Class 9

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

HBSE 9th Class Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

यमराज की दिशा प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?
उत्तर-
कवि की माँ ने उसे बचपन में ही उपदेश दिया था कि दक्षिण दिशा में कभी पैर करके नहीं सोना चाहिए, इससे यमराज क्रुद्ध हो जाता है। कवि इसी भय के कारण सदा ही दक्षिण दिशा का ध्यान रखता था। यही कारण है कि कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

Yamraj Ki Disha Question Answer HBSE 9th Class प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था?
उत्तर-
वस्तुतः कवि ने बड़ा होने पर दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्राएँ की थीं, किंतु दक्षिण दिशा बहुत दूर तक फैली हुई है। कोई दक्षिण दिशा में कहाँ तक जा सकता है। इसलिए कवि ने ऐसा कहा है। इसके अतिरिक्त आज हर दिशा दक्षिण दिशा है अर्थात सब ओर यमराज के समान भयभीत कर देने वाले लोग भरे पड़े हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

HBSE 9th Class यमराज की दिशा Chapter 16 प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
उत्तर-
कवि की माँ ने बचपन में कवि को समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उधर पैर करके सोना यमराज को क्रुद्रध करना है। ऐसा करना कोई बुद्धिमत्ता का काम नहीं है। आज के युग में हर तरफ यमराज की भाँति ही मानवता को हानि पहुँचाने वाले शोषक लोग विद्यमान हैं। वे बड़ी निर्दयता से मानवता को नष्ट कर रहे हैं। इसीलिए कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है, जहाँ एक नहीं अनेकानेक यमराज विद्यमान हैं।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं और वे सभी में एक साथ अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर कवि ने इन काव्य-पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि हर स्थान पर हर दिशा में यमराज की भाँति शोषक, निर्दयी एवं मानवता-विरोधी लोगों के सुंदर भवन विद्यमान हैं। बड़े-बड़े शोषक लोग अत्यंत सुंदर भवनों में रहते हैं। वे सभी अपनी क्रोध से चमकती हुई आँखों सहित समाज में विराजमान हैं। कहने का भाव है कि आज के युग में शोषकों की कमी नहीं है। वे यमराज की भाँति ही सर्वत्र शोषण का डंका बजा रहे हैं। उन पर किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-निर्देश देती है। आपकी माँ भी समय-समय पर आपको सीख देती होंगी
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं?
(ख) क्या उसकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं?
उत्तर-
(क) हाँ, हमारी माँ भी हमें कवि की माँ की भाँति ही ईश्वर से प्रेरणा पाकर कुछ मार्ग-निर्देश देती है। वह हमें सीख देती है कि सदा लगन से अपनी पढ़ाई करो, उसी से ईश्वर प्रसन्न होकर हमें अच्छे अंक प्रदान करेगा। माँ की यह बात हमें बहुत अच्छी लगती है।
(ख) माँ की कुछ बातें हमें अच्छी नहीं लगतीं; जैसे-माँ हमें खेलने से मना करती है। बार-बार उपदेश देती रहती है। इसलिए हमें कभी-कभी माँ के उपदेश अच्छे नहीं लगते। हम स्वभावतः स्वतंत्रता चाहते हैं, जबकि माँ को अनुशासन अच्छा लगता है। हमें हर समय उसकी अनुशासन में रहने की बात अच्छी नहीं लगती।

प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर-
ऐसा हम इसलिए करते हैं कि हम सब ईश्वर में विश्वास रखते हैं। ईश्वर को सर्व-शक्तिमान और सब कुछ करने में सक्षम मानते हैं। यदि हम अच्छा काम करते हैं तो भी उसके लिए ईश्वर को ही कारण मानते हैं और जब कभी अनुचित निर्णय ले लेते हैं तो हम यह कहते हैं कि हमारी अच्छाई और बुराई सब कुछ ईश्वर देख रहा है। इसलिए उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

पाठेतर सक्रियता

कवि का मानना है कि आज शोषणकारी ताकतें अधिकं हावी हो रही हैं। ‘आज की शोषणकारी शक्तियाँ’ विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता श्री चंद्रकांत देवताले की सुप्रसिद्ध रचना है जिसमें आधुनिक सभ्यता के दोषपूर्ण विकास को उजागर किया गया है। कवि का मत है कि आज केवल दक्षिण दिशा वाले यमराज का समाज को भय नहीं है, अपितु समाज में चारों ओर जीवन-विरोधी शक्तियों का विकास हो रहा है। जीवन के जिस दुःख-दर्द के बीच जीती हुई माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोने पर यमराज क्रुद्ध हो उठेगा, अब वह केवल दक्षिण दिशा में ही नहीं अपितु सर्वव्यापक है। आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा प्रतीत होने लगी है। आज चारों ओर फैली हुई विध्वंसक शक्तियों, हिंसात्मक प्रवृत्तियों, शोषण की रक्षक ताकतों और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि ने उनका सामना करने तथा उनसे संघर्ष करने का मौन निमंत्रण दिया है। प्रस्तुत कविता में उन सब ताकतों एवं संगठनों का विरोध करने का आह्वान है जो मानवता विरोधी हैं या मानवता के विकास में बाधा बनी हुई हैं। यही भाव व्यक्त करना प्रस्तुत कविता का प्रमुख लक्ष्य है।

प्रश्न 2.
पठित कविता के आधार पर श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य की भाषा का सार रूप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अत्यंत सरल एवं सपाट भाषा का प्रयोग किया है। प्रस्तुत कविता की भाषा सरल होते हुए भाव-अभिव्यंजना की गजब की क्षमता रखती है। श्री देवताले ने अपने काव्य की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी के शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है, किन्तु उन्होंने उन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जो लोक-प्रचलित हैं यथा मुश्किल, ज़रूरत, दुनिया आलीशान, इमारत आदि। कविवर देवताले अपनी बात को ढंग से कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और अत्यंत कम संगीतात्मकता है। भाषा गद्यमय होती हुई भी प्रवाहयुक्त है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग करके उन्होंने अपने काव्य की भाषा को सारगर्भित भी बनाया है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी उनका काव्य सफल सिद्ध है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) राजेश जोशी
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) चंद्रकांत देवताले
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर-
(C) चंद्रकांत देवताले

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प्रश्न 2.
कवि की माँ की किससे मुलाकात हुई थी?
(A) प्रधानमंत्री से
(B) ईश्वर से
(C) यमराज से
(D) विष्णु से
उत्तर-
(B) ईश्वर से

प्रश्न 3.
कवि की माँ कौन-से रास्ते खोज लेती थी?
(A) जीवन के विकास के
(B) धन प्राप्ति के
(C) दुख बरदाश्त करने के
(D) स्वर्ग जाने के
उत्तर-
(C) दुख बरदाश्त करने के

प्रश्न 4.
‘यमराज की दिशा’ कौन-सी मानी जाती है?
(A) उत्तर
(B) पूर्व
(C) पश्चिम
(D) दक्षिण
उत्तर-
(D) दक्षिण

प्रश्न 5.
कवि की माँ ने दक्षिण दिशा को कौन-सी दिशा बताया था?
(A) मौत की दिशा
(B) पवित्र दिशा
(C) अपवित्र दिशा
(D) भाग्यशाली दिशा
उत्तर-
(A) मौत की दिशा

प्रश्न 6.
कवि की माँ के अनुसार कौन-सी बात उचित नहीं है?
(A) यमराज का भेद जानना
(B) यमराज को क्रुद्ध करना
(C) यमराज के सामने जाना
(D) यमराज से आँखें चुराना
उत्तर-
(B) यमराज को क्रुद्ध करना

प्रश्न 7.
कवि ने बचपन में माँ से किसके घर का पता पूछा था?
(A) कुबेर के
(B) रावण के
(C) यमराज के
(D) इंद्र देवता के
उत्तर-
(C) यमराज के

प्रश्न 8.
कवि को दक्षिण दिशा में पैर न करके सोने से क्या लाभ हुआ?
(A) दक्षिण पहचान गया
(B) सपने नहीं आते थे
(C) गहरी नींद आती थी
(D) जल्दी उठ जाता था
उत्तर-
(A) दक्षिण पहचान गया

प्रश्न 9.
कवि के लिए क्या संभव नहीं था?
(A) दक्षिण दिशा को पहचानना
(B) दक्षिण दिशा को लांघना
(C) दक्षिण दिशा में सोना
(D) दक्षिण दिशा को त्याग देना
उत्तर-
(B) दक्षिण दिशा को लांघना

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प्रश्न 10.
आज सभी दिशाओं में किसके आलीशान महल हैं?
(A) देवताओं के
(B) भक्तों के
(C) ईश्वर के
(D) यमराज के
उत्तर-
(D) यमराज के

प्रश्न 11.
यमराज हर तरफ किस दशा में विराजते हैं?
(A) प्रसन्न मुद्रा में
(B) दहकती आँखों सहित
(C) त्यागमय स्थिति में
(D) दानशील स्वभाव में
उत्तर-
(B) दहकती आँखों सहित

प्रश्न 12.
कवि ने बदली हई परिस्थितियों में किसे यमराज बताया है?
(A) उद्योगपतियों को
(B) अधिकारी वर्ग को
(C) शोषकों को
(D) डॉक्टरों को
उत्तर-
(C) शोषकों को

प्रश्न 13.
‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता में किसे दूर करने का प्रयास किया है?
(A) समाज में फैले अंधविश्वास
(B) भक्तों के
(C) अन्याय
(D) आलस्य
उत्तर-
(A) समाज में फैले अंधविश्वास

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यमराज की दिशा अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर ।

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाशत करने के
रास्ते खोज लेती है [पृष्ठ 133]

शब्दार्थ-मुलाकात = मिलना, बातचीत । मुश्किल = कठिन। जताती = प्रकट करती। बरदाशत = सहन।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट करें।
(4) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि की माँ की किससे मुलाकात होती थी?
(6) कवि की माँ ईश्वर की सलाहों के अनुसार क्या खोज लेती थी?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि बचपन से वह माँ से यही सुनता आया था कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी। कवि का मानना है कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी या नहीं यह कहना बड़ा मुश्किल है, किंतु वह सदा यही दिखावा करती थी कि उसकी मुलाकात ईश्वर से होती रहती है। ईश्वर से प्राप्त सलाहों से ही वह जीवन में आने वाले दुःखों और जीवन जीने के मार्ग खोज लेती है।

भावार्थ-इन पंक्तियों में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश अत्यंत सरल एवं व्यावहारिक भाषा में रचित है।
(ख) कवि ने माँ के माध्यम से जीवन के प्रति आस्थावादी भाव को अभिव्यंजित किया है।
(ग) मुलाकात, मुश्किल, जताना, सलाह, जिंदगी, बरदाशत आदि उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
(घ) भाषा गद्यमय होती हुई भी प्रवाहयुक्त एवं लयमयी है।
(ङ) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बचपन में माँ से सुनी हुई बातों के माध्यम से जीवन-संबंधी दृष्टिकोण को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यंजित किया है। कवि की माँ की ईश्वर से मुलाकात होने की बात पर कवि को संदेह है, किंतु एक बात निश्चित रूप से सत्य है कि वह ईश्वर की सलाह मानकर या उसमें भरोसा करके जीवन में आने वाले दुःखों को सहन करने और जीवन जीने के सही मार्ग को अवश्य ही तलाश लेती थी। पुराने समय में जीवन सरल, सहज एवं स्वाभाविक था, किंतु आज नहीं।

(5) कविं की माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी।

(6) ईश्वर की सलाहों के अनुसार कवि की माँ जीवन में आने वाले दुःखों को सहन करने और जीवन जीने के मार्ग को खोज लेती थी।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

2. माँ ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में [पृष्ठ 133]

शब्दार्थ-तरफ = ओर। क्रुद्ध = क्रोधित, गुस्सा। हमेशा = सदैव।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) माँ ने कवि को दक्षिण में पैर पसार कर सोने से मना क्यों किया था?
(6) कवि की माँ ने उसे यमराज के घर का क्या पता बताया था?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने यमराज के संबंध में फैले अंधविश्वास पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि उसकी माँ ने उसे दक्षिण की ओर पैर न करके सोने का उपदेश दिया था। उनका विश्वास था कि वह मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोकर मृत्यु के देवता यमराज को नाराज करने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। उससे यमराज को गुस्सा आ जाता है। उस समय कवि बहुत छोटा था, जब उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था। उसकी माँ ने केवल इतना ही बताया था कि हम जहाँ भी हों, वहाँ से दक्षिण दिशा में ही यमराज का घर होता है।
भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज में फैले अंधविश्वासों पर करारी चोट की है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश सरल एवं सहज भाषा में रचित है।
(ख) कवि ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों पर करारी चोट की है।
(ग) भाषा गद्यमय होते हुए भी लयात्मक एवं प्रवाहमयी है।
(घ) संवाद शैली का प्रयोग किया गया है।
(ङ) संकेतात्मकता भाषा-शैली की अन्य प्रमुख विशेषता है।
(च) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने मृत्यु के देवता यमराज से संबंधित लोकमानस में व्याप्त अंधविश्वास का उल्लेख किया है। कवि ने अत्यंत गंभीर भावों को अत्यंत सरल एवं सहज रूप में कह दिया है। दक्षिण की ओर पैर करके सोना मृत्यु के देवता को नाराज करने के समान है। यमराज का घर दक्षिण में बताकर कवि ने दक्षिण दिशा को और भी भयानक एवं निकृष्ट सिद्ध कर दिया है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कवितांश में जीवन की समस्या से संबंधित गंभीर भावों को सहज रूप में अभिव्यंजित किया गया है।

(5) कवि की माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने से मना किया था, क्योंकि वह दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है।

(6) कवि के पूछने पर उसकी माँ ने यमराज के घर का पता पूरी दक्षिण दिशा बताया था। दक्षिण दिशा ही यमराज के घर का पता है।

3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता [पृष्ठ 134]

शब्दार्थ-समझाइश = समझने। फायदा = लाभ। छोर = किनारा।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत कवितांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि को माँ के समझाने का क्या लाभ हुआ?
(6) कवि यमराज का घर क्यों नहीं देख सका?
उत्तर-
(1) कवि-श्री चंद्रकांत देवताले।। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कविवर देवताले ने माँ के उपदेश के प्रभाव का वर्णन करते हुए बताया कि माँ के समझाने के पश्चात वह कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोया। इससे वह यमराज के कोप से बचा या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु एक लाभ अवश्य उसे हुआ कि दक्षिण दिशा पहचानने में उसे कहीं भी, कभी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा अर्थात वह सहज ही दक्षिण दिशा को पहचान लेता है।
कवि ने पुनः अपने जीवन के विषय में बताया है कि उसने अपने जीवन में दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्राएँ की हैं। वहाँ उसे सदा अपनी माँ की याद आती रही। कवि के लिए दक्षिण दिशा को पार करके जाना संभव नहीं था, क्योंकि उसका कोई किनारा ही नहीं था। यदि दक्षिण दिशा को लाँघ पाना संभव होता तो कवि अवश्य ही यमराज का घर भी देख लेता, किंतु कवि ऐसा कभी नहीं कर पाया।
भावार्थ-इन पंक्तियों में कवि ने इस अंधविश्वास का खंडन किया है कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में होता है। .

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने लोकमानस में व्याप्त अंधविश्वास पर करारी चोट की है कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में होता है। यह कोरा भ्रम है।
(ख) भाषा व्यंग्य के तेवर लेकर चलने वाली है।
(ग) भाषा गद्यमय होती हुई भी लययुक्त है।
(घ) फायदा, ज़रूर, मुश्किल आदि उर्दू-फारसी के लोक-प्रचलित शब्दों का सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ङ) ‘दक्षिण दिशा’, ‘लाँघ लेना’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(च) संपूर्ण वर्णन अत्यंत पारदर्शितायुक्त भाषा में किया गया है।
(छ) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) कवि ने अत्यंत सरल भाषा में गंभीर विचारों एवं भावों को अभिव्यंजित किया है। लोकमानस में यह अंधविश्वास व्याप्त रहा है कि यमराज दक्षिण दिशा में रहता है। इसलिए उसके प्रकोप से बचने के लिए उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। कवि ने ऐसा ही किया और सदा इस बात के लिए सतर्क भी रहा। इससे कवि को दक्षिण दिशा का ज्ञान अवश्य हआ। कवि ने अनेक बार दक्षिण दिशा में यात्राएँ की, किंतु कहीं भी उस दिशा का अंत दिखाई नहीं दिया। इसलिए कवि को यमराज का घर भी नहीं मिल सका। अतः कवि ने इस धारणा को जड़ से उखाड़ फेंका है कि यमराज का घर केवल दक्षिण दिशा में ही है। अतः गंभीर भाव को सहज रूप में कह देना कवि की कला का कमाल है।

(5) कवि को माँ के समझाने का यह लाभ हुआ कि उसको दक्षिण दिशा का अच्छा ज्ञान हो गया। उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई।

(6) कवि’को माँ ने बताया कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में है। दक्षिण दिशा का कोई ओर-छोर नहीं है। इसलिए कवि को यमराज के घर का पता नहीं चल सका और वह उसे देखने में असमर्थ रहा। वास्तव में, यह एक भ्रम था, जिसे कवि ने उदाहरण देकर दूर करने का प्रयास किया है।

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4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी। [पृष्ठ 134]

शब्दार्थ-आलीशान = खूबसूरत, सुंदर। दहकती = गुस्से से चमकती हुई। विराजना = विद्यमान होना, पधारना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) “आज जिधर भी पैर करके सोओ वही दक्षिण दिशा हो जाती है”-कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(6) कवि ने किन्हें यमराज कहा है और क्यों?
उत्तर-
(1) कवि श्री चंद्रकांत देवताले। कविता-यमराज की दिशा।

(2) व्याख्या कवि ने बताया है कि उसकी माँ का कहना था कि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके नहीं सोना चाहिए। किंतु कवि का तर्क है कि आज के युग में जिस भी दिशा की ओर पैर करके सोएँ, वही दक्षिण दिशा हो जाती है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे चारों ओर यमराज ही यमराज हैं। सभी दिशाओं में यमराज के सुंदर भवन हैं अर्थात चारों ओर यमराज की भाँति ही लोगों को मारने वाले शोषक लोग विद्यमान हैं, जो सुंदर महलों में रहते हैं। वे सबके सब अपनी दहकती (क्रोध से जलती हुई) हुई आँखों सहित विराजमान हैं।
कवि ने पुनः कहा है कि आज वह माँ नहीं रही, जो यमराज के विषय में, उसकी दिशा के विषय में बताती थी। यमराज की दिशा भी वह नहीं रही, जो माँ जानती थी अर्थात यमराज केवल दक्षिण में ही नहीं रहता, वह सर्वत्र रहता है।

भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में आज की सभ्यता की दोषपूर्ण स्थिति का उल्लेख किया गया है।

(3) (क) संपूर्ण पद में आज की सभ्यता के विकास की दोषपूर्ण स्थिति को यथार्थ रूप में उजागर किया गया है।
(ख) भाषा व्यंग्यपूर्ण है।
(ग) भाषा भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
(घ) ‘यमराज’ में श्लेष अलंकार है।
(ङ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सरल एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों की सहज एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति की है। ‘आज सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं’ पंक्ति में आज के समाज व सभ्यता की वस्तुस्थिति को उजागर किया गया है। आज के युग में एक नहीं, अनेक यमराज हैं जो अपनी शोषणपूर्ण नीतियों द्वारा गरीब या साधारण व्यक्ति के जीवन का तत्त्व चूस रहे हैं। यमराज तो शायद व्यक्ति के गुण-अवगुणों को देखकर ही सजा सुनाता होगा। यहाँ तो बिना किसी भेदभाव के शोषण किया जाता है। दया-धर्म का कोई खाना नहीं है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि आज चारों दिशाएँ दक्षिण दिशा ही प्रतीत होती हैं। इस प्रकार प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने आज के युग की ज्वलंत समस्या से संबंधित गंभीर विचार व्यक्त किए हैं।

(5) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि पहले दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने में यमराज का खतरा मंडराने लगता था, किंतु आज तो व्यक्ति को हर दिशा से खतरा उत्पन्न हो सकता है। उसे हर दिशा यमराज की दक्षिण दिशा के समान भयंकर एवं भयभीत करने वाली अनुभव होती है।

(6) कवि ने समाज के शोषकों को यमराज कहा है, क्योंकि शोषक लोग गरीबों व जनसाधारण का निर्दयतापूर्वक शोषण करते हैं। उनके शोषण के कारण लोग तिल-तिलकर मरने के लिए विवश हैं।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

यमराज की दिशा कवि-परिचय

प्रश्न-
चंद्रकांत देवताले का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा चंद्रकांत देवताले का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री चंद्रकांत देवताले हिंदी के प्रमुख कवि हैं। इन्हें साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। इनका जन्म मध्य प्रदेश के जिला बैतूल के गाँव जौलखेड़ा में सन 1936 को हुआ था। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। श्री देवताले प्रतिभाशाली विद्यार्थी रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की तथा पी०एच०डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय, सागर से प्राप्त की। शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात इन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। श्री देवताले अध्यापन के साथ-साथ साहित्य-लेखन की साधना में निरंतर लीन रहते हैं। इन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी सफलतापूर्वक चलाई है, किंतु प्रसिद्धि इन्हें कवि के रूप में ही प्राप्त हुई है।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘हड्डियों में छिपा ज्वर’, ‘दीवारों पर खून से’, ‘लकड़बग्घा हँस रहा है’, ‘भूखंड तप रहा है’, ‘पत्थर की बैंच’, ‘इतनी पत्थर रोशनी’, ‘उजाड़ में संग्रहालय’ आदि श्री देवताले की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं और प्रायः कई विदेशी भाषाओं में भी हो चुके हैं। श्री देवताले को इनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है। इन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार तथा मध्य प्रदेश का शिखर पुरस्कार प्राप्त है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

3. काव्यगत विशेषताएँ-कविवर चंद्रकांत देवताले जन-साधारण के जीवन की जमीन से जुड़े हुए कवि हैं। इनकी कविताओं के विषय गाँवों व कस्बों में रहने वाले निम्न मध्यवर्ग के जीवन से संबंधित हैं। इन्होंने इस वर्ग के लोगों के जीवन को अत्यंत निकट से देखा है और इसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ-साथ उसके अभावों को भी अपनी कविताओं के माध्यम से उजागर किया है।
श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य में जहाँ समाज की व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ रोष है, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी है। वे समाज में व्याप्त बुराइयों को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़संकल्प हैं और समाज का समुचित विकास चाहते हैं। मानव-मानव में प्रेम के संबंधों को बढ़ावा देना इनके काव्य का प्रमुख लक्ष्य रहा है।

4. भाषा-शैली-श्री चंद्रकांत देवताले के काव्य की भाषा-शैली सरल, सीधी और सपाट है। इनके कथन में कहीं कोई दिखावा व बनावट नहीं है। कविता की भाषा में पारदर्शिता एक अन्य प्रमुख विशेषता है। गद्यात्मक होते हुए विशेष लय में बँधकर चलने वाली भाषा है। इनकी भाषा में एक विरल संगीतात्मकता भी दिखलाई पड़ती है। इन्होंने लोकप्रचलित मुहावरों का भी सार्थक प्रयोग किया है। लोकभाषा के शब्दों के साथ-साथ विदेशज शब्दों का भी विषयानुरूप प्रयोग करके भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करने की कला में श्री देवताले बेजोड़ कवि हैं।

यमराज की दिशा कविता का सार/काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘यमराज की दिशा’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘यमराज की दिशा’ श्री चंद्रकांत देवताले की प्रमुख रचना है। कवि ने प्रस्तुत कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए बताया है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों ओर फैलती जा रही हैं। कवि ने बताया है कि बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण की ओर पैर करके सोने को अपशकुन बताया था। वह बताती रहती थी कि ईश्वर से उसकी मुलाकात होती रहती है। उसकी सलाह से ही वह जीवन जीने और दुःख सहन करने के मार्ग खोज लेती है। इसीलिए उसने यह बताया था कि दक्षिण दिशा मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोना यमराज को क्रुद्ध करना है। माँ ने पूछने पर यमराज के घर का पता भी बताया था कि तुम जहाँ भी हो वहाँ से दक्षिण की ओर यमराज का घर है। बचपन में माँ के उपदेश का कवि पर प्रभाव अवश्य पड़ा। वह कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया तथा दक्षिण दिशा में खूब घूमा, किंतु उसका कोई छोर नहीं था, अन्यथा वह यमराज जी का घर भी देख लेता। किंतु आज के जीवन में जिधर भी पैर करके सोओ वह दक्षिण दिशा ही हो जाती है, क्योंकि सभी दिशाओं में यमराज के बड़े-बड़े महल हैं। वहाँ वे एक साथ अपनी दहकती आँखों सहित विद्यमान हैं। कवि की माँ अब नहीं रही और न ही यमराज के निवास की निश्चित दिशा ही रही। अब हर दिशा यमराज की दिशा हो गई है। आज हमें उनका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

HBSE 9th Class Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

ग्राम श्री कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर-
कवि ने गाँव को हरता जन मन अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के मन को आकृष्ट करने वाला कहा है, क्योंकि गाँव की प्राकृतिक छटा अत्यधिक मनमोहक है। वह मरकत के खुले डिब्बे के समान सुंदर है। उस पर नीले आकाश के आच्छादित होने से उसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। वहाँ का वातावरण अत्यंत शांत एवं स्निग्ध है।

ग्राम श्री की व्याख्या HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में बसंत के मौसम का वर्णन है। आम के वृक्षों पर बौर आना, कोयल का कूकना और चारों ओर फूलों का खिलना सिद्ध करता है कि यह शरद् ऋतु का अंत और बसंत का आगमन है।

Gram Shree Class 9 Question Answer HBSE Hindi प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर-
वस्तुतः ‘मरकत’ एक प्रकार का चमकदार रत्न है। अतः स्पष्ट है कि इस रत्न से निर्मित डिब्बा भी अत्यंत सुंदर होता है। कवि की दृष्टि में बसंत की धूप में गाँव भी वैसा ही सुंदर दिखाई दे रहा था। इसीलिए कवि ने उसे ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ कहा है।

ग्राम श्री कविता के प्रश्न उत्तर Class 4 HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ? उत्तर-अरहर और सनई के खेत कवि को सोने की किंकिणियों के समान सुंदर दिखाई देते हैं।
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गंगा के तट पर फैली प्राकृतिक सुषमा का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। गंगा के तट पर फैली हुई रेत में चमकते कणों के कारण ही कवि ने उसे सतरंगी रेत कहा है। इसी प्रकार रेत पर हवा या पानी के बहाव के कारण बनी लहरों को साँप से अंकित कहा है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल में फैली हुई हरियाली की सुंदरता का उल्लेख किया है। कवि को वहाँ की – हरियाली हँसती हुई सी लगती है और सर्दी की धूप में सुख का अनुभव करती हुई वह अलसाई हुई भी प्रतीत होती है। कहने का भाव है कि कवि ने हरियाली का मानवीकरण करके उसके सौंदर्य को अत्यंत आकर्षक रूप से प्रस्तुत किया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

ग्राम श्री प्रश्न उत्तर Class 4 HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ? तिनकों के हरे हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक।
उत्तर-
(i) ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है,
(ii) ‘हिल हरित’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है,
(iii) ‘हरित रुधिर’ में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

Gram Shree Class 9 Vyakhya HBSE Hindi प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के उत्तरी भू-भाग में स्थित है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी ? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन अत्यंत सजीव एवं आत्मीयतापूर्ण भावों में किया है। कवि के द्वारा व्यक्त भाव उनके हृदय की सच्ची अनुभूति हैं। उन्होंने इन भावों को सरल, सहज एवं प्रवाहमयी शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा में व्यक्त किया है। कवि ने इस कविता में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग करके उसे अलंकृत भी बनाया है। भाषा भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर-
नोट-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। इसलिए विद्यार्थी इसे अपनी कक्षा की अध्यापिका/अध्यापक की सहायता से स्वयं लिखेंगे।

पाठेतर सक्रियता

सुमित्रानंदन पंत ने यह कविता चौथे दशक में लिखी थी। उस समय के गाँव में और आज के गाँव में आपको क्या परिवर्तन नज़र आते हैं ? इस पर कक्षा में सामूहिक चर्चा कीजिए।
अपने अध्यापक के साथ गाँव की यात्रा करें और जिन फ़सलों और पेड़-पौधों का चित्रण प्रस्तुत कविता में हुआ है, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर-
नोट-पाठेतर सक्रियता के अंतर्गत सुझाई गई गतिविधियाँ विद्यार्थी स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘ग्राम श्री’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘ग्राम श्री’ शीर्षक कविता का उद्देश्य गाँव के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण करना है। कवि ने गाँवों के दूर-दूर तक फैले हुए हरे-भरे खेतों, फल-फूलों से लदे हुए वृक्षों तथा गंगा के किनारे फैले रेत के चमकीले कणों की ओर पाठक का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट किया है। खेतों में खिली सरसों की पीतिमा तथा खेतों में खड़ी अन्य फसलों को देखकर कवि का मन प्रसन्नता से खिल उठता है। विभिन्न पक्षियों की मधुर-मधुर ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं। गंगा के तट पर बैठे हुए विभिन्न पक्षियों के सौंदर्य की ओर संकेत करना भी कवि नहीं भूलता। कहने का भाव है कि प्रस्तुत कविता में कवि का प्रमुख लक्ष्य ग्राम्य प्राकृतिक वातावरण का पूर्ण चित्र अंकित करना है जिसमें कवि पूर्णतः सफल रहा है।

प्रश्न 2.
कवि को पृथ्वी रोमांचित क्यों लगी है ?
उत्तर-
कवि को पृथ्वी रोमांचित इसलिए लगी है क्योंकि जब कोई रोमांचित होता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी प्रकार जब गेहूँ और जौ की बालियाँ आईं तो वे रोंगटों की भाँति खड़ी हुई-सी लगीं। अतः कवि द्वारा उन्हें देखकर पृथ्वी का रोमांचित-सा लगना उचित प्रतीत होता है।

प्रश्न 3.
‘ग्राम श्री’ नामक कविता में किस मौसम का और कैसा उल्लेख किया गया है?
उत्तर-
‘ग्राम श्री’ कविता गाँव के वातावरण को उद्घाटित करने वाली कविता है। इसमें कवि ने शिशिर ऋतु के मौसम का सजीव चित्रण किया है। इसी मौसम में ढाक और पीपल के पत्ते गिरते हैं। आम के वृक्ष पर मंजरियाँ फूटतीं और चारों ओर फूल खिल उठते हैं। फूलों पर तितलियाँ और भौरे मंडराने लगते हैं। हर प्रकार की सब्जियाँ उपलब्ध होती हैं। गेहूँ तथा जौ के पौधों में बालियाँ फूट पड़ती हैं। सरसों के फूल खिल जाते हैं। चारों ओर प्रसन्नता एवं उत्साह का वातावरण छा जाता है।

प्रश्न 4.
शिशिर ऋतु में सूर्य की किरणों का प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
शिशिर ऋतु में आसमान बिल्कुल साफ होता है और सूर्य पूर्ण रूप से चमकने लगता है। इस ऋतु में सूर्य की किरणों से हरियाली में चमक आ जाती है। हरियाली अधिक कोमल और मखमली प्रतीत होने लगती है। ऐसा लगता है मानो हरियाली पर चाँदी बिछ गई हो। तिनके ऐसे सजीव हो उठते हैं कि मानो नसों में हरा खून प्रवाहित होने लगता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘ग्राम श्री’ कविता के रचयिता हैं
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर-
(C) सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न 2.
सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1885 में
(B) सन् 1900 में
(C) सन् 1905 में
(D) सन् 1910 में
उत्तर-
(B) सन् 1900 में

प्रश्न 3.
सुमित्रानंदन पंत जी के गाँव का क्या नाम है ?
(A) कौसानी
(B) शामली
(C) गढ़ी
(D) हरिद्वार
उत्तर-
(A) कौसानी

प्रश्न 4.
किसके आह्वान पर पंत जी ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी ?
(A) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(B) महात्मा गाँधी
(C) सरदार पटेल
(D) रवींद्रनाथ टैगोर
उत्तर-
(B) महात्मा गाँधी

प्रश्न 5.
पंत जी किस काव्यधारा के कवि के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं ?
(A) नई कविता
(B) प्रयोगवादी
(C) छायावादी
(D) प्रगतिवादी
उत्तर-
(C) छायावादी

प्रश्न 6.
सुमित्रानंदन पंत का देहांत कब हुआ था ?
(A) सन् 1947 में
(B) सन् 1957 में
(C) सन् 1967 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर-
(D) सन् 1977 में

प्रश्न 7.
सुमित्रानंदन पंत को प्रसिद्धि प्राप्त हुई है-
(A) उपन्यासकार के रूप में
(B) कवि के रूप में
(C) नाटककार के रूप में
(D) निबंधकार के रूप में
उत्तर-
(B) कवि के रूप में

प्रश्न 8.
‘ग्राम श्री’ कविता का प्रमुख विषय है-
(A) ग्रामीणों की गरीबी
(B) गाँव का सादा जीवन
(C) ग्रामीणों की अनपढ़ता
(D) गाँव की प्राकृतिक सुंदरता
उत्तर-
(D) गाँव की प्राकृतिक सुंदरता

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

प्रश्न 9.
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली कैसी लग रही है ?
(A) बादल जैसी
(B) पानी जैसी
(C) मखमल जैसी
(D) आकाश जैसी
उत्तर-
(C) मखमल जैसी

प्रश्न 10.
सूर्य की किरणों की तुलना कवि ने किससे की है ?
(A) चाँदी की जाली से
(B) सोने की तारों से
(C) पानी की चमक से
(D) रेत की चमक से
उत्तर-
(A) चाँदी की जाली से

प्रश्न 11.
कवि को हरे-हरे तिनकों पर क्या झलकता प्रतीत हुआ है ?
(A) ओस की बूंदें
(B) हरे रंग का रक्त
(C) पानी
(D) सूर्य की किरणें
उत्तर-
(B) हरे रंग का रक्त

प्रश्न 12.
सूर्य की किरणें किस पर सुशोभित हो रही हैं ?
(A) पानी पर
(B) वृक्षों पर
(C) मखमली हरियाली पर
(D) आकाश पर
उत्तर-
(C) मखमली हरियाली पर

प्रश्न 13.
कवि ने क्या देखकर धरती को रोमांचित-सी कहा है ?
(A) फूल देखकर
(B) बादल देखकर
(C) जौ और गेहूँ की बाली देखकर
(D) वर्षा का जल देखकर
उत्तर-
(C) जौ और गेहूँ की बाली देखकर

प्रश्न 14.
कवि ने किसे सोने की किंकिणियां कहा है ?
(A) गेहूँ की बालियों को
(B) सनई और अरहर की फलियों को
(C) गेंदे के फूलों को
(D) हरी-हरी घास पर पड़ी ओस को
उत्तर-
(B) सनई और अरहर की फलियों को

प्रश्न 15.
कवि के अनुसार तैलाक्त गंध किस पौधे से आ रही थी ?
(A) तीसी
(B) सरसों
(C) अरहर
(D) गेहूँ
उत्तर-
(B) सरसों

प्रश्न 16.
‘वसुधा’ शब्द का अर्थ है-
(A) धन धारण करना
(B) सोना धारण करना
(C) सुगंध धारण करना
(D) सौंदर्य धारण करना
उत्तर-
(A) धन धारण करना

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प्रश्न 17.
‘पीली-पीली’ में कौन-सा प्रमुख अलंकार है ?
(A) अनुप्रास
(B) उपमा
(C) पुनरुक्ति प्रकाश
(D) रूपक
उत्तर-
(C) पुनरुक्ति प्रकाश

प्रश्न 18.
‘आम’ वृक्ष की शाखाएँ किससे लद गई थीं ?
(A) पक्षियों से
(B) भौरों से
(C) मंजरियों से
(D) कलियों से
उत्तर-
(C) मंजरियों से

प्रश्न 19.
बसंत ऋतु आने पर कौन मतवाली हो उठी थी ?
(A) चिड़िया
(B) कोयल
(C) मोरनी
(D) कबूतरी
उत्तर-
(B) कोयल

प्रश्न 20.
पेड़ की डालियाँ किस फल से लद गई थीं ?
(A) अमरूद
(B) आम
(C) केलों
(D) आँवला
उत्तर-
(D) आँवला

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ग्राम श्री प्रमुख अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभं का चिर निर्मल नील फलक! [पृष्ठ 113]

शब्दार्थ-रवि = सूर्य। उजली = उज्ज्वल। हरित = हरे रंग वाला। रुधिर = रक्त, खून। श्यामल भू = हरी-भरी पृथ्वी। नभ = आकाश।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश का काव्य-सौंदर्य/ शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) खेतों में फैली हरियाली की तुलना किससे की गई है ?
(6) चाँदी की सी उजली जाली किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि प्रकृति का पुजारी है। वह ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर भावुक हो उठता है और कहता है कि गाँवों के खेतों में दूर-दूर तक हरियाली छायी हुई है। वह मखमल की भाँति कोमल एवं सुंदर है। उस हरियाली पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वह चाँदी की जाली की भाँति उज्ज्वल एवं चमकदार लगने लगती है। खेतों में खड़ी फसलों के तिनकों का हरापन ऐसा प्रतीत होता है कि मानों हरा रक्त झलक रहा हो। हरी-भरी पृथ्वी के तल पर आकाश का नीले रंग का स्वच्छ एवं पावन पर्दा झुका हुआ है।
भावार्थ भाव यह है कि ग्रामीण अंचल में खेतों में फैली हरियाली और उस पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों का अत्यंत मनोरम दृश्य उभरता है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश में प्रकृति के मनोहारी दृश्यों का स्वाभाविक चित्र अंकित किया गया है।
(ख) ‘मखमल….. हरियाली’, ‘हिल…….”झलक’ में रूपक अलंकार है।
(ग) ‘चाँदी की सी उजली जाली’ में उपमा अलंकार है।
(घ) संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ङ) ‘हरे हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) प्रस्तुत पद्य में चित्रात्मक शैली है।
(छ) सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ज) तत्सम शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
(झ) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय का समावेश हुआ है।

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(4) कविवर सुमित्रानंदन पंत ने ग्रामीण क्षेत्र की स्वाभाविक एवं अनुपम प्राकृतिक सुंदरता को उद्घाटित किया है। कवि ने पाठक का ध्यान गाँवों के खेतों में फैली हरियाली की ओर आकृष्ट किया है। कवि ने हरियाली पर सूर्य की उज्ज्वल किरणों के पड़ने से उसके सौंदर्य में हुई वृद्धि का भी सूक्ष्मतापूर्वक उल्लेख किया है। तिनकों के हरेपन को हरित रुधिर कहकर उसके सौंदर्य को सजीवता प्रदान की गई है। हरी-भरी पृथ्वी पर नीले नभ को झुका हुआ बताकर प्राकृतिक सौंदर्य को और भी संवेदनशील बना दिया है।

(5) खेतों में फैली हरियाली की तुलना कोमल मखमल से की गई है।

(6) ‘चाँदी की सी उजली जाली’ कवि ने उस हरियाली को कहा, जो दूर-दूर तक गाँवों के खेतों में फैली हुई थी, क्योंकि जब उस पर सूर्य की उज्ज्वल किरणें पड़ती हैं तब उसकी चमक और भी बढ़ जाती है। इसलिए कवि ने उसे चाँदी की उज्ज्वल जाली के समान कहा है।

2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जो गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली! [पृष्ठ 113]

शब्दार्थ-रोमांचित = प्रसन्नता व्यक्त करती हुई। वसुधा = पृथ्वी। किंकिणियाँ = करधनी। शोभाशाली = सुंदर। तैलाक्त = तेल से सनी हुई। गंध = खुशबू। धरा = पृथ्वी। तीसी नीली = अलसी के नीले फूल।

प्रश्न
(1) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत कवितांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत कवितांश का काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति के भाव-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(5) कवि को पृथ्वी रोमांचित-सी क्यों लगी ?
(6) कौन हरित धरा से झाँकते हुए-से लगते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि गेहूँ और जौ के पौधों की निकली बालियों को देखने से ऐसा लगता है जैसे उनके माध्यम से धरती रोमांचित हो उठी है अर्थात अपने हृदय की प्रसन्नता को व्यक्त कर रही है। खेतों में उगी अरहर की फलियाँ और फूल ऐसे लगते हैं कि मानों सोने से निर्मित सुंदर करधनी धारण कर रखी हो। इसी प्रकार दूर-दूर तक खेतों में पीली-पीली सरसों फूली हुई है। उसके फूलों की सुगंध चारों ओर उड़ रही है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की सुंदर कलियाँ और नीले रंग के फूलों से लदी अलसी भी झाँकती हुई-सी लगती है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि धरती पर उगी हुई गेहूँ और जौ की फसलें, अरहर और सरसों के फूल वहाँ के सौंदर्य को बढ़ा देते हैं। हरे-भरे खेतों में नीलम और अलसी के फूल भी सुंदर लगते हैं।

(3) (क) संपूर्ण पद्यांश में सरल एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) प्राकृतिक छटा का वर्णन अलंकृत भाषा में किया गया है।
(ग) ‘अरहर …. शोभाशाली’ में रूपक अलंकार है।
(घ) वसुधा, नीलम की कलियों, तीसी नीली आदि का मानवीकरण किया गया है।
(ङ) पीली पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) संपूर्ण पद्य में चित्रात्मकता है।
(छ) तत्सम शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।

(4) कवि ने खेतों में उगी फसलों का अत्यंत भावपूर्ण एवं मनोरम चित्रण किया है। वसुधा को रोमांचित बताकर आस-पास के प्रसन्नतामय वातावरण को उद्घाटित किया है। अरहर के फूलों व फलियों को सोने से निर्मित सुंदर करधनी की उपमा देकर उसकी सुंदरता को उजागर किया है। इसी प्रकार नीलम की कली और अलसी के नीले फूलों को हरे-भरे खेतों के बीच दिखाकर उनकी सुंदरता को चार चाँद लगा दिए हैं। इसके साथ ही उन्हें झाँकता हुआ कहकर उनका मानवीकरण भी कर दिया है।

(5) कवि को पृथ्वी रोमांचित इसलिए लगी, क्योंकि जब कोई रोमांचित होता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी प्रकार जब गेहूँ और जौ की बालियाँ निकल आईं तो वे रोंगटों की भाँति खड़ी हुई-सी लगीं। इसलिए कवि द्वारा उन्हें देखकर पृथ्वी का रोमांचित-सा लगना उचित प्रतीत होता है।

(6) नीलम की कलियाँ और अलसी के नीले फूल हरित धरा-से झाँकते हुए-से लगते हैं।

3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ व्रतों से वृंतों पर! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-रिलमिल = मिल-जुलकर। छीमियाँ = मटर की फलियाँ।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के मूल विषय को स्पष्ट कीजिए।
(6) कवि ने मखमली पेटियाँ किसे और क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। . कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्यांश में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने गाँवों के खेतों में उगी फसलों और वहाँ की प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि का कथन है कि मटर की फसल के पौधों पर तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। उनके मध्य मटर की फलियाँ लटकी हुई हैं, जो मखमली पेटियों के समान लगती हैं। उन पेटियों (मटर की फलियों) में मटर के दानों की लड़ियाँ छिपी हुई हैं अर्थात मटरों की फलियों में मटरों की दोनों पंक्तियाँ विद्यमान हैं। कवि ने पुनः बताया है कि वहाँ विभिन्न रंगों के सुंदर फूलों पर विभिन्न रंगों वाली तितलियाँ उड़ रही हैं। वहाँ इतने अधिक फूल हैं कि ऐसा लगता है कि फूल स्वयं फूले नहीं समा रहे। फूल स्वयं फूलों के समूह पर गिर रहे हैं।
भावार्थ-कवि.के कहने का भाव यह है कि गाँवों के खेतों में खड़ी मटर की फसलें अत्यंत शोभायमान हैं और रंग-रंग के फूलों की अत्यधिक संख्या होने के कारण वहाँ का वातावरण सुंदर एवं सुगंधित बना हुआ है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्यांश शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा में रचित है।
(ख) ‘रंग-रंग’, ‘उड़-उड़’ आदि शब्दों की आवृत्ति के द्वारा फूलों के विभिन्न व अत्यधिक रंगों और तितलियों की प्रसन्नता को उजागर किया गया है।
(ग) मटर के पौधों का मानवीकरण किया गया है।
(घ) ‘मखमली पेटियों सी’ में उपमा अलंकार है।
(ङ) ‘रंग रंग’ तथा ‘उड़ उड़’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) ‘रिलमिल’, ‘मखमली’, ‘छीमियाँ’, ‘छिपाए’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(छ) भाषा प्रसादगुण-संपन्न है।
(ज) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं स्वाभाविक रूप में व्यक्त हुआ है।

(4) कवि ने अत्यंत प्रवाहमयी भाषा में प्रकृति के दृश्यों का सजीव चित्रण किया है। विभिन्न रंगों के फूलों के बीच हरी-हरी मटर की फलियों को मखमली पेटिका की उपमा देकर कवि ने उनके सौंदर्य एवं उनमें दानों की अधिकता की ओर संकेत किया है। इसी प्रकार रंग-रंग के फूलों पर रंग-रंग की तितलियों का उड़ना दिखाकर प्राकृतिक दृश्य को हृदयग्राही बना दिया है। फूलों के फूल फूलकर फूलों के समूह पर गिरने का भाव भी अत्यंत मौलिक एवं सुंदर है।

(5) प्रस्तुत काव्यांश का मूल विषय प्राकृतिक छटा को मनोरम रूप में उजागर करना है, ताकि लोगों का ध्यान उस ओर आकृष्ट हो सके।

(6) कवि ने मटर की हरी-हरी फलियों को मखमली पेटियाँ कहा है। इन्हें पेटियाँ इसलिए कहा गया है, क्योंकि इनमें मटर के बीज भरे हुए थे।

4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-रजत = चाँदी। स्वर्ण = सुनहरा। मंजरियों = बौर। तरु = टहनी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कोकिला मतवाली क्यों हो उठी थी ?
(6) प्रस्तुत पंक्तियों को पढ़कर कवि के किस ज्ञान का परिचय मिलता है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत कवितांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि अब वहाँ आम के वृक्ष की टहनियाँ चाँदी और सुनहरे रंग के बौर से लद गई हैं अर्थात आम की टहनियों पर बौर उग आया है जिससे उन पर फल लगने की आशा हो गई है। इस समय ढाक और पीपल के वृक्षों के पत्ते झड़ रहे हैं। ऐसे सुहावने एवं सुंदर वातावरण में कोयल भी मस्ती में भरकर कूक उठती है। इसके अतिरिक्त कटहल के पेड़ भी महक उठे हैं। जामुन पर भी बौर लग गया है। जंगल में छोटे-छोटे बेरों वाली झाड़ियाँ या बेरियाँ भी झूल उठी हैं। आड़, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि फल और सब्जियाँ खूब उगे हुए हैं।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि बसंत ऋतु में विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्षों पर फल-फूल लग जाते हैं। वातावरण अत्यंत प्रसन्नतामय बन जाता है। ऐसे में कोयल भी अपनी मधुर ध्वनि से उसमें रस घोल देती है।

(3) (क) संपूर्ण कवितांश में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) तत्सम शब्दों का सफल एवं सुंदर प्रयोग किया गया है।
(ग) चित्रात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया गया है।
(घ) संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ङ) शब्द-योजना विषयानुकूल है।

(4) कवि ने इन पंक्तियों में ग्रामीण अंचल की प्रकृति के विभिन्न दृश्यों का वर्णन अत्यंत सजीवता से किया है। बसंत ऋतु के आने पर जहाँ आम के वृक्षों की शाखाएँ बौर से लद जाती हैं, वहीं पीपल और ढाक के वृक्ष पत्र-विहीन हो जाते हैं। बसंत के आते ही कोयल भी मस्ती में भरकर मधुर ध्वनि में बोलने लगती है। विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों की फसलें भी महक उठती हैं। कवि ने अपने इन सब भावों को सुगठित एवं प्रवाहमयी भाषा में प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है।

(5) कवि ने बताया है कि बसंत ऋतु में प्रसन्नतायुक्त वातावरण में कोयल भी मस्ती में भरकर कूक उठी है।

(6) इन काव्य-पंक्तियों को पढ़कर कवि के प्रकृति संबंधी ज्ञान का बोध होता है। कवि को प्रकृति का ज्ञान ही नहीं, अपितु उसके प्रति गहन लगाव भी है।

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5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फली, फैली
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली! [पृष्ठ 114]

शब्दार्थ-चित्तियाँ = चित्रियाँ । मधुर = मीठे। अँवली = छोटे आँवले । तरु = वृक्ष । लहलह = लहकना। महमह = महकना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखें।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि ने किन सब्जियों एवं फलों का वर्णन किया है ?
(6) प्रस्तुत पद के प्रमुख विषय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि ने खेतों में लगी सब्जियों एवं वृक्षों पर लगे फलों का वर्णन करते हुए कहा है कि अमरूद के पेड़ों पर लगे अमरूदों पर अब लाल-लाल चिह्न पड़ गए हैं। इनसे पता चलता है कि अमरूद अब पक गए हैं। इसी प्रकार बेरियों पर सुनहरे रंग के मीठे-मीठे बेर लगे हुए हैं। आँवले के वृक्ष की टहनियों पर आँवले भी लदे हुए हैं अर्थात अत्यधिक मात्रा में लगे हुए हैं। खेत में खड़ी पालक लहक रही है और धनिया भी सुंदर लग रहा है। लौकी और सेम की बेलें फैली हुई हैं जिन पर लौकियाँ और सेम की फलियाँ लगी हुई हैं। अब मखमली टमाटर भी पककर लाल रंग के हो गए हैं। मिरचों के पौधों पर भी अत्यधिक बड़ी-बड़ी हरी मिरचें लगी हुई हैं।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि ग्रामीण अंचल में तरह-तरह के फलदार वृक्ष हैं जो वहाँ के लोगों को स्वादिष्ट फल देते हैं। खेतों में भी तरह-तरह की सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

(3) (क) कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
(ख) यह पद कवि के फलों व सब्जियों की फसलों के ज्ञान का परिचय करवाता है।
(ग) तत्सम शब्दों का सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘लाल-लाल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ङ) ‘लहलह’, ‘महमह’ में अनुप्रास अलंकार है।
(च) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
(छ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
(ज) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल के जीवन का वर्णन किया है। गाँव के खेतों, वहाँ उगी हुई फसलों तथा वहाँ के फलदार पेड़ों के प्रति आत्मीयता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। कवि का ग्रामीण क्षेत्र में उगाई जाने वाली सब्जियों का गहन ज्ञान द्रष्टव्य है। कवि ने अमरूद, बेर व आँवले के फलों के साथ-साथ पालक, धनिया, टमाटर और हरी मिरचों का अत्यंत सुंदर एवं सजीव चित्रांकन किया है। इस पद की प्रत्येक पंक्ति में विभिन्न फलों व सब्जियों का मनोहारी वर्णन है।

(5) कवि ने अमरूद, बेर, आँवला आदि फलों तथा पालक, धनिया, टमाटर व हरी मिरच आदि सब्जियों का उल्लेख किया है।

(6) प्रस्तुत पद का प्रमुख विषय गाँव के जीवन का विशेषकर वहाँ के खेतों में उगाए जाने वाले फलों व सब्जियों का उल्लेख करना है।

6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई! [पृष्ठ 115]

शब्दार्थ-बालू = रेत। अंकित = चित्रित, बने हुए। सतरंगी = सात रंगों वाली। सरपत = घास-पात, तिनके। कलँगी = सिर

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए। (5) कवि ने गंगा के किनारे किन-किन पक्षियों को देखा है ? (6) कवि ने गंगा के किनारे की रेत को साँपों की तरह अंकित क्यों कहा है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गंगा तट के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि गंगा के किनारे बिछी हुई सतरंगी रेत व हवा के कारण बनी हुई लहरें साँपों के समान लगती हैं। गंगा के तट पर उगी हुई घास अत्यंत सुंदर लगती है। वहाँ पर किसानों द्वारा तरबूजों की फसल उगाई गई है। अपने पाँव के पंजे से अपने सिर की कलंगी संवारते हुए बगुले अत्यंत सुंदर लगते हैं। चक्रवाक पक्षी गंगा के पानी में तैर रहे हैं और गंगा किनारे बैठी मगरौठी सोई रहती है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गंगा के किनारे पर फैली रेत, तरबूजों की फसल और हरी-भरी घास के साथ-साथ वहाँ पर तरह-तरह के पक्षी क्रीड़ाएँ करते हुए अत्यंत सुंदर लगते हैं।

(3) (क) प्रस्तुत कवितांश सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा में रचित है।
(ख) इसमें कवि ने गंगा के किनारे की प्राकृतिक छटा का भावपूर्ण चित्रांकन किया है।
(ग) ‘बालू के साँपों से’ अंकित …..रेती’ में उपमा अलंकार है।
(घ) “अँगुली की कंघी’ ……कोई’ में रूपक अलंकार है।
(ङ) ‘तट पर तरबूजों’, ‘पुलिन पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(च) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।।
(छ) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं सहज बना हुआ है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक सौंदर्य एवं गंगा के किनारे की अनुपम छटा को चित्रित किया है। कवि ने बताया है कि गंगा के किनारे बिछी रेत पर अंकित लहरें सौ के आकार की लगती हैं। रेत के कणों की चमक सात रंगों वाली लगती है। इतना ही नहीं, वहाँ उगी हुई हरी-हरी घास और तरबूज की फसल का दृश्य भी मनोहारी है। गंगा के किनारे पर बगुले, सुरखाब, मगरौठी आदि बैठे हुए पक्षी मन को आकृष्ट करते हैं। अतः स्पष्ट है कि कवि ने संपूर्ण पद में गंगा के तट की छटा का सुंदर एवं सजीव रूप प्रस्तुत किया है।

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(5) कवि ने गंगा के किनारे बैठे बगुल्लों, चक्रवात और मगरौठी को देखा है।

(6) कवि ने गंगा के किनारे फैली रेत को साँपों की तरह अंकित इसलिए कहा है क्योंकि रेत में तेज हवा व पानी के बहाव के कारण टेढ़ी-मेढ़ी लहरें-सी बनी हुई थीं।

7. “हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन! [पृष्ठ 115]

शब्दार्थ-हिम-आतप = सर्दी की धूप। अँधियाली = अंधेरे वाली। निशि = रात्रि। मरकत = पन्ना नामक रत्न। निरुपम = उपमा-रहित। हिमांत = सर्दी के अंत में। स्निग्ध = कोमल । निज = अपनी। शोभा = सुंदरता। हरना = आकृष्ट करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश के प्रमुख विषय का उल्लेख कीजिए।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ग्राम को किसकी उपमा दी है ?
उत्तर-
(1) कवि-सुमित्रानंदन पंत। कविता-ग्राम श्री।

(2) व्याख्या-कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करते हुए कहा है कि वहाँ की हँसमुख हरियाली सर्दी की धूप में ऐसी लग रही है मानों वह धूप सेंकने से अलसाई हुई-सी अथवा खोई हुई-सी है। रात के अंधेरे. में वही हरियाली भीगी हुई-सी लगती है और नीले नभ पर रात्रि को चमकते हुए तारे स्वप्नों में खोए हुए-से लगते हैं। सर्दी की ऋतु में चमकती हुई धूप में गाँव पन्ना नामक रत्न का खुला हुआ डिब्बा-सा प्रतीत होता है। उस पर नीले रंग का आकाश छाया हुआ होने के कारण और भी आकर्षक बन पड़ा है। हिमांत में अत्यंत सुंदर, शांत और अनुपम गाँव अपनी शोभा से सबके मन को आकृष्ट करने वाला है।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गाँव के आस-पास छाई हुई हरियाली सर्दी की धूप में अत्यंत सुंदर लगने लगती है। रात को नीले आकाश में चमकते तारे भी मनमोहक लगते हैं। धूप में चमकता हुआ गाँव तो और भी आकर्षक लगता है।

(3) (क) कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक शोभा का सजीव चित्रण किया है।
(ख) तत्सम शब्दों का अत्यंत सार्थक एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ग) संपूर्ण पद में हरियाली, तारों, ग्राम आदि का मानवीकरण किया गया है।
(घ) ‘हँसमुख हरियाली’, ‘नीलम-नभ’, ‘जन-मन’ आदि में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(ङ) ‘मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम’ में उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(च) नई-नई उपमाओं के प्रयोग के कारण प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत आकर्षक बन पड़ा है।
(छ) भाषा में लाक्षणिकता के प्रयोग से विषय में चमत्कार उत्पन्न हो गया है।

(4) प्रस्तुत पद में कवि ने ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता का अत्यंत सजीव चित्र आत्मीयतापूर्ण भावों में व्यक्त किया है। कवि ने सर्दकालीन हरियाली को हंसमुख और सर्दी की धूप में उसे अलसाई हुई बताकर उसके विविध गुणों व विशेषताओं को उद्घाटित किया है। रात में वही दिन वाली हंसमुख हरियाली भीगी हुई प्रतीत होने लगती है। रात्रि के गहन अंधकार में आकाश में चमकते तारे भी स्वप्नों में खोए हुए लगते हैं और धूप में चमकते गाँव के तो कहने क्या, वह तो पन्ने रूपी रत्न से बने हुए खुले डिब्बे के समान लगता है। उसके ऊपर छाए हुए नीले आकाश से तो उसकी शोभा और भी बढ़ जाती है। शांत, एकांत और अपनी अनुपम शोभा से गाँव सबके मन को आकृष्ट करता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत पद्यांश में अभिव्यक्त भावों में वेग के साथ-साथ आत्मीयता भी है।

(5) प्रस्तुत काव्यांश का प्रमुख विषय गाँव की प्राकृतिक छटा का भावपूर्ण वर्णन करना है। इसमें कवि ने वहाँ के दिन और रात के विविध दृश्यों को कलात्मकतापूर्ण अंकित किया है।

(6) प्रस्तुत पद में कवि ने ग्राम को मरकत के खुले डिब्बे की उपमा दी है जो अपनी अनुपम सुंदरता के लिए सबके हृदय को आकृष्ट करता है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

ग्राम श्री कवि-परिचय

प्रश्न-
सुमित्रानंदन पंत का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 को उत्तरांचल प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ। जन्म के तत्काल बाद उनकी माँ सरस्वती का देहांत हो गया। अतः उनका पालन-पोषण दादी, बुआ और पिता की छत्रछाया में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। वे गांधी जी से प्रभावित हुए और उनके साथ आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने अनेक स्थानों पर कार्य किया। वे आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। उन्होंने जीवन-भर साहित्य-सेवा की। सन् 1977 में उनका देहांत हो गया था। उनके साहित्य के महत्त्व को देखते हुए उन्हें ‘साहित्य अकादमी’, ‘सोवियत रूस’ तथा ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण-किरण’, ‘स्वर्ण-धूलि’, ‘उत्तरा’, ‘अतिमा’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’ तथा ‘लोकायतन’ ।

3. काव्यगत विशेषताएँ-पंत जी प्रकृति के चितेरे कवि थे। उनके साहित्य में प्रकृति का मनोरम चित्रण हुआ है। उनका काव्य रोमांटिक एवं व्यक्ति-प्रधान है। उन्होंने अपनी कविताओं में मानव-सौंदर्य का भी चित्रण किया है। छायावादी कवियों में पंत का मुख्य स्थान है।

पंत जी के काव्य में प्रगतिवादी स्वर भी उभरकर आया है। उनकी कविताओं में मानवतावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है। रहस्यवादी भावना भी उनके काव्य का विषय रही है।

4. भाषा-शैली-पंत जी शब्दों के कुशल शिल्पी माने जाते हैं। वे शब्दों की आत्मा तक पहुँचने में सिद्धहस्त थे। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रमुखता रही है। वे कोमल, मधुर और सूक्ष्म भावों को प्रकट करने वाले शब्दों का सार्थक प्रयोग करते थे।
पंत जी की काव्य-भाषा में उपमा, अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है। उनकी काव्य भाषा भावानुकूल एवं लयात्मक है। वे सचमुच हिंदी के गौरवशाली कवि थे।

ग्राम श्री कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ग्राम श्री’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गाँवों की प्राकृतिक छटा का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। खेतों में दूर-दूर तक लहलहाती फसलों, फूल-फलों से लदे हुए वृक्षों और गंगा के किनारे फैले रेत के चमकते कणों के प्रति कवि का मन आकृष्ट हो उठता है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान सुंदर हरियाली फैली हुई है। जब इस हरियाली पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो यह चाँदी की भाँति चमक उठती है। हरी-भरी पृथ्वी पर झुका हुआ नीला आकाश और भी सुंदर लगता है। जौ और गेहूँ की बालियों को देखकर लगता है कि धरती रोमांचित हो उठी है। खेतों में खड़ी अरहर और सनई सोने की करधनी-सी लगती हैं। सरसों की पीतिमा चारों ओर फैली हुई है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की कली भी सुंदर लग रही है। मटर की फलियाँ मखमली पेटियों-सी लटक रही हैं, जो अपने में मटर के बीज की लड़ियाँ छिपाए हुए हैं। चारों ओर खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियाँ घूम रही हैं। आम के वृक्ष भी मंजरियों से लद गए हैं। पीपल और ढाक के पुराने पत्ते झड़ गए हैं। ऐसे सुहावने वातावरण में कोयल भी कूक उठती है। कटहल, मुकुलित, जामुन, आडू, नींबू, अनार, बैंगन, गोभी, आलू, मूली आदि सब महक रहे हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

कवि ने ग्रामों की प्राकृतिक छटा और वहाँ फूल-फलों से लदे वृक्षों के सौंदर्य को अंकित करते हुए पुनः कहा है कि वहाँ पीले रंग के चित्तिरीदार मीठे अमरूद, सुनहरे रंग के बेर आदि फल वृक्षों पर लगे हुए हैं। पालक, धनिया, लौकी, सेम की फलियाँ, लाल-लाल टमाटर, हरी मिरचें आदि सब्जियाँ भी खूब उगी हुई हैं। गंगा के किनारे पर फैली हुई सतरंगी रेत भी सुंदर लगती है। गंगा के किनारे पर तरबूजों की खेती है। गंगा के तट पर बगुले और मगरौठी बैठे हुए हैं तथा सुरखाब पानी में तैर रहे हैं। सर्दियों की धूप में ग्रामीण क्षेत्र की हँसमुख हरियाली अलसायी हुई-सी प्रतीत होती है। रात के अंधेरे में तारे भी सपनों में खोए-से लगते हैं। गाँव मरकत के खुले डिब्बे-सा दिखाई देता है; जिस पर नीला आकाश छाया हुआ है। अपने शांत वातावरण एवं अनुपम सौंदर्य से गाँव सबका मन आकृष्ट करता है।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘इस विजन में ……….. अधिक है’-पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर-
इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का आक्रोश व्यक्त हुआ है क्योंकि वहाँ के अत्यधिक व्यस्त एवं प्रतियोगितापूर्ण और भौतिकवादिता से युक्त जीवन में प्रेम जैसी कोमल और प्राकृतिक भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। दूसरी ओर, ग्रामीण अंचल के एकांत जीवन में प्रेम का संचार पूर्ण रूप से दिखाई देता है। इसलिए कवि का आक्रोश नगरीय संस्कृति व जीवन के प्रति व्यक्त हुआ है।

Chandra Gehna Se Lautti Ber HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
उत्तर-
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि यह कहना चाहता होगा कि सरसों अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक ऊँची हो गई है। ‘सयानी’ शब्द से एक अर्थ यह भी निकलता है कि वह विवाह के योग्य हो गई है।

HBSE 9th Class Hindi Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अलसी चने के पौधे के पास उगी हुई है और उनसे दूर नहीं होती। इसलिए उसके हठीली होने के भाव को व्यक्त किया गया है। दूसरी ओर, उसने अपने आपको नीले फूलों से सजाया हुआ है और कहती है कि जो उसको स्पर्श करेगा, उसे ही वह अपना हृदय दान में दे देगी अर्थात उससे प्रेम करेगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर-
वस्तुतः अलसी चने के पौधों के बिल्कुल पास उगी हुई है। उसके आस-पास चारों ओर चने के पौधे हैं, फिर भी वह अपने स्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए कवि ने उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है।

प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर-
कवि ने तालाब के पानी में चमकते हुए सूर्य के प्रतिबिंब को देखकर पानी में ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ की सूक्ष्म । एवं सजीव कल्पना की है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर-
कविता में बताया गया है कि चने का पौधा केवल बालिश्त भर ऊँचा है अर्थात उसका कद छोटा है। उसने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और अपने सिर पर गुलाबी फूलों रूपी मुकुट धारण किया हुआ है। वह एक दुल्हे की भाँति सज-धज कर खड़ा हुआ है।

प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है। सर्वप्रथम कवि ने चने के पौधों का मानवीकरण किया है। तत्पश्चात अलसी को ‘हठीली’ और ‘हृदय का दान करने वाली’ बताकर उसका मानवीकरण किया है। सरसों का ‘सयानी’ व पीले हाथ करना’ आदि के माध्यम से मानवीकरण किया है। तालाब के किनारे रखे पत्थरों को पानी पीते हुए से दिखाकर उनका भी मानवीकरण किया है।

प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूंढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर-
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’-इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर-
और सरसों की न पूछो’ जैसी शैली का प्रयोग हम वहाँ करते हैं, जहाँ कोई व्यक्ति आशा से अधिक कार्य करता हो, जैसे रमेश की तो बात मत कीजिए, वह तो आजकल बहुत बड़ा अफसर बना हुआ है। बुरे अर्थ में भी इस शैली का प्रयोग किया जाता है। मोहन की क्या बात बताऊँ, उसने कुल की नाक कटवा दी।

प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर-
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया एक चालाक एवं चतुर व्यक्तित्व की प्रतीक हो सकती है, जो अवसर मिलते ही अपना वार कर देते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर-
देह, सिर पर चढ़ाना, सयानी, पोखर, चटुल आदि।

प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

देहात का दृश्य

अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी-सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है।
है चोटी उस की हिरनखुरी के फूलों से गुंथ कर सुंदर,
अन-आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल-हिल कर।
हैं मसें भीगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा धुंघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिन में तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झूम रहे,
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम रहे।
मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उसकी सुगंध-मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।

प्रश्न
(1) इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
(2) इन पंक्तियों में कवि ने किस-किसका मानवीकरण किया है ?
(3) इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है ?
(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठे ?
उत्तर-
(1) प्रस्तुत कविता का मुख्य भाव बसंतकालीन खेत-खलिहानों की प्रकृति का चित्रण करना है। कवि ने अरहर और सरसों की फलियों का सुंदर चित्रण किया है। गेहूँ में फूटती हुई बालियों की तुलना फूटती तरुणाई से की है। मटर की बेलों और हरे-हरे चने का मानवीकरण करके उनके सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया है। तालाब के ऊँचे-ऊँचे किनारों पर उगी हुई घास और सोने के समान चमकने वाली लताओं का वर्णन भी मनमोहक बन पड़ा है। कवि ने अलसी और मेथी के फूल का वर्णन भी किया है, जिनकी सुगंध के कारण तितली और भौंरें मदमस्त हो जाते हैं।

(2) इन पंक्तियों में कवि ने अरहर, सरसों, पोलंगा, गेहूँ, मटर बेली, चने आदि का मानवीकरण किया है।

(3) इस कविता को पढ़कर हमें बसंत के मौसम का स्मरण हो आता है।

(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध अलसी और मेथी के फूल की सुगंध में खो बैठते हैं।

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
अथवा
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता एक सोद्देश्य रचना है। इस कविता में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करना ही प्रमुख लक्ष्य है। कविता संपूर्ण रूप से ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुषमा पर केंद्रित है। कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा था। लौटते समय कवि का मन गाँव के खेत में खड़ी फसल में रम जाता है। कवि की पैनी दृष्टि वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को पहचानने में देर नहीं लगाती। कवि बताता है कि उसने चने के खेत देखे। उसमें बलिश्त भर का चने का पौधा गुलाबी फूलों से लदा हुआ था। उसके बीच-बीच में अलसी के पौधे उगे हुए थे। उस पर नीले रंग के फूल खिले हुए थे। गुलाबी, नीले और हरे रंग के एक साथ होने से दृश्य अत्यन्त मनोरम बना हुआ था। इन अनुपम दृश्य को उजागर करना ही कवि का लक्ष्य रहा है। गेहूँ के खेत में सरसों उगी हुई थी और उस पर पीले फूल लगे हुए थे। उसे देखकर कवि के जहन में विवाह मंडप की कल्पना उभर आती है।

उसे लगा कि सरसों मानो अपने हाथ पीले करके मंडप में आ गई हो। इसी प्रकार कवि ने फागुन के महीने में प्रकृति पर यौवन के आने की ओर संकेत किया है। गाँव के तालाब के आस-पास के एकांत एवं शांत वातावरण को शब्दों में सजीवतापूर्वक अंकित करना भी कविता का लक्ष्य है। विभिन्न पक्षियों की ध्वनियों को ध्वन्यात्मक शब्दों में ढालकर एक मधुर वातावरण का निर्माण किया गया है। गाँव से थोड़ी दूरी पर रेत के बड़े-बड़े टीले थे, वहाँ का वातावरण पूर्णतः शून्यता से परिपूर्ण था। उन टीलों के बीच से रेल की पटरी गुजर रही थी। जब रेल वहाँ से गुजरती होगी तो वातावरण की एकांतता को तोड़कर एक अनोखी हलचल मचा देती होगी। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता का मूल भाव प्रकृति की छटा का वर्णन करना है। कवि अपने इस लक्ष्य में पूर्णतः सफल रहा है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 2.
निम्नांकित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
व्याह-मंडप में पधारी ।
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने सरसों के विकास और उस पर फूल लग जाने के कारण उसमें उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया है। कवि उसका मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि वह ‘सयानी’ अर्थात युवती बन गई है और वह अपना शृंगार करके मानों विवाह के मंडप पर आ गई है। कवि ने फागुन मास को फाग गीत गाने वाला बताकर फागुन मास के आने की सूचना भी दी है। कहने का भाव है कि प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में फागुन मास के आने पर सरसों के फूलने का सुंदर वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
पठित कविता के आधार पर केदारनाथ अग्रवाल की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताजगी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा शुद्ध, साहित्यिक एवं व्याकरण-सम्मत है। अनेक कविताओं में उनकी भाषा गद्यमय बन गई है, किंतु उसमें लय एवं प्रवाह सर्वत्र बना हुआ है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ पोखर, मुरैठा, ठिगना, चटुल आदि लोकभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। लोक-प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करके भाषा को सारगर्भित भी बनाया है। उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है कि वह जीवन से उपजी हुई भाषा है और जीवन की रागात्मकता से जुड़ी रहती है। अनेक स्थलों में श्री केदारनाथ अग्रवाल ने अंग्रेज़ी व उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है, जिसमें भावों को अभिव्यक्त करने की सहज क्षमता है। गंभीर-से-गंभीर भाव को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला में अग्रवाल जी निपुण हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) राजेश जोशी
(D) चंद्रकांत देवताले
उत्तर-
(B) केदारनाथ अग्रवाल

प्रश्न 2.
कवि कहाँ से लौट रहा था?
(A) दिल्ली से
(B) नैनीताल से
(C) चंद्र गहना से
(D) बनारस से
उत्तर-
(C) चंद्र गहना से

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प्रश्न 3.
कवि कहाँ अकेला बैठकर प्राकृतिक दृश्य देख रहा था?
(A) रेल की पटरी पर .
(B) सड़क पर
(C) सागर तट पर
(D) खेत की मेड़ पर
उत्तर-
(D) खेत की मेड़ पर

प्रश्न 4.
कवि ने ‘ठिगना’ किसे कहा है?
(A) चने के पौधे को ।
(B) गेहूँ के पौधे को
(C) आम के पेड़ को
(D) सरसों के पौधे को
उत्तर-
(A) चने के पौधे को

प्रश्न 5.
चने के पौधे ने किस रंग का मुरैठा सिर पर बाँधा हुआ था?
(A) लाल
(B) गुलाबी
(C) काला
(D) पीला
उत्तर-
(B) गुलाबी

प्रश्न 6.
खेत में चने के साथ मिलकर कौन-सा पौधा उगा हुआ था?
(A) गेहूँ का
(B) अलसी का
(C) मेथी का
(D) जौ का
उत्तर-
(B), अलसी का

प्रश्न 7.
अलसी के पौधे पर किस रंग के फूल खिले हुए थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) सफेद
(D) नीले
उत्तर-
(D) नीले

प्रश्न 8.
कवि ने सरसों की किस विशेषता को देखकर उसे सयानी कहा है?
(A) रंग को देखकर
(B) हिलने-डुलने को देखकर
(C) लंबाई को देखकर
(D) उसकी मजबूती को देखकर
उत्तर-
(C) लंबाई को देखकर

प्रश्न 9.
‘पोखर’ का अर्थ है-
(A) नदी
(B) सागर
(C) बादल
(D) तालाब
उत्तर-
(D) तालाब

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प्रश्न 10.
कवि ने चाँदी के समान चमकता हुआ गोल खंभा किसे कहा है?
(A) तालाब में खड़े खंभे को
(B) तालाब में उगी घास को
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को
(D) चाँद के प्रतिबिंब को
उत्तर-
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को

प्रश्न 11.
तालाब में चुपचाप कौन-सा पक्षी खड़ा हुआ है?
(A) कौआ
(B) चिड़िया
(C) कबूतर
(D) बगुला
उत्तर-
(D) बगुला

प्रश्न 12.
बगुला पानी में से क्या पकड़कर खाता है?
(A) मेंढक
(B) मछली
(C) जोंक
(D) साँप
उत्तर-
(B) मछली

प्रश्न 13.
कौन-सी चिड़िया पानी में डुबकी लगाकर मछली पकड़कर खाती है?
(A) काले माथे वाली
(B) लाल पंखों वाली
(C) लंबी पूँछ वाली
(D) छोटे शरीर वाली
उत्तर-
(A) काले माथे वाली

प्रश्न 14.
कवि ने चित्रकूट की पहाड़ियों के आकार के विषय में क्या कहा है?
(A) चौड़ी और कम ऊँची
(B) बहुत ऊँची
(C) बर्फीली
(D) हरी-भरी
उत्तर-
(A) चौड़ी और कम ऊँची

प्रश्न 15.
चित्रकूट की पहाड़ियों पर कौन-सा वृक्ष उगा हुआ था?
(A) शीशम
(B) नीम
(C) रीबा
(D) आम
उत्तर-
(C) रीबा

प्रश्न 16.
कवि को किस पक्षी का मीठा स्वर सुनाई पड़ रहा था?
(A) सुग्गे का
(B) कोयल का
(C) मोर का
(D) कबूतर का
उत्तर-
(A) सुग्गें का

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प्रश्न 17.
किस पक्षी का स्वर वनस्थली का हृदय चीरता हुआ प्रतीत होता था?
(A) जंगली मुर्गे का
(B) मोर का
(C) सारस का
(D) कोयल का
उत्तर-
(C) सारस का

प्रश्न 18.
कवि का मन क्या करना चाहता है?
(A) सारस के संग उड़ना
(B) गीत गाना
(C) तालाब में नहाना
(D) जंगल में घूमना
उत्तर-
(A) सारस के संग उड़ना

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

चंद्र गहना से लौटती बेर अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. देख आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
पास ही मिल कर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको। [पृष्ठ 119-120]

शब्दार्थ-दृश्य = नजारा। मेड़ = किनारा। बीते के बराबर = एक बालिश्त के बराबर। ठिगना = छोटे कद वाला। मुरैठा = साफा, पगड़ी। हठीली = जिद्दी। देह = शरीर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत कवितांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद्यांश में किन-किन फसलों का वर्णन किया गया है?
(6) चने के पौधे के रूप-सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने किसान के खेतों में खड़ी फसल की साधारण सुंदरता में असाधारण सौंदर्य की सृजनात्मक कल्पना की है। कवि कहता है कि वह चंद्र गहना को देख आया है। अब वह खेत की मेड़ (किनारे) पर अकेला बैठा हुआ है और खेत को अत्यंत तन्मयता से देख रहा है। उसने खेत में एक बालिश्त के बराबर खड़े चने के एक छोटे-से हरे पौधे को देखा जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। ऐसा लगता है कि वह छोटा-सा चने का पौधा अपने सिर पर गुलाबी रंग के फूलों का साफा बाँधे हुए है और पूर्णतः सज-धजकर खड़ा है। वहाँ चने के खेत में पास ही अलसी के पौधे भी उगे हुए हैं। उन्हें देखकर कवि ने कहा है कि चने के बीच में जिद्दी अलसी भी खड़ी हुई थी। उसका शरीर पतला और कमर लचकदार है। उस पर अनेक नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। वह नीले फूलों को अपने सिर पर चढ़ाकर कहती है कि जो मुझे स्पर्श करेगा, मैं उसे अपने हृदय का दान दूंगी।

भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का अनुपम चित्रण किया है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रकृति के सुंदर दृश्यों को सजीवता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
(ख) चने और अलसी के पौधों का मानवीकरण करके कवि ने अत्यंत सजीव एवं सार्थक कल्पना की है।
(ग) भाषा अत्यंत सरल एवं स्वाभाविक है।
(घ) ‘अलसी’ को हठीली कहकर ऐसे लोगों की प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
(ङ) मानवीकरण अलंकार है।
(च) ‘बीते के बराबर’, ‘फूले फूल’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(छ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(4) प्रस्तुत कविता में कवि ने खेतों में खड़ी फसल के सौंदर्य का भावपूर्ण चित्रण किया है। कवि के मन में इस औद्योगिक एवं प्रगति के युग में भी प्रकृति के नैसर्गिक रूप-सौंदर्य के प्रति लगाव शेष है। उसी कारण वह मार्ग में रुककर चने के पौधे और अलसी के फूलों एवं उनके परिवेश के सौंदर्य का आत्मीयतापूर्ण चित्रण करता है। उसने चने के पौधे का एक सजे हुए व्यक्ति के रूप में चित्रण किया है। उसी प्रकार अलसी को हठीली कहकर उसके स्वभाव को अंकित किया है। उसको पतली एवं उसकी कमर को लचीली कहकर उसके बाह्य सौंदर्य की अभिव्यक्ति की है। अतः स्पष्ट है कि प्रकृति का यह संपूर्ण चित्रण अत्यंत सजीव एवं आकर्षक है।

(5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने चने एवं अलसी की फसलों का वर्णन किया है।

(6) कवि ने चने के पौधे का रूप चित्रण करने हेतु एक सजे हुए राजकुमार या युवक की कल्पना की है। चने ने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और गुलाबी फूलों रूपी साफा बाँधा हुआ है। उसके वस्त्र एवं साफे के रंगों की सुंदरता देखने वालों के मन को आकृष्ट कर लेती है।

2. और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है। [पृष्ठ 120]

शब्दार्थ-पधारी = पहुँची। अनुराग-अंचल = प्रेममय वस्त्र। विजन = एकांत।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि के अनुसार सरसों ने हाथ पीले क्यों किए हैं?
(6) कवि ने प्रेम की प्रिय भूमि किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर-
(1) कवि श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हए लिखा है कि खेतों में उगी सरसों की बात मत पूछिए। वह सबसे सयानी हो गई है अर्थात अन्य फसलों की अपेक्षा उसकी ऊँचाई सबसे अधिक है। वह देखने में दूसरों से बड़ी लगती है। इतना ही नहीं, उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं अर्थात उस पर पीले रंग के फूल खिल गए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वह ब्याह के मंडप पर पधार गई है तथा फागुन मास भी वहाँ फाग के गीत गाता हुआ पधार गया है। कहने का भाव है कि फागुन मास में सरसों के पीले फूल खिल जाते हैं और लोग फाग के गीत गाने लगते हैं। कवि पुनः कहता है कि मुझे यह प्राकृतिक दृश्य देखकर लगता है कि मानों यहाँ किसी स्वयंवर की रचना की गई हो। यहाँ एकांत वातावरण है और प्रकृति का प्रेममय आँचल हिल रहा है अर्थात चारों ओर प्राकृतिक प्रेम का वातावरण छाया हुआ है। व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय भूमि अधिक उपजाऊ है अर्थात नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के हृदयों में प्रेम की भावना अधिक है।

भावार्थ – इन पंक्तियों मे कवि ने ग्रामीण अंचल की प्रकृति का मनोरम वर्णन किया है। सरसों के मानवीकरण के कारण वर्ण्य-विषय अत्यन्त रोचक बन पड़ा है।

(3) (क) संपूर्ण काव्यांश में प्रकृति की अनुपम छटा का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) सरसों पर मानवीय गतिविधियों के आरोप के कारण मानवीकरण अलंकार है।
(घ) ‘प्रकृति ……….. रहा है’ में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(ङ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
(च) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं सहज रूप में वर्णित है।
(छ) ‘अनुराग-अंचल’, ‘प्रेम की प्रिय’ में अनुप्रास अलंकार है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल में फैली प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि ने सरसों का मानवीकरण करते हुए उसके अनुपम सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। कवि द्वारा सरसों के पौधे की ऊँचाई देखकर उसको सयानी कहना उचित है। उस पर लदे हुए पीले फूलों को देखकर हाथ पीले करना कहना भी सार्थक है। सरसों के पौधों के आसपास अन्य फसलों के पौधे भी उगे हुए हैं। इसलिए कवि ने उस दृश्य की ब्याह के मंडप से तुलना की है। फागुन मास में गाए जाने वाले गीतों की ध्वनि को सुनकर कवि को फाग गाता हुआ-सा प्रतीत हुआ है। कवि ने प्रकृति के इस दृश्य को स्वयंवर कहा है, जो उचित है। कवि को वहाँ की प्रकृति का पूर्ण अंचल अनुरागमय लगता है। कवि का मत है कि व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर एकांत में अर्थात ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय यह भूमि अधिक उपजाऊ है। कहने का भाव है कि नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के मन में प्रेम की भावना अधिक होती है।

(5) कवि के अनुसार हाथ पीले कर लिए से तात्पर्य है कि सरसों की फसल काफी ऊँची हो गई है और उस पर पीले फूल लद गए हैं। इसलिए वह ऐसी लगती है कि मानो उसने अपने हाथ पीले कर लिए हों।

(6) कवि ने ग्रामीण अंचल की भूमि को प्रेम की प्रिय इसलिए कहा है, क्योंकि वहाँ के लोगों के मन में आपसी प्रेम की भावना अधिक होती है। नगरों के लोगों की भाँति उनमें होड़ व प्रतियोगिता से उत्पन्न घृणा व द्वेष भाव नहीं हैं।

3. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में! [पृष्ठ 120-121]

शब्दार्थ-पोखर = छोटा तालाब। नील तल = नीली सतह। आँख को चकमकाता = आँख में चमक लगना। मीन = मछली। ध्यान-निद्रा = ध्यान-मग्न। श्वेत = सफेद। टूट पड़ना = आक्रमण करना। चटुल = चंचल।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में वर्णित विषय के संदर्भ को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पंद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में वर्णित तालाब की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।।

(2) व्याख्या-कवि ने गाँव के छोटे तालाब का वर्णन करते हुए कहा है कि गाँव के अत्यंत समीप ही एक छोटा-सा तालाब है। उसमें छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। पानी की सतह पर भूरे रंग की घास उगी हुई है। वह भी पानी की लहरों के साथ-साथ हिल रही है। पानी में सूर्य का पड़ता हुआ प्रतिबिंब चाँदी के बड़े-से गोल खंभे के समान लग रहा था। उसे देखकर आँखें धुंधिया रही हैं। उस तालाब के किनारे पर कई पत्थर रखे हुए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वे चुपचाप पानी पी रहे हों। न जाने उनकी प्यास कब बुझेगी? उस तालाब में एक बगुला पानी में अपनी टाँग डुबोए हुए चुपचाप खड़ा हुआ है। किंतु किसी चंचल मछली को पानी में तैरते देखकर वह अपनी ध्यान निद्रा का एकाएक त्याग कर देता है और तुरंत मछली को पकड़कर खा जाता है।

वहाँ पर एक काले माथे वाली चतुर एवं चालाक चिड़िया भी उड़ रही है। वह अपने सफेद पंखों की सहायता से झपटा मारकर तुरंत जल की गहराई में डुबकी लगाकर एक सफेद रंग की चंचल व तेज तैरने वाली मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर दूर आकाश में उड़ जाती है।

भावार्थ-इस पद्यांश में कवि ने गाँव के तालाब और उसके आस-पास की प्राकृतिक छटा एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया है।

(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की सुप्रसिद्ध कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से उद्धत हैं। कवि चंद्र गहना से लौट रहा था। मार्ग में उसने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा को देखा। उसके प्रति कवि का मन सहज ही आकृष्ट हो उठा। उसी आकर्षण के भाव में उसने वहाँ के प्राकृतिक जीवन, खेत-खलिहान व आस-पास की अन्य वस्तुओं का वर्णन किया। इन पंक्तियों में गाँव के छोटे-से तालाब के दृश्य का अत्यंत मनोरम चित्र अंकित किया गया है।

(4) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्रकृति व वहाँ के वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(ख) सरल, सहज एवं स्वाभाविक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ग) कवि ने पोखर, बगुला और चतुर चिड़िया ये तीन अलग-अलग दृश्य-चित्रों के माध्यम से वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(घ) पत्थरों का मानवीकरण किया गया है।
(ङ) ‘नील तल’, ‘चतुर चिड़िया’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) ‘एक चाँदी ……….. खंभा’ में रूपक अलंकार है।
(छ) ‘झपाटे मारना’, ‘टूट पड़ना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ज) तत्सम शब्दों के साथ उर्दू भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

(5) प्रस्तुत कविता में कवि ने ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक सौंदर्य को अत्यंत भावपूर्ण शैली में चित्रित किया है। कवि ने तालाब में उठती छोटी-छोटी लहरों तथा उसमें उगे घास का सुंदर चित्रण किया है। पानी पर पड़ती सूर्य की किरणों की चमक के दृश्य को भी कवि ने अत्यंत मनोरम रूप में अभिव्यक्त किया है। कवि ने तालाब के किनारे पड़े पत्थरों का मानवीकरण करके वहाँ के दृश्य को और भी सजीव बना दिया है। तालाब के पानी में खड़े बगुले द्वारा पानी में तैरती हुई मछली को देखकर अपनी दिखावटी ध्यान-मग्नता को त्याग कर मछली पकड़कर निगल जाने का दृश्य भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। इसी प्रकार चतुर चिड़िया के द्वारा पानी में डुबकी लगाकर चंचल मछली को मुख में दबाकर आकाश में उड़ने का वर्णन भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत काव्यांश में प्राकृतिक सौंदर्य के विभिन्न रूपों को अत्यंत सजीवता से चित्रित किया गया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(6) प्रस्तुत कवितांश में चित्रित तालाब एक छोटा-सा तालाब है। उसका तल कच्चा है। उसमें घास उगी हुई है। उसके जल में छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। सूर्य की किरणों के पड़ने के कारण उसका जल चाँदी की भाँति चमक रहा है। वहाँ तरह-तरह के पक्षी अपनी स्वाभाविक क्रियाएँ कर रहे हैं।

4. औ’ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं। [पृष्ठ 121]

शब्दार्थ-ट्रेन = गाड़ी। टाइम = समय। स्वच्छंद = स्वतंत्र। अनगढ़ = टेढ़ी-मेढ़ी। रीवा = एक पेड़ का नाम । कुरूप = बुरे या भद्दे रूप वाले।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(4) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि के विषय में कवि ने क्या बताया है?
उत्तर-

(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या कवि का कथन है कि जहाँ वह खड़ा है, वहाँ की भूमि ऊँची है और वहीं पर रेल की पटरी बिछी हुई है। इस समय किसी भी रेलगाड़ी के आने का समय नहीं है। कवि को कहीं नहीं जाना है। इसलिए कवि अपने-आपको स्वतंत्र अनुभव करता है। कवि जहाँ खड़ा है, वहाँ से उसे चित्रकूट की टेढ़ी-मेढ़ी, चौड़ी-चौड़ी और कम ऊँचाई तक फैली हुई पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। इन पहाड़ियों के आस-पास की भूमि बंजर है। उस भूमि पर इधर-उधर कुछ रीवा के काँटेदार और कुरूप पेड़ खड़े हैं।

भावार्थ-इन पंक्तियों में ग्रामीण क्षेत्र के शांत एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है।

(3) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ख) भाषा गद्यमय होती हुई भी लययुक्त है।
(ग) ट्रेन एवं टाइम अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘काँटेदार कुरूप’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) ‘ऊँची-ऊँची’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चित्रकूट के आस-पास की पहाड़ियों व ऊबड़-खाबड़ और बंजर भूमि का वर्णन किया है। कवि ने वहाँ से जाने वाली रेल की पटरी का वर्णन किया है। पर रेल के जाने का अभी समय नहीं हुआ है। इसलिए कवि कुछ समय के लिए अपने-आपको हर प्रकार की चिंताओं से मुक्त पाता है। कवि ने चित्रकूट की समीपवर्ती पहाड़ियों और उनके आस-पास की बंजर भूमि का भी उल्लेख किया है। कवि ने इस दृश्य के वर्णन के माध्यम से जहाँ एक ओर वहाँ की प्रकृति का वर्णन किया है तो वहीं दूसरी ओर वहाँ के लोगों के जीवन की भी अप्रत्यक्ष रूप से झलक प्रस्तुत की है।।

(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि गाड़ी के आने का समय नहीं है अर्थात वहाँ बड़े-बड़े नगरों की भाँति गाड़ियों का अत्यधिक आना-जाना नहीं है। इसलिए कवि को कहीं नहीं जाना है और वह अपने-आपको स्वच्छंद अनुभव करता है।

(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि पर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिन पर वृक्ष या अन्य पौधे नहीं हैं। वहाँ केवल रीवा . के काँटेदार और कुरूप वृक्ष ही इधर-उधर खड़े हैं।

5. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे। [पृष्ठ 121-122]

शब्दार्थ-रस टपकाता = आनंद प्रदान करता। सुग्गा = तोता। वनस्थली = जंगल। जुगल = दो जोड़ी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(5) इस पद्यांश में कवि ने किन दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया है ?
(6) कवि का मन कहाँ और क्यों उड़ जाना चाहता है ?
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चंद्र गहना से लौटते समय मार्ग में आने वाले प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है। इन पंक्तियों में कवि ने जंगल में बोलते हुए सुग्गे की मधुर ध्वनि का वर्णन किया है। कवि को सुग्गे की ध्वनि में मीठा-मीठा रस अनुभव होता है। साथ ही उसे सुग्गे की ध्वनि जंगल के हृदय को चीरती हुई-सी प्रतीत हुई अर्थात जंगल में व्याप्त एकांत सुग्गे की ध्वनि से भंग हो रहा था। कवि सारस की ‘टिरटों टिरटों’ ध्वनि को सुनकर भी अत्यधिक प्रभावित हो उठता है। इसलिए कवि कहता है कि मेरा मन होता है कि मैं भी पंख फैलाकर उड़ते हुए सारस युगल के साथ ही वहाँ चला जाऊँ जहाँ हरे खेत में सारस की जोड़ी रहती है। वहाँ उनके सच्चे प्रेम की कहानी को चुपके-चुपके सुन लूँ।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की ध्वनियों का वर्णन करते हुए ध्वन्यात्मकता का सुंदर उल्लेख किया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(3) (क) संपूर्ण पद में सरल, सहज एवं गद्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
(ग) 2 2 2 टें तथा टिरटों, टिरटों प्रयोगों में ध्वन्यात्मकता द्रष्टव्य है।
(घ) ‘मीठा-मीठा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ङ) ‘सारस का स्वर’, ‘सारस के संग’ ‘जहाँ जुगुल जोड़ी’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) भाषा गद्यात्मक होते हुए भी लययुक्त है।

(4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अत्यंत भावात्मक शैली में जंगल के एकांतमय वातावरण एवं सुग्गे व सारस आदि पक्षियों की मधुर ध्वनियों का उल्लेख किया है। सुग्गे की टें 2 की ध्वनि को सुनकर जहाँ सुख व आनंद की अनुभूति होती है, वहीं वे ध्वनियाँ जंगल के एकांत वातावरण को भंग करती हुई लगती हैं। कवि ने सारस के मधुर स्वर के साथ-साथ सारस की जोड़ी की प्रेम कहानी का वर्णन लोक-प्रचलित विश्वास के अनुकूल किया है अर्थात लोक-जीवन में सारस के प्रेम को सच्चा-प्रेम स्वीकार किया गया है।

(5) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में सुग्गा व सारस दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया गया है।

(6) कवि का मन सारस के साथ उड़कर वहाँ जाने को करता है, जहाँ सारस रहते हैं ताकि वह चुपके-चुपके उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके। ।

चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi

चंद्र गहना से लौटती बेर कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर केदारनाथ अग्रवाल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री केदारनाथ अग्रवाल का प्रगतिवादी कवियों में प्रमुख स्थान है। उनका जन्म सन 1911 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए ये इलाहाबाद चले गए और वहाँ से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आगरा विश्वविद्यालय में एल०एल०बी० की उपाधि प्राप्त कर ये बाँदा में वकालत करने लगे। वकालत करने के साथ-साथ श्री केदारनाथ अग्रवाल राजनीतिक और सामाजिक जीवन से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही ये हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन से भी घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे। प्रगतिवादी कवियों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। श्री अग्रवाल जी आजीवन साहित्य रचना करते रहे। उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखकर माँ भारती के आँचल को समृद्ध किया है। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अग्रवाल जी का निधन सन 2000 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘नींद के बादल’, ‘युग की गंगा’, ‘लोक तथा आलोक’, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’, ‘पंख और पतवार’, ‘हे मेरी तुम’, ‘मार प्यार की थापें’, ‘कहे केदार खरी-खरी’ आदि उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-अग्रवाल जी को अपने शिक्षकों से लिखने की प्रेरणा मिली। आरंभ में उन्होंने खड़ी बोली में कवित्त और सवैये लिखने शुरू किए। ‘नींद के बादल’ उनका प्रारंभिक काव्य-संग्रह था। उनके काव्य में जहाँ एक ओर ग्रामीण प्रकृति तथा प्रेम की सुंदर भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है, वहीं दूसरी ओर प्रगतिवादी दृष्टिकोण को भी स्वर मिला है। ये प्रकृति के सुंदर, कोमल और स्वाभाविक चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त हैं। ‘लोक तथा आलोक’ पूर्णतया प्रगतिवादी रचना है। समाज के पूँजीपतियों, ज़मींदारों तथा शोषकों के अत्याचारों के परिप्रेक्ष्य में कवि ने शोषितों एवं उपेक्षितों की व्यथा का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर उनकी वाणी आक्रोश का रूप धारण कर लेती है और वे शोषक वर्ग को भला-बुरा भी कहना शुरू कर देते हैं। उन्होंने समाज के गरीबों की गरीबी पर खुलकर आँसू बहाए हैं। उनका समूचा काव्य यथार्थ की भूमि पर खड़ा है, लेकिन यथार्थवाद अन्य प्रगतिवादी कवियों की तरह शुष्क नहीं है। उसमें कुछ स्थलों पर राग भी हैं, जो पाठक के मन को छू लेते हैं।

4. भाषा-शैली-केदारनाथ अग्रवाल के काव्य का कला-पक्ष भाव-पक्ष की तरह सशक्त एवं प्रभावशाली है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताज़गी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा में खड़ी बोली का परिमार्जित रूप देखा जा सकता है। शब्द-चयन और अभिव्यक्ति अग्रवाल जी की अपनी कला है। उनके काव्य की विशेषता जीवन और उससे उपजी हुई रागात्मकता से साक्षात्कार करना है। उन्होंने अनेक स्थलों पर जनभाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने आवश्यकतानुसार आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग किया है।

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता में कविवर केदारनाथ अग्रवाल ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति प्रेम स्वाभाविक एवं नैसर्गिक रूप में अभिव्यक्त हुआ है। वस्तुतः कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते समय कवि के मन को खेत-खलिहान और उनका प्राकृतिक परिवेश अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। कवि ने मार्ग में जो कुछ देखा है, उसका वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मैं चंद्र गहना देख आया हूँ, किंतु अब खेत के किनारे पर बैठा हुआ देख रहा हूँ कि एक बालिश्त के बराबर हरा ठिगना-सा चने का पौधा है जिस पर छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। साथ ही अलसी का पौधा भी खड़ा है, जिस पर नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। इसी प्रकार चने के खेत के बीच-बीच में सरसों खड़ी थी। उस पर पीले रंग के फूल खिले हुए थे। उसे देखकर ऐसा लगता है कि मानों उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं और वह विवाह के मण्डप में पधार रही है। फागुन का महीना है। चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छाया हुआ है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्वयंवर रचा हो। यहाँ नगरों से दूर ग्रामीण अंचल में प्रिय की भूमि उपजाऊ अधिक है। वहाँ साथ ही एक छोटा-सा तालाब है। उसके किनारे पर कई पत्थर पड़े हुए हैं।

एक बगुला भी एक टाँग उठाए जल में खड़ा है, जो मछली के सामने आते ही अपनी चोंच में पकड़कर उसे खा जाता है। इसी प्रकार वहाँ काले माथे वाली और सफेद पंखों वाली चतुर चिड़िया भी उड़ रही है। वह जल में मछली देखकर उस पर झपट पड़ती है और उसे मुख में पकड़कर दूर आकाश में उड़ जाती है। वहाँ से कुछ दूरी पर रेल की पटरी बिछी हुई है। ट्रेन आने का अभी कोई समय नहीं है। वहाँ चित्रकूट की कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ भी दिखाई देती हैं। साथ ही बंजर भूमि पर दूर तक फैले हुए काँटेदार रीवा के पेड़ भी दिखाई दे रहे हैं। उस सुनसान वातावरण में सुग्गे का स्वर मीठा-मीठा रस टपकाता हुआ लगता है। वह उस एकांत का हृदय चीरता हुआ-सा प्रतीत होता है। सारस के जोड़े की टिरटों-टिरटों की ध्वनि भी अच्छी लगती है। कवि का हृदय भी उस सारस जोड़ी के साथ खेतों में उड़ने को लालायित हो उठता है ताकि वह चुपके से उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत शब्दचित्र में प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं-

(1) वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी से कोई वस्तु माँगना उनको स्वीकार नहीं था।
(2) वे यथार्थ का सामना निडरतापूर्वक करते थे।
(3) समझौतावादी विचारधारा को अपनाकर उन्होंने कभी भी जीवन का कोई सुख प्राप्त नहीं किया।
(4) दिखावे की दुनिया से वे कोसों दूर थे। अपनी कमजोरियों को छुपाकर समाज के सामने अच्छा दिखना उन्हें कभी पसंद नहीं था।
(5) संघर्ष को वे जीवन का अभिन्न एवं अनिवार्य अंग मानते थे।

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (N) का निशान लगाइए
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौंसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो।
उत्तर-
(क) ।, (ख)।

प्रेमचंद के फटे जूते HBSE 9th Class प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
उत्तर-
(क) लेखक के अनुसार आज के समाज में आदर और सम्मान की प्रतीक टोपी का मूल्य कुछ भी नहीं है अर्थात समाज में सम्माननीय लोगों का आदर घट रहा है। बुरे-से-बुरा या नीच व्यक्ति, जो जूते तुल्य है, यदि शक्ति प्राप्त कर ले तो समाज के लोग उसका आदर करने लगते हैं। यहाँ तक कि टोपी अर्थात ऊपर रहने वाले लोग भी उसका सम्मान करते हैं।
(ख) प्रस्तुत कथन में जहाँ प्रेमचंद के व्यक्तित्व के खुलेपन को उद्घाटित किया गया है वहाँ आडंबर व दिखावे में विश्वास रखने वाले लोगों पर भी करारा व्यंग्य कसा है। वे लोग अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालते रहते हैं और समाज की दृष्टि में अच्छे बने रहते हैं।
(ग) प्रेमचंद के फटे हुए जूते में से बाहर निकली हुई पैर की अंगुली की ओर देखकर लेखक ने कहा है कि वह अँगुली लेखक और समाज पर व्यंग्य कर रही है और संकेत द्वारा उनके प्रति अपनी घृणा को प्रकट कर रही है। इस घृणा का कारण संभवतः यह था कि समाज के लोग परिस्थितियों से जूझने के बदले उनसे समझौता करते रहे, जबकि प्रेमचंद ने राह में आने वाली बाधा रूपी चट्टानों से निरंतर संघर्ष किया, उन्हें लगातार ठोकर मारी और इसी प्रयास में उनके जूते भी फट गए; किंतु कभी भी झूठी मान्यताओं और आडंबरों के प्रभाव में आकर समझौता नहीं किया।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर-
प्रेमचंद के विषय में लेखक के विचार बदलने का प्रमुख कारण यह था कि पहले तो यह देखकर लेखक को खीझ आती है कि यदि प्रेमचंद को फोटो ही खिंचवाना था तो वे किसी से पोशाक माँगकर काम चला सकते थे और यदि यह इनकी फोटो खिंचवाने की पोशाक है तो पहनने की कैसे होगी, किंतु फिर अगले ही क्षण प्रेमचंद के स्वाभिमान, उनकी यथार्थ भावना का ध्यान कर लेखक सोचता है कि आडंबर रहित जीवन जीने वाले प्रेमचंद के लिए अलग-अलग पोशाकों को रखना संभव नहीं है। इसी कारण वे प्रेमचंद की महानता के प्रति अभिभूत-से हो उठे और उनके प्रति अपने मन में आई खीझ को एकाएक त्याग दिया।

प्रेमचंद के फटे जूते Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर-
पाठ पढ़कर लेखक की यह बात सबसे अधिक आकृष्ट करती है कि वे अत्यंत सरल भाषा में सहजता से समाज में पनपती बुराइयों को निशाना बनाकर एक तीव्र व्यंग्य बाण छोड़ देते हैं जो पाठक को प्रभावित ही नहीं करता, अपितु उस समस्या की ओर भी उसका ध्यान तरह आकृष्ट कर देता है। इसके साथ-साथ लेखक को विस्तारण (विस्तार) की शैली अत्यंत पसंद है। वे फटे जूते का प्रसंग आरंभ करके प्रेमचंद जी के संपूर्ण जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कर जाते हैं, जैसे बीज से लेकर फल-फूलों तक पहुँचना होता है। बात में से बात निकालने की कला में भी वे निपुण हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर-
वस्तुतः ‘टीला’ शब्द मार्ग में आने वाली बाधा का प्रतीक है। जैसे बहती हुई नदी में खड़ा कोई टीला सारे बहाव का रुख ही बदल देता है; उसी प्रकार अनेकानेक कुरीतियाँ, बुराइयाँ और भ्रष्ट आचरण भी जीवन की सहज गति में रुकावटें उत्पन्न कर देते हैं। प्रस्तुत पाठ में ‘टीला’ शब्द समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, छुआछूत, जाति-पाँति, पूँजीवादी व्यवस्था आदि के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रेमचंद के फटे जूते Summary HBSE 9th Class प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपनी अध्यापिका/अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

Class 9 Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर-
पहले लोग वेशभूषा के विषय में अधिक सतर्क नहीं थे। जीवन में सादगी को महत्त्व दिया जाता था। वेशभूषा को तो बाहरी आवरण समझा जाता था, वास्तविक चीज तो शुद्धाचरण माना जाता था। किंतु बदलते समय के अनुसार आज वेशभूषा व्यक्ति के आकर्षण का केंद्र बन गई है। यही कारण है कि वे अपने आचरण की ओर ध्यान न देकर अच्छी-से-अच्छी व महँगी पोशाक पहनना चाहते हैं। आज वेशभूषा ही मानव के व्यक्तित्व का प्रतीक बन गई है।

भाषा-अध्ययन

Class 9 Hindi Chapter 6 Solutions HBSE प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर–
पाठ में आए मुहावरे निम्नलिखित हैं-
1. हौंसले पस्त करना-जोश ठंडा करना।
तेज गेंदबाज मुकेश के सामने आते ही विपक्षी टीम के हौसले पस्त हो जाते हैं।

2. दृष्टि अटकना-आकृष्ट होना।
प्रेमचंद का चित्र देखते ही लेखक की दृष्टि अटक गई।

3. जूते घिसना-चक्कर काटना।
नौकरी पाने के लिए तो जूते घिसाने पड़ते हैं।

4. ठोकर मारना-चोट मारना।
प्रेमचंद राह में आने वाले संकटों पर आजीवन ठोकर मारते रहे।

5. टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना।
जीवन में आने वाले टीलों से घबराना नहीं चाहिए।

Class 9 Hindi Chapter 6 HBSE प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर-
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने इन विशेषणों का उपयोग किया है-
(1) साहित्यिक पुरखे,
(2) महान कथाकार,
(3) उपन्यास-सम्राट,
(4) युग-प्रवर्तक।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठेतर सक्रियता

  • महात्मा गांधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे, पता लगाइए।
  • महादेवी वर्मा ने ‘राजेंद्र बाबू’ नामक संस्मरण में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद का कुछ इसी प्रकार चित्रण किया है, उसे पढ़िए।
  • अमृतराय लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘प्रेमचंद-कलम का सिपाही’ पुस्तक पढ़िए।

उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

यह भी जानें

कुंभनदास-ये भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे तथा आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवियों में से एक थे। एक बार बादशाह अकबर के आमंत्रण पर उनसे मिलने वे फतेहपुर सीकरी गए थे। इसी संदर्भ में कही गई पंक्तियों का उल्लेख लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

Kshitij Chapter 6 HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की सादगी और सरलता का वर्णन किया है। यही इस पाठ का मूल उद्देश्य भी है। इसके साथ-साथ समाज में फैली दिखावे की प्रवृत्ति पर प्रकाश डालना भी प्रस्तुत पाठ का लक्ष्य है। लेखक ने प्रेमचंद की उस फोटो का वर्णन किया जिसमें उनका एक जूता आगे से फटा हुआ है और उनका पाँव का अँगूठा उसमें से बाहर झाँक रहा था। उस चित्र में वे अपने जीवन के दर्द से बाहर आकर मुस्कुराना चाहते थे किन्तु ऐसा नहीं कर सके। लेखक ने समाज के विषय में बताया है कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए जूते, कपड़े तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं, किन्तु प्रेमचंद ने अपने स्वाभिमान के कारण कभी किसी से कुछ नहीं माँगा। वे संसार के सुखों को ठुकराकर अपनी साहित्य-साधना में लीन रहे। उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु कभी समझौता नहीं किया। उनका वह फटा हुआ जूता बता रहा है लोग अपने फटे जूतों को ढकने के लिए खुशामद करने में जूते के तलवे घिसा देते हैं। कहने का भाव यह है कि इस पाठ का उद्देश्य प्रेमचंद के व्यक्तित्व की इन्हीं महान् विशेषताओं का उल्लेख करना और समाज के खुशामदीपन पर व्यंग्य करना है।

Hindi Class 9 Chapter 6 Kshitij HBSE प्रश्न ,2.
पठित निबंध के आधार पर प्रेमचंद की वेश-भूषा एवं रहन-सहन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रेमचंद धोती-कुरता पहनते थे और सिर पर साधारण-सी टोपी धारण करते थे। उनका जीवन किसानों की भाँति ही अत्यंत साधारण था। उनका रहन-सहन भी आडंबरहीन और सादगीयुक्त था। उनके रहन-सहन व वेश-भूषा को देखकर उनके सरल एवं सहज व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

Class 9th Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 3.
‘प्रेमचंद आडंबरहीन जीवन में विश्वास रखते थे।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही प्रेमचंद आडंबरहीन व दिखावे-विहीन जीवन में विश्वास रखते थे। उनके पास जो भी, जैसी भी पोशाक होती थी, उसे वे बिना किसी दिखावे के पहनते थे। उन्होंने अपनी गरीबी को भी कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि उन्होंने फोटो खिंचवाते समय भी दूसरे लोगों की भाँति बनावटी वेश-भूषा धारण नहीं की।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 4.
लोग फोटो खिंचवाते समय क्या-क्या करते हैं ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
लोग फोटो खिंचवाते समय सुंदर-सुंदर पोशाक पहनते हैं, ताकि वे फोटो में सुंदर लगें। यदि अपने पास सुंदर पोशाक नहीं है तो दूसरे से उधार लेकर पोशाक व जूते पहनते हैं। कुछ लोग सुगंधित तेल तक लगा लेते हैं ताकि फोटो खुशबूदार बने।

प्रश्न 5.
‘सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक के इस कथन से अभिप्राय है कि जिस प्रकार प्रत्येक नदी शक्तिशाली नहीं होती कि वह मार्ग में आने वाले पहाड़ को तोड़कर अपना मार्ग बना ले। ऐसे ही प्रेमचंद की भाँति सारे लोग ऐसे नहीं होते कि जो बाधाओं से संघर्ष करके उन्हें अपने जीवन से हटा दें। प्रेमचंद ने अपने जीवन में आने वाली बाधाओं से समझौता करके जीवनयापन नहीं किया, अपितु उनका विरोध करके उन्हें अपने जीवन से हटा दिया था।

प्रश्न 6.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद ने अपने जीवन में समाज में फैली बुराइयों पर खूब ठोकरें मारी हैं। उन्होंने जीवन में आने वाली बाधाओं से बचकर निकलने का भी कभी प्रयास नहीं किया। इसी कारण उनके जूते फट गए। उन्हें जीवन में धन-वैभव नहीं मिला । वे श्रमिकों के हिमायती बने रहे। इसलिए पूँजीपतियों ने उनका समर्थन नहीं किया। यदि वे पूँजीपतियों के हक की बात लिखते तो उन्हें धन-वैभव मिलता, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें आजीवन अभावों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 7.
चक्कर काटने से क्या होता है ? यह कुंभनदास कौन था?
उत्तर-
चक्कर काटने से जूता फटता नहीं, अपितु घिस जाता है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में ही घिस गया था। उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ था। उसने कहा था–
“आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम।”
कुंभनदास कृष्ण भक्त कवि था। वह अष्टछाप कवियों में से एक प्रमुख कवि था। वह बादशाह अकबर के बुलावे पर फतेहपुर सीकरी गया था। यहाँ उसने अपने अनुभव का वर्णन किया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) हरिशंकर परसाई
(C) महादेवी वर्मा
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) हरिशंकर परसाई

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद किसके साथ फोटो खिंचवा रहे थे?
(A) बेटे के साथ
(B) किसी मित्र के साथ
(C) पत्नी के साथ
(D) अपनी माता के साथ
उत्तर-
(C) पत्नी के साथ

प्रश्न 3.
प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाते समय सिर पर क्या पहना हुआ था?
(A) पगड़ी
(B) मुकुट
(C) सेहरा
(D) टोपी
उत्तर-
(D) टोपी

प्रश्न 4.
प्रेमचंद का चेहरा भरा-भरा किस कारण से लग रहा था?
(A) घनी मूंछों से
(B) बढ़ी हुई दाढ़ी से
(C) चेहरे की गोलाई से
(D) चेहरे के भारीपन से
उत्तर-
(A) घनी मूंछों से

प्रश्न 5.
प्रेमचंद ने चित्र में कैसे जूते पहने हुए थे?
(A) चमड़े के
(B) रबड़ के
(C) केनवस के
(D) जूट के
उत्तर-
(C) केनवस के

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 6.
प्रेमचंद का फोटो देखकर लेखक की दृष्टि कहाँ पर अटक गई थी?
(A) टोपी पर
(B) कुर्ते पर
(C) बालों पर
(D) फटे हुए जूते पर
उत्तर-
(D) फटे हुए जूते पर।

प्रश्न 7.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद में कौन-सा गुण नहीं रहा होगा?
(A) पोशाक बदलने का
(B) दिखावा करने का
(C) फोटो खिंचवाने का
(D) सजने संवरने का
उत्तर-
(A) पोशाक बदलने का

प्रश्न 8.
लेखक को प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान में क्या अनुभव हुआ था?
(A) व्यंग्य
(B) दया
(C) सहानुभूति
(D) शांति का भाव
उत्तर-
(A) व्यंग्य

प्रश्न 9.
“दर्द के गहरे कुएँ के तल में पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने बैंकय कहा होगा” लेखक ने इस कथन से प्रेमचंद के जीवन की किस विशेषता को उजागर किया है?
(A) लापरवाही
(B) निराशा
(C) उदारता
(D) प्रसन्नचित्त
उत्तर-
(B) निराशा

प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने फोटो किसके आग्रह पर खिंचवाई होगी? ।
(A) लेखक के
(B) बेटे के
(C) मित्र के
उत्तर-
(D) पत्नी के

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद के जीवन संबंधी कौन-सी ‘ट्रेजडी’ है?
(A) उसे फोटो खिंचवाने का चाव नहीं
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था
(C) उसे फोटो खिंचवाना नहीं आता था
(D) उन्हें फोटो के प्रति लगाव नहीं था
उत्तर-
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था

प्रश्न 12.
फोटो खिंचवाने के लिए वस्तुएँ मांगने के प्रसंग के माध्यम से लेखक ने समाज की किस विशेषता पर व्यंग्य किया है?
(A) दिखावे की
(B) यथार्थवादी होने की
(C) ईमानदारी की
(D) उदारता की
उत्तर-
(A) दिखावे की

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार किसका किससे अधिक मूल्य रहा है?
(A) आदमी का फोटो से
(B) जूते का टोपी से
(C) पुरुष का स्त्री से
(D) इंसानियत का इंसान से
उत्तर-
(B) जूते का टोपी से

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प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार टोपी किसका प्रतीक है?
(A) लालची व्यक्ति का
(B) उदार व्यक्ति का
(C) सम्माननीय व्यक्ति का
(D) धनी व्यक्ति का
उत्तर-
(C) सम्माननीय व्यक्ति का

(D) पत्नी के

प्रश्न 15.
जूता किसका प्रतीक है?
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का
(B) लालची व्यक्ति का
(C) अत्याचारी का
(D) कठोर हृदय व्यक्ति का
उत्तर-
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का

प्रश्न 16.
लेखक को प्रेमचंद की मुस्कान के पीछे क्या छुपा हुआ अनुभव हुआ था?
(A) उनका लालचीपन
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा
(C) दिखावे की छलना
(D) उदारता का भाव
उत्तर-
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा

प्रश्न 17.
किस कहानी में नीलगाय हल्कू किसान का खेत चर गई थी?
(A) दो बैलों की कथा
(B) पंच परमेश्वर
(C) कफन
(D) पूस की रात
उत्तर-
(D) पूस की रात

प्रश्न 18.
होरी प्रेमचंद के किस उपन्यास का पात्र है?
(A) निर्मला
(B) गोदान
(C) कर्मभूमि
(D) रंगभूमि
उत्तर-
(B) गोदान

प्रश्न 19.
‘जूता घिसना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) जूता फटना
(B) जूता टूटना
(C) बहुत प्रयत्न करना
(D) व्यर्थ में चक्कर काटना
उत्तर-
(C) बहुत प्रयत्न करना

प्रश्न 20.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद की क्या कमजोरी थी?
(A) वे नेम धर्म में विश्वास नहीं रखते थे
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे
(C) वे नेम धर्म को जीवन के लिए अनावश्यक मानते थे
(D) वे दोस्तों के साथ रहते थे
उत्तर-
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे

प्रश्न 21.
‘जंजीर’ का क्या तात्पर्य है?
(A) जंजीर की तरह पक्का
(B) जंजीर की तरह लंबा
(C) बंधन
(D) मुक्ति
उत्तर-
(C) बंधन

प्रश्न 22.
प्रेमचंद के जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना
(B) जीवन में तेज-तेज चलना
(C) जूते के लिए पैसे न होना
(D) जूते गंठवाने के लिए समय का अभाव
उत्तर-
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 23.
‘पन्हैया’ से क्या अभिप्राय है?
(A) वस्त्र
(B) पहनने योग्य
(C) जूतियाँ
(D) आभूषण
उत्तर-
(C) जूतियाँ

प्रेमचंद के फटे जूते प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। [पृष्ठ 61]

शब्दार्थ चित्र = फोटो। कनपटी = कान के साथ वाला भाग। केनवस = मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। लापरवाही = उपेक्षापूर्ण। परेशानी = दुःख।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इसमें उन्होंने लेखकों की दुर्दशा और दिखावा करने वाले लोगों पर एक साथ व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद की वेशभूषा एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने कहा है कि प्रेमचंद का एक चित्र उनके सामने है। उस चित्र में वे पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर मोटे कपड़े की टोपी पहन रखी है। कुरता और धोती पहनी हुई है। कानों के साथ का भाग चिपटा हुआ है। गालों की हड्डियाँ कुछ उभरी हुई हैं। किंतु उनकी मूंछे घनी हैं, जिससे उनका चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगता है।

प्रेमचंद जी ने पाँवों में केनवस के जूते पहन रखे हैं, जिनके बंद (फीते) गलत ढंग से बाँधे हुए हैं। उनकी लापरवाही के कारण बंदों के सिरे पर लोहे की पतरी निकल गई है। इसलिए उन्हें बंदों को जूतों के सुराखों में डालने में कठिनाई होती है। इसलिए वे बंदों को जैसे-तैसे कस ही लेते हैं। उनके दाहिने पाँव का जूता ठीक है, किंतु बाएँ पाँव का जूता फटा हुआ है। उसमें आगे की ओर एक बहुत बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि इतने बड़े साहित्यकार का व्यक्तित्व उनकी दयनीय दशा को दर्शा रहा है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के फटे जूतों की ओर संकेत करके उनके आर्थिक अभावों को व्यक्त किया है।
  2. भाषा सहज, सरल एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के सामने किसकी फोटो है ?
(2) फोटो के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा पर प्रकाश डालिए।
(3) प्रेमचंद के जूतों का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रेमचंद को बंद बाँधने में परेशानी क्यों होती है ?
उत्तर-
(1) लेखक के सामने प्रेमचंद की फोटो है।
(2) फोटो के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रेमचंद ने मोटे कपड़े की बनी टोपी, धोती तथा कुरता पहना हुआ है। उनके गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी मूंछे घनी हैं। उनके जूते फटे हुए हैं।
(3) प्रेमचंद ने पैरों में केनवस के जूते पहने हुए हैं। उनके फीते ठीक ढंग से नहीं बँधे हुए। फीतों के सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है।
(4) प्रेमचंद जूतों के फीतों को बाँधने में लापरवाही करते हैं। इसलिए उनके सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है। अब फीतों को छेदों में डालने में परेशानी होती है। इसलिए प्रेमचंद के जूतों के फीते ठीक से नहीं बँध पाते।

2. फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-आग्रह = जोर देकर कहा गया कथन। ट्रेजडी = हादसा (दुःख की बात)। क्लेश = दुःख। महसूस = अनुभव। दर्द = पीड़ा। व्यंग्य = ताना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के सहज स्वभाव का उल्लेख किया है। .

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने जब प्रेमचंद की फोटो को ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि उनका जूता फटा हुआ था और उसमें से उसकी एक अँगुली बाहर निकली हुई थी। जो बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। इस पर लेखक को थोड़ा-सा क्रोध . आया और उसने कहा फोटो ही खिंचवाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचवाते। फोटो न खिंचवाने से क्या बिगड़ जाता। लेखक के कहने का भाव यह है कि बुरी फोटो खिंचवाने से न खिंचवाना ही ठीक रहता। किंतु लेखक पुनः सोचता है कि शायद फोटो खिंचवाने का आग्रह पत्नी का रहा हो और प्रेमचंद जी पत्नी की बात भला कैसे टाल सकते थे। इसलिए यह कहते हुए ‘अच्छा चल भई’ कहकर फोटो खिंचवाने बैठ गए होंगे। किंतु यह कितने दुःख की बात है कि आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी कोई अच्छा जूता न हो। शायद प्रेमचंद के पास भी दूसरा जूता न हो। इसीलिए वे फटा हुआ जूता पहनकर फोटो खिंचवाने बैठ गए हों। लेखक प्रेमचंद की विवशता पर विचार व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते तुम्हारे दुःख को अपने में अनुभव करके रो देना चाहता हूँ अर्थात लेखक को प्रेमचंद की फटा हुआ जूता पहनने की मजबूरी के प्रति पूर्ण सहानुभूति है, किंतु प्रेमचंद की आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य उसे एकदम रोने से रोक देता है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी की ओर संकेत किया है।
  2. फोटो खिंचवाते समय प्रेमचंद के पास पहनने के लिए कोई अच्छा जूता न होने से उनके जीवन के अभावों को व्यक्त किया गया है।
  3. लेखक की साहित्यकार के अभाव भरे जीवन के प्रति पूर्ण सहानुभूति व्यक्त हुई है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक ने प्रेमचंद को क्या सलाह दी है?
(2) लेखक को फोटो खिंचाने का क्या कारण प्रतीत हो रहा है?
(3) प्रस्तुत गद्यांश में किसकी ट्रेजडी की बात कही गई है?
(4) लेखक का रोना एकाएक कैसे रुक जाता है?
उत्तर-
(1) लेखक ने प्रेमचंद को सलाह दी है कि या तो वे फोटो खिंचवाते ही नहीं। यदि फोटो खिंचवाना ही था तो जूते तो ठीक ढंग के पहन लेते।
(2) लेखक को लगता है कि प्रेमचंद की फोटो खिंचवाने की इच्छा नहीं थी। संभवतः उनकी पत्नी ने फोटो खिंचवाने के लिए आग्रह किया हो और वे ‘न’ नहीं कह सके हों। इस प्रकार फोटो खिंचवाना प्रेमचंद की मजबूरी प्रतीत होती है।
(3) प्रस्तुत गद्यांश में प्रेमचंद के जीवन की ट्रेजडी की बात कही गई है कि इतने बड़े साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए ठीक ढंग के जूते भी नहीं थे। यह निश्चय ही एक ट्रेजडी थी।
(4) लेखक प्रेमचंद के मन के दुःख को अपने हृदय में अनुभव करके रो देना चाहता था, किंतु प्रेमचंद की आँखों में दिखाई देने वाला तीखा दर्द उसे रोने से एकदम रोक देता है।

3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है![पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-वर = दूल्हा। इत्र चुपड़ना = खुशबूदार तेल लगाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से लिया गया है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी व गरीबी का वर्णन किया है। साथ ही दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लोगों की माँगकर पहनी हुई वस्तुओं से अच्छा दिखने की प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने फोटो में प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर कहा है कि तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते, क्योंकि लोग फोटो देखकर ही व्यक्ति के महत्त्व का आकलन करते हैं। यदि तुम फोटो के महत्त्व को समझते तो फोटो खिंचवाने के लिए किसी से अच्छे से जूते माँग लेते। लेखक ने दूसरों से वस्तुएँ माँगकर फोटो खिंचवाने वालों पर कटाक्ष करते हुए पुनः कहा है कि लोग तो माँगा हुआ कोट पहनकर दूल्हा बन जाते हैं। लोग तो माँगी हुई कार से बारात भी निकालते हैं जिससे लोगों की नजरों में उनकी शान-शौकत बढ़े। यहाँ तक कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों की बीवी भी माँग लेते हैं अर्थात दूसरों की बीवी के साथ फोटो खिंचा लेते हैं। दूसरी ओर तुम हो कि तुमसे जूते भी माँगते न बना। निश्चय ही तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते। लोग तो खुशबूदार तेल लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से भी खुशबू आए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है अर्थात गंदे-से-गंदे आदमी भी बन-सँवरकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि वे फोटो में सुंदर लगें।

विशेष-

  1. प्रेमचंद की सादगी पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि वे गरीब भले ही थे, किंतु दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे।
  2. लेखक ने दिखावे की प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, किंतु व्यंग्यात्मक है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

(1) कौन फोटो का महत्त्व नहीं समझता? लेखक ने ऐसा क्यों कहा? ।
(2) लोग फोटो के लिए क्या-क्या माँग लेते हैं ?
(3) “गदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है” वाक्य में छुपे व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
(4) यदि प्रेमचंद फोटो के महत्त्व को समझते तो क्या कर लेते ?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद फोटो का महत्त्व नहीं समझते थे। वे फोटो खिंचवाना सामान्य-सी बात समझते थे। तभी तो वे फटे हुए जूते पहनकर ही फोटो खिंचवाने बैठ गए।
(2) लोग फोटो में सुंदर दिखने के लिए अपने आपको सुंदर बनाकर कैमरे के सामने प्रस्तुत करते हैं। वे उधार के जूते, वस्त्र यहाँ तक कि उधार की बीवी भी माँग लेते हैं। कई लोग फोटो खिंचवाने के लिए सुगंधित तेल तक लगाते हैं।
(3) इस कथन में यह व्यंग्य निहित है कि बुरे लोग अपनी छवि सुंदर बनाकर पेश करते हैं। वे हर प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करके अपनी छवि सुधारने का प्रयास करते हैं। गंदे आदमी अपने गंदे कामों को छिपाकर हर प्रकार से अच्छे दिखने का प्रयास किया करते हैं।
(4) यदि प्रेमचंद जी फोटो का महत्त्व समझते तो किसी के जूते माँग लेते जिससे उनकी फोटो सुंदर दिखाई देती।

4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। वह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-जमाने = समय। कीमती = महँगा। न्योछावर = कुर्बान। आनुपातिक = अनुपात। विडंबना = दुर्भाग्य। तीव्रता = तेज़ी। युग-प्रवर्तक = युग बदलने वाले।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में इतने बड़े साहित्यकार कहलवाने वाले प्रेमचंद की आर्थिक दुर्दशा पर व्यंग्य किया गया है। इतने बड़े साहित्यकार होने पर उनका सम्मान सबसे अधिक होना चाहिए था और उनके पास पर्याप्त सुख-सुविधाएँ भी होनी चाहिए थीं जो कभी नहीं हुईं। उन्हें आजीवन गरीबी में ही जीना व मरना पड़ा।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने टोपी व जूते की कीमत को लेकर समाज में उनके प्रति दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा है कि टोपी आठ आने की मिल जाती है और जूते उस समय में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि टोपी उस समय जूतों से बहुत सस्ती थी। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है और अब तो जूते की कीमत और भी बढ़ गई है। एक जूते के बदले पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं अर्थात एक जूते की कीमत में पच्चीस टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। जबकि जूतों की अपेक्षा टोपी का स्थान अधिक सम्माननीय है। इसलिए टोपी की कीमत अधिक होनी चाहिए थी। लेखक ने प्रेमचंद जी को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम जूते और टोपी के मूल्य के अनुपात अधिक होने के कारण जूता नहीं खरीद सके, टोपी खरीद ली और जूता फटा हुआ ही पहन लिया क्योंकि जूता अधिक महँगा था और तुम्हारे पास जूता खरीदने के लिए धन नहीं था। प्रेमचंद का प्रसंग सामने आने से पूर्व लेखक को इस विडंबना की तीव्रता कभी अनुभव नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है, वह भी उस समय जब प्रेमचंद का फटा हुआ जूता देख रहा था। कहने का भाव है कि जो वस्तु अधिक सम्मानजनक है, वह सस्ती है और जो वस्तु सम्मानजनक नहीं है, वह महँगी है। वास्तव में यह एक विडंबना ही है। इसके अतिरिक्त प्रेमचंद कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट और युग को बदलने वाले थे और भी न जाने क्या-क्या कहलाते थे। किंतु फोटो में जूता फटा हुआ है अर्थात इतना बड़ा साहित्यकार होने पर भी उनकी आर्थिक दशा इतनी कमज़ोर है कि वे एक अच्छा जूता भी नहीं खरीद सकते।

विशेष-

  1. लेखक ने टोपी और जूते की कीमत के अंतर पर प्रकाश डाला है।
  2. लेखक ने समाज के उस दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वह टोपी जैसे सम्माननीय लोगों का सम्मान नहीं करते और जो जूते की भाँति अधिक सम्माननीय नहीं हैं उन्हें अधिक सम्मान दिया जाता है। उनके सामने कितनी टोपियाँ झुकती हैं।
  3. प्रेमचंद की आर्थिक दशा पर प्रकाश डाला गया है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  5. व्यंग्यात्मक शैली है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

5. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे। [पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर । ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अंगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

6. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे।
[पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर। ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अँगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक का अपना जूता कैसा है?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(3) लेखक अपने बारे में क्या बताता है?
(4) परदे के प्रसंग पर लेखक तथा प्रेमचंद में क्या अंतर है?
उत्तर-
(1) लेखक का अपना जूता भी अच्छी स्थिति में नहीं था। यद्यपि वह ऊपर से अच्छा दिखाई देता था, परंतु उसका तला (नीचे का भाग) टूट चुका था जिससे उसका अँगूठा रगड़ खाता था, किंतु अँगुली बाहर दिखाई नहीं देती थी।

(2) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जैसे उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिनकी आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं होती, किंतु वे उन पर परदा डालकर अच्छी आर्थिक स्थिति वाले दिखाई देना चाहते हैं। ऐसे लोग अपनी दयनीय स्थिति को प्रकट नहीं होने देना चाहते किंतु दूसरी ओर प्रेमचंद जैसे लोग भी हैं जो अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति पर परदा नहीं डालते। दिखावा करने वाले लोग कभी मौज-मस्ती में नहीं जी सकते। वे सदा चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए विवश रहते हैं।

(3) लेखक ने अपने बारे में बताया है कि वह परदे में विश्वास रखता है। वह फटा जूता नहीं पहन सकता और इस स्थिति में फोटो तो कतई नहीं खिंचवा सकता। प्रेमचंद के जीवन की दयनीय स्थिति के विषय में बेपरवाही से वह सहमत नहीं है।

(4) परदे के प्रश्न को लेकर लेखक और प्रेमचंद दोनों के विचार विपरीत हैं। लेखक परदे को अनिवार्य मानता है, जबकि प्रेमचंद परदे के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं। उनका जीवन तो खुली पुस्तक की भाँति रहा है, जबकि लेखक जीवन की कमियों को छुपाकर जीने में विश्वास रखते हैं। प्रेमचंद अपनी छवि को बनाने के फेर में नहीं पड़े।

6. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी? ‘नेम-थरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी!
तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
[पृष्ठ 64]

शब्दार्थ-कमजोरी = कमी। नेम-धरम = कर्त्तव्य पालन करना । जंजीर = बंधन। घृणित = घृणा करने योग्य। इशारा = संकेत।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित, श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित सुप्रसिद्ध निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से अवतरित है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद जी के सादगी युक्त एवं अंदर-बाहर से एक दिखाई देने वाले जीवन का उल्लेख किया है। साथ ही जीवन में दिखावा करने वाले लोगों के जीवन पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की कर्त्तव्यनिष्ठता की ओर संकेत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद जीवन भर परिस्थितियों से समझौता नहीं कर सके। यह उनके जीवन में बहुत बड़ी कमी थी, क्योंकि समझौता करने वाले लोग सुखी जीवन व्यतीत करते हैं और जो समझौता नहीं कर सकते, उन्हें जीवन में कष्ट उठाने पड़ते हैं इसलिए लेखक ने समझौता न कर सकने को जीवन की कमजोरी बताया है। यही कमजोरी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी रही है। वह समझौता नहीं कर सका तथा ‘नेम-धरम’ की पालना उसके जीवन की कमजोरी बनी रही। ‘नेम-धरम’ उसके लिए बहुत बड़ा बंधन सिद्ध हुआ, किंतु फोटो में प्रेमचंद जिस अंदाज से मुस्करा रहे थे, उससे लगता है कि उनके लिए, शायद यह ‘नेम-धरम’, बंधन नहीं अपितु मुक्ति थी। … लेखक ने फोटो में उनके फटे जूते से बाहर निकली हुई अँगुली को देखकर कहा है कि तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती हुई-सी लगती है कि जिस वस्तु या विचार से तुम घृणा करते हो उसकी तरफ तुम हाथ से नहीं पाँव की इस अंगुली से संकेत करते हो।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की नैतिकता की ओर संकेत किया है। उन्हें नैतिकता का पालन करने में अपनी विवशता का नहीं, अपितु आनंद का अनुभव होता था।
  2. लेखक ने उनके फटे जूते में से दिखाई देने वाली अँगुली को लेकर घृणित वस्तु के लिए संकेत करती हुई-सी की सुंदर कल्पना की है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) प्रेमचंद की कमजोरी क्या थी?
(2) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(3) ‘नेम-धरम’ प्रेमचंद के लिए बंधन न होकर मुक्ति थी-कैसे?
(4) जंजीर होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद की यह कमजोरी थी कि वे गलत बातों से कभी भी समझौता नहीं करते थे। वे अपने ‘नेम-धरम’ के पक्के थे।

(2) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव प्रेमचंद के सादगी युक्त जीवन पर प्रकाश डालना है। प्रेमचंद ने जीवन में गलत बातों के लिए या जीवन में सुख पाने के लिए कभी भी समझौता नहीं किया था। उनके जीवन की यही सबसे बड़ी कमजोरी भी थी। उनके उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी यही कमजोरी थी। वह भी ‘नेम-धरम’ को आजीवन नहीं छोड़ सका। वह नैतिकता शायद होरी के लिए बंधन थी। उसे वह मानसिक रूप से अपना चुका था। किंतु प्रेमचंद फोटो में जिस प्रकार मुस्करा रहे थे उससे लगता है कि उनके लिए ‘नेम-धरम’ बंधन नहीं, अपितु मुक्ति का कारण था क्योंकि वे ‘नेम-धरम’ का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे। यह उनकी मजबूरी नहीं थी। उन्होंने इसका पालन करके आनंद का अनुभव किया था, न कि उसे बोझ या बंधन समझा था।

(3) वे ‘नेम-धरम’ का पालन किसी दबाव में आकर नहीं अपितु अपनी इच्छा से अपने आनंद या सुख-चैन के लिए करते थे। ‘नेम-धरम’ या नैतिकता का पालन करने में उन्हें मुक्ति का सुख अनुभव होता है। इसलिए ‘नेम-धरम’ उनके लिए बंधन नहीं मुक्ति थी।

(4) जंजीर होने का अभिप्राय है-बंधन या बाधा होना। वस्तुतः होरी ‘नेम-धरम’ का पालन इसलिए करता है ताकि कोई उसको अनैतिक न कहे। इसलिए ‘नेम-धरम’ उसके लिए जंजीर के समान था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

प्रेमचंद के फटे जूते लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। उन्होंने बाद में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण की। आरंभ में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने अध्यापन-कार्य किया, किंतु सन् 1947 में अध्यापन कार्य को त्यागकर लेखन कार्य को ही जीवन-यापन का साधन बना लिया। उन्हीं दिनों श्री परसाई जी ने वसुधा नामक पत्रिका का संपादन आरंभ किया था, किंतु घाटे के कारण उसे बंद करना पड़ा। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। इनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ पर साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। आजीवन साहित्य रचना करते हुए श्री परसाई सन 1995 में इस नश्वर संसार को त्यागकर स्वर्गलोक में जा पहुंचे।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री हरिशंकर परसाई जी ने बीस से अधिक रचनाएँ लिखीं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
(i) कहानी-संग्रह ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’।
(ii) उपन्यास-‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ ।
(iii) निबंध-संग्रह–’तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘बेईमानी की परत’ आदि।।
(iv) व्यंग्य-संग्रह ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य केवल व्यंग्य के लिए नहीं होते, अपितु व्यंग्य के माध्यम से वे समाज में फैली हुई बुराइयों, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर करारी चोट करते हैं। इसी प्रकार वे अपनी व्यंग्य रचनाओं में केवल मनोरंजन ही नहीं करते, अपितु सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गंभीर चिंतन भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका व्यंग्य साहित्य हिंदी में बेजोड़ है। उनका शिष्ट एवं सधा हुआ व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने के कारण पाठकों के लिए ग्राह्य होता है। परसाई जी ने उच्च स्तर के व्यंग्य लिखकर व्यंग्य को हिंदी में एक प्रमुख विधा के रूप में स्थापित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाओं की अन्य प्रमुख विशेषता है कि वे पाठक के मन में कटुता या कड़वाहट उत्पन्न न करके समाज की समस्याओं पर चिंतन-मनन करने व उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं।

4. भाषा-शैली निश्चय ही श्री परसाई जी ने व्यंग्य विधा के अनुकूल सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। वे व्यंग्य-भाषा के प्रयोग में अत्यंत कुशल हैं। वे शब्द-प्रयोग के भी महान मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा का भाव एवं प्रसंग के अनुकूल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया गया है। उन्होंने तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ-साथ अरबी-फारसी व अंग्रेजी शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग भी देखने को मिलता है। .

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने एक ओर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी और दूसरी ओर आज के समाज में फैली दिखावे. की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है.। लेखक ने बताया है कि सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हुए प्रेमचंद ने अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचवाई, किंतु पाँव में जो बेतरतीबी से बँधे हुए जूते थे, उनमें से एक जूता आगे से फटा हुआ था। फोटोग्राफर ने तो क्लिक करके अपना काम पूरा कर दिया होगा किंतु प्रेमचंद जी अपने दर्द की गहराई से निकालकर जिस मुस्कान को होंठों तक लाना चाहते थे, वह बीच में ही रह गई होगी।

प्रेमचंद के फटे जूतों वाली फोटो को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया। यदि फोटो खिंचवाते समय पोशाक का यह हाल है तो वास्तविक जीवन में क्या रहा होगा। किंतु फिर ख्याल आया कि प्रेमचंद जी बाहर-भीतर की पोशाक रखने वाले आदमी नहीं थे। लेखक सोच में डूब गया कि प्रेमचंद तो हमारे साहित्यिक पुरखे हैं, फिर भी उन्हें अपने फटे जूतों का जरा भी अहसास नहीं है। उनके चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। किंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि उस समय प्रेमचंद के चेहरे पर व्यंग्य भरी हँसी थी। लेखक सोचता है कि प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं कर दिया। फिर लगा कि पत्नी का आग्रह होगा। लेखक प्रेमचंद के दुःख को देखकर बहुत दुःखी हुआ। वह रोना चाहता है किंतु उसे प्रेमचंद की आँखों का दर्द भरा व्यंग्य रोक देता है।

लेखक सोचता है कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए कपड़े, जूते तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं। फिर प्रेमचंद ने ऐसा क्यों नहीं किया। आजकल तो लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से सुगंध आए। गंदे व्यक्तियों की फोटो खुशबूदार होती है। लेखक को प्रेमचंद का फटा जूता देखकर बड़ी ग्लानि होती है।

लेखक अपने जूते के विषय में सोचता है कि उसका जूता भी कोई अच्छी दशा में नहीं था। उसके जूते का तला घिसा हुआ था। वह ऊपरी पर्दे का ध्यान अवश्य रखता है। इसलिए अँगुली बाहर नहीं निकलने देता। वह फटा जूता पहनकर फोटो तो कभी न खिंचवाएगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

लेखक का ध्यान फिर प्रेमचंद की व्यंग्य भरी हँसी की ओर चला जाता है। वह सोचता है कि उनकी इस रहस्यमयी हँसी का भला क्या रहस्य हो सकता है? क्या कोई हादसा हो गया या फिर कोई होरी मर गया अथवा हल्कू का खेत नीलगाय चर गई या फिर घीसू का बेटा माधो अपनी पत्नी का कफन बेचकर शराब पी गया। लेखक को फिर याद आ गया कि कुंभनदास का जूता भी तो फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था।

लेखक को फिर बोध हुआ कि शायद प्रेमचंद जीवन-भर किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। वे रास्ते में खड़े टीले से बचने की अपेक्षा उस पर जूते की ठोकर मारते रहे होंगे। वे समझौता नहीं कर सकते थे। जैसे गोदान का होरी ‘नेम-धरम’ नहीं छोड़ सका; वैसे ही प्रेमचंद भी आजीवन नेम-धर्म नहीं छोड़ सके। यह उनके लिए मुक्ति का साधन था। प्रेमचंद की जूते से बाहर निकली अंगुली उसी वस्तु की ओर संकेत कर रही है जिस पर ठोकर मारकर उन्होंने अपने जूते फाड़ लिए थे। वे अब भी उन लोगों पर हँस रहे हैं जो अपनी अँगुली को ढकने की चिंता में तलवे घिसाए जा रहे हैं। लेखक ने कम-से-कम अपना पाँव तो बचा लिया। परंतु लोग तो दिखावे के कारण अपने तलवे का नाश कर रहे हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-61] : कनपटी = कानों के पास का भाग। केनवस = एक प्रकार का मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। दृष्टि = नज़र । लज्जा = शर्म। क्लिक = फोटो खींचने की आवाज। विचित्र = अनोखा। उपहास = मजाक। व्यंग्य = तीखी बातों की चोट।

[पृष्ठ-62] : आग्रह = जोरदार शब्दों में कहना। क्लेश = दुःख। वर = दुल्हा। आनुपातिक मूल्य = अनुपात के हिसाब से मूल्य तय करना। तीव्रता = तेजी। युग-प्रवर्तक = युग को आरंभ करने वाला। कुर्बान = न्योछावर।

[पृष्ठ-63] : ठाठ = शान-शौकत। तगादा = जल्दी लौटाने के लिए संदेश भेजना। पन्हैया = जूती। बिसर गयो = भूल गया। हरि नाम = भगवान का नाम।

[पृष्ठ-64] : नेम-धरम = कर्त्तव्य। जंजीर = बंधन। मुक्ति = स्वतंत्रता। घृणित = घृणा करने योग्य। बरकाकर = बचाकर।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

HBSE 9th Class Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

Class 9 Hindi Sawaya Question Answer HBSE प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ? [H.B.S.E. March, 2019]
उत्तर-
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। कवि गोकुल गाँव के ग्वालों के प्रति प्रेम भाव रखता है। इसलिए वह अगले जन्म में वहाँ जन्म लेना चाहता है। वह पशु बनकर वहाँ गायों के बीच रहना चाहता है। वहाँ के पर्वतों के प्रति भी कवि का प्रेम व्यक्त हुआ है। कवि के मन में ब्रज में बहने वाली यमुना नदी और वहाँ पर खड़े कदंब के पेड़ों के प्रति भी अनन्य प्रेम है।

Chapter 11 Hindi Class 9 Kshitij Question Answer HBSE प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर-
वस्तुतः कवि श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखता है, इसलिए उसके मन में उन सभी वस्तुओं के प्रति प्रेम है जिनका संबंध श्रीकृष्ण से था। ब्रज के बागों, जंगलों तथा तालाबों पर श्रीकृष्ण अपनी लीलाएँ रचते थे। इसलिए कवि वन, बाग और तालाब को निहारना चाहता है।

सवैये का भावार्थ Class 9 HBSE प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर-
वस्तुतः लकुटी और कामरिया वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग श्रीकृष्ण गायों को चराते समय करते थे। कवि को श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु प्रिय है। इसलिए कवि अपने आराध्य देव की प्रिय वस्तुओं के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

सवैये का भावार्थ Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सखी ने गोपी को श्रीकृष्ण की भाँति मोर पंखों से बने मुकुट को सिर पर धारण करने का आग्रह किया था। शरीर पर पीले वस्त्र पहनने और गले में गुंजन की माला धारण करने का भी आग्रह किया था। लाठी और कंबली लेकर ग्वालों का रूप धारण करके गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ रहने का भी आग्रह किया था। सखी को मुरलीधर की मुरली को होंठों पर लगाने का आग्रह भी किया था, किंत गोपी ने उसे स्वीकार नहीं किया था।

सवैये पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर-
कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इन सबसे श्रीकृष्ण को भी प्रगाढ़ प्रेम था। इसलिए कवि भी उनसे संबंधित सभी वस्तुओं को प्राप्त करके श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता हैं।

सवैये प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर-
चौथे सवैये में कवि ने बताया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन से प्रभावित हैं, किंतु जब श्रीकृष्ण मुरली बजाएँगे तो वे अपने कानों पर अंगुली रख लेंगी जिससे उस मधुर ध्वनि को सुन नहीं सकेंगी, किंतु जब श्रीकृष्ण मंद-मंद रूप से मुस्कुराते हैं तो गोपियाँ उनकी मुस्कान से अत्यधिक प्रभावित हो उठती हैं और अपने-आपको सँभाल नहीं पातीं और श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगती हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुस्कान के सामने अपने-आपको विवश पाती हैं।

Class 9 Hindi Chapter 11 Savaiye Question Answer HBSE प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। वह श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को प्राप्त करने के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहते थे। इसलिए वह करील के वृक्षों के उस समूह, जहाँ श्रीकृष्ण गौओं को चराते थे, के लिए सोने से निर्मित करोड़ों भवनों को त्यागने के लिए तत्पर थे। कहने का भाव है कि श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु कवि को अत्यधिक प्रिय है।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में गोपिका के श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम को अभिव्यक्त किया गया है। गोपिका कहती है कि मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर अपने-आपको संभाल नहीं सकती अर्थात श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगेंगी। इस पंक्ति में गोपिका की विवशता को उद्घाटित किया गया है।

सवैये प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर-
अनुप्रास।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए“या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।”
उत्तर-
(1) प्रस्तुत पंक्ति ब्रज भाषा में रचित है।
(2) इसमें गोपिका के हृदय की सौतिया भावना का सजीव चित्रण हुआ है।
(3) संपूर्ण पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(4) ‘मुरली मुरलीधर’ में यमक अलंकार है।
(5) भाषा में संगीतात्मकता है।
(6) शब्द-योजना भावानुकूल की गई है।

रचना और अभिव्यक्ति

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर-
नोट-ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इसलिए विद्यार्थी इन्हें अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

पाठेतर सक्रियता

सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर-
रसखान और सूरदास दोनों ही श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त कवि हैं। दोनों श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध हैं और दोनों कवियों ने बालक कृष्ण की छवि के अनेक सुंदर एवं सजीव चित्र अंकित किए हैं। सूरदास द्वारा रचित यह पद देखिए-
(1) घुटुरुनि चलत स्याम मनि-आँगन, मातु-पिता दोउ देखत री।
कबहुँक किलकि तात-मुख हेरत, कबहुँ मातु-मुख पेखत री।
लटकन लटकत ललित भाल पर, काजर-बिंदु ध्रुव ऊपर री।
यह सोभा नैननि भरि देखत, नहि उपमा तिहुँ पर भूरी।
कबहुँक दौरि घुटुरुवनि लपकत, गिरत, उठत पुनि धावै री।
इतरौं नंद बुलाइ लेत हैं, उतरौं जननि बुलावै री।
दंपति होड़ करत आपस मैं, स्याम खिलौना कीन्हौ री।
सूरदास प्रभु ब्रह्म सनातन, सुत हित करि दोउ लीन्हौ री ॥

2. कान्ह चलत पग द्वै द्वै धरनी।
जो मन मैं अभिलाष करति हो, सो देखति नँद घरनी।
रुनुक-झुनुक नूपुर पग बाजत, थुनि अतिहीं मन-हरनी।
बैठि जात पुनि उठत तुरतहीं, सौ छवि जाइ न बरनी।
ब्रज जुबती सब देखि थकित भइँ, सुंदरता की सरनी।
चिरजीवहु जसुदा को नंदन, सूरदास कौं तरनी ॥

HBSE 9th Class Hindi 11 सवैये Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर-
रसखान अगले जन्म में ग्वाला बनना चाहते हैं तथा ब्रज भूमि पर श्रीकृष्ण का बाल सखा बनकर रहना चाहते हैं। रसखान ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अथाह श्रद्धा एवं भक्ति-भावना है। वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के सान्निध्य में रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। पठित सवैये के अध्ययन से पता चलता है कि वे अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति में लगा देना चाहते हैं। ब्रज भूमि से भी उनका गहरा संबंध है। वे श्रीकृष्ण की भूमि, उनकी वस्तुओं आदि सबके लिए अपना जीवन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे श्रीकृष्ण का सामीप्य प्राप्त करने के लिए स्वाँग भी रचने के लिए तत्पर हैं। वे श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान पर भी मुग्ध हैं। इससे पता चलता है कि रसखान के मन में श्रीकृष्ण के प्रति प्रगाढ़ भक्ति-भावना है।

प्रश्न 3.
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर-
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली से ईर्ष्या भाव रखती है क्योंकि जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली बजाने में तल्लीन हो जाते हैं तब वे सभी गोपियों को भूल जाते हैं। वे गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। इसलिए गोपिका अपने मन में श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति सौत व ईर्ष्या भाव रखती है। इसलिए वह उसे अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती।

प्रश्न 4.
सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग रचने को तैयार है और क्यों ?
उत्तर-
सखी के कहने पर गोपिका श्रीकृष्ण का स्वाँग रचने को तैयार है। वह श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र पहनने को तत्पर है। वह श्रीकृष्ण के समान सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट भी धारण कर लेना चाहती है। गले में गुंजन की माला भी पहनने के लिए तैयार है। वह श्रीकृष्ण की भाँति हाथ में लाठी लेकर गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ वन-वन घूमने को तैयार है। गोपिका यह सब इसलिए करना चाहती है क्योंकि उसके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व भक्ति-भावना है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 5.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की प्रेम भावना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रसखान का सारा काव्य प्रेम की भावना पर आधरित है। वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे अपने प्रिय की हर वस्तु को, उसके पहनावे, रहन-सहन, उसके हर कार्य को पसंद करते हैं। उनके सामीप्य को प्राप्त करने के लिए वे अपना जीवन तक न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे किसी भी बहाने से प्रिय का संग चाहते हैं। उनके लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हैं। वे प्रिय के साथ अकेला ही जीना चाहते हैं। यहाँ तक कि उन्हें प्रिय की बांसुरी भी सहन नहीं है। अतः स्पष्ट है कि रसखान की प्रेम भावना पवित्र, आवेगमयी एवं अनन्यतामयी है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रसखान किस संप्रदाय से संबंध रखते थे ?
(A) हिंदू
(B) जैन
(C) मुस्लिम
(D) सिक्ख
उत्तर-
(C) मुस्लिम

प्रश्न 2.
रसखान का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1542 में
(B) सन् 1548 में
(C) सन् 1549 में
(D) सन् 1550 में
उत्तर-
(B) सन् 1548 में

प्रश्न 3.
रसखान का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(A) गरीब परिवार में
(B) राज परिवार में
(C) संपन्न पठान परिवार में
(D) किसान परिवार में
उत्तर-
(C) संपन्न पठान परिवार में

प्रश्न 4.
रसखान क्या देखकर दिल्ली से ब्रज चले गए थे ?
(A) भीषण अकाल
(B) राजा का अन्याय
(C) सेना के जुल्म
(D) भीषण गरीबी
उत्तर-
(B) राजा का अन्याय

प्रश्न 5.
ब्रज में रहते हुए रसखान ने किस ग्रंथ का पाठ सुना
(A) महाभारत का
(B) श्रीमद्भगवद्गीता का
(C) रामचरितमानस का
(D) सूरसागर का
उत्तर-
(C) रामचरितमानस का

प्रश्न 6.
रसखान के आराध्य देव कौन हैं ?
(A) शिव
(B) विष्णु
(C) श्रीकृष्ण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण

प्रश्न 7.
रसखान की प्रमुख रचना कौन-सी है ?
(A) सतसई
(B) प्रेमवाटिका
(C) सूरसागर
(D) कृष्णवाटिका
उत्तर-
(B) प्रेमवाटिका

प्रश्न 8.
रसखान के काव्य का मूल भाव क्या है ?
(A) शृंगार
(B) विरह
(C) भक्ति -भाव
(D) विद्रोह
उत्तर-
(C) भक्ति -भाव

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 9.
रसखान का निधन कब हुआ था ?
(A) सन् 1608 में
(B) सन् 1618 में
(C) सन् 1628 में
(D) सन् 1638 में
उत्तर-
(C) सन् 1628 में

प्रश्न 10.
कविवर रसखान मनुष्य होने पर कहाँ बसना चाहते थे ?
(A) मथुरा में
(B) काशी में
(C) गोकुल गाँव में
(D) प्रयागराज में
उत्तर-
(C) गोकुल गाँव में

प्रश्न 11.
रसखान पशु की योनि में होने पर कहाँ चरना चाहते थे ?
(A) किसान के खेत में
(B) चरागाह में
(C) घास के मैदान में
(D) नंद की गायों के बीच
उत्तर-
(D) नंद की गायों के बीच

प्रश्न 12.
कवि रसखान किस पहाड़ का पत्थर बनना पसंद करते थे ?
(A) हिमालय पर्वत का
(B) गोवर्धन पर्वत का
(C) सुमेरू पर्वत का
(D) साधारण पहाड़ी का
उत्तर-
(B) गोवर्धन पर्वत का

प्रश्न 13.
रसखान कवि पक्षी बनकर कहाँ बसेरा करना चाहते थे ?
(A) करील के पेड़ पर
(B) आम के पेड़ पर ।
(C) कदंब के पेड़ पर
(D) वट वृक्ष पर
उत्तर-
(C) कदंब के पेड़ पर

प्रश्न 14.
जिस कंद पर श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे, वह किस नदी के तट पर था ?
(A) यमुना
(B) गंगा
(C) सरस्वती
(D) घाघर
उत्तर-
(A) यमुना

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण ने किसे हराने के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था ?
(A) अग्नि देवता को
(B) इंद्र देवता को
(C) विष्णु को
(D) शिव को
उत्तर-
(B) इंद्र देवता को

प्रश्न 16.
गोपिका श्रीकृष्ण की लकुटी और कंबली पर कौन-सा राज्य न्योछावर करने के लिए तत्पर है ?
(A) भारतवर्ष का राज्य
(B) संसार का राज्य
(C) पाताल का राज्य
(D) तीनों लोकों का राज्य
उत्तर-
(D) तीनों लोकों का राज्य

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 17.
कविवर अपनी आँखों से क्या देखने की कामना करते हैं ?
(A) ब्रज के बाग और तालाब को
(B) गोपिकाओं को
(C) कदंब के पेड़ कों
(D) यमुना नदी को
उत्तर-
(A) ब्रज के बाग और तालाब को

प्रश्न 18.
कवि सोने के करोड़ों महलों को किस पर वार देना चाहता है ?
(A) ब्रज की गलियों पर
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर
(C) ग्वालों के बच्चों पर
(D) ब्रज के पक्षियों पर
उत्तर-
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर

प्रश्न 19.
गोपिका सिर पर क्या धारण करना चाहती थी ?
(A) टोपी
(B) मोर के पंखों का मुकुट
(C) पगड़ी
(D) ताज
उत्तर-
(B) मोर के पंखों का मुकुट

प्रश्न 20.
गोपिका कौन-सी माला गले में धारण करने के लिए तत्पर है ?
(A) सोने की
(B) मोतियों की
(C) गुंजन की
(D) हीरों की
उत्तर-
(C) गुंजन की.

प्रश्न 21.
गोपिका किस रंग के वस्त्र धारण करना चाहती है ?
(A) नीले
(B) लाल
(C) हरे
(D) पीले
उत्तर-
(D) पीले

प्रश्न 22.
गोपिका श्रीकृष्ण की कौन-सी वस्तु धारण नहीं करना चाहती ?
(A) मुकुट
(B) वस्त्र
(C) मुरली
(D) लाठी
उत्तर-
(C) मुरली

प्रश्न 23.
गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
(A) मुरली पुरानी है
(B) मुरली जूठी है
(C) ईर्ष्या भाव के कारण
(D) मुरली सुंदर नहीं है
उत्तर-
(C) ईर्ष्या भाव के कारण

प्रश्न 24.
गोपिका कानों में अँगुली क्यों देना चाहती है ?
(A) उसको मुरली की धुन अच्छी नहीं लगती
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है
(C) मुरली की ध्वनि अत्यंत कर्कश है
(D) मुरली की धुन बेसुरी है
उत्तर-
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है

प्रश्न 25.
गोधन से क्या तात्पर्य है ?
(A) एक लोकगीत
(B) गौओं का धन
(C) लोक धुन
(D) ग्वालों द्वारा गाया जाने वाला गीत
उत्तर-
(A) एक लोकगीत

प्रश्न 26.
‘या लकुटी और कामरिया पर’ सवैये में कवि ने किस प्रदेश की प्रशंसा की है?
(A) मगध
(B) ब्रज
(C) मालवा
(D) अवध
उत्तर-
(B) ब्रज

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

सवैये अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकल गाँव के ग्वारन।
जौ पस हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कुल कदंब की डारन॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मानुष हौं = मनुष्य हुआ तो। ग्वारन = ग्वाले। धेनु = गायों। मँझारन = मध्य में। पाहन = पत्थर। हरिछत्र = श्रीकृष्ण ने जिसे धारण किया था। पुरंदर = इंद्र। खग = पक्षी। कालिंदी कूल = यमुना नदी का तट। कदंब की डारन = कदंब वृक्ष की शाखाओं पर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत सवैये का संदर्भ/प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत सवैये का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(5) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) रसखान कवि द्वारा रचित इस सवैये में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उल्लेख हुआ है। इस पद में उन्होंने अगले जन्म में श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि में जन्म लेने की अपनी इच्छा प्रकट की है।

(3) व्याख्या-महाकवि रसखान का कथन है कि हे प्रभु! यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज या गोकुल के ग्वालों के साथ हो और यदि मैं पशु बनूँ तो मेरा बस इतना ही कहना है कि मैं नित्य नंद की गायों में चरता रहूँ। हे ईश्वर! यदि मैं पत्थर भी बनें तो उस गोवर्धन पर्वत का बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर धारण करके इंद्र के क्रोध से गोकुल की रक्षा की थी। हे प्रभु! यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना तट के कदंब के पेड़ की शाखाओं पर हो।
भावार्थ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि की ईश्वरीय भक्ति एवं प्रेम व्यक्त हुआ है।

(4) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण के समीप रहना चाहते हैं, जिससे उनके मन में व्याप्त श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम का परिचय मिलता है। कवि हर स्थिति में ईश्वर का सामीप्य चाहता है।

(5) (क) कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना का वर्णन हुआ है।
(ख) ‘गोकुल गाँव के ग्वारन’, ‘मेरो चरौं’ एवं ‘कालिंदी, कूल, कदंब’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ग) ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
(घ) सवैया छंद है।

(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना व्यक्त हुई है। कवि श्रीकृष्ण को हर समय अपने समक्ष देखना चाहता है।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-लकुटी = लाठी। अरु = और। कामरिया = कंबल। तिहूँ पुर = तीनों लोकों (आकाश, पाताल और पृथ्वी) में। तजि = त्यागना। आठहुँ सिद्धि = आठ सिद्धियाँ, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । नवौ निधि = नौ निधियाँ-पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व । ये सभी कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं। तड़ाग = तालाब। निहारौं = देलूँगा। कोटिक = करोड़ों। कलधौत = महल । करील = काँटेदार झाड़ी। वारौं = न्योछावर करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि किसके लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ?
(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए क्या त्यागने के लिए तत्पर है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद में कवि ने श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपने गहन प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबली पर मैं तीनों लोकों के राज्य के सुख को न्योछावर कर दूँगा। नंद की गायों को चराने के लिए मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भुला दूंगा अर्थात त्याग दूंगा। रसखान कवि कहते हैं कि मैं अपनी आँखों से ब्रज के बाग-बगीचे और तालाबों को देखने के लिए अत्यंत व्याकुल हूँ। मैं ब्रज के वृक्षों के समूहों पर, जहाँ कभी श्रीकृष्ण खेलते व गायों को चराते थे, सोने से निर्मित करोड़ों भवन न्योछावर करता हूँ।
भावार्थ-कहने का भाव है कि उन्हें अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु एवं स्थान अत्यंत प्रिय हैं। इससे उनके श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम व भक्ति का पता चलता है।

(3) श्रीकृष्ण और उनसे संबंधित हर वस्तु व स्थान कवि को अत्यंत प्रिय है। उन्हें प्राप्त करने के लिए वे बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर हैं। इससे श्रीकृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम का बोध होता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद सरल, सहज एवं प्रवाहमयी ब्रज भाषा में रचित है।
(ख) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय बनी हुई है।
(ग) ‘नवौ निधि’, ‘ब्रज बन’, ‘करील के कुंजन’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(घ) सवैया छंद का प्रयोग किया गया है।
(ङ) शब्द-चयन भावानुकूल है।

(5) कवि श्रीकृष्ण की ब्रज-भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज्य त्यागने के लिए तत्पर है।

3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी ।
ओढि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मोरपखा = मोर के पंख। गुंज = घुघची। गरें = गले। पितंबर = पीले वस्त्र। लकुटी = लाठी। गोधन = गायों रूपी धन। ग्वारिन = ग्वालों। स्वाँग = रूप धारण करना। मुरलीधर = श्रीकृष्ण। अधरान = होंठों पर।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(6) सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग भरने को तैयार है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निःस्वार्थ प्रेम का मनोरम चित्रण किया है। ये शब्द एक गोपिका अपनी अंतरंग सखी से कहती है।

(3) व्याख्या-एक गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वह श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने के लिए तत्पर है। गोपिका कहती है कि वह श्रीकृष्ण की भाँति ही मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट सिर पर धारण कर लेगी। वह श्रीकृष्ण के गले में सुशोभित होने वाली घुघचों से बनी माला को भी धारण कर लेगी। श्रीकृष्ण की भाँति ही हाथ में लाठी लेकर ग्वालों व ग्वालिनों के साथ जंगल में गायों के पीछे भी घूम लेगी। रसखान ने बताया है कि गोपिका अपनी सखी से पुनः कहती है कि तुम्हारी कसम, मुझे श्रीकृष्ण बहुत ही अच्छे लगते हैं। तेरे कहने पर मैं हर प्रकार से श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लूँगी। किंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहने वाली इस मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखूगी। यहाँ गोपिका की सौतिया भावना का चित्रण हुआ है। वह मुरली को अपनी दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी समझती है।
भावार्थ कवि के कहने का तात्पर्य है कि एक ओर गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और दूसरी ओर उनकी बांसुरी से सौत का भाव रखती है।

(4) (क) प्रस्तुत पद में कवि ने सरल एवं सहज ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। (ख) ‘या मुरली…न धरौंगी’ में गोपी के सौतिया डाह की अभिव्यक्ति हुई है। (ग). मुरली मुरलीधर’, ‘अधरान धरी अधरा’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। (घ) ‘रसखानि’ का अर्थ रस की खान तथा रसखान कवि होने के कारण यमक अलंकार है।

(5) प्रस्तुत पद. में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपिका के अनन्य प्रेम का वर्णन किया है, किंतु गोपिका को श्रीकृष्ण की मुरली अच्छी नहीं लगती, क्योंकि जब भी श्रीकृष्ण मुरली को अपने होंठों पर रखकर बजाते हैं तो गोपियों को भूल जाते हैं। इसलिए गोपिका . मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव रखती है, जिसे व्यक्त करना कवि का प्रमुख उद्देश्य है।

(6) सखी के कहने पर गोपी श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र, घुघची की माला तथा मोर पंखों से बना मुकुट आदि सब कुछ धारण करने के लिए तैयार है। वह हाथ में लाठी लेकर गायों और ग्वालों के साथ वन-वन घूमने के लिए भी तत्पर है।

4. काननि दै अँगुरी रहिबो जवहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥
[पृष्ठ 102]

शब्दार्थ-काननि = कानों में। अँगुरी = अँगुली। धुनि = धुन। मंद = धीरे। मोहनी = मधुर। अटा = अट्टालिका। गोधन = ब्रज प्रदेश में गाया जाने वाला एक लोक-गीत। टेरि कहौं = पुकारकर कहती हूँ। काल्हि = कल को। वा = उस। मुसकानि = मुस्कान।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) गोपिका अपने कानों में अँगुली क्यों डालना चाहती है ?
(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकारकर क्या कहना चाहती है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान।। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-एक गोपिका का कथन है, हे सखी! जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली मंद-मंद ध्वनि में बजाएंगे, तब मैं अपने कानों में अँगुली डाले रहूँगी ताकि मुरली की ध्वनि मुझे सुनाई ही न दे। फिर भले ही वह रस के सागर (श्रीकृष्ण) अट्टालिका पर चढ़कर मधुर तानों में गोधन राग में गीत गाते हैं तो गाते रहें। मैं तो ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती हूँ कि कल को कोई कितना ही समझाए, किंतु मैं श्रीकृष्ण के मुख की मधुर मुस्कुराहट को नहीं सँभाल पाऊँगी।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गोपिका श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान पर अत्यंत मोहित है।

(3) प्रस्तुत सवैये में कवि ने ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान के प्रभाव का सुंदर उल्लेख किया है। श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर गोपिका अपने-आपको रोक नहीं पाती। वह उससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के प्रेम में बह जाती है।

(4) (क) श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान व मंद-मंद मुस्कान का सजीव चित्रांकन किया गया है।
(ख) अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
(ग) ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
(घ) शब्द-चयन अत्यंत सार्थक एवं विषयानुकूल है।
(ङ) सवैया छंद का प्रयोग है।

(5) गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि से अत्यंत प्रभावित है। वह जब भी उसे सुनती है तो अपने-आपको रोक नहीं पाती। इसलिए वह लोक-लाज के कारण अपने कानों में अँगुली रख लेती है। ऐसा करने से उसे न तो मुरली की ध्वनि सुनाई देगी और न ही वह श्रीकृष्ण के पास जाएगी।

(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती है कि कल कोई भी मुझे कितना ही क्यों न समझाए, परंतु मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को सँभाल नहीं पाऊँगी अर्थात वह उसकी मुस्कान पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकेगी।

सवैये Summary in Hindi

सवैये कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर रसखान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर रसखान का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रसखान कृष्णभक्त कवि थे। उनका जन्म सन् 1548 के लगभग दिल्ली के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। वे मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। वे अत्यंत प्रेमी स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें वैष्णव भक्तों ने श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य से परिचित करवाया। तभी से वे श्रीकृष्ण के भक्त बन गए थे। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में इतने भाव-विभोर हो उठे कि श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए श्रीनाथ के मंदिर में भी गए थे। यह भी कहा जाता है कि उन्हें श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे। गोकुल पहुँचकर उन्होंने श्री विठ्ठलनाथ से दीक्षा ली। तब से वे ब्रज-भूमि में रहने लगे थे। उनकी रसमयी भक्ति के कारण उनका नाम रसखान पड़ गया। सन् 1628 के लगभग उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्राप्त हैं(क) सुजान रसखान-इसमें सवैये हैं, (ख) प्रेमवाटिका-इसमें दोहे हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन इनके काव्य का प्रमुख विषय है। इनके काव्य में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का भी बड़ा मनोरम वर्णन किया गया है। निम्नलिखित पंक्तियों में बालक कृष्ण की रूप-छवि देखते ही बनती है

“धूरि भरे अति शोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ॥”

श्रीकृष्ण के प्रति भक्त-हृदय की निष्ठा का पता रसखान के निम्नलिखित सवैये से भली प्रकार चलता है

“या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥”

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

रसखान के काव्य में रस धारा निरंतर प्रवाहित है। उन्होंने अपने काव्य में विभिन्न रसों का वर्णन किया है, किंतु शृंगार रस में राधा-कृष्ण के संयोग श्रृंगार का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, राधा कृष्ण की प्रेम-लीलाओं और ब्रज-महिमा का वर्णन मिलता है। रस-योजना में रसखान को पूरी सफलता मिली है। इनके द्वारा रचित श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करते हुए वास्तव में ही भक्तजन रस-विभोर हो उठते हैं।

4. भाषा-शैली-रसखान के काव्य की भाषा ब्रज है। उनके काव्य में शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा व्याकरणिक दृष्टि से भी शुद्ध है। उनके दोहे एवं सवैये भी निर्दोष हैं। भाषा और छंदों के सफल प्रयोग से इनके काव्य की सुंदरता में वृद्धि हुई है। भाषा का जैसा शुद्ध एवं निखरा हुआ रूप रसखान के काव्य में मिलता है, ऐसा बहुत कम कवियों के काव्य में दिखाई देता है। इनका काव्य सरल, सरस एवं भावपूर्ण है। इसमें अलंकारों की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी यथास्थान अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है। यह काव्य भारतीय जनता का प्रिय है। लोगों की जुबान से रसखान के दोहे आज भी सुने जाते हैं।

सवैयों का सार/काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित रसखान रचित ‘सवैये’ का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
रसखान कृत प्रथम एवं द्वितीय सवैये में कृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति उनका प्रेम भाव व्यक्त हुआ है। प्रथम सवैये में रसखान ने अपना प्रेम भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि अगले जन्म में मैं मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज-भूमि में हो, यदि मैं पशु बनूँ तो मैं नित्य नंद की गायों के बीच चरता रहूँ। यदि पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने धारण किया था। यदि पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर हो। इतना ही नहीं, वे श्रीकृष्ण के द्वारा धारण की हुई लाठी व काली कंबली पर तीनों लोकों के राज को न्योछावर कर देना चाहते हैं। वे उनके साथ गाय चराने के लिए हर प्रकार की संपत्ति व सुख त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे ब्रज के वनों और तालाबों पर करोड़ों सोने के बने महलों को न्योछावर कर देना चाहते हैं। तीसरे सवैये में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य के प्रति गोपियों की उस मुग्धता का चित्रण किया है जिसमें वे स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण का मोर पंखों से युक्त मुकुट, उनकी माला, पीले वस्त्र, लाठी आदि सब धारण कर लेना चाहती हैं, किंतु उनकी मुरली को धारण करना उन्हें स्वीकार नहीं है। चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के अचूक प्रभाव के सामने गोपियों की विवशता का मार्मिक वर्णन है।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

HBSE 9th Class Hindi एक कुत्ता और एक मैना Textbook Questions and Answers

एक कुत्ता और मैना प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर-
वस्तुतः गुरुदेव का स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। शांतिनिकेतन में उन्हें मिलने वाले बहुत-से लोग आते थे। वे पूर्णतः आराम नहीं कर पाते थे। इसलिए उन्होंने ऐसे स्थान को चुना या कहीं ओर रहने का निर्णय लिया कि जहाँ उन्हें कोई तंग न कर सके। यही कारण है कि उन्होंने शांतिनिकेतन को त्यागने और श्रीनिकेतन के पुराने तिमंज़िले मकान में कुछ दिन रहने का मन बनाया।

एक कुत्ता और एक मैना प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2018]
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने कई उदाहरण देकर यह सिद्ध किया है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की भाँति ही संवेदनशील होते हैं। जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर श्रीनिकेतन में रहते थे तो वहाँ उनका शांतिनिकेतन में रहने वाला कुत्ता बिना किसी की सहायता के उनको मिलने चला आया था। गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाकर वह आधी आँखें बंद करके आनंद की अनुभूति करने लगा था। इसी प्रकार वही कुत्ता गुरुदेव की चिताभस्म के कलश के पास आकर कुछ क्षणों के लिए चुपचाप बैठ गया। इसी प्रकार लँगड़ी मैना भी अन्य मैनाओं की भाँति चहकती नहीं थी। बहुत ही करुण दृष्टि से शांतिनिकेतन में रहती थी, क्योंकि उसका साथी इस दुनिया में नहीं रहा था। अतः इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की भाँति ही संवेदनशील होते हैं।

पाठ 8 एक कुत्ता और एक मैना के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 3.
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया?
उत्तर-
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता के मर्म को कवि उस समय समझ पाया जब मैना वहाँ उड़कर अन्यत्र चली गई थी। तब लेखक समझ सका था कि कवि की दृष्टि कितनी मर्मभेदी होती है।

Ek Kutta Aur Ek Maina Question Answer Class 9 HBSE प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं ? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की रचना ‘एक कुत्ता और एक मैना’ एक उत्कृष्ट ललित निबंध है। इसमें लेखक के भावों व विचारों की अभिव्यक्ति कलात्मकतापूर्ण हुई है। संपूर्ण निबंध ही कलात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली में रचित है। उदाहरणार्थ इस निबंध की निम्नलिखित पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं
(1) उन दिनों छुट्टियाँ थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी। ‘दर्शन’ को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो प्रायः वे यह कहकर मुसकरा देते थे कि ‘दर्शनार्थी’ हैं क्या? इन पंक्तियों में लेखक का भाव अत्यंत लालित्यपूर्ण शैली में व्यक्त हुआ है।
(2) इसी प्रकार लेखक ने भारतीय दर्शकों के स्वभाव का उल्लेख भी अत्यंत मार्मिकतापूर्ण एवं कलात्मक शैली में किया है“यहाँ यह दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था-अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते थे और रोकने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे ‘दर्शनार्थियों’ से गुरुदेव भीत-भीत से रहते थे।”
(3) कुत्ते के संबंध में लेखक के विचार अत्यंत आत्मीयतापूर्ण एवं कलात्मकता से युक्त हैं-“ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देखकर कहा, “देखा तुमने, यह आ गए। कैसे इन्हें मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है! और देखो, कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है।”
(4) मैना का प्रसंग भी अत्यंत कलात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त किया गया है-“पति-पत्नी जब कोई एक तिनका लेकर सूराख में रखते हैं तो उनके भाव देखने लायक होते हैं। पत्नी देवी का तो क्या कहना! एक तिनका ले आई तो फिर एक पैर पर खड़ी होकर जरा पंखों को फटकार दिया, चोंच को अपने ही परों से साफ कर लिया और नाना प्रकार की मधुर और विजयोद्घोषी वाणी में गान शुरू कर दिया। हम लोगों की तो उन्हें कोई परवाह ही नहीं रहती।”

एक कुत्ता और एक मैना HBSE 9th Class प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर-
निबंधकार ने इन पंक्तियों में बताया है कि कवि की दृष्टि अत्यंत गहन, संवेदनशील एवं सूक्ष्मदर्शी होती है। निबंधकार एक मैना को देखकर उसे अन्य मैनाओं जैसा समझता है, जबकि कविवर रवींद्रनाथ टैगोर उसकी आँखों में करुणा के भाव को अनुभव करते हैं जो मनुष्य-मनुष्य के भीतर अनुभव नहीं कर सकता। कहने का भाव है कि भाषाहीन प्राणियों के भीतर भी विशाल मानव-सत्य के भाव होते हैं, किंतु उसे कवि की मर्मभेदी दृष्टि ही देख सकती है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

रचना और अभिव्यक्ति

Ek Kutta Aur Ek Maina HBSE 9th Class प्रश्न 6.
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही पशु-पक्षियों में बहुत प्रेमभाव होता है तथा करुणामय दृष्टि भी। बात पिछले वर्ष की गर्मियों की छुट्टियों की है। जून का महीना था। मुझसे गलती से मेरा जर्मन शेफर्ड कुत्ता छत पर रह गया। उसे लू लगने के कारण खून के दस्त लग गए। जब मुझे पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी। मैं उसे देखकर घबरा गया कि अब क्या होगा ? वह गिरता-पड़ता किसी प्रकार नीचे आया ओर मेरी ओर टकटकी लगाकर देखने लगा। मुझे लगा कि वह मुझे कह रहा हो कि मेरी यह दशा तुम्हारी गलती के कारण हुई है। वह मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा तो उसने आँख बंद कर ली और उसे लगा कि अब वह ठीक हो जाएगा। मैं उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाया और पीने के लिए दवा दी। मैं रात-भर उसे बर्फ वाला पानी पिलाता रहा। सुबह होते-होते वह कुछ ठीक हो गया। जब मैं सोकर उठा तो सात बज चुके थे। उठकर क्या देखता हूँ कि वह मेरी चारपाई के पास पहले से खड़ा था। मेरे उठते ही उसने अपना मुख मेरे घुटनों पर रख दिया और पूँछ हिलाता रहा। उसके मन में मेरे लिए कितना स्नेह था उसका वर्णन नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है। लेखक ने ठीक ही कहा है कि भाषाहीन प्राणियों में भी प्रेम व करुणा की भावना होती है।

भाषा-अध्ययन

एक कुत्ता और एक मैना प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 7.
गुरुदेव जरा मुसकरा दिए।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक। इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए।
उत्तर-
सकर्मक क्रिया वाले वाक्य
(1) अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान-स्तिमित नयनों से देख रहे थे।
(2) जब मैं इस मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन देखता हूँ।
(3) मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा।
(4) हमने कई दिन से आश्रम में कौए नहीं देखे।

अकर्मक क्रिया वाले वाक्य

(1) अधिकांश लोग बाहर चले गए।
(2) वे अकेले रहते थे।
(3) वह थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा।
(4) मैं उनके साथ हो गया।

Ek Kutta Aur Ek Maina Question Answer HBSE 9th Class प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए
(क) मीना कहानी सुनाती है।
(ख) अभिनव सो रहा है।
(ग) गाय घास खाती है।
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी।
(ङ) लड़कियाँ रोने लगीं।
उत्तर-
(क) सकर्मक क्रिया।
(ख) अकर्मक क्रिया।
(ग) सकर्मक क्रिया।
(घ) सकर्मक क्रिया।
(ङ) अकर्मक क्रिया।

Ek Kutta Aur Ek Maina Class 9 HBSE प्रश्न 9.
नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। जैसे-
समय-असमय, अवस्था अनवस्था
इन शब्दों में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है।
पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और उनमें ‘अ’ एवं ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर-
संभव-असंभव, भद्र-अभद्र, भाव-अभाव, बोध-अबोध, सत्य-असत्य, करुण-अकरुण, उपस्थित-अनुपस्थित।

पाठेतर सक्रियता

पशु-पक्षियों पर लिखी कविताओं का संग्रह करें और उनके चित्रों के साथ उन्हें प्रदर्शित करें।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के कुछ अन्य मर्मस्पर्शी निबंध जैसे-‘अशोक के फूल’ और ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ पढ़िए।
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी इन्हें स्वयं करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

HBSE 9th Class Hindi एक कुत्ता और एक मैना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ में लेखक ने क्या संदेश दिया है ? सार रूप में उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इस निबंध में द्विवेदी जी ने स्पष्ट किया है कि कवि की दृष्टि मर्मभेदी होती है। वह मानव के अंदर की ही नहीं, अपितु मूक पशु-पक्षियों के हृदय की बात भी समझने में सक्षम होती है। गुरुदेव ने इसे अहैतुक स्नेह माना। जहाँ एक विवेकशील तथा ज्ञानी मनुष्य भी दूसरे मनुष्य के भीतर का हाल ठीक से नहीं जान सकता, वहाँ ये मूक प्राणी अपने सहज ज्ञान से मनुष्य को महान सत्य का बोध करा देते हैं। लेखक का कहना है कि सूक्ष्म दृष्टि तथा सहानुभूति के सहारे किसी के भी हृदय में उतरा जा सकता है।

प्रश्न 2.
पठित पाठ के आधार पर बताइए कि आपको कुत्ता और मैना में से कौन अधिक पसंद है और क्यों?
उत्तर-
पठित निबंध में लेखक ने कुत्ता और मैना, दो मूक प्राणियों का उल्लेख किया है। पठित पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि हमें कुत्ता अधिक पसंद है। कुत्ता बिना किसी की सहायता के दो मील दूर मार्ग ढूँढता हुआ अपने स्वामी के पास आता है और उनका स्नेह पाकर आनंदविभोर हो उठता है। इतना ही नहीं, गुरुदेव की मृत्यु के पश्चात उनकी चिताभस्म के साथ-साथ चलता है और कुछ पल चुपचाप उसके पास बैठकर लौट जाता है। मैना एक चंचल स्वभाव का पक्षी होता है, किंतु पाठ में जिस मैना का उल्लेख किया गया है वह लँगड़ी थी और समूह से अलग रहती थी। उसकी आँखों में करुणा का भाव था। वह एकाएक शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र चली गई। इन दोनों घटनाओं से सिद्ध होता है कि कुत्ता स्वामिभक्त एवं स्नेहशील मूक प्राणी है। इसलिए वह हमें पसंद है।

प्रश्न 3.
कुत्ते को तिमंज़िले मकान पर देखने की घटना को स्मरण करके लेखक के मन में कैसे विचार उठे ? सार रूप में लिखिए।
उत्तर-
लेखक जब गुरुदेव को मिलने के लिए श्रीनिकेतन के तिमंज़िले मकान पर पहुँचा तभी वहाँ एक कुत्ता आ गया जो शांतिनिकेतन में गुरुदेव के पास रहता था। गुरुदेव ने जब उसके सिर पर हाथ रखा तो वह आनंदविभोर हो उठा। इस घटना को स्मरण करके लेखक के मन में निम्नलिखित विचार उठे थे
“तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूंदकर अपरिसीम आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है। जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते से आश्रम में लाया गया, उस समय भी न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत-गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे थे। उन्होंने मुझे बताया है कि वह चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर चुपचाप बैठा भी रहा।” ।

प्रश्न 4.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी एवं संस्कृत के महान विद्वान थे। उन्होंने इस निबंध में तत्सम-प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। भाषा शुद्ध साहित्यक हिंदी है। द्विवेदी जी ने प्रसंगानुकूल अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी इस निबंध की भाषा में किया है। इस निबंध की भाषा-शैली विषय के अनुकूल बंधकर चलती है। भाषा में सरलता, सहजता और सुबोधता जैसे गुण भी हैं। कहीं-कहीं संवादों का प्रयोग भी किया गया है। वाक्य छोटे एवं सरल हैं। कहीं-कहीं बड़े-बड़े व लंबे वाक्य हैं, किंतु वे जटिल नहीं हैं। लोकप्रचलित मुहावरों का प्रयोग भी किया गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) प्रेमचंद
(B) महादेवी वर्मा
(C) हरिशंकर परसाई
(D) हजारीप्रसाद द्विवेदी
उत्तर-
(D) हजारीप्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 2.
गुरुदेव (रवींद्र नाथ ठाकुर) शांति निकेतन को छोड़कर कहाँ रहने गए थे?
(A) कुछ निकेतन
(B) श्रीनिकेतन
(C) दुर्गा निकेतन
(D) शिव कुटीर
उत्तर-
(B) श्रीनिकेतन

प्रश्न 3.
गुरुदेव क्या कहकर मुस्करा देते थे?
(A) विद्यार्थी है क्या
(B) गृहस्थ है क्या
(C) दर्शनार्थी है क्या
(D) ब्रह्मचारी है क्या
उत्तर-
(C) दर्शनार्थी है क्या

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

प्रश्न 4.
‘प्रगल्भ’ का अर्थ है
(A) विचारवान
(B) विद्वान
(C) विद्यार्थी
(D) वाचाल
उत्तर-
(D) वाचाल

प्रश्न 5.
गुरुदेव कैसे दर्शनार्थियों से भयभीत हो जाते थे?
(A) जो समय-असमय का ध्यान नहीं रखते थे।
(B) जो समय-असमय का ध्यान रखते थे
(C) जो गुरुदेव को दूर से ही देखकर चले जाते हैं ।
(D) जो चरणवंदना किये बिना ही चले जाते हैं
उत्तर-
(A) जो समय-असमय का ध्यान नहीं रखते थे

प्रश्न 6.
‘अस्तगामी’ का अर्थ है-
(A) चलने वाला
(B) डूबता हुआ
(C) उगता हुआ
(D) ठहरा हुआ
उत्तर-
(B) डूबता हुआ

प्रश्न 7.
किसके मूक हृदय का प्राणपण आत्म-निवेदन होता है?
(A) दर्शनाभिलाषी के
(B) गुरुदेव के किसी विद्यार्थी के
(C) गुरुदेव के कुत्ते के
(D) स्वयं अपने हृदय का
उत्तर-
(C) गुरुदेव के कुत्ते के

प्रश्न 8.
गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाकर किसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है?
(A) गुरुदेव के भक्त के
(B) गुरुदेव के कुत्ते के
(C) हजारी प्रसाद द्विवेदी के
(D) मैना के
उत्तर-
(B) गुरुदेव के कुत्ते के

प्रश्न 9.
कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर क्या देखा है?
(A) व्याकुलता
(B) दुष्टता
(C) विशाल मानव सत्य
(D) उदारता
उत्तर-
(C) विशाल मानव सत्य

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

प्रश्न 10.
आरंभ में लेखक ने कौओं को कैसा पक्षी समझा था?
(A) सर्वव्यापक
(B) शाकाहारी
(C) एकांतवासी
(D) घुमक्कड़
उत्तर-
(A) सर्वव्यापक

प्रश्न 11.
लेखक ने मैना को कैसा पक्षी समझ रखा था?
(A) करुणायुक्त
(B) करुणभावहीन
(C) चतुर एवं चालाक
(D) मंदबुद्धि
उत्तर-
(B) करुणभावहीन

प्रश्न 12.
किसने मैना के हृदय के दुःख को देख लिया था?
(A) लेखक ने
(B) पाठक ने
(C) कवि (रवीन्द्रनाथ टैगोर) ने
(D) दर्शनाभिलाषी ने
उत्तर-
(C) कवि (रवीन्द्रनाथ टैगोर) ने

प्रश्न 13.
लेखक को किसकी दृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय मिलता है?
(A) गरीब व्यक्ति की
(B) भिखारी की
(C) गुरुदेव के कुत्ते की
(D) अमीर व्यक्ति की
उत्तर-
(C) गुरुदेव के कुत्ते की

प्रश्न 14.
मैना के चले जाने के बाद वहाँ का वातावरण कैसा हो गया?
(A) प्रसन्नतायुक्त
(B) उत्साहमय
(C) निराशाजनक
(D) हर्षवर्द्धक
उत्तर-
(C) निराशाजनक

प्रश्न 15.
कुत्ता अपने किस गुण के कारण गुरुदेव के मन को भाता है?
(A) लालची होने के कारण
(B) स्वामीभक्त होने के कारण
(C) संवेदनशील होने के कारण
(D) मूक प्राणी होने के कारण
उत्तर-
(C) संवेदनशील होने के कारण

प्रश्न 16.
आज मनुष्य दूसरे मनुष्य के अंदर क्या नहीं देख पाता?
(A) मानव सत्य
(B) दया का भाव
(C) संवेदनशीलता
(D) उदारता
उत्तर-
(A) मानव सत्य

एक कुत्ता और एक मैना प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. यहाँ यह दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे ‘दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत-भीत से रहते थे। अस्त, मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्रीनिकेतन जा पहुँचा। कई दिनों से उन्हें देखा नहीं था। [पृष्ठ 79-80]

शब्दार्थ-दर्शनार्थी = दर्शन करने वाले। प्रगल्भ = वाचाल, बोलने में संकोच न करने वाला। अवस्था-अनवस्था = परिस्थिति-अपरिस्थिति। भीत-भीत = डरे-डरे।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘एक कुत्ता और एक मैना’ शीर्षक संस्मरणात्मक निबंध से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी हैं। इसमें लेखक ने न केवल पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम को दिखाया है, अपितु पशु-पक्षियों से मिलने वाले प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का विस्तार भी किया है। इन पंक्तियों में लेखक के गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से सपरिवार मिलने जाने का वर्णन है, साथ ही भारतीय दर्शकों के स्वभाव का भी उल्लेख है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने गुरुदेव रवींद्रनाथ के दर्शन करने वालों के संदर्भ में कहा है कि यह बात मुझे अत्यंत खेद के साथ कहनी पड़ रही है कि अपने देश में दर्शन करने वाले लोगों में कुछ लोग बहुत धूर्त होते हैं। वे समय या असमय, स्थान या अस्थान, अवस्था या अनवस्था आदि का जरा भी ध्यान नहीं रखते और उन्हें इसकी परवाह ही नहीं होती है। उन्हें यदि रोकने का प्रयास भी किया जाए तो वे रुकते ही नहीं हैं। वे दर्शन करने आ ही जाते हैं। दूसरों की सुविधा का उन्हें तनिक भी ध्यान नहीं होता। ऐसे दर्शन करने वाले लोगों से गुरुदेव रवींद्रनाथ जी डरे-डरे से रहते थे। लेखक भी गुरुदेव रवींद्रनाथ से एक बार अपने परिवार सहित मिलने जाता है। इसलिए वह सीधा श्रीनिकेतन पहुँचा, जहाँ गुरुदेव बड़े आनंद में थे।

विशेष-

(1) लेखक ने दर्शनार्थियों की उद्धतता पर व्यंग्य किया है।
(2) गुरुदेव रवींद्रनाथ जी कवि हृदय व्यक्ति थे। वे शांत वातावरण में रहना पसंद करते थे इसलिए दर्शनार्थियों की भीड़ से वे भयभीत हो उठते थे।
(3) भाषा-शैली सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक को किस बात का दुःख होता है?
(2) कैसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव भयभीत से रहते थे?
(3) लेखक श्रीनिकेतन में कैसे पहुँचा?
उत्तर-
(1) लेखक को इस बात का दुःख होता है कि कुछ लोग समय-असमय का ध्यान न रखते हुए गुरुदेव के दर्शन करने पहुँच जाते थे।
(2) जो दर्शनार्थी अवस्था अनवस्था, स्थान-अस्थान, समय-असमय का ध्यान नहीं रखते थे, गुरुदेव उनसे भयभीत रहते थे।
(3) लेखक अपने बाल-बच्चों सहित श्रीनिकेतन में पहुँचता है।

2. जब मैं इस मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है, तब मैं यह सोच ही नहीं पाता कि उसने अपने सहज बोध से मानव स्वरूप में कौन सा अमूल्य आविष्कार किया है, इसकी भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है। [पृष्ठ 80-81]

शब्दार्थ-मूक हृदय = मौन रहने वाला (कुत्ता)। आत्मनिवेदन = प्रार्थना। दीनता = बेचारापन। बोध = ज्ञान। अमूल्य = जिसका कोई मूल्य न आँका जा सके। आविष्कार = खोज। व्याकुलता = बेचैनी।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी-कृत ‘एक कुत्ता और एक मैना’ नामक संस्मरणात्मक निबंध से अवतरित है। ये पंक्तियाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ जी की एक कविता का अनुवाद हैं, जो उन्होंने स्वामिभक्त कुत्ते को लक्ष्य करके लिखी थीं। उन्होंने उस मूक हृदय वाले प्राणी की दृष्टि में मानव का सच्चा स्वरूप देखा था।

व्याख्या/भाव ग्रहण-कविवर रवींद्रनाथ जी जब अपने पुराने तीन मंज़िले मकान में आकर रहने लगे तो एक दिन उनके शांतिनिकेतन में रहने वाला कुत्ता दो मील का सफर तय करके अपनी घ्राण शक्ति के बल पर गुरुदेव के पास आ पहुँचा। गुरु जी ने उसके सिर पर अपना अमृतमय हाथ रख दिया, जिससे उस कुत्ते ने अधमुंदी आँखों से आनंदानुभूति को व्यक्त किया था। बाद में गुरुदेव ने उसे लक्ष्य करके एक कविता लिखी थी। उसी कविता का यह एक अंश है। गुरुदेव ने लिखा है कि जब मैं उसके हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन अर्थात हृदय से की गई प्रार्थना को देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है तब कविवर यह सोच नहीं सकता कि उसने अपने सहज बोध अर्थात साधारण ज्ञान से मानव स्वरूप में कौन-सा अमूल्य आविष्कार किया है भाव मानव के हृदय में उसने क्या खोजा है। उसकी भाषाविहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती। कहने का भाव है कि उसके हृदय में जो करुणा भाव है, वह उसे कुछ समझा नहीं सकती, किंतु कवि को उसकी यह दृष्टि मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है। कहने का भाव है कि कवि की मर्मभेदी दृष्टि कुत्ते की करुणा से युक्त दृष्टि में विशाल मानव-सत्य को देख सकती है।

विशेष-

(1) लेखक ने गुरुदेव की कविता के माध्यम से मानवेत्तर प्राणियों के हृदय की भावना को व्यक्त करने का प्रयास किया है।
(2) कुत्ते की करुण भावना में कवि को विशाल मानव-सत्य के दर्शन हुए हैं।
(3) भाषा काव्यात्मक एवं प्रवाहयुक्त है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक किस मूक हृदय के प्राणपण के आत्मनिवेदन को देखते हैं?
(2) उसने (कुत्ता) मानव स्वरूप में कौन-सा अमूल्य आविष्कार किया था?
(3) लेखक को किसकी दृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय मिला?
उत्तर-
(1) लेखक कुत्ते के मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन देखता है।
(2) उसने (कुत्ता) सहज बोध से मानव स्वरूप में मानवता का अमूल्य आविष्कार किया था।
(3) लेखक को कुत्ते की दृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय मिला।

3. जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत साफ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा और किस प्रकार कवि की आँखें उस बिचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गईं, सोचता हूँ तो हैरान हो रहता हूँ। एक दिन वह मैना उड़ गई। सायंकाल कवि ने उसे नहीं देखा। जब वह अकेले जाया करती है उस डाल के कोने में, जब झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक से पुकारा करता है नींद तोड़ने वाला संध्यातारा! कितना करुण है उसका गायब हो जाना! [पृष्ठ 84]

शब्दार्थ मर्मस्थल = हृदय के भाव। फाँक = टहनियाँ। गायब होना = लुप्त हो जाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित एवं हज़ारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध संस्मरणात्मक निबंध ‘एक कुत्ता और एक मैना’ से उद्धृत है। इस निबंध में लेखक ने दो अलग-अलग संस्मरणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में मैना के एक संस्मरण का उल्लेख किया गया है। गुरुदेव रवींद्रनाथ ने मैना के भावों को समझकर उस पर एक कविता लिखी थी। उस कविता को पढ़कर लेखक कवि की मर्मभेदी दृष्टि से बड़ा प्रभावित हुआ था। उसकी प्रतिक्रियास्वरूप ही ये शब्द कहे गए हैं।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक रवींद्रनाथ द्वारा रचित कविता को पढ़ने पर कहते हैं कि जब मैं मैना-संबंधी कविता को पढ़ता हूँ तो मैना की करुण मूर्ति स्पष्ट रूप में मेरी दृष्टि के सामने उभर आती है। किस प्रकार मैं उसे देखकर भी देख न सका अर्थात उसके हाव-भाव व करुण दृष्टि को न समझ सका, किंतु कवि की आँखें उस बेचारी मैना के मर्मस्थल तक पहुँच गईं अर्थात कवि ने मैना के जीवन की वास्तविकता को सहज ही समझ लिया था। लेखक जब मैना के विषय में सोचता है तो हैरान हो उठता है कि वह मैना के भाव को क्यों नहीं पहचान सका। एक दिन मैना वहाँ से उड़ गई। सायंकाल को कवि ने भी उसे वहाँ नहीं देखा। जब वह अकेले जाया करती है तो उस डाल के कोने में झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है। हवा में बाँस के पत्तों की झरझराने की ध्वनि सुनाई पड़ती रहती थी। पेड़ों की शाखाओं से नींद तोड़ने वाला संध्या का तारा पुकारता रहता था। लेखक को यह सब मैना के चले जाने के बाद अनुभव हुआ। इसलिए उसका ऐसे लुप्त हो जाना कितना करुणाजनक था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

विशेष-

(1) लेखक ने मैना के संस्मरण के माध्यम से उस घटना को अपनी भावना एवं अनुभूति से समन्वित करके प्रस्तुत किया है, जो पाठक-हृदय को स्पर्श करती है।
(2) कवि की मर्मभेदी दृष्टि की ओर संकेत किया गया है।
(3) भाषा-शैली सरल, सहज एवं भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) कवि किस कविता की बात कर रहा है? यह कविता किसने और क्यों लिखी थी?
(2) कवि हैरान क्यों होता है?
(3) मैना के चले जाने के बाद की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि मैना पर लिखी हुई कविता की बात कर रहा है। यह कविता महाकवि रवींद्रनाथ ने लँगड़ी मैना को देखकर उसकी दयनीय दशा को प्रकट करने के लिए लिखी थी।
(2) कवि इस बात को अनुभव करके हैरान है कि मैना को देखकर उसके मन में कुछ नहीं हुआ था। जबकि रवींद्रनाथ ने उस मैना के हृदय के दुःख को समझ लिया था।
(3) मैना के चले जाने के बाद भी झींगुर बोलता रहता है। बाँस के पत्ते झरते रहते हैं, पेड़ों के बीच से संध्या का तारा भी दिखाई देता है, पर मैना नहीं। उसके जाने के बाद सारा वातावरण निराश सा दिखाई देता है।

एक कुत्ता और एक मैना Summary in Hindi

एक कुत्ता और एक मैना लेखक-परिचय

 

एक कुत्ता और एक मैना पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न 1.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की सुप्रसिद्ध रचना है। लेखक ने भावात्मक शैली का सफल प्रयोग करके साधारण घटनाओं को श्रेष्ठ रचना का रूप दिया है। विषय-विस्तार न होते हुए भी यह रचना भावों का गुंफित रूप है। संपूर्ण निबंध में गुरुदेव रवींद्रनाथ का व्यक्तित्व झलकता है। लेखक ने गुरुदेव से भेंट की एक घटना का स्वानुभूति के आधार पर भावात्मक शैली में उल्लेख किया है। एक दिन गुरुदेव ने निश्चय किया कि वे आश्रम को त्यागकर अन्यत्र रहना चाहते हैं। वे श्रीनिकेतन के पुराने तीन-मंजिले मकान में आकर रहने लगे। उन दिनों ऊपर जाने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियों का प्रयोग करना पड़ता था। वृद्धावस्था में वहाँ पहुँचना बड़ा कठिन कार्य था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका। लेखक ने छुट्टियों में गुरुदेव के दर्शन करने की ठान ली। यहाँ लेखक ने ‘दर्शन’ शब्द का प्रयोग साभिप्राय किया है। जब भी लेखक किसी बाहर के व्यक्ति को लेकर उनके पास जाता था तो कहा करता था, “एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन।” इस पर गुरुदेव मुसकरा देते थे कि दर्शनार्थी हैं क्या ? के तो लेखक को भी दर्शनार्थी ही कहा करते थे।

उस पुराने भवन में गुरुदेव अकेले ही रहते थे। इसलिए वहाँ आश्रम जैसी भीड़-भाड़ नहीं थी। जब लेखक वहाँ गुरुदेव से भेंट करने हेतु पहुँचा तो वे छिपते हुए सूर्य को बड़ी तल्लीनता के साथ देख रहे थे। यह एक संयोग ही था कि उसी समय एक कुत्ता, जिसने शांतिनिकेतन में गुरुदेव का साहचर्य प्राप्त किया था, अपनी घ्राण शक्ति के बल पर उनका अनुपम एवं स्वर्गीय सान्निध्य प्राप्त करने हेतु वहाँ आ पहुँचा। गुरुदेव ने उस पर अपना अमृतस्पर्शी हाथ फेरा। उस अपूर्व सुख की अनुभूति कुत्ते की अर्द्धखुली आँखें और उसके रोम-रोम से उमड़ रहा स्नेह बता रही थीं। कैसी अजीब बात है कि उस कुत्ते को किसी ने न मार्ग दिखाया, न बताया था, पर वह अपने स्नेहदाता के पास दो मील चलकर पहुँच गया। बाद में गुरुदेव ने इस कुत्ते को लक्ष्य करके ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी। कुत्ते की करुण दृष्टि के भीतर उन्होंने स्नेह-भाव के महान सत्य को देखा था, जबकि मानव मानव में स्नेहभाव को नहीं देख सकता। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे यह भक्त कुत्ता उनकी उपासना के समय उनके आसन के पास चुपचाप बैठा रहता है और जब पूजा के बाद वे अपना स्नेहपूर्ण हाथ उस पर फेरते हैं तो वह आनंद से पुलकित हो उठता है। कुत्ता वास्तव में चैतन्यशील प्राणी है। वह अहैतुक प्रेम की भावना को भली-भाँति समझता था तथा अपनी करुण दृष्टि से आत्मसमर्पण के भाव को प्रकट करता है। गुरुदेव ने वाणी विहीन कुत्ते की करुण दृष्टि में एक महान सत्य के दर्शन किए हैं। इसलिए द्विवेदी जी ने कहा है, “कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।”

इसके साथ ही लेखक ने एक और आश्चर्यजनक घटना का उल्लेख भी किया है। जब गुरुदेव की चिताभस्म को कलकत्ते के आश्रम में लाया गया तो वह कुत्ता बड़े सहज भाव से वहाँ आश्रमवासियों के साथ बड़े उदास भाव से उत्तरायण तक गया। हो सकता है कि उसे भी गुरुदेव के न रहने का दुःख हो।

इसी प्रकार लेखक एक अन्य प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताता है कि वे नए-नए शांतिनिकेतन में आए थे और एक पुराने अध्यापक के साथ गुरुदेव के साथ घूमने लगे तो गुरुदेव ने लक्ष्य किया कि आश्रम के कौए क्या हो गए ? उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं देती। लेखक ने महसूस किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दिख रहे हैं। बाद में द्विवेदी जी ने लक्ष्य किया कि कौए कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं। इसी प्रकार की दूसरी घटना है-लँगड़ी मैना के संबंध में। गुरुदेव ने उसे देखकर कहा”देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण-भाव दिखाई देता है।” ।

गुरुदेव के कहने पर लेखक उस मैना में निहित करुण-भाव को अनुभव कर सका था। बाद में लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर पाया कि मैना करुण-भाव दिखाने वाली पक्षी नहीं है। वह दूसरों पर अपनी अनुकंपा दिखाने वाली है। जिस मकान में लेखक महोदय रहते थे, उसकी दीवारों में चारों ओर सुराख थे। उन सुराखों में मैना का एक जोड़ा हर वर्ष अपनी गृहस्थी जमाता था। लेखक द्वारा दीवार में ईंट लगा देने पर वे खाली स्थान का उपयोग करने में कोई कसर न छोड़ते थे। अपना सारा काम बड़े उत्साह व परिश्रम से करते थे। इतना परिश्रम करने पर भी वे सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे और उनके गान परिपूर्ण होते थे, पति-पत्नी में अगाध प्रेम था। पर उस मैना में गुरुदेव ने करुण भाव की अनुभूति की थी। इस भाव से परिपूर्ण गुरुदेव ने एक कविता लिखी थी। गुरुदेव ने अपने हृदय-साम्राज्य में विचरण करके उस मैना की करुण दशा का अनुमान किया था। वह बेचारी किसी परिस्थिति विशेष में पड़कर अपने प्रिय से विमुक्त हो चुकी थी। एक दिन वह मैना उड़ गई।

उपर्युक्त विवेचन को देखते हुए कहा जा सकता है कि कवि की दृष्टि में जो मर्मभेदी शक्ति होती है, उसके दर्शन अन्यत्र नहीं हो सकते। कवि केवल मानव के हृदय की ही बात नहीं समझते, अपितु मानवेतर पशु-पक्षियों की स्नेह भावना को भी सहज भाव से अनुभव कर सकते हैं। वे अपनी इस मर्मभेदी दृष्टि से यह बता देते हैं कि मूक प्राणी भी अपने सहज ज्ञान से मानव को महान सत्य के दर्शन करा सकते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-79] : तिमंजिला = तीन मंजिल वाला। मौज = खुशी। तल्ला = मंजिल। वृद्ध = बूढ़ा। क्षीणवपु = कमज़ोर शरीर। अधिकांश = अधिकतर । ठानी = निश्चय किया। दर्शनार्थी = दर्शन करने वाले। अतिथि = मेहमान। भद्र लोक = सज्जन पुरुष। आपनार = आपके। दर्शनेर = दर्शन के लिए। प्रगल्भ = वाचाल, बोलने में संकोच न करने वाला।

[पृष्ठ-80] : असमय = बिना समय, गलत समय। अनवस्था = जहाँ व्यवस्था न हो। भीत = डरना। अस्तगामी = डूबता हुआ। ध्यान-स्तिमित = ध्यान लगाए। स्नेह = प्रेम। आश्चर्य = हैरानी। परितृप्ति = पूरी तरह से संतोष प्राप्त करना। आरोग्य = बाँग्ला भाषा की एक पत्रिका। स्तब्ध = हैरान होकर । वाक्यहीन = भाषाहीन। प्राणीलोक = जीवों का समूह । अहेतुक = अकारण, बिना किसी कारण के। असीम = सीमाहीन। चैतन्य लोक = जिस लोक में चेतना हो (मनुष्यों का समाज)। प्राणपण = जान की बाजी। आत्मनिवेदन = प्रार्थना।

[पृष्ठ-81] : आविष्कार = खोज। करुण = दयायुक्त । व्याकुलता = बेचैनी। मर्मभेदी = अति दुःखद, दिल को लगने वाली। मानव-सत्य = मानव-जीवन की सच्चाई। तितल्ला = तीसरी मंजिल। महिमाशाली = महत्त्वपूर्ण। चिताभस्म = चिता की राख। उत्तरायण = शांति निकेतन में उत्तर दिशा की ओर बना रवींद्रनाथ टैगोर का एक निवास-स्थान। धृष्ट = घनिष्ठ, गहरा।

[पृष्ठ-82] : खबर = समाचार। सर्वव्यापक = सब जगह रहने वाले। प्रवास = बाहर चले जाना। फुदकना = कूदना। यूथ भ्रष्ट = समूह से निकाला हुआ। अनुकंपा = दया-भाव। समाधान = उपाय । दंपति = पति-पत्नी। नियमित = नियमपूर्वक। अंबार = ढेर। विजयोद्घोषी = विजय की घोषणा करने वाली। वाणी = भाषा। .

[पृष्ठ-83] : उपस्थित होना = हाज़िर होना, आ जाना। नृत्य = नाच। मुखरित होना = गूंज उठना। मुखातिब होकर = संबोधित होकर। अदा = ढंग। रिमार्क करना = कुछ ताना कसना। आहत = घायल। परास्त होना = हार जाना। बिडाल = बिलाव। ईषत् = थोड़ी, कुछ-कुछ। संगीहीन = बिना साथी के। निर्वासन = देश-निकाला।

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[पृष्ठ-84] : गाँठ पड़ना = विक्षिप्त होना। आहार = दाना, भोजन। अभियोग = आरोप। वैराग्य = जिसने संसार के मोह-माया को त्याग दिया हो।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

HBSE 9th Class Hindi साखियाँ एवं सबद Textbook Questions and Answers

साखियाँ

Class 9 Hindi Chapter 9 Question Answer HBSE प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर-
‘मानसरोवर’ से कवि का आशय मन रूपी तालाब से है, जिसमें ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ा करता है अर्थात जीवात्मा मोक्ष रूपी मोती चुगती है।

साखियाँ एवं सबद प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर-
कवि ने सच्चे प्रेमी की कसौटी पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि ईश्वर का एक प्रेमी जब दूसरे प्रेमी से मिलता है तो विषय-वासनाओं रूपी विष भी प्रभु-भक्ति रूपी अमृत में बदल जाता है। एक सच्चा प्रेमी प्रभु की चर्चा करता है, जिससे सबके हृदय में आनंद एवं सुख की अनुभूति होती है।

साखियाँ एवं सबद कक्षा 9 भावार्थ HBSE प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है ?
उत्तर-
तीसरे दोहे में कवि ने हस्ती रूपी ज्ञान को महत्त्व दिया है, जो सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्राप्त हो सकता है। ऐसे ज्ञान से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

साखियाँ एवं सबद Summary HBSE 9th Class प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर-
संत कवि कबीरदास ने बताया है कि सारा संसार पक्ष-विपक्ष के विवाद में फँसा हुआ है, किंतु सच्चा संत वह कहलाता है, जो निष्पक्ष या समभाव से ईश्वर का भजन करता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

साखियाँ एवं सबद भावार्थ Class 9 HBSE प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है ?
उत्तर-
अंतिम दो दोहों में कबीरदास ने हिंदुओं और मुसलमानों की सांप्रदायिकता अर्थात हमारा राम श्रेष्ठ है तथा हमारा खुदा श्रेष्ठ है, की संकीर्णता पर प्रकाश डाला है। अंतिम दोहे में कबीरदास ने ऊँचे कुल में जन्म लेने पर गुणहीन होने पर भी अपने-आपको समाज में ऊँचा या श्रेष्ठ समझने की संकीर्णता को अभिव्यक्त किया है। व्यक्ति ऊंचे कुल में उत्पन्न होने से नहीं, अपितु अच्छे कर्म करने से ही बड़ा होता है।

Class 9 Hindi Chapter 9 HBSE प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
कबीरदास ने अपनी साखी में बताया है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं होती, अपितु उसके कर्मों से होती है। यदि एक व्यक्ति उच्च कुल में पैदा होकर नीच कर्म करता है तो उसे नीच ही समझा जाता है और उसकी पहचान बुरे या नीच व्यक्ति के रूप में ही होती है। इसके विपरीत, छोटे कुल में उत्पन्न व्यक्ति यदि सत्कर्म या महान् कर्म करता है तो उसे उच्च समझा जाता है अर्थात उसकी पहचान उसके कुल से नहीं, अपितु उसके कर्मों से ही होती है। संत कवि रैदास इसके उदाहरण हैं।

Class 9 Chapter 9 Hindi HBSE प्रश्न 7.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिएहस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥
उत्तर-
(क) प्रस्तुत दोहे में कवि ने ज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट किया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) दोहा छंद है।
(घ) स्वर-मैत्री के कारण भाषा में लय का समावेश है।
(ङ) संपूर्ण दोहे में रूपक अलंकार है।

सबद

साखियाँ एवं सबद कक्षा 9 प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है ?
उत्तर-
कवि के अनुसार मनुष्य ईश्वर को देवालय (मंदिर), मस्जिद, काबा, कैलाश पर्वत, क्रिया-कर्म, योग और वैराग्य में ढूँढ़ता फिरता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

साखियाँ एवं सबद भावार्थ Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ?
उत्तर-
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के अनेक प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर मंदिरों, मस्जिदों में प्राप्त नहीं हो सकता। वह काबा और कैलाश जैसे तीर्थ-स्थलों पर भी नहीं है। यहाँ तक कि योग-साधना, संन्यास या वैराग्य से भी उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वह कर्मकांडों के द्वारा भी प्राप्त नहीं हो सकता। ये सब दिखावे हैं। इनमें ईश्वर को ढूँढना व्यर्थ है।

9th Hindi Chapter 9 Question Answer HBSE प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है ?
उत्तर-
कबीर का मत है कि ईश्वर घट-घट में समाया हुआ है। इसलिए वह प्रत्येक प्राणी की साँस-साँस में समाया हुआ है। वह प्रत्येक प्राणी के हृदय में विद्यमान है।

साखियाँ एवं सबद Class 9 HBSE प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की ?
उत्तर-
कबीर की दृष्टि में ज्ञान के आगमन और आँधी की प्रवृत्ति एक समान है। इसलिए उन्होंने ज्ञान के आगमन की तुलना आँधी से की है। जिस प्रकार आँधी के आने से पृथ्वी पर पड़ी व्यर्थ वस्तुएँ उड़ जाती हैं और पृथ्वी स्वच्छ हो जाती है; उसी प्रकार ज्ञान के आगमन से मनुष्य के मन में व्याप्त भ्रम और दुविधाएँ नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर ईश्वर की भक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए कबीरदास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा की अपेक्षा आँधी से की है।

प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
कबीरदास के अनुसार ज्ञान की आँधी आने से भक्त के मन में सभी प्रकार की भ्रम एवं दुविधा की स्थिति समाप्त हो जाती है और उसके मन में ईश्वरीय प्रेम उत्पन्न हो जाता है। अज्ञान या अविवेक नष्ट हो जाता है और वह ईश्वर की भक्ति में लीन होकर अनुपम आनंद की अनुभूति करने लगता है।

प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में स्पष्ट किया गया है कि ज्ञान के आगमन से साधक या भक्त के मन के सभी प्रकार के भ्रम और मन की दुविधा रूपी दो थूनी गिरकर टूट जाती है अर्थात मन की दुविधा की स्थिति समाप्त हो जाती है और सांसारिक मोह रूपी बल्ली भी टूट जाती है। कहने का भाव है कि मानव को ईश्वरीय ज्ञान होने पर उसके मन के भ्रम, दुविधा एवं मोह के बंधन टूट जाते हैं।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि ज्ञान की आँधी आने पर अर्थात मानव को ज्ञान प्राप्त हो जाने पर ईश्वरीय भक्ति की जो वर्षा होती है, उसमें ईश्वर का भक्त पूर्णतः भीग जाता है अर्थात ईश्वरीय भक्ति में मगन हो जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 14:
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
संकलित साखियों में कबीरदास ने धार्मिक विचारों को उदार बनाने पर बल दिया है। उन्होंने कहा है कि हमें अपने धर्म को ही श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए, अपितु सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। कबीर की दृष्टि में सभी धर्मों के प्रति समभाव रखने वाला व्यक्ति सही अर्थों में जीवन जीता है। इसी प्रकार कबीरदास ने एक अन्य साखी में कहा है कि जब मनुष्य मध्यम मार्ग अपना लेता है तो उसे काबा व काशी तथा राम और रहीम में परम तत्त्व के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार संकलित पदों में कबीरदास ने ईश्वर को बाह्य साधनों में ढूँढने की अपेक्षा मन में ढूँढने की प्रेरणा दी है, क्योंकि ईश्वर तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसता है। मानव को ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति होने पर उसके मन के सभी भ्रम एवं दुविधाएँ नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर प्रभु-भक्ति का संचार हो जाता है, जिससे वह सुख एवं आनंद का अनुभव करता है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर-
शब्द –तत्सम
पखापखी = पक्ष-विपक्ष
अनत = अन्य
जोग – योग
जुगति = युक्ति
बैराग = वैराग्य
निरपख = निष्पक्ष

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न-
कबीर की साखियों को याद कर कक्षा में अंत्याक्षरी का आयोजन कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

HBSE 9th Class Hindi साखियाँ एवं सबद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित दोहों के आधार पर कबीर की प्रेम संबंधी धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
कबीर जी का प्रेम सांसारिक प्रेम नहीं, अपितु उनका प्रेम परमात्मा के प्रति था। वे प्रेम को पवित्र जल के समान उज्ज्वल एवं पावन मानते हैं। इस प्रेम की प्राप्ति के पश्चात् कोई प्राणी इससे अलग नहीं रह सकता। ईश्वरीय प्रेम की प्राप्ति से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है। उसके पापों का नाश हो जाता है तथा वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
कबीरदास मानव की श्रेष्ठता किसमें मानते हैं ?
उत्तर-
कबीरदास के मतानुसार वही व्यक्ति श्रेष्ठ है जिसमें किसी प्रकार का घमंड नहीं होता। वह सदैव सद्कर्मों में लगा रहता है। सद्कर्म और प्रभु स्मरण करने वाला व्यक्ति ही कबीर की दृष्टि में श्रेष्ठ है।

प्रश्न 3.
कबीरदास के मतानुसार ईश्वर की प्राप्ति का सही उपाय क्या है ? .
उत्तर-
कबीरदास के मतानुसार ईश्वर कहीं बाह्य स्थानों अर्थात् देवालय, पर्वत, मंदिर, मस्जिद आदि में नहीं मिलता, अपितु वह मनुष्य के हृदय में बसा हुआ है। मानव की हर साँस में उसका निवास है। इसलिए हमें ईश्वर को अपने हृदय में ही ढूँढना चाहिए। हमें अपनी हर साँस में ईश्वर की अनुभूति करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
कबीरदास ने मेरे और तेरे मन के एक न होने की बात क्यों कही है ?
उत्तर-
कबीरदास ने ‘मेरे’ शब्द का प्रयोग अपने लिए या प्रभु भक्त के लिए किया है। ‘तेरे’ शब्द का प्रयोग सांसारिक मोह में फँसे हुए व्यक्ति के लिए किया है। इन दोनों की विचारधाराएँ अलग-अलग हैं। दोनों के लक्ष्य भिन्न-भिन्न हैं। एक अपने अनुभव पर विश्वास करता है, जबकि दूसरा वेद शास्त्रों में कही गई बात अथवा अंधविश्वासों को मानता है। यह सोच का अंतर ही मेरे-तेरे मन के एक होने में बाधक है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संत कबीर किस भक्ति काव्यधारा के कवि हैं ?
(A) राम भक्ति काव्यधारा के
(B) कृष्ण भक्ति काव्यधारा के
(C) सूफी भक्ति काव्यधारा के
(D) निर्गुण भक्ति काव्यधारा के
उत्तर-
(D) निर्गुण भक्ति काव्यधारा के

प्रश्न 2.
संत कबीर का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1398 में
(B) सन् 1405 में
(C) सन् 1415 में
(D) सन् 1425 में
उत्तर-
(A) सन् 1398 में

प्रश्न 3.
कबीरदास कहाँ के रहने वाले थे ?
(A) लखनऊ के
(B) काशी के
(C) मेरठ के
(D) प्रयागराज के
उत्तर-
(B) काशी के

प्रश्न 4.
विद्वानों ने कबीरदास की कितनी लंबी आयु मानी है ?
(A) लगभग सौ वर्ष
(B) लगभग एक सौ दस वर्ष
(C) लगभग एक सौ बीस वर्ष
(D) लगभग एक सौ तीस वर्ष
उत्तर-
(C) लगभग एक सौ बीस वर्ष

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

प्रश्न 5.
विद्वानों ने कबीरदास का जन्म किसके गर्भ से माना है ?
(A) विधवा ब्राह्मणी के
(B) शूद्र के
(C) जुलाहिन के
(D) क्षत्राणी के
उत्तर-
(A) विधवा ब्राह्मणी के

प्रश्न 6.
विद्वानों ने कबीरदास का निधन कब माना है ?
(A) सन् 1538 में
(B) सन् 1528 में
(C) सन् 1518 में
(D) सन् 1508 में
उत्तर-
(C) सन् 1518 में

प्रश्न 7.
कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया ?
(A) विधवा ब्राह्मणी ने
(B) नीरू नामक जुलाहा ने
(C) दादू दयाल ने
(D) एक मौलवी ने
उत्तर-
(B) नीरू नामक जुलाहा ने

प्रश्न 8.
कबीरदास की सामाजिक चेतना कैसी थी ?
(A) गहन
(B) उथली
(C) उदार
(D) संकीर्ण
उत्तर-
(A) गहन

प्रश्न 9.
कबीरदास की कुछ प्रमुख रचनाएँ किस धार्मिक ग्रंथ में संकलित हैं ?
(A) गीता में
(B) महाभारत में
(C) रामायण में
(D) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में
उत्तर-
(D) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में

प्रश्न 10.
किस विद्वान ने कबीरदास के काव्य की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भाषा बताया है ?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने
(B) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने
(C) महावीर प्रसाद द्विवेदी ने
(D) रामकुमार वर्मा ने
उत्तर-
(B) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने

प्रश्न 11.
कबीरदास को ‘मस्तमौला’ किस विद्वान ने कहा है ?
(A) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने
(C) रामकुमार वर्मा ने
(D) जयशंकर प्रसाद ने
उत्तर-
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने

प्रश्न 12.
कबीरदास के अनुसार हंस कहाँ केलि करते हैं ?
(A) सागर में
(B) नदी में
(C) मानसरोवर में
(D) लघु सरोवर में
उत्तर-
(C) मानसरोवर में

प्रश्न 13.
कबीरदास के अनुसार प्रेमी को प्रेमी मिलने पर क्या हो जाता है ?
(A) शक्ति में वृद्धि
(B) दोनों में मेलजोल
(C) विष का अमृत में परिवर्तन हो जाना
(D) गिले-शिकवे दूर होना
उत्तर-
(C) विष का अमृत में परिवर्तन हो जाना

प्रश्न 14.
कबीरदास किस ‘प्रेमी’ की बात कहते हैं ?
(A) परमात्मा
(B) साधारण मनुष्य
(C) गहरे मित्र
(D) धोखेबाज प्रेमी
उत्तर-
(A) परमात्मा

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प्रश्न 15.
‘सहज दुलीचा’ किसका प्रतीक है ?
(A) सहज भक्ति-भावना का
(B) सहज विचार का
(C) सहज जीवन का
(D) सहज भोजन का
उत्तर-
(A) सहज भक्ति-भावना का

प्रश्न 16.
कवि ने किसे संत सुजान कहा है ?
(A) जो पक्षपात करता हो
(B) जो पक्ष-विपक्ष के चक्कर में पड़ा हो
(C) जो निष्पक्ष भाव से परमात्मा की भक्ति करता हो
(D) जो किसी विशेष मत को अपनाता हो
उत्तर-
(C) जो निष्पक्ष भाव से परमात्मा की भक्ति करता हो

प्रश्न 17.
कबीरदास के अनुसार कौन व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करता है ?
(A) जो राम या खुदा में भेदभाव करता है
(B) जो राम या खुदा के भेदभाव के निकट नहीं जाता
(C) जो राम को खुदा से बड़ा मानता है
(D) जो खुदा से राम को छोटा मानता है
उत्तर-
(B) जो राम या खुदा के भेदभाव के निकट नहीं जाता

प्रश्न 18.
किस साधक के लिए काबा काशी और राम रहीम बन जाता है ?
(A) सच्चे साधक के लिए
(B) पाखंडी साधक के लिए
(C) भीख माँगने वाले के लिए
(D) निर्गुण साधक के लिए
उत्तर-
(A) सच्चे साधक के लिए

प्रश्न 19.
साधु किस व्यक्ति की निंदा करते हैं ?
(A) जो ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे काम करता है
(B) जो नीच कुल में जन्म लेकर अच्छे काम करता है
(C) जो परिश्रमी होता है
(D) जो पंडित होकर भी भजन नहीं करता
उत्तर-
(A) जो ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे काम करता है

प्रश्न 20.
किस वस्तु से भरे हुए स्वर्ण कलश की साधु निंदा करते हैं ?
(A) अमृत से
(B) शराब से
(C) दूध से
(D) जल से
उत्तर-
(B) शराब से

प्रश्न 21.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बदे’ पद में कवि ने ईश्वर को कहाँ ढूँढ़ने के लिए कहा है ?
(A) मन्दिर में
(B) मस्जिद में
(C) अपने घर में
(D) अपने अंदर
उत्तर-
(D) अपने अंदर

प्रश्न 22.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बदे’ पद में किसकी सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है ?
(A) वायु की
(B) जल की
(C) प्रकाश की
(D) ईश्वर की
उत्तर-
(D) ईश्वर की

प्रश्न 23.
कबीरदास के अनुसार किसकी आँधी आई है ?
(A) धूल की
(B) सुगंधित पवन की
(C) रेत की
(D) ज्ञान की
उत्तर-
(D) ज्ञान की

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

प्रश्न 24.
कौन-सी टाटी उड़ गई है ?
(A) फूंस की
(B) बाँस की
(C) तिनकों की
(D) भ्रम की
उत्तर-
(D) भ्रम की

प्रश्न 25.
ज्ञान की आँधी आने से किसका भांडा फूट जाता है ?
(A) पाप का
(B) मोह का
(C) कुबुद्धि का
(D) लालच का
उत्तर-
(C) कुबुद्धि का

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

दो बैलों की कथा अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

साखियाँ

1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुनें, अब उड़ि अनत न जाहिं ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-मानसरोवर = एक झील (यहाँ हृदय)। सुभर = भरा हुआ। केलि = क्रीड़ाएँ। मुकता = मोती। अनत = अन्यत्र, कहीं ओर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) मानसरोवर में कौन क्रीड़ाएँ करता है ?
(6) कौन मुकता चुगता है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या कवि कहता है कि मेरा हृदय रूपी मानसरोवर भक्ति रूपी जल से परिपूर्ण है अर्थात भरा हुआ है। उसमें जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ाएँ कर रहा है। वह क्रीड़ाएँ करता हुआ मुक्ति रूपी मोती चुग रहा है। वह उसमें इतना लीन है कि अब उसे छोड़कर कहीं ओर नहीं जाएगा।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि ईश्वरीय ज्ञान होने पर आत्मा ईश्वर भक्ति में लीन रहती है।

(3) साधक साधना करते हुए भगवद्-प्रेम में लीन है। परमात्मा से साक्षात्कार होने पर अब वह अनूठे आनंद में मग्न है। इस आनंद को छोड़कर वह किसी अन्य देवी-देवता की शरण में नहीं जाएगा।

(4) (क) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
(ख) दोहा छंद का प्रयोग है।
(ग) रूपक अलंकार है।
(घ) ‘मुकताफल मुकता’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) प्रस्तुत साखी संक्षिप्त होते हुए भी गहन अर्थ को व्यक्त करने में सफल सिद्ध हुई है।

(5) मानसरोवर (हृदय) में जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ाएँ करता है।

(6) जीवात्मा रूपी हंस मुकता चुगता है।

2. प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-प्रेमी = प्रेम करने वाला। कौं = को। विष = जहर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) यह दोहा किसने किसको कहा है ?
(6) सब विष अमृत कब हो जाता है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कवि ने ईश्वर-प्रेमी के गुणों एवं संगति के प्रभाव को अभिव्यक्त किया है। कवि कहता है कि मैं भगवान के प्रेमी को ढूँढता फिरता हूँ, किंतु मुझे कोई सच्चा प्रेमी नहीं मिला। जब भगवान के एक प्रेमी से दूसरा प्रेमी मिलता है, तब विषय-वासनाओं का सारा विष अमृत रूप में बदल जाता है, क्योंकि तब ईश्वर के प्रेम की धारा बहने लगती है। भक्ति वासना को भी अमृत रूप में परिवर्तित कर देती है।
भावार्थ-कवि ने भक्ति के महत्त्व को स्पष्ट किया है।

(3) प्रस्तुत साखी में कवि ने स्पष्ट किया है कि ईश्वर-प्रेमी की संगति करने से मानव मन के बुरे भाव समाप्त हो जाते हैं और वह ईश्वर से प्रेम करने लगता है। इसलिए हमें ईश्वर-प्रेमी की संगति करनी चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) ‘प्रेमी कौं प्रेमी’ में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) प्रस्तुत साखी गायी जाने योग्य है।

(5) प्रस्तुत दोहा कबीरदास ने जन-साधारण को समझाने के लिए कहा है।
(6) जब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी मिलता है, तब विष (वासनाएँ) भी अमृत (भक्ति) हो जाता है।

3. हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-हस्ती = हाथी। सहज = साधारण, सहज-साधना। दुलीचा = हाथी की कमर पर डाला जाने वाला वस्त्र। डारि = डालना। स्वान = कुत्ता। मूंकन = भौंकना। झख मारि = झख मारना, व्यर्थ बोलना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कवि ने साधक को किस पर चढ़ने के लिए कहा है ?
(6) कवि ने संसार को क्या कहा है और क्यों ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने ज्ञान-प्राप्ति की पद्धति और संसार के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि हमें ज्ञान रूपी हाथी पर सहज पद्धति रूपी दुलीचा डालकर चढ़ना चाहिए अर्थात हमें प्रभु-भक्ति सहज ढंग से करनी चाहिए। संसार में भक्ति के अनेक ढंग बताए गए हैं, हमें उनकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। यह संसार तो कुत्ते की भाँति है, जो भौंकता रहता है। हमें इसकी ओर ध्यान न देकर ईश्वर भक्ति में अपने मन को लगाए रखना चाहिए।
भावार्थ-कवि ने साधक को अपनी ज्ञान-साधना में लीन रहने का उपदेश दिया है। उसे संसार की चिंता नहीं करनी चाहिए कि वह उसे क्या कहता है ?

(3) कवि के कहने का भाव है कि हमें ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सहज रूप से भक्ति करनी चाहिए। हठ योग आदि पद्धति के द्वारा शरीर को कष्ट नहीं देना चाहिए। इससे ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। हमें सांसारिक आकर्षणों व वाद-विवादों की ओर ध्यान न देकर अपना मन प्रभु-भक्ति में लगाए रखना चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी में कवि ने सरल एवं भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) प्रथम पंक्ति में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘झख मारि’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(ङ) कथन की सादगी एवं सच्चाई देखते ही बनती है।

(5) कवि ने साधक को ज्ञान रूपी हाथी पर चढ़ने के लिए कहा है।

(6) संसार को कवि ने स्वान कहा है, क्योंकि वह स्वान की भाँति व्यर्थ बोलता रहता है।

4. पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-पखापखी = पक्ष तथा विपक्ष । कारनै = कारण। जग = संसार । निरपख = निष्पक्ष, सच्चे मन से। हरि = ईश्वर । सुजान = बुद्धिमान।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर की दृष्टि में सारा संसार किसको और क्यों भूला हुआ है ?
(6) सुजान संत किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या प्रस्तुत साखी में कबीरदास ने निष्पक्ष भाव या समभाव से ईश्वर की भक्ति करने का उपदेश दिया है। कबीरदास का कथन है कि यह संपूर्ण संसार ईश्वर के अस्तित्व या निर्गुण-सगुण के पक्ष-विपक्ष की उलझन में फँसा हुआ है। इसलिए वह ईश्वर के सत्य स्वरूप को ही भूल गया है। जो लोग निष्पक्ष होकर ईश्वर का भजन करते हैं, वे ही सुजान संत कहलाते हैं अर्थात सच्चे संत शांत एवं समभाव से ईश्वर में ध्यान लगाकर भक्ति करते हैं।
भावार्थ-कबीरदास के मतानुसार वाद-विवाद, मत-मतान्तर आदि को त्यागकर ही ईश्वर की सच्ची भक्ति संभव है।

(3) प्रस्तुत साखी का प्रमुख विषय ईश्वर-भक्ति की पद्धति और सच्चे संत की पहचान बताना है। प्रस्तुत साखी में कवि ने ईश्वर की भक्ति समभाव से करने का उपदेश दिया है। ईश्वर के स्वरूप के पक्ष-विपक्ष में बहस करने वाले लोग उसके सच्चे रूप या सार तत्त्व को भूल जाते हैं। इसलिए किसी विवाद में न फँसकर पूर्ण लगन से ईश्वर के नाम का स्मरण करना चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी सच्चे संत की पहचान करवाती है।
(ख) कवि के कथन की सच्चाई पाठक के मन को प्रभावित करती है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त है।
(घ) संपूर्ण साखी में अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(ङ) “सोई संत सुजान’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(5) कबीर की दृष्टि में सारा संसार वाद-विवाद एवं पक्ष-विपक्ष के कारण ईश्वर को भूल गया है।

(6) जो व्यक्ति निष्पक्ष भाव से ईश्वर की भक्ति करता है, वही सुजान संत है।

5. हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-मूआ = मरना। जीवता = जीवित। दुहुँ = दोनों।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तत साखी में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर ने किसे जीवित कहा है ?
(6) हिंदू और मुसलमान ईश्वर को किन-किन नामों से पुकारते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कबीरदास ने बताया है कि हिंदू राम नाम रटकर अपने संप्रदाय (धर्म) की श्रेष्ठता के प्रतिपादन में मर मिटे तो मुसलमान खुदा को श्रेष्ठ बताने के प्रयास में नष्ट हो गए। कबीरदास के अनुसार जीवित व्यक्ति तो वे ही हैं, जो दोनों नामों को एक ब्रह्म मानकर इस विवाद में नहीं पड़ते कि कौन श्रेष्ठ है।
भावार्थ-कवि ने हिंदू-मुसलमान के राम और रहीम के विवाद को असत्य बताते हुए निष्पक्ष भाव से भक्ति करने पर बल दिया है।

(3) प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने स्पष्ट किया है कि राम तथा खुदा, दोनों भिन्न नहीं हैं। दोनों एक ही हैं। इस विवाद को खड़ा करना उचित नहीं है। उनकी दृष्टि में दोनों में एक ही ब्रह्म को मानकर जो उसकी भक्ति करता है, वही सच्चा साधक या भक्त होता है।

(4) (क) भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) भावों की गहनता देखते ही बनती है।
(ग) अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(घ) ‘कहै कबीर’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) शब्द-चयन सार्थक एवं विषयानुकूल है।

(5) कबीर ने उसे जीवित कहा है, जो राम व खुदा की श्रेष्ठता के विवाद में न उलझकर, दोनों में एक ही ब्रह्म को स्वीकार करके उसकी सच्चे मन से भक्ति करता है।

(6) हिंदू ‘राम’ और मुसलमान ‘खुदा’ कहकर ईश्वर को पुकारते हैं।

6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-काबा = मुसलमानों का तीर्थ-स्थल । कासी = हिंदुओं का तीर्थ-स्थान। भया = हो गया। मोट = मोटा। जीम = खाना।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तत साखी के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर के अनुसार किस दृष्टि से काबा व काशी में अंतर नहीं रह जाता ?
(6) ‘मोट चून’ किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-कबीरदास का कथन है कि मध्यमार्गी प्रवृत्ति से मुसलमानों के तीर्थ-स्थल काबा और हिंदुओं के तीर्थ-स्थान काशी में कोई अंतर नहीं रह जाता। दोनों के आराध्य राम और रहीम भी एक ही हो जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न विरोधी विचारधाराएँ या मत, जो पहले मोटे आटे के समान भद्दे लगते थे, मध्यम-मार्ग के अनुसरण से सुंदर मैदे जैसे लगने लगे। इससे उत्पन्न आनंद का कबीर उपभोग कर रहा है।
भावार्थ-कबीरदास मध्यम मार्ग को अपनाने का उपदेश देते हैं। उनके अनुसार राम और रहीम, काबा और काशी में कोई अंतर नहीं है।

(3) प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने स्पष्ट किया है कि समन्वयवादी भावना या मध्यम-मार्ग को अपनाने में ही जीवन का सच्चा सुख तथा आनंद है।

(4) (क) भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) ‘काबा फिरि कासी…’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग) दोहा छंद का प्रयोग है।
(घ) प्रस्तुत साखी में कवि की गहन एवं सच्ची अनुभूति व्यक्त हुई है।

(5) कबीर के अनुसार मध्यम प्रवृत्ति से काबा व काशी में कोई अंतर नहीं रह जाता। (6) कबीरदास ने विभिन्न विरोधी विचारधाराओं को मोट चून कहा है, क्योंकि वे भद्दी प्रतीत होती हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

7. ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-करनी = कर्म। सुबरन = सुंदर रंग या स्वर्ण। कलस = घड़ा। सुरा = शराब। सोइ = उसकी।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी का संदर्भ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(4) प्रस्तुत साखी में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) ऊँचे कुल में पैदा होने का महत्त्व कैसे नहीं होता ?
(6) साधुजन किसकी निंदा करेंगे ?
(7) प्रस्तुत साखी के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) कबीरदास द्वारा रचित प्रस्तुत साखी में बुरी संगति के दुष्प्रभाव को स्वर्ण कलश और मदिरा का उदाहरण देकर अभिव्यक्त किया गया है।

(3) व्याख्या प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने बताया है कि यदि मानव के कर्म अच्छे नहीं हैं तो ऊँचे कुल में पैदा होने से क्या होता है अर्थात आदमी अच्छे कार्यों से ही बड़ा होता है। सोने का घड़ा यदि शराब से भरा हुआ है तो भी साधु-जन उसकी निंदा करेंगे। उसे बुरा बताएँगे।।
भावार्थ-कहने का भाव है कि व्यक्ति जन्म से नहीं, अपितु गुणों से ऊँचा या महान होता है। अतः हमें सत्कर्म करने चाहिएँ।

(4) (क) प्रस्तुत साखी की भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) ‘सुरा भरा’ में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) शब्दों का चयन भाव के अनुकूल किया गया है।
(ङ) भावों की गंभीरता द्रष्टव्य है।

(5) कोई व्यक्ति ब्राह्मण-कुल में पैदा होकर भी यदि नीच कर्म करे तो उसे ऊँचे कुल में पैदा होने का महत्त्व नहीं मिल सकता है।

(6) साधुजन ऊँचे कुल में जन्मे नीच कर्म करने वाले की निंदा ही करते हैं।

(7) कवि ने अत्यंत सरल शब्दों में महान् भाव को उद्घाटित किया है कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई बड़ा नहीं हो सकता। व्यक्ति अपने कर्मों से बड़ा होता है। अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएँ तथा बुरे कर्मों या बुरी संगत से दूर रहना चाहिए। यही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

सबद (पद)

सबदों का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास के ‘सबदों’ का सार/काव्य-परिचय लिखिए।
उत्तर-
कबीरदास ने प्रथम पद में बताया है कि परमात्मा कहीं बाहर नहीं, अपितु प्राणियों के हृदय में तथा कण-कण में रमा हुआ है। उसे मंदिर, मस्जिद, देवालय आदि में नहीं ढूँढा जा सकता। उसे किसी क्रिया-कर्म से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता और न ही ईश्वर योग तथा वैराग्य धारण करने से प्राप्त होता है, अपितु यदि कोई भक्त उसे सच्चे मन से खोजने का प्रयास करे तो ईश्वर एक पल में ही मिल सकता है। कबीरदास का विश्वास है कि परमात्मा तो हर साँस तथा हर प्राण में निवास करता है। उसे बाहर नहीं, अपितु अपने हृदय में ही ढूँढा जा सकता है।
दूसरे पद में कबीरदास ने बताया है कि अज्ञान ही सांसारिक मोह-माया के बंधन का मूल कारण है। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात साधक माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आँधी और टाटी या छान के रूपक के माध्यम से कवि ने बताया है कि जिस प्रकार आँधी आने पर छान (झोंपड़ी) की फूस से बनी टाटियाँ उड़ जाती हैं, वैसे ही ज्ञान की आँधी आने से भ्रम की टाटी बँधी नहीं रह सकती। ज्ञान उत्पन्न होने से साधक के मन के सभी भ्रम स्वतः नष्ट हो जाते हैं। इस ज्ञान की आँधी के पश्चात प्रभु-भक्ति की वर्षा होती है, जिसमें साधक लीन होकर आनंदानुभूति प्राप्त करने लगता है। साधक के मन में ईश्वर का सच्चा स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है और वह फिर कभी भ्रम में नहीं फँसता।

अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में ॥ [पृष्ठ 92]

शब्दार्थ-मोकों = मुझे। बदे = व्यक्ति। देवल = देवालय, मंदिर। काबा = मुसलमानों का तीर्थ-स्थान। कैलास = पर्वत का नाम। कौने ,= किसी। क्रिया-कर्म = सांसारिक आडंबर। योग = योग-साधना। बैराग = वैराग्य। खोजी = खोजने वाला। तुरतै = तुरंत ही। तालास = खोज। स्वाँस = साँस।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) भगवान कहाँ-कहाँ नहीं है ?
(6) कबीरदास ने ईश्वर को कहाँ खोजने का उपदेश दिया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-सबद (पद)।

(2) व्याख्या-निराकार ब्रह्म मनुष्य को कहता है, हे बंदे! तू मुझे अपने से बाहर कहाँ ढूँढता फिरता है। मैं तो तेरे अत्यंत समीप हूँ। न तो मैं किसी मंदिर या मस्जिद में रहता हूँ, न ही मुसलमानों के पवित्र तीर्थ-स्थान काबा में निवास करता हूँ और न ही हिंदुओं के कैलाश पर्वत पर। इसलिए इन स्थानों पर मुझे ढूँढना व्यर्थ है। मैं न सांसारिक क्रिया-कर्म अर्थात कर्मकांड करने से प्राप्त होता हूँ, न मैं योग-साधना से मिल सकता हूँ और न ही संसार को त्यागकर वैराग्य धारण करने से या संन्यासी बनने से। ये सब तो बाहरी दिखावे हैं। हे मनुष्य! मैं तो हर स्थान एवं कण-कण में समाया हुआ हूँ। यदि कोई सच्चा भक्त खोजने वाला हो तो मैं एक पल-भर की अर्थात बहुत थोड़े समय की तलाश में मिल सकता हूँ। कहने का भाव है कि जिसके मन में मुझे प्राप्त करने की सच्ची लगन होती है, उसे मैं तुरंत ही मिल सकता हूँ। कबीरदास संतों और भक्तों को कहते हैं, हे संतो! सुनो, वह परमात्मा सब प्राणियों में विद्यमान है। जैसे साँस का निवास हमारे भीतर है, वैसे ही परमात्मा का निवास भी हमारे हृदय में है। इसलिए परमात्मा को हमें बाहर नहीं, अपितु अपने भीतर हृदय में ही खोजने या अनुभव करने की कोशिश करनी चाहिए।
भावार्थ-कवि ने ईश्वर प्राप्ति के लिए बाह्य दिखावे, तीर्थ, व्रत, उपवास आदि साधनों की अपेक्षा सच्चे मन से भक्ति करने की प्रेरणा दी है क्योंकि ईश्वर तो हर प्राणी की हर साँस में विद्यमान है।

(3) ईश्वर मंदिर, मस्जिद, काबा व कैलाश आदि तीर्थों की अपेक्षा मनुष्य के हृदय में रहता है। इसलिए उसे बाहरी दिखावा करके प्राप्त नहीं किया जा सकता, अपितु सच्चे मन और लगन से अपने हृदय में ही देखा व प्राप्त किया जा सकता है।

(4) (क) ईश्वर की सर्वव्यापकता का उल्लेख किया गया है।
(ख) संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
(ग) स्वर-मैत्री के कारण भाषा लययुक्त हो गई है।
(घ) भाषा अत्यंत सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(5) कबीरदास के अनुसार भगवान केवल मस्जिद, मंदिर, क्रियाकर्म, योग या विराग आदि बाह्य स्थलों पर नहीं मिलता।

(6) कबीरदास ने बताया है कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी के हृदय में समाया हुआ है, इसलिए ईश्वर को हमें अपने हृदय में ही खोजना चाहिए।

2. संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ॉनी, माया रहै न बाँधी ॥
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा ॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनां ॥ [पृष्ठ 92]

शब्दार्थ-टाटी = छान के चारों ओर फूस की लगाई गई ओट या परदा। उड़ॉनी = उड़ गई। चित्त = मन। द्वै = दो (दो विचारों में फँसा व्यक्ति)। यूँनी = दो खंभे (स्तंभ)। बलिंडा = बँडेर, बीच की बल्ली जिस पर छान टिकी रहती है। तूटा = टूट गया। त्रिस्ना = इच्छा, कामना । कुबधि = बुरी बुद्धि । भाँडाँ फूटा = भेद खुलना। जोग = योग। जुगति = युक्ति। निरचू = थोड़ा भी। कुड़ कपट = कपट का कूड़ा । काया = शरीर। निकस्या = निकला। जल बूठा = जल बरसना । भाँन = सूर्य। तम= अंधकार (अज्ञान)। खीना = नष्ट हो गया।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(6) भ्रम की टाटी कब और क्यों टूटती है ?
(7) ज्ञान प्राप्त होने पर कौन-से भाव नष्ट हो जाते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-सबद (पद)।

(2) प्रस्तुत पद में कवि ने स्पष्ट किया है कि अज्ञान ही सांसारिक मोह-माया के बंधनों का मुख्य कारण है। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात साधक माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

(3) व्याख्या-कबीरदास ने कहा है कि हे संतो! ज्ञान रूपी आँधी आ गई है। ज्ञान की आँधी से भ्रम रूपी छप्पर से बनी छत उड़कर नष्ट हो गई है। अब माया भी इस भ्रम को बाँध नहीं सकती। कहने का भाव है कि ज्ञान प्राप्त हो जाने पर साधक के मन के सभी भ्रम नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान की आँधी से दुविधा (दुविधाग्रस्त स्थिति) की दोनों थूनियाँ गिर गई हैं। मोह रूपी बल्ली भी टूटकर गिर गई है। ज्ञान की स्थिति उत्पन्न होने पर मोह और दुविधा के भाव नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान प्राप्त हो जाने पर मानव-मन में रहने वाली इच्छाएँ और कुबुद्धि (अविवेक) भी नष्ट हो जाते हैं। किन्तु संतों ने योग की युक्ति के द्वारा ऐसी झोंपड़ी बाँधी जिसमें से पानी नहीं टपक सकता अर्थात मानव सांसारिक कामनाओं की ओर नहीं भटक सकता। इस ज्ञान रूपी आँधी के पश्चात वर्षा होती है। उसमें साधक पूर्णतः भीग जाता है अर्थात व्यक्ति प्रभु-भक्ति में पूर्णतः लीन हो जाता है। उसी से साधक को आनंद की अनुभूति होती है। कबीरदास जी कहते हैं कि ज्ञान की आँधी के पश्चात प्रभु रूपी सूर्य उदय होता है तथा सभी प्रकार का अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। कहने का भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात अज्ञान नष्ट हो जाता है और साधक के मन में आनंद उत्पन्न हो जाता है।
भावार्थ-कबीरदास ने ज्ञान व आँधी के रूपक के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि जब व्यक्ति को ईश्वरीय ज्ञान हो जाता है तब उसको माया अपने बंधन व भ्रम में नहीं जकड़ सकती। उसके सांसारिक बंधन व भ्रम स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।

(4) (क) कवि ने आँधी के रूपक के माध्यम से ज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
(ख) समूचे पद में रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(घ) शब्द-चयन विषय के अनुरूप है।

(5) प्रस्तुत पद में कवि ने ज्ञान के महत्त्व को उजागर किया है। ज्ञान की प्राप्ति पर ही मानव-मन से सभी दुविधाएँ और भ्रम समाप्त हो जाते हैं। मोह-माया की वास्तविकता स्पष्ट हो जाने पर साधक उसको त्यागकर प्रभु-भक्ति में लीन हो जाता है। उस स्थिति में उसे सुख एवं आनंद की अनुभूति होती है।

(6) ज्ञान की आँधी आने पर मानव-मन में व्याप्त भ्रम की टाटी टूट जाती है।

(7) ज्ञान प्राप्त होने पर मोह और दुविधा के भाव नष्ट हो जाते हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

दो बैलों की कथा Summary in Hindi

दो बैलों की कथा कवि-परिचय

प्रश्न-
कबीरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कबीरदास का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-कबीरदास का संत कवियों में प्रमुख स्थान है। उनके जन्म एवं मृत्यु के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं। अधिकांश विद्वानों ने कबीरदास का जन्म 1398 ई० में माना है। जनश्रुति के अनुसार, कबीरदास एक विधवा ब्राह्मणी के घर पैदा हुए थे और वह लोक-लाज के डर से इन्हें काशी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ गई थी। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इनका पालन-पोषण किया था। रामानंद जी इनके गुरु माने जाते हैं। उन्हीं से इन्होंने ‘राम-नाम’ का मंत्र लिया था। . कबीर अनपढ़ थे, किंतु उन्होंने साधु-संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया था। वे गृहस्थी थे। उन्होंने अपना जीवन सत्संग करने और उपदेश देने में ही व्यतीत किया था। कबीरदास का देहांत 1518 ई० में माना जाता है।

2. प्रमुख रचनाएँ-कबीर की वाणी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। इसके तीन भाग हैं-‘साखी’, ‘सबद’ एवं ‘रमैनी’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कबीरदास जी ने अपने साहित्य में निर्गुण ईश्वर का वर्णन किया है। उनकी मान्यता है कि ईश्वर घट-घट में बसा हुआ है। उनका कथन है
“कहै कबीर सुनो भाई साधो सब स्वाँसों की स्वाँस में।” कबीरदास जी ने गुरु को सबसे अधिक महत्त्व दिया है। उनकी दृष्टि में गुरु तो ईश्वर से भी बढ़कर है। गुरु की महिमा अनंत है। उन्होंने धर्म के नाम पर किए गए पाखंडों का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति-पूजा और मुसलमानों की नमाज और बाँग का भी खंडन किया है। वे जाति-पाँति में विश्वास नहीं रखते थे। वे सच्चे अर्थों में समाज-सुधारक थे।

4. भाषा-शैली-कबीरदास जनता के कवि थे, इसलिए उनकी भाषा जनता की भाषा थी। उनकी काव्य-भाषा में विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का सार्थक प्रयोग हुआ है, इसलिए उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा गया है। उनकी काव्य-भाषा में अरबी, फारसी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी आदि के शब्दों का प्रयोग हुआ है। उनकी काव्य-भाषा में अलंकारों का भी सुंदर प्रयोग हुआ है।

दो बैलों की कथा साखियों का सार/काव्य-परिचय

साखियाँ

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास की ‘साखियाँ’ का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कबीरदास के दोहों को ‘साखी’ कहा जाता है। उन्होंने अपनी इन साखियों में बताया है कि ईश्वर के साक्षात्कार के बाद मन रूपी मानसरोवर प्रेम और आनंद से परिपूर्ण हो गया है। इसमें जीव रूपी हंस मुक्ति रूपी मोती चुग रहा है। कबीरदास ने कहा है कि जब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी से मिलता है, तब विषय-वासनाओं रूपी विष अमृत में बदल जाता है। वहाँ ईश्वरीय प्रेम की धारा प्रवाहित होने लगती है। कबीरदास ने यह भी बताया है कि ईश्वर की भक्ति सहज रूप में करनी चाहिए तथा संसार की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी लोग पक्ष और विपक्ष के विवाद में पड़कर ब्रह्म को भूल गए हैं। जो व्यक्ति निरपेक्ष होकर ईश्वर का भजन करता है, वह सच्चा संत कहलाता है। इसी प्रकार हिंदू और मुसलमान अथवा राम और खुदा के विवाद में न पड़कर जो सच्चे मन से ईश्वर के नाम का स्मरण करता है, वही वास्तव में मनुष्य का जीवन जीता है। जब मनुष्य सांप्रदायिक भावों को त्यागकर समन्वय की भावना को ग्रहण करता है तो उसके लिए काबा काशी और राम रहीम बन जाता है। इसलिए समन्वय अथवा समभाव अपनाकर ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है। मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेने से नहीं, अपितु उच्च या सत्कर्म करने से ही ऊँचा या महान् बनता है। बुरे कर्म करने वाला व्यक्ति कभी महान् नहीं बन सकता।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

HBSE 9th Class Hindi साँवले सपनों की याद Textbook Questions and Answers

साँवले सपनों की याद HBSE 9th Class प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर-
सालिम अली के बचपन के दिनों में उनकी एयरगन से एक नीले कंठ वाली गोरैया घायल होकर नीचे गिर पड़ी थी। इस घटना से बालक सालिम अली का मन अत्यंत व्याकुल हो उठा था। इस घटना के कारण ही वे आजीवन प्रकृति के विविध रूपों को खोजते रहे। वे प्रकृति के महान् प्रेमी बन गए थे। उनकी इस महान् प्रवृत्ति के पीछे गोरैया के घायल होने की घटना ही काम करती रही।

Sawle Sapno Ki Yaad Summary HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थी ?
उत्तर-
श्री सालिम अली केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवाओं के झोंकों से बचाने का अनुरोध लेकर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले थे। उन्होंने बताया होगा कि रेगिस्तानी हवाओं के कारण केरल की हरी-भरी एकांत घाटी नष्ट हो जाएगी। वहाँ का वातावरण शुष्क हो जाएगा। रेगिस्तानी हवाएँ अपने साथ रेत के कण लेकर आएँगी और वहाँ शुद्ध पर्यावरण को दूषित कर देंगी, जिसका प्रभाव वहाँ की वनस्पति व जंगली पशु-पक्षियों पर भी अवश्य पड़ेगा वहाँ की धरती बंजर होने का खतरा बढ़ जाएगा। इन सब संभावित खतरों को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह की आँखें नम हो गई थीं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

Chapter 4 Sawle Sapno Ki Yaad HBSE 9th Class प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि “मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है”?
उत्तर-
लॉरेंस एक महान् प्रकृति-प्रेमी थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया कि वह अपने पति के विषय में कुछ लिखे। वह चाहती तो अपने पति के बारे में बहुत कुछ लिख सकती थी, किन्तु उसने कहा “मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ लिखना असंभव-सा है। हाँ, मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है। मुझसे भी ज्यादा जानती है।” उसने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि श्री लॉरेंस प्रतिदिन बहुत-सा समय गोरैया के साथ बिताते होंगे या गोरैया उन्हें काम करते देखती रहती होगी। कहने का भाव है कि श्री लारेंस पक्षियों की संगति में रहते होंगे।

Class 9 Hindi Jabir Hussain Question Answer HBSE प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!
(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। [H.B.S.E. 2017]
उत्तर-
(क) इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने श्री सालिम अली के सहज एवं स्वाभाविक जीवन पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास किया है। श्री लॉरेंस एक अंग्रेज विद्वान थे जो प्रकृति के साहचर्य में रहते हुए अपना स्वाभाविक जीवन व्यतीत करते थे। श्री सालिम अली भी प्रकृति के समीप रहते हुए अपना स्वाभाविक जीवन जीने वाले महान् व्यक्ति थे।

(ख) लेखक ने यह पंक्ति श्री सालिम अली की मृत्यु के विषय में लिखी है। उसका कहना है कि एक बार यदि कोई व्यक्ति मर जाए तो उसका पुनः जीवित होना असंभव है। भले ही कोई अपने शरीर की गरमी तथा अपने दिल की धड़कन देकर भी उसे करना चाहे, वह कभी पुनर्जीवित नहीं हो सकता। जैसे कि मरा हुआ पक्षी सभी प्रयास करने पर भी अपने सपनों के गीत पुनः नहीं गा सकता। वैसे ही सालिम अली साहब भी मृत्यु के पश्चात् हमारे लाख प्रयासों के बावजूद भी इस दुनिया में पुनः नहीं लौट सकते।

(ग) इस पंक्ति में लेखक ने श्री सालिम अली के प्रकृति संबंधी विशाल एवं अथाह ज्ञान पर प्रकाश डाला है। उनका प्रकृति संबंधी ज्ञान किसी टापू की भाँति छोटा या थोड़ा नहीं था, अपितु यह सागर की तरह अथाह विशाल था। इसलिए लेखक का यह कहना अत्यंत सार्थक प्रतीत होता है कि “सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।”

साँवले सपनों की याद प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
श्री जाबिर हुसैन भाषा के मर्मज्ञ थे। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी की तीनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। प्रस्तुत पाठ के आधार पर उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है।
(2) तत्सम, तद्भव, उर्दू व अंग्रेजी शब्दों के सफल एवं सार्थक प्रयोग के कारण भाषा व्यावहारिक एवं रोचक बन पड़ी है।
(3) श्री जाबिर हुसैन की भाषा-शैली चित्रात्मक है। वे शब्दों के माध्यम से सजीव व्यक्ति-चित्र अंकित करने की कला में बेजोड़ हैं।
(4) भाषा में भावात्मकता एवं हृदय को स्पष्ट करने की पूर्ण क्षमता है।

प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि सालिम अली का जीवन अत्यंत सरल, सहज एवं स्वाभाविक था। वे प्रकृति और उसके विभिन्न अवयवों को उनकी मूल प्रकृति के रूप में देखते थे। उपयोगितावाद के वे बिल्कुल पक्ष में नहीं थे। वे सदा पक्षियों की मधुर ध्वनि सुनकर प्रसन्नता का अनुभव करते थे। उनका जीवन अत्यंत संघर्षों में से गुजरा था। उनका शरीर अत्यंत दुबला-पतला एवं कमजोर हो गया था और अंत में वे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का शिकार हो गए थे। वे अपने जीवन की अंतिम सांसों तक पक्षियों की नई-नई जातियों की खोज और उनकी देखभाल के कर्तव्य को निभाते रहे। प्रकृति उनके लिए एक हँसती-खेलती, फैली हुई रहस्यमय दुनिया है।
सालिम अली अनुभवशील व्यक्ति थे। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर केरल की एकांत घाटी को रेगिस्तानी हवाओं के दुष्परिणाम से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के सामने एक प्रस्ताव रखा था, जिसे सुनकर वे बहुत ही प्रभावित हुए थे। उनका जीवन लॉरेंस की भाँति ही प्राकृतिक एवं नैसर्गिक था। उनको प्रकृति की दुनिया के विषय में अथाह ज्ञान था। वे घुमक्कड़ स्वभाव के इंसान थे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
“साँवले सपनों की याद’ शीर्षक उचित प्रतीत होता है क्योंकि लेखक ने यह संस्मरण सालिम अली साहब की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा था। लेखक ने उनकी मृत्यु से उत्पन्न दुःख व अवसाद को साँवले सपनों की याद के रूप में अभिव्यक्त किया है। दुःख कभी सुनहरा नहीं हो सकता, इसलिए उसे ‘साँवला सपना’ कहना ही उचित है। संपूर्ण पाठ में लेखक ने सालिम अली साहब की मृत्यु से उत्पन्न दुःख में उनके विभिन्न कार्यों व उनके जीवन की विभिन्न विशेषताओं को याद किया है। इसलिए कहा जा सकता है कि इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है। लेखक पाठ के मूल लक्षित भाव को अभिव्यक्त करने में सफल रहा है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर-
निश्चय ही प्रस्तुत पाठ में श्री सालिम अली साहब की पर्यावरण के प्रति चिंता व्यक्त हुई है। वे चाहते थे कि पर्यावरण की सुरक्षा हर हाल में होनी चाहिए। हम भी अपने आस-पास वृक्ष उगाकर या उगे हुए वृक्षों की देखभाल करके पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान दे सकते हैं। अपने छोटे-छोटे कामों के लिए मोटरसाइकिल या स्कूटर का प्रयोग न करके साइकिल का प्रयोग करके हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। अपने घर के आसपास सफाई रखकर भी पर्यावरण को बचाने में हम सहयोग दे सकते हैं। इसी प्रकार अपने साथ-साथ दूसरे लोगों को भी पर्यावरण को बचाने के लिए प्रेरित करके हम इस शुभ कार्य में अपना योगदान दे सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

• अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अकसर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खाने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है
अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु।
मोरी चिरई! अरी मोरी चिरई! सिरकी भितर बनिजरवा।
जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवउ॥1॥
कबने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई॥2॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥3॥
विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
• टीवी के विभिन्न चैनलों जैसे-एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
• एन०सी०ई०आर०टी० का श्रव्य कार्यक्रम सुनें-‘डॉ० सालिम अली’ ।

नोट-पाठेतर सक्रियता के अंतर्गत दिए गए सुझाव परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इसलिए विद्यार्थी इन्हें स्वयं अथवा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi साँवले सपनों की याद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
“साँवले सपनों की याद’ पाठ का उद्देश्य क्या है ? अथवा ‘साँवले सपनों की याद’ नामक पाठ के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है ?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ एक संस्मरण है। इसमें लेखक का उद्देश्य सालिम अली साहब के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करके उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालना है। सालिम अली अनन्य प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें पक्षियों से भी विशेष लगाव था। पक्षियों की खोज और सुरक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया था। सालिम अली के जीवन के उल्लेख के माध्यम से आम व्यक्ति को प्रकृति के प्रति प्रेम तथा पक्षियों के प्रति सहानुभूति रखने की प्रेरणा देना भी लेखक का उद्देश्य है। आज पक्षियों की विभिन्न किस्में समाप्त होती जा रही हैं। आने वाली पीढ़ियों के लोग इन सुंदर-सुंदर पक्षियों के चित्र ही देख पाएंगे। वे शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण में सांस लेने के लिए तरस जाएंगे।

प्रश्न 2.
सालिम अली को पक्षियों की खोज की प्रेरणा कहाँ से और कैसे मिली थी ?
उत्तर-
बचपन में गलती से सालिम अली के हाथों एक गोरैया घायल हो गई थी। उस घायल गोरैया को देखकर उनका मन बेचैन हो उठा था। उसी दिन से वे पक्षियों की खोज में रुचि लेने लगे थे। वे पक्षियों की खोज में जंगल में जाते। वहाँ वे प्रकृति के अन्य रहस्यों को जानने व समझने लगे। इस प्रकार वे पक्षियों और प्रकृति के रहस्यों के विषय में जानने के लिए एक-से-एक ऊँचाइयाँ छूते चले गए। मानो वे प्रकृति के प्रतिरूप ही बन गए।

प्रश्न 3.
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी यात्री को किन घटनाक्रमों की याद दिलाता है ?
उत्तर-
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी हर यात्री को श्रीकृष्ण की नटखट क्रीड़ाओं की याद दिलाता है। जब वह यमुना का पानी देखता है तो उसे याद आ जाता है कि कभी श्रीकृष्ण ने इसके किनारे शरारतें करके लोगों का मन मोह लिया था। श्रीकृष्ण ने यहाँ अल्हड़ गोपियों के साथ रासलीलाएँ की थीं। ग्वालों के साथ मिलकर माखनचोरी की थी। यमुना के किनारे खड़े कदंब के वृक्षों के नीचे विश्राम किया था और बाँसुरी बजाई थी।

प्रश्न 4.
सालिम अली ने पर्यावरण-संरक्षण के लिए किस रूप में भूमिका अदा की है ? .
उत्तर-
सालिम अली ने जहाँ एक ओर पक्षियों की खोज का लंबा सफर तय किया है, वहीं उन्होंने पक्षियों की सुरक्षा के बारे में भी अध्ययन किया है। उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से केरल की साइलेंट-वैली के पर्यावरण को उजड़ने से रोकने की प्रार्थना की। सालिम अली ने हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर रहने वाले पक्षियों के कल्याण के लिए कार्य किया। उन्होंने पक्षियों के लिए शांत वातावरण बनाए रखने के लिए जंगलों की सुरक्षा की भी सिफारिश की है।

प्रश्न 5.
वृंदावन में श्रीकृष्ण की मुरली का जादू सदा क्यों बना रहता है ?
उत्तर-
वृंदावन में श्रीकृष्ण की मुरली का प्रभाव सदा से लोगों के दिलों में बसा हुआ है। कृष्ण-भक्त जब भी वृंदावन आते हैं तो उनकी कल्पना में श्रीकृष्ण की मुरली का प्रभाव साकार हो उठता है। उनके कानों में मुरली की मधुर ध्वनि बजती-सी अनुभव होती है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि कहीं से ‘वो’ आ जाएँगे और वहाँ का वातावरण बाँसुरी के संगीत से गूंज उठेगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं ?
(A) प्रेमचंद
(B) जाबिर हुसैन
(C) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) जाबिर हुसैन

प्रश्न 2.
जाबिर हुसैन का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1965 में
(D) सन् 1975 में
उत्तर-
(A) सन् 1945 में

प्रश्न 3.
श्री जाबिर हुसैन का जन्म किस जिले में हुआ था ?
(A) मुंगेर
(B) आजमगढ़
(C) नालंदा
(D) पूर्णिया
उत्तर-
(C) नालंदा

प्रश्न 4.
जाबिर हुसैन किस जिले से विधानसभा के सदस्य चुने गए थे ?
(A) मुंगेर
(B) पूर्णिया
(C) पटना
(D) नालंदा
उत्तर-
(A) मुंगेर

प्रश्न 5.
श्री जाबिर हुसैन कब बिहार विधान परिषद के सभापति चुने गए थे ?
(A) सन् 1963 में
(B) सन् 1975 में
(C) सन् 1985 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर-
(D) सन् 1995 में

प्रश्न 6.
श्री हुसैन की कौन-सी रचनाएँ सबसे चर्चित हुई हैं ?
(A) निबंध .
(B) डायरियाँ
(C) कहानियाँ
(D) संस्मरण
उत्तर-
(B) डायरियाँ

प्रश्न 7.
साँवले सपनों की याद है, एक-
(A) निबंध
(B) संस्मरण
(C) रेखाचित्र
(D) जीवनी
उत्तर-
(B) संस्मरण

प्रश्न 8.
सालिम अली कौन थे ?
(A) प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक
(B) राजनीतिज्ञ
(C) पक्षी-विज्ञानी
(D) पशु चिकित्सक
उत्तर-
(C) पक्षी-विज्ञानी

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 9.
लेखक ने सालिम अली के इस सफर को तमाम सफरों से भिन्न क्यों बताया है ?
(A) क्योंकि यह तनावहीन था
(B) क्योंकि यह तीव्र गति वाला था
(C) क्योंकि यह एक रंगीन सफर
(D) क्योंकि यह बहुत सरल सफर था वाला था
उत्तर-
(A) क्योंकि यह तनावहीन था

प्रश्न 10.
श्रीकृष्ण ने रासलीला कहाँ रचाई थी ?
(A) अयोध्या में
(B) मथुरा में
(C) कुरुक्षेत्र में
(D) वृंदावन में
उत्तर-
(D) वृंदावन में

प्रश्न 11.
श्रीकृष्ण ने अपनी शरारतों का निशाना किसे बनाया था ?
(A) राधिका को
(B) कुब्जा को
(C) गोपियों को
(D) सुदामा को
उत्तर-
(C) गोपियों को

प्रश्न 12.
श्रीकृष्ण ने किस अंदाज में बाँसुरी बजाई थी ?
(A) दिल की धड़कनों को तेज करने वाले
(B) सुला देने वाले
(C) अपनी ओर आकृष्ट करने वाले
(D) दूसरों को तंग करने वाले
उत्तर-
(A) दिल की धड़कनों को तेज करने वाले

प्रश्न 13.
आज वृंदावन की कौन-सी वस्तु श्रीकृष्ण से संबंधित घटनाओं का स्मरण दिला देती है ?
(A) नदी का साँवला पानी
(B) वृंदावन के वृक्ष
(C) वृंदावन के पक्षी
(D) वृंदावन के लोग
उत्तर-
(A) नदी का साँवला पानी ।

प्रश्न 14.
लेखक ने सालिम अली के शरीर की कमजोरी का क्या कारण बताया है ?
(A) उनकी लंबी-लंबी यात्राएँ
(B) जानलेवा बीमारी
(C) अधिक देर तक काम करना
(D) पक्षियों की देखभाल करना
उत्तर-
(A) उनकी लंबी-लंबी यात्राएँ

प्रश्न 15.
लेखक ने सालिम अली की मौत का कारण किस बीमारी को बताया है ?
(A) हैजा
(B) मलेरिया
(C) तपेदिक
(D) कैंसर
उत्तर-
(D) कैंसर

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 16.
मौत अंतिम समय तक सालिम अली की क्या चीज छीनने में सफल नहीं हो सकी थी ?
(A) आँखों की रोशनी
(B) कैमरा
(C) जुबान
(D) पक्षियों के प्रति प्रेम
उत्तर-
(A) आँखों की रोशनी

प्रश्न 17.
सालिम अली का जीवन किसके प्रति समर्पित था ? ।
(A) मनुष्यों के प्रति
(B) देवी-देवताओं के प्रति
(C) पक्षियों की हिफाजत के प्रति
(D) धन-दौलत के प्रति
उत्तर-
(C) पक्षियों की हिफाजत के प्रति

प्रश्न 18.
लेखक ने सालिम अली को क्या कहा है ?
(A) चित्रकार
(B) बर्ड वाचर
(C) कलाकार
(D) वैज्ञानिक
उत्तर-
(B) बर्ड वाचर

प्रश्न 19.
लेखक के अनुसार सालिम अली किन लोगों में से थे ?
(A) प्रकृति को अपने प्रभाव से प्रभावित करने वाले
(B) प्रकृति के प्रभाव में अपने-आपको खो देने वाले
(C) प्रकृति के चित्र अंकित करने में लीन रहने वाले
(D) प्रकृति की दुनिया में रमे रहने वाले
उत्तर-
(A) प्रकृति को अपने प्रभाव से प्रभावित करने वाले

प्रश्न 20.
सालिम अली के लिए प्रकृति क्या थी ?
(A) एक नटखट युवती
(B) रहस्यभरी दुनिया
(C) आय का साधन
(D) जी का जंजाल
उत्तर-
(B) रहस्यभरी दुनिया

प्रश्न 21.
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने किसके व्यक्तित्व का चित्र अंकित किया है ?
(A) प्रेमचंद
(B) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(C) महात्मा गाँधी
(D) पक्षी विज्ञानी सालिम अली
उत्तर-
(D) पक्षी विज्ञानी सालिम अली

प्रश्न 22.
सालिम अली साहब की जीवन-साथी कौन थी ?
(A) तहमीना
(B) सकीना
(C) हुसना
(D) मीना
उत्तर-
(A) तहमीना

प्रश्न 23.
मिट्टी पर पड़ने वाली पहली बूंद का असर जानने वाले नेता कौन थे ?
(A) महात्मा गाँधी
(B) जवाहरलाल नेहरू
(C) चौधरी चरण सिंह .
(D) लालबहादुर शास्त्री
उत्तर-
(C) चौधरी चरण सिंह

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

प्रश्न 24.
सालिम अली की आत्मकथा का क्या नाम है ?
(A) फॉल ऑफ ए स्पैरो
(B) मेरे जीवन की झाँकी
(C) मेरी यात्राएँ .
(D) मैं और पक्षी जगत
उत्तर-
(A) फॉल ऑफ ए स्पैरो

प्रश्न 25.
डी० एच० लॉरेंस की पत्नी का क्या नाम था ?
(A) टीना लॉरेंस
(B) फ्रीडा लॉरेंस
(C) लिंडा लॉरेंस
(D) लवली लॉरेंस
उत्तर-
(B) फ्रीडा लॉरेंस

प्रश्न 26.
सालिम अली ने बचपन में गौरैया को किससे घायल किया था?
(A) एयरगन से
(B) तलवार से
(C) गुलेल से
(D) पत्थर से
उत्तर-
(A) एयरगन से

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

साँवले सपनों की याद प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए। लेकिन यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। [पृष्ठ 43]

शब्दार्थ-हुजूम = समूह। सैलानियों = यात्रियों। अंतहीन = जिसका कोई अंत न हो। सफर = यात्रा। माहौल = वातावरण। पलायन = चले जाना, कूच करना। क्लिीन होना = लुप्त होना, मिल जाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में महान् पक्षी-वैज्ञानिक सालिम अली के जीवन से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है। यहाँ सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न दुःख और निराशा को व्यक्त किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने सालिम अली की मृत्यु के विषय में लिखा है कि उनकी अंतिम यात्रा (मृत्यु) के समय उनके जनाजे के साथ एक बहुत बड़ा समूह चला जा रहा था और समूह में सबसे आगे सालिम अली केशव को ले जाया जा रहा था। ऐसा लगता है यात्रियों की ही भाँति वे स्वयं अपनी शवयात्रा का बोझ उठाए हुए हों। कहने का तात्पर्य है कि श्री सालिम अली ने एक लंबा जीवन जिया था। उनके अनेकानेक अनुभव मानो उनके साथ हैं। किन्तु जिस यात्रा पर वे आज जा रहे हैं, . यह यात्रा उनके द्वारा की गई अन्य यात्राओं से भिन्न है। ऐसी यात्रा जिससे कोई लौटकर नहीं आता। यह यात्रा नहीं, अपितु इस भीड़ भरी जिंदगी और तनावपूर्ण वातावरण से सालिम अली का अंतिम बार भाग खड़े होना है। अब वे वन के उस पक्षी की भाँति प्रकृति में मिल रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाने के पश्चात् मृत्यु की गोद में जा बसा हो। कहने का तात्पर्य है कि सालिम अली का शरीर भी मृत्यु के पश्चात् प्रकृति में विलीन हो गया था। जहाँ से फिर वह कभी लौटकर नहीं आ सकेगा।

विशेष-

  1. लेखक ने सालिम अली की मृत्यु पर गहरा शोक प्रकट किया है।
  2. लेखक की सालिम अली के प्रति श्रद्धा-भावना का बोध होता है।
  3. भाषा अत्यंत सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
  4. ‘अंतिम गीत गाकर प्रकृति की गोद में बस जाना’ अत्यंत सुंदर प्रयोग है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) श्री सालिम अली का यह सफर अन्य सफरों से भिन्न कैसे है ?
(2) सालिम अली की वन-पक्षी से तुलना क्यों की गई है ?
(3) सालिम अली अपने कंधों पर किसका बोझ उठाए हुए हैं ?
(4) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर सालिम अली के जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(1) श्री सालिम अली के जिस सफर की बात की जा रही है यह उनका अंतिम सफर था। वे अपनी पहली यात्राओं के बाद अपने घर लौट आते थे। किन्तु इस यात्रा के बाद अर्थात् मौत के बाद इस संसार से पलायन कर गए थे और फिर कभी नहीं लौटे थे।

(2) श्री सालिम अली की तुलना वन के पक्षी से इसलिए की गई है क्योंकि वे भी अपना जीवन गीत गाने वाले वन-पक्षी की भाँति प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत करके मौत की गोद में समा रहे हैं। वन-पक्षी भी अपना गीत गाने के पश्चात् प्रकृति की गोद में समा जाते हैं। लेखक द्वारा उनकी तुलना वन-पक्षी से करना उचित प्रतीत होती है।

(3) सालिम अली अपने कंधों पर सैलानियों की भाँति अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए हुए हैं।

(4) प्रस्तुत गद्यांश से पता चलता है कि सालिम अली महान् घुमक्कड़ थे। उनके कंधों पर सैलानियों की भाँति सफर का सामान लदा रहता था। उनकी आँखों पर दूरबीन चढ़ी रहती थी। जैसे वन का पक्षी अपना गीत गाकर प्रकृति की गोद में समा जाता है वे भी अपने जीवन को प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत करके और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके मौत की गोद में जाकर सो गए थे।

2. लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है? [पृष्ठ 43]

शब्दार्थ-आदमी की नज़र = स्वार्थ की भावना, उपयोगितावादी दृष्टिकोण। आवशार = झरनों। उत्सुक = इच्छुक। अपने भीतर = अपने हृदय में। रोमांच = प्रसन्नता। सोता = झरना।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक नामक पाठ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखक जाबिर हुसैन ने महान् पक्षी-विज्ञानी श्री सालिम अली के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया है। यह पाठ लेखक ने सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् दुःखद संस्मरण के रूप में लिखा है। इन पंक्तियों में लेखक ने पक्षियों व प्रकृति के प्रति अपनाए जा रहे आज के मानव के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि सालिम अली का मत है कि लोग पक्षियों को मनुष्य के दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं अर्थात् पक्षियों को अपने लाभ की दृष्टि से देखते हैं उनके सहज-स्वाभाविक रूप में नहीं देखते। उसी प्रकार; जैसे जंगलों, पहाड़ों, झरनों, पानी के प्रवाह को वे प्रकृति की दृष्टि नहीं, अपितु मानव की दृष्टि से देखने के लिए इच्छुक रहते हैं। कहने का भाव है कि मनुष्य जिस प्रकार प्रकृति को उपयोगिता की दृष्टि से देखता है कि प्रकृति के विभिन्न अवयव उसके लिए किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं; ठीक इसी प्रकार वह पक्षियों को भी अपने उपयोग की दृष्टि से देखता है। लेखक की दृष्टि में मानव का यह दृष्टिकोण उचित नहीं है। लेखक ने पुनः कहा है कि भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की मधुर आवाज रूपी संगीत सुनकर अपने हृदय में प्रसन्नता का फुहारा फूटता हुआ अनुभव कर सकता है ? लेखक के कहने का तात्पर्य है कि सालिम अली ही ऐसे व्यक्ति थे जो पक्षियों की मधुर ध्वनि रूपी संगीत को सुनकर प्रसन्नता अनुभव करते थे।

विशेष-

  1. लेखक ने आज के मानव के उपयोगितावादी दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है।
  2. प्रकृति के विभिन्न अवयवों को हमें उनके सहज, स्वाभाविक रूप में देखना चाहिए, तभी वे हमें अधिक सुंदर लगेंगे।
  3. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) सालिम अली पक्षियों को किस नज़र से देखने के पक्ष में थे ?
(2) ‘लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं’-इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(3) लोग प्रकृति के विभिन्न उपादानों को किस दृष्टि से देखना चाहते हैं और क्यों ?
(4) मनुष्य पक्षियों की आवाज सुनकर अपने भीतर रोमांच क्यों नहीं अनुभव करता है ?
उत्तर-
(1) सालिम अली एक महान् पक्षी वैज्ञानिक थे। वे पक्षियों को प्रकृति के स्वाभाविक अंग के रूप में देखना चाहते थे। वे उन्हें अपने या समाज के आनंद के लिए नहीं, अपितु उनके आनंद की दृष्टि से देखना चाहते थे। कहने का भाव है कि वे पक्षियों को मानव की दृष्टि से नहीं अपितु पक्षियों की दृष्टि से देखना चाहते थे।
(2) लोग पक्षियों को आदमी की दृष्टि से देखना चाहते हैं। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने बताया है कि लोग पक्षियों को अपने आनंद व खुशी की दृष्टि से देखना चाहते हैं। वे पक्षियों को देखकर अपना मनोरंजन करना चाहते हैं। वे कभी भी पक्षियों की प्रसन्नता या खुशी की ओर ध्यान नहीं देते। यह लोगों का स्वार्थपरक एवं संकीर्ण दृष्टिकोण है।
(3) लोग प्रकृति के विभिन्न उपादानों-नदियों, पहाड़ों, झरनों, जंगलों, पक्षियों आदि को अपनी नजर से अर्थात् अपने लाभ-हानि की दृष्टि से देखते हैं। वे इनके होने में अपना लाभ या हानि अथवा सुख-दुःख देखते हैं।
(4) मनुष्य पक्षियों की भाषा समझ नहीं सकता। वे जिस मधुर ध्वनि में अपनी प्रतिक्रियाएँ या अनुभूति व्यक्त करते हैं, मनुष्य उसे समझने में अक्षम है। इसके अतिरिक्त मनुष्य का दृष्टिकोण स्वार्थमय है। वे पक्षियों की ध्वनियों को व्यर्थ समझकर उसकी ओर ध्यान नहीं देता। इसलिए मनुष्य पक्षियों की मधुर ध्वनि सुनकर अपने भीतर रोमांच अनुभव नहीं करता।

3. हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्णा की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या! [पृष्ठ 44]

शब्दार्थ-वाटिका = बगीचा। सैलानी = घूमने आए व्यक्ति पर्यटक। हिदायत = निर्देश। आ टपकना = अचानक आना। माहौल = वातावरण| बाँसुरी का जादू = बाँसुरी का प्रभाव।

प्रसंग-यह गद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ से अवतरित है। इसके रचयिता श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में उन्होंने सालिम अली के जीवन की घटनाओं का संस्मरणात्मक शैली में अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के अद्भुत प्रभाव के माध्यम से सालिम अली के जीवन अथवा उनके अस्तित्व को अनुभव करने का सफल प्रयास किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने वृंदावन की पावन भूमि में आज भी श्रीकृष्ण की लीलाओं व उनकी बाँसुरी की मधुर तान की अनुभूति का वर्णन किया है। हर शाम को सूरज छिपने से पहले वाटिका का माली वहाँ घूमने आए हुए व्यक्ति को निर्देश देगा तो ऐसा लगता है कि कुछ ही क्षणों में वह (श्रीकृष्ण) कहीं से अचानक आ जाएगा तथा उसकी बाँसुरी के मधुर संगीत का प्रभाव आस-पास के संपूर्ण वातावरण में छा जाएगा। लेखक प्रश्न करता है कि भला वृंदावन भी कभी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के प्रभाव से खाली हुआ है अर्थात् वृंदावन में सदैव श्रीकृष्ण की बाँसुरी का प्रभाव बना रहता है। ठीक उसी प्रकार यह जानते हुए भी कि श्री सालिम अली इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन फिर भी उनके अचानक कहीं से आ जाने में भ्रम-सा बना हुआ है। इसके साथ ही उनके सद्कार्यों का प्रभाव आज भी आस-पास के वातावरण में निरंतर बना हुआ है।

विशेष-

  1. लेखक ने श्री सालिम अली के जीवन एवं उनके महान कार्यों के प्रभाव को उद्घाटित किया है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. उर्दू शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) वृंदावन में संध्या के समय क्या अनुभूति होती है और क्यों ?
(2) वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी के जादू से रिक्त क्यों नहीं होता ?
(3) इस गद्यांश में लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
(4) वृंदावन कहाँ स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
(1) वृंदावन में संध्या के समय ऐसी अनुभूति है कि यहाँ इसी समय कहीं से श्रीकृष्ण आ जाएंगे तथा अपनी मुरली की मधुर तान से सभी को सम्मोहित कर लेंगे। ऐसी अनुभूति इसलिए होती है, क्योंकि सभी भारतीय जानते हैं कि श्रीकृष्ण संध्या के समय गाएँ चराकर लौटते थे और फिर अपनी बाँसुरी की तान से सबको सम्मोहित कर देते थे।

(2) वृंदावन वह तीर्थस्थल है जहाँ वर्ष भर कृष्णभक्त आते रहते हैं। वे यहाँ आकर श्रीकृष्ण की भक्ति भावना में लीन हो जाते हैं। अतः सुबह-शाम उन्हें अपने मन में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के स्वर की अनुभूति होती है। यह क्रम सदियों से चला आ रहा है और चलता रहेगा। इसलिए वृंदावन कभी भी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के स्वर के जादू से खाली नहीं होगा।

(3) इस गद्यांश में लेखक ने संदेश दिया है जिस प्रकार श्रीकृष्ण की बाँसुरी का जादू वृंदावन से कभी समाप्त नहीं हो सकता। उसका प्रभाव लोगों के मनों पर सदियों से छाया हुआ है। उसी प्रकार जो लोग सालिम अली साहब को निकटता से जानते थे, उनके मनों से भी उनकी याद कभी नहीं जा सकती। उनकी यादों का जादू उन्हें सदा घेरे रहेगा।

(4) वृंदावन उत्तर-प्रदेश में स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं को रचा था। उनका बचपन इसी क्षेत्र में बीता है। श्रीकृष्ण के जीवन के साथ जुड़ा होने के कारण ही वृंदावन प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।

4. लेकिन अंतिम समय तक मौत उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की तलाश और उनकी हिफाजत के प्रति समर्पित थी। सालिम अली की आँखों पर चढ़ी दूरबीन उनकी मौत के बाद ही तो उतरी थी। [पृष्ठ 44]

शब्दार्थ-तलाश = खोज। हिफाजत = देख-रेख। समर्पित = पूर्ण रूप से अपने-आपको किसी काम में लगा देना।

प्रसंग-ये गद्य-पंक्तियाँ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित एवं श्री जाबिर हुसैन द्वारा रचित संस्मरण ‘साँवले सपनों की याद’ से उद्धत हैं। इस पाठ में उन्होंने श्री सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं
और विशेषताओं को संस्मरण के रूप में व्यक्त किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने सालिम अली की पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल करने की भावना को उजागर किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक का कथन है कि श्री सालिम अली ने लंबी आयु पाई थी। इस लंबी आयु में उन्होंने लंबी-लंबी यात्राएँ की, जिनके फलस्वरूप उनका शरीर कमजोर पड़ गया था। उन्होंने आजीवन तरह-तरह के पक्षियों को देखने और उनके जीवन के विषय में जानने का प्रयास किया। अंतिम समय तक मृत्यु भी उनकी आँखों की वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल के लिए पूर्णतः समर्पित थी। कहने का तात्पर्य है कि श्री सालिम अली अपनी अंतिम सांस तक पक्षियों की खोज और देखभाल के कर्त्तव्य को भली-भाँति निभाते रहे। उनकी आँखों पर चढ़ी हुई दूरबीन उनकी मौत के बाद ही उतारी गई थी। कहने का भाव है कि सालिम अली ने जीवन भर पक्षियों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है।

विशेष-

  1. सालिम अली की कर्त्तव्यनिष्ठता पर प्रकाश डाला गया है।
  2. किसी भी कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना ही सफलता का रहस्य है।
  3. भाषा-शैली सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) अंतिम समय तक मौत सालिम अली की क्या चीज छीनने में असफल रही ?
(2) श्री सालिम अली का जीवन किसके प्रति समर्पित रहा ?
(3) सालिम अली की दूरबीन उनकी आँखों से कब उतरी थी ?
(4) प्रस्तुत पंक्तियों में सालिम के जीवन की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-
(1) अंतिम समय तक मौत सालिम अली की आँखों से उनकी रोशनी छीनने में असफल रही अर्थात् सालिम अली की दृष्टि अंतिम समय तक कमजोर नहीं हुई।
(2) श्री सालिम अली महान् पक्षी वैज्ञानिक थे। उनका सारा जीवन पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल के शुभ कार्य के प्रति समर्पित रहा।
(3) सालिम अली की दूरबीन उनकी आँखों से उनकी मौत के बाद ही उतरी थी। कहने का भाव है कि वे पक्षियों की तलाश में अंतिम दम तक भी अपनी दूरबीन का प्रयोग करते रहे।
(4) प्रस्तुत पंक्तियों से पता चलता है कि श्री सालिम अली की दृष्टि अंतिम समय तक सही रही। वे पक्षियों के महान संरक्षक थे। वे सदा उनकी खोज में रहते और उनकी देखभाल करते। वे सदा अपने साथ दूरबीन रखते थे जिसकी सहायता से दूर बैठे हुए पक्षियों को देख सकें।

5. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-टापू = समुद्र के बीच धरती का टुकड़ा। अथाह = जिसकी गहराई का कोई अनुमान न हो। भ्रमणशील = घूमने वाला। यायावरी = घुमक्कड़पन। परिचित = जानकार। सुराग = खोज। नतीजा = परिणाम।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ नामक संस्मरण से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी श्री सालिम अली के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। इन पंक्तियों में प्रकृति के प्रति सालिम अली के महान् प्रेम को उजागर किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने बताया है कि श्री सालिम अली प्रकृति की दुनिया में टापू के समान छोटे व्यक्तित्व के रूप में नहीं, अपितु अथाह सागर के रूप में उभरे थे। कहने का भाव है कि प्रकृति के क्षेत्र में उनका ज्ञान अत्यंत विशाल था। जो लोग श्री सालिम अली साहब की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति या भ्रमणशील स्वभाव को जानते हैं, वे उनके मरने के पश्चात् भी यह अनुभव करते हैं या उन्हें ऐसा लगता है कि वे आज भी नए-नए पक्षियों की खोज में निकले हुए हैं और बस अभी गले में लंबी-सी दूरबीन लटकाए हुए पक्षियों से संबंधित नए-नए खोजपूर्ण परिणाम के साथ लौट आएँगे। किन्तु अब ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि वे अब इस दुनिया में ही नहीं रहे।

विशेष-

  1. लेखक ने सालिम अली के प्राकृतिक ज्ञान का सुंदर उल्लेख किया है।
  2. लेखक ने गहन अनुभूति को भावात्मक स्तर पर उद्घाटित किया है।
  3. लेखक का सालिम अली के प्रति गहन लगन का बोध होता है।
  4. भाषा में मर्म को छूने की अपूर्व क्षमता है।

उपर्युक्त गद्यांशं पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) श्री सालिम अली की तुलना सागर से क्यों की गई है ?
(2) ‘टापू’ से क्या तात्पर्य है ?
(3) लोगों को सालिम अली के विषय में क्या महसूस होता है ?
(4) सालिम अली आजीवन किस महान कार्य में लगे रहे ?
उत्तर-
(1) सालिम अली का ज्ञान किसी विशेष पक्षी के विषय तक सीमित नहीं था। उनका ज्ञान अनेकानेक पक्षियों के संबंध में सागर की भांति अथाह और विस्तृत था। इसलिए उन्हें सागर होने की संज्ञा दी गई है।
(2) ‘टापू’ का अर्थ है-सीमा बाँधना। सालिम. के संबंध में इसका अर्थ है कि उनका ज्ञान सीमित नहीं था।
(3) लोगों को सालिम अली साहब की मृत्यु के पश्चात् भी ऐसा अनुभव होता है कि वे पक्षियों की तलाश में गए हैं और वे अपनी खोज के नए नतीजों के साथ लौट आएंगे।
(4) सालिम अली साहब आजीवन पक्षियों के विषय में नई-नई खोज करने और उनकी सुरक्षा के उपाय जैसे महान कार्य में लगे रहे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

साँवले सपनों की याद Summary in Hindi

साँवले सपनों की याद लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री जाबिर हुसैन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री जाबिर हसैन का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री जाबिर हुसैन हिंदी के प्रमुख गद्यकारों में गिने जाते हैं। हिंदी के अतिरिक्त उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं पर भी उनका पूर्ण अधिकार है। उनका जन्म बिहार राज्य के जिला नालंदा के नौनहीं राजगीर नामक गाँव में सन् 1945 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। जाबिर हुसैन मेधावी छात्र थे। उन्होंने एम०ए० अंग्रेजी विषय में की। तत्पश्चात् ये अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। इनकी रुचि अध्यापन कार्य के साथ-साथ साहित्य एवं राजनीति में भी रही। यही कारण है कि एक ओर ये लेखनी के धनी बने रहे और दूसरी ओर राजनीति में भी ख्याति प्राप्त की। सन 1977 में मुंगेर से बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा मंत्री बने। सन् 1995 में बिहार विधान परिषद् के सभापति बने।

2. प्रमुख रचनाएँ-श्री जाबिर हुसैन राजनीति के कार्य करते हुए निरंतर साहित्य रचना करते रहते हैं। उन्होंने हिंदी में अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाएँ लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया है। जाबिर हुसैन की प्रमुख रचनाएँ निम्नाकित हैं_ ‘जो आगे हैं’, ‘डोला बीबी का मजार’, ‘अतीत का चेहरा’, ‘लोगां’, ‘एक नदी रेत भरी’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-जाबिर हुसैन जी ने अपने युग के समाज का गहन अध्ययन किया है। उन्हें समाज के जीवन में जो विषमताएँ दिखाई दीं, उनका ही वर्णन नहीं किया, अपितु जो कुछ अच्छा लगा उसका भावात्मकता के स्तर पर चित्रण किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन के अनुभवों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाओं में समाज के आम आदमी के जीवन के संघर्षों का उल्लेख भी हुआ है। संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट व्यक्तियों पर लिखी गई उनकी डायरियाँ बहुत चर्चित एवं प्रशंसित हुई हैं। आम आदमी के संघर्षों के प्रति उनकी सहानुभूतिपूर्ण भावनाएँ द्रष्टव्य हैं।
हुसैन जी की रचनाओं से पता चलता है कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने विविध साहित्यिक विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है, किन्तु उन्होंने डायरी विधा में अनेक नवीन प्रयोग किए हैं जो वे प्रस्तुति, शैली और शिल्प की दृष्टि से नवीन हैं।

4. भाषा-शैली-श्री जाबिर हुसैन का तीन भाषाओं (हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी) पर समान अधिकार है। उनकी हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रसंगानुकूल हुआ है। उन्होंने अपने संस्मरणों में अत्यंत सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। व्यक्ति-चित्र को सजीव रूप में प्रस्तुत करना इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा का प्रवाह और अभिव्यक्ति की शैली हृदयस्पर्शी है। प्रवाहमयी भाषा का उदाहरण देखिए :

“मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नज़र से देखने को उत्सुक रहते हैं।”

साँवले सपनों की याद पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ जून 1987 में प्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु के तुरंत पश्चात् डायरी शैली में लिखा गया एक संस्मरण है। लेखक को सालिम अली की मृत्यु के समाचार से बहुत दुःख हुआ था। अपनी उसी मनोस्थिति में ही उन्होंने यह संस्मरण लिखा था, जिसमें सालिम अली के महान् व्यक्तित्व के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।

लेखक का कथन है कि सालिम अली एक महान पक्षी-विज्ञानी थे। मौत एक निश्चित एवं कटु सत्य है। यह सुंदर दिखाई देने वाला संसार साँवले सपने का एक समूह लिए हुए सदैव मृत्यु की मौन वादी की ओर बढ़ता रहता है। उसको कोई रोक-टोक सके, यह असंभव है अर्थात् सांसारिक जीवन नश्वर है। यह एक कटु सत्य है। सालिम अली इस समूह में सबसे आगे थे। वे सैलानियों की भाँति अपने लंबे जीवन सफ़र के अनेकानेक अनुभवों का बोझ उठाए हुए थे। उनकी यह अंतिम यात्रा अन्य यात्राओं से अनोखी थी, क्योंकि वे इस यात्रा से कभी वापस नहीं लौटे। वे वन-पक्षी की भाँति अपना अंतिम गीत गाकर मानो प्रकृति की गोद में जा बसे हों। उन्हें कोई अपने दिल की धड़कन देकर भी वापस नहीं बुला सकता था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

लेखक का कथन है कि सोए हुए पक्षी अर्थात् मृतक व्यक्ति को कोई पुनः जीवित नहीं करना चाहता। स्वयं सालिम अली ने वर्षों पूर्व लेखक को बताया था कि सभी लोग पक्षियों को आदमी की दृष्टि से देखते हैं, यह उनकी भूल है। हमें पक्षियों को उनकी दृष्टि से ही देखना चाहिए। इतना ही नहीं, आदमी तो सदा प्रकृति को भी अपनी ही दृष्टि (उपयोगितावादी) से देखना चाहता है। किन्तु सालिम अली ऐसा नहीं सोचते थे। वे अपने कानों से पक्षियों की मधुर ध्वनि रूपी संगीत सुनकर हृदय में एक रोमांच अनुभव करते थे। वस्तुतः ऐसे ही व्यक्ति का नाम सालिम अली है।

लेखक श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं को स्मरण करता है कि न जाने कब श्रीकृष्ण ने वृंदावन में अपनी शरारतों से वहाँ के लोगों का मन मोह लिया था। माखन चुराकर तथा अपनी बाँसुरी की मधुर ध्वनि से सबके मन को बाँध लिया था। कब वे पेड़ों की गहन छाँह में विश्राम करते थे। कब संपूर्ण वृंदावन उनकी बाँसुरी की ध्वनि से संगीतमय हो गया था। आज भी वृंदावन में यमुना का साँवला पानी उन सब घटनाओं की याद दिला देता है। ऐसा लगता है कि कोई मधुर ध्वनि कानों में सुनाई देगी और कदम एकाएक रुक जाएँगे। वाटिका का माली जब सूरज ढलने पर सैलानियों को निर्देश देता है तो लगता है कि कहीं से ‘वो’ आ जाएगा और वाटिका का संपूर्ण वातावरण बाँसुरी के संगीत से गूंज उठेगा।

लेखक पुनः बताता है कि सालिम अली एक दबले-पतले व्यक्ति थे। उनकी आय सौ वर्ष होने में थोड़ी-सी कम रह गई थी। संभव है कि लंबी-लंबी यात्राओं ने ही उनके शरीर को दुर्बल बना दिया हो तथा कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी उनकी मृत्यु का कारण बनी हो। किन्तु मृत्यु भी अंतिम समय तक उनकी आँखों की रोशनी नहीं छीन सकी, जो सदा पक्षियों की सेवा में समर्पित रहती थी। उनके समान पक्षियों को देखने वाला संसार-भर में दूसरा कोई नहीं हुआ। एकांत के क्षणों में वे बिना दूरबीन के ही पक्षियों को निहारा करते थे। क्षितिज को भी छूने वाली उनकी तीव्र दृष्टि में प्रकृति को भी अपने घेरे में बाँध लेने का जादू था। वे प्रकृति से प्रभावित होने की अपेक्षा प्रकृति को ही प्रभावित करने वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उनके लिए प्रकृति एक रहस्यमयी, दूर तक फैली हुई दुनिया थी। उन्होंने बड़े प्रयास से यह दुनिया अपने लिए बनाई थी। इस दुनिया के निर्माण में उनकी पत्नी तहमीना का बहुत बड़ा सहयोग था।

सालिम अली ने अपने अनुभवों के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सामने केरल की ‘साइलेंट वैली’ के पर्यावरण को बचाने का सुझाव रखा था। उसे सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें भी नम हो गई थीं। सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् ऐसा कोई नहीं है जो सोंधी माटी पर फसलों की रक्षा कर एक नए भारत का निर्माण करे और हिमालय व लद्दाख जैसी बर्फीली जमीन में रहने वाले पक्षियों की सुरक्षा की वकालत करे।

सालिम ने अपनी आत्मकथा का नाम भी ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ रखा है। उन्होंने डी० एच० लॉरेंस के जीवन का उदाहरण देते हुए बताया है कि आदमी को आदमी की अपेक्षा प्राकृतिक उपादान पक्षी, पशु आदि भली-भाँति पहचान लेते हैं। लारेंस की पत्नी ने कहा कि मेरे पति को मुझसे कहीं अधिक हमारी छत पर बैठने वाली गोरैया जानती है। सालिम ने पक्षियों के प्रति प्रेम रखने और पक्षी-वैज्ञानिक बनने के रहस्य को खोलते हुए बताया है कि बचपन में उनकी एयरगन से नीलकंठ की गोरैया की मृत्यु ही इसका कारण है। वह गोरैया ही उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की ओर ले जाती रही है। वे जीवन की ऊँचाइयों को सदा ही छूने का प्रयत्न करते रहे। उन्होंने सदा ही साधारण और निष्पक्ष भाव से जीवन जिया है। सालिम अली प्रकृति की दुनिया में सागर के समान विशाल और अथाह व्यक्तित्व वाले इंसान थे। जो उन्हें भली-भाँति जानता और समझता है, वह उनके मरने पर भी यही अनुभव करेगा कि वे अपनी दूरबीन को लटकाए और पक्षियों की नई खोज के साथ बस आते ही होंगे। किन्तु मरा हुआ व्यक्ति कभी नहीं लौटता।

कठिन शब्दों के अर्थ –

(पृष्ठ-43) : परिंदों = पक्षियों। खूबसूरत = सुंदर। हुजूम = भीड़, जनसमूह। खामोश = मौन, एकांत। वादी = घाटी। अग्रसर = बढ़ना। सैलानी = यात्री। अंतहीन = जिसका कोई अंत न हो। सफर = यात्रा। तमाम = सभी। माहौल = वातावरण। पलायन करना = चले जाना, कूच करना। जिस्म = शरीर। हरारत = उष्णता, गर्मी। आबशार = झरना। उत्सुक = इच्छुक। रोमांच = प्रसन्नता। सोता = झरना, प्रवाह। महसूस = अनुभव। एहसास = अनुभव। मिथक = पुराकथाओं का तत्त्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ वहन करता है। भाँडे = बर्तन। शोख = चंचल।

(पृष्ठ-44) : वाटिका = बाग। विश्राम = आराम। अंदाज = ढंग। संगीतमय = संगीत से परिपूर्ण। उत्साह = साहस। कदम थमना = रुक जाना। हिदायत = निर्देश। तलाश = खोज। उम्र = आयु। शती = सौ वर्ष । हिफाजत = देख-रेख । समर्पित = अर्पित । बर्ड वाचर = पक्षी-वैज्ञानिक । क्षितिज = जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं। कायल = प्रभावित। रहस्यभरी = भेदयुक्त, गोपनीय। पसरी = फैली।

(पृष्ठ-45) : साइलेंट वैली = एकांत घाटी। असर = प्रभाव। खतरा = डर । संकल्प = निश्चय। सोंधी = सुगंधित, मिट्टी पर वर्षा का पहल पानी पड़ने से उठने वाली गंध । वकालत करना = पक्ष लेना। असंभव = जो संभव न हो।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

(पृष्ठ-46) : सादा-दिल = साधारण हृदय वाला। मुमकिन = संभव। शब्दों का जामा पहनाना = शब्द रूपी वस्त्र पहनाना। जटिल = उलझे हुए विचारों वाले। विश्वास = भरोसा। नैसर्गिक = साधारण। अथाह = अंतहीन गहराई। भ्रमणशील = घूमने वाले। यायावरी = घूमते रहने की प्रवृत्ति। सुराग = खोज। नतीजा = परिणाम।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

HBSE 9th Class Hindi मेरे बचपन के दिन Textbook Questions and Answers

मेरे बचपन के दिन पाठ का सार HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर-
(क) उस समय भारतीय समाज में लड़कियों की दशा अच्छी नहीं थी। उन्हें प्रायः बोझ समझा जाता था और जन्म के समय ही मार दिया जाता था। लड़की के जन्म पर सारे घर में मातम छा जाता था। महादेवी ने अन्यत्र लिखा है कि लड़के के जन्म की प्रतीक्षा में बैंड वाले व नौकर-चाकर खुश बैठे रहते थे। लड़की के जन्म का समाचार मिलते ही सब चुपचाप विदा हो जाते थे। ऐसे वातावरण में लड़कियों के प्रति अन्याय होना स्वाभाविक ही था।
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज स्थिति बदल चुकी है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ लड़के-लड़कियों के बीच भेदभाव का दृष्टिकोण बदल रहा है। उनमें कोई भेदभाव नहीं समझा जाता। आज लड़कियाँ लड़कों से भी अधिक संख्या में पढ़ने-लिखने में आगे आ रही हैं, किंतु फिर भी लड़कियों के प्रश्न को लेकर कहीं-न-कहीं मन में एक कसक बाकी बची हुई है। उसका प्रमाण हम कन्या भ्रूण हत्या के रूप में देख सकते हैं। कन्या को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है। इससे लड़के-लड़कियों के अनुपात में अंतर हो गया है और समाज में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होने का भय बना हुआ है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

पाठ 7 मेरे बचपन के दिन HBSE 9th Class प्रश्न 2.
लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाईं?
उत्तर-
लेखिका की उर्दू-फ़ारसी सीखने में जरा भी रुचि नहीं थी। लेखिका ने इस तथ्य को स्वयं स्वीकार किया है-“ये (बाबा) अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फारसी सीख पाऊँ।” लेकिन यह मेरे वश की बात नहीं थी। इसलिए जब उन्हें मौलवी साहब उर्दू-फारसी पढ़ाने घर पर आए तो वे चारपाई के नीचे जाकर छुप गईं।

मेरे बचपन के दिन प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 3.
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर-
लेखिका की माँ हिंदी व संस्कृत का अच्छा ज्ञान रखती थी। उन्होंने ही उसे ‘पंचतंत्र’ पढ़ाया था। लेखिका की माँ आस्थावादी थी। वह पूजा-पाठ में विश्वास रखती थी। वह हर रोज भगवान की वंदना करती थी। वह गीता का अध्ययन भी करती थी। इतना ही नहीं, लेखिका की माँ हिंदी में कविता भी लिखती थी और सूरदास व मीराबाई के पद भी गाती थी।

प्रश्न 4.
जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर-लेखिका के परिवार के संबंध नवाब साहब के परिवार के साथ अपनों से भी बढ़कर थे। जवारा की बेगम ने ही उनके छोटे भाई का नाम ‘मनमोहन’ रखा था। वे हर उत्सव के समय उनके साथ घुल-मिल जाती थी। ऐसे आत्मीय संबंधों की तो आज के युग में कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज तो हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे पर संदेह करते हैं और उनमें सांप्रदायिक भेदभाव बना हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होती/होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर-
ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि हम महादेवी वर्मा के लिए काम करते तो हम उनसे यह अपेक्षा करते कि वह हमें कविता लिखना सिखाए और हमारी पढ़ाई-लिखाई में भी सहायता करे।

प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/करेंगी?
उत्तर-
महादेवी वर्मा को काव्य-प्रतियोगिता में विजयी होने पर चाँदी का कटोरा पुरस्कार स्वरूप मिला था। यदि हमें भी काव्य-प्रतियोगिता में विजयी रहने पर पुरस्कार के रूप में चाँदी का कटोरा मिले और उसे हमें देश हित या आपदा निवारण में देना पड़े तो हम अपने आपको धन्य समझेंगे क्योंकि यह एक महान कार्य होता है जिसमें हमें अपना योगदान करने का अवसर मिलेगा। ऐसा करने पर हमें सुख एवं संतोष अनुभव होगा और अपने ऊपर गर्व भी होगा।

प्रश्न 7.
लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है, उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर-
लेखिका ने छात्रावास के बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है। वहाँ विभिन्न भाषाएँ बोलने वाली छात्राएँ रहती थीं। वहाँ हिंदी, संस्कृत मराठी आदि भाषाएँ बोलने वाली छात्राएँ विभिन्न क्षेत्रों से आकर एक साथ अध्ययन करती थीं। इसलिए वहाँ एक-दूसरी छात्रा के साथ रहती हुई छात्राओं को अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाएँ सीखने का भी अवसर मिलता था। वहाँ हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेज़ी आदि भाषाएँ पढ़ाई जाती थीं। सभी अपनी-अपनी मातृभाषा बोलने के लिए स्वतंत्र थीं। कहीं भी भाषा को लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं था।

प्रश्न 8.
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस-पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर-
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़कर हमारे मानस-पटल पर भी बचपन की अनेक स्मृतियाँ उभरती हैं। जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था तो गाँव में सरदार बख्शी सिंह हमारे पड़ोसी थे। उनके यहाँ कोई पुत्र नहीं था। उनकी दो बेटियाँ थीं जिनका विवाह हो चुका था। सरदार जी मुझे अपने बेटे की भाँति मानते थे। उनके मन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था। विभिन्न त्योहारों को दोनों परिवार साथ-साथ मनाते थे। सरदार जी मुझे अपनी घोड़ी पर बिठाकर अनेक बार खेत में ले जाते थे। आरंभ में मैं घोड़ी पर बैठने से डरता था, किंतु बाद में घोड़ी की सवारी करने में मुझे आनंद आता था। उनके आकस्मिक निधन पर मुझे बहुत दुःख हुआ था। मुझे लगा था कि मेरे सिर से वह साया उठ गया था, जिसके नीचे बैठकर मैंने अपने बचपन के अनेक क्षण बिताए थे। आज भी बचपन की वे स्मृतियाँ मेरे मानस-पटल पर ताज़ा हो आती हैं।

प्रश्न 9.
महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का ज़िक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर-
दिनांक………….
आज विद्यालय का वार्षिक उत्सव आरंभ होने वाला है। मुझे इस उत्सव में देश भक्ति का गीत गाना है। कार्यक्रम काफी लंबा है और मेरी बारी काफी देर में आएगी। उस समय मैं अपनी बारी की प्रतीक्षा करता हुआ बेचैन हो रहा था। मेरे मन में उस समय बहुत शंकाएँ उत्पन्न हो रही थीं कि पता नहीं मैं वह गीत ठीक प्रकार से गा पाऊँगा या नहीं। सुनने वालों को मेरा गीत कैसा लगेगा। कभी लगता था कि कहीं मैं घबराकर गीत भूल न जाऊँ। मन में ऐसे विचार आने से मेरी बेचैनी और भी बढ़ती जा रही थी। किंतु अंततः मेरा नाम पुकारा गया। मैं पूर्ण विश्वास से मंच पर गया और भगवान का धन्यवाद करते हुए गीत गाने लगा तो संपूर्ण पंडाल में खामोशी छा गई। जब मेरा गीत समाप्त हुआ तो पंडाल तालियों की ध्वनि से गूंज उठा था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

भाषा-अध्ययन

10. पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढकर लिखिए-
विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।
उत्तर-
विद्वान = मूर्ख
अनंत = सीमित
निरपराधी = अपराधी
दंड = पुरस्कार
शांति . = अशांति।

11. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए
निराहारी – निर् + आहार + ई
सांप्रदायिकता
अप्रसन्नता
अपनापन
किनारीदार
स्वतंत्रता
उत्तर-
सांप्रदायिकता = संप्रदाय + इक + ता
अप्रसन्नता = अ + प्रसन्न + ता
अपनापन = अपना + पन
किनारीदार = कि + नारी + दार
स्वतंत्रता = स्व + तंत्र + ता

12. निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए-
उपसर्ग – अन्, अ, सत्, स्व, दुर्
प्रत्यय – दार, हार, वाला, अनीय
उत्तर-
उपसर्ग = अनाधिकार, अन्वेषण
अ = अधर्म, अज्ञान
सत् = सत्कर्म, सत्प्रकाश
स्व = स्वाभिमान, स्वतंत्र
दुर् = दुरुपयोग, दुर्गुण

प्रत्यय
दार = देनदार, किराएदार
हार = देवनहार, खेवनहार
वाला = दिलवाला, रखवाला
अनीय = दर्शनीय, पठनीय

13. , पाठ में आए सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए-
पूजा-पाठ — पूजा और पाठ
उत्तर-
कवि-सम्मेलन = कवियों का सम्मेलन
रोना-धोना = रोना और धोना
उत्तर
विद्यापीठ = विद्या की पीठ
ब्रजभाषा = ब्रज की भाषा
निराहार = बिना आहार
ताई-चाची = ताई और चाची
जेब खर्च = जेब के लिए खर्च
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रहा
प्रचार-प्रसार = प्रचार और प्रसार

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
बचपन पर केंद्रित मैक्सिम गोर्की की रचना ‘मेरा बचपन’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर-
विद्यार्थी इसे स्वयं करेंगे।

प्रश्न 2.
‘मातृभूमि : ए विलेज विदआउट विमेन’ (2005) फिल्म देखें। मनीष झा द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कन्या भ्रूण हत्या की त्रासदी को अत्यंत बारीकी से दिखाया गया है।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 3.
कल्पना के आधार पर बताइए कि लड़कियों की संख्या कम होने पर भारतीय समाज का रूप कैसा होगा?
उत्तर-
विद्यार्थी इस प्रश्न का उत्तर अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

यह भी जानें

स्त्री दर्पण-इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के संपादन में सन 1909 से 1924 तक लगातार प्रकाशित होती रही। स्त्रियों में व्याप्त अशिक्षा और कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करना उसका मुख्य उद्देश्य था।

HBSE 9th Class Hindi मेरे बचपन के दिन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘मेरे बचपन के दिन’ शीर्षक पाठ का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
‘मेरे बचपन के दिन’ संस्मरण में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने इस पाठ में बेटियों (कन्याओं) के प्रति समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया है। उनके अपने परिवार में भी लड़कियों के जन्म को उचित नहीं माना जाता था। दो-सौ वर्षों के पश्चात् उनके परिवार में कन्या (महादेवी) का जन्म हुआ था। उन्होंने छात्रावास के जीवन में सुभद्रा कुमारी चौहान व अन्य छात्राओं से मित्रता के प्रसंगों का वर्णन कर तत्कालीन परिस्थितियों व छात्रावास के वातावरण को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। सम्पूर्ण पाठ में भारतीय जीवन-मूल्यों को उजागर करना भी प्रस्तुत पाठ का मूल उद्देश्य है।

प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा को कविता लिखने की प्रेरणा किससे और कैसे मिली?
उत्तर-
महादेवी वर्मा को कविता लिखने की प्रेरणा अपनी माता से मिली थी। उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थी। वह भजन लिखती भी थी और गाती भी थी। बचपन से ही महादेवी जी अपनी माता को गाते हुए सुनती थीं। यहाँ से उन्हें ब्रजभाषा में लिखने की प्रेरणा मिली। जब वे क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद में पढ़ने के लिए आई तो वहाँ छात्रावास में उनका परिचय सुप्रसिद्ध हिंदी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान से हुआ। वे उस समय खड़ी बोली हिंदी में कविता लिखती थीं। उनके संपर्क में आने पर महादेवी जी ने भी खड़ी बोली हिंदी में तुकबंदी करनी आरंभ कर दी। वे वहाँ कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगीं। वे इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली ‘स्त्री दर्पण’ नामक पत्रिका में कविताएँ भेजने लगी थी। उन्हीं दिनों महादेवी वर्मा ने कविता पाठ प्रतियोगिता में अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए थे। इस प्रकार महादेवी जी का काव्य लिखने में उत्साह दिनोंदिन बढ़ता गया।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ कवि-सम्मेलनों व हिंदी के प्रचार-प्रसार के आयोजन का क्या लक्ष्य था?
उत्तर-
सन 1917 के आसपास भारतवर्ष स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। वे संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधना चाहते थे। भारत के बहुत बड़े भाग में हिंदी समझी व बोली जाती है, इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ कवि सम्मेलनों व हिंदी के प्रचार-प्रसार का आयोजन किया जाता था। हिंदी के माध्यम से ही देश-प्रेम को उत्पन्न किया जा रहा था।

प्रश्न 4.
‘ताई साहिबा और लेखिका के परिवार में बड़ी घनिष्ठता थी’-इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने बताया है कि ताई साहिबा और उनके परिवार में आपस में बहुत प्रेम था। बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर दोनों परिवारों के लोग एक-साथ भोजन करते और शुभकामनाएँ देते। वे हर त्योहार को मिलकर मनाते थे। ताई साहिबा ने लेखिका के छोटे भाई का नामकरण भी किया था। नेग भी साधिकार प्राप्त किया था। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि ताई साहिबा व लेखिका के परिवारों में अत्यधिक घनिष्ठता थी।

प्रश्न 5.
छात्रावास में लेखिका और सुभद्राकुमारी के बीच मित्रता कैसे हुई?
उत्तर-
छात्रावास में लेखिका एवं सुभद्राकुमारी दोनों एक ही कमरे में रहती थीं। सुभद्राकुमारी खड़ी बोली में कविता लिखती थीं। उसको कवयित्री के रूप में थोड़ी-बहुत प्रसिद्धि भी मिल चुकी थी। महादेवी जी उनसे बहुत प्रभावित थीं और छुप-छुपकर थोड़ी बहुत तुकबंदी भी करने लगी थीं। जब सुभद्रा को महादेवी के इस रहस्य का पता चला तो उसने उसे और भी उत्साहित किया, जिससे दोनों की मित्रता गहन होती चली गई। आगे चलकर दोनों साथ-साथ विभिन्न कवि सम्मेलनों में भी भाग लेने लगी थीं।

प्रश्न 6.
छात्रावास का वातावरण कैसा था ? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
महादेवी जी क्रास्थवेट कॉलेज के छात्रावास में रहती थीं। महादेवी जी ने उस समय के वातावरण के विषय में लिखा है कि उस समय का वातावरण बहुत अच्छा था। वहाँ रहने वाली छात्राओं में आपस में बहुत स्नेह था। वे सब एक-दूसरे की सहायता करती थीं। उनमें सांप्रदायिकता का भाव नहीं था। विविध धर्मों और विविध क्षेत्रों से आई विविध भाषी छात्राएँ एक साथ बिना किसी भेदभाव के वहाँ रहती थीं। उनमें से कोई अवधी बोलती, तो कोई बुंदेलखंडी में बातें करती थी। कॉलेज में हिंदी व उर्दू पढ़ाई जाती थी। किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था। अतः यह सिद्ध होता है कि वहाँ का वातावरण बड़ा स्नेही एवं सहयोगमयी था।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मेरे बचपन के दिन’ शीर्षक पाठ किसके द्वारा रचित है?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी :
(B) महादेवी वर्मा
(C) प्रेमचंद
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) महादेवी वर्मा

प्रश्न 2.
लेखिका के अनुसार किसमें एक विचित्र आकर्षण होता है?
(A) खेलकूद में
(B) बचपन की स्मृतियों में
(C) सपनों में
(D) लड़कपन में
उत्तर-
(B) बचपन की स्मृतियों में ।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

प्रश्न 3.
लेखिका के परिवार में कोई लड़की कितने वर्ष बाद पैदा हुई थी?
(A) चालीस वर्ष बाद
(B) पचास वर्ष बाद
(C) अस्सी वर्ष बाद
(D) दो सौ वर्ष बाद
उत्तर-
(D) दो सौ वर्ष बाद

प्रश्न 4.
लेखिका के बाबा ने कौन-सी भाषा पढ़ी थी?
(A) अंग्रेज़ी
(B) हिंदी
(C) संस्कृत
(D) फारसी एवं उर्दू
उत्तर-
(D) फारसी एवं उर्दू

प्रश्न 5.
लेखिका के परिवार में सबसे पहले अंग्रेज़ी किसने पढ़ी थी?
(A) स्वयं लेखिका ने
(B) लेखिका की माता ने
(C) पिता ने
(D) दादा ने
उत्तर-
(C) पिता ने

प्रश्न 6.
लेखिका की माँ कौन-सी भाषाएँ जानती थी?
(A) हिंदी एवं संस्कृत
(B) अंग्रेज़ी एवं पंजाबी
(C) उर्दू एवं फ़ारसी
(D) बंगला एवं उड़िया
उत्तर-
(A) हिंदी एवं संस्कृत

प्रश्न 7.
लेखिका को सर्वप्रथम किस स्कूल में दाखिल करवाया गया था?
(A) पुतली पाठशाला
(B) मिशन स्कूल
(C) विद्या भारती
(D) राजकीय उच्च विद्यालय
उत्तर-
(B) मिशन स्कूल

प्रश्न 8.
छात्रावास में लेखिका की सबसे पहली सहेली कौन बनी थी?
(A) इंदिरा गाँधी
(B) रानी लक्ष्मीबाई
(C) सुभद्रा कुमारी
(D) उषा प्रियंवदा
उत्तर-
(C) सुभद्रा कुमारी

प्रश्न 9.
सुभद्रा और महादेवी किस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ी थी?
(A) क्रास्थवेट
(B) हिंदू गर्ल्स कॉलेज
(C) नेशनल कॉलेज
(D) शांति निकेतन
उत्तर-
(A) क्रास्थवेट

प्रश्न 10.
महादेवी की विद्यार्थी जीवन की रचनाएँ किस पत्रिका में छपती थीं?
(A) सारिका
(B) सरस्वती
(C) हंस
(D) स्त्री दर्पण
उत्तर-
(D) स्त्री दर्पण

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

प्रश्न 11.
महादेवी जी ने अपना कटोरा किसे दे दिया था?
(A) जवाहर लाल नेहरू को
(B) गाँधी जी को
(C) मोतीलाल नेहरू जी को .
(D) शास्त्री जी को
उत्तर-
(B) गाँधी जी को

प्रश्न 12.
लेखिका की सहेली जेबुन्निसा (जेबुन) कहाँ की रहने वाली थी?
(A) बंबई
(B) पूना
(C) अहमदाबाद
(D) कोल्हापुर
उत्तर-
(D) कोल्हापुर

प्रश्न 13.
ज़ेबुन कैसी पोशाक पहनती थी?
(A) किनारीदार साड़ी
(B) कुर्ता सलवार
(C) कुर्ता और घाघरा
(D) पैंट्स-कमीज
उत्तर-
(A) किनारीदार साड़ी

प्रश्न 14.
महादेवी के भाई का नाम क्या रखा गया था?
(A) आलोक मोहन
(B) मनमोहन
(C) क्षितिज मोहन
(D) त्रिभुवन
उत्तर-
(B) मनमोहन

प्रश्न 15.
श्री मनमोहन किस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने थे?
(A) पंजाब विश्वविद्यालय
(B) दिल्ली विश्वविद्यालय
(C) गोरखपुर विश्वविद्यालय
(D) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
उत्तर-
(C) गोरखपुर विश्वविद्यालय

प्रश्न 16.
किसकी नवाबी छिन गई थी?
(A) लखनऊ के नवाब की
(B) जवारा के नवाब की
(C) दिल्ली के नवाब की
(D) कलकत्ता के नवाब की
उत्तर-
(B) जवारा के नवाब की

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

मेरे बचपन के दिन प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्रायः दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा-पूजा की। हमारी कुल-देवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। हिंदी का कोई वातावरण नहीं था।
मेरी माता जबलपुर से आईं तब वे अपने साथ हिंदी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहले-पहल उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया। [पृष्ठ 69]

शब्दार्थ-उत्पन्न हुई = पैदा हुई। परमधाम भेज देना = मार देना। खातिर होना = सम्मान होना। वातावरण = परिस्थितियाँ, माहौल। अपने साथ हिंदी लाना = हिंदी का ज्ञान होना। पंचतंत्र = धार्मिक ग्रंथ का नाम। .

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित “मेरे बचपन के दिन’ नामक पाठ से ली गई हैं। इसकी रचयिता महादेवी वर्मा जी हैं। इस पाठ में उन्होंने अपने बचपन की घटनाओं का वर्णन किया है तथा उस समय देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन और समाज में लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैये पर भी प्रकाश डाला है। इन पंक्तियों में महादेवी जी ने अपने परिवार की परंपराओं और परिस्थितियों का उल्लेख किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-महादेवी जी ने अपने बचपन की स्मृतियों को बताते हुए लिखा है कि वे अपने परिवार में कई पीढ़ियों के पश्चात उत्पन्न हुई थीं अर्थात उनके परिवार में लड़की पैदा ही नहीं हुई थी। दो सौ वर्षों से उनके परिवार में कोई लड़की नहीं थी। ऐसा सुना है कि उससे पहले लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। महादेवी जी ने पुनः बताया है कि उनके बाबा जी ने उनकी प्राप्ति के लिए दुर्गा माता की प्रार्थना की थी। दुर्गा उनके कुल की देवी थी। जब महादेवी जी का जन्म हुआ तो उनके परिवार को बहुत खुशी हुई। इसलिए उनका परिवार में बहुत सम्मान व सेवा हुई। महादेवी को वे सब कष्ट नहीं सहन करने पड़े थे जो उनसे पूर्व उत्पन्न लड़कियों को उनके परिवार में सहने पड़े थे। कहने का भाव है कि उनके परिवार में लड़की को जन्म के तुरंत बाद ही मार दिया जाता था। उनके परिवार में उनके बाबा उर्दू-फारसी ही जानते थे। बाद में उनके पिताजी ने अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी प्राप्त किया था। उनके परिवार में हिंदी भाषा को पढ़ने-लिखने वाला कोई नहीं था। किंतु उनकी माता जबलपुर से वधू बनकर उनके परिवार में आईं तो वह हिंदी जानने व पढ़ने-लिखने वाली थीं। इस प्रकार उनकी माता के आने पर उनके परिवार में हिंदी भाषा का पढ़ना-लिखना व बोलना आरंभ हुआ था। वह पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। उन्होंने ही मुझे सबसे पहले ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया था।

विशेष-

  1. कन्याओं के प्रति समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण को प्रकट किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
  3. तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) महादेवी के परिवार में कितने समय बाद किसी कन्या का जन्म हुआ था ?
(2) महादेवी के जन्म के समय लड़कियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण कैसा था ?
(3) महादेवी का जन्म किस देवी की मन्नत (आशीर्वाद) से हुआ था ?
(4) महादेवी के परिवार में हिंदी का प्रचलन कैसे हुआ था ?
उत्तर-
(1) महादेवी के परिवार में किसी कन्या का जन्म व पालन-पोषण लगभग दो सौ वर्षों के पश्चात हुआ था।
(2) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाता था। इसलिए उन्हें जन्म के तुरंत बाद मार दिया जाता था। यदि वे जीवित भी रह जातीं तो उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था। उन्हें लड़कों की तुलना में हीन समझा जाता था। उनकी दशा अत्यंत शोचनीय थी।
(3) महादेवी के दादा ने उनके जन्म के लिए अपनी कुल देवी ‘दुर्गा माता’ की वंदना की थी। अतः महादेवी दुर्गा माता के आशीर्वाद से उत्पन्न हुई थी।
(4) महादेवी के दादा उर्दू-फारसी जानते थे और पिता ने अंग्रेज़ी भाषा भी सीख ली थी। उनकी माता हिंदी भाषा को पढ़ने-लिखने का ज्ञान रखती थी। वह ‘पंचतंत्र’ जैसे ग्रंथ पढ़ती थी। इसलिए उसने महादेवी को भी हिंदी पढ़ना-लिखना सिखाया था। अतः उसकी माता के प्रयास से उनके परिवार में हिंदी का प्रचलन हुआ था।

2. बाबा कहते थे, इसको हम विदुषी बनाएँगे। मेरे संबंध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने। माँ थोड़ी संस्कृत जानती थीं। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी। उसके उपरांत उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको। मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी। मेरा मन नहीं लगा। वहाँ जाना बंद कर दिया। जाने में रोने-धोने लगी। तब उन्होंने मुझको क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भेजा, जहाँ मैं पाँचवें दर्जे में भर्ती हुई। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था उस समय। हिंदू लड़कियाँ भी थीं, ईसाई लड़कियाँ भी थीं। हम लोगों का एक ही मेस था। उस मेस में प्याज़ तक नहीं बनता था। [पृष्ठ 69-70]]

शब्दार्थ-विदुषी = विद्वान स्त्री। पंचतंत्र = धार्मिक ग्रंथ का नाम। ऊँचा विचार = अच्छा विचार। मौलवी = उर्दू-फ़ारसी पढ़ाने वाले अध्यापक। उपरांत = पश्चात। मेस = भोजनालय । वातावरण = माहौल।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित एवं महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मेरे बचपन के दिन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में उन्होंने अपने बचपन की घटनाओं का वर्णन स्मृतियों के सहारे किया है। इस गद्यांश में बताया गया है कि महादेवी जी ने किस प्रकार हिंदी पढ़ना सीखा था। उन्हें किन-किन स्कूलों में भर्ती करवाया गया था। साथ ही क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज और वहाँ के छात्रावास का वर्णन किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-महादेवी जी ने अपने बचपन की स्मृतियों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उनके बाबा उन्हें खूब पढ़ाना-लिखाना चाहते थे। वे चाहते थे कि महादेवी एक विदुषी बने ताकि परिवार का नाम ऊँचा हो। इसलिए महादेवी ने ‘पंचतंत्र’ में संकलित कहानियों को भी पढ़ा था। महादेवी ने बचपन में संस्कृत भी सीखी थी। महादेवी के दादा जी चाहते थे कि वह उर्दू-फ़ारसी भी पढ़ना-लिखना सीख ले, किंतु उर्दू-फारसी भाषा में उनकी जरा-सी भी रुचि नहीं थी। उसके दादा जी ने उनको उर्दू-फारसी पढ़ाने के लिए एक मौलवी साहब की नियुक्ति की थी। महादेवी ने जब मौलवी साहब को देखा तो वह डर गई और दूसरे दिन जब मौलवी साहब आए तो वह चारपाई के नीचे छुप गई थी। इस प्रकार महादेवी को उर्दू-फारसी पढ़ने से छुट्टी मिल गई थीं। तब उन्हें संस्कृत पढ़ाने के लिए एक पंडित जी को बुलाया गया। महादेवी की माता जी भी संस्कृत का ज्ञान रखती थीं। उनकी गीता पढ़ने में बहुत रुचि थी। जब उनकी माता पाठ-पूजा करतीं तो वह भी अपनी माता के साथ बैठ जातीं और माता द्वारा बोली गई संस्कृत को बड़े ध्यान से सुनती थीं। कुछ दिन महादेवी ने घर पर ही संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात् उन्हें मिशन स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। किंतु वहाँ का वातावरण महादेवी जी के अनुकूल नहीं था। वहाँ बोली जाने वाली प्रार्थना भी दूसरी ही थी। उस स्कूल में महादेवी जी का मन नहीं लगा। उन्होंने वह स्कूल त्याग दिया और तब उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भेजा जाने लगा। वहाँ उन्हें पाँचवीं कक्षा में दाखिल करवाया गया था। वहाँ का माहौल बहुत अच्छा था। महादेवी जी को वह कॉलेज बहुत पसंद था। उस समय वहाँ विभिन्न धर्मों की लड़कियाँ पढ़ती थीं। सब लड़कियों का भोजनालय भी एक अर्थात सभी लड़कियाँ एक साथ एक ही भोजनालय में भोजन खाती थीं। उस मेस में प्याज़ तक प्रयोग नहीं होता था अर्थात वहाँ पूर्णतः शाकाहारी भोजन बनता था।

विशेष-

  1. महादेवी जी के बचपन में उन्हें दी गई शिक्षा का उल्लेख किया गया है।
  2. महादेवी जी की शिक्षा के प्रति रुचि का उल्लेख भी हुआ है।
  3. महादेवी जी की माता के स्वभाव पर भी प्रकाश डाला गया है।
  4. भाषा-शैली भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) महादेवी के बाबा जी उसे क्या बनाना चाहते थे ?
(2) लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीखना चाहती थी ?
(3) मिशन स्कूल में लेखिका का मन क्यों नहीं लगा था ?
(4) क्रास्थवेट कॉलेज का वातावरण कैसा था ?
उत्तर-
(1) लेखिका के बाबा जी चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर महान विदुषी बने। इसलिए उसकी शिक्षा के लिए घर पर प्रबंध किया गया था।
(2) लेखिका की रुचि उर्दू-फारसी पढ़ने में नहीं थी। मौलवी साहब को देखकर वह चारपाई के नीचे छुप गई थी। इसके अतिरिक्त उनकी रुचि संस्कृत सीखने में थी।
(3) मिशन स्कूल का वातावरण महादेवी जी के मनोनुकूल नहीं था। वहाँ प्रार्थना भी दूसरी थी जो महादेवी जी ने पहले कभी नहीं बोली थी। इसलिए महादेवी जी वहाँ जाने के नाम पर रो पड़ती थीं। इन्हीं कारणों से उनका मन मिशन स्कूल में नहीं लगा था।
(4) क्रास्थवेट कॉलेज का वातावरण खुला था। वहाँ विभिन्न धर्मों तथा विविध भाषाएँ बोलने वाली लड़कियाँ पढ़ती थीं। वहाँ किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता था। सभी लड़कियाँ साथ-साथ रहती थीं और एक साथ बैठकर खाना खाती थीं। अतः स्पष्ट है कि वहाँ का वातावरण अच्छा था।

3. फिर हम दोनों की मित्रता हो गई। क्रास्थवेट में एक पेड़ की डाल नीची थी। उस डाल पर हम लोग बैठ जाते थे। जब और लड़कियाँ खेलती थीं तब हम लोग तुक मिलाते थे। उस समय एक पत्रिका निकलती थी-‘स्त्री दर्पण’-उसी में भेज देते थे। अपनी तुकबंदी छप भी जाती थी। फिर यहाँ कवि-सम्मेलन होने लगे तो हम लोग भी उनमें जाने लगे। हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था। कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको अपने साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें। [पृष्ठ 70-71]

शब्दार्थ-तुक मिलाना = कविता बनाना। उपरांत = पश्चात्। सत्याग्रह = सच्चाई के लिए आग्रह। संघर्ष = मुकाबला। पुरस्कार = इनाम। पदक = मैडल।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘मेरे बचपन के दिन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस निबंध में महादेवी जी ने स्मृतियों के सहारे अपने बचपन की विविध घटनाओं पर प्रकाश डाला है। साथ यह भी बताया है कि उस समय के समाज का लड़कियों के प्रति क्या दृष्टिकोण था। इन पंक्तियों में लेखिका ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों पर प्रकाश डाला है और महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की ओर भी संकेत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखिका क्रास्थवेट कॉलेज के छात्रावास में रहते हुए घटित घटनाओं को याद करती हुई कहती है कि छात्रावास में रहते हुए उनकी मित्रता सुभद्राकुमारी चौहान से हो गई थी। छात्रावास में एक पेड़ था। उसकी शाखाएँ बहुत लंबी और झुकी हुई थीं। जब दूसरी लड़कियाँ खेल-कूद में व्यस्त रहतीं तो वे दोनों वृक्ष की डालियों पर बैठकर तुकबंदी करती थीं अर्थात् कविताएँ लिखती थीं। उस समय ‘स्त्री दर्पण’ नामक एक पत्रिका प्रकाशित होती थी। उस पत्रिका में वे अपनी रचनाएँ भेजती थीं। उनकी वे तुकबंदी छप भी जाती थी। यह देखकर महादेवी जी को बहुत प्रसन्नता होती थी। फिर वहाँ कवि सम्मेलन भी होने लगे थे तो महादेवी जी उनमें भाग लेने लगी थीं। उस समय हिंदी के प्रचार-प्रसार का काम भी जोरों पर था। महादेवी जी सन् 1917 में छात्रावास में आई थी। उसके बाद ही गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन आरंभ हुए थे। इलाहाबाद में आनंद भवन उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बना हुआ था। हिंदी का प्रचार-प्रसार कई प्रकार से हो रहा था। उसके लिए हिंदी कवि सम्मेलन किए जाते थे। जहाँ भी कवि सम्मेलन का आयोजन होता था तो महादेवी जी की मैडम उन्हें अपने साथ ले जाती थी। महादेवी जी वहाँ अपनी कविताएँ सुनाती थीं। कभी हरिऔध जी कवि सम्मेलन के अध्यक्ष होते तो कभी श्रीधर पाठक होते थे तो कभी रत्नाकर जी अयक्षता करते। कभी कोई और साहित्यकार सम्मेलन की अध्यक्षता करते। महादेवी जी उस समय बड़ी बेचैनी से प्रतीक्षा करती रहती थीं कि कब उसका नाम पुकारा जाए। महादेवी जी को प्रायः कवि सम्मेलनों में प्रथम पुरस्कार मिलता था। उन्हें सौ से भी अधिक पदक मिले होंगे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

विशेष-

  1. महादेवी जी की बचपन की यादों का सुंदर उल्लेख किया गया है।
  2. तत्कालीन समाज में हिंदी का प्रचार-प्रसार जोरों पर था।
  3. स्वतंत्रता आंदोलनों की ओर भी संकेत किया गया है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गपांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) सन 1917 में हिंदी की क्या स्थिति थी?
(2) जब दूसरी लड़कियाँ खेलती थीं तो लेखिका उस समय क्या करती थी?
(3) सन 1917 में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
(4) इलाहाबाद में 1917 के आसपास कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता कौन-कौन करते थे?
उत्तर-
(1) सन 1917 में हिंदी का खूब प्रचार-प्रसार हो रहा था। अनेक स्थानों पर हिंदी कवि सम्मेलन किए जाते थे। हिंदी का प्रचार-प्रसार स्वतंत्रता आंदोलन का ही एक भाग बन गया था। सुभद्राकुमारी चौहान, हरिऔध, रत्नाकर जैसे महान कवि हिंदी के विकास में लगे हुए थे।
(2) महादेवी वर्मा क्रास्थवेट कॉलेज के छात्रावास में रहती थीं। जब दूसरी लड़कियाँ खेलती थीं तो महादेवी वर्मा और सुभद्राकुमारी चौहान वृक्ष की शाखा पर बैठकर तुकबंदी अर्थात कविताएँ लिखती थीं।
(3) इस पाठ में बताया गया है कि सन 1917 में स्वतंत्रता आंदोलन आरंभ हो चुका था। गांधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह भी चलने लगे थे। जन-साधारण को आंदोलन से जोड़ने के लिए हिंदी का प्रयोग किया जाता था। उसके लिए हिंदी प्रचार-प्रसार भी बराबर चल रहा था। इलाहाबाद में आनंद भवन राष्ट्रीय आंदोलनों का गढ़ बन गया था। वहाँ ही राष्ट्रीय आंदोलनों की रूप-रेखा तैयार की जाती थी।
(4) इलाहाबाद में सन 1917 के आसपास होने वाले कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता हरिऔध, रत्नाकर एवं श्रीधर पाठक जैसे महान कवि करते थे।

4. उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब-खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे?’ अब मैं क्या कहती? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है? पर कविता सुनाने को उन्होंने नहीं कहा। लौटकर अब मैंने सुभद्रा जी से कहा कि कटोरा तो चला गया। सुभद्रा जी ने कहा, ‘और जाओ दिखाने!’ फिर बोलीं, ‘देखो भाई, खीर तो तुमको बनानी होगी। अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ, चाहे फूल के कटोरे में।
[पृष्ठ 71-72]

शब्दार्थ-सरल हैं। …….

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ से उद्धृत है। इसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं। इस पाठ में उन्होंने स्मृतियों के माध्यम से अपने बचपन की घटनाओं का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखिका ने उस घटना का उल्लेख किया है जब उन्हें आनंद भवन में महात्मा गांधी जी मिले थे और उन्होंने पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा देश-सेवा के लिए महात्मा गांधी को दे दिया था।

व्याख्या/पाव ग्रहण-महादेवी जी ने अपने बचपन की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है कि उन दिनों महात्मा गांधी आनंद भवन में अकसर आते थे। हम लोग अपने जेब-खर्च में से पैसे बचाकर सदैव एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे। जब भी बापू गांधी जी से भेंट होती तो हम वह राशि उन्हें भेंट कर देते। उस दिन जब महात्मा गांधी आनंद भवन में आए तो मैं अपना चाँदी का कटोरा भी साथ लेकर उनसे मिलने गई। अपना वह कटोरा निकालकर गांधी जी को दिखाया और कहा कि यह कटोरा मुझे कविता सुनाने पर पुरस्कार के रूप में मिला था। गांधी जी को यह कटोरा बहुत पसंद आया। महादेवी ने अपना कटोरा गांधी जी की ओर बढ़ा दिया। उन्होंने इसे हाथ में लेकर कहा कि क्या तुम इस कटोरे को मुझे दे रही हो। उस समय महादेवी जी ने कुछ नहीं कहा और कटोरा गांधी जी को भेंट कर दिया तथा वह लौट आई। महादेवी जी को इस बात का दुःख हुआ कि उन्होंने कटोरे के बारे में तो पूछा किंतु कविता कौन-सी सुनाई थी, यह नहीं पूछा। उन्होंने कविता सुनाने को भी नहीं कहा। छात्रावास में लौटकर सुभद्रा कुमारी ने कहा कि और जाओ कटोरा दिखाने! फिर बोली कि चाहे कुछ हो खीर तो तुम्हें खिलानी ही होगी। अब चाहे तुम पीतल की कटोरी में खिलाओ या फूल के कटोरे में। मुझे इससे कुछ लेना-देना नहीं है। कहने का अभिप्राय है कि महादेवी को स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग देने की खुशी भी थी, साथ ही पुरस्कार में मिले कटोरे के पास न रहने पर थोड़ी निराशा भी थी।

विशेष-

  1. महादेवी के बचपन की घटनाओं का मनोरम चित्रण किया गया है।
  2. आनंद भवन में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों की ओर संकेत किया गया है।
  3. सुभद्राकुमारी चौहान और महादेवी की मित्रता का भी बोध होता है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्यक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में लेखिका व उसकी सहेलियों ने कैसे योगदान दिया था?
(2) अपना पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा गांधी जी को भेंट करने पर महादेवी की क्या प्रतिक्रिया हुई थी?
(3) इस गद्यांश से उस समय का कैसा चित्र उभरता है? ।
(4) महादेवी का कटोरा गांधी जी द्वारा ले लेने पर सुभद्राकुमारी के मन में क्या प्रतिक्रिया हुई? ।
उत्तर-
(1) राष्ट्रीय आंदोलन में महादेवी वर्मा व उसकी सहेलियों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। इलाहाबाद के क्रास्थवेट कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राएँ अपने प्रतिदिन के जेब-खर्च में से कुछ पैसे बचाकर महात्मा गांधी को दे देती थीं। महादेवी जी ने अपना चाँदी का कटोरा भी गांधी जी को दे दिया था।

(2) महात्मा गांधी जी को अपना पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा दे देने पर महादेवी जी को बहुत खुशी हुई, क्योंकि उन्हें यह पता था कि उन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कुछ सहयोग किया है। किंतु उनके मन में थोड़ी-सी निराशा भी हुई कि गांधी जी ने उनसे कविता सुनाने के लिए नहीं कहा।

(3) इस गद्यांश को पढ़कर पता चलता है कि उस समय भारतवर्ष गुलाम था। किंतु देश का बच्चा-बच्चा स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष में लगा हुआ था। यह बात भी स्पष्ट है कि देश-प्रेम की भावना न केवल बड़ों में, अपितु बच्चों में भी देखी जा सकती थी।

(4) महादेवी.जी ने आनंद भवन से लौटकर कहा कि चाँदी का कटोरा तो चला गया। यह सुनकर सुभद्राकुमारी चौहान के मन में न कोई खुशी हुई और न ही गम, अपितु उन्होंने व्यंग्य में कहा कि खीर तुम्हें खिलानी पड़ेगी चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ या फूल के कटोरे में।

मेरे बचपन के दिन Summary in Hindi

मेरे बचपन के दिन लेखक-परिचय

प्रश्न-
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नगर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। नौ वर्ष की अल्पायु में ही इन्हें विवाह के बंधन में बाँध दिया गया था, किंतु यह बंधन स्थायी न रह सका। इन्होंने अपना समय अध्ययन में लगाना प्रारंभ कर दिया और सन् 1932 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या के रूप में नियुक्त किया गया। इन्हें छायावादी हिंदी . काव्य के चार स्तंभों में से एक माना जाता है। इन्हें विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनका देहांत 11 सितंबर, 1987 को हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-महादेवी वर्मा ने कविता, रेखाचित्र, आलोचना आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में रचना की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) काव्य-ग्रंथ-‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ आदि।
(ii) नारी-साहित्य-‘श्रृंखला की कड़ियाँ’।
(iii) रेखाचित्र-संस्मरण-‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘क्षणदा’ ।
(iv) आलोचना-‘हिंदी का विवेचनात्मक गद्य’, ‘विभिन्न काव्य-संग्रहों की भूमिकाएँ।
(v) संपादन-‘चाँद’, ‘आधुनिक कवि काव्यमाला’।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

3. साहित्यिक विशेषताएँ-महादेवी वर्मा मूलतः कवयित्री हैं तथा इन्हें अपनी काव्य रचनाओं के लिए ही अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है, किंतु महादेवी जी ने हिंदी गद्य साहित्य के विकास में भी अपना बहुमूल्य सहयोग दिया है। निबंध, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण आदि विधाओं पर महादेवी जी ने अपनी लेखनी सफलतापूर्वक चलाई है। इसके अतिरिक्त संगीत, चित्रकला, प्रकृति एवं पशु-पक्षियों में भी महादेवी जी की रुचि रही है। इनसे संबंधित भी इन्होंने गद्य-शैली में लिखा है। महादेवी जी के निबंध-साहित्य में जहाँ राष्ट्रीय स्वर मुखरित हुआ है, वहीं दीन-दुखियों के दर्द व पीड़ाओं का भी वर्णन हुआ है। इन्होंने अपने निबंध साहित्य में शिक्षा और विद्या का सूक्ष्म अंतर बताते हुए भारत भूमि की प्राचीन उज्ज्वल परंपराओं और आधुनिक आवश्यकताओं की ओर विद्यार्थियों का ध्यान आकृष्ट किया है। नारी जीवन के विविध पक्षों पर भी इन्होंने अपने निबंधों के माध्यम से प्रकाश डाला है। महादेवी जी का निबंध-साहित्य समाज की पहचान करवाता है। नारी जागरण पर इन्होंने विशेष बल दिया है।

4. भाषा-शैली-महादेवी वर्मा जी के गद्य-साहित्य की भाषा भी उनके काव्य की भाषा की भाँति ही अत्यंत सहज, स्वाभाविक एवं प्रवाहमयी है। कहीं-कहीं गद्य में भी काव्यात्मक भाषा के दर्शन होते हैं। बीच-बीच में तत्सम शब्दों की भरमार के कारण भाषा साधारण पाठक की समझ से बाहर हो जाती है। महादेवी जी की भाषा के दो रूप साफ तौर पर देखे जा सकते हैं-विचारात्मक एवं भावात्मक। सटीक वर्णन, प्रभावशाली बिंब-योजना एवं चित्रात्मकता इनकी शैली की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं।

मेरे बचपन के दिन पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘मेरे बचपन के दिन’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने अपने बचपन के दिनों की प्रमुख घटनाओं का मनोरम चित्रण किया है। उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए लिखा है कि उनके खानदान में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। अतः दो सौ वर्षों के बाद महादेवी ने अपने परिवार में जन्म लिया था। महादेवी के बाबा ने दुर्गा की पूजा करके कन्या को माँगा था। अतः महादेवी को बचपन में कोई कष्ट नहीं सहन करना पड़ा था। उन्हें हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध करवा दी गई थी। उनके लिए घर पर ही उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि की पढ़ाई का प्रबंध किया गया था। किंतु उनकी माता ने उन्हें हिंदी पढ़ना सिखाया था। महादेवी ने बचपन में ‘पंचतंत्र’ आदि का अध्ययन किया, किंतु उर्दू में उनका मन नहीं रमा। फिर उन्हें मिशन स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। उन्हें मिशन स्कूल की प्रार्थना और वहाँ का वातावरण भी रास नहीं आया। तब उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज की पाँचवीं कक्षा में प्रवेश दिलवाया गया।

छात्रावास में रहते हुए सुभद्राकुमारी चौहान से महादेवी जी की मित्रता हो गई। सुभद्राकुमारी कविताएँ लिखती थी। महादेवी जी की माता भी भक्ति के गीत लिखती व गाती थी। इन्हें माता से ही कविता लिखने की प्रेरणा मिली थी। इन्होंने पहले ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया था। सुभद्राकुमारी चौहान की संगति में रहकर महादेवी जी भी खड़ी बोली हिंदी में कविता लिखने लगी थीं। जब सुभद्राकुमारी चौहान को पता चला कि वह छिप-छिपकर कविताएँ लिखती है तो उसने इनकी कापियाँ ढूँढकर कविताओं का पता लगाया और सारे छात्रावास में इस रहस्य को उजागर कर दिया। तब दोनों में पक्की मित्रता हो गई। जब दूसरी छात्राएँ खेला करतीं तो ये दोनों बैठकर तुकबंदी किया करती थीं। सौभाग्य से वह तुकबंदी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप जाती थी।

महादेवी जी की कविता पर पकड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वे अब कवि सम्मेलनों में भी भाग लेने लगी थीं। यह समय हिंदी प्रचार का समय था। महादेवी ने भी इस शुभ कार्य में अपनी कविताओं के माध्यम से महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। कवि सम्मेलनों में श्री हरिऔध, श्रीधर पाठक व रत्नाकर जैसे महान् मनीषी होते थे। ऐसे सम्मेलनों में महादेवी अपना नाम सुनने के लिए बड़ी व्याकुल रहती थी। अनेक कवि सम्मेलनों में महादेवी जी प्रथम स्थान पर रहीं।

एक कवि सम्मेलन में प्रथम पुरस्कार के रूप में उन्हें चाँदी का नक्काशीदार कटोरा मिला था। उन्हीं दिनों गाँधी जी आनंद भवन में आए थे। उन दिनों आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बना हुआ था। महादेवी जी और उनकी अनेक सखियाँ अपने जेब खर्च में से पैसे बचाकर देश हित के लिए देती थीं। महादेवी जी ने गाँधी जी को पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा दिखाया। गाँधी जी ने उस समय उनकी कविता तो नहीं सुनी, उनका वह कटोरा अवश्य रख लिया। महादेवी अपने कटोरे को देश के प्रति अर्पित करके बहुत प्रसन्न हुई थीं।

महादेवी वर्मा के छात्रावास में अनेक स्थानों से आई हुई छात्राएँ रहती थीं। जेबुन्निसा नाम की एक मराठी लड़की महादेवी जी का साफ-सफाई का काम देखती थी। वह हिंदी और मराठी दोनों भाषाएँ बोलती थी। किंतु वहाँ रहने वाली उस्तानी जीनत बेगम को मराठी बोलने पर एतराज था। किंतु जेबुन कहती है कि हम मराठी हैं, तो मराठी ही बोलेंगे। वहाँ अवध से आई हुई कन्याएँ अवधी बोलती थीं और बुंदेलखंड से आई हुई बालिकाएँ बुंदेली बोलती थीं। सभी छात्राएँ एक मेस में खाना खाती थीं और एक प्रार्थना का उच्चारण करती थीं। वहाँ कोई विवाद नहीं था अर्थात वहाँ सांप्रदायिक भावना का नामोनिशान नहीं था।

महादेवी ने विद्यापीठ में आने पर बेगम साहिबा का किस्सा लिखते हुए कहा है कि जब वह विद्यापीठ में उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु आई, तो भी उनके बचपन के संस्कार बने रहे। जिस भवन में महादेवी जी रहती थी, उसी में जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी बेगम आग्रह करती थीं कि महादेवी उन्हें ताई कहे। बेगम के बच्चे महादेवी की माँ को चची जान कहते थे। दोनों परिवारों में अत्यधिक प्रेम था। बच्चों के जन्मदिन भी मिलकर मनाए जाते थे। बेगम साहिबा अपने बच्चों को तब तक पानी नहीं देती थी जब तक महादेवी उन्हें राखी न बाँधे।

इसी तरह मुहर्रम पर इनके लिए भी नए वस्त्र बनते थे। . इसी प्रकार महादेवी जी के छोटे भाई के जन्म के अवसर पर बेगम साहिबा ने उनके पिता से कहकर नेग लिया तथा बच्चे के लिए नए वस्त्र बनवाए। बच्चे का नाम भी बेगम ने ही ‘मनमोहन’ रखा था। वही मनमोहन बड़े होकर जम्मू और गोरखपुर विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर बने। घर में अवधी बोली जाती थी, किंतु बाहर हिंदी व उर्दू का प्रयोग होता था। आरंभ में भारतवर्ष के वातावरण में जितनी निकटता व स्नेह का भाव था, यदि उतना बाद तक बना रहता तो भारतवर्ष की कहानी आज कुछ अलग प्रकार की होती।

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-69] : स्मृतियाँ = यादें। विचित्र = अनोखा। आकर्षण = खिंचाव। परमधाम भेजना = मार देना। खातिर होना = सेवा होना। वातावरण = परिस्थितियाँ। विदुषी = विद्वान स्त्री। दर्जा = कक्षा।

[पृष्ठ-70] : मेस = भोजनालय। सीनियर = श्रेष्ठ। प्रभाती = प्रभात के समय गाया जाने वाला गीत। प्रतिष्ठित होना = सम्मानित होना। तलाशी लेना = खोजना। अपराधी = दोषी।

[पृष्ठ-71] : प्रचार-प्रसार = बढ़ावा देना। उपरांत = बाद में। सत्याग्रह = सच्चे मार्ग पर चलने का निश्चय करना। संघर्ष करना = मुकाबला करना। पुरस्कार = इनाम। पदक = मैडल। नक्काशीदार = बेल-बूटे के काम से युक्त।

[पृष्ठ-72] : फूल = ताँबे व रांगे के मेल से बनी एक मिश्र धातु। अवकाश = समय, अवसर। सांप्रदायिकता = संप्रदाय (जाति) के नाम पर भेदभाव। विवाद = झगड़ा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

[पृष्ठ-73] : संस्कार = गुण। कंपाउंड = क्षेत्र, स्थान। निराहार = बिना कुछ खाए-पिए। नेग = सामाजिक रीति-रिवाज़ों के अंतर्गत दी जाने वाली भेंट। यूनिवर्सिटी = विश्वविद्यालय। वाइस-चांसलर = कुलपति। तात्पर्य = अर्थ। कथा = कहानी।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

HBSE 9th Class Hindi वाख Textbook Questions and Answers

वाख के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi  प्रश्न 1.
‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है ?
उत्तर-
‘रस्सी’ यहाँ जीवन को चलाने के साधन व उपाय के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवयित्री की दृष्टि में वह नाशवान व कमजोर है।

वाख In Hindi HBSE 9th Class  प्रश्न 2.
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर-
कवयित्री की दृष्टि में जीवन कच्ची मिट्टी के सकोरे के समान है, जो पानी की बूँद लगते ही नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार सांसारिक साधनों से, जो नश्वर एवं क्षणभंगुर हैं, मोक्ष प्राप्त करने के सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।

HBSE 9th Class Chapter 10 वाख प्रश्न 3.
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
वस्तुतः कवयित्री आत्मा का घर ईश्वर को मानती है। जब आत्मा यह जान लेती है कि संसार उसका वास्तविक घर नहीं है, तब वह संसार को त्यागकर ईश्वर के पास अर्थात अपने घर जाने की इच्छा व्यक्त करती है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ललद्यद ने बताया कि जब उसने आत्मालोचन किया तो उसने पाया कि उसके जीवन में सत्कर्म रूपी कुछ भी धन नहीं था और न ही उसके जीवन में ईश्वर-भक्ति रूपी पूँजी थी।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने बताया है कि सांसारिक सुखों का भोग करने से तुझे कुछ नहीं मिलेगा। इससे जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा। दूसरी ओर, यदि कुछ खाएगा नहीं, और केवल धन-दौलत को एकत्रित करेगा तो तुझे धन-दौलत का अहंकार हो जाएगा। अतः सांसारिक साधन या धन-दौलत का भोग करना या उनको जोड़ना, दोनों ही मानव-मुक्ति के मार्ग की बाधाएँ हैं।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललघद ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर-
कवयित्री ने बताया है कि इंद्रियों का निग्रह करके समभावना रखने से ही बंद द्वार की साँकल खुल सकेगी अर्थात समभावना रखने से चेतना व्यापक होगी और मोक्ष के द्वार खुल सकेंगे।

प्रश्न 6.
ईश्वर-प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है ?
उत्तर-
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

प्रश्न 7.
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ज्ञानी से कवयित्री का अंभिप्राय आत्मज्ञानी है। आत्मज्ञानी व्यक्ति ही ईश्वर को पहचान सकता है।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-
(क),आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर-
(क) आज हमारे समाज में जो भेदभाव दिखाई देता है उसके कारण देश और समाज में अनेक हानियाँ हो रही हैं।
(1) समाज में सांप्रदायिक भेदभाव बढ़ रहा है।
(2) आए दिन धर्म व जाति को लेकर दंगे व झगड़े होते हैं।
(3) इससे देश की एकता कमजोर पड़ रही है।
(4) जनता का ध्यान विकास की अपेक्षा अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने की ओर लग जाता है।
(5) समाज में भाईचारे व सह-अस्तित्व की भावना को भी ठेस पहुंचती है।

(ख) (1) हमें सबको समान समझने की भावना को धारण करना चाहिए।
(2) अन्य धर्मों व धार्मिक ग्रंथों का आदर करना चाहिए। इससे आपसी भेदभाव की भावना कम होगी।
(3) दूसरों के सुख-दुःख व तीज-त्योहारों में भाग लेना चाहिए।
(4) सबको ईश्वर की संतान समझकर समानता का व्यवहार करना चाहिए।

पाठेतर सक्रियता

भक्तिकाल में ललयद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त-कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
ललयद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi वाख Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति के लिए कौन-सा मार्ग बताया है ?
उत्तर-
कवयित्री ने बताया है कि आत्मा परमात्मा का ही अभिन्न अंग है। इसलिए परमात्मा की प्राप्ति के लिए दिल में बेचैनी का बना रहना स्वाभाविक है। उनके अनुसार सांसारिक उपाय नश्वर हैं। इनसे ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। जीवन में सहज त्याग और भोग में अनासक्ति आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपने आप को जानना अर्थात् आत्मज्ञान-प्राप्ति का मार्ग मोक्ष ही ईश्वर-प्राप्ति का उचित मार्ग है। .

प्रश्न 2.
कवयित्री के अनुसार ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में कौन-कौन-सी प्रमुख बाधाएँ हैं ?
उत्तर-
कवयित्री ईश्वर-प्राप्ति के लिए सहज भक्ति मार्ग का समर्थन करती है। इसलिए वह सांसारिक आडंबरों, हठयोग आदि को ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में बाधा बताती है। कवयित्री के अनुसार अहंकार ईश्वर-प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधा है। इसी प्रकार सांप्रदायिक भेदभाव में फँसा व्यक्ति भी मोक्ष या ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 3.
‘वाख’ कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने स्पष्ट किया है कि सांसारिक जीवन नश्वर है। सांसारिक मोह में लीन रहने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। किन्तु जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचान लेती है अर्थात् जब उसे आत्मज्ञान हो जाता है, तब वह ईश्वर से मिलने के लिए बेचैन हो उठती है। सहज भाव की भक्ति से ही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। योग, त्याग या हठयोग से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ललघद किस भाषा की कवयित्री थी ?
(A) पंजाबी
(B) मराठी
(C) कश्मीरी
(D) हरियाणवी
उत्तर-
(C) कश्मीरी

प्रश्न 2.
ललघद किस काव्यधारा की कवयित्री थी ?
(A) संत काव्यधारा की
(B) सगुण भक्ति काव्यधारा की
(C) आधुनिक काव्यधारा की
(D) छायावादी काव्यधारा की
उत्तर-
(A) संत काव्यधारा की

प्रश्न 3.
कवयित्री ललघद का जन्म कब हुआ ?
(A) सन् 1236 में
(B) सन् 1320 में
(C) सन् 1326 में
(D) सन् 1400 में
उत्तर-
(B) सन् 1320 में

प्रश्न 4.
ललघद का जन्म किस जिले में हुआ था ?
(A) जम्मू में
(B) पापोर जिले में
(C) श्रीनगर में
(D) उधमपुर जिले में
उत्तर-
(B) पांपोर जिले में

प्रश्न 5.
कवयित्री ललघद का देहांत कब हुआ था ?
(A) सन् 1361 में
(B) सन् 1371 में
(C) सन् 1381 में
(D) सन् 1391 में
उत्तर-
(D) सन् 1391 में

प्रश्न 6.
ललयद किस काव्य शैली में लिखती थी ?
(A) दोहा शैली में
(B) चौपाई शैली में
(C) वाख शैली में
(D) मुक्तक शैली में
उत्तर-
(C) वाख शैली में

प्रश्न 7.
ललयद के वाखों का संबंध किससे है ?
(A) धन से
(B) ईश्वर से
(C) जीवन से
(D) प्रकृति से
उत्तर-
(C) जीवन से

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प्रश्न 8.
ललघद ने किसका कड़ा विरोध किया था ?
(A) धार्मिक आडंबरों का
(B) लालची प्रवृत्ति का
(C) झूठ का
(D) रूढ़ियों का
उत्तर-
(A) धार्मिक आडंबरों का

प्रश्न 9.
ललयद ने किस मार्ग पर चलने का उपदेश दिया ?
(A) धर्म के मार्ग पर
(B) भक्ति के मार्ग पर
(C) सांसारिक मार्ग पर
(D) योग के मार्ग पर
उत्तर-
(B) भक्ति के मार्ग पर

प्रश्न 10.
कवयित्री ललबद ने जीवन में सबसे मूल्यवान किसे बताया ?
(A) प्रेम को
(B) त्याग को
(C) वैराग्य को
(D) साधना को
उत्तर-
(A) प्रेम को

प्रश्न 11.
ललघद का काव्य किन तत्त्वों से प्रेरित था ?
(A) जीवन मूल्य
(B) लोक जीवन
(C) सामाजिक मूल्य
(D) वैज्ञानिक
उत्तर-
(B) लोक जीवन

प्रश्न 12.
ललधद का काव्य किस भाषा का स्तंभ माना जाता है ?
(A) पंजाबी भाषा का
(B) आधुनिक कश्मीरी भाषा का
(C) मराठी भाषा का
(D) उड़िया भाषा का
उत्तर-
(B) आधुनिक कश्मीरी भाषा का

प्रश्न 13.
‘खा-खाकर ………………… द्वार की।’ पद्यांश का प्रमुख विषय है-
(A) भक्ति-भावना
(B) बाह्याडंबरों का विरोध
(C) लालच
(D) जातिगत भेदभाव
उत्तर-
(B) बाह्याडंबरों का विरोध

प्रश्न 14.
कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति के अपने प्रयासों की उपमा किससे की है ?
(A) कच्चे सकोरे से
(B) फूलों से
(C) पक्की रस्सी से
(D) सोने के बर्तन से
उत्तर-
(A) कच्चे सकोरे से

प्रश्न 15.
कवयित्री को कौन-सी चाह घेरे हुई थी ?
(A) घर जाने की
(B) बगीचे में जाने की
(C) देहली जाने की
(D) सैर करने की
उत्तर-
(A) घर जाने की

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प्रश्न 16.
कवयित्री ने मनुष्य को किस स्थिति में अहंकारी होने की बात कही है ?
(A) न सोने की
(B) सैर न करने की
(C) न खाने की
(D) न मरने की
उत्तर-
(C) न खाने की

प्रश्न 17.
कवयित्री के अनुसार समभावी कैसे बन सकते हैं ?
(A) सबसे समान व्यवहार करने से
(B) सब कुछ खाने से
(C) समान भाव से सोचने से
(D) समान भाव से सोने से
उत्तर-
(A) सबसे समान व्यवहार करने से

प्रश्न 18.
‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ में किस द्वार की ओर संकेत किया गया है ?
(A) जेल के द्वार
(B) मन रूपी द्वार
(C) घर के द्वार
(D) पाठशाला के द्वार
उत्तर-
(B) मन रूपी द्वार

प्रश्न 19.
‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ पंक्ति में साँकल से तात्पर्य है-
(A) मोहमाया के बंधन
(B) प्रेम के बंधन
(C) लालच
(D) भ्रम
उत्तर-
(A) मोहमाया के बंधन

प्रश्न 20.
‘आई सीधी राह से’ में आने से क्या तात्पर्य है ?
(A) जन्म लेना
(B) आकाश से नीचे उतरना
(C) संसार में प्रवेश करना
(D) परमात्मा के घर से आना
उत्तर-
(A) जन्म लेना

प्रश्न 21.
‘आई सीधी राह ………. क्या उतराई’ पद में माँझी किसे कहा गया है ?
(A) नाविक को
(B) मनुष्य को
(C) ईश्वर को
(D) पति को
उत्तर-
(C) ईश्वर को

प्रश्न 22.
‘जेब टटोली, कौड़ी न पाई।’ में ‘कौड़ी’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?
(A) एक सिक्के के लिए
(B) धन के लिए
(C) रुपए के लिए
(D) सद्कर्म के लिए
उत्तर-
(D) सद्कर्म के लिए

प्रश्न 23.
ललधद के अनुसार शिव (परमात्मा) कहाँ बसता है ?
(A) आकाश में
(B) हर स्थान में
(C) पर्वत पर
(D) मंदिर में
उत्तर-
(B) हर स्थान में

प्रश्न 24.
कवयित्री ने ज्ञानी किसे कहा है ?
(A) जो ज्ञान रखता हो
(B) जो शास्त्र पढ़ता हो
(C) जो स्वयं को जानता हो
(D) जो दूसरों को जानता हो
उत्तर-
(C) जो स्वयं को जानता हो

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प्रश्न 25.
ललघद ने ईश्वर की पहचान क्या बताई है ?
(A) आत्मा की पहचान
(B) संसार की पहचान
(C) अच्छे-बुरे की पहचान
(D) छोटे-बड़े की पहचान
उत्तर-
(A) आत्मा की पहचान

प्रश्न 26.
‘रस्सी कच्चे धागे की’ कहने के पीछे कवयित्री का क्या आशय है ?
(A) सांसें
(B) धागा कच्चा है
(C) धागा कपास का है
(D) कमजोर साथी
उत्तर-
(A) सांसें

वाख अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे ॥ [पृष्ठ 97]

शब्दार्थ-रस्सी कच्चे धागे = कमजोर व नाशवान सहारे। नाव = जीवन रूपी नाव । भवसागर = संसार रूपी सागर । सकोरा = मिट्टी का बना छोटा कटोरा । हूक = पीड़ा।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश का भाषा-वैशिष्ट्य स्पष्ट कीजिए।
(6) ‘घर जाने की चाह है घेरे’ में कौन-से ‘घर’ की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद।
कविता-वाख।

(2) व्याख्या कवयित्री का कथन है कि मैं अपनी जीवन रूपी नाव को कच्चे धागों के समान अत्यंत क्षीण एवं कमजोर साधनों से खींच रही हूँ अर्थात संसार रूपी सागर से जीवन रूपी नाव को सांसारिक एवं नश्वर उपायों द्वारा पार ले जाने का प्रयास कर रही हूँ। न जाने ईश्वर कब मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी जीवन रूपी नाव को संसार रूपी सागर से पार करेंगे। मेरा यह जीवन मिट्टी के सकोरे के समान नाशवान एवं क्षणभंगुर है। जैसे कच्ची मिट्टी का सकोरा पानी लगने से गलकर टूट जाता है; ऐसा ही मेरा जीवन नश्वर है। इसलिए जीवन की इस नाव को खींचने के मेरे सारे प्रयास व्यर्थ प्रतीत होते हैं। संसार एवं जीवन की नश्वरता को देखकर मेरे हृदय में एक तीव्र पीड़ा उठती रहती है और अपने घर अर्थात ईश्वर के पास जाने की इच्छा सदैव घेरे रहती है।
भावार्थ-कवयित्री के कहने का भाव है कि मानव-जीवन नश्वर एवं क्षणिक है। उसके द्वारा संसार रूपी सागर को तब तक पार नहीं किया जा सकता जब तक ईश्वर की कृपा न हो।

(3) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने मानव-जीवन की तुलना कच्चे धागे एवं कच्ची मिट्टी के सकोरे से करके उसकी नश्वरता एवं क्षणभंगुरता को व्यक्त किया है। साथ ही कवयित्री ने प्रभु से अपनी मुक्ति हेतु प्रार्थना की है। प्रभु-मिलन की आत्मा की व्याकुलता को भी उद्घाटित किया गया है।

(4) (क) प्रस्तुत पद्य ‘वाख’ शैली में रचित है।
(ख). ‘नाव’ तथा ‘भवसागर’ में रूपक अलंकार है।
(ग) ‘रह-रह’ में वीप्सा अलंकार का प्रयोग है।
(घ) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) संपूर्ण पद में संगीतात्मकता है।

(5) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। कवयित्री ने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहीं अलंकारों का उचित प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। ‘वाख’ शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

(6) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने आत्मा के वास्तविक घर परमात्मा के पास जाने का संकेत किया है।

2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की। [पृष्ठ 97]

शब्दार्थ-अहंकारी = घमंडी। सम (शम) = अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह (इंद्रियों को उनके विषयों से विमुख करके ईश्वर में लगाना)। समभावी = समानता की भावना। खुलेगी साँकल बंद द्वार की = चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होना।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
(5) व्यक्ति समभावी कैसे बन सकता है ?
(6) ‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस जीवन में सांसारिक सुखों को भोगने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और यदि तू सांसारिक वस्तुओं अर्थात धन-दौलत को जोड़ेगा तो तेरे मन में धन-दौलत का अहंकार उत्पन्न हो जाएगा। कहने का अभिप्राय है कि सांसारिक सुखों को भोगना व धन-दौलत को एकत्रित करना, दोनों ही मनुष्य की मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं। कवयित्री ने इनसे बचने के उपाय की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मनुष्य को अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करना चाहिए। सांसारिक साधनों के प्रति समभाव बनाए रखना चाहिए, तभी मनुष्य समभावी बन सकता है। ऐसा करने पर उसकी चेतना का विकास होगा और उसे मुक्ति प्राप्त होगी अर्थात मनुष्य को सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्ति मिल सकेगी।
भावार्थ-कवयित्री के कहने का अभिप्राय है कि मानव को सुख-दुख में समभाव बनाए रखना चाहिए। इसमें ही उसकी मुक्ति संभव है।

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(3) मनुष्य को समभाव रखते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके उन्हें ईश्वर की भक्ति में लगाने का प्रयास करना चाहिए, तभी वह मोक्ष को प्राप्त कर सकेगा।

(4) (क) ‘वाख ‘शैली का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) ‘खा-खाकर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(घ) ‘सम’ में यमक अलंकार है।
(ङ) ‘बंद द्वार’ अवरुद्ध चेतना का प्रतीक है।

(5) कवयित्री के अनुसार सम खाने से अर्थात अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर ही व्यक्ति समभावी बन सकता है।

(6) प्रस्तुत पंक्ति में बताया गया है कि समभाव अपनाने से मनुष्य की चेतना का विकास होगा और सांसारिक मोह-माया के बंधन से मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होगा।

3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूं, क्या उतराई ? [पृष्ठ 97]

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शब्दार्थ-सुषुम-सेतु = सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल (हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी सुषुम्ना है, जो नासिका के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में स्थित है)। जेब टटोली = आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई = कुछ भी प्राप्त न हुआ। माझी = नाविक, ईश्वर, गुरु। उतराई = सत्कर्म रूपी मेहनताना।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) जेब टटोलना का क्या तात्पर्य है ?
(6) प्रस्तुत पद में किस भक्ति-पद्धति का विरोध किया गया है ?
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) व्याख्या प्रस्तुत पद में कवयित्री ने बताया है कि प्राणी इस संसार में सीधे मार्ग से आता है। उस समय उसके मन में किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं होती, किन्तु संसार में आकर वह ईश्वर-विमुख मार्ग पर चलने लगता है और अंत तक उसी मार्ग पर चलता रहता है। कवयित्री पुनः कहती है कि मैं हठयोग आदि विभिन्न उपायों के माध्यम से ईश्वर-प्राप्ति का प्रयास करती रही, किन्तु संपूर्ण जीवन बीत गया, पर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात उसने अपनी जेब टटोली अर्थात आत्मालोचन किया तो पता चला कि मेरे पास तो अपने माझी (गुरु, ईश्वर व नाविक) को देने के लिए कुछ भी नहीं है।
भावार्थ-कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य इस संसार से अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता। इसलिए उसे सांसारिक लोभ अथवा मोह में नहीं बँधना चाहिए।

(3) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने मानव को सीधे मार्ग अर्थात ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। मानव को ईश्वर-प्राप्ति का सहज मार्ग अपनाना चाहिए। आत्मालोचन भी अनिवार्य है, क्योंकि इससे अपने हृदय में विद्यमान गुण-दोषों का बोध हो जाता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है। (ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। (ग) ‘जेब टटोली’ एवं ‘कौड़ी न पाई’ पदों का लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनता है। (घ) स्वर-मैत्री का प्रयोग है।

(5) ‘जेब टटोलना’ का तात्पर्य आत्मालोचन करना है, क्योंकि आत्मालोचन से ही मनुष्य अपने गुण-दोषों को पहचान सकता है।

(6) इस पद में कवयित्री ने हठयोग-पद्धति का विरोध किया है।

4. थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान ॥ [पृष्ठ 98]

शब्दार्थ-थल-थल = सब जगह। शिव = ईश्वर। साहिब = ईश्वर, स्वामी।

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प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर कहाँ बसता है ? ।
(6) इस पद में ज्ञानी किसे कहा गया है ?
(7) इस पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने ईश्वर के सर्वव्यापक रूप को पहचानने का उपदेश दिया है।

(3) व्याख्या कवयित्री का कथन है कि ईश्वर (शिव) हर स्थान में विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी के हृदय में उसका निवास है। इसलिए हिंदुओं व मुसलमानों के ईश्वर अलग-अलग नहीं हैं। ईश्वर को लेकर हमें ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। जो आत्मालोचन द्वारा स्वयं को जान लेता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। अपने-आपको अर्थात आत्मा को पहचानना ही ईश्वर को पहचानना है।
भावार्थ-कहने का भाव है कि ईश्वर सर्वव्यापक है और आत्मज्ञान से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है।
(ख) ‘थल-थल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त है।
(घ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर प्रत्येक स्थान पर बसता है। उसे प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव किया जा सकता है।

(6) जिसे आत्मज्ञान हो, उसे ही कवयित्री ने ज्ञानी कहा है। आत्मज्ञानी ही ईश्वर को पहचान सकता है।

(7) कवयित्री ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार ईश्वर जल-थल और हर तीर्थ स्थान में भी रहता है। आत्मज्ञान के द्वारा ईश्वर को जानने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है। अतः हमें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यही मानव-जीवन का परम लक्ष्य है।

वाख Summary in Hindi

वाख कवयित्री-परिचय

प्रश्न-
संत-कवयित्री ललघद का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संत-कवयित्री ललद्यद का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ललद्यद का नाम कश्मीरी संत कवियों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे अपने युग की कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत-कवयित्री थीं। उनका जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पांपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन के विषय में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। अन्य संत कवियों की भाँति ही उनके जीवन के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। ललधद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनकी मृत्यु सन् 1391 के लगभग स्वीकार की गई है।

2. प्रमुख रचनाएँ-ललद्यद की सभी काव्य-रचनाएँ ‘वाख’ शीर्षक के अंतर्गत उपलब्ध हैं। वस्तुतः ‘वाख’ उनकी काव्य-शैली है। जिस प्रकार हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाइयाँ तथा रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं; उसी प्रकार ललद्यद के ‘वाख’ प्रसिद्ध हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ललद्यद के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह तत्कालीन जीवन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपने वाखों के माध्यम से जाति एवं धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी है। उनके काव्य में समाज में एकता स्थापित करने की भावना पर बल दिया गया है-

“थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।”

उनकी प्रवृत्ति खंडनात्मक न होकर मंडनात्मक थी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उन्होंने लोकमंगल की भावना को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का सर्वत्र विरोध किया है और प्रेम को सबसे बड़ा जीवन-मूल्य घोषित किया है।
संत-कवयित्री ललद्यद ने आत्मज्ञान को प्रमुखता दी है, क्योंकि आत्मज्ञान से ही स्वयं को एवं परमात्मा को जाना जा सकता है-

“ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान”

4. भाषा-शैली-संत-कवयित्री ललद्यद की रचनाएँ लोकजीवन से संबंधित हैं। इसलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फारसी के स्थान पर लोकभाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। उनके काव्य की भाषा में लोकजीवन से संबंधित लोकभाषा के अनेक शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहाँ लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करके उसे सारग्राही एवं रोचक भी बनाया है। सदियों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में ललद्यद की रचनाएँ जीवित हैं। विद्वान आधुनिक कश्मीरी भाषा के उद्भव एवं विकास का आधार-स्तंभ उनकी वाणी को मानते हैं।

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वाख कविता का सार/काव्य-परिचय

वाख

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘वाख’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
ललद्यद की प्रस्तुत काव्य-रचना ‘वाख’ में मानव-जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला गया है। उनकी दृष्टि में मानव-जीवन कच्चे धागे के समान कमजोर है। वह कभी भी टूट सकता है। मानव-जीवन की दशा कच्चे सकोरे की भाँति है, जो पानी लगने से नष्ट हो जाता है। दूसरे पद में कवयित्री ने अंतःकरण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर बल दिया है और जीवन में समभाव बनाए रखना आवश्यक बताया है। इसी से मानव-जीवन का कल्याण संभव है। तीसरे पद में कवयित्री ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए हठयोग जैसी भक्ति-पद्धति की अपेक्षा सहज एवं स्वाभाविक भक्ति-पद्धति पर बल दिया है। अंतिम पद में ललद्यद ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ईश्वर कण-कण में बसता है। उसकी दृष्टि में हिंदू और मुसलमान आदि का कोई भेदभाव नहीं है। सब ईश्वर की संतान हैं। आत्मज्ञान से ही हम स्वयं को और ईश्वर को पहचान सकते हैं। अतः स्पष्ट है कि भक्तिकालीन अन्य संत कवियों की भाँति ही ललद्यद का काव्य भी मानव-जीवन से जुड़ा हुआ है।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

HBSE 9th Class Hindi नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया Textbook Questions and Answers

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया?
उत्तर-
बालिका मैना ने सर्वप्रथम तर्क देते हुए सेनापति ‘हे’ से कहा कि इस मकान को गिराने में आपका क्या उद्देश्य है ? दूसरा तर्क देते हुए मैना ने कहा कि जिन लोगों ने आपके विरुद्ध शस्त्र उठाए थे, वे दोषी हैं; परंतु इस जड़ पदार्थ मकान ने क्या अपराध किया है ? इसके अतिरिक्त अंतिम बात जो मैना ने कही और जो सेनापति ‘हे’ को अत्यधिक प्रभावित कर गई वह थी कि मैना और ‘हे’ की बेटी ‘मेरी’ दोनों सखियाँ थीं और दोनों सहपाठिनें भी थीं। ‘मेरी’ का एक पत्र उस समय भी उसके पास था। यह सब सुनकर सेनापति ‘हे’ उसके महल की रक्षा का प्रयास करने लगा था।
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नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया का सारांश HBSE 9th Class प्रश्न 2.
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों?
उत्तर-
मैना उस मकान में रहती थी। उसके लिए वह केवल मकान नहीं, अपितु उसका घर था जिसमें पलकर वह बड़ी हुई थी। इसलिए उस मकान के प्रति उसके मन में अथाह प्रेम था। यही कारण था कि वह उस मकान को बचाना चाहती थी। दूसरी ओर, अंग्रेज़ अधिकारी नाना साहब से बदला लेने के लिए उससे संबंधित हर वस्तु को मिटा देना चाहते थे, क्योंकि उनके मन में बदले की आग जल रही थी। वे नाना साहब को तो गिरफ्तार न कर सके थे, किंतु उनके वंश के प्राणियों और मकान आदि को नष्ट करके अपने गुस्से व घृणा को शांत करना चाहते थे।

Class 9 Kshitij Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया-भाव के क्या कारण थे?
उत्तर-
वस्तुतः सर टामस ‘हे’ को अंग्रेज़ सरकार का आदेश था कि नाना साहब का कोई वंशज मिल जाए तो उसे मार डाला जाए। उसकी सारी संपत्ति को भी नष्ट कर दिया जाए। अंग्रेज़ होने के नाते उसे भी नाना साहब पर क्रोध था, किंतु देवी मैना ने उसे बताया कि उसकी बेटी ‘मेरी’ और उसके बीच मित्रता का संबंध था और वे दोनों एक-दूसरे को बहुत चाहती थीं। उसे ‘मेरी’ की मृत्यु के समाचार से बहुत दुःख हुआ था। “आप भी हमारे यहाँ पहले कई बार आ चुके हैं। उसका एक पत्र मेरे पास अब तक है।” यह सब सुनकर सेनापति ‘हे’ अत्यंत प्रभावित हुआ तथा मैना के प्रति दया के भाव दिखाने लगा और कहा कि यद्यपि मैं सरकारी नौकर हूँ और सरकार की आज्ञा पालन करना मेरा कर्तव्य है, किंतु फिर भी मैं तुम्हारी रक्षा करने का प्रयास करूँगा।

Class 9th Kshitij Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा.पूर्ण न होने दी?
उत्तर-
एक बार अर्द्ध रात्रि की चाँदनी में देवी मैना स्वच्छ एवं उज्ज्वल वस्त्र पहनकर नाना साहब के महल के मलबे के ढेर पर बैठी रो रही थी। उसकी आवाज सुनकर अनेक अंग्रेज़ सैनिक और जनरल अउटरम वहाँ आ पहुँचे। जनरल अउटरम ने उसे पहचान लिया और कहा कि यह नाना साहब की बेटी मैना है। उसने उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया। तब मैना ने कहा कि मुझे कुछ समय दीजिए, जिसमें आज मैं यहाँ जी भरकर रो लूँ। यही उसकी अंतिम इच्छा थी, किंतु पाषाण हृदय जनरल अउटरम ने उसे ऐसा नहीं करने दिया क्योंकि उसे भय था कि कहीं मैना फिर आलोप न हो जाए और उसकी बदनामी होगी कि वह एक बालिका को गिरफ्तार नहीं कर सका। ऐसा करके वह सरकार की नज़रों में भी अच्छा बनना चाहता था।

Class 9 Hindi Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
बालिका मैना एक वीर और देशभक्त बालिका थी। वह इतनी बड़ी संख्या में अंग्रेज़ी सेना की उपस्थिति में तनिक नहीं डरी। उसके मन में अपने देश और अपने घर के प्रति अत्यधिक प्रेम था। इसलिए उसने अपने अकाट्य तर्कों के बल पर सेनापति ‘हे’ को भी अपने मकान और जीवन की रक्षा के लिए सहमत कर लिया था। कहने का भाव यह है कि बालिका मैना एक वीर, निडर, देशभक्त और तर्कशील कन्या थी। यही उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं जिन्हें हम अपने जीवन में अपनाना चाहेंगे ताकि हम भी उसकी भाँति वीर, निडर, देशभक्त और तर्कशील कहलवा सकें।

Class 9 Hindi Shitish Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 6.
‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था- ‘बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है?
उत्तर-
पत्र के ‘भारत सरकार’ शब्द से आशय है-तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी, जो भारत में शासन चला रही थी, वह नाना साहब को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी।

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रचना और अभिव्यक्ति

Chapter 5 Hindi Class 9 Kshitij HBSE प्रश्न 7.
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?
उत्तर-
कहा गया है कि जो शक्ति तोप और तलवार में नहीं होती, वह शक्ति साहित्य में होती है। जो काम हम शक्ति का भय दिखाकर नहीं कर सकते, वही कार्य साहित्य सहज ही कर डालता है। कहने का भाव यह है कि ऐसे लेखन का जन-साधारण पर बहुत प्रभाव पड़ता है। वे देवी मैना जैसी कन्या के महान त्याग और बलिदान से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े होंगे अथवा जो पहले से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले रहे होंगे, उन्हें नई प्रेरणा व शक्ति मिली होगी और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की गति को तीव्र कर दिया होगा जिससे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ऐसे लेखन की स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका रही होगी।

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की यह खबर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है, इसलिए विद्यार्थी इसे स्वयं तैयार करेंगे।

प्रश्न 9.
इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में अधिकांश खबरें रिपोर्ताज की शैली में लिखी जाती हैं। आप
(क) कोई दो खबरें किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
(ख) अपने आसपास की किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज शैली में कीजिए।
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं।

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प्रश्न 10.
आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बहादुरी का काम किया हो।
उत्तर-
दिनेश मेरे स्कूल की छठी कक्षा का विद्यार्थी है। उसे इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर बहादुरी के लिए राष्ट्रपति ने पुरस्कार दिया है, जिसे सुनकर न केवल नगर के अपितु पूरे राज्य के लोग उस पर गर्व करने लगे हैं। हुआ यह था कि एक दिन जब वह स्कूल से लौट रहा था तो एक घर में रोने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। ये आवाजें सुनकर उसने उस घर की घंटी बजाई तो भयंकर शक्ल वाला आदमी उसे डाँटने लगा। दिनेश ने यह समझ लिया था कि यह कोई चोर है। उसने कहा अंकल मुझे बड़ी प्यास लगी है, मुझे पानी पीना है। पानी के बहाने वह मना करने पर भी अंदर चला गया। उसने वहाँ देखा कि दो आदमी मकान मालिक की पत्नी का गला दबा रहे थे। दिनेश ने अपनी जान खतरे में डालकर एक आदमी की पीठ पर जोर से मुक्का मारा। वह आदमी औरत को छोड़कर उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा, तब तक बाहर खड़ा आदमी भी दिनेश को पकड़ने में उसकी मदद करने के लिए आ गया, किंतु दिनेश इतनी तेजी से दौड़ा था कि उनकी पकड़ में नहीं आया और बाहर आकर उसने ‘चोर-चोर’ कहकर शोर मचा दिया। उसकी आवाज सुनकर रास्ते पर चलने वाले और आस-पड़ोस के लोग एकत्रित हो गए और चोरों पर टूट पड़े। दो चोर भागने में सफल हो गए, किंतु तीसरे को पकड़ लिया गया और पुलिस के हवाले कर दिया। इससे उस महिला की जान बच गई। दिनेश को उसकी इस बहादुरी के लिए पुरस्कार मिला।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11.
भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इस पाठ में हिंदी गय का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिंदी रूप में लिखिए।
“इके बाद कराल रूपधारी जनरल अउटरम भी वहाँ पहुँच गया। वह उसे तुरंत पहिचानकर बोला-“ओह! यह नाना की लड़की मैना है!” पर वह बालिका किसी ओर न देखती थी और न अपने चारों ओर सैनिकों को देखकर ज़रा भी डरी। जनरल अउटरम ने आगे बढ़कर कहा,-“अंगरेज़ सरकार की आज्ञा से मैंने तुम्हें गिरफ्तार किया।”
उत्तर-
इसके पश्चात भयंकर रूपधारी अउटरम भी वहाँ पहुँच गया। वह उसे तुरंत पहचान कर बोला, “ओह! यह नाना की बेटी मैना है। पर वह बालिका किसी की ओर नहीं देख रही थी और न ही चारों ओर खड़े सैनिकों को देखकर ज़रा भी डरी। जनरल अउटरम ने आगे बढ़कर कहा,-“अंग्रेज सरकार की आज्ञा से मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूँ।”

पाठेतर सक्रियता

अपने साथियों के साथ मिलकर बहादुर बच्चों के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तकों की सूची बनाइए।
इन पुस्तकों को पढ़िए-
‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाएँ’-राजम कृष्णन, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
‘1857 की कहानियाँ’-ख्वाजा हसन निज़ामी, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली।
नोट-विद्यार्थी यह कार्य स्वयं करेंगे।
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
आज़ाद भारत में दुर्गा भाभी को उपेक्षा और आदर दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसों से तोलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब में उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हज़ार रुपए भेंट किए। भाभी ने वे रुपए वहीं वापस कर दिए। कहा-“जब हम आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी। केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व निछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूँ कि मुझे जो 51 हज़ार रुपए दिए गए हैं, उस धन से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।”

मुझे याद आता है सन 1937 का ज़माना, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाज़ियाबाद तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की थी। भाभी ने तार से उत्तर दिया-“चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अतः लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

मुल्क के स्वाधीन होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर ही बनी रहीं। शायद इसलिए अपने जीवन का शेष हिस्सा नई पीढ़ी के निर्माण के लिए अपने विद्यालय को उन्होंने समर्पित कर दिया।

(1) स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान किस प्रकार किया गया ?
(2) दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपए लेने से इंकार क्यों कर दिया ?
(3) दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से दूर क्यों रहीं ?
(4) आज़ादी के बाद उन्होंने अपने को किस प्रकार व्यस्त रखा ?
(5) दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता आप अपनाना चाहेंगे?
उत्तर-
(1) स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान उन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा 51 हजार रुपए भेंट करके व अनेक बड़े नेताओं द्वारा चुनाव लड़ने के लिए निमंत्रण देकर किया गया।
(2) दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपए लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि उसने स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तिगत लाभ के लिए भाग नहीं लिया था। इन रुपयों से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, जिसको नई पीढ़ी के लोग पढ़कर क्रांतिकारी आंदोलन से अवगत होंगे।
(3) दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से इसलिए दूर रहना चाहती थी ताकि वह अपने जीवन का शेष समय नई पीढ़ी के निर्माण में लगा सके।
(4) आजादी के पश्चात उन्होंने अपने-आपको व्यस्त रखने के लिए एक विद्यालय आरंभ किया था जहाँ वह नई पीढ़ी के निर्माण के लिए रात-दिन लगी रहती थी।
(5) दुर्गा भाभी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, अपितु देश को स्वतंत्र करवाने के लिए भाग लिया था। इसलिए हमें भी सर्वप्रथम देश के हित की बात सोचनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत हित की।

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यह भी जानें

हिंदू-पंच-अपने समय की चर्चित पत्रिका हिंदू पंच का प्रकाशन 1926 में कलकत्ता से हुआ। इसके संपादक थे-ईश्वरीदत्त शर्मा। 1930 में इसका ‘बलिदान’ अंक निकला जिसे अंग्रेज़ सरकार ने तत्काल जब्त कर लिया। चाँद के ‘फाँसी’ अंक की तरह यह भी आज़ादी का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। इस अंक में देश और समाज के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले व्यक्तियों के बारे में बताया गया है।

HBSE 9th Class Hindi नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’, नामक पाठ के उद्देश्य (प्रतिपाद्य) को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही यह पाठ महान उद्देश्य को लेकर लिखा गया है। मातृभूमि की स्वतंत्रता और उसकी रक्षा के लिए जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए, उनके जीवन का उत्कर्ष हमारे लिए गौरव और सम्मान की बात है। बहुत-से ऐसे वीर पुरुष व महिलाएँ हैं जिन्होंने अपना सब कुछ देश को स्वतंत्र करवाने में लगा दिया था। यहाँ तक कि अपने प्राणों की बाजी भी लगा दी। किंतु इतिहास में उन्हें कहीं कोई स्थान नहीं मिला। प्रस्तुत पाठ में नाना साहब की बेटी मैना के बलिदान का उल्लेख करके उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान व्यक्त करना ही इसका प्रमुख लक्ष्य है। मैना चाहती तो समझौता करके आराम का जीवन जी सकती थी, किंतु वह एक वीर बालिका थी। उसने अंग्रेज़ों से जरा भी भय अनुभव नहीं किया और न ही अपने प्राणों की भीख ही माँगी। उसे अपने देश और अपनी आन से पूर्ण लगाव था। इसलिए उसने एक वीर बालिका की भाँति अपने जीवन का बलिदान किया। लेखिका ने इस पाठ के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को अपने देश को आजाद करवाने वाले शहीदों के प्रति श्रद्धा एवं आदर का भाव रखने की प्रेरणा दी है। यही इस पाठ का प्रमुख लक्ष्य है जिसे व्यक्त करने में लेखिका को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है।

प्रश्न 2.
‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ नामक पाठ को पढ़ने पर अंग्रेज़ों के प्रति जो आपकी धारणा बनती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वर्णन के साथ-साथ देवी मैना के महान त्याग और बलिदान का उल्लेख किया गया है। इस पाठ में बताया गया है कि कानपुर की लड़ाई में असफल होने पर नाना साहब इतनी जल्दी में वहाँ से भाग निकले कि अपनी बेटी मैना को अपने साथ न ले जा सके। उनके जाने के बाद कानपुर के विद्रोह का दमन करने के पश्चात तत्कालीन अंग्रेज जनरल अउटरम ने नाना साहब के बिठूर वाले भवन को तहस-नहस इसलिए कर दिया कि वह नाना साहब का था। इतना ही नहीं, उनकी निर्दोष एवं निरीह बालिका मैना को उसकी इच्छा के विरुद्ध गिरफ्तार करके कानपुर के किले में कैद ही नहीं किया, अपितु उसे जलती हुई भीषण आग में जीवित जला डाला। यह सब कुछ बदले की भावना से किया गया था यद्यपि देवी मैना निर्दोष थी। इस प्रकार पाठ में वर्णित घटना से पता चलता है कि अंग्रेज़ लोग अत्यंत संकीर्ण एवं निर्दयी थे। बदले की भावना में वे मानवता को भी भूल गए थे।

प्रश्न 3.
पठित पाठ के आधार पर बालिका मैना का चरित्र-चित्रण सार रूप में कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मैना के महान बलिदान का चित्रण किया गया है। पाठ के पढ़ने पर पता चलता है कि बालिका मैना अत्यंत सुंदर व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। लेखिका ने कहा है कि जब अंग्रेज़ सैनिकों ने महल को गिराने के लिए वहाँ तोपें लगाईं तो महल के बरामदे में एक अत्यंत सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई। इसी प्रकार इतिहासकार महादेव चिटनवीस ने भी उसे अनुपम बालिका कहा है। इससे सिद्ध है कि देवी मैना अत्यंत सुंदर बालिका थी।

देवी मैना के मन में अपने घर के प्रति अत्यंत स्नेह था। इसलिए उसने सेनापति ‘हे’ को उसे न गिराने का अनुरोध ही नहीं किया, अपितु अपने तर्कों द्वारा उसे सहमत भी कर लिया था।
उसके मन में अंग्रेज़ों द्वारा अपने परिवार एवं देश के लोगों को मार देने का दुःख था। इसलिए वह अपने महल के मलबे के ढेर पर बैठकर जी भरकर रोना चाहती थी। यही उसकी अंतिम इच्छा भी थी।

देवी मैना वीर एवं निडर थी। वह अंग्रेज़ सेनाधिकारी व सैनिकों को इतनी बड़ी संख्या में देखकर जरा भी नहीं डरी, अपितु उसने साहसपूर्वक अपनी बात उनके सामने रखी। मौत का भय दिखाने पर भी वह अपने इरादे से टस-से-मस न हुई।

मैना एक तर्कशील युवती थी। उसने अपने तर्कों के द्वारा सेनापति ‘हे’ को परास्त कर दिया था और वह महल और उसके जीवन की रक्षा के लिए तैयार ही नहीं हो गया था, अपितु उसने गवर्नर को तार भी लिख भेजा था।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ पाठ की लेखिका का क्या नाम है?
(A) चपला देवी
(B) महादेवी वर्मा
(C) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(D) हरिशंकर परसाई
उत्तर-
(A) चपला देवी

प्रश्न 2.
नाना साहब का पूरा नाम क्या है?
(A) नाना साहब
(B) धुंधूपंत नाना साहब
(C) श्रीपंत नाना साहब
(D) पंत नाना साहब
उत्तर-
(B) धुंधूपंत नाना साहब

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प्रश्न 3.
मैना किसकी पुत्री थी?
(A) मंगल पाण्डेय
(B) गंगाधर राव
(C) धुंधूपंत नाना साहब
(D) गजराजपंत
उत्तर-
(C) धुंधूपंत नाना साहब

प्रश्न 4.
कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेज़ों का सैनिक दल किस ओर गया था?
(A) बिठूर की ओर
(B) झाँसी की ओर
(C) लखनऊ की ओर
(D) बनारस की ओर
उत्तर-
(A) बिठूर की ओर

प्रश्न 5.
अंग्रेज़ अधिकारियों को किसको बरामदे में खड़े देखकर हैरानी हुई थी?
(A) नाना साहब को
(B) मैना देवी को
(C) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को
(D) नाना साहब की पत्नी को
उत्तर-
(B) मैना देवी को

प्रश्न 6.
मैना ने अंग्रेज़ी अधिकारी से क्या करने के लिए कहा था?
(A) उसे रिहा करने को
(B) सेना को वापस ले जाने को
(C) महल पर गोले न बरसाने को
(D) उसकी रक्षा करने को
उत्तर-
(C) महल पर गोले न बरसाने को

प्रश्न 7.
मैना ने अंग्रेज़ अधिकारी से क्या प्रश्न किया था?
(A) क्या आप कृपा कर इस महल की रक्षा करेंगे
(B) क्या आप कृपा कर मेरी रक्षा करेंगे.
(C) क्या आप भारत छोड़कर नहीं जाएंगे।
(D) क्या तुम्हें निरीह प्राणियों पर दया आती है
उत्तर-
(A) क्या आप कृपा कर इस महल की रक्षा करेंगे

प्रश्न 8.
“कर्त्तव्य के अनुरोध से मुझे यह मकान गिराना ही होगा।”-ये शब्द किसने कहे थे?
(A) अउटरम ने
(B) सेनापति ‘हे’ ने
(C) लार्ड केनिंग ने
(D) सेनापति टोमस ने
उत्तर-
(B) सेनापति ‘हे’ ने

प्रश्न 9.
“नाना का स्मृति-चिह्न तक मिटा दिया जाए।”-ये शब्द किसने कहे थे?
(A) लॉर्ड केनिंग ने
(B) सेनापति ‘हे’ ने
(C) लंडन के मंत्रीमंडल ने
(D) सेनाध्यक्ष अउटरम ने
उत्तर-
(C) लंडन के मंत्रीमंडल ने

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प्रश्न 10.
उस समय लंडन का प्रसिद्ध अखबार कौन-सा था?
(A) नेशनल हेराल्ड
(B) टॉइम्स
(C) टॉइम्ज इंडिया
(D) हिन्दुस्तान टाइम्स
उत्तर-
(B) टाइम्स

प्रश्न 11.
“नाना की जिस कन्या के प्रति ‘हे’ ने दया दिखाई है, उसे उन्हीं के सामने फाँसी पर लटका देना चाहिए।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) लंडन की महारानी ने
(B) लॉर्ड केनिंग ने
(C) हाउस ऑफ लार्ड्स ने
(D) भारतमंत्री ने
उत्तर-
(C) हाउस ऑफ लार्ड्स ने

प्रश्न 12.
नाना के भग्नावशिष्ट प्रासाद के ढेर पर बैठकर कौन रो रहा था?
(A) नाना साहब का बेटा
(B) नाना साहब की पत्नी
(C) नाना साहब का भाई
(D) नाना साहब की बेटी मैना
उत्तर-
(D) नाना साहब की बेटी मैना

प्रश्न 13.
मैना ने जनरल अउटरम के सामने अपनी कौन सी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी?
(A) जी भरकर रोने की
(B) जी भरकर सोने की
(C) जी भरकर अपने नष्ट हुए महल को देखने की
(D) कुछ समय के लिए प्रार्थना करने की
उत्तर-
(A) जी भरकर रोने की

प्रश्न 14.
मैना की मृत्यु का समाचार किस अखबार में प्रकाशित हुआ था?
(A) मिलाप
(B) भारत मित्र
(C) बाखर
(D) टाइम्स
उत्तर-
(C) बाखर

प्रश्न 15.
लोगों ने जलती हुई मैना को देखकर उसे क्या समझकर प्रणाम किया था?
(A) देवी
(B) वीर पुत्री
(C) देशभक्त
(D) निडर भारतीय नारी
उत्तर-
(A) देवी

प्रश्न 16.
प्रस्तुत पाठ में नाना साहब के चरित्र की किस विशेषता को उजागर किया गया है?
(A) महान् योद्धा थे
(B) महान् देशभक्त थे
(C) महान् शासक थे
(D) महान् दानी थे
उत्तर-
(B) महान् देशभक्त थे

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नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. सन 1857 ई० के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी; पर विद्रोह दमन करने के बाद अंगरेज़ों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया। उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है। [पृष्ठ 51]

शब्दार्थ-विद्रोही = क्रांतिकारी। दमन = समाप्त। क्रूरता = निर्दयता। निरीह = बेसहारा। निरपराध = बेकसूर। रोमांचकारी = रोंगटे खड़े कर देने वाला। पाषाण = पत्थर। द्रवीभूत = भावुक होना, पिघला देना।।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यावतरण हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसकी लेखिका चपला देवी हैं। यह पाठ वस्तुतः एक रिपोर्ट है। इसमें देवी मैना के बलिदान का रोमांचकारी उल्लेख किया गया है। इन पंक्तियों में नाना साहब की विवशता और देवी मैना के बलिदान का एक साथ उल्लेख किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखिका ने बताया है कि सन 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब का महान योगदान था। वे अनेक मोर्चों पर लड़े थे। वे कानपुर की लड़ाई में असफल होने पर जब भागने लगे तो उनके पास इतना समय नहीं था कि वे अपनी पुत्री को महल से अपने साथ ले आते। देवी मैना बिठूर में अपने पिता के महल में रहती थी। अंग्रेजों ने कानपुर में क्रांति को दबाने के पश्चात बड़ी निर्दयतापूर्ण उस बेसहारा और बेकसूर देवी को आग में जलाकर भस्म कर दिया था। वह दृश्य ऐसा दर्दनाक था कि उसका वर्णन मात्र ही पत्थर हृदय वाले व्यक्तियों को भावुक बना देता है। उनके हृदय पिघल जाते हैं। कहने का भाव है कि देवी मैना को अत्यंत क्रूरतापूर्वक जलाया गया था।

विशेष-

  1. देवी मैना के महान बलिदान का उल्लेख अत्यंत भावनात्मकतापूर्ण शैली में किया गया है।
  2. लेखिका की देश-भक्ति और देवी मैना के प्रति श्रद्धा-भावना का बोध होता है।
  3. भाषा-शैली एक साधारण रिपोर्ताज जैसी है। – उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) मैना बिठूर के महल में कैसे रह गई ?
(2) मैना को जीवित जला डालने की सजा क्यों दी गई थी ?
(3) निरीह और निरपराध किसे और क्यों कहा गया है ?
(4) “उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है।” वाक्य का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(1) जब नाना साहब कानपुर में रहकर स्वतंत्रता संग्राम का संचालन कर रहे थे तब उनकी बेटी मैना बिठूर के राजमहल में रह रही थी। नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। इस कारण वह बिठूर के महल में रह गई।
(2) मैना का कसूर बस इतना था कि वह स्वतंत्रता सेनानी नाना साहब की बेटी थी। नाना साहब से बदला लेने के लिए उनकी बेटी मैना को जीवित ही आग में जला दिया गया था। यह अंग्रेज़ों का अमानवीय एवं नीच कर्म था।
(3) निरीह और निरपराध मैना को कहा गया है। उसे निरीह इसलिए कहा गया है कि वह महल में अकेली रह गई थी। निरपराध उसे इसलिए कहा गया है कि उसने कभी किसी को पीड़ा तक नहीं पहुँचाई थी। न ही किसी को उससे किसी प्रकार का भय था।
(4) इस वाक्य के माध्यम से लेखक ने बताया है कि नाना साहब की शत्रुता का बदला उसकी मासूम बेटी को जीवित आग में भस्म करके लेना अंग्रेज़ों की कायरता का सबसे बड़ा प्रमाण है।

2. आपके विरुद्ध जिन्होंने शस्त्र उठाए थे, वे दोषी हैं; पर इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका क्या अपराध किया है ? मेरा उद्देश्य इतना ही है, कि यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है, इसी से मैं प्रार्थना करती हूँ, कि इस मकान की रक्षा कीजिये। [पृष्ठ 52]

शब्दार्थ-विरुद्ध = खिलाफ। दोषी = कसूरवार। जड़ पदार्थ = निर्जीव। अपराध = कसूर।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसकी लेखिका चपला देवी हैं। इस पाठ में देवी मैना की अंग्रेज़ सेनाधिकारी जनरल अउटरम द्वारा निर्ममतापूर्ण हत्या का वर्णन किया गया है। इन पंक्तियों में देवी मैना के अपने महल के प्रति स्वाभाविक स्नेह को अभिव्यक्त किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-जब अंग्रेज सेनाधिकारी सर टामस ‘हे’ नाना साहब के बिठूर वाले महल को तोपों के गोलों से नष्ट करने वाले थे, तभी देवी मैना महल के बरामदे में आकर उनसे कहती है कि मैं मानती हूँ कि जिन लोगों ने अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध शस्त्र उठाए थे अर्थात युद्ध किया वे कसूरवार हैं, आपके अपराधी हैं, किंतु इस जड़ पदार्थ मकान ने कौन-सा अपराध किया है जो आप इसे नष्ट करने पर तुले हुए हो। मेरी तो आपसे इतनी-सी प्रार्थना है कि आप इस मकान की रक्षा कीजिए। मेरे कहने का उद्देश्य यह है कि मुझे यह स्थान बहुत प्रिय है। इसलिए आप इसे नष्ट न करें।

विशेष-

  1. देवी मैना का अपने पैतृक मकान के प्रति स्वाभाविक लगाव का वर्णन किया गया है।
  2. देवी मैना की तर्कशीलता देखते ही बनती है।
  3. भाषा-शैली भावानुकूल एवं प्रभावशाली है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) ये शब्द किसने किससे कहे हैं ?
(2) प्रस्तुत पंक्तियों में मैना की किस भावना का बोध होता है ?
(3) अंग्रेजों द्वारा महल को गिराना उनकी किस भावना को उजागर करता है ?
(4) नाना साहब का यह महल कहाँ स्थित था ?
उत्तर-
(1) ये शब्द नाना साहब की बेटी मैना द्वारा अंग्रेज़ सेनापति ‘हे’ को कहे गए हैं।
(2) इन पंक्तियों में मैना की महल के प्रति स्नेह भावना एवं तर्कशीलता का पता चलता है।
(3) अंग्रेज़ों द्वारा नाना साहब के महल को गिराना उनकी क्रूरता एवं बदले की भावना को दर्शाता है।
(4) नाना साहब का यह महल बिठूर में स्थित था।

3. बड़े दुःख का विषय है, कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी, जिस पर समस्त अंगरेज़ जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तब तक कानपुर में अंगरेज़ों के हत्याकांड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे। [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-दुर्वांत = निडर। भीषण = भयंकर। हत्याकांड = किसी को मारने की घटना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसमें लेखिका चपला देवी ने देवी मैना के महान बलिदान और नाना साहब के अंग्रेज़ सत्ता पर छाए आतंक को चित्रित किया है। ये पंक्तियाँ तत्कालीन इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘टाइम्स’ में प्रकाशित हुई थीं। इन पंक्तियों में अंग्रेज़ जाति के नाना साहब पर किए गए क्रोध को दर्शाया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-कानपुर में अंग्रेज़ सेना और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में संघर्ष हुआ था। उसमें भारतीय सेनाएँ हार गई थीं और विद्रोह को दबा दिया गया था, किंतु इसकी कीमत अंग्रेज़ों को बहुत महँगी पड़ी थी। उसमें उनके स्त्री, पुरुष और बच्चे भी मारे गए थे। इसलिए अंग्रेज़ नाना साहब को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानने लगे थे। तत्कालीन भारत में अंग्रेज़ी सरकार नाना साहब को पकड़ नहीं सकी थी। इसलिए समाचार-पत्र में उनके ये विचार प्रकाशित हुए थे कि बड़े दुःख का विषय है कि भारत सरकार आज तक दुर्दात नाना साहब को पकड़ नहीं सकी, जिस पर समस्त अंग्रेज़ जाति का भयंकर क्रोध व्यक्त हो रहा था। उनका कहना था कि जब तक लोगों के शरीर में रक्त का प्रवाह रहेगा, तब तक कानपुर में हुए अंग्रेज़ों के हत्याकांड का बदला लेना हम लोग नहीं भूलेंगे।

विशेष-

  1. नाना साहब की देशभक्ति और बहादुरी का उल्लेख किया गया है। नाना साहब अंग्रेजों की आँख का काँटा बन गया था।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) अंग्रेज़ जाति नाना साहब को दुर्दात क्यों मानती थी ?
(2) ये शब्द किसने और क्यों कहे थे ?
(3) इन पंक्तियों से अंग्रेजों की किस विशेषता का पता चलता है ?
(4) इन पंक्तियों में नाना साहब के जीवन की किस विशेषता का परिचय मिलता है ?
उत्तर-
(1) सन 1857 के संग्राम में कानपुर में अंग्रेज़ नर-नारियों की क्रूर हत्या की गई थी। इस हत्याकांड के लिए अंग्रेज़ लोग क्रांतिकारियों को दोषी मानते थे। अंग्रेज़ नाना साहब को क्रांतिकारियों का नेता समझते थे। इस हत्याकांड के लिए अंग्रेज़ नाना साहब को ही दोषी मानते थे। इसलिए वे उसे दुर्दीत अर्थात अत्याचारी कहते थे।
(2) ये शब्द ‘हाउस ऑफ़ लार्डस’ के सदस्यों द्वारा कहे गए थे जिन्हें तत्कालीन प्रमुख समाचार-पत्र ‘टाइम्स’ में प्रकाशित किया गया था।
(3) इन पंक्तियों से अंग्रेज़ जाति में बदले की भावना का पता चलता है। बदला लेने के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
(4) इन पंक्तियों से पता चलता है कि नाना साहब एक महान देशभक्त थे। वे देश को स्वतंत्र करवाना चाहते थे। शत्रु भी उनके नाम से डरता था।

5. “कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकांड हो गया। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में शान्त और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख, सबने उसे देवी समझ कर प्रणाम किया।” [पृष्ठ 55]

शब्दार्थ-भीषण = भयंकर। हत्याकांड = हत्या का घृणित कार्य। अनुपमा = जिसकी कोई उपमा न हो।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित चपला देवी द्वारा रचित ‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं। इस पाठ में देवी मैना के देश-प्रेम और महान बलिदान का उल्लेख किया गया है। ये पंक्तियाँ महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध इतिहासकार महादेव चिटनवीस द्वारा प्रकाशित ‘बाखर’ नामक समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थीं जिन्हें लेखिका ने उद्धृत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-श्री महादेव चिटनवीस ने लिखा है कि कल कानपुर के किले में एक भयंकर हत्याकांड हो गया अर्थात अग्नि में जलाकर मार देने की घटना घटित हुई। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना को धधकती हुई आग में जलाकर राख कर डाला। भीषण आग में बिना चिल्लाए शांत और सरल मूर्ति उस अत्यंत सुंदर बालिका को आग में जलते हुए देखकर सबने उसे देवी मानकर श्रद्धा भाव से प्रणाम किया। कहने का तात्पर्य है कि निरपराध बालिका को जीते जी आग में जलाने जैसा अमानवीय कार्य करना अंग्रेज़ जाति की संकीर्ण मनोवृत्ति को दर्शाता है।

विशेष-

  1. इस समाचार के माध्यम से देवी मैना के महान बलिदान का वर्णन किया गया है, साथ ही अंग्रेज़ शासन की क्रूरता को भी अभिव्यंजित किया गया है।
  2. भाषा-शैली भावों को अभिव्यंजित करने में पूर्णतः सक्षम है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस समाचार-पत्र में प्रकाशित हुई थीं ?
(2) मैना को किस प्रकार मार डाला गया था ?
(3) कानपुरवासियों ने किसे देवी समझकर प्रणाम किया था ?
(4) इस गद्यांश के आधार पर अंग्रेज़ों की क्रूरता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(1) प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेव चिटनवीस के समाचार-पत्र ‘बाखर’ में प्रकाशित हुई थीं।
(2) मैना को धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दिया गया था। इस प्रकार उसकी निर्ममतापूर्ण हत्या की गई थी।
(3) कानपुरवासियों ने नाना साहब की पुत्री मैना को धधकती हुई आग में भस्म होते हुए देखा। उन्होंने उस बालिका को देवी समझकर प्रणाम किया था।
(4) इस गद्यांश से पता चलता है कि अंग्रेज़ अत्यंत क्रूर एवं निर्दयी हैं। उन्होंने एक भोली-भाली बालिका मैना को धधकती हुई आग में भस्म कर डाला। उसका इतना-सा दोष था कि वह नाना साहब की बेटी थी। इससे यह भी पता चलता है कि अंग्रेज़ बदले की भावना से भी ग्रस्त थे।

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया Summary in Hindi

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया लेखक-परिचय

प्रश्न-
चपला देवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
चपला देवी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
चपला देवी द्विवेदी युग की लेखिका थीं। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इतना अवश्य है कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय पुरुष लेखकों व साहित्यकारों के साथ-साथ अनेक महिलाओं ने भी अपनी-अपनी साहित्यिक रचनाओं व अन्य लेखों से स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान की थी। उन्हीं महिला लेखिकाओं में से चपला देवी भी एक हैं। कई बार अनेक साहित्यकार इतिहास में स्थान नहीं पा सकते। चपला देवी भी उन्हीं साहित्यकारों में से एक हैं।

यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि सन 1857 की क्रांति के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब ने देश को आजाद करवाने में अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया था। बालिका मैना देवी नाना साहब की पुत्री थी जिसे क्रूर अंग्रेज़ों ने जिंदा जला दिया था। उस बालिका मैना देवी के महान बलिदान की कहानी को चपला देवी ने इस गद्य रचना में अभिव्यक्त किया है। यह गद्य रचना रिपोर्ताज का आरंभिक रूप है।

प्रस्तुत रचना को पढ़कर पता चलता है कि लेखिका चपला देवी ने इसमें अत्यंत सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। वाक्य-रचना कुछ स्थलों को छोड़कर व्याकरण की दृष्टि से सही है। तद्भव शब्दावली का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भावात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। रिपोर्ताज में बालिका के बलिदान का चित्र सजीव हो उठता है। यही इस पाठ की सबसे बड़ी विशेषता है।

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
मातृभूमि को स्वतंत्र करवाने के लिए जिन देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहति दी थी, उनमें देवी मैना का नाम भी सदा आदर से लिया जाएगा। प्रस्तुत पाठ को पाठ्यपुस्तक में रखने का प्रमुख लक्ष्य नई पीढ़ी के लोगों को देश को स्वतंत्र करवाने वाले बलिदानियों के विषय में जानकारी देना है। सन 1857 में जब नाना साहब कानपुर में भीषण नरसंहार में असफल होकर वहाँ से निकलने लगे तो अपनी बेटी मैना को साथ न ला सके। देवी मैना बिठूर में अपने पिता के महल में रहती थी। विद्रोह के दमन के पश्चात अंग्रेज़ सैनिक अधिकारियों ने निरीह एवं निरपराध देवी को जीवित ही आग में जला डाला। उस दृश्य को देखकर तो कठोर दिल वालों का भी हृदय पिघल गया होगा।

कानपुर पर कब्जा करने के पश्चात अंग्रेज़ सेना बिठूर के महल की ओर बढ़ी। वहाँ उन्होंने महल को लूटा, किंतु वहाँ उनके हाथ बहुत कम संपत्ति लगी। बाद में उस महल पर तोपों के गोले दागकर नष्ट करने की योजना बनाई गई। तब महल के बरामदे में एक सुंदर बालिका आकर खड़ी हो गई। उसने अंग्रेज़ सेना अधिकारी को गोले बरसाने से मना कर दिया और तर्क देते हुए कहा कि महल तो जड़ है। उसने किसी का क्या बिगाड़ा है। उसने अंग्रेज सेनापति ‘हे’ से महल की रक्षा करने के लिए कहा। किंतु सेनापति ने अपने कर्त्तव्य की दुहाई देते हुए अपनी असमर्थता व्यक्त की। देवी मैना ने एक अन्य तर्क देते हुए कहा कि उसकी बेटी ‘मेरी’, जो अब इस दुनिया में नहीं रही और उसमें बहत प्रेम था, उसका एक पत्र भी उसके पास है। यह सुनकर सेनापति का हृदय पसीज गया तथा उसने देवी मैना को पहचान भी लिया। उसने उसकी रक्षा के प्रयास करने का वचन भी दिया। किंतु उसी समय वहाँ प्रधान सेनापति जनरल अउटरम आ पहँचा। उसने बिगड़कर पूछा कि अभी तक महल क्यों नहीं उड़ाया गया। सेनापति ‘हे’ ने उससे महल को न उड़ाने का अनुरोध किया। किंतु जनरल अउटरम ने कहा कि नाना के वंश व महल पर दया दिखाना असंभव है। तभी उसने सेना को महल का द्वार तोड़कर अंदर घुसने के लिए आदेश दिया। ‘हे’ के चले जाने के बाद मैना छुप गई। सैनिक प्रयास करने पर भी उसे ढूँढ न सके। उसी समय लंडन के मंत्रिमंडल का तार भी आ गया कि वहाँ (लंडन की) की आज्ञा के विरुद्ध वे कुछ नहीं कर सकते। तभी तोपों के गोलों ने देखते-ही-देखते महल को मलबे के ढेर में बदल डाला, किंतु मैना का कहीं पता न चल सका।

उस समय लंडन के सुप्रसिद्ध समाचार पत्र ‘टाइम्स’ में 6 सितंबर, 1857 को एक लेख में लिखा गया था कि अत्यंत खेद का विषय है कि नाना साहब को आज तक भारत सरकार नहीं पकड़ सकी। संपूर्ण अंग्रेज़ जाति का उस पर भयंकर क्रोध है। वे उससे बदला लेना नहीं भूलेंगे। उस दिन पार्लमेंट की ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ की सभा में सर टामस ‘हे’ की उस रिपोर्ट का मज़ाक उड़ाया गया जिसमें उसने नाना की बेटी को क्षमा करने के लिए कहा था। इस रिपोर्ट को उन्होंने ‘हे’ का प्रेमालाप कहकर उसे अस्वीकार कर दिया।

सन 1857 की सितंबर मास की आधी रात के समय चाँदनी में एक बालिका स्वच्छ वस्त्र पहने हुए नाना साहब के महल के मलबे के ढेर पर बैठी हुई रो रही थी। उसकी रोने की आवाज सुनकर अंग्रेज़ सैनिक वहाँ आ गए। वह उनके किसी प्रश्न का उत्तर न देकर केवल रोती रही। उसी समय जनरल अउटरम भी वहाँ आ गया और उसने मैना को पहचान लिया तथा उसे गिरफ्तार कर लिया। वह सैनिकों के बीच घिरी हुई होने पर भी डरी नहीं। उसने इतना ही कहा कि मुझे जी भरकर रो लेने दीजिए। किसी ने उसकी नहीं सुनी और उसे कानपुर के किले में लाकर कैद कर दिया। उस समय के महान महाराष्ट्रीय इतिहासकार महादेव चिटनवीस के ‘बाखर’ नामक समाचार पत्र में छपा था, “कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकांड हो गया। नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गई। भीषण अग्नि में शांत और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख, सबने उसे देवी समझकर प्रणाम किया।”

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-51] : विद्रोही = क्रांतिकारी। दमन करना = समाप्त करना। निरीह = बेसहारा। निरपराध = बेकसूर। अग्नि = आग। भस्म करना = जलाकर राख कर देना। पाषाण हृदय = पत्थर दिल, कठोर दिल। द्रवीभूत करना = पिघला देना। आश्चर्य = हैरानी। करुणापूर्ण = दयापूर्ण। अल्पवयस = कम उम्र।

[पृष्ठ 52] : उद्देश्य = लक्ष्य । वासस्थान = रहने का स्थान। विध्वंस = नष्ट। हृदय से चाहना = अत्यधिक प्रेम करना। होश उड़ना = अत्यधिक हैरान होना। सहचरी = सखी, सहेली। फिक्र = चिंता, सोच।

[पृष्ठ-53] : असंभव = जो हो न सके। फाटक = मुख्य द्वार। आशय = भाव, अर्थ। स्मृति-चिह्न = याद की पहचान। आज्ञा = आदेश। विरुद्ध = विपरीत। क्रूर = निर्दयी। मिट्टी में मिला देना = नाश कर देना।

[पृष्ठ-54-55] : भारत सरकार = उस समय के भारत में अंग्रेज़ी शासन को भारत सरकार कहा गया है। दुर्दीत = निडर। भीषण = भयंकर। कलंक = दोष । संहार करना = मार देना। वृद्धावस्था = बुढ़ापा। मोहित होना = आकृष्ट होना। प्रेमालाप = प्रेम की बातें। भग्नावशिष्ट = खंडहर। प्रासाद = महल। कराल = भयंकर। रूपधारी = रूप धारण करने वाला। कैद कर देना = बंदी बना देना। इतिहासवेत्ता = इतिहास को जानने वाला। हत्याकांड = किसी को मारने की घटना। अनुपमा = जिसकी कोई उपमा न हो।

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