Class 10

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Rachana Patra-Lekhan पत्र-लेखन Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Rachana पत्र-लेखन

Composition Letter HBSE 10th Class

पत्र-लेखन

पत्र के माध्यम से संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाए जाते हैं। मनुष्य अपने रिश्तेदारों, मित्रों तथा परिचितों के साथ अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकता है। व्यावहारिक जीवन में सरकारी विभागों से भी पत्र के माध्यम से संपर्क किया जाता है। आज के वैज्ञानिक युग में मोबाइल, ई-मेल आदि होने से पत्र का परंपरागत स्वरूप बदलता जा रहा है, फिर भी इसके महत्त्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

पत्र-लेखन एक विधा है। अभ्यास के जरिए इसमें कुशलता प्राप्त की जा सकती है, अतः इसका अभ्यास बाल्यकाल से ही करना चाहिए।
पत्र की विशेषताएँअच्छे पत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(क) संक्षिप्तता-अच्छे पत्र न तो अधिक विस्तृत होते हैं और न ही बहुत लघु। उनमें ‘गागर में सागर’ भरने वाली बात चरितार्थ होनी चाहिए। अधिक बड़े पत्र में बिखराव आ जाता है, जबकि छोटे पत्र में बात स्पष्ट नहीं हो पाती। अतः पत्र में संक्षिप्तता आवश्यक है।
(ख) सरलता-पत्र की भाषा सरल व सुबोध होनी चाहिए। आलंकारिक तथा जटिल शब्दों से पत्र का भाव स्पष्ट नहीं होता। पत्र का कार्य लेखक के भावों को संप्रेषित करना होता है। उसमें स्पष्टता अवश्य होनी चाहिए।
(ग) विषय की स्पष्टता–पत्र में विषय स्पष्ट होना चाहिए। पत्र पढ़कर पाठक को उसका भाव समझ में आना चाहिए। यदि वह उसका आशय नहीं समझ पाता है तो पत्र का उद्देश्य निरर्थक हो जाता है।

पत्र के प्रकारपत्र दो प्रकार के होते हैं
(1) अनौपचारिक पत्र
(2) औपचारिक पत्र।
HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन 1
1. औपचारिक पत्र:
इस प्रकार का पत्राचार उनके साथ किया जाता है जिनके साथ हमारा व्यक्तिगत संबंध नहीं होता। इन पत्रों में आत्मीयता गौण होती है। इनमें कथ्य की प्रधानता होती है। तथ्यों तथा सूचनाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है। औपचारिक पत्र के अंतर्गत निम्नलिखित पत्र आते हैं
(क) सरकारी पत्र
(ख) आवेदन पत्र
(ग) संपादक के नाम पत्र
(घ) व्यावसायिक पत्र आदि।

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Composition Letter Writing HBSE 10th Class

2. अनौपचारिक पत्र-इस प्रकार का पत्राचार उनके साथ किया जाता है जिनके साथ हमारा व्यक्तिगत संबंध होता है। इन पत्रों में कोई औपचारिकता नहीं होती। इनमें भाव प्रधान होता है। ये पत्र अपने मित्र, परिवार के सदस्य, निकट संबंधी आदि को लिखे जाते हैं। इनमें व्यक्तिगत सुख-दुःख का ब्योरा और विवरण होता है।

1. शुल्क माफी (फीस माफी) के लिए अपने विद्यालय के मुख्याध्यापक को प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
श्रीमान मुख्याध्यापक जी,
दयानंद उच्च विद्यालय,
गगन विहार, नई दिल्ली।
विषय- शुल्क माफ़ी (फीस माफ़ी) के लिए प्रार्थना-पत्र।

मान्यवर,
विनम्र निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैंने इस वर्ष आपके विद्यालय से नौवीं कक्षा की परीक्षा 90% अंक लेकर उत्तीर्ण की है।

हरियाणा सरकार द्वारा एम०आई०टी०सी० कॉरपोरेशन बंद करने के कारण मेरे पिता जी बेरोज़गार हो गए हैं। उन्हें केवल तीन हज़ार रुपए ही पेंशन मिलती है। पाँच सदस्यों वाले परिवार का इतने कम रुपयों में गुज़ारा होना बहुत कठिन है। कॉरपोरेशन बंद होने के कारण पारिवारिक आर्थिक दशा अत्यंत हीन हो गई है। मेरे अतिरिक्त मेरे दो छोटे भाई भी इस विद्यालय में पढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में मेरे पिता जी मेरा शुल्क देने में समर्थ नहीं हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप मेरा शुल्क माफ़ करके मुझे अनुगृहीत करें, जिससे मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ।

आशा है कि आप मेरी इस प्रार्थना पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे शुल्क माफ़ी प्रदान करेंगे। मैं आपका सदा धन्यवादी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
राजेश कुमार
कक्षा दसवीं अनुक्रमांक-15
दिनांक : 5 मई, 20….

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Vyavaharika Patra 10th Class HBSE

2. चरित्र एवं सदाचरण प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
भिवानी।
विषय- चरित्र एवं सदाचरण प्रमाण-पत्र देने हेतु प्रार्थना-पत्र।

आदरणीय महोदय,
विनम्र निवेदन है कि मैंने आपके विद्यालय से नौवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। मैं कक्षा में प्रथम रहा था। मेरे पिता जी का स्थानांतरण कैथल में हो गया है। मुझे वहाँ नए स्कूल में दाखिला लेना है। उस स्कूल के नियम के अनुसार पिछले स्कूल द्वारा जारी किया गया चरित्र प्रमाण-पत्र भी आवेदन-पत्र के साथ संलग्न करना होगा, तभी मुझे नए स्कूल में दाखिला मिलेगा।

आदरणीय महोदय मैं विद्यालय की हॉकी टीम का कप्तान रहा हूँ तथा विद्यालय में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता रहा हूँ। मैं स्कूल साहित्य परिषद् का उप-प्रधान भी रहा हूँ। मेरी आपसे प्रार्थना है कि इन गतिविधियों का उल्लेख करते हुए आप मुझे चरित्र एवं सदाचरण प्रमाण-पत्र देने की कृपा करें।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सुरेश कुमार
कक्षा-दसवीं
अनुक्रमांक-29
दिनांक : 5 अप्रैल, 20……

10th Class Hindi Patra Lekhan HBSE

3. राष्ट्रीय पर्वो पर मिष्ठान-वितरण विषय को लेकर अपने मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय उच्च विद्यालय,
रमाना रमानी (करनाल)
हरियाणा।
आदरणीय महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि अपने विद्यालय में हर वर्ष राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर विद्यार्थी, एन०सी०सी० सांस्कृतिक गतिविधियों आदि में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इस दिन विद्यार्थी ही नहीं, अपितु अध्यापकगण भी उतनी ही मेहनत एवं मार्गदर्शन करते हैं। अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप विद्यार्थियों एवं स्टाफ के उत्साहवर्द्धन हेतु राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर मिष्ठानवितरण का प्रबन्ध करवाने की कृपा कीजिए। इसके लिए हम आपके अत्यन्त आभारी होंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय,
रामगोपाल
कक्षा दसवीं ‘क’
दिनांक : 7 अप्रैल, 20….

Patra Lekhan 10th Class HBSE

4. कक्षा-कक्ष में समुचित प्रकाश-व्यवस्था हेतु मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक जी,
राजकीय उच्च विद्यालय,
सुन्दर नगर।
विषय- कक्षा-कक्ष में समुचित प्रकाश-व्यवस्था हेतु।

मान्यवर,
मैं आपके विद्यालय की दसवीं ‘क’ अनुभाग का विद्यार्थी हूँ। हमारी कक्षा का कक्ष संख्या डी. 5 है। उसमें एक दरवाजा एवं एक ही खिड़की है। इसलिए कक्षा-कक्ष में पर्याप्त मात्रा में प्रकाश नहीं होता। कक्षा के पीछे के बैंचों पर तो अन्धेरा ही रहता है। कक्षा-कक्ष में केवल. एक ही ट्यूब लाईट लगी हुई है। वह भी पिछले माह से खराब है। हमने स्कूल के क्लर्क व कक्षा अध्यापक से भी कई बार इस सम्बन्ध में प्रार्थना की है, किन्तु अभी तक प्रकाश की कोई समुचित व्यवस्था नहीं हुई है।

अतः आप से प्रार्थना है कि आप शीघ्र-अति-शीघ्र कक्षा-कक्ष में प्रकाश की व्यवस्था करवाने की कृपा करें ताकि विद्यार्थियों की पढ़ाई में कोई बाधा न पड़े।
सधन्यवाद।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अंकुज
कक्षा-दसवीं ‘क’
दिनांक : 5 मई, 20…..

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

5. दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण परीक्षा देने में असमर्थता प्रकट करते हुए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय कन्या उ०मा० विद्यालय,
रतिया।
विषय-परीक्षा देने में असमर्थता के विषय में। श्रीमान जी,

सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की कक्षा दसवीं (ग) की छात्रा हूँ। कल विद्यालय से छुट्टी होने पर घर जाते समय सड़क पार करते हुए स्कूटर से टकरा जाने के कारण मैं गंभीर रूप से घायल हो गई हूँ। मेरी दाईं टाँग की हड्डी भी टूट गई है। डॉक्टरी रिपोर्ट के अनुसार मैं लगभग दो मास तक चल-फिर नहीं सकती। इसलिए मैं दिसंबर मास में होने वाली परीक्षा देने में असमर्थ हूँ।

अतः आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे दो मास का अवकाश देने की कृपा करें। इस प्रार्थना-पत्र के साथ मैं अपना डॉक्टरी. प्रमाण-पत्र भी भेज रही हूँ।
सधन्यवाद।

आपकी आज्ञाकारी शिष्या,
कमलेश
कक्षा दसवीं
अनुक्रमांक-25
दिनांक : 10 अगस्त, 20….

6. समय पर मासिक शुल्क जमा न कराने के कारण नाम कट जाने पर पुनः नाम लिखने की अनुमति हेतु मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक जी,
आर्य उच्च विद्यालय,
करनाल।
श्रीमान जी,
सविनय निवेदन है कि पिछले दो मास से मेरे पिता जी बीमार थे व उन्हें अवैतनिक अवकाश (बिना वेतन के छुट्टी) लेना पड़ा था। इसलिए पिता जी का वेतन न मिलने के कारण मैं अपना स्कूल का मासिक शुल्क जमा नहीं करवा सका था। इसलिए कक्षाअध्यापक ने मेरा नाम काट दिया था। किन्तु अब मेरे पिता जी का वेतन मिल गया है और मैंने स्कूल का मासिक शुल्क जमा करवा दिया है। अतः आपसे प्रार्थना है कि मेरा नाम पुनः लिखवाने की कृपा करना ताकि मैं निश्चिन्त होकर अपनी पढ़ाई कर सकूँ।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
दिवेश कुमार
कक्षा-दसवीं
दिनांक : 18 जनवरी, 20….

7. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखो जिसमें विद्यालय-पुस्तकालय में पुस्तकों की उचित व्यवस्था करने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
नीलोखेड़ी (करनाल)।
विषय- पुस्तकालय में पुस्तकों की उचित व्यवस्था हेतु।

मान्यवर,
निवेदन है कि हमारे विद्यालय के पुस्तकालय में विषय से सम्बन्धित तथा सामान्य ज्ञान की पुस्तकें बहुत बड़ी संख्या में हैं, किन्तु पुस्तकों की व्यवस्था ठीक न होने के कारण समय पर कोई पुस्तक नहीं मिलती। पुस्तक ढूँढने में बहुत समय व्यर्थ चला जाता है। कभी-कभी तो पुस्तक मिलती ही नहीं। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि पुस्तकालय में पुस्तकों की उचित व्यवस्था करवाई जाए ताकि समय पर हमें वांछित पुस्तकें उपलब्ध हो सकें। इससे पुस्तकालय इंचार्ज के लिए भी सुविधा रहेगी और विद्यार्थियों का भी समय व्यर्थ में नष्ट होने से बच जाएगा।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
महेष शर्मा
कक्षा दसवीं ‘क’
4 अगस्त, 20…..

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

8. समय के सदुपयोग का महत्त्व बताते हुए अनुज को पत्र लिखें।

118 मॉडल टाऊन,
करनाल।
1 अगस्त, 20….
प्रिय अनुज,
सदा प्रसन्न रहो।
कल ही पिता जी का पत्र मिला। पढ़कर पता चला कि आजकल तुम अपने मित्रों के साथ घूमने-फिरने व गप-शप में काफी समय व्यतीत कर देते हो। प्रिय अनुज तुम्हें पता है कि समय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान धन है। इसलिए इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। कहा भी गया है-‘गया वक्त फिर हाथ न आवे।’ समय का महत्त्व इस बात में भी है कि धन खो जाने पर कमाया जा सकता है किन्तु समय कभी लौटकर नहीं आता। जितने भी महान् पुरुष हुए हैं, सबने समय का सदुपयोग किया है। इसलिए हमें कभी भी अपने मूल्यवान समय को व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए अपितु समय का सदुपयोग तुम्हें अपनी पढ़ाई करने में करना चाहिए। समय का सही प्रयोग करने वाले व्यक्ति को कभी असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता। हमें अपने समय का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। हर काम समय पर करना चाहिए। समय के सदुपयोग में सुख, शांति, सफलता एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। समय का सदुपयोग करके हम जीवन की ऊँचाइयों को छू सकते हैं। मुझे आशा है कि तुम अपना. हर कार्य समय पर करोगे। माता-पिता को सादर प्रणाम कहना।

तुम्हारा भाई,
राकेश ।
पता……………..
…………………

9. विद्यालय में कई दिन से खाली हिन्दी-अध्यापक के पद की भर्ती के लिए मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय उच्च विद्यालय,
पूण्डरी।
मान्यवर,
हम दसवीं ‘क’ कक्षा के सभी विद्यार्थी आपसे निवेदन करते हैं कि हमारे हिन्दी-अध्यापक का स्थानांतरण कई मास पूर्व हो गया था। उनके स्थान पर अभी तक कोई हिन्दी का अध्यापक नहीं आया है। इसलिए हमारी हिन्दी विषय की पढ़ाई नहीं हो रही है। परीक्षा भी बहुत समीप है। अतः आपसे प्रार्थना है कि हमारे लिए हिन्दी-अध्यापक की नियुक्ति शीघ्र करें ताकि हमारी पढ़ाई सुचारु रूप से हो सके।
सधन्यवाद।
आपके आज्ञाकारी शिष्य,
दसवीं ‘क’ के विद्यार्थी
दिनांक : 10 अक्तूबर, 20….

10. कक्षा-कक्ष में पंखे कम होने की शिकायत करते हुए, मुख्याध्यापक को एक पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय उच्च विद्यालय,
रामनगर।
विषय- कक्षा कक्ष में पंखे कम होने की शिकायत हेतु।

आदरणीय महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की कक्षा दसवीं ‘ग’ का विद्यार्थी हैं। हमारे कक्षा-कक्ष में केवल दो ही पंखे लगे हुए हैं। इनमें से एक पंखा तो कई दिनों से बंद पड़ा हुआ है। इसलिए कक्षा के छात्रों का गर्मी के कारण बुरा हाल रहता है। उनका ध्यान पढ़ाई में पूर्ण रूप से नहीं लग पाता। कभी-कभी पंखे के नीचे बैठने के लिए विद्यार्थियों के बीच झगड़ा भी हो जाता है। इसलिए आपसे निवेदन है कि पुराने पंखों को ठीक करवाया जाए और दो नए पंखे भी लगवाने की कृपा करें ताकि विद्यार्थियों को गर्मी के कारण परेशानी न उठानी पड़े और वे मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर सकें।

सधन्यवाद भवदीय,
हितेश कुमार
कक्षा-दसवीं ‘ग’
दिनांक : 20 अगस्त, 20….

11. विद्यालय में स्वच्छ पेयजल की समुचित व्यवस्था हेतु मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
डी.ए.वी. उच्च विद्यालय,
फरीदाबाद।
विषय : विद्यालय में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करने हेतु।
मान्यवर,
निवेदन है कि मैं विद्यालय की दसवीं ‘क’ कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैं विद्यालय में पेयजल की व्यवस्था के विषय में प्रार्थना करना चाहता हूँ। विद्यालय में पेयजल के सभी नल एक ही स्थान पर लगे हुए हैं। इसलिए आधी छुट्टी के समय पानी पीने वाले बच्चों की भीड़ एक ही स्थान पर इकट्ठा हो जाती है। इससे छोटे बच्चे पानी पीने से वंचित रह जाते हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि विद्यालय-भवन की हर मंजिल पर पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। गर्मी के दिनों में ठण्डे पानी के वाटर कूलर लगवाए जाएँ तथा पानी को शुद्ध करने वाले यंत्र (R.O.) भी लगवाए जाएँ। इसके अतिरिक्त पीने के पानी के स्थान पर सफाई भी होनी चाहिए।

अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप इन सभी सुझावों की ओर ध्यान देते हुए पीने के पानी की समुचित व्यवस्था करें। आपकी अति कृपा होगी।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
भुवनेश्वर
कक्षा-दसवीं (क)
अनुक्रमांक-29
दिनांक : 7 मई, 20….

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

12. विद्यालय में विज्ञान की प्रयोगशाला को अत्याधुनिक करने हेतु मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में, ,
मुख्याध्यापक महोदय,
डी०ए०वी० उच्च विद्यालय,
पानीपत।
विषय- विद्यालय में विज्ञान की प्रयोगशाला को अत्याधुनिक करने हेतु।

मान्यवर,
विनम्र निवेदन है कि विद्यालय में स्थापित विज्ञान की प्रयोगशाला में यद्यपि पर्याप्त सामान व सामग्री है जिससे हम अपने विज्ञान संबंधी प्रयोग करते हैं। किन्तु यहाँ अभी भी प्रयोग के लिए नए-नए वैज्ञानिक उपकरणों का अभाव है। विषय से संबंधित नए-नए वैज्ञानिक उपकरण मंगवाए जाएँ। इनके अतिरिक्त विद्यालय की प्रयोगशाला में कम्प्यूटर की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे विद्यार्थी अपने विषय सम्बन्धी प्रैक्टीकल सुविधापूर्वक कर सकें। इसके अतिरिक्त प्रयोगशाला में इंटरनेट का कनेक्शन भी लगवा दें तो विद्यार्थी अपने लिए विज्ञान से संबंधी नई-नई जानकारी हासिल कर सकेंगे तथा प्रैक्टीकल भी ठीक प्रकार से हो सके।

हमें आशा है कि विद्यालय में विज्ञान की प्रयोगशाला में इन सभी वस्तुओं की व्यवस्था करने से उसका अत्याधुनिक रूप बन जाएगा।
सधन्यवाद
राकेश ठाकुर
कक्षा दसवीं ‘क’
दिनांक……………..

13. परोपकार का महत्त्व बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

548, विकास नगर,
रोहतक।
1 अगस्त, 20……
प्रिय मित्र अभिनव,

मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि कल हमारी कक्षा में ‘परोपकार’ विषय पर निबन्ध लेखन प्रतियोगिता करवाई गई थी। इस प्रतियोगिता में मुझे प्रथम पुरस्कार मिला है। ‘परोपकार’ मानव-जीवन का महान् गुण है। मानव-जीवन की सार्थकता इसी में है कि मानव अपने कल्याण के साथ-साथ दूसरों के उपकार के विषय में भी सोचे। भारतीय संस्कृति की विशेषता भी मानव-कल्याण की भावना ही है। कहा भी गया है-‘परोपकार ही जीवन है।’ प्रकृति में भी नदियाँ व वृक्ष परोपकार की ही शिक्षा देते हैं। हमें यथाशक्ति व सामर्थ्यानुकूल दूसरों की सहायता करनी चाहिए। तुलसीदास जी ने भी कहा है कि ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ आज के भौतिक युग में आवश्यकता इस बात की है कि हमें अपने स्वार्थ को कम करके दूसरों के कल्याण व उपकार के लिए प्रयास करने चाहिएँ। इसी में मानव की उदारता और मानवता समाहित है। भारत के इतिहास में परोपकार करने वाले अनेक महापुरुषों के नाम हैं जिनसे हमें दूसरों का कल्याण करने की प्रेरणा मिलती है। परोपकार ही मानव का सच्चा धर्म है। हमें सदा परोपकार के कार्य करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
तुम्हारा मित्र
मनोज
पता ……………..
………………… ।

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14. छात्रकोष से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
श्रीमान मुख्याध्यापक,
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
करनाल।
श्रीमान जी,

मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे पिता जी निर्धन मज़दूर हैं। वे मज़दूरी करके जैसे-तैसे परिवार का गुजारा चलाते हैं। मैं इस वर्ष की परीक्षा में प्रथम रहा हूँ। खेलों में भी बराबर भाग लेता हूँ। मैं आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहता हूँ, किन्तु इस वर्ष मेरे पिता जी मेरी पढ़ाई का पूरा व्यय नहीं दे सकते। अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि विद्यालय के छात्रकोष से कुछ रुपये मुझे दिलवाकर मेरी आर्थिक सहायता करने की कृपा करें।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
राम गोपाल
कक्षा दसवीं
अनुक्रमांक-5
दिनांक : 20 मई, 20…… .

15. खेलों के क्षेत्र में और अधिक सुविधाएँ प्रदान करने हेतु मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
एस०डी० उच्च विद्यालय,
फरीदाबाद (हरियाणा)।
विषय- खेल संबंधी सुविधाओं हेतु।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि पिछले वर्ष हमारे विद्यालय की फुटबॉल टीम ने जिला स्तर की खेल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इस सफलता से उत्साहित होकर विद्यालय के अन्य छात्र भी विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए तत्पर हैं। किन्तु स्कूल के खेल के मैदान में अनेक गड्ढे पड़े हुए हैं तथा खेलों का सामान भी पुराना हो गया है। इसलिए आपसे प्रार्थना है कि वालीबॉल, बास्केटबॉल, फुटबाल आदि खेलों के लिए उनके पोल व जाल सही करवाने की कृपा करें। सभी खिलाड़ियों को उनके खेल संबंधी ड्रैस व जूतों की सुविधा प्रदान की जाए। खिलाड़ियों को खेलों में बढ़-चढ़कर भाग लेने के लिए प्रेरित करने हेतु रिफ्रेशमेंट की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाए। सभी खेलों के लिए प्रशिक्षित कोचों को भी अल्पकाल के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए। इससे खिलाड़ियों के हौंसले बुलंद होंगे और वे पहले की अपेक्षा खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे और अपने विद्यालय का नाम रोशन करेंगे।

आशा है कि आप हमारी प्रार्थना की ओर ध्यान देते हुए उपर्युक्त सुविधाएँ शीघ्र ही प्रदान करवाने की कृपा करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
मुनीश कुमार (खेल सचिव)
कक्षा-दसवीं ‘क’
दिनांक : 27 अगस्त, 20….

16. छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
आर्य कन्या उच्च विद्यालय,
नई दिल्ली।
विषय- र्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए आवेदन-पत्र।

श्रीमान जी,
विनम्र निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा की छात्रा हूँ। मैं अब तक पढ़ाई में पूर्ण रुचि लेती रही हूँ और कक्षा में प्रतिवर्ष प्रथम स्थान प्राप्त करती रही हूँ। आठवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा में भी मैंने 90% अंक प्राप्त करके ज़िले में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। मैं पढ़ाई के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेती रही हूँ। निबंध-लेखन प्रतियोगिता में मेरा दूसरा स्थान है और कविता पाठ प्रतियोगिता में मैंने जिला स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

मेरे पिता जी एक छोटे दुकानदार हैं। इस वर्ष निरंतर अस्वस्थ रहने के कारण उनका व्यवसाय ठप्प हो गया है जिसके कारण घर की आर्थिक दशा कमज़ोर हो गई है। फलस्वरूप, मेरे पिता जी मेरी पढ़ाई का खर्च नहीं दे सकते।

आपसे निवेदन है कि मुझे इस वर्ष 150 रुपए मासिक छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें ताकि मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ। आपकी इस कृपा के लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूँगी।

सधन्यवाद।
आपकी आज्ञाकारी शिष्या,
सुषमा
कक्षा दसवीं
अनुक्रमांक-55
दिनांक : 4 मई, 20….

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

17. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें पुस्तक बैंक से सहायता के लिए प्रार्थना की गई हो।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
चंडीगढ़।
विषय- पुस्तक बैंक से सहायता के लिए आवेदन-पत्र।

आदरणीय महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं (क) कक्षा का छात्र हूँ। मैंने इसी वर्ष 80% अंक लेकर नौवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। मैं कक्षा में प्रथम रहा हूँ।
मेरे पिता जी सेवानिवृत्त सैनिक हैं जिनकी पेंशन एक हज़ार रुपए प्रतिमास है। आय का कोई दूसरा साधन नहीं है। मेरे अतिरिक्त मेरा भाई भी सातवीं कक्षा में पढ़ता है। मैं विज्ञान विषय की महँगी पुस्तकें नहीं खरीद सकता। अब तक मैं अपने साथियों से पुस्तकें माँगकर पढ़ता रहा हूँ किंतु परीक्षा के दिनों में मेरे साथी चाहकर भी मुझे पुस्तकें नहीं दे सकेंगे।

अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मुझे विद्यालय के पुस्तक बैंक से विज्ञान विषय की सभी पुस्तकें दिलवाकर अनुगृहीत करें।
मैं आपका अति धन्यवादी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
नरेश कुमार
कक्षा-दसवीं (क)
अनुक्रमांक-46
दिनांक : 22 फरवरी, 20….

18. उपायुक्त हिसार के कार्यालय में क्लर्क/टाइपिस्ट के रिक्त पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
उपायुक्त महोदय, हिसार। विषय-क्लर्क/टाइपिस्ट के पद हेतु आवेदन-पत्र। मान्यवर,
दिनांक 15 जनवरी, 20…. के नवभारत टाइम्स में आपके कार्यालय के लिए क्लर्क/टाइपिस्ट के कुछ पदों के लिए आवेदन-पत्र आमंत्रित किए गए हैं। मैं इस पद के लिए अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी शैक्षणिक योग्यताएँ एवं कार्य अनुभव इस प्रकार हैं-
मैंने हरियाणा शिक्षा बोर्ड से सन् 20.. में बारहवीं कक्षा की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।

मैंने एक वर्षीय हिंदी टंकण एवं आशुलिपि डिप्लोमे की परीक्षा उत्तीर्ण की है। टंकण में मेरी गति 40 शब्द प्रति मिनट है तथा आशुलिपि में लगभग 90 शब्द प्रति मिनट है। मैंने लगभग एक वर्ष श्रीमद्भगवद्गीता उ० मा० विद्यालय, कुरुक्षेत्र में लिपिक के पद पर कार्य किया है। इस समय मैं चीनी मिल, शाहबाद में क्लर्क/टाइपिस्ट के पद पर कार्यरत हूँ।

मैं इक्कीस वर्ष का स्वस्थ युवक हूँ। यदि आप मुझे अपने कुशल निर्देशन में सेवा करने का अवसर प्रदान करेंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपने कार्य और सद्व्यवहार से अपने अधिकारियों को संतुष्ट रखने का हर संभव प्रयास करूँगा।

आवेदन-पत्र के साथ प्रमाण-पत्रों की सत्यापित प्रतियाँ संलग्न हैं।
भवदीय,
रामकुमार वर्मा
108, गीता कॉलोनी,
कुरुक्षेत्र।
दिनांक : 9 सितंबर, 20….

19. किसी उच्च विद्यालय के मुख्याध्यापक को अस्थाई हिंदी अध्यापक के पद हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
चंडीगढ़।
दिनांक : 25 जुलाई, 20………….
विषय- अस्थाई हिंदी अध्यापक के पद हेतु आवेदन-पत्र ।

आदरणीय महोदय,
दिनांक 22 जुलाई, 20…. के समाचार पत्र ‘नवभारत टाइम्स’ में आपके विद्यालय की ओर से अस्थाई हिंदी अध्यापक के पद हेतु विज्ञापन छपा है। इस पद के लिए मैं अपने-आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरा शैक्षिक विवरण एवं योग्यताएँ इस प्रकार हैं-
नाम – सुनील कुमार
पिता का नाम – गिरधारी लाल
जन्म तिथि – 29/8/1990
स्थायी पता – 293, माडल टाऊन, अंबाला।
शैक्षिक योग्यताएँ-दसवीं परीक्षा 85 प्रतिशत अंकों के साथ केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 2006 में उत्तीर्ण की। सीनियर सैंकेंडरी परीक्षा 75 प्रतिशत अंकों के साथ के०मा० शिक्षा बोर्ड से 2008 में उत्तीर्ण की।

स्नातक परीक्षा 70 प्रतिशत अंकों के साथ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (2011) से उत्तीर्ण की। स्नातकोत्तर (हिंदी) परीक्षा 62 प्रतिशत अंकों के साथ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (2013) से उत्तीर्ण की।

अध्यापन में मेरा एक वर्ष का अनुभव है। अनुभव प्रमाण-पत्र संलग्न है। आशा है आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपना काम निष्ठापूर्वक करूँगा।
धन्यवाद सहित।
आवेदक
सुनील कुमार
293, माडल टाऊन, अंबाला।

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20. किसी उच्च विद्यालय के मुख्याध्यापक को लिपिक के पद हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्चतर विद्यालय,
चंडीगढ़।
विषय : लिपिक के पद हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय,
25 अप्रैल, 20…. के साप्ताहिक रोजगार समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन क्रमांक-206 के उत्तर में अपनी सेवाएँ उपरोक्त पद के लिए अर्पित करता हूँ। मेरा परिचय और शैक्षणिक योग्यताएँ निम्नलिखित हैं-
नाम : राजकुमार चौहान
पिता का नाम : श्री महेंद्र सिंह चौहान
जन्म-तिथि : 5 नवंबर, 1993
पत्र-व्यवहार का पता : गाँव व डाकखाना उम्मीदपुर, ज़िला करनाल।
शैक्षणिक योग्यता : मैंने दसवीं कक्षा में 80.1% अंक प्राप्त किए हैं तथा 10 + 2 वाणिज्य में 75% अंक प्राप्त किए हैं। मैंने दो वर्ष का टंकण एवं आशुलिपि का डिप्लोमा किया हुआ है। साथ ही कंप्यूटर
चलाने का ज्ञान भी अर्जित किया है।
कार्य अनुभव : मैं गत छह मास से जे०बी०डी० प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, करनाल में कार्यालय सहायक का कार्य कर रहा हूँ।

आशा है कि आप मुझे अपने कुशल निर्देशन में काम करने का अवसर प्रदान करके अनुग्रहीत करेंगे। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं पूरी ईमानदारी और परिश्रम से काम करूँगा तथा अपनी क्षमताओं का और अधिक परिचय दे सकूँगा।
सधन्यवाद।
भवदीय,
राजकुमार चौहान
गाँव व डाकखाना,
उम्मीदपुर, करनाल।
दिनांक : 6 मई, 20….

21. परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले अपने मित्र को बधाई देते हुए एक पत्र लिखिए।

28-ए, मॉडल टाउन,
लुधियाना।
1 जून, 20….
प्रिय मित्र साहिल,
सस्नेह नमस्कार!
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की दसवीं कक्षा के परिणाम की सूची में तुम्हारा नाम प्रथम स्थान पर मुझे देखकर अत्यंत. प्रसन्नता हुई। मेरे परिवार के सभी सदस्य भी इस सुखद समाचार को पढ़कर बहुत प्रसन्न हैं। प्रिय मित्र, हमें तुमसे यही आशा थी। यह तुम्हारे अथक परिश्रम का ही फल है। तुमने सिद्ध कर दिया है कि सच्चे मन से किया गया परिश्रम कभी असफल नहीं रहता। 94% अंक प्राप्त करना कोई मज़ाक नहीं है।

आशा है कि तुम भविष्य में भी अधिकाधिक परिश्रम और पूरी लगन से अध्ययन करोगे तथा सफलता की ऊँचाइयों को इसी प्रकार छूते रहोगे। इस शानदार सफलता पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करो। अपने माता-पिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई देना न भूलना।
तुम्हारा मित्र,
सरबजीत सिंह

22. अपने मित्र को नव वर्ष के अवसर पर शुभकामना-पत्र लिखिए।

कृष्ण कुमार शर्मा,
मोतीबाग,
नई दिल्ली।
30 दिसंबर, 20….
प्रिय आनंद भूषण,
सप्रेम नमस्कार।
1 जनवरी, 20…. से आरंभ होने वाला यह वर्ष तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के जीवन में सुख-समृद्धि भरने वाला हो। तुम्हारा जीवन खुशियों से भर जाए। इस नव वर्ष में तुम सफलताओं की नई ऊँचाइयों को प्राप्त करो। नव वर्ष की मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करो। परीक्षा के बाद क्या करने का विचार है, अवश्य लिखना।

मेरी ओर से अपने छोटे भाई को स्नेह और माता-पिता को सादर प्रणाम कहना।
तुम्हारा मित्र,
कृष्ण कुमार

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23. जल-संरक्षण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।

अंबाला।
15 मई, 20….
प्रिय सुरेश,
आपका पत्र मिला। पढ़कर ज्ञात हुआ कि आपके नगर में पीने के पानी की बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। इस समस्या के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। हम पानी के महत्त्व को न समझते हुए उसका दुरुपयोग करते हैं। गलियों में और घरों में पानी के नल खुले रहते हैं जिससे पानी व्यर्थ में बहता रहता है। जबकि पानी की एक-एक बूंद कितनी कीमती है। इसलिए हमें पानी को व्यर्थ नहीं बहने देना चाहिए। पानी के संरक्षण के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करनी चाहिए। हमें स्वयं पानी का सदुपयोग करके दूसरों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। वर्षा के पानी को भी टैंक में एकत्रित करके बाद में उसका कृषि के लिए या अन्य कार्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।

वर्षा के पानी को व्यर्थ में न बहने देकर पृथ्वी में गहरा सुराख करके उसमें छोड़ देना चाहिए ताकि जमीन के नीचे के जल का स्तर सही बना रहे जिससे हमें पृथ्वी के नीचे से जल आसानी से मिल सके। प्रिय मित्र किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘जल ही जीवन है।’ जल न केवल मनुष्यों के लिए अपितु पशुओं, जानवरों, पक्षियों, पेड़-पौधों, फसलों आदि सबके लिए अनिवार्य है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए जल संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
अपने माता-पिता को मेरा सादर प्रणाम व छोटी बहन को प्यार कहना।
तुम्हारा मित्र,
शुभम।
पता : श्री रामगोपाल स्वरूप,
मॉडल टाऊन, 158/7,
फरीदाबाद।

24. अपने मित्र को ग्रीष्मावकाश साथ बिताने के लिए निमंत्रण पत्र लिखिए।

तिलक नगर,
नई दिल्ली।
12 मई, 20….
प्रिय मित्र मनोज,
सप्रेम नमस्कार।
आज ही तुम्हारा पत्र मिला। तुमने उसमें ग्रीष्मावकाश के बारे में पूछा है। तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैंने इस बार गर्मी की छुट्टियाँ शिमला में बिताने का निर्णय किया है। हमारे अवकाश 6 जून से आरंभ होने जा रहे हैं। अतः 8 जून को मैं और मेरा भाई राजेश शिमला के लिए रवाना हो जाएँगे। मेरा एक और मित्र भी हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो गया है।

तुम्हें तो पता ही है कि शिमला में मेरे चाचा जी का अच्छा व्यापार है। वे मुझे वहाँ आने के लिए अनेक बार लिख चुके हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम भी हमारे साथ शिमला चलो। शिमला एक पर्वतीय स्थल है। वहाँ की प्रकृति बहुत सुंदर और आकर्षक है। वहाँ चारों ओर चिनार के ऊँचे-ऊँचे वृक्ष हैं। वहाँ की पहाड़ियाँ तो मानो आकाश को स्पर्श करती हैं। वहाँ रहकर हम आस-पास के क्षेत्रों को भी देख सकते हैं। अगर अवसर मिला तो हम ट्रैकिंग करने के लिए जाखू की पहाड़ियों से आगे भी जाएँगे। आशा है कि तुम्हें ग्रीष्मावकाश का यह कार्यक्रम पसंद आएगा। अपनी स्वीकृति शीघ्र भेजें ताकि समुचित व्यवस्था की जा सके।
छोटे भाई को प्यार और माता-पिता को मेरा सादर प्रणाम कहना।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
कमल

25. परीक्षा में असफल रहने वाले भाई को संवेदना-पत्र लिखिए।

15-ए, मॉडल टाउन,
जालंधर।
20 मार्च, 20….
प्रिय रमेश,
सदा खुश रहो!
आज ही आदरणीय पिता जी का पत्र प्राप्त हुआ है। परीक्षा में तुम्हारे असफल रहने का समाचार पढ़कर बहुत दुःख हुआ। मुझे तो तुम्हारे पास होने की पहले ही आशा नहीं थी क्योंकि जिन परिस्थितियों में तुमने परीक्षा दी थी, उनमें असफल होना स्वाभाविक ही था। पहले माता जी अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो गईं, फिर तुम कई दिनों तक बीमार रहे। जिस कष्ट को सहन करके तुमने परीक्षा दी, वह मुझसे छिपा नहीं है। इस पर तुम्हें व्यथित नहीं होना चाहिए। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। तुम अपने मन से यह बात निकाल दो कि परिवार का कोई सदस्य तुम्हारे असफल होने पर नाराज़ है। आगामी वर्ष की परीक्षा के लिए अभी से लगन के साथ परिश्रम करो ताकि अधिकाधिक अंक प्राप्त कर सको। किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो लिखना। माता जी व पिता जी को प्रणाम।
तुम्हारा भाई,
जगदीश चंद्र

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26. माता जी की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए मित्र को संवेदना पत्र लिखिए।

679/13, अर्बन एस्टेट,
लुधियाना।
14 अप्रैल, 20….
प्रिय मित्र श्याम,
मधुर स्मृति।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारी माता जी की असामयिक मृत्यु के बारे में पढ़कर बहुत दुःख हुआ। उनकी मृत्यु का समाचार पढ़कर मैं स्तब्ध रह गया। पहले तो मुझे इस घटना पर विश्वास ही नहीं हुआ। जब चेन्नई से लौटते हुए मैं तुम्हारे पास आया था तब तो वे पूर्णतः स्वस्थ थीं। क्रूर काल के हाथ उनको इतनी जल्दी हमसे छीनकर ले जाएँगे, इसकी मैंने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी।

उनकी ममतामयी मूर्ति रह-रहकर मेरी आँखों के सामने आ जाती है। निश्चय ही उनकी ममतामयी छाया के बिना तुम अपने आपको बहुत असहाय पाते होंगे। मैं इन संकट के क्षणों में तुम्हारे लिए कुछ भी तो नहीं कर सकता। मैं क्या कोई भी कुछ नहीं कर सकता। हम तो केवल यह सोचकर धीरज रख सकते हैं कि सभी प्राणियों का यही अंत है। मेरी परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक सहानुभूति है। इस संवेदना-पत्र द्वारा मैं आपको धीरज धरने के लिए आग्रह करता हूँ। मेरी भगवान से प्रार्थना है कि वे आप सबको इस महान् आघात को सहने की शक्ति प्रदान करें तथा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।
आपका अभिन्न मित्र,
रामकुमार शर्मा

27. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर विषय विशेष की पढ़ाई न होने की शिकायत कीजिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य,
ए०एस० जैन उच्च विद्यालय,
कानपुर।
विषय : गणित की पढ़ाई न होने के विषय में।
श्रीमान जी,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैं आपका ध्यान अपनी कक्षा के गणित विषय की पढ़ाई की ओर दिलाना चाहता हूँ। पिछले एक मास से हमारे यहाँ गणित का पीरियड खाली जा रहा है। जब से श्री रामलाल जी दोबारा पाठ्यक्रम (रिफ्रेशर कोस) के लिए गए हैं, तब से उनके स्थान पर कोई अध्यापक नहीं आया है। इस कारण, हमारा गणित विषय का पाठ्यक्रम अन्य अनुभागों से काफी पीछे रह गया है। उधर छ:माही परीक्षा भी समीप आ गई है। अतः आपसे प्रार्थना है कि शीघ्रातिशीघ्र गणित की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था करवाने की कृपा करें।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
मुकेश
कक्षा-दसवीं (क)
अनुक्रमांक-34
दिनांक : 8 मई, 20….

28. सहायक स्टेशन मास्टर द्वारा किए गए अशिष्ट व्यवहार के विरुद्ध भारत सरकार के रेलमंत्री के नाम पत्र लिखिए।

सेवा में,
रेलमंत्री महोदय,
भारत सरकार,
नई दिल्ली।
श्रीमान जी,
विनम्र निवेदन है कि मैं कल मुंबई जाने वाली गाड़ी में स्थान आरक्षित करवाने के लिए रेलवे स्टेशन, अंबाला छावनी गया। वहाँ श्री रामभज शर्मा सहायक स्टेशन मास्टर यह काम करते हैं। पहले तो वे बीस मिनट तक अपनी सीट पर नहीं आए। जब मैंने उनसे मुंबई जाने वाली गाड़ी में स्थान आरक्षित करवाने के लिए निवेदन किया तो उन्होंने टालमटोल करना चाहा किंतु मैंने उन्हें पुनः प्रार्थना की तो वे मुझसे गुस्से से पेश आए और झगड़ा करने पर उतारू हो गए। उन्होंने मुझे इतने लोगों के सामने अपशब्द भी कहे।।

मान्यवर, मेरा आपसे अनुरोध है कि रामभज शर्मा द्वारा मेरे साथ किए गए अशिष्ट व्यवहार के लिए उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि वे भविष्य में किसी के साथ अभद्र एवं अशिष्ट व्यवहार न करें।
सधन्यवाद।
भवदीय,
मनोहर लाल
108-अंबाला छावनी,
हरियाणा।
दिनांक : 10 अक्तूबर, 20….

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29. अपने नगर में समुचित सफाई बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

सेवा में,
ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी,
ग्वालियर।
महोदय,
निवेदन यह है कि मैं हनुमान बस्ती का निवासी हूँ। यह बस्ती नगर की सबसे पिछड़ी बस्ती है। यहाँ के अधिकतर निवासी अनुसूचित जाति से संबंधित हैं। शायद इसी कारण यह पिछड़ा हुआ क्षेत्र है। नगरपालिका के कर्मचारी भी इस क्षेत्र की सफाई की ओर कोई ध्यान नहीं देते। यद्यपि नगरपालिका की ओर से इस क्षेत्र की सफाई के लिए कर्मचारी नियुक्त किया गया है परंतु वह बहुत कम ही दिखाई पड़ता है। फलस्वरूप, यह क्षेत्र गंदगी का ढेर बनकर रह गया है। नगरपालिका की गाड़ी भी यहाँ गंदगी उठाने कभी नहीं आती। कूड़ा पड़ा रहने के कारण यहाँ मच्छरों का प्रकोप बहुत बढ़ गया है। मच्छरों ने तो यहाँ अपना स्थाई घर बना लिया है। यही कारण है कि नगर में सबसे अधिक मलेरिया यहीं फैलता है। न तो इस क्षेत्र से मच्छर खत्म करने का कोई उपाय किया । गया है और न ही मलेरिया के उपचार का। मच्छरों का मूल कारण गंदगी हैं।

आपसे सविनय निवेदन है कि आप स्वयं कभी इस क्षेत्र में निरीक्षण का कार्यक्रम बनाएँ। आपके निरीक्षण का समाचार सुनते ही नगरपालिका के सफाई कर्मचारी इस क्षेत्र को साफ करने में लग जाएँगे। आशा है आप इस क्षेत्र की सफाई की ओर ध्यान देंगे तथा हमें इस गंदगी से मुक्ति दिलाएँगे।
सधन्यवाद।
भवदीय,
रामप्रसाद सक्सेना
572/13, हनुमान बस्ती,
ग्वालियर।
दिनांक : 16 अगस्त, 20….

30. स्थानीय डाकपाल को अपने मोहल्ले के डाकिए के बारे में एक शिकायत-पत्र लिखिए जो कि नियमित डाक देने नहीं आता।

सेवा में,
डाकपाल महोदय,
इंदिरा नगर,
अहमदाबाद।
मान्यवर,
हमारे मोहल्ले का डाकिया गोपाल राय नियमित रूप से डाक देने नहीं आता। अनेक बार ज़रूरी पत्र घर के बाहर फेंककर चला जाता है। अनेक लोगों के ज़रूरी पत्र खो जाते हैं। पुनः, उसके आने का समय निश्चित नहीं है। वह कभी 11 बजे डाक वितरण करने आता है तो कभी सायं 4 बजे। कभी-कभी तो वह दो-तीन दिनों तक लगातार नज़र ही नहीं आता है।

मोहल्ले के लोगों ने उससे शिकायत की लेकिन वह सुनी-अनसुनी कर देता है। अतः हमारा आपसे अनुरोध है कि आप उसे स्थानांतरित करके किसी कर्तव्यनिष्ठ डाकिए को हमारे मोहल्ले का काम सौंपे। आशा है कि आप हमारी शिकायत की ओर ध्यान देंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय,
राकेश पांडे एवं
मोहल्ले के अन्य लोग।
दिनांक : 2 जुलाई, 20….

31. मोबाइल फोन के अधिक उपयोग से बचने का सुझाव देते हुए मित्र को एक पत्र लिखिए।

854/19 अर्बन एस्टेट,
करनाल।
25 जुलाई, 20….
प्रिय मित्र आर्व,
सप्रेम नमस्ते।
तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर खुशी हुई कि तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे लिए एक स्मार्ट मोबाइल फोन खरीदकर दिया है। आज मोबाइल फोन यद्यपि मानव जीवन की आवश्यकता बन गया है। मोबाइल फोन ने मानव जीवन को अत्यधिक सुविधाएँ प्रदान की हैं। उसमें कैमरे, केल्कुलेटर, रेडियो, कैमरा, गेम, टेप रिकॉर्ड आदि सुविधाएँ हैं। इसके अतिरिक्त इन्टरनेट के द्वारा हम मोबाइल के माध्यम से हर प्रकार की सूचना प्राप्त कर सकते हैं। विद्यार्थी के लिए मोबाइल फोन बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ है। किन्तु यह एक सीमा तक ही लाभदायक है। किन्तु वहीं मोबाइल उस समय हमारे लिए हानिकारक बन जाता है जब हम अनावश्यक चीजें, चित्र देखने लगते हैं तथा पढ़ाई व खेल-कूद सब छोड़कर मोबाइल से चिपके रहते हैं। इससे हमारी पढ़ाई का नुकसान तो होता ही है, हमारे मन व स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए मेरा सुझाव है कि मोबाइल फोन का प्रयोग एक सीमा तक ही उचित है। इसका अधिक उपयोग सदा हानिकारक होता है। इसका उपयोग बिना सोचे-समझे करेंगे तो यह हमारा मित्र नहीं शत्रु बन जाएगा। आशा है कि तुम मेरे सुझाव पर ध्यान देते हुए इसका लाभ ही उठाएँगे।

अपने माता-पिता को सादर प्रणाम व छोटी बहन को प्यार कहना।
तुम्हारा मित्र
रवि प्रकाश

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32. मोहल्ले में असामाजिक तत्त्वों द्वारा तोड़-फोड़ की आशंका व्यक्त करते हुए पुलिस अधीक्षक को एक पत्र लिखिए।

सेवा में,
पुलिस अधीक्षक, कैथल।
विषय : असामाजिक तत्त्वों की रोकथाम हेतु।
महोदय,
मैं कैथल के पटियाला चौक के मकान नं. 455 का निवासी अविनाश चोपड़ा हूँ मेरे घर के आस-पास एक मंदिर, गुरुद्वारा और मस्जिद हैं। जब भी कोई त्योहार आता है तो इन तीनों धार्मिक स्थलों पर चहल-पहल बढ़ जाती है। इस चहल-पहल के दौरान गत वर्षों से कुछ आसामजिक तत्त्व कोई-न-कोई वारदात करते आ रहे हैं। जिससे कभी-कभी जान-माल का नुकसान भी हो जाता है। इस वर्ष भी दो पर्व एक साथ आ रहे हैं जिस अवसर पर गत वर्षों की भाँति तोड़-फोड़ एवं जान-माल की हानि होने की आशंका है अतः आपसे निवेदन है कि आने वाले इन पर्यों पर ऐसी व्यवस्था करें कि किसी प्रकार के जान-माल का नुकसान न हो। सभी लोग अपनी-अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार त्योहार का आनंद उठा सकें।
धन्यवाद।
भवदीय,
अविनाश चोपड़ा
मकान नं. 455,
पटियाला चौक
दिनांक : 18 फरवरी, 20….

33. बिजली की ‘आँख मिचौनी’ से होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए नगर के एस०डी०ओ०, बिजली विभाग, को पत्र लिखिए।

सेवा में,
श्रीमान एस०डी०ओ०,
बिजली विभाग,
सोनीपत।
प्रिय महोदय,
मैं अपने विचार हरियाणा बिजली बोर्ड के अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ। आशा है आप मेरे इन विचारों को मद्देनजर रखते हुए बिजली न होने से, होने वाली परेशानियों को दूर करने का प्रयास करेंगे।

पिछले छह महीनों से राज्य में बिजली सप्लाई की स्थिति काफी खराब चल रही है। कभी बिजली आती है और कभी चली जाती है। यदि हम शिकायत करने जाते हैं तो पॉवर-कट का रटा-रटाया जवाब मिलता है। जून-जुलाई की भयंकर गर्मी के दिनों में सारा दिन बिजली नहीं रहती। गर्मी के दिनों में सारा दिन बिजली न होने से गर्मी के मारे लोगों का बुरा हाल होता है। रात को भी 10 बजे के बाद बिजली चली जाती है। पॉवर न होने के कारण कभी ट्यूबवेल भी नहीं चलते जिससे नगरों में पानी की सप्लाई अवरुद्ध हो जाती है। राज्य के आधे से अधिक लघु उद्योग बिजली न होने के कारण बंद पड़े हैं। इससे बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। बड़े उद्योगों की भी स्थिति खराब है। परीक्षाओं के दिनों में बिजली न होने से विद्यार्थी अपनी पढ़ाई अच्छी तरह नहीं कर पाते। गाँवों में तो हालात और भी खराब है। सप्ताह में दो बार बिजली आती है। उसका भी कोई भरोसा नहीं है। बेचारे किसान बहुत ही परेशान और दुखी हैं। बिजली न होने के कारण ट्यूबवैल नहीं चलते और फ़सलें सूख रही हैं। बिजली न होने का परिणाम यह हुआ है कि राज्य का सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। क्या राज्य सरकार और उसके अधिकारी इस ओर ध्यान देंगे ?
भवदीय,
सोहनलाल नागपाल।

34. ‘दिल्ली परिवहन निगम’ के प्रबंधक को पत्र लिखकर बस कंडक्टर के दुर्व्यवहार की शिकायत कीजिए।

सेवा में,
प्रबंधक महोदय,
दिल्ली परिवहन निगम,
दिल्ली।
महोदय,
कल जब मैं नरेला से नई दिल्ली स्टेशन के लिए जा रही बस में सवार हुआ, तब बस का कंडक्टर किसी सवारी से झगड़ा कर रहा था। मैंने जब इस झगड़े का कारण पूछा तो वह अकारण ही मुझ पर बरस पड़ा और गालियाँ देने लगा। अन्य यात्रियों ने उसके इस दुर्व्यवहार की निंदा की परंतु उस पर कुछ असर न पड़ा। मुझे लगता है कि उसने शराब पी रखी थी। कंडक्टर का नाम रामपाल तथा बस का नं० डी०एल०-1 ए०एच०, 2835 है।

आपसे निवेदन है कि आप कंडक्टर के विषय में पूछताछ करें तथा उसके लिए उचित दंड की व्यवस्था करें ताकि भविष्य में किसी अन्य यात्री से वह अथवा उस जैसा कोई अन्य कंडक्टर दुर्व्यवहार करने का साहस न कर सके।
भवदीय,
राजीव चावला
प्रशांत विहार,
75, नरेला, नई दिल्ली-68
दिनांक : 18 फरवरी, 20….

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35. हरियाणा रोडवेज के जींद डिपो के महाप्रबंधक को अनियमित बस सेवा में सुधार के लिए पत्र लिखिए।

सेवा में,
महाप्रबंधक,
हरियाणा राज्य परिवहन,
जींद डिपो।
महोदय,
निवेदन यह है कि इस पत्र के द्वारा मैं आपका ध्यान जींद डिपो की अनियमित बस सेवा की ओर दिलाना चाहता हूँ। जींद डिपो की बसें आमतौर पर समय पर नहीं आतीं। इससे सामान्य नागरिकों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विद्यार्थियों को कक्षा में पहुँचने में देरी हो जाती है तथा कर्मचारी भी बस सेवा के नियमित न होने के कारण समय पर कार्यालय नहीं पहुंच पाते। इसलिए आपसे प्रार्थना है कि आप अपना ध्यान इस ओर दें ताकि अनियमित बस सेवा में सुधार किया जा सके। मैं आपका अत्यंत आभारी रहूँगा।
सधन्यवाद।
भवदीय,
रमेश कुमार गुप्ता,
672, न्यू हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी, जींद।
दिनांक : 15 मार्च, 20….

36. अपने नगर की टूटी-फूटी सड़कों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अपने नगर-परिषद् के अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए।

सेवा में,
अध्यक्ष महोदय,
नगर-परिषद्,
पटना।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि इस पत्र द्वारा हम आपका ध्यान नगर की सड़कों की दयनीय दशा की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं। नगर की अधिकांश सड़कें टूट चुकी हैं। हम संबंधित अधिकारी को पहले भी कई बार सड़कों के विषय में लिख चुके हैं किंतु अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। सड़कें जगह-जगह से टूटी हुई हैं। कई स्थानों पर गहरे गड्ढे पड़ चुके हैं। वर्षा के दिनों में इनमें पानी भर जाता है और कई बार दुर्घटनाएँ भी हो चुकी हैं। टूटी हुई सड़कों पर पानी जमा हो जाने से मच्छर मक्खियों का प्रकोप भी बढ़ गया है जिससे बीमारी फैलने का भय बना रहता है। नगर की कई सड़कों पर तो इतना पानी जमा हो जाता है कि वहाँ से आना-जाना बड़ा कठिन हो जाता है। आस-पास की बस्तियों में बदबू फैल गई है। अतः आपसे पुनः प्रार्थना है कि नगर की सड़कों की यथाशीघ्र मरम्मत करवाएँ ताकि नगर के लोग सुविधापूर्वक उन पर से आ-जा सकें तथा मच्छर-मक्खियों के प्रकोप से बच सकें।
सधन्यवाद।
भवदीय,
मोहन सिंह
मंत्री, नगर सुधार सभा,
पटना।
दिनांक : 15 मई, 20….

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37. अनुशासन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए अपने अनुज को एक पत्र लिखिए।

शिवानी सदन,
373/37 पटेल नगर,
करनाल,
15 जनवरी, 20 ……….।
प्रिय केशव
शुभाशीष।
तुम्हारा पत्र मिला। ज्ञात हुआ कि तुम्हारा स्कूल 20 जनवरी से खुल रहा है। अब तुम्हें दूसरे सत्र के पाठ्यक्रम की पढ़ाई करवाई जाएगी।

तुम दसवीं कक्षा के विद्यार्थी हो। विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन का अत्यधिक महत्त्व होता है। विद्यार्थी ही नहीं, अपितु प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी अनुशासन का वैसा ही महत्त्व होता है। जो विद्यार्थी अनुशासन का पालन करते हुए अपनी शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे अन्य विद्यार्थियों से अच्छे तो माने ही जाते हैं अपितु उन्हें अपने जीवन में सफलता भी मिलती है। समाज में उनका सम्मान भी होता है। वे माता-पिता के ही नहीं, अपितु सबके स्नेह के अधिकारी बन जाते हैं। सभी उनकी हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। एक के बाद एक सफलता उनके कदम चूमती है। इसके विपरीत अनुशासन के अभाव में किसी प्रकार की सफलता एवं विकास जीवन में नहीं हो सकता। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह समय विद्यार्थी का ज्ञान प्राप्त करने का है जिसके आधार पर उसके भावी जीवन की नींव रखी जाती है।

अतः तुम्हें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अनुशासन के महत्त्व को भी भली-भाँति समझना चाहिए। बाकी मिलने पर। माता-पिता को नमस्ते एवं विशू को प्यार कहना।
तुम्हारी बहन
मान्या

38. अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करते हुए पिता जी को एक पत्र लिखिए।

22, कमला छात्रावास,
हिंदू उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
……… नगर।
15 जनवरी, 20….
पूज्य पिता जी,
सादर चरण वंदना।

आशा है कि आपको मेरा पत्र मिला होगा। उसमें मैंने लिखा था कि मुझे 300 रुपए पुस्तकों और कापियों के लिए चाहिएँ। वस्तुतः एक मित्र के बहकावे में आकर मैंने ऐसा लिख दिया था। वास्तव में, हमारे विद्यालय की ओर से जयपुर के लिए शैक्षणिक यात्रा का कार्यक्रम बनाया गया था। मैं भी इसमें भाग लेना चाहता था। मैंने सोचा आप शायद मुझे जयपुर जाने की अनुमति नहीं देंगे। अतः मित्र के कहने पर मैंने यह लिख भेजा था कि मुझे पुस्तकों और कापियों के लिए पैसों की आवश्यकता है। बाद में आपको झूठ लिखने के अपराध के कारण मुझे आत्मग्लानि हुई। दो दिनों तक तो मेरा मन पढ़ाई में भी नहीं लगा। आज आपको पत्र लिखने के बाद मैं इस बोझ से मुक्त हुआ हूँ। आशा है कि आप मेरी पहली भूल को क्षमा करेंगे। मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाता हूँ कि भविष्य में मैं ऐसी गलती नहीं करूँगा।

यदि आप अनुमति देंगे, तभी मैं शैक्षणिक यात्रा पर जाऊँगा, अन्यथा नहीं। एक बार पुनः क्षमा याचना।
आपका सुपुत्र,
दिनेश

HBSE 10th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

39. चुनाव के दृश्य का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

गुरु नानक खालसा व०मा० विद्यालय,
अमेठी।
15 दिसंबर, 20….
प्रिय राकेश,
सप्रेम नमस्कार।
आशा है कि तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो गई होगी और तुम अपने माता-पिता के काम में हाथ बँटा रहे होगे। प्रिय इस पत्र में मैं अपने गाँव में हुए चुनाव के दृश्य के विषय में लिख रहा हूँ। आशा है तुम्हें यह दृश्य अच्छा लगेगा।

पिछले सप्ताह हमारे गाँव की पंचायत का चुनाव हुआ था। चुनाव की घोषणा होते ही सारे गाँव में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। चुनाव से लगभग पंद्रह दिन पूर्व चुनाव प्रचार आरंभ हो गया था। चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों ने अपने-अपने चुनाव निशान के रंग-बिरंगे पत्रक छपवाकर गली-गली में बाँट दिए थे। प्रतिदिन सुबह-शाम लोगों के घरों में जाकर उम्मीदवार और उनके समर्थक अपने पक्ष में मत देने का आग्रह करते थे। पक्ष और विपक्ष के उम्मीदवार अपनी भावी योजनाओं के बारे में बताते थे और लोगों को अधिक-से-अधिक सुविधाएँ प्रदान करने के वायदे करते थे। गाँव की गलियों की दीवारों पर, पंचायत-घर के सामने आदि सभी स्थानों पर पोस्टर भी चिपका दिए गए थे। विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी चुनाव में मदद के लिए पहुँच गए थे। कुछ उम्मीदवारों ने गरीब लोगों को लालच देकर फुसलाने का भी प्रयास किया था। चुनाव के दिन गाँव में चहल-पहल थी।

पंचायत भवन और गाँव के विद्यालय में दो चुनाव केंद्र बनाए गए थे। जिला मुख्यालय से उप-चुनाव अधिकारी और अन्य कर्मचारी रात को ही गाँव में पहुंच गए थे। उनके साथ कुछ पुलिस कर्मचारी भी थे। लोग प्रातः आठ बजे से ही वोट डालने के लिए पंक्तियों में आकर खड़े हो गए थे। पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी अलग पंक्तियों में खड़ी हुई थीं। मतदान सुबह नौ बजे से सायं पाँच बजे तक चलता रहा। सरपंच के पद के लिए काँटे का मुकाबला था। शांति बनाए रखने के लिए पुलिस को सतर्क कर दिया गया था। सायं छह बजे परिणाम घोषित हुआ। चौधरी फतेह सिंह दो सौ मतों से चुनाव जीत गए। विजयी पक्ष ने ढोल बजाकर खुशियाँ मनाईं।

अपने माता-पिता को मेरा सादर प्रणाम कहना। परीक्षा का परिणाम आने पर पत्र लिखना न भूलना।
तुम्हारा मित्र,
प्रवीण शर्मा

40. विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों की कमी दूर करने के बारे में मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।

सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय हाई स्कूल,
अम्बाला।
आदरणीय महोदय,
निवेदन है कि हम दसवीं ‘क’ कक्षा के विद्यार्थी हैं। हम आपका ध्यान विद्यालय के पुस्तकालय में हिन्दी की पाठ्य पुस्तकों तथा अन्य विषयों की पाठ्य पुस्तकों की कमी की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं। हिन्दी पाठ्य-पुस्तकों की केवल तीन प्रतियाँ ही पुस्तकालय में हैं। इसलिए बहुत दिनों की प्रतीक्षा के पश्चात् ही हमें पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। इससे हमारी पढ़ाई की हानि होती है। यही दशा अन्य विषयों की पुस्तकों की भी हैं। इसलिए हमारी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि पुस्तकालय में पर्याप्त मात्रा में पुस्तकें मँगवाने की कृपा करें। इससे सभी विद्यार्थियों को सुविधा प्राप्त होगी। आशा है कि आप हमारी इस प्रार्थना को स्वीकार करके हमें अनुगृहीत करेंगे।
आपके आज्ञाकारी शिष्य
कक्षा दसवीं ‘क’
दिनांक 26 जुलाई, 20 ……

41. योग का महत्त्व बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।

548, गाँधी नगर,
सोनीपत।
8 जनवरी, 20…….
प्रिय मुकुल
प्रसन्न रहो।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला, पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि तुम इस वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहे हो। तुम्हारा मित्र होने के नाते मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी अनिवार्य है। इसके लिए तुम्हें नियमित योगाभ्यास करना चाहिए। योग करने से शरीर और मन दोनों को लाभ पहुँचता है। योग से शरीर सुन्दर एवं सुगठित बनता है। योग से शारीरिक-तन्त्र सुचारु रूप से कार्य करता है एवं पाचन-शक्ति भी बनी रहती है। योग से चेहरे की आभा भी बढ़ती है। योग का प्रभाव न केवल शरीर पर, अपितु मन पर भी पड़ता है। कहा भी गया है जैसा तन वैसा मन । स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। इसलिए तुम्हें नियमित रूप से योग का अभ्यास करना चाहिए।

अपने माता-पिता जी को मेरी ओर से सादर प्रणाम कहना।
तुम्हारा मित्र,
निशांत शर्मा

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42. अपने जिले के उपायुक्त को बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने के लिए पत्र लिखिए।

सेवा में
उपायुक्त महोदय,
समस्तीपुर।
दिनांक : 15 जुलाई, 20………….
विषय- समस्तीपुर जिले में बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए पत्र।
महोदय,
बिहार में आई भयंकर बाढ़ को देखते हुए मैं आपसे यह आग्रह करना चाहता हूँ कि समस्तीपुर के बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएँ। राष्ट्रीय समाचार-पत्रों में इस बाढ़ के बारे में अनेक समाचार प्रकाशित हुए हैं। इस बात को लेकर बिहार सरकार की आलोचना की गई है कि सरकार की ओर से आवश्यक कदम नहीं उठाए जा रहे। अतः आप इस दिशा में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करें।

बाढ़ से ग्रस्त हुए पीड़ितों के पास तत्काल राहत सामग्री पहुंचाई जाए। समाज के पिछड़े और गरीब लोगों में उपभोग की . आवश्यक वस्तुएँ मुफ्त बाँटी जाएँ। जिनके मकान इस बाढ़ में गिर गए हैं, उनको तत्काल अनुदान धनराशि दी जाए। इस बाढ़ से मलेरिया आदि बीमारियाँ फैल सकती हैं, इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं को सक्रिय किया जाए और बाढ़ से प्रभावित रोगियों के मुफ्त उपचार की तत्काल व्यवस्था भी की जाए। बाढ़ से जो सड़कें टूट गई हैं, उनकी मुरम्मत कराई जाए। विशेषकर, नदियों के बाँधों को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएँ। बाढ़ के कारण जिन किसानों की फसलें नष्ट हो गई हैं, उनका सर्वेक्षण करके तत्काल एक रिपोर्ट कृषि मंत्रालय को भेजी जाए ताकि किसानों के लिए कुछ अतिरिक्त सुविधाओं की घोषणा की जा सके। इस पत्र के साथ मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए पाँच लाख रुपए का एक ड्राफ्ट भेजा जा रहा है।

आशा है आप इस दिशा में शीघ्र तथा आवश्यक कदम उठाएँगे।
आपका विश्वास भाजन,
कृष्ण मोहन

43. प्रातःकालीन भ्रमण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए अपने अनुज को एक पत्र लिखें।

11/5 विवेकानन्द नगर,
करनाल।
18 जनवरी, 20….
प्रिय अभिषेक
शुभाशीष।
कल ही तुम्हारे छात्रावास के प्रमुख प्रबन्धक का पत्र मिला। पढ़कर तुम्हारी परीक्षा के परिणाम का पता चला कि तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हो किन्तु साथ ही यह लिखा है कि तुम प्रातः देर से उठते हो और भ्रमण के लिए नहीं जाते। प्रातः भ्रमण करना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभकारी है। प्रातःकाल में शुद्ध एवं स्वच्छ वायु बहती है जो हमारे जीवन में स्फूर्ति एवं चुस्ती उत्पन्न करती है। उस समय प्राकृतिक दृश्य भी अत्यन्त मनोरम होते हैं जिन्हें देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। प्रातःकाल की सूर्य की किरणें जहाँ नीरोगता बढ़ाती हैं, वहीं आँखों की रोशनी के लिए लाभदायक होती हैं। प्रातःकाल के भ्रमण से स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है।

प्रिय अनुज मुझे आशा है कि तुम मेरे इस पत्र को पढ़कर प्रातः शीघ्र उठकर भ्रमण के लिए नियमित रूप से जाओगे और कभी शिकायत का अवसर नहीं दोगे।
तुम्हारा भाई,
हितेश

44. मित्र को पत्र लिखिए जिसमें किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा का वर्णन किया गया हो।

232/13, अर्बन एस्टेट
कुरुक्षेत्र।
11 जुलाई, 20….
प्रिय मित्र अरविंद,
नमस्ते।
कल तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि तुम अपना ग्रीष्मावकाश बिताने के लिए उदयपुर गए थे। मैं भी अपने बड़े भाई के साथ इस बार धर्मशाला पर्वतीय क्षेत्र में गर्मी की छुट्टियाँ व्यतीत करने गया था। इस यात्रा का वर्णन मैं तुम्हें पत्र में लिखकर भेज रहा हूँ।

15 जून को हम कुरुक्षेत्र से चंडीगढ़ पहुंचे। वहाँ से 11 बजे हमने धर्मशाला की बस पकड़ी और सायं 7 बजे हम पालमपुर पहुँच गए। पालमपुर के छात्रावास में हमें रहने के लिए स्थान मिल गया। छात्रावास का भवन सड़क के किनारे बना हुआ है। पास में ही हिमाचल प्रदेश का कृषि विश्वविद्यालय है। लगभग सभी पहाड़ियाँ घने वृक्षों से ढकी हुई हैं। धौलाधार की ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ यहाँ से साफ़ नज़र आती हैं। जून के महीने में भी रात को काफी सरदी थी जिसके कारण हमें कंबल किराए पर लेने पड़े। अगले दिन हम धर्मशाला के लिए रवाना हुए। लगभग 12.00 बजे हम धर्मशाला पहुँचे। हम धर्मशाला से आगे मकलोड़गंज भी गए। यह इस क्षेत्र की सबसे ऊँची पहाड़ी है। यहीं पर धार्मिक नेता दलाईलामा का निवास स्थान तथा प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर है। इस क्षेत्र के चारों ओर चिनार के ऊँचे-ऊँचे वृक्ष हैं। सामने की पहाड़ियाँ बर्फ से ढकी रहती हैं। लगभग दो बजे ज़ोरदार वर्षा हुई जिससे सरदी काफ़ी बढ़ गई। हमने वहाँ रात एक होटल में काटी। अगले दिन हम पहाड़ियों से उतरते हुए नीचे धर्मशाला में आए। यह काफी बड़ा नगर है। पहाड़ियों पर बने हुए घर काफी सुंदर लगते हैं। यहाँ का पार्क तो बहुत ही सुंदर है जो कि शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया है। यहाँ पर भी आस-पास पहाड़ी झरने, सुंदर वृक्ष और छोटी पहाड़ियाँ हैं। दो दिन यहाँ पर रहने के बाद हम लौट पड़े। धर्मशाला से लेकर नंगल तक सारा रास्ता पहाड़ी है। मार्ग में हमने काँगड़ा, ज्वालाजी तथा चिंतपूर्णी के प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन किए। इस प्रकार से हमारी पर्वतीय यात्रा काफी रोचक रही।

माता जी और पिता जी को मेरी ओर से प्रणाम कहना।
आपका अभिन्न मित्र,
पंकज

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45. अपने गाँव में पुलिस चौकी बनवाने के लिए पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में,
पुलिस अधीक्षक,
औरंगाबाद।
विषय : गाँव में पुलिस चौकी बनाने हेतु प्रार्थना-पत्र।
आदरणीय महोदय,
विनम्र निवेदन है कि हम रामपुर गाँव के निवासी हैं। हमारा गाँव जिले की सीमा पर स्थित है। हमारे गाँव का थाना गाँव से पंद्रह मील की दूरी पर स्थित है। इसलिए थाने से पुलिस कर्मचारी गाँव को पूर्णतः अपने नियंत्रण में नहीं रख सकते। गाँव में कई बार चोरी भी हो चुकी है। इसलिए गाँव के लोगों में दहशत फैली हुई है। वे अपने आपको असुरक्षित अनुभव करते हैं। इसलिए आपसे प्रार्थना है कि आप हमारे गाँव में एक पुलिस चौकी स्थापित करने की कृपा करें ताकि गाँव के लोगों की असुरक्षा की भावना दूर हो जाए और झगड़े इत्यादि न हों। हमें पूर्ण आशा है कि आप हमारी इस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए गाँव में पुलिस चौकी स्थापित करके हमें अनुगृहीत करेंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय,
रामपुर गाँव के निवासी
दिनांक : …………….

46. छात्रावास में पौष्टिक खाद्य सामग्री न मिलने की शिकायत करते हुए मुख्याध्यापक को एक पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदय,
एस०डी० उच्च विद्यालय।
अम्बाला छावनी।
आदरणीय महोदय।
निवेदन है कि मैं विद्यालय की दसवीं ‘ख’ श्रेणी का विद्यार्थी हूँ और छात्रावास में रहता हूँ। छात्रावास में कई मास से पौष्टिक खाद्य सामग्री का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इससे छात्रावास में रहने वाले छात्रों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कुछ छात्र तो पेट दर्द से पीड़ित रहने लगे हैं। हमने छात्रावास के संचालक महोदय को भी इस विषय में लिखा था। किन्तु हमारी बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। खाद्य सामग्री की जो सूची बनाकर दी जाती है, उसके मुताबिक खाद्य सामग्री नहीं लाई जाती। इससे न केवल छात्रों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, अपितु स्कूल के छात्रावास की बदनामी भी हो रही है।

अतः आपसे प्रार्थना है कि हमारी इस शिकायत को ध्यान में रखते हुए इस समस्या का समाधान शीघ्र-अति-शीघ्र करने की कृपा करें।
धन्यवाद।
भवदीय,
मोहन
कक्षा दसवीं ‘क’
छात्रावास कक्ष संख्या-5
दिनांक : 18 मई, 20…..

47. छात्रावास में रहने के लाभों पर प्रकाश डालते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।

कमरा नं. 18, छात्रावास
डी०ए०वी० उच्च विद्यालय
फरीदाबाद।
15 मई, 20…..
प्रिय मुकेश,
आपका पत्र कल ही मिला। पढ़कर मालूम हुआ कि मेरे छात्रावास में आ जाने के कारण तुम कुछ अकेलापन अनुभव करते हो। मैं तो कहता हूँ कि तुम भी छात्रावास में आ जाओ। छात्रावास में रहने के अनेक लाभ हैं। छात्रावास जीवन का अपना ही आनन्द है, जिसका वर्णन करना कठिन है।

हमारे छात्रावास का भवन बिल्कुल नया है। उसके हर कक्ष में लाईट, पंखे आदि की समुचित व्यवस्था है। वहाँ चारों ओर हरे-भरे पेड़ लगे हुए हैं। प्रकृति की गोद में बने इस छात्रावास में पढ़ाई का वातावरण है।

हमें सुबह पाँच बजे जगा दिया जाता है। हम शौच आदि से निवृत्त होकर घूमने जाते हैं तथा कुछ हल्का-फुल्का व्यायाम भी करते हैं जिससे हमारा शरीर तंदरूस्त रहता है। स्नानादि के पश्चात् हमें नाशता दिया जाता है। तत्पश्चात् हम विद्यालय में चले जाते हैं। विद्यालय की छुट्टी के पश्चात् हमें दोपहर का भोजन दिया जाता है। यहाँ का भोजन अत्यन्त पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होता है। छात्रावास संरक्षक श्री मनमोहन शर्मा बहुत हँसमुख किन्तु अनुशासन में विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं। जो हमारी हर प्रकार से सहायता करते हैं। छात्रावास में हर कार्य की समय-सारणी बनी हुई है। खेल के समय खेल और पढ़ाई के समय केवल पढ़ाई।

महीने में एक दिन रात्रि के समय मनोरंजन के लिए सभा का आयोजन किया जाता है। इसमें हम लोग कविता, कहानी चुटकुले, गीत आदि का आनन्द लेते हैं। रात्रि के भोजन के पश्चात् कुछ समय पढ़ने के पश्चात् ठीक साढ़े दस बजे सो जाते हैं। छात्रावास में आने पर मेरा परिचय कई विद्यार्थियों से हुआ है। वे भी मेरे मित्र बन गए हैं। यहाँ आने पर सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि मैं अपने सब कार्य स्वयं करता हूँ अर्थात् आत्मनिर्भरता का गुण मैंने यहाँ रहकर ही सीखा है। छात्रावास के जीवन के और भी अनेक लाभ हैं जिनका वर्णन मैं तुमसे मिलकर करूँगा।

अपने माता-पिता जी को मेरा सादर प्रणाम एवं छोटी बहन को प्यार कहना।
तुम्हारा मित्र
प्रेमनाथ।

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48. अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें महाकुंभ के मेले का वर्णन किया गया हो।

305, वेस्ट पटेल नगर,
नई दिल्ली।
15 फरवरी, 20….
प्रिय मित्र
राकेश,
सप्रेम नमस्कार।
दो दिन पूर्व तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि तुम पिछले सप्ताह ‘वैष्णो देवी’ गए थे। मैं भी आज ही महाकुंभ के मेले से लौटकर आया हूँ। इस पत्र में मैं इस महा मेले का वर्णन कर रहा हूँ।

यह तो तुम्हें ज्ञात ही है कि महाकुंभ के अवसर पर हिंदुओं के लिए प्रयाग स्थान का विशेष महत्त्व है। अतः लाखों की संख्या में हिंदू इलाहाबाद पहुंचते हैं। यद्यपि यात्रियों को असंख्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथापि उनके उत्साह में किसी प्रकार की कमी नहीं आती। इस वर्ष फरवरी महीने में कुंभ का पावन पर्व था। लाखों की संख्या में लोग इलाहाबाद पहुँचने लगे। रेल मंत्रालय की ओर से पूरे भारतवर्ष से विशेष रेलगाड़ियाँ चलाई गई थीं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विशेष प्रबंध किया गया था। पुलिस के दस्ते पूरी चौकसी रखे हुए थे। स्थान-स्थान पर सरकार की ओर से सस्ते राशन की दुकानें खोली गई थीं। लाखों साधु-संत इस अवसर पर उपस्थित थे। स्थान-स्थान पर धार्मिक प्रवचनों का प्रबंध था।

मैं अपने माता-पिता के साथ महाकुंभ के दूसरे दिन ही पहुँच गया था। बड़ी मुश्किल से हमें धर्मशाला में रहने का स्थान मिला। अगले दिन प्रातः नौ बजे हम त्रिवेणी में पवित्र स्नान करने गए। स्त्रियों के स्नान के लिए अलग व्यवस्था थी। उस दिन हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी प्रयाग में स्नान किया। स्नान करने में हमें कोई विशेष असुविधा नहीं हुई। लगभग एक बजे हम पूजा-पाठ समाप्त करके धर्मशाला में लौट आए।

महाकुंभ के मेले का दृश्य देखने योग्य था। श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिक्षण बढ़ती ही जा रही थी। स्त्रियाँ और पुरुष भजन-कीर्तन करते हुए त्रिवेणी की ओर बढ़ रहे थे। विभिन्न घाटों पर पुरोहित दान-दक्षिणा ले रहे थे। अगले दिन प्रातः पुनः स्नान करने के पश्चात् हम लोगों ने वापस आने का निर्णय लिया।

महाकुंभ का मेला भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। यही नहीं, यह राष्ट्रीय एकता का भी परिचायक है। मेले में सभी जातियों के लोग भाग लेते हैं। यद्यपि लोगों को अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं तथापि उनकी आध्यात्मिक रुचि कम नहीं होती।
परिवार के सभी लोगों को मेरी ओर से यथायोग्य अभिवादन कहें।
आपका अभिन्न मित्र,
राजीव कुमार

49. माता-पिता की आज्ञा का पालन करने पर बल देते हुए छोटे भाई को एक पत्र लिखिए।

कमरा नं0 45
छात्रावास
विवेकानन्द उच्च विद्यालय
सिरसा।
दिनांक : 15 मई, 20………….
प्रिय राजेश
कल ही पिता जी का पत्र मिला, पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई कि तुम आठवीं कक्षा में 65% अंक लेकर उत्तीर्ण हुए हो। साथ ही यह जानकर कुछ निराशा भी हुई कि तुम माता-पिता का कहना न मानकर दोस्तों के साथ घूमते रहते हो। प्रिय राजेश माता-पिता से बढ़कर हमारा कोई भी हितैषी नहीं हो सकता। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि माता-पिता के चरणों में ही स्वर्ग है। तुम बहुत समझदार हो। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना तो सन्तान का परम-कर्त्तव्य है। उनकी आज्ञानुसार चलकर हम जीवन में बड़ी से बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
प्रिय राजेश मुझे तुमसे पूर्ण आशा है कि भविष्य में तुम पिता की आज्ञा का पूर्णतः पालन करते हुए अपने जीवन को उज्ज्वल बनाओगे।
माता-पिता को सादर प्रणाम एवं मुन्ना को प्यार कहना।
तुम्हारा भाई
पुनीत।

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50. कुसंगति से बचाव का सुझाव देते हुए अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए।

436-बी, विश्वकर्मा मार्ग,
रोहतक।
28 सितंबर, 20….
प्रिय मुकेश,
सदा प्रसन्न रहो।
आज ही तुम्हारे विद्यालय के मुख्याध्यापक का पत्र मिला। यह जानकर अत्यंत दुःख हुआ कि आजकल तुम पढ़ाई में मन न लगाकर कक्षा से गायब रहने लगे हो, जिसके परिणामस्वरूप तुम विद्यालय की मासिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहे।

प्रिय भाई, तुम तो जानते ही हो कि कितनी कठिनाई से हम तुम्हें पढ़ा रहे हैं। यदि तुम कुसंगति में पड़कर अपना जीवन नष्ट करोगे तो हमारे साथ-साथ माता-पिता को भी ठेस पहुंचेगी।
अतः तुम समय के महत्त्व को पहचानो। जीवन के अमूल्य क्षणों को व्यर्थ न गँवाकर अपनी पढ़ाई में मन लगाओ। कुसंगति से दूर रहकर ही तुम माता-पिता के स्वप्न को साकार कर सकते हो।
आशा करता हूँ कि तुम कक्षा में नियमित रूप से उपस्थित होकर पढ़ाई में मन लगाओगे। मुझे तुम्हारे चरित्र की पवित्रता का पता है। तुम अपने लक्ष्य को कभी भी नहीं भूलोगे परंतु मुझे यह भी ज्ञात है कि बुरी संगति बुद्धि हर लेती है, इसलिए उससे मैं तुम्हें सावधान करता हूँ। शेष मिलने पर।
तुम्हारा भाई,
रोशन लाल

51. अपने छोटे भाई को खेलों का महत्त्व बताते हुए पत्र लिखें।

238, गांधी नगर,
हाँसी।
तिथि : 25.03.20…….
प्रिय रमन,
खुश रहो!
तुम्हारा पत्र कुछ दिन पूर्व प्राप्त हुआ था, किंतु परीक्षा के कार्य में व्यस्त होने के कारण तुम्हें पत्र लिखने में देर हो गई है। आज छुट्टियों के बाद तुम्हारा स्कूल खुल गया होगा। इसलिए मैं तुम्हें पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का महत्त्व भी बताना चाहता हूँ। प्रिय रमन, यह आयु जिसमें तुम इस समय हो, बड़ी चंचल और बेफिक्री की होती है। इस अवस्था में यह जानकारी नहीं होती कि थोड़ी-सी सावधानी से भविष्य कितना उज्ज्वल हो सकता है तथा थोड़ी-सी असावधानी से कितनी हानि हो सकती है। तुम पढ़ने में बहुत लायक हो, इसमें संदेह नहीं है। किंतु पढ़ने के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य होना भी जरूरी है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना पढ़ाई का कोई लाभ नहीं। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी नियमित रूप से भाग लेना आवश्यक है। किसी ने ठीक ही कहा है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।
मेरी ओर से पूज्य माता-पिताजी को सादर प्रणाम कहना। पत्र का उत्तर शीघ्र देना।

तुम्हारा भाई,
मुनीश

पता-
रमन कुमार
36, अर्बन अस्टेट, भिवानी।

52. व्यायाम के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।

करनाल।
8 जनवरी, 20…….
प्रिय मुकुल
प्रसन्न रहो।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला, पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि तुम इस वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहे हो किन्तु साथ ही यह भी लिखा है कि तुम बार-बार बीमार पड़ते रहे हो। तुम्हारा मित्र होने के नाते मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी अनिवार्य है। इसके लिए तुम्हें नियमित व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने से शरीर और मन दोनों को लाभ पहुँचता है। व्यायाम से शरीर सुन्दर, सुगठित, स्वस्थ और सुडौल बनता है। व्यायाम से शारीरिक-तन्त्र एवं पाचन-शक्ति भी बनी रहती है। व्यायाम का प्रभाव न केवल शरीर पर, अपितु मन पर भी पड़ता है। कहा भी गया है जैसा तन वैसा मन। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। इसलिए तुम्हें नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।

अपने माता-पिता जी को मेरी ओर से प्रणाम कहना।
तुम्हारा मित्र,
निशांत शर्मा

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53. पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।

म.न. 818
सेक्टर-39,
करनाल।
दिनांक-16 मई, 20….
प्रिय मित्र,
कुछ दिन पूर्व तुम्हारा पत्र मिला था। पढ़कर पता चला कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी। प्रिय मित्र, आजकल हरियाणा व पंजाब में तो पराली व गेहूँ के अवशेष को जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। इस समय धान की फसल काटी जा रही है और सरकार के द्वारा पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भी किसान पराली को जला रहे हैं, जिसके कारण वायु प्रदूषण इस कद्र बढ़ गया है कि साँस लेना भी कठिन हो रहा है। घर से बाहर निकलते ही धुएँ के कारण आँखों में जलन होने लगती है और गले में खाँसी उठती है। पराली के धुएँ से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यदि इसका कोई समाधान नहीं निकाला गया तो यह देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी। इससे लोगों को फेफड़ों संबंधी अनेक बीमारियाँ लग सकती हैं। यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है। सरकार को शीघ्र ही इस समस्या का कोई समाधान अवश्य निकालना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसानों व अन्य लोगों में वायु प्रदूषण के प्रति जागरूकता भी लानी होगी। उम्मीद है कि निकट भविष्य में कोई-न-कोई समाधान तो अवश्य ही निकलेगा तभी हम पर्यावरण सुरक्षित रह सकेंगे।

प्रिय मित्र अपने माता-पिता को सादर प्रणाम करना और छोटी बहन को प्यार देना।
तुम्हारा मित्र
प्रवेश कुमार।

54. विद्यालय में शौचालय की व्यवस्था हेतु मुख्याध्यापक को प्रार्थना पत्र लिखिए।

सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय,
जलगाँव (फतेहाबाद)।
विषय- विद्यालय में शौचालय की व्यवस्था हेतु।

श्री मान जी,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में लड़के-लड़कियों के लिए केवल एक-एक ही शौचालय है। सभी विद्यार्थी लाइनों में लगे रहते हैं एवं गन्दगी की वजह से भी बहुत परेशानी होती है। निकासी की व्यवस्था भी उचित नहीं है। बीमारी फैलने की पूर्ण संभावना है।

इस विद्यालय का विद्यार्थी होने के नाते मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि अन्य शौचालयों की व्यवस्था करवाई जाए। विद्यालय के इस कार्य में हम सभी छात्र आपका पूर्ण सहयोग करेंगे।
धन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
साहिल चौधरी
कक्षा-दसवीं ‘ख’
29 अगस्त, 20……

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HBSE 10th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Rachana Nibanbh-Lekhan निबंध-लेखन Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Rachana निबंध-लेखन

रचना निबंध-लेखन HBSE 10th Class Hindi

निबंध-लेखन

1. हमारा प्यारा भारतवर्ष

संकेत : भूमिका, नामकरण, प्राचीन इतिहास, भारत-विविधताओं का देश, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।

राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। जिस भूमि के अन्न-जल से मानव का शरीर बनता है, विकसित होता है, उसके प्रति अनायास प्रेम, श्रद्धा तथा लगाव पैदा हो जाता है। सभी प्राणी अपनी जन्मभूमि से प्यार करते हैं तथा जिससे प्यार किया जाता है, उसकी हर वस्तु में सौंदर्य नज़र आता है। हम भारतवासियों को भी अपने देश से प्रेम है, हमें यहाँ की हर वस्तु में सौंदर्य दिखाई देता है। यह देश इतना पवित्र तथा गरिमामय है कि देवता भी यहाँ जन्म लेने के लिए ललायित रहते हैं। अपनी जन्मभूमि हमें स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा भी गया है
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
हमारे देश का नाम ‘भारत’ या ‘भारतवर्ष’ है। पहले इसका नाम आर्यावर्त था। कुछ विद्वानों का मानना है कि दुष्यंत तथा शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत प्रसिद्ध हुआ। इसे ‘हिंदुस्तान’ भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे ‘इंडिया’ भी कहते हैं।

मेरा महान देश सब देशों में शिरोमणि है। आधुनिक उत्तर भारत में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक, पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में असम तक फैला है। प्रकृति ने इसकी देह को एक देवी का रूप दिया है। बर्फ की चोटियों से ढका हिमालय इसके सिर पर मुकुट के समान है। अटक से कटक तक इसकी बाँहें फैली हैं। दक्षिण में कन्याकुमारी इसके चरण हैं, जिन्हें हिंद सदा धोता रहता है।

भारत का अतीत स्वर्णिम रहा है। एक समय था, जब यह सोने की चिड़िया कहलाता था। यह देश धन-धान्य तथा सौंदर्य से विभूषित था। इसी देश ने ज्ञान की किरणें पूरे विश्व में फैलाईं। इस देश पर मुसलमानों, मुगलों और अंग्रेज़ों ने आक्रमण करके यहाँ अपना राज्य स्थापित किया और इसे लूटा। पर हमारे देश के वीर सैनिकों व क्रांतिकारियों ने 15 अगस्त, 1947 को देश को स्वतंत्र करवाया और आज हमारा भारत हर क्षेत्र में उन्नत और शक्तिशाली होता जा रहा है।

भारत विविधताओं का देश है। यहाँ पर पहाड़ियाँ भी हैं और समुद्र भी हैं, हरियाली भी है, तो रेगिस्तान भी हैं। यहाँ गर्मी, सर्दी, पतझड़, बसंत हर प्रकार के मौसम हैं। यहाँ हर धर्म के लोग रहते हैं- सिक्ख, ईसाई, हिंदू, मुस्लिम आदि। यहाँ मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा और गिरजाघर भी हैं। यहाँ अनेक भाषाएँ हिंदी, पंजाबी, उड़िया, तमिल, उर्दू, मलयालम आदि बोलने वाले लोग रहते हैं। यहाँ खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, धर्म तथा विचारों आदि में विविधता है। परंतु सभी भारतवासी एक परिवार के समान रहते हैं और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना में विश्वास करते हैं। यह विविधता ही भारत की शान है और हमारी उन्नति का कारण है।

भारत का प्राकृतिक सौंदर्य सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ एक ओर कश्मीर में धरती का स्वर्ग दिखलाई पड़ता है, तो दूसरी ओर केरल की हरियाली आनंद देने वाली तथा मन को मोह लेने वाली है। यहाँ सभी ऋतुएँ समय पर आती हैं तथा अपनी विविध विशेषताओं से धरती को अनूठी छटा से भर देती हैं। इस देश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करते हुए कवि रामनरेश त्रिपाठी ने लिखा है-
शोभित है सर्वोच्च मुकुट से, जिनके दिव्य देश का मस्तक
गूंज रही हैं सकल दिशाएं, जिनके जयगीतों से अब तक
भारत अत्यंत प्राचीन देश है। यहाँ अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, जिन्होंने विश्व को सत्य, अहिंसा तथा सर्वधर्म सद्भाव का पाठ पढ़ाया। ज्ञान के क्षेत्र में सारा विश्व भारत का ऋणी है। इसी पर विज्ञान का ढाँचा टिका हुआ है। ज्ञान का भंडार होने के कारण भारत को ‘जगद्गुरु’ तथा धन-वैभव के कारण ‘सोने की चिड़िया’ कहा गया।

आज भारत लगभग हर क्षेत्र में आत्म-निर्भर है। देश में उद्योग-धंधों का जाल-सा विछा हुआ है और विश्व के विकासशील देशों में अग्रणी स्थान प्राप्त है। परंतु दुर्भाग्य से हर प्रकार की संपन्नता होकर पर भी भारत का वर्तमान निराशा से भरपूर है। आज भारत में धर्म, भाषा तथा जाति के आधार पर झगड़े होते रहते हैं। भ्रष्टाचार ने चारों ओर अपने पाँव पसार लिए हैं। महँगाई आसमान को छू रही है। इस प्रकार मेरा देश भारत अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है। हम सभी का कर्तव्य है कि देश को इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में अपना योगदान दें, जिससे देश अपना गौरव फिर से प्राप्त कर सके।

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2. नोटबन्दी का एक वर्ष

नोटबंदी’ का अर्थ है कि जब पुराने नोट बंद कर दिए जाएँ और उनके स्थान पर नए नोटों का प्रचलन हो। नोटबंदी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पुरानी मुद्रा को कानूनन प्रचलन से बाहर कर दिया जाता है और उसके बदले नई मुद्रा या नोट छाप दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को देखने से पता चलता है कि नोटबंदी से जब नए नोट समाज में आ जाते हैं तो पुराने नोटों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। पुराने नोटों को बैंकों में बदलवाया जा सकता है। नोटों को बदलवाने के लिए भी समय निर्धारित किया जाता है।

नोटबंदी करना क्यों आवश्यक होता है? वस्तुतः समाज में भ्रष्टाचार, कालाधन, नकली नोट, महँगाई व आतंकवाद जैसी गतिविधियों पर काबू पाने के लिए नोटबंदी की जाती है। आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। नोटबंदी से ऐसा धन पकड़ा जाता है। नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबंदी करना अनिवार्य हो जाता है।

भारतवर्ष कोई अकेला ऐसा देश नहीं जहाँ नोटबंदी लागू की गई हो। यूरोप में भी यूरो नाम की नई करेंसी चलाई गई थी। तब पुराने नोट बैंकों में जमा करवा दिए गए थे। यूरोप में इस नोटबंदी से बहुत बड़ा बवाल मचा था। जिम्बाब्बे में भी महंगाई पर लगाम कसने के लिए सन् 2014 में नोटबंदी का प्रयोग किया गया था।

भारतवर्ष में भी यह कोई प्रथम बार नोटबंदी नहीं थी। इससे पूर्व भी यहाँ कई बार नोटबंदी हो चुकी है। भारत में प्रथम बार सन् 1946 में 500, 1000 तथा 10,000 के नोटों की नोटबंदी की गई थी। मोरारजी देसाई के शासनकाल में भी नोटबंदी हुई थी। भारत में 2005 ई० में मनमोहन सिंह की सरकार ने भी 500 रुपए के नोटों को बदला था। इसके अतिरिक्त छोटे सिक्कों का प्रचलन भी अब नहीं होता। उन्हें भी अब बंद कर दिया गया है।

सन् 2016 की 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी की कहानी ही अलग है, क्योंकि इन दो करेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 86% भाग को अपने कब्जे में किया हुआ था। बाज़ार में इन्हीं नोटों का अधिक प्रचलन होता था।

8 नवम्बर, 2016 को जब रात्रि 8:15 पर घोषणा हुई कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी कुछ घोषणाएँ करने जा रहे हैं तो लोगों को उम्मीद थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाली नोक-झोंक सम्बन्धी कोई नई घोषणा करेंगे। किन्तु उन्होंने 500 और 1000 रुपए नोटों की नोटबंदी करके सबको हैरान कर दिया। प्रधानमंत्री की इस घोषणा से कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ हुईं। कुछ लोग प्रधानमंत्री की नोटबंदी का समर्थन कर रहे थे तो कुछ विरोध। कुछ तो इस नोटबंदी को खारिज करवाने के लिए सड़कों पर भी उतर आए थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। नोटबंदी के अगले दिन ही बैंकों में नोट बदलवाने के लिए लम्बी-लम्बी लाइनें लग गई थी। नोट बदलवाने के लिए नियमों को भी सख्ती से लागू किया गया। सरकार ने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए केवल 50 दिन का समय माँगा था। पुराने नोटों के स्थान पर पाँच सौ और दो हज़ार के नए नोटों को चलाया गया।

नोटबंदी के समय मीडिया की भूमिका भी सराहनीय रही। मीडिया के कुछ लोगों ने नोटबंदी की सराहना की तो कुछ ने इसका विरोध करते हुए अनेक तर्क-वितर्क प्रस्तुत किए।

नोटबंदी केवल शोर मचाने के लिए नहीं की जाती। हम सब जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। यदि नोटबंदी के कुछ लाभ हैं तो कुछ हानियाँ भी हैं। नोटबंदी से काले धन पर नियन्त्रण किया जा सकता है। महँगाई की दर घटाई जा सकती है। भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है। इन सबके अतिरिक्त जनता में आर्थिक जागरूकता का विकास होता है। किन्तु इसे लागू करने में बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। नोटबंदी के कारण ही लोगों में आर्थिक कर व उसके प्रति जिम्मेवारी का अहसास हुआ। सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि ऑनलाइन व डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिला। छोटे-छोटे दुकानदारों ने भी अब ऑनलाइन भुगतान करवाना आरम्भ कर दिया है।

कुछ लोगों का विचार है कि नोटबंदी से आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुई है, किन्तु भविष्य में इसके परिणाम अच्छे निकलेंगे। नोटबंदी के कारण ही नकली नोट छपने बंद हो गए। काले धन को समाप्त करने के लिए भी यह नोटबंदी कारगर सिद्ध हुई है। नोटबंदी के कारण ही कैशलैस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है।

नोटबंदी पर विचार करते समय जहाँ उसके अनेक लाभ नज़र आए, वहीं उसकी हानियाँ भी दिखाई दीं। नोटबंदी से सबसे बड़ी हानि यह हुई कि साधारण जनता की दैनिक जिंदगी में बहुत कठिनाइयाँ आईं। जनता को बैंकों व ए०टी०एम० के सामने घंटों लाइनों में खड़ा रहना पड़ा था। अस्पताल का बिल, बिजली का बिल, किराए की समस्या आदि अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। किन्तु ये सब कठिनाइयाँ बहुत अस्थाई व तात्कालिक थीं। कुछ समय के पश्चात् सब कुछ सामान्य हो गया।

इन कठिनाइयों के बावजूद भारतीय जनता ने नोटबंदी का स्वागत किया तथा सरकार की सराहना भी की। यहाँ तक कि विदेशों में भी भारत के इस निर्णय का स्वागत किया गया। निश्चय ही नोटबंदी से कुछ सीमा तक भारत में भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकेगा। कुछ लोगों ने अपना काला धन सरकार को समर्पण भी कर दिया। इस दिशा में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

सार रूप में कहा जा सकता है कि सन् 2016 का नोटबंदी का निर्णय एक ऐतिहासिक निर्णय सिद्ध हुआ है। यदि भारत को विकास के पथ पर अग्रसर रहना है तो ऐसे निर्णय लेने पड़ेंगे। हर कार्य के गुण व अवगुण दोनों ही होते हैं। अच्छी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए हिम्मत का कदम तो उठाना ही पड़ेगा। ऐसे कदम के लिए देश की जनता का भरोसा व हौंसला भी बहुत बड़ी बात होती है। अतः जनता को इस कार्य में सरकार की मदद करनी चाहिए। बड़ी-बड़ी योजनाओं को लागू करने व बड़े-बड़े निर्णय लेने के लिए देश, जनता और सरकार को मिलकर कार्य करना पड़ेगा।

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3. राष्ट्रीय एकता

संकेत : भूमिका, भारत में उत्पन्न समस्याएँ, दूषित राजनीति, असमानताओं में समानता, उपसंहार।

किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोगों का मिलकर कार्य करना संगठन कहलाता है। संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ है। एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है, एकता एक महान् शक्ति है। एकता के बल पर ही छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी अपना कार्य पूर्ण कर लेता है। जिस परिवार में एकता होती है, वहाँ सदा सुख-समृद्धि एवं शांति रहती है। एकता के बल पर बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है। छोटे-छोटे जीव-जंतु भी संगठन के बल पर अपने सभी कार्य पूर्ण कर लेते हैं। मधुमक्खियाँ एकत्रित होकर एक बहुत बड़े रस के पिंड का निर्माण कर लेती हैं।

अल्पानामापि वस्तूनाम संहाति कार्यसाधिका।
तृण गुणत्वमान्नैः वध्यन्ते मत्त हस्तिनः।।
अर्थात् छोटी-छोटी वस्तुओं का समूह भी कार्य को सिद्ध करने में समर्थ होता है। जैसे छोटे-छोटे तृण रस्सी के रूप में परिणित हो जाते हैं तो उससे मतवाले हाथी भी बाँधे जा सकते हैं। एकता वह शक्ति है, जिसके बिना कोई भी देश, समाज तथा संप्रदाय उन्नति नहीं कर सकता। एकता के अभाव के कारण ही हम लोग सैकड़ों वर्ष अंग्रेज़ों के गुलाम रहे। हमारी कमज़ोरी का फायदा उठाते हुए उन्होंने मनमाने अत्याचार किए, भारत की संस्कृति पर कुठाराघात किए। उन लोगों ने हमारी मान-मर्यादाएँ लूटीं और हम परतंत्रता की बेड़ियों में इस प्रकार जकड़ गए कि उनसे मुक्ति की कल्पना ही संदिग्ध प्रतीत होने लगी।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से ही भारत में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती रही हैं। इनमें सांप्रदायिक समस्या प्रमुख है। हमारे देश का विभाजन भी इसी समस्या के आधार पर हुआ। कुछ स्वार्थी तत्त्वों ने देश में सांप्रदायिकता की आग फैला दी, जिससे हम आज तक मुक्त नहीं हो पाए हैं। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए और प्रगति के लिए राष्ट्रीय एकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। वर्तमान देश में अनुशासन तथा आपसी सहयोग के वातावरण की अति आवश्यकता है।

कुछ वर्षों से हमारे देश में दूषित राजनीति से विषैला वातावरण बनता जा रहा है। धर्मांधता के कारण लोग आपस में झगड़ रहे हैं। अपने-अपने स्वार्थों में लिप्त लोग आपसी प्रेम को भूल रहे हैं। स्वार्थ की भावनाओं, प्रांतीयता एवं भाषावाद के कारण राष्ट्रीय भावना प्रभावित हुई है। हमारे देश के लोगों में संकीर्णता की भावना पनप रही है और व्यापक दृष्टिकोण लुप्त होता जा रहा है। इसलिए विश्व-बंधुत्व की भावना अपने परिवार तक ही सीमित होकर रह गई है। अगर किसी ने प्रयास भी किया तो वह प्रदेश स्तर तक ही जाकर असफल हो गया। इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर, असम आदि प्रदेशों में नर-संहार के किस्से सुनने को मिलते हैं। इन सबके लिए वे स्वार्थी नेता ज़िम्मेदार हैं, जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को दाँव पर लगा रहे हैं। अनेक विषमताओं के होते हुए भी जब हम राष्ट्रीय एकता के विषय में विचार करते हैं तो पता चलता है कि इस राष्ट्रीय एकता के कारण धार्मिक भावना, आध्यात्मिकता, समन्वय की भावना, दार्शनिक दृष्टिकोण, साहित्य, संगीत और नृत्य आदि अनेक ऐसे तत्त्व हैं, जो देश को एकता के सूत्र में बाँधे हुए हैं। बस सरकार और जनता को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। आज राष्ट्रीय एकता के लिए व्यक्तिगत और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा का प्रबंध करना आवश्यक है।

शत्रुपक्ष पर कठोर दंडनीति लागू की जाए। पुलिस की गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखा जाए। आज सभी संगठनों को मिलकर राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयास करना चाहिए। हमारी स्वतंत्रता राष्ट्रीय एकता पर आधारित है। इसके अभाव में हमारी स्वतंत्रता भी असंभव है। अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमें भरपूर प्रयत्न करने चाहिएँ, एकजुट होकर राष्ट्रीय एकता की रक्षा करनी चाहिए, जिससे हम और हमारे वंशज स्वतंत्रता की खुली हवा में साँस लेते रहें। यद्यपि विघटन की प्रवृत्ति हमें झकझोर देती है और राष्ट्रीय एकता को संकट-सा प्रतीत होने लगता है, परंतु देश की आत्मा बलपूर्वक एकरूपता को प्रकट कर देती है।

हर्ष की बात है कि आज हमारा देश राष्ट्रीय एकता के लिए राष्ट्र की आय का तीन प्रतिशत व्यय कर रहा है और हमारी भारत सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही है। हम अपने देशवासियों से यह निवेदन कर रहे हैं कि वे अपने पूर्वजों के समान ही एकता के सूत्र में बँध जाएँ, क्योंकि सही अर्थ में देश की उन्नति ही आपकी अपनी उन्नति है।

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4. स्वदेश-प्रेम

संकेत : भूमिका, देशप्रेम एक स्वाभाविक गुण, भारतवर्ष प्यारा देश, देश के प्रति हमारा कर्त्तव्य, भारत एक विशाल देश, उपसंहार।

देशभक्ति पावन गंगा नदी के समान है जिसमें स्नान करने से मनुष्य ही नहीं, अपितु उसका मन और अंतरात्मा भी पावन हो जाती है। स्वदेश-प्रेम का अर्थ है-अपने देश या वतन की रक्षा और उसकी उन्नति के लिए अपना तन, मन और धन देश के चरणों में सौंप देना। जिस देश की धूलि में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं तथा जिसके अन्न, जल और वायु का सेवन करके हम विकसित हुए हैं, उसकी सेवा न करना कृतघ्नता है। वस्तुतः माता और मातृभूमि के ऋण से आदमी आजीवन मुक्त नहीं हो सकता। इसीलिए भगवान राम ने सोने की लंका देखकर लक्ष्मण से कहा था-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

मनुष्य में अपने देश के प्रति स्वाभाविक प्रेम होता है। मनुष्य ही क्यों, पशु-पक्षियों में भी यह गुण देखा जा सकता है। पक्षी दूर दिशाओं से उड़कर शाम को अपने घोंसलों में लौट आते हैं। गाँव से दूर वनों में चरने वाले गाय-भैंस आदि पशु भी दिन छिपते ही अपने खूटों पर पहुँचकर सुख-शांति प्राप्त करते हैं। इसके पीछे एक कारण है-अपने स्थान से प्रेम। इसी प्रकार, मनुष्य चाहे किसी भी काम से विदेश में रहता हो परंतु उसके हृदय में अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम ज्यों-का-त्यों बना रहता है। वह अपने देश, घर और परिवार को याद करता है परंतु जिस व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से प्रेम नहीं है वह तो पशुओं से भी निकृष्ट है। ऐसा व्यक्ति जीवन में तो अपयश प्राप्त करता ही है, मर कर भी नरक भोगता है।

हिमालय के विशाल आँगन में विद्यमान हमारा भारतवर्ष प्रिय देश है। भारत-भूमि पर ही सबसे पहले मानव सभ्यता और संस्कृति का आरंभ हुआ। सबसे पहले हमारे पूर्वजों ने ही ज्ञान प्राप्त किया। हमने ही संसार को यह ज्ञान दिया। हमारे यहाँ महात्मा बुद्ध जैसे अवतार हुए जिन्होंने संसार को शांति का संदेश दिया। महात्मा बुद्ध और अशोक ने यह सिद्ध कर दिखाया कि विजय केवल शस्त्रों से ही नहीं, अपितु सत्य और अहिंसा से भी प्राप्त की जा सकती है। हमारे देश के पर्वत, नदियाँ, सागर, हरे-भरे जंगल, खेत-खलिहान सब कुछ हमारे अंदर देश के प्रति प्रेम-भावना उत्पन्न करते हैं। कविवर प्रसाद ने सही कहा है-
जिएँ तो सदा उसके लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।

आज हमारा भारतवर्ष स्वतंत्र है। अतः स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद देशभक्तों का कार्यक्षेत्र भी बढ़ गया है। हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना चाहिए। हमारे किसान और मज़दूर बहुत गरीब तथा पिछड़े हुए हैं। हमारे गाँवों में अभी भी पिछड़ापन है। हमें उनकी स्थिति को सुधारना है। असहाय और बेरोज़गारों को रोज़गार देना है। सबके लिए अन्न और वस्त्र की व्यवस्था करनी है। करोड़ों अनपढ़ों को पढ़ाना है। संसार के विकसित देशों को शोषण से बचाने के लिए हमें अधिकाधिक उद्योगों का विकास करना है। यद्यपि हमारी सरकार इस दिशा में अनेक प्रयत्न कर रही है, लेकिन वे प्रयत्न पर्याप्त नहीं हैं। आज ऐसे देशभक्तों की आवश्यकता है जो अपना तन, मन और धन सभी कुछ देश के चरणों में अर्पित कर दें।

हमारा भारत एक विशाल देश है। इसकी जनसंख्या एक अरब से भी अधिक पहुँच चुकी है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमने धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना की। हमारे यहाँ हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। कभी-कभी हममें विचारों की भिन्नता भी पैदा हो जाती है। यहाँ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, तमिल तथा तेलुगू आदि अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। कभी-कभी यह भाषा-मोह हमारे अंदर आपसी भेदभाव उत्पन्न कर देता है परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह हमारा अपना देश है। हमारा जन्म यहीं हुआ है। हमारे आपसी झगड़े इसे कमज़ोर बना सकते हैं। अतः हमें परस्पर स्नेह और प्रेम के साथ रहना चाहिए। उर्दू के कवि इकबाल साहब ने ठीक कहा है-
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा।।

हमारी संस्कृति का मूल-मंत्र भी यही है। जो लोग धर्म के नाम पर घृणा, वैर-भाव और ईर्ष्या-द्वेष फैलाते हैं, वे सच्चे भारतवासी नहीं हैं। ऐसे लोग निश्चय ही देशद्रोही हैं।

देश की उन्नति के लिए भी स्वदेश-प्रेम आवश्यक है। जिस देश के निवासी अपने देश के कल्याण में ही अपना कल्याण समझते हैं और देश के विकास में अपना विकास-वे अन्य देशों के सामने अपने देश का नाम ऊँचा करते हैं। देश की सामाजिक और आर्थिक उन्नति भी देशभक्त देशवासियों पर निर्भर करती है। जिन देशों के बालक, वृद्ध, स्त्रियाँ, युवक अपने देश की बलिवेदी पर अपने स्वार्थों को न्योछावर करते हैं, वे देश ही संसार में शक्तिशाली देश समझे जाते हैं। आज हमारे हिंदुस्तान में निःस्वार्थ देशभक्तों की कमी है। यही कारण है कि हमारा देश अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाया। अतः हमें अपने देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए देशप्रेम की भावना का विकास करना चाहिए।

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5. राष्ट्रभाषा हिंदी

सकेत : भूमिका, अंग्रेज़ी-हिंदी का विवाद, राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी, हिंदी के विकास के प्रयत्न, हिंदी का विरोध, हिंदी राष्ट्रभाषा बनने में समर्थ, उपसंहार।

‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किसी देश तथा वहाँ बसने वाले लोगों के लिए किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है। उसमें विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग रहते हैं। विभिन्न स्थानों अथवा प्रांतों में रहने वाले लोगों की भाषा भी अलग-अलग होती है। इस भिन्नता के साथ-साथ उनमें एकता भी बनी रहती है। पूरे राष्ट्र के शासन का एक केंद्र होता है। अतः राष्ट्र की एकता को और दृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है, जिसका प्रयोग संपूर्ण राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाता है। ऐसी व्यापक भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। भारतवर्ष में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारतवर्ष को यदि भाषाओं का अजायबघर भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी लेकिन एक संपर्क भाषा के बिना आज पूरे राष्ट्र का काम नहीं चल सकता।

सन 1947 में भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। जब तक भारत में अंग्रेज़ शासक रहे, तब तक अंग्रेज़ी का बोलबाला था किंतु अंग्रेजों के जाने के बाद यह असंभव था कि देश के सारे कार्य अंग्रेज़ी में हों। जब देश के संविधान का निर्माण किया गया तो यह प्रश्न भी उपस्थित हुआ कि राष्ट्र की भाषा कौन-सी होगी ? क्योंकि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र के स्वतंत्र अस्तित्व की पहचान नहीं होगी। कुछ लोग अंग्रेज़ी भाषा को ही राष्ट्रभाषा बनाए रखने के पक्ष में थे परंतु अंग्रेज़ी को राष्ट्रभाषा इसलिए घोषित नहीं किया जा सकता था क्योंकि देश में बहुत कम लोग ऐसे थे जो अंग्रेज़ी बोल सकते थे। दूसरे, उनकी भाषा को यहाँ बनाए रखने का तात्पर्य यह था कि हम किसी-न-किसी रूप में उनकी दासता में फँसे रहें।

हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का प्रमुख तर्क यह है कि हिंदी एक भारतीय भाषा है। दूसरे, जितनी संख्या यहाँ हिंदी बोलने वाले लोगों की थीं, उतनी किसी अन्य प्रांतीय भाषा बोलने वालों की नहीं। तीसरे, हिंदी समझना बहुत आसान है। देश के प्रत्येक अंचल में हिंदी सरलता से समझी जाती है, भले ही इसे बोल न सकें। चौथी बात यह है कि हिंदी भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है, इसमें शब्दों का प्रयोग तर्कपूर्ण है। यह भाषा दो-तीन महीनों के अल्प समय में ही सीखी जा सकती है। इन सभी विशेषताओं के कारण भारतीय संविधान सभा ने यह निश्चय किया कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि बनाया जाए।

हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने के बाद उसका एकदम प्रयोग करना कठिन था। अतः राजकीय कर्मचारियों को यह सुविधा दी गई थी कि सन 1965 तक केंद्रीय शासन का कार्य व्यावहारिक रूप से अंग्रेज़ी में चलता रहे और पंद्रह वर्षों में हिंदी को पूर्ण समृद्धिशाली बनाने के लिए प्रयत्न किए जाएँ। इस बीच सरकारी कर्मचारी भी हिंदी सीख लें। कर्मचारियों को हिंदी पढ़ने की विशेष सुविधाएँ दी गईं। शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य विषय बना दिया गया।

शिक्षा मंत्रालय की ओर से हिंदी के पारिभाषिक शब्द-निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ तथा इसी प्रकार की अन्य सुविधाएँ हिंदी को दी गईं ताकि हिंदी, अंग्रेज़ी का स्थान पूर्ण रूप से ग्रहण कर ले। अनेक भाषा-विशेषज्ञों की राय में यदि भारतीय भाषाओं की लिपि को देवनागरी स्वीकार कर लिया जाए तो राष्ट्रीय भावात्मक एकता स्थापित करने में सुविधा होगी। सभी भारतीय एक-दूसरे की भाषा में रचे हुए साहित्य का रसास्वादन कर सकेंगे।

आज जहाँ शासन और जनता हिंदी को आगे बढ़ाने और उसका विकास करने के लिए प्रयत्नशील हैं वहाँ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो उसको टाँग पकड़कर पीछे घसीटने का प्रयत्न कर रहे हैं। इन लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो हिंदी को संविधान के अनुसार सरकारी भाषा बनाने से तो सहमत हैं किंतु उसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते। कुछ ऐसे भी हैं जो उर्दू का निर्मूल पक्ष में समर्थन करके राज्य-कार्य में विघ्न डालते रहते हैं। धीरे-धीरे पंजाब, बंगाल और चेन्नई के निवासी भी प्रांतीयता की संकीर्णता में फँसकर अपनी-अपनी भाषाओं की मांग कर रहे हैं परंतु हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसके द्वारा संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

निःसंदेह हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें राष्ट्रभाषा बनने की पूर्ण क्षमता है। इसका समृद्ध साहित्य और इसके प्रतिभा संपन्न साहित्यकार इसे समूचे देश की संपर्क भाषा का दर्जा देते हैं किंतु आज हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हिंदी का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाए ? सर्वप्रथम तो हिंदी भाषा को रोज़गार से जोड़ा जाए। हिंदी सीखने वालों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। सरकारी कार्यालयों तथा न्यायालयों में केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी का अधिकाधिक प्रचार होना चाहिए। वहाँ हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों एवं संपादकों को और आर्थिक अनुदान दिया जाए।

आज हिंदी के प्रचार-प्रसार में कुछ बाधाएँ अवश्य हैं किंतु दूसरी ओर केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारें एवं जनता सभी एकजुट होकर हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। उत्तर भारत में अधिकांश राज्यों में सरकारी कामकाज हिंदी में किया जा रहा है। राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी हिंदी में कार्य करना आरंभ कर दिया है। विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों द्वारा हिंदी लेखकों की श्रेष्ठ पुस्तकों को पुरस्कृत किया जा रहा है। दूरदर्शन और आकाशवाणी द्वारा भी इस दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे हैं।

6. दीपावली पर पटाखों का प्रदूषण

दीपावली भारत में मनाया जाने वाला सुप्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इसका धार्मिक ही नहीं अपितु सामाजिक महत्त्व भी अत्यधिक है। यह केवल हिन्दुओं का त्योहार ही नहीं है, अपितु देश के हर धर्म के लोग इसे मनाते हैं। ‘दीपावली’ का अर्थ होता है-दीपों की पंक्ति। इस त्योहार पर लोग अपने घरों को दीपों के द्वारा सजाते हैं। इसलिए इसे ‘प्रकाश का त्योहार’ भी कहा जाता है। इस त्योहार को श्रीराम के चौदह वर्ष का बनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है।।

निश्चय ही यह त्योहार खुशियों का त्योहार है, किन्तु इस त्योहार के मनाने में अब कुछ बुराइयाँ भी सम्मिलित हो गई हैं; जैसे जुआ खेलना, शराब आदि का सेवन करना तथा अत्यधिक पटाखों का जलाना आदि। आजकल पटाखे इतनी अधिक मात्रा में जलाए जाते हैं कि जिससे इस त्योहार का सारा महत्त्व समाप्त हो जाता है।

पटाखों के चलाने से पर्यावरण प्रदूषण में कई गुणा वृद्धि होती है। प्रदूषण की समस्या पहले ही विश्व के लोगों के लिए एक बहुत गम्भीर समस्या बनी हुई है। आज जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण अपनी चरमसीमा को छू रहा है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के समाधान खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लग रही है। भारतवर्ष में पटाखों के अत्यधिक प्रयोग के कारण वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की मात्रा कई गुणा बढ़ जाती है। कारखानों से निकलने वाली विषैली गैसों से पहले ही वायु प्रदूषित होती है।

दीपावली के अवसर पर पटाखे जलाने से उनमें से निकलने वाली जहरीली गैस से वायु इतनी प्रदूषित हो जाती है कि साँस लेना भी दूभर हो जाता है। चारों ओर पटाखों से निकलने वाला धुआं फैल जाता है। इससे आँखों में जलन होने लगती है। फेफड़ों में जहरीले धुएं के पहुंचने से कई प्रकार की बीमारियों के उत्पन्न होने का खतरा बढ़ जाता है। कुछ लोगों का रक्तचाप भी बढ़ जाता है। कहने का तात्पर्य है कि पटाखों से निकलने वाली गैसों व धुएँ के कारण खुशियों का त्योहार मानव-जीवन के खतरे का त्योहार बनता जा रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनुसंधान से कई प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए हैं। पटाखों से निकलने वाले धुएँ एवं गैसों का मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पटाखों के अन्धा-धुंध जलाने से अनेक दुर्घटनाएँ भी होती हैं। पटाखों के लापरवाही से चलाने पर बच्चों के हाथ-पैर जल जाते हैं। दूर जाकर गिरने वाली आतिशबाजी से आग लगने का भय भी बना रहता है। पटाखों के अवशेष भी पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं।

दीपावली के अवसर पर पटाखों के जलाने से ध्वनि प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। कई पटाखों से इतनी ध्वनि निकलती है कि कान के परदों के फटने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण कई बीमारियों के उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है। अधिक ध्वनि के कारण दिल की धड़कन बढ़ जाती है। तनाव व बेचैनी भी बढ़ जाती है। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन एवं फेफड़ों सम्बन्धी बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। ध्वनि प्रदूषण का मानव स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कहने का भाव है कि दीपावली के त्योहार का प्रदूषण के कारण मजा किरकिरा हो जाता है।

यदि हम चाहते हैं कि दीपावली के त्योहार को मनाने का सही आनन्द प्राप्त करें तो हमें पटाखों के जलाने पर पूर्ण रूप से पाबन्दी लगानी होगी। उसे सहज भाव व सही ढंग से मनाना होगा। भारत सरकार ने पिछले वर्ष से पटाखों के जलाने से होने वाली दुर्घटनाओं और वायु व ध्वनि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पटाखों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। पटाखों की बजाए दीप जलाने व फुल-झड़ियों का प्रयोग करना चाहिए। पटाखों के जलाने से होने वाली हानियों के प्रति समाज में जागरूकता भी लानी चाहिए तभी इस बुराई से छुटकारा मिल सकता है। परम्परागत तरीकों से दीपावली का त्योहार मनाने से उसके वास्तविक महत्त्व का सन्देश जनता में जाएगा। हमें स्वयं अपने पर्यावरण की स्वच्छता एवं शुद्धता को ध्यान में रखते हुए दीपावली पर न तो स्वयं पटाखे जलाने चाहिएँ और दूसरों को भी पटाखे न जलाने की प्रेरणा देनी चाहिए। तभी हम समाज में सौहार्द्रपूर्ण, स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण में दीपावली के त्योहार का सही आनन्द प्राप्त कर सकेंगे।

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7. स्वतंत्रता दिवस

संकेत : भूमिका, पराधीनता एक अभिशाप, स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष, स्वतंत्रता दिवस का समारोह, राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने के प्रयास, उपसंहार।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार है। संसार में सभी प्राणी स्वतंत्र रहना चाहते हैं, यहाँ तक कि पिंजरे में बंद पक्षी भी स्वतंत्रता के लिए निरंतर अपने पंख फड़फड़ाता रहता है। उसे सोने का पिंजरा, सोने की कटोरी में रखा स्वादिष्ट भोजन भी अच्छा नहीं लगता। वह भी स्वतंत्र होकर मुक्त गगन में स्वच्छंद उड़ान भरना चाहता है, फिर मनुष्य तो मनुष्य है। उसे भी स्वतंत्रता प्रिय है। वह भी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता हुआ प्राणों की बाजी लगा देता है। महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है

‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाही’। स्वतंत्रता जीवन और परतंत्रता मृत्यु के समान है। जब कोई राष्ट्र दुर्भाग्यवश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ जाता है, तो उसका जीवन अभिशाप बन जाता है। भारत जैसा महान् देश भी आपसी फूट और वैरभाव के कारण सैकड़ों वर्षों तक पराधीनता के अभिशाप को सहता रहा। पराधीनता के इतने लंबे दौर में हम घुन खाई हुई लकड़ी के समान कमज़ोर हो गए और अपनी संस्कृति तथा परंपराओं को भूलने लगे।

भारत की स्वतंत्रता की कहानी भी लगातार संघर्षों और बलिदानों की कहानी है। स्वतंत्रता की यह चिंगारी सन् 1857 में सुलगी थी। उस समय रानी लक्ष्मीबाई, ताँत्या टोपे, नाना साहब आदि ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था। स्वतंत्रता की यह चिंगारी भीतर-ही-भीतर भारतीयों के हृदय में निरंतर सुलगती रही। महात्मा गांधी, पं० नेहरू, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, नेता जी सुभाष चंद्र बोस आदि ने स्वतंत्रता की इस चिंगारी को शोला बना दिया। भगतसिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर ने इसे हवा दी। हम स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष करते रहे। देशभक्तों ने जेलयात्राएँ की, लाठियाँ और गोलियाँ खाईं। अनेक वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। अंत में 1942 ई० में गांधी जी के नेतृत्व में ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। इस आंदोलन में बहुत-से भारतीयों ने भाग लिया।

परिणामस्वरूप अंग्रेज़ हिल गए। उन्होंने 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्र कर दिया। इसी कारण प्रतिवर्ष 15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस का मुख्य समारोह भारत की राजधानी दिल्ली में लालकिले पर मनाया जाता है। इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति देश के नाम संदेश देते हैं। दिल्ली में लालकिले पर देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और देशवासियों को संबोधित करते हैं। रात्रि को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है। 15 अगस्त का राष्ट्रीय पर्व केवल भाषण देने या सुनने के लिए नहीं है। यह उन अमर शहीदों के बलिदानों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपना जीवन देकर हमें आज़ादी का उपहार दिया। इस आज़ादी को बरकरार रखने के लिए हमें आपसी भेदभाव, ऊँच-नीच को भुलाते हुए देश की उन्नति में अपने तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए।
‘अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ लुटा सकते नहीं।
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।’
इतने वर्षों से हम स्वतंत्रता दिवस मनाते आ रहे हैं, लेकिन फिर भी हम स्वतंत्रता का सही अर्थ नहीं समझ पाए हैं। भाषा, धर्म, जाति, प्रांत आदि के नाम पर आज भी आपस में लड़ते-झगड़ते हैं। राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी के ‘रामराज्य’ का सपना साकार नहीं हो पाया है। केवल भारतीय नवयुवक ही अब उस सपने को पूरा कर सकते हैं। आज देश की सीमाओं पर शत्रु अपनी आँख गड़ाए हुए हैं। हमें इसके लिए सचेत रहना चाहिए। हमें राष्ट्रीय एकता को और मज़बूत करना होगा, ताकि शत्रु अपने नापाक इरादों में सफल न हो सकें।

यह राष्ट्रीय पर्व हमें प्रतिवर्ष स्वतंत्रता के संघर्ष और उसमें शहीद होने वालों की याद दिलाता है। यह हमें स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रेरणा देता है। इस दिन राष्ट्र स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और देश की स्वतंत्रता की रक्षा की शपथ लेता है।

8. भारतीय किसान

भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है। कृषि ही यहाँ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। देश की कुल श्रम-शक्ति का लगभग 55 प्रतिशत भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका कमाता है। प्राचीनकाल में कृषक अपनी खेती-बाड़ी के काम से सन्तुष्ट था। कृषि अर्थात् खेती के साथ-साथ पशुओं को भी अपना धन मानता था। किन्तु मुस्लिम शासकों के समय में भारतीय किसान को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। अंग्रेजों के शासनकाल में भी भारतीय कृषक अंग्रेज़ों और जमींदारों के तरह-तरह के जुल्मों का शिकार हुआ। उसका जीवन जीना ही कठिन हो गया था।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारतीय किसान की दशा में कुछ सुधार हुआ। किन्तु जिस प्रकार कृषकों के शहरों की ओर पलायन करने एवं उनकी आत्महत्या की खबरें सुनने को मिलती हैं, उससे पता चलता है कि उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। उनकी स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि कोई भी किसान अपने बेटों को कृषक नहीं बनाना चाहता है। अन्नदाता कहलाने वाले कृषक की यह दशा हो जाना निश्चय ही चिंता का विषय है।

‘अन्नदाता’ व ‘सृष्टि पालक’ कहलाने वाला कृषक बहुत ही सरल और सहज जीवन व्यतीत करता रहा है। उसके पास किसी प्रकार का दिखावा नहीं था। उसके जीवन की आवश्यकताएँ भी बहुत कम थीं। वह साधारण भोजन खाकर भी स्वर्ग के सुख की अनुभूति करता था। कठोर परिश्रम करने पर भी उसके जीवन की आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं। आज के किसान को घटते भू-क्षेत्र के कारण गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करना पड़ता है। गर्मी, सर्दी, वर्षा हर समय उसे मेहनत करनी पड़ती है। इसके बावजूद उसे फसलों से उचित आय प्राप्त नहीं हो सकती।

कृषि संबंधी उपकरण, बिजली, बीज, खाद आदि महँगे होने के कारण कृषक का जीवन-स्तर और भी निम्न हुआ है। भारतीय कृषकों की गरीबी का अन्य प्रमुख कारण है कि भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। मानसून की अनिश्चितता के कारण प्रायः किसानों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कभी सूखे की मार पड़ती है तो कभी बाढ़ में सब कुछ बह जाता है। कृषि में श्रमिकों की साल भर आवश्यकता नहीं होती। इसलिए साल में कई मास उनको खाली बैठना पड़ता है। कृषकों के शहरों की ओर पलायन का यह भी एक बड़ा कारण है।

स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषकों के सुधार के लिए अनेक आयोगों व कमेटियों का गठन किया गया तथा उन्हें कृषकों के जीवन-सुधार के अनेक सुझाव दिए गए। फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की भी घोषणाएँ की गईं किन्तु समय पर कभी भी फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं हुआ।

कृषक की गरीबी का एक प्रमुख कारण उसकी अनपढ़ता भी रहा है। प्रायः यह देखा गया है कि अनपढ़ता के कारण ही कृषकों को खेती के नए-नए तरीके एवं आधुनिक कृषि उपकरणों के सम्बन्ध में उचित जानकारी उपलब्ध न होने के कारण फसलों से उचित लाभ नहीं मिल सकता। इस दिशा में भारत सरकार ने यद्यपि कई कदम उठाए हैं, जैसे किसान कॉल सेन्टर, इससे बिना कोई शुल्क दिए कृषक अपने खेती के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रेडियो व टी०वी० पर भी कृषि चैनलों की शुरुआत की गई है। इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सरल नॉलेज सेन्टर्स की भी स्थापना की है। इन केन्द्रों पर आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व दूर संचार तकनीक का उपयोग किसानों को वांछित जानकारियाँ उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है।

भारत सरकार ने किसानों को खाली समय में काम देने के लिए राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी योजना का 2006 में शुभारम्भ किया। यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम-से-कम 100 दिन के ऐसे रोजगार की गारण्टी देता है। इस योजना में 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को दिया जाता है।

आज का कृषक यद्यपि पहले की अपेक्षा बहुत जागरूक हो चुका है। वह आज संगठन बनाकर अपनी जरूरी माँगों को सशक्त रूप से सरकार के सामने रखता है और आन्दोलन करता है। फिर भी अनपढ़ता, अन्धविश्वास और कई व्यसनों में फंसा होने के कारण उसकी आर्थिक दशा में मनोवांछित सुधार नहीं हो सका। आज भी वह शोषण का शिकार बना हुआ है। उसके परिश्रम का फल व्यापारी वर्ग लूट ले जाता है। उसकी मेहनत दूसरों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है। देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने व देश की प्रगति के लाने के लिए भारतीय कृषक की प्रगति नितान्त आवश्यक है।

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9. राष्ट्रीय ध्वज की कहानी

सकेत : भूमिका, राष्ट्रीय ध्वज के लिए अनेक प्रयास, भारतीय नेताओं के प्रयास, कांग्रेस की कार्य-समिति द्वारा निर्मित ध्वज, वर्तमान ध्वज का स्वरूप, उपसंहार।

राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति होती है। राष्ट्र के प्रति अपनी श्रद्धा-भक्ति प्रकट करने के लिए हम मूर्तियाँ, मंदिर, मस्ज़िद, धर्म-ग्रंथ, राष्ट्र-ध्वज, राष्ट्र-गान एवं संविधान आदि प्रतीक बना लेते हैं। इन सबके प्रति आदर भाव रखने का अभिप्राय देश-प्रेम के भावों को पुष्ट एवं विकसित करना है। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व हमारे देश का कोई झंडा नहीं था। भारत में तब ‘यूनियन जैक’ का ही बोलबाला था। प्रत्येक महत्त्वपूर्ण अवसरों पर इसे ही प्रमुखता मिलती थी। यहाँ तक कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों में भी सन् 1920 तक ‘यूनियन जैक’ की ही प्रतिष्ठा थी।

राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण करने का सर्वप्रथम प्रयास सन् 1905 के आस-पास हुआ। इस प्रयत्न से देश के नवयुवकों में एक नवीन जागृति का संचार हुआ। कुछ देश-प्रेमी युवक उन दिनों विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने वहाँ देखा कि विदेशी जनसामान्य अपने देश के झंडे का कितना सम्मान करता है। उसकी रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तैयार हो जाता है और जब विदेशी भारतीय युवकों से उनके राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में कोई प्रश्न करते तो उन्हें शर्म से सिर झुका लेना पड़ता था। अतः इस अपमानजनक परिस्थिति से छुटकारा पाने के लिए इन युवकों ने सोचा कि एक ऐसा राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया जाए, जिसे वे अपना कह सकें तथा जिसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान करके गौरव का अनुभव कर सकें। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत के प्रथम झंडे के निर्माण की प्रथम भूमिका विदेशों में बनी।

विदेश में रह रहे भारतीय नवयुवकों ने उस समय जो झंडा तैयार किया, वह हमारे वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज से मिलताजुलता था। उसमें नीचे की पट्टी हरी, बीच की सफेद और ऊपर की केसरिया थी, जिसे सूर्य, अर्द्ध चंद्र तथा तारे से सजाया गया था और बीच की सफेद पट्टी पर ‘वंदे मातरम्’ लिखा गया था। केसरिया पट्टी पर आठ कमल बने थे जो भारत के तत्कालीन आठ प्रांतों के सूचक थे, लेकिन भारतीय राजनेताओं ने इस झंडे को स्वीकार नहीं किया और उन युवकों का प्रयास असफल रहा।

सन 1917 में डॉ० ऐनी बेसेंट तथा लोकमान्य तिलक ने एक झंडे का निर्माण किया। इस झंडे पर बड़ी-बड़ी पट्टियाँ तथा तारे थे और एक किनारे पर यूनियन जैक था। परंतु इस झंडे को भी अस्वीकार कर दिया गया। सन् 1921 में लाला हंसराज, महात्मा गांधी के पास एक झंडा लेकर आए, जिसमें लाल और हरे रंग की दो पट्टियाँ थीं, जो भारत के दो प्रमुख समुदाय हिंदू और मुस्लिम एकता की द्योतक थीं। तब महात्मा गांधी ने अन्य धर्मों के सूचक सफेद रंग तथा चरखे के चिह को सम्मिलित करने का सुझाव दिया। तब एक ऐसा ध्वज बनाया गया, जिसमें नीचे की पट्टी लाल, बीच की हरी तथा ऊपर की सफेद थी और इन पर चरखे का चिह्न भी था। हर राष्ट्रीय आयोजन में इस झंडे को गौरवपूर्ण स्थान मिलने लगा।

इस राष्ट्रीय ध्वज के सभी रंग संप्रदाय सूचक थे, इसलिए आगे चलकर उनके संबंध में अनेक मतभेद हुए। तब कांग्रेस कार्य समिति ने एक सर्वमान्य झंडा तैयार किया, जिसमें ऊपर से नीचे की ओर केसरिया, सफेद और हरा रंग थे। सफेद पट्टी पर नीले रंग का चरखा भी बनाया गया था। केसरिया रंग धैर्य तथा त्याग का, सफेद रंग सत्य और शांति का तथा हरा विश्वास, प्रताप, हरियाली और समृद्धि का प्रतीक माना गया। 1931 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में इस तिरंगे को देश के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में बहुमत से स्वीकार कर लिया गया।

22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के.जिस रूप को भारत की विधानसभा में स्वीकृत किया गया, उसमें एक प्रमुख परिवर्तन था। ध्वज के मध्य में चरखे के स्थान पर अशोक चक्र सम्मिलित किया गया तथा उसे भारत का राष्ट्रीय घोषित कर दिया गया। पं० जवाहरलाल नेहरू ने विधानसभा में स्वतंत्र भारत के ध्वज को प्रस्तुत करते समय घोषणा की कि हमने एक ऐसे ध्वज को रूप देने का प्रयास किया है, जो देखने में सुंदर हो, जो संयुक्त रूप में तथा अलग-अलग रूपों में भी हज़ारों वर्षों पुरानी सभ्यता, संस्कृति या देश की भावनाओं को अभिव्यक्त कर सके।

इस प्रकार तिरंगा झंडा हमारा राष्ट्रीय ध्वज बन गया। यह हमारे राष्ट्र का आदर्श चिह्न है और भारत का गौरव है। देश के सभी महत्त्वपूर्ण आयोजनों मे इसे प्रमुखता तथा प्रतिष्ठा मिलती है। प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं तथा इसकी रक्षा का प्रण करते हैं। 26 जनवरी को देश के राष्ट्रपति राजपथ पर ध्वज फहराते हैं और सलामी लेते हैं। पहले राष्ट्रीय ध्वज केवल सरकारी भवनों पर फहराया जाता था, परंतु अब देश का हर नागरिक इसे हर भवन पर फहरा सकता है। हमारा तिरंगा झंडा हम सब भारतवासियों की आशाओं और आकांक्षाओं का जीवंत प्रतीक है तथा हम सबका यह कर्त्तव्य है कि हम अपना सर्वस्व बलिदान कर इसकी रक्षा करें। इसे देखते ही प्रत्येक भारतवासी के मुख से बरबस निकल पड़ता है-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।

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10. भारत और परमाणु शक्ति

संकेत : भूमिका, परमाणु की प्राचीन अवधारणा, प्राथमिक परीक्षण, परमाणु परीक्षण के दुष्परिणाम, शांतिपूर्ण कार्यों के लिए आणविक शक्ति का प्रयोग, भारत में परमाणु विस्फोट, उपसंहार।

प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष हैं-अनुकूल और प्रतिकूल। किसी भी पदार्थ अथवा वस्तु का उचित प्रयोग मानव और समाज के लिए कल्याणकारी होता है, लेकिन जब हम उसका दुरुपयोग करते हैं तो वही हमारे लिए घातक बन जाता है। परमाणु शक्ति की स्थिति भी लगभग ऐसी है। आज विज्ञान का युग है और इस युग में परमाणु शक्ति की सर्वाधिक चर्चा हो रही है। परमाणु शक्ति जहाँ एक ओर मानव के लिए वरदान है, वहाँ दूसरी ओर अभिशाप भी है। जहाँ इसका प्रयोग मानव जाति के कल्याण के लिए किया जाता है, वहीं इसे मानव के विनाश के लिए भी प्रयुक्त किया जा रहा है।

यद्यपि आज ‘परमाणु’ शब्द सर्वाधिक चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन इसकी अवधारणा आज से 3000 वर्ष पूर्व थी। कुछ आलोचकों के मतानुसार परमाणु की सर्वप्रथम धारणा भारत, चीन और यूनान में थी। संभवतः भारतीय मनीषियों को इसके बारे में समुचित ज्ञान रहा होगा लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा लुप्त हो गई। विशेषकर, मध्यकाल में भोग-विलास की प्रबलता थी। भारत जैसा समृद्ध राष्ट्र परतंत्रता का शिकार बन गया और यहाँ का ज्ञान अंधकार के गर्त में छिप गया। आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व एक अंग्रेज़ विद्वान डाल्टन ने परमाणु की धारणा को पुनर्जीवित किया। तत्पश्चात, आइंस्टीन ने ऊर्जा शक्ति का आविष्कार करके सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

परमाणु का प्रथम विस्फोट रदरफोर्ड नामक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने किया। जैसे-जैसे विज्ञान विकास करता चला गया, वैसे-वैसे परमाणु का महत्त्व भी बढ़ता गया। सन 1939 में यूरेनियम के न्यूट्रॉन प्रेरित विस्फोट की खोज से परमाणु शक्ति के भंडार खुल गए। धीरे-धीरे मानव जाति परमाणु शक्ति के रहस्य को समझने लगी। जर्मन वैज्ञानिकों की सहायता से अमेरिका ने इस दिशा में असंख्य प्रयोग किए। यहाँ तक कि परमाणु बम का आविष्कार भी कर लिया गया। विश्वविख्यात भौतिक विज्ञानवेत्ता डॉ० रॉबर्ट ओपेनहाइम को ही परमाणु बम का जनक माना जाता है। 13 जुलाई, 1945 को एलामोगेडरो रेगिस्तान में प्रथम बम का परीक्षण संपन्न हुआ।

इस विस्फोट से कुकुरमुत्ते के आकार का एक विशालकाय बादल उठा जो लगभग 40,000 फुट ऊँचा था। 9 मील तक झुलसाने वाली गर्मी थी और एक मील के घेरे के सभी प्राणी मृत्यु के शिकार बन गए थे परंतु 6 अगस्त, 1945 का दिवस मानवता के लिए सर्वाधिक करुणा का दिवस था। इस दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक दो नगरों पर अणु बमों की वर्षा की। तीन लाख जनसंख्या का नगर क्षण भर में नष्ट-भ्रष्ट हो गया।

परमाणु के इस भयंकर विस्फोट से संसार भयभीत हो गया। कई देशों में इस भय ने उलटा ही प्रभाव किया। उन्होंने भी परमाणु बमों का आविष्कार किया। रूस, इंग्लैंड, चीन इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त, कतिपय अन्य देश भी इस ओर कार्यरत हैं। भारत भी परमाणु बम बनाने में सक्षमता प्राप्त कर चुका है किंतु अहिंसावादी देश होने के कारण वह इसका प्रयोग केवल शांति के क्षेत्र में ही करना चाहता है। परमाणु शक्ति का जहाँ विध्वंस के लिए प्रयोग किया जा सकता है, वहाँ इसका मानव के कल्याण एवं भलाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।

परमाणु शक्ति के प्रयोग से रेगिस्तान तथा बंजर धरती को उपजाऊ बनाया जा सकता है और विभिन्न प्रकार की फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। रूस में परमाणु शक्ति के प्रयोग से बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर सड़कें बनाई गई हैं। अणु शक्ति का प्रयोग कोयला, तेल तथा जल के स्थान पर होने लगा है। कुछ वर्ष पूर्व केवल अमेरिका, सोवियत संघ, इंग्लैंड तथा चीन ही आणविक शक्ति संपन्न राष्ट्र थे। आज आणविक अस्त्रों का उत्पादन करना प्रत्येक राष्ट्र के सम्मान का सूचक बन गया है।

जनमत की इच्छाओं का समुचित सम्मान करते हुए भारत सरकार ने 1948 में अणु शक्ति आयोग की स्थापना की। इसका प्रमुख उद्देश्य था-अणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग। डॉ० होमी जहाँगीर भाभा को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ० भाभा की अध्यक्षता में प्रथम परमाणु प्रतिकार (रिऐक्टर) की ट्रांबे में (मुंबई के समीप) स्थापना की गई। परमाणु शक्ति द्वारा विद्युत उत्पन्न करने के लिए तारापुर में बिजलीघर का निर्माण किया गया।

24 जनवरी, 1966 को भारतीय आणविक वैज्ञानिक डॉ० होमी जहाँगीर भाभा वायुयान दुर्घटना में अकाल मृत्यु के शिकार हो गए, लेकिन उनकी परंपरा को जीवित रखते हुए भारतीय विद्वानों ने 18 मई, 1974 को प्रातः 8 बजकर 5 मिनट पर देश के पश्चिमी भाग, राजस्थान के बाड़मेर जिले के पोखरण नामक स्थान पर अपना प्रथम भूमिगत परमाणु विस्फोट किया। इसी प्रकार, 11 मई और 13 मई, 1998 को पोखरण नामक स्थान पर दूसरा भूमिगत परमाणु विस्फोट किया गया। इसके साथ ही भारत अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के साथ छठा अणुशक्ति संपन्न राष्ट्र बन गया।

अंत में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों से भारत की सुरक्षा के लिए खतरे बढ़े हैं। एक ओर चीन के पास विशाल सेना और आणविक हथियारों का भंडार है तो दूसरी ओर पाकिस्तान की परमाणु क्षमता। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का भारत के साथ अघोषित युद्ध तो चल ही रहा है। अमेरिका आदि अन्य परमाणु संपन्न देशों की प्रतिक्रिया हम भली प्रकार से जानते हैं। यदि वे भारतीय दृष्टि के प्रति संवेदनशील होते तो शायद भारत को परीक्षण की आवश्यकता ही न पड़ती। भारत को अपने हितों को देखना है। यद्यपि भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग मानव के कल्याणार्थ करना चाहता है तथापि देश की रक्षा के लिए परमाणु हथियार नितांत आवश्यक हैं। इसीलिए भारत ने यह आणविक विस्फोट किया है।

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11. पंचायती राज

पंचायती राज का मुख्य भाव है-जनता द्वारा चुनी गई वह संस्था जो गाँव की विभिन्न व्यवस्थाओं का प्रबन्ध करती है। गाँव के विकास के साधन जनता सहमति से जुटाती है। भारतवर्ष में पंचायत की व्यवस्था बहुत ही प्राचीनकाल से चली आ रही है। वहाँ की जनता का पंचायत में पूर्ण विश्वास रहा है। पंचायती राज अर्थात् पंचायतों का गठन उन पाँच व्यक्तियों पर आधारित हुआ करता था जिनका चुनाव गाँव-बिरादरी के सामने गाँव के लोगों द्वारा ही होता था। यही पाँच व्यक्ति अपना एक मुखिया चुन लेते थे, जिसे सरपंच कहा जाता था। बाकी सभी पंच या सदस्य पंचायत कहलाते थे। दूर-दराज के देहातों एवं गाँवों में रहने वाले लोगों की अपनी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने के लिए राजधानी व शहर के चक्कर नहीं काटने पड़ते थे। गाँव की समस्याएँ गाँव में ही सुलझा ली जाती थीं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर इन पंचायतों व पंचायती राज-व्यवस्था का गठन किया जाता था और आज भी किया जा रहा है। गाँव-देहात की कोई भी समस्या उत्पन्न होने पर ये पंचायतें उनका निर्णय निष्पक्ष रूप से करती थीं। दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद पंचों की सहमति से सरपंच जो भी निर्णय करता था, उसे पंच परमेश्वर का फैसला मानकर स्वीकार कर लिया जाता था। ऐसी पंचायती राज परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही थी।

भारत के लिए यह व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नहीं थी। यह एक प्राचीन बुनियादी व्यवस्था है। पहले बड़े-बड़े सम्राट भी इन्हीं पंचायतों के माध्यम से अपनी न्याय-व्यवस्था को जन-जन तक पहुँचाया करते थे। आज भी शक्ति का विकेन्द्रीकरण करने के लिए पंचायती राज की व्यवस्था को अपनाया गया है। पंचायत के ऊपर कई गाँवों की खण्ड पंचायत होती थी। यदि स्थानीय पंचायत कोई निर्णय नहीं कर पाती या फिर उसका निर्णय किसी पक्ष को स्वीकार नहीं होता था तो मामला खण्ड पंचायत के सामने लाया जाता था। खण्ड पंचायत के ऊपर होती थी पूरे जिले की ‘सर्वग्राम पंचायत’।

भारत में अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था लागू होने पर इन पंचायतों की उपेक्षा कर दी गई और अपनी न्याय प्रणाली को थोंप दिया गया था। किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष ने पंचायती राज व्यवस्था को पुनः संगठित किया। फलतः भारतीय संविधान की रचना करते समय इस विषय को नीति-निदेशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत रखा गया। किन्तु यह व्यवस्था पूर्णतः लागू नहीं हो सकी। देखा यह भी गया है कि कुछ वर्षों से यह फिर चर्चा का विषय बनी हुई है। देश के विकास के लिए कुछ कार्य पंचायतों के सुपुर्द किए गए हैं। इस बीच पंचायतों के चुनाव भी हुए हैं। सन् 1993 में वर्तमान आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में पंचायती राज पर वाद-विवाद के बाद इसका संशोधित विधेयक बहुमत से संसद में पास कर दिया गया है।

यह अत्यन्त सुखद विषय है कि भारतवर्ष में फिर से पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई है। यह व्यवस्था पहले की अपेक्षा अधिक सक्रिय है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि इसमें महिलाओं की भूमिका भी बढ़ी है। महिलाएँ भी मैम्बर पंचायत एवं सरपंच चुनी जाती हैं। पूरे देश में इससे महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागृति आई है। आज ग्रामीण विकास के कई कार्यक्रम इन पंचायतों के माध्यम से संपादित किए जा रहे हैं। निश्चय ही गाँवों में पंचायतों के पुनर्गठन से गाँवों के लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। देश में लोकतंत्र की मज़बूती के लिए पंचायतों का सुचारु रूप से चलना और सुदृढ़ होना नितान्त आवश्यक है। किन्तु थोड़ा अफसोस भी है कि जहाँ प्राचीनकाल में पंचायती राज व पंचायत के गठन में आपसी सहमति ही प्रधान थी आज पंचायत के चुनाव भी राजनीति के अखाड़े बन गए हैं और आपसी सहमति की अपेक्षा वोट की शक्ति बन गई है। इससे गाँव के आपसी सहयोग व प्रेम की भावना को ठेस पहुंची है।

12. ‘परहित सरस धर्म नहिं भाई’
अथवा
परोपकार

सकेत : भूमिका, परोपकार का अर्थ, मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म, परोपकार से अलौकिक आनंद, परोपकार का वास्तविक स्वरूप, परोपकार जीवन का आदर्श, उपसंहार।
कविवर रहीम लिखते हैं-
‘तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपत्ति संचहि सुजान।।
भगवान ने प्रकृति की रचना इस प्रकार की है कि उसके मूल में परोपकार ही काम कर रहा है। उसके कण-कण में परोपकार का गुण समाया है। वृक्ष अपना फल नहीं खाते, नदी अपना जल नहीं पीती, बादल जलरूपी अमृत हमें देते हैं, सूर्य रोशनी देकर चला जाता है। इस प्रकार सारी प्रकृति परहित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करती रहती है।

‘परोपकार’ दो शब्दों ‘पर’ + ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है दूसरों का भला। जब मनुष्य ‘स्व’ की संकुचित सीमा से बाहर निकलकर ‘पर’ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है, वही परोपकार कहलाता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा है-‘मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे’। परोपकार की भावना ही मनुष्य को पशुओं से अलग करती है अन्यथा आहार, निद्रा आदि तो मनुष्यों और पशुओं में समान रूप से पाए जाते हैं। परहित के कारण ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियाँ तक दान में दे दी थीं। महाराज शिवि ने एक कबूतर के लिए अपने शरीर का माँस तक दे दिया था तथा अनेक महान् संतों ने लोक-कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया था।

परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। मनुष्य के पास विकसित मस्तिष्क तथा संवेदनशील हृदय होता है। दूसरों के दुःख से दुखी होकर उसके मन में उनके प्रति सहानुभूति पैदा होती है और वह उनके दुःख को दूर करने का प्रयत्न करता है तथा परोपकारी कहलाता है। परोपकार का सीधा संबंध दया, करुणा और संवेदना से है। सच्चा परोपकारी करुणा से पिघलकर हर दुखी प्राणी की सहायता करता है। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ उक्ति भी परोपकार की ओर संकेत करती है।

परोपकार में स्वार्थ की भावना नहीं रहती। परोपकार करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व की भावना बढ़ती है। सुख की जो अनुभूति किसी व्यक्ति का संकट दूर करने में, भूखे को रोटी देने में, नंगे को कपड़ा देने में, बेसहारा को सहारा देने में होती है, वह किसी अन्य कार्य करने से नहीं मिलती। परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है।

आज का मानव भौतिक सुखों की ओर बढ़ता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई से दूर कर दिया है। अब वह केवल स्वार्थ-सिद्धि के लिए कार्य करता है। आज मनुष्य थोड़ा लगाने तथा अधिक पाने की इच्छा करने लगा है। जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में देखा जाने लगा है। जिस कार्य से स्वहित होता है, वही किया जाता है, उससे चाहे औरों को कितना ही नुकसान उठाना पड़े। पहले छल-कपट, धोखे, बेईमानी से धन कमाया जाता है और फिर धार्मिक स्थलों अथवा गरीबों में थोड़ा धन इसलिए बाँट दिया जाता है कि समाज में उनका यश हो जाए। इसे परोपकार नहीं कह सकते।

महात्मा ईसा ने परोपकार के विषय में कहा था कि दाहिने हाथ से किए गए उपकार का पता बाएँ हाथ को नहीं लगना चाहिए। पहले लोग गुप्त दान दिया करते थे। अपनी मेहनत की कमाई से किया गया दान ही वास्तविक परोपकार होता है। न केवल मनुष्य अपितु राष्ट्र भी स्वार्थ केंद्रित हो गए हैं, इसीलिए चारों ओर युद्ध का भय बना रहता है। चारों ओर अहम् और स्वार्थ का राज्य है। प्रकृति द्वारा दिए गए निःस्वार्थ समर्पण के संदेश से भी मनुष्य ने कुछ नहीं सीखा। हजारों-लाखों लोगों में से विरले इंसान ही ऐसे होते हैं, जो पर-हित के लिए सोचते हैं।

परोपकारी व्यक्ति का जीवन आदर्श माना जाता है। वह सदा प्रसन्न तथा पवित्र रहता है। उसे कभी आत्मग्लानि नहीं होती, वह सदा शांत मन रहता है। उसे समाज में यश और सम्मान मिलता है। वर्तमान युग के महान् नेताओं महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक आदि को लोक-कल्याण करने के लिए सम्मान तथा यश मिला। ये सब पूजा के योग्य बन गए। परहित के कारण गांधी ने गोली खाई, ईसा सूली पर चढ़े, सुकरात ने जहर पिया। किसी भी समाज तथा देश की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन है। हर व्यक्ति का धर्म है कि वह परोपकारी बने। कवि रहीम ने परोपकार की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है
“रहिमन यों सुख होत है उपकारी के अंग।
बाटन वारे को लगे ज्यों मेंहदी के रंग।’

अर्थात् जिस प्रकार मेंहदी लगाने वाले अंगों पर भी मेंहदी का रंग चढ़ जाता है, उसी प्रकार परोपकार करने वाले व्यक्ति के शरीर को भी सुख की प्राप्ति होती है।

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13. आदर्श खिलाड़ी के गुण

मानव-जीवन एक यात्रा के समान है। यदि यात्री को ज्ञात हो कि उसे कहाँ जाना है तो वह उसी दिशा में अग्रसर होता है। यदि उसे अपने लक्ष्य का बोध न हो तो उसकी यात्रा ही निरर्थक हो जाती है। इसी प्रकार यदि एक युवक को पता हो कि उसे क्या करना है तो वह उसी दिशा में प्रयास करना आरम्भ कर देता है। उसे सफलता भी प्राप्त होती है। यही बात एक आदर्श खिलाड़ी पर भी लागू होती है। जब एक खिलाड़ी अपने जीवन का लक्ष्य किसी खेल को खेलना बना लेता है तो उसे उसी दिशा में आगे बढ़ना होता है। आज के युग में कुछ ऐसे खेल हैं जिनमें शोहरत के साथ-साथ धन की प्राप्ति भी अत्यधिक है। खिलाड़ियों में कुछ खिलाड़ी पैसे कमाने को अहमियत देते हैं। किन्तु जो खिलाड़ी पूरे प्राणपन से अपने खेल के प्रति समर्पित होता है और देश की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर खेलता है उसे ही आदर्श खिलाड़ी की संज्ञा दी जा सकती है।

आदर्श खिलाड़ी का पहला गुण खेल के प्रति समर्पण की भावना होती है। खेल भले ही कोई भी हो सकता है किन्तु एक आदर्श खिलाड़ी अपना पूरा ध्यान और प्राणपन खेल के प्रति रखता है। तभी वह उस खेल में जीत हासिल कर सकता है और प्रसिद्धि की बुलंदियों को छू सकता है। अधूरे मन से खेलने वाला खिलाड़ी न तो खेल में विजयी हो सकता है और न ही प्रसिद्धि को प्राप्त कर सकता है। अतः खेल के प्रति समर्पण की भावना आदर्श खिलाड़ी का प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण गुण है।

यद्यपि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का पालन करना अति आवश्यक है। अनुशासन से मानव-जीवन समृद्ध होता है। इसी प्रकार अनुशासनप्रियता खिलाड़ी का अहम् गुण होता है। अनुशासन में रहने का तात्पर्य है कि खेल के नियमों का पालन करना। यदि कोई खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन करता हुआ उस खेल को खेलता है तो उसे निश्चय ही विजय प्राप्त होगी। विजय न भी प्राप्त हो किन्तु उसे अनुशासनहीन नहीं कहा जा सकता। विजय तो कभी-न-कभी उसे मिलेगी ही। यहाँ हम क्रिकेट के सम्राट सचिन तेंदुलकर को उदाहरणस्वरूप ले सकते हैं। उन्होंने अपने खेल के जीवन में कभी भी खेल के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। आज उन्हें उनके सर्वाधिक रन बनाने व सफल खिलाड़ी के साथ-साथ अनुशासन प्रिय खिलाड़ी के नाम से भी जाना जाता है।

कहावत भी है कि “करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।” इस कहावत का भाव है कि किसी भी कार्य में निरन्तर अभ्यास करने से कोई भी व्यक्ति अपने कार्य में कुशलता प्राप्त कर सकता है। अपने खेल का निरन्तर अभ्यास करना आदर्श खिलाड़ी का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। बिना अभ्यास के किसी भी कार्य में कुशलता व निपुणता हासिल नहीं हो सकती। यही बात खेल और खिलाड़ी पर भी लागू होती है। इतिहास गवाह है कि अभ्यास से ही साधारण स्तर के खिलाड़ी भी खेल में विजयी होते हैं। महाभारतकालीन एकलव्य का उदाहरण हमारे सामने है। उसने अभ्यास के बल पर ही तीर चलाने में इतनी निपुणता प्राप्त की थी कि स्वयं गुरु द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित हो गए थे। अतः स्पष्ट है कि निरन्तर अभ्यास करना एक आदर्श एवं सच्चे खिलाड़ी का प्रमुख गुण है।

समभावता का अभिप्राय है कि हार व जीत को समान भाव से ग्रहण करना। एक आदर्श खिलाड़ी हार जाने पर कभी निराश नहीं होता, अपितु हार से सबक लेकर भविष्य में विजय प्राप्त करने का निश्चय लेकर पुनः खेल के मैदान में उतरता है। एक आदर्श खिलाड़ी विजयी होने पर कभी घमण्डी व अहंकारी नहीं बनता और न ही दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयत्न करता है। वह विजयी होने पर शांत व सरल स्वभाव युक्त बना रहता है। भारतीय क्रिकेट टीम के जाने-माने खिलाड़ी व पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इसके उदाहरण हैं। वे विजयी होने पर भी पूर्ववत शांत एवं सहज बने रहते हैं।

कोई भी महान खिलाड़ी सदैव दूसरे खिलाड़ियों का सम्मान करता है। टीम के दूसरे खिलाड़ियों का सम्मान करने से आदर्श खिलाड़ी की उदारता का पता चलता है। दूसरे खिलाड़ियों को खेल के लिए प्रोत्साहित करना ही खिलाड़ियों का सम्मान करना है। दूसरे खिलाड़ियों के खेल की सराहना करना भी उनका सम्मान करना है। दूसरे का सम्मान करना अर्थात् स्वयं भी सम्मानित होना है। इस गुण के आधार पर एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ियों के मन में सम्मान का एक विशेष स्थान बना लेता है।

एक आदर्श खिलाड़ी सदा धैर्यशील बना रहता है। वह खेल में कभी अपना धैर्य नहीं खोता। स्वयं धैर्यशील रहकर अपने अन्य खिलाड़ी साथियों को धीरज बंधाता है। कभी-कभी तो धैर्यशील खिलाड़ी को देखकर पूरी-की-पूरी टीम उत्साह एवं उमंग में भरकर खेलती है। ऐसे में खेल में विजयी होना आसान बन जाता है। अतः स्पष्ट है कि धैर्यशीलता आदर्श खिलाड़ी का महत्त्वपूर्ण गुण है।

टीम की भावना अर्थात् सबके साथ मिलकर खेलने की भावना आदर्श खिलाड़ी का अन्य महत्त्वपूर्ण गुण है। एक आदर्श खिलाड़ी सदा व्यक्तिगत रिकॉर्ड बनाने की भावना की अपेक्षा पूरी टीम को विजयी बनाने की भावना मन में रखकर खेल के मैदान में उतरता है। वह भली-भांति जानता है कि यदि टीम खेलं में हारती है तो उसका व्यक्तिगत स्कोर या रिकॉर्ड किसी काम का नहीं। टीम के विजयी होने से किसी देश का सम्मान अधिक बढ़ता है, न कि एक खिलाड़ी के अच्छे खेलने से। इसलिए एक आदर्श खिलाड़ी टीम भावना से भरपूर होता है और इसी भावना को लेकर खेलता है।

एक आदर्श खिलाड़ी सदैव सहनशील होता है। दूसरे उसे क्या कहते हैं या उसे कुछ गलत कहकर खेल से भटकाने का प्रयास करते हैं तो उस समय वह उनके कथनों की ओर या तो ध्यान नहीं देता या उन्हें सहज ही सहन करते हुए अपने खेल पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करके खेलता है। ऐसे सहनशील खिलाड़ी सदा ही सम्मान के पात्र बने रहते हैं। विरोधी दल (टीम) के खिलाड़ी भी उसका मान-सम्मान करते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आदर्श खिलाड़ी के लिए उसका प्रमुख लक्ष्य खेल में विजयी होना होता है। वह उपर्युक्त सभी गुणों को जीवन में धारण करते हुए एक आदर्श स्थापित करता है। वह अपने खेल के प्रति पूर्णतः ईमानदार बना रहता है। वह सदैव टीम की विजय को महत्त्व देता है और इससे भी बढ़कर अपने देश व राष्ट्र के सम्मान को अपने खेल के माध्यम से बढ़ाता है।

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14. परिश्रम और भाग्य
अथवा
परिश्रम का महत्व

संकेत : भूमिका, भाग्य का सहारा, परिश्रम की विजय, परिश्रम के लाभ, महापुरुषों के उदाहरण, उपसंहार।

मानव जीवन में परिश्रम का विशेष महत्त्व है। मानव तो क्या, प्रत्येक प्राणी के लिए परिश्रम का महत्त्व है। चींटी का छोटा-सा जीवन भी परिश्रम से पूर्ण है। मानव परिश्रम द्वारा अपने जीवन की प्रत्येक समस्या को सुलझा सकता है। यदि वह चाहे तो पर्वतों को काटकर सड़क निकाल सकता है, नदियों पर पुल बाँध सकता है, काँटेदार मार्गों को सुगम बना सकता है और समुद्रों की छाती को चीरकर आगे बढ़ सकता है। ऐसा कौन-सा कार्य है जो परिश्रम से न हो सके। नेपोलियन ने भी अपनी डायरी में लिखा था’असंभव’ जैसा कोई शब्द नहीं है। कर्मवीर तथा दृढ़-प्रतिज्ञ महापुरुषों के लिए संसार का कोई भी कार्य कठिन नहीं होता।

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाग्य पर निर्भर रहकर श्रम को छोड़ देते हैं। वे भाग्य का सहारा लेते हैं परंतु भाग्य जीवन में आलस्य को जन्म देता है और यह आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है। आलसी व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहता है। ऐसा व्यक्ति हर काम को भाग्य के भरोसे छोड़ देता है। हमारा देश इसी भाग्य पर निर्भर रहकर सदियों तक गुलामी को भोगता रहा। हमारे अंदर हीनता की भावना घर कर गई लेकिन जब हमने परिश्रम के महत्त्व को समझा तब हमने स्वतंत्रता की ज्योति जलाई और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ डाला। संस्कृत के कवि भर्तृहरि ने ठीक ही कहा है

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः दैवेन देयमिति का पुरुषा वदन्ति।
दैवं निहत्य करु पौरुषमात्माशक्तया, यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः॥

अर्थात् उद्यमी पुरुष को लक्ष्मी प्राप्त होती है। ‘ईश्वर देगा’ ऐसा कायर आदमी कहते हैं। दैव अर्थात् भाग्य को छोड़कर मनुष्य को यथाशक्ति पुरुषार्थ करना चाहिए। यदि परिश्रम करने पर भी कार्य सिद्ध न हों तो सोचना चाहिए कि इसमें हमारी क्या कमी रह गई है।

केवल ईश्वर की इच्छा और भाग्य के सहारे पर चलना कायरता है। यह अकर्मण्यता है। मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं है। अंग्रेज़ी में भी कहावत है-“God helps those who help themselves” अर्थात् ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं। कायर और आलसी व्यक्ति से तो ईश्वर भी घबराता है। कहा भी गया है-‘दैव-दैव आलसी पुकारा।

संस्कृत की ही उक्ति है-‘श्रमेव जयते’ अर्थात परिश्रम की ही विजय होती है। वस्तुतः मानव प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। वह स्वयं ईश्वर का प्रतिरूप है। संस्कृत का एक श्लोक है-
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
इसका अर्थ यह है कि उद्यम से ही मनुष्य के कार्य सिद्ध होते हैं, केवल इच्छा से नहीं। जिस प्रकार सोए हुए शेर के मुँह में मृग स्वयं नहीं प्रवेश करते, उसी प्रकार से मनुष्य को भी कर्म द्वारा सफलता मिलती है। कर्म से मानव अपना भाग्य स्वयं बनाता है। एक कर्मशील मानव जीवन की सभी बाधाओं और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर लेता है।

परिश्रम से मनुष्य का हृदय गंगाजल के समान पावन हो जाता है। परिश्रम से मन की सभी वासनाएँ और दूषित भावनाएँ बाहर निकल जाती हैं। परिश्रमी व्यक्ति के पास बेकार की बातों के लिए समय नहीं होता। कहा भी गया है-“खाली मस्तिष्क शैतान का घर है।” यही नहीं, परिश्रम से आदमी का शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है। उसके शरीर को रोग नहीं सताते । परिश्रम से यश और धन दोनों प्राप्त होते हैं। ऐसे लोग भी देखे गए हैं जो भाग्य के भरोसे न रहकर थोड़े-से धन से काम शुरू करते हैं और देखते-ही-देखते धनवान बन जाते हैं। परिश्रमी व्यक्ति को जीवित रहते हुए भी यश मिलता है और मरने के उपरांत भी। वस्तुतः परिश्रम द्वारा ही मानव अपने को, अपने समाज को और अपने राष्ट्र को ऊँचा उठा सकता है। जिस राष्ट्र के नागरिक परिश्रमशील हैं, वह निश्चय ही उन्नति के शिखर को स्पर्श करता है लेकिन जिस राष्ट्र के नागरिक आलसी और भाग्यवादी हैं, वह शीघ्र ही गुलाम हो जाता है।

हमारे सामने ऐसे अनेक महापुरुषों के उदाहरण हैं जिन्होंने परिश्रम द्वारा अपना ही नहीं अपितु अपने राष्ट्र का नाम भी उज्ज्वल किया है। अब्राहिम लिंकन का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था लेकिन निरंतर कर्म करते हुए वे झोंपड़ी से निकलकर अमेरिका के राष्ट्रपति भवन तक पहुँचे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री, भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महामना मदन मोहन मालवीय, नेता जी सुभाषचंद्र बोस आदि महापुरुष इस बात के साक्षी हैं कि परिश्रम से ही व्यक्ति महान बनता है।

यदि हम चाहते हैं कि अपने देश की, अपनी जाति की और अपनी स्वयं की उन्नति करें तो यह आवश्यक है कि हम भाग्य का सहारा छोड़कर परिश्रमी बनें। आज देश के युवाओं में जो बेरोज़गारी और आलस्य व्याप्त है, उसका भी एक ही इलाज हैपरिश्रम। संस्कृत में भी ठीक कहा गया है-
श्रमेण बिना न किमपि साध्यं।

15. काला धन

काले धन को अंग्रेज़ी में ‘ब्लैक मनी’ कहते हैं। अवैध तरीके अपनाकर कमाया गया धन काला धन कहलाता है। काला धन कमाने के अवैध तरीके हैं-आयकर की चोरी, अन्य प्रकार के कर का भुगतान न करना, चोर बाजारी में सामान बेचकर धन कमाना एवं राष्ट्र व मानवता विरोधी कार्यों द्वारा धन कमाना आदि। इस धन का लेखा-जोखा किसी भी सरकारी आँकड़ों में नहीं आता। काला धन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में बन्धन होता है। काले धन को लोग विदेशों के बैंकों में जमा करते हैं, जहाँ आयकर का नियम लागू नहीं होता। सिंगापुर, मॉरीशस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि ऐसे ही देश हैं। भारतीयों का काला धन स्विट्ज़रलैण्ड के बैंकों में जमा होने की अनेक बार भर्त्सना हो चुकी है।

यह एक कटु सत्य है कि आज काले धन के बल पर काली अर्थव्यवस्था चल रही है। भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त होने वाला धन काली अर्थव्यवस्था में लगाकर देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। काला धन काला बाज़ार भी तैयार करता है। इससे जन-साधारण के जीवन एवं अर्थ सम्बन्धी कष्ट व समस्याएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। काले धन के बल पर वस्तुओं का बाज़ार में अभाव दिखाकर उसकी बिक्री मनमाने दामों पर करके और भी अधिक काला धन बटोरा जाता है।

काले धन के कारण समाज में अनेक कुरीतियों, अपराधों आदि को बढ़ावा मिल रहा है। इसलिए काले धन से अर्थ-व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है।

ऐसा नहीं है कि सरकार काले धन की समस्या से अवगत नहीं है। देश के काले धन को सामने लाने के लिए स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् समय-समय पर आयकर जाँच आयोग जैसे अनेक आयोगों का गठन किया गया। सरकार ने 1951 ई० में स्वैच्छिक प्रकटीकरण योजना के तहत ₹ 70.2 करोड़ के काले धन का पता लगाया। इसी प्रकार 1968 ई० में सरकार की योजनाओं द्वारा पर्याप्त काले धन का पता लगाया गया। इसी प्रकार 1997 व 1998 में स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना के तहत देश में ₹ 33000 करोड़ के काले धन का पता लगाया गया था।

हाल ही में विदेशों में काले धन से जुड़े खातों की जानकारी सार्वजनिक न करने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को खरी-खोटी सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया था कि यह केवल कर चोरी का मामला नहीं है, अपितु देश के साथ लूट का मामला है।

विदेशों के बैंकों में जमा काले धन के साथ-साथ अपने ही देश के लोगों के पास कितना धन, घर, ज़मीन, बैंक लॉकर्स या. तिजोरियों में बन्द पड़ा है, उसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है। यदि इस धन को देश की अर्थ-व्यवस्था में लगाया जाए तो इससे देश का विकास सहज हो सकता है। इससे काफी सीमा तक बेरोजगारी की समस्या भी कम हो सकती है।

काले धन की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न देशों के साथ दोहरी कराधान संधि के साथ-साथ विमुद्रीकरण की नीति को भी व्यवहार में लाना लाभप्रद हो सकता है। जैसा कि मोदी सरकार ने 2016 ई० में नोटबंदी करके किया है। विमुद्रीकरण का अर्थ होता है रुपए का पुनमुद्रण । जब अर्थव्यवस्था में काला धन बढ़ जाता है तो इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की नीति अपनाई जाती है। इसके अनुसार पुरानी मुद्रा के स्थान पर नई मुद्रा को प्रचलन में लाया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि जिसके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं करता। फलस्वरूप काला धन स्वतः नष्ट हो जाता है। भारतवर्ष में यह प्रयोग काफी हद तक सफल रहा है। किन्तु काले धन के सौदागर भी कम चालाक नहीं निकले उन्होंने भी नए-नए हथकंडे अपनाए।

काले धन को बाहर लाने के लिए कर-व्यवस्था को सुधारना पड़ेगा। इसके लिए ईमानदार एवं कार्य-कुशल कर्मचारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए। आयकर विभाग द्वारा नियमित रूप से उद्योगपत्तियों व व्यापारियों तथा राजनेताओं के विभिन्न स्थानों पर जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। इससे काले धन को बाहर लाया जा सकता है और देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सकता है। इससे देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा।

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16. कुसंगति के दुष्परिणाम

संकेत : भूमिका, कुसंगति के दुष्परिणाम, सज्जन और दुर्जन का संग, कुसंगति से बचने के उपाय, सत्संगति के प्रकार, उपसंहार।

कुसंगति का शाब्दिक अर्थ है-बुरी संगति। अच्छे व्यक्तियों की संगति से बुद्धि की जड़ता दूर होती है, वाणी तथा आचरण में सच्चाई आती है, पापों का नाश होता है और चित्त निर्मल होता है लेकिन कुसंगति मनुष्य में बुराइयों को उत्पन्न करती है। यह मनुष्य को कुमार्ग पर ले जाती है। जो कुछ भी सत्संगति के विपरीत है, वह कुसंगति सिखलाती है। एक कवि ने कहा भी है-
काजल की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय,
एक लीक काजल की लागि हैं, पै लागि हैं।
यह कभी नहीं हो सकता कि परिस्थितियों का प्रभाव हम पर न पड़े। दुष्ट और दुराचारी व्यक्ति के साथ रहने से सज्जन व्यक्ति का चित्त भी दूषित हो जाता है।

कुसंगति का बड़ा प्रभाव पड़ता है। एक कहावत है-अच्छाई चले एक कोस, बुराई चले दस कोस । अच्छी बातें सीखने में समय लगता है। जो जैसे व्यक्तियों के साथ बैठेगा, वह वैसा ही बन जाएगा। बुरे लोगों के साथ उठने-बैठने से अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं। यदि हमें किसी व्यक्ति के चरित्र का पता लगाना हो तो पहले हम उसके साथियों से बातचीत करते हैं। उनके आचरण और व्यवहार से ही उस व्यक्ति के चरित्र का सही ज्ञान हो जाता है।

कुसंगति की अनेक हानियाँ हैं। दोष और गुण सभी संसर्ग से उत्पन्न होते हैं। मनुष्य में जितना दुराचार, पापाचार, दुष्चरित्रता और दुर्व्यसन होते हैं, वे सभी कुसंगति के फलस्वरूप होते हैं। श्रेष्ठ विद्यार्थियों को कुसंगति के प्रभाव से बिगड़ते हुए देखा जा सकता है। जो विद्यार्थी कभी कक्षा में प्रथम आते थे, वही नीच लोगों की संगति पाकर बरबाद हो जाते हैं। कुसंगति के कारण बड़े-बड़े घराने नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। बुद्धिमान-से-बुद्धिमान् व्यक्ति पर भी कुसंगति का प्रभाव पड़ता है। कवि रहीम ने भी एक स्थल पर लिखा है-
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोच।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यौ पड़ोस ॥

सज्जन और दुर्जन का संग हमेशा अनुचित है बल्कि यह विषमता को ही जन्म देता है। बुरा व्यक्ति तो बुराई छोड़ नहीं सकता, अच्छा व्यक्ति ज़रूर बुराई ग्रहण कर लेता है। अन्यत्र रहीम कवि लिखते हैं
कह रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥

अर्थात् बेरी और केले की संगति कैसे निभ सकती है ? बेरी तो अपनी मस्ती में झूमती है लेकिन केले के पौधे के अंग कट जाते हैं। बेरी में काँटे होते हैं और केले के पौधे में कोमलता। अतः दुर्जन व्यक्ति का साथ सज्जन के लिए हानिकारक ही होता है।

हम अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं तो हमें दुर्जनों की संगति छोड़कर सत्संगति करनी होगी। सत्संगति का अर्थ हैश्रेष्ठ पुरुषों की संगति। मनुष्य जब अपने से अधिक बुद्धिमान्, विद्वान् और गुणवान लोगों के संपर्क में आता है तो उसमें अच्छे गुणों का उदय होता है। उसके दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं। सत्संगति से मनुष्य की बुराइयाँ दूर होती हैं और मन पावन हो जाता है। कबीरदास ने भी लिखा है
कबीरा संगति साधु की, हरै और की व्याधि।
संगति बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि ॥

सत्संगति दो प्रकार से हो सकती है। पहले तो आदमी श्रेष्ठ, सज्जन और गुणवान व्यक्तियों के साथ रहकर उनसे शिक्षा ग्रहण करे। दूसरे प्रकार का सत्संग हमें श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से प्राप्त होता है। सत्संगति से मनुष्यों की ज्ञान-वृद्धि होती है। संस्कृत में भी कहा गया है- सत्संगति : कथय किं न करोति पुंसाम्। . रहीम ने पुनः एक स्थान पर कहा है.. . जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥ अर्थात् यदि आदमी उत्तम स्वभाव का हो तो कुसंगति उस पर प्रभाव नहीं डाल सकती। यद्यपि चंदन के पेड़ के चारों ओर साँप लिपटे रहते हैं तथापि उसमें विष व्याप्त नहीं होता। महाकवि सूरदास ने भी कुसंगति से बचने की प्रेरणा देते हुए कहा है-
तज मन हरि-विमुखनि को संग।
जाकै संग कुबुधि उपजति है, परत भजन में भंग ॥
बुरा व्यक्ति विद्वान् होकर भी उसी प्रकार दुःखदायी है, जिस प्रकार मणिधारी साँप। मनुष्य बुरी संगति से ही बुरी आदतें सीखता है। विद्यार्थियों को तो बुरी संगति से विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। सिगरेट-बीड़ी, शराब, जुआ आदि बुरी आदतें व्यक्ति कुसंगति से ही सीखता है। अस्तु, कुसंगति से बचने में ही मनुष्य की भलाई है।

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17. स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत

‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान की शुरुआत सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतीक रूप में पेश करना है। वस्तुतः स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी के द्वारा देखा गया था। इस विषय के सम्बन्ध में गाँधी जी ने कहा है-“स्वच्छता स्वतन्त्रता से ज्यादा जरूरी है।” इस कथन के पीछे का भाव है कि वे देश की गरीबी और गन्दगी से भली-भांति अवगत थे। उनके कथन का अर्थ है कि स्वच्छता में ही स्वस्थता की कल्पना की जा सकती है। स्वस्थ व्यक्ति ही अपनी बेहतरी के सम्बन्ध में सोच सकता है। गाँधी जी ने अपने समय में इस सपने को पूरा करने का प्रयास किया, किन्तु वे सफल नहीं हो सके। उन्होंने कहा था कि निर्मलता और स्वच्छता दोनों ही स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन का अनिवार्य भाग हैं। किन्तु यह खेद का विषय है कि भारत की आज़ादी के इतने वर्षों तक भी भारत इन दोनों लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाया है। गाँवों में तो दशा और भी शोचनीय है। गाँधी जी के सपने को पूरा करने के लिए ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान का शुभारम्भ 2 अक्तूबर, 2014 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया तथा इस मिशन को 2 अक्तूबर, 2019 तक पूरा करने का समय भी निश्चित किया।

‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान राष्ट्रीय स्वच्छता की एक मुहिम है। इसके तहत भारत को सन् 2019 तक पूर्णतः स्वच्छ बनाना है। इसमें स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को आगे बढ़ाया गया है। यह आन्दोलन गाँधी जी के जन्मदिन (2 अक्तूबर, 2014) को शुरू हुआ और उनके जन्मदिन (2 अक्तूबर, 2019) को सम्पन्न होगा। भारत के शहरी विकास तथा पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को नगरों व गाँवों दोनों में लागू किया गया है। इस मिशन का उद्देश्य सफाई व्यवस्था की समस्या का समाधान निकालना और साथ ही सभी को स्वच्छता की सुविधा के निर्माण द्वारा पूरे भारत में बेहतर मल प्रबन्धन करना है।

‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान की आवश्यकता पर विचार करने से पता चलता है कि भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण के लिए भारत के लोगों में इसका एहसास होना अति आवश्यक है। यह सच्चे अर्थों में भारत की सामाजिक स्थिति को बढ़ावा देने के लिए है। जो चारों ओर स्वच्छता लाने के लिए शुरू किया जा सकता है। यह जरूरी है कि हर घर में शौचालय बनाने के साथ-साथ खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति को समाप्त किया जाए। हाथ से साफ-सफाई की जाने वाली व्यवस्था को जड़ से समाप्त करना नितान्त आवश्यक है।

नगर-निगम द्वारा कचरे का पुनर्चक्रण अथवा पुनः इस्तेमाल तथा वैज्ञानिक तरीके से मल प्रबन्धन को लागू करना है। स्वच्छता अभियान के माध्यम से ग्रामीण जनता स्वस्थता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना भी है। पूरे भारत में साफ-सफाई की सुविधा को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़ाना भी ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ अभियान का महत्त्वपूर्ण भाग है। स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को निरन्तर साफ-सफाई के प्रति जागरूक करना भी इस अभियान की आवश्यकता पर बल देता है। वास्तव में यह पूरा अभियान बापू के सपनों को पूरा करने की भावना के प्रति समर्पित है।

स्वच्छ भारत अभियान का मूल लक्ष्य शहरी क्षेत्रों के प्रत्येक नगर में ठोस कचरा प्रबन्धन सहित लगभग 1.04 करोड़ घरों को, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय, 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय उपलब्ध कराना है। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रम पाँच वर्षों के अन्दर अर्थात् 2019 तक पूरा करने की योजना है। इस अभियान का अन्य प्रमुख लक्ष्य खुले में शौच की प्रवृत्ति को जड़ से हटाना, अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहाने वाले शौचालयों में परिवर्तन, खुले हाथों से साफ-सफाई की प्रवृत्ति को हटाना, लोगों की सोच में परिवर्तन लाना और ठोस कचरा प्रबन्धन करना है।

‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान में ग्रामीण स्वच्छ भारत का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके तहत भारतीय गाँवों में स्वच्छता कार्यक्रम अमल में लाने का लक्ष्य है। ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छ बनाने के लिए 1999 ई० में भारत सरकार द्वारा इससे पहले निर्मल भारत अभियान की स्थापना की गई थी। उसका लक्ष्य भी गाँवों को पूर्ण स्वच्छ बनाना था। किन्तु अब यह योजना ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ अभियान के अन्तर्गत पुनर्गठित की गई है। इसका लक्ष्य भी ग्रामीणों को खुले में शौच जोने से रोकना है। इसके लिए सरकार ने 11 करोड़, 11 लाख शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य रखा है। इस अभियान में ग्राम पंचायत, जिला परिषद् और पंचायत समितियों की भी सीधी भागीदारी होगी।

ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन का प्रमुख लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में साफ-सफाई के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और उनके जीवन-स्तर को सुधारना है। ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और द्रव्य कचरा प्रबन्धन पर खास तौर पर ध्यान देना तथा उन्नत पर्यावरणीय साफ-सफाई व्यवस्था का विकास करना, जो समुदायों द्वारा प्रबन्धनीय हो, इस अभियान का प्रमुख हिस्सा है।

स्वच्छ भारत-स्वच्छ विद्यालय अभियान भी ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत मिशन के तहत ही चलाया गया है। यह केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा चलाया गया है। इसका प्रमुख लक्ष्य विद्यालयों में स्वच्छता लाना है। इस कार्यक्रम में सीधे तौर पर विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक ही भाग लेते हैं। केन्द्रीय विद्यालयों व नवोदय विद्यालय संगठनों द्वारा अनेक प्रकार के स्वच्छता क्रियाकलाप आयोजित किए जाते हैं। यथा विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा, महात्मा गाँधी की शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान के विषय पर चर्चा, स्कूलों में स्वच्छता क्रियाकलाप आदि। स्कूल क्षेत्र की सफाई, स्वास्थ्य और स्वच्छता सम्बन्धी नाटक मंचन आदि अनेक गतिविधियाँ इन स्कूलों में विद्यार्थियों द्वारा आयोजित की जाती हैं। आज जो विद्यार्थी हैं, वही कल नागरिक बनेंगे। इसलिए स्कूलों के साफ-सफाई सम्बन्धी क्रियाकलापों का अत्यधिक महत्त्व है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सभी भारतवासी और सरकार जब एक निश्चय से महात्मा गाँधी के ‘स्वच्छता ही सुख और स्वास्थ्य की नींव है’ के सपने को पूरा करने में जुट जाएँ तो इसे निश्चित व निर्धारित समय में हासिल किया जा सकता है। ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ एक सराहनीय कदम है। इससे न केवल भारतवासियों का लाभ होगा, अपितु विश्वस्तर पर भी भारत की छवि सुधरेगी। निश्चय ही स्वच्छता और स्वास्थ्य समाज और देश की जरूरत है। यदि स्वच्छता होगी तो स्वस्थता भी अवश्य बनी रहेगी। स्वच्छता में केवल स्वस्थता ही नहीं अपितु भगवान भी बसते हैं।

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18. नर हो न निराश करो मन को

सकेत : भूमिका, छोटी-सी असफलता से निराश न होना, प्रकृति से प्रेरणा, निरंतर संघर्ष करना जीवन है, उपसंहार।

‘नर’ शब्द का सामान्य अर्थ पुरुष होता है। वस्तुतः नर और पुरुष एक शब्द के व्यंजन हैं। पुरुष का अर्थ भी नर है और नर का अर्थ पुरुष, किंतु ‘नर’ शब्द पर यदि गंभीरता या सूक्ष्मता से सोचा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि ‘नर’ शब्द के लाक्षणिक या व्यंजक प्रयोग से पुरुष की विशिष्टता को व्यक्त किया जाता है। पुरुष के पुरुषत्व तथा श्रेष्ठ वीरत्व के भाव को अभिव्यक्त करने के लिए ‘नर’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। इन अभिव्यंजित तथ्यों के प्रकाश में जब हम इस शीर्षक पंक्ति, ‘नर हो, न निराश करो मन को के अर्थ और भाव-विस्तार का विवेचन करते हैं तो मानव-जीवन के अनेक पक्ष स्वतः उजागर होने लगते हैं। मनुष्य के पौरुषत्व और पुरुषार्थ की महिमा जगमगा उठती है।

इस पंक्ति को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई हमें चुनौती भरे शब्दों में या ललकार भरी ध्वनि में कह रहा होवाह ! कैसे पुरुष हो तुम ! या अच्छे नर हो। तुम सांसारिक जीवन की छोटी-छोटी कठिनाइयों से ही घबरा उठते हो क्योंकि अभी तक तुमने जीवन की बाधाओं का सामना करना सीखा ही नहीं है। यों चिल्लाने लगे या घबराकर बोलने लगे कि जैसे आसमान टूट पड़ेगा अथवा जमीन फट जाएंगी। तुम पुरुष हो और वीरता तुम्हारे पास है। एक बार की असफलता से इतनी निराशा। उठो! और निराशा त्यागकर परिस्थितियों का डटकर सामना करो। हमें एक छोटी-सी चींटी से सबक सीखना चाहिए। जब वह चावल का दाना या कोई और वस्तु अपने मुँह में लेकर अपने बिल की ओर जा रही होती है तो उसका मार्ग रोककर देखो या उसके मुँह का दाना या भोजन छीन कर देखो, वह किस प्रकार छटपटाती है और बार-बार उस दाने को प्राप्त करने का प्रयास करती है। वह तब तक निरंतर संघर्ष करती रहेगी, जब तक दाना प्राप्त करके अपने बिल तक नहीं पहुँच जाती। एक ओर मनुष्य है जो थोड़ी-सी या छोटी-सी असफलता पर निराश होकर बैठ जाता है।

‘नर’ अर्थात् बुद्धि और बल से परिपूर्ण मनुष्य, प्राणियों में श्रेष्ठ कहलाने वाला है। वह यदि जीवन में आने वाले संघर्ष या कठिनाइयों से मुँह फेरकर और निराश होकर बैठ जाए तो उसकी श्रेष्ठता के कोई मायने नहीं रह जाएँगे। उसे प्रकृति के हर छोटे-बड़े प्राणी से प्रेरणा लेनी चाहिए। यदि वह संघर्ष करना छोड़ देगा और निराश होकर बैठ जाएगा तो संसार में उसका विकास कैसे होगा ? हर प्रकार की उन्नति के मार्ग ही बंद हो जाएँगे। इसलिए मनुष्य को अपने नरत्व को सिद्ध करना होगा। उसे निराशा त्याग कर अपने हृदय में उत्साह और साहस भरकर जीवन-पथ को प्रशस्त करना होगा। यदि निराशा ही जीवन का तथ्य होती तो अब तक संसार में जो विकास हुआ है वह कभी संभव न हो पाता। नरता का पहला लक्षण ही आगे बढ़ना है, संघर्ष करते रहना है।

नदियों की बहती धारा की भाँति मनुष्य का भी यही लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार धारा सागर में मिलकर ही विश्राम लेती है, उसी प्रकार नर को भी लक्ष्य प्राप्ति के पश्चात ही दम लेना चाहिए। चट्टान भी धारा के मार्ग में आकर उसका रास्ता रोकने का प्रयास करती है। क्या कभी उस धारा को चट्टान रोक सकी ? क्योंकि अपने प्रबल प्रवाह से वह चट्टान को किनारे लगाकर अपना रास्ता स्वयं बना लेती है। वह इस कार्य के लिए किसी से सहायता नहीं माँगा करती। झाड़-झंखाड़ों के रोके भी वह कभी नहीं रुकती। बहुत बड़ी चट्टीन के मार्ग में आ जाने पर भले ही धारा थोड़ी देर के लिए रुकी हुई-सी प्रतीत होती है, किंतु वह कुछ ही क्षणों में अपना दूसरा मार्ग खोज लेती है और फिर उसी प्रवाह से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगती है। नर (पुरुष) की भी जीवन-पद्धति या कार्यशैली ऐसी ही होनी चाहिए। नर को भी समस्याओं के आने पर अपनी योजना बनाकर उनका सामना करना चाहिए और उन पर सफलता प्राप्त करनी चाहिए। तभी वह नर कहलाने योग्य बन सकता है। समस्याएँ सामने आने पर माथे पर हाथ रखकर तथा निराश होकर बैठ जाने से उसके जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होती। वह तभी नर कहलाएगा जब वह समस्याओं पर पैर रखकर आगे बढ़ जाएगा। इसे ही सच्चे अर्थों में जीवन कहते हैं तथा यही नर के नरत्व को व्यक्त करता है।

नर होकर निराश बैठना, यह उसके लिए शोभनीय नहीं है। निराश होकर बैठ जाने और हिम्मत हार जाने वाले मनुष्य की स्थिति वैसी ही होगी जैसी मणि-विहीन सर्प की होती है। मणि ही सर्प की चमक का कारण होती है। उसी प्रकार हिम्मत एवं उत्साह ही मानव-जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाले तत्त्व हैं। जब मनुष्य उनको त्यागकर बैठ जाता है तब वह ‘नर’ कहलाने का अधिकार भी खो बैठता है। ऐसा होना उसके लिए नरता से पतित होने, अपने आपको कहीं का भी नहीं रहने देने के समान होता है। इसलिए कहा गया है कि नर होकर मन को निराश न करो। मनुष्य को किसी भी स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए।

निराशा जीवन में अंधकार भर देती है। इससे मनुष्य को कोई मार्ग नहीं सूझ सकता। इसके विपरीत, निराशा को त्यागकर आशावान और आस्थावान होकर जब मनुष्य समस्याओं से जूझता है तो उसका मार्ग स्वतः ही प्रकाशित हो उठता है और वह आगे बढ़ता हुआ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाता है। संघर्ष और प्रयास में जो आनंद अनुभव होता है वह अमृत के समान होता है। संघर्ष को त्यागकर यदि हम निराशा का दामन पकड़ लेंगे तो उस अमृत के आनंद से भी हाथ धो बैठेंगे। अतः स्पष्ट है नर की नरता निराशा को त्यागकर संघर्ष करने में ही दिखाई देती है। इस पंक्ति का प्रमुख लक्ष्य ही निरंतर संघर्ष करना, गतिशील बने रहना, उत्साह और आनंद का संदेश देना है। इन्हीं से नर की नरता सार्थक होती हैं।

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19. भारत की विदेश नीति

‘विदेश नीति’ से तात्पर्य है कि किसी भी देश को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप दूसरे देशों के साथ आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की जाने वाली नीतियों का सामूहिक रूप होती है। किसी भी देश की या पूरे विश्व की स्थिति सदा एक समान नहीं रहती है। इसलिए बदलती अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति में राष्ट्रीय हितों के दृष्टिकोण से समयानुसार किसी भी देश की नीति में परिवर्तन होना भी आवश्यक होता है। इस संसार में कोई देश न तो किसी का स्थायी मित्र होता है और न ही स्थायी दुश्मन। विश्व इतिहास में इस बात के अनेक उदाहरण हैं। भारतवर्ष की जो स्थिति 1947 में थी, आज वैसी स्थिति नहीं है। इक्कीसवीं सदी में भारत को तेजी से उभरती हुई शक्ति के रूप में देखा जाता है। वैश्विक परिदृश्य में आतंकवाद, जलवायु

परिवर्तन, ऊर्जा संकट जैसी कठिनाइयों से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुटबन्दी एवं सम्बन्धों में निरन्तर परिवर्तन होते रहे हैं। भारत को भी वर्तमान स्थिति के अनुकूल ही अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करने पड़े हैं अथवा विदेश नीति निश्चित की है।

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने अपनी विदेश नीति तय की थी। उसका श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू को जाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेशमंत्री की भूमिका भी निभाई थी। उन्होंने चीन आदि पड़ोसी देशों के साथ मित्रता की नीति अपनाई थी। विदेश नीति के तौर पर पंचशील की स्थापना भी की गई जिसका मूल उद्देश्य आपसी सहयोग और शांति को बढ़ावा देना था, किन्तु अक्तूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर उसका बड़ा भू-भाग हथिया लिया था। वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था। इसके पश्चात् सन् 1964 में लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारत के स्वतंत्र विदेश मंत्रालय की स्थापना की और विदेश मंत्री को नियुक्त किया। शास्त्री जी की नीतियों से भारत के दक्षिण-एशियाई देशों से सम्बन्ध बेहतर हुए। सन् 1965 में पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की हिमाकत की तो शास्त्री जी ने इसका मुँह तोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पड़े थे। सोवियत संघ की मध्यस्थता में भारत-पाकिस्तान समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार भारत को पाकिस्तान के विजित क्षेत्र लौटाने पड़े। शास्त्री जी इस समझौते के पक्षधर नहीं थे। उनकी रहस्मय तरीके से ताशकंद में मृत्यु हो गई थी।

शास्त्री जी के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गाँधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए भारत की विदेश नीति में अनेक बदलाव किए। उन्होंने विदेश नीति को मजबूत बनाने के लिए गुप्तचर सेना को भी सुदृढ़ किया। उन्होंने बांग्लादेश की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पाकिस्तान की शक्ति क्षीण हुई थी। सन् 1974 में परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया। इससे नाराज होकर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए। किन्तु 1971 में भारत ने सोवियत संघ से संधि कर ली थी। इससे न केवल आर्थिक अपितु सैन्य मदद भी भारत को मिली थी किन्तु सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान पर हमला किया जाना, तब उसे भारत का समर्थन हासिल था। इस स्थिति को भारतीय विदेश नीति की एक विफलता के तौर पर देखा मया था।

श्रीमती इंदिरा गांधी के हार जाने पर मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने, किन्तु विदेश नीति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। इन्दिरा जी की मृत्यु के पश्चात् श्री राजीव गाँधी ने अपने कार्यकाल में विदेश नीति को आधुनिक दशा एवं दिशा देने का प्रयास किया। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय संबंध सुधारने के लिए चालीस देशों की यात्राएँ की थीं। श्रीलंका में चल रहे संघर्ष को समाप्त करने में श्री राजीव गाँधी का हाथ था। इसके पश्चात् भारत की राजनीति में अस्थिरता का दौर आया। विदेश नीति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

1998 में अटलबिहारी वाजपेयी पुनः देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल में पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध बनाने की विदेश नीति बनाई और उसमें वे सफल भी रहे। किन्तु पाकिस्तान द्वारा कारगिल में घुसपैठ से भारत को कड़ा रुख अपनाना पड़ा। 2001 में वाजपेयी के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के संबंधों में सुधार आया। वहाँ के राष्ट्रपति बिल-क्लिंटन भारत की यात्रा पर आए थे। यह काल भारतीय विदेश नीति की सफलता के काल के रूप में देखा जाता है।

सन् 2004 में डॉ० मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने और वे दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। वे भारत की आर्थिक नीति को सुदृढ़ करने में सफल रहे। सन् 2008 में जब सारी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही थी, तब भारत पर इसका कोई प्रभाव नहीं था। 2006 में अमेरिका और भारत के बीच हुए सैन्य परमाणु समझौते ने भारत को अमेरिकी विदेश नीति में ऐसा स्थान दिला दिया जो किसी अन्य देश को हासिल नहीं है। इस समय अमेरिका का भारत के प्रति नरम रवैया अपनाना भारत की विदेश नीति की सफलता अवश्य मानी जाती है।

सन् 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। उन्हें देश की जनता का पूर्ण बहुमत हासिल है। उन्होंने भारत की साख को विदेशों में बढ़ाने के लिए अनेक देशों से मित्रता का हाथ बढ़ाया। उनमें चीन, अमेरिका, रूस आदि प्रमुख हैं। भारत ने अपने पड़ोसी देशों को सहायता देने की नीति को अपनाया है। मोदी जी भारत की छवि को अपनी विदेश नीति के माध्यम से सुधारने का सफल प्रयास कर रहे हैं। चीन जैसे पड़ोसी देश के साथ भी उन्होंने अपनी कूटनीति से ही संबंधों में सुधार किया है। वर्तमान समय में भारत विश्व की एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहा है। इसलिए उसे अपनी विदेश नीति को भी समय व परिस्थितियों के अनुसार देश हित में निश्चित एवं निर्धारित करना होगा।

20. सदाचार का महत्त्व
अथवा
चरित्र का महत्त्व

संकेत : भूमिका, सदाचार एवं चरित्र का महत्त्व, स्वानुभव और चरित्र, विद्यार्थी जीवन और सच्चरित्रता, सदाचार के लाभ।

प्रत्येक मानव की यह इच्छा होती है कि समाज में उसका आदर-सम्मान हो। वस्तुतः आदर एवं सम्मान के बिना मनुष्य का अस्तित्व प्रकाश में नहीं आता। इसके लिए मानव अनेक साधनों का आश्रय लेता है। कोई धन के बल पर तो कोई सत्ता के बल पर प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। इसी प्रकार से कोई विद्या का आश्रय लेता है तो कोई अपनी शक्ति का। कोई समाज-सेवा द्वारा तो कोई चरित्र के बल पर नाम कमाना चाहता है। इन सब साधनों में से सच्चरित्रता ही जीवन के समस्त गुणों, ऐश्वर्यों एवं समृद्धियों की आधारशिला है। यदि हम चरित्रवान हैं तो सभी हमारा आदर-सम्मान करते हैं। परंतु चरित्रहीन व्यक्ति समाज में निंदा और तिरस्कार का पात्र बनता है। वह समाज के लिए एक अभिशाप है। दुश्चरित्र व्यक्ति का जीवन अंधकारमय होता है, जबकि सच्चरित्र व्यक्ति ज्ञान एवं प्रकाश के उज्ज्वल वातावरण में वितरण करता है। प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उचित ही कहा है-
“खलों का कहीं भी नहीं स्वर्ग है भलों के लिये तो यही स्वर्ग है।
सुनो स्वर्ग क्या है ? सदाचार है। मनुष्यत्व ही मुक्ति का द्वार है।।”

अंग्रेजी की एक कहावत का भाव इस प्रकार है यदि मनुष्य का धन नष्ट हुआ तो उसका कुछ भी नष्ट नहीं हुआ, यदि उसका स्वास्थ्य नष्ट हुआ तो कुछ नष्ट हुआ, परंतु यदि उसका चरित्र नष्ट हुआ तो उसका सब कुछ नष्ट हो गया। यह कहावत सच्चरित्रता के महत्त्व को दर्शाती है। सच्चरित्र बनने के लिए मनुष्य को सशिक्षा, सत्संगति और स्व + अनुभव की आवश्यकता होती है। परंतु यह जरूरी नहीं है। अनेक बार अशिक्षित व्यक्ति भी सत्संगति के कारण अच्छे चरित्र के देखे गए हैं। फिर भी बुद्धि का परिष्कार और विकास शिक्षा के बिना नहीं हो सकता। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ सत्संगति भी अनिवार्य गुण है। संस्कृत में कहा भी गया है-

“संसर्ग जाः दोषगुणाः भवन्ति।”

अर्थात् दोष और गुण संसर्ग से ही उत्पन्न होते हैं। मानव जिस प्रकार के लोगों के साथ रहेगा, उनकी विचारधारा, व्यसन या आदतें उसे अवश्य प्रभावित करेंगी। सत्संगति नीच व्यक्ति को भी उत्तम बना देती है। कीड़ा भी फूलों की संगति पाकर सज्जनों के सिर की शोभा बनता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है-
“सठ सुधरहिं सत्संगति पाइ। पारस परस कुधातु सुहाई।।”

स्वानुभव भी मानव को चरित्रवान बनाने में काफी सहायक होता है। जब बच्चा एक बार आग को छूकर अँगुली जला बैठता है तो दुबारा अग्नि से सावधान रहता है। दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति जब दुष्ट कर्मों के परिणामों को जान लेता है तो वह दुबारा दुष्कर्म नहीं करता। व्यक्ति अपने अनुभव से यह जान लेता है कि अमुक काम करने से उसे यह फल भोगना पड़ा। यह बात बुरी है, उससे जीवन को हानि होती है अथवा झूठ बोलने से व्यक्ति को हानि होती है, लोगों में अपमान होता है तो वह झूठ बोलना छोड़ देता है। इस प्रकार व्यक्तिगत अनुभव भी मनुष्य को सच्चरित्रता की ओर ले जाते हैं। सच्चरित्रता लाने के लिए हमें अपने पूर्वजों के चरित्रों को पढ़ना चाहिए और उनका अनुसरण करना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन सच्चरित्रता के विकास के लिए सर्वाधिक उचित समय है। युवाकाल में विद्यार्थी का मन काफी कोमल होता है। उसे जैसा चाहो वैसा बनाया जा सकता है। विद्यार्थी जीवन उस साधनावस्था का समय है जिसमें बालक अपने जीवनोपयोगी अनंत गुणों का संचय करता है। वह इस काल में अपने मन और मस्तिष्क का परिष्कार कर सकता है। इसी काल में संयम और नियमों का पालन करना सीखता है। समय पर सोना, समय पर उठना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, नियमित रूप से अध्ययन करना, सज्जनों की संगति करना आदि विद्यार्थी को चरित्रवान बनाते हैं।

सच्चरित्रता से मानव अनेक प्रकार से लाभान्वित होता है। सच्चरित्रता किसी विशेष प्रवृत्ति की बोधक भी नहीं है। अनेक गुण जैसे-सत्य भाषण, उदारता, सहृदयता, विनम्रता, दयालुता, सुशीलता, सहानुभूतिपरता आदि समन्वित रूप से सच्चरित्रता कहलाते हैं। जो व्यक्ति चरित्रवान है, वह समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है, उसे समाज में आदर और सम्मान मिलता है, इस लोक में उसकी कीर्ति फैलती है तथा मरकर भी उसका नाम अमर हो जाता है। सच्चरित्र व्यक्ति की उच्च भावनाएँ तथा दृढ़ संकल्प हमेशा संसार में विचरण करते रहते हैं। सच्चरित्रता से व्यक्ति में शूरवीरता, धीरता, निर्भयता आदि गुण स्वतः आ जाते हैं, परंतु सदाचार एवं सच्चरित्रता के अभाव में मानव कदम-कदम पर ठोकरें खाता है, अपमानित होता है और पशु-तुल्य जीवन व्यतीत करता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की सच्चरित्रता किसी से भी छिपी नहीं है। भारत के लाखों-करोड़ों नर-नारी उनके सच्चरित्र का अनुसरण करके अपने जीवन को पावन करते हैं। शिवाजी और महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ आज भी भारतीय जन-साधारण का मार्ग-दर्शन करती हैं। इसी प्रकार से आधुनिक काल में लोकमान्य तिलक, मदन मोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस आदि महान् विभूतियाँ भारतीयों के लिए अनुकरणीय हैं। इन महान् आत्माओं ने भारत माता की परतंत्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न करने में अपने जीवन का बलिदान दिया। निश्चय ही सदाचार मानव को महान् बनाता है, एक साधारण व्यक्ति को भी युग-पुरुष बनाता है और उसे यश प्रदान करता है। संस्कृत में एक श्लोक है-
आचाराल्लभते आयुः आचारादीप्सिताः प्रजाः।
आचाराल्लभते ख्याति, आचाराल्लभते धनम् ।।

चरित्रवान् बनना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। चरित्रता से मानव अपना कल्याण तो करता ही है, समाज का हित भी करता है। इससे वह सुख और समृद्धि को प्राप्त करता है। सच्चरित्रता से हम आज देश की असंख्य समस्याओं का हल निकाल सकते हैं। जिस राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र भ्रष्ट है, वह राष्ट्र कदापि विकास नहीं कर सकता। हमारे देश में फैली हुई गरीबी की जड़ भ्रष्टाचार एवं चरित्रहीनता है। प्रमुख आलोचक एवं साहित्यकार डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में “चरित्र बल हमारी प्रधान समस्या है। हमारे महान् नेता महात्मा गाँधी ने कूटनीतिक चातुर्य को बड़ा नहीं समझा, बुद्धि-विकास को बड़ा नहीं माना, चरित्र बल को ही महत्त्व दिया। आज हमें सबसे अधिक इसी बात को सोचना है। यह चरित्र-बल भी केवल एक व्यक्ति का नहीं, समूचे देश का होना चाहिए।”

अतः आज हमारा प्रमुख कर्त्तव्य यही है कि हम चरित्रवान बनें। विशेषकर, छात्र-छात्राओं को तो इस दिशा में भागीरथ प्रयत्न करने चाहिएँ, क्योंकि उन्हीं पर हमारे देश का भविष्य निर्भर है।

21. मोबाइल का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग

विज्ञान के विकास से मानव को अनेक सुविधाएं प्राप्त हुई हैं। विज्ञान की उन्नति के कारण ही समाज में आशातीत परिवर्तन हुए हैं। इन चमत्कारिक परिवर्तनों में संचार के साधन में विकास भी एक चमत्कारयुक्त परिवर्तन है। संचार के साधनों में मोबाइल फोन एक महत्त्वपूर्ण साधन है। यह एक त्वरित संप्रेषण अर्थात् शीघ्र ही सन्देश भेजने का प्रमुख साधन है। मोबाइल फोन का अर्थ है-चलता-फिरता फोन अर्थात जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज ही ले जाया जा सके। आरम्भ में मोबाइल फोन का प्रयोग बहुत कम लोग करते थे। किन्तु आज प्रत्येक छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित सब मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं। आज मोबाइल केवल आवश्यकता ही नहीं बल्कि अनिवार्यता बन गया है। आजकल मोबाइल फोन के बिना मानव-जीवन अधूरा-सा लगता है। निश्चय ही मोबाइल फोन ने मानव-जीवन को आसान बना दिया है। आज मोबाइल फोन की सहायता से विदेश में बैठा व्यक्ति अपने परिवार से न केवल बात करता है, अपितु साक्षात् उन्हें देख भी सकता है। यह मोबाइल का कितना बड़ा लाभ या सुविधा है। तीस वर्ष पूर्व इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

मोबाइल केवल मात्र फोन ही नहीं रह गया है अपितु इसमें इतनी अधिक अन्य सुविधाएँ उपलब्ध हो गई हैं। इससे हम कैमरे का काम भी लेते हैं। केल्कुलेटर की सुविधा भी इसमें उपलब्ध है। इनके अतिरिक्त इसमें रेडियो, गेम और टेपरिकॉडर आदि अनेक सुविधाएँ भी प्राप्त हैं। आज हमें आवाज के माध्यम से नहीं अपितु लिखित सन्देश भी भेज सकते हैं जिसे एस०एम०एस० कहते हैं। आज के युग को मोबाइल का युग कहना अनुचित नहीं है। इसके द्वारा हम एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। आज चिट्ठी अथवा पत्रों का कार्य मोबाइल फोन के माध्यम से करते हैं। धीरे-धीरे मोबाइल प्रतिष्ठा का विषय भी बनता जा रहा है। जिसके पास जितना महँगा मोबाइल उपलब्ध होगा उसका उतना ही स्टेटस आंका जाता है।

मोबाइल फोन का लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए है। विद्यार्थी जगत के लिए यद्यपि यह कहा जाता है कि उन्हें मोबाइल की आवश्यकता नहीं है, किन्तु यह कथन अर्द्ध सत्य है। विद्यार्थी हर विषय की जानकारी मोबाइल के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि मोबाइल में इन्टरनेट का प्रयोग भी होता है। व्यापारी लोग अपना हिसाब-किताब मोबाइल में रख सकते हैं। इसी प्रकार घरेलू महिलाओं के लिए मोबाइल जहाँ मनोरंजन का साधन है वहीं रसोई से संबंधित अनेक प्रकार की जानकारी उन्हें मोबाइल के माध्यम से प्राप्त होती है। मोबाइल फोन से समय की बचत होती है। आज बैंकों के लेन-देन भी इससे आसानी से हो जाते हैं। लेन-देन के लिए पंक्ति में खड़ा नहीं होना पड़ता। मोबाइल लाखों लोगों के रोजगार का साधन भी है।

आज हम मोबाइल के द्वारा मौसम की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमें किसी अनजान स्थान पर जाना है तो उसके मानचित्र व उसकी वस्तुस्थिति की जानकारी भी हमें मोबाइल से सहज ही प्राप्त हो सकती है। कहने का भाव है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज मोबाइल फोन उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

उपर्युक्त वर्णन से अनुभव होता है कि मोबाइल के बिना तो आज का जीवन अधूरा है। किन्तु यदि गहराई से देखा व सोचा जाए तो पता चलता है कि जहाँ मोबाइल के इतने लाभ हैं अर्थात् मोबाइल ने मानव को इतनी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं, वहीं मानव-जीवन में अनेक असुविधाएँ भी पैदा करता है अर्थात् उससे अनेक हानियाँ भी होती हैं। आज मोबाइल कम्पनियाँ नित नई प्रतियोगिताओं के ऑफर दे रही हैं। इनकी चकाचौंध में फंसकर व्यक्ति अपना धन और समय दोनों बर्बाद कर रहा है। मोबाइल फोन मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे अदृश्य किरणें निकलती हैं जो हमारे शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियों के खतरे को बढ़ा देती हैं। छोटे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए मोबाइल फोन और भी खतरनाक सिद्ध हुआ है। इससे उनके मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो उनकी आँखों के लिए हानिकारक है।

जैसा कि हमने पहले कहा है कि विद्यार्थियों के लिए मोबाइल लाभदायक है, किन्तु वहीं मोबाइल उस समय उनके लिए हानिकारक बन जाता है जब वे अनावश्यक चीजें व चित्र देखने व पढ़ाई व खेलकूद सब छोड़कर मोबाइल से चिपके रहते हैं। इससे न केवल युवा शक्ति प्रभावित होती है, अपितु देश की अर्थव्यवस्था का भविष्य भी डावांडोल होने लगता है, क्योंकि युवाशक्ति ही देश का भविष्य होती है।
आज मोबाइल फोन अनेक सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन गया है। आमतौर पर देखा गया है कि लोग गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बातें करने लगते हैं और उनका ध्यान भटक जाता है जिससे वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।

आज हर आयु वर्ग के लोगों के मन की एकाग्रता को भंग करने का कारण भी मोबाइल ही बन गया है। आप भले ही कितना जरूरी काम एकाग्रचित्त होकर कर रहे हों, किन्तु फोन या एस०एम०एस० आने से आपकी एकाग्रता टूट जाती है।

अपराध की दुनिया में भी मोबाइल का गलत प्रयोग किया जाता है। आतंकवादी व पत्थरबाज लोग भी मोबाइल का प्रयोग करके बड़े-बड़े अपराधों को अंजाम देते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विज्ञान के ये आविष्कार हमारी सुख-सुविधाओं के लिए हैं किन्तु इनका अधिक दुरुपयोग किया जाता है। सही विकास तो वही माना जाता है जिससे मानव का समुचित विकास हो। निश्चय ही मोबाइल फोन के सदुपयोग द्वारा मानव-जीवन सुखी बनता है, किन्तु इससे उत्पन्न परेशानियों या हानियों के लिए मोबाइल नहीं अपितु हम स्वयं जिम्मेदार हैं। किसी वस्तु का प्रयोग यदि एक सीमा एवं संयम में रहकर किया जाता है तो वह उपयोगी सिद्ध होता है। यदि हम इसका प्रयोग अनियन्त्रित होकर या बिना-सोचे समझे करेंगे तो उससे होने वाली हानियों के लिए हम ही उत्तरदायी होंगे। अतः मोबाइल का सही प्रयोग लाभदायक और दुरुपयोग हानिकारक है। दोनों के लिए उसका प्रयोगकर्ता ही जिम्मेदार है।

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22. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं

संकेत : उक्ति का अर्थ, स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार, स्वतंत्र प्रकृति, पराधीनता के कारण विकास अवरुद्ध, भारत की पराधीनता, राष्ट्रोन्नति में स्वाधीनता का महत्त्व। महाकवि तुलसीदास ने कहा है-
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं, सोच विचार देख मनमाही।

तुलसीदास जी की यह काव्य पंक्ति गहन अर्थ रखती है। इसका संदेश है कि जो व्यक्ति स्वाधीन नहीं है, वह स्वजनों में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। पराधीनता वास्तव में अत्यंत कष्टदायक होती है।

हितोपदेश में कहा गया है-‘पराधीन को यदि जीवितं कहें तो मृत कौन है?” अर्थात् पराधीन व्यक्ति मृत के तुल्य है।

मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वतंत्र रहना चाहता है। वह किसी के अधीन या वश में रहने को तैयार नहीं होता। यदि कभी उसे पराधीन होना भी पड़े, तो वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी स्वाधीनता प्राप्त करना चाहता है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा था, ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी स्वाधीनता के महत्त्व तथा पराधीनता के कष्ट को जानते हैं। सोने के पिंजरे में पड़ा हुआ पक्षी भी सुख तथा आनंद की अनुभूति नहीं कर सकता। सोने के पिंजरे में रहकर उसे षट्रस व्यंजन अच्छे नहीं लगते। वह तो पेड़ की डालियों पर बैठकर फल-फूल तथा दाना-तिनका खाने में आनंदित होता है।

प्रकृति का कण-कण स्वाधीन है। प्रकृति भी अपनी स्वाधीनता में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं चाहती। जब-जब मनुष्य ने अहंकार स्वरूप प्रकृति के स्वाधीन तथा उन्मुक्त स्वरूप के साथ छेड़खानी करने की चेष्टा की है, प्रकृति ने उसे सबक सिखाया। मनुष्य ने प्राकृतिक संतुलन तथा पर्यावरण को छेड़ने की कोशिश की तो परिणाम हुआ-प्रदूषण, भूस्खलन, बाटें, भू-क्षरण, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि। दो फूलों की तुलना कीजिए-एक उपवन में उन्मुक्त हँसी बिखेर रहा है तथा दूसरा फूलदान में लगा है। फूलदान में लगा पुष्प अपनी किस्मत पर रोता है, जबकि उपवन में लगा पुष्प आनंदित होता है। सर्कस में तरह-तरह के खेल दिखाने वाले पशु-पक्षी यदि बोल पाते तो रो-रोकर अपनी पराधीनता तथा कष्टों की कहानी सुनाते। वे बेचारे मूक प्राणी अपनी व्यथा को शब्दों द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर सकते।

पराधीन व्यक्ति के बौद्धिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। उसकी आत्मा तथा स्वाभिमान को पग-पग पर ठेस पहुंचती है। उसमें हीन भावना आ जाती है तथा उसका शौर्य, साहस, दृढ़ता तथा गर्व शनैः-शनैः शांत होने लगता . है। पराधीन व्यक्ति अकर्मण्य हो जाता है, क्योंकि उसमें आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। पराधीन व्यक्ति भौतिक सुखों को ही सब कुछ मान बैठता है और कई बार तो वह इनसे भी वंचित रहता है। उसके सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। उसकी सृजनात्मक क्षमता भी धीरे-धीरे लुप्त होती चली जाती है।

भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था। यह मानवता का महान सागर, गौरवशील देश लगभग हर क्षेत्र में उन्नत था, परंतु सैंकड़ों वर्षों की पराधीनता ने उसे कहाँ से कहाँ से पहुँचा दिया। वह दुर्बल, निर्धन तथा पिछड़ा हुआ देश बनकर रह गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनेक वीरों ने अपना बलिदान दिया। परंतु स्वाधीन होने के इतने वर्षों बाद भी मानसिक रूप से हम स्वाधीन नहीं हो पाए। विदेशी संस्कृति, विदेशी सभ्यता और विदेशी भाषा को अपनाकर आज भी हम अपनी मानसिक पराधीनता का परिचय दे रहे हैं।

लाला लाजपतराय पराधीनता के युग में विदेश यात्रा पर गए। हर जगह उनका स्वागत हुआ। लोगों ने उनकी बात ध्यान से सुनी। अपने देश को स्वाधीन करने के लिए उन्होंने विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया। जब वे भारत आए तो उन्होंने अपने अनुभव सुनाते हुए कहा कि वे अनेक देशों मे घूमे, पर हर स्थान पर भारत की पराधीनता का कलंक उनके माथे पर लगा रहा।

हमारा कर्तव्य है कि हम कभी भी राजनैतिक, सांस्कृतिक या किसी अन्य प्रकार की पराधीनता स्वीकार न करें। हर राष्ट्र के लिए स्वाधीनता का बहुत अधिक महत्त्व है। कोई भी राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता है, यदि वह स्वाधीन हो। जो जाति अथवा देश स्वाधीनता का मूल्य नहीं पहचानता तथा स्वाधीनता को बनाए रखने के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह एक-न-एक दिन

पराधीन अवश्य हो जाता है तथा उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। स्वाधीनता के लिए कुर्बानी देनी पड़ती है। कवि दिनकर ने कहा है-

‘स्वातंत्र्य जाति की लगन, व्यक्ति की धुन है,
बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है।
नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है,
स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।’

23. का बरषा जब कृषि सुरवाने
अथवा
समय का सदुपयोग

संकेत : समय अमूल्य वस्तु, समय का महत्त्व, कार्य की सफलता, छात्रावस्था में समय का महत्त्व, उपसंहार।

संसार में समय को बहुमूल्य वस्तु माना गया है। मानव जीवन का प्रत्येक क्षण दुर्लभ संपत्ति है क्योंकि धन-दौलत यदि नष्ट हो जाए तो उसे परिश्रम करके पुनः प्राप्त किया जा सकता है, परंतु समय वह संपत्ति है, जिसे खो जाने या नष्ट हो जाने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए समय का सदुपयोग मानव के लिए बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही काम करना ही समय का सदुपयोग है।

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत’

उक्ति में भी समय के महत्त्व को उजागर किया गया है। समय का सदुपयोग करने का महत्त्व बताया है। साथ ही सावधान भी किया गया है कि यदि समय पर कर्म करने से चूक जाओगे, समय का सदुपयोग नहीं कर पाओगे तो बाद में जीवन अभिशाप बन जाएगा। हर व्यक्ति के मन में उन्नति की चाह होती है। वह बलवान, धनवान व विद्वान बनना चाहता है। जब मनुष्य की ऐसी चाहत हो तो उसे समय के सदुपयोग की ओर अवश्य ध्यान देना पड़ेगा। इतिहास साक्षी है कि जिसने समय का सदुपयोग किया, वह सफलता की चोटी पर पहुँच गया। गांधी, नेपोलियन, अरस्तू, मैडम क्यूरी आदि महान् लोगों ने समय के महत्त्व को समझा और सफलता प्राप्त की। कहा भी गया है-
‘समय का चूका विद्यार्थी, बरसात का चूका किसान तथा
डाल का चूका बंदर कहीं का नहीं रहता।’

जो समय का सम्मान करता है, समय उसका सम्मान करता है। जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है। एक बार किसी ने महात्मा गांधी से उनकी सफलता का राज पूछा था। गांधी जी ने मुस्कराते हुए अपनी कमर में लटकी घड़ी की ओर इशारा किया, यानी समय की पाबंदी। गांधी जी ने जीवन-भर बहुत सावधानी तथा बुद्धिमानी से समय का उपयोग किया था, इसीलिए वे विश्व प्रसिद्ध हुए। नेपोलियन ने एक-एक क्षण का सदुपयोग कर अपने शौर्य से यह सिद्ध कर दिया कि उसके शब्दकोश में असंभव शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है।

समय का हर पल, हर क्षण, प्रत्येक सांस ही जीवन है। जिसने एक-एक क्षण का सदुपयोग किया, विजय का सेहरा उसके सिर पर बँधता है और जिसने एक क्षण की चूक की, उसके मुँह पर कालिख लग जाती है। कार्य की सफलता कुशलता से ज़्यादा तत्परता पर निर्भर करती है। यह बहुत सही कहा गया है
‘समय बहुमूल्य है। समय ही धन है। समय पर संपन्न कार्य ही फलदायी होता है।’

समय ही सत्य है। उसका सदुपयोग ही सफलता और समृद्धि का प्रतीक व परिचायक है। समय का सदुपयोग हो, इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को नियमित जीवन जीना चाहिए। आलस्य और कार्य टालने की प्रवृत्ति ये दोनों समय के दुश्मन हैं। जैसे कि कहा गया है

समय और ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते।’

हमारे देश में समय का दुरुपयोग बहुत होता है। बेकार की बातों में समय व्यर्थ गँवाया जाता है। मनोरंजन के नाम पर भी समय बेकार किया जाता है। समय को खोकर कोई व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता।

छात्रावस्था में भी समय का बहत महत्त्व है। जो छात्र प्रतिदिन की अपनी पढ़ाई समाप्त नहीं कर पाते, उन्हें परीक्षा के समय पाठ्यक्रम पहाड़ के समान जटिल प्रतीत होता है और तब परीक्षा में सफलता के लिए वे गलत हथकंडे अपनाते हैं। इन गलत कामों से भी उन्हें असफलता ही हाथ लगती है और समाज के सामने उनका सिर नीचा होता है। वे बाद में पछताते हैं, लेकिन पछताने से क्या लाभ, क्योंकि कहा भी गया है
“का बरखा जब कृषि सुखाने।
समय चूकि पुनि का पछताने।”

प्रत्येक व्यक्ति को एक-एक क्षण का सदुपयोग कर छात्रावस्था में विद्यार्जन, युवावस्था में धनार्जन तथा प्रौढ़ावस्था में ज्ञानार्जन करना चाहिए, अन्यथा वृद्धावस्था में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

हमें सदा अपने कार्य निश्चित समय में ही पूरे करने चाहिएँ। हम भारत के नागरिक अपने देश के निर्माता हैं। अपनी तथा अपने देश की उन्नति के लिए हमें अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए। यदि हम सब कार्य निश्चित समय में करेंगे तो अतिरिक्त समय भी बच जाता है, जिसमें हम समाज-कल्याण में कार्य कर सकते हैं। कबीर जी ने भी कहा था कि आज का काम कभी कल पर नहीं छोड़ना चाहिए
‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करैगो कब।’
हमें सदा यह प्रयास करना चाहिए कि समय व्यर्थ न चला जाए। समय का भरपूर उपयोग करना तथा समय के मूल्य को पहचानना ही सफलता प्राप्ति का मूलमंत्र है।

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24. महिला सशक्तीकरण

नारी आदिकाल से माँ, बहन, पत्नी, मित्र आदि अनेक रूपों में मानव-समाज के सामने आती रही है। पुरुष और महिला फिर जीवन-रूपी रथ के दो समान पहिए हैं। उनमें से किसी एक के बिना जीवन अधूरा रह जाता है नारी पत्नी के रूप में परामर्शदात्री और माँ के रूप में हमारी गुरु है। इसलिए जीवन-रूपी रथ को चलाने के लिए उसके दोनों पहिए अर्थात् पुरुष एवं महिला दोनों का समान महत्त्व है। दोनों का सबल होना अनिवार्य है।

महिला वर्ग की स्थिति को सुधारने हेतु उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देना अनिवार्य है, क्योंकि शिक्षा के अभाव में उनमें अज्ञानता पैदा हो गई, जिसके कारण गृहस्थ जीवन के चित्र कुरूप होने लगे। अज्ञानता के कारण ही स्त्रियों में हीन भावना उत्पन्न हो गई तथा उस पर तरह-तरह के अत्याचार होने लगे, किन्तु आधुनिक युग में इस बात को अनुभव किया गया कि यह सब शिक्षा के अभाव में ही हुआ है। इस स्थिति से बचने के लिए महिलाओं को शिक्षा का अधिकार देना अनिवार्य है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु महिलाओं का ज्ञानवान् होना अनिवार्य है। शिक्षा ग्रहण करके आज महिलाएँ जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के समान लागे बढ़ रही हैं। आज महिला योग्य डॉक्टर, योग्य नर्स, योग्य प्रशासिका, योग्य प्राध्यापिका, योग्य व्यवस्थापिका, यहाँ तक कि कुशल पुलिस अधिकारी और सेनानायिका आदि हैं।

आज भारत में नारी को संविधान द्वारा समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। इससे पूर्व नारी को पुरुष ने अपने समान नहीं समझा था। आज नारी को न केवल मतदान करने का ही अधिकार दिया गया है अपितु उसे हर क्षेत्र में बड़े-से-बड़े पद पर आसीन होने पर समान अधिकार है। आज नारी पुरुष के समान जिला परिषद्, नगर परिषद् विधानसभा, लोकसभा आदि सभी छोटे-बड़े चुनाव में भाग ले सकती है। इसी प्रकार आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में भी महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त हैं इससे महिला समाज में न केवल आत्म-सम्मान ही बढ़ा, अपितु इसमें नवचेतना भी जागृत हुई है जिसके बल पर महिला वर्ग आज नए-नए लक्ष्यों को प्राप्त कर रहा है। उसने अपनी शक्ति को पहचान लिया है।

जीवन में न्याय मिलना अति अनिवार्य है। महिलाओं के सन्दर्भ में तो यह बात और भी अधिक अनिवार्य हो जाती है, क्योंकि हमारे समाज में महिला-वर्ग के प्रति अत्यधिक शोषण, अन्याय और अत्याचार होते रहे हैं। आज भी स्वतन्त्र भारत में महिलाओं को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाता। पुरुष-प्रधान समाज में कदम-कदम पर महिलाओं पर अत्याचार और अन्याय हो रहा है न्याय की दृष्टि से पुरुष और महिला को समान समझा जाना चाहिए। न्याय की दृष्टि से महिला वर्ग के साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए। आज़ नारियों को दहेज न लाने के कारण अनेक प्रकार से पीड़ित किया जाता है। यहाँ तक कि उन्हें आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया जाता है या जीवित ही जला दिया जाता है। ऐसा कुकर्म करने वाले व्यक्ति को कड़ी-से-कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

महिलाओं को पुरुषों के समान विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए। विचार लिखकर व बोलकर ही व्यक्त किए जा सकते हैं। वह राष्ट्र ही सभ्य अथवा उन्नत कहा जा सकता है जहाँ हर नागरिक को लिखने व भाषण देने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। महिलाओं को यदि बोलकर या लिखकर भाषण देने का अधिकार नहीं होगा तो उनका बौद्धिक विकास सम्भव नहीं होगा। बुद्धि और प्रतिभा का विकास न होने के कारण वे अनेक प्रकार की कुरूपताओं से ग्रस्त हो जाएँगी। अतः महिला-वर्ग को विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए।

महिलाओं को सामाजिक स्वतन्त्रता का अधिकार भी मिलना अनिवार्य है। हमारे समाज में महिला-वर्ग पर अनेक सामाजिक अन्याय व अत्याचार किए जाते रहे हैं। उसे पुरुष की इच्छानुसार पर्दा-प्रथा का पालन करना पड़ता है। इसी प्रकार विवाह को लेकर उसके साथ सामाजिक अन्याय किया जाता है। जिस पुरुष के साथ उसका विवाह किया जाता है उसके सम्बन्ध में महिलाओं की इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह कर दिया जाता है। इस प्रकार सामाजिक स्वतन्त्रता के अभाव में नारी का जीवन अत्यन्त कष्टमय बन जाता है। नारी का जीवन सामाजिक न्याय एवं स्वतन्त्रता के अभाव में अत्यन्त कष्टमय बन जाता है। स्वतन्त्रता का अधिकार मिलना चाहिए ताकि वह अपनी इच्छानुसार विवाह कर सके और अपना जीवन सुखमय व्यतीत कर सके।

आज का युग स्वतन्त्रता का युग है। संविधान की ओर से सभी नागरिकों को राजनीतिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। महिलाओं को भी राजनीति में सक्रिय भाग लेने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। उन्हें राजनीति में भाग लेने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए ताकि वे, विधान सभा और लोकसभा में जाकर महिलाओं के पक्ष में आवाज उठा सकें, उनके अधिकारों की सुरक्षा कर सकें और उन पर हो रहे तरह-तरह के अत्याचारों को सामने ला सकें। भारतवर्ष में इस क्षेत्र में भी महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए हैं, आज ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक में महिला वर्ग के स्थान सुरक्षित हैं।

25. महंगाई की समस्या

संकेत : भूमिका, मुद्रास्फीति और महँगाई, भारत में महंगाई के कारण, जमाखोरी की समस्या, दोषपूर्ण वितरण प्रणाली, महँगाई को रोकने के उपाय, समुचित वितरण की व्यवस्था, उपसंहार।

बढ़ती हुई महँगाई देश की अनेक समस्याओं में से एक गंभीर समस्या है। ज्यों-ज्यों सरकार महँगाई को रोकने का आश्वासन देती जा रही है, त्यों-त्यों महँगाई निरंतर बढ़ती जा रही है। जनता बार-बार सरकार से आग्रह करती है कि वह उचित मूल्यों पर. आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ उपलब्ध कराए लेकिन उचित मूल्यों की बात तो दूर रही, अनेक बार आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ भी बाज़ार से लुप्त ही हो जाती हैं।

इस बढ़ती हुई महँगाई का संबंध प्रत्यक्षतः मुद्रा-स्फीति के साथ है। सरकार प्रतिवर्ष घाटे का बजट बढ़ाती जाती है, उधर कीमतें बढ़ती जाती हैं। परिणाम यह होता है कि रुपए की कीमत भी घटती जाती है। महँगाई भत्ता तो एक नियमित प्रक्रिया बन गई है। सरकारी कर्मचारी हों या गैर-सरकारी-सभी महँगाई भत्ते की माँग करते हैं। सरकार नोट छापकर मुद्रा फैलाती है। इस प्रकार से यह चक्र निरंतर चलता रहता है।

महँगाई की समस्या का शिकार केवल हमारा देश ही नहीं है अपितु संसार के सभी विकासशील देश इसके शिकार बने हुए हैं। आर्थिक कठिनाइयों के कारण ये देश भी महँगाई पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर पा रहे हैं।

भारत एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से संसार में इसका स्थान दूसरा है। हमारे देश में जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़ रही है, उस प्रकार से उपज नहीं। पिछले दो-तीन दशकों में उपज में आशातीत वृद्धि हुई है लेकिन उधर प्रतिवर्ष एक नया ऑस्ट्रेलिया भी यहाँ पैदा हो रहा है। अतिवृष्टि या अनावृष्टि आदि के कारण भी अनाज में कमी आ जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि हमें अनेक बार विदेशों से अनाज का आयात करना पड़ता है। कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारे देश की समूची अर्थव्यवस्था अच्छी वर्षा पर निर्भर करती है। बिजली उत्पादन भी इसे प्रभावित करता है।

महँगाई का एक बड़ा कारण वस्तुओं की जमाखोरी है। हमारे देश के पूँजीपति इस महँगाई के लिए सर्वाधिक दोषी हैं। जब-जब मंडियों में अनाज आता है, तब-तब लोग उसे खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते हैं। इसी प्रकार से वे अन्य वस्तुओं का भी संग्रह कर लेते हैं। फलस्वरूप, आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं। इस प्रकार, व्यापारी दुगुने-तिगुने दामों पर अपना माल बेचता है। जब-जब देश में सूखा पड़ा है, व्यापारियों ने खूब हाथ रंगे हैं। यद्यपि सरकार की ओर से इस प्रकार की अव्यवस्था के विरुद्ध कानून बनाए गए हैं तथापि भ्रष्ट अधिकारी वर्ग व्यापारियों के साथ मिलकर उनकी सहायता करता रहता है।

आवश्यक उपभोग की वस्तुओं के समुचित वितरण के लिए आवश्यक कानून बनाए गए हैं। प्रत्येक राज्य में खाद्यान्न आपूर्ति विभाग स्थापित किए गए हैं। स्थान-स्थान पर राशन की दुकानें भी खोली गई हैं। यदि खाद्यान्न वितरण की व्यवस्था समुचित हो तो महँगाई पर नियंत्रण किया जा सकता है परंतु यह सब हो नहीं पाता। व्यापारी वर्ग का लक्ष्य अधिकाधिक धन कमाना है और वह इसके लिए नए-नए रास्ते निकालता रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार का अजगर यहाँ भी अपना काम करता रहता है। वस्तुओं की वितरण-व्यवस्था पर नियंत्रण रखने वाले अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते। परिणाम यह होता है कि दुकानदार आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का संग्रह कर लेता है जिससे मूल्य बढ़ते रहते हैं।

प्रयत्न किया जाए तो इस महँगाई को रोका भी जा सकता है। सबसे पहली बात तो यह है कि सरकार मुद्रा-स्फीति पर रोक लगाए और प्रतिवर्ष घाटे का बजट न बनाए। कृषि उत्पादन और दुग्ध उत्पादन की ओर अधिक ध्यान देना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से संबंधित उद्योग स्थापित करने होंगे। हमारे लिए कितने दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी देश के किसानों को सिंचाई की पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। सरकार को बड़े-बड़े नगरों के विकास के स्थान पर गाँवों के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। सारे देश के लिए एक ही प्रकार की सिंचाई-व्यवस्था का प्रबंध होना चाहिए।

अनेक बार ऐसा भी देखने में आता है कि अच्छे उत्पादन के बावजूद भी वस्तुएँ नहीं मिलती अथवा मिलती भी हैं तो महँगी। इसके लिए हमारी वितरण-व्यवस्था दोषी है। हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण आ चुके हैं जो सिद्ध करते हैं कि भ्रष्ट व्यापारियों और अधिकारियों की मिलीभगत से महँगाई बढ़ती रहती है। ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। व्यापारियों को मनमानी करने का मौका तो कभी नहीं मिलना चाहिए। इस प्रकार की वस्तुओं के वितरण के कार्य को सरकार अपने हाथ में ले और ईमानदार अधिकारियों को यह काम सौंपे।

इसके लिए आज एक उपयोगी राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ-साथ महँगाई पर रोक लगाना ज़रूरी है अन्यथा हमारी स्वतंत्रता के लिए पुनः खतरा उत्पन्न हो जाएगा। सच्चाई तो यह है कि जनसंख्या वृद्धि हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण है। जब तक इस पर नियंत्रण नहीं होता, तब तक हमारे सारे प्रयत्न व्यर्थ होंगे।

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26. भारतीय संस्कृति एवं विश्व

भारतीय संस्कृति और विश्व अथवा भारतीय संस्कृति की विश्व को देन जैसे विषय पर विचार करने से पूर्व ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ समझ लेना अनिवार्य है क्योंकि आजकल संस्कृति और सभ्यता को एक-दूसरे का पर्याय समझने लगे हैं। इसलिए संस्कृति को लेकर अनेक भ्रांतियाँ उत्पन्न हो गई हैं। सत्य यह है कि संस्कृति और सभ्यता दोनों अलग-अलग होती हैं किन्तु हैं एक-दूसरे के करीब। वस्तुतः सभ्यता का सम्बन्ध हमारे बाहरी जीवन के ढंग व तौर-तरीके से है; जैसे खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल, जबकि संस्कृति का सम्बन्ध मानवीय सोच, चिन्तन-मनन, विचारधारा से है। संस्कृति का क्षेत्र सभ्यता की अपेक्षा अधिक विस्तृत और गहन है। सभ्यता का अनुकरण तो सहज ही किया जा सकता है, किन्तु संस्कृति का नहीं। हम पैंटकोट पहनकर व अंग्रेज़ी बोलकर पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण कर सकते हैं किन्तु वहाँ की संस्कृति का नहीं।

संस्कृति किसी भी देश की आत्मा होती है। संस्कृति से ही किसी देश व जाति के उन सभी संस्कारों का बोध होता है जिनकी सहायता से वह अपने आदर्शों और जीवन-मूल्यों का निर्धारण करता है। ‘संस्कृति’ शब्द का अर्थ है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में भी संस्कृति का अर्थ संस्कार ही स्वीकार किया गया है। आज भले ही अंग्रेज़ी शब्द ‘कलचर’ का प्रयोग संस्कृति के समानान्तर किया जाने लगा है, किन्तु वास्तविकता तो यह है संस्कृति का सम्बन्ध मानवीय जीवन-मूल्यों से है।

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। विश्व की कई संस्कृतियाँ इसके सामने आईं और चली गईं। भारतीय संस्कृति की इसी विशेषता की ओर संकेत करते हुए कविवर इकबाल ने लिखा है
“यूनान, मिस्र सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाकि नामोनिशां हमारा।”

इन काव्य पंक्तियों से पता चलता है कि भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसे गुण हैं जिनके कारण यह प्राचीनकाल से आज तक निरन्तर चली आ रही है। भारतीय संस्कृति का विश्व को यह सन्देश है कि सदैव जीवित रहने के लिए अपने आप में लचीलापन का गुण उत्पन्न करें। इसी गुण के बल पर कोई संस्कृति समय के साथ-साथ आगे बढ़ सकती है।

भारतीय संस्कृति की अन्य प्रमुख विशेषता है-समायोजन की क्षमता अर्थात् अपनें में समा लेने की क्षमता। भारतीय संस्कृति की इसी विशेषता के कारण ही भारत में आने वाले विभिन्न संस्कृतियों के लोग यहाँ के होकर रह गए हैं। आज विश्व के अनेक देश हैं जहाँ की संस्कृति में यह क्षमता नहीं है। अपनी संकीर्ण विचारधारा के कारण वे दूसरे धर्म व जाति के लोगों को सहन नहीं कर सकते। फलस्वरूप वहाँ दंगे व अशांति का नग्न ताण्डव देखा जा सकता है। इसके विपरीत भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व के सामने आदर्श प्रस्तुत किया है कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग मिलजुल कर शांतिपूर्वक रह सकते हैं। यदि उनमें समायोजन की शक्ति व क्षमता हो।

भारतीय संस्कृति की नींव मानव-कल्याण की भावना पर खड़ी है। यहाँ सभी कार्य ‘बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय’ के नियम को सामने रखकर किए जाते हैं। यही भाव भारतीय संस्कृति को आदर्श संस्कृति की पदवी दिलवाता है। भारतीय संस्कृति की उदारता को दर्शाने वाला दूसरा मंत्र है-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारी धरती के लोग एक परिवार की भांति हैं। भारतीय संस्कृति की इस विशेषता से विश्व को यह शिक्षा मिलती है कि जब सारा संसार एक परिवार है तो फिर तेरे-मेरे की भावना को त्यागकर तथा एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हुए मिलजुल कर रहना चाहिए। ऐसी स्थिति में यह विश्व स्वर्ग बन जाएगा। सभी लोग सुखी हो जाएंगे। दुःखों का भूत यहाँ से विदाई ले लेगा। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति का विश्व को यह सन्देश है कि सब सुखी हों, सब निरोग हों, सबका कल्याण हो, किसी को भी दुःख प्राप्त न हो। भारतीय संस्कृति की ऐसी पुनीत भावनाओं से प्रभावित होकर हर समस्या के समाधान के लिए विश्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता रहा है।

भारतीय संस्कृति का मूल-मन्त्र आध्यात्मिकता है। भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिकता का आधार ईश्वरीय विश्वास है। यहाँ विभिन्न धर्मों व मतों में विश्वास रखने वाले लोग आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं। उनकी दृष्टि में ईश्वर ही इस सृष्टि का रचयिता और नियन्त्रक है। वही सृष्टि का कारण, पालक और संहारकर्ता है। भारतीय संस्कृति की इस विशेषता से विश्व को यही संदेश जाता है कि जब सबका रचयिता एक है तो फिर अपने-पराए का विचार ही जड़ से समाप्त हो जाता है। संसार के सभी लोग एक परमपिता की संतान हैं। फिर भेद-भाव की कोई गुंजाइश नहीं रहती। सम्पूर्ण संसार एक परिवार है।

त्याग व तपस्या भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। भारतीय संस्कृति में त्याग की भावना पर विशेष बल दिया जाता है। त्याग के कारण ही मानव-जीवन में सन्तोष जैसे गुण का विकास होता है। भारतीय संस्कृति की इस त्याग की विशेषता से विश्व को यह उपदेश दिया है जहाँ त्याग की भावना है, वहाँ संकट के समय में दूसरों की सहायता की जाती है, वहाँ स्वार्थ व लालच जैसी दुर्भावनाओं का विनाश हो जाता है। आज विश्व में त्याग की भावना न होने के कारण लालच की भावना पनपी है जिससे चारों ओर हाहाकार मची हुई है। सभी एक-दूसरे से छीना-झपटी करने में व्यस्त हैं। कर्ण, हरिश्चन्द्र, दधीचि आदि का त्याग भारतीय संस्कृति का आदर्श नहीं, अपितु पूरे विश्व का आदर्श है। दूसरों के लिए अपने स्वार्थों एवं सुख का त्याग करना बहुत बड़ी बात है। भारतीय संस्कृति ने विश्व को सिखाया है कि त्याग में ही जन-कल्याण की भावना का विकास सम्भव है। स्वामी विवेकानन्द ने भी त्याग और सेवा को भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता बताई है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के इसी रूप को विश्व के समक्ष रखा है।

भारतीय संस्कृति में उन्मुक्त अथवा स्वच्छन्द सुख-भोग का विधान नहीं है। यहाँ हर उपभोग में संयम बरतने का नियम है। उन्मुक्त, सुखभोग से मनुष्य में लालच की प्रवृत्ति का विकास होता है। यह मनुष्य को असन्तोषी बनाता है। लालची और असंतोषी व्यक्ति कभी शांति का जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। महात्मा बुद्ध ने भी कहा है कि जब व्यक्ति अपनी कामनाओं अथवा इच्छाओं को कम कर देगा तो उसकी समस्याएँ भी कम हो जाएँगी। यहाँ के संत-महात्माओं, ऋषि-मुनियों ने विश्व को यही सन्देश दिया है कि त्याग और तपस्या से विश्व की भलाई सम्भव है। दूसरों की सेवा करना, दूसरों के धर्म का सम्मान करना और तपस्वी जीवन व्यतीत करना ही मानव का संस्कार होना चाहिए।

आज के वैज्ञानिक युग में सभी देश शांति स्थापित करने के लिए परमाणु बम व हथियारों का निर्माण कर रहे हैं। दूसरों को डराकर शांति स्थापित करने का यह ढंग बहुत ही खतरनाक है। डर के वातावरण में शांति स्थापित नहीं हो सकती, किन्तु भारतीय संस्कृति के अनुसार, प्रेम, सद्भावना, विश्वास और एक-दूसरे को समझकर कार्य करने से ही शांति की स्थापना हो सकती है। इसलिए आज भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धान्त ही विश्व में शांति स्थापित करने के लिए कारगर सिद्ध हो सकते हैं।

भारतीय संस्कृति में बड़ों का आदर करना, पारिवारिक भावनाओं को बढ़ावा देना, गुरु का सम्मान करना, गुरु-शिष्य में पावन सम्बन्ध आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं जिनसे सामाजिक जीवन का समुचित विकास होता है। आज हर व्यक्ति में अकेलेपन की भावना के घर कर जाने से हर चेहरे पर निराशा झलक रही है। ऐसी स्थिति में भारतीय संस्कृति यह पाठ पढ़ाती है कि आपस में मिल-जुलकर रहना, एक-दूसरे का सम्मान करना, आपसी सम्बन्धों को समझ के आधार पर मज़बूत बनाए रखना आदि सुखी एवं खुशहाल सामाजिक जीवन के विकास के लिए नितान्त आवश्यक है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति सदैव विश्व के सामने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत रही है। भारतीय संस्कृति का मूल उद्देश्य ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्व हिताय’-‘सर्व सुखाय’ के विचार को विकसित करना है। इसलिए सम्पूर्ण विश्व भारतीयों और भारतीय संस्कृति की ओर आशाभरी दृष्टि से देखता है।

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27. प्रदूषण की समस्या

संकेत : भूमिका, प्रदूषण का अर्थ एवं स्वरूप, वायु-प्रदूषण की समस्या, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, प्रदूषण के दुष्परिणाम, प्रदूषण से बचने के उपाय, उपसंहार।

आज के वैज्ञानिक युग में मानव-जीवन के सामने अनेक समस्याएँ हैं। विज्ञान ने जहाँ एक ओर सुख-सुविधाएँ उत्पन्न करके मानव-जीवन को सुखी बनाया है, वहाँ मनुष्य के जीवन में अनेक दुःखों को भी जन्म दिया है। अतः विज्ञान अगर वरदान है तो अभिशाप भी है। आज प्रदूषण विज्ञान का एक प्रमुख अभिशाप है जिसे संसार के अधिकतर लोगों को भोगना पड़ रहा है। प्रदूषण की यह समस्या सारे संसार में फैल चुकी है।

प्रदूषण का अर्थ है प्रकृति के स्वस्थ, सर्वजन-सुलभ कोष में असंतुलन। प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनाए रखती है परंतु आज विज्ञान ने प्रकृति के संतुलन में भी हस्तक्षेप करना आरंभ कर दिया है। बड़े-बड़े नगरों में प्रदूषण की समस्या बहुत अधिक है। इससे मानव के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मोटरों, बसों तथा कल-कारखानों से निकले धुएँ के कारण वायु दूषित हो जाती है। इसी दूषित वायु के कारण फेफड़ों तथा हृदय की अनेक बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। आज अनेक बीमारियों का तो मूल कारण ही प्रदूषण है।

जनसंख्या की अधिकता तथा सड़कों, गलियों में वृक्ष न होने के कारण वायु-प्रदूषण बढ़ता है। बाजारों में मोटरों की विषैली वायु निकलने की व्यवस्था न होने के कारण वायु-प्रदूषण स्वाभाविक है। आवासीय तथा व्यापारिक केंद्रों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सड़कें चौड़ी हों, सड़कों के दोनों ओर वृक्ष हों, पार्क हों ताकि वायु-प्रदूषण कम हो सके। इस प्रकार नगरों का जीवन शुद्ध हो सकता है।

उद्योगों के निरंतर बढ़ने के कारण भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है। विषैली गैसों, मशीनों से निकले हुए मल से कई बीमारियों का जन्म होता है। इस प्रदूषण को दूर करने के लिए नई योजनाओं का निर्माण करना चाहिए। जल-प्रदूषण भी आज एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर सारे जल को खराब कर देता है। वर्षा के दिनों में जल इकट्ठा होकर दुर्गंध पैदा करता है। उस पानी में कीट, मच्छर आदि जीव जन्म लेकर वातावरण को दूषित बना देते हैं। ध्वनि प्रदूषण भी आज एक बहुत बड़ी समस्या का रूप धारण कर चुका है। यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों तथा अज्ञानतावश प्रयोग किए जाने वाले लाऊडस्पीकरों की कर्ण-भेदी आवाज़ों ने बहरेपन की समस्या को जन्म दिया है। ध्वनि-प्रदूषण से फेफड़ों पर भी बुरा असर पड़ता है। मानव के स्वभाव पर भी ध्वनि प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरण प्रदूषण के अनेक बुरे परिणाम हैं। खेती के आधुनिक उपायों, खादों तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही है। बीज तथा खाद के दूषित होने के कारण फसलें खराब हो जाती हैं तथा इनके सेवन से मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी नगरों पर अणु बम का दुष्प्रभाव अभी तक वहाँ व्याप्त है। अणु बम के दुष्प्रभाव के कारण वहाँ पर अभी भी लोगों की संतानें विकलांग पैदा हो रही हैं। अणु विस्फोट के कारण मौसम का सारा संतुलन बिगड़ जाता है।

प्रदूषण के कारण आज समूचे देश का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक वातावरण चरमरा गया है। दिल्ली जैसे महानगरों में प्रवेश करते ही दम घुटने लगता है और आँखों में जलन होने लगती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली महानगर का प्रत्येक तीसरा नागरिक श्वास-रोग से ग्रसित है। वहाँ पर चलने वाले वाहनों के कारण सारा वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है। लगभग यही स्थिति चेन्नई, कानपुर, लखनऊ, मुंबई आदि नगरों की है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि प्रदूषण के कारण हमारा जीवन नरक-तुल्य हो गया है। रोग बढ़ते जा रहे हैं और स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा है। प्रदूषण के कारण हमारे देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

प्रदूषण से बचने के लिए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगाने चाहिएँ। आवास की व्यवस्था खुली तथा हवादार होनी चाहिए। हरियाली बनाए रखने के लिए पार्क बनाने चाहिएँ। सड़कें चौड़ी होनी चाहिएँ ताकि गंदी वायु निकलने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। कारखानों से निकलने वाली विषैली गैसों तथा धुएँ के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। वर्षा के पानी को इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए। हमारे देश में प्रदूषण को रोकने के जो उपाय अपनाए जा रहे हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। विभिन्न राज्यों में बने प्रदूषण बोर्डों के कर्मचारी इस दिशा में अधिक प्रयत्नशील नज़र नहीं आते। उन पर तरह-तरह के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव डाले जाते हैं। जनता में भी इस संबंध में जागरूकता की नितांत आवश्यकता है। प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण तो बढ़ती हुई जनसंख्या है। जब तक इस पर रोक नहीं लगाई जाती, तब तक हम प्रदूषण की समस्या पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

रूस और अमेरिका जैसे बड़े-बड़े देशों ने प्रदूषण समाप्त करने के लिए अनेक उपाय किए हैं। प्रदूषण रोकने में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। भारत को भी समय रहते प्रदूषण से बचने के उपाय करने चाहिएँ ताकि इस गंभीर समस्या को समाप्त किया जा सके तथा मानव-जीवन को स्वस्थ बनाया जा सके।

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28. आतंकवाद की समस्या
अथवा
विश्वव्यापी आतंकवाद

संकेत : भूमिका, आतंकवाद का अर्थ, आतंकवाद के मूल कारण, सांप्रदायिकता का ज़हर, दूषित राजनीति, युवकों में बेरोज़गारी, आतंकवाद रोकने के उपाय, उपसंहार।

आतंकवाद आधुनिक युग की सर्वाधिक भयंकर समस्या है। यह समस्या केवल हमारे देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह समूचे संसार में फैल चुकी है। निरपराध और निरीह लोगों की निर्मम हत्या, बम विस्फोट, हवाई जहाज़ों का अपहरण, रेल की पटरियों को उखाड़ना, बैंकों को लूटना, बसों को जलाना, यात्रियों को मारना आदि अनेक हिंसापूर्ण कार्य आतंकवाद के नाम पर हो रहे हैं। यही नहीं, आतंकवादियों ने अपने-अपने गिरोह बना रखे हैं और वे किसी भी देश की कानून-व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते। वे मनमाने ढंग से लोगों की हत्याएँ करते रहते हैं।

‘आतंकवाद’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-‘आतंक’ और ‘वाद’ । ‘आतंक’ का अर्थ है-भय या डर। ‘वाद’ का अर्थ हैपद्धति। आतंकवादियों का एक ही लक्ष्य है-सरकार और लोगों के दिलों में भय उत्पन्न करके अपनी अनुचित बातों को मनवाना। आतंकवादियों का कोई धर्म, जाति या देश नहीं होता। ये भोले-भाले बच्चों, निरीह स्त्रियों, बूढ़ों और जवानों सभी की हत्या कर देते हैं। कानून-व्यवस्था को ताक पर रखकर ये देश में अराजकता उत्पन्न करते हैं।

आतंकवाद की समस्या पिछले एक दशक की उपज है। आज से दस वर्ष पहले छिट-पुट रूप में लूटपाट के मामले सभी देशों . में होते थे लेकिन आज इस समस्या ने अजगर का रूप धारण कर लिया है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि इसके मूल कारण क्या हैं ? ऐसे कौन-कौन से कारण हैं, जिनके कारण यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है ? विद्वानों और राजनीति शास्त्रियों ने इस समस्या पर विचार करने के बाद कुछ निष्कर्ष निकाले हैं।

सांप्रदायिकता इसका प्रमुख कारण है। हमारे देश में कुछ ऐसे लोगों का वर्ग भी है जो स्वतंत्रता के बाद भी संकीर्ण और कट्टर धार्मिक विचारधारा के शिकार बने हुए हैं। ऐसे लोग दूसरे धर्मों के प्रति असहज हो जाते हैं। पुन: ये लोग धर्म और राजनीति को मिलाने का प्रयास करते हैं। ये धर्म के नाम पर अलग राज्य बनाना चाहते हैं। जो लोग उनकी धार्मिक परिधि में नहीं आते, उनके प्रति वे घृणा की भावना फैलाते हैं। इस प्रकार से सांप्रदायिकता की संकीर्ण भावना ही आतंकवाद को जन्म देती है। जो लोग एक संप्रदाय के प्रति समर्पित हैं, वे दूसरे संप्रदायों के लोगों से घृणा करते हैं।

हमारे देश की असंख्य समस्याओं के लिए आज की दूषित राजनीति बहुत कुछ उत्तरदायी है। हमारे राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक पार्टियाँ धर्म एवं जाति के नाम पर लोगों को भड़काती हैं और अपने वोट पक्के करती हैं। आज भी चुनावों के अवसर पर धर्म या जाति के नाम पर उम्मीदवार खड़े किए जाते हैं। कालांतर में जो लोग संकीर्ण और कट्टर बन जाते हैं, वही आतंकवादी बन जाते हैं। 11 सितंबर, 2001 मंगलवार को उग्रवादियों ने न्यूयार्क स्थित विश्व व्यापार संगठन कार्यालय के दो टावरों एवं अमेरिकी रक्षा विभाग के प्रमुख कार्यालय पेंटागन के कुछ क्षेत्र को यात्री विमानों द्वारा टक्कर मारकर ध्वस्त कर दिया। अमेरिका में यह संसार की सबसे बड़ी विनाशकारी दुर्घटना मानी जाती है जिससे हज़ारों निरीह लोगों की जानें चली गईं। हमारे अपने देश में पिछले दो दशकों में अकेले कश्मीर में 55 हज़ार निर्दोष लोग उग्रवादियों के आतंकवाद के शिकार बन चुके हैं। इसी प्रकार, 13 दिसंबर, 2001 को संसार के सबसे बड़े लोकतंत्रात्मक राज्य दिल्ली के संसद भवन में आतंकवादियों ने आत्मघाती आक्रमण करके अपनी अमानवीयता का परिचय दिया है।

आतंकवाद की लपेट में जितने भी लोग आए हैं, वे प्रायः बेरोज़गार और अर्द्धशिक्षित युवक हैं। आतंकवाद की रीति-नीति चलाने वाले लोग इन बेरोजगार युवकों को अपने चंगुल में फँसा लेते हैं। जब कोई युवक अपराधी बन जाता है, तब उसके लिए उग्रवाद की चपेट से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। चूँकि युवकों का मन और मस्तिष्क अपरिपक्व होता है, उन्हें किसी भी साँचे में ढाला जा सकता है। जिस प्रकार के लोग उनके साथ रहते हैं, वे उसी प्रकार के बनते हैं। पंजाब में जितने भी आतंकवादी पकड़े गए हैं, उनमें से अधिकांश ने बेरोज़गारी से तंग आकर ही यह रास्ता अपनाया।

आतंकवाद मानवता के नाम पर कलंक है। यह किसी के लिए भी लाभकारी नहीं है-स्वयं आतंकवादियों के लिए भी नहीं। इससे मानवता की काफी हानि हो चुकी है। आतंकवाद रूपी दानव ने न जाने कितने बच्चों को अनाथ कर दिया है, कितनी स्त्रियों को विधवा बना दिया है और न जाने कितने लोगों को बेसहारा बना दिया है। सर्वप्रथम, सरकार को उग्रवादियों के साथ कठोर कार्रवाई करनी होगी। अपनी सीमाओं पर कड़ी चौकसी करने की आवश्यकता है। जो युवक उग्रवाद की चपेट में आ चुके हैं, उन्हें सही रास्ते पर लाकर किसी उपयोगी रोजगार से जोड़ना होगा। इसी प्रकार से लोगों में देशप्रेम की भावना को उत्पन्न करना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में राष्ट्रीय एकता की भावना को उत्पन्न करने की शिक्षा दी जानी चाहिए। समाज में बढ़ती हुई आर्थिक विषमता को भी समाप्त किया जाना चाहिए।

हमारा देश शांति और अहिंसा की जन्म-भूमि है। यहाँ महात्मा बुद्ध और गांधी जैसे मानवता प्रेमियों का जन्म हुआ है। अतः महान ऋषियों, मुनियों, संतों और गुरुओं की वाणी का प्रचार किया जाना चाहिए। प्रत्येक भारतवासी का भी कर्तव्य है कि वह संकीर्णता के दायरे से बाहर निकल परस्पर धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार करे, तभी यह आतंकवाद समाप्त होगा।

30. भ्रष्टाचार-कारण व निवारण

संकेत : भूमिका, भ्रष्टाचार का अर्थ, भ्रष्टाचार के मूल कारण, भ्रष्टाचार की व्यापकता एवं प्रभाव, भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय, उपसंहार।

किसी भी देश के विकास के मार्ग में उस देश की विभिन्न समस्याएँ बहुत बड़ी बाधा हैं। इन समस्याओं में प्रमुख समस्या है-भ्रष्टाचार की समस्या। जिस समाज व राष्ट्र को भ्रष्टाचार का कीड़ा ग्रसने लगता है, उसका भविष्य फिर निश्चित रूप से अंधकारमय बन जाता है। भारतवर्ष का यह दुर्भाग्य है कि उस पर यह समस्या पूर्ण रूप से छाई हुई है। यदि समय रहते इसका समाधान न ढूँढा गया तो इसके भयंकर परिणाम सामने आएँगे।

भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है-आचार से भ्रष्ट या अलग होना। अतः कहा जा सकता है कि समाज स्वीकृत आचार-संहिता की अवहेलना करके दूसरों को कष्ट पहुँचाकर निजी स्वार्थों अथवा इच्छाओं की पूर्ति करना ही भ्रष्टाचार है। दूसरे शब्दों में, भ्रष्टाचार वह निंदनीय आचरण है, जिसके वशीभूत होकर मनुष्य अपने कर्तव्य को भूलकर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करता है। भाई-भतीजावाद, बेरोज़गारी, गरीबी आदि इसके दुष्परिणाम हैं जो हमारे राष्ट्र को भोगने पड़ रहे हैं।

प्रत्येक विकराल समस्या के पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य रहता है। इसी प्रकार, भ्रष्टाचार के विकास के पीछे भी विभिन्न कारण हैं। वस्तुतः सुख एवं ऐश्वर्य के पनपने के साथ-साथ भ्रष्टाचार का जन्म हुआ। भ्रष्टाचार के मूल में मनुष्य का कुंठित अहंभाव, स्वार्थपरता, भौतिकता के प्रति आकर्षण, अर्थ एवं काम की प्राप्ति की लिप्सा छिपी हुई है। मनुष्य की अंतहीन इच्छाएँ भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त, अपनों का पक्ष लेना भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है। कवि हर्ष ने अपनी रचना ‘नैषधचरितं’ में लिखा है कि अपने प्रियजनों के लिए पक्षपात होता ही है। यही पक्षपात भ्रष्टाचार का मूल कारण है।

भ्रष्टाचार का प्रभाव एवं क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जहाँ भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें न फैला रखी हों। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय जगत इसकी गिरफ्त में आए हुए हैं। यह घट-घट, कण-कण में राम की भाँति समाया हुआ है। ऐसा लगता है कि संसार का कोई कार्य इसके बिना पूरा नहीं होता। राजनीतिक क्षेत्र तो भ्रष्टाचार का घर ही बन चुका है। आज विधायक हो या सांसद बाज़ार में रखी वस्तुओं की तरह बिक रहे हैं। भ्रष्टाचार के बल पर सरकारें बनाई और गिराई जाती हैं।

मंदिर का पुजारी भी आज भक्त की स्थिति देखकर पुष्प डालता है। धार्मिक स्थलों पर जाकर देखा जा सकता है कि धर्मात्मा कहलाने वाले लोग ही भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकियाँ लगा रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में तो भ्रष्टाचार ने कमाल ही कर दिखाया है। करोड़ों की रिश्वत लेने वाला व्यक्ति सीना तानकर चलता है। अरबों रुपयों का घोटाला करने वाला नेता जनता में सम्माननीय बना रहता है। चुरहट कांड, बोफोर्स कांड, मंदिर कांड, मंडल कांड, चारा कांड आदि सब भ्रष्टाचार के ही भाई-बंधु हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार अपने जौहर दिखा रहा है। योग्य छात्र उच्च कक्षाओं में प्रवेश नहीं पा सकते किंतु अयोग्य छात्र भ्रष्टाचार का सहारा लेकर कहीं-से-कहीं जा पहुँचते हैं और योग्य विद्यार्थी हाथ मलता रह जाता है।

भ्रष्टाचार को रोकना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि जो-जो कदम इसे रोकने के लिए उठाए जाते हैं, वे कुछ दूर चलकर डगमगाने लगते हैं और भ्रष्टाचार की लपेट में आ जाते हैं। यह संक्रामक रोग की भाँति है। यह व्यक्ति से आरंभ होकर पूर्ण समाज को ग्रस लेता है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समाज में पुनः नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता का समावेश नहीं होगा, तब तक हमारा भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं बदल सकता। नैतिकता के अभाव में सारी बातें कोरी कल्पना ही बनकर रह जाएँगी। इसलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में नैतिकता के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान उत्पन्न करना होगा।

समाज में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ईमानदारी से काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि उन्हें देखकर दूसरे उनका अनुकरण करने लगे और ईमानदारी के प्रति लोगों के मन में आस्था उत्पन्न हो। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए। आज दंड व्यवस्था इस तरह कमज़ोर है कि यदि कोई व्यक्ति रिश्वत लेता हुआ पकड़ा जाए तो रिश्वत देकर बच निकलता है। ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

भ्रष्टाचार को समाप्त करना केवल सरकार का ही कर्तव्य नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति, समाज और संस्था का भी कर्तव्य है। आज हम सबको मिलकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास करना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपने स्वार्थों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए अपितु ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ के सिद्धांत को अपनाकर चलना चाहिए, तभी हम भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकेंगे। यह बात दो टूक कही जा सकती है कि भ्रष्टाचार के दानव को नष्ट किए बिना हमारा राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह है कि आज भ्रष्टाचार के कारण अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है। यह आर्थिक विषय कभी भी देश की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन सकती है।

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31. साम्प्रदायिक सद्भाव

जिस समय भारत में सांप्रदायिक एकता थी, उस समय भारत का विश्व पर शक्ति में, शिक्षा में और शांति में एकछत्र आधिपत्य था। विश्व हमारी ओर आदर की दृष्टि से देखता था। हम विश्व के आदिगुरु समझे जाते थे। भारतीय जीवन के आदर्शों से विश्व के लोग शिक्षा ग्रहण करते थे। संपूर्ण राष्ट्र एकता के सूत्र में बँधा हुआ था। भारत विश्व में सर्वोत्तम राष्ट्र समझा जाता था। वेदों में भी भारतवासियों को एकता का संदेश देते हुए कहा गया है-तुम सब मिलकर चलो, संगठित हो जाओ, एक साथ मिलकर बोलो। तुम्हारे मन समान विचार वाले हों। जैसे देवता मिलजुल कर विचार प्रकट करते हैं, उसी प्रकार तुम भी मिलजुल कर रहो।

परन्तु जब से हमारी एकता अनेकता में छिन्न-भिन्न हो गई, तब से हमें ऐसे दुर्दिन देखने पड़े जिनकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हमें पराधीन होना पड़ा। हमें अपने धर्म एवं संस्कृति पर कुठाराघात सहन करना पड़ा। फलस्वरूप, हमारा राष्ट्र छिन्न-भिन्न हो गया। हमारी सूत्रबद्ध सामूहिक शक्ति हमेशा के लिए समाप्त हो गई। हम अनेक वर्षों तक के लिए गुलामी की जंजीरों में बाँध दिए गए। उन जंजीरों से मुक्त होने की कल्पना भी संदिग्ध प्रतीत होने लगी थी। अनेक बलिदानों के पश्चात बहुत कठिनाई से हमें यह आज़ादी मिली है। सहस्रों वर्षों की परतंत्रता के बाद बड़े भाग्य से हमें ये दिन देखने को मिले हैं। इस आत्म-गौरव को प्राप्त करने के लिए हमें कितना मूल्य चुकाना पड़ा, कितनी यातनाएँ सहन करनी पड़ी। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को कितने भयानक थपेड़े सहन करने पड़े और फिर भी हमारी संस्कृति साँस लेती रही। सैकड़ों वर्षों की अनंत साधनाओं के बाद हमें जो अमूल्य स्वतंत्रता मिली है, हम उसे बरबाद करने में लगे हुए हैं।

आज भारतवर्ष स्वतंत्र है। यहाँ हमारा अपना शासन है किंतु फिर भी सांप्रदायिक एकता अथवा राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ आ खड़ी हुई हैं। धर्म, जाति और प्रांत के नाम पर स्थान-स्थान पर लोग आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। आज हमारे समाज में कुछ ऐसी ज़हरीली हवा चल रही है कि सब अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। अपने स्वार्थ में डूबे लोग यह भी नहीं सोचते कि जिसके कारण हमें यह जीवन प्राप्त हुआ है, वह ही नहीं रहेगा अथवा खतरे में पड़ जाएगा तो न हमारी भाषा बचेगी और न हमारा धर्म तथा न जाति। प्रांतीयता के भाव का यह विष अब शनैः-शनैः फैलता जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने ही प्रांत के विषय में सोचता है। बंगाली बंगाल की, मद्रासी मद्रास की, गुजराती गुजरात की तथा पंजाबी पंजाब की उन्नति चाहता है। किसी को भी न तो समूचे राष्ट्र का ध्यान है और न ही कोई अपना दायित्व समझना चाहता है।

हमारे देश में भिन्न-भिन्न भाषाएँ हैं। प्रत्येक प्रांत का निवासी अपने प्रांत की भाषा को प्रमुखता देता है। दक्षिणी भारत के कुछ स्थानों पर राष्ट्रगीत इसलिए नहीं गाया जाता क्योंकि वह हिंदी में है। कोई गीता के श्लोकों और रामायण की चौपाइयों को इसलिए मिटा रहा है क्योंकि वे हिंदी में या हिंदी वर्णमाला में हैं। स्वार्थ भावना में इतनी वृद्धि हो चुकी है कि स्वार्थी नागरिक केवल अपने तक ही सोचता है, अपना कल्याण और अपनी उन्नति ही उसका ध्येय है। न उसे देश की चिंता है, न राष्ट्र की। विभिन्न भाषाओं के साथ-साथ भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों का वास है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारत सरकार किसी भी धर्म को आश्रय नहीं देती परन्तु हर धर्म का आदर करती है। लोग केवल अपने-अपने धर्म से प्रेम करते हैं, राष्ट्र से नहीं। धार्मिक संकीर्णता के कारण जहाँ-तहाँ दंगे होते हैं।

पराधीन भारत में सर्वत्र सांप्रदायिक सद्भावना अथवा एकता थी। सभी संप्रदायों के लोगों ने सच्चे मन से, एक-दूसरे के साथ बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और निःस्वार्थ भाव से महान बलिदान देकर भारत को स्वतंत्र करवाया था। उस समय प्रत्येक भारतीय के मुख पर केवल एक ही नारा रहता था-‘हिंदुस्तान हमारा है’ किंतु आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। हम आज नारा लगाते हैं-“पंजाब हमारा है, असम हमारा है।” प्रत्येक व्यक्ति पहले अपनी बात सोचता है फिर प्रदेश की तथा बाद में देश की। यह सोच देश की एकता के लिए घातक है। देश में सांप्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता के लिए समय-समय पर अनेक उपाय किए गए हैं। अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने इसके लिए अपने जीवन का त्याग किया है। महात्मा गांधी ने अपना पूर्ण जीवन ही सांप्रदायिक सद्भावना और एकता के लिए न्योछावर कर दिया है। हमारे संतों ने सदा परस्पर मिलकर रहने का उपदेश दिया है। पंडित जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री आदि नेताओं ने सदैव राष्ट्रीय एकता को दृढ़ बनाने के प्रयास किए।

प्रत्येक नागरिक का यह पुनीत कर्तव्य है कि वह सांप्रदायिक सद्भावना को बनाए रखने के लिए हर सम्भव प्रयासे करे। सांप्रदायिक सद्भावना ही किसी राष्ट्र की एकता एवं मज़बूती का आधार होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है कि वह संकीर्ण भावनाओं को त्यागकर समूचे समाज अथवा राष्ट्र के लिए सोचे, मनन करे और उसकी समृद्धि के लिए प्रयास करे। यदि समय रहते इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाया गया तो सांप्रदायिक भावना के कारण समाज बिखर जाएगा और राष्ट्र की एकता टूट जाएगी। सशक्त एवं सुदृढ़ राष्ट्र के लिए सांप्रदायिक एकता और सद्भावना का होना नितांत आवश्यक है।

32. मेरा प्रिय लेखक (प्रेमचन्द)

संकेत : भूमिका, जीवन-परिचय, रचनाएँ, भाषा, उपसंहार।

साहित्य समाज का दर्पण है और लेखक युगद्रष्टा होता है। वह अपने आस-पास की परिस्थितियों से प्रेरित होकर साहित्य की रचना करता है। महान् लेखक ही महान् साहित्य की रचना कर सकते हैं। श्रेष्ठ साहित्य का मूल उद्देश्य सत्यम् शिवम् सुन्दरम् होता है। प्रेमचंद महान् कथाकार हैं। उन्होंने अपने युग की परिस्थितियों को समझा, परखा और उन पर गहन चिंतन किया। अपने चिंतन के प्रकाश में उन्होंने युगीन जीवन को यथार्थ रूप में अभिव्यक्त करने के लिए उपन्यास, कहानी, नाटक व निबन्ध साहित्य की रचना की है। उनके उपन्यास इतने प्रसिद्ध हुए कि उन्हें उपन्यास सम्राट कहा जाता है। प्रत्येक आलोचक ने भी उनके विषय में ऐसा ही मत व्यक्त किया है। हिन्दी उपन्यास व कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन एक शुभ वरदान से कम महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता।

स्वर्गीय प्रेमचन्द का जन्म उत्तर प्रदेश में बनारस के समीप लमही नामक एक छोटे से गाँव में सन् 1880 में हुआ। वे अभी छोटे ही थे कि उनकी माता का देहान्त हो गया। पिता ने दूसरा विवाह करने की गलती कर ली। फलस्वरूप घर की परिस्थिति पहले से भी विकट हो गई। प्रेमचन्द का असली नाम धनपतराय था किन्तु इनके चाचा इन्हें नवाबराय कहते थे। इन्हें स्कूल की पढ़ाई के समय अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। अभी पढ़ ही रहे थे कि पिता का स्वर्गवास हो गया। फलस्वरूप सौतेली माँ और उसके बच्चों का दायित्व भी इन्हीं पर आ पड़ा। स्कूल की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी हुई। बाद में एक वकील के बेटे को ट्यूशन । पढ़ाने का काम करने लगे। पाँच रुपए मासिक वेतन के लिए उन्हें कई मील पैदल चलना पड़ता था।

मैट्रिक की परीक्षा के बाद इन्टरमीडिएट में प्रवेश ले लिया किन्तु गणित की अनिवार्यता के कारण परीक्षा पास न कर सके। एक दयालु हैडमास्टर की कृपा से स्कूल में 18 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापक हो गए। बाद में बी.ए. तक की पढ़ाई की तथा स्कूल के निरीक्षक के पद तक पहुँच गए किन्तु राष्ट्रीय चेतना व देश-प्रेम के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी। प्रैस लगाई, पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित की, कहानी लेखक के रूप में फिल्मों में भी रहे किन्तु कहीं स्थायित्व नहीं मिला। दो बार विवाह किया। पहली पत्नी से निर्वाह न होने के कारण अलग हो गए। उस युग में विधवा शिवानी से विवाह करके भारतीय समाज में एक नया आदर्श स्थापित किया तथा दो पुत्रों के पिता बने। सन् 1936 में इस महान् लेखक व साहित्यकार का देहान्त हो गया।

प्रेमचन्द पहले नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखा करते थे किन्तु ‘सोजे वतन’ नामक कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर लेने के पश्चात् प्रेमचन्द के नाम से हिन्दी में लिखने लगे। इसी नाम से हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हो गए। इन्होंने दर्जन भर उपन्यास और लगभग तीन-सौ कहानियाँ लिखीं। ‘प्रतिज्ञा’, ‘वरदान’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, ‘गोदान’ और मंगलसूत्र (अधूरा) इनके प्रमुख उपन्यास हैं। प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में गाँधी युग के समूचे जीवन और घटनाक्रम को कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया है। इनके उपन्यासों का प्रमुख स्वर आदर्शवादी रहा है। कुछ आलोचक इन्हें आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी मानते हैं। ‘गोदान’ और ‘मंगलसूत्र’ में लगता है कि ये समाजवादी बन गए थे। इन्होंने हिन्दी उपन्यास को कला और विषय-वस्तु की दृष्टि से नई दिशा दी है। उपन्यास को कल्पना-लोक से निकालकर यथार्थ जीवन से जोड़ दिया है।

प्रेमचन्द की कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नामक आठ संग्रहों में संकलित हैं। पंच परमेश्वर, ईदगाह, आत्माराम, बूढ़ी काकी, पूस की रात, बड़े भाई साहब, कफन, शंतरज के खिलाड़ी, बड़े घर की बेटी आदि प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। उपन्यासों की भांति कहानियों में भी जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है। आरम्भिक कहानियाँ आदर्शोन्मुखी हैं। उपन्यास तथा कहानियों के अतिरिक्त प्रेमचन्द ने दो पाठ्य नाटकों की भी रचना की है। समय-समय पर ये साहित्य, जीवन, समाज आदि से सम्बन्ध रखने वाले विचार प्रधान निबन्ध भी रचते रहे हैं। इनके निबन्धों में विषय की गम्भीरता दृष्टव्य है।

प्रेमचन्द की सभी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सहज एवं सरल है। हिन्दी भाषा में उर्दू के अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इनकी भाषा जगभाषा के निकट की भाषा है। भाषा को अत्यन्त प्रभावशाली बनाने के लिए लोक प्रचलित मुहावरों का सफल प्रयोग देखते ही बनता है।

सच्चे अर्थों में इन्हें जनता का कलाकार, साहित्यकार व लेखक स्वीकार किया गया है। वास्तव में इनकी रचनाओं में समूचे युग का सच्चा चित्र अंकित है। इसी कारण आज भी इनका सम्पूर्ण साहित्य प्रासंगिक है अर्थात् जितना उसका महत्त्व उनके समय में था आज भी है। आज भी इनकी रचनाओं को बड़े चाव से पढ़ा जाता है। इसलिए मैंने भी हिन्दी के अनेक महान् लेखकों में से इन्हें ही अपना प्रिय लेखक स्वीकार किया है।

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33. बेरोजगारी की समस्या

संकेत : भूमिका, जनसंख्या में वृद्धि, अधूरी शिक्षा प्रणाली, उद्योग-धंधों की अवनति, सामाजिक तथा धार्मिक मनोवृत्ति, सरकारी विभागों में छंटनी, जनसंख्या वृद्धि पर रोक और शिक्षा, उद्योग एवं कृषि का विकास, उपसंहार।

आज भारत के सम्मुख अनेक समस्याएँ हैं; जैसे महँगाई, बेरोज़गारी, आतंकवाद आदि। इन सब में बेरोज़गारी की समस्या प्रमुख है। बेरोज़गारी की समस्या ने परिवारों की आर्थिक दशा को खोखला कर दिया है। आज हम स्वतंत्र अवश्य हैं परंतु हम अभी आर्थिक दृष्टि से समृद्ध नहीं हुए हैं। चारों ओर चोरी-डकैती, छीना-झपटी, लूटमार और कत्ल के समाचार सुनाई पड़ते हैं। आज देश में जगह-जगह पर उपद्रव एवं हड़तालें हो रही हैं। मनुष्य के जीवन से आनंद और उल्लास न जाने कहाँ चले गए हैं। प्रत्येक मानव को अपनी तथा अपने परिवार की रोटियों की चिंता है चाहे उनका उपार्जन सदाचार से हो या दुराचार से। निरक्षर तो फिर भी अपना पेट भर लेते हैं परंतु साक्षर वर्ग की आज बुरी हालत है।

बेकारी का चरमोत्कर्ष तो उस समय दिखाई दिया, जब रुड़की विश्वविद्यालय में पूर्ण प्रशिक्षित इंजीनियरों को उपाधि देने हेतु 1967 के दीक्षांत समारोह में भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे ही भाषण देने के लिए खड़ी हुईं, उसी समय लगभग एक हज़ार इंजीनियरों ने खड़े होकर एक स्वर में कहा, ‘हमें भाषण नहीं, नौकरी चाहिए।’ प्रधानमंत्री के पास उस समय कोई उत्तर न था।

हमारे देश में बेकारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
हमारे देश में जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष भर में जितने व्यक्तियों को रोजगार मिलता है, उससे कई गुणा अधिक बेकारों की संख्या बढ़ जाती है। अनेक अप्राकृतिक उपायों के बावजूद भी जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है। जनसंख्या की वृद्धि के फलस्वरूप ही बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।

हमारी शिक्षा-प्रणाली अधूरी एवं दोषपूर्ण है। परतंत्र भारत में अंग्रेज़ों ने ऐसी शिक्षा-पद्धति केवल क्लर्कों को पैदा करने के लिए ही लागू की थी परंतु अब स्वतंत्र भारत में समयानुसार समस्याएँ भी बदल गई हैं। एक बार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “प्रतिवर्ष नौ लाख पढ़े-लिखे लोग नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं जबकि हमारे पास नौकरियाँ शतांश के लिए भी नहीं हैं। हमें बी०ए० नहीं चाहिएँ, वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ चाहिएँ।” उनका यह कथन हमारी शिक्षा प्रणाली की ओर संकेत करता है।

प्राचीन काल में हमारे देश के प्रत्येक घर में कोई-न-कोई उद्योग-धंधा चलता था। कहीं चरखा काता जाता था, कहीं खिलौने बनते थे तो कहीं गुड़। इन्हीं उद्योग-धंधों से लोग रोजी-रोटी कमाते थे परंतु अंग्रेज़ों ने अपने स्वार्थ के लिए इन्हें नष्ट कर दिया जिससे लोगों में आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई। इसीलिए पढ़े-लिखे लोग भूखों मरना पसंद करते हैं परंतु वे मजदूरी करना पसंद नहीं करते। वे सोचते हैं कि दुनिया कहेगी कि पढ़-लिखकर मजदूरी कर रहा है। यही मिथ्या स्वाभिमान मनुष्य को कुछ करने नहीं देता। पढ़ाई-लिखाई ने मजदूरी करने को मना तो नहीं किया है।

हमारे समाज की धार्मिक तथा सामाजिक मनोवृत्ति भी बेकारी को बढ़ावा देती है। वर्तमान युग में साधु-संन्यासियों को भिक्षा देना पुण्य समझा जाता है। दानियों की उदारता देखकर बहुत से स्वस्थ व्यक्ति भी भिक्षावृत्ति पर उतर आते हैं। इस प्रकार, बेकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारे यहाँ सामाजिक नियम कुछ ऐसे हैं कि वर्ण-व्यवस्था के अनुसार विशेष-विशेष वर्गों के लिए विशेष-विशेष कार्य हैं। सरकारी विभागों में भी वर्ण-व्यवस्था के अनुसार काम दिए जाते हैं। यदि उन्हें काम मिले तो करें अन्यथा हाथ-पर-हाथ धरकर बैठे

रहें। इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था से भी बेरोज़गारी को बढ़ावा मिलता है। बेकारी के कारण युवा-आक्रोश और असंतोष ने समाज में अव्यवस्था एवं अराजकता उत्पन्न कर दी है।

निम्नलिखित उपायों द्वारा बेकारी दूर की जा सकती है-
देश में जनसंख्या वृद्धि को रोककर बेकारी की समस्या को काफी सीमा तक हल किया जा सकता है। बढ़ती हुई आबादी को रोकने के लिए विवाह की आयु का नियम कठोरता से लागू करना चाहिए। साथ ही, हमें शिक्षा-पद्धति में सुधार करना होगा। शिक्षा को व्यावहारिक बनाना होगा। विद्यार्थियों में आरंभ से ही स्वावलंबन की भावना पैदा करनी होगी।

सरकार को कुटीर उद्योगों तथा घरेलू दस्तकारी को प्रोत्साहन देना चाहिए; जैसे सूत कातना, कागज़ बनाना, शहद तैयार करना आदि। उद्योग-धंधों एवं धन की उचित व्यवस्था न होने के कारण गाँव के बड़े-बड़े कारीगर भी बेकार हैं। भारतीय किसान कृषि के लिए वर्षा पर आश्रित रहता है। अतः उसे अपने खाली समय में कुटीर उद्योग चलाने चाहिएँ। इससे उसकी तथा देश की आर्थिक दशा सुदृढ़ होगी। आजकल हज़ारों ग्रामीण शहरों में आकर बसते जा रहे हैं, इससे बेकारी की समस्या बढ़ती जा रही है।

केंद्र तथा राज्य सरकारें इस दिशा में व्यापक पग उठा रही हैं। चाहे हमारी सरकार बेकारी पर काबू पाने में अभी सफल नहीं हो सकी है परंतु ऐसा विश्वास किया जाता है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए रोज़गार के साधन जुटाकर बेकारी की समस्या को सुलझाने के लिए सरकार विस्तृत पग उठाएगी। अब वह दिन दूर नहीं, जब देश के प्रत्येक नागरिक को काम मिलेगा और देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।

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34. पर्यावरण संरक्षण

संकेत : भूमिका, पर्यावरण की सुरक्षा, प्रदूषण की समस्या, उपसंहार।

जिस स्थान पर हम रहते हैं, उसके आसपास का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता है। आज के युग में पर्यावरण की शुद्धता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। क्योंकि मनुष्य ने उन्नति की अंधी दौड़ में भाग लेने के चक्र में पड़कर पर्यावरण की शुद्धता को भुला दिया है। इसलिए आज पर्यावरण की रक्षा करना अति अनिवार्य हो गया है। पर्यावरण की शुद्धता मानव के लिए उतनी ही अनिवार्य है, जितना साँस लेना। प्राचीनकाल में मानव का जीवन अत्यंत सरल एवं सहज था। वह प्रकृति के साहचर्य में रहता हुआ प्राकृतिक जीवन जीता था, किंतु आज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसने अपनी प्राचीन सहचरी प्रकृति को तरह-तरह की हानियाँ पहुँचा दी हैं। इससे हमारा पर्यावरण स्वच्छ नहीं रहा।

अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ, शुद्ध एवं पावन कैसे रखें ? इसके लिए हमें फिर प्रकृति की ही शरण में जाना पड़ेगा अर्थात् अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे उगाने पड़ेंगे क्योंकि ये पर्यावरण की रक्षा करते हैं। इनमें कार्बन-डाइऑक्साइड जैसी जहरीली एवं पर्यावरण विरोधी गैसों का पोषण करने की अत्यधिक क्षमता है और बदले में ऑक्सीजन देने की शक्ति भी। अतः स्पष्ट है कि हम अपने पर्यावरण को पेड़-पौधों की सहायता से सुरक्षित रख सकते हैं। इसी प्रकार नदियों में बहने वाले जल को शुद्ध रखकर भी हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।

वायु-प्रदूषण भी पर्यावरण का ही कुरूप है। यदि हम शुद्ध वातावरण में साँस लेना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि हमें वायु प्रदूषण को रोकना होगा। इसके लिए फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ व गैसों को कम करना पड़ेगा। इसके साथ-साथ वाहनों से निकलने वाले धुएँ पर भी नियंत्रण रखना होगा।

पर्यावरण की शुद्धता एवं सुरक्षा के लिए हमें अपने घरों का कूड़ा-कर्कट ढककर रखना पड़ेगा या उसे व्यवस्थित ढंग से नष्ट करना होगा। आज पोलिथिन का प्रयोग भी हमारे पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है। इस ओर भी हमें ध्यान देना होगा।

संसार के प्रत्येक नागरिक का यह पावन कर्त्तव्य बनता है कि वह कोई भी ऐसा काम न करे जिससे पर्यावरण को हानि पहुँचे अथवा पर्यावरण प्रदूषित हो। हमारा पावन कर्त्तव्य है कि हम अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे उगाएँ और पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई को रोकें। यदि हम चाहते हैं कि धरती स्वर्ग-सी बनी रहे, तो इसके लिए हमें अपने पर्यावरण को शुद्ध एवं सुरक्षित रखना पड़ेगा।

35. होली

संकेत: भूमिका, इतिहास, कृषि का पर्व, रंगों का त्योहार, कुप्रथा, उपसंहार।

भारत त्योहारों और पर्यों का देश है। यहाँ हर वर्ष अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। रक्षाबन्धन, दीपावली, दशहरा, होली आदि यहाँ के सुप्रसिद्ध त्योहार हैं। अन्य पर्यों की भान्ति होली भी भारत का प्रमुख पर्व है। यह भारतीय जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार समाज की एकता, मेल-जोल और प्रेम भावना का प्रतीक माना जाता है।

होली के त्योहार का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। इसका सम्बन्ध राजा हिरण्यकश्यप से है। हिरण्यकश्यप निर्दयी और नास्तिक राजा था। वह अपने-आपको भगवान मानता था तथा चाहता था कि प्रजा उसे परमात्मा से भी बढ़कर समझे तथा उसकी पूजा करे। उसके पुत्र एवं ईश्वर-भक्त प्रह्लाद ने उसका विरोध किया। इस पर क्रोधित होकर उसने उसे मार डालने का प्रयास किया। हिरण्यकश्यप की एक बहन होलिका थी। उसे वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। लकड़ियों के एक ढेर पर होलिका प्रसाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई और फिर लकड़ी के ढेर को आग लगा दी गई। होलिका जलकर राख हो गई पर प्रसाद ज्यों-का-त्यों बैठा रहा। इसलिए लोग इस घटना को याद करके होली मनाते हैं।

होली का त्योहार मनाने का एक और कारण भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। फरवरी और मार्च के महीने में गेहूँ और चने के दाने अधपके हो जाते हैं। इनको देखकर किसान खुशी से झूम उठता है। अग्नि देवता को प्रसन्न करने के लिए वह गेहूँ के बालों की अग्नि में आहुति देता है।

होली को रंगों का त्योहार भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग रंग, गुलाल, अबीर आदि से त्योहार मनाते हैं। लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं तथा एक-दूसरे के चेहरे पर गुलाल लगाते हैं। इस अवसर पर लोगों के चेहरे एवं वस्त्र रंग-बिरंगे हो जाते हैं। चारों ओर मस्ती का वातावरण छा जाता है। वास्तव में यह त्योहार कई दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाता है।

यह त्योहार परस्पर भाई-चारे और प्रेम-भाव का त्योहार है। इस अवसर पर कई लोग रात को लकड़ियाँ जलाकर होली की पूजा करते हैं। उसके बाद गाना बजाना करते हैं।

कविवर मैथिलीशरण गुप्त का कथन है-
काली-काली कोयल बोली होली, होली, होली
फूटा यौवन फाड़ प्रकृति की पीली-पीली चोली।

इस शुभ त्योहार पर कुछ लोग एक-दूसरे पर मिट्टी, कीचड़, पानी आदि फेंकते हैं। यह उचित काम नहीं है। इससे किसी भी पर्व का महत्त्व कम हो जाता है। ऐसा करने से कभी-कभी लड़ाई-झगड़े तक हो जाते हैं तथा वैर भावना जन्म ले लेती है। कुछ लोग इस अवसर पर शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। इन सब बुराइयों के कारण ऐसे शुभ त्योहार अपने सच्चे महत्त्व एवं अर्थ को खो बैठते हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम इस त्योहार को उचित ढंग से मनाएँ तथा हमें उसके महत्त्व को समझने का प्रयास करना चाहिए।

सार रूप में कहा जा सकता है कि होली एक आनन्दमय एवं मस्ती भरा त्योहार है। यह प्रकृति एवं कृषि का त्योहार है। हमें इसकी पवित्रता एवं महत्त्व को समझना चाहिए तथा उनकी रक्षा करनी चाहिए। इस पर्व पर गोष्ठियों का आयोजन करके हमें समाज में एकता और प्रेम को बढ़ाना चाहिए।

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36. दीपावली

संकेत : भूमिका, ऐतिहासिक आधार, दीपावली पर्व की तैयारी, मनाने की विधि, कुप्रथा, उपसंहार।

भारत त्योहारों का देश है। प्रत्येक ऋतु में किसी-न-किसी त्योहार को मनाया जाता है। भारत में फसलों के पकने पर भी त्योहार मनाए जाते हैं। महापुरुषों के जन्मदिन को भी त्योहारों की भान्ति बड़े उत्साह से मनाया जाता है। भारत के मुख्य त्योहारों-रक्षा बन्धन, दशहरा, दीपावली और होली आदि में दीपावली सर्वाधिक प्रसिद्ध त्योहार है। इसे बड़े जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। दीपावली का अर्थ है-‘दीपों की पंक्ति’। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। अमावस्या की रात बिल्कुल अन्धेरी होती है किंतु भारतीय घर-घर में दीप जलाकर उसे पूर्णिमा से भी अधिक उजियाली बना देते हैं। इस त्योहार का बड़ा महत्त्व है।

इस त्योहार का ऐतिहासिक आधार अति महत्त्वपूर्ण एवं धार्मिक है। इस दिन भगवान् राम लंका-विजय करके अपना वनवास समाप्त करके लक्ष्मण और सीता सहित जब अयोध्या आए तो नगरवासियों ने अति हर्षित होकर उनके स्वागत के लिए रात्रि को नगर में दीपमाला करके अपने आनन्द और प्रसन्नता को प्रकट किया। दीपावली का त्योहार आर्यसमाजी, जैनी और सिक्ख लोग भी विभिन्न रूपों में बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसी दिन आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने महासमाधि ली थी और इसी दिन जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था। इसी प्रकार सिक्ख अपने छठे गुरु की याद में इस त्योहार को मनाते हैं जिन्होंने इसी दिन बन्दी गृह से मुक्ति प्राप्त की थी।

इस पर्व की तैयारी घरों की सफाई से आरम्भ होती है जो कि लोग एक-आध मास पूर्व आरम्भ कर देते हैं। लोग शरद् ऋतु के आरम्भ में घरों की लिपाई-पुताई करवाते हैं और कमरों को चित्रों से अलंकृत करते हैं। इससे मक्खी, मच्छर दूर हो जाते हैं। इससे कुछ दिन पूर्व अहोई माता का पूजन किया जाता है। धन त्रयोदशी के दिन लोग पुराने बर्तन बेचते हैं और नए खरीदते हैं। चतुर्दशी को लोग घरों का कूड़ा-करकट बाहर निकालते हैं। लोग कार्तिक मास की अमावस्या को दीपमाला करते हैं।

इस दिन कई लोग अपने इष्ट सम्बन्धियों में मिठाइयाँ बाँटते हैं। बच्चे नए-नए वस्त्र पहनकर बाजार जाते हैं। रात को पटाखे तथा आतिशबाजी चलाते हैं। बहुत-से लोग रात को लक्ष्मी पूजा करते हैं। कई लोगों का विचार है कि इस रात लक्ष्मी अपने श्रद्धालुओं के घर जाती है। इसलिए प्रायः लोग अपने घर के द्वार उस रात बन्द नहीं करते ताकि लक्ष्मी लौट न जाए। व्यापारी लोग वर्षभर के खातों की पड़ताल करते हैं और नई बहियाँ लगाते हैं।

दीपावली के दिन जहाँ लोग शुभ कार्य एवं पूजन करते हैं वहाँ कुछ लोग जुआ भी खेलते हैं। जुआ खेलने वाले लोगों का विश्वास है कि यदि इस दिन जुए में जीत गए तो फिर वर्ष भर जीतते रहेंगे तथा लक्ष्मी की उन पर कृपा बनी रहेगी। कहीं-कहीं पटाखों को लापरवाही से बजाते समय बच्चों के हाथ-पाँव भी जल जाते हैं और कहीं-कहीं पटाखों के कारण आग लगने की दुर्घटना भी होती है। अतः इस पावन पर्व को हमें सदा सावधानी से मनाना चाहिए।

दीपावली का त्योहार मानव जाति के लिए शुभ काम करने की प्रेरणा देने वाला है। जैसे दीपक जल कर अन्धकार को समाप्त करके प्रकाश फैला देता है, वैसे ही दीपावली भी अज्ञानता के अन्धकार को हटाकर ज्ञान का प्रकाश हमारे मन में भर देती है। देश और जाति की समृद्धि का प्रतीक यह त्योहार अत्यन्त पावन और मनोरम है।

37. आदर्श विद्यार्थी

संकेत : • भूमिका, ‘विद्यार्थी’ शब्द का अर्थ, प्राचीनकाल में विद्यार्थी जीवन, आदर्श विद्यार्थी के गुण, सादा जीवन और उच्च विचार, संयम और परिश्रम, विद्यार्थी और खेल-कूद, उपसंहार।।

विद्यार्थी काल मानव के भावी जीवन की आधारशिला है। यदि यह आधारशिला मज़बूत है तो उसका जीवन निरंतर विकास करेगा, नहीं तो आने वाले कल की बाधाओं के सामने वह टूट जाएगा। यदि छात्र ने विद्यार्थी जीवन में परिश्रम, अनुशासन, संयम और नियम का अच्छी प्रकार से पालन किया है तो उसका भावी जीवन सुखद होगा। सभ्य नागरिक के लिए जिन गुणों का होना ज़रूरी है, वे गुण तो बाल्यकाल में विद्यार्थी के रूप में ही ग्रहण किए जाते हैं। जिस विद्यार्थी ने मन लगाकर विद्या का अध्ययन किया है; माता-पिता और गुरुजनों की विनम्रतापूर्वक सेवा की है; वह अवश्य ही एक सफल नागरिक बनेगा।

‘विद्यार्थी’ संस्कृत भाषा का शब्द है। यह दो शब्दों के मेल से बना है-‘विद्या’ और ‘अर्थी’ । इसका अर्थ है-विद्या चाहने वाला। विद्यार्थी विद्या प्राप्त करने के लिए ही विद्यालय में जाता है और विद्या से प्रेम करता है। वस्तुतः ‘विद्यार्थी’ शब्द में ही आदर्श विद्यार्थी के सभी गुण निवास करते हैं। अतः जिसके जीवन का लक्ष्य विद्या-प्राप्ति है, जो विद्या का अनुरागी है और जो निरंतर विद्यार्जन में ही अपना समय व्यतीत करता है, वही आदर्श विद्यार्थी है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव-जीवन को चार आश्रमों में बाँटा है। वे चार आश्रम हैं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, संन्यास और वानप्रस्थ। ब्रह्मचर्य आश्रम ही विद्यार्थी जीवन है। उस काल में विद्याध्ययन के लिए बालक घर-परिवार से दूर आश्रम में जाते थे। आश्रम में तपस्या, ब्रह्मचर्य, अनुशासन और गुरु-सेवा करते हुए वे विद्या प्राप्त करते थे। स्वयं भगवान कृष्ण सुदामा के साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में विद्या प्राप्त करने गए। विद्यार्थी काल में जो लोग एकाग्र मन से विद्या का अध्ययन करते रहे हैं, वही आगे चलकर महान बने हैं। अर्जुन, अभिमन्यु, एकलव्य, श्रीकृष्ण आदि के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं।

संसार में गुणों से ही मनुष्य की पूजा होती है। संस्कृत में कहा भी गया है-“गुणैः हि सर्वत्र पदं निधीयते” अर्थात् गुणों द्वारा ही मनुष्य सर्वत्र ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकता है। विद्यार्जन में ही सारे गुण निवास करते हैं। विद्यार्थी का जीवन साधना की अवस्था है। इस काल में वह ऐसे गुणों को ग्रहण कर सकता है जो आने वाले काल में न केवल उसके लिए अपितु समूचे समाज के लिए उपयोगी हों। गुरुजनों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए विनम्रता परम आवश्यक है। यदि विद्यार्थी उदंड और उपद्रवी अथवा कटुभाषी है तो वह कभी भी आदर्श विद्यार्थी नहीं बन सकता। विद्या का लक्ष्य विनय की प्राप्ति है-विद्या ददाति विनयं । एक अच्छे गुरु से विद्या प्राप्त करने के तीन उपाय हैं-नम्रता, जिज्ञासा और सेवा। अतः एक सच्चे विद्यार्थी को विनम्र होना चाहिए।

अनुशासन का भी विद्यार्थी जीवन में उतना ही महत्त्व है, जितना कि विनम्रता का। जो विद्यार्थी अनुशासनप्रिय हैं, वे ही मेधावी छात्र बनते हैं लेकिन जो विद्यार्थी अनुशासनहीन होते हैं, वे अपने देश, अपनी जाति और अपने माता-पिता का अहित करते हैं। अनुशासन का पालन करने से ही विद्यार्थी का सही अर्थों में बौद्धिक विकास होता है।

आदर्श विद्यार्थी का मूल मंत्र है सादा जीवन और उच्च विचार। जो बालक विद्यार्थी काल में सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, उनका मन विद्या में लगा रहता है लेकिन आजकल पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभाव के कारण विद्यार्थी फैशनपरस्ती के शिकार बन रहे हैं। माता-पिता भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सादगी के साथ ही उच्च विचार जुड़े हुए हैं। जिस विद्यार्थी का ध्यान बाहरी दिखावे की ओर रहेगा, वह अपने अंदर उच्च विचारों का विकास कैसे कर पाएगा ? इसके साथ-साथ विद्यार्थी को सदाचार और स्वावलंबन का भी पालन करना चाहिए।

एक आदर्श विद्यार्थी के लिए संयम और परिश्रम दोनों ही आवश्यक हैं। विद्यार्थी जीवन संयमित और नियमित होना चाहिए। जीवन में उचित रीति का पालन करने वाले विद्यार्थी कभी असफल नहीं होते। एक आदर्श विद्यार्थी को अपनी इंद्रियों और मन पर पूर्ण संयम रखना चाहिए। समय पर सोना, समय पर उठना, समय पर भोजन करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और निरंतर परिश्रम करना एक अच्छे विद्यार्थी के गुण हैं। संयम-नियम का पालन करने से ही विद्यार्थी का मन अध्ययन में लगता है। परिश्रम के बिना विद्या नहीं आती। संस्कृत में कहा भी गया है-
सुखार्थी वा त्यजेत् विद्याम्, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखं ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या, विद्यार्थिनः कुतः सुखं ॥

आज के विद्यार्थी के लिए खेल-कूद में भाग लेना भी अनिवार्य है। इससे शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। जो विद्यार्थी खेल-कूद में भाग न लेकर केवल किताबी कीड़े बने रहते हैं, वे शीघ्र ही रोगी बन जाते हैं। खेल-कूद में भाग लेने से विद्यार्थी संयम और परिश्रम के नियमों को भी सीखता है। आज के स्कूलों और कॉलेजों में खेलों के लिए समुचित व्यवस्था है। अतः विद्यार्थियों को विद्याध्ययन के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेना चाहिए।

इस प्रकार से आज का विद्यार्थी यदि देश का सुयोग्य नागरिक बनना चाहता है, अपना विकास करना चाहता है, अपने माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य का उचित निर्वाह करना चाहता है तो उसे वे सब गुण अपनाने होंगे जो उसके विकास के लिए आवश्यक हैं।

HBSE 10th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

38. विद्यार्थी और अनुशासन अथवा अनुशासन का महत्त्व

संकेत : भूमिका, अनुशासन का अर्थ, विद्यार्थी और अनुशासन, प्राचीनकाल में विद्यार्थी जीवन, वर्तमान स्थिति, अनुशासनहीनता के कारण, नैतिक शिक्षा की आवश्यकता, उपसंहार।

किसी भी भवन की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है। यदि नींव मज़बूत है तो उस पर बना भवन भी सुदृढ़ होगा और लंबे काल तक टिका रहेगा। इसी प्रकार से राष्ट्र की सुदृढ़ता उसके युवकों पर निर्भर करती है। यदि हमारे देश के युवक अनुशासित एवं सुशिक्षित होंगे तो देश का भविष्य सुरक्षित होगा, विद्यार्थी अनुशासित नहीं होंगे तो कभी भी हमारे देश पर विपत्ति के बादल मंडरा सकते हैं।

‘अनुशासन’ शब्द का अर्थ है-शासन के पीछे-पीछे चलना। शासन का अर्थ है-सुव्यवस्था अर्थात समाज को सुचारु रूप से चलाने के नियमों का पालन करना । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन अनिवार्य है। परिवार हो या समाज, सर्वत्र अनुशासन का पालन करने से मानव जीवन समृद्ध होता है। अनुशासन के अनेक लाभ हैं। इसका पालन करने से आलस्य और कायरता दूर भागते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य का सही पालन करता है। व्यक्ति में सच्चाई और ईमानदारी जैसे सद्गुण विकसित होते हैं।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन नितांत आवश्यक है। विद्यार्थी एक नन्ही कोंपल के समान होता है। उसे जो भी रूप दिया जाए, वह उसे ग्रहण करता है। उसका मन शीघ्र प्रभावित होता है। अतः बाल्यावस्था से ही विद्यार्थी को अनुशासन की शिक्षा दी जानी चाहिए। हम इस बात का ध्यान रखें कि बालक-बालिकाएँ अपना-अपना काम नियमित रूप से करें। इस दिशा में माता-पिता का दायित्व और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चे की शिक्षा का प्रथम विद्यालय उसका घर ही है। यदि माता-पिता स्वयं अनुशासित हैं तो बालक भी अनुशासन की भावना ग्रहण करेगा।

प्राचीन भारत में विद्यार्थी गुरुकुलों में शिक्षा ग्रहण करने जाते थे। 25 वर्ष तक विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और यह काल शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करते थे। उन दिनों गुरुकुलों का वातावरण बहुत ही पावन और अनुशासित होता था। प्रत्येक विद्यार्थी अपने गुरुजनों का सम्मान करता था। शिक्षा के साथ-साथ उसे गुरुकुल के सारे काम भी करने पड़ते थे। छोटे-बड़े या

अमीर-गरीब सभी एक ही गुरु के चरणों में विद्या ग्रहण करते थे। श्रीकृष्ण और सुदामा ने इकट्ठे संदीपन ऋषि के आश्रम में अनुशासनबद्ध होकर शिक्षा ग्रहण की।

आज हमारे देश के विद्यार्थियों में अनुशासन का अभाव है। वे न तो माता-पिता का कहना मानते हैं और न ही गुरुजनों का। प्रतिदिन स्कूलों और कॉलेजों में हड़तालें होती रहती हैं। इस प्रकार के समाचार पढ़ने को मिलते रहते हैं कि विद्यार्थियों ने बस जला डाली या पथराव किया। पुलिस और विद्यार्थियों की मुठभेड़ तो होती ही रहती है। राजनीतिक दल भी समय-समय पर अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए विद्यार्थियों को भड़काते रहते हैं। विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता के अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। ये विद्यार्थी परीक्षाओं में नकल करते हैं, शिक्षकों को धमकाते हैं और विश्वविद्यालयों के वातावरण को दूषित करते रहते हैं। अनेक विद्यार्थी हिंसात्मक कार्रवाई में भी भाग लेने लगे हैं। इससे राज्य की सुख-शांति में बाधा उत्पन्न होती है। निश्चय ही, आज विद्यार्थियों में अनुशासन की कमी आ चुकी है।

आज की शिक्षण संस्थाओं का प्रबंध भी विद्यार्थियों को अनुशासनहीन बनाता है। वे विद्यालय के अधिकारियों और शिक्षकों की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं। ऐसा भी देखने में आया है कि स्कूलों में छात्र-छात्राओं की भीड़ लगी रहती है। भवन छोटे होते हैं और शिक्षकों की संख्या कम। कॉलेजों में तो एक-एक कक्षा में सौ-सौ विद्यार्थी होते हैं। ऐसी अवस्था में क्या तो शिक्षक पढ़ाएगा और क्या विद्यार्थी पढ़ेंगे। कॉलेजों में छात्रों के दैनिक कार्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। रचनात्मक कार्यों के अभाव में छात्र का ध्यान व्यर्थ की बातों की ओर जाता है। यदि प्रतिदिन विद्यार्थी के अध्ययन-अध्यापन की ओर ध्यान दिया जाए तो निश्चित रूप से वह अपना काम अनुशासनपूर्वक करेगा।

छात्रों में अनुशासन की भावना स्थापित करने के लिए यह ज़रूरी है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में नैतिक और चारित्रिक शिक्षा के लिए कुछ स्थान हो। इससे विद्यार्थी को अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी ज्ञान होगा। दूसरी बात यह है कि विद्यार्थियों के शारीरिक विकास की ओर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षण के साथ-साथ खेल-कूद को भी अनिवार्य घोषित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार से एन०सी०सी० और एन०एस०एस० जैसे रचनात्मक कार्यों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।

वर्तमान शिक्षण-पद्धति में परिवर्तन करके महापुरुषों की जीवनियों से भी छात्र-छात्राओं को अवगत कराया जाना चाहिए। यथासंभव व्यावसायिक शिक्षा की ओर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि स्कूल से निकलते ही विद्यार्थी अपने व्यवसाय का शीघ्र चयन करें। प्रतिमाह मासिक परीक्षा अवश्य होनी चाहिए। इस कार्यक्रम को सुचारु ढंग से चलाने के लिए त्रैमासिक और अर्द्धवार्षिक परीक्षाएँ भी आयोजित की जाएँ। सबसे बढ़कर विभिन्न राजनीतिक दलों को शैक्षणिक संस्थाओं में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सरकार भी यह बात पूरी तरह से जान ले कि छात्रों में अनुशासन स्थापित किए बिना देश सुदृढ़ नहीं हो सकता।

39. पुस्तकालय का महत्व

सकेत : भूमिका, पुस्तकालय का महत्त्व, पुस्तकालय के प्रकार, पुस्तकालय का लक्ष्य, विश्व के पुस्तकालय, पुस्तकालय के लाभ, उपसंहार।

‘पुस्तकालय’ शब्द पुस्तक + आलय दो शब्दों के मेल से बना है। इसका अर्थ है-वह स्थान या घर जहाँ पर काफी मात्रा में पुस्तकें रखी जाती हैं। आज के युग में पुस्तकें हमारे जीवन का एक अंग बन चुकी हैं लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं कि वह प्रत्येक पुस्तक को खरीद सके। आजकल पुस्तकें बहुत महँगी हो चुकी हैं। अतः हमें पुस्तकालयों की शरण लेनी पड़ती है।

छोटे-छोटे स्कूलों से लेकर बड़े-बड़े स्कूल और कॉलेज इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्थापित किए गए हैं परंतु ज्ञान का क्षेत्र इतना विशाल है कि ये शिक्षण-संस्थाएँ एक निश्चित सीमा और निश्चित ज्ञान में पूर्ण रूप से ज्ञान-साक्षात्कार नहीं करा सकतीं। इसलिए ज्ञान-पिपासुओं को पुस्तकालय का सहारा लेना पड़ता है। प्राचीन काल में पुस्तकें हस्तलिखित होती थीं जिनमें एक व्यक्ति के लिए विविध विषयों पर अनेक पुस्तकें उपलब्ध कराना बड़ा कठिन था परंतु आज के मशीनी युग में भी जबकि पुस्तकों का मूल्य प्राचीन काल की अपेक्षा बहुत ही कम है, एक व्यक्ति अपनी ज्ञान-पिपासा की तृप्ति के लिए सभी पुस्तकें खरीदने में असमर्थ है। पुस्तकालय हमारी इस असमर्थता में बहुत सहायक हैं।

पुस्तकालय विभिन्न प्रकार के होते हैं। कई विद्या-प्रेमी, जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, अपने उपयोग के लिए अपने घर में ही पुस्तकालय की स्थापना करते हैं। ऐसे पुस्तकालय ‘व्यक्तिगत पुस्तकालय’ कहलाते हैं। सार्वजनिक उपयोगिता की दृष्टि से इनका महत्त्व कम होता है। दूसरे प्रकार के पुस्तकालय कॉलेजों और विद्यालयों में होते हैं। इनमें बहुधा उन्हीं पुस्तकों का संग्रह होता है जो पाठ्य विषयों से संबंधित होती हैं। इस प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक उपयोग में भी नहीं आते। इनका उपयोग छात्र और अध्यापक ही करते हैं परंतु ज्ञानार्जन और शिक्षा की पूर्णता में इनका सर्वाधिक महत्त्व है। ये पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं होते। इनके बिना शिक्षालयों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

तीसरे प्रकार के राष्ट्रीय पुस्तकालयों में देश-विदेश में छपी विभिन्न विषयों की पुस्तकों का विशाल संग्रह होता है। इनका उपयोग भी बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा होता है। चौथे प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं। इनका संचालन सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा होता है। आजकल ग्रामों में भी ग्राम पंचायतों के द्वारा सबके उपयोग के लिए पुस्तकालय चलाए जा रहे हैं परंतु शिक्षा के क्षेत्र में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान नहीं होता। आजकल एक अन्य प्रकार के पुस्तकालय दिखाई देते हैं, उन्हें ‘चल-पुस्तकालय’ कहते हैं। ये मोटरों या गाड़ियों में बनाए जाते हैं। इनका उद्देश्य ज्ञान-विज्ञान का प्रसार करना होता है। इनमें अधिकतर प्रचार-साहित्य ही होता है।

पुस्तकालय का कार्य पाठकों के उपयोग के लिए सभी प्रकार की पुस्तकों का संग्रह करना है। अपने पाठकों की रुचि और आवश्यकता को देखते हुए पुस्तकालय अधिकारी देश-विदेश में मुद्रित पुस्तकें प्राप्त करने में सुविधा के लिए पुस्तकों की एक सूची तैयार करते हैं। पाठकों को पुस्तकें प्राप्त कराने के लिए एक कर्मचारी नियुक्त किया जाता है। पुस्तकालय में पाठकों के बैठने और पढ़ने के लिए समुचित व्यवस्था होती है। पढ़ने के स्थान को ‘वाचनालय’ कहते हैं। पाठकों को घर पर पढ़ने के लिए भी पुस्तकें दी जाती हैं परंतु इसके लिए एक निश्चित राशि देकर पुस्तकालय की सदस्यता प्राप्त करनी होती है। पुस्तकालय में विभिन्न पत्रिकाएँ भी होती हैं।

पुस्तकालयों की दृष्टि से रूस, अमेरिका और इंग्लैंड सबसे बड़े देश हैं। मॉस्को के लेनिन पुस्तकालय में लगभग डेढ़ करोड़ मुद्रित पुस्तकें संगृहीत हैं। वाशिंग्टन (अमेरिका) के काँग्रेस पुस्तकालय में चार करोड़ से भी अधिक पुस्तकें हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय समझा जाता है। इंग्लैंड के ब्रिटिश म्यूजियम पुस्तकालय में पचास लाख पुस्तकों का संग्रह है। भारत में कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय में दस लाख पुस्तकें हैं। केंद्रीय पुस्तकालय, बड़ोदरा में लगभग डेढ़ लाख पुस्तकों का संग्रह है। प्राचीन भारत में नालंदा और तक्षशिला में बहुत बड़े पुस्तकालय थे।

पुस्तकालय के अनेक लाभ हैं। ज्ञान-पिपासा की शांति के लिए पुस्तकालय के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं है। अध्यापक विद्यार्थी का केवल पथ-प्रदर्शन करता है। ज्ञानार्जन की क्रिया पुस्तकालय से ही पूरी होती है। देश-विदेश के तथा भूत और वर्तमान के विद्वानों के विचारों से अवगत कराने में पुस्तकालय हमारा सबसे बड़ा साथी है। आर्थिक दृष्टि से भी पुस्तकालय का महत्त्व कम नहीं है। एक व्यक्ति जितनी पुस्तकें पढ़ना चाहता है, उतनी खरीद नहीं सकता। पुस्तकालय उसकी इस कमी को भी पूरी कर देता है। कहानी, उपन्यास, कविता और मनोरंजन विषयों की पुस्तकें भी वहाँ से प्राप्त हो जाती हैं। अवकाश के समय का सदुपयोग पुस्तकालय में बैठकर किया जा सकता है। अतः आधुनिक युग में शिक्षित व्यक्ति के जीवन में पुस्तकालय का काफी महत्त्व है।

दूरदर्शन तथा फिल्मों ने पुस्तकों के प्रकाशन को अत्यधिक प्रभावित किया है लेकिन पुस्तकों की उपयोगिता प्रत्येक युगं में बनी रहेगी। सामान्य पाठक पुस्तकों को खरीद नहीं सकता। अतः उसे पुस्तकालय का ही सहारा लेना पड़ता है। आज ग्रामीण क्षेत्रों में पुस्तकालयों की अत्यधिक आवश्यकता है। अनपढ़ता को दूर करने में पुस्तकालयों का बड़ा योगदान हो सकता है।

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40. आदर्श अध्यापक

संकेत : भूमिका, जीवन लक्ष्य का चुनाव अनिवार्य, मेरा जीवन लक्ष्य अध्यापक बनना, अध्यापन एक महान कार्य, आदर्श अध्यापक सच्चा सेवक, विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न करना शिक्षक का कर्तव्य, उपसंहार।

मानव-जीवन एक यात्रा के समान है। यदि यात्री को यह ज्ञात हो कि उसे कहाँ जाना है तो वह अपनी दिशा की ओर अग्रसर होना शुरु हो जाता है किंतु यदि उसे अपने गंतव्य का ज्ञान नहीं होता तो उसकी यात्रा निरर्थक हो जाती है। इसी प्रकार, यदि एक विद्यार्थी को ज्ञान हो कि उसे क्या करना है तो वह उसी दिशा में प्रयत्न करना आरंभ कर देगा और सफलता भी प्राप्त करेगा। इसके विपरीत, उद्देश्यहीन अध्ययन उसे कहीं नहीं ले जाता।

ऊपर बताया गया है कि जीवन एक यात्रा के समान है। मैं भी जीवन रूपी चौराहे पर खड़ा हूँ। यहाँ से कई मार्ग अलग-अलग दिशाओं को जा रहे हैं। मेरे समक्ष अनेक सपने हैं और लोगों के अनेक सुझाव भी हैं। कोई कहता है कि अध्योपक का कार्य सर्वोत्तम है क्योंकि अध्यापक राष्ट्र-निर्माता है। कोई कहता है कि सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करो। कोई कहता है, नहीं, इंजीनियर बनो, इसी में तुम्हारी भलाई है। कभी-कभी मन में यह भी आता है कि एक सफल व्यापारी बनूँ। फिर सोचता हूँ कि व्यापार में ईमानदारी नहीं। मेरे कुछ साथी भी हैं, वे भी अपने मन में कुछ सपने पाल रहे हैं। कोई डॉक्टर बनकर अधिकाधिक रुपया कमाना चाहता है तो कोई उद्योगपति बनना चाहता है। कुछ ऐसे भी हैं जो राजनीति में प्रवेश करके सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं। कोई अभिनेता बनना चाहता है तो कोई लेखक बनकर यश प्राप्त करना चाहता है।

जीवन में लक्ष्य का चुनाव अपनी इच्छाओं एवं अपने साधनों के अनुरूप करना चाहिए। ध्येय चुनतें समय स्वार्थ और परमार्थ में समन्वय रखना चाहिए। अपनी रुचि एवं प्रवृत्ति को भी सामने रखना चाहिए। दूसरों का अंधानुकरण करना उपयुक्त नहीं। मेरे जीवन का भी एक लक्ष्य है। मैं एक आदर्श शिक्षक बनना चाहता हूँ। भले ही लोग इसे एक सामान्य लक्ष्य कहें परंतु मेरे लिए यह एक महान लक्ष्य है जिसकी पूर्ति के लिए मैं भगवान से नित्य प्रार्थना करता हूँ। अध्यापक बनकर भारत का भार उठाने वाले भावी नागरिक तैयार करना मेरी महत्वाकांक्षा है।

आज की शिक्षण व्यवस्था और शिक्षकों को देखकर मेरा मन निराश हो जाता है। आज शिक्षक शिक्षा का सच्चा मूल्य नहीं समझते। वे शिक्षा को एक व्यवसाय समझने लग गए हैं। धन कमाना ही उनके जीवन का उद्देश्य रह गया है। बड़े-बड़े पूँजीपति पब्लिक स्कूलों में इसलिए धन लगा रहे हैं ताकि रुपया कमा सकें। वे यह भूल गए हैं कि अध्यापन पावन एवं महान कार्य है। शिक्षक ही राष्ट्र की भावी उन्नति का जीवन बनाते, सुधारते और सँवारते हैं। इस संसार से अज्ञान का अंधकार दूर करके ज्ञान का दीपक जलाते हैं। छात्र-छात्राओं को नाना प्रकार की विद्याएँ देकर उन्हें विद्वान एवं योग्य नागरिक बनाते हैं। शिक्षक ही निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं। थोड़े धन से संतुष्ट रहकर वे आने वाली पीढ़ी को तैयार करते हैं और उनमें उत्तम गुणों का विकास करते हैं। आज हमारे देश में जो भ्रष्टाचार एवं मूल्यों की गिरावट आ चुकी है, उसके लिए बहुत कुछ हमारे शिक्षक तथा शिक्षा-व्यवस्था दोषी है।

प्राचीनकाल में हमारे गुरुकुलों में सच्चे अर्थों में शिक्षा दी जाती थी। प्रत्येक विद्यार्थी के लिए गुरुकुल में रहना अनिवार्य होता था। शिक्षक भी गुरुकुल में ही रहता था। उसका समूचा जीवन अपने विद्यार्थियों के लिए होता था। यही कारण था कि बड़े-बड़े राजा भी अपने पुत्रों को वहाँ पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते थे। शिक्षक अपने जीवन के अनुभवों द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञान देता था। आदर्श शिक्षक समाज का सच्चा सेवक होता है। उसके सामने राष्ट्र-सेवा का आदर्श होता है। मैं ऐसा ही शिक्षक बनकर विद्यार्थियों को स्वावलंबन, सेवा, सादगी, स्वाभिमान, अनुशासन और प्रामाणिकता का पाठ पढ़ाऊंगा।

आज का विद्यार्थी विद्या को बोझ समझकर उससे दूर भागता है। परिणामस्वरूप, ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में विद्यार्थी स्कूल जाना बंद कर देते हैं और उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। मैं विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न करूँगा और यह प्रयास करूँगा कि जो विद्यार्थी स्कूल में आ गया है, वह स्कूल छोड़कर न जाए और अपनी शिक्षा को पूरा करे। छात्रों में अकसर अनुशासनहीनता देखी जा सकती है। उधर कुछ विद्यार्थी राजनीति में भाग लेकर अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ देते हैं। इसके लिए अध्यापक ही दोषी हैं। यदि अध्यापक सही ढंग से पढ़ाएँ तो विद्यार्थी का मन अन्यत्र कहीं नहीं लगेगा। मैं इस बात का प्रयत्न करूँगा कि विद्यार्थी अपना मन पढ़ाई में लगाएँ और एक अनुशासनबद्ध व्यक्ति की तरह जीवनयापन करें।

मैं अपनी कक्षा को परिवार के समान समयूँगा। अनुशासन का पूरा ध्यान रखूगा। पढ़ाई में कमजोर छात्रों का विशेष ध्यान रलूँगा। उनको अतिरिक्त समय देकर भी पढ़ाऊँगा। मैं मनोविज्ञान के आधार पर अध्यापन करूँगा ताकि विद्यार्थियों की कमजोरी का सही कारण जान सकँ। होनहार छात्रों को भी मैं विशेष रूप से.प्रोत्साहित करूँगा ताकि वे आगे चलकर जीवन में विशेष उपलब्धि प्राप्त कर सकें। शिक्षा और खेलकूद का उचित समन्वय स्थापित करूँगा। अभिनय, वाद-विवाद, सामान्य ज्ञान तथा निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने की प्रेरणा अपने विद्यार्थियों को दूंगा। मैं स्वयं सादा रहूँगा और अपनी सादगी, सरलता, विनम्रता तथा सहृदयता से विद्यार्थियों को भी प्रभावित करूँगा। सक्षेप में, मैं एक आदर्श अध्यापक बनने का प्रयास करूँगा क्योंकि एक आदर्श एवं चरित्रवान अध्यापक ही विद्यार्थियों को सही दिशा दे सकता है। ईश्वर करे मेरा उद्देश्य पूर्ण हो और मैं अपने देश की सेवा करूँ।।

41. दूरदर्शन और युवा पीढ़ी
अथवा
दूरदर्शन के लाभ और हानि

संकेत : भूमिका, दूरदर्शन का अर्थ, युवाओं के जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग, शिक्षा का सशक्त माध्यम, कुप्रभाव।

आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में मनुष्य दिन-भर काम करके शारीरिक और मानसिक रूप से थकावट महसूस करता है। इस थकावट को दूर करने के लिए वह कुछ नवीनता और कौतुहलता चाहता है। शरीर की थकावट को आराम करके दूर किया जा सकता है, परंतु मानसिक रूप से स्फूर्ति और आनंद प्रदान करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है। समय की कमी के कारण मनुष्य को ऐसे मनोरंजन के साधन की जरूरत होती है, जो घर बैठे ही उसका मनोरंजन कर सके। विज्ञान ने टेलीविज़न का आविष्कार करके एक ऐसा जादू उपलब्ध करवा दिया है, जो मनुष्य के इस उद्देश्य की पूर्ति करता है।

टेलीविजन का हिंदी पर्याय ‘दरदर्शन’ है। टेली का अर्थ है-‘दर’ तथा विज़न का अर्थ है-‘दर्शन’ अर्थात् दूर के दृश्यों का आँखों के सामने उपस्थित होना। यह रेडियो तकनीक का ही विकसित रूप है, जिसका आविष्कार श्री जे०एल० बेयर्ड ने 1926 में किया था। टेलीविज़न मनोरंजन का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसने समाज के प्रत्येक वर्ग-बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष आदि सबको प्रभावित किया है। हर परिवार का यह एक आवश्यक अंग बन गया है। यह मनोरंजन का सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला साधन है। पूरे विश्व के समाचार, नई जानकारियाँ आदि घर बैठे प्राप्त की जा सकती हैं। दूरदर्शन ने आज की युवा पीढ़ी को सबसे अधिक प्रभावित किया है।

दूरदर्शन आज की युवा पीढ़ी के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण तथा अति आवश्यक अंग है। यदि युवक इसका नियंत्रित तथा संयमित प्रयोग करते हैं तो टेलीविजन उनके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा, अन्यथा उसके दुष्परिणामों से युवकों को बचाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार एक कुएँ से पानी प्राप्त कर मनुष्य अपनी प्यास बुझा जा सकता है, परंतु यदि वह उसमें कूदकर आत्महत्या कर लें, तो कुएँ का क्या दोष? इसी प्रकार दूरदर्शन युवा पीढ़ी को आधुनिकतम शिक्षा तथा विश्व की प्रत्येक जानकारी देने का साधन है, परंतु यदि आज का युवा छात्र अपना अमूल्य समय बेकार के कार्यक्रम देखकर गंवा देगा, तो हम दूरदर्शन को दोष नहीं दे सकते।

दूरदर्शन शिक्षा का सशक्त माध्यम है। इस पर न केवल औपचारिक शिक्षा दी जाती है, बल्कि अनौपचारिक शिक्षा का प्रसारण भी होता है। केवल ध्वनि तथा शब्दों का सहारा लेकर पाठ्यक्रम नीरस हो जाता है। दूरदर्शन पर विद्यार्थियों के लिए नियमित पाठों का प्रसारण किया जाता है। दूरदर्शन पर जीती-जागती तस्वीर देखकर विद्यार्थियों की अपने पाठ्यक्रम के प्रति रुचि बढ़ जाती है तथा भली-भाँति समझ आ जाती है। इसमें अनपढ़ों के लिए साक्षरता के कार्यक्रम भी पेश किए जाते हैं। दूरदर्शन पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् द्वारा बच्चों, युवाओं और प्रौढ़ों के लिए पाठों का प्रसारण किया जाता है।

शैक्षिक सामग्री के अतिरिक्त इससे युवा किसानों को कृषि के आधुनिक यंत्रों, कीटनाशकों तथा नई फसलों की जानकारी मिलती है। दूरदर्शन पर ऐसे अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनसे प्रेरित होकर आज की युवा पीढ़ी अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पा सकती है। विद्यार्थी विश्व की नवीनतम जानकारी तथा देश-विदेश के समाचार प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय इतिहास, सभ्यता तथा संस्कृति पर आधारित अनेक कार्यक्रमों से आज का युवा वर्ग प्राचीन भारतीय गौरव की जानकारी ले सकता है। इस प्रकार दूरदर्शन ने हमारी युवा पीढी के जीवन के प्रत्येक पहल को प्रभावित किया है।

यदि व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो दूरदर्शन आज के छात्रों के लिए उपयोगी तथा सहायक कम और बाधक अधिक सिद्ध हुआ है। अधिकतर छात्र ऐसे कार्यक्रमों में रुचि लेते हैं जिनका संबंध शिक्षा से न होकर मनोरंजन से अधिक हो, जो रोचक व रसीले हों जैसे-फिल्में, गाने, सीरियल, खेल तथा पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित कार्यक्रम। ऐसे कार्यक्रमों में हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, अश्लील दृश्य दिखाए जाते हैं, छल, फरेब, झूठ, चोरी, बेईमानी के नए ढंग बताए जाते हैं। इन सबका व्यापक प्रभाव हमारे युवा वर्ग पर पड़ रहा है। समाज में चोरी, डकैती, हिंसा तथा भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है। केबल पर प्रसारित कार्यक्रमों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, इसलिए अश्लीलता तथा हिंसा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को देखकर आज की युवा पीढ़ी भ्रमित हो रही है। इस पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है।

ऊपर दिए गए तर्क दूरदर्शन के विरोध में नही हैं, बल्कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों पर हैं, जो छात्रों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। दूरदर्शन को नकारने से तो उससे प्राप्त सभी लाभ समाप्त हो जाएँगे। आवश्यकता तो इस बात की है कि हमारी युवा पीढ़ी संयम में रहकर केवल ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों को देखें। दूरदर्शन तो ऐसा साधन है, जिसका उचित उपयोग करके हम अपना जीवन, समाज तथा देश का भविष्य सुखद, आनंददायक तथा उज्ज्वल बना सकते हैं।

HBSE 10th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

42. मेरा सर्वप्रिय ग्रन्थ-रामचरितमानस/मेरी प्रिय पुस्तक

भूमिका-आज प्रतिदिन सैकड़ों नई-नई पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग भाषाओं में नई-नई पुस्तकें सामने आ रही हैं। लेकिन मैं तो हिन्दी साहित्य का ही नियमित पाठक हूँ। हिन्दी की अच्छी-अच्छी रचनाएं पढ़ने में मेरी रुचि रही है। हिन्दी का साहित्य उन साहित्यकारों द्वारा लिखा गया है जो स्वयं अभावग्रस्त रहे परन्तु पाठकों के लिए सुन्दर भाव अपनी रचनाओं में छोड़ गए हैं। कुछ रचनाएं मुझे काफी रोचक लगी हैं, परन्तु जिस महान् रचना ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है- वह है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ । यह ग्रन्थ सभ्यता एवं संस्कृति का महान् स्मारक है। यही मेरी प्रिय पुस्तक है।

1. रामचरितमानस पूज्य ग्रन्थ :
गोस्वामी तुलसीदास ने ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘विनय-पत्रिका’, ‘कृष्ण गीतावली’, ‘पार्वती मंगल’, ‘जानकी मंगल’ आदि असंख्य रचनाएं लिखी हैं। लेकिन रामचरितमानस उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रबन्ध काव्य है। यह एक महाकाव्य है। इसे ‘मानस’ के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर लोग इसे रामायण भी कहते हैं। जिस प्रकार ईसाइयों में ‘बाईबल’, मुसलमानों में ‘कुरान शरीफ’ तथा सिक्खों में ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ पूज्य ग्रन्थ हैं, उसी प्रकार हिन्दुओं में ‘रामचरितमानस’ पूज्य है। झोंपड़ी से महलों तक यह ग्रन्थ मान्य एवं पूज्य है। प्रत्येक हिन्दू मन्दिर और यहाँ तक कि परिवार में इसकी एक प्रति अवश्य मिलती है। इसकी लोकप्रियता प्रतिदिन बढ़ रही है। संसार की शायद ही कोई भाषा हो जिसमें इसका अनुवाद न हुआ हो। हिन्दी साहित्य में यही वह रचना है जिस पर सर्वाधिक टीकाएं लिखी गई हैं।

2. श्रेष्ठ महाकाव्य :
इस महाकाव्य में कुल सात काण्ड (अध्याय) हैं। इसका रचनाकाल तुलसीदास ने संवत् 1631 दिया है। यह ग्रन्थ दोहा चौपाई में लिखा गया है। इसकी भाषा साहित्यिक अवधी है। ‘मानस’ के कथानक का आधार वाल्मीकि रामायण है परन्तु इसमें कथा-विस्तार, दार्शनिक विचारों तथा युक्ति भावना के लिए अध्यात्म रामायण, गीता, उपनिषद्, पुराण आदि का भी कवि ने आश्रय लिया है। तुलसी के राम वाल्मीकि के राम न होकर नारायण रूप हैं। अतः मानव में तुलसीदास कवि होने के साथ-साथ व्यक्ति भी हैं परन्तु मुझे तो गोस्वामी के कवि रूप ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। महाकाव्य की जो विशेषताएं हो सकती हैं, वे सब इस रचना में हैं। इस दृष्टि से यह उल्लेखनीय ग्रन्थ संसार की किसी भी महान् रचना का मुकाबला कर सकता है।

3. जीवनोपयोगी कथानक:
‘रामचरितमानस’ में मुझे सबसे प्रिय लगती है उसकी कथावस्तु, जिसमें स्थान-स्थान पर तुलसीदास के सहज नाटकीय-रचना-कौशल और अद्भुत सूझबूझ के दर्शन होते हैं। ‘मानस’ की संवाद शैली अत्युत्तम है। ‘मानस’ का आरम्भ भी संवादों से होता है, मध्य भी संवादों और अन्त भी संवादों से। कथा के आधारभूत तीन संवाद हैं-उमा-शम्भु-संवाद, गरुड़-काकभुषुण्डि-संवाद, अंगद-रावण-संवाद, रावण-मन्दोदरी-संवाद आदि। संवादों के माध्यम से ‘मानस’ की कथा अत्यन्त रोचक, ज्ञानवर्द्धक एवं जीवनोपयोगी बन गई है। मार्मिक स्थलों के चयन में तुलसी जी की दृष्टि बड़ी पैनी है। राम-वनवास, भरत-मिलाप, सीता-हरण, शबरी-प्रसंग, लक्ष्मण-मूर्छा आदि इसी प्रकार के अत्यन्त मार्मिक प्रसंग हैं।

4. आदर्श जीवन :
मूल्य सामान्य मनुष्यों की दृष्टि में ‘मानस’ की महत्ता इसलिए है कि उसमें पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय आदर्शों की स्थापना की गई है। रामकथा में हमारी प्रत्येक परिस्थिति का समावेश है और हमारी समस्याओं का समाधान है। पिता का पुत्र के प्रति, पुत्र का माता-पिता के प्रति, भाई का भाई के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति, सेवक का स्वामी के प्रति, शिष्य का गुरु के प्रति तथा पत्नी का पति के प्रति क्या कर्त्तव्य है, आदि की झलक मानस में सहज रूप से उपलब्ध हो जाती है। दूसरी ओर विद्वान् दार्शनिक और आलोचक ‘मानस’ को ज्ञान का भण्डार बतलाते हैं। तुलसी की यह उक्ति उनकी वाणी पर लागू होती है-
कीरति भनित भूति भल सोई, सुरसरि हम सब कह हित होई।

5. भाव एवं कला का सुन्दर समन्वय-मानस भाव-पक्ष और कला-पक्ष दोनों दृष्टियों से उदात्त और भव्य काव्य है। ‘कविता करके तुलसी न लसै कविता लसि पा तुलसी की कला’, इसमें कवि ने स्थान-स्थान पर रचना कौशल का परिचय दिया है। मानस धर्म और साहित्य का पवित्र संगम है। यह समस्त भारतीय दर्शन का सार है। यह नाना पुराण निगमागम सम्मत रचना है। स्वयं कवि ने लिखा है-‘स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा।’ वस्तुतः कवि गोस्वामी ने वेदों, पुराणों और अन्य शस्त्रों का सार ग्रहण करके ‘रामचरितमानस’ के रूप में एक ऐसी संजीवनी तैयार की है जिसका पान कर मानव धन्य हो उठता है।

मानस की भाषा अवधी है। बल्कि इसे साहित्यिक अवधी कहना अधिक उचित होगा। तुलसी की भाषा पात्रानुकूल, सहज, सरल और प्रवाहमयी है। दोहा-चौपाई में लिखा गया यह महाकाव्य साधारण से साधारण पाठक के लिए भी बोधगम्य है। इसमें अलंकारों की छटा भी दर्शनीय है। अलंकारों में रमणीयता के साथ-साथ स्वाभाविकता भी है। कवि ने अर्थालंकारों के साथ-साथ शब्दालंकारों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। अस्तु, मुझे यह ग्रन्थ सर्वाधिक प्रिय है। मैं समय-समय पर इसका पाठ करता हूँ। निःसन्देह यह संसार का एक महान् गौरव ग्रन्थ है।

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43. मानव और विज्ञान
अथवा
विज्ञान वरदान या अभिशाप

संकेत : भूमिका, विज्ञान और आधुनिक जीवन, विज्ञान वरदान के रूप में, विज्ञान के चमत्कार, चिकित्सा क्षेत्र में विज्ञान का उपयोग, विज्ञान अभिशाप के रूप में, उपसंहार।

आज का युग विज्ञान के चमत्कारों का युग है। विज्ञान का शाब्दिक अर्थ है-वि+ज्ञान अर्थात् किसी वस्तु का विशेष ज्ञान। आज विज्ञान की उन्नति ने संसार को चकित कर दिया है। विज्ञान विवेक का द्वार है। भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मानव विज्ञान की शरण में आया और विज्ञान मानव के लिए कल्पवृक्ष सिद्ध हुआ। विज्ञान के अद्भुत आविष्कारों को देखकर मनुष्य दाँतों तले उँगली दबा लेता है। विज्ञान की चकाचौंध देखकर मनुष्य स्तब्ध रह जाता है।

विज्ञान और जीवन का घनिष्ठ संबंध है। विज्ञान ने मानव जीवन को सुखमय बना दिया है। एक विद्वान के अनुसार, “विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं तथा बहरों को सुनने की शक्ति। उसने जीवन को दीर्घ बना दिया है तथा भय को कम कर दिया है। पागलपन को वश में कर लिया है और रोगों को रौंद डाला है।” मानव ने जहाँ विज्ञान द्वारा इतने सुख प्राप्त किए हैं, वहाँ दुःख भी प्राप्त किए हैं। विज्ञान मानव के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी।

विज्ञान ने मानव को अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं। जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप में विज्ञान का योगदान है। विज्ञान ने आज मानव की कल्पनाओं को यथार्थ रूप में बदल दिया है। भाप, बिजली और अणुशक्ति को वश में करके विज्ञान ने मानव जीवन को चार चाँद लगा दिए हैं। रॉकेट, हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर जैसे यंत्रों ने मानव जीवन को ऐश्वर्य की चरम सीमा तक पहुंचा दिया है।

विज्ञान ने मानव के मनोरंजन के लिए भी अनेक साधन पैदा किए हैं। रेडियो, टेलीविज़न, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर, सिनेमा आदि से मानव जीवन अधिक रोचक बन गया है। आज हम घर बैठे देश-विदेश के समाचारों को सुन सकते हैं। विदेश में हो रहे कार्यक्रमों को भी घर बैठकर आराम से देख सकते हैं। सिनेमा को जहाँ मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, वहाँ सिनेमा को शिक्षा के साधन के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है।

वैज्ञानिक आविष्कारों ने मनुष्य का जीवन सुविधापूर्ण तथा आनंदमय बना दिया है। मशीनों द्वारा ही सब काम संपन्न किए जा सकते हैं। अन्न उगाने तथा वस्त्र बनाने के लिए भी मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा है। पहले लोग मिट्टी के दीपक जलाकर घर में रोशनी करते थे, परंतु आज बटन दबाते ही सारा घर जगमग करने लगता है।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने आश्चर्यजनक उन्नति की है। एक्स-रे द्वारा शरीर के अंदर के चित्र लिए जाते हैं तथा बीमारियों का पता लगाया जाता है जिससे फेफड़े, दिल, गुर्दे आदि के ऑपरेशन किए जाते हैं। अंधों को दूसरों की आँखें देकर देखने योग्य बनाया जा सकता है। कैंसर जैसे असाध्य रोगों के लिए कोबाल्ट किरणों का आविष्कार किया गया है।

परंतु जब मनुष्य विज्ञान का दुरुपयोग करने लगता है तो वही विज्ञान मानव के लिए अभिशाप बन जाता है। विज्ञान की भयानकता को देखकर मनुष्य का सारा उत्साह समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग मानव हित के लिए उतना नहीं हुआ, जितना अहित के लिए। विज्ञान ने एटम बम, हाइड्रोजन बम जैसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाए हैं जिनसे सारा संसार क्षण भर में नष्ट हो सकता है। द्वितीय महायुद्ध में जितना विनाश हुआ, उसकी पूर्ति शायद विज्ञान सौ वर्षों में भी नहीं कर सकता। हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर गिरे अणु बमों के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। बम के प्रभाव के कारण वहाँ की संतानें अब तक अपंग पैदा होती हैं। तीसरे महायुद्ध की कल्पना करने मात्र से ही हृदय काँप उठता है।

प्रदूषण की समस्या का मूल कारण भी विज्ञान ही है। हवाई जहाजों से बमों की वर्षा करके निरीह जनता तथा उनके घर-बार तबाह किए जाते हैं। विज्ञान से सबसे बड़ी हानि यह है कि इसने मनुष्य को बेकार बना दिया है। मशीनी युग के कारण अनेक लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है। वैज्ञानिक प्रगति के कारण मनुष्य की नैतिक धारणाएँ शिथिल हो गई हैं। हस्तकलाओं तथा लघु उद्योगों में निपुण अनेक लोग मशीनों की प्रगति के कारण बेकार हो गए हैं। विज्ञान ने मनुष्य को शक्ति दी है, शांति नहीं; सुविधाएँ दी हैं, सुख नहीं।

विज्ञान तो केवल एक शक्ति है। मनुष्य इसका सदुपयोग भी कर सकता है तथा दुरुपयोग भी। वास्तव में, विज्ञान द्वारा जो विनाश हुआ है, उसे विज्ञान पर नहीं थोपा जा सकता क्योंकि वह तो निर्जीव है। उसका सदुपयोग या दुरुपयोग करना तो मनुष्य पर निर्भर करता है। विज्ञान तो मनुष्य का दास है। मनुष्य उसे जैसी आज्ञा देगा, वह वैसा ही करेगा। विज्ञान की स्थिति एक तलवार की भाँति है जिससे किसी के प्राणों की रक्षा भी की जा सकती है तथा किसी के प्राण भी लिए जा सकते हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह विज्ञान का प्रयोग मानव जाति के कल्याण के लिए ही करे, विनाश के लिए नहीं।

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44. मानव और कंप्यूटर
अथवा
कंप्यूटर : आज की आवश्यकता

संकेत : भूमिका, कंप्यूटर का आविष्कार, कंप्यूटर का कार्य, विभिन्न क्षेत्रों में कंप्यूटर का उपयोग, आर्थिक विकास के लिए लाभकारी, कंप्यूटर मानव प्रगति में सहायक, उपसंहार।

आज का युग विज्ञान का युग है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान ने अपने अद्भुत चमत्कारों द्वारा क्रांति उत्पन्न कर दी है। विज्ञान की उन्नति ने मानव को विस्मित कर दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे-ऐसे आविष्कार हो चुके हैं कि मनुष्य उन्हें देखकर दाँतों तले अंगुली दबा लेता है। उनकी चकाचौंध देखकर आज का मानव स्तब्ध रह जाता है। कंप्यूटर का आविष्कार वैज्ञानिक चमत्कारों में एक ऐसा ही चमत्कार है जिसने मानव के जीवन को सरल एवं सुखद बना दिया है।

गणनाओं की जटिलता को देखते हुए वैज्ञानिकों ने यह सोचा कि क्यों न गणनाओं के लिए मशीन का आविष्कार किया जाए? मशीन द्वारा गणना कर सकने की युक्ति आज से लगभग 350 वर्ष पुरानी है। सन 1662 में फ्रांस के एक गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने सर्वप्रथम जोड़ करने की एक मशीन बनाई। इंग्लैंड के निवासी चार्ल्स बावेज ने सन 1833 में मशीन का आविष्कार किया और वह आजीवन उस मशीन को आधुनिक कंप्यूटर का रूप देने का प्रयास करता रहा परंतु सफल न हो सका। आधुनिक कंप्यूटर बनाने का श्रेय विद्युत अभियंता पी० इकरैट, भौतिकशास्त्री जॉहन, डब्ल्यू० मैकली तथा गणितज्ञ जी०वी० न्यूमैन को है। इन तीनों ने पारस्परिक सहयोग द्वारा सन 1944 में एक मशीन का आविष्कार किया जिसका नाम इलेक्ट्रॉनिक नंबर इंटीमेटर एंड कंप्यूटर रखा गया। वर्ष 1952 में इस मशीन का सुधरा हुआ रूप बाज़ार में आया। इलेक्ट्रॉनिकी की प्रगति के फलस्वरूप एक के बाद एक अधिक कार्यक्षमता वाले कंप्यूटर बनने लगे। तत्पश्चात इनके आकार पर भी नियंत्रण किया गया।

कंप्यूटर वस्तुतः ऐसी मशीन है जो जोड़ने, घटाने, गुणा और भाग करने जैसी क्रियाओं को बड़ी शीघ्रता से और शुद्धता के साथ करती है। तदर्थ कंप्यूटर में कार्य निर्देश और आँकड़े भरे जाते हैं। दिए गए (भरे गए) कार्य-निर्देश इस प्रकार के होते हैं जैसे कि किसमें क्या जोड़ना है? घटाना है या भाग करना है ? क्या पढ़ना है, क्या लिखना है ? आदि। कार्य-निर्देशों का क्रमबद्ध संकलन कार्यक्रम कहलाता है। कंप्यूटर सर्वप्रथम इन निर्देशों को पढ़ता है और अपनी स्मृति में बिठा लेता है। पुनः वह कार्यक्रम के अनुसार काम करता है। कंप्यूटर की सफलता इसी में है कि वह साधारण निर्देशों को एक उचित क्रम से देने पर बड़ी-से-बड़ी जटिल गणना को भी बिना किसी अशुद्धि के शीघ्रता से कर सकता है।

कंप्यूटर ने मानव-जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। स्कूलों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में कंप्यूटर संबंधी शिक्षण भी दिया जा रहा है। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कंप्यूटर के कोर्स चल रहे हैं। हाल ही में बी०एस०सी० के पश्चात एम०सी०ए० और एम०एस०सी० पाठ्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे विकसित देशों में कंप्यूटर की आधुनिकतम शिक्षण व्यवस्था है। यह शिक्षण हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दो प्रकार का है। कंप्यूटर की विभिन्न भाषाएँ हैं, यथाडॉस, लोटस, कोबोल, पासकल, बेसिक आदि।

हमारे आर्थिक, वैज्ञानिक, कला, युद्ध, ज्योतिष, चिकित्सा, मौसम, इंजीनियरिंग आदि सभी क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। आर्थिक जीवन में तो इसने क्रांति ही उत्पन्न कर दी है। बैंकों तथा विभिन्न फर्मों के खातों के संचालन और हिसाबकिताब में इसका खुलकर प्रयोग किया जा रहा है। अनेक राष्ट्रीय बैंकों द्वारा चुंबकीय संख्या वाली चैक-बुक प्रसारित की गई हैं।

औद्योगिक क्षेत्रों में तो इसकी उपलब्धि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। बड़े-बड़े उद्योग प्रायः अपना सारा काम कंप्यूटरों द्वारा करने लगे हैं। टी०वी०, रेडियो, वी०सी०आर०, बिजली की मोटरें तथा अन्य इलैक्ट्रीकल वस्तुओं के उत्पादन में कंप्यूटर का अधिकाधिक उपयोग हो रहा है। बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों को चलाने में कंप्यूटरों की सहायता ली जा रही है। अब रोबोट (लौह पुरुष) कंप्यूटरों की सहायता से ऐसी मशीनों को चला सकते हैं जिनका संचालन मानव के लिए कठिन है। युद्ध के क्षेत्र में अस्त्रशस्त्रों को चलाने में कंप्यूटरों की सहायता ली जा रही है। हाल ही में इराक और अमेरिका के बीच हुए युद्ध में कंप्यूटरों ने इस प्रकार की भूमिका निभाई कि मानव उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गया। मिसाइल छोड़ने में कंप्यूटरों का खुलकर प्रयोग किया गया। इसी प्रकार से भारी तोपों, वायुयानों, हैलीकॉप्टरों, समुद्री जहाज़ों और पनडुब्बियों के संचालन में भी इनका खुलकर प्रयोग किया जा रहा है।

इस क्षेत्र में अमेरिका ने आशातीत प्रगति की है। सर्वप्रथम अमेरिका में एटम बम से संबंधित गणनाओं के लिए कंप्यूटर बनाया गया था। लेकिन अब वह इसकी सहायता से ‘स्टार वार्स’ की योजना भी बना रहा है। युद्ध के क्षेत्र में कंप्यूटर का अधिकाधिक प्रयोग हो रहा है। चित्रकार भी अब कंप्यूटरों का उपयोग करने लगे हैं। वे अब रंग, कैनवास और कूचियों के अधीन नहीं रहे। अब वे कंप्यूटरों की सहायता से बटन दबाते ही इच्छित रंगों के साथ कागज़ पर चित्र तैयार कर लेते हैं। इन चित्रों की स्वच्छता और कलात्मकता मानव द्वारा बनाए गए चित्रों से श्रेष्ठ होती है। संगीत तथा गीतों की रिकार्डिंग में भी कंप्यूटर का प्रयोग होने लगा है।

महिलाओं के लिए कंप्यूटर का प्रयोग काफी लाभकारी है। यूरोप में महिलाएं अपने अधिकतर गृह-कार्य इन्हीं की सहायता से कर रही हैं। आज मानव-जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जहाँ कंप्यूटर की उपयोगिता न हो। रेल और वायुयान यात्रा के लिए टिकटों के आरक्षण की सुविधा कंप्यूटर से सुलभ हो गई है। भारत में भी इसका उपयोग खुलकर होने लगा है। विशेषकर, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े-बड़े नगरों में रेलवे स्टेशनों पर निरंतर कंप्यूटर काम कर रहे हैं। इसी प्रकार से परीक्षा परिणाम, मौसम की जानकारी, चुनाव परिणाम, अनुवाद-कार्य, वैज्ञानिक-शोध आदि क्षेत्रों में कंप्यूटरों का प्रयोग काफी लाभकारी सिद्ध हो रहा है।

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45. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
अथवा
मेरा प्रिय नेता

संकेत : भूमिका, जन्म, प्रारंभिक शिक्षा, विदेश-गमन, दक्षिणी अफ्रीका के लिए प्रस्थान, स्वदेश आगमन, ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन, स्वतंत्रता प्राप्ति, महान बलिदान।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत के ही नहीं, अपितु संसार के महान पुरुष थे। वे आज के युग की महान विभूति थे। वे सत्य . और अहिंसा के अनन्य पुजारी थे और इन्हीं के प्रयोग से उन्होंने सदियों से गुलाम भारतवर्ष को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करवाया। संसार में यह एकमात्र उदाहरण है कि गांधी जी के सत्याग्रह के समक्ष अंग्रेज़ों को भी झुकना पड़ा। आने वाली पीढ़ियाँ निश्चय से गौरव के साथ उनका नाम याद करती रहेंगी।

इस युग-पुरुष का जन्म गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले में स्थित पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। करमचंद उनके पिता का नाम था जो राजकोट रियासत के दीवान थे। गांधी जी का बाल्यकाल राजकोट में व्यतीत हुआ। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो एक सती-साध्वी और धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। युवा गांधी पर अपनी माता के संस्कारों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा।

बालक मोहनदास की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। कक्षा में वे एक साधारण विद्यार्थी थे। वे अपने सहपाठियों से बहुत कम बोलते थे परंतु अपने शिक्षकों का पूरा आदर करते थे। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा स्थानीय विद्यालय से उत्तीर्ण की। तेरह वर्ष की अल्पायु में ही कस्तूरबा से उनका विवाह हो गया। गांधी जी आरंभ से ही सत्यप्रिय और मेहनती थे। वे कभी भी कोई बात छिपाते नहीं थे।

जिस समय युवा मोहनदास कानूनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश गए, उस समय वे एक पुत्र के पिता बन चुके थे। विदेश जाने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता के सामने प्रतिज्ञा की थी कि वे इंग्लैंड जाकर मांस और मदिरा का सेवन नहीं करेंगे। अपनी माता को दिए वचनों को उन्होंने पूरा पालन किया। इंग्लैंड में उन्होंने असंख्य बाधाओं का सामना किया। शाकाहारी भोजन के लिए उनको अनेक कष्ट झेलने पड़े। अंततः वकालत की शिक्षा पूरी करके ही वे विदेश से लौटे।

जब गांधी जी मुंबई में वकालत कर रहे थे तो वहीं से एक मुकद्दमे के संबंध में उनको दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा लेकिन वहाँ जाकर उनको पता लगा कि वहाँ पर बसे हुए भारतीयों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है। गांधी जी इसे सहन नहीं कर सके। उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत हुई। अतः उन्होंने सबसे पहले यहीं पर सत्याग्रह का प्रयोग किया। इसमें गांधी जी को पर्याप्त सफलता मिली। यहाँ गांधी जी ने नेशनल काँग्रेस की स्थापना भी की।

सन 1915 में गांधी जी भारत लौट आए। उस समय अंग्रेज़ों का दमन-चक्र जोरों पर था। रौलट एक्ट जैसा काला कानून लागू था। सन 1919 में जलियाँवाला बाग का विनाशकारी कांड हुआ, जिसने समूची मानव जाति को लज्जित कर दिया। धीरे-धीरे अंग्रेज़ों के अत्याचारों में और अधिक वृद्धि होने लगी परंतु यह वह युग था जबकि कुछ शिक्षित लोग ही काँग्रेस सदस्य थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उस समय प्रमुख नेता थे। काँग्रेस पार्टी की स्थिति अधिक मज़बूत न थी। कारण यह था कि काँग्रेस में गरम दल और नरम दल के कारण विभाजन था। जब गांधी जी ने काँग्रेस की बागडोर अपने हाथों में पकड़ी तो देश में एक नए इतिहास का सूत्रपात हुआ। सन 1920 गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। पुनः, सन 1928 में जब साइमन कमीशन का भारत में आगमन हुआ तो गांधी जी ने उसका डटकर सामना किया। इससे देशभक्तों को काफी प्रोत्साहन मिला। सन 1930 में नमक कानून तोड़ो आंदोलन और दांडी यात्रा ने तो अंग्रेज़ों की जड़ों को हिलाकर रख दिया।

सन 1942 में द्वितीय महायुद्ध का अंत हुआ। जब अंग्रेज़ दिए हुए वचन से पीछे हट गए तो गांधी जी ने “अंग्रेज़ो! भारत छोड़ो” का नारा लगाया। गांधी जी ने कहा कि यह मेरी अंतिम लड़ाई है। असंख्य भारतवासियों को जेलों में लूंस दिया गया।

गांधी जी ने भी अपने साथियों के साथ गिरफ्तारी दी। सारे देश में अशांति फैल गई। अंग्रेज़ सरकार भी घबरा गई लेकिन गांधी जी का सत्याग्रह आंदोलन निरंतर चलता रहा। वे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर डटे रहे।

अंततः 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। गांधी जी के अहिंसा आंदोलन के समक्ष अंग्रेज़ों को झुकना पड़ा परंतु जाते-जाते अंग्रेज़ फूट के बीज बो गए थे। परिणामस्वरूप भारत-पाक विभाजन हुआ। इस बँटवारे के कारण देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। प्रतिदिन भारत और पाकिस्तान में हिंदू और मुसलमान भेड़-बकरियों की तरह कटने लगे। गांधी जी ने स्थान-स्थान पर जाकर लोगों को समझाया और सांप्रदायिकता की इस आग को शांत किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उपवास भी रखा।

जब तक गांधी जी जीवित रहे, वे देश के उद्धार के लिए कार्य करते रहे। उन्होंने छुआछूत को जड़ से उखाड़ने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने अछूत कहे जाने वाले लोगों को ‘हरिजन’ की संज्ञा दी। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर अधिक बल दिया तथा खादी वस्त्रों के प्रचार के लिए भरसक प्रयास किया।

लेकिन कुछ भारतीय लोग ही गांधी जी की हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना के विरुद्ध थे। 30 जनवरी, 1948 को जब वे दिल्ली स्थित बिरला भवन में प्रार्थना सभा में आ रहे थे, तब नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उस समय उनके मुख से ‘हे राम!’ के शब्द निकले। उनकी मृत्यु का दुखद समाचार सुनकर सारा देश शोक-सागर में डूब गया। इस प्रकार से अहिंसा के इस महान पुजारी का अंत हो गया।

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46. मेरा प्रिय कवि/साहित्यकार
अथवा
महाकवि तुलसीदास

संकेत : भूमिका, जन्म एवं काल, प्रमुख रचनाएँ, विषय की व्यापकता एवं प्रबंध योजना, महान समन्वयवादी चिंतक, सच्चे राम-भक्त, कला-पक्ष।

साहित्य समाज का दर्पण है और लेखक युगद्रष्टा होता है। वह अपने आस-पास की परिस्थितियों से प्रेरित होकर साहित्य की रचना करता है। महाकवि ही श्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकते हैं। श्रेष्ठ साहित्य के तीन उद्देश्य होते हैं-सत्यं, शिवं एवं सुंदरं। भक्ति काल के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ऐसे ही युग प्रवर्तक एवं समन्वयवादी कवि थे जिन्होंने अपने साहित्य द्वारा समाज में आदर्शों की स्थापना की और हिंदू धर्म तथा जाति का उद्धार किया। मेरे प्रिय कवि महाकवि एवं रामभक्त तुलसीदास ही हैं। भारत में महात्मा बुद्ध के पश्चात यदि कोई दूसरा समन्वयकारी एवं युगद्रष्टा व्यक्ति हुआ है तो वह महाकवि तुलसीदास ही हैं। आज बड़े-बड़े राजाओं का साम्राज्य नष्ट हो चुका है लेकिन उस महाकवि का साम्राज्य आज भी विद्यमान है।

तुलसीदास का जन्म संवत 1554 में श्रावण सप्तमी के दिन बांदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण माता-पिता ने इनको त्याग दिया और पालन-पोषण के लिए एक दासी को दे दिया। पाँच वर्ष की आयु में उस दासी की मृत्यु हो गई और ये दर-दर भटकने लगे। तत्पश्चात, इनकी भेंट स्वामी नरहरिदास से हुई। वे इन्हें अयोध्या ले गए और उन्होंने इनका नाम ‘रामबोला’ रखा। बालक तुलसीदास दीक्षित होकर विद्याध्ययन करने लगे। काशी में 15 वर्षों तक रहकर इन्होंने वेदों आदि का समुचित अध्ययन किया। गोस्वामी की पत्नी का नाम रत्नावली था।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 37 मानी गई है, लेकिन नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित ‘तुलसी ग्रंथावली’ के अनुसार इनके बारह ग्रंथ ही प्रामाणिक हैं। ये हैं-रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, कवितावली, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, रामलला नहछू, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल तथा जानकी मंगल। गोस्वामी जी की कीर्ति का आधार स्तंभ तो ‘रामचरितमानस’ ही है। इस महाकाव्य का आधार ‘वाल्मीकि रामायण’ है।

तुलसीदास ने व्यापक काव्य-विषय ग्रहण किए हैं। कृष्णभक्त कवियों के समान उन्होंने जीवन के किसी अंग विशेष का वर्णन न करके उसके समग्र रूप को ग्रहण किया। उनकी रचनाओं में शृंगार, शांत, वीर आदि सभी रसों का परिपाक है। उनके द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ में धर्म, संस्कृति तथा काव्य सभी का आश्चर्यजनक समन्वय है। उनके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता प्रबंध योजना

है। उनकी लगभग सभी रचनाओं में कथासूत्र पाए जाते हैं। ‘रामचरितमानस’ की प्रबंध-पटुता तो सर्वश्रेष्ठ है। चार-चार वक्ताओं द्वारा वर्णित होने पर भी उसमें कहीं पर भी अस्पष्टता नहीं आने पाई। समूची कथा मार्मिक प्रसंगों से भरी पड़ी है। कथानक, वस्तु-वर्णन, व्यापार-वर्णन, भाव-प्रवणता और संवाद सभी में पूरा संतुलन है। राम-सीता का परस्पर प्रथम दर्शन, राम वन-गमन, दशरथ की मृत्यु, भरत का पश्चात्ताप, सीता हरण, लक्ष्मण मूर्छा आदि अनेक ऐसे मार्मिक स्थल हैं जिनके कारण ‘रामचरितमानस’ की प्रबंध योजना काफी प्रभावोत्पादक बन पड़ी है।

__गोस्वामी तुलसीदास एक महान समन्वयवादी चिंतक भी थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र के शुष्क एवं नीरस सिद्धांतों को भावमय बना दिया। उनके काव्य की महान उपलब्धि उनकी समन्वय भावना है। उन्होंने समाज में व्याप्त विषमता को मिटाकर उसमें एकरूपता उत्पन्न करने का प्रयास किया। धर्म, समाज, राजनीति, साहित्य प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने समन्वयवादी प्रवृत्ति को अपनाया। डॉ० हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने उनके बारे में उचित ही कहा है-“तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट् चेष्टा है। रामचरितमानस शुरु से आखिर तक समन्वय का काव्य है।”

तुलसीदास राम काव्यधारा के प्रधान कवि हैं। वस्तुतः उनकी रचनाओं के कारण ही राम काव्यधारा श्रेष्ठ काव्यधारा मानी जाती है। वे कवि होने के साथ-साथ सच्चे रामभक्त भी थे। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति की स्थापना की। वे अपने आपको दीन और राम को दयालु, स्वयं को भिखारी और भगवान को दानी घोषित करते हैं। तुलसी की भक्ति के कारण ही आज ‘रामचरितमानस’ प्रत्येक हिंदू घर में उपलब्ध है और स्थान-स्थान पर रामायण का पाठ होता है।

तुलसी के काव्य का आंतरिक पक्ष जितना उज्ज्वल है, उसका बाह्य पक्ष भी उतना ही श्रेष्ठ है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था। उन्होंने अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में काव्य रचनाएँ लिखीं। ‘रामचरितमानस’ में यदि अवधी का सुंदर प्रयोग है तो ‘विनय पत्रिका’ में साहित्यिक ब्रज भाषा का। कहीं-कहीं अरबी और फारसी शब्दों का भी सुंदर मिश्रण है। इनकी भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है। कुछ स्थानों पर प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों का भी सुंदर प्रयोग है। पदों की दृष्टि से तुलसी का क्षेत्र व्यापक है। ‘रामचरितमानस’ में अगर दोहा-चौपाई का प्रयोग है तो ‘कवितावली’ में छंदों की भरमार है। कवित्त, सवैया, दोहा, गीति आदि छंदों का सुंदर प्रयोग है। तुलसी के काव्य में अलंकारों का प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में है परंतु यह अलंकार प्रयोग पूर्णतया स्वाभाविक रूप में हुआ है।

47. अंतरिक्ष यात्री-कल्पना चावला

सकेत : भूमिका, जन्म एवं शिक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान की शिक्षा, प्रथम सफल अंतरिक्ष उड़ान, दूसरी और अंतिम उड़ान, उपसंहार।

भारतवर्ष महान पुरुषों और महिलाओं की भूमि है। यहाँ अनेक महान विभूतियों ने जन्म लेकर संसार में भारत के नाम को उज्ज्वल किया। कल्पना चावला भी उन्हीं में से एक महिला थी। आज के वैज्ञानिक इतिहास में उनका नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा रहेगा। वे भारत की ही नहीं बल्कि समूचे एशिया की प्रथम अंतरिक्ष महिला के रूप में जानी जाती हैं। आज भारत के प्रत्येक घर में उनका नाम बड़े आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है। बाल्यावस्था से ही उनके मन में सितारों तक पहुँचने का सपना था। स्कूली शिक्षा के काल में वे चाँद-सितारों और अंतरिक्ष के चित्र बनाती थीं। उनका सपना साकार हुआ और उन्होंने दो बार अंतरिक्ष की उड़ान भरी। कल्पना चावला का एकमात्र लक्ष्य था-अंतरिक्ष यात्री बनना लेकिन वे जीवंत स्वभाव की महिला थीं। भारत के शास्त्रीय संगीत से उन्हें अत्यधिक लगाव था।

कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के एक छोटे-से नगर करनाल में 1 जुलाई, 1961 को हुआ। उनके पिता का नाम श्री बनारसीदास चावला तथा माता का नाम श्रीमती संयोगिता देवी चावला है। कल्पना की दो बहनें और एक भाई हैं। अपने भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थीं। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा करनाल के स्थानीय विद्यालय टैगोर बाल निकेतन में प्राप्त की। दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात कल्पना ने प्री-इंजीनियरिंग की शिक्षा स्थानीय दयाल सिंह कॉलेज से प्राप्त की। बाद में कल्पना चावला ने चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से वैमानिक इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन 1982 में उन्होंने एम०एस-सी० करने के लिए अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1988 के लगभग कल्पना चावला का विवाह अमेरिका के नागरिक ज्यां पियरे हैरिस से हुआ। अपने पति तथा मित्रों से प्रेरणा प्राप्त कर वे अंतरिक्ष विज्ञान में अधिकाधिक रुचि लेने लगीं।

कल्पना चावला को बचपन से ही हवाई जहाज के मॉडल बनाने का बहुत शौक था। आरंभ से ही उनके मन में अंतरिक्ष यात्री . बनने का संकल्प था। कल्पना चावला ने पायलट का लाइसेंस 1988 से 1994 के बीच सान फ्रांसिस्को में रहते हुए प्राप्त किया था। बाद में उन्होंने कलाबाजी उड़ान भी सीखी। कल्पना चावला के कैरियर की शुरुआत नासा एमेस शोध केंद्र में हुई। कैलीफोर्निया में उन्होंने एक शोध वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया। 1994 में उन्हें नासा के लिए चुन लिया गया। यहाँ एक वर्ष तक कठोर परीक्षण प्राप्त करने के बाद वे अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुन ली गईं।

मार्च, 1995 में कल्पना चावला अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के 15वें समूह के उम्मीदवार के रूप में जॉनसन स्पेस सैंटर में भेज दी गईं। इसके बाद उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं हटाए। 1996 में कल्पना चावला ने वास्तविकता में छलांग लगाई और उन्हें मिशन विशेषज्ञ का दर्जा प्राप्त हुआ। 19 नवंबर, 1997 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान द्वारा उन्होंने अपनी प्रथम अंतरिक्ष उड़ान भरी। यह यान 17 दिन, 16 घंटे और 33 मिनट तक अंतरिक्ष में रहा। जब वे अपनी सफल उड़ान भरकर लौटीं तो उनके चेहरे पर सफलता की खुशी छाई हुई थी। इस उड़ान के बाद तो कल्पना चावला ने अपना समूचा जीवन ही अंतरिक्ष उड़ान विज्ञान को समर्पित कर दिया।

दूसरी बार कल्पना चावला को अंतरिक्ष यान कोलंबिया की शुद्ध उड़ान-एसटीएस-107 के लिए चुन लिया गया। इस उड़ान काल में उनके साथ छह अन्य वैज्ञानिक भी थे। वे अंतरिक्ष में 16 जनवरी, 2003 को गईं। 16 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद जब वे 1 फरवरी, 2003 को धरती की ओर लौट रही थीं, तब 25 लाख पुों वाली चमत्कारी उड़ान मशीन कोलंबिया अंतरिक्ष में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

टेक्सास-अरकंसास और लुसियाना के ऊपर कोलंबिया के अनेक टुकड़े बिखर गए और साहसी युवती कोलंबिया के विस्फोट में अपने छह अन्य साथियों के साथ इस संसार से विदा हो गई। कल्पना ने इस उड़ान में अंतरिक्ष में 760 घंटे बिताए तथा पृथ्वी के 252 चक्कर काटे। संभवतः विधाता को यह स्वीकार नहीं था कि यह युवती लौटकर फिर से भारत आती। कल्पना की कहानी दूसरे भारतीयों की सफलता की आम कहानियों की तरह नहीं थी। वीर नायिका की तरह अपना सपना पूरा करते हुए ही उसकी मृत्यु हुई लेकिन इस मृत्यु ने उसे राष्ट्रीय नायिका बना दिया।

यद्यपि कल्पना चावला को अमेरिका की नागरिकता प्राप्त थी तथापि उनके मन में अपने देश के प्रति अत्यधिक प्रेम . था। करनाल नगर के निवासियों, विशेषकर, टैगोर बाल निकेतन विद्यालय से उन्हें अत्यधिक प्यार था। यही कारण है कि करनाल के इस विद्यालय से प्रतिवर्ष दो विद्यार्थी नासा में आमंत्रित किए जाते हैं। भारत के बच्चों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा था-“भौतिक लाभ ही प्रेरणा के स्रोत नहीं होने चाहिएँ। ये तो आप आगे भी हासिल कर सकते हैं। मंजिल तक पहुँचने का रास्ता तलाशिए। सबसे छोटा रास्ता ज़रूरी नहीं कि सबसे अच्छा हो। मंजिल ही नहीं, उस तक का सफर भी अहमियत रखता है……….।”

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48. गणतंत्र दिवस
अथवा
गणतंत्र दिवस आयोजन

संकेत : भूमिका, स्वतंत्रता पूर्व स्थिति, भारत का गणतंत्र राज्य घोषित होना, राष्ट्र का पावन पर्व, दिल्ली में गणतंत्र, उपसंहार।

31 दिसंबर, 1928 को श्री जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटिश शासकों को चुनौती दी थी, “यदि ब्रिटिश सरकार हमें औपनिवेशिक स्वराज देना चाहे तो 31 दिसंबर, 1929 तक दे दे।” परंतु ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की इस इच्छा की पूर्ण अवहेलना कर दी। सन 1930 में लाहौर में काँग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ। श्री जवाहरलाल नेहरू इसके अध्यक्ष थे। रावी नदी के तट पर बहुत विशाल पंडाल बनाया गया था। उस अधिवेशन में 26 जनवरी, 1930 की रात को श्री नेहरू ने घोषणा की कि “अब हमारी मांग पूर्ण स्वतंत्रता है और हम स्वतंत्र होकर रहेंगे।”

उस दिन भारत के गाँव-गाँव और नगर-नगर में स्वतंत्रता की शपथ ली गई। जगह-जगह सभाएँ की गईं, जुलूस निकाले गए, करोड़ों भारतीयों के कंठों से एक साथ गर्जना हुई, “आज से हमारा लक्ष्य है-पूर्ण स्वाधीनता। जब तक हम पूर्ण स्वाधीन नहीं हो जाएँगे, तब तक निरंतर बलिदान देते रहेंगे।”

ब्रिटिश शासनकाल में 26 जनवरी, 1930 के बाद से लेकर प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन स्थान-स्थान पर सभाएँ करके लाहौर में रावी नदी के तट पर की गई पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा दोहराई जाती थी। इधर भारतीयों ने पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा की, उधर ब्रिटिश सरकार ने अपना दमन-चक्र जोरदार ढंग से चला दिया। लाठियों से स्वाधीनता-प्रेमियों के सिर फोड़े जाने लगे। कई जगह गोलियाँ चलाई गईं और देशप्रेमियों को भूना जाने लगा। कई नेताओं को जेलों में डाला जाने लगा परंतु भारतीय अपने पथ पर अडिग रहे। भयानक-से-भयानक यातनाएँ भी उन्हें अपने पथ से विचलित न कर सकीं। उसी अविचल देशभक्ति का परिणाम है कि आज हम स्वतंत्र हैं। हमारी भाषा, हमारी संस्कृति, हमारा धर्म और हमारी सभ्यता देश के स्वतंत्र वातावरण में साँस ले रहे हैं।

सन 1950 में जब भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया, तब यह विचार किया गया कि किस तिथि से इसे भारतवर्ष में लागू किया जाए। गहन विचार-विमर्श के पश्चात 26 जनवरी ही इसके लिए उपयुक्त तिथि समझी गई। अतः 26 जनवरी, 1950 को भारतवर्ष संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित कर दिया गया। देश का शासन पूर्ण रूप से भारतवासियों के हाथों में आ गया। प्रत्येक नागरिक देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को अनुभव करने लगा। देश की उन्नति तथा इसकी मानमर्यादा को प्रत्येक व्यक्ति अपनी उन्नति तथा मान-मर्यादा समझने लगा। भारत के इतिहास में वास्तव में यह दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

26 जनवरी हमारे राष्ट्र का एक पुनीत पर्व है। असंख्य बलिदानों की पावन स्मृति लेकर यह हमारे सामने उपस्थित होता है। कितने ही वीर भारतीयों ने देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को हँसते-हँसते चढ़ा दिया। कितनी ही माताओं ने अपनी गोद की शोभा, कितनी ही पत्नियों ने अपनी माँग का सिंदूर और कितनी ही बहनों ने अपना रक्षा-बंधन का त्योहार हँसते-हँसते स्वतंत्रता संग्राम को भेंट कर दिया। आज के दिन हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित करने के लिए अपने खून की आहुति दी थी।

गणतंत्र दिवस सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में इस दिन की शोभा अनुपम होती है। इस दिन की शोभा देखने के लिए देश के भिन्न-भिन्न राज्यों से लोग उमड़ पड़ते हैं। 26 जनवरी को इंडिया गेट के मैदान में जल, थल और वायु सेनाओं की टुकड़ियाँ राष्ट्रपति को सलामी देती हैं। 31 तोपें दागी जाती हैं। सैनिक वाद्य यंत्र बजाते हैं। राष्ट्रपति अपने भाषण में राष्ट्र को कल्याणकारी संदेश देते हैं। भिन्न-भिन्न प्रांतों की मनोहारी झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। रात को सारी राजधानी विद्युत् दीपों के प्रकाश से जगमगा उठती है।

देश के अन्य सभी राज्यों में भी इस प्रकार के पावन समारोहों का आयोजन किया जाता है। खेल, तमाशे, सजावट, सभाएँ, भाषण, रोशनी, कवि-गोष्ठियाँ, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते हैं। सरकार तथा जनता दोनों ही इस मंगल पर्व को मनाते हैं। सारे देश में प्रसन्नता और हर्ष की लहर दौड़ जाती है। यह पर्व हमारे राष्ट्रीय गौरव एवं स्वाभिमान का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन देश की विभिन्न राज्यों की झांकियाँ निकाली जाती हैं। ये झांकियाँ हमें अनेकता में एकता का संदेश देती हैं।

वास्तव में, 26 जनवरी एक महिमामयी तिथि है। इसके पीछे भारतीय आत्माओं के त्याग, तपस्या और बलिदान की अमर कहानी निहित है जो सदैव भावी संतान को अमर प्रेरणा देती रहेगी। भारतीय इतिहास में यह दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि वह इस पर्व को उल्लास तथा आनंद के साथ मनाए और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे परंतु स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम पारस्परिक भेदभाव को भूलकर सहयोग और एकता में विश्वास करें। यदि हम अज्ञान के अंधकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण मार्ग पर अग्रसर होंगे, तभी हम इस महिमामयी तिथि की मान-मर्यादा दृढ़ रख सकेंगे।

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49. ऋतुराज बसंत
अथवा
बसंत पंचमी

संकेत : ऋतुओं का राजा, सुहावना मौसम, प्राणी जगत में उल्लास, बसंत पंचमी, ऐतिहासिक महत्त्व।

भारत अपनी प्राकृतिक शोभा के लिए प्रसिद्ध है। इसे ऋतुओं का देश कहा जाता है। भारतवासी धन्य हैं, जो उस धरती पर रहते हैं, जहाँ षऋतुओं का नियमित क्रम सदा गतिशील रहता है। बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर-इन सबका अपना महत्त्व है तथा इनका चक्र स्वच्छंद गति से चलता रहता है। ये ऋतुएँ बारी-बारी से आती हैं, अपनी छटा दिखाती हैं तथा भारत माँ का शृंगार करती हैं और चली जाती हैं। सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी शोभा है, परंतु बसंत ऋतु की शोभा सबसे निराली है। ऋतुओं में इसका स्थान सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।

बसंत ऋतु का आगमन शिशिर और पतझड़ के बाद होता है। वैसे तो बसंत ऋतु फाल्गुन मास से प्रारंभ हो जाती है, किंतु इसके वास्तविक महीने चैत्र और वैशाख हैं। 15 फरवरी से 15 अप्रैल तक का समय बसंत काल कहलाता है। इस समय मौसम बहुत सुहावना होता है, न अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक सर्दी। प्रकृति के प्रत्येक अंग पर बसंत का प्रभाव दिखाई देने लगता है। पौधों, वृक्षों, लताओं आदि पर नए-नए पत्ते निकलते हैं, सुंदर फूल खिलने लगते हैं, रंग-बिरंगी तितलियाँ उड़ने लगती हैं, आम बौराते हैं और अपनी सुगंध से वातावरण को महका देते हैं। पीली-पीली सरसों फूलने लगती है। बसंत ऋतु प्रकृति के लिए वरदान लेकर आती है। पृथ्वी का कण-कण एक नए आनंद, उत्साह और संगीत का अनुभव करता है।

प्राणी जगत में भी यह ऋतु उल्लास और उमंग का संचार करती है। पशु-पक्षी जोश, उत्साह और प्रेम से भर जाते हैं। कोयलें, चकवे और भौरे विशेष रूप से मतवाले हो उठते हैं। कोयल का मधुर स्वर अमराइयों में गूंजने लगता है। मनुष्य जाति उमंग से भर जाती है। किसान का मन अपनी लहलहाती खेती देखकर झूमने लगता है। कवि तथा कलाकार इस ऋतु से विशेष प्रभावित होते हैं। मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी इस ऋतु का अच्छा प्रभाव पड़ता है। शरीर में नए रक्त का संचार होता है तथा स्वास्थ्य की उन्नति होती है।

बसंत ऋतु में दिशाएँ साफ हो जाती हैं, आकाश निर्मल हो जाता है। चारों ओर प्रसन्नता छा जाती है। जड़ में भी चेतना आ जाती है। सूर्य की तीव्रता भी अधिक नहीं होती। दिन-रात एक समान होते हैं। इन दिनों वायु प्रायः दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। यह वायु दक्षिण की ओर से आती है, इसलिए इसे ‘दक्षिण-पवन’ कहते हैं। यह शीतल, मंद, मतवाली और सुगंधित होती है। कवि केदारनाथ अग्रवाल ने झूमती हुई बसंती हवा का वर्णन इन शब्दों में किया है
“हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ,
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ,
बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला।”
बसंत ऋतु का आगमन गुरु गोबिंद सिंह जी के उन अबोध वीर बालकों की याद दिलाता है, जिनके खून से चमकौर के दुर्ग की मिट्टी आज भी रंगी दिखाई देती है। इन वीरों की याद में फाल्गुन की पंचमी के दिन बसंत पंचमी का मेला लगता है। बसंत-पंचमी इस ऋतु का प्रमुख त्योहार है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और चारों ओर सुख एवं प्रसन्नता का वातावरण व्याप्त हो जाता है। इस दिन प्रातः पौ फटने से लेकर रात गए तक लोग अपने घरों पर और मैदानों में जाकर पतंग उड़ाते हैं। पूरा आकाश पतंगों से भरा होता है। होली भी बसंत ऋतु का त्योहार है। इस दिन अबीर और गुलाल तथा रंगों से भी पिचकारियाँ लोगों के तन-मन को रंग देती हैं। सारा वातावरण रंगीन बन जाता है। सभी आनंद में मगन हो जाते हैं।

बसंत पंचमी के दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का जन्म हुआ। इसलिए इस दिन सरस्वती पूजन भी किया जाता है। इस पवित्र दिन वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ था। वीर हकीकत राय के बलिदान के कारण इस दिन का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। वीर हकीकत राय का बलिदान हमें अपने धर्म पर अटल और अडिग रहने का संदेश देता है। सभी धर्म पवित्र हैं तथा प्रेरणा देते हैं कि किसी भी धर्म के प्रति घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए। हकीकत राय अपने धर्म के प्रति अडिग रहे और शहीद हो गए। उनकी याद में प्रतिवर्ष मेला लगता है। वीर हकीकत के बलिदान को याद करके एक ओर तो दुःख होता है, परंतु साथ ही सभी धर्मों को एक समान मानने वालों का सीना गर्व से फूल जाता है।

इस प्रकार बसंत ऋतु प्रकृति का एक वरदान है। इसे मधुमास भी कहा जाता है। इसका सौंदर्य अद्भुत व अद्वितीय है। कहा भी गया है
‘आ आ प्यारी बसंत सब ऋतुओं से प्यारी। तेरा शुभागमन सुनकर फूली केसर क्यारी।।’

50. समाचार-पत्रों का महत्त्व

संकेत : भूमिका, भारत में समाचार-पत्र का आरंभ, जन-जागरण का माध्यम, समाचार-पत्रों के लाभ, समाचार पत्रों से हानियाँ, उपसंहार।

विज्ञान ने विश्व को बहुत छोटा बना दिया है। आवागमन के साधनों के कारण स्थानीय दूरियाँ भी समाप्त हो चुकी हैं लेकिन रेडियो, दूरदर्शन और समाचार-पत्रों ने सारे संसार को एक परिवार बना दिया है। अब हम अपने घर में बैठे-बैठे दूर देशों की ख़बरें पढ़ लेते हैं तथा सुन लेते हैं। हमें दूसरे देशों अथवा राज्यों में जाना नहीं पड़ता। हमें घर बैठे ही संसार के सारे समाचार मिल जाते हैं। कहाँ क्या घटित होता है अथवा किस देश की गतिविधियाँ क्या हैं हमें इसका पता समाचार-पत्रों से ही लगता है। आज के जीवन में जितना महत्त्व रोटी और पानी का है, उतना ही समाचार-पत्र का भी है। प्रातःकाल उठते ही हमारा ध्यान सबसे पहले समाचार-पत्र की ओर जाता है। जिस दिन भी हम समाचार-पत्र नहीं पढ़ते, हमारा वह दिन सूना-सूना प्रतीत होता है।

भारत में सबसे पहले जिस समाचार-पत्र का प्रकाशनं आरंभ हुआ था, उसका नाम था-‘समाचार-दर्पण’ । बाद में ‘उदंत मार्तंड’ का प्रकाशन आरंभ हुआ। तत्पश्चात, 1850 में राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिंद’ ने ‘बनारस अखबार’ निकाला। इसके बाद तो भारत में पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़-सी आ गई। ज्यों-ज्यों मुद्रण-कला का विकास होने लगा, त्यों-त्यों समाचार-पत्रों की संख्या भी बढ़ने लगी।

आज देश के प्रत्येक भाग में समाचार-पत्रों का प्रकाशन हो रहा है। कुछ ऐसे राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्र भी हैं जिनका प्रकाशन नियमित रूप से हो रहा है। दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी हिंदी भाषा में प्रकाशित कुछ प्रसिद्ध समाचार-पत्र हैं। इसी प्रकार से अंग्रेज़ी में The Tribune, The Hindustan Times, Times of India, Indian Express आदि समाचार-पत्र भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं परंतु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि आज समाचार-पत्रों का उद्योग एक स्थानीय उद्योग बन चुका है, जिससे लाखों लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

समाचार-पत्र केवल समाचार ही नहीं पहुँचाते, बल्कि ये जन-जागरण का भी माध्यम हैं। ये मानव-जाति को समीप लाने का भी काम करते हैं। जिन देशों में लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी है, वहाँ इनका विशेष महत्त्व है। ये लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित कराते हैं। समाचार-पत्र सरकार के उन कामों की कड़ी आलोचना करते हैं जो देश के लिए या जनसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हैं। प्रसन्नता की बात यह है कि दो-चार समाचार-पत्रों को छोड़कर शेष सभी अपने दायित्व को अच्छी प्रकार से निभा रहे हैं। आपातकालीन स्थिति में हमारे देश के समाचार-पत्रों ने अच्छी भूमिका निभाई और अन्याय तथा अत्याचार का डटकर विरोध किया।

समाचार-पत्र समाज के लिए लाभकारी हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। ये संसार के लोगों में आपसी भाईचारे और मानवता की भावना उत्पन्न करते हैं, साथ ही, सामाजिक रूढ़ियों, कुरीतियों और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। यही नहीं, ये लोगों में देशप्रेम की भावना भी उत्पन्न करते हैं। ये व्यक्ति की स्वाधीनता और उसके अधिकारों की भी रक्षा करते हैं। चुनाव के दिनों में समाचार-पत्रों की भूमिका और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। आज संसार में किसी भी प्रकार की शासन-पद्धति क्यों न हो लेकिन समाचार-पत्रों ने ईमानदारी के साथ अपनी भूमिका निभाई है।

अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन के विरुद्ध समाचार-पत्रों ने ही जनमत तैयार किया था। इसी प्रकार से अनेक समाचार-पत्रों के संपादकों और पत्रकारों ने अन्याय का विरोध करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया। ‘पंजाब केसरी’ के संपादक लाला जगत नारायण का बलिदान आज भी हमारे मन में उनकी याद को ताज़ा करता है। यही नहीं, समाचार-पत्र विज्ञापन का भी सशक्त माध्यम हैं। उपभोग की विभिन्न वस्तुओं के विज्ञापन इनमें ही छपते हैं। विभिन्न नौकरियों के विज्ञापन भी इनमें छपते रहते हैं। इसी प्रकार से शैक्षणिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दृष्टियों से भी समाचार-पत्रों का काफी महत्त्व है।

समाचार-पत्रों से लाभ तो अनेक हैं परंतु कुछ हानियाँ भी हैं। समाचार-पत्र पूरे समाज को प्रभावित करते हैं। अतः कभी-कभी ये झूठे और बेबुनियादी समाचार छापने लग जाते हैं। कभी-कभी ये सच्चाई को तोड़-मरोड़कर छाप देते हैं। इसी प्रकार से सांप्रदायिकता का विष फैलाने में भी कुछ समाचार-पत्र भाग लेते हैं। समाज को लूटने वाले और प्रभावशाली लोगों के दबाव में आकर वे उनके विरुद्ध कुछ नहीं लिखते। इससे समाज में भ्रष्टाचार और अन्याय को बल मिलता है। कुछ समाचार-पत्र पूँजीपतियों की संपत्ति हैं।

अतः उनसे न्याय, मंगल और सच्चाई की तो आशा ही नहीं की जा सकती। कुछ संपादक और संवाददाता अमीरों तथा राजनीतिज्ञों के हाथों में बिककर उलटे-सीधे समाचार छापकर जनता को गुमराह करते हैं।

जो वस्तु जितनी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, उसका दायित्व भी उतना ही अधिक होता है। समाचार-पत्र स्वतंत्र, निर्भीक, निष्पक्ष, सत्य के पुजारी और निरंतर जागरूक हों, यह आवश्यक है। ये जनसाधारण की वाणी हैं। ऐसी स्थिति में उनके कुछ कर्तव्य भी हैं। समाज में फैले हुए अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अधर्म का विरोध करना समाचार-पत्रों का ही दायित्व है। इसी प्रकार से रूढ़ियों, कुप्रथाओं और कुरीतियों का उन्मूलन करने में भी समाचार-पत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में समाचार-पत्रों का अत्यधिक महत्त्व है।

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51. नैतिक शिक्षा का महत्त्व

संकेत : भूमिका, अंग्रेज़ी शिक्षण पद्धति का प्रारंभ, प्राचीन शिक्षा-पद्धति, नैतिक शिक्षा का अर्थ, नैतिक शिक्षा की आवश्यकता, उपसंहार।

मानव जन्म से ही सुख और शांति के लिए प्रयास करता आया है। अपनी उन्नति के लिए वह सृष्टि के आरंभ से ही प्रयत्नशील है, परंतु उसे पूर्ण शांति शिक्षा द्वारा ही प्राप्त हुई है। शिक्षा का अस्त्र अमोघ है। इससे ही मानव की सामाजिक और नैतिक उन्नति हुई और वह आगे बढ़ने लगा। मानव को अनुभव होने लगा कि शिक्षा के बिना वह पशुतुल्य है। शिक्षा ही मानव को उसके कर्तव्यों से परिचित कराती है, उसे सही अर्थों में इंसान बनाती है और उसे अपना तथा समाज का विकास करने का अवसर प्रदान करती है।

मानव की सभी शक्तियों के सर्वतोन्मुखी विकास का दूसरा नाम शिक्षा है। इससे मानवीय गरिमा और व्यक्तित्व का विकास होता है। गांधी जी ने शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा है, “शिक्षा का अर्थ बच्चे की सभी शारीरिक, मानसिक व नैतिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास है।” दुर्भाग्य से भारत में शिक्षा अंग्रेज़ों की विरासत है। अंग्रेज़ भारत को अपना उपनिवेश समझते थे। उन्होंने भारतीयों को क्लर्क और मुंशी बनाने की चाल चली। लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी शिक्षा-प्रणाली के संदर्भ में कहा था-“मुझे विश्वास है कि इस शिक्षा योजना से भारत में एक ऐसा शिक्षित वर्ग बन जाएगा जो रक्त और रंग से तो भारतीय होगा पर रुचि, विचार, वाणी और मस्तिष्क से अंग्रेज़ी।” इस शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को केवल ‘बाबू’ बना दिया। उन्हें भारतीय संस्कृति से तो दूर रखा ही, अंग्रेज़ी मानसिकता को उनके भीतर गहराई तक पहुंचा दिया। यह दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्रता के पश्चात भी हमारे यहाँ इसी प्रणाली का वर्चस्व बना हुआ है।

प्राचीन ऋषियों एवं विचारकों ने यह घोषणा की कि शिक्षा मानव वृत्तियों के विकास तथा आत्मिक शांति के लिए परमावश्यक है। शिक्षा मानव की बुद्धि को परिष्कृत एवं परिमार्जित करती है। शिक्षा से मानव में सत्य और असत्य का विवेक जागृत होता है। भारतीय शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को पूर्ण ज्ञान प्राप्त कराना था, उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर अग्रसर करना था और उसमें संस्कारों को उत्पन्न करना था। अतः प्राचीन शिक्षा-पद्धति में नैतिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। प्राचीन काल में यह शिक्षा नगर के कोलाहल और कलरव से दूर सघन वनों में स्थित महर्षियों के गुरुकुलों और आश्रमों में दी जाती थी। छात्र पूरे पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ तथा गुरु के चरणों की सेवा करता हुआ विधिवत विद्याध्ययन करता था। इन पवित्र आश्रमों में विद्यार्थी की सर्वांगीण उन्नति पर ध्यान दिया जाता था। उसे अपनी बहुमुखी प्रतिभा के विकास का अवसर मिलता था। विज्ञान, चिकित्सा, नीति, युद्ध-कला, वेद तथा शास्त्रों का सम्यक अध्ययन करके विद्यार्थी पूर्ण रूप से विद्वान होकर तथा योग्य नागरिक बनकर अपने घर लौटता था।

अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि नैतिक शिक्षा है क्या ? नैतिक शब्द नीति में इक् प्रत्यय जुड़ने से बना है। इसका अर्थ है, नीति संबंधी शिक्षा। नैतिक शिक्षा का अर्थ यह है कि विद्यार्थियों को उदारता, न्यायप्रियता, कठोर परिश्रम, कृतज्ञता, सत्यभाषण, सहनशीलता, इंद्रिय निग्रह, विनम्रता, प्रामाणिक आदि सद्गुणों की शिक्षा दी जाए। आज स्वतंत्र भारत में सच्चरित्रता की बड़ी कमी है। सरकारी, और गैर-सरकारी सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, अवसरवादिता तथा हिंसा हमारे जीवन में विष घोल रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यही है कि हमारे स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। विद्यार्थी को वाणिज्य और विज्ञान की शिक्षा तो दी जाती है, तकनीकी शिक्षण की भी व्यवस्था है लेकिन उसे सही अर्थों में मानव बनना नहीं सिखाया जाता।

कर्तव्यपालन, विनम्र भाव, संतोष, सादगी, सद्व्यवहार और परोपकार की शिक्षा नहीं दी जाती। यही तो मानव की अमूल्य संपत्ति है जिसके समक्ष धन-संपत्ति आदि तुच्छ हैं। इन्हीं से राष्ट्र का निर्माण होता है और इन्हीं से देश सुदृढ़ होता है।

शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य बनाना, उसमें आत्मनिर्भरता की भावना उत्पन्न करना, देशवासियों का चरित्र निर्माण करना तथा मनुष्य को परम पुरुषार्थ की प्राप्ति कराना है परंतु वर्तमान शिक्षा-प्रणाली से इस प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं हो रहा, यह तो उदरपूर्ति का साधन मात्र बनकर रह गई है। नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास हो रहा है। श्रद्धा जैसी कोई भावना रही ही नहीं है। गुरुजनों का आदर नहीं रहा और माता-पिता का सम्मान नहीं रहा। विद्यार्थी वर्ग तो क्या समूचे शिक्षित समाज में अराजकता फैली हुई है। ऐसी स्थिति में हमारे मन में यह प्रश्न स्वतः उत्पन्न होता है कि हमारी शिक्षण-व्यवस्था में क्या कमी है। शिक्षा शास्त्रियों का एक वर्ग इस बात पर बार-बार बल देता रहा है कि हमारी शिक्षा-प्रणाली में नैतिक शिक्षा के लिए भी स्थान होना चाहिए। कुछ धर्मगुरुओं और धार्मिक महात्माओं ने भी इस बात पर बल दिया है कि नैतिक शिक्षा के बिना हमारी शिक्षा-प्रणाली अधूरी है।

आज के भौतिकवादी युग में नैतिक शिक्षा नितांत आवश्यक है। इसी शिक्षा के फलस्वरूप ही राष्ट्र का सही अर्थों में निर्माण हो सकता है। विशेषकर, आज के युवक-युवतियों के सर्वांगीण विकास के लिए नैतिक शिक्षा को लागू करना ज़रूरी है। इस शिक्षा द्वारा ही सच्चे एवं कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों का विकास हो सकता है।

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52. भूकंप : एक प्राकृतिक आपदा

सकेत : भूमिका, भूकंप का अर्थ, भूकंप से ग्रस्त क्षेत्र, भूकंप का तांडव नाच, उपसंहार।

मानव आदि युग से प्रकृति के साहचर्य में रहता आया है। प्रकृति के प्रांगण में मानव को कभी माँ की गोद का सुख मिलता है तो कभी वही प्रकृति उसके जीवन में संकट बनकर भी आती है। बसंत की सुहावनी हवा के स्पर्श से जहाँ मानव पुलकित हो उठता है तो वहीं उसे ग्रीष्म ऋतु की जला देने वाली गर्म हवाओं का सामना भी उसे करना पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्य को तेज आँधियों, अतिवृष्टि, बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ता है।

‘भूकंप’ का अर्थ है भू का काँप उठना अर्थात् पृथ्वी का डाँवाडोल होकर अपनी धुरी से हिलकर और फटकर अपने ऊपर विद्यमान जड़ और चेतन प्रत्येक प्राणी और पदार्थ को विनाश की चपेट में ले लेना तथा सर्वनाश का दृश्य उपस्थित कर देना। जापान में तो अकसर भूकंप आते रहते हैं जिनसे विनाश के दृश्य उपस्थित होते हैं। यही कारण है कि वहाँ लकड़ी के घर बनाए जाते हैं। भारतवर्ष में भी भूकंप के कारण अनेक बार विनाश के दृश्य उपस्थित हुए हैं। पूर्वजों की जुबानी सुना है कि भारत के कोटा नामक (पश्चिम सीमा प्रांत, अब पाकिस्तान में स्थित एक नगर) स्थान पर विनाशकारी भूकंप आया। यह भूकंप इतनी तीव्र गति से आया था कि नगर तथा आस-पास के क्षेत्रों के हजारों घर-परिवारों का नाम तक भी बाकी नहीं रहा था।

विगत वर्षों में गढ़वाल, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में विनाशकारी भूकंप आया था जिससे वहाँ जन-जीवन तहस-नहस हो गया था। पहले गढ़वाल के क्षेत्र में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। वह एक पहाड़ी क्षेत्र है, जहाँ भूकंप के झटकों के कारण पहाड़ियाँ खिसक गई थीं, उन पर बने मकान भी नष्ट हो गए थे। हजारों लोगों की जानें गई थीं। वहाँ की विनाशलीला से विश्व भर के लोगों के दिल दहल उठे थे। उस विनाशलीला को देखकर मन में विचार उठते हैं कि प्रकृति की लीला भी कितनी अजीब है। वह मनुष्य को बच्चों की भाँति अपनी गोद में खिलाती हुई एकाएक पूतना का रूप धारण कर लेती है। वह मनुष्य के घरों को बच्चों के द्वारा कच्ची मिट्टी के बनाए गए घरौंदों की भाँति तोड़कर बिखरा देती है और मनुष्यों को मिट्टी के खिलौनों की भाँति कुचल डालती है। गढ़वाल के क्षेत्र में भूकंप के कारण वहाँ का जन-जीवन बिखर गया था। कुछ समय के लिए तो वहाँ का क्षेत्र भारतवर्ष के अन्य क्षेत्रों से कट-सा गया था।

इसी प्रकार महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में आए भूकंप के समाचार मिले। यह भूकंप इतना भयंकर और विशाल था कि धरती में जगह-जगह दरारें पड़ गईं। हजारों लोगों की जानें चली गईं। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। सरकार की ओर से पहुंचाई जाने वाली सहायता के अतिरिक्त अनेक सामाजिक संस्थाओं और विश्व के अनेक देशों ने भी संकट की इस घड़ी में वहाँ के लोगों की हर प्रकार से सहायता की, किंतु उनके अपनों के जाने के दुःख को कम न कर सके।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और समय ने वहाँ के लोगों के घाव भर दिए। वहाँ का जीवन सामान्य हुआ ही था कि 26 जनवरी, 2003 को प्रातः आठ बजे गुजरात में विनाशकारी भूकंप ने फिर विनाश का तांडव नृत्य कर डाला। वहाँ रहने वाले लाखों लोग भवनों के मलबे के नीचे दब गए थे। मकानों के मलबे के नीचे दबे हुए लोगों को निकालने का काम कई दिनों तक चलता रहा। कई लोग तो 36 घंटों के बाद भी जीवित निकाले गए थे। वहाँ भूकंप के झटके कई दिनों तक अनुभव किए गए थे। इस प्राकृतिक प्रकोप की घटना से विश्वभर के लोगों के दिल दहल उठे थे। कई दिनों तक चारों ओर रुदन की आवाजें सुनाई देती रहीं। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्य अपने साधनों के अनुरूप समान रूप से सहानुभूति और सहृदयता दिखा रहे थे तथा पीड़ितों को राहत पहुँचा रहे थे।

यह भूकंप कितना भयानक था इसका अनुमान वहाँ पर हुए विनाश से लगाया जा सकता है। वहाँ के लोगों ने बहुत हिम्मत से काम लिया और अपना कारोबार फिर जमाने में जुट गए। लोग अभी प्रकृति की भयंकर आपदा से उभर ही रहे थे कि 8 अक्तूबर, 2005 को कश्मीर और उससे लगते पाकिस्तान के क्षेत्र में भयंकर भूकंप आया। संपूर्ण क्षेत्र की धरती काँप उठी थी। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण पहाड़ों पर बसे हुए गाँव-के-गाँव तहस-नहस हो गए। साथ ही ठंड सर्दी के प्रकोप ने वहाँ के लोगों को ओर भी मुसीबत में डाल दिया। कड़कती सर्दी में वहाँ के लोगों को खुले मैदानों में रहना पड़ा। सरकार ने हैलीकाप्टरों व अन्य साधनों से वहाँ के लोगों की सहायता के लिए सामान पहुँचाया। भारतीय क्षेत्र की अपेक्षा पाकिस्तान क्षेत्र में अत्यधिक हानि हुई। लाखों लोगों को जान से हाथ धोने पड़े। प्राणियों को जन्म देने वाली और उनकी सुरक्षा करने वाली प्रकृति माँ ही उनकी जान की दुश्मन बन गई थी।

प्राकृतिक प्रकोप के कारण पीड़ित मानवता के प्रति हमें सच्ची सहानुभूति रखनी चाहिए और सच्चे मन से हमें उनकी सहायता करनी चाहिए। जिनके प्रियजन चले गए, हमें उनके प्रति सद्व्यवहार एवं सहानुभूति दिखाते हुए उनके दुःख को कम करना चाहिए। उनके साथ खड़े होकर उन्हें धैर्य बँधाना चाहिए। यही उनके लिए सबसे बड़ी सहायता होगी।

कितनी अजीब है यह प्रकृति और कैसे अनोखे हैं उसके नियम, यह समझ पाना बहुत कठिन कार्य है। भूकंप के दृश्यों को देखकर आज भी एक सनसनी-सी उत्पन्न हो जाती है। किन्तु प्रकृति की अजीब-अजीब गतिविधियों के साथ-साथ मानव की हिम्मत और साहस की भी प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता कि वह प्रत्येक प्राकृतिक आपदा का सदा ही साहसपूर्वक मुकाबला करता आया है।

53. प्राकृतिक प्रकोप : सुनामी लहरें

प्रकृति का मनोरम रूप जहाँ मनुष्य के विकास के लिए सदा सहायक है, वहाँ भयंकर रूप उसके विनाश का कारण भी बनता रहा है। मानव जहाँ आदिकाल से प्रकृति की गोद में खेलकूद कर बड़ा होता है, वही गोद कभी-कभी उसको निगल भी जाती है। अतिवृष्टि (अत्यधिक वषा), बाढ़, भूकंप, समुद्री तूफान, आँधी आदि प्राकृतिक प्रकोप के विभिन्न रूप हैं। 26 दिसंबर, 2004 को समुद्र में उठी भयंकर लहरें भी विनाशकारी प्राकृतिक प्रकोप था। महाविनाशकारी ‘सुनामी’ की उत्पत्ति भी वास्तव में समुद्रतल में भूकंप आने से होती है। समुद्र के भीतर भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या भू-स्खलन के कारण यदि बड़े स्तर पर पृथ्वी की सतहें (प्लेटें) खिसकती हैं तो इससे सतह पर 50 से 100 फुट ऊँची लहरें, 800 कि०मी० प्रति घंटे की तीव्र गति से तटों की ओर दौड़ने लग जाती हैं। पूर्णिमा की रात्रि को तो ये लहरें और भी भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। 26 दिसंबर को भूकंप के कारण उठी इन लहरों ने भयंकर रूप धारण करके लाखों लोगों की जाने ले ली और अरबों की संपत्ति को नष्ट कर डाला।

वस्तुतः ‘सुनामी’ शब्द जापानी भाषा का है। जहाँ अत्यधिक भूकंप आने के कारण वहाँ के लोगों को बार-बार प्रकृति के इस प्रकोप का सामना करना पड़ता है। हिंद महासागर के तल में आए भूकंप के कारण ही 26 दिसंबर को समुद्र में भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुई थीं। इस सुनामी तूफान ने चार अरब वर्ष पुरानी पृथ्वी में ऐसी हलचल मचा दी कि इंडोनेशिया, मालद्वीप, श्रीलंका, मलेशिया, अंडमान, निकोबार, तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, केरल आदि सारे तटीय क्षेत्रों पर तबाही का नग्न तांडव हुआ। मछलियाँ पकड़कर आजीविका कमाने वाले कई हजार मछुआरे इस भयंकर सुनामी लहरों की चपेट में आकर जीवन से हाथ धो बैठे। अंडमान-निकोबार द्वीप समूहों में स्थित वायु-सेना के अड्डे को भी भयंकर क्षति पहुँची तथा सौ से अधिक वायु-सेना के जवान, अधिकारी वर्ग और उनके परिजन काल के ग्रास बन गए। पोर्ट ब्लेयर हवाई पट्टी को क्षति पहुँची। उसकी पाँच हजार फीट की पट्टी सुरक्षित होने से राहत पहुँचाने वाले 14 विमान उतारे गए। इस संकट के समय में भारतीय विमानों को श्रीलंका और मालदीव के लोगों की सहायता के लिए भेजा गया। कई मीटर ऊँची सुनामी लहरों ने निकोबार में ए०टी०सी० टावर को भी ध्वस्त कर डाला था, किंतु तत्काल सचल ए०टी०सी० टावर की व्यवस्था कर ली गई थी।

यदि पुराने इतिहास पर दृष्टि डालकर देखा जाए तो पता चलेगा कि यह समुद्री तूफान व बाढ़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन इराक में आज से लगभग छह हजार वर्ष पूर्व आए समुद्री तूफान और बाढ़ से हुई तबाही के प्रमाण मिलते हैं। बाइबल और कुरान शरीफ में भी विनाशकारी तूफानों का वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवद्पुराण’ में भी प्रलय का उल्लेख मिलता है। उसमें बताया गया है कि जब प्रलय से सृष्टि का विनाश हो रहा था तब मनु भगवान् ने एक नौका पर सवार होकर सभी प्राणियों के एक-एक जोड़े को बचा लिया था। भले ही यह वर्णन कथा के रूप में कहा गया है, किंतु इससे यह सिद्ध होता है कि समुद्र में तूफान आदिकाल से आते रहे हैं जिनका सामना मनुष्य करता आया है। इतना ही नहीं, भूकंप और समुद्री तूफानों ने पृथ्वी पर अनेक परिवर्तन भी कर दिए हैं। इन्हीं ने नए द्वीपों व टापुओं की रचना भी की है।

भारत में प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी। इसके आज भी प्रमाण मिलते हैं। इसी प्रकार वैज्ञानिक विश्व के अन्य स्थानों की परिवर्तित स्थिति का कारण समुद्री तूफानों व भूकंपों को मानते हैं। यू०एस० जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञ केन हडनर के अनुसार सुमात्रा द्वीप से 250 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में समुद्र-तल के नीचे आए, इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9 के लगभग थी। यह भूकंप इतना शक्तिशाली था कि इसने कई छोटे-बड़े द्वीपों को 20-20 मीटर तक अपने स्थान से हिलाकर रख दिया। विद्वानों का यह भी मत है कि यदि भारत अथवा एशिया के क्षेत्र में कहीं भी महासागर की तलहटी में होने वाली भूगर्भीय हलचलों के आकलन की चेतावनी प्रणाली विकसित होती तो इस त्रासदी से होने वाली जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता था।

यह बात भी सही है कि प्राकृतिक प्रकोपों को रोक पाना मनुष्य व उसके साधनों के वश में नहीं है, फिर भी यथासंभव सूचना देकर बचने की कुछ व्यवस्था की जा सकती है। 26 दिसंबर, 2004 को सुनामी समुद्री भूकंप भारतीयों के लिए एक नया अनुभव है। भारतीय मौसम विभाग के सामने अन्य महासागरों में उठी सुनामी लहरों से हुई जान-माल की हानि के उदाहरण थे। किंतु भारतीय मौसम विभाग समुद्री भूकंप की सूचना होते हुए भी यह कल्पना तक नहीं कर सका कि सुनामी तरंगों से भारतीय तटीय क्षेत्र की दशा कैसी हो सकती है।

भारत में सुनामी तूफान से हुए विनाश को देखकर विश्वभर के लोगों के हृदय दहल उठे थे। अतः उस समय हम सबका कर्तव्य है कि हम तन, मन और धन से ध्वस्त लोगों के परिवार के साथ खड़े होकर उनकी सहायता करें। इसमें संदेह नहीं कि विश्व के अनेक देशों व संस्थाओं ने सुनामी से पीड़ित लोगों की धन से सहायता की है, किंतु इससे उनके अपनों के जाने का गम तो दूर नहीं किया जा सकता। हमें उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और उनका धैर्य बँधाना चाहिए।

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54. व्यायाम का महत्त्व

संकेत : भूमिका, व्यायाम की आवश्यकता, व्यायाम के लाभ, व्यायाम के प्रकार, व्यायाम और खेल-कूद, व्यायाम और योगाभ्यास, उपसंहार।

एक स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन का पूर्ण आनन्द ले सकता है। अगर आदमी का शरीर स्वस्थ नहीं है तो जीवन की सभी प्रकार की सुविधाएँ उसके लिए व्यर्थ हैं। कालिदास ने भी अपने महाकाव्य ‘कुमारसम्भव’ में कहा है-“शरीरमाचं खलु धर्म साधनम्” ।

अर्थात् शरीर ही धर्म का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य ही जीवन है और अस्वास्थ्य मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी कार्य में मन नहीं लगता। बढ़िया-से-बढ़िया भोजन भी उसे विष के समान लगता है। यही नहीं, उसमें किसी भी काम को करने की क्षमता भी नहीं होती। यद्यपि स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता होती है, लेकिन स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम की सर्वाधिक आवश्यकता है। व्यायाम से बढ़कर और कोई अच्छी औषधि नहीं है।

मानव-शरीर पाँच तत्त्वों से मिलकर बना है। यही पाँच तत्त्व मानव-शरीर के लिए आवश्यक हैं। जब इनमें से किसी तत्त्व की कमी होती है तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है। अतः शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए व्यायाम नितान्त आवश्यक है। अंग्रेज़ी की उक्ति भी है-‘A sound mind dwells in sound body.+ अर्थात् स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अगर व्यक्ति प्रतिदिन व्यायाम करता रहता है तो उसका शरीर निरोग रहता है। जो लोग व्यायाम नहीं करते उनका पेट बढ़ जाता है अथवा गैस की समस्या उत्पन्न हो जाती है या रक्तचाप में विकार आ जाता है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि व्यायाम स्वास्थ्य-रक्षा का साधन है, परन्तु व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए। जो लोग कुछ देर व्यायाम करके पुनः त्याग देते हैं उनको लाभ की बजाए हानि ही होती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि व्यायाम आयु और शक्ति के सामर्थ्य के अनुसार ही करना चाहिए।

व्यायाम से शरीर बलिष्ठ और सुडौल होता है। शारीरिक शक्ति बढ़ती है। शरीर में चुस्ती और फुर्ती आती है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति का उत्साह बढ़ता है। यही नहीं, वह उद्यमी भी होता है। प्रतिदिन व्यायाम करने से खूब भूख लगती है और पाचन-शक्ति भी बढ़ती है। शरीर में रक्त का संचरण सही होता है। शरीर के माँस-पिण्ड और हड्डियाँ भी मजबूत बनती हैं। इसके विपरीत, जो लोग व्यायाम नहीं करते उनका शरीर रोगी हो जाता है। वे अक्सर डॉक्टरों और हकीमों के यहाँ चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसे विद्यार्थियों का पढ़ाई में मन भी नहीं लगता। व्यायाम न करने वालों का शरीर दुबला-पतला रहता है।

व्यायाम के अनेक प्रकार हैं। कुछ लोग व्यायाम का अर्थ दण्ड-बैठक लगाना ही लेते हैं, परन्तु शारीरिक व्यायाम में वे सभी क्रियाएं आ जाती हैं जिनसे शरीर के अंग पुष्ट होते हैं। प्रातःकाल में खुली हवा में दौड़ लगाना या जोगिंग करना भी व्यायाम है। इसी प्रकार से कुछ लोग घोड़े पर सवार होकर खुली हवा में सपाटे भरना पसन्द करते हैं। कुछ लोग नदी में तैरते हैं। कुछ लोगों का दावा है कि नदी में तैरना सबसे अच्छा व्यायाम है। इसी प्रकार से अखाड़े में कुश्ती करना या मुग्दर घुमाना भी व्यायाम है। कुछ लोगों का विचार है कि खेल-कूद में भाग लेने से ही स्वास्थ्य ठीक रहता है।

व्यायाम का सबसे अच्छा साधन खेल-कूद है। फुटबाल, वॉलीबाल, बास्कट बाल, खो-खो, कबड्डी, क्रिकेट, बैडमिण्टन, जिमनास्टिक आदि असंख्य ऐसे खेल हैं जो व्यायाम के सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप में किसी-न-किसी खेल में भाग लेता है उसका शरीर भी स्वस्थ रहता है। इसीलिए तो स्कूलों और कॉलेजों में खेल-कूद की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है। खेलों के महत्व को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने एक खेल मन्त्रालय का भी गठन किया है। इसके अन्तर्गत प्रतिवर्ष सभी प्रकार के खेलों का समय-समय पर आयोजन किया जाता है। एक स्वस्थ एवं विकसित राष्ट्र खेल-कूद तथा व्यायाम पर निर्भर करता है। इसीलिए स्कूलों तथा कॉलेजों में ‘शारीरिक विज्ञान’ की शिक्षा भी दी जा रही है।

व्यायाम का एक अन्य अच्छा और सस्ता साधन है-योगाभ्यास। इसमें कोई अधिक खर्च नहीं आता। घर में किसी स्थान पर पाँच-सात आसन अगर नियमित रूप से किए जाएं तो शरीर काफी स्वस्थ रहता है। उदाहरण के रूप में, प्राणायाम, पद्मासन, सर्वांगासन, गोमुख आसन, शवासन, सूर्य नमस्कार आदि कुछ ऐसे आसन हैं जिनके द्वारा शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है, परन्तु इन आसनों को किसी शिक्षक से सीखने के बाद ही करना चाहिए, तभी लाभ होगा नहीं तो हानि भी हो सकती है। योगाभ्यास को विद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया भी जाता है। व्यायाम का सर्वाधिक अनुकूल समय प्रातःकाल है। इस समय वायु शुद्ध और स्वच्छ होती है। व्यायाम करने के बाद पौष्टिक और सात्विक भोजन करना चाहिए। बूढ़ों और रोगियों के लिए प्रातः और सायं का भ्रमण ही उचित है।

स्वास्थ्य ही मनुष्य का सच्चा धन है। अतः उसे बनाए रखने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम करने से मनुष्य का शरीर, मन और आत्मा तीनों ही स्वस्थ रहते हैं। इसीलिए कहा गया है कि प्रतिदिन व्यायाम करने वाला व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता। युवक-युवतियों को प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करना चाहिए। परन्तु अधिक व्यायाम करने से लाभ की बजाए हानि होती है। अतः उचित मात्रा में ही व्यायाम करना चाहिए। अच्छा तो यह है कि हम किसी योग्य शिक्षक की देख-रेख में ही व्यायाम करें। इसके लिए आजकल स्थान-स्थान पर व्यायाम केन्द्र खुल गए हैं।

55. शिक्षा में खेल-कूद का महत्त्व

संकेत : खेल-कूद का महत्त्व, शिक्षा व खेल-एक-दूसरे के पूरक, खेलों के प्रकार, लाभ, सर्वांगीण विकास। . ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने कहा है-
“स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति ही भली प्रकार अपने
मस्तिष्क का विकास कर सकता है।”

शिक्षा का अभिप्राय केवल पुस्तकों का ज्ञान अर्जित करना ही नहीं, अपितु शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक विकास के साथ-साथ उसके शारीरिक विकास की ओर भी ध्यान देना है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेल-कूद का महत्त्व किसी से कम नहीं। यदि शिक्षा से बुद्धि का विकास होता है तो खेलों से शरीर का। ईश्वर ने मनुष्य को शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक-तीन शक्तियाँ प्रदान की हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए इन तीनों का संतुलित रूप से विकास होना आवश्यक है।

शिक्षा तथा खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अपंग है। शिक्षा यदि परिश्रम लगन, संयम, धैर्य तथा भाईचारे का उपदेश देती है तो खेल के मैदान में विद्यार्थी इन गुणों को वास्तविक रूप में अपनाता है। जैसे कहा भी गया है- ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।

यदि व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नहीं है तो संसार के सभी सुख तथा भोग-विलास बेकार हैं। एक स्वस्थ शरीर ही सभी सुखों का भोग कर सकता है। रोगी व्यक्ति सदा उदास तथा अशांत रहता है। उसे कोई भी कार्य करने में आनंद प्राप्त नहीं होता है। स्वस्थ व्यक्ति सभी कार्य प्रसन्नचित्त होकर करता है। इस प्रकार स्वस्थ शरीर एक नियामत है। – खेलना बच्चों के स्वभाव में होता है। आज की शिक्षा-प्रणाली में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बच्चों को पुस्तकों की अपेक्षा खेलों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करवाई जाएँ। आज शिक्षा-विदों ने खेलों को शिक्षा का विषय बना दिया है, ताकि विद्यार्थी खेल-खेल में ही जीवन के सभी मूल्यों को सीख जाएं और अपने जीवन में अपनाएँ।

अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के खेलों का सहारा लिया जा सकता है। दौड़ना, कूदना, कबड्डी, टेनिस, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, जिमनास्टिक, योगाभ्यास आदि से उत्तम व्यायाम होता है। इनमें से कुछ आउटडोर होते हैं और कुछ इंडोर। आउटडोर खेल खुले मैदान में खेले जाते हैं। इंडोर खेलों को घर के अंदर भी खेला जा सकता है। इनमें कैरम, शतरंज, टेबलटेनिस आदि हैं। न केवल अपने देश में, बल्कि विदेशों में भी खेलों का आयोजन होता रहता है। खेलों से न केवल खिलाड़ियों का अपितु देखने वालों का भी भरपूर मनोरंजन होता है। आज रेडियो तथा टी०वी० आदि माध्यमों के विकास से हम आँखों देखा हाल अथवा सीधा प्रसारण देख सकते हैं तथा उभरते खिलाड़ी प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।

आज के युग में खेल न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि इनका सामाजिक तथा राष्ट्रीय महत्त्व भी है। इनमें स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। इनसे छात्रों में अनुशासन की भावना आती है। खेल के मैदान में छात्रों को नियमों में बंधकर खेलना पड़ता है, जिससे आपसी सहयोग और मेल-जोल की भावना का भी विकास होता है। खेल-कूद मनुष्य में साहस और उत्साह की भावना पैदा करते हैं। विजय तथा पराजय दोनों स्थितियों को खिलाड़ी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। खेल-कूद से शरीर में स्फूर्ति आती है, बुद्धि का विकास होता है तथा रक्त संचार बढ़ता है। खेलों में भाग लेने से आपसी मन-मुटाव समाप्त हो जाता है तथा खेल भावना का विकास होना है। जीविका-अर्जन में भी खेलों का बहुत महत्त्व है।

आज खेलों में ऊँचा स्थान प्राप्त खिलाड़ी संपन्न व्यक्तियों में गिने जाते हैं। किसी भी खेल में मान्यता प्राप्त खिलाड़ी को ऊँचे पद पर आसीन कर दिया जाता है तथा उसे सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। खेल राष्ट्रीय एकता की भावना को भी विकसित करते हैं। राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले खिलाड़ी अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करते हैं।

भारत जैसे विकासशील देश के लिए आवश्यकता है कि प्रत्येक युवक-युवती खेलों में भाग ले तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयास करे। आज का युग प्रतियोगिता का युग है और इसी दौड़ में किताबी कीड़ा बनना पर्याप्त नहीं, बल्कि स्वस्थ, सफल तथा उन्नत व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक है मानसिक, शारीरिक तथा आत्मिक विकास।

HBSE 10th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

56. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’

संकेत : भूमिका, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा, चुनौतीपूर्ण परवरिश, बेटी की सुरक्षा के लिए प्रयत्न, उपसंहार।

21 वीं सदी में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारे की अनुगूंज चारों ओर सुनाई पड़ने लगी। इस नारे की क्या आवश्यकता है जब भारतवर्ष में प्राचीनकाल से नारी की स्तुति ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ कहकर की जाती रही है। यहाँ तक कि असुरों पर विजय प्राप्त करने के लिए भी देवताओं को नारी की शरण में जाना पड़ा था। देवी दुर्गा ने राक्षसों का संहार किया था। विद्या की देवी सरस्वती, धन की देवी महालक्ष्मी और दुष्टों का नाश करने वाली महाकाली की आराधना आज भी की जाती है। इतना ही नहीं, आधुनिक काल में आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं ने पर्दा प्रथा को त्यागकर देश को स्वतंत्रता दिलवाने में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

कविवर पंत ने नारी को ‘देवी माँ’, ‘सहचरी’, ‘सखी’, ‘प्राण’ तक कहकर सम्बोधित किया है। आज नारी चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री के पद तक विराजमान है। पुलिस, सुरक्षा बल व सेना तक में भी उच्च पदों पर नियुक्त है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ उसने अपनी प्रबल कर्मठता का परिचय नहीं दिया। वह हर पद पर पुरुषों से अधिक ईमानदारी से काम करती है, यह सत्य भी किसी से छिपा नहीं है। वह माँ बनकर सृष्टि की रचना करने जैसा पवित्र काम करती है। पत्नी और बहन बनकर अपने सामाजिक दायित्व को निभाती है। आज अपने महान सहयोग से देश के विकास में बराबर की सहभागी बन गई है। फिर उसे हीन-भाव से क्यों देखा जाता है। वे कौन-से कारण हैं जिनके रहते बेटी को गर्भ में ही मार दिया जाता है। आज इन कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है।

यदि ध्यान से देखा जाए तो आजकल माता-पिता के लिए बेटी की परवरिश करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, क्योंकि यौन अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है। माता-पिता की सोच बनती जा रही है कि यदि हम बेटी की इज्जत की रक्षा न कर पाए तो बेटी को जन्म देने का क्या फायदा होगा। माता-पिता की यही सोच कन्या भ्रूण हत्या का प्रमुख कारण है। इसके साथ-साथ दहेज प्रथा के कारण भी लोग बेटी को आर्थिक बोझ समझते हैं। बेटी का बाप बनना अच्छा नहीं समझा जाता है। बेटे वंश चलाते हैं, बेटी नहीं। आज यौन-अपराध व बलात्कार की घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं।

इसके अतिरिक्त बेटी को पराया धन कहकर उसकी तौहीन की जाती है। इन सभी कारणों से बेटी को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। यदि समस्या की गहराई में झांका जाए तो इसमें बेटी कहाँ दोषी है ? दोषी तो समाज या उसकी संकीर्ण सोच है। आज बेटियों की कमी के कारण अनेक नई-नई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। स्त्री-पुरुष संख्या का संतुलन बिगड़ रहा है। यदि बेटियाँ नहीं होंगी तो बहुएँ कहाँ से आएंगी। आज आवश्यकता है, बेटियों को बेटों के समान समझने की। उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने की। समाज के अपराध बोध को दूर करने की। दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए। कन्या भ्रूण हत्या अपनी कब्र खोदने के समान है।
‘इनकी आहों को रोक न पाएंगे हम

अपने किए पर पछताएंगे हम।’ इस दिशा में सरकार ने अब अनेक कदम उठाएँ हैं ताकि बेटियों को बचाया जा सके और जिन कारणों से बेटियों को बोझ समझकर जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, उन्हें दूर किया जा सके। सरकार की इन योजनाओं में ‘बेटी धन’ योजना प्रमुख है। इसमें बेटी की शिक्षा व विवाह में आर्थिक सहायता की जाती है।

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारे के दूसरे भाग ‘बेटी पढ़ाओ’ पर भी विचार करना जरूरी है। ‘बेटी पढ़ाओ’ का सम्बन्ध नारी-शिक्षा से है। नारी हो या पुरुष शिक्षा सबके लिए अनिवार्य है किन्तु बेटी-जीवन के सम्बन्ध में शिक्षा का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यदि बेटी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बन जाती है तो वह माता-पिता पर बोझ न बनकर उनका बेटों के समान सहारा बन सकती है। बेटी बड़ी होकर देश की भावी पीढ़ी को योग्य बनाने के कार्य में उचित मार्ग-दर्शन कर सकती है।

बच्चे सबसे अधिक माताओं के सम्पर्क में रहते हैं। माता के व्यवहार का प्रभाव बच्चों के मन पर सबसे अधिक पड़ता है। ऐसी स्थिति में बेटियों का पढ़ना अति-आवश्यक है। आज की शिक्षित बेटी कल की शिक्षित माँ होगी जो देश और समाज के उत्थान में सहायक बन सकती है। इसीलिए बेटियों का सुशिक्षित होना अनिवार्य है। शिक्षित व्यक्ति ही अपना हित-अहित, लाभ-हानि भली-भाँति समझ सकता है। शिक्षित बेटियाँ ही अपने विकसित मन-मस्तिष्क से घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चला सकती हैं तथा घर-परिवार के लिए आर्थिक उपार्जन भी कर सकती हैं। बेटियाँ पढ़-लिखकर योग्य बनकर आधुनिक देश-काल के अनुरूप उचित धारणाओं, संस्कारों और प्रथाओं का विकास करके कुप्रथाओं व कुरीतियों को मिटाकर एक स्वस्थ एवं उन्नत समाज का निर्माण कर सकती हैं। बेटी पढ़ाओ की दिशा में आज समाज, देश व सरकार प्रयत्नशील हैं।

आज बेटी बचाने की आवश्यकता के साथ-साथ बेटियों को शिक्षित, विवेकी, आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी बनाने की भी आवश्यकता है। इसी से बेटियों व नारियों संबंधी अनेक समस्याओं का समाधान सम्भव है। तभी, वे बराबरी और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकेंगी। तब बेटी बचाओ जैसे नारों की आवश्यकता नहीं रहेगी।

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57. आधुनिक नारी
अथवा
नारी और नौकरी

संकेत : नारी का समाज में महत्त्व, मध्यकाल में दशा, आधुनिक नारी, हर क्षेत्र में आगे, समस्याएँ, ममता की देवी।

जिस प्रकार तार के बिना सितार तथा धुरी के बिना पहिया बेकार होता है; उसी प्रकार नारी के बिना नर का जीवन चल नहीं सकता। गृहस्थी की गाड़ी नर तथा नारी दोनों के सहयोग से आगे बढ़ती है। गृहस्थी का कोई भी कार्य नारी के बिना संभव नहीं है। वैदिक काल में नारियों को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। मनु महाराज ने नारी की महत्ता प्रतिपादित करते हुए यह घोषणा की
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।’

अर्थात् जिस घर में नारी का आदर और सम्मान होता है, उस घर में देवता निवास करते हैं। उस समय हर धार्मिक अनुष्ठान में नारी की उपस्थिति आवश्यक थी। स्त्रियों को अपना वर चुनने का अधिकार था। नारी को पुत्र के समान अधिकार प्राप्त थे। वे शिक्षा प्राप्त करती थीं। वे पति के साथ युद्ध क्षेत्र में जाती थीं और शास्त्रार्थ करती थीं। इस प्रकार प्राचीन काल में नारी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी।

मध्यकाल तक आते-आते नारी की स्थिति दयनीय हो गई थी। भारत पर मुसलमानों का राज्य हो गया। उनकी सभ्यता ने हिंदू समाज को प्रभावित किया। नारी की स्वतंत्रता पर अंकुश लग गया। वह घर की चारदीवारी में बंद कर दी गई। बाल-विवाह और सती प्रथा का प्रचलन बढ़ा। अशिक्षित होने के कारण नारी ने इसे अपना भाग्य मान लिया। मैथिलीशरण गुप्त ने उस समय की नारी की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए लिखा है
‘अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।’

आधुनिक युग में अनेक समाज-सुधारकों-राजा राम मोहनराय, महर्षि दयानंद आदि ने नारी-उद्धार के लिए प्रयत्न किए। उन्हें समान अधिकार दिलवाने के लिए कोशिश की। भारत का स्वतंत्रता-संग्राम तो मानो नारी-मुक्ति का संदेश लेकर आया। स्वतंत्र भारत के संविधान में नारी को पुरुष के बराबर अधिकार प्राप्त हुए तथा नागरिकों के कर्त्तव्य में प्रमुख कर्त्तव्य था-नारी जाति का सम्मान करना।

आज भारतीय नारी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वे पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। वे पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। आज नारी अध्यापिका, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, राजदूत, गवर्नर, प्रधानमंत्री, पायलट, ट्रक-ड्राइवर तथा रेलगाड़ी ड्राइवर है तथा खेलों में भी भाग ले रही है। आज नारी ने अपने व्यक्तित्व को पहचान लिया है। नौकरी करने से जहाँ एक ओर उसमें आत्म-विश्वास पैदा हुआ है; वहीं दूसरी ओर उसने अपने घर व परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारा है। कहा जाता है कि यदि लड़का पढ़ता है तो केवल एक व्यक्ति शिक्षित होता है और यदि लड़की पढ़ती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। एक शिक्षित नारी न केवल अपने परिवार के स्तर को ऊँचा उठाती है, बल्कि वह समाज के प्रति भी सजग होती है। वह वर्तमान समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करती है तथा समाज-सुधार के कार्य करती है। भारतीय नारी ने शिक्षित तथा आधुनिक बनकर भी नम्रता, लज्जा तथा मर्यादा आदि गुणों को नहीं त्यागा।

आधुनिक युग में जहाँ नारी को हर प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है, वहीं उसे पग-पग पर अनेक समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। उसके उत्तरदायित्वों में बहुत बढ़ोतरी हो गई है। घर के सभी काम करने के बाद वह घर से बाहर नौकरी भी करती है। घर तथा नौकरी की जिम्मेदारियों के नीचे वह पिस रही है। पुरुष के सहयोग के बिना मशीन की भाँति काम करते हुए उसमें मानसिक द्वंद्व पैदा होता है। उसमें नीरसता बढ़ती जा रही है। कई बार वह मातृत्व का दायित्व भी कुशलतापूर्वक निभा नहीं पाती। परंतु आधुनिक नारी इन सब समस्याओं पर विजय पाने का प्रयास कर रही है। आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित होने पर वह आत्म-विश्वास के साथ समस्याओं का सामना करती है, पुरुष के अत्याचार को सहन नहीं करती, अपने जीवन को भार नहीं समझती और निराश होकर आत्महत्या की ओर नहीं दौड़ती।

खुशी की बात है कि हमारी सरकार इस दिशा में काफी प्रयत्नशील है। काम और वेतन की समानता के सम्बन्ध में हमारे संविधान में स्पष्ट निर्देश हैं। धीरे-धीरे स्त्रियाँ पर्दे की कैद से बाहर निकल रही हैं। स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, बैंकों तथा अन्य कार्यालयों में स्त्रियाँ काम करने लगी हैं। लेकिन इस सम्बन्ध में पुरुषों को भी उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि उनके लिए उपयोगी साहित्य तैयार किया जाए ताकि नारी को समाज में वही दर्जा मिले जो प्राचीन काल में सीता, अनुसूया, मैत्रेयी आदि स्त्रियों को प्राप्त था, तभी हमारा देश उन्नति कर सकता है।

आधुनिक नारी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रही है। पश्चिमी नारी का अंधानुकरण करते हुए वह परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों तथा आदर्शों को भूल रही है। वह सादगी तथा सरलता को त्याग कर फैशन तथा आडंबरपूर्ण जीवन को अपना रही है। पैसा कमाने की होड़ में वह नैतिक मूल्यों को खो चुकी है। नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र तथा सुरक्षित हो, शिक्षित और आत्म-विश्वासी हो, परंतु स्वतंत्रता का दुरुपयोग न करे। उसे अपने स्वाभाविक गुणों सरलता, विनम्रता, ममता, त्याग आदि को त्यागना नहीं है। उसे सभी का सुख चाहने वाली, त्यागमयी, ममता की देवी बनना है। ऐसी शक्ति मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है। जयशंकर प्रसाद ने नारी के इसी रूप का वर्णन करते हुए कहा है-
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग, पद, तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।

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HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Haryana State Board HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

HBSE 10th Class English Two Stories about Flying Textbook Questions and Answers

 

Part I: His First Flight

Thinking about the Text

I. Answer these questions in a few words or a couple of sentences each.

Before You Read

1. A young seagull is afraid to fly. How does he conquer his fear? (एक छोटा सीगल पक्षी उड़ान भरने से डर रहा है। वह अपने भय पर कैसे विजय प्राप्त करता है ?)
Answer:
The seagull is very hungry. He thinks if he does not fly, he will remain hungry. So he conquers his fear of flying. Finally he is able to fly.
(सीगल पक्षी बहुत भूखा है। वह सोचता है कि यदि उसने उड़ना नहीं सीखा तो वह भूखा ही रह जाएगा। इसलिए वह अपनी उड़ान के प्रति भय पर विजय हासिल कर लेता है। अंततः वह उड़ान भरने में सफल हो जाता है।)

Class 10 English Chapter 3 Two Stories About Flying Question Answer HBSE

Thinking about the Text

1. Why was the young seagull afraid to fly? Do you think all young birds are afraid to make their first flight, or are some birds more timid than others ? Do you think a human baby also finds it a challenge to take its first steps ?
(छोटा सीगल पक्षी उड़ान भरने से क्यों डर रहा था? आपके विचार में क्या सभी छोटे पक्षी अपनी पहली उड़ान भरने से डरते हैं, या कुछ पक्षी दूसरों की अपेक्षा अधिक कमजोर होते हैं? आपके विचार में क्या एक बच्चा भी अपने पहले कदमों को एक चुनौती मानता है ?)
Answer:
The young seagull was afraid to fly. When he tried to flap his wings, he was seized with fear. The birds take care of their young ones. But a time comes when the young bird has to fly on its own. All young birds are afraid to fly for the first time. Same is the case with human babies. When a baby learns to walk, it is afraid to take its first steps.

(छोटा सीगल पक्षी उड़ान भरने से डर रहा था। जब उसने अपने पंख फड़फड़ाने का प्रयास किया, तो वह डर से भर गया। पक्षी अपने छोटे बच्चों की देखभाल करते हैं। लेकिन एक समय वह भी आता है जब पक्षी को स्वयं उड़ान भरनी पड़ती है। सभी छोटे पक्षी पहली बार उड़ान भरते हुए डरते हैं। यही मामला बच्चों के साथ है। जब एक शिशु चलना सीखता है, तो वह अपने पहले कदम उठाने से डरता है।)

Two Stories About Flying Summary In Hindi HBSE 10th Class

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

2. “The sight of the food maddened him.” What does this suggest ? What compelled the young seagull to finally fly ?
(“भोजन के दृश्य ने उसे पागल बना दिया” इससे क्या पता चलता है ? किस चीज ने छोटे सीगल को अंततः उड़ने के लिए बाध्य कर दिया ?)
Answer:
The seagull did not want to fly. But in order to get food, he had to fly. He was very hungry. The sight of food that made the seagull risk flying for the first time.
(सीगल उड़ना नहीं चाहता था। लेकिन भोजन प्राप्त करने के लिए उसे उड़ना पड़ा। वह बहुत भूखा था। भोजन के दृश्य ने सीगल को अपनी पहली उड़ान भरने का जोखिम उठाने के लिए बाध्य कर दिया।)

3. “They were beckoning to him, calling shrilly.” Why did the seagull’s father and mother threaten him and cajole him to fly ?
(“वे उसे तेज आवाज में चिल्लाकर पुकार रहे थे” सीगल के पिता और माता ने उसे चेतावनी क्यों दी और उसे उड़ान भरने के लिए क्यों फुसलाया ?)
Answer:
The seagull’s father and mother wanted that the seagull should learn to fly. They wanted to make him fight his fear. So they threatened him and cajoled him to fly because if he did not fly, he would starve to death.
(सीगल के पिता और माता चाहते थे कि वह उड़ना सीख जाए। वे चाहते थे कि वह अपने डर को दूर भगा दे। इसलिए उन्होंने उसे चेतावनी दी और खुशामद भी की कि वह उड़ान भरें क्योंकि यदि वह उड़ान न भरता तो वह भूखा मर जाता।)

Class 10 English Ch 3 First Flight Question Answer HBSE

4. Have you ever had a similar experience, where your parents encouraged you to do something that you were too scared to try ? Discuss this in pairs or groups.
(क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जहाँ आपके माता-पिता ने उस काम को करने के लिए आपका हौसला बढ़ाया हो जिसे करने से आप डर रहे थे ? समूह बनाकर इस पर चर्चा करो।)
Answer:
Yes, I had a similar experience. My parents wanted me to learn cycling. They purchased a bicycle for me. My father made me sit on the saddle and slowly moved it. I was very nervous. I feared that I would fall down. I wavered this way or that and then fell down. But my parents encouraged me. I got up and after three or four attempts, I was able to control the bicycle. (To be discussed in groups).
(हाँ, मेरा भी एक ऐसा ही अनुभव रहा है। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं साइकिल सीखू। उन्होंने मेरे लिए एक साइकिल खरीद ली। मेरे पिता ने मुझे गद्दी पर बिठा दिया और उसे धीरे-धीरे चला रहा था। मैं बहुत घबराया हुआ था। मुझे डर था कि मैं नीचे गिर जाऊँगा। मैं इधर-उधर डगमगाया और तब नीचे गिर गया। लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरा हौंसला बढ़ाया। मैं उठ खड़ा हुआ और तीन चार प्रयासों के बाद मैं साइकिल को नियंत्रित करने में सफल हो गया था।)

5. In the case of a bird flying, it seems a natural act, and a foregone conclusion that it should succeed. In the examples you have given in answer to the previous question, was your success guaranteed, or was it important for you to try, regardless of a possibility of failure ?
(पक्षी के उड़ान भरने के मामले में, यह तो एक प्राकृतिक कार्य था जिसमें पक्षी को सफलता मिलनी ही थी। लेकिन जो उदाहरण आपने इससे पहले प्रश्न के उत्तर के लिए दिया है, क्या उससे आपकी सफलता पक्की थी, या आपके लिए असफलता की परवाह किए बिना निरंतर प्रयास करते रहना महत्त्वपूर्ण था?)
Answer:
It is said that success comes to those who don’t lose heart. My success was not guaranteed. It only depended on my determination. Simply wishing would not have taught me cycling. It was more important for me to try and try. Success comes to those who are determined.
(कहा जाता है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो हिम्मत नहीं हारते हैं। मेरी सफलता यकीनी नहीं थी। यह केवल मेरी इच्छा शक्ति पर निर्भर करती थी। केवल चाहने मात्र से मैं साइकिल चलाना नहीं सीख सकता था। बार-बार प्रयास करना मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण था। सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके इरादे मजबूत होते हैं।)

Class 10 English Ch 3 Two Stories About Flying Question Answer HBSE

Speaking

We have just read about the first flight of a young seagull. Your teacher will now divide the class into groups. Each group will work on one of the following topics. Prepare a presentation with your group members and then present it to the entire class.

• Progression of Models of Airplanes
• Progression of Models of Motorcars
• Birds and Their Wing Span :
• Migratory Birds-Tracing Their Flights
Answer:
Meant only for class level. The students should attempt it under the teacher’s supervision and guidance.

Writing

Write a short composition on your initial attempts at learning a skill. You could describe the challenges of learning to ride a bicycle or learning to swim. Make it as humorous as possible.
Answer:
When I Learnt to Ride a Bicycle :

My school was about five miles from my home. I had to go to school on foot. It was a long way and I was often late. So my father bought a bicycle for me. I was very glad. But when the time came to learning cycling, I was very nervous. My father took me to a ground. There he taught me how to ride the bicycle. He made me sit on the saddle. He placed my hands on the handle bars. Then he told me to control the bicycle and push it ahead with the pedals. I tried very hard but the cycle would not move. After a few attempts I was able to move it. But I could not control it. As a result, I had hardly gone five yards when I lost the balance and fell down. I was on the ground and the bicycle was on me. A few onlookers started laughing. I was red in the face. But my father encouraged me. The next time I went twenty yards before falling. After about ten trials, I was able to control the bicycle and move it slowly though I was very awkward in my motions. However, with the encouragement given by my father, I soon learnt it perfectly well.
I was thrilled when I first went to school on my own new bicycle.

Two Stories About Flying Summary HBSE 10th Class

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Part II: The Black Aeroplane

Before You Read

1. A pilot is lost in storm clouds. Does he arrive safe ? Who helps him ? (एक पायलट तूफानी बादलों में भटक जाता है। क्या वह सुरक्षित वापिस आता है ? उसकी मदद कौन करता है ?)
Answer:
Yes, he arrives safe. The pilot of another strange plane helps him to take out of the cloud storm safe. None knew who the pilot of the other plane was and where the plane was.
(हाँ, वह सुरक्षित वापस लौट आता है। एक अन्य विचित्र जहाज का पायलट तूफानी बादलों से बाहर निकलने में उसकी मदद करता है। कोई नहीं जानता था कि दूसरे जहाज का पायलट कौन था और वह जहाज कहाँ था।)

Thinking about the Text

1. “I’ll take the risk.” What is the risk ? Why does the narrator take it ? [B.S.E.H. 2018 (Set-B)] (“मैं जोखिम उठाऊँगा।” यह जोखिम क्या है? वर्णनकर्ता जोखिम क्यों उठाता है ?)
Answer:
The author wanted to get home to be present at the breakfast table. He wanted to fly the old Dakota aeroplane though the storm clouds. So he took the risk of flying straight into the storm cloud.
(लेखक नाश्ते की मेज पर उपस्थित होने के लिए घर पहुँचना चाहता था। वह अपने पुराने डाकोटा जहाज को तूफानी बादलों के बीच से उड़ाना चाहता था। इसलिए उसने जहाज को तूफानी बादलों के बीच से उड़ाने का जोखिम लेने का निर्णय लिया।)

2. Describe the narrator’s experience as he flew the aeroplane into the storm. [B.S.E.H. 2019 (Set-C)] (वर्णनकर्ता के अनुभव का वर्णन कीजिए जब वह तूफान के बीच से अपने जहाज को उड़ाता है।)
Answer:
The narrator flew his aeroplane through the storm cloud. Suddenly, he found that there was blackness around him inside the clouds. He could see nothing. The aeroplane jumped and twisted in the air. The compass did not work. The radio also went out of order. He was lost in the storm. Then he saw another aeroplane. It had no light on its wings. But it guided him ahead. Then it went out of sight. But the author was safe. The black clouds were behind him.
(वर्णनकर्ता ने तूफानी बादलों के बीच से अपना जहाज उड़ाया। अचानक ही उसने पाया कि बादलों में उसके चारों ओर अँधेरा था। वह कुछ भी नहीं देख सकता था। जहाज हवा में उछला और डगमगाने लगा। दिशासूचक यंत्र काम नहीं कर रहा था। रेडियो भी खराब हो चुका था। वह तूफान में खो चुका था। तब उसने दूसरा जहाज देखा। उसके पंखों पर लाइटें नहीं लगी थीं। लेकिन उसने आगे चलकर उसका मार्गदर्शन किया। तब वह आँखों से ओझल हो गया। लेकिन अब लेखक सुरक्षित था। वह काले बादलों से बाहर आ चुका था।) .

Two Stories About Flying Solutions HBSE 10th Class

3. Why does the narrator say, “I landed and was not sorry to walk away from the old Dakota…” ?
(वर्णनकर्ता क्यों कहता है, “मैं नीचे उतरा और मुझे ओल्ड डाकोटा के पास से पैदल चलकर आने का अफसोस नहीं था”?)
Answer:
The author had landed safely. He was not sorry to walk away from the old Dakota because it had saved his life. He had come safely out of the storm cloud though it seemed impossible.
(लेखक सुरक्षित रूप से नीचे उतर चुका था। उसे ओल्ड डाकोटा जहाज के पास से पैदल चलकर जाने का अफसोस नहीं था क्योंकि उसने उसका जीवन बचा लिया था। वह तूफानी बादलों से सुरक्षित बाहर आ चुका था यद्यपि ऐसा असंभव लगता था।)

4. What made the woman in the control centre look at the narrator strangely ? (नियंत्रण केंद्र में उपस्थित महिला ने वर्णनकर्ता की ओर हैरानी के साथ क्यों देखा?)[B.S.E.H. March, 2019 (Set-D)]
Answer:
After landing, the narrator asked about the mysterious aeroplane that had guided him through the dark clouds. But no such aeroplane had been seen on the radar. The lady did not come into contact with that aeroplane. So she was startled when the narrator asked questions about that aeroplane.
(नीचे उतरने के बाद, वर्णनकर्ता ने उस रहस्यमयी जहाज के बारे में पूछा जोकि काले बादलों में उसका मार्गदर्शन करके उसे बाहर लाया था। लेकिन ऐसा कोई भी जहाज राडार पर नहीं देखा गया था। वह महिला उस जहाज के संपर्क में नहीं आई थी। इसलिए जब वर्णनकर्ता ने उस जहाज के बारे में सवाल पूछा तो वह चौंक गई।)

5. Who do you think helped the narrator to reach safely? Discuss this among yourselves and give reasons for your answer.
(आपके विचार में सुरक्षित पहुँचने में किसने वर्णनकर्ता की सहायता की? इस बात पर स्वयं के बीच चर्चा करें और अपने उत्तर के पक्ष में कारण दीजिए।)
Answer:
I think God helped the narrator. He employed some supernatural power to help the narrator to reach safely. Otherwise how could he fly safely through those dark clouds? Various things suggest this. For example, the appearance of the mysterious aeroplane at that particular time; how it knew the narrator was in trouble; how the pilot of the mysterious plane could guide him; where it disappeared; why the control tower had no such contact, etc.
(मेरे विचार में भगवान ने वर्णनकर्ता की सहायता की थी। उसने किसी दैविक शक्ति को वर्णनकर्ता की सहायता के लिए भेजा था ताकि वह सुरक्षित रूप से जमीन पर उतर सके। वरना वह उन काले बादलों के बीच से कैसे सुरक्षित उड़ सकता था? कई बातें इसका समर्थन करती हैं। उदाहरणस्वरूप; उस विशेष समय पर रहस्यमयी जहाज की उपस्थिति, उसको कैसे पता था कि वर्णनकर्ता मुसीबत में है, रहस्यमयी जहाज का पायलट उसका मार्गदर्शन कैसे कर सकता था, वह कहाँ अदृश्य हो गया, नियंत्रण कक्ष का उसके साथ संपर्क क्यों नहीं था, इत्यादि।)

First Flight Class 10 Ch 3 HBSE

Thinking about Language

I. Study the sentences given below :

(a) They looked like black mountains.
(b) Inside the clouds, everything was suddenly black.
(c). In the black clouds near me, I saw another aeroplane.
(d) The strange black aeroplane was there.

The word black’ in sentences (a) and (c) refers to the very darkest colour. But in (b) and (d) (here) it means without light/with no light. ‘Black’ has a variety of meanings in different contexts.

For example:
(a) ‘I prefer black tea’ means ‘I prefer tea without milk”.
(b) ‘With increasing pollution the future of the world is black’ means ‘With increasing pollution the . future of the world is very depressing/without hope’.

Now, try to guess the meanings of the word ‘black’in the sentences given below. Check the meanings in the dictionary and find out whether you have guessed right.

1. Go and have a bath; your hands and face are absolutely black.
2. The taxi-driver gave Ratan a black look as he crossed the road when the traffic light was green.
3. The bombardment of Hiroshima is one of the blackest crimes against humanity.
4. Very few people enjoy Harold Pinter’s black comedy.
5. Sometimes shopkeepers store essential goods to create false scarcity and then sell these in black.
6. Villagers had beaten the criminal black and blue.
Answer:
1. black refers to black colour
2. black refers to angry look
3. black means here a very horrible crime .
4. black here means “grim’ (not pleasing)
5. black here means charging more
6. black and blue means severely

Ch 3 First Flight Class 10 HBSE

II. Look at these sentences taken from the lesson you have just read :

(a) I was flying my old Dakota aeroplane.
(b) The young seagull had been afraid to fly with them. In the first sentence the author was controlling an aircraft in the air. Another example is : Children are flying kites. In the second sentence the seagull was afraid to move through the air, using its wings.

Match the phrases given under Column A with their meanings given under Column B:
A — B
1. Fly a flag – Move quickly/suddenly
2. Fly into rage – Be successful
3. Fly along – Display a flag on a long pole
4. Fly high – Escape from a place
5. Fly the coop – Become suddenly very angry
Answer:
A — B
1. Fly a flag – Display a flag on a long pole
2. Fly into rage – Become suddenly very angry
3. Fly along – Move quickly/suddenly
4. Fly high – Be successful
5. Fly the coop – Escape from a place

Summary Of English Class 10 First Flight HBSE

III. We know that the word “fly’ (of birds/insects) means to move through air using wings. Tick the words which have the same or nearly the same meaning.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying 1 HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying 2

Answer:
The following words have the same or nearly the same meaning of ‘move through air using wings’:
HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying 2

Writing

Have you ever been alone or away from home during a thunderstorm ? Narrate your experience in a paragraph.
Answer:
When I was Caught in a Thunderstorm

Once I had an experience of a natural upheaval. I went to Himachal Pradesh to meet my uncle who lives at Joginder Nagar. I was in a car along with my father, my younger brother, my sister and mother. My father was driving the car. After crossing Kullu, the weather suddenly changed. Strong winds started blowing. There were dark clouds in the sky. Soon a thunderstorm began to blow. The velocity of the wind was very rapid. There was no shelter in sight for many miles. My father stopped the car on one side of a hill under a big tree. But it appeared as if the tree itself would be uprooted. The car seemed to be shaking in the storm. It was not safe to keep sitting in the car. So we came out. Luckily we found a small cave-type hollow in the hill. We took refuge in the hollow.

Then it started raining. The rain, the hails and the wind lashed against the car. It was getting dark. It was clear that we could not remain in the cave for the whole night. Luckily, after two hours, the thunderstorm stopped. We came out and resumed our journey. After going for a few miles, we spotted a hotel. We took rest there for the night. The next morning we resumed our journey for Joginder Nagar.

HBSE 10th Class English Two Stories about Flying Important Questions and Answers

Part I: His First Flight

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
For how long had the seagull been alone?
Answer:
The seagull had been alone for twenty-four hours.

Question 2.
Why did the seagull not go with the rest of his family ?
Answer:
He did not go because he was afraid to fly.

Question 3.
Why was the seagull afraid to fly?
Answer:
He was afraid to fly because he felt that his wings could not support him.

Question 4.
What were the ways the seagull had thought of to join his family?
Answer:
He thought of joining his family by jumping and by walking up to them.

Question 5.
Why did the seagull dived towards his mother?
Answer:
The seagull dived towards his mother because he wanted the fish in his mother’s beak.

Question 6.
He stood at the edge of the ledge on one leg and closed his eyes. Why?
Answer:
He wanted to get the attention of his family.

Question 7.
Who included the seagull’s family except him ?
Answer:
There were five members in his family except him his father, mother, two brothers and a sister.

Question 8.
For how long time had the seagull been alone ?
Answer:
He had been alone for the last twenty four hours.

Question 9.
How was the seagull feeling ?
Answer:
He was feeling very hungry.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 10.
What sight maddened the young seagull ?
Answer:
The sight of food maddened him.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Did the seagull think the sea was like land ? Pick out the words that suggest this.
(क्या सीगल पक्षी ने ऐसा सोचा कि सागर धरती की तरह है ? वे शब्द चुनिए जो यह बताते हैं।)
Answer:
Yes, the seagull thought that the sea was like land. He called it the green flooring. When he had learnt how to fly, he flew for sometime. Then he came down and stood on the sea surface thinking it to be like land: But his legs sank into the sea. ‘Dropped his legs to stand on’, ‘sank into’ and ‘screamed with fright’ are the words that suggest this.

(हाँ, सीगल पक्षी ने सोचा था कि सागर धरती की तरह है। उसने इसे हरा फर्श कहा। जब उसने उड़ना सीख लिया तो वह कुछ समय तक उड़ता रहा। तब वह नीचे आया और सागर की सतह को ज़मीन की तरह का समझकर उस पर खड़ा हुआ। मगर उसकी टाँगें सागर में डूब गईं। ‘खड़े होने के लिए टाँगें सीधी की’, ‘धंस गई’ और ‘डर से चिल्लाया’ वे शब्द हैं जो यह बताते हैं।)

Question 2.
When did the seagull’s flight begin ? (सीगल पक्षी की उड़ान कब आरंभ हुई ?)
Answer:
The seagull was very hungry. When he saw his mother bringing food in her beak, he dived towards her. But he fell from the brink of the ledge. He screamed with fear. But his fear lasted only for a moment. The next moment, he felt that his wings spread outwards. He was flying now. Now he screamed with joy.

(सीगल पक्षी बहुत भूखा था। जब उसे अपनी माँ को चोंच में भोजन लाते देखा तो उसने उसकी तरफ छलाँग लगाई। मगर वह शिखाफलक के किनारे से गिर गया। वह डर के मारे चिल्लाया। मगर उसका डर केवल एक क्षण का था। अगले क्षण उसने अपने पंखों को बाहर की ओर फैलते महसूस किया। अब वह उड़ रहा था। अब वह खुशी से चिल्लाया।)

Question 3.
Where did the seagull’s flight end ? (सीगल पक्षी की उड़ान कहाँ समाप्त हुई ?)
Answer:
The seagull was very happy as he had learnt how to fly. He kept flying for sometime. His parents, brothers and sister flew around him. Then they landed on the sea surface. The seagull also came down. When he tried to land, his legs sank into the sea. He cried with fear again. But then his belly touched the water. He did not drown. He started floating on the surface of the sea. Thus his first flight ended.

(सीगल पक्षी बहुत खुश था क्योंकि उसने उड़ना सीख लिया था। वह कुछ देर तक उड़ता रहा। उसके माता-पिता, भाई एवं बहन उसके आसपास उड़ने लगे। फिर वे सागर की सतह पर उतर गए। सीगल पक्षी भी नीचे आ गया। जब उसने सतह पर उतरने का प्रयास किया तो उसकी टाँगें सागर में धंस गई। वह फिर डर से चिल्लाया। मगर तब उसका पेट पानी से छुआ। वह नहीं डूबा। उसने सागर की सतह पर तैरना आरंभ कर दिया। इस प्रकार, उसकी पहली उड़ान खत्म हुई।)

Question 4.
When did the seagull get over his fear of the water ? (सीगल पक्षी ने पानी के डर से कैसे छुटकारा पाया ?)
Answer:
After flying for some time, the seagull saw that his parents and brothers and sister were sitting on the surface of the sea. He came down and landed on it. But his legs sank into it. He cried with fear. However, his belly touched the surface and he did not drown. Now the seagull got over his fear of the water.

(कुछ समय तक उड़ने के बाद सीगल पक्षी ने देखा कि उसके माता-पिता, भाई एवं बहन सागर की सतह पर बैठे हुए थे। वह नीचे आया और इस पर उतरा। मगर उसकी टाँगें इसमें डूब गईं। वह डर से चिल्लाया। लेकिन उसके पेट ने सतह को स्पर्श किया और वह नहीं डूबा। अब सीगल पक्षी ने पानी के अपने भय पर काबू पा लिया था।)

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Question 5.
Do you sympathise with the seagull ? Give reasons. (क्या आपको सीगल पक्षी से सहानुभूति है ? कारण दीजिए।)
Answer:
Yes, we sympathise with the seagull. He is a very young bird. He has not yet learnt how to fly. His parents want that he should fly. They encourage him. But he is afraid of falling. His parents starve him for twenty-four hours. In the end, however, the seagull learns how to fly.

(हाँ, हमें सीगल पक्षी से सहानुभूति है। वह बहुत छोटा पक्षी है। उसने अभी उड़ना नहीं सीखा है। उसके माता-पिता चाहते हैं कि वह उड़े। वे उसे प्रोत्साहित करते हैं। मगर उसे गिरने से डर लगता है। उसके माता-पिता उसे चौबीस घंटे तक भूखा रखते हैं। अंत में, लेकिन, सीगल पक्षी उड़ना सीख जाता है।)

Question 6.
How did the seagull express his excitement when he saw his mother bringing food for him ?
(जब सीगल पक्षी ने अपनी माँ को उसके लिए भोजन लाते देखा तो उसने अपनी उत्तेजना को कैसे व्यक्त किया ?)
Answer:
The seagull saw his mother bringing food for him. He screamed with joy. He leaned out eagerly. He tapped rock with his feet and tried to get nearer to her as she flew towards him.

(सीगल पक्षी ने अपनी माँ को अपने लिए भोजन लाते देखा। वह खुशी से चिल्लाया। वह उत्सुकता से आगे झुका। उसने चट्टान पर पाँव पटके और जब वह उसके पास आई तो उसने जितना अधिक पास हो सके, होने का प्रयास किया।)

Question 7.
How did the young seagull’s parents teach him the art of flying ? (युवा सीगल के माता-पिता ने उसे उड़ने की कला किस प्रकार सिखाई ?)
Answer:
The seagull’s parents encouraged him to fly. But he was too afraid to fly. Then they kept him hungry for twenty-four hours. Even then the seagull did not fly. Then they thought that experience would teach him. So they made him fall from the ledge. Now when he fell, he felt his wings spread and started flying.
(सीगल पक्षी के माता-पिता ने उसे उड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मगर वह इतना भयभीत था कि उड़ नहीं सकता था। तब उन्होंने उसे चौबीस घंटे के लिए भूखा रखा। फिर भी सीगल पक्षी नहीं उड़ा। तब उन्होंने सोचा कि अनुभव उसे सिखाएगा। इसलिए उन्होंने उसे शिखाफलक से गिरने पर मजबूर किया। अब, जब वह गिरा तो उसने अपने पंख फैले हुए अनुभव किए और उड़ना आरंभ कर दिया।)

Essay Type Question

Question 1.
Compare and contrast the young seagull in the beginning and at the end of the lesson. You can use the words given in the following box.
frightened
coward
terrified
desperate
afraid
impatient
confident
joyous
triumphant
amused
(कहानी के आरंभ एवं अंत के युवा सीगल की तुलना करो। आप नीचे दिए गए बॉक्स में से शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं)
डरा हुआ
डरपोक
भयभीत
निराश
भयभीत
अधीर
विश्वस्त
प्रसन्न
विजयी .
प्रसन्न
Answer:
In the beginning, the seagull is a coward. He lacks confidence. The time has come when he should fly. His parents try to teach him how to fly. But he is too afraid to fly. He refuses to fly. His parents leave him alone on the ledge. They threaten him that he would starve. His brothers and sister make fun of him. They call · him a coward. Even then the seagull does not fly. However, he falls from the rock when he tries to get the fish from his mother. The next moment he flaps his wings and starts flying. Now he is full of confidence crying with joy. He flies higher and higher. He is no longer afraid. He overcomes his fear of the water also. He finds that he can float on the surface of the sea. His family members praise him and give him pieces of fish to eat. In this way, there is difference in the behaviour of the seagull at the beginning and end of the story.

(आरंभ में सीगल कायर है। उसमें विश्वास की कमी है। समय आ गया है जब उसे उड़ना चाहिए। उसके माता-पिता उसे उड़ना सिखाने का प्रयत्न करते हैं। मगर वह इतना भयभीत है कि उड़ता नहीं। वह उड़ने से इंकार कर देता है। उसके माता-पिता उसे शिखाफलक पर अकेला छोड़ देते हैं। उसे धमकी देते हैं कि वह भूखा मरेगा। उसके भाई एवं बहन उसका मजाक उड़ाते हैं। वे उसे कायर कहते हैं। फिर भी सीगल पक्षी नहीं उड़ता। लेकिन जब वह अपनी माँ से मछली लेने का प्रयत्न करता है तो वह चट्टान से गिर जाता है। अगले क्षण वह अपने पंख फड़फड़ाता है और उड़ना आरंभ कर देता है। अब वह विश्वास से भर गया है। वह खुशी से चिल्लाने लगता है। वह और अधिक ऊँचे उड़ता है। अब वह भयभीत नहीं है। वह पानी के अपने डर पर भी काबू पा लेता है। वह देखता है कि सागर की सतह पर तैर सकता है। उसके परिवार के लोग उसकी तारीफ करते हैं और उसे मछली के टुकड़े खाने के लिए देते हैं। इस प्रकार सीगल पक्षी के व्यवहार में कहानी के आरंभ एवं अंत में अंतर है।)

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Question 2.
Describe the methods used by the seagull family to help the young seagull overcome his fear and fly.
(उन तरीकों का वर्णन करो जो सीगल पक्षी के परिवार ने उसे उड़ने के बारे में डर पर काबू पाने में सहायता देने के लिए प्रयोग किए।)
Or Write the story of the chapter ‘His First Flight’.
(प्राठ ‘His First Flight’ की कहानी का वर्णन करें।)
Answer:
This story is about a young seagull. The time had come when he should fly like his parents and brothers and sister. But he was afraid to fly. His parents tried their best to teach him how to fly. But he refused to fly. They left him alone on his ledge. They threatened him that he would starve. Even then he was too afraid to fly. His brothers and sister made fun of him. They laughed at his cowardice. At last, his mother thought of a plan. She took a piece of fish in her beak and flew towards him. She came near him but did not land on the ledge. The young seagull was very hungry. He came to the brink of the ledge. In order to get food, he dived at the fish. But he fell from the rock. He became terrified. But it was only for a moment. The next moment, he flapped his wings and started flying. In this way, his mother was able to make him fly.

(यह कहानी एक युवा सीगल पक्षी के बारे में है। वह समय आ गया है जब उसे अपने माता-पिता, भाइयों एवं बहन की तरह उड़ना चाहिए। मगर उसे उड़ने से डर लगता है। उसके माता-पिता ने उसे उड़ना सिखाने का बहुत प्रयत्न किया। मगर उसने उड़ने से इंकार कर दिया। वे उसे उसकी शिखाफलक पर अकेला छोड़ गए। उन्होंने उसे धमकी दी कि वह वहाँ भूख से मरेगा। फिर भी वह उड़ने से बहुत डरता था। उसके भाइयों एवं बहन ने उसका मजाक उड़ाया। वे उसकी कायरता पर हँसे। आखिर उसकी माँ को एक योजना सूझी। उसने अपनी चोंच में मछली का एक टुकड़ा लिया और उसकी तरफ उड़कर आई। वह उसके पास आई मगर वह शिखाफलक पर नहीं उतरी। युवा सीगल बहुत भूखा था। वह शिखाफलक के किनारे तक आया। भोजन प्राप्त करने के लिए वह मछली की तरफ कूदा। मगर वह चट्टान से गिर गया। वह भयभीत हो गया। मगर ऐसा केवल एक क्षण के लिए हुआ। अगले क्षण उसने अपने पंख फड़फड़ाए एवं उड़ना आरंभ कर दिया। इस प्रकार उसकी माँ उसे उड़ाने में सफल हो गई।)

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Question 3.
What message does the story ‘His First Flight’ convey?
(कहानी ‘His First Flight’ क्या संदेश देती है ?)
Answer:
This is an imaginary story. The story conveys the message that we learn by taking courage and not by sitting idle. A young seagull is fed lovingly by his parents. But when the time comes for him to fly, he feels afraid. His parents try many tricks to teach him to fly. But he is so afraid that he refuses to fly. At last, his mother hits upon a plan. She tempts him with food in her beak. But she only flies near his ledge and does not land there. In order to get food, the hungry seagull comes to the edge of the rock and falls from it. At first he is terrified but then he opens his wings and starts flying. He is happy to note that he did not fall in the sea. In this way, the young seagull makes the first flight of his life when he takes courage.

(यह एक काल्पनिक कहानी है। कहानी यह संदेश व्यक्त करती है कि हम साहस करने से सीखते हैं न कि सुस्त बैठकर। एक युवा सीगल पक्षी को उसके माता-पिता प्यार से भोजन करवाते हैं। मगर जब उसके उड़ने का समय आता है तो उसे डर लगता है। उसके माता-पिता उसे उड़ना सिखाने के लिए कई तरीकों का प्रयोग करते हैं। मगर वह इतना भयभीत है कि वह उड़ने से इंकार कर देता है। आखिर उसकी माँ को एक योजना सूझती है। वह अपनी चोंच में भोजन लेकर उसे लुभाती है। मगर वह केवल उसके शिखाफलक के पास उड़ती है और वहाँ उतरती नहीं है। भोजन प्राप्त करने के लिए भूखा सीगल पक्षी चट्टान के किनारे के पास आता है और वहाँ से गिर जाता है। पहले तो वह डरता है मगर फिर वह अपने पंख फैलाता है एवं उड़ना आरंभ कर देता है। उसे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि वह सागर में नहीं गिरता। इस प्रकार युवा सीगल जब हिम्मत करता है तो अपनी पहली उड़ान को पूरा करता है।)

Question 4.
When did the seagull’s flight begin and where did it end?
(सीगल पक्षी की उड़ान कब आरंभ हुई एवं यह कहाँ समाप्त हुई ?)
Or
Describe how the young seagull made his maiden flight.
(वर्णन कीजिए कि सीगल ने अपनी पहली उड़ान कैसे भरी ?)
Answer:
The seagull was very hungry. When he saw his mother bringing food in her beak, he dived towards her. But he fell from the brink of the ledge. He screamed with fear. But his fear lasted only for a moment. The next moment, he felt that his wings spread outwards. He was flying now. Now he screamed with joy. The seagull was very happy as he had learnt how to fly. He kept flying for some time. His parents, brothers and sister flew around him. Then they landed on the sea surface. The seagull also came down. When he tried to land, his legs sank into the sea. He cried with fear again. But then his belly touched the water. He did not drown. He started floating on the surface of the sea. Thus the seagull made the first flight of his life.

(सीगल पक्षी बहुत भूखा था। जब उसने अपनी माँ को चोंच में भोजन लाते देखा, तो उसने उसकी तरफ छलाँग लगाई। मगर वह शिखाफलक के किनारे से गिर गया। वह डर के मारे चिल्लाया। मगर उसका डर केवल एक ही क्षण का था। अगले क्षण उसने अपने पंखों को बाहर की ओर फैलते महसूस किया। अब वह उड़ रहा था। अब वह खुशी से चिल्लाया। सीगल पक्षी बहुत प्रसन्न था क्योंकि उसने उड़ना सीख लिया था। वह कुछ देर तक उड़ता रहा। उसके माता-पिता, भाई एवं बहन उसके आसपास उड़े। फिर वे सागर की सतह पर उतर गए। सीगल पक्षी भी नीचे आया। जब उसने उतरने का प्रयत्न किया तो उसकी टाँगें सागर में धंस गईं।

वह फिर डर से चिल्लाया। मगर तब उसका पेट पानी से छुआ। वह नहीं डूबा। उसने सागर की सतह पर तैरना आरंभ कर दिया। इस प्रकार सीगल पक्षी ने अपने जीवन की प्रथम उड़ान भरी।)

Question 5.
What happened after the seagull had learnt how to fly ? (जब सीगल पक्षी ने उड़ना सीख लिया तो क्या हुआ ?)
Answer:
The seagull came to the brink of the ledge in order to get the fish from his mother. But his mother remained in the air, a little away from the ledge. The seagull dived at the fish. But he fell from the rock into the space. He cried with fear. But this fear lasted only a moment. The next moment, he flapped his wings. He was surprised to find that he was flying. He screamed with joy. He soared higher and higher. His parents flew around him. They praised him for learning how to fly. Then his parents, brothers and sister landed on the sea. They beckoned the young seagull to come to them. The seagull dropped his legs and came down on the surface of the sea. He had thought that the surface of the sea was green flooring. But his legs started sinking into the water. He again screamed with fear. However, his belly touched the water and he did not drown. He started floating on the water. His family members were also happy. They gave him pieces of a fish to eat.

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(सीगल पक्षी अपनी माँ से मछली प्राप्त करने के लिए शिखाफलक के किनारे तक आया। मगर उसकी माँ शिखाफलक से कुछ दूर हवा में रही। सीगल मछली पर कूदा। मगर वह चट्टान से हवा में गिर गया। वह डर के मारे चिल्लाया। मगर यह डर केवल एक क्षण तक रहा। अगले क्षण उसने अपने पंख फड़फड़ाए। उसे यह देखकर हैरानी हुई कि वह उड़ रहा था। वह खुशी से चिल्लाया। वह और अधिक ऊँचा उठा। उसके माता-पिता उसके आसपास उड़े। उन्होंने उसकी उड़ना सीखने के लिए तारीफ की। तब उसके माता-पिता, भाई एवं बहन सागर के ऊपर उतर गए। उन्होंने युवा सीगल को उनके पास आने का इशारा किया। सीगल ने अपनी टाँगें नीचे की और सागर की सतह पर आया। उसने सोचा था कि सागर की सतह एक हरा फर्श है। मगर उसकी टाँगें पानी में डूबने लगीं। वह फिर डर से चिल्लाया। लेकिन उसके पेट ने पानी को छुआ एवं वह डूबा नहीं। उसने पानी पर तैरना आरंभ कर दिया। उसके परिवार के सदस्य भी प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे खाने के लिए एक मछली के टुकड़े दिए।)

Multiple Choice Questions

Question 1.
Who was there on the ledge with the young seagull for the last twenty four hours ?
(A) his two brothers
(B) his sister
(C) his parents
(D) he was alone
Answer:
(D) he was alone

Question 2.
How did the young seagull feel to fly ?
(A) afraid
(B) enjoyed
(C) willing
(D) all of the above
Answer:
(A) afraid

Question 3.
There was a great expanse of …. stretched down beneath.
(A) land
(B) rocks
(C) sky
(D) sea
Answer:
(D) sea

Question 4.
What were the young seagull’s parents doing to him ?
(A) calling to him shrilly
(B) upbraiding him
(C) threatening him
(D) all of the above
Answer:
(D) all of the above

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Question 5.
Nobody had come near the young seagull for the last :
(A) ten hours
(B) twelve hours
(C) twenty hours
(D) twenty-four hours
Answer:
(D) twenty-four hours

Question 6.
His parents were perfecting his brothers and sisters in the art of ………………. (A) flying
(B) hunting
(C) swimming
(D) chirping
Answer:
(A) flying

Question 7.
Only one family member was looking at the young seagull. It was his :
(A) father
(B) mother
(C) brother
(D) sister
Answer:
(B) mother

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Question 8.
Whom did the young seagull beg to bring him some food ?
(A) his father
(B) his mother
(C) his brothers
(D) his sister
Answer:
(B) his mother

Question 9.
The young seagull dived at the fish maddened by …..
(A) hunger
(B) heat
(C) tiredness
(D) sleep
Answer:
(A) hunger

Question 10.
How did the young seagull fall into the air ?
(A) upward
(B) downward
(C) both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(C) both (A) and (B)

Question 11.
What were the young seagull’s brothers and sister doing around him ?
(A) curveting
(B) banking
(C) soaring
(D) all of the above
Answer:
(D) all of the above

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 12.
Of what colour vast sea did the young seagull see beneath him ?
(A) blue
(B) green
(C) white
(D) brown
Answer:
(B) green

Question 13.
The seagull dived towards his mother because :
(A) a strong wind pushed him
(B) he wanted to fly
(C) he wanted the fish in his mother’s beak
(D) he wanted to reach his mother
Answer:
(C) he wanted the fish in his mother’s beak

Question 14.
He stood at the edge of the ledge on one leg and closed his eyes because :
(A) he was feeling sleepy
(B) it was a natural habit of seagulls
(C) he wanted to get the attention of
(D) he was afraid of the sea his family
Answer:
(C) he wanted to get the attention of his family

Question 15.
The young seagull was afraid to fly because :
(A) he had hurt his wings
(B) his wings were not as well developed as those of his brothers and sister
(C) he felt that his wings could not support him
(D) he was not confident
Answer:
(C) he felt that his wings could not support him

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 16.
Who is the author of the lesson ‘His First Flight ?
(A) Fredrick Forsyth
(B) Cynthia Moss
(C) Liam O’Flaherty
(D) Jayanta Mahapatra
Answer:
(C) Liam O’Flaherty

Question 17.
Was the young seagull successful in making his first fly?
(A) yes
(B) no
(C) may be
(D) not known
Answer:
(A) yes

Two Stories about Flying Important Passages For Comprehension

PASSAGE 1

The young seagull was alone on his ledge. His two brothers and his sister had already flown away the day before. He had been afraid to fly with them. Somehow when he had taken a little run forward to the brink of the ledge and attempted to flap his wings he became afraid. The great expanse of sea stretched down beneath, and it was such a long way down-miles down. He felt certain that his wings would never support him, so he bent his head and ran away back to the little hole under the ledge where he slept at night.

Word-meanings : Brink = edge (किनारा); attempted = tried (प्रयत्न किया); expanse = stretch (फैलाव)।

Questions:

(a) How many brothers and sisters did the young seagull have?
(b) Why had he not gone with them?
(c) What happened when he ran to the brink of the ledge?
(d) What was he certain about?
(e) Find in the passage a word which means ‘edge’.
Answers :
(a) He had two brothers and one sister.
(b) He had not gone with them because he was afraid to fly.
(c) When he ran to the brink of the ledge and attempted to flap his wings he became afraid.
(d) He was certain that his wings would never support him.
(e) brink.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

PASSAGE 2

That was twenty-four hours ago. Since then nobody had come near him. The day before, all day long, he had watched his parents flying about with his brothers and sister, perfecting them in the art of flight, teaching them how to skim the waves and how to dive for fish. He had, in fact, seen his older brother catch his first herring and devour it, standing on a rock, while his parents circled around raising a proud cackle. And all the morning the whole family had walked about on the big plateau midway down the opposite cliff taunting him with his cowardice.

Word-meanings : Watched = saw (देखा); skim=touch lightly (हल्के से छूना); cackle = cawing (काँय काँय); taunting = mocking (व्यंग्य करना , ठाणे करना) |

Questions :
(a) Name the chapter and its author.
(b) What two lessons had his parents taught the day before ?
(c) Why did his parents circle around his elder brother ?
(d) What had he seen his brother do ?
(e) Find a word from the passage which means ‘to swallow’.
Answers :
(a) ‘His First Flight’: Liam O’Flaherty.
(b) (i) how to skim the waves, (ii) how to dive for fish.
(c) to show their pride at his ability.
(d) He had seen his brother catch and eat his first fish.
(e) The word is ‘devour’.

PASSAGE 3

He stepped slowly out to the brink on the ledge, and standing on one leg with the other leg hidden under his wing, he closed one eye, then the other, and pretended to be falling asleep. Still they took no notice of him. He saw his two brothers and his sister lying on the plateau dozing with their heads sunk into their necks. His father was preening the feathers on his white back. Only his mother was looking at him. She was standing on a little high hump on the plateau, her white breast thrust forward. Now and again, she tore at a piece of fish that lay at her feet and then scrapped each side of her beak on the rock. The sight of the food maddened him. How he loved to tear food that way, scrapping his beak now and again to whet it.

Word-meanings : Brink=edge (किराना); pretended =made a show (दिखावा करना); preening = dressing (सँवारना); plateau = level stretch of land on a mountain (पठारा); scrapped = rubbed (रगड़ा)

Questions :

(a) What did the seagull pretend ?
(b) What were his two brothers and sister doing ?
(c) What was his father doing ?
(d) What maddened him ?
(e) Find a word or a phrase in the passage that means “paid no attention’. Answers :
(a) The seagull pretended to be asleep.
(b) His two brothers and sister were dozing.
(c) His father was preening his feathers.
(d) The sight of food maddened him.
(e) ‘took no notice’.

PASSAGE 4

He waited a moment in surprise, wondering why she did not come nearer, and then maddened by hunger, he dived at the fish. With a loud scream he fell outwards and downwards into space. Then a monstrous terror seized him and his heart stood still. He could hear nothing. But it only lasted a minute. The next moment he felt his wings spread outwards. The wind rushed against his breast feathers, then under his stomach, and against his wings.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Word-meanings : Screamed=cried (चिल्लाया); monstrous = very big (बहुत बड़ा); stomach=belly (पेट) |

Questions :

(a) Name the lesson and its author.
(b) Why did ‘he’ wait a moment in surprise ?
(c) What happened when he dived at the fish ?
(d) What did he feel about his wings ?
(e) Which word in the passage means “extreme fear’.
Answers :
(a) Lesson : ‘His First Flight, Author : ‘Liam O’Flaherty’.
(b) He wondered why his mother did not come nearer to supply him food.
(c) He fell outwards and downwards into the space.
(d) He felt his wings spread outwards.
(e) The word is ‘terror’.

PASSAGE 5

His parents and his brothers and sister had landed on this green flooring ahead of him. They were beckoning to him, calling shrilly. He dropped his legs to stand on the green sea. His legs sank into it. He screamed with fright and attempted to rise again flapping his wings. But he was tired and weak with hunger and he could not rise, exhausted by the strange exercise. His feet sank into the green sea, and then his belly touched it and he sank no farther. He was floating on it, and around him his family was screaming, praising him and their beaks were offering him scraps of dog-fish.

Word-meanings : Beckoning = calling (पुकारना); fright = terror (भय); exhausted = tired (थका हुआ); floating = swimming (तैरना); scraps = pieces (टुकड़े)

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Questions :

(a) What has been called the green flooring ?
(b) What had the seagull’s parents and brothers and sister done?
(c) Why did he scream with fright?
(d) Did the seagull drown in the sea ?
(e) Find words from the passage which mean the same as : (i) terror (ii) tired.
Answers :
(a) The green sea has been called the green flooring.
(b) They had landed on the sea surface.
(c) He screamed with fright because his legs sank into the sea.
(d) No, he did not drown in the sea.
(e) (i) Fright (ii) exhausted.

PASSAGES FOR PRACTICE (UNSOLVED)

PASSAGE 6

He felt certain that his wings would never support him; so he bent his head and ran away back to the little hole under the ledge where he slept at night. Even when each of his brothers and his little sister, whose wings were far shorter than his own, ran to the brink, flapped their wings, and flew away, he failed to muster up courage to take that plunge which appeared to him so desperate. His father and mother had come around calling to him shrilly, upbraiding him, threatening to let him starve on his ledge unless he flew away.

Word-meanings : Flapped = hutlered (फड़फड़ाना); upbraiding = scolding (डाँटना) i

Questions :

(a) Name the chapter.
(b) Name the author
(c) How did the seagull’s brothers and sister fly away ?
(d) What did his parents tell him ?
(e) Find a word from the passage which means “scolding/reproaching’.

PASSAGE 7

“Ga, ga, ga,” he cried begging her to bring him some food. “Gaw-col-ah,” she screamed back derisively. But he kept calling plaintively, and after a minute or so he uttered a joyful scream. His mother had picked up a piece of the fish and was flying across to him with it. He leaned out eagerly, tapping the rock with his feet, trying to get nearer to her as she flew across. But when she was just opposite to him, she halted, her wings motionless, the piece of fish in her beak almost within reach of his beak. He waited a moment in surprise, wondering why she did not come nearer, and then maddened by hunger, he dived at the fish.

Word-meanings : Derisively = scornfully (दुःख से); plaintively = sadly (उदासी से); halted = stopped (रुका); dived = jumped (छलाँग लगाई)।

Questions :

(a) Name the chapter this passage has been taken from.
(b) Who screamed back derisively ?
(c) What had his mother picked up?
(d) Maddened by hunger, what did the seagull do ?
(e) Find words from the passage which mean the same as: (i) stopped (ii) jumped.

Part II: The Black Aeroplane

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
Why was the pilot happy ? Give two reasons.
Answer:
He was happy because he was flying up above the sleeping countryside. Secondly, he was going to be with his family.

Question 2.
Why did the pilot call the Paris Control Room the first time ?
Answer:
He called the Paris Control Room to guide him on his way to England.

Question 3.
What was the advice of the Paris Control ?
Answer:
The Paris Control advised him to turn twelve degrees west.

Question 4.
How many fuel tanks were there in the plane? How much fuel was left ?
Answer:
There were two fuel tanks in the plane. There was fuel for five or ten minutes only.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 5.
What did the pilot encounter 150 kilometers from Paris?
Answer:
He encountered big stormy clouds 150 kilometers from Paris.

Question 6.
Why did the pilot fly straight into the storm instead of returning to Paris ?
Answer:
He did not return to Paris because he wanted to get home.

Question 7.
Did Paris control hear the pilot the second time he called ? Why?
Answer:
The Paris Control did not hear him because his radio had gone dead.

Question 8.
Which plane was the narrator flying ?
Answer:
He was flying the old Dakota plane DS088.

Question 9.
Which country was the narrator flying his plane over ?
Answer:
He was flying his plane over France.

Question 10.
What type of a story is the ‘Black Aeroplane ?
Answer:
It is a mysterious story.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Describe the black clouds from the point of view of the pilot. (पायलट के दृष्टिकोण से काले बादलों का वर्णन करो।)
Answer:
The writer was going from France to England. He was flying his Dakota aeroplane. When he had gone 150 kilometers from France, he saw storm clouds. They were huge. They looked like black mountains standing in front of him across the sky.
(लेखक फ्रांस से इंग्लैंड जा रहा था। वह अपना डाकोटा हवाई जहाज़ उड़ा रहा था। जब वह फ्रांस से 150 किलोमीटर जा चुका था, तो उसने तूफानी बादल देखे। वे बहुत बड़े थे। वे आकाश में उसके सामने खड़े काले पहाड़ प्रतीत होते थे।)

Question 2.
Recount the experience of the pilot of the Dakota inside the black clouds. (काले बादलों में डाकोटा के पायलट के अनुभव का वर्णन करो।)
Answer:
The pilot found that everything was black inside the clouds. It was impossible to see anything outside the aeroplane. The old aeroplane rolled and jumped in the air. The compass and other instruments stopped working. Suddenly his radio also went dead.
(पायलट ने देखा कि बादलों के अंदर हर वस्तु काली थी। हवाई जहाज़ के बाहर कुछ भी देखना असंभव था। पुराना जहाज़ हवा में लुढ़क एवं कूद रहा था। दिशा-सूचक यंत्र एवं अन्य यंत्रों ने काम करना बंद कर दिया। अचानक उसका रेडियो भी खराब हो गया।)

Question 3.
How did the black aeroplane rescue the first pilot ? (काले हवाई जहाज ने पहले पायलट को कैसे बचाया ?)
Answer:
The pilot of the black aeroplane waved his hand. He gestured the first pilot to follow him. The writer followed him. He followed the black plane for half an hour. Suddenly, his plane was out of the clouds. He could see the lights of the airport and landed his aeroplane. In this way, the black aeroplane rescued the first pilot.
(काले हवाई जहाज़ के पायलट ने अपना हाथ हिलाया। उसने पहले पायलट को अपने पीछे आने का इशारा किया। लेखक ने उसका पीछा किया। उसने काले जहाज़ का आधे घंटे तक पीछा किया। अचानक उसका जहाज़ बादलों से बाहर था। वह हवाई अड्डे की रोशनियाँ देख सकता था और उसने जहाज़ को नीचे उतार दिया। इस प्रकार काले जहाज़ ने पहले पायलट को बचाया।)

Question 4.
Was the pilot of the Dakota able to meet the pilot of the black aeroplane ? (क्या डाकोटा का पायलट काले हवाई जहाज के पायलट को मिलने में सफल हुआ ?)
Answer:
No, he was not able to meet the pilot of the black aeroplane. When he was going to land his plane, he looked behind him. But the black plane was not there. The sky was empty. The woman at the control centre told him that no other planes were flying on that stormy night.
(नहीं, वह काले हवाई जहाज़ के पायलट को मिलने में सफल नहीं हुआ। जब वह उसका जहाज़ उतार रहा था उसने मुड़कर देखा। मगर काला हवाई जहाज़ वहाँ नहीं था। आकाश खाली था। नियंत्रण केंद्र की स्त्री ने उसे बताया कि उस तूफानी रात में कोई अन्य जहाज़ नहीं उड़ रहे थे।)

Question 5.
Why did the writer feel frightened once again ? (लेखक एक बार फिर से क्यों भयभीत हो गया ?) .
Answer:
The pilot of the black plane waved to the writer to follow him. The writer flew his plane behind him for half an hour. He found that there was fuel in his aeroplane for five or ten minutes more. So he felt frightened once again. ..
(काले जहाज के पायलट ने लेखक को इशारा किया कि वह उसका अनुसरण करे। लेखक आधे घंटे तक अपने जहाज को उसके पीछे उड़ाता रहा। उसने महसूस किया कि जहाज में पाँच से दस मिनट के लिए ही ईंधन है। इसलिए वह फिर से भयभीत हो गया।)

Essay Type Questions

Question 1.
The author asks a question at the end, “Who was the pilot on the strange black aeroplane ?” Try to answer this question.
(लेखक अंत में एक प्रश्न पूछता है, “उस अजीब काले वायुयान में पायलट कौन था ?” इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयत्न कीजिए।
Answer:
‘The BlackAeroplane’ is an interesting story. The writer is a pilot. One day, he was returning from France in his Dakota aeroplane. He was going to England. Suddenly, he saw huge storm clouds on his way.

He had not much fuel in his plane. So he could not fly around the clouds. He took a risk and entered the clouds. His compass and other instruments failed. His radio also went out of order. The writer’s life was in danger. Suddenly, he saw a black aeroplane near him. The pilot of the plane gestured him to follow him. The writer followed him and landed his plane safely. But when he looked back, he did not find the black aeroplane anywhere. The woman at the control tower told him that there had been no other plane that night. Then who saved the writer’s life? Who was the pilot of the black aeroplane ? The writer had no answer to these questions. Thus it is a mysterious story.

(‘The BlackAeroplane’ एक रोचक कहानी है। लेखक एक पायलट है। एक दिन वह अपने डाकोटा जहाज़ में फ्रांस से लौट . रहा था। वह इंग्लैंड जा रहा था। अचानक उसने अपने रास्ते में बड़े-बड़े तूफानी बादल देखे। उसके जहाज़ में अधिक ईंधन नहीं था। इसलिए वह बादलों के इर्द-गिर्द से नहीं उड़ सकता था। उसने खतरा मोल लिया और बादलों में प्रवेश कर लिया। उसका दिशा-सूचक यंत्र एवं अन्य यंत्र बंद हो गए। उसका रेडियो भी खराब हो गया। लेखक का जीवन खतरे में था। अचानक उसने अपने नज़दीक एक काला हवाई जहाज़ देखा। जहाज़ के पायलट ने उसे इशारा किया कि वह उसके पीछे आए। लेखक ने उसका पीछा किया एवं जहाज़ को सुरक्षात्मक रूप से नीचे उतार लिया। मगर जब उसने मुड़कर पीछे देखा तो उसे काला हवाई जहाज़ कहीं भी नज़र नहीं आया। कंट्रोल टॉवर की स्त्री ने उसे बताया कि उस रात वहाँ पर कोई भी अन्य जहाज़ नहीं था। तो फिर लेखक की जान किसने बचाई ? काले जहाज़ का पायलट कौन था ? लेखक के पास इन प्रश्नों का उत्तर नहीं था। इस प्रकार, यह एक रहस्यात्मक कथा है।)

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 2.
Describe the flight of the pilot before he encountered dark clouds.
(काले बादलों से सामना होने से पहले पायलट की उड़ान का वर्णन करो।)
Answer:
The writer of this story is a pilot. One night he was flying his old Dakota aeroplane over France. It was a starry night. He was going to England. He hoped to spend his holiday with his family. It was an easy journey and he was in a joyful mood. He looked at his watch. It was one thirty in the morning. Through – his wireless, he contacted the Paris Control. They told him to turn twelve degrees west. He did as he was advised to do. He was 150 kilometres from Paris. Suddenly the writer saw huge black clouds before him. It was not possible to fly up and over the clouds. He had not much fuel with him. So it was not possible to fly around the big mountains of clouds to the right or left. He decided to take the risk and flew his aeroplane straight into the clouds.

(इस कहानी का लेखक एक पायलट है। एक दिन वह अपना पुराना डाकोटा हवाई जहाज़ फ्रांस के ऊपर उड़ा रहा था। यह एक तारों-भरी रात थी। वह इंग्लैंड जा रहा था। उसे अपनी छुट्टियाँ अपने परिवार के साथ बिताने की आशा थी। यात्रा आसान थी एवं वह प्रसन्नचित्त था। उसने अपनी घड़ी देखी। सुबह के एक बजकर तीस मिनट हुए थे। उसने अपने बेतार से पेरिस कंट्रोल से संपर्क किया। उन्होंने उसे बारह डिग्री पश्चिम में मुड़ने को कहा। उसे जैसा कहा गया उसने वैसा ही किया। वह पेरिस से 150 किलोमीटर दूर आ गया था। अचानक लेखक ने अपने सामने बड़े-बड़े बादल देखे। बादलों के ऊपर से उड़ान भरना संभव नहीं था। उसके पास अधिक ईंधन नहीं था। इसलिए बादलों के बड़े पहाड़ों के गिर्द दाएँ या बाएँ से जाना संभव नहीं था। उसने खतरा मोल लेने का फैसला किया और अपने जहाज़ को उड़ाकर सीधे बादलों में ले गया।)

Question 3.
How was the writer rescued ? (लेखक को कैसे बचाया गया ?)
Answer:
The writer flew his aeroplane into the big dark clouds. As he entered the clouds, everything suddenly went black. He found that his compass had ceased to work. He tried to contact the Paris Control for directions. But he was shocked to find that his radio had also stopped working. Suddenly, the writer saw a black aeroplane near him. He could also see the pilot in it. The pilot waved the writer to follow him. He followed the black aeroplane like an obedient child. Now it was half an hour since the writer had been following the black aeroplane. He was worried because the fuel in his plane could last only five or ten minutes. But just then the black aeroplane started to go down and the writer followed it. Suddenly the writer was out of the clouds. He could see the lights of the runway of the airport. The writer landed his Dakota aeroplane. In this way, he was rescued.

(लेखक अपने जहाज़ को उड़ाकर बड़े काले बादलों के बीच ले गया। जब वह बादलों में घुसा तो हर वस्तु अचानक काली हो गई। उसने देखा कि उसके दिशा-सूचक यंत्र ने काम करना बंद कर दिया था। उसने निर्देशों के लिए पेरिस कंट्रोल को संपर्क करने का प्रयत्न किया। मगर उसे यह देखकर धक्का लगा कि उसके रेडियो ने भी काम करना बंद कर दिया था। अचानक, लेखक ने अपने पास एक काला हवाई जहाज़ देखा। वह उसके अंदर के पायलट को भी देख सकता था। पायलट ने लेखक को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। वह काले जहाज़ के पीछे-पीछे एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह गया। अब उसे काले जहाज़ का पीछा करते आधा घंटा हो गया था। उसे चिंता हो गई, क्योंकि उसके जहाज़ में केवल पाँच या दस मिनट का ईंधन ही रह गया था। मगर तभी काले जहाज़ ने नीचे जाना आरंभ किया और लेखक ने उसका पीछा किया। अचानक लेखक बादलों से बाहर था। वह हवाई अड्डे की पट्टी की रोशनियों को देख सकता था। लेखक ने अपना डाकोटा जहाज़ उतारा। इस प्रकार वह बच गया।)

Multiple Choice Questions

Question 1.
What was coming up in the east behind the pilot ?
(A) the moon
(B) the sun
(C) the stars
(D) all of the above
Answer:
(A) the moon

Question 2.
Which plane was the author flying ?
(A) Dakota
(B) Boing-47
(C) Mig-29
(D) none of the above
Answer:
(A) Dakota

Question 3.
Which country was the pilot flying over ?
(A) England
(B) France
(C) India
(D) Italy
Answer:
(B) France

Question 4.
Which country did the pilot belong to ?
(A) England
(B) France
(C) India
(D) Italy
Answer:
(A) England

Question 5.
What happened when the pilot had covered a distance of 150 kilometres from Paris ?
(A) he saw another plane
(B) a strong wind began to blow
(C) a heavy rain began to fall
(D) there were storm clouds all around
Answer:
(D) there were storm clouds all around

Question 6.
Inside the clouds how was everything ?
(A) green
(B) fresh
(C) black
(D) all of the above
Answer:
(C) black

Question 7.
What happened as the plane entered the storm clouds ?
(A) the aeroplane jumped and twisted in the air
(B) the compass was dead
(C) the other instruments were suddenly dead
(D) all of the above
Answer:
(D) all of the above

Question 8.
When the author’s plane was caught in the storm who came to help him?
(A) another aeroplane
(B) a helicopter
(C) a god
(D) all of the above
Answer:
(A) another aeroplane

Question 9.
How did the author follow the strange aeroplane ?
(A) like a disciplined soldier
(B) like an obedient boy
(C) like a mischievous boy
(D) all of the above
Answer:
(B) like an obedient boy

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

Question 10.
What made the pilot frighten again while following the strange aeroplane ?
(A) the density of the storm
(B) the technical problem in the engine
(C) the shortage of fuel
(D) all of the above
Answer:
(C) the shortage of fuel

Question 11.
What did the pilot notice when he was safe at the airport ?
(A) the other plane was still in the sky
(B) the sky was empty
(C) the other plane was following him
(D) none of the above
Answer:
(B) the sky was empty

Question 12.
What was the advice of Paris control ?
(A) turn to twelve degree east
(B) turn to twelve degree west
(C) turn to twelve degree south
(D) turn to twelve degree north
Answer:
(B) turn to twelve degree west

Question 13.
How many fuel tanks were there in the plane DS 088 ?
(A) one
(B) two
(C) three
(D) four
Answer:
(B) two

Question 14.
Did Paris Control hear the pilot the second time he called ?
(A) yes
(B) no
(C) may be
(D) not know
Answer:
(B) no

Question 15.
Who is the author of the lesson ‘The Black Aeroplane’?
(A) Cynthia Moss
(B) Frederick Forsyth
(C) Kofi Annan
(D) Liam O’Flaherty
Answer:
(B) Frederick Forsyth

The Black Aeroplane Important Passages For Comprehension

PASSAGE 1

The moon was coming up in the east, behind me, and stars were shining in the clear sky above me. There wasn’t a cloud in the sky. I was happy to be alone high up above the sleeping countryside. I was flying my old Dakota aeroplane over France back to England. I was dreaming of my holiday and looking forward to being with my family. I looked at my watch : one thirty in the morning.

I should call Paris Control soon,’ I thought. As I looked down past the nose of the aeroplane, I saw the lights of a big city in front of me. I switched on the radio and said, “Paris Control, Dakota DS 088 here. Can you hear me ? I’m on my way to England. Over.”

The voice from the radio answered me immediately: “DS 088, I can hear you. You ought to turn twelve degrees west now, DS 088. Over.”

Word-meanings : Countryside = rural area ( ग्रामीण क्षेत्र); looking forward to = waiting eagerly (उस्तुकदा से इतजारा करना ); immediately = at once (एकदम )

Questions :
(a) What did the writer see when he looked down past the nose of the aeroplane?
(b) What did he do to talk to Paris Control?
(c) What plane was the writer flying?
(d) Where was he going?
(e) What advice did he get from Paris Control?
Answers :
(a) He saw the lights of a big city in front of him.
(b) He switched on the radio to talk to the Paris control.
(c) The writer was flying Dakota DS 088.
(d) He was going to England.
(e) He got advice to turn twelve degrees west.

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PASSAGE 2

I checked the map and the compass, switched over to my second and last fuel tank, and turned the Dakota twelve degrees west towards England.

“I’ll be in time for breakfast,’ I thought. A good big English breakfast! Everything was going well-it was an easy flight.

Paris was about 150 kilometres behind me when I saw the clouds. Storm clouds. They were huge. They looked like black mountains standing in front of me across the sky. I knew I could not fly up and over them, and I did not have enough fuel to fly around them to the north or south.

“I ought to go back to Paris,” I thought, but I wanted to get home. I wanted that breakfast.
I’ll take the risk,’ I thought, and flew that old Dakota straight into the storm.

Word-meanings : Compass = instrument for telling direction (दिशा सूचकयंत्र); fuel = petrol, diesel etc. (ईंधन ); huge = big (बड़े ); risk = danger (खतरा)

Questions :

(a) Where did the writer turn his aeroplane ?
(b) What did he think about his breakfast ?
(c) When did he see the clouds ?
(d) How did the clouds look ?
(e) Find words from the passage which mean the same as:
(1) big, (ii) danger.
Answers :
(a) The writer turned his aeroplane twelve degrees west towards England.
(b) He thought that he would be in time for breakfast.
(c) He saw the clouds when he was about 150 kilometres from Paris.
(d) The clouds looked like huge mountains.
(e) (i) huge, (ii) risk.

PASSAGE 3

Inside the clouds, everything was suddenly black. It was impossible to see anything outside the aeroplane. The old aeroplane jumped and twisted in the air. I looked at the compass. I couldn’t believe my eyes : the compass was turning round and round and round. It was dead. It would not work! The other instruments were suddenly dead, too. I tried the radio.
“Paris control ? Paris control ? Can you hear me ?”
There was no answer. The radio was dead too. I had no radio, no compass, and I could not see where I was. I was lost in the storm.

Word-meanings : Suddenly = at once (एकदम); twisted = rolled (हिलना); instruments = machines (यंत्र)

Questions :

(a) Name the chapter these lines have been taken from.
(b) How was the scene inside the clouds ?
(c) How did the old aeroplane behave ?
(d) What happened to the compass and other instruments ?
(e) Why did the writer not receive a reply from the Paris Control ?
Answers :
(a) These lines have been taken from the chapter ‘The Black Aeroplane’.
(b) Inside the clouds, everything was suddenly black.
(c) The old aeroplane jumped and twisted in the air.
(d) The compass and other instruments went dead.
(e) He did not receive a reply because his radio was dead.

PASSAGE 4

“Paris Control? Paris Control? Can you hear me?”
There was no answer. The radio was dead too. I had no radio, no compass, and I could not see where I was. I was lost in the storm. Then, in the black clouds quite near me, I saw another aeroplane. It had no lights on its wings, but I could see it flying next to me through the storm. I could see the pilot’s face-turned towards me. I was very glad to see another person. He lifted one hand and waved.

“Follow mę,” he was saying. “Follow me.” “He knows that I am lost,” I thought. “He’s trying to help me.”
He turned his aeroplane slowly to the north, in front of my Dakota, so that it would be easier for me to follow him. I was very happy to go behind the strange aeroplane like an obedient child.

Word-meanings : Compass = instrument for telling direction (दिशा सूचक यंत्र ); follow = come after (पीछा करना); obedient = one who obeys the orders (आज्ञाकारी )

Questions :
(a) How do you know that the pilot was completely lost in the storm?
(b) Where did the writer see the another plane?
(c) According to the writer, why was the another plane there?
(d) What did the pilot of Dakota do when the other pilot gave him a signal?
(e) Which word in the passage means the same as “an instrument used to know the direction ?
Answers :
(a) The pilot had no radio, no compass and he could not see where he was.
(b) He saw the another plane in the black cloud just near him.
(c) According to the writer, the another plane was there to help him.
(d) The pilot of Dakota followed the other plane like an obedient boy.
(e) ‘Compass’.

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PASSAGE 5

He turned his aeroplane slowly to the north, in front of my Dakota, so that it would be easier for me to follow him. I was very happy to go behind the strange aeroplane like an obedient child.
After half an hour the strange black aeroplane was still there in front of me in the clouds. Now there was only enough fuel in the old Dakota’s last tank to fly for five or ten minutes more. I was starting to feel frightened again. But then he started to go down and I followed through the storm. [B.S.E.H. 2020 (Set-C)]

Word-meanings : Obedient = one who obeys the orders (आज्ञाकारी); frightened = terrified (भयभीत); followed = chased (पीछा किया ) |

Questions :

(a) Name the chapter and its author.
(b) What did the other pilot do and why?
(c) How did the narrator follow the strange aeroplane ?
(d) Why did the narrator feel terrified again ? (e) What is the noun form of “obedient” ?
Answers :
(a) Chapter : ‘The Black Aeroplane’.
Author : Frederick Forsyth’.
(b). He turned his aeroplane slowly to the porth because it was easier to follow the other aeroplane by the Dakota aeroplane’s Pilot.
(c) He followed the strange aeroplane like an obedient child.
(d) The narrator felt terrified again because there was only enough fuel in plane’s tank to fly for five or ten minutes more.
(e) “Obedience”.

PASSAGES FOR PRACTICE (UNSOLVED)

PASSAGE 6

Then, in the black clouds quite near me, I saw another aeroplane. It had no lights on its wings, but I could see it flying next to me through the storm. I could see the pilot’s face turned towards me. I was very glad to see another person. He lifted one hand and waved.
“Follow me,” he was saying. “Follow me.”
‘He knows that I am lost,’ I thought. “He’s trying to help me.’ He turned his aeroplane slowly to the north, in front of my Dakota, so that it would be easier for me to follow him. I was very happy to go behind the strange aeroplane like an obedient child.

Word-meanings : Glad = happy (प्रसन्न); waved = shook (हिलाया); follow = come after (पीछा करना ); obedient = one who obeys (आज्ञाकारी)

Questions :
(a) Name the chapter this passage has been taken from.
(b) What did the writer see?
(c) What did the pilot of the black aeroplane do?
(d) What did the writer think?
(e) What was the writer happy to do?

PASSAGE 7

After half an hour the strange black aeroplane was still there in front of me in the clouds. Now there was only enough fuel in the old Dakota’s last tank to fly for five or ten minutes more. I was starting to feel frightened again. But then he started to go down and I followed through the storm.
Suddenly I came out of the clouds and saw two long straight lines of lights in front of me. It was a runway! An airport ! I was safe ! I turned to look for my friend in the black aeroplane, but the sky was empty. There was nothing there. The black aeroplane was gone. I could not see it anywhere.

Word-meanings : Frightened = terrified (भयभीत); followed = chased (पीछा किया); run away = a strip of land at the airport (हवाई हड्डे की पट्टी)

Two Stories about Flying Summary

His First Flight Introduction in English

This is an imaginary story. The story conveys the message that one learns by taking courage and not by sitting idle. A young seagull is fed lovingly by his parents. But when the time comes for him to fly, he feels afraid. His parents try many tricks to teach him to fly. But he is so afraid that he refuses to fly. At last, his mother hits upon a plan. She tempts him with food in her beak. But she only flies near his ledge but does not land there. In order to get food, the hungry seagull comes to the edge of the rock and falls from it. At first he is terrified but then he opens his wings and starts flying. He is happy to note that he did not fall in the sea. În this way, the young seagull learns how to fly.

His First Flight Summary in English

This is an imaginary story of a young seagull. The time had come when he must learn how to fly. His two brothers and a little sister had learnt how to fly by emulating their parents. They had simply run to brink of the ledge, flapped their wings and flown a way. But when the young seagull came to the brink and tried to fly in the air, he became afraid. He felt sure that if he tried to fly, he would fall into the sea below. So he ran back to his hole on the ledge.

The seagull’s parents came to take him along with them. But he refused to fly. They threatened that he would starve on the ledge. But the bird was too afraid to move. Twenty four hours passed. The seagull had not eaten anything. He began to feel very hungry. He saw his mother sitting on a plateau. She was eating a fish. This sight only increased his hunger. He requested his mother to bring him some food. The mother looked at him derisively. But then she picked up a piece of fish and flew towards him.

The mother did not come to him. She halted her wings and became motionless. The seagull wondered why she was not coming near him. He could not bear it any longer. He was maddened by hunger. He dived at fish. He could not reach his mother but fell from the ledge downwards into space. He was filled with fear and cried. But this fear lasted only a minute. He spread his wings and tried to fly. Suddenly he found that he was flying. He cried with joy and started flying higher and higher. His parents, brothers and sister flew around him and screamed with joy.

After some time, the seagull’s parents, brothers and sister landed on the sea. They asked him to come there. The seagull thought that it was green flooring. He dropped his legs to stand on the green sea. His legs sank into it and he cried with fear. But his belly touched the water and he did not drown. He began to float on the sea. His family members praised him and gave him pieces of fish to eat. Thus the seagull had made his first flight.

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

His First Flight Introduction in Hindi

(यह एक काल्पनिक कहानी है। कहानी यह संदेश देती है कि कोई व्यक्ति साहस के साथ ही कुछ करना सीखता है न कि निकम्मा बैठे रहने से। एक छोटे सीगल पक्षी को उसके माता-पिता के द्वारा लाड़-प्यार के साथ भोजन खिलाया जाता है। लेकिन जब उसके लिए उड़ान भरने का समय आता है तो वह डर जाता है। उसके माता-पिता उसे उड़ना सिखाने के लिए बहुत-सी चालें चलते हैं। लेकिन वह इतना भयभीत है कि उड़ान भरने से मना कर देता है। अंत में, उसकी माँ को एक योजना सूझी। वह अपनी चोंच में भोजन लेकर उसे ललचाती है। लेकिन वह केवल उसकी चट्टान तक ही उड़ान भरती है, लेकिन वहाँ नीचे नहीं उतरती है। भूखा सीगल पक्षी भोजन प्राप्त करने के लिए चट्टान के सिरे तक आता है और उससे नीचे गिर जाता है। पहले तो वह भयभीत हो जाता है लेकिन तब वह अपने पंख फैलाता है और उड़ना शुरु कर देता है। वह यह देखकर बड़ा प्रसन्न होता है कि अब वह समुद्र में नीचे नहीं गिर रहा था। इस प्रकार से छोटा सीगल पक्षी उड़ना सीखता है।)

His First Flight Summary in Hindi

यह एक शिशु सीगल पक्षी की काल्पनिक कहानी है। वह समय आ गया था जब उसे अवश्य ही उड़ना सीखना था। उसके दो भाइयों एवं छोटी-सी बहन ने अपने माता-पिता की नकल करके उड़ना सीख लिया था। वे केवल शिखाफलक के किनारे तक पहुँचे थे, अपने पंख फड़फड़ाए और उड़ गए थे। मगर जब बच्चा सीगल पक्षी किनारे तक आया एवं हवा में उड़ने का प्रयास किया, वह डर गया। उसे विश्वास था कि अगर उसने उड़ने का प्रयत्न किया तो वह नीचे सागर में गिर जाएगा। इसलिए वह भागकर शिखाफलक पर अपने छिद्र में चला गया।

सीगल पक्षी के माता-पिता उसे अपने साथ लेने आए। मगर उसने उड़ने से इंकार कर दिया। उन्होंने धमकी दी कि वह शिखाफलक पर भूखा मर जाएगा। मगर पक्षी इतना भयभीत था कि वह उड़ा नहीं। चौबीस घंटे बीत गए। सीगल पक्षी ने कुछ नहीं खाया था। उसे बहुत भूख लगनी आरंभ हो गई। उसने अपनी माँ को एक पठार पर बैठे देखा। वह एक मछली खा रही थी। इस दृश्य ने केवल उसकी भूख को और बढ़ा दिया। उसने अपनी माँ से उसके लिए कुछ भोजन लाने की प्रार्थना की। माँ ने उसकी ओर निंदात्मक तरीके से देखा। मगर तब उसने मछली का एक टुकड़ा उठाया एवं उसकी तरफ उड़कर आई।

माँ उस तक नहीं आई। उसने अपने पंख रोक दिए एवं गतिहीन बन गई। सीगल पक्षी को हैरानी हुई कि वह उसके पास क्यों नहीं आ रही थी। वह और अधिक सहन नहीं कर सका। वह भूख से पागल हो गया। उसने मछली पर छलांग लगाई। वह अपनी माँ तक नहीं पहुँच सका, मगर वह शिखाफलक से नीचे हवा में गिर गया। वह भयभीत हो गया एवं चिल्लाया। मगर यह भय केवल एक मिनट तक रहा। उसने अपने पंख फैलाए एवं उड़ने का प्रयत्न किया। अचानक उसने देखा कि वह उड़ रहा था। वह खुशी से चिल्लाया और अधिक ऊँचा उड़ना आरंभ कर दिया। उसके माता-पिता, भाई एवं बहन उसके चारों ओर उड़े और खुशी से चिल्लाए।

कुछ देर के बाद, सीगल के माता-पिता, भाई और बहन समुद्र की सतह पर उतर गए। उन्होंने उसे वहाँ आने के लिए कहा। सीगल ने सोचा था कि यह एक हरा फर्श है। उसने हरे समुद्र पर खड़े होने के लिए अपनी टाँगें नीचे कीं। उसकी टाँगें इसमें डूब गईं और वह डर के मारे चिल्लाया। परंतु उसके पेट ने पानी को छुआ और वह डूबा नहीं। उसने समुद्र में तैरना आरंभ कर दिया। उसके परिवार के सदस्यों ने उसकी प्रशंसा की और उसे मछली के टुकड़े खाने के लिए दिए। इस प्रकार सीगल ने अपनी पहली उड़ान भर ली थी।

His First Flight Word-Meanings

[PAGE 32] : Seagullsa sea bird (समुद्री पक्षी); ledge=a part of arock that is jutting out (शिखाफलक); brink= edge (किनारा); flap = move (फड़फड़ाना); expanse = stretch (फैलाव); beneath = under (के नीचे); muster = gather (इकट्ठा करना); courage = boldness (साहस); desperate = full of disappointment (निराशापूर्ण)।

[PAGE 33] : Shrilly = in a sharp voice (तीखी आवाज़ में); upbraiding = rebuking (डाँटना); watched = saw (देखा); perfecting = making perfect (पूर्ण करना); skim = touch lightly (हल्के-से छूना); herring = fish (मछली); devour = eat (खाना); cackle = sound of a bird (पक्षी की आवाज़); plateau = level stretch on a mountain (पठार); cliff = hill (पहाड़ी); taunting = mocking (व्यंग्य करना); cowardice = lack of courage (कायरता); ascending = rising (उठना); blazing = burning (जलना)।

[PAGE 34] : Pretended = made a show (दिखावा किया); dozing = sleeping (ऊँघना); preening = dressing (सँवारना); hump = raised rock (उठी हुई चट्टान); scrapped =rubbed (रगड़ना); whet = sharpen (तीखा करना); screamed = cried (चिल्लाया); derisively = scornfully (निंदा से); plaintively = sadly (उदासी से); uttered = spoke (बोला); leaned = bent forward (आगे झुका)।

[PAGE 35] : Dived = jumped (कूदा); scream = cry (चीख); swoop = fly (उड़ना); swish = soft sound (हल्की आवाज़); monstrous = very big (बहुत बड़ा); stomach = belly (पेट); soaring = flying (उड़ना); gradually = slowly (धीरे-धीरे); curveting = jumping (कूदना); commended = praised (तारीफ करना); shrieking = crying (चिल्लाना); vast= big (बड़ा); ridges = small waves (छोटी लहरें); beckoning = calling (पुकारना); fright= fear (डर); exhausted = tired (थका हुआ)।

[PAGE 36] : Belly = stomach (पेट); floating = swimming (तैरना) praising = admiring (तारीफ करना); scraps = pieces (टुकड़े)।

His First Flight Translation in Hindi

पढ़ने से पहले आरंभिक काल से ही मनुष्य का आसमान पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न रहा है। यहाँ उड़ान भरने से संबंधित दो कहानियाँ दी गई हैं।

[PAGE 32] : बच्चा सीगल पक्षी अपनी शिखाफलक पर अकेला था। उसके दो भाई एवं उसकी बहन एक दिन पहले ही उड़ गए थे। वह उनके साथ उड़ने से डरता था। किसी रूप में जब वह थोड़ा-सा दौड़कर शिखाफलक के किनारे तक आया था और उसने अपने पंख फड़फड़ाने का प्रयत्न किया था तो वह डर गया था। सागर का महान् विस्तार उसके सामने फैला हुआ था और नीचे की तरफ कितना लंबा रास्ता था मीलों नीचे। उसे पक्के तौर पर ऐसा लगा कि उसके पंख कभी उसे सहारा नहीं देंगे, इसलिए उसने अपना सिर झुकाया और शिखाफलक के नीचे छोटे-से छेद में आ गया जहाँ वह रात को सोया था। यहाँ तक कि जब उसके दोनों भाइयों एवं उसकी बहन ने, जिनके पंख उसके पंखों से छोटे थे अपने पंख फड़फड़ाए एवं उड़ गए, तो भी वह उस साहसिक कदम को उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया जो उसे बहुत अधिक निराशाजनक लगता था। उसके माता एवं पिता उसके पास आ गए थे और उसे चीख-चीखकर पुकार रहे थे, उसे डाँट रहे थे,

[PAGE 33] : उसे भूखा रखने की धमकी दे रहे थे, अगर वह नहीं उड़ेगा तो। मगर वह किसी भी हालत में हिल नहीं सका। ऐसा चौबीस घंटे पहले हुआ था। तब से उसके पास कोई नहीं आया था। उससे पहले दिन, सारा दिन अपने माता-पिता को उसके भाइयों एवं बहनों के साथ उड़ते, और उन्हें उड़ने की कला में पारंगत करते हुए तथा यह सिखाते हुए कि कैसे लहरों को हल्के-से . छूना है और मछलियों के लिए डुबकी लगानी है, वास्तव में उसने अपने बड़े भाई को अपनी पहली मछली पकड़ते एवं उसे एक चट्टान पर खड़े होकर खाते देखा था जबकि उसके माता-पिता आसपास चक्कर काटते हुए गर्व से चिल्ला रहे थे और सारी प्रातः पूरा परिवार सामने की पहाड़ी के बीच के पठार पर चलता रहा था और उसकी कायरता के लिए उसे चिढ़ाता रहा था।

अब सूर्य आकाश में चढ़ रहा था और उसको तेज रोशनी से चमका रहा था जोकि दक्षिण की तरफ था। उसे गर्मी महसूस हुई क्योंकि उसने पिछली रात से कुछ नहीं खाया था।

वह धीरे-धीरे शिखाफलक के किनारे तक आ गया और एक टाँग पर खड़े होकर तथा दूसरी टाँग को अपने पंख के नीचे छुपाकर उसने सोए हुए होने का ढोंग किया।

PAGE 34] : फिर भी उन्होंने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अपने दोनों भाइयों एवं बहन को पठार पर लेटे हुए तथा अपने सिर को अपनी गर्दन में छिपाकर ऊँघते देखा। उसका पिता अपनी सफेद गर्दन के ऊपर वाले पंखों को साफ कर रहा था। केवल उसकी माता ही उसकी ओर देख रही थी। वह पठार के ऊपर एक छोटे-से टीले पर खड़ी थी और उसकी सफेद छाती आगे को बढ़ी हुई थी। थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह उस मछली के टुकड़े जो उसके कदमों के पास था, उसे नोचकर खाती थी और फिर वह अपनी चोंच के दोनों सिरों को बारी-बारी से चट्टान पर रगड़ती थी। भोजन को देखकर वह पागल हो उठा। उसे उस तरह से नोच-नोचकर भोजन खाना और अपनी चोंच को तेज करने के लिए उसे पत्थर पर रगड़ना उसे बहुत अच्छा लगता था।
“गा, गा, गा,” वह चिल्लाया एवं उससे प्रार्थना की कि वह उसके लिए कुछ भोजन लाए। “गा-कोल-आह” वह निंदाजनक ढंग से वापिस चिल्लाई। मगर वह उदासी से चिल्लाता रहा और लगभग एक मिनट के बाद उसने प्रसन्नता से चीख मारी। उसकी माँ ने मछली का एक टुकड़ा उठा लिया था और उसे लेकर उसकी तरफ उड़कर आ रही थी।

[PAGE 35] : वह उत्सुकता से चट्टान पर पाँव पटकता हुआ आगे की ओर झुका और जबकि वह उड़ रही थी, उसकी तरफ और निकट आने का प्रयास किया। मगर जब वह बिल्कुल उसके सामने थी, वह रुक गई। उसके पंख गतिहीन हो गए और उसकी चोंच में मछली का टुकड़ा लगभग उसकी (बच्चे की) चोंच की पहुँच में था। उसने हैरानी से एक क्षण इंतजार किया, उसे हैरानी हो रही थी कि वह नजदीक क्यों नहीं आ रही थी और फिर भूख से पागल हो वह मछली पर झपटा। एक जोरदार चीख के साथ वह आगे एवं नीचे खाली स्थान में गिरा। तब बहुत बड़े डर ने उसे जकड़ लिया एवं उसका दिल थम गया। वह कुछ नहीं सुन सकता था।

मगर ऐसा केवल एक मिनट के लिए हुआ। अगले क्षण उसने अपने पंखों को बाहर की ओर फैलते हुए महसूस किया। हवा उसके छाती के पंखों से टकराई, तब उसके पेट के नीचे एवं फिर उसके पंखों से। वह अपने पंखों के सिरों को हवा को काटते महसूस कर सकता था। अब एकदम सीधा नहीं गिर रहा था। वह धीरे-धीरे नीचे एवं बाहर की ओर उड़ रहा था। अब वह भयभीत नहीं था। वह केवल थोड़ा-सा भौचक्का महसूस कर रहा था। तब उसने अपने पंखों को एक बार फड़फड़ाया और वह ऊँचा उठा। “गा-गा-गा-गा-गा-गा-गा-कोल-आह” कहती हुई उसकी माँ उसके पास से तेजी से निकल गई, जबकि उसके पंख तेज़ आवाज़ पैदा कर रहे थे। उसने अपनी माँ का जवाब एक अन्य चीख से दिया। तब उसका पिता चीखता हुआ उसके ऊपर उड़ा। उसने अपने दो भाइयों और अपनी बहन को उछल-कूद करते हुए बिना पंख हिलाए उड़ते हुए तथा डुबकी लगाते हुए अपने इर्द-गिर्द उड़ते हुए देखा।

फिर वह पूरी तरह से भूल गया कि वह कभी भी उड़ने में असमर्थ था और उसने स्वयं की गोता लगाने, मँडराने और तिरछा उड़ने के लिए तारीफ की और खुशी से चीखने लगा।

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अब वह सागर के निकट था और सीधे उसके ऊपर उड़ रहा था, बिना किसी झिझक के वह सागर के ऊपर था। उसने अपने नीचे विशाल हरा सागर देखा जिसके ऊपर छोटी-छोटी लहरें हिल रही थी और उसने अपनी चोंच को एक तरफ हिलाया और खुशी से काँय-काँय करने लगा।

उसके माता-पिता एवं उसके भाई एवं बहन सागर के हरे फर्श पर उससे पहले ही बैठ गए थे। वे तेज़ आवाजें करते हुए उसे बुला रहे थे। उसने हरे सागर पर खड़े होने के लिए अपनी टाँगें सीधी कीं। उसकी टाँगे सागर में धंस गईं। वह डर से चिल्लाया एवं अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए फिर से उठने की कोशिश की। मगर वह थका हुआ था और भूख से कमज़ोर था और इस अजीब व्यायाम के कारण अत्यधिक थका होने के कारण वह उठ न पाया।

[PAGE 36] : उसके पाँव हरे सागर में धंस गए तब उसका पेट इसको छुआ और वह और अधिक नहीं डूबा। वह इसके ऊपर तैर रहा था और उसके आसपास उसका परिवार आवाजें कर रहा था, उसकी तारीफ कर रहा था और उनकी चोंचें उसे छोटी शार्क मछली के टुकड़े प्रस्तुत कर रहीं थीं। उसने अपनी पहली उड़ान भर ली थी।

The Black Aeroplane Summary

The Black Aeroplane Introduction in English

This is a mysterious story. The writer was flying his Dakota aeroplane. Suddenly he was caught in a big cloud. His compass, radio and other instruments failed. There was not much fuel in the plane. Suddenly he saw a black aeroplane near him. The pilot of the black aeroplane guided the writer and he was able to land his plane safely. But he was greatly surprised when the woman at the control centre told him that there had been no other plane except the writer’s Dakota on the sky that night.

The Black Aeroplane Summary in English

The writer of this story is a pilot. One night he was flying his old Dakota aeroplane over France. It was a starry night. He was going to England. He hoped to spend his holiday with his family. It was an easy journey and he was in a joyful mood. He looked at his watch. It was one thirty in the morning. Through his wireless, he contacted the Paris control. They told him to turn twelve degrees west. He did as he was advised to do. He was 150 kilometres from Paris.

Suddenly the writer saw huge black clouds before him. It was not possible to fly up and over the clouds. He had not much fuel with him. So it was not possible to fly around the big mountains of clouds to the right or left. He decided to take the risk and flew his aeroplane straight into the clouds. As he entered the clouds, everything suddenly went black. He found that his compass had ceased to work. He tried to contact the Paris Control for directions. But he was shocked to find that his radio had also stopped working.

Suddenly, the writer saw a black aeroplane near him. He could also see the pilot in it. The pilot waved the writer to follow him. He followed the black airplane like an obedient child. Now it was half an hour since the writer had been following the black aeroplane. He was worried because the fuel in his plane could last only five or ten minutes. But just then the black aeroplane started to go down and the writer followed it.

Suddenly, the writer was out of the clouds. He could see the lights of the runway of the airport. He turned to look at the black aeroplane. But he could not find it anywhere. The sky was empty. The writer landed his Dakota aeroplane. He went to the control centre and asked a woman there who that other pilot was ? The woman looked at the writer strangely. Then she laughed and said that no other planes were flying in such a stormy night. She told him and his plane was the only one that she could see on the radar.

The Black Aeroplane Introduction in Hindi

(यह एक रहस्यात्मक कथा है। लेखक अपना डाकोटा हवाई जहाज़ उड़ा रहा था। अचानक वह एक बहुत बड़े बादल में फँस गया। उसका दिशा-सूचक यंत्र, रेडियो एवं अन्य यंत्र बेकार हो गए। उसके जहाज़ में अधिक ईंधन भी नहीं था। अचानक उसने अपने नज़दीक एक काला जहाज़ देखा। काले जहाज़ के पायलट ने लेखक का पथ-प्रदर्शन किया और वह अपने जहाज़ को सुरक्षात्मक रूप से उतारने में सफल हो गया। मगर तब उसे बहुत अधिक हैरानी हुई जब नियंत्रण केंद्र की स्त्री ने उसे बताया कि उस रात आकाश पर लेखक के डाकोटा के अतिरिक्त कोई अन्य जहाज़ नहीं था।)

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The Black Aeroplane Summary in Hindi

इस कहानी का लेखक एक पायलट है। एक रात वह अपना पुराना डाकोटा जहाज़ फ्रांस के ऊपर उड़ा रहा था। यह तारों भरी रात थी। वह इंग्लैंड जा रहा था। उसे अपनी अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने की आशा थी। यह एक आसान यात्रा थी एवं वह प्रसन्नचित्त था। उसने अपनी घड़ी को देखा। सुबह के एक बजकर तीस मिनट हुए थे। उसने बेतार के द्वारा पेरिस कंट्रोल को संपर्क किया। उन्होंने उसे बारह डिग्री पश्चिम को मुड़ने की सलाह दी। उसे जो करने की सलाह दी गई, उसने वैसा ही किया। वह पेरिस से 150 किलोमीटर दूर था।

अचानक लेखक ने अपने सामने बड़े-बड़े बादल देखे। बादलों के ऊपर से जहाज़ को उड़ाना संभव नहीं था। उसके पास अधिक ईंधन नहीं था। इसलिए बादलों के बड़े-बड़े पहाड़ों के बाएँ या दाएँ से जहाज़ को उड़ाकर ले जाना संभव नहीं था। उसने खतरा मोल लेने का फैसला किया और जहाज़ को सीधा बादलों के बीच ले गया। जब वह बादलों में घुसा तो हर चीज एकदम काली हो गई। उसने देखा कि उसके दिशा-सूचक यंत्र ने काम करना बंद कर दिया। उसने निर्देशों के लिए पेरिस कंट्रोल से संपर्क करने का प्रयत्न किया। मगर उसे यह देखकर सदमा लगा कि उसके रेडियो ने भी काम करना बंद कर दिया था।

अचानक लेखक ने अपने पास एक काला हवाई जहाज़ देखा। वह उसके अंदर के पायलट को देख सकता था। पायलट ने लेखक को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। उसने काले हवाई जहाज़ का पीछा एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह किया। अब लेखक को काले हवाई जहाज़ के पीछे चलते हुए आधा घंटा हो गया था। उसे चिंता हो गई क्योंकि उसके जहाज़ का ईंधन केवल पाँच या दस मिनट का ही और था। मगर तभी काले जहाज़ ने नीचे जाना आरंभ किया और लेखक ने उसका पीछा किया।

अचानक लेखक बादलों के बाहर था। वह हवाई जहाज़ की पट्टी को देख सकता था। वह काले जहाज़ को देखने के लिए मुड़ा। मगर उसे वह कहीं नज़र नहीं आया। आकाश खाली था। लेखक ने अपना डाकोटा जहाज़ उतारा । वह नियंत्रण कक्ष पर गया और वहाँ की स्त्री से पूछा कि अन्य पायलट कौन था? स्त्री ने लेखक को अजीब ढंग से देखा। तब वह हँसी और उसने कहा वैसी तूफानी रात में कोई भी अन्य जहाज़ नहीं उड़ रहे थे। उसने लेखक को बताया कि उसे राडार पर केवल उसी का जहाज़ नज़र आया था।

The Black Aeroplane Word-Meanings

[PAGE 37] : Looking forward to = waiting eagerly (उत्सुकता से इंतजार करना); immediately = at once (एकदम); compass = Instrument for telling direction (दिशा-सूचक यंत्र); huge = big (बड़े); risk = danger (खतरा); twisted = shook (हिला)।

[PAGE 38] : Instruments = machines (यंत्र); waved = shook (हिलाया); follow = come after (पीछे-पीछे आना); obedient = one who obeys the orders (आज्ञाकारी)।

[PAGE 39] : Fuel = petrol, diesel etc. (ईंधन); frightened = terrified (भयभीत); runway = the narrow strip the plane lands on or takes off from (हवाई अड्डे की पट्टी); strangely = in a strange manner (अजीब ढंग से); arrive = reach (पहुँचना)।

The Black Aeroplane Translation in Hindi

[PAGE 37] : चाँद पूर्व में मेरे पीछे उग रहा था और तारे आकाश में मेरे ऊपर चमक रहे थे। आकाश में एक भी बादल नहीं था। मैं सोते हुए देहाती इलाके से काफी ऊपर होने पर प्रसन्न था। मैं अपना पुराना डाकोटा जहाज़ फ्रांस के ऊपर वापिस इंग्लैंड को जाता हुआ उड़ा रहा था। मैं अपनी छुट्टी का सपना ले रहा था और अपने परिवार से मिलने का इंतजार कर रहा था, मैंने अपनी घड़ी को देखा : सुबह के एक बजकर तीस मिनट।

“मैं शीघ्र ही पेरिस के कंट्रोल से बात करूँगा,” मैंने सोचा।

जब मैंने जहाज़ के नाक से परे नीचे को देखा, तो मैंने अपने सामने एक बड़े शहर की रोशनियाँ देखीं। मैंने रेडियो चालू कर दिया और कहा, “पेरिस कंट्रोल, डाकोटा डी०एस० 088 यहाँ। क्या आप मेरी आवाज सुन सकते हैं; मैं इंग्लैंड के रास्ते पर हूँ ओवर।”

रेडियो में से आवाज ने फौरन मुझे उत्तर दिया; “डी०एस० 088, मैं तुम्हें सुन सकता हूँ। अब तुम्हें बारह डिग्री पश्चिम में मुड़ जाना चाहिए, डी०एस० 088 ओवर।”

मैंने नक्शे एवं दिशा-सूचक यंत्र की जाँच की और अपने दूसरे एवं आखिरी ईंधन के टैंक को चालू किया और अपने डाकोटा को बारह डिग्री पश्चिम में इंग्लैंड की ओर मोड़ दिया।

“मैं नाश्ते के लिए समय पर पहुँच जाऊँगा,” मैंने सोचा। एक बड़ा, अच्छा अंग्रेज़ी नाश्ता! हर काम ठीक हो रहा था। यह एक आसान उड़ान थी।
जब मैंने बादल देखे तो पेरिस 150 किलोमीटर मेरे पीछे था। तूफानी बादल। वे बहुत बड़े थे। वे मेरे सामने आकाश में खड़े काले पहाड़ लगते थे। मैं जानता था कि मैं उनके ऊपर से जहाज़ को नहीं उड़ा सकता था, और मेरे पास इतना ईंधन नहीं था कि मैं उत्तर या दक्षिण में उनके गिर्द से जहाज़ को ले जाऊँ।

“मुझे वापिस पेरिस चला जाना चाहिए,” मैंने सोचा, मगर मैं घर जाना चाहता था। मैं नाश्ता करना चाहता था। “मैं खतरा मोल लूंगा”, मैंने सोचा और पुराने डाकोटा को सीधे तूफान में डाल दिया।
बादलों के अंदर हर चीज़ अचानक काली हो गई। जहाज़ के बाहर की किसी भी चीज़ को देखना असंभव था। पुराना जहाज़ हवा में उछला एवं बल खाने लगा। मैंने दिशा-सूचक यंत्र को देखा।

(PAGE 38] : मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका : दिशा-सूचक गोल-गोल घूमे जा रहा था। यह बंद हो गया था। यह काम नहीं कर रहा था ! बाकी के यंत्र भी अचानक ठप्प हो गए। मैंने रेडियो चालू करने का प्रयत्न किया।
“पेरिस कंट्रोल ? पेरिस कंट्रोल ? क्या तुम मुझे सुन सकते हो ?”.

कोई उत्तर नहीं मिला। रेडियो भी ठप्प हो गया था। मेरा रेडियो और दिशा-सूचक यंत्र ठप्प हो गए थे और मैं नहीं देख सकता था कि मैं कहाँ था, मैं तूफान में खो गया था। तब काले बादलों में, मेरे बहुत नज़दीक मैंने एक अन्य जहाज़ को देखा। इसके पंखों पर कोई रोशनी नहीं थी, मगर मैं तूफान के बीच में से इसे अपने नज़दीक उड़ता देख सकता था। मैं पायलट के चेहरे को मेरी तरफ मुड़ा हुआ देख सकता था। मैं अन्य व्यक्ति को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक हाथ उठाया और उसे हिलाया।

“मेरे पीछे आओ”, वह कह रहा था। “मेरे पीछे आओ।”
“वह जानता है कि मैं भटक गया हूँ,” मैंने सोचा। “वह मेरी सहायता करने का प्रयत्न कर रहा है।”
उसने अपना जहाज़ धीरे-से मेरे डाकोटा के सामने उत्तर की तरफ मोड़ लिया ताकि मेरे लिए उसका पीछा करना आसान हो जाए। मुझे एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह उस अजीब जहाज़ के पीछे-पीछे जाने में बड़ी प्रसन्नता हुई।
आधे घंटे के बाद वह अजीब काला हवाई जहाज़ अभी भी मेरे सामने बादलों में था।

[PAGE 39] : अब डाकोटा के आखिरी ईंधन के टैंक में केवल पाँच या दस मिनट तक और उड़ने के लिए ईंधन था। मैंने फिर से डरा हुआ महसूस करना आरंभ कर दिया था। मगर तब उसने नीचे जाना आरंभ कर दिया और मैंने तूफान के अंदर से उसका पीछा किया।

अचानक मैं बादलों से निकल आया और मैंने अपने सामने रोशनियों की दो लंबी कतारें देखीं। यह हवाई पट्टी थी। हवाई अड्डा! मैं काले हवाई जहाज़ वाले अपने मित्र को देखने मुड़ा, मगर आकाश खाली था। वहाँ कुछ भी नहीं था। काला हवाई जहाज़ जा चुका था। मुझे ये कहीं भी नज़र नहीं आ रहा था।

मैंने जहाज़ को नीचे उतारा और मुझे नियंत्रण मीनार के पास पुराने डाकोटा से उतरकर जाने का अफसोस नहीं था। मैं गया और नियंत्रण केंद्र में एक स्त्री से पूछा कि मैं कहाँ था एवं दूसरा पायलट कौन था। मैं उसका धन्यवाद करना चाहता था।
उसने मेरी तरफ अजीब ढंग-से देखा और फिर हँसने लगी।

HBSE 10th Class English Solutions First Flight Chapter 3 Two Stories about Flying

“अन्य हवाई जहाज़ ? वहाँ ऊपर तूफान में ? आज रात कोई अन्य जहाज़ नहीं उड़ रहे थे। राडार पर मैं केवल आपका जहाज़ देख सकती थी।”
तो वहाँ पर बिना दिशा-सूचक यंत्र या रेडियो और मेरे टैंकों में अधिक ईंधन के बिना, वहाँ सुरक्षित पहुँचने में मेरी सहायता किसने की थी ? तूफान में, बिना रोशनियों के उड़ता हुआ उस अज़ीब काले जहाज़ का पायलट कौन था ?

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Alankar अलंकार Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अलंकार एवं छन्द विवेचना

(क) अलंकार

Alankar 10th Class HBSE Vyakaran प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलंकार शब्द का अर्थ है-आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्त्री के सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थों में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे

“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”
साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्त्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए।

Alankar In Hindi Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
अलंकार के कितने भेद होते हैं ? सबका एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं-
1. शब्दालंकार,
2. अर्थालंकार,
3. उभयालंकार।

1. शब्दालंकार-जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है; जैसे.
“चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल-थल में।”

2. अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे
“चरण-कमल बंदौं हरि राई।”

3. उभयालंकार-जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; जैसे
“नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ।
जेतौ नीचौ है चले, तेतौ ऊँचौ होइ ॥”

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

प्रमुख अलंकार

1. अनुप्रास

अलंकार Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 3.
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; यथा-
(क) मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
यहाँ ‘मुदित’, ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’, ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) भगवान भक्तों की भूरि भीति भगाइए।
यहाँ ‘भगवान’, ‘भक्तों’, ‘भूरि’, ‘भीति’ तथा ‘भगाइए’ में ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है।

(ग) कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बिराजति है।

(घ) जौं खग हौं तो बसेरो करौं मिलि-
कालिंदी कूल कदंब की डारनि।
यहाँ दोनों उदाहरणों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ङ) “कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥”
यहाँ ‘क’ तथा ‘न’ वर्गों की आवृत्ति के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(च) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

(छ) बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥
(‘प’ तथा ‘स’ की आवृत्ति है।)

(ज) मैया मैं नहिं माखन खायो।
(‘म’ की आवृत्ति है।)

(झ) सत्य सनेह सील सागर।
(‘स’ की आवृत्ति)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

2. यमक

Alankar Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 4.
यमक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे
(क) कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरातु है, इहिं पाएँ बौराई ॥
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ है-सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है-धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।

(ख) माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है-माला फेरना और दूसरा अर्थ है-भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ का अर्थ है-हृदय और माला का दाना। अतः यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(ग) काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है।
घटा = वर्षा काल में आकाश में उमड़ने वाली मेघमाला
घटा = कम हआ।

(घ) कहैं कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
इस पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में आवृत्तिपूर्वक प्रयोग हुआ है। प्रथम ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है और दूसरा ‘बेनी’ (बेणी) चोटी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

(ङ) गुनी गुनी सब कहे, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोतु ॥
‘अरक’ शब्द यहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक बार अरक के पौधे के रूप में तथा दूसरी बार सूर्य के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहाँ यमक अलंकार सिद्ध होता है।

(च) ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
यहाँ ‘मंदर’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है-भवन तथा दूसरा अर्थ है-पर्वत, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

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3. श्लेष

Alankar Class 10th HBSE Vyakaran प्रश्न 5.
श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकलें, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे-
1. नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोय।
जेते नीचो है चले, तेतो ऊँचो होय ॥
मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने नीचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागू होता है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

2. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन पूर्व की अवस्था।

3. रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय ॥
इस दोहे में ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष अलंकार है।

4. गाधिसून कह हृदय हँसि, मुनिहिं हरेरिय सूझ।
अयमय खाँड न ऊखमय, अजहुँ न बूझ अबूझ ॥

5. मेरी भव-बाधा हरो, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित-दुति होइ ॥

6. बड़े न हूजे गुननु बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनकु, गहनौ, गढ्यौ न जाइ ॥

कनकु शब्द के यहाँ दो अर्थ हैं-सोना और धतूरा।

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4. उपमा

Alankar Exercise Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 6.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति के गुण, रूप, दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी लोक-प्रचलित या लोक-प्रसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
1. ‘उसका हृदय नवनीत सा कोमल है।’
इस वाक्य में ‘हृदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है।

2. लघु तरण हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसिनी के साथ की गई है। अतः ‘तरण’ उपमेय, ‘हंसिनी’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारों अंग हैं।

3. हाय फूल-सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय और ‘कोमल’ साधारण धर्म है। ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

4. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
इस पंक्ति में ‘अरविंद से शिशुवृंद’ में साधारण धर्म नहीं है, इसलिए यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

5. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी
बहती हैं अब भी निशि-वासर ॥
यहाँ ‘नदियाँ’ उपमेय, ‘यशधारा’ उपमान, ‘बहना’ साधारण धर्म और ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

6. मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
यहाँ हाथी और टीला में उपमान, उपमेय का संबंध है, दोनों में ऊँचाई सामान्य धर्म है। ‘सा’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

5. रूपक

10th Alankar HBSE Vyakaran प्रश्न 7.
रूपक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-
1. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है।

2. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है।

3. बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही।
तारा-घट ऊषा नागरी।
इन पंक्तियों में नागरी में ऊषा का, अंबर में पनघट का और तारों में घट का आरोप हुआ है, अतः रूपक अलंकार है।

4. मेखलाकार पर्वत अपार,
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा था बार-बार,
नीचे जल में निज महाकार।
यहाँ दृग (आँखों) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

5. बढ़त बढ़त संपति-सलिलु, मन-सरोजु बढ़ि जाइ।
घटत घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ॥
इस दोहे में संपत्ति में सलिल का एवं मन में सरोज का आरोप किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

Class 10th Alankar HBSE Vyakaran प्रश्न 8.
उपमा और रूपक अलंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है जबकि ‘रूपक’ में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद स्थापित किया जाता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मनं डोला
(उपमा) यहाँ ‘मन’ उपमेय तथा ‘पीपर पात’ उपमान में समानता बताई गई है। अतः उपमा अलंकार है।
उदाहरण-
चरण कमल बंदौं हरि राई।”
(रूपक) यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

6. उत्प्रेक्षा

Alankar Class 10th Hindi HBSE Vyakaran प्रश्न 9.
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है; जैसे-
1. सोहत ओ पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमणि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातःकालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

2. उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ॥
यहाँ क्रोध से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमेय है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है।

3. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता।
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही ॥
यहाँ ताड़ का वृक्ष उपमेय है जिसमें आकाश को छूने की संभावना की गई है।

4. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए ॥
यहाँ आँसुओं से पूर्ण उत्तरा के नेत्र उपमेय है जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पड़े हुए ओस के कणों की कल्पना की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. मानवीकरण

Alankar Questions Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 10.
मानवीकरण अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अतः लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ। अन्य उदाहरण हैं

(i) दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे,

(ii) “मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।”

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

8. अतिशयोक्ति

Alankar Exercise HBSE 10th Class Vyakaran प्रश्न 11.
अतिशयोक्ति अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:

जहाँ किसी बात को लोकसीमा से अधिक बढ़ाकर कहा जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसेआगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ॥ यहाँ सोचने से पहले ही क्रिया पूरी हो गई जो लोकसीमा का उल्लंघन है। उदाहरण
(i) बालों को खोलकर मत चला करो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज।

(ii) हनुमान की पूँछ को लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग ॥

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:

Alankar In Hindi 10th Class HBSE Vyakaran प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उसके भेद बताइए।
उत्तर-
काव्य के अर्थ और सौंदर्य में चमत्कार उत्पन्न करने वाले (गुण धर्म) साधनों को अलंकार कहते हैं; जैसे स्त्रियाँ अपने सौंदर्य में वृद्धि हेतु गहने या आभूषण धारण करती हैं, वैसे ही कवि भी काव्य के अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करने हेतु अलंकारों का प्रयोग करते हैं।
अलंकार के दो भेद हैं-शब्दालंकार और अर्थालंकार।

Alankaar Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
शब्दालंकार और अर्थालंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शब्दालंकार-शब्दों द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न करना शब्दालंकार कहलाता है। अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि शब्दालंकार हैं; जैसे-
“तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।”
अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे,
“उसका हृदय नवनीत-सा कोमल है।”

प्रश्न 3.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके अंग बताइए।
उत्तर:
उपमा सादृश्यमूलक अलंकार है। किसी प्रसिद्ध वस्तु की समानता के आधार पर जब किसी वस्तु या व्यक्ति के रूप, गुण, धर्म का वर्णन किया जाए, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे-
“चंचल अचल-सा नीलांबर।”

उपमा अलंकार के अंग-उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-
(क) उपमेय: वह वस्तु या व्यक्ति जिसका वर्णन किया जाता है, उपमेय कहलाता है; जैसे ‘चंद्रमा के समान मुख’ में ‘मुख’ उपमेय है।

(ख) उपमान: जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति के साथ उपमेय की समानता बताई जाती है, उसे उपमान कहते हैं; जैसे ‘चंद्रमा के समान मुख’ वाक्य में ‘चंद्रमा’ उपमान है।

(ग) साधारण धर्म: उपमान और उपमेय के बीच पाए जाने वाले समान रूप, गुण आदि को साधारण धर्म कहते हैं; जैसे ‘चंद्रमा’ के समान मुख में ‘सुंदर’ दोनों समान गुण हैं। इसलिए ‘सुंदर’ ही दोनों का समान साधारण धर्म है।

(घ) वाचक शब्द: जिन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है, वे वाचक शब्द कहलाते हैं; उदाहरणार्थ जैसा, जैसी, सा, सी, से, सम, समान, ज्यों आदि। चंद्रमा के समान मुख में ‘समान’ वाचक शब्द है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

प्रश्न 4.
उपमा और रूपक का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है किंतु रूपक में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद दिखाया जाता है; जैसे उपमा ‘पीपर पात सरिस मन डोला’ इसमें समानता दिखाई गई है।
“चरण कमल बंदौं हरिराई।”
यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप कर दिया गया है, अतः रूपक अलंकार है।

प्रश्न 5.
यमक और श्लेष में क्या अंतर है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यमक में एक शब्द दो बार प्रयुक्त होता है तथा दोनों बार उसका अर्थ भिन्न होता है। उदाहरणतया-वह सोने का हार हार गया।
यहाँ पहले ‘हार’ का अर्थ माला है तो दूसरे का अर्थ ‘परास्त होना’ है। ‘श्लेष’ में एक ही शब्द दो भिन्न-भिन्न अर्थ देता है। उदाहरणतयामैं चाहे मन दे दूँ परंतु तुम कुछ नहीं देते। -यहाँ ‘मन’ के दो अर्थ हैं
(1) हृदय,
(2) चालीस किलो।
अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण

1. तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
उत्तर:
अनुप्रास

2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर।
प्रतिघट-कटक कटीले कोते कोटि-कोटि।
उत्तर:
अनुप्रास

3. कालिका-सी किलकि कलेऊ देति काल को।
उत्तर:
अनुप्रास एवं उपमा

4. रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
उत्तर:
रूपक

5. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुस चून ॥
उत्तर:
श्लेष

6. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भंग ॥
उत्तर:
रूपक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन वह टूटे तरन की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
उत्तर:
उपमा

8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

9. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूंद गहि, चाहत चढ़न अकास ॥
उत्तर:
अनुप्रास

10. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर:
अनुप्रास और यमक

11. बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन सरोज बढ़ जाई।
घटत-घटत सु न फिरि घटे, बरु समूल कुम्हिलाई ॥
उत्तर:
रूपक

12. चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन, मादक मधुहिं पिए ।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा, अनुप्रास एवं रूपक

13. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिल काल बस निज कुल घालकु।
भानु बंस-राकेस-कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥
उत्तर:
अनुप्रास

14. यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या ?
भू काँप उठे तो ढह जाए, बाढ़ आ जाए, बह जाए ॥
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

15. या अनुराग चित की, गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होइ ॥
उत्तर:
श्लेष

16. मेरे अंतर में आते हो देव, निरंतर,
कर जाते हो व्यथा भार लघु,
बार-बार कर कंज बढ़ाकर।
उत्तर:
रूपक एवं यमक

17. नत-नयन प्रिय-कर्म-रत मन।
उत्तर:
अनुप्रास

18. पी तुम्हारी मुख बात तरंग
आज बौरे भौरे सहकार।
उत्तर:
यमक

19. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
उत्तर:
यमक

20. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ॥
उत्तर:
अनुप्रास

21. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

22. मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

23. जीवन के रथं पर चढ़कर, सदा मृत्यु-पथ पर बढ़कर।
उत्तर:
रूपक

24. सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ॥
उत्तर:
यमक

25. चारु चंद्र की चंचल किरणें।
उत्तर:
अनुप्रास

26. चंचल वासना-सी बिछलती नदियां
उत्तर:
उपमा

27. मैंया मैं तो चंद-खिलौना लैहों
उत्तर:
रूपक

28. सुवरन को ढूँढ़त फिरत कवि, व्याभिचारी चोर
उत्तर:
श्लेष

29. मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
उत्तर:
उपमा

30. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
उत्तर:
अनुप्रास

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

31. भजु मन चरण-कमल अविनासी।
उत्तर:
रूपक

32. कियत कालहिं में वन वीथिका,
विविध धेनु विभूषित हो गई।
उत्तर:
अनुप्रास

33. भजन कह्यो तातें, भज्यों ने एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कह्यो, सो तू भज्यो गँवार ॥
उत्तर:
यमक

34. कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा

35. गुरुपद रज मूदु मंजुल अंजन।
उत्तर:
रूपक

36. रघुपति राघव राजा राम।
उत्तर:
अनुप्रास

37. कमल-सा कोमल गात सुहाना।
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

38. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उत्तर:
रूपक

39. भग्न मगन रत्नाकर में वह राह।
उत्तर:
अनुप्रास

40. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
उत्तर:
उपमा एवं अनुप्रास

41. विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर।
उत्तर:
अनुप्रास एवं उपमा

42. एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
उत्तर:
रूपक

43. वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन।
उत्तर:
उपमा

44. मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टीला।
उत्तर:
उपमा

45. रती-रती सोभा सब रती के सरीर की।
उत्तर:
यमक

46. यह देखिए, अरविंद-से शिशु कैसे सो रहे।
अलंकार एवं छन्द विवेचना.
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

47. सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।
उत्तर:
रूपक

48. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

49. ईस-भजनु सारथी सुजाना।
उत्तर:
रूपक एवं अनुप्रास

50. मिटा मोदु मन भए मलीने।
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे ।।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास

51. विज्ञान-यान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है।
उत्तर:
रूपक

52. नभ पर चमचम चपला चमकी।
उत्तर:
अनुप्रास

53. माया दीपक नर पतंग भ्रमि-भ्रमि इवै पड़त।
उत्तर:
रूपक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

54. बालक बोलि बधौं नहिं तोही।
उत्तर:
अनुप्रास

55. राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
उत्तर:
रूपक

56. झुककर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

57. परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाए।
उत्तर:
उपमा

58. आए महंत बसंत।
उत्तर:
रूपक

59. कोई प्यारा कुसुम कुम्हला, भौन में जो पड़ा हो।
उत्तर:
अनुप्रास

60. कितनी करुणा कितने संदेश।
उत्तर:
अनुप्रास

61. नभ मंडल छाया मरुस्थल-सा।
दल बांध अंधड़ आवै चला ॥
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

62. आवत-जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै।
उत्तर:
रूपक

63. कानन कठिन भयंकर बारी।
उत्तर:
अनुप्रास

64. सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
उत्तर:
रूपक

65. सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन माँ-सरीखी।
उत्तर:
उपमा

66. कार्तिक की एक हँसमुख सुबह नदी-तट से लौटती गंगा नहाकर।
उत्तर:
मानवीकरण।

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Avikari Shabd अविकारी शब्द Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(ii) अविकारी शब्द

जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहा जाता है।

अव्यय

Avikari Shabd HBSE 10th Class  प्रश्न 1.
अव्यय किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय वे शब्द हैं जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे यहाँ, कब और आदि। अव्यय शब्द पाँच प्रकार के होते हैं
(1) क्रियाविशेषण – धीरे-धीरे, बहुत।
(2) संबंधबोधक – के साथ, तक।
(3) समुच्चयबोधक – तथा, एवं, और।।
(4) विस्मयादिबोधक – अरे, हे।
(5) निपात – ही, भी।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(1) क्रियाविशेषण

अविकारी शब्द HBSE 10th Class  प्रश्न 2.
क्रियाविशेषण अव्यय की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी या अव्यय शब्द क्रिया के साथ जुड़कर उसकी विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे-
(क) राम धीरे-धीरे चलता है।
(ख) मैं बहुत थक गया हूँ।

इन दोनों में धीरे-धीरे’ तथा ‘बहुत’ दोनों अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताने के कारण क्रियाविशेषण हैं। क्रियाविशेषण चार प्रकार के होते हैं (1) कालवाचक, (2) स्थानवाचक, (3) परिमाणवाचक तथा (4) रीतिवाचक।
1. कालवाचक क्रियाविशेषण:
जिस क्रियाविशेषण के द्वारा क्रिया के होने या करने के समय का ज्ञान हो, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; यथा कल, आज, परसों, जब, तब, सायं आदि। जैसे
उदाहरण-
(क) कृष्ण कल जाएगा।
(ख) मैं अभी-अभी आया हूँ।
(ग) वह प्रतिदिन नृत्य करती है।
(घ) वह कभी देर से नहीं आता।

2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण:
जो क्रियाविशेषण क्रिया के होने या न होने के स्थान का बोध कराएँ, स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे
(क) राम कहाँ गया?
(ख) ऊषा ऊपर खड़ी है।
(ग) मोहन और सोहन एक-दूसरे के समीप खड़े हैं।
(घ) उधर मत जाओ।
इसी प्रकार, यहाँ, इधर, उधर, बाहर, भीतर, आगे, पीछे, किधर, आमने, सामने, दाएँ, बाएँ, निकट आदि शब्द स्थानवाची क्रियाविशेषण हैं।

3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :
जो क्रियाविशेषण क्रिया की मात्रा या उसके परिमाण का बोध कराए, उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) कम खाओ।
(ख) बहुत मत हँसो।
(ग) राम दूध खूब पीता है।
(घ) उतना पढ़ो जितना ज़रूरी है।
इनके अतिरिक्त, थोड़ा, सर्वथा, कुछ, लगभग, अधिक, कितना, केवल आदि शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं।

4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण:
जिन शब्दों से क्रिया के होने की रीति अथवा प्रकार का ज्ञान होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) वह वहाँ भली-भाँति रह रहा है।
(ख) आप कहते जाइए मैं ध्यानपूर्वक सुन रहा हूँ।
(ग) वह पैदल चलता है।
इनके अतिरिक्त, कैसे, ऐसे, वैसे, ज्यों, त्यों, सहसा, सुखपूर्वक, सच, झूठ, तेज़, अवश्य, नहीं, अतएव, वृक्ष, शीघ्र इत्यादि शब्द – रीतिवाचक क्रियाविशेषण हैं।

नोट – जो क्रियाविशेषण काल, स्थान अथवा परिमाणवाचक नहीं हैं, उन सबकी गणना रीतिवाचक में कर ली जाती है। अतः रीतिवाचक क्रियाविशेषण के भी अनेक भेद हैं

1. निश्चयात्मक – अवश्य, सचमुच, वस्तुतः आदि।
2. अनिश्चयात्मक – शायद, प्रायः, अक्सर, कदाचित आदि।
3. कारणात्मक क्योंकि, अतएव आदि।
4. स्वीकारात्मक – सच, हाँ, ठीक आदि।
5. आकस्मिकतात्मक – अचानक, सहसा, एकाएक आदि।
6. निषेधात्मक – न, नहीं, मत, बिल्कुल नहीं आदि।
7. आवृत्त्यात्मक – धड़ाधड़, फटाफट, गटागट, खुल्लमखुल्ला आदि।
8. अवधारक – ही, तो, भर, तक आदि।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

क्रियाविशेषण की रचना

अविकारी शब्द के 10 उदाहरण HBSE प्रश्न 3.
क्रियाविशेषण की रचना-विधि का उल्लेख उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
रचना की दृष्टि से क्रियाविशेषण दो प्रकार के होते हैं
(1) मूल क्रियाविशेषण तथा
(2) यौगिक क्रियाविशेषण।

1. मूल क्रियाविशेषण: जो शब्द अपने मूल रूप में अर्थात प्रत्यय के योग के बिना क्रियाविशेषण हैं, उन्हें मूल क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे आज, ठीक, निकट, सच आदि।
2. यौगिक क्रियाविशेषण: जो शब्द दूसरे शब्दों में प्रत्यय लगाने से या समास के कारण क्रियाविशेषण बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं, जैसे एकाएक, धीरे-धीरे, गटागट आदि।

क्रिया-प्रविशेषण

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द प्रश्न 4.
क्रिया-प्रविशेषण किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो शब्द क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहते हैं। ये शब्द क्रियाविशेषण से पूर्व प्रयुक्त होते हैं; जैसे
(क) पी०टी० ऊषा बहुत तेज़ दौड़ती है।
(ख) आपने बहुत ही मधुर गीत गाया।
(ग) वे बहुत बीमार हैं, इसलिए आप इससे भी धीरे चलिए।
अतः स्पष्ट है कि इन वाक्यों में बहुत, बहुत ही, इससे भी आदि क्रियाविशेषण-तेज़, मधुर एवं धीरे की विशेषता प्रकट कर रहे हैं। इसलिए इन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहा गया है।

(2) संबंधबोधक

प्रश्न 5.
संबंधबोधक अव्यय किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के साथ जुड़कर दूसरे शब्दों से उनका संबंध बताते हैं, वे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं; जैसे धन के बिना मनुष्य का जीवन नरक है। इस वाक्य में ‘के बिना’ संबंधबोधक है। इसी प्रकार से ओर, पास, सिवाय, की खातिर, के बाहर आदि भी संबंधबोधक हैं; यथा
(क) दोनों कक्षाएँ आमने-सामने हैं।
(ख) चलते हुए दाएं-बाएँ मत देखो।
(ग) विद्या के बिना मनुष्य पशु है।
(घ) राजमहल के ऊपर तोपें लगी हुई हैं।

अन्य संबंधबोधक अव्यय हैं-
1. के कारण, की वजह से, के द्वारा द्वारा, के मारे, के हाथ (से-)।
2. के लिए, के वास्ते, की खातिर, के हेतु, के निमित्त।
3. से लेकर/तक, पर्यंत।
4. के साथ, के संग।
5. के बिना, के बगैर, के अतिरिक्त, के अलावा।
6. की अपेक्षा, की तुलना में, के समान/सदृश, के जैसे।
7. के बदले, की जगह में पर।
8. के विपरीत, के विरुद्ध, के प्रतिकूल, के अनुसार, के अनुकूल।
9. के बाबत, के विषय में।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(3) समुच्चयबोधक

प्रश्न 6.
समुच्चयबोधक की सोदाहरण परिभाषा दीजिए तथा उसके भेदों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समुच्चयबोधक अव्यय या अविकारी कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ शब्द समुच्चबोधक अव्यय है। इसे योजक अव्यय भी कहते हैं।

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं-
(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक,
(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक।
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय दो समान स्तर के वाक्यों, वाक्यांशों या दो स्वतंत्र शब्दों को मिलाते हैं, उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार भेद हैं
(i) संयोजक; यथा-और, तथा, एवं आदि।
(ii) विभाजक; यथा-या, वा, चाहे, नहीं, तो आदि।
(iii) विरोधदर्शक; यथा-लेकिन, परंतु, किंतु आदि।
(iv) परिणामदर्शक; यथा-अतएव, अतः, सो, इस कारण आदि।

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय शब्द एक या एक से अधिक वाक्यों को प्रधान वाक्यों से जोड़ते हैं, वे व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं; यथा-
राम बुद्धिमान तो है परंतु अनुभवी नहीं है।
उपर्युक्त वाक्य में ‘परंतु’ व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार प्रकार हैं
(i) कारणवाचक; जैसे वह दुखी है क्योंकि वह गरीब है। क्योंकि, जो कि, इसलिए, कि, चूँकि इत्यादि कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(ii) स्वरूपवाचक; जैसे राम ने कहा कि वह घर नहीं जाएगा। मानो, अर्थात, कि, माने, जो कि आदि स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iii) उद्देश्यवाचक; जैसे वह परिश्रम करता है ताकि अच्छे अंक प्राप्त कर सकें। कि, जो, ताकि, जिससे, जिसमें आदि उद्देश्यवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iv) संकेतवाचक; जैसे अगर तुम आओगे तो मैं अवश्य चलूँगा। जो… तो, यदि…”तो, अगर”तो, यद्यपि. तथापि, चाहे….. परंतु आदि संकेतवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।

(4) विस्मयादिबोधक

प्रश्न 7.
विस्मयादिबोधक अविकारी किसे कहते हैं? सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द हमारे मन के हर्ष, शोक, घृणा, प्रशंसा, विस्मय आदि भावों को व्यक्त करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे अरे, ओह, हाय, ओफ, हे आदि। इसके अन्य भेद निम्नलिखित हैं-
1. विस्मय – ओह! ओहो! हैं! क्या! ऐं!
2. शोक – आह!, उफ!, हाय!, अह!, त्राहि!, हे राम!
3. हर्ष – वाह!, अहा!, धन्य!, शाबाश!
4. प्रशंसा – शाबाश!, खूब!, बहुत खूब!
5. भय – बाप रे!, हाय!
6. क्रोध – धत!, चुप!, अबे!
7. घृणा और तिरस्कार – छिः, धत!
8. अनुमोदन – ठीक-ठीक, हाँ-हाँ!
9. आशीर्वाद – जय हो!, जियो!
नोट – कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्द भी विस्मयादिबोधक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
संज्ञा- हे राम! मैं तो उजड़ गई।
हाय राम! यह क्या हो गया।

विशेषण- अच्छा! तो यह बात है।

सर्वनाम- क्या! वह फेल हो गया।
कौन! तुम्हारा भाई आया है।

क्रिया- हट! पागल कहीं का।
जा-जा! तेरे जैसे बहुत देखे हैं।

(5) निपात

प्रश्न 8.
‘निपात’ किसे कहते हैं? हिंदी के प्रमुख निपातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द किसी शब्द या पद के बाद जुड़कर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। हिंदी में प्रचलित ‘निपात’ निम्नलिखित हैं
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द 1

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1.
अव्यय शब्द की क्या विशेषता है? पाँच अव्यय शब्द लिखिए।
उत्तर:
अव्यय शब्द की विशेषता यह है कि लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से उसके रूप में परिवर्तन नहीं होता। पाँच अव्यय, शब्द-
(1) बहुत,
(2) धीरे,
(3) कल,
(4) तेज़,
(5) और।

प्रश्न 2.
अव्यय के पाँच भेदों का नाम लिखिए और उनके दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय के पाँच भेद उदाहरण सहित अग्रलिखित हैं

1. क्रियाविशेषण-धीरे-धीरे चलो। – श्याम कल आएगा।
2. संबंधबोधक-वह घर के बाहर है। – झंडा भवन के ऊपर लगा है।
3. समुच्चयबोधक-राम और श्याम आ रहे हैं। – उसने पाठ पढ़ा या नहीं।
4. विस्मयादिबोधक-शाबाश! कमाल कर दिया। – हाय! वह मर गया।
5. निपात-मोहन ही जा रहा है। – राम भी जा रहा है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 3.
ऊपर का, पूर्णतः, तक, शायद ही, दिनभर, हफ्ते भर, की ओर, का उचित प्रयोग करते हुए नीचे लिखे वाक्यों के रिक्त स्थानों को भरिए
1. मैं उसकी बात से …………… सहमत हूँ।
2. वह आज …………. यहाँ आए।
3. मकान का ………….. कमरा बंद है।
4. मैं …………… दफ्तर में काम करता हूँ।
5. मोहन महात्मा गाँधी मार्ग …………… रहता है।
6. वह दिल्ली से ………… बाद वापिस आया है।
7. मैं कल देर रात ………….. जागा।
उत्तर:
1. मैं उसकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
2. वह आज शायद यहाँ आए।
3. मकान का ऊपर का कमरा बंद है।
4. मैं दिनभर दफ्तर में काम करता हूँ।
5. मोहन महात्मा गाँधी मार्ग की ओर रहता है।
6. वह दिल्ली से हफ्ते भर बाद वापिस आया है।
7. मैं कल रात देर तक जागा।

प्रश्न 4.
कालवाचक, स्थानवाचक, रीतिवाचक और परिमाणवाचक क्रियाविशेषणों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर:
कालवाचक क्रियाविशेषण:
(क) वह कल नहीं आया।
(ख) वह अभी चला गया।

स्थानवाचक क्रियाविशेषण
(क) मोहन नीचे आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
(ख) दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं।

रीतिवाचक क्रियाविशेषण
(क) मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनो।
(ख) धीरे-धीरे मत चलो।

परिमाणवाचक-क्रियाविशेषण
(क) थोड़ा बोलो।
(ख) कम खाओ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थान में उचित अव्यय शब्दों का प्रयोग कीजिए और यह भी बताइए कि ये अव्यय किस भेद में आते हैं
(1) मैं …………. आगरा जाऊँगा।
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति …………… गर्व है।
(3) मुझे रेडियो ………… घड़ी चाहिए।
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो …………. श्रम करो।
(5) बाहर जाने …………. पहले मुझसे मिलना।
(6) ……….. आप मिल गए।
(7) वह जल्दी चला गया …………… ट्रेन पकड़ सके।
(8) ………… तो यह तुम्हारी शरारत है।
(9) तुम बकवास बंद करो …………… मुझे कुछ करना पड़ेगा।
(10) ………… तुमने यह क्या कर डाला?
उत्तर:
(1) मैं कल आगरा जाऊँगा। – (कालवाचक)
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(3) मुझे रेडियो और घड़ी चाहिए। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो तो श्रम करो। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(5) बाहर जाने से पहले मुझसे मिलना। – (संबंधबोधक)
(6) बहुत अच्छा! आप मिल गए। – (हर्षबोधक)
(7) वह जल्दी चला गया ताकि ट्रेन पकड़ सके। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(8) वाह! तो यह तुम्हारी शरारत है। – (प्रशंसाबोधक)
(9) तुम बकवास बंद करो अन्यथा मुझे कुछ करना पड़ेगा। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(10) हाय! तुमने यह क्या कर डाला। – (शोकबोधक)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 6.
नीचे दिए वाक्यों से कौन-सा भाव प्रकट होता है? वाक्यों के सामने लिखिए।
(1) शाबाश! तुमने बहुत अच्छा काम किया।
(2) बाप रे! मैं तो बर्बाद हो गया।
(3) छिः छिः! तुम तो बड़े नीच आदमी हो।
(4) हाय! अब मैं क्या करूँ?
(5) अजी! ले भी लो।
(6) अबे हट! नहीं तो मारूँगा।
(7) बचो! सामने से ट्रक आ रहा है।
(8) वाह! फिल्म देखकर मज़ा आ गया।
उत्तर:
(1) प्रशंसा,
(2) शोक,
(3) घृणा,
(4) शोक/पीड़ा,
(5) संबोधन/आग्रह,
(6) क्रोध,
(7) चेतावनी तथा
(8) हर्ष।

प्रश्न 7.
निपात किसे कहते हैं? ही, भी, तो, तक, मात्र, भर का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर:
जो अव्यय शब्द वाक्य के शब्दों व पदों के बाद लगकर उनके अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल उत्पन्न कर देते हैं, उन्हें ‘निपात’ कहते हैं।
निपातों का वाक्यों में प्रयोग-
ही – मोहन ही जा रहा है।
तक – उसने तो देखा तक नहीं।
भी – राम भी लिख रहा है।
मात्र – कहने मात्र से काम नहीं चलेगा।
तो – वह तो कब का चला गया।
भर – वह दिनभर आपकी प्रतीक्षा करती रही।

प्रश्न 8.
संबंधबोधक अव्यय शब्दों से रिक्त स्थान भरिए
(1) सीता ………. दुःख किसी ने नहीं सहा होगा।
(2) गंगा नदी वाराणसी …………. बहती है।
(3) हमें अंत …………… प्रयास करना चाहिए।
(4) घर के ……………. से चारपाई लाओ।
(5) तुम्हारे …………… यह काम आसान है।
उत्तर:
(1) सीता के समान दुःख किसी ने नहीं सहा होगा।
(2) गंगा नदी वाराणसी की ओर बहती है।
(3) हमें अंत तक प्रयास करना चाहिए।
(4) घर के भीतर से चारपाई लाओ।
(5) तुम्हारे लिए यह काम आसान है।

प्रश्न 9.
चार ऐसे शब्द लिखिए जो विशेषण और क्रियाविशेषण दोनों रूपों में प्रयुक्त हो सकते हैं। इनमें वाक्य-प्रयोग द्वारा विशेषण और क्रियाविशेषण का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. अच्छा :
मोहन एक अच्छा विद्यार्थी है। (विशेषण)
मोहन अच्छा लिखता है। (क्रियाविशेषण)

2. मधुर :
तुम्हारी मधुर बातें बहुत प्रिय हैं। (विशेषण)
वह बहुत मधुर गाता है। (क्रियाविशेषण)

3. गंदा :
मोहन गंदा लड़का है। (विशेषण)
मोहन गंदा रहता है। (क्रियाविशेषण)

4. तेज़ :
उसकी चाल बहुत तेज़ है। (विशेषण)
वह तेज़ लिखता है। (क्रियाविशेषण)

उपर्युक्त वाक्यों से यह स्पष्ट है कि विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता को प्रकट करते हैं लेकिन क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त समुच्चयबोधक अव्ययों को छाँटिए और बताइए कि वे समानाधिकरण हैं या व्यधिकरण?
(क) बाग में बालक और बालिकाएँ खेल रही हैं।
(ख) राम गरीब है किंतु ईमानदार है।
(ग) मैंने उससे कुछ लिया नहीं बल्कि कुछ दिया है।
(घ) मैं परीक्षा में नहीं बैठी क्योंकि बीमार थी।
(ङ) जीवन में तुम सुख चाहते हो तो परिश्रम करो।
उत्तर:
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द 2
प्रश्न 11.
क्रियाविशेषण और संबंधबोधक में क्या अंतर है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ कालवाचक एवं स्थानवाचक क्रियाविशेषणों का भी संबंधबोधक के रूप में प्रयोग होता है। यदि उनका प्रयोग क्रिया के साथ शुरु हुआ हो तो उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं तथा यदि वे संज्ञा या सर्वनाम के साथ विभक्ति रूप में प्रयुक्त हों तो उन्हें संबंधबोधक स्वीकार करना चाहिए; यथा-
(क) तुम पहले उठो। (क्रियाविशेषण)
परीक्षा से पहले खूब पढ़ो। (संबंधबोधक)

(ख) पुजारी जी यहाँ आए थे। (क्रियाविशेषण)
मोहन तुम्हारे यहाँ गया था। (संबंधबोधक)

(ग) उसके सामने बैठो।। (क्रियाविशेषण)
उसका घर तुम्हारे स्कूल के सामने है। (संबंधबोधक)

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Kriya क्रिया Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

क्रिया

क्रिया HBSE 10th Class Hindi Vyakaran प्रश्न 1.
क्रिया की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए। उत्तर-क्रिया वह शब्द अथवा पद है जिससे किसी कार्य के होने का बोध हो; जैसे
(क) चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
(ख) मोहन दौड़ रहा है।
(ग) राम पत्र लिख रहा है।
(घ) बच्चे स्कूल गए।
(ङ) शीला ने गीत गाया।
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त ‘उड़’, ‘दौड़’ ‘लिख’, ‘गए’ और ‘गाया’ शब्दों से किसी-न-किसी क्रिया के होने का ज्ञान होता है। अतः ये सब क्रिया पद हैं।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

धातु

क्रिया 10th Class Hindi HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
धातु किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइए।
उत्तर:
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं; जैसे पढ़ना, लिखना, दौड़ना, पीना, चलना, गाना आदि क्रियाओं में पढ़, लिख, दौड़, पी, चल, गा आदि क्रिया के मूल रूप होने के कारण धातु हैं।

10th Class Hindi HBSE Vyakaran क्रिया प्रश्न 3.
धातु के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धातु के मुख्यतः पाँच भेद माने जाते हैं
(क) सामान्य (मूल) धातु।
(ख) व्युत्पन्न धातु।
(ग) नामधातु।
(घ) सम्मिश्रण धातु।
(ङ) अनुकरणात्मक धातु।

1. सामान्य (मूल) धातु:
जो क्रिया धातुएँ भाषा में रूढ़ शब्द के रूप में प्रचलित हो चुकी हैं, वे सामान्य (मूल) धातुएँ कहलाती हैं। ये धातुएँ किसी के योग से नहीं उत्पन्न होतीं। उदाहरणार्थ-सोना, खाना, लिखना, पढ़ना, देखना, खेलना, सुनना, जाना आदि क्रियाओं की धातुएँ सामान्य हैं।

2. व्युत्पन्न धातु:
जो धातुएँ किसी मूल धातु में प्रत्यय लगाकर अथवा मूल धातु को अन्य प्रकार से परिवर्तित करके बनाई जाती हैं, उन्हें व्युत्पन्न धातुएँ कहा जाता है; जैसे-
पीना – पिलवाना
खोलना – खुलवाना
करना – करवाना
सुनना – सुनवाना
देखना – दिखाना
गाना – गवाना

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

धातुओं के व्युत्पन्न रूपों की तालिका देखिए
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 1

उपर्युक्त ‘उड़ना’ एवं ‘उठना’ धातुओं को वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उड़ना-
(क) चिड़िया उड़ रही है। (मूल अकर्मक उड़ना)
(ख) श्याम ने चिड़िया को उड़ा दिया। (मूल अकर्मक उड़ना का व्युत्पन्न प्रेरणार्थक रूप)
(ग) मोहन पतंग उड़ा रहा है। (मूल सकर्मक उड़ाना)
(घ) पतंग आकाश में उड़ रही है। (मूल सकर्मक उड़ाना का अकर्मक रूप)

उठना-
(क) बच्चा उठ गया। (मूल अकर्मक उठना)
(ख) माँ बच्चे को उठा रही है। (मूल अकर्मक उठना का व्युत्पन्न प्रेरणार्थक)
(ग) कुली सामान उठा रहा है। (मूल सकर्मक उठाना)
(घ) कुली से सामान नहीं उठ रहा है। (मूल सकर्मक उठाना का व्युत्पन्न अकर्मक)
यहाँ कभी धातु की अकर्मक क्रिया मूल में है और कभी सकर्मक क्रिया।

3. नामधातु-संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों में प्रत्यय लगाकर जो क्रिया धातुएँ बनती हैं, उन्हें नामधातु कहते हैं; जैसे-
(i) संज्ञा शब्दों से बात से बतियाना, रंग से रँगना, खर्च से खर्चना, गाँठ से गाँठना, झूठ से झुठलाना।
(ii) सर्वनाम से-अपना से अपनाना।
(iii) विशेषण से गरम से गरमाना, चिकना से चिकनाना, साठ से सठियाना, लँगड़ा से लँगड़ाना आदि।

4. सम्मिश्रण/ मिश्र धातुएँ-संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण शब्दों के बाद ‘करना’, ‘होना’ आदि के योग से जो धातुएँ बनती हैं, उन्हें सम्मिश्रण मिश्र धातुएँ कहते हैं; जैसे दर्शन करना, पीछा करना, प्यार करना होना आदि।
कुछ अन्य उदाहरण-
(क) करना – काम करना, पीछा करना, प्यार करना आदि।
(ख) होना – काम होना, दर्शन होना, प्यार होना, तेज़ होना, धीरे होना।
(ग) देना – काम देना, दर्शन देना, राज देना, कष्ट देना, धन्यवाद देना।
(घ) जाना – सो जाना, जीत जाना, रूठ जाना, पी जाना, खा जाना।
(ङ) आना – याद आना, पसंद आना, नींद आना।
(च) खाना – मार खाना, हवा खाना, रिश्वत खाना।
(छ) मारना – झपट्टा मारना, डींग मारना, गोता मारना, मस्ती मारना।
(ज) लेना – खा लेना, पी लेना, सो लेना, काम लेना, भाग लेना।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

5. अनुकरणात्मक धातु-जो धातुएँ ध्वनि के अनुकरण पर बनाई जाती हैं, उन्हें अनुकरणात्मक धातुएँ कहा जाता है; जैसे-
हिनहिन – हिनहिनाना
भनभन – भनभनाना
टनटन – टनटनाना
झनझन – झनझनाना
खटखट – खटखटाना
थरथर – थरथराना

क्रिया के भेद

प्रश्न 4.
क्रिया के कितने भेद हैं? सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिंदी में क्रिया मुख्यतः दो प्रकार की होती है
(1) अकर्मक क्रिया और
(2) सकर्मक क्रिया।

1. अकर्मक क्रिया – अकर्मक क्रिया में कर्म नहीं होता, अतः क्रिया का व्यापार और फल कर्ता में ही पाए जाते हैं; जैसे
(क) मोहन पढ़ता है।
(ख) सोहन सोया है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में पढ़ता है’ और ‘सोया है’ अकर्मक क्रियाएँ हैं।

2. सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं का फल कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं; यथा
(क) मोहनं पुस्तक पढ़ता है।
(ख) सीता पत्र लिखती है।
इन दोनों वाक्यों में पढ़ने का प्रभाव पुस्तक पर और लिखने का प्रभाव पत्र पर है, अतः ये दोनों सकर्मक क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 5.
अकर्मक क्रिया कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अकर्मक क्रिया तीन प्रकार की होती है
1. स्थित्यर्थक अकर्मक क्रिया – यह क्रिया बिना कर्म के पूर्ण अर्थ का बोध कराती है तथा कर्ता की स्थिर दशा का भी ज्ञान कराती है; जैसे-
(क) प्रीत सिंह इस समय जाग रहा है। (जागने की दशा)
(ख) राम हँस रहा है। (हँसने की दशा)

2. गत्यर्थक पूर्ण अकर्मक क्रिया यह क्रिया बिना कर्म के पूर्ण अर्थ का ज्ञान कराती है तथा कर्ता की गत्यात्मक स्थिति का बोध भी कराती है; जैसे-
(क) राजा पत्र लिख रहा है।
(ख) रानी गीत गा रही है।

3. अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ-ये वे अकर्मक क्रियाएँ होती हैं जिनके प्रयोग के समयं अर्थ की पूर्णता के लिए कर्ता से संबंध रखने वाले किसी शब्द विशेष की आवश्यकता पड़ती है। पूरक शब्द के बिना वाक्य अथवा अर्थ अधूरा रहता है; जैसे मैं हूँ।

यह वाक्य कर्ता और क्रिया की दृष्टि से पूर्ण है किंतु अर्थ स्पष्ट नहीं है। अतः इसमें पूरक लगाने की आवश्यकता है; जैसे मैं भूखा हूँ। इस प्रकार, पूरक (भूखा) लगाने से वाक्य एवं उसका अर्थ पूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 6.
सकर्मक क्रिया के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सकर्मक क्रिया तीन प्रकार की होती है
(1) एककर्मक क्रिया,
(2) द्विकर्मक क्रिया तथा
(3) अपूर्ण सकर्मक क्रिया।।

1. एककर्मक क्रिया – जिस क्रिया में एक कर्म हो, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे राम पुस्तक पढ़ता है। यहाँ ‘पुस्तक’ एक ही कर्म है।

2. द्विकर्मक क्रिया – जिस क्रिया में दो कर्म हों, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं; यथा राम श्याम को पत्र भेजता है। इस वाक्य में ‘श्याम’ और ‘पत्र’ दोनों कर्म हैं। अतः ‘भेजता है’ द्विकर्मक क्रिया है।
द्विकर्मक क्रिया में जिस कर्म के साथ ‘को’ परसर्ग लगा होता है, वह गौण कर्म होता है लेकिन जिसके साथ ‘को’ परसर्ग नहीं होता, वह मुख्य कर्म होता है। उपर्युक्त वाक्य में ‘श्याम’ गौण और ‘पत्र’ मुख्य कर्म है।

3. अपूर्ण सकर्मक क्रिया-ये वे क्रियाएँ हैं जिनमें कर्म रहते हुए भी कर्म को किसी पूरक शब्द की आवश्यकता होती है अन्यथा अर्थ अपूर्ण रहता है; जैसे-
(क) मोहन सोहन को समझता है।
मोहन सोहन को मूर्ख समझता है।

(ख) वह तुम्हें मानता है।
वह तुम्हें मित्र मानता है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘मूर्ख’ एवं ‘मित्र’ पूरक शब्द हैं।

अकर्मक से सकर्मक में परिवर्तन (अंतरण)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 7.
अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक क्रियाओं में कैसे प्रयुक्त होती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रियाओं का सकर्मक या अकर्मक होना उनके प्रयोग पर निर्भर करता है। अतः यही कारण है कि कभी अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक रूप में और सकर्मक क्रियाएँ अकर्मक रूप में प्रयुक्त होती हैं। इसे ही क्रिया परिवर्तन कहते हैं, जैसे
पढ़ना (सकर्मक) – राम किताब पढ़ रहा है।
पढ़ना (अकर्मक) – राम आठवीं में पढ़ रहा है।
खेलना (अकर्मक) – बच्चे दिन-भर खेलते हैं।
इसके विपरीत, हँसना, लड़ना आदि अकर्मक क्रियाएँ हैं, फिर भी, सजातीय कर्म लगने पर ये सकर्मक रूप में प्रयुक्त होती हैं; जैसे-
(क) अकबर ने अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं।
(ख) वह मस्तानी चाल चल रहा था।

ऐंठना, खुजलाना आदि क्रियाओं के दोनों रूप मिलते हैं; जैसे-
(क) पानी में रस्सी ऐंठती है। (अकर्मक)
(ख) नौकर रस्सी ऐंठ रहा है। (सकर्मक)
(ग) उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
(घ) वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)

अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाने के नियम

प्रश्न 8.
अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाने के नियमों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अकर्मक क्रियाओं से सकर्मक क्रियाएँ बनाने के निम्नलिखित नियम हैं

1. दो वर्ण वाली अकर्मक धातुओं के अंतिम ‘अ’ को दीर्घ ‘आ’ करने से सकर्मक क्रियाएँ बन जाती हैं; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
जलजलनाजलाना
डरडरनाडराना
उठउठनाउठाना
गिरगिरनागिराना
सुनसुननासुनाना

2. कभी-कभी दो वर्ण वाली धातुओं के प्रथम वर्ण को दीर्घ की मात्रा लगाने से सकर्मक क्रियाएँ बन जाती हैं; जैसे

धातुअकर्मकसकर्मक
कटकटनाकाटना
टलटलनाटालना
मरमरनामारना

3. तीन वर्षों से बनी धातुओं के दूसरे स्वर को दीर्घ करने से भी सकर्मक क्रियाएँ बनाई जा सकती हैं; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
निकलनिकलनानिकालना
संभलसंभलनासंभालना
उछलउछलनाउछालना
उखड़उखड़नाउखाड़ना

4. दो वर्ण से बनी धातुओं के आदि ‘इ’, ‘ई’ को ‘ए’ तथा ‘उ’, ‘ऊ’ को ‘ओ’ कर देने पर भी सकर्मक क्रियाओं का निर्माण किया जा सकता है; जैसे

धातुअकर्मकसकर्मक
खुलखुलनाखोलना
फिरफिरनाफेरना
घिरघिरनाघेरना
मुड़मुड़नामोड़ना
दिखदिखनादेखना

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5. कुछ धातुओं के अंतिम ‘ट’ को ‘ड’ करने पर भी सकर्मक क्रियाओं का निर्माण किया जा सकता है; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
टूटटूटनातोड़ना
फटफटनाफाड़ना

6. कभी-कभी सकर्मक क्रिया बनाने के लिए अकर्मक क्रिया में भारी परिवर्तन करना पड़ता है; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
जाजानाभेजना
पीपीनापिलाना
रोरोनारुलाना
बिकबिकनाबेचना
सोसोनासुलाना

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प्रश्न 9.
अपूर्ण क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब किसी वाक्य में व्याकरण की दृष्टि से सभी तत्त्व विद्यमान हों, फिर भी, वह वाक्य पूर्ण अर्थ प्रदान न करे तो उसे अपूर्ण क्रिया कहते हैं; यथा-
(क) सरदार पटेल भारत के थे।
(ख) वह है।
ये दोनों वाक्य व्याकरण की दृष्टि से तो पूर्ण हैं लेकिन अर्थ की दृष्टि से अपूर्ण हैं। इन दोनों वाक्यों की क्रियाएँ अपूर्ण हैं।

अर्थ की दृष्टि से वाक्य तभी पूर्ण होंगे जब इस प्रकार लिखे जाएँगे-
(क) सरदार पटेल भारत के लौह पुरुष थे।
(ख) वह बुद्धिमान है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘लौह पुरुष’ और ‘बुद्धिमान’ पूरक हैं।

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प्रश्न 10.
पूरक किसे कहते हैं? पूरक के भेदों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपूर्ण क्रिया वाले वाक्यों की पूर्ति के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं, उन्हें पूरक कहा जाता है। पूरक के दो प्रकार हैं
(1) कर्तृपूरक
(2) कर्मपूरक।
1. कर्तृपूरक – अपूर्ण अकर्मक क्रिया की पूर्ति के लिए लगने वाले पूरक को कर्तृपूरक कहते हैं।
2. कर्मपूरक – अपूर्ण सकर्मक क्रिया की पूर्ति के लिए लगने वाले पूरक कर्मपूरक कहलाते हैं।

समापिका तथा असमापिका क्रियाएँ

प्रश्न 11.
समापिका तथा असमापिका क्रियाओं की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
1. समापिका क्रियाएँ – जो क्रियाएँ वाक्य के अंत में लगती हैं, उन्हें समापिका क्रियाएँ कहते हैं; जैसे
(क) गीता खाना खा रही है।
(ख) चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
(ग) घोड़ा सड़क पर दौड़ता है।
(घ) राम दूध अवश्य पीएगा।
(ङ) सीताराम अपना काम कर रहा है।
(च) बड़ों का आदर करो।

2. असमापिका क्रियाएँ – असमापिका क्रियाएँ उन्हें कहते हैं जो वाक्य की समाप्ति पर नहीं, अन्यत्र लगती हैं; जैसे-
(क) वृक्ष पर चहचहाती हुई चिड़िया कितनी सुंदर है।
(ख) वह सामने बहता हुआ दरिया सुंदर लग रहा है।
(ग) बड़ों को खड़े होकर प्रणाम करो।
(घ) मोहन ने खाना खाकर हाथ धोए।

संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद

प्रश्न 12.
संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद लिखिए।
उत्तर:
संरचना की दृष्टि से क्रिया के तीन भेद हैं
(1) प्रेरणार्थक क्रिया।
(2) संयुक्त क्रिया।
(3) नामधातु क्रिया।

प्रेरणार्थक क्रियाएँ

प्रश्न 13.
प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जिन क्रियाओं का कार्य कर्ता स्वयं न करके किसी अन्य को प्रेरणा देकर करवाता है, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे सीता शीला से पत्र लिखवाती है। इस वाक्य में लिखवाना प्रेरणार्थक क्रिया है। प्रेरणार्थक रचना की भी दो कोटियाँ होती है-
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संयुक्त क्रियाएँ

प्रश्न 14.
संयुक्त क्रियाएँ किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे
(क) मोहन पढ़ सकता है।
(ख) राम रूठकर चला गया।
इन वाक्यों में पढ़ सकना’ तथा ‘चला गया’ क्रियाओं में दो-दो धातुओं का संयोग है। संयुक्त क्रियाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
1. शक्तिबोधक – चल सकता हूँ, हँस सकता है, चल सकेगा।
2. आरंभबोधक – चलने लगा, हँसने लगा, खेलने लगता है।
3. समाप्तिबोधक – चल चुका, पढ़ चुका, खेल चुका।
4. इच्छाबोधक – चलना चाहता हूँ, पढ़ना चाहता हूँ, खेलना चाहेगा।
5. विवशताबोधक – चलना पड़ा, पढ़ना पड़ेगा, खेलना पड़ता है।
6. अनुमतिबोधक – चलने दो, पढ़ने दो, खेलने दो।
7. निरंतरताबोधक – पढ़ता रहता है, हँसता रहता था, खेलता रहेगा।
8. समकालबोधक – चलते-चलते (हँसता है), हँसते-हँसते (खेलता है)।
9. अपूर्णताबोधक – पढ़ रहा है, खेल रहा था।

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नामधातु क्रियाएँ

प्रश्न 15.,
नामधातु क्रियाएँ किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
1. नामधातु क्रियाएँ-मूल धातुओं के अतिरिक्त जब संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के साथ प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाए जाते हैं, तब उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं; जैसे हाथ से हथियाना, शर्म से शर्माना।
नामधातु क्रियाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं-

(क) संज्ञा शब्दों से-
रंग से रंगना – बात से बतियाना
खर्च से खर्चना – हाथ से हथियाना
दुःख से दुखना – झूठ से झुठलाना
लाज से लजाना – गाँठ से गाँठना
चक्कर से चकराना – फिल्म से फिल्माना

(ख) सर्वनाम शब्दों से-
अपना से अपनाना – मैं से मिमियाना

(ग) विशेषण से-
गरम से गरमाना – दोहरा से दोहराना
मोटा से मुटाना – साठ से सठियाना

(घ) अनुकरणवाची शब्दों से-
हिनहिन से हिनहिनाना
मिनमिन से मिनमिनाना
खटखट से खटखटाना
थरथर से थरथराना

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क्रिया के अन्य भेद

प्रश्न 16.
क्रिया के निम्नलिखित प्रकारों का वर्णन कीजिए
(1) पूर्वकालिक क्रिया,
(2) तात्कालिक क्रिया,
(3) रंजक क्रिया,
(4) कृदंत क्रिया।
उत्तर:
1. पूर्वकालिक क्रिया-जब कर्ता किसी क्रिया को करने के तुरंत पश्चात् दूसरी क्रिया में प्रवृत्त हो जाता है तो पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं, जैसे-
उसने स्नान करके भोजन किया।
इस वाक्य में स्नान करके’ पूर्वकालिक क्रिया है तथा दूसरी क्रिया मुख्य क्रिया कहलाती है। इस क्रिया के कुछ अन्य उदाहरण देखिए
(क) राम ने स्कूल पहुँचकर अध्यापक को प्रणाम किया।
(ख) सीता ने मंदिर जाकर पूजा की।
(ग) कृष्ण दौड़कर स्टेशन पहुंचा।
(घ) वह पुस्तक पढ़कर सो गया।

2. तात्कालिक क्रिया-जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ हों और पहली क्रिया के कारण तुरंत दूसरी क्रिया हो तो पहली क्रिया को तात्कालिक क्रिया कहेंगे; जैसे-
गाड़ी की सीटी सुनते ही राम चल पड़ा।
इसं वाक्य में ‘सुनते ही’ तात्कालिक क्रिया है जिसके होते ही मुख्य क्रिया आरंभ हो गई। धातु के साथ ‘ते ही’ लगाकर तात्कालिक क्रियाओं का निर्माण होता है; यथा
(क) राम भोजन करते ही स्कूल पहुंच गया।
(ख) अध्यापक के जाते ही बच्चों ने शोर मचा दिया।
(ग) घंटी बजते ही विद्यार्थी कक्षाओं में आ गए।
(घ) सीता पत्र लिखते ही सो गई।

3. रंजक क्रियाएँ-जो क्रियाएँ मुख्य क्रियाओं में जुड़कर अपना अर्थ खोकर मुख्य क्रिया में नवीनता और विशेषता उत्पन्न कर देती हैं अर्थात् संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य तथा बाद में जुड़ने वाली क्रिया रंजक क्रिया कहलाती है; जैसे-
(क) नेवले ने साँप को मार डाला।
(ख) मोहन उठकर खड़ा हो गया।
(ग) सीता गाना गा सकी।
(घ) तुम इधर आ जाओ।
इन वाक्यों में डाला, कर, सक, जा आदि रंजक क्रियाएँ हैं।

4. कृदंत क्रियाएँ:
कृत् प्रत्ययों के योग से बनने वाली क्रियाएँ कृदंत क्रियाएँ कहलाती हैं। हिंदी में ये क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
(क) वर्तमानकालिक कृदंत क्रिया – खाता, पीता, सोता, हँसता आदि।
(ख) भूतकालिक कृदंत क्रिया – खाया, पीया, सोया आदि।
(ग) पूर्वकालिक कृदंत क्रिया – खाकर, पीकर, सोकर, हँसकर आदि।

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कृदंत रूपों की रचना

प्रश्न 17.
रचना की दृष्टि से कृदंत रूपों से क्रियाएँ कैसे बनती हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
क्रिया के कृदंत रूपों की रचना चार प्रकार के प्रत्ययों से होती है
1. अपूर्ण कृदंत – ता, ते, ती; जैसे बहता फूल, बहते पत्ते, बहती नदी।
2. पूर्ण कृदंत – आ, ई, ए; जैसे बैठा सिंह, बैठे बंदर, बैठी हिरणी।
3. क्रियार्थक कृदंत – ना, नी, ने; जैसे पढ़ना है, पढ़नी है, पढ़ने हैं, पढ़ने के लिए।
4. पूर्वकालिक कृदंत + कर – जैसे पढ़कर, खड़े होकर, जागकर आदि।

प्रश्न 18.
शब्द की दृष्टि से क्रिया के कृदंत रूपों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संज्ञा, विशेषण तथा क्रियाविशेषण ही कृदंत शब्द होते हैं; जैसे
1. संज्ञा :
ना : दौड़ना, कूदना, बैठना, टहलना आदि।
ने मिलने, पढ़ने, जगाने, खाने, पहनने आदि।

2. विशेषण :
ता/ती/ते –
चलता हुआ जहाज रुक गया।
चलती गाड़ी पर न चढ़ें।
खिलते फूलों को तोड़ना मना है।

आ/ई/ए –
सूखी कलियाँ अच्छी नहीं लगती।
गिरे हुए पत्तों पर मत चलें।
अच्छा विद्यार्थी सदा समय पर काम करता है।

3. क्रियाविशेषण :
ते-ही – राम भोजन करते ही सो गया।
ते-ते – वह गीत सुनते-सुनते आ गया।
कर – सीता गाना गाकर उठ गई।
ऐ-ऐ – वह बैठे-बैठे थक गया।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 19.
प्रयोग की दृष्टि से कृदंतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रयोग की दृष्टि से कृदंत छह प्रकार के होते हैं
1. क्रियार्थक कृदंत – भाववाचक संज्ञा के रूप में इसका प्रयोग होता है; जैसे पढ़ना, लिखना। सुबह अवश्य टहलना चाहिए।
2. कर्तृवाचक कृदंत – धातु + ने + वाला/वाली वाले। इस कृदंत रूप से कर्तृवाचक संज्ञा बनती है; जैसे भागने वालों को पकड़ो।
3. वर्तमान-कालिक कृदंत – बहता हुआ (पानी आदि)। ये विशेषण हैं। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि क्रिया उस समय हो रही है।
4. भूतकालिक कृदंत – पका (हुआ फल आदि)। ये भी विशेषण हैं। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि क्रिया उस समय तक पूरी हो चुकी है।
5. तात्कालिक कृदंत – इन कृदंतों की समाप्ति पर तुरंत मुख्य क्रिया संपन्न हो जाती है। इनका निर्माण ‘ते ही’ के योग से किया जाता है; जैसे आते ही, करते ही, जाते ही आदि।
उदाहरण-
घंटी बजते ही चपरासी आ गया।
6. पूर्वकालिक कृदंत-इनका निर्माण धातु के साथ ‘कर’ के योग से होता है; जैसे पढ़कर, खोकर, सोकर आदि।
(क) मोहन पुस्तक पढ़कर सो गया।
(ख) उसने स्नान करके भोजन किया।

क्रिया की रूप-रचना

प्रश्न 20.
क्रिया की रूप-रचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
क्रिया भी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के समान विकारी शब्द है। अतः लिंग, वचन एवं पुरुष के कारण इसमें परिवर्तन आ जाता है। इस परिवर्तन को निम्नलिखित रूपावलियों की सहायता से समझा जा सकता है।
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रूपावलियों की रचना

हिंदी में होने वाले क्रियागत परिवर्तनों को 16 रूपावलियों के द्वारा दर्शाया जा सकता है। इन रूपावलियों के मुख्य दो भेद हैं-
1. बिना सहायक क्रिया ‘होना’ के रूप
(i) पुरुषानुसारी – इनमें धातु रूपों के साथ पुरुषानुसारी प्रत्ययों का प्रयोग होता है; जैसे मैं पढूँ, हम पढ़ें, वे पढ़ें आदि। उदाहरण के रूप में रूपावली 1, 3, 4 देखें।
(ii) लिंगानुसारी रूप – इनमें धातु-रूपों के साथ वर्तमान कृदंत अथवा भूत कृदंत वचनों का लिंग के अनुसार प्रयोग होता है; जैसे पढ़ता, पढ़ते, गया, गई आदि। देखिए रूपावली 5 और 6।
(iii) पुरुष लिंगानुसारी रूप – इनमें धातु के वचन, पुरुषानुसारी रूपों के बाद गा, गे, गी आदि प्रत्ययों का लिंगानुपाती प्रयोग होता है; यथा मैं पढूंगा, मैं पढूंगी, हम पढ़ेंगे आदि। उदाहरण के लिए रूपावली 2 देखें।

2. सहायक क्रिया होना’ सहित यहाँ क्रिया ‘होना’ के पूर्व या वर्तमान कृदंत (ता, ते, ती) लगा रूप अथवा भूतकृदंत (आ, ई, ए) रूप लगा होता है। सहायक क्रिया होना’ के पाँच अलग-अलग रूपावली रूप प्रयुक्त होते हैं।
रूपावला वर्ग
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 4

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रुपावली वर्ग-1

संभाव्य भविष्यत काल

पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमैं पर्दै (- ॐ)हम पढ़ें (- एँ)
मध्यम पुरुषतू पढ़े (- ए)तुम पढ़ो (- ओ)
अन्य पुरुषवह पढ़े (- ए)वे पढ़ें (- एं)

उदाहरण-
(क) भगवान आपको सफलता प्रदान करे।
(ख) यदि निपुणता चाहते हो तो अभ्यास करो।

रूपावली वर्ग-2

सामान्य भविष्यत काल

पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमैं पहँगा (-ॐ + गा/गी)हम पढ़ेंगे (- एँ + गे/गी)
मध्यम पुरुषतू पढ़ेगा (- ए + गा/गी)तुम पढ़ोगे (- ओ + गे/गी)
अन्य पुरुषवह पढ़ेगा (- ए + गा/गी)वे पढ़ेंगे (- एँ + गे/गी)

उदाहरण-
(क) ऐसा दृश्य अन्यत्र नहीं मिलेगा।
(ख) तू लिखेगा कि नहीं लिखेगा।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-3

प्रत्यक्ष विधि

पुरुषएकवचनबहुवचन
मध्यम पुरुषतू पढ़ (Φ)तुम पढ़ो (- ओ)
मध्यम पुरुष (आप)आप पढ़िए (- इए-गा)आप पढ़िए (- इए-गा)

उदाहरण-
(क) अब स्टेशन पर चलो, गाड़ी निकल जाएगी।
(ख) अब पढ़िए।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-4

परोक्ष विधि

पुरुषएकवचनबहुवचन
मध्यम पुरुषतू पढ़ना (-ना)तुम पढ़ना (- ना)
मध्यम पुरुष (आप)आप पढ़िए (- इएगा)आप पढ़िए (- इएगा)

उदाहरण-
(क) कल पाठ पढ़कर आना।
(ख) आप अवश्य आइएगा।

रूपावली वर्ग-5

सामान्य संकेतार्थ हेतुहेतुमद् भूत

मैं पढ़ता/तीहम पढ़ते/तीं
तू पढ़ता/तीतुम पढ़ते/तीं
वह पढ़ता/तीवे पढ़ते/तीं

उदाहरण-
(क) यदि मैं शीघ्र आ जाता तो उनसे मिल लेता।
(ख) अगर तुमसे पढ़ लेती तो यह गलती न करती।

रूपावली वर्ग-6

सामान्य भूत

मैं चला/चलीहम चले/चली
तू चला/चलीतुम चले/चली
वह चला/चलीवे चले/चली

उदाहरण-
(क) चोर घर से भाग निकले।
(ख) आप चलें मैं अभी आया।
(ग) आप पढ़ें मैं सुनता हूँ।

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रूपावली वर्ग-7

सामान्य वर्तमान

मैं पढ़ता/ती हूँहम पढ़ते/ती हैं।
तू पढ़ता/ती हैतुम पढ़ते/ती हो
वह पढ़ता/ती हैवे पढ़ते/ती हैं

उदाहरण-
(क) माता जी आप को बुलाती हैं।
(ख) मैं पत्र लिखता हूँ।
(ग) मेरा छोटा भाई आठवीं कक्षा में पढ़ता है।

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रूपावली वर्ग-8

पूर्ण वर्तमान आसन्नभूत

मैं चला/चली हूँहम चले/चली हैं
तू चला/चली हैतुम चले/चली हो
वह चला/चली हैवे चले/चली हैं

उदाहरण-
(क) महर्षि वेदव्यास ने ‘महाभारत’ लिखा है।
(ख) क्या आपने पत्र नहीं लिखा है?
(ग) राम ने खाना खाया है।

रूपावली वर्ग-9

अपूर्ण भूतकाल

मैं पढ़ता/ती था/थीहम पढ़ते/ती थे/थीं
तू पढ़ता/ती था/थीतुम पढ़ते/ती थे/थीं
वह पढ़ता/ती था/थीवे पढ़ते ती थे/थीं

उदाहरण-
(क) पुलिस जो पूछती थी वह बताता जाता था।
(ख) वह पहले बहुत गाता था।

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रूपावली वर्ग-10

पूर्ण भूतकाल

मैं चला/ली था/थीहम चले ली थे/थीं
तू चला/ली था/थीतुम चले/ली थे/थीं
वह चला/ली था/थींवे चले ली थे/थीं

उदाहरण-
(क) आज सवेरे वह आपके यहाँ गया था।
(ख) डॉक्टर के आने से पहले रोगी मर चुका था।

रूपावली वर्ग-11

संभाव्य वर्तमान

मैं पढ़ता/ती होऊँहम पढ़ते/ती हों
तू पढ़ता ती होतुम पढ़ते/ती होओ
वह पढ़ता/ती होवे पढ़ते/ती हों

उदाहरण-
(क) शायद सोहन स्कूल जाता हो।
(ख) मुझे लगा कि कोई हमारी बात न सुनता हो।

रूपावली वर्ग-12

संभाव्य भूतकाल

मैं चला/चली होऊँहम चले/ली हों
तू चला/ली होतुम चले/ली होओ
वह चला/ली होवे चले/ली हों

उदाहरण-
(क) हो सकता है कि किसी ने हमें देख लिया हो।
(ख) शायद वह वहाँ से चला गया हो।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-13

संदिग्ध वर्तमान

मैं पढ़ता/ती होऊँगा/गीहम पढ़ते/ती होंगे/गी
तू पढ़ता/ती होगा/गीतुम पढ़ते/ती होंगे/गी
वह पढ़ता ती होगा/गीवे पढ़ते ती होंगे/गी

उदाहरण-
(क) वे आते ही होंगे।
(ख) वे गीत गाते ही होंगे।

रूपावली वर्ग-14

संदिग्ध वर्तमान

मैं चला ली होऊँगा/गीहम चले/ली होंगे/गी
तू चला/ली होगा/गीतुम चले/ली होंगे/गी
वह चला/ली होगा/गीवे चले ली होंगे/गी

उदाहरण-
(क) उसकी घड़ी नौकर ने कहीं रख दी होगी।
(ख) शायद वे बीमार होंगे।

रूपावली वर्ग-15

अपूर्ण संकेतार्थ

मैं पढ़ता/ती होता/तीहम पढ़ते/ती होते/ती
तू पढ़ता/ती होता/तीतुम पढ़ते/ती होते/ती
वह पढ़ता ती होता/तीवे पढ़ते/ती होते/तीं

उदाहरण-
(क) अगर वह तेज़ चलता होता तो अब तक यहाँ पहुँच गया होता।
(ख) अगर वह पढ़ता होता तो पास हो गया होता।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-16

पूर्ण संकेतार्थ

मैं चला/ली होता/तीहम चले/ली होते/तीं
तू चला/ली होता/तीतुम चले/ली होते ती
वह चला/ली होता/तीवे चले/ली होते/ती

उदाहरण-
(क) यदि वह परिश्रम करता तो पास हो जाता।
(ख) वे चले होते तो पहुँच गए होते।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

काल

प्रश्न 1.
काल किसे कहते हैं? काल के भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रिया के करने या होने के समय को काल कहते हैं। काल के तीन भेद होते हैं-
(1) भूतकाल,
(2) वर्तमान काल तथा
(3) भविष्यत काल।

1. भूतकाल: ‘भूत’ का अर्थ है-बीता हुआ। क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया का व्यापार पहले समाप्त हो चुका है, वह भूतकाल कहलाता है; जैसे सीता ने खाना पकाया। इस वाक्य से क्रिया के समाप्त होने का बोध होता है। अतः यहाँ भूतकाल क्रिया का प्रयोग हुआ है।।

2. वर्तमान काल: वर्तमान का अर्थ है-उपस्थित अर्थात जिस क्रिया से इस बात की सूचना मिले कि क्रिया का व्यापार अभी भी चल रहा है, समाप्त नहीं हुआ, उसे वर्तमान काल कहते हैं; जैसे मोहन गाता है। शीला पढ़ रही है।

3. भविष्यत काल: भविष्यत का अर्थ है-आने वाला समय। अतः क्रिया के जिस रूप से भविष्य में क्रिया के होने का बोध हो, उसे भविष्यत काल की क्रिया कहते हैं; जैसे सीता कल दिल्ली जाएगी। गा, गे, गी भविष्यत काल के परिचायक चिह्न हैं।

काल-भेद के कारण दोनों लिंगों, दोनों वचनों और तीनों पुरुषों में क्रिया का रूपांतर होता है; जैसे-
(क) लड़का पढ़ता है। (एकवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष)
(ख) लड़की पढ़ती है। (एकवचन, स्त्रीलिंग, अन्य पुरुष)
(ग) लड़के पढ़ते हैं। (बहुवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष)
(घ) लड़कियाँ पढ़ती हैं। (बहुवचन, स्त्रीलिंग, अन्य पुरुष)
(ङ) तू पढ़ता है। (एकवचन, पुल्लिंग, मध्यम पुरुष)
(च) मैं पढ़ता हूँ। (एकवचन, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष)
(छ) तुम/आप पढ़ते हो। (बहुवचन, पुल्लिंग, मध्यम पुरुष)
(ज) हम पढ़ते हैं। (बहुवचन, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूप-रचना

खेल (खेलना) √धातु

1. भूतकाल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 5

2. वर्तमान काल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 6

3. भविष्यत काल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 7

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

HBSE 10th Class Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad HBSE प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने तर्क देते हुए कहा कि हमने बचपन में ऐसे अनेक’धनुष तोड़े हैं। इसी धनुष को तोड़ने पर आपको क्रोध क्यों आया। क्या आपकी इस धनुष के प्रति अधिक ममता थी। हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष समान हैं फिर इस धनुष के टूटने पर आपने क्रोध क्यों व्यक्त किया। यह धनुष तो अत्यधिक पुराना था जोकि श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। फिर भला इसमें श्रीराम का क्या दोष है।

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद शब्दार्थ HBSE 10th Class प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि श्रीराम स्वभाव से अत्यंत शांत एवं गंभीर हैं। धनुष के टूट जाने पर श्रीराम ने परशुराम से कहा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। इतना ही नहीं, श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से लक्ष्मण को चुप रहने के लिए भी कहा और परशुराम जी का क्रोध भी शांत किया। दूसरी ओर, लक्ष्मण अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। उन्होंने अपने कटु वचनों द्वारा परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। उन्होंने परशुराम की धमकियों तथा डींगें हाँकने पर करारा व्यंग्य किया। लक्ष्मण ने ब्राह्मण देवता के सामने कटु वचन बोलकर अपने उग्र रूप का उदाहरण दिया था जबकि श्रीराम ने मधुर वाणी बोलकर उन्हें अपने उदार एवं शांत स्वभाव से प्रभावित किया था।

Class 10th Kshitij Chapter 2 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
लक्ष्मण ने मुस्कुराते हुए कहा, मुनियों में श्रेष्ठ परशुराम जी! क्या आप अपने आपको बहुत बहादुर समझते हो? आप बार-बार कुल्हाड़ा दिखाकर मुझे डरा देना चाहते हो। आप अपनी फूंक से पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो।
परशुराम गुस्से में भरकर कहते हैं, हे मूर्ख बालक, मैं तुम्हें बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ अन्यथा अब तक का……।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपक्रमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर-
परशुराम ने अपने विषय में कहा, “मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। अपनी भुजाओं के बल के द्वारा मैंने पृथ्वी को कई बार राजा विहीन कर दिया और उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया। मेरा यह फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजाओं को भी नष्ट कर दिया। हे राजकुमार! इस फरसे को देखकर गर्भवती स्त्रियों के गर्भ भी गिर जाते हैं।”

राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर-
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा रणभूमि में ही वीरता दिखाता है, अपना गुणगान नहीं करता फिरता। कायर ही अपनी शक्ति की डींगें हाँकते हैं।

Ram Lakshman Parshuram Samvad Vyakhya HBSE 10th Class प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
शास्त्रों में कहा गया है कि विनम्रता सदा वीर पुरुषों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उसका गुण नहीं अपितु उसकी मजबूरी होती है क्योंकि वह किसी को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकता। दूसरी ओर जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति दीन-दुखियों की सहायता करता है अथवा दूसरों के प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करता है तो समाज में उसका सम्मान किया जाता है। शक्ति को प्राप्त करके भी जो लोग अहंकारी न बनकर विनम्र एवं धैर्यवान बने रहते हैं और दूसरों को मार्ग से विचलित नहीं होने देते, संसार में ऐसे ही लोगों का आदर किया जाता है। विनम्र व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को अनुभव कर सकता है और उनकी सहायता के लिए आगे आता है। भगवान विष्णु को जब भृगुऋषि ने क्रोध में भरकर लात मारी थी तब उन्होंने साहस और शक्ति के बावजूद अत्यंत विनम्रता एवं उदारता का परिचय देते हुए उसे क्षमा कर दिया था। तभी से देवताओं में उनका सम्मान और भी बढ़ गया था। साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता का गुण मनुष्य को सदा सम्मान दिलाता है और उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाता है।

Class 10th Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad HBSE प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मूदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥
उत्तर-
(क) इस पद में कवि ने बताया है कि लक्ष्मण परशुराम के वचनों पर हँसकर व्यंग्य कर रहा है जिससे परशुराम का क्रोध बढ़ रहा है। लक्ष्मण ने परशुराम को बड़ा योद्धा कहकर और फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देने की बात कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है। कहने का तात्पर्य है कि गरज-गरजकर अपनी वीरता का वर्णन करना व्यर्थ है। इससे कोई व्यक्ति वीर नहीं बन जाता। वीरता बखान करने का नहीं, अपितु कुछ कर दिखाने का गुण है।

(ख) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम की वेश-भूषा पर व्यंग्य किया है। वे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मण के वेश में नहीं थे। लक्ष्मण ने इसीलिए कहा है कि हे मुनि जी यदि आप योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई नहीं कि तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। कहने का भाव है कि लक्ष्मण भी योद्धा था। वे पुनः कहते हैं कि आपके धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ा देखकर ही आपको योद्धा समझकर मैंने अभिमान भरी बातें कह दीं। यदि मुझे पता होता कि आप मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं ऐसा कदापि न करता।

(ग) इन पंक्तियों में विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली बातों को सुनकर उन पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे हैं कि मुनि जी को सर्वत्र हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। वे सदा सामान्य क्षत्रियों से युद्ध करके विजय प्राप्त करते रहे हैं। इसलिए उन्हें लगता था कि वे श्रीराम व लक्ष्मण को भी अन्य क्षत्रियों की भाँति आसानी से हरा देंगे किंतु ये साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने की खांड के समान नहीं थे, अपितु फौलाद के बने खाँडा के समान थे। मुनि बेसमझ बनकर इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-
तुलसीदास ने अपने काव्य में ठेठ अवधी भाषा का सफल प्रयोग किया है। तुलसीदास कवि व भक्त होने के साथ-साथ महान विद्वान भी थे। उन्होंने अपने काव्य में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनकी वाक्य-रचना व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं सफल है। तुलसीदास ने शब्द-चयन विषयानुकूल किया है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव व उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है। लोक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों के सार्थक प्रयोग से तुलसीदास के काव्य की भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। तुलसीदास ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है इसलिए उनके काव्य की भाषा कहीं प्रसादगुण सम्पन्न है तो कहीं ओजस्वी बन पड़ी है। उन्होंने इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा है कि किस शब्द का कहाँ और कैसे प्रयोग किया जाए। यही कारण है कि तुलसीदास के काव्यों की भाषा अत्यंत सफल एवं सार्थक सिद्ध हुई है।

प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद के अध्यया से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते . हैं कि बचपन में हमने कितने ही धनुष तोड़ डाले तब तो आपको क्रोध नहीं आया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हो और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हो। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएँगे। आपने ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी पुनः कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। _
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।।

(ख) इस पंक्ति में परशुराम के वचनों की तुलना कठोर वज्र से की गई है। अतः इसमें उपमा अलंकार है।

(ग) इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
(घ) ‘लखन उतर …… कृसानु’ में रूपक अलंकार है तथा ‘बढ़त देखि ……. रघुकुलभानु’ में उपमा अलंकार है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर-
पक्ष में आचार्य शुक्ल जी का यह कथन सही है कि क्रोध केवल नकारात्मक ही नहीं, अपितु सकारात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए हथौड़ा या बुलडोजर केवल मकान तोड़ने के ही काम नहीं आते, अपितु वे मकान के निर्माण में भी काम आते हैं। इसी प्रकार क्रोध भी बुरी आदतों को दूर करने में काम आता है। कोई बच्चा यदि चोरी करता है तो उस पर क्रोध करके उसकी बुरी आदत को छुड़वाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई बदमाश हमारे घर आकर हमारे साथ दुर्व्यवहार करे और हम चुप बैठे रहें तो उसका हौसला बढ़ता जाएगा उस बदमाश को ठीक करने के लिए क्रोध करना अति आवश्यक है। इस प्रकार क्रोध सदा नकारात्मक ही नहीं अपितु सकारात्मक भी होता है।

विपक्ष में-क्रोध करना अच्छी बात नहीं है। क्रोध से मनुष्य के मन और शरीर दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रोध की स्थिति में मनुष्य बुद्धि से काम नहीं लेता। अतः क्रोध में किया गया कोई भी काम उचित नहीं हो सकता। क्रोध में कही गई बात पर भी बाद में पश्चात्ताप करना पड़ता है। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर-
मेरा व्यवहार इन सबसे अलग होता क्योंकि मैं परशुराम के बड़बोले व्यवहार के विषय में उन्हें अत्यंत संयत ढंग से अवगत कराता ताकि वहाँ उपस्थित लोग मेरा विरोध न करते अपितु परशुराम के व्यवहार को ही अनुचित कहते। यदि फिर भी वह सुनने के लिए तैयार न होते तो वहाँ उपस्थित सभा के सामने तर्क के आधार पर उन्हें दोषी ठहराता।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 14.
‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए।’ इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं अपना अनुभव लिखें।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर-
अवधी भाषा आज लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर आदि क्षेत्रों के आसपास बोली जाती है।

यह भी जानें

दोहा- दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती हैं और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।
चौपाई – मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। तुलसी से . पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा पाठ में ‘सहस्रबाहु सम सो रिपु मोरा’ का कई बार उल्लेख आया है। परशुराम और सहस्रबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है

परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जो विशेष गाय थी, कहते हैं वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहस्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की माँग की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहस्रबाहु ने कामधेनु गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। इस पर क्रोधित हो परशुराम ने सहस्रबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि. जमदग्नि ने बहुत निंदा की और परशुराम को प्रायश्चित्त करने को कहा। उधर सहस्रबाहु के पुत्रों ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करने की प्रतिज्ञा की।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इस कवितांश के आधार पर लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के प्रति किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस कवितांश के अध्ययन से बोध होता है कि लक्ष्मण उग्र एवं तेज स्वभाव वाले हैं। वे भरी सभा में परशुराम द्वारा दी गई चुनौती व धमकी से आहत हो उठते हैं। इसलिए परशुराम के प्रश्नों का उत्तर उसी लहजे में देते हैं। वे परशुराम की आत्मप्रशंसा पर करारा व्यंग्य कसते हैं। लक्ष्मण के इस व्यवहार से एक ओर जहाँ परशुराम का क्रोध बढ़ता है, वहीं सभा में उपस्थित लोगों के मन का भय भी कम हो जाता है, किंतु यह स्थिति जब अतिक्रमण कर जाती है तो सभा में उपस्थित लोग लक्ष्मण के व्यवहार को अनुचित कहने लगते हैं। परशुराम लक्ष्मण से आयु में बहुत बड़े थे। वे उनके पिता तुल्य थे। इसलिए उन्हें उसके प्रति नृपद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। लक्ष्मण अपनी वीरता के जोश में उम्र और समाज की मर्यादा का विचार भी भूल जाते हैं। लक्ष्मण का परशुराम के प्रति क्रोध उचित था, किंतु संयम त्याग देना उचित नहीं था।

प्रश्न 2.
पठित कवितांश के आधार पर परशुराम द्वारा किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित कवितांश के अध्ययन से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। ऐसा लगता है कि क्रोध करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग है। बिना सोचे-समझे क्रोधित हो जाना उचित प्रतीत नहीं होता। वे पूरी बात समझे बिना ही क्रुद्ध हो उठते हैं। उनके आतंक के कारण सभा में कोई व्यक्ति सच्चाई नहीं बता सका। दूसरों को बात कहने का अवसर दिए बिना अपनी बात कहते जाना उचित नहीं है। फिर क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित-अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। परशुराम जी का क्रोध ऐसा ही है। यही कारण है कि लक्ष्मण उनकी इस कमजोरी को भाँप जाते हैं और अपने व्यंग्य बाणों को छोड़कर उनके क्रोध को और भी भड़का देते हैं जिससे परशुराम वे बातें भी कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थीं। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि परशुराम के इस व्यवहार व उनके ऐसे स्वभाव को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 3.
परशुराम ने लक्ष्मण को वध करने योग्य क्यों कहा था?
उत्तर-
परशुराम लक्ष्मण के विषय में कहते हैं कि यह मंद बुद्धि बालक है। यह मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानता कि मैं कितना क्रोधी हूँ। इसे किसी से डर या शर्म नहीं है। इसे अपने माता-पिता की चिंता का भी बोध नहीं है। क्षत्रिय राजकुमार होने के कारण भी यह स्वाभाविक रूप से परशुराम का शत्रु है तथा परशुराम क्षत्रिय द्रोही हैं। लक्ष्मण ने परशुराम का मज़ाक उड़ाया है। . इसलिए वह वध करने योग्य है।

प्रश्न 4.
‘कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा’ को नहि जान बिदित संसारा’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस पंक्ति में परशुराम के शील व स्वभाव पर व्यंग्य किया गया है। इसमें व्यंग्य है कि परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव . के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोधी स्वभाव को सहज एवं स्वाभाविक कहकर व्यंग्य किया है। प्रकट रूप से इस पंक्ति का अर्थ है कि परशुराम महान् क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। इस बात को सारा संसार भली-भाँति जानता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता के संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश दिया है कि क्रोध अच्छी भावना नहीं है। इससे सदा दूर रहना चाहिए। क्रोध मनुष्य की सोचने व भले-बुरे के अंतर को जानने की शक्ति को नष्ट कर देता है। क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। क्रोध के वश में होकर परशुराम श्रीराम व लक्ष्मण को साधारण बालक समझकर उन्हें मारने तक की धमकी दे डालते हैं। क्रोध के कारण ही व्यक्ति सदा हँसी का पात्र बनता है। परशुराम क्रोध के कारण ही विश्वामित्र की हँसी का पात्र बनता है। परशुराम स्वयं की प्रशंसा करते हैं और दूसरों को मारने की धमकी देते हैं। यही संदेश हमें इस कवितांश से मिलता है कि हमें सदा अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए एवं सोच-समझकर ही कोई बात कहनी चाहिए।

प्रश्न 6.
परशुराम ने श्रीराम को क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
परशुराम ने श्रीराम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करता है, न कि शत्रुता का भाव रखता हो। शत्रुता का भाव रखने वाले के साथ तो लड़ाई करनी चाहिए। जिसने भी शिव का धनुष तोड़ा, वह उनके लिए सहस्रबाहु के समान शत्रु है। उसे आज इस सभा से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 7.
श्रीराम द्वारा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए कौन-सा काम किया गया था?
उत्तर-
श्रीराम ने भली-भाँति समझ लिया था कि परशुराम क्रोधी होने के साथ अहंकारी भी थे। उन्हें अपनी शक्ति का अहंकार था। इसलिए क्रोधी को क्रोधी बनकर जीतना बुद्धिमत्ता नहीं है। श्रीराम ने क्रोधी परशुराम के सामने अत्यंत संयत एवं विनम्र भाषा में कहा था कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो उन्हें आदेश करें। श्रीराम ने अत्यंत सहज एवं मधुर वाणी का प्रयोग करके परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 8.
इस काव्यांश के आधार पर बताइए कि आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगता है और क्यों?
उत्तर-
इस काव्यांश में श्रीराम, लक्ष्मण और परशुराम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। परशुराम को इस काव्यांश में अत्यंत क्रोधी दिखाया गया है। वे शिव-धनुष को टूटा हुआ देखकर क्रोध से पगला उठे और किसी की बात न सुनकर दूसरों को मार डालने की धमकियाँ देते हैं और आत्म-प्रशंसा करते हैं। लक्ष्मण परशुराम की धमकियों को सुनकर उन पर व्यंग्य बाण कसने लगा। लक्ष्मण ने उनकी उम्र का भी ध्यान न रखा । यहाँ तक कि लक्ष्मण ने मर्यादा का भी अतिक्रमण कर दिया। जबकि श्रीराम ने परशुराम के सामने अत्यंत मधुर भाषा में अपने-आपको उनका सेवक व दास कहा था जिसे सुनकर परशुराम का क्रोध शांत हो गया था। उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा न करके अपने आपको उनका दास तथा सेवक बताया। यह श्रीराम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। इसीलिए हमें श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पसंद है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास के आराध्य देव कौन थे?
उत्तर-
तुलसीदास के आराध्य देव दशरथ सुत श्रीराम थे।

प्रश्न 2.
किसने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी?
उत्तर-
परशुराम ने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी।

प्रश्न 3.
परशुराम अपने-आपको किस कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं?
उत्तर-
परशुराम अपने-आपको क्षत्रिय कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘वीरव्रती तुम्ह धीर अछोभा’ – यहाँ अछोभा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘अछोभा’ शब्द का अर्थ है-क्षोभ रहित।

प्रश्न 5.
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक किसे कहा है?
उत्तर-
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक लक्ष्मण को कहा है।

प्रश्न 6.
‘खर कुठार मैं अकरुन कोही’-यहाँ कोही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘कोही’ का अर्थ है-क्रोधी।

प्रश्न 7.
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कौन अपनी प्रशंसा करता है?
उत्तर-
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कायर अपनी प्रशंसा करता है।

प्रश्न 8.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ – यहाँ अर्भक’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
अर्भक का अर्थ है-बच्चा।

प्रश्न 9.
परशुराम के गुरु कौन थे?
उत्तर-
परशुराम के गुरु भगवान शिव थे।

प्रश्न 10.
परशुराम गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
उत्तर-
धनुष तोड़ने वाले का वध करके परशुराम गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

प्रश्न 11.
लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष क्यों नहीं करना चाहते थे?
उत्तर-
परशुराम ब्राह्मण थे, इसलिए लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष नहीं करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास किसने किया?
उत्तर–
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास श्रीराम ने किया।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से तुलसी की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) पद्मावत
(D) साकेत
उत्तर-
(A) रामचरितमानस

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 2.
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता रामचरितमानस के किस कांड से ली गई है?
(A) अयोध्याकांड से
(B) सुंदरकांड से
(C) बालकांड से
(D) किष्किंधाकांड से
उत्तर-
(C) बालकांड से

प्रश्न 3.
‘हे नाथ! शिव-धनुष को तोड़ने वाला तुम्हारा ही कोई दास होगा।” ये शब्द किसने किसको कहे हैं?
(A) लक्ष्मण ने राम को
(B) राम ने परशुराम को ‘
(C) जनक ने परशुराम को
(D) हनुमान ने जनक को
उत्तर-
(B) राम ने परशुराम को

प्रश्न 4.
परशुराम को क्या देखकर गुस्सा आता है? .
(A) श्रीराम को
(B) सीता को
(C) स्वयंवर-आयोजन को
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को
उत्तर-
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को

प्रश्न 5.
परशुराम ने सेवक किसे कहा है?
(A) जो सम्मान करे
(B) जो सेवा करे
(C) जो आज्ञा का पालन करे
(D) जो कुछ भी न करे
उत्तर-
(B) जो सेवा करे

प्रश्न 6.
तुलसीदास के अनुसार कुम्हड़बतियाँ किसे देखकर मुरझाती हैं।
(A) सूर्य
(B) अंधकार
(C) तरजनी
(D) उख
उत्तर-
(C) तरजनी

प्रश्न 7.
परशुराम ने सभा में उपस्थित राजाओं को क्या धमकी दी थी?
(A) आक्रमण करने की
(B) वध करने की
(C) राज्य छीन लेने की
(D) धन-संपत्ति लूटने की
उत्तर-
(B) वध करने की

प्रश्न 8.
तुलसीदास ने ‘भूगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) वशिष्ठ
(C) विश्वामित्र
(D) लक्ष्मण
उत्तर-
(A) परशुराम

प्रश्न 9.
‘देखि कुठारु सरासन बाना’-यहाँ ‘कुठारु’ का अर्थ है-
(A) कठोर
(B) कोठार
(C) कुल्हाड़ा
(D) कमरा
उत्तर-
(C) कुल्हाड़ा

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 10.
परशुराम के क्रोध को किसने शांत करने का प्रयास किया था?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(B) श्रीराम ने

प्रश्न 11.
तुलसीदास ने ‘कौशिक’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) वशिष्ठ
(B) विश्वामित्र
(C) परशुराम
(D) जनक
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 12.
परशुराम लक्ष्मण का वध क्या समझकर नहीं करते? ।
(A) वीर
(B) कायर
(C) राजकुमार
(D) बालक
उत्तर-
(D) बालक

प्रश्न 13.
तुलसीदास ने ‘गाधिसूनु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) विश्वामित्र
(C) लक्ष्मण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 14.
‘अयमय खाँडव न ऊखमय’ यहाँ ‘अयमय’ का अर्थ है:
(A) स्वयं
(B) गन्ना
(C) लोहे का बना हुआ
(D) खाँड का बना हुआ
उत्तर-
(C) लोहे का बना हुआ

प्रश्न 15.
परशुराम ने धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु बताया है?
(A) रावण के
(B) लक्ष्मण के
(C) राजा जनक के
(D) सहस्रबाहु के
उत्तर-
(D) सहस्रबाहु के

प्रश्न 16.
‘अहो मुनीसु महाभट मानी’ शब्द किसने कहे हैं?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(D) लक्ष्मण ने

प्रश्न 17.
श्रीराम ने किसके धनुष को तोड़ा था?
(A) परशुराम के
(B) शिव के
(C) ब्रह्मा के
(D) विष्णु के
उत्तर-
(B) शिव के

प्रश्न 18.
किसके वचन ‘कोटि कुलिस’ के समान हैं?
(A) राजा जनक के
(B) सीता के
(C) परशुराम के
(D) श्रीराम के
उत्तर-
(C) परशुराम के

प्रश्न 19.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ यहाँ ‘अर्भक’ का अर्थ है
(A) गर्दभ
(B) बच्चा
(C) गंधक
(D) शत्रु
उत्तर-
(B) बच्चा

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 20.
परशुराम ने ‘सूर्यवंश का कलंक’ किसे कहा है?
(A) श्रीराम को
(B) विश्वामित्र को
(C) लक्ष्मण को
(D) सीता को
उत्तर-
(C) लक्ष्मण को

प्रश्न 21.
परशुराम ने विश्वामित्र को क्या चेतावनी दी थी?
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे
(B) सीता-स्वयंवर को रुकवा दे
(C) शिव-धनुष को पुनः जुड़वा दे
(D) धनुष तोड़ने वाले का नाम बता दे
उत्तर-
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे

प्रश्न 22.
युद्ध में रिपु के सामने अपने प्रताप का बखान कौन करता है?
(A) लक्ष्मण
(B) परशुराम
(C) कायर
(D) शूरवीर
उत्तर-
(C) कायर

प्रश्न 23.
परशुराम ने राजाओं से अनेक बार भूमि जीतकर किसको दी?
(A) स्वयं रखी
(B) वापिस उन्हें दे दी
(C) ब्राह्मणों को
(D) अपने गुरु को
उत्तर-
(C) ब्राह्मणों को

प्रश्न 24.
विश्वामित्र के अनुसार साधु किसके दोषों को मन में धारण नहीं करते?
(A) वृद्धों के
(B) युवकों के
(C) स्त्रियों के
(D) बालकों के
उत्तर-
(D) बालकों के

प्रश्न 25.
परशुराम ने लक्ष्मण के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग किया है
(A) कुटिल
(B) कालवश
(C) निजकुल-घालक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
परशुराम किसे अपना गुरु मानते हैं?
(A) हनुमान को
(B) शिवजी को
(C) विश्वामित्र को
(D) ब्रह्मा को
उत्तर-
(B) शिवजी को

प्रश्न 27.
‘भृगुवंसमनि’ किसे कहा गया है?
(A) लक्ष्मण को
(B) जनक को
(C) विश्वामित्र को
(D) परशुराम को
उत्तर-
(D) परशुराम को

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥
सेवक सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई ॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा ॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने ॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भूगुकुलकेतू ॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ॥ [पृष्ठ 12]

शब्दार्थ-संभुधनु = शिव-धनुष। भंजनिहारा = तोड़ने वाला। केउ = कोई। आयेसु = आज्ञा। मोही = मुझे। रिसाइ = क्रोध करना। कोही = क्रोधी। सेवकाई = सेवा करने वाला। अरि = शत्रु। करि = करके। लराई = लड़ाई। सम = समान। रिपु = शत्रु। बिलगाउ = अलग हो जाना। न त = न तो। अवमाने = अवमानना करना। लरिकाईं = लड़कपन में। असि = ऐसा। येहि = इस। ममता = स्नेह। केहि हेतू = किस कारण। भृगुकुलकेतु = भृगु ऋषि के कुल ध्वज। नृपबालक = राजा के पुत्र। कालबस = मृत्यु के अधीन। त्रिपुरारी = शिव। बिदित = जानता है। सकल = संपूर्ण।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीराम ने परशुराम से क्या कहा और क्यों?
(ङ) परशुराम को गुस्सा क्यों आया था?
(च) किसने सभा के बीच में पहुँचकर सभा को धमकी दी?
(छ) परशुराम के क्रोध भरे वचन सुनकर लक्ष्मण क्यों मुस्कराए?
(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने क्या कहा?
(झ) इस पद के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ञ) इस पद को पढ़कर श्रीराम के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) इस पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य व काव्य-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास।
कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक की शर्त के अनुसार श्रीराम शिव-धनुष को तोड़ डालते हैं तथा सीता का वरण करते हैं। उसी समय वहाँ परशुराम जी आ जाते हैं। वे शिव भक्त हैं। उन्हें शिव के टूटे हुए धनुष को देखकर क्रोध आ जाता है। वे सारी सभा को नष्ट कर देने की धमकी देते हैं। सभी उपस्थित लोग उनके वचनों को सुनकर सहम जाते हैं। लभी श्रीराम ने अत्यंत धैर्यपूर्वक स्थिति को संभाला और परशुराम जी से विनम्रतापूर्वक ये शब्द कहे।

(ग) परशुराम को अत्यंत क्रोध में देखकर श्रीराम ने कहा हे नाथ ! इस शिव-धनुष को तोड़ने वाला भी कोई तुम्हारा ही दास अथवा सेवक होगा। क्या आज्ञा है मुझसे क्यों नहीं कहते। यह सुनकर क्रोधी मुनि क्रोध में भरकर बोले कि सेवक वह है जो सेवा करे किंतु जो शत्रुता का काम करे उससे तो लड़ाई करनी चाहिए। कहने का भाव है कि जिसने शिव-धनुष तोड़ा है वह परशुराम के लिए शत्रु के समान है। हे राम ! सुनो जिसने यह शिव-धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। परशुराम जी कहने लगे जिसने इस धनुष को तोड़ा है, वह इस सभा से अलग हो जाए, नहीं तो उसके साथ सभी राजा लोग मारे जाएँगे। मुनि के वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराने लगे। वे परशुराम जी से बोले कि हमने अपने बचपन में ऐसे अनेक धनुष तोड़े हैं। हे स्वामी ! तब आपने ऐसा क्रोध नहीं किया था। इस धनुष के लिए आपके मन में इतनी ममता किसलिए है?
लक्ष्मण के वचन सुनकर परशुराम जी बोले हे राजकुमार ! क्या तुम काल के अधीन हो! संभलकर क्यों नहीं बोलता। सारा संसार जानता है कि क्या शिव-धनुष अन्य धनुषों के समान था अर्थात् शिव-धनुष का महत्त्व तो संपूर्ण विश्व जानता है।

(घ) श्रीराम ने परशुराम से अत्यंत विनम्र भाव से कहा कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास है। अतः आप मुझे आज्ञा दें। मैं आपकी सेवा में हाज़िर हूँ। श्रीराम ने ये शब्द परशुराम जी के क्रोध को शांत करने के लिए कहे थे।

(ङ) परशुराम को गुस्सा अपने गुरु शिवजी के धनुष को तोड़ने पर आया था।

(च) परशुराम ने सभा के बीच में पहुँचकर सबको धमकी दी थी कि जिसने भी उनके गुरु शिवजी का धनुष तोड़ा है वह सामने आ जाए अन्यथा वे सभी राजाओं का वध कर डालेंगे।

(छ) लक्ष्मण परशुराम जी के गुस्से से भरे एवं बड़बोले वचनों को सुनकर मुस्कुराए, क्योंकि उन्हें ऐसा लगा कि परशुराम जी का यह गुस्सा केवल दिखावे का है। जब उन्हें पता चलेगा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई और नहीं श्रीराम हैं तो उनका गुस्सा स्वतः शांत हो जाएगा।

(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने कहा, हे मुनि! बचपन में हमने ऐसे कितने ही धनुष तोड़े थे तब तो आपको गुस्सा नहीं आया था। फिर इस धनुष के प्रति आप इतनी अधिक ममता क्यों दिखा रहे हैं?

(झ) इस पद से पता चलता है कि परशुराम जी क्रोधी स्वभाव वाले थे। वे अपनी शक्ति की डींगें हाँकने वाले थे। साथ ही वे बड़बोले भी थे। वे छोटी-छोटी बातों पर आपे से बाहर हो उठते थे अर्थात् क्रोध के कारण आग-बबूले हो उठते थे। वे आत्म-प्रशंसक भी थे। वे बात-बात पर सामने वाले को मारने की धमकी भी दे देते थे।

(ञ) इस पद के अध्ययन से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत शांत एवं गंभीर स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे परशुराम जैसे क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति को भी अपनी विनम्र एवं गंभीर वाणी से शांत करने वाले थे। उनमें अहंकार नाममात्र भी नहीं था। वे परशुराम जी के सामने अपने आपको दास या सेवक कहते हैं।

(ट) इस पद में कविवर तुलसीदास ने मूलतः परशुराम जी के क्रोधी स्वभाव का उल्लेख किया है। वे लक्ष्मण जी के व्यंग्य भरे वचनों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं और सभा में उपस्थित राजाओं का वध करने की धमकी भी दे डालते हैं। कवि ने श्रीराम के शांत एवं गंभीर स्वभाव की ओर भी संकेत किया है। साथ ही सहस्रबाहु के वध की पौराणिक कथा का उल्लेख भी किया है।

(ठ)

  • इस पद में कवि ने विभिन्न प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के स्वभाव का कलात्मकतापूर्ण उल्लेख किया है।
  • इस पद में शांत एवं रौद्र रसों की अभिव्यक्ति हुई है।
  • इस पद में दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  • संवाद शैली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। भाषा भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री के कारण भाषा में लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण प्रधान है।

[2] लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना ॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरे ॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित छत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-छति = हानि। लाभु = लाभ। नयन = नया। भोरें = धोखे। दोसू = दोष। रोसू = क्रोध। सठ = दुष्ट। सुभाउ = स्वभाव। जड़ = मूर्ख। मोही = मुझे। बिस्व = संसार, विश्व। बिदित = विख्यात। महिदेवन्ह = ब्राह्मण। बिलोक = देखकर। महीपकुमार = राजकुमार। अर्भक = बच्चा। दलन = नाश।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते हैं?
(ङ) लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में श्रीराम का कोई दोष क्यों नहीं था?
(च) परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
(छ) इस पद के अनुसार परशुराम जी ने अपने स्वभाव की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान कैसे किया?
(झ) ‘परशुराम का फरसा अधिक भयानक है’ यह कैसे कह सकते हैं?
(ञ) ‘क्षत्रियकुल द्रोही’ से परशुराम की कौन-सी विशेषता का बोध होता है?
(ट) इस पद्यांश का भावार्थ/भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ठ) इस पद्यांश में निहित शिल्पगत सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए थे। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया था परंतु उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था।

(ग) लक्ष्मण ने हँसकर कहा, हे देव ! सुनिए हमारी समझ में तो सभी धनुष समान हैं। पुराने धनुष के तोड़ने से क्या लाभ तथा क्या हानि हो सकती है? श्रीराम जी ने तो इसे नया समझकर इसे हाथ ही लगाया था कि यह छूने मात्र से ही टूट गया तो इसमें रघुपति जी का क्या दोष है। तब परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले हे मूर्ख! क्या तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना है। बालक जानकर मैं तुम्हें नहीं मारता हूँ। तूने मुझे केवल मुनि ही समझा है अर्थात् मैं मुनि वेश में हूँ, वास्तव में मैं मुनि नहीं हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी हूँ। संपूर्ण विश्व जानता है कि मैं क्षत्रिय कुल का दुश्मन हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को राजाओं से छीनकर उसे कई बार ब्राह्मणों को दान में दे दिया था अर्थात् पृथ्वी के राजाओं को हराकर उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया था। हे राजकुमार ! तू मेरे सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले इस फरसे को देख। हे राजकिशोर! अपने माता-पिता को सोच के वश में मत कर अर्थात् यदि मैं तुम्हें मार दूं तो तेरे माता-पिता को चिंता होगी। मेरा यह कठोर फरसा गर्भो के बालकों तक को मार डालने वाला भयंकर फरसा है अर्थात् इसके डर के कारण गर्भवती नारियों के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं।

(घ) लक्ष्मण जी सभी धनुषों को समान मानते हैं अर्थात् उनकी दृष्टि में सभी धनुष समान हैं।

(ङ) लक्ष्मण जी के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का दोष इसलिए नहीं था क्योंकि राम ने तो उसे नए धनुष के रूप में देखा था किंतु वह तो उनके छूने मात्र से टूट गया था। अतः इस संबंध में श्रीराम निर्दोष थे।

(च) परशुराम यद्यपि लक्ष्मण पर अत्यधिक क्रोधित थे, किंतु वे उसको बच्चा समझकर उसका वध नहीं कर रहे थे।

(छ) इस पद में परशुराम ने अपने स्वभाव की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वह केवल मुनि ही नहीं है बल्कि अति क्रोधी भी है। वह बालक समझकर ही लक्ष्मण का वध नहीं कर रहा है।

(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान करते हुए कहा है कि उसने अनेक बार इस पृथ्वी को अपनी भुजाओं के बल पर राजाओं से विहीन कर दिया था अर्थात् उसने सभी राजाओं को हरा दिया था। उसने सहस्रबाहु की भुजाएँ काट डाली थीं।

(झ) परशुराम का फरसा अत्यंत भयानक है क्योंकि उसके भय से ही गर्भस्थ शिशुओं का नाश हो जाता है।

(ञ) ‘क्षत्रिय कुल द्रोही’ वाक्यांश से पता चलता है कि परशुराम ने अपनी शक्ति के बल पर इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

(ट) गोस्वामी तुलसीदास ने इस पद में लक्ष्मण के प्रति परशुराम के क्रोध का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि परशुराम को अपनी शक्ति और पराक्रम पर घमंड था। किंतु लक्ष्मण उनके बल से जरा भी प्रभावित नहीं था। वह बिना डरे हुए उनके जीवन की वस्तुस्थिति को उनके सामने रख रहा था।

(ठ)

  • इस पद में तुलसीदास ने परशुराम के वीरत्व और क्रोधी स्वभाव का ओजस्वी भाषा में उल्लेख किया है।
  • कवि ने शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सफलतापूर्वक की है।
  • अतिशयोक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद है।

(ड) प्रस्तुत काव्यांश में शुद्ध साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों की भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों में कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया गया है। ओजस्वी भावानुरूप शब्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा में जितनी लौकिकता है उतनी ही शास्त्रीयता भी है। ।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

[3] बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ॥
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें ॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-बिहसि = हँसकर। मूदु = मधुर। महाभट = शूरवीर। कुठारु = फरसा। उड़ावन = उड़ाना। पहारू = पहाड़। कुम्हड़बतिया = छुईमुई का वृक्ष । जे तरजनी = अँगुली का संकेत। सरासन = धनुष-बाण। बिलोकी = देखकर। रिस = क्रोध। सुर= देवता। महिसुर = ब्राह्मण। हरिजन = भक्त। सुराई = वीरता दिखाना। अपकीरति = अपयश, दोष। कोटि = करोड़ों। कुलिस = ब्रज। भृगुबंसमनि = भृगु कुल में श्रेष्ठ।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार किसे और क्यों दिखा रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्ण बात क्यों की थी?
(च) लक्ष्मण ने किन-किन को अवध्य बताया और क्यों?
(छ) लक्ष्मण ने परशुराम से ऐसा क्यों कहा कि आप व्यर्थ ही धनुष-बाण एवं फरसा धारण किए फिरते हो?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
(झ) “अहो मुनीसु महाभट मानी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।।
(ञ) प्रस्तुत पद के अनुसार लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश के भावार्य/भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक के दरबार में सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया। तभी वहाँ परशुराम पहुँच गए। वे टूटे हुए शिव-धनुष को देखकर धनुष तोड़ने वाले को मारने की धमकी देने लगे। वहाँ उपस्थित लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि यह धनुष बहुत पुराना था तथा राम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं। इस पर परशुराम और भी क्रोधित हो उठे तथा अपने पराक्रम और शक्ति की डींगें मारने लगे। उनकी ये डींगें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे वचन कहे।

(ग) जब परशुराम बड़ी-बड़ी डींगें मारने लगे तो लक्ष्मण ने हँसते हुए मधुर वाणी में कहा कि आप मुनि होकर अपने-आपको बहुत बड़ा शूरवीर समझते हैं। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखाकर ऐसे डरा देना चाहते हो जैसे फूंक मारकर पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो। हे मुनिवर ! यहाँ भी कोई छुईमुई का पेड़ नहीं है कि अँगुली के इशारे से ही कुम्हला जाएगा अर्थात् मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ कि तुम्हारे कुल्हाड़े के भय से ही डर जाऊँगा। मैंने तो तुम्हारे द्वारा धारण किए हुए कुठार एवं धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान से कुछ कहा है। किंतु अब मैं जान गया हूँ। आपको भृगुकुल का ब्राह्मण समझ और आपका जनेऊ देखकर, जो कुछ आपने कहा उसे मैंने अपना क्रोध रोककर सहन कर लिया है। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाते अर्थात् इनके साथ युद्ध नहीं करते। इनका वध करने पर पाप लगता है और हारने से अपयश होता है। यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके चरणों में ही गिरूँगा और फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों के समान कठोर हैं। आप तो व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुठार धारण किए हुए हैं।
हे धीर मुनिवर ! इनको देखकर यदि मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो मुझे क्षमा करना। यह सुनकर भृगुकुल में श्रेष्ठ परशुराम भी क्रोधित होकर गंभीर वाणी में बोले।

(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार लक्ष्मण को डराने हेतु दिखा रहे थे। वे उसे बता देना चाहते थे कि वे कुल्हाड़े से उसका वध कर सकते हैं।

(ङ), लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर उन्हें क्षत्रिय समझकर अभिमानपूर्ण बात की थी।

(च) लक्ष्मण क्षत्रिय कुल से है इसलिए उसने देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त व गाय को अवध्य बताया है क्योंकि इनका वध करने से पाप होता है और अपकीर्ति भी होती है।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार परशुराम के वचन ही इतने कठोर हैं कि उन्हें अस्त्र-शस्त्र धारण करने की आवश्यकता नहीं है। वे अपने कठोर वचनों से ही शत्रु को परास्त कर देते हैं।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।

(झ) इस वाक्य के माध्यम से परशुराम के बड़बोलेपन पर व्यंग्य किया है। यह उनकी वीरता को खुली चुनौती थी। परशुराम को माना हुआ योद्धा कहकर उनकी वीरता का मजाक किया है।

(ञ) इस पद को पढ़ने से पता चलता है कि लक्ष्मण निर्भीक, वाक्पटु एवं व्यंग्य-कुशल युवक है। वह परशुराम के बड़बोलेपन को चुपचाप सहन करने वाला वीर नहीं है। वह सामने वाले व्यक्ति द्वारा चुनौती देने पर कभी चुप नहीं रह सकता।

(ट) प्रस्तुत पद में लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए कथनों पर करारा व्यंग्य किया है। परशुराम ने अपनी शक्ति और कर्मों का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है ताकि सभी उपस्थित लोग उनके कथनों से भयभीत हो जाएँ। किंतु लक्ष्मण ने स्पष्ट शब्दों में उन्हें समझा दिया कि उनके कुल में देवता, ब्राह्मण व गाय पर शस्त्र नहीं उठाते। इससे पाप लगता है। लक्ष्मण के इस कथन से अभिप्राय है कि यदि वह ब्राह्मण न होता तो वह उसे युद्ध के लिए ललकार देता और उनकी शक्ति का परीक्षण भी हो जाता।

(ठ)

  • इस पद में लक्ष्मण द्वारा परशुराम की अभिमानयुक्त वाणी और डींग हाँकने का मजाक उड़ाया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दों का अत्यंत सार्थक प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, उपमा आदि अलंकारों के प्रयोग के द्वारा काव्यांश को सजाया गया है।
  • भाषा ओजगुण सम्पन्न है।

(ड) अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा कीर रस के वर्णन के अनुकूल ओजस्वी है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। पदमैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।

[4] कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु ॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बल रोषु हमारा ॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा ॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी ॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा ॥
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आए।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-कौसिक = विश्वामित्र। मंद = मूर्ख । कुटिलु = दुष्ट। घालकु = घातक, नाश करने वाला। भानुबंस = सूर्यवंश। कलंकू = कलंक। निपट = बिल्कुल । निरंकुसु = उदंड। अबुधु = मूर्ख, अज्ञानी। असंकू = निडर। कवलु = ग्रास । खोरि = दोष। हटकहु = मना कर दो। तुम्हहि = न टूटने वाला। अछत = तुम्हारे रहते दूसरा। रिस = क्रोध । दुसह = असहाय। अछोभा = क्षोभ रहित। गारी = गाली। रन = युद्ध। रिपु = शत्रु। कायर = डरपोक। कथहिं = कहना। प्रतापु = बड़ाई।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से क्या कहा?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या कहते हुए व्यंग्य किया?
(च) इस चौपाई के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर कौन है?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया था?
(झ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।’
(ञ) परशुराम ने विश्वामित्र को क्या करने की चेतावनी दी?
(ट) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदय) पर प्रकाश डालिए।
(ढ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।।

(ख) तुलसीदास के प्रमुख काव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत इन पंक्तियों में परशुराम व लक्ष्मण की स्वभावगत विशेषताओं का वर्णन किया गया है। सीता-स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया था, तब परशुराम जी ने वहाँ पहुँचकर अपनी वीरता और शक्ति की डींगें हाँकनी प्रारंभ कर दी थीं। इस पर लक्ष्मण ने उनकी शक्ति और वीरता पर व्यंग्य आरंभ कर दिए थे जिससे परशुराम जी का क्रोध और भी उत्तेजित हो गया था। तब परशुराम ने ये शब्द विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहे थे।

(ग) लक्ष्मण के व्यंग्य भरे वचन सुनकर परशुराम विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहते हैं, हे विश्वामित्र ! सुनो यह बालक कुबुद्धि और कुटिल, कालवश होकर अपने कुल का नाशक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी पूर्ण-चंद्रमा का कलंक है। यह बालक बहुत ही उदंड, मूर्ख और निडर है। यह क्षणमात्र में ही काल का ग्रास बन जाएगा अर्थात् मैं इसका शीघ्र वध कर दूंगा। मैं बार-बार पुकार-पुकार कर कह रहा हूँ फिर मुझे दोष न देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो मेरा बल, क्रोध और प्रताप बताकर इसे रोक लो। इस पर लक्ष्मण जी ने कहा हे मुनि ! भला तुम्हारे रहते हुए तुम्हारे यश का वर्णन कौन कर सकता है अर्थात् आप ही अपने यश का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर कर रहे हो। आपने अपनी करनी अपने मुख से अनेक बार अनेक प्रकार से तो कह दी है। यदि अब भी संतोष नहीं हुआ है तो फिर कुछ कह लीजिए। किंतु अपने क्रोध को रोक सहृदय कष्ट सहन न करे। आप वीरव्रती, धैर्यवान तथा क्षोभ-रहित हैं। आप गाली देते शोभा नहीं पाते अर्थात् गाली देना या अपशब्द कहना आपके लिए शोभनीय नहीं है।

लक्ष्मण जी ने पुनः कहा कि शूरवीर युद्ध-क्षेत्र में अपनी वीरता दिखाते हैं, अपने-आपको स्वयं कहकर प्रकट नहीं करते अर्थात् अपनी वीरता का वर्णन स्वयं नहीं करते। रण में अपने शत्रु को देखकर कायर लोग ही अपना गुणगान करते हैं।

(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि यह बालक कुबुद्धि है और यह काल के वश होकर अपने कुल के लिए घातक बन सकता है। इसको बचाना हो तो इसे मेरे प्रताप और बल के बारे में बता दीजिए अन्यथा फिर मुझे दोष मत देना।

(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहा कि आपके सुयश का वर्णन आपके अतिरिक्त और कौन कर सकता है। आप तो धैर्यवान और क्षोभरहित हो। युद्ध में शत्रु को पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें मारा करते हैं।

(च) प्रस्तुत चौपाई को पढ़ने से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव वाले हैं। वे बार-बार अपना परिचय देने के बाद भी विश्वामित्र से कहते हैं कि आप बालक लक्ष्मण को मेरे विषय में बता दीजिए।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर वह होता है जो बातें न करके युद्ध भूमि में जाकर युद्ध करता है। युद्ध भूमि में शत्रु को देखकर कायर ही डींगें मारता है।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया था कि उसे अपना यश अपने मुख से प्रकट करना चाहिए था क्योंकि उनके स्वयं यहाँ रहते हुए भला उनके यश का ठीक-ठीक वर्णन कौन कर सकता है।

(झ) इस पद से पता चलता है कि लक्ष्मण का स्वभाव अत्यंत तेज एवं उग्र है। वे वीर एवं वाक्पटु भी हैं। जब परशुराम के क्रोध को देखकर सारी सभा मौन हो गई थी तब लक्ष्मण ने निडरतापूर्वक परशुराम को खरी-खरी बातें सुनाई थीं।।

(अ) परशुराम ने विश्वामित्र को चेतावनी दी थी कि वे लक्ष्मण को उनकी वीरता और प्रभाव के बारे में ठीक से बता दें। उसे उदंडता करने से मना कर दें अन्यथा वह बिना मौत के उसके हाथों मारा जाएगा।

(ट) रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू। अनुप्रास-‘कुटिलु कालबस’, ‘बहुबरनी’ आदि।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि ने अत्यंत ओजस्वी भाषा में परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है। लक्ष्मण की तेजस्विता, वाग्वीरता, व्यंग्य क्षमता और निर्भीकता को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

(ड)

  • कवि ने परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है।
  • “लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।” पंक्ति में व्यंग्य देखते ही बनता है।
  • ‘काल कवलु’, ‘कुल घालकु’ आदि शब्दों का प्रयोग सुंदर एवं सटीक बन पड़ा है।
  • अवधी भाषा का सुंदर एवं सफल प्रयोग हुआ है।
  • अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग भी देखते ही बनता है।
  • वीर रस का सुंदर एवं सजीव वर्णन हुआ है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।

(ढ) महाकवि तुलसीदास ने इन काव्य पंक्तियों में ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। पूर्ण पद की भाषा भावानुकूल है। भाषा वीर रस की अभिव्यक्ति के अनुकूल ओजपूर्ण है। पदमैत्री का सफल प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में प्रवाह एवं गेयतत्व का समावेश हुआ है। ‘कुल घालकु’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। अलंकृत भाषा के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

[5] तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि घरेउ कर घोरा ॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू ॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा ॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही ॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे ॥
गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥ [पृष्ठ 14]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

शब्दार्थ-कालु = काल, मृत्यु। हाँक = बुलाना। घोरा = भयानक। जनि = मानो। कटुबादी = कटु बोलने वाला। बधजोगू = वध करने योग्य। बिलोकि = देखकर। बाँचा = बचाया। मरनिहार = मरने वाला। अपराधू = दोष। खर = तीक्ष्ण, तेज। अकरुन = दया रहित। सील = व्यवहार। उरिन = उऋण, ऋण रहित। श्रम = परिश्रम। हरियरे = हरा-ही-हरा। अयमय = लोहमयी। खाँड़ = खड़ग।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता व मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम मानो किसे और क्यों हाँककर किसके पास बुला रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों का परशुराम पर क्या प्रभाव पड़ा?
(च) विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर शांत किया? ।
(छ) विश्वामित्र परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर क्या सोचने लगे थे?
(ज) परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही क्यों कहा था?
(झ) परशुराम ने इस पद में अपने किन गुणों की ओर सकेत किया है?
(अ) परशुराम किन कारणों से लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहे थे?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदर्य) पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद तुलसीदास के सुप्रसिद्ध काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत है। इसमें सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम द्वारा शिव-धनुष तोड़ दिए जाने पर परशुराम द्वारा अचानक सभा में पहुँचकर क्रोध व्यक्त किया गया था जिससे सभा में उपस्थित सभी राजा लोग भयभीत हो गए थे। किंतु लक्ष्मण पर उनकी धमकियों व डींगों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, अपितु उसने निडरतापूर्वक उन्हें खरी-खरी सुनाई थी जिससे परशुराम का क्रोध और भी बढ़ गया था।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा, मानो आप तो काल को हाँक कर ले आए हैं। जो बारंबार मुझे बुला रहे हैं। लक्ष्मण के ऐसे कठोर वचन सुनकर परशुराम ने अपना भयंकर कुठार सुधारकर हाथ में पकड़ा और कहने लगे अब लोग मुझे दोष न दें। यह कटु वचन बोलने वाला बालक मारने योग्य है। बालक जानकर मैंने इसे बहुत बचाया, किंतु अब यह सचमुच ही मरना चाहता है। विश्वामित्र बोले इसका अपराध क्षमा करें। बालक के दोष व अवगुण साधु लोग नहीं गिनते। परशुराम ने कहा, मेरे हाथ में तीक्ष्ण कुठार है और मैं बिना कारण ही क्रोधी हूँ। इस पर भी मेरे सामने यह गुरुद्रोही है। जो उत्तर दे रहा है (इतने पर भी) हे कौशिक, केवल तुम्हारे सद्व्यवहार से ही इसको मैं बिना मारे छोड़ देता हूँ नहीं तो इसे कुठार से काटकर थोड़े ही परिश्रम से गुरु के ऋण से उऋण हो जाता।

इस पर विश्वामित्र मन में हँस कर कहने लगे मुनि को हरा-ही-हरा सूझता है जिन्होंने लोहे के समान धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया। मुनि अब भी उनके प्रभाव को नहीं समझ रहे हैं।

(घ) परशुराम बार-बार लक्ष्मण का वध करने की धमकी देते हैं। इसे सुनकर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मानो परशुराम तो काल को हाँककर उसके (लक्ष्मण के) पास बुला रहे हैं।

(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों को सुनकर परशुराम का क्रोध और भी बढ़ जाता है। वे अपने कुल्हाड़े को संभालते हुए बोले, यह कटु वचन कहने वाला बालक निश्चय ही मारने योग्य है।

(च) विश्वामित्र जी ने परशुराम से कहा कि साधु लोग बालकों पर क्रोध नहीं करते और न ही उनके गुण-दोषों की ओर ध्यान देते हैं।

(छ) विश्वामित्र जी परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर सोचने लगे कि मुनि विजय प्राप्त करने के कारण सर्वत्र हरा-हीहरा देख रहा है। वह श्रीराम को साधारण क्षत्रिय समझता है। मुनि अब भी बेसमझ बना हुआ है। वह इनके प्रभाव को नहीं देख रहा है।

(ज) परशुराम शिवजी को अपना गुरु मानते थे तथा इस नाते भगवान् शिव के धनुष की रक्षा करना उनका कर्तव्य बनता था। किंतु सीता-स्वयंवर के समय उसे श्रीराम ने भंग कर दिया था। इसी कारण परशुराम जी ने अपना और भगवान् शिव का अपमान समझ भरी सभा में क्षत्रियों को भला-बुरा कहा। इस पर लक्ष्मण ने परशुराम के व्यंग्यात्मक शब्दों का विरोध किया। इसलिए परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा था।

(झ) इस पद में परशुराम ने कहा कि वह अत्यंत क्रोधी एवं निर्मम स्वभाव वाला व्यक्ति है।

(ञ) परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं शक्तिशाली हैं, किंतु उन्होंने लक्ष्मण का वध इसलिए नहीं किया कि वह अभी बालक है और उसके स्वभाव को नहीं जानता।

(ट) इस पद में कवि ने परशुराम के अभिमानी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव का वर्णन किया है। परशुराम लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर अपना कुल्हाड़ा संभालने लगता है। विश्वामित्र के समझाने पर भी वह नहीं समझ सका कि श्रीराम कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। यह देखकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुस्कुरा दिए कि परशुराम को सब ओरं अपनी विजय-ही-विजय दिखाई देती है। वह वास्तविकता को नहीं समझ रहे थे तथा अपनी वीरता की डींगें मार रहे थे।

(ठ)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने परशुराम एवं लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख किया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • नाटकीयता के कारण रोचकता का समावेश हुआ है।
  • सम्पूर्ण पद्य में व्यंग्य का प्रयोग हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) भाषा अलंकृत एवं विषयानुकूल है। तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा ओजगुण संपन्न है। मुहावरों के सफल प्रयोग के कारण भाषा सारगर्भित बन पड़ी है।

[6] कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के ॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा ॥
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा ॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही ॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े ॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे ॥
लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ [पृष्ठ 14]

शब्दार्थ-सीलु = स्वभाव। बिदित = जानना, परिचित। उरिन = ऋण से मुक्त, कर्ज चुकाना। नीकें = भली प्रकार। गुररिनु = गुरु का ऋण। बड़ = बड़ी। जी = हृदय। जनु = मानो। हमरेहि माथे काढ़ा = हमारे माथे पर निकालना, हम पर निकालना। बाढ़ा = बढ़ गया। आनिअ = लाओ। व्यवहरिआ = हिसाब-किताब करने वाला। तुरत = शीघ्र । कटु = कठोर। सुधारा = संभाला। भृगुबर = भृगु के वंशज, परशुराम। मोही = मुझे। बिप्र = ब्राह्मण। बिचारि = सोचकर। बचौं = बचा रहा था। नृपद्रोही = राजाओं के शत्रु। सुभट = वीर योद्धा। रन = युद्ध । गाढ़े = अच्छे। द्विजदेवता = ब्राह्मण देवता। बाढ़े = फूलना। सयनहि = आँखों के इशारे से। नेवारे = रोका, मना किया। सरिस = समान। कोपु = क्रोध । कृसानु = आग। रघुकुलभानु = रघुवंश के सूर्य श्रीरामचंद्र।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किसने किस पर क्या व्यंग्य किया?
(ङ) सभा में हाहाकार मचने का क्या कारण था?
(च) परशराम के बढ़ते क्रोध को किसने और कैसे शांत किया?
(छ) परशुराम के गुरु कौन थे? वे गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
(ज) परशुराम को फरसा संभालते हुए देखकर सभा ने क्या प्रतिक्रिया की?
(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष को क्यों टाल दिया?
(अ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों का सभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ट) राम ने लक्ष्मण को शांत रहने के लिए किस प्रकार समझाया?
(ठ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ड) राम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(ढ) ‘द्विजदेवता घरहि के बाढ़े का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(त) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्रय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) तुलसीदास द्वारा रचित काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ से उद्धृत इस पद में उस घटना का वर्णन किया गया है जब श्रीराम ने शिव-धनुष तोड़कर सीता का वरण किया था और उसी समय परशुराम ने वहाँ पधारकर सभी को अपने क्रोध से आतंकित कर दिया था। वे धनुष तोड़ने वाले का वध करने की धमकी देने लगे। तभी लक्ष्मण ने उनकी धमकियों पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे थे।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम से कहा, हे मुनि! आपके शील के विषय में कौन नहीं जानता अर्थात् सारा संसार आपके शील से परिचित है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी प्रकार से उऋण हो चुके हैं। केवल गुरु का ऋण शेष बचा है। उसे उतारना ही आपकी सबसे बड़ी चिंता है। वह शायद आप हमारे माथे पर काढ़ना चाहते हैं। कहने का भाव है कि लक्ष्मण को मारकर वे अपने गुरु के ऋण को उतारना चाहते हैं। यह बात उचित भी है क्योंकि काफी समय बीत गया है और ब्याज भी बहुत बढ़ गया है। चलिए अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लेना चाहिए और तुरंत ही थैली खोलकर हिसाब चुकता कर दूंगा। लक्ष्मण के ये कटु वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा संभाल लिया। सारी सभा भयभीत होकर हाय-हाय करने लगी। लक्ष्मण ने फिर धैर्यपूर्वक कहा, हे भृगुकुल के श्रेष्ठ परशुराम! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हैं और मैं आपको ब्राह्मण समझकर लड़ने से बार-बार बच रहा हूँ। हे नृपद्रोही! लगता है कि आपका युद्ध भूमि में कभी पराक्रमी वीरों से पाला नहीं पड़ा। इसलिए हे ब्राह्मण देवता! आप अपने घर में ही अपनी वीरता के कारण फूले-फूले फिर रहे हैं।
लक्ष्मण के ये शब्द सुनकर सभा में उपस्थित लोग ‘अनुचित-अनुचित’ कहने लगे। श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने के लिए कहा। इस प्रकार लक्ष्मण के शब्द परशुराम के क्रोध को इस प्रकार भड़काने वाले थे जैसे आहुति आग को भड़काती है। उस आग को बढ़ते देखकर श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

(घ) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण ने कहा कि आपने अपने पिता का कहना मानकर अपनी माता का वध कर दिया और माता-पिता के ऋण से उऋण हो गए अब मुझे मारकर गुरु का ऋण चुकता करना चाहते हैं तो ठीक है किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए।

(ङ) लक्ष्मण के कटु वचन सुनकर परशुराम जी का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने लक्ष्मण को मारने के लिए अपना फरसा उठा लिया था। वहाँ बैठी सभा यह देखकर हाहाकार कर उठी थी।

(च) श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से परशुराम के बढ़ते क्रोध को शांत किया।

(छ) परशुराम के गुरु भगवान् शिव थे। वे शिव के धनुष को तोड़ने वाले का वध करके गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

(ज) परशुराम को अपना फरसा संभालते हुए देखकर सारी सभा भयभीत हो उठी थी क्योंकि परशुराम लक्ष्मण के प्रति और भी अधिक क्रुद्ध हो उठे थे तथा उसका वध करना चाहते थे। उधर लक्ष्मण भी परशुराम को युद्ध की चुनौती देने लगे थे। इसलिए सभा हाहाकार करने लगी थी।

(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष इसलिए टाल दिया था क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और वे ब्राह्मण के साथ युद्ध नहीं करना चाहते थे। ब्राह्मणों के साथ युद्ध करना व उनका वध करना उनके कुल की मर्यादा के विपरीत था।

(ञ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों को सुनकर सभा में उपस्थित लोगों ने आपत्ति की तथा लक्ष्मण के वचनों को अनुचित बताया। यहाँ तक कि श्रीरामचंद्र ने भी उन्हें चुप रहने का संकेत किया।

(ट) श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने को कहा और परशुराम का अपमान न करने के लिए कहा।

(ठ) इस पद को पढ़कर पता चलता है कि लक्ष्मण स्वभाव से अत्यधिक उग्र हैं। वे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर सकते। उन्हें छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है। वे अपने से बड़े परशुरामजी के सामने भी कठोर वचन आसानी से बोल जाते हैं। इसी कारण सारी सभा उनके विरुद्ध बोलने लगती है।

(ड) इस पद से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत गंभीर एवं शांत स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने लक्ष्मण को शांत रहने का संकेत किया। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से परशुराम जी के क्रोध को शांत किया था। अतः वे शांत स्वभाव वाले एवं मधुरभाषी हैं।

(ढ) इस पद के माध्यम से लक्ष्मण ने परशुराम की खोखली धमकियों पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण कहते हैं कि हे ब्राह्मण देवता! आप तो अपने घर में ही शेर बने फिरते हैं आपका कभी किसी वीर योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

(ण) इस पद में कवि ने लक्ष्मण, परशुराम और श्रीराम के स्वभाव का समान रूप से चित्रण किया है। लक्ष्मण अपने कटु वचनों से परशुराम के क्रोध को बढ़ाता है तथा उन पर व्यंग्य कसता है। परशुराम अपने क्रोध के अतिक्रमण के कारण लक्ष्मण का वध करने के लिए अपना फरसा संभाल लेता है किंतु श्रीराम अपनी मधुर वाणी और शांत स्वभाव से दोनों को शांत कर देते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(त) भाषा भाव के अनुरूप विनम्र, क्रोध तथा व्यंग्य के भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल रही है। उपमा, अनुप्रास, वीप्सा, वक्रोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है। दोहा एवं चौपाई छंद हैं। अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद कवि-परिचय

प्रश्न-
तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन-वृत्तांत अभी तक अंधकारमय है। इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के सम्मुख निज व्यक्तित्व का प्रतिफलन प्रिय नहीं था। इनका जन्म सन् 1532 में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों (ज़िला एटा) को भी मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जनश्रुति के अनुसार, इनका विवाह रत्नावली से हुआ था। इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मृत्यु हो गई थी। तुलसी अपनी पत्नी के रूप-गुण पर अत्यधिक आसक्त थे और इसीलिए इन्हें उससे “लाज न आवति आपको दौरे आयहु साथ” मीठी भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इसी भर्त्सना ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। इनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। इन्होंने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। काशी में इन्होंने सोलह-सत्रह वर्ष तक वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा श्रीमद्भागवत का गंभीर अध्ययन किया। इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-तुलसीदास की बारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। उनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि उल्लेखनीय हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-तुलसीदास रामभक्त कवि थे। ‘रामचरितमानस’ इनकी अमर रचना है। तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे। इन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की है। पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है।
तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है तुलसी का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति और कर्म, धर्म और संस्कृति, सगुण और मिर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं। तुलसीदास का कथन है

“राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन है खोटो?”

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक थे। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। तुलसीदास जी के काव्य में उनके भक्त, कवि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।

4. भाषा-शैली-इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की सुमधुर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय, सोरठा आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद काव्यांशों का सार

प्रश्न-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ नामक कवितांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ तुलसीदास के महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ अध्याय का प्रमुख अंश है। इसका ‘रामचरितमानस’ के कथानक में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संक्षिप्त से अंश में राम, लक्ष्मण और परशुराम तीनों के चरित्र का उद्घाटन होता है। जब राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम भगवान शंकर के धनुष को तोड़ डालते हैं, तब वहाँ उपस्थित समाज के लोगों पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। राजा जनक प्रसन्न होते हैं। सीता की मनोकामना एवं भक्ति पूरी होती है। साधु लोग प्रसन्न होते हैं। दुष्ट राजा लोग इससे दुःखी होते हैं। परशुराम को जब धनुष भंजन की खबर मिलती है तो वे क्रोध से पागल हो उठते हैं तथा राजा जनक की सभा में उपस्थित होकर धनुष तोड़ने वाले को समाप्त करने की धमकी देते हैं।

परशुराम की क्रोध भरी बातें सुनकर श्रीराम अत्यंत धीरज एवं सहज भाव से बोल उठे, हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। यह सुनकर भी उनका क्रोध शांत नहीं होता। वे उसी भाव से कहते हैं, सेवक का काम तो सेवा करना है। जिसने भी यह धनुष तोड़ा है, वह मेरा सहस्रबाहु के समान शत्रु है। परशुराम का क्रोध बढ़ता ही गया और उन्होंने कहा कि धनुष तोड़ने वाला सभा से अलग हो जाए, अन्यथा वे सारे समाज को नष्ट कर देंगे। इस पर लक्ष्मण ने यह कहकर कि बचपन में ऐसे कितने धनुष तोड़े होंगे, फिर इस धनुष से आपको इतनी ममता क्यों है? परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। लक्ष्मण ने पुनः कहा कि इसमें राम का कोई दोष नहीं। वह तो उनके छूते ही टूट गया। इसलिए हे मुनिवर! आप तो व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं। परशुराम क्रोधाग्नि में जल उठे और बोले कि मैं तुम्हें बालक समझकर छोड़ रहा हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और क्षत्रिय कुल का शत्रु हूँ।

मैंने अपने भुजबल से पृथ्वी को कई बार राजा-विहीन कर दिया और पृथ्वी को देवताओं को दान में दे दिया। हे राजकुमार ! तुम मेरे फरसे को देख रहे हो। लक्ष्मण ने सहज भाव से कहा कि हे मुनिवर ! तुम मुझे बार-बार कुल्हाड़ा दिखाते हो तब फूंक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहते हो। मैंने तो जो कुछ कहा वह तुम्हारे वेश को देखकर कहा, किंतु अब मुझे पता चल गया है कि तुम भृगु-सुत हो और तुम्हारे जनेउ को देखकर सब कुछ जान गया हूँ। इसलिए आप जो कुछ भी कहेंगे मैं उसे सहन कर लूँगा। परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि इस बालक को समझा लीजिए अन्यथा यह काल कलवित हो जाएगा। किंतु लक्ष्मण ने उन्हें स्पष्ट भाषा में ललकारा तो उन्होंने अपना फरसा संभाल लिया और कहा कि अब मुझे बालक का वध करने का दोष मत देना। अंत में विश्वामित्र ने परशुराम को समझाते हुए कहा कि आप महान् हैं और बड़ों को छोटों के अपराध क्षमा कर देने में ही उनकी महानता है। किंतु वे मन-ही-मन हँसने लगे कि जिसने शिव-धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया वे उसके प्रभाव को नहीं समझे। लक्ष्मण ने पुनः मजाक में कहा कि परशुराम जी माता-पिता के ऋण से तो मुक्त हो चुके हैं। अब गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते हैं। यह सुनते ही परशुराम ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण के शब्दों ने परशुराम का क्रोध और भी बढ़ा दिया, किंतु तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले शब्द कहे।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

सूरदास के पद HBSE 10th Class प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? ।
उत्तर-
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहकर वास्तव में उसके दुर्भाग्य पर व्यंग्य किया गया है जो व्यक्ति प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी प्रेम रूपी जल को प्राप्त नहीं कर सकता, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली ही होगा। गोपियों के कहने का अभिप्राय यह है कि उद्धव के हृदय में प्रेम जैसी पावन भावना का संचार नहीं है। इसलिए वह भाग्यवान नहीं, अपितु भाग्यहीन है।

सूरदास के पद Sanskrit HBSE 10th Class प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर-
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते एवं तेल की गगरी से की गई है। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता हुआ भी उससे प्रभावित नहीं होता अर्थात् उस पर पानी की बूंदों के दाग नहीं पड़ते और तेल की गगरी भी चिकनी होती है। उस । पर पानी की बूंदें भी नहीं ठहर सकतीं। ठीक इसी प्रकार उद्धव पर भी श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ सका।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर-
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा उद्धव को उलाहने दिए हैं-
वे कहती हैं कि हे उद्धव ! हमारी प्रेम-भावना हमारे मन में ही रह गई है। हम तो कृष्ण को अपने मन की प्रेम-भावना बताना चाहती थीं किंतु उनका यह योग का संदेश सुनकर तो हम उन्हें कुछ भी नहीं बता सकतीं। हम तो श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा में जीवित थीं। हमें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण अवश्य ही एक-न-एक दिन लौट आएँगे, किंतु उनका यह संदेश सुनकर हमारी आशा ही नष्ट हो गई और हमारे विरह की आग और भी भड़क उठी। इससे तो अच्छा था कि तू आता ही न। गोपियों को यह भी आशा थी कि श्रीकृष्ण प्रेम की मर्यादा का पालन करेंगे। वे उनके प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देंगे। किंतु उन्होंने निर्गुणोपासना का संदेश भेजकर प्रेम की सारी मर्यादा को तोड़ डाला। इस प्रकार वह मर्यादाहीन बन गया है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के सदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर-
श्रीकृष्ण के मथुरा गमन के पश्चात् गोपियाँ विरह की आग में जलती रहती थीं। वे श्रीकृष्ण को याद करके तड़पती रहती थीं। उन्हें आशा थी कि एक-न-एक दिन श्रीकृष्ण अवश्य लौटकर आएँगे और तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम पुनः मिल जाएगा। श्रीकृष्ण के आने पर वे अपने हृदय की पीड़ा को उनके सामने व्यक्त करेंगी। किंतु उसी समय उद्धव श्रीकृष्ण द्वारा भेजा गया योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तब गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरहाग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर-
कवि ने इस कथन के माध्यम से स्पष्ट किया है कि प्रेम की मर्यादा यही है कि प्रेमी व प्रेमिका दोनों ही प्रेम के नियमों . का पालन करें अर्थात् प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देवें। प्रेम की सच्ची भावना को समझते हुए प्रेम की मर्यादा का पालन करें, किंतु श्रीकृष्ण ने गोपियों के प्रेम के बदले उन्हें योग-साधना अपनाने का संदेश भेज दिया जो कि उनकी एक चाल थी। श्रीकृष्ण की इसी छलपूर्वक चाल को ही मर्यादा का उल्लंघन कहा गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी को पकड़े रहता है और उसे अपने जीवन का आधार समझता है; उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को अपने जीवन का आधार समझती हैं और सदा उसे अपने हृदय में बसाए रहती हैं। वे मन से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं। इसलिए वे दिन-रात, सोते-आगते, उठते-बैठते तथा स्वप्न में भी कान्ह-कान्ह रटती रहती हैं। इस प्रकार गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम में लगा हुआ है। वे एकनिष्ठ भाव से ही कृष्ण से प्रेम करती हैं। इसलिए उनके मन में किसी प्रकार की उलझन व दुविधा नहीं है। अतः वे कहती हैं कि उद्धव को यह शिक्षा उन लोगों को देनी चाहिए जिनके मन चकरी की भाँति घूमते हों अर्थात् जिनके मन में दुविधा हो व जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर-
गोपियों के लिए योग-साधना बिल्कुल निरर्थक है। उनके लिए तो यह कड़वी ककड़ी की भाँति व्यर्थ एवं अरुचिकर है। योग-साधना की शिक्षा उनके लिए कष्टप्रद है। वह उनके कानों को भी कष्ट देने वाली प्रतीत होती है। इतना ही नहीं, वे योग-साधना को अनीतिपूर्ण, शास्त्र-विरुद्ध एवं अग्रहणीय बताकर उनका विरोध करती हैं। वे यहाँ तक कह देती हैं कि इस साधना की शिक्षा तो उन लोगों को दो जिनके मन भ्रम में पड़े हो, जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा की रक्षा व कल्याण करना होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए। उसे प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार अब श्रीकृष्ण बदल गए हैं। अब वे मथुरा के राजा बन गए हैं और उन्होंने राजनीति भी पढ़ ली है। अब वे पहले से भी अधिक बुद्धिमान् व चतुर हो गए हैं। अब वे प्रजा (गोपियों) के हित की नहीं सोचते। वे केवल अपने स्वार्थ की बात सोचते हैं। उन्होंने गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने के लिए स्वयं न आकर उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भेजकर उन्हें भड़काने का काम किया है जो उनके प्रति अन्याय एवं अहितकर है।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को निरुत्तर कर दिया था। गोपियों ने सर्वप्रथम उन्हें भाग्यशाली कहा कि उनके मन को प्रेम छू न सका। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता है किंतु पानी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार तेल की गगरी पर भी पानी की बूंद तक नहीं ठहर सकती परंतु गोपियों के अनुसार योग-साधना उन लोगों के लिए है जिनका मन अस्थिर रहता है या जिनका मन चकरी की भाँति दुविधा में रहता है। वे स्वयं को हारिल पक्षी और श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी द्वारा पकड़ी हई लकड़ी बताती हैं जिससे उन्हें श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का बोध होता है। इस प्रकार वे अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को परास्त करने में सफल होती हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
सूर के भ्रमरगीत की सबसे प्रमुख विशेषता है कि इसमें गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यञ्जना हुई है। वे अपने हृदय में हारिल पक्षी की भाँति श्रीकृष्ण के प्रेम को सदैव बसाए रखती हैं। गोपियाँ उद्धव को अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर देती हैं जिससे सिद्ध हो जाता है कि कवि ने सगुण की निर्गुण पर विजय दिखाई है।
भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, विरह की पीड़ा, प्रार्थना, आस्था, अनास्था, गुहार आदि अनेक भावों को एक साथ व्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।
भ्रमरगीत में ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। भाषा में जितना माधुर्यगुण है उतनी ही कटाक्ष व व्यंग्य करने की क्षमता भी। संपूर्ण भ्रमरगीत में कवि ने अनेक अलंकारों का प्रयोग करके भाषा को अलंकृत किया है। भ्रमरगीत में विचारधारा के पक्ष के लिए श्रीकृष्ण पर्दे के पीछे रहते हैं, किंतु गोपियाँ सामने आकर वार करती दिखाई देती हैं। . रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर-
गोपियाँ उद्धव को बता रही हैं कि हे उद्धव! यदि यह योग-साधना इतनी उत्तम वस्तु है तो इसे मथुरावासियों को क्यों नहीं सिखाते। फिर हम तो श्रीकृष्ण की एक मन से आराधना करती हैं। हमारे पास तो उनका प्रेम ही जीवन के आधार के रूप में विद्यमान है। जिस व्यक्ति ने मीठी मिसरी का स्वाद चख लिया हो वह भला कड़वी निबौरी क्यों खाएगा। हम गोपियाँ कोमलांग युवतियाँ हैं, जबकि योग-साधना बहुत ही कठिन शारीरिक साधना है। इसलिए योग-साधना की शिक्षा या उपदेश कहीं और जाकर दीजिए।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर-गोपियों के पास श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम की शक्ति, उनके प्रति निष्ठा और पूर्ण समर्पण भाव की वह शक्ति थी, जो . उद्धव के समक्ष उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति सहचर्य से उत्पन्न सच्चा प्रेम था। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के पश्चात् उनके विरह की पीड़ा से व्याकुल थीं। श्रीकृष्ण ने उनकी विरह की पीड़ा से उत्पन्न व्याकुलता को शांत करने के लिए स्वयं आने की अपेक्षा निर्गुण ईश्वर की उपासना का ज्ञान देने के लिए उद्धव को भेज दिया। श्रीकृष्ण के निर्मम और अनीतिपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्य करते हुए गोपियाँ उन्हें राजनीतिज्ञ की संज्ञा देती हैं। गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में भी दिखाई देता है। जो मनुष्य शासन या राजनीति से जुड़ जाता है, वह शुष्क एवं नीरस व्यवहार करने लगता है। उसके मन में प्रेम, स्नेह जैसी कोमल भावनाएँ लुप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त वह प्रेम के व्यवहार की मर्यादाएँ भी भूल जाता है।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सूरदास किस भक्ति-भावना के पक्ष में थे? उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
सूरदास सगुण भक्ति-भावना के पक्ष में थे। उनकी गोपियाँ भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ थीं। वे श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। गोपियाँ अपने संबंध में कहती हैं कि “अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी” । वे हारिल पक्षी का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि हम हारिल की लकड़ी के समान कृष्ण की सच्ची आराधिका हैं अर्थात् वे अपने हृदय में हर क्षण श्रीकृष्ण को बसाए रहती हैं। सूरदास ने सगुण भक्ति में प्रेम की भावना को अनिवार्य माना है तथा उसकी मर्यादा का पालन करना भी अनिवार्य बताया है। वे निर्गुणोपासना या योग-साधना की अवहेलना ‘कड़वी- ककड़ी’ कहकर करते हैं तो कभी उसे ‘व्याधि’ कहकर उसका विरोध करते हैं। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि सूरदास सगुण भक्ति-भावना के उपासक हैं।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित पदों में भक्त कवि सूरदास ने बताया है कि गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की भावना थी। वे अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण के प्रेम में त्याग चुकी थीं। उनकी प्रेमनिष्ठता के सामने निर्गुण ईश्वर का उपासक उद्धव भी परास्त हो जाता है। उद्धव का मान-सम्मान करते हुए वे उन पर सीधा कटाक्ष न करते हुए उन्हें मधुकर कहकर संबोधित करती हैं। वे लोक-मर्यादा का पूर्ण ध्यान रखती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा प्रेम की मर्यादा का पालन न करने पर उन्हें बहुत दुःख होता है। वे श्रीकृष्ण के वियोग में पीड़ा सहन करती हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते यहाँ तक कि स्वप्न में भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाती रहती हैं।

प्रश्न 3.
पठित पदों के मूल संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सूरदास-कृत इन पदों में गोपियों एवं उद्धव के संवाद के माध्यम से निर्गुण ईश्वर की भक्ति पर सगुण ईश्वर की भक्ति की भावना की विजय दिखाई गई है। उद्धव गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम-भावना को देखकर दंग रह जाता है। वह गोपियों के द्वारा किए गए तर्कों का कोई उत्तर नहीं दे सकता। सूरदास ने गोपियों के माध्यम से सख्य-भाव की भक्ति का उद्घाटन किया है। इसीलिए वे श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करने से भी नहीं चूकतीं। अलौकिक धरातल पर यदि देखा जाए तो सूरदास ने आत्मा और परमात्मा के मिलन व सामीप्य का साक्षात्कार करवाया है। यही इन पदों का परम लक्ष्य भी है।

प्रश्न 4.
‘ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई अनीति की ओर संकेत किया है। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो सबको अन्याय से छुड़ाने वाले हैं अर्थात् वे किसी के प्रति अन्याय होता नहीं देख सकते, फिर वे प्रेम के बदले में योग-संदेश भेजकर हमारे प्रति अन्याय क्यों कर रहे हैं? कवि के कहने का भाव यह है कि गोपियों के लिए श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति ही श्रेष्ठ मार्ग है फिर भला योग संदेश भेजकर वे हमारे मार्ग में बाधा क्यों खड़ी कर रहे हैं। यह तो हमारे प्रति अन्याय है। अन्याय से छुड़वाने वाला ही अन्याय करे तो फिर कोई क्या कर सकता है।

(ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 5.
“हमारे हरि हारिल की लकरी” के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि ईश्वर-प्राप्ति हेतु हमें सच्चे मन से ईश्वर को हृदय में बसाना होगा। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, उसे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ता; उसी प्रकार भक्त को अत्यंत निष्ठा एवं दृढ़तापूर्वक भगवान् का नाम स्मरण करना चाहिए। जब भक्त सांसारिक मोह त्यागकर दिन-रात, सोते-जागते व स्वप्न में भी प्रभु का नाम स्मरण करता है, तभी वह प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है। .

प्रश्न 6.
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” में श्रीकृष्ण की किस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में गोपियों ने श्रीकृष्ण की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे प्रेम की मर्यादा को ठीक प्रकार से नहीं निभाते। कहने का भाव यह है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण से सच्चे मन से प्रेम करती हैं और उनकी विरह की पीड़ा में व्याकुल हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं आकर गोपियों से मिलकर उनके विरह की व्याकुलता को शांत करना चाहिए था किंतु वे निर्गुण ईश्वर के उपासक उद्धव की परीक्षा लेने हेतु उसे योग का संदेश देकर गोपियों के पास भेज देते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की इस नीति को देखते हुए उन्हें कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अब वे राजनीतिज्ञों की भाँति व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है? सूरदास इसके माध्यम से किन लोगों पर व्यंग्य करना चाहते हैं ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ व्यंग्य में कहा है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं और अब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए हैं। वे उनके विरह में पीड़ित रहती हैं। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण का मित्र बनकर रहता है, किंतु प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के प्रेम से वंचित रहता है। इसलिए गोपियाँ व्यंग्य में उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जिसका अर्थ दुर्भाग्यशाली है। अतः स्पष्ट है कि सूरदास ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिन लोगों ने भगवान् से कभी प्रेम नहीं किया। भगवान् के प्रेम से वंचित रहने वाले लोगों का जीवन व्यर्थ है। भगवान् के प्रेम में चाहे कितने ही कष्ट हों, किंतु उससे ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 8.
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति किस प्रकार समर्पित हैं?
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को अपना आधार मानकर उसे पकड़े रहता है; उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति को अपने जीवन का आधार मानकर उनकी प्रेम-भक्ति में अपना सर्वस्व त्यागकर दिन-रात उन्हीं का ध्यान करती हैं। वे क्षणभर के लिए भी उनसे अपना ध्यान डिगने नहीं देतीं। वे मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा उनके प्रेम के बंधन में बँधी हुई हैं।

अति लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास के उपास्य देव कौन थे?
उत्तर-
सूरदास के उपास्य देव श्रीकृष्ण थे।

प्रश्न 2.
‘पुरइनि पात’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पुरइनि पात’ का अर्थ है – कमल का पत्ता।

प्रश्न 3.
‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
धार बही’ का अर्थ निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा है।

प्रश्न 4.
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन किसका ध्यान करती हैं?
उत्तर-
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं।

प्रश्न 5.
‘सु तौ व्याधि हमकौं लै आए’ पंक्ति में ‘व्याधि’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में ‘ब्याधि’ योग साधना को कहा गया है।

प्रश्न 6.
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग उद्धव के लिए किया गया है।

प्रश्न 7.
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को क्या रट रहती है?
उत्तर-
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को श्रीकृष्ण के दर्शन की छवि की रट रहती है।

प्रश्न 8.
“हमारे हरि हारिल की लकरी’-यह किसने किसको कहा है?
उत्तर-
ये शब्द गोपियों ने उद्धव से कहे हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सूरदास की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) बीजक
(D) पद्मावत
उत्तर-
(B) सूरसागर

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के मित्र का क्या नाम है, जो गोपियों को योग का संदेश देता है?
(A) बलराम
(B) नंद
(C) उद्धव
(D) अक्रूर
उत्तर-
(C) उद्धव

प्रश्न 3.
उद्धव को ‘बड़भागी’ किसने कहा है?
(A) यशोदा माता ने
(B) नंद ने
(C) कंस ने
(D) गोपियों ने
उत्तर-
(D) गोपियों ने

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 4.
उद्धव को बड़भागी कहने में कौन-सा भाव निहित है?
(A) पूजा का
(B) गुस्से का
(C) प्रशंसा का
(D) व्यंग्य का
उत्तर-
(D) व्यंग्य का

प्रश्न 5.
‘प्रीति-नदी’ किसके लिए प्रयोग किया गया है?
(A) उद्धव के लिए
(B) यशोदा के लिए
(C) नंद के लिए
(D) श्रीकृष्ण के लिए
उत्तर-
(D) श्रीकृष्ण के लिए

प्रश्न 6.
प्रथम पद में कौन अपने-आपको भोली और अबला समझती हैं?
(A) देवकी
(B) यशोदा
(C) गोपियाँ
(D) राधा
उत्तर-
(C) गोपियाँ

प्रश्न 7.
‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’-यहाँ ‘गुर’ का अर्थ है
(A) गुरु
(B) बड़ा
(C) गुड़
(D) गुर सिखाना
उत्तर-
(C) गुड़

प्रश्न 8.
‘मन की मन ही माँझ रही’ का अर्थ है
(A) मन की दृढ़ता
(B) मन की बात मन में ही रहना
(C) मन का भेद
(D) मन का पाप
उत्तर-
(B) मन की बात मन में ही रहना

प्रश्न 9.
गोपियाँ कौन-सी बात किसे बताना चाहती थीं?
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को
(B) अपने मन की बात उद्धव को
(C) संसार के व्यवहार की बात अक्रूर को
(D) समाज की बात नंद को
उत्तर-
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को

प्रश्न 10.
उद्धव गोपियों को कौन-सा संदेश देता है?
(A) प्रेम का
(B) योग-साधना का
(C) मोक्ष-प्राप्ति का
(D) भक्ति का
उत्तर-
(B) योग-साधना का

प्रश्न 11.
गोपियाँ क्या नहीं सुनना चाहती थीं?
(A) योग-संदेश
(B) भक्ति योग
(C) विपश्यना
(D) कर्मयोग
उत्तर-
(A) योग-संदेश

प्रश्न 12.
गोपियों ने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना किससे की है?
(A) गिद्ध से
(B) बाज से
(C) हारिल से
(D) कबूतर से
उत्तर-
(C) हारिल से

प्रश्न 13.
गोपियों का मन चुराकर कौन ले गया?
(A) राम
(B) कृष्ण
(C) उद्धव
(D) गौतम
उत्तर-
(B) कृष्ण

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 14.
गोपियाँ ‘कड़वी ककड़ी’ किसे कहती हैं?
(A) ककड़ी को
(B) श्रीकृष्ण को
(C) यशोदा को
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को
उत्तर-
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को

प्रश्न 15.
‘मन चकरी’ से क्या अभिप्राय है?
(A) मन की चालाकी
(B) मन का चक्र
(C) मन की अस्थिरता
(D) मन की स्थिरता
उत्तर-
(C) मन की अस्थिरता

प्रश्न 16.
गोपियों के अनुसार किसने राजनीति की शिक्षा प्राप्त की है?
(A) कंस ने
(B) नंद ने
(C) श्रीकृष्ण ने
(D) ऊधौ ने
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण ने

प्रश्न 17.
गोपियों के अनुसार पहले से ही चतुर कौन था?
(A) बलराम
(B) श्रीकृष्ण
(C) कंस
(D) उद्धव
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 18.
गोपियों ने योग के संदेश को किसके समान कड़वा कहा
(A) कड़वी ककड़ी के
(B) करेले के
(C) खीरे के
(D) नींबू के
उत्तर-
(A) कड़वी ककड़ी के

प्रश्न 19.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें-यहाँ ‘अपरस’ का अर्थ है
(A) अलिप्त
(B) सरस
(C) मीठा
(D) कमल
उत्तर-
(A) अलिप्त

प्रश्न 20.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें’ यहाँ ‘तगा’ का अर्थ है-
(A) सगा
(B) संबंधी
(C) धागा
(D) टूटना
उत्तर-
(C) धागा

सूरदास के पद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोत्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी ॥
[पृष्ठ 5]

शब्दार्थ-बड़भागी = भाग्यशाली। अपरस = अछूता, दूर, अलिप्त। सनेह = प्रेम। तगा = धागा, बंधन। पुरइनि = कमल। पात = पत्ता। रस = जल। देह = शरीर। न दागी = दाग नहीं लगता। माह = में, भीतर। गागरि = मटकी। ताकौं = उसको। परागी = मुग्ध होना। अबला = नारी। भोरी = भोली। गुर = गुड़। चाँटी = चींटियाँ। पागी = लिपटना।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद के प्रसंग पर प्रकाश डालिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
(ङ) गोपियों ने किसके प्रति अपना प्रेमभाव व्यक्त किया?
(च) “सनेह तगा तैं अपरस रहना’-सौभाग्य है या दुर्भाग्य? स्पष्ट कीजिए।
(छ) ‘नाहिन मन अनुरांगी’ के माध्यम से किस पर और क्यों व्यंग्य किया गया है?
(ज) इस पद में किस ‘प्रीति-नदी’ की ओर संकेत किया गया है?
(झ) कौन स्वयं को भोरी और अबला समझती हैं और क्यों?
(ञ) ‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से गोपियों की किस भावना को दर्शाया गया है?
(ट) इस पद में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।
(छ) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ढ) इस पद में विद्यमान् गेय तत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से लिया गया है। ‘सूरदास’ द्वारा रचित इस पद में उस समय का उल्लेख किया गया है जब श्रीकृष्ण मथुरा जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को योग-मार्ग की शिक्षा देने के लिए अपने मित्र ऊधौ को वृंदावन भेजते हैं। श्रीकृष्ण का योग-मार्ग अपनाने का संदेश सुनकर गोपियाँ बेचैन हो उठती हैं। उनका प्रेम आहत हो उठता है। वे ऊधौ की बात सुनकर उस पर व्यंग्य करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए संदेश को सुनकर ऊधौ पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं हे ऊधौ! तुम बहुत ही सौभाग्यशाली हो। तुम सदा ही प्रेम के बंधन से दूर रहे हो। तुमने कभी प्रेम की भावना को समझा ही नहीं। तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबा ही नहीं। तुम श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँधे। जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, परंतु फिर भी उस पर पानी का दाग तक नहीं लगता; उस पर जल की बूंद नहीं ठहरती। इसी प्रकार तेल की मटकी को पानी में रख दिया जाए तो उस पर भी जल की एक बूंद नहीं ठहरती अर्थात् कमल के पत्ते और तेल की मटकी पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार श्रीकृष्ण की संगति में रहते हुए भी उनके प्रेम का प्रभाव ऊधौ पर नहीं पड़ता। तुमने तो आज तक प्रेम की नदी में अपना पैर तक नहीं डुबोया। तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें नहीं उलझी। किंतु हम तो भोली अबलाएँ हैं जो श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर उसमें उलझ गईं। हम श्रीकृष्ण के प्रेम में इस प्रकार लिप्त हैं जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ पर चिपट जाती हैं और फिर उससे कभी नहीं छूट सकतीं। वहीं अपने प्राण त्याग देती हैं।

(घ) गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ अपने भीतर व्यंग्य भाव समेटे हुए है। वे मजाक भाव में ऊधौ को भाग्यशाली मानती हैं क्योंकि वह श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँध सका और न ही कभी उनके प्रेम में व्याकुल हुआ।

(ङ) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है। उनके प्रेम की अनन्यता श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति है।

(च) स्नेह के धागे से दूर रहना अर्थात् किसी का प्रेम न पा सकना सौभाग्य नहीं, दुर्भाग्य है। जीवन का वास्तविक सुख तो प्रेम की अनुभूति में है, न कि सांसारिक विषय-वासनाओं के भोग में।

(छ) ‘नाहिन मन अनुरागी’ के माध्यम से गोपियों ने ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है क्योंकि वे श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम भाव को न समझ सके।

(ज) यहाँ कवि ने प्रीति-नदी के माध्यम से श्रीकृष्ण की प्रेम-भावना की ओर संकेत किया है। ऊधौ उस प्रेम नदी में कभी डुबकी नहीं लगा सका।

(झ) गोपियाँ स्वयं को भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं क्योंकि वे श्रीकृष्ण के प्रेम में अपने-आपको छला हुआ समझती हैं। उन्होंने सच्चे हृदय से श्रीकृष्ण से प्रेम किया, किंतु श्रीकृष्ण उन्हें बिना बताए मथुरा चले गए थे और वहाँ से उन्होंने योग-साधना करने का संदेश भेजा था। इसलिए गोपियाँ अपने-आपको भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं।

(ञ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और त्याग भावना को दर्शाया है।

(ट) इस पद में निम्नलिखित अलंकारों का प्रयोग किया गया हैरूपक-प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयौ। उपमा-गुर चाँटी ज्यौं पागी। उदाहरण-ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी। अनुप्रास-नाहिन मन अनुरागी। वक्रोक्ति-ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • इस पद में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • रूपक, उपमा, उदाहरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
  • कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने गोपियों के माध्यम से कृष्ण की भक्ति-भावना को अभिव्यंजित किया है। ज्ञानमार्गी अथवा योगमार्गी ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है। उसे प्रेम भावना से मुक्त व अनासक्त कहा है। दूसरी ओर, गोपियों को श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी हुई दिखाया गया है। वे श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर आसक्त हैं और उनके मथुरा चले जाने पर अत्यंत व्याकुल हैं। वे किसी भी दशा में श्रीकृष्ण के प्रेमभाव को दूर नहीं कर सकतीं।

(ढ) महाकवि सूरदास द्वारा रचित यह पद ‘राग-मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर मैत्री का सुंदर प्रयोग किया गया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है जो गेयता के अनुकूल है।

(ण) इस पद में ब्रजभाषा का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है। कवि ने शब्द-योजना पूर्णतः भावानुकूल की है।

[2] मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गृहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही ॥[पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-माँझ = में। अधार = आधार; सहारा। आवन = आगमन; आने की। बिथा = व्यथा। बिरहिनि = वियोग में जीने वाली। बिरह दही = विरह की आग में जल रही। हुती = थी। गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें = जहाँ से। उत = उधर; वहाँ । धार = योग की प्रबल धार। मरजादा = मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही = नहीं रही; नहीं रखी।

प्रश्न–
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों की कौन-सी बात मन में रह गई?
(ङ) ऊधौ के संदेश को सुनकर गोपियों की व्यथा घटने की अपेक्षा बढ़ गई, ऐसा क्यों हुआ?
(च) गोपियों को कृष्ण को गुहार लगाना अब व्यर्थ क्यों लगने लगा?
(छ) गोपियों ने किस मर्यादा की बात कही है?
(ज) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) ‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
(ञ) गोपियों के लिए क्या प्रिय है और क्या अप्रिय?
(ट) गोपियाँ अधीर क्यों हो रही हैं?
(ठ) इस पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास।
कविता का नाम-पद।

(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती हैं, किंतु वे मथुरा में जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को अपना कोई प्रेम संदेश भेजने की अपेक्षा ऊधौ के द्वारा योग-मार्ग अपनाने का संदेश भेजते हैं। यह संदेश उन्हें कटे पर नमक के समान लगता है। वे इस संदेश को सुनकर आहत हो जाती हैं तथा ऊधौ और श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करती हैं।

(ग) विरह की पीड़ा से व्याकुल गोपियाँ श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को उपालंभ देती हुई कहती हैं हे ऊधौ! हमारे मन की बात मन में ही रह गई है अर्थात् हमें श्रीकृष्ण के लौटने की पूरी आशा थी। हम अपने मन की बात उन्हें बता देना चाहती थीं, किंतु अब उनका यह संदेश मिलने पर कि वे नहीं आ रहे हमारे मन की बात मन में ही रह गई। हे ऊधौ! अब तुम ही बताओ कि अपने मन की बात को भला हम किसे जाकर कहें। प्रेम की बात हर किसी के सामने कही भी तो नहीं जा सकती। हम अब तक श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा को अपने प्राणों का आधार बनाए हुए थीं। इसी उम्मीद पर तो हम तन-मन से विरह की व्यथा को सहन कर रही थीं, किंतु तुम्हारे इस योग-साधना के संदेश को सुनकर हमारी विरह-व्यथा और भी भड़क उठी है। हम विरह की आग में जली जा रही हैं। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जिधर से हम अपनी रक्षा के लिए सहारा चाह रही थीं, उधर से ही योग-साधना की धारा बह निकली है। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियाँ चाहती थीं कि श्रीकृष्ण आकर उनकी व्यथा को दूर करें किंतु उन्होंने ही योग-साधना का मार्ग अपनाने का संदेश भेज दिया है। इससे उनकी वियोग की ज्वाला और भी भड़क उठी है। सूरदास ने बताया है कि गोपियाँ कह रही हैं कि अब तो श्रीकृष्ण ने सभी लोक-मर्यादाएँ त्याग दी हैं। उन्होंने हमारे प्रेम का निर्वाह करने की अपेक्षा हमें धोखा दिया है। भला ऐसे में हम धैर्य कैसे रखें?

(घ) गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के पुनः लौट आने की बात थी जो उनके संदेश के आने के पश्चात् उनके मन में रह गई। वे अब अपनी प्रेम भावना को श्रीकृष्ण के सामने प्रकट नहीं कर सकेंगी।

(ङ) गोपियाँ श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रेम करती थीं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके वियोग की पीड़ा में जली जा रही थीं। ऊधौ ने उन्हें योग-संदेश सुनाया और कहा कि तुम श्रीकृष्ण को भूल जाओ और निर्गुण ईश्वर की उपासना करो। इस संदेश को सुनकर उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण ने उनके साथ दगा किया है। इससे उनके विरह की व्यथा घटने की अपेक्षा और भी बढ़ गई थी।

(च) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना सब कुछ अर्पित कर दिया था। वे श्रीकृष्ण के बिना उनके विरह में व्याकुल थीं, किंतु जब ऊधौ ने गोपियों को श्रीकृष्ण को भूलकर योग-साधना करने का उपदेश दिया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। जिसको वे गुहार कर सकती थीं जब वही योग का संदेश भेज रहे हैं तो फिर उनके सामने गुहार करने का कोई लाभ नहीं हो सकता था।

(छ) गोपियाँ श्रीकृष्ण द्वारा वादा न निभाने की बात कह रही थीं। अब उनके लिए धैर्य धरना कठिन हो गया है। श्रीकृष्ण को गोपियों के प्रेम की मर्यादा का ख्याल ही नहीं है।

(ज) इस पद में कवि ने गोपियों के विरह भाव का मार्मिक चित्रण किया है। योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की उपासना में मन लगाने के श्रीकृष्ण के संदेश को सुनकर गोपियों की विरह-वेदना और भी बढ़ जाती है। उनके मन में श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा का आधार भी अब नष्ट हो गया है। इसलिए वे अपने-आपको अत्यंत असहाय समझने लगी थीं। अब वे शिकायत करें भी तो किससे करें क्योंकि उनकी इस दशा के लिए श्रीकृष्ण ही जिम्मेदार हैं।

(झ) ‘धार बही’ का यहाँ लाक्षणिक प्रयोग किया गया है। गोपियों को लगा था कि निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुंची थी। उन्होंने ही ऊधौ को निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा देकर भेजा था।

(ञ) गोपियों के लिए श्रीकृष्ण का प्रेम प्रिय है और ऊधौ की निर्गुण ईश्वर की उपासना अप्रिय है। ” (ट) गोपियाँ इसलिए अधीर हो रही हैं क्योंकि उनके प्रियतम श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है। उन्होंने प्रेम निभाने की अपेक्षा प्रेम का मजाक उड़ाया और गोपियों को अपने से दूर रखने की युक्तियाँ सुझाई हैं।

(ठ)

  • इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार का सुंदर चित्रण है।
  • संदेसनि, सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह, धीर-धरहिं में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘सुनि-सुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  • मध्य के लिए ‘माँझ’, आधार के लिए ‘अधार’, पड़त के लिए ‘परत’ आदि कोमल शब्दों का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद्य में गेय तत्त्व विद्यमान है।

(ड) इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है। स्वर-मैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में लय विद्यमान है। तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा में गेय तत्त्व भी है।

[3] हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह द्रढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सुतौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सनी न करी।
यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ॥ [पृष्ठ 6 ]

शब्दार्थ-हरि = भगवान् श्रीकृष्ण। हारिल = एक पक्षी जो सदा अपने पंजों में एक लकड़ी थामे रहता है। लकरी = लकड़ी। क्रम = कर्म। नंद-नंदन = नंद का बेटा। उर = हृदय। दृढ़ करि = निश्चयपूर्वक। पकरी = पकड़ी हुई। दिवस = दिन। निसि = रात। कान्ह-कान्ह = कृष्ण-कृष्ण। जकरी = रटती रहती हैं। जोग = योग। करुई-ककरी = कड़वी ककड़ी। व्याधि = रोग। तिनहिं = उन्हें। मन चकरी = मन में चक्कर; मन में दुविधा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने अपने हरि की तुलना किससे और क्यों की है?
(ङ) ‘मन क्रम बचन …………… पकरी’ का वर्णन किसके लिए आया है? स्पष्ट कीजिए।
(च) गोपियाँ सोते-जागते, रात-दिन किसका ध्यान करती हैं और क्यों?
(छ) कवि ने इस पद में ‘करुई ककरी’ किसे कहा है?
(ज) ‘जिनके मन चकरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) गोपियाँ योग का संदेश किसे देने को कहती हैं और क्यों?
(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है और क्यों?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ढ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।
(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इस पद में बताया गया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में व्यथित हैं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर भी उन्हें सच्चे मन से प्रेम करती हैं। इस प्रेमावेग में उन्हें ऊधौ द्वारा दिया गया योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की भक्ति का संदेश जरा भी पसंद नहीं है। गोपियाँ अपने अनन्य प्रेम और योग-साधना के प्रति अपने मन के विचारों को व्यक्त करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ को बताती हैं कि उनकी दृष्टि में निर्गुण उपासना का कोई महत्त्व नहीं है। वे सगुणोपासना को ही महत्त्व देती हैं। इसलिए वे कहती हैं कि कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं जिसे वह सदैव अपने पंजों में पकड़े रहता है। हमने भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानकर उन्हें अपने हृदय में बसा रखा है। हम एक क्षण के लिए भी अपने उस जीवन के आधार श्रीकृष्ण को नहीं भूलतीं। हमने उसे मन, वचन और कर्म से दृढ़तापूर्वक पकड़ा हुआ है। कहने का भाव है कि गोपियाँ मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ हैं। उन्हें हर स्थिति में सोते-जागते या स्वप्न में भी श्रीकृष्ण की ही रट लगी रहती है। उनका मन क्षण भर के लिए भी श्रीकृष्ण से अलग नहीं होता। हे भ्रमर! तुम्हारा यह योग का संदेश सुनने में हमारे कानों को कड़वी ककड़ी के समान कड़वा व अरुचिकर लगता है। तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो, जो हमने पहले न तो कभी देखी और न सुनी तथा न कभी इसका व्यवहार करके देखा। गोपियाँ ऊधौ को पुनः संबोधित करती हुई कहती हैं कि तुम यह योग साधना उन लोगों को दो, जिनके मन में दुविधा हो अर्थात् भटकन हो और जिनकी कहीं कोई आस्था न हो। हम पूर्णतः श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा हमारी उनमें पूर्ण आस्था है। इसलिए आपके इस योग-संदेश की हमें आवश्यकता नहीं है।

(घ) गोपियों ने अपने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से की है क्योंकि वह समझता है कि जिस लकड़ी को वह अपने पंजों में सदा पकड़े रहता है। वही उसके उड़ने का आधार है। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार समझती हैं और हर समय उसे अपने हृदय में बसाए रखना चाहती हैं।

(ङ) गोपियों ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम का वर्णन किया है। वे मन, वचन और कर्म से नंद के बेटे श्रीकृष्ण को अपने हृदय में धारण किए हुए हैं।

(च) गोपियाँ सोते-जागते तथा स्वप्न में भी नंद के बेटे श्रीकृष्ण का ही ध्यान करती हैं। वे सच्चे मन से श्रीकृष्ण को प्रेम करती हैं।

(छ) इस पद में कवि ने ‘करुई ककरी’ ऊधौ द्वारा दिए गए योग के संदेश को कहा है, क्योंकि उसका यह संदेश गोपियों को कड़वी ककड़ी के स्वाद की तरह अरुचिकर लगा था।

(ज) इस पंक्ति का आशय है वे लोग जिनके मन स्थिर नहीं हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रेम को नहीं समझते हैं। जो किसी के प्रति भी आस्थावान न रहकर व्यर्थ में इधर-उधर भटकते फिरते हैं।

(झ) गोपियाँ योग का संदेश ऐसे व्यक्तियों को देने के लिए कहती हैं जिनका मन चकरी की भाँति चंचल हो। ऐसे व्यक्तियों का मन कई-कई कामों या विचारों में उलझा रहता है। ऐसे व्यक्ति दुविधाग्रस्त भी होते हैं, किंतु वे तो पूर्ण रूप से एकनिष्ठ होकर श्रीकृष्ण की उपासना करती हैं इसलिए उन्हें इस संदेश की आवश्यकता नहीं है।

(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना हारिल पक्षी से की है क्योंकि हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में एक लकड़ी पकड़े रहता है जिसे वह क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ता। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने हृदय में हर क्षण धारण किए रहती हैं। वे एक क्षण के लिए भी अपने प्राणों के आधार श्रीकृष्ण को हृदय से दूर नहीं करतीं।

(ट) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ गोपियों की मनोदशा का चित्रण किया है, वहीं गोपियों के माध्यम से निर्गुण भक्ति-भावना की अवहेलना और सगुण भक्ति की स्थापना की है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में इतनी लीन हो गई हैं कि उनको श्रीकृष्ण से एक क्षण के लिए दूर रहना कठिन लगता है तथा उसके स्थान पर किसी अन्य देवी-देवता की उपासना नहीं करना चाहतीं। वे साकार श्रीकृष्ण की दीवानी हैं। वे श्रीकृष्ण को अपना मन दे चुकी हैं।

(ठ)

इस पद में गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम का सजीव चित्रण किया गया है तथा निर्गुण ईश्वर की उपासना या योग-साधना को ‘व्याधि’ कहकर उसकी अवहेलना की गई है।

  • श्रृंगार रस के वियोग भाव का उल्लेख किया गया है।
  • अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का विषयानुरूप प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग से वर्ण्य-विषय गंभीर बन पड़ा है।

(ड) रूपक-हमारै हरि हारिल की लकरी।
उपमा-ज्यौं करुई ककरी।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। सम्पूर्ण काव्यांश में भाषा की प्रवाहमयता एवं गेयता की विशेषताएँ बनी रहती हैं। ‘मन चकरी होना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग किया गया है। अलंकृत भाषा के प्रयोग के कारण विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। इसी प्रकार ‘हारिल की लकड़ी’ का प्रयोग भी गोपियों की कृष्ण के प्रति श्रद्धा-भक्ति को अभिव्यक्त करने में सफल सिद्ध हुआ है।

[4] हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए ॥ [पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-हरि = श्रीकृष्ण। पढ़ि आए = सीख आए। मधुकर = भ्रमर, भँवरा, यहाँ ऊधौ। हुते = थे। पठाए = भेजे। आगे के = पहले के। पर हित = दूसरों की भलाई। डोलत धाए = दौड़ते फिरते थे। फेर पाइहैं = फिर से पा लेंगी। अनीति = अन्याय। आपुन = स्वयं, अपने आप। जे = जो। जाहिं सताए = सताई जाए।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने ऐसा क्यों समझ लिया कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी?
(ङ) ‘बढ़ी बुद्धि जानी जो’ के माध्यम से कवि ने क्या स्पष्ट किया है?
(च) पुराने जमाने के लोगों को भला क्यों कहा गया है?
(छ) गोपियाँ क्या प्राप्त करना चाहती थीं?
(ज) गोपियों ने ऊधौ पर क्या कहकर व्यंग्य किया है?
(झ) गोपियाँ योग की शिक्षा लेने में क्या कहकर अपनी असमर्थता व्यक्त करती हैं?
(अ) सच्चा राजधर्म किसे माना गया है?
(ट) इस पद का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इसमें कवि ने सगुणोपासना का पक्ष लेते हुए निर्गुणोपासना की अवहेलना की है। गोपियाँ ऊधौ द्वारा दिए गए योग-साधना व निर्गुणोपासना के संदेश को सुनकर बहुत दुःखी होती हैं। वे श्रीकृष्ण के इस व्यवहार को कुटिल राजनीति, अन्याय व धोखा कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ के माध्यम से भेजे गए श्रीकृष्ण के योग-साधना के संदेश को उनके प्रति अन्याय, धोखा और अत्याचार बताती हैं। वे आपस में एक-दूसरी से कहती हैं कि हे सखि! अब श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा ग्रहण कर ली है। वे अब पूर्णरूप से राजनीतिज्ञ हो गए हैं। यह मधुकर (ऊधौ) हमें जो समाचार दे रहा है क्या तुम उसे समझती हो? एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे तथा अब गुरु ने उन्हें राजनीति के ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे हमारे लिए योग का संदेश भेज रहे हैं। कहने का भाव है कि उनके इस कार्य से सिद्ध हो गया है कि वे केवल बुद्धिमान् ही नहीं, अपितु बहुत चालाक व अन्यायी भी हैं क्योंकि युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेजना उचित नहीं है।

हे ऊधौ! पुराने समय में सज्जन दूसरों का भला करने के लिए प्रयास करते थे, परंतु आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने के लिए ही यहाँ तक दौड़ते हुए चले आए हैं। हे ऊधौ! हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय अपने साथ चुराकर ले गए थे, किंतु उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम करने की उम्मीद कम ही की जा सकती है। वे दूसरों द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को ही छुड़ाने का काम करते रहते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य है कि गोपियाँ तो प्रेम की रीति का पालन करना चाहती हैं, किंतु श्रीकृष्ण ने योग-साधना का संदेश भेजकर उनकी प्रेम की रीति निभाने की भावना को ठेस पहुंचाई है। वास्तव में यह गोपियों के प्रति अन्याय है। सच्चा राजधर्म तो उसी को माना जाता है जिसमें प्रजा को कोई कष्ट न पहुँचाया जाए अर्थात् उन्हें सताया न जाए। कहने का तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण राजा होकर गोपियों के सारे सुख-चैन छीनकर उन्हें और भी दुःखी कर रहे हैं। यह अच्छा राजधर्म नहीं है।

(घ) श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है, गोपियों ने यह इसलिए समझा क्योंकि वह राजनीति के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली कुटिलता और छलपूर्ण चालें चलने लगे हैं। उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीन लिया है और उन्हें दुःख पहुँचाने का प्रयास किया है। ऊधौ को योग का संदेश देकर भेजना भी उनकी ऐसी ही छलपूर्ण नीति थी।

(ङ) कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण की कूटनीति पर करारा व्यंग्य किया है। श्रीकृष्ण इस तथ्य को भली-भाँति समझते हैं कि गोपियाँ उनके प्रेम के बिना नहीं रह सकतीं। फिर भी उन्होंने ऊधौ को गोपियों के लिए योग-साधना का संदेश देकर भेज दिया। गोपियों को श्रीकृष्ण के इस व्यवहार में नासमझी ही प्रतीत होती है, क्योंकि वे अपने मित्र ऊधौ के निर्गुण भक्ति के उपासक होने के अहंकार को चूर करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने बेचारी गोपियों को मोहरा बनाया।

(च) पुराने जमाने के लोग दूसरों के भले के लिए प्रयास किया करते थे इसीलिए उन्हें भले लोग कहा गया है।

(छ) गोपियाँ तो केवल अपने मन को पुनः प्राप्त करना चाहती थीं जिसे श्रीकृष्ण मथुरा जाते समय चुराकर ले गए थे।

(ज) गोपियों ने ऊधौ से कहा कि पहले जमाने के लोग बहुत भले थे, क्योंकि वे परहित के लिए इधर-उधर भागते थे अर्थात् प्रयास करते थे किंतु आजकल के लोग हमारे जैसे लोगों को दुःख पहुँचाने के लिए मथुरा से वृंदावन तक मारे-मारे फिरते हैं।

(झ) गोपियों का कहना है कि हमारा मन तो हमारे पास नहीं है। उसे तो श्रीकृष्ण अपने साथ चुराकर मथुरा ले गए हैं। भला हम योग-साधना कैसे करें। पहले हम अपना मन तो वापिस ले लें, फिर आपके योग-संदेश पर विचार करेंगी।

(अ) सच्चा राजधर्म उसे कहा गया है जिसमें प्रजा को सुख पहुँचाने का प्रयास किया जाता है। राजधर्म प्रजा के हित की चिंता करता है।

(ट) इस पद में गोपियों ने राजनीति की बात कहकर श्रीकृष्ण की अज्ञानता पर करारा व्यंग्य किया है। वह अपने-आपको बहुत बड़े बुद्धिमान् समझते हैं, किंतु योग का संदेश भेजकर भोली-भाली गोपियों पर अन्याय एवं अत्याचार करते हैं। उन्होंने युवतियों को योग-साधना की शिक्षा देने को अनीति और शास्त्र-विरुद्ध कहा है। साथ ही सच्चे राजधर्म की विशेषता पर भी प्रकाश डाला गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दों का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है। ,
  • ‘राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए’ जैसी सुंदर सूक्तियों का प्रयोग किया गया है।
  • संपूर्ण पद में वक्रोक्ति अलंकार की छटा है।
  • गेय तत्त्व निरंतर बना हुआ है।
  • ‘हरि हैं’, ‘बात कहत’, ‘गुरु ग्रंथ पढ़ाए’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सुंदर एवं सहज प्रयोग द्रष्टव्य है।

(ड) इस पद में कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दावली के प्रयोग से भाषा को व्यावहारिक एवं आकर्षक बनाया गया है। व्यंग्यार्थ के प्रयोग से भाषा मूलभाव की अभिव्यञ्जना में पूर्णतः सफल हुई है। योग के स्थान पर ‘जोग’, संदेश के स्थान पर ‘सँदेस’, धर्म के स्थान पर ‘धरम’ जैसे प्रयोग से भाषा में कोमलता का समावेश हुआ है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

सूरदास के पद कवि-परिचय

प्रश्न-
महाकवि सूरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-महाकवि सूरदास का संपूर्ण भक्ति-काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूरदास सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के कवि थे। उनकी जन्म-तिथि एवं जन्म-स्थान के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। उनका जन्म सन् 1478 से 1483 के लगभग स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वानों का विचार है कि उनका जन्म रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। ऐसा अनुमान है कि महाकवि सूरदास जन्मांध थे, किंतु सूर के बाल-लीला वर्णन, प्रकृति-चित्रण एवं रंग-विश्लेषण के वर्णन को पढ़कर विश्वास नहीं हो पाता कि वे जन्म से अंधे थे। सूर के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य माने जाते हैं। गुरु जी से भेंट से पहले सूरदास प्रभु का गुणगान विनय के पदों में किया करते थे। अपने गुरु के आग्रह पर उन्होंने शेष जीवन में, अपने पदों द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की बाल-लीला, मुरली वादन, गोपी विरह (भ्रमरगीत) आदि का चित्रण किया। सूरदास की मृत्यु सन् 1583 में पारसौली में हुई।

2. प्रमुख रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं(1) ‘सूरसागर’, (2) ‘सूरसारावली’ तथा (3) ‘साहित्य लहरी’ ।
सूरसागर ‘श्रीमद्भागवत’ पर आधारित वृहत ग्रंथ है। इसके द्वादश स्कंध में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। 3. काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विनय भाव-गुरु से भेंट से पूर्व सूरदास ने विनय के पदों की रचना की है। इनमें कवि ने स्वयं को दीन-हीन, तुच्छ, खल, कामी आदि तथा प्रभु को सर्वगुणसंपन्न कहा है; यथा
‘मो सम कौन कुटिल खल कामी।’
(ii) बाल-लीला वर्णन-सूरदास ने वात्सल्य वर्णन के अंतर्गत अपने उपास्य देव श्रीकृष्ण की बाल-छवि, बाल-क्रीड़ाओं, मुरलीवादन, माखन-चोरी आदि का मनोहारी चित्रांकन किया है। माखन-चोरी का एक उदाहरण देखिए
– “मैया मैं नहीं माखन खायो। .
ग्वाल बाल सब ख्याल परें हैं बरबस मुख लपटायौ।”

(iii) श्रृंगार-वर्णन-सूरदास ने श्रीकृष्ण की रास-लीला के माध्यम से श्रृंगार रस का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह दशा का हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है। एक उदाहरण देखिए
“ऊधौ, मन नाहिं दस बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग, कौन आराधे ईस।”

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सूर काव्य की रचना ब्रज प्रदेश में हुई है। अतः कवि ने ब्रज प्रदेश की प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन किया है। उन्होंने प्रकृति के उद्दीपक रूप का अधिक वर्णन किया है, लेकिन कवि को प्रकृति के कोमल रूप से अधिक प्रेम है। ‘सूरसागर’ में प्रकृति-वर्णन के अनेक स्थल हैं; यथा
‘पिय बिनु नागिन काली रात।’ ।

4. भाषा-शैली-सूरदास के काव्य की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सुंदर एवं सार्थक मिश्रण किया गया है। कवि ने यथास्थान मुहावरों और लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया है जिससे भाषा में अधिक सार्थकता आ गई है। सूरदास का संपूर्ण काव्य पद अथवा गेय शैली में रचित है। सूरदास के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

सूरदास के पद पदों का सार

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘सूरदास’ द्वारा रचित ‘पदों’ का सार लिखिए।
उत्तर-
सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ अत्यंत व्याकुल हो उठती हैं। वे श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को कभी उलाहना देती हैं तो कभी उस पर ताना कसती हैं। वे ऊधौ से कहती हैं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम किसी से प्रेम आदि के चक्कर में नहीं पड़े हो। तुमने श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं किया। हम ही ऐसी मूर्ख हैं कि श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी चिपटी हुई हैं जैसी चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।

दूसरे पद में गोपियाँ ऊधौ को उलाहना देती हुई कहती हैं कि अब हमारे मन की आशा मन में रह गई है। जिस कृष्ण के लौट आने की आशा हमारे मन में बनी हुई थी, वह तुम्हारी योग-साधना के संदेश को सुनकर समाप्त हो गई है। अब हम श्रीकृष्ण के वियोग में किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रख सकती क्योंकि अब धैर्य का कोई आधार ही नहीं रह गया है।

तीसरे पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बताती हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने मुख में पकड़े हुए तिनके को अपने जीवन का आधार मानता है; उसी प्रकार वे दिन-रात श्रीकृष्ण के नाम को रटती रहती हैं। योग का नाम तो उन्हें कड़वी ककड़ी के समान कड़वा लगता है। योग-साधना तो उनके लिए है जो प्रभु श्रीकृष्ण से प्रेम नहीं करते।

चतुर्थ पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर करारा व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि वह उनके साथ राजनीति खेल रहा है। वह जन्म से ही चालाक था और अब तो राजनीति के दाँव-पेच भी जान गया है। पहले राजनीतिज्ञ जनता की भलाई के लिए आगे-आगे फिरते थे, किंतु अब वे प्रजा के प्रति अन्याय करते हैं। ऐसे ही श्रीकृष्ण हमें योग-साधना करने के लिए कहकर हमारे प्रति अन्याय ही तो कर रहे हैं। श्रीकृष्ण का यह व्यवहार किसी भी प्रकार उचित नहीं है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

पाठ 3- सवैया और कवित्त HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मंदिर का दीपक संपूर्ण मंदिर में अपना प्रकाश फैलाता है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं एवं कलाओं से संपूर्ण संसार को प्रभावित किया है।

HBSE 10th Class Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में अनुप्रास अलंकार है।
पायनि नूपुर मंजु बजै, कटि किकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में रूपक अलंकार है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुख चंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

सवैया और कवित्त Chapter 3 HBSE 10th Class Hindi प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई ॥
उत्तर-

  • इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं।
  • गले में वनमाला है। पाँवों में पाज़ेब और कमर में करधनी है।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है।
  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • सवैया छंद है।
  • संपूर्ण पद में भाषा लयात्मक एवं संगीतमय है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक बन पड़ी है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। कवि रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हुई हरियाली, नायक-नायिकाओं का झूलना, राग-रंग आदि का उल्लेख करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न रागात्मकता का वर्णन भी करते हैं। किंतु इस कवित्त में कविवर देव ने बसंत का एक बालक के रूप में चित्रण किया है। यह बालक कामदेव का बालक है। कवि ने दिखाया है कि सारी प्रकृति उसके साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसा नवजात या छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की बसंत ऋतु संबंधी कल्पनाशीलता का बोध होता है तथा यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कवि देव के द्वारा किया गया बसंत वर्णन परंपरागत नहीं है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य में यह माना जाता है कि प्रातःकाल में जब कलियाँ खिलकर फूल बनती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि होती है। कवि ने इसी काव्य रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूप बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह-सवेरे गुलाबों के खिलते समय चटकने की ध्वनि होती है। कवि ने कल्पना की है कि गुलाब के फूलों का चटककर खिलना ऐसा लगता है मानो वे चटक की ध्वनि से बालक रूपी बसंत को जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने दूध, दही के समुद्र, सफेद संगमरमर के फर्श, गौरांगी तरुणियों, जिनके वस्त्र मोतियों एवं मल्लिका के फूलों से सुसज्जित हैं, के रूप में देखा है।

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
राधा का रूप अत्यंत सुंदर है। चाँदनी में नहाया राधा का रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक अपनी नहीं है, अपितु वह राधा के रूप को प्रतिबिंबित कर रही है। राधा चंद्रमा से भी अधिक सुंदर है। यहाँ रूढ़ उपमान (चाँद) उपमेय हो गया है। अतः यहाँ उपमेय उपमान बन गया है। यहाँ उपमा अलंकार है किंतु इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का भी आभास मिलता है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है(1) स्फटिक शिला, (2) दूध का सागर, (3) सुधा-मंदिर, (4) आरसी, (5) दूध की झाग से बना फर्श, (6) आभा आदि।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य की रचना की है। उन्होंने जीवन के सुख-दुःख का वर्णन करने की अपेक्षा विलासमय जीवन का चित्रण किया है। उनके सवैये में श्रीकृष्ण के दूल्हा-रूप का चित्रण किया गया है। कवित्तों में बसंत और चाँदनी को राजसी-वैभव से परिपूर्ण रूप में चित्रित किया गया है।

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर देव ने कल्पना शक्ति का परिचय देते हुए विषय को परंपरागत रूप से भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है। वृक्षों को पालने के रूप में, पत्तों को बिछौने के रूप में, बसंत को बालक के रूप में, चाँदनी रात में आकाश को सुधा मंदिर के रूप में चित्रित करना देव की कल्पना शक्ति का परिचायक है।

पठित काव्यांश में सवैया और कवित्त छंदों का सुंदर प्रयोग किया गया है। देव के काव्य की भाषा में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
पूर्णिमा की रात अपनी सुंदरता से हमेशा कवियों को लुभाती आई है। फिर सर्दकालीन पूर्णिमा की रात का तो कहना ही क्या? कल ही पूर्णिमा की रात थी। मैं अपने घर की छत पर गया तो देखा चाँद पूर्ण रूप से चमक रहा था। उसकी चाँदनी चारों ओर फैली हुई थी। ऐसा लगता था कि सारे संसार ने ही चाँदनी में नहाकर उज्ज्वल रूप धारण कर लिया है। आकाश में तारे भी चमक रहे थे। वातावरण अत्यंत शीतल एवं मनोरम था। मैं देर तक चाँदनी की उज्ज्वलता को निहारता रहा। वहाँ से उठने को मन ही नहीं कर रहा था। रात काफी बीत चुकी थी किंतु चाँदनी की उज्ज्वलता में कोई कमी नहीं आई थी।

यह भी जानें

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव-साम्य के लिए पढ़ें
सीस मुकुट कटि काछनि, कर, मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल ॥ -बिहारी
रीतिकालीन कविता का बसंत ऋतु का एक चित्र यह भी देखिए-
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।

कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में ।
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है ॥

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देव के काव्य की भाषा का सार रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देव के काव्य की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। भाषा के सौष्ठव, समृद्धि एवं अलंकरण पर देव का विशेष ध्यान रहा है। इनकी कविता में पद-मैत्री, यमक और अनुप्रास अलंकारों के पर्याप्त दर्शन होते हैं। भाषा में रसाता और गति कम पाई जाती है। कहीं-कहीं शब्द व्यय अधिक और अर्थ बहुत अल्प पाया जाता है। देव की भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।

प्रश्न 2.
देव के काव्य के कलापक्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
देव के काव्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन्होंने परंपरागत काव्य-शैली का सफल प्रयोग किया है। उन्होंने कवित्त, सवैया आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है। चित्रकला और अभिव्यञ्जना के सुंदर समन्वय की कला में देव का मुकाबला नहीं किया जा सकता। उन्होंने ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। देव ने ब्रजभाषा के साथ-साथ तत्सम, तद्भव, देशज, फारसी आदि के शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। रीतिकाल के कवियों में देव संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इसलिए उनके काव्य की भाषा भी पाण्डित्यपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न अलंकारों के सफल प्रयोग से अपनी कविता को सजाया है।

प्रश्न 3.
कवि देव द्वारा चाँदनी रात का वर्णन किस रूप में किया गया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
चाँदनी रात न केवल कवियों का ही मन आकृष्ट करती है, अपितु हर व्यक्ति को अच्छी लगती है। चाँदनी रात की आभा संसार को सुंदरता प्रदान करती है। कवि ने बताया है कि स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन चमक उठता है। दही के सागर की तरंगें अपार मात्रा में चमक उठती हैं। चाँदनी की अधिकता के कारण दीवारें भी कहीं दिखाई नहीं देतीं। सारा भवन चाँदनी से नहाया हुआ-सा लगता है। राधा भी चाँदनी में झिलमिलाती हुई-सी लगती है; जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हुई हो। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप लगता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना कवि ने चाँदनी से क्यों की है?
उत्तर-
जिस प्रकार चाँद की चाँदनी चारों ओर फैलकर वातावरण को सुंदर बना देती है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण की हँसी भी सभी के चेहरों पर खुशी ला देती है। इसलिए कवि ने श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना चाँदनी से की है। (ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
कवि ने सवैये में किस प्रकार की संतष्टि प्रदान की है?
उत्तर-
कविवर देव के प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। कविवर देव द्वारा रचित सवैया में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत कवितांश में कवि ने श्रीकृष्ण को ‘ब्रजदूल्हा’ के रूप में चित्रित किया है। श्रीकृष्ण को जिस रूप में चित्रित किया गया है वह रूप लोगों के मन को अत्यधिक भाता है। लोग श्रीकृष्ण के सुसज्जित रूप को देखकर अधिक संतुष्ट होते हैं। श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर उन्हें आत्मिक सुख व आनंद मिलता है। इस सवैये का महत्त्व इसी आत्मिक सुख व संतुष्टि में है।

प्रश्न 6.
देव के कवित्तों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कवित्तों में कवि के सौंदर्यबोध का पता चलता है। प्रथम कवित्त में बसंत ऋतु का वर्णन परंपरा से हटकर किया गया है। कवि ने बसंत को बालक के रूप में चित्रित किया है। यह कवि की अत्यंत सुंदर कल्पना है। साथ ही कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों की भी सुंदर कल्पना की है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में चाँदनी रात के विभिन्न चित्र अंकित किए गए हैं। राधिका जी के रूप की उज्ज्वलता ही चंद्रमा की उज्ज्वलता के रूप में प्रतिबिंबित होने की सुंदर कल्पना की गई है। इन कवित्तों में कलात्मकता देखते ही बनती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों को कल्पना के चाक पर चढ़ाकर अत्यंत सुंदर रूप प्रदान किया है।

प्रश्न 7.
‘देव दरबारी कवि थे’ इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही देव दरबारी कवि थे अर्थात् उन्होंने विभिन्न राजाओं के दरबार में रहकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए काव्य लिखा है। देव के तीनों पठित कवितांशों में दरबारी संस्कृति के दर्शन होते हैं। इन तीनों कविताओं में दरबारी चमक-दमक तथा राजसी ठाठ-बाठ देखे जा सकते हैं। श्रीकृष्ण मुकुट, पाजेब, करधनी आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं। तत्कालीन राजा भी आभूषण धारण करते थे। इसी प्रकार कवित्त में बालक बसंत को भी अत्यंत लाड-प्यार से पले बालक के समान दिखाया है। वृक्ष पालना झुलाते हैं तो विभिन्न पक्षी अपनी मधुर ध्वनियों से उसका मन बहलाते हैं। प्रातःकाल उसे कलियाँ चटकाकर जगाता है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में भी राधा के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इस कवित्त में राजाओं के महलों, राजसी वैभव का उद्दीपन रूप में चित्रण किया गया है। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि देव दरबारी कवि थे तथा उनका काव्य दरबार के हाव-भाव के अनुकूल रखा गया है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर देव ने ‘सवैया’ में श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
बसंत रूपी बालक को किसका पुत्र बताया गया है?
उत्तर-
बसंत रूपी बालक को कामदेव का पुत्र बताया गया है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण की आँखें कैसी थीं?
उत्तर-
श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी एवं चंचल थीं।

प्रश्न 4.
श्रीब्रजदूलह के किरीट कहाँ शोभा देता है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह के किरीट माथे पर शोभा देता है।

प्रश्न 5.
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कौन प्रसन्न करता है?
उत्तर-
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कोयल प्रसन्न करती है।

प्रश्न 6.
‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह’ शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।

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प्रश्न 7.
कवि ने चंद्रमा को किसका प्रतिबिंब बताया है?
उत्तर-
कवि ने चंद्रमा को राधा के मुख का प्रतिबिंब बताया है।

प्रश्न 8.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’-यहाँ ‘कीर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘कीर’ का अर्थ तोता है।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार भवन में दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है।

प्रश्न 10.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’–यहाँ जुन्हाई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ चाँदनी है।

प्रश्न 11.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
इसमें रूपक अलंकार है।

प्रश्न 12.
श्रीकृष्ण की कमर पर क्या बंधी हुई थी? ।
उत्तर-
श्रीकृष्ण की कमर पर किंकिनि (तगड़ी) बँधी हुई थी।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
(A) श्रीकृष्ण की
(B) राधिका की
(C) श्रीराम की
(D) सीता की
उत्तर-
(A) श्रीकृष्ण की

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने पैरों में क्या पहना है?
(A) पायल
(B) कंगन
(C) नूपुर
(D) माला
उत्तर-
(C) नूपुर

प्रश्न 3.
‘कटि’ का अर्थ है
(A) कटी हुई
(B) पतली
(C) कमर
(D) पेट
उत्तर-
(C) कमर

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण किंकिनि कहाँ पहने हैं?
(A) कटि में
(B) पाँयनि में
(C) माथे पर
(D) वक्षस्थल पर
उत्तर-
(A) कटि में

प्रश्न 5.
श्रीकृष्ण ने किस रंग के कपड़े पहने थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) नीले
(D) काले
उत्तर-
(B) पीले

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण ने माथे पर क्या धारण किया हुआ था?
(A) साफा
(B) ताज
(C) कलगी
(D) मुकुट
उत्तर-
(D) मुकुट

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण ने किरीट कहाँ पहना हुआ है?
(A) पाँयनि में
(B) माथे पर
(C) वक्षस्थल पर
(D) कटि में
उत्तर-
(B) माथे पर

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प्रश्न 8.
‘जग-मंदिर’ किसे कहा गया है?
(A) पृथ्वी को
(B) समुद्र को
(C) मंदिर को
(D) संसार को
उत्तर-
(D) संसार को

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार श्रीब्रज दूलह कौन हैं?
(A) विष्णु
(B) श्रीकृष्ण
(C) ग्वाले
(D) बाबा नंद
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 10.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) पुनरुक्ति प्रकाश
(D) रूपक
उत्तर-
(D) रूपक

प्रश्न 11.
‘डार द्रुम …………. गुलाब चटकारी दै’ कविता में किसका वर्णन किया गया है?
(A) वर्षा ऋतु का
(B) ग्रीष्म ऋतु का
(C) बसंत ऋतु का
(D) शरद ऋतु का
उत्तर-
(C) बसंत ऋतु का

प्रश्न 12.
बसंत से कौन-कौन बातें करते हैं?
(A) चिड़िया और कौआ
(B) मोरनी और तोता
(C) कबूतर और गिद्ध
(D) कोयल और बगुला
उत्तर-
(B) मोरनी और तोता

प्रश्न 13.
बसंत में झूला कौन झुलाता है?
(A) पवन
(B) कोयल
(C) मेघ
(D) भौंरा
उत्तर-
(A) पवन

प्रश्न 14.
कवि ने बसंत को किसका पुत्र बताया है?
(A) ब्रह्मा का
(B) इंद्रदेव का
(C) कुबेर का
(D) कामदेव का
उत्तर-
(D) कामदेव का

प्रश्न 15.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’ यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ है
(A) जादूई हँसी
(B) जुदाई
(C) चाँदनी
(D) चंद्रमा
उत्तर-
(C) चाँदनी

प्रश्न 16.
फर्श पर फैली चाँदनी कैसी लग रही थी?
(A) सागर-सी
(B) दूध की झाग-सी
(C) सफेद वस्त्र-सी
(D) बादल-सी
उत्तर-
(B) दूध की झाग-सी

प्रश्न 17.
दूसरे कक्ति में किसके सौंदर्य का चित्रण किया गया है?
(A) श्रीकृष्ण के
(B) राधिका के
(C) सीता के
(D) इंद्र की पत्नी शची के
उत्तर-
(B) राधिका के

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प्रश्न 18.
द्वितीय पद्य में किसका चित्रण किया गया है?
(A) अंधेरी रात का
(B) आधी रात का
(C) पूर्णिमा की रात का
(D) चाँदनी रात का
उत्तर-
(C) पूर्णिमा की रात का

प्रश्न 19.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’ यहाँ ‘कीर’ का अर्थ है-
(A) कीकर
(B) तोता
(C) खीर
(D) मोर
उत्तर-
(B) तोता

प्रश्न 20.
कवि ने बसंत को किस रूप में चित्रित किया है?
(A) बालक रूप में
(B) युवा रूप में
(C) किशोर रूप में
(D) वृद्ध रूप में
उत्तर-
(A) बालक रूप में

प्रश्न 21.
‘मदन’ शब्द का अर्थ है
(A) नशा
(B) कामदेव
(C) अभिमान
(D) शराब
उत्तर-
(B) कामदेव

सवैया और कवित्त पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सवैया

[1] पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई। माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई। जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥ [पृष्ठ 20]

शब्दार्थ-पाँयनि = पाँव। नूपुर = पायल। मंजु = सुंदर। कटि = कमर। किंकिनि = करधनि। लसै = सुंदर लगती है। पट = वस्त्र। पीत = पीला। हिये = हृदय। हुलसै = आनंदित होना। बनमाल = फूलों की माला। सुहाई = सुशोभित होना। किरीट = मुकुट । दृग = आँखें। मंद = धीमी। मुखचंद = चाँद-सा मुख । जुन्हाई = चाँदनी रात। जग-मंदिर = संसार रूपी मंदिर। श्रीब्रजदूलह = श्रीकृष्ण। सहाई = सहायक।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस सवैये का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीकृष्ण ने पाँव में क्या पहना हुआ है?
(ङ) श्रीकृष्ण की कमर में मधुर ध्वनि किस कारण से उत्पन्न हो रही है?
(च) श्रीकृष्ण के मुख एवं नेत्रों की शोभा का वर्णन कीजिए।
(छ) ‘जग-मंदिर-दीपक’ किसे कहा गया है?
(ज) ‘ब्रजदूलह’ किसे कहा गया है? उसके रूप-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-सवैया।

(ख) प्रस्तुत सवैया कविवर देव के श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी ‘सवैयों’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है।

(ग) कवि देव श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि श्रीकृष्ण के पाँवों में सदैव धुंघरू वाली पाजेब बजती रहती है जो पाँवों की सुंदरता को बढ़ाती है। उनकी कमर पर बँधी हुई तगड़ी की मधुर ध्वनि भी उनके चलते समय सुनाई देती है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। उनके गले में वन के फूलों की माला बड़ी मनोहर लग रही है। श्रीकृष्ण के माथे पर मुकुट विराजमान है। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें अत्यंत चंचल हैं। उनके चेहरे की हँसी ऐसी लगती है मानो चाँद की चाँदनी ही उनके चेहरे पर उतर आई हो। इस संसार रूपी मंदिर में ब्रज के दूल्हे श्रीकृष्ण दीपक के समान हैं। कवि कामना करता है कि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण सबके सहायक बने रहें।

(घ) श्रीकृष्ण ने अपने पाँवों में धुंघरुओं वाली पाजेब पहनी हुई है।

(ङ) श्रीकृष्ण ने अपनी कमर में करधनी (तगड़ी) पहनी हुई है। उसके किनारे पर छोटे-छोटे घुघरू बँधे हुए हैं। जब भी बालक कृष्ण चलता है तो धुंघरू हिलने के कारण बजते हैं। इस कारण ही श्रीकृष्ण की कमर से मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।

(च) श्रीकृष्ण के मुख पर सदा मंद-मंद हँसी बिखरी रहती है। उनका मुख चंद्रमा के समान उज्ज्वल प्रतीत होता है तथा उनके नेत्र विशाल एवं चंचल हैं।

(छ) ‘जग-मंदिर’ संसार को कहा गया है और ‘दीपक’ श्रीकृष्ण को। संसार रूपी मंदिर में श्रीकृष्ण दीपक के समान सुशोभित हैं।

(ज) ‘ब्रजदूलह’ बालक श्रीकृष्ण को कहा गया है। वे ब्रज प्रदेश में सबसे सुंदर हैं। उनके पाँवों में पाजेब, कमर में धुंघरू वाली करधनी, साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं और उनका मुख चाँद के समान सुंदर तथा नेत्र विशाल एवं चंचल हैं। इस प्रकार वे सजे हुए दूल्हे के समान लगते हैं।

(झ) इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन परंपरागत रूप से किया है। इसमें बालक कृष्ण की मनोरम छवि को अंकित किया है। बालक कृष्ण का रूप अत्यंत आकर्षक है जो बरबस सबका मन अपनी ओर खींच लेता है।

(ज)

  • कवि ने इस सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को कलात्मकतापूर्ण व्यक्त किया है।
  • इस काव्यांश में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग हुआ है।
  • सवैया छंद का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा सुकोमल एवं माधुर्यगुण संपन्न है।
  • रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।

(ट) इस काव्यांश में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। भाषा आदि से अंत तक संगीत एवं प्रवाहमयी बनी हुई है। भाषा में विषयानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

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2. कवित्त

[1] डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावें ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥ [पृष्ठ 21]

शब्दार्थ-डार द्रुम = पेड़ की डाल। बिछौना = बिस्तर। नव पल्लव = नए पत्ते। झिंगूला = फूलों का झबला, ढीला-ढाला वस्त्र। सोहै = सुशोभित है। छबि = सुंदरता। केकी = मोर। कीर = तोता। बतरावें = बाँटना, हाल बाँटना। कोकिल = कोयल। हुलसावै = प्रसन्न करती है। कर तारी दै = हाथ की ताली देकर। पूरित = भरा हुआ। पराग = फूलों के सुगंधित कण। उतारो करै राई नोन = बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने की क्रिया। कंजकली= कमल की कली। लतान = लताओं की। मदन = कामदेव। महीप = राजा। ताहि = उसे। चटकारी = चुटकी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किस ऋत का वर्णन किस रूप में किया गया है?
(ङ) कवि ने किन-किन पक्षियों का किस-किस रूप में वर्णन किया है?
(च) कमल की कली रूपी नायिका बालक की नज़र क्यों उतार रही है?
(छ) इस काव्यांश में कवि ने किन-किन अमूर्त वस्तुओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत किया है?
(ज) लताओं को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
(झ) प्रातः किस प्रकार बसंत का स्वागत करती है?
(ञ) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ट) इस पद में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।
(ठ) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों को स्पष्ट कीजिए।
(ड) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से उद्धृत है। इस कवित्त में कवि ने बसंत ऋतु का प्राकृतिक चित्रण किया है। बसंत को बालक रूप में चित्रित करके प्रकृति के साथ उसका रागात्मक संबंध दिखाया है।

(ग) कवि का कथन है कि बसंत रूपी बालक के लिए वृक्षों की डालियाँ पलना बन गईं तथा नए-नए पत्तों अर्थात् कोपलों का बिछौना (शैय्या) बन गया। कहने का भाव है कि बसंत रूपी बालक के सोने का सुंदर प्रबंध हो गया। उसके वस्त्र पुष्पों के हैं जो अत्यंत सुंदर हैं। उसके झूले को मंद-मंद गति से चलने वाली वायु झुला रही है। कवि देव का कथन है कि मोरनी और तोते उसे मीठी वाणी से आनंदित करते हैं लोरियाँ सुनाते हैं। कोयल अपने हाव-भाव से उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करती है। मानों वह ताली बजाकर बच्चे को बहला रही है। कंजकली (कमल की कली) रूपी नायिका अपने पूर्ण सौंदर्य के रस से सनी हुई लताओं की साड़ी को सिर पर धारण कर, उस बच्चे की राई नोन उतारती अर्थात् उस पर आई आपत्तियाँ मिटाने का प्रयत्न करती है। कामदेव के पुत्र बसंत को प्रायः विमल कली चुटकी बजाकर जगाती है। जैसे माता बच्चे को प्यार से जगाती है, उसी प्रकार कली बसंत रूपी बालक को बड़े ध्यान से चुटकी बजाकर जगाने का प्रयत्न करती है।

(घ) प्रस्तुत पद में बसंत ऋतु का वर्णन एक बालक के रूप में किया गया है।

(ङ) कवि ने मोर और तोते को अपनी मधुर आवाज़ में बसंत रूपी बालक के साथ बातें करते हुए दिखाया है। कोयल को उल्लास में भरकर तथा करतल बजाकर बसंत रूपी बालक का पालना हिलाते हुए दिखाया है।

(च) बसंत रूपी बालक बहुत सुंदर है, जो सुंदर होते हैं उन्हें नज़र लगने का डर रहता है। इसलिए कमल की कली रूपी नायिका बसंत रूपी बालक की नज़र उतार रही है।

(छ) कवि ने यहाँ बसंत, फूल, कमल की कली, गुलाब आदि अमूर्त को मूर्त रूप में प्रस्तुत करके इनका मानवीकरण भी किया है। इसी प्रकार मोर, तोता, कोयल आदि का भी मानवीकरण किया गया है।

(ज) लताओं को देखकर कवि ने कल्पना की है कि मानो यह नायिका की ज़रीदार और फूलदार साड़ी है जिसे नायिका ने सिर तक ओढ़ रखा है।

(झ) प्रातःकाल, गुलाब का फूल लेकर बसंत रूपी बालक को जगाने आता है। वह उसे जगाकर सुगंधित झोंके से प्रसन्न करना

(ञ) प्रस्तुत कवित्त में कवि ने प्रकृति को उद्दीपन रूप में चित्रित किया है। बसंत को वैभव-विलास में पहले सुकोमल बालक के रूप में चित्रित किया गया है। प्रकृति के विभिन्न अंग बालक को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। कवि की कल्पनाएँ अत्यंत आकर्षक एवं मनोरम बन पड़ी हैं।

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कवित्त छंद का सफल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • वात्सल्य रस का वर्णन हुआ है।
  • संपूर्ण कवित्त का प्रमुख अलंकार मानवीकरण है। साथ ही रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों की छटा भी द्रष्टव्य है।

(ठ) मानवीकरण-इसमें पवन को झूला झुलाते हुए दिखाया गया है। बसंत को बालक के रूप में दिखाया गया है। गुलाब का फूल चुटकी बजाकर बालक बसंत को जगाता है। इस प्रकार पवन, बसंत, गुलाब के फूल का मानवीकरण किया गया है।
रूपक-मदन महीप, बालक बसंत, कंजकली नायिका आदि में रूपक अलंकार है।

(ड) कवि देव ने इन काव्य पंक्तियों में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इस भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। उन्होंने ब्रजभाषा में प्रचलित लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग भाषा में आदि से अन्त तक दिखलाई पड़ता है। लोक प्रचलित मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित एवं प्रभावशाली बन पड़ी है।

[2] फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ॥ [पृष्ठ-22]

शब्दार्थ-फटिक = स्फटिक मणि, संगमरमर। सिलानि = शिलाएँ, पत्थर। सुधार्यो = बना हुआ। सुधा = चूना। उदधि= समुद्र। उमगे = उमड़ पड़ रहा है। अमंद = जो कम न हो, अत्यधिक। भीति = दीवार। फेन = झाग। फरसबंद = चबूतरा। तरुनि = तरुणी (राधिका)। ठाढ़ी = खड़ी हुई। जोति = ज्योति। मल्लिका = बेले की जाति का एक सफेद फूल । मकरंद = पराग। आरसी = एक गोल आभूषण जिसमें छोटा-सा दर्पण लगा होता था। स्त्रियाँ उसे हाथ के अंगूठे में पहनती थीं। अंबर = आकाश। आभा = चमक। उजारी = प्रकाश, चाँदनी।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवित्त का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) पद के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
(ङ) आँगन और फर्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई थी?
(च) राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई थी?
(छ) पठित पद में आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
(ज) चाँद की तुलना राधा से क्यों की गई है?
(झ) इस कवित्त में किस समय का वर्णन किया गया है?
(ञ) प्रस्तत कवित्त में निहित भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस कवित्त में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से लिया गया है। इस कवित्त में कवि ने दूध से नहाई हुई पूर्णिमा की चाँदनी रात का वर्णन किया है। चाँद और तारों की छटा अनोखी है।

(ग) कवि का कथन है कि राधा का रंगमहल सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है। उस सफेद रंगमहल में आनंद ऐसे उमड़ रहा है, जैसे दही का समुद्र ऊँची हिलोरें ले रहा हो। देव कवि कहते हैं कि शुभ्रता (सफेदी) के कारण बाहर से भीतर तक महल की दीवारें दिखाई नहीं दे रही हैं। उस महल के आँगन के चबूतरे पर दूध का झाग-सा फैला हुआ है, मानों दूध की तरह सफेद फर्शबंद (कालीन) से उसे ढक दिया गया हो। उस भव्य और सफेद महल के सफेद कालीन पर खड़ी हुई तरुणी राधा अपने ही प्रकाश से झिलमिला रही है। राधा की मुस्कुराहट से मोतियों को सफेद चमक मिलती है और मल्लिका के फूलों को सुगंधित शुभ्रता। राधा की गुराई (गोरा रंग) इतनी प्रभावपूर्ण है कि दर्पण की तरह चमकने वाले आकाश में प्रकाश फैला रही है। ऐसा प्रतीत होता है मानों चंद्रमा प्यारी राधा का प्रतिबिंब हो। चंद्रमा राधा के गोरे मुख से चमक रहा है। इसलिए राधा का गोरा रंग संसार की सभी वस्तुओं की शुभ्रता का कारण है।

(घ) भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।

(ङ) आँगन और फर्श पर दूध की झाग-सी चाँदनी फैली हुई है।

(च) राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुगंध मिली हुई है।

(छ) पठित पाठ से पता चलता है कि चाँदनी रात में आकाश आइने के समान साफ, स्वच्छ और उज्ज्वलता से परिपूर्ण लगता है।

(ज) आकाश में चाँद असंख्य तारों के बीच अकेला होता है जिसकी चाँदनी से सारा आकाश नहाया हुआ-सा लगता है। इसी प्रकार अनेक गोपियों के बीच राधा का सौंदर्य भी अलग ही प्रतीत होता है। वह सबसे अलग नज़र आती है। इसीलिए कवि ने चाँद में राधिका के प्रतिबिंब की कल्पना की है।

(झ) इस कवित्त में रात्रि का वर्णन किया गया है। यह पूर्णिमा की रात्रि है। इसमें संपूर्ण प्रकृति चाँद की चाँदनी में नहाई-सी प्रतीत होती है।

(ञ) प्रस्तुत पद में कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी रात का मनोहारी चित्रण किया है। आकाश को चाँदनी में नहाया हुआ बताया गया है। चाँदनी रात की आभा के माध्यम से कवि ने राधा की अपार सुंदरता का वर्णन किया है। उसकी सुंदरता से ही मानो चाँद ने भी सुंदरता प्राप्त की है। चाँद की चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है जिसने सारे भवन को भी उज्ज्वलता प्रदान की है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • कवित्त छंद है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

(ठ) देव-कृत इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है, फलस्वरूप कहीं-कहीं भाषा कुछ जटिल बन गई है। अलंकारों के सही प्रयोग से भाषा एवं विषय में रोचकता उत्पन्न की गई है। भाषा पांडित्य लिए हुए है।

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

सवैया और कवित्त कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर देव का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रीतिकालीन काव्य-परंपरा के कवियों में ‘देव’ का विशिष्ट स्थान है। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनके पूर्ण जीवन-वृत्त के बारे में विद्वानों को अधिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया। ‘भाव प्रकाश’ के एक दोहे के अनुसार इनका जन्म इटावा में सन् 1673 में हुआ था। इनके जन्म-स्थान के बारे में एक उक्ति भी है-
“योसरिया कवि देव को नगर इटावो वास।”

कुछ विद्वानों ने कविवर बिहारी को इनका पिता माना है, लेकिन अन्य लोग कहते हैं कि इनके पिता वंशीधर थे। इनका कोई भाई नहीं था, परंतु दो पुत्र थे भवानी प्रसाद और पुरुषोत्तम । कवि देव के गुरु श्री हितहरिवंश थे, जो वृंदावन में रहते थे। देव किसी भी राजा या नवाब के यहाँ अधिक देर तक नहीं टिक सके। आज़मशाह, राजा सीताराम, कुशल सिंह तथा राजा योगी लाल आदि के यहाँ इन्होंने आश्रय ग्रहण किया। ये लगभग समूचे देश में भ्रमण करते रहे। इनका देहांत सन् 1767 के आस-पास माना जाता है। इनके वंशज अब भी इटावा में रहते हैं।

2. रचनाएँ-कवि देव की रचनाओं की संख्या 52 या 72 मानी जाती है, लेकिन डॉ० नगेंद्र ने इनके ग्रंथों की संख्या 20 मानी है। इनके उल्लेखनीय ग्रंथों में ‘भाव-विलास’, ‘रस-विलास’, ‘भवानी-विलास’, ‘कुशल-विलास’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजान विनोद’, ‘काव्य-रसायन’, ‘जयसिंह विनोद’, ‘अष्टयाम’, ‘प्रेम-चंद्रिका’, ‘वैराग्य-शतक’, ‘देव-चरित्र’, ‘देवमाया प्रपंच’ तथा ‘सुखसागर तरंग’ आदि हैं। इनके नाम के साथ कुछ संस्कृत की रचनाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-देव ने केशव की भाँति कवि और आचार्य कर्म, दोनों का निर्वाह किया। इन्होंने तीन प्रकार की रचनाएँ लिखीं-(क) रीति-शास्त्रीय ग्रंथ, (ख) शृंगारिक काव्य (ग) भक्ति-वैराग्य तथा तत्त्व-चिंतन संबंधी काव्य। देव के काव्य-शास्त्रीय ग्रंथों से प्रतीत होता है कि ये रसवादी आचार्य थे। दर्शन-शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद तथा काम-शास्त्र आदि का इनको पूर्ण ज्ञान था। महाकवि देव एक रुचि-संपन्न तथा प्रतिभा-संपन्न कवि थे। इन्होंने विशाल काव्य की रचना की। रीतिकाल में इनका स्थान सर्वोच्च है। आचार्य एवं कवि होने के कारण इनका काव्य रीतिकालीन प्रवृत्तियों की कसौटी पर खरा उतरता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं

(i) सौंदर्य-वर्णन-नायक-नायिका का सौंदर्य-वर्णन करने में कवि देव को सफलता प्राप्त हुई है। इनका सौंदर्य-वर्णन अतींद्रिय और वायवी न होकर स्थूल और मांसल है। अतः यह इंद्रिय ग्राह्य एवं पार्थिव जगत् की विभूति है। कवि देव ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते समय उसके विभिन्न अंगों का आकर्षक वर्णन किया है। एक उदाहरण देखिए-

रूप के मंदिर तो मुख में मनि दीपक से दृग है अनुकूले।
दर्पन में मनि, मीन सलील सुधाकर नील सरोज से फूले ॥
‘देवजू’ सुरमुखी मृदु कूल के भीतर भौंर मनो भ्रम भूले।
अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो पंकज फूले ॥

(ii) शृंगार-वर्णन-देव रीतिकालीन शृंगारी कवि थे। इन्होंने अपने काव्य में सच्चे प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘प्रेम-चन्द्रिका’ में प्रेम का सजीव एवं क्रमबद्ध वर्णन किया है। इसमें इन्होंने प्रेम का लक्षण, स्वरूप, महत्त्व, भेद आदि का अत्यंत सूक्ष्म वर्णन किया है। कवि ने नायिका के सौंदर्य, चपलता, अंग-विभा आदि का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। देव के शृंगारिक काव्य के चित्र बड़े सुंदर एवं सजीव हैं। देव के शृंगारिक-वर्णन का निम्नलिखित उदाहरण देखिए-

धार में धाइ धसी निरधार है, जाइ फँसी उकसी न उफरी,
री अँगराय गिरी गहरी, गहि फेरे फिरी न फिरी नहिं घेरौं।
देव कछू अपनो बसु ना, रस लालच लाल चितै भईं चेरी,
बेगि ही बूड़ि गईं पँखियाँ, अँखियाँ मधु की मखियाँ भईं मेरीं ॥

(iii) वियोग श्रृंगार-देव के काव्य में विरह के मार्मिक चित्र अंकित किए गए हैं। इनके विरह-वर्णन में दीनता, व्याकुलता और प्रेम की गहन कूक है। इन्होंने अपने काव्य में विरह की सभी दशाओं का वर्णन किया है। कवि ने एक विरहिणी की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है
साँसन ही सों समीर गयो अरु, आँसन ही सब नीर गयो ढरि
तेज गयो गुन लौ अपनो अरु भूमि गई तन की तनुता करि।

कहने का भाव यह है कि यह पाँच तत्त्वों से बना शरीर विरह की आग में जलकर समाप्त हो गया है तथा केवल शून्य तत्त्व ही शेष रह गया है।

(iv) रीति-शास्त्रीय विवेचन देव कवि का रीतिकालीन आचार्य कवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 20 से भी अधिक रीति-ग्रंथों की रचना की है। इन्होंने अपने रीति-ग्रंथों में नायिका-भेद तथा शृंगार-रस का निरूपण सविस्तार किया है। इनके रीति-ग्रंथों में मौलिकता का अभाव है। इन रीति-ग्रंथों में वे सभी कमियाँ देखी जा सकती हैं, जो उस युग के अन्य आचार्य कवियों के ग्रंथों में पाई जाती थीं। देव आचार्य की अपेक्षा कवि अधिक प्रतीत होते हैं। इन्होंने जिस काव्य की रचना अपने आचार्यत्व के घेरे से मुक्त होकर की, उस काव्य को अत्यंत सफलता मिली है।

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(v) भक्ति और वैराग्य की भावना-देव कवि के काव्य में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अत्यंत मार्मिक वर्णन हुआ है। देव की भक्ति-संबंधी रचनाओं में शांत-रस का सुंदर परिपाक हुआ है। जीवन के अंतिम समय में इनमें भक्ति और वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई थी। अतः कवि ने अपने जीवन के अनुभव के आधार पर भक्ति और तत्त्व-चिंतन पर रचनाएँ लिखीं। ‘देव चरित्र’, ‘देव शतक’ आदि रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं। देव अपने मन को डराते एवं समझाते हुए लिखते हैं

ऐसो हौं जु जानतो कि जैहै तू विषै के संग
ए रे मन मेरे, हाथ-पाँय तेरे तोरतो।

अर्थात् हे मन! यदि मैं यह जानता कि तू विषय-वासनाओं में डूब जाएगा तो मैं तेरे हाथ-पाँव तोड़ देता। इसके साथ ही कवि अपने मन को कृष्ण-भक्ति के समुद्र में डुबाने की इच्छा भी व्यक्त करता है।

(vi) प्रकृति-चित्रण-रीतिकालीन अन्य कवियों की भाँति देव ने भी प्रकृति का चित्रण पृष्ठभूमि के रूप में ही किया है। देव ने प्रकृति के अनेक चित्र बड़ी भावपूर्णता के साथ अंकित किए हैं। कवि पूनम की रात में रास-लीला का वर्णन करते हुए भाव-विभोर हो उठता है तथा लिखता है
झहरि झहरि झीनी बूंद हैं परति मानों,
घहरि घहरि घटा घेरि हैं गगन में।

4. भाषा-शैली-कविवर देव ने प्रायः मुक्तक काव्य-शैली को अपनाया। चित्रकला के रमणीय संयोजन तथा अभिव्यक्ति व्यञ्जना-कौशल में वे अद्वितीय हैं। इन्होंने प्रायः साहित्यिक ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया है। इनकी भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। इस भाषा में इन्होंने ब्रज-प्रदेश में प्रचलित तद्भव और देशज शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है।

देव का शब्द-कोश काफी समृद्ध है। इसके साथ ही, ये भाषा के अच्छे पारखी भी हैं। व्याकरण की दृष्टि से इनकी भाषा सर्वथा दोषहीन कही जा सकती है। देव की भाषा के विषय में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “अधिकतर इनकी भाषा में प्रवाह पाया जाता है। कहीं-कहीं शब्द-व्यय बहुत अधिक है और कहीं-कहीं अर्थ अल्प भी। अक्षर-मैत्री के ध्यान से इन्हें कहीं-कहीं अशक्त शब्द रखने पड़ते थे, जो कहीं-कहीं अर्थ को आच्छन्न करते थे। तुकांत और अनुप्रास के लिए ये कहीं-कहीं शब्दों को तोड़ते-मरोड़ते व वाक्य को भी अविन्यस्त कर देते थे।”

देव ने शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी सफल प्रयोग किया है। फिर भी अनुप्रास तथा यमक इनके प्रिय अलंकार हैं। अर्थालंकारों में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग किया है। कवित्त और सवैया इनके प्रिय छंद हैं। इनकी काव्य-भाषा में लाक्षणिकता एवं व्यञ्जनात्मकता भी देखी जा सकती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देव, रीतिकाल के एक श्रेष्ठ कवि थे। भाव और भाषा, दोनों दृष्टियों से इनका काव्य उच्च-कोटि का है। इन्होंने आचार्य और कवि दोनों के कर्मों का अनुकूल निर्वाह किया।

सवैया और कवित्त कविता का सार

प्रश्न-
सवैया एवं कवित्त का सार लिखिए।
उत्तर-
सवैया-कवि देव के द्वारा रचित सवैये में बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। बालक कृष्ण के पाँवों में पड़ी पाजेब अत्यंत मधुर ध्वनि करती है। उनकी कमर में करधनी है और पीले रंग के वस्त्र भी अत्यंत सुशोभित हैं। उनके माथे पर मुकुट है। उनकी आँखें चंचल एवं सुंदर हैं। उनकी मंद-मंद हँसी बहुत ही मधुर एवं उज्ज्वल है। इस संसार रूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है।

कक्ति-कवि देव ने कवित्तों में बालक को बसंत रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा है। ऐसा लगता है मानो बालक बसंत में पेड़ों के पलने पर झूलता है और भाँति-भाँति के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढीले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झूला झुलाती है। मोर, तोते आदि उससे बातें करते हैं। कोयल उसका मन बहलाती है। कमल की कली रूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव बालक बसंत को प्रातःकाल ही उठा देता है। दूसरे कवित्त में कवि ने रात्रिकालीन छवि का वर्णन किया है। कवि ने रात की चाँदनी की तुलना दूध के फैन जैसे पारदर्शी बिंबों से की है। चारों ओर चाँदनी छाई हुई है। तारों की भाँति झिलमिल करती हुई राधा की अंगूठी दिखाई दे रही है। उसके शरीर का हर अंग शोभायुक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

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HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

मुद्रा और साख Important Questions Economics HBSE 10th Class प्रश्न-1.
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग किसे कहते
उत्तर-
(क) जब क्रेता और विक्रेता दोनों एक दूसरे से चीजें खरीदने तथा बेचने पर सहमति रखतें हों तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है।
(ख) वस्तु विनितय प्रणाली में मांगों का दोहरा संयोग होना लाजिमी विशिष्टता हैं।

HBSE 10th Class मुद्रा और साख Important Questions Economics प्रश्न-2.
मुद्रा माँगों के दोहर संयोग को कैसे खत्म करती
उत्तर-
ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, विनिमय प्रक्रिया में मुद्रा बीच का महत्त्वपूर्ण चरण प्रदान करके माँगों के दोहरे संयोग की जरूरत को खत्म कर देते हैं।

Chapter 3 मुद्रा और साख Important Questions HBSE 10th Class प्रश्न-3.
माँग जमा किसे कहते हैं?
उत्तर-
चूंकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिये निकाला जा सकता हैं इसीलिए इस जमा धन को मांग जमा कहा जाता है।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न-4.
चेक क्या है?
उत्तर-
चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक खास रकम का भुगतन करने कजा आदेश देता है।

प्रश्न-5.
माँग जमा को मुद्रा क्यों माना जाता हैं?
उत्तर-
चूंकि मांग जमा व्यापक स्तर पर भुगतान का जरिया स्वीकार किये जाते हैं, इसलिये आधुनिक अर्थव्यवस्था मे करेंसी के साथ-साथ इसे भी मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न-6.
ऋण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
ऋण से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ उध परदाता कर्जदार को धन, वस्तुएं या सेवाएँ प्रदान करता है। और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।

प्रश्न-7.
ऋण की शर्ते क्या हैं?
उत्तर-
ब्याज-दर, संपत्ति एवं कागजात की माँग और भुगतान के तरीके, इन सबको मिलकार ऋण की शर्ते कहा जाता है। ऋण की शर्तो में एक ऋण व्यवस्था से दूसरी ऋण व्यवस्था में काफी फर्क आता हैं। ऋण की शर्ते उधारदाता और कर्जदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती हैं।

प्रश्न-8.
सहकारी समितियाँ किन कार्यो के लिए ऋण उपलब्ध कराती हैं?
उत्तर-
सहकारी समितियाँ कृषि उपकरण खरीदने, खेती तथा कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बननाने और तमाम अन्य खर्चा के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न-9.
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण के विभिन्न स्रोतों की सूची बनाइए।
उत्तर-
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित स्रोतों से ऋण उपलब्ध है
(क) महाजन (ख) साहूकार (ग) कृषि-व्यापारी (घ) सहाकारी समितियाँ (ङ) भूपति मालिक एवं (च) बैंक

प्रश्न-10.
किन स्रोतों से प्राप्त ऋण ज्यादा महँगा होता
उत्तर-
औपचारिक स्तर पर ऋण देनेवालों की तुलना में अनौपचारिक खण्ड के ज्यादात ऋणदाता कहीं ज्यादा ब्याज वसूलते हैं। इसलिए, अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदाता को अधिक महँगा पड़ता है।

प्रश्न-11.
भारत में औपचारिक क्षेत्र के ऋणदाताओं की गतिविधियों पर कौन नजर रखता है?
उत्तर-
भारत में भारतीर रिजर्व बैंक कर्जा के औपचारिक स्रोतों की गतिविधियों पर नजर रखता है।

प्रश्न-12.
औपचरिक खण्ड के ऋण का लोगों तक पहुँचना क्यों जरूरी हैं?
उत्तर-
(क) औपचारिक खण्ड के ऋण का विस्तार होने के साथ-साथ इसका लोगों तक पहुँवना जरूरी है। क्योंकि वर्तमान समय में अमीर परिवारों की पहुँच औपचारिक स्रोतों तक हैं परंतु गरीब परिवारों को ज्यादातर अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
(ख) औपचारिक खण्ड से ऋण का वितरण बराबरी के स्तर पर होना चाहिए। जिससे गरीब लोगों को भी सस्ते ऋण का लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न-13.
कार्यशील पूँजी के कुछ उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
कच्चा माल, नकदी, धन, बीज, खाद, बाँस खरीदना आदि कार्यशील पूँजी के उदहरण हैं।

प्रश्न-14.
बैंक आत्मनिर्भर गुटों से जुडः महिलाओं को कर्ज देने के लिए क्यों तैयार होते हैं?
उत्तर-
(क) जब महिलाएं स्वयं को आत्मनिर्भर गुटों में आयोजित कर लेती हैं तो बैकि उन्हें ऋण देने के लिए तैयार हो जाते हैं हालांकि उनके पास कोई ऋणाधार नहीं होता है।
(ख) इसका कारण यह है कि बचत और ऋण गतिविधि यों से जुड़े ज्यादातर महत्त्वपूर्ण निर्णय गुट के सदस्य खुद करते हैं गुट फैसला करता है कि कितना कर्ज दिया जागण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम. ब्याज दर, वापस लौटाने की अवधि क्या होगी आदि।
(ग) ऋण उतारने की जिम्मेदारी भी गुट की होती है एक भी सदस्य यदि ऋण नहीं लौटाता तो गुट के अन्य सदस्य इस मामले को गंभीरता से उठाते हैं।

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प्रश्न-15.
आधुनिक करेंसी (मुद्रा) का उत्पाद के रूप में अपने आप में कोई मूल्य नहीं हैं फिर इसे मुद्रा के जेसे क्यों स्वीकार किया गया?
उत्तर-
(क) मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है।
(ख) इसे मुद्रा के रूप में विनिमय को माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है। क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है।

प्रश्न-16.
आधुनिक मुद्रा को विनिमय के साधन के रूप में क्यों स्वीकार किया जाता है? उदारहण दीजिये।
उत्तर-
(क) मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है फिर भी इसे विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है इसका कारण यह है कि देश की सरकार इसे प्राधिककृत करती है।
(ख) उदाहरण के लिए, भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करने के लिए प्राधिकृत हैं।
(ग) कानून रुपयों को विनिमय का माध्यम जैसे उपयोग की वैधता प्रदान करता है।
(घ) भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए रूपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है।

प्रश्न-17.
बैंकों की कर्ज संबंधी गतिविधियों पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
बैंकों में लोग मुद्रा निक्षेप के रूप में रखते हैं। बैंक उसके पास जमा रकम का 15 प्रतिशत हिस्सा नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। इस धन को किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की संभावना को देखते हुए संभार के रूप में रखा जाता है।
बैंक उनके पास जमा राशि के प्रमुख भाग को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत मांग रहती है इस प्रकार बैंक दो गुटों-जमाकर्ता और कर्जदार के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं। जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज और कर्जदारों से लिये गये बयाज का बंतर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत होता है।

प्रश्न-18.
ऋण-फंदा से आपका क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर-
लोग ग्रामीण गतिविधियों के लिए ऋण लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य मांग फसल उगाने के लिए होती है।
मान लीजिये एक छोटा किसान अपने छोटे जमीन के टुकड़े पर फसल उगाने के लिये महाजन से ऋण लेता है। वह उम्मीद करता है कि अच्छी फसल होने पर वह कर्ज वापस कर देगा।
परंतु मौसम के बीच में फसल पर नाशक कीओं के हमले से फसल बर्बाद हो जाने के कारण वह कर्ज लौटाने में असफल हो जाता है और साल के भीतर ही यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता है। अलगे वर्ष वह पुनः उधार लेता है। इस बार फसल सामान्य होती हैं लेकिन इतनी कमाई नहीं होती कि वह पिछला कर्ज उतार सके। उसे कर्ज लौटाने के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचना पड़ता है। इस प्रकार वह ऋण फंदे में फंस जाता है। ऐसी परिस्थिति में कर्जदार का ऋण फंदे से निकलना अति कष्टदायक होता है।

प्रश्न-19.
ऋण की शर्ते क्या होती हैं?
उत्तर-
(क) ब्याज दर, संपत्ति, कागजात की मांग और भुगतान के तरीके इन सबको मिलाकर ऋण की शर्ते कहा जाता है। ऋण की शतों में एक ऋण व्यवस्था से दूसरी ऋण व्यवस्था में काफी फर्क होता है। ऋण की शर्ते ऋणदाता और कदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती हैं।
(ख) हरेक ऋण समझौते में ब्याज-दर साफ तरीके से दी जाती है। जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम के साथ वापस करता है।
(ग) ऋणदाता ऋण के खिलाफ कोई समर्थक ऋणाधार की मांग कर सकता है। समर्थक ऋणाधार ऐसी संपत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है। जैसे, भूमि, मकान, गाड़ी, पशु, बैंक में जमा पूंजी आदि। इसका इस्तेमाल ऋणदाता को गारंटी के रूप में किया जाता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता है!
(घ) यदि कर्जदार ऋण वापस नहीं कर पाता है तो ऋणदाता को भुगतान प्राप्ति के लिए समर्थक ऋणाधार को बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न-20.
ऋणों को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-
(क) विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है : औपचारिक तथा अनौपचारिक खण्ड।
(ख) औपचारिक वर्ग में बैंकों व सहकारी समितियों से लिये कर्ज आते हैं।
(ग) अनौपचारिक वर्ग में महाजन, व्यापारी, साहूकार, मालिक, दोस्त, रिश्तेदार आदि आते हैं।

प्रश्न-21.
गरीबों में आत्मनिर्भर गुट के संगठन का क्या लाभ होता है?
उत्तर-
(क) आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या का समाधान करते हैं।
(ख) विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए उन्हें सस्ती ब्याज-दर पर ऋण उपलब्ध हो जाता है।
(ग) आत्मनिर्भर गुट ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को संघबद्ध करने में मदद करते हैं।
(घ) इससे महिलाएं स्वावलंबी बनती हैं। गुट की नियमित बैंठकों में तरह-तरह के सामाजिक विषयों जैसे, स्वास्थ्य, पोषण, हिंसा आदि पर विचार-विमर्श करने का मौका मिलता है।

प्रश्न-22.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
बांग्लोदश ग्रामीण बैंक की शुरुआत 1970 में हुई। इसकी सफलता सस्ती ब्याज दरों पर गरीबों को ऋण देने में रही है। इसके 60 लाख कर्जदार हैं जो बांग्लादेश के 40, 000 गांवों में फैले हुए हैं। इससे ऋण लेने वाली ज्यादातर गरीब महिलाएँ हैं।

प्रश्न-23.
सोनपुर के छोटे किसान, मध्य किसान और भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए ऋण की शर्तों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
1. छोटा किसान-सोनपुर के एक छोटे किसान श्यामल के पास 1.5 एकड़ जमीन है, जिसे जोतने के लिए उसे हर मोसम में ऋण की जरूरत होती है। पहले वह गांव के एक महाजन से ऋण लेता था जिस पर उसे पाँ प्रतिशत मासिक ब्याज देना पड़ता । बाद में वह एक कृषि व्यापारी से तीन प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेने लगा। जुताई के मौसम की शुरुआत होने पर व्यापारी उसे कृषि संबंधी उपकरण और माल ऋण पर मुहैया कराता हैं, फसल तैयार होने पर ये उपकरण उसे व्यापारी को वापस करने पड़ते हैं।
ऋण पर ब्याज के अलावा व्यापारी किसानों से यह वादा लेता हैं कि वे अपनी फसल उसे ही बेचेंगे। इससे उसकी ऋण की अदायगी तेजी से हो जाती है। फिर वह सस्ते दाम पर फसल खरीदकर बाद में उसे बढ़े दामों पर बेचता है।

2. मध्यम किसान-अरुण एक मध्यम वर्गीय किसान है; उसके पास 7 एकड़ जमीन हैं वह कृषि कार्य के लिए बैंक से 8.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर !ण लेता है। इस ऋण को वह अगले तीन सालों में कभी भी लौटा सकता है। पिछला ऋण अदायगी के बाद बचे फसलों के खिलाफ वह और भी ऋण ले सकता है। बैंक उन किसानों को ऐसी सुविधा देने को तैयार रहता है जो पहले भी खेती के लिए उससे ऋण ले चुके

3. भूमिहीन कृषि मजदूर-रमा एक कृषि मजदूर हैं साल के कई महीनों में उसके पास कोई काम नहीं होता और रोजमर्रा के खर्चों के लिए उसे ऋण लेना पड़ता है बीमारी की स्थिति में या पारिवारिक समारोहों पर खर्च करने के लिए भी उसे ऋण लेना पड़ता है।
वह ऋण के लिए सोनपुर के एक मध्यम वरीय भूपति पर निर्भर है जो उसका मालिक भी है। भूपति उसे 5 प्रतिशत मासिक ब्याज दर पर ऋण देता है। इस कर्ज को वापस करने के लिए रमा को उसके घर पर काम करना पड़ता है। वह पुराना ऋण वापस नहीं कर पाती है। परंतु अगली खर्चों के लिए उसे नया ऋण लेना पड़ता है। उसका मालिक उसके साथ अच्छा व्यवहार नही करता लेकिन वह उसके यहाँ काम करना जारी रखती है क्योंकि उसे उससे नये ऋण मिलने की उम्मीद रहती है।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न-24.
सहकारी समितियाँ किस प्रकार अपने सदस्यों को ऋण उपलब्ध कराती हैं?
उत्तर-
(क) ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत सहकारी समितियां हैं। सहकारी समिति के सदस्य कुछ विशेष क्षेत्रों में सहयोग के लिए अपने संसाधनों के जोड़ लेते
(ख) सहकारी समितियां कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे, किसानों, बुनकरों, औद्योगिक मजदूरों आदि की सहकारी समितियां।
(ग) ये अपने सदस्यों से जमा कबूल करती हैं इस जमा पूंजी के आधार पर बैंकों से इन्हें बड़ा ऋण भी मिलता है। ___ (घ) सहकारी समितियाँ इस रकम का इस्तेमाल सदस्यों को ऋण देने के लिए करती हैं।
(ङ) पुराना ऋण लौटाने के बाद नया ऋण लिया जा सकता है।
(च) सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों को कृषि उपकरण खरीदने खेती तथा कृषि-व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बनाने आदि के लिए ऋण देती हैं।

प्रश्न-25.
ऋण की औपचारिक स्रोतों के विस्तार की जरूरत क्यों हैं? इससे क्या लाभ प्राप्त हो सकता हैं?
उत्तर-
(क) औपचारिक स्तर पर ऋण देनेवालों की तुलना में अनौपचारिक वर्ग के ऋणदाता ज्यादा ब्याज लेते हैं। अतः अनौपचारिक ऋण कर्जदाता को अधिक महंगा पड़ता है।
(ख) ऋण पर ऊँचीब्याज दरों के कारण कर्जदारों की आय का अधिकतर हिस्सा ऋण अदायगी में खर्च हो जाता हैं इस तरह, उनके पास निजी खर्चे के लिए कम आय बच जाती
(ग) कुछ मामलों ऋण की ऊँ ब्याज दरों के कारण कर्ज वापसी की रकम कर्जदार की आय से भी अधिक हो जाती हैं जिस कारण वह ऋण-फंदे में फंस सकता हैं ।
(घ) कई बार ऊँची ब्याज दरों के डर से लोग नया काम शुरू ही नहीं कर पाते हैं।
उपरोक्त कारणों से ऋण के औपचारिक स्रोतों यथा, बैंक और सहकारी समितियों को अधिक से अधिक कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए।

मुख्य लाभ-
(क) सस्ते ऋण से लोगों की आय बढ़ सकती है। (ख) गाँवों में लोग सफल उगाने के लिय या छोटा-मोटा कारोबार करने के लिए ऋण ले सकते हैं। शहरोंम में लोग नया उद्योग लगा सकते हैं या व्यापार कर सकते हैं। सस्ता ऋण देश के विकास के लिए अति आवश्यक है।,

प्रश्न-26.
शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में मिलने वाली ओपचारिक व अनौपचारिक ऋणों की तुलना करें।
उत्तर-
(क) शहरी क्षेत्रों के गरीब परिवारों की कर्जा की 85% जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पुरी होती हैं। इसकी तुलना में शहरी-इलाकों में अमीर परिवार 90% औपचारिक स्रोतों से ऋण लेते हैं सिफ 10% लोग अनौपचारिक स्रोतों से अपनी ऋण की जरूरतें पूरी करते हैं।
(ख) ग्रामीण इलाकों में भी अमीर लोग औपचारिक स्रोतों से अधिक ऋण लेते हैं जबकि गरीब परिवार अपनी ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
(ग) औपचारिक वर्ग ग्रामीण परिवारों के ऋण की जरूरतों का मात्र 50% ही पूरा कर पाता हैं
(घ) अनौपचारिक वर्ग के ऋणदाताओं का ब्याज दर • काफी ऊँची होती हैं जिससे कर्जदारों की समस्या साधारणतया बढ़ती ही हैं।
(ङ) वतमान समय में अमीर परिवारों की पहुँच औपचारिक स्रोतों तक हैं, परंतु गरीब परविरों को अधिकतर अनौपचारिक ऋणों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।

प्रश्न-27.
भारत में गरीब परिवार अब भी ऋण के लिए अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर क्यों हैं।
उत्तर-
भारत में अधिकांश गरीब परिवार ऋण संबंधी जरूरतों के लिए अब भी अनौपचारिक स्त्रोतों पर निर्भर हैं, इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(क) भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद नहीं हैं।
(ख) बैंकों से कर्ज लेना महाजनों से कर्ज लेने की अपेक्षा ज्यादा मुश्किल हैं
(ग) बैंक से कर्ज लेने के लिए संपत्ति और तमाम किस्म के कागजातों की जरूरत होती हैं।
(घ) ऋणाधार नहीं होने पर कज्र नहीं मिल पाता है।
(ङ) अनौपचारिक ऋणदाता इन कर्जदारों को निजी स्तर पर जानते हैं, इस कारण वे बना ऋणाधार के ही ऋण देने को तैयार हो जाते हैं।
(च) कर्जदार जरूरत पड़ने पर पुराना बकाया चुकाये बिना, साहूकार से नया ऋण ले सकते हैं।

प्रश्न-28.
गरीबों में आत्मनिर्भर गुट पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर-
(क) पिछले कुछ सालों में, लोंगों ने गरीबों को उधार देने के लिए कई नये तरीकों को ईजाद किया हैं, इनमें एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों, खासकर महिलाओं को छोटे-छोटे आत्मनिर्भर गुटों में जोड़कर उनकी बचत पूंजी को एकचित्र करना है।
(ख) आमतौर पर एक गुट में 15-20 सदस्य होते हैं जो नियमित रूप से मिलते है। और बचत करते हैं परिवारों की बचत क्षमता के आधार पर प्रतिव्यक्ति 5 रुपये से 100 रुपये तक बचत की जा सकती है।
(ग) आत्मनिर्भर गुट के सदस्य अपनी जरूरतों के हिसाब से गुट से ही कर्ज ले सकते हैं जिस पर उन्हें ब्याज देना पड़ता है परंतु यह ब्याज साहूकारों की अपेक्षा बहुत कम होता
(घ) एक या दो वर्षों बाद यह गुट बैंक से ऋण ले सकता है। इसका उद्देश्य सदस्यों को अपनी गिरवी जमीन छुड़वाने के लिए तथा कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण उपलब्ध कराना है।
(ङ) बचत और ऋण गतिविधियों से जुड़े ज्यादातर महत्त्वपूर्ण निणय गुट के सदस्य खुद करते है।। गुट ही फैसला करता है कि किमना कर्ज दिया जाएगा, उसका लक्ष्य, उसकी रकम, ब्याज दर, वापस लौटाने की अवधि आदि।
(च) इस ऋण को वापस करने की जिम्मेदारी भी गुट की होती हैं यदि गुट का कोई सदस्य ऋण वापस नहीं करता तो गुट के अन्य सदस्य इस मामले को गंभीरता से उठाते हैं।
(छ) आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में मदद करते हैं।
(ज) उन्हें समायनुसार विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों के लिए एक यथोचित ब्याज दर पर ऋण मिल जाता है।
(झ) यह गुट ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को संघबद्ध करने में मदद करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन करें।

प्रश्न 1.
जब क्रेता और विक्रेता दोनों एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हों, तो इसे कहते हैं-
(क) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग
(ख) माँग तथा उत्पादन का दोहरा संयोग
(ग) उत्पादन का तिहरा संयोग
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(क) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग

प्रश्न 2.
प्रारंभिक काल मे भारत में मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होते थे-
(क) सिक्के
(ख) करेंसी
(ग) अनाज और पुश
(घ) रुपये
उत्तर-
(ग) अनाज और पुश

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 3.
मुद्रा के आधुनिक रूपों में शामिल हैं
(क) सोना और चाँदी के सिक्के
(ख) करैसी कागज के नोट और सिक्के
(ग) अनाज तथा पशु
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) करैसी कागज के नोट और सिक्के

प्रश्न 4.
केंद्र सरकार की ओर से नोट जारी करता हैं–
(क) भारतीय रटेट बैंक
(ख) सहकारी बैंक
(ग) कारपोरेशन बैंक
(घ) भारतीय रिजर्व बैंक
उत्तर-
(घ) भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न 5.
भारत की मुद्रा हैं-
(क) रुपया
(ख) डॉलर
(ग) पौंड
(घ) दिनार
उत्तर-
(क) रुपया

प्रश्न 6.
चूंकि बैंक खातों में जमा धन को मांग के जरिये निकाला जा सकता है, इसलएि इसे कहते हैं-
(क) धन जमा
(ख) माँग जमा
(ग) चेक जमा
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) माँग जमा

प्रश्न 7.
आजकल भारत में बैंक जमा का कितना प्रतिशत हिस्सा नकद के रूप में रखते हैं?
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20
उत्तर-
(ग) 15

प्रश्न 8.
ऐसी संपत्ति जिसका मालिक कर्जदार है औश्र इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गांरटी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता है, कहते हैं-
(क) समर्थक ऋणाधार
(ख) ऋण
(ग) पूंजी
(घ) समर्थक धन
उत्तर-
(क) समर्थक ऋणाधार

प्रश्न 9.
ब्याज दर, संपत्ति और कागजात की मांग और भुगतान के तरीके, इन सबकों मिलाकर क्या कहा जाता हैं?
(क) समर्थक ऋणाधार
(ख) ऋण की शर्ते
(ग) उत्पादन के साधन
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) ऋण की शर्ते

प्रश्न 10.
औपचारिक स्रोतों के ऋणदाता हैं–
(क) बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) a और b दोंनो
(घ) साहूकार
उत्तर-
(ग) a और b दोंनो

प्रश्न 11.
अनौपचारिक ऋण स्रोतों के उदाहरण हैं–
(क) बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) साहूकार
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) साहूकार

प्रश्न 12.
सोनपुर में भूमिहीन लोगों के लिए ऋण का स्रोत
(क) बैंक
(ख) गुर्ट
(ग) व्यापारी
(घ) भूपति मालिक
उत्तर-
(घ) भूपति मालिक

प्रश्न 13.
भारत में कों के औपचारिक स्रोतों पर नजर रखता हैं.
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) वित्त मंत्रालय
उत्तर-
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 14.
शहरी इलाकों के गरीब परिवारों के कर्ज की कितनी प्रतिशत जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं-
(क) 70
(ख) 75
(ग) 80
(घ) 85
उत्तर-
(घ) 85

प्रश्न 15.
शहरी इलाकों में अमीर परिवारों के कर्ज का कितना प्रतिशत अनौपचारिक स्रोतों से पूरा होता
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20
उत्तर-
(ख) 10

प्रश्न 16.
शहरी इलाकों में अमीर परिवारो के कर्ज का कितना प्रतिश औपचारिक स्रोतों से पूरा होता हैं?
(क) 70
(ख) 85
(ग) 90
(घ) 95
उत्तर-
(ग) 90

प्रश्न 17.
ग्रामीण परिवारों की ऋण की जरूरतों का कितना प्रतिशत औपचारिक खण्ड से पूरा होता हैं?
(क) 30
(ख) 40
(ग) 50
(घ) 80
उत्तर-
(ग) 50

प्रश्न 18.
साधारणतया आत्मनिर्भर गुट में कितने सदस्य होते है-
(क) 15-20
(ख) 20-25
(ग) 25-30
(घ) 30-50
उत्तर-
(क) 15-20

प्रश्न 19.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के आज कितने कर्जदार
(क) 1952
(ख) 1965
(ग) 1970
(घ) 1972
उत्तर-
(ग) 1970

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 20.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के आज कितने कर्जदार
(क) 50 लाख
(ख) 60 लाख
(ग) 70 लाख ।
(घ) 75 लाख
उत्तर-
(ख) 60 लाख

प्रश्न 21.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक से ऋण लेने वाले ज्यादातर
(क) विद्यार्थी
(ख) व्यापारी
(ग) किसान
(घ) महिलायें
उत्तर-
(घ) महिलायें

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HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2  बुद्धिर्बलवती सदा

HBSE 10th Class Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Questions and Answers

Buddhi Bal Bharti Sada HBSE 10th Class प्रश्न  1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितगृहं प्रति चलिता ?
(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती।
उत्तराणि
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितृगृहं प्रति चलिता।
(ख) व्याघ्रः व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य पलायितः ।
(ग) लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(घ) जम्बुक: “भवान् कुत: भयात् पलायितः।” इति वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(ङ) बुद्धिमती शृगालं “रे रे धूर्त ! पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तं विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि,
वदाधुना।” इति उक्तवती।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न  2.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
(घ) त्वं मानुषात् बिभेषि।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) तत्र क: नाम राजपुत्रः वसतिस्म ?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती ?
(ग) कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?
(घ) त्वं कस्मात् बिभेषि ?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?

बुद्धिर्बलवती सदा HBSE 10th Class प्रश्न  3.
उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं.
कुरुत:
यथा-तया अहं हन्तुम् आरब्धः – सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
(क) मया पुस्तकं पठितम्। – …………………………..
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – …………………………..
(ग) सीतया लेखः लिखितः। – …………………………..
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – …………………………..
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – …………………………..
उत्तराणि
(क) मया पुस्तकं पठितम्।- अहं पुस्तकं पठितवती।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – रामः भोजनं कृतवान्।
(ग) सीतया लेख: लिखितः। – सीता लेखं लिखितवती।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – अश्वः तृणं भुक्तवान्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – त्वं चित्रं दृष्टवान्।

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Budhirbalavati Sada Solutions HBSE 10th Class प्रश्न  4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण संयोजयत:
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुन: पलायितः।
उत्तरम्-(घटनाक्रमानुसारं वाक्ययोजनम्):
1. (च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
2. (घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
3. (ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
4. (क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
5. (ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
6. (ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
7. (छ) ‘त्व व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
8. (ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।

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Sanskrit Class 10 Chapter 2 Shemushi HBSE प्रश्न  5.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत:
(क) पितुर्गृहम् – ……………… + ………………
(ख) एकैकः (ग) – ……………. + ………………
(ग) ……………. – अन्यः + अपि
(घ) ……………. – इति + उक्त्वा
(ङ) ……………. – यत्र + आस्ते
उत्तराणि
(क) पितुर्गृहम् – पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः – एक + एकः
(ग) अन्योऽपि – अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

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बुद्धिर्बलवती सदा Solutions HBSE 10th Class प्रश्न  6.
(क) अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत:
(क) ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तराणि-पदम् – अर्थः
(क) ददर्श – दृष्टवान्,
(ख) जगाद – अकथयत्,
(ग) ययौ – गतवान्,
(घ) अत्तुम् – खादितुम्,
(ङ) मुच्यते – मुक्तो भवति,
(च) ईक्षते – पश्यति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

प्रश्न  7.
(ख) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत
(क) वनम् – ………………..
(ख) शृगालः – ………………..
(ग) शीघ्रम् – ………………..
(घ) पत्नी – ………………..
(ङ) गच्छसि – ………………..
उत्तराणि:
पदम् – पर्यायपदम्
(क) वनम् – काननम्
(ख) शृगालः – जम्बुकः
(ग) शीघ्रम् – सत्वरम्
(घ) पत्नी – भार्या
(ङ) गच्छसि – यासि।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

प्रश्न  8.
प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत
(क) चलितः – ………………..
(ख) नष्टः – ………………..
(ग) आवेदितः – ………………..
(घ) दृष्टः – ………………..
(ङ) गतः – ………………..
(च) हतः – ………………..
(छ) पठितः – ………………..
(ज) लब्धः – ………………..
उत्तराणि
(क) चलितः – चल् + क्त
(ख) नष्टः – नश् + क्त
(ग) आवेदितः – आ + विद् + क्त
(घ) दृष्टः – दृश् + क्त
(ङ) गतः – गम् + क्त
(च) हतः – हन् + क्त
(छ) पठितः – पठ् + क्त
(ज) लब्धः लभ् + क्त।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

परियोजनाकार्यम्
बुद्धिमत्याः स्थाने आत्मानं परिकल्प्य तद्भावनां स्वभाषया लिखत।
(बुद्धिमती के स्थान पर अपने आप को रखकर उसकी भावना अपनी भाषा में लिखिए)
उत्तरम्: बुद्धिमती इस कथा की पात्र है। प्राचीन काल में जो कथाएँ लिखी जाती थी, वे उद्देश्यपूर्ण हुआ करती थी। इस कथा का उद्देश्य में केवल इतना ही है कि कठिन से कठिन समय में भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए। क्योंकि घबराने पर मनुष्य की बुद्धि विचलित हो जाती है और समस्या का समाधान नहीं निकलता। यह कथा बालकों के मनोरंजन को मुख्य रूप में सामने रखकर तथा इसी बहाने बुद्धिमत्तापूर्ण शिक्षा देने के उद्देश्य से रची गई है। क्योंकि बालकों को वे ही कहानियाँ अधिक पसन्द होती है जिनमें पशु पक्षी भी पात्र हो। इस कहानी का कोमलमती बालकों पर तो सीधा प्रभाव पड़ता है, परन्तु यह व्यावहारिक नहीं है।

यदि बुद्धिमती के स्थान पर मुझे ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता तो मैं बाघ की क्रूरता को देखकर अपनी सुरक्षा के लिए भिन्न प्रकार से कदम उठाता। उदाहरण के लिए

1. हिंसक जानवरों से परिपूर्ण मार्ग तय करने से पहले मैं अपने साथ कोई ऐसा हथियार लेकर चलता जिससे मैं उनका सामना कर सकता।
2. हिंसक जानवर आग से बहुत डरते हैं, मैं मसाल आदि के रूप में तेज आग जलाकर उन्हें भगाने का प्रयास करता।
3. हिंसक जानवर तेज ध्वनि से भी डर जाते हैं तो मैं किसी विस्फोटक को पहले ही साथ लेकर चलता जिसका उपयोग समय पड़ने पर करता। प्रायः भारी भरकम हिंसक जानवर वृक्षों की ऊँचाई पर चढ़ नहीं पाते, इस
तथ्य को समझते हुए मैं किसी वृक्ष पर काफी ऊँचे चढ़कर अपनी जान बचाता।
परन्तु ये सब उपाय करने के लिए बुद्धिमत्ता और साहस की परम आवश्यकता होती है। जिसकी शिक्षा बुद्धिमती के चरित्र से मिलती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

योग्यताविस्तार:
भाषिकविस्तारः
ददर्श – दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
बिभेषि – ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
प्रहरन्ती – प्र + ह्र धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग।
गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ – ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
यासि – गच्छसि।

समास
गलबद्धशृगालकः – गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन कृत: उत्साहः – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचित्तः – भयेन आकुल: चित्तम् यस्य सः।
व्याघ्रमारी – व्याघ्रं मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितं येन सः।
भयकरा – भयं करोति या इति।

ग्रन्थ-परिचय:
शुकसप्ततिः के लेखक और उसके काल के विषय में यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है, तथापि इसका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचन्द्र ने (1088-1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में फारसी भाषा में ‘तूतिनामह’ नाम से अनूदित हुआ था।
शुकसप्ततिः का ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरंजक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दुःखी देखकर उसके मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा-इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुःख दूर होगा। हरिदत्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों ने मदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया।

व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा, जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

हन् (मारना) धातोः रुपम्।
लट्लकारः

एकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
मध्यमपुरुषहन्तिहतःघ्नन्ति
उत्तमपुरुषःहन्सिहथःहथ
प्रथमपुरुषःहन्मिहन्वःहन्मः

लुट्लकारः

मध्यमपुरुषहनिष्यतिहनिष्यतःहनिष्यन्ति
उत्तमपुरुषःहनिष्यसिहनिष्यथ:हनिष्यथ
प्रथमपुरुषःहनिष्यामिहनिष्यावःहनिष्यामः

लङ्लकारः

मध्यमपुरुषअहन्अहताम्अहत
उत्तमपुरुषःअहःअहतम्अहत
प्रथमपुरुषःअहनम्अहन्वअहन्म

लोट्लकारः

मध्यमपुरुषहन्तुहताम्घ्नन्तु
उत्तमपुरुषःजहिहतम्हत
प्रथमपुरुषःहनानिहनावहनाम

विधिलिङ्लकारः

मध्यमपुरुषहन्यात्हन्याताम्हन्युः
उत्तमपुरुषःहन्याःहन्यातम्हन्यात
प्रथमपुरुषःहन्याम्हन्यावहन्याम।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

HBSE 10th Class Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Important Questions and Answers

बुद्धिर्बलवती सदा पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
अस्ति देउलाख्यो ग्रामः।
तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाट्यात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्यानं दृष्ट्रवा कश्चित् धूर्तः।
शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुत: भयात् पलायित: ?”

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) देउलाख्यः कः अस्ति ?
(ii) राजपुत्रस्य नाम किमस्ति ?
(ii) पितुर्गुहं प्रति का चलिता ?
(iv) कीदृशः व्याघ्रः नष्टः ?
(v) भयाकुलं व्यानं दृष्ट्वा कः हसति ?
उत्तराणि:
(i) ग्रामः।
(ii) राजसिंहः।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) भयाकुलचित्तः।
(v) शृगालः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) बुद्धिमती कीदृशे मार्गे व्याघ्नं ददर्श ?
(ii) किं मत्वा व्याघ्रः नष्टः ?
(iii) भामिनी कया व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता ?
(iv) बुद्धिमान् निजबुद्ध्या कस्मात् विमुच्यते ?
उत्तराणि:
(i) बुद्धिमती गहनकानने मार्गे व्याघ्र ददर्श।
(ii) व्याघ्रमारी काचिदियम्-इति मत्वा व्याघ्रः नष्टः।
(iii) भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता।
(iv) निजबुद्ध्या बुद्धिमान् महतो भयात् विमुच्यते ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘पलायितः इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?’
(ii) ‘बुद्धिमान्’ इत्यस्य स्त्रीलिङ्गे पदं किमस्ति ?
(iii) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘मार्गे गहनकानने’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) नष्टः।
(ii) बुद्धिमती।
(iii) प्र √ह + ल्यप्।
(iv) पितुः + गृहम्।
(v) मार्गे।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-भार्या = (पत्नी) पत्नी। पुत्रद्वयोपेता = (पुत्रद्वयेन सहिता) दोनों पुत्रों के साथ। उपेता = (युक्ता) युक्त। गहनम् = (सघनम्) घने। कानने = (वने) जंगल में। ददर्श = (अपश्यत्) देखा। धाष्ट्यात् = (धृष्टभावात्) ढिठाई से। चपेटया = (करप्रहारेण) थप्पड़ से। प्रहृत्य = (चपेटिकां दत्वा) थप्पड़ मारकर। जगाद = (उक्तवती) कहा। एकैकश = (एकम एकं कृत्वा) एक-एक करके। कलहम् = विवादम्) झगड़ा। विभज्य = विभक्त कृत्वा) अलगअलग करके, (बाँटकर)। लक्ष्यते = (अन्विष्यते) देखा जाएगा, ढूँढा जाएगा। व्याघ्रमारी = व्याघ्रं मारयति (हन्ति) इति] बाघ को मारने वाली। नष्टः = (पलायितः) आँखों से ओझल हो गया, भाग गया। [/नश् अदर्शने + क्त ] । निजबुद्ध्या = (स्वमत्या) अपनी बुद्धि से। भामिनी = (भामिनी, रूपवती स्त्री) रूपवती स्त्री। भयाकुलम् = (भयात् आकुलम्) भय से बेचैन।

सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ शुकसप्ततिः से सम्पादित करके हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो-भागः’ में संकलित ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग: राजपुत्र राजसिंह की पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ अपने पिता के घर जाती है। रास्ते में अपनी बुद्धिमत्ता से बाघ को भगाकर भयमुक्त होती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत अंश में है।

हिन्दी अनुवाद: देउल नामक ग्राम है। वहाँ राजसिंह नाम का राजपूत रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से इसकी पत्नी बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल पड़ी। मार्ग में घने वन में उसने एक बाघ देखा। वह बाघ को आता हुआ देखकर ढिठाई से दोनों पुत्रो को चाँटों से मारकर बोली-“क्यों अकेले-अकेले बाघ को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो ? यह एक है तो बाँटकर खा लो। बाद में अन्य कोई दूसरा ढूँढा जाएगा।”

ऐसा सुनकर, यह कोई व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) है, यह मानकर भय से व्याकुल चित्तवाला बाघ आँखों से ओझल हो गया।

वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि के द्वारा बाघ के भय से मुक्त हो गई। संसार में दूसरे बुद्धिमान् लोग भी (इसी प्रकार अपने बुद्धिकौशल के कारण) अत्यधिक भय से छूट जाते हैं।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई दुष्ट सियार (गीदड़) हँसता हुआ बोला-“आप भय से कहाँ भागे जाते हैं ?”

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

2. व्याघ्रः- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शगाल: – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि ?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) शास्त्रे का श्रूयते ?
(ii) गृहीतकरजीवितः शीघ्रं कः नष्टः ?
(iii) मानुषात् कः बिभेति ?
(iv) व्याघ्रमारी सात्मपुत्रो कया प्रहरन्ती दृष्टा ?
उत्तराणि:
(i) व्याघ्रमारी।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) व्याघ्रः ।
(iv) चपेटया।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं कः कं कथयति ?
(ii) व्याघ्रमारी कीदृशौ पुत्री प्रहरन्ती दृष्टा ?
(iii) जम्बुकः व्याघ्नं कुत्र गन्तुं कथयति ?
(iv) यदि शृगालः व्याघ्र मुक्त्वा याति तदा किं स्यात् ?
उत्तराणि
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं व्याघ्रः शृगालं कथयति।
(ii) व्याघ्रमारी एकैकश: व्याघ्रम् अत्तुं कलहायमानौ पुत्रौ प्रहरन्ती दृष्टा।
(iii) जम्बुक: व्याघ्रं कथयति- ‘यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्’
(iv) यदि शृगालः व्याघ्रं मुक्त्वा याति तदा वेलापि अवेला स्यात् ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘शृगालः’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘त्वया अहं हन्तव्यः’ अत्र ‘त्वया’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम्।
(iii) ‘भक्षयितुम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘परोक्षम्’ इत्यस्य किमत्र विलोमपदम् ?
(v) ‘हन्तव्यः’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ निर्दिशत ?
उत्तराणि:
(i) जम्बुक: ।
(ii) व्याघ्राय।
(iii) अत्तुम् ।
(iv) प्रत्यक्षम्।
(v) हन् + तव्यत्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः जम्बुकः = (शृगालः) सियार, गीदड़। गूढप्रदेशम् = (गुप्तप्रदेशम् गुप्त प्रदेश में। गृहीतकरजीवितः = (हस्ते प्राणान् नीत्वा) हथेली पर प्राण लेकर। आवेदितम् = (विज्ञापितम्) बताया। प्रत्यक्षम् = (समक्षम्) सामने। सात्मपुत्रौ = (सा आत्मनः पुत्रौ) वह अपने दोनों पुत्रों को। अत्तुम् = (भक्षयितुम्) खाने के लिए।। कलहायमानौ = (कलहं कुर्वन्तौ) झगड़ा करते हुए (दो) को। प्रहरन्ती = (प्रहारं कुर्वन्ती) मारती हुई। ईक्षते = (पश्यति) देखती है। वेला = (समयः) शर्त। अवेला = असामयिक, व्यर्थ।

सन्दर्भ:-पूर्ववत्।
प्रसंग: बुद्धिमती से डरकर भागते हुए व्याघ्र को एक गीदड़ साहस बँधाता है और उसे पुनः उसी स्त्री के पास भेजने के लिए उत्साहित करता है। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में है।

हिन्दी अनुवाद:
बाघ: जाओ गीदड़! तुम भी किसी गुप्तस्थान पर चले जाओ। क्योंकि व्याघ्रमारी, जो शास्त्र में सुनी जाती है। वह मुझ पर हमला करने लगी परन्तु जान हथेली पर रखकर उसके सामने से शीघ्र ओझल हो गया।

गीदड़: बाघ! तुमने बहुत आश्चर्य की बात कही है कि तुम मनष्य से भी डर गए हो ?

बाघ: वह मेरी आँखों के सामने ही एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ते अपने दोनों पुत्रों को चाँटों से पीटती हुई दिखाई पड़ी।

गीदड़: स्वामी ! जहाँ वह दुष्टा है, वहाँ चलो। हे बाघ! यदि तुम्हारे पुनः वहाँ जाने पर वह सामने दिखती है तो तुम मुझे मार देना।

बाघ: गीदड! यदि तम मझको छोड़कर चले गए, तब यह शर्त भी व्यर्थ हो जाएगी।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

3. जम्बुकः- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यगुल्या तर्जयन्त्युवाच
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यम् व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयड्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्।
अत एव उच्यतेबुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्याघ्रः कं निजगले बद्ध्वा चलेत् ?
(ii) जम्बुककृतोत्साहः कः अस्ति ?
(iii) प्रत्युत्पन्नमतिः का अस्ति ?
(iv) पुरा व्याघ्रत्रयं केन दत्तम् ?
(v) सदा बलवती का कविता ?
उत्तराणि:
(i) शृगालम्।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) शृगालेन।
(v) बुद्धिः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्याघ्रः किं कृत्वा काननं ययौ ?
(ii) किं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती ?
(iii) कीदृशः व्याघ्रः सहसा नष्टः ?
(iv) बुद्धिमती पुनरपि कस्मात् मुक्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(i) व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं ययौ।
(ii) शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती।
(iii) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः सहसा नष्टः ।
(iv) बुद्धिमती पुनरपि व्याघ्रजात् भयात् मुक्ता अभवत्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘वनम्’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘मूढमतिः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iii) ‘इत्युक्त्वा ‘ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘व्याघ्रमारी भयङ्करा’ अत्र विशेषणपदं किम् ?
(v) ‘बलवती’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) काननम्।
(ii) प्रत्युत्पन्नमतिः ।
(iii) इति + उक्त्वा ।
(iv) भयङ्करा ।
(v) मतुप्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
श्लोकस्य अन्वयः रे रे धूर्त! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम्। विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् आनीय कथं यासि इति अधुना वद। इति उक्त्वा भयङ्करा व्याघ्रमारी तूर्णं धाविता। गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः । तन्वि! सर्वदा सर्वकार्येषु बुद्धिर्बलवती।

शब्दार्थाः निजगले = (स्वग्रीवायाम्) अपने गले में। सत्वरम् = (शीघ्रम्) शीघ्र। काननम् = (वनम्) वन। आक्षिपन्ती = (आक्षेपं कुर्वन्ती) आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई। तर्जयन्ती = (तर्जनं कुर्वन्ती) धमकाती हुई, डाँटती हुई। पुरा = (पूर्वम्) पहले। विश्वास्य = (समाश्वास्य) विश्वास दिलाकर। तूर्णम् = (शीघ्रम्) जल्दी, शीघ्र। भयडकरा = (भयं करोति इति) भयोत्पादिका। गलबद्ध-शगालकः = (गले बद्धः शृगालः यस्य सः) गले में बँधे हुए शृगालवाला। तन्वि = (कोमलांगी स्त्री) सुन्दर, कोमल अंगोंवाली स्त्री।

संदर्भ:-पूर्ववत्
प्रसंग: जब गीदड़ को अपने गले में बाँधकर बाघ जंगल में पुनः बुद्धिमती स्त्री की ओर जाने लगता है तो बुद्धिमती अपनी वाक् चातुरी से बाघ को पुनः भगा देती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत अंश में है।

हिन्दी अनुवाद:
गीदड़: यदि ऐसा है तो मुझको अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो। वह बाघ वैसा करके वन में गया। गीदड़सहित बाघ को फिर आए हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती सोचने लगी-गीदड़ द्वारा उकसाए बाघ से छुटकारा कैसा हो ? परन्तु हाजिरजवाब स्त्री ने अंगुली उठाकर गीदड़ को फटकारते हुए कहा अरे धूर्त! पहले तेरे द्वारा मुझे तीन बाघ दिए गए थे। विश्वास दिलाकर भी आज एक को ही लाकर क्यों जा रहे हो, अब बताओ। ऐसा कहकर भयंकर व्याघ्रमारी तेजी से दौड़ी। गले में गीदड़ बँधा बाघ भी अचानक भाग गया। इस प्रकार बुद्धिमती बाघ के भय से दूसरी बार भी मुक्त हो गई। इसलिए ही कहा गया है-हे सुन्दरी ! सदैव सब कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा Summary in Hindi

बुद्धिर्बलवती सदा पाठ परिचय:

संस्कृत साहित्य में कथा लेखन की परम्परा अति प्राचीन है। पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाएँ आज भी कोमल मति बालकों का उचित मार्ग दर्शन करती हैं। इनका आरम्भिक रूप मौखिक ही था। रात को सोते समय बच्चे अपनी नानीदादी से कथाएँ सुनते थे और उसके बाद ही उनकी आँखों में नींद आती थी। ये कथाएँ मनोरंजन के साथ-साथ उनका नैतिक विकास भी करती थी। बाद में लेखन कला का विकास होने पर इन कथाओं को साहित्यिक रूप दिया गया। ‘शुकसप्ततिः’ ऐसे ही कथा ग्रन्थों में एक महत्त्वपूर्ण कथा संग्रह है।

‘शुकसप्ततिः’ संस्कृत कथा साहित्य की परवर्ती रचना है। भारतीय आख्यान परम्परा में ‘किस्सा तोता मैना’ की कथाएँ प्रसिद्ध हैं। शुकसप्ततिः उन्हीं कथाओं का एक रूपान्तर है। इसमें एक शुक (Parrot) एक अकेली स्त्री का मन बहलाने के लिए रोचक कथाएँ कहता है। ये कथाएँ मनोरंजन होने के साथ-साथ बुद्धि कौशल से परिपूर्ण हैं।

प्रस्तुत पाठ इसी ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को डरा कर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

बुद्धिर्बलवती सदा पाठस्य सारांश:

‘बुद्धिर्बलवती सदा’ यह पाठ संस्कृत के कथा ग्रन्थ ‘शुकसप्ततिः’ से लिया गया है। इस पाठ में नारी के बुद्धि कौशल को दिखाया गया है। देउला नामक ग्राम में राजसिंह नामक एक राजपूत रहता था। उसकी पत्नी बुद्धिमती किसी आवश्यक कार्य से अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर अपने पिता के घर जा रही थी। जंगल का रास्ता था, अचानक एक बाघ दिखाई पड़ा बाघ को देखते ही उसने अपने पुत्रों को पीटते हुए जोर से बोली तुम अकेले-अकेले ही बाघ को खाने के लिए क्यों झगड़ते हो यदि यह एक ही है तो इसे बाँट कर खा लो बाद में कोई दूसरा ढूँढ लेंगे। बुद्धिमती के इन वचनों को सुनकर बाघ डर कर भाग गया और सोचने लगा कि यह कोई बाघमारी है।

भय से व्याकुल बाघ को देखकर रास्ते में एक गीदड़ ने हँसते हुए पूछा कि तुम क्यों दौड़े जा रहे हो ? बाघ ने उत्तर में कहा कि तू भी कहीं जाकर छिप जा। जिसके बारे में सुना जाता है, वह बाघमारी हमें मारने के लिए आ पहुँची है। गीदड़ ने बाघ को विश्वास दिलाया कि मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ और फिर देखना कि वह तुम्हें सामने दिखाई भी नहीं पड़ेगी, यदि ऐसा न हुआ तो तुम मुझे मार देना। विश्वास को दृढ़ करने के लिए गीदड़ ने कहा कि तुम मुझे अपने गले में रस्सी से बाँधकर ले जाओ। बाघ तैयार हो गया। गीदड़ सहित आए हुए बाघ को देखकर बुद्धिमती ने बड़ी चतुराई

और साहस से काम लेते हुए गीदड़ को डाँटते हुए कहा-अरे धूर्त गीदड़ ! तूने पहले तीन बाघ दिए थे और आज एक ही लाकर तू कहाँ जा रहा है ? इतना कहकर बुद्धिमती बड़ी तेजी से उनकी तरफ दौड़ी। बाघ भी यह सुनकर गीदड़ को गले में बाँधे हुए ही वहाँ से दौड़ गया। इस प्रकार बुद्धिमती ने अपनी बुद्धि और साहस के बल पर बाघ से अपनी रक्षा कर ली। अत: ठीक ही कहा है कि सदा सभी कार्यों में बुद्धि बलवती होती है।

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