C) राज्य राजनीतिक संगठन है
(D) राष्ट्र भावनात्मक है
उत्तर:
(D) राष्ट्र भावनात्मक है

15. राष्ट्रवाद के प्रकार निम्नलिखित हैं
(A) रूढ़िवाद राष्ट्रवाद
(B) उदारवादी राष्ट्रवाद
(C) मार्क्सवादी राष्ट्रवाद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. राष्ट्रवाद के तत्त्व हैं
(A) भौगोलिक एकता
(B) धर्म की समानता
(C) भाषा की एकता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. “समान नस्ल, भाषा, समान आदतों, रीति-रिवाजों तथा समान धर्म जैसे तत्त्वों द्वारा राष्ट्र का निर्माण होता है” राष्ट्र की यह परिभाषा किस विद्वान् ने दी है?
उत्तर:
फोडेर ने।

2. भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग का कोई एक बाधक कारक लिखिए।
उत्तर:
जातिवाद।

3. अन्तर्राज्यीय परिषद् का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री।

4. “राष्ट्रीय एकीकरण लोगों के हृदयों तथा मस्तिष्कों का एकीकरण है।” ये शब्द किसके हैं?
उत्तर:
जवाहरलाल नेहरू के।

रिक्त स्थान भरें

1. राष्ट्रीय एकता परिषद् का पुनर्गठन …………… वर्ष में किया गया।
उत्तर:
1980

2. भारतीय संविधान में ……………. की व्यवस्था की गई है।
उत्तर:
अन्तर्राज्यीय परिषद्

3. …………….. भाषाओं को संवैधानिक मान्यता दी गई है।
उत्तर:
22

4. “राष्ट्रवाद मन की स्थिति तथा सचेत रूप में किया गया कार्य है।” यह कथन ……….. ने कहा।
उत्तर:
हांस कोहिन

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

HBSE 9th Class Hindi कैदी और कोकिला Textbook Questions and Answers

कैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर-
कोयल की कूक सुनकर कवि के मन पर गहन प्रतिक्रिया हुई थी तथा उसने कोयल से कहा कि संपूर्ण देश स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जूझ रहा है और सारा देश एक कारागार के रूप में परिणत हो गया है। ऐसे में मधुर गीत गाने की आवश्यकता नहीं, अपितु क्रांति और विद्रोह का गीत गाना चाहिए।

कैदी और कोकिला व्याख्या HBSE 9th Class प्रश्न 2.
कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई है ?
उत्तर-
कवि ने कोकिल के बोलने की संभावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा है कि क्या वह किन्हीं वेदनाओं के बोझ से दबी हुई है या उसे किसी ने लूट लिया है। क्या वह पगला गई है जो इस प्रकार आधी रात के समय बोलने लगी है। क्या उसने जंगल में लगी आग की भयंकर लपटें देखी हैं, जिनसे भयभीत होकर वह कक उठी है।

Class 9 Hindi Chapter 12 Bhavarth HBSE प्रश्न 3.
किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों ?
उत्तर-
कवि ने ब्रिटिश शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है, क्योंकि उस समय ब्रिटिश शासन द्वारा साधारण जनता पर अन्याय व अत्याचार किए जा रहे थे। चारों ओर शोषण का डंका बज रहा था। निरपराध लोगों को कारागार में बंद कर दिया जाता था। वहाँ न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी। इसलिए कवि ने ब्रिटिश शासन की तुलना तम से की है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

Class 9 Hindi Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE प्रश्न 4.
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में पराधीन भारत की जेलों में अंग्रेज शासक द्वारा दी जाने वाली यंत्रणाओं का यथार्थ चित्रण किया गया है। कवि ने बताया है कि जेलों में कैदियों को लोहे की जंजीरों में बाँधकर रखा जाता था। उनके पाँवों में बेड़ियाँ और हाथों में हथकड़ियाँ पहनाई जाती थीं। कैदियों को कोल्हू में पशुओं की भाँति जोता जाता था। कुएँ से पानी निकलवाने के लिए उनके पेट पर जूआ रखा जाता था जिसे वे खींचते थे। उन्हें काल-कोठरी में बंद करके रखा जाता था जहाँ रोशनी व ताजी हवा नहीं पहुँचती थी। उन पर कड़ा पहरा रखा जाता था। उनको गालियाँ दी जाती थीं। उन्हें पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता था।

कैदी और कोकिला HBSE 9th Class प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो! ।
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का फँआ।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने कोयल की वाणी की मधुरता को उद्घाटित किया है। उसे मधुरता के खजाने की रक्षक कहकर उसकी मधुर ध्वनि की प्रशंसा की है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने एक ओर ब्रिटिश शासन के भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति किए गए अमानवीय व्यवहार को उद्घाटित किया है तो दूसरी ओर कैदी के स्वाभिमान एवं संघर्षशील प्रवृत्ति को दर्शाया है। ब्रिटिश शासन द्वारा कैदियों से कुएँ से पानी निकलवाने के लिए उन्हें चरस (चमड़े से बनी चरस जिसमें कुएँ से पानी निकाला जाता है।) खींचने के लिए विवश किया जाता है। किंतु कैदी ब्रिटिश शासन के सामने हार नहीं मानता।

कैदी और कोकिला Question And Answer HBSE प्रश्न 6.
अर्द्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर-
कवि को अर्द्धरात्रि में कोयल के चीख उठने से अंदेशा था कि उसने किसी को लुटते हुए देखा होगा या उसे जंगल में लगी आग की भयंकर लपटें दिखाई दी होंगी जिससे वह घबराकर चीख उठी होगी।

Kaidi Aur Kokila Class 9 HBSE प्रश्न 7.
कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर-
वस्तुतः कवि महान स्वतंत्रता सेनानी है। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण ब्रिटिश शासन ने उसे कारागार में बंद कर दिया है। वह कैदी है। जब रात्रि के समय कोयल अपनी मधुर वाणी में बोलती है तो उसके मन में कोयल के प्रति ईर्ष्या भाव जाग उठता है। क्योंकि कोयल हरी-भरी टहनी पर स्वतंत्रतापूर्वक बैठी है और कवि के भाग्य में काल-कोठरी में बंद रहना लिखा हुआ है। वह खुले आकाश में उड़ सकती है और कवि केवल दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद है। इसके अतिरिक्त जब कोयल बोलती है तो लोग उसकी मधुर वाणी को सुनकर वाह! वाह! कह उठते हैं और कवि के लिए गीत गाना तो क्या यदि वह रोता भी है तो उसे भी गुनाह समझा जाता है। इन्हीं कारणों से कवि के मन में कोयल के प्रति ईर्ष्या का भाव है।

कैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 8.
कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर-
कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की अनेक मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं। कोयल की मधुर वाणी सुनकर कवि रोमांचित हो उठता था। उसके मधुर गीत सुनकर ऐसा लगता था कि मानो वह उसके किसी प्रियजन का संदेश लेकर आई हो, किंतु इस समय कोयल की ध्वनि मधुर नहीं, अपितु एक चीख है और वह युद्ध के नगाड़े के समान लगती है ताकि कवि उन मधुर स्मृतियों को भूलकर स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष में कूद पड़े।

Kaidi Aur Kokila Summary HBSE 9th Class प्रश्न 9.
हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर-
गहने पहनने का प्रमुख लक्ष्य सुंदर लगना है। पराधीनता के समय स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन करते थे। इस कारण अंग्रेज सरकार उन्हें हथकड़ियाँ लगाकर कारागार में बंद कर देती थी। स्वतंत्रता सेनानियों को देश को स्वतंत्र कराने के कार्य करने में गर्व की अनुभूति होती थी। इसीलिए वे अंग्रेज सरकार द्वारा पहनाई गई हथकड़ियों को गहना समझकर धारण करते थे। इससे उनका मान बढ़ता था।

Class 9 Hindi Chapter 12 Vyakhya HBSE प्रश्न 10.
‘काली तू…… ऐ आली।’ इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने काली शब्द की आवृत्ति से एक ओर कविता में लय एवं संगीत में वृद्धि करके उसके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि की है। दूसरी ओर कवि ने ब्रिटिश सरकार के द्वारा किए गए अन्याय, अत्याचार और शोषण को प्रभावशाली ढंग से उजागर किया है। कहने का भाव है कि ‘काली’ शब्द से जहाँ काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, वहाँ भाव-सौंदर्य भी प्रभावशाली बन पड़ा है।

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Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE 9th Class प्रश्न 11.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी!
उत्तर-(क) (1) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जंगल की आग की ज्वालाओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन के द्वारा भारतीयों के प्रति किए गए अन्याय एवं अत्याचारों की ओर संकेत किया है।
(2) प्रश्न अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(3) ओजपूर्ण भाषा है।
(4) मानसिक बिंब है। प्रत्यक्ष के माध्यम से अप्रत्यक्ष को उद्घाटित किया गया है।

(ख) (1) प्रस्तुत पंक्तियों में कोयल के प्रति कवि के मन के ईर्ष्या भाव को प्रस्तुत किया गया है।
(2) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा लययुक्त एवं संगीतमय बनी हुई है।
(3) ‘तेरी-मेरी’ में अनुप्रास अलंकार है।
(4) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग से कथन को ग्रहणीय एवं मार्मिकता प्रदान की गई है।
(5) ‘वाह…गुनाह’ तथा ‘मेरी…..रणभेरी’ में तुकान्त है।

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रचना और अभिव्यक्ति

Kaidi Aur Kokila Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 12.
कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर-
कवि ने अन्य पक्षियों के चहचहाने की ध्वनि की अपेक्षा कोयल की बात को इसलिए चुना है क्योंकि कोयल की ध्वनि अत्यन्त प्रभावशाली है। कोयल सदा से कवियों के आकर्षण का कारण रही है। इसके अतिरिक्त उसे चुनने का अन्य कारण उसका काला होना भी है। कवि अंग्रेज सरकार की काली करतूतों को उद्घाटित करना चाहता है। इसलिए काली करतूतों एवं कोयल के काले रंग में समानता भी है।

Kaidi Aur Kokila HBSE 9th Class प्रश्न 13.
आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ?
उत्तर-
अंग्रेज सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार इसलिए किया जाता था ताकि उन्हें यह अनुभव करवा दे कि उनकी दृष्टि में तुम सामान्य अपराधी हो। इसके अतिरिक्त उनके देश-प्रेम की भावना और मनोबल को ठेस पहुंचाने के लिए भी ऐसा किया जाता था।

पाठेतर सक्रियता

पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें।
स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। पता लगाइए कि इस दिशा में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी इन्हें अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and Answers

Class 9 Hindi Kshitij Chapter 12 Vyakhya HBSE प्रश्न 1.
‘कैदी और कोकिला’ शीर्षक कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने पराधीन भारत की दुर्दशा का उल्लेख करके अंग्रेजी शासकों के अत्याचारों की ओर संकेत किया है। कवि ने भारतीय जनता को क्रांति करने का आह्वान किया है ताकि देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिल सके। कवि अंधेरी रात में कारागार में बंद है। वह कोयल की मधुर कूक सुनकर बेचैन हो उठता है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जेल में दी जाने वाली यातनाओं का यथार्थ चित्रण किया है। उसे कोयल की स्वतंत्रता से ईर्ष्या भी होती है कि कोयल स्वच्छंद रूप से उड़ती व गाती है, जबकि वह बंदी है। गाँधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए भारतीय युवकों को प्रेरित करना भी कवि का प्रमुख लक्ष्य है।

Kaidi Aur Kokila Ke Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 2.
कोयल की कूक सुनकर कवि के मन में क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
कोयल की कूक सुनकर कवि को ऐसा लगा कि वह कुछ कहना चाहती है। कोयल की कूक कवि के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा सी प्रतीत हुई थी। उसे यह भी लगा कि कोयल कवि की यातनाओं से उत्पन्न पीड़ाओं को बाँटना चाहती है। वह उसे अपने प्रति सहानुभूति व्यक्त करती हुई भी प्रतीत होती है। अतः कवि कोयल के इशारों पर आत्म-बलिदान करने के लिए तैयार हो जाता है।

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प्रश्न 3.
कवि को रात के समय कोयल का कूकना अच्छा क्यों नहीं लगता ?
उत्तर-
कवि राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ तरह-तरह की यातनाएँ भोग रहा है। ऐसे संघर्ष के समय रात को कोयल कूक उठती है यद्यपि कोयल दिन के समय ही बोलती है। कवि कोयल की ध्वनि सुनकर अत्यंत बेचैन हो उठता है। उसकी चेतना में कोयल की स्वच्छंद स्थिति एवं अपनी कैदी होने की स्थिति कौंध जाती है। इसलिए कवि को कोयल की मधुर ध्वनि बार-बार उसके बंदी होने का बोध कराती है। यह स्वाभाविक है कि गुलाम होकर या बंदी बनकर किसी स्वतंत्र व्यक्ति या प्राणी की स्थिति के प्रति ईर्ष्या का भाव भी जाग उठता है। इसलिए कवि को कोयल का कूकना अच्छा नहीं लगता।

प्रश्न 4.
कोयल और कवि की मनःस्थिति के अंतर पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कोयल और कवि की मनःस्थिति में दिन-रात का अंतर है। कवि अंग्रेजी शासन के द्वारा बंदी बनाया गया है और जेल की यातनाएँ भोग रहा है। वह दस फुट की तंग कोठरी में पड़ा हुआ है। जबकि कोयल हरे-भरे वृक्ष की टहनी पर बैठी हुई है।

वह फुदक-फुदक कर एक टहनी से दूसरी टहनी पर जा बैठती है। वह प्रसन्नतापूर्वक मधुर ध्वनि में कूक-कूक कर अपने मन की प्रसन्नता व्यक्त कर रही है। दूसरी ओर, कवि तंग कोठरी में पड़ा हुआ दुःखी हो रहा है।

प्रश्न 5.
ब्रिटिश राज के द्वारा कवि को पहनाई गई हथकड़ियों को ‘ब्रिटिश राज का गहना’ कहना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कवि ने अपने हाथों में पड़ी हुई हथकड़ियों को ‘ब्रिटिश राज का गहना’ कहा है। वह कोई चोर या अपराधी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति नहीं है। वह देशभक्त है और अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करवाना चाहता है। इसलिए उसने स्वयं हथकड़ियाँ पहनना स्वीकार किया है। उसे बंदी होने पर भी गर्व है। क्योंकि वह एक पवित्र काम के लिए बंदी बना है। वह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है इसलिए ब्रिटिश शासन ने उस पर राजद्रोह का आरोप लगाया है। भारतीय समाज में ऐसे क्रांतिकारी और देशभक्त लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है कि ब्रिटिश शासन द्वारा पहनाई गई हथकड़ियों को कवि द्वारा ‘ब्रिटिश राज का गहना’ कहना उचित है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कैदी और कोकिला के लेखक हैं-
(A) भारतेंदु हरिश्चंद्र
(B) मैथिलीशरण गुप्त
(C) माखनलाल चतुर्वेदी
(D) निराला जी
उत्तर-
(C) माखनलाल चतुर्वेदी

प्रश्न 2.
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1889 में
(B) सन् 1879 में
(C) सन् 1869 में
(D) सन् 1859 में
उत्तर-
(A) सन् 1889 में

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प्रश्न 3.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी किस प्रदेश के रहने वाले थे ?
(A) हरियाणा
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) हिमाचल प्रदेश
उत्तर-
(C) मध्य प्रदेश

प्रश्न 4.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी ने सबसे पहले किस पत्रिका का संपादन आरंभ किया था ?
(A) सरस्वती का
(B) प्रभा का
(C) हंस का
(D) धर्मयुग का
उत्तर-
(B) प्रभा का

प्रश्न 5.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी का उपनाम है-
(A) एक भारतीय आत्मा
(B) भारत सपूत
(C) भारतीय सैनिक
(D) महाकवि
उत्तर-
(A) एक भारतीय आत्मा

प्रश्न 6.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाओं में कौन-सा प्रमुख भाव व्यक्त हुआ है ?
(A) प्रेमभाव
(B) विरह भाव
(C) राष्ट्रीय-भाव
(D) सामाजिक भाव
उत्तर-
(C) राष्ट्रीय-भाव

प्रश्न 7.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य रचनाएँ हैं-
(A) साहित्य देवता
(B) हिम तरंगिनी
(C) समर्पण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 8.
श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी का देहांत कब हुआ था ?
(A) सन् 1948 में
(B) सन् 1958 में
(C) सन् 1968 में
(D) सन् 1978 में
उत्तर-
(C) सन् 1968 में

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प्रश्न 9.
‘कैदी और कोकिला’ शीर्षक कविता में कवि की कौन-सी विचारधारा की अभिव्यक्ति हुई है ?
(A) क्रांतिकारी
(B) सामाजिक
(C) राजनीतिक
(D) धार्मिक
उत्तर-
(A) क्रांतिकारी

प्रश्न 10.
कवि को कौन पेट भर खाना नहीं देता ?
(A) माता-पिता
(B) अंग्रेज सरकार
(C) कवि के मित्र
(D) कवि की पत्नी
उत्तर-
(B) अंग्रेज सरकार

प्रश्न 11.
कवि को रात में कौन निराश करके चला गया ?
(A) कवि का मित्र
(B) जेलर
(C) बादल
(D) हिमकर (चाँद)
उत्तर-
(D) हिमकर (चाँद)

प्रश्न 12.
कवि कारागृह में किन लोगों के बीच रखा गया था ?
(A) चोरों और डाकुओं के
(B) साधु-संतों के
(C) पागलों के
(D) बच्चों के
उत्तर-
(A) चोरों और डाकुओं के

प्रश्न 13.
कवि पर जेल में रात-दिन कड़ा पहरा क्यों लगाया गया था ?
(A) वह चोर था
(B) वह खूनी था
(C) वह पागल था
(D) वह राजनीतिक कैदी था
उत्तर-
(D) वह राजनीतिक कैदी था ।

प्रश्न 14.
कवि ने कालिमामयी किसे कहा है ?
(A) अंधेरी रात को
(B) घटा को
(C) कोयल को
(D) सरकार को
उत्तर-
(C) कोयल को

प्रश्न 15.
‘शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है’ पंक्ति में प्रमुख विषय है-
(A) अंग्रेजी शासन का अन्याय
(B) रात का गहन अंधकार
(C) कोयल की कालिमा
(D) अंधेरे से उत्पन्न भय
उत्तर-
(A) अंग्रेजी शासन का अन्याय

प्रश्न 16.
कवि ने कोयल की आवाज को ‘हूक’ क्यों कहा ?
(A) उसमें मधुरता है
(B) उसमें लय है
(C) उसमें निराशा एवं वेदना है ।
(D) उसमें उत्साह है
उत्तर-
(C) उसमें निराशा एवं वेदना है

प्रश्न 17.
‘वेदना बोझ वाली-सी’ पंक्ति में कौन-सा प्रमुख अलंकार है ?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) यमक
(D) उपमा
उत्तर-
(D) उपमा

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प्रश्न 18.
कोयल किस समय चीखी थी ?
(A) दोपहर के समय
(B) आधी रात के समय
(C) प्रातःकाल के समय
(D) संध्या के समय
उत्तर-
(B) आधी रात के समय

प्रश्न 19.
दावानल की ज्वालाओं से अभिप्राय है-
(A) बहुत भारी दुःख
(B) बहुत बड़ी जंगल की आग
(C) सागर की आग
(D) विरह की आग
उत्तर-
(A) बहुत भारी दुःख

प्रश्न 20.
कवि ने बावली किसे कहा है ?
(A) रात्रि को
(B) कोयल को
(C) अपनी आत्मा को
(D) कविता को
उत्तर-
(B) कोयल को

प्रश्न 21.
कवि ने कौन-सा गहना पहना हुआ था ?
(A) कंगन
(B) घड़ी
(C) हथकड़ी
(D) सोने का कड़ा
उत्तर-
(C) हथकड़ी

प्रश्न 22.
कवि को कोयल की मधुरता एवं सहानुभूतिपूर्ण स्वर से कैसी प्रेरणा मिली थी ?
(A) परिवार के सदस्यों के प्रति स्नेह की प्रेरणा
(B) विदेशी सत्ता के प्रति विद्रोह की भावना
(C) विदेशियों से घृणा की भावना
(D) देश के प्रति स्नेह की प्रेरणा
उत्तर-
(B) विदेशी सत्ता के प्रति विद्रोह की भावना

प्रश्न 23.
‘शासन की करनी भी काली’ से क्या अभिप्राय है ?
(A) शासन की अन्याय भावना
(B) शासन की दयामय भावना
(C) शासन की दंड व्यवस्था
(D) शासन के कड़े नियम
उत्तर-
(A) शासन की अन्याय भावना

प्रश्न 24.
कवि ने कोयल के स्वर को ‘चमकीले गीत’ क्यों कहा है ?
(A) वह चमकदार है
(B) वह मधुर है
(C) वह ओज एवं संघर्ष के भाव से युक्त है
(D) वह लययुक्त है
उत्तर-
(C) वह ओज एवं संघर्ष के भाव से युक्त है

प्रश्न 25.
‘नभ-भर का संचार’ का आशय है-
(A) मुक्ति
(B) विशालता
(C) ईर्ष्या
(D) प्रसन्नता
उत्तर-
(A) मुक्ति

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प्रश्न 26.
‘मोहन’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ?
(A) श्रीकृष्ण के लिए
(B) महात्मा गाँधी के लिए
(C) कवि ने अपने लिए
(D) जवाहर लाल नेहरू के लिए
उत्तर-
(B) महात्मा गाँधी के लिए

कैदी और कोकिला अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली? [पृष्ठ 107]

शब्दार्थ-घेरे में = बंधन में। बटमार = रास्ते में यात्रियों को लूटने वाला । तम = अंधकार । हिमकर = चंद्रमा। कालिमामयी = काले रंग वाली। आली = सखी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत काव्यांश का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(5) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(6) अंग्रेज सरकार का स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति कैसा व्यवहार था ?
उत्तर-
(1) कवि-माखनलाल चतुर्वेदी। कविता-कैदी और कोकिला।

(2) प्रस्तुत काव्यांश श्री माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख काव्य रचना ‘कैदी और कोकिला’ में से उद्धृत है। कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कारागार में बंद कर दिया गया था। वहाँ एकाकी और यातनामय वातावरण के कारण उसके मन में निराशा भर गई है। रात को कोयल की ध्वनि सुनकर वह जाग जाता है और अपने मन के दुःख और ब्रिटिश शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करता हुआ कोयल से ये शब्द कहता है।

(3) व्याख्या-कवि कोयल की ध्वनि सुनकर उससे पूछता है कि इस समय तुम रह-रहकर क्या गाती हो ? अपनी इस ध्वनि के माध्यम से तुम किसके लिए और क्या संदेश लाती हो। मुझे इसके विषय में बताओ।।

कवि अपने विषय में उसे बताता है कि मैं यहाँ कारागार की ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकुओं, चोरों तथा रास्ते में दूसरों को लूटने वाले बटमारों के बीच बंद हूँ। दूसरी ओर, अंग्रेज सरकार जीने के लिए भर पेट खाना भी नहीं देती। यहाँ ऐसी दशा बना दी गई है कि न हम मर सकते हैं और न ही भली-भाँति जी सकते हैं, बस तड़पते रहते हैं। यहाँ हमारे जीवन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया गया है। अंग्रेजी शासन का प्रभाव गहरे अंधकार के प्रभाव के समान है। कहने का भाव है कि जिस प्रकार अंधकार में कुछ नहीं सूझता; उसी प्रकार अंग्रेजी शासन में किसी के साथ सही न्याय नहीं होता। अब रात काफी बीत चुकी है। चंद्रमा भी मानो निराश होकर चला गया है और उसके जाने के पश्चात रात पूर्णतः अंधकारमयी हो गई है। इस कालिमामयी अर्थात् गहरे काले रंग वाली कोयल तू इस अंधेरी रात में क्यों जाग गई। तुझे क्या गम या चिंता है।

भावार्थ-इन काव्य-पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है।

(4) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ अपने मन के निराश भावों को अभिव्यक्त किया है वहीं अंग्रेज सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किए गए दुर्व्यवहारों एवं शोषण का यथार्थ चित्रण किया है। अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए अन्याय एवं अत्याचारों को उजागर करना ही इस काव्यांश का मूल भाव है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

(5) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ख) लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण विषय में रोचकता एवं चमत्कार का समावेश हुआ है।
(ग) चाँद का मानवीकरण किया गया है।
(घ) तत्सम शब्दों का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग हुआ है।
(ङ) ‘रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
(छ) कवितांश में लय, तुक एवं संगीत का सुंदर समन्वय है।

(6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उन्हें भर पेट खाना भी नहीं देती थी। वे न तो जी सकते थे और न ही मर सकते थे। उन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया जाता था।

2. क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो! [पृष्ठ 107-108]

शब्दार्थ-हूक = बोलना। वेदना = पीड़ा। मृदुल = कोमल, मधुर। वैभव = धन-संपत्ति, सुख। बावली = पागल। दावानल = जंगल की आग। ज्वालाएँ = लपटें।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत पंक्तियाँ कौन किससे कह रहा है ?
(6) कवि ने अर्द्धरात्रि में कोयल के बोलने के कौन-कौन से कारणों की कल्पना की है ?
उत्तर-
(1) कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी। कविता-कैदी और कोकिला।

(2) व्याख्या कविवर माखनलाल चतुर्वेदी अर्द्धरात्रि के समय कोयल की पीड़ा भरी आवाज सुनकर उससे पूछते हैं, हे कोयल! तू इस प्रकार पीड़ा के बोझ से दबी हुई-सी आवाज में क्यों बोल उठी है ? बताओ तो सही तूने क्या किसी को लूटते हुए देखा है। तू सदा मधुर ध्वनि में बोलने के कारण मधुरता के ऐश्वर्य की रक्षक-सी लगती थी, किंतु आज ऐसी वेदनायुक्त आवाज में क्यों बोल रही हो ? हे कोयल ! क्या तुम पगला गई हो जो आधी रात के समय इस प्रकार कूकने लगी हो। क्या तुझे कहीं जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं जिन्हें देखकर तुम इस प्रकार कूक रही हो।

(3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रात्रि के समय कोयल की कूकने की ध्वनि को सुनकर आशंकित हो उठता है और उससे इस प्रकार रात को कूकने का कारण जानना चाहता है, क्योंकि कवि को कोयल की ध्वनि में मृदुलता की अपेक्षा पीड़ा अनुभव होती है।

(4) (क) प्रस्तुत पद प्रश्न शैली में रचित है। इससे जहाँ कवि के मन की जिज्ञासा का बोध होता है, वहीं काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
(ख) तत्सम और तद्भव शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ग) भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है।
(घ) ‘बोलो तो’ शब्दों की आवृत्ति से कवि की जिज्ञासा का बोध होता है। (ङ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है। (5) प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कोयल से कह रहा है।
(6) कवि ने कोयल के अर्द्धरात्रि के समय कूकने से किसी के लुटने, कोयल के पगला जाने, जंगल में आग लगने से लपटों को देखना आदि कारणों की कल्पना की है।

3. क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली? [पृष्ठ 108]

शब्दार्थ-गहना = आभूषण। चर्रक चूँ = कोल्हू के चलने पर निकलने वाली ध्वनि। मोट खींचना = पुर, चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुएँ आदि से पानी निकाला जाता है।)। जूआ = बैल के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी। गज़ब ढाना = जुल्म करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के आधार पर अंग्रेज सरकार द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों का उल्लेख कीजिए।
(6) दिन में करुणा……ढा रही आली ?-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-श्री माखनलाल चतुर्वेदी।
कविता-कैदी और कोकिला।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

(2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि क्या वह देख नहीं सकती कि अंग्रेज सरकार ने उन्हें जंजीरों के गहने पहनाए हुए हैं। ये हथकड़ियाँ जो हमने पहनी हुई हैं यही तो ब्रिटिश राज्य के गहने हैं जो वह भारतीयों को पहनाता है। कहने का भाव है ब्रिटिश शासक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के पैरों में बेड़ियाँ और हाथों में हथकड़ियाँ डाल देते थे। कवि पुनः कहता है कि कैदियों से कोल्हू चलवाया जाता था उससे जो चर्रक चूँ की ध्वनि निकलती है, वह मानो हमारे जीवन की तान हो। यहाँ कारागार में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानी भी मिट्टी पर अपनी अँगुलियों से ही देश-भक्ति के गीत लिखते हैं। मैं अपने पेट पर जूआ लगाकर मोट खींचता हूँ अर्थात् कुएँ से पानी निकालता हूँ। मुझे उस समय ऐसा लगता है कि मैं कुएँ से पानी नहीं, अपितु ब्रिटिश शासन की अकड़ (अहंकार) के कुएँ को खाली कर रहा हूँ। कवि पुनः कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि दिन में रुलाने वाली करुणा क्यों जगे अर्थात् दिन में हम करुणा के भाव को चेहरे पर व्यक्त नहीं करते ताकि अंग्रेज शासक यह न समझ लें कि हम टूट चुके हैं। इसलिए तू भी रात को करुणा जगाने वाली ध्वनि करके गजब ढा रही है।
भावार्थ-इन काव्य-पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है।

(3) कवि के कहने का भाव है कि ब्रिटिश शासन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रूरता एवं अमानवीय व्यवहार करता था। वह उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा देता था। साधारण अपराधियों और स्वतंत्रता सेनानियों में उसे कोई अंतर महसूस नहीं होता था। कवि ने अंग्रेज शासन के दुर्व्यवहार को दर्शाकर भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना जगाने का सफल प्रयास किया है।

(4) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में चित्रात्मक शैली में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग एवं बलिदान की भावना को उद्घाटित किया गया है।
(ख) ‘खाली करता……का आ’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(ग) संपूर्ण काव्यांश में प्रश्न अलंकार है।
(घ) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) ‘गज़ब ढाना’ मुहावरे का सफल प्रयोग किया गया है।
(च) भाषा ओजस्वी है। संपूर्ण भाव ओजस्वी वाणी में उद्घाटित किए गए हैं।

(5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उनके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ पहना देती थी। इतना ही नहीं, उन्हें पशुवत कोल्हू और कुँओं में जोत दिया जाता था। अतः स्पष्ट है कि ब्रिटिश शासक उनके प्रति अमानवीय व्यवहार करते थे।

(6) प्रस्तुत पंक्ति में कवि का स्वाभिमान अभिव्यक्त हुआ है। स्वतंत्रता सेनानी दिन में अपने चेहरे पर करुणा के भाव नहीं आने देते थे ताकि अंग्रेज अधिकारी यह न समझ लें कि वे टूट चुके हैं। इसलिए कवि कोयल से भी यही कहता है कि तू भी दिन में न कूक कर अब रात को ही कूकती है।

4. इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो![पृष्ठ 108]

शब्दार्थ-विद्रोह-बीज = विद्रोह की भावना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत कवितांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) “मधुर विद्रोह-बीज, इस भाँति बो रही क्यों हो ?”- पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-श्री माखनलाल चतुर्वेदी। कविता-कैदी और कोकिला।

(2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि तुम रात के इस शांत समय में और गहन अंधकार को चीरती हुई क्यों रो रही हो ? इस विषय में कुछ तो बोलो। इस प्रकार अपनी मधुर भाषा के द्वारा तुम क्रांति के बीज बो रही हो। कहने का भाव है कि कोयल की ध्वनि में कवि को विद्रोह की भावना अनुभव हुई है। कवि भी अपनी मधुर भाषा में रचित कविता के द्वारा लोगों के मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न करता है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि रात के शांत वातावरण में कोयल की ध्वनि मधुर होते हुए भी विद्रोह के भाव युक्त प्रतीत होती है।

(3) रात के गहन अंधकार एवं शांत वातावरण में जब संपूर्ण संसार सोया हुआ है तब कोयल अपनी ध्वनि द्वारा एक हलचल उत्पन्न करना चाहती है। इसी प्रकार कवि अंग्रेजों के शासन में व्याप्त अंधकार अर्थात् अन्याय के प्रति जनता को सचेत करने का संदेश देना चाहता है।

(4) (क) संपूर्ण काव्यांश सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा में रचित है।
(ख) मधुर विद्रोह-बीज में विरोधाभास अलंकार है।
(ग) शब्द-चयन भावानुकूल है।
(घ) कवितांश में तुक, लय एवं संगीत का समन्वय है।

(5) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने बताया है कि विद्रोह की भावना केवल ओजस्वी भाषा में ही नहीं, अपितु मधुर वाणी में भी उत्पन्न की जा सकती है।

5. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो! [पृष्ठ 109]

शब्दार्थ-रजनी = रात। करनी काली = बुरे कर्म। लौह-शृंखला = लोहे की जंजीर । हुंकृति = हुँकार। व्याली = सर्पिणी। आली = सखी। मदमाती = मस्ती।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पयांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) पहरेदारों की हुंकार कवि को कैसी प्रतीत होती है?
(6) कवि ने किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है?
उत्तर-
(1) कवि-श्री माखनलाल चतुर्वेदी। कविता-कैदी और कोकिला।

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(2) व्याख्या प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए गए अन्याय एवं अत्याचारों का उल्लेख किया है। कैदी रूपी कवि कोयल से कहता है कि तू काली है और रात भी काली है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश शासन के कर्म भी काले हैं अर्थात् उसके द्वारा किए गए सभी कार्य बुरे हैं। उसकी कल्पना भी काली है अर्थात् वे बुरा ही सोचते हैं। जिस कोठरी में मुझे बंद किया गया है, वह भी काली है। मेरी टोपी काली है। मुझे जो कंबल दिया गया है, वह भी काला है। जिन जंजीरों से मुझे बाँधा गया है, उनका रंग भी काला है। हे कोयल! उनके द्वारा बिठाए गए पहरे की हुंकार सर्पिणी की भाँति काली है। हे सखी! इतना कुछ होने पर भी वे गाली देकर बोलते हैं, किंतु इस काले संकट रूपी सागर के लहराने पर अर्थात् जीवन पर संकट मंडराते रहने पर भी हमें मरने की अर्थात् बलिदान देने की मस्ती छाई रहती है। हे कोयल! तू बता कि अपने चमकीले गीतों को इस काले वातावरण पर किस प्रकार तैराती हो। मुझे इसका भेद बता दो।
भावार्थ-कवि ने रात, कोयल और अंग्रेज शासक के कारनामों के रंग में साम्यता दर्शाते हुए ब्रिटिश शासन की काली करतूतों को उजागर किया है।

(3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार एवं अन्याय को उद्घाटित किया है। वे (स्वतंत्रता सेनानी) संकटकाल की चिंता न करके अपने जीवन का बलिदान करने की मस्ती में झूमते रहते थे। कवि ने उनकी बलिदान की भावना के माध्यम से भारतीयों में देश-प्रेम व राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया है।

(4) (क) संपूर्ण कवितांश में सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) ‘काली’ शब्द की आवृत्ति के द्वारा अंग्रेजों के काले कारनामों एवं अत्याचारों को प्रभावशाली ढंग से उजागर किया गया है।
(ग) “संकट-सागर’ में रूपक अलंकार है।
(घ) संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
(ङ) संपूर्ण पद में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

(5) पहरेदारों की हुंकार कवि को सर्पिणी जैसी प्रतीत होती है।

(6) कवि ने काली कोयल, रात्रि काली, ब्रिटिश शासन के कार्य काले, कल्पना काली, काल कोठरी काली, टोपी काली, कंबल काला और लोहे की काली जंजीरों की गणना की है।

6. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार ।
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो! [पृष्ठ 109-110]

शब्दार्थ-डाली = टहनी, शाखा। नसीब = भाग्य। संचार = घूमना-फिरना, उड़ना। दस फुट का संसार = दस फुट की लंबी कोठरी, जिसमें कवि बंद है। कहावें वाह = प्रशंसा प्राप्त करना। गुनाह = अपराध । विषमता = अंतर। रणभेरी = युद्ध का नगाड़ा। हुंकृति = हुँकार। कृति = रचना (काव्य)। मोहन = मोहनदास कर्मचंद गाँधी। आसव = अर्क (आनंद)।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत कवितांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कैदी और कोकिला के जीवन में क्या अंतर बताया गया है ?
(6) कवि ने मोहन के किस व्रत की ओर संकेत किया है ?
उत्तर-
(1) कवि-श्री माखनलाल चतुर्वेदी। कविता-कैदी और कोकिला।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन की स्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त की है। कैदी कोयल से कहता है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी टहनी मिली है और मुझे काल-कोठरी मिली हुई है अर्थात वह कारागार में बंद है। तेरे उड़ने के लिए सारा आकाश है, जबकि मेरे लिए केवल दस फुट की काल-कोठरी है अर्थात् कैदी को दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद किया हुआ है। इतना ही नहीं, लोग तेरे गीतों को सुनकर वाह-वाह कर उठते हैं अर्थात् तेरे गीतों की सराहना की जाती है किंतु मेरा तो रोना भी अपराध माना जाता है अर्थात् मैं तो रो भी नहीं सकता। हे कोयल! तेरे-मेरे जीवन में कितना बड़ा अंतर है। तू इस विषमता को देखते हुए भी युद्ध का नगाड़ा बजा रही है। कवि कोयल से पुनः प्रश्न पूछता है कि इस हुँकार पर मैं अपनी रचना में क्या कर सकता हूँ अर्थात् अपनी काव्य-रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय जनता में विद्रोह की भावना ही भर सकता हूँ। हे कोयल! तू ही बता कि महात्मा गाँधी (मोहनदास कर्मचंद गाँधी) के स्वतंत्रता-प्राप्ति के व्रत पर प्राणों का आनंद किस में भर दूं।
भावार्थ-कवि के कहने का तात्पर्य है कि कुछ लोगों के लिए समूचा संसार रहने के लिए है और कुछ को कैद में बंद किया गया है। यहाँ तक कि संपूर्ण भारत ही कारागार जैसा लगता है। अंग्रेजी शासन के इस अन्याय को समाप्त करने के लिए गाँधी जी ने सत्य व्रत धारण किया हुआ है। हमें उसमें सम्मिलित होकर उनका साथ देना चाहिए।

(3) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने कैदी और कोयल के जीवन की परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति भारतीयों के मन में सहानुभूति उत्पन्न की है। साथ ही कवि ने महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता प्राप्ति के दृढ़ निश्चय को भी उजागर किया है।

(4) (क) तुलनात्मक शैली से विषय आकर्षक बन पड़ा है।
(ख) नसीब, गुनाह आदि उर्दू शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ग) संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(घ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(5) कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन का अंतर स्पष्ट करते हुए बताया है कि कोयल हरी-भरी टहनी पर बैठी थी और कैदी के भाग्य में काल-कोठरी है। इसी प्रकार कोयल खुले आकाश में उड़ान भर सकती है, जबकि कैदी दस फुट लंबी कोठरी में बंद है। कोयल की ध्वनि को सुनकर लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, जबकि कैदी अपने दुःख को भी व्यक्त नहीं कर सकता। इस प्रकार कैदी और कोयल के जीवन में अत्यधिक विषमता है।

(6) कवि ने मोहन (महात्मा गाँधी) के देश को स्वतंत्र कराने के व्रत की ओर संकेत किया है।

कैदी और कोकिला Summary in Hindi

कैदी और कोकिला कवि-परिचय

प्रश्न-
श्री माखनलाल चतुर्वेदी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक गाँव में सन् 1889 में हुआ। उनके पिता नंदलाल चतुर्वेदी गाँव की एक पाठशाला में अध्यापक थे। उनकी माता का नाम सुंदरबाई था। मिडिल तथा नार्मल की परीक्षाएँ पास करने के उपरांत 1904 ई० में उन्होंने खंडवा के एक स्कूल में अध्यापन-कार्य प्रारंभ किया। असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण वे कई बार जेल भी गए।

चतुर्वेदी साहित्यिक-क्षेत्र में पत्रकारिता के माध्यम से आए। उनके द्वारा संपादित पत्रों में उनकी रचनाएँ बराबर प्रकाशित होती रहीं। संपादक की हैसियत से उन्हें अपने राष्ट्रीय विचारों को प्रचारित करने तथा देश-सेवा करने का पर्याप्त अवसर मिला। उन्होंने ‘प्रभा’, ‘प्रताप’ तथा ‘कर्मवीर’ नामक तीन पत्रों का संपादन किया।

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उनकी साहित्यिक-सेवाओं के कारण हिंदी साहित्य जगत ने उनका स्वागत भी प्रभूत मात्रा में किया। सन् 1958 में सागर विश्वविद्यालय के खंडवा में विशेष दीक्षांत समारोह का आयोजन कर उन्हें डी० लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई। सन् 1963 में इन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ एवं ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। सन् 1965 में मध्य प्रदेश शासन ने खंडवा में इनको विशेष रूप से सम्मानित किया।
चतुर्वेदी जी हिंदी भाषा के पितामह थे। उनका देहावसान 30 जनवरी, 1968 को हुआ। माखनलाल चतुर्वेदी हिंदी साहित्य संसार में ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-चतुर्वेदी जी के काव्य संग्रह हैं-‘हिम किरीटनी’, ‘हिम तरंगिनी’, ‘माता’, ‘वेणु लो गूंजे धरा’, ‘युग चरण’, ‘समर्पण’, ‘भरण ज्वार’, ‘बीजुरी काजल आँज रही’ आदि।
इसके अतिरिक्त चतुर्वेदी जी ने नाटक, कहानी, निबंध एवं संस्मरण भी लिखे हैं। उनके भाषणों के ‘चिंतन की लाचारी’ तथा ‘आत्म दीक्षा’ नामक संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। उनके द्वारा रचित गद्य-काव्य ‘साहित्य-देवता’ भी एक अमर कृति है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना सर्वाधिक रूप में मुखरित हुई है। उन्हें अपने देश एवं संस्कृति पर गर्व था। उन्हें अपने देश की स्वतंत्रता और उसके विकास के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने में भी सुख अनुभव होता था। इस दृष्टि से उनकी ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता विचारणीय है। माखनलाल चतुर्वेदी जी की आरंभिक कविताओं में भक्ति-भावना भी देखी जा सकती है। उनकी भक्ति-भावना वैष्णव प्रभाव और राष्ट्रीय भावना का मिश्रण है। कहीं-कहीं रहस्यवादी कवियों की भाँति परम सत्ता के प्रति जिज्ञासा और कौतूहल का भाव प्रकट करते हैं।

श्री माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में प्रेमानुभूति की भावना का भी चित्रण हुआ है, किंतु वह बहुत कम है। उनके प्रेम काव्य में वैयक्तिक चेतना के साथ-साथ समर्पण की भावना भी है। प्रकृति उनके काव्य का प्रमुख विषय रही है। उन्होंने अपने काव्य में प्रकृति-सौंदर्य के अनेक चित्र अंकित किए हैं

“लाल फले हैं गुल बाँसों में मकई पर मोती के दाने
जो फट पड़े कपास जंवरिया सोना-चाँदी हम पहचाने।”

4. भाषा-शैली-चतुर्वेदी जी की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनकी छंद-योजना में नवीनता है। चित्रात्मकता उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषता है। उनकी काव्य-भाषा में यदि हुँकार और ओज है तो कहीं करुणा की धारा भी प्रवाहित होती दिखाई देती है। अतः स्पष्ट है कि चतुर्वेदी जी के काव्य का कला-पक्ष अर्थात् भाषा-शैली अत्यंत समृद्ध है।

कैदी और कोकिला कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘कैदी और कोकिला’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कैदी और कोकिला’ श्री माखनलाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध कविता है। इसमें कवि ने अंग्रेजी शासकों द्वारा भारतीयों पर किए गए जुल्मों का सजीव चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जेल में किए गए दुर्व्यवहारों एवं यातनाओं का मार्मिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से एक ओर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा किए गए संघर्षों का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज सरकार की शोषणपूर्ण नीतियों को उजागर किया गया है।

कवि स्वयं महान् स्वतंत्रता सेनानी है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ के एकाकी एवं यातनामय जीवन से उदास एवं निराश है। कवि रात को कोयल की ध्वनि सुनकर जाग उठता है। वह कोयल को अपने मन का दुःख, असंतोष और आक्रोश सुनाता है। वह कोयल से पूछता है कि तुम रात्रि के समय किसका और क्या संदेश लाती हो। मैं यहाँ जेल की ऊँची और काली दीवारों में डाकुओं, चोरों और लुटेरों के बीच रहता हूँ। यहाँ कैदियों को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता । यहाँ अंग्रेजों का कड़ा पहरा है। अंग्रेज शासन भी गहन अंधकार की भाँति काला लगता है। तुम बताओ कि रात के समय पीडामय स्वर में क्यों बोल उठी हो ? क्या तुझे कही जंगल की भयंकर आग दिखाई दी जिसे देखकर तुम कूक उठी हो ? क्या तुम नहीं देख सकती कि यहाँ कैदियों को जंजीरों से बाँधा हुआ है। मैं दिन भर कुएँ से पानी खींचता रहता हूँ किंतु फिर भी दिन में करुणा के भाव चेहरे पर नहीं आने देता। रात को ही करुणा गजब ढाती है। तुम बताओ कि तुम रात के अंधकार को अपनी ध्वनि से बेंधकर मधुर विद्रोह के बीज क्यों बोती हो? इस समय यहाँ हर वस्तु काली है-तू काली, रात काली, अंग्रेज शासन की करनी काली, यह काली कोठरी, टोपी, कंबल, जंजीर आदि सब काली हैं। तू काले संकट-सागर पर अपने मस्ती भरे गीतों को क्यों तैराती हो। तुझे तो हरी-भरी डाली मिली है और मुझे काली कोठरी। तू आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है और मैं दस फुट की काल कोठरी में बंद हूँ। मेरी और तेरी विषम स्थिति में बहुत अंतर है। अतः कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को कारागार के रूप में देखने लगी है। इसीलिए वह आधी रात को कूक उठी है।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

HBSE 9th Class Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

यमराज की दिशा प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?
उत्तर-
कवि की माँ ने उसे बचपन में ही उपदेश दिया था कि दक्षिण दिशा में कभी पैर करके नहीं सोना चाहिए, इससे यमराज क्रुद्ध हो जाता है। कवि इसी भय के कारण सदा ही दक्षिण दिशा का ध्यान रखता था। यही कारण है कि कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

Yamraj Ki Disha Question Answer HBSE 9th Class प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था?
उत्तर-
वस्तुतः कवि ने बड़ा होने पर दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्राएँ की थीं, किंतु दक्षिण दिशा बहुत दूर तक फैली हुई है। कोई दक्षिण दिशा में कहाँ तक जा सकता है। इसलिए कवि ने ऐसा कहा है। इसके अतिरिक्त आज हर दिशा दक्षिण दिशा है अर्थात सब ओर यमराज के समान भयभीत कर देने वाले लोग भरे पड़े हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

HBSE 9th Class यमराज की दिशा Chapter 16 प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
उत्तर-
कवि की माँ ने बचपन में कवि को समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उधर पैर करके सोना यमराज को क्रुद्रध करना है। ऐसा करना कोई बुद्धिमत्ता का काम नहीं है। आज के युग में हर तरफ यमराज की भाँति ही मानवता को हानि पहुँचाने वाले शोषक लोग विद्यमान हैं। वे बड़ी निर्दयता से मानवता को नष्ट कर रहे हैं। इसीलिए कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है, जहाँ एक नहीं अनेकानेक यमराज विद्यमान हैं।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं और वे सभी में एक साथ अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर कवि ने इन काव्य-पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि हर स्थान पर हर दिशा में यमराज की भाँति शोषक, निर्दयी एवं मानवता-विरोधी लोगों के सुंदर भवन विद्यमान हैं। बड़े-बड़े शोषक लोग अत्यंत सुंदर भवनों में रहते हैं। वे सभी अपनी क्रोध से चमकती हुई आँखों सहित समाज में विराजमान हैं। कहने का भाव है कि आज के युग में शोषकों की कमी नहीं है। वे यमराज की भाँति ही सर्वत्र शोषण का डंका बजा रहे हैं। उन पर किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-निर्देश देती है। आपकी माँ भी समय-समय पर आपको सीख देती होंगी
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं?
(ख) क्या उसकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं?
उत्तर-
(क) हाँ, हमारी माँ भी हमें कवि की माँ की भाँति ही ईश्वर से प्रेरणा पाकर कुछ मार्ग-निर्देश देती है। वह हमें सीख देती है कि सदा लगन से अपनी पढ़ाई करो, उसी से ईश्वर प्रसन्न होकर हमें अच्छे अंक प्रदान करेगा। माँ की यह बात हमें बहुत अच्छी लगती है।
(ख) माँ की कुछ बातें हमें अच्छी नहीं लगतीं; जैसे-माँ हमें खेलने से मना करती है। बार-बार उपदेश देती रहती है। इसलिए हमें कभी-कभी माँ के उपदेश अच्छे नहीं लगते। हम स्वभावतः स्वतंत्रता चाहते हैं, जबकि माँ को अनुशासन अच्छा लगता है। हमें हर समय उसकी अनुशासन में रहने की बात अच्छी नहीं लगती।

प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर-
ऐसा हम इसलिए करते हैं कि हम सब ईश्वर में विश्वास रखते हैं। ईश्वर को सर्व-शक्तिमान और सब कुछ करने में सक्षम मानते हैं। यदि हम अच्छा काम करते हैं तो भी उसके लिए ईश्वर को ही कारण मानते हैं और जब कभी अनुचित निर्णय ले लेते हैं तो हम यह कहते हैं कि हमारी अच्छाई और बुराई सब कुछ ईश्वर देख रहा है। इसलिए उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

पाठेतर सक्रियता

कवि का मानना है कि आज शोषणकारी ताकतें अधिकं हावी हो रही हैं। ‘आज की शोषणकारी शक्तियाँ’ विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता श्री चंद्रकांत देवताले की सुप्रसिद्ध रचना है जिसमें आधुनिक सभ्यता के दोषपूर्ण विकास को उजागर किया गया है। कवि का मत है कि आज केवल दक्षिण दिशा वाले यमराज का समाज को भय नहीं है, अपितु समाज में चारों ओर जीवन-विरोधी शक्तियों का विकास हो रहा है। जीवन के जिस दुःख-दर्द के बीच जीती हुई माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोने पर यमराज क्रुद्ध हो उठेगा, अब वह केवल दक्षिण दिशा में ही नहीं अपितु सर्वव्यापक है। आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा प्रतीत होने लगी है। आज चारों ओर फैली हुई विध्वंसक शक्तियों, हिंसात्मक प्रवृत्तियों, शोषण की रक्षक ताकतों और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि ने उनका सामना करने तथा उनसे संघर्ष करने का मौन निमंत्रण दिया है। प्रस्तुत कविता में उन सब ताकतों एवं संगठनों का विरोध करने का आह्वान है जो मानवता विरोधी हैं या मानवता के विकास में बाधा बनी हुई हैं। यही भाव व्यक्त करना प्रस्तुत कविता का प्रमुख लक्ष्य है।

प्रश्न 2.
पठित कविता के आधार पर श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य की भाषा का सार रूप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अत्यंत सरल एवं सपाट भाषा का प्रयोग किया है। प्रस्तुत कविता की भाषा सरल होते हुए भाव-अभिव्यंजना की गजब की क्षमता रखती है। श्री देवताले ने अपने काव्य की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी के शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है, किन्तु उन्होंने उन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जो लोक-प्रचलित हैं यथा मुश्किल, ज़रूरत, दुनिया आलीशान, इमारत आदि। कविवर देवताले अपनी बात को ढंग से कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और अत्यंत कम संगीतात्मकता है। भाषा गद्यमय होती हुई भी प्रवाहयुक्त है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग करके उन्होंने अपने काव्य की भाषा को सारगर्भित भी बनाया है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी उनका काव्य सफल सिद्ध है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) राजेश जोशी
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) चंद्रकांत देवताले
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर-
(C) चंद्रकांत देवताले

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 2.
कवि की माँ की किससे मुलाकात हुई थी?
(A) प्रधानमंत्री से
(B) ईश्वर से
(C) यमराज से
(D) विष्णु से
उत्तर-
(B) ईश्वर से

प्रश्न 3.
कवि की माँ कौन-से रास्ते खोज लेती थी?
(A) जीवन के विकास के
(B) धन प्राप्ति के
(C) दुख बरदाश्त करने के
(D) स्वर्ग जाने के
उत्तर-
(C) दुख बरदाश्त करने के

प्रश्न 4.
‘यमराज की दिशा’ कौन-सी मानी जाती है?
(A) उत्तर
(B) पूर्व
(C) पश्चिम
(D) दक्षिण
उत्तर-
(D) दक्षिण

प्रश्न 5.
कवि की माँ ने दक्षिण दिशा को कौन-सी दिशा बताया था?
(A) मौत की दिशा
(B) पवित्र दिशा
(C) अपवित्र दिशा
(D) भाग्यशाली दिशा
उत्तर-
(A) मौत की दिशा

प्रश्न 6.
कवि की माँ के अनुसार कौन-सी बात उचित नहीं है?
(A) यमराज का भेद जानना
(B) यमराज को क्रुद्ध करना
(C) यमराज के सामने जाना
(D) यमराज से आँखें चुराना
उत्तर-
(B) यमराज को क्रुद्ध करना

प्रश्न 7.
कवि ने बचपन में माँ से किसके घर का पता पूछा था?
(A) कुबेर के
(B) रावण के
(C) यमराज के
(D) इंद्र देवता के
उत्तर-
(C) यमराज के

प्रश्न 8.
कवि को दक्षिण दिशा में पैर न करके सोने से क्या लाभ हुआ?
(A) दक्षिण पहचान गया
(B) सपने नहीं आते थे
(C) गहरी नींद आती थी
(D) जल्दी उठ जाता था
उत्तर-
(A) दक्षिण पहचान गया

प्रश्न 9.
कवि के लिए क्या संभव नहीं था?
(A) दक्षिण दिशा को पहचानना
(B) दक्षिण दिशा को लांघना
(C) दक्षिण दिशा में सोना
(D) दक्षिण दिशा को त्याग देना
उत्तर-
(B) दक्षिण दिशा को लांघना

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प्रश्न 10.
आज सभी दिशाओं में किसके आलीशान महल हैं?
(A) देवताओं के
(B) भक्तों के
(C) ईश्वर के
(D) यमराज के
उत्तर-
(D) यमराज के

प्रश्न 11.
यमराज हर तरफ किस दशा में विराजते हैं?
(A) प्रसन्न मुद्रा में
(B) दहकती आँखों सहित
(C) त्यागमय स्थिति में
(D) दानशील स्वभाव में
उत्तर-
(B) दहकती आँखों सहित

प्रश्न 12.
कवि ने बदली हई परिस्थितियों में किसे यमराज बताया है?
(A) उद्योगपतियों को
(B) अधिकारी वर्ग को
(C) शोषकों को
(D) डॉक्टरों को
उत्तर-
(C) शोषकों को

प्रश्न 13.
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता में किसे दूर करने का प्रयास किया है?
(A) समाज में फैले अंधविश्वास
(B) भक्तों के
(C) अन्याय
(D) आलस्य
उत्तर-
(A) समाज में फैले अंधविश्वास

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

यमराज की दिशा अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर ।

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाशत करने के
रास्ते खोज लेती है [पृष्ठ 133]

शब्दार्थ-मुलाकात = मिलना, बातचीत । मुश्किल = कठिन। जताती = प्रकट करती। बरदाशत = सहन।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट करें।
(4) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि की माँ की किससे मुलाकात होती थी?
(6) कवि की माँ ईश्वर की सलाहों के अनुसार क्या खोज लेती थी?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि बचपन से वह माँ से यही सुनता आया था कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी। कवि का मानना है कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी या नहीं यह कहना बड़ा मुश्किल है, किंतु वह सदा यही दिखावा करती थी कि उसकी मुलाकात ईश्वर से होती रहती है। ईश्वर से प्राप्त सलाहों से ही वह जीवन में आने वाले दुःखों और जीवन जीने के मार्ग खोज लेती है।

भावार्थ-इन पंक्तियों में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश अत्यंत सरल एवं व्यावहारिक भाषा में रचित है।
(ख) कवि ने माँ के माध्यम से जीवन के प्रति आस्थावादी भाव को अभिव्यंजित किया है।
(ग) मुलाकात, मुश्किल, जताना, सलाह, जिंदगी, बरदाशत आदि उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
(घ) भाषा गद्यमय होती हुई भी प्रवाहयुक्त एवं लयमयी है।
(ङ) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बचपन में माँ से सुनी हुई बातों के माध्यम से जीवन-संबंधी दृष्टिकोण को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यंजित किया है। कवि की माँ की ईश्वर से मुलाकात होने की बात पर कवि को संदेह है, किंतु एक बात निश्चित रूप से सत्य है कि वह ईश्वर की सलाह मानकर या उसमें भरोसा करके जीवन में आने वाले दुःखों को सहन करने और जीवन जीने के सही मार्ग को अवश्य ही तलाश लेती थी। पुराने समय में जीवन सरल, सहज एवं स्वाभाविक था, किंतु आज नहीं।

(5) कविं की माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी।

(6) ईश्वर की सलाहों के अनुसार कवि की माँ जीवन में आने वाले दुःखों को सहन करने और जीवन जीने के मार्ग को खोज लेती थी।

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2. माँ ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में [पृष्ठ 133]

शब्दार्थ-तरफ = ओर। क्रुद्ध = क्रोधित, गुस्सा। हमेशा = सदैव।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) माँ ने कवि को दक्षिण में पैर पसार कर सोने से मना क्यों किया था?
(6) कवि की माँ ने उसे यमराज के घर का क्या पता बताया था?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने यमराज के संबंध में फैले अंधविश्वास पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि उसकी माँ ने उसे दक्षिण की ओर पैर न करके सोने का उपदेश दिया था। उनका विश्वास था कि वह मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोकर मृत्यु के देवता यमराज को नाराज करने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। उससे यमराज को गुस्सा आ जाता है। उस समय कवि बहुत छोटा था, जब उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था। उसकी माँ ने केवल इतना ही बताया था कि हम जहाँ भी हों, वहाँ से दक्षिण दिशा में ही यमराज का घर होता है।
भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज में फैले अंधविश्वासों पर करारी चोट की है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश सरल एवं सहज भाषा में रचित है।
(ख) कवि ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों पर करारी चोट की है।
(ग) भाषा गद्यमय होते हुए भी लयात्मक एवं प्रवाहमयी है।
(घ) संवाद शैली का प्रयोग किया गया है।
(ङ) संकेतात्मकता भाषा-शैली की अन्य प्रमुख विशेषता है।
(च) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने मृत्यु के देवता यमराज से संबंधित लोकमानस में व्याप्त अंधविश्वास का उल्लेख किया है। कवि ने अत्यंत गंभीर भावों को अत्यंत सरल एवं सहज रूप में कह दिया है। दक्षिण की ओर पैर करके सोना मृत्यु के देवता को नाराज करने के समान है। यमराज का घर दक्षिण में बताकर कवि ने दक्षिण दिशा को और भी भयानक एवं निकृष्ट सिद्ध कर दिया है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कवितांश में जीवन की समस्या से संबंधित गंभीर भावों को सहज रूप में अभिव्यंजित किया गया है।

(5) कवि की माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने से मना किया था, क्योंकि वह दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है।

(6) कवि के पूछने पर उसकी माँ ने यमराज के घर का पता पूरी दक्षिण दिशा बताया था। दक्षिण दिशा ही यमराज के घर का पता है।

3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता [पृष्ठ 134]

शब्दार्थ-समझाइश = समझने। फायदा = लाभ। छोर = किनारा।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत कवितांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि को माँ के समझाने का क्या लाभ हुआ?
(6) कवि यमराज का घर क्यों नहीं देख सका?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले।। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कविवर देवताले ने माँ के उपदेश के प्रभाव का वर्णन करते हुए बताया कि माँ के समझाने के पश्चात वह कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोया। इससे वह यमराज के कोप से बचा या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु एक लाभ अवश्य उसे हुआ कि दक्षिण दिशा पहचानने में उसे कहीं भी, कभी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा अर्थात वह सहज ही दक्षिण दिशा को पहचान लेता है।
कवि ने पुनः अपने जीवन के विषय में बताया है कि उसने अपने जीवन में दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्राएँ की हैं। वहाँ उसे सदा अपनी माँ की याद आती रही। कवि के लिए दक्षिण दिशा को पार करके जाना संभव नहीं था, क्योंकि उसका कोई किनारा ही नहीं था। यदि दक्षिण दिशा को लाँघ पाना संभव होता तो कवि अवश्य ही यमराज का घर भी देख लेता, किंतु कवि ऐसा कभी नहीं कर पाया।
भावार्थ-इन पंक्तियों में कवि ने इस अंधविश्वास का खंडन किया है कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में होता है। .

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने लोकमानस में व्याप्त अंधविश्वास पर करारी चोट की है कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में होता है। यह कोरा भ्रम है।
(ख) भाषा व्यंग्य के तेवर लेकर चलने वाली है।
(ग) भाषा गद्यमय होती हुई भी लययुक्त है।
(घ) फायदा, ज़रूर, मुश्किल आदि उर्दू-फारसी के लोक-प्रचलित शब्दों का सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ङ) ‘दक्षिण दिशा’, ‘लाँघ लेना’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(च) संपूर्ण वर्णन अत्यंत पारदर्शितायुक्त भाषा में किया गया है।
(छ) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) कवि ने अत्यंत सरल भाषा में गंभीर विचारों एवं भावों को अभिव्यंजित किया है। लोकमानस में यह अंधविश्वास व्याप्त रहा है कि यमराज दक्षिण दिशा में रहता है। इसलिए उसके प्रकोप से बचने के लिए उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। कवि ने ऐसा ही किया और सदा इस बात के लिए सतर्क भी रहा। इससे कवि को दक्षिण दिशा का ज्ञान अवश्य हआ। कवि ने अनेक बार दक्षिण दिशा में यात्राएँ की, किंतु कहीं भी उस दिशा का अंत दिखाई नहीं दिया। इसलिए कवि को यमराज का घर भी नहीं मिल सका। अतः कवि ने इस धारणा को जड़ से उखाड़ फेंका है कि यमराज का घर केवल दक्षिण दिशा में ही है। अतः गंभीर भाव को सहज रूप में कह देना कवि की कला का कमाल है।

(5) कवि को माँ के समझाने का यह लाभ हुआ कि उसको दक्षिण दिशा का अच्छा ज्ञान हो गया। उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई।

(6) कवि’को माँ ने बताया कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में है। दक्षिण दिशा का कोई ओर-छोर नहीं है। इसलिए कवि को यमराज के घर का पता नहीं चल सका और वह उसे देखने में असमर्थ रहा। वास्तव में, यह एक भ्रम था, जिसे कवि ने उदाहरण देकर दूर करने का प्रयास किया है।

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4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी। [पृष्ठ 134]

शब्दार्थ-आलीशान = खूबसूरत, सुंदर। दहकती = गुस्से से चमकती हुई। विराजना = विद्यमान होना, पधारना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) “आज जिधर भी पैर करके सोओ वही दक्षिण दिशा हो जाती है”-कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(6) कवि ने किन्हें यमराज कहा है और क्यों?
उत्तर-
(1) कवि श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या कवि ने बताया है कि उसकी माँ का कहना था कि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके नहीं सोना चाहिए। किंतु कवि का तर्क है कि आज के युग में जिस भी दिशा की ओर पैर करके सोएँ, वही दक्षिण दिशा हो जाती है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे चारों ओर यमराज ही यमराज हैं। सभी दिशाओं में यमराज के सुंदर भवन हैं अर्थात चारों ओर यमराज की भाँति ही लोगों को मारने वाले शोषक लोग विद्यमान हैं, जो सुंदर महलों में रहते हैं। वे सबके सब अपनी दहकती (क्रोध से जलती हुई) हुई आँखों सहित विराजमान हैं।
कवि ने पुनः कहा है कि आज वह माँ नहीं रही, जो यमराज के विषय में, उसकी दिशा के विषय में बताती थी। यमराज की दिशा भी वह नहीं रही, जो माँ जानती थी अर्थात यमराज केवल दक्षिण में ही नहीं रहता, वह सर्वत्र रहता है।

भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में आज की सभ्यता की दोषपूर्ण स्थिति का उल्लेख किया गया है।

(3) (क) संपूर्ण पद में आज की सभ्यता के विकास की दोषपूर्ण स्थिति को यथार्थ रूप में उजागर किया गया है।
(ख) भाषा व्यंग्यपूर्ण है।
(ग) भाषा भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
(घ) ‘यमराज’ में श्लेष अलंकार है।
(ङ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सरल एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों की सहज एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति की है। ‘आज सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं’ पंक्ति में आज के समाज व सभ्यता की वस्तुस्थिति को उजागर किया गया है। आज के युग में एक नहीं, अनेक यमराज हैं जो अपनी शोषणपूर्ण नीतियों द्वारा गरीब या साधारण व्यक्ति के जीवन का तत्त्व चूस रहे हैं। यमराज तो शायद व्यक्ति के गुण-अवगुणों को देखकर ही सजा सुनाता होगा। यहाँ तो बिना किसी भेदभाव के शोषण किया जाता है। दया-धर्म का कोई खाना नहीं है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि आज चारों दिशाएँ दक्षिण दिशा ही प्रतीत होती हैं। इस प्रकार प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने आज के युग की ज्वलंत समस्या से संबंधित गंभीर विचार व्यक्त किए हैं।

(5) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि पहले दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने में यमराज का खतरा मंडराने लगता था, किंतु आज तो व्यक्ति को हर दिशा से खतरा उत्पन्न हो सकता है। उसे हर दिशा यमराज की दक्षिण दिशा के समान भयंकर एवं भयभीत करने वाली अनुभव होती है।

(6) कवि ने समाज के शोषकों को यमराज कहा है, क्योंकि शोषक लोग गरीबों व जनसाधारण का निर्दयतापूर्वक शोषण करते हैं। उनके शोषण के कारण लोग तिल-तिलकर मरने के लिए विवश हैं।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

यमराज की दिशा कवि-परिचय

प्रश्न-
चंद्रकांत देवताले का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा चंद्रकांत देवताले का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री चंद्रकांत देवताले हिंदी के प्रमुख कवि हैं। इन्हें साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। इनका जन्म मध्य प्रदेश के जिला बैतूल के गाँव जौलखेड़ा में सन 1936 को हुआ था। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। श्री देवताले प्रतिभाशाली विद्यार्थी रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की तथा पी०एच०डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय, सागर से प्राप्त की। शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात इन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। श्री देवताले अध्यापन के साथ-साथ साहित्य-लेखन की साधना में निरंतर लीन रहते हैं। इन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी सफलतापूर्वक चलाई है, किंतु प्रसिद्धि इन्हें कवि के रूप में ही प्राप्त हुई है।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘हड्डियों में छिपा ज्वर’, ‘दीवारों पर खून से’, ‘लकड़बग्घा हँस रहा है’, ‘भूखंड तप रहा है’, ‘पत्थर की बैंच’, ‘इतनी पत्थर रोशनी’, ‘उजाड़ में संग्रहालय’ आदि श्री देवताले की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं और प्रायः कई विदेशी भाषाओं में भी हो चुके हैं। श्री देवताले को इनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है। इन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार तथा मध्य प्रदेश का शिखर पुरस्कार प्राप्त है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

3. काव्यगत विशेषताएँ-कविवर चंद्रकांत देवताले जन-साधारण के जीवन की जमीन से जुड़े हुए कवि हैं। इनकी कविताओं के विषय गाँवों व कस्बों में रहने वाले निम्न मध्यवर्ग के जीवन से संबंधित हैं। इन्होंने इस वर्ग के लोगों के जीवन को अत्यंत निकट से देखा है और इसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ-साथ उसके अभावों को भी अपनी कविताओं के माध्यम से उजागर किया है।
श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य में जहाँ समाज की व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ रोष है, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी है। वे समाज में व्याप्त बुराइयों को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़संकल्प हैं और समाज का समुचित विकास चाहते हैं। मानव-मानव में प्रेम के संबंधों को बढ़ावा देना इनके काव्य का प्रमुख लक्ष्य रहा है।

4. भाषा-शैली-श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य की भाषा-शैली सरल, सीधी और सपाट है। इनके कथन में कहीं कोई दिखावा व बनावट नहीं है। कविता की भाषा में पारदर्शिता एक अन्य प्रमुख विशेषता है। गद्यात्मक होते हुए विशेष लय में बँधकर चलने वाली भाषा है। इनकी भाषा में एक विरल संगीतात्मकता भी दिखलाई पड़ती है। इन्होंने लोकप्रचलित मुहावरों का भी सार्थक प्रयोग किया है। लोकभाषा के शब्दों के साथ-साथ विदेशज शब्दों का भी विषयानुरूप प्रयोग करके भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करने की कला में श्री देवताले बेजोड़ कवि हैं।

यमराज की दिशा कविता का सार/काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘यमराज की दिशा’ श्री चंद्रकांत देवताले की प्रमुख रचना है। कवि ने प्रस्तुत कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए बताया है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों ओर फैलती जा रही हैं। कवि ने बताया है कि बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण की ओर पैर करके सोने को अपशकुन बताया था। वह बताती रहती थी कि ईश्वर से उसकी मुलाकात होती रहती है। उसकी सलाह से ही वह जीवन जीने और दुःख सहन करने के मार्ग खोज लेती है। इसीलिए उसने यह बताया था कि दक्षिण दिशा मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोना यमराज को क्रुद्ध करना है। माँ ने पूछने पर यमराज के घर का पता भी बताया था कि तुम जहाँ भी हो वहाँ से दक्षिण की ओर यमराज का घर है। बचपन में माँ के उपदेश का कवि पर प्रभाव अवश्य पड़ा। वह कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया तथा दक्षिण दिशा में खूब घूमा, किंतु उसका कोई छोर नहीं था, अन्यथा वह यमराज जी का घर भी देख लेता। किंतु आज के जीवन में जिधर भी पैर करके सोओ वह दक्षिण दिशा ही हो जाती है, क्योंकि सभी दिशाओं में यमराज के बड़े-बड़े महल हैं। वहाँ वे एक साथ अपनी दहकती आँखों सहित विद्यमान हैं। कवि की माँ अब नहीं रही और न ही यमराज के निवास की निश्चित दिशा ही रही। अब हर दिशा यमराज की दिशा हो गई है। आज हमें उनका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

HBSE 9th Class Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

ग्राम श्री कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर-
कवि ने गाँव को हरता जन मन अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के मन को आकृष्ट करने वाला कहा है, क्योंकि गाँव की प्राकृतिक छटा अत्यधिक मनमोहक है। वह मरकत के खुले डिब्बे के समान सुंदर है। उस पर नीले आकाश के आच्छादित होने से उसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। वहाँ का वातावरण अत्यंत शांत एवं स्निग्ध है।

ग्राम श्री की व्याख्या HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में बसंत के मौसम का वर्णन है। आम के वृक्षों पर बौर आना, कोयल का कूकना और चारों ओर फूलों का खिलना सिद्ध करता है कि यह शरद् ऋतु का अंत और बसंत का आगमन है।

Gram Shree Class 9 Question Answer HBSE Hindi प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर-
वस्तुतः ‘मरकत’ एक प्रकार का चमकदार रत्न है। अतः स्पष्ट है कि इस रत्न से निर्मित डिब्बा भी अत्यंत सुंदर होता है। कवि की दृष्टि में बसंत की धूप में गाँव भी वैसा ही सुंदर दिखाई दे रहा था। इसीलिए कवि ने उसे ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ कहा है।

ग्राम श्री कविता के प्रश्न उत्तर Class 4 HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ? उत्तर-अरहर और सनई के खेत कवि को सोने की किंकिणियों के समान सुंदर दिखाई देते हैं।
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गंगा के तट पर फैली प्राकृतिक सुषमा का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। गंगा के तट पर फैली हुई रेत में चमकते कणों के कारण ही कवि ने उसे सतरंगी रेत कहा है। इसी प्रकार रेत पर हवा या पानी के बहाव के कारण बनी लहरों को साँप से अंकित कहा है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल में फैली हुई हरियाली की सुंदरता का उल्लेख किया है। कवि को वहाँ की – हरियाली हँसती हुई सी लगती है और सर्दी की धूप में सुख का अनुभव करती हुई वह अलसाई हुई भी प्रतीत होती है। कहने का भाव है कि कवि ने हरियाली का मानवीकरण करके उसके सौंदर्य को अत्यंत आकर्षक रूप से प्रस्तुत किया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

ग्राम श्री प्रश्न उत्तर Class 4 HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ? तिनकों के हरे हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक।
उत्तर-
(i) ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है,
(ii) ‘हिल हरित’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है,
(iii) ‘हरित रुधिर’ में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

Gram Shree Class 9 Vyakhya HBSE Hindi प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के उत्तरी भू-भाग में स्थित है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी ? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन अत्यंत सजीव एवं आत्मीयतापूर्ण भावों में किया है। कवि के द्वारा व्यक्त भाव उनके हृदय की सच्ची अनुभूति हैं। उन्होंने इन भावों को सरल, सहज एवं प्रवाहमयी शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा में व्यक्त किया है। कवि ने इस कविता में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग करके उसे अलंकृत भी बनाया है। भाषा भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर-
नोट-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। इसलिए विद्यार्थी इसे अपनी कक्षा की अध्यापिका/अध्यापक की सहायता से स्वयं लिखेंगे।

पाठेतर सक्रियता

सुमित्रानंदन पंत ने यह कविता चौथे दशक में लिखी थी। उस समय के गाँव में और आज के गाँव में आपको क्या परिवर्तन नज़र आते हैं ? इस पर कक्षा में सामूहिक चर्चा कीजिए।
अपने अध्यापक के साथ गाँव की यात्रा करें और जिन फ़सलों और पेड़-पौधों का चित्रण प्रस्तुत कविता में हुआ है, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर-
नोट-पाठेतर सक्रियता के अंतर्गत सुझाई गई गतिविधियाँ विद्यार्थी स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘ग्राम श्री’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘ग्राम श्री’ शीर्षक कविता का उद्देश्य गाँव के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण करना है। कवि ने गाँवों के दूर-दूर तक फैले हुए हरे-भरे खेतों, फल-फूलों से लदे हुए वृक्षों तथा गंगा के किनारे फैले रेत के चमकीले कणों की ओर पाठक का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट किया है। खेतों में खिली सरसों की पीतिमा तथा खेतों में खड़ी अन्य फसलों को देखकर कवि का मन प्रसन्नता से खिल उठता है। विभिन्न पक्षियों की मधुर-मधुर ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं। गंगा के तट पर बैठे हुए विभिन्न पक्षियों के सौंदर्य की ओर संकेत करना भी कवि नहीं भूलता। कहने का भाव है कि प्रस्तुत कविता में कवि का प्रमुख लक्ष्य ग्राम्य प्राकृतिक वातावरण का पूर्ण चित्र अंकित करना है जिसमें कवि पूर्णतः सफल रहा है।

प्रश्न 2.
कवि को पृथ्वी रोमांचित क्यों लगी है ?
उत्तर-
कवि को पृथ्वी रोमांचित इसलिए लगी है क्योंकि जब कोई रोमांचित होता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी प्रकार जब गेहूँ और जौ की बालियाँ आईं तो वे रोंगटों की भाँति खड़ी हुई-सी लगीं। अतः कवि द्वारा उन्हें देखकर पृथ्वी का रोमांचित-सा लगना उचित प्रतीत होता है।

प्रश्न 3.
‘ग्राम श्री’ नामक कविता में किस मौसम का और कैसा उल्लेख किया गया है?
उत्तर-
‘ग्राम श्री’ कविता गाँव के वातावरण को उद्घाटित करने वाली कविता है। इसमें कवि ने शिशिर ऋतु के मौसम का सजीव चित्रण किया है। इसी मौसम में ढाक और पीपल के पत्ते गिरते हैं। आम के वृक्ष पर मंजरियाँ फूटतीं और चारों ओर फूल खिल उठते हैं। फूलों पर तितलियाँ और भौरे मंडराने लगते हैं। हर प्रकार की सब्जियाँ उपलब्ध होती हैं। गेहूँ तथा जौ के पौधों में बालियाँ फूट पड़ती हैं। सरसों के फूल खिल जाते हैं। चारों ओर प्रसन्नता एवं उत्साह का वातावरण छा जाता है।

प्रश्न 4.
शिशिर ऋतु में सूर्य की किरणों का प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
शिशिर ऋतु में आसमान बिल्कुल साफ होता है और सूर्य पूर्ण रूप से चमकने लगता है। इस ऋतु में सूर्य की किरणों से हरियाली में चमक आ जाती है। हरियाली अधिक कोमल और मखमली प्रतीत होने लगती है। ऐसा लगता है मानो हरियाली पर चाँदी बिछ गई हो। तिनके ऐसे सजीव हो उठते हैं कि मानो नसों में हरा खून प्रवाहित होने लगता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘ग्राम श्री’ कविता के रचयिता हैं
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर-
(C) सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न 2.
सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1885 में
(B) सन् 1900 में
(C) सन् 1905 में
(D) सन् 1910 में
उत्तर-
(B) सन् 1900 में

प्रश्न 3.
सुमित्रानंदन पंत जी के गाँव का क्या नाम है ?
(A) कौसानी
(B) शामली
(C) गढ़ी
(D) हरिद्वार
उत्तर-
(A) कौसानी

प्रश्न 4.
किसके आह्वान पर पंत जी ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी ?
(A) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(B) महात्मा गाँधी
(C) सरदार पटेल
(D) रवींद्रनाथ टैगोर
उत्तर-
(B) महात्मा गाँधी

प्रश्न 5.
पंत जी किस काव्यधारा के कवि के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं ?
(A) नई कविता
(B) प्रयोगवादी
(C) छायावादी
(D) प्रगतिवादी
उत्तर-
(C) छायावादी

प्रश्न 6.
सुमित्रानंदन पंत का देहांत कब हुआ था ?
(A) सन् 1947 में
(B) सन् 1957 में
(C) सन् 1967 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर-
(D) सन् 1977 में

प्रश्न 7.
सुमित्रानंदन पंत को प्रसिद्धि प्राप्त हुई है-
(A) उपन्यासकार के रूप में
(B) कवि के रूप में
(C) नाटककार के रूप में
(D) निबंधकार के रूप में
उत्तर-
(B) कवि के रूप में

प्रश्न 8.
‘ग्राम श्री’ कविता का प्रमुख विषय है-
(A) ग्रामीणों की गरीबी
(B) गाँव का सादा जीवन
(C) ग्रामीणों की अनपढ़ता
(D) गाँव की प्राकृतिक सुंदरता
उत्तर-
(D) गाँव की प्राकृतिक सुंदरता

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प्रश्न 9.
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली कैसी लग रही है ?
(A) बादल जैसी
(B) पानी जैसी
(C) मखमल जैसी
(D) आकाश जैसी
उत्तर-
(C) मखमल जैसी

प्रश्न 10.
सूर्य की किरणों की तुलना कवि ने किससे की है ?
(A) चाँदी की जाली से
(B) सोने की तारों से
(C) पानी की चमक से
(D) रेत की चमक से
उत्तर-
(A) चाँदी की जाली से

प्रश्न 11.
कवि को हरे-हरे तिनकों पर क्या झलकता प्रतीत हुआ है ?
(A) ओस की बूंदें
(B) हरे रंग का रक्त
(C) पानी
(D) सूर्य की किरणें
उत्तर-
(B) हरे रंग का रक्त

प्रश्न 12.
सूर्य की किरणें किस पर सुशोभित हो रही हैं ?
(A) पानी पर
(B) वृक्षों पर
(C) मखमली हरियाली पर
(D) आकाश पर
उत्तर-
(C) मखमली हरियाली पर

प्रश्न 13.
कवि ने क्या देखकर धरती को रोमांचित-सी कहा है ?
(A) फूल देखकर
(B) बादल देखकर
(C) जौ और गेहूँ की बाली देखकर
(D) वर्षा का जल देखकर
उत्तर-
(C) जौ और गेहूँ की बाली देखकर

प्रश्न 14.
कवि ने किसे सोने की किंकिणियां कहा है ?
(A) गेहूँ की बालियों को
(B) सनई और अरहर की फलियों को
(C) गेंदे के फूलों को
(D) हरी-हरी घास पर पड़ी ओस को
उत्तर-
(B) सनई और अरहर की फलियों को

प्रश्न 15.
कवि के अनुसार तैलाक्त गंध किस पौधे से आ रही थी ?
(A) तीसी
(B) सरसों
(C) अरहर
(D) गेहूँ
उत्तर-
(B) सरसों

प्रश्न 16.
‘वसुधा’ शब्द का अर्थ है-
(A) धन धारण करना
(B) सोना धारण करना
(C) सुगंध धारण करना
(D) सौंदर्य धारण करना
उत्तर-
(A) धन धारण करना

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प्रश्न 17.
‘पीली-पीली’ में कौन-सा प्रमुख अलंकार है ?
(A) अनुप्रास
(B) उपमा
(C) पुनरुक्ति प्रकाश
(D) रूपक
उत्तर-
(C) पुनरुक्ति प्रकाश

प्रश्न 18.
‘आम’ वृक्ष की शाखाएँ किससे लद गई थीं ?
(A) पक्षियों से
(B) भौरों से
(C) मंजरियों से
(D) कलियों से
उत्तर-
(C) मंजरियों से

प्रश्न 19.
बसंत ऋतु आने पर कौन मतवाली हो उठी थी ?
(A) चिड़िया
(B) कोयल
(C) मोरनी
(D) कबूतरी
उत्तर-
(B) कोयल

प्रश्न 20.
पेड़ की डालियाँ किस फल से लद गई थीं ?
(A) अमरूद
(B) आम
(C) केलों
(D) आँवला
उत्तर-
(D) आँवला

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ग्राम श्री प्रमुख अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभं का चिर निर्मल नील फलक! [पृष्ठ 113]

शब्दार्थ-रवि = सूर्य। उजली = उज्ज्वल। हरित = हरे रंग वाला। रुधिर = रक्त, खून। श्यामल भू = हरी-भरी पृथ्वी। नभ = आकाश।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश का काव्य-सौंदर्य/ शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) खेतों में फैली हरियाली की तुलना किससे की गई है ?
(6) चाँदी की सी उजली जाली किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि प्रकृति का पुजारी है। वह ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर भावुक हो उठता है और कहता है कि गाँवों के खेतों में दूर-दूर तक हरियाली छायी हुई है। वह मखमल की भाँति कोमल एवं सुंदर है। उस हरियाली पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वह चाँदी की जाली की भाँति उज्ज्वल एवं चमकदार लगने लगती है। खेतों में खड़ी फसलों के तिनकों का हरापन ऐसा प्रतीत होता है कि मानों हरा रक्त झलक रहा हो। हरी-भरी पृथ्वी के तल पर आकाश का नीले रंग का स्वच्छ एवं पावन पर्दा झुका हुआ है।
भावार्थ भाव यह है कि ग्रामीण अंचल में खेतों में फैली हरियाली और उस पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों का अत्यंत मनोरम दृश्य उभरता है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश में प्रकृति के मनोहारी दृश्यों का स्वाभाविक चित्र अंकित किया गया है।
(ख) ‘मखमल….. हरियाली’, ‘हिल…….”झलक’ में रूपक अलंकार है।
(ग) ‘चाँदी की सी उजली जाली’ में उपमा अलंकार है।
(घ) संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ङ) ‘हरे हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) प्रस्तुत पद्य में चित्रात्मक शैली है।
(छ) सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ज) तत्सम शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
(झ) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय का समावेश हुआ है।

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(4) कविवर सुमित्रानंदन पंत ने ग्रामीण क्षेत्र की स्वाभाविक एवं अनुपम प्राकृतिक सुंदरता को उद्घाटित किया है। कवि ने पाठक का ध्यान गाँवों के खेतों में फैली हरियाली की ओर आकृष्ट किया है। कवि ने हरियाली पर सूर्य की उज्ज्वल किरणों के पड़ने से उसके सौंदर्य में हुई वृद्धि का भी सूक्ष्मतापूर्वक उल्लेख किया है। तिनकों के हरेपन को हरित रुधिर कहकर उसके सौंदर्य को सजीवता प्रदान की गई है। हरी-भरी पृथ्वी पर नीले नभ को झुका हुआ बताकर प्राकृतिक सौंदर्य को और भी संवेदनशील बना दिया है।

(5) खेतों में फैली हरियाली की तुलना कोमल मखमल से की गई है।

(6) ‘चाँदी की सी उजली जाली’ कवि ने उस हरियाली को कहा, जो दूर-दूर तक गाँवों के खेतों में फैली हुई थी, क्योंकि जब उस पर सूर्य की उज्ज्वल किरणें पड़ती हैं तब उसकी चमक और भी बढ़ जाती है। इसलिए कवि ने उसे चाँदी की उज्ज्वल जाली के समान कहा है।

2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जो गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली! [पृष्ठ 113]

शब्दार्थ-रोमांचित = प्रसन्नता व्यक्त करती हुई। वसुधा = पृथ्वी। किंकिणियाँ = करधनी। शोभाशाली = सुंदर। तैलाक्त = तेल से सनी हुई। गंध = खुशबू। धरा = पृथ्वी। तीसी नीली = अलसी के नीले फूल।

प्रश्न
(1) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत कवितांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत कवितांश का काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति के भाव-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(5) कवि को पृथ्वी रोमांचित-सी क्यों लगी ?
(6) कौन हरित धरा से झाँकते हुए-से लगते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि गेहूँ और जौ के पौधों की निकली बालियों को देखने से ऐसा लगता है जैसे उनके माध्यम से धरती रोमांचित हो उठी है अर्थात अपने हृदय की प्रसन्नता को व्यक्त कर रही है। खेतों में उगी अरहर की फलियाँ और फूल ऐसे लगते हैं कि मानों सोने से निर्मित सुंदर करधनी धारण कर रखी हो। इसी प्रकार दूर-दूर तक खेतों में पीली-पीली सरसों फूली हुई है। उसके फूलों की सुगंध चारों ओर उड़ रही है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की सुंदर कलियाँ और नीले रंग के फूलों से लदी अलसी भी झाँकती हुई-सी लगती है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि धरती पर उगी हुई गेहूँ और जौ की फसलें, अरहर और सरसों के फूल वहाँ के सौंदर्य को बढ़ा देते हैं। हरे-भरे खेतों में नीलम और अलसी के फूल भी सुंदर लगते हैं।

(3) (क) संपूर्ण पद्यांश में सरल एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) प्राकृतिक छटा का वर्णन अलंकृत भाषा में किया गया है।
(ग) ‘अरहर …. शोभाशाली’ में रूपक अलंकार है।
(घ) वसुधा, नीलम की कलियों, तीसी नीली आदि का मानवीकरण किया गया है।
(ङ) पीली पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) संपूर्ण पद्य में चित्रात्मकता है।
(छ) तत्सम शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।

(4) कवि ने खेतों में उगी फसलों का अत्यंत भावपूर्ण एवं मनोरम चित्रण किया है। वसुधा को रोमांचित बताकर आस-पास के प्रसन्नतामय वातावरण को उद्घाटित किया है। अरहर के फूलों व फलियों को सोने से निर्मित सुंदर करधनी की उपमा देकर उसकी सुंदरता को उजागर किया है। इसी प्रकार नीलम की कली और अलसी के नीले फूलों को हरे-भरे खेतों के बीच दिखाकर उनकी सुंदरता को चार चाँद लगा दिए हैं। इसके साथ ही उन्हें झाँकता हुआ कहकर उनका मानवीकरण भी कर दिया है।

(5) कवि को पृथ्वी रोमांचित इसलिए लगी, क्योंकि जब कोई रोमांचित होता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी प्रकार जब गेहूँ और जौ की बालियाँ निकल आईं तो वे रोंगटों की भाँति खड़ी हुई-सी लगीं। इसलिए कवि द्वारा उन्हें देखकर पृथ्वी का रोमांचित-सा लगना उचित प्रतीत होता है।

(6) नीलम की कलियाँ और अलसी के नीले फूल हरित धरा-से झाँकते हुए-से लगते हैं।

3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ व्रतों से वृंतों पर! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-रिलमिल = मिल-जुलकर। छीमियाँ = मटर की फलियाँ।

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प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के मूल विषय को स्पष्ट कीजिए।
(6) कवि ने मखमली पेटियाँ किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। . कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्यांश में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने गाँवों के खेतों में उगी फसलों और वहाँ की प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि का कथन है कि मटर की फसल के पौधों पर तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। उनके मध्य मटर की फलियाँ लटकी हुई हैं, जो मखमली पेटियों के समान लगती हैं। उन पेटियों (मटर की फलियों) में मटर के दानों की लड़ियाँ छिपी हुई हैं अर्थात मटरों की फलियों में मटरों की दोनों पंक्तियाँ विद्यमान हैं। कवि ने पुनः बताया है कि वहाँ विभिन्न रंगों के सुंदर फूलों पर विभिन्न रंगों वाली तितलियाँ उड़ रही हैं। वहाँ इतने अधिक फूल हैं कि ऐसा लगता है कि फूल स्वयं फूले नहीं समा रहे। फूल स्वयं फूलों के समूह पर गिर रहे हैं।
भावार्थ-कवि.के कहने का भाव यह है कि गाँवों के खेतों में खड़ी मटर की फसलें अत्यंत शोभायमान हैं और रंग-रंग के फूलों की अत्यधिक संख्या होने के कारण वहाँ का वातावरण सुंदर एवं सुगंधित बना हुआ है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा में रचित है।
(ख) ‘रंग-रंग’, ‘उड़-उड़’ आदि शब्दों की आवृत्ति के द्वारा फूलों के विभिन्न व अत्यधिक रंगों और तितलियों की प्रसन्नता को उजागर किया गया है।
(ग) मटर के पौधों का मानवीकरण किया गया है।
(घ) ‘मखमली पेटियों सी’ में उपमा अलंकार है।
(ङ) ‘रंग रंग’ तथा ‘उड़ उड़’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) ‘रिलमिल’, ‘मखमली’, ‘छीमियाँ’, ‘छिपाए’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(छ) भाषा प्रसादगुण-संपन्न है।
(ज) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं स्वाभाविक रूप में व्यक्त हुआ है।

(4) कवि ने अत्यंत प्रवाहमयी भाषा में प्रकृति के दृश्यों का सजीव चित्रण किया है। विभिन्न रंगों के फूलों के बीच हरी-हरी मटर की फलियों को मखमली पेटिका की उपमा देकर कवि ने उनके सौंदर्य एवं उनमें दानों की अधिकता की ओर संकेत किया है। इसी प्रकार रंग-रंग के फूलों पर रंग-रंग की तितलियों का उड़ना दिखाकर प्राकृतिक दृश्य को हृदयग्राही बना दिया है। फूलों के फूल फूलकर फूलों के समूह पर गिरने का भाव भी अत्यंत मौलिक एवं सुंदर है।

(5) प्रस्तुत काव्यांश का मूल विषय प्राकृतिक छटा को मनोरम रूप में उजागर करना है, ताकि लोगों का ध्यान उस ओर आकृष्ट हो सके।

(6) कवि ने मटर की हरी-हरी फलियों को मखमली पेटियाँ कहा है। इन्हें पेटियाँ इसलिए कहा गया है, क्योंकि इनमें मटर के बीज भरे हुए थे।

4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-रजत = चाँदी। स्वर्ण = सुनहरा। मंजरियों = बौर। तरु = टहनी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कोकिला मतवाली क्यों हो उठी थी ?
(6) प्रस्तुत पंक्तियों को पढ़कर कवि के किस ज्ञान का परिचय मिलता है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि अब वहाँ आम के वृक्ष की टहनियाँ चाँदी और सुनहरे रंग के बौर से लद गई हैं अर्थात आम की टहनियों पर बौर उग आया है जिससे उन पर फल लगने की आशा हो गई है। इस समय ढाक और पीपल के वृक्षों के पत्ते झड़ रहे हैं। ऐसे सुहावने एवं सुंदर वातावरण में कोयल भी मस्ती में भरकर कूक उठती है। इसके अतिरिक्त कटहल के पेड़ भी महक उठे हैं। जामुन पर भी बौर लग गया है। जंगल में छोटे-छोटे बेरों वाली झाड़ियाँ या बेरियाँ भी झूल उठी हैं। आड़, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि फल और सब्जियाँ खूब उगे हुए हैं।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि बसंत ऋतु में विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्षों पर फल-फूल लग जाते हैं। वातावरण अत्यंत प्रसन्नतामय बन जाता है। ऐसे में कोयल भी अपनी मधुर ध्वनि से उसमें रस घोल देती है।

(3) (क) संपूर्ण कवितांश में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) तत्सम शब्दों का सफल एवं सुंदर प्रयोग किया गया है।
(ग) चित्रात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया गया है।
(घ) संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ङ) शब्द-योजना विषयानुकूल है।

(4) कवि ने इन पंक्तियों में ग्रामीण अंचल की प्रकृति के विभिन्न दृश्यों का वर्णन अत्यंत सजीवता से किया है। बसंत ऋतु के आने पर जहाँ आम के वृक्षों की शाखाएँ बौर से लद जाती हैं, वहीं पीपल और ढाक के वृक्ष पत्र-विहीन हो जाते हैं। बसंत के आते ही कोयल भी मस्ती में भरकर मधुर ध्वनि में बोलने लगती है। विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों की फसलें भी महक उठती हैं। कवि ने अपने इन सब भावों को सुगठित एवं प्रवाहमयी भाषा में प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है।

(5) कवि ने बताया है कि बसंत ऋतु में प्रसन्नतायुक्त वातावरण में कोयल भी मस्ती में भरकर कूक उठी है।

(6) इन काव्य-पंक्तियों को पढ़कर कवि के प्रकृति संबंधी ज्ञान का बोध होता है। कवि को प्रकृति का ज्ञान ही नहीं, अपितु उसके प्रति गहन लगाव भी है।

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5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फली, फैली
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-चित्तियाँ = चित्रियाँ । मधुर = मीठे। अँवली = छोटे आँवले । तरु = वृक्ष । लहलह = लहकना। महमह = महकना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि ने किन सब्जियों एवं फलों का वर्णन किया है ?
(6) प्रस्तुत पद के प्रमुख विषय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि ने खेतों में लगी सब्जियों एवं वृक्षों पर लगे फलों का वर्णन करते हुए कहा है कि अमरूद के पेड़ों पर लगे अमरूदों पर अब लाल-लाल चिह्न पड़ गए हैं। इनसे पता चलता है कि अमरूद अब पक गए हैं। इसी प्रकार बेरियों पर सुनहरे रंग के मीठे-मीठे बेर लगे हुए हैं। आँवले के वृक्ष की टहनियों पर आँवले भी लदे हुए हैं अर्थात अत्यधिक मात्रा में लगे हुए हैं। खेत में खड़ी पालक लहक रही है और धनिया भी सुंदर लग रहा है। लौकी और सेम की बेलें फैली हुई हैं जिन पर लौकियाँ और सेम की फलियाँ लगी हुई हैं। अब मखमली टमाटर भी पककर लाल रंग के हो गए हैं। मिरचों के पौधों पर भी अत्यधिक बड़ी-बड़ी हरी मिरचें लगी हुई हैं।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि ग्रामीण अंचल में तरह-तरह के फलदार वृक्ष हैं जो वहाँ के लोगों को स्वादिष्ट फल देते हैं। खेतों में भी तरह-तरह की सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

(3) (क) कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
(ख) यह पद कवि के फलों व सब्जियों की फसलों के ज्ञान का परिचय करवाता है।
(ग) तत्सम शब्दों का सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘लाल-लाल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ङ) ‘लहलह’, ‘महमह’ में अनुप्रास अलंकार है।
(च) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
(छ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
(ज) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल के जीवन का वर्णन किया है। गाँव के खेतों, वहाँ उगी हुई फसलों तथा वहाँ के फलदार पेड़ों के प्रति आत्मीयता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। कवि का ग्रामीण क्षेत्र में उगाई जाने वाली सब्जियों का गहन ज्ञान द्रष्टव्य है। कवि ने अमरूद, बेर व आँवले के फलों के साथ-साथ पालक, धनिया, टमाटर और हरी मिरचों का अत्यंत सुंदर एवं सजीव चित्रांकन किया है। इस पद की प्रत्येक पंक्ति में विभिन्न फलों व सब्जियों का मनोहारी वर्णन है।

(5) कवि ने अमरूद, बेर, आँवला आदि फलों तथा पालक, धनिया, टमाटर व हरी मिरच आदि सब्जियों का उल्लेख किया है।

(6) प्रस्तुत पद का प्रमुख विषय गाँव के जीवन का विशेषकर वहाँ के खेतों में उगाए जाने वाले फलों व सब्जियों का उल्लेख करना है।

6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई! [पृष्ठ 115]

शब्दार्थ-बालू = रेत। अंकित = चित्रित, बने हुए। सतरंगी = सात रंगों वाली। सरपत = घास-पात, तिनके। कलँगी = सिर

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए। (5) कवि ने गंगा के किनारे किन-किन पक्षियों को देखा है ? (6) कवि ने गंगा के किनारे की रेत को साँपों की तरह अंकित क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गंगा तट के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि गंगा के किनारे बिछी हुई सतरंगी रेत व हवा के कारण बनी हुई लहरें साँपों के समान लगती हैं। गंगा के तट पर उगी हुई घास अत्यंत सुंदर लगती है। वहाँ पर किसानों द्वारा तरबूजों की फसल उगाई गई है। अपने पाँव के पंजे से अपने सिर की कलंगी संवारते हुए बगुले अत्यंत सुंदर लगते हैं। चक्रवाक पक्षी गंगा के पानी में तैर रहे हैं और गंगा किनारे बैठी मगरौठी सोई रहती है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गंगा के किनारे पर फैली रेत, तरबूजों की फसल और हरी-भरी घास के साथ-साथ वहाँ पर तरह-तरह के पक्षी क्रीड़ाएँ करते हुए अत्यंत सुंदर लगते हैं।

(3) (क) प्रस्तुत कवितांश सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा में रचित है।
(ख) इसमें कवि ने गंगा के किनारे की प्राकृतिक छटा का भावपूर्ण चित्रांकन किया है।
(ग) ‘बालू के साँपों से’ अंकित …..रेती’ में उपमा अलंकार है।
(घ) “अँगुली की कंघी’ ……कोई’ में रूपक अलंकार है।
(ङ) ‘तट पर तरबूजों’, ‘पुलिन पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(च) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।।
(छ) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं सहज बना हुआ है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक सौंदर्य एवं गंगा के किनारे की अनुपम छटा को चित्रित किया है। कवि ने बताया है कि गंगा के किनारे बिछी रेत पर अंकित लहरें सौ के आकार की लगती हैं। रेत के कणों की चमक सात रंगों वाली लगती है। इतना ही नहीं, वहाँ उगी हुई हरी-हरी घास और तरबूज की फसल का दृश्य भी मनोहारी है। गंगा के किनारे पर बगुले, सुरखाब, मगरौठी आदि बैठे हुए पक्षी मन को आकृष्ट करते हैं। अतः स्पष्ट है कि कवि ने संपूर्ण पद में गंगा के तट की छटा का सुंदर एवं सजीव रूप प्रस्तुत किया है।

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(5) कवि ने गंगा के किनारे बैठे बगुल्लों, चक्रवात और मगरौठी को देखा है।

(6) कवि ने गंगा के किनारे फैली रेत को साँपों की तरह अंकित इसलिए कहा है क्योंकि रेत में तेज हवा व पानी के बहाव के कारण टेढ़ी-मेढ़ी लहरें-सी बनी हुई थीं।

7. “हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन! [पृष्ठ 115]

शब्दार्थ-हिम-आतप = सर्दी की धूप। अँधियाली = अंधेरे वाली। निशि = रात्रि। मरकत = पन्ना नामक रत्न। निरुपम = उपमा-रहित। हिमांत = सर्दी के अंत में। स्निग्ध = कोमल । निज = अपनी। शोभा = सुंदरता। हरना = आकृष्ट करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के प्रमुख विषय का उल्लेख कीजिए।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ग्राम को किसकी उपमा दी है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करते हुए कहा है कि वहाँ की हँसमुख हरियाली सर्दी की धूप में ऐसी लग रही है मानों वह धूप सेंकने से अलसाई हुई-सी अथवा खोई हुई-सी है। रात के अंधेरे. में वही हरियाली भीगी हुई-सी लगती है और नीले नभ पर रात्रि को चमकते हुए तारे स्वप्नों में खोए हुए-से लगते हैं। सर्दी की ऋतु में चमकती हुई धूप में गाँव पन्ना नामक रत्न का खुला हुआ डिब्बा-सा प्रतीत होता है। उस पर नीले रंग का आकाश छाया हुआ होने के कारण और भी आकर्षक बन पड़ा है। हिमांत में अत्यंत सुंदर, शांत और अनुपम गाँव अपनी शोभा से सबके मन को आकृष्ट करने वाला है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गाँव के आस-पास छाई हुई हरियाली सर्दी की धूप में अत्यंत सुंदर लगने लगती है। रात को नीले आकाश में चमकते तारे भी मनमोहक लगते हैं। धूप में चमकता हुआ गाँव तो और भी आकर्षक लगता है।

(3) (क) कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक शोभा का सजीव चित्रण किया है।
(ख) तत्सम शब्दों का अत्यंत सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ग) संपूर्ण पद में हरियाली, तारों, ग्राम आदि का मानवीकरण किया गया है।
(घ) ‘हँसमुख हरियाली’, ‘नीलम-नभ’, ‘जन-मन’ आदि में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(ङ) ‘मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम’ में उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(च) नई-नई उपमाओं के प्रयोग के कारण प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत आकर्षक बन पड़ा है।
(छ) भाषा में लाक्षणिकता के प्रयोग से विषय में चमत्कार उत्पन्न हो गया है।

(4) प्रस्तुत पद में कवि ने ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता का अत्यंत सजीव चित्र आत्मीयतापूर्ण भावों में व्यक्त किया है। कवि ने सर्दकालीन हरियाली को हंसमुख और सर्दी की धूप में उसे अलसाई हुई बताकर उसके विविध गुणों व विशेषताओं को उद्घाटित किया है। रात में वही दिन वाली हंसमुख हरियाली भीगी हुई प्रतीत होने लगती है। रात्रि के गहन अंधकार में आकाश में चमकते तारे भी स्वप्नों में खोए हुए लगते हैं और धूप में चमकते गाँव के तो कहने क्या, वह तो पन्ने रूपी रत्न से बने हुए खुले डिब्बे के समान लगता है। उसके ऊपर छाए हुए नीले आकाश से तो उसकी शोभा और भी बढ़ जाती है। शांत, एकांत और अपनी अनुपम शोभा से गाँव सबके मन को आकृष्ट करता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत पद्यांश में अभिव्यक्त भावों में वेग के साथ-साथ आत्मीयता भी है।

(5) प्रस्तुत काव्यांश का प्रमुख विषय गाँव की प्राकृतिक छटा का भावपूर्ण वर्णन करना है। इसमें कवि ने वहाँ के दिन और रात के विविध दृश्यों को कलात्मकतापूर्ण अंकित किया है।

(6) प्रस्तुत पद में कवि ने ग्राम को मरकत के खुले डिब्बे की उपमा दी है जो अपनी अनुपम सुंदरता के लिए सबके हृदय को आकृष्ट करता है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

ग्राम श्री कवि-परिचय

प्रश्न-
सुमित्रानंदन पंत का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 को उत्तरांचल प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ। जन्म के तत्काल बाद उनकी माँ सरस्वती का देहांत हो गया। अतः उनका पालन-पोषण दादी, बुआ और पिता की छत्रछाया में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। वे गांधी जी से प्रभावित हुए और उनके साथ आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने अनेक स्थानों पर कार्य किया। वे आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। उन्होंने जीवन-भर साहित्य-सेवा की। सन् 1977 में उनका देहांत हो गया था। उनके साहित्य के महत्त्व को देखते हुए उन्हें ‘साहित्य अकादमी’, ‘सोवियत रूस’ तथा ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण-किरण’, ‘स्वर्ण-धूलि’, ‘उत्तरा’, ‘अतिमा’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’ तथा ‘लोकायतन’ ।

3. काव्यगत विशेषताएँ-पंत जी प्रकृति के चितेरे कवि थे। उनके साहित्य में प्रकृति का मनोरम चित्रण हुआ है। उनका काव्य रोमांटिक एवं व्यक्ति-प्रधान है। उन्होंने अपनी कविताओं में मानव-सौंदर्य का भी चित्रण किया है। छायावादी कवियों में पंत का मुख्य स्थान है।

पंत जी के काव्य में प्रगतिवादी स्वर भी उभरकर आया है। उनकी कविताओं में मानवतावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है। रहस्यवादी भावना भी उनके काव्य का विषय रही है।

4. भाषा-शैली-पंत जी शब्दों के कुशल शिल्पी माने जाते हैं। वे शब्दों की आत्मा तक पहुँचने में सिद्धहस्त थे। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रमुखता रही है। वे कोमल, मधुर और सूक्ष्म भावों को प्रकट करने वाले शब्दों का सार्थक प्रयोग करते थे।
पंत जी की काव्य-भाषा में उपमा, अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है। उनकी काव्य भाषा भावानुकूल एवं लयात्मक है। वे सचमुच हिंदी के गौरवशाली कवि थे।

ग्राम श्री कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ग्राम श्री’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गाँवों की प्राकृतिक छटा का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। खेतों में दूर-दूर तक लहलहाती फसलों, फूल-फलों से लदे हुए वृक्षों और गंगा के किनारे फैले रेत के चमकते कणों के प्रति कवि का मन आकृष्ट हो उठता है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान सुंदर हरियाली फैली हुई है। जब इस हरियाली पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो यह चाँदी की भाँति चमक उठती है। हरी-भरी पृथ्वी पर झुका हुआ नीला आकाश और भी सुंदर लगता है। जौ और गेहूँ की बालियों को देखकर लगता है कि धरती रोमांचित हो उठी है। खेतों में खड़ी अरहर और सनई सोने की करधनी-सी लगती हैं। सरसों की पीतिमा चारों ओर फैली हुई है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की कली भी सुंदर लग रही है। मटर की फलियाँ मखमली पेटियों-सी लटक रही हैं, जो अपने में मटर के बीज की लड़ियाँ छिपाए हुए हैं। चारों ओर खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियाँ घूम रही हैं। आम के वृक्ष भी मंजरियों से लद गए हैं। पीपल और ढाक के पुराने पत्ते झड़ गए हैं। ऐसे सुहावने वातावरण में कोयल भी कूक उठती है। कटहल, मुकुलित, जामुन, आडू, नींबू, अनार, बैंगन, गोभी, आलू, मूली आदि सब महक रहे हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

कवि ने ग्रामों की प्राकृतिक छटा और वहाँ फूल-फलों से लदे वृक्षों के सौंदर्य को अंकित करते हुए पुनः कहा है कि वहाँ पीले रंग के चित्तिरीदार मीठे अमरूद, सुनहरे रंग के बेर आदि फल वृक्षों पर लगे हुए हैं। पालक, धनिया, लौकी, सेम की फलियाँ, लाल-लाल टमाटर, हरी मिरचें आदि सब्जियाँ भी खूब उगी हुई हैं। गंगा के किनारे पर फैली हुई सतरंगी रेत भी सुंदर लगती है। गंगा के किनारे पर तरबूजों की खेती है। गंगा के तट पर बगुले और मगरौठी बैठे हुए हैं तथा सुरखाब पानी में तैर रहे हैं। सर्दियों की धूप में ग्रामीण क्षेत्र की हँसमुख हरियाली अलसायी हुई-सी प्रतीत होती है। रात के अंधेरे में तारे भी सपनों में खोए-से लगते हैं। गाँव मरकत के खुले डिब्बे-सा दिखाई देता है; जिस पर नीला आकाश छाया हुआ है। अपने शांत वातावरण एवं अनुपम सौंदर्य से गाँव सबका मन आकृष्ट करता है।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘इस विजन में ……….. अधिक है’-पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर-
इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का आक्रोश व्यक्त हुआ है क्योंकि वहाँ के अत्यधिक व्यस्त एवं प्रतियोगितापूर्ण और भौतिकवादिता से युक्त जीवन में प्रेम जैसी कोमल और प्राकृतिक भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। दूसरी ओर, ग्रामीण अंचल के एकांत जीवन में प्रेम का संचार पूर्ण रूप से दिखाई देता है। इसलिए कवि का आक्रोश नगरीय संस्कृति व जीवन के प्रति व्यक्त हुआ है।

Chandra Gehna Se Lautti Ber HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
उत्तर-
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि यह कहना चाहता होगा कि सरसों अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक ऊँची हो गई है। ‘सयानी’ शब्द से एक अर्थ यह भी निकलता है कि वह विवाह के योग्य हो गई है।

HBSE 9th Class Hindi Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अलसी चने के पौधे के पास उगी हुई है और उनसे दूर नहीं होती। इसलिए उसके हठीली होने के भाव को व्यक्त किया गया है। दूसरी ओर, उसने अपने आपको नीले फूलों से सजाया हुआ है और कहती है कि जो उसको स्पर्श करेगा, उसे ही वह अपना हृदय दान में दे देगी अर्थात उससे प्रेम करेगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर-
वस्तुतः अलसी चने के पौधों के बिल्कुल पास उगी हुई है। उसके आस-पास चारों ओर चने के पौधे हैं, फिर भी वह अपने स्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए कवि ने उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है।

प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर-
कवि ने तालाब के पानी में चमकते हुए सूर्य के प्रतिबिंब को देखकर पानी में ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ की सूक्ष्म । एवं सजीव कल्पना की है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर-
कविता में बताया गया है कि चने का पौधा केवल बालिश्त भर ऊँचा है अर्थात उसका कद छोटा है। उसने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और अपने सिर पर गुलाबी फूलों रूपी मुकुट धारण किया हुआ है। वह एक दुल्हे की भाँति सज-धज कर खड़ा हुआ है।

प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है। सर्वप्रथम कवि ने चने के पौधों का मानवीकरण किया है। तत्पश्चात अलसी को ‘हठीली’ और ‘हृदय का दान करने वाली’ बताकर उसका मानवीकरण किया है। सरसों का ‘सयानी’ व पीले हाथ करना’ आदि के माध्यम से मानवीकरण किया है। तालाब के किनारे रखे पत्थरों को पानी पीते हुए से दिखाकर उनका भी मानवीकरण किया है।

प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूंढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर-
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’-इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर-
और सरसों की न पूछो’ जैसी शैली का प्रयोग हम वहाँ करते हैं, जहाँ कोई व्यक्ति आशा से अधिक कार्य करता हो, जैसे रमेश की तो बात मत कीजिए, वह तो आजकल बहुत बड़ा अफसर बना हुआ है। बुरे अर्थ में भी इस शैली का प्रयोग किया जाता है। मोहन की क्या बात बताऊँ, उसने कुल की नाक कटवा दी।

प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर-
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया एक चालाक एवं चतुर व्यक्तित्व की प्रतीक हो सकती है, जो अवसर मिलते ही अपना वार कर देते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर-
देह, सिर पर चढ़ाना, सयानी, पोखर, चटुल आदि।

प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

देहात का दृश्य

अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी-सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है।
है चोटी उस की हिरनखुरी के फूलों से गुंथ कर सुंदर,
अन-आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल-हिल कर।
हैं मसें भीगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा धुंघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिन में तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झूम रहे,
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम रहे।
मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उसकी सुगंध-मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।

प्रश्न
(1) इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
(2) इन पंक्तियों में कवि ने किस-किसका मानवीकरण किया है ?
(3) इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है ?
(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठे ?
उत्तर-
(1) प्रस्तुत कविता का मुख्य भाव बसंतकालीन खेत-खलिहानों की प्रकृति का चित्रण करना है। कवि ने अरहर और सरसों की फलियों का सुंदर चित्रण किया है। गेहूँ में फूटती हुई बालियों की तुलना फूटती तरुणाई से की है। मटर की बेलों और हरे-हरे चने का मानवीकरण करके उनके सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया है। तालाब के ऊँचे-ऊँचे किनारों पर उगी हुई घास और सोने के समान चमकने वाली लताओं का वर्णन भी मनमोहक बन पड़ा है। कवि ने अलसी और मेथी के फूल का वर्णन भी किया है, जिनकी सुगंध के कारण तितली और भौंरें मदमस्त हो जाते हैं।

(2) इन पंक्तियों में कवि ने अरहर, सरसों, पोलंगा, गेहूँ, मटर बेली, चने आदि का मानवीकरण किया है।

(3) इस कविता को पढ़कर हमें बसंत के मौसम का स्मरण हो आता है।

(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध अलसी और मेथी के फूल की सुगंध में खो बैठते हैं।

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
अथवा
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता एक सोद्देश्य रचना है। इस कविता में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करना ही प्रमुख लक्ष्य है। कविता संपूर्ण रूप से ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुषमा पर केंद्रित है। कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा था। लौटते समय कवि का मन गाँव के खेत में खड़ी फसल में रम जाता है। कवि की पैनी दृष्टि वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को पहचानने में देर नहीं लगाती। कवि बताता है कि उसने चने के खेत देखे। उसमें बलिश्त भर का चने का पौधा गुलाबी फूलों से लदा हुआ था। उसके बीच-बीच में अलसी के पौधे उगे हुए थे। उस पर नीले रंग के फूल खिले हुए थे। गुलाबी, नीले और हरे रंग के एक साथ होने से दृश्य अत्यन्त मनोरम बना हुआ था। इन अनुपम दृश्य को उजागर करना ही कवि का लक्ष्य रहा है। गेहूँ के खेत में सरसों उगी हुई थी और उस पर पीले फूल लगे हुए थे। उसे देखकर कवि के जहन में विवाह मंडप की कल्पना उभर आती है।

उसे लगा कि सरसों मानो अपने हाथ पीले करके मंडप में आ गई हो। इसी प्रकार कवि ने फागुन के महीने में प्रकृति पर यौवन के आने की ओर संकेत किया है। गाँव के तालाब के आस-पास के एकांत एवं शांत वातावरण को शब्दों में सजीवतापूर्वक अंकित करना भी कविता का लक्ष्य है। विभिन्न पक्षियों की ध्वनियों को ध्वन्यात्मक शब्दों में ढालकर एक मधुर वातावरण का निर्माण किया गया है। गाँव से थोड़ी दूरी पर रेत के बड़े-बड़े टीले थे, वहाँ का वातावरण पूर्णतः शून्यता से परिपूर्ण था। उन टीलों के बीच से रेल की पटरी गुजर रही थी। जब रेल वहाँ से गुजरती होगी तो वातावरण की एकांतता को तोड़कर एक अनोखी हलचल मचा देती होगी। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता का मूल भाव प्रकृति की छटा का वर्णन करना है। कवि अपने इस लक्ष्य में पूर्णतः सफल रहा है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 2.
निम्नांकित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
व्याह-मंडप में पधारी ।
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने सरसों के विकास और उस पर फूल लग जाने के कारण उसमें उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया है। कवि उसका मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि वह ‘सयानी’ अर्थात युवती बन गई है और वह अपना शृंगार करके मानों विवाह के मंडप पर आ गई है। कवि ने फागुन मास को फाग गीत गाने वाला बताकर फागुन मास के आने की सूचना भी दी है। कहने का भाव है कि प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में फागुन मास के आने पर सरसों के फूलने का सुंदर वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
पठित कविता के आधार पर केदारनाथ अग्रवाल की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताजगी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा शुद्ध, साहित्यिक एवं व्याकरण-सम्मत है। अनेक कविताओं में उनकी भाषा गद्यमय बन गई है, किंतु उसमें लय एवं प्रवाह सर्वत्र बना हुआ है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ पोखर, मुरैठा, ठिगना, चटुल आदि लोकभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। लोक-प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करके भाषा को सारगर्भित भी बनाया है। उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है कि वह जीवन से उपजी हुई भाषा है और जीवन की रागात्मकता से जुड़ी रहती है। अनेक स्थलों में श्री केदारनाथ अग्रवाल ने अंग्रेज़ी व उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है, जिसमें भावों को अभिव्यक्त करने की सहज क्षमता है। गंभीर-से-गंभीर भाव को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला में अग्रवाल जी निपुण हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) राजेश जोशी
(D) चंद्रकांत देवताले
उत्तर-
(B) केदारनाथ अग्रवाल

प्रश्न 2.
कवि कहाँ से लौट रहा था?
(A) दिल्ली से
(B) नैनीताल से
(C) चंद्र गहना से
(D) बनारस से
उत्तर-
(C) चंद्र गहना से

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 3.
कवि कहाँ अकेला बैठकर प्राकृतिक दृश्य देख रहा था?
(A) रेल की पटरी पर .
(B) सड़क पर
(C) सागर तट पर
(D) खेत की मेड़ पर
उत्तर-
(D) खेत की मेड़ पर

प्रश्न 4.
कवि ने ‘ठिगना’ किसे कहा है?
(A) चने के पौधे को ।
(B) गेहूँ के पौधे को
(C) आम के पेड़ को
(D) सरसों के पौधे को
उत्तर-
(A) चने के पौधे को

प्रश्न 5.
चने के पौधे ने किस रंग का मुरैठा सिर पर बाँधा हुआ था?
(A) लाल
(B) गुलाबी
(C) काला
(D) पीला
उत्तर-
(B) गुलाबी

प्रश्न 6.
खेत में चने के साथ मिलकर कौन-सा पौधा उगा हुआ था?
(A) गेहूँ का
(B) अलसी का
(C) मेथी का
(D) जौ का
उत्तर-
(B), अलसी का

प्रश्न 7.
अलसी के पौधे पर किस रंग के फूल खिले हुए थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) सफेद
(D) नीले
उत्तर-
(D) नीले

प्रश्न 8.
कवि ने सरसों की किस विशेषता को देखकर उसे सयानी कहा है?
(A) रंग को देखकर
(B) हिलने-डुलने को देखकर
(C) लंबाई को देखकर
(D) उसकी मजबूती को देखकर
उत्तर-
(C) लंबाई को देखकर

प्रश्न 9.
‘पोखर’ का अर्थ है-
(A) नदी
(B) सागर
(C) बादल
(D) तालाब
उत्तर-
(D) तालाब

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 10.
कवि ने चाँदी के समान चमकता हुआ गोल खंभा किसे कहा है?
(A) तालाब में खड़े खंभे को
(B) तालाब में उगी घास को
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को
(D) चाँद के प्रतिबिंब को
उत्तर-
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को

प्रश्न 11.
तालाब में चुपचाप कौन-सा पक्षी खड़ा हुआ है?
(A) कौआ
(B) चिड़िया
(C) कबूतर
(D) बगुला
उत्तर-
(D) बगुला

प्रश्न 12.
बगुला पानी में से क्या पकड़कर खाता है?
(A) मेंढक
(B) मछली
(C) जोंक
(D) साँप
उत्तर-
(B) मछली

प्रश्न 13.
कौन-सी चिड़िया पानी में डुबकी लगाकर मछली पकड़कर खाती है?
(A) काले माथे वाली
(B) लाल पंखों वाली
(C) लंबी पूँछ वाली
(D) छोटे शरीर वाली
उत्तर-
(A) काले माथे वाली

प्रश्न 14.
कवि ने चित्रकूट की पहाड़ियों के आकार के विषय में क्या कहा है?
(A) चौड़ी और कम ऊँची
(B) बहुत ऊँची
(C) बर्फीली
(D) हरी-भरी
उत्तर-
(A) चौड़ी और कम ऊँची

प्रश्न 15.
चित्रकूट की पहाड़ियों पर कौन-सा वृक्ष उगा हुआ था?
(A) शीशम
(B) नीम
(C) रीबा
(D) आम
उत्तर-
(C) रीबा

प्रश्न 16.
कवि को किस पक्षी का मीठा स्वर सुनाई पड़ रहा था?
(A) सुग्गे का
(B) कोयल का
(C) मोर का
(D) कबूतर का
उत्तर-
(A) सुग्गें का

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प्रश्न 17.
किस पक्षी का स्वर वनस्थली का हृदय चीरता हुआ प्रतीत होता था?
(A) जंगली मुर्गे का
(B) मोर का
(C) सारस का
(D) कोयल का
उत्तर-
(C) सारस का

प्रश्न 18.
कवि का मन क्या करना चाहता है?
(A) सारस के संग उड़ना
(B) गीत गाना
(C) तालाब में नहाना
(D) जंगल में घूमना
उत्तर-
(A) सारस के संग उड़ना

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

चंद्र गहना से लौटती बेर अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. देख आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
पास ही मिल कर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको। [पृष्ठ 119-120]

शब्दार्थ-दृश्य = नजारा। मेड़ = किनारा। बीते के बराबर = एक बालिश्त के बराबर। ठिगना = छोटे कद वाला। मुरैठा = साफा, पगड़ी। हठीली = जिद्दी। देह = शरीर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत कवितांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद्यांश में किन-किन फसलों का वर्णन किया गया है?
(6) चने के पौधे के रूप-सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने किसान के खेतों में खड़ी फसल की साधारण सुंदरता में असाधारण सौंदर्य की सृजनात्मक कल्पना की है। कवि कहता है कि वह चंद्र गहना को देख आया है। अब वह खेत की मेड़ (किनारे) पर अकेला बैठा हुआ है और खेत को अत्यंत तन्मयता से देख रहा है। उसने खेत में एक बालिश्त के बराबर खड़े चने के एक छोटे-से हरे पौधे को देखा जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। ऐसा लगता है कि वह छोटा-सा चने का पौधा अपने सिर पर गुलाबी रंग के फूलों का साफा बाँधे हुए है और पूर्णतः सज-धजकर खड़ा है। वहाँ चने के खेत में पास ही अलसी के पौधे भी उगे हुए हैं। उन्हें देखकर कवि ने कहा है कि चने के बीच में जिद्दी अलसी भी खड़ी हुई थी। उसका शरीर पतला और कमर लचकदार है। उस पर अनेक नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। वह नीले फूलों को अपने सिर पर चढ़ाकर कहती है कि जो मुझे स्पर्श करेगा, मैं उसे अपने हृदय का दान दूंगी।

भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का अनुपम चित्रण किया है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रकृति के सुंदर दृश्यों को सजीवता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
(ख) चने और अलसी के पौधों का मानवीकरण करके कवि ने अत्यंत सजीव एवं सार्थक कल्पना की है।
(ग) भाषा अत्यंत सरल एवं स्वाभाविक है।
(घ) ‘अलसी’ को हठीली कहकर ऐसे लोगों की प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
(ङ) मानवीकरण अलंकार है।
(च) ‘बीते के बराबर’, ‘फूले फूल’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(छ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(4) प्रस्तुत कविता में कवि ने खेतों में खड़ी फसल के सौंदर्य का भावपूर्ण चित्रण किया है। कवि के मन में इस औद्योगिक एवं प्रगति के युग में भी प्रकृति के नैसर्गिक रूप-सौंदर्य के प्रति लगाव शेष है। उसी कारण वह मार्ग में रुककर चने के पौधे और अलसी के फूलों एवं उनके परिवेश के सौंदर्य का आत्मीयतापूर्ण चित्रण करता है। उसने चने के पौधे का एक सजे हुए व्यक्ति के रूप में चित्रण किया है। उसी प्रकार अलसी को हठीली कहकर उसके स्वभाव को अंकित किया है। उसको पतली एवं उसकी कमर को लचीली कहकर उसके बाह्य सौंदर्य की अभिव्यक्ति की है। अतः स्पष्ट है कि प्रकृति का यह संपूर्ण चित्रण अत्यंत सजीव एवं आकर्षक है।

(5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने चने एवं अलसी की फसलों का वर्णन किया है।

(6) कवि ने चने के पौधे का रूप चित्रण करने हेतु एक सजे हुए राजकुमार या युवक की कल्पना की है। चने ने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और गुलाबी फूलों रूपी साफा बाँधा हुआ है। उसके वस्त्र एवं साफे के रंगों की सुंदरता देखने वालों के मन को आकृष्ट कर लेती है।

2. और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है। [पृष्ठ 120]

शब्दार्थ-पधारी = पहुँची। अनुराग-अंचल = प्रेममय वस्त्र। विजन = एकांत।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि के अनुसार सरसों ने हाथ पीले क्यों किए हैं?
(6) कवि ने प्रेम की प्रिय भूमि किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर-
(1) कवि श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हए लिखा है कि खेतों में उगी सरसों की बात मत पूछिए। वह सबसे सयानी हो गई है अर्थात अन्य फसलों की अपेक्षा उसकी ऊँचाई सबसे अधिक है। वह देखने में दूसरों से बड़ी लगती है। इतना ही नहीं, उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं अर्थात उस पर पीले रंग के फूल खिल गए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वह ब्याह के मंडप पर पधार गई है तथा फागुन मास भी वहाँ फाग के गीत गाता हुआ पधार गया है। कहने का भाव है कि फागुन मास में सरसों के पीले फूल खिल जाते हैं और लोग फाग के गीत गाने लगते हैं। कवि पुनः कहता है कि मुझे यह प्राकृतिक दृश्य देखकर लगता है कि मानों यहाँ किसी स्वयंवर की रचना की गई हो। यहाँ एकांत वातावरण है और प्रकृति का प्रेममय आँचल हिल रहा है अर्थात चारों ओर प्राकृतिक प्रेम का वातावरण छाया हुआ है। व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय भूमि अधिक उपजाऊ है अर्थात नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के हृदयों में प्रेम की भावना अधिक है।

भावार्थ – इन पंक्तियों मे कवि ने ग्रामीण अंचल की प्रकृति का मनोरम वर्णन किया है। सरसों के मानवीकरण के कारण वर्ण्य-विषय अत्यन्त रोचक बन पड़ा है।

(3) (क) संपूर्ण काव्यांश में प्रकृति की अनुपम छटा का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) सरसों पर मानवीय गतिविधियों के आरोप के कारण मानवीकरण अलंकार है।
(घ) ‘प्रकृति ……….. रहा है’ में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(ङ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
(च) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं सहज रूप में वर्णित है।
(छ) ‘अनुराग-अंचल’, ‘प्रेम की प्रिय’ में अनुप्रास अलंकार है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल में फैली प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि ने सरसों का मानवीकरण करते हुए उसके अनुपम सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। कवि द्वारा सरसों के पौधे की ऊँचाई देखकर उसको सयानी कहना उचित है। उस पर लदे हुए पीले फूलों को देखकर हाथ पीले करना कहना भी सार्थक है। सरसों के पौधों के आसपास अन्य फसलों के पौधे भी उगे हुए हैं। इसलिए कवि ने उस दृश्य की ब्याह के मंडप से तुलना की है। फागुन मास में गाए जाने वाले गीतों की ध्वनि को सुनकर कवि को फाग गाता हुआ-सा प्रतीत हुआ है। कवि ने प्रकृति के इस दृश्य को स्वयंवर कहा है, जो उचित है। कवि को वहाँ की प्रकृति का पूर्ण अंचल अनुरागमय लगता है। कवि का मत है कि व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर एकांत में अर्थात ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय यह भूमि अधिक उपजाऊ है। कहने का भाव है कि नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के मन में प्रेम की भावना अधिक होती है।

(5) कवि के अनुसार हाथ पीले कर लिए से तात्पर्य है कि सरसों की फसल काफी ऊँची हो गई है और उस पर पीले फूल लद गए हैं। इसलिए वह ऐसी लगती है कि मानो उसने अपने हाथ पीले कर लिए हों।

(6) कवि ने ग्रामीण अंचल की भूमि को प्रेम की प्रिय इसलिए कहा है, क्योंकि वहाँ के लोगों के मन में आपसी प्रेम की भावना अधिक होती है। नगरों के लोगों की भाँति उनमें होड़ व प्रतियोगिता से उत्पन्न घृणा व द्वेष भाव नहीं हैं।

3. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में! [पृष्ठ 120-121]

शब्दार्थ-पोखर = छोटा तालाब। नील तल = नीली सतह। आँख को चकमकाता = आँख में चमक लगना। मीन = मछली। ध्यान-निद्रा = ध्यान-मग्न। श्वेत = सफेद। टूट पड़ना = आक्रमण करना। चटुल = चंचल।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में वर्णित विषय के संदर्भ को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पंद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में वर्णित तालाब की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।।

(2) व्याख्या-कवि ने गाँव के छोटे तालाब का वर्णन करते हुए कहा है कि गाँव के अत्यंत समीप ही एक छोटा-सा तालाब है। उसमें छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। पानी की सतह पर भूरे रंग की घास उगी हुई है। वह भी पानी की लहरों के साथ-साथ हिल रही है। पानी में सूर्य का पड़ता हुआ प्रतिबिंब चाँदी के बड़े-से गोल खंभे के समान लग रहा था। उसे देखकर आँखें धुंधिया रही हैं। उस तालाब के किनारे पर कई पत्थर रखे हुए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वे चुपचाप पानी पी रहे हों। न जाने उनकी प्यास कब बुझेगी? उस तालाब में एक बगुला पानी में अपनी टाँग डुबोए हुए चुपचाप खड़ा हुआ है। किंतु किसी चंचल मछली को पानी में तैरते देखकर वह अपनी ध्यान निद्रा का एकाएक त्याग कर देता है और तुरंत मछली को पकड़कर खा जाता है।

वहाँ पर एक काले माथे वाली चतुर एवं चालाक चिड़िया भी उड़ रही है। वह अपने सफेद पंखों की सहायता से झपटा मारकर तुरंत जल की गहराई में डुबकी लगाकर एक सफेद रंग की चंचल व तेज तैरने वाली मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर दूर आकाश में उड़ जाती है।

भावार्थ-इस पद्यांश में कवि ने गाँव के तालाब और उसके आस-पास की प्राकृतिक छटा एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया है।

(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की सुप्रसिद्ध कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से उद्धत हैं। कवि चंद्र गहना से लौट रहा था। मार्ग में उसने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा को देखा। उसके प्रति कवि का मन सहज ही आकृष्ट हो उठा। उसी आकर्षण के भाव में उसने वहाँ के प्राकृतिक जीवन, खेत-खलिहान व आस-पास की अन्य वस्तुओं का वर्णन किया। इन पंक्तियों में गाँव के छोटे-से तालाब के दृश्य का अत्यंत मनोरम चित्र अंकित किया गया है।

(4) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्रकृति व वहाँ के वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(ख) सरल, सहज एवं स्वाभाविक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ग) कवि ने पोखर, बगुला और चतुर चिड़िया ये तीन अलग-अलग दृश्य-चित्रों के माध्यम से वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(घ) पत्थरों का मानवीकरण किया गया है।
(ङ) ‘नील तल’, ‘चतुर चिड़िया’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) ‘एक चाँदी ……….. खंभा’ में रूपक अलंकार है।
(छ) ‘झपाटे मारना’, ‘टूट पड़ना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ज) तत्सम शब्दों के साथ उर्दू भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

(5) प्रस्तुत कविता में कवि ने ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक सौंदर्य को अत्यंत भावपूर्ण शैली में चित्रित किया है। कवि ने तालाब में उठती छोटी-छोटी लहरों तथा उसमें उगे घास का सुंदर चित्रण किया है। पानी पर पड़ती सूर्य की किरणों की चमक के दृश्य को भी कवि ने अत्यंत मनोरम रूप में अभिव्यक्त किया है। कवि ने तालाब के किनारे पड़े पत्थरों का मानवीकरण करके वहाँ के दृश्य को और भी सजीव बना दिया है। तालाब के पानी में खड़े बगुले द्वारा पानी में तैरती हुई मछली को देखकर अपनी दिखावटी ध्यान-मग्नता को त्याग कर मछली पकड़कर निगल जाने का दृश्य भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। इसी प्रकार चतुर चिड़िया के द्वारा पानी में डुबकी लगाकर चंचल मछली को मुख में दबाकर आकाश में उड़ने का वर्णन भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत काव्यांश में प्राकृतिक सौंदर्य के विभिन्न रूपों को अत्यंत सजीवता से चित्रित किया गया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(6) प्रस्तुत कवितांश में चित्रित तालाब एक छोटा-सा तालाब है। उसका तल कच्चा है। उसमें घास उगी हुई है। उसके जल में छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। सूर्य की किरणों के पड़ने के कारण उसका जल चाँदी की भाँति चमक रहा है। वहाँ तरह-तरह के पक्षी अपनी स्वाभाविक क्रियाएँ कर रहे हैं।

4. औ’ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं। [पृष्ठ 121]

शब्दार्थ-ट्रेन = गाड़ी। टाइम = समय। स्वच्छंद = स्वतंत्र। अनगढ़ = टेढ़ी-मेढ़ी। रीवा = एक पेड़ का नाम । कुरूप = बुरे या भद्दे रूप वाले।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(4) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि के विषय में कवि ने क्या बताया है?
उत्तर-

(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या कवि का कथन है कि जहाँ वह खड़ा है, वहाँ की भूमि ऊँची है और वहीं पर रेल की पटरी बिछी हुई है। इस समय किसी भी रेलगाड़ी के आने का समय नहीं है। कवि को कहीं नहीं जाना है। इसलिए कवि अपने-आपको स्वतंत्र अनुभव करता है। कवि जहाँ खड़ा है, वहाँ से उसे चित्रकूट की टेढ़ी-मेढ़ी, चौड़ी-चौड़ी और कम ऊँचाई तक फैली हुई पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। इन पहाड़ियों के आस-पास की भूमि बंजर है। उस भूमि पर इधर-उधर कुछ रीवा के काँटेदार और कुरूप पेड़ खड़े हैं।

भावार्थ-इन पंक्तियों में ग्रामीण क्षेत्र के शांत एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है।

(3) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ख) भाषा गद्यमय होती हुई भी लययुक्त है।
(ग) ट्रेन एवं टाइम अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘काँटेदार कुरूप’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) ‘ऊँची-ऊँची’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चित्रकूट के आस-पास की पहाड़ियों व ऊबड़-खाबड़ और बंजर भूमि का वर्णन किया है। कवि ने वहाँ से जाने वाली रेल की पटरी का वर्णन किया है। पर रेल के जाने का अभी समय नहीं हुआ है। इसलिए कवि कुछ समय के लिए अपने-आपको हर प्रकार की चिंताओं से मुक्त पाता है। कवि ने चित्रकूट की समीपवर्ती पहाड़ियों और उनके आस-पास की बंजर भूमि का भी उल्लेख किया है। कवि ने इस दृश्य के वर्णन के माध्यम से जहाँ एक ओर वहाँ की प्रकृति का वर्णन किया है तो वहीं दूसरी ओर वहाँ के लोगों के जीवन की भी अप्रत्यक्ष रूप से झलक प्रस्तुत की है।।

(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि गाड़ी के आने का समय नहीं है अर्थात वहाँ बड़े-बड़े नगरों की भाँति गाड़ियों का अत्यधिक आना-जाना नहीं है। इसलिए कवि को कहीं नहीं जाना है और वह अपने-आपको स्वच्छंद अनुभव करता है।

(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि पर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिन पर वृक्ष या अन्य पौधे नहीं हैं। वहाँ केवल रीवा . के काँटेदार और कुरूप वृक्ष ही इधर-उधर खड़े हैं।

5. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे। [पृष्ठ 121-122]

शब्दार्थ-रस टपकाता = आनंद प्रदान करता। सुग्गा = तोता। वनस्थली = जंगल। जुगल = दो जोड़ी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(5) इस पद्यांश में कवि ने किन दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया है ?
(6) कवि का मन कहाँ और क्यों उड़ जाना चाहता है ?
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चंद्र गहना से लौटते समय मार्ग में आने वाले प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है। इन पंक्तियों में कवि ने जंगल में बोलते हुए सुग्गे की मधुर ध्वनि का वर्णन किया है। कवि को सुग्गे की ध्वनि में मीठा-मीठा रस अनुभव होता है। साथ ही उसे सुग्गे की ध्वनि जंगल के हृदय को चीरती हुई-सी प्रतीत हुई अर्थात जंगल में व्याप्त एकांत सुग्गे की ध्वनि से भंग हो रहा था। कवि सारस की ‘टिरटों टिरटों’ ध्वनि को सुनकर भी अत्यधिक प्रभावित हो उठता है। इसलिए कवि कहता है कि मेरा मन होता है कि मैं भी पंख फैलाकर उड़ते हुए सारस युगल के साथ ही वहाँ चला जाऊँ जहाँ हरे खेत में सारस की जोड़ी रहती है। वहाँ उनके सच्चे प्रेम की कहानी को चुपके-चुपके सुन लूँ।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की ध्वनियों का वर्णन करते हुए ध्वन्यात्मकता का सुंदर उल्लेख किया है।

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(3) (क) संपूर्ण पद में सरल, सहज एवं गद्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
(ग) 2 2 2 टें तथा टिरटों, टिरटों प्रयोगों में ध्वन्यात्मकता द्रष्टव्य है।
(घ) ‘मीठा-मीठा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ङ) ‘सारस का स्वर’, ‘सारस के संग’ ‘जहाँ जुगुल जोड़ी’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) भाषा गद्यात्मक होते हुए भी लययुक्त है।

(4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अत्यंत भावात्मक शैली में जंगल के एकांतमय वातावरण एवं सुग्गे व सारस आदि पक्षियों की मधुर ध्वनियों का उल्लेख किया है। सुग्गे की टें 2 की ध्वनि को सुनकर जहाँ सुख व आनंद की अनुभूति होती है, वहीं वे ध्वनियाँ जंगल के एकांत वातावरण को भंग करती हुई लगती हैं। कवि ने सारस के मधुर स्वर के साथ-साथ सारस की जोड़ी की प्रेम कहानी का वर्णन लोक-प्रचलित विश्वास के अनुकूल किया है अर्थात लोक-जीवन में सारस के प्रेम को सच्चा-प्रेम स्वीकार किया गया है।

(5) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में सुग्गा व सारस दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया गया है।

(6) कवि का मन सारस के साथ उड़कर वहाँ जाने को करता है, जहाँ सारस रहते हैं ताकि वह चुपके-चुपके उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके। ।

चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi

चंद्र गहना से लौटती बेर कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर केदारनाथ अग्रवाल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री केदारनाथ अग्रवाल का प्रगतिवादी कवियों में प्रमुख स्थान है। उनका जन्म सन 1911 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए ये इलाहाबाद चले गए और वहाँ से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आगरा विश्वविद्यालय में एल०एल०बी० की उपाधि प्राप्त कर ये बाँदा में वकालत करने लगे। वकालत करने के साथ-साथ श्री केदारनाथ अग्रवाल राजनीतिक और सामाजिक जीवन से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही ये हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन से भी घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे। प्रगतिवादी कवियों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। श्री अग्रवाल जी आजीवन साहित्य रचना करते रहे। उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखकर माँ भारती के आँचल को समृद्ध किया है। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अग्रवाल जी का निधन सन 2000 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘नींद के बादल’, ‘युग की गंगा’, ‘लोक तथा आलोक’, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’, ‘पंख और पतवार’, ‘हे मेरी तुम’, ‘मार प्यार की थापें’, ‘कहे केदार खरी-खरी’ आदि उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-अग्रवाल जी को अपने शिक्षकों से लिखने की प्रेरणा मिली। आरंभ में उन्होंने खड़ी बोली में कवित्त और सवैये लिखने शुरू किए। ‘नींद के बादल’ उनका प्रारंभिक काव्य-संग्रह था। उनके काव्य में जहाँ एक ओर ग्रामीण प्रकृति तथा प्रेम की सुंदर भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है, वहीं दूसरी ओर प्रगतिवादी दृष्टिकोण को भी स्वर मिला है। ये प्रकृति के सुंदर, कोमल और स्वाभाविक चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त हैं। ‘लोक तथा आलोक’ पूर्णतया प्रगतिवादी रचना है। समाज के पूँजीपतियों, ज़मींदारों तथा शोषकों के अत्याचारों के परिप्रेक्ष्य में कवि ने शोषितों एवं उपेक्षितों की व्यथा का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर उनकी वाणी आक्रोश का रूप धारण कर लेती है और वे शोषक वर्ग को भला-बुरा भी कहना शुरू कर देते हैं। उन्होंने समाज के गरीबों की गरीबी पर खुलकर आँसू बहाए हैं। उनका समूचा काव्य यथार्थ की भूमि पर खड़ा है, लेकिन यथार्थवाद अन्य प्रगतिवादी कवियों की तरह शुष्क नहीं है। उसमें कुछ स्थलों पर राग भी हैं, जो पाठक के मन को छू लेते हैं।

4. भाषा-शैली-केदारनाथ अग्रवाल के काव्य का कला-पक्ष भाव-पक्ष की तरह सशक्त एवं प्रभावशाली है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताज़गी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा में खड़ी बोली का परिमार्जित रूप देखा जा सकता है। शब्द-चयन और अभिव्यक्ति अग्रवाल जी की अपनी कला है। उनके काव्य की विशेषता जीवन और उससे उपजी हुई रागात्मकता से साक्षात्कार करना है। उन्होंने अनेक स्थलों पर जनभाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने आवश्यकतानुसार आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग किया है।

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता में कविवर केदारनाथ अग्रवाल ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति प्रेम स्वाभाविक एवं नैसर्गिक रूप में अभिव्यक्त हुआ है। वस्तुतः कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते समय कवि के मन को खेत-खलिहान और उनका प्राकृतिक परिवेश अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। कवि ने मार्ग में जो कुछ देखा है, उसका वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मैं चंद्र गहना देख आया हूँ, किंतु अब खेत के किनारे पर बैठा हुआ देख रहा हूँ कि एक बालिश्त के बराबर हरा ठिगना-सा चने का पौधा है जिस पर छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। साथ ही अलसी का पौधा भी खड़ा है, जिस पर नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। इसी प्रकार चने के खेत के बीच-बीच में सरसों खड़ी थी। उस पर पीले रंग के फूल खिले हुए थे। उसे देखकर ऐसा लगता है कि मानों उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं और वह विवाह के मण्डप में पधार रही है। फागुन का महीना है। चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छाया हुआ है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्वयंवर रचा हो। यहाँ नगरों से दूर ग्रामीण अंचल में प्रिय की भूमि उपजाऊ अधिक है। वहाँ साथ ही एक छोटा-सा तालाब है। उसके किनारे पर कई पत्थर पड़े हुए हैं।

एक बगुला भी एक टाँग उठाए जल में खड़ा है, जो मछली के सामने आते ही अपनी चोंच में पकड़कर उसे खा जाता है। इसी प्रकार वहाँ काले माथे वाली और सफेद पंखों वाली चतुर चिड़िया भी उड़ रही है। वह जल में मछली देखकर उस पर झपट पड़ती है और उसे मुख में पकड़कर दूर आकाश में उड़ जाती है। वहाँ से कुछ दूरी पर रेल की पटरी बिछी हुई है। ट्रेन आने का अभी कोई समय नहीं है। वहाँ चित्रकूट की कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ भी दिखाई देती हैं। साथ ही बंजर भूमि पर दूर तक फैले हुए काँटेदार रीवा के पेड़ भी दिखाई दे रहे हैं। उस सुनसान वातावरण में सुग्गे का स्वर मीठा-मीठा रस टपकाता हुआ लगता है। वह उस एकांत का हृदय चीरता हुआ-सा प्रतीत होता है। सारस के जोड़े की टिरटों-टिरटों की ध्वनि भी अच्छी लगती है। कवि का हृदय भी उस सारस जोड़ी के साथ खेतों में उड़ने को लालायित हो उठता है ताकि वह चुपके से उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत शब्दचित्र में प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं-

(1) वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी से कोई वस्तु माँगना उनको स्वीकार नहीं था।
(2) वे यथार्थ का सामना निडरतापूर्वक करते थे।
(3) समझौतावादी विचारधारा को अपनाकर उन्होंने कभी भी जीवन का कोई सुख प्राप्त नहीं किया।
(4) दिखावे की दुनिया से वे कोसों दूर थे। अपनी कमजोरियों को छुपाकर समाज के सामने अच्छा दिखना उन्हें कभी पसंद नहीं था।
(5) संघर्ष को वे जीवन का अभिन्न एवं अनिवार्य अंग मानते थे।

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (N) का निशान लगाइए
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौंसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो।
उत्तर-
(क) ।, (ख)।

प्रेमचंद के फटे जूते HBSE 9th Class प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
उत्तर-
(क) लेखक के अनुसार आज के समाज में आदर और सम्मान की प्रतीक टोपी का मूल्य कुछ भी नहीं है अर्थात समाज में सम्माननीय लोगों का आदर घट रहा है। बुरे-से-बुरा या नीच व्यक्ति, जो जूते तुल्य है, यदि शक्ति प्राप्त कर ले तो समाज के लोग उसका आदर करने लगते हैं। यहाँ तक कि टोपी अर्थात ऊपर रहने वाले लोग भी उसका सम्मान करते हैं।
(ख) प्रस्तुत कथन में जहाँ प्रेमचंद के व्यक्तित्व के खुलेपन को उद्घाटित किया गया है वहाँ आडंबर व दिखावे में विश्वास रखने वाले लोगों पर भी करारा व्यंग्य कसा है। वे लोग अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालते रहते हैं और समाज की दृष्टि में अच्छे बने रहते हैं।
(ग) प्रेमचंद के फटे हुए जूते में से बाहर निकली हुई पैर की अंगुली की ओर देखकर लेखक ने कहा है कि वह अँगुली लेखक और समाज पर व्यंग्य कर रही है और संकेत द्वारा उनके प्रति अपनी घृणा को प्रकट कर रही है। इस घृणा का कारण संभवतः यह था कि समाज के लोग परिस्थितियों से जूझने के बदले उनसे समझौता करते रहे, जबकि प्रेमचंद ने राह में आने वाली बाधा रूपी चट्टानों से निरंतर संघर्ष किया, उन्हें लगातार ठोकर मारी और इसी प्रयास में उनके जूते भी फट गए; किंतु कभी भी झूठी मान्यताओं और आडंबरों के प्रभाव में आकर समझौता नहीं किया।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर-
प्रेमचंद के विषय में लेखक के विचार बदलने का प्रमुख कारण यह था कि पहले तो यह देखकर लेखक को खीझ आती है कि यदि प्रेमचंद को फोटो ही खिंचवाना था तो वे किसी से पोशाक माँगकर काम चला सकते थे और यदि यह इनकी फोटो खिंचवाने की पोशाक है तो पहनने की कैसे होगी, किंतु फिर अगले ही क्षण प्रेमचंद के स्वाभिमान, उनकी यथार्थ भावना का ध्यान कर लेखक सोचता है कि आडंबर रहित जीवन जीने वाले प्रेमचंद के लिए अलग-अलग पोशाकों को रखना संभव नहीं है। इसी कारण वे प्रेमचंद की महानता के प्रति अभिभूत-से हो उठे और उनके प्रति अपने मन में आई खीझ को एकाएक त्याग दिया।

प्रेमचंद के फटे जूते Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर-
पाठ पढ़कर लेखक की यह बात सबसे अधिक आकृष्ट करती है कि वे अत्यंत सरल भाषा में सहजता से समाज में पनपती बुराइयों को निशाना बनाकर एक तीव्र व्यंग्य बाण छोड़ देते हैं जो पाठक को प्रभावित ही नहीं करता, अपितु उस समस्या की ओर भी उसका ध्यान तरह आकृष्ट कर देता है। इसके साथ-साथ लेखक को विस्तारण (विस्तार) की शैली अत्यंत पसंद है। वे फटे जूते का प्रसंग आरंभ करके प्रेमचंद जी के संपूर्ण जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कर जाते हैं, जैसे बीज से लेकर फल-फूलों तक पहुँचना होता है। बात में से बात निकालने की कला में भी वे निपुण हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर-
वस्तुतः ‘टीला’ शब्द मार्ग में आने वाली बाधा का प्रतीक है। जैसे बहती हुई नदी में खड़ा कोई टीला सारे बहाव का रुख ही बदल देता है; उसी प्रकार अनेकानेक कुरीतियाँ, बुराइयाँ और भ्रष्ट आचरण भी जीवन की सहज गति में रुकावटें उत्पन्न कर देते हैं। प्रस्तुत पाठ में ‘टीला’ शब्द समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, छुआछूत, जाति-पाँति, पूँजीवादी व्यवस्था आदि के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रेमचंद के फटे जूते Summary HBSE 9th Class प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपनी अध्यापिका/अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

Class 9 Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर-
पहले लोग वेशभूषा के विषय में अधिक सतर्क नहीं थे। जीवन में सादगी को महत्त्व दिया जाता था। वेशभूषा को तो बाहरी आवरण समझा जाता था, वास्तविक चीज तो शुद्धाचरण माना जाता था। किंतु बदलते समय के अनुसार आज वेशभूषा व्यक्ति के आकर्षण का केंद्र बन गई है। यही कारण है कि वे अपने आचरण की ओर ध्यान न देकर अच्छी-से-अच्छी व महँगी पोशाक पहनना चाहते हैं। आज वेशभूषा ही मानव के व्यक्तित्व का प्रतीक बन गई है।

भाषा-अध्ययन

Class 9 Hindi Chapter 6 Solutions HBSE प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर–
पाठ में आए मुहावरे निम्नलिखित हैं-
1. हौंसले पस्त करना-जोश ठंडा करना।
तेज गेंदबाज मुकेश के सामने आते ही विपक्षी टीम के हौसले पस्त हो जाते हैं।

2. दृष्टि अटकना-आकृष्ट होना।
प्रेमचंद का चित्र देखते ही लेखक की दृष्टि अटक गई।

3. जूते घिसना-चक्कर काटना।
नौकरी पाने के लिए तो जूते घिसाने पड़ते हैं।

4. ठोकर मारना-चोट मारना।
प्रेमचंद राह में आने वाले संकटों पर आजीवन ठोकर मारते रहे।

5. टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना।
जीवन में आने वाले टीलों से घबराना नहीं चाहिए।

Class 9 Hindi Chapter 6 HBSE प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर-
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने इन विशेषणों का उपयोग किया है-
(1) साहित्यिक पुरखे,
(2) महान कथाकार,
(3) उपन्यास-सम्राट,
(4) युग-प्रवर्तक।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठेतर सक्रियता

  • महात्मा गांधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे, पता लगाइए।
  • महादेवी वर्मा ने ‘राजेंद्र बाबू’ नामक संस्मरण में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद का कुछ इसी प्रकार चित्रण किया है, उसे पढ़िए।
  • अमृतराय लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘प्रेमचंद-कलम का सिपाही’ पुस्तक पढ़िए।

उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

यह भी जानें

कुंभनदास-ये भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे तथा आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवियों में से एक थे। एक बार बादशाह अकबर के आमंत्रण पर उनसे मिलने वे फतेहपुर सीकरी गए थे। इसी संदर्भ में कही गई पंक्तियों का उल्लेख लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

Kshitij Chapter 6 HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की सादगी और सरलता का वर्णन किया है। यही इस पाठ का मूल उद्देश्य भी है। इसके साथ-साथ समाज में फैली दिखावे की प्रवृत्ति पर प्रकाश डालना भी प्रस्तुत पाठ का लक्ष्य है। लेखक ने प्रेमचंद की उस फोटो का वर्णन किया जिसमें उनका एक जूता आगे से फटा हुआ है और उनका पाँव का अँगूठा उसमें से बाहर झाँक रहा था। उस चित्र में वे अपने जीवन के दर्द से बाहर आकर मुस्कुराना चाहते थे किन्तु ऐसा नहीं कर सके। लेखक ने समाज के विषय में बताया है कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए जूते, कपड़े तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं, किन्तु प्रेमचंद ने अपने स्वाभिमान के कारण कभी किसी से कुछ नहीं माँगा। वे संसार के सुखों को ठुकराकर अपनी साहित्य-साधना में लीन रहे। उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु कभी समझौता नहीं किया। उनका वह फटा हुआ जूता बता रहा है लोग अपने फटे जूतों को ढकने के लिए खुशामद करने में जूते के तलवे घिसा देते हैं। कहने का भाव यह है कि इस पाठ का उद्देश्य प्रेमचंद के व्यक्तित्व की इन्हीं महान् विशेषताओं का उल्लेख करना और समाज के खुशामदीपन पर व्यंग्य करना है।

Hindi Class 9 Chapter 6 Kshitij HBSE प्रश्न ,2.
पठित निबंध के आधार पर प्रेमचंद की वेश-भूषा एवं रहन-सहन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रेमचंद धोती-कुरता पहनते थे और सिर पर साधारण-सी टोपी धारण करते थे। उनका जीवन किसानों की भाँति ही अत्यंत साधारण था। उनका रहन-सहन भी आडंबरहीन और सादगीयुक्त था। उनके रहन-सहन व वेश-भूषा को देखकर उनके सरल एवं सहज व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

Class 9th Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 3.
‘प्रेमचंद आडंबरहीन जीवन में विश्वास रखते थे।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही प्रेमचंद आडंबरहीन व दिखावे-विहीन जीवन में विश्वास रखते थे। उनके पास जो भी, जैसी भी पोशाक होती थी, उसे वे बिना किसी दिखावे के पहनते थे। उन्होंने अपनी गरीबी को भी कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि उन्होंने फोटो खिंचवाते समय भी दूसरे लोगों की भाँति बनावटी वेश-भूषा धारण नहीं की।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 4.
लोग फोटो खिंचवाते समय क्या-क्या करते हैं ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
लोग फोटो खिंचवाते समय सुंदर-सुंदर पोशाक पहनते हैं, ताकि वे फोटो में सुंदर लगें। यदि अपने पास सुंदर पोशाक नहीं है तो दूसरे से उधार लेकर पोशाक व जूते पहनते हैं। कुछ लोग सुगंधित तेल तक लगा लेते हैं ताकि फोटो खुशबूदार बने।

प्रश्न 5.
‘सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक के इस कथन से अभिप्राय है कि जिस प्रकार प्रत्येक नदी शक्तिशाली नहीं होती कि वह मार्ग में आने वाले पहाड़ को तोड़कर अपना मार्ग बना ले। ऐसे ही प्रेमचंद की भाँति सारे लोग ऐसे नहीं होते कि जो बाधाओं से संघर्ष करके उन्हें अपने जीवन से हटा दें। प्रेमचंद ने अपने जीवन में आने वाली बाधाओं से समझौता करके जीवनयापन नहीं किया, अपितु उनका विरोध करके उन्हें अपने जीवन से हटा दिया था।

प्रश्न 6.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद ने अपने जीवन में समाज में फैली बुराइयों पर खूब ठोकरें मारी हैं। उन्होंने जीवन में आने वाली बाधाओं से बचकर निकलने का भी कभी प्रयास नहीं किया। इसी कारण उनके जूते फट गए। उन्हें जीवन में धन-वैभव नहीं मिला । वे श्रमिकों के हिमायती बने रहे। इसलिए पूँजीपतियों ने उनका समर्थन नहीं किया। यदि वे पूँजीपतियों के हक की बात लिखते तो उन्हें धन-वैभव मिलता, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें आजीवन अभावों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 7.
चक्कर काटने से क्या होता है ? यह कुंभनदास कौन था?
उत्तर-
चक्कर काटने से जूता फटता नहीं, अपितु घिस जाता है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में ही घिस गया था। उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ था। उसने कहा था–
“आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम।”
कुंभनदास कृष्ण भक्त कवि था। वह अष्टछाप कवियों में से एक प्रमुख कवि था। वह बादशाह अकबर के बुलावे पर फतेहपुर सीकरी गया था। यहाँ उसने अपने अनुभव का वर्णन किया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) हरिशंकर परसाई
(C) महादेवी वर्मा
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) हरिशंकर परसाई

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद किसके साथ फोटो खिंचवा रहे थे?
(A) बेटे के साथ
(B) किसी मित्र के साथ
(C) पत्नी के साथ
(D) अपनी माता के साथ
उत्तर-
(C) पत्नी के साथ

प्रश्न 3.
प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाते समय सिर पर क्या पहना हुआ था?
(A) पगड़ी
(B) मुकुट
(C) सेहरा
(D) टोपी
उत्तर-
(D) टोपी

प्रश्न 4.
प्रेमचंद का चेहरा भरा-भरा किस कारण से लग रहा था?
(A) घनी मूंछों से
(B) बढ़ी हुई दाढ़ी से
(C) चेहरे की गोलाई से
(D) चेहरे के भारीपन से
उत्तर-
(A) घनी मूंछों से

प्रश्न 5.
प्रेमचंद ने चित्र में कैसे जूते पहने हुए थे?
(A) चमड़े के
(B) रबड़ के
(C) केनवस के
(D) जूट के
उत्तर-
(C) केनवस के

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प्रश्न 6.
प्रेमचंद का फोटो देखकर लेखक की दृष्टि कहाँ पर अटक गई थी?
(A) टोपी पर
(B) कुर्ते पर
(C) बालों पर
(D) फटे हुए जूते पर
उत्तर-
(D) फटे हुए जूते पर।

प्रश्न 7.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद में कौन-सा गुण नहीं रहा होगा?
(A) पोशाक बदलने का
(B) दिखावा करने का
(C) फोटो खिंचवाने का
(D) सजने संवरने का
उत्तर-
(A) पोशाक बदलने का

प्रश्न 8.
लेखक को प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान में क्या अनुभव हुआ था?
(A) व्यंग्य
(B) दया
(C) सहानुभूति
(D) शांति का भाव
उत्तर-
(A) व्यंग्य

प्रश्न 9.
“दर्द के गहरे कुएँ के तल में पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने बैंकय कहा होगा” लेखक ने इस कथन से प्रेमचंद के जीवन की किस विशेषता को उजागर किया है?
(A) लापरवाही
(B) निराशा
(C) उदारता
(D) प्रसन्नचित्त
उत्तर-
(B) निराशा

प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने फोटो किसके आग्रह पर खिंचवाई होगी? ।
(A) लेखक के
(B) बेटे के
(C) मित्र के
उत्तर-
(D) पत्नी के

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद के जीवन संबंधी कौन-सी ‘ट्रेजडी’ है?
(A) उसे फोटो खिंचवाने का चाव नहीं
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था
(C) उसे फोटो खिंचवाना नहीं आता था
(D) उन्हें फोटो के प्रति लगाव नहीं था
उत्तर-
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था

प्रश्न 12.
फोटो खिंचवाने के लिए वस्तुएँ मांगने के प्रसंग के माध्यम से लेखक ने समाज की किस विशेषता पर व्यंग्य किया है?
(A) दिखावे की
(B) यथार्थवादी होने की
(C) ईमानदारी की
(D) उदारता की
उत्तर-
(A) दिखावे की

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार किसका किससे अधिक मूल्य रहा है?
(A) आदमी का फोटो से
(B) जूते का टोपी से
(C) पुरुष का स्त्री से
(D) इंसानियत का इंसान से
उत्तर-
(B) जूते का टोपी से

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प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार टोपी किसका प्रतीक है?
(A) लालची व्यक्ति का
(B) उदार व्यक्ति का
(C) सम्माननीय व्यक्ति का
(D) धनी व्यक्ति का
उत्तर-
(C) सम्माननीय व्यक्ति का

(D) पत्नी के

प्रश्न 15.
जूता किसका प्रतीक है?
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का
(B) लालची व्यक्ति का
(C) अत्याचारी का
(D) कठोर हृदय व्यक्ति का
उत्तर-
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का

प्रश्न 16.
लेखक को प्रेमचंद की मुस्कान के पीछे क्या छुपा हुआ अनुभव हुआ था?
(A) उनका लालचीपन
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा
(C) दिखावे की छलना
(D) उदारता का भाव
उत्तर-
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा

प्रश्न 17.
किस कहानी में नीलगाय हल्कू किसान का खेत चर गई थी?
(A) दो बैलों की कथा
(B) पंच परमेश्वर
(C) कफन
(D) पूस की रात
उत्तर-
(D) पूस की रात

प्रश्न 18.
होरी प्रेमचंद के किस उपन्यास का पात्र है?
(A) निर्मला
(B) गोदान
(C) कर्मभूमि
(D) रंगभूमि
उत्तर-
(B) गोदान

प्रश्न 19.
‘जूता घिसना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) जूता फटना
(B) जूता टूटना
(C) बहुत प्रयत्न करना
(D) व्यर्थ में चक्कर काटना
उत्तर-
(C) बहुत प्रयत्न करना

प्रश्न 20.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद की क्या कमजोरी थी?
(A) वे नेम धर्म में विश्वास नहीं रखते थे
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे
(C) वे नेम धर्म को जीवन के लिए अनावश्यक मानते थे
(D) वे दोस्तों के साथ रहते थे
उत्तर-
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे

प्रश्न 21.
‘जंजीर’ का क्या तात्पर्य है?
(A) जंजीर की तरह पक्का
(B) जंजीर की तरह लंबा
(C) बंधन
(D) मुक्ति
उत्तर-
(C) बंधन

प्रश्न 22.
प्रेमचंद के जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना
(B) जीवन में तेज-तेज चलना
(C) जूते के लिए पैसे न होना
(D) जूते गंठवाने के लिए समय का अभाव
उत्तर-
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना

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प्रश्न 23.
‘पन्हैया’ से क्या अभिप्राय है?
(A) वस्त्र
(B) पहनने योग्य
(C) जूतियाँ
(D) आभूषण
उत्तर-
(C) जूतियाँ

प्रेमचंद के फटे जूते प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। [पृष्ठ 61]

शब्दार्थ चित्र = फोटो। कनपटी = कान के साथ वाला भाग। केनवस = मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। लापरवाही = उपेक्षापूर्ण। परेशानी = दुःख।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इसमें उन्होंने लेखकों की दुर्दशा और दिखावा करने वाले लोगों पर एक साथ व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद की वेशभूषा एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने कहा है कि प्रेमचंद का एक चित्र उनके सामने है। उस चित्र में वे पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर मोटे कपड़े की टोपी पहन रखी है। कुरता और धोती पहनी हुई है। कानों के साथ का भाग चिपटा हुआ है। गालों की हड्डियाँ कुछ उभरी हुई हैं। किंतु उनकी मूंछे घनी हैं, जिससे उनका चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगता है।

प्रेमचंद जी ने पाँवों में केनवस के जूते पहन रखे हैं, जिनके बंद (फीते) गलत ढंग से बाँधे हुए हैं। उनकी लापरवाही के कारण बंदों के सिरे पर लोहे की पतरी निकल गई है। इसलिए उन्हें बंदों को जूतों के सुराखों में डालने में कठिनाई होती है। इसलिए वे बंदों को जैसे-तैसे कस ही लेते हैं। उनके दाहिने पाँव का जूता ठीक है, किंतु बाएँ पाँव का जूता फटा हुआ है। उसमें आगे की ओर एक बहुत बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि इतने बड़े साहित्यकार का व्यक्तित्व उनकी दयनीय दशा को दर्शा रहा है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के फटे जूतों की ओर संकेत करके उनके आर्थिक अभावों को व्यक्त किया है।
  2. भाषा सहज, सरल एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के सामने किसकी फोटो है ?
(2) फोटो के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा पर प्रकाश डालिए।
(3) प्रेमचंद के जूतों का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रेमचंद को बंद बाँधने में परेशानी क्यों होती है ?
उत्तर-
(1) लेखक के सामने प्रेमचंद की फोटो है।
(2) फोटो के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रेमचंद ने मोटे कपड़े की बनी टोपी, धोती तथा कुरता पहना हुआ है। उनके गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी मूंछे घनी हैं। उनके जूते फटे हुए हैं।
(3) प्रेमचंद ने पैरों में केनवस के जूते पहने हुए हैं। उनके फीते ठीक ढंग से नहीं बँधे हुए। फीतों के सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है।
(4) प्रेमचंद जूतों के फीतों को बाँधने में लापरवाही करते हैं। इसलिए उनके सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है। अब फीतों को छेदों में डालने में परेशानी होती है। इसलिए प्रेमचंद के जूतों के फीते ठीक से नहीं बँध पाते।

2. फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-आग्रह = जोर देकर कहा गया कथन। ट्रेजडी = हादसा (दुःख की बात)। क्लेश = दुःख। महसूस = अनुभव। दर्द = पीड़ा। व्यंग्य = ताना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के सहज स्वभाव का उल्लेख किया है। .

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने जब प्रेमचंद की फोटो को ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि उनका जूता फटा हुआ था और उसमें से उसकी एक अँगुली बाहर निकली हुई थी। जो बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। इस पर लेखक को थोड़ा-सा क्रोध . आया और उसने कहा फोटो ही खिंचवाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचवाते। फोटो न खिंचवाने से क्या बिगड़ जाता। लेखक के कहने का भाव यह है कि बुरी फोटो खिंचवाने से न खिंचवाना ही ठीक रहता। किंतु लेखक पुनः सोचता है कि शायद फोटो खिंचवाने का आग्रह पत्नी का रहा हो और प्रेमचंद जी पत्नी की बात भला कैसे टाल सकते थे। इसलिए यह कहते हुए ‘अच्छा चल भई’ कहकर फोटो खिंचवाने बैठ गए होंगे। किंतु यह कितने दुःख की बात है कि आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी कोई अच्छा जूता न हो। शायद प्रेमचंद के पास भी दूसरा जूता न हो। इसीलिए वे फटा हुआ जूता पहनकर फोटो खिंचवाने बैठ गए हों। लेखक प्रेमचंद की विवशता पर विचार व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते तुम्हारे दुःख को अपने में अनुभव करके रो देना चाहता हूँ अर्थात लेखक को प्रेमचंद की फटा हुआ जूता पहनने की मजबूरी के प्रति पूर्ण सहानुभूति है, किंतु प्रेमचंद की आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य उसे एकदम रोने से रोक देता है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी की ओर संकेत किया है।
  2. फोटो खिंचवाते समय प्रेमचंद के पास पहनने के लिए कोई अच्छा जूता न होने से उनके जीवन के अभावों को व्यक्त किया गया है।
  3. लेखक की साहित्यकार के अभाव भरे जीवन के प्रति पूर्ण सहानुभूति व्यक्त हुई है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक ने प्रेमचंद को क्या सलाह दी है?
(2) लेखक को फोटो खिंचाने का क्या कारण प्रतीत हो रहा है?
(3) प्रस्तुत गद्यांश में किसकी ट्रेजडी की बात कही गई है?
(4) लेखक का रोना एकाएक कैसे रुक जाता है?
उत्तर-
(1) लेखक ने प्रेमचंद को सलाह दी है कि या तो वे फोटो खिंचवाते ही नहीं। यदि फोटो खिंचवाना ही था तो जूते तो ठीक ढंग के पहन लेते।
(2) लेखक को लगता है कि प्रेमचंद की फोटो खिंचवाने की इच्छा नहीं थी। संभवतः उनकी पत्नी ने फोटो खिंचवाने के लिए आग्रह किया हो और वे ‘न’ नहीं कह सके हों। इस प्रकार फोटो खिंचवाना प्रेमचंद की मजबूरी प्रतीत होती है।
(3) प्रस्तुत गद्यांश में प्रेमचंद के जीवन की ट्रेजडी की बात कही गई है कि इतने बड़े साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए ठीक ढंग के जूते भी नहीं थे। यह निश्चय ही एक ट्रेजडी थी।
(4) लेखक प्रेमचंद के मन के दुःख को अपने हृदय में अनुभव करके रो देना चाहता था, किंतु प्रेमचंद की आँखों में दिखाई देने वाला तीखा दर्द उसे रोने से एकदम रोक देता है।

3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है![पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-वर = दूल्हा। इत्र चुपड़ना = खुशबूदार तेल लगाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से लिया गया है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी व गरीबी का वर्णन किया है। साथ ही दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लोगों की माँगकर पहनी हुई वस्तुओं से अच्छा दिखने की प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने फोटो में प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर कहा है कि तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते, क्योंकि लोग फोटो देखकर ही व्यक्ति के महत्त्व का आकलन करते हैं। यदि तुम फोटो के महत्त्व को समझते तो फोटो खिंचवाने के लिए किसी से अच्छे से जूते माँग लेते। लेखक ने दूसरों से वस्तुएँ माँगकर फोटो खिंचवाने वालों पर कटाक्ष करते हुए पुनः कहा है कि लोग तो माँगा हुआ कोट पहनकर दूल्हा बन जाते हैं। लोग तो माँगी हुई कार से बारात भी निकालते हैं जिससे लोगों की नजरों में उनकी शान-शौकत बढ़े। यहाँ तक कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों की बीवी भी माँग लेते हैं अर्थात दूसरों की बीवी के साथ फोटो खिंचा लेते हैं। दूसरी ओर तुम हो कि तुमसे जूते भी माँगते न बना। निश्चय ही तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते। लोग तो खुशबूदार तेल लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से भी खुशबू आए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है अर्थात गंदे-से-गंदे आदमी भी बन-सँवरकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि वे फोटो में सुंदर लगें।

विशेष-

  1. प्रेमचंद की सादगी पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि वे गरीब भले ही थे, किंतु दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे।
  2. लेखक ने दिखावे की प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, किंतु व्यंग्यात्मक है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

(1) कौन फोटो का महत्त्व नहीं समझता? लेखक ने ऐसा क्यों कहा? ।
(2) लोग फोटो के लिए क्या-क्या माँग लेते हैं ?
(3) “गदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है” वाक्य में छुपे व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
(4) यदि प्रेमचंद फोटो के महत्त्व को समझते तो क्या कर लेते ?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद फोटो का महत्त्व नहीं समझते थे। वे फोटो खिंचवाना सामान्य-सी बात समझते थे। तभी तो वे फटे हुए जूते पहनकर ही फोटो खिंचवाने बैठ गए।
(2) लोग फोटो में सुंदर दिखने के लिए अपने आपको सुंदर बनाकर कैमरे के सामने प्रस्तुत करते हैं। वे उधार के जूते, वस्त्र यहाँ तक कि उधार की बीवी भी माँग लेते हैं। कई लोग फोटो खिंचवाने के लिए सुगंधित तेल तक लगाते हैं।
(3) इस कथन में यह व्यंग्य निहित है कि बुरे लोग अपनी छवि सुंदर बनाकर पेश करते हैं। वे हर प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करके अपनी छवि सुधारने का प्रयास करते हैं। गंदे आदमी अपने गंदे कामों को छिपाकर हर प्रकार से अच्छे दिखने का प्रयास किया करते हैं।
(4) यदि प्रेमचंद जी फोटो का महत्त्व समझते तो किसी के जूते माँग लेते जिससे उनकी फोटो सुंदर दिखाई देती।

4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। वह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-जमाने = समय। कीमती = महँगा। न्योछावर = कुर्बान। आनुपातिक = अनुपात। विडंबना = दुर्भाग्य। तीव्रता = तेज़ी। युग-प्रवर्तक = युग बदलने वाले।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में इतने बड़े साहित्यकार कहलवाने वाले प्रेमचंद की आर्थिक दुर्दशा पर व्यंग्य किया गया है। इतने बड़े साहित्यकार होने पर उनका सम्मान सबसे अधिक होना चाहिए था और उनके पास पर्याप्त सुख-सुविधाएँ भी होनी चाहिए थीं जो कभी नहीं हुईं। उन्हें आजीवन गरीबी में ही जीना व मरना पड़ा।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने टोपी व जूते की कीमत को लेकर समाज में उनके प्रति दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा है कि टोपी आठ आने की मिल जाती है और जूते उस समय में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि टोपी उस समय जूतों से बहुत सस्ती थी। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है और अब तो जूते की कीमत और भी बढ़ गई है। एक जूते के बदले पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं अर्थात एक जूते की कीमत में पच्चीस टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। जबकि जूतों की अपेक्षा टोपी का स्थान अधिक सम्माननीय है। इसलिए टोपी की कीमत अधिक होनी चाहिए थी। लेखक ने प्रेमचंद जी को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम जूते और टोपी के मूल्य के अनुपात अधिक होने के कारण जूता नहीं खरीद सके, टोपी खरीद ली और जूता फटा हुआ ही पहन लिया क्योंकि जूता अधिक महँगा था और तुम्हारे पास जूता खरीदने के लिए धन नहीं था। प्रेमचंद का प्रसंग सामने आने से पूर्व लेखक को इस विडंबना की तीव्रता कभी अनुभव नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है, वह भी उस समय जब प्रेमचंद का फटा हुआ जूता देख रहा था। कहने का भाव है कि जो वस्तु अधिक सम्मानजनक है, वह सस्ती है और जो वस्तु सम्मानजनक नहीं है, वह महँगी है। वास्तव में यह एक विडंबना ही है। इसके अतिरिक्त प्रेमचंद कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट और युग को बदलने वाले थे और भी न जाने क्या-क्या कहलाते थे। किंतु फोटो में जूता फटा हुआ है अर्थात इतना बड़ा साहित्यकार होने पर भी उनकी आर्थिक दशा इतनी कमज़ोर है कि वे एक अच्छा जूता भी नहीं खरीद सकते।

विशेष-

  1. लेखक ने टोपी और जूते की कीमत के अंतर पर प्रकाश डाला है।
  2. लेखक ने समाज के उस दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वह टोपी जैसे सम्माननीय लोगों का सम्मान नहीं करते और जो जूते की भाँति अधिक सम्माननीय नहीं हैं उन्हें अधिक सम्मान दिया जाता है। उनके सामने कितनी टोपियाँ झुकती हैं।
  3. प्रेमचंद की आर्थिक दशा पर प्रकाश डाला गया है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  5. व्यंग्यात्मक शैली है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

5. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे। [पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर । ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अंगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

6. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे।
[पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर। ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अँगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक का अपना जूता कैसा है?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(3) लेखक अपने बारे में क्या बताता है?
(4) परदे के प्रसंग पर लेखक तथा प्रेमचंद में क्या अंतर है?
उत्तर-
(1) लेखक का अपना जूता भी अच्छी स्थिति में नहीं था। यद्यपि वह ऊपर से अच्छा दिखाई देता था, परंतु उसका तला (नीचे का भाग) टूट चुका था जिससे उसका अँगूठा रगड़ खाता था, किंतु अँगुली बाहर दिखाई नहीं देती थी।

(2) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जैसे उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिनकी आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं होती, किंतु वे उन पर परदा डालकर अच्छी आर्थिक स्थिति वाले दिखाई देना चाहते हैं। ऐसे लोग अपनी दयनीय स्थिति को प्रकट नहीं होने देना चाहते किंतु दूसरी ओर प्रेमचंद जैसे लोग भी हैं जो अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति पर परदा नहीं डालते। दिखावा करने वाले लोग कभी मौज-मस्ती में नहीं जी सकते। वे सदा चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए विवश रहते हैं।

(3) लेखक ने अपने बारे में बताया है कि वह परदे में विश्वास रखता है। वह फटा जूता नहीं पहन सकता और इस स्थिति में फोटो तो कतई नहीं खिंचवा सकता। प्रेमचंद के जीवन की दयनीय स्थिति के विषय में बेपरवाही से वह सहमत नहीं है।

(4) परदे के प्रश्न को लेकर लेखक और प्रेमचंद दोनों के विचार विपरीत हैं। लेखक परदे को अनिवार्य मानता है, जबकि प्रेमचंद परदे के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं। उनका जीवन तो खुली पुस्तक की भाँति रहा है, जबकि लेखक जीवन की कमियों को छुपाकर जीने में विश्वास रखते हैं। प्रेमचंद अपनी छवि को बनाने के फेर में नहीं पड़े।

6. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी? ‘नेम-थरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी!
तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
[पृष्ठ 64]

शब्दार्थ-कमजोरी = कमी। नेम-धरम = कर्त्तव्य पालन करना । जंजीर = बंधन। घृणित = घृणा करने योग्य। इशारा = संकेत।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित, श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित सुप्रसिद्ध निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से अवतरित है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद जी के सादगी युक्त एवं अंदर-बाहर से एक दिखाई देने वाले जीवन का उल्लेख किया है। साथ ही जीवन में दिखावा करने वाले लोगों के जीवन पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की कर्त्तव्यनिष्ठता की ओर संकेत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद जीवन भर परिस्थितियों से समझौता नहीं कर सके। यह उनके जीवन में बहुत बड़ी कमी थी, क्योंकि समझौता करने वाले लोग सुखी जीवन व्यतीत करते हैं और जो समझौता नहीं कर सकते, उन्हें जीवन में कष्ट उठाने पड़ते हैं इसलिए लेखक ने समझौता न कर सकने को जीवन की कमजोरी बताया है। यही कमजोरी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी रही है। वह समझौता नहीं कर सका तथा ‘नेम-धरम’ की पालना उसके जीवन की कमजोरी बनी रही। ‘नेम-धरम’ उसके लिए बहुत बड़ा बंधन सिद्ध हुआ, किंतु फोटो में प्रेमचंद जिस अंदाज से मुस्करा रहे थे, उससे लगता है कि उनके लिए, शायद यह ‘नेम-धरम’, बंधन नहीं अपितु मुक्ति थी। … लेखक ने फोटो में उनके फटे जूते से बाहर निकली हुई अँगुली को देखकर कहा है कि तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती हुई-सी लगती है कि जिस वस्तु या विचार से तुम घृणा करते हो उसकी तरफ तुम हाथ से नहीं पाँव की इस अंगुली से संकेत करते हो।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की नैतिकता की ओर संकेत किया है। उन्हें नैतिकता का पालन करने में अपनी विवशता का नहीं, अपितु आनंद का अनुभव होता था।
  2. लेखक ने उनके फटे जूते में से दिखाई देने वाली अँगुली को लेकर घृणित वस्तु के लिए संकेत करती हुई-सी की सुंदर कल्पना की है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) प्रेमचंद की कमजोरी क्या थी?
(2) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(3) ‘नेम-धरम’ प्रेमचंद के लिए बंधन न होकर मुक्ति थी-कैसे?
(4) जंजीर होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद की यह कमजोरी थी कि वे गलत बातों से कभी भी समझौता नहीं करते थे। वे अपने ‘नेम-धरम’ के पक्के थे।

(2) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव प्रेमचंद के सादगी युक्त जीवन पर प्रकाश डालना है। प्रेमचंद ने जीवन में गलत बातों के लिए या जीवन में सुख पाने के लिए कभी भी समझौता नहीं किया था। उनके जीवन की यही सबसे बड़ी कमजोरी भी थी। उनके उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी यही कमजोरी थी। वह भी ‘नेम-धरम’ को आजीवन नहीं छोड़ सका। वह नैतिकता शायद होरी के लिए बंधन थी। उसे वह मानसिक रूप से अपना चुका था। किंतु प्रेमचंद फोटो में जिस प्रकार मुस्करा रहे थे उससे लगता है कि उनके लिए ‘नेम-धरम’ बंधन नहीं, अपितु मुक्ति का कारण था क्योंकि वे ‘नेम-धरम’ का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे। यह उनकी मजबूरी नहीं थी। उन्होंने इसका पालन करके आनंद का अनुभव किया था, न कि उसे बोझ या बंधन समझा था।

(3) वे ‘नेम-धरम’ का पालन किसी दबाव में आकर नहीं अपितु अपनी इच्छा से अपने आनंद या सुख-चैन के लिए करते थे। ‘नेम-धरम’ या नैतिकता का पालन करने में उन्हें मुक्ति का सुख अनुभव होता है। इसलिए ‘नेम-धरम’ उनके लिए बंधन नहीं मुक्ति थी।

(4) जंजीर होने का अभिप्राय है-बंधन या बाधा होना। वस्तुतः होरी ‘नेम-धरम’ का पालन इसलिए करता है ताकि कोई उसको अनैतिक न कहे। इसलिए ‘नेम-धरम’ उसके लिए जंजीर के समान था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

प्रेमचंद के फटे जूते लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। उन्होंने बाद में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण की। आरंभ में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने अध्यापन-कार्य किया, किंतु सन् 1947 में अध्यापन कार्य को त्यागकर लेखन कार्य को ही जीवन-यापन का साधन बना लिया। उन्हीं दिनों श्री परसाई जी ने वसुधा नामक पत्रिका का संपादन आरंभ किया था, किंतु घाटे के कारण उसे बंद करना पड़ा। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। इनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ पर साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। आजीवन साहित्य रचना करते हुए श्री परसाई सन 1995 में इस नश्वर संसार को त्यागकर स्वर्गलोक में जा पहुंचे।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री हरिशंकर परसाई जी ने बीस से अधिक रचनाएँ लिखीं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
(i) कहानी-संग्रह ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’।
(ii) उपन्यास-‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ ।
(iii) निबंध-संग्रह–’तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘बेईमानी की परत’ आदि।।
(iv) व्यंग्य-संग्रह ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य केवल व्यंग्य के लिए नहीं होते, अपितु व्यंग्य के माध्यम से वे समाज में फैली हुई बुराइयों, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर करारी चोट करते हैं। इसी प्रकार वे अपनी व्यंग्य रचनाओं में केवल मनोरंजन ही नहीं करते, अपितु सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गंभीर चिंतन भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका व्यंग्य साहित्य हिंदी में बेजोड़ है। उनका शिष्ट एवं सधा हुआ व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने के कारण पाठकों के लिए ग्राह्य होता है। परसाई जी ने उच्च स्तर के व्यंग्य लिखकर व्यंग्य को हिंदी में एक प्रमुख विधा के रूप में स्थापित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाओं की अन्य प्रमुख विशेषता है कि वे पाठक के मन में कटुता या कड़वाहट उत्पन्न न करके समाज की समस्याओं पर चिंतन-मनन करने व उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं।

4. भाषा-शैली निश्चय ही श्री परसाई जी ने व्यंग्य विधा के अनुकूल सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। वे व्यंग्य-भाषा के प्रयोग में अत्यंत कुशल हैं। वे शब्द-प्रयोग के भी महान मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा का भाव एवं प्रसंग के अनुकूल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया गया है। उन्होंने तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ-साथ अरबी-फारसी व अंग्रेजी शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग भी देखने को मिलता है। .

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने एक ओर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी और दूसरी ओर आज के समाज में फैली दिखावे. की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है.। लेखक ने बताया है कि सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हुए प्रेमचंद ने अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचवाई, किंतु पाँव में जो बेतरतीबी से बँधे हुए जूते थे, उनमें से एक जूता आगे से फटा हुआ था। फोटोग्राफर ने तो क्लिक करके अपना काम पूरा कर दिया होगा किंतु प्रेमचंद जी अपने दर्द की गहराई से निकालकर जिस मुस्कान को होंठों तक लाना चाहते थे, वह बीच में ही रह गई होगी।

प्रेमचंद के फटे जूतों वाली फोटो को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया। यदि फोटो खिंचवाते समय पोशाक का यह हाल है तो वास्तविक जीवन में क्या रहा होगा। किंतु फिर ख्याल आया कि प्रेमचंद जी बाहर-भीतर की पोशाक रखने वाले आदमी नहीं थे। लेखक सोच में डूब गया कि प्रेमचंद तो हमारे साहित्यिक पुरखे हैं, फिर भी उन्हें अपने फटे जूतों का जरा भी अहसास नहीं है। उनके चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। किंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि उस समय प्रेमचंद के चेहरे पर व्यंग्य भरी हँसी थी। लेखक सोचता है कि प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं कर दिया। फिर लगा कि पत्नी का आग्रह होगा। लेखक प्रेमचंद के दुःख को देखकर बहुत दुःखी हुआ। वह रोना चाहता है किंतु उसे प्रेमचंद की आँखों का दर्द भरा व्यंग्य रोक देता है।

लेखक सोचता है कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए कपड़े, जूते तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं। फिर प्रेमचंद ने ऐसा क्यों नहीं किया। आजकल तो लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से सुगंध आए। गंदे व्यक्तियों की फोटो खुशबूदार होती है। लेखक को प्रेमचंद का फटा जूता देखकर बड़ी ग्लानि होती है।

लेखक अपने जूते के विषय में सोचता है कि उसका जूता भी कोई अच्छी दशा में नहीं था। उसके जूते का तला घिसा हुआ था। वह ऊपरी पर्दे का ध्यान अवश्य रखता है। इसलिए अँगुली बाहर नहीं निकलने देता। वह फटा जूता पहनकर फोटो तो कभी न खिंचवाएगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

लेखक का ध्यान फिर प्रेमचंद की व्यंग्य भरी हँसी की ओर चला जाता है। वह सोचता है कि उनकी इस रहस्यमयी हँसी का भला क्या रहस्य हो सकता है? क्या कोई हादसा हो गया या फिर कोई होरी मर गया अथवा हल्कू का खेत नीलगाय चर गई या फिर घीसू का बेटा माधो अपनी पत्नी का कफन बेचकर शराब पी गया। लेखक को फिर याद आ गया कि कुंभनदास का जूता भी तो फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था।

लेखक को फिर बोध हुआ कि शायद प्रेमचंद जीवन-भर किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। वे रास्ते में खड़े टीले से बचने की अपेक्षा उस पर जूते की ठोकर मारते रहे होंगे। वे समझौता नहीं कर सकते थे। जैसे गोदान का होरी ‘नेम-धरम’ नहीं छोड़ सका; वैसे ही प्रेमचंद भी आजीवन नेम-धर्म नहीं छोड़ सके। यह उनके लिए मुक्ति का साधन था। प्रेमचंद की जूते से बाहर निकली अंगुली उसी वस्तु की ओर संकेत कर रही है जिस पर ठोकर मारकर उन्होंने अपने जूते फाड़ लिए थे। वे अब भी उन लोगों पर हँस रहे हैं जो अपनी अँगुली को ढकने की चिंता में तलवे घिसाए जा रहे हैं। लेखक ने कम-से-कम अपना पाँव तो बचा लिया। परंतु लोग तो दिखावे के कारण अपने तलवे का नाश कर रहे हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-61] : कनपटी = कानों के पास का भाग। केनवस = एक प्रकार का मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। दृष्टि = नज़र । लज्जा = शर्म। क्लिक = फोटो खींचने की आवाज। विचित्र = अनोखा। उपहास = मजाक। व्यंग्य = तीखी बातों की चोट।

[पृष्ठ-62] : आग्रह = जोरदार शब्दों में कहना। क्लेश = दुःख। वर = दुल्हा। आनुपातिक मूल्य = अनुपात के हिसाब से मूल्य तय करना। तीव्रता = तेजी। युग-प्रवर्तक = युग को आरंभ करने वाला। कुर्बान = न्योछावर।

[पृष्ठ-63] : ठाठ = शान-शौकत। तगादा = जल्दी लौटाने के लिए संदेश भेजना। पन्हैया = जूती। बिसर गयो = भूल गया। हरि नाम = भगवान का नाम।

[पृष्ठ-64] : नेम-धरम = कर्त्तव्य। जंजीर = बंधन। मुक्ति = स्वतंत्रता। घृणित = घृणा करने योग्य। बरकाकर = बचाकर।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

HBSE 9th Class Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

Class 9 Hindi Sawaya Question Answer HBSE प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ? [H.B.S.E. March, 2019]
उत्तर-
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। कवि गोकुल गाँव के ग्वालों के प्रति प्रेम भाव रखता है। इसलिए वह अगले जन्म में वहाँ जन्म लेना चाहता है। वह पशु बनकर वहाँ गायों के बीच रहना चाहता है। वहाँ के पर्वतों के प्रति भी कवि का प्रेम व्यक्त हुआ है। कवि के मन में ब्रज में बहने वाली यमुना नदी और वहाँ पर खड़े कदंब के पेड़ों के प्रति भी अनन्य प्रेम है।

Chapter 11 Hindi Class 9 Kshitij Question Answer HBSE प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर-
वस्तुतः कवि श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखता है, इसलिए उसके मन में उन सभी वस्तुओं के प्रति प्रेम है जिनका संबंध श्रीकृष्ण से था। ब्रज के बागों, जंगलों तथा तालाबों पर श्रीकृष्ण अपनी लीलाएँ रचते थे। इसलिए कवि वन, बाग और तालाब को निहारना चाहता है।

सवैये का भावार्थ Class 9 HBSE प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर-
वस्तुतः लकुटी और कामरिया वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग श्रीकृष्ण गायों को चराते समय करते थे। कवि को श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु प्रिय है। इसलिए कवि अपने आराध्य देव की प्रिय वस्तुओं के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

सवैये का भावार्थ Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सखी ने गोपी को श्रीकृष्ण की भाँति मोर पंखों से बने मुकुट को सिर पर धारण करने का आग्रह किया था। शरीर पर पीले वस्त्र पहनने और गले में गुंजन की माला धारण करने का भी आग्रह किया था। लाठी और कंबली लेकर ग्वालों का रूप धारण करके गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ रहने का भी आग्रह किया था। सखी को मुरलीधर की मुरली को होंठों पर लगाने का आग्रह भी किया था, किंत गोपी ने उसे स्वीकार नहीं किया था।

सवैये पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर-
कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इन सबसे श्रीकृष्ण को भी प्रगाढ़ प्रेम था। इसलिए कवि भी उनसे संबंधित सभी वस्तुओं को प्राप्त करके श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता हैं।

सवैये प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर-
चौथे सवैये में कवि ने बताया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन से प्रभावित हैं, किंतु जब श्रीकृष्ण मुरली बजाएँगे तो वे अपने कानों पर अंगुली रख लेंगी जिससे उस मधुर ध्वनि को सुन नहीं सकेंगी, किंतु जब श्रीकृष्ण मंद-मंद रूप से मुस्कुराते हैं तो गोपियाँ उनकी मुस्कान से अत्यधिक प्रभावित हो उठती हैं और अपने-आपको सँभाल नहीं पातीं और श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगती हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुस्कान के सामने अपने-आपको विवश पाती हैं।

Class 9 Hindi Chapter 11 Savaiye Question Answer HBSE प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। वह श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को प्राप्त करने के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहते थे। इसलिए वह करील के वृक्षों के उस समूह, जहाँ श्रीकृष्ण गौओं को चराते थे, के लिए सोने से निर्मित करोड़ों भवनों को त्यागने के लिए तत्पर थे। कहने का भाव है कि श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु कवि को अत्यधिक प्रिय है।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में गोपिका के श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम को अभिव्यक्त किया गया है। गोपिका कहती है कि मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर अपने-आपको संभाल नहीं सकती अर्थात श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगेंगी। इस पंक्ति में गोपिका की विवशता को उद्घाटित किया गया है।

सवैये प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर-
अनुप्रास।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए“या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।”
उत्तर-
(1) प्रस्तुत पंक्ति ब्रज भाषा में रचित है।
(2) इसमें गोपिका के हृदय की सौतिया भावना का सजीव चित्रण हुआ है।
(3) संपूर्ण पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(4) ‘मुरली मुरलीधर’ में यमक अलंकार है।
(5) भाषा में संगीतात्मकता है।
(6) शब्द-योजना भावानुकूल की गई है।

रचना और अभिव्यक्ति

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर-
नोट-ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इसलिए विद्यार्थी इन्हें अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

पाठेतर सक्रियता

सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर-
रसखान और सूरदास दोनों ही श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त कवि हैं। दोनों श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध हैं और दोनों कवियों ने बालक कृष्ण की छवि के अनेक सुंदर एवं सजीव चित्र अंकित किए हैं। सूरदास द्वारा रचित यह पद देखिए-
(1) घुटुरुनि चलत स्याम मनि-आँगन, मातु-पिता दोउ देखत री।
कबहुँक किलकि तात-मुख हेरत, कबहुँ मातु-मुख पेखत री।
लटकन लटकत ललित भाल पर, काजर-बिंदु ध्रुव ऊपर री।
यह सोभा नैननि भरि देखत, नहि उपमा तिहुँ पर भूरी।
कबहुँक दौरि घुटुरुवनि लपकत, गिरत, उठत पुनि धावै री।
इतरौं नंद बुलाइ लेत हैं, उतरौं जननि बुलावै री।
दंपति होड़ करत आपस मैं, स्याम खिलौना कीन्हौ री।
सूरदास प्रभु ब्रह्म सनातन, सुत हित करि दोउ लीन्हौ री ॥

2. कान्ह चलत पग द्वै द्वै धरनी।
जो मन मैं अभिलाष करति हो, सो देखति नँद घरनी।
रुनुक-झुनुक नूपुर पग बाजत, थुनि अतिहीं मन-हरनी।
बैठि जात पुनि उठत तुरतहीं, सौ छवि जाइ न बरनी।
ब्रज जुबती सब देखि थकित भइँ, सुंदरता की सरनी।
चिरजीवहु जसुदा को नंदन, सूरदास कौं तरनी ॥

HBSE 9th Class Hindi 11 सवैये Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर-
रसखान अगले जन्म में ग्वाला बनना चाहते हैं तथा ब्रज भूमि पर श्रीकृष्ण का बाल सखा बनकर रहना चाहते हैं। रसखान ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अथाह श्रद्धा एवं भक्ति-भावना है। वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के सान्निध्य में रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। पठित सवैये के अध्ययन से पता चलता है कि वे अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति में लगा देना चाहते हैं। ब्रज भूमि से भी उनका गहरा संबंध है। वे श्रीकृष्ण की भूमि, उनकी वस्तुओं आदि सबके लिए अपना जीवन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे श्रीकृष्ण का सामीप्य प्राप्त करने के लिए स्वाँग भी रचने के लिए तत्पर हैं। वे श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान पर भी मुग्ध हैं। इससे पता चलता है कि रसखान के मन में श्रीकृष्ण के प्रति प्रगाढ़ भक्ति-भावना है।

प्रश्न 3.
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर-
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली से ईर्ष्या भाव रखती है क्योंकि जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली बजाने में तल्लीन हो जाते हैं तब वे सभी गोपियों को भूल जाते हैं। वे गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। इसलिए गोपिका अपने मन में श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति सौत व ईर्ष्या भाव रखती है। इसलिए वह उसे अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती।

प्रश्न 4.
सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग रचने को तैयार है और क्यों ?
उत्तर-
सखी के कहने पर गोपिका श्रीकृष्ण का स्वाँग रचने को तैयार है। वह श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र पहनने को तत्पर है। वह श्रीकृष्ण के समान सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट भी धारण कर लेना चाहती है। गले में गुंजन की माला भी पहनने के लिए तैयार है। वह श्रीकृष्ण की भाँति हाथ में लाठी लेकर गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ वन-वन घूमने को तैयार है। गोपिका यह सब इसलिए करना चाहती है क्योंकि उसके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व भक्ति-भावना है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 5.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की प्रेम भावना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रसखान का सारा काव्य प्रेम की भावना पर आधरित है। वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे अपने प्रिय की हर वस्तु को, उसके पहनावे, रहन-सहन, उसके हर कार्य को पसंद करते हैं। उनके सामीप्य को प्राप्त करने के लिए वे अपना जीवन तक न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे किसी भी बहाने से प्रिय का संग चाहते हैं। उनके लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हैं। वे प्रिय के साथ अकेला ही जीना चाहते हैं। यहाँ तक कि उन्हें प्रिय की बांसुरी भी सहन नहीं है। अतः स्पष्ट है कि रसखान की प्रेम भावना पवित्र, आवेगमयी एवं अनन्यतामयी है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रसखान किस संप्रदाय से संबंध रखते थे ?
(A) हिंदू
(B) जैन
(C) मुस्लिम
(D) सिक्ख
उत्तर-
(C) मुस्लिम

प्रश्न 2.
रसखान का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1542 में
(B) सन् 1548 में
(C) सन् 1549 में
(D) सन् 1550 में
उत्तर-
(B) सन् 1548 में

प्रश्न 3.
रसखान का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(A) गरीब परिवार में
(B) राज परिवार में
(C) संपन्न पठान परिवार में
(D) किसान परिवार में
उत्तर-
(C) संपन्न पठान परिवार में

प्रश्न 4.
रसखान क्या देखकर दिल्ली से ब्रज चले गए थे ?
(A) भीषण अकाल
(B) राजा का अन्याय
(C) सेना के जुल्म
(D) भीषण गरीबी
उत्तर-
(B) राजा का अन्याय

प्रश्न 5.
ब्रज में रहते हुए रसखान ने किस ग्रंथ का पाठ सुना
(A) महाभारत का
(B) श्रीमद्भगवद्गीता का
(C) रामचरितमानस का
(D) सूरसागर का
उत्तर-
(C) रामचरितमानस का

प्रश्न 6.
रसखान के आराध्य देव कौन हैं ?
(A) शिव
(B) विष्णु
(C) श्रीकृष्ण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण

प्रश्न 7.
रसखान की प्रमुख रचना कौन-सी है ?
(A) सतसई
(B) प्रेमवाटिका
(C) सूरसागर
(D) कृष्णवाटिका
उत्तर-
(B) प्रेमवाटिका

प्रश्न 8.
रसखान के काव्य का मूल भाव क्या है ?
(A) शृंगार
(B) विरह
(C) भक्ति -भाव
(D) विद्रोह
उत्तर-
(C) भक्ति -भाव

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 9.
रसखान का निधन कब हुआ था ?
(A) सन् 1608 में
(B) सन् 1618 में
(C) सन् 1628 में
(D) सन् 1638 में
उत्तर-
(C) सन् 1628 में

प्रश्न 10.
कविवर रसखान मनुष्य होने पर कहाँ बसना चाहते थे ?
(A) मथुरा में
(B) काशी में
(C) गोकुल गाँव में
(D) प्रयागराज में
उत्तर-
(C) गोकुल गाँव में

प्रश्न 11.
रसखान पशु की योनि में होने पर कहाँ चरना चाहते थे ?
(A) किसान के खेत में
(B) चरागाह में
(C) घास के मैदान में
(D) नंद की गायों के बीच
उत्तर-
(D) नंद की गायों के बीच

प्रश्न 12.
कवि रसखान किस पहाड़ का पत्थर बनना पसंद करते थे ?
(A) हिमालय पर्वत का
(B) गोवर्धन पर्वत का
(C) सुमेरू पर्वत का
(D) साधारण पहाड़ी का
उत्तर-
(B) गोवर्धन पर्वत का

प्रश्न 13.
रसखान कवि पक्षी बनकर कहाँ बसेरा करना चाहते थे ?
(A) करील के पेड़ पर
(B) आम के पेड़ पर ।
(C) कदंब के पेड़ पर
(D) वट वृक्ष पर
उत्तर-
(C) कदंब के पेड़ पर

प्रश्न 14.
जिस कंद पर श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे, वह किस नदी के तट पर था ?
(A) यमुना
(B) गंगा
(C) सरस्वती
(D) घाघर
उत्तर-
(A) यमुना

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण ने किसे हराने के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था ?
(A) अग्नि देवता को
(B) इंद्र देवता को
(C) विष्णु को
(D) शिव को
उत्तर-
(B) इंद्र देवता को

प्रश्न 16.
गोपिका श्रीकृष्ण की लकुटी और कंबली पर कौन-सा राज्य न्योछावर करने के लिए तत्पर है ?
(A) भारतवर्ष का राज्य
(B) संसार का राज्य
(C) पाताल का राज्य
(D) तीनों लोकों का राज्य
उत्तर-
(D) तीनों लोकों का राज्य

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 17.
कविवर अपनी आँखों से क्या देखने की कामना करते हैं ?
(A) ब्रज के बाग और तालाब को
(B) गोपिकाओं को
(C) कदंब के पेड़ कों
(D) यमुना नदी को
उत्तर-
(A) ब्रज के बाग और तालाब को

प्रश्न 18.
कवि सोने के करोड़ों महलों को किस पर वार देना चाहता है ?
(A) ब्रज की गलियों पर
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर
(C) ग्वालों के बच्चों पर
(D) ब्रज के पक्षियों पर
उत्तर-
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर

प्रश्न 19.
गोपिका सिर पर क्या धारण करना चाहती थी ?
(A) टोपी
(B) मोर के पंखों का मुकुट
(C) पगड़ी
(D) ताज
उत्तर-
(B) मोर के पंखों का मुकुट

प्रश्न 20.
गोपिका कौन-सी माला गले में धारण करने के लिए तत्पर है ?
(A) सोने की
(B) मोतियों की
(C) गुंजन की
(D) हीरों की
उत्तर-
(C) गुंजन की.

प्रश्न 21.
गोपिका किस रंग के वस्त्र धारण करना चाहती है ?
(A) नीले
(B) लाल
(C) हरे
(D) पीले
उत्तर-
(D) पीले

प्रश्न 22.
गोपिका श्रीकृष्ण की कौन-सी वस्तु धारण नहीं करना चाहती ?
(A) मुकुट
(B) वस्त्र
(C) मुरली
(D) लाठी
उत्तर-
(C) मुरली

प्रश्न 23.
गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
(A) मुरली पुरानी है
(B) मुरली जूठी है
(C) ईर्ष्या भाव के कारण
(D) मुरली सुंदर नहीं है
उत्तर-
(C) ईर्ष्या भाव के कारण

प्रश्न 24.
गोपिका कानों में अँगुली क्यों देना चाहती है ?
(A) उसको मुरली की धुन अच्छी नहीं लगती
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है
(C) मुरली की ध्वनि अत्यंत कर्कश है
(D) मुरली की धुन बेसुरी है
उत्तर-
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है

प्रश्न 25.
गोधन से क्या तात्पर्य है ?
(A) एक लोकगीत
(B) गौओं का धन
(C) लोक धुन
(D) ग्वालों द्वारा गाया जाने वाला गीत
उत्तर-
(A) एक लोकगीत

प्रश्न 26.
‘या लकुटी और कामरिया पर’ सवैये में कवि ने किस प्रदेश की प्रशंसा की है?
(A) मगध
(B) ब्रज
(C) मालवा
(D) अवध
उत्तर-
(B) ब्रज

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

सवैये अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकल गाँव के ग्वारन।
जौ पस हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कुल कदंब की डारन॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मानुष हौं = मनुष्य हुआ तो। ग्वारन = ग्वाले। धेनु = गायों। मँझारन = मध्य में। पाहन = पत्थर। हरिछत्र = श्रीकृष्ण ने जिसे धारण किया था। पुरंदर = इंद्र। खग = पक्षी। कालिंदी कूल = यमुना नदी का तट। कदंब की डारन = कदंब वृक्ष की शाखाओं पर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत सवैये का संदर्भ/प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत सवैये का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(5) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) रसखान कवि द्वारा रचित इस सवैये में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उल्लेख हुआ है। इस पद में उन्होंने अगले जन्म में श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि में जन्म लेने की अपनी इच्छा प्रकट की है।

(3) व्याख्या-महाकवि रसखान का कथन है कि हे प्रभु! यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज या गोकुल के ग्वालों के साथ हो और यदि मैं पशु बनूँ तो मेरा बस इतना ही कहना है कि मैं नित्य नंद की गायों में चरता रहूँ। हे ईश्वर! यदि मैं पत्थर भी बनें तो उस गोवर्धन पर्वत का बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर धारण करके इंद्र के क्रोध से गोकुल की रक्षा की थी। हे प्रभु! यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना तट के कदंब के पेड़ की शाखाओं पर हो।
भावार्थ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि की ईश्वरीय भक्ति एवं प्रेम व्यक्त हुआ है।

(4) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण के समीप रहना चाहते हैं, जिससे उनके मन में व्याप्त श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम का परिचय मिलता है। कवि हर स्थिति में ईश्वर का सामीप्य चाहता है।

(5) (क) कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना का वर्णन हुआ है।
(ख) ‘गोकुल गाँव के ग्वारन’, ‘मेरो चरौं’ एवं ‘कालिंदी, कूल, कदंब’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ग) ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
(घ) सवैया छंद है।

(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना व्यक्त हुई है। कवि श्रीकृष्ण को हर समय अपने समक्ष देखना चाहता है।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-लकुटी = लाठी। अरु = और। कामरिया = कंबल। तिहूँ पुर = तीनों लोकों (आकाश, पाताल और पृथ्वी) में। तजि = त्यागना। आठहुँ सिद्धि = आठ सिद्धियाँ, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । नवौ निधि = नौ निधियाँ-पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व । ये सभी कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं। तड़ाग = तालाब। निहारौं = देलूँगा। कोटिक = करोड़ों। कलधौत = महल । करील = काँटेदार झाड़ी। वारौं = न्योछावर करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि किसके लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ?
(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए क्या त्यागने के लिए तत्पर है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद में कवि ने श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपने गहन प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबली पर मैं तीनों लोकों के राज्य के सुख को न्योछावर कर दूँगा। नंद की गायों को चराने के लिए मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भुला दूंगा अर्थात त्याग दूंगा। रसखान कवि कहते हैं कि मैं अपनी आँखों से ब्रज के बाग-बगीचे और तालाबों को देखने के लिए अत्यंत व्याकुल हूँ। मैं ब्रज के वृक्षों के समूहों पर, जहाँ कभी श्रीकृष्ण खेलते व गायों को चराते थे, सोने से निर्मित करोड़ों भवन न्योछावर करता हूँ।
भावार्थ-कहने का भाव है कि उन्हें अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु एवं स्थान अत्यंत प्रिय हैं। इससे उनके श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम व भक्ति का पता चलता है।

(3) श्रीकृष्ण और उनसे संबंधित हर वस्तु व स्थान कवि को अत्यंत प्रिय है। उन्हें प्राप्त करने के लिए वे बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर हैं। इससे श्रीकृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम का बोध होता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद सरल, सहज एवं प्रवाहमयी ब्रज भाषा में रचित है।
(ख) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय बनी हुई है।
(ग) ‘नवौ निधि’, ‘ब्रज बन’, ‘करील के कुंजन’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(घ) सवैया छंद का प्रयोग किया गया है।
(ङ) शब्द-चयन भावानुकूल है।

(5) कवि श्रीकृष्ण की ब्रज-भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज्य त्यागने के लिए तत्पर है।

3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी ।
ओढि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मोरपखा = मोर के पंख। गुंज = घुघची। गरें = गले। पितंबर = पीले वस्त्र। लकुटी = लाठी। गोधन = गायों रूपी धन। ग्वारिन = ग्वालों। स्वाँग = रूप धारण करना। मुरलीधर = श्रीकृष्ण। अधरान = होंठों पर।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(6) सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग भरने को तैयार है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निःस्वार्थ प्रेम का मनोरम चित्रण किया है। ये शब्द एक गोपिका अपनी अंतरंग सखी से कहती है।

(3) व्याख्या-एक गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वह श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने के लिए तत्पर है। गोपिका कहती है कि वह श्रीकृष्ण की भाँति ही मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट सिर पर धारण कर लेगी। वह श्रीकृष्ण के गले में सुशोभित होने वाली घुघचों से बनी माला को भी धारण कर लेगी। श्रीकृष्ण की भाँति ही हाथ में लाठी लेकर ग्वालों व ग्वालिनों के साथ जंगल में गायों के पीछे भी घूम लेगी। रसखान ने बताया है कि गोपिका अपनी सखी से पुनः कहती है कि तुम्हारी कसम, मुझे श्रीकृष्ण बहुत ही अच्छे लगते हैं। तेरे कहने पर मैं हर प्रकार से श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लूँगी। किंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहने वाली इस मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखूगी। यहाँ गोपिका की सौतिया भावना का चित्रण हुआ है। वह मुरली को अपनी दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी समझती है।
भावार्थ कवि के कहने का तात्पर्य है कि एक ओर गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और दूसरी ओर उनकी बांसुरी से सौत का भाव रखती है।

(4) (क) प्रस्तुत पद में कवि ने सरल एवं सहज ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। (ख) ‘या मुरली…न धरौंगी’ में गोपी के सौतिया डाह की अभिव्यक्ति हुई है। (ग). मुरली मुरलीधर’, ‘अधरान धरी अधरा’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। (घ) ‘रसखानि’ का अर्थ रस की खान तथा रसखान कवि होने के कारण यमक अलंकार है।

(5) प्रस्तुत पद. में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपिका के अनन्य प्रेम का वर्णन किया है, किंतु गोपिका को श्रीकृष्ण की मुरली अच्छी नहीं लगती, क्योंकि जब भी श्रीकृष्ण मुरली को अपने होंठों पर रखकर बजाते हैं तो गोपियों को भूल जाते हैं। इसलिए गोपिका . मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव रखती है, जिसे व्यक्त करना कवि का प्रमुख उद्देश्य है।

(6) सखी के कहने पर गोपी श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र, घुघची की माला तथा मोर पंखों से बना मुकुट आदि सब कुछ धारण करने के लिए तैयार है। वह हाथ में लाठी लेकर गायों और ग्वालों के साथ वन-वन घूमने के लिए भी तत्पर है।

4. काननि दै अँगुरी रहिबो जवहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥
[पृष्ठ 102]

शब्दार्थ-काननि = कानों में। अँगुरी = अँगुली। धुनि = धुन। मंद = धीरे। मोहनी = मधुर। अटा = अट्टालिका। गोधन = ब्रज प्रदेश में गाया जाने वाला एक लोक-गीत। टेरि कहौं = पुकारकर कहती हूँ। काल्हि = कल को। वा = उस। मुसकानि = मुस्कान।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) गोपिका अपने कानों में अँगुली क्यों डालना चाहती है ?
(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकारकर क्या कहना चाहती है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान।। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-एक गोपिका का कथन है, हे सखी! जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली मंद-मंद ध्वनि में बजाएंगे, तब मैं अपने कानों में अँगुली डाले रहूँगी ताकि मुरली की ध्वनि मुझे सुनाई ही न दे। फिर भले ही वह रस के सागर (श्रीकृष्ण) अट्टालिका पर चढ़कर मधुर तानों में गोधन राग में गीत गाते हैं तो गाते रहें। मैं तो ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती हूँ कि कल को कोई कितना ही समझाए, किंतु मैं श्रीकृष्ण के मुख की मधुर मुस्कुराहट को नहीं सँभाल पाऊँगी।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गोपिका श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान पर अत्यंत मोहित है।

(3) प्रस्तुत सवैये में कवि ने ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान के प्रभाव का सुंदर उल्लेख किया है। श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर गोपिका अपने-आपको रोक नहीं पाती। वह उससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के प्रेम में बह जाती है।

(4) (क) श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान व मंद-मंद मुस्कान का सजीव चित्रांकन किया गया है।
(ख) अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
(ग) ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
(घ) शब्द-चयन अत्यंत सार्थक एवं विषयानुकूल है।
(ङ) सवैया छंद का प्रयोग है।

(5) गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि से अत्यंत प्रभावित है। वह जब भी उसे सुनती है तो अपने-आपको रोक नहीं पाती। इसलिए वह लोक-लाज के कारण अपने कानों में अँगुली रख लेती है। ऐसा करने से उसे न तो मुरली की ध्वनि सुनाई देगी और न ही वह श्रीकृष्ण के पास जाएगी।

(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती है कि कल कोई भी मुझे कितना ही क्यों न समझाए, परंतु मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को सँभाल नहीं पाऊँगी अर्थात वह उसकी मुस्कान पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकेगी।

सवैये Summary in Hindi

सवैये कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर रसखान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर रसखान का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रसखान कृष्णभक्त कवि थे। उनका जन्म सन् 1548 के लगभग दिल्ली के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। वे मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। वे अत्यंत प्रेमी स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें वैष्णव भक्तों ने श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य से परिचित करवाया। तभी से वे श्रीकृष्ण के भक्त बन गए थे। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में इतने भाव-विभोर हो उठे कि श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए श्रीनाथ के मंदिर में भी गए थे। यह भी कहा जाता है कि उन्हें श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे। गोकुल पहुँचकर उन्होंने श्री विठ्ठलनाथ से दीक्षा ली। तब से वे ब्रज-भूमि में रहने लगे थे। उनकी रसमयी भक्ति के कारण उनका नाम रसखान पड़ गया। सन् 1628 के लगभग उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्राप्त हैं(क) सुजान रसखान-इसमें सवैये हैं, (ख) प्रेमवाटिका-इसमें दोहे हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन इनके काव्य का प्रमुख विषय है। इनके काव्य में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का भी बड़ा मनोरम वर्णन किया गया है। निम्नलिखित पंक्तियों में बालक कृष्ण की रूप-छवि देखते ही बनती है

“धूरि भरे अति शोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ॥”

श्रीकृष्ण के प्रति भक्त-हृदय की निष्ठा का पता रसखान के निम्नलिखित सवैये से भली प्रकार चलता है

“या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥”

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रसखान के काव्य में रस धारा निरंतर प्रवाहित है। उन्होंने अपने काव्य में विभिन्न रसों का वर्णन किया है, किंतु शृंगार रस में राधा-कृष्ण के संयोग श्रृंगार का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, राधा कृष्ण की प्रेम-लीलाओं और ब्रज-महिमा का वर्णन मिलता है। रस-योजना में रसखान को पूरी सफलता मिली है। इनके द्वारा रचित श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करते हुए वास्तव में ही भक्तजन रस-विभोर हो उठते हैं।

4. भाषा-शैली-रसखान के काव्य की भाषा ब्रज है। उनके काव्य में शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा व्याकरणिक दृष्टि से भी शुद्ध है। उनके दोहे एवं सवैये भी निर्दोष हैं। भाषा और छंदों के सफल प्रयोग से इनके काव्य की सुंदरता में वृद्धि हुई है। भाषा का जैसा शुद्ध एवं निखरा हुआ रूप रसखान के काव्य में मिलता है, ऐसा बहुत कम कवियों के काव्य में दिखाई देता है। इनका काव्य सरल, सरस एवं भावपूर्ण है। इसमें अलंकारों की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी यथास्थान अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है। यह काव्य भारतीय जनता का प्रिय है। लोगों की जुबान से रसखान के दोहे आज भी सुने जाते हैं।

सवैयों का सार/काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित रसखान रचित ‘सवैये’ का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
रसखान कृत प्रथम एवं द्वितीय सवैये में कृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति उनका प्रेम भाव व्यक्त हुआ है। प्रथम सवैये में रसखान ने अपना प्रेम भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि अगले जन्म में मैं मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज-भूमि में हो, यदि मैं पशु बनूँ तो मैं नित्य नंद की गायों के बीच चरता रहूँ। यदि पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने धारण किया था। यदि पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर हो। इतना ही नहीं, वे श्रीकृष्ण के द्वारा धारण की हुई लाठी व काली कंबली पर तीनों लोकों के राज को न्योछावर कर देना चाहते हैं। वे उनके साथ गाय चराने के लिए हर प्रकार की संपत्ति व सुख त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे ब्रज के वनों और तालाबों पर करोड़ों सोने के बने महलों को न्योछावर कर देना चाहते हैं। तीसरे सवैये में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य के प्रति गोपियों की उस मुग्धता का चित्रण किया है जिसमें वे स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण का मोर पंखों से युक्त मुकुट, उनकी माला, पीले वस्त्र, लाठी आदि सब धारण कर लेना चाहती हैं, किंतु उनकी मुरली को धारण करना उन्हें स्वीकार नहीं है। चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के अचूक प्रभाव के सामने गोपियों की विवशता का मार्मिक वर्णन है।

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