Author name: Prasanna

HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. कुरु जनपद की राजधानी का क्या नाम था?
(A) वैशाली
(B) इन्द्रप्रस्थ
(C) श्रावस्ती
(D) राजगृह
उत्तर:(B) इन्द्रप्रस्थ

2. बिम्बिसार किस जनपद का सुप्रसिद्ध शासक था?
(A) मगध
(B) कौशल
(C) काशी
(D) अंग
उत्तर:
(A) मगध

3. अंग जनपद की राजधानी थी
(A) चम्पा
(B) वाराणसी
(C) कुशीनगर
(D) वैशाली
उत्तर:
(A) चम्पा

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

4. प्रद्योत किस जनपद का शासक था?
(A) कौशल
(B) अवन्ति
(C) अंग
(D) वत्स
उत्तर:
(B) अवन्ति

5. कौटिल्य कहाँ के रहने वाले थे?
(A) मिथिला के
(B) पावा के
(C) रामग्राम के
(D) कपिलवस्तु के
उत्तर:
(C) रामग्राम के

6. निम्नलिखित में से कौन नंद वंश का संस्थापक था?
(A) महापद्मनन्द
(B) घनानन्द
(C) केशवानन्द
(D) महेश्वरानन्द
उत्तर:
(A) महापद्मनन्द

7. साम्राज्य के रूप में मगध का उत्थान आरम्भ हुआ
(A) बिम्बिसार के शासन काल से
(B) अजातशत्रु के शासन काल से
(C) शिशुनाग के शासन काल से
(D) महापद्मनन्द के शासन काल से
उत्तर:
(A) बिम्बिसार के शासन काल से

8. चन्द्रगुप्त मौर्य की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विजय थी
(A) मगध विजय
(B) पंजाब की विजय
(C) पश्चिमी भारत की विजय
(D) दक्षिणी भारत की विजय
उत्तर:
(A) मगध विजय

9. मौर्य साम्राज्य का संस्थापक था
(A) अशोक
(B) बिन्दुसार
(C) चन्द्रगुप्त मौर्य
(D) बिम्बिसार
उत्तर:
(C) चन्द्रगुप्त मौर्य

10. मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी
(A) स्वर्णगिरि
(B) तक्षशिला
(C) पाटलिपुत्र
(D) उज्जैन
उत्तर:
(C) पाटलिपुत्र

11. अशोक के समय का सबसे प्रसिद्ध स्तूप है
(A) रूपनाथ का
(B) सारनाथ का
(C) सांची का
(D) प्रयाग का
उत्तर:
(C) सांची का

12. अशोक ने धम्म प्रचार के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए, जिन्हें कहा जाता था
(A) अमात्य
(B) सन्निधाता
(C) युक्त
(D) धम्ममहामात्र
उत्तर:
(D) धम्ममहामात्र

13. श्रीनगर और ललितापाटन नामक नगरों की स्थापना की
(A) चन्द्रगुप्त मौर्य ने
(B) अशोक ने
(C) कनिष्क ने
(D) बिन्दुसार ने
उत्तर:
(B) अशोक ने

14. अशोक के समय तीसरी बौद्ध सभा का आयोजन हुआ
(A) वैशाली में
(B) पाटलिपुत्र में
(C) तक्षशिला में
(D) राजगृह में
उत्तर:
(B) पाटलिपुत्र में

15. अशोक के द्वारा कलिंग का युद्ध लड़ा गया
(A) 269 ई०पू० में
(B) 273 ई०पू० में
(C) 261 ई०पू० में
(D) 251 ई०पू० में
उत्तर:
(C) 261 ई०पू० में

16. मैगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा
(A) 300 ई०पू० से 295 ई०पू० तक
(B) 305 ई०प० से 298 ई०पू० तक
(C) 302 ई०पू० से 298 ई०पू० तक
(D) 302 ई०पू० से 297 ई०पू० तक
उत्तर:
(C) 302 ई०पू० से 298 ई०पू० तक

17. कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की
(A) हिन्दी भाषा में
(B) पाली भाषा में
(C) संस्कृत भाषा में
(D) प्राकृत भाषा में
उत्तर:
(C) संस्कृत भाषा में

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

18. मौर्य-शासनकाल में गोचरन (चरागाह) भूमि की व्यवस्था करने वाला कहलाता था
(A) लवणाध्यक्ष
(B) गोडाध्यक्ष
(C) सूत्राध्यक्ष
(D) विवीताध्यक्ष
उत्तर:
(D) विवीताध्यक्ष

19. बिन्दुसार के दरबार में आने वाला ग्रीक राजदूत था
(A) एरियन
(B) मीनाण्डर
(C) डायमेकस
(D) सेल्यूकस
उत्तर:
(C) डायमेकस

20. कौटिल्य के अनुसार, मौर्यकाल में स्त्री गुप्तचरों में हुआ करती थी
(A) शिल्पकारिका
(B) भिक्षुणी
(C) वेश्या
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. मौर्य साम्राज्य मुख्य रूप से विभक्त था
(A) आठ प्रान्तों में
(B) चार प्रान्तों में
(C) दो प्रान्तों में
(D) पाँच प्रान्तों में
उत्तर:
(D) पाँच प्रान्तों में

22. मौर्यकालीन शासन-व्यवस्था की सर्वाधिक छोटी इकाई थी
(A) प्रान्त
(B) नगर
(C) मुक्ति
(D) ग्राम
उत्तर:
(D) ग्राम

23. उड़ीसा का वह स्थान जहाँ से अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं
(A) कलिंग
(B) जौगड़
(C) कटक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) जौगड़

24. अशोक को कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक बताया है
(A) विल्हण ने
(B) कल्हण ने
(C) रविकीर्ति ने
(D) हरिषेण ने
उत्तर:
(B) कल्हण ने

25. अशोक का तेरहवां शिलालेख, जिसमें कलिंग विजय का वर्णन है, प्राप्त हुआ है
(A) धौली से
(B) मानसेहरा से
(C) जौगढ़ से
(D) गिरनार से
उत्तर:
(A) धौली से

26. पाषाण स्तम्भ का ऊपरी भाग जो राष्ट्रीय चिहन के रूप में लिया गया है वह है
(A) सारनाथ का
(B) प्रयाग का
(C) कौशाम्बी का
(D) इलाहाबाद का
उत्तर:
(A) सारनाथ का

27. सातवाहनों की राजभाषा थी
(A) संस्कृत
(B) पाली
(C) तमिल
(D) प्राकृत
उत्तर:
(D) प्राकृत

28. गौतमी पुत्र शातकर्णि ने उपाधि धारण की
(A) स्वामी
(B) महाराज
(C) राजराज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

29. सातवाहन काल में नगरों में जलपूर्ति का प्रबन्ध करने वाले अधिकारी को कहा जाता था
(A) पनिपहारक
(B) पनिहारक
(C) पनिहार
(D) पनिहारा
उत्तर:
(A) पनिपहारक

30. श्रेणी धर्म क्या था?
(A) निगम सभा
(B) धर्म सभा
(C) व्यापारिक निगम
(D) राजसभा
उत्तर:
(C) व्यापारिक निगम

31. सातवाहन काल में व्यावसायिक संघ की अलग-अलग श्रेणी के प्रधान को कहा जाता था
(A) श्रेष्ठिन
(B) श्रेष्ठ
(C) श्रेणिक
(D) श्रोता
उत्तर:
(A) श्रेष्ठिन

32. कुषाण काल में कला का प्रमुख केन्द्र था
(A) मथुरा
(B) तक्षशिला
(C) वाराणसी
(D) पेशावर
उत्तर:
(A) मथुरा

33. कुषाणों को भारत की किस शक्ति ने हराया?
(A) चोलों ने
(B) राष्ट्रकूटों ने
(C) गुप्तशासकों ने
(D) आन्ध्रशासकों ने
उत्तर:
(C) गुप्तशासकों ने

34. ‘पुरुषपुर’ किस शासक की राजधानी थी?
(A) अशोक की
(B) हर्ष की
(C) समुद्रगुप्त की
(D) कनिष्क की
उत्तर:
(D) कनिष्क की

35. ‘चरक संहिता’ में वर्णन है
(A) रामायण का
(B) महाभारत का
(C) चित्रकला का
(D) भारतीय जड़ी-बूटियों का
उत्तर:
(D) भारतीय जड़ी-बूटियों का

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

36. भारतीय व यूनानी कला का मिश्रण थी
(A) गुप्त कला
(B) मथुरा कला
(C) गन्धार कला
(D) अमरावती कला
उत्तर:
(C) गन्धार कला

37. ‘संगम’ किस भाषा का शब्द है?
(A) हिन्दी
(B) संस्कृत
(C) तमिल
(D) कन्नड़
उत्तर:
(B) संस्कृत

38. ‘संगम’ शब्द का अर्थ है
(A) सभा
(B) समिति
(C) राजा
(D) प्रजा
उत्तर:
(A) सभा

39. तमिल संगम थी
(A) तमिल सेना
(B) नदी
(C) कवियों की सभा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कवियों की सभा

40. प्रथम संगम कहाँ हुआ था?
(A) मदुरा
(B) कपातपुरम्
(C) कांची
(D) चेन्नई
उत्तर:
(A) मदुरा

41. तोलकाप्पियम किस संगम का ग्रन्थ है?
(A) प्रथम
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) द्वितीय

42. संक्षिप्त वेद कहा जाता है
(A) तोलकाप्पियम
(B) पत्थुप्पात्तु
(C) तिरुकुराल
(D) शिलप्पादिकारम्
उत्तर:
(C) तिरुकुराल

43. वनिगर कहते थे
(A) कृषक को
(B) सैनिक को
(C) व्यापारी को
(D) ब्राह्मण को
उत्तर:
(C) व्यापारी को

44. ‘मा’ व ‘वेलि’ कहते थे
(A) भूमि की माप
(B) पैदल व हस्ति सेना
(C) नृत्य व नृत्यांगना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पैदल व हस्ति सेना

45. ‘एनाडि’ की उपाधि किसे दी जाती थी?
(A) राजा को
(B) योद्धाओं को
(C) मन्त्रियों को
(D) किसानों को
उत्तर:
(B) योद्धाओं को

46. संगमकाल में ‘अवनम्’ कहते थे
(A) नगर में बाजार को
(B) यवनों के निवास स्थान को
(C) राजदरबार को
(D) सेना को
उत्तर:
(A) नगर में बाजार को

47. संगमकाल में भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएँ थीं
(A) रूई व रेशम
(B) मसाले
(C) हाथी दाँत
(D) हथियार
उत्तर:
(B) मसाले

48. समुद्रगुप्त का महाकवि था
(A) हरिषेण
(B) वीरसेन
(C) रुद्रसेन
(D) वागसेन
उत्तर:
(A) हरिषेण

49. गुप्त संवत् आरम्भ हुआ
(A) 320 ई० से
(B) 320 ई०पू० से
(C) 240 ई० से
(D) 335 ई० से
उत्तर:
(A) 320 ई० से

50. चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी था
(A) स्कन्दगुप्त
(B) कुमारगुप्त
(C) समुद्रगुप्त
(D) चन्द्रगुप्त द्वितीय
उत्तर:
(C) समुद्रगुप्त

51. ‘गरुड़’ की उपाधि किस गुप्त सम्राट ने धारण की?
(A) चन्द्रगुप्त प्रथम
(B) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(C) समुद्रगुप्त
(D) स्कन्दगुप्त
उत्तर:
(C) समुद्रगुप्त

52. शकारी की उपाधि धारण की
(A) समुद्रगुप्त
(B) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(C) चन्द्रगुप्त प्रथम
(D) कुमारगुप्त
उत्तर:
(B) चन्द्रगुप्त द्वितीय

53. इलाहाबाद स्तम्भ लेख का लेखक था?
(A) नागसेन
(B) हरिषेण
(C) कालिदास
(D) विशाखदत्त
उत्तर:
(B) हरिषेण

54. महरौली लौह-स्तम्भ सम्बन्धित है
(A) समुद्रगुप्त से
(B) समगुप्त से
(C) चन्द्रगुप्त द्वितीय से
(D) कुमारगुप्त से
उत्तर:
(C) चन्द्रगुप्त द्वितीय से

55. गुप्तकाल की मूर्तिकला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है
(A) सूर्य की मूर्ति
(B) सारनाथ की बुद्ध-मूर्ति
(C) विष्णु की मूर्ति
(D) मथुरा में खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति
उत्तर:
(B) सारनाथ की बुद्ध-मूर्ति

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

56. पंचतन्त्र का लेखक था
(A) विष्णु शर्मा
(B) शूद्रक
(C) कालिदास
(D) भारवि
उत्तर:
(A) विष्णु शर्मा

57. शकों को पराजित करने वाला गुप्त सम्राट् था
(A) समुद्रगुप्त
(B) चन्द्रगुप्त प्रथम
(C) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(D) रामगुप्त
उत्तर:
(C) चन्द्रगुप्त द्वितीय

58. गुप्तकाल में कला, विद्या एवं व्यापार का प्रमुख केन्द्र था
(A) इन्द्रप्रस्थ
(B) थानेसर
(C) उज्जैन
(D) थार
उत्तर:
(C) उज्जैन

59. ‘मुद्राराक्षस’ किस प्रकार का नाटक है?
(A) जासूसी
(B) ऐतिहासिक
(C) रोमांचक
(D) हास्यप्रद
उत्तर:
(B) ऐतिहासिक

60. गुप्त वंश के पतन का निम्नलिखित कारण था
(A) सैनिक दुर्बलता
(B) हूणों के आक्रमण
(C) स्कन्दगुप्त के अयोग्य उत्तराधिकारी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

61. महाजनपदों के शासक किसानों से उनकी उपज का लगभग 1/6 हिस्सा कर के रूप में लेने लगे थे। यह कर कहा जाता था
(A) भू-राजस्व
(B) बलि
(C) भाग
(D) हिस्सा
उत्तर:
(C) भाग

62. अशोक के प्राप्त अभिलेखों की संख्या है
(A) 44
(B) 77
(C) 75
(D) 66
उत्तर:
(A) 44

63. उत्तर पश्चिमी भारत में लगवाए अभिलेखों में अशोक ने किस लिपि का प्रयोग किया?
(A) खरोष्ठी
(B) ब्राह्मी
(C) आरमाईक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) खरोष्ठी

64. सोलह महाजनपदों का उदय हुआ
(A) ऋग्वैदिक युग में
(B) गुप्त युग में
(C) मौर्य युग में
(D) बुद्ध युग में
उत्तर:
(D) बुद्ध युग में

65. अशोक की कलिंग विजय का उल्लेख किस अभिलेख में मिलता है?
(A) 10वें अभिलेख में
(B) 12वें अभिलेख में
(C) 13वें अभिलेख में
(D) 11वें अभिलेख में
उत्तर:
(C) 13वें अभिलेख में

66. “प्रजा की भलाई में ही उसकी (राजा की) भलाई है।” यह कहा
(A) अशोक ने
(B) कौटिल्य ने
(C) मैगस्थनीज ने
(D) मनु ने
उत्तर:
(B) कौटिल्य ने

67. मैगस्थनीज किस शासक के दरबार में मेहमान बनकर रहा?
(A) सिकन्दर के
(B) चन्द्रगुप्त मौर्य के
(C) कुमारगुप्त के
(D) समुद्रगुप्त के
उत्तर:
(B) चन्द्रगुप्त मौर्य के

68. महाजनपदों की संख्या थी
(A) 20
(B) 18
(C) 26
(D) 16
उत्तर:
(D) 16

69. ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सफलता पाई
(A) कनिंघम ने
(B) जेम्स प्रिंसेप ने
(C) जॉन मार्शल ने
(D) व्हीलर ने
उत्तर:
(B) जेम्स प्रिंसेप ने

70. ‘प्रियदस्सी’ की उपाधि धारण की
(A) चंद्रगुप्त में
(B) बिंदुसार ने
(C) अशोक ने
(D) अजातशत्रु ने
उत्तर:
(C) अशोक ने

71. सिक्कों का अध्ययन कहलाता है
(A) पुरातत्व
(B) मुद्राशास्त्र
(C) धर्मशास्त्र
(D) अर्थशास्त्र
उत्तर:
(B) मुद्राशास्त्र

72. प्रिंसेप अशोक के अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सफल हुआ
(A) 1828 ई० में
(B) 1938 ई० में
(C) 1838 ई० में
(D) 1848 ई० में
उत्तर:
(C) 1838 ई० में

73. सोने की खानों के लिए महत्त्वपूर्ण था
(A) सुवर्णगिरि
(B) उज्जयिनी
(C) तोसाली
(D) तक्षशिला
उत्तर:
(A) सुवर्णगिरी

74. प्रभावती किस गुप्त शासक की पुत्री थी?
(A) चंद्रगुप्त प्रथम
(B) समुद्रगुप्त
(C) चंद्रगुप्त द्वितीय
(D) स्कंदगुप्त
उत्तर:
(C) चंद्रगुप्त द्वितीय

75. छठी सदी ई०पू० से कृषि उपज बढ़ाने का तरीका था
(A) सिंचाई को बढ़ावा
(B) धान का रोपण
(C) लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

76. धम्म का संदेश देने वाला था
(A) अशोक
(B) चाणक्य
(C) बिंदुसार
(D) चंद्रगुप्त मौर्य
उत्तर:
(A) अशोक

77. शिल्पकारों और व्यापारियों के संघ को कहा जाता था
(A) समूह
(B) श्रेणी
(C) गण
(D) समिति
उत्तर:
(B) श्रेणी

78. धम्म महामात्र नामक विशेष अधिकारी नियुक्त करने वाला था
(A) समुद्रगुप्त
(B) चंद्रगुप्त मौर्य
(C) अशोक
(D) चंद्रगुप्त द्वितीय
उत्तर:
(C) अशोक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वप्रथम सिक्कों का चलन कब आरंभ हुआ?
उत्तर:
सर्वप्रथम सिक्कों का चलन पाँचवीं सदी ई०पू० के लगभग से आरंभ हुआ।

प्रश्न 2.
जनपद शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जनपद शब्द का अर्थ है जहाँ लोगों ने अपना पाँव रखा अर्थात् जहाँ बस गए।

प्रश्न 3.
गंगा व सोन नदियों के संगम पर ‘पाटलिपुत्र’ नामक नगर की स्थापना किसने की?
उत्तर:
पाटलिपुत्र नगर की स्थापना बिम्बिसार ने की।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 4.
अभिलेखों के अध्ययन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेख शास्त्र कहते हैं।

प्रश्न 5.
पंचमार्क सिक्कों का आकार कैसा था?
उत्तर:
पंचमार्क सिक्कों का आकार आयताकार या वृत्ताकार होता था।

प्रश्न 6.
जातक क्या है?
उत्तर:
जातक महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ हैं।

प्रश्न 7.
जातकों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
जातकों की संख्या 549 है।

प्रश्न 8.
‘पेरिप्लस’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पेरिप्लस का अर्थ है-समुद्री यात्रा।

प्रश्न 9.
पतिवेदक कौन थे?
उत्तर:
पतिवेदक अशोक के काल में रिपोर्टर थे।

प्रश्न 10.
‘इंडियन एपिग्राफी एंड इंडियन एपिग्राफिकल ग्लोसरी’ नामक पुस्तक किसकी रचना है?
उत्तर:
‘इंडियन एपिग्राफी एंड इंडियन एपिग्राफिकल ग्लोसरी’ डी०सी० सरकार की रचना है।

प्रश्न 11.
बंगाल एशियाटिक सोसायटी का गठन कब हुआ?
उत्तर:
बंगाल एशियाटिक सोसायटी का गठन 1784 ई० में हुआ।

प्रश्न 12.
‘देवानापिय’ किस राजा की उपाधि थी?
उत्तर:
‘देवानांपिय’ राजा अशोक की उपाधि थी।

प्रश्न 13.
ओलीगार्की या समूह शासन किसे कहते हैं?
उत्तर:
ओलीगार्की या समूह शासन उसे कहते हैं जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में हो।

प्रश्न 14.
राजगाह का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
राजगाह का शाब्दिक अर्थ है ‘राजाओं का घर’।

प्रश्न 15.
सुवर्णगिरि (सोने का पहाड़) कहाँ थी?
उत्तर:
सुवर्णगिरि कर्नाटक में थी।

प्रश्न 16.
महाजनपदों की संख्या कितनी थी?
उत्तर:
महाजनपदों की संख्या 16 थी।

प्रश्न 17.
भारत में सबसे अधिक अभिलेख किस शासक के हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक अभिलेख अशोक के हैं।

प्रश्न 18.
छठी से चौथी सदी ई०पू० में कौन-सा महाजनपद सबसे शक्तिशाली बन गया?
उत्तर:
छठी से चौथी सदी ई०पू० में मगध महाजनपद सबसे शक्तिशाली बन गया।

प्रश्न 19. अपनी सोने की खानों के कारण कौन-सा स्थान उपयोगी था?
उत्तर:
अपनी सोने की खानों के कारण सुवर्णगिरि उपयोगी था।

प्रश्न 20.
अशोक ने धम्म प्रचार के कौन-से विशेष अधिकारी नियुक्त किए?
उत्तर:
अशोक ने धम्म प्रचार के लिए ‘धम्म महामात्र’ नामक विशेष अधिकारी नियुक्त किए।

प्रश्न 21.
भारत के सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रंथ का नाम बताएँ।
उत्तर:
भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ है।।

प्रश्न 22.
भारत में आधुनिक भाषाओं में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल कौन-सी लिपि है?
उत्तर:
आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है।

प्रश्न 23.
‘लिच्छिवी दौहित्र’ कौन था?
उत्तर:
‘लिच्छिवी दौहित्र’ समुद्रगुप्त था।

प्रश्न 24.
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना कौन-सा है?
उत्तर:
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना महरौली का लौह स्तम्भ है।

प्रश्न 25.
गुप्त काल की राजभाषा क्या थी?
उत्तर:
गुप्त काल की राजभाषा संस्कृत थी।

प्रश्न 26.
गुप्तकाल का महान् खगोलज्ञ व गणितज्ञ कौन था?
उत्तर:
गुप्तकाल का महान खगोलज्ञ व गणितज्ञ आर्यभट्ट था।

प्रश्न 27.
छठी शताब्दी ई० पूर्व में कितने महाजनपद थे? किन्हीं चार के नाम बताएँ।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पूर्व में कुल 16 महाजनपद थे। इनमें से मगध, काशी, कौशल तथा कुरू को मुख्य चार के रूप में बता सकते हैं।

प्रश्न 28.
तक्षशिला किस जनपद की राजधानी थी?
उत्तर:
तक्षशिला गांधार जनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 29.
बिम्बिसार तथा अजातशत्रु किस महाजनपद के दो प्रसिद्ध शासक थे?
उत्तर:
बिम्बिसार तथा अजातशत्रु मगध जनपद के प्रसिद्ध शासक थे।

प्रश्न 30.
छठी शताब्दी ई०पू० में राजगृह किस महाजनपद की राजधानी थी?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पू० राजगृह मगध महाजनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 31.
मगध के किस शासक ने अवन्ति महाजनपद को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया?
उत्तर:
शिशुनाग ने अवन्ति को मगध में सम्मिलित किया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 32.
घनानंद किस वंश का अन्तिम शासक था?
उत्तर:
घनानंद मगध के नंद वंश का अन्तिम शासक था।

प्रश्न 33.
मत्स्य जनपद की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर:
मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर थी।

प्रश्न 34.
उज्जैन किस जनपद की राजधानी थी?
उत्तर:
उज्जैन अवन्ति जनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 35.
श्रावस्ती किस जनपद की राजधानी थी?
उत्तर:
श्रावस्ती कौशल जनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 36.
वह कौशल राजा, जिसने काशी को जीता था, का नाम क्या था?
उत्तर:
महाकौशल ने काशी को जीता था।

प्रश्न 37.
इन्द्रप्रस्थ किस जनपद की राजधानी थी?
उत्तर:
इन्द्रप्रस्थ कुरू जनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 38.
वज्जि जनपद की राजधानी क्या थी?
उत्तर:
वज्जि जनपद की राजधानी वैशाली थी।

प्रश्न 39.
चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस यूनानी शासक को हराया?
उत्तर:
चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस निकेटर नामक यूनानी शासक को हराया।

प्रश्न 40.
मैगस्थनीज़ कौन था?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी शासक सेल्यूकस का राजदूत था।

प्रश्न 41.
अशोक के समय के दो प्रसिद्ध स्तूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सांची तथा भारहुत के स्तूप अशोक के समय के प्रसिद्ध स्तूप हैं।

प्रश्न 42.
इण्डिका का लेखक कौन था?
उत्तर:
इण्डिका का लेखक मैगस्थनीज़ था।

प्रश्न 43.
मैगस्थनीज़ किसके शासन काल में भारत आया?
उत्तर:
मैगस्थनीज़ चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन-काल में भारत आया।

प्रश्न 44.
कौटिल्य कौन था?
उत्तर:
कौटिल्य चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री था।

प्रश्न 45.
कौटिल्य (चाणक्य) ने राजनीति से सम्बन्धित कौन-सी पुस्तक की रचना की ?
उत्तर:
कौटिल्य (चाणक्य) ने राजनीति से सम्बन्धित ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की।

प्रश्न 46.
अशोक ने किस नयी नैतिक विचारधारा का प्रचार किया?
उत्तर:
अशोक ने धम्म नामक विचारधारा का प्रचार किया।

प्रश्न 47.
धम्म के प्रचार के लिए अशोक ने कौन-से विशेष अधिकारी नियुक्त किए?
उत्तर:
धम्म के प्रचार के लिए अशोक ने धम्म महामात्र अधिकारी नियुक्त किए।

प्रश्न 48.
अशोक ने किन दो नए नगरों की स्थापना की?
उत्तर:
अशोक ने श्रीनगर तथा ललितापाटन नामक दो नगरों की स्थापना की।

प्रश्न 49.
कलिंग का युद्ध कब हुआ?
उत्तर:
कलिंग का युद्ध 261 ई०पू० में हुआ।

प्रश्न 50.
वर्तमान भारत के राष्ट्रीय चिह्न कहाँ से लिए गए हैं?
उत्तर:
वर्तमान भारत के राष्ट्रीय चिह्न सारनाथ के अशोक स्तम्भ से लिए गए हैं।

प्रश्न 51.
अशोक के अभिलेख कौन-सी दो लिपियों में मिले हैं?
उत्तर:
अशोक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि तथा खरोष्ठी लिपि में मिले हैं।

प्रश्न 52.
हरिषेण कौन था ?
उत्तर:
हरिषेण गुप्त शासक समुद्रगुप्त (335-375 ई०) के दरबार में सेनापति और साथ ही लेखक और कवि था। वह ‘प्रयाग प्रशस्ति’ का लेखक है। इसमें उसने अपने शासक समुद्रगुप्त को ‘परमात्मा तुल्य’ कहते हुए बखान किया है।

प्रश्न 53.
चन्द्रगुप्त मौर्य को ‘एण्ड्रोकोट्स’ किस लेखक ने कहा है?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य को ‘एण्ड्रोकोट्स’ प्लूटार्क ने कहा है।

प्रश्न 54.
सिंहासन पर आसीन होने के पश्चात् अशोक ने कौन-सी उपाधि धारण की?
उत्तर:
सिंहासन पर आसीन होने के पश्चात् अशोक ने ‘देवानामप्रिय’ की उपाधि धारण की।

प्रश्न 55.
सारनाथ स्तम्भ के शिरोभाग में सिंह के बीच में एक चक्र है, यह चक्र किसका सूचक है?
उत्तर:
यह चक्र धर्म का सूचक है।

प्रश्न 56.
कारखानों तथा खानों के मन्त्री को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
कारखानों तथा खानों के मन्त्री को कर्मान्तिक कहा जाता था।

प्रश्न 57.
मौर्यशासन काल में कृषि विभाग के अध्यक्ष को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
मौर्यशासन काल में कृषि विभाग के अध्यक्ष को सीताध्यक्ष कहा जाता था।

प्रश्न 58.
अर्थशास्त्र की रचना किस भाषा में हुई?
उत्तर:
अर्थशास्त्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई।

प्रश्न 59.
मौर्य-शासनकाल में राजकीय कोष का प्रमुख कौन होता था?
उत्तर:
मौर्य-शासनकाल में राजकीय कोष का प्रमुख सन्निधाता होता था।

प्रश्न 60.
मीनाण्डर का शासनकाल क्या था?
उत्तर:
मीनाण्डर का शासनकाल 165-145 ई०पू० था।

प्रश्न 61.
मीनाण्डर की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर:
मीनाण्डर की राजधानी का नाम शाकल (श्यालकोट) था।

प्रश्न 62.
मीनाण्डर का किस बौद्ध भिक्षु के साथ वाद-विवाद हुआ?
उत्तर:
मीनाण्डर का नागसेन (नागार्जुन) बौद्ध-भिक्षु के साथ वाद-विवाद हुआ।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 63.
पहली बार सोने के सिक्के किसने जारी किए?
उत्तर:
पहली बार सोने के सिक्के हिन्द-यूनानी शासकों ने जारी किए।

प्रश्न 64.
विक्रम संवत् का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
विक्रम संवत् का प्रारम्भ 58 ई०पू० से माना जाता था।

प्रश्न 65.
शकों का सबसे शक्तिशाली राजा कौन-था?
उत्तर:
शकों का सबसे शक्तिशाली राजा रुद्रदामा (रुद्रदमन) था।

प्रश्न 66.
सुदर्शन झील की मरम्मत किस शक राजा ने करवाई?
उत्तर:
सुदर्शन झील की मरम्मत रूद्रदमन प्रथम ने करवाई।

प्रश्न 67.
शक संवत् का प्रारम्भ कब से माना जाता है?
उत्तर:
शक संवत् का प्रारम्भ 78 ई० से माना जाता है।

प्रश्न 68.
कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था?
उत्तर:
कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था।

प्रश्न 69.
कनिष्क की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर:
कनिष्क की राजधानी का नाम पुरुषपुर (पेशावर) था।

प्रश्न 70.
मगध-विजय अभियान में कनिष्क को मिलने वाला बौद्ध विद्वान कौन था?
उत्तर:
मगध-विजय अभियान में कनिष्क को मिलने वाला बौद्ध विद्वान् अश्वघोष था।

प्रश्न 71.
कनिष्क द्वारा बसाए गए नगर का नाम बताएँ।
उत्तर:
कनिष्क द्वारा बसाए गए नगर का नाम कनिष्कपुर था।

प्रश्न 72.
कनिष्क की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी?
उत्तर:
कनिष्क की सबसे महत्वपूर्ण विजय चीन क्षेत्र की विजय थी।

प्रश्न 73.
कनिष्क द्वारा धारण की गई उपाधि का नाम बताएँ।
उत्तर:
कनिष्क द्वारा धारण की गई उपाधि का नाम देवपुत्र था।

प्रश्न 74.
तमिल संगम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तमिल कवियों की सभा या सम्मेलन तमिल संगम होता है।

प्रश्न 75.
टूटे हुए सिर वाली कनिष्क की मूर्ति किस कला का नमूना है?
उत्तर:
टूटे हुए सिर वाली कनिष्क की मूर्ति मथुरा कला का नमूना है।

प्रश्न 76.
‘बुद्ध चरित’ का लेखक कौन था?
उत्तर:
‘बुद्ध चरित’ का लेखक अश्वघोष था।

प्रश्न 77.
सबसे प्रसिद्ध भारतीय-यूनानी शासक कौन था?
उत्तर:
सबसे प्रसिद्ध भारतीय-यूनानी शासक मीनाण्डर था।

प्रश्न 78.
कुषाणकाल में कौन-सी नई मूर्तिकला का आरम्भ हुआ?
उत्तर:
कुषाणकाल में गान्धार कला की मूर्तिकला का आरंभ हुआ।

प्रश्न 79.
शक संवत् किस शासक ने चलाया?
उत्तर:
शक संवत् कनिष्क ने चलाया।

प्रश्न 80. शक कहाँ के मूल निवासी थे?
उत्तर:
शक मध्य एशिया के मूल निवासी थे।

प्रश्न 81.
सातवाहन राज्य में स्थानीय सामंतों को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
सातवाहन राज्य में स्थानीय सामंतों को महाभोज कहा जाता था।

प्रश्न 82.
भूमि दान-पत्रों को रखने वाले अधिकारी को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
भूमि दान-पत्रों को रखने वाले अधिकारी को पत्तिक पालक कहा जाता था।

प्रश्न 83.
व्याकरण विषय की तोलकाप्पियम पुस्तक किस भाषा में लिखी गई है?
उत्तर:
व्याकरण विषय की तोलकाप्पियम पुस्तक तमिल भाषा में लिखी गई है।

प्रश्न 84.
संगम साहित्य किस भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखा गया है।

प्रश्न 85.
‘बाइबिल ऑफ तमिल’ कौन-सी पुस्तक को कहा जाता है?
उत्तर:
‘बाइबिल ऑफ तमिल’ ‘तिरूक्कुराल’ पुस्तक को कहा जाता है।

प्रश्न 86.
तमिल कविता की आँडिसी कौन-सी पुस्तक है?
उत्तर:
तमिल कविता की आँडिसी मणिमेरवलॅम् पुस्तक है।

प्रश्न 87.
कौन-सी पुस्तक ‘बुक ऑफ मैरिज’ है?
उत्तर:
जीवक चिंतामणि ‘बुक ऑफ मैरिज’ है।

प्रश्न 88.
चोल शासकों में सबसे प्रतापी शासक का नाम बताइए।
उत्तर:
चोल शासकों में सबसे प्रतापी शासक का नाम कारिकाल था।

प्रश्न 89.
पुहार की स्थापना किसने की?
उत्तर:
पुहार की स्थापना राजा कारिकाल ने की।

प्रश्न 90.
चेर राज्य की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर:
चेर राज्य की राजधानी का नाम वज्जि था।

प्रश्न 91.
चेर राज्य के सबसे महान राजा का नाम तथा राज्य का प्रतीक चिहन बताइए।
उत्तर:
महान् राजा शेनगुटुन लाल चेर तथा राज्य का प्रतीक चिह्न धनुष था।

प्रश्न 92.
पाड्य राज्य की राजधानी का क्या नाम था?
उत्तर:
पांड्य राज्य की राजधानी का नाम मदुरा था।

प्रश्न 93.
रोम से प्रमुख व्यापार कौन-से युग में होता था?
उत्तर:
रोम से प्रमुख व्यापार संगम युग में होता था।

प्रश्न 94.
तिरुक्कुरल के लेखक कौन थे?
उत्तर:
तिरुक्कुरल के लेखक तिरुवल्लुवर थे।

प्रश्न 95.
गुप्त वंश का संस्थापक किसे माना जाता है?
उत्तर:
गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त को माना जाता है।

प्रश्न 96.
चन्द्रगुप्त प्रथम का शासनकाल बताएँ।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त प्रथम का शासनकाल 320 ई० से 335 ई० तक था।

प्रश्न 97.
गुप्त संवत् का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
गुप्त संवत् का प्रारम्भ 320 ई० पू० से हुआ।

प्रश्न 98.
गुप्त संवत् किसने चलाया?
उत्तर:
गुप्त संवत् चन्द्रगुप्त प्रथम ने चलाया।

प्रश्न 99.
लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी के साथ किस गुप्त सम्राट ने विवाह किया था?
उत्तर:
लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी के साथ चन्द्रगुप्त प्रथम ने विवाह किया था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 100.
चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपना उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त को नियुक्त किया।

प्रश्न 101.
समुद्रगुप्त गद्दी पर कब बैठा?
उत्तर:
समुद्रगुप्त गद्दी पर 335 ई० में बैठा।

प्रश्न 102.
दक्षिण विजय अभियान में समुद्रगुप्त ने कितने राजाओं के संगठन को पराजित किया?
उत्तर:
दक्षिण विजय अभियान में समुद्रगुप्त ने 12 राजाओं के संघ को पराजित किया।

प्रश्न 103.
किस गुप्त शासक ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी।

प्रश्न 104.
भारतीय नेपोलियन किसे कहा गया?
उत्तर:
भारतीय नेपोलियन समुद्रगुप्त को कहा गया।

प्रश्न 105.
इलाहाबाद स्तम्भ लेख का लेखक कौन था?
उत्तर:
इलाहाबाद स्तम्भ लेख का लेखक हरिषेण था।

प्रश्न 106.
अर्थशास्त्र पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
कौटिल्य।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुरालेख शास्त्र तथा पुरा लिपिशास्त्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेख मोहरों, प्रस्तर स्तंभों, स्तूपों, चट्टानों और ताम्रपत्रों (भूमि अनुदान पत्र) इत्यादि पर मिलते हैं। ये ईंटों या मूर्तियों पर भी मिलते हैं। इनके अध्ययन को पुरालेख शास्त्र (Ephigraphy) कहा जाता है। अभिलेखों तथा अन्य पुराने दस्तावेजों की तिथियों के अध्ययन को पुरालिपि शास्त्र (Palaeography) कहा जाता है।

प्रश्न 2.
600 ई०पू० में भारतीय उपमहाद्वीप पर विकसित हुए शहरों और कस्बों की सूची बनाइए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग छठी शताब्दी ई०पू० में विभिन्न क्षेत्रों में कई नगरों का उदय हुआ। ये नगर हड़प्पा सभ्यता के काफी समय बाद हड़प्पा क्षेत्रों से उत्तर:पूर्व में मुख्यतः गंगा-यमुना की घाटी में पैदा हुए। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। प्रमुख नगरों व कस्बों की सूची इस प्रकार से है-(1) पाटलिपुत्र, (2) उज्जयिनी, (3) कौशाम्बी, (4) अयोध्या, (5) श्रावस्ती, (6) काशी, (7) तक्षशिला अस्सपुर, (8) वैशाली, (9) कुशीनगर, (10) कपिलवस्तु, (11) साकेत, (12) मारूकच्छ (भड़ौच), (13) सोपारा, (14) तक्षशिला।

प्रश्न 3.
भूमि अनुदान पत्रों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूमि अनुदान पत्र अभिलेखों में ही सम्मिलित किए जाते हैं। इन दान पत्रों में राजाओं, राज्याधिकारियों, रानियों, शिल्पियों, व्यापारियों इत्यादि द्वारा दिए गए धर्मार्थ धन, मवेशी, भूमि आदि का उल्लेख मिलता है। राजाओं और सामंतों द्वारा दिए गए भूमि अनुदान पत्र का विशेष महत्त्व है क्योंकि इनमें प्राचीन भारत की व्यवस्था और प्रशासन से संबंधित जानकारी मिलती है। ईस्वी की आरंभिक शती से ऐसे अनुदान पत्र मिलने लगते हैं। अधिकांशतः ये ताम्रपत्रों पर खुदे हुए हैं। भूमि अनुदानकर्ता इन्हें दान प्राप्तकर्ता को प्रमाण के रूप में देते थे। सामान्यतः इन अनुदान पत्रों में भिक्षुओं, ब्राह्मणों, मंदिरों, विहारों, जागीरदारों और अधिकारियों को दिए गए गाँवों, भूमियों और राजस्व के दानों का विवरण उपलब्ध है।

प्रश्न 4.
अभिलेखों के साक्ष्य की सीमाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
इतिहास की पुनर्रचना में अभिलेख विश्वस्त स्रोत माने जाते हैं। परंतु इनकी अपनी सीमाएँ भी होती हैं

(1) कभी-कभी अभिलेखों के कुछ भाग नष्ट हो जाते हैं इससे अक्षर लोप हो जाते हैं। जिस कारण शब्दों वाक्यों का अर्थ समझ पाना कठिन हो जाता है।
राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

(2) एक सीमा यह भी रहती है कि अभिलेखों में उनके उत्कीर्ण करवाने वाले के विचारों को बढ़ा-चढ़ाकर व्यक्त किया जाता है। अतः तत्कालीन सामान्य विचारों से इनका संबंध नहीं होता। फलतः कई बार ये जन-सामान्य के विचारों और कार्यकलापों पर प्रकाश नहीं डाल पाते।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 Img 1

प्रश्न 5.
पंचमार्क सिक्कों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
विनिमय के साधन के रूप में सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। सबसे पहले छठी शती ई०पू० में चाँदी और ताँबे के आयताकार या वृत्ताकार टुकड़े बनाए गए। इन टुकड़ों पर ठप्पा मारकर अनेक प्रकार के चिह्न जैसे कि सूर्य, वृक्ष, मानव, खरगोश, बिच्छु, साँप आदि खोदे हुए थे। इन्हें पंचमार्क या आहत सिक्के कहते हैं। इस प्रकार के पंचमार्क सिक्के भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक स्थलों से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 6.
‘प्रयाग प्रशस्ति’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
प्रयाग प्रशस्ति का संबंध गुप्त शासक समुद्रगुप्त से है। इसका लेखक समुद्रगुप्त का राजकवि हरिषेण था। यह अभिलेख 33 लाइनों में संस्कृत भाषा में है। इससे हमें समुद्रगुप्त के चरित्र (गुणों) तथा सफलताओं की जानकारी मिलती है। समुद्रगुप्त के गुणों का बखान करते हुए प्रयाग प्रशस्ति में लिखा है-“धरती पर उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। अनेक गुणों और शुभकार्यों से संपन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को खत्म कर दिया है।” समुद्रगुप्त की तुलना परमात्मा से भी की गई है। “वे परमात्मा पुरुष हैं …….वे करुणा से भरे हुए हैं… वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति हैं।”

प्रश्न 7.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कौटिल्य का अर्थशास्त्र-मौर्यकालीन रचना है। इसके लेखक चाणक्य या विष्णुगुप्त या कौटिल्य हैं। कौटिल्य प्राचीन भारत का एक प्रमुख कूटनीतिज्ञ व नीतिकार था। वह मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य का शिक्षक व प्रधानमन्त्री था। पुस्तक के नाम से ऐसा आभास होता है कि इसकी विषय-सामग्री अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित है, परन्तु इसमें शासन-सम्बन्धी विश्लेषण मुख्य है।

इसमें शासक, उसकी सलाहकार परिषद्, जनता व शासक सम्बन्ध, न्याय व्यवस्था, शासन चलाने की प्रणाली, युद्ध नीति, विदेशी विशेषकर पड़ोसियों से सम्बन्धों के बारे में बताया है। यह रचना 15 खण्डों में विभाजित है। प्रत्येक खण्ड में लेखक ने तत्कालीन राजनीति, शासन-प्रबन्ध, भारत की स्थिति, समाज व संस्कृति को विस्तृत ढंग से बताया है।

प्रश्न 8.
अशोक के अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अशोक के अभिलेखों से हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन अभिलेखों से अशोक के साम्राज्य विस्तार, उसकी शासन-व्यवस्था, धम्म प्रणाली तथा उसके द्वारा बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए किए गए प्रयासों के प्रमाण उपलब्ध होते हैं। ये अभिलेख अशोक के चरित्र, उसकी पड़ोसियों के प्रति नीति तथा मौर्य कला पर भी प्रकाश डालते हैं।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 9.
अग्रहार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अग्रहार से हमारा अभिप्राय उस भूमि से है जो अनुदान पत्रों के माध्यम से ब्राह्मणों को दी जाती थी। इस भूमि में ब्राह्मणों को सभी प्रकार के करों से मुक्त रखा गया था। दूसरी ओर इस भूमि से जो आय होती थी वह ब्राह्मणों द्वारा धर्म एवं शिक्षा सम्बन्धी कार्यों पर खर्च की जाती थी।

प्रश्न 10.
गुप्तकाल में किए गए भूमि अनुदानों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारत में भूमि अनुदान की प्रणाली प्रथम शताब्दी ई० से प्रारंभ हो गई थी। उत्तरी भारत में भूमि अनुदान के उदाहरण गुप्तकाल में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। गुप्तकाल की भूमि अनुदान के संबंध में निम्नलिखित दो विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं

  • भूमि अनुदान मुख्य तौर पर ब्राह्मणों को एवं धार्मिक संस्थाओं को दिया जाता था।
  • दान देते समय दान प्राप्त करने वालों को उनके कर्तव्यों के बारे में स्पष्ट निर्देश दिए जाते थे।

प्रश्न 11.
गुप्तकालीन सिक्कों के बारे में जानकारी दीजिए। अथवा सोने के सिक्के के बारे में एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में सोने के कुछ सर्वाधिक सुंदर सिक्के गुप्त शासकों ने चलाए। अनेक सिक्कों पर विष्णु और गरुड़ के चित्र अंकित हैं। चन्द्रगुप्त प्रथम ने सबसे पहले सोने के सिक्के जारी किए। इन सिक्कों में एक ओर चंद्रगुप्त और कुमार देवी की आकृति और दूसरी ओर एक देवी की आकृति तथा नीचे लिच्छवयः शब्द उत्कीर्ण है। समुद्रगुप्त की वीणा बजाते हुए मुद्रा तथा ‘अश्वमेध पराक्रम’ अंकित मुद्रा इस संबंध में विशेष उल्लेखनीय हैं। चन्द्रगुप्त द्वितीय के चाँदी के सिक्कों से पता चलता है कि उसने शकों को हराया। गुप्तकालीन सिक्कों का वजन कुषाण शासकों के सिक्कों के समान है। परंतु कुछ विद्वानों का विश्लेषण है कि कुषाण सिक्कों में स्वर्ण धातु की मात्रा अधिक थी।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 Img 2

प्रश्न 12.
बाद के गुप्त शासकों के काल में सोने के सिक्कों की कमी आने लगी थी। इतिहासकार इसका क्या अर्थ निकालते हैं?
उत्तर:
भारत में छठी शताब्दी ई० से सोने के सिक्कों के संचय कम मिले हैं। स्कंदगुप्त के राज्य काल (467 ई०) के अन्त में सोने के सिक्कों में सोने की मात्रा कम होने लगी थी। कुछ इतिहासकारों ने यह मत व्यक्त किया है कि इस कमी का मुख्य कारण पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के बाद लंबी दूरी के व्यापार में कमी आना था। इससे भारत की संपन्नता प्रभावित हुई तथा इससे भारत में नगरों का पतन होने लगा।

परंतु कुछ अन्य इतिहासकार इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका तर्क है कि इस काल में नये नगरों तथा व्यापार के नेटवर्क का उदय हो रहा था। उनका मत है कि यह ठीक है कि सिक्के कम मिलने लगे हैं परंतु अभिलेखों और ग्रंथों में सिक्कों का उल्लेख है तो क्या इसका अर्थ यह लिया जाए कि सिक्के प्रचलन में अधिक थे तथा इनका संग्रहण न हुआ हो।

प्रश्न 13.
अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी लिपि पढ़ने में कौन सफल रहा?
उत्तर:
अशोक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। यह आधुनिक भारतीय लिपियों की उद्गम लिपि भी है। ब्राह्मी लिपि को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1838 में पढ़ने (De cipher) में सफलता पाई। प्रिंसेप ने पाया कि अधिकांश अभिलेखों एवं सिक्कों पर ‘पियदस्सी’ राजा का उल्लेख है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम अशोक भी लिखा था।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 Img 3
भारतीय इतिहासकार भारतीय शासकों की वंशावलियों की रचना के लिए विभिन्न अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग करने लगे थे। फलतः बीसवीं सदी के आरंभ तक भारत के राजनीतिक इतिहास की एक सामान्य रूपरेखा तैयार कर ली गई। इसके बाद इतिहासकार राजनीतिक परिवर्तन के संदर्भो को समझने का प्रयास करने लगे।

प्रश्न 14.
धम्म महामात्र कौन थे?
उत्तर:
अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की, इन्हें धम्म महामात्र कहा जाता था। अशोक ने धम्म नीति से अपने साम्राज्य में शांति-व्यवस्था तथा एकता बनाने का प्रयास किया। उसने लोगों में सार्वभौमिक धर्म के नियमों का प्रचार-प्रसार किया। अशोक के अनुसार, धर्म के प्रसार का लक्ष्य, लोगों के इहलोक तथा परलोक को सुधारना था। अशोक ने प्रचार करवाया कि धम्म के पालन से लोगों का जीवन इस संसार में और इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा। धम्म महामात्रों को व्यापक अधिकार दिए गए थे। उन्हें समाज के सभी वर्गों के कल्याण और सुख के लिए कार्य करना था।

प्रश्न 15.
‘कनिष्क ‘ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कनिष्क को इतिहास में एक महान शासक के रूप में जाना जाता है। वह कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। कनिष्क ने 78 ई० (लगभग) में राजगद्दी ग्रहण की। उसकी राजधानी पुरुषपुर थी। उसने अपने शासनकाल में पंजाब, कश्मीर, उज्जैन, मथुरा, मगध आदि क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। कनिष्क की चीन विजय को सबसे महानतम विजय कहा जाता है। उसने चीन के शासक को युद्ध में पराजित करके काफी बड़े क्षेत्र को अपने राज्य में शामिल किया था। कनिष्क एक धार्मिक प्रवृत्ति का बुद्धिमान शासक था। वह मूल रूप से सूर्य की पूजा किया करता था। कनिष्क ने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया तथा उसका अनुसरण किया।

बौद्ध धर्म की नवीन शाखा ‘महायान’ के प्रचार-प्रसार में कनिष्क का महत्त्वपूर्ण योगदान था। उसने बौद्ध धर्म से संबंधित कई स्तूपों तथा मठों का निर्माण करवाया। उसने देश-विदेश में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए प्रचारक नियुक्त किए। बौद्ध धर्म की चौथी सभा का आयोजन कनिष्क द्वारा ही करवाया गया था। इस सभा में शामिल भिक्षुओं ने अपने विचारों तथा अनुभव के आधार पर बौद्ध धर्म में चल रहे मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया। कनिष्क बौद्ध भिक्षुओं की धन से भी सहायता करता था ताकि बौद्ध धर्म का प्रचार निर्बाध गति से चलता रहे।

प्रश्न 16.
अशोक के धर्म के कोई दो सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:
(i) सहिष्णुता यह अशोक के धम्म का प्रमुख सिद्धांत है। इसका आधार ‘वाणी पर नियन्त्रण’ है। मनुष्य को अवसर के महत्त्व को देखकर बात करनी चाहिए। अपने स्वयं के धर्म की भी अत्यधिक प्रशंसा तथा दूसरों के प्रति मौन रहने से भी तनाव ही बढ़ता है। मनुष्य को दूसरे आदमी के सम्प्रदाय का आदर भी करना चाहिए।

(ii) अहिंसा-धम्म का दूसरा बुनियादी सिद्धान्त अहिंसा था। इसके मुख्यतः दो पहलू थे-पहला इसके अन्तर्गत पशु-पक्षियों के वध पर रोक लगाई गई। अहिंसा का दूसरा पहलू हिंसात्मक युद्धों (भेरिघोष) को त्यागकर धम्म विजय (धम्मघोष) अपनाना था। वृहद् शिलालेख XIII में उसने कलिंग युद्ध के दौरान हुई विनाशलीला का बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

प्रश्न 17.
छठी शताब्दी ई०पू० में नगरों में शिल्पकारों एवं व्यापारियों की श्रेणियों (Guilds) के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पू० में गंगा-यमुना की घाटी में नगरों का उदय एवं विकास होने लगा। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थे। इन नगरों में राजा, सेना, राज्याधिकारियों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में शिल्पकार और व्यापारी भी रहते थे।

इन शिल्पकारों एवं व्यापारियों की श्रेणियों या संघों का भी उल्लेख मिलता है। प्रत्येक श्रेणी का एक अध्यक्ष होता था। इन श्रेणियों में विभिन्न व्यवसायों से जुड़े कारीगर सम्मिलित होते थे। प्रमुख शिल्पकार श्रेणियाँ थीं-धातुकार (लुहार, स्वर्णकार, ताँबा, कांसा व पीतल का काम करने वाले), बढ़ई, राजगीर, जुलाहे, कुम्हार रंगसाज, बुनकर, कसाई, मछुआरे इत्यादि। ये श्रेणियाँ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करती थीं, उन्हें ऋण प्रदान करती थीं और उनका धन संचय करती थीं।

श्रेणियाँ कच्चा माल खरीदती थीं और तैयार माल बाजार में बेचती थीं। ये माल तैयार करने के नियमों का निर्धारण करती थीं। ये श्रेणियाँ अपने सदस्यों के आपसी विवादों को सुलझाती थीं। कई बार ये सिक्के भी जारी करती थीं। ये श्रेणियाँ शिक्षण संस्थाओं या धार्मिक संस्थाओं को दान भी देती थीं। सांची स्तूप पर उत्कीर्ण लेख से पता चलता है कि इसके कलात्मक दरवाजों में से एक दरवाजा हाथी दांत का काम करने वाले शिल्पियों के संघ ने बनवाया था।

प्रश्न 18.
पाटलिपुत्र के उत्कर्ष व पतन के बारे में आप क्या जानते हैं? .
उत्तर:
यह अत्यंत उत्सुकता का विषय है कि पाटलिपुत्र का उत्कर्ष व पतन कैसे हुआ। पहले यह एक छोटा-सा गाँव था जो पाटलि के नाम से जाना जाता था। 5वीं सदी ई०पू० में मगध के शासकों ने यहाँ पर राजधानी बदली तथा इसका नाम पाटलिपुत्र कर दिया। चौथी सदी ई०पू० में यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी रहा। इस काल में यह एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक था। बाद में इसका पराभव होने लगा। जब 7वीं सदी ई० में चीनी यात्री ह्यूनसांग ने इस स्थल का दौरा किया तो उसने यहाँ पर नगर के भग्नावशेष को देखा। उसने लिखा कि यहाँ पर बहुत कम लोग रह रहे थे। वर्तमान में यह नगर पटना के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19.
मैगस्थनीज़ और उसकी पुस्तक इंडिका के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मैगस्थनीज़ को फारस और बेबीलोन के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत बनाकर भेजा गया था। वह पाटलिपुत्र में 302 ई० पूर्व से 298 ई०पूर्व तक रहा। इसने भारत के सम्बन्ध में इंडिका नामक पुस्तक लिखी जो मौर्यकालीन भारत के सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विदेशी वृत्तांत है। इसमें उसने तत्कालीन भारत की प्राकृतिक स्थिति, मिट्टी, जलवायु, पशु-पौधे व शासन-प्रणाली तथा सामाजिक एवं धार्मिक अवस्था का विषद वर्णन किया है।

यद्यपि इस ग्रंथ में मैगस्थनीज़ ने कुछ बातें सुनी-सुनाई और अविश्वसनीय लिखी हैं, फिर भी ए०एल०बाशम का यह कथन उपयुक्त लगता है, “चाहे मैगस्थनीज़ का लेख उतना पूर्ण एवं यथार्थ नहीं जितना कि हम चाहते हैं, फिर भी इसका महत्त्व है क्योंकि यह एक विदेशी यात्री का भारत के बारे में प्रामाणिक एवं सम्बद्ध वृत्तांत है।” परन्तु दुर्भाग्यवश उसकी मूलकृति (इंडिका) उपलब्ध नहीं है। इसकी जानकारी हमें परवर्ती यूनानी लेखकों (स्ट्रेबो, डियोडोरस, प्लीनी ज्येष्ठ, एरियन, प्लूटार्क आदि) द्वारा अपनी पुस्तकों में दिए गए उद्धरणों से ही मिलती है।

प्रश्न 20.
प्राचीन काल में राजाओं द्वारा भूमि अनुदान क्यों किया जाता था?
उत्तर:
भारत में पहली सदी ई० से शासकों द्वारा भूमि अनुदान देने के प्रमाण मिलने शुरू हो जाते हैं। ये अनुदान धार्मिक संस्था, ब्राह्मणों, भिक्षुओं आदि को दिए जाते थे। इतिहासकारों का मानना है कि भूमि अनुदान अनेक कारणों से दिए गए जो निम्नलिखित अनुसार थे

  • कुछ का मानना है कि शासक अपने धर्म व संस्कृति का प्रसार कर राज्य का विस्तार तथा स्थायित्व चाहते थे।
  • शासक कृषि क्षेत्र का विस्तार करना चाहते थे।
  • इन भूमि अनुदानों से शासक स्थानीय प्रभावशाली और शक्तिशाली वर्ग का समर्थन प्राप्त करना चाहते थे।
  • एक अन्य विचार यह भी है कि शासक अपने आपको समाज के अन्य लोगों से श्रेष्ठ और उच्च मानवीय गुणों वाला दिखाना चाहते थे।

प्रश्न 21.
मौर्यकाल में सैन्य प्रबंध से जडी दूसरी उपसमिति का क्या कार्य था?
उत्तर:
यह उपसमिति यातायात और खानपान की व्यवस्था देखती थी। इसके लिए उसे निम्नलिखित कार्य करने पड़ते थे

  • सेना के हथियार ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना।
  • सैनिकों के लिए भोजन तथा पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करना।
  • सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।

प्रश्न 22.
राष्ट्रवादी इतिहासकारों के लिए अशोक प्रेरणा का स्रोत क्यों था?
उत्तर:
उपनिवेशिक काल में भारत में राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इतिहास लिखते हुए अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना। उनके सकों की तुलना में काफी शक्तिशाली और परिश्रमी था। उसके राज्य का आदर्श उच्च था। वह उन शासकों की अपेक्षा बहुत ही विनीत था, जो अपने नाम के साथ बड़ी-बड़ी उपाधियाँ लगाते थे। अशोक के इन्हीं गुणों के कारण उसे राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने प्रेरणा का स्रोत माना।

प्रश्न 23.
‘मौर्य साम्राज्य का उतना महत्त्व नहीं है जितना कि बताया गया है’ इसे स्पष्ट करते हुए तीन तर्क दीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने मौर्य साम्राज्य को अत्यधिक महत्त्व दिया है, परंतु कुछ इतिहासकारों ने इसको नकारा है। उन्होंने इसके लिए निम्नलिखित तर्क दिए हैं

  • मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष ही चला जो कोई बड़ा काल नहीं है।
  • मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के सारे भागों पर फैला हुआ नहीं था।
  • साम्राज्य की सीमा में भी सभी भागों पर एक-सा नियंत्रण नहीं था।

प्रश्न 24.
भारतीय उपमहाद्वीप में छठी सदी ई०पू० में उदय होने वाले नगरों की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप पर छठी सदी ई०पू० में अनेक नगरों का उदय हुआ। इन नगरों की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  • इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थे।
  • प्रायः ये सभी नगर स्थल या नदी मार्गों पर बसे थे।
  • मथुरा जैसे नगर सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों के केंद्र थे।

प्रश्न 25.
सरदार कौन होते थे? इनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद अनेक क्षेत्रों में शक्तिशाली सरदारों का उदय हुआ। इनका पद पैतृक भी हो सकता था और नहीं भी। ये सरदार विशेष धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते थे। युद्ध के समय ये सेना का नेतृत्व करते थे। साथ ही विवादों को सलझाने में भी मध्यस्थ का काम करते थे। ये सरदार अपने अधीनस्थ लोगों से भेंट प्राप्त करते थे और उसका कछ भाग अपने समर्थकों में बाँटते थे।

प्रश्न 26.
‘छठी शताब्दी ई०पू० में उपमहाद्वीप में पनपे सभी नगर संचार मार्गों पर बसे हुए थे। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह बात सही है कि इस काल में पनपे नगर संचार मार्गों पर बसे हुए थे। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित अनुसार है

  • पाटलिपुत्र जैसे नगर नदी मार्ग के किनारे बसे थे।
  • उज्जैन जैसे कुछ नगर भू-तल मार्गों पर बसे थे।
  • पुहार जैसे नगर समुद्रतट पर समुद्री मार्ग पर स्थित थे।

प्रश्न 27.
प्रभावती कौन थी?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त II (375-415 ई०) की पुत्री थी। उसका विवाह वाकाटक शासक से हुआ। प्रभावती के बारे में विशेष बात यह है कि उसने भूमि अनुदान दिया था जो किसी महिला द्वारा भूमिदान का विरला उदाहरण है।

प्रश्न 28.
‘पेरिप्लस ऑफ एरीथ्रियन सी’ नामक पुस्तक किस बात पर प्रकाश डालती है?
उत्तर:
पेरिप्लस’ एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है समुद्री रास्ता और ‘एरीथ्रियन’ शब्द का यूनानी में अर्थ है ‘लाल सागर’। इसका लेखक कोई यूनानी है। इस रचना में 80-115 ई० के मध्य रोम को निर्यात होने वाली व्यापारिक मदों का विवरण दिया गया है। इन मदों में भारत से निर्यात होने वाली वस्तुएँ थीं काली मिर्च, दाल-चीनी जैसे गर्म मसाले। इसके बदले में भारत में बहुमूल्य वस्तुएँ (पुखराज, मूंगे, हीरे, सोना आदि) आयात की जाती थीं।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 29.
अशोक द्वारा धारण की गई दो उपाधियाँ कौन-सी थीं? उनका अर्थ भी बताइए।
उत्तर:
अशोक द्वारा धारण की गई दो उपाधियाँ निम्नलिखित थीं

  • देवानांपिय,
  • पियदस्सी। ‘देवानांपिय’ का अर्थ है-देवताओं का प्रिय तथा ‘प्रियदस्सी’ का अर्थ है-‘देखने में सुंदर’।

प्रश्न 30.
‘शिल्पादिकारम’ के विवरण से पता चलता है कि पांड्य सरदारों को लोग उपहार देते थे। स्पष्ट कीजिए कि लोग उपहार क्यों देते थे तथा ये सरदार उनका उपयोग किसलिए करते होंगे?
उत्तर:
शिल्पादिकारम् में विवरण मिलता है कि लोगों ने पांड्य सरदार को उपहार में अनेक वस्तुएँ (जैसे हाथीदाँत, शहद, चंदन, हल्दी, इलायची, काली मिर्च, बड़े नारियल, आम, फल, जानवरों व पक्षियों के बच्चे) दीं। लोगों का मानना था कि वे राजा के शासन में रह रहे थे। ये उपहार राजा का सम्मान करने के लिए दिए गए। सरदार इन उपहारों का उपयोग स्वयं करते होंगे अथवा इन्हें अपने समर्थकों के बीच बँटवा देते होंगे।

प्रश्न 31.
600 ई०पू० के बाद नद्री घाटियों और समुद्रतट पर विकसित हुए शहरों और कस्बों की सूची बनाइए। इन शहरों को हम भारत के शहरीकरण की अवस्था क्यों कहते हैं?
उत्तर:
इस काल में विकसित हुए नदी घाटियों तथा समुद्र तटीय नगरों के नाम निम्नलिखित प्रकार से हैं

  • नदी घाटियों में विकसित नए शहर थे-राजगृह, राजगीर, पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, सारनाथ, वाराणसी, मथुरा, कन्नौज, तक्षशिला, सुवर्णगिरि, नालंदा आदि।
  • समुद्रतट पर विकसित हुए शहर थे-चंपा, पुहार, मालाबार, कोदूमनाल, भृगुकच्छ आदि।

हड़प्पा सभ्यता से जुड़े शहरों के पतन के बाद लगभग 1500 वर्षों तक भारत में नगरों का उल्लेख नहीं मिलता है। 1500 वर्षों के बाद नए नगर उत्तरी भारत व अन्य क्षेत्रों में विकसित हुए तो इन नगरों को इतिहासकारों ने भारत में शहरीकरण की दूसरी अवस्था का नाम दिया है।

प्रश्न 32.
मौर्योत्तर काल में कौन-कौन से प्रमुख शिल्प थे?
उत्तर:
मौर्योत्तर काल में वस्त्र बनाने, रेशम बुनने, अस्त्रों एवं विलासिता का निर्माण, लोहारों, धातु शिल्पियों, सुनार, रंगरेज (कपड़ा रंगना), दंत शिल्प, मूर्तिकार गंधियों इत्यादि के प्रमुख कार्य थे।

प्रश्न 33.
रेशम मार्ग किसे कहते हैं? भारत इससे कैसे जुड़ा था?
उत्तर:
चीन से रेशम रोमन साम्राज्य को भेजा जाता था। जिस मार्ग से रेशम चीन से रोमन साम्राज्य जाता था, वह मार्ग रेशम मार्ग (Silk Route) के नाम से जाना जाता था। यह मार्ग चीन से शुरु होकर मध्य एशिया से अफगानिस्तान और ईरान होता हुआ रोम साम्राज्य में पहुँचता था। ईरान से पार्थियन साम्राज्य की स्थापना होने से इस मार्ग में बाधा आई। तब यह रेशम मध्य एशिया से अफगानिस्तान और फिर भारत आकर पश्चिम बंदरगाहों से रोमन साम्राज्य को जाने लगा।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अशोक के प्रमुख अभिलेखों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
देश में सबसे पुराने अभिलेख ईसा पूर्व तीसरी सदी के अशोक के शिलालेख-स्तंभ लेख हैं। प्रमुख नगर या व्यापार मार्गों पर स्थित ये अभिलेख सारे भारतवर्ष में पाए गए हैं। अफगानिस्तान में ये अरामेइक और यूनानी लिपि में हैं। पाकिस्तान में खरोष्ठी लिपि में तथा शेष भारत में ब्राह्मी लिपि में हैं। अशोक के ये अभिलेख सामाजिक, धार्मिक तथा प्रशासनिक राज्यादेशों या शासनादेश की श्रेणी में आते हैं। अशोक के प्रमुख अभिलेख निम्नलिखित हैं

1. चौदह वृहद् शिलालेख-बड़े-बड़े शिलाखंडों पर उत्कीर्ण शिलालेख दिए गए स्थानों पर मिले हैं-मानसेहरा (पाकिस्तान), कलसी (देहरादून, उत्तराखंड), गिरनार (गुजरात), शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान), सोपारा (महाराष्ट्र), धौली और जौगड़ (ओडिशा), मास्की और एरगुड़ि (आन्ध्र प्रदेश)।।

2. लघु शिलालेख-ये शिलालेख प्राप्त हुए हैं-रूपनाथ (जबलपुर, मध्यप्रदेश), गुजरो (दतिया, आंध्र प्रदेश)। इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका प्रारंभ देवनाम् प्रियस अशोक राजस् शब्दों से हुआ है। सहसराम (शाहबाद, बिहार), मास्की (आन्ध्र प्रदेश), ब्रह्मगिरि (कर्नाटक), सिद्धपुर (ब्रह्मगिरि के पश्चिम में), अरहौरा (मिर्जापुर), दिल्ली, भाव-बैराट (राजस्थान)।

3. स्तम्भ लेख-ये छह स्थानों पर हैं-दिल्ली-टोपरा, दिल्ली-मेरठ, प्रयाग, रामपुरवा, लौरिया नंदनगढ़ व लौरिया अरराज। इनमें से प्रयाग स्तंभ लेख काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें अशोक द्वारा संघ के नियम पालन के लिए भिक्षु-भिक्षुणियों को निर्देश हैं। इसी स्तंभ पर एक और लेख भी मिला है जिसमें अशोक की रानी कारूवारी के द्वारा बौद्ध संघ को दान का उल्लेख है। इसलिए इसको रानी अभिलेख (Queen Edict) भी कहा जाता है। इन अभिलेखों के अतिरिक्त बैराट, सारनाथ, सांची, कौशाम्बी में लघु स्तंभ लेख, धौली व जौगड़ में कलिंग शिलालेख भी प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 2.
अभिलेखों से ऐतिहासिक साक्ष्य किस प्रकार प्राप्त किए जाते हैं? अशोक के अभिलेखों से उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
इतिहासकार और अभिलेखशास्त्री अभिलेखों से किस प्रकार साक्ष्य प्राप्त करते हैं तथा उन साक्ष्यों की सत्यता को स्थापित करने में उन्हें क्या-क्या समस्याएँ आती हैं? यह इतिहास पुनर्निर्माण की प्रक्रिया की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। अशोक के अभिलेखों में साक्ष्य प्राप्त करने व उससे जुड़ी समस्याओं के अध्ययन से इसको समझा जा सकता है। अशोक के अधिकांश शिलालेखों पर उसका नाम नहीं लिखा है।

इन अभिलेखों मैं केवल देवानांपिय (देवताओं का प्रिय) और पियदस्सी (प्रियदर्शी) का उल्लेख है। कुछ अभिलेखों में अशोक का नाम था तथा बौद्ध ग्रंथों में अशो गया था। अभिलेख शास्त्रियों ने शैली, भाषा और पुरालिपि विज्ञान के आधार पर परीक्षण कर निष्कर्ष निकाला कि ये अशोक की ही उपाधियाँ थीं तथा यह एक ही शासक था।

अशोक यह दावा करता है कि उससे पूर्व किसी शासक के द्वारा अपने राज्य में प्रतिवेदन (Reports) प्राप्त करने की व्यवस्था नहीं थी। क्या यह दावा ठीक है? क्या यह सत्य है कि उसके पूर्व के राजनीतिक इतिहास में यह व्यवस्था नहीं थी। अभिलेखों के परीक्षण से पता लगता है कि यह बात बढ़ा-चढ़ा कर कही गई है। अशोक के अभिलेखों में कोष्ठकों (Words Within brackets) में शब्द लिखे गए हैं। अभिलेखशास्त्री कभी-कभार इनके साथ कुछ शब्द जोड़कर इनका अर्थ निकालने का प्रयास करते हैं। परंतु साथ ही यह भी ध्यान में रखते हैं कि कहीं मौलिक अर्थ में परिवर्तन न आ जाए।

अशोक ने अपने अधिकांश अभिलेखों को किसी नगर या व्यापारिक मार्गों के समीप लगवाया। इसका क्या अर्थ निकाला जाए ? क्या सभी गुजरने वाले रुककर इन्हें पढ़ते थे। जबकि अधिकतर लोग अशिक्षित होंगे। क्या सारे उपमहाद्वीप पर प्राकृत भाषाओं को समझा जाता था? क्या सम्राट की आज्ञाओं का सभी लोग पालन करते थे। इन साक्ष्यों के आधार पर प्रश्नों के उत्तर जान पाना आसान नहीं है।

अशोक के अभिलेखों में एक अन्य समस्या उभरती है। अशोक अपने 13वें शिलालेख में कलिंग की विजय तथा उससे होने वाली वेदना का विवरण देता है। इससे युद्ध के प्रति उसके व्यवहार में परिवर्तन आया। उसने धम्म विजय का मार्ग अपनाया। परंतु यह स्थिति जटिल हो जाती है जब हम लेख के ऊपरी अर्थ को छोड़कर आगे बढ़ते हैं। दूसरा, उड़ीसा (ओडिशा) से प्राप्त हुए अभिलेखों में अशोक की वेदना का उल्लेख नहीं है। क्या इसका अर्थ यह है कि ये अभिलेख उस क्षेत्र में नहीं हैं जो जीता गया था या इसका अर्थ यह लिया जाए कि उस क्षेत्र में स्थिति अत्यधिक कष्टप्रद थी। अतः शासक उस मुद्दे को बता ही नहीं पाया।

प्रश्न 3.
मुद्राशास्त्र क्या है?
उत्तर:
सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (Numismatics) कहा जाता है। मुद्राशास्त्र में सिक्कों की बनावट, लिखावट, दृष्यांक आदि का अध्ययन किया जाता है। साथ ही उनमें प्रयोग की गई धातु तथा उनकी प्राप्ति के स्थान का भी विश्लेषण किया जाता है। पुरातात्विक सामग्री में सिक्कों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

शासकों की राज्य सीमा, राज्यकाल, आर्थिक स्थिति तथा धार्मिक विश्वासों के संबंध में सिक्के महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इनसे सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व की जानकारी भी प्राप्त होती है। मुद्रा प्रणाली का आरंभ मानव की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है। मुद्राशास्त्रियों ने इनका अध्ययन कर प्रमुख राजवंशों के सिक्कों की सूचियाँ तैयार की हैं।

भारत में सबसे पहले छठी सदी ई०पू० में चाँदी व ताँबे के आहत सिक्के प्रयोग में आए। पूरे महाद्वीप में खुदाई के दौरान सिक्के मिले हैं। मौर्य काल में सिक्के जारी किए गए। हिंदू-यूनानी शासकों ने सिक्कों पर प्रतियाँ और नाम लिखवाया। कुषाण शासकों ने सोने के सिक्के जारी किए। दक्षिण भारत में भी शासकों ने सिक्के जारी किए। वहाँ से रोमन सिक्के भी मिले हैं। बड़े पैमाने पर गुप्त शासकों के सोने के सिक्के मिले हैं। ये सिक्के काफी भव्य हैं। भारत के अनेक संग्रहालयों (कोलकाता, पटना, लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि) में ये सिक्के सुरक्षित हैं।

प्रश्न 4.
हिन्द-यूनानी व कुषाण सिक्कों की जानकारी दें।
उत्तर:
यूनानी प्रभाव के अन्तर्गत हिन्द-यूनानी शासकों ने मौर्योत्तर काल (लगभग दूसरी सदी ई०पू०) में पहली बार इतने बड़े सिक्के जारी किए जिन पर शासक का नाम तथा चित्र बने थे। इन सिक्कों से यह स्पष्ट था कि ये सिक्के किन-किन राजाओं के हैं। मिनांडर के सिक्के बड़ी मात्रा में पाए गए हैं। मौर्योत्तर काल में कुषाण शासक व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 Img 4
उनका साम्राज्य मध्य एशिया से मध्य भारत तक फैला हुआ था। मध्य एशिया के व्यापार मार्गों पर इनका नियंत्रण था। उल्लेखनीय है कि कुषाण शासकों ने पहली बार नियमित रूप से सोने के सिक्के चलाए। कुषाणों के चाँदी के सिक्के नहीं मिलते। संभवतः यूनानियों और शकों के चाँदी के सिक्के कुषाण साम्राज्य में बिना रोक-टोक चलते थे।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 Img 5
कुषाणों के सिक्कों तथा समकालीन रोमन सिक्कों के वजन में समानता पाई गई है। रोमन और पार्थियन सिक्के उत्तरी और मध्य भारत में अनेक स्थलों से प्राप्त हुए हैं। अधिकांश रोमन सिक्के सोने और चाँदी के हैं।

प्रश्न 5.
महाजनपदों की आय के स्रोतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक महाजनपद की अपनी राजधानी (Capital) थी जिसकी किलेबंदी की जाती थी। राज्य को किलेबंद शहर, सेना और नौकरशाही के लिए आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होती थी। धन के अभाव में राज्य की व्यवस्था का सच पाना कठिन था। तत्कालीन धर्मशास्त्रों में इस संबंध में अनेक उल्लेख पाए गए हैं। इस काल में रचित इन धर्मशास्त्रों में शासक तथा लोगों के लिए नियमों का निर्धारण किया गया है।

इन शास्त्रों में राजा को यह सलाह दी गई कि वह कृषकों, व्यापारियों और दस्तकारों से कर तथा अधिकार (Tribute) प्राप्त करे। किन्तु हमें इस बात की जानकारी नहीं मिलती कि राजा वनवासी और पशुचारी समुदायों से भी धन वसूलते थे या नहीं। हाँ पड़ोसी राज्य पर हमला कर धन लूटना या प्राप्त करना वैध (Legitimate) उपाय बताया गया। धीरे-धीरे इनमें से कई राज्यों ने स्थायी सेना और नौकरशाही तंत्र का गठन कर लिया था परंतु कुछ राज्य अभी भी अस्थायी थे।

प्रश्न 6.
मौर्य साम्राज्य के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्त्व है। मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का पहला ऐतिहासिक साम्राज्य था जो लगभग 150 वर्षों (321 ई०पू० से 185 ई०पू०) तक अस्तित्व में रहा। इस काल की राजनीतिक और भौतिक-सांस्कृतिक उपलब्धियों को लेकर इतिहासकारों के विचारों को निम्नलिखित दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है

(1) 19वीं सदी में भारत के इतिहासकारों ने जब अपने प्रारंभिक इतिहास का पुनर्निर्माण शुरू किया तो उन्होंने मौर्य साम्राज्य के उदय को महत्त्वपूर्ण सीमा रेखा (land mark) स्वीकारा। 19वीं तथा 20वीं सदी के राष्ट्रवादी इतिहासकार यह संभावना देखकर भाव-विभोर हो उठे कि प्रारंभिक भारत में एक इतने महत्त्वपूर्ण साम्राज्य का जन्म हुआ था। पुरातात्विक प्रमाणों से भी साम्राज्य की पाषाण मूर्तियों का पता लगा कि वे मूर्तियाँ कला के अद्भुत नमूने थीं। इस काल में शिल्पकला का चरम विकास हुआ। इस काल अशोक के पाषाण स्तंभों में सारनाथ का स्तम्भ सर्वाधिक सुंदर नमूना है।

इसमें परस्पर पीठ सटाए बैठे चार शेरों की आकृतियाँ हैं। शीर्ष के नीचे गोलाई पर हाथी, बैल, सिंह व घोड़े की दौड़ती हुई आकृतियाँ हैं। इनके बीच-बीच में चार धर्म-चक्र उत्कीर्ण किए हुए हैं जो बौद्ध धर्म के धर्म-चक्र प्रवर्तन के प्रतीक रूप हैं। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र ने इस सारनाथ स्तंभ के शीर्ष को राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न स्वीकार किया है। इतिहासकारों को यह जानकर भी सुखानुभूति हुई कि अशोक के अभिलेखों के संदेश दूसरे शासकों के आदेशों के बिल्कुल भिन्न थे।

ये अभिलेख उन्हें बताते थे कि अशोक बहुत ही शक्तिशाली तथा मेहनती सम्राट था जो विनम्रता से (बिना बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण किए) जनता को पुत्रवत मानकर उनके नैतिक उत्थान में लगा रहा। इस प्रकार इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इन इतिहासकारों ने अशोक को प्रेरणादायक व्यक्तित्व स्वीकारा तथा मौर्य साम्राज्य को अत्यधिक महत्त्व दिया।

(2) स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के भारतीय इतिहासकार मौर्य साम्राज्य के प्रति राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से थोड़ा अलग मत रखते हैं। वे राष्ट्रवादी इतिहासकारों की महिमामण्डन करने वाली शैली से सहमत नहीं हैं। उनका मत है कि मौर्य साम्राज्य दीर्घकाल तक जीवित नहीं रहा। यह उपमहाद्वीप के इतिहास में लगभग 150 वर्षों तक रहा जो कोई लंबा काल नहीं है। इसके अतिरिक्त इस साम्राज्य में उपमहाद्वीप के संपूर्ण क्षेत्र शामिल नहीं थे। यहाँ तक कि मौर्य साम्राज्य की सीमाओं के भीतर भी साम्राज्य के सारे हिस्सों . पर केंद्रीय सत्ता का पूर्ण नियंत्रण नहीं था। फलतः दूसरी सदी ई०पू० में भारत के अनेक भागों में नए-नए राजवंश तथा राज्य अस्तित्व में आने लगे थे।

प्रश्न 7.
पाटलिपुत्र के प्रशासन पर मैगस्थनीज़ के विवरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैगस्थनीज़ ने पाटलिपुत्र के प्रशासन का काफी विस्तृत विवरण दिया है। नगर प्रशासन चलाने के लिए अलग से अधिकारी वर्ग होता था। नगर का सर्वोच्च अधिकारी नागरक अथवा नगराध्यक्ष कहलाता था। नगर में आधुनिक मजिस्ट्रेट का कार्य नगर व्यवहारक महामत करता था। उसके अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों की एक परिषद् करती थी, जो 6 उपसमितियों में विभाजित थी। प्रत्येक समिति में 5-5 सदस्य थे।

1. पहली समिति-यह शिल्प उद्योगों का निरीक्षण करती थी एवं शिल्पकारों के अधिकारों की रक्षा भी करती थी।

2. दसरी समिति-यह विदेशी अतिथियों का सत्कार. उनके आवास का प्रबंध तथा उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का क करती थी। उनकी चिकित्सा का प्रबंध भी करती थी।

3. तीसरी समिति-यह जनगणना तथा कर निर्धारण के लिए, जन्म-मृत्यु का ब्यौरा रखती थी।

4. चौथी समिति-यह व्यापार की देखभाल करती थी। इसका मुख्य काम तौल के बट्टों तथा माप के पैमानों का निरीक्षण तथा सार्वजनिक बिक्री का आयोजन यानी बाजार लगवाना था।

5. पाँचवीं समिति-यह कारखानों और घरों में बनाई गई वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण करती थी। विशेषतः यह ध्यान रखती थी कि व्यापारी नई और पुरानी वस्तुओं को मिलाकर न बेचें। ऐसा करने पर दण्ड की व्यवस्था थी।

6. छठी समिति-इसका कार्य बिक्री कर वसूलना था। जो वस्तु जिस कीमत पर बेची जाती थी, उसका दसवां भाग बिक्री कर के रूप में दुकानदार से वसूला जाता था। यह कर न देने पर मृत्युदण्ड की व्यवस्था थी।

प्रश्न 8.
भूमि अनुदान के फलस्वरूप ग्रामों में उभरे नए संभ्रांत वर्ग कौन-से थे?
उत्तर:
भारत में प्रथम सदी ई० से भूमि अनुदान दिए जाने के प्रमाण मिलने लगते हैं। राजा या बड़े व्यक्तियों द्वारा धार्मिक महत्त्व की संस्था या व्यक्तियों को भूमि अनुदान के साथ-साथ प्रमाण के रूप में दिए गए पत्र को भूमि अनुदान पत्र कहा जाता था। इनमें से कुछ अनुदान पत्र पाषाण पर खुदे हुए हैं तथापि अधिकांश अनुदान पत्र हमें ताम्रपत्रों पर उपलब्ध होते हैं। प्रारंभ में ऐसे भूमि अनुदान पत्र मुख्य रूप से ब्राह्मणों या धार्मिक संस्थाओं; जैसे मंदिर, मठ, विहार आदि को दिए गए। बाद में राजकीय अधिकारियों तथा सेना के अधिकारियों की भी भूमि अनुदान प्रथा शुरू हुई।

प्रारंभ में ये अनुदान पत्र संस्कृत भाषा में प्राप्त होते थे बाद में स्थानीय भाषाओं; जैसे तमिल, तेलुगू आदि में भी मिलने लगे। विभिन्न शासकों द्वारा अनुदान पत्र (Land Grants by Different Rulers) मौर्यकाल में कौटिल्य ने लिखा है कि राजा ब्राह्मणों, राज्याधिकारियों, राजकुमारों, रानियों, सेना की टुकड़ी रखने के बदले जमींदारों को भूमि अनुदान कर सकता है।

सातवाहन शासक वासिष्ठी पुत्र पुलाभावी ने गुफा में रहने वाले भिक्षुओं को गाँव अनुदान किया तथा अनुदान पत्र प्रदान किया। साथ ही इस अनुदान पत्र में यह आदेश था कि राजकीय कर्मचारी या पुलिस इस गाँव में प्रवेश न करे। परंतु राजा ऐसे अनुदान को रद्द भी कर सकता था। गौतमी पुत्र सातकर्णी ने भी भूमि अनुदान की। नासिक अभिलेख में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि अनुदान में दिए गए गाँव में कोई सरकारी अधिकारी प्रवेश नहीं करेगा तथा कोई भिक्षुओं को नहीं छुएगा।

गुप्तकाल में अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सम्राटों ने धार्मिक कार्यों या परोपकार के लिए अनेक गाँव अनुदान में दिए। सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त द्वारा दिए अनुदान पत्र का विवरण हमें प्राप्त होता है। प्रभावती ने अभिलेख में ग्राम कुटुंबिनों (गृहस्थ और कृषक), ब्राह्मणों और दंगुन गाँव के अन्य निवासियों को स्पष्ट आदेश दिया। उस समय गाँवों में अनेक वस्तुओं का उत्पादन होता था। ग्रामों में अन्न उत्पादन के अलावा घास, जानवरों की खाल व कोयला प्राप्त होता था। मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, फल-फूल, दूध आदि भी गाँवों के उत्पादों में मुख्य थे। सरकार इन सबको प्राप्त करने का अधिकार अग्रहार ग्रामों (अनुदानित ग्रामों) में अनुदान प्राप्तकर्ता को दे देती थी।

भूमि अनुदान से स्पष्ट है कि गाँवों में भूमि अनुदान प्राप्त नया वर्ग उभर रहा था। अनुदान पत्र में उल्लेख होता था कि किस व्यक्ति को अनुदान दिया गया है तथा उसे क्या-क्या अधिकार प्राप्त होंगे। गाँवों के लोगों को नए प्रधान (अनुदान प्राप्तकत्ता) के आदेशों के पालन की हिदायत होती थी। गाँव के लोगों को सरकार को दिए जाने वाले कर और अन्य भेंटें अब अनुदान प्राप्तकर्ता को देनी होती थीं। ये ब्राह्मण अपनी इच्छा से गाँवों के लोगों से करों की वसूली भी करते थे। अतः स्पष्ट है प्राप्तकर्ताओं का विशिष्ट वर्ग उभरकर आ रहा था।

प्रश्न 9.
क्षेत्रीय राज्य या महाजनपदों के उदय के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ क्या थी? 16 महाजनपदों के नाम बताइए।
उत्तर:
छठी सदी ई.पू. के काल को प्रारंभिक भारतीय इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस काल में भारत में व्यापक आर्थिक परिवर्तनों का दौर शुरु हुआ जिसने प्रारंभिक क्षेत्रीय राज्यों या 16 महाजनपदों के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कृषि के क्षेत्र का विस्तार हुआ। कृषि उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन आया। इसमें धान की रोपण. विधि मुख्य थी जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। कृषि में लोहे का प्रयोग बढ़ा।

साथ-ही-साथ नगरों की स्थापना हुई। नगरों में शिल्पसंघों (श्रेणी प्रणाली) और व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। मुद्रा का प्रसार हुआ। व्यापार व वाणिज्य का प्रसार हुआ। इन आर्थिक परिवर्तनों ने महाजनपदों के उदय की पृष्ठभूमि तैयार की।

अब राजा अपने सैन्य और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए किसानों से उपज का हिस्सा एकत्र कर सकते थे अर्थात् राज्य की आय बढ़ी। इसका यह अर्थ है कि राजा की शक्ति बढ़ी। अब राजा बढ़ी हई आय तथा लोहे के शस्त्रों से जनपद का विस्तार कर सकता था। वस्तुतः यह काल प्रारंभिक राज्यों के उदय का काल था। अब क्षेत्रीय भावनाएँ प्रबल हुईं। लोगों का जो लगाव जन या कबीले से था, वह पहले अपने गाँव-घर से हुआ और बाद में अपने जनपद (अर्थात् जहाँ पर जन ने अपना पाँव रखा बस गया।) से हुआ। धीरे-धीरे यह जनपद ही अपना क्षेत्र विस्तार करके महाजनपदों में बदल गए।

छठी सदी ई० पू० में उदय हुए बौद्ध तथा जैन मत के ग्रंथों में हमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथ अंग्रतर निकाय में हमें राज्यों के नामों का उल्लेख इस प्रकार मिलता है(i) अंग, (ii) मगध, (ii) काशी, (iv) कोशल, (v) वज्जि, (vi) मल्ल, (vii) चेदि (चेटी), (viii) वत्स, (ix) कुरू, (x) पांचाल, (xi) मत्स्य, (xii) शूरसेन, (xiii) अश्मक, (xiv) अवन्ति, (v) गांधार, (xvi) कंबोज।

प्रश्न 10.
मगध जनपद की शक्ति के उत्कर्ष में सहायक कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पू० से चौथी शताब्दी ई०पू० के मध्य में 16 महाजनपदों में से मगध महाजनपद सबसे शक्तिशाली होकर उभरा। आधुनिक इतिहासकारों द्वारा मगध की शक्ति के उत्कर्ष के संबंध में विभिन्न व्याख्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं। संक्षेप में मगध के उत्कर्ष के कारणों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. मगध की भौगोलिक अवस्था मगध के उत्थान में वहाँ की भौगोलिक स्थिति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी दोनों राजधानियाँ राजगृह व पाटलिपुत्र, सामरिक दृष्टिकोण से पूरी तरह सुरक्षित थीं। राजगृह चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ था। इन पहाड़ियों की चारदीवारी को तोड़कर शत्रु का इसमें प्रवेश कठिन था। इसी तरह से पाटलिपुत्र भी सुरक्षित थी। इसके चारों ओर की नदियों गंगा, गंडक व सोन ने इसे जलदुर्ग बना दिया था।

2. मगध की आर्थिक दशा-जहाँ मगध की भौगोलिक स्थिति ने उसे आक्रमणकारियों से सुरक्षित बनाया, वहीं इसने वहाँ की आर्थिक स्थिति को भी सम्पन्न किया, जिसके बल पर मगध का उत्थान हुआ। मगध की उपयुक्त जलवायु ने उसे उपजाऊ बनाया। यहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती थी जिससे भूमि में उत्पादन अधिक होता था। इसके अतिरिक्त उत्पादन ने उद्योग-धंधों व वाणिज्य का विकास किया।

इस विकास के कारण नगरों का उत्थान हुआ। कृषि, व्यापार व उद्योग के उन्नत होने से राज्य की आय बढ़ी। इस आर्थिक सम्पन्नता ने मगध शासकों को अधिक स्थायी सेना रखने की स्थिति में ला दिया, जिससे वे साम्राज्यवादी नीति को अपना सकें।

3. लोहे के विशाल भण्डार-मगध के साम्राज्य विस्तार में लोहे की खानों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी। लोहे की अच्छी खानों (आधुनिक झारखंड) से उन्हें पर्याप्त मात्रा में लोहा प्राप्त हुआ। इस लोहे से उन्नत किस्म के शस्त्र बनाए जा सकें तथा खेती का विस्तार हो सका। अपने उत्तम शस्त्रों के प्रयोग से मगध अपने शत्रुओं को सरलता से पराजित कर पाया।

4. मगध की सैन्य व्यवस्था मगध के शासकों ने सैन्य व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। मगध के शासकों ने अपनी सेना में हाथियों को शामिल किया। मगध के साम्राज्य में बहुत से जंगल थे, जहाँ हाथी पाए जाते थे। दलदली भूमि पर घोड़े की तुलना में हाथी की उपयोगिता अधिक कारगर थी। दुर्गों को भेदने का काम भी केवल हाथी ही कर सकते थे।

5. मगध के शासकों की भूमिका-मगध के उत्थान में उसके शासकों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी। मगध में एक के बाद अनेक शक्तिशाली शासक हुए। ये शासक महत्त्वाकांक्षी, योग्य व साहसी थे जिन्होंने अपने सैन्य कार्यों व कूटनीति के आधार पर अपने साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया। इस साम्राज्य की नींव बिम्बिसार द्वारा डाली गई। अजातशत्रु जैसे शासकों ने इसका प्रभाव आस-पास के क्षेत्रों में बनाया। उदय भद्र, शिशुनाग व महापद्मनन्द जैसे शासकों ने इसका खुलकर साम्राज्य विस्तार किया।

प्रश्न 11.
अशोक का धम्म क्या था? इसके कोई पाँच सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
1. अर्थ-अशोक ने प्रजा में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना पैदा करने का प्रयास किया। सामूहिक रूप से उसकी इसी नीति को धम्म कहा गया है। धम्म का अर्थ स्पष्ट करने के लिए एक स्तंभ लेख में अशोक स्वयं प्रश्न करता है कि ‘कियं चु धम्मे’ (अर्थात् धम्म क्या है) फिर उत्तर देता है, ‘अपासिनवे, बहुकथाने, दया, दान सोचये’ अर्थात् पाप-रहित होना (अपासिनवे), बहुत-से कल्याणकारी कार्य करना (बहुकथाने), प्राणियों पर दया करना, दान देना, सत्यता और शुद्ध कर्म ही धम्म है।

2. सिद्धांत-
1. सहिष्णुता-यह अशोक के धम्म का प्रमुख सिद्धांत है। इसका आधार ‘वाणी पर नियन्त्रण’ है। मनुष्य को अवसर के महत्त्व को देखकर बात करनी चाहिए। अपने स्वयं के धर्म की भी अत्यधिक प्रशंसा तथा दूसरों के प्रति मौन रहने से भी तनाव ही बढ़ता है। मनुष्य को दूसरे आदमी के सम्प्रदाय का आदर भी करना चाहिए। ऐसा करने से उसके अपने धर्म का प्रभाव कम नहीं होगा, बल्कि बढ़ेगा। इसी से सहनशीलता की भावना पैदा होगी। वह कहता है कि सर्वत्र सभी धर्म वाले एक-साथ निवास करें।

2. अहिंसा-धम्म का दूसरा बुनियादी सिद्धान्त अहिंसा था। इसके मुख्यतः दो पहलू थे-पहला इसके अन्तर्गत पशु-पक्षियों के वध पर रोक लगाई गई। सम्राट ने राजमहल में भी भोजन के लिए प्रतिदिन दो मोर तथा एक मृग के अतिरिक्त अन्य पशु-पक्षियों की हत्या पर रोक लगा दी थी। अहिंसा का दूसरा पहलू हिंसात्मक युद्धों (भेरिघोष) को त्यागकर धम्म विजय (धम्मघोष) अपनाना था। वृहद् शिलालेख XIII में उसने कलिंग युद्ध के दौरान हुई विनाशलीला का बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। वह अपने उत्तराधिकारियों (पुत्र अथवा प्रपौत्र) को भी युद्ध न लड़ने की सलाह देता है।

3. आत्मनिरीक्षण-अशोक ने आत्मनिरीक्षण के सिद्धान्त पर बल दिया है। इसके अनुसार मनुष्य को अच्छाइयों के साथ-साथ स्वयं की कमजोरियों अथवा कुप्रवृत्तियों (आसिनवों) का ज्ञान होना चाहिए। उग्रता, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष तथा निष्ठुरता जैसी इन बुराइयों का पता आत्म-परीक्षण से ही लग सकता है, जिसमें वह निरन्तर प्रयास करके धीरे-धीरे मुक्त हो सकता है और पाप-रहित जीवन व्यतीत कर सकता है।

4. बड़ों का आदर-अशोक के धम्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने से बड़ों का आदर (अपरिचित) करना चाहिए। बच्चों को माता और पिता की आज्ञा माननी चाहिए। उनकी भावनाओं का आदर करना चाहिए। इसी प्रकार शिष्यों को अपने गुरुजनों का आदर करना चाहिए तथा सभी को ब्राह्मणों व ऋषियों के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए।

5. छोटों के प्रति प्रेम भाव-धम्म का एक अन्य मुख्य सिद्धान्त यह था कि बड़ों को छोटों के साथ और स्वामी को सेवकों के साथ दया व प्रेमपूर्ण का व्यवहार (सम्प्रतिपति) करना चाहिए। उसने दासों, सेवकों तथा आश्रितों के प्रति विशेष तौर पर अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 12.
क्या सारे मौर्य साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में एकरूप प्रशासन प्रणाली विद्यमान थी?
उत्तर:
यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या मौर्य साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में एकरूप प्रशासन प्रणाली विद्यमान थी। आर्थिक आवश्यकताओं ने संभवतः मौर्य साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में एक-जैसी प्रशासनिक व्यवस्था पैदा कर दी। अशोक के अभिलेख साम्राज्य के सभी भागों में फैले हुए थे। इनमें एक-जैसे सन्देश उत्कीर्ण थे। क्या इसका अर्थ यह लिया जाए कि इतने विशाल साम्राज्य में एक रूप प्रशासन व्यवस्था पनप गई थी।

आवागमन व संचार के साधनों के विकसित अवस्था में होने पर भी क्या साम्राज्य के सभी भागों पर पूर्ण तथा एक रूप नियंत्रण था। वर्तमान में अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि साम्राज्य की विशालता और इसमें शामिल प्रदेशों की विविधताओं को देखते हुए यह एकरूपता संभव प्रतीत नहीं होती। उदाहरण के लिए साम्राज्य में अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र, उत्तरी मैदान, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र व दक्षिण में कर्नाटक जैसे दूरवर्ती क्षेत्र थे।

ऐसी स्थिति में इतिहासकार रोमिला थापर के शब्दों में, स्थानीय स्तरों पर साम्राज्य के सभी भागों में एकरूप प्रशासन होना अनिवार्य नहीं है। संभवतः सर्वाधिक प्रबल प्रशासनिक नियंत्रण पाटलिपुत्र (साम्राज्य की राजधानी) तथा उसके निकटवर्ती प्रांतीय केंद्रों पर ही रहा होगा। इन प्रांतीय केंद्रों का भी बड़ी सूझबूझ से चुनाव किया गया होगा। उदाहरण के लिए उज्जैन एवं तक्षशिला लम्बी दूरी के व्यापार मार्गों पर स्थित थे।

इसी प्रकार दक्षिणी प्रांत की राजधानी सुवर्णगिरी (सोने की पहाड़ी) कर्नाटक में सोने की खदानों की दृष्टि से. महत्त्वपूर्ण थी। नियंत्रण तथा प्रशासन में एकरूपता की दृष्टि से साम्राज्य क्षेत्रों को तीन भागों में बाँटकर देखा जाता है साम्राज्य का नाभिकीय (केंद्रीय) क्षेत्र-यह केंद्रीय प्रदेश था। इसमें मगध क्षेत्र, यानि मुख्यतः गंगा घाटी और उसके आस-पास के इलाकों से लेकर विंध्य पर्वत के उत्तर तक भू-भाग शामिल था। साम्राज्य के इस भाग में प्रशासन पूर्ण रूप से लगभग वैसा ही था जैसा कौटिल्य ने अपने ‘अर्थशास्त्र’ और मैगस्थनीज़ ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में बताया है।

(i) विजित समृद्ध क्षेत्र-यह मगध क्षेत्र से बाहर मौर्य शासकों द्वारा जीता हुआ क्षेत्र था। इसमें मुख्यतः उत्तर:पश्चिमी तथा कलिंग का भू-भाग शामिल था। संसाधनों (उपजाऊ भूमि) की दृष्टि से यह समृद्ध भू-भाग था। ऐसे क्षेत्रों में प्रशासन का प्रबंध राजा का प्रतिनिधि (Governor) यानि कुमार करता था। यहाँ प्रशासन मोटे रूप में केंद्रीय क्षेत्र के प्रशासन से मिलता-जुलता था, परन्तु पूरी तरह से समरूप (Identical) नहीं था।

(1) सीमांत राज्य क्षेत्र-ऐसे क्षेत्रों को प्राचीन साहित्य में प्रयन्त कहा गया है। इस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य का व्यवहार में प्रत्यक्ष नियंत्रण भूमि से उस गलियारे तक सीमित था जहाँ से महत्त्वपूर्ण मार्ग गुजरते थे या कीमती कच्ची धातुओं के भंडार थे। इसका उदाहरण दक्कन प्रायद्वीप है। यहाँ मौर्यों का प्रत्यक्ष नियंत्रण कर्नाटक क्षेत्र में कोलार की सोने की खानों वाले क्षेत्र में था या फिर दक्षिण की ओर जाने वाले पूर्वी और पश्चिमी तटीय मार्गों पर था। स्पष्ट है कि साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में समरूप प्रशासन प्रणाली नहीं थी।

प्रश्न 13.
मौर्य साम्राज्य के पतन के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व है। यह भारत का पहला शक्तिशाली साम्राज्य था जिसने देश के एक बड़े भाग पर लगभग 150 वर्षों तक शासन किया। परन्तु धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य की नींव कमजोर पड़ने लगी तथा उसका पतन हो गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है

1. विशाल साम्राज्य– सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का बहुत अधिक विस्तार किया। इस विशालकाय साम्राज्य की प्रशासन-व्यवस्था संभालना प्रत्येक शासक के बस की बात नहीं थी। परिणामस्वरूप अशोक की मृत्यु के पश्चात् साम्राज्य नियंत्रण से बाहर हो गया।

2. अयोग्य तथा निर्बल प्रशासक मौर्य साम्राज्य के नवीन शासक अपने पूर्वजों की भांति योग्य तथा शक्तिशाली नहीं थे। ये सभी शासक विस्तृत मौर्य साम्राज्य पर पकड़ बनाए न रख सके। साथ ही उनमें कुशल प्रशासन का गुण नहीं था। परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा।

3. बाहरी हमले-विदेशी हमलावर मानो मौर्य साम्राज्य के कमजोर होने की राह देख रहे थे। उन्होंने अवसर का लाभ उठाया और मौर्य सीमाओं पर हमले करने शुरू कर दिए। इन हमलों में मौर्य साम्राज्य की प्रशासन-व्यवस्था को भारी ठेस पहुँचाई।

4. खराब आर्थिक स्थिति मौर्य साम्राज्य जो पूर्व में धन-संपदा से परिपूर्ण एक साम्राज्य था धीरे-धीरे धन के अभाव से ग्रस्त हो गया। सम्राट अशोक ने हृदय परिवर्तन के पश्चात हृदय खोलकर दान-दक्षिणा दी तथा कई भव्य निर्माण कार्य करवाए। इसका सीधा असर राजकोष पर पड़ा। खराब आर्थिक स्थिति में प्रशासनिक कार्यों का संचालन असंभव हो गया था।

प्रश्न 14.
सुदूर दक्षिण के तीन राज्यों (चेर, चोल व पांड्य) की संक्षिप्त जानकारी दें।।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण तथा सुदूर दक्षिण में कई. नए राज्यों का उदय हुआ। इन राज्यों को सरदारियों (Chiefdoms) के नाम से भी जाना जाता है। राज्य के मुखिया को सरदार या राजा कहा जाता था। सुदूर दक्षिण में इस काल में तीन राज्यों का उदय हुआ। यह क्षेत्र तमिलकम् (इसमें आधुनिक तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश व केरल के भाग शामिल थे) कहलाता था। तीन राज्यों के नाम हैं-चोल, चेर और पाण्ड्य दक्षिण के ये राज्य संपन्न थे तथा लंबे समय तक अस्तित्व में रहे।

1. चेर-उदियन जेरल पहला प्रमुख शासक था। इसका पुत्र नेदुनजेरल आदन प्रतापी शासक था। उसने अनेक युद्धों में भाग लिया तथा अपना अधिकतर जीवन युद्ध शिविरों में बिताया। कहते हैं कि उसने सात राजाओं को हराकर ‘अधिराज’ की उपाधि धारण की।

उसे इमयवरम्बन (Imayavarmban) (हिमालय तक सीमा वाला) भी कहा जाता है। शेनगुटुवन (धर्मपरायण कुटूवन) एक वीर और सबसे महान शासक बताया गया है। उसके पास एक शक्तिशाली बेड़ा था। यह लाल चेर के नाम से भी प्रसिद्ध था। वह संगम कवि परणार का समकालीन था। परणार ने उसके उत्तर भारतीय विजय अभियान का वर्णन किया है। शेनगुटुवन का सौतेला भाई तथा उसका उत्तराधिकारी पेरुंजेरल आदन था। पेरूंजेरल चोल शासक कारिकल का समकालीन था।

2. चोल-दक्षिण के प्राचीनतम शासक राजवंशों में से चोल प्रमुख हैं। चोल राज्य तोण्डेमण्डलम् या चोल मण्डलम् के नाम से जाने जाते हैं। इसकी राजधानी तिरुचिरापल्ली जिले में उरैयूर थी। बाद में इसकी राजधानी पुहार बनी। पुहार को कावेरी पत्तनम् के नाम से भी जाना जाता है। कारिकाल-प्रारम्भिक चोल शासकों में कारिकाल सबसे प्रसिद्ध है। कारिकाल का अर्थ ‘जले हुए पैर वाला व्यक्ति’ होता है।

किंवदन्ती है कि बचपन में ही उसका अपहरण करके उसके शत्रुओं ने उसे बन्दी बना लिया था और बाद में कारागार में आग लगा दी थी। कहते हैं कि जब कारिकाल आग से निकलकर भाग रहा था तो उसका पैर झुलस गया। इस कारण उसे कारिकाल के नाम से जाना गया। उसके नाम के सम्बन्ध में अन्य व्याख्या कलिका काल (Death to Kali) अथवा शत्रु के हाथियों का काल (Death of Enemy Elephant) भी दी जाती है। कारिकाल के बाद गृहयुद्ध के कारण इसका पतन हो गया।

3. पाण्ड्य पाण्ड्य भी दक्षिण भारत के इतिहास में प्राचीनतम शासक राजवंशों में से एक थे। उनकी राजधानी मदुराई में तमिल कवियों तथा तमिल भाट कवियों की बड़ी सभाओं (संगमों) का आयोजन हुआ था। प्रथम पाण्ड्य शासक नेडियोन था। इसके बाद पाण्ड्य शासक पल्लशालई मुदृकडुमी था। इसे प्रथम ऐतिहासिक शासक माना जाता है।

पाण्ड्य शासकों में सबसे महान शासक नेइंजेलियन था। इसकी उपाधि से ज्ञात होता है कि इसने किसी आर्य (उत्तर भारत) सेना को पराजित किया। वह तलैयालंगानम् (Talaiyalanganam) के युद्ध को जीतने के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ। नेडुंजेलियन ने दो पड़ोसी शासकों और पाँच छोटे सरदारों के गुट का सफलतापूर्वक सामना किया।

ये शत्रु उसकी राज्य सीमा में घुस आए थे। इन्हें उसने वापस खदेड़ दिया तथा तलैयालंगानम् (तंजौर जिले में तिरवालूर से आठ मील दूरी पर) नामक स्थान पर उन्हें हरा दिया। इन पराजित शासकों में चेर राजा शेय को बन्दी बनाकर पाण्डेय राज्य के कारागार में डाल दिया गया। इस विजय से उसका राज्य सुरक्षित हो गया तथा तमिल क्षेत्र के राज्यों पर उसका नियन्त्रण स्थापित हो गया।

प्रश्न 15.
प्रमुख गुप्त शासकों पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
चौथी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य का उदय और विकास महत्त्वपूर्ण परिघटना है। प्रारंभ में गुप्त शासक कुषाणों के सामन्त थे और धीरे-धीरे उन्होंने अपनी सत्ता बढ़ाकर कुषाणों के स्थान पर बिहार-उत्तरप्रदेश में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। इस वंश के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं

1. चंद्रगुप्त प्रथम (319-334 ई०)-चंद्रगुप्त प्रथम इस वंश का पहला प्रसिद्ध राजा हुआ। उससे लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह कर अपने आप को शक्तिशाली बताया। उसने गुप्त संवत् चलाया तथा ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।

2. समुद्रगुप्त (335-375 ई०) चंद्रगुप्त का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त था। प्रयाग प्रशस्ति में उसका गुणगान किया गया है। हरिषेण इस प्रशस्ति का लेखक, कवि और सेनापति था। समुद्रगुप्त के गुणों का बखान करते हुए प्रयाग प्रशस्ति में लिखा है-“धरती पर उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। अनेक गुणों और शुभ कार्यों से संपन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को खत्म कर दिया है।”

समुद्रगुप्त की तुलना परमात्मा से भी की गई है। “वे परमात्मा पुरुष हैं ……..वे करुणा से भरे हुए हैं… वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति हैं।” समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया। उसने गंगा-यमुना दोआब के राजाओं को हराकर प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया। उसने 9 गणराज्यों को हराया। दक्षिण के 12 शासकों को हराकर अपने अधीन बनाया। विंध्य क्षेत्र के अटाविक राज्यों को अपने वश में किया। सीमावर्ती शासक भी उसकी अधीनता मानते थे।

3. चंद्रगुप्त द्वितीय (380-414 ई०) चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष की चोटी पर पहुँचा। उसने वाकाटकों से अपनी कन्या प्रभावती का विवाह किया जो बाद में पति की मृत्यु पर वहाँ की वास्तविक शासिका बनी। भूमिदान संबंधी उसके अभिलेख बतलाते हैं कि उसने अपने पिता के हित में काम किया। चंद्रगुप्त ने पश्चिमी मालवा और गुजरात पर अधिकार कायम कर लिया था।

उसने शकों को पराजित किया तथा ‘शकारी’ की उपाधि धारण की। उसने उज्जैन को दूसरी राजधानी बनाया। दिल्ली में कुतुबमीनार के समीप (एक लौह स्तंभ पर खुदे हुए अभिलेख में चंद्र नामक किसी शासक की कीर्ति का वर्णन किया गया है। इस चंद्र को बंदगुप्त माना जाता है। उसने “विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। चंद्रगुप्त द्वितीय के बाद कुमार गुप्त तथा स्कंदगुप्त गुप्त वंश के अन्य प्रमुख शासक रहे।

प्रश्न 16.
अध्ययनकाल में व्यापार से संबंधी जानकारी दीजिए।
उत्तर:
छठी सदी ई०पू० से भारत में नगरों का विकास होने लगा था। ये नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थे। साथ ही यहाँ पर शिल्प उत्पाद भी प्रमुख थे। यह भी उल्लेखनीय है कि ये नगर व्यापार मार्गों पर बसे हुए थे। मौर्यकाल, मौर्योत्तर काल और दक्षिण के राज्यों में इस काल में व्यापार तथा वाणिज्य का विकास देखा जा सकता है। संक्षेप में इसकी जानकारी निम्नलिखित प्रकार से है

1. व्यापार मार्ग-छठी शताब्दी ई०पू० से भारतीय उपमहाद्वीप पर भूतल और नदीय व्यापार मागों का विकास होने लगा था। एक-दूसरे को आड़े-तिरछे काटते ये व्यापार मार्ग उपमहाद्वीप के बाहर तक जाते थे। सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग पाटलिपुत्र से तक्षशिला तक जाता था। पूर्व में यह पाटलिपुत्र को ताम्रलिप्ति बंदरगाह से जोड़ता था। दूसरा मार्ग कौशाम्बी से पश्चिम समुद्र तट पर भरुक (भरूच) बंदरगाह तक जाता था।

एक दक्षिण-पूर्वी मार्ग पाटलिपुत्र से गोदावरी तट पर प्रतिष्ठान तक जाता था। एक अन्य मार्ग वैशाली से कपिलवस्तु होकर पेशावर तक जाता था। आगे यह स्थल मार्ग पश्चिमी एशिया के क्षेत्रों से होकर भूमध्य सागर तक जाता था। एक मार्ग तक्षशिला से काबुल तथा आगे बैक्ट्रिया से कैस्पियन सागर व काला सागर तक जाता था। इसी प्रकार एक मार्ग कंधार से ईरान तथा ईरान से पूर्वी भूमध्य सागर तक जाता था।

समुद्र तटीय मार्ग भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण थे। एक मार्ग भरूच बंदरगाह से सोपारा होते हुए पश्चिमी तट के साथ-साथ श्रीलंका तक जाता था। इसी प्रकार एक मार्ग ताम्रलिप्ति से पूर्वी तट के साथ-साथ जलमार्ग से श्रीलंका पहुँचता था। इस प्रकार समुद्र के माध्यम से व्यापारी दूर देशों तक व्यापार करते थे। उदाहरण के लिए अरब सागर से पूर्वी उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया के देशों से व्यापार होता था। पूर्व की तरफ बंगाल की खाड़ी से व्यापारी दक्षिणी पूर्वी एशिया और चीन से व्यापार करते थे।

2. व्यापार के साधन-यह जानना उपयोगी है कि उन दिनों में व्यापार किन साधनों से होता था। कुछ लोग पैदल सफर करते हुए अपना सामान बेचते थे। बड़े व्यापारी बैलगाड़ियों तथा लदू जानवरों के कारवाँ के साथ यात्रा करते थे। समुद्री नाविकों (Sea barers) का भी उल्लेख मिलता है। समुद्री व्यापार संकटों से भरा होता था परंतु इससे अत्यधिक लाभ प्राप्त होता था। सफल व्यापारियों को तमिल में मासात्तुवन (Masattuvan) कहते थे। प्राकृत में इनके लिए सेट्ठी तथा स्थावाह (Satthavas) शब्द का प्रयोग हुआ है।

3. व्यापारिक वस्तुएँ-तमिल व संस्कृत साहित्य तथा विदेशी वृत्तांतों से जानकारी मिलती है कि भारत में अनेक प्रकार का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता था। इन वस्तुओं में प्रमुख थीं-नमक, अनाज, वस्त्र, लोहे का सामान, कीमती पत्थर, लकड़ी, औषधीय पौधे इत्यादि। भारत का विदेशी व्यापार रोमन साम्राज्य तक फैला हुआ था। रोमन साम्राज्य में भारतीय मसालों (विशेषतः काली मिच), वस्त्रों और औषधियों की काफी माँग रहती थी। इसके अलावा भारत से इलायची, चावल, मसूर, कपास, फल, नील, मोती इत्यादि भी निर्यात वस्तुओं में शामिल थे। रोम निवासी भारत से रेशम भी मंगवाते थे जो भारतीय व्यापारी चीन से यहाँ लाते थे।

रोम से भारत को बढ़िया किस्म की शराब, चीनी के बर्तनों और सोने-चांदी के सिक्कों का आयात होता था। पेरिप्लस ऑफ एरीथ्रियन सी का लेखक उस काल में (लगभग पहली शताब्दी ई० में) भारत से लालसागर के पार विदेशों में जाने वाली वस्तुओं की सूची देता है। पेरिप्लस ने लिखा है कि भारत से काली मिर्च, दालचीनी, पुखराज, सुरमा, मूंगे, कच्चे शीशे, तांबे, टिन और सीसे का आयात किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारत से आने वाला सामान है-मोती, हाथीदाँत, रेशमीवस्त्र, पारदर्शी पत्थर, हीरे, काले नग, कछुए की खोपड़ी आदि।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संगम साहित्य पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
पांड्य राजाओं के संरक्षण में कवियों और भाटों ने तीन-चार सौ वर्षों में विद्या केंद्रों में एकत्र होकर संगम साहित्य का सजन किया। ऐसी साहित्य सभा को संगम कहते थे। इसलिए सारा साहित्य संगम साहित्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विशाल संगम साहित्य में से आज जो रचनाएँ उपलब्ध हैं उनकी संख्या 2289 है। इनमें से कुछ कविताएँ अत्यन्त छोटी (मात्र पाँच पक्तियों की) हैं और कुछ बहुत लम्बी हैं।

ये कविताएँ 473 कवियों द्वारा रचित हैं जिनमें कुछ कवयित्रियाँ भी हैं। कविताओं के अतिरिक्त तमिल व्याकरण तथा महाकाव्य भी उपलब्ध है। वर्तमान में उपलब्ध संगम साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

1. पत्थुप्पात्तु-पत्थुप्पात्तु बहुत लम्बे दस काव्यों का संग्रह है। नक्कीकर कृत इस काव्य में मुरूगन नामक युद्ध के एक देवता की स्तुति की गई है। इसी कवि ने एक काव्य में एक राजा का युद्ध भूमि में वीरतापूर्वक युद्ध तथा महलों में रह रही रानी की विरह वेदना का हृदयस्पर्शी वृत्तान्त प्रस्तुत किया है। इसमें चोल राज्य की राजधानी पुहार का विस्तार से वर्णन है

2. एतुत्थोकई-इन कविताओं के आठ संग्रह हैं। हर एक संग्रह में 70 से 500 कविताएँ हैं। इन कविताओं की विषय-वस्तु प्यार और निजी व आन्तरिक मनोभाव हैं या राजाओं और वीरों के कृत्यों का बखान है। कई कविताओं में नगरों (मदुरा शहर) और नदियों के सौंदर्य आदि का भी वर्णन है।

3. पदिनेन कीलकनक्कु इसमें 18 धर्मोपदेशों का संग्रह है। इनमें सबसे प्रसिद्ध तिरुवल्लुवर की रचना ‘कुराल’ या ‘तिरुकुराल’ है। इसमें दस-दस कविताओं के 113 वर्ग-भाग हैं। कराल धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं कामसूत्र तीनों का संगम है। लेकिन ज्ञान और नैतिक मूल्यों की जानकारी के लिए इसका सबसे अधिक महत्त्व है। इसलिए इस पुस्तक को तमिल वेद या संक्षिप्त वेद भी कहा जाता है।

4. शिल्पादिकारम्-शिल्पादिकारम् एक महाकाव्य है। इसका लेखक चोल नरेश कारिकल का पौत्र इंलगोवन था, परन्तु वास्तविक रचनाकार के सम्बन्ध में विवाद है। यह महाकाव्य बहुत यथार्थवादी है। इसमें पुहार या कावेरीपत्तनम् के धनी व्यापारी के पुत्र कोवलन और उसकी अभागी पत्नी कन्नगी का बहुत दुखद और मार्मिक चित्रण है। कन्नगी एक पतिव्रता नारी थी। उसका पति कोवलन एक माधवी नामक वेश्या के चक्कर में अपना धन गंवा बैठता है।

वह गरीब के रूप में पुहार से मदुरा चला जाता है। वहाँ पर मदुरा की रानी के हार की चोरी के आरोप में पाण्ड्य राजा शेनगुटुंवि द्वारा उसको प्राणदण्ड दिया जाता है। कन्नगी द्वारा अपने पति को निर्दोष सिद्ध करने पर राजा को पश्चात्ताप हुआ तथा इस आघात से सिंहासन पर ही उसकी मृत्यु हो गई। आज भी कन्नगी की दक्षिण में पूजा प्रचलित है। यह अनेक धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं से परिपूर्ण है।

5. मणिमेखलम-यह भी महाकाव्य है। इसका लेखक मदुराई के कवि सतनार या शातन को बताया जाता है। लेखक बौद्ध धर्म का एक अनुयायी लगता है। इसकी नायिका मणिमेखलम् (शिल्पादिकारम् के नायक कोवलन की पुत्री) है। वह अपने प्रेमी की मृत्यु का समाचार सुनकर बौद्ध भिक्षुणी हो जाती है। इस ग्रन्थ का अन्य उद्देश्य बौद्ध धर्म के उत्थान को दर्शाना है।

6. जीवक चिन्तामणि-यह भी महाकाव्य है। उत्तर संगम साहित्य से जुड़े इस ग्रन्थ का नायक जीवक है। वह अपने पिता के हत्यारे से बदला लेता है और पिता का खोया हुआ राज्य वापस प्राप्त करता है। नायक को युवा अवस्था में ही वैराग्य हो जाता है। अतः वह राज्य छोड़कर जैन मुनि बन जाता है। जीवक चिन्तामणि दक्षिण में जैन मत पर भी प्रकाश डालता है।

7. तोलकाप्पियम-वीर काव्य ग्रन्थों तथा महाकाव्यों के अलावा संगम साहित्य के अन्तर्गत तमिल व्याकरण का ग्रन्थ तोलकाप्पियम भी आता है। इसकी रचना अगस्त्य के शिष्य तोलकाप्पियार तथा 11 अन्य विद्वानों (जो सभी अगस्त्य के ही शिष्य थे) द्वारा की गई है। यह ग्रन्थ तमिल व्याकरण, साहित्य परम्परा तथा समाजशास्त्र की एक रचना है। इसे तमिल साहित्य की सभी साहित्यिक परम्पराओं का स्रोत भी स्वीकार किया जाता है।

प्रश्न 2.
चन्द्रगुप्त की प्रमुख विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त की सैनिक कार्रवाइयों का ठीक-ठीक स्पष्ट ब्यौरा किसी भी ग्रंथ में उपलब्ध नहीं है। जो सूचनाएँ मिलती हैं वे यत्र-तत्र कुछ ग्रंथों में बिखरी हुई मिलती हैं। यूनानी लेखकों ने अपने विवरण में चन्द्रगुप्त की पंजाब (उत्तर:पश्चिम) की विजय का ही वर्णन किया है, जबकि अधिकांश भारतीय स्रोतों में मगध-विजय का पता चलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रमुख विजय निम्नलिखित प्रकार से हैं

1. मगध-विजय-321 ई० पू० में 25 वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य मगध राज सिंहासन पर बैठा। यह कैसे सम्भव हुआ अपने-आप में बड़ा दिलचस्प है, क्योंकि मगध जैसे शक्तिशाली राज्य से लड़ने के लिए सेना कहाँ से आई? मगध उस समय उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। लेकिन मगध का राजा अत्याचारी और लालची होने के कारण प्रजा-जनों में अलोकप्रिय था। करों के भार से दबे हुए थे।

इन परिस्थितियों में चन्द्रगुप्त और चाणक्य के लिए जन-समर्थन जुटाने और सेना संगठित करने में आसानी हुई। इन्होंने मगध साम्राज्य के सीमावर्ती हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाली जातियों में से सेना संगठित की। यह लगभग वही समय था जब सिकन्दर (326 ई० पू०) उत्तर:पश्चिम की ओर से पंजाब में जन कबीलों को रौंदता हुआ आगे बढ़ रहा था।

ऐसी परिस्थिति में विदेशी आक्रमणकारियों के भय के कारण घनानंद जैसे अलोकप्रिय शासक के विरुद्ध कबीलों में सेना भर्ती करना और भी आसान हो गया था। जैसे भी सेना संगठित की हो, इतना निश्चित है कि चन्द्रगुप्त की सेना नंदशासक के मुकाबले बहुत कम थी। ऐसी स्थिति में चाणक्य की कूटनीति कारगर साबित हुई। उन्होंने नंद राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ छेड़छाड़ से अपना अभियान शुरु किया और धीरे-धीरे राज्य के केन्द्र की ओर बढ़ते गए। नंद नरेश उनकी गतिविधियों की गम्भीरता नहीं भाँप पाया और उन्होंने अन्ततः उसे सिंहासन से उखाड़ फेंका।

2. पंजाब विजय-मगध-विजय के तुरन्त पश्चात् चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने पंजाब विजय अभियान शुरु किया, क्योंकि इस क्षेत्र में विस्तार के लिए परिस्थितियाँ पूर्णतः अनुकूल थीं। ये परिस्थितियाँ सिकन्दर के आक्रमण से बनी थीं। सिकन्दर के उत्तर:पश्चिम (पंजाब क्षेत्र) पर किए गए आक्रमण (326 ई०पू०) का तात्कालिक और अप्रत्याशित परिणाम यह हुआ था कि इसने सारे भारत पर मौर्यों की विजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

इस आक्रमण से पंजाब के गणराज्य कमज़ोर हो गए थे और 323 ई०पू० में सिकन्दर की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण उसके सेनापतियों में साम्राज्य विभाजन के लिए युद्ध छिड़ गया था। इससे पंजाब क्षेत्र में यूनानियों की शक्ति भी दर्बल पड़ गई थी। इस परिस्थिति में चन्द्रगुप्त बड़ी आसानी से सिंधु नदी तक का क्षे सफल हो गया था।

3. पश्चिमी और मध्य भारत पर विजय पंजाब विजय के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने अपना ध्यान पश्चिम और मध्य भारत की ओर केन्द्रित किया। इन विजय अभियानों की भी पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है, परन्तु रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख (दूसरी शताब्दी ई० के मध्य का) से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त ने काठियावाड़ (सौराष्ट्र) को अपने राज्य में मिला लिया था। इस शिलालेख में चन्द्रगुप्त के राजदूत पुष्यगुप्त का उल्लेख है, जिसने सुदर्शन नामक झील बनवाई थी। साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा प्रदेश पर भी चन्द्रगुप्त ने अधिकार कर लिया था।

4. सेल्यूकस निकेटर से युद्ध-सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने अपने प्रतिद्वन्द्वियों को पछाड़कर पश्चिम एशिया में बेबीलोन से लेकर ईरान और बैक्ट्रिया तक अपना प्रभुत्व जमा लिया था। 305 ई०पू० में वह सिंधु नदी को पार करके पंजाब और सिंध पर पुनः यूनानी प्रभुत्व स्थापित करने के लिए आगे बढ़ा।

परन्तु इस बार परिस्थितियाँ बिल्कुल अलग थीं। अब सामना परस्पर विभक्त छोटे-छोटे राज्यों से नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली साम्राज्य से था। 303 ई०पू० में लम्बे युद्ध के बाद इस युद्ध में चन्द्रगुप्त की विजय हुई। इसके बाद दोनों के बीच एक मैत्रीपूर्ण सन्धि हो गई जिसके अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी दिए। बदले में सेल्यूकस ने अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु नदी का पश्चिमी क्षेत्र चन्द्रगुप्त को दे दिया।

इसके अतिरिक्त दोनों शासकों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित हुए। समझा जाता है कि सेल्यूकस की एक पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से हुआ था। इस विवाह का राजनीतिक महत्त्व था। इससे मौर्य साम्राज्य की उत्तर:पश्चिमी सीमा सुरक्षित हो गई थी।

दोनों शासकों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बने रहे। इसका प्रमाण दोनों के बीच उपहारों और राजनयिकों का आदान-प्रदान है। सेल्यूकस का राजदूत मैगस्थनीज़ कई वर्षों तक चन्द्रगुप्त के दरबार पाटलिपुत्र में रहा था। स्पष्ट है कि चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर:पश्चिम सीमा से पूर्व में बंगाल तक फैला हुआ था। पश्चिम में गुजरात का क्षेत्र उसके अधिकार में था।

प्रश्न 3.
संगम युगीन सुदूर दक्षिण के राज्यों में व्यापार व वाणिज्य के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संगम युग में सुदूर दक्षिण व्यापार और वाणिज्य का अप्रत्याशित रूप से विकास हुआ। राज्यों को इस अन्तर्देशीय तथा विदेशी व्यापार से बड़ी मात्रा में आय प्राप्त होती थी। कृषि उत्पादन में वृद्धि, मौर्य साम्राज्य के विस्तार से दक्षिण के साथ व्यापार सम्पर्कों में वृद्धि, भारतीय वस्तुओं की रोमन विश्व में माँग बढ़ना, शहरों का उदय तथा उनमें विशेषज्ञ दस्तकारों का होना आदि इस काल में व्यापार और वाणिज्य के विकास के प्रमुख कारण बताए जा सकते हैं। दक्षिण में संगम युग में व्यापार और वाणिज्य के सन्दर्भ में निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखा जा सकता है

1. प्रमुख शहरी केन्द्र व्यापार और वाणिज्य के केन्द्र के रूप में इस काल में शहरों का उदय हुआ। इनमें से कुछ नगर जो आन्तरिक भागों में थे, वे स्थानीय और अन्तर्देशीय व्यापार और वाणिज्य के केन्द्र थे। ऐसे केन्द्रों में उरैयूर, काँची (कांचीपुरम) और मदुराई मुख्य थे। यहाँ पर बाजार अवनम् के नाम से जाने जाते थे, जहाँ लेन-देन होता था। ये राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे।

दूसरे प्रकार के नगरों को पत्तिनम् (बन्दरगाह) कहते थे जो कि दक्षिण के शासकों के संरक्षण में काफी सक्रिय थे। इन पत्तिनमों में पूर्वी तट पर पुहार अथवा कावेरीपत्तिनम् (चोलों का), अरिकमड कोरकाई (पाण्ड्यों का) प्रमुख थे। पश्चिम तट पर मुजरिस, टिनडिस, नेलयंदा प्रसिद्ध व्यापार के केन्द्र थे। यहाँ जहाजरानी, बन्दरगाह निर्माण हुआ तथा गोदाम बने। विदेशी व्यापारी भी बड़ी संख्या में रहने लगे।

2. वाणिज्य संगठन-आन्तरिक क्षेत्रों में नमक का व्यापार करने वाले उमाना समुदाय की जानकारी मिलती है जो ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े-बड़े कारवां (उमानवुथ) में जाते थे। नमक के अलावा अनाज (कुलावानेकन), चीनी (पानीटा वनिकन), कपड़े (अरूवैवानिकय), स्वर्ण (पोन वनिकन) आदि के व्यापारी भी थे। सुदूर दक्षिण में तिरूवेल्सारी में व्यापारियों के संगठन के प्रमाण मिलते हैं।

3. वस्तु विनिमय तथा सिक्के स्थानीय व्यापार का आधार वस्तु विनिमय था। संगम साहित्य में हमें पशु, जड़ी-बूटी, मछली के तेल, ताड़ी, गन्ना आदि सामानों की अदला-बदली का उल्लेख मिलता है। विदेशी व्यापार में भी वस्तु विनिमय का चलन होगा। परन्तु रोम से सोने तथा चाँदी के माध्यम से व्यापार के प्रमाण मिलते हैं। कुछ मुद्राशास्त्रियों का मानना है कि संगम काल में आहत सिक्के तथा रोमन सिक्के व्यापार में प्रयोग में लाए जाते थे।

4. स्थानीय तथा अन्तर्देशीय व्यापार-कृषक, चरवाहे, मछुआरे और जनजातीय लोग अपने सामान का लेन-देन करते होंगे। उदाहरण के लिए नमक, मछली, धान, दुग्ध, जड़ें, मृगमांस, शहद, ताड़ी आदि का स्थानीय बाजार में लेन-देन होता था। नमक के बदले में धान, धान के बदले में दुग्ध, दही, घी, मछली तथा शराब के लिए शहद दिया जाता था। मृगमांस और ताड़ी के बदले चावल, पपड़िया और गन्ना दिया जाता था।

मौर्यकाल में उत्तर और दक्षिण में व्यापार सम्पर्क बढ़े। मौर्यों ने दक्षिण से सोना तथा अन्य संसाधन प्राप्त करने के तरीके अपनाए थे। कौटिल्य के अनुसार, दक्षिण राज्य क्षेत्रों में शंख, हीरे, जवाहरात और सोना बड़ी मात्रा में था। दक्षिण में खनिज पदार्थों तथा मूल्यवान धातुओं का व्यापार होता था। उत्तर के व्यापारी बड़ी मात्रा में चाँदी के आहत सिक्के लाते थे। कलिंग से दक्षिण के राज्यों में महीन रेशम का आयात किया जाता था। उरैयूर, कांची, मदुराई इस अन्तर्देशीय व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे।

5. विदेशी या समुद्रीय व्यापार-तमिल क्षेत्र के शासकों की आय का एक मुख्य स्रोत विदेशी व्यापार था। इस समद्रीय व्यापार से तटीय बन्दरगाह नगरों में रहने वाले व्यापारी समुदाय बहुत सम्पन्न हो गए थे। भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में मसाले (काली मिर्च, इलायची), औषधीय जड़ी-बूटियाँ, मूल्यवान रत्न (बेरिल, गोमेद, कर्निलियन, जेस्फर) मोती, हाथी दाँत का सामान, कीमती इमारती लकड़ी (तेन्दु, सागौन, चन्दन और बांस आदि), रंगीन सूती वस्त्र, मलमल, नील आदि मुख्य थे।

विदेशी लोग भारत में घोड़े लाते थे। इसके अलावा धातुएँ (ताँबा, सीसा), तैयार माल में बढ़िया शराब, आभूषण, सोने, चाँदी के सिक्के तथा मिट्टी के बर्तन भी लाते थे। इस काल में भारत का रोम के साथ व्यापार बढ़ा। प्रारम्भ में, यह व्यापार अरब व्यापारियों के माध्यम से होता था। बाद में हिप्पालुस नामक नाविक द्वारा मॉनसूनी हवाओं की खोज के बाद रोमन व्यापारी भारत से सीधा व्यापार करने लगे।

पुहार या कावेरीपत्तिनम् एक सर्वदेशीय महानगर था जहाँ पर अलग-अलग भाषा बोलने वाले देशी और विदेशी व्यापारी एक साथ रहते थे। पुहार में बड़े-बड़े विदेशी जहाज सोना और सामान भरकर लाते थे तथा यहाँ से सामान ले जाते थे। मदुराई के तट पर सलियर एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी जहाँ अकसर बड़े-बड़े जहाज आते थे। पश्चिमी तट के बन्दरगाहों में मुजरिस सबसे प्रसिद्ध था। पुसा नुरू की एक कविता में धान के बदले में मछलियाँ, काली मिर्च की गाँठों और समुद्र तट पर खड़े बड़े-बड़े जहाजों से कई प्रकार के माल को छोटी नौकाओं में लादने का वर्णन है। इसी तट पर बन्दर आयातित मोतियों एवं कोडुमानम दुर्लभ सामान के आयात के लिए प्रसिद्ध था।

HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Read More »

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. निम्नलिखित में से किसका संबंध जीव-भूगोल से है?
(A) भू-विज्ञान
(B) समाजशास्त्र
(C) जीव-विज्ञान
(D) जलवायु, विज्ञान
उत्तर:
(C) जीव-विज्ञान

2. “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भू-गर्भ विज्ञान है” यह कथन किस विद्वान् का दिया हुआ है?
(A) रिटर
(B) डेविस
(C) हार्टशोर्न
(D) वेगनर
उत्तर:
(B) डेविस

3. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) का प्रवर्तन किस भूगोलवेत्ता ने किया?
(A) हेट्टनर ने
(B) कार्ल रिटर ने
(C) हार्टशॉर्न ने
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने
उत्तर:
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

4. लंबाई, चौड़ाई और गोलाई भूगोल के तीन आयाम हैं। भूगोल का चौथा आयाम कौन-सा है?
(A) मोटाई
(B) गहराई
(C) ऊँचाई
(D) समय
उत्तर:
(D) समय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
क्रमबद्ध भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने।

प्रश्न 2.
उस विद्वान का नाम बताएँ जिसने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सर्वप्रथम कारण-सहित वर्णन किया था।
उत्तर:
हेरोडोटस (485-425 ई०पू०)।

प्रश्न 3.
प्राचीनकाल के किस विद्वान् ने मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभावों का उल्लेख किया था?
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स (460-377 ई०पू०)।

प्रश्न 4.
सबसे पहले किस विद्वान् ने सूर्य की किरणों के कोण मापकर पृथ्वी की परिधि का आकलन कर लिया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ई०पू०)।

प्रश्न 5.
वह कौन-सा भूगोलवेत्ता था जिसने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में संश्लेषण (Synthesis) का समर्थन किया?
उत्तर:
एच० जे० मैकिण्डर।

प्रश्न 6.
20वीं सदी के आरम्भ में मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर कौन-सी दो विचारधाराएँ विकसित हुई थी?
उत्तर:
नियतिवाद और सम्भववाद।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 7.
भूगोल के कौन-से दो दृष्टिकोण हैं?
उत्तर:

  1. प्राचीन दृष्टिकोण
  2. आधुनिक दृष्टिकोण।

प्रश्न 8.
भूगोल में अध्ययन की दो तकनीकें कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. मानचित्रण विधि
  2. मात्रात्मक विधि।

प्रश्न 9.
सर्वप्रथम ‘भूगोल’ शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ ने।

प्रश्न 10.
भूगोल के अध्ययन की दो विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध विधि
  2. प्रादेशिक विधि।

प्रश्न 11.
भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

भौतिक भूगोल
मानव भूगोल।

प्रश्न 12.
प्रादेशिक भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
कार्ल रिटर ने।

प्रश्न 13.
प्रादेशिक भूगोल की कोई दो उपशाखाएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. प्रादेशिक अध्ययन
  2. प्रादेशिक विश्लेषण।

प्रश्न 14.
“मनुष्य के कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित होते हैं।” यह कथन किस विद्वान् का है?
उत्तर:
रेटजेल का।

प्रश्न 15.
सम्भववाद के प्रमुख समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
विडाल डी ला ब्लाश तथा एस० फैरो।

प्रश्न 16.
नियतिवाद के दो समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रेटज़ेल व हंटिंगटन।

प्रश्न 17.
वातावरण या पर्यावरण को किन दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वातावरण
  2. मानवीय अथवा सांस्कृतिक वातावरण।

प्रश्न 18.
किन दो भारतीय वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम पृथ्वी के आकार का वर्णन किया था?
उत्तर:

  1. आर्यभट्ट
  2. भास्कराचार्य।

प्रश्न 19.
234 ई० पू० यूनान के किस विद्वान ने पृथ्वी की परिभाषा देने के लिए ‘Geography’ शब्द का प्रयोग किया?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
‘सम्भववाद’ क्या होता है?
उत्तर:
फ्रांस से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति अथवा पर्यावरण द्वारा ही निर्धारित नहीं होते, बल्कि मनुष्य अपनी बुद्धि व श्रम से सम्भावनाओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।

प्रश्न 3.
‘नियतिवाद’ क्या होता है?
उत्तर:
जर्मनी से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति निर्धारित करती है। अतः मनुष्य स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता। वह केवल प्रकृति का दास है।

प्रश्न 4.
भूगोल में किन-किन परिमण्डलों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:

  1. स्थलमण्डल
  2. जलमण्डल
  3. वायुमण्डल
  4. जैवमण्डल।

प्रश्न 5.
एक विषय के रूप में भूगोल किन तीन कार्यों का अध्ययन करता है?
उत्तर:

  1. भूगोल की प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र
  2. समय के साथ भूगोल का विकास
  3. भूगोल की मुख्य शाखाओं का अध्ययन।

प्रश्न 6.
भौतिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भौतिक वातावरण-मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण। सांस्कृतिक वातावरण मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 7.
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मात्रात्मक विधिमानचित्रण विधि
1. इस विधि में तथ्यों और आँकड़ों को एकत्रित करके वर्गीकृत किया जाता है।1. इस विधि में आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाए जाते हैं।
2. इस विधि में आँकड़ों के विश्लेषण से कुछ अर्थपूर्ण अनुमान लगाए जाते हैं।2. इस विधि में मानचित्रों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 8.
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

भौतिक भूगोलमानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है।1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल व जैव मण्डल का अध्ययन किया जाता है।2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
क्रमबद्ध भूगोल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। क्रमबद्ध भूगोल में हम भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँट लेते हैं। फिर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘धरातल’ प्रकरण को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या विश्व का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मृदा, वनस्पति, खनिज, फसलें, परिवहन, जनसंख्या आदि तत्त्वों का क्षेत्र विशेष पर पृथक-पृथक अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रादेशिक भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल में हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Region) में बाँट लेते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित अध्ययन करते हैं; जैसे भूमध्य-रेखीय प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा का मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 11.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लगभग अठारहवीं शताब्दी तक भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करने वाला एक विवरणात्मक शास्त्र माना जाता था, तब भूगोल का मानवीय क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस प्रकार भौगोलिक अध्ययन का प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी (Isolated) था।

प्रश्न 12.
भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिक भूगोल पृथ्वी तल पर मनुष्य और उसके भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देता है। भूगोल अब वर्णनात्मक शास्त्र नहीं रहा बल्कि जीन बूंश के शब्दों में, “भूगोल में अब घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसी जिज्ञासाओं के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है।” भगोल के आधनिक दृष्टिकोण में कार effect) सम्बन्धों की विवेचना का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण काल कौन-सा था और उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर:
13वीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल कहलाता है। इस काल में अनेक भौगोलिक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए।

प्रश्न 14.
क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
1. क्रमबद्ध भूगोल की कुछ प्रमख उपशाखाएँ हैं-

  • भू-आकृतिक भूगोल
  • मानव भूगोल
  • जैव भूगोल
  • भौगोलिक विधियाँ एवं तकनीकें।

2. प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाएँ हैं-

  • प्रादेशिक अध्ययन
  • प्रादेशिक विश्लेषण
  • प्रादेशिक विकास तथा
  • प्रादेशिक आयोजन।

प्रश्न 15.
पारिस्थितिकी (Ecology) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह विज्ञान जिसके अन्तर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 16.
मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) क्या होती है?
उत्तर:
मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी कहलाता है।

प्रश्न 17.
परिघटना (Phenomena) क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी वस्तु जिसे इन्द्रियाँ; जैसे आँख, कान, नाक आदि से देख, सुन और सूंघ व स्पर्श कर सकें। उदाहरण-पर्वत, पठार, मैदान, मन्दिर, सड़क इत्यादि।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद तथा संभववाद में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
निश्चयवाद तथा संभववाद में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निश्चयवाद (Determinism)संभववाद (Possibilism)
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं।1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल व हंटिंगटन थे।2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल डी ला ब्लाश व फैव्रे थे।
3. यह जर्मन विचारधारा (School of thought) है।3. यह फ्रांसीसी विचारधारा (School of thought) है।

प्रश्न 19.
भूगोल में आधुनिकतम अथवा नवीनतम विकास कौन-सा हुआ है? नवीनतम विधियों का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाले प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
भूगोल में नवीनतम विकास मात्राकरण (Quantification) तथा सांख्यिकीय विश्लेषणों के रूप में हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भूगोल में गणितीय विधियों, मॉडल निर्माण तथा कम्प्यूटर का प्रयोग बढ़ने लगा है। भूगोल में मात्रात्मक विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग निम्नलिखित भूगोलवेत्ताओं ने किया

  1. एसडब्ल्यू० वूलरिज़ (S.W. Wooldridge)
  2. आरजे० शोरले (R.J. Chorley)
  3. पीव्हैगेट (P. Hagget)

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 20.
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल क्या भूमिका निभाता है?
अथवा
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल पृथ्वी के किन पहलुओं का अध्ययन करता है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल एक सशक्त विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। इसमें पृथ्वी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

  • पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों एवं घटनाओं का अध्ययन मानव के सन्दर्भ में करना।
  • स्थानीय, क्षेत्रीय तथा भू-मण्डलीय स्तर पर उभरती मानव-पर्यावरण अन्तःक्रियाओं (Interactions) का अध्ययन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक विषय के रूप में भूगोल का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी प्रमुख परिभाषाएँ बताइए। अथवा भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
‘भूगोल’ हिन्दी के दो शब्दों भू + गोल की सन्धि से बना है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी गोल है। भूगोल विषय के लिए अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘ज्योग्राफी’ (Geography) को सबसे पहले यूनानी विद्वान् इरेटॉस्थेनीज़ (Eratosthenes) ने 234 ई० पू० अपनाया था। Geography शब्द मूलतः यूनानी भाषा के दो पदों Ge अर्थात् पृथ्वी और Graphien अर्थात् लिखना से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य है-“पृथ्वी तथा इसके ऊपर जो कुछ भी पाया जाता है, उसके बारे में लिखना या वर्णन करना।”

डडले स्टाम्प के अनुसार, “भूगोल वह विज्ञान है जो पृथ्वी तल और उसके निवासियों का वर्णन करता है।” मोंकहाउस के अनुसार, “भूगोल मानव के आवास के रूप में पृथ्वी का विज्ञान है।” फिन्च व ट्रिवार्था की दृष्टि में, “भूगोल भू-पृष्ठ का विज्ञान है। इसमें भूतल पर विभिन्न वस्तुओं के वितरण प्रतिमानों तथा प्रादेशिक सम्बन्धों के वर्णन एवं व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है।”

अतः इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एक विषय के रूप में भूगोल मानव तथा पृथ्वी के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। प्रश्न 2. भूगोल के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर:भूगोल एक प्रगतिशील और सक्रिय क्षेत्रीय विज्ञान है जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि-भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित घटनाओं, प्रदेशों की विशेषताओं और विविधताओं की जानकारी देकर मानव की स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि करता है तथा उसकी सोच व कल्पना को नए आयाम देता है।

2. समग्रता का अध्ययन-भूगोल पृथ्वी के किसी भी भू-भाग का उसकी समग्रता (Totality) मैं सृष्टि के एक जीवन्त पहलू के रूप में अध्ययन करता है।

3. मानवीय संसार का अध्ययन हार्टशॉर्न के अनुसार, “पृथ्वी का मानवीय संसार के रूप में वैज्ञानिक ढंग से वर्णन तथा विकास में योगदान करना ही भूगोल का उद्देश्य है।”

4. संसाधन संरक्षण-भूगोल का उद्देश्य है कि किसी प्रदेश के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों को इस प्रकार विकसित किया जाए कि उनके अनुकूलतम (Optimum) प्रयोग से मानव का कल्याण हो सके।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-भूगोल का उद्देश्य भौतिक संसाधनों के विश्वव्यापी वितरण तथा लोगों के उपभोग प्रारूपों का अध्ययन करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और पारस्परिक निर्भरताओं को सार्थक बनाना है।

6. स्वस्थ तथा सन्तुलित दृष्टिकोण का विकास-जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार, “भूगोल का उद्देश्य भावी नागरिकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करना है कि वे विश्व रूपी महान् रंगमंच पर पाई जाने वाली परिस्थितियों का सही आकलन कर सकें और आस-पड़ोस में पाई जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखने में समर्थ हो जाएँ।”

प्रश्न 3.
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान-इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान-भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान-इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean Deposits) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल को लोकप्रियता क्यों मिली?
अथवा
पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance) में भूगोल के लोकप्रिय होने के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल इसलिए पुनर्जागरण काल कहलाता है क्योंकि इसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में और विशेष रूप से 18वीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल के लोकप्रिय होने के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारणों का हाथ था
(1) इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया।

(2) इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं, जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

(3) अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों हम्बोल्ट तथा रिटर ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ।

(4) उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दूर-दराज़ के भू-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

प्रश्न 5.
भूगोल में समाकलन या संश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है? उन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए जिन्होंने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन किया है।
उत्तर:
समाकलन व संश्लेषण भूगोल के अध्ययन की ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न विज्ञानों, जिनकी अपनी अलग पहचान है, की सहायता से भूगोल में विकसित हुए उपक्षेत्रों या घटकों का आपस में संयुक्त रूप से अध्ययन किया जाता है। इससे भौगोलिक अध्ययन न केवल सरल हो जाता है बल्कि किसी प्रदेश के भौतिक व मानवीय तत्त्वों के अन्तर्सम्बन्धों का भी ज्ञान हो जाता है। इसीलिए भूगोल को समाकलन या संश्लेषण का विज्ञान (A science of Integration or Synthesis) भी कहा जाता है। भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन एच०जे० मैकिण्डर ने किया था। उनके अनुसार भौतिक भूगोल के बिना मानव भूगोल का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 6.
भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर अवतरित होने पर आदि मानव का वास्ता सबसे पहले सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी प्रकृति से पड़ा था। प्रकृति उसके लिए अनेक प्रकार के कौतुहलों का पिटारा था। तार्किक ज्ञान और तकनीकी शक्ति के अभाव के कारण आदि मानव जल-थल और नभ के रहस्यों से भयभीत रहता था। प्रकृति के इन्हीं रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या का प्रयास करने के कारण भूगोल ज्ञान के प्राचीनतम विषय के रूप में जाना जाता है।

सांस्कृतिक विकास के साथ वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना बलवती होने लगी और विश्व के बारे में अधिकाधिक सूचनाओं के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगी। सूचनाओं के अम्बार ने विशिष्टीकरण को अनिवार्य बना दिया। इससे भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र जैसे विषय उभरकर सामने आए जो कभी भूगोल नामक एकीकृत विषय के अंग हुआ करते थे। इसी आधार पर भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
विशिष्टीकरण, जिसने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया, की जरूरत क्यों महसूस हुई थी?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में अनेक यात्राएँ, खोजें तथा आविष्कार हुए। इससे देशों और लोगों के बारे में जानकारी कई गुना बढ़ गई। साथ ही वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना भी बलवती होने लगी थी। पृथ्वी तल पर पाई जाने वाली मानवीय व प्राकृतिक परिघटनाओं की व्याख्या वैज्ञानिक आधार पर होने लगी। इन दशाओं ने ज्ञान के अम्बार का विशिष्टीकरण अनिवार्य बना दिया ताकि प्रकृति के हर छोटे-बड़े पक्ष की बारीकी से व्याख्या की जा सके। इस विशिष्टीकरण ने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया।

प्रश्न 8.
भूगोल में ऐसे कौन-से दो प्रमुख क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल को सर्वाधिक प्रभावित किया?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल में जो पहली क्रान्ति आई उसका नाम मात्रात्मक क्रान्ति था। 1960 और 1970 कों में आई मात्रात्मक विधियों और तकनीकों की इस क्रान्ति ने मानव व प्राकृतिक परिघटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। भूगोलवेत्ताओं में मात्रात्मक विधियों का प्रयोग उस समय जनन (C कारण यह था कि इन प्रविधियों के सहारे भूगोलवेत्ताओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में कारकों और प्रक्रियाओं को साथ लेकर सार्थक परिणाम निकालना आसान हो गया था।

भूगोल में दूसरी क्रान्ति 1990 के दशक में आई। इसे हम सूचना क्रान्ति के नाम से जानते हैं। सूचना क्रान्ति का आधार वास्तव में सुदूर संवेदन (Remote Sensing) है जिसमें अन्तरिक्ष में हज़ारों मीटर की ऊँचाई पर स्थापित कृत्रिम उपग्रह से अथवा वायुयान से फोटोग्राफ लिए जाते हैं जिनके आधार पर अनेक विषयों से जुड़े आँकड़ों व सूचनाओं की रचना की जाती है। भूगोल में आई इन दोनों क्रान्तियों ने भूगोल के स्वरूप को ही बदल दिया है।

प्रश्न 9.
भूगोल में आई नूतन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से भूगोल के दृष्टिकोण में आई परिपक्वता के कारण भूगोल में कुछ नई प्रवृत्तियाँ उभरी हैं जो अग्रलिखित हैं
उत्तर:

  1. भूगोल का विकास एक ऐसे अन्तर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) विषय के रूप में हो रहा है जो भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
  2. प्रदेशों के समाकलित अध्ययन और संसाधन मूल्यांकन के लिए भूगोल की भूमिका बढ़ रही है।
  3. मानवीय समृद्धि के लिए बनी आर्थिक विकास योजनाओं में भूगोल का अधिकाधिक प्रयोग बढ़ रहा है।
  4. मॉडल निर्माण (Model Building) से प्रस्तावित योजनाओं के परिणामों व स्वरूप का पूर्वानुमान लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  5. कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग से मानचित्र विज्ञान की तकनीकें प्रखर हुई हैं।
  6. भू-क्षेत्रों के अध्ययन में उपग्रह-फोटोग्रामेटरी का प्रयोग बढ़ रहा है।

प्रश्न 10.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
नियतिवाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
अथवा
“मानव प्रकृति का दास है।” नियतिवाद के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटज़ेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटजेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटजेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों . में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव-उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।।

प्रश्न 11.
सम्भावनावाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सम्भावनावाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर:
फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है, परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज़ तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे। इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

प्रश्न 12.
“भूगोल, प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान दोनों ही है” इस कथन की व्याख्या संक्षेप में करें।
उत्तर:
भूगोल एक समाकलन का विषय है। भूगोल अपनी विषय-सामग्री प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से प्राप्त करता है। इसका अपना एक अलग दृष्टिकोण है, इसलिए यह अन्य विज्ञानों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र का भौगोलिक चित्र प्रस्तुत करने के लिए भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र के भौतिक वातावरण के अध्ययन के लिए भौतिकी तथा रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञानों का सहारा लेना पड़ता है।

मानवीय-क्रियाओं का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान सहायक है। सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन से भौतिक तत्त्वों के कृषि और मानव बस्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूगोल, प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान दोनों में ही कड़ी का कार्य करता है, इसलिए भूगोल को दोनों वर्गों के विज्ञानों में माना जाता है।

प्रश्न 13.
भूगोल मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
भूगोल अन्य सामाजिक-विज्ञानों; जैसे इतिहास, नागरिक-शास्त्र तथा समाजशास्त्र की तरह मनुष्य को एक अच्छा नागरिक बनाने में निम्नलिखित आधारों पर सहायक है

  • भूगोल से मनुष्य को भौतिक पर्यावरण और मानवीय क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
  • इस विषय के अध्ययन से अन्तर्राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • भूगोल का मूल-मन्त्र स्थान है। इसके अन्तर्गत पृथ्वी का मानव के निवास स्थान के रूप में अध्ययन किया जाता है इसलिए यह विश्व की विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएँ दूर करने में सहायक है।
  • मानव का आदर्श जीवन प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रयोग पर निर्भर करता है। इसलिए यह मानव के कल्याण हेतु विश्व के संसाधनों का उचित प्रयोग करने में सहायक है।
  • भूगोल के अध्ययन से हमें विश्व के विभिन्न देशों के विकास स्तर में अन्तर होने की जानकारी प्राप्त होती है तथा भूगोल विकास स्तर में अन्तर कम करने में सहायक है।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भूगोल भी अन्य विषयों की तरह मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 14.
भूगोल में प्रादेशीकरण (Regionalization) के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल उन कारकों की पहचान करता है जो संयुक्त रूप से किसी प्रदेश को विशिष्ट स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘प्रदेश’ भमि का वह विशिष्ट भाग होता है जो किसी एक से अधिक विशेषताओं के आधार पर अपने निकटवर्ती भू-भागों से भिन्न होता है। ये विशेषताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती हैं; जैसे भौतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य। यदि किसी प्रदेश को परिभाषित करने का आधार उच्चावच है तो उसे भौतिक प्रदेश और यदि आधार आर्थिक है (जैसे-औद्योगिक संकुल) तो उसे आर्थिक प्रदेश कहा जाएगा।

अतः किसी भू-भाग में भौगोलिक परिघटना की एकरूपता (Uniformity) अथवा समांगता (Homogeneity) के आधार पर प्रदेशों व उप-प्रदेशों के निर्धारण को प्रादेशीकरण कहते हैं। ये प्रदेश संस्पर्शी (Contiguous) भी हो सकते हैं और दूर-दूर स्थित भी हो सकते हैं। विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों के विकास-स्तर का तुलनात्मक अध्ययन प्रादेशिक विधि द्वारा ही सम्भव है। इससे क्षेत्रीय आर्थिक विषमताओं के कारणों का पता लगाकर उनके निराकरण की राह निकाली जा सकती है।

प्रश्न 15.
“भूगोल भू-पृष्ठ पर बदलते हुए लक्षणों का अध्ययन है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निरन्तर बदल रहा है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन कहीं मन्द है तो कहीं तीव्र है, कहीं दृश्य है तो कहीं अदृश्य । सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण जैसे स्थलाकृतियाँ; जैसे पर्वत, पठार, मैदान इत्यादि धीरे-धीरे परिवर्तित होते हैं जबकि सांस्कृतिक लक्षण; जैसे भवन, सड़कें, फसलें इत्यादि शीघ्रता से बदलते रहते हैं। भूगोल इन बदलते हुए लक्षणों की उत्पत्ति तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। वह इन लक्षणों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
भौतिक भूगोल के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल अपने आप में एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं है, बल्कि यह अनेक विज्ञानों से ली हुई ऐसी जानकारी का संकलन है जिसकी सहायता से भू-पृष्ठ पर भिन्न-भिन्न स्थानों में भौतिक परिवेश की भिन्नता तथा इस भिन्न जाता है। मानव द्वारा किया गया सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास प्राकृतिक पर्यावरण की पृष्ठभूमि में ही संभव हो पाता है। प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें हम स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल तथा जैवमण्डल का अध्ययन करते हैं ही मनुष्य के सामने प्राकृतिक संसाधनों तथा संभावनाओं का चित्र प्रस्तुत करता है। इन्हीं संसाधनों का उपयोग मनुष्य अपने तकनीकी विकास के स्तर के अनुसार कर पाता है।

भौतिक भूगोल न केवल पेड़-पौधों, पशुओं, सूक्ष्म-जीवों, मनुष्यों, खनिजों, ईंधन के स्रोतों, मृदा, जलवायु, जलीय विस्तारों तथा भू-आकारों का अध्ययन करता है बल्कि अन्तर्जात बलों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है। भौतिक भूगोल वास्तव में वह आधारी चट्टान है जिस पर मनुष्य विकास की मूर्ति को स्थापित करता है। भौतिक भूगोल के ज्ञान के बिना विश्व रंगमंच पर मनुष्य कोई भूमिका नहीं निभा सकता।

प्रश्न 17.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण तथा आधुनिक दृष्टिकोण में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भूगोल के प्राचीन तथा आधुनिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भूगोल का प्राचीन दृष्टिकोण (Classical Approach)भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)
1. 18 वीं शताब्दी तक भूगोल द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को प्राचीन दृष्टिकोण कहा जाता है।1. भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ।
2. इस दृष्टिकोण के अनुसार भूगोल मात्र आँकड़ों को एकत्रित करने वाला विवरणात्मक शास्त्र है।2. भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण पृथ्वी की घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसे प्रश्नों के उत्तर देता है।
3. प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी था।3. आधुनिक दृष्टिकोण समाकलित है।

प्रश्न 18.
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

आगमन पद्धति (Inductive Method)निगमन पद्धति (Deductive Method)
1. आगमन पद्धति में एकत्रित तथ्यों तथा उनकी समानता के आधार पर नियम बनाए जाते हैं।1. निगमनं पद्धति में बनाए गए नियमों या कहे गए आधार वाक्य से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
2. यह विधि विशेष से सामान्य (From Specific to General) के सिद्धान्त पर आधारित है।2. यह विधि सामान्य से विशेष (From General To Specific) के सिद्धान्त पर आधारित है।
3. आगमन पद्धति में निष्कर्षों और नियमों का अनुभवों पर परीक्षण किया जाता है।3. निगमन पद्धति में कुछ अनुभवों फ्के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 19.
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अन्तर हैं-

क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography)प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है।1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्तों के सन्दर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है।2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है।3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्त्व विशेष के क्षेत्रीय वितरण,4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभी भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है।5. प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूगोल के वैज्ञानिक तथा मानवीय आधार की रचना किस प्रकार हुई? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूगोल में प्राचीन यूनानी तथा भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
एक विषय के रूप में भूगोल के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोल के वैज्ञानिक आधार की रचना-भूगोल को एक ‘विज्ञान’ के रूप में स्थापित करने का श्रेय मुख्यतः यूनान, भारत और अरब के विद्वानों को जाता है। इन्होंने खगोल स्थित पिण्डों का वेध (Astronomical Observations) करके ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति को जानने का प्रयत्न किया और साथ ही मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले धरती और आकाश के अनेक रहस्यों को भेदने का प्रयास किया।

यूनानी विद्वान् पाइथागोरस (Pythagoras) ने ईसा से कई शताब्दी पहले पृथ्वी को गोलाकार समझते हुए इसे अन्य ग्रहों के साथ एक केन्द्रीय आग’ (यहाँ केन्द्रीय आग से मतलब सूर्य से रहा होगा।) के चारों ओर घूमता हुआ बताया।

हेरोडोटस (484-425 ईसा पूर्व) ने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सकारण वर्णन किया। उन्होंने ही सबसे पहले ‘मिस्र को नील नदी का उपहार’ (Egypt is the Gift of Nile) बताया था।

हिप्पोक्रेट्स (460-377 ईसा पूर्व) नामक यूनानी भूगोलशास्त्री ने सर्वप्रथम वातावरण का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया। अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी के कटिबन्धों, उसकी गोलीय (Spherical) आकृति के वर्णन तथा ग्रहण लगने की दशाओं (Eclipses) की व्याख्या करके गणितीय भूगोल को संवर्धित किया।

इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ईसा पूर्व) ने मिस्र में साईने व अलेग्जेन्द्रिया नामक स्थानों पर 21 जून को दोपहर में सूर्य की किरणों का कोण मापकर पृथ्वी की परिधि (Circumference) का लगभग सही आकलन कर लिया था।

ईसा की दूसरी शती में टॉल्मी ने अक्षांश-देशान्तरों पर आधारित विश्व का पहला मानचित्र तैयार किया जिससे सैकड़ों वर्षों तक मानचित्र कला प्रभावित रही।

भारत में ईसा की पाँचवीं शताब्दी के आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, आठवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त तथा बारहवीं शताब्दी के भास्कराचार्य जैसे विद्वानों ने न्यूटन से कई शताब्दी पहले ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त, सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी के अक्ष-भ्रमण (Rotation) तथा कक्ष-भ्रमण (Revolution) से जुड़े सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर लिया था।

ईसा की तीसरी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के बीच के पूर्व-मध्यकाल में अरब के विद्वान् प्राचीन भौगोलिक ज्ञान का संरक्षण तो करते रहे किन्तु इस दौरान ईसाई विश्व (Christian world) में भूगोल का कोई विशेष विकास नहीं हो पाया। तेरहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance or Fact Finding Age) कहलाया, जिसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया। इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था, क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों एलेक्जैण्डर वान हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) तथा कार्ल रिटर (Karl Ritter) ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ। उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दर-दराज के भ-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

भूगोल के मानवीय आधार की रचना (Human Basis of Geography) सन् 1870 में जर्मनी के भूगोलवेत्ता रेटज़ेल (Ratzel) का ग्रन्थ एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी (Anthro-pogeographie) प्रकाशित हुआ। इसमें मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को भूगोल से जोड़कर इस विषय को मानवीय आधार प्रदान किया गया। इस प्रकार भूगोल केवल स्थानों का वर्णन मात्र नहीं रहा बल्कि विभिन्न प्राकृतिक परिस्थितियों में मानव के प्रत्युत्तरों (Responses) की भी व्याख्या करने लगा।

प्रश्न 2.
भूगोल के अध्ययन की पद्धतियों एवं तकनीकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूगोल की पद्धतियाँ (Methods of Geography)-भूगोल अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित पद्धतियों को अपनाता है
1. वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)-एक क्रमबद्ध ढंग से प्रासंगिक तथ्यों व आँकड़ों को इकट्ठा करना, समानता के आधार पर उनका वर्गीकरण करना तथा तर्क (Logic) के आधार पर कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालना ही वैज्ञानिक पद्धति है। अन्य विज्ञानों की भांति भूगोल भी तर्क और वैज्ञानिक पद्धति पर आश्रित है। इस पद्धति में निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं
(1) परिकल्पना (Hypothesis) सर्वप्रथम अध्ययन की जाने वाली समस्या या परिस्थिति के बारे में आरम्भिक विचारों का एक ताना-बाना बुना जाता है।

(2) अवलोकन (Observation)-परिकल्पना के बाद चुने हुए क्षेत्र में घटनाओं का निरपेक्ष अवलोकन किया जाता है, ताकि भौगोलिक अध्ययन सही व सच्चा हो सके। इन घटनाओं में पाई जाने वाली समानताओं अथवा ऐक्य (Universality) का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(3) सत्यापन (Verification) तत्पश्चात् किए गए अवलोकनों व पाई गई घटनाओं की सत्यता को परखा जाता है। भौतिक विज्ञानों में तो यह सत्यापन प्रयोगशालाओं में होता है, जबकि सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला स्वयं समाज होता है।

(4) परिणामों का वर्गीकरण (Classification of Results) ऐसे परिणाम जो किसी भी देश और काल में सत्य सिद्ध होते रहें, नियम (Rule) कहलाते हैं। जो परिणाम सत्य के आस-पास तो हों परन्तु सभी परिस्थितियों में पूर्ण सत्य सिद्ध न हो सकें, उन्हें सिद्धान्त (Principle) कहा जाता है।

2. आगमन तथा निगमन पद्धतियाँ (Inductive and Deductive Methods)-आगमन पद्धति के अन्तर्गत तथ्यों का एक समुच्चय (Set of facts) इकट्ठा कर लिया जाता है और इन तथ्यों में पाई जाने वाली समानताओं के आधार पर नियम और सिद्धान्त बनाए जाते हैं। इस प्रकार आगमन विधि तथ्यों से सिद्धान्त या विशेष से सामान्य (From specific to general) की विधि है।

निगमन पद्धति में किसी सिद्धान्त या नियम अर्थात् ‘कहे गए आधार वाक्य’ को ध्यान में रखकर तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है। यह विधि सामान्य से विशेष (From general to specific) पर आधारित है।।

भूगोल की तकनीकें (Techniques of Geography) तथ्यों के विश्लेषण (Analysis), प्रक्रम (Processing) और व्याख्या (Interpret) करने के तरीकों को तकनीक कहा जाता है। किसी भी तकनीक का चुनाव और उसका प्रभाव भूगोलवेत्ता के ज्ञान और कुशलता पर निर्भर करता है। भौगोलिक तथ्यों को आसानी से समझाने के लिए भूगोलवेत्ता निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करता है
(1) मानचित्रण विधि (Cartographic Method) इस विधि में मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है। सूचनाओं व आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाकर सार्थक निष्कर्ष निकाले जाते हैं और उन निष्कर्षों की व्याख्या भी की जाती है।

(2) मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) इस विधि में सांख्यिकी के प्रयोग और गणितीय मॉडल निर्माण (Mathematical Model Building) पर बल दिया जाता है। इसमें आँकड़ों का संकलन, उनका वर्गीकरण, विश्लेषण तथा उनसे महत्त्वपूर्ण सार्थक निष्कर्ष निकालना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 3.
भूगोल के अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भौगोलिक समस्या के अध्ययन की कौन-सी दो विधियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश के भूगोल का अध्ययन निम्नलिखित दो विधियों से किया जा सकता है-

  • क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach)
  • प्रादेशिक विधि (Regional Approach)

1. क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach) इस विधि के अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँटकर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, ‘धरातल’ प्रकरण (Topic) को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या सारे संसार का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मिट्टी, खनिज, कृषि, उद्योग, परिवहन, जनसंख्या, व्यापार, ज्वार-भाटा महासागरीय धाराएँ इत्यादि तत्त्वों का क्षेत्र-विशेष पर पृथक्-पृथक् अध्ययन किया जाता है।

अतः क्रमबद्ध विधि में हमारा ध्यान प्रदेश के किसी एक तत्त्व या तत्त्व सम्मिश्रण (Element Complex) के अध्ययन पर रहता है, उस क्षेत्र की अन्य चीज़ों पर नहीं; इसी कारण इस विधि को प्रकरण विधि (Topical Method) भी कहते हैं। क्रमबद्ध विधि की उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा हम समस्त यथार्थता (Total reality) में से कुछ चुनिन्दा (Selective) तत्त्वों के वितरण और विश्लेषण पर ध्यान दे सकते हैं।

2. प्रादेशिक विधि (Regional Approach) भू-तल पर भौगोलिक दशाएँ सर्वत्र एक-जैसी नहीं पाई जातीं। अतः इस विधि के द्वारा भूगोल का अध्ययन करने के लिए हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Regions) में बाँटते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित (Integrated) अध्ययन करते हैं। भू-पृष्ठ पर पाई जाने वाली स्थानिक विभिन्नताओं (Areal differentiations) के कारण कोई भी दो क्षेत्र एक-जैसे नहीं होते परन्तु कई बार हम देखते हैं कि पृथ्वी तल पर आपस में बहुत दूर स्थित कुछ प्रदेशों के भौगोलिक परिवेश में काफ़ी समांगता (Homogeneity) पाई जाती है जिससे इन सभी प्रदेशों में रहने वाले लोगों का जीवन-यापन, रहन-सहन व आर्थिक क्रियाएँ लगभग एक-जैसी होती हैं।

उदाहरणतः, दक्षिणी अमेरिका के ब्राज़ील देश में स्थित अमेजन बेसिन जैसा भौगोलिक वातावरण वहाँ से हज़ारों किलोमीटर दूर अफ्रीका के कांगो और जायरे बेसिन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मलेशिया, इण्डोनेशिया और फिलीपीन्स द्वीप-समूह में भी पाया जाता है। इन सभी भू-भागों को एक प्राकृतिक प्रदेश (Natural region) में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस खण्ड को हम भूमध्य रेखीय प्रदेश कहते हैं। इस एक प्राकृतिक खण्ड के दूर-दूर स्थित सभी भू-भागों में पाई जाने वाली लगभग एक जैसी भौगोलिक और मानवीय दशाओं के अध्ययन को ही प्रादेशिक विधि कहते हैं।

इसी प्रकार भारत को प्राकृतिक खण्डों में बाँट कर किए गए अध्ययन को भारत का प्रादेशिक भूगोल कहा जाएगा। प्रादेशिक भूगोल में समस्त भारत का अध्ययन करना आवश्यक नहीं है। हम गंगा का निम्न मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश, असम घाटी, मालाबार तट व छोटा नागपुर पठार जैसे कुछ या इनमें से एक प्रदेश को लेकर भी वहाँ के धरातल, जलवायु, कृषि, खनिज, व्यापार, उद्योग, जनसंख्या आदि का अध्ययन करें तो यह प्रादेशिक विधि कहलाएगी। अतः स्पष्ट है कि प्रादेशिक विधि में हम विश्व या किसी बड़े भू-भाग को भौगोलिक प्रदेशों में बाँटकर उनका अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 4.
“भूगोल का सम्बन्ध क्रमबद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों से है।” उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
भूगोल का अन्य विषयों के साथ क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“भौतिक भूगोल अथवा मानव भूगोल के अतिरिक्त कोई भूगोल नहीं हो सकता।” उचित उदाहरण देकर इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
भूगोल भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाले एक पुल (Bridge) का कार्य करता है। इसका कारण यह है कि भूगोल अपनी अन्तर्वस्तु (Contents) या विषय-सामग्री के लिए काफी हद तक अन्य विज्ञानों पर निर्भर करता है और बदले में अपने ज्ञान के द्वारा अनेक विद्वानों के विकास में योगदान देता है। इस प्रकार वर्तमान में भूगोल एक अन्तअनुशासनिक (Interdisciplinary) विषय बनकर उभरा है। भूगोल का जिन विषयों के साथ निकट का सम्बन्ध है, उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • भूगोल तथा भौतिक अथवा प्राकृतिक विज्ञान (Geography and Physical or Natural Science)
  • भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)

(क) भूगोल तथा भौतिक विज्ञान (Geography and Physical Science) भौतिक या प्राकृतिक विज्ञानों को क्रमबद्ध विज्ञान (Systematic Science) भी कहा जाता है। इन विज्ञानों के नियमों को प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर दोनों जगह सिद्ध किया जा सकता है। भूगोल का सम्बन्ध भौतिक विज्ञानों की निम्नलिखित प्रमुख शाखाओं से है-
1. भूगोल तथा खगोल विज्ञान (Geography and Astronomy) ब्रह्माण्ड (Universe) की उत्पत्ति, इसमें व्याप्त अनेक सौर-मण्डल (Solar System), प्रत्येक सौर-मण्डल में उपस्थित अनेक तारे व अन्य आकाशीय पिण्ड, उनकी गतियाँ, सूर्य की किरणों का उत्तरायण व दक्षिणायन होना, ऋतु परिवर्तन, दिन-रात का होना जैसी अनेक प्राकृतिक घटनाओं के समुचित उत्तर के लिए भूगोल खगोल विज्ञान का सहारा लेता है। खगोल विज्ञान स्वयं गणित और भौतिकी के नियमों का अनुसरण करता है।

2. भूगोल तथा गणित (Geography and Mathematics)-विभिन्न स्थानों पर समय और समय-अन्तराल की गणना, अक्षांश-देशान्तर के निर्धारण, सांख्यिकीय आरेखों, प्रक्षेपों व ग्राफ़ इत्यादि की रचना के लिए गणित का आधारभूत ज्ञान अनिवार्य है। भू-तल पर होने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं व जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन गणित के बिना सम्भव नहीं है।

3. भूगोल तथा भौतिकी (Geography and Physics)-भौतिकी के नियमों का ज्ञान पृथ्वी की गतियों, ज्वालामुखी, भूकम्प, ज्वार-भाटा, अपक्षय और अपरदन जैसी अनेक प्रक्रियाओं को समझने में भूगोल की सहायता करता है।

4. भूगोल तथा भू-गर्भ विज्ञान (Geography and Geology)-भू-गर्भ विज्ञान पृथ्वी की उत्पत्ति, भू-आकृतियों का निर्माण, खनिजों व चट्टानों की उत्पत्ति, भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल इन तत्त्वों के वितरण और मानव पर इनके प्रभावों का अध्ययन करता है। भूगोल और भू-गर्भ विज्ञान के गहरे सम्बन्धों के बारे में भूगोलवेत्ता डब्ल्यू०एम० डेविस (W.M. Davis) ने कहा था, “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भूगर्भ विज्ञान।”

5. भूगोल तथा रसायन विज्ञान (Geography and Chemistry) वायुमण्डल की विभिन्न गैसों, विभिन्न खनिजों, ऊर्जा के संसाधनों, मृदा व चट्टानों के गुणों के बारे में जानकारी हेतु भूगोल रसायन विज्ञान पर निर्भर रहता है।

6. भूगोल तथा वनस्पति विज्ञान (Geography and Botany)-भूगोल वनस्पति के प्रकार और उसके आर्थिक महत्त्व का अध्ययन करता है। वनस्पति विज्ञान में वृक्षों व पादप-समूह की जीवनी (Plant life) का अध्ययन होता है। वनस्पति जगत (Flora) के आधारभूत ज्ञान के लिए भूगोल वनस्पति विज्ञान से सम्बन्ध रखता है।

7. भूगोल तथा प्राणी विज्ञान (Geography and Zoology)-प्राणी विज्ञान जन्तुओं (Fauna) की विभिन्न प्रजातियों (Species) व उनके जीवन के बारे में अध्ययन करता है। भूगोल स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं पर भौगोलिक तत्त्वों के प्रभाव और पर्यावरण के साथ उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। पारिस्थितिकी (Ecology) का अध्ययन करते समय हम जन्तुओं के विश्व-वितरण का भी अध्ययन करते हैं। इस प्रकार भूगोल और प्राणी विज्ञान में सम्बन्ध है।

इसके अतिरिक्त भूगोल का सम्बन्ध मृदा विज्ञान व जल विज्ञान जैसे क्रमबद्ध विज्ञानों से भी है।

(ख) भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)
1. भूगोल तथा अर्थशास्त्र (Geography and Economics) भूगोल के उपविषय आर्थिक भूगोल में हम विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में मानव की आर्थिक क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करते हैं, जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के साधनों की व्याख्या करता है। आर्थिक भूगोल और अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु बहुत कुछ मिलती है, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है।

2. भूगोल तथा इतिहास (Geography and History)-भूगोल स्थान का और इतिहास समय का ज्ञान है तथा कोई भी सामाजिक विज्ञान देश और काल के सन्दर्भ के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसी कारण वूलरिज़ तथा ईस्ट (Wooldridge and East) ने कहा था, “वास्तव में भूगोल, इतिहास से, जिसने इसे बनाया है, अलग नहीं हो सकता।” भूगोल और इतिहास न केवल एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं। किसी भी प्रदेश की वर्तमान दशा वहाँ पर अतीत में हो चुके घटना-क्रम की उपज होती है क्योंकि भूगोल वह मंच प्रदान करता है, जिस पर इतिहास का नाटक खेला जाता है।

3. भूगोल तथा समाजशास्त्र (Geography and Sociology)-मानव भूगोल और समाजशास्त्र दोनों विषयों में साम व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक अवस्थाओं का अध्ययन होता है। दोनों ही विषय भू-तल पर पाए जाने वाले मानव समु सामाजिक संगठन, परिवार-प्रणाली, श्रम-विभाजन, रीति-रिवाज, लोकनीति व प्रथाओं का अध्ययन करते हैं।

4. भूगोल तथा सैन्य विज्ञान (Geography and Military Science) युद्ध भूमि की भौगोलिक स्थिति; जैसे पहाड़, दलदल, मरुस्थल, जंगल, समुद्र इत्यादि तथा वहाँ की जलवायु की जानकारी सेना के लिए अनिवार्य है। सैन्य विज्ञान में हम युद्ध क्षेत्रों, युद्ध कलाओं, युद्धों के कारणों व प्रभावों की व्याख्या करते हैं। इस आधार पर भूगोल का सैन्य विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है। दोनों ही विषयों में राष्ट्रों की जनशक्ति, आर्थिक शक्ति, औद्योगिक विकास का अध्ययन किया जाता है। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर बने सीमावर्ती क्षेत्रों के मानचित्र देश की सुरक्षा व युद्ध की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं।

5. भूगोल तथा राजनीतिक विज्ञान (Geography and Political Science) राजनीतिक विज्ञान भिन्न-भिन्न राज्य-व्यवस्थाओं व संगठनों का अध्ययन करता है। प्रत्येक राज्य-व्यवस्था अपनी राजनीतिक सोच के अनुसार ही संसाधनों का विकास करती है। भूगोल संसाधन, उपयोग और संरक्षण से जुड़ा होने के कारण विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था से निरपेक्ष नहीं हो सकता। राज्यों व राष्ट्रों की सीमाओं में होने वाले परिवर्तन से उत्पन्न परिणामों का अध्ययन भी दोनों विषय अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं। दोनों ही विषय भू-राजनीति (Geo-politics) व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 5.
“वास्तव में न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूर्ण नियन्त्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है।” नियतिवाद और सम्भववाद के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मनुष्य और प्रकृति के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आधुनिक भूगोल का आधार बना। मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर दो पृथक् विचारधाराएँ विकसित हुईं

  • नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism)
  • सम्भववाद (Possibilism)

1. जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटजेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटज़ेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटज़ेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया है। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।

2. फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे।

इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति, अध्यवसाय तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं। फैक्रे के अनुसार, “मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उसके प्रयोग का निर्णायक होता है।” मानव की सूझ-बूझ के द्वारा विपरीत परिस्थितियों में किए गए परिवर्तनों के अनेक उदाहरण प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान हैं।

थार मरुस्थल में नहर पहुँचाना, नीदरलैण्ड्स में समुद्र को पीछे धकेलक करना, तिब्बत-लेह मार्ग के रूप में विश्व की सबसे ऊँची सड़क का निर्माण, उफनती नदियों पर विशालकाय पुल, बाढ़ को रोकने वाले हजारों बाँध, पहाड़ों की तीव्र ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती तथा वायुमण्डल से नाइट्रोजन खींचने के संयन्त्र और ध्वनि से तेज चलने वाले यान सिद्ध करते हैं कि मनुष्य विकसित तकनीक के सहारे भौतिक वातावरण या नियति को बदलने वाला सर्वश्रेष्ठ कारक है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियन्त्रण है और न ही मनुष्य ही प्रकृति का विजेता है; दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। प्रकृति का सहयोग और मनुष्य की संकल्प शक्ति दोनों ही उन्नति का आधार हैं। बीच के मार्ग की इस विचारधारा को नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उप-विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल (Physical Geography) भूगोल की वह शाखा जिसमें पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक यन किया जाता है, ‘भौतिक भूगोल’ कहलाती है। भौतिक पर्यावरण के तत्त्व भू-आकार, नदियाँ, जलवाय, प्राकृतिक वनस्पति, मृदा, जीव-जन्तु व खनिज इत्यादि होते हैं। इन प्राकृतिक तत्त्वों का निर्माण प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण सभी महत्त्वपूर्ण अंगों-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल का अध्ययन होता है। इसी आधार पर होम्स ने कहा था, “स्वयं भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।”

भौतिक भूगोल के उप-विषय (Sub-Subjects of Physical Geography)-भौतिक भूगोल के उप-विषय इस प्रकार हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) – इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान (Climatology) – जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान (Hydrology) भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान (Oceanography) इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean deposits) का अध्ययन किया जाता है।

5. मृदा भूगोल (Soil Geography or Pedology) इसमें हम मिट्टी का निर्माण, उसके प्रकार, गुण, मिट्टियों का वितरण, उर्वरता (Fertility) तथा उपयोग इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

6. जैव भूगोल (Bio-Geography) यह उप-शाखा पृथ्वी तल पर जीवों और वनस्पति (Fauna and Flora) के विकास, वर्गीकरण और वितरण का मानव के सन्दर्भ में अध्ययन करती है।

प्रश्न 7.
मानव भूगोल क्या होता है? मानव भूगोल के उप-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल (Human Geography) भूगोल की वह शाखा, जो भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों या लक्षणों का अध्ययन करती है, उसे ‘मानव भूगोल’ कहा जाता है। इन मानवीय लक्षणों की रचना मनुष्य अपनी सुख-सुविधा और विकास के लिए करता है। गाँव, नगर, कृषि, कारखाने, बाँध, सड़कें, पुल, रेलें, नहरें व संस्थाएँ आदि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं। मानव-निर्मित परिस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है।

मानव की सभी विकास क्रियात्मक गतिविधियों पर भौतिक वातावरण का भारी असर पड़ता है। इसीलिए मानव भौतिक परिवेश से व्यापक अनुकूलन करके ही सांस्कृतिक परिवेश की रचना करता है। विडाल डी ला ब्लाश के अनुसार, “मानव भूगोल में पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का संयुक्त ज्ञान शामिल होता है।” एलन चर्चिल सेम्पल (Ellen Churchill Sample) के अनुसार, “मानव भूगोल क्रियाशील मानव और अस्थायी पृथ्वी के आपसी बदलते हुए सम्बन्धों का अध्ययन है।”

मानव भूगोल के उप-क्षेत्र (Sub-Fields of Human Geography) मानव भूगोल के उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) एन०जी० पाउण्ड्स के अनुसार, “आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करता है।” आर्थिक क्रियाएँ मुख्यतः उत्पादन, वितरण, उपभोग और विनिमय से सम्बन्धित होती हैं।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) मानव भूगोल की इस उप-शाखा में समय और स्थान के सन्दर्भ में मनुष्य के सांस्कृतिक पक्षों-आवास, भोजन, जीने का ढंग, आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा, शिक्षा, सुरक्षा, धर्म, सामाजिक संस्थाओं और दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है।

3. सामाजिक भूगोल (Social Geography)-सामाजिक भूगोल में मानव का एकाकी रूप से अध्ययन न करते हुए विभिन्न मानव समूहों और उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों की समीक्षा की जाती है।

4. जनसंख्या भूगोल (Population Geography) इस उप-शाखा में कुल जनसंख्या, जनसंख्या का वितरण, घनत्व, जन्म एवं मृत्यु-दर, साक्षरता, । अनुपात इत्यादि जनांकिकीय विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

5. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)-इसके अन्तर्गत हम विभिन्न प्रदेशों में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों का समय के संदर्भ में अध्ययन करते हैं। हार्टशॉर्न के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।” ऐतिहासिक भूगोल किसी प्रदेश के वर्तमान स्वरूप को समझने में हमारी सहायता करता है।

6. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) इस उप-शाखा के अन्तर्गत भू-राजनीति, राजनीतिक व्यवस्था, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का संसाधनों के उपयोग पर पड़ने वाले प्रभावों, राज्य और राष्ट्रीय सीमाओं, स्थानीय स्वशासन, प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है।

इनके अतिरिक्त मानव भूगोल के अन्य उप-क्षेत्र आवासीय भूगोल, नगरीय भूगोल, चिकित्सा भूगोल, संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल व परिवहन भूगोल इत्यादि हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Read More »

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. भारत के आर्थिक विकास के लिए सबसे पहले योजना किसने बनाई?
(A) जवाहरलाल नेहरू ने
(B) एम०एन० राय ने
(C) एम० विश्वेश्वरैया ने
(D) श्री मन्नारायण अग्रवाल ने
उत्तर:
(C) एम० विश्वेश्वरैया ने

2. गाँधीवादी योजना किसने बनाई?
(A) जवाहरलाल नेहरू ने
(B) एम०एन० राय ने
(C) एम० विश्वेश्वरैया ने
(D) श्री मन्नारायण अग्रवाल ने
उत्तर:
(D) श्री मन्नारायण अग्रवाल ने

3. एम० विश्वेश्वरैया ने दसवर्षीय योजना प्रकाशित की थी-
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1944 में
(C) सन् 1951 में
(D) सन् 1956 में
उत्तर:
(A) सन् 1936 में

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

4. योजना आयोग की स्थापना हुई
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1944 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1956 में
उत्तर:
(C) सन् 1950 में

5. पहली पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई?
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1944 में
(C) सन् 1951 में
(D) सन् 1956 में
उत्तर:
(C) सन् 1951 में

6. योजना आयोग का गठन किसकी अध्यक्षता में हुआ?
(A) जवाहरलाल नेहरू की
(B) एम०एन० राय की
(C) एम० विश्वेश्वरैया की
(D) श्री मन्नारायण अग्रवाल की
उत्तर:
(A) जवाहरलाल नेहरू की

7. पहली पंचवर्षीय योजना में किसे प्राथमिकता दी गई?
(A) उद्योग को
(B) कृषि को
(C) गरीबी हटाने को
(D) रोजगार को
उत्तर:
(B) कृषि को

8. गरीबी हटाना किस योजना का मुख्य उद्देश्य था?
(A) दूसरी
(B) चौथी
(C) पाँचवीं
(D) छठी
उत्तर:
(C) पाँचवीं

9. गहन कृषि विकास कार्यक्रम किस योजना के दौरान लागू किया गया?
(A) दूसरी
(B) तीसरी
(C) चौथी
(D) पाँचवीं
उत्तर:
(B) तीसरी

10. जवाहर रोजगार योजना किस पंचवर्षीय योजना में शुरू की गई?
(A) पाँचवीं
(B) छठी
(C) सातवीं
(D) आठवीं
उत्तर:
(C) सातवीं

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

11. उदारीकरण की नीति के बाद किस योजना का प्रारंभ हुआ?
(A) पाँचवीं
(B) छठी
(C) सातवीं
(D) आठवीं
उत्तर:
(D) आठवीं

12. औद्योगीकरण के विकास पर किस योजना में विशेष ध्यान दिया गया?
(A) पहली
(B) दूसरी
(C) तीसरी
(D) चौथी
उत्तर:
(B) दूसरी

13. किस पंचवर्षीय योजना के बाद पहली बार वार्षिक योजनाएँ बनाई गईं?
(A) पहली
(B) दूसरी
(C) तीसरी
(D) चौथी
उत्तर:
(C) तीसरी

14. इंदिरा गाँधी नहर का निर्माण कितने चरणों में पूरा हुआ?
(A) 3
(B) 4
(C) 2
(D) 6
उत्तर:
(C) 2

15. भरमौर क्षेत्र की प्रमुख नदी कौन-सी है?
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) रावी
(D) ताप्ती
उत्तर:
(C) रावी

16. गद्दी जनजाति किस प्रदेश के भरमौर क्षेत्र में पाई जाती है?
(A) मणिपुर के
(B) ओडिशा के
(C) हिमाचल प्रदेश के
(D) अरुणाचल प्रदेश के
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश के

17. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का समय क्या था?
(A) 1998-2002
(B) 2002-2007
(C) 2007-2012
(D) 2012-2017
उत्तर:
(B) 2002-2007

18. बारहवीं पंचवर्षीय योजना का समय क्या था?
(A) 2007-2012
(B) 2012-2017
(C) 2013-2016
(D) 2009-2014
उत्तर:
(B) 2012-2017

19. विकास एक ……………… संकल्पना है।
(A) द्वि-आयामी
(B) त्रि-आयामी
(C) बहु-आयामी
(D) एक-आयामी
उत्तर:
(C) बहु-आयामी

20. राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया
(A) वर्ष 1938 में
(B) वर्ष 1940 में
(C) वर्ष 1950 में
(D) वर्ष 1952 में
उत्तर:
(A) वर्ष 1938 में

21. …………….. राष्ट्रीय नियोजन समिति के अध्यक्ष थे
(A) सरदार पटेल
(B) सरदार मनमोहन सिंह
(C) सरदार मोंटेक सिंह
(D) पं० जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(D) पं० जवाहरलाल नेहरू

22. बॉम्बे योजना का गठन किया गया
(A) वर्ष 1944 में
(B) वर्ष 1942 में
(C) वर्ष 1945 में
(D) वर्ष 1950 में
उत्तर:
(A) वर्ष 1944 में

23. 2017 तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी थीं?
(A) 11
(B) 8
(C) 9
(D) 12
उत्तर:
(D) 12

24. भारत में योजना आयोग का गठन किस वर्ष में हुआ?
(A) वर्ष 1950 में
(B) वर्ष 1951 में
(C) वर्ष 1952 में
(D) वर्ष 1953 में
उत्तर:
(A) वर्ष 1950 में

25. भारत में पहली योजना कब लागू हुई?
(A) वर्ष 1951 में
(B) वर्ष 1952 में
(C) वर्ष 1953 में
(D) वर्ष 1954 में
उत्तर:
(A) वर्ष 1951 में

26. नवगठित नीति आयोग का गठन हुआ
(A) सन् 2015 में
(B) सन् 2014 में
(C) सन् 2013 में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सन् 2015 में

27. नियोजन सर्वप्रथम किस देश में अपनाया गया?
(A) जापान में
(B) अमेरिका में
(C) भारत में
(D) सोवियत रूस में
उत्तर:
(D) सोवियत रूस में

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

28. योजनाबद्ध विकास की प्रेरणा भारत को मिली-
(A) ब्रिटेन से
(B) अमेरिका से
(C) चीन से
(D) सोवियत रूस से
उत्तर:
(D) सोवियत रूस से

29. विकास का उद्देश्य है-
(A) प्रकृति का दोहन
(B) रोजगार देना
(C) जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

30. सोवियत रूस में कौन-सा विकास का मॉडल अपनाया गया था?
(A) कल्याणकारी मॉडल
(B) समाजवादी मॉडल
(C) मिश्रित मॉडल
(D) पूँजीवादी मॉडल

(B) समाजवादी मॉडल

31. भारत में विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया गया है?
(A) समाजवादी मॉडल
(B) मिश्रित मॉडल
(C) पूँजीवादी मॉडल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मिश्रित मॉडल

32. जनता योजना के जनक थे
(A) मोंटेक सिंह
(B) एम०एन० राय
(C) लास्की
(D) ल्युसियन पाई
उत्तर:
(A) मोंटेक सिंह

33. बंबई प्लॉन को टाटा-बिरला ने कब बनाया?
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1940 में
(C) सन् 1943 में
(D) सन् 1944 में
उत्तर:
(C) सन् 1943 में

34. वह संकल्पना जिसमें वर्तमान और भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रावधान हो, कहलाती है-
(A) विकास
(B) नियोजन
(C) सतत विकास
(D) विकास नियोजन
उत्तर:
(C) सतत विकास

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
गाँधीवादी योजना किसने बनाई?
उत्तर:
श्री मन्नारायण अग्रवाल ने।

प्रश्न 2.
उदारीकरण की नीति के बाद किस पंचवर्षीय योजना का प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
आठवीं पंचवर्षीय योजना का।

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण के विकास पर किस पंचवर्षीय योजना में विशेष ध्यान दिया गया?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना।

प्रश्न 4.
अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं?
उत्तर:
12।

प्रश्न 5.
किस पंचवर्षीय योजना के बाद पहली बार वार्षिक योजनाएँ बनाई गईं?
उत्तर:
तीसरी।

प्रश्न 6.
भारत में किस तरह की अर्थव्यवस्था अपनाई गई है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 7.
अमेरिका की टेनेसी वैली अथॉर्टी के अनुसार भारत में कौन-सी परियोजना बनाई गई?
उत्तर:
दामोदर नदी घाटी परियोजना।

प्रश्न 8.
वह संकल्पना जिसमें वर्तमान और भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रावधान हो, क्या कहलाती है?
उत्तर:
सतत विकास।

प्रश्न 9.
जन योजना के प्रस्तुतकर्ता कौन थे?
उत्तर:
एम०एन० राय।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 10.
योजना आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1950 में।

प्रश्न 11.
दसवीं पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
सन् 2002 में।

प्रश्न 12.
योजना आयोग का गठन किसकी अध्यक्षता में हुआ?
उत्तर:
जवाहरलाल नेहरू की।

प्रश्न 13.
भरमौर जन-जातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में।

प्रश्न 14.
पहली पंचवर्षीय योजना में किसे प्राथमिकता दी गई?
उत्तर:
कृषि को।

प्रश्न 15.
जवाहर रोजगार योजना किस पंचवर्षीय योजना में शुरू की गई?
उत्तर:
सातवीं पंचवर्षीय योजना में।

प्रश्न 16.
निजी क्षेत्र की भूमिका को किस पंचवर्षीय योजना में बढ़ावा दिया गया?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना में।

प्रश्न 17.
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सन् 1952 में।

प्रश्न 18.
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत किस पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत की गई?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना के।

प्रश्न 19.
भारत में पंचवर्षीय योजना अथवा नियोजन की शुरुआत कब हुई?
अथवा
पहली पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
1 अप्रैल, 1951 में।

प्रश्न 20.
नियोजन के दो आयाम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. खंडीय नियोजन
  2. प्रादेशिक क्षेत्रीय नियोजन।

प्रश्न 21.
‘निर्धनता का उन्मूलन’ और ‘आर्थिक आत्मनिर्भरता’ किस पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य थे?
उत्तर:
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के।

प्रश्न 22.
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किसी एक उद्योग का नाम लिखें।
उत्तर:
हथकरघा उद्योग।

प्रश्न 23.
भारत में पर्वतीय क्षेत्र का कितना विस्तार है?
उत्तर:
लगभग 17%।

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का शुभारंभ कब हुआ?
उत्तर:
2 फरवरी, 2006 को।

प्रश्न 25.
जनजातीय विकास कार्यक्रम का कोई एक उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
जनजातीय जीवन की गुणवत्ता में आवश्यक सुधार करना।

प्रश्न 26.
‘सतत् विकास’ शब्द का प्रथम बार कब और कहाँ प्रयोग हुआ था?
उत्तर:
सन् 1987 में ब्रटलैंड कमीशन रिपोर्ट में।

प्रश्न 27.
सतत् विकास की आवश्यकता का उद्देश्य किस योजना में रखा गया?
उत्तर:
नौवीं पंचवर्षीय योजना में।

प्रश्न 28.
‘द पापुलेशन बम’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
एहरलिच ने।

प्रश्न 29.
‘द लिमिट टू ग्रोथ’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
मीडोस और अन्य ने।

प्रश्न 30.
अन्नपूर्णा योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
1 अप्रैल, 2001 को।

प्रश्न 31.
काम के बदले अनाज योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
14 नवम्बर, 2004 को।

प्रश्न 32.
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम/मनरेगा कब शुरू हुआ?
उत्तर:
2 फरवरी, 2006 को आंध्र प्रदेश से।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 33.
निम्नलिखित का पूरा नाम लिखें ITDP, IRDP, NITI, MFDA, SFDA.
उत्तर:

  1. ITDP : Integrated Tribal Development Programme
  2. IRDP : Integrated Rural Development Programme
  3. NITI : National Institute for Transforming India
  4. MFDA : Marginal Farmers Development Agency
  5. SFDA : Small Farmers Development Agency

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के किन्हीं छः राज्यों के नाम बताइए जहाँ जनजातियों की संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है?
उत्तर:

  1. मणिपुर
  2. त्रिपुरा
  3. असम
  4. ओडिशा
  5. छत्तीसगढ़
  6. झारखण्ड
  7. सिक्किम।

प्रश्न 2.
पर्वतीय क्षेत्रों के विकास कार्यक्रमों में किन क्षेत्रों पर अधिक जोर दिया जाता है?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्रों के विकास कार्यक्रमों में बागवानी, पशुपालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, वानिकी और ग्रामीण उद्योग आदि पर अधिक जोर दिया जाता है।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था को गरीबी ने घेर रखा था और भारत विश्व के निम्नतम आय स्तर और प्रति व्यक्ति निम्नतम उपभोग करने वाले राज्यों में से एक था।

प्रश्न 4.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का क्या लक्ष्य था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य विकास के लिए घरेलू बचत में वृद्धि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को औपनिवेशिक शासन के स्वरूप से पुनर्जीवित करना था।

प्रश्न 5.
खंडीय नियोजन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
खंडीय नियोजन से अभिप्राय है अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों; जैसे कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, परिवहन और संचार सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना और उनको लागू करना।

प्रश्न 6.
क्षेत्रीय नियोजन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
प्रादेशिक नियोजन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कोई भी देश सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकसित नहीं हुआ है। अतः विकास के इस असमान प्रतिरूप में प्रादेशिक असंतुलन को कम करने के लिए योजना बनाना प्रादेशिक नियोजन कहलाता है। इस प्रकार के नियोजन को क्षेत्रीय नियोजन भी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
भारत में नियोजन का कार्य किसे सौंपा गया है?
उत्तर:
भारत में पहले नियोजन का कार्य योजना आयोग’ करता था परंतु सन् 2016 में भारत सरकार ने नीति आयोग का गठन किया और इसी आयोग को नियोजन का कार्य सौंपा गया है।

प्रश्न 8.
नीति आयोग का गठन कब हुआ? इसका अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
केंद्र सरकार ने सन् 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन किया। देश का प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होता है।

प्रश्न 9.
प्रादेशिक असंतुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रादेशिक असंतुलन से तात्पर्य प्रादेशिक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त विकास की विषमताओं से है। प्रादेशिक स्तर पर देश में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो विकासात्मक कार्यों में आगे हैं और कुछ बहुत पीछे हैं।

प्रश्न 10.
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक स्वतंत्रता को आर्थिक आधार प्रदान करना है। इसका लक्ष्य सामाजिक एवं आर्थिक विकास है।

प्रश्न 11.
विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विकास को आधुनिकीकरण का सूचक माना जाता है। विकास ऐसी प्रक्रिया है जो ऐसी संरचनाओं या संस्थाओं का निर्माण करती है, जो समाज की समस्याओं का समाधान निकालने में समर्थ हो।

प्रश्न 12.
विकास का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों के रहन-सहन के स्तर का विकास करना है। इसका तात्पर्य यह है कि लोगों के जीवन का स्तर न केवल ऊँचा हो, बल्कि उन्हें वे सुविधाएँ भी मिलनी चाहिएँ, जिन्हें वे प्राप्त
करके अपने जीवन में सुखी व सम्पन्न बन सकें।

प्रश्न 13.
बॉम्बे योजना क्या थी?
उत्तर:
सन् 1944 में आठ प्रमुख उद्योगपतियों ने एक योजना तैयार की जो बॉम्बे योजना (Bombay Plan) के नाम से जानी जाती है। इसमें कहा गया कि आर्थिक विकास के लिए सरकार को बड़े उद्योगों में अधिक पूँजी लगानी चाहिए; जैसे बीमा व्यवस्था, बीमा कंपनियाँ आदि।

प्रश्न 14.
योजना आयोग का गठन करने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश का सामाजिक-आर्थिक विकास तेज और सुनियोजित ढंग से करने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया था।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 15.
नियोजन के क्या लक्ष्य हैं?
उत्तर:
नियोजन के मुख्य लक्ष्य निम्नलिखित हैं-

  1. आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  2. आर्थिक असमानता या विषमता कम करना।
  3. लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना।

प्रश्न 16.
लक्ष्य क्षेत्र नियोजन क्या है?
उत्तर:
आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतलन को रोकने व क्षेत्रीय आर्थिक और सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने लक्ष्य-क्षेत्र तथा लक्ष्य-समूह योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रमों में कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम है।

प्रश्न 17.
गरीबी क्या है? इसके प्रकार बताएँ।
उत्तर:
गरीबी से अभिप्राय विकास की कमी, अल्प विकास और पिछड़ेपन से है। प्रतिदिन 2300 कैलोरी से कम वाले व्यक्ति को गरीब माना जाता है। प्रकार-

  1. निरपेक्ष गरीबी
  2. सापेक्ष गरीबी।

प्रश्न 18.
भारत में गरीबी उन्मूलन रोजगार किन्हीं छः कार्यक्रमों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवक कार्यक्रम (ट्राइसेस)।
  2. जवाहर रोजगार योजना (JRY)
  3. प्रधानमंत्री आवास योजना (PAY)
  4. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कार्यक्रम (मनरेगा)
  5. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)
  6. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम।

प्रश्न 19.
गहन कृषीय विकास कार्यक्रम कब लागू किया गया?
उत्तर:
सन् 1966 से सन् 1969 के बीच तीन वार्षिक योजनाएँ चलाई गई थीं। इन वार्षिक योजनाओं में ही गहन कृषीय विकास कार्यक्रम चलाया गया था।

प्रश्न 20.
नियोजन किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी देश के भविष्य की समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाए गए कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं के क्रम को विकसित करने की प्रक्रिया को नियोजन कहा जाता है। ये समस्याएँ मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजिक ही होती हैं जो समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं।।

प्रश्न 21.
किसी देश के विकास के लिए नियोजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
नियोजन के बिना कोई भी देश अपनी अर्थव्यवस्था का विकास नहीं कर सकता। वर्तमान युग नियोजन का युग है और नियोजन ही विकास का मूल मंत्र है। किसी देश को गरीबी, भूख, निरक्षरता और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान करना है तो उसे नियोजन का सहारा लेना पड़ेगा।

प्रश्न 22.
उन क्षेत्रों के नाम बताइए जहाँ जन-जातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम शुरू किए गए थे।
उत्तर:
जन जातीय विकास कार्यक्रम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, झारखंड और राजस्थान; जैसे राज्यों के ऐसे क्षेत्रों में आरंभ किए गए थे जहाँ की जनसंख्या 50 प्रतिशत या इससे अधिक जन-जातीय है।

प्रश्न 23.
जन-जातीय विकास कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. जन-जातीय और अन्य लोगों के विकास के स्तरों के अंतर को कम करना।
  2. जन-जातीय लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना।

प्रश्न 24.
भारत की आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा 29 मार्च, 1992 को स्वीकृति मिलने के पश्चात् आठवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1992 से लागू की गई। इस योजना में गरीबी को दूर करने तथा ग्रामीण विकास पर विशेष बल दिया गया था। इस योजना पर कुल परिव्यय ₹ 4,95,670 करोड़ था। योजना अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पादन 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा, जबकि लक्ष्य 5.6 प्रतिशत का था।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टिकाऊ विकास की संकल्पना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टिकाऊ विकास का अर्थ है, वंचित लोगों की बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी हों और सभी लोगों को बेहतर जीवन बिताने का मौका मिल सके तथा पारितंत्र को कम-से-कम हानि पहुँचे। इस संकल्पना के अनुसार, मनुष्य की वर्तमान और भावी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण की क्षमता का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। संसाधनों का उनकी पुनर्भरण की क्षमता के अनुसार उपयोग होना चाहिए ताकि उनकी निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। टिकाऊ विकास में समान हित की भावना जगा पाने की हमारी क्षमता परिलक्षित होनी चाहिए ताकि आय का न्यायपूर्ण वितरण तथा शक्ति और सुविधाओं का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित हो सके।

प्रश्न 2.
भारत में टिकाऊ विकास या सतत् विकास की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
1960 के दशक के अंत में पश्चिम के विकसित राष्ट्रों में तीव्र औद्योगीकरण के पर्यावरण पर अवांछित परिणाम सामने आने लगे थे। इससे चिंतित लोगों की पर्यावरण संबंधी सामान्य जागरूकता भी बढ़ने लगी। सन् 1968 में प्रकाशित एहरलिच (Ehrlich) की पुस्तक द पापुलेशन बम और सन् 1972 में प्रकाशित भीडोस (Meadows) व अन्यों द्वारा लिखित पुस्तक द लिमिट टू ग्रोथ ने पर्यावरण निम्नीकरण पर लोगों व विशेष रूप से पर्यावरणविदों की चिंता को बढ़ा दिया। इस समस्त घटनाक्रम के संदर्भ में विकास के एक नए मॉडल का विकास हुआ जिसे सतत् पोषणीय विकास कहा गया।

पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने नार्वे के प्रधानमंत्री हरलेम ब्रटलैंड की अध्यक्षता में पर्यावरण और विकास पर विश्व आयोग का गठन किया। सन् 1987 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘आवर कॉमन फ्यूचर’ के नाम से प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को ब्रटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं। इसके अनुसार, “सतत् पोषणीय विकास वह विकास है ज भावी पीढ़ियों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता के साथ समझौता किए बिना ही वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करें।” समय के साथ यह परिभाषा भी अपर्याप्त मानी जाने लगी, क्योंकि यह वर्तमान तथा भावी दोनों पीढ़ियों की आवश्यकताओं को परिभाषित नहीं करती। सन् 1987 के बाद एक और बेहतर तथा अधिक सार्थक परिभाषा सामने आई। श्री कुमार चट्टोपाध्याय के अनुसार, “सतत पोषणीय विकास पारिस्थितिक तंत्र की पोषण क्षमता के अंदर रहकर मानव-जीवन के स्तर को ऊँचा करना है।”

प्रश्न 3.
सतत् पोषणीय विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सतत पोषणीय विकास के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. मानव व जीवन के अन्य सभी रूपों का जीवित रहना।
  2. सभी जीवों, मुख्यतः मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं का पूरा होना।
  3. जीवों की भौतिक उत्पादकता का अनुरक्षण।
  4. मनुष्य की आर्थिक क्षमता एवं विकास।
  5. पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण।
  6. सामाजिक न्याय और स्वावलंबन।
  7. आम लोगों की प्रतिभागिता।
  8. जनसंख्या की वृद्धि दर में स्थिरता।
  9. जीवन मूल्यों का पालन।

प्रश्न 4.
सन 1966-1969 के दौरान वार्षिक योजनाओं के विशिष्ट लक्षण कौन-कौन से थे?
अथवा
तीन वर्षीय योजनाओं (1966-1969) पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
सन् 1966-1969 के दौरान तीन वार्षिक योजनाएँ बनाई गई थीं। इन योजनाओं में पैकेज कार्यक्रमों को अपनाया गया था। पैकेज कार्यक्रमों के अंतर्गत सुनिश्चित वर्षा और सिंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाले बीज, उर्वरक, कीटनाशक दवाइयाँ और ऋण की सुविधाएँ उपलब्ध करवाना था। इसे गहन कृषीय जिला कार्यक्रम के नाम से जाना जाता था। इससे खाद्यान्नों के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और देश में हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ। वर्ष 1968-1969 में औद्योगिक उत्पादों में भी वृद्धि होने लगी।

प्रश्न 5.
सखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के निम्नलिखित उद्देश्य थे-

  1. इस कार्यक्रम के उद्देश्य के अतंर्गत अभावग्रस्त लोगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना।
  2. सूखा संभावी क्षेत्र में जहाँ अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधन हों, वहाँ के गाँवों की गरीबी कम करने के लिए उत्पादक परिसंपत्तियों का निर्माण करना।
  3. भूमि और मजदूर की उत्पादकता बढ़ाने के लिए विकासात्मक कार्य आरंभ करना।
  4. सूखा प्रवण क्षेत्र के समन्वित विकास पर बल देना।

प्रश्न 6.
जनजातीय विकास परियोजना का वर्णन करें।
उत्तर:
सन् 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारम्भ हुई और हिमाचल प्रदेश में भरमौर को पाँच में से एक समन्वित जनजातीय विकास परियोजना का दर्जा मिला। इस योजना में परिवहन, संचार, कृषि और उससे संबंधित क्रियाओं को सामाजिक विकास, सामुदायिक सेवाओं के विकास को प्राथमिकता दी गई। इस उपयोजना के लागू होने से सामाजिक लाभ में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार, बाल-विवाह में कमी आई है। जनजातीय क्षेत्रों में जलवायु कठोर होती है। संसाधनों की कमी रहती है। आर्थिक-सामाजिक विकास भी नहीं हो पाया है। इन क्षेत्रों का आर्थिक आधार मुख्य रूप से कृषि और उससे जुड़ी आर्थिक क्रियाएँ जैसे भेड़ व बकरी पालन शामिल है। इन क्षेत्रों में आज भी कृषि परम्परागत तकनीकों से की जाती है।

प्रश्न 7.
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर संक्षिप्त नोट लिखें।
अथवा
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कहाँ-कहाँ पर आरंभ किए गए?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के सभी पर्वतीय जिले, मिकिड़ व असम उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग और तमिलनाडु के नीलगिरी को मिलाकर कुल 15 जिले शामिल हैं। पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों को संरक्षण एवं उनके रख-रखाव के लिए केन्द्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा विशेष कार्य किए गए। इसका मुख्य कार्य वहाँ की वनस्पति एवं कृषि योग्य जमीन का संरक्षण करना था और वहाँ से गए हुए लोगों को उन्हीं के स्थान पर रोजगार प्राप्त करवाना था।

पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव दिए थे

  1. केवल प्रभावशाली नहीं, सभी लोगों को लाभ मिले
  2. स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास
  3. जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना
  4. अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
  5. पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
  6. पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना।

प्रश्न 8.
आर्थिक योजना के लिए तीन स्तरीय प्रादेशिक विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर:
1. बृहत स्तरीय प्रदेश-ये सबसे उच्च स्तर के प्रदेश होते हैं। इनमें एक से अधिक राज्य सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार के प्रदेश अपनी सीमा के अंदर पूर्ण विकास की क्षमता रखते हैं। ये क्षेत्र भौगोलिक सम्पदा, कच्चे माल, शक्ति के साधनों में आत्मनिर्भर होते हैं।

2. मध्यम स्तरीय प्रदेश यह प्रदेश एक या एक से अधिक राज्यों के कुछ जिलों का संगठित स्वरूप होता है। 3. अल्पार्थक स्तरीय प्रदेश ये सबसे छोटे और निम्न स्तर के योजना प्रदेश होते हैं। इनमें कई विकास केन्द्र शामिल होते हैं।

प्रश्न 9.
भारत के विकास में प्रादेशिक विषमताओं की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजित विकास की प्रक्रिया में प्रादेशिक विषमताओं की झलक प्रस्तुत होती है। विकास का फल आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को उस हिसाब से नहीं मिल पाया जितना अपेक्षित था। इस सन्दर्भ में कुछ उदाहरण उल्लेखनीय हैं जो निम्नलिखित हैं
(1) वर्ष 1999-2000 में बिहार में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 6,328 रुपए थी, जबकि दिल्ली में यह आय 35,705 रु० थी। इस प्रकार राज्यों में न्यूनतम और अधिकतम आय का अनुपात 1:56 था।

(2) देश के विभिन्न भागों में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात में भी अंतर पाया जाता है। वर्ष 1999-2000 में जम्मू और कश्मीर में गरीबों का प्रतिशत 3.48 था, जबकि ओडिशा में यह 47.95 प्रतिशत था।

(3) नगरीकरण की प्रक्रिया भी विकास का प्रमुख संकेतक माना जाता है। राज्यों में नगरीय जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। अरुणाचल प्रदेश में नगरीय जनसंख्या का अनुपात 5.50 प्रतिशत है, जबकि गोवा में यह 49.77 प्रतिशत है।

प्रश्न 10.
पंचवर्षीय योजनाओं के कोई चार मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के मुख्य चार उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना।
  2. कृषि उत्पादकता को बढ़ाना और रोजगार में वृद्धि करना।
  3. आर्थिक असमानता समाप्त या कम करना।
  4. आत्मनिर्भरता और औद्योगिक विकास में वृद्धि करना।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 11.
योजना आयोग के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर:
योजना आयोग के कोई चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. देश के संसाधनों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए देश के विकास के लिए योजनाएँ तैयार करना।
  2. विभिन्न कार्यक्रमों के लिए प्राथमिकताओं को निर्धारित करना।
  3. योजनाओं की प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
  4. आर्थिक विकास में बाधक कारकों का पता लगाना। इन कारकों को ध्यान में रखकर आयोग उन उपायों तथा मशीनरी को भी निश्चित करता है जिनका उपयोग करके आर्थिक विकास की प्राप्ति हो।

प्रश्न 12.
भरमौर क्षेत्र की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
भरमौर क्षेत्र की चार मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भरमौर क्षेत्र पर्वतीय होते हैं।
  2. ये क्षेत्र आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं।
  3. यहाँ की जलवायु कठोर होती है।
  4. इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है।

प्रश्न 13.
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् भारत में नियोजन (Planning) को क्यों अपनाया गया? अथवा भारत में योजना पद्धति को क्यों चुना गया?
अथवा
नियोजन की आवश्यकता के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
भारत में आर्थिक नियोजन को अपनाने के मुख्य चार कारण निम्नलिखित हैं
1. पिछड़ी हुई कृषि प्रणाली-भारत की स्वतंत्रता के समय देश में कृषि की अवस्था बहुत खराब थी, खाने तक के लिए भी अनाज विदेशों से मंगवाना पड़ता था। खाद्य वस्तुओं में आत्मनिर्भरता लाने के लिए नियोजन की बहुत आवश्यकता थी।

2. रोज़गार-स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय भारत में बहुत बेरोज़गारी थी। लोगों को रोज़गार दिलाने के लिए एक ओर तो बड़े उद्योगों को लगाना आवश्यक था और दूसरी ओर लघु-उद्योगों के लिए आर्थिक सहायता देकर लोगों को रोजगार दिलाना था।

3. औद्योगिकीकरण भारत में उद्योग भी बहुत पिछड़े हुए थे। लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए उद्योगों को लगाने और पहले से चल रहे उद्योगों में सुधार करने के लिए भी नियोजन आवश्यक था।

4. शिक्षा-उद्योगों के संचालन के लिए तकनीकी कर्मचारी तथा वित्त प्रशासक मिल सकें, इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना आवश्यक था। भारत में छोटे तथा बड़े स्तर पर अनेक संस्थाएँ स्थापित करने की आवश्यकता थी जिससे विद्यार्थी इंजीनियरिंग, डॉक्टरी तथा अन्य व्यवस्था के बारे में शिक्षा प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 14.
भारत में नियोजन के मुख्य उद्देश्य बताएँ?
अथवा
भारत में नियोजन की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य चार उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-नियोजन का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। इस उद्देश्य हेतु विभिन्न योजनाओं में राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य निश्चित किया गया। जैसे दसवीं पंचवर्षीय योजना में आठ प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित . किया गया। नियोजन के कारण ही प्रथम पंचवर्षीय योजना से ग्यारहवीं योजना तक राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लक्ष्यों में तीन गुणा . तक वृद्धि हुई थी।

2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि-सभी को रोजगार उपलब्ध कराना नियोजन का दूसरा प्रमुख उद्देश्य है। इसलिए प्रत्येक योजना में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने तथा अर्द्धबेरोजगारी को दूर करने के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

3. समाजवादी ढंग के समाज की स्थापना-नियोजन का उद्देश्य देश में समाजवादी ढंग से समाज की स्थापना करना है। यह समाज सामाजिक न्याय ( Social Justice) पर आधारित होता है। यह समाज शोषण-रहित सिद्धांत पर आधारित होता है जिसमें लोगों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

4. निर्धनता दूर करना–पाँचवीं योजना का प्रमुख लक्ष्य ‘गरीबी हटाओ’ था। इसलिए देश में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम पर जोर दिया जा रहा है ताकि गरीब लोगों की आय में वृद्धि हो और उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. सभी पंचवर्षीय योजनाओं अथवा वार्षिक योजनाओं के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत (Guidelines) निर्धारित करना।
  2. योजना आयोग ने योजनाओं का जो प्रारूप तैयार किया है, उस पर विचार-विमर्श करना और उसको अंतिम स्वीकृति प्रदान करना।
  3. सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा और उसके लक्ष्य निर्धारित करना।
  4. योजनाओं के कार्यान्वयन पर निगाह रखना और योजना-अवधि के दौरान हुई प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
  5. लक्ष्य से कम हुई प्रगति के कारणों की समीक्षा करना और ऐसे सुझाव देना अथवा उपाय बतलाना जिनसे कि योजना-लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिले।

प्रश्न 16.
अच्छे नियोजन के लिए आवश्यक चार बातें लिखें।
अथवा
अच्छे नियोजन की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
अच्छे नियोजन के लिए निम्नलिखित बातों की आवश्यकता होती है-

  1. नियोजन के उद्देश्यों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जानी चाहिए।
  2. उद्देश्यों को केवल मात्र निर्धारित करने से काम नहीं चलता। इन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. नियोजन कठोर नहीं होना चाहिए। इसे इतना लचीला होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनमें संशोधन किया जा सके।
  4. नियोजन के विभिन्न भागों में संतुलन होना आवश्यक है।

प्रश्न 17.
भारत के विकास में पहली एवं दूसरी योजनाओं की भूमिका का उल्लेख कीजिए। अथवा पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
नियोजन द्वारा विकास का प्रारंभ सर्वप्रथम सोवियत संघ में हुआ और वहाँ पर इसको शानदार सफलता मिली। भारत में नियोजित विकास का सन् 1951 में आरंभ हुआ।
1. पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56)-इस योजना में कृषि के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। योजना काल के दौरान कृषि, सामुदायिक विकास तथा सिंचाई कार्यक्रम पर लगभग ₹ 724 करोड़ खर्च किए गए। साथ ही औद्योगिक क्षेत्र में भी संतोषजनक प्रगति हुई। सार्वजनिक क्षेत्र में कई नए कारखाने लगाए गए; जैसे चितरंजन में रेलवे इंजन बनाने का तथा सिंदरी में खाद बनाने का कारखाना आदि।।

2. दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) इस योजना में समाजवादी समाज की अवधारणा पर बल देते हए सभी वर्गों के विकास पर बल दिया गया। इस योजना के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र में ₹ 4800 करोड़ का निवेश प्रस्तावित किया गया था जिसमें से करीब ₹ 4600 करोड़ व्यय किए गए। इस योजना में भारी उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया गया था।

प्रश्न 18.
भारत की चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
इस योजना में सघन खेती (Intensive Agriculture), पौध संरक्षण (Plant Conservation) तथा उन्नत बीजों (Improved Seeds) के प्रयोग पर विशेष बल के अतिरिक्त समाज के वंचित और कमजोर वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए उन्हें शिक्षा तथा रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध करवाने पर भी विशेष बल दिया गया। इसके साथ ही बड़े उद्योगों तथा खनिजों के विकास के लिए ₹ 3630 करोड़ की धनराशि निर्धारित की गई थी। इस योजना में आर्थिक विकास दर को 5.7 प्रतिशत के स्तर पर लाना निर्धारित किया गया था, लेकिन इसे केवल 2.1 प्रतिशत ही प्राप्त किया जा सका। इस दौरान 1971 में भारत-पाक युद्ध और इससे पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए लाखों शरणार्थियों के चलते अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था।

प्रश्न 19.
भारत की नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
नौवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1997 को लागू की गई और इसकी अवधि 31 मार्च, 2002 तक की थी। इस योजना में प्रस्तावित निवेश ₹ 8,59,200 करोड़ था, जबकि वास्तविक निवेश ₹ 9,41,041 करोड़ रहा। इस योजना के अंतर्गत कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ रोजगार के अवसरों पर जोर दिया गया। आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ कीमतों को स्थिर रखने, सभी को खाद्यान्न उपलब्ध कराने, पेयजल तथा बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने और प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस योजना में 6.5 प्रतिशत की प्रस्तावित दर के विपरीत 5.4 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जा सकी।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं की मुख्य सफलताओं का वर्णन करें। अथवा भारत में नियोजित विकास की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत बारह पंचवर्षीय और छः वार्षिक योजनाएँ पूरी कर चुका है। नियोजन के इतने वर्षों में, हमारी उपलब्धियाँ श्रेष्ठ (Outstanding) नहीं रही। फिर भी, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान हमारे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हुई है। सन् 1951 की तुलना में (जब प्रथम पंचवर्षीय योजना आरम्भ हुई थी) आज भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत बेहतर है। उपलब्धियों का विश्लेषण योजनाओं के लक्ष्यों तथा उद्देश्यों के सन्दर्भ में किया जाता है। निम्नलिखित तथ्य भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हैं
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय आर्थिक संवृद्धि का सूचक है। भारत में राष्ट्रीय आय में वृद्धि निश्चित रूप से नियोजन योजन के पहले दशक (1950-51 से 1960-61) के बीच राष्ट्रीय आय में 3.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से औसत वृद्धि हुई। दूसरे दशक (1960-61 से 1970-71) में यह घटकर 3 प्रतिशत रह गई। तीसरे दशक (1970-71 से 1980-81) के दौरान यह बढ़कर 3.3 प्रतिशत हो गई। सन् 1980-81 से 2006-07 के बीच यह बढ़कर 6.3 प्रतिशत हो गई। दसवीं तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर बहुत उत्साहवर्द्धक रही। दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान यह 7.8 प्रतिशत तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के पहले दो वर्षों के दौरान यह लगभग 8 प्रतिशत रही। वर्ष 2008-09 के दौरान विश्व मन्दी के कारण वृद्धि दर बहुत कम रही है। फिर भी हमें आशा है कि हम विश्व मन्दी की मार से बचे रहेंगे। हमें 6.7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर बनाए रहने की उम्मीद है जबकि संसार की उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ गतिहीनता की ओर बढ़ रही हैं।

2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि योजनाओं के अधीन आर्थिक विकास को उत्साहित करने वाले तत्त्वों का विकास होने के कारण कृषि तथा उद्योगों के उत्पादन में सराहनीय वृद्धि हुई है तथा रोज़गार सुविधाओं का विस्तार हुआ है। भारत में सम्पूर्ण योजनाकाल में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। सम्पूर्ण नियोजन की अवधि के दौरान, प्रति व्यक्ति आय की औसत वृद्धि दर स्थिर कीमतों पर 2.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है। यह इस तथ्य का संकेत है कि विकास की प्रक्रिया पूरी तरह से जड़ पकड़ नहीं पाई है, यद्यपि विकास की गति को अभी उड़ान भरनी है।

3. पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि-पूँजी निर्माण आर्थिक विकास का मूल निर्धारक है। एक देश का आर्थिक विकास पूँजी निर्माण की दर पर निर्भर करता है। पूँजी निर्माण की दर बचत तथा निवेश पर निर्भर करती है। पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान, बचत तथा निवेश की दर में काफी वृद्धि हुई है। सन् 1950-51 में, भारत में बचत की दर राष्ट्रीय आय का 5.5% थी जो 2010-11 में बढ़कर 32.3% हो गई। 10वीं योजना के अन्त में भारत में निवेश दर का अनुमान 32.5% था, 2010-11 में यह 35.1% अनुमानित है।

4. कृषि का विकास-कृषि विकास के लिए भारत सरकार ने बहुत-सी योजनाएँ चालू की हैं, जिनका कृषि उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। आज भारतीय कृषि में ऊँची उपज वाले बीज, रासायनिक खाद, मशीनों तथा नए ढंगों का प्रयोग किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में सराहनीय वृद्धि हुई है, जिसको हरित-क्रान्ति का नाम दिया गया है।

उदाहरणस्वरूप अनाज का उत्पादन 1951-52 में 550 लाख टन से बढ़कर 2011-12 में 2448 लाख टन हो गया था। नियोजन की अवधि के दौरान कृषि उत्पादन की औसत वृद्धि दर 2.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी। हमने देखा कि कृषि उत्पादन के स्तर में स्पष्ट परिवर्तन हुआ है किन्तु कृषि उत्पादन की वृद्धि दर इन सभी वर्षों में स्थिर (Stable) नहीं रही। इसमें एक वर्ष से दूसरे वर्ष उतार-चढ़ाव होता रहा है जो कि देश में जलवायु सम्बन्धी संवेदनशीलता का प्रतीक है। उपयुक्त मानसून के कारण अच्छी फसल तथा खराब मानसून के कारण खराब फसल का उत्पादन हुआ है।

5. औद्योगिक विकास योजनाओं के अधीन औद्योगिक क्षेत्र में कारखानों की संख्या, पूँजी निवेश तथा औद्योगिक उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। पूँजीगत वस्तु उद्योग; जैसे लोहा तथा इस्पात, मशीनरी, रासायनिक खादें आदि का बहुत सन्तोषजनक विकास हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का भी पर्याप्त विकास हुआ है। उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में देश ने लगभग आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है।

उद्योग के पर्याप्त आधुनिकीकरण तथा विविधीकरण के फलस्वरूप आज भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था में दसवीं सबसे बड़ी औद्योगिक अर्थव्यवस्था बन गई है। नियोजन की अवधि (1951-2012) के दौरान औद्योगिक उत्पादन की औसत वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है। अतः योजना के काल में औद्योगिक उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर (यद्यपि उतार-चढ़ाव से मुक्त नहीं थी) कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से काफी अधिक स्थिर रही है।

6. आर्थिक आधारिक संरचना का विकास योजना अवधि में आर्थिक आधारिक संरचना में काफी प्रगति हुई है। इसमें मुख्य रूप से यातायात, संचार के साधन, सिंचाई की सुविधाएँ, बिजली की उत्पादन क्षमता आदि शामिल किए जाते हैं। अर्थव्यवस्था में ऊर्जा निर्माण (Power-generation) में बहुत वृद्धि हुई है। सड़कों, रेलवे, बन्दरगाहों, हवाई अड्डों, दूर-संचार, बैंकिंग, बीमा आदि सभी में बहुत विकास हुआ है। योजना अवधि में बेहतर आधारिक संरचना के उपलब्ध होने से आर्थिक विकास की गति में तेजी आई है। नियोजन काल में नए बिजली-घर स्थापित किए गए हैं। बिजली आपूर्ति में तीव्रता से वृद्धि हुई है।

देश के भिन्न-भिन्न भागों में गाँवों को शहरों के साथ सड़कों तथा रेलों के द्वारा जोड़ दिया गया है, जिसके कारण देश में कृषि तथा औद्योगिक विकास की तथा श्रम की गतिशीलता में वृद्धि हुई है, जिसका लोगों के जीवन-स्तर पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। कृषि विकास, नए उद्योगों की स्थापना तथा पुराने उद्योगों का आधुनिकीकरण करने के लिए कर्जे की सुविधाएँ देने के लिए सरकार ने व्यापारिक बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं की स्थापना की है। बैंकों को पिछड़े भागों में शाखाएँ खोलने के लिए आदेश दिए गए हैं, जिसके कारण देश में बैंकों की शाखाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

7. सामाजिक आधारिक संरचना का विकास-सामाजिक आधारिक संरचना में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा, परिवार कल्याण आदि सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है। इस क्षेत्र में भी पंचवर्षीय योजनाओं ने बहुत विकास किया है, जैसा कि जीवन की गुणवत्ता से सम्बन्धित आँकड़ों से स्पष्ट होता है

  • मृत्यु-दर-सन् 1951 में मृत्यु दर 27 प्रति हजार थी जो कि सन् 2011 में घटकर 7.2 प्रति हजार रह गई।
  • औसत आयु-सन् 1951 में 32 वर्ष से बढ़कर 2010-11 में 65.4 वर्ष हो गई।
  • शिक्षा सुविधाएँ-स्कूली बच्चों की संख्या सन् 1951 से तीन गुना तथा कॉलेज के विद्यार्थियों की संख्या पाँच गुना बढ़ गई है।
  • इंजीनियरिंग कॉलेजों में वार्षिक दाखिलों की संख्या जो सन् 1950 में 7,100 थी अब बढ़कर 1,33,000 हो गई है।

8. रोज़गार योजनाओं की अवधि में रोज़गार के अवसर बढ़ाने के बहुत प्रयत्न किए गए हैं। प्रथम योजना में 70 लाख, दूसरी योजना में 100 लाख तथा तीसरी योजना में 145 लाख लोगों को रोज़गार प्रदान किया गया। चौथी योजना में 180 लाख लोगों को तथा पाँचवीं योजना में 190 लाख लोगों को रोजगार प्रदान किया गया। सातवीं तथा आठवीं योजनाओं में क्रमशः 340 लाख तथा 398 लाख लोगों को रोजगार दिया गया। एक अनुमान के अनुसार नौवीं योजना के अन्त तक लगभग 41 करोड़ 64 लाख लोगों को रोज़गार दिया गया। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 5.8 करोड़ रोज़गार के अवसरों का सजन करने का लक्ष्य था।

9. आधुनिकीकरण-योजनाओं की अवधि में अर्थव्यवस्था में जो संरचनात्मक तथा संस्थागत परिवर्तन हुए हैं वे इस बात के सूचक हैं कि अर्थव्यवस्था का काफी आधुनिकीकरण हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन इस प्रकार हैं-
(i) राष्ट्रीय आय की संरचना में उद्योगों तथा सेवाओं का योगदान काफी बढ़ गया है

(ii) आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करने वाले उद्योगों की संख्या

(iii) कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकी का प्रयोग निरन्तर बढ़ा है। संस्थागत परिवर्तनों में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण सम्मिलित हैं, जो कि विकास की रणनीति, छोटे पैमाने के उद्योगों के अन्तर-क्षेत्रीय विस्तार एकाधिकारी व्यवहार पर ‘ प्रतिबन्ध इत्यादि के मुख्य तत्त्व हैं।

10. आत्म-निर्भरता-नियोजन काल में देश में आत्मनिर्भरता के सम्बन्ध में काफी प्रगति देखी जा सकती है। विभिन्न योजनाओं में विदेशी सहायता में निरन्तर कमी हुई है। आयातों की वृद्धि दर भी निरन्तर गिरावट की ओर है। निर्यातों ने खूब उन्नति की है। इनमें निरन्तर बढ़ने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। अतः भारत में योजनाएँ अर्थव्यवस्था को आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ाने में सफल रही हैं।

संक्षेप में, भारत ने नियोजन की अवधि में विशेष प्रगति की है। देश को औद्योगिक विकास, कृषि के आधुनिकीकरण, व्यापारीकरण एवं सेवा-क्षेत्र के बहुमुखी विस्तार की ओर एक नींव स्थापित करने में सफलता मिली है। किन्तु हमारे नियोजित विकास कार्यक्रमों में गम्भीर दोष भी पाए गए हैं। इन दोषों के कारण ही हमारी उपलब्धियाँ विकास के लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सकी। काफी कुछ प्राप्त किया जा चुका है, किन्तु बहुत कुछ करना अभी बाकी है, अतः कड़ा प्रयास करना होगा।

प्रश्न 2.
भारत की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56)-पहली योजना में समग्र विकास पर बल दिया गया था फिर भी मलतः यह एक कृषि प्रधान योजना थी। इस योजना में बिजली को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका की टेनेसी वैली अथॉर्टी का अनुकरण करते हुए ऐसी अनेक बहुउद्देशीय योजनाओं को आरम्भ किया गया जिनसे बाढ़ नियन्त्रण, सिंचाई, बिजली उत्पादन, मछली-पालन और मृदा अपरदन के नियन्त्रण को बल मिलता था। भाखड़ा नंगल, कोसी, दामोदर व हीराकुड परियोजनाएँ इसके उदाहरण हैं। ग्रामीण समुदायों के विकास के लिए अनेक सामुदायिक विकास कार्यक्रम भी चलाए गए। उन्हें निवेश, वित्त और सेवाओं के बारे में तथा तकनीकी जानकारियाँ दी गईं।

दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना था। इस योजना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे-

  • राष्ट्रीय आय में 25% की वार्षिक वृद्धि।
  • आधारभूत और भारी उद्योगों के विकास के साथ तीव्र औद्योगिकीकरण।
  • रोजगारों के अवसरों को बढ़ाना।
  • राष्ट्रीय आय के असमान बंटवारे और आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को कम करना।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) इस योजना का मुख्य उद्देश्य आत्म-निर्भरता का विकास करना था। इसके लिए निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए गए थे

  • राष्ट्रीय आय में 5% की वृद्धि करना तथा निवेश को बढ़ावा देना ताकि विकास की यह दर कायम रह सके।
  • खाद्यान्नं में आत्म-निर्भरता प्राप्त करना तथा कृषि उत्पादन में इतनी बढ़ोत्तरी करना कि उद्योगों और निर्यात की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
  • रोजगार के अवसरों को बढ़ाना।
  • आय और सम्पत्ति के वितरण की विषमताओं को कम करना।

चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) इस योजना का मुख्य लक्ष्य ‘स्थिरता के साथ विकास’ था। इस योजना के अन्य मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे

  • विकास की प्रक्रिया को तेज करना।
  • कृषि उत्पादन में उतार-चढ़ाव को कम करना।
  • विदेशी सहायता की अनिश्चितता के प्रभाव को कम करना।
  • अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए औद्योगीकरण।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79)-इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी हटाना और आत्म-निर्भरता प्राप्त करना था। मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करना और आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ता प्रदान करना। छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)-इस योजना के मुख्य उद्देश्य बेरोजगारी और अर्द्धबेरोजगारी को दूर करना व जनसंख्या के निर्धन वर्ग के जीवन-स्तर में प्रशंसनीय वृद्धि करना।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • अन्न के उत्पादन में वृद्धि।
  • सामाजिक न्याय व रोजगार के अवसरों का निर्माण।
  • आत्म-निर्भरता तथा बेहतर कुशलता और उत्पादकता।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) यह योजना नई आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य निजी क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करना, उद्योग, कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि, आयात और निर्यात में भरपूर वृद्धि तथा भुगतान शेष का घटना।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)-इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • सभी के लिए भोजन उपलब्ध कराना और देश को भूख से मुक्ति दिलाना।
  • न्यूनतम आवश्यकताएँ; जैसे स्वच्छ जल, प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएँ, शिक्षा तथा आवास की सुविधा प्रदान करना।
  • सतत् पोषणीय विकास।
  • जनसंख्या वृद्धि को रोकना।
  • सूचना प्रौद्योगिकी का विकास।

दसवीं पंचवर्षीय योजना(2002-07) इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • आर्थिक विकास की दर को 8% निर्धारित करना।
  • औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाकर निर्यात और विश्व व्यापार में अपना हिस्सा बढ़ाने का लक्ष्य रखना।
  • अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ावा देना।
  • सतत् और टिकाऊ विकास के लिए अवसंरचना में वृद्धि करना।।
  • वित्तीय और मौद्रिक नीति में अधिक लचीलापन लाना।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना(2007-12)-इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • तीव्र तथा अधिक समावेशी विकास।
  • कृषि की विकास दर को दुगुना करना।
  • सामाजिक क्षेत्र-शिक्षा तथा स्वास्थ्य का विकास करना।
  • ग्रामीण आधारिक संरचना का विकास करना।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना(2012-17)-इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • तीव्र टिकाऊ एवं अधिक समावेशी विकास करना।
  • सकल घरेलू उत्पाद की दर 9% निर्धारित करना।

प्रश्न 3.
नियोजन से आप क्या समझते हैं? विकसित योजना का क्या महत्त्व है?
अथवा
नियोजन से क्या अभिप्राय है? भारत में इसकी क्या आवश्यकता है?
अथवा
भारत में आर्थिक नियोजन अपनाने के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
नियोजन का अर्थ (Meaning of Planning) साधारण शब्दों में, किसी भी देश के सभी साधनों और शक्तियों द्वारा पूर्व निश्चित अवधि के भीतर निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करना नियोजन (Planning) कहलाता है। नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा देश का इस प्रकार समुचित आर्थिक विकास किया जाता है जिससे उसका लाभ सारे देश को पहुँच सके।

विभिन्न विद्वानों द्वारा नियोजन की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. भारत के योजना आयोग के अनुसार, “योजना मुख्य रूप से समस्याओं के तर्कशील हल ढूँढने का यत्न है तथा आर्थिक योजना का अर्थ समाज में पाए जाने वाले संभावित साधनों का प्रभावशाली प्रयोग है।”

2. साइमन स्मिथबर्ग तथा थॉमसन के अनुसार, “योजना वह गतिविधि है जिसका संबंध भविष्य के सुझावों के मूल्यांकन तथा उन गतिविधियों से होता है जिनके द्वारा प्रस्तावों को प्राप्त किया जा सके।”

3. टेरी के अनुसार, “वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक समझे जाने वाले तथ्यों, साधनों तथा गतिविधियों का सोच-समझकर चयन, प्रयोग और उन्हें एक-दूसरे के साथ संबद्ध करना ही नियोजन है।”

भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नियोजन की आवश्यकता (Need of Planning for Socio-economic Development in India)-स्वतंत्र भारत के नेताओं ने इस बात को महसूस किया कि देश का सामाजिक तथा आर्थिक विकास एक योजनाबद्ध तरीके से किया जाए। जब रूस में सन् 1917 में साम्यवादी शासन स्थापित हुआ तो वहाँ भी भारत जैसी विषम आर्थिक परिस्थितियाँ मौजूद थीं और रूस ने इन समस्याओं को नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा सुलझाया। इसके परिणामस्वरूप उसे देश की आर्थिक उन्नति तथा समृद्धि में आशातीत सफलता मिली। इससे प्रभावित होकर भारत में भी नियोजित अर्थव्यवस्था की योजना बनाई गई। भारत में आर्थिक नियोजन को अपनाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. पिछड़ी हुई कृषि प्रणाली (Backward Agricultural System)-भारत की स्वतंत्रता के समय देश में कृषि की अवस्था बहुत खराब थी, खाने तक के लिए भी अनाज विदेशों से मंगवाना पड़ता था। खाद्य वस्तुओं में आत्मनिर्भरता लाने के लिए नियोजन की बहुत आवश्यकता थी।

2. रोज़गार (Employment)-स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में बहुत बेरोज़गारी थी। लोगों को रोज़गार दिलाने के लिए एक ओर तो बड़े उद्योगों को लगाना आवश्यक था और दूसरी ओर लघु-उद्योगों के लिए आर्थिक सहायता देकर लोगों को रोज़गार दिलाना था।

3. औद्योगीकरण (Industrialisation)-भारत में उद्योग भी बहुत पिछड़े हुए थे। लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए उद्योगों को लगाने और पहले से चल रहे उद्योगों में सुधार करने के लिए भी नियोजन आवश्यक था।

4. शिक्षा (Education)-उद्योगों के संचालन के लिए तकनीकी कर्मचारी तथा वित्त प्रशासक मिल सकें, इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना आवश्यक था। भारत में छोटे तथा बड़े स्तर पर अनेक संस्थाएँ स्थापित करने की आवश्यकता थी जिससे विद्यार्थी इंजीनियरिंग, डॉक्टरी तथा अन्य व्यवस्था के बारे में शिक्षा प्राप्त कर सकें।

5. आर्थिक संकट में उपयोगी (Useful in Economic Emergency)-भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसने वर्तमान समय में और भी भयंकर रूप धारण कर लिया है। नियोजन द्वारा ही देश में उपस्थित आर्थिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 4.
भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1 सितंबर, 2001 को राष्ट्रीय विकास परिषद् की 49वीं बैठक में 10वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र को मंजूरी प्रदान की गई। तत्पश्चात् योजना आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में 5 अक्तूबर, 2001 को योजना आयोग की पूर्ण बैठक में 10वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप को स्वीकृति प्रदान की गई थी। 29 अक्तूबर, 2001 को योजना आयोग के दस्तावेज़ को मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित कर दिया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2002 को लागू हुई और इसकी अवधि 31 मार्च, 2007 तक रही। दसवीं योजना के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र का परिव्यय 2001-02 की कीमतों पर ₹ 15,92,300 करोड़ रखा गया जिसमें केंद्रीय योजना का अंश 9,21,291 करोड़ रुपए तथा राज्यों एवं केंद्र-शासित क्षेत्रों का अंश ₹ 6,71,009 करोड़ था। योजना को केंद्र सरकार द्वारा ₹ 7,06,000 करोड़ का बजटीय समर्थन भी प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त दसवीं पंचवर्षीय योजना में जो लक्ष्य निश्चित किए गए थे, उनमें मुख्य निम्नलिखित थे

  • इस योजना में निर्धनता अनुपात को सन् 2007 तक 20 प्रतिशत तक तथा 2012 तक 10 प्रतिशत तक लाना था।
  • इस योजना के अंतर्गत सन् 2007 तक सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था।
  • इस योजना में जनसंख्या वृद्धि को भी 2001-2011 के दशक तक 16.2 प्रतिशत तक सीमित रखना था।
  • इस योजना में भारत में साक्षरता दर को सन् 2007 तक 72 प्रतिशत तथा 2012 तक 80 प्रतिशत रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  • इस योजना में सन् 2007 तक सभी प्रदूषित नदियों की सफाई का लक्ष्य रखा गया था।
  • इस योजना में शिशु मृत्यु दर को सन् 2007 तक 45 प्रति हजार तक लाने का लक्ष्य निश्चित किया गया था।
  • इस योजना के अंतर्गत प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था।

इसके अतिरिक्त जिन नीतिगत सुधारों की अपेक्षा योजना आयोग ने 10वीं योजना के दृष्टिकोण पत्र में की थी, उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित थे
(i) योजना के लिए सकल बजटीय समर्थन में निरंतर वृद्धि ताकि योजना के अंतिम वर्ष (2006-2007) तक इसे सकल घं उत्पाद के 5 प्रतिशत तक लाया जा सके। इसके लिए इसमें 18.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि की गई थी।

(ii) सरकारी कर्मचारियों की संख्या में प्रति वर्ष 3 प्रतिशत बिंदु की कटौती। योजना के पाँच वर्षों की अवधि में कोई नई नियुक्ति नहीं।

(iii) सुरक्षा व्यय एवं ब्याज भुगतान को छोड़कर शेष समस्त गैर-योजना व्यय को पाँच वर्षों की अवधि में वास्तविक अर्थों में (In Real Terms) यथावत् बनाए रखना। इसका अर्थ है कि मौद्रिक
रूप में इसमें वृद्धि को 5 प्रतिशत वार्षिक के स्तर तक सीमित रखना था।

(iv) सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सकल कर राजस्व (डीज़ल उपकर सहित) को 2001-2002 में 9.16 प्रतिशत से बढ़ाकर 2006-2007 तक 11.7 प्रतिशत करना था। कर राजस्व में वृद्धि को मुख्यतः कराधार में वृद्धि द्वारा ही प्राप्त किया जाना चाहिए।

(v) सेवा कर के दायरे में व्यापक विस्तार।

(vi) विनिवेश (Disinvestment) में वृद्धियाँ। 10वीं योजना के पहले तीन वर्षों में ₹ 16-17 हजार करोड़ की वार्षिक विनिवेश प्राप्तियाँ।

(vii) राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिशत से घटाकर 2.5 प्रतिशत तक लाना था।
यद्यपि इस अवधि में आर्थिक विकास की औसत वार्षिक दर 8 प्रतिशत निर्धारित की गई जिसे बाद में घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया था। निर्धारित विकास दर को प्राप्त करने के लिए दसवीं योजना में निम्नलिखित चार उपायों पर बल दिया गया था

  • ढाँचागत और सामाजिक क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना।
  • स्रोतों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना।
  • देश में निवेश के अनुकूल वातावरण तैयार करना।
  • गवर्नेस या सुशासन को बेहतर बनाना।

प्रश्न 5.
भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण-पत्र को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 19 अक्तूबर, 2006 को मंजूरी योजना आयोग द्वारा दी गई। दृष्टिकोण-पत्र में आगामी योजना के निर्धारित लक्ष्य निम्नलिखित थे
(1) विकास दर, आय एवं निर्धनता-

  • 9 प्रतिशत वार्षिक विकास दर प्राप्त करना तथा विकास दर को 2011-12 के अन्त तक बढ़ाकर 10 प्रतिशत के स्तर तक लाना था।
  • वर्ष 2016-17 तक प्रति व्यक्ति आय को दोगुना तक लाने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वार्षिक संवृद्धि दर को 8% से बढ़ाकर 10% करना था तथा इसे 10% से 12% के बीच बनाए रखना था।
  • उच्च विकास दर के लाभों को व्यापक स्तर पर लाने के लिए कृषि जीडीपी की वार्षिक संवृद्धि दर को 4% तक बढ़ाना।
  • रोजगार के 70 मिलियन नए अवसर सृजित करना।
  • शैक्षिक बेरोजगारी को 5% से नीचे लाना।
  • अकुशल श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर में 20% तक की वृद्धि करना।
  • उपयोग निर्धनता के हेडकाउंट अनुपात में 10 प्रतिशतांक तक की कमी लाना।

(2) शिक्षा-

  • प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर विद्यालय छोड़कर घर बैठ जाने वाले बालकों की दर (ड्रॉप आउट रेट) को वर्ष 2003-04 में 52.2% से घटाकर वर्ष 2011-12 तक 20% के स्तर पर लाना था।
  • प्राथमिक विद्यालयों में शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त करने के न्यूनतम मानक स्तरों को प्राप्त करना एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा की प्रभावशीलता के मूल्यांकन हेतु नियमित रूप से जाँच करते रहना।
  • 7 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में साक्षरता दर को बढ़ाकर 85% करना।
  • साक्षरता में लिंग-अंतराल (जेंडर गैप) को 10 प्रतिशतांक तक नीचे लाना।
  • प्रत्येक आयु वर्ग में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों के अनुपात को वर्तमान में 10 प्रतिशत से बढ़ाकर ग्यारहवीं योजना के अंत तक 15% करना था।

(3) स्वास्थ्य-

  • शिशु मृत्यु दर को घटाकर 28 तथा मातृत्व मृत्यु दर को घटाकर, 30 प्रति दस हज़ार जीवित जन्म के स्तर पर लाना।
  • कुल प्रजनन दर को 2-1 तक नीचे लाना।
  • सन् 2009 तक सभी को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना तथा ग्यारहवीं योजना के अंत तक यह सुनिश्चित करना था कि इसमें कमी न आए।
  • 0-3 वर्ष आयु वर्ग के बालकों में कुपोषण को वर्तमान के स्तर से आधा करना।
  • महिलाओं एवं लड़कियों में रक्ताल्पता को ग्यारहवीं योजना के अंत तक 50% तक घटाना था।

(4) महिलाएँ एवं बालिकाएँ-

  • 0-6 आयु वर्ग में लिंगानुपात को वर्ष 2011-12 तक बढ़ाकर 935 तथा 2016-17 तक 950 करना था।
  • यह सुनिश्चित करना कि सभी सरकारी योजनाओं के कुल प्रत्यक्ष एवं परोक्ष लाभार्थियों में महिलाओं एवं बालिकाओं का हिस्सा कम-से-कम 33 प्रतिशत हो।
  • यह सुनिश्चित करना कि काम करने की किसी बाध्यता के बिना सभी बच्चे सुरक्षित बाल्यकाल का आनंद उठाते हैं।

(5) आधारिक अवसंरचना-

  • सभी गाँवों एवं निर्धनता रेखा से नीचे के सभी परिवारों में सन् 2009 तक विद्युत् संयोजन सुनिश्चित करना तथा ग्यारहवीं योजना के अंत तक इनमें 24 घंटे विद्युत् आपूर्ति प्रवाहित कराना था।
  • सन् 2009 तक 1000 जनसंख्या वाले सभी गाँवों (पर्वतीय एवं जनजातीय क्षेत्रों में 500 जनसंख्या) तक सभी मौसमों के लिए उपयुक्त पक्की सड़कें सुनिश्चित करना तथा सन् 2015 तक सभी महत्त्वपूर्ण अधिवासों तक पक्की सड़कें बनवाना था।
  • 2007 तक देश के सभी गाँवों तक टेलीफोन पहुँचाना तथा 2012 तक सभी गाँवों में ब्रॉड-बैंड सुविधा मुहैया कराना था।
  • सन् 2012 तक सभी को घर बनाने के लिए भूमि उपलब्ध कराना तथा सन् 2016-17 तक सभी ग्रामीण निर्धनों को आवास मुहैया कराने के लिए आवास निर्माण की गति में तेजी लाना था।

(6) पर्यावरण-

  • वनों एवं पेड़ों के अंतर्गत क्षेत्रफल में 5 प्रतिशतांक की वृद्धि करना।
  • वर्ष 2011-12 तक देश के सभी बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता के विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक प्राप्त करना था।
  • नदियों के जल को स्वच्छ बनाने के लिए समस्त शहरी तरल कचरे को उपचारित करना।

योजना आयोग की स्वीकृति के बाद ग्यारहवीं योजना के इस दृष्टिकोण-पत्र को राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा 9 दिसंबर, 2006 को स्वीकृति प्राप्त हो गई। परिषद् की यह 52वीं बैठक नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हुई थी। इस 11वीं योजना में कृषि, सिंचाई, जल संसाधनों के विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों पर विशेष बल दिया गया था।\

प्रश्न 6.
भारत की बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की बारहवीं योजना के दृष्टिकोण-पत्र को प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में योजना आयोग द्वारा मंजूरी दी गई। योजना आयोग द्वारा बारहवीं पंचवर्षीय योजना के कार्यकाल में जिन वैकल्पिक लक्ष्यों को पूरा करना था, वे निम्नलिखित थे-

  • घरेलू मामलों का निपटारा करना और महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक दशा सुधारना भी इस योजना का लक्ष्य है।
  • 9.0 फीसदी की विकास दर ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य के साथ है जो हासिल करनी है।
  • बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए 9.5 फीसदी औसत विकास वृद्धि दर इस योजना का लक्ष्य है।
  • इस योजना के तहत कई स्थूल आर्थिक मॉडल के सन्दर्भ में इन लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
  • कृषि क्षेत्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण त्वरण की आवश्यकता है; जैसे बिजली और पानी की आपूर्ति।
  • खनन क्षेत्र में कोयला और प्राकृतिक गैस का अतिरिक्त उत्पादन करना और उपभोक्ताओं की जरूरत को पूरा करना।
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बेरोजगारी को दूर करना, बढ़ती श्रम शक्ति के लिए रोजगार उपलब्ध कराना, सेवा-क्षेत्रों पर आराम की सुविधा का प्रबन्ध करवाना, 10 फीसदी गरीबी कम करने का इरादा है, 2 फीसदी गरीबी अनुमान सालाना योजना अवधि के दौरान एक स्थायी आधार पर कम करना है।
  • सन् 2017 तक सभी को घर बनाने के लिए भूमि उपलब्ध कराना था तथा सन 2016-17 तक सभी ग्रामीण निर्धनों को आवास मुहैया कराने के लिए आवास-निर्माण की गति में तेजी लाना।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि योजना आयोग के द्वारा प्रायः प्रत्येक योजना के संबंध में निम्नलिखित घोषणाएँ की जाती थीं

  • आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना और राष्ट्रीय आय में वृद्धि लाना।
  • विदेशी पूँजी पर देश की निर्भरता को कम करना तथा देश को आत्मनिर्भर बनाना।
  • सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना-जो लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन बिता रहे हैं, उनके जीवन-स्तर में सुधार लाना।
  • जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाना।
  • रोज़गार के अवसरों में वृद्धि तथा बेरोज़गारों को रोजगार दिलाना।

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए योजना आयोग देश के भौतिक साधनों और मानवीय संसाधनों (Human Resources) की जाँच करके ऐसी योजनाएँ बनाता है जिससे कि समस्त साधनों का सर्वोत्तम एवं संतुलित उपयोग किया जा सके।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Read More »

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

HBSE 12th Class History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों की खुदाई से यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि इस सभ्यता के लोगों की भोजन सामग्री में निम्नलिखित वस्तुएँ या चीजें सम्मिलित थीं

  • अनाज-गेहूँ, जौ, मटर, ज्वार, बाजरा, तिल, सरसों, राई, चावल आदि।
  • पेड़-पौधों के उत्पाद-खजूर, तरबूज आदि।
  • माँस-पालतू पशुओं एवं जंगली जानवरों का।
  • दूध-पशुओं से।

भोजन सामग्री में शामिल इन वस्तुओं/चीजों को निम्नलिखित समूहों द्वारा उपलब्ध करवाया जाता था

  • किसान-शहरी आबादी को गाँवों के लोग अनाज उपलब्ध करवाते थे।
  • व्यापारी-व्यापारी समूह गाँवों से अनाज को शहरों तक पहुँचाते थे जहाँ अन्नागारों में इसे रखा जाता था।
  • पशुचारी समूह कृषक समुदायों के साथ-साथ पशुचारी समूह भी थे जो माँस और दूध उपलब्ध कराते थे।
  • आखेटक व मछुवारे–हड़प्पा क्षेत्र में आखेटक समूह भी थे जो जंगली पशु, शहद, जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध कराते थे। मछुवारे भी भोजन की जरूरत पूरी करते थे।

प्रश्न 2.
पुरातत्वविद् हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन-सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता के समाज में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए एक निश्चित विधि अपनाते हैं। वे शवाधानों का परीक्षण करते हैं। दूसरा खुदाई में प्राप्त हुए विलासिता संबंधी सामग्री का विश्लेषण करते हैं। इन आधारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. शवाधान-हड़प्पा में मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। जैसे कुछ कब्रों में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ पाई गई हैं। कुछ शवाधानों में बहुमूल्य आभूषण और अन्य सामान मिले हैं। कुछ कब्रों में बहुत ही सामान्य सामान मिला है।

शवाधानों की बनावट से भी विभेद प्रकट होता है। कुछ कळे सामान्य बनी हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है। ऐसा लगता है कि चिनाई वाली कब्रे उच्चाधिकारी वर्ग अथवा अमीर लोगों की हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि शवाधानों से प्राप्त सामग्री से हमें हड़प्पा के समाज की सन्तोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।

2. विलासिता-हड़प्पा सभ्यता के नगरों से प्राप्त कलातथ्यों (Artefacts) से भी सामाजिक विभेदन का अनुमान लगाया जाता है। इन कलातथ्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है पहले ऐसे अवशेष थे जो दैनिक उपयोग (Utility) के थे तथा दूसरे । विलासिता (Luxury) से जुड़े थे। दैनिक उपयोग की वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त हुई हैं। दूसरा विलासिता की वस्तुओं में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ शामिल थीं। इनका निर्माण बाहर से प्राप्त सामग्री/पदार्थों से या जटिल तरीकों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिए फयॉन्स (घिसी रेत या सिलिका/बालू रेत में रंग और गोंद मिलाकर पकाकर बनाए बर्तन) के छोटे बर्तन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

ये फयॉन्स से बने छोटे-छोटे पात्र संभवतः सुगन्धित द्रवों को रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते थे। हड़प्पा के कुछ पुरास्थलों से सोने के आभूषणों की निधियाँ (पात्रों में जमीन में दबाई हुई) भी मिली हैं। उल्लेखनीय है कि जहाँ दैनिक उपयोग का सामान हड़प्पा की सभी बस्तियों में मिला है, वहीं विलासिता का सामान मुख्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों में ही मिला है जो संभवतः राजधानियाँ भी थीं। पुरातत्वविद् सामाजिक, आर्थिक स्थिति, खानपान, मकानों, विलासिता आदि भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
इस तथ्य से सहमति के पर्याप्त प्रमाण हैं कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकासी प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है। सारे नगर में नालियों का निर्माण नियोजित और सावधानीपूर्वक किया जाता था।

  • वास्तव में ऐसा लगता है कि नालियों तथा गलियों की संरचना पहले की गई थी तथा बाद में इनके साथ घरों का निर्माण किया जाता था। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप (पक्की मिट्टी के) से होती थी जो सड़क और गली की नाली से जुड़ी होती थी।
  • शहरों के नक्शों से जान पड़ता है कि सड़कों और गलियों को लगभग एक ग्रिड प्रणाली से बनाया गया था और वे एक-दूसरे को समकोण काटती थीं।
  • जल निकासी की प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती है। उदाहरण के लिए लोथल में आवासों के बनाने के लिए. जहाँ कच्ची ईंटों का इस्तेमाल हुआ है वहीं नालियाँ पक्की ईंटों से बनाई गई थीं। नालियों के विषय में मैके नामक पुरातत्वविद् (अर्ली इण्डस सिविलाईजेशन) ने लिखा है, “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(A) पदार्थ-हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज़ (Quartz), सेलखड़ी (Steatite) जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाए गए हैं।
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 Img 1

(B) प्रक्रिया मनके भिन्न-भिन्न प्रक्रिया से बनाए जाते थे। वस्तुतः यह प्रक्रिया पदार्थ (Material) के अनुसार होती थी। जिस प्रकार सेलखड़ी जैसे मुलायम पत्थर के मनके सरलता से बन जाते थे और ये सबसे ज्यादा संख्या में पाए गए हैं। सेलखड़ी के चूर्ण से लेप तैयार कर उसे सांचे में डालकर अनेक आकारों के मनके तैयार किए जाते थे। सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके बनाने की कला तकनीक अभी भी पुरातत्ववेत्ताओं के लिए पहेली बनी हुई है।

कठोर पत्थरों के मनके बनाने की प्रक्रिया कठिन थी। उदाहरण के लिए पुरातत्वविदों का विचार है कि लाल इन्द्रगोपमणि (Carnelian) एक जटिल प्रक्रिया द्वारा बनाई जाती थी। इसे पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था। कठोर पत्थरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता था। आरी से काटकर आयताकार छड़ में बदला जाता था, फिर उसके बेलनाकार टुकड़े करके पॉलिश से चमकाया जाता था। अन्त में चर्ट बरमे या कांसे के नलिकाकार बरमे से उनमें छेद किया जाता था। मनकों में छेद करने के ऐसे उपकरण चन्हदडो, लोथल, धौलावीरा जैसे स्थलों से प्राप्त हुए हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 Img 2

उत्तर:
चित्र देखकर शव के संबंध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जाते हैं

  • शव एक गर्त में रखा हुआ है। यह उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा हुआ है।
  • शव के समीप सिर की तरफ मृदभाण्ड रखे हैं, इनमें मटका, जार आदि शामिल हैं।
  • शव पर पुरावस्तुएँ हैं विशेषतः कंगन आदि आभूषण हैं। ऐसा लगता है कि ये वस्तुएँ मृतक द्वारा अपने जीवन काल में प्रयोग की गई थीं और हड़प्पाई लोगों का विश्वास था कि वह अगले जीवन में भी उनका प्रयोग करेगा।
  • शव को देखकर उसके लिंग (sex) के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि यह किसी महिला का शव है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर-योजना प्रणाली थी। इसका संबंध विकसित हड़प्पा अवस्था (2600-1900 ई.पू.) से था। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन तथा अन्य छोटे नगरों में नगर-योजना प्रणाली में काफी समानताएँ देखने को मिलती हैं। मोहनजोदड़ो नगर में व्यापक खुदाई हुई है, इससे इस नगर की विशिष्टताओं की जानकारी मिलती है। इन विशिष्टताओं से हम अन्य नगरों की विशिष्टताओं को भी समझ सकते हैं।

मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताएँ-मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

1. नगर दुर्ग–यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है। ‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले नगर के चारों ओर भी दीवार थी। इस क्षेत्र में भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था। ये चबूतरे भवनों की आधारशिला (Foundation) का काम करते थे। दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगाया गया होगा।

2. प्लेटफार्म-इस नगर की यह भी विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पहले योजना बनाई जाती होगी तथा बाद में उसे योजनानुसार लागू किया जाता था। नगर की पूर्व योजना (Pre-planning) का पता ईंटों से भी लगता है। यह ईंटें पकाई हुई (पक्की) तथा धूप में सुखाई हुई होती थीं। इनका मानक (1:2:4) आकार था। इसी मानक आकार की ईंटें हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में भी प्रयोग हुई हैं।

3. गृह स्थापत्य-मोहनजोदड़ो से उपलब्ध आवासीय भवनों के नमूनों से सभ्यता के गृह स्थापत्य का अनुमान लगाया जाता है। घरों की बनावट में समानता पाई गई है। ज्यादातर घरों में आंगन (Courtyard) होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। ऐसा लगता है कि आंगन परिवार की गतिविधियों का केंद्र था। उदाहरण के लिए गर्म और शुष्क मौसम में आंगन में खाना पकाने व कातने जैसे कार्य किए जाते थे। ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था।

भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था। बड़े घरों में कई-कई कमरे, रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। कई मकान तो दो मंजिले थे तथा ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। मोहनजोदड़ो में प्रायः सभी घरों में कुएँ होते थे। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि मोहनजोदड़ो नगर में लगभग सात सौ कुएँ थे।

4. दुर्ग क्षेत्र में भवन-हमने जाना कि मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगन जैसे नगर दो भागों में बँटे हुए थे। एक भाग कच्ची ईंटों से बने ऊँचे चबूतरे पर बना होता था तथा इसके चारों ओर मोटी दीवार होती थी। इसे दुर्ग कहा जाता है। मोहनजोदड़ो दुर्ग क्षेत्र में सार्वजनिक महत्त्व अनेक भवनों के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं

(i) विशाल स्नानागार-यह मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है। यह ईंटों के स्थापत्य का सुन्दर नमूना है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही कुआँ था जिससे इसे पानी से भरा जाता था। साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार में तल पर नालियाँ बनी थीं। स्नानागार के तीन ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे। विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का प्रयोग धार्मिक समारोहों के लिए किया जाता था।
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 Img 3

(ii) विशाल भवन-विशाल स्नानागार के समीप ही एक विशाल इमारत के अवशेष हैं। यह भवन 69 x 23.5 मीटर आकार का है। इसके बारे में अनुमान है कि यह किसी उच्चाधिकारी (पुरोहित) का निवास स्थान रहा होगा। इसमें 33 वर्ग फुट का खुला आंगन है और इसमें तीन बरांडे खुलते हैं।

(iii) अन्नागार-मोहनजोदड़ो में स्नानागार के साथ (पश्चिम में) एक विशाल अन्नागार भी मिला है। इस अन्नागार में ईंटों से निर्मित 27 खण्ड (Blocks) हैं। इन खंडों में प्रकाश के लिए आड़े-तिरछे रोशनदान बने हुए हैं। हड़प्पा में भी इसी प्रकार का अन्नागार मिला है। इस भवन का आकार 50 x 40 मीटर है। इस भवन के बीच में सात मीटर चौड़ा गलियारा था। इसमें अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं का भण्डारण किया जाता था।

5. सड़कें और गलियाँ-जैसा हमने बताया कि सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के बनाने से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के अपने लम्बे जीवनकाल में इन सड़कों पर अतिक्रमण (encroachments) या निर्माण कार्य दिखाई नहीं देता।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

6. नालियों की व्यवस्था-मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत सावधानीपूर्वक किया गया था। ऐसा लगता है कि नालियों तथा गलियों की संरचना पहले की गई थी तथा बाद में इनके साथ घरों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के गन्दे पानी (Waste Water) की निकासी एक पाईप (Terracotta Pipe) से होती थी जो सड़क गली की नाली से जुड़ा होता था। जल निकासी की प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता अपने हस्तशिल्प उत्पादों के लिए विख्यात थी। हड़प्पा के लोगों ने इन शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना (bead-making), सीपी उद्योग (Shell Cutting Industry), धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना (Pottery), ईंटें बनाना (Brick Laying), मुद्रा निर्माण (Seal-making) आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं। उदाहरण के लिए चन्हुदड़ो बस्ती में मुख्यतः शिल्प उत्पादों का ही कार्य होता था। .

(A) सूची-इन उत्पादों के लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी। कच्चे माल की सूची निम्नलिखित प्रकार की है-चिकनी मिट्टी, पत्थर, तांबा, जस्ता, कांसा, सोना, शंख, कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग), स्फटिक, क्वार्टज़, सेलखड़ी, लाजवर्द मणि (नीले रंग के अफगानी पत्थर), कीमती लकड़ी, कपास, ऊन, सुइयाँ, फयॉन्स, जैस्पर, चक्कियाँ आदि।

(B) माल प्राप्त करने के तरीके कच्चे माल की सूची में से कई चीजें स्थानीय तौर पर मिल जाती थीं परंतु अधिकतर; जैसे पत्थर, धातु, लकड़ी इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं। पकाई मिट्टी से बनी बैलगाड़ियों के खिलौने इस बात का संकेत हैं कि बैलगाड़ियों का प्रयोग सामान का आयात करने के लिए होता था। सिन्धु व सहायक नदियों का भी मार्गों के रूप में प्रयोग होता था। समुद्र तटीय मार्गों का इस्तेमाल भी माल लाने के लिए किया जाता था।
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 Img 4

1. अंतर्खेत्रीय संपर्कों से माल की प्राप्ति-हड़प्पावासी भारतीय उपमहाद्वीप व आसपास के क्षेत्रों से माल उत्पादन के लिए वस्तुएँ (कच्चा माल) प्राप्त करते थे।

1. बस्तियों की स्थापना-सिन्ध, बलूचिस्तान के समुद्रतट, गुजरात, राजस्थान तथा अफगानिस्तान तक के क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए उन्होंने बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। इन क्षेत्रों में प्रमुख बस्तियां थीं-नागेश्वर (गुजरात), बालाकोट, शोर्तुघई (अफगानिस्तान), लोथल आदि। नागेश्वर और बालाकोट से शंख प्राप्त करते थे। शोर्तुघई (अफगानिस्तान) से कीमती लाजवर्द मणि (नीलम) आयात करते थे। लोथल के संपर्कों से भड़ौच (गुजरात) में पाई जाने वाली इन्द्रगोपमणि (Carnelian) मँगवाई जाती थी। इसी प्रकार उत्तर गुजरात व दक्षिण राजस्थान क्षेत्र से सेलखड़ी का आयात करते थे।

स्थान/बस्तीआयातित कच्चा माल
नागेश्वरशंख
बालाकोटशंख
शोर्तुघईनीलम (लाजवर्द मणि)
लोथलइन्द्रगोपमणि
दक्षिण राजस्थान व उत्तर गुजरातसेलखड़ी
खेतड़ीतांबा
दक्षिण भारतसोना

2. अभियानों से माल प्राप्ति हड़प्पा सभ्यता के लोग उपमहाद्वीप के दूर-दराज क्षेत्रों तक अभियानों (Expeditions) का आयोजन कर कच्चा माल प्राप्त करने का तरीका भी अपनाते थे। इन अभियानों से वे स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेत्ताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा के मृदभांडों से भिन्न हैं।

2. दूरवर्ती क्षेत्रों से संपर्क-हड़प्पा सभ्यता के नगरों व्यापारियों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिल रहे हैं कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक संबंध था।

1. तटीय बस्तियाँ–यह व्यापारिक संबंध समुद्रतटीय क्षेत्रों के समीप से (समुद्री मार्गों से) यात्रा करके स्थापित हुए थे। मकरान (बलूचिस्तान) तट पर सोटकाकोह बस्ती तथा सुत्कागेंडोर किलाबन्द बस्ती इन यात्राओं के लिए आवश्यक राशन-पानी प्रदान करती होगी।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

2. मगान-ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज (Rasal-Junayz) भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान को मगान (Magan) के नाम से जानते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इन्द्रगोप के मनके, हाथी-दांत व धातु के कला तथ्य मिले हैं। हाल ही में पुरातात्विक खोजों से संकेत प्राप्त होते हैं कि हड़प्पा के लोग संभवतः ओमान (अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिम छोर पर स्थित) से ताँबा मँगवाते थे। हड़प्पाई कला तथ्यों (Artefacts) और ओमानी ताँबे दोनों में निकिल (Nickel) के अंशों का मिलना दोनों के सांझा उद्भव (Origin) की ओर संकेत करता है।

3. दिलमुन–फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाज पहुँचते थे। दिलमुन (Dilmun) तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं।

4. मेसोपोटामिया-वस्तुतः दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन (Indus Basin) को मेलुहा (Meluhha) के नाम से जानते थे (कुछ विद्वानों के मतानुसार मेलुहा सिंधु क्षेत्र का बिगड़ा हुआ नाम है)। मेसोपोटामिया के लेखों (Texts) में मेलुहा से व्यापारिक संपर्क का उल्लेख है। पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुद्राएँ, तौल, मनके, चौसर के नमूने (dice), मिट्टी की छोटी मूर्तियाँ मिली हैं। इसका अभिप्राय है कि हड़प्पाई लोग मेसोपोटोमिया से व्यापार संपर्क रखते थे तथा संभवतः वे यहाँ से चाँदी एवं बढ़िया किस्म की लकड़ी प्राप्त करते थे।

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं।
उत्तर:
पुरातत्वविदों को खुदाई के दौरान अनेक प्रकार के शिल्प तथ्य प्राप्त होते हैं। वे इन शिल्प तथ्यों को अन्य वैज्ञानिकों की मदद से अन्वेषण व विश्लेषण करके व्याख्या करते हैं। इस कार्य में वे वर्तमान में प्रचलित प्रक्रियाओं, विश्वासों आदि का भी सहारा लेते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के अग्रलिखित निष्कर्षों से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि वे किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं

1. जीवन-निर्वाह का आधार कृषि-पुरावशेषों तथा पुरावनस्पतिज्ञों की मदद से पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता की जीविका निर्वाह प्रणाली के संबंध में निष्कर्ष निकलते हैं। उनके अनुसार नगरों में अन्नागारों का पायां जाना इस बात का प्रमाण है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। सिंधु नदी के जलोढ़ मैदानों में यहाँ के किसान अनेक फसलें उगाते थे। पुरा-वनस्पतिज्ञों (Archaeo-botanists) के अध्ययनों से इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली अनेक फसलों की जानकारी मिली है।

सभ्यता के विभिन्न स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, राई और मटर जैसे अनाज के दाने मिले हैं। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए हैं। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। सौराष्ट्र में बालाकोट में बाजरा व ज्वार के प्रमाण मिले हैं। 1800 ई.पू. में लोथल में चावल उगाने के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवतः दुनिया में पहले थे जो कपास का उत्पादन करते । इसके साक्ष्य मेहरगढ़, मोहनजोदड़ो आदि स्थानों से मिले हैं। .

2. पशुपालन व शिकार-इसी प्रकार सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई हैं। इसके अतिरिक्त भालू, हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। वे हाथी, गैंडा जैसे पशुओं से भी परिचित थे।

3. सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं की पहचान-पुरातत्वविद् विभिन्न प्रकार की सामग्री से विभिन्न तरीकों से यह जानने की। कोशिश करते हैं कि अध्ययन किए जाने वाले समाज में सामाजिक-आर्थिक विभेदन मौजद था या नहीं। उदाहरण के लिए हड के समाज में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भेद को जानने के लिए कई विधियाँ अपनाई गई हैं। शवाधानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर इस भेद का पता लगाया जाता है। आप संभवतः मिस्र के विशाल पिरामिडों (जिनमें से कुछ हड़प्पा के समकालीन थे) से परिचित हैं। इनमें से कई राजकीय शवाधान थे जहाँ बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाई गई थी। इसी प्रकार पुरातत्वविद् दैनिक प्रयोग तथा विलासिता से संबंधी सामग्री की पहचान कर सामाजिक-आर्थिक भिन्नता का पता लगाते थे।

4. शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान-हड़प्पा के शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान के लिए भी विशेष विधि अपनाई जाती है। पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के ट्रकडों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कडा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे। कार्यस्थलों (Work Shops) से प्राप्त ऐसी सामग्री के ढेर होने पर अनुमान लगाया जाता है कि वह स्थल उत्पादन केंद्र रहा होगा।

5. परोक्ष तथ्यों के आधार पर व्याख्या कभी-कभार पुरातत्वविद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ों के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प तथ्य को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके.संदर्भ की रूपरेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए हड़प्पा की मोहरों को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम (Cultural Sequence) एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही इन्हें सही अर्थों में समझा जा सका।

निष्कर्ष व्यापक तथ्यों के अभाव, विस्तृत खुदाई न होने, लिपि न पढ़े जाने के कारण हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के कई निष्कर्ष संदिग्ध बने हुए हैं। जैसे विशाल स्नानागार का संबंध आनुष्ठानिक क्रिया से था या नहीं। नारी मृण्मूर्तियों का क्या उपयोग था। साक्षरता कितनी थी। फिर भी पुरातत्वविद् उपलब्ध साक्ष्यों से इतिहास का पुनर्निर्माण करने का प्रयास करते हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के समय में राजनीतिक सत्ता का क्या स्वरूप था तथा वे क्या-क्या कार्य करते थे। इस संबंध में पुरातत्वविदों तथा इतिहासकारों में एक मत नहीं है। विशेषतौर पर हड़प्पा लिपि के नहीं पढ़ पाने के कारण यह पक्ष अभी तक अस्पष्ट है। फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि वहाँ पर शासक वर्ग अवश्य था। चाहे वह कुलीनतंत्र हो या धर्मतंत्र। ऐसा निष्कर्ष इसलिए भी निकाला जाता है कि इतने बड़े पैमाने पर नगर तथा उसमें उत्तम व्यवस्था के लिए शासक वर्ग होना जरूरी है।

इसी प्रकार अन्नागारों, विशाल भवनों, औजारों, हथियारों, मोहरों में समरूपता से लगता है कि शासक अवश्य होंगे। व्यापार को नियंत्रण करने के लिए भी कोई प्रशासन की व्यवस्था रही होगी। हड़प्पा सभ्यता के सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि हड़प्पाई समाज में शासक थे तथा उनके द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से दिया जा सकता है

1. शासकों के द्वारा जटिल फैसले लिए जाते होंगे तथा उन्हें लागू करवाने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य भी किए जाते होंगे। हड़प्पा स्थलों पर प्राप्त पुरावशेषों में असाधारण एकरूपता इस बात का सूचक है कि इस बारे में नियम रहे होंगे। मृदभाण्ड, मोहरें, बाट तथा ईंटों में यह असाधारण एकरूपता शासकों के आदेशों पर ही रही होगी।

2. बस्तियों की स्थापना व नियोजन का निर्णय लेना, बड़ी संख्या में ईंटों को बनवाना, शहरों में विशाल दुर्ग/दीवारें, सार्वजनिक भवन, दुर्ग क्षेत्र के लिए चबूतरे का निर्माण कार्य, लाखों की संख्या में विभिन्न कार्यों के लिए मजदूरों की व्यवस्था करना ; जैसे कार्य शासकों के द्वारा ही करवाए जाते रहे होंगे। नगरों की सारी व्यवस्था की देखभाल शासक वर्ग द्वारा की जाती थी।

3. कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि मेसोपोटामिया के समान हड़प्पा में भी पुरोहित शासक रहे होंगे। पाषाण की एक मूर्ति की पहचान ‘पुरोहित राजा’ के रूप में की जाती है जो एक प्रासाद महल में रहता था। लोग उसे पत्थर की मूर्तियों में आकार देकर सम्मान करते थे। यह संभावना भी व्यक्त की जाती है कि यह पुरोहित राजा धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते थे। यह भी कहा जाता है कि विशाल स्नानागार एक आनुष्ठानिक क्रिया के आयोजन के लिए बनवाया गया होगा। यद्यपि हड़प्पा सभ्यता की आनुष्ठानिक प्रथाओं को अभी तक ठीक प्रकार से नहीं समझा जा सका है।

4. कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पाई समाज में एक राजा नहीं था बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग शासक होते थे। वे अपने-अपने क्षेत्र में व्यवस्था को देखते थे।

5. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा राज्य कांस्य युग का था तथा यह लोह युग के राज्य से भिन्न था। न इसकी स्थायी सेना थी और न स्थायी नौकरशाही। भू-राजस्व भी वसूल नहीं किया जाता था। शासक वर्ग में विभिन्न समुदायों के प्रमुख लोग शामिल थे जो आपस में मिलकर इसे चलाते थे। इन लोगों का तकनीकी, शिल्पों तथा व्यापार पर अधिकार था। ये शिल्पकारों से उत्पादन करवाते थे। दूर-दूर तक व्यापार करते थे। किसानों से अनाज शहरों तक आता था तथा इसे अन्नागारों में रखा जाता था।

6. हड़प्पा सभ्यता के काल में उभरे क्षेत्रीय, अन्तक्षेत्रीय तथा बाह्य व्यापार को सुचारू रूप से चलाने का कार्य भी शासक के हाथों में ही होगा। शासक बहुमूल्य धातुओं व मणिकों के व्यापार पर नियंत्रण रखते होंगे। इस व्यापार से उन्हें धन प्राप्त होता था। बड़े पैमाने पर शिल्प उत्पादों, माप-तोल प्रणाली, कलाओं का संचालन भी शासक करते होंगे।

स्पष्ट है कि नगर नियोजन, भवन निर्माण, दुर्ग निर्माण, निकास प्रणाली, गलियों का निर्माण, मानव संसाधन को कार्य पर लगाना, शिल्प उत्पाद, खाद्यान्न प्राप्ति, व्यापारिक कार्य, धार्मिक अनुष्ठान जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों का संपादन हड़प्पाई शासकों द्वारा किया जाता होगा।

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता HBSE 12th Class History Notes

→ पुरातात्विक साक्ष्य-पुरानी ऐतिहासिक वस्तुओं को पुरातात्विक साक्ष्य कहते हैं। इनमें भौतिक अवशेष; जैसे मकान, घर, इमारतें आदि तथा मृदभांड, मोहरें, औजार, सिक्के आदि सम्मिलित हैं।

→ सेलखड़ी-एक प्रकार का पत्थर जिसका प्रयोग हड़प्पा सभ्यता में मोहरें बनाने के लिए होता था।

→ कांस्य युग-इस युग का अर्थ है जब ताँबा व टिन को मिलाकर कांसा बनाया जाता था तथा इस धातु के बर्तन, औजार, उपकरण, हथियार आदि बनाए जाते थे।

→ शिल्प तथ्य-मनुष्य की कारीगरी का नमूना । पुरातत्वविद् इससे इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।

→ मोहर-पत्थर या लाख अथवा अन्य किसी वस्तु का टुकड़ा। इस पर कोई आकृति बनी होती थी। इसे प्रमाणीकरण के लिए प्रयोग में लाया जाता था।

→ रेडियो कार्बन डेटिंग इसे सी-14 (कार्बन-14) भी कहते हैं। यह निर्जीव कार्बनिक पदार्थ में रेडियोधर्मी आइसोटोप को मापने की विधि है। सी-14 का आधा जीवन 5568 वर्ष तथा पूर्ण कार्बन जीवन 111,36 वर्ष होता है। मृत वस्तु में कार्बन घटता रहता है।

→ खानाबदोशी-पशुचारी और चारे की तलाश में घूमने वाले समुदायों से जुड़ी जीवन-शैली। ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।

→ कछारी मैदान-नदी किनारे के आस-पास वह क्षेत्र जिस पर बाढ़ के कारण नदी की गाद जमा होती है।

→ उत्खनन-प्राचीन स्थल की खुदाई करना।

→ अन्नागार-अनाज रखने के लिए भंडार गृह।

→ चित्रलिपि-जिस लिपि में चित्रों को प्रतीक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।

→ टेराकोटा-मूर्तियाँ बनाने के लिए चिकनी मिट्टी तथा रेत का मिश्रण कर आग में पकाना। यह भूरे लाल रंग का बन जाता है।

→ मनका-पत्थर का छोटा टुकड़ा जिसके बीच में धागा पिरोने के लिए छेद होता था।

→ मेसोपोटामिया-इराक का प्राचीन नाम।

→ अग्निवेदियां कालीबंगन में पाए गए ईंटों से बने गड्ढे। इनमें जानवरों की हड्डियाँ तथा राख मिली है।

→ पारिस्थितिकी पौधों का पशुओं या मनुष्यों या संस्थाओं का पर्यावरण के संबंध में अध्ययन।

→ विवर्तनिक विक्षोभ-वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र ऊपर उठ जाते हैं।

→ शमन-वे महिलाएँ या पुरुष जो जादुई तथा इलाज करने की शक्ति होने के साथ ही दूसरी दुनिया से संपर्क बनाने की सामर्थ्य का दावा करते हैं।

→ बी.सी. (B.C.)-बिफोर क्राइस्ट (Before Christ) ईसा पूर्व (ई.पू.)।

→ ए.डी. (A.D.)-ऐनो डॉमिनी (Anno-Domini) लैटिन भाषा में अभिप्राय है इन द इयर आफ लॉर्ड (In the Year of Lord) अर्थात् ईसा के जन्म के वर्ष से।

→ सी.ई. (CE.)-कॉमन एरा (Common Era) आजकल ए.डी. के बजाए सी.ई. का प्रयोग किया जाने लगा है।

→ बी.सी.ई. (BCE)-बिफोर कॉमन एरा (Before Common Era) आजकल बी.सी. (ई.पू.) के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग किया जाता है।

→ सी. (Circa)-सिरका (Circa) लैटिन भाषा का शब्द है। इसका प्रयोग अनुमानतः के अर्थ में किया जाता है।

→ बी.पी. (B.P.)-बी.पी. (Before Present) अर्थात् वर्तमान से पहले।

→ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में हुई खुदाई तथा नवीन नगरीय सभ्यता की घोषणा ने भारतीय इतिहास की हमारी धारणा को बदल दिया। इससे पूर्व ऋग्वेद व अन्य वैदिक साहित्य के आधार पर लगभग 15वीं सदी ई.पू. से वैदिक समाज से भारतीय इतिहास का प्रारंभ माना जाता था। शहरों के विषय में यह विचार था कि भारत में इनका उद्भव 6वीं सदी ई.पू. में गंगा-यमुना की द्रोणी से हुआ। हड़प्पा सभ्यता की खोज ने इस धारणा को पूर्णतः बदल दिया।

→ ऐसा इसलिए हुआ कि अब जिन नगरों व सभ्यता का पता चला वह लगभग 2500 ई.पू. के थे। इनका विशाल क्षेत्र सिंधु व सहायक नदियों तथा उससे बाहर तक फैला हुआ था। पुरातत्वविदों की दृष्टि से इस नगरीय सभ्यता के विशिष्ट पहचान बिंदु थे-ईंटें (पक्की व कच्ची), कीमती व अर्द्धकीमती पत्थर के मनके, मानव व पशुओं की अस्थियाँ, मोहरें आदि। उल्लेखनीय है कि नई बस्तियों की खोजों, खुदाइयों तथा अनुसंधानों ने इस सभ्यता के संबंध में हमारे ज्ञान में वृद्धि की है।

→ आज भी नए-नए स्थलों की खोज हो रही है और हो सकता है कि भविष्य में और भी नए-नए कला तथ्यों (Artefacts) के प्रकाश में आने पर हड़प्पावासियों के बारे में हमारे विचारों में बदलाव आए। प्रस्तुत अध्याय में इन प्रथम नगरों की कहानी के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। हम इन शहरी केंद्रों की आर्थिक और सामाजिक संस्थाओं को समझने का प्रयास करेंगे। अध्याय में हम यह जान पाएँगे कि पुरातत्वविद् प्राप्त शिल्प तथ्यों का विश्लेषण किस प्रकार करते हैं। साथ ही हम यह भी जानेंगे कि नई सामग्री (Material) तथा तथ्य (Data) मिलने पर किस प्रकार इतिहास की स्थापित अवधारणाओं (exisiting notions) में परिवर्तन आता है।

→ हड़प्पा की खोज के बाद अब तक इस सभ्यता से जुड़ी लगभग 2800 बस्तियों की खोज की जा चुकी है। इन बस्तियों की विशेषताएँ हडप्पा से मिलती हैं। विद्वानों (सरजॉन मार्शल) ने इस सभ्यता को “सिंध घाटी की सभ्यता” का नाम दिया क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं।

→ वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं। यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी। अन्य स्थानों की खुदाई से भी सभ्यता के वही लक्षण प्राप्त हुए जो हड़प्पा से प्राप्त हुए थे।

→ यद्यपि परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का केंद्र स्थल सिन्ध और पंजाब में (मुख्यतः सिंधु घाटी में) दिखाई पड़ता है, तथापि यह सभ्यता बलूचिस्तान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू, उत्तरी राजस्थान, गुजरात तथा उत्तरी महाराष्ट्र तक फैली हुई थी अर्थात् इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक का था। यह सारा क्षेत्र त्रिभुज के आधार का था। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर आंका जाता है। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इसकी समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी बड़ा था।

→ पूर्ण विकसित सभ्यता का समय लगभग 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. माना जाता है। इस सभ्यता के पूर्ण विकसित रूप से पहले तथा बाद में भी इसका काल माना जाता है। विकसित स्वरूप को अलग दर्शाने के लिए इन्हें आरंभिक हड़प्पा (Early Harappan) तथा उत्तर हड़प्पा (Late Harappan) नाम दिया जाता है।

→ प्राक हड़प्पा काल में सिंधु क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कृषक समुदायों में सांस्कृतिक परम्पराओं में समानता लगती है। इन छोटी-छोटी परंपराओं के मेल से एक बड़ी परंपरा प्रकट हुई। परंतु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये समुदाय कृषक व पशुचारी थे। कुछ शिल्पों में पारंगत थे। इनकी बस्तियाँ सामान्यतः छोटी थीं तथा कोई भी बड़ी इमारतें नहीं थीं। कुछ प्राक हड़प्पा बस्तियों का परित्याग भी हुआ तथा कुछ स्थलों पर जलाये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। तथापि यह स्पष्ट लगता है कि हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव लोक संस्कृति के आधार पर हुआ।

→ नगरों में अन्नागारों का पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी।

→ उपलब्ध साक्ष्यों से कृषि तकनीक से संबंधित कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के हल का नमूना मिला है। बहावलपुर से भी ऐसा नमूना मिला है। कालीबंगन (राजस्थान) में प्रारंभिक हड़प्पा काल के खेत को जोतने के प्रमाण मिले हैं। शोर्तुघई (उत्तरी अफगानिस्तान) से भी जुते हुए खेत (Plough and field) प्राप्त हुए हैं। पक्की मिट्टी से बनाए वृषभ (बैल) के खिलौनों के साक्ष्य तथा मोहरों पर पशुओं के चित्रों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे बैलों का खेतों की जुताई के लिए प्रयोग करते थे।

→ संभवतः लकड़ी के हत्थों में लगाए गए पत्थर के फलकों (Stone blades) का प्रयोग फसलों को काटने के लिए किया जाता था। धातु के औजार (तांबे की हँसिया) भी मिले हैं परंतु महंगी होने की वजह से इसका प्रयोग.क्रम होता होगा।

→ सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था।

→ हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी। इसका संबंध विकसित हड़प्पा अवस्था (2600-1900 ई.पू.) से था। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे।

→ सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है।

→ अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। जिस प्रकार मोहनजोदड़ो में गृहों का निर्माण नियोजित तथा सावधानीपूर्वक किया गया था, उसी प्रकार सारे नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत सावधानीपूर्वक किया गया था।

→ मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह ईंटों के स्थापत्य का सुन्दर नमूना है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है।

→ पुरातत्ववेत्ता किसी सभ्यता में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को जानने के लिए कई प्रकार के अवशेषों का प्रमाण के तौर पर प्रयोग करते हैं। कब्रों में पाई जाने वाली सामग्री इसमें प्रमुख होती है जिनसे इस प्रकार के भेदभाव का पता चलता है।

→ हड़प्पा के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मुद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं।

→ हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज़ (Quartz), सेलखड़ी (Steatite) जैसे . बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे।

→ हल्की चमकदार सतह वाली सफेद रंग की आकर्षक मोहरें (Seals) हड़प्पा सभ्यता के लोगों का उच्चकोटि का योगदान कही जा सकती हैं। सेलखड़ी की वर्गाकार व आयताकार मुद्राएँ सभी सभ्यता स्थलों पर मिली हैं।

→पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे।

→ हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने उत्पादों के लिए विविध प्रकार का कच्चा माल प्रयोग में लाते थे। शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल में शामिल वस्तुएँ थीं-चिकनी मिट्टी, पत्थर, तांबा, जस्ता, कांसा, सोना, शंख, कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग), स्फटिक, क्वार्टज, सेलखड़ी, लाजवर्द मणि (नीले रंग के अफगानी पत्थर), कीमती लकड़ी, कपास, ऊन इत्यादि। इनमें से कई चीजें स्थानीय तौर पर मिल जाती थीं परंतु अधिकतर; जैसे पत्थर, धातु, लकड़ी इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं।

→ हड़प्पा सभ्यता के नगरों/व्यापारियों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिल रहे हैं कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक संबंध था। हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। मुद्राओं के अतिरिक्त ताम्र उपकरणों व पट्टिकाओं, मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, कुल्हाड़ियों, मृदभांडों आभूषणों, अस्थि छड़ों और एक प्राचीन सूचनापट्ट पर भी हड़प्पा लिपि के कई नमूने प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह लिपि अभी तक पढ़ी न जा सकने के कारण रहस्य बनी हुई है।

→ हड़प्पा सभ्यता की एक अन्य विशेषता माप और तौल व्यवस्था में समरूपता का पाया जाना था। दूर-दूर तक फैली . बस्तियों में एक ही प्रकार के बाट-बट्टे पाए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने तौल की इस प्रणाली से आपसी व्यापार और विनिमय को नियन्त्रित किया होगा।

→ मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भवन को ‘राजप्रासाद’ का नाम दिया जाता है। यद्यपि विशाल इमारत में अन्य कोई अद्भुत अवशेष नहीं मिले हैं। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे ‘पुरोहित-राजा’ का नाम दिया जाता रहा है। व्हीलर महोदय ने तो इस आधार पर हड़प्पा की शासन प्रणाली को ‘धर्मतन्त्र’ नाम दिया है।

→ हड़प्पा सभ्यता के पतन के बारे में अनेक व्याख्याएँ दी जाती हैं। जलवायु परिवर्तन, नदियों में बाढ़ व भूकम्प या नदियों का सूख जाना या मार्ग बदलना इसके कारण बताए जाते हैं। इसी प्रकार कुछ विद्वानों ने बर्बर आक्रमणों को सभ्यता के अवसान का कारण बताया है। हाल ही में सभ्यता-क्षेत्र में पर्यावरणीय-असन्तुलन (Environmental Imbalances) से जोड़कर परिवर्तनों की व्याख्या प्रस्तुत की है।

→ मार्शल ने भारतीय पुरातत्व को महत्त्वपूर्ण दिशा प्रदान की। भारत में वह पहला पुरातत्वविद् था। वह यूनान तथा क्रीट के अनुभव भी अपने साथ लेकर आया था। साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि वह न केवल कनिंघम की तरह ही अद्भुत खोज करना चाहता था बल्कि वह दैनिक जीवन की पद्धतियों को भी जानना चाहता था। मार्शल ने पुरा स्थल की स्तर विन्यास (Stratigraphy) पर ध्यान न देकर सारे टीले को समान आकार की क्षैतिज इकाइयों में उत्खनन करवाया।

→ 1980 के दशक के बाद हड़प्पा-पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय रुचि लगातार बढ़ी है। भारतीय उपमहाद्वीप तथा बाहर के पुरातत्वविद् .. सांझे रूप से हड़प्पा व मोहनजोदड़ो में कार्यरत हैं। ये लोग आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करके मिट्टी, पत्थर, धातु, पादप (Plant)तथा पशुओं के अवशेषों को प्राप्त करने के लिए सतहों के अन्वेषण एवं प्राप्त तथ्यों के प्रत्येक सूक्ष्म हिस्से के विश्लेषण में लगे हैं।

→ एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है।

→ एक मोहर में एक शृंगी पशु उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पशु है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है। ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है।
HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 Img 5

काल-रेखा

हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण
19 वीं सदी 1875हड़प्पा की मोहर पर कनिंघम की रिपोर्ट
20 वीं सदी 1921दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खोज एवं माधो स्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में खुदाई का आरंभ राखालदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो की खोज
1922सर जॉन मार्शल द्वारा नवीन सभ्यता की घोषणा
1924मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारंभ
1925क्रीलर महोदय द्वारा हड़प्पा में खुदाई
1946एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ
1955बी.बी. लाल तथा बी. के थापर द्वारा कालीबंगन में उत्खननों का आरंभ
1960एम.आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में उत्खनन व अन्वेषण शुरू
1974जर्मन-इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह-अन्वेषणों का कार्य शुरू
1980अमेरिकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खनन शुरू
1986धौलावीरा में आर. एस. बिष्ट द्वारा खुदाई कार्य आरंभ
1990हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Read More »

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. प्रदेशीय नियोजन का संबंध है
(A) आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास
(B) परिवहन जल तंत्र में क्षेत्रीय अंतर
(C) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(D) ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
उत्तर:
(C) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम

2. आई०टी०डी०पी० निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है?
(A) समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम
(B) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(C) समन्वित यात्रा विकास प्रोग्राम
(D) समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम
उत्तर:
(B) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

3. इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) कृषि विकास
(B) परिवहन विकास
(C) पारितंत्र-विकास
(D) भूमि उपनिवेशन
उत्तर:
(A) कृषि विकास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं?
उत्तर:
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के निम्नलिखित सामाजिक लाभ हुए-

  1. साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि
  2. लिंग अनुपात में सुधार और
  3. बाल विवाह में कमी।

प्रश्न 2.
सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
उत्तर:
विकास की वह अवधारणा जिसके अंतर्गत संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जाता है कि उसके पुनर्भरण की संभावना भी बनी रहे और पर्यावरण का भी कम-से-कम नुकसान हो, सतत पोषणीय विकास कहलाती है। विश्व पर्यावरण व विकास आयोग के अनुसार, “सतत पोषणीय विकास एक ऐसा विकास है जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

प्रश्न 3.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव पड़ा है-

  1. इंदिरा गाँधी नहर परियोजना से मरुस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है।
  2. इससे मरुभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यों के लिए भी पानी मिलने लगा है।
  3. यह विशेषतौर से गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और नागौर जैसे रेगिस्तानी जिलों के निवासियों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवा रही है।
  4. नहरी सिंचाई के प्रसार से इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल गई है। इससे बोए गए क्षेत्र का विस्तार हुआ है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
सूखा (प्रवण) संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर:
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई। इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को . रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया। योजना के प्रारंभ में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है, परंतु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और ग्रामीण अवसंरचना; जैसे बिजली, सड़क, बाजार, ऋण सुविधा और सेवाओं पर बल दिया गया।

इस कार्यक्रम की समीक्षा में यह पाया गया कि यह कार्यक्रम मुख्यतया कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास तक ही सीमित है और पर्यावरणीय संतुलन पुनः स्थापन पर इसमें विशेष बल दिया गया। सूखा संभावी क्षेत्रों के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधों, मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच पारिस्थितिकीय संतुलन, पुनः स्थापन पर बल दिया जाना चाहिए। सन् 1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों की पहचान सूखा संभावी जिलों के रूप में की।

भारत में सखा संभावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आंध्र प्रदेश की रायलसीमा और कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भागों के शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में फैले हुए हैं। सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम से शुष्क कृषि के विकास में सहायता मिलती है। इन क्षेत्रों का विकास करने की अन्य रणनीतियों में सूक्ष्म-स्तर पर समन्वित जल संभर विकास कार्यक्रम अपनाना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
इंदिरा गांधी नहर, जिसे पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक है। यह नहर पंजाब में हरिके बाँध से निकलती है और राजस्थान के थार मरुस्थल पाकिस्तान सीमा के समानांतर 40 कि०मी० की औसत दूरी पर बढ़ती है। बहुत-से विद्वानों ने इंदिरा गांधी नहर परियोजना की पारिस्थितिकीय पोषणता पर प्रश्न उठाए हैं। इस क्षेत्र में विकास के साथ-साथ भौतिक पर्यावरण का निम्नीकरण हुआ है। इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने भारत के संदर्भ में नियोजन और सतत पोषणीय विकास के लिए मुख्य रूप से पारिस्थितिकीय सतत पोषणता पर बल देना होगा। इसलिए इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले सात उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थितिकीय संतुलन पुनः स्थापित करने पर बल देते हैं।

(1) जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना। इस नहर परियोजना के चरण-1 में कमान क्षेत्र में फसल रक्षण सिंचाई और चरण-चरण में फसल उगाने और चरागाह विकास के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान है।

(2) इस क्षेत्र के शस्य (फसल) प्रतिरूप में सामान्यतया सघन फसलों को नहीं आ चाहिए। किसानों को बागानी कृषि में खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए।

(3) कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम; जैसे नालों को पक्का करना, भूमि विकास, समतलन और नहर के जल का समान वितरण प्रभावी रूप से कार्यान्वित किया जाए ताकि बहते जल का नुकसान न हो।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

(4) इस प्रकार जलाक्रांत एवं लवण से प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार किया जाएगा।

(5) वनीकरण, वृक्षों की रक्षण मेखला का निर्माण और चरागाह विकास।

(6) निर्धन आर्थिक स्थिति वाले भू-आबंटियों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय और संस्थागत सहायता उपलब्ध करवाकर सतत पोषणता का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

(7) कृषि और इससे संबंधित क्रियाकलापों को अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों से जोड़कर ही सतत पोषणीय विकास किया जा सकता है।

भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास HBSE 12th Class Geography Notes

→ नियोजन (Planning) : किसी देश के भविष्य की समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाए गए कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं के क्रम को विकसित करने की प्रक्रिया को नियोजन कहा जाता है। ये समस्याएँ मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजिक ही होती हैं जो समय के साथ बदलती रहती हैं।

→ नियोजन के उपगमन (Approaches of Planning) : (i) खंडीय नियोजन, (ii) क्षेत्रीय नियोजन।

→ लक्ष्य क्षेत्र नियोजन (Target Area Planning) : आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को रोकने व क्षेत्रीय आर्थिक और सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने लक्ष्य-क्षेत्र तथा लक्ष्य-समूह योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रमों में कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

→ विकास (Development) : विकास को आधुनिकीकरण का सूचक माना जाता है। विकास ऐसी प्रक्रिया है जो ऐसी संरचनाओं या संस्थाओं का निर्माण करती है, जो समाज की समस्याओं का समाधान निकालने में समर्थ हो।

→ सतत पोषणीय विकास (Continuous Nourished Development) : विकास की वह अवधारणा जिसके अंतर्गत संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जाता है कि उसके पुनर्भरण की संभावना भी बनी रहे और पर्यावरण का भी कम-से-कम नुकसान हो, सतत पोषणीय विकास कहलाती है। यह वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ी की जरूरतों का भी ध्यान रखती है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Read More »

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है-
(A) अंतर्देशीय व्यापार
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
(C) बाह्य व्यापार
(D) स्थानीय व्यापार
उत्तर:
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

2. निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलबद्ध पोताश्रय है?
(A) विशाखापट्टनम
(B) एन्नौर
(C) मुंबई
(D) हल्दिया
उत्तर:
(A) विशाखापट्टनम

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

3. भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार वहन होता है-
(A) स्थल और समुद्र द्वारा
(B) स्थल और वायु द्वारा
(C) समुद्र और वायु द्वारा
(D) समुद्र द्वारा
उत्तर:
(C) समुद्र और वायु द्वारा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भारत का विदेशी व्यापार प्रतिकूल रहना।
  2. विभिन्न प्रकार की निर्मित वस्तुओं का निर्यात करना।
  3. विश्व के लगभग सभी देशों के साथ व्यापारिक संबंध।
  4. आयात में विभिन्नता। आयात व्यापार में पेट्रोलियम का आयात अधिक होना।
  5. अधिकांश व्यापार समुद्री मार्गों से होना।

प्रश्न 2.
पत्तन और पोताश्रय में अंतर बताइए।
उत्तर:
पत्तन और पोताश्रय में निम्नलिखित अंतर हैं-

पोताश्नय (Harbour)पत्तन (Port)
1. सागर में जहाज़ों के प्रवेश करने के प्राकृतिक स्थान को पोताश्रय कहते हैं।1. ये सागरीय तट पर जहाज़ों के ठहरने के स्थान होते हैं।
2. यहाँ जहाज़ सागरीय लहरों तथा तूफानों से सुरक्षित रहते हैं।2. यहाँ जहाज़ों पर सामान लादा तथा उतारा जाता है।
3. ज्वारनद मुख तथा कटे-फटे तट पर आदर्श प्राकृतिक पोताश्रय मिलती हैं, उदाहरण के लिए मुंबई पोताश्रय।3. यहाँ बस्तियों तथा गोदामों की सुविधाएँ होती हैं।
4. जलतोड़ दीवारों का निर्माण करके कृत्रिम पोताश्रय बनाई जा सकती हैं; जैसे चेन्नई पोताश्रय।4. इसमें जल तथा थल दोनों क्षेत्र होते हैं। ये व्यापार के द्वार कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
पृष्ठप्रदेश के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पत्तन के आस-पास का क्षेत्र पृष्ठप्रदेश कहलाता है। पृष्ठप्रदेश की सीमाओं का चिह्नांकन करना मुश्किल होता है क्योंकि यह क्षेत्र पर सुस्थिर नहीं होता। अधिकतर एक पत्तन का पृष्ठप्रदेश दूसरे पत्तन के पृष्ठप्रदेश का अतिव्यापन कर सकता है।

प्रश्न 4.
उन महत्त्वपूर्ण मदों के नाम बताइए जिन्हें भारत विभिन्न देशों से आयात करता है?
उत्तर:
भारत निम्नलिखित वस्तुओं का विभिन्न देशों से आयात करता है

  1. पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद
  2. कच्चा माल एवं खनिज
  3. उर्वरक
  4. मशीनें अथवा पूंजीगत माल
  5. खाद्य पदार्थ
  6. अन्य वस्तुएँ आदि।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 5.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तन निम्नलिखित हैं-

  1. तूतीकोरिन
  2. चेन्नई
  3. विशाखापट्टनम
  4. पारादीप
  5. हल्दिया
  6. कोलकाता।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निर्यात और आयात के संयोजन से बनता है। जब कोई देश अपनी वस्तु या सेवा को अन्य देशों को बेचता है तो इसे निर्यात कहते हैं। इसके विपरीत जब कोई देश अन्य देशों से वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदता है तो उसे आयात कहते हैं।

भारत का आयात संघटन/संयोजन (Composition of India’s Import)-भारत विश्व का एक प्रमुख आयातक देश है। पिछले 30-40 वर्षों में भारत में 20-25 गुना आयात बढ़ा है। अप्रैल, 2019 में 41.40 अरब अमेरिकी डॉलर (287432.9 करोड़) का आयात हुआ, जो अप्रैल 2018 के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 4.48% अधिक है और रुपए की लिहाज से 10.52% अधिक है। हम स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले निर्मित वस्तुओं का आयात करते थे। इसके बाद इन वस्तुओं के आयात में कमी आने लगी। हमारे परिवहन तथा औद्योगिक विकास के लिए पेट्रोलियम के आयात की आवश्यकता बढ़ी है। अन्य आयातक वस्तुओं में खाद्यान्न, मशीनें, उर्वरक, दवाइयाँ, खाने के तेल, कागज़ आदि पदार्थ हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

1. पेट्रोलियम तथा संबंधित उत्पाद सन् 1950-51 में 55 करोड़ रुपए का पेट्रोलियम उत्पाद का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 1984-85 में 534 करोड़ रुपए हो गया। सन् 2016-17 में 5,82,762 करोड़ रुपए के पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया गया था। भारत मध्य-पूर्व देशों से तेल का आयात करता है।

2. मशीनें-अपने औद्योगिक विकास के लिए भारत को स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद मशीनों की बहुत आवश्यकता हुई तथा बड़े पैमाने पर इनका आयात किया गया। इनमें कपड़ा बनाने की मशीनें, कृषि मशीनें तथा खनिज उद्योग की मशीनें शामिल हैं।

3. लोहा-इस्पात भारत में लोहे का उत्पादन खपत से कम है। सन् 1950-51 में केवल 16 करोड़ रुपए का लोहा-इस्पात का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 2012-13 में लगभग 59 करोड़ रुपए का लोहा-इस्पात आयात किया गया। हम जापान, बेल्जियम, ब्रिटेन, जर्मनी तथा दक्षिणी कोरिया से लोहा मंगवाते रहे हैं। 2016-2017 में लोहा-इस्पात के आयात में कुछ कमी आई।

4. उर्वरक देश में कृषि को बढ़ावा देने के लिए भारी उर्वरकों की जरूरत पड़ी। सन् 1985-86 में लगभग 1,436 करोड़ रुपए तथा 2012-13 में 49,433 करोड़ रुपए के उर्वरक बाहर से मंगवाए गए थे, परंतु अब इनका आयात घट रहा है। हम इनको संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि देशों से मंगवाते हैं। उर्वरक के आयात में 2015-2016 के दौरान 2.1% की वृद्धि हई। . 2016-2017 में इसमें 1.3% की वृद्धि दर दर्ज की गई।

5. हीरे तथा कीमती पत्थर-भारत इनका निर्यातक भी है। भारत बिना कटे हीरे बाहर से मंगवाता है तथा इन्हें काटकर, पॉलिश करके निर्यात करता है। हमने सन् 1986-87 में 1495.48 करोड़ रुपए के हीरों का तथा 2012-13 में 1,23,071 करोड़ रुपए के हीरों तथा कीमती पत्थरों का आयात किया था। 2016-2017 में 1,59,464 करोड़ रुपए के आभूषणों व रत्नों का आयात किया गया।

6. खाद्य तेल-भारत को भारी मात्रा में इन्हें आयात करना पड़ता है। सन् 1955-56 में केवल 7 करोड़ रुपए के मूल्य के ख के तेलों का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 1986-87 में 611 करोड़ रुपए तथा 2012-13 में 61,106 करोड़ रुपए हो गया। 2016-2017 में 73,048 करोड़ रुपए तेल का आयात हुआ। भारत के लिए इनका मुख्य स्रोत संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील तथा मलेशिया हैं।

7. दवाइयाँ हमारी दवाइयों की मांग में बहुत वृद्धि हो रही है। सन् 1985-86 में 84.4 करोड़ रुपए के मूल्य की दवाइयों का आयात किया गया था। यही आयात बढ़कर 2016-17 में 33504 करोड़ रुपए हो गया। हमारी दवाइयों के मुख्य स्रोत जर्मनी, इटली, चीन, स्पेन, बेल्जियम तथा पोलैंड आदि हैं। वर्तमान में भारत में आयात व्यापार के संघटन में काफी बदलाव हुआ है। सोने का आयात मार्च, 2019 में 31.22 प्रतिशत से बढ़कर 3.27 अरब डॉलर पर पहुँच गया। कच्चे तेल का आयात 5.55 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 11.75 अरब डॉलर रहा। पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में निर्यात 9 प्रतिशत बढ़कर 331 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वित्त वर्ष के दौरान व्यापार घाटा बढ़कर 176.42 अरब डॉलर रहा, जो 2017-2018 में 162 अरब डॉलर था।

भारत का निर्यात संघटन/संयोजन (Composition of India’s Export)-स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश के निर्यात व्यापार में भी वृद्धि और विविधता आई
1. कृषि और समवर्गी उत्पाद-पिछले कुछ वर्षों में भारत के निर्यात में कृषि एवं समवर्गी उत्पादों का हिस्सा घटा है। कृषि उत्पादों के अंतर्गत कॉफ़ी, मसाले, चाय व दालों आदि परम्परागत वस्तुओं का निर्यात अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण घटा है।

2. विनिर्मित वस्तुएँ वर्ष 2011-12 में विनिर्माण क्षेत्र ने भारत के कुल निर्यात मूल्य में अकेले 68.6 प्रतिशत की भागीदारी अंकित की थी। निर्यात सूची में इंजीनियरी के सामान, विशेषतः मशीनों और उपकरणों ने महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाई है। 2012-13 में देश के कुल निर्यात में इंजीनियरी सामान का हिस्सा 21.68 प्रतिशत था।

3. पेट्रोलियम एवं अपरिष्कृत उत्पाद-यद्यपि भारत कच्चे तेल का आयातक है, लेकिन यह पेट्रोलियम उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात भी करता है। इसका कारण यह है कि भारत ने 21 तेल-शोधनशालाएँ लगाकर तेल-शोधन की क्षमता बढ़ा ली है। पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात में 1997-98 में हिस्सा लगभग 1 प्रतिशत था जो बढ़कर 2011-12 में 15.6 प्रतिशत हो गया है। पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात हिस्से में वृद्धि का कारण इनके मूल्य में वृद्धि है।

4. अयस्क एवं खनिज-भारत के निर्यात व्यापार में अयस्कों एवं खनिजों का महत्त्व बढ़ने लगा है। 1999-2000 में इनके कुल निर्यात में हिस्सा 2.5 प्रतिशत था जो 2014-15 में बढ़कर लगभग 12.76 प्रतिशत हो गया। 2016-2017 में 35,947 करोड़ रुपए अयस्क एवं खनिज का निर्यात हुआ।

देश का निर्यात मार्च, 2019 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 32.55 अरब डॉलर पर पहुँच गया। फार्मा, रसायन और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में ऊंची वृद्धि की वजह से कुल निर्यात बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2019 में आयात भी 1.44 प्रतिशत बढ़कर 43.44 अरब डॉलर रहा। हालांकि इस दौरान व्यापार घाटा घटकर 10.89 अरब डॉलर पर आ गया, जो मार्च, 2018 में 13.51 अरब डॉलर था।

प्रश्न 2.
भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभी देशों के लिए परस्पर लाभदायक होता है, क्योंकि कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है। हाल ही के वर्षों में भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की मात्रा (Volume), उसके संघटन (Compositions) और व्यापार की दिशा में आमूल परिवर्तन (Sea Changes) देखे गए। यद्यपि विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कुल मात्रा का केवल 1.6 प्रतिशत है, फिर भी विश्व की अर्थव्यवस्था में इसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति या प्रारूप (Changing Nature or Pattern of International Trade)-समय के साथ भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़े परिवर्तन हुए हैं
(1) भारत का विदेशी व्यापार 1950-51 में 1,214 करोड़ रु० मूल्य का था जो 2012-2013 में बढ़कर 43,04,513 करोड़ रु० मूल्य का हो गया था। यह वृद्धि 1707 गुणी थी। विदेशी व्यापार में इस तीव्र वृद्धि के तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • विनिर्माण के क्षेत्र में तेज़ तरक्की (Rapid Growth in the field of manufacturing)
  • सरकार की उदार नीतियाँ (Liberal Policies of Government),
  • बाज़ारों की विविधरूपता (Diversification of Markets)।

(2) समय के साथ विदेशी व्यापार की प्रकृति में भी बदलाव आया है। भारत में आयात और निर्यात दोनों की ही मात्रा में वृद्धि हुई है, लेकिन निर्यात की तुलना में आयात का मूल्य अधिक रहा है। 2017 में आयात 344408.90 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2018 में 37813.57 मिलियन डॉलर हो गया तथा निर्यात 2017 में 24726.71 मिलियन डॉलर से 2018 में 25834.36 मिलियन डॉलर हो गया।

(3) अर्थव्यवस्था में विविधता आने के बावजूद आयात तथा निर्यात के मूल्यों में अन्तर बढ़ता रहा और व्यापार सन्तुलन हमारे विपक्ष में होता गया। इसके लिए निम्नलिखित पाँच कारण उत्तरदायी हैं

  • विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि।
  • विश्व बाज़ार में भारतीय रुपए का अवमूल्यन।
  • बढ़ती जनसंख्या की घरेलू उत्पादों की बढ़ती मांग और उत्पादन में धीमी प्रगति।
  • घाटे में हुई इस वृद्धि के लिए अपरिष्कृत (Crude) पेट्रोलियम को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह भारत की आयात
  • सूची में एक प्रमुख व महँगा घटक है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

(4) इसी के परिणामस्वरूप विश्व के कुल निर्यात व्यापार में भारत की भागीदारी 2.1 प्रतिशत (सन् 1950) से घटकर सन् 1960 में 1.2 प्रतिशत और सन 2014-15 में मात्र 0.9 प्रतिशत रह गई है।
तालिका : भारत का विदेशी/अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (अरब डॉलर में)

वर्षनिर्यातआयातव्यापार घाटा
200142.554.5-12.0
200244.553.8-9.3
200348.361.6-13.3
200457.2474.15-16.91
200569.1889.33-20.15
200676.23113.1-36.87
2007112.0187.9-75.9
2008176.4305.5-129.1
2009168.2274.3-106.1
2010201.1327.0-125.9
2011299.4461.4-162.0
2012298.4500.4-202.2
2013313.2467.5-154.3
2014318.2462.9-144.7
2015310.3447.9-137.6
2016262.3381.0-118.7
2017275.8384.3-108.5

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार HBSE 12th Class Geography Notes

→ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) : निर्यात एवं आयात के संयोजन से बनता है।

→ व्यापार संतुलन (Balance of Trade) : आयात और निर्यात का अंतर व्यापार संतुलन कहलाता है।

→ निर्यात (Export) : जब कोई देश अपनी वस्तु या सेवा को अन्य देशों को बेचता है तो उसे निर्यात कहते हैं।

→ आयात (Import) : जब कोई देश अन्य देशों से वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदता है तो उसे आयात कहते हैं।

→ पत्तन (Port) : पत्तन गोदी (Dock), घाट तथा सामान उतारने व चढ़ाने की सुविधा से युक्त ऐसा स्थान है जो स्थल मार्गों से जुड़ा होता है।

→ पोताश्रय (Harbour) : सागर में जहाजों के प्रवेश करने के प्राकृतिक स्थान को पोताश्रय कहते हैं।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Read More »

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Exercise 7.2

प्रश्न 1.
संख्या रेखाएँ खींचिए और उन पर अनलिखित भिन्नों को बिन्दु रूप में दर्शाइए:
(a) \(\frac{1}{2}, \frac{1}{4}, \frac{3}{4}, \frac{4}{4}\)
(b) \(\frac{1}{8}, \frac{2}{8}, \frac{3}{8}, \frac{7}{8}\)
(c) \(\frac{1}{2}, \frac{1}{4}, \frac{3}{4}, \frac{4}{4}\)
हल :
(a) हम जानते हैं कि \(\frac {1}{2}\) शून्य से बड़ा है और । से छोटा है इसलिए इसे 0 और 1 के बीच में होना चाहिए।
इसे संख्या रेखा पर प्रदर्शित करने के लिए 0 से 1 तक की दूरी को 2 बराबर भागों में बाँटते हैं। बिन्दु P, \(\frac {1}{2}\) को प्रदर्शित करता है।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 1
\(\frac {1}{4}\), \(\frac {3}{4}\), \(\frac {4}{4}\) को संख्या रेखा पर दर्शाने के लिए हम 0 से 1 तक की दूरी को 4 बराबर भागों में बाँटते हैं। तब बिन्दु P, Q और A क्रमशः भिन्नों \(\frac {1}{4}\), \(\frac {3}{4}\), और \(\frac {4}{4}\) को व्यक्त करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 2

(b) \(\frac {1}{8}\), \(\frac {2}{8}\), \(\frac {3}{8}\) और \(\frac {7}{8}\) को संख्या रेखा पर प्रदर्शित करने के लिए हम 0 से 1 तक की दूरी को 8 बराबर भागों में बाँटते हैं। तब बिन्दु P, Q, R और S क्रमशः भिन्नों \(\frac {1}{8}\), \(\frac {2}{8}\), \(\frac {3}{8}\) और \(\frac {7}{8}\) को व्यक्त करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 3

(c) \(\frac {2}{5}\), \(\frac {3}{5}\) और \(\frac {4}{5}\) को संख्या रेखा पर प्रदर्शित करने के लिए हम 0 से 1 तक की दूरी को 5 बराबर भागों में बाँटते हैं। तब बिन्दु P, Q और R क्रमशः भिन्नों \(\frac {2}{5}\), \(\frac {3}{5}\) और \(\frac {4}{5}\) को व्यक्त करते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 4

⇒ \(\frac {8}{5}\) को प्रदर्शित करने के लिए:
\(\frac{8}{5}=1 \frac{3}{5}=1+\frac{3}{5}\)
एक संख्या रेखा खींचते हैं जिसमें शून्य पर O बिन्दु अंकित किया। 0 से दायीं ओर बराबर दूरी पर बिन्दु A और B अंकित किये जो कि 1 और 2 को दर्शाते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 5
अब OA दूरी को पूर्ण 1 इकाई मानकर, AB दूरी को 5 बराबर भागों में बाँटते हैं। इसके तीसरे भाग पर बिन्दु P अंकित करते हैं। बिन्दु P, \(\frac {8}{5}\) को दर्शाता है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को मिश्रित भिन्न के रूप में व्यक्त कीजिए :
(a) \(\frac {20}{3}\)
(b) \(\frac {11}{5}\)
(c) \(\frac {17}{7}\)
(d) \(\frac {28}{5}\)
(e) \(\frac {19}{6}\)
(f) \(\frac {35}{9}\)
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 6
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 7

प्रश्न 3.
निम्नलिखित को विषम भिन्नों के रूप में व्यक्त कीजिए :
हल :
मिश्रित भिन्न को विषम भिन्न के रूप में बदलने के लिए
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 - 8

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.2 Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

HBSE 11th Class Geography खनिज एवं शैल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह एवं निकेल
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम
(C) लौह एवं चाँदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटैशियम
उत्तर:
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम

2. निम्न में से कौन-सा कायांतरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शांत
(D) पत्रण
उत्तर:
(A) परिवर्तनीय

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चाँदी
(D) ग्रेफाइट
उत्तर:
(B) माइका

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पर
उत्तर:
(C) हीरा

5. निम्न में से कौन सा शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर
उत्तर:
(D) संगमरमर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएँ।
उत्तर:
शैल-पृथ्वी की पर्पटी शैलों से बनी है। शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है। शैलों में खनिज घंटकों का कोई निश्चित संघटक नहीं है। शैल को चट्टान भी कहा जाता है। शैलों को निर्माण पद्धति के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय शैल
  • अवसादी शैल
  • कायांतरित शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण की पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।
उत्तर:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ienis)शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

आग्नेय शैलों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है। इनकी बनावट इनके कणों के आकार एवं व्यवस्था अथवा पदार्थ की भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं, तो खनिज के कण पर्याप्त बड़े-बड़े हो सकते हैं। सतह पर हुई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं। शीतलता की मध्यम परिस्थितियाँ होने पर आग्नेय शैल को बनाने वाले कण मध्यम आकार के होते हैं।

प्रश्न 3.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताएँ।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग.75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

निर्माण की पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण-

  • यांत्रिकी रूप से निर्मित-बालुकाशम, पिंडशिला, चूना प्रस्तर, विमृदा आदि।
  • कार्बनिक रूप से निर्मित-गीज़राइट, चूना-पत्थर, कोयला आदि।
  • रासायनिक रूप से निर्मित-शृंग, प्रस्तर, चूना-पत्थर, हेलाइट आदि।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 4.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या संबंध होता है?
उत्तर:
शैली चक्र एक सतत् प्रक्रिया होती है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय व अन्य शैलें प्राथमिक शैलों से निर्मित होती हैं। आग्नेय एवं कायांतरित शैलों से प्राप्त अंशों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है। निर्मित, भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो आग्नेय शैलों के मूल स्रोत हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
खनिज शब्द को परिभाषित कीजिए और प्रमुख खनिज बताइए।
उत्तर:
खनिज की परिभाषा-‘खनिज’ वे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जिनकी अपनी भौतिक विशेषताएँ तथा एक निश्चित रासायनिक बनावट होती है। अधिकांश खनिज ठोस, जड़ व अकार्बनिक अथवा अजैव पदार्थ होते हैं। चट्टानों की रचना विभिन्न खनिजों के संयोग से होती है। वॉरसेस्टर के अनुसार, “लगभग सभी चट्टानों में दो या दो से अधिक खनिज होते हैं।” कई बार चट्टान केवल एक खनिज से भी बनती है। जैसे चूना, पहाड़ी नमक, बालू-पत्थर इत्यादि।

इसी आधार पर फिन्च व ट्रिवार्था ने कहा है, “एक या एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से चट्टानों का निर्माण होता है।” प्रमुख खनिज-प्रमुख खनिज निम्नलिखित हैं-
1. फेल्सपार-सिलिका और ऑक्सीजन सभी फेल्सपारों में उपस्थित होते हैं जबकि सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम व एल्यूमीनियम इत्यादि फेल्सपार के विशिष्ट प्रकार में पाए जाते हैं। इसका उपयोग चीनी मिट्टी व काँच के बर्तन बनाने में होता है।

2. क्वार्टज़-इसका रचनाकारी तत्त्व सिलिका है। यह रेत व ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है। यह कठोर होने के कारण पानी में नहीं घुलता। यह सफेद व रंगहीन होता है। इसका उपयोग रेडियो एवं राडार निर्माण में होता है।

3. पाइरॉक्सीन इसमें कैल्शियम, एल्यूमीनियम शामिल हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 10% हिस्सा इससे बना है। इसका रंग हरा अथवा काला होता है। सामान्यतः यह उल्का पिंड में पाया जाता है।

4. एम्फीबोल-इसके प्रमुख तत्त्व एल्यूमीनियम, कैल्शियम, सिलिका, लोहा और मैग्नीशियम हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 7% भाग इससे बना है। यह हरे और चमकीले काले रंग का होता है। इसका उपयोग एस्बेस्ट्स की तरह होता है। यह विद्युत यंत्र के निर्माण में काम आता है।

5. अभ्रक-इसके प्रमुख तत्त्व पोटैशियम, लौह, सिलिका आदि हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 4% भाग इससे बना है। ये मुख्यतः आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में पाए जाते हैं। विद्युत उपकरणों में इसका उपयोग होता है।

6. ऑलिवीन इसमें मैग्नीशियम, लौह आदि शामिल होते हैं। इसका उपयोग आभूषण बनाने में होता है। ये हरे रंग के क्रिस्टल होते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अंतर स्थापित कैसे करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार होते हैं-
1. आग्नेय चट्टानें/शैल-आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज . थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

2. अवसादी चट्टानें/शैल-अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग 75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

3. कायांतरित चट्टानें/शैल-कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।
अंतर:

आग्नेय शैलअवसादी शैलकायांतरित शैल
यह मैरमा व लावा के जमने से बनती है। उदाहरण-ग्रेनाइट, बेसाल्ट, ग्रेबो, पेग्मैटाइट आदि।यह परतदार होती है। इसमें वनस्पति व जीव-जंतुओं का जीवाश्म पाया जाता है। इसका निर्माण अवसाद की परतों में जमने के कारण होता है।यह दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन के द्वारा निर्मित होती हैं।
उदाहरण-चूना पत्थर, चूना प्रस्तर कोयला, विमृदा आदि।उदाहरण-संगमरमर, स्लेट, ग्रेनाइट आदि।

प्रश्न 3.
कायांतरित शैल क्या है? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
कायांतरित शैल-कायांतरित या रूपान्तरित शब्द अंग्रेज़ी के शब्द ‘Metamorphic’ से बना है। इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Meta = Change तथा Morphe = Form अर्थात् जो मूल रूप में परिवर्तित हो चुकी है, अतः कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।

पी०जी० वॉरसेस्टर के अनुसार, “रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो बिना विघटित हुए रूप तथा संरचना में परिवर्तित हो जाती हैं।”

रूपान्तरित या कायान्तरित शैलों/चट्टानों के प्रकार एवं निर्माण प्रक्रिया रूपान्तरित चट्टानों का कायान्तरण दो प्रकारों के अंतर्गत होता है
1. भौतिक कायान्तरण (Physical Metamorphism)-इसे यांत्रिक कायान्तरण भी कहते हैं। धरातल के नीचे अत्यधिक गहराई में दबाव के कारण चट्टानों की संरचना में परिवर्तन आ जाता है; जैसे शैल (Shale) का स्लेट में परिवर्तन। दूसरा रूपान्तरण तापमान के कारण होता है। अत्यधिक ताप के कारण भू-गर्भ की चट्टानें परिवर्तित हो जाती हैं; जैसे चूने के पत्थर का संगमरमर में बदलना।

2. रासायनिक कायान्तरण (Chemical Metamorphism)-जब एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से बनी चट्टान मूल खनिजों के पुनर्मिश्रण के कारण दूसरी चट्टान में बदल जाती है या किसी विशेष चट्टान में दूसरी चट्टान का कोई तत्त्व मिश्रित हो जाता है और उसका रूप बदल जाता है उसे रासायनिक कायान्तरण कहते हैं। कार्बन-डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन जैसी गैसें जल में मिल जाने पर घुलनशीलता में वृद्धि कर देती हैं और विभिन्न घुलनशील खनिज आपस में क्रिया करके एक नई चट्टानी संरचना को जन्म देते हैं।

प्रभाव क्षेत्र के आधार पर रूपान्तरण (Metamorphism on the basis of Effective Areas)-चट्टानों का रूपान्तरण उनके प्रभाव क्षेत्र के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से होता है-
1. प्रादेशिक रूपान्तरण (Regional Metamorphism)-जब भू-गर्भ में अधिक तापमान तथा दबाव के कारण एक बहुत बड़े क्षेत्र में चट्टानों का रूपान्तरण होता है तो उसे प्रादेशिक रूपान्तरण कहते हैं। जैसे-जैसे रूपान्तरण की तीव्रता बढ़ती है तो शैल (Shale) स्लेट में, स्लेट शिस्ट में और शिस्ट नाइस में परिवर्तित हो जाती है। यह गतिक रूपान्तरण भी कहलाता है।

2. स्पर्श रूपान्तरण (Contact Metamorphism)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय जब मैग्मा का प्रवाह धरातल की ओर होता है तो मैग्मा के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों में तापक्रम के कारण परिवर्तन आ जाता है, उसे स्पर्श रूपान्तरण कहते हैं।

खनिज एवं शैल HBSE 11th Class Geography Notes

→ जीवाश्म (Fossil)-परतदार शैलों के बीच जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अवशेष या उनके छापों का मिलना।

→ प्रवाल (Coral)-एक सूक्ष्म समुद्री जीव जो अपने शरीर से चूना (कैल्शियम कार्बोनेट) निकालकर उससे अपना कवच या खोल तैयार कर लेता है। ये उष्ण कटिबंध के स्वच्छ या सुऑक्सीजनित जल में उत्पन्न होते हैं जहाँ इन्हें सूक्ष्म जीव खाद्य पदार्थ के रूप में मिलते हैं।

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़कर आई हुई सूक्ष्म कणों वाली धूलि का निक्षेप।

→ घड़िया (Crucible)-एक बर्तन जिसमें धातुओं को गलाया जाता है। ऐसा बर्तन ग्रेफाइट से बनता है, क्योंकि ग्रेफाइट का गलनांक 3500° सेल्सियस होता है।

→ गलनांक (Melting Point)-वह तापमान जिस पर कोई ठोस वस्तु तरल बनने लगती है।

→ गठन (Texture)-शैलों की रचना करने वाले कणों का आकार, आकृति और एक-दूसरे से जुड़ने की व्यवस्था अर्थात् कणों का ज्यामितीय स्वरूप।

→ क्वाटर्ज़ (Quartz)-यह प्राकृतिक रवेदार सिलिका (बालू) है। यह कभी-कभी शुद्ध, स्वच्छ और रंगहीन कणों में मिलता है। इसके ऊँचे गलनांक के कारण उद्योगों में इसका बहुत उपयोग होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ घात्विक खनिज (Metallic Minerals)-धात्विक खनिज वे होते हैं, जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है। ये धातुवर्य (Malleable) होते हैं अर्थात् इनसे धातुओं को पीटकर चादर, तार इत्यादि विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है।

→ आग्नेय शैलें (Igneous Rocks)-ऐसी शैलें जिनका निर्माण पृथ्वी के भीतर उपस्थित तरल एवं तप्त द्रव्य के ठण्डा होकर ठोस हो जाने से हुआ हो, आग्नेय शैलें कहलाती हैं।

→ प्राथमिक शैलें (Primary Rocks)-पृथ्वी पर सबसे पहले जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति से भी पहले आग्नेय शैलों का निर्माण हुआ। इसी आधार पर इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहा जाता है।

→ रूपान्तरित शैलें (Metamorphic Rocks)-ऐसी शैलें जो अन्य शैलों के रूप परिवर्तन के द्वारा बनती हैं, रूपान्तरित शैलें कहलाती हैं।

→ तापीय रूपान्तरण (Thermal Metamorphism)-ऊँचे ताप के प्रभाव से शैलों के खनिजों का रासायनिक परिवर्तन और पुनः क्रिस्टलीकरण हो जाता है। इसे तापीय रूपान्तरण कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

HBSE 11th Class Geography भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(A) तरुणावस्था
(B) प्रथम प्रौढ़ावस्था
(C) अंतिम प्रौढ़ावस्था
(D) वृद्धावस्था
उत्तर:
(A) तरुणावस्था

2. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है-
(A) U आकार की घाटी
(B) अंधी घाटी
(C) गॉर्ज
(D) कैनियन
उत्तर:
(D) कैनियन

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

3. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है-
(A) आर्द्र प्रदेश
(B) शुष्क प्रदेश
(C) चूना-पत्थर प्रदेश
(D) हिमनद प्रदेश
उत्तर:
(A) आर्द्र प्रदेश

4. निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लेपीज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है-
(A) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त
(B) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं
(C) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों
उत्तर:
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों

5. गहरे, लंबे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(A) सर्क
(B) पाश्विक हिमोढ़
(C) घाटी हिमनद
(D) एस्कर
उत्तर:
(A) सर्क

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
चट्टानों में अधःकर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर:
नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रारंभिक मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चट्टानों में गहराई तक होते हैं जो प्रायः नदी अपरदन या भूतल के लगातार उत्थान के कारण बनते हैं। बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर लूप जैसे प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्हें विसर्प कहते हैं। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है। बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं।

प्रश्न 2.
घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
धरातलीय प्रवाहित जल घोल रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्चात् किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर निकल आता है। जब घोलरंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत से गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं, तो लंबी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं जिन्हें घाटी रंध्र या युवाला कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?
उत्तर:
भौम जल का कार्य सभी चट्टानों में नहीं देखा जा सकता। ऐसी चट्टानें जैसे चूना-पत्थर या डोलोमाइट, जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी अधिक मात्रा देखने को मिलती है। इसलिए चूना युक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 4.
हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।
उत्तर:
हिमनद घाटियों के रैखिक निक्षेपण स्थलरूप निम्नलिखित हैं-
1. हिमोढ़-हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटके हैं। अंतस्थ, हिमोढ़ हिमनद के अंतिम भाग में मलबे के निक्षेप से बनी लंबी कटकें हैं।

2. एस्कर-हिमनद के पिघलने से जल हिमतल के ऊपर से प्रवाहित होता है अथवा इसके किनारों से रिसता है या बर्फ के छिद्रों के नीचे से प्रवाहित होता है। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानों के टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती है जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं फिर ये पिघलकर वक्राकार कटक के रूप में मिलते है, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

3. हिमानी धौत मैदान-हिमानी जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।

4. ड्रमलिन-ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है।

प्रश्न 5.
मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर:
मरुस्थली धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते है। ठंड और गर्मी से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं जो खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवनें रेत के कण उड़ाकर अपने आस-पास की चट्टानों का कटाव करती हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरुस्थलों में अपक्षय केवल पवन द्वारा ही नहीं, अपितु वर्षा व वृष्टि से भी प्रभावित होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आई व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
आर्द्र प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा होती है। प्रवाहित जल सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है, जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं-

  • धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह।
  • रैखिक प्रवाह, जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।

प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थलरूप ढ़ाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबंधित हैं। तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है। तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा उतना ही अधिक निक्षेपण होगा।

जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों का पार्श्व अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं। शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर स्थलाकृतियों का निर्माण बृहत् क्षरण और प्रवाहित जल की चादर बाढ़ से होता है। मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पति-विहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती हैं। मरुस्थलीय भागों में • भू-आकृतियों का निर्माण सिर्फ पवनों से नहीं बल्कि प्रवाहित जल से भी होता है।

प्रश्न 2.
चूना चट्टाने आई व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर:
चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, इसलिए चूना-पत्थर आर्द्र जलवायु में कई स्थलाकृतियों का निर्माण करता है जबकि शुष्क प्रदेशों में इसका कार्य आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा कम होता है। चूना पत्थर एक घुलनशील पदार्थ होने के कारण चट्टान पर इसके रासायनिक अपक्षय का प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में यह अपक्षय के लिए अवरोधक होता है। लाइमस्टोन की रचना में समानता होती है तथा परिवर्तन के कारण चट्टान में फैलाव तथा संकुचन नहीं होता जिस कारण चट्टान का बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटन अधिक मात्रा में नहीं हो पाता। डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौमजल द्वारा घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्ट स्थलाकृति का नाम दिया गया है।

अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थलरूप कार्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएँ हैं। अपरदित स्थलरूप घोलरंध्र, कुंड, लेपीज और चूना पत्थर चबूतरे हैं। चूनायुक्त चट्टानों के अधिकतर भाग गर्तों व खाइयों के हवाले हो जाते हैं और पूरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जिन्हें लेपीज कहते है। कभी-कभी लेपिज के विस्तृत क्षेत्र समतल चुनायुक्त चूबतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है बताएँ?
उत्तर:
महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद वे हिमनद हैं, जो वृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हों तथा पर्वतीय या घाटी हिमनद वे हिमनद हैं, जो पर्वतीय ढालों में बहते हैं। प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्व बल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा कर्षित चट्टानी पदार्थ, इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद अपक्षय-रहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं।

हिमनद के लगातार संचलित होने से हिमनद मलबा हटता है, विभाजक नीचे हो जाता है और ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास HBSE 11th Class Geography Notes

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़ाकर जमा किए गए धूल के पीले या स्लेटी रंग के निक्षेप।

→ भू-आकृति (Land Forms)-छोटे-से मध्यम आकार के भूखण्ड को भू-आकृति कहा जाता है।

→ हिमनदी/हिमानी (Glacier) कर्णहिम (Neve) के पुनर्पटन (Recrystallisation) से बनी हिम की विशाल संहतराशि जो धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन बहती है, हिमनदी या हिमानी कहलाती है।

→ जल-प्रपात (Water Falls)-चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से नदी का सीधे नीचे गिरना जल-प्रपात कहलाता है।

→ नदी तंत्र (River System) मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों को मिलाकर बना एक तंत्र।

→ भूगु (Cliff)-एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Read More »

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रेडेशनल प्रक्रिया का उदाहरण है?
(A) अपरदन
(B) निक्षेप
(C) ज्वालामुखीयता
(D) संतुलन
उत्तर:
(A) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करती है?
(A) क्ले (चीका मिट्टी)
(B) लवण
(C) क्वार्टज़
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(A) क्ले (चीका मिट्टी)

3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) मंद संचलन
(C) द्रुत संचलन
(D) अवतलन
उत्तर:
(C) द्रुत संचलन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

4. अधिवद्धि अथवा तलोच्चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य शामिल नहीं होता?
(A) अपरदन
(B) अपक्षय
(C) अपरदित पदार्थों का परिवहन
(D) निक्षेपण
उत्तर:
(B) अपक्षय

5. चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
(A) आर्द्र प्रदेशों में
(B) हिमाच्छादित प्रदेशों में
(C) ठंडे मरुस्थलों में
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में
उत्तर:
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में

6. चट्टानों के अपशल्कन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से उत्तरदायी है?
(A) चट्टानों का परतों में होना
(B) हिमांक से नीचे तापमान
(C) अत्यधिक उच्च ताप
(D) ताप-विभेदन
उत्तर:
(D) ताप-विभेदन

7. चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को कहा जाता है-
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) अनाच्छादन
(D) अनावृतिकरण
उत्तर:
(A) अपक्षय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

8. लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को कहा जाता है-
(A) कार्बोनेटीकरण
(B) ऑक्सीकरण
(C) जलयोजन
(D) वियोजन
उत्तर:
(B) ऑक्सीकरण

9. ग्रेनाइट चट्टानों में होने वाली अपशल्कन क्रिया के पीछे किस कारक का योगदान होता है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जलयोजन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) जलयोजन

10. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) गुरुत्वाकर्षण
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) विवर्तन
(D) जलवायु
उत्तर:
(B) चट्टानों का प्रकार

11. बृहत क्षरण का निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकार मंद संचलन का उदाहरण नहीं है?
(A) मृदा विसर्पण
(B) मृदा प्रवाह
(C) मृदा सर्पण
(D) शैल विसर्पण
उत्तर:
(B) मृदा प्रवाह

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भूस्खलन को परिभाषित करता है?
(A) विखंडित शैल पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे सरकना।
(B) स्थायी हिम के ऊपर जल से लबालब मलबे का ढाल के अनुरूप खिसकना
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण
(D) वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी के बहुत बड़े क्षेत्र का स्थानांतरित होना
उत्तर:
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण

13. वक्राकार तल पर घूर्णी गति के फलस्वरूप ढाल के सहारे चट्टान का रुक-रुक कर स्खलन होना कहलाता है-
(A) भूमि सर्पण
(B) मलबा स्खलन
(C) शैल पात
(D) अवसर्पण
उत्तर:
(D) अवसर्पण

14. मृदा परिच्छेदिका का वह कौन-सा संस्तर है जिसके ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में खनिज व जैव पदार्थों की अधिकता होती है?
(A) क संस्तर
(B) ख संस्तर
(C) ग संस्तर
(D) घ संस्तर
उत्तर:
(A) क संस्तर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
उत्तर:
शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में।

प्रश्न 2.
चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपक्षय।

प्रश्न 3.
लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ऑक्सीकरण।

प्रश्न 4.
तल सन्तुलन लाने वाले दो कारकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय किन दो क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. कार्बोनेटीकरण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 6.
सूर्यातप अपक्षय में प्याज के छिलके की तरह चट्टानी परतों के उतरने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपशल्कन।

प्रश्न 7.
तुषार अथवा पाला द्वारा चट्टानें किस प्रकार की जलवायु में टूटती हैं?
उत्तर:
शीत जलवायु में।

प्रश्न 8.
कार्बनीकरण का प्रमाण किस प्रकार की चट्टानों पर पड़ता है?
उत्तर:
चूना-युक्त चट्टानों पर।

प्रश्न 9.
लवण क्रिस्टलन अपक्षय किन क्षेत्रों में होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय और तटीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 10.
बृहत् संचलन का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
अनुढाल संचलन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहिर्जात प्रक्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे प्रक्रियाएँ जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाती हैं, बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
पिण्ड-विच्छेदन क्यों होता है?
उत्तर:
पिण्ड-विच्छेदन लम्बे समय तक तापमान के घटने-बढ़ने से चट्टानों के बार-बार फैलने-सिकुड़ने के कारण चट्टानों के तल पर पैदा हुए तनाव के कारण होता है।

प्रश्न 3.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत का ढाल के अनुरूप नीचे खिसकना बृहत् . क्षरण कहलाता है।

प्रश्न 4.
अपक्षय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

प्रश्न 5.
अपघटन (Decomposition) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का कमज़ोर पड़कर टूट जाना अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 6.
विघटन (Disintegration) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों, खण्डों या कणों में टूटकर बिखरना विघटन कहलाता है।

प्रश्न 7.
मृदा विसर्पण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना।
  2. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा करना।

प्रश्न 8.
प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भू-तल पर कार्यरत वे सभी प्रक्रियाएँ अथवा शक्तियाँ जो धरातल की ऊँची-नीची भूमि को एक सामान्य तल पर लाने की कोशिश करती हैं, प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 9.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाली बहिर्जात प्रक्रियाओं से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अंतर्जात प्रक्रियाएँ पर्वत, पठार, घाटी और मैदान जैसे भू-आकारों का निर्माण कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करती हैं। इनके विपरीत भू-तल पर कुछ ताकतें ऐसी भी होती हैं, जो इन विषमताओं को निरन्तर दूर करने में लगी रहती हैं, इन्हें बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहते हैं। बहिर्जात प्रक्रियाएँ वे प्रक्रियाएँ हैं जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रवणता सन्तुलन अथवा तल सन्तुलन की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि निम्नीकरण और अधिवृद्धि का तल सन्तुलन से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर उठे भागों के कट-छटकर समतल हो जाने की प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं। वास्तव में, सन्तुलित धरातल एक ऐसी अवस्था है जिसमें बहिर्जात प्रक्रियाएँ न तो तल को ऊपर उठा रही होती हैं और न ही उसे नीचे कर रही होती हैं। इसमें अपरदन और निक्षेप का हिसाब बराबर बना रहता है। प्रवणता सन्तुलन कभी भी स्थाई नहीं रह पाता, क्योंकि पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ कभी भी भू-तल को चैन से नहीं बैठने देतीं।

प्रवणता सन्तुलन निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के एक-साथ कार्यरत रहने से प्राप्त होता है-

  • निम्नीकरण अथवा तलावचन (Degradation)
  • अधिवृद्धि अथवा तल्लोचन (Aggradation)

बाहरी कारकों द्वारा धरातल के ऊँचे उठे हुए भागों को अपक्षय, अपरदन तथा परिवहन द्वारा नीचे करने की प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। भूगोल में इस प्रक्रिया को अनाच्छादन भी कहा जाता है। निम्नीकरण की प्रक्रिया द्वारा ऊँचे भू-भागों से प्राप्त अपरदित पदार्थों का जब गर्मों व निचले प्रदेशों में निक्षेपण हो जाता है, तो इसे अधिवृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहिर्जनिक बल तथा अंतर्जनित बल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ-पर्पटी सदैव परिवर्तित होती रहती है। ये सभी परिवर्तन कछ बलों के प्रभाव से होते हैं। भ-तल के ऊपर कार्य करने वाले बलों को बहिर्जनिक बल तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में कार्य करने वाले बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों के प्रभाव से भू-आकृतियों का निम्नीकरण/तलावचन तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव होता है। अंतर्जनित बलों से भू-तल के उच्चावच में विषमताएँ आती हैं अर्थात् अंतर्जनित बल पर्वत, पठार, मैदान और घाटी जैसे आकारों की रचना कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करते हैं। बहिर्जनिक बल इन विषमताओं को दूर करने में लगा रहता है।

प्रश्न 4.
भौतिक अपक्षय के विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चट्टानों का विघटन या भौतिक अपक्षय निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
1. सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती है। बार-बार चट्टानों के इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में तनाव पैदा होता है और वे टूट जाती हैं। चट्टानों के टूटने के इस ढंग को पिण्ड विच्छेदन (Block Disintegration) कहते हैं।

अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी चट्टानों के खनिज भिन्न-भिन्न दर से फैलते और सिकुड़ते हैं। ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन कहलाती है। जब प्रचण्ड ताप के कारण चट्टानों की ऊपरी पपड़ी प्याज के छिलकों के रूप में उतरने लगती है तो इस विघटन को पल्लवीकरण या अपशल्कन कहा जाता है।

2. पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Altermate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

3. दाब-मुक्ति (Pressure Release) कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टाने दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

4. लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering) चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय के कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय के कारक निम्नलिखित हैं
1. ऑक्सीकरण (Oxidation) -जल तथा आई वाय में मिली हई ऑक्सीजन का. जब लौहयक्त चट्टानों से संयोजन होता है. तो चट्टान में स्थित लौह अंश ऑक्साइडों में बदल जाते हैं अर्थात् लोहे में जंग (Rust) लग जाता है। इससे चट्टानों का रंग लाल, पीला या बादामी हो जाता है। इस क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण में लौहयुक्त चट्टानें भुरभुरी होकर गलने लगती हैं।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

3. जलयोजन (Hydration) चट्टानों में कुछ खनिज ऐसे भी होते हैं, जो हाइड्रोजन युक्त जल को रासायनिक विधि द्वारा अवशोषित (Absorb) कर लेते हैं, जिससे उनका आयतन लगभग दुगुना हो जाता है। खनिजों का बढ़ा हुआ आयतन चट्टानों के कणों और खनिजों में तनाव, खिंचाव तथा दबाव पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें फूलकर यान्त्रिक विधि द्वारा मूल चट्टान से उखड़ जाती हैं।

4. विलयन (Solution) वर्षा के जल के सम्पर्क में आने पर सभी चट्टानें भिन्न-भिन्न दर से घुलती हैं, लेकिन कुछ खनिज जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं, जैसे सेंधा नमक (Rock Salt) और चूना-पत्थर आदि। चट्टानों का यह रासायनिक अपक्षय विलयन कहलाता है।

प्रश्न 6.
बृहत् क्षरण (बृहत् संचलन) की परिभाषा देते हुए मृदा विसर्पण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा (Definition)-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को हम मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ (Fence) तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन क्या है? भू-स्खलन कितने प्रकार का होता है? किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भू-स्खलन (Land Slide)-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

2. शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।

प्रश्न 8.
अपक्षय तथा अपरदन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

अपक्षय (Weathering)अपरदन (Erosion)
1. अपक्षय की प्रक्रिया स्थैतिक साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।1. अपरदन की प्रक्रिया धरातल पर कार्यरत गतिशील साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।
2. अपक्षय में चट्टानें टूटकर अपने मूल स्थान या उसके आस-पास पड़ी रहती हैं।2. अपरदन में अपक्षयित पदार्थों का अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
3. अपक्षय में चट्टानों की केवल टूट-फूट होती है।3. अपरदन में चट्टानों की टूट-फूट व स्थानान्तरण दोनों होते हैं।
4. सूर्यातप, पाला, दाबमुक्ति, ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, विलयन, जीव, वनस्पति तथा मनुष्य अपक्षय के प्रमुख कारक हैं।4. अपरदन के मुख्य कारक हिमनदी, नदी, पवन, समुद्री तरंगें इत्यादि हैं।
5. अपक्षय मृदा-निर्माण का आधार है।5. अपरदन विभिन्न स्थलाकृतियों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering)रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
1. भौतिक अपक्षय में चट्टानें भौतिक बलों के प्रभाव से टूटती हैं।1. इसमें चट्टानें रासायनिक अपघटन द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं।
2. भौतिक अपक्षय में विधटित चट्टानों के खनिज मूल चट्टानों जैसे ही रहते हैं।2. रासायनिक अपक्षय में अपघटित चट्टानों के रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है।
3. चट्टानों का भौतिक अपक्षय शीत एवं शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है।3. रासायनिक अपक्षय उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में अधिक कारगर होता है।
4. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब-मुक्ति हैं।4. रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन तथा विलयन हैं।
5. बलकृत अपक्षय में चट्टानें पर्याप्त गहराई तक प्रभावित होती हैं।5. रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का केवल तल ही प्रभावित होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 10.
ढाल मलबा तथा पाद मलबा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका. आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 350 से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है। । कुछ विद्वान् ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है। अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
जैविक अपक्षय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ऐसा अपक्षय जिसमें चट्टानों की टूट-फूट के लिए मुख्य रूप से जीव-जन्तु, मनुष्य और वनस्पति उत्तरदायी हों, ‘जैविक अपक्षय’ कहलाता है। कीड़े-मकौड़े और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ ऐसी हैं जो चट्टानों में बिल बनाकर रहती हैं। बिल बनाने से असंगठित मलबा बाहर आता है और चट्टानें कमज़ोर होकर टूटती हैं। वनस्पति की जड़ें चट्टानों की दरारों में प्रवेश करके उन्हें चौड़ा करती हैं। जड़ों की माध्यम से हवा और पानी का भी चट्टानों में घुसने का राह बन जाता है। इसमें रासायनिक अपक्षय को बल मिलता है। मनुष्य भी कुएँ, झील, नहरें, बाँध, भटे, सुरंगें, तालाब, खाने, नगर, कारखाने व सड़के इत्यादि बनाकर चट्टानों को तोड़ने का काम करता रहता है। ये सभी जैविक अपक्षय के रूप हैं।

प्रश्न 12.
मृदा विसर्पण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मृदा विसर्पण निम्नलिखित कारणों से होता है-

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना
  2. हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  3. शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  4. मृदा का जल में भीगना व सूखना
  5. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना
  6. बिलकारी जीवों द्वारा भूमि का अपक्षय तथा मनुष्य द्वारा ढाल की ‘रोक’ (Barrier) को हटाना इत्यादि।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपक्षय की परिभाषा दीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय की परिभाषा-मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के कार्यों द्वारा चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है। चट्टानों में टूट-फूट विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) क्रियाओं से होती है। विघटन में चट्टानें भौतिक बलों द्वारा चटक कर टूटती हैं, जबकि अपघटन में चट्टानें रासायनिक क्रियाओं द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं। स्पार्क्स के शब्दों में, “प्राकृतिक कारकों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा होने वाले विघटन और अपघटन को अपक्षय कहते हैं।”

अपक्षय के प्रकार- मौसमी तत्त्वों के अतिरिक्त जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य भी चट्टानों की टूट-फूट के लिए उत्तरदायी होते हैं, ऐसा अपक्षय जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। इस प्रकार अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं

  • भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering)।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तीनों प्रकार के.अपक्षय कम या अधिक मात्रा में एक साथ घटित हो रहे होते हैं। अपक्षय में उत्पन्न चट्टान चूर्ण का बड़े पैमाने पर परिवहन नहीं होता। यह तल सन्तुलन के कारकों के रंगमंच जरूर तैयार कर देता है।

भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय – [Physical or Mechanical Weathering]:
चट्टानों का विघटन निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
(1) सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में जहाँ दैनिक तापान्तर अधिक होता है, सूर्यातप चट्टानों के विघटन का सबसे कारगर साधन सिद्ध होता है। ऐसे प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के असाधारण रूप से गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार लम्बे समय तक बार-बार फैलते और सिकुड़ते रहने से उनके तल पर तनाव उत्पन्न हो जाता है। तनाव चट्टानों में दरारें पैदा करता है जिसके फलस्वरूप चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटित होने लगती हैं। चट्टानों की इस प्रकार टूट पिंड विच्छेदन (Block Disintegration) कहलाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 1
कई चट्टानें जो अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी होती हैं, उनके खनिज ताप के प्रभाव से भिन्न-भिन्न दरों से फैलते और सिकुड़ते हैं, ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती रहती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन (Granular Disintegration) कहलाती है। मरुस्थलों में सूर्यास्त के बाद चट्टानों के इस प्रकार टूटने से बन्दूक से गोली छूटने जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2
कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे अपशल्कन या पल्लवीकरण प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2a

(2) पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 9 घन सेंटीमीटर जल जमने के बाद 10 घन सेंटीमीटर जगह घेरता है, जिससे चट्टानों पर प्रति वर्ग सेंटीमीटर 15 किलोग्राम का प्रतिबल पड़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Alternate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

(3) दाब-मुक्ति (Pressure Release)कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टानें दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

(4) लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering)-चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 2.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं? मंद संचलन के अन्तर्गत होने वाले बृहत् क्षरण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बृहत् क्षरण का अर्थ-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

बृहत् क्षरण के प्रकार – बृहत् क्षरण की गति में बड़ी भारी भिन्नता पाई जाती है। यह गति एक वर्ष में कुछ मिलीमीटर (जो दिखाई भी न दे) से लेकर 100 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है। गति के आधार पर बृहत क्षरण के विभिन्न रूपों को दो मोटे वर्गों में बाँटा जा सकता है-
मन्द संचलन (Slow Movement)-

  1. मृदा विसर्पण (Soil Creep)
  2. शैल विसर्पण (Rock Creep)
  3. ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus)
  4. मृदा सर्पण (Solifluction)।

द्रुत संचलन (Rapid Movement)-

  1. मृदा प्रवाह (Soil Flow)
  2. भू-स्खलन (Land Slide)
    • शैल स्खलन (Rock Slide)
    • अवसर्पण (Slumping)
    • शैल पात (Rock Fall)
    • मलबा स्खलन (Debris Slide)
  3. भूमि सर्पण (Earth Slide)
  4. पंक प्रवाह (Mud Flow)।

1. मन्द संचलन (Slow Movement)-अदृश्य होने के बावजूद मन्द संचलन धरातल को तराशने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भू-गर्भवेताओं के अनुसार, लम्बे समय तक जारी रहने वाले मन्द संचलन विस्फोटक और द्रुत संचलन की अपेक्षा मलबे की अधिक मात्रा को लुढ़का ले जाते हैं।

(i) मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 3
मृदा विसर्पण के कारण (Causes of Soil Creep)-

  • शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में तुषार (Frost) तथा हिम का पिघलना
  • हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  • शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  • मृदा का जल में भीगना व सूखना
  • भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना

(2) शैल विसर्पण (Rock Creep)-वर्षा ऋतु में चट्टानों के ऊपर स्थित शैल चूर्ण और मिट्टी की कमज़ोर परत का आवरण हट जाने के बाद मौसम के कारक आधार शैल (Bed Rock) का विखण्डन करना आरम्भ कर देते है। विखण्डित शैल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे की ओर सरकते है, जिसे शैल विसर्पण कहा जाता है।

(3) ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus) पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 35° से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है।

कुछ विद्वान ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है।

अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 4
(4) मृदा सर्पण (Solifluction)-Solifluction लातीनी भाषा के दो पदों ‘Solum Soil’ (मृदा) तथा ‘Fluere flow’ (बहना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ जल से संतृप्त मिट्टी का ढाल के नीचे की ओर प्रवाह है। मृदा सर्पण ऊँचे अंक्षाशों तथा निम्न अंक्षाशों के उच्च पर्वतीय भागों में घटित होता है। आर्कटिक वृत के टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थाई हिम (Permafrost) (जहाँ सारा वर्ष तापमान 0° सेल्सियस व उससे भी कम रहता है) के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में ऊपर की हिम पिघलने लगती है, जबकि नीचे की भूमि अभी हिम से जमी हुई (Frozen) होती है। स्थाई हिम पिघले हुए जल के अन्तःस्राव अर्थात् रिसाव में बाधा डालती है। परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के ऊपर जल से लबालब मलबा ढाल के अनुरूप खिसकने लगता है। मृदा सर्पण की गति इतनी मन्द होती है कि वह दिखाई ही नहीं देती। पर्वतीय ढालों पर मृदा सर्पण से सोपानों एवं वेदिकाओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन का अर्थ-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

भू-स्खलन के प्रकार भू-स्खलन चार प्रकार का होता है। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
(1) शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 5

(2) अवसर्पण (Slumping)-अवसर्पण की क्रिया वक्राकार तल पर घूर्णन गति (Rotating) के फलस्वरूप घटित होती है। इसमें चट्टान का स्खलन ढाल के सहारे रुक-रुक कर होता है और कम दूरी तक होता है। जिस ढाल पर चट्टान का अवसर्पण होता है उस पर सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी वेदिकाएँ बन जाती हैं। भारत में अवसर्पण के उदाहरण, पश्चिमी तट पर चेन्नई और विशाखापट्टनम के बीच तथा पूर्वी तट पर केरल में कौनिक के निकट मिलते है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 6

(3) शैल पात (Rock Fall)-शैल पात की क्रिया शैल स्खलन से मिलती-जुलती अवसर्पण है। अन्तर केवल यह है कि शैल पात में किसी खड़े ढाल वाले क्लिफ से विशाल शैल खण्ड अकेले ब्लॉक के रूप में गिरता है। गिरने वाले खण्ड का आकार एक गोलाश्म (Boulder) जितना छोटा भी हो सकता है और गाँव के आकार जितना विशाल भी। गिरने वाले खण्ड का आकार क्लिफ की भौमकीय रचना पर निर्भर करता है। गिरने के बाद वह विशाल खण्ड अनेक प्रकार के बड़े-बड़े और छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट सकता है। हिमालय तथा आल्पस पर्वत क्षेत्रों में शैल पात की घटनाएँ प्रायः होती रहती है।

(4) मलबा स्खलन (Debris Slide) मलबा स्खलन वह शैल चूर्ण होता है जो अपने मूल स्थान से हट कर ढाल के नीचे की ओर खिसकता हुआ किसी अन्य स्थान पर दोबारा एकत्र हो जाता है। यदि मलबा समूह तीव्र ढाल पर नीचे की ओर तेजी से विसर्पण करता है तो इस क्रिया को मलबा स्खलन कहते हैं और यदि मलबे का समूह तीव्र गति के साथ ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है तो उसे मलबा पात (Debris Fall) कहते हैं। हिमालय की घाटियों में मलबा स्खलन और मलबा पात की अनेकों घटनाएँ देखने को मिलती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 4.
बृहत संचलन के प्रकार बताते हुए किसी एक का संक्षेप में वर्णन करें। द्रूत संचलन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बृहत संचलन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-

  • मंद संचलन (Slow Movement)
  • दूत संचलन (Rapid Movement)
  • भू-स्खलन (Land Slide)

गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा अथवा चट्टान का अचानक एवं तीव्र गति से संचलन बहुत हानिकारक होता है। मलबे के द्रुत संचलन के लिए वर्षा के जल या हिम के पिघले जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें से द्रुत संचलन का वर्णन निम्नलिखित है
1. भूमि सर्पण (Earth Slide) इसमें भूमि का एक पूरा-का-पूरा विशाल ब्लॉक पर्वत या पहाड़ी के नीचे की ओर खिसकता है। यह टूटकर खण्डित नहीं होता, बल्कि पूरा ब्लॉक ही ज्यों-का-त्यों रहता है। यह खिसकी हुई भूमि मार्ग में कितने ही लम्बे अथवा थोड़े समय तक रुकी रह सकती है।

2. मृदा प्रवाह (Soil Flow)-आर्द्र जलवायु के क्षेत्रों में जल के संतृप्त मिट्टी, ऊपरी भाग का चट्टान चूर्ण, चिकनी मिट्टी तथा शैल मृत्तिका आदि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा तीव्र गति से कुछ ही घंटों में ढाल के नीचे की ओर खिसक आते हैं, इसे मृदा प्रवाह कहते हैं। मृदा प्रवाह में जल अथवा हिमजल स्नेहक (Lubricant) का काम करते हैं।

3. पंक प्रवाह (Mud Flow)-अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में जल से संतृप्त होकर शैल पदार्थ अपने मूल स्थान की ढाल से अलग होकर प्लास्टिक पदार्थ की भाँति नीचे की ओर निकली हुई जिह्वाओं की आवृति में बहने लगते हैं।

ज्वालामुखी उद्गार के बाद होने वाली वर्षा में ज्वालामुखी राख और धूलकण गीले होकर पंक का रूप धारण कर लेते है आर ढाल के साथ नीचे की ओर खिसकते हैं।

4. मलबा अवधाव (Debris Avalanche) मलबा अवधाव द्रुत संचलन आर्द्र प्रदेशों में, जिनमें वनस्पति का आवरण हो या न हो, पाया जाता है। यह मलबा तीव्र ढालों पर संकरे मार्गों से बहता है। मलबा अवधाव हिम अवधाव जैसा होता है और पंक प्रवाह की अपेक्षा बहुत तेज बहता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Read More »

HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए-

1. संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन किसकी अध्यक्षता में हुआ?
(A) भीमराव अंबेडकर
(B) डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा
(C) बी० एन० राव
(D) डॉ० राजेंद्र प्रसाद
उत्तर:
(B) डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा

2. संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष थे
(A) डॉ० राजेंद्र प्रसाद
(B) डॉ० भीमराव अंबेडकर
(C) एस० एस० मुखर्जी
(D) सरदार पटेल
उत्तर:
(A) डॉ० राजेंद्र प्रसाद

3. संविधान सभा के सम्मुख ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ किसने पारित किया?
(A) डॉ० राजेंद्र प्रसाद
(B) डॉ० भीमराव अंबेडकर
(C) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(D) सरदार पटेल
उत्तर:
(C) पंडित जवाहरलाल नेहरू

4. भारतीय संविधान पास हुआ
(A) 15 अगस्त, 1947
(B) 26 नवंबर, 1949
(C) 26 जनवरी, 1950
(D) 26 नवंबर, 1950
उत्तर:
(B) 26 नवंबर, 1949

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

5. संविधान सभा के सदस्यों की संख्या थी-
(A) 393
(B) 389
(C) 289
(D) 489
उत्तर:
(B) 389

6. संविधान सभा की प्रथम बैठक कहाँ हुई थी?
(A) दिल्ली
(B) बम्बई
(C) कलकत्ता
(D) मद्रास
उत्तर:
(A) दिल्ली

7. संविधान सभा की बैठकें हुईं
(A) लगभग 166
(B) लगभग 184
(C) लगभग 267
(D) लगभग 195
उत्तर:
(A) लगभग 166

8. ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा’ किसने लिखा था?
(A) अबुल फज़ल ने
(B) मोहम्मद इकबाल ने
(C) बर्नी ने
(D) फिरदौसी ने
उत्तर:
(B) मोहम्मद इकबाल ने

9. भारतीय संविधान लागू हुआ
(A) 26 जनवरी, 1949
(B) 26 जनवरी, 1950
(C) 15 अगस्त, 1950
(D) 26 नवंबर, 1949
उत्तर:
(B) 26 जनवरी, 1950

10. भारतीय संविधान सभा का निर्माण किस योजना के अंतर्गत किया गया?
(A) क्रिप्स योजना
(B) कैबिनेट मिशन योजना
(C) वेवल योजना
(D) गाँधी योजना
उत्तर:
(B) कैबिनेट मिशन

11. संविधान सभा का गठन हुआ
(A) 1944 ई० में
(B) 1942 ई० में
(C) 1946 ई० में
(D) 1950 ई० में
उत्तर:
(C) 1946 ई० में

12. संविधान सभा के चुनाव कब हुए थे ?
(A) जुलाई, 1946 ई०
(B) जुलाई, 1945 ई०
(C) जुलाई, 1944 ई०
(D) जून, 1946 ई०
उत्तर:
(A) जुलाई, 1946 ई०

13. धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ क्या था?
(A) एक धर्म पर आधारित राज्य
(B) सभी धर्मों का आदर
(C) हिन्दू धर्म के पक्ष में
(D) इस्लाम के पक्ष में
उत्तर:
(A) सभी धर्मों का आदर

14. संविधान सभा की कितनी धाराएँ हैं?
(A) 390
(B) 392
(C) 395
(D) 398
उत्तर:
(C) 395

15. संविधान सभा के सवैधानिक सलाहकार कौन थे?
(A) डॉ० बी० एन० राय
(B) सरदार पटेल
(C) डॉ० बी० आर० अम्बेडकर
(D) पंडित जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(A) डॉ० बी० एन० राय

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन कब व किसकी अध्यक्षता में हुआ?
उत्तर:
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर, 1946 को डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा की अध्यक्षता में हुआ।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ० राजेंद्र प्रसाद भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष थे।

प्रश्न 3.
संविधान की प्रारूप समिति का गठन कब हुआ?
उत्तर:
संविधान की प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त, 1947 को हुआ।

प्रश्न 4.
संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ०. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।

प्रश्न 5.
संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार कौन थे?
उत्तर:
संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार श्री बी० एन० राव थे।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान कब पारित हुआ? उत्तर-भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 को पारित हुआ।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान कब लागू हुआ?
उत्तर:
भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।

प्रश्न 8. भारतीय संविधान में कितनी धाराएँ हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 395 धाराएँ हैं।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान ने भारत को कैसा राज्य घोषित किया?
उत्तर:
भारतीय संविधान ने भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया।

प्रश्न 10.
भारत की राष्ट्रभाषा क्या है?
उत्तर:
भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी है।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान पर किन-किन देशों के संविधानों का प्रभाव है?
उत्तर:
भारतीय संविधान पर इंग्लैंड, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया देशों के संविधानों का प्रभाव है।

प्रश्न 12.
भारतीय संविधान में कैसी नागरिकता की व्यवस्था है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में इकहरी नागरिकता की व्यवस्था है।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल करने की प्रेरणा किस देश के संविधान से ली गई?
उत्तर:
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल करने की प्रेरणा अमेरिका के संविधान से ली गई।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

प्रश्न 14.
किस योजना ने भारतीय संविधान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन योजना 1946 ने भारतीय संविधान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान सभा का गठन कब हुआ?
उत्तर:
भारतीय संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में हुआ।

प्रश्न 16.
संविधान सभा के सदस्यों की संख्या कितनी थी?
उत्तर:
संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 389 थी। इनमें से 292 सदस्य ब्रिटिश प्रांतों से तथा 93 देशी रियासतों के तथा 4 चीफ कमिश्नरियों के थे।

प्रश्न 17.
आधुनिक मन एवं भारतीय संविधान के पिता किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
आधुनिक मनु एवं भारतीय संविधान का पिता डॉ० भीमराव अंबेडकर को कहा जाता है।

प्रश्न 18.
भारत के संविधान में कुल कितनी अनुसूचियाँ हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान में कुल 12 अनुसूचियाँ हैं।

प्रश्न 19.
संविधान सभा में कितने प्रतिशत सदस्य कांग्रेस दल के थे?
उत्तर:
संविधान सभा में 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस दल के थे।

प्रश्न 20.
कैबिनेट मिशन ने अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा कब की थी?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन ने अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा 16 मई, 1946 को की थी।

प्रश्न 21.
संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव किसने व कब रखा था?
उत्तर:
संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव पं० जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को रखा था।

प्रश्न 22.
भारतीय संविधान को किस कालावधि में सूत्रबद्ध किया गया? उत्तर-भारतीय संविधान दिसंबर, 1946 से दिसंबर, 1949 की कालावधि में सूत्रबद्ध किया गया।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 नवंबर, 1949 को बनकर तैयार हो गया था। परंतु इसे दो महीने बाद 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसका मुख्य कारण यह था कि कांग्रेस ने 1930 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव पास किया और 26 जनवरी, 1930 का दिन प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। इसके बाद कांग्रेस ने 26 जनवरी को हर वर्ष इसी रूप में मनाया। इस पवित्र दिवस की याद ताज़ा रखने के लिए भारत का संविधान 26 जनवरी; 1950 को लागू किया गया।

प्रश्न 2.
संविधान सभा की पहली बैठक पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को नई दिल्ली में संविधान सभा हाल में हुई। इसकी अध्यक्षता डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा ने की। इसमें 207 सदस्य उपस्थित थे।

प्रश्न 3.
संविधान सभा के कुछ प्रमुख सदस्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों के नाम हैं-राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सरदार बलदेव सिंह, फ्रैंक एन्थनी, एच०पी० मोदी, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, बी०आर० अंबेडकर व के०एम० मुंशी।

प्रश्न 4.
भारत के संविधान में डॉ० राजेंद्र प्रसाद की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
डॉ० राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के प्रमुख सदस्य थे। 11 दिसंबर, 1946 में राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। अध्यक्ष के रूप में संविधान सभा की चर्चाओं को उन्होंने काफी प्रभावित किया। उन्हें विचार प्रकट करने का मौका दिया। राजेंद्र प्रसाद को इस बात का दुःख था कि भारतीय संविधान मूल रूप से अंग्रेजी में था और उसमें किसी भी पद के लिए किसी भी रूप में शैक्षिक योग्यता नहीं रखी गई थी।

प्रश्न 5.
संविधान सभा ने दलितों के लिए क्या प्रावधान किया? ।
उत्तर:
संविधान सभा में दलितों के अधिकारों पर काफी बहस हुई। इन जातियों के लिए सुरक्षात्मक उपायों की माँग की गई। अंत में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया। दूसरा, इन्हें हिंदू मंदिरों में प्रवेश दिया गया तथा तीसरा, दलितों को विधायिकाओं और नौकरियों में आरक्षण दिया गया।

प्रश्न 6.
डॉ० बी०आर० अंबेडकर कौन थे?
उत्तर:
डॉ० बी०आर० अंबेडकर महान विद्वान, विधिवेत्ता, लेखक, शिक्षाविद् तथा महान् सुधारक थे। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष किया। अंबेडकर अंतरिम सरकार में विधि मंत्री बने। उन्हें संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अतः उन्होंने संविधान के प्रारूप को प्रस्तुत किया तथा पास करवाया। उन्हें भारतीय संविधान का पिता भी कहा जाता है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की आधारभूत मान्यताएँ व सिद्धांत क्या थे?
उत्तर:
भारतीय संविधान की आधारभूत मान्यताएँ और निहित सिद्धांत ये थे कि इसके अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष और जनतांत्रिक राज्य होगा। इसमें बालिग मताधिकार पर आधारित संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया गया।

प्रश्न 8.
संविधान ने विषयों का बँटवारा किस प्रकार किया?
उत्तर:
संविधान सभा ने सभी विषयों को निम्नलिखित तीन सूचियों में बाँट दिया

  • केंद्रीय सूची-इस पर केंद्र सरकार कार्य कर सकती थी।
  • राज्य सूची-इसमें वे विषय थे जिन पर राज्य सरकार ने कार्य करना था।
  • समवर्ती सूची-इन विषयों पर राज्य सरकार व केंद्र सरकार दोनों कार्य कर सकती थीं।

प्रश्न 9.
राष्ट्र की भाषा पर महात्मा गाँधी जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
राष्ट्र भाषा के संबंध में गाँधी जी के विचार थे कि प्रत्येक को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें। हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भाषा भारत की राष्ट्र भाषा होनी चाहिए क्योंकि यह भारतीय जनता के बड़े हिस्से की भाषा है और परस्पर संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई है। यह एक साझी भाषा है।

प्रश्न 10.
संविधान निर्माण में पटेल की भूमिका किस प्रकार की थी?
उत्तर:
वल्लभ भाई पटेल संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में से एक थे। उन्होंने अनेक रिपोर्टों के प्रारूप लिखने तथा अनेक परस्पर विरोधी विचारों के मध्य सहमति उत्पन्न करने में सराहनीय योगदान दिया।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान में कौन-से दो मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
उत्तर:

  • स्वतन्त्रता का अधिकार,
  • समानता का अधिकार।

प्रश्न 12.
भारत के राष्ट्रीय ध्वज के क्रम से रंगों के नाम लिखो।
उत्तर:
केसरिया, सफेद, हरा।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वयस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत में संविधान के द्वारा ‘स्वतंत्र सम्प्रभु गणतंत्र’ (Independent Sovereign Republic) की स्थापना की गई थी। इस नए गणतंत्र में सत्ता का स्रोत नागरिकों को होना था। इसको कार्यरूप देने के लिए संविधान निर्माताओं ने भारत में एकमुश्त वयस्क मताधिकार प्रदान किया। संविधान निर्माताओं ने भारत के लोगों पर ऐतिहासिक विश्वास व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि विश्व के किसी भी प्रजातंत्र में वहाँ के लोगों को एक बार में ही वयस्क मताधिकार प्राप्त नहीं हुआ।

प्रश्न 2.
धर्म-निरपेक्ष राज्य का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान भारत में धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है। इसका अभिप्राय यह है कि राज्य किसी विशेष धर्म को न तो राज्य धर्म मानता है और न ही किसी विशेष धर्म को संरक्षण तथा समर्थन प्रदान करता है। इसी प्रकार राज्य किसी नागरिक के खिलाफ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर सकता। सभी भारतीयों को यह स्वतंत्रता है कि वे किसी भी धर्म को माने, अनुकरण करें अथवा उसका प्रचार-प्रसार करें, परंतु वे दूसरे के धर्म में बाधा पैदा नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
संविधान निर्माण के लिए बनाई प्रमुख समितियों के नाम लिखो।।
उत्तर:
संविधान सभा ने नए संविधान के विभिन्न पक्षों का विस्तार से परीक्षण करने के लिए अनेक समितियों की नियुक्ति की। इन समितियों में से सबसे पहले महत्त्वपूर्ण समितियाँ थीं-संघीय अधिकार समिति (Union Powers Committee), संघीय संविधान समिति (Union Constitution Committee), मौलिक अधिकार समिति (Fundamental Rights Committee), प्रांतीय अधिकार समिति (Provincial Powers Committee) तथा अल्पसंख्यकों के लिए सलाहकार समिति (The Advisory Committee to Minorities)। इन समितियों ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में काम करने के बाद अपने प्रतिवेदन (रिपोटी/सुझावों को संविधान सभा में प्रस्तुत किया।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में जनता की प्रभुता की स्थापना की गई है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान की एक विशेषता यह है कि जनता को प्रभुता का स्रोत स्वीकार किया गया है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि हम अब अंग्रेज़ी साम्राज्य के अधीन नहीं हैं अपितु प्रभुसत्ता जनता में निहित है। इस प्रस्तावना से यह स्पष्ट होता है कि संविधान की निर्माता भारतीय जनता है और जनता ही अपनी सरकार को अपने ऊपर राज्य करने के लिए सारी शक्तियाँ प्रदान करती है। इस प्रकार सत्ता का वास्तविक स्रोत जनता है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संविधान निर्माण से तत्काल पहले के वर्ष भारत में बहुत ही उथल-पुथल भरे थे। जहाँ एक ओर यह समय लोगों की महान् आशाओं को पूरा करने का था, वही यह मोहभंग का समय भी था। भारत को स्वतंत्रता तो प्राप्त हो गई थी, परन्तु इसका विभाजन भी हो गया था जिससे भारत में भयावह समस्याएँ खड़ी हो गई थीं। संविधान सभा जब अपना कार्य कर रही थी तो उसके कार्य को इन समस्याओं ने भी प्रभावित किया। फिर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि संविधान सभा की दोहरी भूमिका थी; एक ओर वह भारत का संविधान निर्माण करने में संलग्न थी, वहीं दूसरी ओर वह भारत की केंद्रीय असेम्बली के रूप में भी कार्य कर … रही थी। स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय पैदा हुई भारत की प्रमुख समस्याओं का विवरण निम्न प्रकार से है

1. विभाजन और सांप्रदायिक दंगे-विभाजन और उससे जुड़े विभिन्न पक्षों का अध्ययन हमने छठे अध्याय में किया है। यहाँ हम यह उल्लेख करना चाहेंगे कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय भारत के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या देश के विभाजन से जुड़ी थी। इसी समस्या से भारत में अनेक विकराल समस्याएँ पैदा हुईं। कांग्रेस ने विभाजन इसलिए स्वीकार कर लिया था कि इसके बाद समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी।

सांप्रदायिक दंगे समाप्त हो जाएंगे तथा देश में नवनिर्माण का दौर शुरू होगा। परन्तु जून योजना (विभाजन योजना) को स्वीकार करने के बाद अगस्त, 1947 में पंजाब में भयंकर दंगे शुरू हो गए। लूटपाट, आगजनी, जनसंहार, बलात्कार, औरतों को अगवा करना आदि भयावह दृश्य आम हो गए। पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बना रहा। ये सांप्रदायिक दंगे अगस्त 1947 से अक्तूबर 1947 तक चलते रहे।

इस महाध्वंस में लगभग 10 लाख लोग मारे गए, 50,000 महिलाएँ अगवा कर ली गईं तथा लगभग 1 करोड़ 50 लाख लोग अपने घरों से उजाड़ दिए गए। इन सांप्रदायिक दंगों को शान्त करने और हिन्दुओं-मुसलमानों में सद्भावना कायम करने के लिए महात्मा गाँधी ने अदम्य साहस दिखाया। किन्तु गाँधीजी की नीतियों से क्षुब्ध होकर नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने 30 जनवरी, 1948 को गाँधीजी की हत्या कर दी, जिसने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया।

2. विस्थापितों की समस्या-विभाजन तथा उससे जुड़ी हिंसा के परिणामस्वरूप अपनी जड़ों से उखड़े हुए (Uprooted) लोगों की भयंकर समस्या उभरकर सामने आयी। जान-माल की सुरक्षा न होने के कारण 1 करोड़ 50 लाख हिंदुओं और सिक्खों को पाकिस्तान से तथा मुसलमानों को भारत से बेहद खराब हालात में देशांतरण करना पड़ा। बहुत कम समय (3 माह) में हुआ यह देशांतरण दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा देशांतरण था।

देश की आज़ादी के तुरंत बाद इतनी बड़ी संख्या में उजड़े लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। विभाजन से उन्हें उनकी अपनी संपत्ति, मकान, खेत, कारोबार आदि से वंचित होना पड़ा था। उनके परिवार व रिश्तेदार बिछुड़ गए थे या मारे गए थे। उनका सब कुछ छिन गया था। उनमें से अधिकतर लोगों को दंगों के कारण भयंकर दौर से गुजरना पड़ा था। अतः देश की सरकार के सम्मुख इतने बड़े समुदाय के लिए राहत और पुनर्वास की समस्या सबसे बड़ी थी।

3. भारतीय रियासतों की समस्या स्वतंत्र भारत की एकता को सबसे बड़ा खतरा भारतीय देशी रियासतों की स्थिति से उत्पन्न हुआ। इन रियासतों की संख्या लगभग 554 थी। 3 जून, 1947 को भारत के वायसराय ने यह घोषणा की कि 15 अगस्त, 1947 को देशी रियासतें अपने भाग्य का निर्णय स्वयं करेंगी अर्थात् वे भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी एक अधिराज्य में शामिल होंगी या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकेंगी। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) तक सरदार पटेल और वी०पी० मेनन ने जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्यों के शासकों को भारतीय संघ में विलय के लिए सहमत तथा बाध्य कर दिया था।

काठियावाड़ में स्थित जूनागढ़ के शासक के खिलाफ़ वहाँ की प्रजा ने बगावत कर दी थी। वह जूनागढ़ छोड़कर पाकिस्तान भाग गया था। उसका जनमत के आधार पर भारतीय संघ में विलय कर लिया गया। हैदराबाद के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करनी पड़ी तथा कश्मीर की समस्या को लेकर भी भारत को पाकिस्तान से जूझना पड़ा। संविधान सभा की बैठकें इन समस्याओं की पृष्ठभूमि में हो रही थीं। भारत में जो कुछ इस समय घटित हो रहा था उससे संविधान सभा में होने वाली बहस और विचार-विमर्श भी अछूता नहीं था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान का निर्माण एक ऐसी संविधान सभा के द्वारा किया गया जिसे सीमित मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के द्वारा चुना गया था। फिर यह संविधान भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनाए गए मूल्यों तथा आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके निर्माण में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख प्रावधानों का विश्लेषण करने से इसकी निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है

1. सबसे लम्बा संविधान-भारतीय संविधान की पहली विशेषता यह है कि इसे दुनिया के अनेक संविधानों का अध्ययन करने के बाद बनाया गया है। इसके 22 भाग हैं जिनमें 395 अनुच्छेद (धाराएँ) और 12 अनुसूचियाँ हैं। यह विश्व में सबसे लम्बा और विस्तृत संविधान है। इस संविधान के इतने बड़े होने के कई कारण बताए गए हैं। भारत एक विशाल राष्ट्र था जिसकी अपनी समस्याएँ थीं जो अंग्रेज़ी राज की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के कारण पैदा हो गई थीं।

संविधान निर्माताओं ने प्रत्येक समस्या को ध्यान में रखते हुए उसके समाधान के लिए नियम बनाए। संविधान में प्रत्येक ब्यौरा स्पष्ट किया गया। संघ की प्रणाली, मूल अधिकारों तथा नीति-निदेशक तत्त्वों, राजनीतिक संस्थाओं, जनजातियों, अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों की संस्थाओं तथा आपातकालीन उपबन्धों को विस्तार से स्पष्ट करना पड़ा। इस कारण से यह संविधान भीमकाय बन गया।

2. जन प्रभुता की स्थापना-भारतीय संविधान की एक विशेषता यह है कि जनता को प्रभुता का स्रोत स्वीकार किया गया है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि हम अब अंग्रेज़ी साम्राज्य के अधीन नहीं है अपितु प्रभुसत्ता जनता में निहित है। प्रस्तावना में कहा गया है कि “हम भारत के लोग …… इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।” इस प्रस्तावना से यह स्पष्ट होता है कि संविधान की निर्माता भारतीय जनता है और जनता ही अपनी सरकार को अपने ऊपर राज्य करने के लिए सारी शक्तियाँ प्रदान करती है। इस प्रकार सत्ता का वास्तविक स्रोत जनता है। इस प्रकार संविधान में सही रूप में जनतन्त्र की स्थापना की गई है।

3. भारतीय संघ की स्थापना-भारतीय संविधान के भाग (i) में अनुच्छेद 1 से 4 द्वारा भारतीय संघ की स्थापना की गई है। इसमें साफ लिखा है कि इण्डिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ (Union of States) होगा। संविधान में इसके लिए शक्तियों का बँटवारा केन्द्र तथा राज्यों में किया गया है। संघीय संविधान समिति की रिपोर्ट में विभाजन के बाद हुए भारतीय राजनीतिक परिवर्तन को देखते हुए संघीय व्यवस्था में मजबूत केन्द्रीय शासन का प्रस्ताव रखा। देशी रियासतों ने संघीय व्यवस्था की स्थापना में काफी कठिनाई पैदा की। परन्तु देशी रियासतों के एकीकरण (Integration) के साथ इन देशी रियासतों को भारतीय संघ में भाग 2 और भाग 3 के राज्यों के रूप में विलय कर लिया गया।

4. संसदीय शासन-व्यवस्था (Parliamentry System of Government)-भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया गया। संविधान के भाग 5 में संघीय सरकार के ढाँचे का वृत्तान्त दिया गया तथा भाग 6 में राज्यों में सरकार के गठन की प्रक्रिया का वर्णन है। इन व्यवस्थाओं के अनुसार केन्द्र तथा प्रान्तों में संसदीय शासन प्रणाली को स्वीकार किया गया। संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति की व्यवस्था की गई है जिसका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की अप्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा पाँच साल के लिए किया जाता है। केन्द्र में राष्ट्रपति सवैधानिक मुखिया मात्र है।

वास्तविक कार्यपालिका की शक्ति प्रधानमंत्री तथा मन्त्रिमण्डल में निहित है। मन्त्रिमण्डल को संसद के निम्न सदन के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। इसी प्रकार राज्य में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त गवर्नर नाममात्र का मुखिया होता है। वास्तविक शक्ति मुख्यमन्त्री और उसकी मंत्रि-परिषद् में होती है। केन्द्र में प्रधानमन्त्री तथा राज्य में मुख्यमन्त्री सदन में बहुमत वाले दल का नेता होता है। प्रधानमन्त्री या मुख्यमन्त्री तभी तक अपने पद पर बने रह सकते हैं जब तक उन्हें सदन का विश्वास प्राप्त हो। इस प्रकार कार्यपालिका पर भी जनता द्वारा चुनी हुई लोकसभा अथवा विधानसभा का नियन्त्रण होता है, क्योंकि कार्यपालिका इन चुने हुए सदनों के प्रति उत्तरदायी होती है।

5. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)-राष्ट्रीय संविधान सभा ने मूल अधिकारों के परीक्षण तथा सुझाव प्रस्तुत करने के लिए एक अलग से मूलाधिकार समिति (Fundamental Rights Committee) बनाई। संविधान सभा ने काफी विचार-विमर्श के बाद नागरिकों के मूल अधिकारों तथा उनकी रक्षा की भी व्यवस्था की। संविधान के भाग तीन (अनुच्छेद 12-35) में नागरिकों के मूल अधिकारों का वर्णन किया गया है। मौलिक अधिकारों को छः वर्गों में बाँटा गया है

  • समता का अधिकार (Right to Equality) (अनुच्छेद 14-18)
  • स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom) (अनुच्छेद 19)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) (अनुच्छेद 23-24)
  • धर्म स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) (अनुच्छेद 25-28)
  • संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights) (अनुच्छेद 29-30)
  • सम्पत्ति का अधिकार (Right to Prosperity)

संविधान में मूल अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) भी प्रदान किया गया है। इस अधिकार के अनुसार कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। न्यायालय व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करने में सक्षम है, परन्तु संसद तथा सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे आपातकाल में इन अधिकारों को निलम्बित तथा सीमित कर सकती है।

6. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State)-संविधान में राज्य नीति के निदेशक तत्त्वों का विवरण दिया गया है। यद्यपि ये सिद्धान्त किसी न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाए जा सकते हैं, परन्तु फिर भी इन निदेशक तत्त्वों को देश के प्रशासन के लिए बहुत आवश्यक माना गया है। यह अपेक्षा की जाती है कि सभी विधानमण्डलों के लिए जरूरी है कि वे कानून बनाते समय इन सिद्धान्तों को सम्मुख रखेंगे। संविधान के नीति निदेशक तत्त्वों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है

(i) वे तत्त्व जिनका उद्देश्य नए समाज की रचना के लिए कल्याणकारी राज्य को बढ़ावा देना था।

(ii) वे तत्त्व जिनका उद्देश्य गाँधी जी के सिद्धान्तों को प्रोत्साहन देना; जैसे ग्राम पंचायतों का गठन, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़ों के आर्थिक हितों की रक्षा तथा सुधार, मादक द्रव्यों पर नियन्त्रण आदि है।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को प्रोत्साहन देने वाले तत्त्व जिनमें कहा गया कि राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को प्रोत्साहन दे, राष्ट्रों के बीच न्यायोचित तथा सम्मानजनक व्यवहार बनाए रखे, अन्तर्राष्ट्रीय कानून और सन्धियों को स्वीकार करे तथा झगड़ों को बातचीत से सुलझाने के प्रयत्न करे।

7. स्वतन्त्र न्यायपालिका (Independent Judiciary) भारतीय संविधान निर्माताओं ने देश में एक स्वतन्त्र न्यायपालिका तथा अन्य स्वतन्त्र संस्थाओं की स्थापना की जिन पर कार्यपालिका का कम-से-कम हस्तक्षेप था। संविधान में संघीय न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के गठन, शक्तियों आदि का वर्णन दिया गया है। न्यायाधीशों की योग्यता, नियुक्ति का ढंग तथा वेतन संविधान में ही तय कर दिए गए ताकि वे सरकार या पार्लियामेन्ट के अनुचित दबाव से बच सकें। न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखने की कोशिश की गई है। सारे देश में एक जैसे दीवानी और फौजदारी कानून भी स्थापित किए गए हैं।

8. संकटकालीन उपबन्धों का समावेश (Inclusion of Emergency Provisions)-भारतीय संविधान में देश में आपात्कालीन ते की शक्तियों का उल्लेख किया गया है। संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थिति के उपबन्धों का समावेश किया गया है-आपात्काल की घोषणा, संवैधानिक व्यवस्था ठप्प होने सम्बन्धी घोषणा तथा वित्तीय आपात् की घोषणा। संवैधानिक व्यवस्था ठप्प होने सम्बन्धी घोषणा अधिकतर राज्य सरकारों से संबंधित है। इसमें राज्य के गवर्नर द्वारा राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लागू करने की बात कही गई है, परन्तु साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति आपात् स्थिति संबंधी उद्घोषणा को यथाशीघ्र संसद से अनुमोदित करवाएगा।

9. कठोरता तथा लचीलेपन का मिश्रण (Blend of Rigidity and Flexibility)-भारतीय संविधान कठोरता तथा लचीलेपन का एक अपूर्व मिश्रण लिए हुए है। यह न तो इंग्लैण्ड के संविधान के समान लचीला है और न ही उतना कठोर है जितना अमेरिका का संविधान। संविधान निर्माता संविधान को इतना कठोर भी नहीं बनाना चाहते थे कि आवश्यकता पड़ने पर इसे बदला ही नहीं जा सके और न ही इतना लचीला बनाना चाहते थे कि सत्ताधारी दल इसे खिलौना समझकर अपने हितों की सिद्धि के लिए बार-बार इसमें परिवर्तन करता रहे। हमारे संविधान की बहुत-सी धाराएँ ऐसी हैं जिन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता।

इनके संशोधन के लिए न केवल संसद के बहुमत का होना आवश्यक है अपितु उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों को दो-तिहाई संशोधन के पक्ष में होना जरूरी है तथा राज्य विधानसभाओं की कम-से-कम आधी संख्या उसे अनुमोदित करे। परन्तु साथ ही संविधान इतना भी कठोर नहीं है कि इसमें संशोधन ही न किया जा सके। उदाहरण के लिए इसमें कई धाराएँ ऐसी हैं जिन्हें साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।

10. वयस्क मताधिकार-भारत में संविधान के द्वारा ‘स्वतंत्र सम्प्रभु गणतंत्र’ (Independent Sovereign Republic) की स्थापना की गई थी। इस नए गणतंत्र में सत्ता का स्रोत नागरिकों को होना था। इसको कार्यरूप देने के लिए संविधान निर्माताओं मताधिकार प्रदान किया। इस पर संविधान सभा में काफी हद तक सहमति थी। संविधान निर्माताओं ने भारत के लोगों पर ऐतिहासिक विश्वास व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि विश्व के किसी भी प्रजातंत्र में वहाँ के लोगों को एक बार में ही वयस्क मताधिकार प्राप्त नहीं हुआ। ब्रिटेन व अमेरिका जैसे देशों में भी प्रारंभ से मताधिकार के लिए संपत्ति अधिकार की शर्ते आयद थीं।

11. धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना (Foundation of Secular State) भारतीय संविधान भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है। इसका अभिप्राय यह है कि राज्य किसी विशेष धर्म को न तो राज्य धर्म मानता है और न ही किसी विशेष धर्म को संरक्षण तथा समर्थन प्रदान करता है। इसी प्रकार राज्य किसी नागरिक के खिलाफ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर सकता। सभी भारतीयों को यह स्वतन्त्रता है कि वे किसी भी धर्म को माने, अनुकरण करें अथवा उसका प्रचार-प्रसार करें, परन्तु . वे दूसरे के धर्म में बाधा पैदा नहीं कर सकते। संविधान में सभी को समान स्वतन्त्रता और समान अवसर प्राप्त हैं। किसी भी धर्म का व्यक्ति भारत के बड़े-से-बड़े पद पर आसीन हो सकता है।

परन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि राज्य नास्तिक है या धर्म-विरोधी है, अपितु वह धर्म के विषय में धर्म-निरपेक्ष है। धर्म निरपेक्षता का अर्थ केवल धार्मिक सहनशीलता ही है। वेंकटारमन के अनुसार, “भारतीय राज्य न तो धार्मिक है न अधार्मिक है और न ही धर्म विरोधी, किन्तु यह धार्मिक संकीर्णताओं तथा वृत्तियों से बिल्कुल दूर है और धार्मिक मामलों में तटस्थ है।”

HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत Read More »